अमर एक जुनूनी रिसर्चर और मार्शल आर्ट्स का दीवाना, एक जादुई मार्शल वर्ल्ड में पुनर्जन्म लेता है। अब जब उसके पुराने शरीर की बीमारी पीछे छूट चुकी है, वो अपने तन, मन, दिल और रूह को सिर्फ एक मकसद के लिए झोंक देता है — सबसे ताकतवर मार्शल आर्टिस्ट बनने के ल... अमर एक जुनूनी रिसर्चर और मार्शल आर्ट्स का दीवाना, एक जादुई मार्शल वर्ल्ड में पुनर्जन्म लेता है। अब जब उसके पुराने शरीर की बीमारी पीछे छूट चुकी है, वो अपने तन, मन, दिल और रूह को सिर्फ एक मकसद के लिए झोंक देता है — सबसे ताकतवर मार्शल आर्टिस्ट बनने के लिए! क्या अमर बन पाएगा सबसे ताकतवर मार्शल आर्टिस्ट...? चलिए जानते हैं, हमारे साथ, पढ़िए अमरकि कहानी" रिबॉर्न इन मार्शल वर्ल्ड " हमारे साथ , 💕 💕 💕 💕 💕💕 💕💕 💕 💕💕 💕 💕 💕 💕💕 💕 💕 💕 💕 💕💕 💕💕 💕 💕💕 💕 💕 💕 💕💕 💕
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डॉक्टर ने बच्चे की छाती से स्टेथोस्कोप हटाया और सामने रखी रिपोर्ट्स पर नजर डाली। रिपोर्ट बिल्कुल साफ थी।
"अफसोस की बात है," डॉक्टर ने भारी आवाज में कहा, "ये Non-Type-2 Inflammation वाला गंभीर अस्थमा है।"
"इसका मतलब क्या है, डॉक्टर साहब?" बच्चे की माँ ने घबराते हुए उसके छोटे से हाथ को और कस कर पकड़ लिया।
"ये अस्थमा का ऐसा टाइप है जिसपर दवाइयां और स्टेरॉइड्स भी ठीक से असर नहीं करते। उसके फेफड़े बुरी तरह खराब हो चुके हैं। उसे रोज़ नेबुलाइज़र से सांस लेनी पड़ेगी ताकि वो थोड़ी बहुत सामान्य ज़िंदगी जी सके।"
माँ सुनते ही काँप उठी। और बच्चा... उसे तो कुछ समझ नहीं आया, मगर माँ की घबराहट सीधी उसके दिल तक उतर गई। उसकी सांसें तेज़ हो गईं, जैसे कोई पहाड़ चढ़ रहा हो। उसे लग रहा था जैसे कोई तकिया मुँह पर रखकर दम घोंट रहा हो। हवा जैसे पतली हो रही थी।
"माँ..." उसने घबराकर आवाज़ निकाली और रो पड़ा।
"अमर!" माँ ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर लिया। उसके कांपते हाथों से भी अमर को डर महसूस हो रहा था।
"जल्दी से पाँच मिलीग्राम एल्ब्युटेरोल लाओ!" डॉक्टर ने तुरंत कहा।
"चिंता मत करो बेटे," डॉक्टर ने प्यार से कहा, "गहरी सांस लो, सब ठीक हो जाएगा।"
लेकिन अमर को पता था - डॉक्टर झूठ बोल रहा था। कैसे पता था, उसे भी नहीं मालूम। लेकिन दिल से उसे महसूस हो रहा था। उसकी आँखों के सामने धुंध छा गई।
"म... माँ..." उसने टूटती आवाज़ में कहा और बेहोश हो गया।
अंतिम आवाज़ जो उसके कानों में पड़ी, वो थी उसकी माँ की चीखती हुई पुकार - "अमर!"
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अमर झटके से उठा। पसीने में भीगा हुआ, हांफते हुए। उसे सब याद आ गया।
"फिर वही सपना..." वह बड़बड़ाया। असली दुःस्वप्न वही होते हैं जो असली हों। उसे लगता था अगर कोई और बुरा सपना आता — जैसे ऊंचाई से गिरने वाला — तो बेहतर होता। लेकिन नहीं, उसे अपनी सबसे बुरी याद ही रोज़ जीनी थी।
वो दिन... जब उसे गंभीर अस्थमा का पता चला था।
"अगर ये बीमारी न होती... मैं क्या-क्या कर सकता था..." अमर ने घुटते हुए कहा।
खेल, दौड़, सफर, ट्रेकिंग... और सबसे बढ़कर — मार्शल आर्ट्स।
अमर को मार्शल आर्ट्स से बेइंतेहा प्यार था। जब उसने पहली बार "Enter the Dragon" फिल्म देखी थी, तभी से उसे ये जुनून लग गया था। चालें, स्टांस, फुर्ती, पकड़, वार — सब कुछ उसे सम्मोहित कर देता था।
मगर बीमारी ने उसे कभी खुद अभ्यास करने नहीं दिया। तो उसने एक और रास्ता चुना — विद्या का रास्ता।
बीस-पच्चीस साल की उम्र तक, अमर ने फिजिक्स में डिग्री, ह्यूमन एनाटॉमी में डिप्लोमा और स्टैटिस्टिक्स में माइनर डिग्री ले ली थी। फिर उसने मार्शल आर्ट्स और कॉम्बैट स्पोर्ट्स पर रिसर्च करना शुरू किया। उसकी रिसर्च ने नए जमाने की एमएमए और यूएफसी की नींव रखी थी।
लेकिन फिर...
पचपन साल की उम्र में उसके कमजोर फेफड़े आखिरकार जवाब दे गए।
अमर की मौत हुई, अपने सबसे बड़े प्यार के साथ — मार्शल आर्ट्स के सपने को दिल में लेकर।
लेकिन कहानी वहीं खत्म नहीं हुई...
---फिर ऐसा हुआ जिससे वो सोच भी नहीं सकता
('मैं... मर तो गया था ना?')
अमर को अजीब सा एहसास हुआ। उसने पाया कि उसका शरीर बहुत छोटा हो गया था, जैसे कोई उसे किसी तंग जगह से बाहर धकेल रहा हो।
('कहीं मैं फिर से पैदा तो नहीं हो रहा...?')
अचानक उसने रोने की आवाज़ सुनी — उसकी अपनी!
"वाआआआआ!"
उसने आँखें खोलीं। सामने एक बहुत बड़ी औरत थी... या शायद वो खुद छोटा हो गया था। उसने अपने नन्हें हाथों को देखा और सिहर उठा।
"जल्दी करो! माँ की हालत नाजुक है!" डॉक्टर और नर्सें दौड़ पड़ीं।
काफी कोशिश के बाद भी, अमर की माँ की जान नहीं बच सकी। उसकी आँखें बुझ गईं, लेकिन जाते-जाते भी वो अमर को देखती रहीं।
('कृपया ये सपना हो...') अमर सोचता रहा, लेकिन सब सच था।
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नई दुनिया
जब वह फिर जागा, वह एक छोटे से कमरे में था — लकड़ी के पालने में लिपटा हुआ। कमरे में कुछ और भी नवजात शिशु थे। खिड़की के बाहर वह देख सकता था — डॉक्टर, नर्सें, अजनबी माहौल, अजनबी भाषा।
('ये अमेरिका तो नहीं है...')
उसने गौर किया — यहाँ न तो बिजली थी, न मॉनिटरिंग मशीनें। बस, कुछ अजीब किस्म की रोशनियां थीं जो जल रही थीं, लेकिन वो भी बिना आग के।
('ये... कहीं पृथ्वी भी नहीं हो सकती...?')
अमर को नहीं पता था कि वह किस दुनिया में आ गया है। लेकिन एक बात तय थी — ये एक नया सफर था।
और इस बार, कोई बीमारी, कोई बंदिश उसे रोक नहीं सकती थी।
--- आगे मेरी इस कहानी में क्या होगा जाने के लिए बने रहे मेरे साथ और पड़ी है मेरी यह न्यू इंटरेस्टिंग novel जिसका नाम है "AMAR.. REBORN A MARITAL YODHA "
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प्लीज लाइक कमेंट शेयर करना बिल्कुल भी मत बोलना
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अमर को दोबारा जन्म लिए करीब एक महीना हो चुका था, लेकिन अब तक ज्यादा कुछ नहीं बदला था। उसके दिन ज़्यादातर पालने में पड़े-पड़े ही बीतते थे, जिससे वो ऊब चुका था। दोबारा जन्म लेने का जोश अब खत्म हो चुका था।
अस्पताल के कर्मचारी उसे खाना खिलाते, नहलाते और उसका डायपर बदलते — जो एक बूढ़े आदमी के लिए शर्मनाक था। फिर भी, अमर को ये नई जवानी का एहसास बहुत अच्छा लगता था। सांस लेते समय पूरे शरीर में दौड़ती ऊर्जा उसे एक अलग ही नशा देती थी।
उसे लगता जैसे उसके अंदर अनगिनत ऊर्जा भरी हुई है जिसे वो बाहर निकालना चाहता है। उसका मन ताजा महसूस होता और शरीर बेहद आरामदायक। वह अक्सर पालने में खुद को ज्यादा से ज्यादा हिलाने की कोशिश करता, लेकिन इस उम्र में उसका शरीर बहुत कमजोर था। इसलिए ज़्यादातर समय वह अपने भविष्य के बारे में सोचता और अपने आसपास की दुनिया के बारे में जितनी जानकारी मिल सकती थी, इकठ्ठा करता।
इसी बीच उसे अपना नाम भी पता चला — "अमर"। नर्स उसे इसी नाम से बुलाती थी। नाम अजीब था, लेकिन अब उसे आदत हो चली थी।
अपने आसपास के माहौल में भी उसने कई अजीब बातें नोटिस की थीं।
सबसे पहली बात — यहाँ के लोगों की त्वचा का कोई एक रंग नहीं था; कुछ लोग गोरे थे, कुछ सांवले, कुछ काले। लेकिन सबसे अजीब बात थी — उनके बालों का रंग!
