एक ऐसी शादी, जो कभी हुई ही नहीं... एक ऐसा सौदा, जिसकी कोई कीमत नहीं... प्रीत एक आम लड़की, जिसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िंदगी एक दिन एक सौदे में तब्दील हो जाएगी। वो कभी इस सौदे का हिस्सा बनना ही नहीं चाहती थी, लेकिन हालात ने उसे मजबूर कर दिया।... एक ऐसी शादी, जो कभी हुई ही नहीं... एक ऐसा सौदा, जिसकी कोई कीमत नहीं... प्रीत एक आम लड़की, जिसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िंदगी एक दिन एक सौदे में तब्दील हो जाएगी। वो कभी इस सौदे का हिस्सा बनना ही नहीं चाहती थी, लेकिन हालात ने उसे मजबूर कर दिया। आज़ादी के बदले 90 दिन, और फिर हमेशा के लिए आज़ादी... मगर क्या सच में? क्योंकि उसका खरीदार कोई और नहीं बल्कि अभिनव दीवान था एक ऐसा आदमी जिसके पास बेशुमार दौलत, रुतबा और ताकत है। वो हर वो चीज़ खरीद सकता है जो उसे चाहिए, और उसे कोई भी लड़की मिल सकती है। फिर आखिर क्यों उसने प्रीत जैसी एक साधारण लड़की को 90 दिनों के लिए खरीदा ? क्या ये सिर्फ एक सौदा है? या फिर इसके पीछे कोई वजह छुपी है? क्या प्रीत इन 90 दिनों के बाद आज़ाद हो पाएगी, या फिर वो एक ऐसे बंधन में बंध जाएगी, जिससे निकल पाना नामुमकिन होगा? रहस्य, जुनून और दर्द से भरी एक ऐसी कहानी। जानने के लिए पढ़िए,
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गुलाबी और लाल फूलों से सजे कमरे में खुशबू घुली थी। नर्म रेशमी परदे हवा में हल्की-हल्की सरसराहट कर रहे थे। कमरे का हर कोना किसी नई नवेली दुल्हन के स्वागत के लिए तैयार किया गया था, लेकिन यहाँ जो लड़की बैठी थी, वो दुल्हन नहीं थी। वो खरीदी गई थी।
गुलाबी सूट में लिपटी उस लड़की की आँखों में नफरत थी, घबराहट थी, और एक अनकही चीख जो उसके हलक में ही दब गई थी।, और उसके चेहरे पर बेबसी की हल्की परछाईं थी।
सामने कुर्सी पर बैठा वो आदमी , जिसने उसे खरीदा था, ठंडी आँखों से उसे देख रहा था। उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में एक अजीब-सी कशिश थी। उसके चौड़े कंधे और गहरी आँखें एक रौबदार आभा बिखेर रही थीं। वो अभिनव जिसने पैसे देकर उसे हासिल किया था, उसके सामने इत्मीनान से बैठा था, जैसे उसे कोई फर्क ही ना हो।
"तुम्हें पता है, मैंने तुम्हें कितने में खरीदा है?" उसने अपनी धीमी, मगर भारी आवाज़ में कहा।
लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी उंगलियाँ कसकर उसकी कलाई के कंडा पकड़ रही थीं, मानो वो खुद को रोक रही हो।
वो आदमी उठकर धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। उसके हर कदम के साथ लड़की का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। वो उसके सामने आकर रुका, फिर धीरे से झुककर उसके चेहरे को अपनी उंगलियों से छूते हुए बोला, " घाटे का सौदा नहीं है।"
लड़की ने एक झटके से उसका हाथ हटा दिया और दूर हटने की कोशिश की, लेकिन उसका दुपट्टा उसके कंधे से फिसलकर उस आदमी की उंगलियों में आ गया।
"मुझे छूने की कोशिश भी मत करना," लड़की की आवाज़ काँप रही थी, लेकिन उसमें एक अजीब-सा साहस भी था।
वो आदमी हल्के से हँसा, मगर उसकी हँसी में ठंडापन था। "मैंने तुम्हें खरीदा जरूर है, लेकिन तुम्हारी औकात नहीं है अभिनव दीवान को रिझा सको , पर मैं यह भी नहीं चाहता कि तुम भूलो कि अब तुम्हारा मालिक कौन है।"
लड़की की आँखों में आँसू तैरने लगे, लेकिन उसने उन्हें बहने नहीं दिया।
"हर चीज़ खरीदी नहीं जा सकती mr दीवान ," उसने दबे हुए गुस्से से कहा।
अभिनव ने उसकी ठुड्डी को हल्के से ऊपर किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए फुसफुसाया, "मुझे देखो, और खुद से पूछो... क्या तुम सच में ये सच मानने से इनकार कर रहे हो ?"
कमरे में सन्नाटा छा गया। बाहर हल्की बारिश होने लगी थी, और खिड़की से आती ठंडी हवा ने कमरे में मौजूद तनाव को और गहरा कर दिया।
यह रात सिर्फ एक शुरुआत थी... आज रात एक सौदा हुआ था और उसकी कीमत पर कुछ जिंदगी हो तय की गई थी.. सौदा एक लड़की का हुआ था और उसे पैसों मे तोला गया था लेकिन जज्बातों में तय की गई जिंदगी यहां क्या इस सौदे की कीमत चुका पाएगी
कमरे में एक ठहरा हुआ सन्नाटा था। लड़की का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, लेकिन उसने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया। अभिनव अब भी उसकी आँखों में देख रहा था, जैसे उसके भीतर छुपे हर डर, हर ख्याल को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो।
"क्या तुम मुझे मार दोगे अगर मैं तुम्हारी बात नहीं मानूँगी तो ?" लड़की ने धीमे लेकिन ठोस लहजे में पूछा।
अभिनव मुस्कुराया, लेकिन उस मुस्कान में कोई नरमी नहीं थी। वो वापस कुर्सी पर बैठ गया और अपनी उंगलियाँ चटकाते हुए बोला, "अगर मारना होता, तो मैं तुम्हें खरीदता ही क्यों?"
लड़की का गला सूखने लगा। उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। "फिर क्यों लाए हो मुझे यहाँ?"
अभिनव ने अपनी घड़ी पर नज़र डाली और फिर उसकी तरफ झुकते हुए फुसफुसाया, "इस सौदे की शर्तें हैं, और तुम्हें उन्हें मानना होगा।"
लड़की की आँखों में उलझन और घबराहट तैर गई। "शर्तें?"
अभिनव उठकर कमरे की खिड़की तक गया और बाहर बारिश को देखने लगा। कुछ पलों की खामोशी के बाद, उसने बिना पीछे देखे कहा, "तीन महीने... सिर्फ तीन महीने के लिए तुम्हें मेरी पत्नी की तरह रहना होगा।"
लड़की की साँसें रुक गईं। उसने अविश्वास से उसकी तरफ देखा। "क्या?"
अभिनव ने अब उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में एक रहस्यमयी ठंडक थी। "मैंने तुम्हें खरीदा, लेकिन जिस्म के लिए नहीं... मुझे एक बीवी चाहिए। तीन महीने तक तुम मेरी पत्नी बनकर रहोगी, सबके सामने, और उसके बाद तुम्हें आज़ादी मिल जाएगी। तुम जहां चाहे जा सकती हो और बदले में तुम्हें जितने भी पैसे चाहिए मैं देने को तैयार हूं."
लड़की के होंठ काँपे, गुस्से और डर से बोला। "और अगर मैंने मना कर दिया तो?"
अभिनव धीरे से मुस्कुराया। "तो फिर... मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा, और मैं वादा करता हूँ, वो तरीका तुम्हें पसंद नहीं आएगा।"
कमरे की घड़ी की सुइयाँ टिक-टिक कर रही थीं। बारिश अब तेज़ हो चुकी थी, और खिड़की से ठंडी हवा अंदर आ रही थी। लड़की ने उसकी आँखों में देखा, और उसे समझ आ गया—यह आदमी जो भी कह रहा था, वो मज़ाक नहीं था।
अब सवाल था—क्या वो इस सौदे को स्वीकार करेगी? या फिर लड़कर भागने की कोशिश करेगी?
कमरे की घड़ी की टिक-टिक उसके दिल की धड़कनों से मेल खा रही थी। बाहर बारिश और तेज़ हो चुकी थी, और खिड़की पर गिरती बूँदों की आवाज़ कमरे के भारीपन को और बढ़ा रही थी।
लड़की ने गहरी साँस ली और खुद को संभालने की कोशिश की। "तीन महीने?" उसने अविश्वास से दोहराया।
अभिनव ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा, "हाँ, सिर्फ तीन महीने।"
"और उसके बाद?" लड़की ने संदेह से पूछा।
"उसके बाद तुम आज़ाद होगी," अभिनव ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखें अब भी वैसी ही ठंडी थीं।
लड़की के पास ज़्यादा विकल्प नहीं थे। वो जानती थी कि भागना आसान नहीं होगा। अभिनव ने उसे खरीदा था—एक सौदे के तहत, और अब वो उसकी दुनिया में थी, जहाँ नियम वो तय करता था।. वैसे वो भागने की कोशिश भी नहीं करती क्योंकि बाहर की दुनिया में से बचकर ही तो वो इस सौदे में शामिल हुई थी अब जब एक सौदे ने उसे अभिनव के पास ला दिया है. तो वो उससे बचकर फिर से उस दुनिया में नहीं जाना चाहती थी..
अभिनव ने अभी-अभी कहा कि वो सिर्फ 3 महीने के लिए उसे अपनी बीवी के रूप में चाहता है उसके बाद वो आजाद हो जाएगी इसका मतलब 3 महीने बाद वो कहीं भी जा सकती है बात से 3 महीने की ही है और तब तक माहौल भी ठंडा हो जाएगा इसलिए उसे लड़की ने अभिनव को देखा
उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "ठीक है, लेकिन मेरे कुछ नियम होंगे।"
अभिनव के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, जैसे उसे इस जवाब की उम्मीद थी। "मुझे सुनना पसंद है, बताओ?"
लड़की ने आँखें उठा कर उसकी तरफ देखा। "तुम मुझे छू नहीं सकते। ये सिर्फ दिखावे की शादी होगी, कुछ और नहीं।"
अभिनव एक पल के लिए चुप रहा, फिर उसने कदम बढ़ाकर लड़की के ठीक सामने खड़े होकर फुसफुसाया, " तुम अगर बिना कपड़ों के भी मेरे सामने आकर खड़ी हो गई तो भी मेरा इरादा नहीं है तुम्हें छूने का.. लेकिन याद रखना इस बारे में इस कमरे से बाहर किसी को भी इस सौदे की भनक नहीं होनी चाहिए."
लड़की को उसकी आँखों में कुछ अजीब-सा दिखा—जैसे कोई दर्द, कोई अनकही कहानी।
लड़की ने अनजाने डर से अपनी उंगलियाँ भींच लीं। ये सिर्फ एक रात की बात नहीं थी। यह एक खेल था, जिसकी हर चाल सोच-समझकर चली जा रही थी हालांकि वो इस खेल से अभी अनजान है लेकिन यह शख्स जो उसके सामने खड़ा है और उसका मालिक है उसकी आंखों में अंजना राज और जुनून नजर आ रहा है।
अभिनव कमरे के दूसरे कोने में गया, कोट उतारा और बेड के पास खड़ा होकर एक गहरी नजर लड़की पर डाली।
"सो जाओ। सुबह से यह सौदा शुरू हो जाएगा।"
लड़की ने एक नजर उस आलीशान बेड पर डाली, जो फूलों और रोशनी से सजा था। फिर उसने काउच की तरफ देखा और खुद को सोफे की तरफ ले गई..।
अभिनव कुछ नहीं बोला। बस एक लंबी नजर डालकर बेड पर लेट गया।
कमरे की बत्तियाँ बुझ गईं, लेकिन खेल शुरू हो चुका था। यह पहली रात थी, मगर इसकी हदें अभी तय नहीं हुई थीं...
लड़की तो सोफे पर सो गई थी लेकिन अभिनव बेड पर लेट लेट पूरी रात जगता ही रहा था..
उसकी नज़रें सीलिंग फैन पर थी और उसके दिमाग में कुछ बातें चल रहा था, सुबह चिड़ियों के चर्चा के साथ अभिनव ने अपनी नजर सोफे पर सो रही उसे लड़की के चेहरे पर डाली..। वो थोड़ी मासूम थी और उसकी मासूमियत को उसने जिस तरीके से अपने अंदर कैद करके रखा हुआ था यह भी साफ देख सकता है।
कल रात का सौदा अभिनव को अच्छी तरह से याद था लेकिन वो ना तो इस सौदे को याद करना चाहता था और ना ही इस लड़की को उसने इसे जिस मकसद के लिए खरीदा था उसे वो उसे मकसद को पूरा करना था.
कहानी आगे शुरू करने से पहले इन दोनों किरदारों के बारे में थोड़ा जान लेते हैं.. अभिनव दीवान एक ऐसा नाम है, जिसे बिजनेस वर्ल्ड में हर कोई जानता है। वह ना सिर्फ दौलत और रुतबे का मालिक है, बल्कि उसकी पर्सनालिटी भी बेहद प्रभावशाली और रहस्यमयी है। उम्र 30 साल लंबाई: करीब 6 फीट, जिससे वह और भी प्रभावशाली नजर आता है। बॉडी एथलेटिक और मस्कुलर, जिसे देखकर ही उसकी ताकत और दबदबा महसूस किया जा सकता है।
वह अपनी फिटनेस का खास ध्यान रखता है। चेहरा शार्प और परफेक्टली कट फेस, मजबूत जॉलाइन जो उसे एक डॉमिनेटिंग लुक देती हैं।आँखें हल्की ब्राउन जो रहस्य और जुनून से भरी होती हैं। उसकी आँखों में एक ठंडापन है, लेकिन जब वह किसी को देखता है, तो उसकी निगाहों से बचना मुश्किल हो जाता है। बाल घने, काले और हल्के रफ स्टाइल में सेट किए हुए। कभी-कभी थोड़े बिखरे रहते हैं, जिससे उसका लुक और ज्यादा किलर लगता है। बिहेवियर ऑफ़ पर्सनालिटी का तो पूछो ही मत इसने पैदा होकर दुनिया पर एहसान किया है..अभिनव अपने हर शब्द और हर हरकत से दिखा देता है कि वह हर चीज़ का कंट्रोल अपने हाथ में रखता है।
वह जल्दी गुस्सा नहीं करता, लेकिन जब करता है तो उसकी एक नजर ही सामने वाले को कांपने पर मजबूर कर सकती है। वह अपने इमोशंस को एक्सप्रेस नहीं करता, लेकिन उसकी आँखों में छिपे अनकहे राज उसे और ज्यादा इनट्रिगिंग बनाते हैं। हमेशा परफेक्टली ड्रेस्ड ब्लैक और डार्क कलर्स के ब्रांडेड सूट्स, महंगे घड़ियाँ और शूज़। महंगी कारों और लग्जरी लाइफस्टाइल का मालिक बुलेटप्रूफ ब्लैक कार, पेंटहाउस, और दुनिया की सबसे एक्सक्लूसिव चीजों का शौक है
अभिनव के पास सब कुछ है—पैसा, पॉवर, इज्जत—लेकिन फिर भी उसकी जिंदगी में खालीपन है। उसकी आँखों में एक अनकहा दर्द है, जिसे वह कभी किसी के सामने नहीं आने देता।
अभिनव की पर्सनालिटी ऐसी है, जो सामने वाले को मजबूर कर देती है कि वे उसे देखें, लेकिन उसकी असली सोच को समझ पाना हर किसी के बस की बात नहीं। वह प्यार पर विश्वास नहीं करता, लेकिन जब करता है तो जुनून की हद तक करता है।
प्रीत महाजन – वह लड़की जिसे अभिनव ने खरीदा है
प्रीत महाजन उम्र: 25 साल लुक्स: मासूमियत और हुस्न का ऐसा संगम, जो किसी को भी पहली ही नजर में कैद कर ले।
नाज़ुक, परफेक्ट ओवल शेप, जिसके फीचर्स किसी कारीगर की तराशी हुई मूर्ति जैसे लगते हैं। उसकी मासूमियत और दर्द भरी आँखें ही उसकी सबसे बड़ी खूबसूरती हैं।
आँखें गहरी हेज़ल ब्राउन, जिनमें छिपा दर्द और मजबूरी उसकी कहानी खुद बयां कर देती है। जब वह किसी को देखती है, तो ऐसा लगता है जैसे उसकी आँखों में कोई अनकहा अफसाना छुपा हो। बाल लंबे, घने, वेवी और डार्क ब्राउन, जो उसके गोरे चेहरे पर एक परफेक्ट फ्रेम बनाते हैं। जब हवा से उड़ते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वक़्त वहीं ठहर गया हो। होंठ हल्के गुलाबी, परफेक्ट शेप में, जब कांपते हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने गुलाब की पंखुड़ियों को छू दिया हो उसकी पतली कमर और उभरी हुई कमर की लचक किसी को भी दीवाना बना सकती है। वह हर तरह के कपड़ों में खूबसूरत लगती है, लेकिन जब वह साड़ी या कोई ट्रेडिशनल ड्रेस पहनती है, तो उसकी मासूमियत और खूबसूरती एक अलग ही लेवल पर चली जाती है। वह बाहर से नाजुक दिखती है, लेकिन उसके अंदर हिम्मत की कोई कमी नहीं।
अभिनव जैसा ताकतवर और डॉमिनेटिंग इंसान भी जब उसे देखता है, तो उसे समझ नहीं आता कि वह उसकी मासूमियत से लड़ाई करे या फिर उसकी तरफ खिंचता चला जाए।
प्रीत को मजबूरी में अभिनव का सौदा मानना पड़ा, लेकिन वह कोई कमजोर लड़की नहीं। उसकी आँखों में जो दर्द है, वह उसे अंदर से तोड़ नहीं सकता, बल्कि और ज्यादा मजबूत बनाता है। वह धीरे-धीरे अभिनव के दिल में एक ऐसी जगह बना लेगी, जहां नफरत भी मोहब्बत में बदलने लगेगी।
अभिनव और प्रीत – आग और पानी का मेल। अभिनव आग है – जो जलाता है, और प्रीत पानी – जो खुद जलकर भी किसी और को ठंडक देने की ताकत रखती है। उनकी कहानी नफरत, दर्द और जुनून से भरी होगी, लेकिन क्या यह नफरत मोहब्बत में बदलेगी या फिर यह सिर्फ एक सौदे का हिस्सा बनकर रह जाएगी?
अगले दिन सुबह,
प्रीत सोफे पर सो रही थी जब तेज़ आवाज़ से उसकी नींद खुली। उसने देखा कि ये आवाज़ दरवाज़े से आ रही थी, शायद किसी ने घंटी बजाई थी।
प्रीत ने हैरानी से अपनी पलकें झपकाईं और देखा कि वो कमरे में अकेली थी। उसे कल रात का सारा मंजर याद आ गया। भले ही मोमबत्तियाँ बुझ चुकी थीं और फूल सूख चुके थे, लेकिन फिर भी इस कमरे में अभिनव की खुशबू अब भी मौजूद थी। अभिनव बेड पर नहीं था, लेकिन सिलवटें अभी भी वहीं थीं...
प्रीत ये सब सोच ही रही थी कि तभी दरवाज़े पर फिर से दस्तक हुई और बाहर से किसी लड़की की आवाज़ आई, "मैम, क्या आप उठ गई हैं?"
प्रीत ने खुद को ठीक किया और अपने दुपट्टे को कंधे पर ठीक करते हुए बोली, "हाँ, मैं उठ गई हूँ, आप अंदर आ सकती हैं।"
दरवाज़ा खुला और एक वेट्रेस अपने हाथ में एक बैग लेकर कमरे में दाखिल हुई। वो प्रीत को देखते हुए बोली, "गुड मॉर्निंग, मैम! ये बैग आपके लिए सर ने भिजवाया है और कहा है कि आप इसे पहनकर तैयार हो जाएँ, वो थोड़ी देर में आपको लेने आ रहे हैं।"
प्रीत हैरानी से उस लड़की को देखने लगी। धीरे से हाथ बढ़ाकर उसने उसके हाथ से वो कैरी बैग ले लिया। वो लड़की वहाँ से चली गई।
उसके जाने के बाद, प्रीत ने जब पैकेट खोला तो एकदम से हैरान रह गई। ये एक दुल्हन का जोड़ा था—एक लाल बनारसी साड़ी, साथ में चूड़ियाँ और सोने के कड़े। गले में पहनने के लिए हीरे का एक नेकलेस था और साथ ही एक भारी सोने का मंगलसूत्र भी। माथे पर लगाने के लिए बिंदी और साथ ही सिंदूर की डिब्बी भी थी।
प्रीत इस शृंगार को हैरानी से देखने लगी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब उसे क्यों दिया गया है। लेकिन तभी उसे कल रात का सौदा याद आया—जब अभिनव ने उससे कहा था कि उसे तीन महीने के लिए उसकी बीवी बनना होगा, उसके बाद वो आज़ाद होगी...
प्रीत हैरानी से उसे देख रही थी। क्या सच में अभिनव उसे 3 महीने के लिए शादी करने जा रहा है? और वो 3 महीने तक उसे अपने नाम की बीवी बनाकर रखेगा? वो ये सब सोच ही रही थी कि दरवाजे से उसे अभिनव की भारी-भरकम आवाज सुनाई दी—
"ये देखने के लिए नहीं दिया है तुम्हें..."
प्रीत ने अनचाहे भी अभिनव को देखा। वो हैरानी से उसे देखते हुए बोली—
"मिस्टर दीवान, ये क्या है?"
"शादी का जोड़ा है। शादीशुदा दुल्हन, दुल्हन जैसी लगनी भी तो चाहिए ना? तभी तो लोग तुम्हें मेरी बीवी के रूप में देखेंगे... जल्दी से तैयार हो जाओ, मेरे घर से दो बार फोन आ चुका है। तुम्हारा इंतजार हो रहा है।"
अभिनव बिना किसी एक्सप्रेशन के प्रीत को देखते हुए कहता है। तो प्रीत जल्दी से खड़ी हो जाती है और बैग को अभिनव की तरफ बढ़ाते हुए बोली—
"आप शायद गलत समझ रहे हैं, मिस्टर दीवान। मैंने ये जरूर कहा था कि मैं 3 महीने तक आपके साथ रहूंगी क्योंकि आपने मुझे खरीदा है, लेकिन इस तरीके से मैं आपसे शादी नहीं कर सकती।"
अभिनव की आंखें छोटी हो गईं उसे देखकर, और वो अपने कदम प्रीत की तरफ बढ़ाने लगा। प्रीत अपने कदम पीछे लेने लगती है, पर ज्यादा पीछे नहीं जा पाती क्योंकि पीछे सोफा रखा हुआ था। वो लड़खड़ाकर सोफे पर बैठ जाती है, लेकिन उसकी बड़ी-बड़ी निगाहें अभी भी अभिनव की तरफ थीं। अभिनव प्रीत के बिल्कुल सामने आकर खड़ा हो जाता है और कहता है—
"तुम्हारे छोटे से दिमाग में जो ये फालतू का फितूर आया है, इसे अभी के अभी उठाकर डस्टबिन में फेंक दो। शादी तो दूर की बात है, तुम अभिनव दीवान के साथ खड़े रहने लायक भी नहीं हो। सात जन्म का साथ तो भूल ही जाओ!"
उसकी बात सुनकर प्रीत को भी गुस्सा आ गया। उसने जल्दी से बैग के अंदर से वो सिंदूर और मंगलसूत्र निकालते हुए कहा—
"अगर ऐसी बात है, तो फिर ये क्या है? क्यों दिया है आपने मुझे ये सब?"
"पहनने के लिए... ये सामान लो और इसे पहनो, ताकि तुम मेरी बीवी लगो, बनो नहीं।"
अभिनव ने उसे अपनी ठंडी आवाज में धमकाते हुए कहा, तो प्रीत हैरानी से उसे देखने लगी। अभिनव ने अपने दोनों हाथ सामने की तरफ फोल्ड किए और अपनी एरोगेंट और डैशिंग पर्सनालिटी में प्रीत को देखते हुए आगे कहा—
"अगर मैं अपने चेहरे पर शाहरुख खान का मुखौटा पहन लूं, तो मैं शाहरुख खान नहीं बन जाऊंगा। इसी तरह, ये पहन लेने से तुम मेरी बीवी नहीं बन जाओगी।"
प्रीत के चेहरे पर डर आ गया था क्योंकि अभिनव उसके और ज्यादा करीब आते हुए ये कह रहा था। अचानक अभिनव के कदम रुक गए, और वो अपने कदम पीछे लेने लगा। प्रीत उसे देखने लगी। अभिनव दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोला—
"10 मिनट हैं तुम्हारे पास। तैयार हो जाओ, वरना मैं सर्वेंट को भेजूंगा तुम्हें तैयार करने के लिए। और हां, ऐसे तैयार होना जैसे शादी के बाद एक नई नवेली दुल्हन तैयार होती है।"
अभिनव कमरे से चला गया और जाते वक्त दरवाजा भी बंद कर दिया। प्रीत एकदम से हैरान रह गई। अभिनव उसके दुल्हन बनने पर इतना जोर क्यों दे रहा है? और ये सब क्या है? मतलब, एक बात तो साफ थी— अभिनव प्रीत को ये सब खुद पहनना था। लेकिन वो ऐसा क्यों कर रहा है? और वो क्यों चाहता है कि प्रीत एक नई नवेली दुल्हन की तरह लगे?
प्रीत ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसका छोटा सा कीपैड वाला पुराने जमाने का फोन बजने लगा। उसने जब फोन देखा, तो उसका चेहरा गुस्से से भर गया। फोन उठाकर उसने कान पर लगाया, तो सामने से एक लड़के की गुस्से भरी आवाज आई—
"प्रीत, कहां है तू?"
और प्रीत ने भी उसी लहजे में गुस्से से कहा—
"तुम्हारे कर्ज की कीमत चुका रही हूं... लेकिन प्लीज़, भाई, भगवान के लिए जब तक मैं वापस नहीं आ जाती, मां का ख्याल रखना। कहीं मेरी तरह मां को भी दांव पर मत लगा देना!"
शीशे के सामने खड़ी होकर प्रीत खुद को देख रही थी। उसने लाल बनारसी साड़ी पहन रखी थी, हाथों में लाल चूड़ियां, माथे पर बिंदी और आंखों में काजल... एक नई नवेली दुल्हन की तरह प्रीत इस वक्त आईने के सामने खुद को देख रही थी। हर लड़की का सपना होता है कि वो एक दिन दुल्हन बने, लेकिन इस तरह से बने, ये तो प्रीत ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। उसकी आंखों से आंसू बस किनारे पर आ ही गए थे। बस वही जानती थी कि उसने इन आंसुओं को कैसे रोका था।
अपने आंसुओं को पोंछते हुए प्रीत ने मंगलसूत्र उठाया और अगले ही पल अपने गले में डाल लिया। सोने का वो भारी मंगलसूत्र उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे लाल जोड़े में कोई परी उतर कर आई हो। लेकिन अब जब उसने सिंदूर की तरफ हाथ बढ़ाया, तो उसके हाथ कांपने लगे। न जाने उसके मन में क्या चल रहा था, जो वो ये करते हुए घबरा रही थी। धीरे से सिंदूर की डिब्बी खोली, और वो लाल रंग उसे न जाने किन पुराने दिनों की यादों में ले गया, जब वो खुद को पूरी तरह भूल बैठी थी।
धीरे से सिंदूर उठाते हुए उसने अपनी उंगलियों को मांग की तरफ बढ़ाया, और हर एहसास के साथ उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। एक चुटकी सिंदूर उसने अपनी पूरी मांग में भर लिया, और इसी के साथ उसकी आंखें बंद हो गईं। तभी उसके सामने एक धुंधला सा दृश्य आया, जिसने उसे बेचैन कर दिया—एक शादी का मंडप, जहां किसी की शादी हो रही थी, और एक छोटी बच्ची को दुल्हन बना कर लाया जा रहा था…
अचानक से प्रीत ने अपनी आंखें खोलीं। ये वही डर और वही सपना था, जो बार-बार उसे परेशान करता था। न जाने कब से वो ये सपना देख रही थी, और हमेशा सिंदूरदान के साथ ये सपना खत्म हो जाता था। आज तक उसे इस सपने का मतलब समझ नहीं आया था, लेकिन ये सपना उसकी जिंदगी की एक ऐसी कड़वी सच्चाई थी, जिसे वो कभी स्वीकार नहीं करना चाहती थी।
न जाने कितनी दवाइयां खाईं, कितनी पूजा-पाठ करवाई, कितने डॉक्टर को दिखाया, लेकिन इस सपने का इलाज किसी के पास नहीं था। लेकिन आज, जब प्रीत अपने ही सपने से इतनी ज्यादा डर गई थी, तो उसे ये भी एहसास नहीं हुआ कि दरवाजा खुल चुका था और अभिनव कमरे में दाखिल हो चुका था।
अब तक जब भी प्रीत को ये सपना आता था, वो सो रही होती थी। लेकिन आज वो जाग रही थी, अपनी जिंदगी के दूसरे बड़े सपने को अपनी आंखों के सामने देख रही थी, फिर भी ये सपना उसकी सोच में घुस आया। इसका क्या मतलब था?
