"जब अधर्म का बोलबाला हो और धर्म खतरे में पड़ जाए, तब एक दिव्य शक्ति का प्रकट होना तय है।" समय के चक्र ने फिर से एक नई परीक्षा खड़ी कर दी है। संसार पर अधर्म और अंधकार का साया मंडरा रहा है। लेकिन एक भविष्यवाणी ने सबको आशा दी है— "दसवां अवत... "जब अधर्म का बोलबाला हो और धर्म खतरे में पड़ जाए, तब एक दिव्य शक्ति का प्रकट होना तय है।" समय के चक्र ने फिर से एक नई परीक्षा खड़ी कर दी है। संसार पर अधर्म और अंधकार का साया मंडरा रहा है। लेकिन एक भविष्यवाणी ने सबको आशा दी है— "दसवां अवतार" वो अवतार जो न्याय करेगा, सत्य को पुनर्स्थापित करेगा और अधर्म का विनाश करेगा। यह कहानी है एक युवा नायक की, जो अपने भीतर छुपी अद्भुत शक्तियों को पहचानता है। लेकिन यह राह आसान नहीं होगी। दुनिया के रहस्यमयी कोनों में छुपे पुराने दुश्मन, भविष्यवाणी को रोकने के लिए तैयार हैं। क्या नायक अपने उद्देश्य को समझ पाएगा? क्या वो अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर पाएगा? क्या सच में "दसवां अवतार" संसार को बचा पाएगा? "दसवां अवतार"—एक ऐसी कहानी जो पौराणिकता और आधुनिकता का संगम है। जल्द ही आ रही है... तैयार रहिए अधर्म के अंत और धर्म की विजय के लिए।
Page 1 of 2
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || यं यं वापि स्मरन् भावं त्यजत्यन्ते कलेवरं।। तं तं एवैति कौन्तेय सदा सद्भाव एव हि।। "जब अधर्म का बोलबाला हो और धर्म खतरे में पड़ जाए, तब एक दिव्य शक्ति का प्रकट होना तय है।" समय के चक्र ने फिर से एक नई परीक्षा खड़ी कर दी है। संसार पर अधर्म और अंधकार का साया मंडरा रहा है। लेकिन एक भविष्यवाणी ने सबको आशा दी है— "दसवां अवतार" वो अवतार जो न्याय करेगा, सत्य को पुनर्स्थापित करेगा और अधर्म का विनाश करेगा। यह कहानी है एक युवा नायक की, जो अपने भीतर छुपी अद्भुत शक्तियों को पहचानता है। लेकिन यह राह आसान नहीं होगी। दुनिया के रहस्यमयी कोनों में छुपे पुराने दुश्मन, भविष्यवाणी को रोकने के लिए तैयार हैं। क्या नायक अपने उद्देश्य को समझ पाएगा? क्या वो अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर पाएगा? क्या सच में "दसवां अवतार" संसार को बचा पाएगा? "दसवां अवतार"—एक ऐसी कहानी जो पौराणिकता और आधुनिकता का संगम है। जल्द ही आ रही है... तैयार रहिए अधर्म के अंत और धर्म की विजय के लिए।
जब-जब पृथ्वी पर संकट आया है, तब-तब मैंने अवतार लिया है। मैं अब तक नौ अवतार ले चुका हूँ। अपने प्रत्येक अवतार में मैंने बुराई को समाप्त किया है और उस बुरे व्यक्ति को भी, जो उस बुराई का नेतृत्व करता था; क्योंकि यही मेरा काम है। मुझे आज भी अपने हर जन्म की कहानी याद है। अपने पहले जन्म में मैंने एक मछली का रूप धारण किया था। फिर मुझे एक ऐसा अवतार याद आ रहा है जहाँ मेरा चेहरा शेर के समान था। बुराई कभी भी कमज़ोर नहीं होती। कई बार उसे समाप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है, यहाँ तक कि मेरे देवता होने के बाद भी कई बार उसे समाप्त करना मेरे बस की बात नहीं होती। इस पूरे ब्रह्मांड में मुझसे भी ऊँचे लोग हैं; मैं देव हूँ, तो मुझसे ऊँचे लोगों को भगवान कहा जाता है। बुरे लोग अक्सर इन भगवानों से किसी न किसी प्रकार का वरदान प्राप्त कर लेते हैं। कुछ वरदानों के बारे में हमें देवताओं को जानकारी होती है, तो कुछ वरदानों के बारे में हमें भी पता नहीं होता। यही वरदान आगे चलकर हमारे लिए मुसीबत बन जाते हैं। मुझे अच्छे से याद है, मेरे एक अवतार में मेरे दुश्मन ने एक वरदान प्राप्त किया था: वह न तो दिन में मारा जा सकता था, न रात को, न बाहर, न अंदर, और न ही किसी भी प्रकार के हथियार से। सच में मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे समाप्त करूँ। कभी-कभी तो मैं यह सोचकर भी हैरान हो जाता हूँ कि बुरे लोगों के पास इतना बुद्धि-कौशल कहाँ से आता है कि वे इस तरह के वरदान माँग लेते हैं। तब जाकर मैंने एक ऐसा अवतार लिया था जिसमें मेरा चेहरा शेर के समान था, और मैंने उस व्यक्ति को शाम के ठीक पहले के समय, दरवाज़े के बीचों-बीच मारा था, जैसा कि उसके वरदान में कहा गया था। बुरे लोग अक्सर अमर होने की कोशिश करते हैं, लेकिन अमरता भगवान से प्राप्त नहीं होती। इसलिए वे वरदान में कुछ ऐसी चीज़ माँगते हैं जिससे वे पूरी तरह से अमर तो नहीं हो पाएँ, लेकिन फिर भी लगभग अमरता के करीब पहुँच जाएँ। मेरे नौ अवतारों की कहानी दिलचस्प है; मैंने अपने सभी अवतारों में अलग-अलग तरीके से वरदानों का उपयोग करके अजेय शख्स को समाप्त किया है। हर कोई अपने बुद्धि-कौशल का इस्तेमाल करता था और खुद को इस प्रकार बना लेता था कि उसे किसी भी हालत में समाप्त नहीं किया जा सकता था, लेकिन फिर भी मैंने किया। अब यह मेरा दसवाँ अवतार है, और इस अवतार में भी मुझे एक ऐसी ही बुराई को समाप्त करना होगा; इसके बारे में फिलहाल मुझे कुछ भी नहीं पता है। कुछ भी से मेरा मतलब कुछ भी नहीं। इस बार का अवतार मेरे बाकी अवतारों से अलग होगा। अपने पहले के सभी अवतारों में, अवतार लेने के बाद भी मैंने अपनी दैविक शक्ति का उपयोग किया है। इसका मतलब है कि मैंने अपनी दैविक शक्ति का उपयोग भूत और भविष्य देखने के लिए किया है। भूत और भविष्य देखने की वजह से मुझे दुनिया के बारे में पता होता था और यह भी पता होता था कि यहाँ कौन बुरा शख्स है। अगर किसी दुनिया में पहुँचकर वहाँ के भूतकाल और भविष्य को देखने की शक्ति हो, तो आप उस दुनिया को आसानी से समझ लेते हैं और दुनिया में रहने वाले लोगों को भी। इस बार मेरा अवतार इसलिए अलग है क्योंकि मैंने अवतार लेने से पहले यह निर्णय किया था कि मैं अपनी इस शक्ति का उपयोग नहीं करूँगा। मैं न तो अपनी शक्ति का उपयोग करके भूतकाल देख सकता हूँ, न ही भविष्य देख सकता हूँ। यहाँ तक कि मैं अपनी शक्ति का उपयोग करके आस-पास के वातावरण को समझ भी नहीं सकता हूँ। मेरे पहले के अवतारों में अनंत दूरी पर भी क्या है, मैं इसका पता लगा लेता था, लेकिन अबकी बार ऐसा भी नहीं होगा। इस बार मुझे किसी आम व्यक्ति की तरह ही अवतार लेना होगा; मेरे पास दैविक शक्तियाँ तो होंगी, मगर वे उस तरह से नहीं होंगी जिस तरह से वे वास्तव में हैं। मेरी शक्तियाँ सीमित होंगी। मुझे दुनिया के बारे में पता नहीं होगा, दुनिया में रहने वाले लोगों के बारे में पता नहीं होगा, यहाँ तक कि मुझे इस बात की भी जानकारी नहीं होगी कि मैं किस दुनिया में हूँ, कौन सा वर्ष चल रहा है, माहौल कैसा है, और वहाँ रहने वाला बुरा शख्स कौन है जिसके लिए मैं अवतार लेने जा रहा हूँ। सब कुछ मेरे लिए अनजान होगा, क्योंकि इस बार अपने अंतिम अवतार में मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जो मैंने आज तक नहीं किया है; ताकि जिस तरह से मैं अपने पिछले अवतारों में लोगों के लिए आदर्श बना हूँ, उसी तरह से इस अवतार में भी लोगों के लिए आदर्श बनूँ; एक ऐसा आदर्श जिसे लेकर लोग अगले हज़ारों वर्षों तक अच्छाई के रास्ते पर चलें। अब से कुछ ही क्षणों बाद मेरा जन्म होगा। कुछ देर पहले मुझे पता था कि मैं कहाँ जन्म लेने वाला हूँ, और मैं यह भी जानता था कि मैंने इस जगह का निर्धारण क्यों किया, लेकिन अब मैं यह सारी बातें भूल चुका हूँ। अपने दसवें अवतार से जुड़ी हुई जो भी चीज़ मेरे लिए ज़रूरी थी, उसकी पूरी जानकारी मैं भूल चुका हूँ। मुझे अगर कुछ याद रहेगा, तो यह है कि मैं एक अवतार हूँ और मैंने अपने पिछले जन्मों में क्या किया है; और जो याद नहीं रहेगा, वह यह है कि मैंने इस जन्म में किस बुराई को समाप्त करने के लिए जन्म लिया है। बस अब थोड़ी देर और, फिर मैं जन्म ले लूँगा एक नई दुनिया में, एक अनजान दुनिया में, और मुझे फिर वहाँ पर समाप्त करना होगा उस बुराई को, जिसके लिए मैं लेने जा रहा हूँ अपना दसवाँ अवतार। ........................ दसवाँ अवतार दुनिया - अनजान समयधारा - अनजान पुरानी यादें - सभी नौ अवतारों की जानकारी नई यादें - दसवें अवतार में बुराई के नेतृत्वकर्ता को समाप्त करना शक्ति - शून्य (जैसे-जैसे दुनिया की जानकारी हासिल होगी, यह डेटा बदलता रहेगा) "ओह, यह जन्म के समय होने वाला चिपचिपा एहसास, मुझे इनसे नफरत है। मैं एक प्राकृतिक तरीके से जन्म ले रहा हूँ, यानी कि यह कोई एडवांस्ड समय नहीं है जहाँ मशीनों द्वारा जन्म हो। ओह, मैं कुछ ज़्यादा ही जल्दी समय के बारे में सोचने लगा हूँ। अभी मैं ठीक से पैदा भी नहीं हुआ, मुझे पैदा होने का इंतज़ार करना चाहिए। मैंने उत्साह के मारे ऐसा कर दिया। मुझे कोई जानकारी नहीं होगी, मगर अब ऐसा लग रहा है कि मैंने खुद को ही सज़ा दी है।" एक छोटा सा कमरा, जो किसी झोपड़ी जैसा लग रहा था, औरतों की भीड़ जमा थी। वे सब एक गंदे, मिट्टी से भरे बिस्तर पर लेटी एक औरत के चारों ओर खड़ी थीं। वह औरत एक बच्चे को जन्म देने वाली थी। औरतों की भीड़ में से एक औरत ने कहा, "थोड़ा सा जोर लगाओ, आहुदी, तुम्हें थोड़ा सा और जोर लगाना होगा..." वहीं उसके पीछे मौजूद औरतें आपस में बातें कर रही थीं। उन औरतों में से एक बोली, "इसकी किस्मत कितनी अच्छी है! शादी के पूरे दस वर्ष बाद इसे बच्चा होने जा रहा है। हर कोई हार मान चुका था; हमारे गाँव के जितने भी वैद्य थे, सबने अपने हाथ खड़े कर दिए थे, मगर फिर भी यह आज माँ बनने वाली है।" दूसरी औरत ने जवाब दिया, "यह तो किसी भगवान का चमत्कार ही है। ऐसे चमत्कार बहुत कम होते हैं। यह हमारे गाँव की सबसे प्रसिद्ध वैद्य, मणि वर्धमान के पास भी गई थी, और उन्होंने भी यही कहा था कि तुम माँ नहीं बन सकती हो, मगर फिर भी चमत्कार हो गया।" पहली औरत ने फिर कहा, "अब तो बस यह देखना है कि यह लड़का है या लड़की?" दूसरी औरत ने कहा, "क्या फर्क पड़ता है? चाहे लड़का हो चाहे लड़की, जिस किसी को औलाद न हो, उसे औलाद मिल जाए, यही उसके लिए काफी होता है।" आहुदी अपना पूरा जोर लगा रही थी। उसका चेहरा पसीने से तर था और एक औरत लगातार उसके सिर पर हाथ रखकर उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी। चेहरे पर दर्द के भाव स्पष्ट थे। उसे दो और औरतों ने पकड़ रखा था। आहुदी ने अपना पूरा जोर लगाया; उसे जीवन भर का दर्द एक साथ महसूस हुआ, और फिर अचानक सब कुछ थम गया। दर्द एक झटके में गायब हो गया। एक औरत ने बच्चे को अपने हाथ में पकड़ा और उसे ऊपर उठाते हुए बोली, "मुबारक हो, लड़का हुआ है!" कमरे में जितनी भी औरतें मौजूद थीं, उनमें से कुछ के चेहरे खुशी से भर गए, तो कुछ को जलन हो रही थी। वहीं वो बच्चा अपने मन में कुछ सोच रहा था। "ओह, इस तरह से उल्टा लटकाना बंद करो! अब जब पता चल गया है कि मैं एक लड़का हूँ, तो मुझे नीचे रख दो, वरना मुझे चक्कर आने लगेंगे।" औरत ने अभी भी बच्चे को पकड़ रखा था और उसे ऐसे देख रही थी जैसे मानो उसने कोई नई चीज़ देख ली हो। उस औरत ने बच्चे के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, "अरे बाप रे! इसने तो अपनी आँखें खुद-ब-खुद खोल लीं! वरना कोई बच्चा जब तक उसे ठीक से साफ़ नहीं किया जाता, अपनी आँखें नहीं खोलता।" उसने जल्दी से बच्चे को नीचे लिटाया और फिर कपड़े से उसकी सफ़ाई करने लगी। जब बच्चा अच्छी तरह से साफ़ हो गया, तब उसने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। आहुदी ने बच्चे को अपनी गोद में लिया और फिर ऊपर देखते हुए बोली, "भगवान, आपका लाख-लाख शुक्रिया, जो आपने मेरी खाली झोली को फिर से भर दिया। मैं आपका यह एहसान जीवन भर नहीं भूलूँगी। देखना, अब मैं आपके मंदिर में 1001 दिनों तक रोज़ 1001 फेरे लगाने आऊँगी।" "चलो, मुझे कम से कम इतना तो याद है कि मैंने इसे अपने लिए क्यों चुना था। यह मेरे मंदिर में पिछले नौ वर्षों से लगातार आ रही है। हर दिन जब भी यह आई थी, तब यही कहती थी कि मुझे एक औलाद चाहिए। तीन वर्षों तक तो मैंने इसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया, फिर बाद में सोचा कि क्या पता इसकी किस्मत खुद ही बदल जाए। लेकिन अगले छह वर्षों तक भी ऐसा नहीं हुआ, और फिर जब नौ वर्षों के बाद मैंने अवतार लेने के बारे में सोचा, तो यही औरत मेरे दिमाग में घूम रही थी। अच्छा हुआ कि यह रोज़ मेरे पास आती थी, वरना यह एक-दो साल बाद आना बंद कर देती, तब शायद मुझे इसका ध्यान नहीं रहता और मैं कहीं और अवतार ले लेता।" नवजात शिशु की आँखें घर की दशा की ओर घूमने लगीं। औरतों की भीड़ के बीच में उसे ज़्यादातर घर की दशा देखने को नहीं मिल रही थी, मगर फिर भी वह छत को और कुछ आस-पास की चीज़ों को देख पा रहा था। छत पर घास-फूस के तिनके लगे हुए थे जो नीचे की ओर लटक रहे थे। "इन घास-फूस के तिनकों को देखकर लगता है कि यह परिवार कोई अमीर परिवार नहीं है। चलो, कोई बात नहीं; मेरे लिए अमीरी गरीबी कोई मतलब नहीं रखती। अगर मेरे लिए कुछ मतलब रखता है, तो वह यह है कि मैं किस दुनिया में हूँ, और यहाँ पर मुझे किस बुराई को समाप्त करना है? मेरे कई जन्मों में मेरे दुश्मन को मेरे पैदा होते ही पता चल जाता था; इस जन्म में भी पता चल ही गया होगा; क्या पता कोई भविष्यवाणी भी हुई हो? ओह, मतलब अब आने वाले दिनों में, जब तक मैं बड़ा नहीं हो जाता, तब तक मुझ पर एक के बाद एक खतरे आएंगे और मैं सबका सामना करूँगा। क्या पता अगला हमला कुछ ही देर में हो जाए? मेरे दुश्मन के लिए यह अच्छा मौका होगा कि वह मुझे पैदा होते ही समाप्त करने की कोशिश करे? ऐसे में मैं उसके लिए एक आसान शिकार रहूँगा। ओह, मेरा दुश्मन जल्दी मुझ पर हमला करने के लिए आता ही होगा। इस बार मैं क्या करूँगा? क्या मैं अपने हाथ की छोटी-छोटी उंगलियों से हमला करूँ या फिर अपने पैर की छोटी-छोटी उंगलियों से?" नवजात शिशु अजीब तरीके से अपने हाथों को ऊपर करके उंगलियों को मोड़ रहा था, जैसे वह मुक्का बना रहा हो, और पैरों को भी ऊपर उठा रहा था। औरतों में से किसी का भी ध्यान बच्चे पर नहीं था।
दो दिन बाद दो दिन बाद, नवजात शिशु एक छोटे से झूले में था। झूला उसी कमरे में रखा था जहाँ उसका जन्म हुआ था। जन्म के बाद से उसकी माँ और वह दोनों कमरे से बाहर नहीं निकले थे। "ओह, दो दिन बीत चुके हैं, पर अभी तक मुझ पर कोई हमला करने नहीं आया? क्या मेरा दुश्मन इस बार इतना आलसी है? वह स्वयं तो बिल्कुल नहीं आएगा, मगर उसे किसी को भेज देना चाहिए था। मुझे अभी तक यह भी नहीं पता कि मैं कहाँ पैदा हुआ हूँ; मेरे नए परिवार ने मुझे घर के बाहर के दर्शन तक नहीं करवाए हैं।" अचानक, सिर पर मफलर बांधे एक व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ। वह बच्चे के पास आया और उसे खुशी से देखते हुए बोला, "आरे आरे आरे आरे आरे मेरे लाला, अरे माई रे! तुम कितने प्यारे हो मेरे बच्चे, आ, आकर अपने पापा के गले लग जा।" उसने बच्चे को उठाया और गले से लगा लिया। बच्चा मन ही मन सोचने लगा, "क्या यह मेरे पिता हैं? जो थोड़ी-बहुत चीजें मुझे याद थीं, उन्हें भी मैं भूल चुका हूँ। अब मुझे बस इतना ही याद है कि मैं यहाँ बुराई के ख़ात्मे के लिए पैदा हुआ हूँ। पिछले दो दिनों से मैंने इस कमरे में किसी पुरुष को नहीं देखा है। यह पहली बार यहाँ आया है, तो यह मेरे पिता ही होंगे?" वह चारपाई पर मौजूद औरत के पास गया और बोला, "आहुदी, तुमने देखा, भगवान की कृपा से हमें कितना सुंदर लड़का हुआ है! यह हमारे भगवान की तरह ही दिखता है। तुम्हारी तपस्या का ही फल है, वरना मैं तो उम्मीद ही छोड़ चुका था।" आहुदी लगभग 45 वर्ष की दिख रही थी। वह पुरुष, जो बात कर रहा था, लगभग 50 वर्ष का दिखाई दे रहा था। उसने सिर पर मफलर बांधा हुआ था, और ऐसा ही एक मफलर उसकी कमर पर भी बंधा था, जिसमें तलवार लटकी हुई थी। छोटा सा बच्चा, जो मुश्किल से डेढ़ फीट का होगा, अपने हाथों से किसी तरह तलवार को छूने की कोशिश कर रहा था। बच्चा मन ही मन सोचने लगा, "मेरे पिता के पास कितनी अच्छी तलवार है! एक बार इसे छूकर तो देख ही लेना चाहिए, लेकिन मेरे हाथ इतने छोटे हैं कि वह तलवार तक पहुँच नहीं पा रहे हैं। मैं अपने पिता से बात करने की कोशिश करूँगा और उनसे कहूँगा कि यह तलवार मुझे अपने हाथ में पकड़ा दें।" बच्चे ने बोलने की कोशिश की, लेकिन बोलने की बजाय वह जोर-जोर से रोने लगा। उसके पिता ने बच्चे को गोद में झुलाना शुरू कर दिया, "अरे क्या हुआ बच्चे? अपने पिता के पास आते ही ऐसे क्यों रोने लगा? अरे मेरे बच्चे ऐसे नहीं रोते, चलो चुप हो जाओ, देखो देखो तुम्हारी माँ।" आहुदी खुश दिखाई दे रही थी। उसने कहा, "मैंने जो भी तपस्या की है, वह बस आपकी खुशी के लिए की है। आपके पिताजी का सपना था कि वे अपने पोते को अपनी गोद में खिलाएँ, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। मुझे इसके लिए हमेशा दुःख रहेगा। जब मैं चल फिरने लग जाऊँगी, तब सबसे पहले मैं उनकी कब्र पर जाऊँगी और अपने बच्चे के लिए आशीर्वाद लूँगी।" उसके पिता ने कहा, "ठीक है, तुम जा आना। अगर उस दिन मैं फ्री हुआ तो मैं भी तुम्हारे साथ चल जाऊँगा। शायद इस बार के हमारे हालात पिछली बार से भी मुश्किल भरे हुए हैं। इस बार बारिश नहीं हुई है और न ही हमें समुद्र के किनारे मछलियाँ मिली हैं। पानी की कमी की वजह से फसलें खराब होती जा रही हैं। कुछ किसानों ने समुद्र के पानी का इस्तेमाल करने की कोशिश की तो सारी फसलें खराब हो गईं, क्योंकि समुद्र का पानी बहुत खारा है। पता नहीं इस बार भगवान हमारा किस तरह से इम्तिहान ले रहे हैं? पूरे गाँव की हालत इस बार बहुत खराब है। अगर अगले कुछ महीनों में बारिश नहीं हुई और न ही समुद्र से मछलियाँ मिलीं, तो सर्दियाँ भुखमरी में बीतेंगी। पता नहीं इस बार और कितने लोगों की जान भुखमरी की वजह से जाएगी।" छोटा नवजात शिशु मन ही मन हैरान हुआ, "क्या कहा? इस बार बारिश नहीं हुई? और मैं परीक्षा ले रहा हूँ? नहीं, मैं तो कोई परीक्षा नहीं ले रहा हूँ! मैं कभी भी बारिश पर नियंत्रण नहीं करता हूँ। इसे जब होना होता है, यह अपने आप हो जाती है। हाँ, अगर कभी मेरा मन करे तो मैं इसे रोक जरूर सकता हूँ। और हाँ, मेरे पास इतनी ताकत भी है कि मैं अपनी ताकत का इस्तेमाल करके बारिश करवा सकता हूँ। चलो, इन लोगों का भला कर देता हूँ और बारिश करवा देता हूँ।" छोटे से लड़के ने अपने हाथ को छत की तरफ़ किया और अपने चेहरे पर ऐसे भाव बनाए जैसे वह जोर लगा रहा हो। मगर उसके ऐसा करने पर कुछ भी नहीं हुआ। "ओह, यह मैं क्या देख रहा हूँ? क्या मेरी शक्तियाँ काम नहीं कर रही हैं? ओह, नहीं, मुझे नहीं पता मैंने ऐसा क्या किया कि मेरी शक्तियाँ काम नहीं कर रही हैं? क्या यहाँ आने से पहले मैंने अपने लिए कुछ और नियम बनाए थे? मुझे ठीक से याद तो नहीं आ रहा, शायद मेरा यह मानवीय रूप अभी कमज़ोर है और मेरी शक्तियों को धारण नहीं कर सकता है। इसलिए मैंने तो एक अवतार के रूप में जन्म लिया है, लेकिन मेरी शक्तियों के शरीर द्वारा इस्तेमाल होने में वक़्त लगेगा। पर ऐसा होना तो नहीं चाहिए, पता नहीं इस बार क्या गड़बड़ हो गई है?" वह बच्चा फिर से अपने हाथ को ऊपर करके बारिश करवाने की कोशिश करने लगा। वहीं आहुदी बोली, "ऊपर वाले पर भरोसा करो। अगर उसने हमें इतनी मुश्किल हालातों में भी जिंदा रखा है, तो वह आगे भी हमारे लिए कुछ न कुछ कर ही लेगा। अभी सर्दियों को आने में वक़्त है, तब तक हमारे हालात बदल जाएँगे।" तभी कमरे में एक और आदमी आया और उसने वहाँ मौजूद आदमी से कहा, "लखन भाई, चलो खेतों में चलें। अभी-अभी मेरे लड़के ने आकर बताया है कि खेतों पर फिर से आदमखोरों ने हमला कर दिया है। वे हम दोनों के खेतों को खा रहे हैं। चलो चलकर उनको निपटाते हैं, वरना जो थोड़ी-बहुत फसल बची है, वह भी ख़त्म हो जाएगी।" लखन ने अपनी तलवार उठाई और कहा, "ये आदमखोर भी ना! पता नहीं ये कब अपनी हरकतों से बाज आएँगे। चलो चलकर अभी इनकी अक्ल ठिकाने लगाते हैं।" फिर वह अपने कमरे से निकल गया और लड़के को आहुदी को सौंप दिया। आहुदी ने लड़के को अपने बगल में लेटा दिया। लड़के ने मन ही मन सोते हुए सोचा, "आदमखोरों का खतरा? यह क्या चीज है? मुझे अभी तक जगह के बारे में ज़्यादा नहीं पता चला, लेकिन अभी-अभी जो बातें हुईं, उनसे जो चीज सामने आई है, वह यह है कि मैं उस जगह पर हूँ जहाँ दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। बारिश न होने की वजह से इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, और अगर बारिश नहीं हुई तो सर्दियाँ बहुत बुरी निकलेंगी। फिर जो बात और पता चली है, वह इन आदमखोरों के खतरे के बारे में है। ये फसलों पर हमला कर रहे हैं, यानी कि इन आदमखोरों का खतरा हमेशा फसलों पर रहता है। मेरे पिता के पास जो तलवार थी, वह इन आदमखोरों से लड़ने के लिए ही थी, और जो आदमी कमरे में आया था, मैंने उसके पास भी तलवार देखी थी। यानी कि उसके पास जो तलवार थी, वह भी इनसे लड़ने के लिए थी? ओह, काश मेरे पिता मुझे आस-पास की जगह, यह गाँव और वे आदमखोर भी दिखा देते।" उस लड़के ने एक लंबी उबासी ली। आहुदी ने अपने बच्चे को उबासी लेते हुए देखा तो वह प्यार से बोली, "आओ मेरा बच्चा, उबासी लेते हुए कितना प्यारा लग रहा है।" वही लड़का अपने मन में अपनी बात को आगे जारी रखते हुए सोचने लगा, "मेरी शक्ति काम नहीं कर रही है, तो मुझे अब अपने दुश्मन को लेकर भी आगाह रहना होगा। पहले तो मैं यही सोच रहा था कि वह मुझ पर हमला करे तो मैं अपना कोई चमत्कार दिखाऊँ, लेकिन अब अगर वह ना करे तो ही ठीक है। इस बार मैं बहुत बड़ी मुसीबत के साथ पैदा हुआ हूँ। ऐसे में अगर वह मुझ पर हमला करता है, तो मुझे नहीं लगता कि मैं बच पाऊँगा। मुझे जल्दी से जल्दी अपनी शक्तियों को इस शरीर में इस्तेमाल करने की कोशिश करनी होगी, वरना हालात बुरे हो जाएँगे।" आहुदी सोने के लिए चली गई, जबकि वह लड़का अपने हाथों को ऊपर छत की तरफ़ करके लगातार अपना जोर लगाता रहा। 15 दिन बाद उसके इसी तरह से अभ्यास करते हुए पन्द्रह दिन बीत चुके थे। अगले पन्द्रह दिनों तक माँ और बच्चा दोनों ही कमरे में ही मौजूद रहे और कमरे से बाहर नहीं निकले थे। शौच आदि के लिए कमरे में ही एक तरफ़ जगह बनी हुई थी। इन पन्द्रह दिनों के दौरान छोटे से बच्चे ने आसपास देखने की कोशिश की थी, लेकिन कमरे में कोई खिड़की नहीं थी, इसलिए वह बाहर की किसी भी चीज को नहीं देख सकता था और न ही किसी ने उसे बाहर ले जाने की कोशिश की। बीच-बीच में उसके पिता उसे मिलने आते रहते थे और जब भी आते थे, तब उन्हें आदमखोरों के खतरे की वजह से वापस जाना पड़ जाता था। पन्द्रह दिनों के बाद लड़के के दिमाग में आया, "आज पन्द्रह दिन बीत चुके हैं, मगर मैं अभी तक अपनी शक्तियों को ठीक से इस्तेमाल करना नहीं सीखा हूँ, बल्कि मैं अपनी शक्तियों का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहा हूँ। अच्छा हुआ मेरे दुश्मन ने भी मुझ पर हमला नहीं किया, और न ही मुझे लग रहा है कि वह हमला करेगा। पता नहीं वह कौन सा नशा करके बैठा है। बस अब जल्दी से जल्दी मैं किसी तरह से अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर लूँ।" तभी अचानक उसे अपने हाथ में कुछ अलग महसूस हुआ। कुछ ऐसा जिससे उसके चेहरे पर खुशी आ गई थी। जैसे ही उसे यह एहसास हुआ, बाहर बादलों में गड़गड़ाहट होने लगी। दोपहर के वक़्त, पीले रंग की धूप में, गाँव की फसलों के बीच मौजूद कुछ घरों के ऊपर जो आसमान था, वह नीले रंग के बादलों से भरा हुआ था, लेकिन अचानक ही काले रंग के ढेर सारे बादल आ गए। एक के बाद एक और तेज गर्जना हुई और फिर बारिश होने लगी। लड़के के चेहरे की खुशी और ज़्यादा तेज हो गई, "आख़िरकार मैं अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर पा रहा हूँ! ओह, लेकिन मेरा इस पर नियंत्रण नहीं है। मैंने बारिश तो शुरू कर दी, मगर अब इसे बंद कैसे करूँगा?" वह अपने हाथों से उसे बंद करने की कोशिश करने लगा, मगर अब उसकी बारिश बंद करने की कोशिश काम नहीं कर रही थी। एक हफ्ते बाद ठीक एक हफ़्ते बाद, लखन आहुदी के पास बैठा था। वह अपने चेहरे से परेशान दिखाई दे रहा था। उसने आहुदी से कहा, "मैं चाहता था बारिश हो, इस गाँव के सारे ही लोग चाहते थे बारिश हो, मगर किसी ने यह नहीं चाहा था कि इतनी बारिश हो। पिछले सात दिनों से लगातार मूसलाधार बारिश हो रही है, और ऐसा आज से पहले कभी नहीं हुआ था। इस बारिश की वजह से फसलें खराब होना शुरू हो गई हैं। अगर यह बारिश अगले कुछ दिनों तक और नहीं रुकी, तो हमारी सारी फसलें खराब हो जाएँगी और यह सर्दी हमारी बहुत बुरी जाएगी। इतनी बुरी, जितनी बुरी यह बारिश न होने पर भी नहीं जाती।" आहुदी ने लखन के हाथ को अपने हाथ में पकड़ा और बोली, "ऊपर वाले पर भरोसा रखिए। यह बारिश भी उनकी वजह से हुई है, तो वही इस बारिश को रोकेंगे।" छोटे से बच्चे ने एक लंबी गहरी साँस ली, जिसे उसके माता-पिता दोनों ही देखने लगे। वह बच्चा अपने मन में सोचने लगा, "नहीं भाई, मेरे बस में कुछ भी नहीं है। मुझे नहीं समझ में आ रहा कि मैं इसे कैसे रोकूँगा। इस बार की सर्दियाँ सच में मुश्किल से ही निकलेंगी।"
