मोहब्बत हर एहसास से परे होती हैं लेकिन क्या हो अगर मोहब्बत ही बेवफा निकले । जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा हो आपको और वो ही धोखा दे जाये .... ऐसी ही कहानी हैं यह परिलोक की राजकुमारी सुनैना , जिसे शैतान लोक के शैतान से प्यार हो गया जो अपने किसी खास मकस... मोहब्बत हर एहसास से परे होती हैं लेकिन क्या हो अगर मोहब्बत ही बेवफा निकले । जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा हो आपको और वो ही धोखा दे जाये .... ऐसी ही कहानी हैं यह परिलोक की राजकुमारी सुनैना , जिसे शैतान लोक के शैतान से प्यार हो गया जो अपने किसी खास मकसद से एक इंसानी रुप लेकर उसकी जिंदगी में आया था जब वह अपने पिता को खोजने के लिए पृथ्वी लोक पर आयी लेकिन जब पता चला उसे कि जिससे बेइंतहा मोहब्बत की उसने वो तो उसका सबसे बड़ा दुश्मन निकला - तो क्या करेगी वो ? क्या खुद को खत्म कर लेगी या फिर उस शैतान को ? जब धोखा आमने सामने होगा , मोहब्बत का एक अलग अंदाज होगा और होगा कुछ ऐसा जो सबकी सोच से परे होगा तो जानने के लिए कि आगे क्या होगा चलते हैं एक नये सफर पर - Love a crown of lies
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आगे..
परिलोक में तबाही मची थी और कारण था परिलोक के राजा परितोष अपने ही बनाए जादू के जाल में फंसकर परिलोक से पृथ्वीलोक पर चले गये थे सारा परिलोक शोक में डूबा था क्योंकि पृथ्वीलोक पर जाना उनके लिए संभव नहीं था सिर्फ परि राजकुमारी के अलावा कोई भी पृथ्वीलोक पर कदम रखता तो जलकर भस्म हो जाता ।
इसलिए परिलोक में आज एक विशेष सभा बुलायी गयी जिसका सिर्फ एक ही उद्देश्य रखा गया - राजकुमारी सुनैना को पृथ्वीलोक पर जाने के लिए मनाना । यह कही से भी संभव तो नहीं लग रहा था लेकिन अगर राजकुमारी सुनैना हांमी ना भरे तो वो लोग अपने अपने राजा को खो देते ।
सभा में सभी परियां आने लगी थी और आज की अध्यक्ष थी परिलोक की गुरुमाता परि विशेषा , जो अपने ज्ञान के लिए पूरे परिलोक में मशहूर थी । ऐसा माना जाता था कि कोई उनके शब्दों को काट नहीं सकता था । उनमें इतना ज्ञान था कि कोई उनकी बराबरी भी नहीं कर सकता था ।
एक सफेद रंग का हंस की तरह दिखने वाला सिंहासन ,जिस पर लाल और नीले रंग के बेशकिमती मणि जड़ें थे उस पर गुरुमाता परि विशेषा अपनी नीली परि पोशाक में बैठी थी ।
चारों तरफ फैली हरियाली और उसमें उड़ती नीली पिली तितलियां हर किसी का मन मोह रही थी ।
परि विशेषा अपने सिहांसन पर बैठते हुए - परिलोक कीसभी परियों को परि विशेषा का प्रणाम ।
जिस पर सभी परियां झुककर उन्हें प्रणाम करती हैं और उनमें से एक परि - गुरुमाता परि विशेषा को सभी परियों की तरफ से प्रणाम । गुरुमाता परि आज का विषय बड़ा ही गंभीर हैं ।
