आख़िर क्यों आक्षी की शादी उसी से कर दी गई जिसने उसे खरीदा था? आक्षी को बोली में खरीदा गया था — बिल्कुल वैसे, जैसे किसी पुरानी चीज़ को खरीदते वक़्त उसकी हालत नहीं, सिर्फ़ उसकी कीमत देखी जाती है।उसकी शादी उसी आदमी से कर दी गई, जिसने उसकी सबसे ऊंची बोली... आख़िर क्यों आक्षी की शादी उसी से कर दी गई जिसने उसे खरीदा था? आक्षी को बोली में खरीदा गया था — बिल्कुल वैसे, जैसे किसी पुरानी चीज़ को खरीदते वक़्त उसकी हालत नहीं, सिर्फ़ उसकी कीमत देखी जाती है।उसकी शादी उसी आदमी से कर दी गई, जिसने उसकी सबसे ऊंची बोली लगाई थी। ये कोई रिश्ता नहीं था, एक सौदा था...। जिसके हाथों आक्षी अपनी इज्जत और सम्मान दोनों गंवा चुकी थी, उसी के हाथों में उसका हाथ सारी ज़िंदगी के लिए सौंप दिया गया — और वो भी उसके अपने ही परिवार ने ।एक रात के लिए खरीदी गई लड़की को क्या रूद्र सारी ज़िंदगी अपने साथ रखेगा? और जब आक्षी को यह सच पता चलेगा कि उसकी शादी एक गुलाम से हुई है — उस इंसान से जिसकी हर एक सांस और रूह पहले से ही बिक चुकी है
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आक्षी इस समय रूम में थी और अपने मेकअप का टचअप कर रही थी। उसने लाइट लैवेंडर रंग का लहंगा पहन रखा था और उस पर मैचिंग की ज्वेलरी पहनी हुई थी। वो इतनी खूबसूरत और प्यारी लग रही थी कि लोगों की नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थीं।
ब्यूटीशियन ने आक्षी के कान के पीछे एक काला टीका लगाते हुए कहा,
"मैम, आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं। मैंने आज तक इतनी सुंदर दुल्हन तैयार नहीं की। आज आपकी सगाई में आप इतनी प्यारी लग रही हैं, तो सोचिए शादी के दिन आप कितनी हसीन दिखेंगी!"
ये सुनकर आक्षी शर्म से मुस्कुरा गई। उसने झिझकते हुए खुद को आईने में देखा—वो सच में आज बाकी दिनों के मुकाबले बेहद खास लग रही थी।
वो अपना लहंगा संभालते हुए खड़ी हुई और मुस्कराकर बोली,
"थैंक यू सो मच! मेरी शक्ल तो जैसी है वैसी ही है, ये सारी खूबसूरती आपके मेकअप का जादू है। आपने इतनी खूबसूरती से मेकअप किया है कि आज मैं खुद को बहुत सुंदर महसूस कर रही हूं।"
ब्यूटीशियन हँसते हुए बोली,
"मैम, मेकअप मैंने किया है और मैं खुद आपकी तारीफ करते नहीं थक रही। सोचिए, जब आपके मंगेतर आपको देखेंगे तो क्या होगा! मैंने तो आपकी तारीफ में कुछ शब्द कहे हैं, वो तो आपको देख कविता ही सुना देंगे!"
ये सुनकर आक्षी शर्म से अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लेती है और मुस्कुराने लगती है।
ब्यूटीशियन अपना सामान समेटते हुए बोली,
"वैसे मैम, अगर बुरा ना मानें तो एक बात कहूं?"
आक्षी ने हल्का सिर हिलाकर हामी भरी तो ब्यूटीशियन बोली,
"सगाई से पहले एक बार अपने मंगेतर को ये रूप दिखा दीजिए। यकीन मानिए, वो आपको देखकर ही बेहोश हो जाएंगे!"
आक्षी ने ये सुना तो वह चौंक गई।
"नहीं-नहीं, मैं उनसे अभी ऐसे नहीं मिल सकती। दरअसल हमारा रिश्ता अरेंज है। घर वालों ने मिलकर तय किया है। मैं उनसे अब तक सिर्फ दो बार ही मिली हूं। और मैं यहां किसी को जानती भी नहीं हूं, अपनी फैमिली के अलावा। ऐसे में अगर फैमिली में से किसी ने देख लिया तो क्या सोचेंगे मेरे बारे में?"
उसकी बात सुनकर ब्यूटीशियन हँस पड़ी,
"अरे मैम, इतना क्यों सोच रही हैं? ये कोई बड़ी बात नहीं है। आप किसी गैर से थोड़ी ना मिल रही हैं—जिसके साथ पूरी ज़िंदगी बितानी है, उसी से मिल रही हैं! और ऐसा मैं यूं ही नहीं कह रही। कुछ दिन पहले एक ब्राइड का मेकअप किया था—वो जब दूल्हे के सामने अपने लुक में गई ना, तो दूल्हा तो उसे देखता ही रह गया... फिर उसने तो... उसे किस भी कर लिया!"
ये सुनकर आक्षी ने हैरानी से मुंह पर हाथ रख लिया,
"सच में?"
ब्यूटीशियन सिर हिलाते हुए बोली,
"जी बिल्कुल। इसलिए कह रही हूं, एक बार तो सरप्राइज बनता है। जाइए, जाकर उन्हें इस लुक में देखकर चौका दीजिए। रिश्ता भले अरेंज है, किस तो नहीं करेंगे, लेकिन एक्साइटमेंट में आकर आपको गले जरूर लगा लेंगे!"
अब आक्षी का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। उसने सिर झुकाया और दूसरी ओर मुंह कर लिया।
ब्यूटीशियन उसकी झिझक समझ रही थी। उसने अपना सारा सामान समेटा, बैग कंधे पर टांगा और बोली,
"अब मैं चलती हूं मैम, मेरा काम हो गया। और एक बात और—आप सच में बहुत खूबसूरत लग रही हैं। आपकी एक तस्वीर तो मैं अपने इंस्टाग्राम पेज पर जरूर डालूंगी!"
आक्षी ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा और सिर हिला दिया।
ब्यूटीशियन वहां से चली गई और आक्षी अपने कमरे में अकेली रह गई। वो इंतजार कर रही थी कि कब उसके घरवाले उसे बुलाने आएंगे और वो सगाई के लिए हॉल में जाएगी।
आज विकास हवेली में खूब रौनक और चहल-पहल थी, क्योंकि आज इस घर की सबसे छोटी बेटी, साक्षी व्यास, की सगाई का समारोह था।
साक्षी व्यास—आनंद व्यास और रचना व्यास की सबसे छोटी बेटी... और विकास खानदान के दिल का टुकड़ा।
आनंद व्यास की दो पत्नियाँ हैं, जिनमें से रचना उनकी छोटी पत्नी है और नम्रता व्यास बड़ी पत्नी। आनंद और नम्रता को सबसे पहले एक बेटा हुआ — इस खानदान का सबसे बड़ा बेटा — लेकिन वो जन्म से ही एक हाथ से अपाहिज पैदा हुआ था। इसी वजह से घर की मुखिया और आनंद व्यास की माँ, यानी आक्षी की दादी ने आनंद की शादी नम्रता की छोटी बहन रचना से करवा दी।
आक्षी की दादी, शकुंतला व्यास — जिनका हुक्म पत्थर की लकीर है — जो कह दिया, वो कह दिया। उनकी बात काटने की हिम्मत ना तो व्यास खानदान में है, ना ही पूरे गाँव और जिले में किसी में है। उनके बनाए नियम इतने सख्त और कठोर होते हैं कि वो खुद भी उन्हें नहीं तोड़तीं। उन्होंने अपने पूरे घर को अनुशासन में रखा हुआ है। शकुंतला देवी सिर्फ अपने घर की मुखिया ही नहीं, बल्कि गाँव की सरपंच भी हैं। पंचों में से एक, और सबसे प्रभावशाली — शकुंतला व्यास।
वो फैसले सुनाने में ना आनाकानी करती हैं, ना ही पक्षपात। उनका हर फैसला सटीक और लोगों के हित में होता है, इसीलिए बाकी पंच भी बिना उनकी राय के गाँव में कोई काम नहीं करते।
लेकिन समाज ने कब औरतों को आगे बढ़ने दिया? कब तरक्की करने दी? शकुंतला देवी भी इसी पुरुष प्रधान समाज की शिकार रहीं। जब उन्होंने घर की चारदीवारी लांघकर समाज में अपनी पहचान बनानी चाही, तो उनसे जलने वालों की कमी नहीं रही। दोस्त कम और दुश्मन ज़्यादा बने। ये दुश्मनी इतनी घातक हो गई कि उस आग में उनका घर भी जल गया। उनके पति इस दुश्मनी की बलि चढ़ गए और छोटे-छोटे बच्चों के साथ शकुंतला देवी अकेली रह गईं। लेकिन वो बेसहारा नहीं थीं, ना ही हारी थीं। वो फिर से खड़ी हुईं, फिर से अपनी सत्ता बनाई और गाँव की सरपंच बनीं।
जिस दुश्मनी की आग में उनका घर जला, उसी आग में वो अपने बच्चों का घर नहीं जलाना चाहती थीं। इसीलिए उन्होंने अपनी दोनों पोतियाँ — आक्षी और कामाक्षी — को शहर भेज दिया था। ये दोनों मुंबई के एक बहुत बड़े कॉलेज में पढ़ती थीं और ज़्यादातर समय मुंबई में ही बिताया करती थीं। अगर कभी गाँव आने की इजाज़त भी माँगतीं, तो भी दादी उन्हें गाँव नहीं आने देती थीं, बल्कि खुद ही पूरा परिवार लेकर शहर जाया करती थीं, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दुश्मनों को इन बच्चियों के बारे में पता चल गया, तो वो उन्हें जान से मार देंगे। इसलिए उन्होंने हमेशा लड़कियों को गाँव और खुद से दूर ही रखा, हालांकि वो उन्हें बेहद प्यार करती थीं।
यहाँ तक कि आक्षी की बड़ी बहन कामाक्षी की शादी भी शहर में ही हुई। लेकिन आक्षी ज़िद्दी थी। उसने दादी से ज़िद की कि वो अपनी शादी गाँव में ही करेगी। दादी उसकी शादी शहर में ही करना चाहती थीं और सारा खर्चा भी खुद उठाने को तैयार थीं, लेकिन आक्षी ने ज़िद पकड़ ली थी। इसलिए विकास महल को सजाया गया था, क्योंकि आज आक्षी और पास के गाँव के सरपंच के बेटे की सगाई का फंक्शन था।
आक्षी बहुत देर से अपने कमरे में इंतज़ार कर रही थी लेकिन उसे लेने कोई नहीं आया। उसके मन में बार-बार ब्यूटीशियन की बात चल रही थी — कि उसे एक बार तो अपने मंगेतर को अपना ये रूप दिखा ही देना चाहिए, ताकि उसका रिएक्शन देखा जा सके। सबके सामने अगर वो एक्साइटेड भी हो गया, तो भी कुछ कह नहीं पाएगा, लेकिन अकेले में उसके मन की बात ज़रूर सामने आ जाएगी। उसने सोचा, काफी समय हो गया है, शायद और देर होगी, तो क्यों ना एक बार खुद ही जाकर दूल्हे से मिल आए?
