कच्ची उम्र के प्यार भी कभी-कभी बड़े पक्के जख्म दे जाते हैं, जो भरते तो नहीं है पर उनका जख्म दिल में हमेशा के लिए बस जाता है, जो इंसान को पत्थर दिल भी बनाता और निर्दय भी। यह कहानी भी एक ऐसी ही पत्थर दिल और सनकी आशिक वेद लोहिया की है। वेद जिसने अपने प... कच्ची उम्र के प्यार भी कभी-कभी बड़े पक्के जख्म दे जाते हैं, जो भरते तो नहीं है पर उनका जख्म दिल में हमेशा के लिए बस जाता है, जो इंसान को पत्थर दिल भी बनाता और निर्दय भी। यह कहानी भी एक ऐसी ही पत्थर दिल और सनकी आशिक वेद लोहिया की है। वेद जिसने अपने प्यार को पाने के लिए हर कोशिश की आखिर में खुद को बस अकेला पाया। अपना प्यार न मिलने की वजह वह एक सनकी आशिक बन गया। प्यार को अपनी गलती समझने वाला वेद , यह गलती दोबारा करता है जब उसकी जिंदगी में पलक मिश्रा आती है ,और बन जाती है उसकी सनक। क्या वेद का दिल सच में प्यार कर पाएगा पलक से या फिर वह बनके रह जाएगी बस उसकी एक सनक। जानने के लिए पढ़िए 'Blood इश्क ' सिर्फ़ story maniya पर..!
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कच्ची उम्र के प्यार भी कभी-कभी बड़े पक्के जख्म दे जाते हैं, जो भरते तो नहीं है पर उनका जख्म दिल में हमेशा के लिए बस जाता है, जो इंसान को पत्थर दिल भी बनाता और निर्दय भी। यह कहानी भी एक ऐसी ही पत्थर दिल और सनकी आशिक वेद लोहिया की है। वेद जिसने अपने प्यार को पाने के लिए हर कोशिश की आखिर में खुद को बस अकेला पाया। अपना प्यार न मिलने की वजह वह एक सनकी आशिक बन गया। प्यार को अपनी गलती समझने वाला वेद , यह गलती दोबारा करता है जब उसकी जिंदगी में पलक मिश्रा आती है ,और बन जाती है उसकी सनक। क्या वेद का दिल सच में प्यार कर पाएगा पलक से या फिर वह बनके रह जाएगी बस उसकी एक सनक। जानने के लिए पढ़िए 'Blood इश्क '
बालमपुर गांव _वाराणसी _उत्तर प्रदेश _
न ज्यादा बड़ा न ज्यादा छोटा मीडियम सा दिखने वाला घर था, जिसके बाहर लिखा हुआ था, तपस्वी मिश्रा इस घर में कुल मिलाकर 5 मेंबर रहते है जिसमें से 4 लेडिज 1 जेन्ट्स...!!
आज भी इस घर में हुकूमत दादी की यानी इस घर की मुखिया तपस्वी मिश्रा जी की माता पद्मावती मिश्रा जी की हुकुमत चलता है वही सब कुछ निर्णय लेती है..!
इस घर में दो लड़कियां थी, जिनका नाम था पालक और नंदिनी दोनों दादी से बहुत बड़ा करती थी क्योंकि दादी उनपर सख्त नज़र रखती थीं |
दादी अपनी दोनों पोतियो को बैगर किसी काम के बाहर नहीं जाने देती, यहां तक कि मोबाइल भी बहुत लिमिटेड मे इस्तमाल करना पड़ता है..!
दादी दिन भर अपनी दोनों पोतियो को सिर्फ डांट लगाया करती थी, उनकी गलतियों और उनकी कमियां दिन भर निकला करती थी, जिसे सुन सुन कर दोनों डरपोक होकर रहने लगी थी, यहां तक की गरिमा जी को भी अच्छा नहीं लगता था |
Ballampur गाँव
बालमपुर चौराहे पर इस वक्त बहुत लोगों की तादाद में भीड़भाड़ जमा था और सभी लोगों को देख यही पता चल रहा था कि सभी लोग इस वक्त बहुत गुस्से में है..!
एक न्यूज़ रिपोर्टर उनके बीच में जा खड़ा हो गया और सभी से पूछने लगा कि यहां पर हुआ क्या है..? फिलहाल तो सभी के चेहरे पर सिर्फ और सिर्फ गुस्से का भाव नजर आ रहा था |
पर कुछ लोग थे जो शांति से भी बातें कर रहे थे उसमें से एक आदमी ने अपना हाथ दिखाया और अपना परिचय बताते हुए आगे आया |
न्यूज़ रिपोर्टर वाले ने उससे पूछा_" भाई साहब यहां पर हो क्यों रहा है..? इतने लोगों की भीड़भाड़ क्यों लगा रखा है..? "
" जी मेरा नाम मोहन है, और हम सब बालमपुर के रहने वाले हैं और हम सब जितने यहां पर खड़े हैं... हम सब का एक ही बिजनेस है... वह है मंदिर के कई किलोमीटर पीछे हम सब दुकान लगाते हैं.. इसी से हमारा घर चलता है... तो किसी बिल्डर ने हमें एक साल से यह जमीन खाली करने के लिए कह रहा है.. क्योंकि उन्हें यहां पर होटल बनाना है... पर हम सब मान नहीं रहे... अब तो उसने हद ही कर दिया है... यहां तक की गवर्नमेंट भी कुछ नहीं कह रही उसने भी हमें यह सब खाली करने के लिए कह रही है..! "
मोहन बोल ही रहा था कि तब तक एक आदमी आया और उसे हटाकर वह खुद बोलने लगा_" जी मेरा नाम तपस्वी मिश्रा है, अगर आप यह न्यूज़ पूरी दुनिया में फैलाना चाहते हैं.. तो कृपया फैला दीजिए क्योंकि अब हम मर भी जाएंगे तो भी यह जगह खाली नहीं करेंगे... यह जमीन हमारे पूर्वजों की है और हम उनके वंशज है.. हम अपनी जगह कभी किसी को नहीं देंगे इसके लिए हमें मरना ही क्यों ना पड़े, अब हम सब हड़ताल करेंगे.. रोड बंद करेंगे.. जो बनता रहेगा वह सब करेंगे..! "
कुछ भी देर में यह न्यूज़ सभी चैनलों पर दिखाई देने लगा बल्कि पूरे शहर में यह बातें फैल गई, यहां का माहौल देखकर ही पता चल रहा था कि कोई भी हार मानने वालों में से नहीं है, वे लोग यह जगह बिल्कुल भी खाली नहीं करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए..!
कुछ घंटे बाद लगभग दोपहर होने का समय हो गया था, वही मिश्रा जी का घर जैसे गरिमा जी ने यह न्यूज़ देखा तो उन्होंने तुरंत पद्मावती की यानी दादी को बता दिया और उन्होंने यह न्यूज़ देखकर अपने दोनों हाथ माथे पर रख घबराने लगी |
दादी घबराई हुई आवाज में बड़बड़ाने लगी_" गरिमा तुमने अगर एक बेटा पैदा किया होता ना, तो आज हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता.. मेरी तो फटी हुई किस्मत है, जो इस घर में सिर्फ औरतें ही हैं यही देखकर अब मुझे मरना पड़ेगा, और तुमने जो लड़कियां पैदा की उन्होंने अपने अभी से तेवर दिखाने लग गई..! "
दादी ने एक नहीं, न जाने क्या कुछ गरिमा जी को सुनाने लगी |दादी की बातें सुनकर गरिमा जी के आंखों में आंसू आ गए और वह बिना शोर किए किचन में जाकर रोने लगी |
यह एक दफा का नहीं था बल्कि आए दिन घर में खटपट रोज हुआ करता था और अब तो गरिमा जी को सुनने की आदत पड़ गया बल्कि उनकी दोनों बेटियों को भी, हां कभी कबार वह बहुत ज्यादा दिल पर ले लेती थी और अकेले में रोया करती थी |
दोपहर का वक्त__
इस घर की दोनों लड़कियां यानी पलक और नंदिनी दोनों कॉलेज से घर आ गई, घर में कदम रखते ही उन्हें भी समझ गया कि घर का माहौल ठीक नहीं है क्योंकि उन्हें भी तो रोज का आदत पड़ गया था अपनी दादी का रोज डांट सुनना |
दोनों बहने बगैर कुछ बोले अपने कमरे में चली गई, कुछ देर बाद तपस्वी जी घर आए तो दादी परेशान होते हुए अपने बेटे से पूछने लगी_" क्या हुआ बेटा..? क्या आज फिर से वे लोग जमीन खाली करने के लिए कह रहे थे..? "
जो सुनकर तपस्वी जी बोले_" हां अम्मा, पर आप परेशान मत होइए.. पिछले दो सालों से वे लोग हमारी जमीन खाली करने के लिए कह रहे हैं, हमने अभी तक नहीं किया तो अब क्या करेंगे, और आज तो आप लोगों ने न्यूज़ देखा ही होगा, यह न्यूज़ देखकर वह भी समझ जाएगा कि उसने गलत लोगों से पंगा लिया है..! "
" यह सब तो ठीक है बेटा, इन सबके चक्कर में तुम्हें कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा..? मैं तो जीते जी मर जाऊंगी इन सब के चक्कर में तुम मत पडो, अगर इस घर मे दो बेटियों की जगह दो बेटे होते तो हमें इतना फिक्र करने की जरूरत नहीं होता..! "
दादी बोल ही रही थी कि तपस्वी की टोकते हुए बोले_" अम्मा आप यह कैसी बातें करती रहती है, मैं अपनी बेटियों को बेटी है, कमजोर है यह सब नहीं मानता, मेरी बेटियां बेटों से कम नहीं है..! "
" इसीलिए.. इसीलिए तुम्हारी बेटियां सिर पर चढ़ गई है, उन्हें भी मर्दाना चाल चलने लगी है, ऐसे ही रहा तो एक दिन..! "
" बस करो अम्मा..! वह मेरी अपनी बेटियां हैं और मुझे अपनी बेटियों पर पूरा भरोसा है बिना सोचे समझे आप रोज उन पर लांछन लगाती रहती है, मैं आगे का नहीं सोचता हूं, बस मुझे इतना पता है मुझे मेरी बेटियों पर पूरा भरोसा है, बस..! "
तपस्वी जी अपनी दोनों बेटियों के बारे में गलत- सलत बिल्कुल भी सुन के बर्दाश्त नहीं कर सकते, वह चाहे घर के लोग हो..? चाहे बाहरी के लोग..? उन्हें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होता..!
वही कमरे में उनकी दोनों बेटियां अभी जो कुछ हुआ भी सब सुन रही थी और उन्हें हमेशा से पता है उनके पापा उनकी ही साइड लेते हैं जिससे दुनिया इधर-उधर हो जाए उन्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ता उनकी नजरों में तो सिर्फ उनके पापा सुपर हीरो हैं, और वे दोनों अपने पापा को बहुत प्यार करती थी और चाहकर भी कभी उनका दिल नहीं दुख सकती..!
दूसरी तरफ _उदयपुर राजस्थान _
एक बड़ा सा हवेली जैसा दिखने वाला घर जिसके अंदर कुछ लोग मौजूद थे, उनके सामने बड़ी सी एलइडी टीवी पर न्यूज़ आ रहा था, वे सभी तपस्वी जी का न्यूज़ देख रहे थे जो वह अपनी छाती ठोक के जगह न खाली करने का दवा दे रहे थे |
उस बड़े से हाल में बहुत लोग मौजूद थे, पर एक बड़े से रजवाड़ी कुर्सी पर एक आदमी कुर्ता पजामा पहने हुए बैठा था, उसके हाथ में कढ़ाईदार शॉल भी था और वह न्यूज़ देखकर अपने मूंछों को ताव देते हुए बस तपस्वी जी को घूरे जा रहा था |
तभी उसके सामने का हट्टा- कट्टा पहलवान आदमी आकर खड़ा हुआ और बड़े तहजीब के साथ बोला_" भाई सा, बस आप हुकुम कीजिए इस तो मैं..? "
उस आदमी का इतना कहना कि कुर्सी पर बैठा आदमी जो अपनी मूंछों को बड़े देर से गोल - गोल घुमाई जा रहा था वह तुरंत रुक गया और बिना उसके तरफ देख ही बोला_" नहीं बलराम.. अक्सर इंसान जोश में अपना होश खो बैठता है, हमें ऐसा नहीं करना.. जमीन तो हम लोग लेकर ही रहेंगे, उसके लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा.. जैसे 2 साल से करते आ रहे हैं..! "
ये सुन उसके सामने खड़ा बलराम बोला _" पर भाई सा , अगर घी सीधी उंगली से न निकले, तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है..! "
" पर बलराम उंगली किसने कहा टेढ़ी करने के लिये...? उंगली टेढ़ी करने से उंगलियों में दर्द होगा, हमें तो पूरा घी खाना है.. वह भी सीधे-सीधे पांचो उंगली से..! "
वे दोनों आदमी आपस में बातें करके जोर-जोर से हंसे जा रहे थे और वहां पर मौजूद सभी लोगों को सिर झुकाए खड़े थे जिसे देख यही कहा जा सकता है कि इस जगह को पानी के लिए यह दोनों किसी भी हद तक जा सकते हैं..!
To be continue....
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शाम का वक्त था।
दादी लगातार आवाज़ लगा रही थी। "पलकीया... ये पलकीया... पलकीया रे...!"
दादी नॉन स्टॉप पलक को आवाज़ लगा रही थी। यह सुनकर नंदिनी अपने कमरे से बाहर निकली और हॉल में आकर थोड़ी ऊँची आवाज़ में दादी से बोली, "दादी, यह क्या है..? आप एक बार शुरू हो जाती हैं तो बंद होने का नाम ही नहीं लेती... दादी, आपको पता है ना जीजी बाजार गई है, फिर भी आप शुरू हो जाती हैं, अच्छा-खासा नाम को भी ख़राब करके रख दिया है, पलकीया 🙄...!"
नंदिनी की ऊँची आवाज़ सुनकर दादी को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ और वह और ज़्यादा गुस्से में बोली, "अब तू मुझे पाठ पढ़ाएगी कि मुझे किस तरह से बात करना है? आने दे तेरे बाप को, उससे शिकायत करती हूँ, पर उससे भी शिकायत करके क्या फायदा.. उसने तो तुम दोनों को सिर पर चढ़ाकर रखा है, और बगैर पूछे वो बाजार कैसे चली गई...?"
दादी की रोज़ की गड़बड़ सुनने की घरवालों को आदत पड़ चुकी थी। उसकी आवाज़ से नंदिनी सिर्फ़ इरिटेट होती थी, बाकी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
वह मुँह बनाते हुए बोली, "वह अकेली नहीं गई है, मम्मी भी उनके साथ गई है और आते वक़्त पापा के साथ ही आ जाएंगी।"
इतना बोलकर नंदिनी बिना वहाँ रुके अपने कमरे में चली गई और पढ़ाई करने लगी। वहीं दादी अभी भी लगातार बड़बड़ा रही थी कि इस घर में उनका कोई नहीं सुनता, सब अपने मनमानी करने लगे हैं, जवान-जवान दो बेटियाँ हैं, वह भी अपने मन की करने लगी हैं... !
रात 8:00 बजे, मिश्रा जी का घर।
सभी लोग खाना खाने बैठे हुए थे। खाना खाते वक़्त किसी की हिम्मत नहीं थी कि वह बोले, सभी लोग चुपचाप खाना खा रहे थे। वहीं दादी बहुत धीरे-धीरे खा रही थी। उन्हें देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा हो और वह कभी अपने बेटे को तो कभी अपनी दोनों पोतियों को देख रही थी।
आख़िरकार उन्हें रहा नहीं गया तो उन्होंने तपस्वी जी से कहा, "देख लल्ला, मैं तो यही कहूँगी कि किसी से दुश्मनी लेने की ज़रूरत नहीं है। आज दिनभर टीवी देख रही थी, बार-बार तेरा ही चेहरा टीवी पर दिखाई दे रहा था। दुश्मनों की नज़रों में तू ही दिखाई देगा...!"
तपस्वी जी जो खा रहे थे, वह अपनी माँ की बातें सुनकर खाना खाना बंद कर दिया। अब बड़े शांत स्वभाव से बोले, "माताजी, मैं अकेला नहीं हूँ, पूरे 20 लोगों की दुकान वहाँ लगती है.. हम सभी को वहाँ से उठाना चाहते हैं और भी जो छोटे-मोटे दुकान लगती हैं उनकी तो कोई गिनती ही नहीं है...!"
"अगर हम हार मान जाएँगे, तो वह हम पर हावी हो जाएँगे। उनकी इतनी ताकत नहीं कि वह हमें हटा सकें। अगर उनमें इतनी ही ताकत होती तो वह 2 साल पहले ही हमें उठाकर फेंक देते। हम सब भाई लोग मिलकर लड़ रहे हैं, माताजी। अपना तो जैसे-तैसे चल जाएगा। जो छोटे-मोटे दुकान लगाते हैं उनका घर चलाना बहुत मुश्किल है इसलिए हमें हार नहीं मानना, डट के सामना करना है...!"
यह सुन दादी इमोशनल हो गई। अब बड़े भावुक होते हुए बोली, "हाँ लल्ला, तू सही कह रहा है, पर तुझे तो पता है ना मैं तेरी माँ हूँ, मुझे फ़िक्र लगी रहती है तेरी। एक तो इस घर में मर्द तू ही है, तुझे कुछ हो गया तो हम औरतें कहाँ जाएँगी..? अगर पोता होता तो आज यह दिन ना देखना पड़ता...!"
दादी की उम्र करीब 75 के आस-पास होगी। वह हमेशा इसी तरह इमोशनल हो जाया करती थी। वहीं पलक और नंदिनी दोनों उन्हें देख रही थीं क्योंकि दादी का रोज़ का यही कहना होता है कि इस घर में पोता चाहिए था।
तपस्वी जी ने अपनी बेटियों की तरफ़ देखा और अपनी माँ की तरफ़ देखकर कहा, "माताजी, कितने बार कहा है, मैं अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं मानता, वह मेरी अपनी बेटियाँ हैं, मैं उनमें कभी भेदभाव नहीं कर सकता। मुझे ईश्वर ने लड़की दी है और मैं उनका मान-सम्मान करता हूँ...!"
तपस्वी जी हमेशा अपनी बेटियों का साइड लिया करते थे और अपनी माँ को चुप करा देते थे। थोड़ी देर बाद सभी लोगों का खाना खाना हो गया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
अगली सुबह, उदयपुर, राजस्थान।
भावेश सोलंकी और उसका भाई बलराम सोलंकी दोनों बहुत सीरियस होकर बैठे थे। बलराम के हाथ में मोबाइल था, वह किसी को कॉल लगा रहा था। 2-4 रिंग बजने के बाद कॉल के दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, "बोलिये मालिक...!"
इधर से बलराम बोला, "तुम्हें जो काम दिया है, वह तुमसे ठीक तरह से हो नहीं पा रहा। अगर ऐसा ही रहा तो वह जमीन हमारे हाथ से निकल जाएगी और यह भाई का बहुत बड़ा सपना है, वहाँ पर सबसे बड़ा होटल बनाने का, और तुम्हें एक मामूली सा काम दिया गया है, वह भी ठीक तरह से नहीं हो पा रहा...!"
बलराम बड़े गुस्से में बोल रहा था कि कॉल की दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई, "मालिक, हमें माफ़ कर दीजिये, हम पूरी तरह से कोशिश तो कर रहे हैं। इस बार तो हम उसे धमकियाँ भी देने जाने वाले थे पर वहाँ पर पब्लिक की तादाद बहुत ज़्यादा थी और तो और वहाँ पर मीडिया भी आ गई जिसकी वजह से हमें वहाँ जाने से खुद को रोकना पड़ा...!"
कॉल की दूसरी तरफ़ से वह आदमी अपना प्रॉब्लम बता ही रहा था कि इधर से बलराम चिल्लाते हुए बोला, "किसलिए तुम लोगों को रखा गया है..? एक मामूली से काम भी तुम लोगों से नहीं हो पा रहा..? तुम लोगों को खिला-पिलाकर पैसे देकर मैं बेवजह में सांड की तरह पाल के रखा हूँ...!"
बलराम का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। यह देख भावेश अपनी उंगली से इशारा किया और यह इशारा था कि शांत हो जा। पर बलराम सुनने के बजाय उसे जान से मारने की धमकियाँ देने लगा और गुस्से में उसने अपना फ़ोन नीचे जमीन पर पटक दिया।
भावेश अपने भाई का गुस्सा देखकर चेयर से उठ खड़ा हुआ और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बड़े प्यार से समझाते हुए कहा, "तुम्हें मैं कल ही कहा था ना कि जोश में आकर होश नहीं खोना, पर तुम मेरी बात मानते ही नहीं हो। जल्दबाजी का काम शैतान का होता है और हमें जल्दबाजी में कोई भी काम या कदम नहीं उठाना, हमें वह पूरी जमीन चाहिए और उसे लेकर ही रहेंगे, बस तरीक़ा अलग होगा...!"
"मगर कैसे होगा भाई सा...? दिख रहा है ना यह बात अब मीडिया में भी आ गया है। अब तो वह आदमी की हैसियत और भी बढ़ाते जाएगा और हम ऐसे ही देखते रह जाएँगे और हमारे आदमी सांड की तरह हमारा खाते रहेंगे, पर एक पैसे का काम नहीं करेंगे...!"
बलराम जमीन को लेकर परेशान हो रहा था और अपने भाई को परेशान होता देख भावेश अपने मूँछों पर उंगलियाँ फिरते हुए आगे कहा, "बलराम, तुम अब शांत हो जाओ, अब यह काम इन लोगों से नहीं होगा, यह किसी और को सौंपना पड़ेगा...?"
"पर किसे भाई सा...?"
बलराम क्यूरियस होकर अपने भाई को देख रहा था। तो वहीं भावेश अजीब तरह से मुस्कुराते हुए बोला, "है कोई तो, वह बहुत ही शातिर और खूंखार इंसान है, उससे कोई बच नहीं सकता और यह काम वही कर सकता है, उसके सिवाय यह काम किसी को नहीं आएगा।"
अपने भाई का कॉन्फिडेंस देखकर बलराम उछलते हुए कहा, "फिर देर किस बात का भाई साहब, जल्दी से उसे यहाँ बुला लीजिये और मुँह माँगे रकम उसे दे दीजिये, पर यह जमीन हमें किसी भी हालत में चाहिए...!"
बलराम को फड़फड़ाता देख भावेश बोला, "वह कोई आम आदमी नहीं है, जो हम बुलाएँ और वह तुरंत आ जाएगा। वह अपने कामों में बहुत बिज़ी रहता है। वह एक माफ़िया है, अंडरवर्ल्ड का डॉन है, उसका कोई ठिकाना नहीं, पता नहीं आज कहाँ तो कल कहाँ। मुझे थोड़ा टाइम दो, मैं पता लगाता हूँ इस वक़्त वह है कहाँ...?"
To be continue...
(आखिर कौन है वो...? जिसकी ज़िक्र आख़िर भावेश कर रहा है...?)
उदयपुर, राजस्थान। एक हफ़्ते बाद, भावेश अपने आदमियों को लेकर रात में निकल पड़ा। उसका भाई बलराम भी उसके साथ आना चाहता था, पर भावेश उसे अपने साथ नहीं ले गया। उसे पता था कि उसके भाई का खून हमेशा गर्म रहता है; कहीं उसके आने से बात बिगड़ न जाए!
केरल, कन्नूर (kerala kannur)। करीब रात के 2:00 बजे भावेश केरल पहुँचा। एक हफ़्ते पहले ही उसने पता लगवाया था कि वेद लोहिया कहाँ है? और उसकी खबरियों ने पता लगाकर बताया कि उस वक्त वेद लोहिया ब्राज़ील में है। इस वजह से भावेश को उसका इंतज़ार करते-करते लगभग एक हफ़्ता बीत गया।
पर एक दिन पहले ही उसे पता चला कि वेद लोहिया केरल आ चुका है। इस वजह से वह उससे मिलने के लिए निकल पड़ा। उसे भी पता था कि उसकी बुलाने से तो वह नहीं आएगा, क्योंकि वह कोई आम इंसान नहीं है जो कोई भी बुलाए और वह आ जाए!