वो ये सब सोच ही रही थी कि अचानक अभिनव उसके पीछे आकर खड़ा हो गया।
प्रीत अभी भी अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी। उसे एहसास ही नहीं हुआ कि अभिनव उसके ठीक पीछे खड़ा है। उसने ऊपर से नीचे तक प्रीत को आईने में देखा और मुस्कुराते हुए कहा,
"परफेक्ट..."
प्रीत अचानक से होश में आई और पलटकर अभिनव को देखने लगी। ब्लैक बिजनेस सूट में अभिनव किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था, लेकिन प्रीत समझ नहीं पा रही थी कि वो आखिर चाहता क्या है। उसे इस तरह दुल्हन की तरह तैयार करने के पीछे उसका मकसद क्या था?
अभिनव के दोनों हाथ उसकी पैंट की पॉकेट में थे। उसने एक एरोगेंट स्माइल के साथ प्रीत को देखा और दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा,
"लेडीज फर्स्ट!"
प्रीत गुस्से में बड़ी-बड़ी आंखों से अभिनव को देखने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या रिएक्ट करे। लेकिन तभी अभिनव हल्का सा झुका और धीमी आवाज में बोला,
"वैसे मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है अगर मुझे तुम्हारा हाथ पकड़कर कमरे से बाहर ले जाना पड़े... पर बात ये है कि हमारे कॉन्ट्रैक्ट में ऐसी कोई बात शामिल नहीं है, तो..."
फिर एक ठंडी मुस्कान के साथ बोला,
"तुम्हारा हाथ पकड़ने से बेहतर है अजगर से हाथ मिला लूं।"
इतना सुनते ही प्रीत गुस्से से आंखें तरेरती हुई कमरे से बाहर निकल गई। उसके हर कदम के साथ उसकी पायल की छन-छन की आवाज गूंज रही थी।
अभिनव ने हल्के से माथे पर हाथ फेरा और फिर एरोगेंट स्माइल के साथ उसके पीछे-पीछे कमरे से बाहर निकला।
होटल की लॉबी से होते हुए दोनों लोग प्राइवेट लिफ्ट में गए और सीधे पार्किंग में पहुंचे। प्रीत ने जब वहां देखा, तो उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं।
एक ब्लैक स्कॉर्पियो उसके सामने खड़ी थी, जो बहुत खूबसूरती से सजी हुई थी। आगे बड़ा सा फूल रखा था, और पूरी गाड़ी पर गुलाब के छोटे-छोटे फूल लगाए गए थे।
वो हैरानी से अभिनव की तरफ देखने लगी।
अभिनव ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"नई नवेली दुल्हन सजी-धजी गाड़ी में ही तो जाएगी।"
ड्राइवर और बॉडीगार्ड पहले से ही वहां मौजूद थे। अभिनव को देखते ही उन्होंने तुरंत बैक सीट का दरवाजा खोला।
अभिनव ने फिर से अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए प्रीत को आगे चलने का इशारा किया।
प्रीत ने एक नजर अभिनव को देखा, फिर गाड़ी की तरफ। एक दिन सड़क पर उसने ऐसी ही एक ब्लैक स्कॉर्पियो देखी थी और सोचा था कि एक दिन वो इसमें जरूर बैठेगी। लेकिन ये उसने नहीं सोचा था कि हालात ऐसे होंगे।
वो धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए गाड़ी के पास पहुंची और पीछे की सीट पर बैठ गई। अभिनव भी आकर उसके बगल में बैठ गया। बॉडीगार्ड ने दरवाजा बंद कर दिया, और ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी।
गाड़ी जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी, प्रीत का मन उतना ही बेचैन हो रहा था। अब आगे क्या होने वाला था?
अभिनव अपने टैबलेट पर ईमेल चेक कर रहा था, जबकि प्रीत कभी खिड़की से बाहर भागती-दौड़ती दुनिया को देखती, तो कभी चोरी-चुपके अभिनव को।
उसका अट्रैक्टिव चेहरा बिल्कुल एक्सप्रेशनलेस था।
अचानक अभिनव ने बिना उसकी तरफ देखे कहा,
"जानता हूं, बहुत हैंडसम हूं... लेकिन तुम्हारी औकात के बाहर हूं। बार-बार मुझे घूरकर नजर लगाने की कोशिश मत करो।"
उसकी बात सुनते ही प्रीत की आंखें छोटी हो गईं। उसने हल्का सा नाक चढ़ाते हुए कहा,
"आप पर नजर लगाने का तो सवाल ही नहीं होता, मिस्टर दीवान, क्योंकि नजर आप पर असर नहीं करेगी। अगर मुझे कुछ करना ही होगा, तो मैं आप पर काला जादू करूंगी।"
अभिनव अभी भी अपने टैबलेट पर देख रहा था, लेकिन प्रीत की बात सुनकर उसके चेहरे पर हल्की एरोगेंट स्माइल आ गई। उसने मुस्कुराते हुए प्रीत से कहा, "अच्छा? और क्या करोगी तुम मुझ पर काला जादू करके?"
प्रीत बोली, "अपनी सारी विश पूरी करूंगी।"
अभिनव की मुस्कान और ज्यादा गहरी हो गई। वह हल्की हंसी के साथ बोला, "तो वो तो तुम बिना टोने-टोटके के भी कर सकती हो... तुम्हारी जो भी विश है, मुझे बताओ। ये मत समझो कि मैं सिर्फ़ तीन महीने के लिए तुम्हारा नाम का हस्बैंड हूं, बल्कि ये समझो कि मैं तुम्हारे लिए अलादीन का चिराग हूं, जो तुम्हारी सारी इच्छाएँ पूरी कर सकता है। तो बताओ, क्या चाहिए तुम्हें?"
अचानक, अभिनव ने प्रीत की तरफ देखा, लेकिन प्रीत, जो अब तक कुछ कहने ही वाली थी, उसकी गहरी आंखों में देखकर बिल्कुल फ्रिज हो गई। वो गहरी आंखें, जो सीधे उसकी आंखों में झांक रही थीं… प्रीत तो ये भी भूल गई कि उसे कहना क्या था। वह जल्दी से खुद को संभालती है और कहती है, "मुझे कुछ भी नहीं चाहिए... आपने कहा था कि तीन महीने बाद मैं आज़ाद हो जाऊंगी और ये सौदा खत्म हो जाएगा। तो मुझे बस तीन महीने बाद की आज़ादी चाहिए। और अगर कुछ दे ही सकते हैं, तो बस ये बता दीजिए कि आगे मुझे क्या करना है।"
अभिनव ने मुस्कुराते हुए कहा, "कुछ नहीं, बस एक अच्छी बहू होने की एक्टिंग करनी है।"
प्रीत चौक गई और उसे देखने लगी। अभिनव मुस्कुराते हुए दोबारा अपने टैबलेट पर काम करने लगा। तभी गाड़ी रुकती है, और ड्राइवर पीछे मुड़कर कहता है, "सर, हम पहुँच गए।"
अभिनव ने चेहरा ऊपर उठाकर देखा, और प्रीत ने भी बाहर झांका। वह हैरान रह गई—सामने एक बेहद खूबसूरत मेंशन था। लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी की बात थी 'वेलकम' का बोर्ड, जो ऐसा लग रहा था जैसे किसी बच्चे ने पेंटिंग बनाकर टांग दिया हो।
अभिनव ने गहरी सांस छोड़ते हुए प्रीत से कहा, "तुम्हारी एक्टिंग में अगर कमी निकली, तो कीमत तुम्हारे पूरे खानदान को चुकानी पड़ेगी।"
ये सुनते ही प्रीत के चेहरे का रंग उड़ गया। अभिनव ने गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर कदम रखा, लेकिन प्रीत अभी भी वहीं बैठी रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करना है। तभी उसने देखा—एक लड़की, जिसने मेड के कपड़े पहने हुए थे, गाड़ी की तरफ आई और दरवाजा खोलते हुए बोली, "मैडम, बाहर आ जाइए।"
प्रीत ने धीरे-धीरे अपने कदम बाहर रखे। उसकी पायल की छन-छन से माहौल में एक अलग सी मिठास घुल गई। वह एक-एक कदम आगे बढ़ाती रही और हैरानी से इस जगह को देखने लगी। एक बड़े से गैलरी से होते हुए वह सीधे मेंशन के उस गोल्डन दरवाजे तक पहुंची। उसने देखा—सामने बहुत सारे नौकर सिर झुकाए खड़े थे। वहीं, एक तरफ कुछ लोग हाथों में फूलों की थाल लिए खड़े थे।
अभिनव धीरे-से उसके पास आया और मुस्कुराते हुए प्रीत का हाथ पकड़ लिया।
प्रीत एकदम से चौंक गई और बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखने लगी। अभिनव हल्का सा उसके चेहरे के पास झुका, लेकिन उसके चेहरे पर वही ठंडी मुस्कान बनी रही। वह धीरे-से उसके कानों के पास फुसफुसाया, "अजगर से हाथ मिलाने की ख्वाहिश तुम्हारी पूरी हो गई है।"
इतना कहकर वह प्रीत का हाथ पकड़कर मेंशन के अंदर ले जाने लगा।
प्रीत हैरान नजरों से उसे देख रही थी, और तभी उसके ऊपर फूलों की बारिश होने लगी। नौकरों ने प्रीत और अभिनव पर फूल बरसाने शुरू कर दिए थे। जैसे ही वह मेंशन के दरवाजे पर पहुंची और अपना अगला कदम अंदर रखने ही वाली थी, तभी उसके कानों में एक तेज़ आवाज़ गूंज उठी—
"मम्मा, आप आ गईं...!"
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प्रीत एकदम से चौंक जाती है। उसने देखा कि सीढ़ियों से एक छोटी सी लड़की पिंक कलर के फ्रॉक सूट में तेजी से उतर रही थी। उसके माथे पर दो प्यारी-प्यारी क्लिप लगी हुई थीं और उसका चेहरा बहुत ही प्यारा था। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें थीं, छोटी सी नाक और होंठों पर ऐसी मुस्कान थी कि कोई भी उसका दीवाना हो जाए। अपने छोटे-छोटे कदमों से वो लड़की भागते हुए दरवाजे की तरफ आ रही थी। उसके नन्हे-नन्हे कदमों में छोटी-छोटी छन-छन करती हुई पायल थी और उसकी झंकार से माहौल में एक अजीब सी सरगम बज रही थी।
वो नन्ही सी बच्ची सीधे भागते हुए प्रीत के पास आती है और उसके पैरों से लिपट जाती है। प्रीत एकदम से हैरान हो जाती है और वो लड़की खुशी से चिल्लाते हुए कहती है, "मम्मा, आप आ गईं! डैडी ने मुझसे झूठ नहीं कहा था... वो सच में आपको लेकर आए हैं। मम्मा, अब मैं आपको कभी नहीं जाने दूंगी... मैं आपको हमेशा अपने पास रखूंगी और आप मेरे साथ मेरे कमरे में रहेंगी। मैंने आपके लिए अपने बेड पर एक्स्ट्रा बार्बी वाला पिलो रखा है... और डोरेमोन को भी साइड कर दिया है... अब आपको मेरे बेड पर बहुत स्पेस मिल जाएगा।"
वो छोटी सी बच्ची प्रीत के पैरों से लिपटी हुई ये सब कह रही थी। प्रीत के तो एकदम होश उड़ चुके थे। वो बड़ी-बड़ी आँखों से उस बच्ची को देखे जा रही थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो इस सब पर क्या रिएक्ट करे क्योंकि वो इन सब चीज़ों के लिए तैयार नहीं थी।
तभी वहाँ अभिनव आता है और उस नन्ही सी बच्ची को देखते हुए कहता है, "अनाया, क्या कर रही हो? छोड़ो मम्मी को, वो थक गई हैं, उन्हें आराम करना है।"
अभिनव की आवाज़ सुनकर अनाया एकदम से डर जाती है और प्रीत को छोड़ देती है। वो जल्दी से एक औरत के पास चली जाती है, जो शायद अनाया की नैनी थी। अपनी नैनी का हाथ पकड़कर अनाया उनके पीछे छुप जाती है और डरते हुए कहती है, "सॉरी डैडी।"
अभिनव नैनी की तरफ देखते हुए कहता है, "आशा जी, इसे कमरे में लेकर जाइए।"
"जी, सर," ऐसा कहते हुए आशा जी अनाया को अपनी गोद में उठा लेती हैं और सीधा सीढ़ियों की ओर चली जाती हैं।
प्रीत अभी भी सदमे में थी। उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यहाँ पर कुछ ऐसा हो जाएगा। वो हैरानी से अभिनव को देखती है। अभिनव पहले प्रीत को देखता है और फिर उसने अपने सारे सर्वेंट्स को वहाँ से जाने के लिए कह दिया। अभिनव के इशारे पाते ही दो मिनट के अंदर पूरा हॉल खाली हो जाता है और वहाँ सिर्फ अभिनव और प्रीत खड़े रह जाते हैं।
प्रीत एकदम हैरानी से अभिनव की तरफ देखते हुए पूछती है, "वो बच्ची किसकी है?"
"मुझे डैडी कह रही है, तो जाहिर सी बात है, मेरी ही है," अभिनव बिना किसी एक्सप्रेशन के कहता है।
प्रीत का मुँह खुला का खुला रह जाता है। उसने हैरानी से पूछा, "आपकी एक बच्ची है? इसका मतलब आप पहले से शादीशुदा हैं?"
अभिनव हल्की मुस्कान के साथ कहता है, "देखो, वैसे तो बच्चा करने के लिए शादी करने की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन अनाया शादी के बाद हुई है। तो हाँ, मैं पहले से शादीशुदा हूँ। लेकिन अनाया के लिए तुम उसकी माँ हो।"
प्रीत को अभी समझ में नहीं आ रहा था कि वो इन सब से कैसे डील करे। वो एकदम से हैरान थी। उसने तो सोचा था कि ये बस एक सिंपल कॉन्ट्रैक्ट होगा, लेकिन इस कॉन्ट्रैक्ट में अब उसे कुछ भी सिंपल नज़र नहीं आ रहा था। वो बड़ी-बड़ी आँखों से अभिनव को देखते हुए कहती है, "आपने मुझसे नकली शादी की है... सिर्फ अपनी बेटी को माँ देने के लिए? इससे अच्छा तो आप सच में दूसरी शादी कर लेते और उसे असली माँ मिल जाती।"
अभिनव सिर हिलाते हुए कहता है, "नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता... क्योंकि मुझे शादी में यकीन ही नहीं है। मैं नहीं मानता कि कोई भी ऐसी लड़की होगी जो पहले से ही 'रेडीमेड बच्चा' चाहेगी। और वैसे भी, मुझे ज़िंदगीभर के लिए अपने सर पर कोई टेंशन नहीं चाहिए। दूसरी बीवी आएगी तो वो भी अपना बच्चा माँगेगी। पर मैं अनाया के अलावा कोई और बच्चा नहीं चाहता।"
"तो आप मुझे यहाँ पर अपने बच्चे की झूठी माँ बना कर लाए हैं? और आप चाहते हैं कि मैं तीन महीने तक उसकी माँ बनकर उसके सामने रहूँ?"
अभिनव हँसने लगता है। उसने हँसते हुए कहा, "अगर अनाया को माँ देने के लिए शादी करनी होती तो शायद तीन साल पहले ही कर ली होती।"
उसकी बात सुनकर प्रीत और ज्यादा कंफ्यूज़ हो गई। ये इंसान चाहता क्या है? इसने अपनी बच्ची के लिए शादी नहीं की, तो फिर प्रीत को नकली शादी के लिए मजबूर क्यों किया? और ऐसी क्या वजह है कि वो सिर्फ तीन महीने के लिए ही शादी का दिखावा करना चाहता है? उसने हैरानी से अभिनव से पूछा, "अगर आपने अपनी बेटी के लिए मुझसे शादी नहीं की, तो फिर आप मुझे अपनी झूठी पत्नी बनाकर तीन महीने के लिए क्यों रख रहे हैं?"
"तुम्हें इसके बारे में जल्दी पता चल जाएगा। फिलहाल के लिए ऊपर जाकर राइट साइड में कमरा है, और ठीक उसके साथ वाला अनाया का रूम है। वो कमरे में ज़रूर आएगी। याद रखना, अनाया को हमारे बारे में बिल्कुल पता नहीं चलना चाहिए... और अगर उसे पता चला तो समझ लो, पूरे शहर को पता चल जाएगा।"
प्रीत हैरानी से कहती है, "एक छोटी सी बच्ची ऐसा क्या कर सकती है?"
अभिनव मुस्कुराते हुए कहता है, "वो छोटी सिर्फ दिखने में है। उसकी हरकतों पर मत जाना। वो अपने बाप से चार कदम आगे है। अगर उसे गलती से भी हमारी कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के बारे में पता चला, तो इस नकली शादी को असली बना देगी... और हमें पता भी नहीं चलेगा।"
थोड़ी देर बाद प्रीत अपने कमरे में थी। ये बहुत ही बड़ा लेकिन खूबसूरत कमरा था। इस कमरे का इंटीरियर डार्क ग्रे और पर्पल थीम का किया गया था। यहाँ बहुत खूबसूरत पेंटिंग और शोपीस रखे हुए थे, और साथ ही एक किंग -साइज़ का बेड भी था। सामने की तरफ अलमारी थी, जिस पर पर्पल और लैवेंडर कलर के फूल बने हुए थे।
ड्रेसिंग टेबल पर इतना बड़ा आईना था कि इसमें प्रीत के अलावा प्रीत जैसी छह और लड़कियाँ नज़र आ सकती थीं। इसके अलावा, उसे ड्रेसिंग टेबल के आसपास की नक्काशी भी बहुत सुंदर लगी। ऐसा लग रहा था जैसे ये लकड़ी का फ्रेम बहुत ही यूनिक हो क्योंकि उसमें एक अलग ही चमक थी।
प्रीत ने धीरे से जाकर ड्रेसिंग टेबल की एक ड्रॉअर खोली तो उसकी आँखें एकदम बड़ी हो गईं। वहाँ स्किन केयर के बहुत सारे यूनिक और ब्रांडेड कॉस्मेटिक्स रखे हुए थे। बहुत से ब्रांड तो इंडिया के भी नहीं थे। बाहर की कंपनियों के इतने महंगे ब्रांड के कॉस्मेटिक्स देखकर वो और ज्यादा हैरान हो गई। प्रीत ने ड्रॉअर बंद कर दिया और फिर ड्रेसिंग टेबल के साथ लगी अलमारी खोली। उसे देखकर उसकी आँखें बाहर आने को हो गईं। उसने जल्दी से अलमारी बंद कर दी और अपने दिल पर हाथ रखकर बोली, "हे भगवान! इसमें तो इतनी सारी ज्वेलरी रखी हुई है! अगर इनमें से कुछ गायब हो गया तो क्या मिस्टर दीवान मुझ पर चोरी का इल्ज़ाम लगाएंगे?"
प्रीत यही सोच रही थी जब उसने धीरे से फिर से अलमारी खोली और झाँककर देखा। अंदर सच में डायमंड, रूबी और नीलम के अलग-अलग डिज़ाइन की ज्वेलरी रखी हुई थी और वो भी इतनी ओपनली जैसे उनकी कोई कीमत ही न हो! प्रीत ने धीरे से हाथ बढ़ाकर उसमें से एक हल्का-सा डायमंड हार निकाला। वो उसे अच्छी तरह देख ही रही थी कि अचानक कुछ ऐसा दिखा जिससे उसकी आँखों में आंसू आ गए। उसने तुरंत डायमंड सेट वापस अपनी जगह पर रख दिया और अलमारी बंद कर दी।
प्रीत शीशे के सामने आई और खुद को देखने लगी। एक ही दिन में उसकी ज़िंदगी कितनी बदल गई थी! जबकि कल तक तो वो इस अस्तित्व से भी दूर-दूर तक वाकिफ़ नहीं थी। एक दिन पहले उसने अपने नाम पर एक बहुत बड़ा कर्ज़ ले लिया था, जिसकी कीमत उसे इस नकली शादी से चुकानी पड़ रही थी। प्रीत की आँखों में आंसू आ गए, ये सोचकर कि वो किस उम्मीद के साथ इस शहर में आई थी और अब उसके साथ क्या हो गया...
फ्लैशबैक:
प्रीत मुंबई के एक छोटे से अपार्टमेंट में अपनी माँ और भाई के साथ रहती थी। छोटी-मोटी नौकरियाँ करके वो अपना और अपने परिवार का खर्च चलाती थी। लेकिन उसकी मंज़िल एक अच्छी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर काम करना था। इसके लिए वो रोज़ किसी न किसी कंपनी में अप्लाई करती थी, लेकिन कहीं भी उसे काम नहीं मिलता था। बड़ी कंपनियों में काबिलियत के साथ-साथ सूरत भी मायने रखती थी, और प्रीत हमेशा अपने सांवले रंग की वजह से रिजेक्ट हो जाया करती थी।
हालांकि, उसकी काबिलियत लाजवाब थी, लेकिन फिर भी कंपनियाँ अपनी रेप्युटेशन मेंटेन रखना चाहती थीं। छोटी-मोटी नौकरियाँ करके जैसे-तैसे गुज़ारा चल रहा था, लेकिन यहाँ भी किस्मत ने साथ नहीं दिया। अभी दो दिन पहले ही उसकी नौकरी छिन गई थी क्योंकि उसकी जगह उसके बॉस की गर्लफ्रेंड को रखा जा रहा था।
जब प्रीत ने इस बात का विरोध किया, तो बॉस ने उसे 50,000 रुपये दिए और कहा कि वो चुपचाप नौकरी छोड़ दे और कहीं और काम ढूंढ ले। प्रीत जानती थी कि बड़े लोगों से पंगा लेना उसके बस की बात नहीं थी। उसके पास अपनी ही बहुत-सी प्रॉब्लम्स थीं। इसलिए वो चुपचाप पैसे लेकर घर लौट रही थी।
लेकिन घर पहुँचते ही एक नई मुसीबत उसका इंतज़ार कर रही थी। उसकी माँ की दवाइयाँ खत्म हो गई थीं, लेकिन उन्होंने उसे ये बात नहीं बताई थी। प्रीत को तब पता चला जब उसने डस्टबिन में खाली बोतलें और दवाइयों के रैपर देखे।
परेशान प्रीत अपने कमरे में बैठी कुछ सोच रही थी कि तभी उसका फोन बजा। स्क्रीन पर गौतम का नाम देखकर उसका दिल घबरा गया। उसने जल्दी से कॉल उठाई और पूछा, "भाई! क्या हुआ? कहीं जॉब मिली?"
लेकिन सामने से गौतम की घबराई हुई आवाज़ आई, "प्रीत, सुन, तू जल्दी से मालेगांव के गोदाम में आ। मैं तुझे एड्रेस भेजता हूँ और प्लीज़, इस बारे में माँ को कुछ मत बताना। तू अकेली ही आना... मेरी जान खतरे में है!"
गौतम की बात सुनकर प्रीत का दिल दहल गया। उसने तुरंत अपना बैग उठाया और ऑटो पकड़कर वहाँ पहुँच गई, जहाँ गौतम ने उसे बुलाया था।
जब प्रीत वहाँ पहुँची, तो उसकी हालत खराब हो गई। एक छोटे, टूटे-फूटे कारखाने में गौतम को बंद करके रखा गया था। उसके चेहरे पर ज़ख्मों के निशान थे और आँखों के नीचे सूजन थी।
प्रीत डरते हुए उसके पास जाने लगी, लेकिन कुछ लोगों ने उसे रोक लिया। वो देख रही थी कि ये लोग गुंडे-मवाली थे और काफी खतरनाक लग रहे थे।
गौतम ने डरी हुई प्रीत को देखते हुए कहा, "प्रीत, तेरे पास कुछ पैसे हैं? तू इन्हें दे दे, वरना ये लोग मुझे मार देंगे!"
प्रीत ने घबराकर पूछा, "लेकिन भैया, बात क्या है? इन लोगों को पैसे क्यों देने हैं?"
तभी वहाँ उनका लीडर आया और कड़वे लहजे में बोला, "तेरे भाई ने हमसे जुआ खेलने के लिए 1,00,000 रुपये उधार लिए थे। अब ये चुका नहीं पा रहा, इसलिए हम इसकी किडनी बेचकर अपना पैसा वसूल करेंगे!"
उस गुंडे की बात सुनकर प्रीत एकदम से शक हो जाती है। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि गौतम ने ₹1,00,000 जुआ खेलने के लिए लिए हैं... और अब वो सारी रकम हार चुका है। वो हैरान होकर गौतम को देखती है और चिल्लाते हुए कहती है—
"भैया! तुम पागल हो गए हो क्या? ये क्या कर दिया तुमने? इतनी बड़ी रकम ले ली और चुका नहीं पा रहे हो! जानते हो ना घर की हालत कैसी है, हमारा काम कैसा चल रहा है? फिर भी तुम्हें क्या जरूरत थी किसी से पैसे उधार लेने की?"
प्रीत की बात सुनकर गौतम गुस्से में उस पर भड़कते हुए कहता है—
"मैंने तुझे यहाँ भाषण देने के लिए नहीं बुलाया है, बल्कि इन लोगों को पैसे देने के लिए बुलाया है! और ये जो कुछ भी मैंने किया है ना, अपने लिए नहीं किया... तुम लोगों के लिए किया है! सोचा था इन पैसों से जुआ खेलकर पैसे दुगुने कर लूंगा, जो कर्ज़ा है उसे चुका दूंगा, और उसके बाद बचे हुए पैसों से कोई बिज़नेस शुरू करूंगा... लेकिन मेरी किस्मत ही खराब निकली। वहाँ लेट हो गया और सारे पैसे गेमिंग में चले गए। पर मुझे पता है मैं जीतने वाला था, मुझे धोखे से हराया गया है! मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं!"
गौतम की बात सुनकर गुंडा कहता है—
"उन लोगों को छोड़ने की बात कर रहा है? पहले खुद को तो छुड़ा ले। अब तू बता, हमारे पैसे तेरे शरीर का कौन सा हिस्सा बेचकर देगा?"
गौतम ने गुंडे से कहा—
"मैंने कहा ना, मैं अपने शरीर का एक हिस्सा भी तुम्हें बेचने नहीं दूंगा! और जहाँ तक बात है पैसे की, तुम्हारा सारा पैसा तुम्हारे मुँह पर मारूंगा! बस एक बार मुझे यहाँ से बाहर निकलने दो!"
फिर वो प्रीत से कहता है—
"प्रीत, तेरे पास पैसे हैं ना? इन्हें दे दे।"
प्रीत एकदम से हैरान हो जाती है। उसने चौंककर कहा—
"मेरे पास कहाँ से पैसे आएंगे? मैं एक छोटे-मोटे रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी करती थी। घर का खर्चा, माँ का खर्चा... सब मैनेज नहीं हो पा रहा था, तो बड़ी रकम कहाँ से लाऊंगी?"
गौतम गुस्से में कहता है—
"ज्यादा बातें मत बना! मैं जानता हूँ तुझे तेरी होटल की नौकरी से निकाला गया है और बदले में ₹50,000 मिले हैं! मैं उन्हीं पैसों की बात कर रहा हूँ!"
प्रीत का मुँह खुला का खुला रह जाता है। गौतम को इन पैसों के बारे में कैसे पता चला? चलो, जैसे भी पता चला... लेकिन अब वो इन पैसों पर हक कैसे जमा सकता है? ये प्रीत की मेहनत की कमाई है। वो कुछ कहने ही वाली थी कि तभी एक गुंडा चाकू निकालकर गौतम की तरफ करते हुए बोला—
"चिकनी, तेरा फैमिली ड्रामा सुनने के लिए हम लोग यहाँ फ्री में नहीं बैठे हैं। तुम दोनों भाई-बहन अपनी भजन मंडली कहीं और जाकर चलाओ... हमें तो बस हमारे पैसे चाहिए। या तो चुपचाप दे दो, वरना तेरी किडनी निकालकर पैसे वसूल कर लेंगे!"
प्रीत डर जाती है, और गौतम की आँखों में भी डर उतर आता है। एक गुंडा गौतम को पकड़ लेता है और खींचकर एक कमरे की तरफ ले जाने लगता है, जहाँ पहले से ही चीरा-फाड़ी के औज़ार रखे थे। गौतम की आँखों में दहशत उतर आती है। वो खुद को बचाते हुए प्रीत की तरफ देखकर कहता है—
"प्रीत! मेरी बहन... मुझे बचा ले प्लीज़! मैं वादा करता हूँ मेहनत करूंगा, तेरा सारा पैसा चुका दूंगा, और आज के बाद कभी किसी से उधार नहीं लूंगा!"