इतनाकहते हुए वह आगे बताती हैं कि शैतान लोक का आतंक बढने लगा हैं और इसी के लिए राजा परितोष अपने जादू से परि लोक के चारों तरफ एक विशेष तरह का कवच बनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अपने ही जादू के जाल में फंसकर वह पृथ्वीलोक पर पहुंच गये और इससे भी गंभीर विषय था कि सिर्फ राजकुमारी सुनैना ही उन्हें वापिस ला सकती थी और जिस तरह का व्यवहार राजकुमारी सुनैना का हैं । उनको पृथ्वी लोक भेजना बहुत मुश्किल होगा ।
जिस पर गुरुमाता परि विशेषा ने सभी को शांत रहने के लिए कहते हुए अपने एक सेवक को राजकुमारी सुनैना को बुलाकर लाने के लिए कहां।
सभी लोग गंभीर बातचित करने लगे ।
इधर परिमहल के एक बड़े और हवादार कमरे में जहां राजकुमारी सुनैना कैनवास पर एक खुबसूरत तस्वीर उतारने में व्यस्त थी जो वह खिड़की से बाहर दिख रहे , एक झरने देखकर हाथ चला रही थी ।
वह अपने काम में मग्न थी कि तभी एक सेवक ने बाहर से ही दरवाजा खटखटाया जिससे उसका ध्यान टूटा । वह झुंझलाते हुए उसे अंदर आने के लिए कहती हैं और खुद से ही "राजकुमारी होते हुए भी कोई सुकून नहीं हैं यहां कभी मौका मिले तो मैं यहां से दूर चली जाउंगी । "
तभी सेवक अंदर आते हुए ,"राजकुमारी सुनैना को मेरा प्रणाम । "
जिस पर सुनैना भी झुककर उन्हें प्रणाम करती हैं । इधर सेवक ने सिर झुकाए कहां कि राजगुरुमाता परि विशेषा ने उन्हें परि दरबार में हाजिर होने का आदेश भेजा हैं ।
जिस पर सुनैना , सेवक को जाने का कहकर खुद की तरफ देखती हैं जहां वह इस हालत में दरबार में हाजिर नहीं सकती थी । जगह जगह रंग लगा था और पूरे हाथ रंग में डूबे थे ।
वह फटाफट जादू के लिए चुटकी बजाती हैं लेकिन तभी उसके कान के पास बहुत तेज आवाज गुंजती हैं - राजकुमारी सुनैना , आप अपने इस छोटे से काम के लिए जादू नहीं कर सकती है। आपको खुद से ही कपड़े बदलने होगे ।
जिस पर सुनैना फिर गुस्से से नीचे कपड़े बदलने चली जाती हैं ।
इधर शैतान लोक में भी दरबार लगा था और इस वक्त शैतानों का राजा रणकसिंह ने अपने सिंहासन पर बैठे हुए ही अपने सेवक से संदेश सुनाने को कहां जो वह परिलोक से लाया था । जिस पर सेवक ने सिर झुकाए हुए ही बताया कि राजा परितोष अपने ही जादू के जाल में फंस कर पृथ्वी लोक चले गये हैं और इस वक्त परिलोक में उन्हें ही वापिस लाने पर चर्चा हो रही हैं ।
जिस पर रणसिंह बहुत तेज हंसने लगा । जिससे आसपास का माहौल और भी डरावना हो गया था । परिलोक जितना हरियाली से भरा था शैतान लोक उतना ही काला और डरावना था जहां पेड़ पौधों का नामोनिशान तक ना था बस दूर तक फैले काले पत्थर और उनपर रेंगते कीड़े मकोड़े।
रणकसिंह का खास मंत्री आगे आते हुए कहता हैं कि शैतानों के राजा , मेरे भगवान ! यह सही वक्त हैं राजा परितोष से वह नीलमणि लेने का , उनका जादू पृथ्वी पर काम नहीं करता हैं और इस वक्त हमने उन पर दांवा बोला तो नीलमणि हमारे हाथ में होगी और कोई हमें हरा नहीं पायेंगा जिस पर रणक सिंह कहता हैं कि विचार तो अच्छा हैं लेकिन इसके लिए भेजे किसे क्योंकि मैं शैतान लोक छोड़कर जा नहीं सकता हूं ।
जिस पर कुछ पल सोचने के बाद उनका मंत्री - राजकुमार मणिक को भेज दिजिए मेरे भगवान !