भावेश रात में जाकर एक बोट पर ठहरा था। वेद लोहिया का इंतज़ार करते-करते करीब सबेरा होने को आ गया, पर वह नहीं आया। भावेश को बहुत गुस्सा आ रहा था। पर वह खुद पर बहुत पेशेंस रख रहा था और मन ही मन यह भी सोच रहा था, अच्छा हुआ कि उसने अपने भाई को यहाँ नहीं लाया, वरना बात बिगड़ जाती।
भावेश को अब यहाँ रुका नहीं जा रहा था। इस वजह से वह परेशान होने लगा और वेद लोहिया के आदमियों को उसने मैसेज किया कि वह कब से वेट कर रहा है, उसे अब मिलना है! वेद लोहिया का एक आदमी आकर उसे इन्फॉर्म किया कि उसके बॉस थोड़ी देर पहले ही मुंबई के लिए रवाना हो गए।
यह सुनकर तो भावेश के होश उड़ गए। मतलब वह पहले तो एक हफ़्ते से उसके आने का इंतज़ार कर रहा था और आज उससे मिलने केरल आया था। और कितने घंटे इंतज़ार करने के बाद भी बिना इन्फॉर्म किए वह आदमी मुंबई चला गया! उसे इतना गुस्सा आ रहा था, पर वह मजबूर था क्योंकि उसे अपना काम निकलवाना था। भावेश उस आदमी से बिना बहस किए, मुंबई जाने के लिए तुरंत निकल पड़ा!
मुंबई, मालाबार, EIM विला। दोपहर में भावेश आखिरकार मुंबई पहुँच गया। EIM विला बहुत ही खूबसूरत तरीके से बना था, जो दिखने में बहुत ही शानदार दिखाई दे रहा था। और इस विला के अंदर अनगिनत गार्ड्स खड़े थे।
मेन गेट पर जो गार्ड खड़ा था, उसने पहले भावेश और उसकी गाड़ी का पूरा इनफॉर्मेशन लिया, तब जाकर अंदर उन्हें जाने दिया। यह सब देखकर ही पता चल रहा था कि सिक्योरिटी बहुत टाइट है। पर इतनी आसानी से वेद से मिल पाना पॉसिबल नहीं था। आखिरकार उसे रात तक वेद से मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ा!
करीब रात में 11:25 पर उसे बोट में बहुत से लोग एक साथ आने लगे और उसके और साइड में जाकर सब लोग खड़े हो गए। कुछ देर बाद वेद लोहिया की एंट्री हुई, जिसने इस वक्त प्रॉपर थ्री पीस बिज़नेस सूट पहना हुआ था।
वेद को देखकर भावेश के तो होश ही उड़ गए। वह जो बैठा था, वह तुरंत उठ खड़ा हुआ। वह खुद को राजस्थान का एकदम से पावरफुल आदमी समझता था, पर यहाँ वेद को देखकर वह अपने आप को कमजोर समझने लगा।
वेद आते ही किंग साइज़ सोफे पर बैठ गया और एक पैर दूसरे पैर पर रखा। उसकी पर्सनालिटी देखकर भावेश तो 2 मिनट उसे देखता ही रह गया। उसकी इस तरह देखते हुए वेद बहुत एरोगेंट वॉइस में बोला, "You are a man, right? Why are you looking at me like a girl..!"
वेद की बातें सुनकर भावेश हड़बड़ा कर उसे देखने लगा और अपनी नज़रें इधर-उधर चुराने लगा। उसको इस तरह करता देख वेद अपनी आईब्रो सिकुड़ते हुए आगे बोला, "अब मुद्दे की बात करो, मेरे पास ज़्यादा वक्त नहीं है..!"
वेद का इतना कहना था कि भावेश अपने दोनों हाथ आगे करते हुए बोला, "प्लीज़... प्लीज़ पहले तुम मेरी बातें सुन लो..!"
वेद अपनी गर्दन टेढ़ा करके उसे देख रहा था। वहीँ भावेश अपना गला साफ करते हुए बोला, "तुम्हें तो पता ही है, मैं कई सालों से राजस्थान में रह रहा हूँ और मेरा बिज़नेस भी काफी अच्छी चल रही है। पर जो मेरा बड़ा सपना है, वह है बालमपुर में अपना होटल खोलना, जो कि सपना ही रह गया है..!"
"वहाँ पर जो लोग हैं, वह सब जगह खाली करने के लिए तैयार नहीं हो रहे। दो साल से तो मैं उन्हें धमकियाँ दे-देकर थक गया हूँ, पर उन्हें किसी बात का अब डर ही नहीं है..!"
"अब तो बात बहुत आगे बढ़ गई है। एक हफ़्ते पहले मेरे आदमियों ने जाकर वहाँ पर धमकी दी और यह बात अभी मीडिया में भी आ गई है। और वह सब बिल्कुल भी जगह खाली करने के लिए तैयार नहीं हो रहे..!"
"उसमें एक आदमी है जिसका नाम है तपस्वी मिश्रा, वह तो सबका लीडर बना हुआ है। मुझे तो लगता है मेरा सपना... सपना ही रह जाएगा। बहुत सोचने के बाद मुझे तुम्हारा याद आया। यह काम सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम ही कर सकते हो, बाकी कोई नहीं..!"
भावेश बोल रहा था, तो वहीँ वेद अपने हाथ में मोबाइल लेकर कुछ देखने लगा। भावेश को लगा कि शायद वेद उसकी बातों को इग्नोर कर रहा है, पर ऐसा नहीं था। वेद इतना चालाक था कि वह काम करते वक्त दूसरे काम पर भी फ़ोकस करता था। इतना शार्प उसका माइंड था!
भावेश जो बोल रहा था, वह अचानक से चुप हो गया। और उसको चुप देख वेद अपनी नज़र उठाकर उसके तरफ़ देखा और बोला, "बस इतनी सी बात है..?"
यह सुन भावेश बोला, "नहीं, मुझे लगा तुम मोबाइल में बिज़ी हो, इसलिए मैं चुप हो गया..!"
वेद अपना मोबाइल साइड में रखते हुए बोला, "तुम्हारी बातें सुनने के बाद मुझे नहीं लगता कि यह बहुत बड़ा प्रॉब्लम है। यह तो मेरा आदमी भी कर सकता है। मैं टाइगर को कह दूँगा, वह इन सारी चीज़ों से निपट लेगा..!"
वेद का इतना कहना था कि भावेश के चेहरे पर लंबी वाली स्माइल आ गई और वह पैसों से भरा हुआ सूटकेस आगे किया। जो देख वेद बोला, "काम होने के बाद..!"
यह सुन भावेश बोला, "यह तो बहुत अच्छी बात है, पर मैं तुमसे रिक्वेस्ट करता हूँ यह काम थोड़ा जल्दी हो जाए तो बहुत अच्छा होगा, क्योंकि पहले ही मैं दो साल से यह काम करवा रहा हूँ, पर वे लोग खाली नहीं कर रहे..!"
भावेश बोल ही रहा था कि वेद अपना हाथ आगे किया। इसका मतलब था कि बस! वेद अपना गर्दन पर हाथ फेरते हुए बोला, "मैंने कहा ना मेरे आदमी यह काम कर देंगे, मतलब कर देंगे..!"
इतना बोलकर वेद ने अपनी उंगली से उसे जाने का इशारा किया। जो देखकर भावेश उठा और विला से बाहर निकला। बाहर आते ही वह चारों तरफ़ देख रहा था। मतलब यहाँ पर जितने भी गार्ड्स थे, बहुत ही हट्टे-कट्टे पहलवान दिखाई दे रहे थे। वह सभी चीज़ों को बड़े अच्छे तरीके से स्कैन करने लगा। वहीं अंदर वेद, "टाइगर... टाइगर" आवाज़ लगाते हुए बुला रहा था।
टाइगर नाम सुनते ही एक आदमी उसके सामने आकर खड़ा हुआ, जो दिखने में बहुत ही हट्टा-कट्टा पहलवान था। उसे देख कोई नहीं कह सकता कि यह कोई आम आदमी है! टाइगर वेद के सामने आकर खड़ा हुआ और उसे ग्रीट करते हुए कहा, "यस बॉस..!"
वेद ने टाइगर की तरफ़ देखते हुए कहा, "इस भावेश का पूरा डिटेल लो और जो इसने काम दिया है तुम निपट लेना। और हाँ, कल ही हमें मलेशिया के लिए निकलना है, क्योंकि सही-सलामत डायमंड पहुँच जाने चाहिए..!"
इतना बोलकर वेद चेयर से उठा और सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर चला गया।
To be continue....
अगली सुबह बालमपुर गाँव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश में।
टाइगर मुंबई से बनारस जाने के लिए निकला था। दोपहर तक वह वाराणसी के बालमपुर गाँव में पहुँच गया। सबसे पहले उसने आसपास के लोगों से सारा इनफॉरमेशन निकलवाया। उसके बाद सारा माजरा उसे समझ में आ गया कि कितने लोगों की यहाँ पर दुकान खाली करवाना है, और कौन सा जगह भावेश को चाहिए।
सब कुछ समझने के बाद उसने अपना दिमाग लगाना चालू कर दिया। वह लोगों की कमजोरी बहुत अच्छे से जानता था; आखिर आदमी तो वेद का ही था।
टाइगर शाम होने का इंतज़ार कर रहा था और जब पूरे मार्केट में धीरे-धीरे सन्नाटा छाने लगा, तब वह अपने कार से निकला और मार्केट की तरफ़ बढ़ गया।
मार्केट में जाते ही उसने एक-दो दुकानदारों को हाय-हेलो किया।
उसके बाद उसने उन दुकानदारों को समझाते हुए कहा, "देखो, मैं भावेश बिल्डर की तरफ़ से यहाँ आया हूँ। मुझे मालूम है कि वह तुम लोगों को २ साल से यह जमीन खाली करने के लिए कह रहे हैं, और तुम लोग यह जगह खाली करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हो।!"
टाइगर बड़ी शांति से पेश आ रहा था। वैसे टाइगर कभी इतना शांति से किसी से बात नहीं करता, पर वह इंसानों को बहुत अच्छे से समझता है, किसे किस तरह से निपटना है; इसलिए तो उसके बॉस ने उसे यहाँ भेजा है।
टाइगर ने आगे कहा, "आप लोगों को इसके बदले भारी भरकम रकम मिलेगा, तो क्या आप लोग खुश हो? जितनी तुम लोगों की वैल्यू नहीं है, उससे भी ज़्यादा रकम मिलने वाला है।!"
अब क्या ही था, वे तो तुरंत टाइगर के ऊपर चढ़ पड़े। जैसे ही उन्होंने तेज आवाज़ में बोलना चालू किया, अगल-बगल के सभी लोग इकट्ठा हो गए।
गाँव वाले इतना जल्दी कहाँ समझते? वे सब टाइगर को देखकर भड़कने लगे, यहाँ तक कि जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
बात अगर गाँव की हो और सब मिलकर ना बोले, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। तब तक गाँव के तपस्वी भी आ गए और वे क्यों पीछे रहेंगे? वे आगे जाकर उंगली दिखाते हुए टाइगर को भला-बुरा सुनने लगे, बल्कि धमकी भी देने लगे कि अब कोई भी आएगा तो वह बचकर नहीं जाएगा।
धीरे-धीरे वहाँ पर बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गए और सभी टाइगर के ऊपर चिल्ला रहे थे। फ़िलहाल तो टाइगर अकेला ही था और वह बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया, क्योंकि उसका वहाँ से जाना ही ठीक था; वरना बात बिगड़ जाती।
इधर मुंबई, रात का वक़्त, EIM विला में।
वेद मलेशिया जाने के लिए तैयार हो गया था। थोड़ी देर बाद टाइगर भी आ गया और वह बहुत ही गुस्से में नज़र आ रहा था।
अगर टाइगर को कुवैत के साथ मलेशिया ना जाना पड़ता, तो अभी तक वह मुंबई नहीं आता; पर अपने बॉस के साथ उसे जाना था, इसलिए वह जल्दबाजी में आ गया।
कुछ देर बाद वेद का प्राइवेट जेट आकर रुका और फिर वेद, टाइगर और उसके कुछ बॉडीगार्ड सभी जेट में जाकर बैठ गए, और कुछ ही देर में जेट उड़ान भर लिया।
After 5 days, कुआलालंपुर में।
रात के २:३३ मिनट पर बीच समुद्र में दो बड़े शिप आपस में फायरिंग कर रहे थे, जिसे देखकर ही पता चल रहा था कि एक-दूसरे के जानी दुश्मन हैं।
वेद इस वक़्त शिप के अंदर प्राइवेट रूम में बैठा था। वेद अपनी पार्टनर के साथ बिज़नेस डील कर रहा था; जो डायमंड के लिए वह इंडिया से यहाँ आया था। तभी टाइगर उसके पास आकर उसे इन्फॉर्म किया कि उसके दुश्मनों ने उन्हें घेर लिया है।
यह सुनकर वेद के चेहरे पर गुस्सा साफ़-साफ़ झलकने लगा और उसने डायमंड को एक ऐसी जगह पर छुपाया और हाथ में दो बड़े-बड़े पिस्तौल, जो दिखने में इतने भयानक थे, लेकर उस रूम से बाहर निकला। वह दोनों हाथों से सामने वाले शिप पर वार करने लगा और उसे देखकर उसके सभी बॉडीगार्ड भी वार करने लगे।
कुछ घंटे बाद पूरा का पूरा सामने वाला शिप तहस-नहस हो गया और वेद वहाँ से रास्ता बदलकर अपने दूसरे मंजिल की तरफ़ निकल पड़ा।
After One week, कैलिफोर्निया में।
क्राउन सिलिकॉन होटल, टॉप फ्लोर, VIP रूम में। वेद और सामने उसका नया पार्टनर, डेनियल (Daniel), बैठा था।
वेद जो डायमंड मलेशिया से कैलिफोर्निया लेकर आया था, वह डेनियल के साथ डील कर रहा था।
दोनों बहुत ही शांति तरीके से डील कर रहे थे और उस डायमंड का ५०-५०% दोनों ने बाँट लिया। डील ख़त्म होने के बाद, दोनों बहुत ही ब्रांडेड और एक्सपेंसिव Isabella whisky (Bastos) स्मोक भी कर रहे थे।
डील ख़त्म होने के बाद दोनों चेयर से उठ खड़े हुए और एक-दूसरे से हैंडशेक दिया, क्योंकि उन्हें आगे भी एक साथ में बिज़नेस करना था।
सबसे पहले उस रूम से डेनियल बाहर निकला। उसके निकलते ही वेद भी बाहर निकला और वह जैसे ही लिफ्ट की तरफ़ जा रहा था, कि दो कपल्स लिफ्ट की तरफ़ ही आ रहे थे; बल्कि वे दोनों बहुत ज़्यादा ड्रिंक किए हुए थे।
जैसे ही लिफ्ट रुकी और वेद ने अंदर कदम रखा, वे दोनों कपल भी लिफ्ट के अंदर आ गए। बल्कि ड्रिंक करने की वजह से वे दोनों वेद से टकरा भी गए और उनके इस तरह टकराना वेद को बिलकुल भी पसंद नहीं आया। वह अपनी खूंखार आँखों से उन दोनों को घूर कर देखने लगा।
वह लड़का-लड़की दोनों बहुत ही रोमांटिक वे में बातें कर रहे थे और टकराने की वजह से वह लड़का वेद की तरफ़ देखकर बोला, "तुम जरा दूर खड़े रहो, दिखाई नहीं दे रहा, मेरी गर्लफ्रेंड मेरे साथ है।!"
वह जो पहले से ही गुस्से में खड़ा था, अब उसकी बातें सुनकर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। अब लिफ्ट ऑलमोस्ट नीचे ग्राउंड फ्लोर रुकने ही वाली थी।
वेद ने अपने साइड से पिस्तौल निकाला और उन दोनों को दो-दो गोलियों से छलनी कर दिया और लिफ्ट में उनके खून के छींटे ऊपर तक फैल गए।
वेद को कोई रहम नहीं आया। बल्कि वह अपने पिस्टल पर फूँक मारते हुए बोला, "Now go up and make love।!"
जैसे ही लिफ्ट रुकी, वह बाहर निकलते हुए डेविल वॉइस में उन दोनों कपल्स को देखकर बोला, "Bloody Love…!"
To be continue…
जयपुर, राजस्थान, इंडिया
भावेश ने वेद को काम सौंपे दस दिन से अधिक हो गए थे, पर अभी तक कोई परिणाम नहीं मिला था। भावेश ने जितनी बार वेद के आदमियों से पता लगवाने की कोशिश की, उसके आदमी सिर्फ़ एक ही बात कहते थे कि उनके बॉस इंडिया में नहीं हैं।
भावेश आज परेशान था क्योंकि उसे वेद लोहिया पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसका एक प्रतिशत भी काम अभी तक उसने नहीं किया था। वह सिर्फ़ अपने काम में ही व्यस्त था। पता नहीं बार-बार वह इंडिया से बाहर क्या करने जाता था?
अपने भाई को इतना परेशान देखकर उसका छोटा भाई बलराम बोला, "भाई साहब, आपने उसे काम ही क्यों दिया? मुझे तो लगता है, इसका सिर्फ़ नाम ही बड़ा है, बाकी काम कुछ नहीं करता!"
भावेश अपने भाई को इतना परेशान देखकर उसे समझाते हुए बोला, "बलराम, सब्र से काम लो। जैसे हमने दो साल सब्र किया है, वैसे कुछ दिन और कर लेते हैं। वैसे आदमी बहुत काम का है, इसलिए आज तक कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा है।"
यह सुनकर बलराम बोला, "हाँ भाई साहब, आप सही कह रहे हैं, पर यह काम तो करना चाहिए ना? कहीं ऐसा ना हो कि यह अपना हाथ उठा दे... कहीं टाइम बर्बाद करने के बाद आकर यह ना कहे कि उससे नहीं होगा? या वह करेगा ही नहीं? मुझे तो कुछ ऐसा ही लगता है।"
भावेश अपने भाई बलराम को यकीन दिलाते हुए कहा, "तुम परेशान मत हो, मैं उसे कॉल करता हूँ।"
भावेश के पास टाइगर का नंबर था। उसने उसे कॉल लगाया। उस वक़्त वेद और टाइगर कैलिफ़ोर्निया में थे और टाइगर वेद का राइट हैंड था, उसका सब काम वही संभालता था। उसने कॉल रिसीव नहीं किया।
एक महीने बाद
देखते-देखते एक महीना बीत गया। अब जाकर वेद कैलिफ़ोर्निया से इंडिया आया। भावेश को पता चल गया था, और लगभग दो दिन बाद भावेश भागते हुए मुंबई आ गया।
भावेश का जो मामला था, वह तो वेद के ध्यान से निकल ही गया था और वह भावेश को भूल भी गया था।
वेद उस वक़्त अपने लग्ज़रियस रूम में लेटा हुआ था। लिविंग एरिया में भावेश उसका इंतज़ार कर रहा था और उसे इंतज़ार ही करना पड़ेगा क्योंकि वेद किसी के इशारों पर नाश्ता नहीं, बल्कि वह लोगों को नहीं चाहता था।
भावेश दो घंटे तक लिविंग एरिया में बैठा रहा। उसके बाद वेद आखिरकार तैयार होकर अपनी शर्ट के स्लीव्स को फोल्ड करते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था। आते ही वह डाइनिंग टेबल के पास जाकर चेयर को पीछे किया और बैठा।
दो सर्वेंट उसके लिए ब्रेकफास्ट टेबल पर लगाने लगे। भावेश चुपचाप देख रहा था क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह बीच में बोले।
तभी टाइगर वेद के पास आया और खड़ा होकर ग्रीट किया और साथ ही साथ भावेश के बारे में बताने लगा, "वह एक महीने पहले अपनी प्रॉब्लम लेकर आया था और हमने उसका काम स्टार्ट भी किया था, पर अर्जेंट मलेशिया जाने की वजह से उसका काम होल्ड पर रह गया है।"
टाइगर बोलते जा रहा था, तो वही वेद सुन रहा था और ब्रेकफास्ट करने लगा। ब्रेकफास्ट करने के बाद उसने टाइगर की तरफ़ देखकर कहा, "अगर तुमने उसका काम स्टार्ट किया था, तो तुम ही उसे निपटा लो। वैसे भी हमें अभी कहीं बाहर नहीं जाना, तो तुम जाकर देख लो।"
वेद का इतना कहना था कि टाइगर अपनी नज़र नीचे करते हुए कहा, "बॉस, वे गाँव वाले थोड़े जिद्दी किस्म के लोग हैं, मुझे नहीं लगता वह जमीन खाली करेंगे।"
टाइगर इतना ही बोला होगा कि वेद बिना उसकी तरफ़ देखे बोला, "पैसे की महक और ज़रूरत जो है, अच्छे-अच्छे की नियत खराब कर देती है। तो तुम नोट की गड्ढी उनके सामने फेंको, सब के सब लाइन पर आ जाएँगे। सिर्फ़ नाटक करते हैं वह लोग।"
वेद की कही हुई बातें टाइगर बहुत अच्छे से समझ गया और वहाँ से भावेश के पास आकर बताते हुए कहा, "तुम्हारा काम बहुत जल्द हो जाएगा।"
यह सुनकर भावेश बोला, "मैं तुमसे रिक्वेस्ट करता हूँ, प्लीज़ मेरा काम जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी करो, क्योंकि पहले ही मेरे दो महीने इसमें बर्बाद हो गए हैं, पर अब मैं नहीं बर्बाद करना चाहता हूँ।"
टाइगर ने भावेश को समझाकर वहाँ से भेज दिया। उसके बाद वह अपना दिमाग लगाने लगा कि इन लोगों से कैसे निपटना है, क्योंकि इस बार वह अकेला नहीं जाने वाला था। वह भी समझ गया था कि ये लोग सीधे तो नहीं मानेंगे।
अगली सुबह, बालमपुर गाँव
टाइगर और टाइगर के साथ कुछ बॉडीगार्ड्स बालमपुर गाँव सुबह-सुबह पहुँच गए थे। वहाँ पर कुछ लोगों ने दुकानें चालू कर दी थीं, तो कुछ लोग चालू कर रहे थे, तो अभी कुछ लोगों की दुकानें चालू नहीं थीं।
टाइगर खड़ा होकर सभी की तरफ़ देख रहा था। धीरे-धीरे करके सभी दुकानें चालू हो गईं। टाइगर तेज आवाज़ में सभी को इकट्ठा किया और उसे देखकर सभी लोगों को एक महीने पहले वाली बातें याद आने लगीं कि यह आदमी पहले भी यहाँ आ चुका है।
अब तो तपस्वी भी आ गए थे और वह दाँत पीसते हुए आगे आए क्योंकि इस बार बहुत लोगों का माथा गरम हो चुका था बार-बार आने से जगह खाली करवाने के लिए। किसी को भी पसंद नहीं आ रहा था।
तपस्वी जी गुस्से में बोले, "तुम तो बड़े बेशर्म आदमी हो! इतनी बेइज़्ज़ती और जलील करके तुम्हें यहाँ से भेजा फिर भी तुम मुँह उठाकर आ गए!"
तपस्वी जी बोल ही रही थीं कि बाकी के लोगों ने भी बोलना चालू कर दिया और धीरे-धीरे आर्ग्यूमेंट बनने लगा, जो सब देखकर टाइगर को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
भला टाइगर क्यों शांति से पेश आएगा? वह भी वार्निंग देते हुए कहा, "यह दूसरी बार तुम लोगों को मैं बताने आ रहा हूँ, इसके बाद तुम लोगों को मौका नहीं दूँगा। बदले में तुम्हें जितनी भी रकम चाहिए, तुम लोग ले सकते हो... दस लाख?"
"तेरी तो..." तपस्वी बौखलाते हुए बोले।
वहीँ टाइगर आगे बोला, "पन्द्रह लाख... बीस लाख!"
टाइगर का इस तरह से ज़मीन नीलामी करना किसी को भी अच्छा नहीं लगा। सबसे ज़्यादा तपस्वी जी का तो खून खौलने लगा। वह बढ़ते हुए टाइगर का कॉलर पकड़े।
तो वहीँ टाइगर मुस्कुराते हुए आगे कहा, "अगर इससे भी तुम लोगों का पेट नहीं भरने वाला तो अपना मुँह खोल सकते हो, तुम्हें कितना चाहिए इस ज़मीन के बदले? मुँह माँगी रकम तुम लोगों को दी जाएगी।"
टाइगर इतना बोलकर सभी के तरफ़ देखने लगा और वह जानता था कि लोग कितने लालची होते हैं, और यह बात सच निकली क्योंकि कुछ लोगों का नियत खराब होने लगा था और यह बात टाइगर अच्छे से समझ चुका था। कुछ लोग तो थे जो बिल्कुल भी अपना ईमान नहीं देख सकते थे। सब अच्छे लोग, स्वाभिमान वाले हों, यह ज़रूरी तो नहीं!