गौतम को ले जाया जाता देख प्रीत की जान गले में अटक जाती है। वो चिल्लाकर कहती है—
"रुक जाओ! छोड़ दो मेरे भाई को! मैं देती हूँ तुम्हें पैसे!"
जैसे ही प्रीत ने ये कहा, गुंडे ने गौतम को छोड़ दिया। प्रीत ने एक नजर गौतम को देखा, जिसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। प्रीत ने अपना बैग खोला और उसमें से पैसों से भरा लिफाफा निकालकर गुंडे के सामने रख दिया। गुंडे ने एक झटके में लिफाफा प्रीत के हाथ से छीन लिया और पैसे निकालकर देखने लगा। लेकिन जब उसने देखा कि ये सिर्फ ₹50,000 हैं, तो वो गुस्से में बोला—
"ये तो आधे पैसे हैं! बाकी का क्या?"
प्रीत जल्दी से बोली—
"अभी हमारे पास बस इतने ही पैसे हैं। आप इन्हें रख लीजिए और मेरे भाई को छोड़ दीजिए। बाकी मैं धीरे-धीरे आपका सारा पैसा चुका दूंगी। बस थोड़ी मोहलत दे दीजिए..."
गुंडे ने एक नजर प्रीत को देखा, फिर गौतम को और कहा—
"शर्म नहीं आती तुझे? भाई के नाम पर कलंक है तू! हम तो गुंडे मवाली हैं... लोगों को उठाना, मारना, वसूली करना — यही हमारा काम है। लेकिन तू तो परिवार वाला है ना... तेरी माँ है, बहन है। अपने परिवार के लिए सोचना चाहिए था। तू दो नंबर के काम करके अमीर बनने की प्लानिंग कर रहा था! ज़रा सीखा अपनी बहन से... जो तुझे बचाने के लिए अपनी मेहनत की कमाई दे रही है! आज तू जिंदा है तो सिर्फ अपनी बहन की वजह से... वरना हमने बहुतों को ठिकाने लगाया है, तुझे भी लगा देते।"
"हमारा तो कोई घर-परिवार नहीं है... लेकिन अगर हमारी भी माँ-बहन होती, तो शायद हम कभी गलत रास्ते पर नहीं चलते। आज तेरी बहन की वजह से तुझे छोड़ रहे हैं। एक महीने की मोहलत दे रहे हैं... बाकी के पैसे समय पर लौटा देना। वरना अगली बार बहन के साथ अगर माँ भी आ जाए ना... तब भी तुझे बचा नहीं पाएंगे!"
वो जल्दी से सिर हिलाता है और उसके बाद तेज़ी से प्रीत के पास आता है। वो प्रीत का हाथ पकड़ते हुए गुंडे से कहता है, "ठीक है, मैं जा रहा हूं और एक महीने में तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा।"
उसके बाद गौतम एक मिनट भी वहां नहीं रुका। वो प्रीत को खींचते हुए वहां से बाहर ले आया। प्रीत की आंखों में आंसू थे। उसने सोचा था कि इन पैसों से वो चाउमीन का एक स्टॉल लगाएगी, लेकिन अब उसकी ये ख्वाहिश भी अधूरी रह गई थी।
बाहर निकलते ही जैसे ही गौतम सड़क पर आया, उसने एक ऑटो रोका और प्रीत को उसमें बैठाते हुए कहा, "तू घर जा, मुझे थोड़ा काम है।"
लेकिन प्रीत गुस्से में गौतम को देखते हुए बोली, "अब क्या काम है? वैसे भी कौन सा ढंग का काम करते हो तुम? ये फालतू के काम छोड़कर कोई सही काम क्यों नहीं ढूंढ लेते? और अगर कोई ढंग का काम नहीं मिल रहा, तो कंस्ट्रक्शन साइट पर जाकर बोरी उठाओ। कम से कम अपने खर्चे तो निकाल लो।"
गौतम मुंह बनाते हुए बोला, "फिर शुरू हो गया तेरा लेक्चर! कहा ना, मुझे ज्ञान नहीं चाहिए। जा तू घर जा, मां को देख। मैं कुछ काम देख कर आता हूं। और पैसे तूने मेरे ऊपर खर्च किए हैं ना, तो इनका घमंड मत दिखा। तुझे तेरे पैसे वापस कर दूंगा।"
प्रीत ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, "मेरे पैसे भूल जा। जिन लोगों से पैसे उधार लिए हैं, उनके पैसे उन्हें वापस कर। अब तेरे पैसे चुकाने के लिए मेरे पास भी पैसे नहीं हैं।"
ऐसा कहते हुए प्रीत ऑटो वाले से बोली, "चलो भैया।"
ऑटो वाले ने ऑटो स्टार्ट कर दिया और प्रीत अपने आंसू पोंछते हुए घर की तरफ बढ़ गई। लेकिन तभी रास्ते में उसका फोन बजा। उसने देखा कि उसकी दोस्त आरती का कॉल है।
आरती और प्रीत रेस्टोरेंट में साथ काम किया करती थीं, लेकिन करीब 6 महीने पहले आरती ने अचानक से जॉब छोड़ दी थी और उसके बाद वो किसी से संपर्क में भी नहीं रही। अचानक उसका कॉल देखकर प्रीत हैरान हो गई। उसने जल्दी से फोन उठाते हुए कहा, "आरती! कहां है तू? कितने दिनों से गायब है! सब ठीक तो है ना?"
सामने से आरती ने कहा, "हां, सब ठीक है और मैं भी बिल्कुल ठीक हूं। तू कहां है? आज मैं रेस्टोरेंट गई थी तो पता चला तुझे नौकरी से निकाल दिया गया है।"
प्रीत उदासी से बोली, "हां, कुछ बात हो गई थी इसलिए काम से निकाल दिया गया। कोई बात नहीं, दूसरा काम ढूंढ लूंगी।"
आरती ने जवाब दिया, "अच्छा, अगर तू फ्री है तो मुझसे मिल ले। काफी दिन हो गए हैं तुझसे मिले हुए।"
प्रीत का मन वैसे भी अपने भाई की वजह से बहुत उदास था। उसने कहा, "ठीक है, बता कहां है तू? मैं आती हूं।"
आरती ने कहा, "जल्दी से जुहू चौपाटी आ जा। आज मैं चौपाटी पर हूं। मेरा मन गोलगप्पे खाने का कर रहा है। जल्दी आ, साथ में खाएंगे।"
प्रीत ने ऑटो वाले से कहा, "भैया, जुहू चौपाटी चलिए।"
ऑटो जुहू चौपाटी की तरफ बढ़ गया। चौपाटी के सामने उतरकर प्रीत ने ऑटो के पैसे दिए और आरती को ढूंढने लगी। वो सच में उसे चौपाटी के सामने ही मिल गई। लेकिन जैसे ही प्रीत ने आरती को देखा, उसकी आंखें बड़ी हो गईं और मुंह खुला का खुला रह गया।
आरती का पेट बड़ा हुआ था।
उसे देखकर आरती खुश हो गई। उसने जल्दी से अपने पेट पर हाथ रखा और संभलते हुए प्रीत के पास आई। वो खुश होकर बोली, "प्रीत! कितने दिनों बाद तुझे देख रही हूं... पतली हो गई है तू।"
प्रीत ने हैरानी से कहा, "और तू मोटी हो गई है!"
आरती हंसते हुए बोली, "अरे नहीं पगली, मैं मोटी नहीं हुई हूं। मैं प्रेग्नेंट हूं।"
प्रीत एकदम हैरान हो गई। उसने चौंककर पूछा, "क्या? तू प्रेग्नेंट है? लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? तेरी शादी तो नहीं हुई... या हो गई है? और अगर शादी हो भी गई है, तो भी इतना बड़ा पेट कैसे? ये सब अचानक कैसे?"
प्रीत को कुछ समझ नहीं आ रहा था। आरती हंसने लगी और उसका हाथ पकड़कर बोली, "सब बताऊंगी, लेकिन पहले कहीं बैठते हैं। ज़्यादा देर खड़ा नहीं हुआ जाता।"
दोनों पास ही एक बड़े पत्थर पर जाकर बैठ गईं। आरती ने खुद को पत्थर से टिकाया और प्रीत से कहा, "सबसे पहले मैं जो बताने वाली हूं, उसे सुनकर घबराना मत... और चिल्लाना तो बिल्कुल भी नहीं।"
प्रीत हैरानी से उसे देख रही थी। तब आरती बोली, "मैं प्रेग्नेंट तो हूं, लेकिन मैंने शादी नहीं की है। ये बच्चा मेरा नहीं है... मैं उसकी सरोगेट मदर हूं। इसके असली मां-बाप कोई और हैं। मुझे बस इस बच्चे को जन्म देना है।"
प्रीत की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं। उसने जो सुना वो उसके लिए बहुत अजीब था। मतलब, आरती के पेट में बच्चा है... लेकिन वो उसका नहीं है। वो सरोगेट मदर है? ये सब कैसे?
प्रीत आरती की बात सुनकर पूरी तरह हैरान रह गई थी। इसका मतलब था कि आरती किसी और के बच्चे की सरोगेट मदर बन रही है...
आरती ने खुश होते हुए कहा, "तुझे पता है, इस बच्चे का बाप बहुत अमीर इंसान है और वो मेरा पूरा ख्याल रखता है। मुझ पर इतना खर्च करता है कि मैं तुझे बयां नहीं कर सकती।"
प्रीत ने लगभग उसे डांटते हुए कहा, "आरती, तू पागल हो गई है क्या? तू ऐसे ही किसी आदमी के बच्चे को अपने पेट में कैसे रख सकती है?"
आरती ने अपना सिर झुका लिया और प्रीत को समझाते हुए कहा, "अरे यार, मैंने कौन सा उस आदमी के साथ सोकर बच्चा किया है... ये सब मेडिकल साइंस ने किया है। उस आदमी ने मुझे हाथ तक नहीं लगाया है। वो अपनी बीवी के साथ है, बस उन दोनों को बच्चा नहीं हो रहा है, इसलिए उन लोगों ने मेरा पेट किराए पर लिया है। जब तक मेरे पेट में उनका बच्चा है, तब तक तो वो दोनों मेरी खूब खातिरदारी कर रहे हैं। मेरी हर फरमाइश पूरी हो रही है, मेरी खाने-पीने की हर जरूरत पूरी हो रही है... और एक बार बच्चा होने के बाद मुझे इसकी बहुत अच्छी कीमत भी मिलेगी। और ये बच्चा कौन सा मेरा है... ये बच्चा पूरी तरह से उन्हीं दोनों का है, बस पल रहा है मेरे पेट में।"
"तू मुझे डांटने के बजाय मेरी बात को समझने की कोशिश कर। हम दोनों वैसे भी छोटी-मोटी नौकरियां करते हैं। मेरा तो वैसे भी इस दुनिया में कोई नहीं है... और अच्छी ज़िंदगी के सपने देखना गलत नहीं है। इसके लिए अगर मैं किसी ज़रूरतमंद की मदद कर रही हूं, तो क्या गलत कर रही हूं? बदले में मुझे बहुत अच्छे पैसे मिलेंगे, जिससे मैं अपनी कपड़ों की शॉप खोलूंगी... और उसके बाद कम से कम लोगों के झूठे बर्तन तो नहीं उठाने पड़ेंगे।"
प्रीत उसकी बात सुनकर हैरान तो थी, लेकिन कुछ हद तक उसे आरती की बात सही भी लग रही थी। वैसे भी आरती अनाथ थी, उसका इस दुनिया में कोई नहीं था। और एक छोटा सा बिज़नेस करना उसका हमेशा से सपना रहा है, जिसके लिए वो दिन-रात मेहनत भी कर रही थी। लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए वो ऐसा कुछ करेगी, ये उसने सोचा नहीं था। पर अब उसे आरती से कोई शिकायत नहीं थी। वो जो भी कर रही थी, अपने अच्छे भविष्य के लिए कर रही थी।
थोड़ी देर आरती से बात करने के बाद प्रीत का मन भी हल्का हो गया था। उसने आरती को अपने बारे में नहीं बताया था कि वो खुद भी किसी परेशानी से गुज़र रही है।
आरती को लेने के लिए बहुत बड़ी और शानदार गाड़ी आई थी, जिसे देखकर प्रीत थोड़ी हैरान जरूर हुई, लेकिन उसे खुशी थी कि आखिरकार आरती खुश है। उसके बाद प्रीत बस स्टैंड की तरफ बढ़ गई थी, क्योंकि उसे बस पकड़नी थी। अब ऑटो या टैक्सी के लिए उसके पास पैसे नहीं थे और उसे नई नौकरी भी तलाशनी थी, इसलिए वो बस स्टैंड की तरफ जा रही थी।
तभी अचानक उसके सामने एक वैन आकर रुकती है और उसका दरवाज़ा खुलता है। इससे पहले कि प्रीत कुछ समझ पाती, वैन के अंदर से कुछ नकाबपोश उतरते हैं और प्रीत को खींचकर वैन में ले जाते हैं।
इससे पहले कि वो संघर्ष करती या खुद को बचाने के लिए चिल्लाती, उसके मुंह पर एक रुमाल रख दिया जाता है, जिससे वो बेहोश हो जाती है।
जिस गुंडे ने गौतम का पैसा लिया था, वो भले ही गुंडा था, लेकिन ईमानदार था। उसने प्रीत को वहां से जाने दिया था, लेकिन जरूरी तो नहीं कि उसके गैंग में सारे ही ईमानदार हों।
जब प्रीत अपने भाई को बचाने के लिए उस गुंडे को पैसे दे रही थी, तब गैंग के ही एक सदस्य की नज़र प्रीत पर थी। वो प्रीत को बहुत बारीकी से ऑब्ज़र्व कर रहा था। उसने चुपके से अपने फोन से प्रीत की फोटो ली और एक दूसरे गैंग को भेज दी, जो लड़कियों का धंधा करते थे।
दूसरे गैंग के लीडर ने जैसे ही प्रीत को देखा, उसके चेहरे पर घिनौनी हंसी आ गई। उसने अपने आदमी से कहा, "अगर ये लड़की आज रात की नीलामी में मिल जाए, तो हम इसके दुगने पैसे देंगे।"
उस आदमी ने प्रीत का पीछा करना शुरू कर दिया। पहले वो उसे ऑटो से ही किडनैप करना चाहता था, लेकिन तब तक प्रीत आरती के पास पहुंच चुकी थी और उससे बातें कर रही थी। इसलिए वो आदमी अपने साथियों के साथ मौके की तलाश में था। जैसे ही उसे मौका मिला, उसने प्रीत को किडनैप कर लिया और उसे बेहोशी की दवा देकर अब वो उसे आज रात की होने वाली नीलामी में ले जा रहा था
प्रीत की जब आंख खुलती है, तो वो खुद को एक कुर्सी पर बंधा हुआ पाती है। सबसे हैरानी की बात ये थी कि उसे अपने शरीर में ज़रा भी हरकत महसूस नहीं हो रही थी। उसे ऐसा इंजेक्शन दिया गया था जिसकी वजह से वो आंखें तो खोल सकती थी, बातें सुन सकती थी, लेकिन न तो भाग सकती थी और न ही कुछ कर सकती थी।
उसका पूरा शरीर ऐसा लग रहा था जैसे लकवे ने जकड़ लिया हो। अपनी आंखें खोलते हुए जब प्रीत सामने देखती है, तो उसकी आंखें डर से फैल जाती हैं। उसके ठीक सामने अभिनव बैठा हुआ था — बिजनेस सूट में, किसी राजा की तरह सामने की कुर्सी पर। उसके दोनों हाथ सामने फोल्ड किए हुए थे और चेहरा अब भी पूरी तरह भावशून्य था।
उसने अपने एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ा रखा था और बहुत गौर से सिर्फ प्रीत को ही देख रहा था। तभी एक आदमी अभिनव के पास आता है और अपनी मक्कारी भरी मुस्कान के साथ झुककर कहता है, “सर, आपको कोई लड़की पसंद आई क्या?”
अभिनव की ठंडी निगाहें अब भी बस प्रीत पर टिकी हुई थीं। प्रीत उस आदमी की आवाज़ सुन सकती थी। जब उसने अभिनव से पूछा कि उसे कौन सी लड़की पसंद आई, तो प्रीत ने अपनी आंखों की पुतलियां तिरछी करके देखा — और उसका दिल अंदर तक कांप गया, क्योंकि वो अकेली नहीं थी। उसके साथ वहां छह और लड़कियां थीं, और प्रीत सातवीं।
प्रीत की आंखें डर से बड़ी हो चुकी थीं। वो कुछ कहना चाहती थी, भागना चाहती थी, लेकिन शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था। उसकी निगाहें बस अभिनव पर ही टिकी थीं, जो बिना किसी हावभाव के उसे देख रहा था। उसने चेहरे से इशारा करते हुए प्रीत की तरफ इशारा किया। वो आदमी मुस्कराया और बोला, “सर, लड़की तो मिल जाएगी लेकिन इसकी कीमत ज़्यादा होगी।”
"कबूल है..." अभिनव के मुंह से बस यही दो शब्द निकले। पहली बार प्रीत ने उसके मुंह से कुछ सुना था। प्रीत हैरान हो गई — क्या मतलब था उस आदमी की बात का? तभी किसी ने उसके चेहरे पर काला कपड़ा डाल दिया। वो कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन शरीर जड़ हो चुका था।
धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि उसका शरीर उठाया जा रहा है। उसे लगा जैसे वो किसी व्हीलचेयर पर हो, क्योंकि वो चल नहीं रही थी, लेकिन उसका शरीर आगे की ओर बढ़ रहा था। फिर जब उसके चेहरे से कपड़ा हटाया गया, तो उसने खुद को एक आलीशान स्वीट में पाया — किसी होटल का कमरा था। पास ही दो फीमेल वेट्रेस खड़ी थीं और वही आदमी जो अभिनव के साथ था।
वेट्रेस में से एक ने प्रीत की बाजू में इंजेक्शन दिया। शरीर में हल्का दर्द हुआ और धीरे-धीरे उसकी आंखें फिर से भारी होने लगीं।
इसके बाद न जाने कब तक वो बेहोश रही। जब उसकी आंखें खुलीं, तो वो पूरी तरह होश में थी और शरीर भी काम कर रहा था। लेकिन सामने बैठा था वही अभिनव, अपने ठंडे हावभाव के साथ, जैसे उसे इस बात से कोई फर्क ही न पड़ता हो कि प्रीत को यहां कैसे लाया गया।
अभिनव को देखकर प्रीत डर गई। जल्दी से बिस्तर से उठकर दरवाजे की ओर भागी। दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वो खुल नहीं रहा था। घबराकर उसने पीछे मुड़ कर अभिनव को देखा — जो अब भी बस उसे देख रहा था।
बहुत देर कोशिश करने के बाद जब दरवाज़ा नहीं खुला, तब अभिनव ने कहा, "चाहे तो खिड़की से कूद जा। वो ओपन है।"
अभिनव की बात सुनकर प्रीत चौंक गई, लेकिन अभी उसे यहां से निकलना था। वो तेज़ी से खिड़की की ओर भागी। जैसे ही उसने खिड़की खोली और नीचे झांका, उसके कदम खुद-ब-खुद पीछे हट गए — क्योंकि शायद ये 40वीं मंज़िल थी।
डर के मारे प्रीत ने धीरे से पीछे मुड़ कर अभिनव को देखा। वो अब हल्की सी घमंड भरी मुस्कान के साथ बोला, “पूछेगी तो दरवाजे का पासवर्ड बता दूंगा... लेकिन कोई फायदा नहीं। क्योंकि जो लोग तुझे किडनैप करके यहां तक लाए थे, वो अब भी इसी होटल में हैं। और अगर उन्हें पता चल गया कि तू यहां से भाग गई है, तो वो फिर से तुझे पकड़ लेंगे। इस बार तो मैं हूं जिसने तुझे खरीदा है... अगली बार कौन होगा और कैसा होगा — ये तू खुद सोच सकती है।”
यहीं पर प्रीत अपनी यादों से बाहर आती है। उसे याद आता है कि किस तरह उसे किडनैप करके किसी सामान की तरह बेच दिया गया था — और उसे खरीदने वाला था अभिनव। शुक्र है कि कम से कम उसने एक सौदा तो रखा।
प्रीत जब अपने ख्यालों से बाहर आती है, तब उसे एहसास होता है कि अब वो अभिनव दीवान के नाम की बीवी है, और अगले तीन महीने तक उसे ये शादी दुनिया के सामने निभानी भी होगी। और प्रीत ये किसी मजबूरी में नहीं कर रही थी। अभिनव ने उसे खरीदकर जो एहसान किया था, प्रीत उस एहसान के बदले ये कर्ज चुका रही थी। क्योंकि वो जानती थी कि अगर उस वक़्त अभिनव ने उसे न खरीदा होता और उसका खरीदार कोई और होता, तो शायद वो किसी बड़ी मुसीबत में फंस जाती — या फिर किसी दूसरे देश तक ले जाई जा सकती थी।
अभिनव ने बदले में सिर्फ तीन महीने मांगे थे… और उसके बाद वो प्रीत को आज़ाद कर देगा। इसके अलावा वो इस नकली शादी की कीमत भी प्रीत को देगा। प्रीत के लिए ये सौदा घाटे का नहीं था… और इसलिए वो अभिनव की शुक्रगुजार भी थी।
एक बेहतर कल की उम्मीद में प्रीत ने इस सौदे को मंज़ूरी दे दी थी… और अब तक उसे इस सौदे से कोई नुकसान नहीं हुआ था। हाँ, बस वो दुनिया के सामने अभिनव दीवान की नकली बीवी बनकर आ गई थी।
इसका पहला सामना प्रीत से तब हुआ, जब उसने अनाया को देखा था — यानी कि अभिनव पहले से शादीशुदा था और उसकी एक बेटी भी थी। तो फिर उसने प्रीत से ये झूठी शादी क्यों की? प्रीत के मन में सवाल तो कई थे, पर वो सीधे अभिनव से ये पूछ नहीं सकती थी। और अगर उसने किसी और से सवाल किए, तो कहीं अभिनव को बुरा न लग जाए। इसीलिए उसने सही समय का इंतज़ार करना बेहतर समझा।
प्रीत हैरान तब हुई जब उसे अपने पेट से अजीब सी आवाज़ें आने लगीं। उसने अपने पेट की तरफ देखा — शाम होने को आई थी और सुबह होटल से निकलने के बाद अब तक उसने कुछ भी नहीं खाया था। भूख लगना स्वाभाविक था… लेकिन असली हैरानी ये थी कि उसे अब इस कमरे से बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं पता था।
जिस मेड की मदद से वो इस कमरे तक आई थी, वो उसे एक लंबी, सीधी गैलरी से होते हुए लाई थी। अब यहां से बाहर जाने का रास्ता ढूंढ़ने के लिए शायद प्रीत को दूसरा जन्म लेना पड़ता! यही सोचते हुए वो कमरे में इधर-उधर टहलने लगी।
तभी उसकी नजर एक फ्रूट बास्केट पर पड़ी, जो कमरे के एक साइड बड़े से किंग साइज सोफे के पास रखी थी। वो फौरन जाकर सोफे पर बैठ गई और सबसे पहले अपनी भारी-भरकम साड़ी को कमर में खोंस लिया। इतनी हैवी साड़ी पहनने की उसे आदत नहीं थी। ऊपर से ये चूड़ियाँ और ज्वेलरी — सब कुछ उसके लिए झंझट बन चुके थे।
वो जल्दी-जल्दी सब उतारकर सामने टेबल पर रख देती है और अपने बालों का एक जुड़ा बना लेती है। बिल्कुल रिलैक्स होकर, तेज़ साँस लेते हुए वो सेब खाने लगती है। उसने फ्रूट बास्केट में रखा करीब दो किलो फल ऐसे खा डाले जैसे सात जन्मों की भूखी हो!
असल में, प्रीत एक छोटी, साधारण लड़की है। उसके लिए खाना जीने जितना ज़रूरी है — जैसे सांस लेना। वो खाने की बहुत बड़ी शौकीन है, लेकिन अपनी हैसियत के मुताबिक वो कभी उन चीज़ों को नहीं खा पाई जो बड़े रेस्टोरेंट्स में मिलती हैं। लेकिन उसके मोहल्ले के जितने भी चाट भंडार थे, उनमें से एक भी ऐसा नहीं बचा होगा जहाँ प्रीत ने जाकर चटकारे न लिए हों।
सैलरी मिलते ही उसका पहला काम होता था किसी चाट वाले के ठेले पर जाकर जी भर कर चाट खाना।
दो किलो फल खत्म करने के बाद प्रीत एक ज़ोर की डकार लेती है, और अब उसे नींद आने लगी थी। कमरे में हल्की-हल्की एसी चल रही थी और पेट भी भर चुका था, ऐसे में उसे झपकी आना स्वाभाविक था। वैसे भी, बीते दो दिन में उसके साथ जो हुआ था, उसके बाद वो काफी थक चुकी थी।
इसलिए वो वहीं सोफे पर ही फैल कर सो गई।
रात को अभिनव घर लौटता है। वो सीधा अपने फोन में कुछ देखते हुए कमरे की तरफ बढ़ता है, और एक झटके से दरवाज़ा खोलकर अंदर दाखिल हो जाता है।
बिल्कुल बेफिक्री से कमरे में कदम रखते हुए उसने अपना कोट उतारना शुरू ही किया था कि तभी उसकी नज़र सोफे पर पड़ती है।
क्योंकि वो अपना कोट सोफे पर ही फेंकने वाला था — लेकिन जैसे ही उसने सोफे पर सो रही प्रीत को देखा, वो एकदम से चौंक जाता है।
उसने तुरंत अपना कोट वापस पहन लिया।
उसे याद आता है कि आज ही तो वो प्रीत को इस घर में लेकर आया है… और अब ये कमरा सिर्फ उसका नहीं रहा।
अभिनव थोड़ा हैरानी से प्रीत को देखता है।
प्रीत ने पूरा टेबल छिलकों से भर रखा था — केले के छिलके अलग, सेंटर में चीकू के बीज और ड्रैगन फ्रूट की हालत तो ऐसी थी जैसे उसे खाया नहीं गया, बल्कि उसका मर्डर किया गया हो। अभिनव को भी समझ नहीं आ रहा था कि ये फ्रूट का पोस्टमार्टम है या कोई आर्ट प्रोजेक्ट। छिलकों के साथ-साथ प्रीत ने ड्रैगन फ्रूट के जो चिथड़े उड़ाए थे, वो देखकर अभिनव की आंखें फटी की फटी रह गईं।
उसने फ्रूट बास्केट की ओर देखा, तो उसकी नजरें सिकुड़ जाती हैं और मुंह बनाते हुए वो प्रीत की ओर देखता है और कहता है,
"बेचारा एवोकाडो... इसका क्या कसूर था? जब बाकियों का तुमने ऐसा हश्र किया, तो इसे क्यों छोड़ दिया? अकेला क्यों तड़पने के लिए छोड़ दिया फ्रूट बास्केट में?"
दरअसल, प्रीत ने सारे फ्रूट खा लिए थे बस एवोकाडो ही बचा था। लेकिन वो भी जानबूझकर नहीं छोड़ा गया था, बस पेट भर गया था। एवोकाडो के लिए जगह ही नहीं बची थी।
अभिनव धीरे-धीरे चलते हुए अपने कमरे में अलमारी के पास जाता है, वहां से एक नॉर्मल शर्ट और लोअर निकालता है और सीधे बाथरूम चला जाता है।
जहां पहले वो अपने कमरे में शेर की तरह बेफिक्र घूमता था, अब वहां मैनर्स के साथ चल रहा था।
लोअर-टीशर्ट पहनकर जब अभिनव वापस कमरे में आता है, तो देखता है कि प्रीत अब भी वैसे ही सोफे पर सो रही है।
वो ना में सिर हिलाते हुए मन में कहता है,
"अगर सोना ही था तो बेड पर सो जाती... सोफे पर इस तरह अनकंफर्टेबल होकर क्यों सो रही है?"
वो जैसे ही बेड की ओर बढ़ता है, उसकी नजर फिर से प्रीत पर जाती है — जो साड़ी में खुद को एडजस्ट करते हुए कराहती हुई सी, असहज तरीके से सो रही थी।
और जैसे ही उसने करवट बदली, अभिनव एकदम से खड़ा हो जाता है — क्योंकि प्रीत की साड़ी उसके सीने से खिसक गई थी।
अभिनव हल्की नकली खांसी करता है, चेहरा दूसरी तरफ घुमा देता है और आंखें बंद करते हुए मन में कहता है,
"इस लड़की को ढंग से सोना भी नहीं आता क्या?"
वो कोने में जाकर बैठ जाता है और फोन पर ईमेल्स का जवाब देने लगता है, लेकिन उसकी नजरें बार-बार प्रीत पर ही चली जाती हैं।
थोड़ी देर बाद जब वो ये महसूस करता है कि अब और नहीं झेला जाएगा, तो फोन पटक कर खड़ा हो जाता है और तेज़ी से सोफे की ओर बढ़ता है।
उसने एक झटके में प्रीत को अपनी गोद में उठा लिया।
लेकिन प्रीत तो जैसे घोड़े-भैंस और पूरा अस्तबल बेचकर सोई थी — भूकंप भी आ जाए तो शायद ना जागे!