अगले 15 दिनों के बाद छोटा सा बच्चा अपने मन में सोच रहा था, "आज पूरे तेईस दिन हो चुके हैं। मैंने जो बारिश शुरू की थी, उसने पूरे गांव को तहस-नहस कर दिया है। इस वक्त गांव वाले मुझे कोस रहे हैं।" आहुदी अपने कमरे में चारपाई पर लेटी हुई थी, और उसके चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी। तभी लखन कमरे में आया और उसके पास आकर बैठ गया। बैठने से पहले उसने अपना लंबा लबादा उतार कर टांग दिया, जो उसे बारिश से बचाने के लिए बनाया गया था। लखन ने चिंता से कहा, "हमारी सारी फसल बर्बाद हो चुकी है। गांव में किसी की भी फसल नहीं बची है। सर्दियों में किसी के पास खाने को कुछ नहीं है। अब बस हम इस बात की उम्मीद कर सकते हैं कि समुद्र से कहीं नई मछलियाँ आ जाएँ, नहीं तो इस सर्दी में कोई नहीं बचेगा।" बच्चे ने, अपने चेहरे पर दया का भाव दिखाते हुए, कहा, "मुझे अफ़सोस हो रहा है, मैंने ऐसा क्यों किया? अगर मैं बारिश नहीं करवाता, तो शायद यह सब नहीं हो रहा होता।" उसने दोबारा अपने हाथ ऊपर उठाए ताकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके किसी तरह बारिश को रोक सके। "उस दिन के बाद से मेरी शक्ति ने दोबारा काम करना बंद कर दिया है।" आहुदी ने चिंता से कहा, "हमें पहले ही भगवान की पूजा करनी चाहिए थी। मैं आप लोगों को पहले भी कह चुकी हूँ, हमें सबको भगवान को याद करना चाहिए था।" लखन ने धीमी आवाज़ में कहा, "हाँ, मैं गांव वालों से आज बात कर रहा था। उन्होंने कहा है कि कल वे एक बड़ा यज्ञ करेंगे। शायद उसके बाद भगवान कृपा करें और यह बारिश बंद हो जाए।" बच्चा अपने मन में सोच रहा था, "हाँ, यह भी सही रहेगा। शायद यह तरीका काम कर जाए। मैं यहाँ हूँ, लेकिन ऊपर और भी भगवान हैं। शायद उनमें से कोई तुम्हारी बात सुन ले और मेरे इस्तेमाल की गई शक्ति को रोकने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर ले। मगर मुझे नहीं लगता कि कोई भी भगवान ऐसा करेगा, क्योंकि हम भगवान एक-दूसरे के कार्यों में दखलंदाजी नहीं करते। इसलिए जब कोई बुरी शक्ति वरदान लेकर ताकतवर बन जाती है, तब हम उसे कोसने नहीं जाते कि उसने ऐसा क्यों किया? बल्कि हम समस्या का समाधान ढूँढ़ते हैं। यही हम भगवानों का काम करने का तरीका है।" पूरी रात लड़का अपने हाथों से बारिश रोकने की कोशिश करता रहा। अगले दिन दोपहर को, एक बड़ी गुफा जैसी दिखने वाली जगह पर एक बड़ा यज्ञ किया गया। सारे गांव वाले वहाँ मौजूद थे। काफ़ी मंत्रोच्चारण के बाद, कुछ गांव वालों ने अपने शरीर पर गर्म जंजीरों से चोटें कीं, ताकि अगर यह सब उनकी किसी गलती की सज़ा है, तो भगवान उन्हें माफ़ कर दें। उसी शाम को, जब लड़का अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर रहा था, तभी अचानक बारिश रुक गई। यह होते ही लड़के ने अपने मन में कहा, "वाह! मेरी शक्तियों ने फिर से काम किया। आखिरकार, मैंने अपनी इस्तेमाल की गई शक्ति के असर को ख़त्म कर ही दिया। हे भगवान! मैंने कुछ ज़्यादा ही वक्त ले लिया। मुझे यह काम बहुत पहले कर लेना चाहिए था। वैसे भगवान तो मैं ही हूं, फिर मैं भगवान को क्यों याद कर रहा हूं?" यज्ञ अभी भी जारी था। जब उन्होंने देखा कि बारिश बंद हो गई है, तो सब खुश हो गए और खुशी से नाचने लगे। लखन ने अपने दोस्त वीर से कहा, "तुमने देखा? जब हमने भगवान का यज्ञ किया, तो भगवान ने बारिश बंद कर दी। हमें यह यज्ञ पहले ही कर लेना चाहिए था, ताकि भगवान पहले ही इस बारिश को बंद कर देते। ज़रूर वे हमारी किसी बात से नाराज़ थे, तभी उन्होंने इतनी भयंकर बारिश हमारे गांव में शुरू की थी, वरना ऐसा कभी नहीं हुआ कि हमारे गांव में इतनी भयंकर बारिश हुई हो।" वीर ने लखन की बात पर सहमति जताते हुए कहा, "तुमने सही कहा लखन। अबकी बार हम कभी भी भगवान को नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे। जब-जब हम पर मुसीबत आएगी, तब-तब हम भगवान के लिए यज्ञ करेंगे, ताकि वे हमारी इस मुसीबत को ख़त्म कर दें।" वहीं लड़के ने अपने हाथ को दोबारा ऊपर उठाते हुए कहा, "लगता है अब मेरा अपनी शक्तियों पर नियंत्रण अच्छा हो गया है। मैं दोबारा बारिश करके देखता हूँ।" उसने फिर से अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया, जिससे फिर से बारिश होने लगी। सारे गांव वाले, जो खुशी से नाच रहे थे, अचानक उनका नाचना बंद हो गया और वे बाहर की तरफ देखने लगे, जहाँ पर फिर से मूसलाधार बारिश शुरू हो गई थी। गांव के मुखिया, जो लगभग 80 साल के बुजुर्ग थे, वे यज्ञ के पास बैठे हुए थे। उन्होंने सभी गांव के लोगों की तरफ देखते हुए कहा, "तुम लोग बहुत जल्दी खुशी मनाने लगे हो। अभी तक हमारा यज्ञ पूरा नहीं हुआ है। चलो, यज्ञ पूरा करने पर ध्यान देते हैं, नहीं तो भगवान फिर से लंबी बारिश शुरू कर देंगे।" सभी ने यज्ञ दोबारा शुरू कर दिया। वहीं लड़के ने अपने हाथ का फिर से इस्तेमाल किया, तो बारिश बंद हो गई। यज्ञ कर रहे लोग खुश हो गए, क्योंकि उन्होंने जब यज्ञ दोबारा शुरू किया, तो बारिश ख़त्म हो गई थी। छोटे लड़के ने गहरी साँस ली और कहा, "चलो, कम से कम मेरा अपनी शक्तियों पर कुछ नियंत्रण तो हो गया है। मैं अब अपनी मर्ज़ी से बारिश कर सकता हूँ और उसे रोक भी सकता हूँ, लेकिन समस्या यह है कि मैंने काफ़ी नुकसान कर दिया है। इन गांव वालों के पास अब खाने के लिए कुछ नहीं बचा है, और अगर इन गांव वालों को मुझे ज़िंदा रखना है, तो मुझे मछलियों का इंतज़ाम करना होगा। क्योंकि मुझे लगता है कि ये गांव वाले अनाज के बाद मछली खाकर ही ज़िंदा रहते हैं। ये बार-बार समुद्र का नाम लेते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि ये लोग समुद्र के किनारे रहते हैं।" वह लड़का फिर से अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने लगा, ताकि वह किसी तरह से समुद्र के किनारे मछलियों को ला सके, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि समुद्र कितनी दूर है और यहाँ आस-पास के क्या हालात हैं, इसलिए उसकी शक्तियाँ काम नहीं कर रही थीं। लड़के ने कोशिश करना छोड़ दिया और कहा, "मैं मछलियों का इंतज़ाम कभी नहीं कर पाऊँगा, क्योंकि मुझे यहाँ के हालातों का पता नहीं है। क्या मेरे पास कोई दूसरा रास्ता है? सर्दी शुरू होने वाली है। अगर मैं मौसम में थोड़ा सा बदलाव कर दूँ और सर्दी को लेट कर दूँ, तो शायद उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन आ जाए? मगर अभी के लिए मैं मौसम पर नियंत्रण नहीं कर सकता हूँ, और शायद यह शक्ति मुझे जल्दी से मिले भी ना, क्योंकि मौसम को नियंत्रित करने का मतलब है पूरी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना, जिसकी इजाज़त लेकर मैं पैदा नहीं हुआ हूँ।" अगले दो दिन के बाद दो दिन बाद लखन आहुदी के पास आया। वह ऊपर से नीचे तक किसी योद्धा की पोशाक में सजा हुआ था। उसने अपनी कमर पर दो-दो तलवारें बाँधी हुई थीं, और एक तलवार उसकी पीठ पर भी थी, जो थोड़ी सी लंबी थी। लड़के ने अपने मन में सोचा, "यह इतने सारे हथियार लेकर आखिर कहाँ जा रहा है?" लखन आहुदी के पास बैठा और बोला, "क्योंकि अब ना तो हमारे पास खाने के लिए अनाज है और ना ही समुद्र में मछलियाँ हैं, इसलिए सभी गांव वालों ने मिलकर कुछ और करने का फ़ैसला किया है। गांव वाले चाहते हैं कि हम आदमखोरों का शिकार करें। खुद को ज़िंदा रखने के लिए कुछ ना कुछ करना ज़रूरी है। आदमखोरों ने हमेशा हमारी फ़सलों को नुकसान पहुँचाया है। ऐसे में अगर हम उनका शिकार करते हैं, तो सर्दियों में खाने का इंतज़ाम भी हो जाएगा और अगली बार हमारी फ़सलों को भी कम नुकसान पहुँचेगा।" आहुदी ने सिर हिलाया, "जैसा आपको ठीक लगे, आप वैसा कर सकते हैं, क्योंकि मुझे नहीं पता इस मामले में आपको क्या कहना चाहिए। सर्दियों में खाने की ज़रूरत तो है ही, इसलिए यह करना भी पड़ेगा।" लखन ने सिर हिलाया, "मैंने कभी आदमखोरों को खाकर नहीं देखा है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें खाया जा सकता है। खुद की ज़िंदगी बचाने के लिए बस यही एकमात्र रास्ता है।" लड़के ने अपने मन में सोचा, "ओह! मैंने सच में ज़्यादा ही नुकसान कर दिया है। क्या ये आदमखोर ख़तरनाक होते होंगे? ये कैसे दिखाई देते होंगे? काश, पिताजी ने मुझे इन आदमखोरों के बारे में ज़्यादा जानकारी दी होती, ताकि मुझे पता चल जाता कि ये आदमखोर दिखते कैसे हैं?" उसी दिन रात को लखन, लगभग बीस लोगों के साथ, किसी गहरे जंगल को पार करके एक गुफा में पहुँचा था, और वह लगातार गुफा में आगे बढ़ रहा था। सभी गांव वालों ने अपने-अपने हथियार बाहर निकाल रखे थे। उनके हाथ में जलती हुई मशालें थीं, जिनका इस्तेमाल वे रोशनी करने के लिए कर रहे थे। वीर उनके साथ ही था और वह लखन के ठीक पीछे चल रहा था, जबकि लखन इस पूरे समूह की अगुवाई कर रहा था। लखन ने अपने हाथ ऊपर करके सबको रुकने के लिए कहा और फिर धीमी आवाज़ में बोला, "आदमखोरों की गंध आना शुरू हो गई है। हम आज से पहले कभी इन आदमखोरों की गुफाओं में नहीं घुसे हैं। हमारे खेतों के आसपास जितने भी पहाड़ मौजूद हैं, वहाँ पर ऐसी अनगिनत गुफाएँ हैं, लेकिन आदमखोर सभी गुफाओं से बाहर कभी भी नहीं आते, इसलिए हमें सावधान रहना होगा। हम यह भी नहीं जानते कि आदमखोरों के रहने का तरीका कैसा है। चीटियों की तरह, इनके बाहर काम करने वाले आदमखोर अलग होंगे, जबकि जो अंदर रहते हैं वे अलग होंगे, और उनकी कोई रानी या कोई राजा भी होगा, जैसे चीटियों का होता है। हमें हर एक चीज़ के लिए सावधानी रखनी होगी।" वीर ने कहा, "अगर आने वाली सर्दी की चिंता ना होती, तो हम इन गुफाओं में कभी नहीं आते, क्योंकि अब से पहले भी कुछ गांव वालों ने गुफा में आने की कोशिश की थी, मगर वे कभी ज़िंदा वापस नहीं लौटे थे, लेकिन मजबूरी में सब कुछ करना पड़ता है।" लखन ने इशारा किया और सारे गांव वाले सावधानी से आगे बढ़ने लगे। वे गुफा में थोड़ा सा और आगे बढ़े, तो अचानक कुछ आदमखोरों ने एक साथ हमला कर दिया। लखन ने उनकी तरफ़ देखते हुए कहा, "ये वैसे आदमखोर नहीं हैं जो हमारे खेतों पर हमला करने आते थे। ये उनसे अलग हैं, मतलब गुफा में इनकी अलग-अलग प्रजातियाँ मौजूद हैं।" वीर ने सबको आदेश देते हुए कहा, "ख़त्म कर दो सबको, किसी को भी छोड़ना मत।" सारे आदमखोर, जो हमला कर रहे थे, मोटी चमड़ी वाले, पीले रंग की चमड़ी वाले थे, ये आदमखोर इंसानों की तुलना में आधी ऊँचाई के थे। उनके चेहरे पर चोंच जैसी आकृति बनी हुई थी, जो हमला करने और खाने दोनों काम आ रही थी। सभी गांव वालों ने मिलकर आदमखोरों का सामना किया और एक दर्जन से भी अधिक आदमखोरों को मार गिराया। सभी गुफा में और अंदर आगे जाने लगे, तो और कई तरह के आदमखोरों ने हमला किया। थोड़ा सा आगे जाने पर, अचानक हुए आदमखोरों के हमले में आदमखोरों की ऊँचाई पहले से ज़्यादा बड़ी थी। लेकिन जब गांव वाले और अंदर चले गए थे, तब उन्हें दो विशालकाय आदमखोरों और एक रानी मिली। इन तीनों विशाल आदमखोरों को मारने के बाद, सारे गांव वाले थक चुके थे और वे गुफा के किनारे पर बैठकर आराम करने लगे। लखन ने थकी हुई आवाज़ में कहा, "जैसे-जैसे हम गुफा में आगे आते जा रहे हैं, इन आदमखोरों की ताकत बढ़ती जा रही है। मुझे नहीं लगता कि हम इन गुफाओं के आखिरी छोर तक कभी पहुँच पाएँगे। ये गुफाएँ बहुत लंबी हैं। अभी तक हमने वे आदमखोर भी नहीं देखे जो हमारे खेतों पर हमला करने के लिए आते हैं। शायद हमें यहीं से वापस लौट जाना चाहिए।" वीर बोला, "लेकिन मेरे ख़याल से हमें थोड़ा और आगे जाना चाहिए। अभी हमने जो आदमखोर मारे हैं, उससे कम से कम 5 परिवारों का पेट अगले छह महीने तक भरा जा सकता है, लेकिन हमारे गांव में तकरीबन ढाई सौ से ज़्यादा परिवार रहते हैं, उन सबका क्या?" लखन ने गुफा में आगे की तरफ़ देखा, लेकिन अँधेरा था और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। "नहीं, हम आगे नहीं जाएँगे। बाक़ी लोगों के लिए हम दूसरी गुफा में आदमखोरों को ढूँढ़ेंगे।" लखन को इस बात का एहसास हो रहा था कि गुफा में आगे बड़े ख़तरे छुपे हुए हैं, और वह सभी ख़तरों का सामना करने के लिए तैयार नहीं था।
तीन दिन और बीत जाने के बाद, लखन वीर के साथ मिलकर दर्जन भर से ज़्यादा गुफाओं में जा चुका था और वहाँ पर काफ़ी सारे आदमखोरों को मार चुका था। गुफाओं के बाहर आदमखोरों का अच्छा-ख़ासा मांस इकट्ठा हो गया था, जिससे काफ़ी सारे परिवारों का पेट भर जा सकता था। एक गुफा से लखन अपने साथियों के साथ बाहर निकला तो वीर ने खुशी से कहा, "लखन, अब जाकर लग रहा है कि इस बार की सर्दियों में किसी की भी मौत नहीं होगी। पता नहीं हमने आज से पहले इन आदमखोरों के शिकार करने के बारे में क्यों नहीं सोचा। अगर हम पहले ही ऐसा कर चुके होते, तो अब तक पिछली सर्दियों में हमारे गाँव के लोगों की जान नहीं जाती।" लखन ने अपने चेहरे पर थोड़ी सी चिंता दिखाते हुए कहा, "इस बार मजबूरी है इसलिए हमें आदमखोरों का मांस खाने के लिए इस्तेमाल करना पड़ रहा है, लेकिन हम ऐसा नहीं करना चाहते। हमारा पूरा गाँव शाकाहारी है और हम अनाज पर ही निर्भर रहते हैं। जब दिन बुरे आ जाते हैं, तब हम मछलियों का सहारा लेते हैं और इस बार दिन काफ़ी बुरे थे, इसलिए हमें इन आदमखोरों का सहारा लेना पड़ा। बेहतर यही है कि ऐसे हालात हमारे ऊपर ना आएँ और हमें बस अनाज ही मिलता रहे।" वीर ने इस पर सिर हिला दिया, "ठीक ही कहा तुमने। मैं ऐसे ही ज़्यादा खुश हो गया था। तुम्हें पता है आदमखोरों को मारने में कम मेहनत लगती है जबकि अनाज उगाने में ज़्यादा। अनाज में हमें शुरू से लेकर अंत तक रखवाली करनी पड़ती है और इन आदमखोरों से भी निपटना पड़ता है जो हमारा अनाज खाने के लिए आते हैं। कम से कम पाँच महीने की मेहनत होती है जबकि आदमखोरों को मारना बस कुछ हफ़्तों का काम है और छह महीने का भोजन मिल जाता है।" लखन ने अपने चेहरे पर गंभीर भाव दिखाते हुए कहा, "आलस करना कभी-कभी भारी भी पड़ सकता है। हम गुफाओं में आगे तक नहीं गए हैं। अगर हम आदमखोरों का शिकार करते रहे, तो आगे की गुफाओं के आदमखोर ख़त्म हो जाएँगे और फिर आगे जाएँगे तो शायद ख़तरनाक आदमखोरों से हमारा सामना हो जाए। इसलिए इस बारे में सोचना बंद ही करो।" गाँव की मुखिया, जो एक अस्सी वर्षीय बुज़ुर्ग थे, वह बड़ी मुश्किल से चलते हुए दोनों के पास पहुँचे। उन्होंने आदमखोरों की लाशों की ओर देखा। फिर वह लखन से बोले, "इस बार पूरे गाँव का पेट भरने का काम तुमने ही किया है। मेरी उम्र बीत रही है, मैंने अभी तक इस गाँव के नए मुखिया का ऐलान नहीं किया, लेकिन आज मैं सबके सामने एक नए मुखिया का ऐलान करने जा रहा हूँ।" यह कहकर उन्होंने अपना डंडा ऊपर उठाया और जोर से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा, "सारे गाँव वाले मेरी बात सुनो, आज से हमारे इस गाँव का नया मुखिया लखन होगा।" सारे गाँव वालों ने इस बात पर खुशी दिखाई और लखन के नए मुखिया बनने पर सब ने झुककर उसे अभिवादन किया। मगर लखन यह ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं था। लखन ने विनम्रता के साथ मुखिया से कहा, "मगर मुखिया शांतनु, आपको पता है ना मुखिया की ज़िम्मेदारी कितनी बड़ी होती है? मैं इसके बिल्कुल भी काबिल नहीं हूँ। मुझसे अपना परिवार ही बड़ी मुश्किल से संभल पाता है, फिर मैं इतने बड़े गाँव को कैसे संभाल लूँगा?" मुखिया ने अपना डंडा नीचे किया और फिर लखन की ओर पलटते हुए बोला, "जब मैं इस गाँव का मुखिया बना था, मेरी उम्र भी तुम्हारे जितनी थी और मुझे भी कुछ नहीं आता था, लेकिन वक़्त के साथ-साथ मैंने भी काफ़ी कुछ सीख लिया था। धीरे-धीरे तुम भी सब कुछ सीख जाओगे। यह गाँव अब तुम्हारे कंधों पर होगा। फिर अब तो तुम्हारा लड़का भी हो गया है। जब तुम मेरी उम्र के हो जाओगे, तब तुम्हारा लड़का तुम्हारे घर की ज़िम्मेदारी उठा लेगा। हम इस गाँव में इसी तरह से जीते आ रहे हैं।" फिर मुखिया गाँव वालों की ओर पलटा और बोला, "हमारे पूर्वजों ने बड़ी मुश्किल से इस गाँव की जनसंख्या को बचाकर रखा है। पता नहीं कितने हज़ारों सालों से यह परम्परा चलती आ रही है, और यह ऐसे ही आगे चलती रहेगी। मुखिया के रूप में मेरा बस यहीं तक का सफ़र था, अब बाकी का सफ़र तुम्हारा ही होगा, इस गाँव को लेकर तुम ही आगे बढ़ोगे।" वीर ने अपने हाथ ऊपर किए और लखन के नाम के जयकारे लगे, "नए मुखिया लखन की जय हो! नए मुखिया लखन की जय हो!" ___ शाम को लखन घर पर आया तो आहुदी चारपाई पर बैठी हुई थी, वह अपने हाथों से गर्म कपड़े बना रही थी। लखन ने अपनी तलवार और अपने हथियारों को दरवाज़े के पास रखा और फिर आहुदी के पास आकर बैठ गया। वह बोला, "आज गाँव वालों ने मुझे इस गाँव का मुखिया बना दिया। उन्हें लग रहा है मैंने गाँव वालों का सर्दियों का इंतज़ाम कर लिया है, तो मैं मुखिया बनने के लायक हूँ। पता नहीं गाँव के पुराने मुखिया के मन में ऐसा क्या आया होगा।" आहुदी हैरान होते हुए बोली, "क्या सच में? ओह, यह कितनी खुशी की बात है! फिर इसमें इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है?" लखन के चेहरे पर पहले से ही परेशानी दिख रही थी, मगर यह बात सुनकर वह और परेशान हो गया, "परेशानी की ही तो बात है! अगर हमारा लड़का नहीं हुआ होता, तो मैं इस गाँव का मुखिया बनकर परेशान नहीं होता, लेकिन अब हमारा एक बेटा भी है। वक़्त इतना बुरा चल रहा है कि खुद के पेट भरने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, फिर ऐसे में पूरे गाँव को संभालने की ज़िम्मेदारी... यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। एक मुखिया का फ़र्ज़ बनता है कि वह अपने परिवार से पहले इस गाँव को देखे और उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद अपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा करे, जबकि मैं ऐसा नहीं चाहता हूँ।" आहुदी ने लखन की ओर देखा और फिर लखन के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, "आप फ़िक्र मत कीजिए, बस भगवान पर भरोसा रखिए, धीरे-धीरे जो होगा सब अच्छा होगा।" नवजात लड़का अपने मन में सोच रहा था, "तो मेरे पिताजी मुखिया बनने जा रहे हैं, मगर इस बात पर परेशान हो रहे हैं, जबकि मुझे नहीं पता मुझे इस पर क्या कहना चाहिए? रही बात मुझ पर भरोसा करने की, तो मुझे नहीं लगता अभी मुझ पर भरोसा करना ठीक होगा। मैं बहुत छोटा हूँ और बड़ी मुश्किल से डेढ़ महीने का हुआ हूँ। अभी मेरा बड़ा होना बाक़ी है और जब बड़ा होऊगा" धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया। रोज़ाना सूरज उदय होता रहा और फिर शाम को अस्त होता रहा। ___ ठीक आठ महीने बाद, सर्दियाँ शुरू हो चुकी थीं। बाहर की पूरी जगह बर्फ से भर गई थी और बर्फ इतनी थी कि घर भी बड़ी मुश्किल से दिखाई दे रहे थे। गाँव में जितने भी घर थे, रोज़ाना उनके आस-पास से बर्फ हटाई जाती थी ताकि ये घर बर्फ में ना दब जाएँ। जहाँ भी नज़र जा रही थी, वहाँ पर बर्फ की हल्की बूँदाबांदी ही दिखाई देती थी। बड़े-बड़े पेड़ बर्फ की वजह से लगभग जम चुके थे। वहीं लखन के छोटे से घर में, लखन खुशी से अपने छोटे बेटे की ओर हाथ बढ़ा रहा था और उसे अपनी ओर बुला रहा था। बच्चा