तपस्वी जी के साथ-साथ बहुत लोगों ने टाइगर के ऊपर अपना भड़ास निकाला, तो कुछ लोग शांति से अपना दिमाग लगाने लगे।
तपस्वी जी पीछे नहीं हट रहे थे, तो वहीँ टाइगर भी पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था और देखते ही देखते हाथापाई हो गई। अब यह सिलसिला और भी बढ़ने लगा।
टाइगर तो था ही पहलवान, पर वह बूढ़े लोगों के ऊपर हाथ नहीं उठाना चाहता था, इसलिए वह खुद को बहुत कंट्रोल कर रखा था। तो वहीँ कुछ लोगों को बर्दाश्त नहीं हुआ और वह मारपीट पर उतारू हो गए, तो टाइगर के बॉडीगार्ड्स भी उसी में शामिल हो गए।
शाम वक़्त, EIM विला
बात इतनी बढ़ गई थी कि मारपीट तक आ गई और वेद को ना पता चले, ऐसा हो ही नहीं सकता था। वेद को लगा था टाइगर इन सब से निपट लेगा, पर ऐसा नहीं हुआ।
भावेश ने जब पहली बार वेद को यह प्रॉब्लम बताया था, तब वेद ने बहुत हल्के में लिया था। पर अब वेद को ऐसा लग रहा था कि अब उसे खुद इस प्रॉब्लम को सॉल्व करना चाहिए।
क्योंकि उसके आदमियों पर मामूली से लोगों ने हाथ उठाया था, वह अंदर ही अंदर बौखला गया था क्योंकि उसके गार्ड को इधर-उधर चोट लगी हुई थी।
पर वेद को ऐसे लोगों से भिड़ने में मज़ा भी आता था। वह चाहता था कि उसके टक्कर देने वाला कोई हो।
वह अब अजीब तरह से मुस्कुराने लगा और अपने दूसरे गार्ड से कहा, "बनारस जाने के लिए चॉपर रेडी करो।"
To be continue...
(कैसा रहेगा...? वेद का बनारस का सफ़र)
अगली सुबह वेद लगभग 4:00 बजे होटल पहुँचा। उसके बाद वह तैयार होकर बनारस के बालमपुर गाँव पहुँचा।
वेद बहुत जल्दी पहुँच गया था। अभी तक कोई भी दुकान खुली नहीं थी, पर उसे इतना पता था कि इन लोगों में से कुछ नेता हैं, जिनमें से एक का नाम…
टाइगर के मुँह से वेद ने बार-बार तपस्वी जी का नाम सुना था, जिसके कारण उसने टाइगर से कहा, "उस बूढ़े का नाम क्या है..? उसका जल्दी से पता लगाओ, अब उसी से बात करूँगी, फुली एंड फाइनली।"
"तपस्वी जी, मोहन जी, आनंद जी... ऐसे जाने कितने लोग... ये सभी लोग बगावत कर रहे थे।"
इस वक्त वेद के साथ दो बॉडीगार्ड भी थे और टाइगर ने आस-पास के लोगों से पूछा, "तपस्वी जी का घर कहाँ है..?"
लोगों ने बताया, उनका घर ज़्यादा दूर नहीं था।
दुकान से बस 15-20 मिनट का रास्ता था। वेद सीधे तपस्वी जी के घर पहुँचा।
तपस्वी जी के घर के सामने ड्राइवर ने कार रोकी। वेद कार की पैसेंजर सीट पर बैठा था। उसने कार की खिड़की नीचे की और घर की तरफ देखा।
तपस्वी जी का घर न बड़ा, न छोटा, मीडियम साइज़ का था, जो काफी अच्छा दिखाई दे रहा था। बाहर लकड़ी का बना हुआ नेम प्लेट लगा था, जिस पर लिखा हुआ था 'तपस्वी मिश्रा'।
वेद ने कार का दरवाज़ा खोला और अपने आँखों पर ब्लैक शेड्स लगाते हुए बाहर निकला। कदम बढ़ाते हुए वह घर के दरवाज़े पर पहुँचा।
दरवाज़ा अंदर से बंद था। उसे देखकर उसने घंटी बजाना शुरू कर दिया। वेद लगातार घंटी बजाता रहा। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी का बिल्कुल भी इंतज़ार नहीं कर सकता, बल्कि उसे इंतज़ार करना पसंद ही नहीं था।
और जैसे ही दरवाज़ा खुला, अंदर से एक प्यारी सी आवाज़ आई, "अरे बाबा, खोल रही हूँ... ज़रा सब्र नहीं है..!"
वेद अपने दोनों हाथ जेब में डाले खड़ा था। आवाज़ सुनकर वह एकदम से दरवाज़े की ओर देखा। सामने कोई और नहीं, बल्कि तपस्वी जी की बेटी पलक मिश्रा खड़ी थी।
वह डार्क ग्रे कलर का ड्रेस पहनी हुई थी। उसे देखकर वेद ने अपने आँखों से चश्मा उतारते हुए उसे देखने लगा। तब तक पलक ने सवाल करते हुए कहा, "जी कहिए...? आप कौन..?"
"तपस्वी कहाँ है..?"
"जी... वो मेरे पापा हैं..!"
"हाँ तो..? कहाँ है तेरा बाप..?"
वेद बहुत ही सख्त आवाज़ में बोला। यह सुनकर पलक एक सेकंड के लिए घबरा गई और वह लड़खड़ाती हुई बोली, "अ... आप ये किस तरह से बात कर रहे हैं..?"
"मुझे तुझसे बात नहीं करना, तेरे बाप से करना है..!"
वेद के बात करने का लहजा पलक को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। पलक क्या, उसकी जगह कोई भी बेटी अपने लिए यह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।
तब तक अंदर से आवाज़ आई, "पलक, कौन है..?"
अपनी दादी की आवाज़ सुनकर पलक पीछे मुड़कर देखी और तुरंत आगे देखते हुए तेज आवाज़ में बोली, "पापा इस वक्त घर में नहीं हैं। आपको जो भी कहना है, मुझसे कह दीजिए। जब वो आयेंगे तो मैं बता दूँगी..!"
वेद तो वेद था, वह कैसे किसी का इंतज़ार कर सकता था? वह बिना कुछ बोले पलक के बगल से होते हुए घर के अंदर चला गया। उसकी इस बदतमीज़ी देखकर पलक को बहुत गुस्सा आया और वह भी उसके पीछे चलती हुई अंदर आई।
पलक उसके पीछे अंदर आते हुए तेज आवाज़ में बोली, "यह क्या बदतमीज़ी है..? आप ऐसे अंदर कैसे आ सकते हैं..? क्या आपको इतना भी मैनर्स नहीं है? यह शरीफों का घर है... आप यहाँ गुंडागर्दी नहीं कर सकते, समझे..!"
पलक एक ही साँस में लगातार बोलती जा रही थी। वहीं वेद तो एकदम अंदर आ गया था।
घर के अंदर कुर्सी पर बैठी दादी ने, अपना चश्मा आँखों पर चढ़ाते हुए कहा, "कौन हो भाई तुम..? और ऐसे-कैसे घर में आ गए..?"
इतना बोलकर दादी पलक की तरफ भी देखी, जो गुस्से में वेद के सामने आकर उंगली पॉइंट करते हुए बोली, "घर से बाहर निकलो... निकलो जल्दी...वरना..!"
"वरना क्या..?" वेद इतना बोलकर अपनी गर्दन कड़कड़ करके घुमाने लगा।
पलक का इस तरह पराए मर्दों से बात करना, दादी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। वह भी सोच रही थी कि इस लड़के की नियत कैसी है...? जिससे दादी बीच में बोली, "पलकिया, तू अंदर जा..!"
अगर घर में कोई बाहरी बिना परमिशन के घुस जाए तो पलक चुप कैसे रह सकती थी? पलक बिना डरे ही सामने जाकर डट के खड़ी हो गई।
वेद ने पलक को इग्नोर किया और आस-पास नज़र घुमाकर देखने लगा। उसे इतना तो समझ आ गया कि इस घर में फिलहाल दो लोग दिखाई दे रहे हैं, एक जो सामने खड़ी है और एक बुढ़िया।
और यह घर इतना बड़ा भी नहीं था कि आवाज़ बाकी लोगों तक न जाए। घर में और दो-तीन कमरे थे। वेद ने अपनी उंगली बजाते हुए गार्ड को इन्फॉर्म किया। जिसका इशारा पाते ही सब कमरों में जाकर चेक किया, तो कोई भी नहीं था।
उनका इस तरह से घर में घुसना और घर की तलाशी लेना पलक को बिल्कुल भी नहीं भाया और वह गार्ड के बीच में आकर उन्हें रोक रही थी। पर बेचारी कितनी नाज़ुक लड़की थी और दादी तो जहाँ खड़ी थी, वहीं खड़ी थी।
वेद को ऐसी कमज़ोर और बेबस लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं थे और सबसे बड़ी बात, वह औरतों से बिल्कुल भी बात करना पसंद नहीं करता था।
वह तुरंत वार्निंग देते हुए बोला, "अगर मेरे आदमी लोग काम कर रहे हैं और तुम उनके बीच में आओगी तो उसका अंजाम तुम्हें खुद भुगतना पड़ेगा।"
वेद की दादागिरी पलक या दादी दोनों को भी बर्दाश्त नहीं हुई। दादी चलते हुए वेद के पास आ ही रही थी, तो वहीं वेद जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया और अपना मोबाइल निकालकर बिजी हो गया। वह किसी से भी बात करना नहीं चाहता था और न ही बहस करना चाहता था।
अब दादी को भी बर्दाश्त नहीं हुआ और वह जोर से चिल्लाते हुए वेद से बोली, "तुम सब के सब मेरे घर से बाहर निकलो, जान पहचान के बिना घर आए मेहमान..?"
दादी के इतना चिल्लाने के बावजूद भी वेद को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। वह जिस पोजीशन में बैठा था, उसी पोजीशन में बैठा रहा। तो वहीं दादी आगे बोली, "मुझे लगता है तुम लोग चोरी करने की फिरात से हमारे घर में घुसे हो, तुम ऐसे नहीं जाओगे..!"
दादी बोल ही रही थी, तब तक वेद बोला, "बुढ़ी, समझ के ना, मैं कुछ नहीं बोल रहा हूँ और इस घर में तुम दोनों हो, वरना यहीं ठोक दूँगा..!"
वेद का यह आखिरी शब्द सुनकर दादी और पलक दोनों डर के मारे उसे देखने लगीं। दोनों के मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। दोनों अंदर से घबरा गई थीं।
फिर भी पलक ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, "गुंडे कहीं के... हमारे घर में आकर गुंडागर्दी करोगे, रुको, तुम्हें तो मैं, अभी सबको यहाँ पर इकट्ठा करती हूँ..!"
इतना बोलकर पलक घर से बाहर निकलने की कोशिश की। उतने में वेद उठा और उसका हाथ पकड़कर मरोड़ते हुए कहा, "क्या कहा तूने..? फिर से कह तो..?"
अब तो पलक की बोलती बंद हो गई क्योंकि वेद ने उसका हाथ उल्टा मोड़ दिया था और उसे दर्द होने लगा।
यह सब देख दादी धीरे-धीरे चलते हुए वेद के पास आकर बोली, "तुम मेरी बच्ची को छोड़ो। तुम्हें मेरे बेटे से बात करना है ना? अभी वह घर पर नहीं है। जब वह आएगा तब आकर बात करना, अभी निकलो मेरे घर से..!"
पलक को बर्दाश्त नहीं हुआ। उसकी आँखों में आँसू आने लगे क्योंकि वेद ने उसका हाथ बहुत कस के मरोड़ा था, जिससे उसे बहुत तकलीफ होने लगी, बल्कि दर्द भी बढ़ गया।
उसको इस तरह रोता देख वेद दाँत पीसते हुए बोला, "बहुत शौक है तुझे गुंडा बोलने का..?"
पलक तुरंत अपना सिर ना में हिलाने लगी और दर्द से कराहते हुए बोली, "प्लीज मेरा हाथ छोड़ो, यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो..!"
पलक का इतना कहना था कि वेद और भी उसके हाथों पर दबाव देने लगा, जिससे अब वह रो पड़ी। दादी को बिल्कुल भी देखा नहीं गया और वह जाकर पलक का हाथ पकड़ छुड़ाने लगी। उनके ऐसा करने से वेद ने पलक का हाथ छोड़ दिया।
और बिना वक्त गँवाए घर से बाहर निकल गया। उसके पीछे उसके गार्ड भी चले गए और आते ही कार में बैठ गया। ड्राइवर ने कार चलना शुरू कर दिया।
वेद कार में बैठे अपने हाथों को देख रहा था, जिस हाथ से उसने पलक का हाथ पकड़ा था। इधर पलक अपने हाथों को देख रही थी क्योंकि उसकी उंगलियों पर उसके निशान पड़ गए थे। उस जगह पर उसे बहुत दर्द हो रहा था। पलक दादी के गले लिपटकर जोर-जोर से रोने लगी।
क्रमशः
करीब २ घंटे बाद तपस्वी जी, गरिमा जी और नंदिनी तीनों साथ में घर के अंदर आए। पर जैसे ही घर के अंदर आए, घर का वातावरण बहुत ही निगेटिविटी से भरा हुआ दिख रहा था। यह देखकर नंदिनी ने अपनी चारों तरफ नज़रें घुमाना शुरू कर दिया।
गरिमा जी अपनी बेटी पलक और सास को देखकर उनके पास गईं। पलक बहुत रोई हुई थी और दादी का चेहरा भी उदास था।
यह देखकर वह परेशान होते हुए बोलीं, "माता जी, क्या हुआ? आप इतनी उदास क्यों दिखाई दे रही हैं?"
तब तक दरवाज़ा बंद करके तपस्वी जी भी अंदर आ गए और कुर्सी पर बैठते हुए बोले, "पलक, एक ग्लास पानी पीला दे बेटा!"
"पलक, तू रोई क्यों है बेटा? क्या हुआ है? माता जी, आप तो बताइए?"
गरिमा जी बोल ही रही थीं कि तपस्वी जी ने भी उन दोनों की तरफ़ देखा और ध्यान दिया। सचमुच पलक बहुत ज्यादा रोई हुई थी। वह तुरंत उठे और दोनों के पास जाकर पूछने लगे।
अपने बेटे को देखकर दादी भावुक हो गईं और लड़खड़ाती हुई जुबान से बोलने लगीं, "पता नहीं बेटा! कोई गुंडा-मवाली घर में घुस आया था। वह तुझे ही पूछ रहा था। अगर उस वक़्त तू होता तो न जाने कितना बवाल हो जाता। उसी ने पलक को भी डरा दिया।"
दादी ने यह सारी बातें बताईं तो तपस्वी जी चिंता से परेशान हो गए और वह वापस सवाल दोहराते हुए बोले, "माता जी, क्या आप बता सकती हैं वह कौन था?"
यह सुनकर दादी बोलीं, "अरे बेटा, इस बुढ़ापे में मेरी आँखें कमज़ोर हो गई हैं। आस-पास के लोग भी मुझे पहचान नहीं पा रहे हैं, और तुम कह रहे हो उसे पहचानने को! वह कोई शहरी दिख रहा था।"
तपस्वी जी ने अपनी माता जी को साइड किया और अपनी बेटी से पूछने लगे, "तुम बताओ पलक बेटा, कौन था वह? क्या तुम उसे पहचानती हो?"
अपने पापा की बातें सुनकर पलक ने अपना सिर ना में हिला दिया।
यह सब जानकर गरिमा जी रोने लगीं। वहीं, जो नंदिनी कमरे में गई थी, वह आकर बातें सुन रही थी। अब वह भी परेशान होकर खड़ी हो गई। आखिर उनके घर तक कौन आ सकता है?
दादी बड़बड़ाते हुए आगे बोलीं, "जहाँ तक मुझे पता है, हमारा तो कोई ऐसा दुश्मन नहीं है।"
तपस्वी जी तुरंत घर से बाहर निकले और आस-पास देखने लगे, पर उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। कुछ दूरी पर जाकर भी उन्होंने हर जगह देखा कि शायद वह आदमी कहीं रुका हो, पर सब जगह देखने के बाद भी उन्हें कोई नहीं मिला।
उसके बाद वह घर के अंदर आ गए और आते ही परेशान होते हुए अपनी बेटी से पूछा, "क्या उसने तुम्हें गलत नज़र से देखा? कुछ गलत कहा? तो मुझे बताओ।"
यह सब सुनकर पलक की आँखों में आँसू आ गए और वह बोली, "नहीं पापा, ऐसा उसने कुछ नहीं कहा। बस वह आपको ढूंढ रहा था। उसे आपसे काम था, वह आपसे मिलना चाहता था।"
अपनी बेटी की बातें सुनकर तपस्वी जी ने अपने दोनों हाथों को आपस में उलझा लिया और दिमाग लगाने लगे, "आखिर कौन हो सकता है? जो उनके घर तक आ गया।"
तब तक दादी बोलीं, "दुश्मन का तो ठीक है, पर मुझे तेरी बेटी की आदत अच्छी नहीं लगी। बीच में आकर बोलने की क्या ज़रूरत थी? मैं इसे मना कर रही थी कि मत बीच में बोल, पर नहीं, इसे तो जवाब देना ही था।"
दादी की बातें सुनकर तपस्वी जी गुस्से में अपनी माँ को बोले, "माताजी, आपसे कितने बार कह चुका हूँ, मेरी बेटियाँ कोई कमज़ोर नहीं हैं। और अच्छा किया उसने जो जवाब दिया।"
यह सुन दादी बोलीं, "हाँ, सही कह रहा है। तू चढ़ा के रखा है सिर पर। तेरे चढ़ाने के वजह से तो यह सब कुछ हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह लड़का कहीं इसके पीछे आया हो?"
दादी का इतना कहना कि गरिमा जी की आँखों में आँसू आ गए और वह बोलीं, "माताजी, आप क्या कह रही हैं? मेरी बेटियाँ ऐसी नहीं हैं।"
दादी की बातें सुनकर पलक रोने लगी, तो नंदिनी उसे जाकर संभालने लगी। वह जानती थी कि वह लड़का किस किस्म का था और दादी ने अपनी आँखों से देखा फिर भी उल्टा उसे पर इल्ज़ाम लगा रही है।
मिश्रा परिवार में काफी देर इन्हीं बातों की चर्चा चलती रही। उसके बाद तपस्वी जी घर से बाहर निकले और दुकान पर आकर अपने करीबी लोगों को बताने लगे कि आज उनके घर में क्या हुआ।
दादी ने मना किया था कि पड़ोसियों को कुछ ना बताया जाए, वरना उनकी इज़्ज़त पर प्रभाव पड़ेगा। इन्हीं सबके चलते किसी ने कुछ नहीं कहा।
दूसरी तरफ, कॉन्टिनेंटल होटल में...
वेद, मिश्रा जी के घर से सीधे होटल आ गया था। आने के बाद वह वॉशरूम में जाकर हैंड वॉश लेकर अपने हाथों को रगड़-रगड़ कर साफ़ करने लगा, जैसे कि उसके हाथों में गंदगी लग गई हो।
काफी देर तक वह अपने हाथों को साफ़ करता रहा और उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ गुस्सा दिखाई दे रहा था। उसका बॉडीगार्ड, टाइगर, बाहर खड़ा था। वह समझ सकता था कि उसके बॉस के दिमाग में क्या चल रहा है, पर उसकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कुछ कहे।
वेद काफी देर हाथ साफ़ करने के बाद नल बंद किया और नज़र उठाकर आईने में खुद को देखने लगा। वह साँप की तरह अपनी नाक फन-फन किये जा रहा था।
काफी देर आईने में खुद को घूरते रहा, उसके बाद दांत पीसते हुए कहा, "कुछ लोगों को बहुत ज़्यादा शौक होता है, दूसरों के काम में टांग अड़ाने का। पर इन्हें पता नहीं वेद लोहिया क्या चीज है। अगर कोई मेरे रास्ते में आया तो मसल के रख दूँगा... एक-एक को!"
इतना बोलकर वेद ने अपना हाथ टिशू पेपर से साफ़ किया और वॉशरूम से बाहर निकलकर रूम में आया। सबसे पहले उसने टाइगर को अंदर बुलाया।
टाइगर अंदर आते ही अपनी नज़रें नीचे झुकाए वेद के सामने खड़ा रहा। वेद उसे आर्डर देते हुए बोला, "टाइगर, इस तपस्वी के पूरे डिटेल्स निकालो और यह भी पता लगाओ कि इस वक़्त वह कहाँ है? और यह काम आधे घंटे में होना चाहिए। कितना? आधे घंटे में!"
शाम ५:०० बजे...
आखिरकार टाइगर सारा डिटेल्स लेकर होटल कॉन्टिनेंटल में आया। तपस्वी जी के घर में कितने मेंबर हैं, और इस वक़्त कौन कहाँ पर है, वह सब कुछ टाइगर वेद को बताने लगा। यह भी बताया कि तपस्वी जी घर आ गए हैं।
यह सुनकर वेद तिरछा मुस्कुराने लगा। उसका समझ पाना सबकी बस की बात नहीं थी।
सारी बातें सुनने के बाद वेद बोला, "टाइगर, गाड़ी निकालो। चलकर मिलते हैं तपस्वी मिश्रा से।"
To be continued...
वेद और टाइगर कार में बैठकर बालमपुर जाने के लिए निकले। थोड़ी ही देर में वे दोनों बाजार में पहुँचे। बाजार में पहुँचते ही कई लोगों की दुकानें चालू हो गई थीं, परन्तु तपस्वी जी की दुकान अभी तक चालू नहीं हुई थी।
बल्कि आज तपस्वी जी ने दुकान चालू ही नहीं की थी। यह देखकर कार में बैठे वेद ने टाइगर से कहा, "मिश्रा के घर चलो!"
वेद का आदेश पाते ही टाइगर ने ड्राइवर को सीधे तपस्वी जी के घर चलने को कहा। २० मिनट में उनकी कार मिश्रा जी के घर के सामने रुक गई।
शाम हो चुकी थी, धीरे-धीरे अंधेरा छा रहा था और इस वक्त घर में सभी लोग मौजूद थे, परन्तु दरवाज़ा अभी भी अंदर से बंद था।
वेद इस बार कार से बाहर नहीं निकला, बल्कि उसने टाइगर को आदेश दिया कि जाकर दरवाज़ा खुलवाए। टाइगर दरवाज़े पर जाकर घंटी बजाना शुरू कर दिया।
इस बार कोई और नहीं, बल्कि तपस्वी जी ने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर जैसे ही वेद ने तपस्वी जी को देखा, वह तुरंत कार से निकला और आगे बढ़ गया।
वहीं, तपस्वी जी ने टाइगर को देखकर सवाल किया, "कौन हो तुम?"
उनका इतना कहना था कि घर में मौजूद सभी लोग दरवाज़े की ओर देखने लगे और दो लोग तो पहचान भी गए कि यह कौन है, क्योंकि इसके पहले दोपहर में टाइगर से उनकी मुलाक़ात हो चुकी थी।
टाइगर कुछ कह पाता, इससे पहले ही उसके पीछे से आवाज़ आई, "वेद लोहिया... नाम तो सुना ही होगा? और अगर नहीं सुना है, तो सुन लो, वेद लोहिया कभी किसी का इंतज़ार नहीं करता, पर आज तेरा इंतज़ार कर रहा था, तपस्वी मिश्रा!"
वेद की आवाज़ इतनी दमदार थी कि अंदर सभी लोगों ने सुन लिया। वहीं पलक और दादी दोनों फिर से डर के मारे एक-दूसरे को देखने लगीं।
वेद का दादागिरी देखकर तपस्वी जी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और वे तेज तर्रार आवाज़ में बोले, "अच्छा, तो तुम ही हो जो मेरे गैर-हाज़िर होने पर मेरे घर आकर मेरे परिवार वालों को धमकियाँ दे रहे थे। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बच्ची को डराने की? अगर मैं घर में नहीं था, तो तुम हमारे घर में कैसे घुस गए? अगर इतने ही ताकतवर हो, तो मर्दों से निपटो, औरतों से नहीं!"
