"सच्चा प्यार अमर होता है, पर क्या होगा अगर वह प्यार खुद एक श्राप से बंधा हो? विक्रांत, एक शापित आत्मा जिस पर शैतान का साया हमेशा के लिए मंडराता है, और वसुंधरा, एक देवी स्वरूप राजकुमारी, जिनका भाग्य विक्रांत के साथ जुड़ा हुआ है। क्या वसुंधरा विक्रांत... "सच्चा प्यार अमर होता है, पर क्या होगा अगर वह प्यार खुद एक श्राप से बंधा हो? विक्रांत, एक शापित आत्मा जिस पर शैतान का साया हमेशा के लिए मंडराता है, और वसुंधरा, एक देवी स्वरूप राजकुमारी, जिनका भाग्य विक्रांत के साथ जुड़ा हुआ है। क्या वसुंधरा विक्रांत को इस प्राचीन श्राप से मुक्त कर पाएगी? क्या उनका प्यार इस श्रापित बंधन को तोड़ पाएगा, या फिर उनका प्रेम अधूरा ही रह जाएगा? खुलासा होगा विक्रांत के श्राप का रहस्य, और उसकी वसुंधरा से अनोखी, अटूट बंधन। क्या वे मिलकर शैतान के खिलाफ़ लड़ पाएंगे और अपना प्यार बचा पाएंगे? पढ़िए 'श्रापित प्रेम: श्राप से बंधे' और जानिए क्या यह प्यार इस श्रापित बंधन को तोड़ पाएगा या फिर यह बन जाएगा उन दोनों के जीवन का अनचाहा श्राप..."
विक्रांत
Villain
राजकुमारी वसुंधरा
Heroine
चंद्रिका
Heroine
वीरेश
Side Hero
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1
रात का वक्त, किसी औरत की बहुत ही तेज चीखने की आवाज उस जगह पर गूंज रही है और उसकी आवाज सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे कि उसे बहुत ही भयानक दर्द हो रहा है जो कि ज्यादातर प्रसव पीड़ा के दौरान होता है।
उसकी चीखें इतनी ज्यादा तेज है कि रात के उस सन्नाटे में बहुत दूर तक वह आवाज जा रही है और जिसकी भी को आवाज सुनाई दे रही है सब एकदम सहम जा रहे हैं क्योंकि इतनी भयानक चीखें शायद उन लोगों ने सुनी नहीं है।
वो पूर्णिमा की रात है और आज की रात ही कई सालों में एक बार आने वाला चंद्र ग्रहण भी है।
तभी एक घर का दरवाज़ा भड़भड़ाने की आवाज़ आती है, अंदर से एक ६० बरस कि बूढी औरत जैसे ही दरवाज़ा खोलती है बाहर हांफता हुआ बुधुआ खड़ा नज़र आता है और वो हाँफते हाँफते ही बोलता है "जल्दी चलो मंजरी काकी... रेवती को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई है और वो बहुत ज्यादा बढ़ गई है". मंजरी काकी एक नज़र चाँद कि तरफ देख कर कहती हैं 'हे राम' अब तो ग्रहण लगने वाला है, ऐसे में किसी बच्चे का पैदा होना... पता नहीं क्या होने वाला है" इतना कहते ही वो बिना चप्पल पहने ही बुधुआ के साथ दौड़ी चली जाती है ।
**********
दूसरी तरफ;
एक औरत की बहुत ही भयानक दर्द भरी चीखें उस कमरे में गूंज रही है और वह कमरा भी कोई साधारण कमरा नहीं है, वो उस राजमहल का सबसे बड़ा और आरामदायक कमरा है लेकिन अभी उस कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई रानी कादम्बरी प्रसव पीड़ा से कराह रही है और उसके आसपास कुछ सेविकाएं उसका हाथ कसकर पकड़ कर खड़ी हुई है और उसके सिरहाने बैठी रानी की सबसे खास सेविका सुरभि उनके सिर पर हाथ फेर रही है।
पिछले आधे घंटे से रानी इसी तरह दर्द में चीख रही है और उसकी हालत में कोई भी सुधार नहीं है और बच्चे के जन्म का भी कोई असर नजर नहीं आ रहा है, राजवैद्य भी वहां पर कमरे के बाहर खड़े हुए हैं और कमरे के अंदर दाई मां और बाकी सारी औरतें मिलकर बच्चे के जन्म की तैयारी में लगे हुए हैं।
राजा महेंद्र प्रताप भी बेचैनी से वहां पर उस कमरे के बाहर ही टहल रहे हैं और बाकी के सेवक सेविकाओं पर अपना गुस्सा निकल रहे हैं क्योंकि रानी की चीखें उससे अब बर्दाश्त नहीं हो रही है इसलिए उसने राजवैद्य और बाकी सेवकों पर गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, "मंजरी मां, को कौन बुलाने गया था, वो अब तक क्यों नहीं आई? रानी और अपने होने वाले बच्चों को लेकर मुझे सिर्फ उन पर ही भरोसा है।"
उन सेवकों में से किसी के बोलने की हिम्मत नहीं हुई तो राजा के एक खास मंत्री ने आगे आते हुए उसकी बात का जवाब दिया, "क्षमा कीजिए महाराज... लेकिन गांव का रास्ता यहां राजमहल से काफी दूर है और नदी पार करके जाना पड़ता है मंजरी काकी को आने में समय लग जाएगा लेकिन जब तक..."
"कितना समय... समय ही तो नहीं है हमारे पास अगर हमारे बच्चे या रानी को कुछ भी हुआ तो मैं तुम सबको मृत्यु दंड दे दूंगा।" - राजा ने फिर से अपना गुस्सा उन सारे लोगों पर ही निकलते हुए कहा तो मंत्री भी मुलाकात कर खड़ा हो गया क्योंकि उसके पास भी और कोई रास्ता नहीं था।
रानी के कक्ष के बाहर खड़ा हुआ राजा सब पर गुस्से में चिल्ला रहा है, और ठीक उसी वक्त राजमहल के दरवाजे पर हुई हाल-चाल ने सभी का ध्यान उस तरफ खींचा क्योंकि दरवाजे से काले रंग के लबादे जैसा कपड़े पहने एक बूढ़ा और झुका हुआ कुबड़ा आदमी अंदर आने की कोशिश करने लगा और दरवाजे पर खड़े पहरेदारों और सैनिकों ने उसका रास्ता रोका तो उसने तेज आवाज में राजा का नाम लेकर चिल्लाया, "महाराज! मैं आपकी सहायता के लिए यहां पर आया हूं मुझे पता है रानी और आपकी होने वाली संतान दोनों की जान खतरे में है लेकिन मैं उनकी जान बचा सकता हूं।"
वह आदमी देखने में बहुत ही ज्यादा बूढ़ा लग रहा है क्योंकि उसके चेहरे पर काफी झुर्रियां है और वह अजीब तरह से झुक कर चल रहा है, उसकी आंखें बात ही ज्यादा अजीब से स्लेटी रंग की है और आंख के किनारे पर एक ठीक हो चुके ज़ख्म का निशान भी है इसलिए उसका चेहरा भी काफी डरावना लग रहा है।
उस आदमी की ये बात सुनकर सभी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा क्योंकि उस आदमी में अपनी जान जाने का जरा भी डर नहीं था और उसने इतनी बड़ी बात अपने मुंह से बोल दी और सबसे हैरानी की बात कि उसे इस बारे में कैसे पता चला?
राजा भी उसकी यह बात सुनकर हैरान था और उसने सैनिकों से कहा, "अंदर आने दो उसे..."
राजा की बात सुनते ही सैनिकों ने उसका रास्ता छोड़ दिया और वो आदमी उसी तरह झुक कर चलता हुआ महल के अंदर आया और जब तक राजा भी उसकी तरफ ही चल कर आया और राजा के साथ मंत्री उसके अंगरक्षक और कुछ सैनिक भी चल रहे हैं क्योंकि वह आदमी देखने में बहुत अजीब लग रहा है।
राजा ने बहुत ही गुस्से में अपने दांत पीसते हुए कहां, "कौन हो तुम और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे महल में आकर मेरी ही रानी और बच्चे के खिलाफ ऐसे मनहूस शब्द बोलने की?"
राजा को गुस्से में देखकर उसे बूढ़े कुबड़े आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "माफ कीजिएगा महाराज! लेकिन मैं बस सच ही बोल रहा हूं और मैं भी उनका बुरा नहीं चाहता क्योंकि मैं उनकी जान बचाने के लिए ही यहां पर आया हूं मेरे रहते रानी और आपकी होने वाली बच्ची को कुछ नहीं होगा।"
राजा ने बहुत ही सख्त आवाज में पूछा, "तुम्हें इस बारे में कैसे पता कि होने वाला बच्चा है या बच्ची, कौन हो तुम और कैसे जान बचा सकते हो तुम उनकी..." - उस आदमी की ऐसी रहस्यमई बातें सुनकर राजा बहुत ही ज्यादा असमंजस में है।
"महाराज मेरा नाम भानु है और मैं अपने मालिक की कृपा से बस वहां पहुंच जाता हूं जहां पर मेरी आवश्यकता होती है इसीलिए मैं यहां पर भी आपकी सहायता करने आया हूं और इन सब बातों का अभी समय नहीं है, आप बस यह लीजिए और इस चमत्कारी जड़ी को रानी के मुंह में रखवा दीजिए इससे उनका दर्द एकदम कम हो जाएगा और बच्चे का जन्म भी ठीक से हो जाएगा।" - उसे आदमी ने अपनी पोटली में से सूखी हुई कोई जड़ी बूटी जैसी दिखने वाली चीज निकल कर राजा के सामने की।
उस आदमी की यह बात सुनकर राजा ने उसकी तरफ देखकर एक पल को कुछ सोचा और फिर अपने मंत्री और अपने साथ खड़े सारे लोगों की तरफ देखा वह सब ही राजा को इशारे से मन कर रहे थे क्योंकि उन सभी को उस आदमी पर शक था।
राजा को खुद भी उसे आदमी पर भरोसा नहीं था इसलिए राजा ने उसे आदमी के हाथ से वह जड़ी बूटी नहीं ली और शक भरी निगाहों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा, "लेकिन मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूं अगर तुम कोई दुश्मन हो और रानी को मारने के लिए आए हो तो और क्या है यह जिससे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा?"
वो बूढ़ा कुबड़ा आदमी भानु, राजा की इस बात का कोई भी जवाब दे पाता उससे पहले ही एक सेविका लगभग भागती हुई वहां पर आई और अपना सर झुका कर राजा के सामने बोली, "महाराज! महरानी का दर्द और भी ज्यादा बढ़ गया है और बहुत ज्यादा पीड़ा होने की वजह से वो मूर्छित हो गई है और उन पर वैद्यजी की कोई भी दवा असर नहीं कर रही है।"
उस सेविका की वह बात सुनकर राजा के चेहरे पर एकदम ही घबराहट साफ नजर आने लगी और राजा को समझ नहीं आया कि वो क्या करें इस वक्त क्योंकि कुछ भी उसके हाथ में नहीं था जब महल के सारे वैद्य, दाई और सेवक सेविकाएं कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो राजा भला क्या ही करता।
राजा जहां यह बात सुनकर बहुत ज्यादा परेशान हो गया वहीं उसे बूढ़े कुबड़े आदमी भानु के चेहरे पर संतोष के भाव नजर आए और उसने दोबारा से वह जड़ी बूटी राजा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "महाराज! आप अभी भी सोच रहे हैं, यह समय सोचने का नहीं है आप यह लीजिए और इस सेविका से बोल दीजिए कि यह जड़ी बूटी रानी के मुंह में जीभ के नीचे रखने के लिए... ऐसा करने से उन्हें कुछ भी नहीं होगा और रानी और आपकी बच्ची एकदम ही सही सलामत रहेंगी, मुझ पर भरोसा करिए और जब तक सही सलामत आपकी बच्ची का जन्म नहीं हो जाता मैं यहां पर ही रहूंगा जिससे आपको मुझ पर भरोसा हो जाए।"
भानु की बातें सुनकर राजा ने ऊपर से नीचे तक एक नजर उसकी तरफ देखा लेकिन फिर राजा की नजर उसके हाथ में पकड़ी हुई उसे जड़ी बूटी पर टिक गई, राजा को पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कि वो जड़ी बूटी सच में काम करेगी और वह बूढ़ा आदमी इस वक्त उसकी रानी की और होने वाले बच्चे की जान बचाने के लिए ही फरिश्ता बनकर यहां पर आया है।
इसलिए राजा ने तुरंत ही अपना सिर हिलाते हुए उसके हाथ से वह जड़ी बूटी उठा ली और सेविका को देते हुए उसे वही बात बोल दी, सेविका राजा के आदेश पर वो जड़ी बूटी लेकर वहां से रानी के कमरे की तरफ चली गई।
राजा ने भानु की तरफ देखकर कहा, "तुम्हारी बात सच है या नहीं, यह बस अभी साबित हो जाएगा लेकिन तब तक तुम यहां से कहीं नहीं जाओगे।"
भानु ने अपने आसपास देखा तो सारे सैनिक उसे घेर कर खड़े हुए थे तो उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था इसलिए राजा की बात मानते हुए उसने धीरे से अपना सिर हिलाया और वहीं खड़ा रहा, तभी महल की खिड़की के बाहर पूर्णिमा का चांद पूरा चमकने लगा जो काले बादल अब तक उस पर छाए हुए थे वह उस पर से हट गए और चांद की रोशनी अंदर महल में भी आने लगी।
अपने बच्चे के जन्म को लेकर राजा बहुत ही ज्यादा बेचैन था, तभी कुछ देर के बाद ही उसे कमरे से बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी और वह आवाज जैसे राजा के साथ-साथ उस बूढ़े आदमी के कानों को भी ठंडक दे रही थी।
उसने भी आवाज सुनकर तसल्ली से मुस्कुराया तभी एक सेविका ने बाहर आकर राजा को बताया, "महाराज बधाई हो बेटी हुई है और रानी भी अब स्वस्थ हैं ।"
यह खुशखबरी सुनकर राजा ने अपने गले में पहना हुआ मोतियों का हार उतार कर उस सेविका के हाथ में दे दिया और बहुत ही एहसान भरी नज़रों से उसे बूढ़े कुबड़े आदमी की तरफ देखा।
सेविका की बात सुनकर भानू ने राजा से बोला, "महाराज! अब तो आपको विश्वास हो गया है ना मेरी बातों पर मैं आपका सहायक हूं शत्रु नहीं..."
"हां... हां भानु तुमने मेरी बहुत मदद की ऐसे वक्त में, तुम्हें मैं इसका इनाम जरूर दूंगा बताओ क्या चाहिए तुम्हें?" - राजा ने खुश होते हुए उस कुबड़े आदमी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा
"कुछ नहीं महाराज! मुझे कुछ भी नहीं चाहिए मैं तो बस आपका सेवक हूं लेकिन अगर आप अपनी बच्ची को आने वाली हर मुसीबत और खतरे से बचाना चाहते हैं तो उसके लिए यह पत्थर आप हमेशा ही उस बच्ची के गले में बांध कर रखिएगा और अभी जैसे ही आप उस देखेंगे उसके गले में यह ताबीज बनाकर पहना दीजिएगा।" - इतना बोलते हुए भानु ने अपनी उसी पोटली से एक काला धागा निकाला जिसके बीच में एक हरे और काले रंग का पत्थर बांधा हुआ था, वो निकालकर राजा की तरफ बढ़ा दिया
इस बार राजा ने बिना कुछ सोचे समझे और बिना कोई सवाल किया उस के हाथ से वह ताबीज ले लिया और मुस्कुरा कर वहां से अपनी रानी और अपनी नवजात बच्ची को देखने के लिए रानी के कक्ष की तरफ बढ़ गया।
कहानी जारी है....
किसकी थी वह पहले चीखने की आवाज और क्या मंजरी काकी समय रहते पहुंच पाएंगे ठाकुर के घर? क्या लगता है आप लोगों को कौन है भानू और क्यों आया है वह राजा की मदद करने ? जानने के लिए जरूर पढ़ें विक्रांत : एक श्राप' का अगला भाग.. और कमेंट में बताइए कैसा लगा आप लोगों को पहला भाग, हमने बोला था ना सस्पेंस mystery fantasy love स्टोरी होगी!
2
गांव के एक बड़े से घर के दरवाजे से अंदर आते हुए मंजरी काकी ने तेज आवाज में बोला, "क्या हो गया रेवती तुम्हें... कल तक तो तुम एकदम ठीक थी, मैं कल ही तो तुम्हारी जांच करके गई थी।"
दाई मां की यह बात सुनकर लगभग सभी का ध्यान उनकी तरफ ही हो गया और वहां अंदर आते ही उन्होंने देखा कि अंदर वाले दूसरे कमरे में एक आदमी अपनी लगभग बेहोश हो रही पत्नी को गोद में लेकर बैठा हुआ है, उसकी पत्नी की हालत बहुत ही खराब लग रही है और उसका पेट भी अजीब ढंग से कुछ ज्यादा ही फूला हुआ लग रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे अभी भी और फूलता ही जा रहा है।
गांव के वैद्य भी वहां पर उसे औरत के हाथ की नब्ज़ पकड़कर बैठे हुए हैं लेकिन उन्हें भी कुछ समझ नहीं आ रहा कि ऐसे प्रसव पीड़ा के दर्द के बाद से वो रेवती इस तरह बेहोश क्यों हो गई और उसे इस तरह काले खून की उल्टी क्यों हुई?
"ऐ रघु! क्या हुआ रेवती को, तू ही कुछ बता दे वह तो बोलने की हालत में भी नहीं लग रही है।" - इतना बोलते हुए दाईं मां अंदर आई, और अंदर आते ही उन्हें अपने पैर में कुछ चिपचिपा सा लगता हुआ महसूस हुआ तो वो अपनी जगह पर ही रुक गई।
उसे चिपचिपी सी चीज पर पर पड़ते ही मंजरी काकी ने नीचे देखा तो उन्हें कुछ काला सा पूरी जमीन पर बिखरा हुआ पड़ा नज़र आया लेकिन फिर उन्हें उस लड़की की बात याद आई की रेवती को काले खून की उल्टी हुई है तो वह समझ गई कि यह खून है और जैसे ही वह उस पर पैर रखकर वहां से थोड़ा आगे बड़ी उनके पैर का वह हिस्सा बहुत ही तेजी से जलने लगा जहां पर वो खून लगा हुआ था।
दाई मां को कुछ समझ नहीं आया और पहले उन्होंने जल्दी से अपने पैर से वो काला खून साफ किया और फिर बेहोश हो रही रेवती की तरफ आई, उसकी आंखें एकदम ऊपर की तरफ हो गई थी।
दाई मां उसकी नब्ज पकड़ कर देखने लगी लेकिन तभी रेवती की आंखें एकदम से खुल गई, उसकी आंखों की सफेद पुतलियां भी एकदम काली पड़ चुकी थी।
उन पूरी काली शैतानी आंखों से रेवती ने घूर कर दाई मां की तरफ देखा और धीमी आवाज में कुछ बोली जो कि वहां पर मौजूद किसी को भी सुनाई नहीं दिया और तभी फिर से उसे काले खून की ही उल्टियां हुई उसके मुंह से लगातार काला खून निकला और वहां की पूरी जमीन पर वो काला खून नजर आ रहा था
यह सब देखकर दाई मांकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गई और उन्होंने कहा, "यह सब जरूर किसी काली शक्ति का असर है और वही यह सब कुछ कर रही है, माफ करना रघु लेकिन मैं भी रेवती को शायद नहीं बचा पाऊंगी और तेरा बच्चा..."
इतना बोलते हुए दाई मां ने रेवती के पेट की तरफ देखा जो कि अभी तक उभरा हुआ था लेकिन अब उसके पेट का उभार एकदम ही गायब हो गया और उसके मुंह के साथ नाक और पेट की नाभि से भी वही काला खून निकलने लगा।
अपनी आंखों के सामने पेट से बच्चा गायब होते और रेवती की लाश से काला खून निकलते हुए देखकर वहां मौजूद गांव की सारी औरतें चिल्लाती हुई उस घर से बाहर भाग गई।
ये सब देखकर एकदम ही घबराते हुए रेवती का पति रघु भी उसे जमीन पर लिटाकर उससे दूर हो गया क्योंकि उसकी धड़कन एकदम धीमी पड़ गई थी और उसकी सांसे भी रुक चुकी थी उन लोगों को समझ आ गया कि वो अब जिंदा नहीं है।
रघु ने लगभग चीखते हुए कहा, "रेवती!!! नहीं.... मेरा बच्चा... मेरा बच्चा कहां गया काकी? और बिना जन्म लिए ऐसे बच्चा पेट से गायब कैसे हो सकता है?"
"यह सब क्या हो रहा है, कैसे... यह सब कैसे हो सकता है? नहीं... नहीं यह सब नहीं हो सकता वो श्राप वापस नहीं आ सकता।" - वहीं पर थोड़ा साइड में खड़े रघु के पिता नरेंद्र ठाकुर लगभग चिल्लाते हुए बोले
दाई मां ने उन दोनों को समझाते हुए कहा, "बच्चा नहीं शैतान का रूप था वो, शुक्र मनाओ कि गायब हो गया और तुम लोग बच गए क्योंकि रेवती का शरीर कमजोर था और वह शैतान के रूप को दुनिया में नहीं ला पाई शायद इसीलिए उसने भी दम तोड़ दिया लेकिन ये काला खून इसका क्या मतलब है?"
