Novel Cover Image

Our Incomplete Lovestory

User Avatar

Sadhana Agarwal

Comments

0

Views

418

Ratings

1

Read Now

Description

लवस्टोरीज बहुत होती है मगर जरूरी नहीं हर वो स्टोरी पूरी हो ऐसा ही कुछ हुआ इस कपल के साथ नहीं हो पाए वो एक और बिछड़ गए एक दूसरे से हमेशा के लिए मगर कहते है न सच्चा प्यार जरूर मुकम्मल होता है इस जनम में नहीं तो अगले जनम में अब इनको मिला है एक...

Total Chapters (38)

Page 1 of 2

  • 1. Our Incomplete Lovestory - Chapter 1

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    शुभम मिश्रा ने आज ही मुंबई में कदम रखा था। उसका मानो कोई सपना पूरा हो गया। वो बचपन से ही मुंबई जाना चाहता था, जैसे मुंबई से उसका कोई पुराना रिश्ता था। लेकिन मुंबई में उसका कोई रिश्तेदार नहीं था, और कोई वजह भी उसके पास नहीं थी मुंबई जाने की। लेकिन जब उसकी पढ़ाई पूरी हुई और उसे मुंबई से जॉब का ऑफर आया, तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उसकी मॉम ने भी कहा था, "तू हमेशा मुंबई जाना चाहता था। अब मुंबई ने खुद तुझे बुलाया है।"

    शुभम ने अपने रहने के लिए रेंट पर छोटा सा फ्लैट लिया था। शुभम मिडिल क्लास फैमिली से था। वो अपने घर को सेट कर रहा था। कुछ जरूरत का सामान तो वो अपने घर से लाया था, लेकिन कुछ फर्नीचर उसको लेना था।

    वो मुंबई के सबसे पुराने दुकान पर गया, जहाँ पर पुराना सामान मिलता था। उसकी नज़र एक अलमारी पर गई जो बहुत पुरानी थी, लेकिन देखने में बहुत ही सुंदर लग रही थी। वो उसे लेकर घर आया। शुभम अपना सामान उस अलमारी में रख रहा था, तभी उसकी नज़र अलमारी में बनी सीक्रेट डोर पर गई। वह लॉक थी। शुभम ने अपना लकी नंबर लगाया और लॉक खुल गया। शुभम को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने देखा, अंदर एक डायरी रखी हुई है। शुभम उसे निकालकर खोलता है। उस पर बड़े अक्षरों में लिखा था:

    "में खुशी"

    शुभम आगे देखता है। उसमें लिखा था:

    "आज मेरा मुंबई में पहला दिन था। मैं अपनी दोस्त रिया के खाली पड़े फ्लैट में रहने आई थी। मुंबई में मेरी जॉब लग गई थी। मॉम-डैड तो मुझे आने नहीं दे रहे थे। मैं भी कभी अकेले उनसे दूर नहीं गई थी। लेकिन ये जॉब मेरा सपना था, और मेरा सपना पूरा करने में और मेरे मॉम-डैड को मेरे मुंबई आने के लिए राजी करने में मेरी दोस्त रिया ने मेरा बहुत साथ दिया। उसने ही मॉम-डैड से कहा था कि उनका अपार्टमेंट बहुत सेफ है, और जिस कंपनी में मुझे जॉब मिली है, उस कंपनी का कैब मुझे घर से लेकर जाएगा और छोड़कर जाएगा। मॉम-डैड तो मान गए, लेकिन मैं भी कभी अकेले यूँ अनजान शहर में नहीं गई थी। मेरा दिल बहुत घबरा रहा था, लेकिन मैं जाना भी चाहती थी। फिर रिया ने भी मुझे समझाया था कि, 'तुम कभी अकेले बाहर गई नहीं हो ना, बस इसीलिए तुम थोड़ी नर्वस हो। तुम देखना, ये सफ़र तुम्हारी ज़िंदगी का सबसे सुनहरा सफ़र होगा।' बहुत सारे सपने लेकर मैं मुंबई में आई थी, लेकिन मुंबई में कदम रखते ही मेरा पर्स चोरी हो गया। कंपनी में तो मुझे एडवांस मिलने वाला था, लेकिन अभी मैं रोड पर खड़ी थी, और अपार्टमेंट जाने के लिए मेरे पास टैक्सी के पैसे भी नहीं थे। अनजान शहर और मैं अकेली। अंधेरा भी होने वाला था। मैं बहुत घबरा गई थी। मुझे रोना आ रहा था।"

    तभी वहाँ एक लड़का आया, जो देखने में बहुत ज़्यादा हैंडसम था। उसने मुझसे कहा, "कोई प्रॉब्लम है क्या?" मैंने कुछ नहीं कहा। तभी उस लड़के ने कहा, "मैं बहुत टाइम से देख रहा हूँ आप यहाँ अकेले खड़ी हो, और कुछ प्रॉब्लम में भी लग रही हो। अगर मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ तो कहिए।"

    "मैंने उसे अपने पर्स चोरी होने की बात बताई और ये भी कहा कि मेरे पास टैक्सी के पैसे नहीं हैं। तो उसने कहा, 'मैं आपको छोड़ देता हूँ। कहाँ जाना है आपको?' तभी वह इशारे से गाड़ी बुलाता है। ड्राइवर गाड़ी लेकर आता है, तो वह लड़का मुझे गाड़ी में बैठने का इशारा करता है।"

    "मैं बहुत डर गई उसको देखकर। ये तो मुझे समझ आ गया था कि वह बहुत अमीर है। मैंने अपने मन में ही सोच लिया, 'अमीर बाप की बिगड़ी औलाद। पता नहीं मुझे कहाँ ले जाए, क्या करे मेरे साथ?' इसलिए मैंने गुस्से में उससे कहा, 'चले जाओ यहाँ से।'"

    "वो शायद समझ गया कि मैं क्या सोच रही हूँ। उसने कहा, 'जो आप सोच रही हैं वो सही भी है, ऐसे किसी के साथ नहीं जाना चाहिए, लेकिन मैं ऐसा नहीं हूँ। मैं तो बस आपकी मदद कर रहा था। अगर आप मेरे साथ नहीं आ सकती तो...' कुछ रुपए मुझे देते हुए कहा, 'ये रख लीजिए और टैक्सी करके घर चले जाना। रात होने वाली है।' मैंने रुपए ले लिए और उसका धन्यवाद करते हुए कहा, 'मैं बाद में आपको लौटा दूँगी। आप कहाँ रहते हैं?' तो उसने कहा, 'जैसे देने के लिए मिल गया, वैसे वापस लेने के लिए भी कहीं मिल जाऊँगा, तो लौटा देना।' इतना कहकर वो अपनी गाड़ी में बैठकर चला गया। मैं भी टैक्सी करके अपने फ्लैट में आ गई। कल मुझे ऑफिस जाना था और मैं बहुत थक भी गई थी, इसीलिए मॉम ने जो भी खाने का सामान दिया था, वहीं खाकर सो गई।"

    शुभम पूरी तरह से उस स्टोरी में खो गया था कि उसका फ़ोन बजा। वो एकदम से चौंका। देखा तो उसकी मॉम का फ़ोन था। उसने उठाया तो उसकी मॉम ने कहा, "खाना खा लिया क्या?" तो शुभम ने टाइम देखा तो 10 बज रहे थे। उसको मालूम था जब तक वो नहीं खाएगा उसकी मॉम भी नहीं खाएगी। इसीलिए उसने झूठ बोल दिया कि उसने खाना खा लिया है।

    उसकी मॉम को पता था कि वो झूठ बोल रहा है। उसकी मॉम ने कहा, "तुम्हारी बैग में खाना रखा है, खा लेना।" शुभम सोचने लगा, 'मैंने मॉम को इतना मना किया खाने के लिए, फिर भी उन्होंने खाना पैक कर ही दिया।' लेकिन सच में उसे इसकी बहुत ज़रूरत भी थी। वो बहुत थक गया था। बाहर जाकर खाना खाने की उसकी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं थी। उसने तो यही सोचा था कि आज बिना कुछ खाए सोना पड़ेगा। लेकिन उसकी मॉम के होते हुए ऐसा कभी हुआ है जो आज होता। शुभम ने अपनी मॉम को sorry और थैंक्यू कहा। उसकी मॉम ने कहा, "खाना खाकर सो जाना। कल ऑफिस भी तो जाना है।" शुभम ने कहा, "आप भी खाना खा लो।" शुभम का तो मन था उस डायरी को पढ़ने का, लेकिन उसने सोचा, 'कल ऑफिस का पहला दिन है, तो कोई रिस्क नहीं।' शुभम खाना खाकर सो गया, लेकिन उसके दिमाग में तो खुशी घूम रही थी। वह सोच रहा था कि मेरी और उसकी स्टोरी कितनी same है। आगे उसके साथ क्या हुआ होगा और मेरे साथ क्या होगा।

  • 2. Our Incomplete Lovestory - Chapter 2

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले भाग में हमने देखा था कि शुभम मुंबई आया और उसे एक डायरी मिली, जो खुशी की थी। शुभम खुशी के बारे में पढ़ता है, जब खुशी पहली बार मुंबई आई थी।


    अगली सुबह, शुभम तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया। रास्ते में, एक छोटी लड़की सड़क के किनारे गाड़ियों के पास जाकर फूल बेच रही थी। शुभम ने उसे देखा। वह नंगे पैर घूम रही थी। शुभम पास की दुकान से उसे चप्पल लाकर दिया। वह बच्ची खुश हो गई और शुभम को फूल दिए। यह सब कुछ गाड़ी में बैठा एक आदमी देख रहा था। वह आदमी शुभम की फोटो ले लेता है और वहाँ से चला जाता है। शुभम भी अपने ऑफिस चला गया।


    उस आदमी की गाड़ी एक बहुत बड़ी बिल्डिंग के आगे जाकर रुकी। वह अंदर गया तो सब उसे सर झुकाकर "गुड मॉर्निंग" बोलते हैं। वह उस कंपनी का बॉस था, अनुज मोदी। तभी शुभम भी वहाँ पहुँचता है। उसे भी उसी कंपनी में जॉब मिली थी।


    वह आदमी अपने मैनेजर को उस लड़के की फोटो दिखाता है और कहता है, "पता करो ये कौन है और कहाँ रहता है।"
    "यस सर," बोलकर मैनेजर वहाँ से चला जाता है।


    शुभम अपने केबिन में काम कर रहा था। तभी उसे एक फाइल पर बॉस के सिग्नेचर चाहिए थे, तो वह बॉस के केबिन में जाता है। अनुज शुभम को वहाँ देखकर खुश हो जाता है। उसका मैनेजर भी वहीं था। वह अनुज मोदी से बोलता है, "सर, ये तो वही है जो..."


    अनुज इशारे से मैनेजर को चुप करता है। शुभम सिग्नेचर लेकर वहाँ से चला जाता है। अनुज मैनेजर को उस पर नज़र रखने के लिए बोलता है।


    शुभम इन बातों से अनजान अपना काम में लगा हुआ है। अनुज किसी को फोन करता है और बोलता है, "तुम्हारे लिए लड़का मिल गया, जैसा तुम्हें चाहिए, बिल्कुल वैसा है।" सामने से फोन कट हो जाता है।


    शाम को शुभम अपने घर आता है। उसकी नज़र डायरी पर जाती है, जो सामने टेबल पर रखी थी। शुभम कॉफी बनाकर लाता है और कॉफी पीते हुए डायरी पढ़ता है।


    डायरी में लिखा है:


    "आज मेरे ऑफिस का पहला दिन था और मैं लेट हो गई। मैं ऑफिस में भागते हुए जा रही थी कि तभी मैं एक लड़के से टकरा गई। वह लड़का गिरते-गिरते बचा। यह सब देखकर सब लोग अचंभित हो गए। मेरे पास में दो लड़कियाँ खड़ी थीं। वे बोल रही थीं, 'आज तो यह लड़की गई काम से, पता नहीं बॉस इसका क्या हाल करेंगे।'"


    "बॉस का सुनकर तो मेरी साँस ही अटक गई। अब तो मेरी नौकरी गई। मैंने मासूम सा चेहरा बनाकर बॉस के सामने आई और 'सॉरी' बोलने वाली ही थी कि मेरे मुँह से 'तुम' निकल गया। यह वही लड़का था जिसने मुझे टैक्सी के लिए रुपये दिए थे। वह भी मुझे देखकर बोला, 'तुम यहाँ?'"


    "मैंने धीरे से कहा, 'आज मेरे जॉब का पहला दिन है। मैं सॉरी बोलने वाली थी...' उसने मुझे अपने केबिन में आने को बोलकर वहाँ से चला गया।"


    "मैंने सोचा अब तो मेरी नौकरी पक्का गई। कल भी मैंने उसे गलत समझ लिया था। मैं डरती हुई उसके केबिन में गई।"


    "उसने बहुत ही नॉर्मल तरीके से मुझसे बात की, बस मेरे काम के बारे में। बाकी कल या आज जो हुआ उसके बारे में कुछ नहीं कहा। जब मैंने 'सॉरी सर' कहा तो बोला, 'भूल जाओ सब और अपने काम में ध्यान लगाओ।'"


    "मुझे उसका नेचर बहुत अच्छा लगा। मैं अपने काम में लग गई। लंच टाइम में मैंने मैनेजर को बॉस से कहते हुए सुना, 'सर, आज आपका लंच नहीं आया है। बाहर से कुछ ऑर्डर कर दूँ?' तो बॉस ने कहा, 'तुम्हें पता है ना बाहर के खाने से मेरी तबियत खराब हो जाती है। रहने दो, तुम जाओ अपना लंच करो, मैं ठीक हूँ।'"


    "मैंने सोचा मैं घर से जो अपना लंच बनाकर लाई हूँ वह बॉस को दे दूँ। मैं तो बाहर का भी खा सकती हूँ। तो मैंने मैनेजर, जिनका नाम अतुल था, उनके पास गई और उनको अपना लंच बॉक्स देते हुए कहा, 'ये सर को दे दीजिए, मैं बाहर खा लूँगी।' अतुल ने कहा, 'ठीक है, लेकिन तुम रुको, मैं भी चल रहा हूँ, साथ में लंच कर लेंगे।' तो मैंने हाँ में सर हिला दिया।"


    "अतुल बॉस को टिफिन देकर आ गया। हम दोनों पास के रेस्टोरेंट में चले गए। मैंने अतुल को कहा, 'हमारे बॉस बहुत अच्छे हैं ना?' तो अतुल ने कहा, 'हाँ, मेरा तो बहुत अच्छा दोस्त भी है।' मन तो किया और बहुत कुछ जान लूँ बॉस के बारे में, लेकिन मैंने सोचा कहीं वह बॉस को बता न दे कि मैं उनके बारे में पूछ रही थी। इसलिए हमने बस अपने बारे में बात की और वापस आ गए। मेरी अतुल से अच्छी दोस्ती हो गई थी। शाम को घर आते टाइम अतुल ने मुझसे कहा, 'बॉस को खाना बहुत अच्छा लगा।' यह सुनकर मैं खुश हो गई। अतुल ने मुझसे कहा, 'सॉरी, बॉस को मैंने तुम्हारा नाम नहीं लिया, नहीं तो बॉस टिफिन नहीं लेते। इसीलिए मैंने किसी टिफिन सेंटर का नाम लिया था।' मैंने कहा, 'सही किया।'"


    "मैं घर आ गई। मैं बहुत खुश थी। ऑफिस में दिन अच्छा रहा। इतना अच्छा बॉस और अतुल जैसा दोस्त मिल गया।"


    शुभम वह डायरी पढ़ रहा था और उसके बॉस अनुज के घर में अनुज अपनी बेटी से बात कर रहा था। वह शुभम के बारे में बता रहा था कि कैसे उसने उस छोटी लड़की की मदद की। लेकिन उसकी बेटी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। अनुज अपनी बेटी की शादी करना चाहते हैं, लेकिन उनकी बेटी श्रेया शादी के लिए मान नहीं रही थी। इसीलिए जाने कितने लड़कों को वह मना कर चुकी थी। उसने अपने पापा को बोल दिया था, "लड़का अच्छा होना चाहिए, जो दूसरे की तकलीफ को समझे, चाहे वह आप के बराबर हो न हो, तो ही मैं शादी करूँगी।" उसके पापा ने कितने लड़के देखे, लेकिन श्रेया सब में कोई न कोई बुराई निकाल ही लेती। लेकिन श्रेया के इनकार की वजह तो कुछ और ही थी।

  • 3. Our Incomplete Lovestory - Chapter 3

    Words: 1524

    Estimated Reading Time: 10 min

    पिछले भाग में हमने देखा कि अनुज मोदी ने अपनी बेटी श्रेया को शुभम के बारे में बताया। लेकिन श्रेया कुछ सुनना नहीं चाहती थी। श्रेया शादी नहीं करना चाहती थी।

    अपने पापा की ज़िद्द के आगे हार मानकर श्रेया ने अपने पापा से कहा,
    "ठीक है, मैं कल शुभम से मिलूंगी।" इतना कहकर वह अपने कमरे में चली गई।

    उसके पापा खुश हो गए और सोचने लगे कि यह लड़का तो श्रेया को पसंद आ ही जाएगा।

    दूसरी तरफ, शुभम खाना खाकर सोने के लिए गया। तभी उसकी नज़र अपनी डायरी पर गई। शुभम ने फिर से डायरी लेकर पढ़ना शुरू कर दिया।

    डायरी में आगे लिखा था:

    दूसरे दिन सुबह मैं अपार्टमेंट में बने मंदिर में गई। मंदिर से आते वक्त मैंने अपने बॉस को देखा जो लॉन में कुछ बच्चों के साथ खेल रहे थे। बच्चों के साथ वो बिल्कुल बच्चे बन गए थे। मैं यह सब देखकर शौक़ीन हो गई कि हमारे बॉस यहाँ और बच्चों के साथ इस तरह से खेलना! मैं बेसुध सी वहीं खड़ी होकर बॉस को देखने लगी।

    बॉस तो बच्चों के साथ खेलने में मगन थे। वे बच्चों की तरह हँस खेल रहे थे। तभी मेरे पास एक लड़की आई। उसने मुझसे पूछा, "क्या हुआ? आप यहाँ रुक क्यों गई?"

    मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन शायद उस लड़की ने मुझे अपने बॉस को देखते हुए देख लिया था। उस लड़की ने कहा, "वो मेरे भैया हैं, सचिन। हम लोग B-417 में रहते हैं। आपको पहले यहाँ कभी देखा नहीं।"

    उसकी बात सुनकर मैं एकदम से डर गई, जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गई हो।

    मैंने कहा, "मैं B-415 में रहती हूँ।" यह सुनकर उस लड़की ने कहा, "आप रिया की रिश्तेदार हैं?"

    मैंने कहा, "मैं रिया की फ्रेंड हूँ। यहाँ मेरी जॉब लगी है, तो यहाँ रहने आई हूँ।"

    उसने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "मैं दिव्या।"

    मैंने भी अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "मैं खुशी।"

    खुशी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आपसे मिलकर खुशी हुई।"

    मैंने भी मुस्कुरा दिया।

    मैं अपने फ्लैट में आ गई। मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि बॉस की बहन ने मुझे बॉस को देखते हुए देख लिया। वो क्या सोचेगी मेरे बारे में? लेकिन मैं खुश भी थी कि बॉस भी यहीं रहते हैं।

    मैंने अपना खाना बनाया और ऑफिस के लिए निकल गई।

    मैं बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रही थी। तभी मैंने देखा कि एक बस में एक लेडी पानी वाले से दो पानी की बोतल लेती है, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। थोड़ी देर में बस चल गई और पानी वाला पीछे से चिल्लाया, "मैडम, पानी के पैसे!" लेकिन वो लेडी पैसे नहीं देती और बस निकल जाती है।

    मुझे यह देखकर बहुत बुरा लगा। मैं पानी वाले भैया के पास गई और उसे पैसे देते हुए बोली, "ये रख लीजिए।"

    उसने कहा, "लेकिन मेम, आप क्यों दे रही हैं?"

    मैंने कहा, "मैं उसे जानती हूँ। बाद में मैं उससे ले लूँगी।"

    तभी सामने से मैंने देखा कि वो लेडी आ रही थी और उनके साथ सचिन भी था। वो लेडी पास आकर पानी वाले को पानी के पैसे दिए और वहाँ से चली गई।

    पानी वाले भैया ने मेरी तरफ मेरे पैसे बढ़ाए और कहा, "ये लीजिए, आपके पैसे।"

    मैंने चुपचाप से पैसे ले लिए और सचिन की तरफ देखा।

    वो पानी वाला वहाँ से चला गया, तो सचिन ने मुझसे कहा, "आपने पानी के पैसे क्यों दिए?"

    मैंने कहा, "वो बेचारा इतनी मेहनत करता है। अगर ऐसे कोई उसका पैसा नहीं देगा, तो वो काम छोड़ देगा।"

    सचिन ने कहा, "बहुत अच्छा किया आपने।"

    मैंने कहा, "अच्छा तो आपने ही किया कि उसी लेडी से उसको पैसे दिलाए। अब आगे से कोई लेडी ऐसा करने की भी नहीं सोचेगी।"

    सचिन ने जरा सी स्माइल दी और कहा, "आप ऑफिस ही जा रही हैं। अगर अब आपको ग़लत न लगे, तो साथ में चलते हैं।"

    मैंने हाँ में सर हिला दिया और सचिन के साथ जाकर उनकी गाड़ी में बैठ गई।

    ऑफिस में दोनों लिफ्ट से जाने लगे। अचानक ही लिफ्ट बंद हो गई। वह बीच राह पर रुक गई। तब दोनों का बैलेंस बिगड़ते हुए बचा। सचिन ने एकदम से मुझे थाम लिया।

    और पूछा, "यू ओके?"

    मैंने कहा, "आज यह लिफ्ट कैसे रुक गई? आज तक तो कभी ऐसा नहीं हुआ।"

    तब सचिन ने कहा, "आप रुकिए, मैं देखता हूँ।" उसने बहुत कोशिश की लिफ्ट चालू करने की, पर लिफ्ट चालू नहीं हो रही थी। हम काफी देर लिफ्ट के अंदर बंद हो गए थे। मेरा दम घुटने लगा था।

    तब सचिन ने मेरी फिक्र करते हुए पूछा, "मिस खुशी, आप ठीक हैं?"

    मैंने कहा, "सर, बंद जगह पर मुझे घुटन होने लगती है। साँस लेने में प्रॉब्लम होती है। प्लीज़ लिफ्ट खुलवा दीजिए।"

    सचिन मेरे लिए बेहद फिक्रमंद हो गया और बोला, "आप फ़िक्र मत कीजिए। मैं... मैं कोशिश करता हूँ।" उसने ऑफिस के वॉचमैन को कॉल लगा दी और कहा, "देखो, लिफ्ट क्यों बंद हो गई?"

    ऑफिस का वॉचमैन पूरी कोशिश कर रहा था लिफ्ट चालू करने की। वहीं मेरी हालत बहुत ज़्यादा खराब होने लगी। मैं वहीं लिफ्ट से टेक लगाकर गिरने लगी थी। सचिन ने जल्दी से आकर सम्भाल लिया। सचिन मेरे लिए बेहद फिक्रमंद हो गया।

    तब मैंने उल्टे-सीधे साँस लेते हुए कहा, "सर, प्लीज़ हेल्प! मुझे साँस नहीं आ रहा, प्लीज़ लिफ्ट खुलवा दीजिए।" मेरी आँखें चढ़ने लगी थीं। पल्स भी ऊपर-नीचे हो रही थी। सचिन मुझे देखकर घबरा गया और एकदम अपने सीने से लगा बैठा। मैं सचिन की शर्ट पकड़कर खींच रही थी। "सर, प्लीज़ हेल्प!" और लंबे-लंबे साँस ले रही थी।

    सचिन मेरे सर को सहलाते हुए बोला, "मिस खुशी, आपको कुछ नहीं होगा। प्लीज़ थोड़ी देर रुक जाइए।" मैं कुछ ही देर में बेहोश हो गई। सचिन मेरे लिए परेशान हो गया। तब तक लिफ्ट का दरवाज़ा वॉचमैन ने खुलवा दिया था।

    सचिन जल्दी से मुझे लिफ्ट के बाहर लाया और मुझे वहीं पड़े सोफ़े पर लेटा दिया। सचिन मेरा हाथ मसलने लगा। "मिस खुशी..."

    सचिन ने वॉचमैन से कहा, "जल्दी जाकर पानी लेकर आओ।" वो वहाँ से चला गया।

    तब सचिन ने मेरे हाथ-पैर मसलने चालू कर दिए और आवाज़ देने लगा, "मिस खुशी, प्लीज़ आँखें खोलिए। प्लीज़ आँखें खोलिए।" गालों को थपथपाने लगा। सचिन की समझ में कुछ नहीं आया और उसने मुझे माउथ टू माउथ देने के बारे में सोचा और उसने वैसे ही किया। वह मुझे अपने मुँह से साँस देने लगा। कुछ ही पल में मुझे बहुत लंबी साँस आई और मैं उठकर खांसने लगी।

    अब सचिन ने मेरी पीठ सहलाना शुरू कर दी और पूछा, "यू ओके?"

    मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा, "जी सर, फ़ाइन।"

    तब तक वॉचमैन पानी लेकर आ गया था। सचिन ने मुझे पानी पिलाया और सुकून की साँस लेने लगा। मैं बिल्कुल ठीक हो गई तो सचिन ने एकदम गले लगा लिया और कहा, "मैं बहुत घबरा गया था आपको लेकर। आप ठीक तो हैं? सच में ठीक हैं ना?"

    मैं उसके इस रिएक्शन से पूरी तरह शौक़ीन हो गई। फिर उसे खुद से अलग करके वहाँ से जाने लगी। अब सचिन ने मेरा हाथ पकड़ लिया।

    और कहा, "सॉरी मिस खुशी, मेरा कोई ग़लत इंटेंशन नहीं था। मैं आपके लिए थोड़ा घबरा गया था। बस इस बीच आपको माउथ टू माउथ देते देते किस कर बैठा। आई एम सॉरी।"

    तब मैंने धीरे से कहा, "इट्स ओके सर।" अब मुझे चलना चाहिए। इतना कहकर वहाँ से जाने लगी। और जाते हुए वही मंज़र याद करने लगी जो अभी सचिन ने किया था। मैं वहाँ से अपनी केबिन पर गई और अपनी कुर्सी में आकर बैठ गई।

    जितना मैं अपने बॉस से मिलती, उतना ही उनके करीब जाने लगती।

    एक दिन मैं घर पर थी कि दिव्या मेरे घर पर आई। उसने मुझे कहा कि आज भैया का बर्थडे है। घर पर छोटी सी पार्टी रखी है, तुमको भी आना है।

    दिव्या के जाने के बाद मैं सोचने लगी कि सचिन को क्या गिफ्ट दूँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

    मैंने सोचा, यही अच्छा मौका है, मैं सचिन से अपने प्यार का इज़हार कर देती हूँ। मैं मार्केट गई। मैंने एक लव कार्ड और एक रोज़ लिया और उसे पैक करवा के मैं सचिन की बर्थडे पार्टी में गई।

    कार्ड में लिखा था, "आई लव यू। तुम जिंदगी हो मेरी। बस तुम ही पहली और आखिरी मोहब्बत हो, समझे मिस्टर सचिन?"