तपस्वी जी की बातें सीधे वेद के दिल पर लग गईं, जैसे कि वह मर्दों से नहीं लड़ सकता। पर वह अजीब तरह से मुस्कुराया और बोला, "अरे तपस्वी, तूने तो साबित कर दिया कि तेरी जान तेरी बेटी में बसती है। कोई बात नहीं, चलो, मिलकर बात करते हैं!"
वेद के मुँह से अपनी बेटी का नाम सुनकर तपस्वी जी के अंदर आग लग गई और वे वेद का कॉलर पकड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया।
पर वेद बड़ी चालाकी से एक कदम पीछे हट गया और बोला, "नहीं... नहीं... नहीं तपस्वी, ऐसा बिल्कुल नहीं करना... वे मेरे गार्ड थे, जिन्होंने कुछ नहीं किया। वेद लोहिया को हल्के में मत लेना... इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। तेरी एक गलती की वजह से तू अपना सब कुछ बर्बाद कर देगा!"
वेद के बात करने का लहजा तपस्वी जी और उनके परिवार वालों में से किसी को भी पसंद नहीं आया। भला आएगा भी क्यों? क्योंकि उसका बोलने का तरीका एकदम गुंडों वाला था, वह सिर्फ़ दादागिरी कर रहा था।
तपस्वी जी पीछे मुड़कर अपने परिवार वालों को देखा और बोले, "तुम सब अंदर रहो, और हाँ, दरवाज़ा बंद कर लेना, मैं देखता हूँ!"
इतना बोलकर वे जाने ही वाले थे कि गरिमा जी और उनकी दोनों बेटियाँ आगे आईं। सबसे आगे पलक आई और रोते हुए अपने पापा का हाथ पकड़कर बोली, "नहीं पापा, आप कहीं नहीं जाओगे, यह गुंडा है!"
पलक भूल गई थी कि दोपहर में 'गुंडा' बोलने की वजह से वेद ने उसकी कलाई मरोड़ दी थी और वही गलती उसने दोबारा दोहरा दी।
अब तो वेद की आँखों में खून उतर आया और वह झटके से अपनी कदम आगे बढ़ाते हुए इस बार उसने पलक के बालों को पकड़ लिया और अपनी पूरी ताकत लगाते हुए, दाँत पीसते हुए कहा, "वापस तूने वही शब्द use किया, जिससे मुझे सख़्त नफ़रत है। आज तेरा तेरे घरवालों के सामने वह हश्र करूँगा, जो देखा तो दूर, कभी सुना भी नहीं होगा!"
इतना बोलकर वेद ने अपनी कमर से पिस्तौल निकाली और पलक के माथे पर पॉइंट करते हुए कहा, "बहुत शौक तुझे लोगों का कैरेक्टर बताने का?"
वेद बोल ही रहा था कि इतने में तपस्वी जी वेद का हाथ पकड़ते हुए बोले, "मेरी बच्ची को छोड़ दो, मेरी बच्ची को छोड़ दो... यह तुम क्या कर रहे हो? पागल हो गए हो क्या? वह तो बच्ची है, तुम तो समझदार हो। मेरी बच्ची को कुछ मत करना, तुम जो कहोगे मैं करूँगा!"
वही हाल गरिमा जी का भी था और नंदिनी तो दादी को पकड़कर रोने लगी। सब के सब घरवाले परेशान हो गए। कितना अच्छा सब कुछ चल रहा था, पर आज अचानक से पता नहीं कहाँ से तूफ़ान आ गया, हँसता-खेलता परिवार को तबाही मचा दिया।
तपस्वी जी ने वेद का हाथ पकड़ा तो वह उन्हें अपनी खूंखार आँखों से घूरने लगा, पर तपस्वी जी बिल्कुल भी नहीं डरे, क्योंकि उनकी बेटी उसके कब्ज़े में थी!
वहीं पलक अपने दोनों हाथों से वेद के हाथों को पकड़कर अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। उसकी आँखों से आँसू झर-झर करके बह रहे थे।
तपस्वी जी वेद का हाथ पकड़े ही हुए थे कि तब तक गरिमा जी तेज़ी से आगे बढ़कर वेद के पैर पकड़कर जोर-जोर से रोने लगीं। उन्होंने वेद का पैर कसके पकड़ा हुआ था और उनका इस तरह से पैर पकड़ना वेद को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
गरिमा जी रोते हुए बोलीं, "मेरी बच्ची को छोड़ दीजिए, आप जो कहेंगे हम लोग करेंगे, कृपया करके आप हमारी बच्ची को छोड़ दीजिए!"
गरिमा जी का इतना कहना था कि वेद ने जो पलक के बालों को पकड़ा हुआ था, धीरे-धीरे वह छोड़ने लगा और उसने जोर से उसके बालों को छोड़ा तो पलक धड़ाम से नीचे गिर गई और वेद अपना पैर छुड़ाने लगा, जो गरिमा जी की पकड़ में था। वह जोर से झटका जिससे गरिमा जी थोड़ी दूर हो गईं और वह पीछे हट गया।
गरिमा जी तुरंत अपनी बेटी पलक को उठाकर उसकी पीठ सहलाने लगीं। वहीं तपस्वी जी हाथ जोड़कर वेद से पूछने लगे, "आखिर तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? हम तो तुम्हें जानते भी नहीं हैं, फिर तुम क्यों आकर हमें तकलीफ़ दे रहे हो?"
गरिमा जी पलक को उठाकर अंदर ले जाने लगीं, तो वहीं वेद की नज़र अभी भी पलक पर ही थी। जो अंदर जाते हुए वेद को ही देख रही थी। उसकी आँखें रोने की वजह से लाल-लाल हो चुकी थीं और उसकी आँखों में नफ़रत साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।
गरिमा जी जैसे ही पलक को अंदर ले गईं, तपस्वी जी ने दो कदम आगे बढ़कर दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद होते ही गरिमा जी और बाकी घरवाले परेशान होने लगे क्योंकि उन्हें फ़िक्र था कि कहीं तपस्वी जी को कुछ हो ना जाए!
अंदर मौजूद दादी अपने बेटे के लिए रोने लगीं, वैसे उन्हें भी सबका फ़िक्र था। पर उन्होंने जो अपनी आँखों से देखा था, उससे उनके अंदर डर बस गया था, कहीं वह आदमी उनके बेटे को जान से ना मार दे!
तपस्वी जी ने दरवाज़ा इसलिए बंद किया था, कहीं यह लड़का वापस उनके परिवार वालों को अपने कब्ज़े में ना ले ले और उनके परिवार वालों की वजह से वे कमज़ोर ना पड़ जाएँ।
अब उन्होंने वेद से सवाल करते हुए पूछा, "जहाँ तक मुझे पता है कि मैं तुम्हें नहीं जानता और हमारी कोई दुश्मनी भी नहीं है, फिर तुम क्यों आकर हमें और हमारे परिवार को तकलीफ़ दे रहे हो?"
तपस्वी जी वेद को थोड़ा साइड में ले जाकर बातें करने लगे। वहीं अंदर से गरिमा जी और उनकी बेटियाँ खिड़की खोलकर अंदर से देखने लगीं, क्योंकि वे डर तो रही थीं कि कहीं उनके पापा को कुछ कर ना दे। अंदर से सब लोग चिल्लाने लगे।
सोसाइटी बहुत बड़ी थी, आस-पास की दुकानों के लोग आते-जाते रहे, जिन्हें बिल्कुल भी भनक नहीं लगी कि यहाँ पर क्या हो रहा है!
तपस्वी जी वेद से बात कर ही रहे थे कि अंदर खिड़की से आवाज़ आई, "पापा, इससे डरना नहीं, अगर मेरे पापा को कुछ हुआ ना... फिर मैं तुम्हें छोड़ूँगी नहीं!"
पलक का इतना कहना था कि वेद तुरंत खिड़की की तरफ़ देखने लगा और तपस्वी जी को धमकी देते हुए कहा, "तपस्वी, तेरी बेटी बहुत बोलती है, इसको संभाल के रखो, वरना!"😡
तपस्वी जी तुरंत हाथ जोड़ते हुए बोले, "वह नादान है, उसने कभी ऐसा माहौल नहीं देखा है, जिसकी वजह से वह डर गई है। अगर तुम्हें मुझसे बात ही करनी थी, तो मेरा इंतज़ार कर लेते। इस तरह मेरे परिवार वालों को तकलीफ़ देकर तुम्हें क्या मिलेगा?"
वेद बोला, "सुन तपस्वी, ना मैं तुझे जानता हूँ और ना ही तू। एक महीने का तुझे टाइम दे रहा हूँ, अपना दुकान कहीं और डाल ले, यह जगह खाली चाहिए... समझा या नहीं, जल्दी बता मुझे!"
ज़मीन का नाम सुनते ही अब जाकर तपस्वी जी को पूरा मंज़र समझ में आया और इतनी देर से वे जो भीख माँग रहे थे, उनके चेहरे का रंग ही बदल गया और वे सोच में पड़ गए, क्योंकि इतने सालों से कोई न कोई आकर उन्हें धमकियाँ देता था, पर वेद जैसा आदमी आज तक नहीं आया था।
तपस्वी जी को इतना सोचता हुआ देख वेद बोला, "अब क्या हुआ? समझ में आ रहा है कि नहीं?"
तपस्वी जी उदास मन से बोले, "देखो, इस ज़मीन के सिवाय हमारे पास कुछ भी नहीं है। मैं ही नहीं, बल्कि जिन-जिन लोगों की यहाँ दुकानें हैं, वे सब बेघर हो जाएँगे। तुम एक बार उस भावेश को बता दो ना कि वह हमसे जगह ना ले। जगह देने के बाद हमारे पास कुछ भी नहीं रह जाएगा, हम सड़क पर आ जाएँगे!"
ऐसे रोने और गिड़गिड़ाने वाले तपस्वी जी को वेद को बिल्कुल भी पसंद नहीं था और वह चेतावनी देते हुए कहा, "सिर्फ़ एक महीना। एक महीने के बाद मैं ख़ुद आऊँगा, और हाँ, एक बार सुबह मैं सभी को बता दूँगा, क्योंकि बाद में तुम सब यह मत कहना कि बताया नहीं था!"
इतना बोलकर वेद, तपस्वी जी की बातें सुने बिना ही कार की तरफ़ बढ़ गया। वहीं तपस्वी जी उसके पीछे-पीछे आने लगे, पर वेद कार का दरवाज़ा खोलकर बैठ गया और आगे वाली सीट पर टाइगर और ड्राइवर बैठकर कार तेज रफ़्तार में वहाँ से चली गई!
वहीं तपस्वी जी ज़मीन पर बैठकर रोने लगे, तो वहीं अंदर से खिड़की में से उनका परिवार देखकर रो रहा था। इधर कार में बैठते ही वेद अपना हाथ अपने माथे पर रगड़ने लगा, कि तभी उसकी उंगलियों में पलक के दो बाल फँसे थे, क्योंकि उसने उसके बालों को बहुत मज़बूती से पकड़ा था जिसकी वजह से उसके कई बाल टूट गए थे।
उसके बाल अपने हाथ में देख वेद अपने हाथ को झटकने लगा, जैसे कि उसके हाथों में कुछ गंदगी लग गई हो और ड्राइवर को आदेश देते हुए कहा, "कार जल्दी होटल ले चलो!" कुछ देर में वे होटल पहुँच गए और जब वे अपने रूम में आए, तो वे सीधे वॉशरूम में गए और अपने कपड़े उतारकर नीचे फ़्लोर पर फेंकने लगे और शॉवर के नीचे खड़े हो गए। वह अभी भी अपने हाथों को रगड़-रगड़कर साफ़ कर रहे थे।
क्रमशः...
अगली सुबह मिश्रा जी के घर सभी घरवाले बहुत देर से सोकर उठे। तपस्वी जी और गरिमा जी बहुत पहले उठ गए थे, वहीं उनकी दोनों बेटियाँ अभी तक सो रही थीं क्योंकि रात में सभी लोग बहुत देर तक जागे थे।
रात भर घरवाले सोए नहीं थे। पलक रात में कई बार नींद में चिल्लाई जा रही थी, "छोड़ो मेरा हाथ... छोड़ो मेरा बाल... प्लीज छोड़ दो!"
उसकी हालत घरवालों को देखी नहीं जा रही थी क्योंकि वेद ने उसके सिर के बाल बहुत कस के पकड़े थे जिससे उसके सिर में बहुत दर्द हो रहा था।
रात में गरिमा जी ने उसके सिर में ठंडा तेल भी लगाया था ताकि उसे ज़्यादा दर्द न हो। काफी देर रात जागने के बाद पलक सुबह में जाकर सोई थी, इसलिए वह सुबह उठ नहीं रही थी। तपस्वी और गरिमा जी ने उसे सोने दिया क्योंकि बेटी रात भर रोती-दर्द से तड़पती रही थी।
मिश्रा जी के घर में जो रोज़ रौनक रहता था, आज एकदम उदासी छाया हुआ था। वहीँ दादी जो सुबह चार-पाँच बजे उठ जाती थीं, आज उन्हें भी उठने में देरी हुई। कल जो कुछ हुआ था वह सब उनके दिमाग में घूम रहा था।
गरिमा जी ने सभी के लिए नाश्ता बनाया। तपस्वी जी ने बेमन से थोड़ा सा खाया और दुकान जाने के लिए निकल पड़े।
गरिमा जी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "आज आपको दुकान नहीं खोलना चाहिए, पता है ना घर में आज...?"
तपस्वी जी बोले, "नहीं गरिमा... दुकान जाना बहुत ज़रूरी है। नहीं तो बड़ा तूफान आने वाला है जिसका अंदाज़ा किसी को नहीं। दुकान जाकर ही सब कुछ निपटाना पड़ेगा... नहीं तो वह आदमी कुछ भी कर सकता है...?"
इतना बोलकर तपस्वी जी घर से बाहर निकले और दुकान के लिए चल पड़े। गरिमा जी तुरंत अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया। उन्हें घबराहट बहुत हो रही थी।
बालमपुर गाँव, मेन बाज़ार
करीब 10:00 बजे वेद अपने बॉडीगार्ड के साथ बाज़ार में आकर रुका। जैसे ही उसकी महंगी कार बाज़ार में रुकी, सभी दुकान वाले चौकन्ना होकर देख रहे थे, मानो इतने VIP लोग तो कभी यहाँ आए ही नहीं।
गाँव में इस समय तक सभी लोग दुकान चालू कर देते थे और सभी की दुकान चालू भी हो गई थी। तपस्वी जी ने भी अपनी दुकान खोल दी थी।
गाड़ियों की आवाज़ जैसे ही उनके कान में गई, तपस्वी जी की धड़कन धड़कने लगी, क्योंकि यही गाड़ी रात को उनके घर आई थी। वह कैसे भूल सकते थे!
कार रुकते ही सबसे पहले ड्राइवर और टाइगर बाहर निकले। उसके बाद टाइगर कार के पीछे का दरवाज़ा खोला और उसमें से वेद बाहर निकला।
उसने आँखों पर ब्लैक कलर के गॉगल्स लगाए हुए थे। वह कमाल का हैंडसम दिख रहा था। उसकी पर्सनालिटी देख कोई नहीं कह सकता था कि वह यहाँ का है।
वेद ने टाइगर को अपनी उंगली से इशारा किया। उसका इशारा पाते ही टाइगर चलते हुए आगे गया और तेज आवाज़ में सभी दुकान वालों को बाहर आने के लिए कहा।
जिनका दुकान आगे था वे सब दुकान वाले बाहर आने लगे। बाकी सबको देखकर जो दूर-दूर तक थे, वे सभी इकट्ठा होने लगे।
सबके चेहरे पर खामोशी छाया हुआ था। सभी इकट्ठा हो गए। वेद अपने ही एटीट्यूड में खड़ा था।
अब इतने लोग थे तो ज़ाहिर सी बात है, आपस में बातें तो करेंगे ही। धीरे-धीरे कुछ लोग बातें करने लगे, "लगता है यही भावेश है... जो इतने सालों से अपने गुंडों को यह जगह खाली करवाने के लिए भेज रहा था और हमने उन्हें हमेशा सबक सिखाकर भेज दिया। इसलिए इस बार खुद चलकर यहाँ आया।"
जितने लोग, उतनी बातें। जब बहुत लोग इकट्ठा हो गए, तो वेद ने अपने आँखों से चश्मा उतारते हुए सभी की तरफ़ देखा और अपने दमदार आवाज़ में बोला, "मैं तुम लोगों को ना कोई धमकियाँ देने आया हूँ और ना ही समझाने आया हूँ। तुम सबको ऑर्डर देने आया हूँ। मैं एक महीने का टाइम दे रहा हूँ तुम लोगों को। उसके बाद वक़्त मांगने पर भी नहीं मिलेगा। इसलिए आपस में डिसीड कर लो इस जमीन का कितना तुम लोगों को लेना है। तुम्हारी औक़ात से भी ज़्यादा तुम लोगों को मिल जाएगा।"
वेद का इतना कहना था कि तपस्वी जी आगे आ गए। उनके साथ बहुत से लोग आगे-आगे आ गए। तपस्वी जी बोले, "हमें हमारी औक़ात पता है, तुम्हें या किसी और को बताने की ज़रूरत नहीं।"
तब तक दूसरा आदमी, मोहन, बोला, "अगर इतनी ही औक़ात की बात कर रहे हो, तो छोड़ दो ना तुम भी यह जमीन... क्यों तुम्हें जमीन के पीछे पड़े हो...? क्योंकि तुम्हें भी पता है कि इसका कीमत क्या है... ना हम तब जमीन छोड़ने के लिए तैयार हुए और ना ही आज होंगे। तुम्हें जो करना है कर लो।"
लोगों का आर्गुमेंट देखकर वेद को बर्दाश्त नहीं हुआ। फिर भी वह शांति से एक दफ़ा फिर बोला, "मुँह मांगे रकम तुम लोगों को दिया जाएगा। जिसे जितना चाहिए वह उतना बोलो और अपना पैसा ले लो। आखिरकार तुम लोगों को प्रॉब्लम क्या है? जमीन का जो आज का वैल्यू है उससे ज़्यादा तुम लोगों को दिया जा रहा है। गाड़ी, बंगला, दुकान सब कुछ ले सकते हो। अपने बच्चों के लिए भी तुम लोग कुछ ना कुछ कर सकते हो।"
वेद लगातार उन लोगों को लालच दे रहा था। कुछ लोग शांति से वेद की बातें सुन रहे थे। उन सब के मन में कहीं न कहीं लालच का बीज पनपने लगा था। पर कुछ लोग थे जो अभी भी लड़ रहे थे कि वे इस जमीन को खाली नहीं करेंगे।
बहुत लोग आपस में बातें कर रहे थे, तो बहुत लोग वेद के साथ आर्गुमेंट कर रहे थे। वेद ने अपना हाथ आगे करते हुए कहा, "एक बार फिर से कह रहा हूँ... 24 घंटे का टाइम देता हूँ। अगर तुम लोगों का इरादा चेंज हो गया तो, होटल कॉन्टिनेंटल में आकर मुझे इन्फॉर्म कर देना। जिसे जितने पैसे चाहिए सब मिल जाएगा। और रही दूसरी बात, अगर तुम लोगों को पैसे नहीं चाहिए तो एक महीने के बाद ना पैसा मिलेगा और ना ही जमीन। सोच लो तुम लोगों को क्या करना है। फिर रोड पर आओगे तो मुझे मत ब्लेम करना। यह लास्ट टाइम वार्निंग दे रहा हूँ।"
वेद की बातें आज सभी लोग बड़े गौर से सुन रहे थे, पर तपस्वी जी बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं हुए। वे बगावत करते हुए बोले, "तुम हम लोगों को लालच नहीं दे सकते, समझे... हमें पैसों से प्यार नहीं है, हमें हमारी जमीन से प्यार है, और हम उसमें ₹1 कमाएँ, ₹10 कमाएँ, हम उसमें खुश हैं... तुम्हें बताने की ज़रूरत नहीं है।"
तपस्वी जी बोल ही रहे थे कि वेद ने उनकी बातों को पूरी तरह इग्नोर किया और आँखों पर चश्मा लगाते हुए कहा, "अब मैं चलता हूँ... मुझे फ़ालतू बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं, 24 घंटे का समय है।"
इतना बोलकर वह कार में जाकर बैठ गया और एक नज़र बाहर की तरफ़ देखा। और देखते ही देखते उसकी कार वहाँ से तेज रफ़्तार में निकल गई।
वेद के जाने के बाद सभी लोग आपस में बहुत ज़्यादा बातें करने लगे।
लालच किस पर नहीं आता! वेद ने भोले-भाले लोगों को लालच दिया और कईयों को लालच आने लगा। जहाँ लालची लोग होते हैं, वहाँ ईमानदारों का टिकना बहुत मुश्किल होता है। तो अब गेम यहीं उल्टा हो गया।
वेद कुछ देर बाद कॉन्टिनेंटल होटल आ गया और आते ही सबसे पहले अपने कपड़े बदल लिए। वह हमेशा से अपने आप को बहुत ही क्लीन रखता था। उसे गंदगी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
वह सिगरेट निकालकर स्मोक करने लगा। तभी उसका मोबाइल रिंग हुआ और उसने स्क्रीन पर देखा तो यह कॉल किसी और का नहीं बल्कि उसके दोस्त डेनियल का था। और उससे वह फ़ोन पर बातें करने लगा। डेनियल उसे किसी काम की वजह से कैलिफ़ोर्निया बुला रहा था।
वेद ने साफ़-साफ़ कह दिया कि वह अभी नहीं आ सकता। उसे एक अर्जेंट काम निपटाना है और जैसे ही वह कंप्लीट हो गया तो वह तुरंत आ जाएगा।
यह सुनकर डेनियल ने हाँ भर दिया। वे दोनों इसी तरह काफ़ी देर तक अपने बिज़नेस या न्यू प्रोजेक्ट के लिए बातें करते रहे।
वेद डायमंड का लेनदेन करता था। इस बिज़नेस में वह बहुत ज़्यादा मास्टर हो गया था और उसका बिज़नेस इंडिया नहीं बल्कि देश-विदेश में डायमंड के नाम से भी उसे जाना जाता था। हर कंट्री में उसका नया-नया नाम था।
इधर मिश्रा हाउस
दोपहर होने को आ गया था, फिर भी पलक लेटी हुई थी। यह देख गरिमा जी कमरे में जाकर उसके बगल में बैठ प्यार से उसे उठाने लगीं। जैसे ही उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा, वह नींद में चिल्लाई, "आहहहह... मम्मी बहुत दर्द कर रहा है!"