इतना बोलते हुए दाई मां ने वहां जमीन पर पड़े काले खून की तरफ देखा जो की बहता हुआ एक तरफ जा रहा था उनकी नज़रों ने उस काले खून का पीछा किया तो एक लंबी लकीर बनता हुआ वो खून बहकर घर के पीछे वाले आंगन के हिस्से की तरफ जाता हुआ अपना रास्ता बना रहा था।
इस तरह अपनी पत्नी को अपनी आंखों के सामने मरते और अपने बच्चों को उसके पेट से गायब होते देख रघु अपना सर पड़कर धम्म् से वही जमीन पर बैठ गया क्योंकि अभी एक साथ ही उसने अपनी पत्नी और बच्चे दोनों को अपनी आंखों के सामने एकदम रहस्यमई तरीके से मारते हुए देखा और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है और उसके होश भी जैसे गुम हो गए थे, वह कुछ भी बोल सुन नहीं पा रहा था और ना ही उसे कुछ समझ आ रहा है।
रघुवेंद्र ठाकुर और उसके पिता नरेंद्र ठाकुर उस गांव के जाने-माने जमींदार हैं और उन की पूरे गांव में काफी इज्जत है क्योंकि वह लोग हमेशा ही गांव की भलाई के लिए सबसे पहले खड़े रहते हैं और हमेशा ही गरीब असहाय लोगों की मदद करते हैं लेकिन आज खुद ही हालातों के आगे एकदम असहाय और मजबूर होकर दोनों बाप बेटे वहां पर खड़े हुए हैं।
जो औरतें वहां से डर कर भाग गई थी उन्होंने अपने घर में जाकर सारी बात बताई तो अब उनके आदमी वहां पर आ गए उन्हें समझाने और सारा मामला देखने के लिए, वह सब वहां पर इकट्ठा हुए और पेट से इस तरह अचानक बच्चा गायब होने वाली बात अब तक लगभग पूरे गांव में फैल गई है लेकिन जो भी इसे सुन रहा है वह सब इस को लेकर वह सदमे में है क्योंकि ऐसा कोई मामला पहली बार ही उन सबके सामने आया है।
दाई मां को कहीं ना कहीं समझ आ रहा है कि यह सब काली शक्तियों का खेल है लेकिन रघु और उसकी बीवी इन सब चक्करों में कैसे पड़ गए, यह बात उन्हें भी नहीं पता है लेकिन अभी उनकी आंखों के सामने रेवती की मृत्यु हो गई थी और वह कुछ नहीं कर पाई तो बहुत ही अफसोस के साथ दाई मां वहां से जाने ही वाली थी कि तभी एक भयानक हंसी की आवाज उनके कानों में पड़ी और उसके बाद तुरंत ही ठक्-ठक् की तेज आवाज आई।
यह इस तरह की आवाज़ थी जैसे की कोई किसी चीज को खोलने के लिए ठोक रहा हो, कोई दरवाजा या कोई लकड़ी का बक्सा...
"यह कैसी आवाज़ है, यह कहां से आ रही है?" - वहां पर मौजूद गांव वालों ने इधर-उधर देखते हुए कहा
एक आदमी ने उंगली से पीछे वाले आंगन की तरफ इशारा करते हुए कहा, "पीछे आंगन की तरफ से आ रही है, चलो चलकर देखते हैं।"
To Be Continued
शुरू में स्टोरी में सस्पेंस के साथ थोड़ा mystery हॉरर भी है इतना नहीं कि आप लोगों को डर लगे लेकिन हां सोचने पर ज़रूर मजबूर कर देगा, और कहां गायब हो गया रेवती का बच्चा और कैसी आवाज है जो उन सब को सुनाई दे रही हैं पता चलेगा अगले एपिसोड में, जानने के लिए पढ़ते रहिए और कमेंट करिए!
3
दाई मां वहां से जाने ही वाली थी कि तभी एक भयानक हंसी की आवाज उनके कानों में पड़ी और उसके बाद तुरंत ही ठक्-ठक् की तेज आवाज आई।
यह इस तरह की आवाज़ थी जैसे की कोई किसी चीज को खोलने के लिए ठोक रहा हो, कोई दरवाजा या कोई लकड़ी का बक्सा...
"यह कैसी आवाज़ है, यह कहां से आ रही है?" - वहां पर मौजूद गांव वालों ने इधर-उधर देखते हुए कहा
एक आदमी ने उंगली से पीछे वाले आंगन की तरफ इशारा करते हुए कहा, "पीछे आंगन की तरफ से आ रही है, चलो चलकर देखते हैं।"
वो आवाज़ बहुत ही अजीब थी उसे सुनकर ठाकुर नरेंद्र भी जो इतनी देर से अपनी जगह पर एकदम जम गए थे वह आगे बढ़े, और गांव के कुछ चार-पांच आदमी और वैद्य के साथ वहां से घर के पीछे बने आंगन की तरफ बढ़े।
दाई मां वह आवाज सुनकर वहां पर ही खड़ी हुई कुछ सोचने लगी और उन लोगों के साथ वह पीछे वाले आंगन की तरफ नहीं गई क्योंकि उनकी नज़र उस तरफ बहकर जाने वाले काले खून की तरफ थी और उसे काले खून के उधर पीछे वाले आंगन की तरफ जाने के बाद से ही यह आवाज आना शुरू हुई और यह वही खून था जो रेवती के शरीर से निकल रहा था।
वहां से निकलते हुए उन लोगों में से जितने भी लोगों का पैर उस काले खून पर पड़ा, उन सभी को अपने पैर में हल्की जलन महसूस हुई लेकिन वो आवाज कहां से आ रही है यह जानने की उत्सुकता के आगे किसी ने भी इतना ध्यान नहीं दिया और उसी तरह से वह सब लोग आगे बढ़ गए।
वो सब लोग जैसे ही आंगन में पहुंचे उन लोगों ने वहां पर आंगन में एक बड़ा सा लकड़ी का ताबूत रखा हुआ देखा, वह दिखने में काफी पुराना लग रहा था लेकिन फिर भी कहीं से जरा सा टूटा फूटा नहीं था यहां तक उसे पर एक खरोच भी नहीं थी, उस ताबूत की लकड़ी बहुत ही ज्यादा मजबूत लग रही थी और उस पर कुछ अजीब से शैतानी खोपड़ी और लाल काले रंग के निशान भी बने हुए थे जो कि उन में से किसी को भी समझ नहीं आए लेकिन वहां पर आकर वो ठक् ठक् की आवाज और भी ज्यादा तेज सुनाई दे रही है
वो लड़की का बक्सा देख कर एक गांव वाले ने कहा, "यह क्या है इतनी अजीब सी चीज, इसे तो देखकर ही डर लग रहा है।"
दूसरे आदमी ने ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा, "ठाकुर साहब! यह कितना पुराना लकड़ी का बक्सा है और यह यहां पर क्या कर रहा है।"
एक दूसरे आदमी ने थोड़ा सा आगे बढ़कर गौर से उसे लकड़ी के बक्से को देखते हुए कहा, "बक्सा नहीं ताबूत लग रहा है यह तो जिसमें मरे हुए इंसानों को दफनाते हैं लेकिन ठाकुर साहब यह इसके अंदर से आवाज़ कैसे आ रही है क्या आपने इसमें किसी को बंद करके रखा है?"
अपने घर के पीछे के आंगन में रखे हुए उसे ताबूत को देखकर ठाकुर खुद ही सदमे में हैं और उन्होंने गांव वालों की बात का जवाब देते हुए कहा, "मुझे नहीं पता, ये यहां पर कैसे आया और यह मेरा नहीं है और मैं क्यों इसके अंदर किसी को भी बंद करूंगा?"
वहां पर लोगों के बीच खड़े हुए वैद्य जी को उस बक्से में बहुत ही ज्यादा दिलचस्पी हुई और वह थोड़ा सा आगे आते हुए बोले, "चलो फिर इसे खोलकर देखते हैं कि क्या है इस बक्से के अंदर खोलकर देखने पर खुद ही पता चल जाएगा।"
वैद्य की बात सुनकर उस ताबूत के एकदम नजदीक खड़े एक गांव वाले ने कहा, "हां, क्योंकि वह आवाज इसके अंदर से ही आ रही है क्या पता कोई मदद के लिए अंदर से खटखटा रहा हो।"
जब से वह लोग आंगन में आकर खड़े हैं तब से वह भयानक हंसी की आवाज आना बंद हो गई है और लगातार उसे ताबूत के अंदर से ठोकने की आवाज आ रही है जैसे की कोई उसे खोलने के लिए कह रहा हूं और मदद मांग रहा हो।
ठाकुर को यह सब कुछ बहुत अजीब लग रहा है इसलिए उन्होंने उन लोगों को रोकते हुए कहा, "नहीं... मुझे नहीं लगता कि हमें इसे खोलना चाहिए, मुझे यह सब ठीक नहीं लग रहा।"
ठाकुर के चेहरे पर डर एकदम साफ नजर आ रहा है और उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई, उसे कुछ अजीब और बहुत गलत होने के आसार लग रहे हैं इसीलिए उसने उन लोगों को वो ताबूत खोलने से मना किया लेकिन उन सारे लोगों ने यह सुनकर ठाकुर को और भी ज्यादा शक भरी निगाहों से देखा।
एक अन्य गांव वाले ने ठाकुर के खिलाफ जाते हुए कहा, "क्यों, ठाकुर साहब आप क्यों मना कर रहे हैं, इसका मतलब आपने ही किसी को इसमें बंद करके रखा है... चलो खोलो देखते हैं कि ये ठाकुर हमसे क्या छुपा रहा है?"
"हां... हां खोलो... खोलो इस ताबूत को, खोलो..." - वहां मौजूद सारे लोग एक आवाज में बोले और फिर दो लोगों उसे खोलने के लिए आगे बढ़े लेकिन उन लोगों से वह नहीं खुला और फिर गांव का वैद्य भी आगे आया उसने थोड़ा गौर से और सबूत के ऊपर बने निशानों को देखा और फिर उसे पता नहीं क्या समझ में आया कि उसने एकदम बीच में बने हुए खोपड़ी के निशान पर अपना हाथ रखा और उसके दोनों तरफ खड़े उन लोगों ने उस लकड़ी के ताबूत का एक साइड जोर से अपनी तरफ खींचा तो इस बार वह खुल गया लेकिन उन लोगों को ताबूत के अंदर एक काला धुआं भरा हुआ नजर आया और कुछ भी नहीं दिखा।
दूसरी तरफ;
गांव से कुछ दूर पर एक घने जंगल के बीचो बीच एक बड़े से पत्थर पर एक संत महात्मा जैसे दिखने वाले साधु आंख बंद करके ध्यान की अवस्था में बैठे हुए हैं और जैसे ही वह ताबूत खुला एकदम से झटके से उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और उनकी आंखें हैरानी से और उन्होंने अपने आप से बात करते हुए कहा, "लौट आया है वो श्राप... वो शैतान... मेरी इतनी कोशिशें के बाद भी वह शैतानी शक्तियों अपने मकसद में कामयाब हो गए नहीं..नहीं मैं उसे रोक क्यों नहीं पाया अब वह पहले की तरह ही तबाही मचाएगा और अपना काला साम्राज्य फिर से स्थापित करने की कोशिश करेगा, नहीं... मैं यह नहीं होने दूंगा।"
"क्या हुआ गुरुजी? आपको कुछ चाहिए..." - उस सफेद दाढ़ी मूंछ और लंबे बालों वाले महात्मा साधु आदमी के सामने खड़े एक छोटे से पांच साल के बच्चे ने बहुत ही आदरपूर्वक पूछा।
उस बच्चे के सवाल पर उसे महात्मा ने नहीं में अपना सिर हिलाया और कुछ भी नहीं बोला तो वो बच्चा वहां से चुपचाप वापस चला गया।
उस बच्चे के वहां से जाने के बाद वो साधु महात्मा किसी गहरी सोच में डूब गए और उनके माथे पर बल पड़े हुए हैं क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा चिंतित हैं।
******
ठाकुर के घर का पीछे वाला आंगन;
अभी कुछ देर पहले वैद्य समेत जिन तीन लोगों ने उस ताबूत को छुआ था उन तीनों का ही हाथ एकदम से जलने लगा और उस हाथ से शुरू होते हुए उनका पूरा शरीर एकदम काला पड़ने लगा।
वैद्य के मुंह से एक तेज दर्द भारी चीख निकली, "आह् आह् हाअ... मेरा हाथ मेरे हाथ को क्या हो रहा है यह पूरा जल रहा है और मेरा पूरा शरीर भी..."
ठीक उसी वक्त आसमान में चमकते हुए पूर्णिमा के उस चांँद पर एकदम ही ग्रहण लग गया और अभी तक आंगन में जो चांँद की रोशनी बिक्री हुई थी अब वहां एकदम ही अंधेरा हो गया और काले बादल घिर आए इसके अलावा उस घर के ऊपर चारों तरफ अजीब से काले साए मंडराने लगे जिस पर उस आंगन में मौजूद किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
कहानी जारी है...
क्या लगता है आप लोगों को आखिर क्या हो सकता है उसे ताबूत के अंदर और पेट से बच्चा गायब कैसे हो सकता है कौन है वह काली शक्तियों और क्या खेल खेल रही है और कौन से श्राप के बारे में बात कर रहे हैं ठाकुर नरेंद्र और वह महात्मा जाने के लिए जुड़े रहिए और पढ़ते रहिए यह कहानी
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ठाकुर के घर के पीछे वाले आंगन में रखे हुए उस ताबूत के अंदर से आई भयानक आवाज सुनकर गांव के सभी लोग वह ताबूत खोलने के लिए आगे आते हैं लेकिन उसे छूने वाले लोगों का बुरा हाल हो जाता है।
अपने सामने उनकी हालत खराब होते देखा वह सारे लोग एकदम ही उस ताबूत से दूर हुए और तभी वैद्य को एकदम उसी तरह काले खून की उल्टी हुई, जैसे कि ठाकुर की बहू को हुई थी और उसकी आंखें भी एकदम काली हो गई और पूरा शरीर अकड़ गया और काला पड़ने लगा और वो वहां पर जमीन पर ही गिर गया और तड़पने लगा।
उसे देखकर वह दोनों गांव वाले डर गए जिन्होंने उस ताबूत को छुआ था क्योंकि उनका भी वहीं हाथ काला होना शुरू हो गया था जिस हाथ से उन लोगों ने उस ताबूत को छुआ था और फिर कुछ ही सेकंड में सभी की आंखों के सामने उनका भी वही हाल हुआ जो कि वैद्य का हुआ था उन्हें भी काले खून की उल्टी हुई और पूरा शरीर काला पड़ के वहीं पर उनकी भी मौत हो गई।
अपने सामने इस तरह अचानक तीन लोगों को मारते देखकर बाकी सारे लोग एकदम ही घबराकर उस ताबूत से पीछे और काफी दूर हट गए लेकिन वह आंगन छोड़कर अभी भी वह लोग नहीं गए क्योंकि इस वक्त एकदम तेज आवाज के साथ वह ताबूत खुल गया और उसके अंदर से एक शैतानी हंसी की आवाज गूंजी, "हा हा हा वापस आ गया हूं मैं, अब मुझे कोई नहीं रोक सकता।"
उसका दरवाजा हटते ही ठाकुर और बाकी गांव वालों ने सामने की तरफ देखा तो सदमे की वजह से उन सब को अपने दिल की धड़कन रुकती हुई सी महसूस हुई क्योंकि उसमें बहुत ही छोटा सा एकदम नंगा बच्चा जिसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था और वह उस ताबूत में से बाहर निकल पहले वह बहुत छोटा था लेकिन जैसे-जैसे वह कदम आगे बढ़ा रहा था उसकी लंबाई और चौड़ाई बढ़ती जा रही थी और वह एकदम नवजात बच्चा अब 2 से 3 साल का और फिर 5 साल का लगने लगा।
उसकी आंखें और उसका पूरा शरीर एकदम काला था लेकिन उस ताबूत से बाहर निकलते ही उसकी आंखें और शरीर दोनों ही नॉर्मल होने लगी और वह 5-6 साल का बच्चा हो गया और उसके शरीर पर एक काला कपड़ा भी अपने आप ही आ गया।
आगे आते हुए उसने अपने सामने देखा और अजीब तरह से हंसता हुआ वह बाकी लोगों की तरफ बढ़ा उसके इस तरह अपनी तरफ आने पर कुछ लोग डर कर वापस घर के अंदर भाग गए और तभी उस बच्चे की आंखों से एक अजीब सी काली रोशनी निकली और उन लोगों के शरीर पर आकर लगी जिससे कि उसके सामने खड़े वह सारे लोग वहीं जमीन पर बेजान होकर गिर गए।
उसके ऐसा करते ही उसका कद थोड़ा और बढ़ गया और उसकी उम्र भी उसके दादाजी ने यह सब कुछ देखा और वह एकदम ही आंगन की दीवार से लगकर खड़े हो गए उस बच्चों ने अपने दादाजी की तरफ देखकर मुस्कुराया उसके चेहरे पर वही शैतानी मुस्कुराहट थी और वह बोला, "मैं आपका पोता हूं दादा जी! आप मुझसे मत डरिए मैं आपको कुछ भी नहीं करूंगा आखिर आप मेरे दादा जो हैं हा हा हा।"
उस बच्चों को पैदा होते ही इतना बड़ा होते और बोलते हुए देख कर दादाजी अपना सिर पकड़ कर सदमे से वही आंगन की जमीन पर गिर पड़े और वह बच्चा आंगन से घर के अंदर की तरफ चला गया उन लोगों के पीछे जो उससे डर कर घर के अंदर भागे थे।
घर के अंदर रघुवेंद्र अभी भी सारी बातों को लेकर सदमे में है तभी उसके कानों में एक आवाज पड़ी, "पिताजी..."
राघवेंद्र को समझ नहीं आया कि उसे इस तरह से पिताजी कौन बुला रहा है और तभी उसने नजर उठाकर सामने देखा तो 6-7 साल का एक बच्चा अजीब ढंग से मुस्कुराता हुआ अपने सामने खड़ा हुआ नजर आया और उसके आसपास ही बहुत ज्यादा नकारात्मक ऊर्जा रघुवेंद्र को महसूस हुई और तभी उसने उसकी आंखों में देखा तो उस बच्चों की आंखें एकदम काली पड़ी हुई उसे नजर आई और उसका शरीर भी काला होता गया तो राघवेंद्र एकदम ही झटके से अपनी पत्नी को छोड़कर वहां से उठ खड़ा हुआ और बोला, "नहीं... नहीं यह नहीं हो सकता, इसका मतलब ये सब मेरी ही गलती है, ये सब कुछ मेरी वजह से हुआ और मेरी वजह से मेरी वजह से रेवती की जान गई, नहीं तुम... तुम मेरे बच्चे नहीं हो, तुम मेरे बच्चे नहीं हो सकते।
"पिताजी! आप ये क्या बोल रहे हैं मैं आपका ही बच्चा हूं और मां! वह मुझे दुनिया में लाने के लायक नहीं थी अच्छा हुआ मर गई।" - बोलते हुए उस बच्चों ने अजीब ढंग से जमीन पर पड़ी हुई अपनी मां की लाश की तरफ देखा और फिर अपने पिता की तरफ देखकर जोर से हंसा लेकिन रघुवेंद्र उस बच्चे को धक्का मार कर सदमे से चिल्लाते हुए वहां से आगे अपने कमरे की तरफ भाग गया और उसने कमरा अंदर से बंद कर लिया।
दाई मां भी वहां पर मौजूद है और बाकी के सारे लोग दाई मां के पीछे ही छुपे हुए हैं क्योंकि उस घर का दरवाजा अंदर से बंद हो चुका है और कोई भी वहां से बाहर नहीं जा पा रहा है।
इसी तरह अजीब ढंग से हंसता हुआ वह बच्चा उन सारे लोगों की तरफ आगे बढ़ा तभी दाई मां ने तेज आवाज में चिल्ला कर कहा, "रुक जा वही शैतान और क्यों कर रहा है तू यह सब, तेरी वजह से कितने लोगों की जान गई लेकिन अब और नहीं?
"यह तो सिर्फ शुरुआत है और तू रोकेगी मुझे बुढ़िया?" - इतना बोलते हुए उस बच्चे ने घूर कर दाई मां की तरफ देखा उसकी आंखों से फिर वही काली लाल रोशनी निकाली और जिन लोगों ने अभी कुछ देर पहले उस बच्चे का वो रूप और उसकी शक्ति देखी थी वह सारे लोग ही चिल्लाते हुए उस घर के दरवाजे की तरफ भागे और अपनी पूरी ताकत लगाकर उन सब लोगों ने मिलकर जैसे तैसे दरवाजा खोला और फिर उस घर से बाहर की तरफ भागे ।
लेकिन कोई भी फायदा नहीं हुआ क्योंकि जैसे ही उस शैतानी बच्चे ने उन सब की तरफ एक नज़र डाली, वो सब आदमी भागते हुए वहीं ज़मीन पर गिर पड़े और उनके गिरते ही उनका पूरा शरीर अकड़ कर एकदम काला हो गया और उन सबके मुंह नाक से वही काला खून निकलने लगा, ठीक उसी तरह से उनकी मौत हो गई जैसे कि अभी कुछ देर पहले आंगन में ताबूत के पास तीन लोगों की हुई थी।
उन पांच लोगों के मरते ही उस बच्चों की उम्र 5 साल और बढ़ गई, उसकी आंखें पूरी काली थी लेकिन चेहरे पर अजीब तरह की हंसी थी जिससे वह बहुत ही भयानक दिख रहा था।
क्रमशः
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उस शैतान बच्चे ने वही हमला दाई मां पर भी किया लेकिन उन पर उसकी शक्तियों का कोई भी असर नहीं हुआ और तभी एक तेज रोशनी वहां पर हुई जो दाई मां के बाजू पर बंधे हुए ताबीज से निकल रही थी और वह ताबीज के बीच में एक हल्के हरे रंग का पत्थर बना हुआ था और उस पत्थर से निकलती हुई तेज सुनहरी रोशनी उस बच्चों की आंखों में लग रही थी और वह उस तरफ देख भी नहीं पा रहा था तभी धीरे-धीरे उस हरी रोशनी से निकलता हुआ एक सुनहरा गोला उस बच्चे के चारों तरफ बन गया और उसकी आंखों से निकलती हुई वह रोशनी भी एकदम कम हो गई और वह बच्चा बहुत ही तेज आवाज में चिल्लाने लगा।
वह दर्द से कराह था और ऐसा लग रहा था जैसे कि वह गोला जो उसके चारों तरफ बना है वह उसकी शैतानी शक्तियों को काबू कर रहा है और दाई मां शायद इस बारे में जानती थी इसलिए ही उन्होंने मुड़कर अपने बाजू पर बंधे हुए उस पत्थर की तरफ देखा और कहा, "मुझे पता था मुझ पर इन काली शक्तियों का असर नहीं होगा लेकिन ये नहीं पता है कि कितनी देर तक यह इसे रोक कर रख पाएगा?"