जिस पर रणकसिंह - ठीक हैं राजकुमार मणिक को पृथ्वी लोक भेजने की तैयारी करो मंत्री ।
इधर परिलोक में अलग ही हल्ला मचा था । हर कोई शांत था और राजकुमारी सुनैना सबके बीच खड़ी थी और वह भी गहरी मुद्रा में और उसके सामने खड़ी परि विशेषा बस उसे ही देख रही थी ।
तभी सुनैना को अपने कान के पास आवाज आयी जहां तितली के रुप में उसकी सबसे खास दोस्त उड़ रही थी - हां कर दो राजकुमारी , यह अच्छा बहाना होगा इस परिलोक से बाहर निकलने का । वहां नयी दुनिया होगी , नये लोग होगे और सबसे अच्छा तुम्हारे लिए सुकून होगा ।
जिस पर कुछ पल विचार करने के बाद राजकुमारी सुनैना - राजगुरू माता , राजकुमारी सुनैना पृथ्वीलोक जाने के लिए तैयार हैं ।
जिस पर सभी लोग खुशी से झूम उठे लेकिन परी विशेषा जो अब तक सिर्फ सुनैना के चेहरे को देख रही थी वह गंभीर मुद्रा में बोली - पर एक बात ध्यान रखियेगा परी सुनैना । पृथ्वीलोक परियों के लिए खतरा हैं और परियों को इजाजत नहीं कि वह अपना भेद या दिल किसी पृथ्वीवासी पर लुटा दे इसलिए वहां सिर्फ अपने पिता को ढूंढना क्योंकि इश्क परियों के लिए खतरा हैं ।
जिस पर परि सुनैना अपने रोद्र रुप में - मैं जानती हूं गुरुमाता लेकिन आप तो जानती हैं ना दिल पर किसी का जोर नहीं चलता लेकिन आप चिंता मत करिए, राजकुमारी सुनैना का दिल इतना सस्ता नहीं जो किसी पर भी लुट जाये ।
जिस पर परि विशेषा - राजकुमारी सुनैना को पृथ्वीलोक भेजने की तैयारी कि जाये ।
पृथ्वीलोक
पहाड़ीयों के बीच बसा एक सुंदर सा गांव ' चित्रगंज 'जहां कि खुबसूरती देखते ही बनती थी लेकिन उस गांव में दो चीजे थी । पहला वहा का फेमस काॅलेज - राजपीठ विश्वविद्यालय जहां संगीत और चित्रकला सिखने के लिए विदेशों से भी लोग आते थे और दूसरी भूतिया हवेली , जहां फर लोग भूतों का डेरा बताते थे और किसी को भी रात आठ बजे के बाद सुबह तीन बजे तक अपने घर से और काॅलेज हाॅस्टल से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी ।
राजपीठ विश्वविद्यालय एक बहुत लम्बी गर्मी की छूट्टी यों के बाद दुबारा शुरू हुआ था और दूर दूर से बच्चे आज यहां एडमिशन के लिए आये थे लेकिन यहां एडमिशन मिलना इतना भी आसान नहीं था , उसके लिए स्टूडेंट्स को एक प्रतियोगिता पास करनी होती थी और दो दिन बाद प्रतियोगिता होनी थी और इसवक्त उसी के रजिस्ट्रारेशन फाॅर्म निकले हुए थे ।
एक लड़की एक वाइट फ्लोवर घूटनों तक की ड्रेस पहने भाग रही थी और उसके पास एक काले रंग कि फाइल थी जिसे उसने बहुत संभाल कर पकड़ा था ।
वह खुद में झुंझलाते हुए - बस एक बार एडमिशन मिल जाये फिर तो जिंदगी आसान हो जायेगी । तभी अचानक वह किसी से टकरा गयी और उसके सारे पन्ने हवा में उड़ कर बिखरा गये । पहले ही वह लेट थी और अब पन्नों का इस तरह बिखरना , उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया और जैसे ही उसने झुंझलाकर सिर उठाया - क्या अंधी हो क्या जो दिखाई नहीं देता , इस तरह किसी के बीच रास्ते में पीठ दिखाकर खड़े होने का कोई नया बिजनेस शुरू किया और तुम्हारी पहली कस्टमर मैं ही हूं ।
उसका चेहरा धूप से कम और गुस्से से ज्यादा लाल हुआ था । चारों तरफ खड़े स्टूडेंट्स बस उस लड़की की डेयरिंग देख रहे थे जिसने इतना बड़ा कांड कर दिया था और उसे एहसास तक ना था कि वह क्या कांड कर बैठी थी । सभी स्टूडेंट्स आपस में घूसर फूसर करने लगे थे ।
" यह लड़की कौन हैं "
''इसको कभी काॅलेज में नहीं देखा लगता हैं नयी हैं । ''
" यह इसकी हिम्मत हैं या फिर बेवकूफी , इसने तो आते ही सबसे बड़े ग्रुप से पंगा ले लिया "
इस तरह बाते करते हुए सभी स्टूडेंट्स वही इकट्ठे हो गये ।
लेकिन वह लड़की तो गुस्से से गर्म हो गयी जब उसने टकराने वाली उस लड़की को अपनेआप को इग्नोर करते हुए देखा वह गुस्से से फिर चिल्लाई -- अब क्या बहरी भी हो जो सुनाई नहीं देता या फिर बस एट्यिट्यूड ही दिखाना हैं ।
लेकिन जैसे ही वह लड़की मुड़ी उसकी हंसी छूट गयी ।
जारी हैं .....
तो क्या कारण हैं उस लड़की की हंसी छूटने का ...जानने के लिए आगे पढ़िए
आगे.....
इस तरह बाते करते हुए सभी स्टूडेंट्स वही इकट्ठे हो गये ।
लेकिन वह लड़की तो गुस्से से गर्म हो गयी जब उसने टकराने वाली उस लड़की को अपनेआप को इग्नोर करते हुए देखा वह गुस्से से फिर चिल्लाई -- अब क्या बहरी भी हो जो सुनाई नहीं देता या फिर बस एट्यिट्यूड ही दिखाना हैं ।
लेकिन जैसे ही वह लड़की मुड़ी उसकी हंसी छूट गयी ।
वह बीना रुके जोर से हंसे जा रही थी और साथ ही साॅरी बोलते जा रही थी ।
उसके पास हंसने का अपना रिजन था । दरहसल वह जिससे टकराई थी । उसकी पीठ पर लम्बे बाल देखकर वह तो उसे लड़की समझ रही थी और फिर उस पर चिल्लायी भी तो लड़की समझकर ही रही थी लेकिन हकीकत में तो वह लड़का निकला ।
सामने खड़ा वह लडका जिसने ओवरसाइज वाइट टिशर्ट और क्रीम पेंट पहन रखा था ।पैरों में वाइट स्नीकर और सिर पर ब्लैक हैड बैंड बाधे वह पूरा टाॅमबाॅय लग रहा था और ऊपर से उसके लहराते लम्बे बाल .....
उस लड़की की गलती नहीं थी , वह सच में पीछे से लड़की ही लग रहा था और ऊपर से वह उस काॅलेज में नयी आयी थी ।
उसको हंसते देख सामने खड़ा वह लड़का गुस्से से पागल हो रहा था - तुम मुझ पर हंस रही हो ?
जिस पर वह लड़की चारों तरफ देखने लगी और फिर मुंह बनाते हुए बोली - तुम्हें कोई और दिख रहा हैं ।
एक तो गर्मी और ऊपर से उसकी बाते उस लडके का गुस्से से बुरा हाल हो गया - तुम जानती नहीं मैं कौन हूं ?
जिस पर वह लड़की फुल बेइज्जती करने वाले माॅड में - omg ! you are ranveer singh मैं तो तुम्हें देखते ही पागल हो गयी । wait .... wait ! कही के प्रधानमंत्री तो नहीं और मैं तुम्हें जानती तक नहीं । ओह! गाॅड यह तो बहुत बुरा हुआ पर कोई बात नहीं अभी जान लेते हैं । who are you ?
जिस पर जहां सभी स्टूडेंट्स उसकी हाजिरजवाबी पर हैराश थे वहीं वह लड़का गुस्से से पागल होते हुए - तुम्हें तो मैं देख लुंगा।
उसकी बात पर वह हंसते हुए चारों तरफ घूमकर - आई एम हेयर , तुम आराम से देख सकते हो , मैं माइंड नहीं करुंगी।
जिसपर वह पागलों की तरह उसे घूरते हुए निकल गया ।
उसके जाने पर वह लड़की जोर से चिल्लाते हुए - हां, हां देख लेना ... सुर्यांशी सूर्या हमेशा इसी काॅलेज में मिलेगी तुम्हें , मिस एंगर ।
इधर उसके जाते ही भीड़ छटने लगी और उसी भीड़ में से एक लड़की जिसने हाफ टिशर्ट के साथ स्कर्ट पहन रखी थी वह अपनी नाक के चश्में को ऊपर करते हुए , उसके पास आयी और बिल्कुल कान के पास - राजकुमारी सुनैना ।
जिस पर वह लड़की गुस्से से - कितनी बार कहां हैं यहां तुम्हें मुझे सूर्यांशी कहना हैं और चाहें तो सूर्या भी कह सकती हो लेकिन अगर अब राजकुमारी सुनैना कहां तो यहां से वापिस परिलोक भेज देगे । तुम जानती हो ना कि हम सिर्फ यहां परिलोक के राजा को लेने आये हैं और परि विशेषा ने साफ शब्दों में कहां था कि हमें यहां कोई नहीं पहचानना चाहिए क्योंकि नीलमणि के लिए शैतान लोक से भी कोई यहां आया होगा । चित्रगंज इस वक्त हमारे लिए सबसे सुरक्षित जगह थी ।
जिसपर शिर्षा माफी मांगने लगी कि वह अब आगे से कुछ भी नहीं करेगी जिससे किसी को भी यह पता चले कि वह किसी दूसरे ग्रह से आये हैं लेकिन साथ ही वह सूर्यांशी को यह भी बताने लगी कि थोड़ी देर पहले जिस लड़के से उसने पंगा लिया था असल में वह इस काॅलेज के ट्रस्टी का बेटा था । पूरा काॅलेज उससे डरता था किसी को भी काॅलेज से निकलवाने के लिए उसका एक फोन काॅल काफी था ऐसे में उसने , उससे पंगा लेकर काफी बड़ी गलती कर दी , वह अब उन्हें चित्रगंज में भी नहीं रहने देगा और ऐसे में वह राजा परितोष को कैसे ढूंढ पायेगे ।
उसके ऐसा कहने पर सूर्यांशी मुस्कराने लगी और जैसे ही उसने चुटकी बजाने के लिए हाथ ऊपर किया , शिर्षा ने उसका हाथ पकड़कर वापिस नीचे कर दिया ।
और मूंह बनाते हुए कहने लगी - खबरदार , राजकुमारी जो आपने ऐसा किया । क्या आपको परि विशेषा की चेतावनी याद नहीं ।
उसकी इस बात पर अचानक से सूर्यांशी को वह पल याद आया जब परि विशेषा ने उसे कुछ बताया था ।
सुनैना जब परिलोक से पृथ्वीलोक पर आ रही थी तब परि विशेषा ने उसे बताया था कि वह पृथ्वी लोक पर सिर्फ दिन में तीन बार ही वह जादू इस्तेमाल कर सकेगी , उसके बाद उसका कोई जादू काम नहीं कर सकेगा ।
जैसे ही वह होश में आयी तो सामने खड़ी शिर्षा ने बताया कि उसने पहले ही सुबह कपड़े पहनने के लिए और खाना बनाने के लिए जादू कर लिया था और अगर वह फिर से जादू करेगी तो आज दिन में इसके बाद वह जादू नहीं कर सकेगी और फिर अगर वो लोग किसी मुसीबत में पड़ गये तो ।
उसकी बात सुनकर सुर्यांशी गुस्से से खुदके दांत पिसते हुए - यह सब कुछ परि विशेषा की वजह से हुआ हैं उन्होंने ही मेरी सारी शक्तियां कम कर दी ।
उसकी बात पर शिर्षा मुंहबनाते हुए - यह सब कुछ आपकी आदतों की वजह से ही हुआ हैं राजकुमारी , आप जो परिलोक में हर काम के लिए जादू का इस्तेमाल करती हो ना सब कुछ उसकी वजह से ही हो रहा हैं और शुक्र मनाइए कि आप तीन बार तो कर सकती हैं , मुझसे तो वह भी छीन लिया उन्होंने...।
जिस पर सुर्यांशी - अच्छा तो इसके लिए कितनी बार हाथ जोड़ने पड़े थे उनके सामने और तुम्हें कितनी बार कहे कि मुझे राजकुमारी नहीं सूर्यांशी कहो ।
जिस पर शिर्षा मुंह बनाते हुए - अब आदत इतनी जल्दी थोड़ी ना छूटेगी ।
तो उसे कहों कि वह जल्दी से तुम्हारे अंदर से छूटे , इतना कहकर सूर्यांशी फाइल को पकड़े अब अंदर की तरफ जाने लगी और शिर्षा , उसके पीछे पीछे भाग रही थी ।
परिलोक में अलग ही बवाल मचा था और कारण थी राजमाता त्रिलोका , राजा परितोष की मां और परिलोक की परि मां ।
परि विशेषा अपने कक्ष में बैठी कुछ लिख रही थी तब एक सेवक ने आकर उन्हें जानकारी दी कि परि मां विचित्र लोक की यात्रा करके पुनः लौट आयी हैं और जबसे उन्हें पता चला कि परिलोक में उनके पीछे क्या क्या हो गया तबसे वह बहुत कोध्रित रुप के साथ उनका इंतजार कर रही हैं और परी विशेषा को तुंरत अपने महल बुलाया हैं।
उस सेवक को जाने का कहकर परि विशेषा बाहर देखते हुए गहरी सांसे लेने लगी क्योंकि परि मां के गुस्से को वह जानती थी और यह भी जानती थी कि उन्होंने जो भी किया वो हमेशा उनकी दृष्टी में गलत ही रहेगा ।
परि विशेषा ने पहले खुद को इन सब के लिए तैयार किया और फिर वह निकल गयी परिमहल की तरफ जहां उन्हें परि मां के सवालों के जवाब देने थे ।
शैतान लोक में
शैतान लोक का राजा रणकसिंह अपने सिंहासन पर बैठा था और उसके सामने खड़ा राजमंत्री बड़ी ही भयंकर हंसी के साथ , राजा रणकसिंह को बता रहा था कि उसने राजकुमार मणि के साथ अपने पुत्र शरण को भी भेज दिया ताकि सबकुछ ठीक हो ।
रणकसिंह हंसते हुए - अब कोई हमसे नीलमणि नहीं ले सकेगा । ऐसा जाल बिछाऊंगा कि परिलोक कभी उसमें से निकल भी नहीं पायेगा और फिर उस परितोष से मेरा बदला पूरा होगा । उसे पता चलेगा कि धोखे की असली पहचानक्या होती हैं ।
जिस पर राजमंत्री भी हंसने लगा लेकिन उसके चेहरे पर हंसी , रणकसिंह से भी भयंकर थी ।
राजमाता त्रिलोका गुस्से से इधर उधर घूम रही थी जब उसके सामने परि विशेषा खड़ी हुई । राजमाता गूस्से से - विशेषा , तुम्हारे ज्ञान को देखते हुए हमने , तुम्हें परिलोक का इतना उच्च पद दिया लेकिन तुमने ,हमारे पीछे परिलोकको यह किस हाल में पहुंचा दिया । हमें गम इस बात का नहीं कि परितोष नीलमणि के साथ पृथ्वी लोक पर फंस गये हैं लेकिन इस बात का जरुर हैं कि आपने जानबुझकर, राजकुमारी सुनैना को पृथ्वीलोक भेजा ।आप सोच भी नहीं सकती कि कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया , आपने परिलोक को । आपको देखकर गुरुर था हमें लेकिन आप इस गुरुर को बरकरार नहीं रख पायी ।
जारी है ........?
आगे .......
राजमाता त्रिलोका के चेहरे पर गुस्से का बवंडर देखकर भी परि विशेषा शांत थी ।उनके चेहरे पर सिर्फ गंभीरता के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था ।
राजमाता त्रिलोका गुस्से से - आपके पास हमारे सवाल का कोई भी जवाब हैं क्या विशेषा ?
जिस पर परि विशेषा एकदम गंभीरता से - हमें परिलोक को बचाने का जो तरीका सही लगा हमनें वही किया राजमाता ......!! राजकुमारी सुनैना को यहां से भेजना जरुरी था क्योंकि आप तो जानती हैं ना कि उनकी तकदीर परिलोक की बर्बादी लेकर आयेगी ......ऐसा हम नहीं .... उसकी कुंडली कहती हैं .....!! परिलोक की भावी वारिस हैं वो .. ....!!
जिस पर त्रिलोका गुस्से से - आप भूल रही हैं कि आप किसके सामने खड़ी हैं विशेषा .....!! सुनैना हमारी पोती ही नहीं हमारा गुरुर भी हैं । थोड़ी चंचलता हैं उनमें लेकिन बेवकूफ नहीं हैं वो । आपके खेल को वह कुछ पल में ही समझ जायेगी लेकिन हमें यह समझ नहीं आ रहा कि आपने अपने मन में उनसे एक द्वेष भावना क्यो पाल रखी हैं ?
परि विशेषा - ऐसा नहीं हैं राजमाता , हमें किसी से द्वेष नहीं हैं ? आपने हमें परिलोक का इतना बड़ा पद दिया बस यह उस पद के प्रति हमारे कर्तव्य हैं कि हमारी उनसे हमेशा ही झड़प हो जाती हैं और फिर हमें लगता हैं कि पृथ्वीलोक , उनके लिए सीखने का सबसे अच्छा मार्ग था ।
राजमाता त्रिलोका - हम नहीं जानते कि आपने ऐसा क्यों किया लेकिन इतना जरुर जानते हैं कि आप एक दिन अपने फैसले पर जरुर पछतायेगी ।
परि विशेषा अफसोस भरे स्वर में - लेकिन .....?
राजमाता त्रिलोका के चेहरे पर इस समय अफसोस से भरे भाव थे जिन्हें कोई नहीं समझ सकता था । वह अपना हाथ दिखाकर परि विशेषा को रोकते हुए - हमें एकांत चाहिए ।
उनके इतना कहते ही परि विशेषा गर्दन हिलाते हुए वहां से चली गयी और खुद से ही सोचने लगी कि एक पल के लिए उनका स्वार्थ था राजकुमारी सुनैना को पृथ्वीलोक भेजने में लेकिन ऐसा उन्होंने खुद से थोड़े ही किया था । ऐसा करने के लिए तो उन्हें कहां गया था ...!!
सूर्याशी और शिर्षा ने चित्रगंज में ही एक खुबसूरत से घर का ऊपर वाला माला किराये पर ले लिया था और इस वक्त वो अपना सामान जमा रही थी ।
तो चलिए बात करते हैं सुर्याशी सूर्या के बारे में - सूर्यांशी सूर्या के पिता विरेन सूर्या पूरे इंडिया के सबसे बड़े बिजनेसमैन और सूर्या इंडस्ट्री के मालिक थे और उसकी मां , पवित्रा सूर्या इंडिया की सबसे बड़ी सोशलिस्ट जिनके पता नहीं कितने ही एनजीओ इंडिया में चलते थे । सूर्याशी एक बहुत अच्छी पेंटर थी और बिजनेस संभालने से पहले उसकी ख्वाहिश थी कि वो राजपीठ विश्वविद्यालय में रहकर अपने पेंटर बनने के सपने को जिये और इसके लिए उसने अपने मम्मा पापा को बहुत मुश्किल से मनाया था क्योंकि वो दोनों ही अपनी इकलौती बेटी को खुदसे दूर करने के लिए तैयार नहीं थे । सूर्याशी जब राजपीठ विश्विद्यालय की प्रतियोगिता देने के लिए मुम्बई से चित्रगंज के लिए निकली तो किसी ने उसपर अटैक करवा दिया और उसमें , उसकी कंडिशन इतनी खराब हो गयी थी कि बचने के चांस ना के बराबर थे ।
उस वक्त ही सुनैना पृथ्वीलोक पर आने को तैयार थी । पृथ्वी लोक पर परियों के शरीर और उनकी शक्ति की गंध शैतानों को आसानी से महसूस हो जाती थी यानी अगर वह अपने वास्तविक स्वरूप के साथ पृथ्वी लोक पर गई तो अवश्य ही शैतानों के समक्ष उसका राज प्रस्तुत हो जाता इसीलिए उसे एक इंसानी शरीर चाहिए था जहां वह अपनी शक्तियों और आत्मा को प्रवेश करवा सके इसके लिए सर्वप्रथम राजकुमारी सुनैना ने खुद से शक्तियों का एक कवच बनाकर खुद के शरीर को सुरक्षित किया और फिर वह सूर्याशी के शरीर में प्रवेश कर गई । सूर्यवंशी एक नेक दिल और कोमल लड़की थी जितनी वह खूबसूरत थी उतना ही उसका मन भी खूबसूरत था और यही कारण था की राजकुमारी सुनैना ने उसका चयन किया था ।
सूर्यांशी मुंबई से चित्रागंज के लिए निकल तो गई थी लेकिन उसके एक्सीडेंट की खबर उसके माता-पिता को लगी ही नहीं क्योंकि सुनैना के प्रवेश और उसकी शक्तियों से वह कुछ ही समय में बिल्कुल ठीक हो गई थी वह कभी नहीं चाहती थी कि उसके माता-पिता उसे चित्र गंज जाने से रोके और उसका सपना पूरा होने से पहले ही टूट जाए । उसने निर्णय लिया था कि वह कभी चित्र गंज के राजपीठ विश्वविद्यालय में किसी को पता नहीं लगने देंगी कि वह अमीर खानदान से आई थी और उसके पिता वीरेन सूर्यवंशी एक बहुत बड़े बिजनेसमैन थे जिनका सिक्का पूरे इंडिया में चलता था वह एक साधारण सी लड़की बनकर वहां अपने पेंटर बनने के सपने को पूरा करना चाहती थी और उसकी सारी याददाश्त जो उसके पास और प्रेजेंट में घटा था सूर्यांशी के शरीर में प्रवेश करते ही , सुनैना को सब कुछ पता चल गया और अब वह भेद किसी के सामने आने नहीं देना चाहती थी कि वह सूर्यांशी नहीं है और इसलिए उसने सुनैना के किरदार को कुछ वक्त के लिए भूलना ही ठीक समझा लेकिन कुछ आदतें कभी नहीं जाती । चाहे हम खुद को किसी भी रुप में ढालने की कोशिश करें और यही सुनैना के साथ हो रहा था । जिसके , दिन की शुरुआत से रात का अंत होने तक के सारे काम जादू से होते थे । उसके लिए पृथ्वीलोक पर जीवन काटना बहुत मुश्किल होने वाला था और यह उसे पहले दिन में ही समझ आ गया था ।
राजपीठ विश्वविद्यालय के अंदर ही डिन के केबिन में एक लगभग सताइस साल का शख्स बैठा था । उसके चेहरे पर एक अलग ही सख्ती थी लेकिन खुबसूरती में वह हर किसी से बेहतर ही था ।
डिन उसकी तरफ देखते हुए - मि.