    पार्टी में ज़्यादा लोग नहीं थे। बस कुछ उनकी फैमिली के और कुछ सचिन के दोस्त और कुछ दिव्या के दोस्त।

    अतुल भी पार्टी में था। मैं अतुल के अलावा किसी को नहीं जानती थी, इसलिए पार्टी में पूरा टाइम मैं अतुल के साथ ही थी। मैंने सचिन को गिफ्ट दिया, तो सचिन ने मुझे हैरानी से पूछा, "तुम यहाँ?"

    मैं कुछ कहती उससे पहले दिव्या ने कहा, "ये खुशी है। हमारे एक प्लैट छोड़कर रहती है। मेरी नई फ्रेंड है। लेकिन आप इसे कैसे जानते हैं?"

    सचिन ने कहा, "खुशी हमारे ऑफिस में काम करती है।"

    दिव्या ने मेरी तरफ देखकर कहा, "तुमने मुझे बताया नहीं कि तुम भैया के साथ उनके ऑफिस में काम करती हो।"

  • 4. Our Incomplete Lovestory - Chapter 4

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 5. Our Incomplete Lovestory - Chapter 5

    Words: 1083

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले भाग में हमने देखा था कि खुशी, सचिन के साथ उसके घर दिव्या से मिलने गई थी। सचिन ने उन दोनों को ऑफिस जाने के लिए कहा था।

    रस्ते में, दिव्या मन ही मन हँस रही थी।

    मैंने कहा, "तू हँस क्यों रही है?"

    दिव्या ने हँसी रोककर कहा, "क्योंकि मुझे तेरी कल की शायरी याद आ गई। भैया के लिए तूने जो शायरी लिखी थी, वो मैंने पढ़ी थी। यार, तू कुछ भी लिखती है! क्या है तू?"

    मैंने कहा, "तेरी भाभी हूँ।" फिर कहा, "चल, शायरी-वायरी छोड़। आज मैं अपनी ससुराल आई थी, यार, पर सास-ससुर से तो मिली ही नहीं। उनकी याद आ रही है यार। वैसे, वो दोनों कहाँ हैं?"

    दिव्या ने कहा, "मॉम, डैड और रचित भैया गाँव में हैं। जब से सचिन भैया ने ये बिज़नेस संभाला है, मॉम-डैड गाँव चले गए हैं। उनको गाँव पसंद है और रचित भैया को भी, लेकिन मुझे गाँव पसंद नहीं। इसीलिए मैं यहाँ भैया के साथ रह गई हूँ।"

    कुछ देर बाद, ऑफिस में, सचिन अतुल के साथ अपने केबिन में बैठा था। अतुल ने ऑफिस में कार्ड वाली लड़की के बारे में कुछ लड़के-लड़कियों को बता दिया था और उनसे पूछ रहा था कि वो कौन है। "सच बता दे," उसने कहा।

    लेकिन सभी अनजान थे। सचिन अपनी सीट पर सर झुकाकर बैठा था और बाकी सभी लड़के-लड़कियाँ वहाँ खड़े थे।

    "वैसे सर, हमारे ऑफिस में तो वो लड़की है नहीं, तो अब क्या करोगे? अब ये कौन दीवानी आ गई आपकी?" एक लड़की इतना कहकर उसके करीब आ गई।

    तब सचिन ने कहा, "देखो, मेरा वैसे ही सर बहुत दर्द कर रहा है। दिमाग खराब मत करो। कोई आइडिया देना है तो बोलो, वरना कोई मत बोलो, प्लीज़। मेरा सर दर्द कर रहा है।" सचिन इतना कहकर अपनी फाइल खोलने लगा।

    तब दूसरी लड़की ने कहा, "सर, आप उस लड़की के कार्ड नहीं पढ़ोगे, तो वो खुद नहीं रखेगी।"

    अतुल बोला, "हाँ, ये सही है। आप अपने काम पर ध्यान दें।"

    सचिन गहरी सोच से बाहर आया और कहा, "अब ऐसा ही होगा।" अनु, जिस लड़की ने ये आइडिया दिया था, उसका नाम अनु था, और सचिन को उसका आइडिया बहुत पसंद आया।

    तब एक लड़के ने कहा, "मगर सर, हमें पता करना चाहिए ये लड़की कौन है? ये सब क्यों कर रही है? क्या वो सच में मोहब्बत करती है या फिर कोई ड्रामा है? हमें सबके फाइल चेक करने होंगे। क्योंकि पता करना ज़रूरी है।" सारे लड़के-लड़कियों की तरफ देखने लगे, और सबको उस लड़के का आइडिया ठीक लगा।

    तब दूसरे लड़के ने कहा, "हाँ, ये सही है। हम लड़के हैं, हमें बस लड़कों के फाइल चेक करने मिल सकते हैं, मगर तुम सारी लड़कियाँ जाकर लड़कियों के फाइल चेक कर सकती हो।"

    "हाँ यार, आइडिया बुरा नहीं है। हम आज ही लग जाते हैं।" अतुल ने उन्हें समझा दिया क्या करना है। सभी उसकी हेल्प के लिए मान गए और काम पर लग गए। सारे लड़के-लड़कियाँ अलग-अलग जाने लगे। सब सचिन की मदद के लिए तैयार हो गए क्योंकि वह दिल का बहुत अच्छा था। कभी किसी का बुरा नहीं चाहता, न किसी से बदतमीज़ी से पेश आता था। हमेशा सिर्फ़ अपने काम से काम रखता था। इसीलिए सारी लड़कियाँ भी उसकी हेल्प के लिए मान गईं, क्योंकि सारी लड़कियाँ उसकी दीवानी थीं। वो भी जानना चाहती थीं ये कार्ड वाली लड़की आखिर कौन है। इसीलिए सभी मान गईं।

    मैंने और दिव्या ने देखा वो अपने हाथ में ग्रीटिंग कार्ड लेकर फाइल खोलकर उसकी हैंडराइटिंग चेक कर रही थी। तो दिव्या वहाँ आ गई और उसने आते ही पूछा, "हेलो, ये आप क्या कर रही हैं?"

    वो लड़की जानती थी दिव्या सचिन की बहन है। दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "बोले ना, आप यहाँ क्या करने आई हैं? मैंने अभी देखा था आप हमारी सारी फाइल्स चेक कर रही हैं।"

    तब एक लड़की ने कहा, "दिव्या, तुम तो जानती हो, तुम्हारे भाई को कोई लड़की परेशान कर रही है। तो हम बस उसकी हेल्प कर रहे हैं। यहाँ जितने भी फाइल हैं, हम चेक कर रहे हैं। किसकी राइटिंग इस कार्ड वाली लड़की की राइटिंग से मैच होती है।"

    "अच्छा, तो तुम… मेरा मतलब, आप उस लड़की को ढूँढ रही हो?" मैंने अपनी शरारत भरी हँसी रोककर पूछा।

    उस लड़की ने कहा, "हाँ, हम बस उसे ढूँढ रहे हैं।"

    अब दूसरी लड़की बोली, "अनु, दिव्या और खुशी की फाइल भी चेक कर लो।"

    तब अनु ने हँसते हुए कहा, "तुम पागल हो यार! ये सचिन सर की बहन है और ये खुशी इसकी बेस्ट फ्रेंड। इनकी फाइल छोड़ दो।"

    मैंने शरारत से कहा, "आप लोग ऐसा करें। यहाँ के जो बैग बचे हैं, वो हम खुद चेक कर लेंगे। आप जाएँ।"

    "ठीक है, हम चलते हैं।" वो लड़कियाँ कहकर चली गईं। अब उन दोनों ने गहरी साँस ली, क्योंकि वो अभी पकड़े हुए बच गई थीं।

    दिव्या ने कहा, "यार, भाई का दिमाग काफी चलता है! हम कैसे भूल गए?"

    मैंने अपने अंदाज़ में कहा, "दिव्या, तू डर मत। मैं उनको कभी नहीं मिलूंगी।"

    तब दिव्या ने मासूमियत से कहा, "अगर तू नहीं मिली, तो कौन मिलेगी?" दिव्या इसका मतलब समझ नहीं पाई।

    मैंने घूरकर कहा, "मेरा मतलब, अभी नहीं मिलूँगी। जब तक उनको मुझसे प्यार नहीं हो जाता, तब तक। प्यार होते ही मैं खुद उनके सामने आ जाऊँगी।"

    दिव्या उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी।

    दिव्या अपने भैया के पास गई और कहा, "आपको वो कार्ड वाली लड़की मिल गई?" दिव्या यहीं रुक गई।

    सचिन ने थककर कहा, "नहीं, अभी नहीं मिली, मगर जल्दी मिल जाएगी।"

    दिव्या ने शरारत से कहा, "भैया, वो आपसे इतना प्यार करती है, आप मान क्यों नहीं लेते?"

    सचिन ने सोचकर कहा, "मुझे नहीं लगता वो लड़की मुझसे प्यार करती है।" सचिन और दिव्या की बातें मैं खूब ध्यान लगाकर सुन रही थी।

    "क्यों भैया?" दिव्या ने जोर देते हुए पूछा, "आपको ऐसा क्यों लगता है कि वो आपसे प्यार नहीं करती?"

    सचिन ने अब बैठकर कहा, "वो लड़की अगर वाकई मुझे चाहती है, तो कुछ अलग करे। कुछ ऐसा, जिससे मुझे तो क्या, किसी को भी यकीन हो जाए उसका प्यार सच्चा है।"

    "और वो आपके लिए ऐसा क्या करे?" दिव्या जानबूझकर पूछने लगी ताकि मैं कुछ नया करने की कोशिश करूँ। मैं भी सचिन की बातें सुनते हुए मुस्कुरा रही थी, जैसे उसके मन में कुछ चल रहा हो।

    सचिन ने अब उठते हुए कहा, "कुछ भी करे, मगर ऐसा जो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ।"

  • 6. Our Incomplete Lovestory - Chapter 6

    Words: 1064

    Estimated Reading Time: 7 min

    पिछले भाग में हमने देखा था कि सचिन ने दिव्या से कहा था, "अगर वो लड़की सच में मुझसे प्यार करती है, तो ऐसा कुछ करे जिससे मुझे नहीं, सबको उसके प्यार पर यकीन हो जाए।"


    अगले दिन मैं ऑफ़िस आ गई थी और दिव्या को पूरे ऑफ़िस में ढूँढ रही थी, लेकिन दिव्या आज भी नहीं आई थी। मुझे आज अपने ऐड की रिहर्सल करवानी थी, हमारी कंपनी के ऐड की। मुझे उसके बारे में सबको समझाना था।


    मैंने दिव्या से कहा था, "वह आ जाए, हम दोनों मिलकर समझाएँगे।" "खैर, तुम लोग यहीं रुको, मैं दिव्या को बुलाकर लाती हूँ। यह लड़की फ़ोन भी नहीं उठा रही है। पता नहीं कहाँ चली गई। इसको तो बाद में बताऊँगी।" इतना कहकर मैं वहाँ से बाहर हॉल में आ गई और फ़ोन करने लगी।


    उधर, दिव्या का फ़ोन बार-बार बज रहा था। मैं भी परेशान होकर कॉल पर कॉल कर रही थी।


    दिव्या अब थक गई थी। अब उसे फ़ोन उठाना पड़ा और फ़ोन उठाते ही बोली, "खुशी, प्लीज़, मैं अभी बात नहीं करना चाहती।"


    मैंने कहा, "दिव्या, बस कर यार, क्या हुआ है? दिक्क़त क्या है? बता दे मुझे, फिर बात मत करना।"


    दिव्या ने गुस्से में कहा, "खुशी, कुछ दिक्क़त नहीं है। बस मैं बात नहीं करना चाहती।"


    "ठीक है, तो मत कर, मगर ऑफ़िस आजा। तुझे पता है ना आज क्या है?"


    दिव्या ने गुस्से में कहा, "हाँ, पता है, मगर मैं आज ऑफ़िस नहीं आ रही हूँ। तू खुद मैनेज कर ले।"


    "दिव्या, तू बेवफ़ा है! मैं नहीं जानती थी मुझे तुझसे प्यार क्यों हुआ! आई हेट यू!" मैं एक्टिंग करने लगी।


    तब दिव्या ने मुस्कुराकर कहा, "यह अपनी स्टोरी की लाइन है ना? किसी और को जाकर सुना, मुझे मत पका।"


    मैंने अब आखिरी बार कहा, "चल, ज़्यादा मत कर! ऑफ़िस आज आ, वरना बहुत बुरा होगा!" मैंने धमकी देकर फ़ोन काट दिया और कहा, "अब बारी है सचिन की। बहुत सोच रही हूँ मुझे ढूँढने का मैं इतनी आसानी से मिल जाऊँ।" मैं सचिन के केबिन में आने लगी, मगर सचिन बाहर हॉल में ही दिख गया।


    तब मैं खुद से बोली, "लगता है अपना यह कार्ड सर की केबिन की जगह यहीं डालना होगा, तभी कुछ होगा।" वह कार्ड केबिन के दरवाज़े पर रख आई।


    सचिन जब वहाँ आया, तो उसने देखा वहाँ कार्ड रखा है। वह बिना उठाए ही अंदर चला गया और अपनी सीट पर बैठ गया। मेरा चेहरा उतर गया। मैं वहीं छिपकर देख रही थी।


    अतुल भी सचिन के केबिन में जा ही रहा था कि कार्ड देखा, तो वह उठकर अंदर ले आया। "सर, एक और कार्ड!" वह कार्ड दिखाकर बोला और हँसने लगा। "लगता है यह लड़की तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी।"


    "देखूँ तो आखिर है क्या इसके अंदर?" अतुल कार्ड खोलने लगा।


    "यहाँ लाओ उसको।" सचिन ने कार्ड छीन लिया। वह नहीं चाहता था इसमें जो लिखा है वह पढ़कर सभी उसकी मज़ाक बनाएँ।


    "ओह, लगता है प्यार हो गया इन कार्ड से!"


    सचिन ने कार्ड देखकर कहा, "ऐसा कुछ नहीं है, ना कभी होगा।"


    तभी दिव्या आ गई और मुझे पकड़ लिया। "कहाँ जा रही है?" उसे पता था मैं सचिन के पीछे जा रही हूँ, इसलिए रोक लिया।


    मैंने कहा, "ओह, अच्छा हुआ तू आ गई!" एकदम उसकी खुशी से गले लगी।


    दिव्या ने कहा, "हाँ, तेरी वजह से आ गई।"


    मैंने शरारत से कहा, "चल, तू रुक, मैं २ मिनट में आती हूँ।"


    दिव्या ने कहा, "मत जा भाई के पीछे, वह उदास है। तुझे नहीं पता कल क्या हुआ हमारे घर।"


    मैंने उदासी से पूछा, "क्या हुआ था?"


    दिव्या ने कहा, "डैड ने मेरी फ़्रेंड की शादी में जाने से इनकार कर दिया, तो भाई भड़क गए। उन्होंने डैड-मॉम दोनों को सुनाई। तब से उदास है, ना कुछ खाया है, ना पिया है। वह सारा गुस्सा तुझ पर निकाल देगा।" वह फ़िक्रमंद थी।


    मैंने कहा, "सचिन का गुस्सा ठंडा करके आती हूँ, उनको हँसाकर आती हूँ।"


    दिव्या ने हाथ पकड़ लिया और कहा, "खुशी, मत जा, भाई भड़क जाएँगे।"


    "तू रुक!" मैंने उसकी नहीं सुनी और डाँट लगाकर कहा, "मैं तेरी होने वाली भाभी हूँ, इतना हक़ तो बनता है।"


    दिव्या ने नाराज़गी से कहा, "हाँ, बस हसबैंड को हँसाकर आ! यहाँ दोस्त उदास है, उसका कुछ नहीं।"


    अबकी बार मैंने शरारत से कहा, "तुझे बाद में देखूँगी। वैसे भी दोस्ती या प्यार में उसे किसी को चुनना पड़े तो प्यार को ही चुनना चाहिए, क्योंकि प्यार प्यार है और यार दिलदार है। अब मैं चलती हूँ।"


    उसकी आधी बातें दिव्या के सर से होकर चली जाती थीं और अब भी ऐसा ही था। "तू नहीं समझी ना?" मैंने उसकी अजीब सी शक्ल देखकर पूछा।


    "नहीं, मैं सर हिला गई। मैं कुछ नहीं समझी।"


    मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "जब प्यार होगा, तभी यार होगा। मतलब यह है, मेरी जान, पहले तेरे भाई को हँसाना होगा, तू खुद हँस पड़ेगी।"


    दिव्या ने मुँह बनाते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता तू उनको हँसा पाएगी। मत जा।"


    मैंने ज़िद करके कहा, "आज तो मैं उनको हँसाकर ही रहूँगी, चाहे कुछ भी हो जाए! लगी शर्त!"


    दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "हाँ, लगी! देखते हैं तू उनको हँसाती है या नहीं।"


    "देख लेना!" मैंने कहा।


    सचिन के हाथ में अब भी मेरा कार्ड था, जो वो अतुल से छीनकर लाया था। मन में था इसको खोलकर पढ़ूँ या ना पढ़ूँ, फिर दिल ने कहा, तो वह कार्ड को खोलकर पढ़ने लगा।


    "क्यों मुझे ढूँढ रहे हो? तुम्हें क्या लगता है तुम मुझे ढूँढ लोगे? हम इतनी आसानी से मिलने वाले नहीं हैं। खैर, यह सब छोड़ो और यह सुनो: आई लव यू! तुम ज़िन्दगी हो मेरी! बस तुम ही पहले और आखिरी मोहब्बत हो! समझे मिस्टर सचिन? अब आँखें फाड़कर पढ़ते ही रहोगे! यह कार्ड बंद भी करोगे? यह मैंने लास्ट में लिखा था।"


    सचिन ने कार्ड बंद कर लिया। "देखो, मैं जानता हूँ तुम यहीं कहीं हो।" सचिन चारों ओर देखकर अंदाजा लगाकर पूछने लगा, "तुम जो भी हो, प्लीज़ यह मज़ाक बंद करो।" मैं यह सुनकर शरारत से हँस रही थी।


    सचिन ने कहा, "देखो, मुझे प्यार-प्यार में बिलीव नहीं है। तुम अपना और मेरा वक़्त बर्बाद कर रही हो।" इतना कहकर जाने लगा।


    मैंने एक कार्ड और उसकी टेबल पर रख दिया। फिर वापस वहीं छिप गई। सचिन नया कार्ड देखकर समझ गया। वह लड़की पक्का यहीं है, इसलिए कार्ड उठाए बगैर मुझे ढूँढने लगा।

  • 7. Our Incomplete Lovestory - Chapter 7

    Words: 1366

    Estimated Reading Time: 9 min

    पिछले भाग में हमने देखा, सचिन को यकीन हो गया कि वह लड़की यही है। उसने कार्ड उठाए बिना, उस लड़की को ढूँढना शुरू कर दिया।

    "मैं समझ गया हूँ, तुम यही हो। चलो अब सामने आ जाओ। चुपचाप बाहर आओ, वरना बहुत बुरा होगा।" सचिन की धमकियों से मैं डरने लगी।

    "अब मैं कहीं पकड़ ना जाऊँ, इसलिए चुपचाप से बाहर निकल जाना चाहिए।" मैं वहाँ से चुपचाप निकल गई।

    सचिन उसे वहीं ढूँढते-ढूँढते थक चुका था। फिर वह वापस अपनी सीट पर आ गया और कार्ड देखकर खुद से कहा, "अब ना जाने इस कार्ड में क्या लिखा होगा?" वह सोचकर कार्ड उठाकर पढ़ने लगा।

    "इतना गुस्सा, इतनी उदासी, कभी-कभी ठीक लगती है। हर वक्त चेहरा उतरा हुआ ठीक नहीं लगता। आप बहुत अच्छे हो, इसका मतलब यह नहीं कि उदासी से चेहरा सड़ा लो। चलो माना तुम अपनी फैमिली की वजह से उदास हो, इसका मतलब यह नहीं कि तुम खाना खाना ही छोड़ दो। चुपचाप खाना खा लो, वरना... सॉरी, मैं धमकी दे रही हूँ, मगर तुम्हें नहीं पता, मैं बहुत खतरनाक हूँ। चलो, एक शायरी सुनाती हूँ। वह क्या है ना, मैं तुम्हें उदास नहीं देख सकती, क्योंकि तुम मेरी खुशी हो, मेरी जिंदगी हो, मेरी जान हो। अपनी जान को खुश नहीं देखूंगी, तो कैसे देखूँगी? चलो, अब ज्यादा बातें नहीं, अब शायरी सुनो।"

    मोहब्बत न सही, मुकदमा ही कर दे,
    तारीख-दर-तारीख मुलाकात तो होगी।

    मैं TikTok की रानी, तू Facebook का राजा,
    मिलना है तो Facebook पे आजा।

    मेरी यह शायरी सचिन को मुस्कान दे गई। ना जाने क्या एहसास था जो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। अपने सर पर हाथ मारते हुए, उसने कार्ड वहीं रख दिया।

    अब दिव्या ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, "तू बता, अंदर क्या हुआ? भैया हँसे या नहीं?"

    मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा, "पता नहीं यार, मुझे वहाँ से भागना पड़ा, वरना मैं पकड़ जाती।" फिर अचानक नज़र सचिन पर गई जो मुस्कुराता हुआ उनकी ही तरफ आ रहा था। मैं उसे देखती रह गई।

    "खुशी, क्या हुआ?" दिव्या ने मेरी हैरान शक्ल को देखकर पूछने लगी।

    "वह देख," मैंने कहा, "दिव्या, सचिन को देखो, वह मुस्कुरा रहा है।"

    "भाई हँस रहे हैं?" दिव्या हैरान हुई।

    "मैंने कहा था ना, मैं जो कहती हूँ, वह करती हूँ। हँसा दिया ना तेरे भाई को?" अबकी बार मैं उछलकर बोली, "देख कितना खुश है!"

    दिव्या ने कहा, "मैं नहीं मानती। तू यहीं रुक, मैं अभी भैया से जाकर पूछती हूँ, उनके हँसने की वजह क्या है।" दिव्या सचिन के सामने आकर रुक गई। "भाई, आप ठीक तो हैं? हँस क्यों रहे हैं?" वह जानना चाहती थी, यह मुस्कान खुशी ने दी है या किसी और ने।

    सचिन हँसकर बोला, "वही है ना, कार्ड वाली लड़की! लगता है आदि नहीं, पूरी पागल है। पता नहीं क्या-क्या लिखकर कार्ड भेजती है।"

    मैं भी यह सुन रही थी। दिव्या ने हैरानी से कहा, "आप कार्ड की वजह से हँस रहे हैं?" अब जोर देते हुए पूछा, "बताएँ।"

    तब सचिन ने कहा, "हाँ, मैं क्यों हँसने लगा? इस कार्ड की वजह से।" वह अब बात बनाने लगा। "तू भी ना, कुछ भी सोचती है। मैं जा रहा हूँ।" वह अब मेरे करीब से जाने लगा। मेरे मन में गाने बजने लगे थे।

    दिव्या ने कहा, "खुशी, मैं घर जा रही हूँ।"

    मैंने घूरते हुए कहा, "तू पागल हो चुकी है! जरा सी बात पर इतनी उदास हो गई है।" मैं जानती थी दिव्या उदास है, क्यों? उदासी से घर जा रही है? देख, तू फ़िक्र मत कर।

    दिव्या ने याद दिलाते हुए कहा, "खुशी, तू जानती है, डैड ने साफ़ मना किया है मेरी फ़्रेंड सुरभि की शादी में जाने के लिए।"

    मैंने शरारत से कहा, "चल, अब ज्यादा सोच मत। शादी में चुपचाप, बिना किसी को बताए आ जाना।"

    यह बात सचिन ने पीछे खड़े होकर सुन ली और गुस्से में बोला, "वाह! बहुत अच्छा आइडिया दे रही हो अपनी फ़्रेंड को!" हम दोनों पलटकर देखने लगीं।

    सचिन अब मेरे पास आकर खड़ा हो गया और बोला, "तुम दिव्या की दोस्त हो और फैमिली वालों को झूठ बोलना सिखा रही हो?" सचिन को मेरी बात जरा सी भी पसंद नहीं आई।

    मैंने हकलाते हुए कहा, "सर, मैं... मैं... मैं बस..." मैं सफ़ाई पेश करने लगी।

    सचिन गुस्से में चीखा, "मैं बस या मैं? यह कहकर बहाने मत बनाओ! दिव्या ऐसी लड़की से दोस्ती की है तुमने जो तुम्हें झूठ बोलना सिखाती है!"

    "नहीं भाई, आप गलत समझ रहे हैं," दिव्या बोलने लगी।

    वहाँ सभी मॉडल जो रिहर्सल कर रहे थे, मेरी तरफ़ देखने लगे, जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।

    अबकी बार गहरी साँस लेकर सचिन के सामने आई और बोली, "मैं किसी लड़की को झूठ बोलना नहीं सिखा रही हूँ। मैं बस अपनी बेस्ट फ़्रेंड को कुछ पल की खुशी देना चाहती हूँ। हर कोई इंसान कभी ना कभी, कहीं ना कहीं झूठ ज़रूर बोलता है, चाहे वह आप क्यों ना हों।" मैं उसकी आँखों में देखकर बोल रही थी। आज मुझे डर नहीं लग रहा था।

    सचिन अबकी बार दिव्या की तरफ़ देखने लगा, जैसे कह रहा हो, "यह क्या बोल रही है?" दिव्या ने मासूम सी शक्ल बना ली। "सॉरी भाई," इशारे से सॉरी कहने लगी।

    मैंने देखा सचिन दिव्या को देख रहा है, तो मैंने जोर देकर बोली, "आप दिव्या की तरफ़ क्या देख रहे हैं? मुझसे बात करें, सचिन सर!" अबकी बार जोर देते हुए कहा।

    अब दिव्या मेरे पास आ गई। मेरा हाथ पकड़ते हुए आहिस्ता से बोली, "खुशी, तू चुप कर जा।" वह इसलिए मुझे चुप कर रही थी कहीं सचिन मेरी हरकत देखकर मुझे रिजेक्ट ना कर दे और मेरा दिल टूट जाएगा। मगर मुझे आज अपना दिल टूटने की परवाह नहीं थी। मैं आज डटकर सचिन के सामने खड़ी रही।

    सचिन ने पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो? मैं झूठा हूँ?"