वह बच्चा बहुत ही भयानक आवाज में चीख रहा है और उस हरी सुनहरी रोशनी के गोले से बाहर निकालने की कोशिश भी कर रहा है लेकिन वह निकल नहीं पा रहा है।
उसकी बहुत भयानक चीखें कमरे के अंदर मौजूद रघुवेंद्र के कानों में भी पड़ रही है और उसे ऐसा लग रहा है जैसे की कोई उसके कानों में गर्म शीशा पिघला कर डाल रहा है और उससे वह भयानक चीखें उससे सुनी नहीं जा रही है।
इसलिए रघुवेंद्र ने बहुत ही कसकर अपने दोनों कानों पर हाथ रखते हुए अपने कान को ढक लिया लेकिन वह आवाजें सुनकर उसे ऐसा लग रहा है जैसे कि वो आवाज़ें बाहर से नहीं बल्कि उसके अंदर से ही कहीं आ रही है और वह एकदम ही ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया और अपना सिर नीचे झुका कर वो पागलों की तरह चिल्लाने लगा, "नहीं... नहीं यह नहीं हो सकता मेरा बच्चा शैतान... नहीं वह मेरा बच्चा नहीं है, उसके पैदा होते ही रेवती मर गई जब वह अपनी मां को खो गया तो और किसी को नहीं छोड़ेगा और मैं... सब कुछ मेरी ही वजह से हो रहा है इसलिए मुझे भी जिंदा रहने का कोई हक़ नहीं है!"
इतना बोलते हुए उसकी आंखों से पछतावे के आंसू वह निकले और वह आवाज उससे अब बर्दाश्त नहीं हो रही है इसलिए अपनी जगह पर उठकर खड़े होते हुए रघुवेंद्र ने अपने कमरे की छत की तरफ देखा और फिर इधर-उधर नजर दौड़ाता हुआ कुछ ढूंढने लगा, जैसे ही उसे रस्सी मिली उसने तुरंत ही रस्सी का एक सिरा उस छत में बने कड़े में फंसाया और उस रस्सी का दूसरा सिरे का फंदा बनाकर अपने गले में डाला, उस रस्सी के फंदे को अपने गले में डालकर रघुवेंद्र फांसी पर लटकाने ही वाला है तभी उसने कसकर अपनी आंखें बंद की और उस दिन के बारे में सोचने लगा जब से यह सब कुछ शुरू हुआ था।
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1 साल पहले;
रघु और रेवती की शादी को 7 साल हो चुके थे लेकिन अब तक उन्हें कोई भी औलाद नहीं हुई और इस बात को लेकर वह दोनों ही बहुत परेशान रहते थे।
लेकिन उनकी उम्मीद के विपरीत उनके पिता नरेंद्र ठाकुर को इस बात से कोई भी परेशानी नहीं थी और वह हमेशा ही उन दोनों को समझाते थे कि शादीशुदा जीवन में खुश रहने के लिए हमेशा ही बच्चे का होना जरूरी नहीं होता है और अगर इतना ही है तो वह लोग किसी छोटे बच्चों को गोद भी ले सकते हैं।
लेकिन रघुवेंद्र उनकी बात नहीं सुनता था और उसे अपना ही बच्चा चाहिए था अपना खून... और रेवती को भी दूसरों दूसरी औरतों के छोटे बच्चे देख कर उसके मन में ममता जागती थी और वो भी मां बनने का सुख पाना चाहती थी इसलिए उसने हर वो टोटका किया जो भी उसे कोई बता देता था।
उसने अपने पति के साथ मिलकर हर तरह की मन्नत मांगी, व्रत रखें, जप किया यहां तक दान दक्षिणा भी की लेकिन कोई भी हल नहीं निकाला और इस तरह से 7 साल बीत गए वह दोनों पति-पत्नी अब मां-बाप बनने की उम्मीद एकदम ही छोड़ चुके थे।
तभी एक दिन उन्हें किसी ने बताया था कि उनके गांव के पीछे वाले जंगल में एक पेड़ है, अमावस की रात में उस पेड़ की सात बार परिक्रमा करके और फिर जो भी पहला जानवर मिले उसे खाना खिलाने के बाद जब वो दोनों घर आएंगे तो उसके कुछ दिनों बाद ही उनकी वह मनोकामना पूरी हो जाएगी।
यह बात रघुवेंद्र को ऐसे ही किसी गांव वाले ने बता दी थी क्योंकि उसकी मनोकामना इस तरह से पूरी हुई उसे पहले तो इन सब बातों पर विश्वास नहीं था लेकिन अभी किसी भी तरह से वह बस चाहता था कि उनके घर में एक औलाद हो जाए इसलिए वो अब आंख बंद करके सारी चीजों पर भरोसा करने लगा था और उसे लगता था कहीं ना कहीं तो कोई चमत्कार ऐसा होगा ही जो उसकी और उसकी पत्नी की मनोकामना पूरी करेगा और इस बारे में आकर जब उसने अपनी पत्नी रेवती को बताया तो वो भी बिना कुछ सोचे समझे इस बात के लिए तैयार हो गई और अपने पिता से बताए बिना रात को 11:00 बजे राघवेंद्र रेवती के साथ घर से निकल गया।
उन्होंने साथ में जानवर के लिए कुछ खाना बांधा और जो भी जरूरी सामान उस आदमी ने बताया था, वो सब कुछ लेकर वो दोनों रात को घर से निकले और उस वक्त गांव में इतना ज्यादा सन्नाटा हो चुका था कि झींगुर भेड़ियों और अलग-अलग तरह के जंगली जानवरों के दूर से चिल्लाने के अलावा कोई भी आवाज नहीं आ रही थी।
उन्हें पता था जंगल में भेड़िया है और वो अमावस्या की रात को ही शिकार के लिए निकलते हैं लेकिन फिर भी उन दोनों ने हिम्मत की जंगल के बीचों-बीच मौजूद उस पेड़ की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ ही बढ़ने लगे।
रघुवेंद्र ने अपने हाथों में लालटेन भी पकड़ रखी है क्योंकि पूरा रास्ता बहुत ही अंधेरे से भरा था और उन दोनों को कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था इसलिए घर से वो दोनों लालटेन जलाकर ही लेकर निकले थे इसके अलावा रेवती के हाथ में कुछ सामान से भरा हुआ एक थैला है और एक दूसरे का हाथ थामे वह दोनों पति-पत्नी जंगल में और अंदर की तरफ बढ़ते चले जा रहे हैं और काफी अंदर तक आ जाने के बाद उन्हें वो पेड़ सामने नज़र आया तो दोनों की आंखें खुशी से चमक गई।
कहानी जारी है...
क्या लगता है आप लोगों को दाई मां के पास वो पत्थर कहां से आया और कैसी शक्तियां है उसमें और वह उस शैतानी बच्चे को कितनी देर तक रोक पाएंगी और क्यों मार रहा है वो बच्चा सबको और क्या है उस पेड़ का राज, क्या उससे ही जुड़ा हुआ है उस बच्चे और शैतान का रहस्य? क्या लगता है आप लोगों को अब तक कि कहानी पढ़कर, बताइए कमेंट में
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किसी गांव वाले से उस मनोकामना पूरी करने वाले पेड़ के बारे में जानने के बाद रघुवेंद्र और रेवती अपने पिताजी को बताएं बिना चुपचाप रात के वक्त उसे जंगल के अंदर पेड़ के पास आते हैं।
उस वक्त रात के लगभग 12:00 बजने वाले होंगे और वहां झींगुर और उल्लू की आवाज एकदम साफ सुनाई दे रही है इस के अलावा चमगादड़ भी वहां पेड़ के पास उड़ते हुए नजर आ रहे हैं शायद उस पेड़ पर भी काफी सारे चमगादड़ों का बसेरा है और वह पेड़ देखने में बहुत ही अजीब सा लग रहा है।
उसे पेड़ के पत्ते बाकी सारे पेड़ से एकदम ही अलग और कुछ ज्यादा ही बड़े हैं इसके अलावा उस पेड़ का रंग बहुत ही ज्यादा गहरा हरा लग रहा है जो की रात के अंधेरे में उस वक्त काला ही दिख रहा है।
उसे पेड़ के नज़दीक आते ही उन दोनों को ऐसा महसूस हुआ जैसे की वह लोग किसी बहुत ही अलग सी नेगेटिव एनर्जी के घेरे में आ गए हैं और वह पेड़ उन दोनों को ही एक अदृश्य डोर से अपनी तरफ खींच रहा है और वह दोनों चाह कर भी अपनी जगह पर रुक नहीं पा रहे हैं और ना ही वहां से वापस जा पा रहे हैं।
रघुवेंद्र और रेवती उन दोनों के मन में माता-पिता बनने की इतनी ज्यादा चाहत है कि वह दोनों शायद वापस जाना भी नहीं चाहते, उन दोनों ने उस पेड़ की तरफ बहुत ही उम्मीद भरी नजरों से देखा और फिर रेवती ने रघुवेंद्र से कहा, "कितना डरावना है यह पेड़ मुझे तो कुछ अजीब सा ही महसूस हो रहा है क्या आपको भी.. "
राघवेंद्र ने तुरंत ही अपनी पत्नी की बात का जवाब देते हुए कहा, "नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है यह सब कुछ अंधेरे और रात के सन्नाटे की वजह से ही तुम्हें ऐसा लग रहा है और रात के वक्त तो पूरा जंगल ही डरावना लगता है इसलिए तो कोई रात को जंगल में नहीं आता।"
रघुवेंद्र पता नहीं उसे समझाता हुआ ये बात बोला या फिर अपने आप को... लेकिन बिना उस पेड़ की परिक्रमा किए और बिना बच्चे की मन्नत मांगे तो रघुवेंद्र वहां से कहीं भी जाने के मूड में नहीं लग रहा है।
रेवती भी इसी इरादे से वहां पर आई है इसलिए बिना परिक्रमा की और मन्नत मांगे तो वह भी वहां से नहीं जाने वाली फिर चाहे उसे जितना भी डर लग रहा हो इसलिए उसने रघु की तरफ देखते हुए पूछा, "अब हमें क्या करना है?"
"रात के 12:00 बजने का इंतजार और ठीक उसी वक्त यह लाल धागा हमें पेड़ के चारों तरफ बांधते हुए सात बार घूमना है और उसके बाद एक साथ, एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आंख बंद करके हमें अपने मन में वही मांगना है जिसके लिए हम यहां पर आए हैं, तुम समझ गई ना?" - रघुवेंद्र अपनी पत्नी को समझाते हुए बोला तो उसकी पूरी बात सुनकर उसकी पत्नी ने हां में अपना सिर हिलाया और फिर कुछ देर इंतजार करने के बाद जब उन लोगों को लगा कि 12:00 बज गए होंगे।
तब उन दोनों ने अपना काम शुरू किया और उसे पेड़ के चारों तरफ घूमते हुए वह दोनों उसे पेड़ पर वह धागा बांधने लगे और उसके बाद उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा कि अभी कुछ देर पहले रघु ने उसे बताया था लेकिन वह दोनों अब हाथ जोड़कर खड़े थे और जैसे ही उन दोनों ने अपने मन में बच्चे के बारे में सोचा, उन दोनों को ही अपने शरीर में एकदम ही कुछ अलग सा महसूस हुआ और दोनों ने एकदम अपनी आंखें खोली।
उन्होंने सामने की तरफ देखा तो उसे पेड़ के सारे पत्ते अजीब से लाल रंग की रोशनी में चमक रहे थे जो कि अब तक एकदम काले थे और उस पेड़ की जड़ों और तने से भी एक अलग तरह की रोशनी जैसी निकल रही है, उसे देखकर वो दोनों घबरा गए और एकदम ही वहां से पीछे हटे... पीछे हटते हुए उन दोनों ने ध्यान नहीं दिया और वह किसी से टकरा गए तो एकदम ही दोनों अपनी जगह पर रुक गए उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो सर से पर तक पूरे काले कपड़े पहने हुए एक बूढ़ा आदमी झुका हुआ वहां पर उनके सामने खड़ा था।
"अच्छा तो अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां पर आए हो तुम दोनों, चलो मेरे साथ..." - उसे आदमी ने नज़र उठा कर जैसे ही उन दोनों की तरफ देखा रघु और रेवती दोनों ही बहुत ज्यादा घबरा गए क्योंकि वह आदमी काफी डरावना सा लग रहा था क्योंकि वह बहुत बूढ़ा था, उसके चेहरे पर झुर्रियां थी और चेहरे पर ठीक हो चुके जख्म का एक निशान भी और उसकी आंखें भी अजीब तरह से उस लाल रोशनी में चमक रही थी क्योंकि वह पेड़ के एकदम सामने खड़ा था।
रेवती को अपने पीछे छुपाने की कोशिश करते हुए रघु उस आदमी के सामने आकर बोला, "कौन... कौन हो तुम और तुम्हें कैसे पता कि हम यहां पर क्यों आए हैं?"
रघु ने बहुत ही हिम्मत से यह बात बोली जबकि डर तो उसे भी लग रहा है क्योंकि अभी तक वहां पर कोई भी नहीं था वैसे एकदम अचानक से वह आदमी वहां पर आ गया और फिर उस पेड़ का इस तरह से चमकना, सब कुछ ही बहुत अजीब था उन दोनों के लिए...
रघु के पीछे छुपे हुए रेवती ने भी उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए उसकी कमीज को कसकर अपने हाथ में पकड़ लिया और कंधे के पीछे से झांक कर उसे आदमी को देखने लगी जो कि सच में बहुत डरावना लग रहा है और रेवती उसके चेहरे की तरफ ज्यादा देर नहीं देख पाई और उसने अपनी नज़रें नीचे कर ली।
"यह समझ लो तुम्हारी मनोकामना पूरी करने का ज़रिया हूं मैं इसलिए अगर तुम दोनों सच में औलाद चाहते हो तो मेरे साथ आओ, नहीं तो तुम्हारी मनोकामना कभी पूरी नहीं होगी।" - इतना बोलते हुए उस आदमी ने अपनी दोनों हाथ पीछे की तरफ बढ़े और चुपचाप वहां से एक तरफ आगे बढ़ गया और इतना बोलते हुए वह आदमी जैसे ही वहां से कुछ कदम आगे बढ़ा उस पेड़ से निकलती हुई रोशनी एकदम ही कम हो गई और वो पेड़ फिर से पहले की ही तरह हो गया।
वह आदमी काफी धीमी चाल से चलता हुआ आगे बढ़ा क्योंकि बिना पीछे देख ही वह उन दोनों के अपने पीछे आने का इंतजार कर रहा है।
"कौन हो सकता है ये आदमी, क्या हमें इस पर भरोसा करना चाहिए?" - रेवती ने रघु से पूछा तो रघु ने बहुत ही ज्यादा उलझन से उसकी तरफ देखा क्योंकि उसे भी खुद कुछ समझ नहीं आ रहा है।
"तुम दोनों को साथ आना है या फिर मैं जाऊं?" - उस आदमी ने पीछे मुड़कर देखे बिना ही अपनी जगह पर रुक कर कहा तो दोनों पति-पत्नी फिर से एक दूसरे की तरफ ही देखने लगे।
"मुझे लगता है हमें एक बार चल कर देखना चाहिए और मुझे सच में ऐसा लग रहा है कि यही आदम जरिया बनेगा हमारी मनोकामना पूरी होने का..." - रघुवेंद्र ने रेवती को समझाते हुए कहा तो उसकी बात पर रेवती ने भी हां में अपना सिर हिला दिया।
उस बूढ़े कुबड़े आदमी ने पीछे मुड़ कर उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा, "इतना क्या सोच रहे हो तुम खुद ही यहां पर आए हो और इस पेड़ के जरिए तुमने मेरा ही आह्वान किया है इसीलिए मैं तुम्हारे सामने प्रकट हुआ हूं, अगर तुम्हें औलाद चाहिए तो इतना मत सोचो।"
उस आदमी की बात रघु और रेवती दोनों ने बहुत ध्यान से सुनी और दोनों ने एक दूसरे का मुंह देख फिर ना चाहते हुए वह दोनों उसे आदमी के पीछे पीछे ही चले गए।
फ्लैशबैक खत्म...
कहानी जारी रहेगी...
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रघुवेंद्र ठाकुर अपने गले में फांसी का फंदा डालकर वहां पर खड़ा यह सब कुछ सोच रहा है और यह पूरी बात सोचते ही उसे जैसे एकदम से पूरे शरीर पर एक झटका सा महसूस हुआ और उसे पूरी बात याद आई और साथ में पछतावा भी होने लगा तो बिना कुछ सोचे समझे उसने वह फंदा अपने गले में डाल लिया और फांसी पर झूल गया।
"ठाकुर साहब... छोटे ठाकुर को अपने साथ लीजिए और यहां से निकलिए मैं ज्यादा देर इसे नहीं रोक पाऊंगी।" - दाई मां ने बहुत ही दर्द भरी आवाज में चिल्ला कर कहा और उनकी बात सुनकर ठाकुर अपने बेटे के कमरे की तरफ आया और ज़ोर ज़ोर से उस कमरे के दरवाजे को दोनों हाथ से पीटने लगा लेकिन अंदर से कोई भी आवाज नहीं आई और ना ही उसकी बात का कोई जवाब तो वह बहुत ही ज्यादा घबरा गया।
"रघु दरवाजा खोल हमें अभी यहां से जाना होगा, तू क्या कर रहा है अंदर रघु..." - रघु के पिता नरेंद्र ठाकुर ने उसके कमरे का दरवाजा बहुत ही बुरी तरह से ठोकते हुए कहा और तभी वह दरवाजा एकदम से अंदर की तरफ खुला और उसका दरवाजा शायद अलग हो गया था क्योंकि एक तेज आवाज के साथ वो दरवाजा जमीन पर गिर पड़ा और उस कमरे का दरवाजा खुलते ही उस पूरे कमरे में भरा हुआ एक अजीब सा काला धुआं एकदम ही उन्हें महसूस हुआ और जैसे ही उन्होंने नज़र उठाकर सामने देखा तो वहां पर छत से लटकती हुई एक लाश सामने नजर आए जो कि किसी और कि नहीं बल्कि उनके अपने बेटे की थी ।
सामने अपने बेटे को इस तरह से फांसी पर लटकता देख नरेंद्र ठाकुर जोर से चिल्लाया, "रघु... नहीं नहीं बेटा, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता, तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकते...कैसे तुम मुझे छोड़कर...
उसके इस तरह से चिल्लाने पर दाई मां का ध्यान उस तरफ हुआ और नरेंद्र ठाकुर भागते हुए अंदर आया और उसने हवा में झूल रहे अपने बेटे की लाश के पैरों को नीचे से ही कसकर पकड़ लिया और उसे अपने कंधे पर रखते हुए, उस फंदे से उसका गला निकलने की कोशिश करने लगा।
"यह तो बस शुरुआत है ठाकुर, देखता जा अब तो तुम सब भी मरोगे, हा हा छोड़ दे मुझे नहीं तो तू भी मरेगी बुढ़िया!" - उस गोले के अंदर मौजूद उसे बच्चों ने कहा और उसकी आवाज सुनकर दाई मां को ध्यान आया और उनके पत्थर से निकलती हुई रोशनी अब एकदम कम हो गई थी और वह गोला भी धीरे-धीरे छोटा हो रहा था और उसकी रोशनी भी एकदम हल्की हो रही थी।
जिसकी वजह से उसके अंदर फंसा हुआ वह शैतानी बच्चा अब बहुत ही शैतानियत से मुस्कुरा रहा है।
उस शैतान की यह आवाज सुनकर मंजरी काकी दाई मां बहुत ही ज्यादा घबरा गई लेकिन उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करें क्योंकि उसे पता है उस शैतान को रोकने में उसने अपनी पूरी शक्तियां खर्च कर दी लेकिन फिर भी वह उसे ज्यादा देर नहीं रोक पाई और इस बार वह अगर उस रोशनी के घेरे से बाहर आ गया तो फिर वो उसे रोक नहीं पाएगी इसलिए उसने चिल्ला कर कहा, "ठाकुर साहब! चलिए मेरे साथ... हमें यहां पर नहीं रुकना चाहिए वो आप सबको मार देगा।"
ठाकुर नरेंद्र अपने बेटे की लाश के पैर पकड़कर वहां कमरे के बीचो-बीच खड़ा है और उसी से अपना सिर टिकाकर रो रहा है और अब तक उसे समझ आ गया है कि उसके बेटे का शरीर एकदम ही बेजान हो गया है और उसे किसी शैतान ने नहीं मारा बल्कि उसने खुद ही अपनी जान ले ली लेकिन क्यों, ये कहीं ना कहीं मोटे तौर पर तो नरेंद्र ठाकुर को समझ आ रहा है लेकिन पूरी बात असल में क्या है ये भी उसे जानना है।
ठाकुर नरेंद्र का वहां से जाने का मन नहीं है तभी दाई मां उसकी तरफ आई और उन्होंने उसे बूढ़े ठाकुर को अपने साथ आने का इशारा किया और तब तक उसे गोले की रोशनी एकदम ही हल्की पड़ चुकी है और उस बच्चों की शैतानी ताकत को फिर से हवा मिल रही है और उसने आजाद होते ही पहला हमला उन दोनों की तरफ किया लेकिन तब तक वह दोनों घर से बाहर निकल गए और बाहर निकलते ही उन्हें उनके कानों में तेज़ चिल्लाने की आवाज पड़ी, "हां... हां मार दो, मार दो उन सब लोगों को उनके मरने पर ही शैतान खत्म होगा।
वह आवाज सुनकर दाई मां और बच्चे के दादाजी वहां पर ही रुक गए उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वो सारे लोग हाथों में मशाल और लालटेन लिए हुए दौड़कर उनके घर की तरफ ही क्यों जा रहे हैं जबकि वहां पर उस शैतानी बच्चे से उन सभी की जान को खतरा हो सकता है।
दाई मां ने उनसे इस बारे में पूछा तो उस तरफ बढ़ते हुए सारे लोगों ने उन्हें बताया कि वह लोग ठाकुर के घर में आग लगाने के लिए जा रहे हैं जिससे कि वो शैतान वहीं पर जलकर मर जाए और आगे उन लोगों को इस तरह की किसी भी मुसीबत का कोई सामना न करना पड़े।
"हां.. हां लगा दो... आग लगा दो।" - सारे गांव वाले एक स्वर में बोले और फिर वो सब ठाकुर के घर की तरफ आगे बढ़ें और वहां पर उन सब ने अपनी मशाले घर के चारों तरफ फेंक दी जिससे कि कुछ ही देर में देखते-देखते उसे घर की चारों दीवार पर आग लग गई और आग लगते ही उन्हें वह सब कुछ जलता हुआ नज़र आया और इसके अलावा कोई भी उन्हें घर से बाहर निकलता हुआ दिखाई नहीं दिया तो उन सबको यही लगा कि वह शैतानी बच्चा उसे आग में जलकर मर गया है।
तभी एक ठंडी तेज हवा का झोंका ठाकुर के शरीर को छूता हुआ वहां से आगे गया और ठाकुर को अपने पूरे बदन में एक अजीब सी हलचल महसूस हुई और उसे ऐसा लगा जैसे की कोई उसके शरीर को छूकर वहां से आगे निकल गया और यह ऊर्जा ठीक उसी तरह की थी जैसे कि ठाकुर को उस बच्चों के आसपास से निकलती हुई महसूस हुई थी।
ठाकुर अपने सामने अपने घर में लगती हुई आग को देख रहा है लेकिन कुछ भी कर नहीं पा रहा क्योंकि कुछ भी करने के लिए अब तक बहुत देर हो चुकी है।
"नहीं... नहीं... नहीं... नहीं वो श्राप लौट कर नहीं आ सकता यह कैसे हो सकता है जबकि रघु तो..." - इतना बोलते हुए नरेंद्र ने ठाकुर ने सामने की तरफ देखा और उस की आंखों में अपने घर को इस तरह से जलते देखकर आग की लपटे उसकी आंखों में नज़र आई लेकिन वह एकदम खोया हुआ था इस बारे में सोचता वहां पर खड़ा है क्योंकि उसे समझ आ गया है अब कुछ गलत और बहुत ही गलत होने वाला है जिसे शायद वो भी रोक नहीं पाएगा।
कहानी जारी है...