('क्या ये लोग बाल रंगते हैं? या यहाँ कोई फैशन ट्रेंड है?') उसने सोचा।
उसने लाल, नीले, पीले, हरे, बैंगनी, सुनहरे, चांदी जैसे हर रंग के बाल देखे थे। काले बाल तो शायद सिर्फ उसके ही थे। उसकी पिछली जिंदगी में काले बाल आम थे, लेकिन यहाँ तो ये बहुत दुर्लभ लग रहे थे।
इतना ही नहीं, लोगों की आँखों के रंग भी हर तरह के थे — नीले, हरे, सुनहरे, गुलाबी — लेकिन काली आँखें? सिर्फ उसी की थीं। उसकी गहरी काली आँखें और बाल मानो रोशनी को सोख लेते हों। कुछ लोग उसे डर या घृणा की नजरों से देखते थे, जिससे उसे शक हुआ कि शायद ये विशेषताएँ इस दुनिया में अनचाही हों।
('उम्मीद है ऐसा नहीं होगा।') उसने लंबी सांस ली।
('खैर, ये तो तय है कि ये धरती नहीं है। यहाँ के लोग, बाल और आँखों के रंग धरती पर नहीं मिलते।')
इसी सोच में डूबा था कि तभी दरवाज़ा खुला और नर्स एक सुनहरे बालों वाली महिला के साथ अंदर आई। महिला ने अमर को गोद में लिया, उसके साथ खेली और नर्स से बातें कीं, जिन्हें अमर पूरी तरह समझ नहीं पाया। कुछ देर बाद वह कुछ कागजों पर हस्ताक्षर कर अस्पताल से अमर को लेकर निकल गई।
('एक महीना अस्पताल में रहना भी बहुत हो गया था।') अमर ने सोचा, और इस बदलाव का स्वागत किया।
अब वह इस अजीब दुनिया के बारे में और जान सकेगा।
बाहर निकलते ही उसने गौर किया कि यहाँ की तकनीक बहुत अजीब थी। न तो यह पूरी तरह पुरानी थी, न ही बिल्कुल आधुनिक। रोशनी के स्रोत अजीब थे, दवाइयाँ भी अलग तरह की थीं, जिनका वह पृथ्वी पर कोई उदाहरण नहीं जानता था।
('यह दुनिया सच में अलग है।')
रास्ते में उसने देखा कि कुछ लोग कपड़े की थैलियों में सामान ले जा रहे थे, जबकि कुछ हैंडबैग्स का इस्तेमाल कर रहे थे। फैशन भी अजीब था — पश्चिमी और पूर्वी पारंपरिक कपड़ों का मिलाजुला रूप, जैसे औद्योगिक क्रांति से पहले के दौर में होता था। लेकिन इमारतें काफी साफ-सुथरी और सुंदर थीं, जिससे तकनीक का अंदाजा लगाना मुश्किल था।
मौसम बेहद खुशनुमा था — धूप तेज थी लेकिन बादलों ने उसे नरम कर रखा था। ठंडी हवा पेड़ों और फूलों को झुला रही थी, नजारा वाकई दिल को छू लेने वाला था।
रास्ते में चलते हुए सुनहरे बालों वाली महिला ने एक रिक्शा बुलाया। वह अमर को लेकर उसमें बैठ गई और कुछ ही देर में एक बड़े से गेट वाले मकान के सामने उतरी। महिला ने रिक्शे वाले को कांसे के सिक्के से भुगतान किया।
('बिना बिजली के इतनी सुंदर मुद्रा? शायद मैंने इस दुनिया को कम आंका था।')
मकान थोड़ा जर्जर था लेकिन बगीचा बहुत सुंदर और साफ था। महिला ने दरवाज़े पर दस्तक दी।
एक लाल बालों वाली युवती ने दरवाजा खोला और खुशी से चिल्लाई —
"माँ म!"
('जानवी ? शायद यही इनका नाम है।') अमर ने सोचा।
"रश्मि!" जानवी ने जवाब दिया।
रश्मि ने मुस्कुराते हुए अमर की तरफ देखा और पूछा, "तो ये वही बच्चा है? काले बालों और काली आँखों वाला, जिसे कोई भी अनाथालय एक महीना तक नहीं अपनाना चाहता था?"
"हाँ," जानवी ने दुख से कहा, "बेचारा इतने नाजुक वक्त में बिल्कुल अकेला रहा। मैं खुद को रोक नहीं पाई, जब मैंने इसे देखा।"
रश्मि ने अमर को गोद में लेकर दुलारा और बाकी घरवालों से मिलवाया।
('तो अब यही मेरा नया घर होगा...') अमर ने सोचा।
('मुझे लगता है, मैं यहाँ जी सकता हूँ।')
..
"आआआ करो," रश्मि मुस्कुराते हुए अमर के मुँह के पास खिचड़ी से भरा चम्मच ले जाकर बोली। अमर को जन्म लिए हुए ग्यारह महीने हो चुके थे। पिछले दस महीनों से जो सुकूनभरी, साधारण ज़िंदगी वह जी रहा था, उसमें अब वह पूरी तरह ढल चुका था। लेकिन अब भी, इतने छोटे बच्चे होने के बावजूद, वह यह समझने लगा था कि अनाथालय की हालत उतनी अच्छी नहीं थी, जितनी उसकी आरामदायक ज़िंदगी से लगती थी।
जीवन कठिन था। पृथ्वी के इक्कीसवीं सदी में ज़िंदगी का स्तर ऐतिहासिक रूप से सबसे अच्छा था, लेकिन यह दुनिया मध्य युग के जैसी थी, जहाँ खाना, घर और सुरक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें भी आसानी से नहीं मिलती थीं, और जो मिलती थीं, उन्हें बनाए रखना और भी मुश्किल था। खासकर गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए, यहाँ असफल होने की सज़ा भी कहीं ज़्यादा कठोर थी।
अमर समझ गया था कि अनाथालय की आर्थिक स्थिति खराब थी। जगह-जगह से टूटी-फूटी हालत थी। वह नहीं जानता था कि अनाथालय कैसे अपनी ज़रूरतों का पैसा जुटा पाता था, लेकिन उसे पक्का यकीन था कि यह आसान नहीं रहा होगा। अनाथालय एक गैर-लाभकारी संस्था थी, जो दान या सरकार से मिलने वाली थोड़ी-बहुत सहायता से ही चलती थी।
लेकिन साफ दिखता था कि यहाँ के लोग संघर्ष कर रहे थे। बहनें खुद खाना छोड़ देती थीं ताकि बच्चे भरपेट खा सकें। जब वे बच्चों को खाना खिलाती थीं, तो उनके चेहरे पर छुपी हुई चिंता अमर महसूस कर सकता था।
('हाय! मेरी जैसी बेबस और नाकाम बच्चे को खिलाने के लिए ये लोग कितनी कुर्बानी दे रहे हैं।') अमर के दिल में ग्लानि भर जाती थी।
('जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तो अपनी जानकारी से खूब पैसा कमाऊंगा। फिर इन्हें खुद सहारा दूंगा। वैसे भी, ये सब मुझे पहले से ही एक जीनियस समझते हैं।')
अमर का दिमाग तो एक वयस्क का था, इसलिए वह भाषा बहुत जल्दी सीख रहा था। सबसे पहले उसने सबके नाम याद किए, फिर आम शब्द जैसे 'खाना', 'खाओ' आदि सीखे। दस महीने की उम्र तक वह सरल वाक्य बनाने लगा था, और ग्यारह महीने में तो और भी सहजता से बोलने लगा था। अनाथालय के लोग उसे किसी चमत्कारी बच्चा समझने लगे थे — आखिर भला कौन-सा बच्चा एक साल से पहले इतनी साफ-सुथरी भाषा में बातें करता है?
उसके बोलने की गति सामान्य बच्चों से तीन गुना तेज थी। अमर को खुद यह बहुत खास नहीं लगता था, क्योंकि लगातार दस महीने अभ्यास करने के बाद भी वह केवल एक चार साल के बच्चे जितना ही बोल पाता था। फिर भी, बिना किसी टीचर या संसाधनों के केवल खुद सीखकर उसने जो सीखा था, वह काबिले तारीफ था। वह सोचता था कि भविष्य में इसी तेज़ी से बढ़कर अच्छा पैसा कमाकर अपने नए परिवार का सहारा बनेगा।
फिलहाल तो वह अच्छे से खाने पर ध्यान दे रहा था, ताकि उसका शरीर मजबूत बन सके।
"कैसी लगी खिचड़ी, अमर? स्वाद आया? मैंने तुम्हारे कहने पर ज़रा और मिर्च डाली थी," रश्मि हंसते हुए उसे एक और चम्मच भरकर खिला रही थी।
"बहुत स्वादिष्ट है, बहन," अमर ने जितनी सच्चाई से झूठ बोल सकता था, बोला। सच्चाई तो ये थी कि उसे खिचड़ी बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह तो एक ऐसे देश में पला था, जहाँ खाने के बेहतर विकल्प उपलब्ध थे। लेकिन ये खिचड़ी रश्मि ने खुद प्यार से बनाई थी, इसलिए वह उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था।
वैसे भी, उसे खाना बहुत ज़रूरी था। उसके जैसे छोटे बच्चे के लिए पोषण बेहद महत्वपूर्ण था। कुपोषण का असर सारी ज़िंदगी खराब कर सकता था। और वह किसी भी हालत में ऐसा खतरा नहीं उठा सकता था — आखिर वह पहले भी एक बीमार व्यक्ति रहा था। पहले की तरह सांस लेने में तकलीफ नहीं होने का अहसास उसके लिए किसी जादू से कम नहीं था।
('इसका मतलब मैं अब इस दुनिया में मार्शल आर्ट्स भी सीख सकता हूँ!') वह दिल ही दिल में खुश हो गया। उसके नए शरीर में कोई बीमारी नहीं थी, और वह अब वे सब कुछ कर सकता था जो पहले मुमकिन नहीं था — खासकर मार्शल आर्ट्स, जो उसकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी।
('वाह! पुनर्जन्म का सबसे मजेदार हिस्सा यही है!') वह सोच कर फूला नहीं समा रहा था कि कब वह बड़ा होगा और मार्शल आर्ट्स सीखना शुरू करेगा।
"रश्मि, वह योद्धा आ गया है, जिसे तुमने पिछवाड़े का गिरा हुआ पेड़ हटाने के लिए बुलाया था," अनाथालय की एक और देखभाल करने वाली, करीना, आकर बोली।
"योद्धा?" अमर ने जिज्ञासा से पूछा। उसने अभी तक यह शब्द नहीं सुना था।
"अरे, तुम नहीं जानते। चलो, चाहो तो देख सकते हो," रश्मि ने खिचड़ी का कटोरा नीचे रख दिया और इशारा किया कि वह उसके साथ चले। अमर भी उत्सुकता से चल पड़ा।
बाहर एक बेहद लंबा और ताकतवर आदमी खड़ा था। उसने कुछ ऐसा पहन रखा था जो किसी अभ्यास पोशाक जैसा दिखता था। फिर भी उसके बड़े-बड़े मांसपेशियों को ढीले कपड़े भी नहीं छुपा पा रहे थे। उसका सिर आधा मुंडा हुआ था और बची हुई बालों की लंबी चोटी पीछे बंधी हुई थी।
('रुको...') अमर की आंखें चमक उठीं।
('क्या ये कोई मार्शल आर्टिस्ट है?')