    "हो सकते हैं, और नहीं भी। मेरे कहने का मतलब यह है, किसी की खुशी या फ़ायदे के लिए बोला गया झूठ, झूठ नहीं होता। और रही बात दिव्या की, मैं उसके लिए एक नहीं, हज़ार झूठ बोल सकती हूँ, मगर यह बात आप कभी नहीं समझ सकते। दोस्ती सबसे बड़ी होती है। अब मुझे अपनी जान की परवाह भी नहीं है। आपका कोई दोस्त होता तो आपको इस बात का एहसास होता। दिव्या, सॉरी, पर मैं अब यहाँ नहीं रह पाऊँगी। बाय!" गुस्से में मैं जाने लगी, फिर सचिन से बोली,

    "और हाँ, आज के बाद आप मुझे सच और झूठ का लेक्चर मत सुनाना, क्योंकि मैं अपने दोस्तों के लिए कुछ भी कर सकती हूँ, चाहे मुझे झूठ क्यों ना बोलना पड़े।" गुस्से में मैं वहाँ से चली गई। कहीं अब कुछ और उल्टा-सीधा ना कह दे, इसलिए वहाँ से जाना पसंद किया।

    अबकी बार दिव्या सचिन के पास आई और बोली, "भैया, आपको खुशी से ऐसा नहीं कहना चाहिए था। वह बहुत अच्छी है।" दिव्या भी इतना कहकर वहाँ से चली गई और मेरे पास आ गई।

    दिव्या ने पीछे से आवाज़ लगा दी, "खुशी! खुशी!" मेरी आवाज़ पर मैं रुक गई, मगर पलटी नहीं। "यार, सॉरी।"

    अब मैं नॉर्मल हुई। "तू सॉरी क्यों बोल रही है? तेरी गलती थी नहीं ना, तो तू माफ़ी मत माँग।" इतना कहकर मैं वहाँ से जाने लगी।

    तब दिव्या ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, "मुझे नहीं पता था भैया ऐसा करेंगे। सॉरी।" दिव्या ने फिर माफ़ी माँगी।

    मैंने घूरकर कहा, "तुझे नहीं पता था, मगर मैं जानती हूँ! इसकी तेरे भाई को अब सज़ा मिलेगी। यह कार्ड तुम मेरी जगह सचिन को दोगी। यह तुम्हारी सज़ा है।"

    "मैं... मैं... क्यों?" वह डरते हुए पूछने लगी।

    मैंने घूरकर कहा, "हाँ, तुम दोगी! बहुत शौक है ना मेरी फ़्रेंड बनने? अब भुगतो! तुम्हारे भाई खुद को सत्यवादी समझता है। अब देखो तुम्हारे भाई को। मैंने झूठ बोलना नहीं सिखा दिया तो मेरा नाम भी खुशी नहीं। तुम यह कार्ड अपने भाई को दे देना।"

    "नहीं-नहीं खुशी, मैं नहीं!" दिव्या अब डरने लगी।

    "बाय!" मैंने उसके हाथ में कार्ड रखकर, "बाय" कहकर ऑटो में बैठकर जाने लगी।

    "खुशी! रुक! रुक!" दिव्या आवाज़ लगती रही, मगर मैं नहीं रुकी। "अब मैं क्या करूँ?" वह घबराकर इधर-उधर देखने लगी।

  • 8. Our Incomplete Lovestory - Chapter 8

    Words: 1858

    Estimated Reading Time: 12 min

    पिछले भाग में हमने देखा था कि दिव्या आवाज लगती रही, मगर खुशी नहीं रुकी। "अब मैं क्या करूँ?" दिव्या घबराकर इधर-उधर देखने लगी।


    फिर उसने सचिन की कार वहीं खड़ी देखी तो पास जाने लगी। "भैया की कार में डाल देती हूँ," कार के पास आते ही उसने सोचा, "कार्ड इसमें रख दूँ। वैसे भी उसमें आए दिन कार्ड मिलते ही रहते हैं। भैया को नहीं पता चलेगा मैंने डाला है।" वह डरते हुए सोचकर कार्ड रखने वाली थी।


    तभी पीछे से सचिन वहाँ आया और दिव्या को पीछे से आवाज दी, "दिव्या!"


    उसने दिव्या को आवाज दी तो वह घबराहट के मारे कांपने लगी। कार्ड अभी भी उसके हाथ में था। अब वह डर रही थी, "कहीं पकड़ी ना जाऊँ।"


    सचिन ने पास आकर पूछा, "तुम यहाँ क्या कर रही हो? गई क्यों नहीं अभी तक?"


    "भाई, मैं जाने वाली थी," वह एकदम बोली।


    "यह कार्ड...?"


    सचिन की नजर कार्ड पर पड़ी। दिव्या घबरा गई और बोली, "भैया, मैं आपको सब कुछ बता..."


    "यह लड़की मेरा जीना हराम कर रही है!" सचिन दिव्या की बात सुने बगैर बोला। उसे लगा यह कार्ड उसी लड़की ने रखा है और दिव्या ने कार से बाहर निकाला है।


    दिव्या हैरान रह गई और जोर देकर कहा, "भैया, मैं कुछ बता रही थी!"


    तब सचिन ने कहा, "तुम अपनी छोड़ो। लाओ, यह तुम मुझे दो और घर चलो।" दिव्या आज बाल-बाल बची थी। अब जाकर उसने गहरी साँस ली। वह वहीं खड़ी रही तो सचिन ने जोर देते हुए कहा, "अब चलो!"


    "जी भैया," इतना कहकर वह जाने लगी। फिर बोली, "भाई, आप इस लड़की से इसका नाम पता पूछ लो। फिर आपको परेशान नहीं करेगी। और पढ़ना ज़रूर, क्या लिखा है? क्या पता आपके फायदे की बात हो।" दिव्या ने सोचा, "खुशी ने जो भी लिखा है, खराब ना जाए।" मगर क्या लिखा है, दिव्या भी नहीं जानती थी।


    सचिन ने उल्टा उसी से कहा, "अब तुम ज़्यादा बातें मत बनाओ और घर चलो।"


    दिव्या ने हाँ में सर हिलाकर कहा, "जी भाई, मैं बस चलती हूँ।" तभी उसकी नज़र अतुल पर पड़ी जो सामने इशारा कर रहा था—घर मत जाना।


    लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी वह क्या कह रहा है। फिर भी उसने सचिन से कहा, "भाई, मुझे थोड़ा काम है। आप चले जाएँ। बस थोड़ी देर बाद आ जाऊँगी।"


    सचिन ने कहा, "अपना ख्याल रखना।" इतना कहकर वह वहाँ से कार लेकर चला गया।


    और दिव्या अतुल के पास आ गई। अतुल ने एकदम कहा, "मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है। इसलिए तुम्हें रोक रहा था।"


    दिव्या ने कहा, "मुझे पता है तुम क्या बातें करोगे। प्लीज़, मुझे घर जाना है।"


    अतुल ने हँसकर कहा, "तुम्हें मुझसे डर लगता है? मेरे करीब आने से कुछ-कुछ होता है तुम्हें?"


    दिव्या उसे हैरानी से देखने लगी और बोली, "मुझे कुछ नहीं होता। ठीक है, अब मैं घर जा रही हूँ। बाय।" इतना कहकर वह जा रही थी।


    अतुल ने उसका हाथ पकड़ कर अपने करीब कर लिया। दिव्या ने घूरकर कहा, "अतुल! सब देख रहे हैं! छोड़ो!"


    अतुल पर उसके घूरने का कोई असर नहीं था। और उसने उसके कान में बोला, "इसका मतलब तुम्हें हाथ लगाने के लिए अकेले में आना पड़ेगा।"


    इतना सुनते ही दिव्या उसे फिर घूरने लगी। अब अतुल ने उसे छोड़ते हुए कहा, "ठीक है, तुम मेरे साथ चलो। मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बातें करनी हैं।"


    दिव्या ने खुद को संभालते हुए कहा, "देखो अतुल, अभी नहीं। अभी मुझे भी बहुत काम है। बाद में बात करेंगे। ओके?" इतना कहकर वह घर जाने लगी।


    तब अतुल उसके पीछे-पीछे आया और बोला, "आई लव यू। अपना ख्याल रखना। और जो मेरी बातें अधूरी रह गई हैं, वह हम बाद में करेंगे।" इतना कहकर उसने एकदम उसके गाल पर किस करके चला गया। और दिव्या भी वहाँ से घर चली गई।


    वहीं दूसरी ओर, सचिन कार लेकर जा रहा था। कार्ड अभी भी उसके पास रखा था। "यह लड़की जो भी है, मैं इसको एक दिन ढूँढ कर ही रहूँगा," सचिन कार्ड देखकर मन में बोला। फिर कार्ड खोलकर देखने लगा।


    कार्ड में लिखा था:


    "मुझे पता है सचिन, तुम अपनी बहन के साथ शादी में जाने वाले हो। मैं भी उस शादी में तुम्हारा पीछा करते हुए आ रही हूँ। बाय।"


    "मैंने यह सब इसलिए लिखा था ताकि अरमान खुद दिव्या को शादी में लाए।" यह सब कुछ पढ़कर वह हैरान रह गया।


    "मैं कब शादी में जा रहा हूँ?" सोचने लगा। "लगता है अब मुझे जाना चाहिए। उस लड़की को वहीं पकड़ लूँगा।" यह सोचकर वह मान गया, मगर अभी पक्का इरादा नहीं था कि शादी में जाऊँ। फिर कार लेकर घर चला गया।


    अगले दिन, मैं आज फिर ऑफ़िस सबसे पहले आकर मैंने सचिन के केबिन में कार्ड रखा और फिर से उन लोगों को रिहर्सल करने लगी। दिव्या भी मेरा साथ दे रही थी। फिर आज शाम ही दिव्या को सुरभि की शादी में जाना था, इसलिए वह आज ही रिहर्सल का सारा काम निपटाना चाहती थी।


    दिव्या को अतुल ने इशारा किया तो वह वहाँ से साइड में चली गई। और दीवार के पीछे अतुल खड़ा था। दिव्या ने आते ही पूछा, "क्या हुआ?"


    तब अतुल ने मुस्कुरा कर कहा, "तुमसे मैंने कल कहा था ना, हमारी बातें जो अधूरी रह गई हैं, वो हम बाद में करेंगे? तो आज आ गया तुमसे ढेर सारी बातें करने।"


    अबकी बार दिव्या उसे घूरते हुए बोली, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है! मैं यहाँ खुशी के साथ रिहर्सल करवा रही हूँ और तुम हो कि चलो जाओ यहाँ से!"


    अतुल ने कहा, "नहीं जाऊँगा।" इतना कहकर उसने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे दीवार से सटाकर उसके करीब आ गया और थोड़ा रोमांटिक होकर बोला, "आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो। मन कर रहा है मैं बस ऐसे ही देखता रहूँ।" इतना कहकर उसने उसके माथे पर अपना माथा रख दिया और दोनों एक-दूसरे में खो गए। बस ऐसे ही दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखे जा रहे थे। दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब थे और दिव्या का दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा था।


    अतुल ने मुस्कुरा कर कहा, "जब भी मैं तुम्हारे करीब आता हूँ, तुम्हारा दिल 100 की स्पीड पर चलता है। इसका मतलब मेरे साथ तुम्हें कुछ-कुछ होता है?" दिव्या से कोई जवाब ही नहीं दिया जा रहा था। ऐसे ही उसने उसकी आँखों में देखती रही।


    वहीं दूसरी ओर, मैंने देखा दिव्या वहाँ नहीं है, तो मैंने इधर-उधर नज़र चलाकर देखा तो उसे दीवार के पीछे दिव्या का दुपट्टा नज़र आया तो वहीं आने लगी।


    और वहाँ जाकर देखा, वो दोनों एक-दूसरे में खोए हुए हैं और बहुत क्यूट लग रहे थे। दोनों के माथे एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और बस एक-दूसरे की आँखों में देखे जा रहे थे। उन्हें किसी की परवाह नहीं थी। मैंने एकदम अपना फ़ोन निकाला और उन दोनों की पिक्चर्स क्लिक कर ली।


    अतुल दिव्या की तरफ़ देखते हुए बहक रहा था और धीरे-धीरे उसके होठों की तरफ़ बढ़ने लगा। मैं उन दोनों को बहुत प्यार से अपने चेहरे पर दोनों हाथ टिकाकर देख रही थी, जैसे वह किसी छोटी सी डॉल को देख रही हो। जब अतुल दिव्या के होठों पर अपने होंठ रखने जा रहा था, मैंने एकदम अपना हाथ बीच में लगा दिया और वह दोनों एकदम होश में आ गए।


    मैंने अतुल की तरफ़ आँखें चढ़ाते हुए पूछा, "क्या हो रहा है यहाँ?"


    अतुल और दिव्या दोनों घबरा गए थे। अतुल से तो कोई जवाब ही नहीं गया। वह वहाँ से बहुत तेज़ भाग गया जबकि दिव्या पूरी तरह से सहमी हुई खड़ी थी।


    मैं उसकी आँखों के सामने आ गई और बोली, "तो मेरे पीठ पीछे यह सब होता है?"


    दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर हकलाते हुए कहा, "खुशी, वक़्त बहुत हो गया है। मैं... मैं... मुझे घर जाना है। बाय।" इतना कहकर वह भागने लगी।


    तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, "अरे मेरी जान! इतनी भी क्या जल्दी जाने की? अभी तो तुम्हारी पिटाई लगनी बाकी है मुझसे! अपने दिल की बातें छुपाने लगी हो! यहाँ दोनों में इतना रोमांस चल रहा था और मुझे कुछ खबर ही नहीं है! दोनों में प्यार हो गया! अब मेरी क्या ज़रूरत है? इज़हार-ए-मोहब्बत कब हुआ?"


    दिव्या ने कहा, "खुशी, ऐसा कुछ नहीं है। मैंने अतुल से अपने प्यार का इज़हार नहीं किया है। तू कहाँ हम दोनों को एक साथ जोड़ रही है? मुझे जाने दे। मुझे घर जाना है।"


    अबकी बार मैंने जोर देते हुए कहा, "इसका मतलब तू बिना प्रपोज़ किए एक गैर-मर्द को किस कर रही थी? उफ़! तेरी अदा! क्या बात है! तू तो बड़ी कमाल निकली!" मैं उसके मुँह से निकलवाना चाह रही थी कि अतुल गैर नहीं है, वो उससे प्यार करती है।


    मैंने अब शरारत से कहा, "अतुल एक गैर-मर्द है और तूने बिना प्रपोज़ के ही किस कर लिया! उसे रोक सकती थी पर तू रोक नहीं रही थी!"


    अबकी बार दिव्या ने कहा, "खुशी, तू बहुत बड़ी बेशर्म होती जा रही है! मुझे घर जाना है! छोड़ मुझे!" कहकर जाने लगी।


    दिव्या वहाँ से घबराती हुई जा रही थी। दिल बहुत जोर से धड़क रहा था क्योंकि आज दिव्या को मैंने रंगे हाथों पकड़ लिया था।


    दिव्या वहाँ से जा रही थी, तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया। वह कोई और नहीं, अतुल था। उसने उसके मुँह पर हाथ रख दिया।


    और उसे चुप कराते हुए संजीदगी से बोला, "कुछ मत कहना। बस मेरी एक बात सुन लो। मैं बस इतना कहना चाहता हूँ, जब से तुम्हें दिल दिया है, सिर्फ़ तुम्हें चाहा है और किसी को नहीं। इसलिए मेरे बारे में कभी गलत राय मत रखना। मैं तुमसे सच्ची मोहब्बत करता हूँ, इसलिए तुम पर हक समझकर तुम्हारे करीब आता हूँ। अगर तुम्हें मेरे करीब आना बुरा लगता है तो मैं कभी तुम्हारे करीब नहीं आऊँगा।" इतना कहकर वह जाने लगा था।


    दिव्या ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, "तुम आज कैसी बातें कर रहे हो? क्या हो गया? किसी ने कुछ कहा तुमसे?"


    अतुल ने कहा, "खुशी ने हम दोनों को ऐसे देख लिया और जाहिर सी बात है, मुझे गलत समझेगी कि मैं तुम पर गलत तरीके से हक जताता हूँ। मैं नहीं चाहता वह मुझे गलत समझे। अगर तुम अपने दिल की बात नहीं कहोगी, मैं गलत लड़का साबित हो जाऊँगा। प्लीज़, जो तुम्हारे दिल में है वह कह दो। चुप रहने से क्या फ़ायदा? बोलो, क्या है तुम्हारे दिल में?"


    दिव्या ने इस बार कुछ जवाब नहीं दिया। सर झुककर रह गई। तब अतुल ने कहा, "ठीक है, तुम कोई जवाब मत दो। मैं जा रहा हूँ।" इतना कहकर चला गया। दिव्या उदास रह गई।


    वहीं दूसरी ओर, मैं जिन लड़कों को रिहर्सल करवा रही थी, उनमें से एक लड़का मेरे पास आया और बोला, "खुशी, मुझे तुमसे बहुत ज़रूरी बात करनी है।"


    मैंने उसे नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "अभी नहीं, कुछ देर बाद बात करेंगे।"


    तब उसने कहा, "मुझे अपने दिल का हाल तुम्हें बताना है। प्लीज़, सुन लो।"


    मैंने कहा, "ठीक है, बोलो क्या बात है?" वहाँ सभी रिहर्सल में बिज़ी थे, इसलिए कोई उन दोनों की बात नहीं सुन पा रहा था। "खुशी, मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ।" इतना सुनते ही मैं शॉक होकर उसकी तरफ़ देखने लगी।

  • 9. Our Incomplete Lovestory - Chapter 9

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    पिछले भाग में हमने देखा, एक लड़के ने कहा, "मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ।" इतना सुनते ही मैं शोक होकर उसकी तरफ देखने लगी।

    "प्लीज खुशी, मेरी मोहब्बत को समझने की कोशिश करो," उसने कहा।

    मैंने जोर देते हुए हँसकर कहा, "तुम भूल गए हो मैं कौन हूँ?"

    तब उसने कहा, "मुझे याद है तुम कौन हो। तुम मेरी सीनियर हो। मैं तुमसे प्यार करता हूँ। कुछ गलत तो नहीं कहा मैंने?"

    यह बात अबकी बार वहाँ खड़े सभी लोगों ने सुन ली और सभी उन दोनों की तरफ देखने लगे।

    मैंने हँसकर कहा, "अमित, तुम अच्छे लड़के हो और तुम अपनी जॉब पर ध्यान दो। यह प्यार-प्यार का चक्कर छोड़ो। इसके लिए लोगों के पास दिल की जरूरत होती है, जो आजकल के लोगों के पास नहीं है, ना मेरे पास है। मैं तुमसे कहूँ मैं तुमसे प्यार करती हूँ और फिर तुम्हें छोड़ दूँ, तुम्हारा दिल टूट जाएगा। मैं नहीं चाहती तुम्हारा मेरी वजह से दिल टूटे। सब कुछ छोड़कर अपने काम पर ध्यान दो और अपना ख्याल रखो, ठीक है?" मैंने बहुत प्यार से उसे समझाया।

    "क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं हूँ?"

    अबकी बार मैंने मुस्कुराकर कहा, "मैं नहीं करती तुमसे प्यार। तुम पहले बड़े आदमी बनो, पैसे कमाओ। यहाँ सिर्फ पैसा चलता है, यहाँ पर दिल की कोई वैल्यू नहीं है। तो आगे से कभी भी किसी लड़की को प्रपोज मत करना, ठीक है? और मुझे तो हरगिज नहीं, क्योंकि मुझे प्यार से बड़ा पैसा लगता है, ठीक है? इसलिए अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।" इतना कहकर मैं पलटी तो सामने सचिन दिख गया, जिसे देखकर उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

    सचिन उसके सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, "तुम कैसी लड़की हो? किसी को झूठ बोलना सिखाती हो और किसी का दिल तोड़ती हो? दिल से बड़ा तुम्हारे लिए पैसा लगता है? कैसी लड़की हो तुम?" सचिन ने इससे पहले की कोई बात नहीं सुनी थी, बस अभी की कुछ बातें सुनीं और उसे लगा मैं पैसों के लिए इस बेचारे गरीब लड़के को ठुकरा रही हूँ। इसलिए मुझे सुना बैठा। लेकिन उसे क्या पता था, मैं यह सब उस लड़के की भलाई के लिए कह रही थी। आज बुरी बनकर वह उसको एक ज़िन्दगी दे रही थी। अगर वह उसे झूठी उम्मीद देती तो उस लड़के का ध्यान काम से हट जाता। इसलिए उसने ना तो झूठी उम्मीद दी और ना सहारा दिया, खुद ही गलत बन गई।

    मैंने अब मुस्कुराकर कहा, "सर, इस दुनिया में बिना पैसे के कुछ नहीं होता। हाँ, मैं मानती हूँ अमित मुझे पसंद करता है, पर मैं उसका प्यार नहीं हूँ। यह बात उसे समझना बेहद ज़रूरी है। और अमित, तुम अपनी जॉब पर ध्यान दो। तुम जानते हो ना, मैं कभी भी किसी चीज को सीरियस नहीं लेती हूँ। तो तुमने यह कैसे सोच लिया कि तुम्हारे प्यार को सीरियस लूँगी? मैं किसी चीज को सीरियस नहीं लेती, इसलिए दोबारा मुझे प्रपोज मत करना।" फिर सबसे बोली, "तुम में कोई भी ऐसा मत करना।" इतना कहकर मैं वहाँ से जाने लगी।

    फिर सचिन की तरफ देखते हुए कहा, "और आप भी तो प्यार को नहीं मानते? आपसे भी तो कोई लड़की बेइंतेहा मोहब्बत करती है, जो आपको आए दिन कार्ड भेजती है। आप उसकी मोहब्बत को एक्सेप्ट क्यों नहीं कर रहे हैं? बताएँ। देखिए सर, कहना बहुत आसान होता है और करना बहुत मुश्किल। अगर इस दुनिया में दिल ज़रूरी होता तो आप अब तक उस लड़की को अपना दिल दे चुके होते। आप चाहते हैं वह लड़की पहले आपके सामने आए, आपको अपना चेहरा दिखाएँ, उसके बाद आप उससे प्यार करेंगे या फिर उसे रिजेक्ट कर देंगे? अगर वह अच्छी नहीं हुई तो जो भी करेंगे आप उसको देखने के बाद करेंगे? क्या आप उसको दिल से प्यार नहीं कर सकते?" मेरा यह सवाल सचिन के साथ बाकी सबको भी हैरानी दे रहा था।

    अबकी बार मैंने सब की तरफ देखकर कहा, "तुम लोग रिहर्सल करो। और रही बात अमित की तो अमित एक बहुत अच्छा लड़का है, संभल जाएगा। मैंने उसका दिल नहीं तोड़ा है, उसको सिर्फ समझाया है कि अपनी जॉब पर ध्यान दें। और आपसे भी कह रही हूँ, अगर आपके लिए प्यार पैसों से बड़ा है तो आप उस लड़की को प्यार कर लो, अमीर हो या गरीब, उसी से शादी कर लो।" इतना कहकर मैं चली गई।

    सचिन बहुत ज़्यादा गहरी सोच में हो गया। फिर अपनी सोच से बाहर आकर सचिन ने अमित की तरफ देखा और कहा, "इस वक़्त तुम पर क्या बीत रही है? मैं इतना जानता हूँ, शायद तुम्हें बहुत बुरा फील हो रहा होगा, लेकिन इस वक़्त तुम्हें यह सोचना चाहिए कि तुम्हें इस लड़की ने ठुकराया है। अब तुम्हें मेहनत करके उसके मुक़ाबले होना पड़ेगा। इसलिए अपनी जॉब पर ज़्यादा ध्यान दो।" सचिन मुझे गलत समझ बैठा।

    सचिन के समझाने पर अमित ने कहा, "जी सर, मैं काम पर ध्यान दूँगा। और वैसे भी क्या हो गया? खुशी कभी किसी चीज को सीरियस नहीं लेती। उसकी नज़र में प्यार-प्यार कुछ नहीं है। जब तक उसे खुद को प्यार नहीं होगा, वह मेरे तो क्या किसी के प्यार की कदर नहीं करेगी। मैं ही पागल था जो मैं उसे प्रपोज कर बैठा। इसमें खुशी की कोई गलती नहीं है। उसने तो कभी मुझसे इस तरह बात भी नहीं की थी कि मैं उससे प्यार करूँ। वह तो मैं ही उसकी अच्छी बातें, उसकी अच्छी आदत देखकर उसका दीवाना हो गया।"

    तब सचिन ने कहा, "उसके अंदर कौन सी अच्छी बात है? मुझे तो कहीं से नज़र नहीं आती। खैर, तुम्हें अगर लगती है उसकी बातें अच्छी हैं तो अब तुम्हें उसकी बुरी बातें भी सोचनी चाहिए। तुम्हें भी कितना कुछ सुनाकर गई है।"

    तब अमित ने कहा, "वह मुझे सुनाकर तो गई है, पर जो भी सुनाया अच्छा सुनाया। इस दुनिया में पैसों के बगैर कुछ नहीं है, प्यार भी तभी मिलता है जब आपकी जेब में पैसा हो। खैर, मुझे खुशी की बातों का बुरा नहीं लगा।"

    सचिन अमित की बात सुनकर हैरान था, पर कुछ कहा नहीं और वहाँ से बाहर आने लगा और मुझे देखा जो मैं अतुल से बातें कर रही थी।

    अतुल ने मुस्कुराकर कहा, "खुशी, प्लीज यार मुझे गलत मत समझना। मैं सच में दिव्या के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करता हूँ, प्यार करता हूँ, हक है यार।" अतुल को डर था कहीं मैं उसे कुछ गलत ना कहने लगूँ, इसलिए सफ़ाई पेश कर रहा था।

    तब मैंने मुस्कुराकर कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है अपनी सफ़ाई पेश करने की। मैं सब जानती हूँ। तुम धोखेबाज हो। I hate you, मुझे लेट हो रहा है, मैं शादी में जा रही हूँ।"

    सचिन ने भी सुना था और उसके पास आकर बोला, "वह तुझे 'आई हेट यू' क्यों बोलकर गई है? तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है?" उसकी बात सुनकर अतुल बहुत तेज हँसा।

    और बोला, "पागल! मेरा उसका कुछ नहीं है। वो भी कोई प्यार करने वाली चीज है? झलली लड़की है, कोई पागल ही उससे प्यार करेगा।"

    सचिन ने मुस्कुराकर कहा, "हाँ है, अंदर एक पागल, जिसने इसे अभी प्रपोज किया था, मना करके चली गई। खैर, यह सारी बातें छोड़, मैं थोड़ा परेशान हूँ।"

    अतुल ने पूछा, "क्या हुआ? तू क्यों परेशान है?"