पलक को दर्द में देखकर गरिमा जी की आँखें नम हो गईं। वहीं दूर खड़ी नंदिनी भी अपनी बहन के लिए परेशान होने लगी। गरिमा जी ने बड़े प्यार से पलक को उठाकर बिठाया।
गरिमा जी जितनी बार पलक के सिर को छू रही थीं, उतनी बार वह दर्द से तड़प रही थी। उसके बाद उन्होंने उसके बालों को हल्के हाथों से छूना चालू किया। उसके सिर के बाल बहुत ज़्यादा टूट गए थे।
गरिमा जी ने बड़े प्यार से अपनी बेटी के बालों को कंघी से धीरे-धीरे उसके सभी टूटे हुए बालों को निकाला। जब उन्होंने उसके सारे टूटे हुए बालों को इकट्ठा किया तो बहुत बाल उसके सिर से उखड़ गए थे और जहाँ से बाल उखाड़े थे, वहाँ पर उसे बहुत दर्द हो रहा था।
गरिमा जी ने वापस उसे ठंडा तेल लगाया। रोने की वजह से उसकी आँखें एकदम लाल-लाल सूज गई थीं।
गरिमा जी ने पलक को प्यार से समझाते हुए कहा, "देख बेटा, तुम्हारे पापा अभी आते ही होंगे। फिर मैं तुम्हें हॉस्पिटल लेकर चलूँगी।" इतना बोलकर उन्होंने अपने हाथों से उसे नाश्ता खिलाया।
उधर राजस्थान, जयपुर
भावेश को यह बात पता चल गई थी कि वेद मुंबई से बनारस आ गया है और काम पर भी लग गया है। उसे सारा खबर मिल रहा था। वह और उसका भाई बलराम दोनों बहुत खुश थे।
बलराम एक्साइटेड होते हुए अपने बड़े भाई भावेश से बोला, "भाई साहब, इस बंदे ने 24 घंटे का टाइम देकर बहुत अच्छा किया। जितना जल्दी काम होगा, उतना हमारा ही फायदा है।"
अपने छोटे भाई की बातें सुनकर भावेश शराब पीते हुए बोला, "बलराम, इसलिए तो मैंने यह काम उसे सौंपा है ताकि जल्द से जल्द यह सब कुछ निपट जाए।"
दोनों भाई जीत पाने से पहले ही खुशियाँ मनाने लगे क्योंकि कई सालों से उनका टारगेट था इस जमीन को हासिल करना, पर हर बार नाकामयाब हो जाते थे। पर इस बार उनकी उम्मीदें ज़्यादा थीं कि यह काम जल्द से जल्द हो जाएगा।
बालमपुर गाँव के सभी लोग आपस में काफ़ी देर से मीटिंग करने लगे। जो लड़के थे या बहुत ज़्यादा जवान थे, उनका दिमाग बहुत तेज़ी से काम करने लगा और वे आपस में यही चर्चा कर रहे थे कि अगर करोड़ों रुपए मिल रहे हैं तो हम क्यों नहीं यह जगह छोड़कर कहीं अच्छी जगह, सिटी में जाकर बस जाएँ।
हर कोई अपनी-अपनी नई-नई तरकीब लगाने लगा। कम से कम 18-20 दुकानें थीं, उसमें से 10-12 लोगों की तो नियत खराब ही हो गई और वे सब शाम तक तैयार भी हो गए कि क्यों ना हम यह जमीन बेचकर कहीं अच्छी जगह शिफ्ट हो जाएँ।
उनका मन बदलना देखकर तपस्वी जी, मोहन जी, यह सभी लोग चिल्लाने लगे कि कोई बाहरी आकर अगर तुम्हें पैसों का लालच दे तो तुम क्या अपना घर भी बेच दोगे!
उन दोनों के लाख समझाने के बाद भी किसी का मन नहीं माना। बल्कि वे लोग लालच में पड़ गए थे और यही कह रहे थे कि हम तो अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हैं और अपने बच्चों को अच्छा भविष्य बनाएँगे।
क्रमशः...
श्याम का वक्त था। बालमपुर गाँव में सभी दुकानदारों ने पूरा दिन इसी सोच में लगा दिया था। मामला धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था क्योंकि अब जमीन बेचने वालों की तादाद बहुत बढ़ गई थी। जो बचने के लिए तैयार हो गए थे, वे दूसरों को भी समझाने लगे कि वे ज़्यादा पैसों में जमीन बेचकर कहीं और जाकर बस जाएँ।
ऐसे करते-करते उन्होंने लगभग सभी को राजी कर लिया था। अब केवल 5 से 6 लोग ही बचे थे जो अभी भी अपनी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं थे।
इसमें दो गुट बन गए थे। गुट A अपनी जमीन बेचने को तैयार नहीं था। इसमें तपस्वी जी, मोहन जी और कुछ और लोग थे।
और गुट B अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हो गया था।
जब दोनों गुटों में बगावत होने लगी, तो गुट B ने फैसला किया कि वे खुद कॉन्टिनेंटल होटल जाकर अपनी जमीन बेचने की बात करेंगे। गुट A के लोग उन्हें समझाने लगे।
तपस्वी जी खुद को लाचार समझने लगे और हाथ जोड़कर बोले, "तुम सब ऐसा मत करो। अगर हमने एक बार जमीन बेच दी तो हमारे पास कुछ नहीं रहेगा। इस जमीन की कीमत बहुत ज़्यादा है। इसीलिए भावेश हमारे पीछे पड़ा है, वरना वह कब का पीछे हट जाता। पर उसे भी पता है कि इस जमीन की कीमत आगे चलकर उसके चंद पैसों से कहीं ज़्यादा होगी।"
तपस्वी जी चिल्लाते रहे, कहते रहे, पर उनकी बातों का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा था। सब मुकर गए थे, सब लालची हो गए थे क्योंकि उन्हें मुँह माँगी रकम मिलने वाली थी।
तपस्वी जी ने खुलेआम कहा, "जिन्हें अपनी जमीन बेचनी है, बेच लें। पर मैं अपनी जमीन नहीं बेचूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े।"
इतना बोलकर वे अपनी दुकान में चले गए। उनके जाते ही मोहन जी भी अपनी दुकान में चले गए। बाकी लोगों ने आपस में बातचीत की। उन्होंने सोचा, "अगर हमने जमीन नहीं दी तो वह एक महीने में किसी भी हालत में ज़मीन छीन लेगा और पैसे भी नहीं देगा। तब हम सड़क पर आ जाएँगे। इससे अच्छा है कि हम अच्छी खासी रकम ले लें और कहीं और जाकर अपनी दुकान फिर से शुरू कर दें।"
टीम B ने फैसला किया कि वे सब होटल जाकर अपनी जमीन बेचने की बात बता देंगे। और वे सब मिलकर कॉन्टिनेंटल होटल पहुँच भी गए।
जब वेद को पता चला कि वे सब जमीन बेचने के लिए तैयार हो गए हैं, तो उसने उन्हें होटल के हॉल में बुलाया।
वहाँ तपस्वी जी को न देखकर वेद के चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था। वह एरोगेंट वॉइस में सभी की ओर देखकर बोला, "तो तुम सब अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हो, पर तुम्हारा मेन लीडर ही तैयार नहीं हुआ है। मुझे उस इलाके की पूरी ज़मीन चाहिए।"
यह सुनकर उन लोगों में से एक आदमी आगे बढ़कर बोला, "सर, देखिए हम तो अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हैं। और हमने उन्हें भी जमीन बेचने के लिए कहा, पर वे तैयार नहीं हो रहे। अब आप देख लीजिए आपको क्या करना है। हमने उन्हें समझाया, पर वे समझने को तैयार नहीं हैं।"
उस आदमी का इतना कहना ही था कि वेद बोला, "ठीक है, मैं एक बार कल फिर से तुम सबकी मीटिंग लूँगा। अगर सब तैयार हो गए तो ठीक, वरना मैं अपने तरीके से उस ज़मीन को निकलवा ही लूँगा।"
वेद के मुँह से ऐसी बातें सुनकर वे सब डरने लगे। पर वह आदमी फिर बोला, "सर, हम तो बचने के लिए तैयार हैं और हमें पैसों की ज़रूरत भी है।"
उसका इतना कहना ही था कि वेद बोला, "अगर तुम लोगों को पैसों की इतनी ही ज़रूरत है तो तुम उन्हें भी तैयार करो ना। और जितना पैसा चाहिए उतना लो और दफ़ा हो जाओ।"
5 मिनट और वे सब वहीं रुके रहे। उसके बाद वेद ने उन्हें जाने के लिए कह दिया।
उन सबके जाने के बाद, करीब 7:00 बजे के बाद, तपस्वी जी, मोहन जी और बाकी लोग वेद से मिलने कॉन्टिनेंटल होटल आए। वे सब नीचे बैठकर वेद का इंतज़ार कर रहे थे।
जब वेद आया तो उसे लगा कि शायद ये लोग भी अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हो गए होंगे। वेद के आते ही तपस्वी जी ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, "देखो, हमारे कुछ भाई लोग अपनी जमीन बेचने के लिए तैयार हो गए हैं, पर उन्हें नहीं पता कि आगे चलकर उन्हें कितनी तकलीफ़ होगी। तुम कहीं और जाकर जमीन देख लो, पर हमारी जमीन के पीछे मत पड़ो। हमें जीने दो।"
तपस्वी जी के साथ-साथ मोहन जी भी बोल रहे थे। वे सब अपनी जमीन के लिए भीख माँग रहे थे, पर वेद किसी की सुनने को तैयार नहीं था।
वेद ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, "मैंने कह दिया ना कि मैं यह जमीन लेकर रहूँगा, मतलब लेकर रहूँगा। अब एक महीने का टाइम देता हूँ। अगर इरादा बदल गया तो ठीक, वरना तुम लोगों का फैसला बाद में। यह मत कहना कि मैंने तुम्हें बताया नहीं था।"
तपस्वी जी और वेद का लगभग एक घंटे तक इसी बात पर तर्क-वितर्क चलता रहा। उसके बाद वेद अब ज़्यादा बहस नहीं करना चाहता था और वह जाने के लिए उठा।
जब तपस्वी जी वेद से बात कर रहे थे, तभी उनका मोबाइल बजने लगा। पर उन्होंने पहली बार कॉल को इग्नोर किया। पर जब दूसरी बार कॉल बजी तो उन्होंने कॉल रिसीव की, क्योंकि यह कॉल उनके घर से थी। जैसे ही उन्होंने "हेलो" कहा...
...कॉल की दूसरी तरफ से गरिमा जी परेशान होते हुए बोलीं, "कितना टाइम हो गया है? आप घर नहीं आए? और अपनी दुकान भी बंद कर रखी है?"
गरिमा जी का इतना कहना ही था कि परेशान होते हुए तपस्वी जी बोले, "क्यों? क्या हुआ? तुम दुकान पर गई थी क्या?"
दूसरी ओर से गरिमा जी बोलीं, "पलक की तबीयत ठीक नहीं है। उस शैतान ने जो मेरी बच्ची के बालों को इतना कस के बाँधा था, उसके सिर में बहुत दर्द हो रहा है। आप अगर जल्दी घर आएंगे तो मैं उसे हॉस्पिटल ले जाऊँ।"
गरिमा जी का इतना कहना ही था कि तपस्वी जी परेशान होते हुए बोले, "क्या हुआ मेरी बच्ची को? वह ठीक तो है?"
तपस्वी जी इतना बोलकर अपने गुस्से से वेद को देख रहे थे। वहीं वेद भी उन्हें देख रहा था, क्योंकि उन्होंने अपनी बच्ची का ज़िक्र किया था।
तपस्वी जी बोले, "ठीक है, तुम कॉल रखो। मैं घर आता हूँ। आने के बाद हम हॉस्पिटल चलेंगे।"
इतना बोलकर उन्होंने कॉल काट दी और वेद को नफ़रत भरी आँखों से देखकर कहा, "तुमने मेरी बच्ची के साथ ठीक नहीं किया। तुम कभी खुश नहीं रहोगे।"
इतना बोलकर वे जाने लगे। वहीं वेद अपनी आईब्रो सिकोड़ते हुए सोच में पड़ गया कि उसने क्या किया। मन ही मन खुद से कहने लगा, "मैंने तो उसकी बेटी पर हाथ भी नहीं उठाया, फिर यह बूढ़ा मुझे किस बात का इल्ज़ाम लगाकर गया।"
वेद को किसी पर दया-माया बिल्कुल भी नहीं आती थी। वह अपने दोनों हाथ जेब में डालकर बड़े शान से होटल के अंदर चला गया, जैसे कि किसी के मरने पर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
तपस्वी जी तेज़ी से होटल से भागते हुए अपने घर आए। जब घर आए तो गरिमा जी और दादी सब बैठे तपस्वी जी के आने का इंतज़ार कर रहे थे।
जैसे ही वे आए, गरिमा जी ने सब कुछ बता दिया। उसके बाद वे अपनी बेटी को पास के क्लीनिक में ले गए। जब डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन और दवा दी, तब वे उसे घर ले आए।
वहीं होटल के कमरे में वेद बैठे ड्रिंक कर रहा था। अभी कुछ घंटे पहले जो कुछ हुआ, उस सभी घटना के बारे में सोच रहा था। जो पहली टीम आई थी उनकी भी बातें और जब दूसरी बार टीम आई उनकी भी बातें... और आखिर में एक सवाल छूट गया था, वह था तपस्वी जी का यह कहना कि उसकी वजह से उसकी बेटी को तकलीफ़ हुई और वह उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।
बहुत देर तक वह सोचता रहा कि आखिर उसने उसकी बेटी को कुछ किया भी नहीं, फिर भी वह क्यों ऐसा बोलकर गया?
बहुत सोचने के बाद उसे कुछ जवाब नहीं मिला और उसने रात का डिनर किया और सो गया।
अगली सुबह वेद को अर्जेंट मुंबई जाना था, क्योंकि उसका एक अर्जेंट काम रह गया था, जो उसके बगैर नहीं हो सकता था। इसलिए वह जल्दी से मुंबई जाने के लिए तैयार होने लगा।
मुंबई जाने से पहले वह सबसे पहले बालमपुर गाँव गया, क्योंकि उसे एक बार फिर से सभी को याद दिलाना था कि वह एक महीने के बाद आकर उनसे मिलेगा।
वेद के पहुँचते ही सभी लोग इकट्ठा हो गए। वेद ने बगैर किसी की बातें सुने अपनी मनमानी करते हुए कहा, "पूरे एक महीने के बाद आज के ही दिन मैं यहीं तुम लोगों से मिलूँगा। तब मैं तुम लोगों को वक्त नहीं दूँगा। बल्कि... समझदार हो, समझ गए होंगे?"
इतना बोलकर वह मुस्कुराया और कार में जाकर बैठ गया। किसी ने कुछ नहीं कहा। जो लोग तैयार हो गए थे, वे अपने कंधे उचकाते हुए अपनी दुकानों में चले गए।
वहीं जो लोग नहीं तैयार हुए थे, वे सब अपना चेहरा लटकाते हुए अपनी दुकानों की ओर चले गए।
To be continue...
22 दिन बीत गए। समझ में नहीं आया, पर तपस्वी जी और उनका पूरा परिवार बेचैन था।
तपस्वी जी की दोनों बेटियाँ बहुत परेशान थीं। तपस्वी जी घर में यही कहते थे, "ना तब हार माना, ना अब हार मानेंगे। कोई न कोई रास्ता तो निकाल ही लेंगे।"
अपनी परेशानियों को देखकर पलक को भी चैन नहीं आता था। वह खुद को इसके लिए जिम्मेदार मानने लगी थी। "काश, उसका एक भाई होता, तो उनके घरवालों को यह नौबत नहीं देखनी पड़ती।" बेटियों की वजह से उसके पिता हर जगह कमज़ोर पड़ जाते थे। "अगर आज भाई होता, तो जरूर वह लड़ता, या इस दलदल से निकलकर दूर चला जाता।"
वहीं दूसरी तरफ, राजस्थान, उदयपुर में, दिन नज़दीक आ रहा था। भावेश और बलराम दोनों बहुत खुश थे। बलराम को खबर मिल रही थी कि वेद ने बालमपुर वालों को एक महीने का समय दिया है, उसके बाद वह जमीन ले लेगा।
भावेश समझदार था, वह एक महीने का इंतज़ार कर सकता था, पर बलराम को सब्र नहीं हो रहा था।
वह हर दिन अपने भाई के पास आकर यही कहता, "उन लोगों को एक महीने का वक्त देने की क्या ज़रूरत थी? तुरंत पैसे देकर रफ़ा-दफ़ा कर देना चाहिए था!"
उसकी बातें सुनकर भावेश उसे समझाता, "आखिर इतना इंतज़ार किया, तो एक महीने से क्या बिगड़ जाएगा?"
यह सुनकर बलराम बोला, "भाई साहब, आपको नहीं पता, वह तपस्वी बहुत चालाक आदमी है। वह भी चुप नहीं बैठेगा। वह ज़रूर कोई न कोई रास्ता निकालेगा, और यह जमीन लेने नहीं देगा।"
बलराम की बातें सुनकर भावेश के चेहरे पर परेशानी की लकीरें दिखाई देने लगीं। वह भी घबरा गया कि एक महीने बाद अगर जमीन नहीं मिली, तो क्या होगा?
उसने तुरंत वेद को कॉल करने की कोशिश की, पर वेद उस वक्त इंडिया में नहीं था, वह आउट ऑफ़ कंट्री था।
बलराम बहुत चिंतित था। अपने भाई को इतना शांत देखकर वह चैन से नहीं बैठ पा रहा था। वह परेशान होकर अपने बड़े भाई से बोला, "भाई साहब, देख लेना। अगर हम ऐसे ही हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे, तो हमारा हर होना ही है!"
यह सब कहकर वह चला गया। उसके जाने के बाद भावेश भी बहुत सोच में पड़ गया। वहीं बलराम ने अपने आदमियों को तपस्वी के बारे में पता लगाने के लिए कह दिया। उसे डर था कि कहीं तपस्वी कोई बड़ा कदम ना उठा ले।
बलराम के खबरी उसे खबर ला रहे थे कि तपस्वी अपनी जमीन के पेपर लेकर कुछ लोगों से बात कर रहा है। बलराम को डर था कि कहीं वह कोर्ट तक न जाए, या किसी सरकारी चीज़ का सहारा न ले। वरना उसे महँगा पड़ सकता था। और दूसरी बात, अगर सब मिल गए, तो उसका हर होना ज़रूरी था।
बलराम ने गेम उल्टा खेलने का सोचा। उसने सबसे पहले तपस्वी जी की कमज़ोरी ढूंढनी शुरू की। उसे पता चला कि तपस्वी जी की सिर्फ़ दो बेटियाँ हैं, और बेटा नहीं।
बलराम को यह बात पता चलते ही वह शैतान की तरह हँसने लगा। पता नहीं उसके दिमाग में क्या चल रहा था, उसने तरह-तरह के प्लान बनाना शुरू कर दिए।
कुछ दिन बाद, एक महीना होने में सिर्फ़ दो दिन बाकी थे। बालमपुर के गाँव वाले ज़्यादातर लोग अपनी जमीन बेचने को तैयार हो गए थे। अब गिने-चुने दो-चार लोग ही रह गए थे, जो अपनी जमीन नहीं बेचना चाहते थे, क्योंकि उन्हें यहाँ की कीमत पता थी।
तपस्वी जी के घर में उदासी का माहौल था। उनकी बेटियाँ भी बहुत उदास थीं, और दादी के ताने रोज़ सुनने पड़ते थे।
तपस्वी जी की दोनों बेटियाँ कॉलेज में थीं। पलक लास्ट ईयर ग्रेजुएशन कर रही थी, और नंदिनी 12वीं में थी।
पलक इन दिनों अपनी जमीन बचाने के लिए कॉलेज में सभी से गाइडेंस ले रही थी, ताकि वह अपने पिता की मदद कर सके। उसे समझ में आ रहा था कि जमीन उनकी खुद की है, कोई ज़बरदस्ती उन्हें खाली नहीं करवा सकता। अगर वह कोर्ट गए, तो शायद उनकी जीत हो सकती थी।
कॉलेज छूटने के बाद पलक सीधे एक वकील से मिलने गई। इस वकील के बारे में उसकी एक दोस्त ने बताया था।
वहाँ जाकर उसे पता चला कि अगर उसके पास सारे डॉक्यूमेंट उसके माता-पिता के नाम पर हैं, तो कोई ज़बरदस्ती उन्हें नहीं निकाल सकता। वहाँ से उसे बहुत कुछ जानकारी मिली।
वहाँ से निकलने के बाद पलक सीधे पुलिस स्टेशन गई और उसने FIR दर्ज करवा दी। उसे पता था कि दो दिन बाद वे लोग आकर उन्हें ज़मीन खाली करवाने के लिए ज़बरदस्ती करेंगे, इसलिए उसने पहले ही पुलिस को सब कुछ बता दिया।
पलक जितना बन रहा था, वह सब कर रही थी। जब उसे घर आने में देर हुई, तो उसकी दादी ने उसे बहुत कुछ कहा। पर वह सब सुन रही थी।
दादी ने कहा, "मेरे बेटे को दुनिया भर की परेशानियाँ हैं, और तुम दोनों अपनी मनमानी कर रही हो, यहाँ-वहाँ उछल-कूद कर रही हो!"
इसके आगे भी उसने बहुत कुछ कहा, जिससे पलक को तकलीफ़ हुई। पर वह अपने पिता को हारता हुआ नहीं देख सकती थी। उसने घर में कुछ नहीं बताया कि वह आज कहाँ गई थी।
एक महीने बाद, आज पूरा एक महीना बीत गया था। कल रात से तपस्वी जी, गरिमा जी, उनकी दोनों बेटियाँ, दादी—हर कोई अपने कमरे में परेशानियों के साथ साँस ले रहा था।
जब सुबह हुई, गरिमा जी ने जब घर का दरवाज़ा खोला, तो उन्होंने सबसे पहले बाहर का नज़ारा देखा। उनके अंदर एक डर था कि शायद वे लोग आकर खड़े हो जाएँ। इसी डर से उन्होंने दरवाज़ा खोला था, पर बाहर अभी कोई नहीं था।
आज पलक और नंदिनी दोनों कॉलेज नहीं गई थीं, क्योंकि उन्हें भी पता था कि आज वे लोग ज़रूर आएंगे। भला घर के कोई सदस्य इस हाल में कैसे छोड़कर जा सकता था?
तपस्वी जी रोज़ की तरह उठकर तैयार हुए और दुकान पर चले गए। टेंशन तो बहुत था, पर वह घरवालों को नहीं दिखा रहे थे, ताकि वे कमज़ोर न पड़ें।
जब वह दुकान पर जाने के लिए निकले, तो पीछे से पलक ने उन्हें टोका, "पापा, आज मैं भी आपके साथ दुकान चलूँगी!"
यह सुनकर तपस्वी जी समझ गए कि उनकी दोनों बेटियाँ परेशान हैं। उन्होंने मना करते हुए कहा, "नहीं बेटा, तुम घर पर ही रहो। मुझे पता है तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, पर कोई बात नहीं, तुम्हारा बाप है ना!"
पर बेटियाँ तो बेटियाँ होती हैं। पलक ने तुरंत चप्पल पहनी और अपने पिता के साथ जाने के लिए तैयार हो गई। दादी ने भी डाँट लगाई, पर वह कहाँ सुनने वाली थी! तपस्वी जी को भी हार मानना पड़ा, और वह उसे अपने साथ दुकान ले गए।
दोपहर का वक्त था। सभी दुकान वाले आपस में बातें कर रहे थे। कुछ लोग कह रहे थे, "शायद वह नहीं आएगा। अगर उसे आना होता, तो वह आ जाता।"
दोपहर से शाम हो गया, पर वेद अभी तक नहीं आया था। तपस्वी जी को भी यही लगा कि शायद वह नहीं आएगा।
शाम 4:40 पर तीन कारें आकर वहाँ रुकीं। कारों की आवाज़ जैसे सबके कानों में गई। पास के दुकान वाले तुरंत बाहर निकलने लगे। एक दुकान वाले ने सभी को खबर कर दी। अब तपस्वी जी और पलक को भी खबर मिल गई कि वह आ गया है।
तपस्वी जी दुकान से बाहर निकले, तो पलक डर के मारे घबराने लगी। उसने अपना मोबाइल लिया और किसी को मैसेज टाइप करने लगी। वह दुकान में बैठे किसी को कॉल भी लगाने वाली थी, जिसका अंदाज़ा तपस्वी जी को भी नहीं था।
कारों से कुछ लोग निकले, और उन्हीं के साथ वेद भी। वेद कुछ कह पाता, कि तुरंत वहाँ पर दो पुलिस की गाड़ियाँ आ गईं!
पुलिस की गाड़ियाँ देखकर सभी अचंभित हो गए, क्योंकि उनमें से किसी ने पुलिस को नहीं बुलाया था। वेद ने पहले सबको धमकी देकर गया था।
सभी दुकान वाले एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे। आखिर पुलिस को किसने इन्फॉर्म किया? तभी पलक दौड़ते हुए पुलिस वाले के सामने आई और हांफते हुए कहने लगी, "सर, देखिए, यह वही आदमी है जो हमें धमकियाँ दे रहा है। एक महीने का टाइम देकर गया था, और आज आ भी गया। कुछ लोग इसके चमचे हो गए हैं, और अपनी जमीन बेचने को तैयार हो गए हैं, पर हम नहीं बेचना चाहते। जो बेच रहे हैं, उन्हें कहें यह ले लें, पर हम नहीं बेच सकते!"
