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Vampire's innocent love

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ये कहानी है रणविजय और साक्षी की । रणविजय जिसे ये दुनिया किंग के नाम से जानता है । पर इस दुनिया से छुपा है उसका एक राज की वो एक वेंपायर है । साथ में उसके कई और राज भी छुपे हुए है । वहीं दूसरी तरफ साक्षी जो एक बहत ही इनोसेंट लड़की थी । साक्षी क...

Total Chapters (10)

Page 1 of 1

  • 1. Vampire's innocent love - Chapter 1

    Words: 963

    Estimated Reading Time: 6 min

    अध्याय 1: पहली मुलाकात

    ---

    शहर मखमली आसमान के नीचे गहरी नींद में डूबा था, अनजान उस परछाई से जो बिना आवाज़ चल रही थी ।

    उसकी आंखों में लाल अंगारों जैसी चमक थी — जैसे कोई भूख जिसे सदियों से शांत नहीं किया गया ।

    वो "किंग रणविजय" के नाम से जाना जाता था — अंडरवर्ल्ड का शासक, अछूता और रहस्यमयी ।

    मगर दुनिया ने कभी नहीं देखा उसका असली चेहरा — वो जो उसकी चमड़ी के नीचे छिपा था ।

    वो एक वैंपायर था — प्राचीन, शापित और अकेला ।

    सदियों बीत चुकी थीं जब उसके दिल ने कुछ और महसूस किया हो सिवाय प्यास के ।

    लड़कियाँ आतीं, आकर्षित होतीं, और फिर खो जातीं — अंधेरे में समा जातीं ।

    मगर आज की रात… कुछ अलग थी ।

    हवा में एक अजीब सी खुशबू थी — खून की नहीं, कुछ और, कुछ शुद्ध ।

    उसकी इंद्रियाँ जाग गईं । वो छत की मुंडेर पर रुका और नीचे देखा ।

    वो वहां थी — एक लड़की, जो उस जगह चल रही थी जहाँ आम लड़कियाँ जाने से डरती थीं ।

    उसे वहाँ नहीं होना चाहिए था । फिर भी, वही उसकी जगह लग रही थी ।

    साक्षी ।

    उसका नाम जैसे किसी भूली हुई धुन की तरह रणविजय के मन में उतर गया ।

    उसने सफेद कुर्ता पहना था, जिसमें चांदनी की रोशनी उसे किसी परी जैसा बना रही थी ।

    उसके कदम हिचकिचाहट से भरे थे, लेकिन स्थिर — जैसे कोई अदृश्य डोर उसे खींच रही हो ।

    वो मासूम दिख रही थी… और उतनी ही खतरनाक, जितनी वो खुद नहीं जानती थी ।

    रणविजय ने उसे उस उत्सुकता से देखा जो उसने सदियों से महसूस नहीं की थी ।

    ये लड़की कौन थी?

    उसकी धड़कन बाकी लोगों से अलग क्यों थी?

    क्यों वो उसे शिकार की तरह नहीं, कुछ और मान रहा था?

    वो एक टूटी हुई स्ट्रीट लाइट के नीचे रुकी, हवा उसके बालों से खेल रही थी ।

    वो अब तक उस नज़र को महसूस नहीं कर पाई थी जो उसे देख रही थी — गहराई से, तीव्रता से ।

    उसकी सांसें थम गईं । दिल तेजी से धड़कने लगा ।

    रणविजय धीरे से नीचे उतरा, उसके कदम ज़मीन को छू भी नहीं रहे थे ।

    वो अंधेरे से इस तरह निकला जैसे कोई पुरानी दंतकथा का देवता सामने आ गया हो ।

    साक्षी ने चौंककर देखा, आँखें बड़ी हो गईं, होंठ खुल गए ।

    "आप कौन हैं?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ कोमल थी मगर मजबूत ।

    "एक गलती," रणविजय ने फुसफुसाया ।

    मगर उसकी नज़रें उसे धोखा दे रही थीं — वो बहुत देर तक उस पर टिकी रहीं ।

    वो उसे डराना नहीं चाहता था । पर जाने क्यों, उससे दूर भी नहीं रह पा रहा था ।

    सदियों बाद, उसकी भूख खून के लिए नहीं थी… वो किसी और के लिए थी ।

    साक्षी को भाग जाना चाहिए था ।

    मगर उसके पांव नहीं हिले ।

    उसकी आंखों में जो था — वो डर नहीं, दर्द था ।

    और कहीं न कहीं, एक गुज़ारिश भी ।

    दोनों खामोश खड़े रहे ।

    दुनिया जैसे थम गई थी — न आवाज़ें, न हलचल, बस दो दिलों की धड़कनें ।

    रणविजय उसकी धड़कन को सुन सकता था, जैसे कोई राग बज रहा हो ।

    साक्षी उसकी उपस्थिति को महसूस कर सकती थी — जैसे तूफान पास आने वाला हो ।

    रणविजय धीरे-धीरे उसके करीब आया ।

    साक्षी पीछे नहीं हटी ।

    उनकी आँखें टकराईं — जैसे आग और बर्फ आमने-सामने आ गई हो ।

    और एक पल को, दोनों भूल गए कि वे क्या हैं ।

    उसने अपना हाथ उठाया, धीमे से ।

    साक्षी को छूने की चाह उसके अंदर एक डर से टकरा रही थी ।

    उसकी उंगलियाँ साक्षी के चेहरे से कुछ इंच की दूरी पर रुक गईं ।

    साक्षी ने पलकें नहीं झपकाईं ।

    रणविजय महसूस कर रहा था — साक्षी सिर्फ इंसान नहीं है ।

    उसके भीतर कुछ था, कोई रहस्य जो उसकी शापित आत्मा को खींच रहा था ।

    साक्षी ने उसकी आंखों में देखा — गहराई से, जैसे उसे समझना चाहती हो ।

    और उस नज़र में, रणविजय ने खुद को एक राक्षस नहीं, बल्कि एक इंसान की तरह देखा ।

    "मैंने आपको कभी नहीं देखा," साक्षी बोली, "पर ऐसा लग रहा है जैसे जानती हूं ।"

    रणविजय हल्के से मुस्कराया ।

    "शायद हम मिले थे, उस वक़्त जब वक़्त ने खुद को भुला दिया था ।"

    साक्षी को उस पर हँसना चाहिए था ।

    मगर उसने नहीं हँसी ।

    क्योंकि उसके अंदर कहीं न कहीं, उसे यकीन हो चला था कि ये बात सच है ।

    जैसे दोनों सदियों से किसी टकराव के इंतज़ार में थे ।

    उसकी जेब में रखा फोन बजा, मगर उसने अनदेखा कर दिया ।

    हर चीज़ जैसे मिट गई थी ।

    ये पल अवास्तविक था — और फिर भी, सच था ।

    रणविजय ने अपना चेहरा थोड़ा घुमाया, अपनी आंखें छुपाने की कोशिश की ।

    मगर साक्षी ने लाल चमक देख ली ।

    उसकी सांसें थम गईं ।

    मगर उसने दौड़ नहीं लगाई ।

    रणविजय सख्त हो गया । वो बहुत कुछ देख चुकी थी ।

    मगर साक्षी की नज़रें नहीं बदलीं — न डर, न चीख ।

    बस… जिज्ञासा ।

    और कुछ और — जो डर से भी पुराना था ।

    "आप सच में कौन हैं?" उसने दोबारा पूछा ।

    और इस बार, रणविजय ने उत्तर दिया ।

    "एक राक्षस… जो कभी प्यार पर यकीन करता था ।"

    ---

    1. आखिर ऐसा क्या था साक्षी में जो रणविजय की प्यास को प्रेम में बदल रहा था?

    2. उसने रणविजय की सच्चाई जानने के बावजूद भागने की कोशिश क्यों नहीं की?

    3. क्या साक्षी मात्र एक सामान्य लड़की है, या उसके अंदर भी कोई रहस्य छुपा है?

    4. क्या ये प्यार एक वेंपायर को नरम बना पाएगा — या किसी नई तबाही का कारण बनेगा?

  • 2. Vampire's innocent love - Chapter 2

    Words: 1225

    Estimated Reading Time: 8 min

    उनके बीच की खामोशी अब भी हवा में लटकी थी, जैसे कुछ अनकहा रह गया हो ।

    रणविजय ने कभी किसी इंसान को इतना पास नहीं आने दिया था — फिर भी वह जाना नहीं चाहता था ।

    साक्षी वैसे ही खड़ी रही, जैसे समय कुछ पलों के लिए रुक गया हो ।

    उसकी नज़रें नहीं हटीं, भले ही उसने उसकी आँखों में कुछ भयानक देखा हो ।

    वह अब भी उसकी धड़कनों को सुन सकता था — डर नहीं, बल्कि उलझन थी ।

    यह उलझन उसके भीतर एक अजीब सी कसक पैदा कर रही थी ।

    "मुझे जाना चाहिए," उसने धीमे से कहा, जैसे कोई रात का रहस्य बुदबुदा रहा हो ।

    "लेकिन दिल नहीं मान रहा ।"

    साक्षी एक कदम आगे बढ़ी ।

    "तो फिर मत जाओ," उसने सहजता से कहा ।

    उसकी मासूमियत किसी तेज़ तलवार पर पड़ी चांदनी जैसी थी — खूबसूरत, लेकिन चुभने वाली ।

    उसने कोई सवाल नहीं पूछा, और शायद यही बात रणविजय को सब कुछ बताने के लिए मजबूर कर रही थी ।

    रणविजय ने नज़रें फेर लीं, जैसे सदियों का बोझ उसके कंधों पर आ गिरा हो ।

    "मैं सुरक्षित नहीं हूँ," उसने कबूल किया ।

    "मैंने तुमसे सुरक्षा नहीं मांगी," साक्षी का जवाब था ।

    उनकी आँखें फिर टकराईं — और इस बार, कुछ भीतर टूट गया ।

    उसने महसूस किया जैसे अपने ही बनाए हुए किले में एक दरार पड़ गई हो ।

    एक इंसानी एहसास उसके भीतर रिसने लगा था ।

    लेकिन एहसास खतरनाक होते हैं — वे वैंपायर को कमज़ोर बना देते हैं ।

    और रणविजय कमज़ोर नहीं हो सकता था ।

    फिर भी, वो हो रहा था ।

    बादलों ने चांद को ढक लिया और अंधकार दोनों को अपने आगोश में ले आया ।

    वो मुड़ा और जाने लगा, पर तभी उसकी आवाज़ ने उसे रोक लिया ।

    "क्या मैं तुम्हें फिर से देखूंगी?"

    उसने कोई जवाब नहीं दिया ।

    अगले ही पल वो हवा में घुल गया, जैसे कभी था ही नहीं ।

    साक्षी वहीं खड़ी रही, दिल तेज़ धड़क रहा था, आंखों में अनजानी चमक थी ।

    उसने अपनी छाती पर हाथ रखा — शायद उस स्पर्श को महसूस करने के लिए जो वह पीछे छोड़ गया था ।

    उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे डरना चाहिए या और गहराई से डूब जाना चाहिए ।

    उस रात उसने अजीब सपने देखे —

    लाल आंखें जो आईने से झांक रही थीं,

    बर्फ जैसे हाथ जो उसके छूने से गरम हो उठते थे,

    और कोई प्राचीन भाषा जो उसके नाम को फुसफुसा रही थी ।

    एक ऐसा रिश्ता, जो किस्मत से नहीं, खून से लिखा गया था ।

    शहर के दूसरे छोर पर, रणविजय एक वीरान गिरजाघर के बाहर खड़ा था ।

    वो अंदर टंगी क्रूस की ओर देख रहा था — आंखों में इतिहास की राख ।

    वो दो सौ वर्षों से किसी मंदिर या गिरजाघर में नहीं गया था ।

    पर आज, अपराधबोध उसे पीछा कर रहा था ।

    उसने धीरे से उसका नाम हवा में बुदबुदाया ।

    साक्षी ।

    एक नाम जो जलाता भी था और सुकून भी देता था ।

    वो उसे भूलना चाहता था — पर भूल नहीं पाया ।

    उसे पता था उसके भाई इसे महसूस कर लेंगे ।

    "काउंसिल" को इस प्रेम की भनक भी नहीं लगनी चाहिए थी ।

    क्योंकि प्यार कमज़ोरी था ।

    और कमज़ोरी मौत ।

    पर साक्षी में कुछ और था...