कौन हो सकता है पेड़ के पास मिला वो आदमी और उन दोनों ने अपनी बच्चों की मनोकामना को पूरी करने के लिए क्या किया होगा?
किस तक हद तक गए होंगे रघुवेंद्र और रेवती और अब नरेंद्र ठाकुर कौन से श्राप के बारे में बात कर रहा है? जानने के लिए आगे पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी और कहानी के सारे पार्ट पर कमेंट रिव्यू ज़रूर करिए और स्टोरी को शेयर भी करिए।
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सत्रह साल बाद;
"बचाओ.... बचाओ मेरा हाथ पकड़ो कोई... मदद करो मैं यहां से गिर जाऊंगी!" - पहाड़ी के एकदम किनारे पर बहते हुए झरने के ऊपर किनारे लटकी हुई एक लड़की तेज आवाज में चिल्ला रही है और उसके आसपास थोड़े ऊपर वाले पत्थर पर तीन चार लड़कियां खड़ी हुई उस की तरफ झांक रही है और वह सब उसके लिए परेशान है और किसी तरह आगे बढ़ते हुए उसका हाथ पकड़ने की कोशिश कर रही है लेकिन वह फिसल कर नीचे गिर चुकी है जिसकी वजह से कोई भी और लड़की उसे तक नहीं पहुंच पा रही और उन सब को भी गिरने का डर है।
एक लड़की बहुत ही ज्यादा परेशान होती हुई बोली, "क्या करेंगे अब हम कैसे बचाएं सुचित्रा को..."
दूसरी लड़की ने मुंह बनाते हुए कहा, "मैंने तो पहले ही मना किया था इतना किनारे आने की क्या जरूरत थी।"
तीसरी लड़की उसे डांटते हुए बोली, "चुप करो जया! अभी वक्त इन सारी बातों का नहीं है, पहले हमें उसे बचाना होगा देखो वहां पर कोई रस्सी या पेड़ की टहनी हो तो लेकर आओ।"
उन सारी लड़कियों ने एक ही तरह के कपड़े जो कि वहां की पारंपरिक साड़ी पूरे शरीर पर चिपकी हुई सी बंधी होती है उसे तरह के ही कपड़े पहने हुए हैं और शायद वह सब वहां झरने में नहाने का पानी भरने के लिए आई थी क्योंकि कुछ पीतल और मिट्टी की मटकिया भी वहां पर आसपास ही रखी हुई है।
"बचाओ... बचाओ मेरा हाथ फिसल रहा है, मैं गिर जाऊंगी शोभा.. जया.. कोई तो बचाओ..." - फिर से उस लड़की के चिल्लाने की आवाज उसे पूरी जगह पर गूंजी।
दूसरी तरफ,
जंगल के बीचो-बीच से चार पांच लड़के और लड़कियों का एक गुट वहां से निकल रहा था उन सभी ने लगभग एक जैसे कपड़े पहने हुए थे उनके पूरे मटमैले और खाकी रंग के थे जो की दिखने में मोटे टाट के बोरे जैसे लग रहे थे और उन सभी के चेहरे पर धूल मिट्टी लगी हुई थी और उनके बाल भी उजड़े हुए थे।
वह आवाज उन सभी को सुनाई दी तो वह अपनी जगह पर रुक गए और एक दूसरे की तरफ देखते हुए उन में से एक ने कहा, "यह आवाज सुनी तुमने कोई संकट में है और हमें बचाना चाहिए उसे..."
"लगता है हमने आवाज सुनने में देर कर दी क्योंकि कोई तो मदद के लिए चला भी गया शायद देखो उधर..." - इतना बोलते हुए एक लड़के ने अपने सामने की तरफ इशारा किया तो उसके साथ खड़े बाकी चार लोगों ने भी नजर घुमा कर उसे तरफ देखा तो बिजली की तेजी से दौड़ता हुआ एक लड़का वहां उन सब के सामने से निकल कर दौड़ कर जाता हुआ दिखा जो कि कुछ ही पल में उनकी आंखों से ओझल हो गया और उसके जाने के बाद पीछे से जंगल की सूखी मिट्टी और वहां पड़े हुए सारे सूखे पत्ते जैसे हवा में उड़ रहे थे।
अभी के आसपास की धूल मिट्टी भी उड़ने लगी जिसकी वजह से उनमें से एक दो को खांसी आने लगी और वो लोग अपने चेहरे पर हाथ रख कर खड़े हो गए।
"हां हां यह लड़का कभी नहीं सुधरेगा!" - उन में से एक ने बेबसी से अपना सिर हिलाते हुए कहा
झरने के ऊपर;
"लाओ हाथ दो मुझे अपना, मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा।" - इतना बोलते हुए वह लड़का उसे झरने के एकदम किनारे पर आकर खड़ा हो गया वह 20-22 साल का एकदम नौजवान लड़का था उसके काले लंबे बाल जो कि उसकी गर्दन तक आ रहे थे और उसकी हल्की सुरमई रंग की आंखें जिनमें किनारे पर कालापन साफ नजर आ रहा था वो एकदम ही अलग लग रही थी उसकी लंबी तीखी नाक और उस का एकदम तराशा हुआ चेहरा, उसे बहुत ही अलग तेज प्रदान कर रहा था।
उसे वहां पर देखकर वह सारी लड़कियां जो अब तक वहां पर खड़ी थी वह सब अपनी जगह से पीछे हट गए और वह लड़का एकदम ही किनारे पर आया और एकदम अपना शरीर पूरा आगे करते हुए वह पूरा झरने की तरफ ही झुक गया और उस लड़की के हाथ तक उस का हाथ पहुंच गया, उस लड़की ने हिम्मत करके अपना एक हाथ उस पत्थर से हटाया और हाथ ऊपर बढ़ाकर उस लड़के के हाथ को पकड़ा लेकिन तभी एकदम ही उसका दूसरा हाथ भी फिसल गया और वह नीचे गिरने ही वाली थी तभी उसे लड़के ने पूरा नीचे लटक कर उस लड़की का एक हाथ कसकर पकड़ लिया।
वह लड़की बहुत ही तेज आवाज में चिल्लाया और उसने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली है वह एकदम हवा में झूल रही है उस पहाड़ी के किनारे और झरने के पानी के बीच...
उसके इस तरह से चिल्लाने पर लड़के ने उसे लगभग डांटते हुए कहा, "चुप करो! मैं तुम्हें बचा रहा हूं और तुम हो कि मेरे कान ही फाड़ रही हो।"
उस लड़की ने इतनी तेज चिल्लाया की अपने चिल्लाने के आगे वह उस लड़के के डांटने की आवाज़ भी सुन नहीं पाई और तभी उसे लड़के ने भी तेज़ आवाज में चिल्लाकर कहा, "आह्! चुप करो नहीं तो मैं अभी तुम्हारा हाथ छोड़ दूंगा और तुम सच में गिर जाओगी।"
यह बात सुनते ही वो लड़की एकदम ही चुप हो गई और फिर उसे लड़के ने उसे तुरंत ही एक झटके में ऊपर खींच लिया इस तरह से जैसे कि उस लड़की का कोई वजन हीं ना हो जबकि वह भी उसी की हम उम्र लड़की थी और दिखने में भी ठीक-ठाक ही थी कोई वह बहुत ज्यादा दुबली पतली भी नहीं थी।
उस लड़के ने उसे एक हाथ से ही पकड़ कर बड़ी ही आसानी से खींच कर वापस ऊपर कर लिया और फिर उसे किनारे से थोड़ा साइड में लेकर आया वह सारी लड़कियां हैरानी से उसे लड़के को ही देख रही थी क्योंकि वह दिखने में भी बहुत सुंदर नौजवान युवक लग रहा था लेकिन उस लड़के ने उन सारी लड़कियों में से किसी की भी तरफ एक नजर नहीं देखा और उस लड़की को बचाकर वहां लाने के बाद वह वहां पर रुका भी नहीं और तुरंत ही वहां से चला गया।
उसके जाने के बाद वह सारी लड़कियां टकटकी लगाकर उस तरफ ही देखती रही जिस तरफ वह लड़का एकदम से ही चला गया था।
कहानी जारी रहेगी...
9
उस लड़के ने उसे एक हाथ से ही पकड़ कर बड़ी ही आसानी से खींच कर वापस ऊपर कर लिया और फिर उसे किनारे से थोड़ा साइड में लेकर आया वह सारी लड़कियां हैरानी से उसे लड़के को ही देख रही थी क्योंकि वह दिखने में भी बहुत सुंदर नौजवान युवक लग रहा था लेकिन उस लड़के ने उन सारी लड़कियों में से किसी की भी तरफ एक नजर नहीं देखा और उस लड़की को बचाकर वहां लाने के बाद वह वहां पर रुका भी नहीं और तुरंत ही वहां से चला गया।
उसके जाने के बाद वह सारी लड़कियां टकटकी लगाकर उस तरफ ही देखती रही जिस तरफ वह लड़का एकदम से ही चला गया था।
"कौन था यह सुंदर नवयुवक?"
"पता नहीं लेकिन हमारे गांव का तो नहीं लगता..."
"हां आज पहली बार ही देखा है हम लोगों ने इसे, पता नहीं कौन है कहां से आया और कहां चला गया?"
"मैं तो बस इसे एक फरिश्ता ही समझूंगी जो मेरी जान बचाने के लिए आया अगर वह नहीं आया होता तो शायद मैं अभी जिंदा भी नहीं होती।"
उन सारी लड़कियों ने आपस में बात करते हुए कहा और फिर वह सब अपनी अपनी मटकी में पानी भर के वहां से अपने गांव की तरफ ही चली गई।
*******
उसी घने जंगल के बीचों-बीच बना हुआ एक आश्रम और वहां पर लगभग हम उम्र नजर आ रहे दो लोग उस आश्रम के सामने के उस बड़े से खाली मैदान के किनारे पर टहल रहे हैं और आपस में कुछ बात कर रहे हैं उन दोनों की ही उम्र 70 बरस से ज्यादा की लग रही है लेकिन उनमें से एक का पहनावा एकदम साधारण गांव का है उन्होंने धोती और कुर्ता पहन रखा है और उनके चेहरे पर सफेद हो चुकी मूंछे और सफेद बाल है, वह कोई और नहीं वही ठाकुर नरेंद्र प्रताप है जिनके घर में आज से 17 साल पहले उस शैतानी बच्चे का जन्म हुआ था और उसी दिन उनका पूरा घर परिवार एक झटके में खत्म हो गया यहां तक कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने अपना घर भी जलते हुए देखा।
वहीं उनके साथ चल रहा है दूसरे आदमी ने नारंगी रंग के वस्त्र की सिर्फ धोती पहनी हुई है और उसी रंग का कपड़ा अपने गले में डाल रखा है और उनके गले में एक रुद्राक्ष की माला है और उसके बीच एक काले धागे में बना हुआ एक ताबीज जैसा है, उनके लंबे बाल हैं सिर पर ऋषियों वाला जूड़ा और लंबी-लंबी दाढ़ी मूंछें है और वह सारी दाढ़ी मूंछें और बाल एकदम सफेद हो चुके हैं लेकिन उनके मुख पर एक अलग ही तेज नजर आ रहा है।
वह अपने साथ चल रहे हैं उसे बूढ़े आदमी की तरह बिल्कुल भी परेशान नहीं लग रहे हैं उनके मुख पर एकदम शांत भाव है वही नरेंद्र ठाकुर उसे शापित बच्चे का दादाजी एकदम बहुत ही ज्यादा परेशान लग रहा है।
"मणिकनाथ कुछ तो करो... वह अब हमारे पास वाले गांव रत्नागिरी में पहुंच गया है यहां वापस आने में उसे समय नहीं लगेगा और मैं चाहता हूं उससे पहले ही तुम उसका सामना करने के लिए तैयार रहो!" - नरेंद्र ठाकुर ने बहुत ही ज्यादा परेशान होते हुए कहा
"पिछले 17 सालों में हर हफ्ते ही तुम आकर मुझे इस तरह से चेतावनी देते हो और मैं तुम्हारी पूरी बात सुनता भी हूं लेकिन अब तक उस शैतान ने हमारे गांव में कदम रखने की हिम्मत नहीं की है और दूसरे गांव भी मैं अपने योद्धा भेजता रहता हूं और कई बार वह उनसे मात भी खा चुका है लेकिन फिर भी तुम मुझ पर शंका करते रहते हो और अशांत रहते हो।" - उसे साधु जैसे दिखने वाले महात्मा मणिक नाथ ने अपने साथ चल रहे नरेंद्र ठाकुर की तरफ देखकर कहा
नरेंद्र ठाकुर ने फिर से इस तरह से परेशान होते हुए कहा, "तुम नहीं जानते उसे शैतान का धरती पर जन्म लेने का मकसद, वह अपना काला साम्राज्य बसाना चाहता है और बसा भी रहा है इसीलिए वह गांव पर हमला करता है और उसमें जो भी बचता है उन सबको अपनी काली शक्तियों का गुलाम बना लेता है इस तरह उन लोगों की संख्या बढ़ रही है अगर हमने जल्दी कुछ नहीं किया तो..."
महात्मा मणिकनाथ ने नरेंद्र ठाकुर की तरफ देखकर एकदम गंभीर होते हुए कहा, "तो क्या... क्या होगा और तुम तो उसे मारने की तरकीब भी नहीं सोचने देते और इस तरह से परेशान भी होते हो आखिर क्यों बचा रहे हो तुम उस शैतान को नरेंद्र, उसका मोह छोड़ क्यों नहीं देते तभी हम उसे पूरी तरह से खत्म कर पाएंगे।"
नरेंद्र ठाकुर ने अपनी आंख बंद करके एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, "क्योंकि नहीं छोड़ सकता मैं... चाहे जैसा भी हो वो मेरा पोता है और तुम पूरी बात जानते हो फिर भी ऐसे प्रश्न क्यों कर रहे हो और वैसे भी हमें उसे नहीं उस पर लगे उस श्राप को खत्म करना है नहीं तो यह कभी खत्म नहीं होगा अगर हम शैतान के इंसानी रूप को खत्म करते हैं तो वह फिर से जन्म लेगा और इस बार मैं वह गलती दोहराने नहीं चाहता जो हम एक बार पहले भी कर चुके हैं।"
नरेंद्र ठाकुर की यह बात सुनकर वह महात्मा भी किसी सच में पड़ते हुए एकदम से चुप हो गए और अब उनके चेहरे पर थोड़े से मायूसी के भाव नजर आने लगे और थोड़ी दूर आगे चलकर वह दोनों ही एक ऊंचे से पत्थर पर बैठ गए जो कि उन दोनों के बैठने के लिए पर्याप्त बड़ा था।
असल में नरेंद्र ठाकुर और महात्मा मणिकनाथ दोनों ही अपनी युवावस्था से बहुत ही अच्छे मित्र रहे हैं उन दोनों ने सारी शिक्षा दीक्षा साथ में प्राप्त की और एक साथ मिलकर ही वह सारे काम करते थे और महात्मा मणिकनाथ का अब अपना ये आश्रम है जहां पर वह काली शक्तियों के खिलाफ लड़ने के लिए एक काबिल और बहादुर लड़के लड़कियों का एक समूह तैयार कर रहे हैं जो खुद ही इन शक्तियों के खिलाफ लड़ना चाहते हैं।
पिछले 17 सालों से नरेंद्र ठाकुर भी लगातार वहां आता जाता रहता है और महात्मा मणिकनाथ को पहले ही उनके घर पर उस शैतान के जन्म के बारे में पता चल गया था क्योंकि उनके पास बहुत सी दिव्य शक्तियां हैं जो उन्होंने कठिन तपस्या करके हासिल की है और कुछ उन्हें उनके गुरु से भी आशीर्वाद में मिली है।
उनके गुरु का भी एक यही मकसद था दुनिया से शैतान और काली शक्तियों का नाम और निशान मिटाना और उन्होंने अपने दोनों प्रिय शिष्य को अपनी सारी तंत्र मंत्र और दिव्य शक्तियों को प्राप्त करने की विधि सिखाई थी और अब वह दोनों ही अच्छी तरह से उसका उपयोग करना जानते हैं लेकिन जिसको भी एक बार हराकर वह लोग बंदी बना चुके हो, और फिर अगर वह काली शक्ति या शैतान आजाद हो जाए तो उस पर दोबारा से उनकी शक्तियां असर नहीं करती, यह भी उनके गुरु का ही श्राप है उन दोनों पर जो की उनकी ही ना समझी की वजह से उन दोनों को मिला और इसीलिए अब वह अपनी शक्तियों को खुद तक सीमित नहीं रखना चाहते और पिछले 50 सालों में उन्होंने इस तरह के कई सारे देवी शक्ति वाले लोगों के गुट तैयार किए हैं जो की बुराई शैतान और काली शक्तियों के खिलाफ लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
कहानी जारी है....
कौन से श्राप और किन गलतियों की बात कर रहे हैं महात्मा और ठाकुर नरेंद्र प्रताप सिंह और क्या वह दोनों मिलकर उसे शैतान को रोक पाएंगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए...
10
महात्मा का आश्रम;
"प्रणाम गुरुजी!" - वहां पर आते हुए एक लगभग 20-22 साल के लड़के ने झुककर उन्हें प्रणाम करते हुए बोला
"प्रणाम गुरुजी प्रणाम काका..." - महात्मा मणिकनाथ और नरेंद्र ठाकुर दोनों बैठे हुए एक दूसरे से बात कर ही रहे हैं तभी उन्हें 5-6 लोगों का दल वहां पर आया यह सारे वही लोग हैं जो कि जंगल में एक साथ जा रहे थे जब उनमें से एक ने उसे लड़की को बचाया और वह सब आगे आते हुए उनके उन दोनों के पैर छूते हुए उन्हें प्रणाम करने लगे।
"जीते रहो मेरे बच्चों और हमेशा ही काली शक्तियों को हराते रहो।" - महात्मा ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा और फिर अपने दोस्त की तरफ मुड़कर देखते हुए बोला, "यह मेरे आश्रम के अब तक के सबसे काबिल रक्षक है और इनका दल सबसे मजबूत है इन्हें कोई भी काली शक्ति हरा नहीं सकती इन्हें मैंने वह सब प्रशिक्षण दिया है जितना भी मुझे आता था और यह भी सब कुछ सीखने में माहिर हैं और यही बनेंगे हमारा सबसे बड़ा हथियार उन काली शक्तियों के खिलाफ..."