"वहां है पेड़," रश्मि ने उसे पीछे ले जाकर दिखाया, जहाँ एक भारी भरकम पेड़ का तना गिरकर रास्ता रोक रहा था।
"ठीक है, कृपया आप सब कुछ कदम दूर हो जाइए," उस आदमी ने कहा, फिर एक मार्शल आर्ट्स स्टांस में खड़ा हो गया। वह बाएं पैर को आगे और दाएं पैर को पीछे कर एकदम तैयार हो गया। उसका बायां हाथ ऊपर की ओर मुड़ा हुआ था और मुट्ठी आकाश की तरफ थी। यह सीधे पंच मारने की एक आम मुद्रा थी — लेकिन यहां वह इस मुद्रा से पूरा पेड़ हटाने वाला था?
अमर की आँखें फटी की फटी रह गईं।
"यह क्या करने वाला है—"
"फ्लोटिंग टाइगर फिस्ट स्टाइल: दहाड़ता प्रहार," उस आदमी ने धीमे से कहा।
इसके बाद जो हुआ, उसने अमर के रोंगटे खड़े कर दिए। ऐसा लगा जैसे उसकी देह की हर कोशिका उस चमत्कार को देखने के लिए थम गई हो। उसे लगा था अब कुछ नहीं चौंका सकता, लेकिन वह गलत था — यह तो बस शुरुआत थी।
उस आदमी का शरीर एकदम धुंधला हो गया। फिर जबरदस्त टॉर्क बनाते हुए उसने अपनी पूरी ताकत से घूंसा मारा।
अगले पल, एक जबरदस्त धमाका हुआ — इतनी तेज़ कि दस मीटर दूर खड़े अमर को भी हल्का झटका लगा। धूल और लकड़ी के टुकड़े उड़ने लगे। जब धूल बैठी, तो अमर का हैरानी का स्तर और बढ़ गया।
पूरा पेड़ चूर-चूर हो गया था! उस आदमी ने सिर्फ एक पंच में विशाल पेड़ के तने को मिट्टी में मिला दिया था!
वह आदमी बिल्कुल शांत भाव से रश्मि और अमर की तरफ मुड़ा और पूछा—
"कुछ और करना है?"
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जानवी ने आशा अनाथालय के खाता-पत्रों पर काम खत्म किया और गहरी सांस ली। इस महीने पैसे काफ़ी कम थे। एक अनाथालय के पास बहुत सारे खर्चे होते हैं, जिनमें से सबसे कठिन होता है बच्चों को खिलाने का खर्च। सोलह बच्चों और छह वयस्कों को खिलाने के लिए पर्याप्त पैसे जुटाना आसान नहीं था। हालांकि छह वयस्कों में से पांच पैसे कमाते थे, फिर भी सभी के लिए मुश्किल से पैसे जुट पाते थे, ये सब सरकारी टैक्स में छूट और कभी-कभी मिलने वाली दान राशि के बावजूद था।
उनका मासिक खर्चा भोजन, कपड़े (क्योंकि बच्चे लगातार बड़े हो रहे थे और सोलह बच्चों में से हर महीने कुछ न कुछ पुराना हो जाता था), स्वच्छता सामग्री, छूट प्राप्त टैक्स, रखरखाव और कई अन्य छोटे-छोटे खर्चे होते थे, जो मिलकर एक भारी मासिक खर्च का कारण बनते थे।
आशा अनाथालय की स्थापना जानवी ने बाईस साल पहले की थी। उस समय वह अकेली देखभाल करने वाली थी, और उसने पांच बच्चों को गोद लिया था। आमतौर पर, जो परिवार गोद लेना चाहते थे, वे बड़े और प्रसिद्ध अनाथालयों में जाते थे, इसलिए उन पांच बच्चों को कभी नहीं अपनाया गया। जानवी ने उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला।
वे पाँच बच्चे, रश्मि, कायरा, ध्रुव, मायरा और क्रिश बड़े हो गए और अनाथालय और अपनी माँ का समर्थन करने का फैसला किया। साथ मिलकर वे छह वयस्क देखभाल करने वाले थे, जो आशा अनाथालय को चलाते थे।
जानवी अपना सारा समय अनाथालय में ही बिताती थी, जबकि पाँच देखभाल करने वाले पार्ट-टाइम काम करते थे, ताकि अनाथालय को सस्टेन किया जा सके। आमतौर पर उनके पास चौदह से सोलह बच्चे होते थे, यह उनकी अधिकतम सीमा थी, जो अनाथालय की आवास और वित्तीय क्षमता और देखभाल करने वाले से बच्चों के अनुपात के आधार पर थी। हालांकि, परिवार अक्सर एक साल से छोटे बच्चों को गोद लेना पसंद करते थे, इसलिए ज्यादातर बड़े बच्चे अनाथालय में ही रहते थे।
आशा उन्हें उनके शुरुआती वर्षों में घर पर पढ़ाती थी, वह उन्हें बुनियादी कानून, भूगोल, इतिहास, गणित और अर्थशास्त्र और राजनीति की बुनियादी बातें सिखाती थी। वह अपनी तरफ से पूरा प्रयास करती थी कि बच्चों को उस आधारभूत ज्ञान का पता चले, जो एक वयस्क को जानना चाहिए। हालांकि वह कोई शिक्षक नहीं थी, लेकिन इक्कीस सालों में उसने बुनियादी शिक्षा देने में महारत हासिल कर ली थी।
महिलाएं, रश्मि, मायरा और ,कायरा पार्ट-टाइम किचन, रेस्टोरेंट्स, समृद्ध घरों में रसोई, वेट्रेस, बेबी-सिटर जैसी नौकरियों में काम करती थीं। पुरुष, ध्रुव और क्रिस मैन्युअल श्रमिक के तौर पर काम करते थे, ज्यादातर रिक्शा चलाने वाले होते थे, हालांकि सर्दियों में वे खनन का काम करना पसंद करते थे। इन पांचों ने मिलकर अनाथालय की अधिकांश मासिक आय अर्जित की थी।
जानवी दिल से उन्हें बहुत प्यार करती थी, अगर वे न होते, तो उसे अनाथालय बंद करना पड़ता, और इस ख्याल से ही उसका दिल कस जाता था। हालात कठिन थे, लेकिन उसके पास ऐसे प्यार करने वाले बच्चे थे, जिनकी मदद से वह इन मुश्किलों से पार पा सकती थी।
जब से अनाथालय ने अमर को अपनाया था, हालात और भी कठिन हो गए थे। एक नवजात शिशु को लगातार देखभाल और निगरानी की आवश्यकता होती थी, जिससे उन पर और भी बोझ बढ़ गया था। लेकिन जानवी ने अपनी फैसले पर पछतावा नहीं किया। जब उसकी बहन, जो अस्पताल में नर्स थी, ने उसे बताया कि एक काले बाल और काले आँखों वाला अनाथ बच्चा जिसे किसी भी अनाथालय ने अपनाया नहीं था, तो उसने उसे अपनाने का निर्णय लिया।
काले बाल और काले आँखों वाले बच्चे अत्यंत दुर्लभ होते हैं और उन्हें लेकर अंधविश्वास है कि जो बच्चे इस प्रकार के होते हैं, वे पूरे विश्व के लिए महा विनाश या महा भाग्य लेकर आते हैं। हालांकि, जानवी ने कभी भी ऐसे बकवास बातों को नहीं माना और अधिकांश लोग भी इसे नहीं मानते थे, लेकिन फिर भी इस अंधविश्वास से बच्चों को कष्ट होता था।
बेशक, जानवी यह जानती थी कि अमर सामान्य बच्चा नहीं था। उसकी नजर में, वह एक अविश्वसनीय प्रतिभाशाली बच्चा था। उसने दो महीने की उम्र में पहला शब्द बोला था, जो सभी वयस्कों को चौंका दिया था, और उसकी शब्दावली और भाषण में तेजी से वृद्धि हुई थी, यहाँ तक कि एक साल से पहले वह चार साल के बच्चे जैसा बोलने लगा था। इसके अलावा, उसका स्वभाव सचमुच अविश्वसनीय था, वह बहुत कम रोता था और जब रोता भी था तो केवल तब जब उसे गंभीर चोट लगती थी। वह शांत और धैर्यवान था, जो जानवी के लिए एक शिशु में असंभव सा लगता था।
अगर यह सब इतना डरावना नहीं होता, तो जानवी को यह बिल्कुल भाता था, क्योंकि अमर वास्तव में एक अद्भुत बच्चा था। वह दयालु, स्नेही और सबसे बढ़कर प्यारा था। वह निश्चित रूप से बड़ा होकर दिलों को तोड़ने वाला होगा।
वह जब अपने खाता-बही की किताब बंद करती और अपनी अबेकस को अलग रखती, तब अचानक-
बूम!