    सचिन ने बेबसी से कहा, "यार, वही कार्ड वाली। वही कार्ड वाली लड़की दिमाग खराब कर रही है। पता नहीं कौन है, कहाँ रहती है, क्या नाम है, कुछ नहीं पता मुझे। मैं उसको कैसे ढूँढूँ?"

    अतुल ने कहा, "तुम्हें सुरभि की शादी में जाना चाहिए। वो हमारे ऑफिस में काम करती है। उसने ऑफिस में सबको बुलाया है। मेरे ख्याल से वह लड़की ज़रूर आएगी।" इतना कहकर रह गया। सचिन भी कुछ सोचकर रह गया।

    मैं अपने घर आ रही थी और दिव्या को फोन किया।

    दिव्या ने फोन उठाया और कहा, "खुशी, मैं नहीं आ रही हूँ सुरभि की शादी में।" दिव्या ने फोन पर साफ़ मना कर दिया।

    "तू नहीं आ रही, ना तो मत आ, मैं तो जा रही हूँ, बाय।" मैंने खीजकर कहा।

    "खुशी, मेरी बात सुन..." दिव्या कुछ कहती इससे पहले ही मैंने फोन काट दिया।

    वहीँ सचिन अपने कमरे में था, वह सोच में गुम था। "उस कार्ड वाली लड़की को पकड़ने का अच्छा मौका मिला है। मुझे कुछ भी करके शादी में जाना होगा, मगर कैसे जाऊँ? मुझे वहाँ कोई जानता नहीं है। दिव्या को ले जाता हूँ, इससे मेरा काम भी हो जाएगा।" उसको बहुत अच्छा आईडिया मिल गया और वह सुकून में आ गया।

    दिव्या ने दुबारा फोन किया और थककर कहा, "डैड से बार-बार एक ही बात पूछने की हिम्मत नहीं है और झूठ बोलकर मैं आ नहीं सकती।"

    मैंने जोर दिया, "हाँ हाँ, तू ठहरी सच बोलने वाली की बहन, तू झूठ क्यों बोलेगी? मेरे को तो एक ही डर हो गया था कि सचिन ने मुझे झूठा कहा था।"

    अबकी बार दिव्या ने उदासी से कहा, "यार खुशी, मैं अपनी फैमिली को धोखा नहीं दे सकती।"

    "हाँ तो मत देना धोखा, बाय।" मैं फोन काटने वाली थी, तब दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "खुशी, हर बार झूठ बोलकर अपनों को तकलीफ नहीं देनी चाहिए।"

  • 10. Our Incomplete Lovestory - Chapter 10

    Words: 1686

    Estimated Reading Time: 11 min

    अबकी बार दिव्या ने उदासी से कहा, "यार खुशी, मैं अपनी फैमिली को धोखा नहीं दे सकती।"

    "हां तो मत देना धोखा।" मैं फोन काटने वाली थी, तब दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "खुशी, हर बार झूठ बोलकर अपनों को तकलीफ नहीं देनी चाहिए।"

    तभी दिव्या का फ़ोन बजा। उसके डैड का फ़ोन था। उसके डैड ने कहा, "क्या वाकई तुम अपनी फ़्रेंड की शादी में जाना चाहती हो?"

    "डैड, मैं... मैं..." वह बहाना बनाने लगी।

    डैड एकदम बोले, "तुम चली जाओ बेटा।"

    दिव्या ने हैरान होकर पूछा, "मगर डैड, आपको तो गरीब लोग अच्छे नहीं लगते।"

    डैड ने कहा, "मेरे बच्चों की खुशी भी ज़रूरी है दिव्या।" दिव्या उनके बारे में सोचने लगी। अचानक डैड को क्या हो गया? वह हैरान थी। पर उनके इस बर्ताव की कोई वजह नहीं थी। वह पहले से ही अच्छे थे, मगर उनकी कोई मजबूरी उन्हें बुरा बना रही थी।

    डैड ने दोबारा कहा, "जाओ बेटा, तुम शादी में चली जाओ।"

    "थैंक यू डैड!" अबकी बार दिव्या खुशी से उछल गई और मुझे फ़ोन करके ये खबर सुनाई। उसकी बात सुनकर मैं भी खुश हो गई और सुरभि की शादी में जाने के लिए कपड़े पैक करने लगी।

    अगले दिन, आज हल्दी थी। सभी घर वाले एलो कलर के कपड़ों में थे। सब लोग सुरभि को हल्दी लगा रहे थे।

    तभी बाहर से दिव्या की आवाज़ आई, "मुझे भी हल्दी लगानी है।"

    मुझे और दिव्या को देखकर सुरभि की खुशी बढ़ गई। वह उठकर गले लगने लगी।

    दिव्या ने हंसकर कहा, "बस बस, दुल्हनिया उठो मत।" वह गले लगे उठने लगी तो दिव्या ने उसे बैठा दिया और उसे हल्दी लगा दी।

    कुछ देर बाद सभी लोग डांस करने लगे। खूब मस्ती-मजाक हो रही थी। सुरभि भी उन सब की खुशी में खुश थी, मगर मन में ना जाने कैसी बेचैनी थी, जो वह सबसे छुपा रही थी। ऐसा लग रहा था शायद वह शादी नहीं करना चाहती, लेकिन फिर भी सब की खुशी देखकर बहुत खुश थी। आज का दिन सभी ने खूब डांस करके बिता दिया।

    अगले दिन, अतुल के साथ सचिन ऑफिस की केबिन में बैठा हुआ था। "अतुल, मैं कैसे जा सकता हूँ? सोचा था दिव्या के साथ चला जाऊँगा, मगर अब वह भी चली गई है।" सचिन अपनी परेशानी बता रहा था।

    अतुल ने कहा, "मेरे ख्याल से तुम्हें शादी में जाना चाहिए।"

    सचिन ने हैरान होकर कहा, "यार, मैं कैसे जा सकता हूँ? मैं पहले कभी ऐसे ऑफिस में काम करने वाले के घर नहीं गया।"

    तो अतुल ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हम झूठ बोल देंगे कि दिव्या को लेने आए हैं।"

    "हम क्यों?" सचिन ने जोर देते हुए पूछा, "तू भी जाएगा क्या?"

    तब अतुल ने कहा, "हाँ, मैं सोच रहा था, तुम्हारी हेल्प हो जाएगी। असली मकसद तो दिव्या का दीदार था।"

    सचिन ने खड़े होकर कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है मेरी हेल्प करने की। मैं खुद चला जाऊँगा। मगर आज उस लड़की को पकड़ कर रहूँगा। बहुत हो गया उसका टोचर।" सचिन थक चुका था, लेकिन अतुल के अरमान ठंडे पड़ गए। अब ज़्यादा कह भी नहीं सकता था, वरना उसकी मोहब्बत का राज सचिन के सामने आ जाता। इसी वजह से चुप रह गया। सचिन भी वहाँ से चला गया और घर आकर शादी में जाने के लिए रेडी होने लगा और अतुल के पास मैसेज कर दिया।

    उसी रात, आज बारात की रात थी। दिव्या सुरभि के कमरे में बैठी हुई थी। सभी खुश होकर घूम रहे थे। उनका घर छोटा था, इसलिए बराबर वाले पार्क में भी डेकोरेशन हुई थी ताकि मेहमान वहाँ भी रह सकें।

    मैंने दिव्या से कहा, "दिव्या, तू भी जाकर देख हमारे जीजा जी को।"

    दिव्या ने हंसकर कहा, "हाँ, मैं देखती हूँ। फिर तू भी आ जाना।" आज दिव्या काफी अच्छी लग रही थी पर्पल कलर लहंगे में, गोल्डन जेवर के साथ, बाल खुले हुए थे, मेकअप भी बहुत प्यारा था। अगर आज उसे अतुल देख लेता तो दिल थाम कर रह जाता।

    लेकिन मैं अभी तक रेडी नहीं हुई थी। सुरभि ने कहा, "खुशी, तू कब रेडी होगी? जा, तू भी तैयार हो जा।"

    मैंने हंसकर कहा, "हाँ, मैं आती हूँ। मगर तू रो कर अपना मेकअप खराब मत करना, वरना मैं दोबारा मेकअप नहीं करने वाली।"

    सुरभि ने मुस्कुराकर कहा, "हाँ, मेरी माँ, जाकर रेडी हो।"

    वहीं दिव्या घर के बाहर ग्राउंड में बारात देखने आ गई। उसकी नज़र अचानक सचिन पर पड़ी, जो बाहर अतुल के साथ खड़ा था। उसने सोचा अकेला जाकर अच्छा नहीं लगेगा इसलिए अतुल को भी साथ ले आया। दिव्या उन दोनों को देखकर हैरान हो गई। "यह भैया हैं या मुझे लग रहे हैं?" वह सोचने लगी। फिर सचिन के पास आने लगी और हैरानी से पूछा, "भैया, आप यहाँ?"

    सचिन ने हड़बड़ाकर बोला, "हाँ, वह... मैं तुम्हें लेने आया था।"

    दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "मुझे पर अभी तो शादी भी नहीं हुई है और मुझे लेने आ गए आप?" उसने याद दिलाया।

    तब सचिन ने सटपटाकर कहा, "नहीं, वह... मैं अभी नहीं, बाद... बाद में चलना... वो तुम्हारी याद आ रही थी, तो इसलिए आ जल्दी आ गया है ना अतुल?"

    पर अतुल दिव्या में खोया हुआ था और ऐसे ही खड़ा था। अबकी बार सचिन ने अतुल के पैर पर बहुत जोर से मारा तो अतुल चौंककर सीधा हुआ और बोला, "हाँ, बिल्कुल, तुम्हारी याद आ रही थी तो हम आ गए। मेरा मतलब सचिन आ गया, मुझे भी साथ ले आया।" उसने झूठ बोल दिया।

    दिव्या ने कहा, "भैया, आपकी तबीयत तो ठीक है? क्या-क्या बोल रहे हैं? खैर, आप ऐसा करें, शादी देखकर दूल्हा-दुल्हन को बधाई देकर ही जाना।" इतना कहकर वह अतुल की तरफ़ देखने लगी, जो उसे ही देख रहा था।

    तभी सचिन का फ़ोन बज गया और सचिन ने कहा, "मैं बस 2 मिनट में आता हूँ।" इतना कहकर साइड में चला गया था।

    अतुल ने दिव्या को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा, "आज तो कमाल लग रही हो! अच्छा हुआ मैं आ गया, वरना तुम्हारा यह सारा मेकअप... तुम्हारा तैयार होना बेस्ट हो जाता जब तक आशिक की नज़र नहीं पड़ती, सब कुछ खराब लगता है ना दिव्या?" उसकी बातों से दिव्या को शर्म आने लगी।

    और कहा, "मैं अंदर जा रही हूँ। ओके बाय।" इतना कहकर जा रही थी।

    तब अतुल ने उसका हाथ पकड़ लिया और दिव्या को अपनी तरफ़ करते हुए बोला, "आज मन कर रहा है तुम्हें उठा कर ले जाऊँ, पर क्या करूँ, मजबूर हूँ।" अब वह उसके थोड़ा करीब आ गया और उसकी आँखों से कजल छुटाकर कान के पीछे लगा दिया और थोड़ा रोमांटिक होकर बोला, "अपने आप को आज मुझसे बचाकर रखना, कहीं तुम्हें देखकर मैं बहक ना जाऊँ। तुम आज मुझे जान से मार कर ही रहोगी। मेरा कत्ल करने का इरादा है तो वैसे ही बोल दो मेरी जान।" इतना कहते हुए उसके होंठों की तरफ़ बढ़ने लगा। तभी अतुल की नज़र दिव्या के हाथ पर गई जहाँ हल्की सी खरोच लगी हुई थी, जो शायद चूड़ियाँ पहनते वक़्त लगी थी।

    अतुल ने उसका हाथ ऊपर की तरफ़ उठाते हुए पूछा, "यह तुम्हारे हाथ में क्या हुआ?" अतुल उसकी इतनी सी खरोच देखकर ही बेचैन हो गया।

    दिव्या ने नज़र अँदाज़ करते हुए कहा, "कुछ नहीं है। चूड़ियाँ पहन रही थी तो लग गई।"

    अतुल ने उसे डाँट लगाते हुए कहा, "तुम्हारा दिमाग खराब है? क्यों पहन रही थी चूड़ियाँ? कितना दर्द हो रहा होगा?" अतुल को इतना बेचैन देखकर दिव्या उसे देखती रह गई।

    सचिन भी वहीं आ गया। अतुल बोला, "तुम्हारा दिमाग खराब है? क्या ज़रूरत थी चूड़ियाँ पहनने की?"

    सचिन ने पूछा, "क्या हो गया?"

    अतुल ने सचिन की तरफ़ हाथ करते हुए कहा, "देख, चोट लगी है तेरी बहन के। इसे समझा रहा था।"

    सचिन भी घबरा गया और बोला, "दिव्या, यह कैसे हुआ?"

    उसने कहा, "भैया, कुछ नहीं, हल्की सी खरोच है। मैं ठीक हूँ।"

    अतुल ने गुस्से में कहा, "हल्की सी खरोच है ये? तुम चलो मेरे साथ, मैं तुम्हारे हाथ पर दवाई लगाता हूँ। कार में फ़र्स्ट एड बॉक्स है।" इतना कहकर उसे ले जाने लगा।

    दिव्या को बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि सचिन भी वहीं था, मगर आज अतुल को किसी की परवाह नहीं थी। वह बस दिव्या को ले जाने लगा और सचिन के कान में बोला, "तू नज़र रख चारों तरफ़, वह कार्ड वाली लड़की यहीं कहीं होगी। मैं तब तक दिव्या के हाथ पर दवाई लगाकर आता हूँ।" सचिन ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वह कार्ड वाली लड़की को ढूँढने लगा।

    अतुल दिव्या को अपने साथ ले आया और कार के पास लाते ही उसे एकदम सीने से लगा लिया और उदास होते हुए बोला, "यार, तुम अपना ख्याल क्यों नहीं रखती हो? देखो कितनी गहरी खरोच लगी है तुम्हारे। अगर मैं नहीं आता तो तुम अपना ख्याल नहीं रखती।" इतना कहकर कार से दवाई निकालकर दवाई लगाने लगा और बहुत ज़्यादा परेशान हो गया था।

    उसकी फ़िक्र देखकर दिव्या ने कहा, "अतुल, इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैं ठीक हूँ।"

    अतुल गुस्से में बोला, "चुप रहो! इस बात पर उसे डाँटने लगा। परेशान ना हो तो क्या करूँ? तुम अपना ख्याल मत रखो, ठीक है?"

    दिव्या ने अब मुस्कुरा कर कहा, "तुम होना मेरे ख्याल रखने के लिए तो मुझे ज़रूरत ही नहीं पड़ती।" वह जाने-अनजाने में कह गई। अतुल उसकी तरफ़ देखता रह गया।

    अब दिव्या ने सटपटाकर कहा, "मे... मे... मैं आती हूँ।" तब तक दवाई लग चुकी थी और वह वहाँ से बहुत तेज़ भाग गई।

    अतुल ने दिल पर हाथ रखते हुए कहा, "मैं जानता हूँ तुम भी मुझे बहुत चाहती हो, पर तुम अपने मुँह से वो तीन लफ़्ज़ कब कहोगी कि तुम्हें मुझसे मोहब्बत है?"

    दिव्या बहुत तेज़ी से मेरे पास आई, जो मैं कमरे में रेडी हो रही थी। मैं पूरी तरह रेडी थी पर्पल कलर के लहंगे में, बेहद हसीन लग रही थी। तब दिव्या ने मुझे देखते ही खुशी से कहा, "खुशी, बाहर भैया आए हैं।"

    मैंने एकदम कहा, "हाँ, पता है मुझे। मैंने बुलाया है।"

    दिव्या अचंभे में पड़ गई, "तूने?"

    मैंने जोर देते हुए कहा, "हाँ, उस दिन कार्ड दिया था ना, उसी पर लिखा था मैं यहाँ आ रही हूँ, तो पीछे-पीछे तेरा भाई भी आ गया।"

    "मैं नहीं मानती।" दिव्या इनकार करके बोली।

  • 11. Our Incomplete Lovestory - Chapter 11

    Words: 1921

    Estimated Reading Time: 12 min

    मैंने इनकार करते हुए कहा, "मैं नहीं मानती।" दिव्या ने कहा, "मैं नहीं मानती, तू मज़ाक कर रही है।"

    मैंने चिल्लाकर कहा, "मत मान, मगर यह सच है। झूठ बोलने वालों को गलत कहने का बहुत शौक है। तेरे भाई को अब देखा, खुद कैसे झूठ बोलकर आ गए। मैंने आखिर साबित कर दिया, हर इंसान कभी न कभी, कहीं न कहीं झूठ ज़रूर बोल देता है।"

    मैं अपने बैग से कुछ निकालने लगी। दिव्या ने पूछा, "अब तू यह क्या करने लगी? अपना बैग क्यों खोल रही है?"

    मैंने अपने बैग से एक कार्ड निकाला और कहा, "यह तेरे भाई के लिए।" तब दिव्या ने अपने सिर पर हाथ मारा और कहा, "तेरा क्या होगा?"

    मैंने ज़ोर देते हुए कहा, "फिलहाल तो जो होगा, वह तेरे भाई के साथ होगा।"

    दिव्या हैरान थी। "मतलब?"

    "चल मेरे साथ।" मैंने उसका हाथ पकड़कर बाहर ले आई। वहाँ बहुत मेहमान थे। मैंने एक बच्चे को देखा और उसे अपने पास बुलाया। "बेटा, आपका नाम क्या है?"

    बच्चे ने कहा, "मेरा नाम समर्थ है।"

    मैंने प्यार से कहा, "Wow! कितना प्यारा नाम है! मेरा एक काम करोगे?"

    तब उस बच्चे ने कहा, "हाँ, बताएँ ना, मैं कर दूँगा।"

    मैंने कहा, "यह कार्ड उन भाई को देकर आ जाओ।" मैंने सचिन की तरफ इशारा किया। "वह जो व्हाइट शर्ट पहने हुए खड़े हैं, उनको देकर आ जाओ।"

    बच्चे ने कहा, "मैं अभी जाता हूँ।" वह बच्चा भागकर जाने लगा।

    तब दिव्या ने डरते हुए कहा, "खुशी, तू पागल है! भैया इस बच्चे से पूछ लेंगे, यह कार्ड किसने दिया है। वह मासूम बच्चा बता देगा और तुम पकड़ी जाओगी।" दिव्या का डर कहीं न कहीं सही था। वह बच्चा सच ना बता दे, क्योंकि बच्चे हमेशा सच ही बोलते हैं।

    मैंने बिना डरे कहा, "मैं नहीं पकड़ी जाऊँगी। तू चल मेरे साथ, दूल्हा देखते हैं। अभी तक हमने अपने होने वाले जीजू भी नहीं देखे।" दिव्या डरकर बार-बार उसी तरफ देख रही थी जहाँ सचिन खड़ा अतुल से बात कर रहा था।

    तभी उस बच्चे ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, "यह आपके लिए।" वह कार्ड उसके हाथ में रखने लगा। सचिन को एक बार कुछ बोलने का मौका भी नहीं मिला।

    फिर भी उसने आवाज़ दी, "हेलो बेटा, सुनो..." सचिन की आवाज़ पर भी वह नहीं रुका। "यह कार्ड... इसका मतलब वह सच में यही है..." यह जानकर सचिन ना जाने क्यों मुस्कुरा गया और अतुल की तरफ देखने लगा, और कार्ड खोलकर पढ़ने लगा।

    "तुम्हें क्या लगता है? मैं यहाँ हूँ, हूँ भी, नहीं भी। अरे यार! मैं तो तुम्हारे दिल में हूँ। हाँ, मगर अभी तुम्हें इस बात का एहसास नहीं है। पर जब होगा, बहुत होगा। Okay, मैं बस इतना कहना चाहती थी... खुशी की बात गलत नहीं थी। हर इंसान कभी न कभी, कहीं न कहीं झूठ ज़रूर बोलता है। देखो, आज तुमने ही बोल दिया अपनी बहन से। सचिन, हमेशा एक बात याद रखना, जब कोई आपका अपना आपसे झूठ बोले, तो समझ जाना यह बस आपकी खुशी चाहता है। झूठ बोलना कोई जुर्म नहीं है, और जो अपनों की भलाई के लिए बोला जाए, वह हरगिज़ गलत नहीं है, मेरी नज़र में तो बिल्कुल नहीं है। अब आई बात समझ में या नहीं? अब जाकर बेचारी खुशी से माफ़ी माँगो। उसे बिना वजह कितना सुना दिया तुमने! और हाँ, I love you!"

    सचिन इतना पढ़कर खुद से कहने लगा, "मैं भी ना, बहुत बड़ा पागल हूँ! मैं यहाँ आया ही क्यों था? मुझे क्या हो रहा है? मैं उसकी बातों में खोने लगा हूँ। कहीं मैं भी उसकी मोहब्बत में कैद ना हो जाऊँ!" वह मन में बड़बड़ाने लगा।

    और अतुल ने उसके हाथ से कार्ड लेकर पढ़ लिया और बहुत जोर-जोर से हँसने लगा। "यह लड़की सच में बहुत आगे की चीज़ है! तेरे बस की बात नहीं है इसको पकड़ना।" रहने दे। सचिन ने उसे घूरकर देखा तो उसकी हँसी एकदम रुक गई।

    वहीं दिव्या दूल्हे से मिलने अंदर जा रही थी। दूल्हे की फैमिली वालों का वेलकम अलग जगह हुआ था। छोटे घर की वजह से, पास वाले पार्क में ही सारी सजावट हुई थी। मेरी नज़र अचानक सुरभि की मॉम पर पड़ी, जो लड़के वालों के सामने हाथ जोड़कर कुछ कह रही थी, तो मैं शौक से वहीं रुक गई।

    दिव्या ने मुझे रुका हुआ देखा तो कहा, "चलना, क्या हुआ?"

    तब मैंने दिव्या से कहा, "तू अंदर जा, मैं आती हूँ।"

    दिव्या ने हैरान होकर पूछा, "मगर कहाँ जा रही है?"

    "अरे, बस 2 मिनट में आती हूँ।" इतना कहकर मैं सुरभि की मॉम के पास जाने लगी और दिव्या अंदर चली गई।

    वहाँ कुछ बड़ों की सीरियस बातें चल रही थीं। मैं समझने की कोशिश कर रही थी। अब थोड़ा सा उनके पास आई तो कानों में सुरभि की मॉम की आवाज़ पड़ी, "भाई साहब, मैं इतने पैसे कहाँ से दूँ? मैंने 10 लाख कहा था, अब अचानक 50 लाख कहाँ से लाऊँ? मुझे दहेज का नाम सुनकर झटका लगा।"

    लड़के वालों ने कहा, "हमें कुछ नहीं सुनना। आप या तो ₹50 लाख दो, या फिर यह शादी नहीं होगी।"

    सुरभि की मॉम रोते हुए बोली, "भगवान के लिए, बहन जी, ऐसा ना कहें! मेरी बेटी की बारात लौटी तो उसकी शादी दोबारा कैसे होगी?"

    तब लड़के की मॉम बोली, "हमें कुछ नहीं पता। आप जाइए या आपकी बेटी, हमें तो बस 50 लाख रुपए दे दो, तभी यह शादी हो सकती है।"

    मेरा मन तो किया इन लोगों को इतना सुनाऊँ, आगे से कभी दहेज का नाम ना लें, मगर मैं चुप रही। सुरभि का ख्याल आ गया। अगर बारात लौटी तो वह टूट जाएगी। फिर सोचा, पहले लड़के से बात करके देखती हूँ, क्या पता वही कुछ पैसे कम कर दे। मैं यह सोचकर वापस अंदर की तरफ जा रही थी।

    उधर सुरभि के डैड ने लड़के वालों के सामने हाथ जोड़कर कहा, "देखिए, हम आपको 50 लाख रुपए देने के लिए तैयार हैं। आप तमाशा ना करें। और आप तो जानते हैं, आज सैटरडे है और रात की वजह से सारे बैंक बंद हो चुके होंगे, और कल संडे है, कल भी पैसे नहीं आ पाएँगे। इसलिए हम मंडे में आपको सारे पैसे दे देंगे। शादी होने दीजिए।"

    लेकिन लड़के वालों ने कहा, "नहीं, यह शादी नहीं होगी। आप लोगों का क्या भरोसा? पैसे दो या नहीं दो?"

    "आप हम पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। आप भरोसा तो कीजिए, हम आपको सारे पैसे दे देंगे। बस शादी होने दीजिए शांति के साथ। अगर आप हम लोगों से पहले पैसों की डिमांड करते तो हम आपको पहले ही पैसे दे देते, लेकिन आपने सिर्फ 10 लाख कहा था, तो हमने उतना इंतज़ाम कर दिया है। अब आप लोग बात को आगे बढ़ा रहे हैं। प्लीज़, शांति के साथ शादी होने दीजिए। जितने भी पैसे आपको चाहिए, शादी होने के बाद दे देंगे। सुरभि बहुत अच्छी लड़की है, उसकी तरह आपको कोई लड़की नहीं मिलेगी। समझने की कोशिश कीजिए।"

    वह लोग किसी भी हाल में शादी टूटने देना नहीं चाहते थे, इसलिए इतनी मिन्नत, इतनी रिक्वेस्ट, करनी पड़ रही थी। उन्हें हाथ जोड़ने पड़ रहे थे, लेकिन वह लोग नहीं मान रहे थे। उन्हें हर हाल में पैसे चाहिए थे।

    वहीं दूसरी ओर मैं अंदर जा रही थी। तब मेरी नज़र दिव्या पर गई, तो वही आ गई। दिव्या अंदर से मुँह लटकाकर वापस आई। उसे दूल्हा जरा भी पसंद नहीं आया।

    मैंने उसे देखा तो पास आई और पूछा, "ओ, तेरा मुँह क्यों उतरा हुआ है?"