    कोई अनोखी रोशनी, जो हर इंसान में नहीं होती ।

    जैसे उसकी आत्मा रणविजय की सदीयों पुरानी आत्मा को पुकार रही थी ।

    और यही बात उसे डरा रही थी ।

    इधर, साक्षी अपनी छोटी सी कोठरी में बैठी, खिड़की के शीशे पर उंगलियों से आकृतियाँ बना रही थी ।

    वो उसकी आँखें नहीं भूल पा रही थी — वो गहराई, वो पीड़ा, और वो दमित इच्छा ।

    उसने हमेशा परियों की कहानियों में दानव देखे थे, पर कोई ऐसा नहीं — जो इतना इंसानी हो ।

    और कोई ऐसा नहीं — जो उसे इस कदर बेचैन कर दे ।

    उसने अपने गले में लटकते एक पेंडेंट को छुआ — जो उसकी नानी ने दिया था ।

    "ये तुम्हारी रक्षा करेगा," उन्होंने कहा था ।

    साक्षी को उन लोक कथाओं पर यकीन नहीं था ।

    कम से कम... अब तक नहीं था ।

    अगला दिन सामान्य लग रहा था — शायद ज़रूरत से ज़्यादा ।

    क्लास जाना, दोस्तों के साथ हँसना, कॉफी पीना ।

    लेकिन उसके ज़हन में बार-बार वही चेहरा घूमता रहा ।

    वही चुप्पी… वही आँखें ।

    शाम होते-होते वह खुद को उसी गली में खड़ा पाया — उसी टूटी स्ट्रीट लाइट के नीचे ।

    उम्मीद थी ।

    इंतज़ार था ।

    बिना जाने कि किसका ।

    और वो आया ।

    ना किसी शोर के साथ, ना किसी आंधी के साथ — जैसे रात खुद उसके इर्द-गिर्द सिमट गई हो ।

    साक्षी की सांसें थमीं ।

    रणविजय मुस्कुराया — ना नरमी से, ना कठोरता से… बस एक अनकही पहचान के साथ ।

    "तुम वापस आए," उसने कहा ।

    "मैं गया ही कब था," उसने जवाब दिया ।

    दोनों उसी धुंधली रोशनी में खड़े रहे, बिना हिले, बिना कुछ कहे ।

    समय जैसे फिर ठहर गया हो ।

    वो धीरे-धीरे पास आया ।

    साक्षी वहीं रही, बिना डरे ।

    उसकी उंगलियां बस हल्के से उसकी हथेली को छू गईं ।

    एक छुअन, और दोनों की दुनिया बदल गई ।

    साक्षी को सर्दी और गर्मी एक साथ महसूस हुई ।

    रणविजय को सदियों बाद ‘ज़िंदा’ होने का एहसास हुआ ।

    "मैं ही क्यों?" साक्षी ने धीरे से पूछा ।

    "मुझे नहीं पता," वह बुरी तरह ईमानदार था ।

    "पर मुझे इतना यकीन पहले कभी नहीं हुआ ।"

    साक्षी को लग रहा था — जैसे वो कुछ छिपा रहा है ।

    कोई सच्चाई जो बहुत तेज़ है, बहुत काली ।

    पर उसके भीतर भी कोई राज़ था ।

    एक ऐसा सच जिसे वो आज तक किसी को नहीं बता सकी ।

    दोनों पुरानी लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर बैठ गए ।

    चांद उनके ऊपर था, जैसे सब देख रहा हो ।

    रणविजय ने उसे कहानियाँ सुनाईं — पहेलियों में लिपटी, आग और बर्फ की बातें ।

    साक्षी मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही ।

    जब वो हँसी, तो जैसे रात भी थम गई ।

    रणविजय उसे देखता रहा ।

    ये क्या था जो उसके भीतर फूल रहा था — प्यास नहीं, उम्मीद?

    वो जानता था, उसे ये हक नहीं है ।

    फिर भी, वो उस रौशनी की तरफ खिंच रहा था ।

    साक्षी ने उसकी आँखों में देखा ।

    "तुम कुछ छिपा रहे हो ।"

    उसने सिर हिलाया ।

    "मैं सब कुछ छिपा रहा हूँ ।"

    साक्षी ने उसका हाथ छूआ — बहुत हल्के से ।

    "तो मत बताओ अभी । मैं इंतज़ार कर सकती हूँ ।"

    और तभी दोनों ने महसूस किया —

    ये शुरुआत है… कुछ ऐसा जो अब रोका नहीं जा सकेगा ।

    ---

    1. रणविजय किस सच्चाई को छिपा रहा है — क्या उसकी प्यास से भी बड़ा कोई श्राप है जो साक्षी के लिए जानलेवा हो सकता है?

    2. साक्षी का पेंडेंट और उसके सपने — क्या यह संकेत हैं कि वह किसी रहस्यमयी विरासत से जुड़ी है?

    3. "काउंसिल" आखिर कौन है, और क्या वे रणविजय और साक्षी के बीच पनपते इस रिश्ते को मिटा देंगे?

    4. क्या साक्षी वास्तव में एक सामान्य लड़की है, या उसके खून में भी कोई पुरानी शक्ति छुपी है?

    5. जब एक वैंपायर और एक रहस्य से भरी लड़की के बीच मोहब्बत जागती है — तो क़िस्मत क्या कीमत माँगेगी?

  • 3. Vampire's innocent love - Chapter 3

    Words: 1292

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात ने शहर को मखमली काले पर्दे से ढक दिया था, जैसे कोई रहस्य हर कोने में फुसफुसा रहा हो ।

    रणविजय एक ऊँची छत के किनारे खड़ा था, नीचे की चमकती और शोरगुल से भरी दुनिया को देखता हुआ ।

    उसने आँखें बंद कर लीं, हवा को अपने बालों में उलझने दिया, जैसे कोई भटकी आत्मा उसे छू रही हो ।

    उसके भीतर की प्यास शांत थी, मगर पूरी तरह मरी नहीं थी ।

    साक्षी से उस एक मुलाकात के बाद कुछ बदल गया था ।

    जो मन पहले कठोर और अडिग था, अब भावनाओं की नमी महसूस करने लगा था ।

    वह उसके हाथ का स्पर्श याद करता — कोमल, गर्म, पूरी तरह मानवीय ।

    एक ऐसा स्पर्श जो उसके अमर शरीर को आग और बर्फ की तरह छू गया था ।

    वह सदियों से इंसानी भावनाओं से दूर रहा था ।

    प्यार, चाहत, कमज़ोरी — ये सब एक वैंपायर के लिए ज़हर थे ।

    लेकिन साक्षी... वो कुछ अलग थी ।

    एक रहस्य जो मासूमियत और चुप्पी के आवरण में छिपा था ।

    वो उसकी आँखें नहीं भूल सका — जिज्ञासु, खोजी, और निडर ।

    उसने रणविजय के अंधेरे से मुँह नहीं मोड़ा ।

    बल्कि और गहराई में देखने की कोशिश की — जैसे उसकी आत्मा की राख में कोई उजाला ढूंढ़ रही हो ।

    और यही बात, सूरज की रौशनी से ज़्यादा डरावनी थी ।

    रणविजय छत से कूदा, और नीचे अंधे गली में बिना आवाज़ के उतरा ।

    शहर उसके चारों ओर अपनी ही लय में चलता रहा — अनजान कि एक राक्षस उनके बीच चल रहा था ।

    किसी की धड़कन बाकी धड़कनों से तेज़ सुनाई दी ।

    उसने पलटकर देखा ।

    एक आदमी बार से लड़खड़ाता हुआ निकला — शराब और घमंड में डूबा हुआ ।

    एक पल के लिए, रणविजय की प्यास जागी ।

    उसकी रगों में लाल इच्छा दौड़ने लगी ।

    पर उसने जबड़े भींच लिए और मुड़ गया ।

    अब वह उस तरह का वैंपायर नहीं था ।

    कम से कम, वह यही चाहता था ।

    ---

    विश्वविद्यालय की एक सूनी कॉरिडोर में साक्षी धीरे-धीरे चल रही थी, विचारों में उलझी हुई ।

    उसने किसी को रणविजय के बारे में नहीं बताया था ।

    वो बताती भी कैसे, जब उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वो असली था ।

    वो आया जैसे कोई फुसफुसाहट, गया जैसे धुआँ, मगर उसकी यादें ज़हन में ठहर गई थीं ।

    उसे अब भी उसकी नज़रें अपनी त्वचा पर महसूस होती थीं — एक ऐसा एहसास जो हकीकत से ज़्यादा सजीव था ।

    उसका लॉकेट अब भारी महसूस होता था ।

    जब भी वह रणविजय के बारे में सोचती, वह हल्का-सा गरम हो उठता ।

    उसकी चुप्पी में कुछ प्राचीन था ।

    कुछ खूबसूरत... और खौफनाक ।

    उसके सपने अब अजीब होते जा रहे थे — खून, चाँद और अनजान आवाज़ें जो उसका नाम पुकारती थीं ।

    ऐसी ज़ुबान में जो उसने कभी नहीं सीखी थी ।

    प्रोफेसर मेनन ने उसकी खोई हुई नज़रें देखीं ।

    "तुमने फिर से आईना देखा है, है ना?" उन्होंने धीरे से पूछा ।

    साक्षी चौंकी, "कौन सा आईना?"

    लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ एक रहस्यमयी मुस्कान दी ।

    रात को, वो अपनी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी थी, अपने ही प्रतिबिंब को देखती हुई ।

    लेकिन उस आईने में सिर्फ वही नहीं थी ।

    एक पल के लिए, उसने किसी और को देखा — सफेद चेहरा, सुनहरी आँखें, और उसके पीछे खड़ा एक साया ।

    उसका दिल ज़ोर से धड़क उठा ।

    वह पलटी ।

    कुछ नहीं था ।

    सिर्फ सन्नाटा ।

    कई मील दूर, रणविजय के सीने में कुछ काँपा ।

    एक अजीब-सी खिंचाव — जैसे कोई पुराना रिश्ता जाग रहा हो ।

    वह एकदम ठिठक गया ।

    एक बंधन बन रहा था — अदृश्य, मगर अटल ।

    उसे साक्षी को छोड़ देना चाहिए था ।

    पर अब बहुत देर हो चुकी थी ।

    ---

    काउंसिल ने कानाफूसी शुरू कर दी थी ।

    प्राचीन रक्तपिपासुओं की सभा — अंधेरे में छिपी, खून से बंधी ।

    उनका नेता, आलारिक, एक विशाल पत्थर की मेज़ के सामने खड़ा था — आँखें जलती हुई अंगारों जैसी ।

    "वह कमजोर पड़ रहा है," आलारिक फुफकारा ।

    "उसने भावनाओं को छू लिया है । यही उसे खतरनाक बनाता है ।"

    "क्या हमें उसे बुलाना चाहिए?" एक तीखी, स्त्री आवाज़ गूंजी ।

    "नहीं । उसे और गिरने दो । फिर हम वार करेंगे ।"

    सबने सिर हिलाया, उनके दांत मोमबत्तियों की रोशनी में चमक उठे ।

    प्यार एक धोखा है — और धोखे की सजा तय है ।

    ---

    रणविजय शहर के पार के जंगल में चला गया ।

    वो जगह वक़्त से अछूती थी ।

    पेड़ फुसफुसाते थे — पुराने जादू और दबी हुई यादों के किस्से ।

    जब उसकी आत्मा को खामोशी चाहिए होती थी, वो यहीं आता था ।

    मगर आज रात, वह अकेला नहीं था ।

    साक्षी एक मुड़े हुए पुराने पेड़ के पास खड़ी थी, हल्का काँपती हुई ।

    उसे भाग जाना चाहिए था ।

    मगर वह आगे बढ़ा ।

    "तुम यहाँ कैसे पहुँची?" उसने पूछा ।

    "मालूम नहीं," साक्षी ने फुसफुसाते हुए कहा । "कुछ मुझे यहाँ खींच लाया ।"

    उनकी निगाहें फिर से मिलीं, और समय थम गया ।

    उसकी नज़रों में कोई झूठ नहीं था ।

    सिर्फ सवाल और मौन भरोसा ।

    "मुझे तुम्हारे पास नहीं होना चाहिए," उसने स्वीकारा ।

    "तो मत रहो," उसने कहा । "मगर तुम हो ।"

    एक पल ठहरा ।

    साँसें सर्द हवा में उलझ गईं ।

    "मैं बाकी लोगों जैसा नहीं हूँ," उसने चेतावनी दी ।

    "मैं जानती हूँ," उसने धीरे से जवाब दिया । "कम से कम तुम सच बोलते हो ।"

    वह हँसा — कड़वा और उदास ।

    "तुम्हें नहीं पता मैं क्या हूँ ।"