एक तेज आवाज ने उसे चौंका दिया। वह अनाथालय के पीछे के गलियारे में गई, जहाँ से यह आवाज आई थी।
"आह, ये सायर है, समझ गई।" उसने खिड़की से देखा और टूटे हुए लकड़ी और चूरन के मलबे को देखा।
('यह और एक खर्च है, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। इसे खुद काटना समय और ऊर्जा की बर्बादी होती। और पीछे का निकासी मार्ग नियमित रूप से सप्लाई के लिए उपयोग किया जाता है, क्योंकि भंडारण कक्ष इसके पास ही था।')
एक तूफान ने एक पुराने पेड़ को गिरा दिया था, जिससे ये सारी समस्याएँ उत्पन्न हुई थीं। सौभाग्य से, मार्शल स्क्वायर बहुत तेज होते हैं, जिससे उनकी सेवाएँ हर एक कांस्य सिक्के के लायक होती हैं। मार्शल स्क्वायर, मार्शल आर्ट के छः स्तरों में से एक होता है, जो मार्शल यूनियन का हिस्सा होता है, जो मार्शल आर्ट से जुड़ी किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान करता है। अनाथालय ने एक मार्शल स्क्वायर से मैन्युअल श्रम मंगवाया था, हालांकि यह बहुत कम अवसरों पर किया जाता था।
जानवी ने देखा कि अमर रश्मि के पास खड़ा था, जबकि वह सायर को उसके श्रम का शुल्क दे रही थी, उसने खास ध्यान दिया कि अमर की आँखों में जो काफ़ी अचंभा और प्रशंसा थी, वह आसानी से छिपाई नहीं जा सकती थी। यह तो वैसे भी लगभग असंभव था, खासकर अमर जैसे बच्चों से, जो आमतौर पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में बहुत अधिक संकोच करते थे।
"फू फू फू... मुझे लगता है वह मार्शल आर्टिस्ट बनने की कोशिश करेगा..."
अमर ने दिन का बाकी हिस्सा हर एक वयस्क से जो कुछ भी उसने अभी देखा था, के बारे में पूछते हुए बिताया। आठ घंटे तक लगातार पूछताछ करने के बाद, वह रात को अपने बिस्तर में लेट गया, लेकिन इतनी उत्सुकता थी कि वह सो नहीं सका। उसे अपनी सबसे बड़ी जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए कुछ समय लगा, आखिरकार उसकी शब्दावली अभी भी अधूरी थी।
वह वयस्कों से पूछताछ करता रहा, जब तक कि उन्हें उनके जटिल उत्तरों को समझने में सफलता नहीं मिल गई। यह काफी थकाने वाला था, लेकिन उसने अपनी सबसे बड़ी सवालों के जवाब पा लिए। कठोर पूछताछ के बाद, उसने जो कुछ सीखा था उसे समझने और व्यवस्थित करने का समय लिया।
मार्शल आर्ट, या जिसे वे मार्शल आर्ट कहते थे, असली था। यह केवल असली नहीं था, बल्कि यह बेहद शक्तिशाली भी था। मार्शल आर्टिस्ट्स बेहद शक्तिशाली होते थे, वे असाधारण शारीरिक क्षमता रखते थे, जैसे कि वह जो उसने देखा था। देशभर में, और शायद महाद्वीपभर में, मार्शल आर्टिस्ट्स को छह क्षेत्रों में बांटा गया था, जो मूल रूप से रैंक थे:
मार्शल अप्रेंटिस, मार्शल स्क्वायर, मार्शल सीनियर, मार्शल मास्टर, मार्शल सैज, और आखिरकार; मार्शल ट्रांससेंडेंट। हर क्षेत्र पिछले से अधिक शक्तिशाली था, लेकिन वयस्कों को इसके बारे में कुछ और जानकारी नहीं थी।
('अगर एक मार्शल स्क्वायर, जो छह क्षेत्रों में से दूसरा सबसे मजबूत था, इतना मजबूत था, तो उच्च रैंक कितने अधिक मजबूत होंगे?') वह खुशी से यह सोचने लगा। यह रहस्योद्घाटन सच में उसकी जिंदगी का सबसे चौंकाने वाला अनुभव था। यहां तक कि पुनर्जन्म का झटका भी इसके मुकाबले हल्का और नीरस था। उसने इन विचारों को जल्दी से नकारते हुए बाकी की जानकारी पर ध्यान केंद्रित किया।
मार्शल आर्ट को लगभग पांच सौ साल पहले से ट्रेस किया जा सकता था। समय के साथ हर देश में मार्शल आर्टिस्ट्स की ताकत बढ़ती गई, और उनकी संख्या भी बढ़ी, जब तक कि मार्शल आर्टिस्ट्स की संख्या इतनी बढ़ नहीं गई कि हर देश में मार्शल यूनियंस नामक संघ बन गए। मार्शल यूनियंस मूल रूप से मार्शल आर्ट सेवा ग्राहकों और मार्शल आर्टिस्ट्स के बीच संपर्क का काम करते थे।
यह एक कनेक्शन के रूप में काम करता था, जो उपभोक्ता बाजार में बॉडीगार्डिंग, हमलों, मैनुअल श्रम जैसे कार्यों के लिए सेवाएं, साथ ही साथ गुप्त संचालन जैसे तोड़फोड़, घुसपैठ, जासूसी, निगरानी, हत्या आदि प्रदान करता था। यहां तक कि ट्यूटोरियल जैसी विशेष नौकरियां भी यूनियन के तहत आती थीं, जैसा कि कायरा ने बताया था, जो कभी एक इच्छाशक्ति मार्शल आर्टिस्ट था।
मार्शल यूनियन एक ऐसा संगठन था जिसमें मार्शल आर्टिस्ट्स की प्रसार में गहरी रुचि थी, इसलिए उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए थे कि नए और ताजगी से भरे मार्शल आर्टिस्ट्स की एक स्वस्थ आपूर्ति हो, जैसे कि मार्शल एकेडमियां। मार्शल एकेडमियां ऐसे संस्थान थीं जो मेरिटोक्रेटिक रूप से स्थापित, प्रबंधित और स्टाफ की गई थीं और इन संस्थाओं में मुख्य रूप से मार्शल स्क्वायर तक के विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया जाता था।
इसके अतिरिक्त, डेप के अनुसार, एकेडमियों की एक भारी वार्षिक शुल्क होती थी, आखिरकार, मार्शल सीनियर से शिक्षा प्राप्त करना एक विशेषाधिकार था, जिसे अन्यथा प्राप्त करना मुश्किल होता। फिर भी, उच्च शुल्क एक बाधा नहीं थे, क्योंकि मार्शल यूनियन यह समझता था कि अधिकांश प्रतिभाएं केवल उनकी आर्थिक स्थिति के कारण दब जाएंगी।
इसलिए, मार्शल एकेडमिइयां एक छात्रवृत्ति कार्यक्रम प्रदान करती थीं, जो इच्छाशक्ति मार्शल उम्मीदवारों को शुल्क को ऋण के रूप में स्वीकार करने की अनुमति देती थीं, और वे एकेडमी से स्नातक होने के बाद ऋण चुकता कर सकते थे। छात्रवृत्ति कार्यक्रम एक निवेश था, जिसका कोई निश्चित लाभ नहीं था, क्योंकि अगर कोई छात्रवृत्ति प्राप्त छात्र स्नातक होने में विफल रहता था, तो ऋण कभी चुकता नहीं किया जाता।
लेकिन अंततः इस नीति ने मार्शल एकेडमिइयों और इसके विस्तार के रूप में मार्शल यूनियन को मार्शल आर्टिस्ट्स की संख्या बढ़ाने का अधिकतम लाभ दिया था, उनका सबसे बड़ा लक्ष्य यही था, और आर्थिक नुकसान इस अंतरराष्ट्रीय संघ की आर्थिक शक्ति के मुकाबले तुच्छ थे, साथ ही छात्रवृत्तियां मेरिट के आधार पर दी जाती थीं, इसलिए नुकसान न्यूनतम थे।
अमर ने जब मार्शल एकेडमीइयों के बारे में जाना, तो उसने अपने भविष्य के बारे में पहले ही अपना निर्णय ले लिया था, और उसका उत्साह बहुत अधिक था, वह इंतजार नहीं कर सकता था। वह किसी न किसी तरीके से एक एकेडमी में दाखिला लेगा, चाहे छात्रवृत्ति मिले या न मिले। उसने पहले ही संभावित समाधान तैयार किए थे, लेकिन उसे उन्हें और विस्तार से जानने के लिए बहुत अधिक जानकारी की कमी थी।
"तुम क्या सोच रहे हो?" एक बच्चे की आवाज़ ने उसे पुकारा। अमर ने उस दिशा में देखा, जहां से आवाज़ आई थी।
"कुछ नहीं, नैना।" अमर ने जवाब दिया। जानवी अनाथालय की एक लड़की थी।
"हेहे, अमर मार्शल आर्ट के बारे में सोच रहा है, है ना?" वह लड़की उसके पास मुस्कुराते हुए बोली। "वह पूरा दिन मार्शल आर्ट के बारे में सभी वयस्कों से पूछता रहा।"
यह थी नैना, अनाथालय की एक बड़ी लड़की। पिछले 10 महीनों में, अमर ने अनाथालय के सभी बच्चों से परिचय प्राप्त किया था, हालांकि उम्र के अंतर के कारण, मानसिक और शारीरिक रूप से, उसे उनके साथ घुलने-मिलने में उतना समय नहीं मिला जितना वह चाहता था, लेकिन फिर भी उसने उनके साथ समय बिताया था।
"क्या तुम मार्शल आर्टिस्ट बनना चाहते हो, अमर?" एक तेरह साल का लड़का, जो किताब पढ़ रहा था, ने उससे पूछा।
अमर की आँखों में चमक आ गई।
"मैं सबसे बेहतरीन बनूँगा!" अमर ने घोषणा की।
"फिर तुम्हें कड़ी मेहनत करनी होगी।" लड़का मुस्कुराते हुए बोला और अपनी किताब बंद कर दी। "मार्शल आर्टिस्ट को सुपरह्यूमन शक्ति प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन प्रशिक्षण करना पड़ता है। क्या तुम इसके लिए तैयार हो?"
"मैं इसके लिए जन्मा हूँ, वीर।" अमर ने बिना किसी संकोच के जवाब दिया। यह वास्तविक नहीं था, क्योंकि उसे नहीं पता था कि वह क्यों या कैसे पुनर्जन्म हुआ, लेकिन उसे लगता था कि इसका कोई कारण होगा। अगर कारण था, तो और क्या कारण हो सकता था?