पहली बार अपने हाथों पर चलना सीख रहा था। आख़िरकार वह चलने लगा और लखन ने खुशी से कहा, "आहुदी, हमारा बेटा चलना सीख गया है! देखो तो यह पहली बार अपने हाथों पर चल रहा है। यह बाक़ी लड़कों की तुलना में काफ़ी जल्दी हाथों पर चलना सीख गया है। देखना, कुछ महीनों में यह पैरों पर भी चलने लग जाएगा।" वहीं छोटा लड़का अपने पिता के हाथ में जाने के बजाय बाहर की ओर जा रहा था। वह अपने मन में सोच रहा था, "अपने पिता की बाहों में जाने से ज़्यादा ज़रूरी मेरा इस वक़्त बाहर जाना है। पता नहीं यह कैसा परिवार है, पिछले आठ महीनों में इन्होंने मुझे कभी किसी घर से बाहर तक नहीं निकाला। सर्दियाँ शुरू होने के बाद तो ये मुझे कभी दरवाज़े तक भी नहीं ले आए। मुझे बाहर निकलना है और देखना है कि बाहर के हालात क्या हैं। इंसानी शरीर होने की वजह से आठ महीनों में कहीं जाकर मैंने थोड़ा-बहुत हलचल करना सीखा है और अब मैं इधर-उधर जा सकता हूँ। जब मैं चलना सीख जाऊँगा, तब देखना मैं सीधे अपने दुश्मन को ढूंढने पर काम करूंगा क्योंकि वह तो नहीं आया, और फिर उसे ख़त्म कर दूँगा, ताकि मैंने जिसके लिए अवतार लिया है, उस काम को पूरा कर सकूँ। फिर मुझे अभी तक यह भी नहीं पता उसके पास कौन सा वरदान है।” तभी उसके पिता ने उसे उठा लिया, "अरे बेटा, बाहर कहाँ जा रहे हो? बाहर सर्दी है, तुम बीमार हो जाओगे। बड़ी मुश्किल से तो तुम पैदा हुए हो, हम नहीं चाहते तुम बीमार हो और तुम्हें कुछ हो जाए, इसलिए तुम्हें यहीं पर रहना होगा। इस बार जब गर्मी आएगी, तब तुम बाहर जा सकते हो, तब तक तो तुम्हें बाहर की हवा भी नहीं लगने देंगे।" लड़के ने अपने दोनों हाथों को दरवाज़े की ओर किया और जोर से चिल्लाने की कोशिश की, जो उन दोनों को ही रोने की आवाज़ के रूप में सुनाई दे रही थी, "नहीं, मुझे बाहर जाना है! मुझे बाहर जाने दीजिए! मैं यहाँ इस कमरे में रहने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ, मैं बाहर जाने के लिए पैदा हुआ हूँ!" उसके बाप ने उसे उठाया और फिर उसे वापस चारपाई पर लेटा दिया। आहुदी उसकी पीठ पर थपथपाने लगी ताकि वह सो जाए। वहीं बच्चा अपने मन में सोच रहा था, "काश मैं समय को आगे-पीछे करने की शक्ति लेकर पैदा होता! मैं फ़ट से बड़ा हो जाता और फिर फ़ट से अपने दुश्मनों को ख़त्म करके वापस अपनी दुनिया में भी चला जाता। ओह, मैं भी कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहा हूँ! अगर मुझे सब कुछ ऐसे ही करना होता, तो मुझे अवतार लेने की ज़रूरत ही क्या पड़ती? मैं वहीं से अपनी दुनिया से ही दुश्मनों को ख़त्म कर देता। मैं यह क्यों भूल रहा हूँ? मैं यहाँ पर एक इतिहास बनाने के लिए पैदा हुआ हूँ, ताकि आने वाली दुनिया और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ इस इतिहास को अगले कई सालों तक याद रखें और अच्छाई के रास्ते पर चलें। हाँ, यह सब बातें करना आसान है, मगर एक छोटे से इंसानी शरीर में रहकर इस पूरे घटनाक्रम को होते हुए देखना, यह कहीं से भी आसान नहीं है। मुझे तो बड़ा होने के लिए जो वक़्त लग रहा है, वह भी अपने आप में किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं लग रहा। पता नहीं आगे-आगे हालात किस तरह के रहेंगे।" --- ठीक दो महीने बाद, हल्की बर्फबारी के बीच में सारे गाँव वाले एक ही जगह पर इकट्ठे हुए थे, जो कि पहाड़ी के पास बनी हुई एक जगह थी। गाँव की बस्ती की परिस्थिति अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरह की थी। गाँव में कोई भी घर एक-दूसरे से जुड़कर नहीं बने हुए थे और सारे ही घर दूर-दूर और अलग-अलग थे। कुछ घर पहाड़ी पर थे, कुछ घर पहाड़ के नीचे वाले हिस्से पर, जहाँ पर खेतीबाड़ी होती थी, और कुछ घर पहाड़ी से भी दूर, जहाँ पर समुद्री इलाका था और वह सारे घर समुद्र के किनारे बने हुए थे। गाँव के पुराने मुखिया का निधन हो चुका था और सब लोग आज उनकी चिता को आग लगाने के लिए इकट्ठे हुए थे। ग़मगीन माहौल में, लखन ही पुराने गाँव के मुखिया की चिता को आग देने का काम करने वाला था। लखन पुराने गाँव के मुखिया के पास गया और चिता को आग देते हुए बोला, "आपने अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया था। हम लोग हमेशा आपके ऋणी रहेंगे, क्योंकि आपकी वजह से हज़ारों गाँव वालों की ज़िंदगी की सुरक्षा हो सकी। ख़राब मौसम में, ख़राब हालात में और कई सारे ख़तरों के बीच, हर एक परिस्थिति में आपने अपने गाँव वालों की सुरक्षा की और अब यह ज़िम्मेदारी मैं पूरा करूँगा। आने वाले वक़्त में, चाहे मौसम कितना भी ख़राब क्यों ना हो, हालात कितने भी ख़राब क्यों ना हों और हम पर कितने भी ख़तरे क्यों ना आएँ, मैं इस गाँव की सुरक्षा करूँगा। कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुश्किलें कितनी बड़ी होंगी, मैं हर हालात में इसकी सुरक्षा करने के लिए आगे आऊँगा।"
बच्चों के जन्म के पूरे 1 साल बीत जाने के बाद गर्मियों की शुरुआत हो चुकी थी। सुख के पेड़ों पर नए पट्टे आने लग गए थे और उनको फूलों की चादर भी छाने लगी थी। सर्दियों में वीरान हो चुका पूरा गांव अब रंग बिरंगा होने लगा था। पहाड़ियों जो बर्फ से जम गई थी वह बर्फ पिघलाकर पानी में बदलकर समंदर में जा चुकी थी। सर्दियों के मौसम में ऐसा लग रहा था गांव में कोई रहता ही नहीं लेकिन गर्मियों की शुरुआत के साथ ही इलाके में चहल-पहल होने लग गई थी। आहुदी अपने बच्चों के साथ पहली बार घर से बाहर आई थी और वह घर से बाहर आने के बाद अपने पूर्वजों की जगह पर जा रही थी। बच्चा अपने मन में,"फाइनली, पूरा 1 साल बीच आने के बाद मुझे घर से बाहर निकालगया, घर से बाहर निकलते ही मैं आसपास की जगहअच्छी। हमारा घर बहुत छोटा है। घर के बाहर एक छोटी सी बाढ़ है जिसमें पिताजी ने कभी ध्यान ही नहीं दिया। कम से कम अगर वह आदमखोरों से बचने के लिए बनाई गई थी तो उसे मजबूत तो बनाना ही चाहिए था। फिर छोटी सी पगडंडी आती है जो नीचे की तरफ जाती है। इसे पता चलता है हमारा घर किसी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है।" वह बच्चा अपने चारों तरफ देख रहा था ,"इस वक्त मैं अपनी मां के साथ काफी नीचे आ चुका हूं, जहां तक मुझे याद है मां ने सबसे पहले मुझे दादाजी के पास लेकर जाने के लिए कहा था तो शायद यह वहीं पर जा रही होगी। आह...." बच्चों ने अपने हाथ को ऊपर किया और हवा के झोंकों को महसूसकिया ,"यह हवाएं कितनी शानदार लग रही है। खैर मेरे लिए हैरानी की बात यह है पिछले 1 साल से मेरे दुश्मन ने मेरे लिए कुछ नहीं किया। क्या उसे मेरे बारे में पता ही नहीं चला आखिर कैसा दुश्मन है मेरा? कहीं ऐसा तो नहीं मेरे पास ज्यादा जादुई शक्तियांनहीं है, इस वजह से मेरे शरीर में जादू ओरा भी नहीं होगा, जादुई औरा ही एक मात्र ऐसी चीज है जिससे हमें किसी की भनक लगते हैं। अगर किसी का और इतना ताकतवर होगा कि वह इस दुनिया के आखिरी छोर पर महसूस किया जा सके तो हमें उसकी ताकत का अंदाजा हो जाता है, हां, यही वजह हो सकती है। चलो मेरे लिए अच्छा है, जब मेरा ओरा विकसित हो जाएगा तब तक मैं भी ताकतवर हो जाऊंगा और उसे वक्त अगर मेरे दुश्मन को मेरे बारे में पता चलता है तो मुझे डरने की भी जरूरत नहीं होगी।" काफी देर तक चलने के बाद आहुदी एक आश्रम जैसी दिखने वाली जगह पर पहुंचेगई। मैं अंदर यहां पर काफी सारे साधु संत जैसे दिखने वाले शख्स दिखाई दे रहे थे जिनमें लाल रंग के कपड़ेपहन रखे थे। आहुदी इस आश्रम में जाने के बाद एक कमरे की तरफ चली गई जिसके बाहर दरवाजे पर लाल रंग के धागों कोबांध किया था। वहां पहुंचकर उसने सर झुकाकर प्रणाम किया और फिर बच्चों को उसे दरवाजे की तरफ करते हुएबोली ,"मुझे माफ कर देना, जब आप जीवित है तब मैं आपको यह खुशी नहीं दे सकी, मैं नहीं जानती भगवान क्या चाहते थे, उन्होंने हमें यह खुशी देने में बहुत वक्त लगा दिया, लेकिन अब यह खुशी हमें मिल चुकी है और मैं आपको यह दिखाने के लिएलेकर आई हूं।" कमरे के अंदर एक खाली चारपाई मौजूद थी जिस पर बिस्तर किया गया था। कोई भी इस कमरे में अंतर नहीं जा सकता था बस बाहर जहां पर लाल रंग के धागे बंधे हुए थे वहीं पर आने की अनुमति थी। एक ऋषि संत जैसा दिखने वाला आदमी वहां पर आया और उसने बच्चे की तरफदेखा ,"इस बच्चे के चेहरे पर तो गजब का तेज है, ऐसा लग रहा है जैसे आने वाले वक्त में यह बहुत महान बनेगा। महर्षि विष्णु उदय को आज अपने बच्चों पर गर्म होता अगर मैं जीवित होते।" कृषि सॉन्ग जैसे दिखने वाले आदमी की उम्र तकरीबन 75 साल के आसपास होगी और इस वक्त वह इस आश्रम का मुख्यलग रहा था। यह आश्रम गांव के उत्तर दिशा मेंथा। आहुदी अपनी जगह से खड़ी हुई और फिर इसी को प्रणामकिया ,"महर्षि दयानंद, मेरा परिणाम स्वीकार कीजिए, माफ करना, शर्तिया शुरू होने की वजह से मैं आपके पास नहीं आ पाई, मुझे बच्चों के जन्म के वक्त थी आपके पास आना था मगर तब शरीर साथ नहीं दे रहा था और जब शरीर साथ देने लगा तो सर्दियों की शुरुआतहो गई। हमने अभी तक बच्चे का नाम भी नहीं रखा है।" उसने आशीर्वाद के तौर पर अपने हाथ को ऊपर किया और फिरकहा ,"मैं समझ सकता हूं, तुम लोगों को यह खुशी काफी वक्त बाद मिली है तो बच्चे का ध्यान रखना बनता है। मैं आज ही इस बच्चे की जन्म कुंडली देखता हूं और फिर इसके लिए कोई नाम निकलताहूं। तब तक तुम आश्रम के बाकी के सदस्य से बात करसकती हो।" आहुदी ने हमें सीरियल आया और वही महर्षि दयानंद अपने कक्ष की तरफ चले गए जो यहां पर मौजूद सभी घरों में से सबसे बड़ा घर था। लड़के ने अपने मन मेंकहा ,"इस गांव में एक आश्रम है यहां पर सभी संत रहते हैं, सही है, अब मुझे इस गांव के बारे में काफी कुछ पता चल गया है। गांव में लड़ने वाले योद्धा है जिनमें मेरे पिताजी और उनके साथ कुछ और लोग शामिल हैं, फिर उसका एक मुखिया जो फिलहाल मेरेपिताजी हैं, इस गांव में एक आश्रम है जो शायद धार्मिक कार्यों के लिए मौजूदहै, गांव वाले फसल उगाते हैं और जीते हैं मगर क्या बस इतना ही? व्यापार और दूसरी चीजों को यहां पर अहमियत क्यों नहीं दी गई? कुछ तो होना चाहिए था इस गांव में जो व्यापार या फिर दूसरे गांव या फिर शहरों में व्यापार को बढ़ावा देता जैसे कि अनाज को बेचना या फिर अगर आदमखोरों का शिकार हो रहा है तो उनके मांस कोबेचना? इसका इस्तेमाल भी तो आजीविका कमाने के लिए किया जासकता है। फिर मैंने यह भी ध्यान से देखा था जब अनाज नहीं था तो किसी ने भी इस बारे में बात नहीं कि वह किसी दूसरे शहर से जाकर अनाज को खरीद कर लेकर आ सकतेहैं। आखिर इसके पीछे की वजह क्या होगी?" लड़का अपने मन में यही सब सो रहा था तभी आहुति एक औरत से मिली ,"अरे सीवाधरी!!" वह वीर की पत्नी थी उसने आहुति को प्रणाम किया औरकहा ,"कैसी है आप, माफ करना पिछले 1 साल से मैं आपसे मिलने नहीं आ पाई जब आखिरी बार मैं आपसे मिली थी तब अपने बच्चों का जन्म करवारही थी।" आहुदी ने जवाबदिया ,"कोई बात नहीं लेकिन आप यहां कैसे?" सीवाधरी ने अपने चेहरे पर खुशी दिखाई ,"आपको तो पता ही है मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं, आज मैं यहां खुशी के मौके पर आई हूं मैं भी मां बनने वालीहूं। इसलिए मैं यहां पर संतों का आशीर्वाद लेने के लिएआई हूं।" आहुदी ने यह सुन तो वह खुशहो गई ,"क्या कहा आपने सचमें? यह तो बहुत बड़ी खुशी की बातहै, वीर भैया को भी अब एक औलाद मिल जाएगी, दोनों ही भाई अब अपनी अपनी औलाद के साथ अपनी आगे की जिम्मेदारीसंभालेंगे।" सीवाधरी ने हां में सिर हिलाया ,"सही कहा बहन, यह हमारी पहली औलाद है तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता हमें लड़का होता है या फिर लड़की, मैं बस यहीं चाहुंगी, हमारी औलाद चाहे कैसी भी हो, मैं आने वाले मुश्किल वक्त में किसी तरह से खुद को जिंदा रख सके, पिछले 10 सालों से हमारे गांव में जो बुरा दौर देखा है उसके बाद बच्चों के पैदा होने पर डरही लगता है। 10 सालों में मैं खुद अपनी आंखों से 250 बच्चों को मारते हुएदेखा है। गांव के मुश्किल मौसम में बच्चों का जी पाना मुश्किल हो रहा है। " फिर सीवाधरी ने आहुदी के बच्चों की तरफदेखा ,"आह, आपका बच्चा कितना प्यारा लग रहा है क्या यह चलना सीख गया है?" आहुदी ने हां में सिर हिलाया ,"यह कुछ ज्यादा ही जल्दी चीज सीख रहा है, इसमें 8 महीने के होते ही हाथों के बल पर चलना सीख लिया था और 10 महीने होते होते यह पैरों के बल चलना सीखगया था, अभी यह पूरे 1 साल का हो चुका है और हमेशा घर से बाहर निकालने की कोशिश करता रहता है, हमें घर के कमरे का दरवाजा बंद करके रखनापड़ता है, जब इनके पिताजी घर पर नहीं होते और वह अपने हथियार छोड़ जाते हैं तो यह बच्चा बस उन्हें हथियारों को पड़कर उन्हें उठाने की कोशिश करता रहता है" बच्चों ने अपने चेहरे पर खुशीदिखाइए ,"हां तो मैं और क्या करूंगा? भगवान होने के साथ-साथ में एक योद्धा भी हूं, मुझे हथियार बहुत पसंद है खासकर तलवार, मेरे पास हो अपने पुराने अवतारों में भी ताकतवर से ताकतवर हथियार थे जो मैं मरने के बाद यहीं पर छोड़कर चला जाता हूं, अगर बड़े होने के बाद मुझे समय का पता चल गया और मैं इस बात का अंदाजा लगा लिया मैं 9 में अवतार के बाद कितने सालों बाद दोबारा पैदा हुआ हूं तो क्या पता मैं अपने पुराने हथियारों को ढूंढने की कोशिश भी करूं, इस दुनिया में मेरे पुराने हथियार कहीं ना कहीं पर तो मौजूद होंगे ही और उनसे ताकतवर हथियार मुझे नहीं लगता अब तक कोई बना होगा। मेरे दुश्मन के पास भी ऐसे ताकतवर हथियार नहीं होंगे जो ताकतवर हथियार मेरे पास हुआ करते थे।" जल्दी महर्षि दयानंद वापस आ गई और आहुदी जमीन पर बैठ गई। आहुदी के साथ सिवाधरी और कुछ और औरतें भी यहां पर बैठ गई। मेरे से दयानंद के पास एक लाल रंग की बड़ी सी किताब थी जिसके पन्नों को वह पलट रहे थे काफी सारे पन्नों को पलटने के बाद उन्होंने कहा ,"मैंने लड़के की जन्म कुंडली देखी, यकीन नहीं हो रहा इस लड़के का जन्मदिन एक खास मौके पर हुआ है जो चालीस हजारों सालों में एक बार ही आता है, पता नहीं ऐसा चाहिए कैसे हो सकता है क्योंकि इसके जन्म में एक क्षण भी देरी नहीं हुई है, इसके जन्म के वक्त सभी नक्षत्र एक ऐसी स्थिति में थे जिन्हें अनंत अन्वेषी स्थिति कहां जाता है, पिछली बार इस स्थिति में भगवान निर्वाण ने अपना नोंवा अवतार लिया था, अथर्व के विनाश के लिए, अर्थव उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन था। उसके पास इतनी बड़ी ताकत थी की तीनों भगवानों की दुनिया को अपनी छोटी सी उंगली पर उठा सकता था। उसे तीनों ही भगवान से वरदान मिले थे।" आहुदी खुशी से अपने बच्चों की तरफ देखने लगी। वही बच्चों ने अपने मन में कहा ,"मुझे अपने सारे पुराने अवतारों की यादें याद है, मुझे यह अर्थव नाम का बंदा भी याद है, सच में वह बहुत ताकतवर था, फिर उसे मैं भी वरदान दे दिया था वह भी यह जाने की कल को वह मेरे लिए ही खतरा बन जाएगा। उसे हराने के लिए मैंने अपनी सारी शक्तियां लगा दी थी इसके बाद भी मुझे लग नहीं रहा था मैं जीत जाऊंगा। अगर वह अपनी लड़ाई में अपनी एक छोटी सी गलती नहीं करता तो शायद वह मुझे हरा देता। भगवान होने का मतलब यह जरूर है सब कुछ हमारे नियंत्रण में है लेकिन हम भगवानों के भी अपने नियम होते हैं। हम अपने नियमों में कुछ ऐसा नहीं कर सकते जिसे इस ब्रह्मांड के नियम हीबदल जाए, जबकि अर्थव वह ऐसा कर सकता था। जब मेरी उससे लड़ाई हुई थी तब है ब्रह्मांड के नियमों में ही फेर बदल कर रहा था।" लड़के के चेहरे पर गहरी सोच के भाव दिखाई दे रहे थे। वह बोला ,"40000 साल, यानी की उस वक्त के ठीक हूं 40000 साल बाद पैदा हुआ हूं, चलो कम से कम मुझे समय के बारे में तो पता चला, मैं अपने गांव में अवतार के 40000 सालों बाद पैदा हुआहूं, 40 हजार साल यह एक बहुत बड़ा वक्त होता है पता नहीं इस वक्त में इस दुनिया में क्या कुछ बदल गया होगा। अर्थव सच में बहुत ताकतवरथा, इतना ताकतवर कि मैं कभी भी उसका दोबारा सामना नहीं करना चाहूंगा, पिछले जन्म में मैं सब कुछ कर सकता था यहां तक की भविष्य भी देख सकता था, जबकि इस जन्म में मैं लिमिट के साथ पैदाहुआ हूं। अगर इस जन्म में मेरा उसे सामना हुआ तो मुझे नहीं लगता मैं इस बार उससे जीत पाऊंगा।"
महर्षि दयानंद ने अपनी दृष्टि लाल किताब पर टिकाई हुई थी। उन्होंने बताया था कि बच्चे का जन्म एक विशेष दिन पर हुआ था, जो 4०,००० वर्षों में एक बार आता है, और पिछली बार जब यह समय आया था, तब भगवान का जन्म हुआ था। महर्षि दयानंद ने अपने चेहरे पर एक लंबी मुस्कान दिखाई और कहा, "क्योंकि इसका जन्म उसी दिन हुआ है जिस दिन 4०,००० वर्ष पूर्व एक देव का जन्म हुआ था। इसलिए इसका नाम देवांश होगा।" आहुदी ने प्यार से अपने बच्चे की ओर देखा, "देवांश, कितना प्यारा नाम है तुम्हारा! मैं तुम्हें देव पुत्र भी कह सकती हूँ।" लड़के ने मन ही मन कहा, "मुझे भी यह नाम पसंद आया। 4०,००० वर्ष पूर्व मेरा नाम अनंत था, वह नाम भी मुझे बहुत पसंद था।" महर्षि दयानंद बोले, "मैं चाहता हूँ कि तुम इन्हें एक बार भगवान अनंत के मंदिर अवश्य ले जाना। उनका आशीर्वाद आवश्यक है ताकि जिस प्रकार उन्होंने इस दुनिया में अवतार लेकर बुराई का अंत किया था, उसी प्रकार यह भी इस गाँव में अपना एक नाम कमा सके।" आहुदी ने हां में सिर हिलाया और देवांश के साथ वहाँ से निकल गई। अब वे पहाड़ियों से नीचे की ओर आ रहे थे। पहाड़ियों पर आबादी घनी नहीं थी, किन्तु जैसे-जैसे वे नीचे आ रहे थे, घनी आबादी मिलती जा रही थी। पूरा इलाका ऐसी पहाड़ियों से घिरा हुआ था जो सीढ़ीनुमा ढंग से नीचे उतरते हुए विशाल भू-भाग में बदलती जा रही थीं। पूरी जगह इस प्रकार सात-आठ अलग-अलग बड़े भू-भागों में विभाजित थी, जहाँ प्रत्येक भू-भाग पहले वाले भू-भाग के ऊपर स्थित था। देवांश ने अपने आस-पास के क्षेत्र का अवलोकन करते हुए कहा, "अच्छा हुआ मुझे घर से यहाँ तक आने के सारे रास्ते याद हैं। जैसे ही मुझे मौका मिलेगा, मैं घर से चोरी-छुपे बाहर निकल जाऊँगा और फिर इस पूरे गाँव को देख लूँगा। मुझे नहीं लगता मेरा परिवार मुझे सात-आठ वर्ष होने से पहले इस पूरे गाँव को कभी दिखाएगा।" जल्द ही आहुदी एक मंदिर में पहुँच गई। पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर काफी पुराना लग रहा था। देवांश ने उसे मंदिर की ओर देखा तो उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। वह मंदिर को देखते हुए बोला, "यह तो मेरा ही मंदिर है, मेरे पुराने अवतार का मंदिर! कमाल की बात है, मुझे पैदा हुए 4०,००० वर्ष हो चुके हैं, लेकिन ये लोग आज भी मेरी पूजा करते हैं, आज भी मेरे आदर्शों पर चलते हैं! यही तो मैं चाहता हूँ। इस बार भी मैं यही चाहता हूँ कि जब मैं अपना पूरा जीवन यहाँ पर व्यतीत करूँ और मृत्यु लोक जाऊँ, तो फिर से ये इसी प्रकार आने वाले कई हजारों वर्षों तक मेरे आदर्शों पर चलें।" मंदिर में भगवान ??%
