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Wishper of dying lovers

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प्यार की यह अनोखी दास्तान जिसमें उलझा रखा है तीन दिलों को । जहां एक के लिए यह प्यार अब उसकी जिद्द बन चुका है लेकिन वह कहते हैं ना ," इश्क करना सब के बस की बात नहीं इतना समझ लीजिए एक आग का दरिया है और डूब के जाना है बच गए तो ठीक वरना...

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Prince

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शिव

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Total Chapters (82)

Page 1 of 5

  • 1. Wishper of dying love - Chapter 1

    Words: 1019

    Estimated Reading Time: 7 min

    कहानी एक छोटे से बच्चे की थी, जिसका नाम शिव था। वह अपने कमरे में बैठा था, कमरे की लाइट बंद थी और अंधेरे में वह कुछ सोच रहा था। वह तकिए को गोद में दबाए हुए सिसकियां भर रहा था, खुद को कोस रहा था। वह भूलना चाहता था, वे सारे पल जो उसके साथ हुए थे। वह आगे बढ़ना चाहता था, पर मजबूर था अपनी किस्मत से। वह भी अपनी किस्मत से लड़ना चाहता था, यकीन मानिए दोस्तों, वह भी लोगों से बहुत कुछ चाहता था।

    पर वह लड़े कैसे? उसके सामने तो उसके अपने ही बैठे थे—भाई-बहन, माँ-बाप। कहते तो थे, पर उसकी दुविधा को कोई समझता नहीं था। कोई उसे क्या समझ पाता? रो रहा था वह अकेला, उस कमरे में। क्यों उम्मीद ठोकर मार जाती है किसी पर? क्यों किसी को हक नहीं मिलता? क्या वह भी इंसान नहीं था? क्या उसे भी अपना हक मिल पाएगा?

    "शिव बेटा... इतना अंधेरा क्यों है? सब ठीक तो है, क्या हुआ बच्चे?" हाँ, यह आवाज़ थी उसकी माँ की। वह आवाज़ सुनते ही अपने आँसुओं को छुपाते हुए जल्दी से खड़ा हो गया।

    उसकी माँ ने पूछा, "इतना अंधेरा क्यों? नहीं, बस कुछ नहीं, मैं ऐसे ही थक गया था, तो थोड़ा आराम करने का सोच रहा था।"

    "अरे बेटा, लाइट बंद करके कौन सोता है? इतना अंधेरा है, कुछ हो जाता तो? तुझे तो अंधेरे से डर लगता है ना? तू कब से अंधेरे में रहने लगा?"

    "माँ, जब पूरी दुनिया में अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे, तो उससे भी मोहब्बत हो जाती है," शिव ने धीमी आवाज़ में कहा। "क्या कहा तूने?"

    उसकी माँ ने दोबारा पूछा। वह बहाने बनाते हुए बोला, "अरे, कुछ नहीं, बस मैं ऐसे ही।"

    "देख, मैं तेरी माँ हूँ, तेरे साँसों के आहट से समझ जाती हूँ," और यह सुनते ही शिव अचानक अपनी माँ के गले लग गया।

    और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह खुद को रोक नहीं पाया। उसे रोता देख, उसकी माँ ने कहा, "क्या हुआ बच्चे, क्यों रो रहा है? किसी ने कुछ कहा? तुझे कुछ चाहिए?"

    शिव ने अपनी माँ से कहा, "मम्मी, एक बात बताओ, अगर मैं आपका बेटा नहीं निकला तो आप मुझे छोड़ दोगी?"

    "पागल हूँ क्या तू, कैसे बातें कर रहा है?"

    "मतलब, कि मैं जो आप लोग सोचते हैं, वह नहीं हूँ तो मुझे छोड़ दोगी? मुझे घर से धक्के मार के निकाल दोगी? मैं भी आपसे दूर हो जाऊँगा।"

    उसकी माँ कुछ समझ नहीं पाईं। उन्हें लगा कि कुछ हुआ होगा। उन्होंने कहा, "तू मेरा बेटा है, जैसा भी है, मेरी शान है। और तू मेरे लिए सब कुछ है। यह सोचना बंद कर दे, कुछ भी हो जाए, मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगी। तू हमेशा मेरे साथ रहेगा।" इतना कहकर वह उसके सर पर प्यार से हाथ फेरने लगी और उसे चुप कराते हुए बोली,

    "पता है, मैंने आज क्या बनाया है? खाने में तेरा फेवरेट दाल पूरी और खीर। जल्दी-जल्दी आ जाओ खाने पर।"

    "मम्मी, सुनो, मन नहीं है खाने का।"

    "अरे, ऐसे कैसे मन नहीं है? चलो, जल्दी से अच्छे बच्चों की तरह फ्रेश होकर के आ जाओ नीचे। जल्दी आओ, सब वेट कर रहे हैं तुम्हारा।" इतना कहकर वह उसके कमरे से बाहर चली गई।

    शिव फ्रेश होकर नीचे डाइनिंग टेबल पर गया। वहाँ पर उसके भाई-बहन और उसके पापा सब उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसे सीढ़ियों से उतरते देख उसके पापा जोर से बोले, "आजा मेरे चैंपियन, आज तेरी मम्मी ने हमको अभी तक खाने को नहीं दिया, जल्दी-जल्दी आ जा, हम लोग को जोर की भूख लगी है। जब तक तू नहीं खाएगा, हमें भी नहीं मिलेगा, यार, जल्दी से आजा।"

    सब शिव को बुला रहे थे। शिव आकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया, पर वह अभी भी खोया-खोया सा ही था। उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उसने थोड़ा-बहुत खाना खाकर अपने कमरे में सोने चला गया।

    दूसरे दिन वह स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ और स्कूल गया। हाँ, इस बार क्लास नौवीं का एग्जाम था, पर इस बार अचानक से क्या हुआ कि उसका रिजल्ट सही नहीं आया। जो हमेशा टॉप करता था, वह अचानक से गुपचुप क्यों रहने लगा था? सबके मन में यह सवाल उठने लगा।

    उसकी माँ को स्कूल में बुलाया गया और टीचर ने पूछा, "सब ठीक है आप के घर पर रितु जी?"

    "हाँ जी, सब ठीक है, क्यों आप ऐसे पूछ रहे हैं?" थोड़ा घबराते हुए शिव की माँ ने टीचर से पूछा। तो टीचर ने बताया, "शिव आजकल कुछ परेशान सा रहता है, क्लास में खोया-खोया रहता है, पढ़ाई में भी कमज़ोर होता जा रहा है, उस पर ध्यान दीजिए।"

    "अब मैं जा सकती हूँ जी, थैंक्यू सर, मैं आगे से उस पर ध्यान दूँगी।" यह कहकर वह सोचते हुए टीचर के केबिन से बाहर आ गई।

    उन्हें लगा कि शिव को कोई बीमारी होगी। अगले दिन वह उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने चेक करने के बाद शिव से बोला, "बेटा, जरा मेडिकल रूम से ये दवाई लेकर आओगे..."

    "जी, मैं लेकर आता हूँ सर, मुझे कुछ हुआ है, क्या?" थोड़े डर के साथ शिव ने पूछा। "कुछ नहीं है, तू परेशान मत हो, तुझे कुछ नहीं हुआ है, ये दवाई दूसरे की है।"

    शिव यह सुनकर बाहर गया, दवा लाने को। तब डॉक्टर ने उसकी माँ से कहा, "इसको कोई ऐसा दोस्त चाहिए जिससे खुलकर अपनी बातें कर सके, कि अंदर ही अंदर घुट रहा है, अपनी बातों को लेकर यह बहुत कुछ झेल रहा है, ऐसे में इसका फ्यूचर खराब हो सकता है, इसके मेंटल हेल्थ पर असर पड़ सकता है।"

    "मैडम, दोस्त हैं कोई मार्केट में मिलने वाला खिलौना नहीं, कि आप कहीं से भी ला देंगे।"

    "आपको इससे दोस्ती करनी पड़ेगी, जो बताए उस पर उसे डांटना नहीं है, उसको समझने की कोशिश करें।" यह सब बातें सुनकर शिव की माँ डॉक्टर की बात मान गई और उसने कहा, "अपने बच्चे के लिए मैं कुछ भी करूंगी।"

    "आपको इससे दोस्ती करनी पड़ेगी, जो बताए उस पर उसे डांटना नहीं है, उसको समझने की कोशिश करें।" यह सब बातें सुनकर शिव की माँ डॉक्टर की बात मान गई और उसने कहा, "अपने बच्चे के लिए मैं कुछ भी करूंगी।"

  • 2. Wishper of dying love - Chapter 2

    Words: 1538

    Estimated Reading Time: 10 min

    डॉक्टर की बात सुनकर शिव की माँ मान गई और बच्चे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो गई। "अपने बच्चे के लिए मैं कुछ भी करूंगी," उसने कहा।

    तब तक शिव दवा लेकर आया। "सर, आपकी दवा। थैंक्स," डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए शिव से कहा।

    शिव ने भी हल्की सी मुस्कान देते हुए कहा, "इट्स माय प्लेज़र सर।" "हम जा सकते हैं क्या?"

    "जी बिलकुल," डॉक्टर ने कहा।

    "शिव, सुनो तुम घर चलो, मैं थोड़ी देर में आती हूँ," शिव की माँ ने कहा।

    "ठीक है," शिव ने उत्तर दिया।

    शिव अकेला घर चला गया। थोड़ी देर बाद उसकी माँ घर आई और शिव के पास आकर बोली,

    "बेटा देख, तेरे लिए मैंने क्या लाया है!"

    "देख, तेरी फेवरेट पढ़ने की किताबें, बंदर, यह भालू, तेरे लिए तेरी फेवरेट साइकिल..." इस पर शिव को अचानक गुस्सा आ गया।

    "माँ, कभी आपने मेरी पसंद पूछी? आपको पता है मुझे क्या पसंद है, क्या चाहिए? आप लोग बस अपनी पसंद क्यों मुझ पर थोपते रहते हैं? क्या मैं आप लोगों का कुछ नहीं लगता...?" यह कहकर वह गुस्से में सब फेंककर कमरे में भाग गया।

    "पर बेटा, सुन तो... हमने क्या किया? सुन तो बता तो सही, हुआ क्या? क्या हुआ?" उसकी माँ रोते हुए पूछने लगी, उसकी आँखों में आँसू आ गए। पीछे खड़े उसके पिता उसे देखते रहे।

    उसकी माँ थोड़ी परेशान होकर कमरे में जाने लगी, तभी उसके पिता ने आवाज दी, "रितु, रुक जाओ। थोड़ी देर उसे अकेले रहने दो। इस समय वह सही कंडीशन में नहीं है।"

    "पर क्या हो गया इसको? आप ही देखिए ना, कितना पहले हँसता-खेलता था। कुछ तो बात है जो यह छिपा रहा है," पिता ने कहा। माँ रोते हुए पिता के गले लग गई। पिता ने उसे संभालते हुए कहा, "उसके दोस्तों से पता करने की कोशिश करते हैं। शायद कुछ पता चल जाए।"

    "रितु, एक काम करो ना, घर पर पार्टी रखते हैं और उसमें शिव के सभी दोस्तों को बुलाते हैं। क्या पता हमें कुछ पता चल जाए और इसी बहाने उसका मूड भी ठीक हो जाए।" उन्होंने शिव को सरप्राइज पार्टी देने का सोचा।

    दूसरे दिन उन्होंने घर पर पार्टी रखी। वहाँ पर उसके सारे दोस्त आए, उसकी सबसे फेवरेट दोस्त मिली भी आई। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद मिली ने कहा, "आंटी, शिव कहाँ है? दिखाई नहीं दे रहा है। बेटा अपने कमरे में है। हमने कई बार उसे बुलाया, वो नीचे नहीं आ रहा!" ऋतु उदास होकर मिली से बोली।

    "आंटी, आप टेंशन ना लो, मैं शिव को लेकर आती हूँ।" मिली शिव के कमरे की तरफ गई। शिव की माँ उसके पीछे-पीछे गई और शिव के कमरे के बगल में खड़ी हो गई।

    "शिव! यश... अरे दरवाजा खोल, बंदर! मैं मिली हूँ!" अंदर से आवाज आई, "देख मिली, मेरा मूड ठीक नहीं है। जा तू नीचे पार्टी में। मुझे किसी से बात नहीं करनी... देख, तुझे अगर मेरे हाथों मार खाना है तो दरवाजा ना खोल। शायद तू भूल गया, मैंने जैसे स्कूल का गेट खोला था, वैसे ही ऐसे भी खोल दूँगी। अब खोल ना गेट! खोल भी दे, देख पक्का यहाँ पर कोई नहीं है और तेरा मन नहीं है ना पार्टी में आने का, तो साथ में मैं भी रुकती हूँ। मैं भी बोर हो रही हूँ नीचे।"

    थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद, "अरे खोल दे यार, खोल भी!" इतना कहते ही शिव ने गेट खोल दिया और मिली अंदर चली गई।

    "यश, तू स्कूल क्यों नहीं आ रहा? सब ठीक तो है? पता है स्कूल में क्या हुआ है? यार, नया सेमेस्टर स्टार्ट हो गया है। एक खड़ूस टीचर आया हुआ है। अपना सीनियर, उसने अपने कॉलेज से ट्वेल्थ पास आउट किया है और हम लोगों को वही पढ़ा रहा है। टीचर ना होने की वजह से उसी से पढ़ना पड़ रहा है। बहुत गंदा है यार, बहुत डाँटता है, बहुत डिस्ट्रिक्ट भी है।"

    "कब से आ रहा है तू? तेरे बिना क्लास में मन भी नहीं लगता।" तभी शिव की माँ मिली को एक तरफ बुलाती हैं। "मिली, बेटा सुनना, एक मिनट इधर आना।" यह कहकर मिली उठते हुए शिव से कहती है, "सुन, जल्दी से रेडी हो जा और मैं वापस आने पर तुझे नीचे चलना है। कोई बहाना नहीं, तो तू पीट जायेगा मुझसे।" यह कहकर वह वहाँ से चली जाती है।

    "एह आंटी, आपने बुलाया? जी, कुछ काम था। बेटा, एक मिनट मेरे साथ चलना जरा, तुमसे कुछ बात करनी है, जरूरी है।" ऋतु मिली को लेकर दूसरे कमरे में चली जाती है।

    "बेटा, एक बात बताना, कुछ हुआ है क्या? इसको कुछ दिन से उखड़ा-उखड़ा सा है। कुछ बात है क्या? स्कूल में कुछ हुआ है क्या?" ऋतु रोते हुए पूछने लगती है।

    मिली हिचकिचाते हुए कहती है, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। कुछ नहीं हुआ आंटी।"

    "देखो, सच-सच बताओ बेटा। उसके हेल्थ का सवाल है और तुम शिव की सबसे अच्छी दोस्त हो ना, तो बताओ प्लीज बेटा..." यह कहकर ऋतु रोने लग जाती है और मिली उसे बेड पर बिठाती है। "आंटी, ऐसा है..." मिली थोड़ी घबरा जाती है और कहती है...

    "ऐसा है कि यश... नहीं, क्या मतलब बेटा? मैं कुछ समझी नहीं। दरअसल, आंटी, गलती से क्लास के एक बच्चे को पता चल गया है कि शिव 'गे' है।"

    "और वह इसको परेशान कर रहा है, ब्लैकमेल कर रहा है कि वो सब को बता देगा। वो शिव से अपना सारा होमवर्क करवाता है, उसका टिफिन खा जाता है और जब छुट्टी होती है तो उससे अपना साइकिल साफ करवाता है और बहुत कुछ।"

    "वह सब को बता देगा, इसी डर से शिव सारे काम करता है। उससे ये सब होने से वह डर गया है कि अगर आप लोगों को पता चलेगा कि वो गे है तो आप लोग उसे छोड़ देंगे, स्कूल में सब मजाक बनाएंगे। इसीलिए वो लोगों से दूर रह रहा है।"

    "और आंटी, आप को पता है, जब वो मेरे साथ होता है तो मुझे सब कुछ बताता है। उसको आर्ट्स, सिंगिंग, लिखने का बहुत शौक है और वो कहता है आप लोगों को ये सब नहीं पसंद है, इसीलिए वो आप को कुछ नहीं बताता है।"

    तभी मिली अपने फोन से शिव की कुछ पेंटिंग्स और राइटिंग, स्टोरी और शायरी दिखाती है। उसकी माँ देखकर हैरान हो जाती है। "कितना अच्छा है!" तभी उसके पिता आते हैं और वो ये सब देखकर चौंक जाते हैं। "इतनी अच्छी पेंटिंग करता है? आज तक हमें पता ही नहीं था।"

    "अंकल, आंटी, अभी और कुछ दिखाती हूँ।" वह शिव की और चीजें दिखाती है, जो उसने लिखी थीं। देखकर वे बहुत खुश होते हैं।

    फिर आंटी कहती हैं, "शिव गे है, इस बारे में हमको क्यों नहीं बताया?" मिली कहती है, "वह डरता है कि आप लोगों को जब पता चलेगा कि वह गे है तो आप लोग उसको छोड़ दोगे और वह आप लोगों के बिना नहीं रह सकता। इसलिए वह सुसाइड करने की सोचता रहता है।" यह बात सुनकर ऋतु थोड़ी शॉक हो जाती है और बेड पर बैठकर सोचने लगती है।

    फिर आंटी कहती हैं, "शिव गे है, इस बारे में हमको क्यों नहीं बताया?" मिली कहती है, "वह डरता है कि आप लोगों को जब पता चलेगा कि वह गे है तो आप लोग उसको छोड़ दोगे और वह आप लोगों के बिना नहीं रह सकता। इसलिए वह सुसाइड करने की सोचता रहता है।" यह बात सुनकर ऋतु थोड़ी शॉक हो जाती है और बेड पर बैठकर सोचने लगती है।

    तभी शिव के पिता बोलते हैं, "बेटा, तुम नीचे चलो, हम आते हैं।" और मिली वहाँ से चली जाती है। थोड़ी देर सोचने के बाद शिव की माँ शिव के पिता से कहती है, "हमारा बेटा गे है।" उसके पिता कहते हैं, "जैसा भी है, वो हमारा बेटा है और इस समय उसको हमारी ज़रूरत है। फिर ये नॉर्मल है।"

  • 3. Wishper of dying love - Chapter 3

    Words: 1501

    Estimated Reading Time: 10 min

    तभी शिव के पापा बोले, "बेटा, तुम नीचे चलो, हम आते हैं।" और मिली वहाँ से चली गई। थोड़ी देर सोचने के बाद, शिव की मम्मी, ऋतु, शिव के पापा से बोली, "हमारा बेटा gay है।" इस पर शिव के पापा बोले, "जैसा भी है, वो हमारा बेटा है, और इस समय उसको हमारी ज़रूरत है। फिर ये नॉर्मल है।"

    "कुछ नॉर्मल नहीं है। आपको जरा सा भी आइडिया है? लोग क्या सोचेंगे? क्या होगा उसका?"

    "अभी वो बच्चा है, हो सकता है उसे ऐसा लगता हो। हमें उसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए।" इतना कहकर ऋतु तेज़ी से रोने लगी और बेहोश हो गई।

    "कुछ नॉर्मल नहीं है। आपको जरा सा भी आइडिया है? लोग क्या सोचेंगे? क्या होगा उसका? समाज उसे गलत नज़रों से देखेगा। समाज में उसकी जगह मिलेगी?"

    "किसका मुँह बंद करेंगे आप? लोगों को कैसे बताएँगे कि मेरा बेटा gay है? आपने कभी सोचा है क्या करेंगे आप?" इस पर शिव के पापा गुस्से से बोले, "कल को अगर वो मर जाएगा तो तुम सहन कर पाओगी? कल को अगर उसे कुछ हो गया तो तुम सहन कर पाओगी?"

    "हाँ, मैं सहन कर लूँगी। कम से कम हमारी नाक तो नहीं कटेगी। आप शायद भूल रहे हैं कि आपकी बेटी भी है। उसकी शादी कैसे करेंगे आप? जब लोग सवाल पूछेंगे तब आप क्या करेंगे? आपने कभी सोचा है?"

    "किसका-किसका मुँह बंद करेंगे आप? तुम्हें क्या हुआ है यार? तुम क्यों ऐसे कर रही हो? तुम्हें जरा सा भी एहसास है? इस समय उसके ऊपर क्या बीत रही है? जब हमें उसका साथ देना चाहिए, तो तुम उसके ख़िलाफ़ जा रही हो। इसी डर के नाते वो तुम्हें कुछ नहीं बता रहा था।" यह सब सुनने के बाद, शिव के पापा वहाँ से गुस्से में चले गए और शिव के पास बैठ गए।

    उसके पास बैठकर बोले, "बेटा, एक बात बता, तुझे क्या लगता है? तू नहीं बताएगा तो हमको पता नहीं चलेगा। और तू क्यों डरता है रे? तू मेरा बच्चा है, और तू कुछ भी हो, मेरे लिए तो तू मेरा खून है। मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कि तू क्या है, क्या नहीं है।"

    "मैं बस इतना जानता हूँ कि तू मेरा बेटा है। और देख, तुझे किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है। हम कहीं नहीं जा रहे, तुझसे दूर। इसमें तेरी कोई गलती नहीं है। आजकल तो ये सब नॉर्मल है। हम सबको समझा देंगे, और धीरे-धीरे सब समझ जाएँगे।"

    अपने हाथ धीरे-धीरे शिव की तरफ़ बढ़ाते हुए बोले, "मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। मिली ने मुझको सब कुछ बता दिया है। तूने ये सब बात मुझसे क्यों छुपाई? चल, आज से प्रॉमिस कर, मुझसे कुछ नहीं छिपाएगा। और बेटा, तू टेंशन ना ले, कोई नहीं है। तेरे पापा तेरे साथ हैं।"

    "और तुझे कुछ भी कोई नहीं करेगा। चल, अब जल्दी से फ़्रेश हो जा और नीचे पार्टी में आ। शाबाश मेरा शेर! बेटा है ना?" यह बात सुनकर शिव उनके गले लगकर जोर-जोर से रोने लगा। उसके पापा को भी रोना आ गया।

    तब तक पीछे से शिव की बहन, श्वेता, आई। "बेटा, तूने ये कैसे सोच लिया कि हम सोसाइटी और तेरे बीच में सोसाइटी को चुनेंगे? तू तो मेरा भाई है। तुझे मैंने बहुत प्यार से पाला है। तू छोटा था, तुझे हल्की सी भी ख़रोच आती थी किसी की वजह से, तो मैं लोगों के सर फोड़ देती थी।"

    "और तुमसे कुछ नहीं छुपाया करता था। और इतनी बड़ी बात तुमने मुझसे कैसे छुपाई? क्या मैं इतनी बुरी हूँ? और चल, तूने छुपाई तो छुपाई, पर तू डर क्यों रहा था? और तूने सुसाइड करने का कैसे सोच लिया?"

    "तुझे जरा सा भी अंदाज़ा है? तेरे बिना हम कैसे रहेंगे? सोचा है कभी? तू हमारा प्यार है रे! कुछ भी हो जाए, तुझे नहीं छोड़ेंगे। माना कि मम्मी-पापा ने तुझे कचरे के डिब्बे से उठाकर लाए थे, पर अब तो तू फैमिली का हिस्सा है। और तू क्यों डर रहा था कि तुझे हम छोड़ देंगे? पागल!"

    "पापा देखिए, फिर चालू हो गई ये! हम कचरे के डिब्बे से नहीं आए हैं! पापा से पूछ लीजिए!" "बोलिए पापा, उन्हें ऐसे ना बोला करे! हमें अच्छा... अब पापा से मेरी शिकायत करेगा! सच कड़वा होता है, पर सच सच होता है।" यह कहकर श्वेता आयु को गले लगकर रोने लगी। "देख, मुझे रुला मत! बड़ी मुश्किल से अच्छे से eye 👁️ लाइनर लगाया है।" और हल्का सा मुस्कुराने लगी और बोली,

    "इसमें तेरी कोई गलती तो नहीं है। इंसान अपने आप से तो होता नहीं है। उसके हाथ में थोड़ा ना होता है कि वो gay बनेगा या straight होगा। और वो खुद को क्यों बदले? भाई, उसकी भी लाइफ है। क्यों? पापा सही कह रहे हैं।" हड़बड़ाते हुए भरी आँखों से सिर हिलाते हुए पापा ने "हाँ" बोला। "जो भी है, तू मेरे साथ है बेटा," कहकर उसको हँसा दिया और जल्दी से नीचे पार्टी में खुशी-खुशी आने को बोला।

    शिव रेडी होकर पार्टी में गया।

    पार्टी खत्म होने के बाद, क्योंकि माँ शिव से थोड़ी खफ़ा हो गई थी, बोली, "देख, तू तो ऐसा कुछ है नहीं कि फ़ालतू का वहम अपने दिमाग में मत डाल। कल तुझे मैं डॉक्टर के पास लेकर जाऊँगी, और चुपचाप तू चलेगा।" यह कहकर वो किचन में चली गई।

    सुबह होते ही, वो बिना किसी को बताए शिव को अपने साथ डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर को सारी बात बताई, तो डॉक्टर बोला, "देखिए, इसमें इसकी कोई गलती नहीं है। ये सब चीज़ें नॉर्मल हैं।"

    "ये चीज़ पहले भी थी, पर पहले लोग डरते थे, किसी से कुछ नहीं बताते थे। पर आजकल सब चीज़ें सबके सामने आने लगी हैं। लोग स्टैंड लेने लगे हैं। लोग समझते हैं। लोग अपनी लाइफ जीने लगे हैं। लोग एजुकेटेड हो गए हैं।"

    "और यही रीज़न है कि लोग खुलकर रह रहे हैं। पर इसका कोई इलाज नहीं है। ये कोई बीमारी नहीं है। जी, आपका बच्चा बिल्कुल ठीक है।"

    तो इस पर शिव की माँ डॉक्टर पर भी भड़क गई। "क्या हुआ है? आप ठीक नहीं कर सकते तो बहाने मत बनाइए ना! आपकी डिग्री ही फ़र्ज़ी है!" इस बात को सुनकर डॉक्टर बोला, "जी, आपके दिमाग में गड़बड़ी है, मेरी डिग्री में नहीं। कृपया करके आप यहाँ से चली जाएँ। आप जैसे लोगों की वजह से ये देश और बर्बाद हो रहा है, और आप जैसे लोगों की वजह से आज ऐसे लोग सुसाइड कर रहे हैं।" यह कहकर डॉक्टर ने वहाँ से जाने के लिए कहा।

    बाहर आकर शिव की माँ शिव से बोली, "अगर तुझे मेरी जरा सी भी इज़्ज़त करता है, तो घर पर किसी को कुछ नहीं बताएगा, कहाँ पर तू आया हुआ है।" और यह जो कुछ भी हुआ। शिव उदास होकर हाँ में सिर हिलाते हुए आगे निकल गया।

    घर पर आता है तो उसके पापा ने पूछा, "कहाँ गया था बेटा?" तो शिव बोला, "बस ऐसे ही, मम्मी के साथ घूमने गया था।" "क्या बात है? सुलह हो गई माँ-बेटे की? अच्छी बात है।" पर शिव की आँखें आँसुओं से भरी थीं, मानो अब वो निकल ही जाएँगी। पर शिव उनको छिपाते हुए जल्दी से कमरे में चला गया।

    उसके पापा को कुछ ना कुछ डाउट हुआ। तब तक ऋतु आ गई। तब शिव के पापा बोले, "कहाँ गए थे आप लोग भाई इतनी सुबह-सुबह?" "अरे जी, क्या बताएँ? बस हमने सोचा कि शिव के साथ थोड़ा वक़्त अकेले में बिताएँ, शायद उससे कुछ समझ सकें हम।"

    "अच्छी बात है, अच्छा लगा आपको ऐसे देखकर।" तब ऋतु बोली, "मैं आई थोड़ी देर में।" शिव अपने कमरे में बैठा हुआ था कि वहाँ पर उसकी माँ आ गई और उसके पास बैठकर उससे बोली...