"तो हम तुम्हें अपनी पूरी क्षमता से समर्थन देंगे, अमर।" वीर ने अमर को गले लगा लिया।
"मmmm, धन्यवाद।" अमर ने जवाब दिया। वीर एक होशियार बच्चा था, हालांकि वह अमर की तरह अत्यधिक प्रतिभाशाली नहीं था, वह एक शांत और बुद्धिमान बच्चा था जो किताबों में पूरी तरह से खो जाता था, जो भी उसे हाथ लगती। अमर उसकी परिपक्वता से प्रभावित था, और बहुत सी चीजों से।
बच्चों ने और बातें कीं, जब तक रावी ने उन्हें सभी को लाइट बंद करने और सोने का निर्देश नहीं दिया। अमर को आश्चर्य हुआ कि वह जल्दी सो गया, क्योंकि वह पूरे दिन की उत्तेजना के बाद थक चुका था।
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"ठीक है, शुरू करते हैं," आर्यन ने कहा, अमर की ओर देखते हुए।
अमर ने सिर हिलाया।
अमर को इस दुनिया में पुनर्जन्म लिए सात साल हो चुके थे। जब से उसने मार्शल आर्ट और अकादमी के बारे में जाना, तभी से उसने उसकी तैयारी शुरू कर दी थी, जितना कुछ कर सकता था, सब किया। अकादमी में दाख़िले की न्यूनतम उम्र तेरह साल थी — किशोरावस्था। लेकिन उसकी तैयारी की बात करें, तो उसे परीक्षा के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं मिल सकी थी। मार्शल अकादमीज़ ने प्रवेश परीक्षा की प्रकृति पर काफ़ी गोपनीयता रखी थी। फिर भी, उपलब्ध जानकारी के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्ष निकाले जा सकते थे।
शुरुआत के लिए, तेरह से अठारह साल की उम्र वालों को ही परीक्षा देने की अनुमति थी, जिससे ये समझा जा सकता था कि मार्शल आर्ट की कौशल-स्तर की मांग बहुत ज़्यादा नहीं थी। यह उम्र वर्ग बहुत छोटा था, और अधिकांश किशोर इस उम्र में मार्शल आर्ट में पारंगत हो ही नहीं सकते थे।
आख़िरकार, यूनियन से दीर्घकालिक शिक्षक रखना बहुत महँगा था — कुछ जो केवल अमीर लोग ही अफ़ोर्ड कर सकते थे। और वो भी बस बुनियादी जानकारी ही दे सकते थे। लेकिन अगर उम्र की ऊपरी सीमा अठारह थी, तो यह स्पष्ट था कि परीक्षा मुख्य रूप से मार्शल कौशल पर आधारित नहीं थी।
यही वजह थी कि कुछ ही विकल्प बचते थे।
सौभाग्य से, अमर एक पूर्व मार्शल आर्ट और कॉम्बैट स्पोर्ट्स रिसर्चर था। उसे अच्छी तरह से पता था कि एक सफल फाइटिंग करियर के मुख्य निर्धारक क्या होते हैं। और यह जानना इतना कठिन भी नहीं था। सबसे बड़े दो कारक थे — प्रतिभा और दृढ़ इच्छाशक्ति।
मार्शल आर्ट की संदर्भ में प्रतिभा का अर्थ था— प्राकृतिक, जन्मजात शारीरिक और प्रदर्शन संबंधी क्षमताएँ। इसमें स्वास्थ्य, ताकत, गति, चुस्ती, प्रतिक्रिया, सहनशक्ति, लचीलापन, संतुलन, विश्लेषण, निर्णय क्षमता, शरीर-आंख समन्वय, सतर्कता आदि शामिल थे।
हालाँकि, ये सब चीज़ें 13-18 साल की उम्र में भी प्रशिक्षण से सुधारी जा सकती थीं, लेकिन इतना नहीं कि अनुभवी प्रशिक्षक कच्ची प्रतिभा को पहचान न सकें। दुर्भाग्यवश, अमर को यकीन था कि वह बहुत प्रतिभाशाली नहीं था।
उसका स्वास्थ्य और शरीर बस औसत था — न तो उसे कोई विशेष ताकत मिली थी, न ही किसी बीमारी ने उसे तोड़ा था, बस साधारण था। असली समस्या थी उसके प्रदर्शन संबंधित गुण — ये क्षेत्र काफ़ी कमज़ोर था। और इसका एक बड़ा कारण था — उसके मन और शरीर के बीच मेल का ना होना।
उसका मस्तिष्क अब भी उसकी पुरानी पृथ्वी वाली देह का अभ्यस्त था — दुबला, लंबा और कमज़ोर शरीर। उसकी वर्तमान देह और पूर्व शरीर की भौतिक संरचना एकदम अलग थी। उसका दिमाग़ नई देह को पुराने शरीर की तरह ही चला रहा था। यह मसल मेमोरी का असर था।
इसके अलावा, उसका मस्तिष्क एक वयस्क का था, और यह नई किशोर देह अब भी विकसित हो रही थी। पचपन साल की पुरानी आदतों को मिटाकर नई मसल मेमोरी बनाना इतना आसान नहीं था।
इसी वजह से वह अपने प्रदर्शनात्मक गुणों को सुधारने में लगा था। उसने संतुलन, शरीर-आंख समन्वय, सतर्कता — सब पर काम करना शुरू कर दिया था, साथ ही सामान्य शारीरिक प्रशिक्षण भी जारी था।
यह सर्दियों का मौसम था। अमर ने आर्यन, होराशियो और मिका को बर्फ से जमी झील पर बुलाया था ताकि वे उसकी संतुलन प्रशिक्षण में मदद कर सकें। वह नदी के किनारे से एक मीटर दूर जमी बर्फ पर खड़ा था। अभ्यास आसान था — कैच खेलना। तीनों लड़के किनारे खड़े होकर अमर को बॉल फेंकते। उसका काम था बर्फ पर खड़े-खड़े गेंद को पकड़ना और वापस फेंकना, बिना फिसले।
बर्फ और बूट के बीच कोई घर्षण नहीं था, मतलब अगर उसका संतुलन ज़रा भी बिगड़ता, तो वह गिर जाता। शुरुआत में वह एक जगह खड़ा भी नहीं हो पाता था, चलने की बात तो छोड़ो।
दो साल के कठिन प्रशिक्षण के बाद वह इतना संतुलित हो पाया कि कैच खेल सके — जिसमें संतुलन की और भी ज़्यादा ज़रूरत थी।
"हाँ, मैं तैयार हूँ," अमर ने आर्यन को जवाब दिया।
आर्यन ने गेंद फेंकी, अमर ने उसे पकड़ कर लौटा दिया। फिर होराशियो और मिका ने अलग-अलग दिशाओं से बॉल फेंकी। तकरीबन एक मिनट तक तेज़ गति से ये चलता रहा, जब तक कि अमर फिसल कर नीचे नहीं गिर गया।
"ये अब तक का तुम्हारा सबसे लंबा रिकॉर्ड था," मिका ने कहा।
अमर ने सिर हिलाया, "ठीक है, फिर से शुरू करते हैं।"
होराशियो ने गहरी साँस ली, "क्या तुम्हें लगता है कि यह सब मेहनत किसी काम की है? तुम्हारा शरीर मार्शल आर्ट के लिए बना नहीं है। तुम्हारी बुद्धि किसी स्कॉलर की है, तुम वीर जैसे विद्वान बन सकते हो।"
"मैंने कहा ना, मुझे स्कॉलर नहीं बनना। या तो मैं मार्शल आर्टिस्ट बनूँगा… या फिर कुछ नहीं।"
"हाँ हाँ, जानते हैं हम," उसने फिर गहरी साँस ली। सबको अमर की ये महत्वाकांक्षा अच्छी नहीं लगती थी। मार्शल आर्टिस्ट बनना आसान नहीं था। लाखों लोग कोशिश करते थे लेकिन उनमें से 99 प्रतिशत असफल हो जाते थे।
अमर ने गहरी साँस ली। पिछली ज़िंदगी में वो यह नहीं कर पाया था, लेकिन इस बार... इस बार वह जरूर मार्शल आर्टिस्ट बनेगा!
