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Daitya Samrat : Love Story A Vampire

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Description

सुरभि-एक निडर पुलिस ऑफिसर, जिसे रहस्यमयी गुमशुदगी के एक अजीब मामले की जांच सौंपी जाती है। सुराग एक पुराने, सुनसान खंडहर की ओर इशारा करते हैं, जहाँ लोग दावा करते हैं कि रात में एक परछाई खड़ी नजर आती है, और मिले शवों की गर्दन पर अजीब निशान होते हैं। मा...

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Samrat and Surbhi

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Total Chapters (83)

Page 1 of 5

  • 1. श्रापित हार. Chapter 1

    Words: 615

    Estimated Reading Time: 4 min

    चारों तरफ घना कोहरा था। हवा में अजीब-सी ठंडक थी, लेकिन यह ठंड मौसम की नहीं थी… यह कुछ और थी। सुरभि ने खुद को एक पुराने, वीरान कब्रिस्तान में खड़ा पाया। टूटी-फूटी कब्रें, सूखे पेड़, और चारों तरफ फैला धुंधलका—सब कुछ भयावह था। लेकिन सबसे डरावनी बात यह थी कि वहाँ कोई और भी था।

    वह पीछे मुड़ी, पर कुछ नहीं दिखा। लेकिन अचानक, एक अजीब-सी सरसराहट हुई। हवा में एक गहरी फुसफुसाहट गूँजी—

    "तुम्हें यहाँ नहीं होनी चाहिए…"

    सुरभि का दिल जोर से धड़क उठा। वह आवाज़ इतनी ठंडी थी कि उसकी रूह तक काँप गई। उसने चारों ओर देखा, लेकिन कोई नज़र नहीं आया। पर तभी… एक साया उसके ठीक सामने आ खड़ा हुआ।

    वह लंबा था, बेहद आकर्षक, लेकिन उसकी मौजूदगी में कुछ अजीब था। जैसे अंधेरा खुद उसके चारों ओर लिपटा हो। उसके हल्के लाल आँखें—जो इंसानों जैसी नहीं थीं—सीधे सुरभि की आत्मा को चीरती चली गईं।

    "कौन हो तुम?" उसने काँपती आवाज़ में पूछा।

    उसने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसमें गर्माहट नहीं थी।

    "तुम मुझे जानती हो, सुरभि।"

    सुरभि की साँसें तेज हो गईं।

    "नहीं… मैं तुम्हें नहीं जानती।"

    वह एक कदम और करीब आया। उसकी परछाई ने सुरभि को घेर लिया। ठंडी हवा उसके चारों ओर लहराने लगी।

    "जल्द ही जान जाओगी…"

    अचानक, एक झटके से उसकी आँखें खुलीं। वह हाँफते हुए उठी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।

    "फिर वही सपना… वही रहस्यमयी परछाई, वही डरावनी आभा…" उसने खुद से कहा। यह सिर्फ़ एक सपना था, या कोई इशारा? सुरभि ने पानी पिया और खुद को शांत करने की कोशिश की। लेकिन कहीं न कहीं, उसका दिल जानता था—यह महज एक सपना नहीं था। कोई उसे पुकार रहा था…

    उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं, दिल तेज़ी से धड़क रहा था। कमरे में अंधेरा था, सिर्फ खिड़की से आती हल्की रोशनी उसे दिख रही थी।

    "सपना था... बस एक सपना," उसने खुद को समझाया और लंबी साँस ली। लेकिन उस सपने की रहस्यमय आभा अभी भी उसके दिलो-दिमाग पर छाई हुई थी।

    उसने तकिए के पास रखा मोबाइल उठाया और समय देखा—सुबह के 5:00 बज चुके थे।

    "जॉगिंग का वक्त हो गया," वह बुदबुदाई और तुरंत बिस्तर से उठ गई।

    सुरभि अग्निहोत्री, 26 साल की एक आत्मनिर्भर और निडर पुलिस ऑफिसर थी। उसकी गहरी भूरी आँखों में एक खास चमक थी, जो उसके आत्मविश्वास को दर्शाती थी। काले बाल, जो अक्सर उसकी जॉगिंग के दौरान हवा में लहराते थे, उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देते थे।

    उसकी गोरी और चमकदार त्वचा, और हल्के गुलाबी होठों की रंगत, उसे बेहद आकर्षक बनाती थी। लेकिन उसकी सबसे ख़ास बात थी उसकी तेज़ निगाहें, जो सामने वाले के मन की गहराई तक देख सकती थीं।

    हालांकि वह एक पुलिस अधिकारी थी, लेकिन उसका दिल एक आम लड़की की तरह ही था—जो ज़िंदगी को खुलकर जीना चाहती थी। उसे रोमांच पसंद था, चुनौतियों से खेलना अच्छा लगता था।

    तैयार होकर, सुरभि जब अपने पुलिस हेडक्वार्टर पहुँची, तो देखा कि एक नया केस उसका इंतज़ार कर रहा था। इस शहर की सबसे अमीर और रईस हवेली में एक बहुमूल्य चोरी हुई थी, जिसके लिए पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई गई थी। डिपार्टमेंट ने यह केस सुरभि को सौंपा था।

    सुरभि ने पूरी केस स्टडी पढ़ी और फिर उस जगह पहुँची, जहाँ यह वारदात हुई थी।

    सुरभि अपनी कार से उतरी और सामने खड़े विशाल, पुरानी हवेली जैसे घर को देखने लगी। यह शहर के जाने-माने बिज़नेसमैन रमेश रायचंद का बंगला था, जहाँ से एक कीमती नीलम का हार चोरी हो गया था।

    जैसे ही सुरभि अंदर दाखिल हुई, उसने देखा कि घर के सभी लोग हॉल में इकट्ठा थे। हर किसी के चेहरे पर घबराहट और बेचैनी साफ झलक रही थी।

  • 2. श्रापित हार part 2 -chapter 2

    Words: 1122

    Estimated Reading Time: 7 min

    "आईपीएस ऑफिसर सुरभि अग्निहोत्री!" एक आदमी ने राहत भरी आवाज़ में कहा। "अच्छा हुआ, आप आ गईं।"


    सुरभि ने ठंडे स्वर में पूछा, "क्या हुआ मिस्टर रायचंद? मुझे पूरी बात बताइए, ताकि मैं हार को ढूँढने में मदद कर सकूँ।"


    रमेश रायचंद के छोटे भाई, विनोद रायचंद, आगे आए और बोले, "हार अपने लॉकर में बंद था। कोई भी कमरे में नहीं गया। लेकिन जब हमने लॉकर खोला, तो हार गायब था! वहाँ कोई ताला तोड़ने का निशान भी नहीं है।"


    सुरभि ने सिर हिलाया और फिर सवाल किया, "क्या कोई और लॉकर की चाबी रखता था?"


    "सिर्फ़ मैं और माँ," रमेश रायचंद ने कहा।


    तभी घर की सबसे बुजुर्ग महिला, सावित्री देवी, जो सबकी दादी थीं, भारी आवाज़ में बोलीं, "ये हार श्रापित है, बेटी! मैंने पहले ही कहा था कि इसे मत रखना। इस पर आत्माओं का श्राप है! लेकिन मुझे बुढ़िया बोलकर मेरी बात सुनता ही कौन है? लो, अब हो गई ना चोरी? लेकिन वो श्रापित हार ऐसे ही नहीं मानेगा। जिसके पास भी जाएगा, उसका विनाश होगा!"


    हॉल में सन्नाटा छा गया। घर के कई लोग सहमकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे।


    सुरभि ने दादी की आँखों में झाँका और एक पल के लिए सोचा, *क्या बकवास है ये श्रापित हार! लोग बिना बात की मनगढ़ंत कहानियाँ बना लेते हैं!*


    लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वह जानती थी कि सीधे आरोप लगाने से कोई फायदा नहीं होगा। वैसे भी, इंसान इन बातों पर पहले भरोसा करता है, लेकिन सुरभि को कभी भी ऐसी अदृश्य शक्तियों पर विश्वास नहीं था। उसके लिए ये सब चीज़ें एक्ज़िस्ट ही नहीं करती थीं। वह केवल विज्ञान और जो सामने हो रहा है, बस उसी पर यकीन रखती थी।


    पूरे दिन की जाँच-पड़ताल के बाद भी जब कोई सुराग नहीं मिला, तो सुरभि ने फैसला किया कि वह खुद इस मामले पर नज़र रखेगी।


    रात के करीब दो बजे का वक्त था। घर के सभी लोग सो चुके थे, लेकिन हवेली के पिछले रास्ते से किसी की धीमी-धीमी आवाज़ आ रही थी। कोई छुपकर किसी से बात कर रहा था, इस बात से अनजान कि हवेली के पिछले हिस्से में सुरभि भी छुपकर नज़र रखे हुए थी। जैसे ही उसने यह आवाज़ सुनी, वह चौकन्नी हो गई। और जो उसने देखा, उसे देखकर वह हैरान रह गई।


    सुरभि ने धीरे से पर्दे के पीछे से देखा। घर की बेटी, रिया, किसी को फोन पर कह रही थी, "हाँ, मैं हार ले आई हूँ… बस मिलते ही तुम्हें दे दूँगी।"


    रिया लॉकर से हार चुराकर अपने बॉयफ्रेंड को देने जा रही थी!


    सुरभि ने तुरंत एक्शन लिया।


    "रिया!" उसने सख्त आवाज़ में कहा।


    रिया एकदम डरकर पलटी।


    "स-सुरभि जी!"


    "तो ये है तुम्हारी श्रापित आत्मा?" सुरभि ने कड़वी मुस्कान के साथ कहा। रिया के चेहरे का रंग उड़ चुका था।


    "दादी की बनाई हुई कहानियाँ सुनकर ही तुमने ये प्लान बनाया, है ना?" सुरभि ने ठोस स्वर में कहा।


    रिया चुप हो गई। उसके पास अब कोई जवाब नहीं था। सच का पर्दाफाश हो चुका था। सुरभि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और रिया को तीखी निगाहों से देखा। रिया ने चुपचाप दुपट्टे के अंदर से हार निकालकर सुरभि के हाथ में रख दिया।


    अगले दिन, जब पूरे घर के सामने सच्चाई आई, तो दादी का चेहरा शर्म से झुक गया।


    "मैंने तो बस पुराने समय की कहानियाँ सुनाई थीं… मुझे क्या पता था कि रिया इसे सच मानकर इतना बड़ा कदम उठा लेगी," उन्होंने कहा।


    सुरभि ने एक गहरी साँस ली और बोली, "भूत-प्रेत जैसी कोई चीज़ नहीं होती। अपराध हमेशा किसी इंसान का ही किया हुआ होता है।"


    "इस हार की चोरी में किसी आत्मा का हाथ नहीं है, ये बात मुझे शुरुआत में ही समझ आ गई थी। क्योंकि अगर कोई आत्मा होती, तो वो इस हार का क्या करती? ऐसा तो है नहीं कि वो इसे अपने गले में डालकर फैशन शो में जाएगी। और जब मैं सबसे पूछताछ कर रही थी, तो सिर्फ़ रिया ही थी जो मेरे सवालों का थोड़ा घुमा-फिराकर जवाब दे रही थी। तभी मुझे शक हुआ कि इस चोरी में किसी आत्मा का नहीं, बल्कि किसी इंसान का हाथ जरूर है।


    दादी जी, पुराने ज़माने में लोग इस तरह की कहानियाँ इसीलिए गढ़ते थे ताकि घर में कोई लालची इंसान हो, तो उसकी नज़र गहनों और जेवरात पर न पड़े। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आज के ज़माने में भी इन अफवाहों को हवा दी जाए। ये सब मनगढ़ंत बातें हैं। न कोई आत्मा होती है, न कोई प्रेत-पिशाच।


    साइंस इतनी तरक्की कर चुका है। लोग चाँद तक पहुँच गए हैं, मंगल पर पानी खोजा जा रहा है और हम आज भी भूत-प्रेत पर यकीन कर रहे हैं? ये सब दिखावटी बातें हैं। आपको इन सब पर यकीन नहीं करना चाहिए।


    रिया को पहले से ही पता था कि ये भूत-प्रेत कुछ नहीं होता। उसे मालूम था कि इस हार के श्रापित होने की कहानी पूरी तरह नकली है। इसीलिए उसने इसे चुराया और अपने बॉयफ्रेंड को देने की सोच रही थी।"


    सुरभि ने रमेश जी की तरफ देखा और कहा, "देखिए, ये रिया और आपका पारिवारिक मामला है। लेकिन अगर आप मेरी नज़र से देखेंगे, तो जब तक कोई बड़ी बात न हो, तब तक कोई भी लड़की इतना बड़ा कदम नहीं उठाती। मुझे लगता है, आपको एक बार रिया से खुलकर बात करनी चाहिए।"


    रमेश जी ने गुस्से में रिया की तरफ देखा। रिया डरते हुए रमेश जी को देखने लगी और फिर तुरंत नज़रें झुका लीं।


    वह धीमी आवाज़ में बोली, "पापा, मैं एक लड़के से प्यार करती हूँ। लेकिन मुझे पता है कि आप लोग मेरी उससे तब तक शादी नहीं करवाएँगे जब तक उसके पास कोई काम नहीं होगा। इसीलिए मैं उसे ये हार देने जा रही थी, ताकि वो कोई छोटा-मोटा बिज़नेस शुरू कर सके और फिर आप मेरी उससे शादी करवा दें। लेकिन मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी।"


    रिया की बात सुनकर सुरभि ने कहा, "देखिए रमेश जी, ये आपका पारिवारिक मामला है, और मैं इसमें ज़्यादा नहीं बोलना चाहूँगी। लेकिन मैं चाहूँगी कि आप रिया की बात को समझने की कोशिश करें। वह सिर्फ़ अपने प्रेमी के साथ घर बसाना चाहती है। वरना आजकल तो लोग भागने पर यकीन रखते हैं, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसलिए इस मुद्दे को अगर आप लोग अपने तरीके से हैंडल करें, तो ज्यादा बेहतर रहेगा।"


    रमेश जी ने गहरी साँस ली और बोले, "ठीक है, बुलाओ उस लड़के को। हम उसकी काबिलियत के हिसाब से उसे अपनी कंपनी में एक जॉब देंगे। जब वह अपनी काबिलियत साबित कर देगा, तब तुम्हारी शादी उससे करवाएँगे।"


    रिया के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह बहुत खुश हो गई। उसने धीरे से सुरभि की तरफ देखा और इशारों में थैंक्यू कहा। सुरभि ने हल्का सा मुस्कुराकर अपनी पलकें झपकाईं और सिर हल्का-सा हिलाया।

  • 3. अजनबी साया - Chapter 3

    Words: 844

    Estimated Reading Time: 6 min

    केस सॉल्व हो गया था। सुरभि अपने घर जा रही थी। रास्ते में रेड लाइट पर उसकी गाड़ी रुकी। वह रेड लाइट खुलने का इंतज़ार कर रही थी, जब उसकी नज़र कॉर्नर पर एक खंभे पर गई। उस पर एक छोटा सा बोर्ड लगा हुआ था। उस पर लिखा था— "काला जादू, भूत-प्रेत से छुटकारा"।

    ये पढ़कर सुरभि को हंसी आ गई। लोग आज भी इन सब पर यकीन रखते हैं, इतना कि विज्ञापन के ज़रिए इसे दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं! कौन होगा जो इन सब चीज़ों को सच मानता होगा? भूत, प्रेत, चुड़ैल, आत्मा—ये सब कुछ नहीं होता। सुरभि इन बातों पर यकीन नहीं रखती थी। उसका मानना था कि जो चीज़ सामने है, वही सच्चाई है।

    रेड लाइट खुली, और सुरभि अपने घर की तरफ बढ़ गई। हमेशा की तरह घर पहुँचकर सुरभि अपने कमरे में गई। कपड़े बदलकर उसने नाइटसूट पहना और अपने केस की फाइल देखने लगी। क्योंकि यह एक प्राइवेट क्वार्टर था, इसलिए उसने यहाँ सिर्फ़ ज़रूरत का सामान ही रखा हुआ था। उसकी फैमिली दूसरे शहर में रहती थी, और उसकी पोस्टिंग मुंबई में हुई थी।

    खिड़की के पास रखी कुर्सी पर बैठकर वह फाइल देख रही थी, जब अचानक उसकी नज़र चांद पर चली गई। वह हैरान रह गई—आज का चांद कुछ अजीब था। गुलाबी रंग का...! सुरभि की आँखें हल्की सी सिकुड़ गईं। यह तो उसने पहली बार देखा था! गुलाबी चांद... ऐसा कैसे हो सकता है? और चांद का आकार भी आज कुछ बड़ा लग रहा था। वह थोड़ी हैरान हुई, लेकिन फिर इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और अपने काम में लग गई।

    थोड़ी देर बाद उसने फाइल बंद की और ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ी, जहाँ उसकी नाइट क्रीम रखी थी। उसने लोशन निकाला और हाथों पर लगाने लगी, तभी उसे ऐसा लगा जैसे खिड़की के पास कोई खड़ा हो...

    हालांकि यह पुलिस सर्विस क्वार्टर था, जहाँ किसी बाहरी व्यक्ति या चोर का आना नामुमकिन था। लेकिन फिर भी, एक पुलिस ऑफिसर होने के नाते, वह किसी की मौजूदगी को आसानी से भांप सकती थी।

    सुरभि चौंक कर खिड़की की तरफ देखी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। हल्की हवा चल रही थी, जिससे पर्दा उड़ रहा था। शायद इसी वजह से उसे ऐसा लगा होगा। हाथों पर लोशन लगाते हुए वह खिड़की के पास गई और आसपास नज़र दौड़ाई, पर उसे कोई नहीं दिखा।

    "शायद मुझे भ्रम हुआ होगा..." उसने खुद से कहा और वापस पलटी।

    तभी अचानक लाइट चली गई, और हर जगह अंधेरा छा गया। सुरभि को कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। उसने आगे बढ़कर अपना फ़ोन ढूँढने की कोशिश की, ताकि टॉर्च जलाकर रोशनी कर सके। लेकिन जैसे ही उसने एक कदम आगे बढ़ाया, उसे महसूस हुआ कि यह सिर्फ़ उसका भ्रम नहीं था।

    बहुत करीब... शायद उसके कानों के पास... साँसों की आहट थी!

    यह उसका भ्रम नहीं था। वह किसी भी चीज़ में धोखा खा सकती थी, लेकिन अपने आसपास किसी की मौजूदगी का एहसास कोई धोखा नहीं था!

    सुरभि चौंक कर पीछे पलटी—और तभी...रोशनी हो गई। लाइट वापस आ गई थी।

    उसने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई—लेकिन वहाँ कोई नहीं था! उसने अच्छी तरह देखा, पर कुछ भी नहीं मिला। बस, खिड़की खुली हुई थी...

    अपने इतने नज़दीक उसने साँसों की आवाज़ सुनी थी। सुरभि का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। यह उसके साथ पहली बार हो रहा था। इस तरह की अजीब चीज़ उसने पहले कभी अनुभव नहीं की थी। पर यह अचानक उसके साथ क्या हो रहा था?