  • 4. Wishper of dying love - Chapter 4

    Words: 1675

    Estimated Reading Time: 11 min

    तो इस पर शिव की माँ डॉक्टर पर भी भड़क गई। "क्या हुआ है? आप ठीक नहीं कर सकते तो बहाने मत बनाइए ना! आपकी डिग्री ही फर्ज़ी है!" इस बात को सुनकर डॉक्टर ने कहा, "जी, आपके दिमाग में गड़बड़ी है, मेरी डिग्री में नहीं। कृपया करके आप यहाँ से चली जाएँ। आप जैसे लोगों की वजह से यह देश और बर्बाद हो रहा है और आप जैसे लोगों की वजह से आज ऐसे लोग सुसाइड कर रहे हैं।" यह कहकर डॉक्टर ने उन्हें वहाँ से जाने के लिए कहा।


    बाहर आकर शिव की माँ शिव से बोली, "अगर तुझे मेरी जरा सी भी इज़्ज़त करता है तो घर पर किसी को कुछ नहीं बताएगा कि कहाँ पर तू आया हुआ है और यह जो कुछ भी हुआ।" आयु ने उदास होकर हाँ में सिर हिलाया और आगे निकल गया।


    घर पर आता है तो उसके पापा ने पूछा, "कहाँ गया था बेटा?" तो शिव ने कहा, "बस ऐसे ही मम्मी के साथ घूमने गया था।" "क्या बात है? सुलह हो गई? माँ-बेटे की अच्छी बात है..." पर शिव की आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं, मानो अब वो निकल ही जाएँगी। पर शिव उनको छिपाता हुआ जल्दी से कमरे में चला गया।


    उसके पापा को कुछ न कुछ डाउट हुआ। तब तक ऋतु आ गई। तब शिव के पापा बोले, "कहाँ गए थे आप लोग भाई इतनी सुबह-सुबह...?"


    "अरे जी, क्या बताएँ? बस हमने सोचा कि शिव के साथ थोड़ा वक़्त अकेले में बिताएँ, शायद उससे कुछ समझ सकें हम।"


    "अच्छी बात है। अच्छा लगा आप को ऐसे देखकर।" तब ऋतु बोली, "मैं आई हूँ।"


    थोड़ी देर में शिव अपने कमरे में बैठा था कि वहाँ पर उसकी माँ आ गई और उसके पास बैठकर उससे बोली,


    "बेटा सुन, तेरे से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, तो कुछ भी गलत मत समझना। मैं जो कर रही हूँ, तेरे लिए कर रही हूँ। पर तुझे पता है, तेरी वजह से हमारी पूरी इज़्ज़त चली जाएगी, तेरी बहन की शादी नहीं हो पाएगी...!"


    "तूने सोचा है कल को जब उसके ससुराल वाले पूछेंगे तो क्या बताएँगे? 'मेरा बेटा gay है!' ऐसा भाई जिसका होगा, उसकी शादी कैसे होगी? तूने सोचा है कभी? देख, तू परिवार की भलाई चाहता है तो यह बात कभी भी बाहर मत आने देना।" यह कहकर वह वहाँ से चली गई।


    शिव रोने लगा और खुद से बोला, "मम्मी, इसीलिए मैं आपको नहीं बता रहा था। उस दिन जब मैंने आपसे पूछा कि मैं वह नहीं हूँ, तो आप अपनाओगे? तो आपने तो कह दिया था..."


    अब क्या हो गया? आप तो ऐसे नहीं थीं। तब तक दरवाज़े से आवाज़ आई, "तेरे अलावा और भी बच्चे हैं और हमारी सोसाइटी में इज़्ज़त है। हम क्या मुँह दिखाएँगे रिश्तेदारों को? हम क्या उन्हें बताएँगे? और चुपचाप इस बारे में... अगर किसी को पता चला, आज से तेरा बाहर आना-जाना बंद। सीधा स्कूल से घर, घर से स्कूल। और अगर किसी को पता चला तो स्कूल भी बंद।"


    शिव रोते हुए अपने कमरे में बैठा हुआ था और यह सब बात उसकी दीदी सुन लेती है। तब तक नीचे से शिव के पापा की आवाज़ आई, "ऋतु, नीचे आना! तो जल्दी आना!" उनके आवाज़ में गुस्सा साफ़ झलक रहा था।


    "ऋतु, क्या हो गया? क्यों चिल्ला रहे हो तुम? डॉक्टर के पास क्यों गई थीं?" "डॉक्टर के पास? मैं कहाँ गई थीं?" लड़खड़ाती हुई आवाज़ में ऋतु ने जवाब दिया। इस पर शिव के पापा बोले, "तुमने गलती से अपनी क्रेडिट कार्ड की जगह मेरा क्रेडिट कार्ड यूज़ कर दिया था पेमेंट करने के लिए। शायद जल्दी-जल्दी में तुम्हें ध्यान नहीं हुआ हो।"


    यह सुनकर ऋतु हैरान हो गई और बोली, "हाँ, गई थी डॉक्टर के पास। तो क्या? गलत कर दिया? और शिव? क्या मेरा बेटा नहीं है? मुझे भी उसकी परवाह है। परवाह उसकी नहीं, तुम्हें तुम्हारी so called इज़्ज़त की है, so called सोसाइटी में जो है।" यह कहकर वह गुस्से में घर से बाहर चले गए।


    ऋतु भी वहाँ से सीधा किचन में चली गई। थोड़ी देर बाद जैसे शिव की माँ किचन से बाहर आईं, हाल में बैठी ही रह गईं। श्वेता दी उनके पास जाकर बोली, "मम्मी, आप को जरा सा भी आईडिया है आपने क्या कहा है उसे? आप इतनी पढ़ी-लिखी होकर के कितनी अनपढ़ वाली हरकत कैसे कर सकती हैं?"


    "कल को उसके लिए परेशान थी, 'मेरा बेटा कैसे है? कैसे-कैसे है?' और आज जब जान लिया सच्चाई तो उसे ऐसे खफ़ा हो? उसमें उसकी क्या गलती है? क्या पहले ऐसे लोग नहीं होते थे? एक बात बताइए, आप ही ना कहती थीं ऐसे लोगों को समाज में इज़्ज़त मिलनी चाहिए। आप भी तो जानती हैं ना चीज़? पहले भी ऐसे थे, फिर क्यों ऐसा कर रही हो आप?"


    "बेटी, तू समझ नहीं रही है। मैं जो कर रही हूँ, मुझे करने दे। उसमें तेरी भलाई है।" "मम्मी, रहने दो। हमारी भलाई करने को हमारी भलाई हम खुद कर लेंगे।"


    "मम्मी, हमारा भाई है वो। उसको हमारी ज़रूरत है। कल को सुसाइड कर लिया तो मर जाए ना, अच्छा है। एक बोझ तो कम होगा, कम से कम हमारी इज़्ज़त तो बची रहेगी।" यह कहकर वह उठकर वहाँ से चली गई।


    शिव ऊपर खड़ा यह सब सुनकर रो रहा था। तब तक शिव के पापा की नज़र शिव पर गई। वो गेट पर खड़े होकर सब सुन रहे थे और वह दौड़कर उसके पास गए। पर शिव ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया। और यह देखकर श्वेता भी दौड़कर ऊपर आई।


    दोनों शिव का दरवाज़ा पीटने लगे। "बेटा शिव, दरवाज़ा खोल! बच्चे, देख हम मम्मी को समझा लेंगे। तू टेंशन मत ले। चल अब गेट खोल दे।" थोड़ी देर गेट न खुलने पर श्वेता और उसके पापा डर गए। "पापा, अगर कुछ गलत कर लिया उसने तो... पापा प्लीज़ कुछ करिए, गेट तोड़ दीजिए।"


    तब तक शिव ने दरवाज़ा खोला और पापा के गले लगकर रोने लगा। फिर उसकी दीदी बोली, "क्या? दोबारा अगर ऐसा किया तो थप्पड़ खाएगा! पागल है तू! तुझे कितनी बार समझाया है मैंने?" वो फिर रोने लगा। उसके पापा उसे चुप कराते हैं। फिर अगली सुबह जब वो स्कूल जाता है तो उसे चक्कर आ जाता है और वहाँ पर बेहोश हो जाता है। फिर उसके पापा को स्कूल से फ़ोन आता है और वह शिव को लेकर के घर आते हैं।


    और शिव को जब होश आता है तो वह घर पर होता है। "पापा, मैं यहाँ कब आया? आप के स्कूल से फ़ोन आया था तो हम आपको वहाँ से लेकर आए। देखिए, अगर आप खाना नहीं खाओगे तो ऐसे ही होगा। I'm sorry papa." "It's ok बच्चा। होता है। पता है मैं आपको अपने टाइम की स्टोरी सुनाऊँ तो..."


    "आपको यकीन नहीं होगा। कभी फुरसत से सुनाऊँगा।"


    अब शुभ के क्लास में हमेशा आयु उसकी नज़रों में आने के लिए अपना अच्छा करता था ताकि सब का ध्यान उस पर जाए। शिव ठहरा खड़ूस, वह कभी इस पर ध्यान नहीं देता था। 1 दिन क्लास में कुछ बच्चे शिव के ऊपर मज़ाक बना रहे थे। तब तक शुभ आ जाता है और सबको डाँटकर चुप कराता है और सब से कहता है कि अगर ऐसी हरकत हुई तो मैं सबको सस्पेंड करा दूँगा।


    "तुमको पता है यूनिटी में कितना स्ट्रेंथ होता है? और वो तुम्हारा क्लास मेट है। तुम लोग शायद उसे भूल रहे हो कि तुम लोगों से सबसे ज़्यादा अच्छा पढ़ने में शिव है। यहाँ पर अरे, कंपटीशन करना है तो उसकी पढ़ाई में करो ना, मज़ाक बनाने से कुछ नहीं होगा।" तुम लोगों से यह कहकर शुभ वहाँ से चला जाता है।


    और कुछ टाइम बाद वह शिव को बुलाता है। "शिव, जरा केबिन में आना तो।"


    शिव डरते-डरते शुभ के केबिन में जाता है। तो शुभ से कहता है, "एक बात बताओ, अगर तुम्हें कोई एक थप्पड़ मारेगा तो तुम क्या करोगे?" "सर, मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं तो सबसे कमज़ोर हूँ।" उदास और रोते हुए शब्दों में कहता है।


    "कमज़ोर हो पर मज़बूत तो बन सकते हो ना! सब का सामना करना सीखो। एक बात बताओ, कब तक लोगों से तुम भागते फिरोगे? कब तक तुम खुद को खुद से भागते फिरोगे? दुनिया में कमज़ोर लोगों को कोई जगह नहीं मिलती। जब तक तुम खुद को नहीं समझ पाओगे, लोग तुम्हें भी नहीं समझ सकते हैं।" यह बात सुनकर शिव थोड़ा सा हड़बड़ा गया। उसे लगा कि शुभ को सारी बातें पता हैं। "किस बारे में बात कर रहे हैं सर?" लड़खड़ाते शब्दों में शिव पूछता है।


    तो शुभ कहता है, "बेटा, जो तुम क्लास में रहते हो, तुम्हें क्यों डरना किसी से? तुम बहुत ही स्ट्रॉन्ग हो। और एक बात याद रखना, अपनी लड़ाई खुद लड़ना सीखो। तुम्हें कोई बचाने नहीं आएगा।" यह शुभ की बातें सुनकर काफी देर तक उसे देखता रहता है और खो जाता है और मन ही मन मुस्कुराने लगता है। और तब तक एक चमाट सिर पर लगता है और वो बोलती है, "बंदर, तू शुभ सर के केबिन में क्या कर रहा था?" मिली के चमाट ने उसे होश में तो ला ही दिया और शिव हल्का सा मुस्कुराकर वहाँ से चला जाता है।


    और शाम को अपने घर पर बैठा होता है और शुभ की बातों को सोच रहा होता है। तब तक उसकी दीदी आती हैं। वो बोलती है, "बेटा, तुमने न्यूज़ देखी?" शिव कहता है, "नहीं देखा।" "सुन, तेरे लिए गुड न्यूज़ है!" शिव आश्चर्य से कहता है, "क्या?" "अलीबाबा, तुझे नहीं पता? मेरा फैशन शो में सिलेक्शन हो गया। क्या दी? क्या न्यूज़ है?" शिव यह सुनकर उछलने लगता है। "दीदी, ये तो बहुत अच्छी बात है!"


    "सेकंड रनर अप आई हूँ। तेरी बहन, चलो मेरा गिफ्ट दो। क्यों? और क्या दूँ?" "हाँ हाँ, गिफ्ट। बाबा मुझे प्रोत्साहित नहीं करेगा, बधाइयाँ नहीं देगा मुझे।"


  • 5. Wishper of dying love - Chapter 5

    Words: 1513

    Estimated Reading Time: 10 min

    पर मेरे पास देने के लिए गिफ्ट तो नहीं है, पर हाँ, 1 मिनट रुको, मैं आता हूँ। यह कहकर शिव गार्डन में गया। वहाँ से दो गुलाब के फूल लेकर आया और कहा,

    "दी, फूल देते हुए, कांग्रेचुलेशन मेरी बहन। मांगो तो तुम्हें क्या चाहिए? राजा जी आज बहुत प्रसन्न हैं।"

    "पहले तो आप लगा ले, कुत्ता मेरा पालतू भाई है।"

    "अरे यार दी, देखें! अगर ऐसे बात करेंगे तो मैं बात नहीं करूँगा आपसे।"

    "यार दी, कुत्ते की बहन वैसे क्या होगी...?"

    "ए सुन, चुप कर! कचड़े के डिब्बे से उठाकर लाया है तुझे, तू अब मुझे ऐसे बोलेगा?"

    शिव यह सुनकर चीड़कर वहाँ से जाने लगा।

    "अच्छा सुन, रुक ना बाबा! मज़ाक कर रही हूँ। मेरे पास बैठ, चल। एक बात बता, तुझे याद है जब मैं कॉम्पिटिशन के लिए रेडी नहीं थी, किसने रेडी किया था मुझको? किसने मुझे वह फॉर्म लाकर मुझे दिया था?"

    "हाँ, तुमने दिया था ना? याद है ना? तुमने मुझसे उस टाइम क्या कहा था? याद है?" श्वेता शिव से पूछती है। तो शिव कहता है,...!

    "हाँ, याद है। मैंने यही कहा था कि अपने हक के लिए लड़ो, अपने सपनों को छूने का जज़्बा रखो। जो आपके अंदर जो हो, वह दुनिया को दिखाओ। जब तक आप खुद को एक्सेप्ट नहीं करते, खुद के ड्रीम को एक्सेप्ट नहीं करते, लोग कैसे समझेंगे? यही कहा था मैंने।"

    "एक्जेक्टली! मेरा भाई इतना ज्ञान देता है, खुद पर यह ज्ञान क्यों लागू नहीं करता? तो खुद को जब तक एक्सेप्ट नहीं करेगा, लोग कैसे तुझे एक्सेप्ट करेंगे? तो बता, तू और तू बहुत स्ट्राँग है, कोई बीमारी नहीं है तुझे। और पता है, अपनी बात बताऊँ तो मैं जहाँ पर गई थी, वहाँ पर जो एंकर था, जो हम लोगों का इंटरव्यू ले रहा था, वह भी तेरे जैसा था और बहुत पॉपुलर था और लोगों को बहुत पसंद आता था। सोच, उसने क्या कर लिया अपनी लाइफ में?"

    श्वेता ने फ़ोन उठाते हुए गूगल को ओपन किया और उसे दिखाया। "देख भाई, कितने लोग हैं जो अभी अपनी लाइफ़ अच्छे से इन्जॉय कर रहे हैं। तुझे देख, तेरी स्टडी से फ़ोकस करना है। तेरा ड्रीम तुझे कंप्लीट करना है। उसके बाद सब चीजें सही हो जाएँगी और सब मान जाएँगे।" पर मम्मी उदास होकर शिव ने पूछा,

    "देख भाई, तुझसे मम्मी को तुझसे बहुत एक्सपेक्टेशन थी। मम्मी का तो लाडला है ना, उन्हें थोड़ा सा, अचानक से उन्हें यह चीज पता चलना, जाहिर सी बात है ना, हर किसी को तकलीफ़ होगी।"

    "तो तू टेंशन ना ले। मम्मी धीरे-धीरे एक्सेप्ट कर लेंगी तुझको। चल, भाग जा, पढ़ाई कर। 10th में इस बार टॉप करना।" कुछ दिन बाद शिव के घर पर यश के मामा आते हैं।

    तो तू टेंशन ना ले, मम्मी धीरे-धीरे एक्सेप्ट कर लेंगी तुझको। चल, भाग जा, पढ़ाई कर। 10th में इस बार टॉप करना। कुछ दिन बाद शिव के घर पर यश के मामा आते हैं।

    और शाम को शिव मामा के पास बैठा हुआ होता है। तब तक शिव की मम्मी वहाँ आ जाती है और वह शिव की मम्मी रो-रोकर मामा से सारी बात बताती रहती है।

    "कि भैया, समझाएँ इसको! इसको पता नहीं क्या हो गया है! इनसे तो हमारी नाक कटवाने का सोच लिया है! और इसके पापा और बहन की बातों से ये और उड़ रहा है! कैसे समझाऊँ इसे कि ये सब दिमाग का वहम है! और अगर इसने लड़की से शादी नहीं किया तो क्या होगा? समाज में हमारी इज़्ज़त का पता नहीं कैसे हम लोगों को मुँह दिखाएँगे..."

    और मामा कहते हैं, "पर बहन, हुआ है क्या? शिव को चंगा-भला दिख तो रहा है। फिर ऐसी बातें क्या हो गईं?" इसी बात पर वह और रोने लगती है और बोलती है, "ये खुद को "gay" मान बैठा है और कहता है इसे लड़के अच्छे लगते हैं। राम मैंने ऐसा क्या किया था जो ऐसी औलाद मुझे दिया? तुमने क्या काम रह गई थी मेरे पूजा-पाठ में?" और वह मामा के पास बैठकर रोए जा रही है।

    "ये सब सुनकर शिव की हालत मानो ख़राब होते जा रही है। हाथ-पैर जपने लगता है और वह मानो अब जोर से रो देता है। और मामा कुछ कह पाते..."

    तब तक वहाँ पर श्वेता आ जाती है और कहती है, "भाई, तू चल कमरे में जा, पढ़। तेरे एग्ज़ाम रहें हैं ना?"

    शिव वहाँ से उठकर कमरे में चला जाता है।

    और श्वेता भी किसी को कुछ कहे बिना किचन से खाना लेकर चली जाती है।

    मामा यह सब बात सुनने के बाद कहते हैं, "अरे बहन, क्यों टेंशन ले रही है? सब चीज ठीक है। देख, अपना बच्चा है, समझ जाएगा।"

    तो श्वेता के जाने के बाद उसके मामा चारों तरफ़ अपनी पैनी निगाहें घुमाकर रितु के पास आकर बोलते हैं,

    "देख बहन, मैं ऐसे एक पुरोहित को जानता हूँ जो इन सब चीजों को ठीक कर देगा।"

    "क्या मतलब भैया? एक उम्मीद के साथ उच्च स्वर में शिव की मम्मी बोलती है (रितु), ऐसा हो सकता है क्या?"

    "अरे, झाड़-फूंक का भी तो असर होता है ना? क्या पता जीजा जी के किसी दुश्मन ने कुछ कर दिया हो बच्चे पर? क्या पता कुछ हो गया?" और मामा ने अपनी कुटिल बातों से रितु को अपनी तरफ़ कर लिया।

    शिव की मम्मी यह बात सुनकर थोड़ी सी परेशान हो जाती है, पर बेटे के प्यार के लिए चिंता हमेशा रहती है, और वह मान जाती है और मामा से बोलती है कि क्या करना पड़ेगा?

    "यदि बहन, तू चिंता मत कर। मैं उसे पुरोहित से बात करता हूँ, फिर हम योग को उसके पास लेकर जाएँगे। पर बहन, थोड़े ज़्यादा पैसे लगेंगे, क्योंकि बहुत गंभीर बीमारी है।"

    "भैया, आप चिंता न करो, मैं पैसे का जुगाड़ कर दूँगी। कितना लगेगा?" तो उस पर मामा जी बोलते हैं कि, "बहन, पचास हज़ार रुपए। बाकी शिव मेरे भी बेटे जैसा है, तो थोड़े पैसे मैं लगा दूँगा।" बिना कुछ बोले शिव की मम्मी वहाँ से चली जाती है।

    मामा थोड़े हैरान होकर सोचते हैं, "कहीं ज़्यादा तो ना बोल दिया? कहीं अति हुई, लक्ष्मी रुक न जाए..."

    शिव की माँ अपने कमरे से पचास हज़ार रुपए लेकर आती है और मामा को दे देती है। बोलती है, "कुछ भी कर, बस मेरे बेटे को ठीक कर दो।"

    "बहन, चिंता न करो, सब चीज ठीक हो जाएगा।" यह कहकर मामा पैसे पर हाथ फेरते हुए और लालच की निगाह से उसे देखते हुए अपने जेब में रख लेते हैं और वहाँ से चले जाते हैं।

    वह बाहर जाकर अपने दोस्त को फ़ोन करते हैं और कहते हैं, "अरे रघु, जल्दी से पुरानी बावड़ी पर आ, और अकेले आना। मैं दस मिनट में पहुँच रहा हूँ। जल्दी आना।" फिर थोड़ी देर बाद मामा पुरानी बावड़ी पहुँच जाते हैं और वह रघु से बोलते हैं, "देख, मस्त पैसा मिलने वाला है! देख, बीस पर्सेंट तेरा होगा, बाकी का मेरा। पर इतने पैसे देगा कौन? और किसे लूट रहे है तू?" रघु थोड़े उत्साह से पूछता है।

    तो मामा बोलते हैं, "अरे रितु, मेरी बहन! क्या तू अब अपनी ही बहन को लूटेगा? तू क्या बोल रहा है? तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है?" रघु ने जोर से पूछा, "देख, पहली बार अपने धंधे में, बाप बड़ा न, भैया सबसे बड़ा रुपैया! ये चीज याद रख! जहाँ पैसा मिलेगा, वहाँ हम होंगे। तू बस आम खा, ना गुठलियाँ क्यों गिन रहा है? तुझे बस एक साधु बनना है और चलकर दीदी से मिल ले। बाकी जैसा होगा, मैं संभाल लूँगा। कल मैं दीदी को लेकर आता हूँ, ठीक है? तो वो जंगल के पुरानी मंदिर पर आना। वहाँ पर तीन बजे के बाद कोई नहीं रहता। ठीक है? चल अब तू निकल और उसकी तैयारी में लग जा।"

    घर वापस आकर मामा दीदी से बोलता है कि, "दीदी, कल आप को पुरोहित से मिलने चलना है।"

    "ठीक है भैया, मैं चलती हूँ।" तो दूसरे दिन शाम को दोनों भाई-बहन मंदिर के लिए निकल जाते हैं और जब वह मंदिर पहुँचते हैं तो रघु वहाँ पहले से ही साधु बनकर बैठा होता है।

    दोनों उसे हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं और वह साधु उन्हें अपने साथ एक कमरे में ले जाता है और बैठने के लिए कुर्सी देता है और बोलता है, "देखो बेटा, आपके भाई ने हमें सारी बात बता दी। मामला बड़ा गंभीर है और निवारण भी है, लेकिन ये बात हमारे बीच रहे तो ठीक है।" और वह अपनी पोटली से निकालकर भभूत देता है और बोलता है, "अपने बेटे को दूध में मिलाकर पिला देना और याद रहे कोई जान ना पाए।" और यह कहते हुए उसे उनके हाथ पर रख देता है।

    और उन्हें वहाँ से जाने के लिए बोलता है...

    उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आ रही होगी।

  • 6. Wishper of dying love - Chapter 6

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    तोतक ये सब शिव ने एक सीरियल में देखा था; कपूर से बेहोशी का असर कम हो जाता है। उसने पास पड़ा कपूर उठाकर सूँघना शुरू किया। थोड़ी देर में उसे राहत मिली। उसने मामा के चोरी करने की सारी वीडियो अपने फ़ोन से बना ली। तभी मामा की नज़र उस पर पड़ी। वो दौड़कर उसके हाथ से फ़ोन छीनकर तोड़ दिया।

    "कुछ भी कर लो, मैं सबको सब कुछ बता दूँगा," शिव ने कहा।

    "लगता है, इसको मारकर सबक सिखाना होगा," मामा जी बोले, "और ऐसी कहानी बनानी होगी जिस पर सब यकीन भी करें। इसकी वजह से मेरी बहन का घर बर्बाद हो जाएगा।"

    "अगर मारना ही है, तो थोड़े मज़े ले कर मारते हैं ना? मतलब, अपनी भी प्यास बुझ जाए, थोड़ा मज़ा आ जाए। क्या तुम्हें ये पसंद नहीं?" पुरोहित ने कहा।

    मामा तुरंत समझ गया। हवस भरी निगाहों से शिव की तरफ देखते हुए दोनों मुस्कुराने लगे।

    इसके बाद मामा और पुरोहित शिव की तरफ़ बढ़ने लगे। आयु को चक्कर आने की वजह से कुछ साफ़ नहीं दिख रहा था, पर हाथ में कपूर की वजह से उसे सूँघते ही होश आ गया। उसने कपूर उठाकर सूँघा तो उस पदार्थ का असर कम हो गया।

    "नहीं मामा! मामा… मत करिए!" शिव चिल्लाया और गिड़गिड़ाया। पर मामा ने उसका हाथ पकड़ लिया। चिल्लाते हुए शिव के मुँह में कपड़ा ठूँस दिया और उसे निर्वस्त्र कर दिया। पुरोहित ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और शिव की तरफ़ बढ़ने लगे। वो जोर-जोर से तड़प रहा था, खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, पर वो उन दरिंदों के आगे हार गया।

    वो पुरोहित और मामा का शिकार होने ही वाला था कि तभी गेट की घंटी बजी। घंटी की आवाज़ सुनकर मामा और पुरोहित डर गए। मामा दौड़कर कपड़े पहनने लगा और गेट के होल से झाँका। एक बूढ़ी काकी खड़ी थी, जो उनके पड़ोस में रहती थी। मामा ने पुरोहित को इशारा किया। पुरोहित शिव को सोफ़े के पीछे छिपाकर कसके पकड़ लिया। मामा ने गेट खोला।

    "बेटा, ऋतु घर पर नहीं है क्या?" दादी ने पूछा।

    "नहीं दादी, वो मंदिर गई है।" मामा ने कहा। "अच्छा, ये कुछ सामान है, उसे दे देना।"

    दादी ने सामान की थैली मामा को देकर चली गई। उसने गेट बंद किया और फिर से शिव की तरफ़ बढ़ा।

    मामा ने शिव के गालों पर किस करने की कोशिश की। पर शिव ने जोर से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए मामा के हाथ में काट लिया। मामा चिल्लाकर उठ गया। शिव ने हिम्मत करके अपने पैरों से पुरोहित को मारा और सीधा ऊपर भाग गया, क्योंकि बाहर का गेट लॉक था।

    शिव अपने कमरे में गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। वो इधर-उधर डरते हुए फ़ोन ढूँढ़ने लगा। तब तक पुरोहित और मामा मिलकर गेट पीटने लगे और दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश करने लगे। शिव चिल्ला भी रहा था, पर वो उनसे बहुत डर गया था। रोते-रोते उसने कॉल करने की कोशिश की। श्वेता दी को कॉल लगा। पर नेटवर्क ना होने की वजह से श्वेता दी थोड़ी सी आवाज़ ही सुन पाई।

    इतनी आवाज़ सुनकर बगल के लोग आकर मेन दरवाज़े पर घंटियाँ बजाने लगे।

    "इसको संभाल, मैं जाकर नीचे वालों को संभालता हूँ। याद रहे, इसकी जरा सी भी आवाज़ नहीं आनी चाहिए," मामा ने पुरोहित से कहा।

    वो तेज़ी से लात मारता है, शिव के कमरे का गेट टूट जाता है और पुरोहित शिव को पकड़ लेता है।

    मामा नीचे गया। उसने गेट खोला तो वहाँ पर वही दादी खड़ी थी।

    "बेटा, कब से तुम्हारे यहाँ से चिल्लाने की आवाज़ आ रही है? सब ठीक तो है?" दादी ने पूछा।

    "रे दादी, कुछ नहीं हुआ। चिल्लाने की आवाज़ थोड़ी आ रही थी। ऊपर शिव टीवी का वॉल्यूम बढ़ाकर देख रहा था, इसलिए ऐसा लग रहा था," मामा ने कहा।

    "अच्छा, ठीक है बेटा। मैं जाती हूँ।"

    दादी वहाँ से जाने लगी, तभी श्वेता, उसकी माँ और उसके पिता आ गए। मामा ने पुरोहित को इशारा किया। पुरोहित खिड़की से कूदकर भाग गया।

    शिव अपने कमरे में बेहोश, निर्वस्त्र और उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे। वो पुरोहित के गलत इरादे का शिकार हो गया था। जैसे ही शिव का परिवार अंदर आया, मामा बोला, "मैं बाहर से सामान लेकर आता हूँ," और वो बाहर जाकर भाग गया।

    सबने देखा कि फर्श पर फूलों की माला पड़ी हुई है, घर का सामान बिखरा हुआ है। वो परेशान हो गए। उन्होंने शिव को आवाज़ लगाई, पर कोई जवाब नहीं आया।

    "लगता है शिव अपने दोस्तों के साथ होगा, पर घर की ये क्या हालत है?" श्वेता बोली।

    कुछ नहीं मिला तो सीधा ऊपर कमरे में गई। वहाँ शिव का गेट टूटा हुआ था और शिव बेहोश पड़ा था। वो जोर से चिल्लाई।

    चिल्लाने की आवाज़ सुनकर माँ-बाप नीचे से भागे।

    क्या शिव की जान बच पाएगी? क्या मामा की सच्चाई जान पाएगा कोई? क्या शिव की हालत बदल देगी उसकी माँ का फैसला? जानने के लिए पढ़ते रहिए दिल की खामोशियाँ, सिर्फ़ और सिर्फ़ Pocket Novel पर।

    धन्यवाद

    चिल्लाने की आवाज़ सुनकर माँ-बाप नीचे से भागे। उसके हाथ में चोट लगी हुई थी। उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने चेक करने के बाद बताया, "आपका बेटा कोमा में है। इसको बहुत गहरा सदमा लगा है। इसके साथ क्या हुआ है, ये सब रेप के लक्षण लग रहे हैं।"

    "ऐसा कैसे हो सकता है?" श्वेता की माँ रोते हुए बोली। "डॉक्टर साहब, मेरे बच्चे को होश कब आएगा?"

    "हम इस पर कुछ नहीं कह सकते। वो कल भी उठ सकता है, या 1 साल भी लग सकते हैं। ये पेशेंट पर निर्भर करता है।"

    तब तक मामा को ये खबर पहुँच गई कि शिव कोमा में है। वो सोचा, "अब मैं safe हूँ।"

    मामा रोते हुए भागता हुआ आया। "दीदी, भांजे को क्या हुआ? कैसे हुआ ये सब?"

    "मामा, घर पर आप थे ना? आपको पता होगा ना कैसे हुआ?" श्वेता बोली।

    "ये सब मुझे नहीं पता। वो स्कूल से आया, फिर घर से बाहर चला गया था। जैसे ही मैं सामान लेकर लौटा, आप लोग भी उसी टाइम पर आ गए।" वो भी रोने का नाटक करते हुए बोला। सब उसकी बातों पर विश्वास कर लिया।

    "आप सब लोग घर जाकर आराम कर लीजिए, आप लोग थक गए होंगे। मैं यहाँ पर रुकता हूँ।"

    श्वेता के पिता भड़क गए। "तुम्हें जरा सा भी आईडिया है तुम क्या बोल रहे हो? हमारा बेटा कोमा में है और हम जाकर घर पर आराम करें?"

    "मैं इसलिए कह रहा था कि आप लोग बीमार हो जाएँगे तो शिव को कैसे संभाल पाएँगे? उसे आपकी ज़रूरत है।"

    श्वेता बोली, "मामा सही कह रहे हैं। आप और मम्मी घर जाकर थोड़ा आराम कर लीजिये। मैं और मामा यहाँ रुकते हैं।"

    मामा चिकनाई लगाने लगा। "बेटा, तू भी चली जा। तू भी थक कर आई होगी।"

    "नहीं बाबा, मुझे कुछ काम भी करना है, यहीं पास में। मैं करके फिर वापस आ जाऊँगी।"

    वो माँ-बाप को घर भेजने लगी। रोते हुए उसकी माँ बोली, "बेटा, हमें घर पर नींद नहीं आएगी! हम घर पर कैसे रहेंगे?"

  • 7. Wishper of dying love - Chapter 7

    Words: 1575

    Estimated Reading Time: 10 min

    श्वेता ने कहा, "मम्मी, थोड़ा सब्र रखिए। आपकी तबीयत खराब हो जाएगी तो शिव को कौन संभालेगा? आप घर पर जाइए, थोड़ी देर आराम करके फिर वापस आ जाइए।"

    श्वेता ने मम्मी-पापा को घर छोड़कर काम के लिए निकल गई। उसके मामा ने शिव को मारने की पूरी कोशिश की। सारे स्टाफ रूम से बाहर थे। उसने टाइम देखकर हॉस्पिटल के कमरे में घुस गया और वहाँ जाकर ऑक्सीजन पाइप बंद कर दिया। लेकिन किस्मत अच्छी थी कि थोड़ी देर में नर्स कमरे में वापस आ गई। शिव की हालत और खराब हो रही थी। उसने चिल्लाकर डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर दौड़कर आए। डॉक्टर ने देखा कि ऑक्सीजन पाइप की लाइनिंग ही बंद थी। "इतना तो ध्यान देना चाहिए ना! पाइप लाइन कैसे बंद हो गई है?" उन्होंने फिर से पाइप ऑन कर दिया। फिर शिव आराम हो गया।

    सबको डाँट लगाते हुए डॉक्टर बोले, "आइंदा ऐसी गलती हुई तो सबको निकाल दूँगा। ऐसी लापरवाही इस अस्पताल में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। ध्यान कहाँ है आप लोगों का?" यह कहकर वे वहाँ से चले गए। थोड़ी देर में श्वेता हॉस्पिटल में आ गई। जैसे ही उसे पता चला, वह डॉक्टर पर भड़क गई। "आप लोगों को जरा सा भी आईडिया नहीं है? आप लोगों ने क्या किया? मेरे भाई की जान चली जाती अगर ये लापरवाही होती! मैं अभी के अभी वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने वाली हूँ! मैं देखती हूँ!" उसने फोन निकालकर हाथ में ले लिया।

    तभी डॉक्टर बोले, "बेटी, ऐसा मत करो। हमें माफ़ कर दो। आगे से पूरा ध्यान रखेंगे।" फिर मामा बोला, "हाँ, जाने दो ना बेटी। गलती इंसान से ही होती है। माफ़ कर दो। आखिर ये भी तो भगवान के दूसरे रूप हैं।" "ठीक है, मामा। माफ़ कर दिया। अगर आइंदा ऐसी लापरवाही हुई तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँगी।"

    श्वेता शिव के पास बैठी हुई थी और शिव के हाथ पर सर रखकर रो रही थी। श्वेता के आँसू शिव के हाथों पर गिर रहे थे। उसके हाथ हिलने लगे। इसे देख श्वेता डॉक्टर को बुलाने लगी। डॉक्टर दौड़कर आए। उन्होंने देखकर कहा, "मुबारक हो! शिव रिकवर कर रहा है।"

    उसे जल्दी होश आ जाए। श्वेता खुश होकर मम्मी-पापा को कॉल करके बताई। वे सब दौड़कर शिव को देखने के लिए अस्पताल आए। शिव को रिकवर करता देख सब खुश हो गए। तब तक वहाँ पर पुलिस आ गई और बोली, "यह रेप का मामला है। आप लोगों को इसके खिलाफ़ कंप्लेंट लिखनी होगी ताकि हम इसके खिलाफ़ कार्यवाही कर सकें। और हमें आप सबसे बयान भी लेना होगा।" इस पर शिव की मम्मी बोली, "नहीं, इंस्पेक्टर साहब। हमें कोई कंप्लेंट नहीं लिखनी। हमारा बच्चा ठीक हो रहा है, हमारे लिए यही बड़ी बात है। वह ठीक हो जाएगा तो इसके बारे में हम सोचेंगे।" "नहीं, मैं नहीं चाहती कि जिन लोगों ने आपके बच्चे के साथ ऐसा किया है उन्हें दंड मिले?" "नहीं इंस्पेक्टर साहब, उन्हें तो हम छोड़ेंगे नहीं। उन्हें दंड तो मिलेगा, पर एक बार मेरा बच्चा होश में आ जाए, उसके बाद ही यह सब करना होगा।" यह कहकर उन्होंने इंस्पेक्टर साहब को जाने के लिए कह दिया। सब शिव के पास बैठे हुए थे।

    तभी अचानक शिव को होश आया। उसने अपने सामने मामा को देखकर घबरा गया और उसका हार्टबीट और तेज होने लगा। इसे देख डॉक्टर खुद नहीं समझ पाए कि उसे क्या हो रहा है। डॉक्टर सबको बाहर जाने के लिए बोले और शिव को बेहोशी का इंजेक्शन दिया। फिर थोड़ी देर बाद वह सो गया। फिर डॉक्टर आए तो शिव की मम्मी ने पूछा, "डॉक्टर साहब, क्या हो गया था इसको अचानक से? देखिए आप लोग, अभी ऐसे थोड़ा सा आराम से रहने दीजिएगा, क्योंकि वह इतने बड़े ट्रॉमा से गुज़रा है, तो उसे थोड़ी सी घबराहट होगी। हमने अभी उसे बेहोशी का इंजेक्शन दिया है, पर थोड़ी देर में वह ठीक हो जाएगा।"

    श्वेता शिव के पास बैठी हुई थी। मम्मी-पापा बाहर इंतज़ार कर रहे थे। मामा का डर और बढ़ता जा रहा था। "क्या अगर शिव को होश आ गया तो मेरा क्या होगा?" मामा शिव को मारने की नई तरकीब सोचने में लगा हुआ था, तभी उसे याद आया कि अस्पताल में उसका एक दोस्त है। वह अपने दोस्त से मिलकर बोला, "देखो भाई, तुम उसे लड़के को मार दो। उसके बदले तुम जितना पैसा कहोगे मैं दूँगा। चाहे तो उसके बदले मुझे कुछ भी करना पड़े।" "तुम पागल हो क्या? उसका दोस्त, जो अस्पताल में नर्स था, बोला, "तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है? तुम बच्चे को मारना चाहते हो? शर्म नहीं आती तुमको?"

    यह बात सुनते ही मामा गुस्से से लाल हो गया। वह नर्स से बोला, "देख, तू ज़्यादा अच्छा मत बन। तेरे सारे काले कारनामे मुझे पता हैं। और शायद तू भूल गया, जो रात को उसे गली में..." "उसका वीडियो मेरे पास है!" "किसका वीडियो? क्या कर रहा था मैं?" नर्स हिचकिचाते हुए बोला, "वही जो एक मियाँ-बीवी करते हैं।" "और तू तो मियाँ-बीवी थे ही नहीं! और तेरी तो शादी भी हुई है, बच्चे भी हैं सुना है। सोच ले, तू मेरा काम करेगा या मैं वो वीडियो सबको दिखा दूँ?"

    "ऐसा मत करो! ऐसा मत करोगे तो मेरी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी! मेरा हँसता-खेलता परिवार तबाह हो जाएगा! मैं तुम जैसा चाहते हो वैसा करने के लिए तैयार हूँ। मुझे शिव को मारना है ना, मैं मार दूँगा। बस तुम उसके परिवार वालों को उससे दूर रखो। मुझे मौका मिलते ही मैं इसको ज़हर का इंजेक्शन लगा दूँगा।" "पर मुझे कैसे मालूम कि तुम्हारे पास वो वीडियो है? क्यों कि तू तो मुझे डरा भी तो सकता है ना?" नर्स ने थोड़ी हिम्मत करके यह बात बोली। यह बात कहते ही मामा बोला, "क्यों? हॉस्पिटल के टीवी पर चलवा दूँ? वो जो बड़े-बड़े स्क्रीन बाहर लगे हैं, तेरे सारे कांड दिखा दूँ। ये देखना, मेरे फोन में क्लिप है उसका!" जैसे ही मामा फोन बाहर निकालता है, नर्स उसके हाथ से वो फोन छीनकर भाग जाता है। मामा पीछे से आवाज़ लगाने लगा। तब तक उसके फ़ोन पर एक मैसेज आया, एक वॉइस नोट। नर्स जैसे ही उस पर क्लिक करता है, वो मामा ही था। "कहाँ तक भागेगा? मम्मी शायद तू भूल रहा है, उस्तादों का उस्ताद हूँ मैं। तुझे क्या लगा मैं बस फ़ोन में ही रख सकता हूँ ऐसी चीज़? मेरे पास तो फ़ोन, लैपटॉप और बहुत सी चीज़ें हैं रखने को। चुपचाप वापस लौटा और मेरा काम कर, वरना मैं तेरा वीडियो वायरल कर दूँगा!"

    मामा की बात सुनकर मजबूर होकर नर्स वापस आ जाता है। जैसे ही वह वापस आता है, मामा उससे कहता है, "देख, 5 मिनट के लिए लोगों को बाहर लेकर जाऊँगा, तब तक अपना काम कर लेना।" नर्स डरते हुए सिर हिलाता है। फिर मामा वहाँ से उठकर सीधा श्वेता और उसके मम्मी-पापा के पास आता है और कहता है, "जीजा जी, सुनिए ना, चलिए हम और आप बिल भरकर आते हैं। और बेटा श्वेता, ये काउंटर पे ये साइड है, मेडिकल काउंटर से पर्ची ले आना, डॉक्टर ने लिखकर दिया है।" इसके लिए क्या ज़रूरत है श्वेता को जाने की? हम चल रहे हैं ना, तो ऐसे आते टाइम दवा भी लेकर आ जाएँगे।" श्वेता के पापा मामा से कहते हैं, "ऐसा है ना कि अभी एक नर्स आ रहा है, वो शिव को कुछ इंजेक्शन देगा, डॉक्टर ने रिकमेंड किया है। तो वो अभी लाना है। बिल भरने में टाइम लगेगा, वहाँ पर लम्बी कतार है, तो तब तक श्वेता वो दवा लेकर आ जाएगी ना?" "हाँ पापा।" माँ ने ही कहा, "आप जाकर बिल पे करो, मैं दवा लेकर आता हूँ।" श्वेता यह कहकर पर्ची लेकर निकल जाती है जीजा जी के साथ। थोड़ी दूर आगे आने के बाद मामा कहता है, "अरे 1 मिनट! मैंने तो अपना फोन वहाँ दीदी के पास ही रख दिया है! मैं लेकर आता हूँ।"

    "ठीक है, तुम लेकर आओ, मैं आगे चलता हूँ। तब तक ठीक। मैं 5 मिनट में लेकर आता हूँ।" मामा यह कहकर वहाँ से चला जाता है। वह दीदी के पास आकर कहता है, "दीदी, सुना है भगवान की बड़ी शक्ति होती है। नीचे हॉस्पिटल के कॉरिडोर में एक छोटी सी मंदिर है। वहाँ जाकर पूजा करो। आप तो माँ हो, और एक माँ ही तुमसे माँ का दर्द समझ सकती हैं। दुआ भी लगे तो दवाओं का असर जल्दी होता है।" "हाँ भैया, आप ठीक कह रहे हो। मैं जाकर पूजा करके आती हूँ। पर श्वेता को आ जाने दीजिए। आप चिंता ना करिए दीदी, मैं तब तक यहाँ पर हूँ। वैसे भी अभी वहाँ नीचे लम्बी लाइन है और आज किसी चीज़ में डर नहीं करना चाहिए। मुहूर्त भी अच्छा है। चलिए जाइए ना।" "अच्छा, ठीक है। आप यहाँ बैठे रहिए, हम होकर आते हैं।" शिव की मम्मी यह कहकर वहाँ से चली जाती है। फिर मामा नर्स को इशारा करता है और वह भी वहाँ से निकल जाता है।

  • 8. Wishper of dying love - Chapter 8

    Words: 1614

    Estimated Reading Time: 10 min

    दुआ भी लगे तो दावों का असर जल्दी होता है।

    "हाँ भैया, आप ठीक कह रहे हो। मैं चाहकर पूजा करके आता हूँ, पर श्वेता को आ जाने दीजिए।"

    "चिंता ना करो, दीदी। मैं तब तक यहाँ पर हूँ। वैसे भी अभी वहाँ नीचे लंबी लाइन है और आज किसी चीज में डर नहीं करना चाहिए। मुहूर्त भी अच्छा है।"

    "चली जाइए ना।"

    "अच्छा, ठीक है। आप यहाँ बैठे रहें, हम होकर आते हैं।" शिव की मम्मी यह कहकर वहाँ से चली गईं। फिर मामा ने नर्स को इशारा किया और वह भी वहाँ से निकल गया।

    फीवर नर्स जैसे ही शिव को इंजेक्शन लगाने गया, उसने देखा कि वह शीशी की सीसी लाना भूल गया था। वह सोचने लगा कि अगर सीसी लाने गया तो बहुत टाइम लग जाएगा। उसने मौका देखकर शिव के मुँह से ऑक्सीजन मास्क हटाकर उसके मुँह पर तकिया रखा और उसकी जान लेने की कोशिश करने लगा।

    तब तक वहाँ पर श्वेता पहुँच गई और यह हरकत देखकर वह जोर से चिल्लाई। वह दौड़कर उस नर्स को कसकर पकड़ लिया और खींचने लगी। वह नर्स श्वेता को धक्का देकर वहाँ से भागने लगा, पर गेट पर पहुँचते ही लोग उसे पकड़ लिए। शोर सुनकर शिव के पापा, मम्मी सब दौड़कर आ गए। जैसे ही मामा को पता चला कि नर्स पकड़ा गया है, वह वहाँ से भाग गया।

    तब तक श्वेता ने पुलिस को कॉल करके वहाँ बुला लिया था। पुलिस जैसे ही आई, उसने नर्स को पकड़ा और पूछा, "बता, इस बच्चे को क्यों मारना चाहता था?" इस पर वह बोला, "सब मुझे माफ़ कर दीजिए। मेरी कोई गलती नहीं है। मुझे इसका मामा ब्लैकमेल कर रहा था। उसके पास मेरी कुछ गंदी वीडियो हैं। वह बोल रहा था अगर मैंने शिव को नहीं मारा तो वह वीडियो सबको दिखा देगा।" पुलिस ने कहा, "वीडियो से तू बचता भी, पर अगर तू शिव को मार देता तो तू पक्का नहीं बचता। तेरा दिमाग कहाँ था? तू नर्स है, तू पढ़ा-लिखा है। तुझे पुलिस की मदद लेनी चाहिए थी।"

    "सर, मुझे माफ़ कर दीजिए! सर, मुझे माफ़ कर दीजिए! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, मैं क्या करूँ?"

    "उसे छोड़ दीजिए! मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं!" यह कहते हुए शिव की मम्मी ने उसे खींचकर एक थप्पड़ मारा।

    शिव के पापा उसके कॉलर पकड़ रहे थे। तब तक पुलिस उन्हें छुड़ाने लगी। शिव को भी होश आ गया। शिव को होश में आया देखकर, पीछे से उसने कहा, "मम्मी..." उसकी आवाज सुनते ही सभी उसकी तरफ देखे और भागकर उसे अपने गले लगा लिया। थोड़ी देर बाद वह रोते हुए बोला, "मम्मी, मामा से मुझे बचा लीजिए। मुझे मारना चाहते हैं। उन्होंने मेरे साथ बहुत गन्दा-गन्दा किया और वह उनके साथी थे। मैं बहुत डरा हुआ था।" "बेटा, यह सारी गलती मेरी है। मैंने ही तुम्हारे मामा पर भरोसा करके तुम्हारी बहन और तुम्हारे पापा के साथ मंदिर गया। अगर मैं ऐसा ना करती तो यह सब ना होता। मुझे माफ़ कर दे, बेटा।" शिव की मम्मी यह कहते हुए उसके सामने हाथ जोड़ने लगीं। शिव रोते हुए उनके हाथ को नीचे कर दिया।

    "इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। मैं समझ सकता हूँ।" वह दोनों रोते हुए एक-दूसरे के गले लग गए। फिर श्वेता जाकर शिव के बगल में बैठी और बोली, "वो देख, ठीक तो हो गया है। तो अभी चल, मेरे सारे असाइनमेंट लिखना है तुझे और मेरा फैशन शो है, तो तुझे मेरे ड्रेस डिजाइन करने में भी हेल्प करना है।"

    "यह बेड पर ज्यादा दिन बैठता नहीं है। पापा, देख रहे हो? दीदी को अभी तो मैं उठा हूँ।"

    "समझाइए ना इनको, मुझे परेशान कर रही है।" रोते हुए शिव श्वेता के गले लग गया। श्वेता और शिव दोनों तेज़ी से रोने लगे। शिव के पापा ने उन्हें गले लगाकर चुप कराया और फिर डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने उन्हें बताया, "यह तीन दिन ऑब्ज़र्वेशन में रहेंगे। उसके बाद आप इन्हें घर ले जा सकते हैं।"

    "ठीक है, डॉक्टर साहब। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। धन्यवाद आप मुझसे नहीं, अपने बहादुर बच्चे और बेटी को बोलिए। यह सच में बहुत बहादुर हैं।" यह कहकर वह वहाँ से चले गए।

    श्वेता शिव को हाथों से फल खिला रही थी। तब तक शिव बोला, "दीदी, एक बात बताओ, लोग इतने गंदे क्यों होते हैं? अगर मैं लड़का होकर इतना कष्ट बर्दाश्त कर रहा हूँ, तो जब लड़कियों के साथ ऐसा होता होगा, तो उनकी क्या हालत होती होगी?" तब तक वहाँ पर पुलिस आ गई और बोली, "बेटा, हम जानते हैं कि तुम्हारे साथ गलत हुआ है, पर तुम चिंता मत करो। तुम्हारे मामा को और उस दरिंदे इंसान को, जो तुम्हारे मामा का दोस्त था, उन दोनों को सज़ा ज़रूर मिलेगी। बस तुम अपनी कंप्लेंट लिख दो ताकि हम आगे का प्रोसेस कर सकें।" और उन्होंने कंप्लेंट लिखवा ली। फिर कुछ देर बाद पुलिस वहाँ से चली गई।

    शिव की मम्मी टेबल पर बैठे-बैठे बेहोश हो गईं। श्वेता ने उन्हें देखा और उनके पास जाकर बैठी। वह उन्हें उठाने लगी, "मम्मी! मम्मी! सुनो ना! उठो!" पापा ने आवाज़ लगाई, "पापा, देखिए ना! मम्मी को क्या हुआ?" यह कहते हुए उसके आँसू रुक नहीं रहे थे और वह दौड़कर डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर देखकर बोले, "इनका बीपी लो हो गया है। इनको आराम करने की ज़रूरत है। कुछ दवाइयाँ दे रहा हूँ, टाइम से ले लीजिएगा। बाकी सब ठीक है।" शिव बेड से उठने की कोशिश कर रहा था, पर वह तुरंत बेड से नीचे गिर गया।

    और शिव के नीचे गिरते ही एक तेज़ आवाज़ आई। यह देख सभी उसकी तरफ दौड़े। उसे उठाकर पापा बोले, "उठने की क्या ज़रूरत थी? क्या चाहिए था? तुम्हें बता देते।" मम्मी बोली, "पापा, मम्मी ठीक हैं। मम्मी के साथ उनके कुछ चेकअप के लिए गई हैं। तुम्हारी श्वेता दीदी भी उनके साथ हैं। उन्हें आने में टाइम लगेगा। तुम्हें कुछ चाहिए था तो मुझे बुला लेते। ऐसे क्यों उठा तुम?" "पापा, क्या मैं उठ नहीं पाऊँगा? मैं चल भी नहीं पाऊँगा?" "अरे पागल, क्यों सोच रहा है ऐसा? तू मेरे बच्चे, तुझे कुछ नहीं हुआ है। पैरों में तेरे चोट लगी है, कुछ दिन में ठीक हो जाएगी। फिर से तुम पहले जैसा मेरा शेर बेटा बन जाओगे ना? चल अब जल्दी से कुछ खा ले।" फिर पापा ने बिस्कुट उठाकर उसके कुछ टुकड़े करके उसे खिलाने लगे।

    तीन दिन बाद......