"
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अमर ने डकार ली, अपना कटोरा नीचे रखा और अपने फूले हुए पेट को सहलाया।
"ये तो बहुत गंदी आदत है, अमर।" जानवी ने उसे प्यार से टोका।
"माफ करना, बस बहुत ज्यादा खा लिया था।" उसने माफी मांगी और उठ गया।
उसने अपने इस्तेमाल किए हुए बर्तन धोकर अलमारी में रख दिए।
"शानदार डिनर के लिए शुक्रिया, मुझे स्टेक बहुत पसंद है।"
"हिही..." Mayra ने रसोई के उस पार से मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे पता था कि तू आज भूखा ही लौटेगा, हर साल की तरह इस बार भी तूने वो विंटर आइस बैलेंस ट्रेनिंग की, न? आज तो हमें बहुत अच्छी क्वालिटी का सस्ता स्टेक भी मिल गया!" Mayra, आशा अनाथालय की हेड कुक थी; किचन से जुड़ी हर चीज़ की जिम्मेदारी उसी की थी।
"वाह, क्या मुझे बाकी बर्तनों में मदद करनी चाहिए?" अमर ने पूछा।
"नहीं, अब ज़्यादा कुछ नहीं बचा। तू थक गया होगा, जाकर आराम कर।"
"ठीक है, धन्यवाद, गुड नाइट।"
"गुड नाइट।"
वो पढ़ाई वाले कमरे की ओर बढ़ा और एक किताब उठा ली। वो कमरा किताबों से भरा था—अलग-अलग विषयों की किताबें, जिनका जानवी अपनी पढ़ाई के दौरान इस्तेमाल करती थी। इन्हीं किताबों से अमर ने उस दुनिया के बारे में सीखा था जिसमें उसका पुनर्जन्म हुआ था।
पिछले छह सालों में उसने उस दुनिया की लिपि पढ़ना और लिखना सीख लिया था और अब वह एक सामान्य सात साल के बच्चे से कहीं ज़्यादा भाषाई रूप से दक्ष हो गया था।
उसने इतिहास, भूगोल और नागरिकशास्त्र की किताबें पढ़ीं, और जब उसे कोई सवाल आता तो जानवी उसका जवाब देती।
जिस देश में वो पैदा हुआ था उसका नाम कंद्रिया साम्राज्य था, जो कंद्रियन राजवंश के नाम पर रखा गया था। उसके पूर्वजों ने ही इस साम्राज्य की स्थापना की थी।
देश की सीमाएं नमगुंग महासागर से लगती थीं; देश उत्तर से दक्षिण की दिशा में लंबा और पतला फैला था, जिसकी लगभग आधी सीमा समुद्र से घिरी थी। बाकी सीमाएं दक्षिण में सेकीगहारा संघ, उत्तर में गोर्टेउ गणराज्य, और पश्चिम में ब्रिटानिया साम्राज्य से जुड़ी थीं, और इनके बीच में घने जंगल फैले थे।
एक और अहम बात जो उसने सीखी थी, वो ये थी कि कंद्रिया साम्राज्य हर साल इन तीनों पड़ोसी देशों को कर देता था—क्यों, इसका कोई साफ़-साफ़ जवाब उसे नहीं मिला। ये चारों देश पैनामा महाद्वीप में स्थित थे—गाया ग्रह का एकमात्र ज्ञात महाद्वीप।
पैनामा महाद्वीप विशाल था, जहां लगभग सौ से ज़्यादा देश थे—हर देश की अपनी संस्कृति, अर्थव्यवस्था और शासन था।
हालांकि हर देश की अपनी भाषा थी, लेकिन सभी ने मिलकर संस्कृत नाम की एक अंतरराष्ट्रीय भाषा बना ली थी, जिससे व्यापार और आपसी संबंध बेहतर हो सकें। ये सब पैनामा भाषाई संधि के तहत हुआ था, जिसे अस्सी साल पहले लागू किया गया था। ये संधि बेहद सफल रही क्योंकि भाषा ही सबसे बड़ी बाधा थी।
(‘मैंने तो सिर्फ कंद्रियन बोली ही सीखी है।’ अमर ने सोचा।)
एक और दिलचस्प बात जो उसने सीखी, वो थी कि इस महाद्वीप की वनस्पति और जीव-जंतु तो बिल्कुल ही अजीब थे।
यहाँ ऐसे पौधे थे जिनमें अजीब-अजीब रसायन होते थे—इनका उपयोग दवाइयों और खास तौर पर पोशनों में होता था।
ये पोशन इंसानों को असाधारण क्षमताएं दे सकते थे—हीलिंग, स्टैमिना रिकवरी, और शारीरिक व मानसिक शक्ति में अस्थायी बढ़ोतरी।
पोशन की वजह से सामान्य इंसान भी मार्शल आर्टिस्ट्स जैसी ताकत हासिल कर सकते थे।
पहले तो अमर को ये सब सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ था, लेकिन ये तो बस शुरुआत थी।
जंतु जगत उससे भी ज़्यादा चौंकाने वाला था।
यहाँ इंसानों के अलावा भी बुद्धिमान प्रजातियाँ थीं।
धरती पर जहां बस एक ही बुद्धिमान प्रजाति थी, वहीं यहां यह आम बात थी।
जानवर इतने ताकतवर थे कि इंसानों के बारूद, पोशन और हथियारों का सामना कर सकते थे।
अगर मार्शल आर्टिस्ट्स ना होते, तो शायद इंसान अब तक पूरी तरह विलुप्त हो चुके होते।
पैनामा महाद्वीप की मार्शल यूनियनों का एक बड़ा हिस्सा इन जानवरों से जुड़े मिशनों पर आधारित था।
अमर इन रहस्यमयी और ताकतवर प्रजातियों को जानने के लिए बहुत उत्सुक था, लेकिन फिलहाल वो चीज़ें उसके लिए ज़्यादा ज़रूरी थीं जो उसके जीवन को सीधे प्रभावित कर रही थीं।
कंद्रिया साम्राज्य में अमर उत्तर की सबसे ठंडी जगह मांटिया में रहता था।
(‘हाय… सारी ग्यारह रियासतों में से सबसे ज्यादा ठंडी जगह मिली भी तो यही।’)
अमर ने सिर झटका, उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था।
उसे आशा अनाथालय में एक प्यारा और सहयोगी परिवार मिला था, ये खुद में एक सौभाग्य था।
कंद्रिया की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पूंजीवादी थी, और ज़ाहिर है, अमीरी और गरीबी के बीच फर्क बहुत बड़ा था।
सरकारी व्यवस्था एक राजतंत्र थी—जैसे कि उस युग में होना चाहिए था।
सम्राट की कई रानियाँ और उनसे भी ज़्यादा बच्चे थे।
हर एक बच्चा राजगद्दी का उत्तराधिकारी हो सकता था।
यहां परंपरा थी कि सम्राट खुद अपने तरीक़े से हर एक राजकुमार और राजकुमारी की परीक्षा लेता था और अपने अंतिम समय में उनमें से किसी एक को अगला सम्राट या सम्राज्ञी घोषित करता था।
मौजूदा सम्राट रायल वाई कंद्रिया काफी वृद्ध हो चुके थे, और माना जा रहा था कि रॉयल सिलेक्शन कभी भी शुरू हो सकता है।
अमर को कंद्रिया की राजनीति के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, और सच कहें तो वो इससे दूर ही रहना चाहता था।
ये चयन प्रक्रिया पूरी तरह से एक अराजक युद्ध जैसी लगती थी।
धरती पर भी वह बस समाचारों में राजनीति को सतही तौर पर ही फॉलो करता था, और यहां तो शायद और भी कम दिलचस्पी लेगा।
जब वो एक मार्शल आर्टिस्ट बन जाएगा, तब तो और भी ज़्यादा दूरी बना लेगा।
या कम से कम, वह यही उम्मीद करता था।
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जिस जानकारी की उसे सबसे ज़्यादा चिंता थी, वो थी कांद्रियन मार्शल एकेडमीज़ की। पता चला कि देश में कुल सोलह एकेडमीज़ हैं। उनमें से एक मांटिया में स्थित थी, और अमर ने तय किया था कि वो मांटिया शाखा को ही अपना लक्ष्य बनाएगा। पिछले छह सालों में उसने प्रवेश परीक्षा की गहराई से जांच-पड़ताल की थी। लेकिन मार्शल एकेडमी अपने एग्ज़ाम्स को लेकर काफ़ी रहस्यमयी थी। यूनियन नहीं चाहती थी कि हर आवेदक परीक्षा की तैयारियों के लिए लक्ष्य आधारित उपाय बना पाए, जिससे प्रतिभा और जोश का सही मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता।
इतना ही नहीं, हर साल परीक्षा का पैटर्न लगभग पूरी तरह बदल दिया जाता था, ताकि असफल आवेदकों द्वारा लीक की गई जानकारी बेकार हो जाए। अमर को बस इतना पता चल पाया था कि हर साल परीक्षा में कई चरण होते हैं और इविज़ीलेटर भी बदलते रहते हैं। परीक्षाएं बेहद कठिन होती थीं, और कहा जाता था कि हर साल कुछ आवेदकों की मौत भी हो जाती है, और कई गंभीर रूप से घायल होते हैं।
("जब मैंने पहली बार इसके बारे में सुना, तो ये बिल्कुल अप्रत्याशित था। मैं तो ऐसी ट्रेनिंग रूटीन बनाना चाहता था जिससे इन परीक्षाओं को पार कर सकूं।") अमर ने गहरी साँस ली।
मार्शल आर्ट्स और कॉम्बैट स्पोर्ट्स में गहरी रुचि और शोध के चलते, अमर एक विशेषज्ञ बन चुका था—शारीरिक क्षमताओं और प्रदर्शन के अनुसार ट्रेनिंग डिज़ाइन करने में। वो विशेष रूप से ऐसे रूटीन तैयार करता था जो एथलीट को लक्ष्य तक सबसे प्रभावी तरीक़े से पहुँचा सके।
("अब जो कर रहा हूं, बस उसी पर टिके रहना होगा।") उसने सोचा।
"अमर, सोने का समय हो गया है," दरवाज़े पर खड़ी जानवी ने कहा।
"ठीक है, माँ।" अमर ने जवाब दिया। सभी बच्चे जानवी को माँ की तरह ही मानते थे। अमर भी कोई अलग नहीं था। वो सब उसकी परवरिश में पले-बढ़े थे। यहाँ तक कि बड़े भी उसे माँ जैसा ही सम्मान देते थे। बाद में, उसने अपने नाइट गाउन जैसा परिधान पहना और बिस्तर पर लेटते हुए कल के बारे में सोचने लगा।
("सुबह जल्दी कार्डियो - एक घंटा। फिर बीस-बीस रेप्स स्क्वॉट्स, क्रंचेस, पुशअप्स, पुलअप्स और चेस्ट डिप्स के। प्लैंक के तीन वेरिएशन—लंच तक। फिर आराम। फिर झील के पास बैलेंस ट्रेनिंग शाम तक, उसके बाद बेसिक बॉडी कंडीशनिंग और टेम्परिंग।")
यह असल में एक हल्का और आसान ट्रेनिंग शेड्यूल था, क्योंकि वो अभी सात साल का ही था। उसका शरीर, ख़ासकर उसकी हड्डियाँ, अभी भी विकसित हो रही थीं। ज्यादा तनाव नुकसानदायक हो सकता था। लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ा होता, वो अपने ट्रेनिंग का लोड बढ़ाने का सोच चुका था।
("जब तक ये खत्म होगा, मैं अच्छी-खासी बनावट वाला हो जाऊंगा।")
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अगले दिन, उसने अपनी सुबह की दौड़ पूरी की। आमतौर पर वो आशा अनाथाश्रम से शहर तक दौड़ लगाता और भीड़ से पहले लौट आता, पर आज वो थोड़ा लेट हो गया था। इस वजह से उसे दिन की शुरुआती हलचल से होकर निकलना पड़ा। एक हाथ में उसने वो थैला थाम रखा था, जिसमें Mayra ने बाज़ार से मंगाया दूध रखा था।
("उफ़, इतनी भीड़ तो अभी से!") अमर ने चिढ़ते हुए सोचा। वो भीड़ में दौड़ नहीं सकता था। अंततः उसे एक गली से घूमकर जाना पड़ा।
("मैं दौड़ रोकना नहीं चाहता था। अब शायद थोड़ी ज़्यादा दौड़ लगाऊं... लेकिन Mayra ने दूध मंगाया था, तो मुझे तो...")