    सुरभि जल्दी से खिड़की के पास गई। उसने खिड़की के पर्दे लगाए और अगले ही पल खिड़की का दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने लॉक को अच्छी तरह से लगा दिया।

    बेड पर जाने से पहले सुरभि ने एक पल के लिए उस जगह को फिर से देखा, जहाँ उसे वह साँसों की महक महसूस हुई थी। यह उसका कोई भ्रम नहीं था। उसने इस चीज़ को बहुत अच्छे से महसूस किया था। वह एक पुलिस ऑफिसर थी और बड़े-बड़े क्राइम केस उसने इसी आधार पर सॉल्व किए थे कि उसका सिक्स्थ सेंस बहुत तेज़ था। वह किसी भी क्रिमिनल की मौजूदगी को आसानी से भांप लेती थी। लेकिन इस वक़्त उसने कुछ अजीब महसूस किया था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई क़रीब तो है, लेकिन इस साँसों की महक में किसी इंसान के होने का एहसास नहीं हो रहा था...

    बहुत देर तक उसने उस जगह को देखा, लेकिन जब अपने दिल और दिमाग को यह तसल्ली दे दी कि शायद आज श्रापित हार के केस के बाद उसने इस चीज़ को बहुत ज़्यादा अपने दिमाग पर हावी कर लिया होगा, इसलिए उसे ऐसा अजीब लग रहा है... उसने इस बात को इग्नोर किया और चुपचाप बेड की तरफ़ बढ़ गई।

    एक नॉवेल उठाकर उसने पढ़ने का सोचा, ताकि जब तक उसे नींद न आए, वह उसमें व्यस्त रह सके। लेकिन जैसे ही उसने पढ़ना शुरू किया, उसकी नज़र बार-बार खिड़की की तरफ़ जा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे खिड़की के दूसरी तरफ़ से कोई उसे देख रहा हो। लेकिन वहाँ सिर्फ़ सफ़ेद पर्दे के अलावा उसे कुछ नज़र नहीं आ रहा था।

  • 4. भ्रम यह हकीकत - Chapter 4

    Words: 1007

    Estimated Reading Time: 7 min

    आखिरकार सुरभि को नींद आ गई और वह सो गई। वह बेफिक्र होकर सो रही थी, लेकिन हवाओं में कुछ अजीब-सी खुशबू थी... कुछ ऐसा, जिसे सुरभि ने महसूस तो किया था, लेकिन मानना नहीं चाहती थी।

    वह ब्लैंकेट, जो सुरभि के पैरों के पास था, अपने आप उसके ऊपर आ गया, और ठंड से कांपते उसके बदन को थोड़ी गर्मी का अहसास हुआ। वह नॉवेल, जिसे सुरभि ने बेड पर यूँ ही छोड़ दिया था, वह धीरे-धीरे अपनी जगह से खिसककर बेड की दूसरी तरफ चला गया।

    कमरे की लाइट अचानक ऑफ हो गई और इमरजेंसी लाइट जलने लगी।

    यह सब तब हुआ, जब सुरभि गहरी नींद में थी... उसका भ्रम, सिर्फ भ्रम नहीं था... खिड़की के पास एक साया था... जिसकी मौजूदगी सुरभि ने महसूस की थी।

    लेकिन कौन था यह साया?
    वह यहां क्या कर रहा था?
    और क्यों... वह सुरभि के करीब आ रहा था? यह सब आप जानेंगे कहानी में आगे...


    अगली सुबह...

    सुबह होते ही सुरभि तैयार होकर पुलिस हेडक्वार्टर पहुँची, जहाँ उसका अगला केस उसका इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही वह अपने केबिन में पहुँची, उसने देखा कि उसकी साथी ऑफिसर प्रीति पहले से वहाँ बैठी थी और उसका इंतज़ार कर रही थी।

    सुरभि को देखते ही प्रीति उठकर उसके पास आई और उसे गले लगाते हुए बोली, "कांग्रैचुलेशन्स! तुमने कल का केस इतनी जल्दी सॉल्व कर दिया कि डिपार्टमेंट तुमसे बहुत खुश है।"

    श्रापित हार के केस के बारे में सबको पता चल चुका था और हर कोई सुरभि की तारीफ कर रहा था कि उसने एक ही दिन में केस सॉल्व कर दिया।

    सुरभि मुस्कुराते हुए अपनी चेयर पर बैठ गई और प्रीति से बोली, "थैंक यू सो मच! लेकिन यह केस उतना बड़ा नहीं था, जितना मुझे बताया गया था।"

    प्रीति उत्सुकता से बोली, "अच्छा? अगर ऐसा था, तो तुमने पहले ही दिन में कैसे पता कर लिया कि वह हार श्रापित नहीं था, बल्कि उसे चुराने में किसी फैमिली मेंबर का ही हाथ था?"

    सुरभि हंसते हुए बोली, "क्योंकि उस हार का नाम ही अजीब था— श्रापित हार... अरे यार, भूत-प्रेत जैसी..."

    फिर भी, अपनी बात कहते-कहते वह रुक गई...

    कल रात जो उसके साथ उसके घर पर हुआ था, वह फिर से उसके ज़हन में घूमने लगा...

    उसने धीरे से प्रीति की तरफ देखा और पूछा, "प्रीति, क्या तुम भूत-प्रेत में यकीन रखती हो?"

    सुरभि की बात सुनकर प्रीति हैरान रह गई।

    "क्या?? क्या कहा तुमने?? भूत??"

    "सच में, सुरभि अग्निहोत्री... तुम भूतों की बात कर रही हो??"

    "कहीं श्रापित हार के केस ने तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब कर दिया?!"

    "जो तुम खुद अपने मुँह से भूत जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रही हो!"

    प्रीति की बात सुनकर सुरभि चिढ़ गई और झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली, "शट अप, प्रीति! हंसना बंद कर! मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ!"

    प्रीति मज़े लेते हुए हँसी, "क्या हुआ? किसी भूत ने आकर तुम्हें प्रपोज़ कर दिया है?"

    अब वह और ज़्यादा ज़ोर से हँसने लगी।

    सुरभि झुंझलाकर खड़ी हो गई और बोली, "मौत आ जाए पर ऐसा दिन न आए कि कोई भूत-प्रेत या चुड़ैल मुझ पर लट्टू होकर मुझे प्रपोज़ करे! दुनिया में लड़के खत्म हो गए हैं क्या, जो दूसरी दुनिया से कोई आकर मुझसे प्यार करेगा?"

    "मैं कुछ और कह रही हूँ!"

    सुरभि को सीरियस देखकर प्रीति ने अपनी हँसी कंट्रोल की और बोली, "अच्छा ठीक है, बताओ क्या हुआ?"

    सुरभि वापस बैठ गई और बोली, "मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे कमरे में कोई था... लेकिन हैरानी की बात यह थी कि वहाँ कोई भी नहीं था। पर मुझे किसी की साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी... और वह भी बहुत करीब से।"

    "और हाँ, मैं कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं बना रही हूँ! जो एक्सपीरियंस किया है, वही बता रही हूँ..."

    सुरभि की बात सुनकर प्रीति थोड़ी हैरान हो जाती है, क्योंकि सुरभि एक बहुत अच्छी और ईमानदार पुलिस ऑफिसर थी। वह इस तरह का मज़ाक नहीं करेगी, और वह भी ऐसी चीज़ को लेकर तो बिल्कुल नहीं। प्रीति कुछ सोच रही थी, और सुरभि भी इस बारे में फिर से एक बार सोचने की कोशिश कर रही थी कि तभी केबिन का दरवाज़ा खुलता है...

    इस बार सुरभि और प्रीति के साथ काम करने वाला उनका साथी ऑफिसर विक्रम अंदर आता है। वह सुरभि और प्रीति को एक साथ देखते हुए कहता है, "सुरभि, प्रीति, अच्छा हुआ तुम दोनों मुझे एक साथ मिल गईं। कमिश्नर साहब ने हम तीनों को अपने केबिन में बुलाया है।"

    सुरभि और प्रीति दोनों ने अपनी पुलिस की टोपी उठाई और विक्रम के साथ कमिश्नर के केबिन में चली गईं। वे तीनों कमिश्नर के सामने खड़े होते हैं और एक साथ सैल्यूट करते हैं। कमिश्नर सिर हिलाते हैं और फिर सुरभि की तरफ देखते हुए कहते हैं, "कांग्रैचुलेशन्स, सुरभि! श्रापित हार का केस तुमने बहुत जल्दी सॉल्व कर लिया है। डिपार्टमेंट को तुम पर नाज़ है, और मैं इस साल सरकार से तुम्हारी बहादुरी के लिए तुम्हें मेडल दिलवाने की पूरी कोशिश करूँगा।"

    सुरभि मुस्कुराते हुए कहती है, "थैंक यू, सर! मैं तो बस अपना फ़र्ज़ निभा रही थी।"

    इसके बाद कमिश्नर साहब थोड़े गंभीर होते हुए बोले, "सुरभि, प्रीति, विक्रम! मैं तुम तीनों को यहाँ एक साथ इसलिए बुलाया है, क्योंकि हमारे पास श्रापित हार से भी बड़ा और खतरनाक केस आया है। और मुझे ऊपर से ऑर्डर मिले हैं कि इस केस को जल्द से जल्द सुलझाया जाए। इसीलिए मैं अपने डिपार्टमेंट के सबसे होनहार ऑफ़िसर्स को इस काम के लिए भेज रहा हूँ... यानी कि तुम तीनों को।"

    तीनों ने एक साथ सिर हिलाया। इसके बाद कमिश्नर साहब ने अपने टेबल से एक रिमोट उठाकर सामने की स्क्रीन पर कुछ चलाया। जैसे ही सुरभि की नज़र स्क्रीन पर गई, वह एकदम से हैरान रह गई। स्क्रीन पर कुछ लोगों की तस्वीरें थीं, लेकिन शायद अब वे लोग ज़िंदा नहीं थे। ये मरे हुए लोगों की तस्वीरें थीं, जिनकी आँखें बंद थीं और चेहरा पूरी तरह पीला पड़ चुका था। पर हैरानी की बात यह थी कि उन तस्वीरों में उनके गले पर एक अजीब निशान था।

    और वह कोई मामूली निशान नहीं था... बल्कि तीखे और नुकीले दांतों के गहरे निशान थे!

  • 5. Haunted House - Chapter 5

    Words: 979

    Estimated Reading Time: 6 min

    जैसे ही कमिश्नर सर ने स्क्रीन पर तस्वीरें दिखाईं, वहाँ तीन तस्वीरें थीं—दो मर्दों की और एक लड़की की। लेकिन वे तीनों मरे हुए थे, और उनका पूरा चेहरा सफेद पड़ा हुआ था। सुरभि, प्रीति और विक्रम हैरानी से उन तस्वीरों को देख रहे थे। जैसे ही सुरभि की नज़र उन पर गई, उसकी आँखें हल्की-सी सिकुड़ गईं।

    क्योंकि तस्वीरों में सबसे अजीब चीज़ यह थी कि उन तीनों का चेहरा इतना सफेद पड़ चुका था, जैसे उनके शरीर में खून की एक बूंद तक नहीं बची हो।

    "यार, इन तीनों के चेहरे इतने सफेद क्यों हैं? और इनके गले पर ये कैसे निशान हैं?" प्रीति धीरे से बोली।

    प्रीति ने भले ही यह बात धीरे से कही हो, लेकिन विक्रम और सुरभि ने उसे सुन लिया। तुरंत ही दोनों का ध्यान उन तस्वीरों में दिख रहे शवों की गर्दन पर गया। उन्होंने गौर किया कि प्रीति सही कह रही थी—उन तीनों के गले पर अजीब-से निशान थे।

    "किसी कीड़े ने काटा है क्या?" विक्रम ने तस्वीरों को और ध्यान से देखकर थोड़ा झिझकते हुए बोला।

    मरे हुए लोगों के पूरे शरीर सफेद पड़ चुके थे, बस उनके गले पर वे अजीब निशान थे, जिन्हें देखकर विक्रम को लग रहा था कि शायद किसी जहरीले कीड़े ने काटा हो। लेकिन उन तीनों के गले पर एक ही जगह एक जैसे निशान होना, सुरभि को कुछ खटक रहा था। वह अपनी जगह से उठकर सीधे स्क्रीन के पास आई और गौर से एक-एक तस्वीर को ऑब्जर्व करने लगी। जैसे ही उसे एहसास हुआ कि ये क्या है, वह एकदम से चौंक गई।

    वह तेजी से पलटी और विक्रम और प्रीति की तरफ देखते हुए बोली, "ये दाँत के निशान हैं!"

    विक्रम और प्रीति उसकी बात सुनकर सन्न रह गए। उन्होंने फिर से तस्वीरों को देखा। सुरभि जल्दी से उनके पास आई और बोली, "हाँ, ये दाँत के निशान ही हैं! और इन लोगों के चेहरे इसलिए सफेद पड़े हैं क्योंकि इनके शरीर में खून नहीं बचा। ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने इनके शरीर से खून की आखिरी बूंद तक चूस ली हो!"

    सुरभि की बात सुनकर विक्रम और प्रीति के चेहरे पर डर की लकीरें खिंच गईं। लेकिन तभी कमिश्नर सर्वेश बोले, "हाँ, सुरभि, तुम गलत नहीं हो। इन तीनों के शरीर में खून नहीं है, और ये जो निशान तुम देख रही हो, ये नुकीले दाँतों के ही निशान हैं।"

    तीनों ने हैरानी से कमिश्नर की तरफ देखा।

    "और यही तुम्हारा अगला केस है... लोनावला के पास एक इलाके से खबर आ रही है कि कुछ दिनों से वहाँ लोग गायब हो रहे हैं। पुलिस ने उनकी तलाश की, लेकिन जब भी वे मिले, तो उनकी लाशें ऐसी ही हालत में पाई गईं। ये तस्वीरें तो उन लोगों की हैं, जो पिछले दो-तीन दिनों में मिले हैं। इससे पहले जिनकी लाशें मिलीं, उनकी हालत तो इससे भी ज्यादा खराब थी..." कमिश्नर ने गंभीर आवाज़ में कहा। उन्होंने थोड़ा रुककर गहरी सांस ली और आगे बोले, "लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इन सभी लाशों को या तो 'हॉन्टेड हवेली' में पाया गया है, या फिर उसके आसपास के इलाके में!"

    वे तीनों कमिश्नर साहब की बातें बहुत ध्यान से सुन रहे थे। तभी प्रीति ने कुछ सोचते हुए घबराई हुई नजरों से कमिश्नर साहब को देखा और कहा, "सर, जिस तरीके का ये केस है, कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें किसी पिशाच का हाथ हो?"

    कमिश्नर साहब प्रीति की तरफ देखने लगे, जबकि विक्रम और सुरभि हैरानी से उसे देखने लगे। सुरभि को तो हंसी आ रही थी, लेकिन उसने कमिश्नर के सामने अपनी हंसी कंट्रोल कर ली। जहां एक तरफ सुरभि को यह मज़ाक लग रहा था, वहीं दूसरी तरफ कमिश्नर सर को कोई हंसी नहीं आ रही थी। उन्होंने सुरभि की बातों को गंभीरता से लिया और बोले, "तुम गलत नहीं हो, लोगों का भी यही कहना है।"

    सुरभि एकदम से चौंक गई और कमिश्नर साहब को देखने लगी। "इतने बड़े अफसर होकर और इतनी ऊंची पोस्ट पर रहते हुए भी आप इन चीजों पर यकीन रखते हैं?" विक्रम भी थोड़ा हैरान था। कमिश्नर सर गंभीरता से उन्हें देखते हुए बोले,

    "मुझे पता है कि डिपार्टमेंट इन सब बातों पर यकीन नहीं करता और ये सब बेबुनियाद लगती हैं। लेकिन इस इलाके में ज़रूर कुछ ऐसा है, जो रहस्यमयी है। ये हॉन्टेड हवेली काफी समय से बंद पड़ी है और लोगों का मानना है कि ये एक शापित हवेली है। कुछ समय से लोगों ने इस हवेली के आसपास एक अनजानी परछाई देखी है, और फिर अचानक से लोग गायब हो रहे हैं। जब मिलते हैं, तो उनकी लाशें सफेद और पीली पड़ी होती हैं, और गले पर ये अजीब दांतों के निशान होते हैं। ये सब सिर्फ एक ही चीज़ की तरफ इशारा कर रहा है—वैंपायर।"

    सुरभि ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला। उसने हल्की-सी हंसी कंट्रोल करते हुए कमिश्नर सर को देखा और बोली, "सॉरी सर, मैं इस मामले में हंसना नहीं चाहती थी, लेकिन आप ऐसी बातें कर रहे हैं कि मेरी हंसी छूट रही है। वैंपायर जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं। ये ज़रूर किसी इंसान का काम है। और ये जो दांतों के निशान हैं, वो किसी ने जानबूझकर किसी कीड़े से बनवाए होंगे ताकि लोगों को लगे कि ये किसी वैंपायर का काम है। वैंपायर जैसी चीज़ हकीकत में मौजूद नहीं होती। हम पुलिस वाले हैं, हमारे पास दिन-रात अलग-अलग केस आते हैं, हमें इन सब बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए।"

    "मुझे पता है, सुरभि, कि तुम इन सब चीजों पर यकीन नहीं रखती हो। इसी वजह से तुम्हें ही इस तरह के केस सौंपे जाते हैं। इसीलिए डिपार्टमेंट ने तुम्हें इस केस के लिए हायर किया है, ताकि तुम वहां जाकर पता करो कि ये किसी वैंपायर का काम है या किसी इंसान का। मैं तुम्हें इस केस का इंचार्ज बनाता हूँ, और विक्रम और प्रीति तुम्हारे साथ जाएँगे।" कमिश्नर साहब बोले।

  • 6. दानवी शक्ति- Chapter 6

    Words: 894

    Estimated Reading Time: 6 min

    "क्या?! " प्रीति एकदम घबरा गई और चौंककर बोली, "सर, लेकिन मैं क्यों? मुझे क्यों जाना है? सुरभि जा रही है ना, सॉल्व कर लेगी। उसने श्रापित हार का केस भी तो एक दिन में सॉल्व कर लिया था, तो ये वैम्पायर वाला केस भी चुटकियों में निपटा देगी। आप मुझे कोई दूसरा केस दे दीजिए, मैं उसे सॉल्व कर लूंगी!"

    सुरभि और विक्रम को उसकी बातों पर हँसी आ गई, लेकिन कमिश्नर साहब गुस्से में बोले, "बिल्कुल नहीं! तुम इस केस में सुरभि की मदद करोगी और उसके साथ रहोगी। और दिस इज़ एन ऑर्डर!"