पलक जिस तरह बोल रही थी, वेद बस उसकी बातें सुन रहा था, और अपनी आँखें सिकोड़ लिया। पुलिस वाले तुरंत वेद की तरफ़ जा रहे थे, तभी तपस्वी बीच में आकर रोक लिया।
और पुलिस वालों को साइड में ले जाकर बातें करने लगा। उन्हें इस तरह बातें करता देख पलक डरने लगी। उसे डर लग रहा था कि कहीं ये लोग भी इसमें शामिल न हो जाएँ।
वेद जिस तरह पलक को ध्यान से देख रहा था, उसकी पलकें बिल्कुल भी झपकने का नाम नहीं ले रही थीं। मानो वह अपने गुस्से को बहुत कंट्रोल कर रहा था।
क्रमशः
2-3 घंटे बाद बात वहाँ बड़ों की हो, वहाँ मिडल क्लास लोगों की कोई नहीं सुनता और यहाँ भी वही हुआ। जब केस पुलिस वालों के पास गया, तो वेद के बारे में जानकर, बगैर कोई एक्शन लिए, उसकी खातिरदारी में लग गए। बात मीडिया तक न जाए, इसलिए उन्होंने उसे यहाँ से जाने दिया। पन्ना मामला गरम था, और भी गरम हो जाता।
वेद तो समझदार था ही, और आज के दिन चुप रहने में ही भलाई समझने लगा। वह वहाँ से चला गया, पर जाते वक्त उसने तपस्वी जी से कहा, "मैं यह जमीन खाली करवाकर ही रहूँगा।"
पर उसकी इस तरह हार मानकर जाते देख, कहीं न कहीं तपस्वी जी को अपनी बेटी पर प्राउड फील होने लगा। वहीँ पलक को भी अच्छा लग रहा था कि जब सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं, तो एक दरवाज़ा खुला रहता है, और वह है कानून। उसने कानून का सहारा लेकर बहुत अच्छा किया, इस बात से उसे खुद पर नाज़ हो रहा था।
पलक की बहादुरी देखकर कुछ लोग ताली बजाने लगे, बल्कि उसे शाबाशी दे रहे थे। वहीँ तपस्वी जी अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए दुकान के अंदर ले गए और उसे समझाते हुए बोले, "बेटा, तुमने यह सब कब किया..?"
"सॉरी पापा, वो मैं..!"
पलक अपने पापा से माफ़ी मांग ही रही थी कि तपस्वी जी उसके गाल पर हाथ थपथपाते हुए बोले, "बहुत अच्छा काम किया तुमने, पर कहीं न कहीं मुझे डर भी सता रहा है..!"
यह सुन पलक बोली, "हमें डरने की ज़रूरत नहीं है पापा, आज पुलिस वालों ने हमें इस मुसीबत से बचा लिया, पर हमें कोर्ट चलना चाहिए। तब जाकर हम इन सब से निपट सकते हैं..!"
अपनी बेटी की बातें सुनकर तपस्वी जी को सही लगा, पर वह उदास भाव से बोले, "बेटा, तुम जो कह रही हो सही है, पर अब तो २० दुकानों में से सिर्फ़ हम तीन-चार लोग ही रह गए हैं जो अपनी जमीन नहीं बेचना चाहते। बाकी के सभी लोग तैयार हो गए हैं..!"
यह सुन पलक भी मायूस हो गई। अगर सब में एकता होती, तो वह सब जीत जाते।
अपनी बेटी को इस तरह मायूस होते देखा, तपस्वी जी ने उसे सांत्वना देते हुए बोला, "देखो बेटा, जैसे आज हमारे सिर से मुसीबत टली है ना, ऐसे एक दिन ज़रूर हमेशा के लिए टल जाएगी। सिर्फ़ हमें हिम्मत से लड़ना होगा।"
अपने पापा की बातें सुनकर पलक को भी हिम्मत आने लगी। दोनों बाप-बेटी मिलकर दुकान का काम करने लगे। उनके दिमाग में अभी भी यही सब चल रहा था कि आगे कैसे क्या करना है? पर तरीक़ा दोनों के अलग-अलग थे।
दूसरी तरफ़, राजस्थान, उदयपुर - रात का वक़्त।
भावेश और बलराम, जब से उन्हें यह बात पता चली कि तपस्वी की बेटी ने पुलिस बुला ली थी और वेद को वहाँ से खाली हाथ जाना पड़ा, तब से उन दोनों भाइयों के चेहरे पर बिल्कुल भी रौनक नहीं थी।
इस वक़्त हवेली में दोनों भाई शराब पी रहे थे। बलराम तो लगातार दाँत पीस रहा था और बहुत कुछ आगे का सोच रहा था, वहीँ भावेश बीच-बीच में कुछ तो बोलता भी था।
बलराम इस वक़्त गुस्से में था और भावेश एक बार फिर से उसे समझाते हुए बोला, "बलराम, शांत हो जाओ। अब पुलिस आने की वजह से ही वेद को कदम पीछे लेना पड़ा होगा। और देखना, इसका बदला वह लेकर ही रहेगा, क्योंकि उसे हार पसंद नहीं है..!"
अपने बड़े भाई की बातें सुनकर बलराम ने शराब का ग्लास टेबल पर जोर से रखते हुए कहा, "भाई सा… आपकी आँखों पर पट्टी चढ़ी है। अगर इतनी ही काबिलियत है तो कब का कर देता…? यूँ ही एक महीने का टाइम देना…? ऊपर से एक लड़की के चंद पुलिस वालों को बुलाने से कदम पीछे लेना…? यह सब क्या है…? यह नरों की कहानी नहीं है, बाकी कुछ नहीं..!"
अपने भाई का गुस्सा भावेश सच्चे से देख पा रहा था, बल्कि वह समझ भी रहा था और उसे एक बार फिर से दिलासा देने लगा कि यह काम बहुत जल्द हो जाएगा।
पर बलराम सुनने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था। उसने शराब की एक बोतल खोली और मुँह में लगते ही एक साँस में खत्म कर दी।
भावेश समझ गया कि उसका भाई आज शांत होने वाला नहीं है, चाहे जो कुछ हो जाए, इसलिए वह चुपचाप बैठा ही रहा। वहीँ बलराम शराब की बोतल खत्म करके साइड में रखा और सिगरेट जलाकर कसने लगा।
उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आई, जो भावेश को भी समझ पाना मुश्किल हो रहा था।
भावेश सवाल करते हुए अपने भाई से पूछा, "क्या हुआ? तुम ऐसे मुस्कुरा क्यों रहे हो..?"
उसका इतना कहना था कि बलराम अपने बड़े भाई की तरफ़ देख बोला, "भाई सा… अब वो होगा… जो किसी को अंदाज़ा भी नहीं होगा..?"
"क्या मतलब..?" भावेश शक भरी नज़रों से अपने भाई को देखकर पूछा।
बलराम बोला, "इस जमीन के बीच में, तपस्वी बहुत फड़फड़ा रहा है, एक वही रास्ते का काँटा बना है। अब उसकी कमज़ोरी का मुझे पता चल गया है, जिससे मैं उसे इतना दर्द दूँगा कि वह जमीन देने के लिए तैयार हो जाएगा।"
उसका इतना कहना था कि भावेश परेशान होते हुए बोला, "बलराम, तुम क्या पागल हो गए हो…? हम बीच में न पड़े, इसलिए तो मैंने यह काम किसी और से करवा रहा हूँ, ताकि हम पर कोई उंगलियाँ न उठाएँ..!"
"हाँ भाई साहब, मैं सब कुछ समझता हूँ… वैसे भी हम पर कोई उंगलियाँ नहीं उठाएगा। जो काम मैं करने जा रहा हूँ, बस आप देखते जाइए। क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है..?"
यह सुन भावेश बोला, "भरोसा तो मुझे खुद से भी ज़्यादा तुम पर है, पर बलराम, मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी किसी एक गलती की वजह से सारा काम बिगड़ जाए..!"
यह सुनकर बलराम अपने भाई को समझाते हुए बोला, "कोई गड़बड़ नहीं होगा भाई साहब, आप बस देखते जाइए, आपका छोटा भाई क्या करता है..!"
भावेश तुरंत पूछा, "वैसे तुम करने क्या जा रहे हो..?"
बलराम बोला, "काम होने के बाद आपको पता चल जाएगा। अभी मैं कुछ नहीं बता सकता..!"
इधर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
मिश्रा जी के घर में आज खुशी मनाई जा रही थी। गरिमा जी को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था। वहीँ तपस्वी जी ने घर में मीठा बनवाने के लिए कह दिया था और सभी लोग खुशी से खाना खा रहे थे।
पर वहीँ दादी का चेहरा लटका हुआ था। उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि पलक मर्दों की तरह बीच में बोली। उन्हें डर था कि लड़की जात अगर यह सब करेगी, तो आगे चलकर मुसीबत का सामना करना पड़ेगा और लोग तरह-तरह के नाम रखेंगे।
दादी ने यह बात कितनी बार बोल चुकी थी, पर तपस्वी जी को कोई फर्क नहीं पड़ा। आज उनकी बेटी की वजह से उनकी जमीन बच गई थी, उन्हें तो और भी गर्व हो रहा था।
अगली सुबह।
कल दोनों बहनें कॉलेज नहीं गई थीं, जिसकी वजह से आज सुबह उठकर वे दोनों तैयार हो गईं। तपस्वी जी ने भी उन्हें रात को ही कह दिया था कि वे दोनों कॉलेज जाएँ, ज़्यादा फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है। जिसकी वजह से वे दोनों रेडी होकर कॉलेज चली गईं।
पलक कॉलेज से छुट्टी के बाद कल जो कुछ हुआ, उसी सब के बारे में सोचते हुए निकल पड़ी। उसे देख कोई भी कह सकता था कि वह बहुत परेशान दिख रही है।
जब वह कॉलेज से बाहर निकली, तभी दूर एक गाड़ी खड़ी थी। जब वह रोड से सीधा जाने लगी, तो वह गाड़ी उसके पीछे-पीछे जा रही थी, जिसे बेख़बर पलक थी। उसकी नज़र बिल्कुल भी उस पर नहीं गई, क्योंकि वह खुद की परेशानियों में डूबी हुई थी।
करीब २० मिनट चलने के बाद वह बहुत दूर निकल गई। उसके दिमाग में तरह-तरह की बातें सोचते हुए चली जा रही थी कि तभी उसके सामने एक बच्चा आया और कहने लगा, "दीदी, मुझे भूख लगी है, क्या कुछ खाने के लिए दे सकती हो..?"
उसे कुछ खाने के लिए चाहिए था और पलक को भी उस पर दया आ गई। वह सबसे पहले अपने बैग में चेक किया, पर कुछ खाने के लिए नहीं था। जिसकी वजह से उसने आसपास नज़र घुमाकर देखा ताकि बच्चे को कुछ खाने के लिए दे सके। और थोड़ी दूरी पर उसे एक पान-भेल का स्टॉल दिखा।
जो देखकर वह उस बच्चे को उसी ओर ले गई, पर उस बेचारी को क्या पता था कि आज उसके साथ कुछ ऐसा होगा जो कभी नहीं होना चाहिए था..।
उसने उस बच्चे के लिए भेल का ऑर्डर दिया और अपने पर्स में से निकालकर उस दुकान वाले को पैसे दे रही थी कि उस बच्चे ने उसकी आँखों के सामने एक रुमाल उछाला, जिसमें से सफ़ेद कलर का कुछ पाउडर उड़ा और वह उड़ने से पलक की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसके बाद उसके साथ क्या हुआ, उसे कुछ नहीं पता।
To be continue…
करीब दोपहर के 1:00 बज रहे थे। गरिमा जी घर के काम करने के साथ-साथ कई बार घड़ी की ओर देख रही थीं। उन्हें पता था कि उनकी बेटी 1:00 बजे से पहले घर आ जाती है।
पर आज उसे घर आने में काफी देर हो रही थी। यह देखकर उन्होंने उसे कॉल लगाया, पर उसका कॉल नॉट रीचेबल आ रहा था। इससे वे परेशान हो गईं। फिर उन्हें लगा कि शायद कॉलेज से आते वक्त वह कहीं दुकान पर तो नहीं रुक गई।
कई बार दादी ने गरिमा जी से पूछा कि उनकी पोती को आने में इतनी देर क्यों हो रही है।
गरिमा जी भी देख रही थीं। दोनों बेटियाँ सुबह तो साथ जाती थीं, पर आने के वक्त आगे-पीछे आती थीं क्योंकि दोनों का समय अलग-अलग था।
पलक घर जल्दी आती थी। उसके एक घंटे बाद नंदिनी घर आती थी, पर आज 10 मिनट बाद ही नंदिनी घर आ गई।
यह देखकर गरिमा जी परेशान होते हुए नंदिनी से पूछा, "बेटा, पलक तुमसे मिली कॉलेज में?"
"मम्मी, आपको तो पता है ना, मुझसे पहले दीदी घर आ जाती है। मुझसे तो नहीं मिली।" नंदिनी ने कहा।
नंदिनी की बातें सुनकर गरिमा जी ने तुरंत मोबाइल हाथ में लिया और तपस्वी जी को कॉल करने लगीं।
तपस्वी जी ने जैसे ही कॉल रिसीव किया और "हेलो" कहा, गरिमा जी परेशान होते हुए बोलीं, "सुनिए जी, पलक दुकान पर गई है क्या?"
गरिमा जी का इस तरह से पूछना सुनकर तपस्वी जी बोले, "पलक यहां क्या करेगी? वह तो कॉलेज से घर गई होगी ना? वह यहां नहीं आई।"
यह सुनकर गरिमा जी बोलीं, "पलक घर नहीं आई और नंदिनी अभी आई है। उससे भी मैंने पूछा, वह उससे नहीं मिली। उसका फोन भी बंद बता रहा है। मुझे लगा शायद दुकान पर गई होगी। मेरा तो जी घबरा रहा है!"
"गरिमा, तुम परेशान मत हो। मैं कॉलेज जाकर देख आता हूँ। वह जरूर कॉलेज में होगी। मुझे मेरी बेटी पर पूरा भरोसा है।" इतना बोलकर तपस्वी जी ने कॉल काट दिया। परेशान होते हुए उन्होंने अपना दुकान बंद किया और स्कूटर पर बैठकर कॉलेज की तरफ निकल पड़े।
कुछ ही देर में वे कॉलेज में पहुँच गए। कॉलेज पहुँचने के बाद उन्होंने टीचर से पूछताछ की तो पता चला कि कॉलेज कब का छूट गया है और बच्चे कब के अपने घर पहुँच गए होंगे।
यह सुनकर तपस्वी जी का दिल धड़कने लगा। उनके माथे पर परेशानी की कई लकीरें बन गईं। वे अपना चश्मा ठीक करते हुए एक बार फिर से पूछने लगे कि उनकी बेटी अभी तक घर नहीं पहुँची है।
कॉलेज में अभी बहुत टीचर थे। यहाँ तक कि कुछ बच्चे लाइब्रेरी में स्टडी भी कर रहे थे। तो टीचर ने उन्हें तुरंत कहा कि वे एक बार लाइब्रेरी में जाकर चेक कर लें।
यह सुनकर तपस्वी जी वॉचमैन के साथ लाइब्रेरी में, कैंटीन में, हर जगह चेक किया। वॉशरूम में एक लड़की को भेजकर हर जगह चेक करवाया, पर पलक कहीं नहीं मिली।
करीब एक घंटा ऐसे ही चला गया। इधर घर में दादी ने न जाने कितनी बार गरिमा जी को क्या-क्या सुनाया। वे लगातार यही कह रही थीं कि उनकी दोनों पोतियाँ अपने मन की हो गई हैं और उनका बेटा उन पर बिल्कुल भी दबाव नहीं डालता, जिसके वजह से वे अपनी मनमानी करने लगी हैं।
तपस्वी जी कॉलेज से बाहर निकले और अपने स्कूटर के पास आकर खड़े हो गए। परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे। इस वक्त उनकी आँखें आँसुओं से गीली हो गई थीं।
वे अपना चश्मा उतारकर आँखें साफ करने लगे। वापस चश्मा पहनकर उन्होंने पलक को कॉल करने की कोशिश की, पर मोबाइल बंद बता रहा था।
उन्होंने बिना देरी किए स्कूटर स्टार्ट किया और घर की तरफ निकल पड़े। वे बहुत ही धीरे-धीरे स्कूटर चला रहे थे ताकि आसपास देख सकें और उनकी बेटी कहीं दिख जाए।
काफी देर तक स्कूटर चलाते हुए वे घर आए। गरिमा जी गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर की तरफ देखी क्योंकि घर का दरवाजा खुला ही था।
तपस्वी जी घर के अंदर आए तो गरिमा जी रोने लगीं। सब परेशान थे।
तपस्वी जी का लटका हुआ चेहरा देखकर गरिमा जी को अंदाजा हो गया कि उनकी बेटी कॉलेज में नहीं है। वे उनके सामने आकर पूछने लगीं।
तपस्वी जी ने अपना चश्मा उतारते हुए कहा, "वह तो कॉलेज से कब की निकल गई और उसका कॉल भी नहीं लग रहा।"
पलक के लिए दादी भी परेशान हो रही थीं, पर साथ ही साथ वह बहुत कुछ सुना रही थीं। उनकी बातें सुनकर तपस्वी जी जोर से बोले, "माताजी, आप तो चुप ही रहिए! पता नहीं मेरी बेटी कहाँ है? क्या हुआ है? बिना जाने-समझे आप उस पर गलत-गलत इल्ज़ाम लगाती रहती हैं!"
तपस्वी जी की बातें सुनकर दादी चुप हो गईं, पर कहीं न कहीं वे भी बहुत परेशान हो रही थीं। उन्हें भी डर था कि कहीं उनकी पोती को कुछ न हो जाए।
गरिमा जी रोते हुए तपस्वी जी से बोलीं, "देखिए, हमें पुलिस स्टेशन चलना चाहिए। पता नहीं कहाँ है मेरी बच्ची? मुझे तो बहुत बुरे-बुरे ख्याल आ रहे हैं!"
नंदिनी भी सामने आकर रोते हुए बोली, "हाँ पापा, मम्मी सही कह रही है। हमें जल्दी से पुलिस स्टेशन जाकर कंप्लेंट करना चाहिए!"
सब बातें कर ही रहे थे, तब दादी एक बार फिर से बोल पड़ीं, "पुलिस स्टेशन जाओगे तो हमारी इज़्ज़त ही क्या रह जाएगी? लोग पता नहीं क्या-क्या हमारे बारे में सोचेंगे?"
दादी बोली ही रही थीं, तब तक तपस्वी जी वापस बोले, "माताजी, मैं फिर से एक बार आपको कह रहा हूँ, आप चुप रहिए! मुझे लोगों की फ़िक्र नहीं, मुझे मेरी बेटी की फ़िक्र है!"
क्रमशः
इतना बोलकर तपस्वी जी और गरिमा जी दोनों घर से बाहर निकले। गरिमा जी ने नंदिनी को कहा, "तुम घर और दादी का ध्यान रखना।" कुछ ही देर में दोनों पुलिस स्टेशन पहुँच गए।
कुछ देर बाद, तपस्वी जी और गरिमा जी पुलिस स्टेशन पहुँचे और अंदर जाते ही उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल को अपनी बेटी के बारे में बताया। "वह तीन घंटे से घर नहीं आई है। हम कॉलेज भी गए, लेकिन कॉलेज वालों ने बताया कि वह काफी पहले ही निकल गई थी।"
पुलिस वालों ने उनकी लड़की के बारे में पूछताछ की। "उसकी कॉलेज की दोस्त कौन हैं? घर के आस-पास उसके कितने दोस्त हैं? उसका मोबाइल नंबर और फ़ोटो दीजिये।" उन्होंने सब कुछ लिया और कहा, "पहले 24 घंटे होने दीजिये। अगर वह आती है तो ठीक, वरना पुलिस कार्रवाई करेंगे।"
तपस्वी जी को भी पता था कि पुलिस यही कहेगी, फिर भी माँ-बाप होने के नाते वे बार-बार रिक्वेस्ट करने लगे, "अगर आप अभी से ढूँढ़ लेंगे तो वह मिल जाएगी।" उनकी इतनी रिक्वेस्ट करने पर पुलिस वालों ने हाँ भर दी और तीन पुलिस वाले फ़ोटो लेकर गाड़ी में बैठ ढूँढने के लिए निकल गए। उन्होंने तपस्वी जी और गरिमा जी को घर जाने के लिए कह दिया।
शाम का वक्त, 6:00 बजे।
पलक सुबह कॉलेज के लिए निकली थी, पर अब शाम हो गई थी और वह अभी तक घर नहीं आई थी। उसका मोबाइल स्विच ऑफ बता रहा था, जो देखकर घरवाले रो रहे थे।
वहीं पुलिस भी उसे ढूँढना शुरू कर चुकी थी, पर उसका कोई पता नहीं चल पा रहा था। घर वालों का रो-रोकर बुरा हाल हो चुका था क्योंकि पलक का कोई पता नहीं चल पाया था।
वहीं दूसरी तरफ, एक सफ़ेद कलर की गाड़ी बहुत तेज़ी से चल रही थी। उस गाड़ी में दो लोग थे जो आपस में बातें कर रहे थे। "इस लड़की को जल्दी से, सुबह होने से पहले, मलिक के पास पहुँचाना होगा।"
उस गाड़ी की पैसेंजर सीट पर पलक बैठी थी। उसका मुँह और हाथ-पैर बाँधे हुए थे। वह धीरे-धीरे आँखें खोलने की कोशिश कर रही थी।
जैसे ही उसने पूरी तरह आँखें खोली, उसने उठने की कोशिश की, पर वह सीट से नीचे गिर गई। उसके गिरने की आवाज़ सुनकर ड्राइवर ने तुरंत ब्रेक लगाया। उसके बगल में बैठा आदमी पीछे देखा और तुरंत पिस्तौल निकालकर तान ली।
पलक ने अपनी नज़रें ऊपर उठाईं। वह आदमी वापस रुमाल लेकर उसके चेहरे पर लगाया, जिससे वह वापस बेहोश हो गई।
वह आदमी ड्राइवर को आर्डर देते हुए बोला, "जल्दी-जल्दी गाड़ी चला! रात में ही लड़की को पहुँचना है, वरना सुबह होने तक कहीं पुलिस इसे ढूँढने न लग जाए। पकड़े जाएँगे!"
उसका आर्डर सुनकर ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की और तेज़ी से भागने लगा। वे लोग जल्दी से पलक को लेकर निकलना चाहते थे। वह आदमी पलक का फ़ोटो निकालकर किसी को भेज भी रहा था।
करीब रात 9:00 बजे, वे दोनों आदमी मिलकर पलक को एक काल कोठरी जैसे घर में लाकर रख दिया। वह अभी भी बेहोश थी। उसे कुछ नहीं पता था कि वह इस वक्त कहाँ है। वे दोनों उस कमरे का दरवाज़ा बंद करके वहाँ से चले गए, बल्कि वे दोनों बाहर खड़े होकर पहरेदारी दे रहे थे।
तभी उनमें से एक आदमी के मोबाइल पर रिंग हुआ। उसने नाम देखकर कॉल रिसीव की। कॉल के दूसरी तरफ से आवाज़ आई, "ठीक से पहुँच गए ना? वो लड़की ज़्यादा शोर तो नहीं कर रही है ना?"
यह सुनकर इधर से आदमी बोला, "नहीं, वह अभी भी बेहोश है।"
कॉल के दूसरी तरफ वाले आदमी ने कहा, "ध्यान से उस लड़की का ख्याल रखना। कहीं मुसीबत में न डाल देना, क्योंकि बलराम लापरवाही बिल्कुल भी पसंद नहीं करता!"
इतना बोलकर उस आदमी ने कॉल काट दी। उसके कॉल काटते ही वे दोनों आदमी आपस में बातें करने लगे। "मलिक ने वार्निंग दी है। हमें इस लड़की पर कड़ी नज़र रखनी होगी, वरना यह चकमा देकर भाग सकती है। बहुत चालाक लड़की है!"
उधर बलराम कॉल काटकर जोर-जोर से शैतानी हँसी हँस रहा था, जैसे उसने अपनी जीत हासिल कर ली हो।
इधर उत्तर प्रदेश, वाराणसी, बलरामपुर। रात 11:00 बजे। पूरा परिवार अभी भी रो रहा था। धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले, गाँव में पता चल गया कि तपस्वी जी की बड़ी बेटी पलक गायब हो चुकी है, क्योंकि पुलिस उनके घर पर आकर बात कर गई थी। उन्होंने कॉलेज और रास्ते, बल्कि उनके घर के अगल-बगल में हर जगह चेक किया, पर पलक का कोई पता नहीं चला। उसके कॉलेज में उसकी बेस्ट फ्रेंड थी, जिसका नाम निधि था।
उससे भी पुलिस वालों ने पूछताछ की। "क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड है? या वह किसी से मिलने आया-जाया करती थी? या उसका कोई पीछा करता था?"