"हां बिल्कुल वह शैतान कभी भी बच नहीं पाएगा, बस एक बार हमारे सामने आ जाएगी छोटे-मोटे भूत प्रेत पिशाचो और आत्माओं से लड़कर अब हम भी ऊब चुके हैं, है ना सक्षम!" - उन सबके बीच खड़े इस सजीले नौजवान ने कहा जिसने अभी कुछ देर पहले उस लड़की की जान बचाई थी जो की झरने से गिरने वाली थी।
"हां तुझे तो सारी चीजों में बड़ा मजा आता है और यह जो हमारे लिए इतना मुश्किल काम है तो उनसे ऊब चुका है देखिए गुरुजी ये वीरेश हमेशा इसी तरह से अपनी बढ़ाई करता है।" - उसके साथ खड़े उसे दूसरे लड़के ने महात्मा की तरफ देखकर उसे लड़की की शिकायत करते हुए कहा तो वहां पर खड़े बाकी सारे लोग हंसने मुस्कुराने लगे।
"बहुत ही बड़ी चुनौती बहुत ही जल्द तुम सभी के सामने आने वाली है और जब उसे काली शक्ति से तुम्हारा सामना होगा ना तब ही तुम सबकी काबिलियत को भी परखा जाएगा, तब पता चल जाएगा कौन किस काबिल है।" - महात्मा ने बहुत ही शांति से यह बात बोली और उनकी यह बात सुनकर बाकी सारे लोगों ने एक दूसरे का मुंह देखा और आगे कुछ नहीं बोले सिर्फ अपने गुरु जी को प्रणाम करके वह लोग वहां से चले गए।
दूसरी तरफ,
इसी जंगल को पार करके किनारे जो नदी है उसके दूसरी तरफ बना वह बड़ा सा खूबसूरत और भव्य राजमहल जहां पर राजा महेंद्र प्रताप अपने राज परिवार और राज कर्मचारियों के साथ रहता है।
राजा महेंद्र प्रताप का उसे पूरे राज्य नीलांचलपुरी में बहुत ही बड़ा नाम है और वह उस गांव के साथ-साथ आसपास के भी सभी गांवों और रियासतों का राजा है क्योंकि उसने वह सारे गांव युद्ध करके जीत लिए हैं और वहां के राजाओं को अपना अधीन बना लिया है वह राजा महेंद्र प्रताप बहुत ही प्रतापी राजा है लेकिन अभी उसकी उम्र हो गई है तो वह शांत रहता है लेकिन कुछ तो है ऐसा जिसे लेकर उसका मन बहुत अशांत रहता है।
उसी राजमहल का बगीचा, जो की बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है वहां पर रंग-बिरंगे हर तरह के फूल लगे हुए हैं और काफी सारे पेड़ भी है क्योंकि अभी बसंत का मौसम चल रहा है तो सारे ही पेड़ पौधे एकदम हरियाली भी खेल रहे हैं और दोपहर का वक्त है तो बगीचे में फूल पौधों के साथ-साथ तितलियां, चिड़िया पक्षी उड़ रहे हैं और खरगोश गिलहरी भी वहां आसपास उछलते कूदते टहलते भागते नजर आ रहे हैं।
तभी एक पीले रंग की तितली का पीछा करते हुए हल्के आसमानी रंग के एकदम राजसी कपड़ों में दौड़ती हुई एक लगभग 16-17 साल की लड़की उसके पीछे ही जा रही है उसके काले घने लंबे बाल जो कि कुछ ज्यादा ही लंबे हैं और उसके घुटनों तक आ रहे हैं, इसके अलावा उस लड़की ने अपने कंधों पर सोने के बाजूबंद पहने हुए हैं हाथ में सोने का जालीदार बहुत ही खूबसूरत कड़ा है और कानों में झुमके सिर पर माथा पट्टी और पैरों में खूबसूरत सी पायल है।
जब वह दौड़ते हुए बगीचे में वहां आगे की तरफ भाग रही है तो उसकी पायल की छनक एकदम साफ सुनाई दे रही है और उसके गले में भी एक सोने का हार है जिसके बीच में एक हरा पत्थर लगा हुआ है जो कि उसके सोने के जेवरों से नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी उसके गले में है।
उस तितली का पीछा करते हुए वह खूबसूरत लड़की जिसकी आंखें कत्थई से रंग की है और बड़ी बड़ी सी आंखों में उस तितली का अक्स साफ नजर आ रहा है क्योंकि उस तितली पर ही उसकी नजर जमी हुई है जो कि उसके चेहरे के सामने उसके आगे आगे उड़ रही है।
"राजकुमारी रुकिए... रुक जाइए आपको उस तरफ जाने के लिए मना है, आप वहां पर नहीं जा सकती बगीचे के बाहर..." - पीछे से एक सेविका के तेज चिल्लाने की आवाज आई लेकिन दुर्भाग्यवश वह आवाज राजकुमारी तक नहीं पहुंच पाई और राजकुमारी अब तक बगीचे के एकदम किनारे पर पहुंच चुकी है और बस उसका अगला कदम, और वो बगीचे से बाहर निकल जाती,लेकिन उससे पहले ही सामने से नजर आ रही वो तितली एकदम काली पड़ जाती है और बेजान होकर वहां जमीन पर गिर पड़ती है, यह देखकर राजकुमारी सदमे से एकदम ही अपनी जगह पर जम जाती है और पहले तो उसे समझ नहीं आया कि क्या हुआ?
लेकिन फिर उसने नजर घुमा कर अपने चारों तरफ देखा तो वहां आसपास के पत्ते पेड़ पौधे वह सब भी एकदम काले पड़े हुए और मुरझाए थे ऐसा लग रहा था जैसे कि किसी ने उस जगह पर या उन सारे पेड़ पौधों में आग लगा दी हो, जिसकी वजह से वह आग की गर्मी में झुलस गए और वह देखते हुए राजकुमारी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो अपने चारों तरफ देखते हुए किसी को जैसे ढूंढने लगे और फिर तेज़ आवाज़ में चिल्लाई
"कोई है यहां पर, सामने आओ... मुझे हमेशा से ही पता चल जाता है कोई तो है यहां पर लेकिन तुम सामने क्यों नहीं आते और यह क्या हाल किया है तुमने मेरे बगीचे का और उस तितली को भी बेवजह ही मार दिया।" - राजकुमारी ने मुंह बनाकर शिकायत करते हुए कहा लेकिन उसे बदले में कोई भी जवाब नहीं मिला।
कहानी जारी रहेगी...
क्या लगता है आप लोगों को वहां महल के अंदर भी किस बात का डर है राजकुमारी को और वो किसे आवाज लग रही है वह और क्या कोई जवाब मिलेगा उसे? पता चलेगा अगले एपिसोड में...
11
"कोई है यहां पर, सामने आओ... मुझे हमेशा से ही पता चल जाता है कोई तो है यहां पर लेकिन तुम सामने क्यों नहीं आते और यह क्या हाल किया है तुमने मेरे बगीचे का और उस तितली को भी बेवजह ही मार दिया।" - राजकुमारी ने मुंह बनाकर शिकायत करते हुए कहा लेकिन उसे बदले में कोई भी जवाब नहीं मिला।
लेकिन वहां उसके सिर के ऊपर का आसमान भी एकदम काला हो गया और ऐसा लग रहा था जैसे की मौसम एकदम ही बदल गया लेकिन सिर्फ बगीचे के बाहर का बाकी महल के अंदर जो बगीचा था वह अभी भी पहले की तरह ही खूबसूरत लग रहा था और वहां पर आसमान एकदम साफ था और सूरज चमक रहा था।
राजकुमारी को अपने आसपास वो काले साए नजर आए , जो कि उसे बचपन से लेकर हमेशा तक नजर आते थे और पीछे हटते हुए उसका हाथ इस काले पेड़ पर छू गया तो उसके हाथ में एक बहुत तेज जलन हुई।
"आह्! मेरा हाथ..." - इतना बोलते हुए वह अपनी जगह से पीछे हुई और तभी उसका दूसरा हाथ पकड़ कर किसी ने उसे वापस बगीचे में खींचा।
वह भी लगभग उसी की हम उम्र एक लड़की थी लेकिन उसने एकदम साधारण से कपड़े पहने हुए थे उसकी आंखें हल्की पीली जैसी चमक लिए हुए भूरी थी और उसका चेहरा एकदम चांद की तरह गोल था छोटी सी प्यारी नाक और हल्की मुस्कुराहट लिए गुलाबी होंठ , उस लड़की के भी काले लंबे बाल थे लेकिन राजकुमारी के जितने लंबे नहीं और उसके चेहरे पर सादगी और एकदम शांत भाव थे।
"राजकुमारी! आप क्यों आई इस तरफ?? मैं आपको कब से आवाज दे रही थी और सेविका ने भी आपको बुलाया।" - उस लड़की ने जैसे राजकुमारी को डांटते हुए कहा।
"चंद्रिका, वो तितली इतनी प्यारी थी और मुझे पता ही नहीं चल मैं उसके पीछे कभी यहां तक आ गई लेकिन यहां पर आते ही... वो तितली, देखो।" - इतना बोलते हुए राजकुमारी उंगली से उस तरफ इशारा करते हुए पीछे मुड़ी लेकिन तभी हल्का सा लड़खड़ा गई शायद वहां की जमीन ऊंची नीची थी इसलिए उसका हाथ दोबारा से एक पेड़ पर जा लगा और तभी उसके सामने खड़ी लड़की ने उसका हाथ पकड़ा और उन दोनों का हाथ एक साथ ही पेड़ पर छू गया।
एक तेज जलन के एहसास में राजकुमारी के मुंह से दर्दभरी चीख निकाली और उसके हाथ का वो हिस्सा एकदम लाल हो गया।
तभी उस लड़की ने राजकुमारी का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ खींचते हुए वहां से दूर वापस बगीचे के अंदर ले आई और फिर वह दोनों एक साथ बगीचे को पार करके महल की तरफ ही जाने लगी।
उन दोनों के वहां से आगे जाते ही वह पेड़ वापस से हरा होने लगा था, जहां पर राजकुमारी का हाथ छुआ था और आसमान पर काले बादल बनकर छाए वह काले साए भी एक-एक कर वहां से हटने लगे थे।
वह दोनों लड़कियां महल के दरवाजे के अंदर आई थी तभी रानी कादंबरी भी भागते हुए उन दोनों की तरफ आए और उन्होंने राजकुमारी को खींचकर अपने गले से लगाते हुए कहा, "वसुंधरा आप हमारी बात क्यों नहीं मानती है कितनी बार आपको मना किया है कि आपको इस महल से बाहर कभी भी नहीं निकलना है फिर भी आप इतनी लापरवाह है और हमारी बात नहीं सुनती, यह तो अच्छा है चंद्रिका आपका इतना ध्यान रखती है।"
"रानी मां! हम ठीक हैं।" - राजकुमारी मुस्कुरा कर अपनी मां के गले लगे हुए बोली और वही साइड में खड़ी चंद्रिका चुपचाप वह सब कुछ देख रही है और रानी कादंबरी ने जैसे ही उसकी तरफ ध्यान दिया।
रानी ने उसे भी अपनी तरफ बुलाया और उसका हाथ पकड़ कर उसे भी बहुत प्यार से गले लगा लिया और बोला, "ऐसे दूर क्यों खड़ी रहती हो, चंद्रिका! मैं तुम्हारी भी तो रानी मां हूं ना, आओ... मेरे पास आओ।"
रानी मां की बात सुनकर मुस्कुराते हुए चंद्रिका भी उनके गले से लग गई और रानी मां के गले लगा कर उसे बहुत ही सुकून भरा एहसास होता है बिल्कुल इस तरह जैसे कि वह अपनी मां के गले लगी हो उसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी जो की रानी की बहुत ही खास सेविका थी और तब से रानी ने चंद्रिका को भी वसुंधरा के साथ एकदम अपनी बेटी की तरह ही पल है और चंद्रिका वसुंधरा दोनों बचपन से ही बहुत अच्छी सहेलियां भी हैं।
चंद्रिका को रानी मां ने प्यार से गले लगाया वहीं दूसरी तरफ वसुंधरा को अब तक के सामने कुछ दूर होकर खड़ी है उस अपनी मां से डांट सुनने को मिल रही है क्योंकि उसने बगीचे के बाहर अपना कदम निकला लेकिन चंद्रिका ने ऐन मौके पर आकर उसे बचा लिया।
"रानी मां! क्यों वह काले साए हमेशा मेरे आस-पास मंडराते रहते हैं और हमेशा ही मुझे नजर आते हैं क्या रिश्ता है मेरा उनसे और क्या चाहते हैं वो सब.." - रोज की ही तरह राजकुमारी वसुंधरा के सवाल शुरू हो गए हैं पिछले कुछ सालों में जब से उसने संभाला है और अपने आसपास इस तरह की घटनाएं देखती है और उस पर इतनी ज्यादा रोक टोक है कि उस महल से बाहर जाने की भी अनुमति नहीं है तब से ही वह इस बात को लेकर परेशान रहती है और हमेशा ही उसका महल से बाहर इधर-उधर जाने का मन करता रहता है।
राजकुमारी के गाल पर हाथ रखते हुए रानी ने उसकी बात का जवाब दिया, "क्योंकि तुम हमारी इतनी प्यारी सी राजकुमारी हो और तुम इतनी अच्छी और नेक दिल इंसान हो इसीलिए वो काली शक्तियों तुम्हें अपने साथ ले जाना चाहती है और हम ऐसा नहीं चाहते, वसुन्धरा! रोज तो तुम मुझे यह सवाल करती हो और रोज मेरा यही जवाब होता है लेकिन फिर भी..."
वहीं पर किनारे खड़ी चंद्रिका भी उनकी बात सुन रही है और उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट है रानी ने एक नजर घुमाकर उसकी तरफ भी देखा और फिर बोली, "चंद्रिका! तुम ही समझाओ इस लड़की को की इसकी सुरक्षा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है और हम किसी भी तरह का जोखिम नहीं ले सकते, लेकिन फिर भी यह लड़की इतनी लापरवाह है।"
रानी की बात सुनकर चंद्रिका ने धीरे से अपना सिर हिलाया और फिर वह राजकुमारी के पास आकर उसे समझने लगी।
कहानी जारी है...
आज के एपिसोड के बाद क्या लगता है आप लोगों को कहां है वह श्रापित बच्चा और क्या कर रहा है?
क्या रिश्ता है राजकुमारी से उन मंडराते काले साए का ?
क्या अपनी दोस्त चंद्रिका की बात सुनेगी राजकुमारी वसुंधरा और क्या रक्षक दल सच में उन काली शक्तियों को हरा पाएगा और रोक पायेगा श्रापित बच्चे को अपना काला साम्राज्य स्थापित करने से? जाने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी और स्टोरी पर शेयर लाइक और कमेंट भी करिए।
इस कहानी के अलावा मेरी और कहानियां भी इस प्लेटफार्म पर हैं तो आप सब उन कहानियों को भी पढ़कर देख सकते हैं उन सारी कहानियों के नाम हैं -
My boss is my secret lover
Our Arranged Love
Caged in Devil's Love
My Mysterious Husband
12
नदी के किनारे जहां पर जंगल खत्म होता है वहां पर दो-तीन ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच बनी एक पत्थर की गुफा और उस गुफा में सबसे आगे बना हुआ एक अजीब सा शैतानी मंदिर जहां पर एक अजीब से शैतान की मूर्ति बनी हुई थी और उसके आसपास बहुत ही ज्यादा अंधेरा था, अंदर जाने पर वहां और भी ज्यादा बड़ा रास्ता था जहां पर काफी सारे लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाज आ रही थी।
वहां आसपास एकदम पत्थर के जैसे लोग खड़े हुए हैं उनकी शक्ल भी एकदम अजीब सी थी और उनकी गर्दन इधर-उधर हो रही थी उनकी आंखें खुली हुई थी वह देखने में बहुत ही अजीब से लग रहे थे और सभी पीछे खड़े होकर एक मंत्र बुदबुदा रहे हैं जो कि वहां पर अजीब सी आवाज बनकर गूंज रहा है।
"छोड़ दे हमें शैतान! जाने दे हमें... हम कभी भी तेरे गुलाम नहीं बनेंगे चाहे तू हमें जान से मार दे।" - एक आदमी ने तेज आवाज में चिल्लाया और उसके चिल्लाते ही वहां पर एक तेज और भयानक हंसी की आवाज गूंजी।
"भानु मार दो इन्हें... मरने का शौक चढ़ा है लेकिन विक्रांत की काली शक्तियों से अनजान है यह सारे नादान लोग..." - उस जगह में थोड़े किनारे पर ऊंचे पत्थर के बने हुए एक सिंहासन पर बैठते हुए एक आदमी ने कहा
उसकी आंखें एकदम आग की तरह जलती हुई नजर आ रही है वह पीले और नारंगी रंग की उसकी आंखें और पूरे चेहरे पर एक भयानक तेज नजर आ रहा है ऐसा तेज है जिसे छूने वाला तो क्या देखने वाला भी जलकर भस्म हो जाए उसके गर्दन तक आते लंबे बाल हैं और चेहरे पर एकदम शैतानी मुस्कुराहट... उसके आसपास से एकदम खतरनाक आभा निकल रही है।
उसकी बात सुनकर वहां पर खड़ा वह बूढ़ा आदमी जो की झुक कर चल रहा था वह आगे बड़ा और उसने अपने आसपास खड़े लोगों को कुछ इशारा किया और उसका इशारा समझ कर वह लोग एकदम ही आगे आए वह कुछ यही सात आठ वही पत्थर के भूत बने हुए आदमी थे उनका चेहरा एकदम अजीब सा पत्थर की तरह एकदम सख्त लग रहा था और डरावना भी।
वह सब बहुत ही ज्यादा ताकतवर लग रहे थे इसलिए बीच में खड़े उन तीन-चार लोगों पर उन्होंने आसानी से काबू पा लिया और फिर उन सबको पड़कर उनके हाथ पैर बांध दिया और उनमें से एक को वहां बीच में लटक रही लोहे की जंजीर में उसका पैर बांध दिया और नीचे आग जला दी।
उसे आदमी को इस तरह से लटकने के बाद भानु कुछ कदम पीछे हो गया तो विक्रांत ने उसकी तरफ देखकर कहा, "अब सोच क्या रहे हो, मार दो इसे और इसके खून की बूंदे इस शैतानी आग की लफटों में जानी चाहिए जिससे कि हम अपनी शक्तियों को और भी बढ़ा सके और जल्द से जल्द अपना काला साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत कर पाए।"
"मलिक... इसका रक्त आपके रक्त में मिलाना चाहिए जिससे कि इसकी अच्छाई और नेक दिल की जो भी शक्तियां है वह भी आपके अंदर आ जाए जिससे आपकी शक्तियां 10 गुना बढ़ जाएगी!" - भानु ने विक्रांत की तरफ देखकर उसे सलाह देते हुए कहा
"हां... हां ठीक है मुझे भी ये बात अच्छी तरह से पता है, पिछले 17 सालों से यही तो करता आ रहा हूं जितने भी लोगों को मारा उन सब की उम्र मुझे लग चुकी है और उनकी सारी अच्छी बुरी शक्तियां भी मेरे अंदर समाहित हो जाती हैं तो आज उसी में एक और सही..." - इतना बोलते हुए वह अपनी जगह से उठकर खड़ा हुआ और एक ही पल में वहां पर उस जगह के बीचों-बीच आ गया जो कि उसके सिंहासन से काफी ज्यादा दूर थी और वहां खड़े बाकी सारे लोगों की आंखें हैरानी से एकदम बड़ी हो गई उनमें से ज्यादातर लोग तो उनके साथ ही थे और उन्होंने पूरे काले कपड़े पहन रखे थे.
उनकी आंखें पूरी काली हो गई थी और आधा बदन भी काला पड़ चुका था।
वह सारे लोग कुछ भी बोलते समझने की स्थिति में नहीं लग रहे हैं और सिर्फ सिर झुका कर वहां पर खड़े हैं बस उनका आदेश सुनाने और मानने के लिए इसके अलावा उनका कोई काम नहीं है क्योंकि वह भी अब उनके काले साम्राज्य का एक हिस्सा बन चुके हैं और अभी फिलहाल उन काली शक्तियों के वश में है, उनमें से ज्यादातर लोगों ने तो अपनी मर्जी से ही इसमें शामिल होने को चुना है क्योंकि जितने भी लोग अपनी मर्जी से इसमें नहीं आते तो उनको अपनी जान गंवानी पड़ती है!
उसी तरह से जिस तरह बीच में जंजीर में बंधा हुआ वह आदमी आज के ऊपर उल्टा लटका हुआ रात की तपिश की वजह से अब तक वह एकदम बेहोश अधमरा सा हो चुका है और अब वह चिल्ला भी नहीं रहा है।
विक्रांत वहां एकदम सामने आकर खड़ा हुआ और उसी तरह अपनी जलती हुई निगाहों से उसे आदमी को घूर रहा है और तभी भानु उसके सामने आया उसने अपने पास से एक छुरा निकालकर विक्रांत की तरफ बढ़ाया।
विक्रांत ने एक झटके से ही उसके हाथ से वह छुरा उठा दिया और फिर अगले ही पल उस आदमी की गर्दन पर एक झटके में वार किया जिससे कि उसके गले से तेज रक्त की धार बहन निकली जो कि कुछ छींटें उसके हाथ और चेहरे पर भी पड़ी और बाकी उसका सारा खून वहां नीचे जल रही आग में गिरने लगा और उस आग में खून के गिरने से उसे आग का रंग एकदम ही बदलकर काला पड़ने लगा और फिर कुछ देर के बाद वह आग अपने आप ही बुझ गई।
विक्रांत ने अपने हाथ में खून लगी हुई जगह पर छुरी से थोड़ा सा काटा और अपने हाथ के कटे हुए हिस्से को उसकी गर्दन पर रखा जिससे कि उसका खून और उसे आदमी का खून उसके शरीर में मिल गया और फिर विक्रांत ने अपना हाथ उसके गर्दन से हटाया तो कुछ ही देर में उसका वह उंगली का कटा हुआ घाव भर गया और उसने मुस्कुरा कर सामने खड़े भानु की तरफ देखा जो पहले ही बहुत रहस्यमई तरीके से उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा है।
"आग बुझ गई मालिक! इसका मतलब हमारी बलि स्वीकार कर दी गई है और शैतान हमसे खुश हैं।" - उस बूढ़े कुबडे़ आदमी ने बहुत ही ज्यादा चापलूसी करते हुए कहा
उसकी बात पर विक्रांत अजीब ढंग से हंसता हुआ बोला, "तुम्हें कोई संदेह है क्या भानु! शैतान तो तब ही खुश होता है जब मैं खुश होता हूं और अभी मैं भी खुश हूं लेकिन इन सारे लोगों को अभी बंदी बना कर रख लो हम इन्हें अमावस्या की रात को बलि देंगे तब काली शक्तियां अपने चरम पर होती हैं।"
"जो आज्ञा मालिक।" - इतना बोलकर भानू ने धीरे से अपना सिर झुकाया और बाकी लोगों की तरफ बढ़ गया विक्रांत ने कुछ देर खड़े होकर कुछ सोचा और फिर वहां से बाहर निकल गया।
कहानी जारी रहेगी...
13
दूसरी तरफ; एक लड़की महल के पास वाले जंगल में कुछ बड़बड़ाती हुई सी आगे बढ़ रही है और उसने अपने चेहरे को ढकने के लिए कुछ लंबा सा वस्त्र ओढ़ा हुआ है और उसे अपना आधा चेहरा ढक रखा है और उसी तरह से अपने आप से बात करती हुई वो आगे चल रही है और उसके आसपास दूर-दूर तक कोई भी नहीं है।
"यह राजकुमारी की दोस्ती तुझे बहुत महंगी पड़ रही है चंद्रिका, की वजह से इस वक्त तुझे इस खतरनाक जंगल में आना पड़ रहा है, पता नहीं क्या सनक लगी है राजकुमारी को रात्रि के वक्त जंगल में खिलने वाले फूलों का ही गुलदस्ता चाहिए उन्हें और उन्हें फूलों के जेवर बनाएंगी, वैसे तो वह खुद ही यह सब करना चाहती है लेकिन बगीचे में ऐसे सफेद छोटे फूलों का एक भी बगीचा नहीं है लेकिन क्यों नहीं है और राजकुमारी को इतना क्यों लगाव है इन फूलों से..." - इतना बोलते हुए वह लड़की सामने लगे उसे चार-पांच फीट के पौधे की तरफ बड़ी जिस पर बहुत सारे सफेद रंग के फूल निकले हुए थे, छोटी सी डांडिया नारंगी रंग की थी और रात के इस वक्त चांद की रोशनी में वह फूल बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रहे हैं ।
चंद्रिका को जैसे ही जंगल में वह पौधा मिल गया वह खुश होती हुई उसे पौधे की तरफ बढ़ी और पेड़ के नजदीक आते ही उसका उसे पेड़ से लगभग सारे फूल तोड़ लेने का मन हुआ जबकि वहां पर इतने सारे फूल हैं कि उन सभी फूलों को एक ही बार में तोड़ लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
चंद्रिका वह सारे फूल तोड़ने के लिए आगे बढ़ी और अपने साथ लाई हुई उस छोटी सी बांस की टोकरी में वह फूल तोड़ तोड़ कर रखने लगी!
चांद की रोशनी में उसकी खूबसूरत गहरी काली आंखें एकदम चमक रही है और उसके चेहरे पर जरा सा भी डर नजर नहीं आ रहा है जबकि इतनी रात को वह जंगल में वहां पर अकेली है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कि वह अक्सर ही यहां पर आती जाती रहती है और आज यह उसके लिए कोई पहली बार नहीं है।
वह आराम से वह फूल तोड़ रही है तभी उसे अपने आसपास झाड़ियां में कुछ सरसराने की आहट सुनाई दिया और उसे ऐसा लगा जैसे कि वहां पर कोई है क्योंकि वह सामने वाली झाड़ियां हिल डुल भी रही थी।
चंद्रिका ने एक बार उस तरफ देखा लेकिन उस तरफ उसने इतना ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस से अपनी नजर सामने की तरफ करते हुए अपने काम में लग गई क्योंकि उसे लगा था कि बस ऐसे ही उसे ऐसा कुछ लगा है जबकि वहां पर तो कोई भी नहीं है यह बात अपने मन में बोलते हुए उसने खुद को समझा लिया और कुछ देर बाद उसे ऐसा लगा जैसे कि उन झाड़ियां के बीच में से कोई उसे देख रहा है।
इस बात का अहसास होते ही चंद्रिका को थोड़ा डर लगने लगा, डर की वजह से उसका गला एकदम सूख गया और उसने सूखे हुए गले को थूक निगलकर तर करते हुए अपने आप से कहा, "कौन-कौन हो सकता है वहां पर, हे देवी मां रक्षा करना मेरी... कहीं कोई भूत प्रेत हुआ या फिर कोई जंगली जानवर हां कुछ भी तो हो सकता है और मैं हूं की सारी चीजों के बारे में भूल जाती हूं इन फूलों को देखकर... वापस चली जाती हूं वैसे भी काफी सारे फूल मैंने जमा कर लिए हैं इतने फूल काफी होंगे।"
अपनी टोकरी में देखती हुई चंद्रिका बोली और फिर वह तुरंत ही वहां से जाने के लिए थोड़ा सा आगे बढ़ी और तभी उसे सामने एक जंगली शेर नजर आया जो कि उसके सामने थोड़ी दूर पर खड़ा उसे घूर कर देख रहा था एकदम ही उसकी तरफ बढ़ता हुआ आया।
इस तरह शेर को अपने सामने देख कर चंद्रिका बहुत ही तेज चीखी, "आह्ह्.... बचाओ!" और उसके हाथों से वह बांस की टोकरी गिर गई उसे समझ नहीं आया कि वह पीछे भागे या फिर क्या करें इसलिए वह अपनी ही जगह पर एकदम कसकर आंखें बंद करके खड़ी हो गई।
उसके चीखने की आवाज बहुत ही तेज थी और वहां दूसरी तरफ जंगल में जो आश्रम बना है वह भी वहां से ज्यादा दूर नहीं है इसलिए उसके चीखने की आवाज वहां पर बैठे हुए भी वीरेश ने एकदम ही सुन ली क्योंकि उसकी दूर की आवाज सुनने और बहुत दूर तक का देखने की शक्ति बहुत ही ज्यादा है और उसने खुद ही ध्यान करके अपने इन क्षमताओं को इतना ज्यादा बढ़ाया है इसलिए ही उसे दिन झरने पर गिरने वाली उसे लड़की की भी चीख सबसे पहले उसे ही सुनाई दी थी और आज भी इतनी रात को उसने ही वो मदद की आवाज सुनी।
वीरेश अपनी जगह से उठते हुए बोला, "मदद के लिए पुकार जंगल में जरूर कोई संकट में है मैं बस अभी आता हूं।"
"यह रात के तीसरे पहर जंगल में कोई भी नहीं आता जरूर तेरे कान बज रहे होंगे बैठ जा चुपचाप और अपना मंत्र जाप हम खत्म करते हैं यह भी जरूरी है सुबह तक पूरा करना है हमें..." - वीरेश के दोस्त सक्षम ने उसका हाथ पकड़ कर उसे वापस अपने साथ बिठाते हुए कहा
वीरेश वहां पर उसके साथ बैठ गया और फिर से उसने वह मंत्र जाप शुरू कर दिया लेकिन उसका ध्यान अभी भी उस आवाज की तरफ ही लगा हुआ है।
दूसरी तरह दूसरा आश्रम से काफी दूर जंगल में,
वो लड़की अपनी जगह से पीछे हट रही है एकदम छोटे-छोटे कदम चलती हुई लेकिन वह ज्यादा पीछे जा पाती उससे पहले ही उसे शेर ने जोर से तेज आवाज में दहाड़ते हुए उसके ऊपर छलांग लगा दी और वह एकदम ही उसके ऊपर कूदने वाला था और उसे लड़की ने जैसे ही अपनी आंखें खोलकर सामने यह नजारा देखा उसकी जान एकदम सूख गई और उसे ऐसा लगा जैसे उसकी जान पहले ही निकल गई हो और अब वह नहीं बच सकती, ये सोचकर उसने फिर से अपनी आंखें बंद कर ली और मन ही मन भगवान से खुद को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगी।
उसने अपनी आंखें नहीं खोली लेकिन उसे एक बहुत ही तेज आवाज सुनाई दी जैसे की कोई बहुत बड़ा भारी सा पत्थर उसके सामने की धरती पर आकर गिरा वो डर की वजह से वह इतना घबरा गई थी कि उसका पूरा शरीर कांप रहा था क्योंकि उसे ऐसा लग रहा था कि आंखें खोलते ही अपने सामने वह शेर उसे अपने एकदम नजदीक खड़ा हुआ दिखाई देगा और बस उसे खा जाएगा।
फिर कुछ देर बाद उस लड़की को कोई भी आवाज़ नहीं आई और ना ही कोई अपने नजदीक आता हुआ महसूस हुआ तो उसने धीरे से अपनी एक आंख खोली और देखा कि अब सामने वहां पर कोई भी शेर नहीं है बल्कि बहुत ही एक लंबा चौड़ा सा आदमी उसके सामने खड़ा हुआ है जिसकी पीठ उसकी तरफ है उसने पूरे काले कपड़े पहने हुए हैं, जिससे उसके शरीर का जरा सा भी हिस्सा नजर नहीं आ रहा है यहां की पीछे से देखने पर गर्दन या कुछ भी नहीं...
सब कुछ इस कपड़े से ढका हुआ है और उसके गर्दन तक आते हुए लंबे काले बाल है और उस के चारों तरफ एकदम गहरी नकारात्मक ऊर्जा निकल रही है और वहां आसपास वह शेर तो क्या दूर-दूर तक कोई जानवर या पक्षी भी अब नजर नहीं आ रहा जबकि थोड़ी देर पहले तक काफी सारे जानवर और पक्षियों की आवाज उसे लड़की को सुनाई दे रही थी लेकिन आप वहां पर एकदम ही सन्नाटा हो गया है।
चंद्रिका को समझ नहीं आया कि वह क्या बोले और क्या नहीं लेकिन वह इतना तो समझ गई कि उस आदमी ने ही उस की मदद की है और शेर से उसे बचाया है लेकिन कैसे...और शेर ऐसे अचानक से कहां चला गया, यह बात उसे समझ नहीं आ रही थी।
कहानी अभी बाकी है...
क्या लगता है आप लोगों को कौन आया होगा चंद्रिका को बचाने और शेर ने उसे पर हमला क्यों किया और क्या कहानी है उन फूलों की और विक्रांत क्यों देता है इस तरह से लोगों की बली और क्या वह अपना काला साम्राज्य बसाने में कामयाब हो पाएगा या फिर उसकी राह में रुकावटें पैदा करेंगे गुरुजी और उनके आश्रम के रक्षक? बताइए कमेंट में
14
एक झटके से अपनी गर्दन पीछे मोड़कर उस लड़की की तरफ देखते हुए उस आदमी ने एकदम गहरी और भारी आवाज में उससे सवाल किया, "कौन हो तुम और क्या कर रही हो यहां पर इतनी रात को?"
उसकी ऐसी आवाज सुनकर चंद्रिका को डर लगना चाहिए लेकिन उसे पता नहीं क्यों उस आदमी से बिल्कुल भी डर नहीं लगा और उसकी गहरी आवाज उस ऐसा लगा जैसे उसके दिल और दिमाग में गूंज रही है और उसकी आवाज सुनने के आगे वह यह बात सुन ही नहीं पाई कि वह उसे क्या कह रहा है और क्या पूछ रहा है वह एकटक उसकी तरफ ही देखने लगी।
उसकी वह गहरी चलती हुई सुनहरी आंखें जो रात के अंधेरे में भी चमक रही है और ऐसी आंखें जो किसी भी जंगली जानवर की होती है उन आंखों में भी चंद्रिका को कुछ अलग ही नजर आ रहा है , उसका आधा चेहरा ढका हुआ है जिससे कि उन जलती हुई निगाहों के अलावा और कुछ भी चंद्रिका को नजर नहीं आया लेकिन उसकी आंखें ही उसके पूरे चेहरे का हाल कहने के लिए काफी है और वह दिखने में भी बहुत खतरनाक लग रहा है और उसके आसपास भी इस तरह की आभा निकल रही है जैसे कि जो भी उसके करीब जाएगा वह उसे छूते ही जलकर मर जाएगा।
इन सबके बावजूद भी चंद्रिका को पता नहीं ऐसी क्या चीज है जो उसकी तरफ खींच रही है और उसे ऐसा लग रहा है कि जैसे वह उसे बरसों से जानती है सिर्फ देख आज पहली बार रही है।
सामने खड़े उस आदमी ने ऊंचे पत्थर से उतर कर उसकी तरफ आते हुए पूछा, "सुनाई नहीं दिया तुम्हें, बहरी हो क्या... मैं कुछ पूछ रहा हूं इतनी रात गए इस खतरनाक जंगल में क्या कर रही हो मरने का शौक है क्या, या फिर रास्ता भटक गई हो और कोई तुम्हारे साथ में है या फिर नहीं अभी देखा ना तुमने कितने जंगली जानवर होते हैं यहां पर और कितना खतरा है लेकिन फिर भी..."
चंद्रिका बिना अपनी पलकें झपकाए अभी भी एकटक उसकी तरफ ही देख रही है और उसने अब तक उसके एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया है।
इस बात से वो आदमी थोड़ा सा किलस गया और उसके एकदम सामने आकर खड़ा हो गया वह उसके कंधे पर हाथ रखते ही वाला था उसका ध्यान अपनी तरफ करने के लिए लेकिन तभी कुछ सोचकर रुक गया उसने अपना हाथ पीछे वापस लिया और अपने हाथ की कसकर मुट्ठी बांधते हुए बोला, "अब पूरी रात यही खड़ी रहोगी इसी तरह से बुत बनकर लगता है कुछ ज्यादा ही सदमा लगा है तुम्हें... मैं भी कहां अपना समय बर्बाद कर रहा हूं!"
इतना बोलकर वह वहां से आगे जाने लगा लेकिन जैसे ही वह चंद्रिका के बगल से निकला उसका कंधा चंद्रिका के सिर से हल्का सा टच हुआ लेकिन उसे आदमी ने इतना ध्यान नहीं दिया वह वहां से आगे बढ़ गया लेकिन तभी चंद्रिका को एकदम से जैसे एक झटका लगा हो और वह तुरंत ही अपने ख्यालों से बाहर आई और उसने जल्दी से अपने आसपास देखा तो उसके पीछे से निकलकर वह आदमी उसे आगे जाता हुआ नजर आया।
यह वही आदमी है जिसने अभी-अभी कुछ देर पहले ही उसकी मदद किया और इतनी खतरनाक शेर से उसकी जान बचाई इसलिए चंद्रिका को लगा कि कम से कम उसे उसका शुक्रिया अदा तो करना ही चाहिए लेकिन इतनी देर से वह उसके चेहरे और व्यक्तित्व में इतना ज़्यादा हो गई थी कि उसने उसकी कोई भी बात ठीक तरह से नहीं सुनी।
"शायद कुछ पूछ रहा था वो और मैंने तो ठीक से सुना भी नहीं लेकिन अभी जाकर कम से कम उसे धन्यवाद तो बोल देती हूं आखिर उसने मेरी जान बचाई है एक अजनबी होते हुए भी..." - इतना बोलकर चंद्रिका लगभग भागते हुए उसे आदमी के पीछे आए और वह काफी आराम से धीमी चाल चलते हुए वहां से एक तरफ जा रहा था।
"रुको... ऐ रुको... रुको और तुम क्या कह रहे थे, एक पल ठहरो तो मुझे तुम्हारा शुक्रिया अदा करना है तुमने मेरी जान बचाई लेकिन यह बताओ तुम शेर के सामने आ गए और शेर ने तुम पर हमला भी नहीं किया, उल्टा वह खुद ही दुम दबाकर यहां से भाग गया ऐसा कैसे हो गया तुम्हें कोई मंत्र आता है क्या जानवरों को काबू करने वाला..." - भाग कर उसके पीछे आती हुई चंद्रिका बोली
उसकी आवाज सुनकर वह आदमी अपनी जगह पर एकदम ही रुक गया और पीछे मुड़कर उसकी तरफ देखते हुए बोला, "अच्छा तो सदमे से बाहर आ गई तुम मुझे तो लगा था कि तुम बुत बन गई हो और अब यहां पर भी उसी तरह खड़ी रहोगी और तुम्हें लगता है मेरे सामने कोई भी जंगली जानवर टिक सकता है, और मुझे किसी भी मंत्र की जरूरत है वह शेर तो मुझे देखते ही डर कर भाग गया।"
चंद्रिका ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, "बस... बस ज़रा सी तारीफ़ क्या कर दी, कुछ ज्यादा ही शेखी बघार रहे हो, वैसे तुम मुझसे कुछ पूछ रहे थे!"
उस आदमी ने उसे ऊपर से नीचे तक देख कर उस सवाल करते हुए कहा, "हां बस यही पूछ रहा था कि इतनी रात को तुम यहां पर क्या कर रही हो अगर तुम्हें इतना ही डर लगता है जंगली जानवरों से तो फिर क्यों आई हो खुद यहां पर और तुम हो कौन, गांव की तो नहीं लगती?"
उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा है कि उसे इस लड़की की इतनी फिक्र क्यों हो रही है और क्यों उसने बेवजह ही उसकी मदद की सिर्फ उसके चीखने की आवाज सुनकर वह दौड़ता हुआ उसकी मदद के लिए आया और फिर उससे इतने सारे सवाल भी कर रहा है यहां तक अभी भी वह बेवजह उससे बात करने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी तरफ से वह लड़की भी ऐसा ही कर रही है क्योंकि उन दोनों को ही एक दूसरे के आसपास काफी अजीब सा एहसास हो रहा है जो उन दोनों को एक दूसरे के लिए काफी ज्यादा उत्सुक कर रहा है।
उसके सवाल का जवाब देते हुए चंद्रिका ने उसे अपने बारे में बताना शुरू किया, "मैं राजकुमारी वसुंधरा की दोस्त हूं और उनकी खास सेविका भी और उनके आदेश पर ही मैं यहां उनके लिए वह रातरानी के फूल लेने के लिए आई थी वह रात को इस वक्त ही खेलते हैं और राजकुमारी को एकदम ताजा खिले फूल ही चाहिए तो इसीलिए मुझे रात के इस वक्त यहां पर आना पड़ा लेकिन ठीक उसी वक्त वह शेर भी यहां आ गया और पता नहीं क्यों वह मुझ पर हमला करने ही वाला था कि तभी तुम बीच में आगे और तुमने मुझे बचा लिया, तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया! एक तरह से यह तुम्हारा एहसान है मुझ पर तुमने मेरी जान बचाई है।"
अपने परिचय से लेकर अब तक जो कुछ भी हुआ उसे पूरी बात को एक साथ बताते हुए चंद्रिका ने उसे एक सांस में ही इतना कुछ बता दिया।
कहानी जारी रहेगी...
15
लेकिन उसने जैसे ही राजकुमारी वसुंधरा का नाम लिया उस आदमी की आंखें एकदम ही चमक गई और चेहरे पर उसके एक तिरछी मुस्कुराहट आ गई जो कि अब तक उसके चेहरे से एकदम ही नदारद थी।
चंद्रिका ने उसके चेहरे की वह बदलते हुए भाव पर गौर तो किया लेकिन वह कुछ बोली नहीं और तभी उस आदमी ने कहा, "राजकुमारी तो बड़ा जुल्म करती है तुम पर और फिर भी तुम उसे अपनी दोस्त कह रही हो जबकि उसने तुम्हारी जान खतरे में डाल दी अपना एक शौक पूरा करने के लिए..."
चंद्रिका ने जैसे उसे डांटते हुए कहा, "देखो तुम जो कोई भी हो, और भले ही तुमने मेरी जान बचाई है इसके लिए मैं तुम्हारी एहसानमंद भी हूं लेकिन फिर भी मैं राजकुमारी के खिलाफ कुछ भी नहीं सुनूंगी। उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और बदले में मैं उनके लिए अगर इतना कर देता हूं तो यह कोई बड़ी बात नहीं है वैसे भी यह फूल तो मुझे भी पसंद है।"
उसे इस तरह से नाराज होते देखा उसे आदमी ने जैसे बात खत्म करते हुए कहा, "अच्छा... अच्छा ठीक है कुछ नहीं कह रहा मैं तुम्हारी प्यारी राजकुमारी दोस्त को, ठीक है।"
चंद्रिका लगभग भागते हुए उसके पीछे आ रही थी तो उसके साथ चलने के लिए उसे आदमी ने अपनी चाल भी धीमी कर ली है उसे भी नहीं पता क्यों हो उसके साथ ज्यादा देर तक रहना चाहता है जबकि उसे पता है असल में उन दोनों की मंजिलें एकदम अलग है लेकिन अभी राजकुमार वसुंधरा का नाम सुनने के बाद से उसे लड़की को कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी आ रही है।
वह दोनों साथ में चलते हुए उस जगह से थोड़ा आगे बढ़ आए और इस बीच चंद्रिका उन फूलों के बारे में भूल ही गई थी और महल वापस जाने के बारे में भी उसे आदमी में दिलचस्पी लेते हुए उसने उस सवाल किया, "लेकिन तुम कौन हो और तुम यहां क्या कर रहे हो तुम्हारा नाम तक नहीं बताया तुमने तो मुझे?"
उसके सवाल के जवाब में विक्रांत इस तरह की एकदम गहरी और भारी आवाज मेंबोला, "विक्रांत! मेरा नाम विक्रांत है और इससे ज्यादा कुछ जानने की तुम्हें जरूरत नहीं है। मैं एक राहगीर हूं बस इतना समझ लो।"
उसकी यह भारी आवाज एकदम रीड़ की हड्डी को ठंडक देने वाली आवाज में से एक है जिसे सुनकर चंद्रिका को अपने हाथ पैर के रोएं जैसे खड़े होते हुए महसूस हुई और वह एकदम अपनी जगह पर रुक गई और बोली, "राहगीर... चलो मान लिया कि राहगीर हो लेकिन फिर भी कोई तो मंजिल होगी ना?"
"हम मंजिल ढूंढने के लिए नहीं निकलते हम अपनी मंजिल खुद बनाने में भरोसा रखते हैं।" - विक्रांत ने इतना बोला और तेज कदमों से चलते हुए वहां से काफी आगे चला गया और फिर वह वहां पर नहीं रुका और ना ही उसने पीछे मुड़कर उसे लड़की की तरफ देखा क्योंकि उसके दिमाग में इस वक्त बहुत कुछ चलने लगा था और इस बात को वह उसे लड़की के सामने जाहिर नहीं करना चाहता था ।
चंद्रिका भी तुरंत ही उसके पीछे जाने को हुई लेकिन उसे पता था कोई भी फायदा नहीं और वह काफी आगे उन घने जंगलों के बीच चला गया था जहां पर एक दम घना अंधेरा था और इस घने अंधेरे में वह भी एक काली साए की तरह जाकर गुम हो गया।
अपनी ही जगह पर खड़े हुए चंद्रिका ने कुछ देर तक उसे तरफ ध्यान से देखा और उसे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कि वह मुड़कर वापस आएगा अभी उसे अंधेरे जंगल से निकलकर एकदम से उसके पास आएगा और आगे की बची हुई बात पूरी करेगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो चंद्रिका ने एक गहरी सांस ली वह वापस से उसे रात रानी के पेड़ की तरफ आई लेकिन इस बार उसने पेड़ से एक भी फूल नहीं तोड़े और नीचे झुक कर वहां नीचे जमीन पर बिखरे हुए फूल उठने लगे और उसे उठाकर अपनी बस की टोकरी में रख लिया।
उसके बाद जब चंद्रिका के पास पर्याप्त फूल जमा हो गए तो उसने मुस्कुरा कर अपनी टोकरी में देखा और फिर वहां से सीधा राजमहल की तरफ ही निकल गई।
राजमहल में;
चंद्रिका बगीचे में बने गुप्त रास्ते से महल के अंदर आई क्योंकि वह वहां से ही बाहर गई थी और उसे रास्ते के बारे में राजकुमारी और उसके अलावा किसी को भी नहीं पता है क्योंकि बचपन में ही उन लोगों को वह रास्ता मिला था और तब उन लोगों ने उसे रास्ते के आसपास झाड़ियां और बाकी के पेड़ लगाकर उसे रास्ते को अच्छी तरह से छुपा दिया है और अभी भी उसके आगे काफी सारे पेड़ पौधे उगे हुए हैं जिससे कि किसी को भी वह रास्ता अभी नजर नहीं आया है और वह उन दोनों का खुफिया रास्ता है जिसे सिर्फ वह दोनों ही इस्तेमाल करती है इसी तरह से महल से बाहर जाने के लिए...
लेकिन वसुंधरा को बाहर जाने की अनुमति नहीं है इसलिए ज्यादातर चंद्रिका ही बाहर जाती है कभी उसके किसी काम के लिए तो कभी उसके लिए कुछ लेने या फिर जब बहुत दिनों तक उसके पिता युद्ध से वापस नहीं आती तो उनकी खोज खबर लेने के लिए भी वसुंधरा सिपाही को वहां से ही महल में बुलाती है और उस युद्ध का हाल जानती है लेकिन पिछले कुछ सालों में उसके पिता किसी भी युद्ध पर नहीं गए हैं और वहां पर महल में ही है।
चंद्रिका बहुत ही सावधानी बरतते हुए उस रास्ते से अंदर आई और वहां पर आते ही उसने देखा कि राजकुमारी वसुंधरा दो सेविकाओं के साथ वहां पर खड़ी है उनमें से एक के हाथ में मशाल है जिस पर बहुत ही धीमी लौ की रोशनी जल रही है जिससे कि ज्यादा लोगों की उन पर नज़र ना पड़े।
लेकिन चंद्रिका को कहीं ना कहीं इस बात का अंदाजा था इसलिए वह तुरंत ही उस रोशनी की तरफ आई और उसने अपने हाथ में पकड़ी हुई वह बस की टोकरी वसुंधरा के सामने करते हुए कहा, "यह मैं आपके लिए सारे फूल ले आई जितने भी मुझे वहां पर मिले, अब तो आप खुश है ना राजकुमारी?"
चंद्रिका ने राजकुमारी वसुंधरा से पूछा और वसुंधरा की नजरे उसे बस की टोकरी के अंदर रखे हुए उन खूबसूरत से छोटे-छोटे सफेद और नारंगी फूलों पर ही टिकी हुई है और उन फूलों की तरफ देखते हुए वसुंधरा बोली, "हां बहुत ही खुश हूं मैं तुम से... तुमने बहुत अच्छा काम किया लेकिन इतनी देर कहां लगा दी मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी चलो अब मेरे कक्ष में चलते हैं इसके आगे सब कुछ हम वहां पर ही बात करेंगे!"
इतना बोलते हुए राजकुमारी वहां से आगे बढ़ गई और फिर वसुंधरा और उसकी सेविकाएं भी उस के पीछे-पीछे ही वहां से राजमहल के अंदर उस कमरे में आ गई।
कहानी जारी है...
विक्रांत ने क्यों बचाई चंद्रिका की जान और आखिर क्या पता है उसे राजकुमारी के बारे में और क्या मकसद है उसका, और राजकुमारी वसुंधरा इन सब चीजों में किस तरह से शामिल है? जानने के लिए पढ़ते रहिए "जन्मों का श्राप"
16
राजकुमारी अपनी सेविकाओं और सहेलियों के साथ महल में अपने कक्ष में बैठी हुई है उन सारे फूलों को बहुत ही खुश होकर देख रही है और उसने अपनी सेविकाओं से उन फूलों के जेवर बनाने के लिए कहा है और सारी सेविकाओं के साथ मिलकर चंद्रिका भी राजकुमारी के आदेश पर उसके लिए उन फूलों के जेवर बन रही है राजकुमारी भी वहां पर उनके साथ ही बैठी है लेकिन ऊंचे आसन पर तभी राजकुमारी की नजर डलिया में पड़े हुए एक छोटे से पीले और काले रंग के फूल पर पड़े जिसकी पत्तियां पीले रंग की थी और उसकी दंडी एकदम काले रंग की उन सफेद नारंगी फूलों के बीच वह फुल एकदम ही अलग लग रहा था।
"यह फूल कितना भिन्न लग रहा है इन सब फूलों से और इतना सुंदर भी, आज से पहले मैंने कभी क्यों नहीं देखा ऐसा कोई फूल?" - राजकुमारी ने ऐसा कोई फूल आज तक पहली बार ही देखा है इसलिए उसे बहुत ही उत्सुकता हुई वह देखकर और उत्सुकतावश राजकुमारी ने तुरंत ही वो फूल अपने हाथों में उठा लिया और उसे देखने लगी लेकिन अलग-अलग कर देखते हुए राजकुमारी को कुछ समझ नहीं आया तो वह उसे फूल को अपनी नाक के पास लेकर उसकी खुशबू सुनने के लिए लेकिन जैसे ही राजकुमारी ने उसे फूल को सूंघा, उसे बहुत ही अजीब सा लगा और उसकी आंखें एकदम भारी होने लगी राजकुमारी को समझ नहीं आया कि उसे क्या हुआ लेकिन उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि उसे फूल की महक में एक अलग ही नशा है और राजकुमारी कुछ भी समझ पाती इससे पहले ही वो एकदम ही वहां जमीन पर गिर गई।
राजकुमारी के गिरने की आवाज सुनकर चंद्रिका ने उस तरफ देखा और जल्दी से आगे आते हुए बोली, "राजकुमारी! राजकुमारी क्या हुआ आपको, उठिए... अभी तो ये ठीक थी ऐसे अचानक से क्या हो गया?"
बाकी सारी सेविकाओं ने भी उसी तरफ देखा लेकिन उन्हें भी कुछ समझ नहीं आया उनमें से एक सेविका जल्दी से पानी लेकर आई और चंद्रिका को दिया चंद्रिका ने राजकुमारी के चेहरे पर पानी की छींटें डाली लेकिन कोई भी फायदा नहीं हुआ, राजकुमारी को होश नहीं आया यहां तक के वह बिल्कुल भी हिल डुल नहीं रही है और वहीं जमीन पर गिरी हुई है।
"जाओ जल्दी से महाराज और महारानी को खबर करो और राज वैद्य को भी बुलाकर लाओ!" - चंद्रिका ने उन सेविकाओं को आदेश देते हुए कहा और उसकी बात सुनकर वह सारी एक-एक कर वहां से निकलकर भागी लेकिन कुछ वहां पर उसके साथ भी रुक गई और उन्होंने मिलकर राजकुमारी को उठाकर उनके बिस्तर पर रखवाया।
राजकुमारी अभी भी बेहोश है और वह फूल अभी भी उसकी मुट्ठी में ही बंद है जिस पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
दूसरी तरफ;
एक छोटी सी कांच की शीशी को उछालकर उसे खेलते हुए एक आदमी ने बोला, "देखा तुम लोगों ने, यह तो बस मेरे बाएं हाथ का खेल था किस तरह मैंने उस जिद्दी भटकती हुई आत्मा को कैद कर लिया।"
जंगल के अंदर आने वाले रास्ते पर तीन लोग एक साथ एक ही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जंगल में इस वक्त सुबह का वक्त है और सूरज निकल आया है, चिड़िया चहचहा रही है और कुछ छोटे जंगली जानवर भी इधर-उधर भागते खेलते हुए नजर आ रहे हैं।
उन तीन लोगों में दो लड़के हैं और एक लड़की लेकिन तीनों ने लगभग एक जैसे ही कपड़े पहने हुए हैं और बीच में चल रहे लड़के ने अपने माथे पर कपड़ा बंधा हुआ है उसके बाल लंबे हैं और उसी के हाथ में वो कांच की भी है वह काफी खुश लग रहा है, जैसे कि उसने कुछ बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो।
उस के साथ चल रही लड़की ने कहा, "हां हां हम सब ने देखा बार-बार बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम दोनों भी वहां पर ही थे और हमारी मदद के बिना अकेले तुम यह कभी नहीं कर पाते, वीरेश!"
उन दोनों के साथ चल रहे दूसरे लड़के ने लड़की की तरफ देखकर उसे समझाते हुए कहा, "रहने दो शिवानी! तुम्हें पता है ना इसे दिखावा करने का कितना शौक है और अब इसने पहली बार ही किसी आत्मा को कैद किया है तो हवा में तो उड़ेगा ही..."
शिवानी ने भी उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "हां... हां... सक्षम! मुझे पता है लेकिन यह तो देखो कितना खुश है इसे ऐसा लगता है गुरुजी से इसे इनाम मिलेगा। इस छोटे से काम के लिए जबकि यह तो सिर्फ शुरुआत है आगे तो हमें बहुत बड़ी-बड़ी काली शक्तियों का सामना करना और यह तो बस एक अतृप्त आत्मा थी!"
अपने अगल-बगल चल रहे उन दोनों की बातें सुनकर बीच में उनके थोड़ा सा चल रहा वीरेश अपनी जगह पर रुक गया क्योंकि उन लोगों की बातें सुनकर वह किसी आ गया है और उसने गुस्से से पीछे मुड़कर उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा, "एक बात बताओ ज़रा तुम दोनों मेरे दोस्त हो या फिर दुश्मन जरा सा खुश नहीं हो सकती हो अपने दोस्त की खुशी में जब से बस ताने ही मारते जा रहे हो ऐसा भी क्या दिखावा कर दिया मैं तो बस वही बता रहा था जो वहां पर हुआ लेकिन तुम लोगों को शायद सुना ही नहीं है कोई बात नहीं आश्रम में जा करना मैं दूसरे लोगों को सुनाऊंगा जो दिलचस्पी लेकर मेरे कारनामों के बारे में सुनते हैं।"
सक्षम ने आगे जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "अरे यार हम खुश हैं चलो बता लेना तुम उन सबको ही लेकिन अभी पहले हमें गुरुजी से मिलना होगा और तुम्हें यह कांच की सीसी भी तो गुरुजी के पास ही जमा करनी है।"
सक्षम की यह बात सुनकर वीरेश ने हां में अपना सिर हिलाया और उन दोनों के साथ खड़ी शिवानी भी उनकी बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराए और फिर वह तीनों एक साथ ही आश्रम की तरफ बढ़ गए जहां पर गुरुजी ध्यान में बैठे हुए थे तो वह तीनों उनके सामने ही बैठ गए और गुरुजी के आंखें खोलने का इंतजार करने लगे।
To Be Continued
कौन है वह तीनों लोग और कौन सी काली शक्तियों के बारे में बात कर रहे थे और क्या गुरुजी को पता चल चुका है विक्रांत की वापसी के बारे में और क्या हुआ है वसुंधरा को, क्या किसी की नजर पड़ेगी उसे फूल पर और कैसे आया वह अलग दिखने वाला फूल उन फूलों के बीच? इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है क्या लगता है आप लोगों को बताइए कमेंट में
17
उन तीनों के वहां पर आकर बैठते ही गुरु जी को इस बारे में पता चल गया भले ही वह आंख बंद करके बैठे थे लेकिन वह बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा है और ऐसी बातों के बारे में वह बिना बताए ही जान जाते हैं इसलिए कुछ ही देर बाद उन्होंने आंख खोलते हुए कहा, "तुम तीनों के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है इसलिए तैयार हो जाओ तुम्हारे दल को अभी बहुत कुछ करना है।"
महात्मा की आंख खोलते ही उन तीनों ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया और फिर सर झुका कर बीच में बैठे हुए वीरेश ने पूछा, "कैसी जिम्मेदारी गुरुजी?"
"पता चल जाएगा धैर्य रखो और वैभव को भी अपने साथ ही शामिल कर लो तुम चारों का प्रदर्शन सबसे अच्छा है और सभी कलाओं और मंत्र तंत्र विद्या में तुम सब निपुण हो चुके हो इसलिए मैं यह काम तुम चारों को ही सौंपने वाला हूं।" - गुरु जी ने बातों को गोल घूमते हुए कहा तो उन तीनों दोस्तों ने एक दूसरे की तरफ देखा क्योंकि उन्हें इस वक्त गुरुजी की बातें ज्यादा समझ नहीं आ रही है लेकिन उन लोगों ने और ज्यादा नहीं पूछा क्योंकि वह इतने सालों से वहां आश्रम में रहते हैं और अब तक वह गुरु जी और उनकी कई बातों का मतलब समझ गए हैं जब उन्होंने कह दिया कि वह वक्त आने पर ही उन्हें पता चलेगा तब तक उन्हें कुछ पता नहीं चलने वाला।
दूसरी तरफ,
पहाड़ के पीछे बना हुआ एक बहुत ही पुराना और टूटा-फूटा खंडहर नुमा घर जो कि टूटा फूटा तो था लेकिन बहुत ही बड़ा सा है और उसे को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कि वहां पर पुराने जमाने का कोई महल या फिर कोई हवेली रही होगी जो कि अब तक एकदम खंडहर बन चुकी है।
वहां पर मकड़ियों के बड़े-बड़े जेल लगे हुए नजर आ रहे हैं इसके अलावा उसे घर में चमगादड़ों का बसेरा है क्योंकि वहां पर बहुत सारा अंधेरी जगह है और भी कई सारे छोटे-बड़े जानवर वहां उसे खंडहर के आसपास टहलते हुए नजर आ रहे हैं और दूर से उसे तरफ ही चल कर आता हुआ एक शख्स जिसने की एक कंबल जैसा बड़ा सा कपड़ा अपने इर्द-गिर्द लपेटा हुआ है और उसे अपना सर के साथ-साथ चेहरा भी ढक रखा और इधर-उधर चारों तरफ बहुत ही ध्यान से मुड़ मुड़ कर देखते हुए वह कुछ आगे चलता हुआ उस घर की तरफ ही बढ़ रहा है।
"आह्हहहहह!!!!"
तभी किसी आदमी की बहुत ही तेज दर्दनाक चीख उसे पूरे इलाके में गूंजी और उसे आवाज की वजह से आसपास बैठे हुए पक्षी और छोटे कीट पतंगे सब उड़ कर उसे घर से दूर चले गए और चमगादड़ भी एकदम एक साथ ही झुंड के झुंड उसे घर से निकाल कर बाहर की तरफ उड़ने लगे और उसे घर के चारों तरफ मंडरा रहे हैं।
उसे आवाज को सुनकर वह आदमी जो कि उसे घर की तरफ ही बढ़ता हुआ आ रहा था एकदम ही अपनी जगह पर रुक गया और कुछ देर के लिए वही रख कर कुछ सोचने लगा फिर उसने अपने आसपास देखा और बड़ी हिम्मत करके वह दोबारा से इस आवाज की तरफ बढ़ा।
वह आवाज अभी भी सुनाई दे रही है और ऐसा लग रहा है कोई दर्द से करिह रहा है और उसे बहुत ज्यादा तकलीफ हो रही है और उसे तकलीफ का शायद कोई इलाज या कोई हल भी उसे आदमी के पास नहीं है सिर्फ चखने के अलावा वह और कुछ नहीं कर पा रहा लेकिन उसकी जो चीज बहुत ही भयानक है जो उसे सुनसान इलाके में मौजूद किसी को भी डराने के लिए काफी है।
लेकिन उसे खंडहर नामा पुराने बने हुए घर में अंदर की तरफ बढ़ते हुए उसे आदमी के चेहरे पर डर अब कुछ खास नजर नहीं आ रहा है उसके चेहरे पर और उस आदमी की गहरी आंखों में एक मजबूती नजर आ रही है।
एक आदमी की तेज आवाज उसे जगह पर गूंजी, "आईए आईए,, वहां दरवाजे पर क्या रुके हैं आप दादाजी और मुझे पता था आज जो कुछ भी हुआ है आपको भी जरूर कुछ ना कुछ तो पता चल ही गया होगा और आज आप मुझसे मिलने जरूर आएंगे देखो मैं बस सोच ही रहा था कि आप आ गए!"
घर के अंदर आती है अपने चेहरे पर से कपड़ा हटाते हुए उसे आदमी ने जवाब दिया, "तुम मुझे दादाजी कह कर पुकारना बंद करो तुम्हारे जैसे शैतान शैतान का मेरे साथ कोई रिश्ता नहीं हो सकता और पता नहीं क्यों पिछले 17 साल होश में आज तक में कभी भी खुद को रोक नहीं पता और हमेशा ही इस तरह सबसे छिपकर तुमसे मिलने आ जाता हूं जब भी मुझे ऐसा कुछ महसूस होता है।"
वह आदमी और कोई नहीं वही ठाकुर नरेंद्र हैं जो किया पहले से बहुत ही ज्यादा बूढ़े हो गए हैं लेकिन फिर भी वह उतने ज्यादा बूढ़े और कमजोर नहीं नजर आ रहे और तभी वहां पर एक अंधेरी जगह से निकाल कर आई हुई एक काली परछाई उन्हें नजर आए और वह परछाई किसी शख्स की थी जो कि उनकी तरफ ही बढ़ रहा है उसने ऊपर कुछ भी नहीं पहना हुआ है और नीचे ही सिर्फ पैंट जैसा काला पजामा पहना है, उसके शरीर का ऊपरी हिस्सा जो दूर से देखने पर नजर आ रहा है वह एकदम ही किसी पत्थर की तरह सख्त लग रहा है लेकिन उसके बाएं कंधे के पास काफी दूर तक कुछ गहरे काले निशान पड़े हुए हैं, उसकी आंखों का रंग अभी भी हल्का पीला और नारंगी मिला-जुला है लेकिन इस वक्त वह काफी शांत लग रहा है इस समय...
"मेरे प्यारे दादाजी रिश्ता तो बन चुका है ना हमारा अब आप चाहे या ना चाहे वह रिश्ता तो टूट नहीं सकता लेकिन अगर आप चाहे तो नया रिश्ता जरूर बन सकता और हम दोनों के बीच का यह रिश्ता ही तो है जो आपके यहां पर खींचते हुए ले आता है मेरी चाहत में, हा हा हा" - इतना बोलते हुए उसने जोर से ठहाका लगाया
"विक्रांत! देखो मैं तुम्हें यहां बहुत जरूरी बात बताने के लिए आया हूं और अगर तुम इसी तरह का बर्ताव करोगे तो फिर मैं तुम्हें वह बात नहीं बताने वाला और ऐसे ही यहां से वापस चला जाऊंगा।" - नरेंद्र ठाकुर ने गुस्से में यह बात बोली तो उसकी बात सुनकर वह आदमी कुछ देर के लिए चुप हो गया और उसके हंसी एकदम ही बंद हो गई और चेहरे पर एकदम गंभीर भाव आ गए।
कहानी जारी है...
क्या लगता है आप लोगों को विक्रांत के दादाजी अपने दोस्तों गुरु जी को धोखा दे रहे हैं और के गुरु जी को इस बारे में कुछ भी नहीं पता वह सच में विक्रांत की मदद कर रहे हैं या फिर विक्रांत को धोखा दे रहे हैं क्या लगता है आप लोगों को इन सब में क्या है जो दादाजी और महात्मा गुरुजी से जुड़ा हुआ है? कैसे हुई होगी इस श्राप की शुरुआत? अगर आपको पता है तो बताइए कमेंट में
18
जंगल के बीचो-बीच बना हुआ वो महात्मा गुरुजी मनिकनाथ का छुपा हुआ आश्रम, उसी जंगल की तरफ बहुत सारे घुड़सवार सैनिक सिपाही चलते हुए नजर आ रहे हैं और वह जगह पहले की तरह एकदम जंगल के बीच छुपी हुई नहीं लग रही क्योंकि वहां पर इतनी ज्यादा भीड़ हो चुकी है।
अपनी तरफ आते हुए घुड़सवार और सैनिकों के कदमों की आवाज सुनकर आश्रम के सभी लोग एकदम चौकन्ने हो गए हैं और वहां के सारे शिष्य पूरे आश्रम के किनारे एक गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए हैं उन सब ने एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा है और उनके हाथ से एक तेज पीली सुनहरी रोशनी निकल रही है जो की एक तरह का घेरा उसे आश्रम के चारों तरफ बना रही है।
वह सारी चीज और वो सुनहरी रोशनी वहां के सैनिकों को नहीं दिख रही है उन्हें सिर्फ कुछ लोग ही नज़र आ रहे हैं और वह लोग बिना किसी रूकावट के उस तरफ बढ़ते हुए अंदर आ रहे हैं।
"क्या राजा ने हम पर हमला कर दिया है?" - वहां पर घेरा बनकर खड़े रक्षक दल के लोगों में से एक 18 19 साल के लड़के ने पूछा
उसकी बात सुनकर सारे लोग उसकी तरफ भी देखने लगे लेकिन उसके सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था क्योंकि उन सब को ही इस वक्त यही लग रहा था जिस तरह से वह सारे सैनिक घुड़सवार अपने भाले और हथियारों के साथ उनके आश्रम की तरफ बढ़ते हुए आ रहे थे, इसका तो सिर्फ एक ही मतलब उन सब लोगों को समझ आ रहा था।
तभी उन सबके बीच से निकाल कर आई हुई एक अधेड़ उम्र की औरत जिसकी उम्र लगभग गई कोई 40 45 साल की लग रही थी और वह देखने में एकदम गंभीर और समझदार लग रही थी उसने कहा, "नहीं, राजा के पास ऐसी कोई भी वजह नहीं है और वह हमारी शक्तियों से पूरी तरह अनजान नहीं है जो बेवजह ही हमसे दुश्मनी मोल लेगा आखिर हमारे आश्रम ने राजा का क्या बिगाड़ा है।"
वह औरत वहां पर गुरुजी की बहुत पुरानी शिष्या अपर्णा मां है जो कि अब गुण सारे रक्षक दलों को कई सारे हुनर सिखाती हैं जिनमें वह कब बहुत ज्यादा निपुण हैं, इसके अलावा वह वहां पर आने वाले सारे बच्चों का एकदम अपने बच्चों की तरह ही ध्यान रखती हैं ।
उनकी बातों में एक मजबूती साफ झलक रही थी और उसकी आंखों में जरा सा भी डर नजर नहीं आ रहा था, कुछ कम उम्र के शिष्यों को छोड़कर कोई भी नहीं डर रहा था सभी साथ मिलकर उस स्थिति का सामना करने के लिए डटकर खड़े थे और उन सभी को अच्छी तरह से पता है चाहे राजा की पूरी फौज भी उनके सामने आ जाए उनकी शक्तियों के सामने वह मामूली सैनिक टिक नहीं सकते।
वह सारे सैनिक वहां आश्रम से कुछ दूर पर ही रुक गए क्योंकि उन्हें पता नहीं कोई शक्ति और आगे जाने से रोक रही थी और उन लोगों ने भी उस अदृश्य शक्ति के खिलाफ जाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं की और उनमें से दो सैनिक घोड़े से उतरे और उनके साथ बाकी के तीन चार सैनिक चलते हुए आगे आए और आश्रम के द्वार पर रख कर उन्होंने कहा, "हमें तुम्हारे गुरुजी से मिलना है राजा ने उन्हें महल में बुलाया है उन्हें हमारे साथ चलना होगा।"
सैनिक ने उन सारे लोगों के सामने यह बात कही जो कि वाहन द्वारा के पास ही खड़े हुए थे एक दूसरे का हाथ पकड़कर और पूरी तरह से उन सबका आगे बढ़ने का रास्ता रोककर...
सैनिकों के इस तरह आराम से बात करने पर उन लोगों को इतना तो समझ आ गया कि वो सैनिक वहां पर लड़ाई या हमले इरादे से नहीं आए हैं इसलिए उन सभी लोगों ने राहत की सांस ली और एक दूसरे का हाथ छोड़ दिया।
तभी उन सब के बीच में से वीरेश जो कि उस रक्षक दल का नायक था और आश्रम का सबसे होनहार शिष्य था वह आगे आया और उसने कहा, "नहीं, हमारे गुरु जी ऐसे कहीं भी नहीं जाएंगे अगर राजा को उनसे कोई काम है तो राजा को यहां पर आना चाहिए।"
सैनिकों के सेनानायक ने थोड़े से गुस्से में उसकी बात का जवाब दिया, "तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या लड़के महाराज इस तरह की जगह पर नहीं आते इसीलिए उन्होंने हमें भेजा है और हम सम्मानपूर्वक महात्मा को अपने साथ ले जाने आए हैं इसलिए किसी भी तरह की बहस मत करो और अपने गुरु जी को बुलाकर लाओ।"
वीरेश के ही बगल में खड़ा उसका दोस्त सक्षम भी आगे आते हुए बोला, "औह तो इसे तुम सम्मानपूर्वक कहते हो, यह तो तुम जबरदस्ती का हठ कर रहे हो और वीरेश ने कहा ना हमारे गुरु जी कहीं भी नहीं जाते हैं तो क्या तुम्हें सुनाई नहीं दिया।"
"ऐसे कैसे कहीं नहीं जाते हैं, वह कई बार राजमहल आ चुके हैं वह अलग बात है तुम लोगों को इस बारे में नहीं पता होगा क्योंकि महाराजा के साथ उनकी बैठक होती रहती है और हमें तुम लोगों से बात नहीं करनी।"
सैनिकों के सेनानायक ने आगे आते हुए कहा, उसकी बात सुनकर सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे और वीरेश उनकी बात के जवाब में कुछ बोल पाता उससे पहले ही उन्हें अपने पीछे थोड़ी दूर से आई हुई आवाज सुनाई दी, "ठीक है चलो मैं चलता हूं क्योंकि जहां भी मेरी जरूरत होती है मुझे वहां पर जाना ही होता है और अभी सबसे ज्यादा मेरी जरूरत राजमहल में है।"
गुरु जी ने जब खुद ही सबके बीच वहां पर आकर यह बात बोल दी तो फिर किसी की भी कुछ और कहने की हिम्मत नहीं हुई और फिर गुरु जीवन सैनिको के साथ वहां से राजमहल के लिए निकल गए और उनके साथ उनके कुछ शिष्य भी हैं जिन्हें उन्होंने खुद ही साथ आने के लिए कहा और बाकी के सारे लोगों को वहां पर ही रुककर उन सबके वापस आने का इंतजार करने के लिए बोला... सभी ने चुपचाप सर झुका कर गुरु जी की बात मान ली।
कुछ देर बाद राज महल का दरबार,
राजा ने महात्मा को सम्मान पूर्वक अपने बराबर आसन पर बिठाया है और उनके साथ आए हुए उनके शिष्य महात्मा के इर्द-गिर्द खड़े हुए हैं, महात्मा अपने साथ चार होनहर शिष्यों को लाए हैं जिसमें वीरेश सक्षम और दो और नवयुवक हैं जो की वीरेश और सक्षम की तरह ही बहादुर और सभी कला और शक्तियों में परिपूर्ण है, राजा के साथ भी सेना नायक मंत्री और अन्य दरबारी खड़े हैं।
महात्मा ने अपने आसपास चारों तरफ नजर घूमते हुए कहा,"इस पूरे महल पर काली शक्तियों का साया है और यह बात मैं तुम्हें पहले भी कई बार बता चुका हूं।
उनकी बात पर सभी थोड़ा सा घबरा गए और किसी ने कुछ भी नहीं बोला यहां तक कि की राजा को भी समझ नहीं आया कि वह क्या बोले क्योंकि इस बात का एहसास उसे भी होता रहता है।
एक सेविका ने वहां पर आकर उन्हें सूचना दी, "महाराज! राजकुमारी जी को होश आ गया है।"
कहानी जारी रहेगी....
19
उस सेविका की बात सुनकर राजा ने महात्मा की तरफ एक नज़र देखा और महात्मा के चेहरे पर एक-एक एकदम हल्की सी मुस्कुराहट थी और उन्होंने राजा से कहा, "पूरे 24 घंटे बाद होश आया है ना तुम्हारी बेटी को...
महात्मा की बात सुनकर राजा एकदम हैरान रह गया, उसे समझ नहीं आया कि यह बात जो अभी तक उसने महात्मा को नहीं बताई थी वह उन्हें कैसे पता चल गई और उसे महात्मा की शक्तियों पर पहले ही बहुत विश्वास था और अब मन में बचा कुचा शक भी दूर हो गया।
राजा ने तुरंत ही महात्मा के सामने अपने हाथ जोड़कर कहा, "गुरुजी! अब आप ही हमें बचा सकते हैं और मेरी बेटी को भी यह काली शक्तियां क्यों उसके पीछे पड़ी हैं , उनसे ऐसा क्या नाता है मेरी वसुंधरा का?
चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट के साथ महात्मा ने कहा, "यह सब तो नियति का खेल है और नियति के आगे किसकी चलती है जो होना है वह तो हो कर ही रहेगा मैं या तुम कोई भी रोक नहीं सकता, राजकुमारी किसी तरह से उन काली शक्तियों से जुड़ चुकी है शायद अपने जन्म के समय से ही.."
राजा विनती करते हुए बोला, "इसे दूर करने का कोई उपाय गुरुजी इसलिए ही तो आपके यहां पर बुलाया है हमारी सहायता करिए हम बहुत परेशान हो चुके हैं और अब सिर्फ एक साल ही बचा है, 1 साल बाद राजकुमारी 18 साल की हो जाएगी और उसके बाद कोई भी नहीं जानता कि क्या होगा?"
महात्मा ने एकदम गंभीर चेहरे के साथ कहा, "हां मुझे भी पता है सारी काली शक्तियों और दैवीय शक्तियां सब 18 साल की उम्र के बाद ही जागृत और ज्यादा शक्तिशाली होती है इसलिए तुम्हें राजकुमारी को जब तक के बचा कर रखना और इसके लिए मैंने पहले से ही एक उपाय सोचा है।"
उनके पीछे खड़े हुए वीरेश और सक्षम भी अपने गुरुजी की सारी बातें समझने की कोशिश कर रहे हैं और यह बात सुनकर उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और धीरे से अपना सिर हिलाया शायद कुछ बातें तो उन दोनों को भी समझ आ रही है।
राजा ने जिज्ञासुहोते हुए इस बारे में पूछा, "बताइए महाराज क्या है वह उपाय हम कुछ भी करने के लिए तैयार हैं हम आपकी हर बात मानेंगे और जो भी पूजा अर्चना साधना जो कुछ भी जप तप करवाने हैं हम वह सब कुछ करवाएंगे, आखिर हमारी बच्ची की जिंदगी का सवाल है हम नहीं चाहते कि वह काले साए इसी तरह हम सब की जिंदगी में मंडराते रहे।"
महात्मा ने राजा को पूरी बात समझाते हुए बोलना शुरू किया, "नहीं यह सीधी तरह का कोई असर नहीं डालते क्योंकि तुम्हारी बेटी के अंदर दैविक शक्तियों भी है वह उससे लड़ने के लिए काफी है लेकिन काली शक्तियों का भी अपना वक्त होता है जिस वक्त वह सबसे ज्यादा होती है इसके अलावा हमें यह नहीं पता कि हमारा सीधा मुकाबला किस है तो हम उससे बचने के लिए सीधे कुछ नहीं कर सकते हमें अपनी तरफ से पूरा ध्यान रखना होगा सारी चीजों का... इसलिए मैं जो कह रहा हूं उसे ध्यान से सुनो!"
राजा रानी समेत वहां मौजूद सारे लोग महात्मा की बातें ध्यान से सुनाने लगे।
******
कुछ देर बाद;
राजकुमारी का कक्ष,
राजकुमारी ने जब अपनी आंखें खोली तो उसे अभी भी अपना सर बहुत भारी सा लग रहा था और उसने इधर-उधर देखा तो कुछ देर तक उसे सब कुछ एकदम धुंधला सा नजर आया और उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसे कुछ भी याद नहीं है।
राजकुमारी के कानों में एक बहुत ही जानी पहचानी सी आवाज पड़ी, "राजकुमारी आप ठीक हैं? अभी आपको कैसा लग रहा है और आप अभी बेहोश कैसे हो गए, यहां पर अचानक से बैठे हुए..."
वह चंद्रिका की आवाज थी जिसे सुनकर राजकुमारी ने तुरंत ही उस तरफ से देखा और वहां पर उसे चंद्रिका के साथ अपनी मां भी बैठी हुई नज़र आई जो कि प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर रही थी और उन दोनों की तरफ देखकर बिस्तर पर लेटी हुई राजकुमारी वसुंधरा ने हल्का सा मुस्कुराया और उठकर बैठने की कोशिश करने लगी तो सेविकाओं ने उसे उठाकर बिठाया।
उठ कर बैठे हुए वसुंधरा ने पहले अपनी मां से सवाल किया, "रानी मां! आप यहां और क्या हुआ है हमें... हमें कुछ भी याद क्यों नहीं हम यहां बिस्तर पर कैसे आए?"
बहुत ही प्यार से राजकुमारी का चेहरा छूते हुए रानी ने मुस्कुरा कर कहा, "कुछ नहीं हुआ, तुम बस आराम कर रही हो तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है ना इसलिए हम तुम्हें देखने आए थे अभी बताओ ठीक महसूस कर रही हो या नहीं?"
उनकी बात सुनकर वसुंधरा एकदम उलझन से बोली, "क्या हुआ हमारी तबीयत को, हमें तो कहीं पर भी दर्द नहीं हो रहा ना ही कोई चोट लगी है।"
इतना बोलकर उसने अपने आप पर एक सरसरी नजर डाली और फिर अपने हाथों को अलट पलट कर देखने लगी।
"हां कुछ नहीं हुआ हु तुम बिल्कुल ठीक हो गई हो क्योंकि वह जी ने तुम्हें औषधि दे दी थी।"
अपनी मां की बातें सुन कर राजकुमारी बहुत ही ज्यादा उलझन में है और कुछ देर के बाद उसकी मां ने अपनी जगह उठकर उसके माथे पर हल्के से जमा और प्यार से उसकी तरफ देखते हुए उसके बालों को सहलाया और फिर वहां से चली गई अपनी मां की जाने की बात वसुंधरा ने चंद्रिका को अपने पास बुलाकर उससे पूछा, "चंदा! तुम तो बता दो हमें क्या हुआ है और हमें कुछ याद नहीं फिर से हमारे साथ वैसा ही कुछ हुआ है क्या जैसा अक्सर होता रहता है?"
चंद्रिका ने हल्का सा जबरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, "नहीं राजकुमारी! ऐसा कुछ नहीं है आप कुछ ज्यादा ही सोच रही हैं आप बस आराम करिए मैं आपके लिए खाने का बोल कर आती हूं हूं।"
"यह भी चली गई जरूर मां और पिताजी ने इसे मना किया होगा मुझे कुछ भी बताने के लिए लेकिन मैं तो पता कर लूंगी।"
इतना बोलते हुए वसुंधरा अपनी जगह से उठी और इधर-उधर देखते हुए वह अपने कमरे के बाहर की तरफ जाने लगी।
वहां पर जो सेविकाएं पहले से ही उसके कमरे में उपस्थित थी उन लोगों ने वसुंधरा को वहां से बाहर जाने से मना किया लेकिन वसुंधरा ने उनकी एक नहीं सुनी और अपने कमरे से बाहर निकाल कर जाने लगी लेकिन तभी दरवाजे पर एक हाथ उसके सामने आया उसका रास्ता रोकते हुए और वसुंधरा को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि इस तरह कोई दरवाजे पर खड़ा होगा।
उस आवाज ने राजकुमारी को रोकने के लिए एकदम सीधी तरह से बोला, "राजकुमारी आप आप इस तरह से अपने कक्ष से बाहर नहीं जा सकती क्योंकि आप पर बहुत खतरा है आपको अकेले कहीं भी जाने के लिए मना किया है महाराज ने आपको उनकी अनुमति लेनी होगी या फिर मैं भी आपके साथ ही आऊंगा।"
कहानी जारी है...
20
वसुंधरा अपने कमरे से निकल कर वहां से बाहर जाने लगी लेकिन तभी किसी ने अपना हाथ उसके सामने करते हुए उसे रोका, "राजकुमारी आप कहां जा रही हैं, आप अपने कक्ष से बाहर नहीं जा सकती?"
वो आवाज सुनकर राजकुमारी वसुंधरा ने एक नज़र उठा कर देखा तो सामने एक दिखने में अच्छी शक्ल वाला एकदम मजबूत कद काठी का नवयुवक खड़ा था, उसकी आंखें गहरे भूरे रंग की थी और गर्दन तक आते हुए उसके लंबे काले बाल थे उसने अपने सिर पर एक पट्टी जैसा बंधा हुआ है जिससे उसके बाल चेहरे और माथे के बीच हैं,उसके चेहरे पर एक अलग तेज था और एक बहुत ही प्रभावी सकारात्मक आभा उसके आसपास से निकल रही थी लेकिन उसका चेहरा एकदम गंभीर था, राजकुमारी वसुंधरा ने नजर उठा कर उसकी तरफ देखा तो पहले तो वह उसकी तरफ देखती ही रह गई।
लेकिन फिर जैसे ही राजकुमारी का ध्यान उसकी तरफ से हटा, उन्होंने थोड़ा गुस्से वाला चेहरा बनाकर पूछा, "तुम हो कौन और तुम होते कौन हो मुझे रोकने वाले, मैं कहीं नहीं बस यहीं बगीचे तक ही जा रही हूं क्योंकि इतनी देर से कक्ष में थी तो मुझे असहज महसूस हो रहा है।"
उस आदमी ने एकदम सपाट लहजे में कहा, "ठीक है, फिर मैं भी आपके साथ ही आऊंगा।"
राजकुमारी में मुंह बनाकर उसकी तरफ देखते हुए पूछा,"अजीब गले पड़ने वाले इंसान हो, तुम आखिर हो कौन और क्यों तुम मेरे साथ आओगे।"
उस नवयुवक ने बहुत ही मजबूती से कहा, "मेरे गुरु जी का आदेश है और आज से आपकी रक्षा करना ही मेरा कर्तव्य है इसके अलावा महाराज ने भी मुझे आपकी रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है और अब से मैं हर वक्त आपके साथ ही रहूंगा।" लेकिन ये सारी बाते बोलते हुए वो राजकुमारी के चेहरे की तरफ नहीं देख रहा है।
राजकुमारी वसुंधरा ने मुंह बनाते हुए कहा, "हमें किसी रक्षक की आवश्यकता नहीं है हम अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं, तुम्हें पता है भाई सा और हमने साथ में तलवार चलानी सीखी थी घुड़सवारी और तीरंदाजी भी अच्छी तरह से आती है हमें..."
उस आदमी ने इस तरह एकदम गंभीर आवाज में कहा, "राजकुमारी बच्चों जैसी बातें मत करिए आप भी जानते हैं कि आपको इन सारी चीजों से नहीं बल्कि अलग ही तरह की दुनिया के लोगों से खतरा है और उससे सिर्फ मैं ही आपकी रक्षा कर सकता हूं और इसीलिए गुरु जी ने मुझे चुना है आप मुझे अपने साथ आने से नहीं रोक सकती अगर आपको कहीं भी जाना है तो मैं साथ आऊंगा।"
राजकुमारी ने एकदम लापरवाही से कहा,"अच्छा... अच्छा ठीक है, ज्यादा दिमाग खराब मत करो और चुपचाप तुम हमारे पीछे आ सकते हो लेकिन हमें ज्यादा परेशान मत करना और हर चीज के लिए रोक-टोक बिल्कुल भी पसंद नहीं है हमें..."
इतना बोलकर वसुंधरा दरवाजे के आगे निकल गई।
हल्का सा सिर झुकाकर वह आदमी उसके पीछे ही आते हुए बोला, "जी राजकुमारी जैसा आपका आदेश..."
वह आदमी जो उसके रक्षक के रूप में तैनात किया गया है वह कोई और नहीं गुरु जी का सबसे काबिल और होनहार शिष्य और आश्रम के रक्षक दल का प्रमुख वीरेश है।
वह दोनों एक साथ ही वहां से बाहर निकल गए और राजकुमारी के वहां से जाने के बाद सारी सेविकाएं भी वहां से चली गई।
कुछ देर के बाद चंद्रिका उस कक्ष में वापस आई और अब तक अंधेरा हो चुका था, सूरज पूरी तरह से ढल चुका था और आसमान में तारे नजर आने लगे थे।
कक्ष में आने के बाद चंद्रिका ने राजकुमारी का नाम लेकर उसे आवाज लगाई, "राजकुमारी... राजकुमारी वसुंधरा, कहां है आप?"
चंद्रिका ने राजकुमारी को आवाज़ लगाई लेकिन उसे बदले में कोई भी जवाब नहीं मिला तो फिर उसने पूरे कक्ष में सब जगह पर राजकुमारी को इधर-उधर ढूंढा। लेकिन उसे राजकुमारी कहीं भी नजर नहीं आई और फिर वह उठकर कमरे की बालकनी की तरफ बढ़ गई, क्योंकि वहां से महल के बाहर का हिस्सा नजर आता था और वहां से बगीचा भी नजर आता था इसलिए चंद्रिका उस तरफ राजकुमारी को देखने के लिए चली गई।
"राजकुमारी कहां चली गई, बिना बताए अभी उनकी तबीयत भी ठीक नहीं थी और फिर वह इधर-उधर चली गई अगर रानी मां को पता चल गया तो वह मुझे भी डांट लगाएंगी और राजकुमारी को भी..." - अपने आप में बड़बड़ाते हुए चंद्रिका वहां पर आई और वहां कमरे की बालकनी से नीचे झांककर बगीचे की तरफ देखने लगी लेकिन उसे वहां पर राजकुमारी नज़र आ गई लेकिन उसने ध्यान से देखा तो राजकुमारी के साथ उसके पीछे वहां पर कोई चल रहा था।
चंद्रिका को इस बारे में पता है कि राजकुमारी के माता-पिता ने उसके लिए गुरु जी का भेजा हुआ नया रक्षक तैनात किया है और वह अब अपनी शक्ति और काबिलियत के बल पर राजकुमारी की उन काली शक्तियों से रक्षा करेगा।
राजकुमारी को उसके साथ बगीचे में टहलता हुआ देखकर चंद्रिका ने थोड़ी राहत की सांस ली और अब उसे राजकुमार की इतनी फिक्र नहीं हो रही है।
वो वहां बालकनी से कमरे में वापस जाने लगी लेकिन तभी उसे थोड़ी दूर पर वही बगीचे में झाड़ियां के बीच दो एकदम पीली चमकती हुई आंखें नजर आई और यह आंखें देख कर उसे एकदम से किसी की याद आई, वो शख्स जिससे वह जंगल में मिली थी, उसकी आंखें भी एकदम ऐसी ही थी और वह राजकुमारी की तरफ ही देख रही थी।
चंद्रिका को ऐसा लगा कि असल में ऐसा कुछ भी नहीं है वह बस ऐसा सोच रही है इसलिए उसे यह सब कुछ दिख रहा है लेकिन फिर उसे उस तरफ कुछ हलचल भी नजर आई और उसने सोचा कि कहीं राजकुमारी पर कोई खतरा तो नहीं इसलिए वहां से निकाल कर वह तुरंत ही बगीचे की तरफ आई लेकिन वह राजकुमारी और उसके साथ चल रहा है उस रक्षक की तरफ नहीं गई और दूसरी तरफ से चलते हुए बगीचे में सीधा उस तरफ आ गई , जहां पर झाड़ियां थी।
दूर से देखने में चंद्रिका को वह झाड़ियां अपने बगीचे के अंदर ही लग रही थी, लेकिन वहां पर आते हुए उसे पता चला कि वह आंखें उसे चमकती हुई नजर आ रही थी वह बगीचे से काफी दूर एकदम बाहर की तरफ थी जो की महल से बाहर है। जहां के पेड़ और पत्तियां सब एकदम काले पड़े हुए हैं और वहां पर हमेशा ही काले साए मंडराते रहते इसलिए राजकुमारी का बगीचे के उस तरफ वहां से बाहर जाना बिलकुल ही मना है।
कहानी जारी है...
क्या वीरेश राजकुमारी वसुंधरा की रक्षा करने के अपने काम में सफल हो पाएगा और चंद्रिका क्यों जा रही है उसे तरफ जहां जाना माना है क्या उसे उन काले साए और वसुंधरा से जुड़ी बातों के बारे में नहीं पता है? कौन है वहां उसे तरफ जो चंद्रिका को अपनी तरफ खींच रहा है क्या लगता है आप लोगों को बताइए कमेंट में और कैसी लग रही है स्टोरी इस बारे में जरूर लिखें।