    कुछ दिन बाद जब डॉक्टर ने शिव को डिस्चार्ज कर दिया और उसकी फैमिली घर पर वापस आ गई, पर अभी भी मामा का कहीं अता-पता नहीं था। पुलिस उनके घर पर आई और उनसे बोली, "देखिए, हमें आप लोगों की थोड़ी सी मदद की ज़रूरत है। आप लोग एक बार थाने आ जाइए और वहाँ पर आप लोगों से कुछ पूछताछ की जाएगी।" यह बात सुनते ही शिव के पापा ने सिर हिलाकर हाँ कहा। फिर वहाँ से पुलिस चली गई। शिव कमरे में आराम कर रहा था।

    तभी श्वेता अपने मम्मी-पापा के पास आई और बोली, "मम्मी, क्यों ना हम शिव को हॉस्टल में डाल दें? हाँ, थोड़ा घर से दूर रहेगा और यहाँ के माहौल से दूर रहेगा तो शायद वह अच्छा फील करे। अपने जैसे लोगों को ढूँढेगा, बच्चों के साथ रहेगा तो शायद उसे अच्छा लगे।" यह बात सुनते ही शिव के पापा थोड़ी देर सोचने के बाद बोले, "बात तो तुम सही कह रही हो बेटी। हमें शिव को हॉस्टल में डाल देना चाहिए। पर अभी उसका हेल्थ इतना अच्छा नहीं है कि उसे अकेला छोड़ दें। उसे थोड़ा टाइम लगेगा खुद को हील करने में। अभी इतना बड़ा हादसा वह गुज़र चुका है।"

    तभी वहाँ पर मिली आ गई। "हेलो अंकल! हेलो आंटी! हेलो श्वेता दीदी! कैसे हो आप लोग?" "हेलो मिली! आओ बेटा, हम बढ़िया। आप कैसे हो?" "अंकल, हम भी बढ़िया। शिव की हेल्थ कैसी है? ठीक है बेटा? कहाँ पर है शिव? उससे मिल सकते हैं क्या?" "हाँ, ऊपर वाले कमरे में है। जाकर मिल लो।" मिली मिलने के लिए उसके कमरे में चली गई। "ये बंदर कैसा है रे तू?" यह कहकर मिली तेज़ी से शिव को गले लगा लिया। शिव मिली के गले लगते ही रोँधुली आवाज़ में बोला, "मैं ठीक हूँ। तू बता, तू कैसी है?" "मैं भी ठीक हूँ।"

    "क्यों ना तू कल से स्कूल चलना? वहाँ पर हम लोग के साथ रहेगा। तेरा मन भी फैल जाएगा।"

    "नहीं, मुझे स्कूल नहीं जाना।"

    "फिर क्यों? स्कूल क्यों नहीं जाना तुझे?"

  • 9. Wishper of dying love - Chapter 9

    Words: 1680

    Estimated Reading Time: 11 min

    जब तक तू खुद को नहीं समझेगा, कोई भी तुझे नहीं समझ सकता। शिव, तू खुद पर ध्यान दे और तू चल स्कूल। स्कूल जो चलेगा, कल मैं सुबह आऊँगी तेरे घर तुझको लेने।

    "मैं अभी तो हॉस्पिटल से आया हूँ यार, अभी मैं ठीक से चल भी नहीं पा रहा हूँ।"

    "मुझे कुछ नहीं पता, तू चल रहा है? अच्छा चल, ठीक है। एक हफ़्ता रेस्ट कर ले, फिर मैं आऊँगी।"

    यह कहकर वह वहाँ से चली गई।


    एक हफ़्ते बाद....


    सुबह-सुबह मिली उसके घर आती है।

    "अंकल जी, शिव रेडी हुआ कि नहीं? उसको स्कूल जाना है ना?"

    "हाँ बेटा, बस रेडी होने वाला है। पर इसका ध्यान रखना, इसे अकेला मत छोड़ना।"

    "ठीक है अंकल, टेंशन ना लीजिए। मेरे रहते हुए इसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता।"

    "हाँ हाँ, यह तो लेडी गागा है स्कूल की! यह तो भाई सबको फोड़ देती है, फटती रहती है!" यह कहते हुए श्वेता सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी।

    "हाँ, इसके रहते हमारे भाई को किसकी क्या देर? और आप भी कैसे बोल रहे हो ऐसा? कुछ नहीं है, मैं और लड़ाई ना बाबा ना!"


    "श्वेता, तू भी क्या बोल रही है? लड़ाई मिली से नहीं होती, मिली खुद लड़ाई के पास थोड़ी ना जाती है। लड़ाई मिली के पास आ जाती है।"

    यह कहती हुई ऋतु टिफिन लेकर किचन से बाहर आने लगी और तब सब हँसने लगे। सबको हँसाता देख मिली के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई।


    शिव भी सीढ़ियों से नीचे आया और उसका बैग लिए उसके पापा उसके साथ नीचे आए। शिव की मम्मी उसके बैग में टिफिन डालकर कहती है,

    "बेटा, टेंशन ना ले, सब ठीक हो जाएगा। मन लगाकर पढ़ना।"

    "शिव, चल, लेट हो रहा है। बाबा वैसे भी बहुत डाँट पड़ेंगे उस खड़ूस टीचर से।"

    "चलना भाई, हाँ जाओ जाओ, जल्दी जाओ!" यह कहकर श्वेता उन्हें चढ़ाते हुए बाय बोली।


    दोनों जब स्कूल पहुँचे तो शिव की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह स्कूल के अंदर जाए। उसने देखा कि दूर से शुभ उसकी तरफ़ आ रहा है। शुभ को अपनी तरफ़ आते देख शिव मिली के पीछे छिप गया।


    मिली बुदबुदाते हुए कहती है, "आ गया खड़ूस! अब चढ़ेगा लेक्चर! खून माफ़ होता ना, तो मैं इसका खून कर देती!"

    तब तक शुभ पास पहुँच गया।

    "गुड मॉर्निंग सर!" शुभ ने गुड मॉर्निंग कहा।

    "गुड मॉर्निंग मिली। क्लास में नहीं जाना क्या? यहीं खड़े होकर आज पूरा दिन बिताना है?"

    "नीचे जा रही हूँ, चलो जाओ जल्दी। सर, एस को भी ले कर जाना है ना?"

    "हाँ तो चलो। प्रियास कहाँ पर है सर? यही तो है, आपको दिख नहीं रहा? मेरे पीछे छुपा हुआ है।" मिली साइड हुई, पर वहाँ पर शिव नहीं था।

    "मिली, क्यों मज़ाक कर रही हो?"

    "सॉरी सर, बट शिव अभी यहीं पर था। रुकिए, मैं ढूँढ कर लाती हूँ।"

    "क्लास में जाओ! क्लास में! जो तुम… मैं शिव को ढूँढ लूँगा और उसकी क्लास में ले कर आ रहा हूँ। सर, उसको डाँटिएगा मत प्लीज।"

    "हाँ, मैं जानता हूँ, मैं नहीं डाँटूँगा।" शुभ महेश को ढूँढ कर लाता हूँ, तुम क्लास में जाकर पढ़ाई करो।"

    मिली वहाँ से चली गई और शुभ शिव को ढूँढने लगा। शुभ गार्डन के साइड निकल गया और वहाँ पेड़ के नीचे शिव दुबक कर बैठा हुआ था, अपने सर को हाथों के बीच दबाए नीचे देख रहा था।


    शुभ उसके पास पहुँचा और वह बिना कुछ कहे शिव के बगल में जाकर बैठ गया और शिव के कंधे पर हाथ रखा। फिर धीरे से हटाते हुए बोला, "डरो मत, मैं हूँ। अरे डरो मत यार, मैं हूँ!" फिर शिव डरते हुए पीछे देखा तो शुभ उसके पास खड़ा था। उसने शुभ को कस कर गले लगा लिया।


    वह जैसे ही शुभ को गले लगाता है, शुभ के दिल की धड़कनें तेज होने लगती हैं। वह खुद को रोकने की कोशिश करता है और शिव को पकड़ लेता है।

    "क्या हुआ शिव? तुम डर क्यों रहे हो?"


    "कुछ नहीं… कुछ नहीं हुआ। मुझे क्लास में नहीं जाना, मुझे डर लग रहा है।" रोते हुए वह शुभ को और जकड़ता जा रहा था।


    जैसे-जैसे शिव की पकड़ बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे शुभ की धड़कनें भी तेज होती जा रही थीं। शुभ को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है। शुभ खुद को रोकते हुए शिव को अपने से अलग करके उसके आँसू पूछता है। और जैसे ही शिव की आँखों में देखा, मानो वह उसमें खो गया। वह झील सी गहरी आँखें, वह आँखें जैसे कुछ बयान कर रही हों। शिव के गाल रोने की वजह से गुलाबी पड़ गए थे।


    शिव के गालों को हाथों से साफ़ करते हुए शुभ कहता है, "तुम टेंशन ना लो, तुम्हें क्लास में कोई कुछ नहीं कहेगा। और किसी ने कुछ कहा तो मैं उसको पनिशमेंट दूँगा।" और वह शिव को लेकर क्लास की ओर चला जाता है। क्लास में जाने के बाद वह मिनी के बगल में शिव को बैठा देता है और क्लास में एक अलग ही बकवास चालू हो जाती है। यह सुनते ही शुभ जोर से आवाज़ लगाता है, "साइलेंस प्लीज! अगर मैं दोबारा ऐसी हरकत इस क्लास में किसी बच्चे को करते देखा तो मैं आप लोगों को एक महीने के लिए सस्पेंड करवा दूँगा और साथ में आपके इंटरनल मार्क्स भी काट लिए जाएँगे!"


    इसके बाद शुभ अपना लेक्चर खत्म करता है। उसके बाद लंच हो जाता है तो शुभ शिव को देखने के लिए उसके क्लास में आता है। वह देखता है कि हर कोई खाना खा रहा है, पर शिव अपने टिफिन को ही देखे जा रहा है। तो वह मिनी को देखकर इशारा कर के बुलाता है और पूछता है, "वह खाना क्यों नहीं खा रहा?"

    "पता नहीं सर, कब से ट्राई कर रही हूँ पर वह खा ही नहीं रहा।"

    "कम ऑन शिव, और तुम मेरे केबिन में टिफिन लेकर आ जाओ, हम साथ में टिफिन करेंगे।"

    "मज़ाक कर रहे हैं ना आप सर?"

    "जितना कहा है उतना करो मिनी, जो हम वेट करें, जल्दी से आओ आप लोग।"


    यह कह के शुभ वहाँ से चला जाता है। शुभ के जाते ही मिली शिव को लेकर शुभ के केबिन में पहुँच जाती है और वहाँ पर शुभ भी उनका इंतज़ार कर ही रहा होता है। उन्हें केबिन के बाहर देखकर मिली कहती है, "मे आई कम इन सर?"


    "आ जाओ, बैठो।" शुभ शिव के पास जाकर बैठ जाता है। वह बात करने लगता है उन दोनों से और फिर शिव का टिफिन खोलकर अपने हाथों से शिव को खाना खिलाने लगता है। और जैसे ही उसके हाथ शिव के होंठ को स्पर्श करते हैं, उसका दिल फिर से तेज़ी से धड़कने लगता है। फिर थोड़ी देर बाद शिव को देखते-देखते वह मस्त हो जाता है।

    "मिली, थोड़ी देर बाद क्या हुआ सर?" मिली की आवाज़ सुनते ही शुभ होश में आ जाता है।

    "कुछ नहीं… कुछ नहीं। खाओ सर, मैं खा लूँगा।" शिव धीरे आवाज़ में कहता है।

    "चुपचाप तुम खा रहे हो या फिर तुम्हें पनिशमेंट दूँ? चलो जल्दी से टिफिन फ़िनिश करो।" और वह अपने हाथ को पीछे लेकर के टिफिन शिव के हाथ में रख देता है और कहता है, "जब तक टिफिन खत्म नहीं होगी तुम दोनों यहाँ से नहीं जाओगे।"


    फिर थोड़ी देर बाद मिली शिव को धीरे से कहती है, "भाई, खा ले! इस खड़ूस को मुझे और नहीं देखना, ये जब तक सामने रहेगा मुझे खाना नहीं हज़म होगा।"

    "खा लेना मेरे लिए, प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़!"

    "अच्छा-अच्छा, मैं खा रहा हूँ। चल, तू भी खा ले।" यह कहकर शिव खाना स्टार्ट कर देता है। फिर जैसे ही उनका टिफिन खत्म होता है, वे शुभ के केबिन से बाहर आ जाते हैं और इसके बाद वे क्लास में चले जाते हैं। क्लास में जाने के बाद वे अपनी क्लासेस अटेंड करते हैं।


    छुट्टी के समय.......


    शिव और मिली पैदल जा रहे होते हैं कि तब तक शुभ अपनी गाड़ी से उधर आता है।

    "चलो, मैं तुम दोनों को घर छोड़ देता हूँ।"

    "नहीं सर, हम चल जाएँगे। थैंक यू, बट हम चल जाएँगे।"

    "एक बार में समझ नहीं आता क्या? मिली कह रहा हूँ ना कि बैठो, छोड़ दूँगा।"

    "ये डाँट क्यों रहा है और ऐसे क्यों है यार? हम चल जाएँगे।"

    "ये खड़ूस के साथ मुझे खून न काम करना। वैसे भी तेरी हेल्थ सही नहीं है, तो तू चला जा, पता नहीं कब आएंगे अंकल तुझे लेने।"

    "सिर अप! ऐसा करो, शिव को लेकर जाओ, मुझे कुछ काम है, वह करके आती हूँ।"


    यह कहकर मिली शिव को गाड़ी में बैठने के लिए बोलती है और जैसे ही शिव गाड़ी में बैठता है, मिली वहाँ से चली जाती है। शिव अपने ध्यान में खोया हुआ अपना हाथ शुभ के कंधों पर रख देता है और उसका हाथ पड़ते ही मानो शुभ का सारा सिस्टम हिल गया हो। और शुभ एक बार फिर खुद को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगता है। उसके दिल की धड़कनें तेज होने लगती हैं, उसको एक अच्छा सा अनुभव होने लगता है, पर वह खुद को समझाते-समझाते उसके घर तक पहुँच जाता है।


    और शुभ शिव के साथ आता देख उसके मम्मी शुभ को अंदर बुलाती हैं।

    "बेटा, आओ अंदर, थोड़ा पानी पी लो, फिर तुम जाना।"

    "अरे नहीं मैम, लेट हो रहा है, हमको जाने दीजिए, हम फिर कभी आ जाएँगे।"

    "अरे आप यहाँ तक आ गए हो तो अंदर आ ही जाओ ना! आप शिव के टीचर हो।"

    "हाँ मैं… मैं यहीं से अपना ट्वेल्थ पास किया था और ग्रेजुएशन मेरा यहीं से है, तो मैं यहीं पढ़ाता हूँ।"

    "ओके बेटा, बैठो, मैं आपके लिए कुछ लाती हूँ।"

    "अरे आप परेशान मत होइए ना, मुझे लेट भी हो रहा है, बच्चों को ट्यूशन पढ़ने जाना है।"

  • 10. Wishper of dying love - Chapter 10

    Words: 1666

    Estimated Reading Time: 10 min

    ठीक है बाबा, जैसी आपकी मर्जी। मैं आपको कोल्ड्रिंक लाकर देता हूँ। वह पी लो। फिर ऋतु किचन की तरफ चली गई। शिव सीधा अपने रूम की तरफ चला गया। शुभ वहाँ बैठा, सामने पड़े शीशे में खुद को देख ही रहा था कि उसे फिर से वह सारे दृश्य याद आने लगे जब शिव ने उसको कसकर गले लगाया था। वह शिव के कंधे और होंठ...

    "ऋतु जी, कोल्ड ड्रिंक सर," शुभ।

    उसकी आवाज सुनते ही शुभ सेंस में आ गया। वैसे ही उसने कोल्ड ड्रिंक ले ली। ऋतु और शुभ बैठकर कोल्ड ड्रिंक पीते रहे। शुभ अपने यादों में खोया हुआ मुस्कुरा रहा था। इसे देखकर ऋतु ने कहा, "बेटा, डू यू लव someone?"

    यह सुनते ही शुभ खांसने लगा। "अरे सॉरी, सॉरी। आराम से।"

    ऋतु ने उसकी पीठ पर थपथपाते हुए कहा, "कोई बात नहीं।"

    फिर शुभ बोला, "आपने ऐसा क्यों कहा आंटी? आई एम सॉरी।"

    "कोई बात नहीं, बेटा। आप आंटी कह सकते हो। वैसे भी, मैं 40-45 की तो हो ही गई हूँ।"

    यह कह कर दोनों हँसने लगे। "बेटा, आप किसी को सोचकर इतना ब्लेस्ड हो रहे थे कि लग रहा था कि आप किसी को पसंद करते हो या कोई आपको पसंद आने लगा है।"

    "ऐसी कोई बात नहीं है आंटी। अभी फिलहाल तो... कभी-कभी ना, हमारे दिल में कोई और रहता है और दिमाग में किसी और के लिए जंग चल रही होती है। इसका एक सबसे सरल उपाय होता है कि कभी अपनी आँखें बंद करके देखना, जो जिससे तुम सबसे ज़्यादा प्यार करते हो, वह तुम्हें खुद-ब-खुद दिख जाएगा।"

    इतना बात करते-करते दोनों की कोल्ड ड्रिंक खत्म हो गई। शिव को सीढ़ियों पर देख शुभ ने उसे वहाँ से बाय बोला और ऋतु से भी नमस्ते करके चला गया।

    शिव के जाते ही ऋतु ने शिव से कहा, "शुभ है ना? इसको तो मैं एक-दो बार टीचर्स मीटिंग्स में भी देखा है।"

    "हाँ मम्मी, यही शुभ है। और यही है वो खड़ूस। पर बहुत प्यारा था दिखने में। केवल प्यार है। अरे बेचारा बहुत क्यूट है।"

    "तारीफ़ मम्मी! यार आप मेरी मम्मी हो या उसकी, आप चाहे फिर उसी की तारीफ़ कर लो।"

    फिर शिव की मम्मी हँसते हुए शिव को गले लगा लेती है।

    "क्या बात है? क्या बात है? माँ-बेटे की बड़ी जुगलबंदी चल रही है। भाई, मेरे हिस्से का प्यार भी चुरा रहे हो। मम्मी, मैं भी आपकी बेटी हूँ। मुझे कैसे भूल गईं आप?"

    यह कहते हुए श्वेता सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उनके पास आई। वह भी हँसते-हँसते उनके गले लग गई।

    रात के समय, सब डाइनिंग टेबल में बैठकर डिनर करने ही जा रहे थे। शिव के पापा बोले, "बेटा, आपके लिए हमने एक सरप्राइज़ प्लान किया है। जैसे ही आपका 10th कंप्लीट होता है, वैसे ही हम आपको हॉस्टल में डाल देंगे।"

    "पापा, मुझे हॉस्टल में नहीं जाना। प्लीज़ यार पापा, ऐसा मत करो ना। मुझे आपसे दूर नहीं रहना।"

    यह कहकर वह डाइनिंग टेबल से उठकर चला गया।

    "अच्छा ठीक है बाबा, नहीं डालते हैं उसको हॉस्टल में। अभी रहने देते हैं ना?" ऋतु ने शिव के पापा से कहा।

    ऋतु जी की बात सुनकर श्वेता बोली, "हाँ पापा, अभी रहने देते हैं ना। थोड़ा सा बड़ा हो जाएगा तो फिर हम उसको डाल देंगे हॉस्टल में।"

    "ठीक है। अच्छा, जैसा तुम लोगों की मर्ज़ी।"

    डिनर करके सब सोने के लिए अपने-अपने कमरे की तरफ़ चले गए।

    अगली सुबह...

    स्कूल पहुँचा शिव। जब स्कूल पहुँचा, वह देखता है कि शुभ उसका पहले से ही वहाँ इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही वह गेट पर गया, शुभ उसके हाथों से उसका बैग ले लेता है और उसे लेकर आगे-आगे चलने लगा। यह देख मिली ने शिव से कहा, "इस खड़ूस को क्या हो गया है? आजकल तेरे ऊपर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हो रहा है। बेटा, बच के रहना।"

    और यह कहकर वह शुभ के पीछे जाने लगी। शुभ शिव का बैग ले जाकर क्लास में रखकर अपने केबिन में बिना कुछ कहे चला गया। शिव शुभ को थैंक यू कहने के लिए उसके केबिन की ओर गया। जैसे ही वह केबिन के बाहर पहुँचा, उसने कुछ आवाज़ सुनी।

    वह आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि शुभ की थी, जो शिव के बारे में अपने फ़्रेंड से बात कर रहा था। वह अपने फ़्रेंड से कह रहा था, "आजकल न जाने बच्चों को क्या हो गया है। न जाने क्यों लोगों के पीछे भागते रहते हैं। एकदम कच्ची कली लगता है। एक बार अगर मेरे हाथ लग जाए तो उसको मैं मसल कर अपना बना लूँगा। पर तुझे बनाकर अपना कब तक रखेगा शुभ? तुझे क्या शादी नहीं करनी? सोसाइटी में अपना नाम खराब करना है? अरे पागल, जब तक मज़े मिलते हैं तब तक मज़े लो। जब समय आएगा तब का तब देखा जाएगा। और मैं उसके लिए अपना सोसाइटी में नाम खराब करूँगा? वह है कौन? और वह वैसे भी, उसके मामा ने उसके साथ जो किया और वह जो है, वह सोसाइटी वैसे भी उसको नहीं अपनाने वाली।"

    यह सब सुनकर शिव बाहर खड़ा हुआ। उसकी आँखों में आँसू आ गए और वह भावुक होकर केबिन से लौट गया।

    जाकर क्लास में अपने सीट पर बिना किसी से कुछ बोले बैठ गया। मिली उसके बगल में जाकर बैठी। उसे उदास देख पूछा, "क्या हुआ?"

    "कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही। मुझे घर जाना है। अच्छा नहीं लग रहा।"

    फिर बिना कुछ बोले वह वहाँ से उठकर चला गया।

    फिर जैसे ही छुट्टी हुई, छुट्टी होने के बाद, कल की तरह आज भी शुभ शिव और मिली का इंतज़ार स्कूल के बाहर अपनी बाइक से कर रहा था। शिव और मिली जैसे ही बाहर पहुँचे, शुभ उनसे बोला, "आओ बैठो, ड्रॉप कर देता हूँ।"

    शिव गुस्से में था। वह बिना कुछ बोले आगे थोड़ी दूर आगे बढ़ गया। मिली शिव को ऐसे देख थोड़ा सा चौंक गई, पर वह शिव के पीछे-पीछे आगे चली गई।

    फिर अपनी बाइक स्टार्ट करके शुभ उनसे थोड़ा आगे जाकर खड़ा हुआ और बोला, "आओ बैठो, घर तक छोड़ देता हूँ। क्या हुआ? कब तक पैदल जाओगे? थक जाओगे। तुम्हारी तबीयत वैसे भी सही नहीं है।"

    यह सुनते ही शिव ने खींचकर सबके सामने शुभ को थप्पड़ मारा। और वह थप्पड़ इतना तेज था कि आसपास खड़े सारे बच्चे देख रहे थे। मिली भी यह देखकर हैरान हो गई। शिव बोला, "बंद करो अपना यह झूठा दिखावा और दूर रहो मुझसे। नहीं तो अभी एक थप्पड़ ही पड़ा है, मैं कुछ और भी कर सकता हूँ। मुझे सोसाइटी अपनाए या ना अपनाए, पर तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा सकता।"

    यह कहकर शिव वहाँ से रोते हुए भाग गया। और शिव के पीछे-पीछे मिली भी उसे रोकते हुए आगे जाने लगी। शुभ चारों तरफ़ देखा, तो सब बच्चे उसे देख रहे थे और सब हँस रहे थे। शुभ ने जेब से चश्मा निकालकर लगाया और बाइक स्टार्ट करके वहाँ से चला गया।

    शुभ जैसे ही घर में पहुँचा, वह अपने कमरे में सीधा गया और मिरर के सामने बैठकर अपने गाल को देखने लगा। उसके गाल पर पड़े शिव के हाथों के निशान। उसे शिव पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आया और वह ठान लेता है कि शिव को वह ठीक से जीने नहीं देगा।

    इधर शिव अपने घर पर चुपचाप आया और वह बिना किसी से कुछ बोले अपने कमरे में चला गया। उसका यह रवैया देख श्वेता थोड़ा सा आश्चर्य हुई।

    फिर शाम के टाइम मिली शिव के घर पर आई। "हेलो दीदी।"

    "हेलो मिली, कैसी हो?"

    "मैं ठीक हूँ दीदी। शिव कहाँ पर है?"

    "वह अपने कमरे में। आज तो पता नहीं क्या हुआ है। लाट साहब जब से स्कूल से आए हैं, एक बार भी बात नहीं किया है।"

    "अरे आपको पता नहीं क्या हुआ? उसने कुछ बताया नहीं?"

    "उसने तो कुछ नहीं बताया। क्या हुआ मिली? सब ठीक तो है ना?"

    "अरे उसने आज सुबह शुभ सर को थप्पड़ जड़ दिया है, पूरे कैंपस के सामने!"

    यह सुनते ही श्वेता बोली, "उसने ऐसा क्यों किया? उसने शुभ को थप्पड़ मारा?"

    दोनों शिव के कमरे में चले गए। "शिव, तूने शुभ को थप्पड़ क्यों मारा?"

    शिव बिना कुछ बोले अपने बिस्तर पर लेटा हुआ उनसे दूसरी तरफ़ मुँह कर लेता है। श्वेता दूसरी तरफ़ जाकर बैठी। "देख, तू साफ़-साफ़ बता रहा है या फिर मैं यहाँ से तुझे मार खाएगा।"

    सीरियस होकर शिव श्वेता के गले लग जाता है और वह रोते हुए आवाज़ में कहता है, "दीदी, मैंने शुभ सर को बहुत अच्छा समझ रहा था, पर वह बहुत गंदे हैं। पता है आज मैं उनको थैंक यू बोलने के लिए उनके केबिन पर गया था। वहाँ पर उनके फ़्रेंड थे और वह मेरे बारे में उल्टा-सीधा बोल रहे थे।"

    उसने मिली और श्वेता को जो वाक्य हुआ है, वह बताया। यह सुनते ही श्वेता ने कहा, "अच्छा किया तूने एक थप्पड़ लगाया। मैं होती तो ज़िंदा गाढ़ देती ऐसे और टीचर को! वह भी बायोलॉजी का!"

