"वो पागल सी लगने वाली आंखों में छुपा एक राज़, जो जुर्म की गहराइयों को चीर कर रख दे। पर जब मासूमियत की छुअन उसे छूती है, क्या वो दिल फिर से धड़कना सीख पाएगा?" "एक सख्तदिल पुलिसवाले का झुका हुआ सिर, और सामने वो खड़ूस डॉक्टर, जिसक... "वो पागल सी लगने वाली आंखों में छुपा एक राज़, जो जुर्म की गहराइयों को चीर कर रख दे। पर जब मासूमियत की छुअन उसे छूती है, क्या वो दिल फिर से धड़कना सीख पाएगा?" "एक सख्तदिल पुलिसवाले का झुका हुआ सिर, और सामने वो खड़ूस डॉक्टर, जिसके हर शब्द में तल्खी है। क्या इस सख्त और खड़ूस दिलों के बीच मोहब्बत पनप सकेगी?" "एक मासूम कॉलेज स्टूडेंट, और सामने वो खतरनाक किडनैपर, जिनकी नजरों में डर नहीं, सिर्फ मोहब्बत दिखाई देती है। क्या इनका प्यार समाज की दीवारें तोड़ पाएगा?" 'नाता तेरा-मेरा' तीन कहानियां, तीन अनसुने इश्क, जहां प्यार, नफरत और डर की सरहदें मिलती हैं। क्या मोहब्बत को हर बार अपनी मंज़िल मिलेगी?
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शिमला की ठंडी हवाओं के बीच एक बड़ा सा आलीशान बंगला था। उसके सबसे ऊपरी मंजिल वाले कमरे से जोर-जोर से चिल्लाने और सामानों के टूटने-फूटने की आवाज़ें आ रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल किसी पर चिल्ला रहा हो, उसे कमरे से भगाने की कोशिश कर रहा हो।
उसी बंगले के बड़े से हॉल में, एक बड़ी सी आलीशान कुर्सी पर एक शख्स अपने पैर पर पैर चढ़ाए बैठा हुआ था। इस शख्स का नाम अशोक कुमावत था, उसकी उम्र 50 साल थी और उसका व्यक्तित्व काफी रौबदार था।
अशोक उस कुर्सी पर अपने चेहरे पर चिंता भरे भाव लिए बैठा था। तभी एक इंसान चीखता-चिल्लाता उसके सामने आया।
“मुझे माफ़ कर दीजिये, लेकिन मैं आपके बेटे का इलाज नहीं कर पाऊँगा... प्लीज़ मुझे जाने दीजिये!”
कुछ गार्ड्स ने आकर उसे पकड़ लिया। वो इंसान उनसे छूटने की कोशिश करता रहा।
तभी अशोक अपनी रौबदार आवाज़ में बोला, “इसका भी वही हाल करो जो यहाँ आए बाकी डॉक्टर्स का किया है।”
उसने अपने गार्ड्स को ऑर्डर दिया। वो लोग उस इंसान, जो कि एक डॉक्टर था, को पकड़कर ले गए। वो छूटने के लिए चिल्लाता रहा।
“मुझे अपने परिवार के पास जाना है, छोड़ दीजिये मुझे...”
वो चिल्लाता रहा, लेकिन किसी ने उसकी चीत्कार पर कोई ध्यान नहीं दिया। गार्ड्स उसे बेरहमी से पकड़कर वहाँ से ले गए।
अशोक के पास खड़ा उसका सेक्रेटरी कार्तिक बोला, “सर, ये दसवाँ डॉक्टर है जो रुद्रांश का इलाज नहीं कर पाया। आप कब तक इन डॉक्टर्स को सज़ा देते रहेंगे?”
“तब तक जब तक ऐसा कोई डॉक्टर नहीं मिल जाता जो रुद्रांश को ठीक कर सके,” अशोक ने शांत लहजे में कहा।
कार्तिक फिर से कहने लगा, “अगर ऐसा कोई डॉक्टर मिला ही नहीं तो?”
ये सुनकर अशोक ने अपनी तीखी नज़रों से उसे देखा और अपनी सख्त आवाज़ में कहने लगा, “तुम किसलिए हो? तुम्हें मैंने मुफ़्त की रोटी खाने के लिए नहीं रखा है। तुम्हारा काम है ऐसा डॉक्टर ढूँढकर लाना जो मेरे बेटे रुद्रांश का इलाज कर सके, उसे ठीक कर सके, अण्डरस्टैण्ड!”
ये कहकर वो अपनी कुर्सी से उठा और अपने रूम की तरफ़ चला गया।
पीछे खड़ा कार्तिक मन ही मन बोला, “साला खूँखार बुड्ढा! समझता क्या है ये अपने आप को, इसकी नौकरी करता हूँ तो रौब जमाता है और अब इसके पागल बेटे के लिए डॉक्टर भी ढूँढूँ! हुहं... बोलकर तो ऐसे गया है जैसे डॉक्टर नहीं, लाइफ़ पार्टनर ढूँढना हो।”
कार्तिक मन ही मन अशोक को कोस रहा था। कार्तिक की उम्र 26 साल थी। पहले इसके पिता दिवाकर अशोक के सेक्रेटरी थे, लेकिन उनकी मौत के बाद अशोक ने इसे सेक्रेटरी बना लिया था। दिवाकर काफी वफ़ादार था, लेकिन ये कार्तिक थोड़ा अलग ही मिजाज का था। अशोक के सामने तो उसकी चापलूसी करता था, लेकिन पीठ पीछे उसे कोसता रहता था और सबसे ज़्यादा उसके पागल बेटे रुद्रांश को।
उस बंगले के सबसे ऊपरी मंजिल के सबसे आखिरी वाले कमरे में रुद्रांश खिड़की के सामने लगी टेबल पर आलथी-पालथी मारकर बैठा खुले आकाश की तरफ़ देख रहा था। उसका चेहरा एकदम शांत था। शिमला की ठंडी हवाओं को वो अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था।
तभी किसी ने उसके कमरे का दरवाज़ा धीरे से खोला और उसका खाना अंदर सरका दिया। कोई भी डर के मारे उसके कमरे में आने की हिम्मत नहीं करता था। रुद्रांश ने एक नज़र उस खाने की ओर देखा, फिर ज़्यादा ध्यान ना देते हुए फिर से उस खुले आकाश की ओर देखने लगा।
रुद्रांश की उम्र 27 साल थी। दो महीने पहले उसका एक्सीडेंट हुआ था जिसमें उसकी दिमागी हालत ख़राब हो गई थी। इसके पिता अशोक नहीं चाहते थे कि उनके बेटे का इलाज किसी पागलखाने में हो, इसलिए उन्होंने अपने बंगले में ही वो हर सुविधा उपलब्ध करवाई थी जिससे रुद्रांश का इलाज किया जा सके। लेकिन जो भी डॉक्टर उसका इलाज करने आता, वो एक दिन भी नहीं टिक पाता था। रुद्रांश का रौद्र रूप देखकर हर डॉक्टर यहाँ से डरकर भाग जाता था।
नहीं, गलत कह दिया मैंने, वो भाग भी नहीं पाता था, बल्कि अशोक के ऑर्डर पर उसे यहीं बंद करके रख लिया जाता था ताकि बाहरी दुनियाँ उसके बेटे के इस पागलपन के बारे में ना जान सके। अब ऐसा क्यों था, ये तो आगे कहानी में पता चलेगा।
इधर, एक फ्लाइट लंदन से इंडिया जा रही थी। उसमें एक 26 साल का खूबसूरत नौजवान बैठा था। वो एक मैगज़ीन पढ़ रहा था। उसके बगल में कोई 55 साल का शख्स बैठा हुआ था। उस शख्स ने जब उस नौजवान को देखा तो वो उससे बोला, “तुम शायद अनंत गुप्ता हो, है ना!”
अनंत ने अपने चेहरे के सामने से वो मैगज़ीन हटाकर उस शख्स को देखा और मुस्कुराकर बोला, “यस, लेकिन आप मुझे कैसे जानते हैं?”
“आई एम इंद्रजीत शेखावत!” ये कहकर उस शख्स ने अनंत से हाथ मिलाया और बोला, “तुम वही अनंत गुप्ता हो ना जो नीट के एग्ज़ाम में ऑल इंडिया में फर्स्ट रैंक पर आए थे?”
“जी हाँ, मैं वही अनंत गुप्ता हूँ। उसके बाद मैं अपनी एमडी की पढ़ाई के लिए लंदन आ गया था और आज एक साइकैट्रिस्ट बनकर वापस इंडिया जा रहा हूँ,” अनंत ने कहा।
इंद्रजीत मुस्कुराते हुए बोला, “अच्छा, तो तुम अपने देश में अपनी सेवाएँ देना चाहते हो।”
“जी हाँ, बिल्कुल सही समझा आपने। और इसके अलावा भी मेरा कुछ पर्सनल रीज़न है। वैसे आप क्या करते हैं?” अनंत ने उनसे पूछा।
“मैं तो एक बिज़नेस मैन हूँ। इंडिया में मेरे कई बिज़नेस हैं,” इंद्रजीत ने कहा।
“तो फिर आप लंदन में भी अपना बिज़नेस एस्टेब्लिश करने आए होंगे?” अनंत ने उससे पूछा। इंद्रजीत हँसते हुए बोला, “नो मि. अनंत, मैं तो यहाँ बस अपने एक दोस्त के बेटे की शादी में शामिल होने आया था।”
“ओके!” ये कहकर अनंत ने मैगज़ीन रखी और आराम से बैठ गया। तभी इंद्रजीत फिर बोला, “वैसे क्या मैं जान सकता हूँ कि तुम्हारा इंडिया जाने का पर्सनल रीज़न क्या है?”
ये सुनकर अनंत ने उसकी ओर देखा। इंद्रजीत कहने लगा, “एज़ योर विश। अगर तुम बताना चाहो तो, वरना मैं कोई प्रेशर नहीं डाल रहा।”
ये सुनकर अनंत मुस्कुराकर कहने लगा, “जी, मेरा एक छोटा भाई है और हम दोनों का एक-दूसरे के अलावा कोई नहीं है। हाँ, एक बड़े भैया भी हैं जो शिमला के ही एक हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट हैं। जिनके डैड ने हम दोनों भाइयों को पाल-पोसकर बड़ा किया था। लेकिन उनकी डेथ के बाद हम दोनों फिर से अनाथ हो गए और हमारे साथ-साथ हमारे बड़े भैया भी।”
इंद्रजीत अनंत की बातों को बड़े ही ध्यान से सुनता रहा। कितना सीधा और सरल व्यक्तित्व था अनंत का, चेहरे पर गज़ब का आकर्षण और उसकी बातों से ही पता चलता था कि उसके लिए उसका फ़र्ज़ और उसके भाई कितना महत्व रखते हैं।
इंद्रजीत और अनंत ऐसे ही बातें करते रहे और कुछ समय बाद फ्लाइट शिमला के जुब्बरहट्टी एयरपोर्ट पर लैंड हो गई।
जारी है......
अनंत अपना सामान लेकर एयरपोर्ट से बाहर निकला। उसने इधर-उधर देखा। तभी सामने से किसी ने आवाज दी, "इधर-उधर कहाँ देख रहा है पागल डॉक्टर! जरा सामने देख।"
अनंत ने सामने देखा। वहाँ लगभग 30 साल का एक लड़का खड़ा था। उसे देख अनंत खुश होकर बोला, "शान्तनु भैया!" यह कहकर वह उसके गले लग गया।
शान्तनु ने भी उसे कसकर गले लगा लिया। फिर उसे दूर करते हुए, उसे नीचे से ऊपर तक देखते हुए बोला, "तू तो काफी हैंडसम डॉक्टर है यार! जिसे देखकर तो कोई भी पागल हो जाएगा, फिर कहाँ तक इलाज करेगा उनका?" उसने मजाकिया लहजे में कहा। यह सुनकर अनंत मुस्कुरा उठा और कहने लगा, "आप चिंता मत करो। यह मेरी प्रॉब्लम है, और मैं तो फिर भी दिमाग से खेलकर दिल को टटोलता हूँ। आप तो सीधा दिल पर ही वार करते हो।"
यह सुनकर शान्तनु हँस दिया और कहने लगा, "अरे इतना बड़ा कॉम्प्लिमेंट मत दे मुझे! और वैसे भी, लोगों के दिलों पर वार करना ही मेरा पेशा है।"
समझ तो गए होंगे कि शान्तनु ऐसा क्यों कह रहा है; क्योंकि वह एक कार्डियोलॉजिस्ट है, यानी दिल का डॉक्टर। शान्तनु का स्वभाव अपने भाइयों के लिए अलग है, और बाकियों के लिए अलग।
तभी अनंत शान्तनु से पूछने लगा, "वैसे आपने नील को बताया तो नहीं ना कि मैं आज आ रहा हूँ?"
"नो डियर ब्रदर। मैंने उसे तेरे आने के बारे में कुछ नहीं बताया।" शान्तनु ने ना में सिर हिलाकर कहा। यह सुनकर अनंत मुस्कुराते हुए बोला, "ओके! अब मैं पहले उसके हॉस्टल जाऊँगा और उसे सरप्राइज़ दूँगा।"
"ठीक है। दे देना सरप्राइज़, लेकिन अभी तो घर चल।" शान्तनु ने कहा। तो अनंत कहने लगा, "नहीं भैया, पहले मैं नील के पास ही जाऊँगा।"
"ठीक है। जैसी तेरी इच्छा।" यह कहते हुए शान्तनु उसे अपनी कार की तरफ ले गया। फिर अपने ड्राइवर से कहकर अनंत का सामान कार में रखवाने लगा।
इधर इंद्रजीत भी अपना सामान लेकर बाहर आया। तभी उसकी नज़र एक पुलिस जीप पर पड़ी। वहाँ एक पुलिस ऑफिसर किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। उसकी उम्र लगभग 28 साल होगी। उसे देख इंद्रजीत थोड़ा असमंजस में पड़ गए। फिर कुछ सोचते हुए उसकी तरफ जाने लगे।
जब वह उसके पास आए, तो उन्हें देखकर उस पुलिस ऑफिसर ने अपने फ़ोन पर बात करते हुए कहा, "ओके! बाद में बात करता हूँ।" यह कहकर उसने कॉल रख दिया और इंद्रजीत की तरफ बिना देखे ही बोला, "मैं अपनी मर्ज़ी से आपको लेने नहीं आया, माँ ने कहा था।"
यह सुनकर इंद्रजीत की आइब्रो ऊँची हो गई और वह बोले, "कोई बहाना बना देते जिससे तुम्हें ना आना पड़ता।"
"बहाने बनाना आपको आता होगा, मुझे नहीं। और अब ज़्यादा फ़ालतू की बकवास मत करिये, चुपचाप घर चलिये।"
"निर्भय!" इस बार इंद्रजीत अपनी कड़क आवाज में बोले, "तुम्हारी बदतमीज़ियाँ हद से ज़्यादा बढ़ती जा रही हैं। मैं तुमसे कुछ कहता नहीं, इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपनी हदें पार करो।"
यह सुनकर निर्भय ने इंद्रजीत की ओर देखा और बोला, "हदें तो आपने पार कर रखी हैं अपने गैर-कानूनी धंधों की। और मैं मजबूर... जिसके पास आपके खिलाफ़ कोई सबूत नहीं... खैर छोड़िये इस बात को, और चलिये।"
इसके बाद इंद्रजीत ने भी ज़्यादा कुछ नहीं कहा और उसकी जीप में बैठ गए। निर्भय जैसे ही जीप में बैठने लगा, उसकी नज़र सामने पड़ी जहाँ शान्तनु अपनी कार के पास खड़ा था। अनंत तो अंदर बैठ ही चुका था और शान्तनु अपने फ़ोन पर किसी से बात कर रहा था।
शान्तनु को देखकर निर्भय के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान तैर गई और वह मन ही मन बोला, "सबके दिलों का इलाज करता है, पता नहीं मेरे दिल का इलाज कब करेगा?"
तभी इंद्रजीत जीप के अंदर से ही बोले, "अब क्या बाहर ही खड़े रहोगे?" उनकी आवाज सुनकर निर्भय के चेहरे पर खिसियाने वाले भाव आ गए। "घर ही जाना है... कोई प्लेन नहीं छूट रहा आपका?" उसने यह कहकर फिर से अपनी नज़रें शान्तनु पर जमा लीं। अंदर बैठे इंद्रजीत मन ही मन सोचने लगे, "क्या बेटा दिया है भगवान ने! ऐसा लगता है जैसे मैं नहीं, यह मेरा बाप हो।"
जब तक शान्तनु फ़ोन पर बात करता रहा, निर्भय उसे ऐसे ही प्यार भरी निगाहों से देखता रहा। कुछ देर बाद शान्तनु ने फ़ोन रखा, फिर वह भी कार में बैठ गया।
शान्तनु के कार में बैठ जाने के बाद निर्भय की तंद्रा भंग हुई। और वह शान्तनु की कार के चले जाने के बाद अपनी जीप में बैठा। उसने इंद्रजीत की तरफ़ बिल्कुल नहीं देखा और अपनी जीप स्टार्ट कर दी।
निर्भय इंद्रजीत का इकलौता बेटा है। इन दोनों बाप-बेटों की आपस में बिल्कुल नहीं बनती। बस अपनी माँ की वजह से कभी-कभी दोनों साथ आ जाते हैं।
जारी है......
कार्तिक किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था और अशोक आलीशान कुर्सी पर बैठा था। कुछ देर बाद कार्तिक ने कॉल काट दिया और अशोक की ओर मुड़कर बोला, "सर! मि. जिंदल ने शाम को विंटर नाईट क्लब में मीटिंग रखी है।"
ये सुनकर अशोक ने बिना उसकी ओर देखे कहा, "आखिरकार इसे हमारे बिज़नेस में पार्टनर बनना ही पड़ा। खैर, ये मीटिंग तो हम कर ही लेंगे। अब तुम बताओ कि तुम्हारी खोज कहाँ तक पहुँची?"
"खोज? किसकी खोज?" कार्तिक ने नासमझी भरे भाव से कहा। अशोक अपनी सर्द निगाहों से उसे देखने लगा। इसे देख कार्तिक को ध्यान आ गया और वह जल्दी से बोला, "हाँ, वो रुद्रांश के लिए डॉक्टर की खोज...वो बस चल ही रही है। कोई ना कोई पागल डॉक्टर... मेरा मतलब पागलों का इलाज करने वाला डॉक्टर मिल ही जाएगा।" वह जबरदस्ती की मुस्कुराहट अपने चेहरे पर लाकर बोला।
"तुम्हारे बाप को मैं जरा सा हुक्म देता था तो वह उस काम में अपनी जान लगा देता था, लेकिन तुम बड़े ही ढीले हो।" अशोक ने कार्तिक से सख्ती भरे लहजे में कहा। लेकिन कार्तिक पर कुछ खास असर नहीं हुआ और वह धीमी सी आवाज़ में बुदबुदाया, "तभी तो जान ही निकल गई मेरे बाप की।"
"क्या कहा तुमने?" अशोक उसकी तरफ देखते हुए बोला। इसे देख कार्तिक फिर से जबरदस्ती मुस्कुराया और कहने लगा, "यही कि मैं भी अपनी पूरी जान लगा दूँगा आपके पागल बेटे के लिए। ओह सॉरी, मेरा मतलब रुद्रांश के लिए।"
ये सुनकर अशोक ने फिर उससे ज़्यादा कुछ नहीं कहा और वहाँ से उठकर चला गया। कार्तिक अपने मन ही मन में कहने लगा, "मेरा बाप तो पागल था जो इसका हुक्म मानता था, लेकिन मैं नहीं। मुझे तो अपनी लाइफ़ खुलकर जीनी है। वैसे इस मीटिंग के बहाने ही सही, क्लब में जाने का मौका तो मिलेगा और मौज-मस्ती करने का भी।" ये कहकर वह मन ही मन बहुत खुश हुआ।
इधर, कोकून बॉयज़ हॉस्टल के रूम नंबर 202 में मौज-मस्ती चल रही थी। म्यूज़िक ऑन था और तीन लड़के हाथ में शराब की बोतल लिए उस म्यूज़िक पर थिरक रहे थे।
"आबरा का डाबरा मोरा सांवरा है बावरा
धोती कुर्ता पहन के घूमे दिल्ली हो या आगरा
बरेली वाले झुमके पे जिया ललचाये
कमर लचकाए तो लाखों गिर जाए"
तभी कमरे की बेल बजी। तीनों ने जल्दी से म्यूज़िक बंद किया और शराब की बोतलों को छिपाने लगे। तभी उनमें से एक लड़के ने अपने साथी से कहा, "जा नील, देख तो सही कौन आया है हमारे रंग में भंग डालने।"
"नील को ऑर्डर दे रहा है तू, चुपचाप खोल दरवाज़ा, वरना इस शराब की बोतल में ही घुसा दूँगा तुझे।" नील ने शराब की बोतल उसे दिखाते हुए कहा, जिसे वह अलमारी में छिपाने जा रहा था।
उसकी यह बात सुनकर उस लड़के ने ना में सिर हिलाते हुए दरवाज़ा खोला। सामने अनंत खड़ा था। अनंत अकेला ही आया था क्योंकि शांतनु एक इमरजेंसी केस को हैंडल करने हॉस्पिटल चला गया था।
अनंत को देखकर वो लड़का बोला, "कौन हो तुम?"
"क्या यह नील गुप्ता का रूम है?" अनंत ने पूछा। उस लड़के के बोलने से पहले ही नील उसे हटाते हुए खुद अनंत के सामने आ गया और हैरानी और खुशी के मिले-जुले भावों से बोला, "ब्रो आप! लंदन से कब आए?" यह कहते हुए वह अनंत के गले से लिपट गया। उन्हें देखकर वो दोनों लड़के आपस में कहने लगे, "लगता है नील का साइकैट्रिस्ट भाई है ये।" वो दोनों अनंत को पहचान गए थे।
"आज ही आया हूँ।" अनंत भी मुस्कुराते हुए नील से बोला।
नील अनंत से दूर हुआ और उन दोनों लड़कों की तरफ़ इशारा करके बोला, "ये दोनों मेरे बेस्ट बडी हैं, शमन और वैदिक।"
शमन और वैदिक ने भी मुस्कुराकर अनंत से हाथ मिलाया और नील से बोले, "अच्छा नील, अब तू अपने ब्रो से बातें कर। और शाम को चलना है ना हमारे साथ...भूल मत जाना।" शमन ने कहा।
"नो, मैं नहीं भूलूँगा।" नील ने भी कहा। फिर वैदिक और शमन वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद अनंत ने नील से पूछा, "ये शाम को कहाँ जाने का प्लान है?"
"कुछ नहीं ब्रो, वो तो आज शमन का हैप्पी बर्थडे है ना, इसलिए हम उसे सेलीब्रेट करने जाएँगे। बस वही कह रहा था वो।" नील ने मुस्कुराकर कहा। इसे सुनकर अनंत भी मुस्कुरा दिया।
फिर अनंत उससे कहने लगा, "पढ़ाई कैसी चल रही है?"
"फर्स्ट क्लास।" नील बड़ी ही शान से बोला।
"अच्छा, अब तुझे इस हॉस्टल में रहने की कोई ज़रूरत नहीं। अब मैं आ गया हूँ तो तू अब से मेरे ही साथ रहना, ओके!" अनंत ने कहा। तो नील कुछ सोचते हुए बोला, "लेकिन ब्रो, पहले एग्ज़ाम ख़त्म हो जाने दो। उसके बाद मैं आपके साथ घर में सैटल हो जाऊँगा।" ये सुनकर अनंत कुछ देर तो चुप रहा, लेकिन फिर कुछ सोचकर वह मुस्कुराया और उसने नील की बात मान ली।
नील की उम्र 19 साल है। यह थोड़ा आवारा टाइप का है, अपने आवारा और लम्पट दोस्तों के साथ मौज-मस्ती ही करता रहता है। कितनी अजीब बात है ना, जो लंदन से आया है वह सीधे और सरल स्वभाव का है और जो इंडिया में रहता है वह आवारा है। पर यह भी सच है कि जिसे बिगड़ना होता है वह कहीं भी बिगड़ जाता है और जिसे नहीं बिगड़ना होता वह कहीं भी नहीं बिगड़ता।
कुछ देर बाद अनंत वहाँ से चला गया। उसके जाते ही नील ने अपना फ़ोन निकाला और कान पर लगाते हुए बोला, "अबे झंडु, मेरे ब्रो के सामने ये शाम वाली बात करने की क्या ज़रूरत थी...हाँ हाँ, अब ज़्यादा सफ़ाई मत दे, वरना तेरे जन्मदिन को मरमदिन बना दूँगा, समझा।" यह कहकर उसने फ़ोन जेब में रखा और उछलता हुआ बाथरूम में घुस गया।
वैसे उन लोगों के पास वोदका शराब थी जिससे स्मेल नहीं आती, इसलिए अनंत को पता नहीं चला। 😅
जारी है......
शाम हो चुकी थी। अनंत अपने घर आ चुका था और फ्रेश होकर खाना खा रहा था। तभी दरवाजे की घंटी बजी। अनंत ने दरवाजा खोला तो शान्तनु आया था। उसे देख अनंत मुस्कुराते हुए बोला, "शान्तनु भैया आप !"
शान्तनु भी मुस्कुराते हुए अंदर आया और वे दोनों खाने की टेबल के पास रखी कुर्सियों पर जाकर बैठ गए। शान्तनु उससे पूछने लगा, "क्या हुआ, नील नहीं आया साथ में?"
"उसने कहा कि पहले उसके एग्ज़ाम हो जाएँ, उसके बाद वो मेरे साथ इस घर में सैटल हो जाएगा," अनंत खाना खाते हुए ही बोला।
शान्तनु ने ना में सिर हिलाया और उससे कहने लगा, "ये लड़का हाथ से निकलता जा रहा है। इतनी ढील नहीं देनी चाहिए उसे।"
"कुछ दिनों की तो बात है। उसके एग्ज़ाम होने के बाद तो वो यहाँ आ ही जाएगा, आप चिंता मत कीजिये," अनंत ने कहा। तो फिर शान्तनु भी ज्यादा कुछ नहीं बोला।
कुछ पल तो वे दोनों चुप रहे। फिर शान्तनु ही उससे पूछने लगा, "अच्छा तो तू कल से जॉइन करेगा?"
"हाँ, कल से ही जॉइन करूँगा," अनंत ने कहा।
"अगर मेरी कुछ हेल्प चाहिए हो तो बेझिझक बोल देना," शान्तनु ने कहा।
"ओके !" अनंत ने मुस्कुराकर कहा।
वे दोनों ऐसे ही बातें करते रहे। फिर कुछ देर बाद शान्तनु वहाँ से अपने घर चला गया। जी हाँ, शान्तनु अलग घर में रहता है क्योंकि वो घर उसके मैत्री हॉस्पिटल से पास पड़ता है।
अनंत को एस आई ओ टी मेंटल एण्ड हेल्थ हॉस्पिटल जॉइन करना था। सीधे-सीधे शब्दों में कहूँ तो शान्तनु और अनंत के हॉस्पिटल अलग थे।
(ये हॉस्पिटल के नाम काल्पनिक हैं)
विंटर नाईट क्लब
यहाँ एक रूम में अशोक और मि. जिंदल के बीच बिज़नेस मीटिंग चल रही थी। कार्तिक वहाँ खड़ा उनकी मीटिंग में बहुत बोर हो रहा था और मन ही मन अशोक को कोस रहा था। "ये बुड्ढा कब मीटिंग खत्म करेगा?....मेरा तो सिर ही चकरा रहा है इनकी बातों से, क्या करूँ? कैसे खिसकूँ यहाँ से?" वो कुछ तिकड़म बिछाने लगा। तभी उसके दिमाग में कुछ आया और वो धीरे से अशोक के कान के पास आकर बोला, "सर ! मुझे बहुत जोर की लगी है।"
ये सुनकर अशोक को बहुत तेज गुस्सा आया क्योंकि कार्तिक ने उसे बीच में ही टोक दिया था। लेकिन वो जिंदल के सामने ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता था। इसलिए उसने हाथ से ही कार्तिक को वहाँ से जाने का इशारा कर दिया। उसका इशारा पाकर कार्तिक तो ऐसे भागा जैसे जेल से छूटा हो।
बाहर आकर कार्तिक ने राहत की साँस ली। "अब जाकर जान में जान आई है। वरना अंदर तो दम ही घुट गया था मेरा, चलो अब हम भी थोड़ी मौज-मस्ती कर लें।"
खुद से ही ये कहकर वो उस क्लब के उस सेक्शन में आ गया जहाँ उसकी ही उम्र के आस-पास के लोग थे। कुछ बार काउंटर पर शराब पी रहे थे। कुछ टेबल पर शराब पीते हुए वहाँ चल रहे म्यूजिक की धुन पर बैठे-बैठे ही झूम रहे थे। तो कुछ डांसिंग फ्लोर पर मस्त होकर नाच रहे थे।
कार्तिक भी उन सबके बीच में से होता हुआ उस म्यूज़िक की धुन पर झूमते हुए बार काउंटर पर खड़ा हो गया। "वन बीयर प्लीज़ !" उसने वेटर से कहा। कुछ ही पलों में उस वेटर ने उसे एक गिलास थमा दिया। जिसे पीते हुए वो सामने डांसिंग फ्लोर की ओर देखने लगा।
इधर नील भी अपने लफंगे दोस्तों शमन और वैदिक के साथ वहीं था। वे लोग शमन का बर्थडे मनाने ही यहाँ आए थे। वे तीनों एक टेबल पर बैठे थे और वे भी पीने में लगे हुए थे।
तभी एक डांसिंग गर्ल डांस फ्लोर पर आई और डांस करने लगी........🎶🎶🎶🎶💃🎶🎶🎶🎶
उसे देख नील, वैदिक और शमन भी झूमते हुए डांसिंग फ्लोर पर पहुँच गए....नील उस लड़की के करीब आकर उसके चेहरे पर हल्के से हाथ फेरते हुए गाने के अनुसार डांस करने लगा.....
सांवली सलोनी अदायें मनमोहिनी
तेरी जैसी ब्यूटी किसी की भी नहीं होनी
ठंडे की बोतल मैं तेरा ओपनर........नील ने पास में खड़े एक लड़के के हाथ से शराब की बोतल ली और फिर से उस लड़की के करीब आ गया.....
तुझे गट-गट में पी लूँ
कोका कोला तू......🎶🎶🎶🎶🕺🎶🎶🎶🎶
शोला शोला तू.....🎶🎶🎶🎶💃🎶🎶🎶🎶
कोका कोला तू.....🎶🎶🎶🎶🎶
शोला शोला तू.....🎶🎶🎶🎶🎶
कार्तिक उन लोगों को देख रहा था। फिर उसके मन में भी नाचने की इच्छा जगी और वो भी डांस फ्लोर पर चला गया और उस डांसिंग गर्ल का हाथ पकड़ अपने करीब करते हुए उसके साथ डांस करने लगा.....
जिम-शिम करता हूँ
टेड मेरा लीनआआआ🎶🎶🎶🎶
नि तू बोलदी ए गल्लां
जीवें चलदी मशीनाआआ🎶🎶🎶🎶
ओ बेबी आई लव यू......🎶🎶🎶🎶💃🕺🎶🎶
पहले खोल ले तू बोतल
गलियों पे जावा रोला यूं
कि सारे बोले तुझे कोका कोला तू.......🎶🎶🎶🎶🎶
शोला शोला तू..........🎶🎶🎶🎶🎶
तभी नील ने फिर से उस लड़की का हाथ पकड़ उसे अपनी तरफ करते हुए गोल घुमा दिया। और अब वो लड़की उन दोनों यानी नील और कार्तिक के बीच थी और वे तीनों डांस कर रहे थे......🎶🎶🎶🕺💃🕺🎶🎶🎶🎶
ना समझ तू कोका कोला
मैं तो विस्की दी बोतल
मेरा इक सिप ही है काफी
होने को नशा टोटल
चखना मना है........नील ने उस लड़की के कंधे पर सिर रखा तो उसने अपना कंधा झुका लिया।
रुकना मना है......कार्तिक ने उस लड़की को कमर से पकड़ा तो उसने कार्तिक के गाल पर हल्के से चपत लगाकर उसे दूर कर दिया।
मुझे पीले जरा आ तू.....🎶🎶🎶🎶💃🎶🎶🎶
कोका कोला तू.....🎶🎶🎶🎶🎶🎶
शोला शोला तू.....🎶🎶🎶🎶
कोका कोला तू.....🎶🎶🎶🎶🎶
शोला शोला तू.....🎶🎶🎶🕺💃🕺🎶🎶🎶
वैदिक और शमन तो अपना अलग ही डांस कर रहे थे। गाना खत्म होने पर था और वो डांसिंग गर्ल नील और कार्तिक के बीच में थी। गाना खत्म होते ही वे दोनों उसके गाल पर किस करने के लिए आगे बढ़े तो वो नीचे झुक गई। जिस कारण उन दोनों के ही होंठ एक-दूसरे से जुड़ गए। वो डांसिंग गर्ल तो मुस्कुराते हुए किसी मॉडल की तरह चलते हुए वहाँ से चली गई।
कार्तिक और नील के इस चुंबन दृश्य को देख सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। लेकिन फिर उनके लिए हूटिंग करने लगे। कार्तिक और नील की आँखें बंद थीं। लेकिन होंठ जुड़ने पर उन दोनों ने एकदम से आँखें खोली और जल्दी से एक-दूसरे से दूर हो गए।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे किस करने की?" नील कार्तिक पर चिल्लाते हुए बोला।
"क्या ? मैंने तुझे किस किया ! दिमाग खराब है क्या मेरा जो मैं तुझे किस करने लगा, अरे मैं तो उस डांसिंग गर्ल को किस करने वाला था, वो हट गई और तू सामने आ गया।" ये कहकर कार्तिक ने नील की तरफ देखा जो अब अजीब सी शक्ल बनाकर उसे देख रहा था। जिसे देख कार्तिक बोला, "और अगर किस कर भी लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा, मेरे किस करने से तू प्रेग्नेंट नहीं होने वाला...हाहाहाहाहा" ये कहकर कार्तिक हँस दिया और साथ ही वहाँ खड़े बाकी लोग भी हँसने लगे।🤣
"ऐ...ज़बान संभालकर बात कर वरना....." नील ने गुस्से में उसकी तरफ उंगली पॉइंट करके कहा। तो कार्तिक भी उसकी उंगली पर अपनी उंगली लगाकर उसे नीचे करते हुए बोला, "वरना क्या कर लेगा तू, बित्ते भर का है, इसी क्लब में दफना दूँगा तुझे, भनक भी नहीं लगेगी तेरे घरवालों को।"
"तूने मुझे समझ क्या रखा है? मेरा नाम भी नील गुप्ता है," नील ने नाम बताया। तो कार्तिक हँसते हुए बोला, "बोल तो ऐसे रहा है जैसे कितना बड़ा नाम है तेरा, मेरा नाम तुझसे भी बड़ा है कार्तिक रायज़ादा," कार्तिक ने बड़ी ही शान से अपना नाम बताया।
"कार्तिक रायज़ादा !" शमन के मुँह से निकला। तो वैदिक भी बोला, "सचमुच बहुत ज्यादा है।" उन दोनों ने ये सब बहुत धीमे स्वर में कहा था।
"तू कहीं का भी शहज़ादा हो मुझे इससे क्या? अगर हिम्मत है तो कर मुझसे दो-दो हाथ....." ये कहकर नील जैसे ही कार्तिक की तरफ बढ़ा तो वैदिक और शमन जल्दी से नील के सामने आकर उसे पकड़ते हुए बोले, "तू क्यों किसी के मुँह लगता है, हमने भी देखा था वो किस एक्सीडेंटली हुआ था इसलिए अब इस बात को ज्यादा मत बढ़ा।" शमन ने नील को समझाते हुए कहा।
"हाँ अब चल यहाँ से।" वैदिक ने भी कहा और वे दोनों जबरदस्ती नील को उठाकर वहाँ से ले गए। कार्तिक उसे जाते हुए देखता रहा। फिर कुछ पल बाद उसने मुस्कुराते हुए ही अपने होंठों पर हल्के से अंगूठा फेर दिया। तभी उसने ध्यान दिया कि कुछ लड़के नील के बारे में ही बातें कर रहे थे। "अरे तुझे पता है इस नील का भाई अनंत गुप्ता नीट के एग्ज़ाम में ऑल इंडिया में फर्स्ट रैंक पर आया था।"
उसकी बात सुनकर दूसरा लड़का बोला, "मुझे तो समझ नहीं आता कि ये लोग कौन सी शंखपुष्पी पीते हैं जो इतने इंटेलिजेंट होते हैं...हाहाहाहहा।"😅 उसकी बात पर बाकी लड़के भी हँस पड़े। तभी पहला लड़का फिर से बोला, "और मैंने तो सुना है कि वो अनंत गुप्ता अब एक साइकैट्रिस्ट भी बन गया है, लंदन से आज ही आया है वो।"
उनकी बातें कार्तिक बड़े ही ध्यान से सुन रहा था। वो मन ही मन सोचने लगा, "चलो अब मेरी ये डॉक्टर ढूँढने की खोज खत्म हुई, अब उस बुड्ढे को इस अनंत गुप्ता के बारे में बताकर खुश कर दूँगा....क्या पता ये अनंत गुप्ता उस पागल रुद्रांश का इलाज कर ही दे?" ये सोचकर कार्तिक मन ही मन बहुत खुश हुआ और इसी खुशी में उसने बार काउंटर पर रखी शराब की बोतल मुँह से लगा ली।
यहाँ वैदिक और शमन नील को उठाकर क्लब के बाहर ले आए थे। उन्होंने उसे नीचे उतारा तो नील उन दोनों को बारी-बारी से मुक्के मारते हुए बोला, "कमीनों ! मुझे वहाँ से लेकर क्यों आ गए?"