    वह एक कदम आगे बढ़ी ।

    "तो दिखाओ मुझे ।"

    रणविजय का दिल — या जो कुछ उसमें बाकी था — मरोड़ खा गया ।

    वह मुड़ गया, लेकिन उसने उसकी पीठ पर हल्का हाथ रखा ।

    एक छोटा, साहसी स्पर्श जो रणविजय के भीतर तूफ़ान ले आया ।

    और फिर, उसने एक मूर्खता की ।

    उसने अपनी ग्लैमर हटाई ।

    एक झपक में, राक्षस सामने आ गया — सफेद त्वचा, काली नसें, सुनहरी आँखें ।

    उसके होंठों के बीच से नुकीले दांत झाँक रहे थे ।

    साक्षी की साँसें रुक गईं ।

    मगर वह चीखी नहीं ।

    बल्कि, उसने आगे बढ़कर उसका चेहरा थाम लिया ।

    उसकी आँखों में नमी थी ।

    "तुमने इसे इतने वर्षों तक अकेले कैसे सहा?" उसने पूछा ।

    उसके स्पर्श के नीचे रणविजय का शरीर काँप उठा ।

    "बहुत लंबे समय से ।"

    वे उस पुराने जंगल में खड़े थे — एक राक्षस और एक लड़की — जुड़ाव की अदृश्य डोर में बँधे ।

    साक्षी ने पीछे नहीं हटाया हाथ ।

    उसने उसे वैसे थामा जैसे सदियाँ थाम ली हों ।

    और रणविजय के जीवन में पहली बार... उसने खुद को देखा महसूस किया ।

    चाँदनी ने उन पर चाँदी बिखेरी ।

    एक हवा चली, जो उनके नामों को प्रतिज्ञा की तरह फुसफुसा रही थी ।

    रणविजय आगे झुका, उसका माथा साक्षी के माथे से सटा ।

    अभी कोई चुंबन नहीं — लेकिन उनके बीच की जगह जल रही थी ।

    "तुम डरी क्यों नहीं?" उसने धीमे से पूछा ।

    "पता नहीं," साक्षी ने फुसफुसाया । "शायद डरना चाहिए, पर मैं नहीं डरती ।"

    उसने आँखें बंद कीं ।

    और उसी पल, शाप काँप गया ।

    ---

    साक्षी के भीतर कौन-सी रहस्यमयी शक्ति जाग रही है, जिसका पता उसे खुद भी नहीं है?

    क्या वैंपायर काउंसिल रणविजय को बिना सज़ा दिए किसी इंसान से प्यार करने देगी?

    आईने में साक्षी को बार-बार दिखने वाली परछाई कौन है — दोस्त, दुश्मन या उसकी भूली हुई पहचान?

    क्या रणविजय के पुराने पाप फिर से उठेंगे और साक्षी से उसका नाज़ुक रिश्ता तोड़ देंगे?

    और जब रक्त की रात आएगी, क्या उनका प्यार उन्हें बचाएगा... या निगल जाएगा?

  • 4. Vampire's innocent love - Chapter 4

    Words: 963

    Estimated Reading Time: 6 min

    जब वो पास होती थी, रात भी धीरे साँस लेती थी।

    रणविजय झील के किनारे खड़ा था, काले पानी में चाँद की परछाईं काँप रही थी।

    उसका दिल, अगर उसे दिल कहा जाए, उलझनों से भरा हुआ था।

    साक्षी ने उसके भीतर कुछ पुरातन छू लिया था।

    अब भी उसे उसका स्पर्श महसूस हो रहा था।

    नफरत या डर से नहीं, बल्कि कोमलता से—जैसे उसने राक्षस को भी अपना लिया हो।

    वो कई दिनों से भूखा था।

    फिर भी उसे भूख नहीं लग रही थी।

    उसकी मौजूदगी ने कुछ ऐसा भर दिया था जो खून नहीं भर सकता।

    पर उसी के साथ ऐसी इच्छाएँ जाग उठी थीं जिनसे वो डरता था—चाहत, लगाव, रक्षा की प्यास।

    ऐसे जज़्बात अक्सर उसके जैसे जीवों के लिए विनाश लेकर आते थे।

    जब उसने आख़िरी बार महसूस किया था, तब सब कुछ जलकर राख हो गया था।

    उसने झील में झाँका—उसकी परछाईं धुँधली और बिखरी हुई थी।

    क्या वो अब भी वही है? या कुछ और बनता जा रहा है?

    वो पीछे हट गया, जैसे उस प्रतिबिंब से भी डर हो।

    उसके सीने में कुछ तड़प रहा था, बाहर निकलने को।

    वहीं दूर, मोमबत्तियों की हल्की रौशनी में, साक्षी किसी पुराने ग्रंथ को उलट रही थी।

    वो किताब उसने पहले कभी नहीं देखी थी।

    पर कल रात वो उसके बिस्तर पर आ गई थी—सपनों में उसकी फुसफुसाहट के साथ।

    वो भाषा उसे समझ नहीं आती थी, पर फिर भी वो हर शब्द पढ़ पा रही थी।

    उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, लेकिन नज़रें पन्नों से हटी नहीं।

    उसमें खून के बंधन, प्राचीन शाप और खगोलीय मिलन की बातें लिखी थीं।

    “आत्मा-जुड़ाव” और “अनंत छाया” जैसे शब्द उसे अंदर तक हिला रहे थे।

    वो उस किताब की ओर खिंचती जा रही थी—जैसे वो सदियों से उसी की हो।

    क्या वो बदल रही थी?

    ---

    वन में, एक तूफ़ान उठ रहा था—बादलों का नहीं, बल्कि यादों का।

    रणविजय को दो सौ साल पुरानी एक लड़की याद आई।

    नरम हँसी, चेरी जैसे होंठ, वही सी खुशबू।

    वो लड़की मरते वक्त उसका नाम पुकार रही थी।

    उस हादसे ने उसे तोड़ दिया था।

    उसने कसम खाई थी कि फिर कभी नहीं जुड़ने देगा खुद को।

    पर साक्षी वैसी नहीं थी—फिर भी कुछ जुड़ा हुआ-सा महसूस हो रहा था।

    किस्मत के धागे जैसे समय को चीरते हुए उन्हें बाँध रहे थे।

    उसने मुट्ठी भींच ली, नाखूनों से हथेली से खून छलक आया।

    तभी एक धीमी सी आहट ने उसकी तंद्रा तोड़ी।

    वो तुरंत पलटा, लड़ाई के लिए तैयार।

    पर वो तो साक्षी थी।

    साक्षी पेड़ों के छोर पर खड़ी थी, हाथ में वही रहस्यमयी किताब।

    उसके बाल हवा में लहरा रहे थे, आँखों में कोई अनकहा भाव था।

    “तुम मेरा पीछा कर रही हो?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    “मुझे करना पड़ा,” उसने फुसफुसाया। “तुम बहुत सारे सवाल छोड़ गए थे।”

    वो भागना चाहता था। चीखना चाहता था। उसके नाम को छू लेना चाहता था।

    पर उसने बस एक कदम आगे बढ़ाया।

    “ये किताब कहाँ से मिली?” उसने पूछा।

    “ये खुद मेरे पास आई,” उसने कहा और किताब आगे बढ़ा दी।

    जैसे ही उसने किताब छुई, हवा तेज़ हो गई।

    पेड़ झुकने लगे, जैसे उनके रहस्य चुराने की कोशिश कर रहे हों।

    रणविजय की आँखें चौड़ी हो गईं—ये इंसानों के लिए नहीं थी।

    वो किताब पिशाच की खाल से बँधी थी।

    “ये ब्लडग्रिमॉयर है,” वो बुदबुदाया।

    “मतलब?”

    “ये श्रापित वस्तु है। इसे सिर्फ आत्मा से जुड़े लोग ही खोल सकते हैं।”

    “तो मैं इससे बंधी हुई हूँ?”

    उनकी नज़रे मिलीं—और जैसे कुछ ताले खुल गए।

    पहले उसने नज़रें हटाईं।

    “मुझे तुमसे दूर रहना चाहिए था,” वो बोला।

    “तो रुके क्यों?”

    उसके पास कोई जवाब नहीं था।

    तभी ज़मीन काँपी।

    एक भयानक चीख गूँजी—मानव नहीं थी।

    रणविजय ने साक्षी को पीछे धकेला, उसकी आँखों में गुस्सा था।

    “वापस जाओ,” उसने आदेश दिया।

    लेकिन वो हिली तक नहीं।

    अंधेरे से एक परछाई निकली—बिगड़ा हुआ पिशाच, पागलपन में डूबा।

    उसकी आँखें भूख से जल रही थीं।

    रणविजय उस पर टूट पड़ा, पंजे अंधकार को चीरते हुए।

    क्रंदन, चीखें और युद्ध की गूँज गूंज उठी।

    खून ज़मीन को लाल कर रहा था।

    साक्षी काँपती हुई देख रही थी।

    उसके हाथ में किताब चमकने लगी।

    पन्ने खुद पलटने लगे, अक्षर अग्नि से जल रहे थे।

    एक आवाज़ गूँजी—बाहर नहीं, अंदर।

    “नाम लो। अग्नि को बाँधो।”

    बिना समझे ही, उसने दोहराया।

    प्राचीन शब्द उसकी ज़बान से निकले।

    वो प्राणी चिल्लाने लगा, फिर जलने लगा।

    रणविजय चौंका। “तुमने ये क्या किया?”

    “मुझे खुद नहीं पता।”

    वो उसके पास आया, खून टपक रहा था।

    वो उसे ऐसे देख रहा था जैसे पहली बार देखा हो।

    “तुम सिर्फ एक लड़की नहीं हो।”

    “मैं कभी थी ही नहीं,” उसका स्वर धीमा था।

    एक लंबी ख़ामोशी।

    “मुझे जानना है, तुम हो कौन।”

    “तो देखो, गहराई से,” उसने कहा।

    रणविजय ने अपना हाथ उसके दिल पर रखा।

    तेज़, पर स्थिर धड़कनें।

    उसने हाथ वहीं रहने दिया—उस गर्मी को महसूस किया।

    “तुम रोशनी हो,” वो बुदबुदाया।

    वो मुस्कुराई। “और तुम छाया।”

    तभी एक धीमी सी धुन हवा में बही।

    न कोई साज़, न कोई आवाज़—बस एक स्मृति।

    वो पीछे हट गया। “ये जगह… बदल रही है।”

    “हाँ,” उसने सिर हिलाया। “क्योंकि अब मैं यहाँ हूँ।”

    उसकी नजर किताब पर पड़ी।

    अब वो शांत थी—जैसे अपना पहला रहस्य सुना चुकी हो।

    बाकी अभी बाकी थे।

    राज़ अभी गहरे थे।

    चाँद लाल हो गया था।

    एक रक्तचंद्र।

    पहला संकेत।

    भविष्यवाणी शुरू हो चुकी थी।

    साक्षी का उस रक्तग्रंथ से क्या प्राचीन संबंध है—और ये अब क्यों जाग रहा है?

    जब भविष्यवाणी पूरी होगी, तो क्या उनका प्यार उन्हें बचाएगा... या दोनों को विनाश की ओर ले जाएगा?

    साक्षी को ऐसे शब्द और जगहें क्यों याद आती हैं जिन्हें उसने कभी जाना ही नहीं?

    वो कौन-सी अंधेरी शक्ति है जो छायाओं में उनसे टकराने आ रही है—और उसकी इच्छा क्या है?

    क्या रणविजय सच में साक्षी की रक्षा करने के लिए नियत है... या उसे खत्म करने के लिए?