    इसके बाद कमिश्नर साहब विक्रम की तरफ देखे, तो विक्रम जल्दी से बोला, "मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, सर! मैं सुरभि की हेल्प करने के लिए तैयार हूँ। और ये केस मेरी जिंदगी का भी एक अहम केस है, क्योंकि आज तक मैंने इस तरह का अजीब केस कभी हैंडल नहीं किया।"

    कमिश्नर साहब हल्की मुस्कान के साथ बोले, "ठीक है, तो आप तीनों कल लोनावला के लिए निकल जाइए। डिपार्टमेंट से जो भी मदद चाहिए हो, फोन करके बता दीजिएगा, हम तुरंत आपकी सहायता करेंगे।"

    वे तीनों हाँ में सर हिलाकर सैल्यूट करके केबिन से बाहर निकल गए। सुरभि इस केस को लेकर बहुत एक्साइटेड थी। आज तक उसने भूत-प्रेत से जुड़े कई केस सॉल्व किए थे, यहाँ तक कि यूँ कहा जाए कि ऐसे केस खुद-ब-खुद उसी के पास आ जाते थे। हर बार गुनहगार कोई इंसान ही निकलता था, लेकिन ये केस कुछ अलग था। इसमें भूत-प्रेत की नहीं, बल्कि पिशाच और वैम्पायर की बात हो रही थी। इसी वजह से सुरभि इस केस को लेकर और भी ज्यादा एक्साइटेड थी।

    बाहर आकर विक्रम और सुरभि, प्रीति को मंद-मंद मुस्कुराते हुए देखने लगे। प्रीति गुस्से में उन्हें घूरते हुए बोली, "अगर तुम दोनों ने हँसना बंद नहीं किया ना, तो मैं रास्ते में ही भाग जाऊँगी!"

    जहाँ एक तरफ विक्रम मुस्कुरा रहा था, वहीं सुरभि खुलकर हँसने लगी। उसने हँसते हुए प्रीति के गले में हाथ डाले और उसके साथ चलते हुए बोली, "अरे मेरी जान, तू नाराज़ क्यों हो रही है? हमने तो नहीं कहा था कमिश्नर साहब को कि तुझे हमारी टीम में शामिल करें। ये तो ऊपर से ऑर्डर मिले थे, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन हाँ, एक काम है जो हम कर सकते हैं।"

    "वो क्या?" प्रीति ने उसे घूरकर पूछा।

    सुरभि मुस्कुराते हुए बोली, "तू हमारे साथ तो चल ही रही है, लेकिन हॉन्टेड हाउस में हम ही अंदर जाएँगे। तू सिर्फ़ वो काम करना जिसमें भूत-प्रेत वाला कोई झंझट न हो, जैसे—जो लोग मरे हैं, उनके परिवारवालों से पूछताछ करना, मिले हुए सबूतों की डिटेल बनाना और आसपास के इलाके में जाकर अजीब घटनाओं की जानकारी जुटाना। बस, इतना तो कर लेगी ना?"

    प्रीति ने राहत की साँस लेते हुए कहा, "हाँ, ये मैं कर सकती हूँ!"

    विक्रम भी हँस पड़ा। इसके बाद वे तीनों घर चले गए, क्योंकि उन्हें पैकिंग करनी थी और अगले दिन लोनावला के लिए निकलना था।


    रात को सुरभि अपने घर में थी। वह आईने के सामने खड़ी थी, उसके बालों से हल्की-हल्की पानी की बूँदें टपक रही थीं। उसने हेयर ड्रायर उठाया और जैसे ही बाल सुखाने के लिए उसे चालू करने वाली थी, अचानक खिड़की खुल गई और तेज़ हवा का झोंका कमरे में आ गया।

    सुरभि के गीले बाल हवा में लहराने लगे। वह हैरानी से पीछे मुड़ी। कमरे में तेज़ हवा के साथ सूखे पत्ते भी उड़कर आ गए थे। उसने सामने की तरफ देखा, लेकिन कोई नहीं था। गुस्से में वह खिड़की के पास गई और इधर-उधर देखने लगी। जब कोई नज़र नहीं आया, तो उसने चिल्लाकर कहा, "कौन है? सामने आओ!"

    लेकिन कोई जवाब नहीं आया। तभी उसकी नज़र गली के दूसरे कोने पर पड़ी। वहाँ एक परछाई खड़ी थी।

    सुरभि का गुस्सा बढ़ गया। उसने जल्दी से अपनी गन उठाई और तेज़ी से बाहर निकल गई। वह उस परछाई का पीछा करने लगी। गली खत्म हो चुकी थी, लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ती रही। धीरे-धीरे वह अपनी बिल्डिंग से बाहर एक मैदान में आ गई, लेकिन वहाँ उसे कोई नज़र नहीं आया।

    उसने गुस्से में चारों तरफ देखा और चिल्लाई, "जो कोई भी हो, मेरे सामने आओ! इस तरह छिपकर वार मत करो, सामने आकर मुकाबला करो!"

    तभी अचानक, ज़मीन में दरारें पड़ने लगीं...

    सुरभि एकदम से हैरान रह गई। उसने अपने कदम पीछे लेने शुरू किए, लेकिन जैसे-जैसे वह पीछे हट रही थी, वह डरावनी दरारें उसकी तरफ और ज्यादा बढ़ती जा रही थीं।

    वैसे तो सुरभि एक निडर पुलिस ऑफिसर थी, लेकिन यह नज़ारा देखकर वह थोड़ा घबरा गई। यहाँ न तो भूकंप आ रहा था और न ही आसपास की कोई बिल्डिंग हिल रही थी—सिर्फ उसके पैरों तले ज़मीन फट रही थी!

    सुरभि ने जल्दी से पीछे हटते हुए अपनी गन निकाल ली। तभी उन दरारों से अचानक कई मोटी-मोटी टहनियाँ बाहर निकलने लगीं!

    ये कोई आम टहनियाँ नहीं थीं। ये बड़ी-बड़ी, काँटेदार बेलें थीं, जो किसी दानवी शक्ति की तरह उसके चारों ओर लहराने लगीं।

    सुरभि ने एक-दो बेलों पर हमला किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अचानक एक बेल ने उसके पैर जकड़ लिए!

    सुरभि ने खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बाकी की बेलें भी तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ने लगीं। वह उसे चारों तरफ से जकड़ने ही वाली थीं कि अचानक एक तेज़ परछाई आई और उसे खींच लिया!

    सुरभि जोर से चीख पड़ी... और अगले ही पल ज़मीन पर गिर गई।

  • 7. मेहरानगढ़ - Chapter 7

    Words: 813

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुरभि ज़मीन पर गिरी हुई थी। उसने जल्दी से अपनी आँखें खोलीं और देखा कि वह अपने कमरे में थी और बेड से ज़मीन पर गिर गई थी। 🤦🏻‍♀️

    कुछ नहीं, सुरभि ने बस एक सपना देखा था—वह एक खाली मैदान में खड़ी थी, और अचानक ज़मीन फट गई। उसमें से बड़ी-बड़ी बेल उसकी तरफ़ बढ़ने लगी थीं। लेकिन उसे जो आखिरी चीज़ याद थी, वह यह कि किसी ने उसे उन खतरनाक बेलों में गिरने से बचाया था। वह मज़बूत हाथ, जो उसकी कमर पर आया और उसे वहाँ से हटा दिया था... उसने उस स्पर्श को महसूस किया था। और उस खुशबू को भी, जो पहले भी कहीं महसूस की थी। यह सब एक पल में हुआ था, लेकिन सुरभि समझ गई थी कि यह सपना ज़रूर किसी संकेत की तरह है।


    "उठ गई महारानी?"


    जैसे ही सुरभि ने यह आवाज़ सुनी, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, और वह झट से पलटी।
    "माँ!" सुरभि चिल्लाते हुए बोली और जल्दी से खड़ी हो गई। सामने प्रियंका अग्निहोत्री, यानी उसकी माँ, खड़ी थीं।


    सुरभि माँ के पास आई और हैरानी से बोली, "माँ, आप यहाँ? और आपने बताया क्यों नहीं कि आप आने वाली हैं?"


    प्रियंका जी गुस्से में बोलीं, "बताया क्यों नहीं? नालायक लड़की! जब तुझे फोन करूँ, तो तू किसी केस में उलझी रहती है। कहीं बिज़ी रहती है, ठीक से बात नहीं करती। मैसेज का जवाब तक नहीं देती! वहाँ तेरे पापा और मैं इतने परेशान हो गए थे। पिछले दस दिन से तुझसे ठीक से बात तक नहीं हो पा रही थी, और तू पूछ रही है कि बताया क्यों नहीं?"


    माँ की गुस्से भरी बातें सुनकर सुरभि ने माथा पकड़ लिया। फिर बोली, "माँ, आप यहाँ इतनी दूर सिर्फ़ यह बताने आई हैं? अरे, मैं केस में बिज़ी थी! बैक-टू-बैक तीन केस सॉल्व कर रही थी। और आप यहाँ इतनी दूर अकेली आ गईं? कम से कम बताना तो चाहिए था! मैं आपको मना कर देती, क्योंकि मैं खुद कहीं निकल रही हूँ।"


    प्रियंका जी हैरानी से बोलीं, "कहाँ जा रही है?"
    "बिल्कुल नहीं! तू डिपार्टमेंट से कह दे कि कहीं नहीं जाएगी!"


    सुरभि ने झट से जवाब दिया, "हाँ, डिपार्टमेंट तो मेरा रिश्तेदार है ना, जिसे कह दूँगी और वह मान लेगा? माँ, मैं पुलिस ऑफिसर हूँ। मुझे ऊपर से ऑर्डर मिले हैं। मेरा जाना पहले से तय है। आप यहाँ आराम से रहिए, आपकी पड़ोस वाली आंटी हैं ना, वह आपकी देखभाल कर लेंगी। मैं एक हफ्ते में वापस आ जाऊँगी।"


    प्रियंका जी जल्दी से बोलीं, "अच्छा, बस एक हफ्ते के लिए जा रही है? फिर तो ठीक है। लेकिन तू जा कहाँ रही है?"


    सुरभि अलमारी से कपड़े निकालते हुए बोली, "लोनावला के पास एक पुराना इलाका है—मेहरानगढ़। वहाँ एक हॉन्टेड हवेली है। कुछ दिनों से वहाँ लोग अचानक गायब हो रहे थे, और जब मिलते थे तो उनकी लाशें मिलती थीं। हमारी टीम को इस इन्वेस्टिगेशन के लिए वहाँ जाना है।"


    प्रियंका जी की आँखें बड़ी हो गईं। वह घबराई और गुस्से में बोलीं, "क्या पागल हो गई है? तुझे पता भी है कि उस हॉन्टेड हवेली में पिशाच रहते हैं?"


    सुरभि के हाथ रुक गए। उसने चौंककर माँ की तरफ़ देखा और पूछा, "आपको कैसे पता?"


    प्रियंका जी ने माथा पीट लिया और बोलीं, "मुझे कैसे पता? क्योंकि यहाँ आते वक्त पूरे बस में बस यही बातें हो रही थीं! वहाँ के लोग कह रहे थे कि उस इलाके में कोई पिशाच रहता है, क्या बोलते हैं उसे? हाँ, 'वैंपायर'! वह लोगों का खून चूसता है! तू इतनी खतरनाक जगह क्यों जा रही है? मना कर दे अभी! कोई ज़रूरत नहीं वहाँ जाने की! अगर वैंपायर ने तुझे नुकसान पहुँचा दिया तो?"


    सुरभि हँसकर बोली, "तो यह है ना आपका दिया हुआ सुरक्षा कवच! मैं इसे वैंपायर के सामने कर दूँगी, और वह नौ-दो-ग्यारह हो जाएगा!" उसने अपने हाथ पर बंधा हुआ रक्षा का कलावा दिखाते हुए कहा।


    लेकिन प्रियंका जी इतनी आसानी से कहाँ मानने वाली थीं? माँ तो माँ होती है, अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है। गुस्से में बोलीं, "तू इसे मज़ाक समझ रही है? एक तो तू वहाँ पिशाचों के बीच जा रही है, और ऊपर से कह रही है कि यह धागा तेरी हिफ़ाज़त करेगा?"


    सुरभि हँसते हुए बोली, "माँ, अगर यह धागा मेरी हिफ़ाज़त नहीं करेगा, तो इसे बाँधा ही क्यों है? और आपको किसने कहा कि मैं वहाँ पिशाचों के बीच जाकर पार्टी करने वाली हूँ? अरे, यह सब मनगढ़ंत बातें हैं! कोई पिशाच नहीं होता और वहाँ भी कुछ नहीं है। मैंने आपको बताया था ना, मेरे पास पहले भी ऐसे बहुत सारे केस आए हैं, जिनमें भूत-प्रेत और चुड़ैलों की बातें हुई हैं। लेकिन आखिर में क्या हुआ? ऐसा तो कुछ भी नहीं होता! यह सारी घटनाएँ किसी इंसान की करतूत होती हैं, और यह वाली घटना भी किसी इंसान की ही है। बस लोगों को डराने और उन्हें दूर रखने के लिए पिशाच और वैंपायर की कहानियाँ फैला दी गई हैं।"

  • 8. एक श्रापित इलाका - Chapter 8

    Words: 916

    Estimated Reading Time: 6 min

    प्रियंका जी ने जब देखा कि सुरभि मानने को तैयार नहीं है, तो कुछ सोचते हुए कमरे से बाहर चली गईं। थोड़ी देर बाद जब वे वापस आईं, तो देखा कि सुरभि अपना सामान पैक कर चुकी थी। उन्होंने सुरभि की तरफ़ एक पैकेट बढ़ाते हुए कहा, "इसे अपने साथ रखना।"


    सुरभि को अजीब सी महक आई। उसने हैरानी से प्रियंका जी के हाथ में पकड़े पैकेट को देखा और जब उसने उसे खोला, तो वह एकदम पीछे हट गई। मुँह बनाते हुए बोली, "छी! मम्मी, मैं ये लहसुन अपने साथ नहीं रखूँगी! कितनी गंदी बदबू आ रही है इसमें से!"


    लेकिन प्रियंका जी कहाँ मानने वाली थीं। उन्होंने सुरभि के सूटकेस में कपड़ों के बीच लहसुन का पैकेट रखते हुए कहा, "चुपचाप इसे अपने साथ रख! अगर तुझे वहाँ जाना है, तो ये तेरे साथ जाएगा, वरना मैं तुझे यहाँ से जाने नहीं दूँगी। इसके लिए भले ही तेरी नौकरी ही क्यों ना छूट जाए!"


    सुरभि ने बेचारा सा मुँह बनाया और ना चाहते हुए भी उसे बदबूदार लहसुन को अपने साथ रखना ही पड़ा। पर उसने उसे अपने कपड़ों के बीच रखने के बजाय, सूटकेस में दूसरी जगह रख दिया, ताकि उसकी स्मेल बाकी कपड़ों में ना लग जाए।


    सुरभि ने प्रियंका जी को बताया था कि वह अकेली नहीं जा रही है, प्रीति और विक्रम भी उसके साथ जा रहे हैं। इसी वजह से प्रियंका जी किचन में जाकर उनके सफ़र के लिए कुछ खाने का सामान तैयार करने लगीं।


    आख़िरकार वे लोग गाड़ी में बैठकर लोनावला की तरफ़ निकल पड़े।


    मुंबई और लोनावला के बीच एक छोटा सा इलाक़ा था – मेहरानगढ़, जो कभी अंग्रेजों के अय्याशियों का अड्डा हुआ करता था। वहाँ बड़े-बड़े अंग्रेज अफ़सर हिंदुस्तान के कोने-कोने से खूबसूरत लड़कियों का अपहरण कर लाते और हवेली के अंदर उनके साथ घिनौने अपराध करते। कई लड़कियों ने इस यातना से बचने के लिए खुद अपनी जान दे दी थी।


    अंग्रेजों के जाने के बाद उस जगह की कस्टडी वहाँ के लोकल नेताओं ने ले ली। लेकिन तब भी वहाँ वही सब चलता रहा। धीरे-धीरे हवेली का इस्तेमाल अवैध हथियारों और ड्रग्स डीलिंग के लिए होने लगा।


    फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसने इस किले को श्रापित बना दिया।


    अचानक वहाँ लोग मरने लगे। धीरे-धीरे मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई कि इस हवेली को हॉन्टेड घोषित करके उसे बंद कर दिया गया। इलाक़े के सारे लोगों को वहाँ से हटा दिया गया। अब वहाँ सिर्फ़ एक खंडहरनुमा हवेली और घने जंगल थे।


    हालाँकि, लोनावला के पास होने की वजह से वहाँ की दूसरी जगहें देखने लायक थीं—पहाड़, झरने, बहती नदियाँ, जो इस इलाक़े को खुशनुमा बनाती थीं। पास में ही एक छोटा सा शहर बसा था, जहाँ के खूबसूरत घर लोगों को आकर्षित करते थे। वहाँ की फूलों की दुकानें भी पर्यटकों का ध्यान खींचती थीं। पहाड़ी इलाक़ा होने की वजह से लोग इन घरों की वास्तुकला से भी प्रभावित होते थे।


    लेकिन... मेहरानगढ़ जाने की इजाज़त किसी को नहीं थी, क्योंकि लोगों ने उसे हॉन्टेड घोषित कर दिया था।


    सुरभि अपनी टीम के साथ मेहरानगढ़ पहुँच गई। वे लोग गवर्नमेंट क्वार्टर में ठहरे, जो हॉन्टेड हवेली के सबसे पास था। स्टाफ़ को पहले से ही सुरभि और उसकी टीम के आने की जानकारी थी, इसलिए उनके लिए पहले से ही इंतज़ाम कर दिए गए थे।


    लेकिन...एक अजीब बात थी, जो सुरभि और उसकी टीम ने यहाँ आते हुए सुनी थी—मरे हुए लोग और वैंपायर की कहानियाँ।


    सबको पता चल गया था कि पुलिस ने इस केस को अपने हाथ में ले लिया है और अब जल्द से जल्द अपराधी पकड़ा जाएगा। लेकिन कुछ लोगों का मानना यह भी था कि पुलिस ने इसे अपने हाथ में लेकर बहुत बड़ी गलती कर दी है, और वह वैंपायर उन्हें भी मार देगा।


    प्रीति को भले ही थोड़ा डर लग रहा था, लेकिन विक्रम और सुरभि बिलकुल भी नहीं डरे थे। वे तीनों इस वक़्त अपने-अपने कमरों में थे। प्रीति तो चादर तानकर सो गई थी, लेकिन विक्रम उन बातों की एक रिपोर्ट तैयार कर रहा था, जो उसने लोगों से सुनी थीं, ताकि असल मुद्दे तक पहुँच सके और यह तय कर सके कि शुरुआत कहाँ से करनी है।


    वहीं दूसरी तरफ़, सुरभि अपने कमरे की खिड़की पर खड़ी थी। उसका कमरा मेहरानगढ़ के जंगल की तरफ़ खुलता था। उसे दूर जंगल में हल्की-सी रोशनी नज़र आ रही थी। हालाँकि, घने पेड़ों के बीच से उसे ठीक से दिख नहीं रहा था कि वहाँ क्या है, लेकिन वहाँ कुछ तो था, तभी वहाँ रोशनी की हल्की झलक नज़र आ रही थी।


    कल सुबह होते ही वह लोकल मार्केट जाकर इस बारे में पता करने की सोच रही थी। फिर वह वापस अपने कमरे में आई। अभी तक उसने अपना बैग नहीं खोला था। जैसे ही उसने बैग उठाया, उसे एहसास हुआ कि उसके कमरे में चार लाइट्स थीं, लेकिन उनमें से तीन बंद हो चुकी थीं! यह देखकर सुरभि अचानक से हैरान रह गई। कमरे में बस एक हल्की रोशनी थी, जो उसे थोड़ी राहत दे रही थी।


    तभी उसे अचानक अपने पीछे किसी की साँसों की महक महसूस हुई। उसे साफ़ एहसास हुआ कि उसके पीछे कोई खड़ा है और साँस ले रहा है...