उसका पंच खाने के बाद वैदिक और शमन ने भी उसे एक-एक पंच मार दिया। जिससे नील नीचे गिर गया। फिर शमन उससे कहने लगा, "अगर तुझे वहाँ से ना लाते तो वो कार्तिक रायज़ादा तेरी चटनी बना देता, मेरे दादाजी कहते थे ताकतवर के सामने शक्ति प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।"
"हाँ ! और ये मत भूल कि हम लोग हॉस्टल से चोरी-छिपे यहाँ आए हैं। अगर बात पुलिस तक पहुँच जाती तो क्या होता?" वैदिक उस पर चिल्लाते हुए बोला।
उन दोनों की बातें सुनकर नील कुछ देर तो चुप रहा। फिर खड़ा होते हुए बोला, "अब उस कार्तिक रायज़ादा से सामना ना ही हो तो अच्छा है वरना आई विल किल हिम !" ये कहते हुए वो गुस्से में वहाँ से जाने लगा।
तभी पीछे खड़ा वैदिक शमन से बोला, "अनंत भाई को पहले अपने भाई नील का ही इलाज करना चाहिए।" वैदिक की ये बात सुनकर शमन को थोड़ी हँसी आ गई।
जारी है......
अगले दिन कार्तिक अशोक के सामने था और उसे अनंत के बारे में बताने ही वाला था कि तभी इंद्रजीत वहाँ आ गए। उसे देख अशोक खुश होते हुए बोले, "आ गए लंदन से, कैसी रही शादी तुम्हारे दोस्त की?"
"मेरे दोस्त की नहीं, मेरे दोस्त के बेटे की," इंद्रजीत ने हँसते हुए कहा। इंद्रजीत अशोक का दोस्त भी है और बिजनेस पार्टनर भी।
उन दोनों को देखकर कार्तिक मन ही मन सोचने लगा, "अब ये दोनों बुड्ढे मिलकर फिर से अपने बिजनेस की बातें करेंगे और मैं बोर होऊँगा..." वो ये सब सोच ही रहा था, तभी ऊपर से तेज आवाज में गाने चलने की आवाज आई जिससे अशोक, इंद्रजीत और कार्तिक ने अपने कानों में उंगलियाँ ही डाल लीं।
"बचना ऐ हसीनों....लो मैं आ गया 🎶🎶🎶🎶"
रुद्रांश ने ऊपर कमरे में तेज आवाज में डीजे चालू कर दिया था और खुद हाथ में गिटार लिए सीढ़ियों से नीचे आ रहा था। उसे देख अशोक चिल्लाते हुए बोले, "कार्तिक......इसके कमरे का दरवाजा किसने खुला छोड़ दिया?"
उस गाने के शोर में अशोक की आवाज सुनकर कार्तिक भी चिल्लाते हुए बोला, "मुझे कुछ नहीं पता सर।"
रुद्रांश उस गिटार को हाथ में लिए पूरे हॉल में नाचता हुआ सा दौड़ रहा था। उसने कार्तिक को पकड़ा और उसे जोर से घुमाकर छोड़ दिया, वह सीधा इंद्रजीत से जा टकराया और वह दोनों सोफे पर गिर गए।
"रुद्रांश! ये सब क्या कर रहे हो? शांत हो जाओ।" अशोक अपने कानों पर हाथ रखे ही चिल्लाए, लेकिन रुद्रांश तो अपनी ही धुन में था और तेज आवाज में गाना बज रहा था।
तभी कुछ गार्ड्स ने जल्दी से ऊपर के कमरे में जाकर उस डीजे को बंद किया और कुछ गार्ड्स बड़ी मुश्किल से रुद्रांश को पकड़कर वापस उसके कमरे में ले गए। "हाहाहाहहा" रुद्रांश जाते हुए बहुत जोर-जोर से हँस रहा था।
अशोक, इंद्रजीत और कार्तिक ने चैन की साँस ली। तभी इंद्रजीत सोफे से खड़े होकर अशोक की तरफ देखकर कहने लगे, "अभी तक रुद्रांश ठीक नहीं हुआ?"
"नहीं इंद्र! कई डॉक्टर आए लेकिन कोई भी रुद्रांश को ठीक नहीं कर पाया," अशोक ने कहा। तो इस बात पर कार्तिक भी सोफे से उठकर जल्दी से बोला, "मुझे आपको एक बात बतानी थी।"
उसी समय इंद्रजीत भी बोल पड़े, "मैं एक साइकैट्रिस्ट को जानता हूँ।"
अशोक ने कार्तिक की बात को अनसुना करते हुए इंद्रजीत की ओर देखा और बोला, "कौन है वो साइकैट्रिस्ट?"
"अनंत गुप्ता!" इस बार इंद्रजीत और कार्तिक दोनों ही एक साथ बोल पड़े, जिसे सुनकर अशोक ने पहले इंद्रजीत को देखा फिर कार्तिक को।
कार्तिक और इंद्रजीत भी एक-दूसरे को देख रहे थे। फिर पहले इंद्रजीत ही बोले, "मैं जब फ़्लाइट में था तब मेरी मुलाकात अनंत गुप्ता से हुई। वो काफी टैलेंटेड है, नीट के एग्ज़ाम में उसने ऑल इंडिया में फ़र्स्ट रैंक हासिल किया था और फिर आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चला गया और अब एक साइकैट्रिस्ट बनकर वापस इंडिया आया है।"
"मैं भी तो उसी के बारे में बताना चाहता था आपको," कार्तिक ने अशोक की ओर देखकर कहा, "कल हम लोग जिस क्लब में गए थे वहाँ मेरी मुलाकात इस अनंत गुप्ता के भाई कोका कोला... मेरा मतलब नील से हुई थी, तब मुझे पता चला इस बारे में।"
उन दोनों की बातें सुनकर अशोक ने कुछ पल विचार किया, फिर कार्तिक की ओर देखकर बोले, "उस अनंत गुप्ता को ले आओ यहाँ।"
(एस आई ओ टी मेंटल एण्ड हेल्थ होस्पिटल)
आज अनंत का यहाँ पहला दिन था। उसके अंदर आते ही उसके सीनियर और जूनियर सभी डॉक्टर्स ने मिलकर उसका वेलकम किया।
एक डॉक्टर ने उसे उसका केबिन दिखाया और कुछ देर उससे बात करके चला गया। कुछ देर तो अनंत अपने केबिन में बैठकर पेशेंट्स की फाइल देखता रहा। उसके बाद वह राउंड पर चला गया।
अनंत उस रूम के बाहर खड़ा था जहाँ कुछ पागल लोग बैठे थे। कुछ पागलों का नर्सेज और डॉक्टर्स चेकअप कर रहे थे और कुछ को वार्ड बॉयज़ संभाल रहे थे। उन लोगों को देख अनंत को याद आने लगा जब वह 6 साल का था, तब उसके पिताजी की बिजनेस में लॉस होने की वजह से दिमागी हालत खराब हो गई थी। तब उसकी माँ, जो कि एक साइकैट्रिस्ट थीं, अपने पति का दिन-रात ध्यान रखती थीं। वह अकेली ही एक डॉक्टर और एक पत्नी होने का फ़र्ज़ निभाती थीं, लेकिन फिर भी उसके पिताजी को नहीं बचा पाईं। उनके जाने के बाद तो वह खुद ही ग़म में डूब गई, लेकिन उस नन्हीं सी जान के लिए ज़िंदा थी जो उसके पेट में पल रहा था। नील को जन्म देने के बाद वह भी इस दुनियाँ से चल बसी। तब अनंत के पिता के दोस्त, यानी शांतनु के पिता ने अनंत और नील को एक पिता की तरह पाला। उनके बेटे शांतनु ने भी अनंत और नील को हमेशा अपने छोटे भाइयों की तरह रखा, लेकिन फिर कुछ समय बाद शांतनु के पिता भी इस दुनियाँ से चल बसे। फिर तो वे तीनों ही भाई अनाथ हो गए।
ये सब याद करके अनंत की आँखें आँसुओं से भर गईं, लेकिन फिर वह अपने आँसुओं को पोंछते हुए अपने केबिन की तरफ बढ़ गया।
(मैत्री होस्पिटल)
इधर एक एक्सीडेंट केस आया हुआ था। अब पुलिस को कॉल किया गया तो निर्भय ही वहाँ आया। वह उस डॉक्टर से बात कर रहा था जो इस केस को हैंडल कर रहा था।
वहीं कुछ ही दूरी पर अपने केबिन के बाहर खड़ा शांतनु अपने सामने खड़ी डॉक्टर से कह रहा था, "डॉक्टर ज्योति, आप यह मत भूलिये कि आप यहाँ एक इंटर्न हैं, इसलिए अपने सीनियर्स के इंस्ट्रक्शन फ़ॉलो किया कीजिए।"
डॉक्टर ज्योति, जो सहमी हुई सी उसके सामने खड़ी थी, उसने अपनी धीमी सी आवाज में कहा, "ओके सर!"
यह सुनकर शांतनु वहाँ से जाने लगा। फिर जाते हुए ही बोला, "और आज रूम नंबर 41 के पेशेंट की सर्जरी में आप और डॉक्टर अनिल मेरे साथ ही रहेंगे, अंडरस्टैंड!"
उसकी आवाज सुनकर निर्भय ने उसकी ओर देखा तो वह शांतनु को देखकर मुस्कुरा दिया। निर्भय के सामने खड़े डॉक्टर ने जब निर्भय की नज़रों का पीछा किया तो उसे शांतनु को देखता पाकर उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वह निर्भय से बोला, "इन्सपेक्टर साहब! डॉक्टर शांतनु दिल के डॉक्टर ज़रूर हैं, लेकिन उनके दिल में जगह बनाना इतना आसान नहीं, काफी स्ट्रिक्ट हैं, अच्छे-अच्छे डरते हैं उनसे।"
"मेरा नाम भी निर्भय है, जिसे किसी का डर नहीं और उस डॉक्टर से तो बिल्कुल नहीं," निर्भय ने शांतनु की तरफ देखकर कहा और उसकी तरफ चल दिया। शांतनु भी सामने से ही आ रहा था। निर्भय जब उसके सामने आया तो शांतनु उसे देखकर रुक गया। फिर कुछ पल बाद उससे बोला, "आ गया फिर से।"
"हाँ, अब क्या करूँ तेरी याद ही इतनी आती है मुझे," निर्भय मुस्कुराकर बोला।
"मुझे यह समझ नहीं आता कि तुझे पुलिस ऑफ़िसर बना किसने दिया? कहीं फ़र्ज़ी तरीके से तो इंस्पेक्टर नहीं बना तू?" शांतनु उस पर तंज कसते हुए बोला।
यह सुनकर निर्भय हँसा, "यही बात मैं अगर तुझसे कहूँ तो।"
"कहकर तो देख, तेरा दिल निकालकर तेरे हाथ में दे दूँगा," शांतनु ने गुस्से भरे भाव चेहरे पर लाकर कहा, जिसे देख निर्भय फिर से हँसा और उसके चेहरे के एकदम करीब अपना चेहरा लाकर बोला, "मैं तो कब से तैयार हूँ, तू एक बार हाथ तो रख मेरे दिल पर, मेरी हर धड़कन पर तेरा ही नाम सुनाई देगा तुझे, शान...तनु!"
"ना जाने वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब तुझसे पाला पड़ा, ठरकी कहीं का!" शांतनु यह कहते हुए निर्भय के साइड से निकलकर चला गया। उसे जाते देख निर्भय मुस्कुरा दिया और मन ही मन बोला, "किसी दिन दिल का मरीज़ बनकर आऊँगा, तब तो मेरे दिल पर हाथ रख ही देगा।"
इधर वो डॉक्टर और उसके पास खड़ी डॉक्टर ज्योति उन दोनों को ही देख रहे थे। डॉक्टर ज्योति यहाँ नई थी, इसलिए उसे निर्भय और शांतनु का इस तरह बात करना कुछ समझ नहीं आया। उसने अपने पास खड़े डॉक्टर से पूछा, "डॉक्टर अनिल! ये दोनों इस तरह क्यों बात कर रहे हैं? कुछ है क्या इन दोनों के बीच?"
यह सुनकर अनिल हल्के से हँसा और उससे कहने लगा, "यह एक साल पहले की बात है डॉक्टर ज्योति, जब इंस्पेक्टर निर्भय की पोस्टिंग इस शहर में हुई थी..."
(फ़्लैशबैक)
रात का समय, शिमला की कड़कड़ती ठंड में जब डॉक्टर शांतनु अपने घर जा रहा था, रास्ते में उसकी कार खराब हो गई। घर ज़्यादा दूर नहीं था, तो उसने पैदल ही चलने का फ़ैसला किया। तभी उसे कुछ दूरी पर बने खाली मैदान में से कुछ गोलियों के चलने की आवाज़ें आईं, तो उसने वहाँ जाकर देखा, दो गुट आपस में एक-दूसरे पर धड़ाधड़ गोलियाँ चला रहे थे। दोनों तरफ़ के कुछ साथी घायल भी थे। तभी शांतनु को उन गुटों के कुछ लोगों ने देख लिया और उसे पकड़ते हुए बोले, "तू डॉक्टर है ना, चल हमारे लीडर की जान ख़तरे में है, उसका इलाज कर।"
"मैं इस तरह इलाज नहीं कर सकता और वैसे भी मैं एक कार्डियोलॉजिस्ट हूँ, यानी दिल का डॉक्टर," शांतनु ने उनसे छूटने की कोशिश करते हुए कहा, तो उनमें से एक बोला, "हमारे लीडर भी एक हार्ट पेशेंट है और अभी उनकी जान ख़तरे में है।" यह कहकर वे शांतनु को जबरदस्ती वहाँ ले गए जहाँ उनका लीडर ज़मीन पर अपने सीने पर हाथ रखे हुए पड़ा था। शांतनु ने उसे चेक किया तो वह मर चुका था। "यह तो मर चुका है..." उसने इतना ही कहा था, तभी वहाँ पर पुलिस की जीप आ गई।
निर्भय उस जीप में से उतरा और उन सब पर अपनी गन पॉइंट कर ली। कुछ तो वहाँ से भाग गए और कुछ को उसने गोलियों से भून दिया।
शांतनु तो उस लीडर की लाश के पास ही था, वह गोलियाँ चलने पर नीचे बैठ गया। निर्भय उसके पास गया तो शांतनु ने पहले उसके पैरों की तरफ़ देखा, फिर धीरे-धीरे अपना सिर उठाते हुए निर्भय के चेहरे की तरफ़ देखा। वह कुछ बोलता उससे पहले ही निर्भय उसके हाथ में हथकड़ी पहनाने लगा, जिसे देख शांतनु उससे छूटने की कोशिश करते हुए बोला, "मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैं इन लोगों के साथ नहीं हूँ।"
"अच्छा बहाना है पुलिस से बचने का।" यह कहकर निर्भय उसे अपने साथ लेकर चलने लगा।
"मैं एक डॉक्टर हूँ और ये लोग मुझे यहाँ जबरदस्ती पकड़कर लाए थे अपने लीडर का इलाज करवाने," शांतनु चलते-चलते ही बोला, जिस पर निर्भय ने रुककर उसे नीचे से ऊपर तक देखा और कहने लगा, "सॉरी! लेकिन इस वक़्त मैं तुझ पर कोई भरोसा नहीं कर सकता।" इतना कहकर वह उसे अपनी जीप की तरफ़ लेकर बढ़ गया और जबरदस्ती उसे उसमें बिठा दिया। शांतनु चिल्लाता रहा, लेकिन निर्भय ने कोई ध्यान नहीं दिया।
(वैसे शांतनु निर्भय से दो साल बड़ा है, लेकिन दिखने में निर्भय बड़ा लगता है, इंस्पेक्टर साहब ने अच्छी-खासी बॉडी बनाई हुई है।)
पुलिस स्टेशन आकर निर्भय ने शांतनु को जेल में डाल दिया। "देखो इंस्पेक्टर! मेरी बात समझने की कोशिश करो, शायद तुम नए आए हो इसलिए तुम मुझे नहीं जानते, मैं मैत्री हॉस्पिटल का कार्डियोलॉजिस्ट शांतनु अग्रवाल हूँ, चाहो तो अपने किसी सीनियर ऑफ़िसर से पूछ लो," शांतनु जेल के अंदर से चिल्लाते हुए बोला।
निर्भय उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था, तभी कुछ देर बाद सीनियर इंस्पेक्टर विकास वहाँ आए और शांतनु को जेल में देखकर निर्भय से बोले, "यह तुमने डॉक्टर शांतनु को जेल में क्यों डाला है?"
यह सुनकर निर्भय ने जेल में खड़े शांतनु की तरफ़ देखा, जो गुस्से में अपने नथुने फुलाए हुए उसे देख रहा था। अब जाकर निर्भय को विश्वास हुआ कि शांतनु सच कह रहा था। वह विकास से बोला, "सॉरी सर, वो रास्ते में कुछ गुटों के बीच गोलियाँ चल रही थीं, कुछ तो भाग गए और कुछ को मैंने गोलियों से भून दिया, वहाँ पर यह भी था तो मैंने इसे पकड़ लिया, मुझे लगा यह भी उन्हीं लोगों के साथ है।"
"तुमने कुछ भी समझा हो, लेकिन अब जल्दी खोलो इन्हें," विकास ने निर्भय को ऑर्डर देने वाले लहजे में कहा, तो निर्भय ने जल्दी से लॉक खोला और शांतनु उसे गुस्से में घूरते हुए बाहर निकला। जिसे देख निर्भय डरने की बजाय बस मुस्कुराकर रह गया।
शांतनु ने विकास से हाथ मिलाया और निर्भय को घूरते हुए ही वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद निर्भय को अपने किए पर थोड़ी हँसी भी आई और उसकी नज़रों के सामने शांतनु का वो चिढ़न और गुस्से भरा चेहरा घूम गया, जिससे वह डरने की बजाय उल्टा हँस दिया और अपने दिल पर हाथ रखते हुए मन ही मन बोला, "दिल का डॉक्टर मेरा दिल ही निकालकर अपने साथ ले गया।"
तब से निर्भय को शांतनु से प्यार हो गया और शांतनु इसी कारण उससे आज तक ढंग से बात नहीं करता क्योंकि निर्भय ने आज तक उससे इस बात की माफ़ी तो नहीं माँगी, उल्टा उसके साथ फ़्लर्ट करके-करके उसे इरीटेट करता रहता है।
उन दोनों की यह कहानी सुनकर डॉक्टर ज्योति अनिल से कहने लगी, "इंस्पेक्टर निर्भय ने यह तो गलत किया, एट लीस्ट माफ़ी तो माँगनी चाहिए थी ना उन्हें।"
"माँगनी तो चाहिए थी, लेकिन तुम्हें लगता है कि माफ़ी मांगने पर हमारे डॉक्टर शांतनु उन्हें माफ़ कर देते?" अनिल ने पूछा तो ज्योति सोचते हुए बोली, "डॉक्टर शांतनु का नेचर देखकर तो नहीं लगता कि वे उन्हें माफ़ कर देते, काफी खड़ूस हैं वे।"
यह सुनकर अनिल हँसकर बोला, "फ़िर भी इंस्पेक्टर निर्भय दीवाने हैं उनके।" यह सुनकर ज्योति भी हँस दी।
जारी है.......
रात में अनंत अस्पताल से वापस अपने घर आ रहा था। तभी उसने सामने देखा, एक कार खड़ी थी और कुछ गार्ड काले कपड़ों में पूरी सड़क को घेरकर खड़े हुए थे। अनंत ने कार रोकी और उसमें से बाहर निकलकर कहा, "कौन हैं आप लोग? और इस तरह यह रास्ता क्यों रोका हुआ है?"
सामने वाली कार में से कार्तिक बाहर निकला और कहने लगा, "हम सब तुम्हारे लिए ही खड़े हैं डॉक्टर, बड़ी देर लगा दी आने में।"
"मेरे लिए! पर क्यों?" अनंत ने असमंजस भरे भाव से पूछा। कार्तिक उसके सामने आकर बोला, "एक पागल का इलाज करना है तुमको... इसलिए अपने साथ ले जाने आए हैं।"
"तो फिर उसे अस्पताल में एडमिट करवाओ," अनंत ने कहा।
"यह तो ना हो पाएगा... तुम्हें उसके घर चलकर ही उसका इलाज करना होगा... अब तुम खुशी-खुशी चलोगे तो ठीक है, वरना हमें जबरदस्ती ले जाना होगा," कार्तिक ने कहा।
यह सुनकर अनंत को उस पर थोड़ा गुस्सा आ गया। "यह क्या तरीका है? मैं इस तरह किसी का इलाज नहीं करने वाला। अगर आपको इलाज करवाना है तो उस पेशेंट को अस्पताल लेकर आइए।" यह कहकर वह मुड़कर अपनी कार की तरफ जाने लगा। कार्तिक ने उन गार्ड्स को इशारा कर दिया। उस इशारे पाते ही वे सभी गार्ड अनंत के सामने आकर खड़े हो गए और अपनी गन उस पर पॉइंट कर ली। अनंत ने चारों तरफ नज़रें घुमाईं तो वह उन सबके बीच घिर चुका था।
कुछ देर बाद वे लोग अनंत को पकड़कर उस आलीशान बंगले में अशोक के सामने ले आए। उसे देख अशोक ने कहा, "तो यह है अनंत गुप्ता।"
"हाँ सर, यही है वह पागल डॉक्टर... मेरा मतलब पागलों का इलाज करने वाला डॉक्टर," कार्तिक ने कहा।
वहीं अनंत को अब गुस्सा आ रहा था। वह सख्ती भरे लहजे में कहने लगा, "यह सब क्या है? क्या आप लोगों ने मेरा किडनैप किया है?"
"ऐसा ही समझ लो डॉक्टर, और अब तुम यहाँ से तभी छूटोगे जब तुम मेरे बेटे को ठीक कर दोगे," अशोक ने उससे कहा।
"अगर आपको अपने बेटे का इलाज मुझसे करवाना है तो उसे मेरे अस्पताल में लेकर आइए। मैं खुशी-खुशी उसका इलाज करूँगा, लेकिन यह क्या तरीका है जो आप मुझे इस तरह जबरदस्ती यहाँ पकड़कर ले आए?" अनंत ने कहा।
"क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बाहरी दुनिया मेरे बेटे के पागलपन के बारे में जाने," अशोक ने कहा।
"क्या मैं वजह जान सकता हूँ?" अनंत ने पूछा।
"तुम्हारे लिए वजह जानना ज़रूरी नहीं। तुम्हारा काम बस मेरे बेटे का इलाज करना है। और अगर तुमने मना किया तो तुम्हारे प्यारे भाई का मैं क्या हाल करूँगा, यह तुम सोच भी नहीं सकते... कोकून बॉयज़ होस्टल में पढ़ता है ना वो।" यह कहते वक्त अशोक के चेहरे पर शातिर मुस्कान थी।
यह सुनकर अनंत को बहुत गुस्सा आया, लेकिन अपने भाई के लिए उसने अपने इस गुस्से को पी गया। फिर उसने कुछ देर विचार करके अशोक की ओर देखा और बोला, "ठीक है, मैं तैयार हूँ आपके बेटे का इलाज करने के लिए। कहाँ है वो?"
यह सुनकर अशोक के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने अपने गार्ड्स को इशारा किया। वे गार्ड अनंत को वहाँ से ले जाने लगे। अशोक उसे रोकते हुए बोले, "एक मिनट डॉक्टर!"
यह सुनकर अनंत ने उनकी ओर देखा। अशोक ने कहना शुरू किया, "यह बात मैंने किसी भी डॉक्टर को शुरुआत में नहीं बताई, लेकिन तुम्हें बता रहा हूँ। मेरा बेटा रुद्रांश किसी भी डॉक्टर को यहाँ टिकने नहीं देता। वह बहुत ही अग्रेसिव हो जाता है, हमला करता है। इसलिए अगर तुम चाहो तो इन गार्ड्स को अपने साथ उसके रूम के अंदर ले जा सकते हो।"
"जी नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। आपके ये गार्ड्स उस रूम के बाहर ही खड़े रहेंगे, अंदर मैं अकेला ही जाऊँगा," अनंत ने उससे कहा और उन गार्ड्स के साथ चल दिया।
उसके जाते ही कार्तिक अशोक से कहने लगा, "यह डॉक्टर तो काफी डेयरिंग लगता है। इसकी सेफ्टी के लिए हमने इसे पहले ही सब कुछ बता दिया, लेकिन इसके चेहरे पर डर नाम की कोई चीज़ ही नहीं है।"
"यही तो देखना चाहता था मैं। अगर यह गार्ड्स को अंदर ले जाने के लिए कहता तो फिर मैं इसे अंदर जाने ही नहीं देता। इसे भी बाकी डॉक्टर्स की तरह यहीं बंद करके रख लेता। उस आखिरी डॉक्टर के बाद मैंने यह सोच लिया था कि अब अगर कोई डॉक्टर यहाँ आएगा तो वह डरपोक नहीं, बल्कि निडर होगा।"
अशोक की यह बात सुनकर कार्तिक मन ही मन सोचने लगा, "यह डरपोक है या निडर, वह तो अभी पता चल ही जाएगा। डॉक्टर साहब जोश-जोश में चले तो गए हैं, क्या पता सारा जोश ही ठंडा पड़ जाए उस रुद्रांश के सामने जाकर।" यह सोचकर कार्तिक के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई। 😏
गार्ड्स अनंत को रुद्रांश के रूम तक ले आए थे। तभी अनंत उन लोगों से बोला, "अब तुम लोग यहीं खड़े रहो और जब तक मैं ना कहूँ अंदर मत आना। ऐसे पेशेंट ज़्यादा भीड़-भाड़ देखकर और भी अग्रेसिव हो जाते हैं।" उन गार्ड्स को वहीं खड़े होने को बोलकर अनंत रुद्रांश के कमरे की तरफ बढ़ गया।
एक गार्ड धीरे से अपने साथी गार्ड के कान में बोला, "क्या डॉक्टर है यार! इसके जैसा तो आज तक कोई नहीं आया। जिसे भी पकड़कर लाए, वे सब तो पहले से ही डरे हुए थे, लेकिन यह तो..."
"लगता है यह ज़रूर हमारे छोटे बॉस का इलाज कर देगा," उस साथी गार्ड ने कहा। वे लोग ऐसे ही अनंत के बारे में कुसुर-पुसुर करते रहे।
अनंत ने कमरे का दरवाज़ा खोला तो रुद्रांश खिड़की की ओर मुँह करके खड़ा था। उसने कट स्लीव सफ़ेद रंग की ढीली सी टी-शर्ट पहनी हुई थी, जो गंदी होकर मटमैले रंग की हो चुकी थी। नीचे एक स्लेटी रंग का शॉर्ट्स था जो उसके घुटने से भी ऊपर था। कंधे तक आते अजीब से बाल, जैसे वह कई दिनों से नहाया ही ना हो।
अब यह सब तो अनंत ने देखा, चेहरा कैसा था रुद्रांश का, वह मैं बता देती हूँ: गोरा रंग, कत्थई रंग की आँखें, तीखी सी नाक, दाढ़ी-मूँछ (अब वह तो होगी ही, क्योंकि वह पास तो किसी को आने ही नहीं देता था, फिर शेव कौन करेगा?) और सूखे से होंठ।
अनंत ने जब दरवाज़ा खोला तो उसके खुलने की आवाज़ से ही रुद्रांश के चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए और वह बिना उसकी ओर पलटे ही जोर से चिल्लाया, "जो भी हो, चले जाओ यहाँ से..."
उसकी यह गरजती हुई सी आवाज़ सुनकर एक पल के लिए अनंत का कलेजा भी कांप उठा, लेकिन वह फिर भी हिम्मत करके दरवाज़े पर ही खड़ा रहा। रुद्रांश ने अब भी पलटकर नहीं देखा था, वह वैसे ही खड़ा था। अनंत ने धीरे से अपना कदम बढ़ाया और कमरे के अंदर आ गया और उस दरवाज़े को फिर से बंद कर दिया।
फिर से उस दरवाज़े की आवाज़ सुनकर रुद्रांश को बहुत तेज़ गुस्सा आया और उसने वहाँ टेबल पर रखा काँच का ग्लास उठाकर बिना देखे ही पीछे की तरफ फेंक दिया, जो दीवार पर लगा, लेकिन उसका एक टुकड़ा उड़कर अनंत के माथे पर लग गया, जिससे थोड़ा खून बह निकला। उसने अपने माथे पर हाथ रख लिया और उससे बहते खून को देखने लगा।
बाहर जब गार्ड्स ने काँच के ग्लास की आवाज़ सुनी तो वे अंदर आने के लिए आगे बढ़े, लेकिन फिर अनंत की बात याद आते ही रुक गए कि उसने कहा था कि जब तक वह ना कहे कोई अंदर ना आए।
अनंत ने अपने माथे से बहता हुआ खून देखा, फिर रुद्रांश की ओर देखने लगा और मन ही मन बोला, "इसे कैसे पता चला कि मैं अभी तक यहीं हूँ, जबकि मैं तो बहुत धीमे कदमों से अंदर आया था?" यह सोचते हुए वह रुद्रांश की ओर बढ़ने लगा।
उसके कदमों की आहट को अपने पास आता महसूस कर रुद्रांश ने गुस्से में अपने सामने रखी टेबल को पकड़कर जोर से पीछे की ओर सरका दिया, जो सीधा जाकर अनंत से टकरा गई और वह दर्द से चिल्लाते हुए नीचे गिर गया, "आआआआआ........."
उसकी आवाज़ सुनकर रुद्रांश के दिल को ना जाने क्या हुआ कि उसके चेहरे पर जो गुस्से के भाव थे, वे गायब हो गए। उसने पलटकर अनंत की ओर देखा जो नीचे गिरा हुआ था। टेबल के टकराने पर अनंत के पैर और कमर के नीचे वाले हिस्से पर चोट लग गई थी और इस दर्द की वजह से उसकी आँखों में हल्की सी नमी आ गई थी।
अनंत को देखकर रुद्रांश तो कुछ पल के लिए कहीं खो सा गया और उसे देखता रहा। अनंत का मासूम सा चेहरा, शहद जैसी भूरी आँखें, गोरा रंग, घने काले बाल जो उसके कानों तक आ रहे थे।
अनंत ने अपनी कमर के नीचे वाले हिस्से पर हाथ रखा हुआ था। वह उठने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन चोट की वजह से उठ नहीं पा रहा था। तभी रुद्रांश उसकी तरफ बढ़ने लगा, जिसे देख अनंत को घबराहट होने लगी कि यह पागल ना जाने उसके साथ अब क्या करेगा?
रुद्रांश उसके पास आया और उसके सामने बैठ गया। अनंत का दिल घबरा तो रहा था, लेकिन फिर वह हिम्मत करके कुछ बोलने को हुआ, लेकिन तभी रुद्रांश ने उसे अपनी गोद में उठा लिया, जिस पर अनंत के आश्चर्य का तो ठिकाना ही नहीं रहा। रुद्रांश ने उसे अपने बेड पर लाकर बिठा दिया और उस टेबल के पास जाकर ड्रॉवर खोल उसमें कुछ ढूँढने लगा।
अनंत भी उसे देख रहा था और यह समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर वह ढूँढ क्या रहा है? तभी रुद्रांश ने एक डेटॉल की शीशी और थोड़ी सी रुई निकाली और उसे अनंत की ओर लेकर बढ़ गया, जिसे देख अनंत और भी हैरत में पड़ गया।
रुद्रांश ने थोड़ा सा डेटॉल रुई पर लगाया और अनंत के माथे पर लगी चोट के खून को साफ करने लगा, जिस पर अनंत सिसक पड़ा। जिसे देख रुद्रांश उस पर धीरे-धीरे फूँक मारते हुए उस खून को साफ करने लगा। खून साफ करने के बाद रुद्रांश ने फिर से उस ड्रॉवर में से एक साफ रुई और एक सफ़ेद टेप निकाला और उसकी चोट पर लगा दिया।
अनंत उसे यह सब करते हुए देखता रहा और यह सब देखते-देखते ही उसके चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए। रुद्रांश उसके सामने घुटनों के बल नीचे बैठा था। उसने अनंत के पैर पर लगी चोट को देखने के लिए उसके पैर की तरफ हाथ बढ़ाया, तभी अनंत बोल पड़ा, "तुम पागल नहीं हो सकते।"
यह सुनकर रुद्रांश का हाथ वहीं रुक गया और वह अपना सिर उठाकर अनंत की ओर देखने लगा। जहाँ इस वक्त अनंत की आँखों में गुस्सा था, तो रुद्रांश की आँखों में कुछ अलग ही कशिश दिखाई दे रही थी। तभी अनंत ने रुद्रांश को धक्का दिया और गुस्से में बेड से उठकर बोला, "यह क्या मज़ाक चल रहा है मेरे साथ? जबरदस्ती पकड़कर लाया गया तुम्हारा इलाज करने के लिए, लेकिन मुझे तो नहीं लगता कि तुम पागल हो। बोलो, क्यों कर रहे हो यह सब?" उसने रुद्रांश से पूछा तो वह कुछ ना कहकर फर्श पर आराम से आलथी-पालथी मारकर बैठ गया, जिसे देख अनंत को और भी गुस्सा आने लगा। फिर वह उससे कुछ ना कहकर लड़खड़ाते हुए उसके रूम से बाहर निकल गया। रुद्रांश उसे जाते हुए देखता रहा, फिर उसने एक ठंडी आह भरी और फिर से उस खिड़की की तरफ देखने लगा।
बाहर अनंत जब उन गार्ड्स के बीच में से होकर जाने लगा तो उसे गुस्से में देखकर उन गार्ड्स को कुछ समझ नहीं आया। अक्सर सभी डॉक्टर्स डर के मारे चिल्लाते हुए रुद्रांश के कमरे से बाहर आते थे, लेकिन यह तो गुस्से में बाहर आ रहा था। यह देखकर सभी गार्ड हैरान थे, फिर वे लोग अनंत के पीछे-पीछे ही चल दिए।
नीचे आकर अनंत अशोक पर चिल्लाते हुए बोला, "यह क्या मज़ाक लगा रखा है आपने?"
यह सुनकर कार्तिक और अशोक अनंत को हैरत भरी नज़रों से देखने लगे। "क्या हुआ डॉक्टर? इतने गुस्से में क्यों हो?"
"आपका बेटा बिल्कुल ठीक है और आप कहते हो कि वह पागल है," अनंत ने यह कहा तो अशोक और कार्तिक और भी हैरान हो गए।
"यह तुम कैसे कह सकते हो कि रुद्रांश बिल्कुल ठीक है?" कार्तिक ने उससे पूछा तो अनंत अपने माथे की चोट की तरफ इशारा करते हुए बोला, "यह आपके बेटे ने मरहम-पट्टी की है मेरी, और आपने कहा था कि वह अग्रेसिव हो जाता है, हमला करता है... हाँ, वह अग्रेसिव हुआ था, उसने हमला भी किया था मुझ पर, लेकिन फिर उसने मेरी मरहम-पट्टी भी की। इससे तो साफ़-साफ़ यही पता चलता है कि वह कुछ छिपा रहा है आप लोगों से।"
अनंत की ये बातें सुनकर कार्तिक अशोक से बोला, "सर, यह डॉक्टर क्या बक रहा है? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा। हम इतने दिनों से रुद्रांश की यह हालत देख रहे हैं, हमें तो कोई सुधार नहीं दिखा, और वह हमसे क्या छिपाएगा? क्या मिलेगा उसे पागल बनकर?"
यह सुनकर अशोक भी अनंत से बोले, "हाँ डॉक्टर, मेरा बेटा भला ऐसा क्यों करेगा? क्यों वह पागल बनने की एक्टिंग करेगा?"
"यह तो आप अपने बेटे से ही पूछिए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है?" अनंत ने इतना ही कहा था कि तभी रुद्रांश सीढ़ियों से भागता हुआ आया, उसके हाथ में फर्स्ट एड बॉक्स था। वह हँसते हुए अशोक के पास आकर बोला, "देखो डैडी, आज मैं डॉक्टर बन गया, मैंने इसकी चोट पर दवा लगाई..." उसने अनंत की तरफ इशारा करके कहा।
उसकी यह बात सुनकर और यह पागलों वाली हरकत देखकर अनंत अपनी हैरान नज़रों से उसे देखने लगा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही रुद्रांश है जिसे उसने अभी थोड़ी देर पहले देखा था। रुद्रांश अपनी बच्चों जैसी आवाज़ में अशोक से बोला, "डैडी, आपको भी जब चोट लगे तो मेरे पास आ जाना, मैं ऐसे ही आपको भी दवा लगा दूँगा, ओके!" यह कहकर वह कार्तिक की तरफ पलटा, जो उसे देख जल्दी से एक कदम पीछे हो गया, जिसे देख रुद्रांश जोर से हँस दिया, "पगला सा, डर गया मेरे से, हाहाहाहाहाहा!" हँसते हुए उसने अनंत की ओर देखा, फिर अशोक की तरफ देखकर रोनी सूरत बनाते हुए बोला, "मैंने इसको दवा लगाई, लेकिन इसने मुझे धक्का दे दिया और सॉरी भी नहीं बोलकर आया।" यह कहते हुए वह बच्चों की तरह रोने लगा।
तभी अशोक रुद्रांश को चुप करवाते हुए बोले, "यह तुमसे सॉरी ज़रूर बोलेगा।" यह कहते हुए वे अनंत की तरफ ही देख रहे थे। रुद्रांश चुप हुआ और अनंत के सामने आकर बोला, "तुझे पैर पर भी चोट लगी थी ना? तो फिर उस पर बिना दवा लगाये नीचे क्यों आया? चल मेरे साथ, मैं तुझे दवा लगाता हूँ।" यह कहकर उसने अनंत का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ ले जाने लगा, लेकिन अनंत उससे अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला, "स्टॉप इट! मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ।"
"डॉक्टर!" अशोक अपनी तेज आवाज़ में बोले तो अनंत ने उनकी ओर देखा। अशोक चलते हुए उसके पास आए और कहने लगे, "यह पागल है या नहीं, इसके बारे में बाद में बात करेंगे। फिलहाल तो तुम्हें इसके साथ जाना ही होगा, वरना तुम्हारा भाई... याद है ना।"
यह सुनकर अनंत ने फिर से अपने गुस्से के घूंट को पी लिया और रुद्रांश की ओर देखने लगा, जो अपनी आँखें उचकाते हुए उसे देख रहा था। फिर मजबूर होकर अनंत उसके साथ चल दिया।
उनके जाने के बाद अशोक कार्तिक की ओर पलटे और उससे बोले, "यह कहता है मेरा बेटा पागल नहीं है, लेकिन मेरा बेटा मेरे सामने पागल बनने की एक्टिंग क्यों करेगा?"