अभिनव प्रीत को उठाए बेड की ओर बढ़ता है, तभी प्रीत के मुंह से एक आवाज़ आती है — और अभिनव हैरान रह जाता है।
प्रीत पूरा मुंह खोलकर खर्राटे मार रही थी।
अभिनव अपना चेहरा अजीब बनाते हुए मन में सोचता है,
"ये खर्राटे हैं या बम धमाके? इसे बॉर्डर पर छोड़ दें तो दुश्मन खुद ही भाग जाएंगे!"
वो प्रीत को बेड पर सुलाता है, दूसरी ओर घुमाकर और उसके ऊपर ब्लैंकेट डाल देता है — जिससे प्रीत पूरी तरह ढक जाती है।
लेकिन अब समस्या ये थी कि अभिनव को सोने के लिए शांति चाहिए थी, और प्रीत के साथ एक कमरे में शांति मिलना नामुमकिन लग रहा था।
उसके खर्राटे इतने भारी थे कि बेचारा अभिनव ना तो चैन से सो सकता था, ना काम कर सकता था।
वो फोन उठाता है, एक नजर प्रीत पर डालता है और कमरे की लाइट बंद करके दरवाजे की ओर बढ़ता है।
लेकिन जैसे ही वो दरवाजा खोलता है, एकदम से कदम पीछे खींच लेता है — क्योंकि सामने अनाया खड़ी थी।
उसके हाथ में उसका प्यारा पिंक टेडी बियर था और चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान।
अनाया (मासूमियत से):
"सॉरी डैडी... इतनी रात को डिस्टर्ब किया। लेकिन मुझे मम्मी के साथ सोना था।"
अभिनव एक नजर अंदर झांकते हुए प्रीत को देखता है, फिर दरवाजा बंद करता है और घुटनों के बल नीचे झुक जाता है।
"अनाया, आपकी मम्मी अभी सो रही है… थक गई है। इसलिए जल्दी सो गई। लेकिन कल मैं तुम्हें अच्छे से मम्मी से इंट्रोड्यूस करवाऊंगा।"
"पर आपको अपना प्रॉमिस याद है ना?"
अनाया मुस्कुराकर सिर हिलाती है:
"जी डैडी... मुझे अपना प्रॉमिस याद है। मम्मी को एंजेल मम्मी के बारे में कुछ नहीं बताना है।"
"गुड गर्ल। अब आप जाकर सो जाइए।"
अभिनव ये कहकर जाने ही वाला होता है कि अनाया उसकी छोटी उंगली पकड़ लेती है।
वो रुक जाता है और पलटकर अनाया को देखता है।
अनाया मासूमियत से पूछती है:
"डैडी, क्या आप मेरे साथ नहीं सो सकते है? मुझे अकेले में डर लगता है..."
अभिनव उसकी उंगली धीरे से अलग करता है, उसके सिर को प्यार से सहलाते हुए कहता है:
"डैडी को बहुत काम है ना... और आप तो बड़ी हो गई हो। बड़े बच्चे अकेले सोते हैं। वैसे भी आपके कमरे में आपके सारे टॉय फ्रेंड्स हैं ना?
चाहो तो मैं तुम्हारे लिए और खिलौने ला दूंगा... लेकिन ऐसी नॉनसेंस बातें आप किसी के सामने मत करना, और मम्मी के सामने तो बिल्कुल नहीं।"
अनाया उसकी बात सुनकर थोड़ा उदास हो जाती है, लेकिन ये कोई नई बात नहीं थी।
अभिनव का यही रवैया रहा है — प्यार तो है, लेकिन एक स्वार्थ की परत में लिपटा हुआ।
और अनाया हमेशा प्यार और रिस्ट्रिक्शन के बीच जकड़ी रह जाती है।
अनाया धीरे से सिर हिलाती है और चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है।
अंगड़ाई लेते हुए प्रीत जब अपने बिस्तर से उठती है, तो उसे अभी भी यही लगता है कि वो सोफे पर सो रही है। इसलिए हल्के से करवट लेकर जैसे ही उसने उठने की कोशिश की, अगले ही पल वो सीधे ज़मीन पर गिर जाती है।
कराहते हुए प्रीत ज़मीन से उठकर बैठती है और अपने आसपास नज़र दौड़ाती है। अब उसे एहसास होता है कि वो तो दरअसल बिस्तर के कोने पर सो रही थी, ना कि सोफे पर।
लेकिन ये कैसे हुआ? वो तो अच्छी तरह से याद कर पा रही है कि उसने रात को सोफे पर ही नींद ली थी। यहाँ तक कि उसे अपने बालों का क्लिप अभी भी सोफे पर ही पड़ा दिख रहा था, और वो तकिया भी बिल्कुल टेढ़ा-मेढ़ा वही रखा हुआ था, जिस पर वो सोई थी। लेकिन अब वो बिस्तर पर है — और अभी-अभी बिस्तर से नीचे गिरी है!
क्या वो नींद में चलने लगी थी? और चलती हुई बिस्तर तक आ गई?
प्रीत ने अपना सर पकड़ते हुए सोचने की कोशिश की, लेकिन तभी उसकी आँखें अचानक बड़ी हो गईं और उसने गुस्से में दाँत भींचते हुए कहा – "मिस्टर दीवान!"
प्रीत झटपट खड़ी होती है, लेकिन जैसे ही वो गुस्से में उठती है, उसकी साड़ी पूरी तरह खुलकर ज़मीन पर गिर जाती है। प्रीत ने तुरंत दोनों हाथों से खुद को ढका और साड़ी उठाकर उसे शॉल की तरह लपेट लिया।
उसे साड़ी पहननी नहीं आती थी। जैसे-तैसे सेफ़्टी पिन की मदद से उसने कल रात साड़ी को फिट किया था, लेकिन अब वो भी धोखा दे चुकी थी। मतलब फिर से दो घंटे लगाकर साड़ी पहनना तो नामुमकिन था।
ऐसे में जल्दी कुछ करना ज़रूरी था। प्रीत ने इधर-उधर देखा तो कमरे में सिर्फ बेडशीट और ब्लैंकेट नज़र आ रही थी। अब ब्लैंकेट या चादर लपेटकर बाहर तो नहीं जा सकती थी।
उसे एक ही रास्ता दिखा — अलमारी। कमरे में लगी बड़ी सी अलमारी की तरफ वो बढ़ी। लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसमें कुछ है भी या नहीं, और अगर है, तो किसका है।
पर डूबते को तिनके का सहारा चाहिए ही होता है। बिना कपड़ों के बाहर जाने से बेहतर था कि वो कुछ भी पहन ले।
प्रीत ने जैसे ही अलमारी खोली, उसके सामने जो नज़ारा आया, उससे वो अवाक् रह गई। उसका मुँह इतना खुला कि उसमें इस वक़्त एक बास्केटबॉल आराम से जा सकती थी, और उसकी आँखें भी उसी आकार में फैल गई थीं।
ज़मीन से लेकर दीवार तक बनी उस वार्डरोब में सिर्फ और सिर्फ लड़कियों का सामान था — वो भी सब नया और ब्रांड न्यू!
बाहर पहनने के लिए अलग कपड़े, घर के लिए अलग, बाहर की अलग-अलग ज्वेलरी, घर के लिए अलग, फुटवियर से लेकर बॉडी ग्रूमिंग तक का हर सामान — और सबकुछ पैक्ड!
कुछ प्रोडक्ट तो ऐसे थे जिनका नाम प्रीत ने सिर्फ मैगज़ीन या टीवी पर सुना था — इंटरनेशनल ब्रांड्स, जिनकी कीमत लाखों में होती है।
प्रीत हैरान रह गई — क्या ये अलमारी उसकी है? और ये सबकुछ उसका?
लेकिन इतना महँगा सामान क्यों? तभी उसे याद आया कि अभिनव ने होटल में कहा था कि वो उसकी तीन महीने की नकली बीवी है — और इसीलिए उसे उसकी बीवी की तरह पेश आना होगा।
मतलब ये सारा सामान प्रीत के लिए नहीं, बल्कि "मिसेज़ दीवान" के लिए लिया गया है — ताकि दुनिया के सामने उसे एक परफेक्ट पत्नी की तरह दिखाया जा सके।
प्रीत ने अलमारी में से एक सलवार सूट निकाला और उसे लेकर वॉशरूम की तरफ बढ़ गई। लेकिन जैसे ही वो अंदर गई, उसे वहाँ दूसरा झटका लगा।
एकदम मॉडर्न स्टाइल का बाथरूम! यहाँ तक कि कमोड भी कुछ अलग ही डिज़ाइन का था।
सीधे-साधे तरीके से पली-बढ़ी प्रीत अपना माथा पकड़ लेती है और बाथरूम को देखते हुए गुस्से से बड़बड़ाती है —
"साला, सारा गणित यहीं लगाना था क्या?"
जैसे-तैसे प्रीत तैयार होती है और गुस्से में कमरे से बाहर निकलती है — उसे इस वक़्त सिर्फ अभिनव से बात करनी थी।
"उसकी हिम्मत कैसे हुई प्रीत की मर्जी के बिना उसे उठाकर बिस्तर पर रखने की!"
प्रीत सीढ़ियों से तेज़ी से उतरती है और आखिरकार हॉल में पहुँच जाती है। वो इस वक़्त जी फ्लोर पर है — जो इस हवेली की तीसरी मंज़िल है।
यहाँ सिर्फ अभिनव और अनाया के ही कमरे हैं।
थर्ड फ्लोर से सेकंड फ्लोर और फिर हॉल में आने तक प्रीत ने सिर्फ सीढ़ियों का ही इस्तेमाल किया। वो गुस्से में हॉल में पहुँची, तो उसने देखा कि अभिनव सोफे पर बैठा हुआ है। उसके एक हाथ में न्यूज़पेपर था और दूसरे हाथ में कॉफी का कप। उसकी आँखों पर चश्मा था, शायद पढ़ने में उसे थोड़ी परेशानी होती है, इसीलिए चश्मे की मदद से वो अखबार की हेडलाइन्स पढ़ रहा था।
लेकिन प्रीत, वो तो जितनी ज़्यादा गुस्से में थी, अब उतनी ही ज़्यादा थकी हुई भी लग रही थी। शायद वैष्णो देवी की सीढ़ियाँ चढ़ने में भी इतनी साँस न फूलती जितनी अब फूल रही थी।
वो तेज़ी से साँस लेते हुए अभिनव को घूर रही थी, लेकिन अभिनव का ध्यान अभी भी प्रीत पर नहीं गया था। वो अब भी शेयर मार्केट वाली न्यूज़ ही पढ़ रहा था, जब अचानक प्रीत उसके सामने आ खड़ी हुई। उसने उसके हाथ से न्यूज़पेपर छीना और सोफे पर फेंकते हुए गुस्से में कहा, “आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे गोद में उठाने की?”
अभिनव ने चेहरा और नज़रें ऊपर उठाईं और प्रीत को देखा। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। हाथ में अब भी कॉफी का कप था, एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ा हुआ था, और वो बस हैरानी से प्रीत को देख रहा था।
"तुम नीचे कैसे आई?" — अभिनव ने उसके सवाल को नज़रअंदाज़ करते हुए सवाल किया।
तो प्रीत ने गुस्से में कहा, “आपको नहीं पता मैं नीचे कैसे आई? कमाल है! मुझे तो लगा आपको पता है कि मैं कोई जादूगरनी हूँ और मुझे काला जादू आता है। जैसे उड़कर मैं सोफे से बेड पर पहुँची थी, वैसे ही उड़कर तीसरी मंज़िल से यहाँ तक आ गई।”
"तुम मेरे सवाल का सीधा जवाब नहीं दे सकती?" — अभिनव ने ठंडे स्वर में कहा।
प्रीत ने उसी अंदाज़ में जवाब दिया, “हाँ तो मैं भी तो आपसे सीधा जवाब माँग रही थी। आपने कौन-सा मुझे कोई सीधा जवाब दे दिया? चुपचाप बताइए कि आपने मुझे सोफे से उठाकर बेड पर क्यों रखा?”
अभिनव ने कप को साइड टेबल पर रखा, चश्मा उतारा और आराम से फोल्ड करते हुए बोला, “तो तुम्हें सच में जानना है कि मैंने तुम्हें कैसे बेड तक पहुँचाया?”
“हाँ, बिल्कुल! क्या मैंने कोई चाइनीज़ में सवाल किया है? नहीं ना? तो जैसे पूछा है, वैसे ही जवाब दीजिए।”
प्रीत अब भी गुस्से में थी। अभिनव ने कंधे उचकाए और बोला, “ठीक है।”
और फिर उसने प्रीत को फिर से गोद में उठा लिया। प्रीत एक पल के लिए हैरान रह गई। उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं। अभिनव ने उसे गोद में उठाया, जैसे कोई छोटे बच्चे को उठाता है और सीधे डाइनिंग टेबल के पास ले जाकर एक कुर्सी के पास खड़ा किया और बोला, “ठीक ऐसे ही कल रात मैंने तुम्हें उठाकर बेड पर सुलाया था।”
“ये क्या बदतमीज़ी है मिस्टर दीवान! आप मुझे इस तरह से गोद में कैसे उठा सकते हैं?” — प्रीत ने गुस्से में कहा।
अभिनव फिर से अपनी कुर्सी पर बैठ गया, प्लेट सीधी करते हुए बोला, “मुझे कोई शौक नहीं तुम्हें उठाने का... लेकिन जिस तरह तुम सोई हुई थी, कमरे में रहना मुश्किल हो गया था। अपने ही कमरे में काफी अनकंफर्टेबल फील कर रहा था मैं, इसीलिए तुम्हें बेड पर सुला दिया ताकि तुम ढंग से सो सको। और मैं कल रात गेस्ट रूम में सोया। वैसे तुम्हारी वार्डरोब में एक नाइट सूट रखा है, आज रात वो पहन कर सोना ताकि तुम भी ढंग से सो सको और मुझे भी चैन की नींद आए।”
अब प्रीत को एहसास हुआ कि अभिनव ने ऐसा क्यों किया। सुबह उठते ही उसने अपनी साड़ी की हालत देखी थी, और उसे पता था कि वो नींद में कैसी खतरनाक हो जाती है। अब उसे अफ़सोस हो रहा था कि उसने बिना कुछ जाने ही अभिनव पर गुस्सा निकाल दिया।
और हैरानी की बात ये थी कि अभिनव के अंदर कितना पेशेंस है। उसने ना सिर्फ़ उसकी बदतमीज़ी को बर्दाश्त किया, बल्कि उसके रिएक्शन का जवाब भी बड़े सुकून से दिया।
“वैसे तुम चाहो तो दिन में दस बार ऊपर से नीचे आने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल कर सकती हो, तुम्हारी थोड़ी एक्सरसाइज़ भी हो जाएगी। पर तुम्हें इंफॉर्मेशन के लिए बता दूँ — घर में लिफ्ट भी है।”
अभिनव ने अपने ग्लास में जूस डालते हुए कहा, तो प्रीत एकदम से चिल्ला पड़ी—
"क्या घर के अंदर लिफ्ट?" प्रीत ने एकदम चौंकते हुए सवाल किया ही था कि तभी उसे लिफ्ट की आवाज़ सुनाई दी और लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। प्रीत हैरान रह गई, जब उसने देखा कि सच में घर के एक कोने में एक छोटा-सा लिफ्ट है, जो शायद दो लोगों को एक साथ ऊपर-नीचे लाने के लिए काफी है।
लेकिन जैसे ही लिफ्ट खुला, उसमें से अनाया आशा जी के साथ बाहर निकली। प्रीत ने देखा कि अनाया इस वक्त स्कूल की प्यारी-सी यूनिफॉर्म में थी।
प्रीत को अपने सामने देखकर अनाया के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी। उसने आशा जी का हाथ छोड़ा और दौड़ती हुई प्रीत की तरफ आई, चिल्लाते हुए बोली — "मम्मी! मम्मी! मम्मी!"
अनाया को ऐसे देखकर प्रीत की आंखें हैरानी से फैल गईं, और जब तक वो कुछ कर पाती, अनाया कुर्सी पर चढ़कर उसके गले से झूल गई। शुक्र था कि प्रीत ने उसे तुरंत थाम लिया, वरना वो दोनों ज़मीन पर गिर ही जातीं।
अभिनव ने जब ये देखा, तो उसने डांटते हुए कहा, "अनाया! ये क्या हरकत है? अभी चोट लग जाती तुम्हारी मम्मा को!"
"क्या बच्चों जैसी हरकतें कर रही हो? नीचे उतरो, अपनी सीट पर बैठो। जल्दी से ब्रेकफास्ट करो, आज तुम्हारा स्कूल का पहला दिन है। पहले दिन ही लेट पहुंचना है क्या?"
अब तक प्रीत को देखकर जो अनाया के चेहरे पर खुशी थी, वो एकदम से फीकी पड़ गई। वो प्रीत की गोद से उतरना चाह रही थी, लेकिन प्रीत को ये सब बहुत अजीब लग रहा था।
अब तक जो अभिनव शांत और उलझा-सा लग रहा था, उसके इस व्यवहार ने प्रीत को भीतर तक चुभा दिया।
उसने अनाया को और कसकर अपनी गोद में भींच लिया और गुस्से से अभिनव की तरफ देखते हुए कहा —
"ये क्या तरीका है एक छोटी-सी बच्ची से बात करने का? किसी ने आपको सिखाया नहीं कि छोटे बच्चों से कैसे पेश आना चाहिए? आपने सुबह-सुबह इसे डांट भी दिया? चलिए, अब माफ़ी मांगिए अनाया से!"
अनाया, आशा जी और अभिनव — तीनों की आंखें एक साथ हैरानी से बड़ी हो गईं। तीनों की निगाहें अब उस प्रीत पर टिकी थीं, जो अपनी बड़ी-बड़ी बटेर जैसी आंखों से गुस्से में अभिनव को घूर रही थी।
प्रीत ने अभिनव को एकदम से डांट दिया था और उसकी ऐसी आवाज सुनकर वहां मौजूद हर शख्स दंग रह गया था, क्योंकि आज तक किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई जो अभिनव के सामने ऊंची आवाज में बात कर सके। अभिनव को ऊंची आवाज में सिर्फ मंत्र सुनना पसंद है। इसके अलावा वो किसी की ऊंची आवाज बर्दाश्त नहीं करता। लेकिन आज प्रीत उसके सामने एकदम निडर और साहसी लड़की की तरह खड़ी थी, और उसे बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि ये वही लड़की है जो होटल के रूम में डर कर बचने की जगह ढूंढ रही थी।
"देखो, तुम मुझसे ऐसी बात नहीं कर सकती हो..." — अभिनव ने लगभग उसे डांटते हुए कहा।
प्रीत ने अनाया को ठीक से अपनी गोद में लेते हुए कहा, "कौन सी किताब में लिखा है कि मैं आपसे ऐसी बात नहीं कर सकती हूं? और अगर किसी किताब में लिखा भी है तो मैं कहती हूं, अभी इसी वक्त उस किताब को फाड़ कर फेंक दीजिए, क्योंकि उसमें बहुत गलत चीज़ लिखी है। सही-गलत के बारे में बताने के लिए ना तो इंसान की उम्र मायने रखती है और ना ही उसका ओहदा। एक छोटी-सी चींटी भी कई बार बड़े-बड़े हाथियों को हरा देती है।"
वाह क्या डायलॉग था!" — अनाया एकदम खुश होते हुए प्रीत को देखकर बोली।
प्रीत ने अपने गुस्से भरे एक्सप्रेशन के साथ अनाया को देखा और मुस्कुराते हुए कहा, "थैंक यू।"
अभिनव का मुंह खुला का खुला रह गया — "एग्ज़ांपल के लिए चींटी और हाथी ही मिले हैं?"
प्रीत, अभिनव के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गई और अनाया को अपने साथ बिठाते हुए बोली, "आज आपकी पहली और आखरी गलती है, इसलिए माफ कर रही हूं। आज के बाद बच्ची से इस तरह की बात मत कीजिएगा। पता चला ये छोटी-सी बच्ची उम्र से पहले बड़ी कैसे हो गई।"
अभिनव अब भी स्तब्ध था। उसे पता ही नहीं चला कि प्रीत और अनाया कब ब्रेकफास्ट खत्म कर चुकी थीं। दरअसल, ब्रेकफास्ट टेबल पर अनाया ने सिर्फ प्रीत को देखा था और वह मुस्कुराते हुए उसे देख रही थी। लेकिन इस घर का एक रूल है — खाने की टेबल पर कोई बात नहीं करता, सिर्फ खाने पर फोकस करता है। इसलिए अनाया अपना ब्रेकफास्ट खत्म करती है और फिर स्कूल के लिए आशा जी के साथ चली जाती है।
लेकिन जाने से पहले उसने प्रीत से कहा था, "मैं वापस आकर आपसे बहुत सारी बातें करूंगी।"
प्रीत ने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया और अनाया को प्यार से बाय किया। अब अनाया स्कूल जा चुकी थी और प्रीत व अभिनव आमने-सामने बैठे थे।
"क्या पूछना चाहती हो?" — अभिनव ने उसे देखकर सवाल किया।
प्रीत ने सीधे तरीके से अपना सवाल उसके सामने रख दिया — "इस कॉन्ट्रैक्ट मैरिज में अनाया का कहीं भी ज़िक्र नहीं था।"
"क्योंकि अनाया इस कॉन्ट्रैक्ट मैरिज का हिस्सा नहीं है।" — अभिनव ने कहा।
प्रीत की आंखें सिकुड़ गईं, वो तुरंत बोली, "मैं इस घर में आपकी नकली बीवी बनकर बैठी हूं, और अनाया मुझे अपनी मां कहती है। तो इतना तो मुझे जानने का हक है ना कि मुझे उसके साथ कैसे पेश आना है, और उसे किस तरीके से डील करना है।"
"हां, मैंने तुम्हें अनाया के बारे में नहीं बताया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम उसके साथ कोई कनेक्शन बनाओ। अनाया तुम्हें मां मानती है, क्योंकि उसने अपनी असली मां को कभी नहीं देखा। उसे बस यही बताया गया था कि जो औरत लाल साड़ी में मेरे साथ इस घर में आएगी, वही उसकी मां होगी। अनाया की असली मां — यानी मेरी पत्नी अंजलि, उसे जन्म देते वक्त गुजर गई थी। और पैदा होते ही अनाया बिन मां की हो गई थी। मुझे कभी जीवनसाथी की ज़रूरत नहीं थी, इसलिए मैंने कभी भी अनाया के सामने उसकी मां का जिक्र नहीं किया। लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ी होती गई, उसे मां की ज़रूरत महसूस होने लगी... इसीलिए वो तुम्हें ही अपनी मां मानती है।"
प्रीत अभिनव की बात सुनकर सोच में पड़ गई। उसने हैरानी से पूछा, "अगर आपकी पत्नी गुजर गई थी, तो अनाया की परवरिश किसने की है? और उसे ये किसने बताया कि आप जिसे अपने साथ लाएंगे वही उसकी मां होगी?"
अभिनव ने चेहरा दूसरी तरफ कर गहरी सांस छोड़ी और फिर प्रीत की आंखों में देखते हुए बोला, "तुम्हारे इस घर में आने की वजह है... यानी कि मेरी दादी ने।"
प्रीत एकदम हैरान रह जाती है। अभिनव अपनी बात आगे बढ़ाता है,
“मेरी दादी ने बचपन से मेरी परवरिश की थी और उन्होंने ही मेरी ज़िंदगी का सबसे अहम फ़ैसला लिया था। उन्हीं के कहने पर मैंने अंजलि से शादी की थी। वो चाहती थीं कि मेरा बच्चा जल्दी इस दुनिया में आए, लेकिन अंजलि के गुजरने के बाद दादी को एहसास हुआ कि मेरी ज़िंदगी को कंट्रोल करके उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है। इसलिए उन्होंने मेरी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी बंद कर दी थी।
अनाया की परवरिश दादी ने अकेले की। उनका मानना था कि अंजलि के जाने की वजह वो खुद हैं, इसीलिए उन्होंने अनाया को अपनेपन से पालना शुरू किया। लेकिन अभी एक महीने पहले दादी की तबीयत अचानक खराब हो गई और डॉक्टर ने बताया कि उनके पास बहुत कम वक़्त है। तीन महीने बाद उनका ऑपरेशन होना है। दादी ऑपरेशन नहीं कराना चाहती थीं, लेकिन डॉक्टर ने साफ़ कह दिया है कि अगर ये ऑपरेशन नहीं हुआ, तो उनके बचने की उम्मीद बहुत कम है।
मैं अपनी दादी से बहुत प्यार करता हूं, मैं उन्हें खोना नहीं चाहता। जब उन्हें इस बारे में पता चला, तो पहले उन्होंने ऑपरेशन से इनकार कर दिया, लेकिन फिर उन्होंने मुझसे एक वादा लिया—कि अगर मैं दोबारा शादी कर लूं, तो वो ऑपरेशन करवा लेंगी।”
अब प्रीत को पूरा मामला समझ में आ गया था—मतलब, जब तक दादी का ऑपरेशन नहीं हो जाता, तब तक प्रीत को अभिनव की नकली बीवी बनकर रहना है। ऑपरेशन के बाद वो उसे आज़ाद कर देगा। ये शादी सिर्फ़ एक कॉन्ट्रैक्ट है, सिर्फ़ दादी के लिए।
अभिनव ने आगे कहा,
“मैं जानता हूं तुम्हारी भी कुछ मजबूरियां थीं, तभी तुम इस कॉन्ट्रैक्ट मैरिज के लिए तैयार हुईं। लेकिन कुछ भी शुरू करने से पहले मैं तुम्हें एक बात साफ-साफ बता देना चाहता हूं—डॉक्टर पहले ही कह चुके हैं कि ऑपरेशन सक्सेसफुल होने के सिर्फ़ 50% चांस हैं। लेकिन ये ऑपरेशन मेरी दादी के लिए ज़रूरी है। उनके अलावा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है... और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता।
और जहां तक बात है अनाया की... तो तुम्हें क्या लगता है? इतनी छोटी सी उम्र में अपनी बच्ची पर रिस्ट्रिक्शन लगाना, उसे रूल्स और रेगुलेशंस में रखना मुझे अच्छा लगता है? नहीं। मैं भी चाहता हूं कि मेरी बेटी खुलकर जिए, खुश रहे। लेकिन फिर भी मैंने उसे एक स्ट्रिक्ट फादर की तरह पाला है, क्योंकि मैं जानता हूं, मेरी दादी भले ही स्ट्रॉन्ग हों, जीना चाहती हों... लेकिन इंसान कहीं ना कहीं मौत के सामने हार ही जाता है।
आज अनाया जितनी दादी से जुड़ी हुई है, उनके जाने के बाद वो बहुत अकेली हो जाएगी। वो बिन माँ की बच्ची है। कल को जब मेरी दादी नहीं रहेंगी, और तुम भी अपना कॉन्ट्रैक्ट पूरा करके चली जाओगी, तो वो सिर्फ़ मेरी रहेगी... उसकी इकलौती उम्मीद। और मेरा भी इतना बड़ा बिज़नेस है... सब कुछ संभालना होता है। अगर मैं अनाया को अभी से सही परवरिश नहीं दूंगा, उसे सही-ग़लत नहीं सिखाऊंगा... तो कल को वो मुझे ही दोषी ठहराएगी।
इसलिए मैंने उसे शुरू से ही एक दायरे में रखा है, ताकि उसे इसकी आदत हो... और वो अपने फैसले खुद ले सके। मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी किसी से उम्मीद लगाए।”
प्रीत के चेहरे पर एक निराशा सी छा जाती है, लेकिन एक तरह से अभिनव की बात सही भी थी। वो सिर्फ़ अमीर था... अमर थोड़ी ना। मौत तो अमीर-ग़रीब सबको आती है।
और प्रीत भी तो बस तीन महीने के लिए उसकी ज़िंदगी में है। उसके बाद जब वो चली जाएगी, तो सिर्फ़ अभिनव और अनाया रह जाएंगे। अब तक प्रीत अभिनव को एक कठोर और ज़ालिम पिता समझती थी, लेकिन अब उसे समझ में आया कि वो अपनी बेटी के लिए कितना प्रोटेक्टिव है।
अभिनव ने एक फाइल उठाई और उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा,
“इस पर साइन कर दो।”
प्रीत थोड़ी हैरान हो जाती है। उसने हैरानी से फाइल को पकड़ा और जैसे ही उसे खोला, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
वो चिल्लाते हुए बोली—
“ये क्या है मिस्टर दीवान!”