    दिव्या ने कहा, "कुछ नहीं, यार।"

    मैंने ज़ोर देते हुए कहा, "कुछ नहीं क्या है? बताना।"

    दिव्या ने एकदम कहा, "दूल्हा अच्छा नहीं है।"

    मैं हँसते हुए बोली, "तू तो ऐसे कह रही है जैसे तेरी शादी हो रही हो।"

    मेरे मज़ाक बनाने पर दिव्या ने सीरियस होकर कहा, "मैं मज़ाक के मूड में नहीं हूँ। दूल्हा सुरभि से डबल उम्र का है! पूरा 50 साल का बूढ़ा लग रहा है।"

    मुझे इस बात पर अचंभा हुआ। "तू मज़ाक कर रही है ना?"

    दिव्या गुस्से में बोली, "जा, खुद देख ले!" कहकर वहाँ से हट गई और अंदर की तरफ इशारा करके बोली।

    मैं शौक से अंदर आ गई। वहाँ एक मोटा सा आदमी बैठा था। उसके आस-पास हैंडसम से और जवान लड़के बैठे थे। "हेलो जनाब, क्या मैं पूछ सकती हूँ, यहाँ दूल्हा कौन है?" मैंने एक लड़के से पूछने लगी।

    तो दूल्हे का जो छोटा भाई था, तब उसने कहा, "यह दूल्हा है।" उस आदमी की तरफ इशारा करके बोला। मैं बिना कुछ कहे बाहर आ गई और दिव्या के पास आ गई।

    अब दिव्या ने चिढ़ती नज़रों से कहा, "बस हो गई तसल्ली? मेरी बात का तो तुम्हें यकीन आया नहीं था।" मैं अब सुरभि की मॉम के पास आने लगी, जो अभी तक उन लोगों के आगे हाथ जोड़कर खड़ी थी।

    दिव्या उसे पीछे से आवाज़ लगाते हुए पूछने लगी, "कहाँ जा रही है? रुकना।" वह पीछे-पीछे आई।

    सुरभि की मॉम ने कहा, "देखो, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ, आपके पैर पड़ती हूँ..." सुरभि की मॉम उन लोगों के पैर तक पकड़ने को तैयार थी। मैंने उन्हें लड़के वालों के सामने झुकने से पहले ही पकड़ लिया।

    और कहा, "यह आप क्या कर रही हैं? आप जानती हैं ना, भगवान के सिवा किसी से कुछ नहीं माँगते, और यह लोग आपको क्या देंगे? यह तो खुद भिखारी हैं।"

    मेरी बात पर सभी का मुँह खुला का खुला रह गया। मैं ऐसा करना तो नहीं चाह रही थी जिससे सुरभि की शादी टूटे, मगर अब दूल्हा देखकर मैं चुप ना रह सकी। एक तो दूल्हा इतना उम्र का है, इसी बात का गुस्सा था। सुरभि कहाँ 24 साल की और लड़का 40 साल का! मैं इसी बात पर खिलूस गई।

    वहीं लड़के वालों ने कहा, "देखिए बहन जी, हमें परसों नहीं, हमें आज ही पैसे चाहिए। आप साफ़-साफ़ बता दें, वरना हम अभी चले जाएँगे, यह शादी नहीं करेंगे।"

    "हाँ, तो जाइए ना, किसने रोका है?" मैं बीच में बोल पड़ी।

    "खुशी, ये तुम क्या बोल रही हो?" सुरभि की मॉम ने कहा।

    मैं एकदम बोली, "जो मैं बोल रही हूँ, एकदम सही बोल रही हूँ। इन नियत ख़राब लोगों के घर शादी करना चाहती हैं आप?"

    मेरी बात सुनकर लड़के की मॉम ने ज़ोर देते हुए पूछा, "यह कौन लड़की है जो हमें इतना सुनाई जा रही है?"

    सुरभि के डैड ने कहा, "देखिए, ये मेरी बेटी की फ़्रेंड है। आपसे इसकी बदतमीज़ी पर हम माफ़ी माँगते हैं। वो नहीं चाहते थे सुरभि का घर बसने से पहले टूट जाए, तो वह इसलिए माफ़ी मांगने लगे।"

    तब मैंने कहा, "अंकल, आपको इन लोगों से माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है। मैं गलत नहीं कह रही हूँ, यह लोग जेल जाने लायक हैं।"

    अबकी बार लड़के की माँ ने कहा, "बहन जी, यह तो हद ही हो गई! आपके रिश्‍तेदार हमारी बेइज़्ज़ती कर रहे हैं।"

    मैंने गुस्से में कहा, "बेइज़्ज़ती? अरे, जिसकी कोई इज़्ज़त ही नहीं है, उसकी क्या बेइज़्ज़ती होगी?" वह भड़ककर बोल रही थी।

    तब सुरभि के डैड ने कहा, "खुशी, ये बड़ों की बातें हैं, हम बात कर रहे हैं, तुम चुप रहो।"

    सुरभि की मॉम उसे चुप कराना चाह रहे थे, पर मैं नहीं चुप रही थी। "अंकल, आप बड़े बात करेंगे? यहाँ पर आंटी आप हाथ जोड़े खड़ी हैं, इन लोगों के पैरों में गिर रही हैं, आप चुपचाप देख रहे हैं, लेकिन मैं नहीं देख सकती। एक तो यह लोग दहेज माँग रहे हैं, और आप खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं।"

    अबकी बार लड़के की माँ ने कहा, "अब हम यहाँ एक पल और नहीं रुकेंगे। अब यह शादी नहीं होगी।" सभी फैमिली मेंबर्स को शौक लग रहा था।

  • 12. Our Incomplete Lovestory - Chapter 12

    Words: 1781

    Estimated Reading Time: 11 min

    अबकी बार लड़के की माँ ने कहा, "अब हम यहाँ एक पल और नहीं रुकेंगे। अब यह शादी नहीं होगी।" उन्होंने धमकी दी। इस बात पर सभी फैमिली मेंबर्स को शौक लग रहा था।

    मेरे पर कोई असर नहीं था और मैंने गुस्से में कहा, "हम वैसे भी यह शादी होने नहीं देंगे। आपका बूढ़ा बेटा शादी के नहीं, कब्रिस्तान जाने के लायक है। कहाँ हमारी सुरभि और कहाँ आपका बेटा? शक्ल देखी आपने उसकी? उसकी इतनी उम्र है, अगर आपको शेरवानी पहना दें तो आप भी उसी की तरह लगेंगे।" वह लड़के के डैड की तरफ देखकर बोली।

    दिव्या की हँसी छूट गई थी, लेकिन बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी हुई थी। अबकी बार लड़के की माँ ने गुस्से में कहा, "बेज्जती की हद हो गई! कोई रोको इस लड़की को!"

    अबकी बार सुरभि की मॉम मुझसे बोली, "खुशी बेटा, चुप हो जाओ प्लीज।"

    तब गुस्से में मैंने कहा, "मैं क्यों चुप हो जाऊँ? मेरी बेस्ट फ्रेंड नहीं, बल्कि बहन है सुरभि। उसकी जिंदगी को मैं बर्बाद नहीं होने दूँगी। कल इन लोगों ने 10 लाख माँगे थे, आज शादी के दिन 50 लाख मांग रहे हैं। क्या पता विदाई के वक्त 50 लाख 1 करोड़ हो जाएँगे? तब क्या करेंगे आप लोग?" सभी खामोश होकर मेरी बातें सुन रहे थे और मैं भी डटकर खड़ी रही। "बोलो, आप लोगों ने क्या सोचकर इनके बूढ़े बेटे को पसंद किया था?" मेरी बातों से लड़के वाले बहुत ज़्यादा गुस्सा होने लगे थे।

    वहीं दूसरी ओर, अंदर किसी को यह बात पता चली तो वह सुरभि को बताने उसके कमरे में आ गई। वह दुल्हन बनी हुई बैठी थी। "सुरभि, एक प्रॉब्लम हो गई है।"

    सुरभि ने चौंक कर पूछा, "क्या हुआ?"

    तब उस लड़की ने कहा, "बाहर लड़के वालों से खुशी की बहस चल रही है। वे दहेज में 50 लाख रुपए मांग रहे हैं।"

    क्या झटका खा गई सुरभि! उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि दहेज में पैसों की मांग हुई है। वरना वह खुद यह शादी नहीं करती, क्योंकि उसे भी पता था इतने सारे पैसे उसके डैड कहाँ से लाएँगे। अब वह बाहर आने लगी।

    बाहर अब भी मैं डटी हुई थी। "आप क्या, शादी तोड़ेंगे? अरे, हम खुद ही शादी तोड़ते हैं!" मेरा यह ऐलान सबको झटका दे गया। वहाँ पूरी महफ़िल में यह बात फैल गई- शादी टूट रही है।

    यह सुनकर सचिन, अतुल भी हैरान थे। सचिन भी वापस जाने लगा था, मगर यह बात किसी के मुँह से पता चली।

    उसके बराबर में कोई खड़ा यह बातें कर रहा था, "हद हो गई इस लड़की की! तो अपनी ही सहेली का घर बसाने से पहले उजाड़ रही है।"

    अब दूसरी औरत ने कहा, "हमें क्या? हम क्या ही कह सकते हैं?"

    वह लोग खुशी की बात कर रहे थे। सचिन मन ही मन में बोला, "यह लड़की कभी किसी को झूठ बोलना सिखाती है तो कभी किसी की शादी तोड़ती है।" फिर अतुल की तरफ देखते हुए बोला, "चल, हम भी अंदर चलते हैं।" वह लोग अंदर की तरफ वापस जाने लगे जहाँ सभी लोग थे।

    वहीं से सुरभि भी भागती हुई आ रही थी और अचानक से सचिन से टकरा गई। मगर सचिन ने उसका चेहरा नहीं देखा। वह एकदम पलट गई। वह भी नहीं रुकी थी। उसने भी सचिन को नहीं देखा और भागती हुई अपनी मॉम के पास आ गई।

    लड़के वालों ने गुस्से में कहा, "अब यह शादी नहीं होगी। हम जा रहे हैं।"

    तब मैंने भी गुस्से में चीखते हुए कहा, "हाँ तो जाओ ना! हम भी अपनी सुरभि की शादी बहुत धूमधाम से करेंगे और आपके बेटे से अच्छा लड़का ढूँढ़ेंगे।"

    अबकी बार सुरभि की मॉम ने उसका हाथ पकड़ लिया। "खुशी, बहुत हुआ, चुप करो।" मॉम ने उसका हाथ पकड़ा, लेकिन उसके डैड चुपचाप थे।

    मैंने गुस्से में कहा, "मैं क्यों चुप रहूँ? मेरी सहेली की जिंदगी का सवाल है। मान लीजिए अगर यह शादी हो गई, अगर इन लोगों को कल फिर पैसों की ज़रूरत पड़ी तो यह फिर सुरभि के कान पकड़ेंगे जाकर अपने घर से पैसे लाओ। उसकी जिंदगी तो यूँ ही बर्बाद हो जाएगी। सबको जेल भेज दूँगी मैं।"

    अबकी बार लड़के की माँ ने गुस्से और गंभीरता के साथ कहा, "जिस लड़की के लिए तुमने हमारी इतनी बेइज़्ज़ती की है ना, एक दिन वह भी तुम्हारा वही हाल करेगी जो आज हमारा तुमने किया है।" जाते-जाते लड़के की मॉम मुझे बद्दुआ दे गई।

    सुरभि की मॉम रोते हुए उन लोगों के पीछे आने लगी। "प्लीज बहन जी, यूँ इस तरह शादी तोड़कर ना जाएँ।" सुरभि की मॉम बहुत रो रही थी।

    अब सुरभि ने वहाँ आकर कहा, "मॉम, आप क्यों रो रही हैं? इन लोगों से भीख माँगने की ज़रूरत नहीं है। मेरी शादी जब भगवान चाहेगा तब हो जाएगी।"

    वह सबके सामने बोली। सचिन भी वहीं पीछे खड़ा था। दिव्या अब सचिन के पास आई तो उसने कहा, "यह सब क्या है दिव्या? किसी लड़की की शादी इस तरह तोड़ता है क्या कोई?" वह भी यही समझ रहा था सब कुछ मेरी गलती की वजह से हुआ है। "मेरी गलती है।"

    वह बातें कर ही रही थी, तभी सुरभि की मॉम को दिल का दौरा पड़ गया।

    सुरभि की चीख निकल गई, "मॉम!"

    मैं भी घबरा गई, "आंटी! आंटी!" अबकी बार दिव्या भी पास आई।

    "कोई एंबुलेंस बुलाओ प्लीज!" मेरी आवाज़ वहाँ गुंजने लगी।

    एंबुलेंस वहाँ जाकर उन्हें ले जाने लगी। सुरभि उनके साथ थी, मैं वहीं थी। मुझे अब जाकर ऐसा लगा मेरी वजह से आंटी की ऐसी हालत है। मैं भी अब हॉस्पिटल जाने लगी। मेरी नज़र अचानक सचिन पर पड़ी जो मुझे देख रहा था, जैसे कह रहा हो, "तुम अपनी सहेली को बर्बाद कर गई।"

    सचिन ने गुस्से में अचानक कहा, "खुशी, तुम पागल हो!"

    तब उसने दोबारा कहा, "तुम्हें किसी की भी नहीं सुनती है, किसी की भी सगी नहीं है। तुम झूठ बोलने के लिए कह रही थी और इसकी तो शादी तोड़ दी। मैंने कहा था वह ठीक नहीं है, तुम्हें उसके साथ नहीं होना चाहिए, उससे अपनी दोस्ती खत्म कर दो।"

    मैंने नज़रें नीचे की और अस्पताल जाने लगी। दिव्या वहीं रुक गई।

    दिव्या ने पूछा, "क्या कहा आपने?"

    तब उसने दोबारा कहा, "तुम्हारी फ्रेंड किसी की भी नहीं सुनती है, किसी की भी सगी नहीं है। तुम्हें झूठ बोलने के लिए कह रही थी और इसकी तो शादी तोड़ दी। मैंने कहा था वह ठीक नहीं है, तुम्हें उसके साथ नहीं होना चाहिए, उससे अपनी दोस्ती खत्म कर दो।"

    "बस करें भैया!" दिव्या चीख पड़ी। "खुशी के बारे में आपने गलत राय बना ली है। वह गलत नहीं है। आपको पता है आज वह क्यों बोल पड़ी? लड़के वालों ने पहले 10 लाख रुपए माँगे थे और आज 50 लाख रुपए मांग रहे थे। क्या पता कल ज़्यादा माँगते? खुशी बस सुरभि की खुशी चाहती है और कुछ नहीं। आप गलत राय बना लेते हैं। मैं घर जा रही हूँ, आप भी आ जाएँ।" वह साफ़-साफ़ कह गई। सचिन शर्मिंदा हो गया।

    जब दिव्या जा रही थी, सामने अतुल खड़ा था। उसे भी यह सब देखकर बहुत बुरा फील हो रहा था कि दिव्या का फिर से दिल दुख हुआ है। दिव्या की आँखों में आँसू थे, फिर भी वह वहाँ से निकल गई।

    अतुल सचिन के पास आया और बोला, "यह ठीक नहीं हुआ यार।"

    तब सचिन ने कहा, "चल, तू हॉस्टल जा, मैं घर जाता हूँ।"

    वहीं दूसरी ओर, हॉस्पिटल में सुरभि का रो-रोकर बुरा हाल था। डॉक्टर इलाज कर रहे हैं।

    मैं अब हॉस्पिटल आई थी और आते ही पूछा, "आंटी कैसी हैं?"

    "अभी कुछ नहीं पता।" सुरभि रोते हुए बोली।

    मैंने सहारा देते हुए कहा, "सुरभि, रोओ नहीं।"

    "रोएँ नहीं तो क्या करें?" उसके डैड अब चीख पड़े।

    उसके डैड की चीख सुनकर मैं हैरान रह गई। सभी लोगों को झटका लगा था। उसके डैड फिर गुस्से में बोले, "मैंने कहा था चुप हो जाओ बेटा, चुप हो जाओ, हम बात कर लेंगे, मगर नहीं, तुम्हें बहुत शौक था अपनी सहेली की जिंदगी सँवारने का। देख लिया अब क्या हुआ?"

    अब दिल कह रहा है एक चाँटा लगाऊँ। वह हाथ उठाने वाले थे, मगर सुरभि बीच में आ गई।

    उसके डैड का हाथ मेरे गाल पर पड़ते-पड़ते रह गया, मगर मेरी गर्दन नीचे की तरफ झुकी हुई थी। तब सुरभि के चाचू ने कहा, "भाई साहब, बच्ची है।" मेरी आँखें भर गईं।

    सुरभि ने भी कहा, "डैड, आप खुशी से कुछ ना कहें। उसकी कोई गलती नहीं है।"

    मेरे से एक पल नहीं रुक पाया और रोती हुई चली गई।

    वहीं दूसरी ओर, मैं अपने घर तो आ गई, मगर खुद को अपने कमरे में लॉक कर लिया।

    दूसरे दिन,

    मैं मंदिर ही जा रही थी, सचिन से टकरा गई जो फोन में नज़रें जमाए हुए आ रहा था। मैंने खुद को संभालकर बोली, "आप अंधे हैं? देखकर नहीं चल सकते? अभी लग जाती!"

    सचिन हैरानी से बोला, "खुशी!" उसे क्या पता था जरा सा टकराने पर मैं इतना भड़क जाऊँगी। सचिन ने कहा, "सॉरी खुशी।"

    मैं भड़क चुकी थी। "क्या सॉरी? क्या क्या सॉरी? आपको तो मैं ही गलत लगती हूँ। पहले झूठ बोलने वाली, अब शादी तोड़ने वाली। है ना यही नाम देने वाली है ना आप मुझे?"

    सचिन ने कहा, "खुशी, तुम गलत..."

    "हाँ, कहो-कहो मुझे गलत कहो!" मैं उसकी बात पूरी होने से पहले बोल पड़ी। मैं जो करती हूँ, वह गलत है। मैं भड़क कर बोली, अपना सारा गुस्सा सचिन पर निकालने लगी।

    दिव्या ने अभी देखा तो भागती हुई आई, मेरे पास आ गई और उसने आते ही मुझसे पूछा, "खुशी, क्या हुआ यार? तू इतना गुस्सा मत कर। चल।" दिव्या ने मेरा हाथ पकड़ लिया।

    और सचिन की तरफ देखते हुए कहा, "सॉरी भैया।" सचिन वहाँ से चला गया।

    दिव्या ने मुझे पकड़ते हुए कहा, "तू पागल हो गई है! वो मेरे भाई हैं और तेरी मोहब्बत है उनको? क्यों सुना रही है तू?"

    "तो क्या करूँ?" मैं चीखी। "मेरे सर में दर्द मत कर। तुम सबको मैं गलत लगती हूँ। एक दिन चली जाऊँगी, तुम सबसे दूर। फिर रहना खुश।"

    "खुशी, प्लीज।" दिव्या मुझे सीने से लगाकर शांत करने की कोशिश करने लगी थी। अब दिव्या के पास थी तो इस वजह से थोड़ी शांत होने लगी।

    थोड़ी देर में...

    वहीं सचिन अपने केबिन में था। आज वहाँ कोई कार्ड नहीं था तो उसे अच्छा नहीं लग रहा था।

    "क्या बात है मिस्टर सचिन? क्या ढूँढ रहे हो?" अतुल ने आते ही सचिन से पूछने लगा।

    तब सचिन ने कहा, "अच्छा हुआ तू आ गया। सुन, मेरी हेल्प कर। तू भी मेरे साथ वह कार्ड ढूँढने में मेरी मदद करना।"

    तब अतुल ने मुस्कुरा कर कहा, "सचिन, जानते हो ना जेल के कैदी छूट जाते हैं, मगर इश्क के नहीं। कहीं इश्क में तो नहीं गिर गए?" इस बात पर सचिन मुस्कुराने लगा।

  • 13. Our Incomplete Lovestory - Chapter 13

    Words: 1697

    Estimated Reading Time: 11 min

    तब अतुल ने मुस्कुराकर कहा, "सचिन, जानते हो ना, जेल के कैदी छूट जाते हैं, मगर इश्क के नहीं। कहीं इश्क में तो नहीं गिर गए?" इस बात पर सचिन मुस्कुराने लगा।

    उस दिन मैं ऑफिस नहीं गई थी। मैं सुरभि के घर आई थी। मुझे देखकर सुरभि खुशी से गले लगी।

    "आंटी कैसी हैं?" मैंने पूछा।

    सुरभि ने कहा, "अम्मी ठीक हैं। अंदर हैं। तू चल, मैं आती हूँ।" वह किचन में चली गई और मैं सुरभि की मॉम के पास आ गई। "आंटी, कैसी हैं आप?"

    उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "ठीक हूँ।"

    मैंने उदासी से उनके पास बैठते ही कहा, "सॉरी आंटी, मेरी वजह से सुरभि की शादी होते-होते रह गई।"

    "तुम सॉरी मत कहो। तुम्हारी वजह से मैं बच गई, अच्छा है जो मेरी शादी उन लालची लोगों से नहीं हुई।" पीछे से सुरभि ने कहा। सुरभि अंदर चाय की ट्रे लेकर आ रही थी।

    उसकी मॉम ने कहा, "खुशी, तुम शर्मिंदा मत हो। जो हुआ, भगवान की मर्ज़ी से हुआ। तुम्हारी कोई गलती नहीं है। चलो, चाय पियो।"

    मैंने अब खुशी से कहा, "आज नहीं, चाय फिर कभी पिऊँगी। आज जल्दी में हूँ। बस आंटी का हाल पूछना था, तो आ गई। बस, चलती हूँ।" वो जाने लगी।

    "आजकल कहाँ बिजी रहती हो?" सुरभि ने उसका हाथ दरवाजे पर पकड़ा।

    मैंने हँसकर कहा, "कहीं नहीं, बस काम में बिजी थी।"

    "काम?" इस बात पर सुरभि जोर देने लगी।

    मैंने अबकी बार ब्लश करते हुए कहा, "कुछ नहीं है।"

    सुरभि ने शरारत से कहा, "तुम्हारी मुस्कान सब बता रही है। तुम किसी के प्यार में हो। कौन है वो? बताओ।"

    "फिर कभी बता दूँगी, मगर आज जाने दो।" मैं ये कहकर भागी।

    सुरभि ने उसके जाते ही दुआ माँगी, "यह लड़की जिसको भी चाहती है, वह भी इसको बेहद चाहे। इसे इतना प्यार करें, इसकी खुशियों में कभी गम ना हो और वह इसे मिल जाए।"

    फिर वहाँ से अपने कमरे में आ गई और अपने कमरे में अपनी बेड की चादर हटाकर उसने एक फोटो निकाला और उस फोटो को प्यार से देखते हुए बोली, "और मेरी मोहब्बत को भी मुकम्मल कर दे। मैं जिससे मोहब्बत करती हूँ, वह हमेशा के लिए मेरा हो जाए। इस मोहब्बत को न जाने कब से छुपाए बैठी हूँ। अपनी दुनिया में सिर्फ़ उन्हें लाना चाहती हूँ। न जाने मैंने कितनी दुआएँ माँगी थीं कि यह शादी ना हो और ये मेरी दुआओं का नतीजा था जो शादी नहीं हुई। बस मुझे यह मिल जाए जिससे मैं मोहब्बत करती हूँ, फिर मुझे कुछ नहीं चाहिए, कुछ भी नहीं।" उसने इतना कहते ही फोटो को सीने पर रख लिया और मुस्कुराकर रह गई।

    वहीं दूसरी ओर, दिव्या का घर। रात का वक्त था।

    सचिन अपने घर पर बेहद गुस्से में आया था। दिव्या हाल में बैठी हुई थी। उसे देखते ही उसके पास आई और बोली, "भैया, आप आज बहुत गुस्से में हैं।"

    दिव्या ने दोबारा पूछा, "बोले ना भैया, क्या हुआ?"

    सचिन ने नॉर्मल होकर कहा, "कुछ नहीं। तुम सोई नहीं?"

    दिव्या ने कहा, "मैं बाहर जाकर आइसक्रीम खाना चाहती हूँ। प्लीज भैया, चलें।"

    सचिन थके हुए अंदाज़ में बोला, "दिव्या, आज मैं थक गया हूँ। अब बाहर नहीं जा सकता।"

    दिव्या ने बहुत उदासी से कहा, "प्लीज भाई।" वह बस मेरे कहने पर उसे ले जाना चाहती थी क्योंकि मैंने सचिन के लिए सरप्राइज़ प्लान कर रखा था।

    सचिन मना करने वाले अंदाज़ में बोला, "मगर दिव्या..."