यह सुनकर कार्तिक अपना दिमाग चलाते हुए बोला, "हो सकता है यह इस डॉक्टर की चाल हो यहाँ से जाने की। उसने सोचा होगा कि यह कह देने से आप उसे छोड़ देंगे... अब यह दिमाग का डॉक्टर है और लोगों के दिमाग से खेलना तो इसे आता ही होगा, इसलिए खेल रहा होगा हमारे भी दिमाग से ताकि हम सोच में पड़ जाएँ कि रुद्रांश पागल है या नहीं।"
"शायद तुम सही कह रहे हो कार्तिक। यह रुद्रांश का इलाज नहीं करना चाहता, इसलिए यह इसने चाल चली है हमारे साथ, लेकिन मैं भी इसकी ऐसी कोई चाल कामयाब नहीं होने दूँगा। और तुम एक काम करो, इसके भाई को भी किडनैप कर ही लो।"
"उस कोका कोला को," कार्तिक एकदम से बोला, जिसे सुनकर अशोक नासमझी भरे भाव से बोले, "क्या! कोका कोला।"
"अरे कुछ नहीं सर, वह तो मैं ऐसे ही बोल रहा था। ठीक है, मैं इसके भाई को किडनैप कर लूँगा, लेकिन आप मेरी एक बात मानेंगे," कार्तिक ने उनसे कहा।
"कौन सी बात?"
"यही कि इसके भाई को किडनैप करके मैं अपने पास रखूँगा।"
"क्यों?"
"है एक पुराना हिसाब जो मुझे उससे चुकाना है।" यह कहते हुए कार्तिक के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान थी।
"ठीक है, लेकिन जब तक यह डॉक्टर यहाँ है, तब तक इसके भाई को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए, वरना तुम्हारी खैर नहीं," अशोक ने कार्तिक को चेतावनी देने वाले लहजे में कहा।
"नो सर, मैं बहुत ही हिफ़ाज़त से रखूँगा उसे," कार्तिक ने कहा, जिसे सुनकर अशोक कुछ पल तो उसे असमंजस भरी निगाहों से देखते रहे, फिर ना में सिर हिलाते हुए वहाँ से चले गए। उनके जाने के बाद कार्तिक मन ही मन बोला, "कोका कोला, अब बताऊँगा तुझे कि मैं कहाँ का शहज़ादा हूँ।" यह कहकर वह शैतानी तरीके से मुस्कुरा दिया।
जारी है.....
(कोकून बॉयज़ होस्टल)
नील अपना सामान पैक कर रहा था। तभी वैदिक और शमन उसके कमरे में आए और हैरान होकर बोले, "ये कहाँ जा रहा है तू?" वैदिक ने पूछा।
"मैं अपने ब्रो के पास रहने जा रहा हूँ।" नील ने उनकी ओर देखे बिना ही कहा।
"व्हाट? लेकिन तूने तो कहा था कि तू एग्ज़ाम होने के बाद उनके साथ रहेगा और अभी तो हमारे दो सब्जेक्ट्स के एग्ज़ाम बाकी हैं जो 20 डेज़ के बाद होंगे।" शमन ने कहा।
नील उन दोनों की तरफ देखते हुए बोला, "हाँ, कहा था क्योंकि मैं भी अपने ब्रो को सरप्राईज़ देना चाहता था। जिस तरह उन्होंने अचानक से लंदन से वापस आकर मुझे सरप्राईज़ दिया, उसी तरह अब मैं भी अचानक से घर जाकर उन्हें सरप्राईज़ दूँगा।" उसने खुशी से चहकते हुए कहा।
ये सुनकर वैदिक और शमन एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। फिर नील की तरफ देखते हुए बोले, "हमें तो लगा था कि तू अपने ब्रो से बस फॉर्मेलिटी पूरी करता है, तुझे उनकी कोई परवाह नहीं है।" वैदिक बोला।
"किसने कह दिया मुझे उनकी परवाह नहीं है? बचपन से ही मेरे ब्रो और मेरे बिग ब्रो मेरे लिए मेरी जान हैं, जिनके लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ।" नील ने कहा।
ये सुनकर वैदिक और शमन उसे और भी हैरानी से देखने लगे। लेकिन फिर कुछ देर बाद हँसते हुए बोले, "अच्छा चल ठीक है, तेरे अंदर इतना प्यार है। लेकिन हम दुश्मनों को भूल मत जाना।" शमन ने बत्तीसी चमकाते हुए कहा।
"ये भी कोई कहने की बात है? दुश्मन हूँ दोस्त नहीं, जो इतनी आसानी से तुम दोनों को भूल जाऊँगा। और अभी हमारे एग्ज़ाम चल रहे हैं, बस बीच में ये 20 दिन का गैप आ गया है और मेरा घर यहाँ से ज़्यादा दूर तो नहीं है, इसलिए तुम दोनों मुझसे कभी भी मिलने आ सकते हो, मेरे दुश्मनों।" नील ने उन दोनों से हँसकर कहा।
ये सुनकर शमन और वैदिक को हँसी आ गई और वे तीनों हँसते हुए ही एक साथ गले लग गए। अब इस नील महाशय को क्या पता कि जिस ब्रो के पास ये रहने जा रहे हैं, उनका तो अपहरण हो चुका है।
इधर शान्तनु जब अपने हॉस्पिटल से बाहर निकला, तो उसने देखा कि उसकी कार का टायर पंचर था। "शिट...एक तो वैसे ही आज मैं लेट हूँ और अब ये टायर भी पंचर है, चलो पैदल ही यात्रा करते हैं।" ये कहते हुए वह पैदल ही अपने घर की ओर चल दिया।
रात का अंधेरा, कंपकपाती सर्द हवाओं के बीच वह सुनसान रास्ते पर चला जा रहा था। तभी उसके साइड में निर्भय की जीप आकर रुकी। "हैल्लो, शान...तनु!" उसने बड़े ही अतरंगी अंदाज़ में शान्तनु को पुकारा।
शान्तनु ने एक नज़र निर्भय की ओर देखा, फिर ना में सिर हिलाते हुए आगे बढ़ गया। निर्भय भी अपनी जीप को धीरे-धीरे चलाते हुए उसके साथ ही चलने लगा और बोला, "लगता है डॉक्टर साहब की कार बीमार हो गई है, चलो मैं लिफ्ट दे देता हूँ।"
"मेरा घर इतना भी दूर नहीं है।" शान्तनु ने चलते हुए ही कहा।
"अगर दूर नहीं है तो फिर कार ही क्यों ले रखी है? पैदल ही आ जाया कर हॉस्पिटल।" ये कहकर निर्भय हँस दिया।
"मेरी मर्ज़ी, मैं हॉस्पिटल कार में आऊँ या हवाई जहाज़ में, तुझसे मतलब!" शान्तनु ने कहा।
"अपनी मर्ज़ी बहुत चलाता है, लेकिन याद रखना एक दिन वो भी आएगा जब तुझ पर सिर्फ़ मेरी मर्ज़ी चलेगी।" निर्भय की यह बात सुनकर शान्तनु ने गुस्से भरी निगाहों से उसे देखा और उसकी जीप की तरफ़ आते हुए बोला, "रुक......"
ये सुनकर निर्भय ने भी जीप रोक दी। शान्तनु उसकी जीप में घुसते हुए निर्भय के मुँह पर मुक्का मारते हुए बोला, "आगे से ये बकवास मत करना मेरे सामने, समझा!" ये कहकर वह जाने लगा तो निर्भय ने भी उसे पकड़कर सीट से लगा दिया और उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा लाकर बोला, "जा कहाँ रहा है पहले? जो मुझे ये मुक्का मारा है उसका हिसाब तो देता जा।" ये कहते हुए उसने अपने होंठ शान्तनु के होंठों पर रख दिए और उसे बेतहाशा चूमने लगा। शान्तनु उससे छूटने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन निर्भय की मज़बूत पकड़ से छूटना उसके लिए नामुमकिन था।
कुछ देर बाद निर्भय ने उसे छोड़ा तो शान्तनु लंबी-लंबी साँसें ले रहा था और निर्भय को अपनी गुस्से भरी लाल आँखों से देख रहा था। शान्तनु के होंठों से खून भी निकल आया था।
तभी निर्भय अपने चेहरे पर कातिल मुस्कान सजाए उससे बोला, "आगे से मुझ पर हाथ उठाने से पहले दस बार सोच लेना। इस बार तो मैंने बस एक किस करके ही छोड़ दिया। अगर फिर कभी तूने मुझ पर हाथ उठाया तो मैं अपनी सारी हदें तोड़ दूँगा। तू जानता नहीं है मुझे, मुझसे तो मेरा बाप भी डरता है तो फिर तू क्या चीज़ है?" ये कहकर वह शैतानी तरीके से मुस्कुरा दिया और उसके पास से हटकर अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, "चल अब जीप में आ ही गया है तो लिफ्ट दे ही देता हूँ तुझे।"
"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" चिल्लाते हुए यह कहकर शान्तनु गुस्से में उसकी जीप से बाहर निकला और वहाँ से चला गया। जीप में बैठा निर्भय उसे जाते हुए देखता रहा और मन ही मन बोला, "बहुत अकड़ है तुझमें, लेकिन क्या करूँ मुझे तो तू ही पसंद है।" ये कहकर वह अपने होंठों पर अँगूठा फिराने लगा और खुद से ही बोला, "इतने दिनों से प्यार जता रहा था तब तो कुछ नहीं मिला, आज जोर आजमाया तो....." ये कहते हुए वह अपने होंठों पर अँगूठा फेरते हुए मुस्कुराने लगा।
इधर शान्तनु ने चलते हुए जब अपने होंठों पर उंगली रखकर उसे देखा तो उस पर खून था। जिसे देख शान्तनु निर्भय को कोसते हुए बोला, "साला इंसान है या जानवर? अब मैं इसकी शिकायत करूँ भी तो किससे करूँ? क्या कहूँ इसके सीनियर ऑफिसर से कि आपके इस ऑफिसर ने मुझे किस किया? इसकी तो कोई इज़्ज़त है नहीं, लेकिन मेरी इज़्ज़त का क्या होगा?" ये कहते हुए वह अपने हाथ को भी सहला रहा था जिसे निर्भय ने कसकर पकड़ लिया था।
जारी है.....
रुद्रांश के कमरे में अनंत उसके बिस्तर पर बैठा था और रुद्रांश उसके पैर पर दवा लगा रहा था। अनंत बड़े ही गौर से उसे देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि रुद्रांश की मानसिक स्थिति सचमुच खराब है या फिर यह कोई नाटक कर रहा है।
“अब यह चोट कुछ दिनों में बिल्कुल ठीक हो जाएगी।” यह कहते हुए रुद्रांश ने अनंत की ओर देखकर हँसते हुए बच्चों की तरह ताली बजाई। फिर कुछ पल बाद उसने हँसना बंद करके अपना सिर खुजाया और कुछ सोचते हुए अनंत से बोला, “तुझे तो यहाँ भी चोट लगी थी ना?”
उसने अनंत की कमर से थोड़ा नीचे वाले हिस्से पर हाथ रख दिया।
“नहीं, मैं ठीक हूँ।” अनंत एकदम से चिहुँक गया और रुद्रांश का हाथ हटाते हुए कहा।
जिसे देख रुद्रांश बोला, “नहीं, मैंने देखा था। तू जब नीचे गिरा हुआ था तो तूने यहाँ पर हाथ रखा हुआ था। लगी है ना चोट, दिखा।” यह कहते हुए उसने अनंत की शर्ट को उसकी कमर से ऊपर करना चाहा।
“वहाँ कोई चोट नहीं लगी है, मैं ठीक हूँ।” अनंत एकदम से सकपका गया और फिर से उसका हाथ हटाते हुए कहा।
यह देखकर रुद्रांश बोला, “लगता है तेरे को शर्म आ रही है। मुझे भी बहुत शर्म आती है, इसीलिए तो मैं नहाता भी नहीं हूँ। बिना कपड़ों के नहाना पड़ता है ना!”
यह कहते हुए उसने नयी-नवेली दुल्हन की तरह शरमाते हुए अपने चेहरे पर दोनों हाथ रख लिए।
उसकी यह बात सुनकर और यह हरकत देखकर एक पल के लिए अनंत को थोड़ी सी हँसी आ गई। फिर वह उसके हाथ उसके चेहरे पर से हटाते हुए बोला, “तुम्हें मेरी चोट पर दवा लगानी है ना।”
यह सुनकर रुद्रांश ने खुश होकर हाँ में सिर हिलाया।
“फिर तुम्हें अच्छे से नहाना होगा क्योंकि जब तक तुम नहीं नहाओगे तब तक मैं तुमसे दवा नहीं लगवाऊँगा।” अनंत बोला।
यह सुनकर रुद्रांश अपना निचला होंठ निकालकर उसे देखने लगा। जिसे देख अनंत को मन ही मन हँसी आ गई। तभी रुद्रांश उससे बोला, “मुझे खुद से नहाना नहीं आता और अगर मुझे कोई और नहलाता है तो मुझे शर्म आती है इसलिए मैं नहाता ही नहीं हूँ।”
“अगर तुम नहीं नहाओगे तो फिर मैं तुमसे दवा भी नहीं लगवाऊँगा।” अनंत ने फिर से यह कहा।
“ठीक है, मैं नहा लूँगा लेकिन मुझे तू नहलायेगा।” रुद्रांश कुछ सोचते हुए बोला और अनंत की तरफ उंगली पॉइंट करते हुए कहा।
“मुझसे शर्म नहीं आएगी तुम्हें?” अनंत ने उससे पूछा।
“कोई रास्ता भी तो नहीं है मेरे पास। खुद से नहाना आता नहीं है और मेरे डैडी तो हमेशा काम ही करते रहते हैं और उस पगले को तो मैं अपने पास भी ना आने दूँ।” रुद्रांश एक मजबूर इंसान की तरह कहने लगा और कार्तिक के बारे में सोचकर खिसियानी शक्ल बना ली।
“फिर मुझे क्यों अपने पास आने दिया?” इस बार अनंत ने थोड़ा सीरियसली पूछा। रुद्रांश कुछ पल उसके चेहरे की तरफ देखता रहा, फिर उसके करीब आकर उसे अपने गले से लगाते हुए बोला, “क्योंकि तू मुझे बहुत अच्छा लगा, सचमुच बहुत प्यारा है तू।”
यह कहते हुए उसने अनंत के गाल पर किस भी कर दिया।
अनंत के हाथ तो हवा में ही थे और रुद्रांश के स्पर्श से उसे कुछ अनोखा ही एहसास हो रहा था। लड़कियों के करीब तो वह कभी रहा नहीं और उसके कुछ गिने-चुने दोस्त ही थे जिनके गले लगने पर या छूने पर तो ऐसा कुछ एहसास नहीं होता था जैसा इस वक्त रुद्रांश के गले लगने पर या छूने पर हो रहा था।
फिर कुछ पल बाद अनंत ने खुद को सामान्य करते हुए रुद्रांश को खुद से दूर करते हुए कहा, “अब तुम यहाँ थोड़ी देर बैठो, पहले मैं तुम्हारी शेव करूँगा फिर तुम्हें नहलाऊँगा, ओके!”
“ओके!” रुद्रांश ने भी अच्छे बच्चों की तरह सिर हिला दिया और बिस्तर पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गया। अनंत उठकर कमरे से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद रुद्रांश ने एक ठंडी आह भरी और उसके चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान तैर गई।
इधर नील अनंत के घर पहुँचा तो दरवाज़ा खुला हुआ था। यह देखकर नील हैरान होकर खुद से ही बोला, “ब्रो, दरवाज़ा खुला ही छोड़कर सो गए क्या?”
यह कहते हुए वह अंदर आया तो सामने सोफ़े वाली कुर्सी पर ब्लैक रंग की जींस और व्हाइट रंग की टीशर्ट पर ब्लैक कलर की जैकेट पहने एक लड़का बड़े ही स्टाइल से बैठा हुआ था। वह और कोई नहीं, बल्कि कार्तिक ही था जो अब अनंत के बाद नील का अपहरण करने आया था।
उसे देख नील के तन-बदन में आग लग गई। उसने अपना सामान नीचे रखा और उससे बोला, “तू मेरे घर में क्या कर रहा है?”
“तुझे तेरे ससुराल ले जाने आया हूँ।” कार्तिक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
यह सुनकर नील का दिमाग और भी खराब हो गया।
“यह क्या बक रहा है तू? और मेरे ब्रो कहाँ हैं? ब्रो.....ब्रो.....कहाँ हो आप?” नील चारों तरफ देखते हुए अनंत को पुकारने लगा।
लेकिन फिर कोई जवाब ना मिलने पर उसने कार्तिक की ओर देखा और गुस्से में उसकी तरफ जाते हुए उसके गिरेबान को पकड़कर बोला, “बता क्या किया तूने मेरे ब्रो के साथ?...कहाँ है वो?”
कार्तिक ने उसके दोनों हाथों की तरफ देखा और उससे बोला, “आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई जो कार्तिक रायज़ादा के गिरेबान पर हाथ डाले।” यह कहकर उसने नील के हाथों को पकड़कर झटके से हटा दिया।
यह सुनकर नील भी बोला, “उस दिन तो मेरे दोस्त मुझे उठाकर ले गए लेकिन आज तू मुझसे नहीं बच पाएगा।”
“बचेगा तो आज तू नहीं मेरे हाथों से। तेरा सारा घमंड मैं आज चूर-चूर कर दूँगा और फिर तुझे अपने साथ लेकर जाऊँगा।” कार्तिक ने खतरनाक तरीके से मुस्कुराकर कहा।
कार्तिक की ये बातें सुनकर नील ने उसके मुँह पर मुक्का मारना चाहा। लेकिन कार्तिक ने उसका हाथ बीच में ही पकड़ लिया और उसे घुमाते हुए उसकी गर्दन पर अपनी बाँह लपेट ली।
“अपनी क्षमता देखकर ही सामने वाले पर वार करना चाहिए।” कार्तिक ने एक तरह से उसका मज़ाक उड़ाकर कहा।
नील अपनी गर्दन पर से उसकी बाँह हटाने की पूरी कोशिश कर रहा था, लेकिन हटा नहीं पा रहा था। तभी उसने कार्तिक के पैर पर अपना पैर मारते हुए उसके पेट में कोहनी मारी। जिससे कार्तिक की पकड़ उसकी गर्दन पर ढीली पड़ गई और नील उससे छूट गया।
उससे छूटते ही नील ने कार्तिक के पेट में जोरदार लात मारकर उसे नीचे गिरा दिया। उसे देख कार्तिक मन ही मन सोचने लगा, “मैं तो इसे यूँ ही समझ रहा था...लेकिन मैं इससे हार नहीं मान सकता।” यह सोचकर वह उठा और उसने नील के मुँह पर जोरदार मुक्का मार दिया। जिससे वह नीचे फर्श पर गिर गया।
नील ने गुस्से में उसकी ओर देखा और उठकर उसे लात मारने की कोशिश की। तो कार्तिक ने उसके पैर को ही पकड़ लिया और नील एक टांग पर ही खड़ा होकर उससे अपना पैर छुड़ाने की कोशिश करने लगा।
यह देख कार्तिक हँसते हुए बोला, “क्या हुआ कोका कोला, लंगड़ी टांग खेलना है मेरे साथ?” यह सुनकर नील को उस पर बहुत तेज गुस्सा आया। लेकिन कार्तिक ने उसका पैर इतनी मजबूती से पकड़ा हुआ था जिसे वह छुड़ा ही नहीं पा रहा था। तभी एकदम से कार्तिक ने नील का पैर छोड़ दिया और नील धड़ाम से नीचे गिर गया।
गिरने की वजह से नील को थोड़ी चोट भी लग गई थी। वह उठ नहीं पा रहा था। तभी कार्तिक मुस्कुराते हुए उसके पास आया और अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला, “देखो बबुआ! हम तुमको ज़्यादा पीटना नहीं चाहते हैं इसलिए अच्छे बच्चों की तरह चुपचाप हमारे साथ चलो।”
नील ने उसके हाथ की ओर देखा और उसे पकड़कर कार्तिक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की। लेकिन कार्तिक अपनी जगह से नहीं हिला और बोला, “ये पैंतरे बहुत पुराने हो चुके हैं, हम पर काम नहीं करेंगे।” उसने मुस्कुराकर कहा। अब नील अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा लेकिन कार्तिक ने बहुत मजबूती से उसे पकड़ा हुआ था। तभी नील ने कार्तिक के मुँह पर ही जोरदार लात मार दी और कार्तिक उससे दूर जा गिरा।
नील उठा और उसने अपने सामान की तरफ देखा जिसमें उसकी हॉकी भी थी। नील अपने कॉलेज में हॉकी का चैंपियन है। उसने अपनी हॉकी उठाई और उसे लेकर कार्तिक की तरफ बढ़ गया। कार्तिक ने उसे हॉकी लेकर अपनी तरफ आता देखा तो मन ही मन बोला, “इसके भाई के लिए मैं पूरी बारात लेकर गया जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। मुझे लगा इसे तो अकेला ही पकड़ लाऊँगा लेकिन ये तो छोटा पैकेट बड़ा धमाका निकला.....”
वह यह सोच ही रहा था तभी नील ने उसके पास आकर चिल्लाते हुए उस पर हॉकी से वार करना चाहा। तो कार्तिक लेटे हुए ही पलट गया जिससे नील का वार खाली चला गया।
इसी तरह बार-बार नील हॉकी से वार करता रहा और कार्तिक बार-बार पलटता रहा। तभी कार्तिक ने नीचे बिछे कालीन को खींच दिया जिससे उसके ऊपर खड़ा नील नीचे गिर गया और उसके हाथ से हॉकी भी छूट गई।
नील ने उठना चाहा लेकिन उससे पहले ही कार्तिक जल्दी से उठकर उसके ऊपर आ गया और उसके दोनों हाथों को कसकर पकड़ लिया।
“छोड़ मुझे.....छोड़....” नील उससे छूटने की भरपूर कोशिश कर रहा था। तभी कार्तिक ने उसके मुँह पर दो-चार मुक्के लगातार मारे जिससे नील बेहोश हो गया। उसकी नाक और होंठों के किनारे से खून भी निकल आया था।
उसके बेहोश होने के बाद कार्तिक ने उसकी नाक के नीचे उंगली रखकर देखा, “मर तो नहीं गया ना..!” यह कहते हुए उसने उसके सीने पर सिर रखकर उसकी धड़कनों को चेक किया।
“थैंक गॉड! धड़कन चल रही है कोका कोला की।” यह कहकर वह नील के ऊपर से हटा और उसके साइड में लेटकर हाँफते हुए लम्बी-लम्बी साँसें लेकर बोला, “ओह गॉड! क्या आफ़त है यह?”
यह कहते हुए उसने नील की तरफ देखा जो अब बेहोश पड़ा हुआ था। उसे देख कार्तिक जल्दी से उठा और नील को अपने कंधे पर उठा लिया और उसे लेकर चलते हुए बोला, “ऐसी विदाई किसी की ना हुई होगी अपने घर से।” यह कहकर वह हँस दिया।
“चल मेरे कोका कोला अपने ससुराल।” यह कहते हुए वह नील को लेकर वहाँ से चला गया।
जारी है......
अनंत रुद्रांश की शेव कर रहा था। उसने शेविंग क्रीम लगा दी थी, लेकिन जब उसने शेव करने के लिए रेज़र निकाला, तो उसे देख रुद्रांश घबराकर बोला, "इससे तो मेरे को चोट लग जाएगी।"
"अरे नहीं लगेगी, मैं बहुत आराम से करूँगा। और फिर तुम तो डॉक्टर हो, और डॉक्टर चोट से बिल्कुल नहीं डरते क्योंकि उनके पास तो हर चोट की दवा होती है ना," अनंत ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा।
"अरे हाँ… मैं तो भूल ही गया था कि मैं तो डॉक्टर हूँ, मेरे पास तो हर चोट की दवा है… ठीक है! तू लगा इसे, और मेरे को चोट जरूर लगनी चाहिए, अगर नहीं लगी तो मैं फिर दवा कैसे लगाऊँगा," रुद्रांश बोला।
ये सुनकर अनंत को पहले तो मन ही मन हँसी आई। फिर मुस्कुराकर बोला, "हाँ हाँ ठीक है।" ये कहते हुए उसने उस रेज़र से रुद्रांश की शेव करना शुरू किया। अनंत का सारा ध्यान तो उसकी शेव करने पर था, लेकिन रुद्रांश का सारा ध्यान अनंत के चेहरे पर था।
रुद्रांश बहुत ही गौर से अनंत के चेहरे को देख रहा था। तभी उसकी नज़र उसके नरम और सुर्ख गुलाबी होंठों पर पड़ी। जिसे देख रुद्रांश के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, और उसके हाथ धीरे-धीरे अनंत की कमर पर आ गए।
अनंत को जब उसके हाथ अपनी कमर पर महसूस हुए, तो एकदम से उसके हाथ से रेज़र छूटकर नीचे गिर गया। अनंत उससे दूर हटा और नीचे गिरे रेज़र को उठाने लगा। ऊपर बेड पर बैठे रुद्रांश ने अपनी मुट्ठियाँ भींचते हुए अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं।
अनंत ने नीचे गिरा रेज़र उठाया और फिर से रुद्रांश के चेहरे की ओर देखा, जो अपनी आँखें कसकर बंद किए हुए था। उसे देख अनंत अपने मन में सोचने लगा, "ये कभी-कभी ऐसा अजीब बिहेव क्यों करता है मेरे साथ? आखिर क्या चाहता है ये मुझसे?"
तभी रुद्रांश ने अपनी आँखें खोलीं और अनंत को देखते हुए बोला, "उठा लिया! अब कर जल्दी।" उसने अपने चेहरे की तरफ इशारा करके कहा। जिसे देख अनंत फिर से उसकी शेव करने लगा।
शेव करने के बाद अनंत ने रुद्रांश का चेहरा तौलिये से साफ किया। उसे देखकर वो एक पल के लिए देखता ही रह गया, कितना हैंडसम लग रहा था वो।
तभी रुद्रांश बेड पर ही खड़ा हुआ और सामने लगे शीशे की ओर देखकर बोला, "ये मैं हूँ।" वो खुद के चेहरे पर हाथ लगाते हुए बोला। फिर वो हँसते हुए ही अजीब-अजीब सी शक्ल बनाकर खुद को उस शीशे में देखने लगा। अनंत उसकी सारी हरकतें नोटिस कर रहा था।
"चलो अब बाथरूम में जाकर नहा लो," अनंत ने उससे कहा।
"आज रहने दे, कल नहा लूँगा," रुद्रांश उसकी तरफ देखते हुए बोला।
"नहीं, आज ही नहाना होगा। याद नहीं, तुमने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें नहलाऊँ तो नहाओगे," अनंत ने उसे याद दिलाया। तो रुद्रांश बच्चों की तरह मुँह बनाते हुए हाँ में सिर हिलाने लगा।
फिर अनंत ने उसकी टीशर्ट उतारना चाही, तो रुद्रांश एकदम से उछलते हुए पीछे हट गया।
"अब क्या हुआ?" अनंत ने पूछा।
"पहले अपनी आँखें बंद कर, फिर उतारना," रुद्रांश उससे बोला।
ये सुनकर अनंत ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और रुद्रांश की टीशर्ट उतार दी। फिर वो उसे बाथरूम में ले गया और उसके लिए पानी तैयार करने लगा।
रुद्रांश तो चुपचाप खड़ा अनंत को ही देख रहा था, जो गर्म पानी में ठंडा पानी मिला रहा था। उसके बाद अनंत रुद्रांश की ओर पलटा। रुद्रांश ने आँखों की तरफ इशारा किया, तो अनंत ने फिर से आँखें बंद कर लीं।
अनंत ने रुद्रांश को एक जगह बैठाया और उसके सिर पर पानी डालकर उसे नहलाना शुरू किया। वैसे रुद्रांश ने अनंत से तो आँखें बंद करने को बोल दिया, लेकिन खुद उसे बिना पलकें झपकाए देखे जा रहा था।
अनंत ने रुद्रांश के बालों को अच्छे से धोया, फिर उसके पूरे शरीर पर साबुन लगाने लगा। अनंत के हाथों का स्पर्श रुद्रांश को बहुत अच्छा लग रहा था, उसे हल्की-हल्की गुदगुदी भी हो रही थी, जिससे वो कभी-कभी हँस भी जाता था। अनंत ने उसके पूरे शरीर पर पानी डाला और साबुन को भी अच्छे से साफ किया।
उसे नहलाने के बाद अनंत बोला, "तुम यहीं रुको, मैं तुम्हारे लिए बाथरोब लेकर आता हूँ।" ये कहते वक्त भी उसकी आँखें बंद थीं। वो वहाँ से जाने के लिए पलटा, तो पीछे से रुद्रांश ने पानी से भरी बाल्टी उठाकर अनंत पर डाल दी, जिससे अनंत पूरी तरह गीला हो गया। वो एकदम से रुद्रांश की ओर पलटते हुए बोला, "ये क्या किया तुमने?" इस बार उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन उसकी नज़र नीचे पड़ती, उससे पहले ही रुद्रांश ने उस बाल्टी को अपने सामने कर लिया था।
"आँखें बंद कर," उसने अनंत से आँखें बंद करने को कहा। तो अनंत ने भी उसकी बात मानते हुए आँखें बंद कर लीं।
"मुझे गीला क्यों कर दिया तुमने?" अनंत ने पूछा।
"तूने मेरे को नहलाया, मैंने तेरे को नहला दिया…हाहाहाहाहाहा," रुद्रांश हँसते हुए बोला।
ये सुनकर अनंत ना में सिर हिलाते हुए वहाँ से चला गया और रुद्रांश के लिए बाथरोब लेकर आया। "ये लो पहनो इसे।"
रुद्रांश ने वो बाथरोब लेकर पहन लिया। तभी अनंत ने अपनी आँखें खोलीं और रुद्रांश को देखा, जिसने बाथरोब पहन तो लिया था, लेकिन उसे बांधा नहीं था। अनंत ने उसे बांध दिया और रुद्रांश से बोला, "अब बाहर जाकर आराम से बैठो, मैं अभी आता हूँ और कोई शैतानी मत करना, ओके!"
"ओके!" रुद्रांश अच्छे बच्चों की तरह उसकी बात मानते हुए बाहर चला गया।
अनंत के कपड़े गीले हो चुके थे, जिनसे पानी टपक रहा था और उसे ठंड भी लग रही थी। उसने अपने कपड़े उतार दिए और वहीं बाथरूम में पाइप पर लटका दिए। अब उसके पास पहनने को तो कुछ था नहीं, और बाथरोब भी उसने रुद्रांश को दे दिया था। फिर उसने वहाँ रखी टॉवल को ही लपेट लिया और बाथरूम से बाहर आ गया।
बाहर आया तो उसने देखा कि रुद्रांश कमरे में नहीं था। "ये कहाँ चला गया?" ये कहते हुए वो बेड के पास आकर खड़ा हो गया। वो इधर-उधर देख ही रहा था कि तभी पीछे से रुद्रांश ने धीरे से अनंत की कमर में अपने दोनों हाथ डाल लिए, जिस पर अनंत एकदम से सकपका गया और उसकी तरफ पलटते हुए उससे दूर हुआ, तो बेड पर ही गिर गया।
रुद्रांश भी उसके पास बेड पर ही बैठ गया और उसकी गर्दन तक अपना चेहरा ले जाते हुए गहरी साँस भरते हुए बोला, "तेरी खुशबू कितनी अच्छी है।" उसे अपने इतना करीब देख अनंत ने गला तर कर लिया और उसे दूर करते हुए बोला, "तुम अभी तक बाथरोब में ही हो, कपड़े क्यों नहीं पहने?"
रुद्रांश ने उसकी तरफ देखा। "कहाँ से पहनता? मुझे तो पता ही नहीं मेरे कपड़े कहाँ रखे हैं?" ये कहकर उसने कंधे उचका दिए।
ये सुनकर अनंत ने वहाँ रखी अलमारी की तरफ देखकर कहा, "उसमें होंगे तुम्हारे कपड़े।"
रुद्रांश ने उस अलमारी की ओर देखा और बोला, "लेकिन वो खुलती नहीं है मुझसे।"
"तुम्हें खोलनी नहीं आती होगी, मैं खोलता हूँ।" ये कहकर अनंत उस बेड से उठा और उस अलमारी के पास जाकर उसे खोलने लगा। रुद्रांश बेड पर बैठा अनंत को ही देख रहा था। तभी अनंत ने अलमारी खोली और उसमें से कपड़े निकालने लगा। उसने एक रेड टीशर्ट और ब्लैक कलर की पैंट निकाली और उसे लेकर रुद्रांश की ओर बढ़ गया। "ये लो तुम्हारे कपड़े, पहन लो," उसने रुद्रांश को कपड़े देते हुए कहा।
रुद्रांश ने वो कपड़े लिए और उन्हें देखने लगा। तभी अनंत उससे बोला, "तुम्हें ये खुद पहनने होंगे।"
रुद्रांश अब उसकी सारी बातें मान रहा था, इसलिए ये बात भी मान ली और वो कपड़े पहनने लगा। अनंत ने आँखें बंद करके चेहरा दूसरी तरफ कर लिया था।
"ये देख! मैंने पहन लिए," रुद्रांश खुश होकर बोला।
अनंत ने उसकी ओर देखा तो अपना माथा पीट लिया, क्योंकि रुद्रांश ने टीशर्ट उल्टी पहन ली थी और पैंट की ज़िप और बटन भी नहीं लगाए थे।
अनंत उसके पास आया और बोला, "ये तुमने उल्टी टीशर्ट पहनी है, उतारो इसे।" ये कहकर उसने उसकी टीशर्ट उतारी और उसे सीधा करके उसे पहनाया। फिर उसने उसकी पैंट की ज़िप और बटन को भी बंद कर दिया। इस वक्त रुद्रांश रोनी सूरत बनाए अपनी आँखें कसकर बंद किए खड़ा था। तभी अनंत ने उसके चेहरे की ओर देखा, तो रुद्रांश की रोनी सूरत देखकर बोला, "अब ऐसी शक्ल क्यों बना रखी है?"
ये सुनकर रुद्रांश रोनी सूरत बनाए ही उससे बोला, "इस बार तूने आँखें बंद नहीं की और मुझे देख लिया… अब मैं भी तुझे देखूँगा।" ये कहकर उसने अनंत की टॉवल खींचकर निकाल ली, जिस पर अनंत की आँखें हैरानी से खुली रह गईं। लेकिन फिर उसने उस टॉवल को ही रुद्रांश के हाथ से खींचकर उसके चेहरे पर डाल दिया और उसे बेड पर धक्का देकर खुद जल्दी से बाथरूम में घुस गया।
बेड पर गिरे रुद्रांश ने अपने चेहरे से टॉवल हटाया और जोर-जोर से हँसने लगा। अंदर खड़ा अनंत उसके हँसने की आवाज सुनकर बोला, "ये कहाँ फंस गया हूँ मैं, क्या करूँ? ये तो बहुत ही अजीब है, मेरे साथ ऐसी हरकतें क्यों करता है ये?" फिर उसने वहाँ रखे अपने गीले कपड़ों की तरफ देखा, जो वहाँ लटके हुए थे। वैसे वो अब भी गीले थे, लेकिन उनसे पानी नहीं टपक रहा था। अनंत ने उन्हीं कपड़ों को वापस पहन लिया।
वो जब बाहर आया तो उसने देखा कि रुद्रांश बेड पर सो रहा था। अनंत उसके पास गया और उसके चेहरे को गौर से देखने लगा। दिखने में तो वो काफी शरीफ और मासूम लग रहा था।
अनंत अपने मन में सोचने लगा, "शायद तुम्हें प्यार की ज़रूरत है और वो तुम मुझसे चाहते हो… लेकिन एक डॉक्टर का काम तो बस अपने पेशेंट का इलाज करना है, उससे प्यार करना नहीं।" ये सोचते हुए उसने रुद्रांश को चादर ओढ़ाई और उसके कमरे से बाहर निकल गया।
इधर इंस्पेक्टर निर्भय अपने कमरे में बेड पर लेटा छत की सीलिंग को ताक रहा था और डॉक्टर शान्तनु के बारे में ही सोच रहा था। "मुझे उसे जबरदस्ती किस नहीं करना चाहिए था। पहले तो वो बस मुझसे चिढ़ता था, लेकिन मेरी इस हरकत के बाद तो वो शायद मुझसे नफ़रत करने लगेगा। जो हुआ वो ठीक नहीं था, अब क्या करूँ मैं…?" ये कहते हुए उसने अपने बालों को नोच डाला।
कुछ लोगों को बाद में समझ आता है कि उन्होंने जो किया वो नहीं करना चाहिए था, लेकिन अब निर्भय पछताने के अलावा कर भी क्या सकता था? अब तो ये शान्तनु के ऊपर है कि वो क्या सोच रहा होगा निर्भय के बारे में?