प्रीत ने देखा तो उसके सामने एक कॉलेज एडमिशन का फॉर्म रखा हुआ था। वो एकदम से हैरान होती है और अभिनव को देखती है, क्योंकि ये फॉर्म फिल था और उसमें एडमिशन कार्ड भी लगा हुआ था। इसका मतलब प्रीत का एडमिशन इस कॉलेज में हो गया है। लेकिन ये कैसे मुमकिन है? ये तो शहर का सबसे महंगा कॉलेज है और यहां की एडमिशन फीस भी बहुत ज्यादा है। इसीलिए तो प्रीत ने यहां एडमिशन नहीं लिया था। हालांकि उसके मार्क्स बहुत अच्छे आए थे, लेकिन फिर भी वो इस कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाई थी।
उसने अचानक चिल्लाते हुए अभिनव की तरफ देखा और कहा, “मिस्टर दीवान, ये क्या है?”
अभिनव बोला, “ये तुम्हारे कॉलेज के एडमिशन की डिटेल्स हैं और ये तुम्हारा एडमिशन कार्ड है। तुम अपने कॉलेज के लास्ट ईयर में हो, लेकिन फाइनेंशियल इशू की वजह से तुमने एडमिशन नहीं लिया था... इसलिए मैंने तुम्हारा एडमिशन इस कॉलेज में करवा दिया है, ताकि तुम अपनी पढ़ाई कंप्लीट कर सको।”
“लेकिन मिस्टर दीवान, मेरी पढ़ाई हमारे कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा नहीं है,” प्रीत ने कहा।
तो अभिनव हल्के से मुस्कुराते हुए बोला, “हां, जानता हूं कि तुम्हारी पढ़ाई हमारे कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा नहीं है। लेकिन ये मैंने तुम पर कोई एहसान करके नहीं किया है। जब तक तुम मेरे पास हो, तब तक मेरी ज़िम्मेदारी हो। और तुम्हारे मार्क्स मैंने देखे हैं... काफी अच्छे ग्रेड्स आए हैं तुम्हारे। इसलिए अगर कोई लड़की पढ़ना चाहती है तो कम से कम पैसा उसकी पढ़ाई के बीच रुकावट नहीं बनना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो क्या पता हम एक अच्छा डॉक्टर, इंजीनियर, पायलट या अगला मुख्यमंत्री खो दें।”
प्रीत हंसने लगी और बोली, “तो आपको लगता है कि मैं मुख्यमंत्री बन सकती हूं?”
“नहीं,” अभिनव बोला बिना किसी एक्सप्रेशन के, “लेकिन तुम एक अच्छी फैशन डिज़ाइनर बन सकती हो।”
प्रीत फिर हंसने लगी, क्योंकि वो सच में फैशन इंडस्ट्री में नाम कमाना चाहती थी। उसके डिज़ाइन्स भी काफी अच्छे थे, लेकिन सिर्फ पैसों की वजह से वो अपना कॉलेज कंप्लीट नहीं कर पा रही थी। लेकिन अब, अभिनव ने उसका कॉलेज में एडमिशन करवा दिया है, जिसकी वजह से अब वो अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती है।
अभिनव अपनी जगह से उठते हुए बोला, “बाहर गाड़ी है, जो तुम्हें कॉलेज ले जाएगी, और शाम को वापस भी ले आएगी। और हां, आज शाम को हम मेरी दादी से मिलने जा रहे हैं। तुम्हें उनके सामने क्या कहना है और क्या करना है, ये मैं तुम्हें तुम्हारे कॉलेज से आने के बाद बताऊंगा।”
प्रीत हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाती है, लेकिन मुस्कुराना तो उसकी मजबूरी थी। वो तो इस वक्त खुशी से हंसना चाहती थी, जोर से नाचना चाहती थी, लेकिन अभिनव के सामने वो ये सब नहीं कर पा रही थी।
लेकिन जैसे ही अभिनव वहां से जाता है और प्रीत वापस कमरे में पहुंचती है, तो फिर क्या था — प्रीत का असली रंग दिख जाता है। वो हवा में दुपट्टा उड़ाते हुए, पूरे कमरे में घूम-घूमकर अपनी बेसुरी आवाज़ में गा रही थी —
"आज मैं ऊपर, आसमां नीचे, आज मैं आगे, ज़माना है पीछे..."
वो किसी मस्त अंदाज़ में, एक मासूम परी की तरह गुनगुना रही थी — इस बात से बिल्कुल अनजान कि अभिनव अपने लैपटॉप में उसकी सारी हरकतें देख रहा था। और जब उसने प्रीत को इस तरह मासूमियत से नाचते और गाते देखा, तो उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान आ गई।
ड्राइवर, जो अभिनव की गाड़ी चला रहा था, अचानक पलटा और हैरानी से बोला, “सर, डेंटिस्ट के पास जाना है क्या?”
अभिनव की हंसी एकदम से गायब हो गई और उसने हैरानी से पूछा, “डेंटिस्ट के पास क्यों?”
"आपके दांतों में दर्द है ना?" — ड्राइवर के ये कहते ही अभिनव थोड़ा चौंकता है, लेकिन तुरंत पूछता है, "मेरे दांतों में दर्द है, तुम्हें किसने बताया?"
"किसी ने बताया नहीं सर," ड्राइवर बोला, "लेकिन जिस तरह से आप अपना चेहरा बना रहे थे, मुझे लगा शायद दांतों में कोई तकलीफ है। इसीलिए मैंने पूछा कि क्या गाड़ी को ऑफिस की बजाय डेंटिस्ट के क्लीनिक की तरफ मोड़ दूं?"
"क्या बकवास कर रहे हो! मेरे दांतों में कोई प्रॉब्लम नहीं है। और तुम ठीक से गाड़ी चलाओ... वरना डेंटिस्ट छोड़ो, सीधे हॉस्पिटल जाएंगे!" — अभिनव गुस्से में बोला।
ड्राइवर थोड़ा चौंकते हुए कहता है, "अगर आपके दांतों में कोई प्रॉब्लम नहीं है, तो फिर आप अपना चेहरा क्यों हिला रहे थे? ऐसा लग रहा था जैसे आप... मुस्कुरा रहे हैं।"
"व्हाट नॉनसेंस!" — अभिनव चिढ़ते हुए बोला — "मैं सच में मुस्कुरा रहा था!"
जैसे ही अभिनव ने ये कहा, ड्राइवर अचानक से जोर का ब्रेक मार देता है। शुक्र है कि सड़क सुनसान थी और ट्रैफिक कम, वरना बड़ा हादसा हो सकता था। आसपास के लोग हैरानी से उनकी गाड़ी की ओर देखने लगे। अभिनव खुद भी चौंक गया और गुस्से में बोला, "पागल हो गए हो क्या? ऐसे गाड़ी चलाते हो? अगर एक्सीडेंट हो जाता तो?"
लेकिन ड्राइवर बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखता हुआ बोला, "क्या कहा आपने सर? आप मुस्कुरा रहे थे? मतलब... सच में मुस्कुरा रहे थे! वो जो दोनों होंठों को ऊपर खींचकर बत्तीसी दिखाते हैं... जैसे खुश लोग करते हैं... आप भी वैसे मुस्कुरा रहे थे?"
अभिनव झल्लाया —"पागल हो गए हो क्या? "मैं इंसान हूं, मेरे अंदर भी फीलिंग्स हैं। जब मैं खुश होता हूं, तो जाहिर है, मुस्कुराता हूं। इसमें इतना चौंकने वाली क्या बात है?"
ड्राइवर ने भोलेपन से जवाब दिया, "चौंकने वाली बात तो है सर। मैं पिछले चार सालों से आपके लिए काम कर रहा हूं, लेकिन आज तक ना तो आपको मुस्कुराते देखा और ना ही चेहरे पर कोई खुशी की लकीर। हां, जब अनाया बेबी को देखते हैं तो चेहरा थोड़ा नॉर्मल होता है, लेकिन मुस्कुराहट तब भी नहीं देखी। आज पहली बार देखा आपको मुस्कुराते हुए। सर, प्लीज़... एक बार और मुस्कुरा दीजिए ना... आप मुस्कुराते हुए बहुत अच्छे लगते हैं।"
अभिनव गुस्से में बोला, "क्या तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो जो तुम्हारे सामने बिना बात के मुस्कुराऊं? चुपचाप गाड़ी चलाओ!"
बेचारे ड्राइवर का चेहरा उतर गया। वो चुपचाप गाड़ी चलाने लगा, लेकिन उसकी नज़रें बार-बार बैक मिरर की तरफ जा रही थीं... इस उम्मीद में कि शायद सर एक बार फिर मुस्कुरा दें।
उधर, अभिनव खिड़की की तरफ मुंह करके सोचने लगा — क्या सच में मैं कभी किसी के सामने मुस्कुराया नहीं हूं? आज पहली बार, सिर्फ प्रीत की वजह से, उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी।
वो याद करने लगा — आखिरी बार कब मुस्कुराया था...? लेकिन दिमाग पर जोर डालने पर भी उसे कुछ याद नहीं आया। शायद कभी नहीं। मगर आज प्रीत की वजह से वो हंस भी रहा था... और मुस्कुरा भी। प्रीत के आने से उसकी जिंदगी में कुछ बदलने लगा था... और आज अभिनव को पहली बार इस बदलाव का एहसास हुआ।
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उधर, प्रीत अभी-अभी यूनिवर्सिटी पहुंची थी। ये इस शहर की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी थी, और यहाँ उसका एडमिशन फैशन डिजाइनिंग में हुआ था।
प्रीत बहुत अच्छी फैशन डिजाइनर थी। उसके डिज़ाइन्स शानदार थे। लेकिन पैसों और हालात के चलते उसे पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी और छोटी-मोटी नौकरियाँ करनी पड़ीं। मगर उसका सपना अब भी ज़िंदा था — एक बड़ी फैशन डिजाइनर बनने का।
आज इस यूनिवर्सिटी के दरवाज़े पर कदम रखते ही प्रीत को लगा जैसे उसने अपने सपनों की ओर पहला ठोस कदम बढ़ा लिया हो। अगर वो यहाँ से पास आउट हो जाती है, तो कई बड़े फैशन हाउस उसे मौका देंगे... जहाँ वो अपनी प्रतिभा सबके सामने रख सकेगी।
एडमिट कार्ड लेकर जब वो यूनिवर्सिटी में दाखिल हुई और अपने डिपार्टमेंट पहुँची, तो उसका दिल धड़कने लगा। जैसे ही उसने क्लासरूम में कदम रखा, उसकी नज़रें पूरे कमरे में घूम गईं। लड़के-लड़कियाँ अपने-अपने फैशन ड्रेस में व्यस्त थे, एक-दूसरे से बातें कर रहे थे।
ये सब देखकर प्रीत की आंखों में चमक आ गई। वो इतनी ज़्यादा खुश थी कि शब्द नहीं थे उसे बयां करने को।
प्रीत ने इतने सारे बेंचों में से अपने लिए एक अच्छी सीट चुनी। उसने देखा कि वैसे तो सारे बेंच भरे हुए हैं, लेकिन लास्ट की सेकंड रो में एक सीट खाली है, जिसके बगल में एक लड़की बैठी है, जिसका चेहरा किताबों से ढका हुआ है। उससे पहले कि कोई और वहां बैठ जाता, प्रीत जल्दी से वहां जाती है और अपना बैग रखकर बैठ जाती है। फिर उसने अपने बैग से एक खाली डायरी निकाली, उस पर आज की तारीख और अपना नाम लिखकर स्केच से कुछ ड्रॉ करने लगी।
वो एक खूबसूरत गाउन ड्रॉ कर रही थी, जब उसके कंधे पर किसी ने टैप किया। प्रीत ने पलट कर देखा तो उसके सामने उसी की उम्र की एक लड़की बैठी थी, जिसकी आंखों पर चश्मा था। उस लड़की ने अपना चश्मा ठीक करते हुए प्रीत को देखते हुए कहा,
"तुम प्रीत हो ना… प्रीत महाजन?"
प्रीत हैरानी से उसे देखते हुए सिर हिलाकर जवाब देती है,
"हां, मैं प्रीत महाजन ही हूं। लेकिन तुम कौन हो? और मुझे कैसे जानती हो?"
उस लड़की ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा,
"हेलो प्रीत, मेरा नाम सिया है। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन तुम मेरी सीनियर थी। मैंने तुम्हें अक्सर स्कूल के ग्राउंड और फैशन डिजाइनिंग रूम में देखा है। तुम्हारे डिजाइन को तो कई बार टीचर्स ने रिफरेंस के तौर पर भी हमें दिखाया था। इसके अलावा स्कूल फैशन शो में तुम्हें अवॉर्ड भी मिला था बेस्ट डिजाइनर का। उसी दिन सोच लिया था कि एक दिन तुम्हारे जैसी अच्छी ड्रेस डिजाइन करूंगी।"
प्रीत थोड़ी हैरानी से सिया को देखती है और कहती है,
"लेकिन मुझे तुम याद नहीं हो…"
सिया ने जल्दी से अपने बैग से फोन निकालते हुए कहा,
"हां, क्योंकि मैं तुम्हारी सीनियर नहीं, जूनियर थी। तुमसे एक साल पीछे थी।"
फिर सिया ने अपने फोन में स्कूल की कुछ पुरानी तस्वीरें दिखाते हुए एक फोटो प्रीत के सामने की। प्रीत ने देखा कि वो सच में उसके स्कूल की फोटो है, जिसमें वो अपने ग्रुप के साथ खड़ी है और उसे अवॉर्ड मिल रहा है।
सिया ने कहा,
"ये देखो, ये तुम हो और वो मैं हूं… हम दोनों एक ही स्कूल में थे।"
प्रीत ने जब तस्वीर में खुद को देखा तो वो पहचान जाती है कि ये उसकी स्कूल की ही फोटो है। और सिया उसमें काफी अलग लग रही थी। स्कूल के दिनों में उसकी दो चोटियाँ थीं, मोटा सा चश्मा और दाँतों में ब्रेसेस थे। लेकिन अब वाली सिया काफी बदली हुई थी—उसके बाल सिल्की और लंबे थे, चश्मा अब उसके चेहरे पर सूट करता था और शायद ब्रेसेस उतर चुके थे, जिससे उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी।
इतने बदलाव के बाद तो प्रीत क्या, कोई भी उसे पहचानने से इनकार कर देता।
प्रीत ने सिया के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए हाथ मिलाया और कहा,
"हेलो सिया… कैसी हो तुम?"
सिया जल्दी से बोली,
"मैं तो ठीक हूं। लेकिन तुम यहां इस क्लास में क्या कर रही हो? तुम तो हमसे सीनियर थी ना? तुम्हें तो किसी फैशन हाउस में काम करना चाहिए था या फिर अपनी फैशन कंपनी खोल लेनी चाहिए थी।"
सिया की बात सुनकर प्रीत के चेहरे पर मायूसी आ जाती है। उसने जल्दी से कहा,
"हां… दरअसल कुछ पर्सनल प्रॉब्लम्स की वजह से मेरा एक साल मिस हो गया था, इसीलिए मुझे दोबारा से एडमिशन लेना पड़ा ताकि मैं अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर सकूं।"
सिया खुश होकर बोली,
"अरे, ये तो बहुत अच्छी बात है! तो क्या हम दोनों दोस्त बन सकते हैं? क्या है ना, इसी बहाने मैं तुमसे थोड़ी बहुत फैशन के बारे में भी सीख जाऊंगी।"
"फ्रेंड्स!" ऐसा कहते हुए सिया ने हाथ आगे बढ़ाया। प्रीत मुस्कुराते हुए उसका हाथ थाम लेती है और सिर हिलाती है। अब उसे कॉलेज में एक दोस्त भी मिल गया था, और कॉलेज का ये आखिरी साल उसके लिए इतना बुरा भी नहीं होगा—यही सोच रही थी प्रीत।
तभी क्लासरूम में थोड़ी हलचल होने लगती है। प्रीत ने देखा कि सामने से एक लड़की बहुत ही शॉर्ट ड्रेस में, एक स्टाइलिश बैग के साथ एंट्री लेती है। उसे देखकर कुछ लड़के कमेंट्स करने लगते हैं और एक-दो ने तो सीटियाँ भी बजा दीं, जिसे सुनकर उस लड़की के चेहरे पर एक घमंडी मुस्कान आ जाती है।
"किंजल…" सिया ने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा।
प्रीत हैरानी से पूछती है,
"कौन?"
सिया बताती है,
"वो लड़की जो अभी-अभी क्लास में एंटर हुई है, उसका नाम किंजल सिंघानिया है। उसके पापा इस कॉलेज के ट्रस्टी हैं। इसी का फायदा उठाकर इसने यहां एडमिशन लिया है, और अब ऐसे हुक्म चलाती है जैसे उसके पापा नहीं, बल्कि खुद वो इस कॉलेज की मालकिन हो।"
किंजल क्लासरूम में आ चुकी थी और अपनी अदाओं के जलवे बिखेरने लगी थी। प्रीत ने एक नज़र किंजल को देखा और उसे वो थोड़ी अजीब सी लगी। ऊपर से नीचे तक वो एक चलता-फिरता ब्रांड लग रही थी—ब्रांडेड ड्रेस, ब्रांडेड पर्स, ब्रांडेड सनग्लासेस, और यहां तक कि उसके पैरों में जो हील्स थीं, वो भी ब्रांडेड ही थीं।
किंजल स्टाइल से चलते हुए क्लासरूम में दाखिल हुई और लड़कों ने खुद ही उसके बैठने के लिए जगह बना दी थी। वहीं जब प्रीत इस क्लास में आई थी, तो किसी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं था। उसे अपनी जगह खुद ढूंढनी पड़ी थी, लेकिन किंजल को तो सीट सामने से ऑफर की गई थी। वो पूरे स्टाइल से अपनी सीट पर बैठ गई और अपने मोबाइल को स्क्रॉल करने लगी।
प्रीत की नज़र जैसे ही किंजल की उंगलियों पर पड़ी, वो हैरान रह गई—उसने नेल आर्ट करवा रखा था। उसके नाखून तो इस वक्त कौवे के नाखून से भी बड़े लग रहे थे। और ये क्या? उसके नाखूनों में डायमंड जैसा कुछ चमक रहा था! क्या वाकई में ये स्टोन हैं? कोई अपने नाखूनों पर स्टोन लगवाता है? वो सोचने लगी—‘ये खाना कैसे खाती होगी?’
प्रीत ने अपने हाथों की तरफ देखा—उसकी उंगलियों में तो नाखून थे ही नहीं, मतलब थे, लेकिन वो हमेशा उन्हें काटकर छोटा ही रखती थी। उसे बड़े नाखून पसंद नहीं थे क्योंकि वो अक्सर नाखूनों से खुद को ही खरोंच देती थी। इसीलिए जैसे ही थोड़े बड़े होते, वो उन्हें काट देती। यहां तक कि उसकी उंगलियों में नेल पेंट तक नहीं था।
उसने अपने हाथ को धीरे से मुंह के पास ले जाकर इमेजिन किया—‘जब किंजल खाना खाती होगी, तो क्या उसके नाखूनों में लगे ये स्टोन उसके मुंह में नहीं जाते होंगे?’ वो अजीब सी नजरों से किंजल को देख रही थी—"आग लगे ऐसे फैशन को!"
ऐसा सोचते हुए प्रीत ने उसे देखना ही इग्नोर कर दिया और सिया की तरफ देखकर उससे अपने डिज़ाइन के बारे में बात करने लगी। सिया बहुत एक्साइटेड होकर उसे सुन रही थी।
तभी क्लास में प्रोफेसर आ गए। प्रोफेसर को देखकर सब लोग खड़े हो गए। खड़ी तो किंजल भी हुई थी, लेकिन बहुत अनमने ढंग से।
प्रोफेसर ने सबको बैठने को कहा और सबको देखते हुए बोले, "गुड मॉर्निंग एवरीवन। तो हम लोग नए साल की शुरुआत आज से करेंगे। आज से आप लोगों का नया सेशन शुरू हो रहा है, जिसमें आप फैशन के बारे में और गहराई से जानेंगे। उम्मीद करता हूं कि इस साल के अंत तक आप सब एक बेहतरीन फैशन डिजाइनर बन जाएंगे।"
प्रोफेसर की बातों ने प्रीत को एक नई मोटिवेशन दी। वो सच में इस आखिरी साल दिल लगाकर पढ़ाई करने वाली थी। ये मौका उसे किस्मत से मिला था, वरना उसने तो मान ही लिया था कि वो कभी अपना कॉलेज कंप्लीट नहीं कर पाएगी, ना ही अपने फैशन डिज़ाइनिंग के सपने को पूरा कर पाएगी। लेकिन अपने ‘हम’ की वजह से वो आज इस कॉलेज की बेंच पर बैठी थी और प्रोफेसर का लेक्चर सुन रही थी।
प्रोफेसर ने कुछ पेपर्स निकाले और उन्हें डेस्क पर फैलाते हुए बोले, "तो क्यों ना इस सेमेस्टर की शुरुआत हम इस क्लास की सबसे होशियार स्टूडेंट के साथ करें। मेरा मतलब है कि वो स्टूडेंट जो पूरे साल आपके काम पर नज़र रखेगी, उसकी रिपोर्ट बनाएगी और मुझे देगी। स्कूल में तो ऐसे बच्चों को मॉनिटर कहा जाता है, लेकिन कॉलेज में इन्हें ‘हेड’ कहते हैं।"
"मैं तुम सब में से एक को इस क्लास का हेड गर्ल और हेड बॉय बनाऊंगा, ताकि बाकी सारे स्टूडेंट्स अपनी रिपोर्ट्स उन्हें सबमिट कर सकें, और हेड गर्ल या हेड बॉय मुझे रिपोर्ट्स लाकर दे सकें।"
"और हेड कौन बनेगा, इसका फैसला होगा तुम्हारे लास्ट ईयर के मार्क्स के आधार पर—जिसके सबसे ज्यादा अंक होंगे, वही क्लास का हेड बनेगा।"
"तो बॉयज़ एंड गर्ल्स, क्या लगता है तुम लोगों को—किसके आए होंगे सबसे ज़्यादा मार्क्स?"
किंजल...
किंजल के साथ बैठी लड़की ने चिल्लाते हुए कहा, जिसे सुनकर किंजल के चेहरे पर एक घमंड भरी मुस्कान आ गई और उसके साथ-साथ पीछे बैठे लड़के भी उसका नाम चिल्लाने लगे। एक-एक करके पूरे क्लास में किंजल के नाम की आवाज़ गूंजने लगी, लेकिन इस आवाज़ में प्रीत की आवाज़ कहीं भी शामिल नहीं थी। वो सबको अजीब नजरों से देख रही थी। उसे फर्क नहीं पड़ता कि कौन हेड गर्ल या हेड बॉय बनेगा, उसे बस अच्छे से अपनी पढ़ाई करनी थी और अपने डिज़ाइन पर ध्यान देना था।
पूरी क्लास किंजल का नाम चिल्ला रही थी। प्रोफेसर ने डेस्क पर हाथ मारते हुए कहा, "शांत हो जाइए आप लोग।" सारी क्लास एकदम शांत हो गई। प्रोफेसर बोले, "अगर आप लोगों को लगता है कि किंजल के सबसे ज्यादा नंबर आए हैं, तो ठीक है, फिर किंजल ही इस क्लास की हेड गर्ल बनेगी। लेकिन इसके लिए मुझे एक बार लिस्ट देखनी होगी कि सबसे ज्यादा नंबर आखिर आए किसके हैं।"
किंजल की चमची, यानी जो उसके आगे-पीछे चमचागिरी करती थी, नीलू खड़ी हो गई, "चेक करने की कोई ज़रूरत नहीं है सर, लास्ट ईयर सबसे ज्यादा नंबर किंजल के ही आए हैं। उसने 500 में से पूरे 380 नंबर लिए थे, और इतने नंबर तो किसी के भी नहीं हैं।"
प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, "ठीक है मिस, अगर आपको लगता है कि आपकी फ्रेंड के सबसे ज्यादा नंबर हैं, तो एक बार मैं लिस्ट चेक कर लेता हूँ। अगर आपकी बात सही निकली तो मिस किंजल ही इस क्लास की हेड गर्ल बनेगी।"
नीलू ने किंजल को देखकर विनिंग स्माइल दी। तो किंजल ने अपने बाल हवा में ऐसे उड़ाए जैसे कि वो अभी से हेड गर्ल बन ही गई हो। तभी प्रोफेसर ने अपनी फाइल चेक की और फिर किंजल की तरफ देखकर बोले, "वैसे मानना पड़ेगा, आपने सच में लास्ट ईयर काफी अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। इस क्लास में सबसे ज्यादा परसेंटेज आपके ही हैं।"
सारे लड़के हूटिंग करने लगे और किंजल प्राउड होकर खुद को सबके सामने रिप्रेजेंट करने लगी, जैसे उसे हेड गर्ल घोषित कर ही दिया गया हो। इस बात पर प्रीत ने मन ही मन सिर हिलाया, "ये लड़की कितनी ज्यादा इतरा रही है..."
लेकिन तभी प्रोफेसर ने डस्टर टेबल पर मारते हुए कहा, "साइलेंट! मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है।" सब लोग चुप हो गए और किंजल प्रोफेसर को देखने लगी।
प्रोफेसर सबको देखकर बोले, "लास्ट ईयर के हिसाब से देखा जाए तो किंजल के मार्क्स सबसे ज्यादा हैं, लेकिन हमारी क्लास में एक नई एडमिशन भी आई है, जिसके मार्क्स किंजल से भी ज्यादा हैं।"
जैसे ही सबने ये सुना, सब एकदम से हैरान हो गए और किंजल चौंक गई। "कौन है ऐसा जिसने मुझसे ज्यादा मार्क्स लाए हैं?"
प्रोफेसर ने फाइल से एक पेपर निकाला और सबको देखकर बोले, "और जिसके मार्क्स सबसे ज्यादा हैं, उसका नाम है—मिस प्रीत महाजन।"
प्रीत अपनी कोहनी टेबल पर टिकाकर हाथों को उंगलियों के बीच रखे प्रोफेसर की बात सुन रही थी। लेकिन जैसे ही उसने अपना नाम सुना, वो एकदम से चौंक गई और हाथ का बैलेंस बिगड़ गया। वो एकदम से आँखें फाड़े सबको देखने लगी।
प्रोफेसर बोले, "मिस प्रीत महाजन।"
सिया ने जल्दी से प्रीत का हाथ पकड़कर हवा में उठाया, "सर, ये रही प्रीत महाजन।"
अब सबका ध्यान उसकी तरफ चला गया और प्रीत एकदम से ब्लैंक हो गई। उसे लोगों का इस तरह घूरना बिल्कुल पसंद नहीं था। वो बहुत ज़्यादा घबरा जाती थी जब लोग बड़ी-बड़ी निगाहों से उसे देखने लगते थे। उसे बहुत हिचक होती थी, और यहाँ तो पूरी क्लास उसे खजाने वाली नज़रों से देख रही थी—खासकर लड़के। और कोई था जो उसे नफरत भरी निगाहों से देख रहा था—वो थी किंजल। उसके हाथ की मुट्ठियाँ कस चुकी थीं और उसके हाथ इतने ज़्यादा टाइट हो गए थे कि उसके नेल एक्सटेंशन खराब हो रहे थे, लेकिन उसे इस बात की कोई परवाह नहीं थी। वो गुस्से और नफरत के एक्सप्रेशन से प्रीत को देख रही थी।
और प्रीत हैरानी से सबको देख रही थी। वो तो इन सबका हिस्सा भी नहीं बनना चाहती थी—"आ बैल मुझे मार", उसके साथ तो ऐसा ही सीन हो गया था। उसने सोचा था कि किसी की नजर में आए बिना चुपचाप अपना आखिरी साल निकाल लेगी, लेकिन क्लास के पहले दिन ही उसे हेड गर्ल बना दिया गया।
और फिर प्रोफेसर ने मयंक तिवारी नाम के एक लड़के को हेड बॉय बनाया, जिसके नंबर प्रीत और किंजल के बाद सबसे ज्यादा थे।
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तो वहीं दूसरी तरफ—दीवान कॉर्पोरेशन में...
अभिनव अपने केबिन में बैठा हुआ था और फाइलों के बीच उलझा हुआ था। रोज़ की तरह आज का भी उसका दिन काफी टाइट शेड्यूल वाला था। लेकिन उसे आज शाम को अपनी दादी से मिलने जाना था। अभी सिर्फ दोपहर ही हुई थी। दोपहर के लंच के लिए उसने अपनी असिस्टेंट राधा को मैसेज किया था कि वो उसका लंच ऑर्डर कर दे।
दो मिनट बाद ही दरवाज़े पर नॉक होता है।
अभिनव हल्की मुस्कान के साथ कहता है, "कम इन," तो राधा केबिन में दाख़िल होती है। राधा पिछले तीन सालों से अभिनव की पर्सनल सेक्रेटरी है और उसका काम वह बेहद अच्छे से संभालती है।
राधा केबिन में आते हुए कहती है,
"गुड आफ्टरनून सर। आपने लंच के लिए कहा था, क्या आप बता देंगे कि बैलेंस के लिए क्या ऑर्डर करूं?"