  • 5. Vampire's innocent love - Chapter 5

    Words: 1125

    Estimated Reading Time: 7 min

    चाँद अब केवल प्रतिबिंब नहीं था ।
    वो एक चेतावनी बन गया था ।
    एक लाल संकेत जो उनके ऊपर तैर रहा था, जैसे कोई अनकही सच्चाई ।
    हवा बदल गई थी, और उसके साथ वातावरण भी रहस्यों से भारी हो गया था ।

    साक्षी अपने कमरे में अकेली बैठी थी, पुरानी किताब उसके सामने खुली थी ।
    ब्लडग्रिमॉयर के पन्ने धीमे-धीमे फड़फड़ा रहे थे, जैसे वो जीवित हो ।
    वो उससे कुछ कहने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
    उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन नज़रें हट नहीं रही थीं ।

    उसके भीतर कुछ बदल गया था ।
    जैसे वो किताब अब उसका ही एक हिस्सा बन गई हो—उसका भार, उसका उद्देश्य, उसमें छिपा जादू ।
    उसने पहला पन्ना छुआ, तो उसमें लिखे पुराने अक्षर चमकने लगे ।
    एक आवाज़ उसके मन में गूँजी—जानी-पहचानी, फिर भी अजनबी ।

    "तुम खून में लिखे को नहीं बदल सकती ।"

    उसकी साँसें रुक गईं ।
    उसने झट से किताब बंद कर दी, पर वो शब्द अब भी दिमाग में गूंज रहे थे ।
    अब वो बंध चुकी थी—इससे, इस सब से ।
    अब इससे मुँह मोड़ना संभव नहीं था ।

    बाहर रणविजय बेचैनी से टहल रहा था ।
    वो भी उस ग्रंथ का प्रभाव महसूस कर रहा था, हालांकि कारण स्पष्ट नहीं था ।
    उसका और साक्षी का बंधन अब इंकार से परे था—डरावना, लेकिन सच्चा ।
    वो उस रक्तरेखा के श्राप को भली-भाँति जानता था ।

    वही श्राप जिसने उसे बर्बाद किया था ।
    जिससे वो डरता था कि कहीं साक्षी को भी न ले डूबे ।
    पर वो जा नहीं सकता था ।
    न उससे, न उस भावना से जो दोनों के बीच जन्म ले रही थी ।

    उसने आँखें बंद कीं, और हवा में धरती और आने वाले तूफ़ान की महक को महसूस किया ।
    भविष्यवाणी शुरू हो चुकी थी ।
    लेकिन ये उनका उद्धार लाएगी या विनाश?

    अचानक एक तेज़ पीड़ा ने उसकी नसों को जला दिया ।
    उसके नुकीले दाँत बाहर निकल आए, आँखें लाल हो गईं ।
    वो उसे महसूस कर सकता था—ब्लडग्रिमॉयर की पुकार, साक्षी के खून की पुकार ।
    ये भूख नहीं थी, ये उससे भी कहीं गहरा था ।

    वो उसकी ओर बढ़ा, लेकिन उसके कमरे के दरवाज़े से पहले ही कोई आ गया ।
    एक स्त्री, काली परछाईं में ढकी हुई, चेहरा हुड से छिपा ।
    वो जैसे उसका इंतज़ार कर रही हो, और उसकी उपस्थिति से हवा थम गई ।
    रणविजय ने अपने भीतर ऊर्जा को काँपते महसूस किया ।

    “तुम कौन हो?” उसकी आवाज़ फुफकार जैसी थी ।
    स्त्री की आवाज़ धीमी थी, पर उसमें एक अजीब कंपन था ।
    “मैं रक्तरेखा की रक्षक हूँ,” उसने कहा और पास आई ।
    उसकी आँखें असामान्य रूप से चमक रही थीं ।
    “तुम्हारा समय समाप्त होने वाला है, पिशाच ।”


    ---

    अंदर, साक्षी ने फिर से किताब खोली थी ।
    उसके मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे जिनके उत्तर किसी के पास नहीं थे ।
    अब वो ग्रंथ सिर्फ किताब नहीं, उसका ही हिस्सा लग रहा था—उसके दिल की धड़कन जैसा ।
    हर शब्द अब उससे बात कर रहा था ।

    पन्ने आत्माओं की तरह खुलते जा रहे थे, और पुराने समय की आवाज़ें हवा में गूंजने लगीं ।
    तभी खिड़की पर एक परछाईं उभरी ।
    एक पुरुष आकृति, चाँदनी में खड़ा—आँखों में जाना-पहचाना अँधेरा ।

    उसने दरवाज़ा खोला, रणविजय अंदर आ गया ।
    हर क़दम जैसे समय को थामे हुए था ।
    उसकी आँखों में भूख थी, पीड़ा थी... लेकिन कुछ और भी था ।
    एक ऐसा जज़्बा जो उसके अंदर तक पहुँच गया ।

    “तुम अब सिर्फ एक सामान्य लड़की नहीं हो,” उसने धीरे से कहा ।
    “तुम समझ नहीं रही हो, ये भविष्यवाणी पहले ही शुरू हो चुकी है ।”

    “कैसी भविष्यवाणी?” साक्षी ने पूछा, आँखों में भय के साथ ।

    “ये हमारे बारे में है, साक्षी,” उसने कहा ।
    “तुम सिर्फ एक चाबी नहीं हो... तुम अंत हो ।”

    वो शब्द साक्षी के भीतर चुभे ।
    अंत?
    क्या वो किसी विनाश की जड़ थी?
    या कोई शिकार?

    “मैं बस जीना चाहती हूँ,” वो फुसफुसाई ।

    “जो शुरू हो चुका है, उससे भागा नहीं जा सकता,” रणविजय ने कहा ।
    “लेकिन मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा... हर चीज़ से ।”

    बाहर तूफ़ान गहरा हो गया ।
    अंदर, किताब की छाया और निकट आने लगी ।
    और भविष्यवाणी की आँच अब साँसों में महसूस हो रही थी ।

    रात और गहरी हो गई थी, जैसे उसकी साँसें पुराने भूतों की गवाही दे रही हों ।
    बारिश की बूंदें काँच पर टपक रही थीं, हर बूँद दिल की धड़कन जैसी सुनाई दे रही थी ।
    रणविजय चुपचाप खिड़की के पास खड़ा था, साक्षी को सोते हुए देख रहा था ।
    उसके सपनों में कुछ ऐसा था, जो रणविजय के भीतर तक छू रहा था ।

    वो उसकी धड़कनों को दूर से भी महसूस कर सकता था ।
    सिर्फ उसका रक्त नहीं—उसकी आत्मा भी ।
    वो उससे एक प्राचीन भाषा में बात कर रही थी ।
    और रणविजय उस सुर से डरता था, क्योंकि वो भाग्य जैसा लगता था ।

    साक्षी नींद में कुछ बुदबुदाई ।
    “न्यरा…” उसका नाम लिया ।
    रणविजय की भौंहें सिकुड़ गईं ।
    ये नाम... किसी भूली हुई कथा से था ।

    वो कमरे से बाहर निकल गया, हवेली के अंधेरे गलियारों में कदम रखते हुए ।
    ये जगह, जो कभी उसका आश्रय थी, अब अनजानी लगने लगी थी ।
    दीवारें अब फुसफुसाती थीं ।
    और आज रात वो फुसफुसाहटें और भी तेज़ थीं ।

    वो तहख़ाने में उतरा—जहाँ कोई नहीं जाता था ।
    वहाँ सच्चाई थी ।
    वो सच्चाई जिसे उसने सालों से बंद कर रखा था ।
    पत्थर की दीवारें, लताओं और रक्त से रंगे प्रतीकों से ढकी थीं ।

    बीच में एक दर्पण खड़ा था—टूटा हुआ, शापित और घूंघट में ।
    वो दर्पण रोशनी नहीं, रक्तरेखा दिखाता था ।
    वो बताता था कि तुम क्या बनोगे—न कि तुम क्या हो ।
    रणविजय उसके सामने खड़ा हुआ ।

    “मुझे उसकी सच्चाई दिखाओ,” उसने कहा ।
    दर्पण की परछाईं लहराई ।
    और साक्षी की छवि उभरी—जैसी वो थी नहीं, जैसी वो बन सकती थी ।
    काली मखमली पोशाक में, चाँदी जैसी आँखें, और हाथों में लहू ।

    वो मुस्कुरा रही थी, लेकिन वो मुस्कान वो नहीं थी जो रणविजय जानता था ।
    वो मुस्कान प्राचीन थी, डरावनी और शक्तिशाली ।
    “नहीं,” रणविजय फुसफुसाया, “ये उसकी किस्मत नहीं हो सकती ।”
    पर दर्पण झूठ नहीं बोलता था ।

    ---

    रक्तरेखा की रक्षक असल में कौन है — और अब क्यों प्रकट हुई है?

    क्या साक्षी वाकई "अंत" है जैसा भविष्यवाणी कहती है — या वो उससे भी ज़्यादा शक्तिशाली है?

    ब्लडग्रिमॉयर अब भी साक्षी से कौन-से रहस्य छिपा रहा है?

    क्या रणविजय अपनी प्यास से लड़ पाएगा — या वो वही राक्षस बन जाएगा जिससे वो डरता है?

    क्या प्यार वाकई उस किस्मत को बदल सकता है जो खून से लिखी गई है?

  • 6. Vampire's innocent love - Chapter 6

    Words: 1172

    Estimated Reading Time: 8 min

    साक्षी अचानक जागी, सपना उसकी साँसों में लिपटा हुआ था।
    उसका दिल तेज़ धड़क रहा था, माथे पर पसीना था।
    उसने एक बग़ीचे का सपना देखा था—कब्रों से भरा हुआ।
    एक कब्र पर उसका नाम लिखा था।

    उसने अपना सीना छुआ, यह देखने के लिए कि क्या वो ज़िंदा है।
    ब्लडग्रिमॉयर टेबल पर बंद पड़ा था—पर वो कंपन कर रहा था।
    एक गूढ़ गर्जना सी उसमें से निकल रही थी, जैसे कोई जंगली जीव क़ैद हो।
    उसे समझ नहीं आया—भागे या फिर से खोले?

    लेकिन किसी शक्ति ने उसे खींचा।
    उसने धीरे से हाथ बढ़ाया, कवर को छूते ही एक बिजली सी उसके अंदर दौड़ गई।
    कमरा ठंडा पड़ गया, साँसें रुक सी गईं।
    पन्ने खुद-ब-खुद खुलने लगे।

    प्राचीन प्रतीक हवा में चमकने लगे।
    वो उसके चारों ओर घूमते हुए उसकी त्वचा पर अंकित हो गए।
    साक्षी काँपी, बोल नहीं पा रही थी।
    वो चिन्हित की जा रही थी।

    दृष्टियाँ उसके मन पर टूट पड़ीं—पुराने युद्ध, और एक रक्त से लथपथ भविष्य के दृश्य।
    उसने रणविजय को खून में डूबे वैंपायरों के बीच खड़ा देखा।
    खुद को एक तलवार के साथ, आँखों में दिव्य अग्नि।
    और फिर उसने देखा—दुनिया जल रही है।

    फिर सब शांत हो गया।

    वो ज़मीन पर गिर पड़ी।
    किताब खुद ही बंद हो गई, जैसे संतुष्ट हो।
    साक्षी चुपचाप लेटी रही, उसकी साँसें भारी थीं।
    उसका शरीर थका हुआ था, लेकिन उसका मन... बदल गया था।

    अब वो पहले जैसी नहीं रही।


    ---

    कुछ देर बाद रणविजय उसके कमरे में आया।
    वो खिड़की के पास बैठी थी, आँखें दूर कहीं खोई हुईं।
    वो उसकी ओर देख नहीं रही थी।
    लेकिन जब देखा, उसकी नज़र दिल चीर देने वाली थी।

    “तुम दर्पण के पास गए थे, है ना?” उसने शांत स्वर में पूछा।
    रणविजय चौंका।
    “तुम्हें कैसे पता चला?”
    “क्योंकि मैंने भी वही देखा,” उसने कहा।

    “किताब ने तुम्हें क्या दिखाया?”
    साक्षी कुछ देर चुप रही।
    फिर बोली, “उसने मुझे मेरा अंत दिखाया।”
    रणविजय ने सिर हिलाया, “तुम्हारा अंत नहीं है।”

    “तो फिर क्यों लगता है जैसे मैं कोई हथियार हूँ?”
    रणविजय उसके पैरों में बैठ गया, उसका हाथ थाम लिया।
    “क्योंकि सबको डर है, कि तुम क्या बन सकती हो।”
    “और अगर मैं खुद को खो बैठी तो?”