    दरवाज़ा बंद था। लेकिन यह पहली बार नहीं था जब सुरभि ने ऐसा कुछ महसूस किया था। और यह कोई उसकी कल्पना नहीं थी।


    वह तुरंत अपने पर्स के अंदर हाथ डालती है और अगले ही पल अपनी गन निकालकर पीछे की तरफ़ तान देती है।


    "Hands up!"


    ...और जो उसने देखा, उसे देखकर उसकी आँखें एकदम बड़ी हो जाती हैं!

  • 9. Surabhi meet vampire - Chapter 9

    Words: 1003

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसकी आँखें गहरी काली थीं। गोरा, दूध-सा सफेद चेहरा और होंठ इतने लाल थे, जैसे उन पर लाल रंग ने खुद अपना बसेरा कर लिया हो। रेशमी बाल, जो चोटी में पीछे बँधे हुए थे, लेकिन फिर भी उसके गालों पर एक लट झूल रही थी, और कुछ लटें उसके माथे पर भी घूम रही थीं। इतने खूबसूरत और रेशमी बाल तो लड़कियों के भी नहीं होते। पर शरीर की बनावट से वह काफी आकर्षक और एथलेटिक था—लंबा, दुबला-पतला लेकिन मजबूत काया वाला। यह शख्स, जो उस समय सुरभि के सामने खड़ा था, उसकी कसी हुई बॉडी के ऊपर से ही दिख रहा था कि इसकी पर्सनैलिटी बेहद डैशिंग और हैंडसम है। वह इतना ज्यादा आकर्षक और प्रभावशाली लग रहा था कि खुद सुरभि भी उसकी गहरी काली आँखों में देखने से खुद को नहीं रोक पाई।


    अपने सामने खड़े इस हैंडसम शख्स को देखकर सुरभि एक पल के लिए ब्लैंक हो गई, लेकिन जब होश में आई तो उसने देखा कि इतनी रात को एक अजनबी उसके कमरे में खड़ा है। उसने ब्लैक कलर का मोटा ओवरकोट पहना हुआ था। इतनी गर्मी में इतना भारी ओवरकोट? पर अपने ख्यालों को झटकते हुए सुरभि ने जल्दी से दरवाजे की तरफ देखा और हैरान रह गई—दरवाजा अभी भी अंदर से लॉक था! लेकिन यह शख्स अंदर कैसे आया? क्या वह पहले से ही अंदर था? या फिर कोई चोर… कोई क्रिमिनल?


    सुरभि ने जल्दी से अपनी गन पकड़ ली और उस शख्स पर तानते हुए कहा,
    "कोई होशियारी करने की कोशिश मत करना, मैं शूट कर दूँगी!"


    उस शख्स के चेहरे पर हल्की, तिरछी मुस्कान आ गई। वह अपनी जगह से बिल्कुल भी नहीं हिला। चुपचाप वहीं खड़ा रहा, बस गहरी काली निगाहों से सुरभि के हल्के घबराए चेहरे को देखता रहा।


    "कौन हो तुम?" सुरभि ने खुद को सँभालते हुए पूछा। हालाँकि, अब उसे हल्की घबराहट महसूस हो रही थी। उसके हाथ भी हल्के काँप रहे थे, लेकिन एक पुलिस ऑफिसर होने के नाते उसने ना तो अपनी हिम्मत टूटने दी और ना ही अपने हौसले को।


    "दैत्य।"


    एक मीठी, सरल आवाज उसके कानों में पड़ी। उस इंसान ने बस अपने होंठ हल्के से खोले और केवल यह नाम लिया था, लेकिन उसकी आवाज इतनी पतली और मधुर थी कि सुरभि एकदम सम्मोहित हो गई। उसने जल्दी से उस आदमी को ऊपर से नीचे तक देखा। यह शख्स थोड़ा अजीब जरूर लग रहा था, लेकिन यह कहना क्या चाहता है?


    "मेरे साथ मजाक मत करो! कौन हो तुम और मेरे कमरे में क्या कर रहे हो?" सुरभि गुस्से में घूरते हुए बोली।


    उस शख्स ने मुस्कुराते हुए सुरभि को देखा और कहा,
    "सच में जानना चाहती हो कि मैं कौन हूँ?"


    "तो तुम्हें क्या लग रहा है, मैं मजाक कर रही हूँ? चुपचाप बताओ कौन हो तुम, इससे पहले कि मैं तुम्हें अरेस्ट कर लूँ! एक पुलिस ऑफिसर के कमरे में चोरी-छिपे घुसने की हिम्मत कैसे की?" सुरभि गुस्से में बोली।


    दैत्य मुस्कुराया, उसकी आँखें चमक उठीं। वह सुरभि को देखते हुए बोला,
    "मेरा नाम दैत्य सम्राट है… और मैं एक पिशाच हूँ। तुम लोगों की भाषा में कहूँ तो… वैंपायर।"


    उसने बड़ी सरलता से उत्तर दिया, लेकिन सुरभि को उसकी ये अजीबोगरीब बातें सुनकर हँसी आ गई। हालाँकि, उसके चेहरे पर हल्की घबराहट अभी भी थी, लेकिन वह अपने डर को छुपाते हुए हँसने लगी।


    सुरभि ने अपनी गन नीचे कर ली।
    "अच्छा तो तुम पिशाच हो… मतलब वैंपायर हो?" उसने हँसते हुए कहा।
    "सच में? रुको, मुझे देखने दो… मैंने पहली बार किसी वैंपायर को देखा है, तो ठीक से देख तो लूँ कि वैंपायर होते कैसे हैं!"


    दैत्य सम्राट के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी। वह बस सुरभि को मुस्कुराते हुए देख रहा था। अब तक वह अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला था, बस उसकी आँखों की पुतलियाँ थीं, जो सुरभि के हिसाब से इधर-उधर मूव कर रही थीं, लेकिन वह अपनी जगह पर ही खड़ा था—एक इंच भी नहीं, ना हवा की तरह, ना किसी झोंके की तरह।


    सुरभि पहले खुद को हँसने से रोकने की कोशिश करती है, फिर दैत्य सम्राट को देखकर कहती है, "सच बताना, तुम्हें प्रीति ने यहाँ भेजा है ना, मुझे डराने के लिए? वह लड़की जानती है कि मैं इन सब चीजों में यकीन नहीं रखती और जब से इस केस में शामिल हुई है, तब से ही डरी हुई है। इसी वजह से वह चाहती है कि मैं भी डर जाऊँ, ताकि मैं यह केस छोड़ दूँ। रुको, अभी उसे बताती हूँ।"


    सुरभि ने दरवाजे की तरफ देखते हुए जोर से आवाज लगाई,
    "प्रीति! कहाँ हो तुम? बाहर आओ! देख लो, तुम्हारा आइडिया फेल हो गया है!"


    दैत्य सम्राट ने शांत स्वर में पूछा,
    "हम दोनों के अलावा यहाँ कोई नहीं है?"


    उसकी बात सुनकर सुरभि की हँसी थोड़ी-सी रुक जाती है, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान बनी रहती है। उसने हँसते हुए जवाब दिया, "ओह! तो यहाँ हम दोनों के अलावा कोई और नहीं है, और तुम यह कहना चाहते हो कि तुम सच में वैंपायर हो? वह प्राणी, जो इंसानों का खून पीकर उन्हें मार डालता है?"


    दैत्य सम्राट ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान अभी भी थी।


    सुरभि की हँसी एक बार फिर तेज हो गई। वह पेट पकड़कर हँसने लगी। यह उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मज़ाक था! हँसते हुए उसने दैत्य को देखा और कहा, "वैंपायर असली नहीं होते! यह सब सिर्फ फिल्मों और हॉरर स्टोरीज़ की बातें हैं। असल ज़िंदगी में ऐसा कुछ नहीं होता!"


    दैत्य को पहले से ही पता था कि सुरभि उस पर यकीन नहीं करेगी। इसलिए उसने हल्के से अपने कंधे उचकाते हुए कहा, "ठीक है। तुम्हें यकीन दिलाने के लिए मैं अपने साथ आधार कार्ड तो नहीं लाया, लेकिन मैं कुछ कर सकता हूँ, जिससे तुम्हें मुझ पर यकीन आ जाए।"


    "अच्छा? क्या कर सकते हो? करो, मैं भी देखूँ कि एक असली वैंपायर क्या कर सकता है!" सुरभि ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।


    जैसे ही उसके शब्द पूरे हुए, दैत्य सम्राट के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, और अगले ही पल… वह अचानक सुरभि की आँखों के सामने से गायब हो गया!

  • 10. Surabhi meet vampire 2- Chapter 10

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    सुरभि के चेहरे पर पहले हल्की मुस्कान थी, लेकिन जैसे ही उसने दैत्य को अचानक गायब होते देखा, उसकी मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ गई। उसकी आँखें बड़ी होती गईं।

    अपने पुलिस करियर और ट्रेनिंग में सुरभि ने ऐसी अजीबोगरीब चीज़ों के बारे में सुना था, लेकिन उसने ना तो कभी ऐसा कुछ देखा था और ना ही कभी इस पर यकीन किया था। यह पहली बार था, जब उसकी आँखों के सामने से कोई शख्स खड़े-खड़े गायब हो गया था!

    अगले ही पल, उसे यकीन हो गया कि वह कोई मज़ाक नहीं कर रहा था… बल्कि वह सच में एक वैंपायर था! इसी के साथ, सुरभि का सिर घूमने लगा और वह ज़मीन पर बेहोश होकर गिर पड़ी।

    सुरभि के बेहोश होते ही दैत्य सम्राट एक बार फिर उसके सामने आ गया। वह ज़मीन पर पड़ी सुरभि को देखता रहा। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी, जैसे उसे पहले से ही पता था कि यही होने वाला है।

    उसने अपना एक हाथ उठाया और पास रखे पानी के ग्लास की तरफ इशारा किया। ग्लास हवा में उठा और सुरभि के पास आ गया। फिर, उसकी उँगलियों के हल्के-से इशारे पर सारा पानी सुरभि के चेहरे पर गिर पड़ा।

    सुरभि, जो अभी-अभी बेहोश हुई थी, पानी गिरते ही झटके से होश में आ गई। वह हड़बड़ाकर उठी और बैठ गई। लेकिन जैसे ही उसने देखा कि सम्राट फिर से उसके सामने खड़ा है, वह ज़ोर से चीख पड़ी!

    वह घबराकर जल्दी से उठी और बेड के दूसरी तरफ जाकर छुप गई। क्योंकि सामने खड़ा था 'दैत्य'।

    पुलिस की बहादुरी अपनी जगह थी, लेकिन किसी दूसरी प्रजाति की शक्तियों से लड़ना एक आम इंसान के बस की बात नहीं थी।

    सुरभि की नज़र कमरे में रखे टेबल कैलेंडर पर पड़ी, जिस पर हनुमान जी की तस्वीर लगी हुई थी। सम्राट अब भी अपनी गहरी काली आँखों से उसे घूर रहा था।

    सुरभि ने जल्दी से टेबल कैलेंडर उठाया और उसे दैत्य की तरफ करते हुए ज़ोर-ज़ोर से हनुमान चालीसा का जाप करने लगी—

    "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
    जय कपीश तिहुँ लोक उजागर॥
    राम दूत अतुलित बल धामा।
    अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥"

    इसके आगे सुरभि को कुछ भी याद नहीं आ रहा था। वह डरते हुए सम्राट को देखकर बोली, "अंजनी पुत्र पवनसुत नामा... अंजनी पुत्र पवनसुत नामा... आगे क्या था? अरे, आगे क्या था? कितनी बार मम्मी ने कहा था कि हनुमान चालीसा याद कर लो, बुरे वक़्त में काम आएगी! लेकिन मैं ही नहीं सुनती थी! लो, अब आ गई ना मुसीबत! आगे क्या था? मुझे याद क्यों नहीं आ रहा?"

    🧛🏻 "महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥" मैं सुनाओ मुझे पूरी याद है।

    सुरभि का मुँह खुला का खुला रह गया जब उसने सम्राट के मुँह से हनुमान चालीसा की अगली पंक्ति सुनी। वह एकदम से हैरान रह गई और आँखें फाड़कर बोली, "तुम... तुमने ऐसा कैसे किया? तुम तो वैंपायर हो ना? फिर हनुमान चालीसा कैसे पढ़ी?"

    सम्राट के चेहरे पर वही मंद-मंद मुस्कान थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "पैदा ही वैंपायर नहीं हुआ था। और मैं भी हनुमान जी को मानता हूँ।"

    सुरभि अभी भी डरी हुई थी। उसने धीरे-धीरे कैलेंडर वापस अपनी जगह पर रख दिया क्योंकि यह मंत्र तो काम नहीं आया था। अब वह इधर-उधर देखने लगी। तभी उसकी नज़र बेड पर रखी अपनी बंदूक पर पड़ी, जो उसी ने वहाँ रखी थी।

    जल्दी से हाथ बढ़ाकर उसने बंदूक उठा ली और दोबारा सम्राट की ओर करते हुए बोली, "देखो! कुछ उल्टा-सीधा करने की सोचना भी मत! वरना मैं तुम्हें जान से मार दूँगी!"

    सम्राट हल्के से हँसा और बोला, "मैं मर नहीं सकता... क्योंकि मैं पहले ही मरा हुआ हूँ। अगर तुमने मुझ पर गोली चलाई, तो बस तुम्हारी एक गोली वेस्ट होगी। इसलिए अपनी हरकतें बंद करो... मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

    सुरभि घबराई हुई नज़रों से उसे देखने लगी। उसके मन में सवाल उठने लगे— "इस वैंपायर को मुझसे क्या बात करनी है?"

    सम्राट ने गहरी नज़रों से उसे देखा और कहा, "पहले ये बताओ, क्या अब तुम मानती हो कि मैं वैंपायर हूँ?"

    सुरभि बोली, "नहीं! मानने की मेरे पास कोई वजह थोड़ी है! अब तुम ये बताओ कि तुम चाहते क्या हो?"

    सम्राट के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसने शांत स्वर में कहा, "क्या तुम अपनी यह बंदूक नीचे रख सकती हो?"

    सुरभि ने बंदूक को कसकर पकड़ा और ज़िद्दी लहज़े में बोली, "नहीं! बिल्कुल नहीं! अगर तुमने मुझे नुकसान पहुँचाने की कोशिश की तो मेरी सेफ़्टी के लिए कुछ तो होना चाहिए ना!"

    सम्राट के चेहरे पर मज़ाकिया मुस्कान आई। वह हल्के से हँसते हुए खिड़की की ओर देखने लगा, जैसे सुरभि की बात उसे किसी मज़ाक की तरह लग रही हो।

    सुरभि को उसकी हँसी से और गुस्सा आ गया। उसने अपनी बंदूक को देखा, फिर सम्राट की ओर देखा और मन में सोचा—"मैं भी क्या बोले जा रही हूँ? अगर यह सच में मुझे नुकसान पहुँचाना चाहता, तो इसे बंदूक का सहारा लेने की क्या ज़रूरत थी? इसके पास तो और भी तरीके हैं—जादू, टोना, तंत्र-मंत्र… यह कुछ भी कर सकता है!"

    तभी अचानक सुरभि के दिमाग में एक अजीब-सा ख्याल आया। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं और वह सम्राट को घूरते हुए बोली, "तुम... तुम मुझे अपने जादू से मुर्गा तो नहीं बना दोगे ना?"

    सम्राट ने उसकी बात सुनी और इस बार अपनी हँसी रोक नहीं सका। वह ज़ोर से हँस पड़ा और फिर मुस्कुराते हुए बोला, "नहीं! मैं तुम्हें मुर्गा नहीं बनाऊँगा… क्योंकि तुम लड़की हो। तो अगर बनाना भी हुआ, तो मुर्गी बनाऊँगा!"

    सुरभि भड़क गई, "बना कर दिखाओ! तुम्हें अरेस्ट करके जेल में डाल दूंगी! ख़बरदार जो तुमने मुझ पर कोई जादू किया तो! मुझे मुर्गा-मुर्गी, खरगोश, चूहा, बिल्ली... कुछ भी नहीं बनना! और हाँ, मैं मानती हूँ कि तुम वैंपायर हो… लेकिन ख़बरदार जो मुझ पर कोई माया किया!"

    सम्राट ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, मैं तुम पर कोई माया नहीं करूँगा… लेकिन तुम्हें मेरी बात सुननी होगी।"

    सुरभि उसकी बात सुनकर हैरान रह गई। लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया, "मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी! तुम यहाँ से जाओ!"

    सम्राट की मुस्कान हल्की-सी फीकी पड़ गई। उसकी गहरी नज़रें अब सुरभि पर टिकी थीं। उसने गंभीर लहज़े में कहा, "मैं कोई पागल नहीं हूँ, जो इतनी दूर से तुम्हारा पीछा करके यहाँ तक आया हूँ। और अब जब मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, तो तुम्हें यह समझना चाहिए कि मुझे तुमसे सच में कुछ ज़रूरी बात करनी है।"

  • 11. एजुकेटेड वैंपायर!" - Chapter 11

    Words: 626

    Estimated Reading Time: 4 min

    वैंपायर किंग दैत्य सम्राट इस समय सुरभि के सामने खड़ा था, और सुरभि को अब तक यकीन भी हो चुका था कि उसके सामने खड़ा इंसान, इंसान नहीं बल्कि सच में एक वैंपायर है।



    सम्राट अब भी खड़ा था, और सुरभि बेड पर बैठी हुई थी। उसने सम्राट को देखते हुए कहा, "तो बताओ, क्या कहना है तुम्हें मुझसे?"



    सम्राट के चेहरे पर वही हल्की सी दिलकश मुस्कान थी, जो शुरू से अब तक उसके चेहरे पर बनी हुई थी। वो अपनी गहरी काली आंखों से सुरभि को लगातार देख रहा था, बिना एक बार भी पलक झपकाए। मुस्कुराते हुए उसने सुरभि से कहा,



    "मैंने पहली बार किसी लड़की को इतनी बहादुरी से मुझसे बात करते देखा है। वरना अब तक तो लोग मेरे बारे में जानकर ही अपने आप मर जाते थे।"



    लोगों की मौत का जिक्र आते ही सुरभि की आंखें चौड़ी हो गईं। उसने हैरानी से सम्राट को देखते हुए कहा,

    "तो तुम ही हो वो, जिसकी वजह से लोग मर रहे हैं? तुम ही वो वैंपायर हो, जो लोगों का खून पीकर उन्हें मार रहे हो? मिस्टर वैंपायर, तुमने जुर्म किया है, लोगों का खून बहाया है, और इस जुर्म में मैं तुम्हें अरेस्ट कर सकती हूं!"