अभिनव उसे लंच के बारे में बताने ही वाला था कि तभी उसके फोन पर नोटिफिकेशन आता है।
अभिनव की आंखें थोड़ी सिकुड़ जाती हैं, क्योंकि ये नोटिफिकेशन उसके वॉइस फ्रेंड ग्रुप का था, जिसका नाम था – 'बेरोजगार फ्रेंड्स'।
हालांकि सच्चाई ये है कि अभिनव का कोई भी दोस्त बेरोज़गार नहीं है।
अभिनव के फ्रेंड सर्कल में कुल चार लोग हैं, और सभी अच्छी कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम करते हैं।
यहां तक कि उसका एक दोस्त तो एक बड़े अस्पताल में सर्जन है।
लेकिन फिर भी जब ये चारों दोस्त एक साथ होते हैं, तो ये भूल जाते हैं कि ये कितने बड़े प्रोफेशनल हैं। ये एक-दूसरे से ऐसे बहस करते हैं जैसे छोटे बच्चे किसी बात पर झगड़ रहे हों।
और यही बात है जो इन्हें सालों से एक-दूसरे से जोड़े हुए है।
चाहे सुख हो या दुख, ये चारों हमेशा एक साथ नज़र आते हैं।
जैसे ही ‘बेरोज़गार फ्रेंड्स’ का नोटिफिकेशन आता है,
अभिनव को पता चल जाता है कि उसका एक दोस्त जो बिजनेस मीटिंग के लिए लंदन गया हुआ था, अब लौट आया है।
और अब वो चारों एक साथ लंच प्लान कर रहे हैं।
अभिनव फोन उठाकर अपनी जेब में रखते हुए राधा से कहता है –
"लंच कैंसिल कर दो… और शाम तक की मेरी सारी मीटिंग्स भी। कुछ ज़रूरी हो तो सागर ( अभिनव का असिस्टेंट) से कह देना, वो संभाल लेगा। वरना तुम मैनेज कर लेना।"
राधा मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है।
अभिनव अपनी गाड़ी की चाबी उठाकर ऑफिस से निकल जाता है और सीधे अपने ‘बेरोज़गार फ्रेंड्स’ मतलब अपने दोस्तों के साथ होटल के कमरे में पहुंचता है, जहां आज उनका साथ में लंच करने का प्लान था।
अभिनव होटल के अपने प्राइवेट रूम में दाखिल होता है। ये रूम हमेशा उसी और उसके दोस्तों के नाम बुक रहता है। इस रूम को कोई और यूज़ नहीं करता, क्योंकि अभिनव अपने दोस्तों के साथ मिलकर इसका साल भर का किराया एक बार में ही चुका देता है। जब भी इन चारों को पार्टी करनी होती है या आपस में मिलना होता है, तो वो इसी होटल के रूम में आते हैं। इस रूम की चाबी चारों के पास होती है।
अभिनव, विशाल, साहिल, सिद्धार्थ।
अभिनव को तो आप लोग जानते ही हो। अब मिलते हैं उसके बाकी के नमूनों से…
विशाल मेहरा – पेशे से प्रोफेसर और मुंबई के एक बहुत बड़े कॉलेज में लेक्चरर है। वैसे तो उसका फैमिली बिज़नेस भी है, लेकिन उसने उससे अलग अपने प्रोफेशन का चुनाव किया। आज वो एक ऐसा नाम है जिसकी स्पीच सुनने के लिए लाखों स्टूडेंट्स इंतज़ार करते हैं।
साहिल शिंदे – इनका बैकग्राउंड थोड़ा पॉलिटिकल है। इनके पापा मुंबई के बड़े पॉलिटिशियन हैं। खुद साहिल एक डॉक्टर और सर्जन है।
सिद्धार्थ निगम – जनाब पेशे से लॉयर हैं। मर्डर, किडनैपिंग और रेप जैसे बड़े केस इनके पास आते हैं। सच को झूठ और झूठ को सच साबित करने में इन्हें महारत हासिल है।
अभिनव जैसे ही कमरे में दाखिल होता है, उसकी आंखें हैरानी से फैल जाती हैं। सोफे पर बैठे वो तीनों बंदर... देख भी रहे थे, सुन भी रहे थे और बोल भी रहे थे।
टीवी पर क्रिकेट मैच चल रहा था, पता नहीं किस देश का... लेकिन वो तीनों क्रिकेट की कमेंट्री से ज़्यादा आपस में कमेंट्री कर रहे थे।
सिद्धार्थ बोला, "देखना, ये छक्का मारेगा।"
पर विशाल तुरंत बोला, "अरे नहीं यार, ये बॉल के पीछे बहुत ज़्यादा भाग रहा है, देखना फॉलोस जाएगा।"
उन दोनों की बात सुनकर साहिल माथा पीटते हुए बोला, "जब क्रिकेट का ABC नहीं आता, तो देख क्यों रहे हो... वो बॉलर नहीं है, बैटिंग कर रहा है!"
अभिनव ने उन तीनों की तरफ एक नज़र मारी और अपना कोट उतारकर साइड के सोफे पर फेंकते हुए कहा, "दुनिया के सबसे बिज़ी प्रोफेशन वालों को भी क्रिकेट देखने की फुर्सत मिल रही है…"
ये बात उसने खासकर विशाल को देखकर कही थी, क्योंकि विशाल हमेशा अपने प्रोफेशन को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है। हालांकि अभिनव जानता है कि उसका काम वाकई अहम है, लेकिन विशाल जितना उसमें इतराता है, उतना ही अभिनव को उसकी टांग खींचने में मज़ा आता है।
विशाल को पता था कि अभिनव मज़ाक कर रहा है, इसलिए उसने उसे इग्नोर कर दिया। उसकी नज़रें अब भी टीवी पर गड़ी थीं। स्कोर देखते हुए उसने कहा, "हां वैसे भी आज ज़्यादा काम नहीं था। कुछ स्टूडेंट्स को ही लेक्चर देना था तो जल्दी फ्री हो गया… एक टीचर का फर्ज़ होता है कि जो उसने सीखा है, वो अगली जनरेशन को ट्रांसफर कर दे…"
"सच में? तुझे लगता है तेरे लेक्चर इतने इंटरेस्टिंग होते हैं? वैसे तेरे स्टूडेंट्स ज़्यादा खुश होते अगर तू उन्हें अपने लेक्चर से कम बोर करता!" अभिनव सोफे पर बैठते हुए विशाल की टांग खींचते हुए बोला।
अबकी बार विशाल पलट कर उसकी तरफ देखता है, उसकी आंखों में हल्की नाराज़गी थी। "सीधा बोल कि तुझे जलन हो रही है कि मेरे इतने स्टूडेंट्स हैं जो मेरी रिस्पेक्ट करते हैं। जब मैं कॉलेज में एंटर करता हूं, तो सब गुड मॉर्निंग सर, गुड आफ्टरनून सर बोलते हैं। तेरे जैसे खड़ूस बिज़नेसमैन को क्या पता स्टूडेंट्स को पढ़ाने का मज़ा और वो रिस्पेक्ट जब मिलती है तो कैसा फील होता है। तेरे जैसा नहीं हूं कि एम्प्लॉइज़ को डांट-फटकार कर उनसे जबरदस्ती रिस्पेक्ट हासिल करूं!"
"अच्छा, तो मैं खड़ूस बिज़नेसमैन हूं! और तुझे लगता है बिज़नेस करना आसान होता है?" ये कहते हुए अभिनव खड़ा हो जाता है। विशाल भी उठ खड़ा होता है और दोनों एक-दूसरे को घूरते हैं।
ये देखकर सोफे पर बैठे दो और इंसान – साहिल और सिद्धार्थ – एकदम एक्साइटेड हो जाते हैं।
साहिल एक्साइटमेंट में अपना फोन निकालकर कैमरा ऑन करता है और सिद्धार्थ सामने रखे पीनट्स का डिब्बा उठा लेता है।
सिद्धार्थ एक्साइटमेंट में कहता है, "यार, काफी टाइम बाद कुछ धमाकेदार देखने को मिलेगा…"
वो दोनों आराम से सोफे पर बैठ जाते हैं, जैसे अब मूवी का कोई एक्साइटिंग सीन आने वाला हो।
अगले पांच मिनट तक अभिनव और विशाल बस डायलॉगबाज़ी करते हैं। उन्हें ऐसे बहस करते देख सिद्धार्थ मुंह बनाकर कहता है, "अरे यार, सही कहते हैं लोग – गरजने वाले बादल कभी बरसते नहीं, और भौंकने वाले कुत्ते कभी काटते नहीं!"
"कब से तुम दोनों सिर्फ गरज ही रहे हो, जल्दी शुरू करो यार!"
साहिल भी कहता है, "हां यार, मेरे फोन की बैटरी भी कम है… कहीं एक्साइटेड सीन ही मिस न हो जाए!"
ये सुनते ही अभिनव और विशाल की नज़रें उन दोनों पर जाती हैं। चारों बचपन के दोस्त हैं – चड्डी यार। और अभिनव अपने इन कमिने दोस्तों की रग-रग से वाकिफ है। 'हर एक फ्रेंड कमिना होता है' – ये डायलॉग इन्हीं दोस्तों को देखकर बना होगा।**
इन चारों ने बचपन से साथ मिलकर न जाने कितनी लड़ाइयां लड़ी होंगी। विशाल और साहिल थोड़े बड़े थे, जबकि सिद्धार्थ सिर्फ एक साल बड़ा था। और इस ग्रुप में अगर कोई सबसे छोटा था, तो वो था – अभिनव।
अभिनव इस ग्रुप में भले ही सबसे छोटा था, लेकिन ये सबको बहुत अच्छे से जानता था, और खासकर के साहिल को... मिर्च-मसाला लगाकर लोगों को आपस में कैसे लड़वाना है, ये बात उसे बहुत अच्छे से आती थी। वो खुद तो कभी लड़ाई-झगड़े में पड़ता नहीं था, लेकिन दूसरों को लड़वाकर मज़े ज़रूर लिया करता था। अक्सर जब कभी साहिल की किसी से लड़ाई होती थी, तो साहिल खुद पीछे हट जाता था, लेकिन बाकी सबको अपनी जगह सामने कर देता था। कितनी बार तो उसकी वजह से सिद्धार्थ और अभिनव की बेवजह लड़ाई हो चुकी थी।
और इसके अलावा साहिल अपनी बात मनवाने में भी बहुत माहिर था। मतलब अगर उसकी बात नहीं मानी, तो गए काम से... अपने तीनों दोस्तों पर वो हमेशा भारी पड़ता था। और अगर ये तीनों उसकी बात नहीं मानते, तो अकेले ही उन तीनों की चटनी बना देता था।
अभिनव के साथ तो उसकी कई बार बहुत बुरी भली बहस और लड़ाई दोनों हो चुकी थीं। और हमेशा साहिल अभिनव को पीट भी दिया करता था, लेकिन इतने के बाद भी उसे संतोष नहीं मिलता था। वो मिर्च-मसाला, हल्दी-नमक सब लगाकर अभिनव की चुगली उसकी दादी के सामने कर दिया करता था। मतलब दोस्तों के सामने बहसबाज़ी और पिटाई अलग से, और घर जाकर दादी के द्वारा अलग से प्रसाद मिलता था।
आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा था... साहिल और सिद्धार्थ मिलकर उन दोनों को चने के झाड़ पर चढ़ा रहे थे, ताकि ये दोनों आपस में उलझ जाएं और ये दोनों एड बनाकर पेड़ा खा लें। पहले तो ये दोनों अभिनव और विशाल को आपस में लड़वाएंगे और फिर उनके घर जाकर चुगली करेंगे। अपने कमिने दोस्तों के इरादे समझते ही अभिनव और विशाल दोनों के एक्सप्रेशन बदल गए।
वो दोनों एक-दूसरे को देखते हैं और अगले ही पल गले लग जाते हैं। उनके चेहरे का रंग ऐसे बदलता है जैसे एक-दूसरे पर कितनी शिद्दत वाली मोहब्बत हो... अभिनव ने बनावटी मुस्कान के साथ विशाल की शर्ट पर हाथ फेरते हुए कहा, “नाइस शर्ट यार, कहां से ली?”
विशाल भी बनावटी मुस्कान के साथ बोला, “संडे मार्केट सेल से... डोंट वरी अगली बार तेरे लिए भी एक ले आऊंगा। अरे यार, अभी मेरी शर्ट छोड़, तेरे बाल देख, कितना हैंडसम लग रहा है तू इन बालों में... कहां से कटवाए? मुझे भी बताना, मैं भी जाऊंगा।”
अभिनव भी अपनी झूठी मुस्कान के साथ बोला, “पीपल के पेड़ के नीचे बैठे बिरजू नाई से... ₹100 में क्या मस्त बाल काटता है और ₹50 एक्स्ट्रा दो तो मसाज भी कर देता है।”
सिद्धार्थ उन दोनों को ऐसे बात करते देख मुंह बनाते हुए कहता है, “क्या वाहियात एक्टिंग कर रहे हो दोनों...”
साहिल ने भी मूंगफली का बॉक्स वापस टेबल पर पटक दिया और मुंह बनाते हुए कहा, “क्या यार, सारा मूड खराब कर दिया, अभी एक्शन देखने के मूड में था और इन दोनों ने कॉमेडी फिल्म दिखा दी... और वो भी थर्ड क्लास एक्टिंग के साथ... सालों, मुस्कुराना भी नहीं आता तुम दोनों को तो!”
उसके बाद साहिल ने अपनी दोनों उंगलियों को आपस में उलझाया और तेज़ से अंगड़ाई लेते हुए कहा, “लगता है अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा...” साहिल को अपनी तरफ आता देख अभिनव और विशाल दोनों की हालत खराब हो गई, क्योंकि वो अकेले ही उन दोनों पर भारी पड़ता था। अभिनव की तो हालत वैसे ही खराब हो गई थी — मतलब हमेशा की तरह पहले साहिल उसे यहां पीटेगा और फिर दादी से उसकी चुगली करेगा। और अगर वो सूजे हुए चेहरे के साथ घर गया, तो फिर प्रीत भी होगी वहाँ उसकी ये हालत देखने के लिए।
विशाल जल्दी से अभिनव से दूर हुआ और सिद्धार्थ के पास आ गया, जिससे बेचारा अभिनव अकेले साहिल के सामने खड़ा रह गया और अब साहिल के इस एंटरटेनमेंट का शिकार बनने वाला था...
पर इससे पहले कि साहिल कुछ करता, अभिनव ने एक पिलो उठाया और अपने चेहरे पर रखते हुए कहा, “मुझे मारने से पहले इतना सोच लेना कि तुम्हारी भाभी तुम्हें बहुत डांटेगी अगर मेरे हैंडसम से चेहरे को कुछ हुआ तो...”
अभिनव की बात सुनकर उन तीनों के मुंह खुले के खुले रह गए और वो तीनों हैरानी से अभिनव को देखने लगे।
तो वहीं दूसरी तरफ कॉलेज में...
सारी क्लास में हेड गर्ल और हेड बॉय डिसाइड हो चुके थे। मयंक, जिसके नंबर ठीक-ठाक आए थे लेकिन सारे लड़कों के मुकाबले सबसे ज़्यादा थे, हेड बॉय बना था। और प्रीत के नंबर पूरे क्लास में सबसे ज़्यादा थे — प्रीत को पूरे 500 में से 499 नंबर मिले थे।
हेड गर्ल का बैज लगाकर प्रीत क्लासरूम से बाहर निकलती है। वैसे भी उसे इस कॉलेज में कोई पोस्ट नहीं चाहिए थी, लेकिन प्रोफेसर ने सामने से उसे हेड गर्ल बना दिया था, इसलिए प्रीत कुछ नहीं बोली और चुपचाप हेड गर्ल का बैज लेकर क्लास से बाहर निकल गई।
वो दूसरे डिपार्टमेंट में जा रही थीं, पर जैसे ही वो लोग गैलरी में पहुँचे, वैसे ही किंजल और नीलू उनके सामने आ गईं। सिया और प्रीत एकदम से ठिठक गईं और दोनों को देखने लगीं।
किंजल ने आँखों में नफ़रत लिए प्रीत को घूरते हुए कहा,
"Who are you? कौन हो तुम?"
प्रीत को तो समझ ही नहीं आया कि किंजल किस बारे में बात कर रही है, लेकिन सिया को कुछ अंदाज़ा हो गया था। उसने जल्दी से प्रीत का हाथ पकड़ते हुए कहा,
"क्लास में सो रही थी क्या? प्रोफेसर ने इतनी ज़ोर से नाम पुकारा था कि हमारी क्लास की हेड गर्ल है प्रीत महाजन!"
किंजल का गुस्सा और बढ़ गया। उसने सिया को घूरा और फिर प्रीत से बोली,
"वही तो पूछ रही हूं! कौन हो तुम प्रीत महाजन? आज से पहले तो तुम्हें कभी इस कॉलेज में नहीं देखा, और अब अचानक आकर मेरी सारी पॉपुलैरिटी छीन ली तुमने।"
प्रीत को उसके इस लहज़े से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा। उसने शांत स्वर में कहा,
"देखो किंजल, मैं यहाँ तुम्हारी पॉपुलैरिटी छीनने नहीं आई, पढ़ने आई हूं। और वैसे भी मुझे पॉपुलर होने का कोई शौक नहीं है। पर मैं अपने प्रोफेसर्स और सीनियर्स की इज़्ज़त करती हूं, इसलिए अगर उन्होंने मुझे कोई ज़िम्मेदारी दी है, तो मैं उसे पूरी ईमानदारी से निभाऊंगी। अगर तुम्हें मुझसे कोई परेशानी है, तो जाकर अथॉरिटी में शिकायत करो, क्योंकि मेरे पास बहस करने के अलावा और भी बहुत काम हैं।"
इतना कहकर प्रीत ने सिया का हाथ पकड़ा और उसे साथ लेकर वहाँ से निकल गई। जाते वक्त वो किंजल और नीलू के बीच से होकर निकली, जिससे किंजल का गुस्सा और भड़क गया। वो गुस्से में जाते हुए प्रीत को घूरते हुए बोली,
"ये तुमने अच्छा नहीं किया... मेरे रास्ते में आकर तुमने अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी है। अब देखना, ये कॉलेज का आखिरी साल तुम्हारे लिए कितना दर्दनाक होगा।"
प्रीत को ये एहसास तक नहीं हुआ कि उसने किंजल से दुश्मनी मोल ले ली है। जबकि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था—वो तो बस अपना काम कर रही थी।
इधर जहाँ एक नई दुश्मनी जन्म ले रही थी, उधर दोस्त आपस में दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे थे। अभिनव सामने सोफे पर बैठा था और वो तीनों उसे ऐसे देख रहे थे जैसे आँखों से ही खा जाएंगे।
सिद्धार्थ बोला,
"साला झूठ बोल रहा है। मैं लॉयर हूं, ऐसे झूठों से रोज़ कोर्ट में सामना होता है। जो मुँह पर कुछ और कहते हैं, आँखों में कुछ और होता है। इसकी आँखें साफ बता रही हैं—इसने शादी नहीं की है।"
लेकिन फिर भी सबकी शक भरी निगाहें अभिनव पर ही थीं।
अभिनव ने अपनी जेब से फोन निकाला और उस पर प्रीत और अपनी एक तस्वीर दिखा दी—जो होटल रूम में ली गई थी, जब प्रीत पूरी तरह दुल्हन बनकर उसके साथ घर चलने को तैयार थी।
वो तीनों जब तस्वीर देखते हैं तो एकदम से सन्न रह जाते हैं। जैसे उन्हें एक छोटा सा हार्ट अटैक लग गया हो।
साहिल ने सीने पर हाथ रखते हुए कहा,
"अरे... डॉक्टर को डॉक्टर की ज़रूरत पड़ गई है यार... मुझे हार्ट अटैक आ रहा है, कोई एंबुलेंस बुलाओ!"
और फिर गुस्से में अभिनव की ओर देखते हुए बोला,
"कमीने! अगर तूने सच में शादी कर ली है ना, तो तेरी जान ले लूंगा मैं। तू हम सबसे छोटा है, और तूने हमें बताए बिना शादी कर ली?"
विशाल ने उसे बैठाते हुए कहा,
"शांत हो जा यार, पहले इसकी बात तो पूरी होने दे।"
लेकिन साहिल अब भी गुस्से में था।
"अब क्या बोलेगा ये? जो भी बात थी, वो तो तस्वीर में साफ-साफ दिख रही है। अरे इसकी तो सच में शादी हो गई है! हमारी उम्र गई है और अब तक एक बार भी नहीं हुई... और इसकी दूसरी बार भी हो गई!"
प्रीत जब वापस दीवान मेंशन आती है, तो उसे वही गाड़ी वापस लेकर आती है जो उसे कॉलेज ले गई थी। लेकिन जैसे ही उसने घर के अंदर कदम रखा, उसका स्वागत अनाया की मीठी आवाज़ ने किया—"मम्मा, वेलकम होम!"
अनाया की आवाज़ सुनकर प्रीत के चेहरे पर मुस्कान खिल गई। उसने मुस्कुराते हुए सोफे पर बैठी अनाया को देखा, जो आशा जी के साथ बैठी थी और आशा जी उसे फ्रूट खिला रही थीं।
प्रीत अंदर आई और अपना बैग एक ओर रखते हुए अनाया के सामने बैठ गई। वो मुस्कुराते हुए अनाया की नाक पर हल्के से उंगली घुमाकर बोली, "कैसा रहा स्कूल का पहला दिन आपका?"
अनाया के मुंह में केला था। उसने अपने छोटे-से हाथ को हवा में उठाकर "Wow" का साइन बनाया और बोली, "बहुत अच्छा। और मेरी वहाँ पर एक फ्रेंड भी बनी है।"
प्रीत हँसते हुए अनाया के बाल बिगाड़ देती है और कहती है, "चलो, ये तो बहुत अच्छी बात है कि आपकी फ्रेंड बन गई है। अब स्कूल में आपको बोर नहीं लगेगा।"
आशा जी ने प्रीत को देखते हुए कहा, "मैडम, सर का फोन आया था। उन्होंने कहा है कि आप जल्दी से तैयार हो जाइए। सर जैसे ही घर आएँगे, आप लोगों को बड़ी मैडम के घर के लिए निकलना होगा।"
अनाया खुश होकर बोली, "मम्मा जल्दी से तैयार हो जाइए! हम लोग बड़ी दादी के घर जा रहे हैं!"
अनाया को इतना खुश देखकर प्रीत की तो सारी थकान ही उतर गई थी। उसने मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाया और प्यार से अनाया के चेहरे पर हाथ फेरते हुए कहा, "ठीक है, आप यहाँ अपने फ्रूट खत्म कीजिए। मैं बस थोड़ी देर में तैयार होकर आती हूँ।"
तैयार होने का मतलब था कि प्रीत को फिर से वही सब पहनना था जिससे वो अभिनव की पत्नी लगती। उसने अपनी अलमारी से एक महंगी साड़ी निकाली और पहनी। साथ ही, वही श्रृंगार दोबारा किया—नकली मंगलसूत्र, झूठा सिंदूर और हाथों में चूड़ियाँ।
वहीं दूसरी ओर, होटल के रूम में अभिनव एकदम शांत बैठा था, जैसे किसी विक्टिम की तरह। उसके तीनों दोस्त उसके सामने बैठे थे। विशाल गुस्से में खड़ा हुआ और बोला, "तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? कांट्रैक्ट मैरिज? वो भी नकली शादी? तू पागल हो गया है? अगर दादी को इस बारे में पता चला ना…"
पर तभी अभिनव ने कहा, "मैंने ये सब दादी के लिए ही किया है। साहिल, तुझसे तो कुछ भी छुपा नहीं है ना? तू तो समझ सकता है कि मैंने ये फैसला किसी दबाव में आकर किया है।"
साहिल एक नजर अभिनव को देखता है, फिर विशाल का हाथ पकड़कर उसे शांत करते हुए कहता है, "विशाल, शांत हो जा। हमें अभिनव के पॉइंट ऑफ व्यू से भी सोचना चाहिए। देख, उसने जो कुछ भी किया है, सिर्फ दादी की खुशी के लिए किया है। वैसे भी दादी का ऑपरेशन सफल होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पता है, एक डॉक्टर होकर मुझे ये नहीं कहना चाहिए, लेकिन मैं किसी को झूठी तसल्ली नहीं देना चाहता। और दादी की यही इच्छा है कि वो अभिनव को सेटल होते हुए देखना चाहती हैं, क्योंकि कहीं ना कहीं उन्हें भी पता है कि ये ऑपरेशन उनके लिए कितना हार्मफुल है।"
सिद्धार्थ कुछ सोचता है और फिर कहता है, "लेकिन अभी इस तरीके से किसी लड़की को कांट्रैक्ट के ज़रिए कुछ समय के लिए अपने पास रखना… तू जानता है ना, उस लड़की पर क्या बीतेगी? कल को अगर तूने उसे अपनी ज़िंदगी से बाहर निकाल भी दिया, तो समाज उसे जीने नहीं देगा। लोग तो उसे 'छोड़ी हुई औरत' ही कहेंगे ना।"
अभिनव तुरंत गंभीर होते हुए बोला, "इसलिए तो मैं तुम लोगों को अपनी कांट्रैक्ट मैरिज के बारे में बता रहा हूँ।"
वो तीनों एकदम से हैरान हो जाते हैं और हैरानी से अभिनव को देखने लगते हैं।
अभिनव कहता है, "मैं जानता हूँ कि ये सब उसके लिए भी बहुत चैलेंजिंग है, लेकिन उसकी भी अपनी कुछ मजबूरियाँ हैं, जिनके चलते वो मेरे साथ रहने को राजी हुई है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मैं उसकी ज़िंदगी इस तरह बर्बाद कर दूँ। मैं चाहता हूँ कि जब हम अलग हों, तो वो कहीं और अपना घर बसा सके। इसीलिए ये काम तुम लोगों का है—तुम लोग हमारी इस छोटी सी शादी को दुनिया के सामने नहीं आने दोगे। किसी के सामने इस बात का ज़िक्र नहीं होगा कि मेरी उससे शादी हुई है। वो दुनिया के सामने मेरी बीवी बनकर नहीं आनी चाहिए। और इसकी ज़िम्मेदारी तुम तीनों की है।"
वो तीनों एक-दूसरे को देखते हैं और अभिनव की बात समझ जाते हैं, इसीलिए उन्होंने एक साथ सिर हिलाया। क्योंकि विशाल उन सबमें सबसे बड़ा था, इसीलिए उसने सबसे पहले अभिनव से कहा –
"डॉन्ट वरी अभिनव, मैं समझ गया कि तुमने ये सब किसी मजबूरी में किया है। पर अब तुम्हें फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है, हम सब हैं ना तुम्हारे साथ। और देखना, दादी को कुछ भी नहीं होगा, हम सब मिलकर उनका सौवां जन्मदिन भी सेलिब्रेट करेंगे।"
अभिनव के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ जाती है, पर वो जानता था कि ये बात नामुमकिन है।
तभी अभिनव के फोन का अलार्म बजता है। वो जल्दी से खड़ा होकर कहता है –
"अच्छा ठीक है, तुम लोग इंजॉय करो, मुझे निकलना है।"
वो अपना कोट लेता है और वहां से निकलने ही वाला होता है कि इतने में सिद्धार्थ उसकी टांग खींचते हुए कहता है –
"अरे, भाई अब यह कहां हमारे साथ पूरी रात आवारागर्दी करता फिरेगी. शादीशुदा हो गया है...घर गृहस्ती वाला है बाल बच्चे हैं इसके। घर पर भाभी इसका इंतज़ार कर रही होंगी।"
अभिनव के कदम रुक जाते हैं और वो घूरती नज़रों से सिद्धार्थ को देखने लगता है। सिद्धार्थ हंसते हुए ड्रिंक पीने लगता है। इस बात पर साहिल कहां पीछे रहने वाला था – वो तो सोफे पर अपने दोनों हाथ फैला कर बैठ जाता है और सिद्धार्थ को देखकर ताना मारते हुए कहता है –
"अब तूने नकली शादी की है, ये बात हमें पता है, लोगों को थोड़ी ना पता है! तो अगर किसी को तेरी नकली शादी का पता चल गया, तो हमें तो ऐसा दिखाना पड़ेगा कि तुम दोनों सच में हसबैंड-वाइफ हो। इसलिए अभी से ‘भाभी’ कहने की आदत डाल लेते हैं।"
अपने दोस्तों को देखकर रंग बदलना, विशाल से सीखे। वो भी एक पैर पर दूसरा चढ़ाते हुए कहता है –
"तुम दोनों क्यों परेशान कर रहे हो इसे? देख नहीं रहे, अपनी नकली बीवी के लिए इसके असली इमोशन्स कितने असर कर रहे हैं। तभी तो अब तक नाम भी नहीं बताया इसने। नाम नहीं पता है तो हम तो ‘भाभी’ कह कर ही बुलाएंगे ना।"
साहिल तुरंत विशाल की तरफ देखता है और कहता है –
" विशाल, तू भाभी को ‘भाभी’ कैसे बुला सकता है यार? तू तो हम सबमें सबसे बड़ा है, तू तो ‘भाभी’ के लिए जून हुआ।"
साहिल की बात किसी को समझ नहीं आती, यहां तक कि अभिनव को भी। वो हैरानी से विशाल को देखने लगता है। साहिल मजाक में अपने दोनों हाथों से ताली बजाते हुए बोलता है –
"अरे यार, जून मतलब जेठ महीना। हिंदी में जून को जेठ कहते हैं। विशाल तू तो जेठ हुआ ना भाभी का... भाभी तो तुझ से घूंघट रखेगी।"
पर अभिनव तपाक से बोल पड़ता है –
"वो तुम में से किसी के भी सामने घूंघट नहीं रखेगी। जैसी है, वैसी ठीक है। और किसी को भी ज़रूरत नहीं है उसे ‘भाभी’ बुलाने की। अगर उसे बुरा लग गया तो? इसीलिए बिना उसकी परमिशन के खबरदार जो उसे कुछ और कह कर बुलाया। जहां तक बात है नाम की, तो उसका नाम ‘प्रीत’ है।"
अभिनव इतना बोलकर जाने ही वाला था, पर जैसे ही उसके हाथ दरवाज़े के हैंडल को छूते हैं, उसे अपने क़रीबी दोस्तों की आवाज़ें सुनाई देती हैं। वो एकदम से पलटकर पीछे देखता है, और सामने जो सीन चल रहा था, उसे देखकर वो गुस्से और हैरानी दोनों में आ जाता है।
"लोगों के होते हैं जिगरी दोस्त, मेरे वाले तो डिप्रेशन हैं।"
सामने साहिल अपने सिर पर होटल टॉवेल रखकर लड़की की तरह प्रिटेंड कर रहा था और शर्माने की एक्टिंग करते हुए डांस कर रहा था। सिद्धार्थ सोफे पर बैठकर सामने टेबल को तबला समझकर गाना गा रहा था –
"तुझ संग प्रीत लगाई सजना..."