अचानक उसने महसूस किया कि किसी ने पीछे से उसे पकड़ लिया—एक हाथ से उसका मुँह दबाया और दूसरे हाथ से उसे उठाया।
"ह्म्म... काले बाल और काली आँखें? काफ़ी दुर्लभ है। इसे बेचकर तो मालामाल हो जाएंगे," एक भारी आवाज़ सुनाई दी।
"ओह? इसकी जेब में कुछ पैसे भी हैं। अच्छा बोनस है!" उसने अमर की जेब टटोली।
("साला! सच में मुझे किडनैप किया जा रहा है!") अमर डर गया। क्या करना चाहिए, उसे समझ नहीं आ रहा था।
("मुझे भागना होगा, लेकिन इसकी पकड़ बहुत मज़बूत है।") उसने सोचना शुरू किया। ताकत से निकलना नामुमकिन था। उसे ऐसा मौका बनाना था कि ये आदमी खुद ही पकड़ ढीली करे।
("सोचो! भागने का मौका कैसे बने?") तभी ध्यान आया—वो उसका मुँह और नाक एकसाथ दबा रहा था। यहीं से उसे एक आईडिया आया।
अमर ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया, जैसे वो दम घुटने से बेहोश हो गया हो।
"ह्म्फ!" उस आदमी ने उसे ज़मीन पर रखा, ये देखने के लिए कि 'माल' सही है या नहीं। उसी पल अमर ने अंगूठा उसकी आँख में घुसा दिया और जितना तेज़ हो सकता था, भाग खड़ा हुआ।
आदमी दर्द से चिल्ला उठा, अपनी आँख पकड़कर बैठ गया। कुछ सेकंड का मौका मिला अमर को। लेकिन वो जल्दी ही उठकर एक आँख बंद किए उसका पीछा करने लगा।
("बस मुझे भीड़ में पहुँच जाना है। वहां ये कुछ नहीं कर पाएगा।") लेकिन दुर्भाग्य से वो बाज़ार के रास्ते नहीं लौट सका, क्योंकि रास्ता वहीं आदमी रोक चुका था। उसे बस लोगों तक पहुँचना था... पर वो एक बंद गली में फंस गया।
("साला, अब तो कहीं और...")
"हेहेहे... बच नहीं पाए न छोटे मियां?" आदमी ने गंदी सी मुस्कान दी। उस पल अमर को सच्चा डर और निराशा महसूस हुई। उसके पैर कांपने लगे और वो लगभग पेशाब करने ही वाला था। उसने खुद को फाइटिंग पोज़िशन में खड़ा किया, लेकिन आदमी ने उसकी कमज़ोर कोशिशों को अनदेखा करते हुए गले से पकड़ा और नीचे दबा दिया।
अमर चिल्लाना चाहता था, लेकिन मुंह से आवाज़ ही नहीं निकली।
"अब सच में तेरा दम घुटते देखता हूं," आदमी ने फुसफुसाया, उसकी मुस्कान और चौड़ी हो गई।
अमर डर से जम गया।
("ये मुझे मार डालेगा।") उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, लेकिन शरीर जड़ हो गया था।
("मैं बहुत कमज़ोर हूं। बेकार हूं।")
बस, उसकी नज़रें लाल होने लगी थीं कि—
धड़ाम!
आदमी की पकड़ ढीली हुई और उसने अमर का गला छोड़ दिया। अमर ने जोर से साँस ली और पलटकर देखा।
("ये क्या हुआ?!")
जो उसने देखा, उससे वो सन्न रह गया। आदमी मरा हुआ पड़ा था, उसका सिर ऊपर से धंसा हुआ और टूटा हुआ था। पीछे एक दूसरा आदमी खड़ा था, जिसकी मुट्ठी हवा में थी।
"एक मासूम बच्चे की जान लेने की कोशिश करना—सबसे बड़ा पाप है।" उस आदमी ने लाश को घूरते हुए कहा। फिर उसकी नज़र अमर पर पड़ी।
"बेटा, तुम ठीक हो?"
वो सच में मासूम था। उसने योद्धा बनने के मायने को बहुत हल्के में ले लिया था। ये कोई फिल्म या ऐनिमी नहीं थी, ये हकीकत थी। अगर उसका रक्षक थोड़ा भी देर कर देता, तो वो उसी पल मारा जाता। अमर को लगता था कि बस ट्रेनिंग कर लो, और योद्धा बन जाओ — लेकिन उसने जान की बाज़ी लगाकर लड़ने के लिए जिस हिम्मत और दृढ़ निश्चय की ज़रूरत होती है, उसका अंदाज़ा ही नहीं लगाया था। आखिर कैसे करता? वो तो इक्कीसवीं सदी का आम इंसान था, जिसने कभी किसी से लड़ाई तक नहीं की थी। उसे नहीं पता था कि मौत का डर इंसान की आत्मा में कितनी गहराई से बैठा होता है।
मार्शल आर्टिस्ट कोई सजावटी कलाकार नहीं होते जिनका काम सिर्फ स्टाइलिश दिखना हो। वो योद्धा होते हैं — हत्यारे, रक्षक, शिकारी, खोजी — वो लोग जो रोज़ अपनी जान जोखिम में डालते हैं। वो ये रास्ता जानते हुए चुनते हैं कि अगला कदम शायद उनका आखिरी हो।
क्या उसमें इतनी हिम्मत थी?
उस दिन जवाब साफ हो गया।
नहीं। उसमें वो बात नहीं थी। वो एक सच्चे योद्धा के लायक नहीं था।
"तुम गलत हो।"
ये आवाज़ थी उस आदमी की जिसने उसकी जान बचाई थी। वो पास आया और अमर के बगल में बैठ गया, उसके सिर पर हाथ फेरा। वो स्पर्श भले ही मुलायम था, लेकिन उसका हाथ चट्टान जैसा भारी और सख्त था।
"बेटा, तुम मार्शल आर्टिस्ट बनना चाहते हो, सही कहा?"
अमर ने चुपचाप सिर हिलाया। उसकी आंखों में अभी भी भावनाओं की लहरें उथल-पुथल कर रही थीं।
"ज़रूर चाहते हो। कोई और वजह नहीं हो सकती कि इतनी कम उम्र में कोई खुद को इतनी कठिन ट्रेनिंग में झोंक दे।" उसने कहा।
"तुम ये सोच रहे हो कि जो डर और मायूसी तुमने महसूस की, उसकी वजह से तुम योद्धा बनने के लायक नहीं हो?"
ऐसा लगा जैसे वो आदमी उसके दिल को पढ़ पा रहा हो। अमर ने धीरे से सिर हिला दिया। उस आदमी ने हल्की मुस्कान दी।
"हां, तुम वाकई में उस वक्त बहुत कमजोर लगे। सच कहूं तो तुम्हें ज़मीन पर गिरा देख कर तुम्हारा डर और हताशा साफ झलक रही थी..."
उसके शब्दों ने अमर के दिल को चीर कर रख दिया।
"... लेकिन तुम्हारे योद्धा बनने का हक इस बात पर नहीं टिका कि तुम उस वक्त कैसे थे, बल्कि इस बात पर कि अब तुम क्या करोगे।"
वो आदमी उसकी आंखों में देख रहा था, और अमर भी अब उसकी ओर मजबूती से देख रहा था।
"दुनिया में एक भी ऐसा इंसान नहीं है जिसने मौत का डर और निराशा न महसूस की हो। वो मार्शल आर्टिस्ट भी जो सिर्फ एक उंगली से ज़मीन फाड़ सकते हैं, उन्होंने भी वही महसूस किया है जो तुमने किया। फर्क बस इतना होता है — क्या कोई उस डर को पार करके आगे बढ़ता है या हार मान लेता है।"
अमर के हाथ मुट्ठी में बंध गए, दांत भींचे गए।
"बोलो बेटा, क्या तुम डर के आगे झुक जाओगे?"
"नहीं... अब कभी नहीं!" अमर ने कसम खाई, उसकी आंखों से गुस्से, शर्म और हताशा के आंसू बह रहे थे। उसके शरीर की हर मांसपेशी तन गई, ऐसा लग रहा था जैसे उसकी हर कोशिका उस वचन को अपने अंदर गहराई से बसा रही हो।
"मैं अब कभी डर और मायूसी को खुद पर हावी नहीं होने दूंगा!"
उस आदमी ने उसकी आंखों में जलती हुई आग को देखकर मुस्कराया।
अमर उठा और उस आदमी को झुककर सलाम किया। "मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया।"
"मैं बस अपना फर्ज निभा रहा हूं।" वो आदमी उठा, अमर के सिर पर एक आखिरी बार हाथ फेरा और फिर चला गया।
"ख्याल रखना बेटा। मुझे यकीन है, तुम एक दिन ज़रूर योद्धा बनोगे। तुममें वो बात है।"
अमर ने सिर हिलाया, और जाते-जाते एक बार फिर झुक कर सलाम किया। फिर वो बाज़ार की ओर चल पड़ा, और वहां से आशा ऑर्फनेज लौट आया।
"अरे! मैं उसका नाम पूछना भूल गया..."