    "प्लीज भाई, आप ऐसा करोगे तो मैं कहाँ जाऊँगी?" वह एक्टिंग करने लगी।

    सचिन उसकी मासूम सी शक्ल देखकर बोला, "अच्छा, ठीक है। चलो। रो मत।" वो दोनों कार से जाने लगे।

    दिव्या ने कहा, "एक आप ही तो हैं जो मेरा ख्याल रखते हैं।"

    सचिन ने कहा, "क्यों? तुम्हारी फ्रेंड भी ना, खुशी जो हमेशा मुझसे लड़ती रहती है।"

    दिव्या ने भी उसे याद दिलाते हुए कहा, "भैया, आप भी कम नहीं हैं। हर बार उसे गलत समझ लेते हैं।" वह गुस्से में थी सुबह क्योंकि सुरभि के डैड ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया था और जब भी बहुत टेंशन होती है, उसके सामने जो भी आता है उसी पर गुस्सा निकाल देती है। आप पर भी निकाल दिया। आप शुक्र करें आपको मारा नहीं, वरना..." दिव्या ने सचिन को डरा दिया।

    और वह कुछ ही देर में आइसक्रीम के ठेले के पास आ गए। तब दिव्या ने कहा, "लो, आ गए हम। चलो, आइसक्रीम खाते हैं।" वो कार से निकलकर बाहर ठेले पर आ गए।

    तभी वहाँ एक छोटा बच्चा आया और सचिन को कार्ड देने लगा, जो दूर खड़ी मैंने दिया था।

    "यह कार्ड किसने दिया है?" सचिन ने पूछा।

    उस लड़के ने वही इशारा किया जहाँ मैं खड़ी थी। "वह वहाँ है जिसने यह दिया है।" सचिन ने उस लड़के के पीछे देखा, वहाँ कोई नहीं था।

    "वह आपका पार्क में इंतज़ार कर रही है।" लड़का कहकर चला गया।

    दिव्या ने एक्साइटेड होते हुए कहा, "भैया, चलो चलकर देखते हैं।"

    वह आइसक्रीम खाते-खाते बोला, "हाँ, चलो।"

    दोनों वहीं पास वाले पार्क में आ गए। वहाँ अच्छी खासी डेकोरेशन थी। पूरा पार्क लाइटों से जगमगा रहा था। पेड़ों पर लाइट लगी हुई थी, जिस वजह से वहाँ सारे पेड़ जगमगा रहे थे। बलून्स हर जगह पूरे पार्क में बिखरे हुए थे। गुलाब के फूल भी पार्क में जमीन पर पड़े हुए थे। जहाँ से सचिन चलकर अंदर आया और सामने बहुत बड़ा बोर्ड लगा हुआ था।

    जिस पर लिखा था, "हैप्पी वैलेंटाइन डे ❤ 🌹🌹आई लव यू🌹🌹"

    रोमांटिक डेट की तरह सजा हुआ था। सचिन हर तरफ देखकर हैरत में आ रहा था। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि कोई लड़की उसे इतनी मोहब्बत कर सकती है, उसके लिए इतनी अच्छी डेकोरेशन की है। यह देखकर वह एक्साइटेड हो गया और इम्प्रेस भी हो गया और मन ही मन मुस्कुराने लगा।

    और दिव्या से बोला, "चलो, अब घर चलते हैं।" वह नहीं चाहता था यह सब कुछ देखकर वह पिघल जाए, इसलिए दिव्या को ले जाने लगा।

    तब दिव्या ने कहा, "भाई, 1 मिनट। आपका फोटो तो ले लूँ।" वो उसके फोटो खींचने लगी।

    सचिन ने हारकर कहा, "बस करो दिव्या, रात बहुत हो गई है। अब चलो।" वह जा रहा था, तब कुछ म्यूज़िशियन ने रास्ता रोक लिया।

    और अचानक ही कुछ लड़के-लड़कियाँ वहाँ व्हाइट शर्ट, ब्लैक पैंट एंड ब्लैक शूज़ में आ गए। सब के सिर पर टोपी थी। सचिन हैरान था, ये लोग कौन हैं? क्योंकि वह पहली बार उनसे मिला था और वह लोग वहीं पार्क में एक परफॉर्मेंस देने लगे।

    तो दिव्या के साथ सचिन को वहाँ रुकना पड़ा और यह सब कुछ देखकर उसका दिल कर रहा था बस वो लड़की एक बार सामने आ जाए तो मैं उससे कह दूँगा कि मुझे भी तुम पसंद हो। अब तो हर हाल में सचिन को कार्ड वाली लड़की चाहिए थी क्योंकि वह भी उसका दीवाना होने लगा था। वहाँ बाहर जितने भी लोग थे, सभी पार्क के अंदर आ गए और वह सारे नज़ारा देखकर बहुत खुश हो रहे थे। कुछ कपल वहाँ पर कपल डांस करने लगे और सारे लोग वहाँ की वीडियो बना रहे थे। सचिन के ऊपर बलून्स वगैरह गिर रहे थे। उसे यह सब कुछ देखकर बहुत खुशी मिल रही थी। उसे लग रहा था कोई उसका है जो उसकी कदर करता है, उसकी फ़िक्र करता है।

    पर मैं अब भी सामने नहीं आई। सचिन ने अब कहा, "चलो, अब चलते हैं। बहुत रात हो गई है।"

    तब दिव्या ने कहा, "1 मिनट भाई, वो कार्ड तो ले लो।" वहाँ एक कार्ड रखा था, तो दिव्या ने उठाकर उसके हाथ में रखा और वह दोनों जाने लगे। तभी आसमान में पटाखों की आवाज आने लगी। पूरा आसमान जगमगाने लगा था। वहीं पर लिखा हुआ था, "हैप्पी वैलेंटाइन डे एंड आई लव यू।" यह सब देखकर सचिन का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।

    क्योंकि यह सब कुछ उसके लिए एक सपने जैसा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था यह उसके साथ क्या हो रहा है। फिर वह लोग बाहर आ गए।

    दिव्या अपनी कार में बैठने ही वाली थी कि उसकी नज़र कार पर रखे केक पर गई तो दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। फिर दिव्या ने हँसकर कहा, "भाई..." सचिन ने खुशी से केक काट दिया और दोनों जाने लगे तो दिव्या की नज़र सुरभि पर पड़ी। वह वहीं से गुज़र रही थी। तब दिव्या हैरान रह गई और खुद से कहा, "ये सुरभि है?" फिर उसे आवाज़ देने लगी, "सुरभि!"

    सुरभि उनके पास आई और दोनों एक-दूसरे के गले लगीं।

    "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" दिव्या ने सुरभि से पूछा।

    सुरभि ने कहा, "कुछ काम था तो आना पड़ा।"

    वहीं मैं दूर से उन्हें देख रही थी। उसका मन था उनके पास जाए, मगर जा नहीं पाई।

    "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" सुरभि ने पूछा।

    दिव्या ने हँसकर कहा, "अपने भाई के साथ आइसक्रीम खाने आई थी। और सॉरी, मैंने तुम्हें सचिन भाई से तो मिलवाया ही नहीं।"

    "हेलो सर।" सुरभि ने कहा।

    "हाय।" सचिन ने भी हाय कहा और दोनों ने हाथ मिलाए।

    सचिन की नज़रें इधर-उधर घूम रही थीं। उसकी नज़र तो अब भी कार्ड वाली लड़की को ढूँढ रही थी।

    सचिन का हाथ अब भी सुरभि के हाथ में था। सुरभि ने सचिन का हाथ नहीं छोड़ा। अबकी बार सचिन ने हैरानी से पलटकर उसकी तरफ़ देखा और कहा, "मेरा हाथ...?"

    अब जाकर सुरभि होश में आई और उसने एकदम हाथ छोड़कर कहा, "अच्छा, ठीक है। अब मैं चलती हूँ।" वो बड़ी स्पीड के साथ कहकर चली गई।

    मैंने उसके जाते ही सचिन की तरफ़ देखा जो इधर-उधर ढूँढ रहा था। "भाई, हम भी चलें।" सचिन ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। तब दिव्या ने शरारत से पूछा, "आप किसे ढूँढने लगे?"

    सचिन ने मुस्कुराकर कहा, "किसी को नहीं। चलो।" वह दोनों कार में आकर बैठ गए। सचिन की अब नज़र मुझ पर गई जो मैं फोन पर बात कर रही थी।

    सचिन ने दिव्या से कहा, "दिव्या, ये तुम्हारी दोस्त खुशी है ना?" वह अपना शक दूर करने लगा क्योंकि मेरा चेहरा साफ़ तरीके से नहीं दिख रहा था।

    दिव्या ने हड़बड़ाकर कहा, "जी...जी भाई, वही है।"

    सचिन हैरान था। "यह इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है? चलो, चलकर पूछते हैं।" दिव्या घबरा गई।

  • 14. Our Incomplete Lovestory - Chapter 14

    Words: 1141

    Estimated Reading Time: 7 min

    सचिन हैरानी से कहा, "यह इतनी रात को यहां क्या कर रही है? चलो, चलकर देखते हैं।"

    दिव्या घबरा गई और बोली, "कुछ नहीं भाई। काम होगा, तभी आई हूँ। वरना मैं नहीं आती। चलो, हम घर चलते हैं।" वह डर रही थी कहीं उसकी पोल न खुल जाए।

    सचिन ने जोर देते हुए कहा, "अरे, एक बार पूछ तो लो आखिर क्या कर रही है।"

    दिव्या ने अपना डर छुपाते हुए कहा, "हमें क्या भाई? आप घर चलें। फिर यह कार्ड भी तो पढ़ना है।" वह उसको कार्ड में उलझा गई। वे घर जाने लगे।

    वहीं दूसरी ओर, सचिन की कल रात वाली वीडियो, जो उन लोगों ने पार्क में बनाई थी, वायरल हो गई। अतुल ने वह वीडियो देखी। वह ऑफिस जाने के लिए रेडी हो रहा था, तब उसने वह वीडियो देखी और हैरान रह गया। फिर उसने तुरंत सचिन को कॉल की और सचिन को बकने लगा। उसे लगा सचिन ने खुद ही पार्टी कर ली, बुलाया भी नहीं।

    तब दूसरी तरफ से सचिन की आवाज आई, "अरे नहीं यार, तू जानता है ना मुझे पार्टी-वार्टी करने का इतना शौक नहीं है। ये उसी लड़की ने किया है, कार्ड वाली ने। मैं तो दिव्या के साथ आइसक्रीम खाने गया था यार, पर वहाँ जाकर देखा तो मैं खुद सरप्राइज़ हो गया। मैं तुझे सारी बातें ऑफिस आकर बताता हूँ।"

    अतुल ने गुस्से में कहा, "हाँ, तू आ। तुझसे बहुत सारी बातें करनी हैं। क्योंकि अकेले-अकेले केक खाकर आ गया। एक कॉल कर सकता था मुझे।" इतना कहकर कॉल कट गई।

    सचिन आवाज देता रह गया, लेकिन अतुल ने फ़ोन काट दिया था। सचिन भी कमरे से रेडी होकर अपनी कार के पास आ गया। वहाँ दिव्या पहले से ही खड़ी थी।

    दिव्या सचिन के पास आई और बोली, "भाई, ऑफिस आज मैं आपके साथ जाऊँगी।" दिव्या उसकी कार में आकर बैठ गई। वह जानती थी आज पूरे रास्ते सचिन को सरप्राइज़ देने वाली है, मगर कौन सा सरप्राइज़ है, यह नहीं पता था।

    सचिन कार लेकर निकला। रास्ते में कार के सामने एक बुजुर्ग आ गए। तो कार को झटके से ब्रेक लगे। तभी एक लड़का कार के शीशे पर हाथ मारने लगा। सचिन ने अपनी कार का शीशा नीचे किया तो उस लड़के ने उसको फूलों का बुके देने लगा, जिसमें शायद 200 के आसपास फूल थे, सारे गुलाब के फूल, ताज़ा। जिसे देखकर सचिन हैरान था। वह लड़का वहाँ से जाने लगा था।

    सचिन ने उसे आवाज़ लगाई, "ओ हेलो! हेलो!" मगर वह नहीं रुका। सचिन कार से बाहर जाने के लिए निकलने लगा, मगर पीछे वाली गाड़ियों ने हॉर्न बजाया तो वह कार से बाहर नहीं आया और आगे बढ़ गया।

    दिव्या अनजान बनकर पूछने लगी, "भाई, यह कौन था?"

    सचिन ने कहा, "दिव्या, मुझे नहीं पता। शायद वही कार्ड वाली लड़की यह कर रही है।" आगे ट्रैफिक में कार रुकी।

    तो वहाँ भी एक बच्चा उसके पास आया। वह एक लाल गुलाब देने लगा।

    सचिन ने मुस्कुराकर कहा, "थैंक यू बेटा, पर ये किसने दिया है?"

    "मुझे नहीं पता," वह कहकर भाग गया। ऑफिस आने में अभी वक़्त था।

    दिव्या एक्साइटेड होते हुए बोली, "भाई, मुझे लगता है यह सब कुछ वह लड़की कर रही है।"

    सचिन ने एकदम कहा, "तुझे क्या लगता है? मुझे भी यही लगता है।" वह उसका मुँह बंद कर गया।

    "भाई, संभाल कर!" सामने अचानक छोटा बच्चा आया, जिसके हाथ में बहुत सारे गुब्बारे थे, सभी लाल कलर के। उसने सारे गुब्बारे हवा में छोड़े। सचिन अब बहुत ज्यादा इम्प्रेस हो गया था और कार के अंदर से देखने लगा। बलून्स आसमान में उड़ने लगे और उन सब पर "आई लव यू एंड हैप्पी वैलेंटाइन डे" लिखा हुआ था, जिसे देखकर वह और खुश हो रहा था। और कार के बाहर आ गया। जब कार के बाहर आया सचिन, जिसे देखकर बस मुस्कुराए जा रहा था, और कुछ ही पल में वे लोग ऑफिस आ गए। ऑफिस जाते ही वह केबिन की तरफ़ जाने लगा।

    दिव्या ने पीछे से आवाज़ दी, "भाई, रुके! यह बुके तो ले लें। इसमें कुछ है।" दिव्या ने फूलों के बुके में एक चिट देखी।

    सचिन वापस कार के पास आ गया। उस कार्ड पर "स्टोर रूम" लिखा था। उनके ऑफिस का स्टोर रूम हमेशा बंद रहता है, जो बहुत अंदर जाकर है। स्टोर रूम का नाम पढ़कर वह हैरान रह गया और दिव्या से बोला, "मैं आता हूँ।" वह कहकर स्टोर रूम की तरफ़ भागा।

    वहाँ बहुत अंधेरा था क्योंकि वह बहुत अंदर जाकर था, जिस वजह से कमरे में सूरज की किरणों की रोशनी भी नहीं आ पा रही थी। बस अगर बल्ब जलेगा, तभी रोशनी होगी। और सचिन ने अंधेरा देखा तो आवाज़ लगाने लगा, "हेलो! कोई है? कोई है?" उसके आवाज़ देते ही वहाँ लाइट जली और पूरा स्टोर रूम जगमगाने लगा। वहाँ एक नहीं, कई कार्ड रखे थे। सचिन सब कुछ देखकर हैरान हो गया और होठों पर बहुत प्यारी मुस्कान आ गई। फिर एक कार्ड उठाकर पढ़ने लगा।


    💌 ••••! मुझे नहीं पता। तुम मुझे चाहते हो या नहीं, मगर मैं तुमसे इस कदर प्यार करती हूँ, तुम्हारे बगैर जीने का तसव्वुर भी नहीं कर सकती। मैं जानती हूँ, अब तुम्हारे मन में यही चल रहा होगा, मैं तुमसे प्यार करती हूँ तो सामने क्यों नहीं आती? क्योंकि मैं डरती हूँ, कहीं तुम मुझे छोड़कर चले गए तो। मेरा दिल डरता है तुमसे दूर जाने के नाम से। खैर, छोड़ें ये बातें। अब सिर्फ़ खुशी का पल ही रहेगा। हैप्पी वैलेंटाइन डे माय लव, मेरी जान! 💌•••••••!

    सचिन ने कार्ड बंद करके उससे कहा, "अगर इतना प्यार है तो अपना नाम ही बता दो।" वह जानता था यह कार्ड वाली लड़की यही है और ऐसा ही था। मैं स्टोर रूम के अंदर ही थी। वो अलमारी के पीछे थी। सचिन देख नहीं पाया।

    और वही सारी डेकोरेशन देखने लगा। वह बहुत ज्यादा एक्साइटेड हो रहा था। मन कर रहा था बस किसी भी तरह यह लड़की मिल जाए।

    मैं भी वहीं छुप कर उसकी मुस्कान देख रही थी। उसका मन कर रहा था उसे कसके गले लगाकर हैप्पी वैलेंटाइन डे विश करें, मगर ऐसा नहीं कर सकी।

    सचिन को वहाँ किसी की आहट हुई तो इधर-उधर देखने लगा और बोला, "कौन है यहाँ पर? तुम होना मुझे पता है। तुम ही हो। देखो, अब ज़्यादा ड्रामा करने की ज़रूरत नहीं है। सामने आ जाओ। देखो, मैं बहुत परेशान हो चुका हूँ तुम्हारे इस रवैये से। मुझे और ज़्यादा परेशान करने की ज़रूरत नहीं है। सामने आओ।" सचिन वहीं अलमारी की तरफ़ जाने लगा।

    तब मेरा दिल बहुत जोर-जोर से धड़कने लगा था। मैं बहुत ज़्यादा घबरा रही थी, कहीं पकड़ न जाऊँ। और ऐसा ही हुआ। सचिन ने जाकर पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। तब मेरी धड़कनें रुक गई थीं।

    सचिन ने कहा, "अब बहुत हो गया। तुम्हारा खेल खत्म। चलो, अपना चेहरा दिखाओ।" अब मैं घबरा गई और घबराते हुए मैं पलटने लगी।

  • 15. Our Incomplete Lovestory - Chapter 15

    Words: 1633

    Estimated Reading Time: 10 min

                             

    सचिन ने कहा अब बहुत हो गया  तुम्हारा खेल खत्म चलो अपना चेहरा दिखाओ

    में अब घबरा गई और घबरा कर पलटने लगी पर उसी वक्त लाइट चली गई लेकिन सचिन ने मेरे कंधे से हाथ नहीं हटाया बल्कि मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और अंधेरे में ही मेरे चेहरे को थामते हुए बोला  कौन हो तुम मैंने पूछा कौन हो तुम  जवाब दो

    में कुछ बोल नहीं रही थी क्योंकि अगर में बोलती तो में पकड़ी जाती  इस वक्त अंधेरा है तो मौका अच्छा है चुप रहूं इसलिए में बिल्कुल चुप रही

    तब सचिन ने दोबारा सवाल किया  मैंने पूछा कौन हो तुम  देखो मैं जान गया हूं  तुम ही वह लड़की हो जो मुझे इतना परेशान कर रही है  देखो चलो अपना नाम बताओ

    सचिन परेशान था  पर वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी  तब सचिन ने दोबारा सवाल किया  देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ अपना नाम बताओ कौन हो तुम  मुझे तुम्हारी आवाज सुननी है  अपनी आवाज सुनाओ

    पर में तो कोई जवाब ही नहीं दे रही थी मुझे डर था अगर बोली तो में पकड़ जाएगी  इसलिए चुप रहने में ही भलाई है  यही सोचकर चुप रही

    सचिन गुस्से में आने लगा था अबकी बार मेरे  बाजू को कसके पकड़ कर बोला  मैंने कुछ पूछा है अपना नाम बताओ कौन हो तुम

    अब में गुस्से में खुद से बोली  यार यह सचिन सर कुछ ज्यादा ही नहीं बोलते हैं  वैसे तो कभी बोलता हुआ देखती नहीं मैं इनको हमेशा चुप रहते हैं  और आज देखो कितना बकबक कर रहे है  मन कर रहा है कि एक लगाऊ पर क्या करूं  मेरी जान है  अब ऐसे हाथ भी नहीं उठा सकती  इनका मुंह कैसे बंद करूं यही सोचते हुए पागल हो रही थी तभी जाने मेरे  दिमाग में आइडिया आया  कि एकदम सचिन से हाथ छुड़ाकर उसको हग कर लिया    और उसके सीने से लग गई
    सचिन पूरी तरह शौक हो गया था  उसकी समझ में नहीं आया यह अचानक उसके साथ क्या हुआ दिल की धड़कन जैसे रुकी गई हो एक पल के लिए सांस भी अंदर ही अटक गई थी

    मेंने उसे मजबूत तरीके से पकड लिया और उसके गाल पर किस करने लगी  किस करते वक्त में भूल गई थी कि में इस वक्त सचिन के कितने करीब हु दोनों एक दूसरे के बेइंतहा करीब थे  शायद हवा पार होना भी मुश्किल था  सचिन की साँस वही अटक गई  और कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं थी  पहली बार कोई लड़की उसके इतने करीब थी जिस वजह से वह पूरी तरह शौक था और आहिस्ता आहिस्ता वह भी अपने हाथ मेरी कमर पर कब ले आया पता ही नहीं चला और मुझे कसके गले लगा लिया

    मुझे अब सचिन के हाथ अपनी कमर पर महसूस हुए तो में बेहद खुश हो गई और खुशी से उसके गले लगी रही  दोनों एक दूसरे के बहुत टाइम तक ऐसे ही गले लगे रहे पर लाइट अभी भी नहीं आई थी

    क्योंकि लाइट का वायर दिव्या ने बाहर से काट दिया था  वह जानती थी में अंदर हु और आज पकड़ी जा सकती हु  इसलिए उसने बाहर से लाइट का वायर काट दिया जिस वजह से अब लाइट स्टोर रूम में नहीं जाएगी स्टोर रूम में बिल्कुल अंधेरा था और हम दोनों का चेहरा भी नहीं दिख पा रहा था फिर भी एक दूसरे के गले लगे हुए बहुत सुकून महसूस कर रहे थे  एक दूसरे की सांसे महसूस कर पा रहे थे

    सचिन तो जैसे खो ही गया था  पहली बार वह किसी लड़की की करीब आया और वह अपना होश खो बेठा उसे पता ही नहीं चला की कब उसने मेरी कमर पर हाथ रख लिये और मुझे कसके गले लगा बैठा  उसे कुछ खबर ही नहीं थी पूरी तरह खोया हुआ था

    और में बड़े आराम से उसके गले लगा कर खुद से बोली  आज इतना सुकून पहली बार महसूस किया है  सचिन सर आप मुझे पहचान जाते और मेरी मोहब्बत को जान जाते तो कितना अच्छा होता पर नहीं आपको तो पता नहीं क्या हो जाता है  हां मैं जानती हूं  आपने मुझे अब गले लगाया हुआ है पर आप थोडे-थोडे बहक रहे हैं  कोई भी लड़का किसी भी लड़की के इतने करीब आ कर बहक हीं जाता है  इतना कहकर उसे थोड़ी पीछे हुई और उसके गाल खींचने लगी

    सचिन अभी खोया हुआ था और में चुपचाप सचिन से दूर होकर जाने लगी तब सचिन ने मेरा हाथ पकड लिया और अपने करीब करके  मेरे चेहरे को थाम लिया  जिस वजह से में पूरी तरह शौक हो गई

    अंधेरे में भी सचिन काफी अच्छी तरीके से मुझे पकड़े हुए था और मेरे बेहद करीब था दोनों की गर्म साँसे एक  दूसरे से टकरा रही थी और अचानक ही सचिन मेरे होठों पर अपने होंठ रखने लगा

    तब में ने उसे एकदम पीछे धक्का दिया और वहां से बहुत तेज भागी और सचिन भी अब जाकर होश में आया और अपने सर पर हाथ मार कर बोला

    मैं क्या करने जा रहा था ओ माय गॉड कही मुझे उस लड़की से प्यार तो नही हो गया सच मे उस लड़की से प्यार  और वहां से बाहर आ गया

    वही दूसरी और में भी वहां से एकदम बाथरूम में आकर उल्टी सीधी सांस लेने लगी खुद से बोली  यार सचिन सर कुछ ज्यादा ही नहीं बहक गए थे  पता नहीं केसे पर वो मुझे किस करने वाले थे इसके लिए अभी वक्त लगेगा
    क्योंकि मैं अभी तुम्हारे सामने नहीं आई हूं और अभी तो तुम्हें मुझसे मोहब्बत भी नहीं है  जब तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो जाएगी तो मैं खुद तुम्हें किस करुंगी रुकूंगी नहीं  पर अभी रोकना जरूरी था  मेरी जान वरना तुम्हारी इज्जत लुट जाती इतना कहकर शीशे में देखकर मुंह से पानी मारते हुए हंसने लगी

    वहीं दूसरी और सचिन भी बहुत मुस्कुराता हुआ आ रहा था जिसे देखकर  अतुल हैरत में बोला ओ मेरे भाई क्या हुआ बड़ा मुस्कुरा रहा है

    तब सचिन मुस्कुरा कर अतुल की तरफ देखने लगा और हंसते हुए बोला आई एम इन लव  इतना सुनते ही अतुल खुशी के मारे देखने लगा

    और पूछा सच  कौन है वो खुशनसीब लड़की

    सचिन ने अपने हाथ का वह कार्ड दिखाया जो वह स्टोर रूम से लेकर आया था  और वह कार्ड अतुल को दे दिया और अतुल भी समझ गया था  कि सचिन को कार्ड वाली लड़की से मोहब्बत हो गई है अतुल हंसते हुए बोला  मिस्टर सचिन तुम्हें पार्टी देनी पड़ेगी  वरना हम खुद पार्टी ले लेंगे  इतना कहते ही वह खुशी से सचिन के गले लग गया

    और मन में सोचने लगा  अब ज्यादा देर नहीं मैं भी तुझे दिव्या के बारे में बता दूंगा  कि मैं उसे कितनी मोहब्बत करता हूं पर उससे पहले तुझे इस कार्ड वाली लड़की की प्यार में पूरी तरह पागल होना पड़ेगा  क्योंकि प्यार क्या होता है यह इंसान को प्यार में पड़ने के बाद ही पता चलता है  वह कहते हैं ना प्यार भी वायरस की तरह है जब तक खुद को नहीं होता तब तक बेकार और फालतू ही लगता है  अब तू भी मेरी तरह हो गया  इतना कहकर बहुत खुशी से झूमा

    अतुल ने हंसते हुए कहा अरे यार आज पार्टी तो बनती है

    तुम बेफिक्र रहो पार्टी आज रात क्लब में होगी  और तुम सबको आना है पूरी ऑफिस आज पार्टी करेगा आज तो मैं तुम लोगों को अपनी खुशी से पार्टी दूंगा  सब लोग टाइम पर पहुंच जाना क्योंकि मैं किसी का इंतजार नहीं करूंगा सचिन ने सबको कहा

    उसकी मजाक पर सभी हंसने लगे और बोले  सचिन सर बेफिक्र रहो हम वक्त पर आ जाएंगे

    वहीं दूसरी ओर मेरे चेहरे पर आज बेहिसाब सुकून और मुस्कान थी में आते ही दिव्या के पास बैठ गई  जो कैंटीन में बैठी हुई थी

    तब दिव्या ने मुस्कुराकर कहा ओ मेरी दीवानी अंधेरे का फायदा उठा लिया

    तब मैने हैरानी से उसकी तरफ देखकर बोली  तुझे कैसे पता

    तो उसने कहा  मैडम मैंने हीं लाइट का तार काटा था वरना तू पकड़ जाती खिड़की से देख लिया था मैंने भाई तेरे कितने करीब थे अगर मान वह तेरा चेहरा देख लेते तो क्या होता जब उन्होंने तेरे कंधे पर हाथ रखा था तब मैंने वायर काट दिया था वरना तू पकड़ जाती  तेरा भला चाहा मैंने और तू है कि

    तब में झूम कर उसके गले लगी और बोली  थैंक यू वेरी मच मेरी बहन मेरी जान तू ही तो एक है पर आज तेरे भाई को गले लगा कर सुकून बहुत मिला है

    दिव्या ने मुस्कुरा कर कहा  औ हेलो जब मेरे गले लगती है तब सुकून नहीं मिलता

    में ने कहा मिलता है ना यार वह कहते हैं ना मां बाप भाई बहन दोस्त रिश्तेदार सबके लिए अलग-अलग प्यार होता है  और जिसे हम अपना लाइफ पार्टनर मानते हैं उसके लिए तो अलग ही अलग ही अलग ही प्यार होता है  जो हर किसी के लिए महसूस नहीं किया जाता  इतना कहकर घूमने लगी और जब घूम कर रुकी तो सामने अतुल और सचिन आ रहे थे तब वह वही चुपचाप खड़ी हो गई

    अतुल और सचिन उन दोनों के पास आ गए  तब अतुल ने  मेरी  तरफ देखते हुए कहा   आज रात में पार्टी है तुम दोनों भी आ जाना

    तब सचिन ने  अतुल की तरफ घूर कर देखा आहिस्ता से कहा  तेरा दिमाग खराब इन दोनों को क्यों बुला रहा है

    तब अतुल ने शरारत से कहा  अरे यार एक तेरी बहन है और एक तेरी बहन की दोस्त है तो क्या फर्क पड़ जाएगा दोनों आ जाएंगी तेरी बहन ही है चल कोई बात नहीं है

    सचिन ने सोचा और कहा  ठीक है दिव्या तुम आ जाना और खुशी तुम भी आ जाना  इतना कहकर वहां से जाने लगा
    में सचिन को देख रही थी
    तभी दिव्या ने मेरी तरफ देखा और मेरे सर पर हाथ मारकर कहा  ओ मेरी दीवानी भाई कब के चले गए  चल रात का इंतजार करते हैं  इतना कहकर वह दोनों वहां से चली गई

  • 16. Our Incomplete Lovestory - Chapter 16

    Words: 1704

    Estimated Reading Time: 11 min

    सचिन पार्टी के लिए दोनों से कहकर वहाँ से चला गया। फिर वे दोनों भी वहाँ से चली गईं।


    आज मैं आपको अपनी आवाज़ भी सुना दूँगी, वेलेंटाइन डे गिफ्ट के तौर पर। फ़िक्र मत करना, आपको आपका गिफ्ट ज़रूर मिलेगा। और हाँ, आवाज़ भी सुन पाओगे, वह भी फ़ोन पर। इतना कहकर मैंने दिव्या को फ़ोन किया और बोली, "तू रेडी हुई या नहीं?"