ये सारी बातें सुनकर निधि ने पुलिस वालों को बताया, "उसकी फ्रेंड की ऐसी बिल्कुल भी आदतें नहीं थीं। वह बहुत ही अच्छी है। वह कॉलेज से सीधा घर जाती थी।"
निधि भी पलक को लगातार कॉल कर रही थी, पर अब कुछ फायदा नहीं हुआ क्योंकि उसका फ़ोन काफी देर से बंद बता रहा था। यहाँ तक कि पुलिस वालों ने उसके मोबाइल को ट्रेस भी करने की कोशिश की, पर कॉलेज के कुछ दूरी के बाद भी उसका मोबाइल बंद ही बता रहा था, जिससे पता लगाना मुश्किल होने लगा।
अगली सुबह, राजस्थान, उदयपुर।
सुबह-सुबह अखबार और न्यूज़ में आने लगा कि तपस्वी जी की बेटी कल दोपहर से लापता है। जब से वह कॉलेज से निकली थी, वह घर नहीं पहुँची थी। तपस्वी जी ने वेद पर सीधा इल्ज़ाम लगाया था।
उन्होंने बयान दिया था, "दो दिन पहले वेद हमारे घर और दुकान पर आकर धमकी दे गया था। और मेरी बेटी के गायब होने का कारण भी वही है।"
To be continue...
यह खबर तेज़ी से वायरल होने लगी। मुंबई में बैठे वेद को जब यह बात पता चली, उसे गुस्सा तो आया, पर ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा। क्योंकि उत्तर प्रदेश की पुलिस ने मुंबई पुलिस को खबर किया था कि वेद पर ऐसे इल्ज़ाम लगा हुआ है।
वेद के वकील ने यह सब हैंडल कर लिया। बल्कि सारा रिपोर्ट दिखा दिया कि वह कल से क्या काम कर रहा था और कहाँ बिज़ी था। जिससे कोई ठोस सबूत नहीं था कि वेद पर कोई इल्ज़ाम लगे।
वेद इस वक़्त हाल में बैठे टीवी को बड़े गौर से देख रहा था। जहाँ पर पलक का एक फोटो शो हो रहा था। और वह अपनी पाँचों उँगलियाँ आपस में जोड़कर कब से पलक को घूर रहा था। बल्कि उसे समझ में नहीं आया कि लड़की सच में कहाँ जा सकती है? और कौन है जो इसे किडनैप किया है? और इल्ज़ाम मुझ पर लग रहा है!
वेद को तपस्वी जी के लगाए हुए इल्ज़ाम से कोई फर्क नहीं पड़ा। पर कहीं न कहीं उसके दिमाग में यह बात हिट हो गई कि आखिर इस लड़की को अगवा किसने किया है? इसका मतलब कि जो कोई है इस मामले में, उसने अपना काम तमाम कर लिया, ताकि सारा शक मुझ पर जाए!
यह न्यूज़ तो राजस्थान में भावेश और बलराम को भी पता चल गया। जिससे भावेश ने वेद को मिलने के लिए बुलाया था। और वेद भी उससे मिलने राजस्थान चला गया। क्योंकि उसे कहीं बाहर जाना था, उसने सोचा कि एक बार वह भावेश से मिलकर उसे बता देगा कि इस मैटर को थोड़ी दिन के लिए साइड रखना होगा।
यही सोचकर वह भी राजस्थान चला गया, और वहीं से उसे इंडिया से बाहर जाना था।
वहीं काल कोठरी रूम में पलक होश में आ गई थी। और जैसे ही उसने आँखें खोली, तो खुद को एक बंद कमरे में पाया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी, क्योंकि उसके मुँह पर पट्टी नहीं लगी थी।
"क.. क.. कौन..? कौन हो तुम लोग..? मैं कहाँ हूँ..?" पलक ने डर के मारे लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा।
उसकी आवाज़ सुनकर दरवाज़ा खुला। और वह जिस ओर से उजाला आ रहा था उसी ओर देखी, तो दो लोग चलते हुए उसके पास आए। एक के हाथ में प्लेट में कुछ खाने को था और वह लाकर उसके सामने रखा।
पलक काफी देर से बंधी हुई थी और उसके चेहरे पर पसीने के बूँद बने हुए थे। और वह उन दोनों को देखकर एकदम से डर गई।
"यह लड़की यह चुपचाप खा ले और ज़्यादा शोर मत करना, वरना मलिक के बिना आर्डर से ही मैं तुझे खत्म कर दूँगा!" उनमें से एक लड़के ने कहा।
उसकी आवाज़ सुनकर पलक कांपने लगी और वह रोते हुए बोली, "मुझे घर जाना है, प्लीज मुझे घर जाने दीजिये.. प्लीज़.. प्लीज़!"
इतना बोलकर वह जोर-जोर से रोने लगी। उसमें से दूसरा लड़का बोला, "बोला ना एक बार शोर मत कर, तो मत कर, वरना यहीं ठोक दूँगा। मलिक का आर्डर है तुझे सही-सलामत उनके पास पहुँचाने का!"
उसने गन निकाला और उसके माथे पर पॉइंट किया। जो देखकर पलक तो एकदम सदमे में चली गई और वह डर के मारे अब धीरे-धीरे रोने लगी।
"इसका हाथ खोल दे ताकि यह खाना खा ले!" पहले वाले लड़के ने कहा।
इतना बोलकर दूसरे वाले ने उसका हाथ खोल दिया। और खोलते वक़्त यह भी बोला, "ज़्यादा होशियारी मत करना क्योंकि तू इस कमरे से बाहर नहीं जा सकती। सिर्फ़ यहाँ दीवारें हैं.. तेरी आवाज़ भी कोई नहीं सुन सकता क्योंकि इस वक़्त तू जंगल में है!"
इतना बोलकर दोनों हँसने लगे और दोनों उसे कमरे से बाहर निकले। और बाहर से उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया। उन दोनों के जाते ही पलक उठ खड़ी हुई और यहाँ-वहाँ भागने लगी।
वह यहाँ से भागना चाहती थी, पर बेचारी को उस कमरे में अंधेरे के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। छोटी सी खिड़की थी जहाँ से सिर्फ़ उसका हाथ बाहर जा सकता था। नहीं, उस खिड़की से रोशनी अंदर आ रही थी।
वे दोनों लड़के बाहर खड़े होकर आपस में बातें करने लगे। "इसकी गायब होने का मीडिया में न्यूज़ फैल गया है इसलिए मलिक ने इसे यहीं रखने के लिए कहा है। जब मैटर क्लोज हो जाएगा तब इसे उनके पास सौंप दिया जाएगा।"
दोपहर का वक़्त, राजस्थान।
वेद आ रहा था इसलिए भावेश ने उसके आने की खबर में बहुत बड़ा रॉयल प्लेस बुक किया था। ताकि उसे किसी चीज़ की कमी ना हो। वह अपने हवेली पर नहीं बुलाया था क्योंकि वे अपने आने-जाने की खबर लोगों को नहीं पता चलें। क्योंकि दुश्मन के कई दुश्मन होते हैं और वह अपनी उपस्थिति जाहिर नहीं होने देता।
वेद और भावेश दोनों रॉयल प्लेस में मिले। भावेश ने वेद का बहुत ही ग्रैंड वेलकम किया। इन सब चीजों की कोई भी लालच वेद को नहीं था। वह तो सिर्फ अपने काम को लेकर ज़्यादा सीरियस रहता है।
"तपस्वी मिश्रा की बेटी को गायब होने में कहीं तुम्हारा हाथ तो नहीं है ना..?" वेद ने भावेश को साफ़-साफ़ मुद्दे में पूछा।
यह सुनकर भावेश हड़बड़ा गया और बोला, "यह तुम कैसी बातें कर रहे हो..? अगर यह सब मुझे करना होता तो मैं कब का कर दिया होता। मुझे यह सब नहीं करना, इसलिए तो यह काम मैंने तुम्हें सौंपा। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि काम में कोई बाधा आए, इसलिए तो इतना इंतज़ार किया।"
वेद बड़े गौर से भावेश को नोटिस कर रहा था। उसके हाव-भाव, बोलने का तरीका, सब कुछ। और कुछ बोला नहीं, बल्कि हाँ में सिर सिर्फ हिला दिया।
भावेश वेद की बहुत खातेदारी में लगा हुआ था। इन सब में उसके एक-दो घंटे चले गए। उसके बाद उसने खड़ा होते हुए कहा कि अब मुझे बाहर जाना है क्योंकि मुझे कुछ काम है।
वेद के इतना कहना कि भावेश भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर हैंडशेक किया। और वेद वहाँ से निकल पड़ा। वेद के जाने के बाद भावेश समझ गया कि हो ना हो यह सब काम उसके भाई ने ही किया है, और उसे बताना ज़रूरी नहीं समझा।
वह तो अब परेशान होने लगा। उसने तुरंत बलराम को कॉल लगाया और हवेली आने के लिए कह दिया। थोड़े ही देर बाद बलराम भी हवेली पहुँच गया। और वह अपने भाई को देख गुस्से में बोला, "तुमने सारा का सारा गड़बड़ कर दिया। इतना अच्छा सब कुछ हो रहा था, तुमसे देखा नहीं गया। तुमने सब बर्बाद करके रख दिया!"
भावेश अपने भाई बलराम के ऊपर पूरा गुस्सा निकाल रहा था। तो वहीं बलराम शांति से बेशर्म के जैसा खड़ा था। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे उसने कुछ किया ही ना हो!
उसको इस तरह शांत देख भावेश आगे बोला, "कहाँ रखा है उस लड़की को..? जल्द से जल्द उस लड़की को छोड़ दो, वरना यह मैटर बहुत आगे तक बढ़ जाएगा। यह जो जमीन मिलते-मिलते हाथ से निकल जाएगा।"
To be continue..
वेद के इतना कहने पर भावेश ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर हैंडशेक किया। वेद वहाँ से निकल गया। वेद के जाने के बाद भावेश समझ गया कि यह सब काम उसके भाई ने ही किया होगा, और उसे बताना ज़रूरी नहीं समझा।
वह अब परेशान होने लगा। उसने तुरंत भावेश को कॉल किया और हवेली आने के लिए कहा। थोड़ी ही देर बाद भावेश हवेली पहुँच गया और अपने भाई को देख गुस्से में बोला, "तुमने सारा का सारा गड़बड़ कर दिया! इतना अच्छा सब कुछ हो रहा था, तुमसे देखा नहीं गया! तुमने सब बर्बाद कर दिया!"
भावेश अपने भाई बलराम पर पूरा गुस्सा निकाल रहा था, जबकि बलराम शांति से, बेशर्म की तरह खड़ा था। उसे देख ऐसा लग रहा था जैसे उसने कुछ किया ही ना हो।
उसको इस तरह शांत देख भावेश आगे बोला, "कहाँ रखा है उस लड़की को? जल्द से जल्द उस लड़की को छोड़ दो, वरना यह मामला बहुत आगे तक बढ़ जाएगा। यह जमीन मिलते-मिलते हाथ से निकल जाएगी।"
यह सुनकर बलराम बोला, "भाई साहब, आप शांत रहिए। यह सब मैं देख लूँगा। मुझे क्या करना है, मुझे अच्छे से पता है। मैं सारा मामला क्लियर कर दूँगा, बस आप चुपचाप देखते जाइए।"
भावेश दांत पीसते हुए बोला, "तुमसे कुछ नहीं होगा! तुम तो सब बर्बाद कर दोगे! तुम्हें क्या लगता है? उस लड़की ने इतना कुछ किया। वेद लोहिया अगर चाहता तो उस लड़की को बर्बाद कर सकता था, यहाँ तक कि बहुत कुछ उसके साथ कर सकता था, पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि वह सब काम दिमाग से करता है। कहाँ पर क्या करना चाहिए, पर तुम? तुममें थोड़ी भी अक्ल नहीं है! तुमने लड़की को अगवा कर लिया। अब जल्दी से उस लड़की को रिहा करो, वरना...?"
बलराम अपने भाई को देखते हुए बोला, "वरना क्या? भाई साहब, आप बहुत डरते हैं। ऐसा कुछ नहीं होगा। आप वेद लोहिया की तारीफ़ कर रहे हैं, मैं उससे भी ज़्यादा समझदार हूँ। मुझे पता है गेम कैसे खेलते हैं। मैंने गरम लोहे पर हथौड़ा भी मारा है और वैसे भी यह केस कितना भी आगे जाए, इसमें हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला, क्योंकि वेद लोहिया उनके घर जाकर धमकी देगा, पुलिस का शक वेद पर जाएगा। आप बेफ़िक्र रहिए!"
बलराम के मुँह से ऐसी बातें सुनकर भावेश को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और वह गुस्से में बोला, "तुम चाहते हो मैं बेफ़िक्र रहूँ? तुम्हें लगता है पुलिस वालों का शक वेद पर नहीं गया होगा? अगर उसकी ग़लती होती तो वह अब तक सलाखों के अंदर होता, पर ऐसा नहीं होगा क्योंकि उसने ऐसा काम किया ही नहीं है। सबूत तो चाहिए ना? जब वेद पर कोई उंगली उठाएगा तो वह चुप रहने वालों में से नहीं है, इतना याद रखना!"
"भले तुम मेरे भाई हो, पर तुमने जो यह काम किया है ना? अगर इससे मेरा नुकसान हुआ तो मैं भूल जाऊँगा कि तुम मेरे छोटे भाई हो! फिर सड़ते रहना जेल की सलाखों में! जहाँ पर भी तुमने इस लड़की को छुपाकर रखा है, जल्द से जल्द इसे इसके घर भेजो!"
इतना बोलकर भावेश वहाँ से चला गया। उसके जाते ही बलराम गुस्से में तिलमिलाने लगा और अपने एक हाथ से अपने बालों में फँसाने लगा।
उसके भाई के कहे हुए शब्द उसके कानों में गूँजने लगे। उसे इस वक्त इतना गुस्सा आ रहा था कि वह क्या कर बैठा था! सबसे ज़्यादा गुस्सा उसे इस बात का था कि उसका भाई उस पर यकीन करने के बजाय परायों पर कर रहा है, जो उसे हजम नहीं हो पा रहा था।
बलराम काफी देर तक सोचता रहा और सोचने के बाद आखिरकार उसने फैसला किया कि वह पलक को उसके घर नहीं छोड़ेगा, बल्कि उल्टा खेल खेलेगा।
उसने प्लान बना लिया। उसने अपने आदमियों को कॉल किया और कहा कि उस लड़की को वहाँ से दूसरी जगह शिफ़्ट कर दें।
बलराम की बात मानकर वे दोनों ने दरवाज़ा खोला और देखा तो पलक अंदर रो रही थी। उसने खाने का एक दाना भी नहीं खाया था। यह देखकर एक लड़का आगे बढ़ा और तेज आवाज़ में बोला, "ये लड़की, तुझे सुनाई नहीं दिया? हमने कहा ना खाना खा, तूने खाना क्यों नहीं खाया?"
यह सुनकर पलक एक बार फिर गिड़गिड़ाते हुए बोली, "प्लीज़ हमें यहाँ से जाने दीजिए। मेरे पापा मेरा इंतज़ार करते होंगे। मेरे घरवाले परेशान हो रहे हैं, प्लीज़ मुझे जाने दीजिए!"
पलक जिस तरह रो रही और गिड़गिड़ा रही थी, उसकी हालत देखकर वे दोनों लड़के एक-दूसरे को देखने लगे, पर उन्हें जरा भी दया नहीं आई। एक लड़के ने दूसरे को इशारा किया कि इसे यहाँ से ले जाना है।
दूसरा लड़का उसके पास आते हुए बोला, "अब यह खाए या ना खाए? इसे लेकर यहाँ से जल्दी से निकलना है, वरना बाद में निकल नहीं पाएँगे!"
इतना बोलकर वह लड़का पलक के पास जाने लगा। जिसे देखकर पलक रोने लगी, पर उसके हाथ-पैर बंधे थे, बेचारी कुछ कर भी नहीं सकती थी। और देखते ही देखते उस लड़के ने पलक को बेहोश कर दिया।
उसके बाद उसे कुछ भी नहीं पता कि वह कहाँ जा रही है, उसके साथ क्या होगा।
उसके बाद एक लड़के ने झूठा कपड़ा उसके मुँह पर बाँध दिया ताकि उसे होश आए तो उसके मुँह से आवाज़ ना निकले और उसे पकड़कर वहाँ से बाहर ले गए। दूसरे ने आसपास देखा कि कोई है या नहीं।
देखने के बाद वे लोग उसे लेकर वहाँ से निकल गए।
शाम का वक़्त था।
वेद इस वक़्त एयरपोर्ट पर पहुँच गया था कि तभी उसे पुलिस कमिश्नर का कॉल आया और उन्होंने उसे पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा।
वेद ने तुरंत अपने वकील से बात की, पर यह बात अभी वकील से निपटने वाली नहीं थी, जिसके चलते वेद को मुंबई पुलिस स्टेशन जाना ही पड़ा। और जब वह पहुँचा तो उसे पता चला कि तपस्वी जी ने उसके ऊपर शिकायत की थी।
क्रमशः
कमिश्नर ने वेद को यह बताया। वेद मुस्कुराया और कहा, "अगर उस बूढ़े ने मुझ पर इल्ज़ाम लगाया है तो आपका काम है, आप इंक्वायरी कीजिए। किसके पीछे किसका हाथ है? क्योंकि मैं इतना गिरा हुआ भी काम नहीं करता।"
यह सुनकर कमिश्नर जी ने कहा, "बात आपकी सही है, पर यह भी बात तो सही है कि आप उनके घर जाकर धमकी दिए थे, और वहाँ के लोगों का भी यही कहना है। तो हमें आपके ऊपर एक्शन लेना ही पड़ेगा।"
तभी वेद का वकील बोला, "पर मैंने आपको पहले ही सारे सबूत दे दिए कि मेरे बॉस उस वक्त अपने काम में बिजी थे। कोई प्रूफ नहीं है कि उन्होंने उस लड़की का किडनैप किया है। तो आप किस बेस पर उन्हें अरेस्ट कर सकते हैं?"
वकील बोल ही रहा था कि वेद ने अपनी उंगली दिखाकर उसे चुप रहने के लिए कहा और बोला, "ठीक है, आप अपनी कार्यवाही कीजिए।"
वेद को इस वक्त बहुत गुस्सा आ रहा था, पर वह पुलिस वाले के काम के बीच में कुछ कह नहीं सकता था। उसे भी पता था कि अगर शिकायत दी गई है तो वह अपना काम करेंगे ही।
लॉयर के कहने के बावजूद भी कमिश्नर ने वेद को 24 घंटे के लिए हिरासत में रहने के लिए कहा, क्योंकि यह मामला बहुत बढ़ गया था।
वेद कभी हार मानने वालों में से नहीं था, पर उसे आज हार माननी पड़ी। क्योंकि पुलिस तक बात नहीं थी, कमिश्नर और बहुत हद तक बढ़ गया था।
क्योंकि वेद ने उनके घर जाकर धमकियाँ दी थीं, उसके वकील ने भी कुछ नहीं कर पाया। 24 घंटे उसे हिरासत में लेना ही था, जो पुलिस वालों ने किया। वेद बहुत गुस्से में जेल के अंदर गया, पर उसका गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहा था।
वह अपने आप को बिल्कुल भी कंट्रोल नहीं कर पा रहा था। अपने वकील और अपने गार्ड, सभी को गुस्से से देख रहा था। सब डर के मारे बाहर निकल गए क्योंकि उसके सामने खड़े रहना डर पैदा कर रहा था।
वेद को हिरासत में लेने के बाद पुलिस वालों ने तपस्वी जी को सूचित कर दिया। रात होने की वजह से तपस्वी जी अपने घर पर ही थे, पर उन्हें वेद से मिलना था, ताकि वह भी पता लगाएँ कि आखिर उसने उनकी बेटी का अपहरण क्यों किया।
वेद का मोबाइल, वॉलेट, वह सब कुछ पुलिस वालों ने रख लिया, क्योंकि वह सारे ब्रांडेड चीजें थीं और उसे हिरासत में सारी सुविधाएँ दी जा रही थीं, पर वेद ने कुछ नहीं लिया।
वह सिर्फ लकड़ी के कुर्सी पर बैठा रहा। उसकी आँखों में इस वक्त गुस्सा धधक रहा था। वह पूरी रात सिर्फ एक ही बात सोचता रहा कि उसने जो गलती नहीं की, उसकी सज़ा वह क्यों भुगत रहा है? उसका सारा गुस्सा मिश्रा फैमिली पर था, पर वह यह भी बात अच्छे से समझ गया कि कोई तो ऐसा है जिसने उसके नाम पर उसका फायदा उठाया है।
वह यह भी सोच रहा था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मिश्रा की बेटी किसी और के साथ भागकर चली गई हो? और पूरा इल्ज़ाम उस पर लगा दिया गया हो? बहुत सोचने के बाद आखिरकार उसे समझ में आ ही गया कि दिखने में तो वह ऐसी नहीं लग रही थी।
पर वेद के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। जो अक्सर ऐसी लड़कियाँ दिखती हैं, वह बहुत पहुँची हुई रहती हैं... पर अपने दिल और दिमाग के कशमकश में वह बहुत फँस गया था।
बाकी कोई भी मामला रहता था, वह बड़ी आसानी से क्लियर कर लेता था, पर आज जो उसके साथ हो रहा था, वह समझ पाना उसके लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा था।
अगली सुबह - पुलिस स्टेशन
तपस्वी जी सुबह-सुबह पुलिस स्टेशन आ पहुँचे। जब उन्हें कल पता चला कि वेद को पुलिस वालों ने कल हिरासत में ले लिया है, तभी उन्होंने अपने कुछ साथियों को लेकर मुंबई आ गए।
जब वह पुलिस स्टेशन के अंदर गए तो सबसे पहले वह कमिश्नर से मिले और उन्होंने वेद से मिलने की इजाज़त दिला दी।
तपस्वी जी जैसे ही वेद के सामने जाकर खड़े हुए, वेद ने जैसे ही उन्हें देखा, उसकी आँखों में गुस्सा साफ़-साफ़ झलकने लगा। वह गुस्सा इसलिए हो रहा था क्योंकि सच में उसने उनकी बेटी का अपहरण नहीं किया था।
वेद अपने ही अंदाज़ में खड़ा था, जैसे कि उसे तपस्वी जी से कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो। वहीं तपस्वी जी जेल की सलाखों के बाहर खड़े होकर सबसे पहले वेद को ध्यान से देखने लगे।
पर एक बेटी के बाप होने के नाते उनकी आँखों से आँसू छलकने लगे। वह बहुत सोच रहे थे, बातें करने के लिए पर ठीक तरह से बोल नहीं पा रहे थे और उनकी जुबान लड़खड़ाने लगी।
पर बड़ी हिम्मत करते हुए बोले, "किसी को हराने के लिए कोई इतना कैसे नीचे गिर सकता है? क्या तुम्हें जरा भी तरस नहीं आया? एक बूढ़े बाप की इज़्ज़त होती है बेटियाँ, और तुमने उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिलाने के लिए यही हथियार अपनाया?"
तपस्वी जी बोल ही रहे थे, वहीं वेद जो अंदर था, वह अचानक से चलते हुए एकदम सामने आया और सलाखों पर जोर से मुक्का मारते हुए कहा, "देख मिश्रा, मुझे और गुस्सा मत दिला। मैं एक ही बार कहूँगा, बार-बार मुझे कहने की आदत नहीं। मैंने तेरी बेटी का किडनैप नहीं किया। अगर मुझे ऐसा करना होता ना तो पहले दिन ही तेरी बेटी को मैं उठा लेता, पर मैं ऐसा कभी नहीं करता। मुझे जो करना होता है ना, सामने से वार करता हूँ, समझा!"