जाहिर सी बात है, वो लोग अभिनव को ‘प्रीत’ का नाम लेकर चिढ़ा रहे थे। और अभिनव चिढ़ भी रहा था। उन्हें घूरती हुई नज़र से देखकर वो खींचते हुए कहता है –
"कौन सी मनहूस घड़ी थी जब तुम लोगों से दोस्ती की थी!"
विशाल जोर से ठहाका मार कर हंसते हुए बोला –
"तेरा बर्थडे था उस दिन!"
सिद्धार्थ और साहिल अपनी नौटंकी करते रहे, और विशाल हंसता रहा। लेकिन अभिनव वहां से निकल जाता है, क्योंकि उसे घर निकलना था।
वो ड्राइव करते हुए दीवान मेंशन पहुंचता है, और जैसे ही पार्किंग में उसकी गाड़ी रुकती है, अंदर बैठी प्रीत और अनाया को गाड़ी का साउंड सुनाई देता है। अनाया सोफे पर कूदते हुए कहने लगती है –
"डैडी आ गए!"
अभिनव अंदर आता है, तो उसके कदम रुक जाते हैं। उसने प्रीत को सोफे पर बैठे देखा। प्रीत ने आज हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी। हमेशा की तरह खुले लंबे बाल, मांग में सिंदूर, आंखों में काजल, हाथों में चूड़ियां, गले में मंगलसूत्र और एक प्यारी-सी मुस्कान। प्रीत का ये रूप हमेशा अभिनव को मंत्रमुग्ध कर देता है।
वो अपने होश में तब आता है जब अनाया उसके हाथ को खींचने लगती है। उसने नीचे देखा तो अनाया उसे खींचते हुए कह रही थी –
"डैडी, मम्मी को नज़र दिल लगाने का इरादा है क्या?"
अभिनव झेंप जाता है... जल्दी से अपना चेहरा दूसरी तरफ करते हुए कहता है, “नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है, तुम्हारी मम्मी इतनी भी कोई खास नहीं लग रही है...” उसके बाद अभिनव सोफे के पास आते हुए प्रीत को देखकर बोला, “मैं बस दो मिनट में रेडी होकर आता हूं।”
प्रीत ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। अभिनव वहां से कमरे की तरफ चला जाता है। उसने सिंपल टी-शर्ट और ट्राउज़र पहना हुआ था क्योंकि वो दादी से मिलने जा रहा था। नीचे आते ही उसने अनाया को अपनी गोद में उठा लिया और प्रीत को देखते हुए बोला, “चले?”
प्रीत अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है और हां में सिर हिलाती है। अभिनव, प्रीत और अनाया को लेकर मेंशन से बाहर आता है। हमेशा की तरह अनाया, अभिनव की बैक सीट पर जाकर बैठ जाती है क्योंकि वहां उसके लिए पहले से ही टॉयज और चिप्स के पैकेट रखे होते हैं। लेकिन जैसे ही अभिनव अपनी तरफ का दरवाज़ा खोलने वाला होता है, अनाया उसे डांटते हुए कहती है, “डैडी! ये आप क्या कर रहे हैं?”
अभिनव एकदम से रुक जाता है और हैरानी से अनाया को देखते हुए कहता है, “क्या हुआ? मैं तो गाड़ी में बैठने जा रहा हूं, कोई प्रॉब्लम है क्या?”
अनाया अपना सिर पीटते हुए बोली, “डैडी, आपको तो बहुत कुछ सीखना पड़ेगा! आप ऐसे ड्राइविंग सीट पर नहीं बैठ सकते। आपको पहले मम्मी के लिए डोर ओपन करना होगा!”
प्रीत एकदम से हैरान हो जाती है और अभिनव को देखने लगती है। उसने जल्दी से कहा, “कोई बात नहीं, इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, डैडी को ड्राइव करना है ना। मम्मी तो अपने आप भी डोर खोल सकती है।”
लेकिन अनाया ने बड़ी सी ना में सिर हिलाते हुए बोला, “नहीं! बिल्कुल नहीं! आपके लिए पहले डैडी कार का डोर खोलेंगे और फिर आप उनके साथ वाली सीट पर बैठेंगी। आप पहली बार डैडी के साथ बाहर जा रही हैं ना, तो डैडी में थोड़े बहुत मैनर्स तो होने चाहिए।”
अभिनव एकदम से ब्लैंक हो जाता है और प्रीत भी हैरान हो जाती है। अभिनव ने अपनी तरफ का दरवाज़ा आधा खोल भी दिया था, उसने गुस्से में दरवाज़ा पटकते हुए बंद किया और प्रीत की तरफ आता है। वो गुस्से में प्रीत को घूर कर देखता है, तो प्रीत ने जल्दी से अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया और मन में बोली, “अब मैंने क्या किया है? ये तो इन्हीं की बेटी की फरमाइश है!”
अनमने ढंग से अभिनव ने प्रीत के लिए दरवाज़ा खोला और प्रीत अपनी साड़ी का पल्लू संभालते हुए जल्दी से पैसेंजर सीट पर बैठ जाती है।
अभिनव जल्दी से ड्राइविंग सीट पर आता है और सीट बेल्ट लगाते हुए ड्राइव करना शुरू कर देता है। पीछे बैठी अनाया, प्रीत से लगातार बातें कर रही थी। वो उसे अपना फेवरेट कलर, फेवरेट टॉय और अपने बारे में बता रही थी, जिसे प्रीत बहुत इंटरेस्ट लेकर सुन रही थी।
अभिनव का एक ध्यान अनाया की बातों पर था, लेकिन उसकी नजरें सड़क से भी हट नहीं रही थीं। तभी रेड लाइट से ठीक पहले अभिनव ने अपनी गाड़ी थोड़ी स्लो कर दी थी क्योंकि उसके साथ प्रीत और अनाया थे, इसलिए वो बहुत आराम से ड्राइव कर रहा था। पर तभी एक बाइक ने उसे ज़ोर से ओवरटेक किया और फुल स्पीड में उसके सामने से गुजर गया, जिससे अभिनव संभलते हुए बचा। उसने तुरंत ब्रेक मारा और गाड़ी एक झटके से रुक गई। अनाया थोड़ा सा लुढ़क गई और प्रीत का सिर डैशबोर्ड से टकराने से बाल-बाल बचा।
अभिनव ने गुस्से में सामने की तरफ देखते हुए कहा, “व्हाट नॉनसेंस! ढंग से ड्राइविंग भी नहीं कर सकते हैं!”
प्रीत एकदम से अभिनव को देखते हुए कहती है, “आप इतने आराम से कैसे बात कर सकते हैं? आपने देखा नहीं उसने किस तरीके से ड्राइविंग की है? अगर आपने टाइम पर ब्रेक नहीं लगाया होता तो एक्सीडेंट हो सकता था। और इस बात के लिए आप उससे नॉर्मली कैसे बोल सकते हैं?”
अभिनव घूरते हुए प्रीत को देख कर बोला, “तो और मैं क्या करूं? तुम क्या चाहती हो? मैं जाकर उससे फाइट करूं?”
“हा डैडी! आप फाइट करते हुए बहुत हैंडसम लगोगे... और मैं आपको चियर भी करूंगी!” अनाया ने जैसे एक्साइट होकर कहा, तो अभिनव हैरान हो जाता है। वो प्रीत से कहता है, “एक्सीडेंट नहीं हुआ है ना? बस इतना ही काफी है। और मुझसे ना ये सड़क पर लड़ना-झगड़ना नहीं होता। बहुत चीप लगता है।”
पर प्रीत तो ठहरी प्रीत... वो कहां मानने वाली थी। उसने गुस्से भरी नज़र सामने की तरफ डाली तो देखा कि जो बाइक उन्हें ओवरटेक करके गई थी, वो रेड लाइट पर रुकी हुई है। प्रीत ने अपनी साड़ी के आंचल को कमर में खोंसते हुए, अभिनव की तरफ देखा और बोली,
"ये सब शायद आपकी पर्सनालिटी को सूट नहीं करता होगा, लेकिन मुझे इन सब से बहुत अच्छे से डील करना आता है। इसलिए आप अंदर बैठे रहिए... और मैं जो कर रही हूं, मुझे करने दीजिए।"
प्रीत फिर अनाया की तरफ देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है,
"अपने डैडी के लिए तो तुम्हें चीयर करने का मौका नहीं मिला, लेकिन अपनी मम्मी के लिए ज़रूर चीयर करना।"
प्रीत गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकलती है और बाइक की तरफ देखकर पीछे से चिल्लाती है,
"अबे ओए! साले, सड़क क्या तेरे बाप की है? गाड़ी चला रहा था या हवाई जहाज़? अगर ढंग से गाड़ी चलानी नहीं आती तो पहले जाकर सीख, फिर सड़क पर निकल। शुक्र कर मेरे साथ बच्ची है, वरना इतनी ज़ोर से कंटाप लगाती ना... अपनी बाइक समेत सड़क पर लोटता नज़र आता!"
बाइक वाला लड़का पीछे मुड़कर प्रीत को देखता है और दोनों हाथ हवा में उठाते हुए कहता है,
"सॉरी मैडम, गलती हो गई।"
प्रीत उसे गुस्से भरी नज़र देती है, फिर गाड़ी में वापस बैठ जाती है। दरवाज़ा लगाते ही जब उसने अभिनव और अनाया की तरफ देखा, तो दोनों बड़ी-बड़ी आंखें किए उसी को घूर रहे थे।
अनाया ने मुंह खोलकर हैरानी से कहा,
"मम्मा... आप तो लेडी सिंघम निकलीं!"
प्रीत को ये शब्द तारीफ़ जैसे लगे। उसने प्राउड होकर अनाया से कहा,
"थैंक यू बेटा।"
लेकिन अभिनव अजीब से एक्सप्रेशन के साथ मुंह खोलकर बोला,
"तुम लड़कियां भी गाली देती हो?"
प्रीत एकदम से उसकी तरफ देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है,
"अब गाली देने के लिए जेंडर कौन चेंज करता है?"
थोड़ी देर बाद अभिनव की कार मुंबई से निकलकर शांति इलाके में दाख़िल होती है। प्रीत ये देखकर हैरान हो जाती है कि ये जगह मुंबई से बाहर है, लेकिन कितनी खूबसूरत है... यहाँ थोड़ी-थोड़ी दूर पर या तो बंगले नजर आ रहे थे या फार्म हाउस। इसके अलावा दूर-दूर तक हरियाली ही हरियाली थी और हवा भी बेहद साफ़। इतनी खूबसूरत जगह को देखकर प्रीत का दिल तो गार्डन-गार्डन हो गया था।
तभी अचानक अभिनव की कार एक बड़ी सी हवेली के सामने आकर रुकती है। प्रीत ने जैसे ही उस हवेली को देखा, उसकी आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं। क्या ये अभिनव की दादी की हवेली है? और ये इतनी बड़ी और खूबसूरत हवेली है? ये देखकर तो प्रीत दंग रह गई...
जैसे ही गाड़ी हवेली के अंदर दाख़िल होती है और अभिनव ब्रेक लगाता है, अनाया जल्दी से उतर जाती है। वो खुद ही दरवाज़ा खोलती है और भागते हुए हवेली की तरफ़ बढ़ती है। चिल्लाते हुए कहती है,
"बड़ी दादी! बड़ी दादी! मैं आ गई! आप कहाँ हो? देखो, मेरे साथ कौन आया है!"
गार्डन में मौजूद सारे सर्वेंट्स और गार्डन का माली भी अनाया को देखकर मुस्कुराने लगता है। कई दिनों बाद अनाया आज दादी से मिलने आई थी...
अभिनव गाड़ी से बाहर निकलता है और दूसरी तरफ़ से प्रीत भी। अभिनव के साथ एक लड़की को देखकर — जो कि दुल्हन की तरह सजी हुई थी — सबके चेहरे पर एक अलग ही खुशी आ जाती है। सबको समझ आ गया था कि अभिनव ने शादी कर ली है, और शायद ये लड़की उसकी बीवी ही है।
सारे नौकर और सर्वेंट आपस में बातें करने लगते हैं, लेकिन प्रीत अब भी हैरानी से उस हवेली को देख रही थी।
अभिनव प्रीत के पास आकर कहता है,
"ये हमारी पुश्तैनी हवेली है।"
"बहुत खूबसूरत है..." प्रीत ने मुस्कुराते हुए कहा।
अभिनव ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा,
"खूबसूरत तो होगी ही... मेरे पूर्वजों ने इसे बहुत शानदार तरीक़े से बनवाया था। तुम्हें पता है, ये हवेली अंग्रेज़ों के टाइम की है, लेकिन हर बार सिर्फ रिनोवेशन ही होते हैं। हम में से कोई भी इसका डिज़ाइन नहीं बदलता, क्योंकि इसका डिज़ाइन बहुत यूनिक और सबसे अलग है। मेरे दादाजी, मेरी दादी को शादी के बाद यहीं लेकर आए थे... मेरी मॉम भी मेरे डैड के साथ यहीं आई थीं... और मैं भी अंजलि को यहीं लेकर आया था। पहली बार उसका गृह-प्रवेश यहीं हुआ था।"
प्रीत अचानक अभिनव की तरफ़ देखने लगती है। अपनी वाइफ का ज़िक्र आते ही, अभिनव के चेहरे पर एक अजीब-सा एक्सप्रेशन आ जाता है — जैसे वो कुछ उदास और टूटा हुआ हो।
प्रीत जल्दी से बात बदलते हुए कहती है,
"काफ़ी खूबसूरत हवेली है ये... बाहर से ही नहीं, अंदर से भी बहुत बड़ी और प्यारी होगी..."
अभिनव ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा,
"हाँ, अंदर से तो और भी ज़्यादा खूबसूरत है। इसकी देखरेख मेरी दादी करती हैं। वो पहली बार शादी कर यहीं आई थीं, इसलिए ये हवेली उनके दिल के बहुत करीब है। जब दादी को अपने बारे में पता चला, तो उन्होंने तय कर लिया था कि वो अपने आख़िरी दिन यहीं बिताएँगी। यही वजह है कि वो मेरे साथ शहर में नहीं रहतीं, बल्कि हमारी इस पुश्तैनी हवेली में रहती हैं। उनका मानना है कि यहाँ पर दादाजी अब भी उनके साथ हैं।"
प्रीत के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ जाती है,
"दादाजी और दादी में बहुत प्यार रहा होगा... तभी तो दादी आज भी उनकी यादों में इस हवेली में अपने आखिरी दिन बिता रही हैं..."
अभिनव गहरी सांस लेते हुए कहता है,
"अनाया ने अब तक अंदर हंगामा कर दिया होगा कि हम आ चुके हैं। दादी मिलने आ ही रही होंगी... चलो, अंदर चलकर हम ही मिल लेते हैं।"
प्रीत ने सिर हिलाया। अभिनव और प्रीत गार्डन एरिया पार करते हुए हवेली की तरफ़ बढ़ने लगते हैं। तभी अचानक एक औरत उनके सामने आ जाती है। वो औरत थोड़ी उम्रदराज़ थी। उसने एक सिंपल सा जुड़ा बनाया हुआ था और एक साधारण सी साड़ी पहन रखी थी। चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, लेकिन एक सादगी और खूबसूरती ज़रूर थी।
प्रीत उसे देखकर मुस्कुरा देती है और धीरे से झुककर उसके पैर छूती है,
"नमस्ते दादी..."
वो औरत थोड़ी चौंक जाती है और हैरानी से अपने कदम पीछे खींच लेती है।
अभिनव सिर पकड़ते हुए कहता है,
"प्रीत! क्या कर रही हो? ये मेरी दादी नहीं हैं।"
प्रीत झट से सीधी खड़ी हो जाती है। उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ दिखती है।
"क्या? ये आपकी दादी नहीं हैं?"
अभिनव हल्की हँसी के साथ कहता है,
"नहीं... ये मेरी दादी नहीं हैं। ये यहाँ की गार्डनर हैं... बगीचे की देखभाल करती हैं।"
प्रीत उस महिला को देखकर जल्दी से बोली, “सॉरी...”
वो महिला मुस्कुराते हुए कहती है, “कोई बात नहीं मैडम... आप अंदर आइए, बड़ी मैडम अंदर हैं।”
अभिनव, प्रीत को लेकर आगे बढ़ जाता है और प्रीत भी उस अजीब से माहौल में मुस्कुराते हुए जल्दी-से वहाँ से निकलती है। उसने कुछ ही कदम आगे रखे थे कि एक और औरत हाथ में फूलों की माला लेकर सामने आ जाती है। उस औरत ने भी एक सादा-सा सूट पहना हुआ था और दुपट्टा सिर पर रखा था। उसके चेहरे पर एक अलग-सी चमक थी।
प्रीत जल्दी से झुक कर उसके पैर छूते हुए कहती है, “नमस्ते दादी...”
अभिनव की आंखें फिर से हैरानी से बड़ी हो जाती हैं। वो जल्दी से प्रीत का हाथ पकड़कर उसे खड़ा करते हुए कहता है, “प्रीत, क्या कर रही हो? ये भी मेरी दादी नहीं हैं। ये तो हवेली की कुक हैं, दादी के लिए हेल्दी खाना बनाती हैं।”
प्रीत की आंखें बड़ी हो जाती हैं। वो जल्दी से देखती है और कहती है, “ सॉरी...”
वो महिला मुस्कुराते हुए फूलों की माला प्रीत की ओर बढ़ाती है और कहती है, “कोई बात नहीं...”
वो माला प्रीत के गले में डालकर वहां से चली जाती है। प्रीत तुरंत माला निकालते हुए अभिनव की ओर देखती है और कहती है,
“मिस्टर दीवान, आपने अपनी दादी की हवेली में दादी की उम्र की ही महिलाओं को रखा हुआ है क्या?”
अभिनव कसकर अपनी आंखें बंद करता है और गुस्से को काबू करते हुए कहता है,
“मुझसे पूछ तो लो कि कौन मेरी दादी है और कौन नहीं। जब तक मैं खुद ना कहूं, तब तक किसी के भी पैर मत छूना। चाहो तो सिर्फ नमस्ते कर सकती हो।”
“ओके...” प्रीत भारी आवाज़ में कहती है।
अभिनव आगे बढ़ता है और प्रीत उसके साथ। लेकिन जैसे ही वो हवेली की पहली सीढ़ी पर पहुंचते हैं, एक और औरत सामने आ जाती है। ये भी थोड़ी उम्रदराज़ थीं और चेहरे पर उम्र की लकीरें साफ झलक रही थीं।
प्रीत रुक जाती है और तिरछी नज़र से अभिनव को देखती है। उस औरत को देखकर अभिनव के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो प्रीत की ओर देख कर कहता है,
“प्रीत, इनसे मिलो, ये हैं मेरी दा....”
“दादी! तो ये हैं आपकी दादी!” प्रीत जल्दी से दोनों हाथ जोड़ते हुए कहती है, “नमस्ते दादी...”
और झुक कर उनके पैर छू लेती है।
इसके बाद वो अपनी बत्तीसी चमकाते हुए अभिनव की ओर देखती है, लेकिन अभिनव उसे घूरते हुए कहता है,
“ये मेरी दाई मां हैं। इन्होंने पाला है मुझे...”
प्रीत की हंसी गायब हो जाती है, वो एकदम से हैरान रह जाती है।
अभिनव अपना सिर हिलाता है और दाई मां की ओर देखकर कहता है,
“कैसी हैं आप, दाई मां?”
दाई मां, अभिनव के सिर पर हाथ रखती हैं और कहती हैं,
“मैं तो ठीक हूं, लेकिन तुम बहुत दिनों बाद आए हो। सुनकर खुशी हुई कि तुमने शादी कर ली है। बहू बहुत अच्छी लग रही है। अंदर जाओ मालकिन तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं।”
अभिनव आगे बढ़ता है और प्रीत उसके साथ।
लेकिन इस बार प्रीत तंज काश्ते हुए कहती है,
“आप मुझे सच में अपने घर ही लेकर आए हैं ना, मिस्टर दीवान? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप मुझे किसी ओल्ड एज होम में ले आए हैं? यहां तो मुझे सब दादी जैसी ही लग रही हैं। और उनमें से कोई भी आपकी असली दादी नहीं है!”
“मैं डोर से हवेली तक आने में अब तक तीन दादियों से मिल चुकी हूं, अब चौथी वाली ही शायद आपकी असली दादी हों... या फिर वो भी कोई और निकलेंगी।”
अभिनव के चेहरे पर एक एरोगेंट-सी स्माइल आ जाती है। वो दरवाज़े के पास खड़ा होता है और एटीट्यूड भरे अंदाज़ में प्रीत की ओर देखकर कहता है,
“बॉयफ्रेंड था तुम्हारा?”
प्रीत हैरानी से पूछती है, “क्या??”
अभिनव एक नजर प्रीत को देखकर डोर बेल बजाते हुए कहता है,
“नौटंकी तो आती होगी ना तुम्हें?”
“मतलब?” प्रीत हैरानी से पूछती है।
“मतलब ये कि अगर तुम्हारा कभी कोई बॉयफ्रेंड रहा होगा तो उससे बातें तो की होंगी ना...
‘बाबू, सोना, मिस यू, जानू, हग यू, आई कैन’ट लिव विदाउट यू... मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी...’”
प्रीत को गुस्सा तो बहुत आता है लेकिन वो खुद को कंट्रोल करते हुए कहती है,
“जी नहीं मिस्टर दीवान, मेरा कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा है, और ये सब फालतू बातें मैंने कभी किसी से नहीं की हैं।”
“अगर नहीं की हैं, तो अब करो... इसे ड्रामेबाज़ी समझ लो या एक्टिंग, लेकिन इस दरवाज़े के खुलते ही तुम्हें ऐसे रिएक्ट करना है जैसे मैं ही तुम्हारी पूरी दुनिया हूं और तुम सबसे ज़्यादा मुझसे प्यार करती हो।”
प्रीत कुछ कहती इससे पहले ही दरवाज़ा खुल जाता है।
अभिनव प्रीत के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे साइड हग करता है और कस कर अपने पास खींच लेता है।
उसके चेहरे पर एक लंबी सी मुस्कान होती है और वो प्रीत से कहता है,
“मुस्कुराओ... तुम्हारी एक्टिंग शुरू होने वाली है।”
अभिनव ने प्रीत को बिल्कुल अपने से चिपकाकर खड़ा कर लिया था और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उसे साइड हग देते हुए खुद से ऐसे लगा लिया था जैसे जन्मों-जन्मों के साथी हों।
दरवाजा खुलता है और 70 साल की बुजुर्ग महिला दरवाजे पर खड़ी थी। उन्होंने बहुत सिंपल सा सूट पहन रखा था, आंखों पर नजर का चश्मा था और एक हाथ में छड़ी थी। ये हैं यशोधरा दीवान... अभिनव की दादी।
दादी को देखकर प्रीत एकदम से हैरान हो गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अब क्या करना है। बाहर जितने भी लोगों से वो मिली थी, दादी उन सबसे बहुत अलग थीं। उनका चेहरा भले ही बुजुर्ग हो चुका था, लेकिन आंखों में अब भी चमक थी और जीने की चाहत भी।
और तभी दादी की नजर प्रीत पर पड़ती है। प्रीत नजरें झुकाए दादी को देख रही थी। दादी प्रीत को देखते हुए मुस्कुराकर कहती हैं, "तुमने सच में शादी कर ली है? मैं बहुत खुश हूं। अब ये मेरी बहू है ना?"
अभिनव हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिलाता है और फिर वो प्रीत को देखता है, जो एकदम से ब्लैंक होकर दादी को देखे जा रही थी। अभिनव ने प्रीत के कंधे पर हाथ रखा हुआ था। उसने धीरे से प्रीत की बाजू को दबाते हुए उसके कान के पास झुककर कहा, "पहली बार अपने ससुराल आई हो, मैनर्स भूल गई हो? या फिर सीखने पड़ेंगे?"
प्रीत एकदम से होश में आती है और अभिनव को देखती है, फिर दादी की तरफ नजर उठाती है, जो मुस्कुराते हुए बस उसे ही देख रही थीं। प्रीत ने जल्दी से अपनी साड़ी का आंचल सर पर लिया और झुककर दादी के पैर छूने लगी, लेकिन दादी ने उसे बीच में ही रोक लिया। उन्होंने प्रीत का चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके माथे को चूमते हुए कहा, "जुग जुग जियो मेरी बेटी। आओ अंदर आओ।"
अभिनव और प्रीत दादी के साथ अंदर आते हैं तो देखते हैं कि अनाया सोफे पर उछलते हुए खेल रही थी और उन्होंने आते ही अपनी धमा-चौकड़ी मचानी शुरू कर दी थी।
अभिनव ने ये देखा तो दांते हुए अनाया से कहा, "अनाया, क्या कर रही हो? नीचे उतरो। सोफे पर ऐसे उछल नहीं करते।"
लेकिन दादी ने अपनी छड़ी से अभिनव के हाथ पर मारते हुए कहा, "चुप कर! आया पड़ा चौधरी कहीं का! कैसे बड़ी-बड़ी आंखों से देख रहा है, डर जाएगी मेरी बच्ची!"
इसके बाद दादी अनाया को अपने पास बुलाती हैं। अनाया भागते हुए दादी के पास आती है और उनके पैरों से लिपट जाती है। दादी ने अभिनव से कहा, "खबरदार जो इसे डांटा तो!"
अभिनव जल्दी से कहता है, "दादी, मैं डांट नहीं रहा था, बस समझा रहा था। और आपके सामने तो कुछ कहना ही बेकार है।"
तभी वही सर्वेंट वहां आ जाती है, जिसके प्रीत ने पहले पैर छुए थे और जिसे वो दादी समझ बैठी थी। सर्वेंट दादी को देखते हुए बोली, "मैडम, खाना तैयार है।"
दादी जल्दी से सिर हिलाते हुए कहती हैं, "चलो अभिनव, बहू, चलकर खाना खा लो।"
अभिनव और प्रीत दोनों डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ते हैं। दादी बड़ी कुर्सी पर बैठी थीं और ठीक उनके साथ अनाया बैठी हुई थी। दादी अनाया को अपने हाथों से खिला रही थीं। अनाया के ठीक बगल में प्रीत बैठी थी और प्रीत के सामने अभिनव बैठा हुआ था।
सर्वेंट ने एक-एक करके खाना टेबल पर लगाना शुरू कर दिया था।
प्रीत ने देखा कि ये बहुत बड़ी, राजा-महाराजाओं के टाइप की डाइनिंग टेबल थी, लेकिन खाने वाले यहां बस कुछ ही लोग थे।
आज तो फिर भी अभिनव और वो यहां मौजूद थे, लेकिन जब ये लोग यहां नहीं होते, तब दादी अकेले ही यहां खाना खाती हैं।
प्रीत एक टाइम पर होटल रेस्टोरेंट में काम कर चुकी थी, इसलिए उसे होटल मैनर्स बहुत अच्छे से आते थे। खाना कैसे सर्व करना है और कैसे खाना है, ये चीज प्रीत को बहुत अच्छे से मालूम थी। इसीलिए उसने टेबल पर कोई गड़बड़ नहीं की थी। वो चुपचाप बैठकर अनाया को अपने हाथों से खिला रही थी और ये देखकर दादी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई।
अभिनव चुपचाप से अपना डिनर कर रहा था और दादी भी अपना खाना खा रही थीं। लेकिन तभी उनकी नजर अभिनव पर पड़ती है। वो चुपचाप से बटर चिकन खाए जा रहा था। ये देखकर दादी ने गुस्से में अभिनव से कहा,
"अभी तक तुम्हें किसी ने बताया नहीं है कि टेबल पर खाना कैसे खाते हैं?"