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वापसी में उसकी मुलाकात आर्यन से हुई, जिसे उसने सारी बात बताई — आर्यन पूरी तरह से हैरान रह गया। लेकिन हालात और भी अजीब तब बने जब वो घर लौटा।
सारे बड़े केयरटेकर उस पर टूट पड़े, कोई उसे गले लगा रहा था, कोई सिर पर हाथ फेर रहा था। जैसे सब खुद को यकीन दिला रहे हों कि अमर सही सलामत है, और अपने डर को भी कम कर रहे हों।
जानवी तो इतनी घबरा गई कि उसने तो अमर को ऑर्फनेज से बाहर निकलने पर ही बैन करने की धमकी दे डाली। बड़ी मुश्किल से वो उसे मना पाया, वो भी पूरी तरह नहीं। अब उसे या तो ऑर्फनेज के पास ही रहना होगा, या किसी बड़े की निगरानी में बाहर जाना होगा।
उसने हार मान ली, थोड़ी अनिच्छा से।
उस दिन उसने ट्रेनिंग छोड़ दी और अपने भाई-बहनों के साथ वक्त बिताने का फैसला किया। उसे थोड़ा माहौल बदलने की ज़रूरत थी।
"तो अब आ ही गए हो हमारे साथ ताश खेलने, हां अमर?" ध्रुव ने हंसते हुए उसके लिए जगह बनाते हुए कहा।
पिछले सात सालों में अमर ने ऑर्फनेज के हर सदस्य से अटूट रिश्ता बना लिया था — आर्यन की रूखी मगर प्यारी बातों से लेकर, नैना की शरारतों तक, ध्रुव की समझदारी, मायरा की चुप्पी और वीर की गहरी सोच तक — हर किसी में उसे अपना परिवार दिखता था।
जब वो पहली बार आया था, तो बड़ों ने उसके बालों और आंखों को लेकर जो अंधविश्वास था, उसे नज़रअंदाज़ कर दिया था। बच्चे भी नासमझी में उसकी क्यूटनेस पर फिदा हो गए थे।
इन सात सालों में उसने इस परिवार से गहरा लगाव महसूस किया। इतना कि कभी-कभी उसे लगता था कि मार्शल आर्टिस्ट बनने से ज़्यादा जरूरी ये लोग हैं।
('लगभग... लेकिन इतना नहीं।') उसने खुद से कहा।
सुबह की उस घटना के बाद उसकी नीयत और मजबूत हो गई थी। अब वो मार्शल आर्टिस्ट बनकर रहेगा। बस एक बात का दुख था — ये राह उसे कभी न कभी इस परिवार से दूर कर देगी।
अकादमी में रहना अनिवार्य था — वहीं रहना, खाना, सोना। ये अनुशासन की राह थी, जहां हर कदम संस्था की निगरानी में होता।
भविष्य में भी शायद उसे अपने परिवार से दूर रहना पड़े — हफ्तों तक, शायद महीनों तक। ये दूरी उसे उनसे थोड़ा दूर कर देगी, ये तय था। प्यार कभी कम नहीं होगा, लेकिन भावनाएं जरूर धुंधली पड़ सकती थीं।
उसका स्वभाव वैसे भी बहुत सामाजिक नहीं था। पिछले जीवन में उसके मां-बाप जल्दी गुजर गए थे, और उसके बाद उसने कभी कोई गहरा रिश्ता नहीं बनाया।
('तो फिर... अगले छह साल का हर पल इस परिवार के साथ पूरी तरह जी लूंगा। फिर मुझे उन्हें छोड़ना होगा।')
ये सोच थोड़ा दुखद था, लेकिन उसने खुद को झटक लिया और खेल में ध्यान लगा दिया।
"क्या तुमने अपनी पहचान पत्र रख ली है?"
"हाँ।"
"क्या तुमने एनर्जी ड्रिंक्स ले ली हैं?"
"हाँ।"
"क्या तुमने टाइमिंग्स को दोबारा चेक किया?"
"हाँ।"
"क्या तुमने—"
"बस करो माँ! सब कुछ ठीक है, चिंता मत करो।" अमर ने झल्लाते हुए कहा। जानवी हमेशा से कुछ ज़्यादा ही ओवरप्रोटेक्टिव रही हैं। मार्शल एंट्रेंस एग्ज़ाम बदनाम है अपनी कठिनाई और खतरनाक प्रकृति के लिए। जानवी ने अमर को बार-बार चेताया था कि यह परीक्षा बेहद जोखिमभरी हो सकती है। लेकिन उसे यह भी पता था कि अमर इस दिन की तैयारी बहुत समय से कर रहा है। उसकी इच्छा शक्ति अडिग थी। वह जानती थी कि अब कुछ कहने से कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। इसलिए उसकी नाराज़गी मोल लेने के बजाय, उसने उसे चुपचाप आशीर्वाद देना ही बेहतर समझा।
छह साल बीत चुके थे उस अपहरण की घटना को। अब अमर तेरह साल का हो चुका था। और अब समय आ गया था—मार्शल एंट्रेंस एग्ज़ाम का।
भले ही वो मानसिक रूप से इस दिन के लिए लंबे समय से तैयार हो रहा था, फिर भी उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। शायद यही वजह थी कि वो थोड़ा घबराया हुआ था—क्योंकि उसने इस दिन के लिए बहुत कुछ सोचा था।
उसने गहरी साँस ली, और कुछ ज़रूरी सामान अपनी पाउच में रखकर खुद को शांत करने की कोशिश की।
"चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ, अमर।" वीर ने मुस्कुरा कर कहा। वो कंद्रियन साइंस इंस्टीट्यूट से स्नातक हो चुका था और अब उसे वहाँ के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में एक प्रतिष्ठित स्कॉलर के अधीन शोध-शिष्य के रूप में नियुक्त किया गया था।
"थैंक्यू।" अमर ने सिर हिलाया। वीर हमेशा से एक स्थिरता देने वाली ताकत रहा था। वो खुद भी असली प्रतिभाशाली था, अमर की तरह नहीं।
जानवी ने उसे एक बार फिर गले लगाया और माथे पर प्यार से चूमा।
"ध्यान रखना, खुद को बहुत ज़्यादा मत थकाना, ठीक है?" उसकी आवाज़ में चिंता की हल्की सी लहर साफ़ सुनाई दी।
"हाँ माँ, चिंता मत करो। मैं बिल्कुल ठीक रहूँगा।"
आशा ओर्फनेज के सभी बच्चों और कर्मचारियों से शुभकामनाएं लेकर अमर और वीर रिक्शा पर निकल पड़े।
"नर्वस हो?"
"हैरानी की बात है, पहले जितना नर्वस था, अब उतना नहीं हूँ। लगता है जैसे अपने परिवार का साथ मुझे सुकून देता है—even though परीक्षा की गंभीरता और कठिनाई में कोई फर्क नहीं आया।"
"ये सुनकर अच्छा लगा।" वीर ने मुस्कुराया।
"एक बात सच कहूँ? मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारा Martial Artist बनने का जुनून इतना गहरा होगा..."
अमर को समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे।
"बचपन में हर बच्चे के अलग-अलग फेज़ होते हैं, ये लगभग सभी के साथ होता है। लेकिन मैं 'लगभग' इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने एक अपवाद ज़रूर देखा है।"
वीर ने उसकी ओर गहरी नज़र से देखा।
"ऐसी प्रतिभा, ऐसी बुद्धिमत्ता—कम उम्र में ही दो भाषाओं में पारंगत, गणित और विज्ञान में दक्षता, और ऊपर से तुम्हारा व्यवहार भी कभी नहीं बदला। उम्र से कहीं ज़्यादा परिपक्व सोच... ये सब दर्शाता है कि तुम एक बच्चे के शरीर में कोई बड़ा इंसान हो।"
अमर ने उसकी तरफ़ देखा और मुस्कुरा दिया।
"तुम सच में ऐसा मानते हो?"
"नहीं," वीर ने कंधे उचकाकर हँसते हुए कहा। "संभव तो सब कुछ है, लेकिन ये सुनने में बहुत ज़्यादा अजीब लगता है।"
"हह।"
अमर के दिल में हल्की सी घबराहट थी। उसे नहीं पता था कि वो पुनर्जन्म क्यों हुआ, लेकिन इतना ज़रूर लगता था कि इसके पीछे कोई मक़सद ज़रूर है। और वीर के बातें करने के तरीके से उसे डर लग रहा था कि कहीं उसका रहस्य खुल न जाए। तेरह सालों में जो भी उसने किया था, वीर उसे लगातार जाँचता-परखता रहा था। और अब जाकर ये कह रहा था—"तुम शायद पहले से कोई और थे।"
असल में यही तो असली प्रतिभाशाली व्यक्ति की पहचान होती है।
वो यूँ ही बात करते-करते मंज़िल पर पहुँच गए।
"ठीक है फिर, बेस्ट ऑफ़ लक अमर। मैं यहाँ से KIS जाऊँगा।"
"थैंक्यू वीर, अलविदा।"
"अरे, एक बात और..."
अमर ने मुड़कर देखा।
"अगर तुम कोई और भी होते, किसी और की आत्मा के साथ भी पैदा हुए होते, तो भी मैं तुम्हें अपना भाई ही मानता।" वीर ने भावुक होकर कहा। "अब जाओ, अपने सपने को पूरा करो।"
अमर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया—"मैं ज़रूर करूँगा।"
और दोनों भाइयों के रास्ते अलग हो गए।
अमर अब कंद्रियन मार्शल अकादमी की मंटियन शाखा के मुख्य द्वार के सामने खड़ा था। वहाँ कई रिक्शा और घोड़ा-गाड़ियों की भीड़ थी। हज़ारों किशोर लड़के और लड़कियाँ विशाल भवन के अंदर जमा हो रहे थे।
वो दृश्य चकाचौंध कर देने वाला था—अकादमी की भव्यता से खुद-ब-खुद मन में महत्वाकांक्षा जाग उठती थी।
"यही है असली मंज़िल।"
अकादमी कई सेक्शन में विभाजित थी, लेकिन मुख्य प्रशिक्षण केंद्र एक विशाल परिसर था, जिसे कई किलोमीटर लंबी पत्थरों और सीमेंट की ऊँची दीवारों से घेरा गया था।
इस अकादमी की प्रतिष्ठा ही इतनी थी कि हर साल लाखों Martial Artist बनने का सपना देखने वाले युवा इसके परीक्षा में बैठने आते थे।
अमर ने अपनी आईडी दिखाकर विशाल द्वार पार किया और अन्य प्रतियोगियों के साथ परीक्षा केंद्र की ओर बढ़ चला।
*(“लगभग सब मुझसे बड़े लग रहे हैं...”) * अमर ने गौर किया।
अधिकतर अभ्यर्थी सोलह वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे।
(“शायद तेरह साल की उम्र में परीक्षा देना थोड़ा असामान्य है।”)
उसे एक टैग दिया गया, जिसमें उसका आवेदन क्रमांक था।
परीक्षा केंद्र अंदर से बाहर से भी बड़ा था। हज़ारों बच्चों की भीड़ अंदर जमा थी। वहाँ सहायक परीक्षक के रूप में Martial Artists तैनात थे ताकि कोई झगड़ा न हो। फिर भी माहौल तनावपूर्ण था।
अमर ने भीड़ पर एक नज़र डाली और अपने प्रतियोगियों के बारे में कुछ निष्कर्ष निकाले।
(“इनमें से कई ने शरीर पर मेहनत की है, लेकिन जितनी मैंने की है, उतनी नहीं। फिर भी कई लोग मुझसे प्राकृतिक रूप से ज़्यादा ताकतवर हैं। मैं अपने टैलेंट की कमी को सिर्फ़ मेहनत से पूरा कर रहा हूँ। उम्र का फ़र्क भी उनके पक्ष में है।”)
अमर मुस्कुराया।
(“लेकिन मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं ये परीक्षा पास करके ही रहूँगा।”)
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