वेद क्या बोल रहा था, तपस्वी जी को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा था। वह अब रोने लगे, बल्कि दोनों हाथ जोड़कर बोले, "मुझे मेरी बेटी लौटा दो। यह बूढ़ा बाप तुम्हारे सामने हाथ फैलाकर भीख माँग रहा है। मुझे मेरी बेटी लौटा दो, दया करो मुझ पर, मेरी बेटी लौटा दो!" 🙏
अब वेद का गुस्सा बढ़ते जा रहा था और वह दाँत पीसते हुए बोला, "एक बार कहा तो तुम्हें समझ में नहीं आता क्या? तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो? कितनी बार कह रहा हूँ? मैंने तुम्हारी बेटी का किडनैप नहीं किया और आखिरी बार भी यही कह रहा हूँ। अगर तुम्हें यकीन नहीं तो वह तुम्हारा मसला है, पर तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगाना बंद कर दो, वरना मेरा गुस्सा अगर बढ़ गया ना, जो मैंने नहीं किया ना, शायद उससे बढ़कर अब बहुत कुछ हो जाएगा।"
वेद इस वक्त गुस्से में बोल रहा था। वहीं तपस्वी जी रोने के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए वैसे ही भीख माँगते हुए कहा, "तुम्हें मेरी दुकान चाहिए ना? तुम रख लो... मुझे कुछ नहीं चाहिए। तुम मेरा घर भी रख लो... मैं मेरी बेटी को लेकर दूसरे गाँव में चला जाऊँगा, पर मेरी बेटी लौटा दो... मैं उसके बगैर नहीं रह सकता। यह सब जमीन की वजह से हुआ है ना? तुम सब रख लो... मुझे कुछ भी नहीं चाहिए... मुझे पैसे भी नहीं चाहिए... पर मेरी बेटी लौटा दो!"
क्रमशः...
वेद का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। दांत पीसते हुए उसने कहा, "एक बार कहा तो तुम्हें समझ में नहीं आता क्या..? तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो..? कितनी बार कह रहा हूं..? मैंने तुम्हारी बेटी का किडनैप नहीं किया और आखिरी बार भी यही कह रहा हूं। अगर तुम्हें यकीन नहीं, तो वह तुम्हारा मसला है, पर तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगाना बंद कर दो। वरना मेरा गुस्सा अगर बढ़ गया ना, जो मैंने नहीं किया, शायद उससे बढ़कर अब बहुत कुछ हो जाएगा।"
वेद गुस्से में बोल रहा था। वहीं तपस्वी जी रोने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ते हुए भीख मांगते हुए कहा, "तुम्हें मेरी दुकान चाहिए ना..? तुम रख लो.. मुझे कुछ नहीं चाहिए। तुम मेरा घर भी रख लो... मैं मेरी बेटी को लेकर दूसरे गाँव में चला जाऊँगा, पर मेरी बेटी लौटा दो.. मैं उसके बगैर नहीं रह सकता। यह सब जमीन की वजह से हुआ है ना..? तुम सब रख लो.. मुझे कुछ भी नहीं चाहिए... मुझे पैसे भी नहीं चाहिए... पर मेरी बेटी लौटा दो..!"
तपस्वी जी के रोने और गिड़गिड़ाने को देखकर वेद इतना समझ गया कि यह बूढ़ा अपनी बेटी से बहुत प्यार करता है। वह खुद भी सोच में पड़ गया कि आखिर किसने यह सब किया है? और जाहिर सी बात है कि तपस्वी जी को वेद पर ही शक होगा क्योंकि उसने धमकियाँ तो दी थीं।
पर यह धमकी थोड़ी ना थी कि वह उसकी बेटी का किडनैप कर लेगा। वह तो जबरदस्ती दुकान खाली करवाने के लिए धमकी दी थी।
तपस्वी जी की हालत देखकर कहीं न कहीं वेद को बुरा लगने लगा, पर उसे गुस्सा भी आता था क्योंकि उसने उनकी बेटी का किडनैप नहीं किया था। दोनों अपनी-अपनी जगह सही थे।
कुछ देर बाद, कमिश्नर ने एक बार फिर तपस्वी जी से पूछताछ की। "क्या ऐसा कोई है आस-पास में, जिसके साथ कभी लड़ाई-झगड़ा हुआ हो..? उनके साथ दुश्मनी तो नहीं..?"
यह बात सुनकर तपस्वी जी वेद की तरफ़ देखते हुए तुरंत बोले, "इस लड़के को छोड़कर कोई मेरा दुश्मन नहीं है। यही मेरा दुश्मन है..!"
तपस्वी जी की बातें वेद ने भी सुन लीं, पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह समझ गया था कि वह कितना भी खुद को सही साबित करेगा, पर यह एक घायल बाप है, जो अपनी बेटी के लिए तड़प रहा है और वह उतना ही भड़कता जाएगा। इसलिए वेद ने खुद को शांत रहने का ही सही निर्णय लिया।
कमिश्नर ने तपस्वी जी को सांत्वना देते हुए कहा, "अब हमारी टीम फिर से एक बार कॉलेज से छानबीन करना शुरू करेगी। हर एक स्टूडेंट से पूछताछ करेगी..!"
कुछ देर बाद कमिश्नर ने तपस्वी जी को दिलासा दिया कि वह उनकी बेटी को ढूँढ़कर लाएँगे और उन्हें घर जाने के लिए कहा।
उनके जाने के बाद, कमिश्नर ने फिर से सही तरीके से पूछताछ की और वेद का अभी भी वही जवाब था कि उसने तपस्वी की बेटी का किडनैपिंग नहीं किया।
कुछ घंटे बाद वेद का वकील कोर्ट से पेपर लेकर आया और कमिश्नर को देते हुए कहा, "अब तो आप इन्हें घर जाने दे ही सकते हैं, क्योंकि सारे सबूत मैंने कोर्ट में हाजिर कर दिए हैं..!"
कमिश्नर और वकील की बहुत देर तक बातें हुईं। सारे सबूत वेद के पास थे, क्योंकि वह जहाँ-जहाँ मीटिंग करता था, उन सभी फ़ुटेज, मीटिंग अटेंडेंस और सीसीटीवी फ़ुटेज की वजह से वेद को ज़मानत मिल गई।
जब वेद सलाखों से बाहर निकला, तो उसने एक नज़र कमिश्नर को घूर कर देखा। उसे बहुत गुस्सा आया था। उसे लड़की को ढूँढने के बजाय पुलिस वालों ने उसे गिरफ़्तार किया और जिसने उस लड़की का किडनैप किया वह खुलेआम घूम रहा है, यह बात वेद के दिमाग में फ़िट हो गई।
वेद पुलिस स्टेशन से बाहर निकला तो टाइगर और ड्राइवर कार लेकर खड़े थे। वेद कार में बैठ गया। इस वक्त कार में एकदम सन्नाटा छाया हुआ था। वेद इतने गुस्से में था कि वह शांत कैसे रह सकता था? क्योंकि उसने एक रात पुलिस स्टेशन में बिताई थी।
विला पहुँचते ही वह कार से बाहर निकला और तेज रफ़्तार से अपने कमरे में पहुँचा। कमरे का दरवाज़ा उसने तेज़ी से बंद किया और सामने ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ा हो गया और अपने आप को इतने गौर से देखने लगा, मानो आज एक दफ़ा फिर से उसकी बेइज़्ज़ती हो रही हो। पर अब शांत रहना उसे कहीं न कहीं पछतावा हो रहा था।
वेद शारीरिक रूप से बहुत मज़बूत था, मानसिक रूप से तो कह नहीं सकते, पर वह अपने आप को बहुत शांत करने लगा और दांत पीसते हुए खुद से कहा, "मैं बार-बार एक ही बात दोहरा नहीं सकता कि मैंने गलती नहीं की, पर हाँ, जिस किसी ने भी मेरे नाम से यह फ़ायदा उठाया है... तो... उसका मैं वह हश्र करूँगा कि वह कहीं मुँह दिखाने के लायक भी नहीं रहेगा।"
वेद थोड़ी देर बाद वाशरूम में गया और फ़्रेश हुआ। फ़्रेश होकर वह बाहर निकला तो अपने स्टडी रूम में गया और वहीं उसने टाइगर और वकील को बुलाया।
वेद अपने चेयर पर बैठा था, सामने वाले चेयर पर टाइगर और वकील दोनों बैठे थे। वेद एकदम शांत दिख रहा था और 2 मिनट खामोश रहने के बाद दोनों की तरफ़ देखकर बोला, "टाइगर, तुम उस लड़की का पता लगाओ। पता लगाओ वह कहाँ है? अगर वह खुद से भाग कर गई है तो कोई बात नहीं। और अगर उसका किसी ने किडनैप किया है तो वह मेरे हाथ से नहीं बचेगा क्योंकि उसने मेरे कंधे पर बंदूक रखकर उस मिश्रा की फ़ैमिली को निशाना बनाया है। उसने मेरे साथ दुश्मनी मोल ली है।"
टाइगर और वकील दोनों देख सकते थे कि वेद इस वक्त बहुत गुस्से में है। वे दोनों शांति से वेद की सारी बातें सुन रहे थे। वेद ने आगे उन्हें आदेश देते हुए कहा कि यह काम बहुत जल्द से जल्द होना चाहिए क्योंकि वेद अपने ऊपर कोई इल्ज़ाम नहीं ले सकता था, क्योंकि अब वह बर्दाश्त से ऊपर हो रहा था।
क्रमशः…
वाराणसी, बालमपुर गांव।
मिश्रा जी अपने घर आ गए थे। यह बात अब छुपाने वाली नहीं थी क्योंकि पूरा गांव जान गया था कि मिश्रा जी की लड़की गायब हो गई है और मिल नहीं रही थी।
जो समझदार थे, वे सभी लोग उनके दर्द और तकलीफ को समझ रहे थे। पर जो पुराने ख्यालात के लोग थे, उन्होंने तरह-तरह के नाम रखने शुरू कर दिए। उनके घर में बेटा नहीं है, बेटियां अपने मन की रहा करती थीं, तपस्वी जी कभी डांट नहीं लगाते थे, बेटों की तरह पल-पोसकर बड़ा किया और आज देखो बेटियां क्या कर रही हैं!
यह बात सही थी कि उनके मुँह पर कोई कुछ नहीं कह रहा था, पर पीठ पीछे हर कोई उनकी बातें बनाने लगा।
उधर मुंबई में, टाइगर अपने आदमियों को काम पर लगा दिया था। उसने सबसे पहले अपने गार्ड को बालमपुर की कॉलेज में भेजा। वहाँ पर उन्होंने पूछताछ की और सारे डिटेल्स निकालने लगे कि कब वह कॉलेज से बाहर निकली।
सारा डिटेल्स निकालने के बावजूद भी उसका कोई प्रूफ नहीं मिल पा रहा था कि कैसे उसका पता लगाया जाए कि वह इस वक्त कहाँ है और किसने उसका किडनैप किया है।
टाइगर ने आखिर में गार्ड को फुटेज निकालने का ऑर्डर दिया। उसका ऑर्डर पाते ही, कॉलेज के बाहर लगे सीसीटीवी फुटेज की रिकॉर्डिंग कॉलेज वालों ने दे दी। उसे चेक करने पर पता चला कि सचमुच पलक कॉलेज से बाहर निकली और सीधे रास्ते चलते हुए जा रही थी।
जहाँ तक कैमरे का दृश्य दिख रहा था, वहाँ तक तो टाइगर ने देख लिया। उसके बाद का फुटेज उसे देखना था, पर कॉलेज के बाहर छोटे-मोटे स्टॉल थे, कोई ऐसी शॉप नहीं जहाँ पर कैमरे हों।
इसी में पूरा दिन चला गया। टाइगर शाम को वेद के पास गया और एक रिकॉर्डिंग दिखाई। उसने कहा कि आसपास कोई और रिकॉर्डिंग नहीं है।
टाइगर बोल रहा था, तो वहीँ वेद स्मोक करने में बिजी था। पर उसका पूरा ध्यान टाइगर की बातों पर था। सिगरेट खत्म करने के बाद उसने उसे नीचे फेंका, एक पैर से दबाया और मुँह में जो धुआँ था, उसे बाहर छोड़ते हुए टाइगर से कहा, "जिसने उसका किडनैप किया है वह बहुत शातिर है। उसने पूरा लोकेशन चेक किया होगा कि कहाँ तक कैमरा है और कहाँ तक नहीं। इसलिए तो उसने बड़ी चालाकी से उसे उठा लिया। स्कूल वालों ने कैमरा चेक किया होगा और उन्हें वह बाहर निकलती हुई भी दिखाई दी होगी। उसके बाद वह कहाँ गई, उन्हें कोई लेना-देना नहीं। और आगे कोई कैमरा भी नहीं है।"
वेद की बातें टाइगर बड़े गौर से सुन रहा था और सवाल करते हुए पूछा, "बॉस, तो अब कैसे पता लगाया जाए?"
यह सुन वेद बोला, "तुम उस लोकेशन पर पता लगाना छोड़ दो। उसने सबको बेवकूफ बनाया। अब तुम आगे की लोकेशन चेक करोगे। पूरे हाईवे पर जो सीसीटीवी कैमरा है, वह सब चेक करो। देखो, कोई तो सबूत रहेगा। वह कहावत है ना, चोर चोरी करता है, कोई ना कोई सबूत छोड़ देता है, वैसे ही इसने भी कोई तो सबूत छोड़ दिया होगा।"
वेद जो भी कहता, टाइगर बड़े अच्छे से काम कर लिया करता था। और उसकी बातें ठीक तरह से समझने के बाद, टाइगर वहाँ से गार्ड को लेकर काम पर निकल पड़ा।
गहरी रात, सुनसान जगह।
पलक के हाथ-पैर अभी भी रस्सी से बंधे हुए थे। उसके पूरे बाल बिखरे हुए थे, यहाँ तक कि उसके चेहरे पर उसके बाल बिखरकर एकदम चिपके हुए थे।
रो-रोकर, चिल्ला-चिल्लाकर उसका गला सूख गया था। उसकी आँखें सूजकर मोटी-मोटी हो गई थीं।
वह जब से यहाँ आई थी, तब से उसने खाना नहीं खाया था। पर जबरदस्ती उन लोगों ने उसे पानी पिलाया था कि कहीं वह मर ना जाए। वह बिल्कुल भी चिल्ला नहीं रही थी, दीवार से सटे बस एक जगह बैठी थी।
उन दोनों लड़कों में से एक लड़का आगे आया और थाली में उसे खाना रखकर चला गया। पर पलक एक बार भी नज़र उठाकर उसकी तरफ नहीं देखी।
वह लड़का बाहर आकर दूसरे लड़के से कहने लगा, "यह तो कुछ भी खा ही नहीं रही है, ऐसे ही रही तो यह मर जाएगी।"
उसकी बातें सुनकर दूसरा लड़का बोला, "ठीक है, ठीक है। रात भर में मर नहीं जाएगी। मैं सुबह होते ही मालिक से बात करूँगा, इसका क्या करना है।"
"वैसे भी बेवकूफ लड़की को यही लगता होगा कि हमने यहाँ से कहीं उसे दूर लेकर चले गए हैं, पर इसे नहीं पता कि हमने इसकी आँखों पर पट्टी बाँधकर वापस इसी जगह पर लाकर रख दिया है।"
इतना बोलकर भी दोनों आपस में ताली मारकर हँसने लगे, जैसे कि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया हो।
वहीँ अंदर, पलक की आँखें झपकने लगीं। उसे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस वक्त कहाँ है। उसके दिल और दिमाग में सिर्फ उसके घरवाले घूम रहे थे।
उसे यहाँ से बस निकलना था। उसके शरीर में इतना भी ताकत नहीं बचा था कि वह यहाँ से भागे या बगावत कर सके।
मुंबई, मालाबार, EIM Villa, रात 1:25।
वेद इस वक्त स्टडी रूम में बैठा था। उसके सामने टाइगर और उसके गार्ड खड़े थे। टाइगर ने चार-पाँच पेन ड्राइव टेबल पर रखते हुए कहा, "बस ये सारे सीसीटीवी फुटेज हैं। हमने सारे फुटेज चेक किए। जिससे ये पता चला है कि वह गाँव से एक महंगी कार में बाहर निकली और हमने ये पता लगाया कि वैसी कार तो वहाँ पर किसी के पास थी ही नहीं। पर उसने रास्ता बदलते हुए हाईवे पर गया और वहाँ से कई सारे रूट बदलते हुए जंगलों की तरफ़ गया जो कि राजस्थान की तरफ़ जा रहा था।"
टाइगर ने बहुत ही बारीकी से सबूत इकट्ठा किया था। और सारे सबूत मिलने के बाद वेद अजीब तरह से मुस्कुराया।
उसको मुस्कुराता देखकर टाइगर बोला, "बॉस, मुझे लगता है कि यह भावेश का काम है।"
क्रमशः
टाइगर ने बहुत ही बारीक-बारीक से सबूत इकट्ठा किया था। सारे सबूत मिलने के बाद वेद अजीब तरह से मुस्कुराया।
उसको मुस्कुराता देखकर टाइगर बोला, "बॉस.. मुझे लगता है कि यह भावेश का काम है..?"
टाइगर अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि वेद उसे टोकते हुए बोले, "नहीं, यह उसका काम नहीं है। अगर उसे यह सब करना होता तो वह कब का कर चुका होता। उसके पास बहुत मौके थे, पर उसने ऐसा नहीं किया। यह कोई और है... जिसे मैं पता लगाऊँगा... क्योंकि वह सोच रहा है कि उसने मुझे फँसा दिया और खुद आजादी से घूम रहा है... तो यह गलत है..!"
वेद ने आगे कहा, "तुम सारे पेन ड्राइव यहाँ रखकर जाओ। मैं एक बार फिर से और अच्छे से देखता हूँ.. और हाँ, सुबह गाड़ी रेडी रखो..!"
वेद की बातें सुनकर टाइगर अपना सिर हाँ में हिलाकर स्टडी रूम से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद वेद अपनी उंगली अपनी ठुड्डी पर फेरने लगा, मानो उसे ऐसा लगा जैसे उसने ८०% पता लगा लिया हो।
अगली सुबह वेद अपने प्राइवेट जेट से बालमपुर गाँव के बाहर पहुँच गया था। वह कार के पीछे बैठा हुआ था और उसके पैर पर इस वक्त लैपटॉप ऑन था। जैसे-जैसे कार जा रही थी, उसी ट्रैक पर वे जाने लगे।
कुछ घंटे बाद वे लोग उसी जगह पहुँचे जहाँ उनकी लास्ट गाड़ी जंगलों की तरफ गई थी। वहाँ पर टाइगर ने ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा।
गाड़ी रुकते ही सबसे पहले टाइगर बाहर निकला, उसके बाद कुछ गार्ड बाहर निकले, आखिर में वेद बाहर आया और उसने लैपटॉप में लास्ट टाइम गाड़ी जंगलों की तरफ जाते हुए देखा।
वेद बड़े गौर से उस रास्ते की तरफ देखा और उंगली से इशारा किया जिसका इशारा था कि सभी लोग कार में वापस बैठ जाएँ। उसका इशारा पाते ही सभी लोग अपने-अपने कार में बैठ गए और उसी रास्ते की तरफ चल दिए।
करीब १ से २ घंटे में वे लोग जंगल के अंदर पहुँच गए। उनकी गाड़ियाँ बहुत धीरे-धीरे अंदर जा रही थीं क्योंकि रोड बहुत खराब थी।
तो वहीं दूर से कोई उन्हें देख रहा था और देखने के बाद वह भागते-भागते वहाँ पहुँचा जहाँ दूसरा लड़का खड़ा था। वह हाँफते-हाँफते कहने लगा,
"ये सुन लगता है इस लड़की को कोई ढूँढते-ढूँढते यहाँ आ गया है, या तो पुलिस हमारी पीछे पड़ गई है, क्योंकि बहुत सारी गाड़ियाँ एक साथ अंदर आ रही हैं..!"
उस लड़के का इतना कहना ही था कि दूसरा लड़का डर के मारे काँपने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। और जल्दबाजी में वे दोनों फैसला लेने लगे कि उन्हें यहाँ से किसी भी हालत में निकलना होगा, क्योंकि वह जहाँ पर रुके थे,
उस जगह को वे लोग बहुत जल्द पकड़ सकते थे, क्योंकि वह सामने उनकी गाड़ी थी और दूसरी बात वह काल कोठरी जैसा दिख भी रहा था जो सबसे पहला निशाना बन जाता।
दोनों काफी देर से दिमाग दौड़ा रहे थे कि यहाँ से कैसे निकलें। उनमें से पहले वाले लड़के ने कहा, "तू ऐसा कर, यहाँ से गाड़ी लेकर जल्दी से निकल जा, क्योंकि गाड़ी की वजह से वह तेरा पीछा करेंगे और मैं इस लड़की को लेकर दूसरे रास्ते से निकल जाता हूँ। यहाँ तक कि मैं मलिक को कॉल कर दूँगा, वह गाड़ी लेकर किसी को भेज देंगे..!"
इससे पहले वे दोनों ने बहुत सारे आइडिया सोचे थे, पर यह आइडिया उन्हें बेस्ट लगा और वे दोनों जल्दबाजी में वहाँ से निकलने लगे। पर यह सारी बातें पलक भी सुन रही थी क्योंकि वे दोनों बहुत जोर-जोर से बातें कर रहे थे।
उनकी बातें सुनकर पलक को इतना समझ आ गया कि उसे यहाँ बचाने उसके पापा यहाँ आ गए हैं। पर उसने लास्ट वाला शब्द भी सुन लिया कि वह उन्हें चकमा देकर दूसरे रास्ते से लेकर जाएँगे और अपने मालिक को फ़ोन करके गाड़ी बुलाएँगे। यह सुनकर वह एक बार फिर से उदास हो गई।
पहला लड़का गाड़ी में जाकर बैठा और गाड़ी वहाँ से स्टार्ट करके जाने लगा। वही दूसरा लड़का अंदर आया और पलक के हाथ बाँधकर, उसके मुँह पर टेप लगाकर उसे वहाँ से लेकर पीछे के रास्ते से छुपाकर निकलने लगा।
पलक का पैर की रस्सी खोलते ही वह लड़खड़ाकर चलने की कोशिश करने लगी, पर वह लड़का उसके हाथ को पकड़कर घसीटते हुए वहाँ से भागने लगा।
पलक बिलकुल भी भागना नहीं चाहती थी, पर वह लड़का जबरदस्ती उसे खींचकर वहाँ से ले जाने लगा।
पलक भागने की कोशिश कर रही थी, पर बेचारी भाग नहीं सकती थी क्योंकि एक तो बिना खाए-पिए वह कमज़ोर हो चुकी थी, ऊपर से उसके हाथ बंधे थे और मुँह पर टेप लगा था।
उनके जाने के बाद कुछ ही देर में टाइगर ने कार रोकी और बाहर निकलकर आगे की तरफ बढ़ने लगा। उसके पीछे गार्ड्स भी जा रहे थे।
वेद अभी भी कार में ही बैठा था। जब वे लोग उस कोठरी के अंदर गए तो वहाँ कोई नहीं था, पर वहाँ की हालत देखकर वे समझ गए कि यहाँ कोई था और अभी-अभी यहाँ से गया है क्योंकि खाने-पीने की चीजें, रस्सी, गाड़ी के निशान सब देखकर समझ में आ गया।
यह सब देखकर टाइगर समझ गया और अपने सभी गार्ड्स को आर्डर देते हुए बोला, "Follow me..!"
टाइगर का इतना कहना ही था कि सभी गार्ड्स अपने-अपने कार में बैठकर उसके पीछे जाने लगे। देखते-देखते सभी लोग जंगल में पूरी तरह फैल चुके थे।
सुनसान जंगल में वह लड़का पलक को घसीटते हुए ले जा रहा था। पलक बाहर आते ही भागने की फिराक में थी, पर उसके हाथ बंधे थे और मुँह पर टेप लगा था। पर उसके पैर की रस्सी खुली हुई थी, पर बिना खाए-पिए वह कमज़ोर हो गई थी। इतना कि उस लड़के के मुकाबले में उसका शरीर इतना काम नहीं कर पा रहा था जितना कि उसे ताकत चाहिए थी।
वह लड़का उसे बेरहमी से घसीटते हुए ले जा रहा था। यहाँ तक कि बीच-बीच में ईंट-पत्थर भी थे जो एक-दो बार पलक के पैरों में घाव कर दिए, पर उसे ज़रा भी दया नहीं आया। वह तो यहाँ से भागने के फिराक में था।
To be continue....