अभिनव एकदम से दादी की तरफ देखने लगता है और प्रीत भी हैरान हो जाती है। अभिनव ने तो कुछ किया ही नहीं, फिर दादी ऐसा क्यों कह रही हैं?
अभिनव चमकते हुए कहता है, "क्या मतलब दादी? मैं तो ठीक से ही खाना खा रहा हूं, मैंने क्या किया है?"
दादी अपना सिर पीट लेती हैं और कहती हैं, "हे भगवान! तुम आजकल के बच्चों को ना हर चीज बतानी पड़ती है। तुम्हारे दादाजी होते ना, तब तुम्हें पता चलता कि एक-दूसरे के साथ किस तरीके से टेबल पर बैठकर खाना खाया जाता है... खुद कम खाया जाता है और सामने वाले को ज्यादा खिलाया जाता है।"
अभिनव और प्रीत दोनों हैरान हो जाते हैं और कुछ समझ नहीं पाते। इस पर अनाया अपना सिर पकड़ लेती है और दादी से कहती है,
"बड़ी दादी, आपको नहीं पता है, डैडी इस मामले में बिल्कुल बुद्धू हैं। उन्हें नहीं मालूम कि मम्मी के साथ कैसे पेश आना है। कार का डोर खोलने के लिए भी मैंने ही कहा था। और अब लगता है मुझे ही इन्हें सब कुछ सिखाना पड़ेगा।"
सब लोग अनाया की तरफ देखने लगते हैं। अनाया, अभिनव और प्रीत को देखकर कहती है,
"अरे आप दोनों तो न्यूली मैरिड हो ना, और न्यूली मैरिड कपल एक-दूसरे को अपने हाथों से खाना खिलाते हैं।"
अभिनव ने जैसे ही ये सुना, उसे जोर का झटका लगता है और वो खांसने लगता है। जल्दी से पानी का गिलास उठाकर उसने पानी पीना शुरू किया और अपनी awkward सिचुएशन को छुपाते हुए दादी की तरफ देखकर बोला,
"दादी, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं जिसे कोई हाथ से खाना खिलाएगा? अगर आप लोगों को किसी को खाना खिलाना है तो अनाया को खिलाइए।"
अभिनव ने जैसे ही ये सुना, उसे जोर का झटका लगता है और वो खांसने लगता है। जल्दी से पानी का गिलास उठाकर उसने पानी पीना शुरू किया और अपनी awkward सिचुएशन को छुपाते हुए दादी की तरफ देखकर बोला,
"दादी, मैं क्या कोई छोटा बच्चा हूं जिसे कोई हाथ से खाना खिलाएगा? अगर आप लोगों को किसी को खाना खिलाना है तो अनाया को खिलाइए।”
इसके बाद अभिनव ने धीरे से प्रीत के पैरों को अपने पैरों से मारना शुरू किया। प्रीत एकदम से हैरान होकर अभिनव को देखने लगी। अभिनव आंखों से कुछ इशारा कर रहा था।
प्रीत सच में उलझन में पड़ गई कि क्या अभिनव सच में चाहता है कि वो उसे अपने हाथों से खाना खिलाए। लेकिन उसे क्या खिलाए? अनाया को खिलाना एक अलग बात थी, लेकिन अभिनव को खिलाना...
प्रीत ने अपनी प्लेट में देखा, जहां उसने चावल और पनीर मिक्स कर रखा था। उसने धीरे से इधर-उधर नजर दौड़ाई। अभिनव की प्लेट में इस समय बटर चिकन था। वो अपने झूठे पनीर से तो उसे नहीं खिला सकती थी, इसलिए उसने बटर चिकन का बाउल उठा लिया।
लेकिन अब सवाल ये था कि सर्व कैसे करे? उसे आसपास कोई सर्विंग स्पून नजर नहीं आ रहा था।
अब प्रीत के पास एक ही ऑप्शन था कि वो अपने स्पून से अभिनव को खिलाए। लेकिन अगर वो अपने झूठे चम्मच से खिलाएगी, तो कहीं अभिनव को बुरा न लग जाए।
प्रीत अपना इरादा बदलकर बटर चिकन वापस रखना चाहती थी, पर तभी उसकी नजर दादी और अनाया पर चली गई, जो अपनी आंखें फाड़े उसे ही देख रही थीं।
उन दोनों की नजरें प्रीत पर जमी थीं, जैसे बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही हों कि प्रीत कब अभिनव को अपने हाथों से कुछ खिलाए। शायद दादी ये देखना चाहती थीं कि अभिनव प्रीत के हाथों से कुछ खाता है या नहीं।
प्रीत के हाथ बुरी तरह से काँप रहे थे। अब वो न तो बटर चिकन का बाउल रख पा रही थी और न ही अभिनव को सर्व कर पा रही थी। पहले ही सबकी नजरें अपने ऊपर महसूस हो रही थीं, और लोगों का यूं घूरना उसे बहुत एंबेरेस कर रहा था।
आखिरकार हार मानते हुए उसने बटर चिकन का बाउल साइड में रख दिया, जिसे देखकर दादी और अनाया के चेहरे पर हल्की निराशा आ गई।
लेकिन अगले ही पल प्रीत ने अपनी प्लेट में से पनीर और चावल को मिक्स करते हुए एक चम्मच में उठाया और धीरे से उसे अभिनव की तरफ बढ़ाने लगी...
दादी और अनाया की नजरों में तो चमक ही चमक थी, लेकिन अभिनव की घूरती हुई नजरें प्रीत पर थी। जब उसे यूं घूरते हुए देखा, तो प्रीत ने तुरंत अपनी नजरें नीचे कर ली। उसने सोचा कि पनीर को वो अभिनव की प्लेट में एक साइड में रख देगी, खाए या न खाए ये उसकी मर्जी होगी। लेकिन अभिनव ने बीच में ही प्रीत का हाथ पकड़ लिया। ऐसा होते ही प्रीत की आंखें एकदम से बड़ी हो गईं। दादी के चेहरे पर हैरानी भरी खुशी की चमक थी तो अनाया एक्साइटेड हो गई थी।
सबको चौंकाते हुए अभिनव ने प्रीत का हाथ अपने मुंह की तरफ लाया और उसके हाथों से पनीर-चावल खा लिए।
प्रीत की तो ये देखकर हालत ही खराब हो गई थी, लेकिन दादी के चेहरे की चमक अब पूरी खुशी में बदल चुकी थी। और अनाया की तो पूछो ही मत, उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसके डैडी कभी ऐसा भी कुछ कर सकते हैं।
प्रीत की झूठी चम्मच से उसका झूठा खाना खाना... ये तो अपने आप में एक अजूबा था।
देखा जाए तो एक तरह से दादी के मन में जो एक तरह का शक था, वो अब यकीन में बदल गया था। अब उन्हें पूरा भरोसा हो गया था कि उनके बाद अभिनव और प्रीत एक-दूसरे के साथ बहुत खुश रहेंगे।
वहीं दूसरी तरफ — मेहरा मेंशन, विशाल मेहरा का घर।
विशाल अपने कॉलेज का बहुत ही होनहार प्रोफेसर था, लेकिन इन दिनों कॉलेज में नए स्टूडेंट्स के असाइनमेंट सबमिशन को लेकर वो काफी ज्यादा बिजी रहने लगा था। वो इतना ज्यादा बिजी हो गया था कि कॉलेज के साथ-साथ उसे बहुत से असाइनमेंट घर लाकर भी चेक करने पड़ रहे थे।
विशाल के पेरेंट्स होमटाउन में रहते थे और वो यहां अकेले ही रह रहा था। उसके पेरेंट्स रिटायर हो चुके थे और अपने होमटाउन में एक छोटे से बगीचे में खेती-बाड़ी करते हुए अपनी रिटायरमेंट एंजॉय कर रहे थे। उन्हें बस एक ही बात की फिक्र थी — और वो थी विशाल की शादी, जिसके लिए विशाल हमेशा ही इनकार कर देता था क्योंकि उसे अब तक अपने बराबर की कोई सूटेबल लड़की नहीं मिली थी।
अपने काम को प्राथमिकता देते हुए विशाल कॉलेज का बहुत ही अच्छा प्रोफेसर बन गया था और कई कॉलेजों में गेस्ट लेक्चर भी देता था।
असाइनमेंट की फाइलें चेक करते हुए विशाल एक-एक फाइल को साइड कर रहा था। तभी उसके हाथ में एक पिंक कलर की फाइल आ गई, जिसे देखकर वो थोड़ा चौंक गया। बाकी सारी फाइलों का कलर तो ब्लैक, ब्लू या ग्रे था, लेकिन ये पिंक कलर की फाइल... ये तो काफी इंटरेस्टिंग थी।
विशाल ने फाइल को उलट-पलट कर देखा, उसमें कोई नाम नहीं था। बाकी असाइनमेंट फाइलों से ये फाइल थोड़ी सी अलग थी, जिसे देखकर विशाल का इंटरेस्ट इस फाइल को चेक करने में बढ़ गया।
उसने फाइल उठाई, तो पहले पन्ने पर कुछ भी नहीं था — बिल्कुल ब्लैंक, ना कोई नाम और ना ही असाइनमेंट की कोई डिटेल। विशाल हैरान हो गया। ये पहली बार था जब उसके पास ऐसा कोई असाइनमेंट आया था।
अब ये किस स्टूडेंट की फाइल है, ये उसे कैसे पता चलेगा?
तभी विशाल ने पहला पन्ना हटाकर दूसरा पन्ना देखा। उसे देखकर उसकी आंखें एकदम से बड़ी हो गईं। उसमें ना कोई असाइनमेंट था और ना ही कोई प्रोजेक्ट डिटेल्स। उसमें सिर्फ कुछ शब्द लिखे थे:
"आई लव यू विशाल सर.. विल यू मैरी मी?"
अभिनव ने अभी-अभी प्रीत की झूठी स्पून से खाना खाया था और ये देखकर दादी का चेहरा एकदम से खिल गया था। अनाया भी बहुत ज्यादा खुश नजर आ रही थी, लेकिन इसके होश उड़े हुए थे — ये खुद प्रीत थी। उसके हाथ में अभी भी वही चम्मच था, जिससे अभी-अभी अभिनव ने खाना खाया था। इसी चम्मच से तो वो खाना खा रही थी... इसी चम्मच ने प्रीत के होठों को भी छुआ था और अब इसी चम्मच ने अभिनव के होठों को भी छू लिया था।
तो क्या इसे इनडायरेक्ट किस समझा जाए?
इस अहसास के साथ ही प्रीत के गाल लाल हो जाते हैं और उसकी पलकें शर्म से झुक जाती हैं। लेकिन अगले ही पल अपने ही विचारों पर खुद को डांटते हुए प्रीत सोचती है —
"क्या कर रही है प्रीत? कैसी बातें कर रही है! अगर दीवान को पता भी चल गया ना कि तू ऐसा कुछ सोच रही है... तो समझ लेना तेरी खैर नहीं।"
लेकिन दादी उन दोनों के इस लव मोमेंट पर अपने दोनों हाथों से उनकी बलाइयाँ लेते हुए कहती हैं —
"हाय रब्बा, कितने प्यारे लग रहे हो तुम दोनों एक साथ! पहले तो मुझे लगा था कि तुम मजाक कर रहे हो, लेकिन अब प्रीत को देखकर मेरी सारी चिंता खत्म हो गई। प्रीत बेटा, मुझे पक्का यकीन है कि तुम मेरे चुन्नू का अच्छे से ख्याल रखोगी।"
प्रीत के हाथ से वो चम्मच छूटकर डाइनिंग टेबल पर गिर जाता है और अभिनव को जोर से खांसी आने लगती है। वो एकदम से दादी को देखते हुए नाराज होकर कहता है —
"दादी, आपसे कितनी बार कहा है यार, मुझे चुन्नू कहकर मत बुलाया करो। बचपन में अच्छा लगता था, लेकिन अब तो प्लीज़, मुझे चुन्नू मत कहिए ना।"
अभिनव को अपना चुन्नू नाम कभी भी पसंद नहीं था। बचपन में तो उसे समझ ही नहीं आता था कि उसके साथ क्या हो रहा है, लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ा हुआ, ये नाम उसके लिए टेंशन की वजह बन गया।
अभिनव कहना तो फिर भी उसके लिए ठीक था, लेकिन 'चुन्नू' — ये नाम सिर्फ उसके करीबी रिश्तेदार और फ्रेंड्स ही जानते थे।
अभिनव अपना ये नाम कभी किसी के सामने नहीं लाना चाहता था, और प्रीत के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।
लेकिन जब प्रीत ने उसका निकनेम सुना तो उसे अपनी हंसी रोक पाना बहुत मुश्किल हो गया।
उसके गाल जिस तरह से हंसने के अंदाज़ में उठ रहे थे, अभिनव को अंदाजा हो गया था कि प्रीत हंसने वाली है।
इसलिए उसने अपनी आंखें बड़ी करते हुए प्रीत के पैर पर जोर से लात मारी, जिससे प्रीत के मुंह से एकदम से निकला —
"आउच्च!"
प्रीत एकदम से चौंक पड़ी और घबराकर अभिनव को देखने लगी, जो बड़ी-बड़ी आंखों से उसे ही घूर रहा था।
प्रीत की आवाज़ सुनकर दादी हैरानी से उसकी तरफ देखकर बोलीं —
"क्या हुआ बच्चे? सब ठीक तो है ना?"
अभिनव अभी भी बड़ी-बड़ी आंखें किए हुए प्रीत को ही देख रहा था और आंखों ही आंखों में उसे कुछ न बोलने का इशारा कर रहा था।
प्रीत घबराते हुए दादी की तरफ देखकर बोली —
"नहीं दादी जी, कुछ भी नहीं... बस मेरा पेट भर गया है।"
इस पर दादी ने नाराजगी जताते हुए कहा —
"ऐसे कैसे पेट भर गया है तुम्हारा? खाया ही कितना है! दो टुकड़े पनीर से कोई पेट भरता है क्या? उसमें से भी एक तुमने चुन्नू को खिला दिया है।
इतना कमजोर शरीर है तुम्हारा, ऐसा रहेगा तो आगे चलकर मां बनने में परेशानी होगी।"
बस फिर क्या था — अभिनव को फिर से खांसी आने लगी।
उसने अपना चम्मच जोर से प्लेट पर फेंकते हुए कहा —
"क्या आज मुझे ढंग से खाना खाने को मिलेगा या खाते-खाते ही मेरा सारा खाना हजम हो जाएगा?
और दादी, अब आप प्रीत को अनकंफरटेबल कर रही हैं।
हम दोनों ने अभी एक-दूसरे को ठीक से जाना भी नहीं है, प्रीत तो अभी कॉलेज में है और आप बच्चे की बात करने लगीं?
वैसे भी बच्चा करना है या नहीं करना है, ये प्रीत की अपनी मर्जी होगी!"
प्रीत का तो पूरा चेहरा पके हुए टमाटर जैसा लाल हो रहा था। जैसे ही दादी ने बच्चों की बात की, ये सुनते ही प्रीत के कान एकदम से लाल हो गए थे। वो तो अपने दिमाग में अपने और अभिनव के बच्चे के बारे में सोचने भी लगी थी, लेकिन अभिनव की बात सुनकर वो रियलिटी में आ गई कि ये सब तो बस एक खयाल है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है। वो अभिनव के साथ सिर्फ तीन महीने के एक झूठे रिश्ते में है और तीन महीने बाद ये शादी और ये रिश्ता दोनों खत्म हो जाएंगे। उसके बाद अभिनव और प्रीत का कोई आमना-सामना नहीं होगा और न ही उनका कोई रिलेशन रहेगा। तो ऐसे में बच्चे का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। ऊपर से अभिनव पहले से ही एक बच्चे का बाप है।
अभिनव की बात पर दादी ने उसे डांटते हुए कहा, "चुप कर चुन्नू! और गलती से भी ऐसी बात जुबान पर नहीं लाया करते हैं वरना बात खुद ही को लग जाती है। भगवान न करे कल को अगर प्रीत को मां बनने में परेशानी हुई तो इसका दोष तू सारी जिंदगी खुद को ही देता रहेगा। क्या गलत कहा है मैंने? माना कि तुम दोनों ने अभी-अभी शादी की है लेकिन कल को तो अपना परिवार शुरू करोगे ना, और ऐसे में बच्चों की प्लानिंग करना कौन सी बड़ी बात है? दुनिया करती है। और मैंने कब कहा कि बच्चे कल-परसों में ही करने हैं? आराम से टाइम लो, प्रीत अभी पढ़ाई कर रही है तो उसकी पढ़ाई पूरी होने दो, उसके बाद आराम से एक-दूसरे के साथ वक्त बिताना और सोच लेना कि कितने समय बाद बच्चा करना है।"
अभिनव को अब दादी की बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही थीं। वो नाराज होते हुए कहता है, "दादी, प्लीज, मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी है और मुझे कोई बच्चा नहीं चाहिए। मेरे लिए मेरी सिर्फ एक ही बच्ची है और वो है अनाया। इसके अलावा मुझे और औलाद नहीं चाहिए।ये बात मैंने प्रीत से भी पहले कह दी थी। इस बारे में कोई ऑब्जेक्शन नहीं है, इसीलिए हमारा रिश्ता आगे बढ़ा है।"
अभिनव की बात सुनकर दादी एकदम से दंग रह गईं और हैरानी से प्रीत की तरफ देखने लगीं। प्रीत की आंखों में इमोशंस थे। उसने जल्दी से अपने इमोशंस को काबू में करते हुए दादी की तरफ देखकर कहा, "जी दादी, ये सही कह रहे हैं। और वैसे भी मुझे भी अभी बच्चे की इतनी जल्दी नहीं है। अनाया अभी बहुत छोटी है, मैं अपना पूरा ध्यान उसकी तरफ ही रखना चाहती हूं ताकि उसे मां की कमी महसूस न हो। अभी इस परिवार से जुड़ी हूं, इसलिए मैं पूरी तरह इस परिवार की होना चाहती हूं — जैसे आप मुझे पूरी तरह से अपनी बहू के रूप में स्वीकार करें और मिस्टर दीवान भी मुझे पूरी तरह से अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। मैं चाहती हूं कि पहले अनाया भी मुझे पूरी तरह से अपनी मां के रूप में स्वीकार करे।"
प्रीत की बात पर अनाया खड़ी हो जाती है और झट से कहती है, "मम्मी, मैं तो आपको पहले दिन से ही अपनी मां मान चुकी हूं और मुझे अपने लिए एक छोटा भाई चाहिए। मैं सबसे छोटी नहीं रहना चाहती हूं, ताकि मैं उसे ऑर्डर दे सकूं, जैसे डैडी मुझे देते हैं। और डैडी, मुझे अपने बर्थडे से पहले अपना छोटा भाई चाहिए!"
"इसलिए आप दोनों को एक साथ एक कमरे में रहना होगा, तभी मुझे छोटा भाई मिलेगा!"
अब हंसने की बारी प्रीत की थी। वो एकदम से झटका खाकर पानी पीने लगती है और फिर हैरानी से अनाया को देखने लगती है। अभिनव अपना सर पीट लेता है। भले ही अनाया उम्र में छोटी और मासूम थी, लेकिन उसका दिमाग बाकी बच्चों से बहुत ज्यादा एक्टिव था। उसे अच्छे से पता था कि यहां बच्चे ऐसे ही नहीं आते!
प्रीत और अभिनव, दादी के साथ डिनर करने के बाद वापस सोफे पर आकर बैठ गए थे। रात काफी हो गई थी, इसलिए अनाया को नींद आ रही थी। अभिनव की दायमा, अनाया को लेकर उसके कमरे में चली गई थीं। अनाया हमेशा दादी के कमरे में ही रहा करती थी।
सोफे पर दादी, प्रीत और अभिनव तीनों बैठे हुए थे। अभिनव ने घड़ी में समय देखते हुए कहा, "दादी, हमें अब निकलना चाहिए। रात काफी हो गई है, मैं अनाया को लेकर आता हूं।"
इस पर दादी ने कहा, "चुन्नू, अगर तुम बुरा ना मानो तो क्या मैं तुमसे एक बात कह सकती हूं?"
दादी की बात सुनकर अभिनव हैरानी से बोला, "दादी, कहिए। आपको मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी परमिशन की जरूरत नहीं है। जो मन में आए, बेहिचक कह सकती हैं। बताइए, क्या बात है?"
दादी कुछ पल सोचती हैं, फिर अभिनव को देखकर कहती हैं, "चुन्नू, मैं चाहती हूं कि जब तक मैं हूं, तब तक के लिए अनाया मेरे साथ ही रहे।"
ये सुनते ही अभिनव और प्रीत दोनों हैरान रह जाते हैं और एक साथ दादी को देखने लगते हैं। दादी जल्दी से बोलती हैं, "देखो, मुझे गलत मत समझना। मैंने हम सबके बारे में सोचकर ही ये कहा है। अब मेरे पास दिल बहलाने के लिए कितने बच्चे रह गए हैं। बस, मैं चाहती हूं कि जब तक मैं हूं, अनाया के साथ अपने आखिरी दिनों को बहुत अच्छे से जी लूं। ताकि एक बार फिर से अपना बचपन जी सकूं।"
दादी की बात सुनकर प्रीत उनके हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बोली, "दादीजी, आप कैसी बातें कर रही हैं! आपको ऐसा कहने की कोई जरूरत नहीं है। और अनाया के पापा ने भी कहा है ना कि आपका ऑपरेशन सफल होगा। आपको तो लंबी उम्र जीनी है। अभी आपकी उम्र ही क्या है, सिर्फ 80 साल! अभी तो आपको 80 साल और जीना है!"
प्रीत की बात सुनकर दादी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो बोलीं, "हां, मैं 80 साल और जिऊंगी... लेकिन तुम लोगों की यादों में। चुन्नू, मुझे सब पता है। ये सब बातें बस झूठी तसल्ली हैं। ऑपरेशन के लिए ही तूने जल्दबाज़ी में प्रीत से शादी की है ना? इसी वजह से तुम दोनों अपने रिश्ते को लेकर अभी भी थोड़े कंफ्यूज हो। इसीलिए मैं चाहती हूं कि अनाया कुछ वक्त के लिए मेरे पास रहे, ताकि तुम दोनों को एक-दूसरे के लिए समय मिल सके।"
अभिनव कुछ कहने ही वाला था कि दादी ने कहा, "ये मेरी आखिरी इच्छा है।"
इसके आगे अभिनव कुछ भी नहीं कह पाया। उसने बस हां में सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है दादी, अगर आप यही चाहती हैं तो फिर यही सही। मैं आशा जी को अनाया का सारा सामान लेकर कल यहां भेजने को कह दूंगा।"
प्रीत को दादी की बातें बहुत चोट पहुंचा रही थीं। किसी अपने का जाना क्या होता है, ये प्रीत अच्छी तरह से समझ सकती थी। उसने भी तो अपने पापा को अपनी आंखों के सामने खोया था।
उसके बाद अभिनव कहते हुए बोला, "ठीक है, अब अगर अनाया आपके पास ही रहेगी तो हमें घर निकलना चाहिए।"
दादी तुरंत बोलीं, "अरे अब इतनी रात को तुम दोनों कहां जा रहे हो! आज रात यहीं रुक जाओ, कल सुबह चले जाना। प्रीत भी काफी थक गई है, उसे भी आराम करना चाहिए।"
अभिनव प्रीत को देखते हुए आंखें छोटी करते हुए बोला, "ये थक गई है? ऐसा क्या किया इसने जो थक गई? कौन सा इसने पहाड़ तोड़े हैं, यहां तक कि डिनर भी तो इसने नहीं बनाया।"
प्रीत का मुंह खुला का खुला रह गया और वो गुस्से में अभिनव को देखने लगी, लेकिन दादी ने अपनी छड़ी से अभिनव के पैर पर मारते हुए कहा, "चुप कर नालायक कहीं का! खबरदार जो मेरी बहू के बारे में ऐसा कुछ कहा तो!"
फिर दादी बोलीं, "और मैंने कह दिया ना, आज रात तुम दोनों यहीं रुक रहे हो मतलब यहीं रुक रहे हो! मैंने ऊपर वाला कमरा तैयार करवा दिया है। प्रीत को लेकर ऊपर जाकर आराम करो। और अगर तुम दोनों आज रात यहां नहीं रुके तो देख लेना चुन्नू, मैं रात की दवाई नहीं खाऊंगी।"
ये तो सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग थी। दादी अच्छी तरह से जानती थीं कि चुन्नू यानी अभिनव को कैसे हैंडल करना है।
तभी एकदम से दरवाजा खुलता है और एक लड़की की चिल्लाती हुई आवाज आती है, "दादी! मैं आ गई!"
सबके सब एक साथ दरवाजे की तरफ देखने लगे। यहां तक कि प्रीत भी हैरानी से देखने लगी। अभिनव की आंखें थोड़ी छोटी हो गईं, लेकिन उससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। बल्कि दादी खुशी से अपनी जगह से उठते हुए बोलीं, "लतिका!"
प्रीत ने देखा कि एक लड़की बेबी पिंक ड्रेस और हाई हील्स में, हल्का मेकअप किए मेंशन में दाखिल हुई। उसके हाथों में एक लगेज बैग था, जिस पर एयरपोर्ट का टैग लगा हुआ था। मतलब कि लड़की सीधे एयरपोर्ट से यहां आई थी। लेकिन ये है कौन?
दादी अपनी छड़ी के सहारे उसके पास आती हुई बोलीं, "लतिका बच्चे! कब आई तुम? और कुछ बताया क्यों नहीं?"
लतिका जल्दी से दादी के पास आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली, "ओह दादी! मैं क्या बताऊं, मैंने आपको कितना मिस किया है... और बताने वाली बात ऐसी थी कि मैं आपको सरप्राइज देना चाहती थी। इसीलिए देखिए, एयरपोर्ट से सीधे यहीं आ गई हूं।"
दादी ने लतिका का चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा, "तो तुमने बहुत अच्छा किया है। मैं सच में सरप्राइज हो गई हूं। अभिनव भी यहां है, आओ मैं तुम्हें एक खास इंसान से मिलवाती हूं।"
लेकिन लतिका का ध्यान अभी भी प्रीत पर नहीं गया था। वो सीधा अभिनव को देखकर तेज़ी से उसके पास आई और सीधे उसके गले लग गई।
अभिनव के हाथ हवा में ही रह गए और वो थोड़ा चौंक जरूर गया, लेकिन उसने खुद को जल्दी से संभाल लिया।
पर प्रीत की नजरें थोड़ी तीखी हो गईं थीं।
लतिका, अभिनव के गले से चिपकते हुए बोली, "अभी! I missed you so much!"
अभिनव ने उसके हाथ अपने गले से हटाते हुए उसे खुद से दूर किया और कहा, "ठीक है... लेकिन तुम वापस आ गई हो, ये साहिल को पता है क्या?"
लतिका मुस्कुराते हुए ना में सिर हिलाते हुए बोली, "नहीं, इस बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता। बल्कि मैं तो एयरपोर्ट से सीधे दादी के पास आ गई हूं। कल सुबह सबको बताऊंगी कि मैं वापस आ गई हूं।"
ऐसा कहते हुए लतिका की नजर सोफे पर गई और उसका सामना प्रीत से हुआ।
प्रीत ने लतिका को देखकर एक फीकी सी मुस्कान दी, लेकिन लतिका के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं था। वो प्रीत को ऊपर से नीचे तक देखने लगी।
साड़ी पहने हुए, प्रीत उसके सामने एक शादीशुदा लड़की की तरह बैठी थी।
लतिका ने अभिनव की तरफ देखते हुए कहा, "अभिनव, ये तुम्हारी नई असिस्टेंट है क्या? कमाल है, अब तो तुम मैरिड वुमन्स को भी हायर करने लगे हो!"
प्रीत चौंक गई, लेकिन दादी ने जल्दी से लतिका के कंधे पर थपकी देते हुए कहा, "चुप कर पागल लड़की! कुछ भी बोले जा रही है। ये कोई असिस्टेंट नहीं है... बल्कि फैमिली मेंबर है। ये अभिनव की बीवी है और इस घर की बहू — मिसेज प्रीत दीवान!"
लतिका ने जैसे ही ये सुना, उसका मुंह खुला का खुला रह गया और आंखें एकदम फैल गईं।
वो तेजी से चिल्लाते हुए अभिनव को देखकर बोली, "क्या! अभी तुमने शादी कर ली? लेकिन ऐसा कैसे? और मुझे कुछ बताया क्यों नहीं? तुम शादी कैसे कर सकते हो, जबकि हमारी फैमिली ने तो डिसाइड किया था कि मेरी स्टडी पूरी होने के बाद तुम मुझसे शादी करोगे!"
*