यही सोचते हुए आक्षी अपना लहंगा सँभालती है और धीरे से अपने कमरे से बाहर निकलती है। उसे पता था कि लड़कों को कौन-सा कमरा दिया गया है, इसलिए वो दबे पाँव उसी तरफ बढ़ने लगी। जैसे-जैसे वो आगे बढ़ रही थी, उसकी शर्म और दिल की धड़कन दोनों तेज हो रही थीं। वो कमरे के बाहर पहुँच गई और शरमाते हुए अपना चेहरा नीचे झुका लिया। उसने दरवाज़े पर हाथ रखा ताकि हल्के से खटखटा सके, लेकिन जैसे ही हल्का धक्का दिया, दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया — शायद पहले से ही खुला हुआ था।
आक्षी पहले तो हैरान हुई, लेकिन फिर धीरे से अंदर झाँकने लगी। उसने इधर-उधर नज़र दौड़ाई ताकि लड़का दिख सके, पर जो उसने अपनी आँखों के सामने देखा, उसे देखकर तो उसकी हिम्मत ही जवाब दे गई। वो लड़का, जिससे आक्षी की सगाई होने वाली थी, वो कमरे के बिस्तर पर महल की एक नौकरानी के साथ बिना कपड़ों के था।
आक्षी का मुँह खुला का खुला रह गया और वो एकदम से दरवाज़े से टकरा गई, जिससे आवाज़ हो गई। दरवाज़े की आवाज़ सुनकर वो लड़का चौंककर पीछे मुड़ा और जब उसने आक्षी को देखा, तो उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। नौकरानी भी डर के मारे आक्षी को ही देख रही थी, क्योंकि शकुंतला देवी के गुस्से और कोप का सामना तो अब उसे करना ही था।
आक्षी की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने अपना मुँह अपने हाथ से ढक लिया। वो लड़का जल्दी से उठकर आक्षी से बोला, “आक्षी, सुनो… मेरी बात सुनो…”
लेकिन अगली ही पल आक्षी वहाँ से निकल गई और तेज़ कदमों से भागने लगी। वो इतनी ज़्यादा घबरा गई थी कि अपने कमरे की ओर वापस जाने की बजाय महल के पिछले हिस्से की तरफ भाग गई। उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और दिल बेतहाशा धड़क रहा था। जो उसने देखा, वो भुलाया नहीं जा सकता था। वो इतनी तेज़ भागी कि होश ही नहीं रहा कि कब महल से बाहर निकल गई और सुनसान रास्ते पर भागने लगी।
अचानक से भागते-भागते आक्षी रुक जाती है और तेजी से सांस लेने लगती है। उसने देखा कि वो जंगल के रास्ते आ गई है और आसपास सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है। उसे आसपास कहीं महल नज़र नहीं आ रहा था, सिर्फ अंधेरा ही दिख रहा था। अब उसे डर लगने लगा था। वो शायद महल से काफ़ी दूर निकल आई है और उसे वापस महल लौटना होगा। सबको बताना होगा कि जिस लड़के के साथ उसकी सगाई थी, वो अच्छा लड़का नहीं है, और वो घर की नौकरानी के साथ क्या कर रहा था। यही सोचते हुए आक्षी वापस जाने को मुड़ती है, पर तभी अचानक से उसके सर पर कोई चीज़ जाकर लगती है और उसका सर तेजी से घूमने लगता है। अचानक से आक्षी की आंखों के सामने भारीपन आ जाता है और उसकी आंखें बंद हो जाती हैं। लेकिन जब उसकी आंखें बंद होती हैं, तो वो ज़मीन पर नहीं गिरती… बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे थाम रखा हो।