  • 11. Wishper of dying love - Chapter 11

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    रितु के जाते ही शिव ने कहा, "शुभ है ना? इसको तो मैं एक-दो बार टीचर्स मीटिंग्स में भी देखा है।"

    "हाँ, मम्मी, यही शुभ है। और यही है वो खडूस। परी तो बहुत प्यार से दिखता है, केवल दिखने में प्यार है।"

    "अरे बेचारा, बहुत क्यूट है, तारे मम्मी! यार, आप मेरी मम्मी हो, उसकी आप चाहे फिर उसी की तारीफ़ कर लो।" फिर शिव की मम्मी हँसते हुए शिव को गले लगा लेती हैं।

    "क्या बात है! क्या बात है! माँ-बेटे की बड़ी जुगलबंदी चल रही है। भाई, मेरे हिस्से का प्यार भी तो चुरा रहा है, मम्मी! मैं आपकी भी बेटी हूँ, मुझे कैसे भूल गई आप?" यह कहते हुए श्वेता सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए उनके पास आती है और हँसते-हँसते उन्हें गले लगा लेती है।


    रात के समय, सब डाइनिंग टेबल पर बैठकर डिनर करने ही वाले थे कि शिव के पापा बोले, "बेटा, आपके लिए हमने एक सरप्राइज़ प्लान किया है। जैसे ही आपका 10th कंप्लीट होता है, वैसे ही हम आपको हॉस्टल में डाल देंगे।"

    "पापा, मुझे हॉस्टल में नहीं जाना। प्लीज़ यार पापा, ऐसा मत करो ना! मुझे आपसे दूर नहीं रहना।" यह कहकर शिव डाइनिंग टेबल से उठकर चला जाता है।

    "अच्छा ठीक है बाबा, नहीं डालते हैं उसको हम हॉस्टल में। अभी रहने देते हैं ना?" रितु ने शिव के पापा से कहा।

    रितु जी की बात सुनकर श्वेता बोली, "हाँ पापा, अभी रहने देते हैं ना। थोड़ा सा बड़ा हो जाएगा, तो फिर हम उसको डाल देंगे हॉस्टल में।"

    "ठीक है। अच्छा, जैसा तुम लोगों की मर्ज़ी।" डिनर करके सब सोने के लिए अपने-अपने कमरे की तरफ़ चले जाते हैं।


    अगली सुबह, स्कूल पहुँचते ही शिव ने देखा कि शुभ पहले से ही वहाँ उसका इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही वह गेट पर पहुँचा, शुभ ने उसके हाथों से उसका बैग ले लिया और उसे लेकर आगे-आगे चलने लगा। यह देख मिली ने शिव से कहा, "यह खडूस को क्या हो गया है? आजकल तेरे ऊपर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान हो रहा है। बेटा, बच के रहना!"

    और यह कहकर वह शुभ के पीछे जाने लगी। शुभ शिव का बैग ले जाकर क्लास में रखकर अपने केबिन में बिना कुछ कहे चला गया। शिव शुभ को थैंक यू कहने के लिए उसके केबिन की ओर गया और जैसे ही वह केबिन के बाहर पहुँचा, उसने कुछ आवाज़ सुनी।

    वह आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि शुभ की थी जो शिव के बारे में अपने फ्रेंड से बात कर रहा था। वह अपने फ्रेंड से कह रहा था, "आजकल न जाने बच्चों को क्या हो गया है! न जाने क्यों लोगों के पीछे भागते रहते हैं। एकदम कच्ची कली लगता है। एक बार अगर मेरे हाथ लग जाए तो उसको मैं मसल कर अपना बना लूँगा। पर तुझे बनाकर अपना कब तक रखेगा? शुभ, तुझे क्या शादी नहीं करनी? सोसाइटी में अपना नाम खराब करना है? अरे पागल! जब तक मज़े मिलते हैं, तब तक मज़े लो। जब समय आएगा, तब का तब देखा जाएगा। और मैं उसके लिए अपना सोसाइटी में नाम खराब करूँगा? वो है कौन? और वो वैसे भी... उसके मामा ने उसके साथ जो किया और वो जो है... वो सोसाइटी वैसे भी उसको नहीं अपनाने वाली।"


    यह सब सुनकर शिव बाहर खड़ा रह गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए और वह भावुक होकर केबिन से लौट गया।


    जाकर क्लास में अपनी सीट पर बिना किसी से कुछ बोले बैठ गया। मिली उसके बगल में जाकर बैठी और उसे उदास देखकर पूछा, "क्या हुआ?"

    "कुछ नहीं यार, बस ऐसे ही। मुझे घर जाना है, अच्छा नहीं लग रहा।" फिर बिना कुछ बोले वह वहाँ से उठकर चला गया।


    फिर जैसे ही छुट्टी हुई, कल की तरह आज भी शुभ शिव और मिली का इंतज़ार स्कूल के बाहर अपनी बाइक से कर रहा था। शिव और मिली जैसे ही बाहर पहुँचे, शुभ ने कहा, "आओ बैठो, ड्रॉप कर देता हूँ।"

    शिव गुस्से में था। वह बिना कुछ बोले आगे थोड़ी दूर बढ़ गया। मिली शिव को ऐसे देखकर थोड़ी सी चौंक गई, पर वह शिव के पीछे-पीछे आगे चली गई।


    फिर अपनी बाइक स्टार्ट करके शुभ उनसे थोड़ा आगे जाकर खड़ा हुआ और बोला, "आओ बैठो, घर तक छोड़ देता हूँ। क्या हुआ? कब तक पैदल जाओगे? थक जाओगे। तुम्हारी तबीयत वैसे भी सही नहीं है।"

    यह सुनते ही शिव ने खींचकर सबके सामने शुभ को थप्पड़ मारा। और वह थप्पड़ इतना तेज था कि आसपास खड़े सारे बच्चे देख रहे थे। मिली भी यह देखकर हैरान हो गई। शिव ने कहा, "बंद करो अपना यह झूठा दिखावा और दूर रहो मुझसे! नहीं तो अभी एक थप्पड़ ही पड़ा है, मैं कुछ और भी कर सकता हूँ। मुझे सोसाइटी अपनाए या ना अपनाए, पर तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा सकता।"


    यह कहकर शिव वहाँ से रोते हुए भाग गया और शिव के पीछे-पीछे मिली भी उसे रोकते हुए आगे जाने लगी। शुभ चारों तरफ़ देखा तो सब बच्चे उसे देख रहे थे और सब हँस रहे थे। शुभ ने जेब से चश्मा निकालकर लगाया, बाइक स्टार्ट की और वहाँ से चला गया।


    शुभ जैसे ही घर में पहुँचा, वह सीधा अपने कमरे में गया और मिरर के सामने बैठकर अपने गाल को देखने लगा। उसके गाल पर पड़े शिव के हाथों के निशान देख उसे शिव पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आया और उसने ठान लिया कि शिव को वह ठीक से जीने नहीं देगा।


    इधर शिव अपने घर पर चुपचाप आया और वह बिना किसी से कुछ बोले अपने कमरे में चला गया। उसका यह रवैया देख श्वेता थोड़ी सी आश्चर्यचकित हुई।


    वह कुछ नहीं बोला। फिर शाम के समय मिली शिव के घर पर आई।

    "हेलो दीदी।"

    "हेलो मिली, कैसी हो?"

    "मैं ठीक हूँ दीदी। शिव कहाँ पर है?"

    "वो अपने कमरे में है। आज तो पता नहीं क्या हुआ है। लाड़ साहब जब से स्कूल से आए हैं, एक बार भी बात नहीं किया है।"

    "अरे आपको पता नहीं क्या हुआ? उसने कुछ बताया नहीं?"

    "उसने तो कुछ नहीं बताया। क्या हुआ मिली? सब ठीक तो है ना?"

    "अरे उसने आज सुबह सर को थप्पड़ जड़ दिया है, पूरे कैंपस के सामने!"

    यह सुनते ही श्वेता बोली, "उसने ऐसा क्यों किया? और उसने शुभ को थप्पड़ मारा?" दोनों शिव के कमरे में चले गए।

    "शिव, तूने शुभ सर को थप्पड़ क्यों मारा?" श्वेता ने पूछा।

    शिव बिना कुछ बोले अपने बिस्तर पर लेटा हुआ उनसे दूसरी तरफ़ मुँह कर लेता है। श्वेता दूसरी तरफ़ जाकर बैठती है और कहती है, "तू साफ़-साफ़ बता रहा है या फिर मैं यहाँ से तुझे मार खाएगा?"


    सीरियस होकर शिव श्वेता के गले लग जाता है और रोते हुए आवाज़ में कहता है, "दीदी, मैंने शुभ सर को बहुत अच्छा समझा था, पर वो बहुत गंदे हैं। पता है, आज मैं उन्हें थैंक यू बोलने के लिए उनके केबिन पर गया था, वहाँ पर उनके फ्रेंड थे और वो मेरे बारे में उल्टा-सीधा बोल रहे थे।" शिव ने मिली और श्वेता को जो वाक्य हुआ है वो बताया।

    यह सुनते ही श्वेता ने कहा, "अच्छा किया तूने एक थप्पड़ लगाया। मैं होती तो ज़िंदा गाड़ देती ऐसे और टीचर को! वो भी बायोलॉजी का!"


    मिली वहाँ से बिना कुछ बोले चुपचाप उठकर चली जाती है। मिली को वहाँ से जाते देख शिव कहता है, "मिली कहाँ जा रही है? मिली सुन तो!" मिली बिना कुछ बोले वहाँ से निकल जाती है और शिव और श्वेता भी मिली के पीछे-पीछे जाने लगते हैं। मिली सीधा शुभ के घर जाती है और उसका दरवाज़ा पीटती है। जैसे ही शुभ दरवाज़ा खोलता है, मिली उससे कहती है, "एक बात याद रखना, अगर आइन्दा तुमने शिव की तरफ़ नज़र भी उठाकर देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं तो उसी दिन समझ गई थी जब तुम शिव के पीछे इतना पड़े हुए थे। बट मुझे लगा कि तुम सर हो, तुम समझोगे। तुम सर नहीं, सर कहलाने के लायक भी नहीं हो!"


  • 12. Wishper of dying love - Chapter 12

    Words: 1530

    Estimated Reading Time: 10 min

    शुभ ने यह बात सुनते ही गुस्से में आकर मिली को तमाचा मारने ही वाला था कि श्वेता ने शुभ का हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ झटकते हुए श्वेता बोली, "तू सोचना भी मत! इन दोनों के पीछे कोई है। अगर इनको जरा सा भी खरोच आई, बेटा, तू बचेगा नहीं। तू बायोलॉजी का टीचर है, क्या? तुझे जरा सा भी आईडिया है या नहीं? जब homosexuality को WHO ने प्रूफ कर दिया है कि यह नॉर्मल है, गवर्नमेंट ने भी इसको अप्रूवल दे दिया है, तो तू कैसे नहीं समझ रहा है? तू बायोलॉजी पढ़ाता है ना? तो दिमाग घुटने में है क्या?"

    जरा सा भी अंदाजा था कि शिव के साथ उस रात क्या हुआ था। एक लड़की जितना रेप का पीड़ा सह सकती है, उतना ही उसे लड़के के साथ भी हुआ था। दो लोगों ने उसका भी बलात्कार किया था, और तेरी लैंग्वेज में बोलूँ तो, मॉलेस्टेशन का केस हुआ था।" यह बात सुनते ही शुभ ने अपना सर झुका लिया।

    बिना किसी से कुछ बोले, वह अपने घर का दरवाजा बंद करके अंदर चला गया।

    श्वेता, मिली और शिव के साथ घर आई तो उसे पता चला कि मामा पकड़ा गया था और उसके साथ-साथ वह पुरोहित भी। फिर इन लोगों को थाने बुलाया गया। जब वे थाने पहुँचे, तो वहाँ पर उन्होंने मामा को जेल में बंद देखा। मामा हाथ जोड़ते हुए कहता रहा, "मुझे माफ़ कर दो, मुझे छोड़ दो! ऐसा मत करो मेरे साथ, ऐसा मत करो! प्लीज़! मेरे बच्चे अनाथ हो जाएँगे! दीदी, आपको जो सज़ा देनी है, दे दो, पर मुझे जेल से छुड़ा दो!" पर सबने मामा को इग्नोर करके कंप्लेंट पेपर पर साइन करके वहाँ से चले गए। मामा को 3 साल की सज़ा और जुर्माना हुआ।

    मामा जेल जाते समय यह प्राणपण से कह रहा था कि वह जब वापस आएगा, अपना बदला लेगा और उनकी फैमिली को ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।

    कुछ समय बाद, शुभ कॉलज छोड़कर कहीं और चला गया।

    तीन साल बाद........

    सुबह का समय......

    "यश, उठ जा बेटा! कॉलेज के लिए लेट नहीं हो रहा क्या? देख, टाइम वेस्ट मत कर! आज तेरे कॉलेज का पहला दिन है। जल्दी से उठ! जल्दी से उठ, बेटा!"

    ऋतु शिव के कमरे की खिड़कियाँ खोल रही थी और शिव को उठा रही थी। फिर उसने उसके ऊपर पड़े कम्बल को खींचकर एक तरफ रख दिया। जैसे ही सूर्य की रोशनी शिव के चेहरे पर पड़ी, उसने तकिये से अपना मुँह ढक लिया।

    "अरे, मुझे थोड़ी देर और सोने देना! बस 5 मिनट की तो बात है! 5 मिनट और सोने दो, फिर मैं उठकर आ रहा हूँ ना! प्लीज़!"

    "देख, मैं तेरे पापा को बुला दूँगी! उठ रहा है या मैं आवाज़ लगाऊँ?" ऋतु के इतना कहते ही,

    शिव तुरंत उठकर बैठ गया और बोला, "यार मम्मी, छोटी-छोटी बातों के लिए पापा को क्यों परेशान करना?"

    तब तक शिव के रूम के बाहर मिली खड़ी थी। "ओ तेरी! यह क्या रे? तू तो 3 साल में पूरा बदल गया! हंक, जवान, हॉट!" शिव को शर्टलेस देख मिली उस पर लाइन मारने लगी।

    यश पास पड़े कम्बल को उठाकर खुद को ढक लिया और कहा, "तू बाहर चल! बाहर चल! तुझे इतनी जल्दी आने के लिए किसने बोला? क्या है यार?" "शिव, मैं 3 साल बाद तुमसे मिलने आई हूँ, और तुम ऐसे कह रहे हो! चल ठीक है बेटा, बताती हूँ मैं। वैसे, तू भी क्या लग रही है रे! 3 साल में तो पूरा बदल गई! कहाँ तो मोटी सी थी, अभी कहाँ स्लिम हो गई!"

    यह दोनों का बॉडी बखान खत्म हुआ। "दोनों जल्दी से नीचे चलो और चुपचाप पहले तो फ्रेश हो जाओ और नीचे आ जाओ! नहीं तो फिर मैं तेरे पापा को भेज दूँगी! बेटा, मिली, तू मेरे साथ चल नीचे!" ऋतु मिली को अपने साथ ले गई।

    थोड़ी देर बाद शिव फ्रेश होकर ब्रेकफास्ट करने के लिए सीढ़ियों से उतर रहा था। उसने नीले कलर की चेक शर्ट पहनी हुई थी और नीचे सफ़ेद कलर का ट्राउज़र। साथ में उसने ब्लैक शूज़ पहने थे और हाथ में ब्लैक वॉच थी। स्लीव्स उसने मोड़ रखे थे।

    शिव को नीचे उतरता देख सब उसे देख रहे थे। "वाह! भाई, आज क्या लग रहा है! यह पापा, आप देख लेना, कहीं दूसरा लड़का पटा के ना ले आए!"

    "सोच लीजिए पापा! घर बैठे-बैठे दामाद मिल जाएगा! क्या यार श्वेता दी, कुछ भी कहती रहती हो! ऐसा कुछ नहीं होगा पापा!" "अरे सच में बेटा, आज तो बहुत सुन्दर लग रहा है! किसी की नज़र न लगे!" यह कहते हुए ऋतु जी ने अपनी आँखों से काजल का थोड़ा सा टीका शिव के कानों के पीछे लगा दिया।

    मिली उसे देखकर बोली, "यार, देख मेरा बॉयफ्रेंड ना होता और अगर तू gay ना होता, मैं तेरे से भागकर शादी कर लेती!" "महारानी रुक जा! शादी? तेरे से? मैं कभी नहीं करूँगा!" शिव ने मिली को कहा।

    "मैं थोड़ी सी तारीफ क्या कर दी, तू खुद को हीरो समझने लगा! रुक जा, रुक जा बाबा! तू भी अपनी जुबान पर कंट्रोल कर! मैं भी ना मर रही तेरे से शादी करने के लिए! तुझसे शादी करने से बेहतर है कि मैं कुंवारी ही मर जाऊँ!"

    "जब तक मेरी शादी नहीं होगी, तेरी भी नहीं होने दूँगी, पापा! यार देखो ना क्या कह रही है दीदी! मैंने उनसे बात नहीं करनी! आप इनको समझा दो!" यह कहते हुए यश चिढ़ गया और श्वेता वहाँ से मुस्कुराते हुए चली गई।


    और इधर एक अनजाना खतरा उनकी तरफ आ ही रहा था। हाँ, यश के मामा की जमानत हो गई थी। वह जेल से आज़ाद हो गया था। आज़ाद होते ही उसने सबसे पहले यश के परिवार को खत्म करने का सोचा। वह जेल से बाहर निकलकर सीधा उनके परिवार की तरफ आने लगा।

    यश के पिता ने कुछ वर्कर्स को घर पर मरम्मत के लिए बुलाया हुआ था। सब घर के कामों में बिजी थे कि तभी अचानक डोरबेल बजी। जैसे ही उन्होंने देखा, कुछ मास्क पहने हुए आदमी सीधे अंदर आ गए और सबको चारों तरफ़ से घेर लिया। वे तुरंत यश और श्वेता के बारे में पूछने लगे और उन्हें मारने की धमकी देने लगे।

    उनकी बात सुनते ही ऋतु डर गई। घर में शोर-शराबा सुनकर ऊपर कमरे में रहे यश के पिता जैसे ही सीढ़ियों के पास आकर देखा, नीचे का नज़ारा देखकर उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं। वे चुपचाप अपने कमरे में आकर पुलिस को फोन लगाने की कोशिश करने लगे। तब तक एक मास्क पहना हुआ आदमी उनके कमरे में आ गया और जैसे ही उनका फोन रिंग होने वाला था, उसने फोन छीनकर कट कर दिया।

    फिर यश के पिता का बंदूक तान लिया गया और उसे भी नीचे आने के लिए कहा गया।

    यश के पिता जैसे ही नीचे आए, वे ऋतु के बगल में बैठ गए। फिर ऋतु उनसे बोली, "हमें किसी भी तरीके से यश और श्वेता को इस घर में आने से रोकना होगा। और एक बात, गैस ऑन है! इन लोगों ने मास्क लगाए हुए हैं इसलिए नहीं पता चल रहा, शायद, पर थोड़ी देर बाद गैस भी फटने वाली है। हमें कुछ भी करके उन्हें यहाँ आने से रोकना होगा।"

    यह सुनने के बाद यश के पिता शौक से यश की माँ की तरफ देखते हैं, तो वह उन्हें सहमति में देखती है। "पर यह सही होगा? देखिए जी, इतना तो समझ में आ गया है, किया तो हमारे बच्चे मरेंगे या हम। और हम अपने सामने अपने बच्चों को मरता हुआ नहीं देख सकते। और यह जो कोई भी है, हमें इनके बारे में कुछ भी नहीं पता है।" तब तक मामा उनके सामने आ गया।

    मामा को अपने सामने खड़ा देख ऋतु बोली, "भैया! आपसे यह उम्मीद नहीं थी! आप इतना गिर जाएँगे! मैंने ऐसा सोचा नहीं था!" वह हँसते हुए बोला, "मैं भी जितना नहीं सोचा था! अरे जो माँ अपनी बेटी की सगी नहीं हो सकती, अपने भाई की सगी नहीं हो सकती, और दूसरों की सगी क्या होगी? आप सभी का पाठ ना पढ़ाया तो बेहतर होगा! भैया, अपनी जुबान को लगाम दो!" मामा को सामने देख यश के पिता तुरंत वहाँ से उठकर उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़े, पर पीछे खड़े लोगों ने ऋतु पर बंदूक उठा ली और उसे धमकी दी, "अगर तुम जरा सा भी हिले, तो इसकी खोपड़ी उड़ा देंगे!"

    बंदूक के निशाने पर देख यश के पिता वहीं पर रुक गए और चुपचाप पीछे जाकर बैठ गए। फिर वे ऋतु से बुदबुदाते हुए कुछ कह रहे थे।

  • 13. Wishper of dying love - Chapter 13

    Words: 1980

    Estimated Reading Time: 12 min

    मामा ने अपना फोन निकाला और श्वेता को फोन किया। "अगर अपने माँ-बाप को जिंदा देखना चाहती हो, तो शिव को लेकर जितना जल्दी हो सके अपने घर पर आ जाओ। और याद रहे, अगर तुमने किसी को भी कुछ भी बताने की कोशिश करी, तुम्हारे मम्मी-पापा इस दुनिया से चले जाएँगे।"

    यह बात सुनते ही शिव के पापा, रितु को हल्का-सा इशारा करते हैं। रितु ने जैसे ही मौका पाया, अपने भाई के पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाने लगीं। उसने तेज़ी से उनका पैर खींचा, जिससे वह जमीन पर गिर गया।

    उसके गिरते ही शिव के पापा ने तुरंत फोन उठाया। "बेटा, तुम लोग यहाँ मत आना, यहाँ मत आना बेटा! दूर चले जाओ, बेटा, यहाँ मत आना, यहाँ मत आना!"

    यह कहते-कहते, पीछे से एक आदमी ने शिव के पापा के पैर में गोली मार दी।

    गोली लगते ही उनकी चिल्लाने की आवाज़ सुनकर सीता ने भी जोर से फोन में चिल्लाई। रितु उनके पास भागकर बैठ गई और अपने भैया से हाथ जोड़कर विनती करने लगी कि उन्हें जाने दें। उसका गिड़गिड़ाता हुआ रोना देखकर मामा बोला, "ऐसे मैं भी बहन तेरे सामने रोया था। तूने मेरी एक नहीं सुनी थी ना? अब ले भुगत! अगर उस टाइम तू मुझे माफ़ कर देती, तो आज ऐसा कुछ होता ही ना।"

    शिव के पापा ने फिर ध्यान दिया कि गैस का रिसाव तेज हो रहा था। सारे खिड़की-दरवाज़े बंद थे क्योंकि गुंडों ने सारे खिड़की-दरवाज़े बंद कर रखे थे। जैसे ही एक गुंडा रितु पर से थोड़ा ध्यान हटाता है, वह भागकर किचन में चली गई। पीछे से एक आदमी ने बंदूक तानी, पर मामा के कहने पर उसने बंदूक नहीं चलाई। "अरे, भागने दो! मेरी बड़ी बहन है। देखते हैं कहाँ तक भागकर जाती है प्यारी बहना!" फिर वह यह कहकर किचन की तरफ़ बढ़ने लगा।

    किचन की तरफ़ आता देख रितु ने पास पड़ी माचिस हाथ में ले ली। "देखो, अगर किसी ने भी मेरे पास आया, तो मैं यह माचिस जला दूँगी! मैं साथ-साथ तुम सब मर जाओगे!"

    सबको यह मज़ाक लगा। पर जैसे ही मामा को आभास हुआ कि गैस लीक हो रही है, उसने तुरंत सबको पीछे हटने के लिए कहा। मामा ने चालाकी से इशारा किया कि बंदूक तैयार रखें और मौका मिलते ही उस पर गोली चला दें। जैसे ही गोली चलाने जाया गया, रितु ने माचिस जला दी। गोली भी चली गई और माचिस जलते ही घर में आग लग गई। सिलेंडर फट गया और घर में जितने भी लोग थे, सब जलकर मर गए।

    अपनी आँखों के सामने शिव और श्वेता ने अपने घर का यह हाल देखा। उनकी हालत ख़राब हो गई। शिव और श्वेता जब देखते हैं कि उनका घर जल रहा है, वे रो-रोकर चिल्लाते हुए घर में भागने की कोशिश करने लगे। पर आस-पास इकट्ठी हुई भीड़ ने उन्हें पकड़ लिया। फायर ब्रिगेड को बुलाया गया, पर तब तक घर जलकर राख हो गया था और उसमें फँसे सारे लोग जलकर मर गए थे।

    इतनी बड़ी घटना को अपने सामने देखकर शिव और श्वेता अब जीने की उम्मीद खो चुके थे। पर फिर भी श्वेता ने हिम्मत नहीं हारी और शिव के लिए जीना चाहती थी। वह उसे सारी खुशियाँ देना चाहती थी जो उसके मम्मी-पापा शिव को देना चाहते थे।

    कुछ दिन बाद……

    कुछ दिन बाद श्वेता ने अपने ऑफिस से ट्रांसफर करवाकर मुंबई आ गई। मुंबई आकर उसने शिव से कहा, "देखो, कुछ भी हो जाए, पर तुम्हें इतना याद रखना है कि तुम्हारी सच्चाई गलती से भी किसी के सामने ना आ जाए। और यह भी याद रखना कि यह तुम्हें बहुत बड़ी मुसीबत में डाल सकता है। वैसे भी हमें यहाँ पर बहुत मेहनत करनी होगी। हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है, कुछ सेविंग्स हैं, उसके अलावा हमारे पास कुछ भी नहीं है।"

    तब तक पुणे स्टेशन पर उनकी एक दोस्त दिखाई दी। उसे देखकर श्वेता ने हाई किया। वह सीता के पास भागकर आई और श्वेता से बोली, "तुम लोग! मैं कब से तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी!" वह श्वेता की तरफ़ देखते हुए बोली, "कौन बताए मेरी बेस्ट फ़्रेंड कहाँ है? हमारी दोस्ती फैशन शो के दौरान हुई थी।"

    काव्य बोली, "हेलो शिव, कैसे हो तुम?"

    "मैं ठीक हूँ दीदी, आप बताएँ कैसे हैं?"

    "मैं भी बढ़िया हूँ। तू और श्वेता, चलो, मैंने तुम्हारे रहने का सारा इंतज़ाम कर दिया है।"

    "इंतज़ाम कहाँ पर किया है तुमने?"