रात के लगभग 8:00 बजे देवांश वापस लौटा। आहुदी ने देवांश के आते ही कहा, "आखिर तुम कहाँ थे इतनी देर तक?" वह गुस्से में थी। "तुम्हें पता भी है, तुम दोपहर से गायब हो। मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें ढूँढ़-ढूँढ़ कर थक गए, मगर तुम कहीं पर भी नहीं मिले।" देवांश ने अपने बालों में हाथ फेरा। "अरे, कहीं भी नहीं माँ, मैं खेलते-खेलते सो गया था। आपको तो पता है ना, मैं कितना लापरवाह हूँ, कहीं भी सो जाता हूँ।" आहुदी उसके लिए खाना बना रही थी। देवांश उसके पास आकर प्लाथी मारकर बैठ गया और फिर एक प्लेट लेकर उसमें खाना खाने लगा। आहुदी ने कहा, "हर रोज़ तुम आखिर यही बात कहते हो। आखिर ऐसी कैसी तुम्हारी नींद है जो पूरी ही नहीं हो रही है? तुम रात में भी सोते रहते हो और अब तुम्हें दोपहर को भी सोना होता है। तुम्हें पता है, तुम्हारे पापा मुझे कितना डाँट रहे थे? कह रहे थे, मैं लापरवाह हो गई हूँ, तुम्हारा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखती हूँ।" देवांश ने अजीब सी मुस्कान बनाते हुए कहा, "अरे, आप भी कहाँ पापा की बातों को गंभीरता से ले रही हैं? वह खुद भी अपनी बातों को इतनी गंभीरता से नहीं लेते। चलिए माँ, अब मुझे खाना दीजिए, मुझे बहुत भूख लगी है।" आहुदी ने उसकी प्लेट में दो रोटियाँ और थोड़ी सी सब्जी-दाल दी, फिर कहा, "तुम्हें पता है ना, तुम कितनी तपस्या के बाद हमें मिले थे। इस तरह से बाहर मत जाया करो। अगर तुम्हें कहीं कुछ हो गया, तो तुम सोच भी नहीं सकते, हम दोनों का क्या होगा। हम दोनों ही चाहते हैं, तुम हमारी आँखों के सामने रहो।" देवांश ने गहरी साँस लेकर कहा, "माँ, मैं आपका ताकतवर बच्चा हूँ, मुझे कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे नहीं पता, आप मुझ पर यकीन करेंगी या फिर नहीं, लेकिन इस दुनिया में कोई भी इतना ताकतवर शख्स नहीं है जो मुझे मेरी मर्ज़ी के बिना छू भी सके।" आहुदी हँसने लगी। "तुम्हारी बातों पर कभी-कभी हँसने का मन करता है। अच्छा, तुम्हारे पापा बता रहे थे, तुम तलवारबाज़ी में बहुत अच्छे हो। कई बार तो वह कहते हैं, ऐसा लगता है जैसे तुम पैदा होते ही सीख कर आए हो। मुझे बताओ, तुमने इतनी अच्छी तलवारबाज़ी कहाँ से सीखी? क्या तुम चोरी-छुपे वीर से सीखने जाते हो?" देवांश ने थोड़ा सा सोचा और फिर उतरे हुए चेहरे के साथ कहा, "वीर तो आजकल खुद मुझसे सीख रहा है। मुझे नहीं पता, मैं इतनी अच्छी तलवारबाज़ी कैसे जान गया, लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे तलवार मेरे हाथ में आते ही अपने आप चलने लग जाती है।" वह दोनों बात कर ही रहे थे, तभी लखन कमरे में आ गया और उसने अपने हथियारों को दरवाजे के पास रखा। देवांश ने अपने पिता की तरफ़ देखा तो बोला, "माँ, पिताजी भी आ गए हैं। पिताजी, आप भी हमारे साथ खाना खा लीजिए।" उसके पिता ने सिर हिलाया और फिर हाथ धोकर उनके पास आकर बैठ गए। वह अभी भी अपने चेहरे से परेशान लग रहे थे। आहुदी के पूछने से पहले ही देवांश ने पूछा, "आपके चेहरे की हवाइयाँ क्यों उड़ी हुई हैं पिताजी? क्या किसी ने आज आपको कोई बुरी खबर सुना दी क्या?" देवांश के पिता ने खाना अपने हाथ में ही पकड़ रखा था। वह बोले, "नहीं, बुरी खबर नहीं सुनाई, मगर जो खबर सुनाई, वह अच्छी भी नहीं है। आज गाँव के कुछ लोग मेरे पास आए थे और उन्होंने कहा, गुफाओं में आदमखोर मरे हुए मिल रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे उन पर किसी और खतरनाक जानवर ने हमला किया है। उनकी यह हालत देखकर गाँव वाले परेशान हो रहे हैं। इस गाँव में कोई नया खतरनाक जानवर आ गया है जो आदमखोरों के लिए खतरा बन रहा है।" देवांश ने छिपी हुई मुस्कान दिखाई दी, क्योंकि इन सभी आदमखोरों को मारने के पीछे उसका ही हाथ था। वह बोला, "तो यह तो अच्छी बात है ना? कोई हमारे दुश्मनों को खत्म कर रहा है, तो इसमें दुखी होने वाली कौन सी बात है।" उसके पिता बोले, "दुखी होने वाली बात ही है बेटा। अगर वह आदमखोरों को खत्म कर रहा है, तो इसका मतलब वह बहुत ताकतवर है और जब वह सारे आदमखोरों को खत्म कर देगा, तब कहीं ना कहीं हम भी उसके निशाने पर आ सकते हैं। अगर आदमखोर उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए, तो फिर हम उसका क्या बिगाड़ पाएँगे? मैंने गाँव वालों के साथ बात तो की है और यह कहा है, हम पता लगाने की कोशिश करते हैं, वह कौन है जो इन आदमखोरों को मार रहा है, ताकि हम उसे निपटाने की तैयारी वक्त से पहले ही कर सकें।" देवांश ने अपने मन में कहा, "कैसे बेवकूफ़ हैं! मुझसे निपटने की तैयारी करेंगे? मुझसे… जो खुद यहाँ किसी को निपटाने आया है।" खाना खाने के बाद देवांश और लखन दोनों बाहर आकर तलवारबाज़ी का अभ्यास करने लगे। लखन अपनी तलवार से कारनामे दिखा रहा था और देवांश उतनी ही तेज़ी से उन कारनामों से बच रहा था। लखन तेज़ी से तलवार का हमला करते हुए बोला, "मैंने ये सारे हमले आज तक किसी को दिखाए भी नहीं हैं, फिर भी तुम्हारे पास इसका तोड़ कैसे है? मुझे सच-सच बताओ, मेरी मर्ज़ी के बिना तुम किस से तलवारबाज़ी सीखते हो?" तलवार के एक हमले से बचते हुए देवांश ने पीछे की तरफ़ जम्प लिया और कहा, "पिताजी, आपको पता है ना, इस गाँव में आपसे बेहतर तलवारबाज़ कोई नहीं है, तो फिर मैं किससे सीख सकता हूँ? ये सारे पेंतरे आपकी ही ट्रेनिंग के हैं, बस आप भूल गए हो कि आपने मुझे कब ट्रेन किया।" उसके पिता ने तलवार को तेज़ हमले के लिए फेंककर इस्तेमाल किया। यह लकड़ी की तलवार थी, तो इससे किसी तरह के नुकसान होने का डर नहीं था। उन्हें लगा था, अगर वह इस तरह से फेंक कर हमला करेगा, तो देवांश इस हमले को समझ नहीं पाएगा और तलवार उससे टकरा जाएगी। मगर बाज की नज़रों से भी तेज़ देवांश ने पल भर में इस वार को समझ लिया और अपने हाथ से उसके पिता की फेंकी हुई तलवार को पकड़ लिया। उसके पिता यह देखकर दंग रह गए और उनकी आँखें चौड़ी हो गईं। "गज़ब! मानना पड़ेगा, तुम बहुत टैलेंटेड हो मेरे बेटे। तुमने मेरे एक ऐसे वार को भी पकड़ लिया, जिसका इस्तेमाल तलवारबाज़ी में कोई भी नहीं करता।" देवांश ने अपने पिता की तलवार को फेंका और कहा, "पिताजी, मुझे हराने के लिए आपको और मेहनत करनी होगी।" उसके पिता झुके हुए कंधों के साथ चले और अपनी तलवार उठाकर बोले, "हाँ, तुम शायद सही कह रहे हो। मैंने अपने बेटे को इतना बड़ा तलवारबाज़ बना दिया है कि आज मैं खुद भी उसे हरा नहीं पा रहा हूँ, वह भी तब जब मेरा बेटा सिर्फ़ 4 साल का है। पता नहीं, जब तुम 40 साल के हो जाओगे, तब तुम क्या-क्या करोगे।" देवांश ने अपनी तलवार पर लगी मिट्टी को ऐसे साफ़ किया जैसे वह खून साफ़ कर रहा हो और कहा, "40 साल बाद क्या होगा, क्या नहीं पिताजी, ये बात की बातें हैं। अभी तो ये भी नहीं पता, आने वाले सालों में क्या होगा।" लखन एक पत्थर पर बैठ गया और देवांश भी उसके पास आकर पत्थर के ठीक नीचे वाले हिस्से पर बैठ गया। लखन ऊपर बैठा था, वहीं देवांश नीचे बैठा हुआ था। देवांश ने कहा, "पिताजी, मुझे समझ में नहीं आ रहा, आखिर कब तक आप इस सचाई से छिपेंगे? मेरा दिल ये नहीं मानता, इतनी बड़ी दुनिया में हम यहाँ पर अकेले रहते हैं? मैं नहीं जानता, आपने कभी समुद्र में जाने की कोशिश की या फिर नहीं, लेकिन जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इस पूरे समुद्र को छान मारूँगा। मैं इस पूरे समुद्र को तब तक छानूँगा, जब तक मुझे यहाँ पर बाकी के लोग नहीं मिल जाते।" उसके पिता ने अपने चेहरे पर गुस्सा दिखाया। "तुम फिर से अपनी बेवकूफी भरी बातें लेकर शुरू हो गए। मैंने तुमसे कहा ना, इस पूरी दुनिया में और कोई भी नहीं है, बस हम लोग हैं जो खुशकिस्मती से बचे हुए हैं। हमारे पूर्वजों ने यह भी बताया है कि हम क्यों बच गए। यहाँ तक कि तुम आश्रम में जाकर वहाँ मौजूद इतिहास की किताबों को भी पढ़ सकते हो।" देवांश ने अपने सर को झटका। "मैं उन किताबों को पढ़ चुका हूँ। वह बस रटी-रटाई किताबें हैं, इसके अलावा और कुछ भी नहीं।" लखन ने नीचे अपने बेटे की तरफ़ देखा। "तुम अपनी उम्र से ज़्यादा ही बड़े होने का दिखावा कर रहे हो। मुझे अच्छे से पता है, यह सब कुछ वीर की वजह से है। वीर पता नहीं तुम्हारे मन में क्या-क्या बातें डालता रहता है। इस गाँव में वीर और कुछ लोग ही हैं जो ये बातें कहते रहते हैं और यही बातें वे बाकी लोगों के मन में डालते रहते हैं। तुम वीर की बेटी के साथ खेलने जाते हो, तो वहीं ये सब सीख कर आते होगे।" देवांश ने इस पर कुछ नहीं कहा। लखन बोला, "बेटा, इतिहास में लिखी हुई चीज़ कभी भी गलत नहीं होती। आश्रम में मौजूद इन किताबों में हमारा इतिहास लिखा गया है। 40,000 साल पहले जब भगवान निर्वाण ने अपने अनंत रूप में अवतार लिया था, तब उन्होंने बुराई को खत्म कर दिया था। लेकिन यह लड़ाई इतनी विध्वंसक थी कि इस लड़ाई ने बुराई के साथ-साथ इस दुनिया को भी ख़तरे के करीब ला दिया था। पूरी दुनिया का संतुलन बिगड़ गया था। ज़मीन टुकड़ों में बंट गई थी और जो बर्फ के बड़े-बड़े पहाड़ थे, वे पिघल गए थे। लड़ाई इतनी विध्वंसक थी कि सब तरफ़ कोहराम ही मच गया था। हमारे पूर्वज उस वक्त भगवान अनंत के बहुत बड़े भक्त हुआ करते थे। भगवान अनंत अपने आखिरी वक्त में इस पूरी दुनिया को तो नहीं बचा पाए, लेकिन उन्होंने हमारे पूर्वजों को बचाया और उन्हें यहाँ पर सुरक्षित जीवन यापन के लिए छोड़ दिया।" देवांश ने अपने मन में कहा, "सब झूठ है। वह लड़ाई बड़ी ज़रूर थी, मगर दुनिया ख़त्म करने जितनी बड़ी नहीं थी। उस लड़ाई के ख़त्म होने के 1 साल बाद तक मैं यहीं पर इस दुनिया में रहा था और यहाँ पर अच्छी-खासी खुशहाली थी। फिर मैं यहाँ से चला गया था, जिसके बाद की बातें मुझे याद नहीं, क्योंकि यहाँ आने से पहले मैंने सब कुछ भुला दिया था। उसके बाद कुछ ऐसा हुआ होगा जिससे यह पूरी दुनिया ख़त्म हो गई। मगर नहीं, अगर यह दुनिया ख़त्म हो चुकी होती, तो मैं यहाँ पर अवतार क्यों लेता? अगर मैंने अवतार लिया है, तो इसका मतलब है यहाँ पर बुराई है। भले ही मैंने उससे जुड़ी सारी यादें अपने दिमाग से हटा दी हों, लेकिन अगर मैं यहाँ पर हूँ, तो सब कुछ यहाँ पर है।" देवांश खड़ा हुआ और अपने पिता से बोला, "पिताजी, मैं नहीं जानता आप क्या सोचते हैं और क्या नहीं, और ना ही मुझे फ़र्क़ पड़ता है, लेकिन एक बात मैं आपको साफ़-साफ़ बता देता हूँ, आज मैं 4 साल का हूँ, लेकिन जैसे ही मैं 10 साल से बड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इस समुद्र में अपनी यात्रा शुरू करूँगा। अपनी यात्रा, जिसका कोई अंत नहीं होगा और यह तभी ख़त्म होगी जब मैं यहाँ पर बाकी के लोगों को ढूँढ़ लूँगा।" लखन खड़ा हुआ और जोर से अपने बेटे के मुँह पर थप्पड़ जड़ दिया। "ख़बरदार, अगर तुमने यह बात आज के बाद दोबारा की, तुम यहाँ से कभी बाहर नहीं जाओगे, कभी भी नहीं, और समुद्र में तो बिल्कुल भी नहीं। और आज के बाद तुम्हारा वीर के यहाँ पर जाना भी बंद। तुम्हें पता है, समुद्र में सबसे पहले कुछ और लोगों ने भी जाने की कोशिश की थी, मगर वे सब के सब मारे गए और मैं नहीं चाहता, तुम भी समुद्र में जाकर मरो। तुम्हारी माँ ने और मैंने तुम्हें कई सालों के बाद पाया है। हम बस यही चाहते हैं, तुम इसी गाँव में रहो और जब बड़े हो जाओ, तब मेरी ज़िम्मेदारी को संभालो। बड़े होकर अपना परिवार बसाओ और जिस तरह से हमारे पूर्वज इस गाँव में एक के बाद एक अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे हैं, वैसे तुम भी आगे बढ़ाओ।" यह कहकर लखन घर की ओर चला गया, जबकि देवांश वहीं पर खड़ा रहा। देवांश की आँखों में गुस्सा था। उसने अपने हाथों की मुट्ठियाँ बंद कर लीं और जोर से अपने सिर को सामने पड़े पत्थर पर मार दिया। लखन अंदर जा चुका था। देवांश के सिर के वार की वजह से कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मगर इसके बाद पत्थर हज़ारों टुकड़ों में बंट गया। देवांश बोला, "बिल्कुल नहीं! ज़रूर आप सब यहाँ पर एक ऐसे चक्र में फँसे होंगे जिसमें पैदा होना, परिवार बसाना, बच्चे पैदा करना और फिर उन्हें आगे की ज़िम्मेदारी सौंप कर यहाँ से चले जाना है, लेकिन मैं ऐसा कभी नहीं करने वाला। हज़ारों सालों से चल रहे इस चक्र को मैं यहाँ पर तोड़ूँगा। इस गाँव के इतिहास में आज तक बदलाव नहीं हुआ, मगर मैं इसे बदल दूँगा।"
श्री देवांश की बाहों में थी। वो काफी देर तक एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर देवांश ने उसे छोड़ दिया, जिससे वह धड़ाधड़ नीचे गिर गई। अपनी कमर संभालते हुए, उसने कहा, "बेवकूफ! मुझे छोड़ने से पहले बात नहीं कर सकते थे?" देवांश ने अपनी तलवार उसकी ओर घुमाई और उसकी गर्दन पर रखते हुए बोला, "इस वक्त हम एक-दूसरे के दुश्मन हैं, दोस्त नहीं। जैसे ही मुझे मौका मिलेगा, तुम्हारी जान निपटा दूँगा। जब दुश्मन सामने हो, तब हर पल चौकन्ना रहना चाहिए, भले ही वह प्यार से ही क्यों न देखे।" यह कहकर देवांश तलवार उसकी गर्दन से हटाकर नीचे करता गया। उसने तलवार उसके सीने पर रखी और कहा, "तुममें और लड़ने की हिम्मत है, या अब हार मानती हो?" श्री ने एक झटके से उसकी तलवार अपने हाथ से पकड़ी और अपनी ओर खींच ली, जिससे देवांश लड़खड़ा गया और सीधे श्री के ऊपर गिर पड़ा। श्री ने अगले ही पल उसे झटका देकर दूसरी ओर गिराया और अपनी कमर से चाकू निकालकर उसकी गर्दन पर रख दिया। श्री ने कहा, "कभी भी सामने वाले को इतना कमजोर मत समझो कि आपका ध्यान भटक जाए, खासकर जब सामने लड़की हो। वह चाहे कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, लेकिन अगर वह दुश्मन है, तो उसका मकसद सिर्फ सामने वाले को खत्म करना होता है, ना कि उसकी बाहों में आना। समझ में आई बात, बेवकूफ लड़के?" देवांश ने हाथ ऊपर करते हुए कहा, "हाँ, समझ में आ गई, और मैं अब हार मानता हूँ।" श्री अपनी जगह पर खड़ी हुई और अपने कपड़े साफ़ करते हुए बोली, "आज पूरे तीन महीने हो गए हैं, और तीन महीने से मैं तुम्हें हरा रही हूँ। क्या तुम बता सकते हो, हारकर कैसा लग रहा है?" देवांश भी अपनी जगह से उठा और अपने कपड़े साफ़ करते हुए बोला, "लग तो बुरा ही रहा है, मगर क्या कर सकते हैं? कभी-कभी हारने से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।" यह कहकर वह पहाड़ी के किनारे पर आकर दूसरी पहाड़ियों की ओर देखने लगा। श्री भी उसके पास आ गई और वह भी उसके साथ-साथ दूसरी पहाड़ियों की ओर देखने लगी। देवांश ने उन पहाड़ियों की ओर देखते हुए कहा, "मैं सिर्फ़ तुमसे नहीं, बल्कि उन आदमखोरों से भी हार रहा हूँ। मैं कई सालों से उन आदमखोरों की गुत्थी को सुलझाने में लगा हुआ हूँ, मगर मुझे आज तक उनका मास्टर नहीं मिला। इन गुफाओं में मैं इतनी गहराई तक जा चुका हूँ कि वहाँ साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन अभी तक जो भी आदमखोर मेरे सामने आए हैं, वे बस नौकर ही हैं, मालिक नहीं।" श्री ने अपनी तलवार अपनी म्यान में डाली और फिर सामने की ओर देखते हुए बोली, "सारी गुफाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं, इसका फ़ायदा इनके मास्टर को मिल रहा होगा। अगर हम किसी एक गुफा में जाते हैं, तो उसे हमारे आने के बारे में पता चल जाता होगा, और फिर वह किसी सुरक्षित गुफा में चला जाता होगा।" देवांश ने गहरी साँस ली और छोड़ी, "अगर ऐसा होता, तब भी हमें इसका कोई न कोई प्रमाण मिलता, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ पता नहीं चला है।" श्री ने देवांश की ओर देखना शुरू कर दिया, "अभी सुबह का वक्त है। अगर तुम कहो, तो गुफा में चलें। आज हम किसी एक गुफा में तब तक चलते रहेंगे, जब तक हम उसके अंत तक नहीं पहुँच जाते, भले ही हमारी साँसें ही क्यों न रुक जाएँ।" देवांश ने अपने चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई, "अच्छा, ठीक है। लेकिन आज सारी लड़ाई तुम ही करोगी। मुझे पता है, पिछली बार मैं किस गुफा के अंदर गया था और कहाँ पर आगे जाना छोड़ दिया था। हम उसी गुफा में चलते हैं और उसमें और आगे जाते हैं।" यह कहकर देवांश ने श्री को कमर से पकड़ा और अगले ही पल पहाड़ी से लटकते हुए इतनी तेजी से नीचे उतरने लगा, जैसे वह किसी पेड़ से सीधा नीचे आ रहा हो, लेकिन बीच-बीच में पड़ाव लेते हुए। नीचे आते ही उसने श्री को छोड़ दिया, और फिर दोनों ही एक गुफा की ओर दौड़ने लगे। दोनों की दौड़ने की गति काफी तेज थी, सामान्य लोगों से तो कहीं ज्यादा तेज। थोड़ी ही देर में उन्होंने एक जंगल पार किया और फिर कुछ झाड़ियों से गुज़रते हुए एक पहाड़ी पर चढ़ने लगे। उस पहाड़ी के बीच में आते ही देवांश श्री के साथ एक गुफा में चला गया। लगभग दो घंटे बाद दोनों गुफा में काफी गहराई तक आ गए थे। देवांश यहाँ पहुँचते ही दीवारों पर बने निशानों को देखने लगा। श्री भी दीवारों पर बने निशानों को देख रही थी। ये निशान अजीबोगरीब थे, जैसे देवांश ने खास तरह की रेखाओं को जोड़कर आपस में मिलाकर किसी तरह के चक्र का निर्माण किया हो। यह देखकर श्री ने देवांश से पूछा, "तुमने दीवार पर ये क्या बना रखा है? तुम्हें तो ठीक से चित्रकारी भी नहीं आती है?" देवांश ने निशानों की ओर देखा और जवाब देते हुए कहा, "ये कोई आम चित्र नहीं हैं, ये दिव्य ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए बनाए गए चक्र हैं। ये चक्र मेरे और तुम्हारे शरीर में मौजूद ऊर्जा को किसी एक जगह पर केंद्रित करके हमला करने में मदद कर सकते हैं।" श्री बड़ी-बड़ी आँखों से देवांश की ओर देखने लगी, "क्या सच में?" देवांश ने उसे सहलाया, "हाँ, सच में। लेकिन मैं अभी तक इनका इस्तेमाल करना नहीं सीख पाया हूँ। मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन मुझे लग रहा है मेरी आयु अभी कम है इनका इस्तेमाल करने के लिए। शायद 15 या 16 साल के बाद मैं इन चक्रों का इस्तेमाल कर सकूँ।" श्री ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा, "मुझे समझ में नहीं आ रहा, तुम इतनी सारी चीज़ें कहाँ से सीखकर आते हो? और तुम डिवाइन ऊर्जा का भी इस्तेमाल करते हो! इसके बारे में आश्रम में गुरु ने बताया था कि यह सिर्फ़ भगवान ही इस्तेमाल कर सकते हैं। अब देखो, तुम भगवान तो नहीं हो, मगर फिर भी तुम इसका इस्तेमाल करते हो, और तुमने मुझे भी इसका इस्तेमाल करना सिखाया है। पर तुमने आज तक मुझे नहीं बताया कि तुम ये सब कहाँ से सीख कर आए हो?" देवांश ने श्री को बहुत कुछ बताया था, लेकिन आज तक उसने उसे यह नहीं बताया था कि वह भगवान का अवतार है। श्री जब भी उसे इस बारे में कुछ पूछती थी, तब वह बातों को कुछ न कुछ कहकर टाल देता था। देवांश ने थोड़ा सोचा और फिर जवाब देते हुए कहा, "अगर तुम इस बारे में किसी और को न बताओ, तब तो मैं तुम्हें यह राज बता देता हूँ, वरना मुझे इस राज को अपने तक ही रखना होगा।" श्री ने पीछे देखा, उसके गालों पर लाली थी और उसके होंठों पर एक मुस्कराहट, "तुम बताओ, मैं यह बात किसी को भी नहीं बताऊँगी।" देवांश को पता था कि श्री किसी बात को हज़म नहीं कर पाती। उसने कहा, "दरअसल, मुझे आश्रम में एक गुप्त लाइब्रेरी मिली थी, जिसके बारे में आश्रम के लोगों को भी आज तक नहीं पता। वहाँ पर ढेर सारी ऐसी किताबें थीं, जिनमें बाहरी दुनिया के बारे में बताया गया था। उन किताबों में एक किताब थी जिसके अंदर दिव्य ऊर्जा के बारे में लिखा गया था और उसके इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में भी। तभी मैंने उसे वहाँ से सीख लिया था।" श्री ने देवांश की बात को मान लिया, "क्या बात है! मुझे तो आज तक आश्रम में कोई भी गुप्त लाइब्रेरी नहीं मिली। मैंने भी वहाँ पर पूरी छानबीन की थी, यह सोचकर कि यह आश्रम काफी पुराना है, तो यहाँ पर कुछ ऐसा मिल सकता है जो पूरे गाँव वालों को हैरान कर देगा।" देवांश हँसने लगा। उसने अपने सिर पर पीछे की ओर बालों में हाथ फेरा और कहा, "तुम्हारी नज़रें मेरी तरह तेज नहीं हैं, वरना तुम्हें भी वह मिल जाता जहाँ मैं अक्सर जाता हूँ।" श्री ने गुस्से से कहा, "अब देखो, जैसे ही हम यहाँ से वापस जाएँगे, मैं सबसे पहले उस कमरे को ढूँढूँगी।" दीवारों पर बने सारे चक्र खत्म हो गए थे और अब खाली दीवारें थीं। देवांश ने यह देखकर कहा, "आखिरी बार मैं यहीं तक आया था। जब भी मैं किसी जगह पर रुकता हूँ, मैं एक चक्र बना देता हूँ। अब इसके बाद हमें कोई भी चक्र नहीं मिलेगा।" देवांश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था कि अचानक सामने एक आदमखोर आ गया। यह आदमखोर काफी अजीब सा था, किसी पतले, प्लास्टिक के रबर की तरह, जो दीवारों पर चारों ओर फैला हुआ था; किसी कवर की तरह। देवांश कुछ करता, उससे पहले ही श्री ने अपनी तलवार निकाली और उसे सामने की ओर करके, अपने पैरों को नीचे करके लड़ने के लिए तैयार हो गई। उसका ध्यान पूरी तरह से आदमखोर पर केंद्रित था। आदमखोर थोड़ा सा आगे आया और फिर एक ही जगह पर इकट्ठा होकर एक अजीब से जानवर में बदल गया, जो रबर की तरह पतला था। या गुब्बारे की तरह, जिसमें पानी भरा हो, और अपना आकार बदल सके। श्री ने अपने शरीर को और नीचे किया और फिर अपने पूरे ध्यान को आदमखोर पर लगा दिया। उसके शरीर से सुनहरी रोशनी चमकने लगी और अगले ही पल वह तेज़ी से उस आदमखोर की ओर गई और अपनी तलवार से इतने सारे वार किए कि उनकी गिनती भी नहीं की जा सकती थी। सारे वार करने के बाद वह वापस देवांश के पास आकर उसी तरह खड़ी हो गई, जैसे वह हमला करने से पहले खड़ी थी। कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ। इसके बाद सामने का आदमखोर हज़ारों टुकड़ों में बदल गया और श्री सामान्य हो गई। श्री बोली, "चलो आगे चलें।" दोनों आगे चलने लगे। एक के बाद एक गुफा में आदमखोर आते जा रहे थे और श्री सबका सामना करते हुए उन्हें खत्म कर रही थी। देवांश को कुछ भी नहीं करना पड़ रहा था, वह बस श्री को उन आदमखोरों को खत्म करते हुए देख रहा था। थोड़ा और आगे जाने पर गुफा पतली होने लगी, लेकिन अभी भी यह काफी बड़ी थी और इसमें सामने आने वाले आदमखोर छत तक आ रहे थे। श्री का सामना एक बड़े आदमखोर से हुआ, जिसे हराने में उसे दिक्कत महसूस हो रही थी। यह बड़ा आदमखोर लगभग 25 टाँगों वाला था, और सभी 25 टाँगें वह काफी तेज़ी से हमले के लिए इस्तेमाल कर रहा था। श्री एक टाँग पर हमला करने जाती थी, तो वह दूसरी टाँगों से हमला करके उसे दूर धकेल देता था। काफी देर तक श्री उसे नीचे से ही खत्म करने की कोशिश करती रही, लेकिन जब उसे लगा कि वह यहाँ से उसे खत्म नहीं कर पाएगी, तब उसने गुफा की दीवारों का सहारा लेते हुए ऊपर की ओर चढ़ना शुरू किया और उस आदमखोर के ऊपर कूद गई। आदमखोर के ऊपर आते ही उसने अपनी तलवार को जोर से उसके चमड़े में घुसाया और फिर उसके शरीर पर दौड़ती चली गई, जिससे उसका शरीर टुकड़ों में फटता चला गया। चार-पाँच चक्कर लगाने के बाद वह देवांश के सामने कूद गई। उसने देवांश की ओर आत्मविश्वास से भरी नज़रों से देखा, यह दिखाते हुए कि वह काफी बड़े-बड़े कारनामे कर रही है। उसके ठीक पीछे, आदमखोर का पूरा शरीर कई सारे टुकड़ों में ऐसे बिखर गया, जैसे वह बस लकड़ी के टुकड़े हों जिन्हें एक-दूसरे से जोड़ा गया था, लेकिन अब एक हल्के हवा के झोंके से वे सब गिर गए। श्री अपनी जगह पर खड़ी हुई और फिर बोली, "चलो आगे चलें।" देवांश ने अपने हाथ पीछे कर रखे थे। उसने सिर हिलाया और फिर दोनों आगे चल दिए। शाम होने के करीब थी और वे दोनों अभी भी गुफा में चलते जा रहे थे। ऑक्सीजन की कमी से वे दोनों ठीक से साँस भी नहीं ले पा रहे थे। देवांश और श्री दोनों ने प्राणायाम का अभ्यास कर रखा था, जिसकी वजह से वे कम ऑक्सीजन में भी ठीक से साँस ले पाते थे, लेकिन अब उन्हें भी मुश्किल हो रही थी। देवांश ने गहरी साँस ली और रुक गया, "तुम रुक जाओ श्री, यह गुफा अब तक की गुफाओं में सबसे ज़्यादा लंबी है।" यह कहकर देवांश जोर से गुफा में चिल्लाया, यह देखने के लिए कि उसकी आवाज़ किस तरह से वापस आती है, लेकिन उसके चिल्लाने के बावजूद सामने से आवाज़ वापस नहीं आई, जिसका मतलब था कि अभी भी गुफा इतनी गहरी है कि आवाज़ भी किसी से टकराकर वापस नहीं आ रही है, या फिर किसी रुकावट की वजह से वह बीच में ही खत्म हो रही है। देवांश बोला, "हम इतना आगे आ गए हैं, लेकिन अभी भी हमारी आवाज़ सामने किसी भी चीज़ से टकराकर वापस नहीं आ रही है, मतलब कहीं न कहीं इस गुफा के अंदर कोई ऐसा राज़ छुपा हुआ है जिसे हम अभी नहीं सुलझा सकते। ऐसा लग रहा है जैसे यह गुफा अनंत तक फैली हुई है। हमें वापस आना होगा।" श्री गुस्से से बोली, "तुम्हें वापस जाना है तो जाओ, मगर मैं वापस नहीं जाने वाली हूँ। मैं अभी और आगे जा सकती हूँ। अभी भी मैं साँस ले पा रही हूँ, और जब तक मैं साँस लेती रहूँगी, तब तक मैं इस गुफा में चलती रहूँगी।" देवांश ने उसका हाथ पकड़ा और फिर उसे पीछे की ओर खींचने लगा, "तुम्हें चलना ही होगा।" श्री ने जोर लगाने की कोशिश की, मगर देवांश को इससे रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ा। श्री ने अपने शरीर को सुनहरी रोशनी से चमकाकर दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल किया, मगर इसके बावजूद भी देवांश को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। काफी देर तक जब श्री नहीं मानी, तब देवांश ने उसे उठाकर अपने कंधों पर रखा और फिर तेज़ी से दौड़ने लगा। देवांश की दौड़ने की रफ़्तार आवाज़ की रफ़्तार के बराबर थी। इतनी रफ़्तार में श्री को साँस लेने का भी वक्त नहीं मिल रहा था, और जब उसे साँस लेने का वक्त नहीं मिल रहा था, तो उसे आगे जाने की ज़िद करने का भी वक्त नहीं मिला। रात होने से पहले ही दोनों वापस बाहर आ गए। देवांश ने श्री को नीचे उतारा और कहा, "अभी हमें और अभ्यास करना होगा। तुम ज़िद करना छोड़ो। हम यहाँ पर चार-पाँच सालों बाद दोबारा आएँगे।" श्री ने गहरी साँस ली और फिर गुफा की ओर देखते हुए कहा, "मेरा मन तो नहीं कर रहा है जाने का, लेकिन शायद तुम सही कह रहे हो। हम अभी तक इस गुफा के काबिल नहीं बने हैं, इसलिए हमें हमारे काबिल होने का इंतज़ार करना होगा।" आखिरकार श्री ने हामी भरी और फिर दोनों ही वापस जाने लगे।