यहाँ शान्तनु अपने कमरे में बैठा बार-बार अपने होंठों पर उंगली फेर रहा था, और वो भी निर्भय के बारे में ही सोच रहा था। "ऐसा कैसे कर सकता है वो? पहले तो मुझे लगता था कि वो बस मेरे साथ फ़्लर्ट करता है, लेकिन आज उसकी आँखों में कुछ अलग ही जुनून था मेरे लिए। क्या वो सच में मुझसे प्यार करता है?… ओह गॉड! मैं भी क्या-क्या सोचता हूँ?" ये सोचते हुए उसने कमरे की लाइट बंद की और चादर ओढ़कर सो गया।
लेकिन वो जब भी आँखें बंद करता, उसके सामने वही सीन आ जाता जब निर्भय ने उसे जबरदस्ती किस किया। वो झल्लाते हुए फिर से उठकर बैठ गया। "इस इंस्पेक्टर ने तो नाक में दम कर दिया है मेरे, दिन में भी चैन नहीं लेने देता और अब रात को भी नहीं सोने दे रहा, ठरकी कहीं का।" उसने खिसियाते हुए कहा और अपने बालों को नोच डाला।
जारी है…
कार्तिक नील को अपने घर ले आया था। उसका घर पहाड़ की खूबसूरत वादियों के बीच था। घर ज़्यादा बड़ा तो नहीं था, लेकिन खूबसूरत बहुत था। काफी शांत इलाके में था उसका घर, और उसके घर के पीछे एक खूबसूरत सा झरना था और एक बड़ी सी नदी बहती थी।
कार्तिक ने नील को अपने कमरे में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। नील अब भी बेहोश था। कार्तिक ने उसके चेहरे को देखा। फिर बाहर जाकर दूसरे कमरे से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आया और उसमें से रुई निकालकर नील के होंठों के किनारे और उसकी नाक से बहते हुए खून को साफ करने लगा।
"कितना कहा मैंने कि चुपचाप मेरे साथ चल, लेकिन नहीं... तुझे तो फ़ाइटिंग करनी थी ना मेरे साथ? फिर बता मैं क्या करता?... मजबूरी में पीटना पड़ा तुझे क्योंकि मुझे किसी से हारना अच्छा नहीं लगता।"
तभी नील की पलकें हिलने लगीं। इसे देख कार्तिक ने उसके चेहरे से रुई हटा ली। नील ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं। लेकिन अपने सामने कार्तिक को देख उसके चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए।
"तू अब तक यहीं है, गया नहीं यहाँ से?" नील ने उस पर चिल्लाते हुए उठने की कोशिश की, लेकिन दर्द की वजह से उठ नहीं पाया।
"मैं कहाँ जाऊँगा यहाँ से, घर तो मेरा ही है।" कार्तिक मुस्कुराते हुए बोला। यह सुनकर नील ने चारों ओर नज़रें घुमाईं और कार्तिक की ओर देखकर बोला, "इसका मतलब तू मुझे.......
"हाँ कोका कोला, मैं ले आया तुझे तेरे ससुराल।" कार्तिक उसके करीब आकर बोला। इसे देख नील बिस्तर के सिरहाने पर ही टिक गया। उसे देख कार्तिक शैतानी तरीके से मुस्कुराते हुए बोला, "अब तू मेरे घर में है और मेरा यह घर ऐसे सुनसान इलाके में है जिसके बारे में किसी को पता नहीं। इसलिए अगर तूने ज़्यादा होशियारी दिखाई तो मैं तेरे साथ क्या-क्या कर सकता हूँ, तू सोच भी नहीं सकता।" उसने नील के चेहरे पर अपनी नज़रें जमाई हुई थीं।
यह सुनकर नील ने कार्तिक के सीने पर हाथ रखते हुए उसे खुद से दूर किया और कहने लगा, "तू क्या समझ रहा है? तेरी इन बातों से मैं डर जाऊँगा? तुझे तो मैं....... " ये कहते हुए नील ने उसे मारने के लिए अपने हाथ उठाए। तो कार्तिक ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे फिर से बिस्तर के सिरहाने से टिकाते हुए बोला, "देख अब कोई फ़ाइट नहीं। मैंने पहले भी कहा था कि मैं तुझे पीटना नहीं चाहता, लेकिन तूने मुझे मजबूर किया। और अगर अब तूने फिर भी मुझसे फ़ाइट करने की कोशिश की तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा।"
"लेकिन तू मुझे यहाँ क्यों लाया है और मेरे ब्रो कहाँ हैं?" नील ने उससे पूछा। तो कार्तिक मुस्कुराते हुए बोला, "तेरे ब्रो जहाँ भी हैं, बिल्कुल सही-सलामत हैं। एक पेशेंट का इलाज करने गए हैं। जब वह ठीक हो जाएगा तो वह वापस आ जाएँगे। फिर मैं तुझे भी छोड़ दूँगा। लेकिन तब तक अच्छे बच्चों की तरह मेरे साथ रह, कोका कोला!" उसने यह कहकर नील को छोड़ दिया और कमरे के बाहर जाने लगा। फिर दरवाजे तक पहुँचकर उसकी ओर पलटते हुए बोला, "ठंडा, गरम... कुछ पियेगा?"
"तेरा खून।" नील ने कहा। तो कार्तिक जोर से हँस दिया। "वो तो बहुत गरम है, तेरा मुँह जल जाएगा।" उसने हँसते हुए ही कहा और उस कमरे के दरवाजे को बाहर से लॉक करके वहाँ से चला गया।
उसके जाते ही नील बिस्तर से जैसे-तैसे उठा और इधर-उधर देखने लगा। तभी उसकी नज़र उस कमरे की खिड़की पर पड़ी। उसने उस खिड़की के पास जाकर वहाँ से झाँका तो उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह कौन सी जगह है। "यह कहाँ लाया है मुझे? मैंने तो कभी यह जगह नहीं देखी और मेरे ब्रो को भी ना जाने कहाँ रखा होगा इसने? मुझे कैसे भी करके यहाँ से निकलना ही होगा।"
नील का पूरा शरीर दर्द कर रहा था जिस कारण उससे ज़्यादा देर खड़ा नहीं रहा गया। वह धीरे-धीरे चलते हुए फिर से बिस्तर पर आकर बैठ गया।
कुछ देर बाद कार्तिक जब वापस कमरे में आया तो उसने देखा नील बिस्तर पर सो रहा था। कार्तिक उसके पास आया और खुद से ही बोला, "मैं इसे खाने के लिए बुलाने आया और यह है कि सो रहा है... ऐ उठ! खाना खा ले।" उसने नील का पैर हिलाते हुए कहा। तो नील उनींदी सी आवाज़ में बोला, "तेरे घर का तो पानी भी नहीं पीऊँगा।"
"क्यों? अपनी बेटी ब्याह रखी है क्या तूने मेरे घर में जो पानी भी नहीं पियेगा?" कार्तिक ने कहा।
यह सुनकर नील ने अपनी आँखें खोलीं और उससे बोला, "मुझे तुझ पर यकीन नहीं, इसलिए मैं ना तो कुछ पीऊँगा और ना ही खाऊँगा।" यह कहकर उसने फिर से आँखें बंद कर लीं।
यह सुनकर कार्तिक भी बोला, "ठीक है मत खा, मुझे भी तेरी खुशामद करने का कोई शौक नहीं है।" यह कहकर कार्तिक वहाँ से चला गया।
कार्तिक खाना खा रहा था। उसने एक-दो निवाले खाए, लेकिन फिर उसका मन नहीं किया। उसने खाना ढककर रख दिया। वह कुछ देर वहीं बैठा रहा, फिर उठकर अपने कमरे की तरफ चल दिया।
वह कमरे में आया तो उसने देखा नील अब गहरी नींद में सो चुका था। कार्तिक ने उसे बिस्तर पर ढंग से लिटाया और उसे गरम रजाई ओढ़ा दी। उसे रजाई ओढ़ाने के बाद वह उसके सिरहाने बैठा और उसके चेहरे की तरफ देखकर बोला, "कई लोगों की पिटाई की है मैंने, लेकिन कभी किसी के लिए पछतावा या दुख महसूस नहीं किया... लेकिन आज ना जाने क्यों तुझे पीटकर मुझे बहुत बुरा लग रहा है, खाना भी नहीं खाया गया मुझसे... क्यों हुआ यह सब?" उसने खुद से ही यह सवाल किया। वह ऐसे ही खुद से सवाल करता रहा और फिर कुछ देर बाद वहाँ से उठकर उस कमरे को लॉक करके दूसरे कमरे में सोने चला गया।
अगले दिन सुबह.......
इंस्पेक्टर निर्भय सुबह-सुबह अपने घर के गार्डन में शीर्षासन कर रहा था। शीर्षासन में सिर के बल खड़े होते हैं। तभी उसकी माँ अपने हाथ में पूजा की थाली लिए वहाँ आई तो उसे देख निर्भय नीचे हुआ और बैठ गया। उसकी माँ ने उसके सिर को सहलाया और कहने लगी, "यह तू क्या उल्टा-सीधा होता रहता है?"
"कुछ नहीं माँ! शीर्षासन कर रहा था।" निर्भय ने मुस्कुराकर कहा। उसकी माँ ने उसके माथे पर तिलक लगाया और उससे कहने लगी, "कल रात तू नींद में किसका नाम ले रहा था?"
यह सुनकर निर्भय ने अपनी माँ की ओर देखा और अनजान बनने का नाटक करते हुए पूछने लगा, "किसका नाम ले रहा था?"
यह सुनकर उसकी माँ मुस्कुराई और बोली, "मैं कल रात को दूध लेकर तेरे रूम में आई थी, लेकिन तू तब तक सो चुका था और नींद में तनु... तनु बड़बड़ा रहा था।"
यह सुनकर निर्भय ने अपने दाँतों तले जीभ दबा ली और अपना सिर खुजाने लगा। तभी उसकी माँ उसका चेहरा अपनी तरफ करते हुए बोली, "कौन है यह तनु?"
निर्भय यह सुनकर मुस्कुराया और बोला, "माँ, आपसे सुनने में थोड़ी मिस्टेक हो गई है, वह तनु नहीं बल्कि शान्तनु है।"
यह सुनकर उसकी माँ ने एकदम से अपना हाथ उसके चेहरे पर से हटा लिया। "क्या!!" वह शॉक होकर बोली। लेकिन निर्भय अब भी मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला रहा था।
"अच्छा तो वह शान्तनु तेरा दोस्त होगा, है ना!" माँ ने कहा।
"नहीं माँ!" निर्भय ने मुस्कुराते चेहरे से ही ना में सिर हिलाया और बोला, "वह मेरा प्यार है।" निर्भय सीधे और साफ़ शब्दों में मुस्कुराते हुए बोला।
"तू मेरे साथ मज़ाक कर रहा है ना?" उसकी माँ को लगा कि निर्भय मज़ाक कर रहा होगा।
"मैंने आपके साथ कभी मज़ाक किया है क्या?" निर्भय बोला।
"इसका मतलब तू सच बोल रहा है?" माँ हैरान होकर बोली।
"हाँ, ही इज़ माय लव।" निर्भय हाँ में सिर हिलाते हुए मुस्कुरा दिया। यह सुनकर उसकी माँ ने अपना सिर पीट लिया। उसे देख निर्भय उनका हाथ उनके सिर पर से हटाते हुए बोला, "देखो माँ, मेरी खुशी उसके साथ ही है और मैंने आपसे पहले भी कई बार कहा है कि मुझे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं है।"
यह सुनकर उसकी माँ ने उसे देखा और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, "मैं तो तेरी खुशी में ही खुश हूँ बेटा, लेकिन मैं तो यह सोच रही हूँ कि तेरे पापा को जब इस बारे में पता चलेगा तब क्या होगा?" उन्होंने चिंतित होते हुए कहा।
"कुछ नहीं होगा माँ, मैं क्या डरता हूँ उनसे... अरे डरते तो वह हैं मुझसे। वैसे आपके पतिदेव अभी तक सो रहे हैं क्या?" यह सुनकर उसकी माँ उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोली, "तेरे पापा हैं वह इस तरह नहीं बोलते।"
"नहीं नहीं, बोलने दो इसे, क्यों रोक रही हो तुम?" इंद्रजीत वहाँ आते हुए बोले। उन्हें देख निर्भय ने बेपरवाही से मुँह फेर लिया और उसकी माँ उठकर खड़ी हो गई।
इंद्रजीत उन दोनों के सामने आकर बोले, "इतनी इज़्ज़त तो शायद ही किसी बाप को मिली होगी अपने बेटे से।" उन्होंने निर्भय पर तंज कसते हुए कहा। जिसे सुनकर निर्भय उठकर खड़ा हुआ और उनसे बोला, "इंसान की इज़्ज़त उसके रिश्ते से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होती है और आपके सारे कर्मकांड मैं अच्छे से जानता हूँ।"
"निर्भय!" उसकी माँ ने कहा। तो निर्भय ने उनकी ओर देखा। उसकी माँ ना में सिर हिलाते हुए उसे इस तरह बात करने से मना कर रही थीं। जिसे देख निर्भय ने वहाँ रखा अपना तौलिया उठाया और उसे अपने कंधे पर डालते हुए बोला, "आप अपने पतिदेव से बात कीजिए, मैं चला नहाने।" उसने अपनी माँ से कहा और बिना अपने पिता की तरफ देखे ही वहाँ से चला गया।
इंद्रजीत उसे जाते हुए देखते रहे। "देखा मीना तुमने, कितना बदतमीज़ हो गया है यह?"
"आप दोनों के बीच हमेशा मैं पिस जाती हूँ, मुझे तो समझ ही नहीं आता कि मैं किसे समझाऊँ, उसे या आपको?" मीना परेशानी भरी सूरत बनाकर बोली और वहाँ से चली गई।
उसके जाने के बाद इंद्रजीत खुद से ही बोले, "इसे पुलिस ऑफ़िसर बनाया तो किसी और काम के लिए ही था, लेकिन यह तो बहुत ईमानदार पुलिस ऑफ़िसर निकला... ऊपर से अपने नाम की तरह ही निर्भय जो किसी से डरता ही नहीं है। मुझे तो समझ ही नहीं आता कि ऐसे बेटे पर गर्व करूँ या अपनी किस्मत पर रोऊँ।"
इधर अनंत अशोक के सामने खड़ा था और उससे रुद्रांश के बारे में कुछ सवाल कर रहा था। "आपके साथ आपके बेटे का बिहेवियर कैसा था?"
"तुम ऐसा सवाल क्यों कर रहे हो?" अशोक ने पूछा। तो अनंत बोला, "देखिए आप सवाल के बदले सवाल मत कीजिए, समझ लीजिए कि यह मेरे ट्रीटमेंट का एक पार्ट है। मुझे रुद्रांश की पिछली ज़िंदगी के बारे में सब जानना है, वह कैसा था, क्या करता था, उसका आपके और बाकी सबके साथ बिहेवियर कैसा था, वगैरह, वगैरह......??"
अशोक ने यह सुनकर कहना शुरू किया, "रुद्रांश का बिहेवियर मेरे साथ बहुत अच्छा था। मेरा सारा बिज़नेस वही संभालता था। बिज़नेस रिलेटेड काम में हर बार मेरी सलाह लेता था। मेरी हर बात मानता था और बाकी लोगों के साथ भी उसका बिहेवियर अच्छा ही था। बस वह किसी से ज़्यादा बातें नहीं करता था। काफी शांत और सीरियस पर्सनैलिटी थी उसकी।"
"उसके कोई दोस्त वगैरह?" अनंत ने पूछा।
"नहीं, उसके ज़्यादा दोस्त नहीं थे। स्कूल और कॉलेज टाइम पर कुछ दोस्त थे जो समय के साथ पीछे छूट गए।"
अशोक की ये बातें सुनकर अनंत कुछ सोच-विचार करने लगा। फिर उनसे बोला, "बिज़नेस के अलावा भी कोई चीज़ थी जो वह करता हो, उसे पसंद हो?"
यह सुनकर अशोक बोले, "बिज़नेस के अलावा उसे सिंगिंग का ही शौक था। रात में अपने कमरे में बैठा गिटार लिए कुछ ना कुछ गुनगुनाता ही रहता था।"
इसी तरह अनंत उनसे रुद्रांश के बारे में सवाल करता रहा और वह जवाब देते रहे। आखिर में अनंत उनसे बोला, "मुझे रुद्रांश के रूम का इनवायरंमेंट चेंज करवाना है।"
"ठीक है, तुम जैसा चाहोगे वैसा हो जाएगा।" अशोक ने यह कहकर अपने कुछ सर्वेन्ट्स को वहाँ बुलाया और अनंत के अनुसार रुद्रांश के रूम का इनवायरंमेंट चेंज करवाने का ऑर्डर दे दिया।
उसके बाद अनंत अपने रूम में आ गया जो रुद्रांश के रूम के बगल में ही था। अशोक ने उसे रहने के लिए यही रूम दिया था। अनंत जब रूम के अंदर आया तो उसने देखा कि रुद्रांश सामने बिस्तर पर बैठा था। उसे देख वह बिस्तर से उठा और जल्दी से आकर उसे अपने गले से लगाते हुए बोला, "कहाँ चला गया था तू?" उसके इस तरह अचानक से गले लगने पर अनंत थोड़ा अनबैलेंस हो गया था और उसके हाथ हवा में ही रह गए थे। फिर वह रुद्रांश को खुद से दूर करते हुए बोला, "नीचे ही गया था तुम्हारे डैडी से कुछ बात करने और तुम कमरे से बाहर कैसे आ गए? मैंने तो बाहर से दरवाज़ा लॉक किया था।"
"वो दरवाज़ा तूने लॉक किया था... तू भी बाकी सब की तरह निकला, मुझे बंद करके चला गया।" यह कहते हुए रुद्रांश बच्चों की तरह रोने लगा। तो अनंत उसे अपने गले से लगाकर चुप कराते हुए बोला, "नो बेबी! ऐसा नहीं है, मैंने तो बस तुम्हारी सेफ्टी के लिए बंद किया था। तुम्हें पसंद नहीं ना कि वह गार्ड्स अंदर आएँ, इसलिए मैंने बंद किया था।" अनंत ने जैसे-तैसे अपनी बात समझाकर कहा।
उसकी यह बात सुनकर रुद्रांश उससे दूर हुआ और सोचते हुए बोला, "हाँ... वह काले लोग मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।" उसने मुँह बिचकाते हुए कहा। उसकी ऐसी शक्ल देख अनंत को मन ही मन थोड़ी हँसी आ गई। फिर वह उससे बोला, "लेकिन दरवाज़ा लॉक होने के बाद भी तुम यहाँ कैसे आ गए?"
"यह एक सीक्रेट है, मैं नहीं बताऊँगा।" रुद्रांश ना में गर्दन हिलाते हुए बोला और हँसने लगा। अनंत का तो अब उससे कुछ पूछना ही बेकार था क्योंकि रुद्रांश तो नहीं बताने वाला। अब तो उसे खुद ही पता लगाना था कि यह उसके रूम में आ कैसे गया?
इधर शान्तनु अनंत के घर गया तो घर की हालत देख असमंजस में पड़ गया। "यह क्या हुआ यहाँ पर, सब कुछ इतना बिखरा हुआ क्यों है?" यह कहकर उसने चारों तरफ देखा। "अनंत... अनंत....." अनंत को पुकारते हुए वह सारे घर में घूमने लगा।
उसने अनंत को पूरे घर में ढूँढ लिया, लेकिन उसे वह कहीं नहीं मिला। तभी हॉल में से टेलीफ़ोन के बजने की आवाज़ आई। शान्तनु ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई, "हैलो नील!" यह वैदिक की आवाज़ थी। जिसे सुनकर शान्तनु बोला, "आप कौन?"
इधर वैदिक बोला, "मैं नील का दोस्त वैदिक बोल रहा हूँ, आप अनंत भाई हैं क्या?"
"नहीं, मैं शान्तनु बोल रहा हूँ।"
"अरे बिग ब्रो आप! वह मैं नील को फ़ोन लगा रहा था तो लगा नहीं, इसलिए मैंने लैंडलाइन पर फ़ोन किया। कहाँ है वह?" वैदिक ने पूछा।
"लेकिन नील तो तुम लोगों के साथ ही होगा ना।" शान्तनु ने कहा।
"नहीं, वह तो कल रात को ही अनंत भाई के पास रहने चला गया था। उसने कहा था कि वह भी अपने ब्रो को अचानक से घर जाकर सरप्राइज़ देगा।"
वैदिक की यह बात सुनकर तो शान्तनु और भी चिंतित हो गया और सोचने लगा, "इसका मतलब नील भी यहाँ आया था, लेकिन अब ना तो नील है और ना ही अनंत। कहाँ है दोनों?"
"क्या हुआ बिग ब्रो? आप ऐसे चुप क्यों हो गए?" वैदिक ने फिर से कहा। तो शान्तनु बोला, "कुछ नहीं, अभी नील और अनंत घर पर नहीं हैं। जब आएंगे तब मैं बात करवा दूँगा।" यह कहकर शान्तनु ने फ़ोन रख दिया। तभी उसकी नज़र कालीन की तरफ़ गई जहाँ पर नील की हॉकी और उससे थोड़ी ही दूरी पर उसका सामान रखा हुआ था। उसे देख शान्तनु खुद से ही बोला, "नील चाहे कितना भी आवारा या बिगड़ैल हो, लेकिन अनंत को कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता। ज़रूर यह किसी और का काम है। मुझे पता लगाना होगा आखिर यह सब किया किसने है?" यह कहकर वह अनंत और नील की तलाश में घर से बाहर निकल गया।
जारी है......
शान्तनु को घर की हालत देखकर इतना अंदाजा हो गया था कि नील और अनंत का अपहरण हुआ है। इसलिए वह सीधा पुलिस स्टेशन गया।
इन्सपेक्टर विकास, जो निर्भय के वरिष्ठ थे, पुलिस स्टेशन के बाहर अपनी जीप के पास खड़े थे। शान्तनु उन्हें देखकर उनके पास गया और बोला, "इन्सपेक्टर विकास! मुझे आपकी मदद चाहिए। मेरे दोनों भाई गायब हैं, उनका कुछ पता नहीं चल रहा। शायद किसी ने उनका अपहरण किया है।"
यह सुनकर इन्सपेक्टर विकास के चेहरे पर चिंता के भाव आ गए। लेकिन फिर वह शान्तनु से बोले, "सॉरी डॉक्टर शान्तनु! मैं आपकी मदद जरूर करता, लेकिन मुझे अभी एक इम्पॉर्टेन्ट केस के सिलसिले में मुंबई जाना है। आप एक काम करिए, अंदर इन्सपेक्टर निर्भय हैं, उनके पास जाइए। मुझे पूरा यकीन है कि वो आपके भाइयों को जरूर ढूँढ लेंगे।" यह कहकर विकास अपनी जीप में बैठे और शान्तनु के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, "डोंट वरी! आपके भाई जरूर मिल जाएँगे।" यह कहते हुए उन्होंने अपनी जीप स्टार्ट की और वहाँ से चले गए।
उनके जाने के बाद शान्तनु के पास निर्भय के पास जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। और वैसे भी, उस वक्त उसे अपने भाइयों की चिंता थी। इसलिए वह पुलिस स्टेशन के अंदर चला गया। जहाँ निर्भय सामने कुर्सी पर बैठा किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था।
शान्तनु को सामने देख निर्भय का चेहरा खुशी से खिल उठा। "ओके!... हाँ, इस बार वो लोग बच नहीं पाएँगे...ठीक है, अब मैं बाद में बात करता हूँ।" यह कहकर उसने फ़ोन नीचे रखा और शान्तनु से बोला, "आज डॉक्टर साहब को मेरी याद कैसे आ गई?"
"मेरे भाइयों को किसी ने अपहरण कर लिया है," शान्तनु ने सीधे और साफ़ शब्दों में अपनी बात कही।
"ओह! तो इसलिए आया है तू। वैसे मुझे एक बात बता...तेरे दोनों भाइयों का अपहरण हुआ, फिर किडनैपर ने तुझे क्यों छोड़ दिया?" निर्भय ने आँखें उठाकर यह सवाल किया।
"मैं यहाँ तेरी यह फ़िज़ूल की बकवास सुनने नहीं आया," शान्तनु ने थोड़ा गुस्से में कहा।
"मैं बकवास नहीं कर रहा, बल्कि अंदाजा लगा रहा हूँ कि किडनैपर ने तेरे दोनों भाइयों का अपहरण किया, लेकिन तुझे छोड़ दिया। हो सकता है वो तुझसे फिरौती माँगे। क्या कोई फ़ोन आया है अभी?" यह बात निर्भय ने सीरियसली कही।
"अभी तक तो कोई फ़ोन नहीं आया," शान्तनु ने शान्त होकर जवाब दिया।
"ठीक है, अगर कोई फ़ोन आए तो मुझे तुरंत बताना। और चिंता मत कर, तेरे भाइयों को कुछ नहीं होगा।" उसकी यह बातें सुनकर शान्तनु के मन को थोड़ी राहत मिली। इतना तो वह जानता था कि भले ही निर्भय का व्यवहार उसके साथ कैसा भी हो, लेकिन अपने फ़र्ज़ के प्रति वह हमेशा ईमानदार रहता है।
निर्भय ने उसकी रिपोर्ट दर्ज की। रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद जब शान्तनु वहाँ से जाने लगा, तो निर्भय ने उसे पीछे से आवाज लगाई, "एक मिनट रुक..." यह सुनकर शान्तनु रुक गया। निर्भय अपनी कुर्सी से उठकर उसके पास आते हुए बोला, "मैं तेरे भाइयों को ढूँढ तो लूँगा, लेकिन बदले में मुझे क्या मिलेगा?" उसने शरारत से मुस्कुराकर कहा। शान्तनु उससे कहने लगा, "देख निर्भय, आज मेरे साथ मज़ाक मत कर। मैं वैसे ही अपने भाइयों को लेकर टेंशन में हूँ। इतनी हिम्मत नहीं है मेरे अंदर जो आज तेरी इस तरह की बातों का जवाब दे सकूँ। अगर मेरे भाइयों को कुछ हो गया ना, तो मैं जी नहीं पाऊँगा, क्योंकि उन दोनों के अलावा मेरा कोई नहीं है।" यह कहते हुए शान्तनु की आँखें नम हो गई थीं।
उसकी आँखों में नमी देखकर निर्भय को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। और वह उससे बोला, "ठीक है, नहीं करूँगा तेरे साथ मज़ाक। लेकिन फिर कभी यह मत कहना कि उन दोनों के अलावा तेरा कोई नहीं है। तू मुझे अपना माने या ना माने, लेकिन मैं तुझे अपना मान चुका हूँ।" उसने यह कहते हुए शान्तनु का हाथ अपने हाथों में थाम लिया।
शान्तनु ने अपने हाथ की तरफ़ देखा जिसे निर्भय ने थामा हुआ था, फिर निर्भय की आँखों में जो बड़े ही प्यार से उसे देख रहा था। आज शान्तनु ने उससे अपना हाथ छुड़ाने की भी कोशिश नहीं की। तभी निर्भय की टेबल पर रखा फ़ोन बजा। जिसकी आवाज़ से निर्भय ने शान्तनु का हाथ छोड़ा और फ़ोन उठाकर कान पर लगा लिया।
शान्तनु उसे फ़ोन पर बात करता देख वहाँ से बाहर चला गया। निर्भय फ़ोन पर बात कर रहा था और दरवाज़े की तरफ़ भी देख रहा था जहाँ से अभी शान्तनु गया था।
निर्भय फ़ोन पर कहने लगा, "हाँ, आया तो था, बट डोंट वरी, उसे मैं संभाल लूँगा...ओके!" यह कहकर उसने कॉल रख दी और खुद से ही बोला, "किस्मत ने भी क्या खेल रचाया है, किसी ना किसी बहाने से ही सही, पर तुझे मुझसे मिलाया है।" यह कहकर वह मुस्कुरा दिया।
इधर, नील की जब आँख खुली तो उसने देखा कार्तिक उसके सामने बेड पर ही बैठा था। उसे देख नील एकदम से उठकर बैठ गया। "तू यहीं सोया था क्या?" उसने पूछा। तो कार्तिक टेढ़ी सी मुस्कान अपने चेहरे पर सजाए कहने लगा, "यहीं सोया था। इस बात का क्या मतलब? अगर सो जाता तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता?"
"इसका मतलब तू यहाँ इस कमरे में नहीं सोया था," यह कहते हुए नील ने थोड़ी राहत महसूस की। जिसे देख कार्तिक कहने लगा, "कल तो नहीं सोया, लेकिन आज जरूर सोऊँगा।"
"क्यों?" नील ने पूछा।
"क्योंकि तेरी बहुत इच्छा है ना मेरे साथ सोने की," कार्तिक ने कहा।
"बकवास मत कर, मेरी कोई इच्छा नहीं है तेरे साथ सोने की," नील खिसियाकर बोला।
"तो फिर पूछ क्यों रहा था कि मैं यहाँ सोया था या नहीं?" कार्तिक ने पूछा।
"अपने दिल की तसल्ली कर रहा था बस," नील ने जवाब दिया।
"अब तो हो गई होगी तसल्ली कि तेरी इज्जत अभी तक सही-सलामत है, है ना!" कार्तिक ने आँखें उठाकर शरारती तरीके से मुस्कुराकर कहा। जिसे देख नील ने गुस्से में दाँत पीस लिए।
तभी कार्तिक बेड से उठकर खड़ा हुआ और उससे बोला, "मैं तेरे लिए ब्रेकफ़ास्ट लेकर आया था।" उसने टेबल पर रखे जूस और सैंडविच की तरफ़ इशारा करके कहा। जिसे देखकर नील का अंदर से मन तो हो रहा था कि वह खा ले, लेकिन फिर अकड़ते हुए बोला, "मुझे नहीं खाना, ले जा यहाँ से।"
"इतनी अकड़ भी अच्छी नहीं होती। वरना अकड़ा हुआ ही रह जाएगा हमेशा के लिए। और मुझे एक बात बता, जब तक यहाँ रहेगा तब तक कुछ नहीं खाएगा क्या?" कार्तिक ने पूछा।
"हाँ, नहीं खाऊँगा, कर ले जो करना है तुझे," नील ने फिर अकड़कर जवाब दिया। जिसे सुनकर कार्तिक को उस पर गुस्सा तो बहुत आया और उसका मन किया कि वह उसे फिर से पीट दे, लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने अपने गुस्से को अपने अंदर ही दबा लिया और बोला, "ठीक है, मत खा। लेकिन यह मत सोचना कि इन सब से मैं पिघल जाऊँगा। मेरे सीने में दिल नहीं, पत्थर है। अरे, मैं तो अपने बाप की मौत पर ही नहीं रोया, इसी बात से अंदाजा लगा ले कि कितना पत्थर दिल हूँ मैं।" यह कहकर कार्तिक गुस्से में उसके कमरे से बाहर चला गया और दरवाज़े को बाहर से लॉक कर दिया।
बाहर आकर कार्तिक खुद से ही बोला, "मैं भी देखता हूँ कब तक भूखा रहता है? लेकिन मैं इसकी इतनी चिंता क्यों कर रहा हूँ? खाए तो खाए, नहीं तो ना खाए, मुझे इससे क्या!!" उसने बेपरवाह होकर कहा।
कार्तिक बार-बार अपने मन को समझा रहा था कि उसे कोई परवाह नहीं कि नील खाए या ना खाए, लेकिन उसके चक्कर में वह खुद भी नहीं खा पा रहा था। कुछ देर बाद कार्तिक ने पूरे घर को अच्छे से लॉक किया और घर से बाहर चला गया।
अंदर नील ने एक नज़र फिर से उस ब्रेकफ़ास्ट की तरफ़ देखा। वह उसे खाने को हुआ, लेकिन फिर उसने बीच में ही अपना हाथ रोक लिया। "नहीं, मैं इस पर बिल्कुल विश्वास नहीं कर सकता, नहीं खाऊँगा मैं।"
उसने फिर से कमरे में चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई और बेड से उठकर फिर से उस खिड़की की तरफ़ चला गया। वैसे अब सुबह हो गई थी तो बाहर का नज़ारा साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।
"यह घर तो पहाड़ी पर है, लेकिन यह जगह कौन सी है?" नील को इतना तो समझ आ गया था कि यह घर पहाड़ की वादियों में बसा हुआ है, लेकिन उसे जगह अब भी समझ नहीं आयी। फिर वह मन ही मन सोचने लगा, "एक बार मैं कैसे भी करके इस घर से बाहर निकल जाऊँ, फिर बताऊँगा इस जंगली को।" उसने कार्तिक को कोसते हुए कहा।
यहाँ रुद्रांश के रूम की तो कायापलट हो गई थी। पूरा रूम साफ़-सुथरा था और सारा सामान सलीके से जमा हुआ था। दीवारों पर उसकी कई फ़ोटोज़ भी लगी हुई थीं।
रुद्रांश की जब से दिमागी हालत ख़राब हुई थी, उसका रूम गन्दा सा और बिखरा हुआ सा ही रहता था। कोई डर के मारे उसे साफ़ करने आता ही नहीं था। कभी-कभी अशोक ही उससे मिलने आ जाया करते थे।
अनंत जब उसे अंदर लाया, तो रुद्रांश चारों तरफ़ घूम-घूमकर अपने रूम को देखने लगा। "यह हम किसके कमरे में आए हैं?" उसने अनंत से पूछा। तो अनंत मुस्कुराते हुए बोला, "यह तुम्हारा ही कमरा है, रुद्रांश कुमावत!" अपना पूरा नाम सुनकर रुद्रांश सोचते हुए बोला, "रुद्रांश कुमावत।"
"हाँ, तुम्हारा ही नाम है रुद्रांश कुमावत और ये तुम्हारी फ़ोटोज़," उसने दीवार पर लगी रुद्रांश की फ़ोटोज़ की तरफ़ इशारा करके कहा। रुद्रांश अंजान नज़रों से अपनी फ़ोटोज़ देखने लगा। किसी में तो वह बिज़नेस सूट में था, तो किसी में हाथ में गिटार लिए बैठा था। उन फ़ोटोज़ में उसके बाल भी छोटे ही थे और जेल से सेट किए हुए थे।
"यह सच में मैं हूँ?" रुद्रांश ने उन फ़ोटोज़ की तरफ़ इशारा करते हुए अनंत से पूछा। तो अनंत ने हाँ में सिर हिलाया, "हाँ, रुद्रांश कुमावत, यह तुम ही हो।" वह बार-बार रुद्रांश का पूरा नाम ले रहा था ताकि उसके दिमाग में इस नाम को सुनकर कुछ हलचल हो।
तभी रुद्रांश उसकी ओर देखकर बोला, "मैंने अभी तक तेरा नाम नहीं पूछा, क्या नाम है तेरा?" उसने पूछा। तो अनंत बोला, "मेरा नाम अनंत है।"
"अंत," रुद्रांश बोला। तो अनंत ना में सिर हिलाते हुए बोला, "अंत नहीं, अनंत।" उसने फिर से बताया। तो रुद्रांश फिर से बोला, "अन्न!"
"अन्न नहीं, अनंत," अनंत ने फिर से उसे समझाया। तो रुद्रांश बोलने की कोशिश करने लगा, "अ...अ...." उसे इस तरह अटकता देख अनंत अपने मन में सोचने लगा, "खुद का नाम जो इतना कठिन है, वह तो आसानी से बोल लिया, लेकिन मेरा नाम यह क्यों नहीं बोल पा रहा?"
तभी रुद्रांश उससे बोला, "तेरा नाम जो भी हो, लेकिन मैं तुझे अन्नू बुलाऊँगा, ओके!"
यह सुनकर अनंत ने भी ओके कहकर हाँ में सिर हिला दिया। यह देख रुद्रांश ने खुश होकर अनंत को अपने गले से लगा लिया। इस बार अनंत ने भी मुस्कुराते हुए उसकी पीठ पर अपने हाथ रख लिए।
फिर कुछ देर बाद अनंत उसे खुद से दूर करते हुए बोला, "चलो अब तुम नहा लो।"
यह सुनकर रुद्रांश बोला, "ठीक है, नहला दे।"
"नहीं, आज तुम्हें खुद नहाना होगा।"
"लेकिन मैं कैसे?"