    "अरे, ऐसा है ना, हम जहाँ रहते हैं, वहाँ का ऊपर का एक रूम खाली हुआ है। नीचे एक दादी रहती हैं, उनका एक पोता रहता है। उनके फ़ैमिली में भी ज़्यादा लोग नहीं हैं। फ़ैमिली में एक एक्सीडेंट में लोग मारे गए हैं। और वैसे भी मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में बताया तो वे तुम्हें रखने के लिए तैयार हैं। साथ में उन्होंने रेंट भी कम कर दिया है। तो जब तक तुम्हें स्टेबल जॉब नहीं मिल जाती, तब तक तुम वहीं रह लो। और शिव के कॉलेज का भी इंतज़ाम हम कहीं ना कहीं से कर लेंगे।"

    यह कहकर जैसे ही वह आगे बढ़ती है, श्वेता उसे पीछे से गले लगा लेती है और रोने लग जाती है। काव्य उसे शांत करते हुए कहती है, "अरे पागल, रो क्यों रही है? एक फ़्रेंड दूसरे फ़्रेंड के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा? तूने भी तो मेरी बहुत हेल्प की है ना? यह तो उसके आगे बहुत छोटी सी हेल्प है।"

    यह कहकर वह सामने वाले ऑटो को आवाज़ लगाती है। ऑटो रुकता है। "भैया, अंधेरी चलेंगे?" "हाँ मैडम, बैठ जाइए। भैया, थोड़ा सा लगेज है, इसको ऊपर उठाकर रख दीजिए। आओ श्वेता, शिव, चलो बैठ जाओ।" यह कहकर काव्य उन दोनों को गाड़ी में बिठाकर खुद भी बैठ जाती है।

    गाड़ी में शिव अपनी खिड़की के पास बैठा बाहर के नज़ारे को देख रहा था। बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें और इमारतें, जैसा उसने किताबों और फ़ोनों में देखा था, वैसा ही उसके सामने था। उसे देखकर एक पल के लिए मानो अपना गम भूल गया। वह खुशी से उस मूवमेंट को एन्जॉय करने लगा। उसे एन्जॉय करता देख श्वेता भी हल्की सी मुस्कान करने लगी और फिर वह धीरे से काव्य से कहती है, "आज मैं ना जाने कितने दिनों बाद इसको ऐसे मुस्कुराते हुए देखा है।"

    काव्य कहती है, "देखो यार, इतने बड़े हादसे से निकलने में थोड़ा टाइम तो लगता है। फिर अभी तो बच्चा है ना, उसे थोड़ा टाइम लगेगा, धीरे-धीरे वह ठीक हो जाएगा।"

    श्वेता: "काव्य, तुम सही कह रही हो। मुझे शिव को सारी खुशियाँ देनी हैं जो वह डिजर्व करता है। और मुझे उसे मम्मी-पापा का भी प्यार देना है ताकि उसे कभी ऐसा ना लगे कि मम्मी-पापा नहीं हैं।"

    यह कहती-कहती उनका घर आ जाता है। ऑटो वाले को वहीं रोकते हुए काव्य कहती है, "भैया, यहीं पर रोक दीजिए। कितना हुआ भैया?" "मैडम, ₹100।" काव्य अपने पर्स से ₹100 का नोट निकालकर ऑटो वाले को दे देती है। श्वेता और काव्य मिलकर अपना लगेज उठा लेती हैं और शिव भी लगेज उठाकर अंदर ले जाने लगता है।

    प्रयास का लगेज कुछ ज़्यादा ही भारी था। वह उसे उठाने की कोशिश कर रहा था, पर तभी पीछे से एक हाथ उसे लगता है और वह लगेज हल्का हो जाता है। जैसे ही शिव पीछे मुड़कर देखा, तो एक २३ साल का लड़का, ब्राउन ट्राउज़र पर ब्लू कलर की शर्ट पहने हुए, शर्ट के बटन ओपन थे और नीचे एक सफ़ेद कलर की टी-शर्ट पहनी हुई थी। गले में एक गोल्डन चैन, हाथ में एप्पल की वॉच और शूज़ भी काफी ब्रांडेड लग रहे थे। शिव उसको देखकर चौंक जाता है। वह बिना कुछ बोले लगेज को अंदर ले आता है।

    शिव उसको "थैंक यू" बोलता है और फिर बिना कुछ कहे आगे बढ़ जाता है। फिर काव्य दादी माँ को आवाज़ लगाती है, "दादी माँ!" पीछे से वह लड़का बोलता है, "काव्य ताई, दादी अभी तो नहीं हैं। वह कुछ घर के राशन के लिए बाहर गई हुई हैं।"

    "क्या काम था?"

    "अरे, मैंने दादी से बताया था ना कि मेरे फ़्रेंड यहाँ रहने वाले हैं, जो ऊपर का रूम खाली हुआ है, उसमें। यह वही हैं।"

    श्वेता: "ऋषि, दादी माँ का पोता है।"

    ऋषि: "हेलो श्वेता दी। और ये श्वेता का भाई है, शिव।"

    ऋषि: "हेलो शिव भैया!"

    "अरे यार, भैया मत बोलो! हमारी उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है। यू कैन कॉल मी नील।"

    "ओके, मैं आगे से ध्यान रखूँगा।" यह कहकर शिव सिर झुका लेता है। फिर ऋषि उन्हें ऊपर के कमरे की चाबी देते हुए कहता है, "आज से यह ऊपर का कमरा आप लोगों का हुआ। किसी भी चीज की ज़रूरत हो तो आप हमसे ज़रूर कहना।" यह कहकर वह उन्हें ऊपर ले जाने लगता है और उनके लगेज को भी ऊपर ले जाने में हेल्प करता है। कमरा, किचन, बाथरूम सब दिखाने के बाद वह पानी लाकर देता है। पानी लेते ही शिव कहता है, "थैंक यू यार ऋषि, तुमने बहुत हेल्प की।"

    थोड़े टाइम बाद श्वेता अपना सारा लगेज निकालकर कमरे में सेट करने लगती है और काव्य उसकी हेल्प कर रही होती है। कुछ राशन और किचन के सामान लेने थे, काव्य झट से उनकी लिस्ट बना देती है और वह लिस्ट श्वेता को दिखाते हुए शिव को भेज देती है। "बच्चा जाकर सारे सामान लेकर आएगा, तब तक हम यह सब सामान शिफ़्ट कर लेते हैं।"

    श्वेता सिर हिलाती हुई शिव को अपने पास बुलाती है, अपना बैग दिखाते हुए कहती है, "देखो, इस बैग में कुछ पैसे हैं। इसमें से कुछ पैसे निकालकर ले लो और जाकर सामान लेकर आओ।"

    काव्य कहती है, "यहाँ पास में ही मार्केट है। तुम्हें वहाँ पर सारे सामान मिल जाएँगे। सामने गेट से निकलोगे तो सीधा जाने के बाद लिफ़्ट मुड़ जाना, सारे सामान मिल जाएँगे।" यह कहकर काव्य शिव को कहती है, "जल्दी लेकर आना और ज़्यादा इधर-उधर मत जाना, क्योंकि तुम्हें भी इसके बारे में कोई आईडिया नहीं है।"

    शिव जैसे ही नीचे उतर रहा होता है, वह देखता है कि वहाँ कुर्सी पर बैठा ऋषि अपने फ़ोन में कुछ कर रहा है। शिव को बाहर जाते देखा ऋषि कहता है, "कहाँ जा रहे हो?"

    "क्या? हम बस कुछ सामान लेने जा रहे थे। दीदी ने बोला है। वही लेने के लिए मार्केट जा रहे थे।"

    "रुको, मैं भी साथ चलता हूँ। तुम अभी नए हो, तुम्हें कुछ आईडिया नहीं होगा।" यह कहकर ऋषि वहाँ से उठकर उसके साथ चलने लगता है। फिर वह जैसे ही थोड़ी दूरी पर जाता है…

  • 14. Wishper of dying love - Chapter 14

    Words: 1547

    Estimated Reading Time: 10 min

    ऋषि ने शिव के कंधे पर अपना हाथ रख दिया। उसके हाथ के स्पर्श से ही शिव की धड़कनें तेज हो गईं। शिव ऋषि से थोड़ी दूरी बनाना चाहता था, पर उसका दिल उसके काबू में नहीं था। शिव थोड़ा घबराने लगा। श्वेता की याद आ गई। किसी को कुछ पता न चले, इसलिए वह बिना कुछ कहे, अपने आप को रोकते हुए, अपने हाथों को मसलने लगा और साथ में लाई थैली को ऐंठने लगा।


    ऋषि ने उसकी इस हरकत को देखकर हँसते हुए कहा, "अरे, इसे थैली की जान लोगे क्या? इस बेचारी में तो पहले से ही जान नहीं है, अब इसे फाड़कर फेंक दोगे क्या?"


    शिव ने यह बात सुनी, पर कुछ बोले बिना थैली दूसरे हाथ में पकड़ ली और चुपचाप आगे बढ़ गया। ऋषि ने उसे थोड़ा पीछे खींचते हुए कहा, "सुनो, हाथ में हाथ डालकर सबसे फ़ेमस चाय पिलाता हूँ।"


    "नहीं-नहीं, अभी हमें लेट हो रहा है। दीदी हमारा वेट करेंगी। फिर कभी पी लेंगे।"


    "अरे आओ ना! ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा। चलो आओ।" वह कहकर शिव को जबरदस्ती चाय की टपरी पर ले गया और अनिल को बुलाकर उसे चाय दी। पर चाय गलती से ऋषि के हाथों से छूटकर शिव के हाथों पर गिर गई। चाय गर्म होने के कारण शिव का हाथ जलने लगा।


    शिव जोर से चिल्लाया। शिव को चिल्लाता देख अनिल भी घबरा गया और उसके हाथ को पकड़कर पास रखी पानी की बाल्टी में डाल दिया। थोड़ी देर बाद उसने दुकान से बर्फ लाकर उसके जले हुए हाथ पर लगाई।


    अनिल बार-बार एक ही शब्द दोहरा रहा था, "आई एम सॉरी, आई एम सॉरी। मुझसे गलती से हो गया। मैंने ध्यान नहीं दिया।" इसके बाद उसने पास के मेडिकल से दवा लाकर शिव के हाथ पर लगाई। थोड़ी देर बाद जब शिव को आराम हुआ, तो उसने कहा, "कोई बात नहीं, हो जाता है।" फिर वह वहाँ से चुपचाप उठकर आगे मार्केट की तरफ़ चला गया। अनिल उसके साथ मार्केट की तरफ़ बढ़ गया और वहाँ से सारा सामान खरीदकर घर की ओर लौट गए।


    सामान भारी था। ऋषि ने शिव के हाथों से जबरदस्ती सामान ले लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "तुम ऐसे चलो, मैं सामान लेकर चलता हूँ।" शिव ने अपना सर हिलाकर बिना कुछ बोले ऋषि के साथ आगे चलने लगा। कुछ समय बाद वे घर पहुँच गए। जैसे ही वे कमरे में पहुँचे, श्वेता ने शिव के हाथों में दवा लगा देख चौंक गई और दौड़कर उसके हाथों को देखते हुए बोली, "अरे बच्चे! क्या हुआ? कैसे हुआ ये?"


    ऋषि कुछ बोलने ही वाला था कि शिव तुरंत बोला, "अरे, वो ऐसा हुआ कि मैं चाय ले रहा था और गलती से वो चाय मेरे हाथ पर गिर गई।"


    "तो अच्छा हुआ कि ऋषि उस समय मेरे साथ था। उसने दवा वगैरह दिलाई। अब मैं ठीक हूँ। थैंक यू, ऋषि। तुमने फिर से एक बार मेरी हेल्प की।"


    "अरे दीदी, इसमें हेल्प की क्या बात है? आप लोग भी तो मेरी फैमिली के जैसे ही हो।" यह कहकर अनिल वहाँ से मुस्कुराते हुए चला गया।


    शिव चुपचाप साइड में लगे बेड पर बैठकर देख रहा था कि श्वेता कैसे सामान सेट कर रही है। सामान सेट हो जाने के बाद थोड़ी देर में दादी आ गईं। दादी को देख श्वेता दादी के पास गई और शिव ने दादी के पैर छुए।


    दादी ने दोनों को आशीर्वाद देने के बाद श्वेता अपने बैग से कुछ पैसे निकालकर दादी को देने लगी। "दादी, ये लीजिये एडवांस। और महीने का जो भी खर्च होगा, मैं आपको महीने के अंत में दूँगी।"


    दादी ने पैसे देखते ही श्वेता को मना करते हुए कहा, "देखो बेटा, अभी तुम बड़े शहर में आई हो। पहले तुम अपना पैर जमा लो, और तुम आराम से सेटल हो जाओ। फिर मुझे दे देना। मुझे कोई जल्दी नहीं है इस पैसे की। और ज़्यादा कुछ नहीं, बस नीचे आते रहना। और हो तो एक और चीज कर देना, हम सबका खाना एक में ही बना लेना। इससे क्या होगा कि मुझ बूढ़ी को भी थोड़ा सा आराम मिल जाएगा। बाकी तुम भाड़ा दो या ना दो, उससे कोई दिक्कत नहीं है। तुम अपने हिसाब से उसे कर लेना। अब बाकी काव्य है ही तो तुम और काव्य मिलकर उसको समझ लेना। बाकी जो पैसा बचेगा उसे दे देना।" यह कहकर वह काव्य की तरफ़ देखती हैं। काव्य ने यह बात सुनते ही खुश होकर कहा, "हाँ दादी, आईडिया तो अच्छा है ना? हम सब एक साथ बैठकर खाना भी खाएंगे और सबका साथ में खाना बनेगा। एक टाइम श्वेता बना देगी और एक टाइम मैं बना दूँगी।" यह कहकर काव्य हँसने लगी और जाकर दादी के गले लग गई। दादी भी मुस्कुराकर काव्य के गालों पर थपथपाते हुए बोली, "बदमाश कहीं की! चल अब जल्दी से इनकी हेल्प कर दे, और उसके बाद नीचे आजा, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है।" यह कहकर दादी कमरे से बाहर चली गईं।


    श्वेता को रूम सेट करते-करते शाम हो गई। रात का समय हो ही रहा था कि श्वेता ने शिव से कहा, "बेटा, बस थोड़ी देर रुक जा, मैं खाना बनाती हूँ।"


    "कोई दिक्कत नहीं दीदी, आप आराम से बनाइये। अभी मुझे भूख नहीं लगी है।" पर शिव को उस समय बहुत ज़्यादा भूख लगी हुई थी। फिर थोड़ी देर बाद श्वेता ने देखा कि दादी और काव्य उसके कमरे में खाना लेकर आ रहे हैं। कमरे में आकर श्वेता बोली, "अरे दादी, इसकी क्या ज़रूरत है?"


    "बेटा, देखो आज तुम दोनों थक गए होंगे। देखो, अभी ये खाना खा लो, उसके बाद काम करना। और किसी चीज की ज़रूरत हो तो नीचे मैं हूँ, आवाज़ लगाना।" यह कहकर दादी उनके कमरे में खाना रखकर चली गईं। थोड़ी देर में शिव और श्वेता दोनों खाना खा लेते हैं और फिर श्वेता शिव का बिस्तर लगाकर उसके बगल में बैठ जाती है और शिव के सर को सहला रही होती है। थोड़ी देर में शिव थका हुआ होने के कारण सो जाता है। उसके सोते ही श्वेता बाहर सीढ़ियों पर आकर बैठ जाती है और वहाँ बैठे-बैठे चाँद को एकटक देख रही थी। और उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी।


    उसे रोता देख दादी नीचे से ऊपर आई। जैसे ही श्वेता ने दादी को अपनी तरफ़ आता देखा, उसने अपने आँसुओं को पोछने लगी।


    दादी कहती हैं, "अरे बेटा, टेंशन ना लो। पहले आने दो इनको। पता है, ये जितना ही अंदर रहेंगे, उतना ही कष्ट देंगे। ये जितना निकल जाए, उतना ही अच्छा है।" यह कहकर वह श्वेता के बगल में बैठ जाती है और श्वेता बिना कुछ कहे दादी की गोदी में अपना सर रखकर रोने लगती है। दादी ने श्वेता के सर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, टेंशन ना लो। अगर ऊपर वाले ने दुःख दिया है, तो उसका सुख और उसका हल भी वही देगा। उस पर भरोसा रखो। कुछ भी हो, बस उस भरोसे को डगमगाने मत देना। और बाकी बिहारी तो हमेशा तुम्हारे साथ है। एक बार उनको सच्चे दिल से बुलाकर देखो, और वो तुम्हारी मदद करने ज़रूर आयेंगे।" यह कहते हुए दादी श्वेता के सर को सहला ही रही थीं कि थोड़ी देर में श्वेता उसकी गोदी में ही सो जाती है। श्वेता को गोदी में सोता देख दादी उसे उठाती नहीं है और बगल की सीढ़ी पर बैठे-बैठे वह भी झपकियाँ लेने लगती हैं। फिर थोड़ी देर बाद काव्य छत पर टहलते हुए उनकी तरफ़ आती है।


    दादी को ऐसा बैठा देख वह दादी को धीरे से उठाती है और कहती है, "दादी, चलो कमरे में लेट जाओ।"


    "अरे धीरे बोलो! अभी बड़ी मुश्किल से बेचारी ने सोया है। अभी उठ जाएगी तो..."


    काव्य दादी की बात सुनकर उनके बगल में बैठ जाती है। "बात तो सही है दादी, बहुत कुछ इस बेचारी ने झेला है। अभी भाई भी इसका २० साल का ही है, और इसके माँ-बाप का गुज़र जाना, और इतनी दर्दनाक तरीके से, उनके आँखों के सामने...ये कैसे रही होगी? ये तो यही जानती हैं।"


    यह कह ही रही थी कि श्वेता की अचानक आँखें खुल जाती हैं। श्वेता उन्हें वहाँ बैठा देखकर कहती है, "अरे आप लोग यहाँ सो रहे थे?"


    "अरे नहीं, कुछ नहीं। हम अभी-अभी आए ही थे कि दादी आ गईं।"


    "आई एम सॉरी, मुझे पता नहीं चला कि कब मेरी आँखें लग गईं।"


    "अरे कोई बात नहीं बेटा। मैं भी तुम्हारे मन की जैसी हूँ। जब कभी भी तुम्हें उनकी याद आए, तुम मुझे उनकी यादों से भर तो नहीं सकती, पर तुम मेरे पास आ सकती हो। जैसे मेरे लिए ऋषि है, वैसे तुम तीनों भी हो।"


    काव्य यह सुनकर दादी को गले लगा लेती है।

  • 15. Wishper of dying love - Chapter 15

    Words: 1671

    Estimated Reading Time: 11 min

    एम सॉरी, मुझे पता नहीं चला कि कब मेरी आँखें लग गईं।

    "अरे, कोई बात नहीं बेटा। मैं भी तुम्हारे मन के जैसी हूँ। जब कभी भी तुम्हें उनकी याद आए, तुम मुझे उनकी यादों से भर तो नहीं सकती, पर तुम मेरे पास आ सकती हो। जैसे मेरे लिए ऋषि है, वैसे तुम तीनों भी हो।"


    काव्य यह सुनकर दादी को गले लगा लेती है।


    अगली सुबह...


    अगली सुबह श्वेता, काव्य के साथ अपने जॉब को ढूँढने के लिए निकल गईं। यश बिस्तर पर सो रहा था। उठकर देखा तो दीदी वहाँ से जा चुकी थीं।


    जाने के बाद यश उठकर फ्रेश हुआ और देखा कि उसके लिए खाना बना हुआ है। उसने थोड़ा-सा खाना खाकर सीढ़ियों से नीचे आकर बरामदे में बैठ गया। वह अपने मरहम पर दवा लगाने की कोशिश कर रहा था, पर वह उसे दवा नहीं लगा पा रहा था क्योंकि उसके हाथों पर इतनी जलन थी कि वह उन्हें छू नहीं पा रहा था। हाथों पर छाले पड़ गए थे। तभी नींद, अपने कमरे से बाहर आया। ऋषि, यश को परेशान देख,


    उससे बिना कुछ बोले, उसके हाथ से मरहम लेकर उसकी चोट पर लगाने लगा। जैसे ही ऋषि यश का हाथ पकड़ा, यश की धड़कन फिर से तेज होने लगी। यश, खुद को कंट्रोल करने के लिए, उसका हाथ अपने हाथ से अलग कर दिया और दवा लेकर ऊपर भाग गया। ऋषि को कुछ समझ नहीं आया कि ऐसा क्या हुआ कि वह क्यों भाग गया।


    निल, यश को आवाज़ लगाते हुए उसके कमरे में गया। "शिव, दरवाज़ा खोलो! क्या हुआ? तुम वहाँ से उठकर कैसे चले गए?" यह कहते हुए ऋषि बार-बार दरवाज़ा पीट रहा था। उसे ऐसा करते देख, शिव ने दरवाज़ा खोल दिया। "कुछ नहीं, मुझे बस नींद आ रही थी, इसलिए मैं चला गया। क्या बात है, शिव? बताओ, ये बहाने मत बनाओ।"


    "अभी तो उठकर आए हो, फिर तुम्हें नींद आने लगी?" ऋषि यह कहते हुए कमरे में आने लगा। ऋषि को अंदर आता देख शिव चुपचाप आगे बढ़ गया और टॉपिक बदलते हुए बोला, "मुझे जॉब करनी है, दीदी को जॉब करनी है, और अगर वो अकेले परेशान हो जाएँगी तो मुझे भी उनकी हेल्प करने के लिए जॉब करनी पड़ेगी।"


    "ऐसे भी सारी सेविंग, सब कुछ तो जलकर राख हो गया है।" यह सुनने के बाद ऋषि ने कहा, "चल, ठीक है। मैं तुझे जॉब दिला दूँगा। जहाँ पर मैं जॉब करता हूँ, वहाँ पर तू भी जॉब कर लेना।"


    शिव यह सुनते ही मुस्कुराकर बोला, "वह आईडिया बुरा तो नहीं है, पर दीदी इस चीज़ के लिए मानेंगी नहीं, और अकेले अपना खर्चा, मेरा खर्चा कैसे देखेंगी?" ऋषि, शिव की बात सुनकर बोला, "तो टेंशन ना ले। मैं दीदी से बात कर लूँगा, मैं उन्हें मना लूँगा। पर उसके पहले तुझे मेरा एक काम करना होगा।"


    "क्या काम करना होगा? ये रिश्वत ले रहे हो मुझसे?" ऋषि की बात सुनकर शिव हँसने लगा। "अगर इतनी हेल्प करने पर इतनी सी रिश्वत मिल जाए तो क्या ही बुराई है?"


    "और वैसे भी, आजकल दुनिया रिश्वत पर ही चल रही है। तो रिश्वत अगर मिल भी जाए तो क्या ही गलत है?" यह कहते हुए शिव से बोला, "चल आजा, तुझे मैं बताता हूँ क्या काम करना है।" शिव ऋषि के साथ नीचे आया।


    फिर ऋषि उसे एक स्टोर रूम में ले गया। उस स्टोर रूम में ढेर सारे पुराने सामान पड़े हुए थे। उसने उन सब चीज़ों को बाहर निकाला और शिव से कहा, "देख, कुछ चेयर, टेबल और ये कुछ घर के सामान हैं। तुझे इन सबको क्लीन करना है और इन्हें डेकोरेट करना है, क्योंकि मैंने तेरी पेंटिंग देखी हुई है।"


    "इतना ढेर सारा सामान अकेले क्लीन करूँगा और डेकोरेट करूँगा?" शिव कहते हुए परेशान हो गया। इस पर ऋषि बोला, "अरे नहीं! मैं भी तुम्हारी हेल्प करूँगा। देखो, हम इस सामान का री-यूज़ करेंगे और इन्हें डेकोरेट करके अपने घर में रखेंगे।"


    "पेंटिंग कहाँ देख ली तुमने मेरी?" शिव के जवाब को सुनते हुए ऋषि हँसते हुए बोला, "सोशल मीडिया का जमाना है, वहीं पर पड़ी थी। मैंने देख ली। आप ये मत बोलना कि तुम्हें मेरा सोशल हैंडल कहाँ से मिला। वो मैंने दीदी से रात को ही माँग लिया था।"


    यह सुनने के बाद शिव हल्का-सा चिड़चिड़ा होकर उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गया। फिर वे दोनों मिलकर वो सारे सामान साफ़ कर देते हैं। फिर सारे सामानों को पेंट करने के लिए बाहर से पेंट लेने जाते हैं।


    वे पेंट लेकर लौट ही रहे थे कि शिव का पैर पास में पड़े कीचड़ में फिसल गया और शिव ऋषि के साथ गड्ढे में गिर गया। जैसे ही वे गड्ढे में गिरे, शिव के ऊपर ऋषि गिर गया और ऋषि के लिप्स शिव के लिप्स को टच कर गए। जैसे ही उनके लिप्स आपस में टकराए, शिव ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी मुट्ठियों को कसकर जकड़ लिया। उसके दिल की धड़कन मानो उसके काबू में नहीं थी; वह एक्सप्रेस ट्रेन की तरह बढ़ती ही जा रही थी।


    अपनी आँखें बंद किए हुए, ऋषि ने अपना मुँह हटाते हुए कहा, "अरे, अब उठ भी जाओ ना!" ऋषि ने दर्द भरी आवाज़ में कहा, "अरे, मैं उठ नहीं पा रहा हूँ। मेरा पैर फँस गया है और मेरी कमर भी अकड़ गई है।" "ठीक है ना, फिर मेरा हाथ छोड़ो। मैं निकलता हूँ, फिर तुम्हें निकालूँगा।" यह तेज़ी से कहते हुए ऋषि ने अपना हाथ छोड़ा और गड्ढे से बाहर निकलकर शिव को भी बाहर निकाला। साथ में पड़ा पेंट उठाया और शिव को अपने कंधे का सहारा देकर घर ले आया।


    जैसे ही वह घर आया, उसने देखा कि श्वेता दी और दादी आपस में बैठकर कुछ काम कर रही थीं। काव्य दी उनके लिए चाय बनाकर ले आई थी। उन्हें इस हालत में देखकर सब काम छोड़कर उनके पास आ गए और पूछा, "क्या हुआ? तुम्हें ये चोट कैसे लगी?" ऋषि ने सब कुछ बताया कि उसका पैर गड्ढे में फिसल गया और वह वहाँ गिर गया। फिर सब ऋषि को खटिया पर बिठाते हैं और दादी ने हल्दी लाकर उसके ज़ख़्म पर लगाई। फिर यश कमरे से दौड़कर रिमूवेल क्रीम लाया और ज़ख़्म पर लगाया।


    थोड़े टाइम बाद ऋषि को नींद आने लगी। फिर दादी बोली, "रुक जा, सोने से पहले तुझे मैं हल्दी वाला दूध देती हूँ ताकि तेरे अंदर का दर्द ख़त्म हो जाए।" दादी की बात सुनकर काव्य और श्वेता बोलीं, "दादी, आप बैठे रहिए ऋषि के पास, हम दूध बनाकर लाते हैं।" तब तक यश बोला, "दीदी, आप लोग ऑफिस से आई हो, परेशान हो गई होंगी। आप लोग पानी पियो, मैं दूध गर्म करके देता हूँ।" इस बात को सुनकर श्वेता ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, ठीक है। प्लीज़ दे दे।"


    यश रसोई में गया और गैस पर पतीला रखकर उसमें दूध डालकर हल्दी डाल दी। फिर वह यश और ऋषि के बीच हुए मोमेंट को याद करने लगा और इतना खो गया कि दूध बहने की कगार पर पहुँच गया। तब तक काव्य रसोई में आई और जोर से चिल्लाई, "अरे यार! कहाँ खोए हुए हो? दूध बह जाएगा!" और दौड़कर गैस बंद कर दी।


    "आई एम सो सॉरी। वो मेरा दिमाग कहीं और था और मैं भूल ही गया कि मैं किचन में खड़ा हूँ।" "कोई नहीं, यश। ऐसा होता है।" यह कहते हुए काव्य ने दूध को गिलास में डालकर ऋषि के पास ले गई।


    फिर वहाँ सब बैठे ही थे कि शिव दौड़कर ऋषि के सिरहाने चला गया।


    वह ऋषि को अपने हाथों से उठाता है


    और उसे अपने हाथों से दूध पिलाता है। दूध पिलाते हुए ऋषि की आँखों में देखता रहता है और देखते-देखते फिर खो जाता है। यह सब नज़ारा देख श्वेता दी दूर बैठकर देख रही थीं। श्वेता को समझ में आने लगा कि कहीं वो जो वह समझ नहीं रही, वही तो नहीं हो रहा है।


    श्वेता उठकर अपने स्थान से आईं और शिव को छुआ। यश अपने होश में आ गया।


    और श्वेता दी ने शिव के हाथ से दूध का गिलास लेकर खुद ऋषि को दूध पिलाने लगी। यश को ये सब कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर वह अपने कमरे की तरफ़ चला गया। अगली सुबह शिव कुछ कहने ही वाला था कि जल्दी से उठकर


    ऋषि के पास आकर बैठ गया और उसका हाथ पकड़ लिया। वह वहीं बैठा ही था कि श्वेता दी अपने रूम से बाहर निकलीं। उनकी निगाह इन दोनों पर पड़ी। श्वेता दी ये देखकर गुस्से में शिव को आवाज़ लगाती हैं।


    श्वेता दी की बात सुनते ही शिव उनके पास चला गया। "क्या हुआ दीदी? अचानक से?" यह उसकी बात सुनकर श्वेता ने बहाना बनाते हुए कहा, "तेरे लिए कुछ नहीं, कुछ सामान लाना था मार्केट से लेकर आना।" इसके बाद वह शिव को मार्केट भेज देती हैं। तब तक काव्य भी अपने कमरे से बाहर निकलकर आती है।


    काव्य को देखते हुए श्वेता कहती हैं, "प्यार, शिव के लिए कॉलेज भी देखना पड़ेगा, उसका एडमिशन कराना पड़ेगा। ऐसे कब तक वो घर पर पड़ा रहेगा? और वो ज़्यादा घर पर है, मुझे अच्छा भी नहीं लगता। और तुझे तो सब कुछ पता ही है ना?"