रात काफी ठंडी थी। घर आने के बाद से देवांश लखन का इंतज़ार कर रहा था। उसकी माँ आग में आंच जला रही थी और खाना बना रही थी। अपनी कमर से बंधी तलवार को पकड़े हुए, देवांश लगातार अपने घर के आंगन में चहलकदमी कर रहा था। वह खुद से बोला, "तीन महीने बाद मैं दस साल का हो जाऊँगा; दस साल की उम्र काफी होगी खतरनाक काम करने के लिए। जैसे ही पिताजी घर पर आएंगे, मैं उनसे इजाज़त माँगूँगा। वैसे भी, दुनिया की रक्षा के लिए मैं पैदा हुआ हूँ, और जिस इंसान से इस दुनिया को खतरा है, उसे खत्म करना मेरा काम है। मैं जानता हूँ इन लोगों को इस दुनिया के बारे में नहीं पता, लेकिन दुनिया सिर्फ़ इस छोटे से टापू पर सीमित नहीं है; दुनिया कहीं और भी है, और वहाँ जाकर मुझे अपना काम करना है।" इंतज़ार करते-करते रात के ग्यारह बजने को हो गए, मगर लखन अभी तक वापस नहीं आया था। आहुदी बाहर निकली और उसने परेशान चेहरे के साथ कहा, "बेटा, तुम्हारे पिताजी को तो अब तक आ जाना चाहिए था। वे इतनी देर रात कभी बाहर नहीं रहते; ठंड भी ज़्यादा है, मुझे उनकी फ़िक्र हो रही है।" लखन ने रास्ते की तरफ़ देखा, जहाँ से उसके पिताजी अक्सर आते थे। बर्फ से ढका हुआ रास्ता पूरी तरह खाली दिखाई दे रहा था। उसकी माँ ने कहा, "वह आज कुछ गाँववालों के साथ आदमखोरों को मारने के लिए पहाड़ी के नीचे बनी गुफा में जाने वाले थे। एक काम करो, जाकर वीर से पूछो कि क्या वे घर पर आ गए हैं? वे उनके साथ गए थे।" देवांश ने सहमति से कहा, "ठीक है माँ, मैं अभी पूछकर आता हूँ।" यह कहकर देवांश बर्फ से जमी सड़क पर दौड़ते हुए वीर के घर जाने लगा। कुछ ही देर में वह वीर के घर पहुँच गया, क्योंकि वह दौड़ने में काफी तेज था। जैसे ही वह वहाँ पहुँचा, उसने देखा वीर घर के आंगन में ही था और उसने आग जलाई हुई थी। वह अपनी बेटी श्री के साथ खेल रहा था। देवांश आया और पूछा, "वीर अंकल, क्या मेरे पिताजी अभी तक नहीं आए हैं? हम उनका घर पर इंतज़ार कर रहे हैं, मगर वे घर नहीं पहुँचे।" वीर ने अपने चेहरे पर परेशानी दिखाते हुए कहा, "क्या कहा! लेकिन वे तो हमारे साथ गुफा से बाहर आए थे। गुफा से बाहर आने के बाद उन्होंने कहा था कि वे एक बार खेतों को देखकर आएंगे, इसके बाद घर पहुँचेंगे। उन्हें तो अब तक घर आ जाना चाहिए था।" श्री ने कहा, "लेकिन अंकल खेतों में वे कहाँ जा सकते हैं?" देवांश को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने कहा, "ठीक है, फिर मैं देखकर आता हूँ। शायद खेत में उन्हें कोई काम आ गया होगा, जिसे वे करने लग गए होंगे।" वीर ने घर जाकर अपनी तलवार उठाई और कहा, "ठीक है, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।" लेकिन उसने पलटकर देखा तो देवांश वहाँ नहीं था; वह कब का निकल चुका था। यह समय कम था, मगर देवांश के लिए काफी था। लखन का खेत एक जंगल को पार करने के बाद आता था। देवांश इस जंगल में दौड़ रहा था। उसके साँसों की आवाज़ के अलावा और उसके कदमों की आवाज़ के अलावा जंगल में से और कोई भी आवाज़ नहीं आ रही थी। उसे अपने पिता की फ़िक्र हो रही थी। दूसरी तरफ़, लखन भी आज एक ऐसी मुसीबत में फँसा हुआ था, जिसमें वह कभी नहीं फँसा था। कुछ पेड़ों के झुंड के बीच उसके आस-पास चार से ज़्यादा आदमखोर थे; अजीबोगरीब आदमखोर, जिन्हें लखन ने पहले कभी नहीं देखा था। आदमखोरों के मामले में यह चीज़ सबको हैरान करने वाली थी कि एक तरह दिखने वाला आदमखोर दूसरी बार दिखाई नहीं देता था। चारों आदमखोर बड़ी ऊँचाई के नहीं थे; वे तकरीबन इंसान की तुलना में आधी ऊँचाई के होंगे, मगर वे दिखने में काफी खतरनाक थे। उनका शरीर हड्डियों के कंकाल से बना हुआ था। उनके सीने में जो दिल था, वह हड्डियों के कंकाल से भी साफ़ धड़कता हुआ देखा जा सकता था। लखन अब तक उन्हें तलवार से मारने की कोशिश कर चुका था, लेकिन उनके शरीर पर तलवार का कोई असर नहीं हो रहा था। लखन उनकी हड्डियों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहा था, पर हड्डियाँ बहुत ताकतवर थीं। इस वजह से एक इंसान अपनी तलवार से न तो उन्हें काट सकता है और न ही उन्हें तोड़ सकता है। जलने के बाद ही वे हड्डियाँ इतनी कमज़ोर होती थीं कि उन्हें काटा जा सकता था। लखन ने चारों आदमखोरों की तरफ़ बारी-बारी से देखा, "आज तो अच्छी मुसीबत में फँस गया! मैं तो बस खेत देखने आया था, मुझे क्या पता आदमखोर मेरे खेतों को लूटने आए हैं।" सामने के एक आदमखोर ने अपने पैरों पर ज़ोर लगाया और लखन पर कूदा। लखन फुर्ती से अपने दाएँ तरफ़ कूद गया और अपनी पोज़ीशन बदलकर उस आदमखोर के हमले से बच गया। आदमखोर ने अपना मुँह तेज़ी से लखन की तरफ़ किया और खोलते हुए बुरी तरह से चिल्लाया। उसकी बुरी तरह से चिल्लाने से उसके मुँह से अजीब सा द्रव निकलने लगा, जो हवा में मकड़ी के जाले की तरह फैल रहा था। इसके कुछ जाले लखन की त्वचा से टच हुए तो वो जलने लगी। लखन दूर हट गया, "यह क्या था? इनकी लार तो काफी ज्वलनशील है।" वह यह बोल ही रहा था कि तभी उसके दाएँ ओर मौजूद एक आदमखोर ने तेज़ी से दौड़ लगाई और लखन के पास पहुँचकर अपने सिर से उसे टक्कर मारी। लखन टकराते ही तेज़ी से उछल पड़ा, लेकिन गिरने से पहले ही वह संभल गया और पैरों के बल नीचे गिर गया। दो आदमखोर तेज़ी से उसके ऊपर हमला करने के लिए आए, तो लखन ने एक पर तलवार से हमला किया और दूसरे को पैर से दूर धकेल दिया। तलवार से हमला किया गया आदमखोर पास ही गिर गया, जबकि जिसे लखन ने धक्का मारा था, वह दूर जाकर गिरा। अब एक बार फिर से लखन के सामने वह आदमखोर आ गया जिसने उस पर लार फे़की थी। वह चलते हुए भी डरावना लग रहा था; उसकी लाल रंग की आँखों से ही डर लग रहा था। लखन ने अपने पैरों को नीचे कर लिया और तलवार पर पकड़ मज़बूत की, क्योंकि वह अब पूरा जोर लगाकर उस पर हमला करने वाला था। आदमखोर धीरे-धीरे कदमों से लखन की तरफ़ आ रहा था, लेकिन लखन ने उसकी तरफ़ तेज़ी से दौड़ना शुरू कर दिया ताकि वह एक छलांग लगाकर अपने पूरे जोर से उस आदमखोर के सिर पर हमला कर सके। वह दौड़ ही रहा था कि अचानक उसे एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, जिसे सुनते ही वह रुक गया। यह आवाज़ पहाड़ियों से आ रही थी; ऐसी आवाज़, जैसे हज़ारों की संख्या में सैनिकों का दल कदमताल करते हुए पहाड़ी से नीचे उतर रहा हो। लखन ने अपनी आँखों से पहाड़ी की तरफ़ देखा। जो भी वह देख रहा था, उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह एक भयानक, खौफ़नाक सपना देख रहा हो। ऐसा कभी हो ही नहीं सकता था, और यही लखन का मानना था। उसके ठीक सामने जो दृश्य था, उसमें पहाड़ी से हज़ारों की तादाद में आदमखोर तेज़ी से उतर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे आज सारे आदमखोरों ने मिलकर आपस में एक मीटिंग की हो और फिर पूरे गाँव पर हमला करने का फ़ैसला किया हो। उनकी संख्या, उनका बल, और उनका उतरने की रफ़्तार – इन सबसे इसी चीज़ का अंदाज़ा लग रहा था। लखन परेशानी से बोला, "मुझे जल्दी से जल्दी गाँववालों को इस बारे में बताना होगा। आज आदमखोर किसी भी गाँववाले को नहीं छोड़ेंगे।" यह बोलकर वह जाने की तैयारी करने लगा, मगर उसे चारों आदमखोरों ने फिर से घेर लिया। चारों आदमखोरों के होते हुए वो वहाँ से नहीं जा सकता था, और उन्हें मारना भी उसके लिए आसान नहीं था, क्योंकि ये सिर्फ़ हड्डियों वाले आदमखोर थे। इससे पहले जो भी आदमखोर उसे मिले थे, उनकी त्वचा होती थी, और जब वह उनकी त्वचा काटता था, तो खून निकलने की वजह से वे मर जाते थे, जबकि इनका तो खून ही नहीं था। अचानक एक और आवाज़ आई, और लखन का ध्यान फिर से पहाड़ी की तरफ़ चला गया। पहाड़ी की चोटी पर उसे एक और आदमखोर दिखाई दिया; एक विशाल आदमखोर; किसी भेडी़ए की तरह दिखाई देने वाला आदमखोर, जंगल में मौजूद लंबे-लंबे पेड़ों की ऊँचाई के बराबर का। उसके पंख भी थे। पहाड़ी की चोटी पर उसने अपने पंखों को फैला रखा था। उसका चेहरा किसी भेड़िये की तरह आसमान की ओर था, और वह आसमान के बादलों को घूर रहा था। उसके पंखों में चमक दिखाई दे रही थी, जैसे बिजली की चमक हो रही हो। उसने एक अजीब सी आवाज़ अपने मुँह से निकाली, वही आवाज़ जो लखन ने सुनी थी। इस आवाज़ के होते ही पहाड़ी के पीछे से हज़ारों की संख्या में और आदमखोर बाहर निकल आए थे। यह उन सबका मालिक लग रहा था; ऐसा लग रहा था कि जो भी आदमखोर हमला करने के लिए आए हैं, वे सब उसी के आदेश पर चल रहे थे। क्या उसी ने सभी आदमखोरों को इकट्ठा किया और उन्हें गाँव पर हमला करने के लिए मजबूर किया?
लखन की परेशानी और भी ज़्यादा बढ़ गई। पहले ही आदमखोरों की संख्या काफी ज़्यादा थी, और अब तो यह और भी बढ़ गई थी। लखन भागने की तैयारी करने लगा, लेकिन तभी एक आदमखोर ने उसे गिरा दिया और अपने चारों पैरों से उसके ऊपर आकर खड़ा हो गया। लखन ने अपनी तलवार से उसके दिल की ओर निशाना साधा और उसके दिल को चीर दिया। लखन की धड़कनें तेज हो गई थीं; उसे लगा कि अगर वह आदमखोर के दिल को निशाना बनाएगा, तो वह मर जाएगा। मगर जब लखन ने तलवार बाहर निकाली, तो उसके दिल के आस-पास हल्के बिजली के स्पार्क वाली रोशनी के साथ अजीब सा धुआँ निकला, और दिल वापस पहले जैसा हो गया। आदमखोर की आँखों का रंग बदल गया, और वे लाल रंग की गहरी रोशनी में बदल गईं, जिनमें अजीब सा कालापन था। उसने ऊपर की ओर चेहरा किया और जोर से दहाड़ा। उसकी दहाड़ पहाड़ी की चोटी पर खड़े आदमखोरों ने सुनी, और वे भी सामने से अजीब से तरीके से दहाड़ा। लखन ने उसके शरीर पर नीचे से अपनी तलवार से कई हमले किए। उसने उसके पैर पर हमला किया ताकि वह नीचे गिर जाए, मगर वह हिला तक नहीं। अब लखन को अपनी मौत अपनी आँखों के सामने दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह आज ज़िंदा वापस नहीं जा पाएगा और न ही गाँव वालों को बता पाएगा। इसके बाद गाँव वालों का भी अंत निश्चित था, क्योंकि वे किसी भी तरह की लड़ाई के लिए तैयार नहीं थे। उसने हिम्मत नहीं हारी और लगातार अपनी तलवार से हमले करता रहा। अचानक, एक हमले को आदमखोर ने अपने मुँह से पकड़ा और उसकी तलवार छीनकर दूर फेंक दी। लखन ने आदमखोर को हाथ के मुक्के से मारने की कोशिश की, मगर आदमखोर ने उसका हाथ अपने मुँह में ले लिया और अगले ही पल इतना जोरदार झटका दिया कि उसका हाथ कंधे से अलग हो गया। लखन जोर से चिल्लाया क्योंकि उसका हाथ उसके कंधे से अलग हो गया था। खून के फुहारें उसके कंधे से निकलने लगे, और उसके चेहरे पर भीषण दर्द छा गया। अब लखन की मौत उसके सामने खड़ी थी। आदमखोर ने उसके हाथ को ऐसे खींचा ता जैसे कोई कुत्ता हड्डी को खींचता हो, और अब वो उसे अपने बिना त्वचा वाले पेट में ले गया था। लखन की उंगलियाँ और उसके हाथ के टुकड़े आदमखोर के पेट में साफ़ दिखाई दे रहे थे। आदमखोर ने दोबारा आसमान की ओर देखा और शोर मचाया। फिर उसने अपना मुँह खोला और लखन के सिर को कुतरने की तैयारी करने लगा। लखन को अपनी सारी उम्मीदें खत्म होती हुई दिखाई दे रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे वह आज ज़िंदा नहीं बचेगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। आँखें बंद करके बोला, "हे ऊपर वाले, हे भगवान, मैं नहीं चाहता आप मेरी हिफ़ाज़त करें, मगर मेरे इस गाँव का और मेरे परिवार का ख़्याल ज़रूर रखना। मेरे इस गाँव को और मेरे परिवार वालों को बचा लेना। भगवान, अब बस आप ही हो जो इस गाँव को बचा सकते हो।" देवांश, जो जंगल में दौड़ रहा था, अचानक उसे अपने कानों में यह सब सुनाई दिया। देवांश ने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसकी आँखों से आँसुओं का कतरा निकलकर उसके गालों पर आ गया। वह हवा में उछल रहा था, दौड़ते हुए। आँसुओं का कतरा उसके गाल से लुढ़का और जमीन पर गिर गया। जैसे ही वह जमीन पर गिरा, ऐसा एहसास हुआ जैसे कोई उल्कापिंड जाकर जमीन पर गिर गया हो। एक तेज तरंग चारों ओर फैलती चली गई; आस-पास के पेड़-पौधे झूलकर गिर गए। जमीन पर ऐसा एहसास हुआ जैसे कोई भूकंप आ गया हो। देवांश के आँसू उसकी आँखों से बहते रहे। देवांश ने अपनी आँखें खोलीं तो वे सामान्य आँखें नहीं थीं, बल्कि सुनहरे रंग से चमकती हुई आँखें थीं। अचानक यह सुनहरा रंग उसके शरीर के आस-पास भी दिखाई देने लगा, और जब उसके पैर जमीन पर आए, तब उसकी चाल पहले से भी कई गुना तेज हो गई। जब वह दौड़ रहा था, तब उसके पीछे पीले रंग की रोशनी की एक छाया छूट रही थी, जैसे उसके शरीर से भयानक आग बाहर निकल रही हो और वह पीछे ही रह गई हो, जबकि वह दौड़कर आगे निकल गया हो। आदमखोर उसके पिता को नुकसान पहुँचाने वाला था, तभी देवांश वहाँ पहुँचा और उसने जोरदार मुक्का आदमखोर के मुँह पर मारा। जैसे ही वह मुक्का आदमखोर के मुँह पर पड़ा, वह हवा में तेज़ी से उछला और एक नहीं, दो नहीं, तकरीबन एक दर्जन से ज़्यादा पेड़ों को तोड़ते हुए दूर जा गिरा। उसकी हड्डियाँ बुरी तरह से टूट गई थीं, और जब भी वह किसी पेड़ से टकराया था, तब बिखर गई थीं। देवांश के शरीर को देखकर और उसके शरीर के आस-पास निकलने वाली सुनहरी रंग की रोशनी को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह गुस्से में था। देवांश ने अपने पिता की ओर देखा, जो आँखें बंद किए हुए थे। उसके पिता ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं, तो उसे अपने ठीक सामने देवांश नहीं, बल्कि रोशनी से चमकता हुआ कोई शख़्स दिखाई दिया। उसका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था; तेज रोशनी की वजह से वो उसके चेहरे को नहीं देख पा रहा था। देवांश ने अपना हाथ अपने पिता की ओर बढ़ाया, "उठिए पिताजी..." देवांश बोला, और उसके पिता जैसे होश में आ गए। क्या यह उसका बेटा है? रोशनी से चमकता हुआ एक लड़का जो उसके ठीक सामने खड़ा है, क्या यह उसका बेटा है? एक आदमखोर ने दाएं ओर से हमला करने की कोशिश की, मगर देवांश ने अपना हाथ हवा में कर दिया। उसके हाथ से रोशनी की चमक किसी तेज लाइट की तरह निकली और उसने आदमखोर को हवा में ही रोक लिया। हे भगवान!! इतना ताक़तवर शख़्स!! इतना ताक़तवर लड़का!! क्या यह उसका बेटा है? उसका बेटा, जो सिर्फ़ अपनी 9 साल की उम्र में है, क्या इतना ताक़तवर है?? अपने बचे हुए हाथ को लखन ने अपने बेटे के हाथ में रख दिया। उसके बेटे के शरीर से पीले रंग की ऊर्जा लखन के शरीर में जाने लगी। इससे लखन का हाथ वापस तो नहीं आया, मगर उसे जो भी दर्द का एहसास हो रहा था, वह सारा ख़त्म हो गया। यह एक करिश्मा था। दर्द का एहसास पूरी तरह से गायब हो गया। यह चमत्कार था। लखन जैसे लोगों के लिए, जो बस एक छोटे से टापू पर रहते थे और जिन्हें यह भी नहीं पता था कि इस टापू के अलावा भी किसी जगह पर दुनिया मौजूद है, उनके लिए यह चमत्कार था। *** लखन को देवांश ने खड़ा किया। लखन देवांश के पीछे आया और पहाड़ी की ओर देखते हुए बोला, "बेटा, हमारा गाँव इस वक़्त ख़तरे में है; ये बहुत ज़्यादा संख्या में हैं। अगर इतने सारे आदमखोर हमारे गाँव में पहुँच गए, तो कोई भी ज़िंदा नहीं बचेगा।" देवांश ने पहाड़ी की ओर देखा, "आप फ़िक्र मत कीजिए पिताजी, जब तक मैं इस गाँव में हूँ, तब तक इनमें से कोई भी इस गाँव के रहने वालों को, तो छोड़िए, यहाँ के जीव को भी हाथ नहीं लगा सकता।" यह कहकर देवांश ने अपना हाथ ऊपर किया और जोर से बोला, "द डिसेंशन!" लखन नहीं जानता था उसने क्या बोला और क्यों बोला। मगर जैसे ही उसने ये शब्द बोले, आसमान में एक सुनहरे रंग की चमक उठी। फिर उस चमक से एक के बाद एक अलग-अलग रेखाएँ निकलने लगीं, जैसे कोई कलम से वहाँ पर एक चित्र बना रहा हो। आसमान में बन रहा यह पीली रोशनी का चित्र दूर से भी देखा जा सकता था। गाँव में मौजूद हर एक शख़्स, जो अपने घर में था, इस रोशनी की वजह से बाहर आ गया। सब की आँखें बस इस चक्र को ही देख रही थीं जो अभी तक बन ही रहा था। जो भी इसे देख रहा था, उसकी आँखें हैरत से खुली की खुली रह गई थीं। और मन में एक सवाल, कि आखिर यह है क्या? वीर और श्री भी जंगल की ओर आ रहे थे ताकि वे लखन के पास पहुँच सकें, मगर वे अभी तक काफी दूर थे। रास्ते में ही उनकी नज़र आसमान पर गई, तो वे भी रुक गए। वीर को तो समझ ही नहीं आ रहा था यह क्या है, मगर श्री इसके बारे में जानती थी। श्री ने धीमी आवाज़ में कहा, "उसने तो कहा था कि वह अभी चक्र शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकता है; इसके लिए 15-16 साल की उम्र होना ज़रूरी है, मगर वो...वह तो इसका इस्तेमाल कर रहा है! यानी उसने मुझे झूठ कहा था। इस वक़्त वह चक्र बना रहा है; यह उसे गुफ़ा में आने वाला पहला चक्र है।" आसमान में एक विशाल आकृति बन गई जो अनजान लोगों के लिए आड़ी-टेढ़ी लकीरों के सम्मेलन के अलावा और कुछ भी नहीं थी, मगर जो इसको जानते थे, जिनमें सिर्फ़ श्री इकलौती थी, उसे पता था यह क्या था। द डिसेंशन। देवांश का पहला चक्कर।
जो भी आदमखोर पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे, उन्हें इस चक्कर से कोई खास चिंता नहीं था। उनका ध्यान केवल आगे की ओर था, और वे दौड़ने पर ही केंद्रित थे। अचानक, चक्कर से पीले रंग की रोशनी, बारिश के पानी की तरह नीचे गिरने लगी। चाँदनी रात में, इस पीली रोशनी ने पहाड़ी के साथ-साथ आसपास के जंगल को भी ढँक लिया। इसकी सीमा देवांश के ठीक सामने थी; इसके आगे यह रोशनी नहीं जा रही थी, जबकि पीछे यह रोशनी उस आदमखोर के पैरों के पास आकर समाप्त हो गई थी, जो पहाड़ी की चोटी पर सबको आदेश दे रहा था। वह इसकी जद में नहीं था। सारे दौड़ रहे आदमखोर, जो इस पीली रोशनी के अंदर थे, उनके शरीर को पीले रंग की रोशनी की बारिश छलनी करने लगी। देखते ही देखते, हजारों की संख्या में आदमखोरों का शरीर खत्म होने लगा, जैसे उन पर तेज़ाब गिर रहा हो और उन्हें गला रहा हो। पहाड़ी से अभी भी आदमखोर आ रहे थे, और जो भी आदमखोर इस पीली रोशनी के अंदर आ रहे थे, वे खत्म होते जा रहे थे। देखते ही देखते, कुछ क्षणों में, हजारों की संख्या में जो भी आदमखोर इस रोशनी की जद में थे, वे सब खत्म हो गए, और पीछे बस उनकी हड्डियाँ और उनके कंकाल रह गए, जो अब पहाड़ी पर पत्थर के बारीक टुकड़ों की तरह लुढ़क रहे थे। पहाड़ी की चोटी पर खड़े आदमखोर ने, अपना चेहरा ऊपर करके, एक अलग तरह की आवाज निकाली, जो क्रोध से भरी हुई थी। इस आवाज के निकलते ही, सारे आदमखोर अपनी जगह पर रुक गए। वे आदमखोर, वह भी जो इससे पहले पागलों की तरह रोशनी में जा रहे थे, यह जानते हुए भी कि इसके अंदर जाने से वे मर रहे हैं। इस हरकत से पता चला कि सारे आदमखोर उसके वश में थे और केवल उसी की बात सुन रहे थे। आदमखोर ने एक और आवाज निकाली, जिससे वे सारे दाएं और की पहाड़ीयों की ओर दौड़ने लगे, न कि सामने की ओर। देवांश ने अपना हाथ नीचे किया और फिर लखन की ओर पलटा, “आपको गाँव वालों को आश्रम में इकट्ठा होने के लिए कहना चाहिए। अगर गाँव वाले अलग-अलग जगह पर रहेंगे, तो उन्हें बचा पाना मुश्किल होगा, लेकिन एक जगह पर रहेंगे तो बचाना आसान होगा।” लखन ने सिर हिलाया और फिर वह गाँव की ओर दौड़ पड़ा। वहीं देवांश सामने मौजूद सुनहरे रंग की रोशनी में प्रवेश कर गया। वह इस रोशनी के अंदर से अब उस आदमखोर की ओर जा रहा था जो उसे पहाड़ी की चोटी पर दिखाई दे रहा था। उस आदमखोर ने अपना चेहरा नीचे किया और देवांश को देखा। दोनों के बीच में अभी काफी दूरी थी। देवांश अपनी तेज नज़रों की वजह से उसे दूर से ही देख पा रहा था, जबकि जो आदमखोर चोटी पर खड़ा था, उसके पास भी शायद ऐसा ही कोई गुण था। वह आदमखोर पलटा और बाकी आदमखोरों के साथ दाएँ तरफ़ जाने लगा। कुछ हद तक वह पैदल चला, इसके बाद उसने अपने पंख फैलाए और वह हवा में उड़ने लगा। देवांश ने पहाड़ी पर आगे बढ़ना शुरू कर रखा था ताकि वह आदमखोरों के मुखिया के पास पहुँच सके या चोटी पर, और फिर वहाँ से उनका पीछा कर सके। जंगल में लखन जितना तेज हो सकता था उतना तेज दौड़ रहा था। रास्ते में पहुँचते ही उसे वीर और श्री दिखाई दिए। वीर ने जैसे ही उसका हाथ देखा, वह शोक में पड़ गया, “लखन, तुम्हारे हाथ को क्या हुआ?” श्री उसके हाथ की हालत देखकर डर गई, “अंकल, आपका हाथ?” लखन ने अपने हाथ की ओर देखा जहाँ अब केवल खून का थक्का रह गया था और फिर कहा, “अभी हमें इसकी फ़िक्र नहीं, बल्कि गाँव वालों की फ़िक्र करनी है। सारे आदमखोर गुफ़ाओं से बाहर आ गए हैं और उन्होंने एक साथ हमला कर दिया है। आज से पहले उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया था। पहली बार सारे आदमखोर गुफ़ाओं से बाहर आए हैं और ऐसा लग रहा है जैसे हम समय से पहले उनका कुछ नहीं करेंगे तो गाँव में से कोई भी नहीं बचेगा। उनकी संख्या हज़ारों में है, या फिर यह और भी ज़्यादा हो सकती है क्योंकि मुझे पहाड़ी के पीछे और कितने आदमखोर हैं, यह दिखाई नहीं दिया।” यह सुनकर वीर और श्री दोनों परेशान हो उठे। वीर बोला, “हे भगवान, यह सब आखिर क्या है? अगर वे अपने मकसद में कामयाब हो गए तो गाँव का कोई भी शख्स नहीं बचेगा, यहाँ तक कि बच्चे भी नहीं।” फिर वीर का ध्यान उस रोशनी पर गया जो अभी भी आसमान में थी और एक चक्कर के रूप में थी। वीर ने लखन से पूछा, “लेकिन लखन, यह आसमान में क्या