    “तो मैं तुम्हें खोज लूँगा… इस जन्म में या अगले में।”

    चाँद अब ढलने लगा था, उसकी रोशनी बस एक हल्की सफ़ेदी थी अंधेरे के किनारे पर।
    रणविजय उस पुराने ओक के पेड़ के नीचे खड़ा था जहाँ कोई पक्षी कभी नहीं गाता।
    यही वो जगह थी जहाँ उसका श्राप शुरू हुआ था—सदीयों पहले।
    ज़मीन अब भी खून की गंध को पहचानती थी।

    उसने ऊपर देखा, आँखों में बीते युगों की थकान।
    हर पत्ता जैसे पुराने चीखों की गूँज था।
    यह सिर्फ धरती नहीं थी—यह पवित्र भी थी और शापित भी।
    उसकी अमर पीड़ा की जननी।

    उसने आँखें बंद कीं, वो क्षण याद करते हुए जब उसे बदला गया था।
    एक चुम्बन, ठंडा और गहरा, उसकी नसों में ज़हर की तरह उतरा था।
    जिस स्त्री ने उसे वैंपायर बनाया… वो आर्या थी।
    वही नाम जिसे साक्षी ने नींद में पुकारा था।

    उसका जबड़ा भींच गया, सीने में गुस्सा धधकने लगा।
    आर्या की आत्मा अब भी अंधेरे में भटक रही थी।
    उसने रणविजय को सिर्फ वैंपायर नहीं बनाया—बल्कि एक शाप दिया था।
    एक ऐसा बंधन जो उसे खून से जोड़ता था, और प्यार को वर्जित बना देता था।

    उधर साक्षी हवेली के गलियारों में घूम रही थी, उंगलियाँ दीवारों को छूती हुईं।
    हर दीवार परिचित भी थी और अजनबी भी।
    किताब ने उसे बदल दिया था।
    सिर्फ उसकी सोच नहीं—उसकी आत्मा भी।

    अब वो फुसफुसाहटें सुन सकती थी जो और कोई नहीं सुनता था।
    अब वो आवाजें डर नहीं देती थीं।
    वो उसे बुलाती थीं, एक नाम से जो उसका नहीं था।
    “लियोरा,” वो बार-बार पुकारती थीं।

    उसने एक दरवाज़े के सामने रुककर देखा, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था।
    वो खुद-ब-खुद खुल गया, जैसे इंतज़ार कर रहा हो।
    अंदर एक कमरा था जो समय से अछूता था।
    बीच में एक पालना था—सूखे गुलाबों से ढंका।

    वो धीरे-धीरे चली, दिल ज़ोरों से धड़क रहा था।
    पालने में कोई बच्चा नहीं था—बल्कि एक तलवार थी।
    चाँदी और लाल रंग की, प्राचीन चिन्हों से जड़ी हुई।
    जैसे ही उसने उसे छुआ, उसकी आँखों में क्षणभर के लिए अंधेरा छा गया।

    उसी समय रणविजय कमरे में आया।
    उसकी नज़र साक्षी से मिली और उसकी साँसें थम गईं।
    वो वहां खड़ी थी, जैसे किसी और जीवन की छवि हो।
    “तुम्हें यह कहाँ से मिला?” उसने पूछा।

    “इसने मुझे ढूंढा,” उसने धीमे स्वर में कहा।
    रणविजय ने तलवार को देखा, फिर साक्षी को।
    “यह सोलफैंग है,” उसने फुसफुसाया।
    “एक ऐसा हथियार जो अमर को भी मार सकता है।”

    साक्षी की पकड़ मजबूत हो गई।
    उसे नहीं पता कैसे, पर वो तलवार उसकी अपनी लग रही थी।
    जैसे उसने जन्मों से उसका इंतज़ार किया हो।
    रणविजय पास आया।

    “इससे आर्या का अंत होना था,” उसने कहा।
    साक्षी ने पलकें झपकाईं। “तुम उसे जानते थे?”
    “वो मेरी सृष्टिकर्ता थी। और मेरा अभिशाप।”
    साक्षी ने तलवार नीचे की, उंगलियाँ काँपने लगीं।

    “वो वापस आ रही है, है ना?”
    रणविजय ने सिर हिलाया।
    “वो कभी गई ही नहीं।”
    “और मैं उसकी वापसी की कुंजी हूँ।”

    “हाँ,” उसने सच छिपाया नहीं।
    एक भारी चुप्पी छा गई।
    पर उस चुप्पी में कुछ जुड़ गया—एक कड़ी।
    वो सिर्फ भाग्य से नहीं, इतिहास से भी जुड़े थे।


    ---

    उस रात, आसमान बिजली की गर्जना से कांप गया।
    बारिश ने बग़ीचे को डुबा दिया, पुराने कब्रों की पंखुड़ियाँ बह गईं।
    साक्षी खिड़की के पास बैठी थी, तलवार गोद में थी।
    रणविजय दरवाज़े से देख रहा था, पर जानता नहीं था कैसे उसकी रक्षा करे।

    “तुम डरते हो,” उसने बिना देखे कहा।
    उसने नकारा नहीं।
    “तुमसे,” उसने कहा, “और तुम्हें खोने से।”
    वो मुड़ी, उसकी आँखों में उतरते हुए।

    “मैं भी डरती हूँ,” उसने कहा।
    वो पास आया, और उनके हाथ एक-दूसरे से मिल गए।
    तलवार के बीच से एक कंपन उठा।
    उसे दोनों के खून की पहचान थी।

    साक्षी झुकी, उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
    “अगर मैं वैसी बन गई… तो क्या तुम मुझे खत्म कर दोगे?”
    रणविजय का दिल चकनाचूर हो गया।
    “मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगा।”

    उसने मुस्कुराते हुए आँसू बहाए।
    “पर अगर हो गया तो?”
    रणविजय ने उसका चेहरा छुआ।
    “तो मैं पहले मरूँगा।”

    वो तूफ़ान में एक-दूसरे को थामे खड़े रहे, जैसे दो सत्य जो दुनिया के खिलाफ़ खड़े हों।
    पर हवेली के बाहर, जंगल की परछाइयों में, एक जोड़ी आँखें उन्हें देख रही थीं।
    आँखें जो अंगारों जैसी जल रही थीं।
    आर्या उठ चुकी थी।

    वो रक्तरंजित चाँद के नीचे खड़ी थी, राख और क्रोध में लिपटी हुई।
    उसकी आवाज़ मृत्यु का गीत थी।
    “जल्द ही, मेरे बच्चों,” उसने कहा, “हम फिर नाचेंगे।”
    और उसके हाथ में एक आईना था—जिसमें साक्षी का चेहरा दिख रहा था।

    ---

    जब रक्त और प्रेम टकराएँगे, क्या कोई बचेगा?

    क्या रणविजय अपने शाप से ऊपर उठ पाएगा—या वो भी उसी अंधकार का हिस्सा बन जाएगा?

    क्या साक्षी सच में 'लियोरा' है, या ये भी किसी अतीत की साज़िश है?

    क्या Soulfang तलवार रणविजय और साक्षी को जोड़ने आई है—या उन्हें अलग करने?

    आर्या की वापसी से कौन-सी प्राचीन लड़ाई फिर से जगेगी?

  • 7. Vampire's innocent love - Chapter 7

    Words: 1094

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात असामान्य रूप से शांत थी।
    तूफान गुजर चुका था, लेकिन हवा में अब भी भारीपन था।
    रणविजय साक्षी के कमरे के बाहर खड़ा था।
    उसकी निगाहें उस बंद दरवाज़े पर जमी थीं, मानो वह अंदर की हर भावना को महसूस कर सकता हो।
    उस दरवाज़े के पीछे वह आत्मा थी जिसे वह सबसे ज़्यादा चाहता था—और जिससे वह सबसे ज़्यादा डरता था।

    उसे साक्षी की साँसों की आहट सुनाई दे रही थी।
    वे शांत थीं, स्थिर, मानो किसी झील की लहरें रात में बह रही हों।
    लेकिन रणविजय का मन तूफान में घिरा था।
    डर उसे आर्या से नहीं था।
    डर उसे खुद से था।

    साक्षी बदल रही थी।
    वो उसकी मौजूदगी में महसूस कर सकता था, जैसे उसकी ऊर्जा बदल गई हो।
    पहले वह निष्पाप थी, मासूम, अंधकार से दूर।
    अब उसकी आँखों में छिपे हुए रहस्य थे।
    फिर भी, वह उससे प्रेम करता था।

    उसने दरवाज़े पर धीमी सी दस्तक दी।
    साक्षी की आवाज़ आई—धीमी, लेकिन आत्मविश्वास से भरी, "आ जाइए।"
    दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला, और वह वहां थी—अग्नि के पास बैठी हुई, हाथों में जड़ी-बूटियों की चाय का कप लिए।
    उसके बाल चाँदनी की तरह चमक रहे थे, आँखें गहराई से भरी हुई।

    “आप सोए नहीं?” साक्षी ने कहा, जैसे वह पहले से जानती हो।
    रणविजय ने चुपचाप सिर हिलाया।
    “नींद नहीं आई,” उसने स्वीकार किया।
    साक्षी ने अग्नि को देखा। “मुझे भी नहीं।”

    रणविजय उसके सामने बैठ गया।
    दोनों के बीच मौन छाया रहा।
    लेकिन यह मौन खाली नहीं था—यह भरा हुआ था।
    डर से, प्रेम से, अनकहे सवालों से।
    उन सच्चाइयों से जिन्हें बोलने का साहस किसी के पास नहीं था।

    “तलवार,” साक्षी ने अचानक कहा, “उसने मुझे कुछ दृश्य दिखाए।”
    रणविजय चौक गया। “कैसे दृश्य?”
    “एक औरत जिसकी आँखें काली थीं, एक बच्चा जो चीख रहा था, और आप—खून से लथपथ।”
    रणविजय ने नज़रें झुका लीं।

    “वो मेरा अतीत है,” वह बुदबुदाया।
    “और शायद मेरा भविष्य भी।”

    साक्षी ने उसका हाथ थाम लिया।
    वो ठंडा था, पत्थर जैसा।
    लेकिन उसकी उंगलियों में हल्का कंपन था।
    “आप वही नहीं हैं जो आप थे,” साक्षी ने धीरे से कहा।

    “अगर मैं वही बन जाऊँ तो?”
    “तो मैं आपको वापस खींच लाऊँगी,” उसने दृढ़ता से कहा।
    रणविजय की आँखें उससे मिलीं, और उसमें कुछ पिघल गया।

    वे दोनों अग्नि के पास बैठे रहे, हाथ में हाथ लिए, जैसे दो टूटी हुई आत्माएँ किसी एक पूरे को थाम रही हों।
    बाहर पेड़ सरसराए, और हवाओं में कुछ फुसफुसाहटें गूंजने लगीं।
    अग्नि की लपटें भभकने लगीं।
    और फिर, हवाओं में कुछ और हलचल हुई।

    रणविजय चौकन्ना हो गया।
    उसे सुनाई दे रही थीं—नंगे पाँवों की आवाज़ें।
    साक्षी उठ खड़ी हुई।
    तलवार पहले से उसके हाथ में थी।

    वे दोनों एक साथ चलने लगे, गलियारे की ओर।
    हर कदम गूंज रहा था।
    जैसे हवाओं में अतीत की गूँज समाई हो।
    सीढ़ियाँ उतरते ही, ठंडक और बढ़ गई।
    हवा में गुलाबों और सड़न की मिलीजुली गंध थी।

    “वो आ गई है,” रणविजय ने कहा।
    “मुझे भी अहसास हो रहा है,” साक्षी ने जवाब दिया।
    वे जैसे ही हॉल में पहुँचे, वहां एक आकृति खड़ी थी—आर्या।

    उसकी आँखें अंधकार से भरी थीं।
    उसकी मुस्कान में मौत का निमंत्रण था।
    “प्रेमी आ पहुँचे हैं,” उसने फुसफुसाकर कहा।
    रणविजय आगे बढ़ा। “उसे छोड़ दो।”

    आर्या हँसी, वह हँसी जो शीशे की तरह चुभती है।
    “वो कभी बाहर नहीं थी। वो तो कहानी की जड़ है।”
    साक्षी ने तलवार और कसकर थामी।
    “तुम मुझे क्यों चाहती हो?” उसने पूछा।

    “क्योंकि तुम ताला हो… और मैं चाबी,” आर्या बोली।
    “मैं नहीं समझी।”
    “बहुत जल्द समझ जाओगी।”
    और वह गायब हो गई।

    अंधकार फट पड़ा।
    छायाएँ लिपट गईं उनके चारों ओर।
    रणविजय ने साक्षी को अपनी बाहों में छिपा लिया।
    लेकिन उसके भीतर कुछ और जाग उठा था।

    वह पुराने दृश्य देखने लगा।
    वो रात जब आर्या ने उसे बदल दिया था।
    धोखा।
    रक्त।

    वह चीख पड़ा।
    साक्षी ने तलवार से छायाओं को काटना शुरू किया।
    प्रकाश उसकी देह से फूटा—सुनहरा, उग्र।
    आर्या की आवाज़ गूँजी, “वो जाग रही है।”

    और फिर—मौन।
    सब कुछ शांत।
    रणविजय ज़मीन पर गिर पड़ा।

    “रणविजय!” साक्षी उसके पास भागी।
    उसने धीरे-धीरे आँखें खोलीं।
    “वो सब मेरे भीतर हैं,” वह फुसफुसाया।

    “कौन?”
    “जिन्हें वो ले गई। उनकी आवाज़ें।”
    साक्षी ने चारों ओर देखा।
    मकान बदल गया था।

    दीवारों पर लगे चित्र अब अलग चेहरे दिखा रहे थे।
    हवा में दर्द था।
    “हम कहाँ हैं?”
    “हम अब इस समय में नहीं हैं,” रणविजय बोला।

    “क्या मतलब?”
    “वो हमें अतीत में खींच लाई है। अपने अतीत में।”
    साक्षी चौंक गई।
    पर सब कुछ बदल चुका था।

    सामने एक विशाल हॉल दिखाई दिया।
    अंदर लोग थे।
    सभी नाच रहे थे।
    सभी मृत थे।

    उनकी आँखें खाली थीं।
    मुस्कानें मृतप्राय।
    “ये क्या है?”
    “आर्या की स्मृति,” रणविजय ने कहा।

    आर्या प्रवेश करती है—लाल पोशाक में, रक्त की तरह चमकदार।
    वो सीधा साक्षी को देखती है।
    और मुस्कराती है।

    “क्या वो हमें देख सकती है?”
    “उसने ही ये सब बनाया है। हमें तोड़ने के लिए।”
    संगीत बंद हो जाता है।
    आर्या हाथ उठाती है।

    नर्तक रणविजय की ओर मुड़ते हैं।
    उनके मुँह खुलते हैं—लेकिन कोई आवाज़ नहीं निकलती।
    साक्षी तलवार उठा लेती है।
    रणविजय तैयार हो जाता है।

    वे लड़ते हैं—स्मृतियों से, अपराधबोध से।
    हर वार एक भ्रम तोड़ता है।
    आख़िरकार, नर्तक मिट्टी में बदल जाते हैं।
    हॉल विलीन हो जाता है।

    अब वे शून्य में खड़े हैं।
    आर्या की आवाज़ फिर आती है—
    “तुम अपने आप से भाग नहीं सकते।”
    साक्षी चीखती है, “तो मुझे बताओ मैं हूँ कौन!”

    एक दर्पण प्रकट होता है।
    उसमें वही—साक्षी—किंतु दाँतों के साथ।
    रणविजय उसे अपनी बाहों में भर लेता है।
    “वो तुम नहीं हो।”
    “अगर मैं वही बन गई तो?”
    “तो भी मैं तुमसे प्रेम करता रहूँगा।”

    प्रकाश फूटता है।
    शून्य टूटता है।
    वे लौटते हैं—वापस अपने समय में।

    वे हाँफ रहे हैं।
    एक-दूसरे से लिपटे हुए।
    तलवार उनके बीच पड़ी है—अब गर्म।
    साक्षी की त्वचा मंद रूप से चमक रही है।

    उसकी नसों में प्रकाश बह रहा है।
    रणविजय उसे और कसकर थाम लेता है।
    “तुम बदल रही हो।”
    साक्षी सिर हिलाती है।
    “मैं नहीं जानती क्या बन रही हूँ।”
    “तो हम मिलकर जानेंगे।”

    क्या आर्या ने सच में साक्षी और रणविजय को अतीत में फँसा दिया था, या यह महज एक मानसिक भ्रम था?

    साक्षी के भीतर जो शक्ति जाग रही है, क्या वह उसे वैंपायर में बदल रही है या कुछ और अलौकिक बना रही है?

    Soulfang तलवार साक्षी से क्यों जुड़ी है? क्या वह भी साक्षी की तरह कोई शापित आत्मा है?

    क्या रणविजय अपने अंदर की आवाज़ों से उबर पाएगा, या अतीत का पाप उसे पूरी तरह निगल लेगा?

    आर्या का अगला कदम क्या होगा? क्या वो साक्षी के ज़रिए किसी पुराने दानव को जगाना चाहती है?

  • 8. Vampire's innocent love - Chapter 8

    Words: 1191

    Estimated Reading Time: 8 min

    चाँदनी रात में चाँद की रौशनी बादलों पर सिल्वर खून की तरह बह रही थी।
    साक्षी खिड़की के पास बैठी थी, उसकी उंगलियाँ हल्के-हल्के काँप रही थीं।
    उसके भीतर अब कुछ बदल गया था — कुछ अपरिचित, शक्तिशाली और अनियंत्रित।
    वो भीतर ही भीतर कुछ जागता महसूस कर रही थी, जैसे कोई पशु उसकी पसलियों के पीछे सोया हो।
    वो अब भी उस दुनिया की गूँज महसूस कर पा रही थी जहाँ मृत आत्माएँ नाचती थीं और आर्या राज करती थी।

    रणविजय एक कोने से उसे देख रहा था, उसकी नज़रें चिंता और जिज्ञासा से भरी थीं।
    जब से वो लौटे थे, साक्षी ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा था।
    पर ये चुप्पी खालीपन की नहीं थी — यह परिवर्तन की थी।
    उसके भीतर कुछ बदल रहा था, और रणविजय हर धड़कन में वो बदलाव महसूस कर सकता था, जो उसकी नहीं थी।
    वो धीरे-धीरे उसके पास आया, जैसे कोई मंत्र ना टूट जाए।

    “साक्षी,” उसने नरम स्वर में कहा, उसकी आवाज़ जैसे धुंध को चीरती हुई।
    साक्षी ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
    “मैंने सब कुछ देखा,” उसने फुसफुसाया।
    रणविजय ने सिर हिलाया, “मुझे पता है।”
    “क्या वो सब सच था?”
    वो रुका। “वो आर्या की दुनिया थी। यादों और दुःस्वप्नों से बनी। लेकिन तुम उसमें सच थीं।”

    साक्षी ने अपनी हथेलियों को देखा। “फिर ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैंने कुछ पीछे छोड़ दिया?”
    “क्योंकि तुमने छोड़ा है,” रणविजय ने कहा। “तुम्हारे ही टुकड़े — जिन्हें तुम जानती भी नहीं थीं।”
    उसकी हथेलियाँ मुट्ठियों में बदल गईं। “वो कह रही थी कि मैं एक चाबी हूँ।”
    “वो झूठ बोलती है,” उसने कहा, पर उसकी आवाज़ में संदेह छिपा था।
    साक्षी ने महसूस किया और पूछा, “तुम सोचते हो कि मैं कुछ और हूँ?”

    रणविजय ने धीरे से कहा, “मुझे लगता है… तुम कभी साधारण नहीं थीं।”
    हवा और ठंडी हो गई।
    एक कौआ खिड़की के बाहर चीखा — उसकी आवाज़ जैसे किसी कैद आत्मा की हो।
    साक्षी काँप उठी।
    “क्या मैं तुम्हारी तरह बन जाऊँगी?” उसने पूछा।

    उसका जबड़ा कस गया। “मुझे नहीं पता।”
    “पर तुम भी तो बदले थे?”
    “मुझे लिया गया था,” उसने कहा। “तुम्हें… चुना गया है।”
    “किसके द्वारा?”
    “रक्त, श्राप या किसी और प्राचीन चीज़ के द्वारा — मैं अभी नहीं जानता।”

    वो उठी और कमरे से बाहर निकल पड़ी, जहाँ दीवारों पर दीए जल रहे थे।
    हर छाया उसकी ओर झुकती सी लग रही थी।
    घर में चलती हुई वो उसकी साँसों की लय के साथ धड़कता महसूस कर रही थी।
    “ये दीवारें याद रखती हैं,” उसने बुदबुदाया।
    रणविजय उसके पीछे-पीछे आया। “ये जगह उन सबकी है जो हमसे पहले आए थे।”

    भोजन कक्ष में एक टेढ़ा आइना लटका था।
    साक्षी उसके सामने रुकी।
    आइने में उसका प्रतिबिंब उसकी तुलना में धीमे झपका।
    वो पीछे हटी, घबरा गई।
    रणविजय तुरंत उसके पास आ गया।

    “शुरू हो गया है,” उसने गंभीरता से कहा।
    “क्या?”
    “विघटन।”
    “किसका?”
    “सच का।”

    अचानक आइना भीतर की ओर चकनाचूर हो गया — जैसे किसी ने उसे अंदर से खींच लिया हो।
    एक चीख गूँजी — न इंसानी थी, न पशु की।
    साक्षी ने रणविजय का हाथ पकड़ा, उसके नाखून उसकी त्वचा में धँस गए।
    “मैंने महसूस किया,” उसने कहा। “कुछ आ रहा है।”
    “और वो तुम्हारा नाम जानता है,” रणविजय ने कहा।

    बिजली चमकी, जिससे दीवारों पर हड्डियों जैसे चित्र बन गए।
    रणविजय ने उसे खींचा।
    “हमें इस कमरे से निकलना होगा,” उसने कहा।
    “पर हम जाएँगे कहाँ? अँधेरा तो हर जगह है।”
    “कब्रगृह में,” उसने फुसफुसाया।

    वे महल के नीचे बने प्राचीन तहखाने की ओर बढ़े।
    ठंडी हवा उनके पैरों को जकड़ने लगी जैसे मरे हुए उन्हें छू रहे हों।
    दीए अपने आप जलने लगे — जैसे कोई उन्हें रास्ता दिखा रहा हो।
    दीवारों पर पुराने अक्षरों में शिलालेख थे — ऐसी भाषा जिसे साक्षी नहीं जानती थी, फिर भी समझ पा रही थी।
    “रक्त याद रखता है,” उसने कहा।

    रणविजय ने डर से उसकी ओर देखा।
    “तुम पढ़ सकती हो?”
    “हाँ। ऐसा लग रहा है जैसे… कोई मुझे पुकार रहा है।”
    वे एक भारी दरवाजे के सामने रुके।
    उस पर एक चिन्ह उभरा हुआ था — आधा सूरज, आधा दाँत।

    साक्षी ने हाथ बढ़ाया।
    पत्थर में जैसे दिल धड़कने लगा।
    दरवाज़ा धीमी आवाज़ में खुला।
    उसके पीछे सीढ़ियाँ थीं जो नीचे जाती थीं — धरती की गहराई से भी परे।
    रणविजय रुका। “क्या तुम तैयार हो?”

    “मुझे जानना है,” उसने कहा।
    वे नीचे उतरते गए।
    हवा भारी हो गई, दर्द और शोक से भरी हुई।
    नीचे एक गोल कमरा था — बीच में रक्त से बनी एक रेखा।
    बीच में एक काले पत्थर का ताबूत था।

    “यही है,” रणविजय बोला।
    “मूल?” साक्षी ने पूछा।
    रणविजय ने सिर हिलाया।
    वे दोनों रक्तवृत्त के अंदर पहुँचे।
    ताबूत का ढक्कन खिसकने लगा।

    रणविजय साक्षी के सामने खड़ा हो गया।
    “तैयार रहो,” उसने चेताया।
    ढक्कन खुल गया।
    अंदर एक औरत लेटी थी — आँखें खुली थीं, लाल और जीवित।
    उसने मुस्कराया।

    “साक्षी,” उस औरत ने कहा।
    “तुम कौन हो?” साक्षी ने पूछा।
    “मैं वो हूँ जो तुम्हें बनना था।”
    रणविजय ने फनफनाते हुए कहा, “उससे दूर रहो।”
    पर वो औरत बिना कुछ छुए उठ खड़ी हुई।

    “मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूँ,” उसने कहा।
    “फिर तुम कौन हो?”
    “मैं रक्त की पहली बेटी हूँ। और यह अंतिम है।”
    रणविजय घबराया। “नहीं… ये संभव नहीं।”
    साक्षी ने बुदबुदाया, “ये क्या कह रही है?”

    “तुम अंत भी हो और आरंभ भी,” औरत ने कहा।
    “तुममें ही श्राप खत्म होगा… या फिर फिर से जन्म लेगा।”
    “मैंने ये सब नहीं चाहा,” साक्षी कांपते हुए बोली।
    “पर तुम्हारे रक्त ने चाहा,” उस औरत ने कहा।
    “क्यों मैं?”

    “क्योंकि तुम्हारी माँ ने रहस्य छिपाया था, और तुम्हारे पिता ने कीमत चुकाई थी।”
    साक्षी थम गई। “तुमने क्या कहा?”
    “तुम कभी पूरी तरह इंसान नहीं थीं।”
    रणविजय ने उसका हाथ थामा। “उसकी बात मत सुनो।”
    पर साक्षी के मन में तूफान था।

    दृश्य उमड़ने लगे — आग, दाँत और विश्वासघात।
    उसके माता-पिता की चीखें, और एक अंधेरे सौदे की झलक।
    “मुझे बाहर निकलना है,” वो हाँफते हुए बोली।
    कमरा काँपने लगा।
    औरत धुँए में बदल गई।

    रणविजय ने उसे खींचा और कमरे से बाहर निकल आए।
    कब्रगृह अपने आप बंद हो गया।
    महल के गलियारे में साक्षी उसकी बाहों में गिर पड़ी।
    “अब मैं नहीं जानती कि मैं कौन हूँ।”
    “तुम मेरी हो,” उसने दृढ़ता से कहा।

    साक्षी ने उसकी आँखों में देखा।
    “मुझे डर लग रहा है।”
    “मुझे भी,” उसने स्वीकार किया।
    “पर अब हम साथ हैं।”
    साक्षी ने धीरे से सिर हिलाया।

    बाहर हवा में एक अनजाना नाम गूँज उठा।
    रात और भी भूखी हो गई थी।
    और धरती के नीचे कुछ अब भी जाग रहा था।
    देख रहा था।
    इंतज़ार कर रहा था।


    वह रहस्यमयी स्त्री कौन थी जो खुद को "रक्त की पहली बेटी" कह रही थी?

    साक्षी की रक्तरेखा में छिपा हुआ वह कौन-सा भयावह सच है?

    क्यों साक्षी को आग, विश्वासघात और श्रापित सौदे की यादें दिखाई गईं?

    क्या रणविजय अब भी कुछ छिपा रहा है साक्षी से?

    अगर वह बंद ताबूत फिर से खुला तो उसके नीचे क्या भयावहता छुपी है?

    क्या प्रेम उस समय भी जीवित रह सकता है, जब अतीत वर्तमान में लहूलुहान हो रहा हो?

    और वह प्राचीन शक्ति कौन है जिसने साक्षी का नाम पुकारा — और अब उसे बुला रही है?

  • 9. Vampire's innocent love - Chapter 9

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

    चाँद बादलों की चादर के पीछे खो गया था, जिससे दुनिया पर एक रहस्यमयी चाँदी जैसी आभा फैली हुई थी।
    बारिश हलके से खिड़कियों पर टपक रही थी, जैसे कोई भूतिया हाथ प्रवेश करने की कोशिश कर रहा हो।
    अंदर, सन्नाटा गहरा था, जो केवल चूल्हे की आग की आवाज और एक भूले हुए घंटे की ध्वनि से टूटता था।
    साक्षी वेलवेट के सोफे पर सिमटी बैठी थी, एक शॉल में लिपटी हुई, जो अंदर के सर्दी को नहीं दूर कर पा रही थी।
    उसके हाथ काँप रहे थे, ठंड से नहीं, बल्कि जो उसने सीखा था, उसके भार से।

    रणविजय आग के पास खड़ा था, एक हाथ चिमनी पर रखा था, आँखें लपटों में खोई हुई थीं।
    वे दोनों काताकॉम्ब्स से लौटने के बाद ज्यादा नहीं बोले थे।
    वह स्त्री, जो ताबूत में थी, ने उसे भी हिला दिया था, वह अमर जो कुछ भी नहीं डरता।
    साक्षी ने सबसे पहले आवाज़ दी, "वह मुझे मेरा नाम बिना कहे जानती थी।"
    उसने देखा और उसकी आँखों में अंधेरा था। "क्योंकि वह हमेशा से तुम्हें जानती है।"

    "यह कैसे मुमकिन है?"
    "क्योंकि रक्त वह याद रखता है, जो याददाश्त भूल जाती है।"
    साक्षी फिर से काँपी। "मैंने दृष्टियाँ देखीं। मेरे माता-पिता की। दर्द की।"
    रणविजय पास आया। "वह सपने नहीं थे। वह सच थे, जो बहुत गहरे दफन थे।"
    "मैं उन पर विश्वास नहीं करना चाहती," उसने स्वीकार किया।

    "फिर मुझे उन पर विश्वास करने दो," उसने धीरे से कहा।
    वह उसके सामने घुटनों के बल बैठा, उसके ठंडे हाथों को अपने गर्म हाथों में लिया।
    "तुम इस सब में अकेली नहीं हो।"
    उसकी आँखों में आँसू थे। "लेकिन अगर मैं उस जैसी बन जाऊं? खोखली और बदला लेने वाली?"
    "तुम ऐसा नहीं होगी," उसने दृढ़ता से कहा। "क्योंकि तुम्हारा दिल अब भी तुम्हारा है।"

    तभी एक हल्का सी आवाज़ गूँजी।
    दोनों मुड़े, सचेत हो गए।
    पूरब के पंखे का दरवाज़ा, जो सालों से नहीं खुला था, अब थोड़ा सा खुला था।
    रणविजय तुरंत खड़ा हुआ। "यहाँ रुको," उसने आदेश दिया।
    लेकिन साक्षी भी उठ खड़ी हुई। "नहीं। मुझे जानना है कि वहां क्या छुपा है।"

    वह हिचकते हुए फिर भी हां कहा।
    वे दोनों अंधेरे गलियारे में कदम रखते हैं, हवा में उम्र और रहस्यों की गंध है।
    छत पर मकड़ी के जाले थे, जैसे भूतिया परदे लटक रहे हों।
    दीवारों पर लगी चित्रकलाएँ उन्हें देखती लग रही थीं, उनकी आँखें हल्की सी चमक रही थीं।
    साक्षी का दिल हर कदम के साथ जोर-जोर से धड़क रहा था।

    गलियारे के अंत में एक दरवाज़ा था, जो काले लकड़ी और लोहे से बना था।
    उस पर वही आधा सूर्य, आधा दांत वाला प्रतीक था, जैसा ताबूत पर था।
    वह उसे रोकने से पहले ही पहुँच गई, दरवाजा खोला।
    अंदर एक पुस्तकालय था, जहाँ ठंडे नीले दीपक लटक रहे थे।
    कमरा पुराने कागज और सूखे गुलाबों की महक से भरा था।

    संग्रहालय में किताबों की कतारें थीं, कुछ चमड़े में बंधी हुई थीं, तो कुछ साए में।
    केंद्र में एक पलंग पर एक काला जर्नल रखा था।
    साक्षी खींची चली गई, जैसे वह उस पर मोहित हो।
    वह पुस्तक उसके उंगलियों के नीचे धड़क रही थी, जैसे जीवित हो।
    रणविजय ने कहा, "वह उसकी डायरी है। पहली बेटी की।"

    वह इसे खोलने से रोकने से पहले ही वह इसे खोल चुकी थी।
    स्याही पन्नों पर इस तरह घुम रही थी जैसे वे नसें हों, शब्दों का रूप ले रही थी, जो सिर्फ वह पढ़ सकती थी।
    उसने झटका खाया। "यह मुझसे बात कर रही है।"
    "क्या कह रही है?"
    "कि मैं उसकी उत्तराधिकारी हूँ।"

    रणविजय का चेहरा सफेद पड़ गया। "नहीं।"
    साक्षी ने उसकी ओर देखा, "इसका मतलब क्या है?"
    "इसका मतलब है कि उसने तुम्हें चिह्नित किया है। हम दोनों से मिलने से पहले।"
    "यह मुमकिन नहीं है।"
    "वह भविष्य से भी पुरानी है। मौत से भी पुरानी।"

    दीपक बेतहाशा टिमटिमाने लगे।
    साए कमरे में इधर-उधर घूमने लगे।
    एक आवाज़ गूँजी, कहीं से और हर जगह से: "आओ, बच्ची। वह सब अपनाओ, जो तुम हो।"
    साक्षी ने पुस्तक गिरा दी।
    रणविजय ने उसे पकड़ लिया, लेकिन यह बहुत देर हो चुकी थी।

    रक्त फर्श से रिसने लगा, रूपरेखा बनाने के लिए।
    साक्षी का शरीर हवा में तैरने लगा, उसकी आँखें खुली, होंठ चुपचाप आश्चर्य में थे।
    वह डर नहीं रही थी।
    वह महसूस कर रही थी... शक्ति।
    पूर्णता।

    "रणविजय," उसने फुसफुसाया। "मैं सब कुछ महसूस कर सकती हूँ।"
    वह उसके पास आया। "मेरे पास वापस आओ।"
    लेकिन वह ऊपर उड़ी रही थी, उसकी आँखों में गहरी चमक थी।
    "मैं कुंजी हूँ। मैं हमेशा से थी।"
    "नहीं," वह गुस्से में बोला, "तुम उससे अधिक हो।"

    आसपास आकाश फटने की आवाज आई।
    दीवारों के माध्यम से कंपन हुआ।
    एक आवाज़ गूँजी, "रक्त से पहले। सच से पहले।"
    उसकी आँखें चौड़ी हो गईं।
    यह प्राचीनों की भाषा थी — सदी भर से मृत।
    वह इसे वैसे बोल रही थी जैसे वह इसके लिए जन्मी हो।
    "तुम कौन हो?" वह फुसफुसाया।

    साक्षी ने अपनी आँखें खोलीं।
    वे अब भी उसकी थीं, लेकिन गहरी थीं — जिसमें सदियाँ झाँक रही थीं।
    "मुझे लगता है कि मैं हमेशा कोई और थी," उसने धीरे से कहा।
    "लेकिन मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।"
    रणविजय ने उसके गाल को छुआ। "तो लड़ो।"

    "मैं लड़ूंगी," उसने वादा किया।
    लेकिन रात उन्हें और परीक्षण देने वाली थी।
    आगमन की आवाज़ गेट्स पर गूँजी।
    तीन बार। धीरे-धीरे। खाली।
    रणविजय ठहर गया।

    "कोई भी इस संपत्ति में प्रवेश नहीं कर सकता।"
    साक्षी उठी। "तो वह कौन है?"
    वह एक छुरा खींचता है, उसका ब्लेड ऊँची ध्वनि करता है।
    वे दोनों दरवाजे की ओर बढ़ते हैं, साए उनके चारों ओर घूम रहे थे।
    उसने दरवाजा खोला।

    एक युवक खड़ा था, बारिश में भीगता हुआ।
    उसकी आँखें चांदी की थीं।
    वह झुका। "मेरा नाम आरव है।"
    "मैं आदेश द्वारा भेजा गया हूँ।"
    रणविजय का हाथ छुरे पर कस गया।

    "कौन सा आदेश?"
    "क्रिमसन सर्कल," आरव ने कहा, महल में प्रवेश करते हुए।
    "वे लड़की को चाहते हैं।"
    साक्षी रणविजय के पीछे छिप गई, उसकी हर इंटिंक्ट चेतावनी दे रही थी।
    "और अगर हम मना करते हैं?" रणविजय ने पूछा।

    "तो दुनिया जल जाएगी," आरव ने बर्फीले तरीके से जवाब दिया।
    उसके दांत चमके।
    वह इंसान नहीं था।
    और वह अकेला नहीं था।
    साए बाहर से आए, काले चादरों में लिपटे, शांत और प्राचीन।

    वे साक्षी को नमन करते हुए झुके।
    रणविजय ने ब्लेड को और कस लिया।
    "वे शत्रु नहीं हैं?"
    "वे रक्त के सेवक हैं," आरव ने उत्तर दिया।
    "वे अपनी रानी का इंतजार कर रहे हैं।"

    साक्षी का श्वास रुक गया।
    "मैं कोई रानी नहीं हूँ।"
    "तुम बनोगी," आरव ने कहा।
    "या तुम हम सभी के अंत बनोगी।"

    आग मंद हो गई।
    रणविजय ने उसे देखा, उसकी आँखों में दर्द था।
    "साक्षी, ध्यान से चुनो।"

    उसने उसकी ओर मुड़ते हुए कहा, "मैं कभी भी यह नहीं चाहती थी।"
    "लेकिन यह तुम्हें चाहती है," उसने कहा।
    बाहर आंधी और भी तेज हो गई।
    और महल वह सामना करने के लिए तैयार था, जो अब आने वाला था।

    1. क्रिमसन सर्कल का असली उद्देश्य क्या है, और साक्षी का उनके साथ क्या संबंध है?


    2. क्या साक्षी अपने अनजान भविष्य से लड़ पाएगी, या उसे अपनाएगी?


    3. रणविजय आरव की उपस्थिति और उसके भयानक संदेश पर कैसे प्रतिक्रिया देगा?


    4. महल की दीवारों में छुपी हुई प्राचीन शक्तियाँ क्या हैं, और वे साक्षी और रणविजय के भविष्य को कैसे प्रभावित करेंगी?


    5. क्या रणविजय साक्षी को अंधेरे शक्तियों से बचा पाएगा, या वह बहुत देर कर चुका है?

  • 10. Vampire's innocent love - Chapter 10

    Words: 1360

    Estimated Reading Time: 9 min

    बारिश ने धरती को दुःख की बपतिस्मा की तरह भिगो दिया था, और हवाएँ मरते हुए पेड़ों के बीच शोकगीत गा रही थीं।

    साक्षी, हवेली के दरवाजे पर खड़ी थी, उसकी आँखें आरव की चाँदी जैसी आँखों में गड़ी हुई थीं।

    वह उस पर विश्वास नहीं करती थी—लेकिन उसकी उपस्थिति में कुछ ऐसा था जो अविश्वसनीय रूप से परिचित सा लगता था।

    रणविजय का हाथ अब भी उस रून-खुदे खंजर के चारों ओर कसकर लपेटा हुआ था, मांसपेशियाँ तनी हुई, जबड़ा जकड़ा हुआ था।

    आरव का चेहरा शांत था, लेकिन उन आँखों के पीछे एक तूफान पनप रहा था।

    "तुमने कहा था कि आदेश ने तुम्हें भेजा है," रणविजय ने कहा, उसके और साक्षी के बीच खड़ा होते हुए।

    "हां," आरव ने उत्तर दिया, "लेकिन उसे नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं। मैं उसे मार्गदर्शन देने आया हूँ।"

    "मार्गदर्शन किस ओर?" साक्षी ने पूछा, उसकी आवाज़ शांत लेकिन तीव्र थी।

    आरव के होंठ थोड़ा से मुड़े। "उसी ओर, जिस ओर वह जन्मी है।"

    "मैं इंसान पैदा हुई थी," उसने झुंझलाते हुए कहा।

    आरव ने अपना सिर हल्का झुका लिया। "क्या तुम इंसान पैदा हुई थी? या तुम भ्रमों में ढकी हुई पैदा हुई हो?"

    आकाश में बिजली कड़क उठी, और गलियारे में कटीली छायाएँ बन गईं।

    उसके पीछे काले-रोब पहने हुए Figures खड़े थे, जैसे भविष्यवाणी के भूत।

    रणविजय ने साक्षी को पास खींच लिया। "मैं उसे कभी भी कोई कठपुतली रानी नहीं बनने दूँगा।"

    "तुम्हारे पास शायद कोई विकल्प नहीं होगा," आरव ने धीमे से कहा।

    साक्षी ने अपने हाथों की तरफ देखा—अभी भी काँपते हुए, अभी भी उसके ही थे।

    लेकिन उसके भीतर कुछ प्राचीन जाग रहा था।

    उसने पुस्तकालय में शक्ति का स्वाद लिया था।

    उसने पहली बेटी की आवाज़ सुनी थी।

    और वह उसे अनसुना नहीं कर पाई थी।

    "तुम मुझसे क्या चाहते हो?" उसने पूछा।

    "कुछ नहीं," आरव ने कोमलता से कहा। "सब कुछ।"

    "मैं इस्तेमाल नहीं होने दूँगी।"

    "तो फिर इस्तेमाल मत होओ। राज करो।"

    साक्षी का दिल एक झटका खाया।

    "अब क्यों? क्यों मैं?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।

    "क्योंकि खून गाता है," आरव ने उत्तर दिया, "और पुराना खून कभी नहीं झूठ बोलता।"

    रणविजय ने एक कदम आगे बढ़ाया। "बस, अब और रहस्यों में नहीं।"

    लेकिन आरव बिना डगमगाए खड़ा रहा। "तुम्हारा गुस्सा वैध है, पिशाच। लेकिन तुम्हारा डर तुम्हें धोखा दे रहा है।"

    "मैं केवल उसे खोने से डरता हूँ," रणविजय ने गरजते हुए कहा।

    आरव ने उसकी आँखों में देखा। "तो फिर उसकी मदद करो। उसे उस रूप में नहीं, जैसा वह नहीं है। उसे स्वयं के रूप में।"

    उनके पीछे हवेली एक कराह के साथ जैसे विरोध कर रही थी।

    मोमबत्तियाँ हिंसक रूप से मटक रही थीं, और उनका चेहरा सुनहरे और रक्तिम रंगों में नृत्य कर रहा था।

    साक्षी ने गहरी साँस ली, जब उसने अपने पैरों के नीचे की फर्श में एक लहर महसूस की।

    कुछ जाग रहा था।

    "यह महल... यह जिंदा है," उसने फुसफुसाया।

    रणविजय ने गंभीरता से सिर हिलाया। "यह पुरानी खून को जवाब देता है।"

    आरव ने दरवाजे की चौखट को छुआ। "यह जगह एक पालना और एक कब्र है।"

    "तुम अकेले क्यों आए थे?" साक्षी ने पूछा।

    आरव की नजरें अंधेरी हो गईं। "मैं अकेला नहीं आया था।"

    बग़ीचे के साए से, और Figures ने प्रकट होना शुरू किया—काफी चुप और मास्क पहने हुए।

    उन्होंने हवेली के चारों ओर एक घेरा बना लिया।

    "द क्रिमसन सर्कल," रणविजय ने बुदबुदाया।

    "वे यहाँ क्यों हैं?"

    "गवाह बनने के लिए," आरव ने कहा।

    "गवाह बनने के लिए क्या?"

    "एक रानी का जन्म... या एक दुनिया का पतन।"

    साक्षी पीछे हटी, उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। "मैं तैयार नहीं हूँ।"

    "तुम तैयार पैदा हुई थी," आरव ने कहा। "यह दुनिया है जो तैयार नहीं है।"

    रणविजय ने गरजते हुए कहा। "यह पागलपन है।"

    "नहीं," आरव ने कहा। "यह तक़दीर है।"

    साक्षी ने रणविजय के हाथ में खंजर की ओर देखा।

    फिर आरव की खुली हथेलियों की ओर।

    दो रास्ते।

    दो सत्य।

    उसने गहरी साँस ली। "क्या होगा अगर मैं इनमें से कोई भी रास्ता नहीं चुनूँ?"

    आरव ने उदास मुस्कान के साथ कहा। "तो फिर सभी रास्ते जल जाएँगे।"

    "क्या यह धमकी है?"

    "यह एक भविष्यवाणी है।"

    रणविजय ने अपने हाथ कसकर भींचे। "भविष्यवाणियाँ तो टूटी जा सकती हैं।"

    आरव ने साक्षी की ओर मुड़ा। "क्या तुम इसे तोड़ना चाहोगी?"

    "मुझे नहीं पता," उसने फुसफुसाया।

    "तो फिर मेरे साथ चलो। सिर्फ़ आज रात के लिए। देखो जो मैं देखता हूँ।"

    रणविजय उसके सामने खड़ा हो गया। "वह कहीं नहीं जाएगी।"

    लेकिन साक्षी ने उसके हाथ को छुआ।

    "मुझे यह जानने की जरूरत है कि मैं कौन हूँ," उसने कहा।

    "तुम साक्षी हो," उसने whispered, आँखों में दर्द था।

    "हाँ... लेकिन शायद कुछ ज्यादा।"

    वह दूर देखता है, उसकी चेहरे पर पीड़ा स्पष्ट थी।

    "मैं वापस आऊँगी," उसने वादा किया।

    आरव ने अपना हाथ बढ़ाया।

    उसने उसे पकड़ा।

    जब उनके त्वचा की छुअन हुई, तो आग की लहर उसके रगों में दौड़ी।

    यह दर्द नहीं था।

    पहचान थी।

    दृष्टियाँ उसकी आँखों में उफन पड़ीं—युद्ध, रक्त संस्कार, हड्डियों से बनी सिंहासन।

    वह हाँफते हुए रुक गई।

    आरव ने उसे संभाला। "यह तो बस शुरुआत है।"

    वे बारिश में बाहर निकले।

    द क्रिमसन सर्कल चुपचाप हट गया।

    रणविजय ने देखा, उसकी आँखों में तूफान था।

    वह उसे रोकना चाहता था।

    लेकिन वह जानता था—उसे यह रास्ता चलना था।

    वह मुड़ा और दीवार पर मुक्का मारा, खून ने पत्थर को लाल कर दिया।

    "वह दूर जा रही है..."

    आरव उसे गहरे जंगल में ले गया।

    रास्ता मुड़ा हुआ था, पेड़ भूल गई भाषाओं में फुसफुसा रहे थे।

    वे एक खंडहर वेदी तक पहुँचे।

    लताएँ टूटी हुई स्तंभों से लिपटी हुई थीं।

    मध्य से एक रक्तिम रोशनी निकल रही थी।

    "यह रक्त का कुंड है," आरव ने कहा।

    "साक्षी..." एक आवाज़ हवा से फुसफुसाई।

    वह मुड़ी—कोई नहीं था।

    लेकिन आवाज़ फिर से आई।

    "पियो... याद करो..."

    आरव ने गंभीरता से उसे देखा।

    "कोई तुम्हें मजबूर नहीं कर सकता। लेकिन विकल्प अब तुम्हारा है।"

    साक्षी कुंड की ओर बढ़ी।

    जो तरल था वह पानी नहीं था।

    यह गाढ़ा, काला, प्राचीन था।

    उसका प्रतिबिंब उसे वापस देख रहा था—आँखें हल्की सी चमक रही थीं।

    उसने सिर झुका लिया।

    उसके होंठ सतह को छूने लगे।

    और पूरी दुनिया गायब हो गई।

    अंधकार ने उसे निगल लिया।

    वह आईने के हॉल में खड़ी थी।

    प्रत्येक आईना उसकी एक अलग तस्वीर दिखाता था—मortal, राक्षसी, राजमुकुट वाली, मरी हुई।

    एक ने कदम बढ़ाया।

    "तुम्हें तय करना होगा कि तुम क्या बनोगी।"

    "मैं अपनी पहचान खोना नहीं चाहती," साक्षी ने कहा।

    "तुम नहीं हाँ लोगी। तुम विकसित होोगी।"

    आवाज़ उसकी चारों ओर गूंजती रही।

    "तुम आखिरी बेटी हो। पहले की ज्वाला। वह खून जो हमें सबको जोड़ता है।"

    आँसुओं ने उसकी आँखों से गिरना शुरू कर दिया।

    वह डर रही थी।

    लेकिन डर के नीचे...

    कुछ और खिल रहा था।

    संकल्प।

    उसने हाथ बढ़ाया और आईने को छुआ।

    यह चूर हो गया।

    और वह जाग उठी—हाँफते हुए—आरव की बाहों में।

    "तुमने पिया," उसने कहा।

    "मैंने याद किया," उसने फुसफुसाया।

    "तो अब यह शुरू हो चुका है।"

    साक्षी ने आकाश की ओर देखा।

    बादल हटे।

    चाँद रक्त-लाल हो गया।

    उसने इसे अपनी हड्डियों में महसूस किया—कुछ बदल चुका था।

    आरव ने सिर झुका लिया। "मेरी रानी।"

    "नहीं," उसने कहा। "अभी नहीं।"

    वे सुबह के समय हवेली लौट आए।

    रणविजय दरवाजे पर खड़ा था, आँखें खोखली थीं।

    जब उसने उसे देखा, तो राहत का एहसास उसके चेहरे पर आ गया।

    "तुम वापस आ गई हो।"

    "हाँ," उसने कहा, आवाज़ दूर।

    "तुम बदली हुई हो।"

    "तुम भी बदले हो," उसने फुसफुसाया।

    उसने उसे अपने पास खींच लिया, एक जोशीले आलिंगन में।

    "मैंने तुम्हें बहुत मिस किया।"

    "मैंने भी मुझे मिस किया," उसने कहा।

    और फिर भी, उसके भीतर...

    शक्ति जाग्रत हो रही थी।

    खून ने फुसफुसाया।

    और भविष्य सन्नाटे में नाजुक था।

    क्या साक्षी ने रक्त के कुंड में वास्तव में क्या देखा था?

    क्या आरव उसे मुक्ति की ओर ले जा रहा है या विनाश की ओर?

    क्या रणविजय उसे बचा पाएगा जैसे वह अपनी तक़दीर की ओर बढ़ रही है?

    वह कौन सी प्राचीन शक्ति है जो अब साक्षी की नसों में बह रही है—क्या इसे काबू किया जा सकता है?

    क्रिमसन सर्कल की अगली चाल क्या होगी, और वे साक्षी से क्या चाहते हैं?

    क्या पहली बेटी का जागरण केवल कुछ और भयावह की शुरुआत है?