  • 16. Wishper of dying love - Chapter 16

    Words: 1723

    Estimated Reading Time: 11 min

    काव्य को देखते हुए उसने कहा, "प्यार शिव के लिए कॉलेज भी देखना पड़ेगा, इसका एडमिशन कराना पड़ेगा। ऐसे कब तक वह घर पर पड़ा रहेगा? और वह ज़्यादा घर पर है, मुझे अच्छा भी नहीं लगता, और तुझे तो सब कुछ पता ही है ना।"


    श्वेता की बात सुनकर, थोड़ी देर बाद उसने कहा, "श्वेता, देख, मेरे पास एक आईडिया है। पता है कि शिव का एडमिशन कहाँ करना है। चिंता ना कर, मैं कुछ दिन में बात करके तुझे बताती हूँ।" कहाँ पर या का कर देता को स्वंताना देते हुए वह चली गई।


    और श्वेता इस बात से डर रही थी कि कहीं शिव ऋषि को दिल ना दे बैठे। और वह यह बात श्वेता से पूछना भी चाहती थी, पर वह डरती थी यह बात पूछने से।


    रात का समय था…


    श्वेता अपने कमरे में बैठकर डिनर कर रही थी। तब श्वेता ने शिव से पूछा, "डू यू लाइक नील?" शिव ने "यस" में जवाब दिया। श्वेता के जवाब सुनते ही शिव के होश उड़ गए और खाना खाते-खाते रुक गया। श्वेता ने उसे पानी दिया और फिर से अपना सवाल दोहराया, "डू यू लाइक नील?"


    बात सुनकर, बिना कुछ कहे वह वहाँ से उठकर बाहर चला गया। श्वेता यह देखकर इसके पीछे-पीछे बाहर आई, पर उसने देखा कि शिव छत पर चला गया था।


    फिर श्वेता अपने कमरे में चली गई। तब तक शिव एक पौधा लेकर श्वेता के कमरे में आया। शिव के हाथ में पौधा देखकर श्वेता ने पूछा, "यह पौधा यहाँ पर क्यों लाया है?" शिव मुस्कुराकर बोला, "आपसे एक बात पूछना था। अगर इस पौधे को आप रोज़ पानी दे रही हो, आपको पता है कि यह पौधा किसी भी इस्तेमाल का नहीं है, हमारे किसी भी उपयोग में नहीं आने वाला, पर आप इसको पानी दे रही हो क्योंकि आप इसको जीवित रखना चाहती हो। तो क्या आप इसको प्रेम करती हो या फिर यह सिर्फ़ दया का भाव है?"


    यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा शर्मिंदा होकर बोली, "हम इसको पानी इसलिए देते हैं ताकि इसके प्राण बने रहें। हमेशा दया का भाव होता है, इसलिए हम इसको पानी देते हैं।" यह सुनकर शिव बोला, "हाँ दी, आपने सही कहा। इसी प्रकार, जब ऋषि ने मेरी हेल्प की, तो मैं भी उसकी हेल्प कर रहा था, क्योंकि मेरे मन में बस ऋषि के लिए एक दया भाव था। उसकी चोट देखी थी, और उसे चोट में देखकर मैं उसे पीड़ा में नहीं देख पा रहा था। और जो भी हुआ, वह मेरी वजह से ही हुआ था।"


    श्वेता शिव की बात सुनकर शिव को गले लगा लिया और रोते हुए बोली, "बेटा, मुझे माफ़ कर देना। मैं डर जाती हूँ कि अगर किसी को कुछ पता चल गया, तो यह दुनिया तेरे साथ बहुत गलत करेगी। और मम्मी-पापा भी नहीं हैं, इसलिए मैं नहीं चाहती कि किसी को कुछ पता चले।"


    शिव ने श्वेता को पकड़कर कहा, "दी, मुझे पता है आप मुझे कितना प्यार करती हो। आप कभी मेरा गलत नहीं चाहोगी। और एक बात याद रखना दी, अगर मुझे किसी से प्रेम होगा भी, तो मैं सीधा आपको आकर बताऊँगा। और रही बात ऋषि की, तो अभी तो मैं उसे जानता भी नहीं, हम अभी दोस्त भी नहीं बने हैं।"


    शिव यह कहकर वहाँ से चला गया। तब तक काव्या श्वेता के कमरे में आ गई थी और उसने सारी बातें सुन ली थीं। काव्या ने श्वेता से कहा, "श्वेता, कभी प्यार ज़ोर-ज़बरदस्ती या प्लानिंग-प्लॉटिंग से नहीं होता। यह तेरे सोचने-चाहने से नहीं होता। यह प्यार है, किसी से भी हो जाता है, कभी भी हो जाता है। अरे तू क्यों डर रही है कि अगर ऋषि से शिव को प्यार हो गया तो कुछ हो जाएगा? हाँ, मैं जानती हूँ कि शिव (gay) है और नील (straight)। किस्मत में उनके लिखा होगा मिलना, तो उसे भी कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि किस्मत का लिखा कोई टाल नहीं सकता।"


    उनकी बात सुनकर श्वेता बोली, "इस बार किस्मत को भी बदलना पड़ेगा। मैं नहीं चाहती कि शिव ऋषि के प्यार में पड़े। और जितना भी हो सकेगा, मैं शिव को ऋषि से दूर रखूँगी। और चाहे जो भी हो जाए, मुझे इन दोनों से कुछ भी नहीं चाहिए। ऋषि से तो बिल्कुल भी नहीं। फिर शिव चाहे जिसे जो कुछ भी करे, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं, बस वो ऋषि से दूर रहे।"


    श्वेता की यह बात सुनकर काव्या चौंककर पूछी, "पर तुझे ऋषि से इतनी प्रॉब्लम क्यों है? क्या हुआ है कि तू ऋषि को ऐसे कह रही है?" काव्या की बात सुनकर श्वेता बोली, "ऋषि में कोई खराबी नहीं है, बट दादी माँ… वह मेरे लिए बहुत इम्पॉर्टेन्ट है। इसलिए मैं कह रही हूँ कि मुझे इनसे कुछ भी नहीं करना। सो प्लीज़ यार काव्या, ट्राय टू अंडरस्टैंड। अच्छा, ठीक है बाबा, मैं इस पर आगे कुछ नहीं बोलूँगी।" काव्या यह कहकर मुस्कुराते हुए किचन की तरफ चली गई। "अच्छा सुना, तूने कल बॉस से बात की थी? तेरी सैलरी थोड़ी सी बढ़ा दे, क्योंकि तेरी सैलरी बहुत कम है।"


    यह सुनकर श्वेता बोली, "अभी तो नहीं। अभी स्टार्ट किया है यार, अभी तो कम रहेगी ना। थोड़े दिन बाद मैं सर से खुद बोल दूँगी, 'सर, सैलरी बढ़ा दो!' फिर क्या पता, मेरे वर्क को देखकर सैलरी बढ़ा दें।"


    "अच्छा, ठीक है। तू एक काम कर, शिव को लेटा दे, वह सो जाए। और हमको भी कल ऑफिस जल्दी निकलना है। कल शायद इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग है। मेरे पास अभी भी मेल आया हुआ है। तो मुझे भी और तुझे भी चल, जल्दी।" यह कहते हुए काव्या उनके कमरे से बाहर चली गई। काव्या के बाहर जाते ही श्वेता किचन में पड़े हुए सारे बर्तनों को धुलती है। उसके बाद वह शिव को बुलाकर उसे गर्म दूध देती है और फिर उसे सोने के लिए बोल देती है। फिर शिव श्वेता दी से कहता है, "मैं भी जॉब करना चाहता हूँ। मैं भी आपकी हेल्प करना चाहता हूँ। आप अकेले परेशान हो जाती हो। अब मेरा कॉलेज तो अभी कमी रहेगी, तो मैं भी थोड़ा बहुत जॉब कर लूँगा। ऋषि के पापा जानते हैं, वह मेरी हेल्प कर देंगे।" उसकी बात सुनते ही श्वेता अपने बेड से उठ जाती है।


    "ठीक बेटा, तुझे जॉब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। ना तू अभी पढ़ाई पर फ़ोकस करना। और रही बात मैं जॉब कर रही हूँ ना, तो तुझे किसी चीज़ की कमी नहीं होने दूँगी, ये यकीन कर।"


    श्वेता की बात सुनकर शिव बिना कुछ कहे बिस्तर पर लेट जाता है। फिर वह थोड़ी देर बाद सोचकर बोलता है, "दी, एक बात बताओ, क्या मैं आपकी ज़िम्मेदारी हूँ?" यह सुनते ही श्वेता कहती है, "हाँ, तू मेरी ज़िम्मेदारी है। मैं तेरे से बड़ी हूँ।" "तो दी, आप भी मेरी ज़िम्मेदारी हो, क्योंकि मैं भी आपका छोटा भाई हूँ। और अगर आप मेरे लिए कुछ करोगी, तो मैं भी आपके लिए करना चाहता हूँ। और आप ही एक बात बताओ ना, क्या पापा-मम्मी ने आपको जॉब करने से मना किया था? जब आप अपने पॉकेट मनी के लिए जो आप करना चाहती थीं, आपको भी तो सफ़िशिएंट अमाउंट मिलते थे ना, पॉकेट मनी के लिए?" श्वेता शिव की बात सुनकर चुपचाप अपने बिस्तर पर लेट जाती है और बिना कुछ बोले उसे डाँटते हुए कहती है, "चुपचाप सो जाओ। और सुबह तुम्हारे कॉलेज भी देखने जाना है।"


    अगले सुबह…


    शिव अपने बिस्तर से सोकर जल्दी उठ जाता है और वह उठकर सीधा ऋषि के पास आ जाता है। ऋषि अपने फ़ोन में बिज़ी गेम खेल रहा होता है। शिव आकर उसके बगल में बैठ जाता है और पूछता है, "कैसे हो अभी तुम?" ऋषि शिव को कहता है, "यार, अभी मैं ठीक हूँ। तुम लोग तो ऐसे बोल रहे हो जैसे कि मैं बीमार पड़ गया, मेरे हाथ-पैर टूट गए। हल्का सा ख़रोच आया है, ठीक हो जाएगा जल्दी से।"


    शिव हँसते हुए कहता है, "हाँ, तू जल्दी से ठीक हो जा, फिर तेरे साथ बहुत मस्ती करनी है।" और फिर ऋषि से कहता है, "मुझे अब वो दर्द नहीं लेते रहना चाहता, मुझे बोरिंग लग रहा है यार।" "बोरिंग तो होगा, एक जगह लेटे रहना।" यह कहते हुए ऋषि का हाथ पकड़ लेता है और बातों में इतना खो जाता है कि उसने ध्यान ही नहीं दिया।


    और अचानक से ऋषि की चोट वाली जगह पर हाथ को कस के रख देता है। और शिव के हाथ के घाव पर लगते ही ऋषि तेज़ी से चिल्ला उठता है। ऋषि को चिल्लाता देखकर शिव सॉरी-सॉरी बोलते हुए उसके चोट पर फूंकने लगता है। और उसके गर्म साँसें शिव के मुँह से निकलकर ऋषि के घाव पर पड़ रही थीं और ऋषि को और मंत्रमुग्ध कर रही थीं।


    थोड़ी देर में ऋषि शिव का हाथ पकड़े-पकड़े सो जाता है। यह सब ऋषि ने एकटक देखा ही रहता है। और उसका हाथ पकड़ना उसे इतना अच्छा लग रहा था कि वह चाहकर भी उसे छुड़ाना नहीं चाहता। फिर तब तक उसे श्वेता की बात याद आ जाती है और उन बातों को सोचते ही ऋषि का हाथ अपने हाथों से दूर कर लेता है।


    वहाँ से उठकर जाने लगता है, तब तक ऋषि उसका हाथ फिर से पकड़ लेता है। और इस बार ऋषि के हाथ पकड़ते ही शिव के दिल की धड़कन फिर से तेज होने लग जाती है, और जैसे कि शिव उन पर कण्ट्रोल ही ना पा रहा था।


    नील शिव को अपने पास बैठने, रहने के लिए बोलता है। बिस्तर पर एक साइड होकर बोलता है, "यस, प्लीज़, अभी थोड़ी देर के लिए यहीं पर लेट जाओ। मुझे अकेले अजीब लग रहा है और डर लग रहा है। प्लीज़।"


    शिव बड़े असमंजस में पड़ जाता है कि वह ऋषि के बगल में लेटे या ना लेटे। फिर थोड़ी देर बाद वह बिना कुछ बोले ऋषि के बगल में लेट जाता है। वह यह सोचकर लेटता है कि जैसे ही नींद आएगी ऋषि को, वह उसके पास से उठकर चला जाएगा।

  • 17. Wishper of dying love - Chapter 17

    Words: 1540

    Estimated Reading Time: 10 min

     
     शिव जैसे ऋषि के बगल में लेटता है ऋषि अपना हाथ उसके पेट पर रख देता है और उसके हाथ रखते ही शिव के दिल की धड़कन और तेज हो जाती है और ऋषि की गर्म सांसे शिव के गर्दन पर पड़ रही होती हैं जिससे यह अपने आंखें काश करके बंद कर लेता है और घाट के साइड को कस के पकड़ लेता है वह इसे थोड़ा सा अनकंफरटेबल हो रहा था और थोड़ा सा ऋषि से दूर खिसकना चाहत पर ऋषि से दूर नहीं जा पा रहा था क्योंकि अनिल के हाथ में चोट लगी हुई थी अगर वह जरा सा भी खींच सकता तो उसके चोट दुख जाने का डर था
     
     
    और उन सांसों में न जाने यस कब खो गया और वह भी नींद के बगल में ही सो गया सुबह होते ही सब जब उठकर के आते हैं काव्य अपने क्रम से बाहर आती है तो उसके निगाह शिव और ऋषि पर जाती है
     
    उन्हें साथ देखकर के डर जाती है वह यह सोचती है कि अगर इन्हें कहीं सीता ने देख लिया तो वह फालतू का परेशान होगी तब तक उसके निगाह श्वेता के कमरे की तरफ जाती है जहां से श्वेता अपने कमरे से बाल को बांधते हुए बाहर आ रही होती है काव्य श्वेता को इधर ही आता देख वह झट से आगे बढ़कर के श्वेता को रोक लेती है और वह श्वेता से लड़खरते हुए बोलती है जरा अपने रूम से कंघी लेकर के आना में रूम में कंघी मिल नहीं रही है स्वेता उसकी बात सुनकर कहती है जाकर के ले लेना यार वहीं पर रखा हुआ है
     
     
    यह क्या करवा आगे बढ़ने लगती है पर उसको काव्य रोकते हुए कहती नहीं नहीं लेकर आ जा 
    पर श्वेता अपने बालों को बांधते हुए ना करके आगे बढ़ जाती है श्वेता जैसे ही आगे बढ़ती है वह ऋषि के बिस्तर को देखते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है

     
    पर श्वेता अपने बालों को बांधते हुए ना करके आगे बढ़ जाती है श्वेता जैसे ही आगे बढ़ती है वह ऋषि के बिस्तर को देखते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है
     
     
     
     
     
    देखती है कि ऋषि के पैरों के पास कुत्ता बैठा हुआ होता है और ऋषि के घाव को चाट रहा होता है यह देखकर क्यों जोर से कुत्ते को डांटे हो वहां से भागती और ऋषि को उठाकर रहती क्या तुम्हें पता नहीं चल रहा है कि कुत्ता तुम्हारे घाव को चाट रहा है
     
     
     
     
     
    नींद की आवाज में कहता है ऋषि मुझे कुछ नहीं पता दी मैं तो सो रहा था तब तक यस दादी मां के कमरे से बाहर निकाल के आता है इसको दादी मां के कमरे से आते देख श्वेता पूछते बेटा तो वहां के क्या करने गया था तो इस पर शिव बताता है कि मैं बस दादी मां के पास बैठा हुआ था और उनसे कहानी सुनाने का मन हो रहा था तो चलाया पर वह सो रही थी तो मैं चुपचाप उनके कमरे से बाहर आ गया
     
     
     
     
     
     
    स्वेता यस को बोलते देखा में जल्दी ऑफिस जाना है तो तू अपना काम कर ले और तुझे एडमिशन के लिए भी चल रहा है तो आकर के तुझे एडमिशन के लिए लेकर जाऊंगी यह कहकर श्वेता आगे निकल जाती ह
     
     
     
     
     
    काव्य शिव के पास आकर कहती है बेटा तुझे पता कैसे चला कि दी आ रही है तू तो सो रहा था दीदी आपने जब चिल्लाया ना तो मुझे एहसास हो गया मैंने दी को जब देखा तो नीचे निकाल के भाग गया दादी के कमरे में मुझे पता था कि ऋषि के साथ देख लेती तो फालतू का परेशान हो जाती हूं ठीक है मैं तुमसे एक बात बोलूंगी देख तेरे दी को ऋषि बिल्कुल भी पसंद नहीं है तो तू भी थोड़ा सा ऋषि से दूर रहकर
     
     
     
     
     
    काव्य की बात सुन करके शिव थोड़ा सा उदास होता है पर वह वहा से चला जाता है 
     
     
     
     
     
     
    श्वेता और काव्य ऑफिस के लिए निकल जाती है और वापस आते टाइम वह शिव का एडमिशन श्वेता ने काव्य के अंकल के कॉलेज में कर कर देती है 
     
     
     
     
    फिर इसके बाद सीता शिव के कॉलेज का सारा सामान लेकर के घर पर आती है और शिव को गले लगा कर कहते हैं
     
     
     
     
     
     
    दिख ही रहा तेरा कॉलेज का सारा सामान तो तू समझ जा मैं तेरे कॉलेज में एडमिशन करा दिया है और फीस भी भर दिया और अब तुम मन लगाकर पढ़ और किसी चीज की टेंशन ना ले और जॉब करने की तो बिल्कुल भी नहीं श्वेता की बात सुनकर के शिव श्वेता के गले लग जाता है और फिर रात के टाइम सब बैठकर एक साथ डिनर करते हैं
     
     
     
     
     
     
     
     
    अगली सुबह........
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    अगली सुबह यस अपने कॉलेज जाने के लिए एक्साइटिड होता है क्योंकि उसके कॉलेज के पहले दिन होता है तो श्वेता देवी उसके कॉलेज के लिए सारे सामान भी पैक कर देते हैं और उसे कॉलेज भेज देती है यह जैसे ही कॉलेज के गेट पर पहुंचता है उसने अपने लाइफ में इतना बड़ा कॉलेज कभी भी नहीं देखा था
     
     
     
     
     
     
    एस कॉलेज में जाता है तो वहां पर उसे कुछ अच्छे दोस्त भी बदले ग्राउंड में खेल ही रहा होता है कि वह अपने एक सीनियर से टकरा जाता है सीनियर उसका आई कार्ड देख करके
     
     
     
     
    शिव का आईकार्ड देख के वह पहचान जाता है कि कोई और लड़का नहीं बल्कि शिव है वह कोई और नहीं बल्कि इसका पुराना दुश्मन शुभ रहता है जो एक टाइम पर शिव को पसंद करता था
     
     
     
     
     
     
    इसको देख करके हल्का सा मुस्कुराता है और वह शिव को बिना कुछ बोले वहां से जाने देता है फिर वह शिव को बदनाम करने की पूरी प्लाटिंग कर लेता है कॉलेज के कैंटीन में जब यस बैठ करके तो उसके पास शुभ आकर के बैठ जाता है और शुभ उससे पूछता है तुमने मुझे पहचाना
     
     
     
     
     
     
     
    शिव बोलता है सॉरी मैं आपको नहीं जानता सर आप कौन है शिव की बात सुनकर के शुभ हंसते हुए कहता है क्या तुम अपने बायोलॉजी के टीचर को भूल गए क्या वह टीचर जो कभी तुम्हारे केयर करता था उसको भूल गया शिव यह सुनत ही झट से याद आ जाता है कि यह शुभ की बात कर रहा है।
     
     
     पर वह तुरंत कहता है कि आपको उनके बारे में कैसे पता और आप हैं कौन इस पर शुभ कहता है कि मैं वही हूं यस शुभ 
     
     
    शिव शुभ को अपना सीनियर पार करके थोड़ा सा
    चकित हो जाता है पर वह बिना कुछ बोले उठकर चला जाता है शिव को उठकर के जाते देखा शुभ
    उसके पीछे-पीछे जाने लगता है अरे शिव मेरी बात तो सुन लो पर शिव उसकी एक न सुनकर के वॉइस बाथरूम में घुस जाता है शुभ वहां पर पहुंच करके यस से कहता है यस मुझे माफ कर दो उसे टाइम मुझे कुछ नहीं पता था हां मुझे माफ कर दो मैं तुम्हारे बहुत गलत बोला था और तुम्हे गलत समझा था
     
     
     
     
     
     
     
     
    फिर मैं शुभ से कहता है कि हां ठीक है मैंने आपको माफ कर दिया अभी आप मुझे जाने दीजिए इस पर शुभ उससे कहता है ऐसे कैसे माफ कर दिया आई नो कि तुम (gay) हो और तुम्हे लडको में इट्रेस्ट है 
     
     
     
     
    और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सोसायटी से भी नहीं डरते पर अगर इस कॉलेज में किसी को पता चल गया तो क्या करोगे इस पर शिव कहता है कि कैसे किसी को पता चलेगा मैं तो किसी से बताने से रहा तो इस पर शुभ कहता अगर मैं किसी को बता दूं तो 
    इस पर स्पर्श शिव कहता है कि आपको बताने के लिए सबूत लगेगा क्योंकि ऐसी कोई आपकी बात पर क्यों मानेगा और रही बात आपको बताना है तो बता दीजिए 
     
     
     
    शिव की बात सुनकर शुभ गुस्से में शिव का हाथ पकड़ लेता है और उससे कहता है देखो तुम्हें मैं जितना कहता हूं तुम इतना करो अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं पूरे कॉलेज को बता दूंगा कि तुम क्या हो और तुम इस कॉलेज से धक्के मार के निकल जाओगे
     
     
     
     
     
     
     
     
    यह सुनते ही यस थोड़ा सा शांत हो जाता है और जैसे ही यह शांत होता है शुभ उसकी चेहरे के पास बढ़ता जाता है और उसे किस करने की कोशिश करता है यह देख करके वह शुभ को खींचकर एक थप्पड़ 
    लगा देता है
     
     
     
     
     
    चिल्लाते हुए वहां से चला जाता है कि आइंदा अगर मेरे पास आए तो मैं सर्वर फोड़ दूंगा और तुम्हारे अगेंस्ट कंप्लेंट भी कर दूंगा
    यह कह कर शुभ वहा से चला जाता है 
     
     
     
     
     
     
    शुभ शिव की बातों से इतना ज्यादा चढ़ जाता है कि अभी उससे बदला लेने का सोच लेता है वह कहता है कि इसमें एक बार ही मारा था बट मैं इसको छोड़ देता बट अभी थप्पड़ का बाटला इसे लेकर के रहूंगा और अभी इससे मुझे कोई भी नहीं बता सकेगा तब तक बाथरुम के दरवाजे के पीछे से शुभ का एक दोस्त निकलता है जो यह सब चीज रिकॉर्ड कर रहा था और शुभ उससे कहता है कि यह सब चीज स्कूल के सारे ग्रुप में डाल दो सबको पता चल जाना चाहिए कि शिव क्या है और क्या नहीं
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    और शुभ के कहने से उसका दोस्त वह वीडियो के स्कूल के सारे ग्रुप में डाल देता है और तब तक शिव के फ़ोन का नोटीफकेशन बजाता है बट वो उसे इग्नोर कर घर की ओर चला जाता है 
     
     
     
     
     
     
     

  • 18. Wishper of dying love - Chapter 18

    Words: 1500

    Estimated Reading Time: 9 min

    शिव अपने घर पहुँचा ही था कि श्वेता ने उससे पूछा, "कैसा रहा कॉलेज का पहला दिन?"

    "बहुत अच्छा था, और बहुत मज़ा आया।" शिव ने जवाब दिया। वह शुभ से मिलने और शुभ के सीनियर होने की बात श्वेता को बताना चाहता था, पर उसे श्वेता की टेंशन का डर था। इसलिए उसने यह बात नहीं बताई और वहाँ से चला गया। शिव के फ़ोन की घंटी बार-बार बज रही थी। यह सुनकर श्वेता ने पूछा, "बेटा, तुम्हारा फ़ोन इतना वाइब्रेट क्यों कर रहा है?"

    "ऐसा है कि कॉलेज के ग्रुप में ऐड हो गया हूँ, तो वहाँ के नोटिफिकेशन आ रहे हैं। अभी मुझे सबके बारे में कुछ पता नहीं है, इसलिए मैंने अभी तक चेक नहीं किया। अब कल जाकर कॉलेज में पूछकर चेक करूँगा।" शिव ने समझाया।

    तब तक ऋषि नीचे से शिव को आवाज़ लगा रहा था, "शिव, खेलने चलना है?"