है और यह अजीब सी पीली रोशनी जमीन पर क्यों गिर रही है?” लखन ने रोशनी की ओर देखा, “अभी तो मैं भी इसके बारे में कुछ नहीं जानता हूँ, मगर यह सब कुछ देवांश का किया हुआ है। मुझे नहीं पता उसने यह कैसे किया, और वह यह सब कैसे कर पा रहा है, लेकिन इस वक्त अगर मैं ज़िंदा हूँ तो बस उसी की वजह से हूँ और उसी ने आदमखोरों को इस रास्ते से गाँव में आने से रोका है। अगर आदमखोर इस रास्ते से जाने में कामयाब हो जाते, तो वे सबसे जल्दी गाँव पहुँच जाते, क्योंकि यह रास्ता सबसे पास पड़ता है।” वीर के चेहरे पर अचंभा दिखा, “मगर देवांश आखिर वह है क्या? यह सब कैसे?” श्री बोली, “वह डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करता है, उसने मुझे भी इसका इस्तेमाल करना सिखाया है। यह डिवाइन ऊर्जा एक खास तरह की ऊर्जा होती है जिसका इस्तेमाल केवल भगवान करते हैं।” लखन और वीर के चेहरे पर हैरानी थी। लखन बोला, “लेकिन अगर इस ऊर्जा का इस्तेमाल सिर्फ़ भगवान करते हैं, तो फिर देवांश कैसे इसका इस्तेमाल कर पा रहा है?” वहीं वीर ने कहा, “इसका मतलब देवांश भी भगवान है? मगर नहीं, यह नहीं हो सकता। वह भगवान नहीं है।” उसने श्री की ओर देखा, “श्री ने कहा वह भी इसका इस्तेमाल कर सकती है, इसका मतलब क्या है वह भी भगवान है? डिवाइन ऊर्जा के बारे में मैंने भी काफी कुछ सुना है, लेकिन शायद हम इसके बारे में नहीं जानते, इसलिए हमें नहीं पता यह कैसे इस्तेमाल होती है। क्या पता देवांश ने कुछ खास किया होगा, जिससे वह इस ऊर्जा का इस्तेमाल करना सीख गया और फिर उसने इसे दूसरों को भी सिखा दिया।” श्री बोली, “उसने कहा था, उसे आश्रम में एक गुप्त कमरा मिला था, और उस कमरे में कुछ किताबें थीं, जिनमें डिवाइन एनर्जी का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके बारे में लिखा गया था। वहीं से उसने डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करना सीखा।” वीर यह सुनते ही बोला, “देखा, मैंने कहा था ना, उसने कुछ खास किया होगा। उसने उन किताबों से सब कुछ सीखा है, वरना कोई भगवान थोड़ी ना हो सकता है।” एक तरह की बहस शुरू हो गई थी जिसे लखन ने रोकते हुए कहा, “हम इस पर बाद में बहस करेंगे, और खुद देवांश से ही पूछ लेंगे, क्या है क्या नहीं, लेकिन अभी के लिए हमें गाँव जाना होगा और सभी लोगों को आश्रम में इकट्ठा करना होगा। देवांश ने कहा है , सभी को आश्रम में इकट्ठा करो, ताकि उनको बचाना आसान हो जाए, वरना गाँव में अलग-अलग जगह पर उन्हें बचना आसान नहीं होगा।” वीर और श्री दोनों ने इस बात पर सहमति जताई और फिर तीनों ही एक साथ गाँव की ओर दौड़ने लगे। गाँव पहुँचते ही वे सभी अलग-अलग घरों में जाने लगे और वहाँ के लोगों को आश्रम जाने के लिए कहने लगे। श्री दौड़कर गाँव के खतरे के अलार्म के पास पहुँची जहाँ पर एक बड़ा सा घंटा टंगा हुआ था, और फिर जोरदार मुक्का मारकर उस घंटे को बजा दिया। बड़े घंटे को बजाने के लिए दो आदमियों की ज़रूरत पड़ती थी, मगर श्री के पास भी डिवाइन एनर्जी इस्तेमाल करने की ख़ासियत थी, इसलिए उसने डिवाइन एनर्जी का इस्तेमाल करके उस घंटे को बजा दिया। इस घंटे की आवाज़ सुनकर, जो कोई भी उसे सुन पाता था, वह इस घंटे के पास इकट्ठा हो जाता था ताकि जो भी परेशानी हो, वह सबको बताई जा सके। यह एक इमरजेंसी अलार्म की तरह था, जिसमें इस घंटे के बजने पर लोगों को यहाँ इकट्ठा होना ही था। और फिलहाल यही हो रहा था। गांव पर आया ये खतरा बहुत बड़ा था।
देखते ही देखते भीड़ इकट्ठी हो गई। जो लोग इस घंटे की आवाज़ से दूर थे, वहाँ लखन और वीर दोनों ही उन्हें आगाह कर रहे थे और आश्रम जाने के लिए कह रहे थे। जब काफी सारे लोग इकट्ठे हो गए, तब श्री ने सभी को कहा, “सभी ग्रामीणों, मेरी बात ध्यान से सुनो। इस वक्त हम बहुत बड़ी मुसीबत में फँस चुके हैं। हमारे गाँव पर आदमखोरों ने मिलकर हमला कर दिया है। हम सभी को अभी के अभी आश्रम जाना होगा। कृपया सभी आश्रम चलें।” सारे ग्रामीणों में हलचल होने लगी और फिर जल्द ही सब अपने-अपने घरों में दौड़ने लगे ताकि अपने बच्चों को लेकर आश्रम में जा सकें। मौसम काफी क्रूर था और इस क्रूर मौसम में कुछ भी कर पाना इतना आसान नहीं था। पूरे गाँव में भय था। कई सारे सवाल ग्रामीणों के मन में थे, मगर अभी तक न तो उन्हें कोई जवाब देने के लिए यहाँ पर था और न ही यह समय था कि वे इस तरह के सवाल पूछ सकें। तभी एक और पीले रंग की रोशनी आकाश में दिखाई दी और यह रोशनी पहले वाली रोशनी से भी ज़्यादा तेज थी। लखन और वीर दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर थे और श्री भी घंटे के पास थी। जब तीनों ने इस रोशनी की ओर देखा, तो फिर से तीनों हैरानी से उस रोशनी की ओर देखने लगे। श्री ने रोशनी की ओर देखते हुए कहा, “देवांश ने अब दूसरे चक्र का इस्तेमाल किया है। यह लड़का एक के बाद एक अलग-अलग चक्र का इस्तेमाल करता जा रहा है।” पहाड़ी की चोटी पर देवांश मौजूद था और उसने अपना एक हाथ ऊपर कर रखा था और अभी-अभी उसने जो शब्द बोला था, वह था, “द डिस्ट्रॉयर।” देवांश ने जो पहला चक्र इस्तेमाल किया था, उसमें जो भी चक्र की रोशनी में आता था वह पूरी तरह से नष्ट होकर हड्डियों के टुकड़ों में बदल जाता था, इसलिए उस चक्र का नाम ‘द डिसेशन’ था; और इस बार देवांश जिस चक्र का नाम ले रहा था, वह था ‘द डिस्ट्रॉयर’। एक ऐसा चक्र जिसके अंदर जो भी मौजूद रहता है व़ पटाखों की तरह फुटने लगता है। देवांश के चक्र में ढेर सारे आदमखोर थे। जो भी आदमखोर थे, वे अब फुट रहे थे। देवांश का असली लक्ष्य इन आदमखोरों का मुखिया था जो इस वक्त आकाश में उड़ रहा था और देवांश की पहुँच से काफी दूर था। देवांश ने दोबारा दौड़ना शुरू किया। वह अपने रोशनी के चक्र में से आदमखोरों के करीब से निकलते हुए दौड़ रहा था। वह पहाड़ी के ऊपर था और पहाड़ी की चोटी पर ही दौड़ते हुए वह उस आदमखोर का पीछा कर रहा था जो अब आकाश में उड़ रहा था। दो आदमखोर उस पर हमला करने की कोशिश की, मगर वे उसकी और मुड़ ही रहे थे कि अचानक हवा में ही एक धमाके के साथ फट गए। यह देवांश की शक्ति थी जिसमें अगर कोई उसे भूलकर भी छूता था तो वह फट जाता था। देवांश अपने घेरे से बाहर आ गया। आदमखोरों का सरदार अब गाँव की ओर मुड़ गया था और वह आश्रम की ओर ही जा रहा था। देवांश आश्रम से काफी दूर था। देवांश बोला, “यह हवा में उड़ रहा है, जिसकी वजह से यह कहीं भी मुझसे पहले पहुँच सकता है; मुझे इसे किसी तरह से आश्रम पहुँचने से रोकना होगा।” यह कहकर उसने अपनी आँखें बंद की और दोनों हाथों को फैला दिया। उसके ऐसा करते ही आकाश में हलचल होने लगी और काले बादल इकट्ठे होने लगे। देवांश बोला और उसके बोलने की आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई भविष्यवाणी हो रही हो, “मैं जानता हूँ आपने मेरी इस शक्ति को प्रतिबंधित कर रखा है, मैं प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता हूँ और प्रकृति के नियमों को बदल नहीं सकता, मगर फिर भी मैं यह करने जा रहा हूँ क्योंकि यह करना ज़रूरी है।” आकाश में बिजली चमकने लगी और ये सारे काले बादल तेज़ी से आदमखोरों के मुखिया की ओर जाने लगे। बिजली की तरंगों के बीच में अब आदमखोर के मुखिया को उड़ना पड़ रहा था और यह कहीं से भी उसके लिए आसान नहीं था। बिजली की एक तरंग उसके ऊपर गिरी। फिर और तरंगें गिरीं और एक के बाद एक कई सारी बिजली की तरंगें उसके ऊपर गिरने लगीं। वह आकाश में बुरी तरह से चिल्लाने लगा। अचानक उसने अपनी गर्दन को नीचे किया और फिर चेहरा ऊपर करके दहाड़ मारी और तेज़ी से ऊपर की ओर ही उड़ान भरने लगा। देवांश जानता था यह सब उसे ज़्यादा देर तक नहीं रोक पाएगा क्योंकि वह इस वक्त काले बादलों को इकट्ठा करके बिजली गिरा रहा था। इसलिए उसने आदमखोर को बिजली की तरंगों के बीच ही छोड़ दिया और तेज़ी से आश्रम की ओर जाने लगा। वहीं आदमखोरों का मुखिया उड़ते हुए बादलों के ऊपर आ गया जहाँ उसे किसी तरह का खतरा नहीं था, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे वह बादलों के खतरे से डरकर ऊपर नहीं आया था, बल्कि कुछ और ही कारण से ऊपर आया था। उसने अजीब नज़रों से बादलों को देखा, जिससे वह सारे बादल तेज़ी से अपनी जगह पर घूमने लगे और वे पहले से ही ज़्यादा खतरनाक हो गए। फिर वे सारे के सारे बादल आश्रम की ओर जाने लगे। उसने दूर से अपनी नज़रों का इस्तेमाल किया तो उसे काफी सारे लोग अब आश्रम की ओर जाते हुए दिखाई दिए। वह बड़ा आदमखोर, उड़ते हुए किसी विशाल राक्षस की तरह लग रहा था जो सच में इतना विशाल था कि आकाश में उड़ता हुआ भी वह तकरीबन आधे गाँव के बराबर के हिस्से को ढँक रहा था। किसी पहाड़ी के तौर पर देखा जाए तो वह एक छोटी पहाड़ी को पूरा का पूरा ढँक ले, इतना बड़ा था उसका आकार। देवांश जंगल में से होते हुए तेज़ी से दौड़ रहा था। उसके दौड़ने की रफ़्तार की वजह से वह एक जगह से दूसरी जगह पर काफी तेज़ी से जा रहा था। देवांश ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके द्वारा बनाए गए बादल अब उसी के पीछे आ रहे थे। उसके ठीक पीछे बारिश का तेज पानी और उनके बीच में बिजली की तरंगें गिरने लगीं। देवांश को अब अपने दौड़ने की रफ़्तार को और तेज करना पड़ा। रात के अंधेरे में बर्फीली सतह पर गिरती हुई बिजली की तरंगें और होती ही बारिश—इन सब पर कोई भी यकीन न करे, लेकिन इस वक्त सब कुछ ऐसा हो रहा था जिस पर कोई भी यकीन नहीं कर सकता था। लखन और वीर भी अब आश्रम आ चुके थे और आहूदी भी यहाँ पर थी। आहूदी लखन के पास आई और उसके हाथ की ओर देखकर वह रोने लगी, “हे भगवान! आपके हाथ को क्या हुआ? भगवान, आपने मेरे पति के साथ ऐसा क्यों किया? आपने उनकी जान क्यों नहीं बचाई?” लखन ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा, “यह सब तुम क्या कह रही हो? मेरा सिर्फ़ एक हाथ गया है, लेकिन मेरी जान बच गई है। इसमें भी भगवान की मर्ज़ी थी। तुम इस तरह से मत रो।” आहूदी को अपने बच्चों का ख्याल आया, “मगर इस वक्त देवांश कहाँ पर है? वह मुझे आपके साथ क्यों नहीं दिखाई दे रहा है? भगवान, मेरा देवांश कहाँ पर है?” लखन ने कहा, “तुम अपने बेटे की फ़िक्र मत करो। पता नहीं उसके पास क्या है, क्या नहीं, लेकिन इस वक्त जितने भी गाँव वाले सुरक्षित हैं, वे बस उसकी वजह से सुरक्षित हैं। वह डिवाईन ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकता है, जो एक अलग तरह की ऊर्जा है और इसका इस्तेमाल बस भगवान ही कर सकते हैं।” आहूदी अपने चेहरे पर अचंभा लिए बोली, “क्या इसका मतलब मेरा बेटा भगवान है? नहीं, पर यह कैसे हो सकता है?” लखन समझाते हुए कहा, “ज़रूरी नहीं कि वह भगवान हो। डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल श्री भी कर सकती है और उसने बताया कि देवांश ने आश्रम में मौजूद एक गुप्त ग्रंथ से यह सब कुछ सीखा था।”
आश्रम वाले सारे एक ही जगह पर इकट्ठे हो रहे थे और सब में अलग-अलग तरह की बातें हो रही थीं। वहाँ मौजूद किसी एक व्यक्ति ने कहा, “मुझे बहुत डर लग रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे आज हम सब मारे जाएँगे। खुद मौत की देवी हमसे बदला लेने के लिए आई है।” वहीं उसके पास मौजूद दूसरा व्यक्ति बोला, “चुप रहो! हमें हमारे गाँव के मुखिया पर पूरा भरोसा है। उसने हमें हर बार इन आदमखोरों से बचाया है और जब सर्दियाँ काफी ज़्यादा थीं, तब हमने इन्हीं आदमखोरों का मांस खाया था और इसमें भी हमारे मुखिया का ही हाथ था। इस बार भी वह हमें किसी तरह से बचा लेगा।” एक और आदमी उनके पास आया और वह बोला, “क्या तुम लोगों ने सुना? हमारे मुखिया का बेटा एक खास तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल करता है जो सिर्फ़ भगवान कर सकते हैं?” यह सुनकर पहले वाले आदमी ने कहा, “मगर यह कैसे हो सकता है? क्या लखन का बेटा भगवान है?” धीरे-धीरे यह बात बाकी के लोगों में भी फैलने लगी और सब तरफ़ बस इसी तरह की बातें होने लगीं कि क्या देवांश एक भगवान है। सब इसी तरह की बातें कर रहे थे, तभी सबका ध्यान आकाश की ओर गया। सब यह देखकर और भी ज़्यादा डर गए। आकाश में काले बादलों का एक झुंड तेज़ी से उनकी ओर आ रहा था। आश्रम में ज़्यादा कमरे नहीं थे, इसलिए ज़्यादातर लोगों को बाहर ही खड़े रहना पड़ रहा था और अब जिस तरह से बादल और उनकी होने वाली बारिश उनकी ओर बढ़ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वे सर्दी में ही जम जाएँगे। अगर वे बारिश में भीग जाते हैं तो इतनी ठंड में किसी के भी बचने की उम्मीद नहीं थी। लखन तेज़ी से चिल्लाया, “सारे आश्रम के कमरों को खाली करो! हमें सबसे पहले बच्चों को सुरक्षित करना है। जिन-जिन के पास बच्चे हैं, वे सब के सब अपने बच्चों को आश्रम के कमरों में छोड़ दें ताकि कोई भी पानी में भीग न पाए।” महर्षि दयानंद इसमें सबकी मदद कर रहे थे। श्री की मां ने श्री को कमरे में बंद होने के लिए कहा, मगर श्री बोली, “नहीं माँ, मैं आप सबके साथ बाहर ही रहूँगी। आप चिंता मत कीजिए, मुझे कुछ नहीं होगा।” सारे बच्चों को आश्रम के कमरों में बंद कर दिया गया था। महर्षि दयानंद और कुछ और आश्रम के ऋषि सभी बच्चों को कमरों में संभाल रहे थे। देवांश का अभी तक कोई अता-पता नहीं था और बादल भी तेज़ी से आ रहे थे। अभी यह मुसीबत ख़त्म नहीं हुई थी कि तभी सभी ग्रामीणों को दाहिनी ओर से एक और आवाज़ सुनाई दी। लखन ने अपनी तलवार निकालकर उस ओर देखा तो उसने देखा काफी सारे आदमखोर वहाँ से भी आ रहे हैं। ये सारे आदमखोर उस झुंड का हिस्सा नहीं थे, जो आदमखोरों के मुखिया के साथ था, बल्कि ये तो अलग दिशा से अपना खुद का अलग झुंड बनाकर आए थे। उसकी नज़र दूर गई तो वहाँ पर उसने एक और आदमखोर को देखा जो पहले वाले आदमखोर की तरह ही लग रहा था, लेकिन उसके पंखों से आग निकल रही थी। वहीं पहले वाले आदमखोर के पंखों पर उसे बिजली की तरंगें दिखाई दी थीं। लखन का ध्यान अभी उस ओर था, तभी एक और दिशा से आवाज़ आने लगी। वीर ने उस ओर झांककर देखा तो यहाँ पर भी एक बड़ा आदमखोर था जिसके पंखों से काले रंग का अजीब सा धुआँ निकल रहा था। फिर एक ओर से और आवाज़ आई, जिस ओर श्री ने झांकर देखा तो उसे ढेर सारे आदमखोर और फिर सबकी अगुवाई करने वाला एक आदमखोर दिखाई दिया। उस आदमखोर के पंख तारों की तरह टिमटिमा रहे थे। लखन, वीर और श्री तीनों एक जगह पर इकट्ठे हो गए। लखन ने कहा, “हम आज तक इन आदमखोरों का रहस्य कभी सुलझा नहीं पाए और न ही हम यह कभी जान पाए कि उनकी गुफा में और कितने ताकतवर आदमखोर हैं, लेकिन अब ऐसा लग रहा है जैसे हम लोग उनके सामने बस चींटी की तरह हैं। इन्होंने कभी भी हमें अपनी पूरी ताकत नहीं दिखाई, लेकिन आज ये अपनी पूरी ताकत दिखाने के लिए आए हैं, और दिखा भी रहे हैं।” श्री बोली, “मगर इतने सारे आदमखोरों का सामना तो देवांश भी अकेले नहीं कर पाएगा, हमें उसकी मदद करनी होगी।” वीर इतने सारे आदमखोरों को देखकर बोला, “मगर इतने सारे आदमखोरों के आगे हम क्या मदद कर सकते हैं? अब सिर्फ़ ऊपर वाला ही हमारी जान बचा सकता है, इसके अलावा और कोई नहीं।” लखन ने वीर से कहा, “ऊपर वाला क्या करता है, क्या नहीं, यह बाद में देखेंगे। अभी के लिए सभी गांव वालों को इकट्ठा करो और उन्हें बोलो कि लड़ने के लिए तैयार हो जाएँ। हमारे बच्चे इस वक़्त यहाँ पर हैं और हमारे होते हुए हम इन आदमखोरों को उन्हें नुकसान पहुँचने नहीं देंगे।” वीर ने सिर हिलाया और फिर सारे ग्रामीणों को यह बात जाकर बताई और उन्हें लड़ने के लिए तैयार रहने के लिए कहा। कुछ ही देर में सारी औरतें एक ओर हो गईं और सारे मर्द अपनी-अपनी तलवारें पकड़कर घेरा बनाकर खड़े हो गए। उधर बारिश करने वाले बादल तेज़ी से आ रहे थे, इधर आदमखोरों का झुंड भी आ रहा था और देवांश का कोई अता-पता नहीं था। आदमखोरों का झुंड आश्रम के पास आया और वे तेज़ी से यहाँ मौजूद लोगों की ओर जाने लगे। वहीं जो गाँव के लोग थे, वो आदमखोरों का सामना करने लगे। आदमखोरों की तादाद ज़्यादा थी; गाँव वाले ठीक से सामना भी नहीं कर पा रहे थे और जल्दी ही घायल हो रहे थे, जिन्हें औरतें संभालकर पीछे कर रही थीं। अचानक आकाश के बादल भी यहाँ पर आ गए और सारे के सारे लोग बारिश के पानी से भीग गए और ठंड की वजह से काँपने लगे, जिससे लड़ना और भी मुश्किल हो गया। अभी आदमखोर बड़े झुंड में हमला नहीं कर रहे थे, लेकिन जो भी आ रहे थे उनकी संख्या भी काफी ज़्यादा थी। लखन ने अपनी बेटे देवांश की शक्ति को याद किया जहाँ उसने बस एक शब्द को पढ़ने के बाद ही हज़ारों की संख्या में आदमखोरों को एक ही बार में मार दिया था। लखन सोचने लगा कि अब इस वक़्त अगर उसका बेटा यहाँ पर होता तो वह इतने सारे आदमखोरों को खत्म कर देता। श्री ने अपनी आँखें बंद की और अपनी दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल करते हुए पहले चक्र, ‘द डिसेंशन’ चक्र का इस्तेमाल करने की कोशिश की। वह जोर से बोली, “द डिसेंशन!” मगर उसके पास इतनी ज़्यादा डिवाइन ऊर्जा नहीं थी कि वह इस तरह का चक्र बना सके, इसलिए कोई फायदा नहीं हुआ। उसे वापस से तलवार से ही इन आदमखोरों को खत्म करना पड़ा। आदमखोरों के झुंड का हमला तेज होने लगा और गाँव के लोग एक के बाद एक जख़्मी होने लगे। कुछ देर में काफी सारे गाँव वाले जख़्मी हो गए और अब कुछ गाँव वाले ही बचे थे जो बाकी लोगों को बचा पाने में सफल नहीं हो रहे थे। अचानक एक आदमखोर ने इंसानों के झुंड में प्रवेश किया और एक औरत को उठाकर दूर पटक दिया। लखन ने अपनी तलवार फेंककर उस आदमखोर को मारा जिससे वह घायल होकर वहीं पर गिर गया। लेकिन तभी एक आदमखोर लखन के ऊपर गिरा और उसने लखन को नीचे गिरा दिया। वह लखन को खत्म करने ही वाला था कि तभी श्री तेज़ी से आई और अपने कंधे के जोर से उस आदमखोर को दूर गिरा दिया। दो आदमखोर आए और उन्होंने श्री पर हमला करके उसे दूर गिरा दिया, जिसे बचाने के लिए वीर आगे आ गया। हालात ख़राब होते जा रहे थे। लखन के हाथ में फिर से दर्द होने लगा था।
गाँव की सारी औरतों ने अपने-अपने हाथ जोड़ लिए और भगवान अनंत को याद करने लगे। भगवान अनंत या भगवान निर्वाण एक ही बात थी। अनंत भगवान निर्माण का नोंवा अवतार था। आहुति ने सभी औरतों की अगुवाई की और प्रार्थना करते हुए बोलीं, “हे भगवान अनंत, आप जहाँ कहीं भी हों, हमारी मदद करें। हमें इस आपदा की स्थिति से बचाएँ। आप ही हमारे लिए यह कृपा कर सकते हैं, आप ही हमारी जान बचा सकते हैं। हे भगवान अनंत, हमें बचाएँ!” सारी औरतें प्रार्थना कर रही थीं। लखन ने भी अपनी आँखें बंद कीं और बोला, “भगवान अनंत, प्लीज हमें बचाओ।” श्री और वीर ने इसी शब्द का दोहराव किया, “भगवान अनंत, हमें बचाएँ।” सबको लग रहा था कि अब इस मुसीबत का कोई छुटकारा नहीं होगा। देवास कहां था, पता नहीं था, और ठंड से सबका बुरा हाल हो रहा था। वहीं, अब आदमखोर भी इस बात के लिए आज़ाद हो गए थे कि वे उन पर हमला करके उन्हें खत्म कर सकें, क्योंकि उन्हें रोकने वाले गाँव वाले घायल हो चुके थे और अधिकांश मूर्छित अवस्था में थे। तभी अचानक, सभी को दूर से एक पीले रंग की रोशनी अपने पास आते हुए दिखाई दी। सबका ध्यान उस रोशनी की ओर चला गया। वह इतनी तेज थी कि हर कोई इसे दूर से देख पा रहा था, और यह तेज़ी से पास आ रही थी। जल्दी ही सबको दिखाई देने लगा कि यह कौन है। यह कोई और नहीं, बल्कि देवांश था। उसके आस-पास के आदमखोर उसकी रोशनी मात्र से ही तेज आवाज़ के साथ खत्म हो रहे थे। कोई भी देवांश के पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, और जो भी उसके पास आने की हिम्मत कर रहा था, वह उसके कुछ दूर पर आते ही एक धमाके के साथ फट रहा था। लखन को यह देखकर डर लगने लगा और उसने श्री और वीर को अपने पीछे कर लिया, क्योंकि उसे लग रहा था कि अगर देवांश उनके पास आया, तो वे भी इसी तरह से फट जाएँगे। श्री ने कहा, “यह अभी-अभी डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करना सीखा है। पता नहीं इसे ये कंट्रोल भी कर पाएगा या फिर नहीं? कहीं इन आदमखोरों से पहले यही हमारे लिए खतरा न बन जाए।” यह कहकर उसने दूर से ही देवांश को रोकने की कोशिश की, मगर देवांश पल भर में उनके पास आ गया और किसी को भी कुछ नहीं हुआ। जैसे ही देवांश यहाँ पहुँचा, आदमखोरों का झुंड भी हमला करने के लिए आया, लेकिन सारे के सारे एक निश्चित सीमा तक आते ही धमाके के साथ उड़ने लगे। जो देवांश के शरीर से निकलने वाली उर्जा की वजह से था। ऐसा लग रहा था जैसे यह सीमा देवांश के शरीर के आसपास ही मौजूद थी, और कोई भी देवांश के इस ‘रेडार’ की सीमा में नहीं आ सकता था। देवांश ने सभी गाँव वालों की तरफ़ देखा और फिर अपने पिता से पूछा, “क्या गाँव में कोई बचा तो नहीं? आदमखोर काफी ज़्यादा संख्या में हैं, और मुझे नहीं लगता कि अगर गाँव में कोई बचा है, तो इस वक़्त वह ज़िंदा बचा होगा, क्योंकि उन्होंने पूरे गाँव को तहस-नहस कर दिया है। वहां की बर्बादी को देखते हुए मुझे यहाँ पहुँचने में वक़्त लग गया।” लखन ने कहा, “नहीं, मैंने आते हुए देख लिया था। यहाँ पर सब लोग हैं। इस वक़्त गाँव में कोई नहीं बचा है; सभी लोग यहाँ पर आ गए हैं।” श्री तेज़ी से देवांश के पास आई और पूछा, “आखिर यह सब क्या है? इतने सारे आदमखोर एक साथ हमला करने के लिए कैसे बाहर आ गए?” देवांश ने कहा, “इसका जवाब तो मेरे पास भी नहीं है, लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे ये बस अपना बदला लेने के लिए आए हैं। अब तक ये बस हमारे हाथों से मर रहे थे, लेकिन अब शायद इन्होंने सोच लिया है कि ये अब हमें मार कर रहेंगे।” देवांश पलटा। उसने चार अलग-अलग दिशाओं में देखा; उसे चार अलग-अलग आदमखोरों के मुखिया दिखाई दिए जो हमला कर रहे थे – उन सभी झुंडों का सरदार। वह जिसका पीछा कर रहा था, वह अभी यहाँ पर नहीं था, यानी कि ये चारों ही अलग थे। देवांश ने सबकी तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं इन्हें ठीक से समझ नहीं पा रहा हूँ, ना ही मुझे इनकी ताकत का अंदाज़ा लग रहा है। शुरुआत में जितना मैंने इन्हें कमज़ोर