    सम्राट के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई, और उसका चेहरा एकदम सामान्य हो गया। वो अपनी तीखी निगाहों से सुरभि को घूरते हुए बोला,

    "मैंने उन लोगों को नहीं मारा है।"



    सम्राट की आवाज की तीखी धार सुनकर सुरभि ने अपनी आंखें संकरी कर लीं और हैरानी से बोली,

    "अगर तुमने नहीं किया, तो फिर किसने किया? यहाँ एक तुम ही तो हो जो वैंपायर हो। तुम्हारे अलावा और कोई वैंपायर है क्या?"



    सम्राट बोला, "मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि मेरे अलावा किसी दूसरे वैंपायर ने ये किया है।"



    उसकी बात सुनकर सुरभि और भी ज्यादा हैरान हो गई। उसने चौंककर कहा,

    "अरे! तुम्हारे अलावा अगर किसी और वैंपायर ने किया है, तो तुम्हें पता होना चाहिए न? तुम इकलौते वैंपायर तो हो नहीं! अपने रिश्तेदारों से पूछो, क्या पता उन्होंने किया हो—जैसे तुम्हारे वैंपायर कज़िन, तुम्हारे वैंपायर मामा, तुम्हारे वैंपायर चाचा... उनमें से किसी ने किया हो!"



    सम्राट ने अपनी तीखी निगाहों से उसे देखते हुए ठंडी आवाज़ में कहा, "मेरा कोई रिश्तेदार नहीं है।"



    सुरभि ने अपने दोनों हाथ बांधते हुए उसे एटीट्यूड में देखा और बोली,

    "अगर किसी और ने नहीं किया, तो फिर शक तुम पर ही जाता है! वैसे मिस्टर वैंपायर, ये तो बताओ, तुम रहते कहां हो?"



    सम्राट की निगाहें अभी भी सुरभि पर जमी थीं। वो इस समय किसी पुलिस ऑफिसर की तरह उससे सवाल-जवाब कर रही थी। उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गई। उसने हल्के से सिर झुकाते हुए कहा,



    "तो तुम मेरा इन्वेस्टिगेशन कर रही हो?"



    सुरभि ने एक आईब्रो उठाते हुए कहा,

    "इन्वेस्टिगेशन? तुम्हें इसका मतलब पता भी है? वैसे तुम्हारे बात करने के अंदाज से लग रहा है कि तुम पढ़े-लिखे हो… एक एजुकेटेड वैंपायर!"



    ये कहने के बाद सुरभि खुद ही अपनी बात पर हंसने लगी। उसकी हंसी देखकर सम्राट के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने हल्के से सिर हिलाते हुए कहा,



    "हाँ, मैं पढ़ना जानता हूं।"



    सुरभि फिर से अपने पुलिस वाले अवतार में आते हुए कहती है, "चलो, ये तो अच्छी बात है! कम से कम मुझे तुम्हें चीजें समझानी तो नहीं पड़ेगी, ना? ठीक है, मिस्टर वैंपायर, तुम इन्वेस्टिगेशन में पुलिस को सपोर्ट करो, और हम पता लगाएंगे कि असली वैंपायर, जिन्होंने लोगों को मारा है, वो कौन हैं और कहां हैं। तो पहला सवाल— तुम्हारा पूरा नाम क्या है?"



    "दैत्य सम्राट।" सम्राट ने उसे बताया।



    सुरभि ने तुरंत कहा, "हां, उसके आगे क्या? शर्मा, मिश्रा, खन्ना, ओबेरॉय, कपूर, सिंघानिया, विरानी, अंबानी...?"



    सम्राट हल्की मुस्कान के साथ बोला, "बस, दैत्य सम्राट। वैसे, तुम मुझे सम्राट भी बुला सकती हो।"

  • 12. वैंपायर पैदा नहीं होते हैं, बनाए जाते हैं - Chapter 12

    Words: 1169

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुरभि उसे देखती है। वो उसके सवालों के बहुत सरलता से जवाब दे रहा था— बिना टालमटोल किए, बिना कोई बात घुमाए, सीधी और साफ भाषा में।



    "चलो ठीक है, तुम्हारा नाम 'दैत्य सम्राट' अच्छा है, लेकिन मैं तो तुम्हें मिस्टर वैंपायर ही बुलाऊंगी। क्या है ना, तुम्हारी पर्सनालिटी पर ये नाम सूट करता है!"



    "तो मेरा दूसरा सवाल— तुम रहते कहां हो? मतलब, तुम्हारा घर कहां है? प्लीज़, अब ये मत कहना कि पेड़ पर उल्टे लटके रहते हो!"



    सुरभि ने अपना सवाल जारी रखा, तो सम्राट मुस्कुराते हुए सिर हिलाता है और कहता है, "नहीं, मैं पेड़ पर नहीं लटकता हूं। मेरा घर है, जहां मैं रहता हूं।"



    ये कहने के बाद सम्राट खिड़की से बाहर देखता है, जहां दूर जंगलों से हल्की रोशनी नजर आ रही थी। सुरभि ने जब उसकी नजरों का पीछा किया, तो उसने देखा कि सम्राट उस रोशनी की तरफ देख रहा था।



    सुरभि हैरानी से कहती है, "वहां क्या है?"



    "श्रापित हवेली।"



    सुरभि की आंखें एकदम से चौड़ी हो जाती हैं जब सम्राट ने 'श्रापित हवेली' का नाम लिया। वो हैरानी से बोली, "क्या? तुम श्रापित हवेली में रहते हो? वही हवेली, जिसके बारे में लोगों ने अफवाहें फैला रखी हैं कि वहां एक पिशाच रहता है, जो लोगों का खून चूसकर उन्हें मार देता है?"



    सम्राट हल्के से सिर हिलाता है।



    सुरभि गुस्से में उसे घूरते हुए कहती है, "लो, अब तो पूरा केस ही सॉल्व हो गया! तुम श्रापित हवेली में रहते हो, जहां लोग मरे हुए पाए जाते हैं, और फिर भी तुम कह रहे हो कि तुमने उन्हें नहीं मारा? मैं तुम्हें क्या बेवकूफ लगती हूं?"



    सम्राट अपनी दिलकश मुस्कान के साथ फिर से सिर हिलाता है।



    सुरभि अपना माथा पीटते हुए कहती है, "बड़े इंसान हो—सॉरी, मतलब बड़े अजीब वैंपायर हो! कभी हां में सिर हिलाते हो, कभी ना में! शब्दों का इस्तेमाल करो! ये साइन लैंग्वेज मुझे समझ में नहीं आती, तुम्हारे वैंपायर दोस्तों को आती होगी!"



    सम्राट ने शांत स्वर में कहा, "जानता हूं कि सब यही कहते हैं। लेकिन मेरा यकीन करो, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। मैं वहां जरूर रहता हूं, लेकिन मैंने किसी को नहीं मारा।"



    सुरभि उसकी बात सुनकर कुछ सोचती है, फिर कहती है, "ठीक है, मिस्टर वैंपायर, मैं तुम्हारी बात पर यकीन कर लेती हूं, लेकिन सच और झूठ का फैसला मैं पूरी इन्वेस्टिगेशन के बाद करूंगी।"



    "तो अब मेरा अगला सवाल— तुम कितने साल के हो? मतलब, तुम्हारी उम्र कितनी है?"







    "तुम्हें क्या लगता है, ऑफिसर? मेरी उम्र कितनी होगी?" सम्राट उल्टा उसी से सवाल करता है।



    सुरभि अपना एक हाथ कमर पर टिकाती है और दूसरे हाथ को उसके ऊपर रखते हुए अपनी एक उंगली गाल पर रखकर सम्राट को गौर से देखने लगती है। एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला इंसान— चेहरे पर एक अलग ही चमक, आंखें इतनी काली कि ऐसा लग रहा था मानो काजल की जरूरत ही नहीं। होंठ गुलाबी, और गालों को चूमती हुई हल्की लेट... चौड़े बाइसेप्स के साथ परफेक्ट बॉडी कट, और उसके ऊपर ओवरकोट।



    सुरभि ऊपर से नीचे तक सम्राट को देखती है और फिर कहती है, "वैसे तुम्हारी पर्सनालिटी के हिसाब से लगता है कि तुम 30 साल के हो... एक-दो साल छोटे ही होंगे, पर बड़े तो बिल्कुल नहीं हो सकते।"



    "130 साल।"



    सम्राट की बात सुनकर सुरभि की आंखें एकदम बड़ी हो जाती हैं, और वो चिल्लाते हुए एक-एक शब्द खींचकर बोलती है,



    "एक... सौ... तीस... साल...? 😳 तुम्हारी उम्र इतनी ज्यादा है? मतलब, तुम 130 साल के वैंपायर हो?"



    सुरभि चौंक जरूर गई थी, और सम्राट को अंदाजा भी था कि उसकी उम्र सुनकर वो हैरान हो जाएगी। पर सुरभि की बात सुनकर उसने उसे घूरते हुए कहा,



    "कोई भी वैंपायर पैदा नहीं होता। कोई औरत वैंपायर को जन्म नहीं देती। मैं वैंपायर पैदा नहीं हुआ था, बनाया गया हूं।"



    "कैसे?" सुरभि ने पूछा।



    सम्राट ने जवाब दिया, "मुझे एक वैंपायर ने काट लिया था, और उसके बाद मैं खुद वैंपायर बन गया।"



    उसकी बात सुनकर सुरभि शक भरी नजरों से उसे देखते हुए बोली, "अच्छा... तो जिसने तुम्हें काटा था, वो वैंपायर कहां है?"



    "मैंने उसे मार दिया।" सम्राट बोला। "वैंपायर बनने के बाद सबसे पहला काम मैंने यही किया कि जिसने मुझे इंसान से वैंपायर बनाया, उसे जान से मार दिया।"



    सुरभि की आंखें फिर से बड़ी हो जाती हैं, और वो हैरानी से कहती है,



    "मतलब, तुम लोगों को मारा भी जा सकता है? यार, बड़ी अजीब प्रजाति हो तुम! एक काटे, तो दूसरा वैंपायर बन जाता है, और एक वैंपायर दूसरे वैंपायर को मार भी सकता है! पर मैंने तो सुना था कि वैंपायर अमर होते हैं। अब खुद को ही देख लो— 130 साल से जी रहे हो! और अगर मारे नहीं गए, तो आगे भी 130 साल जियोगे! तो फिर तुम्हें मारा कैसे जा सकता है?"



    सम्राट थोड़ा गंभीर होकर बोला, "तुम्हें क्यों जानना है कि हमें कैसे मारा जा सकता है? मैं यहां तुमसे मदद मांगने आया हूं, अपनी मौत का राज बताने नहीं!"



    सम्राट की आवाज तेज हो गई, तो सुरभि ने उसे घूरकर देखा। उसने अपने दोनों हाथ बांधे और अपने पुलिस वाले अंदाज में कहा,



    "ठीक है, मिस्टर वैंपायर! तुम एक पिशाच हो। तुम लोगों का खून पीते हो और उस श्रापित हवेली में रहते हो, जहां पर लोग मरे हुए पाए जाते हैं। उनके गले पर काटने के निशान होते हैं, जो किसी वैंपायर के दांतों जैसे लगते हैं। और ये सारे सबूत तुम्हारी तरफ इशारा कर रहे हैं, क्योंकि मेरे सामने तुम इकलौते वैंपायर हो! इसलिए, अगर तुम्हें कोई दिक्कत ना हो, तो क्या मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन ले जा सकती हूं?"



    सम्राट ने अपनी काली आंखों से उसे घूरकर देखा, तो सुरभि जल्दी से बोली,



    "सिर्फ पूछताछ के लिए! आगे की इन्वेस्टिगेशन बढ़ाने के लिए!"



    सम्राट के चेहरे पर तिरछी मंद मुस्कान आ गई। उसने सुरभि की आंखों में देखते हुए कहा,



    "बिल्कुल, ऑफिसर! अगर तुम्हें पूछताछ के लिए मुझे पुलिस स्टेशन ले जाना होगा, तो मुझे कोई एतराज नहीं। पर ये तुम तभी कर सकती हो, जब तुम मुझे पकड़ सको। मुझे पकड़ने के लिए पहले तुम्हें मुझ तक पहुंचना होगा। और जब तुम मुझ तक पहुंच जाओगी, तो मैं तुम्हारी इन्वेस्टिगेशन में तुम्हारी मदद जरूर करूंगा।"



    और इसी के साथ सम्राट उसकी आंखों के सामने से ओझल हो जाता है।



    सुरभि एकदम से हैरान हो जाती है और इधर-उधर देखने लगती है। उसने खिड़की के बाहर देखा, तो आसमान में दूर एक छोटा सा चमगादड़ उड़ता हुआ श्रापित हवेली की तरफ जाता नजर आया।



    सुरभि जल्दी से खिड़की के पास आई और गुस्से में हाथ मारते हुए बोली,



    "कब तक भागोगे, मिस्टर वैंपायर? तुमने जुर्म किया है, और मैं तुम्हें पकड़कर ही रहूंगी! और अगर तुम निर्दोष हो, तो इस तरह भाग क्यों रहे हो? सच का पता तो मैं लगाकर ही रहूंगी! तुम चाहते हो ना कि मैं तुम तक आऊं? तो ठीक है! मैं जरूर आऊंगी! उस श्रापित हवेली में आऊंगी... और तुम्हें अरेस्ट करूंगी!"



    उसके बाद सुरभि कुछ सोचते हुए बोली, "एक मिनट... वो तो उड़ सकता है ना? मतलब, वैंपायर चमगादड़ बन सकता है! तो उसे अरेस्ट करने के लिए मुझे हथकड़ी लेकर जाना होगा या पिंजड़ा?"

  • 13. एक डायन, एक चुड़ैल - Chapter 13

    Words: 1137

    Estimated Reading Time: 7 min

    मेहरानगढ़ का श्रापित इलाका—घने जंगलों के बीच बसी यह श्रापित हवेली कई सालों से बंद पड़ी थी और अपने अंदर एक राज़ समेटे हुए थी। पिछले कुछ समय से यहाँ हलचल देखी जा रही थी, और जब लोग गायब होने लगे और उनकी लाशें मिलने लगीं, तो इस हवेली पर शक और भी गहरा गया। बाहर से देखने पर यह हवेली जितनी डरावनी और भूतिया लगती थी, अंदर उससे भी ज़्यादा अजीब चीज़ें हो रही थीं।


    भारत सरकार ने यहाँ आने-जाने पर रोक लगा रखी थी। ऐसे बोर्ड भारत के कई जगहों पर देखे जाते थे, जहाँ कुछ रहस्यमयी घटनाएँ होती थीं, जैसे कि भानगढ़ का किला। मेहरानगढ़ का यह किला भी उन्हीं में से एक था, जहाँ रात के समय जाने पर पाबंदी थी। लेकिन रात की बात अलग है, यहाँ दिन में भी लोग जाने से कतराते थे, क्योंकि जितनी यह हवेली श्रापित थी, उतनी ही यहाँ हो रही घटनाएँ भी अजीब थीं।


    बाहर से सबको यह सिर्फ़ एक खंडहरनुमा भूतिया हवेली लगती थी, लेकिन किसी को क्या पता कि इसके अंदर एक अलग ही दुनिया बसी हुई थी...


    हवेली के बीचों-बीच एक बड़ा सा हॉल था, जहाँ भारी-भरकम सोफे और सिंहासन रखे थे। उन पर मोटी-मोटी धूल जमी हुई थी और मकड़ी के जाले लटके हुए थे। चमगादड़ों ने इसे अपना ठिकाना बना लिया था, और कई जंगली जानवरों ने भी यहाँ बसेरा कर लिया था। लेकिन इन सबसे अलग यहाँ कुछ और भी लोग रहते थे...


    ऊपरी हिस्से में, जहाँ किसी को जाने की इजाज़त नहीं थी, एक बड़े से कमरे की खिड़की के पास उस वक्त सम्राट खड़ा था। उसने वही काले ओवरकोट पहना हुआ था, जिसे पहनकर वह सुरभि से मिलने गया था।


    उसकी गहरी काली आँखें दूर चमक रहे एक घर की रोशनी पर टिकी थीं, या यूँ कहें कि वह अपनी खिड़की से सुरभि को देख सकता था। उसकी नज़रों में इतनी तेज़ी थी कि वह दूर की चीज़ें भी ऐसे देख सकता था जैसे सब उसके सामने हों। सुरभि के चेहरे की बेचैनी और चिंता को वह साफ़ देख सकता था। जब से सम्राट उससे मिलकर गया था, तब से वह परेशान थी। उसकी यह हालत देखकर सम्राट के चेहरे पर मुस्कान आ गई।


    वह अभी भी सुरभि को देख ही रहा था कि तभी उसे अपने पीछे से एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी—

    "इसससस... दैत्य सम्राट मुस्कुरा रहे हैं! लगता है, मुलाकात हो गई आपकी!"


    लड़की की आवाज़ सुनकर सम्राट की मुस्कान गायब हो गई, और उसका चेहरा एकदम भावहीन हो गया। उसने धीरे से पलटकर देखा।


    उस वक्त उसके सामने एक लड़की खड़ी थी, जिसके घुंघराले, घुटनों से भी नीचे तक लहराते बाल थे। उसने अपनी साड़ी को एक अलग अंदाज़ में पहना हुआ था, कुछ-कुछ वैसे जैसे बंगाली औरतें पहनती हैं। उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखों में एक अजीब सी चमक थी, और चेहरे पर मधुर मुस्कान। वह सम्राट को देखकर मुस्कुराते हुए बात कर रही थी।


    सम्राट की नज़र धीरे-धीरे नीचे गई, और फिर उसके चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान आ गई—क्योंकि उस लड़की के पैर उल्टे थे!


    सम्राट ने गहरी आवाज़ में कहा—

    "श्यामोली कुमारी, तुम्हें इस हवेली में रहने की इजाज़त दी गई है, इसका मतलब यह नहीं कि तुम इसे अपना घर समझो। डायन हो, डायन की तरह रहो। जिस पेड़ से लटककर मरी थी, वहीं जाकर रहो। मेरे कमरे में आने की इजाज़त नहीं है तुम्हें!"


    श्यामोली का मुस्कुराता चेहरा अचानक उदास हो गया। वह गुस्से में सम्राट को देखते हुए बोली—

    "तुम बहुत बुरे हो, दैत्य!"

    "तुमने अभी तक देखा ही कहाँ है कि मैं कितना बुरा हूँ? मैंने अब तक अपना असली रूप किसी को दिखाया ही नहीं है। भले ही तुम डायन हो, पर हो तो लड़की ही ना... मतलब, जब ज़िंदा थी, तब तो लड़की ही थी ना? तुम्हें यहाँ रहने की इजाज़त दी गई है, लेकिन मेरी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी करने की नहीं!"