    शिव ने अपनी दीदी को देखा, "नहीं, अभी मन नहीं है। कॉलेज से आया हूँ, थक गया हूँ।"

    श्वेता तुरंत समझ गई कि वह उसके कहने की वजह से नहीं जा रहा है। उसने शिव को इशारा करके कहा, "ठीक है, जा खेलो।" श्वेता ने आज सुबह नील को उसकी गर्लफ्रेंड से बात करते हुए सुना था।

    यह बात सुनकर श्वेता बहुत खुश हुई थी। उसने शिव से कहा, "जाकर खेल लो, कोई दिक्कत नहीं है।" दीदी की परमिशन पाते ही ऋषि जोर से आवाज़ लगाया, "ऋषि, रुक जा, मैं भी आ रहा हूँ!" वह भागते हुए सीधा ऋषि के पास गया और वे लोग खेलकर शाम को लौटे।


    अगली सुबह, कॉलेज पहुँचते ही, गेट से अंदर जाते ही शिव ने देखा कि सारे बच्चे उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे और फ़ोन में कुछ देख रहे थे। हर कोई हँसता हुआ नज़र आ रहा था और सबकी निगाहें शिव पर टिकी हुई थीं। तब तक प्रियांशु ने शिव का हाथ पकड़कर उसे एक तरफ़ ले जाकर कहा, "तुम्हें क्या ज़रूरत थी ऐसी चीज़ कॉन्फ़्रेंस करने की? अगर तुम थे भी, तो किसी को बताने की क्या ज़रूरत थी?"

    शिव प्रियांशु की बात सुनकर थोड़ा कंफ़्यूज़ हो गया। "हुआ क्या है? क्यों? क्या तुम बोल क्या रहे हो? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

    "अरे पागल! तुमने कल अपना व्हाट्सएप ग्रुप नहीं चेक किया? उस पर जो वीडियो है, तुमने उसे नहीं देखा?" प्रियांशु ने कहा।

    "कौन सा वीडियो? मैंने कुछ नहीं देखा।" शिव ने कहा।

    प्रियांशु ने उसे वह वीडियो प्ले करके दिखाया जो उसके और शुभ के बीच में हुआ था। वीडियो एडिट किया हुआ था, जिसमें केवल इतना ही दिख रहा था कि वे (gay) हैं।

    प्रियांशु ने कहा, "देखिए, पूरा कॉलेज जान गया है। तेरे लिए बहुत डिफ़िकल्ट होने वाला है। मैं भी कहता हूँ कि तू घर चला जा, वरना तेरे लिए बहुत मुश्किल क्रिएट कर देंगे।" पर शिव ने हिम्मत नहीं हारी, "देखा जाएगा, मैं इतना भी नहीं डरता। अगर मैं हूँ, तो हूँ।" वह क्लास में जाकर बैठ गया।

    क्लास में जैसे ही वह अपनी सीट पर बैठा, लोगों ने उसके ऊपर ढेर सारी चिट्ठियाँ फेंकनी शुरू कर दीं। उन सब में अजीब-अजीब तरीके से नाम लिखे हुए थे: "हिजड़ा", "किन्नर", "छक्का" आदि। उन सब नामों को पढ़कर वह थोड़ा उदास हुआ, पर उन सबको इग्नोर करके उसने अपनी पढ़ाई पर फ़ोकस किया। तब तक एक लड़का पीछे से उसकी सीट मारते हुए बोला, "ओह! मैडम!" शिव ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

    वह लड़का फिर से उसकी सीट मारते हुए बोला, "यस मैडम! हम आपको कह रहे हैं!" पर शिव चुपचाप अपनी किताबों में ही लगा रहा। तब तक लड़के ने पास पड़ा कागज़ उठाकर शिव को खींचकर मारा और कहा, "वह मैडम! सुन लो! एक रात कितना लेती हो? वैसे हम लोग चार-पाँच लोग हैं, ज़रा सही से रेट लगाना!"

    यह सुनते ही शिव को रोना आ गया, पर उसने अपने आँसुओं को कण्ट्रोल करके वहाँ बैठे-बैठे किताब पढ़ना जारी रखा।

    थोड़ी देर बाद शिव बाथरूम गया तो वहाँ कुछ लड़के बोले, "भाई, गर्ल्स बाथरूम साइड में है, उधर साइड जाकर कर ले। यहाँ लड़कों के बीच क्यों आया हुआ है? तुझे ज़्यादा देखने का शौक है क्या? ज़्यादा मन में चलता है? गर्ल्स बाथरूम साइड है, चल निकल यहाँ से!" उन्होंने उसे वहाँ बाथरूम भी नहीं करने दिया। यह सब हरकतें अपने साथ होते देख शिव थोड़ा उदास हुआ, पर वह चुपचाप अपनी सीट पर आकर बैठ गया।

    जैसे-तैसे सारे लेक्चरर्स ख़त्म हुए और शिव घर के लिए निकल ही रहा था कि बाइक से चार-पाँच लड़के आये और शिव को जबरदस्ती बाइक पर बिठाकर ले गए। उन्होंने उसे एक कमरे में बंद कर दिया। वह वहाँ चिल्ला रहा था, "मुझे छोड़ दो! छोड़ दो!" पर वहाँ उसकी सुनने वाला कोई नहीं था।

    फिर एक लड़का बाइक से उतरकर अंदर आया। उसने शिव के मुँह पर थूक दिया और कहा, "तू मेरे कॉलेज में आया हुआ है! तेरी वजह से मेरे कॉलेज का नाम ख़राब हो रहा है! ऐसा मैं होने नहीं दूँगा! या तो तू इस कॉलेज से नाम कटा ले, या फिर प्रिंसिपल से बात करके अपना सेक्शन चेंज कर ले!" यह सुनकर सारे लड़के शिव पर हँसने लगे।

    शिव खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था, पर वह नाकाम रहा। तब तक दूसरा लड़का आया और बोला, "अरे, यह मीठा क्या कर लेगा? एक कर भी क्या सकता है? वैसे भी इसके बस का कुछ है भी नहीं!" फिर वे लोग लड़की के कपड़े लाए और शिव को जबरदस्ती वे कपड़े पहनाने लगे।

    शिव चिल्लाता, तड़पता, ज़मीन पर पड़ा हुआ था। दो लड़के उसके हाथ पकड़े हुए थे, दो पैर। तीसरा लड़का कैंची लेकर उसके शरीर से सारे कपड़े फाड़ रहा था। चौथा लड़का खड़ा होकर वीडियो बना रहा था। फिर उन्होंने लड़की के कपड़े शिव को पहना दिए, उसके मुँह पर मेकअप किया और उसके कपड़े लेकर चले गए। शिव वहाँ बैठा, खुद को देखकर चिल्ला और रो रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वहाँ से घर जाने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई, वह वहीं पर बैठ-बैठकर बेहोश हो गया।


    शाम के समय...

    शिव के घर ना आने की वजह से श्वेता परेशान होकर उसे कॉलेज में कॉल करती है। कॉलेज से पता चला कि शिव छुट्टी के समय वहाँ से निकल गया था। श्वेता का जी और घबराने लगा।

  • 19. Wishper of dying love - Chapter 19

    Words: 1229

    Estimated Reading Time: 8 min

    श्वेता दौड़कर काव्य के पास आई और कहा, "काव्य, देख, अभी तक शिव घर नहीं आया और टाइम भी बहुत हो गया है। क्यों ना चलकर उसको ढूंढते हैं?"

    काव्य ने श्वेता की बात सुनकर कहा, "हाँ, चल, हम भी चलकर उसको ढूंढते हैं।"

    वह दोनों कॉलेज की तरफ निकल ही रही थीं कि नीचे ऋषि ने उन्हें भागते हुए देखा। वह पूछा, "क्या हुआ? आप लोग ऐसे भाग क्यों रही हो?"

    काव्य ने ऋषि को सारी बात बताई कि शिव कॉलेज गया था पर अभी तक वह घर नहीं आया था।

    ऋषि यह बात सुनते ही घबरा गया। उसने कहा, "आप एक काम करो, आप चलो, मैं यहाँ के कुछ लोगों को लेकर आता हूँ।" ऋषि ने अपने दोस्तों को कॉल किया और उन सबको शिव की फोटो भेजकर कहा कि इसको ढूँढना है। सब के सब शिव को ढूँढने में निकल गए।


    इधर, वे लड़के फिर से आए और शिव को उसी जगह पर पड़ा देखा। उन्होंने उसे घसीटकर बाहर लाया। शिव के बाल पकड़कर उसे घसीटते हुए बाहर लाया गया। वह दर्द से चिल्लाया, पर उसकी कोई नहीं सुन रहा था। वे लड़के शिव से बोले, "अगर तुझे बचाना है तो तू नाच, नहीं तो तुझे हम मार देंगे।" पर शिव नाचने को तैयार नहीं था। तब तक उन लोगों ने शिव का हाथ बाइक से बाँध दिया। तीसरा लड़का बोला, "छम्मक छल्लो अब नहीं नाचेगा तो बाइक से घसीटेंगे तुझे! और तू हमारी बराबरी भी नहीं कर सकता, तुझे तो सहना पड़ेगा ही ना!" शिव उनसे रोते हुए कह रहा था, "मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो!" पर उन पापियों को जरा सी भी दया नहीं आई। उन्होंने शिव का बुरा हाल कर दिया था। उन्होंने शिव को बाँधकर उसके घर की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।


    शिव रोता बिलखता रहा, पर उसका कोई नहीं सुन रहा था। तभी सामने से श्वेता, काव्य, ऋषि और उसके दोस्त आ गए। शिव को उस हालत में देखकर वे आग-बबूला हो गए। शिव बाइक से बंधा हुआ था और बाइक पर बैठे दो लड़के उसे बाइक से खींच रहे थे। यह देखते ही ऋषि पास पड़े पत्थर को उठाकर गाड़ी चला रहे लड़के के सर पर मार दिया।


    वह पत्थर जैसे ही गाड़ी वाले लड़के को लगा, वह डगमगा गया। पर गाड़ी स्लो होने की वजह से वह गाड़ी रोक दिया। जब उसने सामने देखा तो 12 लड़के और दो लड़कियाँ खड़ी थीं।


    उनको देखकर डर के कारण शिव के हाथों में लगी रस्सी छोड़कर वे सब गाड़ी छोड़कर भाग गए। पर ऋषि और उसके दोस्त उनका पीछा करते हुए काफी दूर तक गए। बाइक से होने की वजह से उनको पकड़ पाना इतना आसान नहीं था। सब लौटकर आए तो वहाँ शिव बेहोश पड़ा हुआ था। श्वेता शिव को इस हालत में देखकर खुद को संभाल नहीं पा रही थी। ऋषि शिव को गोद में उठाया और उसे घर ले आया। काव्य श्वेता को संभालते हुए ले आई। फिर काव्य श्वेता से बोली, "अगर तू कमज़ोर पड़ गई तो शिव को कौन समझाएगा? देख, हम यह सब देखकर पीछे नहीं हट सकते। हमें उनके खिलाफ़ कंप्लेंट करना पड़ेगा और तुझे भी स्ट्रांग रहना पड़ेगा।"


    श्वेता काव्य की बात सुनकर खुद को तसल्ली दे रही थी। अभी तक शिव को होश नहीं आया था। ऋषि डॉक्टर को लेकर आया। उसने शिव का चेकअप करके बताया कि उसे गहरा सदमा लगा है, होश आने में थोड़ा टाइम लगेगा। फिर ऋषि श्वेता और काव्य से बोला, "आप लोग डॉक्टर को बाहर छोड़कर थोड़ा साइड हो जाइए।" ऋषि ने शिव के कपड़े बदलकर उसे नॉर्मल कपड़े पहना दिए। उसने शिव के मुँह पर लगे मेकअप को साफ़ किया और उसे कुछ नॉर्मल कपड़े पहना दिए।


    श्वेता और काव्य आकर ऋषि के साथ बैठ गईं और शिव के ऊपर हाथ फेरने लगीं। तब तक दादी को यह सब पता चल गया। वह भी सीधे शिव के कमरे में आ गई। दादी बोली, "बेटा, तुम लोगों ने उन लोगों के खिलाफ़ कंप्लेंट किया? पर उन लोगों ने शिव के साथ ऐसा क्यों किया?"


    दादी की बात सुनकर ऋषि ने कहा, "अभी नहीं दादी माँ, पर करने जा रहे हैं। हमने सारे सबूत रख लिए हैं। हमें गाड़ी का नंबर भी नोट कर लिया है। बस थोड़े टाइम में जाकर कंप्लेंट कर देंगे। एक बार शिव को होश आ जाने दीजिए।" तब तक शिव को होश आया। शिव अपने आप को घर में पाकर ऋषि को कस के गले लगा लिया। वह अपनी आँखें खोल ही रहा था कि श्वेता और काव्य भी शिव के पास बैठ गईं। शिव इतना ज़्यादा रो रहा था कि वह कुछ बोलने की हालत में नहीं था। पर फिर भी ऋषि शिव को चुप कराने लगा।


    "क्या हुआ है शिव? यह सब हालात किसने किए? यह सब क्यों हुआ?" शिव ने अपने बैग की तरफ इशारा किया। जैसे ही श्वेता ने उसे बैग लाकर दिया, शिव ने अपने बैग से अपना फ़ोन निकाला और वह वीडियो, जो शुभ ने पूरे स्कूल में डाला था, उन्हें दिखाया। यह दिखाने के बाद वह रोते हुए दूसरे कमरे में भाग गया और कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।


    हर कोई वह वीडियो देखकर बहुत हैरान हो गया। इस पर श्वेता बोली, "मैं इस लड़के को जानती हूँ। यह शिव का बायो का टीचर रह चुका है। इसने पहले भी शिव को परेशान किया था, पर उस टाइम मैंने इसको सबक सिखा दिया था। यह फिर से शिव के पीछे कैसे पड़ गया?" ऋषि बोला, "अभी यह मुझे नहीं बचेगा। आप लोग टेंशन ना करें। मैं शिव के अपमान का बदला लेकर रहूँगा। अभी तो यह ज़िंदा नहीं बचेगा!" श्वेता ने ऋषि को मनाते हुए कहा, "देखो, ऐसा कुछ भी एक्शन मत लेना जिससे बाद में हमें पछताना पड़े। हम कानून के हेल्प से काम करेंगे।" तब तक शिव के कमरे से कुछ सामान गिरने की आवाज़ आई।


    वह आवाज़ सुनकर सब दौड़कर उसके कमरे के दरवाज़े पर खटखटाने लगे। पर शिव दरवाज़ा नहीं खोल रहा था। बगल वाली खिड़की से देखने पर पता चला कि शिव फाँसी लगा रहा था। उसे फाँसी लगाते देख ऋषि और ज़्यादा घबरा गया। उसने श्वेता से कहा, "दीदी, शिव फाँसी लगा रहा है, उसको रोको!" श्वेता तुरंत बाहर से ही शिव को अपनी कसम देने लगी, "बेटा, तुझे मेरी कसम है, माँ-पापा की कसम है, अगर तूने ऐसा किया तो दरवाज़ा खोल दे। शिव, देख हम लोग तेरे साथ हैं, दरवाज़ा खोल!"

  • 20. Wishper of dying love - Chapter 20

    Words: 1630

    Estimated Reading Time: 10 min

    हैपर शिव किसी की भी नहीं सुनता था। वह अपने फांसी लगाने के लिए रसिया बन चुका था और उसको रसिया बँधा देख अनिल से और नहीं रहा गया। उसने दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया, पर दरवाजा इतना मजबूत था कि ऋषि के बस का नहीं था। दरवाजा तोड़ने में ऋषि की श्वेता और काव्य ने मदद की और जैसे-तैसे दरवाजा खुला। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, उन्होंने देखा कि शिव फांसी पर लटका हुआ था। ऋषि दौड़कर उसके पास गया और उसे उठा लिया। फिर काव्य पलंग पर चढ़कर उसके गले से फांसी का फंदा निकाली।

    शिव को बेड पर लिटाकर ऋषि बोला, "यस यस, आँखें खोलो।" काव्य दौड़कर पानी लाई और उसे शिव पर डालने लगी, पर शिव का कोई जवाब नहीं आया। श्वेता अपनी जगह पर खड़ी-खड़ी जिंदा लाश की तरह हो गई थी। वह शिव को इन हालात में देखकर बर्दाश्त नहीं कर पाई और वहीं बेहोश हो गई। दादी माँ ने श्वेता को गोदी में बिठाकर उसके ऊपर पानी डाला। फिर श्वेता को होश आया और जैसे ही वह होश में आई, वह दौड़ते हुए शिव के पास गई और रोते हुए बोली, "शिव, शिव, आँखें खोल अपनी! बेटा, शिव, अपनी आँखें खोल! देख, हम सब तेरे लिए हैं। देख, मुझे छोड़कर नहीं जा सकता। देख, तूने कहा था ना कि तुम मेरा छोटा भाई हो, तो मेरी हर बात मानेगा ना? शिव, आँखें खोल ले! शिव, उठ जा बेटा!"

    तब श्वेता ने कहा, "अरे, कोई डॉक्टर को बुलाओ! खड़े-खड़े क्यों देख रहे हो? डॉक्टर को आने में टाइम लग जाएगा। हमें शिव को अस्पताल लेकर चलना चाहिए।" ऋषि ने यह सुनते ही शिव को बिना किसी देरी के अपनी गोद में उठाया और सीधा सीढ़ियों से भागते हुए नीचे बाइक पर गया। काव्य शिव को पकड़कर बाइक पर बैठी और श्वेता और दादी ऑटो से हॉस्पिटल के लिए निकल गईं। बस हॉस्पिटल में शिव को लेकर पहुँचते-पहुँचते ही, ऋषि शिव को गोद में उठाए हॉस्पिटल के गेट से ही डॉक्टर "डॉक्टर! डॉक्टर!" चिल्लाता हुआ अंदर भाग रहा था। "डॉक्टर देखिए ना, इसने फांसी लगा ली है! डॉक्टर कहाँ पर है? डॉक्टर! नर्स! कोई तो है यहाँ पर! देख लो जरा!" ऋषि की आवाज पूरे अस्पताल में गूंज रही थी। तब तक डॉक्टर दौड़कर आए और शिव को वेंटिलेटर पर लिटाकर उसके पल्स और ब्रीदिंग चेक किए। वह बोले, "इसके पल्स और ब्रीदिंग रेट बहुत कम हैं। इसके बचने के चांसेस बहुत कम हैं। इनको ICU में एडमिट करना पड़ेगा और इसके लिए 50,000 का खर्च आएगा। आप लोग जितना जल्दी पैसा भर देंगे, हम इतनी जल्दी जांच शुरू कर देंगे। वरना इनको क्या हो सकता है, आप लोगों को अच्छे से पता है।"

    डॉक्टर की आवाज सुनते ही ऋषि गुस्से में आकर डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया और कहा, "आप डॉक्टर हैं या फिर हैवान? आपको किसी की ज़िन्दगी और मौत से फ़र्क नहीं पड़ता? अगर ज़रा सा भी उसके जाँच में लेट हो गया तो वह ज़िन्दा नहीं बचेगा, वह तो मर जाएगा। तब आपको पैसे मिल जाएँगे क्या? आप उसको एडमिट कर रहे हैं या नहीं?" ऋषि की धमकी से डॉक्टर पीछे हटते हुए बोला, "अपनी हद में रहो! ये गवर्नमेंट हॉस्पिटल नहीं है जो तुमने ऐसे बना रखा है। और तुम्हें इतनी ही दिक्कत है तो गवर्नमेंट हॉस्पिटल में लेकर जाओ ना!" फिर श्वेता डॉक्टर के पैरों में गिर गई, "डॉक्टर साहब, मेरे भाई को बचा लीजिए! मैं पैसे का जुगाड़ करती हूँ। इसका इलाज शुरू करिए, मैं पैसे लेकर आती हूँ।"

    इस पर डॉक्टर बोला, "नहीं! जब तक आप लोग पेमेंट आधा नहीं भर देते, हम कोई इलाज नहीं शुरू करेंगे।" दादी ने यह सब देखते हुए अपने हाथों से दोनों कंगन निकालकर डॉक्टर को दिए, "ये लीजिए डॉक्टर साहब, ये कंगन लेडिज हैं, ये भी 15-20,000 से कम नहीं होंगे। बाकी और पैसे हम लाकर जमा कर देंगे। अभी आपके कंगन रख के इलाज शुरू करिए, हम पैसे लाकर अपना कंगन वापस ले लेंगे, पर मेरे बच्चे की जान बचा लीजिए।" दादी की बात सुनकर डॉक्टर ने कंगन काउंटर पर जमा कर उनसे फॉर्म भरवाया और फिर शिव का इलाज शुरू कर दिया।

    यह सुनते ही प्रिया थोड़ी सी डर गई। फिर निधि हँसते हुए बोली, "भैया की एक्स-वाइफ नहीं है। मैं मज़ाक कर रही हूँ। पर हाँ, यह सब भैया की क्लोज़ फ्रेंड रह चुकी है और एक टाइम पर यह सब भैया की वाइफ होने की ज़िक्र भी करती थी और घर पर यह सब एक बार शादी के लहंगे में ही आ गई थी। पर उसके बाद से इनका कुछ पता नहीं चला।" प्रिया यह बात सुनकर बहुत ज़्यादा हैरान हो गई और वह अभय का पर्दाफाश करने के लिए सोचने लगी।

    अगले दिन......

    "मुबारक हो प्रिया, तुम्हें नौकरी मिल गई है!" दादाजी प्रिया को मुबारकबाद देते हुए मिठाई से उसका मुँह मीठा करा रहे थे। "पर दादाजी, नौकरी मुझे मिली कहाँ है? बेटा, जब तुम्हें अभय के ऑफिस में ही मिली है! अभय ने तुम्हें जॉब ऑफर किया है, तुमने मेल पढ़ा नहीं क्या?" "वह दादाजी, मैं इतनी हड़बड़ी में थी, मैंने मेल चेक नहीं किया।"

    तब तक प्रिया अपने मन में कहती है, "चलो अच्छा है, इसी बहाने मैं उसे पर नज़र तो रख पाऊँगी।" "कहाँ खो गई? इतनी अच्छी बात है!" दादाजी की बात सुनते ही प्रिया सेंस में आ गई। "अरे, कुछ ज़्यादा नहीं, बस मम्मी की याद आ गई। आज मम्मी होती तो इतना कुछ ना होता।" यह कहते हुए प्रिया इमोशनल हो गई। दादाजी ने प्रिया को गले लगाते हुए कहा, "मम्मी नहीं है तो क्या हुआ? हम तो हैं ना तुम्हारे दादाजी! और तुम टेंशन क्यों ले रही हो? ज़्यादा सोचा नहीं करते। जाओ जल्दी से रेडी हो जाओ। ऑफिस का पहला दिन है, लेट होकर जाना है क्या? या तो पहले दिन ही अब है की डाँट खानी है।" दादाजी की बात सुनते हुए प्रिया मुस्कुराकर अपने कमरे में भाग गई।

    प्रिया निधि से कहती है कि आज ऑफिस का पहला दिन है, वह क्या पहने? इस पर निधि उसको कहती है, "वही पहनो जो आपको सबसे ज़्यादा पसंद है।" निधि की बात सुनकर प्रिया उससे कहती है, "मुझे तो इस पूरे अलमारी के कपड़े पसंद हैं, तो क्या मैं सब पहनकर जाऊँ क्या?" सुनकर निधि और प्रिया हँसने लगती हैं। फिर निधि उठकर अलमारी से एक कपड़ा निकालकर प्रिया को देती है। "जल्दी से तुम चेंज करके आ जाओ, फिर मैं तुम्हारा हल्का सा मेकअप कर देती हूँ।" "नहीं, मुझे मेकअप नहीं पसंद।" "अरे, ऑफिस का पहला दिन है प्रिया दी! समझो, अच्छा लगेगा। और कहते हैं ना, फर्स्ट इंप्रेशन इज़ लास्ट इंप्रेशन।" यह सुनने के बाद प्रिया हल्का सा मुस्कुराकर बाथरूम में चली जाती है। थोड़ी देर बाद प्रिया वापस आती है तो निधि उसका हल्का सा मेकअप करती है, उसके बालों को ओपन रखकर उसे ब्लू कलर की जैकेट और ट्राउजर और बोल्ड चेरी रेड लिपस्टिक लगाती है।

    प्रिया मिरर में देखकर खुद भी हैरान हो जाती है कि "मैं इतनी अच्छी भी दिख सकती हूँ!" इस पर निधि उसे मुस्कुराते हुए कहती है, "इससे भी अब बढ़िया दिख सकती हो, पर अभी आपके ऑफिस के लिए लेट हो रहा है। नीचे भैया आपका वेट कर रहे हैं, आपके साथ लेकर जाएँगे।" "क्या? मुझे मिस्टर खड़ूस के साथ जाना पड़ेगा क्या? क्या कहा आपने? भैया को मिस्टर खड़ूस? हाँ, मतलब मेरा मतलब है कि तुम्हारे भैया अभय थोड़े से खड़ूस हैं ना? सोरी, उनसे बताना मत।"

    इस पर निधि हँसते हुए कहती है, "ठीक है बाबा, हम उन्हें नहीं बताएँगे।" फिर निधि और प्रिया सीढ़ियों से उतर रही होती हैं, अभय उनका सोफे पर बैठकर इंतज़ार कर रहा होता है। अभय जैसे ही सीढ़ियों पर नज़र डालता है, वह प्रिया को प्रोफेशनल कपड़ों में देखकर बस देखता ही रह जाता है। उसके हार्टबीट फिर से तेज़ हो जाते हैं।

    अभय अपने नज़र को डिस्ट्रैक्ट करने की कोशिश करने लगता है। वह बार-बार अपनी निगाहें दूसरी तरफ घुमा लेता था, पर उसका दिल उसका सुनने के लिए तैयार ही नहीं था। वह बार-बार प्रिया को देखना चाहता था। तब तक बगल में बैठे दादा कहते हैं, "प्रिया कितनी अच्छी लग रही है ना!" दादा की बात सुन खोया हुआ अभय भी दादा की बात में हामी भरने लगता है। जिस पर दादा मुस्कुराते हुए अभय से कहते हैं, "तुमने तो आज तक किसी लड़की की तारीफ़ नहीं की। क्या बात है? प्रिया की तारीफ़ की जा रही है!" अब यह बात सुनते ही अभय अपने सेंस में आ जाता है और कहता है, "दादा, इतनी भी ठीक नहीं लग रही है। इससे बढ़िया तो मेरी सेक्रेटरी लगती है और इससे बढ़िया तो वह ऑफिस में और भी लड़कियाँ हैं।"

    यह कहकर वह दादा जी से बोलता है, "मैं गाड़ी में चल रहा हूँ, इन्हें गाड़ी में भेज दीजिएगा।" यह कहकर अभय उठकर दादा जी के पास से गाड़ी की तरफ चला जाता है। इसके बाद प्रिया दादा जी के पास आती है और उनका आशीर्वाद लेकर कहती है, "दादाजी, मैं जाऊँ?" दादाजी उसे कहते हैं, "हाँ जाओ, पर जाने से पहले मंदिर में माथा टेक कर फिर जाओ।"

    "ठीक है दादाजी, जैसी आपकी इच्छा।" यह कहकर प्रिया मंदिर में माथा टेककर निकल जाती है और गाड़ी में जाने के बाद गाड़ी की बैक वाली सीट पर बैठ जाती है। अभय उसको गाड़ी के मिरर से देख रहा होता है। जैसे ही प्रिया की निगाहें अभय की निगाहों से टकराती हैं, प्रिया एक साइड होकर बैठ जाती है।

    ऑफिस आने के बाद...