समझा था, ये उससे कई गुना ज़्यादा ताकतवर हैं।” श्री देवांश के पास आई, “क्या तुम हमें बचा पाओगे?” देवांश ने श्री की तरफ़ देखा, “हाँ, जब तक मैं यहाँ पर हूँ, कोई भी यहाँ पर तुम लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।” फिर उसने आसमान की तरफ़ देखा जहाँ बादलों से बारिश हो रही थी। देवांश ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी उस शक्ति को याद किया जिसमें वह नेचर को कंट्रोल कर सकता था। फिर अपनी आँखें खोलीं, जिससे सारे बादल पल भर में गायब हो गए। बारिश बंद हो गई और बिजली का गिरना भी बंद हो गया। अब बस आस-पास से आने वाले आदमखोरों के झुंड थे जो खत्म होने के बाद और धमाके के साथ उड़ने के बावजूद नहीं रुक रहे थे और लगातार आकर देवांश के रोशनी के घेरे से टकरा रहे थे। देवांश ने पीछे मुड़कर गाँव वालों की तरफ़ देखा। वे सब अपने हाथ जोड़कर खड़े थे। लखन, वीर और श्री को छोड़कर बाकी सभी ने अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ रखे थे, जैसे उन्होंने यह मान लिया हो कि देवांश भगवान है। एक गाँववाला बोला, “आप भगवान अनंत के अवतार हो, भगवान हमारी जान बचा लीजिये। अब आप ही हमारी जान बचा सकते हो।” एक-एक करके बाकी के लोग भी यही बात बोलने लगे। लखन ने देवांश की तरफ़ देखा और उससे पूछा, “तुमने यह सब कहाँ से सीखा? तुम भगवान तो नहीं हो, फिर तुमने इतनी ताकत कैसे हासिल कर ली?” देवांश को समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब यह बात बताए या फिर नहीं, लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं है। देवांश ने पलट कर दूसरी तरफ़ देखा। वह मुखिया, जिसका वह पीछा कर रहा था, वह भी उनकी ओर आ रहा था। देवांश ने हाथ ऊपर किया, “फायरस्टॉर्म!” वह बोला। उसकी यह बोलते ही उस मुखिया आथमखोर के ठीक आगे एक छोटा सा चक्र बना और उस से तेज आग निकलने लगी जो लगातार उसके ऊपर गिर रही थी। देवांश पलटा और सभी गाँव वालों की तरफ़ देखते हुए बोला, “हाँ, आप लोगों ने सही समझा है, मैं हूँ भगवान निर्माण, भगवान अनंत मेरा ही एक रुप था। और मेने इस दुनिया में अवतार लिया है ताकि मैं इस दुनिया में बुराई का खात्मा कर सकूँ; उसे मार सकूँ जो इस दुनिया में बुराई का मालिक है।” लखन और वीर को यकीन नहीं हो रहा था कि जो देवांश ने कहा है, वह बिल्कुल सच है, लेकिन उसके आस-पास निकलने वाली सुनहरे रंग की रोशनी और उसने जो भी किया है, यह देखकर वे इस बात को नकार भी नहीं सकते थे। पल भर में ही एक झटके के साथ देवांश और लखन भी अपने पैरों पर आ गए और उन्होंने भी अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ दिए। श्री के अलावा सभी ने अपने हाथ देवांश के आगे जोड़ दिए थे। देवांश ने सबकी तरफ़ देखते हुए कहा, “मैं यह आप सबको कभी नहीं बताने वाला था, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि हर किसी को पता चले कि मैं एक भगवान हूँ और लोग मेरे आगे-पीछे घूमने लगें। मगर मुझे अपनी शक्तियों के साथ आप सबके सामने आना पड़ा। मेरी उम्र कम है, इसलिए मैं अपनी सभी शक्तियों का इस्तेमाल इस तरह से नहीं कर सकता कि किसी को पता भी ना चले। मैं नहीं जानता था कि आदमखोरों का यह खतरा अचानक से इतना बड़ा हो जाएगा कि मुझे आप सबके सामने आना पड़ेगा।” आहुति बोली, “भगवान, इसमें इतनी परेशानी वाली कौन सी बात है? हम तो धन्य हो गए कि आपने हमारी इस छोटी सी दुनिया में अवतार लिया। मैं तो और धन्य हो गई कि आप मेरी कोख से पैदा हुए। भगवान, आप नहीं जानते, आपने जिस भी घर में जन्म लिया, उन्हें ज़िंदगी में क्या सुख मिला, उनकी ज़िंदगी के सारे पाप खत्म हो गए और आगे आने वाले जन्मों में भी उन्हें सुख मिलेगा। भगवान, मैं इसके लिए, इस गाँव को चुनने के लिए, अपने कोख से जन्म के लिए, आपकी आभारी रहूँगी।” देवांश सबके चेहरों की तरफ़ बारी-बारी से देख रहा था और सबके चेहरों में ही उसे अपने लिए उदारता, श्रद्धा, हर एक चीज़ नज़र आ रही थी। महर्षि दयानंद अपने कमरे से बाहर निकले और वे भी अपने हाथ जोड़कर देवांश के आगे खड़े हो गए, “मैं धन्य हो गया हूँ भगवान अनंत, जो मैंने आपको अपनी आँखों से देखा। मैं धन्य हो गया हूँ जो आपने तब जन्म लिया जब मैं इस दुनिया में हूँ।” हर कोई अपनी-अपनी तरफ़ से भगवान अनंत के लिए कोई ना कोई शब्द कह रहा था। देवांश ने अपने चेहरे पर अजीब से भाव लाते हुए कहा, “मुझे यह सब सच में बहुत अजीब लगता है, इसलिए मैं बताने से डरता रहता हूँ कि मैं भगवान हूँ। प्लीज़ आप सब नॉर्मल हो जाइए, एक बार भूल जाइए कि मैं भगवान हूँ और वैसे ही रहिए जैसे पहले रहते थे, यह मानकर कि मैं एक छोटा सा लड़का हूँ जिसकी बस 9 साल की उम्र है।” लखन बोला, “यह कैसी बातें कर रहे हैं आप? हम यह कैसे मान सकते हैं? अब आप भगवान हो तो भगवान ही रहोगे।” अचानक सबका ध्यान फिर से आसमान में चला गया जहाँ देवांश ने फायरस्टॉर्म का हमला किया था। उस आदमखोर को अभी भी कुछ नहीं हुआ था और वह फिर से आग के बीच में से निकलकर उन सबकी तरफ़ आ रहा था। देवांश ने दोबारा उस आदमखोर की तरफ़ देखा। वह काफी पास आ गया और पास आने के बाद उसने अपना मुँह खोला और अपने पंख फैला दिए। उसके ऐसा करते ही बिजली की ढेर सारी तरंगें निकलीं जो नॉर्मल बिजली की तरंगें नहीं थीं, बल्कि काले रंग की बिजली की तरंगें थीं। वे सभी गाँव वालों के ऊपर गिरने लगीं, मगर इनकी पहुँच भी सिर्फ़ वहीं तक थी जहाँ तक देवांश की ऊर्जा फैल रही थी और वे आगे नहीं आ पा रही थीं। इसके बावजूद, इन काले रंग की बिजली की तरंगों में कुछ अजीब था, जिसकी वजह से कहीं-कहीं से वे छेद करते हुए देवांश के चक्र को तोड़कर उसके अंदर तक आने में सफल हो रही थीं। हालाँकि, वे गाँव वालों से काफी दूर थीं, लेकिन वे उसके चक्र को तोड़ पाने में कामयाब हो रही थीं।
देवांश उस आदमखोर को गहरी नज़रों से देख रहा था, जैसे उसे गुस्सा आ रहा हो और थोड़ी ही देर बाद वह गुस्से से आगबबूला हो उठेगा। देवांश ने पीछे देखा और सभी को पीछे होने का इशारा किया। जब सब पीछे हो गए, तब देवांश आगे बढ़ने लगा। वह अपनी रोशनी के सुरक्षा कवच को आदमखोर की ओर करीब कर रहा था। बिजली की तरंगें सुरक्षा कवच को चीर रही थीं; वह अब देवांश के पास तक आने लगी थीं। एक छोटी सी बिजली की तरंग देवांश के चेहरे पर लगी तो वहाँ पर घाव बन गया। देवांश ने घाव की ओर इशारा करते हुए कहा, “यह नामुमकिन है! भले ही मेरे पास मेरी सारी शक्तियाँ न हों, मगर फिर भी कोई मेरी मर्ज़ी के बिना मुझे नुकसान नहीं पहुँचा सकता। मैं अपने इंफिनिटी की शक्ति के साथ हर अवतार में पैदा होता हूं, जो किसी को भी मुझे मेरे बिना मर्जी के छुने नहीं देती। आखिर...यह क्या है? मेरे पास जानकारी की कमी है। इस दुनिया के नियम क्या हैं, यह किस हिसाब से चलती है, कुछ भी नहीं पता और यहाँ पर किस तरह की शक्तियाँ हैं, इसका भी कोई अंदाज़ा नहीं। यह आदमखोर दिखने में बहुत साधारण लगते थे, मगर अब पता चल रहा है कि यह कहीं से भी साधारण नहीं हैं। यह इस दुनिया की उपज है, एक ऐसी उपज जो यहाँ के गाँव वालों से अलग है और सही तौर पर बताती है कि इस दुनिया में क्या कुछ है।” देवांश ने अपने दोनों हाथों को फैला दिया, जिससे उसके शरीर से इतनी सारी रोशनी निकली कि वह आदमखोर को जलाने लगी। मजबूरन आदमखोर को पीछे हटना पड़ा और वह दूर जाकर उड़ने लगा। उसने आवाज़ की ओर, जो दूसरे चार आदमखोरों थे, उन्हें इशारा किया। सभी चारों आदमखोरों ने सामने से आवाज़ करके जवाब दिया और फिर वे पहाड़ी के पीछे गायब हो गए। देवांश को अभी तक पता नहीं चला था कि वे क्या करने के लिए गायब हुए हैं। देवांश वापस पीछे आया। वह इन गाँव वालों को छोड़कर कहीं और जा भी नहीं सकता था, क्योंकि उसके जाने पर सुरक्षा कवच खत्म हो जाएगा, जो बस उसके शरीर के चारों तरफ़ रहता था। श्री देवांश के पास आई और बोली, “क्या तुम इन सब का सामना करोगे? आह्, मैं भी कैसी बातें कर रही हूँ! तुम तो भगवान हो, फिर तुम इनका सामना क्यों नहीं कर पाओगे?” देवांश ने सिर हिलाकर जवाब दिया, “मैं भगवान हूँ, मगर मैं अपनी पूरी शक्तियों के साथ पैदा नहीं हुआ हूँ। हर एक अवतार में मैं अपने लिए कुछ नियम बनाता हूँ; इस अवतार में भी मैंने अपने लिए कुछ नियम बनाए थे। पहला नियम यह था कि मैं अपनी उन शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करूँगा जिससे मुझे भविष्य का और आस-पास के एरिया का पता चल जाता है। दूसरा नियम यह था कि मेरे पास शुरुआत में ही मेरी सारी शक्ति नहीं होगी; यह मेरी उम्र के साथ-साथ विकसित होगी। इस वक़्त मैं 9 साल का हूँ और 9 साल की उम्र में मेरे पास बस थोड़ी सी शक्तियाँ हैं।” श्री ने अपने चेहरे पर हल्का गुस्सा दिखाते हुए कहा (क्योंकि वह उसकी दोस्त थी, इसलिए ऐसे रिएक्शन उसके चेहरे पर आना आम थे), “हद है! यह सब करने की क्या ज़रूरत थी? तुमने जब भगवान अनंत के रूप में अवतार दिया था, तब तो तुम कितनी सारी शक्तियों के साथ पैदा हुए थे! बचपन में ही तुमने एक पहाड़ को लात मारकर उड़ा दिया था, वह भी तब जब तुम सिर्फ़ एक साल के थे।” देवांश ने अपने सिर पर हाथ रखा। वह यह सुनकर शर्मा रहा था, “छोड़ो भी ना! क्यों पुराने दिनों को याद कर रही हो?” श्री बोली, “मैं याद नहीं कर रही हूँ, मैं तुम्हें बता रही हूँ कि क्या तुम्हारे पास इस बार भी ऐसी कोई शक्ति नहीं है? अगर है, तो तुम भी लात मारकर पहाड़ को उड़ाओ और इन सभी को उनके नीचे दबा दो।” वीर आया और उसने श्री को कंधे से पकड़ते हुए कहा, “यह तुम किस लहजे में बात कर रही हो? यह भगवान हैं! उनके साथ रिस्पेक्ट से बात करो।” श्री कुछ बोल पाती, उससे पहले ही देवांश ने कहा, “नहीं-नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं चाहता हूँ कि आप लोग जैसे पहले बात कर रहे थे, वैसे ही बात करें। मुझे इससे कोई एतराज़ नहीं है।” तभी उसने देखा कि आस-पास के चार पहाड़, पूरे आश्रम को घेरे हुए, हिलने लगे थे। देवांश ने महसूस कर लिया, जबकि बाकी के लोगों को यह अभी तक महसूस नहीं हुआ था। देवांश दौड़कर एक तरफ़ गया, “नहीं! यह सारे गाँव वालों को इस जगह में फँसाकर मारने वाले हैं।” उसने चारों तरफ़ अपनी तेज नज़रों से देखा तो उसे चारों ही पहाड़ तकरीबन 2 सेमी तक हिलते हुए दिखाई दिए। देवांश वापस आया और श्री के पास आकर बोला, “श्री, इस वक़्त हम सब मुसीबत में हैं, जिसे सही करने के लिए मुझे यहाँ से जाना पड़ेगा, लेकिन अगर मैं यहाँ से गया तो आस-पास के आदमखोर इन गाँव वालों को ख़त्म कर देंगे, क्योंकि मेरा इंफिनिटी सुरक्षा कवच सिर्फ़ मेरे पास रहता है।” श्री ने परेशान होकर कहा, “तो फिर तुम अब क्या चाहते हो?” देवांश ने कहा, “मैं तुम्हें अपनी यह इंफिनिटी सुरक्षा कवच की शक्ति देने जा रहा हूँ। इससे जो कवच मेरे चारों तरफ़ रहता है, वह अब तुम्हारे चारों तरफ़ रहेगा। इससे मेरे यहाँ से जाने के बाद भी इन गाँव वालों को कोई ख़तरा नहीं होगा।” श्री ने परेशान होकर कहा, “लेकिन अगर तुमने अपना सुरक्षा कवच मुझे दे दिया, तो फिर तुम्हारी सुरक्षा का क्या होगा?” देवांश बोला, “तुम शायद भूल रही हो कि मैं कौन हूँ। मुझे ज़रूरत नहीं है।” यह कहकर उसने श्री के दोनों हाथों को पकड़ा और अपनी आँखें बंद कर लीं। पल भर में ही जो रोशनी का कवच देवांश के चारों तरफ़ था, वह शिफ्ट होकर श्री के चारों तरफ़ फैल गया। देवांश ने अपनी आँखें खोलीं, “भगवान होने की वजह से मेरे पास यह ख़ासियत है कि मैं जिस किसी को भी चाहूँ, उसे किसी भी प्रकार की शक्ति दे सकता हूँ और अपने शरीर की शक्ति का हिस्सा भी, जिससे सामने वाले को भी ताक़त मिलती है।” फिर यह कहकर वह दौड़ते हुए सुरक्षा कवच से बाहर चला गया और पहाड़ी की तरफ़ भागने लगा। अब देवांश के चारों तरफ़ किसी तरह का सुरक्षा कवच नहीं था और बड़े आदमखोर की बिजली की तरंगों से उसे नुकसान भी पहुँच रहा था। उसके चेहरे पर जो घाव हुआ था, वह अभी तक ठीक नहीं हुआ था, जबकि देवांश के पास सुपर हीलिंग की पावर भी थी। मौजूद जंगलों के बीच में से देवांश दौड़ता जा रहा था, तभी बड़े आदमखोर की नज़र उसके ऊपर पड़ी। उसने तेज़ी से देवांश की तरफ़ उड़ान भरी और उसके ऊपर आते हुए अपने पंखों से बिजली गिराने लगा। देवांश बिजली से बचने के लिए इधर-उधर होते हुए दौड़ने लगा। दौड़ते हुए देवांश ने अपने हाथ को ऊपर किया और बोला, “द वेन्ग!” देवांश के यह कहते ही उसके शरीर के कई सारे प्रतिरूप बन गए और तकरीबन 25 से ज़्यादा देवांश पल भर में ही जंगल में अलग-अलग तरफ़ अपनी दिशा बदलते हुए दौड़ने लगे। अपने इतने सारे प्रतिरूपों को बनाकर उसने बड़े आदमखोर को कन्फ़्यूज़ कर दिया था कि कौन सा वाला असली देवांश है जिस पर उसे हमला करना चाहिए। उस आदमखोर की बिजली कुछ प्रतिरूपों पर गिरी तो वे पल भर में ही ख़त्म हो गए, जबकि उनके पास भी देवांश के जितनी ही ताक़त होती थी। देवांश ने उनकी तरफ देखा और कहा "मैं अपने 25 रूप बना सकता हूं, वह भी इस पूरे जन्म में, अगर इसने सभी को खत्म कर दिया तो आगे क्या होगा?" असली देवांश ने अपने प्रतिरूपों को ख़त्म होते हुए देखा तो वह अपने मन में दोबारा बोला, “समझ में नहीं आ रहा यह किस तरह की पावर है जो मेरे प्रतिरूपों को ख़त्म कर रही है। अनंत के रूप में जब मैंने अवतार लिया था, तब मेरे दुश्मन के पास भी ऐसी ताक़त नहीं थी कि वह मेरे प्रतिरूपों को ख़त्म कर सके, जबकि इस बार यह आदमखोर...यह तो बस मेरा पहला ही दुश्मन है जिससे मैं अपनी ज़िन्दगी में सामना करने जा रहा हूँ। मुझे अपनी ज़िन्दगी में और दुश्मनों का सामना करना है। अगर यहीं पर मुझे इतना ताक़तवर दुश्मन मिल गया है, तो आगे जाकर क्या होगा?” काले रंग की बिजली की चमक, नॉर्मल बिजली की तरंगों की तरह ही थी, बस उसमें नॉर्मल बिजली के रंग की तरह आस-पास एक काले रंग का कवच था जो इस बिजली को और भी ख़तरनाक बना रहा था। बड़ा आदमखोर देवांश के प्रतिरूपों को ख़त्म करने में लगा हुआ था, तभी असली देवांश पहाड़ी की चोटी पर आ गया और उसने वहाँ से नीचे की तरफ़ देखा तो उसे काफ़ी सारे आदमखोर और उनका सरदार पहाड़ी को चढ़ते हुए नज़र आए। देवांश ने अपने हाथ को उनकी तरफ़ किया और फिर कहा, “द डिसेंशन!” उसके यह कहते ही आसमान में फिर से पहले की तरह लाइनें निकलने लगीं और वे आपस में जुड़ते हुए एक चक्कर का निर्माण करने लगीं। जल्दी ही चक्कर पूरा बन गया और फिर उससे तेज रोशनी नीचे गिरने लगी और जो भी आदमखोर इस रोशनी में आ रहे थे, वे सब हड्डियों के टुकड़ों में बदलते चले गए। यहाँ तक कि सरदार भी इससे नहीं बच पाया। हालाँकि वह काफ़ी देर बाद टुकड़ों में बदला, लेकिन देवांश के चक्कर ने उसे आख़िरकार टुकड़ों में बदल ही दिया।
एक छोटे आदमखोर मुखिया को मारने के बाद, देवांश दूसरी पहाड़ी की ओर दौड़ने लगा। वहीं, बड़े आदमखोर को पता चल गया कि यही असली देवांश है। देवांश पहाड़ी की ओर दौड़ रहा था, तभी बड़ा आदमखोर उससे काफी आगे आ गया और उसने पहाड़ी पर हमला करते हुए, देवांश के रास्ते में एक बड़ी दरार पैदा कर दी। देवांश ने दौड़ना नहीं रोका और जब वह दरार के पास आया, तो उसके पैरों के नीचे सुनहरी रोशनी से जमीन बनती चली गई, जो देवांश को आगे का रास्ता दे रही थी। देवांश अभी भी आगे दौड़ सकता था, यह देखकर बड़े आदमखोर ने उस पर बिजली की तरंग गिराई, मगर देवांश कूद गया और जैसे ही वह वहाँ गिरा, वहाँ पर जमीन बन गई जो सुनहरे रंग की एक प्लेट थी। देवांश पहाड़ी को पार कर गया और फिर उसने अपने हाथ को ऊपर कर जोर से कहा, “दे डिसेंशन!” उसकी शक्ति अपना असर दिखाने लगी और जो भी आदमखोर इस रोशनी के घेरे में थे, वे सब मरने लगे और एक-दूसरे को ही खत्म करने लगे। देवांश ने इसी तरह बाकी के दो आदमखोर सरदारों को उनके पूरे दल के साथ खत्म कर दिया, लेकिन अभी भी बड़ा आदमखोर बाकी था, जिसके पास बिजली की तरंग थी जो देवांश को नुकसान पहुँचा सकती थी। देवांश पहाड़ी की चोटी पर खड़ा था और उसे आदमखोर को अपनी ओर आते हुए देख रहा था। देवांश ने उसे अपनी ओर आते हुए देखकर कहा, “मैं सिर्फ़ तीन चक्रों का इस्तेमाल कर सकता हूँ, इसके बाद मेरे पास सिर्फ़ डिवाइन ऊर्जा बचती है। यह हवा में उड़ रहा है और अपनी स्थिति लगातार बदल रहा है, इसलिए मेरे शुरुआती दो चक्र इस पर काम नहीं करेंगे जो इसे खत्म करने में मेरे काम आ सकते हैं। मेरे पास फायर स्टॉर्म की भी शक्ति है, जिसे मैंने चार साल की उम्र में सीखा था, मगर उसका कोई असर नहीं हो रहा है। इसके बाद मेरे पास क्या बचता है जिसका इस्तेमाल मैं इस आदमखोर पर करूँ? मैं प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित कर सकता हूँ, मगर यह उसमें भी बदलाव कर देता है।” वह काफी करीब आ गया था और जब वह करीब आया, तब उसने अपने पंखों से बड़ी बिजली की तरंग को देवांश पर गिराया। देवांश ने अपना हाथ उसकी बिजली की तरंग की ओर कर दिया। बिजली की तरंगें उसके हाथ पर गिरीं। देवांश को एक झटका लगा और वह कुछ कदम पीछे की ओर हट गया। वहीं, बिजली की तरंगों से उसके हाथ में जलन होने लगी। देवांश को तकलीफ हो रही थी, मगर वह कुछ ऐसा करने जा रहा था जो शायद उसने पहले कभी नहीं सोचा था। उसके हाथ पर जलन के साथ-साथ अब घाव भी होने लगे और उसकी त्वचा भी मकड़ी के जालों की तरह फटती जा रही थी, जो अभी तक सिर्फ़ कलाई तक ही थी। देवांश ने अपना पूरा जोर लगाया। उसने अपनी डिवाइन ऊर्जा को अपने हाथ की ओर केंद्रित कर लिया और सारी डिवाइन ऊर्जा उसके हाथ पर आ गई। आदमखोर द्वारा छोड़ी गई बिजली को अब देवांश की डिवाइन ऊर्जा संभाल रही थी। देवांश ने पूरा जोर लगाकर अपने मन में कहा, “मैं अपनी एक और गुप्त शक्ति का इस्तेमाल करने जा रहा हूँ जो पिछली लड़ाई में मेरे बहुत काम आई थी, इसे मैं कहता हूँ कन्वर्टर, और जब भी मुझे इसका इस्तेमाल करना होता है तब मैं इसे ‘द कन्वर्टर’ बोलता हूँ। यह मेरे दुश्मन के हमले को ओब्जरव करके उसे परिवर्तित करती है और फिर मैं उसका इस्तेमाल उस पर हमला करने के लिए कर सकता हूँ। अगर यह बिजली की तरंगें इतनी शक्तिशाली हैं कि मुझे नुकसान पहुँचा रही हैं, तो इससे उसे भी नुकसान पहुँचना चाहिए।” देवांश ने अपना पूरा जोर लगाया और फिर अपने हाथ को तेज़ी से आदमखोर की ओर करके जोर से बोला, “द कन्वर्टर!” डिवाइन ऊर्जा की रोशनी इतनी तेज़ी से आसपास फैली कि एक पल के लिए रात में भी सब कुछ सोने के रंग में बदल गया। इसके बीच काले रंग की बिजली की तरंगों का एक छोटा सा घेरा दिखाई दिया जो एक ही जगह पर चमक रहा था क्योंकि उसके आसपास सब कुछ सुनहरा था। डिवाइन ऊर्जा की शक्ति से जो भी आसपास के बचे हुए आदमखोर थे, वे जलकर खत्म होते चले गए। बड़े आदमखोर को समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक क्या हुआ, तभी उसकी बिजली की तरंग, जिसे उसने देवांश पर हमला करने के लिए छोड़ी थी, वह किसी लेज़र किरण की तरह आई और उसके सीने में होती हुई चली गई। उसके सीने में एक बड़ा छेद हो गया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, कई सारी और लेज़र किरणें आईं, मगर ये सुनहरे रंग की किरणें थीं, यानी कि डिवाइन ऊर्जा की तरंगें। ‘द कन्वर्टर’ के ठीक बाद देवांश ने एक और मंत्र पढ़ा और बोला, “द डिवाइन सोर्स लाइनर!” ‘द डिवाइन सोर्स लाइनर’ यह डिवाइन ऊर्जा को इकट्ठा करके उसे एक रेखा के रूप में हमला करने के लिए इस्तेमाल करती है, यानी कि एक लेज़र किरण की तरह। अगर दुश्मन एक जगह पर रुका हुआ है, तब इसका इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद और प्रभावी होता है। आदमखोर के शरीर में इतने सारे छेद हो गए थे कि अब उसका जीवित रह पाना नामुमकिन था। वह हवा में ही थरथराया। वो अपने शरीर में हुए छेदों की ओर देख रहा था। अचानक उसका शरीर गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से नीचे गिरने लगा। वह धड़ाम से नीचे गिरा, इतना जोर से कि जमीन तक हिल गई और जहाँ पर वह गिरा था, वहाँ पर एक गहरा गड्ढा हो गया। वह जंगली इलाके में गिरा था। जिन पेड़ों पर वह गिरा, वे भी खत्म हो गए और आसपास के कई किलोमीटर तक के पेड़ भी खत्म होते चले गए। देवांश ने अपनी सारी ऊर्जा का इस्तेमाल कर दिया था। जैसे ही बड़ा आदमखोर मर गया, वैसे ही देवांश की आँखों के आगे अंधेरा छा गया और वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। सारे आदमखोर मारे जा चुके थे। मुसीबत के जो बादल ग्रामीणों पर छाए थे, वे खत्म हो गए थे और शायद हमेशा के लिए। क्योंकि ऐसा लग रहा था जैसे इस बार गुफा के सारे आदमखोर बाहर निकल कर आ गए हों। आखिर देवांश के शरीर से जो डिवाइन ऊर्जा निकली थी, उसने बाकी के आदमखोरों को भी खत्म कर दिया था, चाहे वे छोटे हों या बड़े। सारे ग्रामीण आश्रम में बने भगवान अनंत के छोटे से मंदिर के आगे घुटने टेक कर बैठे थे और जब यह पूरी घटना शांत हुई, तब उन्होंने भगवान अनंत का धन्यवाद किया। श्री लखन और वीर को अब देवांश के लौटने का इंतज़ार था, मगर वह काफी देर तक नहीं आया। जब वह तकरीबन दो घंटे तक नहीं लौटा, तब श्री उसे ढूँढने के लिए निकली। उसके साथ वीर भी था, जबकि लखन ग्रामीणों के पास ही रुक गया था। श्री को यह पता था कि आखिरी बार रोशनी किस पहाड़ी की चोटी पर दिखी थी, इसलिए वह उस पहाड़ी की चोटी पर जा रही थी। सब कुछ खत्म हो जाने के बाद भी देवांश वापस नहीं लौटा, इसलिए श्री को भी लग रहा था कि कुछ गड़बड़ हो गई होगी। कहीं देवांश को कुछ हो तो नहीं गया, इस चीज़ का भी डर था। वह पहाड़ी पर पहुँची तो दोनों ने देवांश को वहाँ पर बेहोश पाया। वीर ने उसे जल्दी से उठाया और फिर घर ले आया। देवांश को तकरीबन छह घंटे लगे होश में आने में। उसका सिर चकरा रहा था और उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेहोश कैसे हो गया। शायद आखिरी बार जब उसने अपनी शक्ति का अधिक इस्तेमाल किया था, तब वह उसके भार को सहन नहीं कर पाया था और इसी वजह से वह बेहोश हो गया था। उसके आसपास तकरीबन दो दर्जन से ज़्यादा लोग खड़े थे, जिनमें उसके माता-पिता, श्री, वीर और उसकी पत्नी, एवं कुछ और लोग भी थे। लखन अपने बेटे देवांश के पास आया और पूछा, “बेटा, तुम ठीक तो हो ना? तुम पहाड़ी की चोटी पर बेहोश मिले थे?” देवांश ने अपने दोनों हाथों की ओर देखा। उसकी उंगलियाँ एक हाथ में तो सामान्य दिखाई दे रही थीं, मगर एक हाथ जल चुका था और काला पड़ गया था। देवांश ने अपने हाथ को गौर से देखा और फिर उसे खोलकर और दोबारा बंद करके देखा। उसका हाथ तो ठीक से काम कर रहा था, लेकिन उसकी उंगलियाँ, हथेली और कलाई तक का हिस्सा काला पड़ गया था। शुरुआत में यह कालापन ज़्यादा था, मगर बाद में धीरे-धीरे कम होता जा रहा था और कलाई तक आते-आते पूरा गायब हो रहा था।