    दिव्या ने दूसरी तरफ़ से मुस्कुराकर कहा, "मेरी बहन, मैं तो कब की तैयारी हूँ। तू कब आ रही है?"


    मैंने कहा, "अभी थोड़ा वक़्त लगेगा। थोड़ा सजना तो बनता है ना।" इतना कहकर फ़ोन काट दिया और रेडी होने लगी।


    वहीं दूसरी ओर, पूरे क्लब में म्यूज़िक का शोर था। सचिन के सारे दोस्त डांस कर रहे थे, पर सचिन ऐसे ही काउंटर पर बैठा हुआ था।


    अतुल ने आकर उसके पास कहा, "तू डांस नहीं करेगा?"


    सचिन ने उदासी से कहा, "नहीं यार, तुम लोग करो। मैंने तुम लोगों को पार्टी दी है, इसका मतलब यह नहीं कि मैं भी डांस करूँ। खैर, तुम लोग इन्जॉय करो।"


    तभी सचिन का फ़ोन बज गया। अननोन नंबर से कॉल थी। उसने फ़ोन उठाया और बोला, "हेलो, कौन?"


    तब दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, "हाँ जी, मेरी जान। हैप्पी वेलेंटाइन डे। मैं जानती हूँ, तुम मुझे नहीं जानते, पर मैं वही हूँ जिसको तुमने सुबह हग किया था। या यूँ कहूँ, मैंने तुम्हें हग किया था।"


    इतना सुनते ही सचिन के होठों पर बहुत प्यारी मुस्कान आ गई। जिसे देखकर अतुल भी हैरान था। और उसके सारे दोस्त, जो डांस कर रहे थे, वे भी सचिन को इतना मुस्कुराता देख उसके पास आ गए और सबने सचिन को घेर लिया।


    सचिन ने मुस्कुराकर फ़ोन पर कहा, "तुम मेरे सामने क्यों नहीं आती हो? तुम कहाँ से बात कर रही हो? मुझे तुमसे मिलना है। तुम यहाँ पर आओ, मुझे तुम्हें देखना है।"


    दूसरी तरफ़ से मैंने कहा, "अरे, इतनी भी क्या जल्दी है? अभी थोड़ा वक़्त लगेगा। आप यह बताइए पहले, क्या आपको मुझसे मोहब्बत है? अगर आपको मुझसे मोहब्बत है तो मैं आपके सामने आ जाऊँगी, वरना नहीं।"


    सचिन को उससे मोहब्बत तो थी, फिर भी बोला, "नहीं, मुझे तुमसे कोई मोहब्बत नहीं है। देखो, चुपचाप सामने आओ, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"


    अतुल यह देखकर हैरान हो गया क्योंकि वह जानता था सचिन इस लड़की से मोहब्बत करता है। फिर झूठ क्यों बोल रहा है? तब अतुल कहने लगा, "तू झूठ क्यों बोल रहा है?"


    सचिन ने उंगली से इशारा करते हुए उसे चुप किया और फ़ोन पर बोला, "देखो, तुम जो कोई भी हो, मुझे परेशान करना बंद कर दो। तुम्हारी इन हरकतों से मैं अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहा हूँ।"


    मैंने कहा, "I am very very sorry, पर मैं तुम्हें परेशान करती रहूँगी, और वो भी पूरी ज़िन्दगी। और फिर शादी भी तो करनी है ना, फिर तो तुम्हारे घर आकर तुम्हें परेशान भी तो करना है। देखते जाओ, आगे-आगे होता है क्या।"


    सचिन उसकी हर एक बात पर मुस्कुरा रहा था। मैंने हँसकर कहा, "ओके बाय, मेरी जान। अपना ख्याल रखना।" इतना कहकर फ़ोन काट दिया।


    सचिन ने उसे आवाज़ देते हुए कहा, "अरे, सुनो! हेलो! हेलो!" पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया था।


    सचिन के एक दोस्त ने उससे फ़ोन लेकर उस नंबर की लोकेशन निकालना शुरू कर दी और लोकेशन क्लब के पास ही की थी।


    उस लड़के ने मुस्कुराकर कहा, "सचिन, लोकेशन यहीं एक किलोमीटर दूर की दिखा रहा है।" सचिन और बाकी सभी खुश हो गए और बोले, "चलो, चलकर देखते हैं।"


    सचिन ने हँसकर कहा, "अरे यार, तुम लोग इन्जॉय करो। मैं और अतुल देखकर आते हैं।" इतना कहकर वे दोनों जाने लगे। और वहाँ आए तो वहाँ एक पानीपुरी वाला था और दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। तब अतुल और सचिन पानीपुरी वाले अंकल के पास आ गए।


    वो अंकल पानीपुरी बना रहे थे। तब अतुल ने आकर पूछा, "अंकल, यहाँ कोई लड़की अभी किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी क्या?"


    तब उन पानीपुरी वाले अंकल ने कहा, "हाँ, कर रही थी बेटा। मेरा ही फ़ोन लिया था उसने।"


    तब अतुल और सचिन एक-दूसरे को खुशी से देखने लगे। तब सचिन ने कहा, "उस लड़की ने कैसे कपड़े पहने थे? कौन थी वह? कैसी थी?"


    पानीपुरी वाले अंकल ने कहा, "उसने रेड कलर का गाउन पहना हुआ था और मैं ठीक तरह से उसका चेहरा नहीं देख पाया क्योंकि उसने चेहरे पर मास्क लगा लिया था। पर इतना पता चल रहा था कि वह बहुत अच्छी लड़की थी।"


    अतुल और सचिन खुशी से एक-दूसरे को देख रहे थे। तब अतुल ने मुस्कुराकर कहा, "मुझे लगता है यह लड़की तुझे वाकई बहुत प्यार करती है। देख, तेरे लिए इतनी रात में आ गई और फिर कल कितना कुछ किया था तेरे लिए। और तू भी तो उस लड़की से प्यार करता है।"


    अबकी बार सचिन ने अपनी बाहें फैलाते हुए कहा, "आई मीन लव, मुझे सच में उस लड़की से मोहब्बत हो चुकी है। अब उसकी मोहब्बत में कैद होकर जीना चाहता हूँ। अब यह मोहब्बत कभी कम नहीं होगी। आई लव हर।" यह कहते हुए वह रोड की तरफ़ बाहें फैलाकर चला गया। तभी सामने से एक कार आने लगी। सचिन ने देखा नहीं, मगर अतुल ने देखा तो वह पूरी तरह घबरा गया और उसे बचाने के लिए भागने लगा। पर उससे पहले ही कार सचिन को उछालने वाली थी। उससे पहले मैंने जाकर उसका हाथ पकड़कर खींच लिया और खुद बहुत दूर जाकर गिर गई, जिस वजह से मेरे सर में चोट लग गई।


    सचिन को अब होश आया कि वह रोड पर है। तो देखा, मैं ज़मीन पर पड़ी थी। सचिन और अतुल दोनों ही घबराकर मेरे पास आ गए। इतने में दिव्या भी अपनी कार लेकर आ चुकी थी। मैंने सचिन की बातें नहीं सुनी थीं कि वह "आई एम इन लव" कह रहा है, बस उसे रोड पर चलते हुए देखा तो बचने के लिए दौड़ पड़ी।


    मैं बेहोश हो गई। मेरे ज़्यादा चोट नहीं आई थी, फिर भी सचिन पूरी तरह घबरा चुका था। तब अतुल ने घबराते हुए कहा, "सचिन, जल्दी कुछ करो। इसको हॉस्पिटल लेकर जाना है।"


    दिव्या भी वहाँ गई और मुझे देखते हुए घबराकर रोने लगी, "भाई, क्या हुआ खुशी को?"


    सचिन ने एकदम कहा, "कुछ नहीं हुआ, तुम घबराओ मत। हम हॉस्पिटल चलते हैं।"


    और वे चारों हॉस्पिटल आ गए। मेरा अंदर इलाज चल रहा था। जब मैं पूरी तरह होश में आ गई, तब एक नर्स ने कहा, "वह बिल्कुल ठीक है। बस हल्की सर में चोट है।"


    वे तीनों अंदर आ गए और मुझे देखने लगे। मैं बेड पर बैठी हुई थी।


    और सचिन ने आते ही गुस्से में कहा, "तुम्हारा दिमाग ख़राब है? आवाज़ नहीं दे सकती थी? अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो..."


    मैंने जाने-अनजाने में कह दिया, "आपके लिए तो जान भी कुर्बान है।" सब मेरी तरफ़ देखने लगे।


    अब मैंने सटपटाकर दिव्या की तरफ़ देखा और कहा, "वह मेरा मतलब आप, दिव्या के भाई हैं। अगर आपको कुछ हो जाता तो मेरी प्यारी सी दोस्त रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लेती और मैं उसे रोते हुए नहीं देख सकती थी। इसलिए दिव्या के लिए मेरी जान कुर्बान है।" यह कह रही थी, मैंने बात बड़ी अच्छी तरह से संभाली।


    तब सचिन ने कहा, "देखो, अपना ख्याल रखो। अगर तुम नहीं आती तो शायद मेरा भी यही हाल होता जो तुम्हारा हुआ है, शायद इससे ज़्यादा बुरा हाल होता। थैंक यू, तुमने मेरी जान बचाई।"


    मैंने कहा, "थैंक यू की कोई ज़रूरत नहीं है सर। आप अपना ख्याल रखें और आपने पार्टी दी है ना, आप इन्जॉय करें। मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आप मेरी फ़िक्र छोड़ दीजिए। दिव्या है ना मेरे साथ।" अब अतुल से कहा, "अतुल, जाओ, मैं ठीक हूँ।"


    अतुल गौर से मुझे देख रहा था। उसकी आँखों में आँसू थे क्योंकि अतुल कहीं ना कहीं मुझे अपनी बेस्ट फ़्रेंड मानता था। अब मेरे पास आकर बोला, "थैंक यू, तूने सचिन की जान बचाई। लेकिन तू अपना ख्याल रख यार। अगर तुझे कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता?"


    मैंने अतुल के कान में हँसकर शरारत से कहा, "मेरे बगैर क्या होता है? या दिव्या के बगैर क्या होता?" यह कहते ही मैं हँसने लगी।


    सचिन और दिव्या उन दोनों की बातें नहीं सुन पा रहे थे और हैरानी से उनको देखने लगे। सचिन को लगने लगा था कि ज़रूर अतुल और मेरा कुछ ना कुछ तो मैटर है, पर कुछ कहा नहीं।


    फिर सचिन ने अतुल से कहा, "चलो, अब हम चलते हैं।" इतना कहकर अतुल को वहाँ से ले जाने लगा। अतुल ने जाते-जाते पलटकर कहा, "अपना ख्याल रखना।"


    उसके जाते ही दिव्या उदासी से मेरे गले लग गई और बोली, "तेरा दिमाग ख़राब है! अगर तुझे कुछ हो जाता तो..."


    मैंने अपने दिल पर हाथ रखकर कहा, "मेरी जान, मुझे होता तब जब तेरे भाई को कुछ हो जाता। सोच, तेरे भाई को कुछ हो जाता तब क्या होता मेरा?"


    मेरी यह बात सुनकर दिव्या ने मेरी कमर पर बहुत जोर से हाथ मारा और बोली, "तेरा दिमाग ख़राब है! तू बिल्कुल पागल है! अपनी फ़िक्र नहीं है और हर बार मज़ाक के मूड में रहती है। कभी तो सीरियस हो जाया कर! यहाँ मैं इतनी टेंशन में हूँ, जान निकल गई तेरी हालत देखकर और तू है कि..."


    मैंने हँसकर कहा, "मज़ाक में ही तो मज़ा है मेरी जान! मैं बिल्कुल ठीक हूँ। चल, घर चलते हैं।" वे दोनों वहाँ से जाने लगीं।


    अगले दिन, अरमान का घर।


    "गुड मॉर्निंग भैया!" दिव्या ऑफ़िस जाने के लिए रेडी होकर नीचे आई और आते ही सचिन से गुड मॉर्निंग कहा, जो डाइनिंग टेबल पर बैठा हुआ नाश्ता कर रहा था और चेहरे पर बहुत ज़्यादा चमक थी।


    तब दिव्या ने मुस्कुराकर पूछा, "आपका चेहरा बड़ा चमक रहा है।" दिव्या के सवाल पर सचिन ने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराकर रह गया। दिव्या ने दोबारा पूछा, "क्या बात है भाई? कुछ तो हुआ है।" उसकी बात पर सचिन ने बस इतना कहा, "हाँ, बस ऐसे ही।"


    "खैर, मुझे ऑफ़िस के लिए देर हो रही है। मैं ऑफ़िस जा रहा हूँ। दिव्या, तुम चल रही हो या मैं अपनी कार ले जाऊँ?"


    "जी भाई, मैं आपके साथ चल रही हूँ।" एकदम बोली और जाने लगी।

  • 17. Our Incomplete Lovestory - Chapter 17

    Words: 2249

    Estimated Reading Time: 14 min

    जी भाई, मैं आपके साथ चल रही हूँ।" दिव्या ने एकदम से बोला और जाने लगी।

    ऑफिस कैंटीन में दिव्या और मैं बैठी हुई बातें कर रही थीं। दिव्या ने मेरी तरफ देखकर कहा, "आज भाई बहुत खुश है। आज मौका है, दस्तूर है। अपने प्यार का इज़हार कर दो, वो हाँ जरूर बोल देंगे। देखो, मुझे पक्का यकीन है।"

    दिव्या ने यकीन के साथ कहा, "वो हाँ बोल देंगे।"

    मैंने कहा, "चल छोड़ना यार, फिर कभी बोल देंगे।" फिर मुस्कुराकर दिव्या की तरफ देखते हुए बोली, "आज मन कर रहा है तेरे भाई को अपने हाथ से जाकर कार्ड दूँ, पर क्या करूँ? कैसे जाऊँ?"

    दिव्या ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "तू बस डरती रहे। तुझसे नहीं होगा। रहने दे।"

    मैंने अबकी बार खड़े होकर कहा, "खुशी डरती तो किसी के बाप से नहीं है। हाँ, बस छिपकली सामने आ गया तो कह नहीं सकती।" इतना सुनते ही दिव्या की हँसी छूट गई।

    और हँसकर बोली, "तू भी छिपकली से डरती है?"

    मैंने कहा, "हाँ, या डरना पड़ता है। बहुत गंदे होते हैं। I hate, I hate..." इतना कहकर अब दोबारा बोली, "अब तू देख, मैं तेरे भाई को अपने हाथ से कार्ड देकर आती हूँ।" इतना कहकर वहाँ से जाने लगी और सचिन के केबिन में आ गई। उस वक़्त केबिन में सचिन नहीं था। तब मैंने बैग से कार्ड निकाला और इधर-उधर देखने लगी।

    उदासी लेकर जाने लगी थी कि सचिन सामने आ गया और बोला, "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" फिर मेरे सिर में बैंडेज लगा देखकर फ़िक्रमंदी से पूछने लगा, "और हाँ, तुम्हारे सिर में चोट लगी थी? ठीक है?"

    मैंने सिर छूकर दर्द का नाटक करते हुए कहा, "हाँ सर, मैं ठीक हूँ। बस हल्का सा दर्द है।"

    सचिन थोड़ा फ़िक्रमंद होते हुए बोला, "सॉरी, मेरी वजह से तुम्हारे सिर में चोट लग गई। तुमने दवाई खाई या नहीं?"

    मैंने मुस्कुराकर कहा, "जी सर, मैंने दवाई खा ली थी।"

    सचिन ने कहा, "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" अब नज़र मेरे हाथ पर गई जिसमें कार्ड था। "और यह कार्ड तुम्हारे हाथ में क्या कर रहा है?"

    मैंने कहा, "सर, बस वो मैं बताने वाली थी..." मगर उससे पहले सचिन ने खुद ही कहा, "लाओ, यह तुम्हारे काम की चीज नहीं है। मुझे दो।" सचिन को लगा शायद यह कार्ड उसी लड़की ने रखा होगा और मैंने यहीं से उठाया है, इसलिए कार्ड मांगने लगा।

    मैंने बड़े प्यार से उसको कार्ड दिया और वहाँ से चली गई। तब सचिन ने कार्ड खोलकर देखा और उसे पढ़ने लगा।


    💌 कुछ सोचती हूँ तो तेरा ख्याल आ जाता है,
    कुछ बोलती हूँ तो तेरा नाम आ जाता है,
    कब तक छुपा के रखूँ दिल की बात को,
    तेरी हर अदा पे मुझे प्यार आ जाता है।
    💌

    इतना पढ़कर सचिन के होठों पर मुस्कान आ गई और खुद से बोला, "कुछ ज़्यादा ही रोमांटिक है, पर क्या कर सकता हूँ? जो भी हो, मेरी जान हो। हाँ यार, I love you। बस तुम्हें अब हर हाल में पाना है मुझे। जिस दिन भी तुम मिल गईं, सिर्फ़ शादी के लिए पूछूँगा और तुमसे शादी करूँगा। जिस तरह तुम मुझसे मोहब्बत करती हो, मैं भी तुमसे उतनी ही मोहब्बत करूँगा। मेरा पहला प्यार है और यही मेरा आखिरी प्यार होगा। इतना याद रखना।" इतना कहकर कार्ड को चूम लिया और अपने बैग में रख लिया।

    वहीं दूसरी ओर, मैं दिव्या के पास आई। वो अपने काम में बिज़ी थी।

    मैं हँसकर बोली, "हेलो मैडम! तुम्हारे भाई को अपने हाथ से कार्ड देकर आई हूँ और वो पागल पहचान ही नहीं पाए कि कार्ड मैंने दिया है। मुझसे कहते हैं, 'लाओ, यह तुम्हारे काम की चीज नहीं है।'" इतना कहते हुए बड़ी जोर-जोर से हँस रही थी।

    तब दिव्या ने मुझे घूरकर देखा और कहा, "मेरे भाई को पागल मत बोल। ओके? बहुत अच्छे हैं। अपनी शर्त पूरी करने के लिए तू कुछ भी कर जाती है। बहुत बुरी है तू। हर बार जीत जाती है मुझसे।" वो उदास हुई।

    मैंने उसके कंधे पर अपनी कोहनी रखते हुए कहा, "मेरी जान, मैं जानती हूँ। वो पागल नहीं है। तभी तो इतनी मोहब्बत करती हूँ। उनकी मोहब्बत में पागल हूँ। चल, एक-दो दिन बाद मैं खुद बता दूँगी तेरे भाई को कि मैं ही वो लड़की हूँ। आप बर्दाश्त नहीं होती तेरे भाई की दूरी।" अब हँसकर बोली, "अब तो मन कर रहा है बार-बार तेरे भाई को हग करती रहूँ।"

    दिव्या थककर बोली, "खुशी, तू बहुत बड़ी बे-शर्म है। कभी-कभी मैं सोचती हूँ तेरे प्यार का अंजाम क्या होगा? तू कितनी बे-शर्म होती जा रही है।"

    तब दिव्या ने सीरियस होकर कहा, "यार, भाई से कह दे, उनसे कितनी मोहब्बत करती है, वरना देर हो जाएगी।"

    मैंने मुस्कुराकर कहा, "दिव्या, मैं आज नहीं, फिर कभी बताऊँगी।"

    दिव्या ने गुस्से में किलकिलाकर कहा, "यह तेरा 'फिर कभी', कहीं कभी नहीं बताऊँगी ना बन जाए।"

    मैंने उसका गुस्सा नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, "चल, ये सारी बातें बाद में हो जाएँगी। अभी हमें ऐड की रेहर्सल करनी है।" हम दोनों वहाँ से चली गईं।

    एक लड़के ने मुझसे डरते हुए कहा, "यार, यह रोल मुझसे नहीं होगा। ऐसे रोल कौन देता है?"

    मैंने कहा, "तुझे ऐसे रोल ही करना है।"

    तो उस लड़के ने कहा, "मुझसे नहीं होगा, क्योंकि इतनी खूबसूरत, इतनी हॉट लड़की मेरे पास है और मैं उसके इतने करीब जाकर उसे किस भी ना करूँ? यह मुझसे नहीं होगा। मुझसे क्या, किसी भी लड़के से नहीं होगा।"

    "तुम लड़के होते ही ऐसे हो। लड़की देखी नहीं कि फिसल गए, सारे के सारे लड़के ऐसे होते हैं। लड़की ने जरा सी लाइन दी, सब अपने अंदर का रोमांस बाहर ले आते हैं।"

    उसकी आवाज़ सचिन के कान तक भी पहुँच गई जो वहीं से जा रहा था। सचिन ने पास आते हुए कहा, "हेलो, एक्सक्यूज़ मी। हर लड़का ऐसा नहीं होता।" उस वक़्त सचिन कुछ लड़कों के पीछे था।

    इसलिए मैं देख नहीं पाई और बोली, "कौन है? सामने आकर बोल।"

    तब सचिन मेरे सामने आ गया। मैंने अबकी बार दिव्या का हाथ पकड़ लिया और बोली, "अबे, ये तो तेरा भाई है!" उसका दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा था।

    दिव्या ने मुझे डराते हुए कहा, "बेटा, तू तो गई! तूने तो भाई पर भी उंगली उठा दी।"

    मैंने डरते हुए कहा, "रोक अपने भाई को।"

    दिव्या ने हँसी दबाकर कहा, "मुझे अपने भाई की नहीं, तेरी टेंशन हो रही है। तेरा क्या होगा?" दिव्या मेरा मज़ाक बनाने लगी।

    तब तक सचिन उन दोनों के पास आ गया। उसको देखते ही दिव्या थोड़ी पीछे चली गई। सचिन ने मेरे पास आते ही पूछा, "अभी तुमने कुछ कहा था? हर लड़का लड़की को देखकर रोमांस बाहर ले आता है? यह मैं नहीं मानता। हर लड़का एक जैसा नहीं होता, क्योंकि मैं उन लड़कों में से नहीं हूँ जो लड़की को देखकर फिसल जाए। इसलिए मैं नहीं मानता।"

    अबकी बार मैंने हिम्मत करके सचिन के पास आकर कहा, "अगर मैंने मनवा दिया, तो?"

    तब सचिन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "मैं नहीं मानता।"

    अब मैंने उसे एक पेपर दिया और बोली, "यह लाइन आपको बोलनी है और मैं आपके पास खड़ी रहूँगी। मैं भी तो देखूँ आपकी बातों में कितनी सच्चाई है।"

    मैंने इतना कहकर सचिन के गले में अपनी दोनों बाहें डाल दीं। सचिन ने भी मेरे गले में अपनी बाहें डालते हुए स्क्रिप्ट की लाइन पढ़नी शुरू की और बोला, "मैं अपनी पूरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ, तुम्हारे साथ मरना चाहता हूँ, हमेशा तुम्हारे दिल की धड़कनों में धड़कना चाहता हूँ। अगर तुम्हारे दिल की धड़कनों से आवाज़ भी आए तो वो सिर्फ़ मेरा नाम पुकारे।" वो दोनों एक-दूसरे की बहुत ज़्यादा करीब थे और एक-दूसरे की गरम साँसों को महसूस कर पा रहे थे। और सचिन अपनी एक लाइन बड़े आराम से बोल रहा था। मैं उसकी लाइनों में खो रही थी। सचिन तो पिघला नहीं, लेकिन मैं पूरी तरह उसकी तरफ़ आकर्षित हो गई और यह भी भूल गई कि पूरे ऑफिस के सामने हूँ और अचानक से सचिन के होठों पर अपने होंठ रखने लगी। सचिन एकदम से दूर हो गया।

    और टेढ़ी स्माइल देते हुए बोला, "लो, तुम ही बहक गईं।" यह बात सुनकर सारे लड़के हँसने लगे, लेकिन मैं बस मुस्कुराकर सचिन की तरफ़ देख रही थी।

    सचिन ने अब मेरे पास आकर घूरते हुए कहा, "आगे से किसी के बारे में कुछ भी बात कहने से पहले 100 बार सोच लेना, क्योंकि हर इंसान एक जैसा नहीं होता। सब अलग-अलग होते हैं। हर किसी की अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट होती है। जो गलत है, सिर्फ़ उसी को गलत कहो और जो सही है उसे सही कहो। एक के चक्कर में सभी को गलत कहने की ज़रूरत नहीं है।" उसकी बातों में मैं खो रही थी।

    फिर सचिन वहाँ से जाने लगा, लेकिन फिर पलटकर वापस मेरे पास आया और मेरी तरफ़ थोड़ा झुककर मेरे कान में बोला, "आगे से इस चीज़ का ख्याल रखना। किसी भी लड़के की तरफ़ देखकर बहक मत जाना, वरना हर कोई मेरी तरह नहीं होता।" बड़ी शरारत से चेहरे के भाव बदलकर कहकर वहाँ से चला गया।

    मैं ऐसे ही खड़ी रह गई। दिव्या मेरे पास आई और बोली, "बेटी, तू बच गई आज वरना मेरे भाई की नहीं, तेरी इज़्ज़त जाती।" यह कहते हुए बहुत जोर से हँसी।

    मैंने कहा, "यार, जिससे प्यार करते हैं, वो इतने करीब हो तो इंसान बहक ही जाता है। अब क्या कर सकते हैं? खैर, इतना समझ में आ गया, तेरे भाई के अंदर दिल नहीं, पत्थर है। इतनी हॉट लड़की उसके सामने थी, तब भी नहीं पिघला। पता नहीं किस मिट्टी से बना है।" यह कहते हुए बहुत जोर से हँसी।

    दिव्या ने कहा, "मेरे भाई बहुत शरीफ़ हैं, तेरी तरह नहीं हैं। आई बड़ी!"

    मैंने दिव्या की बात पर ध्यान नहीं देते हुए सुरभि को कॉल करने लगी। वो आज ऑफिस नहीं आई थी।

    सुरभि के फ़ोन उठाते ही पूछा, "तू कहाँ है? आज ऑफिस क्यों नहीं आई?"

    दूसरी तरफ़ से सुरभि ने कहा, "मॉम की तबीयत ठीक नहीं है, तो कुछ दिन ऑफिस नहीं आ पाऊँगी।"

    मैंने कहा, "मैं तेरे घर आ रही हूँ।" तो सुरभि ने कहा, "मैं घर पे नहीं हूँ। मैं मार्केट में हूँ।"

    मैंने याद करते हुए कहा, "सुरभि, सुन, मेरा एक काम कर दे।"

    सुरभि ने पूछा, "कौन सा काम?" मैंने कहा, "मार्केट में ग्रीटिंग कार्ड स्टोर है, वहाँ से कुछ अच्छे कार्ड ले आओ।"

    सुरभि ने हैरत में पूछा, "कार्ड क्यों?"

    मैंने कहा, "बस, तुम ले आओ। बाद में सब कुछ बता दूँगी।" इतना कहकर फ़ोन काट दिया और दोनों वहाँ से जाने लगीं।

    वहीं सचिन अपनी कार के पास आया ही था कि कार के अंदर एक कार्ड रखा था और एक गिफ़्ट भी था जो मैंने रखा था।

    सचिन ने वो गिफ़्ट खोलकर देखा तो उसमें एक वॉच थी, जिसे देखकर उसके होठों पर मुस्कान आ गई और वो कार्ड खोलकर पढ़ने लगा।


    💌 यह मेरी जान के लिए एक छोटा सा तोहफ़ा। कुबूल फ़रमाइएगा। चलिए आपको एक शायरी सुनाती हूँ, अपने इश्क़ की शायरी। 😘 दिल पर ज़रूर ले लेना, वरना मुझे बुरा लग जाएगा।

    ❤ सीने से लगाकर बस तुमसे इतना ही कहना है,
    मुझे ज़िन्दगी भर आपके साथ ही रहना है।❤ I love you, my heart.

    इतना पढ़कर सचिन के होठों पर बहुत प्यारी स्माइल आ गई और खुद से कहने लगा, "मेरा भी यही हाल है जो तुम्हारा है। तुम भी मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी हो। अब तुम्हें हर हाल में अपना बनाना है, चाहे कुछ भी हो जाए। I love you too। और हाँ, तुम्हारे लिए मुझे भी गिफ़्ट लेना होगा। तुम्हारे ही स्टाइल में कोई अच्छा सा ग्रीटिंग कार्ड लेकर आता हूँ ताकि तुम्हें खुश कर सकूँ। अब तुमसे मोहब्बत की है तो फिर तुम्हारे रंग में ढलना तो पड़ेगा ना।" इतना कहकर हँसने लगा और कार लेकर चला गया।

    वहीं दूसरी ओर, सुरभि मेरे कहने पर कार्ड वाले शोरूम के अंदर से कार्ड लेने चली गई। फिर कार्ड पसंद करने लगी।

    वहाँ सचिन भी था। उसकी नज़र सुरभि पर पड़ी जो कार्ड सिलेक्ट कर रही थी। सचिन उसे देखता रह गया।

    अब खुद से कहा, "यह लड़की कार्ड... कहीं यही वो लड़की तो नहीं? और यह दिव्या की फ़्रेंड भी है।" सचिन उसका पीछा करने लगा। वो ऑटो में बैठकर जाने लगी। सचिन भी अपनी कार लेकर उसके पीछे जाने लगा और पार्क के अंदर चली गई।

    मैं वहीं खड़ी थी। तब सुरभि ने आते ही मुझे कार्ड देते हुए कहा, "यह लो कार्ड और लग जाओ काम पर।" वो उससे पूछना चाह रही थी कि किसके लिए है, मगर उनके पीछे खड़ा सचिन 'काम पर लग जाने' का गलत मतलब निकाल बैठा। उसे लगा सुरभि ही वो लड़की है जो उसे कार्ड भेजती है और मेरे हाथों अपना यह काम करवाती है। उसने उन लोगों की पूरी बातें सुनी और सुरभि को वो लड़की समझकर वहाँ से मुस्कुराता हुआ चला गया।

    मैंने कार्ड पर्स में रख लिए। सुरभि ने अब मेरे सर में बैंडेज लगा हुआ देखा तो पूछने लगी, "तेरे सिर में चोट कैसे लगी?"

    तब मैंने बस इतना कहा, "कुछ नहीं, बस हल्की सी चोट है। ज़्यादा टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है।" मैं सुरभि को परेशान नहीं होते हुए देखना चाहती थी। "यार, मैं ठीक हूँ। इट्स ओके।"

    अब सुरभि ने मेरे हाथ में कार्ड देखकर दोबारा जोर देते हुए पूछा, "चल, अब बता, वो कौन है जिसके लिए यह कार्ड है?"

    मैंने दिल पर हाथ रखते हुए कहा, "है कोई पागल सा, मासूम सा... बाद में बताऊँगी। पहले तू यह बता, आंटी कैसी है?"

    सुरभि ने कहा, "मॉम अच्छी हैं।"

  • 18. Our Incomplete Lovestory - Chapter 18

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 19. Our Incomplete Lovestory - Chapter 19

    Words: 1457

    Estimated Reading Time: 9 min

    उसी दिन सुरभि मेरे घर आई। मैं लैपटॉप पर कुछ लिख रही थी। तभी सुरभि ने मुझे आवाज़ दी। आवाज़ सुनकर मैं उछलकर खड़ी हो गई और उसके गले लग गई।

    "तू यहां कैसे? तू ठीक है? तेरी तबीयत ठीक है? मैं डर गई थी," मैंने पूछा। क्योंकि आज से पहले सुरभि कभी मेरे घर नहीं आई थी।

    सुरभि ने हंसकर कहा, "हाँ, मैं ठीक हूँ। मगर..." वह यहीं पर अटक गई।

    खुशी ने उसे बेड पर बैठाया और पूछा, "मगर क्या?"

    सुरभि ने सर झुकाया और कहा, "एक लड़का मेरे पीछे कई दिन से है। वह कहते हैं मुझसे मोहब्बत करते हैं। मैं बहुत परेशान हूँ। क्या करूँ?"

    सुरभि की बात सुनकर मैं हंसकर बोली, "अब तेरे पीछे लड़का नहीं पड़ेगा तो क्या लड़की पड़ेगी?" मैं उसकी मज़ाक बनाने लगी।

    तब सुरभि ने मुझे घूरकर देखा और कहा, "यार, मैं वाकई परेशान हूँ। वह मुझसे मोहब्बत करते हैं और अगर उनकी मोहब्बत झूठी निकली... यही सोचकर मैं घबरा रही हूँ और तू है कि मेरी मज़ाक बना रही है।"

    अबकी बार मैं सीरियस होकर पूछी, "कौन है वह बदतमीज़? मुझे बता, मैं उसका कचुम्बर बनाती हूँ और उससे पूछती हूँ, उसकी मोहब्बत झूठी है या सच्ची।"

    सुरभि ने सोचते हुए कहा, "मुझे लगता है वह वाकई ही मुझे चाहते हैं और... और तू उन्हें जानती है।"

    मैं शॉक हो गई। "मैं जानती हूँ? नाम बता।"

    सुरभि नाम बताने लगी, "अ..." वह बता ही रही थी तभी दिव्या आ गई।

    "अरे सुरभि, तुम यहां?" दिव्या की आवाज़ पर सुरभि एकदम खड़ी हो गई। "तुम कब आई?"

    सुरभि ने कहा, "अभी आई थी बस। वैसे मुझे अभी चलना होगा। मॉम राह देख रही होगी। बाद में बात करते हैं।"

    मेरे और दिव्या के गले लगकर सुरभि बोली, "चल ठीक है।" मैंने कहा, "अपना ख्याल रखना और ऑफिस आ जाना। वहीं कैंटीन में मिलते हैं। बाय।" वह वहाँ से चली गई।

    तब मेरे मन में सवाल आया, आखिर यह कौन लड़का है जो सुरभि से मोहब्बत करता है?

    वहीं दूसरी ओर, सुरभि अपने घर जा रही थी। तब उसने सोचा, "मॉम की दवाई ले जाती हूँ।" तो वह मेडिकल स्टोर से दवाइयाँ लेने लगी। वहीं सचिन की कार आकर रुक गई और सचिन कार से बाहर आकर उसे देखने लगा। उसने मेडिकल स्टोर से दवाई ली और जाने लगी थी कि उसकी नज़र सामने खड़े सचिन पर गई जो हाथ बंधे हुए खड़ा था। उसे देखकर सुरभि घबरा गई और अपने कदम पीछे लेने लगी।

    तब सचिन उसके पास आया और बोला, "एक तरफ़ कहती हो मुझसे मोहब्बत है, दूसरी तरफ़ इतना घबराती क्यों हो? मैं तुम्हें खा नहीं रहा हूँ। सिर्फ़ पूछ रहा हूँ, तुम्हें मुझसे मोहब्बत है या नहीं? आगे से कभी नहीं पूछूँगा और तुम भी मुझे कभी परेशान मत करना। बोलो, मुझसे शादी करोगी?" सचिन ने साफ़ लहज़े में यह बात कही तो वह डगमगा कर रह गई।

    अबकी बार सचिन ने उसका हाथ पकड़ लिया और पूछा, "बोलो, मुझसे शादी करोगी?"

    सुरभि ने भी साफ़-साफ़ कहा, "मैं एक गरीब घर की लड़की हूँ और आप बहुत अमीर हैं। आपको टाइम पास करने के लिए बहुत लड़कियाँ मिल जाएंगी। लेकिन मैं बहुत सीधी-साधी, सीरियस लड़की हूँ। हाँ, मानती हूँ मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ। लेकिन अगर आपने मेरा साथ छोड़ दिया... इस बात से डर लगता है।"

    सचिन ने इस बार सुरभि को गले लगा लिया। वह सहम गई। सचिन ने गले लगे हुए कहा, "मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा। आई लव यू। मुझे तुमसे शादी करनी है। अब तुम कहो, मुझसे शादी करोगी?"

    सुरभि सचिन की बाहों में खो चुकी थी। उसे कुछ एहसास ही नहीं था कि कब वह सचिन को कसके गले लगा बैठी और उसकी दिल की धड़कन बहुत जोर-जोर से धड़क रही थी।

    सचिन का एक ही सवाल था, "क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"

    अबकी बार सुरभि ने एकदम कहा, "मुझे आपसे बेइंतिहा मोहब्बत है। शिद्दत से चाहती हूँ आपको। वादा कीजिए आप मेरा साथ छोड़कर कभी नहीं जाएँगे।"

    सचिन ने कहा, "वादा तो टूट जाता है। पूरी कोशिश करूँगा कि तुम्हारा साथ कभी ना छोड़ूँ।" फिर दोनों एक-दूसरे के गले लगे रहे।

    आज सचिन को बेइंतिहा सुकून मिल रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज उसे मंज़िल मिल गई और उसने कार्ड वाली लड़की को पाकर पूरी दुनियाँ पा ली।

    वहीं सुरभि को भी आज अपना प्यार मिल गया था, तो उसे डबल सुकून मिल गया जिसे वह पाना चाहती थी। आज उसने खुद आकर कह दिया। लेकिन इस बात से सुरभि बिल्कुल अनजान थी कि यह सचिन उसे कोई और लड़की समझ रहा है।

    अगले दिन...

    सुरभि के पीछे कोई लड़का है, ये सारी बातें मैंने दिव्या को बताईं तो वह भी पूछने लगी, "वह है कौन? सुरभि ने कुछ बताया या नहीं?"

    मैंने सोचते हुए कहा, "हाँ, बताने वाली थी तभी तू आ गई, तो चुप गई। आज आने वाली है, फिर बता देगी।"

    खुशी और दिव्या उसका कैंटीन में इंतज़ार कर रही थीं, मगर वह नहीं आई। दिव्या थककर पूछने लगी, "यार, कब आएगी सुरभि?"

    मैंने कहा, "सुरभि का छोड़ दो। यह बता, तेरा भाई आजकल कहाँ है? बहुत कम ऑफिस में दिखता है।"

    दिव्या ने सोचते हुए कहा, "पता नहीं यार, भाई घर पर भी कम ही आते हैं। वैसे दो दिन बाद मॉम-डैड की एनिवर्सरी है। मेरे साथ गिफ्ट लाने चल।"

    मैंने जोर देते हुए कहा, "हाँ हाँ, क्यों नहीं?" फिर हम दोनों गिफ्ट लाने के लिए चलने लगीं। चलते-चलते मैंने दिव्या से कहा, "देख, अतुल को पता होगा सचिन सर क्यों नहीं आ रहे। एक बार बात करके देख ले, वह बता देगा। मुझे बहुत ज़्यादा टेंशन हो रही है। अजीब-अजीब फील हो रहा है। यार, कुछ तो कर।"

    दिव्या ने कहा, "चल ठीक है, मैं बात करके देखती हूँ।" तभी उसकी नज़र वहीं हॉल में खड़े अतुल पर गई जो दो-चार लड़कों से बातें कर रहा था। तो मुझसे दिव्या ने कहा, "मैं अतुल से बात करके आती हूँ।"

    मैंने हंसकर, शरारत से कहा, "सिर्फ़ बात करके ही आना और जरा जल्दी आना।"

    दिव्या ने मेरी शरारत पर घूरकर देखा और वहाँ से अतुल के पीछे आकर खड़ी हो गई। तब तक वह लड़के भी बात खत्म करके जाने लगे थे। अतुल पलटा तो पीछे दिव्या को देखकर खुशी से बोला, "तुम मेरे पीछे क्या कर रही हो? मेरी तरह तुमने भी मेरा पीछा करना शुरू कर दिया?"

    उसकी शरारत पर दिव्या उसे घूरकर देखने लगी, तो उसने डरने की एक्टिंग करते हुए कहा, "अरे, मज़ाक कर रहा था। बोलो, क्या काम है?" वह जानता था ज़रूर किसी काम की वजह से आई है, क्योंकि बिना वजह तो पीछे खड़ी नहीं है।

    दिव्या ने कहा, "तुम्हें पता है भाई आजकल कहाँ रहते हैं?"

    तब अतुल ने कहा, "तुम्हारे भाई को तो पता नहीं, पर अपना बता सकता हूँ। मैं तो हर पल तुम्हारे ख्यालों में रहता हूँ।"

    दिव्या ने उसे घूरकर कहा, "तुम ये हरकतें बंद कर दो। अगर नहीं पता तो मना कर दो। जा रही हूँ मैं।" इतना कहकर जाने लगी।

    अतुल ने उसका हाथ पकड़ लिया और अपने करीब कर लिया और बोला, "एक इस पूरी दुनियाँ में तुम ही हो जिससे मज़ाक करता हूँ, जिसको अपना मानता हूँ, जिस पर बिना वजह हक़ जताता हूँ, वरना कोई नहीं है। और रही बात सचिन की तो तुम्हारा भाई आजकल उस कार्ड वाली लड़की के ख्यालों में रहने लगा है। अगर तुम्हें मेरी बात पर यकीन ना हो तो खुद पूछ लेना। ओके, बाय। मैं चलता हूँ, थोड़ा काम है, वरना जाता नहीं।" इतना कहकर उसके गाल पर किस करके वहाँ से चला गया।

    दिव्या भी मेरे पास आ गई और मुझे सारी बातें बताईं। और कुछ देर बाद हम शॉपिंग मॉल आ गईं।

    शाम का वक़्त था।

    मैंने गिफ्ट खरीदते हुए शॉपिंग मॉल में कहा, "तेरे भाई की बहुत याद आ रही है। आज तो देखा ही नहीं। कम से कम आज दिख जाता।"

    दिव्या हँसने लगी, "ओह, मेरी दीवानी! चुप जा।"

    मैंने शायराना अंदाज़ में कहा, "हाए, हम तो मोहब्बत में पागल दीवानी बनकर घूम रहे हैं, मगर वो है कि हमें थोड़ा सा भी नहीं घूर रहे हैं।"

    "ओह, शायराना! ये छोड़। ये बताइये कैसा है?" दिव्या ने मेरी शायरी नज़रअंदाज़ करके एक लॉकेट दिखाया।

    तब मैंने लॉकेट हाथ में लेकर कहा, "यह तो बहुत अच्छा है।"

    तभी मेरी नज़र सचिन पर गई जो किसी लड़की के साथ खड़ा था। मुझे लड़की की पीठ दिख रही थी और सचिन का चेहरा साफ़ दिख रहा था। वह लड़की कोई और नहीं, सुरभि थी। सचिन के साथ एक लड़की को देखकर मुझे बहुत ज़्यादा गुस्सा आया और घूरकर उन दोनों को देखने लगी। सचिन ने सुरभि को गले लगाकर मुझे और गुस्सा दिला दिया। मैं सुरभि को नहीं देख पाई और गुस्से में सचिन को घूरने लगी।

  • 20. Our Incomplete Lovestory - Chapter 20

    Words: 1012

    Estimated Reading Time: 7 min

    मैं गुस्से में घूर कर देखने लगी। मन कर रहा था अभी जाकर पूछूँ ये लड़की कौन है, मगर अपना गुस्सा अंदर ही अंदर रख लिया। फिर दिव्या की तरफ घूर कर देखा और पूछा, "यह लड़की कौन थी? तुम्हारा भाई किसी लड़की के साथ है?"

    दिव्या ने डरते हुए कहा, "यार, सच में मुझे नहीं पता। यार, चल चल कर देखते हैं। बस तू अपना गुस्सा शांत कर ले।" इससे पहले कि वो सुरभि के पास आती, वो वहाँ से चली गई। "भाई, आप यहां?"

    दिव्या की आवाज पर वह नज़र उठाकर देखने लगा और बोला, "दिव्या, तुम यहां?"

    तब दिव्या ने मुस्कुराकर कहा, "जी भाई, वह मॉम डैड के लिए गिफ्ट लेने आई थी। और आप यहां क्या कर रहे हैं?"

    सचिन ने हंसकर कहा, "मैं भी गिफ्ट लेने आया था।" और गिफ्ट दिव्या को देकर बोला, "ये उन्हें दे देना।"

    मैंने पीछे से कहा, "अगर यह गिफ्ट आप उन्हें देंगे तो बहुत खुश हो जाएँगे।" वह मेरी बात सुनकर रुक गया। मैंने डरते हुए कहा, "सॉरी सर, मैं बस..."

    "सॉरी मत कहो, तुम ठीक कह रही हो।" सचिन ने मेरी बात काटी और कहा, "मगर मैं उनसे कम बोलता हूँ।"

    मैंने याद दिलाते हुए कहा, "पता है मुझे, और यह भी जानती हूँ। वह भी आपसे कम ही बात करते हैं। और हो सकता है उनकी कोई पर्सनल प्रॉब्लम होगी, जिस वजह से वह आपसे दूर हैं। कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों से जानबूझकर दूर नहीं रहता। वक्त या हालात उनको दूर कर देते हैं।"

    मेरा समझाना उसकी समझ में आ गया और मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखने लगा और बोला, "तुम इतनी भी बेअक्ल नहीं हो जितना मैं तुम्हें समझता हूँ।"

    उसकी यह बात सुनकर मेरे होठों पर मुस्कान आ गई। सचिन वहाँ से जाने लगा, फिर खुद ही वापस आकर दिव्या के हाथ से गिफ्ट उठा ले गया। "थैंक यू।"

    मुझे "थैंक यू" बोल गया क्योंकि उसका समझना ठीक था, तो शुक्रिया अदा किए बगैर नहीं रहा गया। उसके जाते ही मैंने दिव्या की तरफ घूरकर देखा और कहा, "वह लड़की कौन थी? पता लगा। दिव्या, कहीं मेरी नाक के नीचे जनाब इश्क़ तो नहीं कर रहे किसी और से?" मैं जासूसी वाले अंदाज़ में कहने लगी।

    दिव्या ने मुझे बेफिक्र करते हुए कहा, "हाँ, मैं पता लगाती हूँ। तू फ़िक्र मत कर।"

    कुछ देर बाद, मैं अपने कमरे में आकर खुद से बोली, "मैं सुरभि से बात करती हूँ। वह लड़का कौन है?" मैं सुरभि को कॉल लगा बैठी। "हेलो, तू आई क्यों नहीं? मैं कॉलेज में मिलने आने वाली बात पर पूछ रही थी।"

    दूसरी तरफ़ से सुरभि ने कहा, "सॉरी, मैं आती, मगर... चल, तुझे कुछ बताना है। मैंने बताया था ना उस लड़के के बारे में? मैंने उसे हाँ बोल दिया।"

    मुझे झटका लगा। "तूने हाँ बोल दिया? तू जानती भी है उस लड़के को?"

    सुरभि ने कहा, "हाँ, बहुत अच्छी तरह। उन्होंने मुझसे शादी के लिए पूछा है। और तू जानती है, वह चालबाज या लालची नहीं है। बहुत अच्छे हैं। तू मिलेगी तो तू भी कहेगी, बहुत अच्छे हैं।"

    मैंने शरारत से हंसते हुए कहा, "अच्छा, ऐसी बात है तो मैं कल ही मिलूँगी। तेरे उनसे... अच्छा, अपना ख्याल रखना।" फ़िक्र करके बोली और खुद से कहा, "यह लड़का बस सुरभि को खुश रखे। यह जो भी है, वह सुरभि को कभी भी छोड़कर कहीं ना जाए।"

    वहीं दूसरी ओर, दिव्या का घर।

    दिव्या सचिन के कमरे में आई और पूछने लगी, "भाई, आजकल आप कहाँ रहते हैं?"

    सचिन ने उसकी तरफ़ देखे बगैर कहा, "कहीं नहीं, बस यहीं हूँ।" वह अपने फ़ोन में बिज़ी था।

    दिव्या अंदर आ गई और पूछा, "अच्छा, आप यह बताएँ, उस कार्ड वाली लड़की का क्या हुआ?"

    "उसका वही हुआ जो होना चाहिए।" अबकी बार सचिन शरारत से दिव्या की तरफ़ देखते हुए बोला।

    तो वह हैरत में पड़ गई और पूछा, "मतलब? क्या भाई? मतलब?"

    सचिन ने हंसकर, शरारत से कहा, "मतलब ये, I am in love।"

    "सच में भाई?" वह खुशी से उछल पड़ी।

    "हाँ, बिल्कुल।" सचिन अब ब्लश करके खड़ा हुआ।

    "ओ माय गॉड, भाई! आपको नहीं पता मैं कितनी खुश हूँ! आपने मुझे कितनी खुशी दी है!" दिव्या उछलकर खुशी से उसके गले लग गई। "मैं अभी उससे बात कर आती हूँ।" वह खुशी से मुझे बताने भागने लगी।

    सचिन ने उसे कहा, "अरे सुनो तो! उसे पता है... सुनो..." सचिन उसे रोकने लगा। "सुरभि को पता है मेरे प्यार के बारे में।" मगर दिव्या बिना कुछ सुने भागकर अपने कमरे में आ गई और मुझे कॉल करने लगी। मेरे फ़ोन उठाते ही खुशी से झूमते हुए बोली, "तेरे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है यार!"

    मैंने हैरत से पूछा, "क्या हो गया यार?"

    दिव्या ने हंसकर कहा, "कुछ नहीं, बस तेरी बात है जो तुझे बेहद खुशी देने वाली है।"

    मैं अब भी हैरान थी। "पर क्या हुआ?"

    दिव्या ने एकदम कहा, "भाई को तुझसे मोहब्बत हो गई है!"

    "इसमें कौन सी बड़ी बात है?" मैं बिना पूरी बात सुने एकदम बोल गई। फिर ध्यान लगाया तो चौंक कर रह गई और बेड से उठ गई और खुशी से चिल्लाकर पूछा, "क्या कहा तूने?"

    दिव्या ने जोर देते हुए कहा, "हाँ, पागल! तेरा प्यार कामयाब हो गया! मेरा भाई भी तेरे प्यार में पागल हो गया!" दिव्या की बात मैं बहुत खुशी से सुन रही थी।

    अब मोबाइल बेड पर डाला और डांस करने लगी।

    अगले दिन, मैं, दिव्या, सुरभि तीनों कॉफ़ी शॉप में बैठी हुई थीं। मैंने पूछा, "तू सच में उसे प्यार करती है? क्या वह भी तुझे चाहता है?"

    सुरभि ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "हाँ, वह मुझे बहुत चाहते हैं।"

    मैंने साफ़ लहजे में पूछा, "वह दहेज कितना लेगा?"

    सुरभि घूर कर कहने लगी, "तुझे दहेज की पड़ी है? वह बहुत अच्छे हैं और वह सिर्फ़ शादी करना चाहते हैं। और उन्होंने बस मुझसे शादी के लिए कहा है। वह मेरे साथ प्यार में रहकर घूमने-फिरना नहीं चाहते, बस शादी चाहते हैं।"

    "ओह, मोहतरमा! आप इसी पर मर मिटी! उफ़ ये अदा!" मैंने शायराना अंदाज़ में यह कहा।

    अबकी बार दिव्या ने पूछा, "मगर वो है कौन?"

    सुरभि ने मुस्कुराकर कहा, "उन्हें तुम दोनों जानती हो। बहुत अच्छे हैं।"