    सम्राट श्यामोली से यह सब कह ही रहा था कि तभी दरवाज़ा खुला और एक और लड़की अंदर आते हुए बोली—

    "बस करो, दैत्य सम्राट! अगर वह तुम्हारी बातें सुन लेती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम उसे कुछ भी सुनाते रहोगे!"


    इसके बाद वह दूसरी लड़की श्यामोली के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली—

    "क्यों उसके पीछे पड़ी रहती है? हमेशा चार बातें सुनकर जाती है। माना कि वह सम्राट है, पर इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी बोलेगा! इंसानों की दुनिया में ऊँचे पद और पैसे से इज़्ज़त मिलती होगी, पर यहाँ प्रेतों और पिशाचों की दुनिया में ऐसा कुछ नहीं चलता। हम सब यहाँ अपनी मुक्ति का इंतज़ार कर रहे हैं, और सम्राट, तुम भी तो अपनी मुक्ति का ही इंतज़ार कर रहे हो। इसीलिए हम में से कोई भी एक-दूसरे से अलग नहीं है। हमें पता है कि तुम उस लड़की के पास क्यों गए थे..."


    सम्राट की आँखें सर्द हो गईं। उसने उस लड़की को घूरते हुए गुस्से से कहा—

    "एक डायन, एक चुड़ैल... तुम दोनों चटू-बंटू की जोड़ी को और कोई काम नहीं है क्या? अगर नहीं है, तो इतना बड़ा जंगल है, कहीं भी जाकर भटक लो! लेकिन मेरे मामले में टाँग मत अड़ाओ। तुम जानती नहीं कि यहाँ क्या हो रहा है! अगर जान जाओगी, तो ऐसे फालतू सवाल नहीं करोगी। हवेली के बाहर बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसमें हमारा नाम घसीटा जा रहा है। अगर इंसान यहाँ तक आ गए, तो मैं तो खुद को छुपाने में कामयाब रहूँगा, पर तुम दोनों का क्या? तुम दोनों तो उनकी पकड़ में आ जाओगी ना? और एक बार इंसानों ने तुम्हें पकड़ लिया, तो फिर वह तुम्हारा क्या हाल करेंगे, यह तुम खुद ही सोच लो!"


    श्यामोली का चेहरा डर से भर गया। उसने जल्दी से उस लड़की का हाथ पकड़ा और घबराई हुई आवाज़ में बोली—

    "रूहानी, मुझे इंसानों से डर लगता है..."


    रूहानी ने गुस्से में घूरते हुए श्यामोली को देखा और कहा—

    "एक वक्त पर तुम भी इंसान ही थी! जैसे तुम्हें इंसानों से डर लगता है, वैसे ही इंसानों को हमसे डर लगता है!"


    फिर वह सम्राट की तरफ़ मुड़ी और बोली—

    "सम्राट, हमें पता है कि तुम परेशान हो, क्योंकि जब से हवेली के बाहर इंसानों का आना-जाना बढ़ा है, लोगों का शक हम पर गहरा रहा है। लेकिन हमने यह सब नहीं किया है! तुम जानते हो कि हम दोनों श्रापित हैं और इस जंगल से बाहर नहीं जा सकतीं, लेकिन तुम तो जा सकते हो ना? जब तुम बाहर जा सकते हो, तो जाकर पता क्यों नहीं लगाते कि यह सब कौन कर रहा है?"


    सम्राट ने उसे घूरते हुए जवाब दिया—

    "तो तुम्हें क्या लगता है, सुरभि से मिलकर मैंने उससे कैंडल-लाइट डिनर की बात की होगी? और हाँ, मैं जानता हूँ कि तुम दोनों यहाँ से बाहर नहीं जा सकतीं... पर सुरभि तो यहाँ आ सकती है ना? इसीलिए मैंने उसे यहाँ आने के लिए कहा है, और मुझे लगता है कि वह यहाँ ज़रूर आएगी।"

  • 14. वैंपायर के बारे में बता रही है या अपने बॉयफ्रेंड के?" - Chapter 14

    Words: 958

    Estimated Reading Time: 6 min

    सम्राट ने एक बार फिर खिड़की से दूर चमकती रोशनी की ओर देखा। रूहानी धीरे से उसके पास आई और खिड़की के दूसरी तरफ खड़े होकर वही रोशनी देखते हुए बोली—

    "कैसी है वो?"

    सम्राट के चेहरे पर हल्की सी रहस्यमयी मुस्कान आ गई। उसने जवाब दिया—

    "बहादुर... निडर... आँखों में आँखें डालकर बात करने वाली। लेकिन जब उसे मेरे बारे में पता चला, तब उसका डरा हुआ चेहरा देखा मैंने। वो मुझसे अपनी इंसानी बंदूक से डराने की कोशिश कर रही थी। पहली बार तो उसने मुझ पर यकीन ही नहीं किया कि मैं एक असली वैंपायर हूँ। पर जब उसे यकीन हुआ, तब वो मुझसे डरने के बजाय मुझसे ऐसे सवाल कर रही थी जैसे मैं कोई अपराधी हूँ और वो मुझे अरेस्ट करने वाली हो!"

    रूहानी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने चकित होकर कहा—

    "सच में? उसने ऐसा किया?"

    लेकिन जब उसने देखा कि सम्राट के चेहरे पर अब भी वही मुस्कान बनी हुई है, तो उसने धीरे से पूछा—

    "और... कुछ महसूस किया तुमने?"

    सम्राट ने हल्का सा सिर हिलाते हुए जवाब दिया—

    "हाँ, मैंने उसकी धड़कन सुनी है... बहुत शांत... जैसे कोई मधुर संगीत। जब घबराती है, तो थोड़ी तेज़ हो जाती है, लेकिन जब शांत होती है, तो उसकी धड़कन बिल्कुल साफ़ सुनाई देती है..."

    रूहानी और श्यामोली उसकी बात सुनकर एकदम हैरान रह गईं। दोनों ने धीरे से अपना हाथ उठाया और अपने सीने पर रख लिया। सम्राट ने भी अपना हाथ उठाकर सीने पर रख लिया। तीनों ने एक-दूसरे को देखा, फिर रूहानी ने हल्की आवाज़ में कहा—

    "हम तीनों के पास धड़कन ही नहीं है..."

    श्यामोली ने मायूसी से कहा—

    "जब मेरे पास धड़कन थी, तब कभी इसकी अहमियत समझ ही नहीं आई। लेकिन अब जब नहीं है, तो इसकी कमी महसूस होती है... रूहानी दीदी, मैं मुक्ति पाने से पहले एक बार धड़कन को महसूस करना चाहती हूँ।"

    रूहानी ने हल्के से सिर हिलाया और फिर सम्राट की ओर देखते हुए पूछा—

    "तुम्हें लगता है, वो आएगी?"

    सम्राट ने एक गहरी साँस लेते हुए जवाब दिया—

    "आएगी... वो ज़रूर आएगी। वो एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है और अपने केस को सॉल्व करने के लिए उसका पहला निशाना मैं ही हूँ, क्योंकि उसे मुझ पर शक है। इसीलिए सच का पता लगाने के लिए वो यहाँ ज़रूर आएगी..."

    सम्राट, श्यामोली और रूहानी तीनों गवर्नमेंट क्वार्टर पर जल रही रोशनी को देख रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे वहाँ किसी उम्मीद को तलाश रहे हों।


    अगली सुबह, गवर्नमेंट क्वार्टर...

    "क्या कहा तुमने? कल रात तुम्हें कौन दिखाई पड़ा?"

    प्रीति ने बड़ी-बड़ी आँखों से उसे देखते हुए पूछा। सुरभि उसे घूरने लगी और थोड़ा असहज होते हुए बोली—

    "एक... वैंपायर!"

    प्रीति की आँखें एकदम बड़ी हो गईं और उसने मुँह फाड़कर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। जैसे ही सुरभि ने उसे चिल्लाते हुए देखा, उसने झट से उसका मुँह बंद कर दिया और उसे सोफे पर धकेलते हुए बोली—

    "पागल हो गई है क्या? चिल्ला क्यों रही है?"

    प्रीति ने ज़ोर से उसे अपने ऊपर से धकेल दिया। सुरभि सोफे के दूसरी ओर गिर गई, और प्रीति गुस्से में उसे घूरते हुए बोली—

    "सच-सच बता! कल रात तू हमें बिना बताए कहीं बाहर गई थी और तेरा एक्सीडेंट हो गया? सर पर चोट लगी है या किसी ने तुझे कुछ ग़लत खिला दिया है?"

    सुरभि झुंझलाते हुए बोली—

    "नहीं! मैं बिल्कुल ठीक हूँ। ना मेरा एक्सीडेंट हुआ, ना किसी ने मुझे कुछ खिलाया, और ना ही मेरा दिमाग खराब हुआ है!"

    प्रीति ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा—

    "अगर दिमाग खराब नहीं हुआ, तो पागलों जैसी बातें क्यों कर रही है? जो लड़की काली बिल्ली के रास्ता काटने को भी नहीं मानती, वो अब मुझसे कह रही है कि उसके कमरे में कल रात एक वैंपायर आया था और उसने उससे मदद माँगी!"

    सुरभि जानती थी कि प्रीति को ये बात बताना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी। अगर दुनिया का हर इंसान इस पर यकीन कर ले, तब भी प्रीति नहीं करेगी, क्योंकि सुरभि ने हर तरह से उसे ये विश्वास दिला दिया था कि उसे अलौकिक चीज़ों पर कोई भरोसा नहीं है। और अब उसी को यकीन दिलाना, खुद सुरभि के लिए भी एक चुनौती था।

    सुरभि ने गहरी साँस लेते हुए अपनी आँखें बंद कीं। फिर उसने एक हाथ गले पर और दूसरा माथे पर रखते हुए कसकर कहा—

    "मम्मी की कसम खा रही हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रही!"

    प्रीति की आँखें फटी की फटी रह गईं। वो घबराई हुई आवाज़ में बोली—

    "क्या? तू आंटी की कसम खा रही है? इसका मतलब तू सच बोल रही है... यानी सच में कल रात तेरे कमरे में कोई वैंपायर आया था!"

    सुरभि ने धीरे से सिर हिलाया। प्रीति झट से उसके पास आई और बड़ी-बड़ी आँखों से उसे घूरते हुए बोली—

    "यार, सच बता! वैंपायर कैसा दिखता था? क्या उसके नुकीले दाँत थे? लाल आँखें थीं? उसके हाथों से खून टपक रहा था? या फिर उसके बाल जंगलियों जैसे थे? उसने तुझ पर हमला किया?"

    सुरभि हँस पड़ी और सिर हिलाते हुए बोली—

    "नहीं! उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया। और हाँ, वो वैसा भी नहीं दिखता था... ना तो वो खतरनाक था, ना ही उसके नुकीले दाँत थे। बल्कि वो तो... काफ़ी हैंडसम था! उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखें... और उसका वो चार्मिंग चेहरा... माथे पर लटकती एक लट, जो उसे और भी ज़्यादा अट्रैक्टिव बना रही थी। और उसके चेहरे पर हमेशा बनी रहने वाली वो हल्की-सी मुस्कान... उसकी एथलीट बॉडी पर पहना हुआ ब्लैक ओवरकोट... उसे एक किलर लुक दे रहा था!"

    सुरभि किसी गहरी भावना में खोई हुई थी। एक-एक करके सम्राट के लुक का वर्णन कर रही थी। उसे इस तरह देखकर प्रीति ने झटके से उसके कंधे पर मारा और चौंककर बोली—

    "ओ हेलो मैडम! वैंपायर के बारे में बता रही है या अपने बॉयफ्रेंड के?"

  • 15. वो वापस आया है अपना बदला लेने - Chapter 15

    Words: 1213

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुरभि जोर-जोर से हँस रही थी और हँसते हुए प्रीति को देख रही थी, जो गुस्से भरी निगाहों से उसे घूर रही थी। फिर भी, जब सुरभि ने हँसना बंद नहीं किया, तो प्रीति ने उसे तकिए से मारते हुए कहा, "बदतमीज लड़की! मेरे साथ मज़ाक कर रही है, मुझसे झूठ बोल रही है... ऐसी कोई मज़ाक करता है क्या? पता नहीं किसने तुझे पुलिस में भर्ती कर लिया! तुझे तो सर्कस में भर्ती करना चाहिए, एक नंबर की जोकर है तू! और ये कैसा मज़ाक था कि कल रात तेरे कमरे में कोई पिशाच आया था... हैंडसम वैम्पायर? और अब कह रही है कि मैं मज़ाक कर रही हूँ?"

    सुरभि हँसते हुए बोली, "अरे, मैं तो बस देख रही थी कि तू मेरी बातों पर कितनी जल्दी यकीन करती है! पर मैंने सोचा नहीं था कि तू इतनी जल्दी यकीन भी कर लेगी। मतलब सच में मेरे कमरे में कोई वैम्पायर आएगा, वो भी इतना हैंडसम? अरे, इतना हैंडसम वैम्पायर होगा तो मैं उसे जाने ही क्यों दूंगी? मैं तो शादी करके उसके साथ हनीमून मनाने किसी पुरानी हवेली में चली जाऊंगी!"

    ये कहकर सुरभि और ज़ोर से हँसने लगी। प्रीति को गुस्सा आ गया, उसने तकिए से सुरभि को मारना शुरू कर दिया, लेकिन सुरभि फिर भी हँसती रही। प्रीति के गुस्से का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था। असल में, सुरभि ने जानबूझकर ये सब किया था। वह बस देखना चाहती थी कि अगर वह इस बारे में किसी से बात करेगी, तो क्या लोग उसकी बात पर यकीन करेंगे। और इसके लिए सबसे अच्छा माध्यम प्रीति ही थी, क्योंकि सबसे पहले उसी ने प्रीति को यकीन दिलाया था कि उसे अलौकिक शक्तियों पर विश्वास नहीं है। लेकिन जिस तरह प्रीति ने इतनी आसानी से उसकी बात पर यकीन कर लिया, उससे सुरभि समझ गई थी कि उसे सम्राट के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताना चाहिए। किसी को उसके बारे में पता नहीं चलना चाहिए।

    प्रीति गुस्से में उसे घूरते हुए बोली, "अगर तुझे मज़ाक ही करना था, तो किसी और बात का मज़ाक कर लेती! इसके लिए आंटी को बीच में लाने की क्या ज़रूरत थी? तूने अभी-अभी उनकी कसम खाई है, मतलब तूने झूठी कसम खाई!"

    सुरभि के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई। उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "नहीं, मैंने झूठी कसम नहीं खाई... पर जिसकी मैंने कसम खाई है, वह औरत माँ कहलाने के लायक नहीं है।"

    प्रीति हैरानी से उसे देखने लगी। सुरभि ने अपनी हँसी पूरी तरह रोक ली और गंभीर होकर बोली, "मुझे जन्म देने वाली माँ कोई और थी... और प्रियंका माँ मेरी सगी माँ नहीं हैं। उन्होंने मुझे गोद लिया था, मुझे पाला-पोसा, लेकिन मेरे लिए वे मेरी सगी माँ से भी बढ़कर हैं।"

    प्रीति अवाक रह गई। सुरभि ने अपनी बात आगे बढ़ाई, "जब मैं दो साल की थी, तब मेरी जन्म देने वाली माँ मुझे छोड़कर किसी और के साथ भाग गई थी। उनके जाने के बाद प्रियंका माँ और उनके पति ने मुझे गोद ले लिया, क्योंकि उनकी अपनी कोई औलाद नहीं थी। जिस औरत ने मुझे जन्म दिया, वह और प्रियंका माँ कभी बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थीं। इसीलिए, जिस औरत ने मुझे जन्म दिया, उसके नाम पर कसमें झूठी खाऊँ या सच्ची, इससे मुझे कभी फ़र्क नहीं पड़ा। वह जिएँ या मरेँ, मुझे कोई मतलब नहीं। मेरे लिए मेरी प्रियंका माँ ही मेरी असली माँ हैं, और मैं उनकी कसम कभी झूठी नहीं खाऊंगी।"

    सुरभि की यह सच्चाई सुनकर प्रीति हैरान रह गई। उसने धीरे से पूछा, "और तुम्हारे पापा? मतलब तुम्हारे असली पापा? उनका क्या?"

    सुरभि ने शांत भाव से जवाब दिया, "प्रियंका माँ ने बताया था कि वे बहुत पहले ही गुज़र चुके थे, शायद मेरे पैदा होने से पहले ही। उन्हें कोई गंभीर बीमारी थी, जिसकी वजह से वे चल बसे। उनके जाने के बाद मेरी जन्म देने वाली माँ ने मुझे जन्म दिया, लेकिन जवानी में हर किसी के कदम बहक सकते हैं। ऊपर से एक बच्चे की इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी... इसीलिए उसे अपने लिए सहारा चाहिए था। और इसलिए वह किसी और के साथ भाग गई।"

    सुरभि की आवाज़ ठंडी हो गई, "उस औरत ने कभी मुड़कर भी नहीं देखा कि उसकी बेटी ज़िंदा है या मर गई। जब मैं उसके लिए मर चुकी थी, तो मेरे लिए भी उसका कोई वजूद नहीं है।"

    सुरभि की सच्चाई जानकर प्रीति को भी काफी हैरानी हुई, क्योंकि सुरभि का मिजाज कभी ऐसा लगा ही नहीं था कि उसके बचपन में उसके साथ इतना बुरा हुआ होगा। वह तो हमेशा हँसती-मुस्कुराती रहती थी, और उसकी मुस्कराहट के पीछे का दर्द कभी किसी को नज़र ही नहीं आया।

    दोनों आपस में बात कर ही रही थीं कि तभी विक्रम वहाँ आ गया। उसने सुरभि और प्रीति को देखते हुए कहा, "तुम दोनों यहाँ बैठकर बातें करने आई हो या फिर केस पर भी काम करना है?"

    सुरभि और प्रीति दोनों तुरंत खड़ी हो गईं। सुरभि ने कहा, "हाँ, मैं बस तुम्हारे पास ही आने वाली थी... मुझे लगता है कि जो लोग मारे गए हैं, हमें उनकी फैमिली से बात करनी चाहिए।"

    उसकी बात सुनकर विक्रम ने कहा, "मैं भी यही सोच रहा था। चलो, उनकी फैमिली से बात करते हैं और पता लगाते हैं कि उन लोगों के साथ क्या हुआ था।"

    "विक्रम, तुमने तो लिस्ट बनाई होगी ना? जो लोग मारे गए हैं, उनके नाम और परिवार की डिटेल्स?"

    विक्रम ने सिर हिलाया और एक फ़ाइल सुरभि की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "हाँ, यह रही उन लोगों की लिस्ट। इसमें सारी डिटेल्स हैं कि कौन-कौन मारे गए हैं और उनके परिवार कहाँ-कहाँ रहते हैं।"

    सुरभि ने फ़ाइल ले ली और ध्यान से पढ़ने लगी। टोटल आठ लोग मारे गए थे, जिनमें से पाँच पुरुष थे और बाकी तीन महिलाएँ। वह सबके बारे में पढ़ ही रही थी कि तभी दरवाज़ा खुला, और एक 18-19 साल का लड़का कमरे में आया। उसके हाथों में चाय की ट्रे थी। वह उन लोगों को देखते हुए बोला,

    "आप लोग ही वह पुलिस वाले हैं, जो गायब हुए लोगों की तहकीकात करने आए हैं?"