देवांश ने लखन से कहा, “मैं इस दुनिया के बारे में कुछ भी नहीं जानता, मगर इस दुनिया की चीजें मुझे हैरान कर रही हैं। शुरुआत में आप लोगों ने कहा था कि इस जगह के अलावा और कोई जगह नहीं है। यह पूरी दुनिया खत्म हो चुकी है; बस यह एक आखिरी जगह है। और अब, अब उस आदमखोर के पास जो बिजली थी, वह इतनी खतरनाक थी कि मेरी दिव्य ऊर्जा को चीरकर, मुझे नुकसान पहुँचा रही थी। आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ; दिव्य ऊर्जा हमेशा सबसे ताकतवर ऊर्जा रही है, मगर अब यह एक नई तरह की ऊर्जा आ गई है जो इसे भी ताकतवर लग रही है।” देवांश बार-बार अपनी उंगलियों की ओर देख रहा था। लखन ने कहा, “यह सब हमारी समझ से बाहर है; यह ऐसी बातें हैं जिन्हें तुम समझ सकते हो या फिर शायद सिरी, मगर मुझे सिर्फ यह जानना है कि तुम ठीक हो या नहीं?” देवांश ने कहा, “मैं पूरी तरह से ठीक हूँ; मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मैं भगवान का अवतार हूँ और यहाँ पर बुराई के नाश के लिए पैदा हुआ हूँ। इस हमले ने मुझे अचंभित जरूर किया था, मगर यह इतना भी ताकतवर नहीं था कि यह मुझे नुकसान पहुँचा सके।” यह कहकर देवांश ने दोबारा अपने हाथ की ओर देखा। अगर वह उस बिजली के हमले को और काफी देर तक रोक कर रखता, तो शायद उसका यह हाथ उसके शरीर से उखड़ जाता। देवांश के चेहरे पर एक हल्की सी चिंता थी जो सिर्फ़ इसी बात को लेकर थी कि आखिर वह किस तरह का हमला था। श्री देवांश के पास आई और बोली, “सारे गाँव वाले इसके लिए हमेशा तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। उन्होंने कहा है कि तुमने सबकी जान बचाई है, इसलिए वे सब तुम्हें तोहफ़े देना चाहते हैं। काफ़ी सारे गाँव वाले तुम्हारे लिए तोहफ़े ले भी आये हैं; तुम्हारे घर के बाहर ढेर सारे तोहफ़े पड़े हैं।” देवांश ने श्री से कहा, “नहीं, मुझे आप सब लोगों से कुछ भी नहीं चाहिए। अगर मुझे आप सब से कुछ चाहिए, तो सिर्फ़ इतना ही कि आप सब मेरे साथ सामान्य रहें। अगर आप इस तरह से व्यवहार करेंगे, तो यह मेरे लिए अजीब होगा क्योंकि मुझे आदत नहीं है भगवान बनकर लोगों के बीच में रहने की।” आहूदी आई और अपने हाथ जोड़कर देवांश से बोली, “आप भगवान हैं; कोई आपके सामने कैसे सामान्य रह सकता है? आपने मेरी कोख से जन्म लिया है, मगर इसके बावजूद भी मैं आपसे उस तरह से व्यवहार नहीं कर पाऊँगी जिस तरह से आप चाहते हैं; मैंने आपको बचपन से ही पुजा है।” देवांश ने आहूदी के दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और बोला, “मैं जानता हूँ, लेकिन आप मेरी माँ हैं और मैं यही चाहूँगा कि आप मुझे माँ की तरह प्यार करें। मुझे भक्ति नहीं चाहिए; मुझे रिश्ते चाहिए, मुझे अपनापन चाहिए। आपसे मुझे माँ का प्यार चाहिए, आपकी डाँट चाहिए; आप सब गाँव वालों से मुझे वैसा ही रिश्ता चाहिए जैसा पहले था।” वीर ने कहा, “यह आसान तो नहीं है, मगर फिर भी हम कोशिश करेंगे।” लखन ने अपने सर की पगड़ी उतारी और उसे देवांश के चरणों में रखते हुए बोला, “आज से आप ही हमारे सब कुछ हैं; आप इस गाँव की मुखिया हैं, आप इस गाँव के रक्षक हैं।” महर्षि देयानंद भी यहाँ पर थे। उन्होंने भी हाथ जोड़कर कहा, “हाँ, भगवान! अब जो भी है, वह बस आप हैं। यह गाँव आपके निर्देशन से चलेगा; जैसा आप कहेंगे, वैसा होगा।” देवांश सबकी ओर देख रहा था; उन सबके चेहरों की ओर देखते हुए उसने अपनी माँ से कहा, “कर तो मैंने गलती ही ली है। पिछले कई जन्मों के अनुभव से मुझे यह बात पता है कि जब भी लोगों को पता चलता है कि मैं भगवान हूँ, तब उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। अगर मैं उनसे कहूँ कि सामान्य रहो, वे तब भी सामान्य नहीं रहेंगे। शायद मुझे इसी के साथ आगे बढ़ना होगा।” देवांश ने पगड़ी उठाई और उसे दोबारा अपने पिता के सर पर रख दिया, “इस गाँव के मुखिया आप ही रहेंगे, मगर हाँ, मैं आप सबको यहाँ पर काफ़ी कुछ सिखा सकता हूँ। आप सब अभी भी पुराने तरीके से रह रहे हैं, जो कि 40,000 साल पहले रहने वाले लोगों से भी ज़्यादा पुराना है। मैं भी सिर्फ़ 9 साल का हूँ और 10 साल तक मैं इस गाँव से बाहर नहीं जाऊँगा क्योंकि यह वादा मैंने अपने पिता से किया है। अभी भी 3 महीने बाकी हैं, इसलिए इन तीन महीनों में मैं आप सबको विकसित करूँगा।” सारे गाँव वाले यह सुनकर खुश हो गए। श्री ने कहा, “अगर ऐसा है, तो हम इसमें तुम्हारी मदद करेंगे। तुम्हें जिस भी मदद की ज़रूरत होगी, हम वह करेंगे। बस तुम्हें हमें आदेश देना है; फिर देखना हम क्या-क्या करते हैं।” देवांश के चेहरे पर मुस्कान थी। 10 साल का होने के बाद वह बाहरी दुनिया के लिए अपना सफ़र शुरू करेगा। यह एक ऐसा वादा था जो उसने अपने पिता के साथ किया था! भले ही वह गुस्से में किया गया हो, मगर देवांश, भगवान होने के नाते, अपने वादे का पक्का था और वह किसी भी हालत में अपने किसी भी वादे को नहीं तोड़ता था। इन तीन महीनों में वह गाँव वालों को विकसित करके उन्हें इतना सशक्त बना सकता था कि अगर इस तरह का आक्रमण दोबारा भी आता है, तब भी ये गाँव वाले उसका सामना कर सकें। हालाँकि, बड़े आदमखोर की तरह अगर कोई आदमखोर आ गया, तब इन गाँव वालों का उसका सामना कर पाना नामुमकिन है, मगर अब ऐसा नहीं लग रहा कि ऐसा खतरा दोबारा आएगा। मगर फिर भी देवांश को इस पर काम तो करना ही होगा। देवांश ने इस पर सोचा और फिर सभी गाँव वालों से कहा, “कुछ भी करने से पहले हमें यह देखना होगा कि क्या आदमखोरों का खतरा अभी भी बाकी है, क्योंकि जब तक हम यह देखने की कोशिश नहीं करेंगे कि क्या और भी आदमखोर बचे हैं, तब तक हम कुछ भी कर लें, हमारी सारी तैयारी बेकार हो जाएगी। अगर हम यह पता नहीं लगा सकते कि आदमखोर बच्चे हैं या नहीं, तो हमें उनकी सभी गुफाओं को बंद करने का काम करना होगा।” श्री ने पूछा, “लेकिन हम यह कैसे करेंगे? हम उन गुफाओं को कैसे बंद कर सकते हैं? अगर हम गुफाएँ भी बंद कर दें, तो आदमखोर इतने ताकतवर हैं कि वे उन्हें तोड़ देंगे?” देवांश ने थोड़ा सा सोचा और फिर कहा, “यह बात तो है; इसका बस एक ही इलाज है: डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर।” सभी ने हैरानी से कहा, “डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर?” देवांश ने समझाया, “हाँ, डिवाइन ऊर्जा से बना मेटर। आप लोगों के आसपास जो भी चीज बनी है, वह अलग-अलग ऊर्जा की शक्ति से बनी है, जैसे पृथ्वी की शक्ति, आकाश की शक्ति और जल की शक्ति। ठीक इसी तरह से डिवाइन ऊर्जा की शक्ति से तत्व बनाया जा सकता है, जिसे मेटर कहा जाता है, और उस तत्व से हम दूसरी चीजें बना सकते हैं, जैसे कि दिव्य ऊर्जा से बने हुए पत्थर, लकड़ी या फिर कुछ भी और। सामान्य पत्थरों को वे आदमखोर तोड़ सकते हैं, मगर दिव्य ऊर्जा से बने पत्थरों को तोड़ना उनके बस की बात नहीं होगी। इसलिए मैं दिव्य ऊर्जा का इस्तेमाल करके तत्व बनाऊँगा और फिर हम उस तत्व से अलग-अलग पत्थर के टुकड़े तैयार करेंगे और उनसे गुफाओं के दरवाज़े बंद कर देंगे।”
गाँव का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। अगले दिन सुबह की शुरुआत के साथ ही ऐसा लग रहा था जैसे सब लोग रात के हादसे को भूल चुके थे। लोग इस बात की वजह से बेफ़िक्र थे कि उनके इस छोटे से गाँव में भगवान हैं और भगवान होने का मतलब है उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं। रात को जो तूफ़ान आया था उसके बाद कोई बाहर आने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, मगर देवांश के यहाँ होने की वजह से सब बेफ़िक्र होकर अपने घर के बाहर घूम रहे थे और अलग-अलग तरह के काम कर रहे थे। देवांश भी बिज़ी था और वह कुछ लोगों को एक अलग ही तरह की चीज बनाने के बारे में बता रहा था। वीर और उसके कुछ साथी इसमें लगे हुए थे। सब का दिमाग घूम रहा था क्योंकि देवांश जो भी बता रहा था, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। देवांश ने पत्थर पर एक चित्र बना रखा था और सभी को चित्र को देखते हुए कुछ समझा रहा था। सब लोग समझने की कोशिश तो कर रहे थे मगर फिर भी वह ठीक से समझ नहीं पा रहे थे। उसके ठीक पीछे के एक मैदानी इलाके में लखन था जो अपने एक हाथ से तलवार का अभ्यास करवाते हुए कुछ लोगों को तलवारबाजी सिखा रहा था। देवांश ने कहा था वह चाहता है गाँव का हर एक व्यक्ति तलवारबाजी का अभ्यास करे और इसके लिए उसने 100 गाँव वालों का चयन करने के लिए कहा था। पहले लखन 100 गाँव वालों को तलवारबाजी सिखाएगा और फिर ये 100 गाँव वाले आगे और लोगों को तलवारबाजी सिखाएँगे। आश्रम के ऋषि महिलाओं को औषधि बनाना सिखा रहे थे और यह भी देवांश की वजह से हो रहा था। पहले महिलाओं को कभी घर से बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता था, मगर आज वे सब आश्रम में थीं और औषधि बनाना सीख रही थीं। श्री देवांश के साथ ही थी और वीर के साथ बैठी समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर देवांश बनाना क्या चाहता है। काफी देर तक समझने के बाद उसने देवांश से पूछा, “वह सब तो ठीक है, लेकिन यह है क्या चीज और इसे होगा क्या?” देवांश ने एकदम से कहा, “मैं कई बार तो कह चुका हूँ। यह वह तकनीक है जिसके ज़रिए हम डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करके डिवाइन पत्थरों को बनाएँगे और फिर उन पत्थरों से गुफा के दरवाज़ों को बंद करेंगे।” श्री ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए देवांश से कहा, “मगर तुमने पत्थर पर जो चित्र बनाया है वह पत्र के टुकड़ों जैसा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा। तुमने सबसे पहले एक गोल चीज को बनाया है जो नीचे किसी और गोल चीज के ऊपर खड़ी है और यह गोल चीज नीचे एक और गोल चीज के ऊपर खड़ी है जो शायद घूमती हुई नज़र आ रही है।” देवांश ने दोबारा अपने बनाए गए चित्र की तरफ़ देखा। उसने अपने चित्र में एक मशीन बनाई थी। देवांश ने कहा, “यह एक मशीन है। हम इसमें साधारण पत्थरों को डालेंगे और फिर मैं अपनी डिवाइन ऊर्जा साधारण पत्थरों को दूँगा। यह मशीन मेरी डिवाइन ऊर्जा को पत्थरों में डालने का काम करेगी और जो पत्थर बाहर निकलकर आएंगे तब वे डिवाइन पत्थर में बदल जाएँगे।” श्री ने सवाल किया, “क्या हम इस काम को सीधे ही नहीं कर सकते? तुम सीधा ही अपनी एनर्जी से इन डिवाइन पत्थर नहीं बना सकते? तुम तो भगवान हो, तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है?” देवांश ने गहरी साँस ली और फिर कहा, “हाँ, मेरे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है, लेकिन मेरे इस शरीर के लिए हाँ। यह शरीर काफी कमज़ोर है। जब मैं तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डाल रहा था तब भी मुझे तुम्हारे शरीर में धीरे-धीरे डिवाइन ऊर्जा डालनी पड़ रही थी क्योंकि अगर मैं एक साथ तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डालने की कोशिश करता तो शायद तुम एक धमाके के साथ फ़ट जातीं। यह डिवाइन ऊर्जा इस ब्रह्मांड की सबसे खतरनाक ऊर्जा है। कोई भी चीज इसे सीधे नहीं संभाल सकती है।” सब ने देवांश की बात मानी और फिर उसकी बताई गई चीजों के अनुसार उस मशीन को बनाने लगे। देवांश अपने पिता के पास आया। अपने पिता के एक हाथ को देखकर उसने कहा, “मुझे माफ़ कर देना, मैं आपके हाथ को नहीं बचा सका। काश मैं थोड़ा सा और जल्दी आ जाता और किसी तरह से आपके हाथ को बचा पाता। मुझे इस बात का भी अफ़सोस हो रहा है कि मेरी कम उम्र की वजह से मैं आपके हाथ को वापस नहीं जोड़ सकता।” लखन अपने बेटे के पास आया और कहा, “तुमने मेरी ज़िन्दगी बचा ली, यही मेरे लिए काफी है। मुझे इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं चाहिए।” दोनों एक पगडंडी के ज़रिए होते हुए खेतों की तरफ़ जाने लगे। काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा और दोनों में किसी तरह की कोई बात नहीं हुई। लखन ने सन्नाटा तोड़ा और कहा, “तो तुम इस गाँव से बाहर जाना चाहते हो? क्या तुम्हें सच में लगता है इस गांव से बाहर और दुनिया होगी? हमारे काफी सारे लोगों ने दुसरी दुनिया को ढूँढने की कोशिश की थी, मगर किसी को भी वह दुनिया नहीं मिली?” देवांश ने सोचते हुए कहा, “मैं नहीं जानता। लेकिन उसे होना ही चाहिए, क्योंकि अगर मैंने जन्म लिया है तो यह बिना मतलब तो लिया नहीं होगा। और ना हीं, मुझे लगता है मैंने जन्म इस गाँव की किसी बुराई को खत्म करने के लिए लिया है, क्योंकि इस गाँव की बुराई इतनी भी बड़ी नहीं है कि मुझे जन्म लेना पड़े। बस दुसरी दुनिया अभी तक हमारी नज़रों में नहीं आई, लेकिन अगर हम कोशिश करेंगे और इसे ढूँढने के लिए मैं निकलूँगा तो मैं इसे ढूँढ ही लूँगा।” लखन के चेहरे पर एक हल्का सा अफ़सोस दिखाई दे रहा था, “क्या तुम हम सबको यहाँ पर छोड़कर जाओगे?” देवांश के पास इसका कोई जवाब नहीं था। लखन ने कुछ देर तो कुछ नहीं कहा, फिर वह बोला, “मैं समझ सकता हूँ तुम एक भगवान हो और तुम्हारी ज़िम्मेदारी हमसे भी ज़्यादा बड़ी है। फ़िक्र मत करो, तुम्हें जब भी यहाँ से बाहर जाना हो तुम जा सकते हो, ना तो मैं तुम्हें रोकूँगा और ना ही इस गांव का कोई और शख्स तुम्हें इस चीज़ के लिए रोकेगा। बस मैं तुमसे इतना वादा ज़रूर चाहूँगा, तुम इस गाँव से हमेशा के लिए मत जाना। जब तुम्हारा काम हो जाए या फिर तुम्हें लगे अब तुम्हें कुछ और नहीं करना है, तब इस गाँव में लौटकर ज़रूर आना।” देवांश रुक गया और उसने अपना एक हाथ देवांश की तरफ़ किया। देवांश ने मुस्कुरा कर अपना हाथ लखन के हाथ पर रखा और कहा, “यह मेरा आपसे वादा रहा। मैं इस गाँव में ज़रूर आऊँगा।” दोनों फिर खेतों की तरफ़ चले गए और वहाँ पर उन्होंने फसल को देखा। कल रात के हुए हमले की वजह से ज़्यादातर फसल ख़राब हो गई थी और फिर जो तूफ़ान और बारिश हुई थी उसने बची हुई फसल को भी पूरी तरह से ख़त्म कर दिया था। लखन ने अपनी उजड़ी फसल को देखकर कहा, “लगता है इस बार की सर्दी फिर से मुश्किल भरी जाएगी।” देवांश मुस्कुराया और बोला, “लगता है आप भूल गए, हमने कल ही ढेर सारे आदमखोरों को मारा है। उन आदमखोरों से आप लोगों के अगले 10 साल आराम से निकल जाएंगे।” जैसे ही लखन ने यह सुना वह जोर-जोर से हँसने लगा। उसने अपने बेटे की पीठ को थपथपाया। अगले कुछ महीनों तक देवांश की बनाई गई मशीन पर काम चलता रहा और 6 महीने बाद उसे मशीन तैयार कर ली गई जिसका चित्र उसने दिमाग में बनाया था। यह मशीन काफी बड़ी थी। इतनी बड़ी कि गाँव में रखने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे कोई बड़ा राक्षस उनके ठीक सामने खड़ा हो। यह मशीन उस आदमखोर जितनी ही बड़ी थी जिसका देवांश ने ख़ात्मा किया था। इस मशीन को एक पत्थर की पहाड़ी के पास रखा गया था। देवांश उस मशीन के पास आया और उसने ऊपर खड़े कुछ लोगों की तरफ़ इशारा किया जो पहाड़ी के ऊपर खड़े थे। पहाड़ी पर खड़े वे लोग अपनी जगह से पीछे हट गए। देवांश ने अपने हाथ को पीछे की तरफ़ किया और ज़ोर से बोला, “द ब्रेकर…” दोपहर की तेज धूप हो रही थी। देवांश के यह कहते ही अचानक शाम हो गई और आसमान में उसका बनाया गया सुनहरी रोशनी से बना चक्कर घूमने लगा। अगले ही पल चक्कर से लेज़र लाइटों की तरह किरणें निकलीं और वे पहाड़ी के ऊपर गिरने लगीं। जहाँ-जहाँ वे पहाड़ी पर गिर रही थीं वहाँ-वहाँ पत्थर के टुकड़े टूटकर मशीन में जाकर गिर रहे थे। देवांश मशीन के पास आया और अपने दोनों हाथों को मशीन से लगाकर अपने शरीर की डिवाइन ऊर्जा को निकालकर उन पत्थरों में डालने लगा। डिवाइन ऊर्जा पहले मशीन में जा रही थी और फिर पत्थरों में। कुछ देर तक अंदर कुछ भी नहीं हो रहा था, मगर फिर एक हलचल सी हुई और जब पत्थर बाहर निकल रहे थे वे सुनहरे रंग से चमकते हुए बाहर निकल रहे थे। और गाँव वालों ने कुछ जानवरों के साथ उन पत्थरों को बड़े-बड़े टाँगों में भरना शुरू किया और उन्हें गुफाओं की तरफ़ लेकर जाने लगे। काफी सारे पत्थरों के होने के बाद देवांश उन्हें अपने हाथों से उठा-उठाकर गुफाओं की तरफ़ फेंकने लगा।
गाँव का माहौल पूरी तरह से बदल चुका था। अगले दिन सुबह की शुरुआत के साथ ही ऐसा लग रहा था जैसे सब लोग रात के हादसे को भूल चुके थे। लोग इस बात की वजह से बेफ़िक्र थे कि उनके इस छोटे से गाँव में भगवान हैं और भगवान होने का मतलब है उन्हें किसी तरह का खतरा नहीं। रात को जो तूफ़ान आया था उसके बाद कोई बाहर आने के बारे में सोच भी नहीं सकता था, मगर देवांश के यहाँ होने की वजह से सब बेफ़िक्र होकर अपने घर के बाहर घूम रहे थे और अलग-अलग तरह के काम कर रहे थे। देवांश भी बिज़ी था और वह कुछ लोगों को एक अलग ही तरह की चीज बनाने के बारे में बता रहा था। वीर और उसके कुछ साथी इसमें लगे हुए थे। सब का दिमाग घूम रहा था क्योंकि देवांश जो भी बता रहा था, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था। देवांश ने पत्थर पर एक चित्र बना रखा था और सभी को चित्र को देखते हुए कुछ समझा रहा था। सब लोग समझने की कोशिश तो कर रहे थे मगर फिर भी वह ठीक से समझ नहीं पा रहे थे। उसके ठीक पीछे के एक मैदानी इलाके में लखन था जो अपने एक हाथ से तलवार का अभ्यास करवाते हुए कुछ लोगों को तलवारबाजी सिखा रहा था। देवांश ने कहा था वह चाहता है गाँव का हर एक व्यक्ति तलवारबाजी का अभ्यास करे और इसके लिए उसने 100 गाँव वालों का चयन करने के लिए कहा था। पहले लखन 100 गाँव वालों को तलवारबाजी सिखाएगा और फिर ये 100 गाँव वाले आगे और लोगों को तलवारबाजी सिखाएँगे। आश्रम के ऋषि महिलाओं को औषधि बनाना सिखा रहे थे और यह भी देवांश की वजह से हो रहा था। पहले महिलाओं को कभी घर से बाहर भी नहीं निकलने दिया जाता था, मगर आज वे सब आश्रम में थीं और औषधि बनाना सीख रही थीं। श्री देवांश के साथ ही थी और वीर के साथ बैठी समझने की कोशिश कर रही थी कि आखिर देवांश बनाना क्या चाहता है। काफी देर तक समझने के बाद उसने देवांश से पूछा, “वह सब तो ठीक है, लेकिन यह है क्या चीज और इसे होगा क्या?” देवांश ने एकदम से कहा, “मैं कई बार तो कह चुका हूँ। यह वह तकनीक है जिसके ज़रिए हम डिवाइन ऊर्जा का इस्तेमाल करके डिवाइन पत्थरों को बनाएँगे और फिर उन पत्थरों से गुफा के दरवाज़ों को बंद करेंगे।” श्री ने अपने सर पर हाथ फेरते हुए देवांश से कहा, “मगर तुमने पत्थर पर जो चित्र बनाया है वह पत्र के टुकड़ों जैसा तो बिल्कुल भी नहीं लग रहा। तुमने सबसे पहले एक गोल चीज को बनाया है जो नीचे किसी और गोल चीज के ऊपर खड़ी है और यह गोल चीज नीचे एक और गोल चीज के ऊपर खड़ी है जो शायद घूमती हुई नज़र आ रही है।” देवांश ने दोबारा अपने बनाए गए चित्र की तरफ़ देखा। उसने अपने चित्र में एक मशीन बनाई थी। देवांश ने कहा, “यह एक मशीन है। हम इसमें साधारण पत्थरों को डालेंगे और फिर मैं अपनी डिवाइन ऊर्जा साधारण पत्थरों को दूँगा। यह मशीन मेरी डिवाइन ऊर्जा को पत्थरों में डालने का काम करेगी और जो पत्थर बाहर निकलकर आएंगे तब वे डिवाइन पत्थर में बदल जाएँगे।” श्री ने सवाल किया, “क्या हम इस काम को सीधे ही नहीं कर सकते? तुम सीधा ही अपनी एनर्जी से इन डिवाइन पत्थर नहीं बना सकते? तुम तो भगवान हो, तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है?” देवांश ने गहरी साँस ली और फिर कहा, “हाँ, मेरे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है, लेकिन मेरे इस शरीर के लिए हाँ। यह शरीर काफी कमज़ोर है। जब मैं तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डाल रहा था तब भी मुझे तुम्हारे शरीर में धीरे-धीरे डिवाइन ऊर्जा डालनी पड़ रही थी क्योंकि अगर मैं एक साथ तुम्हारे शरीर में डिवाइन ऊर्जा डालने की कोशिश करता तो शायद तुम एक धमाके के साथ फ़ट जातीं। यह डिवाइन ऊर्जा इस ब्रह्मांड की सबसे खतरनाक ऊर्जा है। कोई भी चीज इसे सीधे नहीं संभाल सकती है।” सब ने देवांश की बात मानी और फिर उसकी बताई गई चीजों के अनुसार उस मशीन को बनाने लगे। देवांश अपने पिता के पास आया। अपने पिता के एक हाथ को देखकर उसने कहा, “मुझे माफ़ कर देना, मैं आपके हाथ को नहीं बचा सका। काश मैं थोड़ा सा और जल्दी आ जाता और किसी तरह से आपके हाथ को बचा पाता। मुझे इस बात का भी अफ़सोस हो रहा है कि मेरी कम उम्र की वजह से मैं आपके हाथ को वापस नहीं जोड़ सकता।” लखन अपने बेटे के पास आया और कहा, “तुमने मेरी ज़िन्दगी बचा ली, यही मेरे लिए काफी है। मुझे इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं चाहिए।” दोनों एक पगडंडी के ज़रिए होते हुए खेतों की तरफ़ जाने लगे। काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा और दोनों में किसी तरह की कोई बात नहीं हुई। लखन ने सन्नाटा तोड़ा और कहा, “तो तुम इस गाँव से बाहर जाना चाहते हो? क्या तुम्हें सच में लगता है इस गांव से बाहर और दुनिया होगी? हमारे काफी सारे लोगों ने दुसरी दुनिया को ढूँढने की कोशिश की थी, मगर किसी को भी वह दुनिया नहीं मिली?” देवांश ने सोचते हुए कहा, “मैं नहीं जानता। लेकिन उसे होना ही चाहिए, क्योंकि अगर मैंने जन्म लिया है तो यह बिना मतलब तो लिया नहीं होगा। और ना हीं, मुझे लगता है मैंने जन्म इस गाँव की किसी बुराई को खत्म करने के लिए लिया है, क्योंकि इस गाँव की बुराई इतनी भी बड़ी नहीं है कि मुझे जन्म लेना पड़े। बस दुसरी दुनिया अभी तक हमारी नज़रों में नहीं आई, लेकिन अगर हम कोशिश करेंगे और इसे ढूँढने के लिए मैं निकलूँगा तो मैं इसे ढूँढ ही %