"जब तक खुद से करोगे नहीं, तो फिर सीखोगे कैसे? चलो चुपचाप नहाकर आओ।" अनंत ने उसे बाथरूम की तरफ़ इशारा करके उसे जाने को कहा।
"नहीं, मैं नहीं जा रहा," यह कहकर रुद्रांश बेड पर हाथ बाँधे बैठ गया। जिसे देख अनंत भी उसके सामने हाथ बाँधे खड़ा हो गया। "तो तुम नहीं जाओगे।"
"नहीं जाऊँगा," यह कहकर रुद्रांश ने मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया। जिसे देख अनंत बोला, "ठीक है, मत जाओ, मत नहाओ। लेकिन एक बात याद रखना, जब तक तुम अपने काम खुद से नहीं करोगे, तुम्हारा अन्नू तुमसे कभी बात नहीं करेगा। जा रहा हूँ मैं।" यह कहकर अनंत वहाँ से जाने लगा। तो रुद्रांश ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। जिससे अनंत सीधा उसकी गोद में जा गिरा।
अनंत तो रुद्रांश की इस हरकत से हड़बड़ा ही गया था। वह उसकी गोद से उठने लगा, तो रुद्रांश ने उसकी कमर पर अपने दोनों हाथ कस लिए और पीछे से उसके कान में बोला, "ठीक है अन्नू, मैं अपने काम खुद से करूँगा, लेकिन तू मुझे छोड़कर मत जा।" यह कहकर उसने पीछे से ही अनंत के कंधे पर अपना सिर टिका लिया।
इस वक्त अनंत का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था। फिर उसने खुद को नॉर्मल करते हुए कहा, "ठीक है, नहीं जाऊँगा, अब मुझे छोड़ तो दो।"
"सच में नहीं जाएगा ना?" रुद्रांश ने पूछा। तो अनंत ने हाँ में सिर हिलाकर कहा, "हाँ, नहीं जाऊँगा, अब छोड़ो।"
"पहले किस कर, तब छोड़ूँगा," रुद्रांश ने यह कहकर अनंत को अपनी तरफ़ घुमा लिया। जिस पर अनंत हैरान होकर बोला, "क्या करूँ?"
"किस!" यह कहकर रुद्रांश ने अपना गाल उसके आगे कर दिया। जिसे देख अनंत के दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं।
"मैंने तो कल तुझे बिना बोले ही कर दी थी, लेकिन तू तो मेरे बोलने पर भी नहीं कर रहा...कर ना!" रुद्रांश ने फिर से कहा। तो अनंत धीरे-धीरे अपने होंठ उसके गाल की तरफ़ ले जाने लगा। अनंत ने अपनी आँखें बंद की और धीरे से अपने होंठ रुद्रांश के गाल पर रख दिए।
उसके नरम होंठों को अपने गाल पर महसूस कर रुद्रांश ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसके होंठों पर प्यार भरी मुस्कान तैर गई। उसे किस करने के बाद अनंत उससे दूर हुआ और उसके हाथों को अपनी कमर से हटाते हुए बोला, "अब छोड़ो मुझे और जाकर नहा लो।"
रुद्रांश ने भी उसे छोड़ दिया। अनंत उसकी गोद में से उठकर खड़ा हो गया। रुद्रांश भी उठा और खुशी से उछलता हुआ बाथरूम में घुस गया। उसके जाने के बाद अनंत मन ही मन सोचने लगा, "तुम्हारी दिमागी हालत अभी ठीक नहीं है, इसलिए तुम मेरे साथ यह सब हरकतें कर रहे हो। लेकिन ठीक होने के बाद तो तुम पहले जैसे हो जाओगे, एकदम शांत और सीरियस रहने वाले, जिसे किसी से बात करना ज़्यादा पसंद नहीं है।" यह सोचकर ना जाने क्यों एक पल के लिए अनंत के दिल को थोड़ा बुरा लगा, लेकिन फिर उसने खुद को समझाकर कहा, "मैं एक डॉक्टर हूँ, इस तरह भावनाओं में नहीं बह सकता। मुझे बस इसका इलाज करना है और कुछ नहीं।"
जारी है......
निर्भय शान्तनु के साथ अनंत के घर पर आया था। उसने घर की हालत देखी और उससे बोला, “घर की हालत देखकर तो लग रहा है कि कोई जबरदस्ती लेकर गया है तेरे भाईयों को।”
“नहीं, मेरे भाई खुशी-खुशी चले गये हैं उसके साथ” शान्तनु ने एक तरह से तंज कसने वाले लहजे में कहा तो निर्भय उसकी ओर देखने लगा तभी शान्तनु थोडा गुस्से में बोला, “इतना तो मैं भी समझ सकता हूँ घर की हालत देखकर कि कोई उन्हें जबरदस्ती ही ले गया है तुझे समझाने की जरूरत नहीं है तू बस कुछ भी करके मेरे भाईयों को ढूंढकर ला।”
“रिलैक्स...रिलैक्स...इतना हाईपर मत हो तनु !” निर्भय उसे शांत कराते हुए बोला।
“शटअप ! मेरा नाम शान्तनु है, समझा।” शान्तनु फिर से हाईपर होकर बोला।
“ओके ! शान...तनु !” निर्भय ने थोडा मुस्कुराकर कहा। अपने नाम को इस तरह दो टुकडों में सुनकर शान्तनु को उस पर बहुत तेज गुस्सा आया और उसने फिर से निर्भय को पंच मारना चाहा लेकिन फिर बीच में ही अपना हाथ रोक लिया, ये देख निर्भय बोला, “क्या हुआ, मार ना, रुक क्यों गया?”
शान्तनु को याद आ गया था कि उस दिन जब उसने उसे पंच मारा था तो निर्भय ने किस तरह उसे जबरदस्ती किस किया था, ये याद आते ही उसने अपना हाथ बीच में ही रोक लिया। सामने निर्भय अब भी अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान सजाये उसे देख रहा था। ये देख शान्तनु ने फिर कुछ ना कहकर अपना हाथ नीचे कर लिया।
निर्भय भी समझ गया था कि शान्तनु क्यों रुक गया। अब शान्तनु की खिसियानी शक्ल देखकर निर्भय को मन ही मन हँसी आ रही थी फिर कुछ पल बाद वो बात पलटते हुए बोला, “मैं पहली बार तेरे घर पर आया हूँ कम से कम पानी तो पिला दे।”
“ये घर मेरा नहीं मेरे भाई का है” शान्तनु ने बिना उसकी ओर देखे ही जवाब दिया।
“ठीक है, फिर तू ही बता तेरे घर कब आऊँ?” निर्भय ने ये पूछा तो शान्तनु उस पर चिल्लाते हुए बोला, “तू मेरी मदद करने आया है या फिर मुझे टॉर्चर करने, इतनी देर से बस बकवास किये जा रहा है लेकिन काम की बात अभी तक नहीं की, मुझे तो समझ ही नहीं आता तुझे पुलिस ऑफिसर बना किसने दिया? अगर वो इंसान मुझे मिल जाये तो मैं उसका दिल निकालकर उसके हाथ में दे दूं।”
“लेकिन वो इंसान तो अब इस दुनियाँ में है ही नहीं” निर्भय ने जवाब दिया जिसे सुनकर शान्तनु ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और अपने दांत पीसते हुए सोफे पर बैठ गया ये सोचकर कि इससे तो कुछ कहना ही बेकार है। निर्भय को थोडी हँसी आ गई थी लेकिन फिर वो उसे ज्यादा परेशान ना करते हुए अपने काम पर ध्यान देने लगा।
निर्भय पूरे हॉल को अच्छे से चैक कर रहा था, सीआईडी वालों की तरह चारों तरफ नजरें घुमा-घुमाकर देख रहा था तभी घर के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी, “नील !”
ये आवाज सुनकर निर्भय और शान्तनु दोनों ने दरवाजे की ओर देखा तो नील की ही उम्र के दो लडके खडे थे उन्हें देख शान्तनु सोफे से खडे होकर बोला, “वैदिक और शमन !”
वैदिक और शमन अंदर आये और वहाँ पर निर्भय और घर की हालत देखकर हैरत में पड गये।
“बिग ब्रो ये सब क्या है? घर इतना बिखरा हुआ है और ये इन्सपेक्टर साहब यहाँ !” वैदिक ने निर्भय की तरफ देखकर शान्तनु से पूछा।
शान्तनु कुछ बोलता उससे पहले ही निर्भय उन दोनों से बोला, “तुम दोनों कौन हो?”
“ये नील के दोस्त हैं शमन और वैदिक” शान्तनु ने कहा जिसे सुनकर निर्भय उन दोनों से पूछने लगा, “तुम दोनों यहाँ नील से मिलने आये हो?”
“हाँ” ये कहकर वैदिक और शमन ने हाँ में सिर हिलाया, “आज हम लोगों ने बोटिंग पर जाने का प्लान बनाया था” शमन बोला।
ये सुनकर शान्तनु कहने लगा, “लेकिन नील को तो पानी से डर लगता है तो वो बोटिंग पर क्यों जायेगा तुम्हारे साथ?”
“अरे हमने उसने अभी बताया नहीं है इस बारे में हम तो उसे अपने साथ ले जाकर सरप्राईज़ देना चाहते थे लेकिन यहाँ आकर तो हम खुद ही सरप्राईज़ हो गये हैं” वैदिक ने चारों तरफ देखते हुए कहा।
“क्या हुआ है...कहाँ है नील?” शमन ने पूछा तो शान्तनु बोला, “नील और अनंत दोनों ही गायब हैं शायद किसी ने उनका किडनैप किया है।”
“व्हाट ? किडनैप !” शमन और वैदिक एकसाथ चौंकते हुए बोले।
“किसने किया उनका किडनैप?” वैदिक ने पूछा तो निर्भय कहने लगा, “अगर पता होता तो मैं क्या यहाँ खडा होता !” उसका ये तल्खीभरा लहजा देख वैदिक और शमन एकदम चुप हो गये।
निर्भय उन दोनों से भी नील के बारे में कुछ सवाल करने लगा। “तुम दोनों को किसी पर शक है, नील का कोई दुश्मन हो?”
“उसके दुश्मन तो बस हम दोनों ही हैं” वैदिक ने कहा तो शमन उसे कोहनी मारते हुए बोला, “इसका मतलब है हम लोग आपस में दोस्त हैं लेकिन मजाक-मजाक में एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं।”
“बातें मत घुमाओ जो पूछ रहा हूँ उसका जवाब दो, नील का कोई दुश्मन हो या फिर कॉलेज में या हॉस्टल में उसकी किसी से लडाई हुई हो” निर्भय ने फिर से सवाल किया।
वैदिक और शमन सोचते हुए बोले, “लडाई तो हम लोगों की कॉलेज या हॉस्टल में अक्सर किसी ना किसी से हो ही जाया करती है।”
तभी शमन एकदम से बोला, “हाँ, परसों रात हम लोग विंटर नाईट क्लब में गये थे वहाँ नील की किसी से थोडी बहस हो गई थी, मारपीट भी हो जाती लेकिन हम लोग नील को वहाँ से उठा लाये थे।”
ये सुनकर निर्भय और शान्तनु जल्दी से बोले, “किससे हुई थी नील की लडाई?”
“कार्तिक रायज़ादा !” वैदिक और शमन ने भी एकसाथ कहा।
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इधर कार्तिक अशोक के सामने खडा था। अशोक कहने लगे, “कर लिया किडनैप उस डॉक्टर के भाई को?”
“हाँ सर, कर तो लिया है लेकिन वो तो बहुत ही जिद्दी और ढींट है, बडी मुश्किल से पकडकर लाया हूँ और उससे ज्यादा मुश्किल से पकडकर रखा हुआ है” ये सब कहते हुए कार्तिक के चेहरे पर परेशानी भरे भाव थे।
“तुम्हीं ने कहा था कि उसे किडनैप करके तुम अपने पास रखोगे, अब क्या हुआ?” अशोक ने पूछा।
ये सुनकर कार्तिक चुप ही खडा रहा जिसे देख अशोक फिर से बोले, “अगर तुम उसे पकडकर नहीं रख सकते तो मना कर दो मेरे पास और भी बहुत से आदमी हैं जो उसकी अच्छे से खातिरदारी करेंगे।”
ये सुनकर कार्तिक एकदम से बोला, “नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है, मैं उसे अपने पास ही रखूंगा” ये सुनकर अशोक उसे असमंजस भरी नजरों से देखने लगे जिसे देख कार्तिक अपनी बात संभालते हुए बोला, “मेरा मतलब मैं अब अपनी बात से नहीं पलट सकता, मैंने कहा था कि उसे अपने पास रखूंगा तो मैं ही रखूंगा।” ये बात कार्तिक ने केवल अशोक के सामने कही थी असल में उसे ये बात बर्दाश्त नहीं हुई थी कि नील किसी ओर के पास रहे।
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रुद्रांश के कमरे में अनंत रुद्रांश के गीले बालों को तौलिया से पोंछ रहा था। अनंत के कहे अनुसार रुद्रांश खुद ही नहाया और खुद ने ही अलमारी से कपडे निकालकर पहने।
अनंत ने रुद्रांश के बाल पोंछ दिये और उससे कहने लगा, “तुम्हारे बाल बहुत बडे हैं इन्हें कटवाना पडेगा” ये सुनकर रुद्रांश एकदम से बोला, “नहीं, मैं बाल नहीं कटवाऊँगा।”
“हर काम को मना कर देते हो, देखो बाल कटवाने के बाद तुम बिल्कुल वैसे ही लगोगे जैसे इन फोटोज़ में हो” उसने दीवार पर लगी उसकी फोटोज़ की तरफ इशारा करके कहा जिसे देख रुद्रांश ने अजीब सी शक्ल बना ली और बोला, “मुझे नहीं लगना वैसा।”
“क्यों? तुम पहले ऐसे ही तो लगते थे” अनंत ने कहा।
“लेकिन अब नहीं लगना मुझे वैसा” रुद्रांश ना में गर्दन हिलाकर बोला।
“तो क्या ऐसे ही मंगल पांडे बने रहोगे?” अनंत ने कहा।
“मैं तो तेरे जैसा बनूंगा तेरे जैसे बाल रखूंगा” ये कहते हुए रुद्रांश ने अनंत के कान तक आते बालों को अपने हाथों से सहला दिया जिस पर अनंत थोडा सिहर उठा।
“मेरे जैसे” अनंत ने इतना ही कहा और रुद्रांश उसके बालों को सहलाते हुए उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा लाकर बोला, “हाँ तेरे जैसे, कितने सिल्की और सॉफ्ट हैं ये” ये कहते हुए रुद्रांश का हाथ अनंत के बालों से होता हुआ उसके गाल तक आ गया था, “बहुत सॉफ्ट हैं ये” ये कहते हुए वो उसके गाल पर हाथ फिरा रहा था तभी वो धीरे से अपना अंगूठा उसके होंठों तक ले आया, “ये भी बहुत सॉफ्ट हैं” ये कहते हुए रुद्रांश उसके होंठों पर धीरे-धीरे अपना अंगूठा फिरा रहा था।
तभी एकदम से अनंत ने उसका हाथ हटा दिया और उसे शक भरी निगाहों से देखने लगा, तभी अचानक से रुद्रांश रोनी सूरत बनाते हुए बोला, “मेरे क्यों नहीं हैं ऐसे?” वो अपने होंठों की तरफ उंगली करते हुए बोला जो काफी रफ थे।
ये देख अनंत के चेहरे के भाव बदले और वो मुस्कुराते हुए बोला, “हो जायेंगे जब तुम अच्छे से इनका ख्याल रखोगे और इनका ही नहीं अपनी पूरी बॉडी का ख्याल रखना होगा तुम्हें, बचपन में पढा होगा ना 'पहला सुख निरोगी काया'।”
“कौनसी माया?” रुद्रांश नासमझी से बोला। जिसे सुन अनंत उसके सिर पर चपत मारते हुए बोला, “माया नहीं काया यानी हमारा शरीर।”
तभी रुद्रांश ने भी अनंत के सिर पर चपत लगा दी और हँसकर बोला, “तूने मुझे मारा..मैंने तुझे, हिसाब बराबर....हाहाहाहाहाहा।” उसे इस तरह हँसते देख अनंत भी धीरे से हँस दिया।
जारी है.....
अनंत हाथ में कैंची और एक कपड़ा लिए रुद्रांश के सामने खड़ा था। रुद्रांश ने किसी और से बाल कटवाने के लिए साफ इंकार कर दिया था। इसलिए मजबूरन डॉक्टर साहब को ही उसके लिए नाई बनना पड़ा।
अनंत उसे कमरे की बालकनी में ले गया और वहाँ कुर्सी पर बिठा दिया। उसने रुद्रांश की गर्दन के चारों ओर वह कपड़ा लपेटते हुए उसे पूरी तरह ढक दिया। फिर उसने रुद्रांश के बालों में खच-खच करके कैंची चला डाली। बाल नीचे गिरते गए और कैंची चलने की आवाज आती रही।
कुछ देर बाद अनंत ने वह कपड़ा रुद्रांश की गर्दन पर से हटाया और उसके सामने आकर खड़ा हुआ। वह तो रुद्रांश को अपलक देखता ही रह गया। उसने रुद्रांश के बाल कान तक ही किए थे क्योंकि रुद्रांश ने ही कहा था कि उसे अनंत के जैसे ही बाल रखने हैं।
उसे देख अनंत कहने लगा, "सच में तुम्हारे बाल उन फोटोज़ में इतने अच्छे नहीं लग रहे जितने अभी लग रहे हैं।"
"सच्ची! मैं अभी देखता हूँ," ये सुनकर रुद्रांश भी खुशी से चहकते हुए बोला। ये कहकर वह खुशी से उछलता हुआ कमरे में गया और शीशे के सामने जाकर खड़ा हो गया। वह अपने चेहरे को हर एंगल से देखने लगा। तभी अनंत भी मुस्कुराते हुए कमरे में आ गया।
"तूने तो कमाल कर दिया अन्नू, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि ये मैं हूँ, तू सच में बहुत अच्छा है," ये कहकर उसने खुशी से झूमते हुए अनंत को अपनी गोद में उठाकर घुमा दिया।
"अरेरेरेरे....ये क्या कर रहे हो?...नीचे उतारो मुझे वरना हम....."
उसने इतना ही कहा था कि तभी रुद्रांश उसे घुमाते हुए ही बेड से टकरा गया और वे दोनों बेड पर ही गिर गए।
अनंत रुद्रांश के ऊपर गिर गया था। जिस कारण उसके होंठ रुद्रांश के गले पर छू गए। जिसके एहसास से रुद्रांश के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। अनंत ने अपना चेहरा उठाया और रुद्रांश की ओर देखा जिसने अपनी आँखें बंद की हुई थीं। अनंत उठने लगा तो रुद्रांश ने उसकी कमर पर अपने हाथ कस लिए। अनंत पहले तो थोड़ा हैरान हुआ। फिर उससे छूटने की कोशिश करते हुए बोला, "छोडो मुझे..."
"नहीं, पहले किस्सी कर फिर छोडूंगा।" ये सुनकर रुद्रांश ने धीरे से अपनी आँखें खोली और उसे देखते हुए ना में सिर हिलाकर बोला।
"नहीं," इस बार अनंत ने साफ इंकार कर दिया। जिसे देख रुद्रांश ने भी जिद ठान ली, "ठीक है तो फिर पड़ा रह मेरे ऊपर, जब तक किस्सी नहीं करेगा मैं नहीं छोडूंगा।" उसने बच्चों की तरह मुँह फुलाकर कहा और अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया। ये देख अनंत अजीब ही दुविधा में फंस गया। फिर कुछ सोचते हुए वह उसके गाल की तरफ अपने होंठ ले जाने लगा। वह अपने होंठ रखने ही वाला था कि तभी रुद्रांश ने अपना चेहरा सीधा कर लिया और अनंत ने अपने होंठ रुद्रांश के होंठों पर रख दिए। जिस पर अनंत की आँखें तो हैरानी से खुली रह गईं और वह जल्दी से उससे दूर हो गया।
रुद्रांश ने भी उसे छोड़ दिया। उसके छोड़ते ही अनंत जल्दी से उठा और वहाँ से जाते हुए बोला, "मुझे अभी तुम्हारे डैडी से कुछ बात करनी है, मैं अभी आ जाऊँगा।" ये कहकर वह जल्दी से उसके कमरे से बाहर चला गया। बेड पर बैठा रुद्रांश अपने होंठों पर उंगलियाँ फेरता हुआ मुस्कुरा दिया।
शाम ढलने लगी थी जब कार्तिक अपने घर आया। वह सीधा नील के रूम की तरफ गया। उसने दरवाजा खोलकर अंदर आया तो उसे नील कहीं नहीं दिखा। तभी अचानक से नील ने पीछे से उसकी पीठ पर जोरदार लात मार दी। जिससे कार्तिक नीचे गिर गया और नील ने जल्दी से कमरे से बाहर निकलकर दरवाजे को लॉक कर दिया।
अंदर कार्तिक उस दरवाजे को खटखटाने लगा, "खोल दरवाजा....."
"क्या समझा था तूने!..मुझे इतनी आसानी से यहाँ पकड़कर रख लेगा, मुझे आज तक मेरे ब्रो और बिग ब्रो नहीं पकड़ पाए तो तू किस खेत का करेला है...हाहाहाहाहा," बाहर खड़ा नील बड़ी ही शान से बोला। ये कहकर नील हँस दिया और अंदर दरवाजे पर खड़े कार्तिक ने गुस्से में अपने दांत पीस लिए।
फिर नील ने हँसना बंद किया और मन ही मन बोला, "अब मुझे जल्दी से इस घर से बाहर निकलना होगा।" ये कहकर वह मेन डोर की तरफ गया लेकिन वह लॉक था और उसे केवल कार्तिक ही खोल सकता था। नील ने पूरे घर में घूमकर देख लिया, कोई भी दरवाजा अनलॉक नहीं था। कार्तिक ने पूरा घर लॉक किया हुआ था।
तभी नील की नजर हॉल में बनी काँच की खिड़की पर पड़ी। वैसे तो वह लॉक थी लेकिन नील ने वहाँ रखी टेबल जोर से उस खिड़की पर दे मारी। जिससे उसका काँच टूटकर बिखर गया। नील उस खिड़की से बाहर निकल गया। वह बाहर आया तो उसने एक बार उसी कमरे की खिड़की पर नजर डाली जहाँ वह कार्तिक को बंद करके आया था। वह एक जालीदार खिड़की थी। कार्तिक की नजर जब उस खिड़की पर पड़ी तो बाहर खड़ा नील उसे चिढ़ाते हुए बोला, "क्या हुआ जंगली, अपने ही घर में कैद हो गया...हाहाहाहा" वह जोर से हँसा, "तू मुझे मेरे ससुराल लेकर आया था ना...अब मैं तुझे तेरे ससुराल भेजूंगा, जेल में!" वह ये कहते हुए पहाड़ी से नीचे उतर रहा था और कार्तिक के ऊपर हँस भी रहा था। तभी नील का पैर उस पहाड़ी से फिसल गया और वह लुढ़कता हुआ सीधा वहाँ बह रही नदी में जा गिरा।
ये देख कार्तिक जल्दी से दौड़ता हुआ उस खिड़की पर आ गया। नील नदी में अपने दोनों हाथ ऊपर करते हुए चिल्ला रहा था, "बचाओ...बचाओ...मुझे तैरना नहीं आता........."
ये देख कार्तिक जल्दी से दरवाजे की ओर गया और उसे जोर-जोर से ठोकने लगा। वह उसे तोड़ने की कोशिश कर रहा था। बार-बार कोशिश करने पर आखिर में कार्तिक ने उस दरवाजे को तोड़ ही दिया और दौड़ता हुआ हॉल में आ गया। उसने टूटी हुई काँच की खिड़की की ओर देखा और वहीं से बाहर निकल गया।
वह बाहर आकर उन पहाड़ियों से उतरता हुआ जल्दी से उस नदी में कूद गया। उसे अब नील कहीं दिख नहीं रहा था। उसने पानी के अंदर थोड़ा गहराई में जाकर देखा तो भी नील उसे कहीं नहीं दिखा। उसके चेहरे पर चिंताजनक भाव आ गए। उसने ऊपर आकर फिर से चारों तरफ देखा और जोर से चिल्लाया, "नील........" वह नील को पुकार रहा था। वह तैरता हुआ थोड़ा आगे बढ़ा तो उसने देखा एक चट्टान के पास उगी हुई झाड़ियों में नील अटका हुआ था। नील का केवल सिर ही बाहर था और बाकी शरीर पानी में था।
कार्तिक तैरता हुआ उसके पास गया और उसे झाड़ियों से बाहर निकाला। कार्तिक उसे किनारे पर ले आया था। सर्द हवाएँ चल रही थीं और नदी का पानी भी इस वक्त एकदम बर्फ की तरह ठंडा था।
नील का तो सारा शरीर ठंड के मारे अकड़ ही गया था, बस उसकी साँसें चल रही थीं। कार्तिक उसे गोद में उठाकर अपने घर के अंदर ले आया। नील तो कार्तिक से कसकर लिपट गया था और बुरी तरह कांप रहा था। कार्तिक ने नील को कमरे में लाकर बेड पर लिटाने की कोशिश की लेकिन नील ने कसकर उसकी शर्ट को पकड़ा हुआ था।
कार्तिक ने जैसे-तैसे उसे बेड पर लिटा दिया और उसके गाल थपथपाते हुए बोला, "अरे आँखें खोल..." उसने कई बार कहा लेकिन नील ने आँखें नहीं खोली और अपने दांत किटकिटाता रहा। कार्तिक खुद से ही बोला, "गीले कपड़ों में तो इसे और भी ठंड लगेगी और इसकी हालत लग नहीं रही कि यह अपने कपड़े भी चेंज कर पाए।" ये कहकर कार्तिक ने ही एक-एक करके नील के सारे कपड़े उतार दिए।
उसके बाद उसने नील को एक चादर में लपेटते हुए गोद में उठाया, "इस कमरे में तो हीटर है नहीं, ऐसा करता हूँ इसे दूसरे कमरे में ले जाता हूँ।" ये कहते हुए वह नील को दूसरे कमरे में ले गया और उसे बेड पर लिटा दिया। नील अब भी कांप रहा था जिसे देख कार्तिक ने उसे गरम रजाई ओढ़ा दी और उस कमरे का हीटर भी चालू कर दिया।
कपड़े तो कार्तिक के भी गीले थे और अब उसे भी थोड़ी ठंड लग रही थी। वैसे उसे तो इन सबकी आदत थी क्योंकि वह तो उस नदी में कभी-कभी स्विमिंग कर लिया करता था लेकिन आज बाहर कुछ ज्यादा ही सर्द हवाएँ चल रही थीं।
कार्तिक ने भी अपने गीले कपड़े उतार दिए और एक शॉर्ट्स पहन लिया। उसने एक नज़र नील की ओर देखा जो अब भी ठंड से कांप रहा था। उसे देख कार्तिक ने कुछ सोचा और सीधा किचन में चला गया। वह किचन में से सरसों का तेल गरम करके लाया और उसे टेबल पर रख दिया। वह बेड पर नील के पास बैठा और उसकी लपेटी हुई चादर को निकालकर बाहर रख दिया। उसने रजाई को नील के ऊपर से हटाते हुए उसके पेट तक कर दिया।
फिर उसने गरम सरसों का तेल अपने हाथों पर रब करते हुए नील के सीने पर मालिश करना शुरू कर दिया। उसने उसकी हथेलियों और पैरों के तलवों पर भी तेल की अच्छे से मालिश की। फिर उसने नील को पलटकर पेट के बल लिटा दिया और उसकी पीठ पर भी तेल की अच्छे से मालिश की। इस तरह गरम तेल की मालिश होने पर नील के शरीर की अकड़न धीरे-धीरे कम होने लगी। उसकी मालिश करने के बाद कार्तिक ने उसे सीधा करके लिटा दिया और उसे अच्छे से दुबारा रजाई ओढ़ा दी।
उसके बाद कार्तिक खुद भी वहीं बेड के सिरहाने से टिककर बैठ गया और नील की तरफ देखने लगा। उसे देखकर कार्तिक के दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उसने अपने दिल पर हाथ रखा और अपनी तेज हुई धड़कनों को महसूस करते हुए बोला, "तू क्यों इतनी स्पीड में दौड़े जा रहा है, थम जा।" ये कहते हुए उसने नील की तरफ से अपनी नज़रें फेर ली और वहाँ रखी टेबल के ड्रॉवर में से ब्रांडी की एक छोटी सी बोतल निकालकर उसे पीने लगा।
पीते-पीते उसकी नज़र फिर से नील पर गई और उसका दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। जिस पर उसने फिर से उस बोतल को मुँह से लगा लिया और सारी बोतल खाली कर दी। उसने फिर से नील की तरफ देखा और धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा।
कार्तिक अपना चेहरा नील के एकदम करीब ले आया और उसके चेहरे पर हाथ फिराते हुए बोला, "तू मुझे क्यों अच्छा लगता है रे? क्या कारण था जो मैं तुझे यहाँ लेकर आया? पता है आज उस बुड्ढे ने कहा कि अगर मैं तुझे नहीं रख सकता तो मना कर दूँ ताकि वह तुझे अपने किसी और आदमी को सौंप दे लेकिन मैंने मना कर दिया..क्यों? क्यों मना कर दिया मैंने?..आखिर क्यों बर्दाश्त नहीं कर पाया कि तुझे कोई और रखे? अभी जब तू मुझे यहाँ बंद करके भागा तो मुझे तुझ पर बहुत गुस्सा आया, मन तो कर रहा था कि तू अगर हाथ आ जाये तो तुझे जान से मार दूँ लेकिन मारना तो दूर तुझे मरते हुए ही नहीं देख पाया...क्यों नहीं देख पाया हाँ?...बता मुझे क्यों बचाया मैंने तुझे, बता!" ये कहते हुए उसने नील का चेहरा अपने दोनों हाथों में थाम लिया। तभी उसकी नज़र नील के पतले सुर्ख होंठों पर गई जिन्हें देख कार्तिक मुस्कुराकर बोला, "उस दिन इन्हें छुआ तो था लेकिन महसूस नहीं कर पाया...पर आज करके देखूँगा।" ये कहते हुए उसने अपने होंठ नील के होंठों पर रख दिए और उन्हें सॉफ्टली चूमने लगा। धीरे-धीरे उसने नील को भी अपनी बाहों में भर लिया था। कुछ पल बाद कार्तिक ऐसे ही नील के होंठों को चूमते हुए सो गया। ठंड तो दोनों को ही लग रही थी इसलिए एक-दूसरे की बाहों में वे दोनों सुकून से गहरी नींद में सो गए।
अब सुबह जब नील महाशय की नींद खुलेगी तब क्या होगा? वैसे यह सब उसी के कर्मों का फल है, भागा भी तो वही था। ना तो भागता और ना ही नदी में गिरता।
यहाँ निर्भय और शांतनु विंटर नाईट क्लब के बाहर खड़े थे। निर्भय ने स्टाइलिश जींस पर एक हुडी पहनी हुई थी, बालों को अजीब तरीके से जेल लगाकर बिगाड़ लिया था और आँखों पर ब्लैक गोगल्स लगाए हुए थे। वहीं शांतनु ने भी फटी जींस पर अजीब मटमैले रंग की टीशर्ट और उस पर ब्राउन जैकेट पहनी हुई थी। उसने ग्रे कलर के बालों की विग लगाई हुई थी और आँखों पर उसने भी ब्लैक गोगल्स लगाए हुए थे।
"ये सब क्या है, हम दोनों इस तरह यह हुलिया बनाकर यहाँ क्यों आए हैं?"
शांतनु ने दाँत पीसते हुए कहा। तो निर्भय उसके कंधे पर हाथ रख उसे अपने करीब करते हुए बोला, "क्योंकि हम दोनों इस शहर के बहुत ही फेमस पर्सन हैं। यहाँ हमें कोई पहचान ना ले इसलिए ऐसे बनकर आए हैं।"
"तू तो पुलिस ऑफिसर है ना, अगर तू यहाँ सिंपल तरीके से भी पूछताछ करने आता तो क्या ये लोग बताने से मना कर देते?" शांतनु ने पूछा।
"मना तो नहीं करते लेकिन जो क्रिमिनल्स हैं वे जरूर भाग जाते यहाँ पुलिस को देखकर और अब तू ज्यादा सवाल मत कर, तुझे तेरे भाई चाहिए ना तो चुपचाप मेरे साथ अंदर चल और मुझे अपने हिसाब से मेरा काम करने दे।"
ये सुनकर फिर शांतनु भी ज्यादा कुछ नहीं बोला और उसके साथ अंदर जाने लगा। वैसे शांतनु अगर चाहता तो निर्भय के साथ यहाँ आने से मना भी कर सकता था लेकिन उसने नहीं किया। अब यह उसके भाइयों के प्रति उसकी चिंता थी या फिर अब निर्भय के लिए उसके दिल में जगह बनने लगी थी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
जारी है....
शान्तनु और निर्भय क्लब में प्रवेश ही कर रहे थे कि पीछे से आवाज़ आई, "बिग ब्रो !" उन्होंने मुड़कर देखा तो वैदिक और शमन वहाँ खड़े थे। वे दोनों भी अपना रूप बदलकर आए थे। उन्हें देख शान्तनु बोला, "तुम दोनों यहाँ?"
"हाँ बिग ब्रो, हम दोनों भी नील और अनंत भाई को ढूँढने में आपकी मदद करना चाहते हैं," वैदिक ने कहा।
"लेकिन इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, हम दोनों काफी हैं नील और अनंत को ढूँढने के लिए," निर्भय ने कहा। शमन ने उससे कहा, "इन्सपेक्टर साहब, मेरे दादाजी कहते थे कि अगर लोग ज़्यादा हों तो काम जल्दी होता है इसलिए आप हम दोनों को भी शामिल कर लीजिए ना इस काम में।"
"देखो मुन्ना! मैं अपने बाप की बात पर गौर नहीं करता, तो तुम्हारे दादाजी की बात पर क्या गौर करूँगा?" निर्भय ने फीकी सी मुस्कान चेहरे पर सजाकर कहा। फिर शमन की ओर देखते हुए बोला, "तुम्हारे दादाजी कुछ भी कहते हों, लेकिन मैं कहता हूँ कि अपने काम में फालतू लोगों को शामिल करना कोई समझदारी वाली बात नहीं है।"
यह सुनकर वैदिक और शमन एक-दूसरे की ओर देखने लगे। फिर निर्भय की ओर देखकर बोले, "देखिए इन्सपेक्टर साहब, हमको ऐसा वैसा ना समझो, हम बड़े काम की चीज हैं।"
"बेकार की चीज हो तुम दोनों," निर्भय ने उनके उत्तर में कहा।
फिर शमन और वैदिक ने शान्तनु की ओर देखा। वैदिक उससे कहने लगा, "बिग ब्रो, आप कहिए ना इन इन्सपेक्टर से कि हमें भी इस मिशन में शामिल कर लें।"
"हाँ, आपकी बात नहीं टालेंगे ये," शमन ने थोड़ा मुस्कुराकर कहा। शान्तनु ने उसे घूरकर देखा तो शमन के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। फिर शान्तनु निर्भय की ओर देखकर बोला, "कर ले ना शामिल इन्हें, क्यों भाव खा रहा है?"
यह सुनकर निर्भय ने शान्तनु की ओर देखा और कहने लगा, "भाव नहीं खा रहा, लेकिन मुझे इन दोनों पर यकीन नहीं है।" उसने वैदिक और शमन की ओर देखकर कहा।
"तुझे हो ना हो, लेकिन मुझे इन पर पूरा यकीन है। ये दोनों नील के दोस्त हैं और मैं काफी समय से इन्हें जानता हूँ। इन दोनों की गारंटी मैं लेता हूँ," शान्तनु ने वैदिक और शमन की ओर देखकर कहा।
यह सुनकर निर्भय ने एक नज़र फिर से वैदिक और शमन की ओर देखी और उनसे बोला, "इसकी बात मानकर तुम दोनों को अपने इस काम में शामिल कर रहा हूँ। अगर तुम दोनों ने हमें धोखा देने की कोशिश की, तो याद रखना, सारी ज़िन्दगी जेल में बितानी पड़ेगी।"
"नहीं...नहीं इन्सपेक्टर साहब, धोखा तो क्या, हम आपको कभी कुछ नहीं देंगे," वैदिक ने कहा। शमन ने उसे कोहनी मारते हुए निर्भय की तरफ़ देखकर बोला, "इसका कहने का मतलब है हम आपको कभी धोखा नहीं देंगे।" उसने बत्तीसी चमकाकर कहा।
उसके बाद वे चारों क्लब के अंदर चले गए। अंदर हर टेबल पर बैठे लोग शराब पी रहे थे। कुछ बार काउंटर पर खड़े होकर पीने में लगे हुए थे, तो कुछ डांस फ्लोर पर पीकर झूम रहे थे।
यह सब देखकर शान्तनु वैदिक और शमन से बोला, "तो तुम लोग ऐसी जगहों पर भी आते-जाते हो? इस नील ने बिगड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी। एक बार मिल तो जाए, तब इसे किडनैप करके तो मैं रखूँगा घर में और सबसे पहले तुम दोनों का मिलना बंद करवाऊँगा उससे।" उसने गुस्से में दाँत पीसते हुए कहा। उसे इस तरह देख वैदिक और शमन ने डर के मारे अपना गला तर कर लिया।
"आज पता चला कि नील अपने बिग ब्रो से इतना क्यों डरता है," शमन ने धीरे से वैदिक के कान में कहा। तभी वैदिक भी बोला, "हाँ, ये तो बात-बात में गुस्सा हो जाते हैं, खड़ूस कहीं के।" वैदिक की यह बात पीछे खड़े निर्भय ने सुन ली थी। वह पीछे से ही अपना गला खँखारने लगा। इस पर वैदिक ने अपनी बत्तीसी चमकाते हुए उसे देखा और अपने कान पकड़ते हुए बोला, "सॉरी, आपके डार्लिंग तो बहुत स्वीट हैं, एकदम लॉलीपॉप जैसे।" यह सुनकर तो निर्भय उसे और भी तीखी निगाहों से घूरने लगा।
शमन वैदिक को कोहनी मारकर चुप कराते हुए बोला, "चुप कर जा, वरना हम दोनों की कब्र इस क्लब में ही खुदेगी।"
तभी निर्भय उन दोनों से बोला, "तुम दोनों यहाँ हमारी मदद करने आए हो ना?"
यह सुनकर उन दोनों ने जल्दी से हाँ में सिर हिलाया। इसे देख निर्भय बोला, "तो यहाँ ऐसे खड़े मत रहो। जाओ जाकर यहाँ के लोगों को अपनी बातों में फँसाकर कार्तिक रायज़ादा के बारे में जानकारी इकट्ठा करो और इस बात का ध्यान रखना कि किसी को भी शक ना हो कि तुम उनसे किसी की इन्फॉर्मेशन निकाल रहे हो।"
यह सुनकर शमन और वैदिक हाँ में सिर हिलाते हुए वहाँ से चले गए। अब शान्तनु और निर्भय ही वहाँ रह गए। निर्भय ने शान्तनु के कंधे पर हाथ रखकर उसे अपने करीब किया और बोला, "चल तनु, हम भी अब काम पर चलते हैं।" शान्तनु ने उसका हाथ अपने कंधे पर देखा और चिढ़ते हुए उसे हटाकर बोला, "मेरा नाम शान्तनु है और मेरे साथ यह लिपटा-चिपटी मत किया कर।"
"ओके! शान...तनु," निर्भय ने उसके गाल को पिंच करके कहा। शान्तनु बस खिसियाकर रह गया। तभी म्यूज़िक बदला और डांस फ्लोर पर एक खूबसूरत सी मॉडल जैसी लड़की डांस करने लगी।
मस्त....मस्त....मस्त.....मस्त....🎶🎶🎶🎶🎶🎶
मैं मस्त कुडी तू भी मस्त मस्त मुंडा है 🎶🎶🎶🎶🎶🎶
निर्भय तो उसका डांस एन्जॉय कर रहा था और शान्तनु चिढ़-चिढ़ी शक्ल बनाए खड़ा था। तभी वह लड़की डांस करते हुए उन दोनों के पास आई और निर्भय के चेहरे पर हाथ फेरते हुए बोली...
मैं भी हसीन तू भी ज़बरदस्त मुंडा है
मैं मस्त कुडी तू भी मस्त मस्त मुंडा है 🎶🎶🎶🎶🎶🎶
उस लड़की की इस हरकत पर शान्तनु ने निर्भय की ओर देखा जो उसके डांस को पूरा एन्जॉय कर रहा था। निर्भय डांस करते हुए उस लड़की के साथ ही डांस फ्लोर की तरफ़ बढ़ गया।
ये हुस्न का दरिया...छलका हुआ नशा
मैं तुझपे फिदा हो गया...होठों से तू पिला
निर्भय ने यह स्टेप उस लड़की के दोनों बाजू को पकड़कर उसके करीब जाकर किया। इसे देख शान्तनु ने गुस्से में अपने दाँत पीस लिए। वहीं वह लड़की निर्भय के गले में बाहें डालते हुए बोली...
क्या खूब जमेगी दोनों की ये जोड़ी
हाँ खूब जमेगी हम दोनों की ये जोड़ी.......
निर्भय ने उस लड़की को कमर से पकड़कर अपने करीब कर लिया, फिर शान्तनु की तरफ़ देखने लगा।
चाहत के फैसले में अभी देर है थोड़ी......
इस लाइन पर निर्भय की नज़रें शान्तनु की तरफ़ ही थीं, जो उन दोनों को अब जलन भरी भावना से देख रहा था।
दिल छीन लिया......🎶🎶🎶🎶🎶🎶
दिल छीन लिया तूने बड़ा सख्त मुंडा है
दिल छीन लिया तूने बड़ा सख्त मुंडा है
मैं मस्त कुडी तू भी मस्त मस्त मुंडा है......🎶🎶🎶🎶🎶
निर्भय तो उस लड़की के साथ मस्त होकर नाचने में लगा हुआ था और इधर शान्तनु मन ही मन उसे कोसने में लगा हुआ था, "वैसे तो दिन भर मेरे साथ फ़्लर्ट करता रहता है और अब यहाँ इस लड़की के साथ नाच रहा है, ठरकी इंसान!" इसी तरह जलते-भुनते हुए शान्तनु बार काउंटर पर पहुँच गया।
निर्भय को उस लड़की के साथ इस तरह चिपक-चिपककर डांस करते देख शान्तनु का पारा हाई होता जा रहा था। इसी गुस्से में आकर उसने वहाँ काउंटर पर रखा विस्की का गिलास उठाकर पी लिया, जो किसी और का था, लेकिन वह इंसान ऑर्डर देकर ना जाने कहाँ गायब हो गया था। विस्की पीते ही शान्तनु का अजीब सा मुँह बन गया, "क्या है ये?" उसके मुँह का टेस्ट बिगड़ गया था, इसलिए फिर उसने वहाँ रखा वाइन का गिलास भी उठाकर पी लिया। उसे पीकर तो उसका टेस्ट और भी बिगड़ गया।
उसने वेटर को आवाज़ लगाई ताकि वह उसे कुछ और ऑर्डर कर सके, लेकिन वह वेटर तो जैसे कान में रुई डालकर बैठा था। उसने कुछ सुना ही नहीं और पेग बनाता रहा। तभी शान्तनु ने ध्यान दिया कि वेटर के कान की मशीन निकली हुई थी। यह देख उसने उस वेटर के सामने हाथ हिलाना चाहा, इतने में ही वह वेटर वहाँ से चला गया। शान्तनु हाथ हिलाता ही रह गया। शान्तनु पर हल्का-हल्का नशा चढ़ने लगा था। उसने पलटकर फिर से डांस फ्लोर की तरफ़ देखा तो अब उसे वहाँ पर ना तो वह लड़की ही दिखाई दी और ना ही निर्भय। वह मन ही मन सोचने लगा, "नशे में तो इंसान दो-दो दिखाई देने लग जाते हैं, मुझे तो यह एक भी नहीं दिख रहा।" यह कहकर वह खुद ही लड़खड़ाते हुए डांस फ्लोर की तरफ़ बढ़ गया।
जारी है......
शान्तनु पर हल्का-हल्का नशा चढ़ने लगा था। उसने पलटकर फिर से डांस फ्लोर की तरफ देखा तो अब उसे वहाँ पर ना तो वह लड़की दिखाई दी और ना ही निर्भय। वह मन ही मन सोचने लगा, "नशे में तो इंसान दो-दो दिखाई देने लग जाते हैं, मुझे तो यह एक भी नहीं दिख रहा।"
यह कहकर वह खुद ही लड़खड़ाते हुए डांस फ्लोर की तरफ बढ़ गया।
वह जब डांस फ्लोर पर पहुँचा तो वहाँ अब भी कई लड़के-लड़कियाँ डांस कर रहे थे। तभी वह किसी लड़के से टकरा गया, लेकिन उस लड़के ने शान्तनु को अपनी बाहों में थाम लिया। वह लड़का उसे काफी इंटेंस निगाहों से देखने लगा। शान्तनु उसके पास से हटने लगा तो उस लड़के ने उसे फिर से अपनी तरफ खींच लिया और जबरदस्ती उसके साथ डांस करने लगा। शान्तनु उससे छूटने की काफी कोशिश कर रहा था, लेकिन वह लड़का उसे छोड़ ही नहीं रहा था।
तभी निर्भय ने वहाँ आकर शान्तनु को उस लड़के से छुड़ाया और बोला, "इट्स माइन!"
यह कहते हुए उसने उस लड़के को जलती हुई निगाहों से घूरा और शान्तनु की कमर पर हाथ रख उसे अपने करीब कर लिया। यह देखकर वह लड़का वहाँ से डांस करता हुआ चला गया।
निर्भय ने शान्तनु की ओर देखा जो काफी नशे में था। उसे देख निर्भय ने मन ही मन सोचा, "डॉक्टर साहब को इतनी जलन हुई मेरे डांस से जो इतनी चढ़ा ली।" उसे मन ही मन थोड़ी हँसी आ गई। फिर उसने शान्तनु को नीचे से ऊपर तक देखा और मन ही मन बोला, "इस वक्त इसे यहाँ से ले जाना ही ठीक रहेगा। वैसे भी जो काम मुझे करना था वह तो हो ही गया।"
यह सोचकर निर्भय उसे लेकर चलने लगा। तो शान्तनु ना में सिर हिलाते हुए बोला, "छोड़ मुझे, अभी तो मुझे भी डांस करना है।"
यह कहकर वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा, लेकिन निर्भय ने उसे नहीं छोड़ा और धीरे से उसके कान में बोला, "यह तेरे डांस करने के लिए ना तो सही जगह है और ना ही सही समय, इसलिए चल यहाँ से।"
"नहीं," शान्तनु ने ना में गर्दन हिला दी। लेकिन निर्भय उसे फिर भी जबरदस्ती डांस फ्लोर से नीचे उतार लाया। सामने उसे वैदिक और शमन मिले।
"यह क्या हो गया बिग ब्रो को?" वे शान्तनु की हालत देखते हुए एक साथ बोले।
"शायद इसने गलती से शराब पी ली है और इसे चढ़ गई है। इसलिए मैं इसे घर ले जा रहा हूँ। और अब तुम दोनों भी अपने हॉस्टल जाओ। और हाँ, तुम्हारे कॉलेज या हॉस्टल में किसी को भी इस बारे में पता ना चले कि तुम्हारा दोस्त और उसका भाई लापता है और तुम दोनों पुलिस की मदद कर रहे हो, ओके!" निर्भय ने कहा।
"डोंट वरी! हम किसी को नहीं बताएँगे," वैदिक और शमन ने कहा। उसके बाद निर्भय शान्तनु को जैसे-तैसे उस क्लब से बाहर ले आया। वे लोग शान्तनु की कार में आए थे। निर्भय ने कार का दरवाजा खोला तो शान्तनु कार के बोनट पर जाकर बैठ गया। यह देख निर्भय उसके पास जाकर बोला, "अरे यहाँ मत बैठ, घर चलेंगे।"
"मेरा ना कोई घर है ना कोई ठिकाना," शान्तनु ना में सिर हिलाते हुए बोला।
"देख, अब यह अकड़ किसी और को दिखाना...चुपचाप चल।"
यह कहकर निर्भय ने शान्तनु का हाथ पकड़ा तो शान्तनु बोला, "कहाँ चलूँ?"
"तेरे घर ले जाऊँगा, और कहाँ?"
यह सुनकर शान्तनु जोर से हँसा और अपनी टूटी-फूटी आवाज में गाते हुए बोला, "मैं तो बेघर हूँ, अपने घर ले चलो, घर में हो मुश्किल तो दफ्तर ले चलो।"
यह गाते हुए उसने अपने दोनों हाथ निर्भय के कंधों पर रख लिए।
निर्भय उसका गाना सुनकर हँस दिया और मन ही मन बोला, "यह तो बहुत ही बेसुरा है।" फिर उसने अपनी हँसी को कंट्रोल करके उसकी तरफ देखा और बोला, "मेरे घर में तो मुश्किल ही है क्योंकि मेरा राक्षस बाप जो रहता है वहाँ।"
यह सुनकर शान्तनु ने निर्भय के गाल पर चाँटा मार दिया और उसके कॉलर को पकड़कर बोला, "तेरा बाप इस दुनियाँ में है इसलिए उसकी कद्र नहीं कर रहा...अरे मुझसे पूछ, जिसका बाप इस दुनियाँ में ही नहीं है, क्या बीतती है मुझ पर।"
"तेरा बाप कद्र करने लायक था, लेकिन मेरा नहीं," निर्भय ने बस इतना ही कहा। जिसे सुनकर शान्तनु अपना सिर खुजाने लगा और नासमझी भरे भावों से बोला, "ऐसा क्यों?"
"जब समय आएगा तब तुझे खुद पता चल जाएगा कि ऐसा क्यों? फिलहाल तो तू मेरे साथ अपने घर चल।"
यह कहकर निर्भय ने शान्तनु को उस कार के बोनट से नीचे उतारते हुए अपनी गोद में उठा लिया और कार में बैठा दिया। वह खुद अंदर जाकर ड्राइविंग सीट पर बैठा तो शान्तनु उसके बाल खींचते हुए बोला, "मेरे नशे में होने का फायदा मत उठाना, सीधा मेरे घर लेकर ही जाना, वरना तेरा दिल निकालकर तेरे हाथ में दे दूँगा।"
"हाँ, मेरे बाप, तुझे तेरे घर ही लेकर जाऊँगा।"
यह कहते हुए निर्भय ने अपने बाल छुड़ाए और कार स्टार्ट कर दी। पूरे रास्ते शान्तनु उसे कोसता रहा, उसके बाल खींचता रहा और उसे थप्पड़ मारता रहा।
इधर अनंत अपने रूम में लेटा हुआ था और रुद्रांश के बारे में ही सोच रहा था। "यह रुद्रांश तो एक अजीब ही पहेली बन गया है मेरे लिए, इसे जितना समझना चाह रहा हूँ उतना ही उलझता जा रहा हूँ। इसकी हरकतें कभी-कभी दिमाग में शक तो पैदा करती हैं, लेकिन अगले ही पल यह उस शक को मेरे दिमाग से गायब भी कर देता है। यह सचमुच पागल है भी या नहीं? और अगर यह पागल नहीं है तो फिर पागल बनने का नाटक क्यों कर रहा है? क्या मिलेगा इसे यह सब करके? किसे धोखा दे रहा है यह, अपने पिता को...लेकिन वह तो इससे बहुत प्यार करते हैं और यह भी तो पहले उनकी सारी बातें मानता था, हर काम में उनकी सलाह लेता था। फिर यह उनके सामने नाटक क्यों करेगा? क्यों अपने पिता को धोखा देगा? शायद मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ, हो सकता है मेरा साथ इसे अच्छा लगता हो, जैसे बचपन में किसी बच्चे को अपने किसी साथी बच्चे से लगाव हो जाता है। हो सकता है रुद्रांश को भी मेरे साथ ऐसा ही लगाव महसूस होता हो, इसीलिए यह सब हरकतें मेरे साथ करता हो....."
यह सब सोचते-सोचते अनंत को कब नींद आयी उसे पता ही नहीं चला।
इधर निर्भय ने शान्तनु के घर के सामने कार रोकी। निर्भय ने शान्तनु की ओर देखा जो अब अपनी नशीली निगाहों से उसे देख रहा था। निर्भय कार से बाहर आया और शान्तनु को भी कार में से निकालकर अपने साथ लेकर चलने लगा। लेकिन शान्तनु उसके साथ चलने से मना कर रहा था। वह जैसे-तैसे उसे घर के दरवाजे तक लाया और बोला, "दे घर की चाभी।"
"तुझे दिल में बंद कर लूँ, दरिया में फेंक दूँ चाभी," शान्तनु यह गाकर हँस दिया। जिसे सुनकर निर्भय ने पहले तो अपना माथा पीटा, फिर उसका साथ देते हुए गाने लगा, "मुझे दिल में बंद कर लो, दरिया में फेंक दो चाभी, कुछ तुमको हो गया तो होगी बड़ी खराबी।"
यह सुनकर शान्तनु सोचते हुए बोला, "यू आर राइट! मेरे पॉकेट में है चाभी।" उसने अपनी जीन्स की तरफ इशारा किया तो निर्भय उसके पॉकेट में से चाभी निकालने लगा। जिस पर शान्तनु एकदम से उसका हाथ हटाते हुए बोला, "ठरकी, तू रहने दे, मैं निकालूँगा।"
यह कहते हुए शान्तनु ने काफी समय बाद चाभी निकालकर निर्भय को दी और उसने दरवाजा खोला।
अंदर जाकर तो शान्तनु और भी चलने की हालत में नहीं रहा, वह गिरने लगा तो निर्भय ने उसे संभालते हुए अपनी गोद में उठा लिया।
शान्तनु तो अब भी अपनी बेसुरी आवाज में गाने में लगा हुआ था......
"ये जो हल्का-हल्का सुरूर है, सब तेरी नज़र का कुसूर है।"
"तूने जाम लबों से पिला दिया, मुझे एक शराबी बना दिया।"
"हाय मुझे शराबी बना दिया, हाय.....मुझे शराबी बना दिया...हाहाहाहाहाहाहा।"
उसका यह गाना सुनकर निर्भय के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान आ गई और वह बोला, "मेरी तो बहुत इच्छा है तुझे अपने लबों से जाम पिलाने की, तू एक बार हाँ तो कर....."
यह सुनकर शान्तनु ने उसे थप्पड़ मार दिया। "मैं बस गाना गा रहा हूँ, सीरियसली मत ले ठरकी!"
यह कहकर वह निर्भय को तीखी नज़रों से घूरने लगा तो निर्भय मन ही मन बोला, "किसी दिन सारे थप्पड़ों का हिसाब लूँगा मैं।"
निर्भय उसे कमरे में लाया और बेड पर लिटा दिया। वह उसे लिटाकर हटता तभी शान्तनु ने उसका हाथ पकड़कर अपने साथ बेड पर ही गिरा लिया और पलटकर उसके ऊपर आते हुए बोला, "आज मैं तुझे जाने नहीं दूँगा, तू मुझे बहुत परेशान करता है, आज मैं तुझे परेशान करूँगा।"
यह सुनकर निर्भय के होंठों पर टेढ़ी सी मुस्कान आ गई। "अच्छा! तू मुझे परेशान करेगा, लेकिन वह कैसे?"
"तुझे क्या लगता है सिर्फ़ तू ही परेशान कर सकता है, अरे मैं भी सब कुछ कर सकता हूँ," शान्तनु ने गर्व से सीना ठोककर कहा।
"ओह! तो यह बात है, अच्छा तो उस दिन मैंने तुझे किस किया था.. क्या तू कर सकता है मुझे?" निर्भय ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा। इस बात पर शान्तनु उसे आँखें छोटी कर घूरने लगा।
तभी अचानक से शान्तनु ने अपने होंठ निर्भय के होंठों पर रखे और उसे बड़ी ही शिद्दत से चूमने लगा। निर्भय की तो जैसे मन की मुराद ही पूरी हो गई। धीरे-धीरे निर्भय के हाथ शान्तनु की कमर पर चले गए और वह अपने हाथों से उसकी टीशर्ट को ऊपर करने लगा। उसने शान्तनु को पलटकर सीधा किया और खुद उसके ऊपर आकर उसके होंठों को बेतहाशा चूमने लगा। उसने शान्तनु की टीशर्ट को ऊपर करते हुए उसे उतारकर उसके शरीर से अलग कर दिया और उसके सीने पर चूमने लगा।
कुछ पल बाद उसने चेहरा उठाकर शान्तनु के चेहरे की तरफ देखा जिसकी आँखें बंद हो चुकी थीं। उसे देख निर्भय मुस्कुराया और बोला, "तेरी बात का मान रखूँगा....तेरे नशे में होने का फायदा नहीं उठाऊँगा मैं।"
यह कहकर उसने शान्तनु के माथे को प्यार से चूम लिया और उसे बेड पर अच्छे से लिटाकर चादर ओढ़ा दी।
उसे लिटाने के बाद निर्भय भी उसके साइड में अपनी कोहनी टिकाकर लेटा और उसे देखते हुए बोला, "डॉक्टर! आज एक बात तो तूने साबित कर दी कि तेरे दिल के किसी ना किसी कोने में मेरे लिए जगह तो बन चुकी है और मुझे पूरा विश्वास है कि एक ना एक दिन यह बात तू खुद अपने मुँह से कहेगा। मैं जानता हूँ, भले ही तू खडूस है, लेकिन जिनसे तू प्यार करता है उनके लिए अपनी जान भी दे सकता है...लेकिन मेरी जान, मैंने तुझसे एक बहुत बड़ी बात छुपाई है, पर वक्त आने पर तुझे सब समझा दूँगा और मुझे विश्वास है कि तू मेरी बात ज़रूर समझेगा।"
यह कहते हुए उसने शान्तनु को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया।
आधी रात के वक्त रुद्रांश अनंत के रूम में आया। अनंत गहरी नींद में सोया हुआ था। रुद्रांश धीमे कदमों से चलता हुआ उसके पास पहुँचा और बेड के पास नीचे घुटने के बल धीरे से बैठ गया।
उसने अनंत के चेहरे की तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। फिर धीमे स्वर में बोला, "किस करने के बाद मिलने ही नहीं आया मुझसे, कहकर तो गया था कि डैडी से बात करके आ जाऊँगा, झूठा! कल आना तब बदला लूँगा इस बात का तुझसे।"
यह कहते हुए उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान थी। तभी अनंत नींद में कुँमुनाया तो रुद्रांश जल्दी से नीचे झुक गया और बेड के नीचे छुप गया।
अनंत दूसरी तरफ करवट लेकर सो गया। रुद्रांश धीरे से बेड के नीचे से बाहर निकला और अनंत की तरफ देखते हुए धीमे कदमों से ही उसके कमरे से बाहर निकल गया।
अगले दिन नील की आँखें खुली तो उसके सामने कार्तिक का सोता हुआ चेहरा था। उसे देख नील की आँखें हैरानी से फैलकर चौड़ी हो गईं। वह उसकी बाहों में था और उसके जिस्म पर कपड़े भी नहीं थे। यह देख नील ने झटके से कार्तिक को खुद से दूर किया तो कार्तिक की भी आँख खुल गई।
कार्तिक भी उससे दूर हो गया। नील ने खुद को रजाई से ढक लिया और कार्तिक पर चिल्लाते हुए बोला, "जंगली! तूने कल मेरे साथ....."
कार्तिक ने जल्दी से अपने हाथ से उसका मुँह बंद कर उसे बेड के सिरहाने से लगा दिया। "बकवास करने से पहले मेरी बात सुन, मैंने कुछ नहीं किया तेरे साथ और इस बात का सबूत तुझे खुद तेरी बॉडी दे देगी, महसूस करके देख ले।"
यह सुनकर नील थोड़ा शांत पड़ गया और मन ही मन सोचने लगा कि बात तो कार्तिक की सही थी, उसे बॉडी में कोई दर्द तो महसूस नहीं हो रहा था।
तभी कार्तिक फिर से बोला, "मेरे ख्याल से तुझे अब तसल्ली हो गई होगी कि मैंने तेरे साथ कुछ नहीं किया।" यह कहकर उसने नील के मुँह से अपना हाथ हटा लिया और उसे छोड़ दिया।
"लेकिन मेरे कपड़े..." इतना कहकर नील खुद को देखने लगा। यह देख कार्तिक बोला, "कल नदी में डूबने कौन गया था?"
यह कहते वक्त कार्तिक का लहजा तंज कसने वाला था। जिसे सुनकर नील अपनी नजरें चुराने लगा। जिसे देख कार्तिक बोला, "तेरा सारा शरीर ठंड की वजह से अकड़ गया था और तेरी ऐसी हालत भी नहीं थी कि तू अपने कपड़े भी उतार सके, इसलिए तेरे कपड़े मैंने ही उतारे थे।"
यह सुनकर नील ने अपनी आँखों को कसकर भींच लिया। फिर उसे अपनी बॉडी से सरसों के तेल की महक आने लगी। जिस पर वह बोला, "यह कैसी अजीब सी बदबू है?"
उसकी अजीब सी शक्ल को देख कार्तिक बोला, "बेवकूफ, यह बदबू नहीं बल्कि सरसों के तेल की महक है। कल रात गरम करके उससे तेरी बॉडी की मालिश की थी मैंने, तब जाकर तेरे शरीर की अकड़न कम हुई है, वरना अकड़ा हुआ ही रह जाता।"
उसकी बातें सुनकर नील को अपने किए पर पछतावा होने लगा कि उसने कार्तिक को कितना गलत समझा था। उसने उसे इतना कुछ सुनाया, यहाँ तक कि उसे घर में बंद करके भाग गया, लेकिन फिर भी कार्तिक ने उसकी जान बचाई।
कार्तिक बेड से उठा और बिना उसकी तरफ देखे ही बोला, "यहाँ अलमारी में मेरे कपड़े रखे हैं, अगर तू पहनना चाहे तो पहन लेना। वैसे अगर नहीं भी पहनेगा तो मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी क्योंकि मैं तो तुझे कल रात बहुत अच्छे से देख चुका हूँ।"
यह सुनकर नील ने पीछे से ही एक तकिया उठाकर कार्तिक पर फेंक दिया जो कार्तिक के सिर पर जा लगा। कार्तिक ने पलटकर देखा तो नील पूरी तरह उस रजाई में दुबक गया और अपना मुँह भी उसमें छिपा लिया। उसे इस तरह देख कार्तिक को थोड़ी हँसी आ गई और वह मन ही मन बोला, "कोका कोला को शर्म भी आती है।"
मन ही मन यह कहकर वह कमरे से बाहर चला गया।
उसके जाने के बाद नील ने उस रजाई में से अपना मुँह बाहर निकाला और रोनी सूरत बनाकर बोला, "अब मैं क्या करूँ? इस बात का अहसान मानूँ कि इसने मुझे बचाया या फिर इस बात पर अफ़सोस करूँ कि इसने मुझे अच्छे से देख लिया, कितनी अजीब सिचुएशन है?"
यह कहकर उसने अपनी आँखों को कसकर भींच लिया।
जारी है......
शान्तनु जब सुबह उठा, तो उसका सिर काफी दर्द कर रहा था। वह अपना सिर पकड़ते हुए उठा। तभी उसने ध्यान दिया कि उसकी टीशर्ट नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी। उसने उसे उठाया। तभी निर्भय बाथरूम से बाहर निकला; वह केवल शॉर्ट्स में ही था। उसे देख शान्तनु हैरत में पड़ गया।
“तू यहाँ?...और कपड़े कहाँ छोड़कर आया है?” वह निर्भय को नीचे से ऊपर तक देखते हुए बोला।
ये सुनकर निर्भय उसके पास आते हुए कहने लगा, “ये तू मुझसे पूछ रहा है? क्या तुझे कुछ याद नहीं, कल रात क्या हुआ था?”
“क्या हुआ था?” शान्तनु नासमझी भरे भाव अपने चेहरे पर लाकर बोला।
निर्भय उसके पास बेड पर बैठते हुए बोला, “कल रात हम दोनों के बीच वही हुआ था जो दो लवर्स के बीच होता है, और इसकी शुरुआत भी तूने ही की थी। मैंने तुझे बहुत रोका, लेकिन तू नहीं रुका।”
“ये क्या बकवास कर रहा है? अगर ऐसा होता, तो मुझे अपनी बॉडी में पेन फील नहीं होता क्या?” शान्तनु अविश्वसनीय चेहरा बनाकर बोला।
“वो तो मुझे हो रहा है ना, क्योंकि किया तो सब कुछ तूने ही था।” निर्भय अपने चेहरे पर दर्द भरे भाव लाकर बोला।
“क्या? मैंने किया था?” शान्तनु हैरान होकर बोला।
“हाँ, तूने। कल पूरी रात तूने मेरे साथ वो किया जो मैं केवल सपने में ही सोच सकता था। इसलिए अब तू मुझे ऐसे ही नहीं छोड़ सकता... तुझे एक्सेप्ट करना ही होगा मुझे, वरना मैं तुझ पर रेप केस करूँगा।” निर्भय एक तरह से उसे धमकाते हुए कहने लगा। जिसे देख शान्तनु भी उसे आँखें छोटी कर घूरने लगा और बोला,
“अच्छा! तो तू मुझ पर रेप केस करेगा?”
निर्भय ने भी हाँ में सिर हिलाया। “हाँ, अगर तूने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं ऐसा ही करूँगा। और फिर कल के न्यूज़ पेपर की हेडलाइंस होंगी, ‘मैत्री होस्पिटल के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट शान्तनु अग्रवाल ने किया पुलिस ऑफिसर निर्भय शेखावत का बलात्कार!’”
ये सुनकर तो शान्तनु का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह गुस्से में दांत पीसते हुए बोला, “बलात्कार के बच्चे! अभी बताता हूँ तुझे.....”
उसे इस तरह देख निर्भय दबी हँसी हँसते हुए बेड से उठकर भागा, और शान्तनु भी चिल्लाते हुए उसके पीछे भागा। वे दोनों पूरे कमरे में भाग रहे थे। निर्भय दरवाजे तक पहुँचा, तो शान्तनु ने उसे पीछे से पकड़कर फिर से बेड पर गिरा दिया और उसके पेट के ऊपर बैठते हुए उसका गला पकड़कर बोला, “साले ठरकी! अब मैं बताता हूँ कल के न्यूज़पेपर की हेडलाइंस क्या होंगी.... ‘मैत्री होस्पिटल के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट शान्तनु अग्रवाल ने एक ठरकी पुलिस ऑफिसर की निर्ममता से गला घोंटकर हत्या कर दी!’”
निर्भय उसका हाथ हटाने की कोशिश करते हुए अपनी दबी सी आवाज में बोला, “मुझे मारकर तो तुझे फाँसी हो जाएगी।”
“अच्छा! तो रेप करने पर क्या मुझे मेडल मिलने वाला था? तुझे मारकर तो मैं फाँसी पर भी चढ़ने को तैयार हूँ।”
“ओके मेरी जान, मार दे मुझे। लेकिन ये मत समझना कि तेरा पीछा छूट जाएगा। मेरे मरने के बाद तुझे फाँसी होगी, तो तू भी तो मेरे पास स्वर्ग में आएगा। मैं वहाँ भी तुझे परेशान ही करूँगा।” निर्भय आँखें उचकाकर बोला।
निर्भय की ये बात सुनकर तो शान्तनु उसे देखता ही रह गया, और उसके हाथों की पकड़ ढीली हो गई। तभी निर्भय ने अचानक से उसे पलटकर अपने नीचे किया और बोला, “कल रात को कुछ नहीं हुआ तो क्या हुआ? मैं तो अब भी तैयार हूँ, बस तू हाँ कर दे।” उसने शरारती लहजे में कहा। तो शान्तनु ने चिढ़ते हुए अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे अपने ऊपर से हटा दिया। निर्भय भी मुस्कुराते हुए साइड में गिर गया।
शान्तनु बेड से उठकर बैठा और बोला, “मजाक बहुत हो चुका निर्भय! अब ये बता कि कल तुझे वहाँ क्लब में कुछ पता चला? कहाँ हैं मेरे दोनों भाई?”
ये सुनकर निर्भय भी उठकर बैठा और बोला, “हाँ, कार्तिक रायज़ादा के बारे में बस इतना पता चला है कि वो अशोक कुमावत का सेक्रेटरी है।”
शान्तनु उसकी ओर देखते हुए बोला, “जहाँ तक मैंने सुना है, अशोक कुमावत तो इस शहर के बहुत बड़े बिज़नेस मेन हैं।”
“हाँ! तुम शरीफों की नज़रों में वो बिज़नेस मेन है, लेकिन हम पुलिस वालों की नज़रों में वो बहुत बड़ा स्मगलर है। पर हमारे पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं।”
ये सुनकर शान्तनु हैरान होकर बोला, “अशोक कुमावत स्मगलर है! और उसका सेक्रेटरी कार्तिक रायज़ादा... लेकिन उसके सेक्रेटरी का नाम तो शायद दिवाकर था।”
“हाँ, वो कार्तिक उस दिवाकर का ही बेटा है। दिवाकर की मौत के बाद अशोक ने कार्तिक को अपना सेक्रेटरी बना लिया।”
शान्तनु उसकी बातें सुनकर बोला, “तो क्या इस कार्तिक ने ही मेरे भाइयों को किडनैप किया है या फिर अशोक ने किडनैप करवाया है।”
ये सुनकर निर्भय सोचते हुए बोला, “ये हो भी सकता है और नहीं भी।”
उसकी इस बात पर शान्तनु को थोड़ा गुस्सा आ गया। “तो क्या तू कल केवल वहाँ नाचने ही गया था? कुछ भी तो पता नहीं लगाया तूने मेरे भाइयों के बारे में।” उसने तल्खी भरी आवाज में कहा।
“अरे, हम कार्तिक रायज़ादा के बारे में जानकारी लेने गए थे, तो वो मिल गई। अब उसने तेरे भाइयों का किडनैप किया है या नहीं, ये पता करने के लिए तो मुझे अभी और भी इन्वेस्टिगेशन करनी पड़ेगी।”
“हाँ, तो कर ना! यहाँ बैठा क्यों है? जा यहाँ से और कुछ भी करके मेरे भाइयों को ढूँढकर ला।” ये कहते हुए शान्तनु निर्भय को पीछे से धक्का देने लगा।
“अच्छा, जा रहा हूँ... एक तो रात में इतनी मुश्किल से तुझे घर लेकर आया, पूरी रात तेरा ख्याल रखा, और तू है एक छोटा सा थैंक यू भी नहीं बोल सकता, खड़ूस कहीं का।”
“जिस तरह तू कभी सॉरी नहीं कहता, उसी तरह मैं कभी थैंक यू नहीं कहता, समझा?” शान्तनु बोला।
“समझ गया तनु।” निर्भय ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
“मेरा नाम शान्तनु है।” शान्तनु उस पर चिल्लाकर बोला।
“ओके! शान... तनु।” ये कहकर निर्भय शरारत से मुस्कुरा दिया। उसे इस तरह मुस्कुराते देख शान्तनु खिसिया गया। तभी निर्भय उससे पूछने लगा, “वैसे मुझे एक बात बता, तूने कल शराब क्यों पी थी?”
ये सुनकर शान्तनु अटकते हुए बोला, “वो... वो... तो गलती से.....”
“गलती से नहीं, बल्कि जलन और गुस्से में आकर पी थी, है ना!” निर्भय उसे छेड़ने वाले अंदाज़ में बोला।
शान्तनु ने भी मान लिया और बोला, “हाँ, आ रहा था गुस्सा मुझे तुझ पर।”
“मैं उस लड़की के साथ डांस कर रहा था, इसलिए।” निर्भय उसे अब और भी जलाने के मूड में था।
“नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि तू.... तू.....” शान्तनु तू तू करता ही रह गया, क्योंकि उसे समझ ही नहीं आया कि वो आगे क्या बोले? ये देख निर्भय मुँह दबाकर हँस रहा था। शान्तनु की नज़र जब उस पर पड़ी, तो वो खिसियाते हुए खड़ा हुआ और कुछ ना कहकर बाथरूम में चला गया।
उसके जाने के बाद निर्भय उसकी शक्ल को याद कर हँसते-हँसते बेड पर लोटपोट हो गया।
इधर अनंत जब रुद्रांश के रूम में गया, तो उसने देखा रुद्रांश बेड पर चुपचाप बैठा था। वह उसके पास गया और बोला, “गुड मॉर्निंग रुद्रांश!”
रुद्रांश ने उसकी गुड मॉर्निंग का कोई जवाब नहीं दिया, जिस पर अनंत को थोड़ी हैरत हुई। वह फिर से बोला, “रुद्रांश! तुम अभी तक बिस्तर में ही बैठे हो, जाओ जाकर फ्रेश हो जाओ।”
रुद्रांश ने इस पर भी कोई जवाब नहीं दिया, जिसे देख अनंत और भी हैरान हो गया। “रुद्रांश!” ये कहते हुए उसने रुद्रांश का हाथ पकड़ा, लेकिन रुद्रांश ने उसका हाथ झटक दिया और दूसरी तरफ मुँह फेरकर बैठ गया।
ये देखकर अनंत कहने लगा, “आखिर हुआ क्या है तुम्हें? मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे?”
“तूने कल कहा था डैडी से बात करके वापस मेरे पास आ जाएगा, लेकिन नहीं आया। इसलिए मैं भी अब तुझसे कभी बात नहीं करूँगा, मैं कट्टी हूँ तुझसे!” उसने बच्चों की तरह कहा और मुँह फुलाकर बैठ गया।
ये सुनकर अनंत को अपने किए पर थोड़ा अफ़सोस हुआ, और वह रुद्रांश के पास बैठते हुए बोला, “अच्छा सॉरी, अब मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा।”
“मेरे को तेरा सॉरी नहीं चाहिए, चला जा यहाँ से।”
उसका ऐसा लहजा देखकर अनंत कुछ सोचकर बोला, “अच्छा, तो किस चाहिए।”
ये सुनकर रुद्रांश के होठों पर मुस्कान तैर गई, लेकिन अनंत के देखने से पहले ही उसने ये मुस्कान छिपा ली और पहले की तरह ही मुँह फुलाकर बैठा रहा। उसे देख अनंत उसे किस करने के लिए उसके गाल की तरफ बढ़ने लगा। तभी रुद्रांश ने उसके होंठों पर हाथ रख दिया और उसकी तरफ देखकर बोला, “अगर किस करनी ही है, तो यहाँ कर।” उसने अपने होंठों की तरफ़ इशारा करके कहा, जिस पर अनंत के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, और वह ना में सिर हिलाने लगा। जिसे देख रुद्रांश के चेहरे पर थोड़े गुस्से वाले भाव आ गए, और वह अनंत को धक्का देकर खुद से दूर करते हुए बोला, “चला जा यहाँ से।”
अनंत बेचारा फिर से अजीब दुविधा में फंस गया। उसने रुद्रांश को देखा जो फिर से अपना मुँह फेरकर बैठ गया था। उसे देख अनंत मन ही मन सोचने लगा, “ये तो किसी जिद्दी बच्चे जैसा बर्ताव कर रहा है......” वह ये सोच ही रहा था कि तभी रुद्रांश ने गुस्से में बेड पर पड़े तकियों को नीचे फर्श पर फेंक दिया।
उसे इस तरह देख अनंत के चेहरे पर चिंताजनक भाव आ गए। “ये तो धीरे-धीरे एग्रेसिव हो रहा है। मुझे कुछ भी करके इसे शांत करना होगा।” ये सोचते हुए वह रुद्रांश की तरफ बढ़ गया, जो अब टेबल पर रखे सामानों को नीचे फेंक रहा था।
तभी एकदम से अनंत उसके सामने आया और जल्दी से उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। रुद्रांश के हाथ में जो सामान था, वो उसके हाथ से छूट गया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और अनंत के नरम होंठों के स्पर्श को महसूस करने लगा।
कुछ पल बाद अनंत थोड़ा हिचकिचाते हुए उससे दूर हुआ। तभी रुद्रांश ने उसे कमर से पकड़कर फिर से अपने करीब कर लिया। अनंत के हाथ रुद्रांश के सीने पर आ गए थे। अनंत ने नज़रें उठाकर रुद्रांश के चेहरे की तरफ देखा, जो अब मुस्कुरा रहा था। उसने ऐसे ही मुस्कुराते हुए अनंत को अपनी बाहों में भर लिया और बोला, “तू सच में बहुत अच्छा है अन्नू।”
रुद्रांश का इस तरह बोलना अब अनंत को भी अच्छा लगने लगा था, और उसकी बाहों में भी उसे कुछ अनोखा और प्यारा एहसास हो रहा था, जिसके चलते अनंत के चेहरे पर भी प्यार भरी मुस्कान तैर गई।
दरवाज़ा खुला हुआ था, और अशोक वहाँ खड़े होकर उन दोनों को देख रहे थे। वह मन ही मन कहने लगे, “ये डॉक्टर मेरे बेटे को सही तो कर देगा, लेकिन इसके मन में प्यार की भावनाएँ डाल देगा, जो हमारे बिज़नेस के लिए बिल्कुल ठीक नहीं... मैं ऐसा नहीं होने दे सकता। मुझे मेरा वही बेटा चाहिए, जिसके मन में ये प्यार-मोहब्बत जैसी फ़ालतू चीज़ों के लिए कोई जगह नहीं थी।” मन ही मन ये कहते हुए वह वहाँ से चले गए।
इधर कार्तिक किचन में ब्रेकफ़ास्ट बना रहा था। कुछ देर बाद वह अपना ब्रेकफ़ास्ट लेकर डाइनिंग रूम में आया और उसे टेबल पर रख दिया। वह कुर्सी पर बैठा, तभी उसकी नज़र सामने पड़ी, जहाँ नील उसके कपड़े पहने खड़ा था।
कार्तिक ने उसे नीचे से ऊपर तक देखा, तो उसे थोड़ी हँसी आ गई, क्योंकि कार्तिक के कपड़े नील को बहुत ढीले आ रहे थे। उसकी ढीली सी येलो रंग की टीशर्ट नील के थाई तक आ रही थी, और उसका शॉर्ट्स भी उसके घुटनों से नीचे आ रहा था।
कार्तिक को अपने ऊपर हँसता देख नील बोला, “हँस मत, ये भी बड़ी मुश्किल से ढूँढकर पहने हैं मैंने, एक भी कपड़ा मेरे साइज़ का नहीं था।”
“जब कपड़े मेरे हैं, तो मेरे ही साइज़ के होंगे ना।” कार्तिक उससे बोला। ये सुनकर नील फिर कुछ नहीं बोला। फिर कार्तिक ही कहने लगा, “वैसे ये भी काफी जँच रहे हैं तुझ पर, सच कहूँ तो किसी भिखारी से कम नहीं लग रहा है तू।”
ये सुनकर नील चिढ़ गया। वह कुछ कहता, तभी उसकी नज़र टेबल पर गई, जहाँ प्लेट में पोहे रखे थे, जो कार्तिक ने ब्रेकफ़ास्ट में बनाए थे। एक तो नील दो दिन से भूखा था, और अब ये सामने देखकर उसके मुँह में पानी आने लगा। उसने अपनी जीभ को अपने होंठों पर फेर लिया। कार्तिक की नज़र जब उस पर पड़ी, तो उसने वो प्लेट अपनी तरफ़ करते हुए कहा, “मेरे खाने को नज़र लगायेगा क्या?”
“तेरे दिल में जरा भी रहम नहीं है क्या? मैं दो दिन से भूखा बैठा हूँ, और तू मेरे सामने खा रहा है। एक बार भी मुझसे नहीं पूछा।” नील ने उससे कहा।
“क्या पूछूँ तुझसे? जब मुझे पता है कि यही जवाब मिलना है कि मुझे नहीं खाना... मुझे नहीं खाना... फिर क्यों पूछूँ तुझसे?” कार्तिक ने जवाब दिया।
“खाना है।” इस बार नील ने धीमी सी आवाज़ में कहा, जिसे सुनकर कार्तिक बोला, “नहीं नहीं, मेरे घर का तो पानी भी मत पीना, क्योंकि मैंने तो उसमें ज़हर मिलाया हुआ है।” कार्तिक तंज कसते हुए बोला। ये सुनकर नील नज़रें झुकाए चुपचाप खड़ा रहा। फिर कार्तिक को ही उस पर रहम आ गया, और वह उठकर किचन की तरफ़ चला गया।
नील वहीं खड़ा था। कुछ देर बाद कार्तिक उसके लिए भी एक प्लेट पोहे और एक गिलास दूध का ले आया। उसने उसे टेबल पर रखा और बोला, “ले, खा ले।” ये कहकर वह फिर से अपनी सामने वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया। नील भी जल्दी से कुर्सी पर बैठा और खाने पर टूट पड़ा। वह बहुत जल्दी-जल्दी खा रहा था। उसे इस तरह खाते देख कार्तिक को मन ही मन हँसी आ गई, और वह मंद-मंद मुस्कुराने लगा।
नील ने बड़ी जल्दी वो प्लेट खाली कर दी। उसने कार्तिक की प्लेट की तरफ़ देखा और उसे भी अपनी तरफ़ सरका लिया, और कुछ ही पल में उसे भी पूरा खाली कर दिया। फिर उसने कार्तिक की तरफ़ देखा और कहने लगा, “और हैं क्या?” ये सुनकर कार्तिक पहले तो हैरान हुआ, फिर किचन की तरफ़ इशारा करके बोला, “खुद ले आ।” ये सुनकर नील बिजली की फुर्ती से दौड़ता हुआ किचन में चला गया।
कार्तिक ने किचन की तरफ़ नज़र डाली, तो उसने देखा नील पूरी कड़ाही को ही उठाकर चमचे से उस प्लेट में सारे पोहे करने में लगा था। उसे देख कार्तिक मन ही मन बोला, “इतने सारे तो पहले मैंने लाकर दे दिए, फिर मेरी प्लेट के भी खा गया, उसके बावजूद भी सारी कड़ाही खाली कर दी। इसका पेट है या कुआँ?... दिखने में तो नहीं लग रहा था कि इतना खाएगा... पर ये भूखा भी तो दो दिन से है।” ये सोचकर कार्तिक धीरे से हँस दिया।
नील किचन में से वापस आकर फिर से वहीं बैठ गया और पहले की तरह ही सारी प्लेट खाली कर दी। कार्तिक तो बस हैरानी से अटक देखे जा रहा था।
उसके खाने के बाद कार्तिक ने उससे पूछा, “और खाएगा?” नील जो इस वक्त दूध का गिलास मुँह से लगाए हुए था, उसकी तरफ़ देखकर बोला, “नहीं, सुबह का कोटा तो पूरा हो गया मेरा... लंच में भी ऐसा ही कुछ टेस्टी बना देना मेरे लिए।” ये कहकर उसने दूध का गिलास भी पूरा खाली करके टेबल पर रख दिया।
“मैं तेरा नौकर लग रहा हूँ।” कार्तिक उससे बोला, जिसे सुनकर नील मुस्कुराया और कहने लगा, “तू ही कहता है कि ये मेरा ससुराल है, तो तुझे मेरी खातिरदारी तो करनी ही पड़ेगी।” ये कहते हुए वह कुर्सी पर आराम से पसरकर बैठ गया। ये सुनकर कार्तिक की आइब्रो ऊँची हो गई।
जारी है.....
अनंत ने रुद्रांश का इलाज किया, कार्तिक ने नील के नखरे झेले और निर्भय ने शान्तनु के साथ जाँच की। कुछ दिन इसी तरह बीत गए, लेकिन किसी में कोई सुधार नहीं हुआ। रुद्रांश ठीक नहीं हुआ, नील के नखरे कम नहीं हुए और निर्भय और शान्तनु नील और अनंत को नहीं ढूँढ पाए। बस थोड़ा समय बीता, बाकी सब वैसा ही था जैसा चल रहा था। अब ऐसा क्यों हुआ? यह तो आगे की कहानी में ही पता चलेगा।
नील आराम से सोफे पर बैठा टीवी देख रहा था। उसके हाथ में पॉपकॉर्न का पैकेट था, जिसे वह मजे से खा रहा था। तभी कार्तिक वहाँ आया और उससे बोला,
"तेरा मुँह कभी बंद रहता है या नहीं? जब देखो खाते हुए ही पाया जाता है। उस दिन तो मैंने सोचा था कि तू दो दिन से भूखा है इसलिए इतना खा रहा होगा, लेकिन तूने तो हद ही कर दी। तेरी वजह से मेरे घर का राशन इतनी जल्दी खत्म होने की कगार पर आ गया।"😠
कार्तिक उसे पुरानी हिंदी फिल्मों की सास की तरह ताने मारने लगा था, लेकिन नील उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।😏 वह तो बस मजे से खाते हुए टीवी देखने में लगा रहा। यह देख कार्तिक ने गुस्से में आकर टीवी बंद कर दी और नील की तरफ देखा। नील एकदम से उठकर खड़ा हुआ और बोला,
"देख, मैं अपनी मर्जी से यहाँ नहीं आया था। मुझे तू जबरदस्ती यहाँ लेकर आया और अगर तू मेरी खातिरदारी नहीं कर सकता तो छोड़ दे मुझे, मैं चला जाऊँगा यहाँ से।"🤷♂️
नील की यह बात सुनकर कार्तिक को गुस्सा आया, लेकिन वह क्या करता? वह मन ही मन बोला,
"क्या आफत है यह? इसे तो मैं छोड़ भी नहीं सकता। पता नहीं यह पागल कब ठीक होगा?"
यह सोचकर वह अपने गुस्से का घूंट पीते हुए वहाँ से चला गया।
नील उसे जाते हुए देखता रहा और मुस्कुराता रहा। "मुझे पकड़ना मुश्किल है, लेकिन पकड़े रखना उससे भी ज्यादा मुश्किल है माय डीयर जंगली! और इतना तो मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू मुझे कोई नुकसान तो नहीं पहुँचाएगा, क्योंकि अगर तुझे ऐसा करना ही होता तो उस दिन मेरी जान ना बचाता।" नील मन ही मन यह सब कह रहा था।
जिस दिन से कार्तिक ने नील की जान बचाई थी, उसी दिन से नील के मन में कार्तिक के लिए जगह बन चुकी थी। उस दिन तो वह इंसानियत के नाते उसका एहसान मान रहा था, लेकिन धीरे-धीरे अब वह उसे चाहने भी लगा था। कार्तिक उसे चाहे कितने भी ताने दे, नील उसका जरा सा भी बुरा नहीं मानता था, बल्कि वह तो उसे और भी परेशान करने लग जाता था।😅
वहीं कार्तिक भी नील को खूब खरी-खोटी सुना लेता था, लेकिन फिर भी उसे उसकी ज़रूरत की सारी चीज़ें लाकर देता था। नील जो भी खाने की ज़िद करता, वह नुकुर किए बिना उसके लिए बना देता था।
इधर अनंत बंगले के पीछे बने बड़े से घास के मैदान में रुद्रांश के साथ था। इन कुछ दिनों में रुद्रांश के व्यवहार में ज़्यादा कुछ खास परिवर्तन नहीं आया था, बस उसका आक्रामकपन थोड़ा कम पड़ गया था। वे दोनों फ़ुटबॉल खेल रहे थे। तभी रुद्रांश भागते-भागते अचानक से गिर गया और बच्चों की तरह रोने लगा।
"रुद्रांश!" अनंत दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसके पैर पर हाथ लगाते हुए बोला,
"कहाँ चोट लगी? दिखाओ मुझे।"
उसने चिंता जताते हुए कहा। तभी रुद्रांश ने जोर-जोर से हँसना शुरू कर दिया।
"उल्लू बनाया! बड़ा मज़ा आया।" उसने हँसते हुए कहा। इसे देख अनंत ने सिर हिलाया और उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोला,
"तो तुम मुझे उल्लू बना रहे थे।"
"हाँ उल्लू, मैं तुझे उल्लू ही बना रहा था।" यह कहते हुए रुद्रांश ने भी उसके सिर पर चपत लगा दी।
"हिसाब बराबर।" यह कहते हुए वह फिर से हँसने लगा।
"रुद्रांश, तुम दिन-ब-दिन बहुत शैतान होते जा रहे हो। तुम्हारे डैडी से शिकायत करनी पड़ेगी तुम्हारी।" अनंत ने यह कहा तो रुद्रांश जल्दी से उसके मुँह पर हाथ रखते हुए ना में गर्दन हिलाकर बोला,
"डैडी से मेरी शिकायत मत करना, वरना मैं तुझसे कट्टी हो जाऊँगा।"
यह कहकर उसने मुँह फुला लिया। इसे देख अनंत ने भी ना में गर्दन हिला दी और उसका हाथ हटाते हुए बोला,
"ओके रुद्रांश! नहीं करूँगा तुम्हारी शिकायत।"
"ये तू मुझे रुद्रांश क्यों कहता है?" रुद्रांश चिढ़चिढ़ी सूरत बनाकर बोला। इसे देख अनंत कहने लगा,
"तुम्हारा नाम रुद्रांश है तो यही तो कहूँगा ना।"
"नहीं, जैसे मैं तुझे निक नेम से बुलाता हूँ, वैसे ही तू भी मुझे निक नेम से बुलाया कर।"
"अच्छा ठीक है। मैं तुम्हें रुद्र कहकर बुलाऊँगा। ओके।"
"नहीं।"
"तो फिर क्या कहकर बुलाऊँ?" अनंत ने पूछा तो रुद्रांश उसकी तरफ देखकर बोला,
"अंश कहकर बुला मुझे।"
"अंश!" यह कहते हुए अनंत के चेहरे पर हैरानी भरी मुस्कान आ गई। फिर वह सोचने लगा, "रुद्र और अंश से ही तो मिलकर बना है रुद्रांश! हो सकता है इसे कोई अंश भी कहकर बुलाता हो।" यह सोचकर अनंत उससे पूछने लगा,
"रुद्रांश!"
यह सुनकर रुद्रांश ने उसे घूरा तो अनंत फिर से बोला,
"मेरा मतलब अंश!"
अंश सुनकर रुद्रांश मुस्कुरा दिया। फिर अनंत कहने लगा,
"क्या तुम्हें कोई अंश कहकर बुलाता था?"
यह सुनकर रुद्रांश अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बोला,
"शायद मेरे स्कूल या कॉलेज में मेरे दोस्त मुझे अंश बुलाते थे।"
यह सुनकर अनंत मुस्कुराकर बोला,
"ओ...तो तुम मुझे भी अपना दोस्त मानते हो, इसलिए तुमने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें अंश कहकर बुलाऊँ।"
यह सुनकर रुद्रांश ने अनंत की तरफ देखा और उसे अपनी बाहों में भरते हुए बोला,
"हाँ, तू तो मेरा सबसे प्यारा और अच्छा दोस्त है।"
यह कहकर उसने अनंत के गालों को कसकर चूमा और साथ ही उसे गुदगुदी भी करने लगा।
"हेय...नहीं...हाहाहाहा....छोड़ो रुद्रांश...नहीं अंश....हाहाहहाहा....प्लीज़....हहाहाहहाहा"
अनंत हँसते-हँसते नीचे लेट गया और रुद्रांश उसके ऊपर।
उसे हँसता देख रुद्रांश उसमें ही खो गया और उसने उसे गुदगुदी करना बंद कर दिया। अब अनंत ने भी हँसना बंद कर दिया था। उसने रुद्रांश को देखा, जिसकी आँखों में कुछ अलग ही कशिश थी। वह बड़े ही प्यार से अनंत को देख रहा था। उसे इस तरह देख अनंत भी उसकी आँखों में देखने लगा। इसी तरह देखते ही देखते रुद्रांश ने धीरे से अपने होंठ अनंत के होंठों पर रख दिए और उसे सॉफ्टली चूमने लगा। अनंत की आँखें भी धीरे से बंद हो गईं और उसका एक हाथ रुद्रांश के बालों में चला गया।
अशोक अपने कमरे की बालकनी में खड़े यह नज़ारा देख रहे थे। उनके चेहरे पर इस वक़्त काफ़ी गुस्से भरे भाव थे।
"सब कुछ हाथ से निकलता जा रहा है। मैं रुद्रांश को जुर्म और दहशत की दुनियाँ का बादशाह बनाना चाहता हूँ और यह डॉक्टर इसे अपने प्रेम जाल में फँसा रहा है। मैं ऐसा नहीं होने दे सकता।"
यहाँ मैत्री हॉस्पिटल में शान्तनु अपने केबिन में बैठा था और अपने सामने टेबल पर रखी अपने मम्मी-पापा की फ़ोटो से बातें कर रहा था।
"मेरी भी क्या किस्मत है? माँ जन्म देकर इस दुनियाँ से चली गई, पापा डॉक्टर बनते हुए देखना चाहते थे, लेकिन उससे पहले ही छोड़कर चले गए। किस्मत से दो भाई मिले, अब वे भी ना जाने कहाँ हैं?"
यह कहते हुए उसने वहाँ रखी दूसरी फ़ोटो उठा ली, जिसमें वह, अनंत और नील तीनों ही थे। उस फ़ोटो को देखकर शान्तनु की आँखें नम हो गईं, लेकिन तभी किसी ने डोर नॉक किया तो शान्तनु ने कमरे में कहते हुए अपने आँसू पोछ लिए।
निर्भय वहाँ आया था। उसने शान्तनु को आँसू पोछते हुए देख लिया था और इसका कारण भी वह समझ चुका था। उसे देख शान्तनु ने पहला सवाल यही किया,
"मेरे भाइयों का कुछ पता चला?"
"नहीं।" निर्भय ने जवाब दिया।
"मुझे तुझ पर भरोसा ही नहीं करना चाहिए था।" शान्तनु ने गुस्से में कहा। वह आगे भी कुछ कहना चाहता था, तभी एक नर्स जल्दी से वहाँ दौड़ती हुई आई।
"डॉक्टर! रूम नंबर 30 के पेशेंट की हालत अचानक से खराब हो गई है। प्लीज़ जल्दी चलिए।"
यह सुनकर शान्तनु जल्दी से उठा और गुस्से में एक नज़र निर्भय को देख वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद निर्भय खुद से ही बोला,
"अब तो मुझे उससे बात करनी ही पड़ेगी। ऐसे तो मेरी प्रेम लीला शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगी।"
इधर रुद्रांश और अनंत हाथों में हाथ डाले बंगले के अंदर आए और ऊपर अपने कमरे की तरफ़ जाने लगे। अशोक और कार्तिक वहीं थे और उन दोनों को ही देख रहे थे। कार्तिक अशोक से कहने लगा,
"सर, यह हो क्या रहा है? मुझे तो इनके रंग-ढंग कुछ अलग ही लग रहे हैं। आपका बेटा आपके हाथ से निकलता जा रहा है।"
"बस बहुत हो चुका। अब मुझे इस डॉक्टर से बात करनी ही पड़ेगी।" अशोक ने अपने चेहरे पर सख्ती भरे भाव लाकर कहा।
अगले ही पल अनंत अशोक के सामने खड़ा था। कार्तिक भी वहीं था। अशोक अनंत से कहने लगे,
"मैंने तुम्हें यहाँ अपने बेटे का इलाज करने के लिए रखा था, उसके साथ प्रेम-लीला रचाने के लिए नहीं।"
"यह आपसे किसने कह दिया कि मैं उसके साथ प्रेम-लीला रचा रहा हूँ? मैं उसका इलाज ही कर रहा हूँ।" अनंत ने कहा।
"यह कौन सा तरीका है इलाज करने का? मैंने खुद कई बार तुम दोनों को साथ में वह सब करते देखा है।"
"ज़बान संभालकर बात कीजिए मि. अशोक, ऐसा क्या देख लिया आपने?" अनंत थोड़ा तल्ख भरे लहजे में बोला।
"अभी कुछ देर पहले उस मैदान में क्या कर रहे थे तुम दोनों?" अशोक ने भी सख्ती भरे लहजे में पूछा।
"डैडी, हम दोनों फ़ुटबॉल खेल रहे थे।" रुद्रांश अचानक से वहाँ आते हुए बोला। उसे देख अशोक कहने लगे,
"तुम अपने कमरे में जाओ रुद्रांश, मुझे इस डॉक्टर से कुछ बात करनी है।"
"तो आप बात करिए ना, मैं आपके रोक थोड़े ही रहा हूँ।" यह कहकर रुद्रांश वहाँ रखे सोफ़े पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गया। कार्तिक वहीं सोफ़े के पास खड़ा था। रुद्रांश के वहाँ बैठने पर वह वहाँ से जल्दी से हट गया और दूर जाकर खड़ा हो गया।
उसे इस तरह हटते देख रुद्रांश हँसकर बोला, "पगला सा, डरता है मुझसे।" यह सुनकर कार्तिक बस अपने दाँत पीसकर रह गया।
रुद्रांश के वहाँ होने से अशोक अनंत से कुछ कह नहीं पा रहे थे। आखिर में उन्होंने अनंत से कह दिया,
"मैं तुमसे बाद में बात करूँगा, लेकिन आज से तुम आउट हाउस में रहोगे, समझे।"
"लेकिन ऐसा क्यों डैडी?" रुद्रांश एकदम से सोफ़े पर खड़ा होकर बोला।
"क्योंकि मैं कह रहा हूँ इसलिए।" अशोक ने कहा तो रुद्रांश सोफ़े से नीचे कूदा और अनंत की बाजू को पकड़ते हुए बोला,
"नहीं, अन्नू यहीं रहेगा मेरे बगल वाले रूम में।"
"मैंने कहा ना यह बाहर आउट हाउस में रहेगा।"
"नहीं, यह मेरे बगल वाले रूम में ही रहेगा।" इस बार रुद्रांश ने तेज आवाज में चिल्लाकर कहा। उसके चेहरे पर गुस्से भरे भाव आ गए थे, जिसे देख अशोक और कार्तिक थोड़ा सहम गए। अनंत रुद्रांश से बोला, "शांत हो जाओ अंश!" रुद्रांश के गुस्साए चेहरे को देखकर अनंत थोड़ा चिंतित हो उठा था, इसलिए वह उसे शांत कराने की कोशिश कर रहा था।
रुद्रांश कुछ पल तो अशोक और कार्तिक को अपनी गुस्से भरी निगाहों से देखता रहा, फिर अनंत का हाथ पकड़कर बोला,
"चल अन्नू!"
यह कहते हुए रुद्रांश अनंत को अपने साथ लेकर रूम की तरफ़ बढ़ गया। उनके जाने के बाद कार्तिक अशोक से बोला,
"आपका बेटा तो पूरी तरह आपके हाथ से निकल चुका है।"
"मैं ऐसा नहीं होने दूँगा।" अशोक तल्खी भरे अंदाज़ में बोले।
"लेकिन अब आप करेंगे क्या?" कार्तिक ने पूछा।
"अब जो करोगे वह तुम करोगे।" अशोक ने कहा।
"मैं क्या करूँ?" कार्तिक ने नासमझी भरे भाव चेहरे पर लाकर पूछा।
"अब तक तुमने इस डॉक्टर के भाई को बहुत हिफ़ाज़त से रखा हुआ था ना, लेकिन अब तुम्हें उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक करना होगा।"
यह सुनकर कार्तिक को अशोक पर गुस्सा आ गया।
"यह क्या कह रहे हैं आप? मैं उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक करूँ?"
अशोक उसे हैरानी से देखकर बोले,
"तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैंने तुमसे कोई नया काम करने को बोला है। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम भी इसके भाई के प्यार में पड़ चुके हो?"
कार्तिक ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया, जिसे देख अशोक कहने लगे,
"अगर ऐसा हुआ ना कार्तिक, तो याद रखना मैं तुम्हें और इस डॉक्टर के भाई को ज़िंदा दफ़ना दूँगा।"
कार्तिक को आज अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था कि वह एक ऐसे इंसान की नौकरी करता है जिसके लिए लोगों को मारना एक आम बात है। अपने बाप की मौत का सब्र तो कार्तिक ने बस इसलिए कर लिया था क्योंकि उसका बाप सही इंसान नहीं था, उसे बस पैसों से मतलब था, जिसके चलते उसने अपनी पत्नी यानी कार्तिक की माँ की भी परवाह नहीं की। उसकी माँ को कैंसर था, कार्तिक के पिता दिवाकर ने अपनी पत्नी को बस एक बोझ समझा, उसका कोई इलाज भी नहीं कराया, जिस कारण वह बेचारी एक दिन इस दुनियाँ से चल बसी। कार्तिक उस वक़्त 10 साल का था, उसने अपनी माँ की मौत पर आँसू तो बहाए, लेकिन उसके आँसू पोछने वाला कोई नहीं था। अब कार्तिक जाता भी तो कहाँ जाता? पिता के साथ रहना ही उसकी मजबूरी थी, लेकिन वह उनकी कोई परवाह नहीं करता था। जब दिवाकर की मौत हुई तो कार्तिक के मन को बहुत शांति मिली, उसने जरा सा भी अफ़सोस नहीं किया। अब तो बस उसे अपनी ज़िंदगी मौज-मस्ती से जीनी थी, जिसके लिए पैसा चाहिए था और यही कारण था कि वह अशोक के यहाँ काम करने लगा। यहाँ काम करते-करते वह भी इन लोगों जैसा ही निर्दयी बन गया, लेकिन उसके कुछ विचार उसकी माँ की तरह थे, जो एक साफ़ और सच्चे दिल की इंसान थी। इसलिए आज कार्तिक को अशोक पर गुस्सा आ गया जब उसने उससे नील के साथ जानवरों जैसा सुलूक करने को कहा।
क्या कार्तिक नील के साथ अब ऐसा करेगा? वैसे इस कहानी में अशोक का रोल नेगेटिव है, यह तो आप लोग समझ ही चुके होंगे।
जारी है......
रात का समय था…
अनंत अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा सोच रहा था, “मैदान में उस वक्त क्या हो गया था मुझे? क्यों मैंने अंश को नहीं रोका? क्यों मैं उसका साथ दे रहा था?...अगर यह सब मि. अशोक ने देखा है तो उनका गुस्सा जायज़ है। आखिर वे कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं कि उनका बेटा एक लड़के के साथ यह सब करे! लेकिन इसमें मैं क्या करूँ? वह खुद मेरे करीब आता है और मैं उसे रोक भी नहीं पाता हूँ…लेकिन मुझे कुछ न कुछ तो करना ही होगा। आज मि. अशोक का गुस्सा देखकर तो लग रहा था कि वे चुप तो नहीं बैठेंगे। अगर उन्होंने मेरे भाई को कुछ कर दिया तो! नहीं…लेकिन मैं करूँ तो क्या करूँ? भाग भी नहीं सकता यहाँ से। अगर भागा तो भी इसकी कीमत मेरे भाई को ही चुकानी होगी और अब तो अंश भी मुझसे इस कदर जुड़ चुका है कि मेरे बगैर रह नहीं सकता।” अनंत अपने चेहरे पर परेशानी भरे भाव लिए यह सब सोच रहा था और इन सबसे बाहर निकलने का रास्ता भी खोज रहा था।
“शान्तनु भैया ने पुलिस में इन्फॉर्म तो ज़रूर किया होगा… अगर किसी भी तरह से मेरा शान्तनु भैया से कांटेक्ट हो जाए तो शायद कोई रास्ता निकल आए… लेकिन यहाँ तो हर वक्त मुझ पर नज़र रखी जाती है… कैसे कांटेक्ट करूँ भैया से?”
अनंत को कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था इन सबसे बाहर निकलने का। अब तो रुद्रांश के ठीक होने पर ही उसे और उसके भाई को यहाँ से छुटकारा मिल सकता था।
रात के २ बजे थे…
शहर से दूर एक सुनसान इलाका था जहाँ एक छोटा सा घर था जो चारों तरफ से बंद था। उसमें न तो कोई खिड़की थी और न ही कोई रोशनदान, बस एक दरवाज़ा ही था। उस घर में एक कुर्सी पर निर्भय अपना सिर पकड़े बैठा था और उसके पास वाली कुर्सी पर एक लड़की बैठी हुई थी जो निर्भय को बड़े ही गौर से देख रही थी। वह लड़की और कोई नहीं, बल्कि वह डांसिंग गर्ल ही थी जो विंटर नाईट क्लब में निर्भय के साथ डांस कर रही थी।
“अब इसमें उसका क्या क़ुसूर है नीर?” उस लड़की ने निर्भय से कहा।
“सारा क़ुसूर ही उसका है बेला! आने दे उसे…” निर्भय ने उस लड़की से कहा जिसका नाम बेला था। यह सुनकर बेला ने भी अपने कंधे उचका दिए। तभी दरवाज़ा खुला और रुद्रांश अंदर आते हुए बोला,
"आ गया मैं!"
उसे देख निर्भय और बेला खड़े हो गए और निर्भय रुद्रांश को देखते हुए उस पर तंज कसते हुए बोला,
"बड़ी मेहरबानी तेरी जो आ गया।"
“इतने पहरे के बीच में से होकर आता हूँ तो टाइम तो लगेगा ही ना। वैसे तू क्यों इतना उबल रहा है?” रुद्रांश ने निर्भय से कहा। जिसे सुनकर निर्भय गुस्से में बोला,
"हमारा यह मिशन किस दिशा में जा रहा है?"
“क्यों? क्या हुआ?” रुद्रांश नासमझी भरे भाव से बोला।
“क्या हुआ? अरे तेरी वजह से मुझे अपने प्यार से झूठ बोलना पड़ रहा है, धोखा देना पड़ रहा है उसे।” निर्भय ने कहा।
यह सुनकर रुद्रांश ने गहरी साँस भरी और बोला, “तुझे इस बात का मलाल है, अरे मेरा सोच मेरा क्या हाल है! मेरे तो प्यार की शुरुआत ही झूठ और धोखे से हुई है।” यह कहकर रुद्रांश वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गया।
रुद्रांश की यह बात सुनकर बेला और निर्भय हैरानी से एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। तभी बेला रुद्रांश से बोली,
"यह क्या कह रहे हो अंश? क्या तुम उस डॉक्टर से प्यार करने लगे हो?"
“अच्छा! तो यह बात है, तभी मैं सोचूँ तूने इस डॉक्टर को क्यों नहीं भगाया?” निर्भय रुद्रांश के पास वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला।
यह सुनकर रुद्रांश ने निर्भय की ओर देखा और बोला, “यह सब मेरी सोची समझी साज़िश नहीं थी नीर! वह तो उस दिन मि. खन्ना का फ़ोन आया था मेरे पास और उन्होंने बताया कि वह जहाज़ उनके हाथों से निकल गया है जिसकी इन्फ़ॉर्मेशन मैंने उन्हें दी थी। इस कारण मैं बहुत गुस्से में था। मैं खिड़की की ओर मुँह करके खड़ा था तभी पीछे से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी। मैंने सोचा कोई गार्ड आया होगा, अब मुझे गुस्सा तो आ ही रहा था इसलिए मैंने उसे गुस्से में जाने को कह दिया। वह फिर भी नहीं गया। फिर मैंने काँच का वाॅस भी उठाकर फेंका लेकिन फिर भी जाने की आवाज़ नहीं आयी। मैंने गुस्से में वहाँ रखी टेबल ही पीछे खिसका दी। लेकिन तभी एक चीख मेरे कानों में गूंज उठी। जिसे सुनकर मेरे दिल को ना जाने क्या हो गया?… मैंने पलटकर देखा तो उसके मासूम से चेहरे में ही खोकर रह गया, उसकी आँखों में दर्द की वजह से नमी आ गई थी जो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई और फिर मैंने जो किया वह मुझे खुद समझ में नहीं आया कि मैंने क्यों किया? मैं जब उसके ज़ख़्मों पर मरहम लगा रहा था तो उसे मुझ पर शक हो गया और उसने मुझे धक्का देकर कहा कि तुम पागल नहीं हो सकते। यह सुनकर मुझे लगा कि अब हमारा सारा मिशन फ़ेल हो जाएगा। वह तो गुस्से में मेरे बाप को सब कुछ बताने नीचे चला गया और मैं अपने इस मिशन को फ़ेल होने से बचाने की तरकीब ढूँढने लगा। फिर मैंने नीचे जाकर खुद को फिर से पागल साबित किया और फिर बड़ी मुश्किल से उसे भी यह विश्वास दिलाया कि मैं पागल हूँ। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था मेरे लिए, मेरी कुछ छिछोरी हरकतों की वजह से उसे मुझ पर शक हो ही जाता था।"
उसकी यह आखिरी लाइन सुनकर बेला और निर्भय को थोड़ी हँसी आ गई। फिर निर्भय उससे कहने लगा,
"एक नंबर का छिछोरा और कमीना इंसान है तू, पागलपन की आड़ में उस बेचारे डॉक्टर का फ़ायदा उठा रहा है।"
“शटअप नीर! मैंने उसका कोई फ़ायदा नहीं उठाया है, हाँ बस थोड़ी बहुत छेड़खानी मैं कर लेता हूँ उसके साथ। सच तो यह है कि मैंने जिस दिन से उसे देखा है वह मेरे दिल में बस गया है लेकिन मैं इतना मजबूर था कि उसे अपनी सच्चाई तक नहीं बता पाया।”
यह सुनकर निर्भय उससे बोला,
"एक बात कहूँ तुझसे, जिस दिन उस डॉक्टर को यह पता चला कि तू पागल नहीं है और तूने इस पागलपन की आड़ में उसके साथ ऐसी हरकतें की हैं तो वह क्या सोचेगा तेरे बारे में?"
“क्या सोचेगा?” यह सोचकर तो रुद्रांश भी टेंशन में आ गया। तभी बेला मुस्कुराते हुए रुद्रांश के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली,
"डोंट वरी अंश! वह कुछ नहीं सोचेगा, अगर तुम्हारा प्यार सच्चा है तो वह ज़रूर समझेगा तुम्हें और तुम्हारी मजबूरी को भी।"
“इसका डॉक्टर तो बेचारा सीधा-सादा है, शायद समझ भी जाए लेकिन मेरा क्या होगा? वह खड़ूस तो मुझे कच्चा ही चबा जाएगा।” निर्भय शान्तनु के बारे में सोचकर बोला जिसे देख बेला और रुद्रांश हँस दिए।
“निर्भय शेखावत भी किसी से डरता है।” बेला हँसते हुए ही बोली जिसे सुनकर निर्भय खिसियाते हुए बोला,
"निर्भय किसी से नहीं डरता और उस डॉक्टर से तो बिल्कुल नहीं। उसने भले ही आज तक अपने प्यार का इज़हार मुझसे ना किया हो लेकिन मैं जानता हूँ वह मुझसे बहुत प्यार करता है।"
“इतना भरोसा अपने प्यार पर!” बेला हैरानी से बोली।
“हाँ, और एक दिन यह बात मैं साबित भी करके दिखा दूँगा कि वह मुझसे कितना प्यार करता है।” निर्भय ने बड़ी ही शान और विश्वास के साथ यह बात कही।
“तू करता रहियो साबित… और अब इस प्यार-मोहब्बत को थोड़ी देर साइड में रखो और इस मिशन से रिलेटिड बात करो।” रुद्रांश ने उन दोनों से कहा।
“ओके!” बेला और निर्भय ने भी अब सीरियस होकर कहा।
“जिंदल के बारे में पता लगाया?” रुद्रांश ने उन दोनों से पूछा।
“हाँ पता तो लगाया है लेकिन वह बहुत ही जलील और घटिया किस्म का इंसान है, इंसानों की तस्करी करता है, ऐसा कोई जुर्म या गैरकानूनी काम नहीं है जो उसने ना किया हो।” यह सब कहने के बाद निर्भय एकदम से बोला, “अनंत तो तेरे पास है वह तो ठीक है उसकी मुझे चिंता नहीं लेकिन नील की चिंता है मुझे, क्योंकि वह उस अशोक के सेक्रेटरी कार्तिक के पास है और हमें यह पता भी नहीं है कि कार्तिक ने उसे कहाँ रखा हुआ है?”
“नील की चिंता करने की भी कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि मैंने जितना उस कार्तिक को जाना है उससे मुझे लगता है कि वह इतना भी बुरा इंसान नहीं है, उसे बुरा बनाया है उसके हालातों ने लेकिन उसमें अब भी इंसानियत ज़िंदा है और जहाँ तक मुझे विश्वास है वह नील को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा।” रुद्रांश ने कार्तिक के बारे में सोचकर कहा।
“यह बात तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो?” बेला ने उससे पूछा।
“क्योंकि मैं वह जगह जानता हूँ जहाँ उसने नील को रखा हुआ है।” रुद्रांश ने कहा।
“व्हाट?” बेला और निर्भय हैरान होकर बोले।
“हाँ, मैंने एक दिन कार्तिक का पीछा किया था और उस जगह पहुँच गया जहाँ उसने नील को रखा हुआ है। मैंने चुपके से उसके कमरे की खिड़की के होल में से झाँककर देखा तो अंदर का सीन देखकर मेरी तो हँसी ही नहीं रुकी…” यह कहकर रुद्रांश हँस दिया।
“ऐसा क्या देख लिया तूने?” निर्भय ने पूछा तो रुद्रांश पहले तो मुस्कुराया फिर उन्हें बताने लगा…
कार्तिक कमरे में आया तो उसने देखा कि पूरे कमरे में उसके कपड़े फैले पड़े थे और नील बिस्तर पर बैठा था। उसने कार्तिक की पैंट पहन रखी थी और ऊपर अभी कुछ पहना नहीं था। वह ऊपर पहनने के लिए टीशर्ट और शर्ट सिलेक्ट कर रहा था। उसने बिस्तर पर भी कपड़े फैलाए हुए थे। वह हर टीशर्ट को अपने ऊपर लगाकर देख रहा था और पसंद न आने पर साइड में फेंक रहा था।
यह सब देखकर कार्तिक ने तो अपना सिर पीट लिया और उस पर चिल्लाते हुए बोला,
"क्या है यह सब?"
उसकी तेज आवाज़ सुनकर भी नील को कोई फ़र्क नहीं पड़ा,
"अपने लिए कपड़े सिलेक्ट कर रहा हूँ।" नील ने बिना उसकी तरफ़ देखे ही जवाब दिया।
“तू यह कपड़े सिलेक्ट कर रहा है या फेंक रहा है… तू यह सब जानबूझकर कर रहा है ना मुझे परेशान करने के लिए।” कार्तिक ने जैसे ही यह कहा नील भी तेज आवाज़ में चिल्लाते हुए एकदम से बिस्तर पर खड़ा हो गया,
"तो फिर क्या करूँ मैं…?"
उसके खड़े होते ही उसकी पहनी हुई पैंट नीचे सरक गई जिसे देख कार्तिक की आइब्रो हैरानी से ऊँची हो गई और मुँह खुला रह गया। बाहर खिड़की के पास खड़े रुद्रांश ने तो अपनी आँखें ही बंद कर लीं लेकिन उसे थोड़ी हँसी भी आ गई थी।
नील ने जल्दी से वह पैंट ऊपर की और कार्तिक पर फिर से चिल्लाते हुए बोला,
"मेरे पास खुद के कपड़े तो हैं नहीं फिर तू ही बता मैं क्या पहनूँ?"
“तू जो कपड़े पहनकर आया था वह नहीं पहन सकता क्या?” कार्तिक उससे बोला।
“वह तो उस दिन झाड़ियों में फंसकर पूरी तरह छलनी हो चुके हैं और वैसे भी मुझे हर रोज अलग-अलग कपड़े पहनना पसंद है, अंडरस्टैंड!” नील ने अपनी पैंट को संभालते हुए कहा।
“ठीक है मेरे बाप, मैं कल तेरे लिए बहुत सारे कपड़े ले आऊँगा लेकिन फ़िलहाल तो तू यह सब समेट दे, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे कमरे में कपड़ों की सेल लगी हो।” कार्तिक अपने कमरे में नज़रें घुमाकर बोला।
“अभी नहीं क्योंकि अभी तो मुझे बहुत भूख लगी है इसलिए मैं तो चला खाने।” यह कहकर नील अपनी पैंट को पकड़े हुए ही कमरे से बाहर भाग गया और कार्तिक वहीं खड़ा रह गया। वह खुद से ही बोला, “खाने के बाद सो जाएगा और काम ही क्या है इसके पास…खाना, सोना, टीवी देखना और यह सब कांड करके मुझे परेशान करना…क्या करूँ मैं इसका, क्या आफ़त है? छोड़ भी नहीं सकता इसे, किसी दिन उस नदी में ही डुबोकर मार दूँगा इसे।” उसने गुस्से में कहा लेकिन फिर अगले ही पल रोने सी सूरत बनाकर बोला, “नहीं, नहीं मार सकता इसे।” यह कहकर उसने एक नज़र अपने कमरे से बाहर डाली तो सामने डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहा नील उसे दिखाई दिया। उसे देखकर अपने आप ही कार्तिक के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान तैर गई। फिर वह खुद ही अपने कपड़े समेटने लग गया।
यह सब सुनकर निर्भय और बेला भी जोर से हँस दिए। फिर निर्भय रुद्रांश से कहने लगा,
"इसका मतलब मेरे साले साहब ने उस कार्तिक की नाक में दम किया हुआ है।"
“और कार्तिक उसे बर्दाश्त कर रहा है इसका कोई न कोई तो रीज़न होगा ही।” बेला ने पूछा तो निर्भय सोचते हुए बोला,
"हो सकता है कार्तिक के मन में नील के लिए फ़ीलिंग्स हों।"
“लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा है।” रुद्रांश ने कहा फिर वह कुछ सोचते हुए बोला, “अगर कार्तिक नील को चाहता है तो अब वह भी अजीब दुविधा में फँस गया होगा।”
“ऐसा क्यों?” निर्भय ने पूछा।
“ऐसा इसलिए क्योंकि आज मेरे बाप ने उससे कहा कि वह नील के साथ जानवरों जैसा सुलूक करे।” रुद्रांश ने बताया।
“क्यों?”
“क्योंकि मेरा बाप नहीं चाहता कि अनंत मेरे नज़दीक आए इसलिए उसने यह रास्ता निकाला है उसे मुझसे दूर रखने का, उसे पता है कि अनंत अपने भाई के लिए कुछ भी करेगा।”
“यह तो प्रॉब्लम हो गई है, इसमें नील को ख़तरा हो सकता है, कहीं कार्तिक ने मजबूर होकर उसे कुछ कर दिया तो?” बेला ने चिंतित होकर कहा जिस पर निर्भय भी बोला,
"हाँ अंश! हम कार्तिक पर इतना विश्वास नहीं कर सकते, हमें नील को बचाना ही होगा।"
यह सुनकर रुद्रांश भी बोला, “शायद तुम लोग ठीक कह रहे हो, हमें नील को बचाना होगा लेकिन कुछ इस तरह जिससे कार्तिक भी मेरे बाप के चंगुल से बाहर निकल जाए।”
यह सुनकर उन तीनों ने कुछ देर इस बारे में सोच-विचार किया और एक प्लान बनाया।
अब इन लोगों ने क्या प्लान बनाया होगा यह तो हम आगे देखेंगे। आज यह बात तो क्लियर हो गई कि रुद्रांश पागल नहीं है लेकिन इस कहानी का सस्पेंस यह नहीं था, सस्पेंस तो कुछ और है जो आगे पता चलेगा।
जानती हूँ किसी को धोखा देना गलत है ख़ासकर प्यार में, लेकिन जो सिचुएशन रुद्रांश और निर्भय की है उसमें उन लोगों के पास कोई रास्ता भी नहीं था। रुद्रांश की अनंत से जिस सिचुएशन में मुलाक़ात हुई उसमें वह उसे अपना सच बता ही नहीं पाया और फिर निर्भय को भी शान्तनु से यह सच छिपाना पड़ा। लेकिन जब यह सच सामने आएगा तब होगा क्या? कैसे रिएक्ट करेंगे अनंत और शान्तनु?
जारी है…
अगले दिन शान्तनु अपने घर से निकला, होस्पिटल जाने के लिए। उसने देखा निर्भय अपनी जीप के पास खड़ा था। शान्तनु उसे अनदेखा करते हुए अपनी कार में बैठने लगा। निर्भय जल्दी से उसका हाथ पकड़ते हुए बोला, "एक बार पूछ तो ले मैं क्यों आया हूँ?"
"मुझे कुछ नहीं पूछना तुझसे, हट जा सामने से।" ये कहते हुए शान्तनु ने निर्भय से अपना हाथ छुड़ाकर उसे हटाने की कोशिश की। निर्भय ने उसके दोनों बाजुओं को पकड़ लिया और बोला, "मुझे नील का पता चल गया है।"
यह सुनकर शान्तनु ने निर्भय की ओर देखा। वह हाँ में सिर हिलाने लगा। शान्तनु के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान आ गई। "कहाँ पर है वो? ...और उसे किडनैप किसने किया?" उसने पूछा। निर्भय कहने लगा, "उसे किडनैप तो कार्तिक ने ही किया है।"
यह सुनकर शान्तनु की आँखों में कार्तिक के लिए गुस्सा उमड़ आया। तभी निर्भय बोला, "देख, उसका पता तो चल गया है, लेकिन हमें बहुत सावधानी से काम करना होगा। और तुझे मेरी एक बात माननी होगी।"
"क्या?"
"यही कि तू गुस्से और जल्दबाजी में कुछ नहीं करेगा, मुझ पर भरोसा रखेगा। तेरे भाईयों को मैं सुरक्षित वापस लेकर आऊँगा।" निर्भय ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा।
निर्भय की बात सुनकर शान्तनु कुछ पल सोचा। फिर उसकी तरफ देखकर बोला, "ठीक है, मैं कुछ नहीं करूँगा। लेकिन तुझे मुझे अपने साथ वहाँ लेकर जाना होगा। क्योंकि मैं भी एक बार उस कार्तिक से मिलना चाहता हूँ और पूछना चाहता हूँ कि आखिर क्यों उसने मेरे भाई को किडनैप किया?"
"ये काम मेरा है। मैं उससे सब उगलवा लूँगा। तू बस मेरे साथ चल सकता है।" निर्भय ने कहा।
"ठीक है...लेकिन अनंत कहाँ है?" शान्तनु ने पूछा।
"जब नील का पता चल गया है, तो उसके मिलने पर अनंत का भी पता चल ही जाएगा। मेरा मतलब, हम उस कार्तिक से उगलवा ही लेंगे कि अनंत को कहाँ रखा हुआ है।"
यह सुनकर शान्तनु ने उसकी बात समझते हुए कुछ नहीं कहा, बस सिर हिला दिया। कुछ देर वे दोनों चुपचाप खड़े रहे। तभी निर्भय शान्तनु से कहने लगा, "एक बात पूछूँ तुझसे?"
यह सुनकर शान्तनु ने नजरें उठाकर उसे देखा। निर्भय कहने लगा, "क्या तू सचमुच मुझसे प्यार नहीं करता?"
यह सुनकर शान्तनु कुछ पल के लिए चुप हो गया। फिर खुद को उससे छुड़ाते हुए बोला, "अभी मेरे पास इन सब बातों के लिए टाइम नहीं है।" ये कहकर वह जाने लगा। निर्भय ने फिर से उसे पकड़कर कार से सटा दिया और उसके चेहरे के एकदम करीब आकर मुस्कुराते हुए बोला, "मैंने सुना है इंसान नशे में अपने दिल की बातें कहता है और दिल के डॉक्टर! तूने भी उस दिन नशे में मुझसे अपने दिल की बात कह दी थी।"
"क्या कह दिया था?" शान्तनु असमंजस भरे भाव से बोला।
"सॉरी, मैं गलत बोल गया। तूने कहा नहीं था, बल्कि किया था।" यह कहकर निर्भय शरारत से मुस्कुरा दिया।
"देख निर्भय! मैं जानता हूँ तू मेरे साथ मजाक कर रहा है। उस दिन सुबह भी तूने यही कहा था कि मैंने ही सब किया था।" शान्तनु उसकी बात पर अविश्वास जताते हुए बोला।
"वो तो मैंने ऐसे ही बंडल मारा था। लेकिन जो तूने असल में किया था, वो तो सुन ले।"
यह सुनकर शान्तनु के चेहरे पर थोड़ी उत्सुकता आ गई। इन्हें देख निर्भय मुस्कुराते हुए बोला, "उस रात जब मैं तुझे कमरे में लाया, तो तूने मेरा हाथ पकड़कर कहा कि तू मुझे कहीं नहीं जाने देगा और मुझे बेड पर गिरा दिया। फिर मेरे ऊपर आकर कहने लगा कि जैसे मैं तुझे परेशान करता हूँ, वैसे ही तू भी मुझे परेशान करेगा। और फिर तूने भी वही किया जो मैंने उस दिन तेरे साथ किया था...जीप में जबरदस्ती किस..." इतना कहकर निर्भय के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई। शान्तनु की पलकें अपने आप झुक गईं, क्योंकि निर्भय की इस बात में उसे सच्चाई लग रही थी।
यह देख निर्भय कहने लगा, "पलकें क्यों झुका लीं? ओह...कहीं तेरी आँखें तेरे दिल की बात ना कह दें इसलिए...हाहाहाहाहा" वह हँसने लगा।
तभी शान्तनु खिसियाकर उसे खुद से दूर करते हुए बोला, "मैंने जो किया, नशे में किया। मैं उस वक्त होश में नहीं था। इसलिए इतना खुश मत हो। और अब मुझे होस्पिटल के लिए लेट हो रहा है।" यह कहकर वह जल्दी से कार में बैठा और वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद निर्भय मुस्कुराते हुए खुद से ही बोला, "इज़हार नहीं किया तो क्या हुआ, इंकार भी तो नहीं किया।" तभी उसका फ़ोन बजा। उसने फ़ोन कान पर लगाया और दूसरी तरफ़ से जो बोला गया, उसे सुनकर निर्भय कहने लगा, "ओके! मैं अभी आता हूँ।" यह कहकर उसने फ़ोन जेब में रखा और अपनी जीप में बैठकर वह भी वहाँ से चला गया।
इधर रुद्रांश अपने कमरे में बैठा बार-बार दरवाजे की ओर देख रहा था। "कहाँ रह गया ये? आया क्यों नहीं अभी तक?" वह बड़ी ही बेसब्री से अनंत का इंतज़ार कर रहा था। तभी दरवाज़ा खुला और अनंत अंदर आया। उसे देख रुद्रांश का चेहरा खिल उठा, लेकिन फिर अगले ही पल उसने अपना मुँह फुला लिया। अनंत बोला, "सॉरी! मैं उठने में लेट हो गया था।"
"मैं सब समझता हूँ। कल डैडी ने तुझे डाँट लगाई, इसलिए तू उनका गुस्सा मुझ पर उतार रहा है, मेरे पास नहीं आना चाहता था ना।" रुद्रांश ने कहा। अनंत ना में सिर हिलाते हुए बोला, "नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। और मेरे ख्याल से उनका गुस्सा होना भी सही था, क्योंकि हम लोग कल मैदान में जो कर रहे थे, वो सही नहीं था।"
"क्यों? ऐसा क्या गलत कर रहे थे हम? तू मुझे अच्छा लगता है, मेरा सबसे प्यारा दोस्त है। अगर मैंने तुझे यहाँ किस भी कर दी तो क्या हो गया?" रुद्रांश ने उसके होंठों की तरफ इशारा करते हुए कहा और उसे पकड़कर अपने सामने बेड पर बिठा लिया।
अनंत उससे छूटने की कोशिश करते हुए बोला, "तुम समझ नहीं रहे हो अंश, दोस्ती में ये सब नहीं होता।"
"तो फिर किसमें होता है?" रुद्रांश ने पूछा।
"प्यार में!" ये शब्द जल्दबाजी में बिना सोचे समझे अनंत के मुँह से निकल गए। कुछ पल के लिए पूरे रूम में शांति छा गई और वे दोनों एकटक एक-दूसरे को देखने लगे। तभी रुद्रांश अनंत के नज़दीक आया और उसके चेहरे के करीब अपना चेहरा लाकर बोला, "प्यार में ये सब होता है।" अनंत ने भी धीरे से हाँ में सिर हिला दिया। रुद्रांश ने अपना हाथ उसके चेहरे पर फिराते हुए अपनी रुमानी आवाज़ में बोला, "और क्या होता है प्यार में?"
"और...मुझे नहीं पता।" यह कहते हुए अनंत ने धीरे से ना में गर्दन हिला दी।
"लेकिन मुझे पता है, मैं बताऊँ तुझे?" रुद्रांश ने उसकी आँखों में देखकर पूछा। अनंत ने भी उसमें खोये हुए ही हाँ में सिर हिला दिया। रुद्रांश ने धीरे से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, जिस पर अनंत की आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं। रुद्रांश ने उसे प्यार से, सॉफ्टली चूमते हुए धीरे-धीरे बेड पर लिटा दिया।
रुद्रांश बड़े ही प्यार से अनंत के पूरे चेहरे को चूम रहा था। चेहरे को चूमते हुए वह उसकी गर्दन पर आ गया। एकदम से अनंत की तंद्रा भंग हुई और वह रुद्रांश को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करते हुए बोला, "छोड़ो अंश! ये सब ठीक नहीं है, हट जाओ।"
यह सुनकर रुद्रांश ने अपना सिर उठाकर उसे देखा और कहने लगा, "तू कह रहा था ना कि ये सब प्यार में होता है, तो ठीक है यही सही...मैं तुझसे प्यार करता हूँ।" यह सुनकर तो अनंत का दिल तेज़ी से धड़क उठा। दिल तो कर रहा था कि वह भी रुद्रांश से यह कह दे, लेकिन दिमाग इसकी इजाज़त नहीं दे रहा था। इसलिए उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर रुद्रांश को अपने ऊपर से हटा दिया। इस बार रुद्रांश ने भी उस पर ज़ोर नहीं आजमाया और आसानी से उसके ऊपर से हटकर साइड में गिर गया।
अनंत बेड पर उठकर बैठा और वहाँ से जाने लगा। पीछे से रुद्रांश ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"हाथ छोड़ो...मुझे बाथरूम जाना है।" अनंत ने कहा। रुद्रांश ने भी उसका हाथ छोड़ दिया और अनंत जल्दी से बाथरूम में चला गया। उसके जाने के बाद रुद्रांश ने खुद पर ही खीझते हुए अपनी आँखों को कसकर भींच लिया और मन ही मन बोला, "मैं क्यों अपना भांडा फोड़ने पर लगा रहता हूँ? मन तो करता है इसे सब सच बता दूँ, लेकिन यहाँ सच बताना ठीक नहीं होगा। इस बंगले में तो दीवारों के भी कान हैं, कहीं किसी ने सुन लिया तो सारा मिशन फेल हो जाएगा।" रुद्रांश ये सब बातें अपने मन में बोल रहा था और साथ में खुद को कोस भी रहा था।
इधर अशोक और इंद्रजीत वीडियो कॉलिंग पर जिंदल से मीटिंग कर रहे थे।
जिंदल उन लोगों से कह रहा था, "यहाँ पर एक लड़के की मौत हो चुकी है और हमें अपनी गिनती खराब नहीं करनी। तुम्हें जल्द से जल्द दूसरे लड़के का इंतज़ाम करना होगा।"
अशोक सोचते हुए बोला, "लेकिन इतनी जल्दी हम किसी दूसरे लड़के का इंतज़ाम कैसे करेंगे?"
"आई डोंट नो! कहीं से भी इंतज़ाम करो, वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा।" यह कहकर जिंदल ने कॉलिंग एंड कर दी।
इंद्रजीत अशोक की ओर देखकर बोला, "अब क्या करें? इतनी जल्दी कोई दूसरा लड़का ढूंढकर कैसे लाएँ जो इसे पसंद आए।" अशोक कुछ पल सोचकर बोला, "हो गया इंतज़ाम।"
"हो गया!" इंद्रजीत को कुछ समझ नहीं आया। तभी अशोक उसकी ओर देखकर बोला, "उस डॉक्टर का भाई जो कार्तिक के पास है...नील!"
यह बात वहाँ दरवाज़े पर खड़े कार्तिक ने भी सुन ली थी। यह सब सुनकर गुस्से में उसकी मुट्ठियाँ बिंच गईं। उसका मन तो कर रहा था कि अभी इस अशोक और इंद्रजीत को मार डाले, लेकिन यहाँ इन लोगों पर हाथ उठाने का मतलब था अपनी जान से हाथ धो बैठना। इसलिए उसने अपने इस गुस्से को अपने अंदर ही दबा लिया और वहाँ से चला गया।
इधर रुद्रांश के कमरे में अनंत बाथरूम से बाहर आया। उसने देखा रुद्रांश टेबल पर खिड़की की ओर मुँह किए बैठा था। उसे देखकर अनंत मन ही मन कहने लगा, "अगर तुम बिल्कुल ठीक होते और तब मुझसे ये कहते कि तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मैं खुशी-खुशी हाँ कर देता। लेकिन मैं जानता हूँ तुम्हारा दिमाग अभी एक बच्चे जैसा हो गया है, लेकिन तुम्हारी बॉडी तो पूरी तरह डेवलप है, जिसे वो नीड भी होगी। लेकिन मैं उसे पूरा नहीं कर सकता। इसलिए अब जितना हो सके मुझे तुम्हारा ध्यान दूसरी चीज़ों में लगाना होगा।" मन ही मन यह कहकर अनंत ने चारों तरफ नज़रें घुमाईं। तभी उसे रुद्रांश का गिटार दिखा। उसे देख अनंत के दिमाग में कुछ आया और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।
"देखो अंश! मेरे पास क्या है?" अनंत ने उसे पुकारा। रुद्रांश ने पलटकर उसे देखा। अनंत के हाथ में गिटार देख रुद्रांश मन ही मन बोला, "ये गिटार लेकर क्यों आया है? कहीं मुझसे बजवाने ना लग जाए।"
अनंत मुस्कुराते हुए उसके पास आया और बोला, "तुम्हें सिंगिंग करना बहुत पसंद है ना।"
यह सुनकर रुद्रांश सोचते हुए बोला, "मुझे सिंगिंग करना पसंद है!...हाँ बहुत पसंद है।" यह कहकर उसने खुशी से चहकते हुए वह गिटार उसके हाथ से ले लिया और बेतुके ढंग से उसे बजाने लगा।
"नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ, बोलो मेरे संग जय हिंद जय हिंद जय हिंद जय हिंद जय हिंद…"
रुद्रांश चिल्ला-चिल्लाकर गा रहा था। यह सुनकर अनंत ने अपने कानों में उंगली घुसा ली। फिर रुद्रांश गाना खत्म कर उससे पूछने लगा, "कैसा लगा? अच्छा था ना।"
यह सुनकर अनंत ने कान में उंगली डाले ही हाँ में सिर हिला दिया। फिर उसने अपने कान से उंगली निकाली और रुद्रांश को खुश करने के लिए उसके लिए ताली बजाई। तभी रुद्रांश ने वह गिटार उसके हाथ में थमा दिया, "ले अब तेरी बारी।"
"लेकिन मुझे तुम्हारी तरह इतना अच्छा गाना नहीं आता।" अनंत ने कहा। रुद्रांश शान से अपनी कॉलर ऊँची करते हुए बोला, "वो तो किसी को भी नहीं आता, तू तो जैसा आता है वैसा ही गा दे।"
यह सुनकर अनंत हल्के से मुस्कुराया और गिटार लेकर बेड पर बैठ गया। उसने गिटार बजाना शुरू किया। उसे सुनते ही रुद्रांश आश्चर्य भरी निगाहों से उसे देखने लगा। कितनी प्यारी धुन बजा रहा था वह! उस धुन के साथ ही अनंत ने गाना शुरू कर दिया।
"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई…"
"यू हीं नहीं दिल लुभाता कोई…"
"जाने तू या जाने ना…"
"माने तू या माने ना…"
उसकी मधुर आवाज़ और इस गाने के प्यारे से बोल रुद्रांश के दिल में हलचल सी मचा रहे थे। वह तो इसमें खोकर ही रह गया और अपने सामने गा रहे अनंत को प्यार से देखने लगा।
"धुआँ-धुआँ था वो समा
यहाँ-वहाँ जाने कहाँ
धुआँ-धुआँ था वो समा
यहाँ-वहाँ जाने कहाँ
तू और मैं कहीं मिले थे पहले
देखा तुझे तो दिल ने कहा ❤
जाने तू या जाने ना
माने तू या माने ना…"
इन लाइनों को सुनकर तो रुद्रांश को ऐसा लग रहा था जैसे अनंत उसके ही दिल का हाल कह रहा हो। जब पहली बार रुद्रांश ने अनंत को देखा था, तब उसके दिल ने भी यही कहा था।
इधर अनंत अब गाते-गाते इमोशनल हो गया था, क्योंकि यह गाना उसकी माँ उसके पिता के लिए गाती थी जब उनकी दिमागी हालत खराब थी। गाते-गाते अनंत को उसकी माँ दिखाई देने लगी जो गा रही थीं।
"देखो अभी खोना नहीं
कभी जुदा होना नहीं
देखो अभी खोना नहीं
कभी जुदा होना नहीं
अब के यू हीं मिले रहेंगे दोनों
वादा रहा ये इस शाम का
जाने तू या जाने ना
माने तू या माने ना…"
यह गाते-गाते अनंत की आँखों से आँसू बहने लगे। यह सोचकर कि उसकी माँ ने कितनी कोशिश की उसके पिता को बचाने की, लेकिन वे नहीं बच पाए और फिर उनके ग़म में वह भी इस दुनियाँ से चली गईं। गाते-गाते अनंत की आवाज़ में यह दर्द साफ़ झलक रहा था और उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उसे रोते देख रुद्रांश का दिल भी रो दिया और उसने अनंत को अपने सीने से लगा लिया। उसके सीने से लगा अनंत फफक-फफककर रोने लगा। रुद्रांश को तो समझ ही नहीं आ रहा था कि अनंत रो क्यों रहा है? लेकिन उसने उसे रोका भी नहीं, क्योंकि उसे इतना तो समझ आ गया था कि अनंत को कुछ ऐसा याद आ गया है जो उसे इमोशनल कर रहा है। इसलिए वह उसे बस अपने सीने से लगाए बैठा रहा।
बैकग्राउंड में यह गाना अब भी चल रहा था…
"तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई
यू हीं नहीं दिल लुभाता कोई
जाने तू या जाने ना
माने तू या माने ना…"
जारी है…
अनंत रुद्रांश के सीने से लगा हुआ था। रुद्रांश ने अपना एक हाथ उसके सिर के पीछे रखा था, और दूसरे से उसे अपनी बाहों में लिया हुआ था। अनंत को इस तरह रोते देख रुद्रांश की भी आँखें नम हो गई थीं। कुछ देर बाद अनंत होश में आया और अपने आँसू पोंछते हुए रुद्रांश से दूर हो गया।
उसे देख रुद्रांश बच्चों की तरह भोलेपन से बोला, "क्या हुआ अन्नू? तू रो क्यों रहा था?"
"कुछ नहीं, वो तो बस मुझे मेरे मम्मी-पापा की याद आ गई थी इसलिए।" ये कहते हुए वो अब भी अपने आँसू पोंछ रहा था। तभी रुद्रांश फिर से बोला, "कहाँ है वो दोनों?"
"गॉड के पास।" अनंत ने यह कहा तो रुद्रांश भी एक पल के लिए चुप हो गया। फिर अनंत को अपनी बाहों में भरते हुए बोला, "तू ऐसे सेड मत हुआ कर, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।"
ये सुनकर अनंत नम आँखों से भी उसे देखते हुए हल्के से मुस्कुरा दिया। जिसे देख रुद्रांश बोला, "बस! इतनी सी स्माईल, तूने कोलगेट नहीं किया क्या?" ये सुनकर अनंत को थोड़ी हँसी आ गई। जिसे देख रुद्रांश फिर बोला, "लगता है थोड़ा सा ही किया है।" ये सुनकर अनंत खुलकर हँस दिया।
उसे हँसता देख रुद्रांश भी मुस्कुरा दिया। फिर अपने मन में सोचने लगा, "तेरा भी क्या इंसाफ है भगवान! जिन्हें इस दुनिया से उठाना चाहिए था वो पापी तो ज़िंदा बैठे हैं, और जिन्हें नहीं उठाना चाहिए था उन्हें वक्त से पहले ही अपने पास बुला लिया।"
शाम का समय था।
कार्तिक, अशोक और इंद्रजीत के सामने था। अशोक उससे कहने लगा, "कल सुबह उस डॉक्टर के भाई नील को यहाँ लेकर आ जाना।"
"किसलिए?" कार्तिक ने सब जानते हुए भी यह सवाल किया। यह सुनकर इंद्रजीत अशोक से बोला, "यह लड़का सवाल बहुत करता है।"
"बचपन से ऐसा ही है यह।" अशोक ने इंद्रजीत से कहा। फिर कार्तिक की तरफ देखकर बोला, "तुझसे जितना कहा जाए बस उतना कर, कल उसे यहाँ लेकर आ जाना।"
"ठीक है, मैं कल उसे यहाँ लेकर आ जाऊँगा।" कार्तिक ने कहा। जिसे सुनकर अशोक और इंद्रजीत के चेहरे पर हैवानियत भरी मुस्कान आ गई।
इधर शांतनु अपने केबिन में बैठा था। इमरजेंसी केस होने की वजह से वह आज हॉस्पिटल आ तो गया था, लेकिन अब उसका मन नहीं लग रहा था। उसे रह-रहकर बार-बार नील और अनंत का ही ख्याल आ रहा था। "पता नहीं मेरे दोनों भाई किस हाल में होंगे? अगर उस कार्तिक ने नील को कुछ भी किया तो कानून चाहे उसे जो भी सजा दे, लेकिन मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।"
शांतनु को जब से निर्भय ने यह बताया था कि नील को कार्तिक ने ही किडनैप किया है, तब से शांतनु के मन में कार्तिक के लिए गुस्सा और नफरत पैदा हो गई थी, और अब वह बढ़ती ही जा रही थी।
इधर बेला और निर्भय उसी छोटे से मकान में थे और आपस में बातें कर रहे थे। बेला निर्भय से पूछने लगी, "तो तुम कल शांतनु को अपने साथ वहाँ लेकर जाओगे?"
"चाहता तो नहीं था, लेकिन वो मान ही नहीं रहा तो मैं क्या करूँ?" निर्भय ने उसे जवाब दिया।
"अगर कोई खतरा हुआ तो?" बेला ने पूछा। तो निर्भय कहने लगा, "खतरों से खेलना ही तो हम पुलिस वालों का काम है। और वैसे भी खतरे वाली कोई बात नहीं है क्योंकि कार्तिक वहाँ अकेला ही रहता है।"
ये सुनकर बेला ने भी उसकी बात का समर्थन करते हुए सिर हिला दिया।
रात का समय था।
कार्तिक जब अपने घर आया तो नील टीवी देख रहा था। नील टीवी में इतना खोया हुआ था कि उसे पता ही नहीं चला कि कार्तिक सोफे के पीछे खड़ा है। नील एक हॉलीवुड मूवी देख रहा था, जिसमें इस वक्त काफी हॉट और रोमांटिक सीन चल रहा था। कार्तिक ने एक नज़र उस सीन की ओर देखा, फिर नील की ओर, जो उसमें कुछ ज्यादा ही खोया हुआ था। उसे देख कार्तिक हल्के से मुस्कुरा दिया।
फिर कार्तिक उससे कुछ ना कहकर सीधा अपने रूम की तरफ बढ़ गया। जब वह रूम की तरफ जा रहा था, तभी नील की नज़र भी उस पर चली गई, और उसे देख नील के चेहरे पर कुछ अलग ही भाव आ गए। कार्तिक तो रूम के अंदर चला गया। कुछ देर बाद नील ने टीवी बंद की और वह भी कार्तिक के रूम में चला गया।
उसने अंदर आकर देखा तो कार्तिक उसे कहीं दिखाई नहीं दिया। बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी। यह आवाज सुनकर नील ने एक नज़र बाथरूम के दरवाजे की ओर देखा, फिर चुपचाप वहीं बेड पर बैठ गया।
कुछ देर बाद कार्तिक बाथरूम से नहाकर बाहर आया। उसने बस एक टॉवल ही लपेट रखा था। उसे देख नील बेड पर से उठकर खड़ा हो गया। कार्तिक की नज़र जब उस पर पड़ी तो वह असमंजस भरे भाव से बोला, "तू यहाँ क्या कर रहा है?"
"वो...वो मैं तुझे...." नील अटकते हुए कह रहा था।
"मुझे देखने आया था।" कार्तिक शरारत से मुस्कुराकर बोला। यह सुनकर नील ने कुछ नहीं कहा, बस धीरे-धीरे चलते हुए उसके पास आया और चुपचाप उसके सामने खड़ा हो गया। कार्तिक उसे देखकर थोड़ा सोच में पड़ गया, "यह इतना चुपचाप क्यों है?"
तभी नील ने अपना हाथ कार्तिक के खुले सीने पर रख दिया और धीरे-धीरे उसे फिराने लगा। जिस पर कार्तिक की आँखें स्वतः ही बंद हो गईं, और वह उसका हाथ पकड़ते हुए बंद आँखों से ही बोला, "क्या कर रहा है?"
नील अपना दूसरा हाथ उसके कंधे पर रखते हुए अपनी धीमी सी आवाज में बोला, "मैं अभी एक सीन देख रहा था...क्या तू मेरे साथ वो..." उसने इतना ही कहा था। जिसे सुनकर कार्तिक ने एकदम से अपनी आँखें खोलीं और हैरान होकर बोला, "तू वह सब करना चाहता है...वो भी मेरे साथ।"
ये सुनकर नील ने भी धीरे से हाँ में सिर हिला दिया। जिसे देख कार्तिक हैरान नज़रों से उसे देखता रहा। फिर कुछ पल बाद मुस्कुराते हुए उसने नील का हाथ अपने कंधे से हटाया और बोला, "अभी तू बच्चा है, मुझे झेल पाना तेरे बस की बात नहीं। गलती से अगर तुझे कुछ हो गया तो मैं अंदर हो जाऊँगा।" यह कहकर कार्तिक हल्के से हँसता हुआ अलमारी की तरफ बढ़ गया।
कुछ देर बाद जब कार्तिक अपने कपड़े अलमारी में से निकालकर वापस पलटा तो उसके होश उड़ गए। नील ने पूरी तरह निर्वस्त्र होकर उसके सामने खड़ा था। उसे देख कार्तिक जल्दी से उसके पास गया और उसे बेड पर रखी चादर से ढकते हुए बोला, "क्या है यह सब?" तभी नील ने अपनी दोनों बाहें कार्तिक के गले में डाल दीं और अपनी कामुक निगाहों से उसकी आँखों में देखते हुए बोला, "आई एम नॉट अ किड! प्रोपरली एडल्ट!"
ये सुनकर कार्तिक भी उसकी नीली आँखों में कुछ पल के लिए खो गया और उसे देखता रहा। फिर उसने भी नील की आँखों में देखकर कहा, "देख, मान जा वरना बाद में तकलीफ तुझे ही होगी।"
"डोंट वरी! कुछ नहीं होगा मुझे।" यह कहकर नील ने अपने पंजों के बल खड़े होकर कार्तिक के होंठों पर अपने होंठ रख दिए। कार्तिक की आँखें तो हैरानी से खुली ही रह गईं।
अब जब नील ने इतनी शुरुआत कर ही दी तो कार्तिक कहाँ पीछे रहने वाला था। उसने भी नील को कमर से पकड़कर अपने और भी करीब कर लिया और अपनी मजबूत बाहों में उसे जकड़ते हुए बड़ी ही शिद्दत से उसके होंठों को चूमने लगा। धीरे-धीरे नील की चादर और कार्तिक की टॉवल नीचे गिर गई और वे दोनों एक-दूसरे को चूमते हुए बेड पर लेट गए।
कार्तिक नील के ऊपर आते हुए बोला, "लास्ट बार कह रहा हूँ तुझसे, एक बार फिर सोच ले क्योंकि अगर मैं एक बार स्टार्ट हुआ तो तेरे कहने पर भी नहीं रुकूँगा।"
"मैं रुकने के लिए नहीं कहूँगा।" नील ने गहरी आवाज में कहा।
ये सुनकर कार्तिक मुस्कुरा दिया और नील के होंठों को प्यार से चूमने लगा। कुछ देर बाद उसने नील के होंठों को छोड़ा और झटके से नील के अंदर समा गया, जिससे नील की दर्दभरी चीख निकल गई। कार्तिक अपने चेहरे पर चिंता भरे भाव लिए बोला, "मैंने पहले ही कहा था कि तू मुझे झेल नहीं पाएगा, अगर तू कहे तो मैं...."
"नो! डोंट बी स्टॉप! प्लीज़ डू दिस!" यह कहकर नील ने कार्तिक के गले में अपनी दोनों बाहें डालकर उसे अपने ऊपर झुका लिया। फिर कार्तिक ने भी उसके कान के पीछे प्यार से चूमा और उसकी गर्दन में अपना चेहरा ले जाकर उसे चूमने लगा। फिर वह धीरे-धीरे ही उसमें समाता रहा। धीरे-धीरे नील का यह दर्द आनंद में बदल गया।
कार्तिक का चेहरा नील की गर्दन पर था। तभी नील अपनी धीमी सी आवाज में उससे बोला, "आई लव यू माय डीयर जंगली!" यह सुनकर कार्तिक ने झट से अपना चेहरा उठाया और अपनी आश्चर्य भरी निगाहों से उसे देखने लगा, "क्या कहा तूने?"
नील की आँखें बंद थीं, जिन्हें वह खोलते हुए फिर से बोला, "मैंने कहा आई लव यू माय डीयर जंगली!"
"रियली!" कार्तिक को विश्वास नहीं हो रहा था।
नील ने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाया। जिसे देख कार्तिक भी मुस्कुराते हुए बोला, "लव यू टू माय कोका कोला।" यह कहकर उसने फिर से नील के होंठों को प्यार से चूमा और धीरे-धीरे उसमें समाता रहा। सारा कमरा उनकी कामुकता भरी सिसकियों से गूंजता हुआ मदहोशी के आलम में चला गया।
जारी है.....