    विक्रम ने सिर हिलाया। तब वह लड़का अंदर आकर चाय की ट्रे टेबल पर रखते हुए बोला, "नमस्ते साहब, मेरा नाम राजू है। मैं यही पास की बस्ती में रहता हूँ। आप लोगों को चाय देने के लिए आया था। इस गवर्नमेंट क्वार्टर में जो भी मेहमान आते हैं, उनकी चाय-पानी का इंतज़ाम मैं ही करता हूँ।"

    उसे देखकर सबके चेहरों पर हल्की मुस्कान आ गई। सबने अपना-अपना कप उठाया। वह लड़का ट्रे लेकर वहाँ से जाने ही वाला था कि सुरभि ने उसे रोकते हुए कहा,

    "सुनो, राजू!"

    राजू रुक गया और सुरभि की तरफ़ देखते हुए बोला, "जी, मैडम?"

    सुरभि ने पूछा, "तुम कुछ बता सकते हो यहाँ जो लोग गायब हो रहे हैं, उनके बारे में?"

    राजू के चेहरे पर अचानक गंभीरता आ गई। उसने धीरे से कहा,

    "नहीं, मैडम... वे लोग गायब नहीं हो रहे... बल्कि वह बदला लेने आया है। अपने परिवार की मौत का बदला।"

  • 16. Daitya Samrat : Love Story A Vampire - Chapter 16

    Words: 67

    Estimated Reading Time: 1 min

    स्टोरी पढ़ने के बाद चैप्टर को फाइव स्टार रेटिंग जरूर करें.. और कमेंट करना ना भूले। आपका एक कमेंट मुझे आगे लिखने के लिए प्रोत्साहित करता है।आपको कहानी कैसी लगी यह मुझे कमेंट में जरूर बताएं। अगर अभी तक आपने मुझे फॉलो नहीं किया है तो जरूर फॉलो करें जितनी जल्दी मेरा चैनल गो होगा उतनी ही जल्दी मैं आपके लिए ऐसी बेहतरीन कहानी लाती रहे  ❤️

  • 17. दैत्य सम्राट के वैंपायर बनने की कहानी - Chapter 17

    Words: 1063

    Estimated Reading Time: 7 min

    राजू की बात सुनकर सुरभि, विक्रम और पूजा तीनों हैरान रह गए।

    विक्रम ने चौंककर पूछा, "बदला लेने आया है? कौन बदला लेने आया है? और ये क्या बोल रहे हो तुम?"

    राजू ने उन तीनों को देखा और बोला, "अरे साहब, आप लोग यहाँ तहकीकात करने आए हैं और आपको ये तक नहीं पता कि केस का असली मुद्दा क्या है?"

    प्रीति बोली, "बिल्कुल पता है। लोग गायब हो रहे हैं और फिर उनकी लाश मिल रही है। हमें बस ये पता करना है कि खूनी कौन है।"

    राजू ने सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, लेकिन इन दोनों बातों के बीच में एक लकीर है। जो आप लोग बोल रहे हैं, वो ये है कि लोग गायब हो रहे हैं और फिर उनकी लाश मिल रही है। मगर इन दोनों के बीच में एक और बात है, जो शायद आपको बताई नहीं गई या फिर आपको पता ही नहीं है।"

    विक्रम ने हैरानी से पूछा, "कौन-सी बात?"

    राजू उन्हें देखता हुआ बोला, "साहब, ये तो बहुत पुरानी कहावत है। यहाँ का हर बच्चा-बच्चा जानता है और लोग इस पर यकीन भी करते हैं। आप लोग बाहर से आए हैं, इसलिए आपको नहीं पता। लेकिन यहाँ आपको हर किसी की जुबान से उस कहानी का जिक्र मिल जाएगा।"

    विक्रम ने गंभीर आवाज़ में कहा, "कौन-सी कहानी? हमें बताओ, हमारे लिए ये जानना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि वो कहानी भी हमारे केस का हिस्सा हो सकती है।"

    सुरभि के दिल में अजीब-सी बेचैनी होने लगी। उसे ऐसा लगने लगा जैसे राजू सम्राट के बारे में कुछ जानता है।

    सुरभि और प्रीति एक साथ बैठी थीं और विक्रम दूसरी तरफ बैठा था। उसने अपना टेप रिकॉर्डर ऑन कर दिया और राजू से कहा, "बताओ, राजू।"

    राजू ने गहरी सांस ली और कहना शुरू किया, "साहब, बहुत पुरानी कहानी है। जब यहाँ कोई शहर भी नहीं था, तब ये एक रियासत हुआ करती थी। ये कहानी मेरे पुरखों से होती हुई मुझ तक आई है, और ऐसे ही बाकी लोगों के पुरखों से होती हुई उन तक भी पहुँची है। मेरे बाप-दादा के ज़माने से ये कहानी सुनाई जाती है ताकि हम सबको इसके बारे में पता हो और हम जागरूक रहें।

    ये इलाका, जहाँ आज दूर-दूर तक सिर्फ जंगल ही जंगल हैं, घना अंधेरा है, वहाँ कभी एक खुशहाल रियासत थी। लोग इस रियासत की मिसाल दिया करते थे, क्योंकि भले ही ये छोटी थी, लेकिन यहाँ के राजा बहुत नेकदिल हुआ करते थे।

    राजा ने अपनी प्रजा के लिए बहुत कुछ किया था, और प्रजा भी उनसे बहुत खुश थी। मगर फिर वो दौर आया जब अंग्रेजों ने यहाँ कब्जा कर लिया। भले ही रियासत छोटी थी, लेकिन राजा बहुत बहादुर थे। उन्होंने साफ कह दिया कि वो अपनी रियासत अंग्रेजों के अधीन नहीं होने देंगे। लेकिन उन्हें पता था कि उनके बाद सिंहासन संभालने के लिए उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है। इसी बात का फायदा अंग्रेजी हुकूमत उठाने वाली थी।

    अपने इस छोटे से राज्य को और मज़बूत बनाने के लिए राजा ने आसपास के राजाओं से मदद मांगी, लेकिन शायद वो पहले ही अंग्रेजों के हाथों बिक चुके थे।

    ना चाहते हुए भी राजा को अपनी रानी को छोड़कर दूसरी शादी करनी पड़ी, ताकि वो एक बेटा पैदा करके उसे वारिस घोषित कर सकें। और ऐसा हुआ भी। राजा को एक साल बाद बेटा हुआ, और फिर एक साल बाद बेटी। उनका परिवार पूरा हो गया और सिंहासन के लिए वारिस भी मिल गया।

    लेकिन ये बात बड़ी रानी को बर्दाश्त नहीं थी। जलन और ईर्ष्या की वजह से उन्होंने तंत्र विद्या और काले जादू का सहारा लिया। धीरे-धीरे राजा और छोटी रानी बीमार पड़ने लगे और छोटे से राजकुमार के कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ आ गया।

    राजकुमार उस वक्त कोलकाता की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा था। लेकिन जब उसे अपने माता-पिता की बीमारी का पता चला, तो वो वापस रियासत आ गया। मगर उसके आने के कुछ ही दिनों बाद राजा और रानी चल बसे।

    तब राजकुमार सिर्फ 17 साल का था। इतनी छोटी उम्र में अपने माता-पिता को खोने का दुख उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। लेकिन दुख अपनी जगह था और पिता की दी हुई ज़िम्मेदारी अपनी जगह।

    अंग्रेजी हुकूमत इसी मौके का इंतजार कर रही थी, लेकिन राजकुमार ने ऐसा होने नहीं दिया। 17 साल की उम्र में उसने सिंहासन पर बैठकर खुद को राजा घोषित कर दिया। भले ही उसे रियासत के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता था, लेकिन राजा के वफादार लोगों ने उसे रियासत संभालने में मदद की।

    मगर इन सबके बीच वो भूल गया कि उसके ही महल में कोई ऐसा था, जो ना तो उसका भला चाहता था और ना ही इस रियासत का। वो थी बड़ी रानी साहिबा।

    तंत्र विद्या का सहारा लेते-लेते वो कब पूरी तरह उसमें समा गईं, ये उन्हें खुद भी नहीं पता चला। धीरे-धीरे वो इस रियासत पर पूरी तरह कब्जा करना चाहती थीं।

    राजकुमार जब 24 साल का हुआ, तब उसे पता चला कि उसके माता-पिता की मौत कोई हादसा नहीं थी, बल्कि उन्हें मारा गया था।

    लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बड़ी रानी साहिबा तंत्र विद्या में इतनी माहिर हो गई थीं कि उन्होंने मरे हुए लोगों को पिशाच बनाने की कला सीख ली थी। उन्होंने कई पिशाचों को अपना गुलाम बना लिया था..."

    वैसे तो राजकुमार को पहले लगा कि शायद उनके माता-पिता के जाने के बाद उनकी बहन ज्यादा बीमार रहने लगी, पर धीरे-धीरे उन्हें पता चला कि ये बीमारी कोई साधारण नहीं है। जब राजकुमारी और ज्यादा बीमार होती चली गई, तब जाकर राजकुमार का ध्यान उसकी तरफ गया, वर्ना इससे पहले तो वो इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें खाना खाने तक का समय नहीं मिलता था।

    पर अपने सारे काम छोड़कर राजकुमार ने अपनी बहन की देखभाल शुरू की। उसकी तबीयत इतनी बिगड़ गई थी कि वो उठ भी नहीं पा रही थी। उन्होंने दुनिया भर के वैद्य-हकीम बुलाए, लेकिन फिर भी राजकुमारी की तबीयत नहीं सुधरी। ये कैसी बीमारी थी? और ये बीमारी उसे लगी कैसे? क्योंकि ऐसी ही बीमारी से उनके माता-पिता भी गुजरे थे।

    राजकुमार ने अपने सबसे खास आदमियों को काम पर लगाया और इस बारे में पता लगाने को कहा। जो सच सामने आया, उसे सुनकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। जब उन्हें पता चला कि राजकुमारी को जो ज़हर दिया जा रहा था, वो बड़ी रानी साहिबा के कहने पर दिया जा रहा था। यही ज़हर उनके माता-पिता को भी दिया गया था।

  • 18. दैत्य सम्राट के वैंपायर बनने की कहानी 2 - Chapter 18

    Words: 1154

    Estimated Reading Time: 7 min

    गुस्से में राजकुमार अपना आपा खो बैठा। उसने अपनी तलवार निकाली और बड़ी रानी साहिबा को मारने के लिए उसके महल की ओर चल दिया। लेकिन जब वह वहाँ पहुँचा, तो जो उसने देखा, उस पर यकीन करना मुश्किल था। उसने देखा कि बहुत सारे पिशाच उसकी बहन के टुकड़े कर उसे खा रहे थे। राजकुमारी तब तक मर चुकी थी, और यह नज़ारा बैठकर बड़ी रानी साहिबा मजे से देख रही थी।


    राजकुमार गुस्से से तिलमिला उठा। उसने एक ही झटके में तलवार से बड़ी रानी साहिबा का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन जो पिशाच उसने पाले थे, उन्होंने राजकुमार पर हमला कर दिया। किसी तरह राजकुमार उनकी पकड़ से बच निकला और महल को आग लगा दी। सारे पिशाच महल के अंदर जल रहे थे, लेकिन राजकुमार को नहीं पता था कि पिशाचों को जलाने से वे मरते नहीं हैं।


    पिशाच वहाँ से भाग निकले। राजकुमारी की मौत का सदमा राजकुमार के दिल और दिमाग पर छा गया था। बड़ी रानी तो खत्म हो गई थी, लेकिन अपने पीछे उसने अपनी रची हुई यह पिशाचों की सेना छोड़ दी थी, जो धीरे-धीरे पूरे राज्य पर हमला करने लगे। रात के अंधेरे में पिशाच बाहर निकलते, प्रजा पर हमला करते, उन्हें मारकर खा जाते और उनके शरीर को जमीन की गहराइयों में ले जाते।


    राजकुमार ने काशी से एक सिद्ध पंडित को बुलवाया और इस संकट से निकलने का उपाय पूछा। तब उस पंडित ने राजकुमार को एक पवित्र खंजर दिया और कहा, "अगर यह खंजर किसी भी एक पिशाच के सीने में उतार दिया जाए, तो सारे पिशाच अपने आप मर जाएँगे। लेकिन यह काम सिर्फ पूर्णिमा की रात को किया जा सकता है।"


    राजकुमार ने वह खंजर लिया और उसे पवित्र गंगाजल से शुद्ध किया। पूर्णिमा की रात वह अकेले जंगल में पिशाचों को ढूँढने निकल पड़ा। उसे बस एक पिशाच को मारना था, लेकिन शायद उस दिन भाग्य उसके साथ नहीं था। क्योंकि पिशाचों के एक झुंड ने उस पर हमला कर दिया।


    राजकुमार बहादुरी से लड़ता रहा। वह अपनी तलवार से पिशाचों पर वार कर रहा था, लेकिन तभी उनमें से एक बेहद बलशाली पिशाच उसके पास आया। बाकी पिशाचों ने राजकुमार को जकड़ लिया और वह बलशाली पिशाच उसके गले में अपने दाँत गड़ा देता है। राजकुमार दर्द से तड़पने लगा। कुछ ही देर में उस दानव ने उसका सारा खून चूस लिया और उसके सफेद पड़े शरीर को जंगल में छोड़ दिया।


    लेकिन चूँकि वह पूर्णिमा की रात थी, चाँद की रोशनी राजकुमार के जख्मों पर पड़ने लगी। धीरे-धीरे उसका शरीर परिवर्तित होने लगा। वह खुद एक पिशाच में बदल गया...


    लेकिन अपनी बहन की मौत का बदला और अपने राज्य की सलामती का जुनून अभी भी राजकुमार के दिल में था। पिशाच बनने के बाद उसे पता था कि बाकी पिशाचों से कैसे लड़ना है। इसीलिए राजकुमार ने अपनी इस नई शक्ति के साथ युद्ध किया और वह पवित्र खंजर उस ताकतवर पिशाच के सीने में उतार दिया। उसके मरते ही सारे पिशाच एक-एक करके खत्म हो गए, और वह राज्य पिशाचों से मुक्त हो गया।


    लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। राजकुमार को लगा कि उसका भी अंत पिशाचों के साथ ही हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह अब भी पिशाच बना रहा... चूँकि वह दिन के उजाले में नहीं निकल सकता था, इसलिए रात के अंधेरे में वह महा पंडित जी के पास गया और उनसे पूछा कि उसे मुक्ति क्यों नहीं मिली? तब महा पंडित जी ने कहा, "तुम्हें पाप लगा है... स्त्री हत्या का पाप। तुम्हारी मुक्ति के लिए तुम्हें इंतजार करना होगा।"


    महा पंडित जी ने अपनी विद्या से राजकुमार को उसके महल में कैद कर दिया, जिससे कि वह कभी बाहर न आ सके। लेकिन कुछ साल पहले वह महल के दरवाजे खुल गए, और तब से वहाँ मौत का तांडव दोबारा शुरू हो गया।


    जैसे ही राजू ने अपनी बात पूरी की, सब लोग हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगे। विक्रम के तो रोंगटे खड़े हो गए थे। यह कहानी जितनी सीधी लग रही थी, उतनी थी नहीं। वहीं दूसरी तरफ, प्रीति का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा, लेकिन इन दोनों से अलग, सुरभि का चेहरा घबराहट से भर गया था। "राजू जिस राजकुमार की बात कर रहा है... कहीं वह सम्राट की बात तो नहीं कर रहा?" लेकिन अजीब बात यह थी कि राजू ने एक भी बार सम्राट का नाम नहीं लिया था।


    सुरभि ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा, "अच्छा राजू, तुम्हें इसके बारे में कैसे पता चला? मतलब तुम्हें कैसे पता कि राजकुमार को महल में कैद कर लिया गया था और अब वह अपनी मुक्ति का इंतजार कर रहा है?"


    राजू ने जवाब दिया, "मैडम, महा पंडित जी ने इन सारी बातों की एक पुस्तिका बनाई थी, जो हमारे यहाँ की एक पुरानी लाइब्रेरी में रखी गई है।"


    सुरभि उसकी बात सुनकर सोचने लगी, "मतलब, मुझे वह पुस्तिका पढ़नी होगी, तभी मैं आगे की सच्चाई जान पाऊँगी।" लेकिन फिर उसने पूछा, "अच्छा राजू, क्या तुम्हें पता है कि उस राजकुमार और राजकुमारी का नाम क्या था?"


    राजू झट से बोला, "हाँ मैडम, राजकुमारी का नाम तो मुझे अच्छे से पता है, क्योंकि उसी के नाम पर इस महल का नाम रखा गया है... चित्रा।"


    "इस महल का नाम चित्रा है?" प्रीति ने हैरानी से पूछा।


    राजू हँसते हुए बोला, "अरे नहीं-नहीं, इस महल का पूरा नाम चित्रलेखा है। राजकुमार प्यार से अपनी बहन को चित्रा बुलाया करता था।"


    सुरभि ने उत्सुकता से पूछा, "अच्छा, और राजकुमार का क्या नाम था?"


    राजू ने कहा, "हमें नहीं पता, क्योंकि राजकुमार का नाम कभी कोई लेता ही नहीं था। हमारे बाप-दादा ने भी उसका जिक्र कभी नहीं किया।"


    राजू की बात सुनकर वे तीनों एक-दूसरे को हैरानी से देखने लगे, लेकिन सुरभि का मन बेचैन हो उठा। "क्या यह बात सच में सम्राट के बारे में थी?"


    विक्रम बोला, "अरे, कोई तो नाम होगा! क्या उसे सब लोग बस राजकुमार ही कहकर बुलाते थे?"


    राजू हँसते हुए बोला, "अरे नहीं-नहीं, राजकुमार उसका नाम कैसे हो सकता है? उसका असली नाम क्या था, यह हम में से कोई नहीं जानता। क्योंकि यहाँ पर सब उसे एक ही नाम से बुलाते हैं... वही नाम जो इस पुरानी पुस्तिका में लिखा है और जो हमें हमारे पूर्वजों ने बताया है।"


    "यहाँ पर सब उसे सम्राट कहकर बुलाते थे।"


    सुरभि की आँखें एकदम चौड़ी हो गईं और उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। "मतलब, सम्राट ही वह राजकुमार है, जिसकी इतनी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी, और जिसे श्राप मिला था!"


    राजू आगे बोला, "और आपको पता है? उसने कई बार अंग्रेजों को इतनी बेरहमी से मारा था कि लोगों की रूह काँप जाती थी। यहाँ तक कि बड़ी रानी को मारते वक्त भी उसने अपनी तलवार के एक वार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था।"


    "इसीलिए पुरानी पुस्तिका में उसका नाम दैत्य रखा गया है। और उस पुस्तिका का नाम है... दैत्य सम्राट।"


    "यही उस राजकुमार का नाम था... सब उसे इसी नाम से जानते थे।"

  • 19. सुरभि पहुंची शापित हवेली में - Chapter 19

    Words: 1450

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुरभि की गाड़ी लगातार दौड़ रही थी। वह लापरवाही से गाड़ी चला रही थी। जब से राजू ने सम्राट के बारे में बताया था, तब से सुरभि का मन अशांत हो गया था। कैसे सम्राट ने इतनी सदियों तक इस दर्द को अकेले सहन किया था? अपनी मुक्ति के लिए वह किस तरीके से तड़प रहा था? अब जब सुरभि को सब पता था, तो उसने तय किया कि वह जाकर सम्राट से मिलेगी और उसके बारे में सब कुछ जानेगी। भले ही राजू ने उसे सब कुछ बता दिया था, लेकिन यह सच्चाई आधी थी—वह आधी सच्चाई, जो सबको पता है। लेकिन सुरभि को वह जानना था, जो सिर्फ सम्राट को पता था।


    शापित हवेली पर आते ही सुरभि का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह हैरान नजरों से उस श्रापित हवेली को देख रही थी। आज से पहले उसने कभी भी इन सब चीजों पर विश्वास नहीं किया था, लेकिन आज अपने सामने एक भूतिया श्रापित हवेली को देखकर न जाने क्यों उसके मन में अजीब सी हलचल हो रही थी। वैसे भी, उसने कभी किसी दूसरी शक्तियों पर विश्वास नहीं किया था, लेकिन सम्राट से मिलने के बाद अब उसके पास विश्वास करने की एक नई वजह थी। उसने मान लिया था कि अगर सच है तो झूठ भी है, अच्छाई है तो बुराई भी है। इसी तरह, अगर भगवान हैं तो शैतान भी हैं और अगर देवता हैं तो दैत्य भी हैं...


    अपने आप को हिम्मत देते हुए सुरभि ने आखिरकार उस लोहे के जंग लगे दरवाजे को कसकर धक्का देकर खोला और अपने कदम अंदर की तरफ बढ़ाए। जैसे-जैसे वह अंदर बढ़ रही थी, सूखे पत्ते अपना रास्ता बदल रहे थे और उसे जाने के लिए जगह दे रहे थे। कटीली झाड़ियां अपने आप साइड हो रही थीं। महल के दरवाजे पर पहुँचते ही सुरभि की नज़र उस पुराने लोहे के दरवाजे पर गई, जो उसे अजीब सा अहसास करवा रहा था। जैसे ही उसने दरवाजे पर हाथ रखा, दरवाजा अपने आप खुल गया...


    हवेली के अंदर दाखिल होते ही सुरभि को यह एहसास हुआ कि हवेली का स्ट्रक्चर काफी यूनिक और क्लासी है। जब यह हवेली अपने वास्तविक रूप में रही होगी, तब ज़रूर यहाँ की रौनक अलग ही रही होगी। खंडहर होने के बावजूद भी वहाँ की खूबसूरती अभी तक बरकरार थी। वहाँ का स्ट्रक्चर, सीढ़ियाँ और फाउंटेन—सब कुछ इतना आलीशान और खूबसूरत था कि सुरभि उन सबको बिना रुके निहार नहीं पा रही थी।


    सीढ़ियों के पास एक बड़ा सा पुतला खड़ा था, जो पूरा संगमरमर का बना हुआ था। उसकी आँखें बंद थीं और हाथों में एक बड़ा सा फूलदान था। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बनावट इस तरह की गई है कि अगर उसमें असली फूल डाल दिए जाएँ, तो ऐसा लगेगा कि पुतले ने वे फूल अपने हाथों में ले रखे हैं। सुरभि उस पुतले को निहार ही रही थी कि तभी उसे पीछे से सम्राट की आवाज सुनाई दी—

    "तो तुम आ ही गई..."


    सुरभि अचानक से कांप गई। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा और अपने सीने पर हाथ रखकर वह जोर से चिल्ला उठी—

    "मम्ममम्ममम्मी!"


    सुरभि का दिल उछल गया था और साथ में वह खुद भी उछल गई थी। एक कदम पीछे हटते हुए जब उसने अपने सामने सम्राट को देखा, तब जाकर उसे थोड़ी राहत मिली। तेज़ी से साँस लेते हुए वह सम्राट से बोली—

    "ऐसे पीछे से कौन बुलाता है? अगर मुझे हार्ट अटैक आ जाता तो?"

    "तो कुछ नहीं... यहाँ पर रहने वालों में तुम भी शामिल हो जाती।"


    सम्राट ने एक्सप्रेशनलेस चेहरे के साथ कहा, तो सुरभि चौंक गई—

    "क्या?"

    सम्राट ने हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए कहा—

    "कुछ नहीं, इग्नोर करो। वैसे मुझे खुशी हुई कि तुम यहां आई हो... मतलब, मैंने सोचा नहीं था कि तुम इतनी जल्दी मुझ तक पहुँचोगी।"


    सुरभि हैरानी से सम्राट को देख रही थी। हमेशा की तरह उसने काले रंग के कपड़ों के ऊपर ओवरकोट पहना हुआ था। बाल पीछे बंधे हुए थे, लेकिन हमेशा की तरह उसकी एक लट उसके गालों को छू रही थी। उसका चेहरा हल्का पीला था, लेकिन सोने सा चमक रहा था। उसकी काली आँखें अब भी सुरभि को मंत्रमुग्ध कर रही थीं।


    सम्राट के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। उसने सुरभि को देखते हुए कहा—

    "वेलकम! आपका मेरे घर में स्वागत है।"


    सुरभि उसकी बात सुनकर हैरान रह गई, लेकिन उससे ज़्यादा वह सम्राट की मुस्कान पर हिप्नोटाइज़ हो गई थी।

    "ये बंदा मरकर मुस्कुरा रहा है तो इतना कीलर लग रहा है... जीते जी इसने कितनी जान ली होगी! इस पर तो लड़कियाँ आहें भरती होंगी और खुद को इसके सामने परोस देती होंगी... मुझे तो ऐसा लगता है कि जब यह ज़िंदा रहा होगा, तो अय्याश रहा होगा। इसके पास लड़कियों की कमी नहीं होगी..."


    उसके मन में यह ख्याल आते ही उसने झटके से खुद को संभाला और सम्राट की आँखों में झाँकते हुए बोली—

    "मैं यहाँ तुम्हारे बारे में सब जानने आई हूँ, सम्राट।"

    "बिल्कुल भी नहीं! मैं बहुत शरीफ था... लड़कियाँ भले ही खुद मेरे पास आती थीं, लेकिन मैंने कभी भी उनकी तरफ़ नज़र तक नहीं उठाई। मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता था। इसलिए मेरा नाम अय्याश राजाओं की श्रेणी में नहीं था। मैंने सिर्फ़ एक लड़की को देखा था और उसके बाद अपनी आँखें बंद कर लीं। वो लड़की का चेहरा हमेशा मेरी आँखों के सामने रहता है, और उसके अलावा मुझे कोई और खूबसूरत भी नहीं लगती।"


    सम्राट ने हल्की मध्यम आवाज़ में कहा, तो सुरभि हैरानी से उसे देखते हुए बोली—

    "तुम्हारी लाइफ़ में लड़की? वैसे तो तुम्हारे पास लाइफ़ भी नहीं है, लेकिन लड़की का होना थोड़ा अजीब नहीं है? खैर, मुझे क्या करना है... तुम्हारी लाइफ़ है, लड़की हो या कोई चुड़ैल! वैसे है कहाँ वो लड़की, जो तुम्हारी आँखों में बसी हुई है? मुझे उसकी इन्वेस्टिगेशन करनी है, पूछताछ करनी है, ताकि मैं केस को आगे बढ़ा सकूँ।"

    "उस लड़की से मिलने के लिए तुम्हें समय में पीछे जाना होगा। वैसे तो इंसानों ने आधुनिक युग में काफ़ी आविष्कार कर लिए हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब तक ऐसी कोई मशीन बनी है जो समय में पीछे जा सके। अगर बनी है, तो तुम 200 साल पीछे जाकर पता कर लो कि वो लड़की कौन थी। और अगर तुम्हें मिल जाए, तो उसे मेरा सलाम कहना..."


    सम्राट उसका मज़ाक उड़ाते हुए आगे बढ़ा, तो सुरभि उसे घूरकर देखने लगी। सम्राट मुस्कुराते हुए धूल जमे सोफे पर बैठ गया और अपने एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाते हुए बोला—

    "काम की बात करें!"


    सुरभि एक बार उस जगह को देखती है और फिर धीरे-धीरे सोफे के पास आती है। उसने देखा कि सोफे पर सफ़ेद रंग की चादर रखी हुई थी, जिस पर धूल-मिट्टी जमी हुई थी। सुरभि ने हल्के से चादर अपनी उंगली से उठाई और झाड़ते हुए उसमें से धूल साफ़ की। इसके बाद वह सोफे पर बैठते हुए बोली—

    "तुम यहाँ कैसे रहते हो?"

    "मतलब?" सम्राट ने एक शब्द में सवाल किया, तो सुरभि तुरंत बोली—

    "मेरा मतलब है कि इस जगह पर... यहाँ तो इतनी धूल-मिट्टी है, जाले लगे हुए हैं और सीलन की बदबू भी आ रही है..."


    सम्राट, सुरभि को घूरते हुए कहता है—

    "यह महल का वह हिस्सा है, जहाँ सिर्फ़ मैं आता हूँ। इसके अलावा इस हिस्से में आने की इजाज़त किसी को भी नहीं है। बाकी सबके लिए महल का दूसरा हिस्सा है। और मैं यहाँ इसीलिए आता हूँ क्योंकि इस जगह से मेरा लगाव है।"

    "तो तुम्हारा लगाव इस हिस्से से इसीलिए है क्योंकि तुम्हारे परिवार की यादें इससे जुड़ी हुई हैं, है ना? अगर मैं गलत नहीं हूँ, तो महल का यह हिस्सा तुम्हारी बहन का था... वह यहाँ पर नृत्य सीखा करती थी।"


    जैसे ही सुरभि ने यह कहा, सम्राट की आँखें तीखी हो गईं और उसने घूरकर सुरभि को देखा।


    सुरभि तुरंत बोली—

    "मुझे गवर्नमेंट क्वार्टर में काम करने वाली लड़की ने तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की कहानी बताई थी। उसी से मुझे पता चला है।"

    "तो तुम अपनी इन्वेस्टिगेशन पूरी कर रही हो, ऑफ़िसर? जानकर खुशी हुई कि तुम मेरे केस में इतनी दिलचस्पी ले रही हो। अब जब इतना कुछ पता कर ही लिया है, तो आगे की बातें भी जान लो।"


    सुरभि ने अपनी डायरी निकाली और सम्राट से कहा—

    "ठीक है! मैं अपनी इन्वेस्टिगेशन आगे बढ़ा रही हूँ। तुमसे कुछ सवाल करूँगी, और तुम्हें उनके सही-सही जवाब देने होंगे, ताकि मैं यह पता कर सकूँ कि यहाँ जो हादसे हो रहे हैं, उनकी असली वजह क्या है।"

    "पूछो, क्या पूछना है तुम्हें?"


    जैसे ही सम्राट ने यह कहा, सुरभि डरते हुए उसकी तरफ़ देखने लगी। घबराते हुए उसने पूछा—

    "तुम्हें मुक्ति क्यों नहीं मिल रही? क्या वजह है कि तुम अब तक कैद में हो और पिशाच बनकर रह रहे हो? तुम्हारी मुक्ति कैसे होगी?"

  • 20. इंसानी खून की तलब - Chapter 20

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    सुरभि के सवाल से सम्राट की आँखें तीखी हो गईं। वह उसे घूरते हुए बोला, "तुम यहाँ यह जानने आई हो कि मुझे मुक्ति कैसे मिलेगी?"

    सुरभि ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा, "वैसे तुम खुद भी अपनी मुक्ति की तलाश ही कर रहे हो, लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ… तुम्हें जो श्राप मिला है, उसे खत्म करने का कोई तो उपाय होगा ना? तो मैं उसमें तुम्हारी हेल्प करूंगी।"

    सम्राट के चेहरे पर एक मजाकिया मुस्कान आ गई। उसने ना में सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, तुम मदद नहीं कर सकती। इसमें कोई मेरी मदद नहीं कर सकता। यह मेरी अकेले की लड़ाई है, और मुझे खुद ही लड़नी होगी। मुझे अपनी मुक्ति के लिए तुम्हारी मदद नहीं चाहिए, बल्कि यह जो कत्ल हो रहे हैं, इसके लिए चाहिए…"

    सुरभि ने उसे तिरछी निगाहों से देखा। सम्राट उसे और ज्यादा घूरते हुए बोला, "माना, खूबसूरत आँखें हैं तुम्हारी, लेकिन मुझ पर असर नहीं करेंगी।"

    "हाँ तो मैं भी कोई नैना से बाण नहीं चला रही थी… बल्कि सोच रही थी कि अगला सवाल क्या करूँ जिससे इस केस में कुछ सुराग मिल सके।" सुरभि ने कुछ सोचा और फिर सम्राट की तरफ देखते हुए कहा, "वैसे तुम्हें कब कन्फर्म हुआ कि तुम एक खून पीने वाले पिशाच बन चुके हो?"

    "जब मैंने अपने बॉडीगार्ड का खून पिया था…" सम्राट ने उसे घूरते हुए जवाब दिया। सुरभि की आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। वह हैरानी से बोली, "क्या? बॉडीगार्ड? तुमने अपने बॉडीगार्ड को जान से मार दिया? उसका खून पी लिया?"

    सम्राट ने बेफिक्री से अपने कंधे उचकाए और कहा, "उस वक्त मुझ पर मेरा खुद का काबू नहीं था, और मेरे सबसे करीब मेरा अंगरक्षक ही था, इसलिए वह बेचारा बली का बकरा बन गया।"

    "मतलब? कैसे?" सुरभि ने हैरानी से पूछा।

    सम्राट उसे देखते हुए बोला, "महल से जाने के बाद जब मैंने पिशाचों पर हमला किया था, तब उन पिशाचों ने मुझे भी अपने जैसा बना दिया। लेकिन उस वक्त मेरे शरीर में कुछ अजीबोगरीब हरकतें हो रही थीं, जिनकी वजह से मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा था। इसलिए मैंने महल वापस लौटना सही नहीं समझा, बल्कि जंगलों में ही अपना बसेरा कर लिया, ताकि जब तक मैं अपने अंदर हो रहे इस बदलाव को ना समझ लूँ, तब तक किसी को नुकसान ना पहुँचाऊँ। लेकिन महल में मेरे गायब होने से हड़कंप मच गया था, इसीलिए मेरा सबसे भरोसेमंद अंगरक्षक मेरी तलाश में निकल पड़ा…"

    "उसे पता था कि मैं अंधेरे जंगल में पिशाचों को खत्म करने जा रहा हूँ, इसलिए वह मेरा पीछा करते हुए जंगल के भूलभुलैया में आ गया और वहाँ मुझे तलाश करने लगा। जब उसने मुझे देखा, तो बहुत खुश हुआ, क्योंकि पूरे चार दिन बाद मैं उसे दिखा था, और वह भी जिंदा और सही-सलामत… बस मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। लेकिन अंगरक्षक को मुझे ऐसे देखने की आदत थी। वह जल्दी से मेरे पास आया और खुश होकर मुझसे कहने लगा कि महल में मेरी जरूरत है, राज्य मेरे बिना संकट में है, और अंग्रेजी शासन राज्य पर आक्रमण करने वाले हैं।"

    "वह मुझे अपने साथ महल ले जाने लगा था, लेकिन मैं महल नहीं जा सकता था, और मैं उसे यह भी नहीं बता सकता था कि आखिर वजह क्या है। मैंने उसे यहाँ से जाने के लिए कहा, पर वह माना नहीं और जबरदस्ती मुझे अपने साथ खींचने लगा। मैंने उसे जोर से धक्का दे दिया, जिससे वह सीधा जमीन पर गिर पड़ा। उसके सिर पर चोट लगी और वहाँ से खून निकलने लगा।"

    "मैंने पहली बार खून की सुगंध महसूस की थी। पहली बार कुछ अजीब सा लगा… पहली बार कुछ तलब सी महसूस हुई। अंगरक्षक बस अपना काम कर रहा था। वह घायल होने के बावजूद मेरे पास आया और मुझे अपने साथ ले जाने की जिद करने लगा। लेकिन मेरा पूरा ध्यान सिर्फ उसके सिर से बहते हुए खून पर था। न जाने मुझे क्या हो गया… मुझे वह खून चाहिए था। इसीलिए अगले ही पल मैंने उसकी गर्दन दबोच ली और अपना मुँह खोल दिया।"

    "यह देखकर अंगरक्षक बुरी तरह से डर गया, क्योंकि मेरे दांतों के बीच से नुकीले दांत निकलने लगे थे। वह डर से चिल्लाने लगा और वहाँ से भागने की कोशिश करने लगा, हाथ-पैर चलाने लगा, लेकिन मेरी पिशाच-कामना ने मुझे वह करने पर मजबूर कर दिया, जो मैं कभी नहीं करना चाहता था। मैंने उसकी गर्दन पर दांत गड़ा दिए और तब तक उसका खून चूसता रहा, जब तक कि वह पूरा सफेद नहीं पड़ गया। उसके शरीर की आखिरी बूंद तक मैंने खत्म कर दी… और उसे मार दिया।"

    सम्राट ने सुरभि को बता दिया कि उसने पहली बार पिशाच बनने के बाद क्या किया था। सुरभि यह सब सुनकर एकदम से डर गई। कोई इंसान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है… और वह भी उस इंसान के लिए जिसने उसकी मदद करने की सोची थी? वह एकदम से अवाक रह गई, लेकिन फिर उसने सोचा—इसमें सम्राट की भी तो कोई गलती नहीं थी। वह भी तो उस वक्त अपने होश-हवास में नहीं था।

    सम्राट ने अपनी आँखें कसकर बंद कीं और ऊपर आसमान की तरफ मुँह करते हुए कहा, "मेरे गुनाहों में एक और गुनाह जुड़ गया… और मेरी मुक्ति का द्वार मुझसे और दूर चला गया।"

    अपने अंगरक्षक को खत्म करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं क्या कर चुका हूँ और मैं क्या कर सकता हूँ। इसी वजह से मैं भाग गया… अंधेरे जंगल में, जितना दूर तक भाग सकता था। ऐसी जगह, जहाँ कोई मुझे पहचान न सके, जहाँ कोई मुझे पकड़ न सके। एक ऐसी जगह, जहाँ मैं सिर्फ अपने अंत की उम्मीद कर सकता था। मैं नहीं चाहता था कि जो मेरे अंगरक्षक के साथ हुआ, वह किसी और के साथ हो। अगर मेरे आस-पास खून की महक होती है, तो मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता… मुझे खून चाहिए होता है, चाहे कुछ भी हो जाए। मुझे खून की प्यास लगती है, और उसे बुझाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ।