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बेखुदी – Pain of promise

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⭐᭄ᴄɪɴᴅᴇʀᴇʟʟᴀ࿐ The Dre@me®

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ये कहानी है देव और आरना की जो बहुत मुश्किल से अपने घरवालों को अपनी शादी के लिए मनाते हैं सब कुछ ठीक होता है लेकिन फिर न जाने अचानक क्या होता है कि दोनों के रिश्ते में दूरियां बढ़ती जाती हैं और जो लोग उनके प्यार को देखते थें वो भी कम होता चला जाता है...

Total Chapters (32)

Page 1 of 2

  • 1. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 1

    Words: 1017

    Estimated Reading Time: 7 min

    आधी रात का वक्त था,एक बड़ा सा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था घर के सारे लोग अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थें...ऐसा लग नहीं रहा था कि उस घर में शादी हुई है।
    घर के फर्स्ट फ्लोर के एक कमरे में एक तेईस साल की लड़की दुल्हन का जोड़ा पहने घूंघट ओढ़े सुहाग के सेज पर बैठी हुई थी...
    बीच बीच में वो सामने की दीवार पर लगी घड़ी में समय देखती फिर दरवाज़े की तरफ जो अभी तक खुला नहीं था...
    उसने उकता कर घूंघट ऊपर उठाया और कमरे को गौर से देखने लगी... हालांकि वो यहां पहले भी एक दो बार आ चुकी थी मगर आज वहां दुल्हन के रूप में बैठना उसके मन को गुदगुदी कर रहा था...रात के इस वक्त भी लाइट जल रही थी कमरा खूबसूरती से सजाया गया था...बड़ा सा कमरा जिसमें हर आराम और आशाइश की चीज़ मौजूद थी...
    उसने मुस्कुरा कर कमरे को देखा और खुशी से बोली,"यक़ीन नहीं हो रहा है कि मेरी शादी तुमसे हो चुकी है... सालों का प्यार मुझे मिल गया है और...और अब हम दोनों पति पत्नी हैं"...उसने बिस्तर पर पड़े हुए गुलाब की पंखुड़ियों को प्यार से उठाया और उन्हें छू कर मुस्कुराते हुए कुछ नए ख़्वाब बुनने लगी...
    तभी दरवाज़ा खुलने की आहट हुई उसने जल्दी से घूंघट नीचे किया और सीधा हो कर बैठ गई...
    धीमी क़दमों की चाप उसे धीरे धीरे अपनी तरफ बढ़ते हुए सुनाई दे रहे थें...बढ़ती क़दमों की आहट उसके दिल की धड़कन को धीरे धीरे बढ़ा रहे थें...
    आख़िर में कदमों की आहट उसके नज़दीक आ कर रुक गई,उसने आँखें बंद कर लीं और फिर धीरे से उसका घूंघट उठाया गया...

    घूंघट उठने के बाद वहां कुछ देर ख़ामोशी फैली रही...

    "अरु..."...आने वाले ने प्यार से उसका नाम लिया... उसकी पलकों में हलचल हुई...उसका चेहरा खिल उठा...

    "एक बार मेरी तरफ देखो तो सही"...उसने फिर से कहा तो आरना उर्फ़ अरु ने अपनी आँखें खोल कर उसे देखा...
    आँखों में न जाने कितने ख़्वाब थें...
    बेहद प्यार से उसने अपने सामने बैठे शख़्स को देखा मगर उसकी नज़र खुद पर टिकी देख कर वो शरमा गई और चेहरा दूसरी तरफ घुमा कर धीरे से बोली,"प्लीज देव अब बस भी करो"...

    देव हँस दिया और आगे बढ़ कर उसके कमर पर हाथ रखा और बेबाकी से उसे अपनी तरफ खींच कर बोला,"अभी तो ये शुरुआत है बाबू..."...
    आरना ने हैरानी से उसे देखा और छूटने की कोशिश करती हुई बोली,"पागल आदमी...पहले मुंह दिखाई दो फिर पास आना समझे"...

    "अच्छा जी... मैं मिल गया ये काफ़ी नहीं है"...देव ने उसके गाल को चूमते हुए कहा...आरना उसे धक्का दे दिया और खुद का लहंगा समेटते हुए बोली,"बिल्कुल भी नहीं चलो मेरी मुंह दिखाई दो"...उसने अपने हाथ आगे किए... देव ने मुस्कुरा कर जेब से एक छोटा सा बॉक्स निकाल कर उसकी हथेली पर रख दिया...
    आरना ने जल्दी जल्दी बॉक्स खोला... उसमें छोटा सा डायमंड का एक रिंग था वो हैरानी से बोली,"ये तो डायमंड है देव"...
    देव अब उसके बगल में बैठ गया और उसे प्यार से देखते हुए बोला,"मेरे चांद के सामने ये हीरा कुछ भी नहीं"...

    आरना के गाल लाल हो गए...उसने पलकें झुका लीं देव ने उसकी हथेली को अपनी उंगलियों में बांधते हुए प्यार से कहा,"यक़ीन नहीं हो रहा है हम सच में आज एक हो गए हैं"...

    "मुझे भी ऐसा लग रहा है जैसे मैं कोई सपना देख रही हूं"... आरना भी कुछ सोच कर मुस्कुरा दी...
    देव ने अब उसकी गोद में सिर रख दिया और उसके चेहरे को एकटक देखते हुए बोला,"सपना नहीं हक़ीक़त में अब हम दोनों एक दूसरे के साथी हैं हाँ थोड़ी मुश्किल ज़रूर हुई अपनों को मनाने में लेकिन हमारी कोशिश ने हमें एक कर दिया"...
    उसकी बात सुन कर आरना का चेहरा उतर गया...उसने गंभीर हो कर कहा,"लेकिन देव मुझे लग रहा है तुम्हारे घरवाले अभी भी मुझे एक्सेप्ट नहीं कर पाए हैं"...

    देव ने उसके हाथ को कस कर पकड़ लिया,"लव मैरिज की है अरु...थोड़ा तो समय लगेगा सबको"...

    "हूं शायद"...

    "मुझे पूरा विश्वास है कि तुम अपने व्यवहार से सबको अपना बना लोगी जैसे मुझे बनाया था"... देव ने बात बदलने की कोशिश की तो आरना खामोश रही...

    "अब तुम उनके इकलौते बेटे को ले उड़ी हो इतनी तो नाराज़गी बनती हैं उनकी"... देव ने मज़ाक में कहा लेकिन न जाने आरना को ये बात चुभ गई...उसने उस वक्त कुछ नहीं कहा क्यूं कि आज शादी की पहली रात वो किसी तरह का तमाशा नहीं चाहती थी...
    देव ने भी बात बदली और उसके चेहरे को प्यार से छूते हुए बोला,"आज बहुत खूबसूरत लग रही हो अरु!"...

    "सच बोल रहे हो?"...

    "दिल से सच कह रहा हूं...जब तुम्हें वरमाला के वक्त देखा था न तो ऐसा लगा जैसे मेरे ख्वाबों वाली राजकुमारी मेरी तरफ़ कदम बढ़ा रही है"...देव अब उठ कर बैठ गया और उसकी हथेली को मसलने लगा...
    आरना के शरीर ने झुरझुरी ली मग़र आज देव का छूना उसे अच्छा लग रहा था...

    उसी घर के दूसरे कमरे में एक अड़तालिस साल की औरत पलंग के सिरहाने गुमसुम बैठी हुई थी... उसके आसपास तीन लड़कियां बैठी हुई थीं शायद उनकी बेटियां थीं... उनमें से एक शादीशुदा थी जिसकी गोद में एक दो साल की बेटी भी थी...उसने नाराज़गी से कहा,"माना कि लव मैरिज है लेकिन कम से कम नेग तो दिल खोल कर देना था न मम्मी ये क्या पांच हज़ार रुपए दिए हैं"...

    "हाँ मम्मी...मेरी दोस्तों ने भी कितना मज़ाक उड़ाया मेरा की भईया तो भाभी आते ही बदल गए"...सबसे छोटी वाली ने भी तुनक कर कहा...
    उस औरत ने एक गहरी साँस ले कर कहा,"क्यूं परेशान हो रही हो जो हो गया सो हो गया...अब भाई ने पसंद की करनी थी तो कर ली...अब हम सबको एडजस्ट करना ही पड़ेगा"...

    "ये क्या कह रही हो मम्मी"...बड़ी वाली ने हैरानी से कहा...वो औरत अब रुआंसी हो गई,"इसके कहने और ये सब करने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं है न बेटा ही जब हाथ से निकल गया तो क्या कर सकते हैं चलो अब सो जाओ...सुबह उठ कर काम बहुत है"...और वो अब उन तीनों को किनारे कर खुद सो गईं धीरे धीरे वो तीनों भी अपनी अपनी जगह पर जा कर लेट गईं...


    जारी है...

  • 2. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 2

    Words: 1029

    Estimated Reading Time: 7 min

    आरना के शरीर ने झुरझुरी ली मग़र आज देव का छूना उसे अच्छा लग रहा था..लेकिन कुछ वक्त के बाद आरना ने अपने हाथ पीछे खींचते हुए उबासी ली,"देव मुझे नींद आ रही है"...
    देव ने हैरानी से कहा,"तुम्हें आज की रात भी सोना है"...

    "हाँ... क्यूँ आज की रात सो नहीं सकते हैं कोई रुकावट है क्या?"...आरना अब लेट गई उसे सोता देख कर देव ने मुँह बनाते हुए कहा,"अरु...आज सुहागरात है हमारी कम से कम आज तो मत शरारत करो"...

    "मैं शरारत नहीं कर रही हूं देव शादी की रस्मों ने मुझे बुरी तरह थका दिया है"... आरना उसकी तरफ पलट कर बोली...
    देव ने भी ज्यादा ज़िद नहीं की,"अच्छा ठीक है चलो कपड़े तो बदल लो"...

    "हूं कर लेती हूं"...लेकिन आरना की आँखें नींद से इतनी बोझिल हो रही थीं कि उठने का दिल नहीं चाह रहा था... देव ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया और उसकी ट्राली से उसके कपड़े निकाल कर उसे दे दिए... आरना ने प्यार से उसे देखते हुए कहा,"मैं सच में बहुत लकी हूं देव की तुम मुझे मिल गए"...

    आरना की बात पर उसने आरना के कमर पर हाथ रख कर उसे अपनी तरफ़ खींचा और उसके माथे को चूम कर बोला,"तुम्हारा पता नहीं लेकिन तुम्हें पा कर मैं ख़ुद को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान समझता हूं"...
    आरना ने प्यार से उसके कंधे पर सिर रख दिया,"हमने प्यार किया और एक दूसरे को पा भी लिया और देखना हमारा प्यार मिसाल बनेगा सबके लिए"...

    "हाँ... अरु...देखना... मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा... तुम्हें हर वो खुशी दूंगा जो तुम सोचती हो जो तुम चाहती हो... तुम्हें कभी रोने नहीं दूंगा...इतना प्यार करूंगा कि लोग जलेंगे तुमसे की उन्हें भी कोई ऐसे ही प्यार करता"... देव ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा आरना कि आँखें झिलमिला गईं,"सच कह रहे हो देव!"...

    "हाँ अरु...दिल की बातें हैं ये सब"... आरना ने उसे कस कर गले लगा लिया...
    देव के गले लग कर आरना की नींद जाती रही...
    रात की तन्हाई, और सुहाग की सेज उस पर देव की प्यार भरी बातों से आरना देव की बाहों में समा गई...
    आरना के जिस्म की खुशबू ने देव के सोए अरमान जगा दिए उसने आरना के कमर को धीरे धीरे प्यार से सहलाना शुरू कर दिया...
    आरना उसकी इस हल्की से छुअन से पिघलने लगी... मदहोशी से आरना की आँखें बंद होने लगीं, देव उसके कमर को सहलाते हुए धीरे धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगा...आरना ने आज उसको रोकने की कोशिश नहीं की उसकी साँसें अब बेचैनी से तेज़ चलने लगीं देव ने धीरे से उसे खुद से अलग किया और उसके चेहरे को बेहद नशीली नजरों से देखा और उसके होंठों को चूमने लगा... आरना ने भी उसे कस कर बाहों में जकड़ लिया और उसका साथ देने लगी...
    देव ने अब उसको खुद से दूर किया और उसे पलट कर उसकी पीठ को ख़ुद के सीने से लगा लिया...
    आरना की सिसकियां तेज़ हो गईं देव उसकी बेचैनी देख कर मुस्कुराया और अब वो आरना के कंधे को अपने होंठों से चूमने लगा...
    तभी घड़ी ने तीन बजाए और दोनों ने चौंक कर एक साथ घड़ी को देखा...

    आरना ने हैरानी से कहा,"देव...तीन बज गए हैं यार और हम अभी तक जगे हुए हैं"...

    "तो क्या हुआ आज तो पूरी रात न भी सोएं तो चलेगा"... देव ने उसे अपनी बाहों में जकड़ा आरना ने अपनी कोहनी से उसे धक्का दिया और बेड से नीचे उतरते हुए बोली,"मैं ससुराल में पहले दिन ही लेट नहीं जागना चाहती"...
    देव ने सिर खुजलाते हुए उसे देखा...

    "मुंह मत बनाओ...चलो हटो मैं कपड़े बदल कर आती हूं"...आरना ने अपनी ट्रॉली से एक ढीला कपड़ा निकाला और बाथरूम में घुस गई...
    देव भी मन मार कर उठा और अपने कपड़े बदल कर वहीं बिस्तर पर लेट गया...

    कुछ देर बाद आरना आई और वो भी उसके बगल में लेट गई...ये देख कर देव ने उसे ज़ोर से अपनी तरफ़ खींच कर प्यार से कहा,"मेरे कंधे पर सिर रख कर सो तो सकती हो"...

    "तुम्हारे कंधे में दर्द हो जाएगा"... आरना दूर हुई तो देव ने उसे खुद से चिपका कर आँखें बंद करते हुए कहा,"कुछ नहीं होगा...चलो अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो"...आरना ने मुस्कुरा कर उसे देखा और अब खुद भी अपना हाथ उसके सीने पर रख कर सोने की कोशिश करने लगी...
    रस्मों और शादी को थकावट से दोनों को जल्दी ही नींद आ गई...

    सुबह उनकी नींद किसी के दरवाज़ा पीटने से खुली... आरना ने कसमसा कर आँखें खोलीं, सामने दीवार पर लगी घड़ी पर नज़र गई तो उछल कर बैठ गई... सुबह के नौ बज रहे थें और वो जग नहीं पाई थी...
    उसने देव को जबरदस्ती जगाया,"उठ जाओ... नौ बज गए हैं"...
    दरवाज़ा पीटने की आवाज़ तेज़ हो गई थी इसलिए देव भी जग गया...उसने जल्दी से आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला तो उसकी बड़ी बहन सोनल उसे नाराज़गी से देख रही थी...उसने बेड पर सोई आरना को देखा और बेहद नाराज़गी से बोली,"घर में बड़े छोटों का लिहाज़ भूल गए हो क्या... नौ बज गए हैं और तुम दोनों अभी तक चादर ताने सो रहे हो...अरे बच्चों पर क्या असर पड़ेगा"...
    आरना को इसी बात का डर था...वो अब तक बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गई थी देव ने सोनल को टालते हुए कहा,"रात को बातों में...!"...

    उसकी बात पूरी होने से पहले ही सोनल ने तीखे अंदाज़ में कहा,"बिल्कुल बेशर्म ही हो क्या...अब तो बहाने न बनाओ लव मैरिज कर के पहले ही हमारी नाक कटवा दी है अब क्या तमाशा बनाना बाकी रह गया...और तुम भी तैयार हो कर नीचे आ जाओ मुंह दिखाई के लिए मेहमान आने वाले हैं"...
    आरना ने हाँ में सिर हिलाया... सोनल वहां से चली गई तो देव ने बेचारगी से आरना की तरफ़ मुस्कुरा कर देखा... आरना भी जबरन मुस्कुराई और शॉवर लेने बाथरूम में घुस गई...
    वो नहा कर आई और अपने पहनने के लिए कपड़े निकालने लगी...

    आज मुंह दिखाई के लिए उसे साड़ी पहननी थी लेकिन उसे साड़ी पहनने आती नहीं थी उसने जल्दी से यूट्यूब खोला और उसमें से देख कर साड़ी पहनने लगी...इसकी वजह से उसे साड़ी पहनने में ही सिर्फ एक घंटा लग गया।
    देव तब तक नहा कर बाहर चला गया था वो भी बाहर आ गया

    क्रमशः

  • 3. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 3

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    देव तब तक नहा कर बाहर चला गया था वो भी बाहर आ गया।
    उसने आ कर अपनी माँ के पांव छुएं तो उन्होंने बेहद अनमने ढंग से उसके सिर पर हाथ रखा,उसकी दोनों बहनें सरिता और संध्या भी उन्हीं के पास थीं...

    "माँ नाराज़ हैं क्या?"... देव ने लाड से कहा...उसकी माँ कुसुम देवी ने कातर नजरों से उसे देखते हुए कहा,"तुझे मेरी नाराज़गी की इतनी परवाह कब से होने लगी!"...

    "माँ... शादी हो चुकी है अब क्यूँ बात को बढ़ाना"... देव ने चिढ़ कर कहा उसकी माँ को ये बात चुभ गई उन्होंने देव का हाथ झटकते हुए कहा,"उस कल की लड़की के लिए तुम अपनी माँ को बातें सुना रहे हो वाह...वो लड़की अब हम सबसे ज्यादा चहीती हो गई तेरी!"...
    देव ने अपना सिर पकड़ किया फिर एक लम्बी साँस ले कर बोला,"ऐसा नहीं है माँ...मेरे लिए आप हमेशा से ऊपर थीं और आगे भी रहेंगी लेकिन अब शादी हो चुकी है...आप अपनी नाराज़गी खत्म कर के हम दोनों को दिल से आशीर्वाद दीजिए...आपके आशीर्वाद के बिना हम दोनों खुश नहीं रह पाएंगे"...
    कुसुम जी ने सरसरी अंदाज़ में हाँ में सिर हिला दिया...

    इधर आरना साड़ी पहनने की कोशिश कर रही थी लेकिन उससे हो नहीं पा रहा था उसने परेशान हो कर अपनी माँ को फोन घुमा दिया...शादी के दूसरे दिन ही इतनी सुबह सुबह आरना की कॉल देख कर उसकी माँ लता देवी भी परेशान हो गईं... फोन उठाते ही उन्होंने चिंतित स्वर में कहा,"क्या हुआ आरना...सब ठीक तो है?"...

    वो झिल्ला कर बोली,"मुझे साड़ी पहनना क्यूं नहीं सिखाया आपने"...
    लता जी मुस्कुरा उठीं,उन्होंने हँसते हुए कहा,"तुने तो मुझे डरा ही दिया था... देव की बहन को बोल दे पहना देगी"...
    आरना का चेहरा उतर गया,"नहीं माँ...वो तो सही से बात भी नहीं कर रही हैं डर लग रहा है"... बोलते हुए वो रुआंसी हो गई...उसकी माँ ने उसे समझाते हुए कहा,"आरना तुमने लव मैरिज की है बेटी,इतना तो तुम्हें झेलना ही पड़ेगा...अब इसमें हम क्या कर सकते हैं"...

    आरना चुप हो गई, ख़िलाफ़ तो उसके माँ बाप भी थें उसकी ज़िद की वजह से मान गए वरना वो भी तो अपनी ही जाति में करना चाहते थें उसकी शादी...
    आरना ने कुछ कहे बगैर कॉल रख दिया...आखिर में उसने देव को कॉल कर के प्रॉब्लम बताई...
    देव ने सोनल को देखते हुए कहा,"दीदी...सुनो न!"...

    "हाँ...बोल"...सोनल मेहमानों के आने की तैयारी में लगी हुई थी,देव ने झिझकते हुए कहा,"वो आरना को साड़ी पहननी नहीं आती है...आप अगर हेल्प कर दो तो"...
    सोनल ने तीखी नजरों से उसे देखा और सिर्फ हाँ में सिर हिला कर ऊपर देव के कमरे में चली गई...
    अंदर कमरे में आरना साड़ी में बुरी तरह उलझी हुई थी,उस देखते ही ठिठक गई...
    सोनल आते ही साड़ी की प्लेटें सही करने लगी और ताना देते हुए बोली,"कॉलेज में चक्कर चलाने की जगह घर गृहस्थी चलाना सीख लिया होता तो आज मुझसे मदद मांगनी न पड़ती"...
    आरना जानती थी कि इस तीखे अल्फ़ाज़ का सामना करना पड़ेगा इसलिए ख़ामोश रही...सोनल ने कुछ मिनिटों में ही उसे साड़ी पहना दी और आखिरी पिन लगाते हुए बोली,"मेकअप कर लेना...वो तो बहुत अच्छे से आता होगा तुम्हें, आख़िर उसी से तो तुमने मेरे भाई को रिझाया है"...
    आरना ने कड़वा घूंट पिया आँखों गरम पानी आ कर जमा हो गया जिसे उसने अंदर धकेला...उसके जाने के बाद उसने भारी मन से मेकअप किया...
    थोड़ी देर में बुलावा आ गया,उसने बड़ा सा घूंघट डाला और हॉल में बैठ गई...
    मुंह दिखाई की रस्म शुरू हुई सबने तोहफ़े दिए और आरना की खूबसूरती की सबने तारीफ़ की मगर कुसुम जी का चेहरा खिल नहीं सका।
    दोपहर से बैठे बैठे शाम हो गई और आरना कुछ खाए पीए बग़ैर बैठी रही किसी ने उससे कुछ पूछना तक ज़रूरी नहीं समझा।
    सर्व मेहमान के जाने के बाद आरना को उसके कमरे में भेज दिया गया,आते ही उसने घूंघट किनारे धकेला और पानी पी कर खुद को शांत करने लगी...
    बहुत रोना आ रहा था उसे लेकिन उसे मज़बूत रहना था... देव ने बहुत विश्वास दिखाया था उस पर उसे अपने व्यवहार से घरवालों का दिल जीतना ही था इसलिए वो मजबूत बनने की कोशिश कर रही थी...

    इसे बैठे कुछ देर हुए होंगे कि देव अंदर आ गया, आरना ने बुझे मन से उसे देखा...उसके हाथ में खाने की थाली थी...उसे देखते ही आरना की सारी उदासी दूर हो गई...
    देव ने प्लेट उसके सामने रखते हुए प्यार से कहा,"भूख लगी होगी न?"...

    आरना ने न में सिर हिलाया तो देव ने प्यार से उसे देखा और उसकी तरफ एक निवाला बढ़ाते हुए बोला,"झूठ न बोलो अरु... मैं जानता हूं बिना खाए पिए बैठी थी तुम रस्म में... मैं सुबह से देख रहा हूं समझी"...

    "तुम्हें ध्यान था?"... आरना ने हैरानी से कहा...

    देव ने हाँ में सिर हिलाते हुए अपने हाथ से खाना खिलाया...आरना को लगा उसकी सारी उलझन खत्म हो गई,सबकी नाराज़गी एक तरफ़ और देव का उसके लिए प्यार एक तरफ़...उसने मुस्कुराते हुए कहा,"तुम्हारा प्यार साथ हो तो मैं हर जंग जीत सकती हूं"...
    देव ने मुस्कुरा कर उसे देखा... खाना खा कर उसने आरना का सिर खुद की गोद में रखा और उसे थपकी देने लगा...आरना को इतना सुकून महसूस हुआ कि उसकी आँख लग गई...देव ने प्यार से उसके माथे को चूमा और उसे धीरे से बेड पर सुला कर बाहर चला गया...
    उसने बाहर काम देखें और जो हिसाब करना था वो हिसाब करने लगा...
    देव शर्मा, कुसुम शर्मा और रंजीत शर्मा का इकलौता बेटा और तीन बहनों का इकलौता भाई...पिता तो कुछ साल पहले हार्ट अटैक की वजह से चल बसे तब से उसकी माँ ने ही उसकी पढ़ाई और डिग्री का खर्च उठा रही थी...
    ग्रेजुएशन में उसकी मुलाक़ात आरना सिंह से हुई, जाति अलग अलग थी लेकिन दोनों के दिल जल्दी ही मिल गए...ग्रेजुएशन के बाद दोनों ने अलग अलग सब्जेक्ट्स से मास्टर्स किया लेकिन उनका प्यार दिन पर दिन बढ़ता गया बाद में देव की जॉब लग गई और आरना के घरवाले भी उसके लिए रिश्ता देखने लगा...
    मौका देख के देव ने अपनी माँ को मनाया और आरना का रिश्ता ले कर उसके घर भेज दिया...
    बहुत मुश्किलों के बाद दोनों के घरवाले मान गए... आरना के घरवाले जाति अलग होने की वजह से थोड़े नाराज़ थें वरना उनकी तरफ़ से की दिक्कत नहीं थी लेकिन देव की माँ कुसुम देवी ने अपने बेटे की शादी में जो लाखों का दहेज़ लेने का सोचा था उसका ख़्वाब टूट गया जिसकी वजह से आरना अब उनके आँखों की चुभन बन गई थी...


    क्रमशः...

  • 4. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 4

    Words: 1361

    Estimated Reading Time: 9 min

    आरना सोई तो उसकी रात आठ बजे के क़रीब खुली, पहले उसका दिमाग़ बिल्कुल खाली रहा लेकिन तुरंत ही उसे एहसास हुआ कि उसकी तो शादी हो चुकी है और वो मुँह दिखाई के बाद वो खाना खा कर सो गई...
    वो बहुत परेशान हो गई,कल ही शादी हुई है और उससे ग़लती पर ग़लती हो रही थी...
    आज सुबह देर से जगी और अब शाम में भी सो गई...
    इस बीच क्या हुआ कौन आया कमरे में,सब क्या सोच रहे होंगे उसके बारे में उसकी सास और नन्द तो पहले ही उसे पसंद नहीं कर पा रही हैं ऐसे करेगी तो वो उसे कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाएंगी। यही सोच सोच कर वो परेशान हो गई और वो सुबकने लगी...

    देव हिसाब कर के और काम देख कर अंदर आया तो बहुत देर हो चुकी थी, अंधेरा गहरा रहा था और घर भी मेहमानों से खाली हो गया था...
    सोनल शाम की चाय बना रही थी उस देखते ही बोल पड़ी,"तुम भी चाय पियोगे?"...
    देव भी थक गया था उसे सच में चाय की तलब महसूस हो रही थी हाँ बोल कर वो भी वहीं सोफे पर बैठ गया...
    सोनल ने सबको चाय के साथ टोस्ट भी दिया देव कुछ कहे बगैर चाय के साथ टोस्ट खाने लगा...
    कुसुम जी सामने के ही सोफे पर बैठी हुई थीं उन्होंने देव को देखते हुए कहा,"छुट्टी कब तक है तुम्हारी?"...

    "एक सप्ताह और बचे हैं माँ"...देव लापरवाही से बोला... ये सुनते ही कुसुम जी से पहले सोनल बोल पड़ी,"इतनी लम्बी छुट्टी क्यूं ले रखी है तूने?"...

    देव ने अब उकता कर उन दोनों को देखा,"क्या मतलब क्यूं ले रखी है शादी हुई है मेरी... मैं और आरना कुछ दिन घूमने जायेंगे"...

    "क्या मतलब घूमने जायेंगे?"...कुसुम जी ने आँखें तरेर कर उसे देखा...

    "नई नई शादी में सब घूमने जाते हैं माँ...अब शादी बार बार तो नहीं होती है न अभी ही तो एंज्वॉय करेंगे"...देव ने कहा तो सोनल और कुसुम जी भड़क उठीं सोनल ने बौखला कर कहा,"तु बिल्कुल तमीज़ लिहाज़ सब कुछ भूल गया है...पहले तो अपनी मनमर्ज़ी की शादी कर के अपनी चला ली... रिश्तेदारों को ज़वाब तो हमने दिया और अब घूमने जाएगा ताकि लोग और बातें बनाएं"...

    "लोगों की वज़ह से मैं अपनी लाइफ न जीऊं"...देव भी भड़क उठा मगर कुसुम जी और सोनल पर कोई असर नहीं हुआ,कुसुम जी चिल्लाई तो नहीं लेकिन दबी आवाज़ में बोलीं,"तुम दोनों कहीं नहीं जाओगे,उसे बोल दो कल घर में उसकी पहली रसोई होगी कल से सारा काम उसे ही करना है"...
    देव का सारा मूड खराब हो चुका था वो बहस आगे नहीं बढ़ाना चाहता था इसलिए कोई ज़वाब दिए बग़ैर ही कमरे में आ गया...
    वो कमरे में आया तो आरना रो रही थी,एक तो बाहर उसका मूड ख़राब था ऊपर से आरना का रोना वो बुरी तरह चिढ़ गया...
    "तुम्हें क्या हो गया है अब क्यूँ रो रही है"...वो बेहद रुखाई से बोला आरना ने चौंक कर उसे देखा उसकी उकताहट उससे छुपी नहीं रह सकी थी...उसने अपने आंसू पोंछते हुए ना में सिर हिला कर कहा,"कुछ नहीं बस घर की याद आ गई थी"...

    "तुम की छोटी बच्ची नहीं हो आरना,घर की याद आ रही है तो बात कर लो ये रो कर क्या हो जाएगा"...देव ने अपनी माँ के गुस्से की भड़ास आरना के ऊपर निकाल दी आरना उसका अंदाज़ कर हैरान थी,अभी शादी हुए एक दिन ही हुए थें और देव उससे ऐसे बात कर रहा था उसका मन बुरी तरह टूट गया...उसका रोना कम होने की जगह और बढ़ गया...
    देव को अब अपनी ग़लती का एहसास हुआ,उसने ख़ुद को कोसते हुए आरना को अपनी तरफ़ खींचा...
    आरना ने रोते हुए उसे धक्का दे दिया मगर देव नहीं माना उसने फिर से आरना के क़मर पर हाथ रख कर उसे खुद के करीब कर लिया और नरम लहज़े में बोला,"सॉरी अरु...बाहर मम्मी की वज़ह से मूड खराब था सारा गुस्सा तुम पर निकल गया"...

    "इसमें मेरी क्या ग़लती थी...अभी शादी हुए एक दिन हुए हैं और तुम बदलने लगे"... आरना ने रोते हुए शिकायत की... देव ने उसकी ठोड़ी को धीरे से छूते हुए कहा,"मैं बदला हूं जान...बस मूड ख़राब था और तुम्हें रोता देखा तो रोक नहीं सका खुद को"...

    "वादा करो आज के बाद मुझ पर ऐसे नहीं चिल्लाओगे"...

    "वादा मेरी जान"... देव ने उसके होंठों को चूम लिया...
    आरना ने चिढ़ कर उसे खुद से दूर करना चाहा, देव ने अपनी पकड़ और मजबूत कर दी...
    आरना ने अब नाराज़ होने का नाटक करते हुए कहा,"छोड़ो मुझे!"...

    "नहीं छोडूंगा"...

    "क्यूं?"...

    "क्यूं कि तुम्हें ऐसे खुद के क़रीब रखना अच्छा लगता है"...

    आरना ने टेढ़े मेढ़े मुंह बनाए,"झूठे कहीं के"...

    "मैं तुमसे झूठ नहीं बोलता"...

    "जानती हूं"... आरना इतराई थी इस बात पर...

    "फिर...!"...

    "कुछ भी नहीं"...

    "बाहर चलोगी... लॉन्ग ड्राइव पर!"

    "इस वक़्त?"...

    "हाँ...शादी से पहले भी तो जाते थें"...देव ने बोलते हुए उसके चेहरे पर किस की बरसात कर दी... आरना ने फिर झूठी नाराज़गी जताई,"आंटी और दीदी गुस्सा करेंगी"...

    "नहीं करेंगी...तुम बस रेडी हो जाओ"...देव ने अब उसे दूर किया...
    आरना खुद को देखते हुए बोली,"रेडी तो हूं"...

    "ऐसे नहीं जान... जाओ कोई हल्की सी ड्रेस पहन लो ये बहुत हैवी है तब तक मैं बाहर का माहौल देख कर आ रहा हूं"...

    "ओके...!"... आरना तैयार होने लगी और देव बाहर चला गया...
    बाहर आया तो सब अभी भी वहीं थें
    दोनों छोटी बहनें अपने अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थीं और सोनल अपनी माँ के पास बैठी बातें कर रही थी...
    देव को देखते ही वो दोनों खामोश हो गईं...

    "वो आरना के पेट में दर्द है तो उसे ज़रा डॉक्टर के पास ले जा रहा हूं"... देव ने झूठ बोला...

    "घर पर दवाई है खिला दो"... कुसुम जी ने रुखाई से कहा...

    "नहीं माँ...उसे जल्दी कोई दवाई सूट नहीं करती उसे रिएक्शन होता है"...देव ने एक और झूठ कहा जबकि ऐसा कुछ नहीं था...
    ये सुनते ही सोनल तपाक से बोली,"कैसी बीमारी है उसे?"...

    देव ने अब गुस्से से कहा,"बीमारी नहीं है उसे कोई भी... मैं उसे ले कर जा रहा हूं थोड़ी देर में आता हूं"...और अंदर चला गया दोनों माँ बेटी एक दूसरे का मुंह देखती रह गईं..
    वो अंदर आया तो आरना तैयार थी,उसने आरना को सब कुछ समझाया और उसे ले कर बाहर आया...
    आरना ने चोर नजरों से सोनल और कुसुम जी को देखा वो दोनों भी उसे ही देख रही थीं...
    वो दोनों आगे बढ़ें तो कुसुम जी तीखे स्वर में बोलीं,"जल्दी आना"...

    "जी माँ!"... और दोनों वहां से निकल गए...

    बाहर आ कर आरना का मूड बहुत बेहतर हो गया था... देव ने उसे आइसक्रीम खिलाई और उसे गोलगप्पे भी खिलाएं...वापसी में देव उसे उसके घर यानी मायके भी ले गया जहां जा कर उसकी हर टेंशन दूर हो गई...
    वापसी पर वो बहुत खुश थी ये देख कर देव ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे प्यार से निहारते हुए बोला,"अब अच्छी लग रही हो खुश खुश"...

    "थैंक यू"... आरना ने भी प्यार से कहा...

    "थैंक यू की कोई जरूरत नहीं अरु... मैं बस तुम्हें खुश देखना चाहता हूं"...उसने कहा तो आरना थोड़ा सा खिसक कर उसके क़रीब आ गई और उसके कंधे पर सिर रख कर आराम से बैठ गई...

    "जानती हो... मैं वो हर ख़्वाब पूरा करना चाहता हूं जिसके वादे हमने शादी से पहले किए थें"...देव कार ड्राइव करते हुए बोला...

    "मैं भी वो सब जीना चाहती हूं"...

    "मैं चाहती हूं कि तुम ऐसे ही हमेशा मेरे साथ रहो प्यार से और ये प्यार दिन पर दिन गहरा होता जाए"...

    "ऐसा ही होगा मेरी जान"...
    आरना मुस्कुरा दी...
    वो लोग घर पहुंचे तो सब खाना खा चुके थें और अपने अपने कमरे में चले गए थें...
    आरना और देव तो बाहर से ही खा कर आए थें इसलिए वो भी बेफिक्र थें...

    कमरे में आ कर आरना कपड़े बदलने चली गई और देव भी कपड़े बदल कर आरना का इंतजार करने लगा क्यूं कि आज वो अपने और आरना के बीच की दूरी मिटा देना चाहता था...
    सात साल इंतजार किया था उसने इन पलों को जीने के लिए,वो सात साल साथ रहें लेकिन दोनों ने कभी अपनी मर्यादा पार नहीं की थी मगर अब देव हर बंधन तोड़ देना चाहता था...
    आरना बाहर आई तो ठिठक कर रुक गई क्यूं कि देव बिस्तर से नीचे खड़ा उसे ही देख रहा था...

    क्रमशः...

  • 5. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 5

    Words: 1221

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरना बाहर आई तो ठिठक कर रुक गई क्यूं कि देव बिस्तर से नीचे खड़ा उसे ही देख रहा था...
    आरना उसकी नजरों से नज़रें मिला कर बोली,"क्या देख रहे हो?"...

    देव अब एक एक कदम आगे बढ़ रहा था और उसी तरह चलते हुए बोला,"अपनी क़िस्मत को!"...

    "अच्छा...!"...

    "कैसी है क़िस्मत?"... आरना ने पूछा...

    "बहुत खूबसूरत...तुम्हारी सूरत की तरह"...

    आरना धीरे से खिलखिला कर हँस दी,उसकी हँसी पर देव ने कहा,"बिल्कुल तुम्हारी इस खनकती हँसी की तरह"... आरना प्यार से उसे देखती रह गई...

    "तुम थोड़े से पागल हो?"... आरना ने अपनी तारीफ सुन कर मुंह बनाया...

    "तुमने ही किया है"...

    "झूठे...!"...

    "तुम्हारी कसम... सिर्फ तुम्हारे लिए पागल हूं"...

    "हमेशा रहोगे?"...

    "आखिरी साँस तक"...

    "अच्छा... और मैं तुमसे पहले मर गई तो"...

    "जान ले लूंगा मैं अपनी"...

    "देव...!"... आरना डर कर बोली...
    देव अब उसके बिल्कुल नज़दीक आ गया था,"घबरा क्यूं गई?"...

    "तुम्हारी बात सुन कर"... आरना का गला रूंध गया...देव ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर कर तड़पते हुए कहा,"तुम्हारे आंसू मेरी जान से ज्यादा कीमती है अरु... यूं गिरा कर मुझे मारा मत करो"... आरना बस उसे देखती ही रह गई...

    "तरस खाया करो मुझ पर"...देव ने उसके आंसू पोंछे... और अपने दोनों हाथ आरना के कंधे पर रख कर मदहोश आवाज़ में बोला,"वक़्त ने बहुत खूबसूरत वक्त दिया है मुझे,तुम जैसा हमसफर मेरी क़िस्मत में लिख कर रब ने मुझे भी खुशनसीब बना दिया है इन पलों को यूं जाने न दो डूब जाओ इस पल में और मुझे आज तुम में समा जाने दो"...उसने आरना के चेहरे को एक उंगली से सहलाया तो आरना की आँखें बंद हो गईं।

    देव ने अब उसके दोनों बाजू को सहलाया और अपनी हथेली को नीचे सरकाते हुए उसकी हथेली से जोड़ दिया... आरना अब शर्मीली निगाहों से देव को देख रही थी...देव ने अपना दायां हाथ उसके हाथ से छुड़ाया और पीछे से ले जा कर उसके क़मर पर रख दिया... आरना के होंठों से एक हल्की सिसकी निकल गई...
    देव ने उसे खुद के करीब खींचा और उसे वहीं से दो क़दम दूरी पर मौजूद दीवार से सटा दिया...वो आरना को तपिश भरी नजरों से देख रहा था...
    आरना को लगा जैसे उसकी तपिश से वो पिघल रही है,उसके गाल शर्म से लाल हो गए...
    वो उसकी नजरों से बचने के लिए वहां से हटने को हुई लेकिन देव ने फुर्ती दिखाते हुए उसे फिर से अपनी तरफ खींच लिया...आरना की साँसे तेज़ हो गईं...अब उसकी पीठ देव के सीने से लगी हुई थी...
    देव ने पीछे से मुस्कुरा कर उसे देखा और धीरे से झुक कर उसके इयरलोब को चूम लिया...
    आरना उसके छुअन से बेचैन हो गई,उसने अपनी मुट्ठियां भींच लीं देव ने उसकी बेचैनी महसूस कर ली और एक बार फिर उसकी हथेली से अपनी हथेली को फंसा दिया...

    आरना अब थोड़ा थोड़ा कांप रही थी,देव अब धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था...
    वो आरना की गर्दन पर अपनी गरम साँसे छोड़ता हुआ उसे धीरे धीरे चूम भी रहा था... आरना की बेचैनी बढ़ती जा रही थी...
    देव ने उसे कस कर पकड़ लिया था,अब उसके हाथ आरना के निरावृत कमर पर घूम रहा थें...

    अब उसने आरना को खुद से दूर किया और उसे घुमा कर उसके सीने को खुद के सीने से लगा लिया, आरना उसके एक एक छुअन से पिघलती जा रही थी...अब दोनों की आँखों में प्यार की लाल डोरियां तैर रही थीं... देव ने उसे खींचते हुए वापस दीवार से लगा दिया और वापस उसके गर्दन को चूमने लगा...
    आरना आँखें बंद कर बस आंहे भर रही था...धीरे धीरे उसे चूमते हुए देव उसके कमर तक पहुंच गया और अब उसके कमर पर भी वो अपने प्यार की मोहर लगाने लगा... आरना की आंहें अब सिसकियों में बदल गईं...
    देव ने उसे और न तड़पाते हुए उसे किसी फूल की तरह अपनी बाहों में उठा लिया...

    आरना ने शरमा कर उसके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। देव ने अब उसे आराम से बिस्तर पर सुलाया और खुद भी उसके साथ सो गया...
    अब वो आरना चेहरे को थाम कर उसके होंठों को किसी फूल की तरह चूम रहा था, आरना शरमाते हुए ही सही लेकिन उसका बराबर साथ दे रही थी...
    देव के हाथ उसके जिस्म के उन हिस्सों को छू रहे जहां उसे छूने का अधिकार मिल चुका था...
    आरना अब उसके इस प्यार से धीरे धीरे मदहोश होती जा रही थी... कमरे में दोनों की आवाजें अब धीरे धीरे तेज़ हो रही थीं...

    देव ने अब आरना को अपनी बाहों की क़ैद में ले लिया...धीरे धीरे दोनों के जिस्म पर नाम के कपड़े रह गए... अंधेरे कमरे में दोनों ने अब हदें पार की और आखिर में देव और आरना का मिलन हो ही गया।
    आरना दर्द से रोई तो देव ने प्यार से उसका सिर सहलाया और उसके होंठों को प्यार से चूम कर उसे शांत कराया।

    कुछ देर बाद दोनों एक दूसरे की बाहों में थक कर सोए हुए थें, आरना का सिर देव के कंधे पर था और देव उसके बालों को प्यार से सहला रहा था...कुछ देर की खामोशी के बाद देव ने कहा,"अरु...!"...

    "हां देव...!"...

    "ज्यादा तक़लीफ तो नहीं हुई न?"...

    "नहीं...!"... आरना की आवाज़ में थकावट थी...देव ने उसे खुद से दूर किया और आगे बढ़ कर लाइट ऑन कर दी...अचानक हुई रौशनी से आरना शरमा का चादर में सिमट गई...
    देव ये देख कर हँसते हुए बोला,"पति हूं तुम्हारा मैं मुझसे क्या शर्माना"...

    आरना ने झूठी नाराज़गी से उसे देखा,"मुझे याद दिलाने की जरूरत नहीं है समझे लाइट्स ऑफ करो"...

    "नहीं करूंगा...!"..देव ने हँसते हुए कहा और थोड़ा झुक कर नीचे ड्रॉवर में से कुछ निकालने लगा...
    कुछ देर बाद उसके ढेर सारी चॉकलेट्स अरु के सामने बिखेर दी...

    "इतनी सारी चॉकलेट्स?"...अरु खुशी से झूम उठी...

    देव ने थोड़ा आगे बढ़ कर उसके बालों को कान के पीछे करते हुए कहा,"आज जो तकलीफ़ हुई उसकी माफ़ी के लिए"...
    आरना ने प्यार से उसे देखा फिर बच्चों सा मासूम चेहरा बना कर बोली,"इतनी सारी चॉकलेट्स देख कर मैं सब कुछ भूल गई"...
    देव उसके बचपने पर हँस पड़ा,"जानता था इसलिए ही तो लाया था"...
    आरना मज़े से चॉकलेट्स ले कर खाने लगी...देव ने दो चॉकलेट्स छोड़ कर बाकी सब ड्रॉवर में डाल दी...

    चॉकलेट्स खाने के कुछ देर बाद देव ने उसे पानी पिलाया और फिर से उसका सिर कंधे पर रख कर सो गया...
    जब उसने देखा कि आरना पूरी तरह से शांत हो गई है तो उसने सहज भाव से कहा,"अरु...!"...

    "हां!"..


    "वो मम्मी ने कहा है कि कल तुम्हारी पहली रसोई होगी"...

    "क्या?"... आरना घबरा कर बोली...

    देव ने सुलझे अंदाज़ में समझाते हुए कहा,"इतना डर क्यूं रही हो जो आता है बना देना...बाकी मैं हूं न संभाल लूंगा"...

    "मुझे तो बहुत कुछ आता है देव लेकिन तुम्हारे घरवालों को शायद पसंद न आए"... आरना चिंतित थी...
    देव ने मुस्कुरा कर कहा,"वो लोग भी वही खाते हैं जो मैं और तुम...माँ तुम्हें बता देंगी कि क्या क्या बनाना है...बस तुम सुबह छः बजे उठ जाना"...

    "ठीक है"... आरना ने जल्दी से अपने मोबाइल में छः बजे का अलार्म लगाया और अब सोने की कोशिश करने लगी... देव अभी ये नहीं चाहता था फिर भी उसने आरना को तंग नहीं किया और वो भी सोने की कोशिश करने लगा... जल्दी ही दोनों को नींद आ गई...

    क्रमशः...

    ये सारे पार्ट्स ध्यान से पढ़ना क्यूं कि आगे कहानी में इसकी बहुत जरूरत पड़ने वाली है अभी पढ़ेंगे तभी आप सब आगे चल कर इस कहानी से जुड़ सकेंगे

  • 6. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 6

    Words: 1529

    Estimated Reading Time: 10 min

    "ठीक है"... आरना ने जल्दी से अपने मोबाइल में छः बजे का अलार्म लगाया और अब सोने की कोशिश करने लगी... देव अभी ये नहीं चाहता था फिर भी उसने आरना को तंग नहीं किया और वो भी सोने की कोशिश करने लगा... जल्दी ही दोनों को नींद आ गई...

    लगभग तीन बजे के क़रीब आरना ने महसूस किया कि देव उसकी पीठ को धीरे धीरे सहला रहा है,उसने अलसायी आवाज़ में कहा,"सोने दो प्लीज...!"...

    देव अब खिसक कर उसके पास आ गया और पीछे से उसके पेट पर हाथ रख उसे खुद के करीब करते हुए शरारती अंदाज़ में बोला,"नहीं...बाद में सो लेना"...
    आरना ने अब गर्दन घुमा कर अधखुली आँखों से देखा, इस अंधेरे में भी वो देव के चेहरे पर उपस्थित शरारत देख सकती थी...उसने वापस गर्दन मोड़ ली और चिढ़ कर कहा,"सो जाओ वरना पीट दूंगी"...

    देव मुस्कुरा दिया,उसने उसकी बात को पूर तरह नज़रअंदाज़ किया और अब धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने लगा...
    नींद में भी आरना के बदन में झुरझुरी हुई,उसने आखिरी बहाना बनाया,"सुबह मुझे बहुत काम है देव प्लीज"...

    "मैं हेल्प कर दूंगा"...

    "रहने दो...मुझे पहले दिन बात नहीं सुननी"...

    "वादा... मैं कर दूंगा तुम्हारी हेल्प"...देव अब उसके कमर को सहला रहा था।
    इतनी देर में आरना की नींद गायब हो चुकी थी और देव भी ये बात जान चुका था,उसने झटके से आरना को अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठों को बेसब्री से चूमने लगा। आरना भी अब उसका साथ दे रही थी...
    सारी फिक्र सारी चिंता छोड़ कर वो अब देव की बाहों में समा गई थी...
    धीरे धीरे देव आगे बढ़ता गया और आरना के होश बेकाबू होते गए...

    कुछ एक घंटे के बाद कमरे के अंदर मौजूद तूफ़ान थमा... देव आरना के पेट पर सिर रख कर लम्बी लम्बी साँसें ले रहा था और आरना प्यार से उसके बालों में हाथ फेर रही थी...
    कुछ देर बाद देव उसके ऊपर से हट कर उसके बगल में लेट गया और आरना के गालों को चूम कर धीरे से बोला,"ज्यादा परेशान कर दिया न आज"...

    "नहीं...!"... आरना उसके होंठों पर अपनी उंगलियों को घुमाते हुए बोली...उसकी बात पर देव ने उसे खुद के नज़दीक खींचते हुए कहा,"ये तो अच्छी बात है मेरे लिए"...
    आरना हँसते हुए बोली,"अब आराम करने दो सुबह बात सुनाओगे क्या मुझे!"...

    "अरे नहीं मेरी अरु...मुझे जगा देना मैं हेल्प कर दूंगा"...

    "सच बोल रहे हो?"...

    "तुमसे कभी कोई झूठा वादा किया है?"...

    "हां ये भी है"... आरना मुस्कुराई...
    दोनों सुस्ताने लगे तो उन्हें नींद आ गई।

    छः बजे का अलार्म बजा तो आरना ने घबरा कर आँखें खोलीं।
    उसकी आँखें भी मुश्किल से खुल रही थीं मगर वो पिछली बार की तरह कोई ग़लती नहीं करना चाहती थी...वो जल्दी से उठ कर बैठ गई... लाइफ में पहली बार वो इतनी सुबह जगी थी... जम्हाई लेते हुए उसने अपने बगल में सोए देव को देखा जो बेफिक्री से करवट बदल कर सो रहा था।
    देव देख कर उसे रात की शरारत याद आ गई और उसके गाल कश्मीरी सेब की तरह लाल हो गए... अलार्म दुबारा स्नूज़ हुआ तो उसका ध्यान देव से हट कर खुद पर गया...
    उसने अलसाते हुए बिस्तर छोड़ा और टॉवेल ले कर सीधा बाथरूम में घुस गई...
    देव ने शादी से पहले ही उसे बता दिया था कि उसके घर में नहाने से पहले कोई भी किचेन में नहीं घुसता है वरना माँ चिल्ला कर घर सिर पर उठा लेती हैं ।
    वो आज किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देना चाहती थी...उसने फ़टाफ़ट से शॉवर लिया और एक हल्के गुलाबी रंग की कुर्ती पहनी...जब वो आइने के सामने तैयार हो रही थी तो उसकी नज़र अपने गर्दन पर गई...
    वो चौंक गई क्योंकि की वहां लाल रंग का निशान मौजूद था... निशान देखते ही उसे रात की बातें याद आ गई और उसके होंठों पर एक शर्मीली मुस्कुराहट ने कब्ज़ा कर लिया।

    वो तैयार हुई और गले पर मौजूद निशान को अच्छे से दुप्पटे से ढंक लिया और सिर पर पल्लू डाल कर बाहर आ गई...बाहर आने से पहले उसने प्यार से देव को देखा और उसके पास आ कर उसके गालों को चूमते हुए बोली,"उठ जाओ देव सुबह हो गई है"...
    बाहर कुसुम जी सोनल सरिता और संध्या सब हॉल में ही बैठी हुई थीं...
    आरना ने सबसे पहले कुसुम जी के फिर सोनल के पैर छुए दोनों ने बस उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद की रस्म पूरी कर दी...

    "अंदर किचेन में सारा सामान पड़ा है जा कर पहले कुछ मीठा बना लो"... कुसुम जी ने सास के तेवर दिखाते हुए कहा...
    आरना ने सहजता से कहा,"रसमलाई बना दूं आंटी?"...

    "बनाना आता भी है या सिर्फ बोलने के लिए है?"... सोनल ने मुस्कुरा कर व्यंग किया...
    आरना ने बुरा मानने की जगह मुस्कुरा कर कहा,"अपने मायके में खाना मैं ही बनाती थी दीदी आप बताइए क्या क्या बनाना है सब बन जायेगा"...
    सोनल का मुंह बन गया...

    इसी बीच सरिता बोल पड़ी,"भाभी हमारे घर में गुलाब जामुन सबको बहुत पसंद है आप वो बना दो"...

    "ठीक है!"...

    आरना किचेन में चली गई, हालांकि वो अंदर से बहुत घबराई हुई थी फिर भी उसने आज मन बना लिया था कि वो कोई भी गड़बड़ नहीं करेगी...
    इसलिए उसने सबसे पहले गुलाब जामुन बनाने शुरू कर दिए,शादी का घर था ही तो सारे सामान पड़े हुए थें इसलिए उसे बाहर से कुछ मंगवाना नहीं पड़ा...
    कुछ देर बाद माँ बेटी उठ कर अपने अपने कमरे में चली गईं और आरना किचेन में अकेली रह गई... उन्हें जाते देख कर आरना ने जल्दी से देव को कॉल किया ताकि वो उससे मदद ले सके...लेकिन देव इतनी गहरी नींद में था कि उसने कॉल देखी तो सही लेकिन रिसीव नहीं की...
    आरना ने दो तीन बार और कॉल ट्राई किया लेकिन देव ने कॉल रिसीव नहीं किया...

    उसने धीरे से मोबाइल किनारे रख दिया और अपने काम पर ध्यान देने लगी...
    आधे घंटे के बाद देव उठा वो नहाया और बाहर आ गया, हॉल में कोई नहीं था इसलिए वो सीधा किचेन में घुस गया वहां आरना को देख कर उसका चेहरा खिल गया...

    वो दबे उसके पास गया और पीछे से जा कर उसे हग कर लिया, आरना चिहुंक उठी,"क्या...?"...
    आगे कुछ कहने से पहले देव ने धीरे से उसके गालों को चूमते हुए कहा,"गुड मॉर्निंग अरु!"...

    उसके प्यार भरे स्पर्श से आरना का ख़राब मूड सही हो गया,उसने मुस्कुरा कर कहा,"हो गई सुबह!"...

    "पहले नहीं अब हुई है तुम्हारा चेहरा देख कर"... देव ने बेहद रूमानियत भरे अंदाज़ में कहा...
    आरना ने धीरे से उसके लिए एक प्याले में दो ग़ुलाब जामुन निकाले और उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा,"इसे खा कर बताओ कैसा बना है"...

    देव ने तुरन्त प्याला हाथ में ले लिया,"इट्स माय फेवरेट अरु"...

    आरना ने उसके गालों को हल्के हाथ से छुआ,"जानती हूं!"...
    देव ने पहला निवाला ले कर आरना की तरफ़ बढ़ा दिया आरना उसका इशारा समझ गई और मुस्कुराते हुए पहला निवाला खा लिया।
    अब आरना ने चम्मच में ग़ुलाब जामुन लिया और देव की तरफ़ बढ़ाते हुए बोली,"अब तुम खा कर बताओ"...

    देव ने खा लिया आरना उसका चेहरा देख रही थी,कुछ देर बाद देव ने खुश हो कर कहा,"वाव अरु...ये तो बहुत टेस्टी बने हैं यार...मैं तो सारे ही अकेले खा जाऊंगा"... आरना का चेहरा खिल उठा उसने अपने हाथ धोए और बाकी सब के लिए भी ग़ुलाब जामुन प्लेट में निकाल कर उनके कमरे की तरफ़ बढ़ गई...
    उसने सबको एक साथ सर्व किया और वहीं खड़ी रही...
    ये देख कर कुसुम देवी ने उसे तीखी नजरों से देखा और खाने पर ध्यान देने लगीं... खाने के बाद उन्होंने अपने तकिए के नीचे से एक लिफाफा निकाल कर आरना के हाथों में देते हुए कहा,"शुक्र है कि तुम्हारी माँ ने कुछ तो सिखाया है वरना मुझे तुमसे तो कोई उम्मीद नहीं थी"...
    आरना ने इतने टेस्टी ग़ुलाब जामुन बनाए थें कि वो चाह कर भी बुराई नहीं कर सकीं मगर उसमें भी उन्होंने एक तरह से ताना दे दिया था।
    आरना हल्के से मुस्कुरा कर रह गई...

    "खाने में क्या बनाऊं आंटी?"...उसने पूछा तो कुसुम जी ने सोचने के बाद कहा,"पनीर है न?"...

    "जी आंटी!"...

    "तो मटर पनीर और पूड़ी बना लो नाश्ते में"... आरना हामी भर कर वहां से चली गई...
    देव अभी तक किचेन में ही था आरना का इतंजार करते हुए... आरना आई तो उसने भौंहे उचका कर उसे देखा आरना हल्के से मुस्कुरा कर बोली,"वक्त लगेगा लेकिन एक वक्त पर सब सही हो जाएगा"...
    देव अब उसके बगल में ही खड़ा हो गया और उसे काम करते हुए निहारने लगा...

    आरना उसकी मौजूदगी से थोड़ा झिझक रही थी,जब देव नहीं गया तो आखिर में उसने उकता कर कहा,"क्या है जाओ न यहां से तुम?"...

    "क्यूं जाऊं?"...

    "तो मुझे मत देखो"...

    "अच्छा...!"...

    आरना का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था,जब देव नहीं गया तो उसने उसे धक्का देते हुए कहा,"ऐसे देखने से बेहतर है कि थोड़ी मेरी मदद ही करा दो"...

    "तुम्हें निहारने की इतनी बड़ी सजा, न बाबा मैं तो जा रहा हूं"...देव हँसते हुए वहां से भाग गया तो आरना भी अपना काम करने लगी...
    कुछ देर बाद उसे लगा कि देव आयेगा और उसकी मदद करवाएगा लेकिन वो नहीं आया और अब बाकी सब के साथ देव भी हॉल में आ कर बैठ गए थें तो वो उसे बुला भी नहीं सकती थी...

    क्रमशः...
    कहानी कैसी लग रही है आप सबको

  • 7. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 7

    Words: 1412

    Estimated Reading Time: 9 min

    कुछ देर बाद उसे लगा कि देव आयेगा और उसकी मदद करवाएगा लेकिन वो नहीं आया और अब बाकी सब के साथ देव भी हॉल में आ कर बैठ गए थें तो वो उसे बुला भी नहीं सकती थी...

    आरना ने अकेले ही सब कुछ बनाया उसे बनाते हुए काफ़ी वक्त लग गया,कुसुम जी वहीं हॉल में बैठी एक पैनी नज़र आरना पर भी रखे हुईं थीं...थोड़ी देर बाद वो उठ कर वहां से चली गईं। उनके जाते ही धीरे धीरे उनकी तीनों बेटियां भी उठ कर चली गईं...उनके जाते ही देव लपक कर किचेन में गया और आरना के गालों पर किस कर के वहीं स्लैब पर बैठ गया...
    आरना मुस्कुरा उठी...

    "और कितनी देर लगेगी नाश्ता बनने में"...बाहर से सोनल की आवाज़ आई तो देव हड़बड़ा गया...वो जल्दी से नीचे उतरा और हड़बड़ाहट में ग्लास में पानी भरने लगा...सोनल तब तक अंदर आ गई मगर देव को वहां देख कर ठिठक कर रुक गई...

    "तुम यहां क्या कर रहे हो?"...सोनल ने उसे घूरते हुए कहा...

    "क... क...कुछ नहीं दीदी पानी पीने आया था"...देव बेचारा घबराहट में हकला रहा था...उसकी इस हालत पर आरना गर्दन नीचे कर के हँस रही थी...
    सोनल ने आँखें नचाते हुए उसे देखा,"वो मुझे नज़र आ रहा है कि तुम क्या करने आए हो"...
    देव पानी पीने के बहाने से अपना सिर खुजलाने लगा...
    सोनल अब आरना के पास आ गई,"और कितनी देर है नाश्ता बनने में डॉली के पापा इंतज़ार कर रहे हैं हमें निकलना भी है"...

    "बस दीदी आप सब डाइनिंग टेबल पर बैठो मैं गरम गरम पुड़ियाँ तल कर लाती हूं"... आरना अब काम पर ध्यान देते हुए बोली...
    सोनल वहां से चली गई मगर जाते जाते देव को आँखें दिखा कर गई...
    उसके जाने के बाद देव एक लम्बी साँस छोड़ते हुए बोला,"बाप रे...दीदी है या जल्लाद लग रहा था खा जाएगी मुझे आज"...
    उसकी बात पर आरना की हँसी छूट गई वो हँसी तो देव चिढ़ गया और उसके पास आ कर बोला,"तुम्हें बहुत हँसी आ रही है पत्नी जी"...
    आरना ने अपक हँसी रोक कर कहा,"तुम्हारी हालत याद कर के हँस रही हूं"...

    "अच्छा जी!"...

    "हाँ... कैसे मासूम बन गए थें"...

    "वो तो मैं हूं"...कहते हुए देव ने उसके कमर पर धीरे से चिकोटी काट ली, आरना जोर से चिल्ला उठी...उसके चिल्लाने की आवाज़ पर बाकी सब घबरा गए की क्या हुआ और दौड़े दौड़े किचेन में आ गए...

    "क्या हुआ?"...सब एक साथ बोलें तो देव सकपका गया वो वहां से धीरे खिसकने लगा...
    आरना ने देव को आँखें दिखाते हुए धीरे से कहा,"वो कुछ नहीं तेल का छींटा पड़ गया था"...

    "ओह...!"...सब फिर एक साथ बोलें और वहां से जाते हुए देव को भी चलने का कहा...
    देव धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था तो आरना धीरे से हँस दी...
    देव ने मुंह बना कर कहा,"हँस लो... तुम्हें तो मैं रात में देखूंगा...तब देखता हूं कितनी हँसी निकलती है"...

    आरना शरमा गई और झिझक कर बोली,"भागो तुम यहां से"...उसकी शर्माहत पर देव को पागल ही हो गया और जल्दी से लपक कर उसके गालों को चूमा और जल्दी से वहां से बाहर भाग गया...
    आरना उसके इस प्यार पर अकेले में ही मुस्कुरा उठी,देव की इन शरारतों में वो उसकी मदद वाली भी भूल चुकी थी...उसके लिए तो देव का प्यार ही सब कुछ था और वो अब उसे मिल रहा था इससे ज्यादा उसे कुछ चाहिए भी नहीं था।

    कुछ देर बाद सब नाश्ते के किए इकट्ठे हुए आरना ने अकेले ही सब कुछ किया किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। सब करते करते वो बहुत थक भी गई थी लेकिन उसने माथे पर शिकन नहीं आने दी और मुस्कुराते हुए सबको नाश्ता कराया।
    नाश्ता करने के बाद सोनल के पति जयदेव ने उसे नेग देते हुए कहा,"बहुत अच्छा खाना बनाती हो आरना, तुम्हारे हाथों में अन्नपूर्णा का वास है हमेशा खुश रहो"...
    यहां आने के बाद उसने पहली बार किसी के मुंह से अपनी तारीफ सुनी थी... उसने नेग ले कर उनके पैर छुएं तो उन्होंने छोटी बहन समझ कर उसे आशीर्वाद दिया।
    कुसुम जी और सोनल तो मुंह बनाए खड़ी रहीं ।

    कुछ देर में सोनल सबसे मिल कर वहां से अपने ससुराल के लिए निकल गई। देव उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ने गया था। उसे विदा करते हुए कुसुम जी की आँखें छलक उठीं वो कैसी भी हो और शादी को कितने ही साल क्यूँ न हो जाएं बेटी को विदा करते हुए हर माँ का दिल रोता है तो उनका भी रोना स्वाभाविक था।

    उसके जाने के बाद कुसुम जी ने आरना से कहा,"अब से सब कुछ तुम्हें ही संभालना है समझी हां लेकिन ध्यान रहे कि सिर्फ काम तक ही रखना खुद को ज्यादा मुंह चलाने और घर के मामले में टांग अड़ाने की जरूरत नहीं है समझी"...

    "जी आंटी"... आरना धीरे से जबरन मुस्कुरा कर बोली...

    "कुछ देर आराम कर लो फिर दोपहर के खाने में कुछ हल्का सा बना लेना हमारे यहां दोपहर में सब गरम खाना ही खाते हैं मैं सरिता और संध्या के साथ मंदिर जा रही हूं फिर उधर से बाज़ार जाऊंगी तो सब कुछ देख लेना"...कुसुम जी ने आते ही उसे उसकी जगह बता दी कि उसकी जगह सिर्फ किचेन में है उनके दिलों में नहीं।
    आरना ने उनके सामने कुछ कहा नहीं लेकिन उसे ये बात बहुत चुभी थी... आँखें रोने को आतुर हो रही थीं उसने किसी तरह अपने आंसू छुपाएं और वहां से किचेन के आ गई...
    उसने अपने लिए नाश्ता निकाला और उसे ले कर कमरे में आ गई। पुड़ियाँ ठंडी हो गईं थीं लेकिन अब उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो गरम पुड़ियाँ तल कर खाएं।
    उसने नाश्ता करने के लिए एक निवाला मुंह में डाला ही था कि उसकी माँ का कॉल आ गया।
    उनका कॉल देख कर उसका दिल भर आया...उसने कॉल रिसीव कर धीरे से हैलो कहा... उसकी रुंधी आवाज़ सुन कर लता जी का दिल घबरा गया...

    "अरु...सब ठीक है?"...

    आरना के आंसू रुक नहीं रहे थें उसने बहुत मुश्किल से कहा,"हां माँ!"...

    "तू क्यूं रो रही है अरु!"... लता जी अभी भी परेशान थीं आरना ने अपना चेहरा ऊपर कर के आंसू अंदर धकेले और खुद को संभालते हुए बोली,"बस...बस आपकी याद आ गई थी माँ"...

    ये सुन कर लता जी की परेशानी थोड़ी कम हुई फिर भी उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा,"फोन उठाते ही रोया मत कर अरु, घबराहट हो जाती है"...

    "हूं!"...

    लता जी उसकी माँ थीं और साथ ही एक औरत भी जिन्होंने भी अपना घर छोड़ा था उन्होंने स्नेहपूर्वक आरना से कहा,"बेटी...ये दुःख तो हर औरत को झेलना होता है...नई जगह है इसलिए ऐसा लग रहा है धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी... और तु तो देव को इतना चाहती है ओर देव भी तुझे चाहता है देखना वो सब कुछ संभाल लेगा"... आरना अब तक संभल चुकी थी उसने गंभीरता से कहा,"हाँ... माँ वो तो है लेकिन फिर भी घर की याद आ ही जाती है"...
    अब वो क्या बताती की कुसुम जी ने उसकी जगह उसे दिखा दी है...
    लता जी ने दो चार बातें कर के कॉल रख दिया

    उनके कॉल रखने के कुछ देर बाद देव घर आया...उसने आरना को यूं ही बैठे देखा तो फिक्रमंद हो कर बोला,"अरु तुमने अभी तक नाश्ता नहीं किया है?"...

    आरना ने भारी मन से कहा,"मन नहीं कर रहा था देव"...

    "नाश्ता मन के लिए नहीं पेट के लिए होता है समझी चलो उठो नाश्ता करो"...देव ने उसकी तरफ निवाला बढ़ाया... आरना ने बेमन से मुस्कुराते हुए निवाला खा लिया...
    आरना बैठी रही और देव ने ही उसे अपने हाथों से खिलाया और सारा नाश्ता खत्म किया...उसे पानी का ग्लास देते हुए देव ने कहा,"अब तुम आराम करो समझी"...

    "तुम ऐसे ही मुझसे प्यार करते रहोगे न?"... आरना उसकी आँखों में देख कर बोली...
    देव उसकी स्थिति समझ कर उसके बगल में बैठ गया और उसके चेहरे को प्यार से छूते हुए बोला,"मैं जानता हूं अभी सब कुछ नया नया है इसलिए तुम्हारा मन भारी है लेकिन अरु यही तो हमारे प्यार का असल इम्तिहान है... मैंने अपने घरवालों को तो मना लिया है लेकिन अब उनका दिल जीतना तुम्हारा काम है"...

    "जानती हूं!"...

    "तुम उन पर अपना ऐसा जादू चलाओ कि वो तुम्हारे लिए मेरे ख़िलाफ़ हो जाए"...देव ने उसके माथे को चूम लिया... आरना ने हैरानी से उसे देखा...
    देव ने हँसते हुए कहा,"हैरान होने की जरूरत नहीं है मैं जो चाहता हूं बस वो कर दो...और रही प्यार की बात तो जो प्यार आज है वही कल भी रहेगा न ये प्यार कभी बदला था न ही बदलेगा"...
    उसकी बातों ने आरना में हिम्मत भर दी वो सब कुछ भूल गई और देव के गले से लग गई।

    क्रमशः...

  • 8. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 8

    Words: 1656

    Estimated Reading Time: 10 min

    इस पार्ट में गड़बड़ हो गई थी बेटे ने सारा पार्ट ही डिलीट कर दिया इसलिए अब नए तरीके से लिख रही हूं कुछ अलग लगे तो माफ कीजियेगा

    आरना ने सबके लिए खाना बनाया और सबने पसंद से खाया लेकिन जैसा कि उम्मीद थी देव को छोड़ कर बाकी किसी ने भी उसकी तारीफ़ नहीं की..
    शादी के बाद का उसका सफ़र शुरू हो चुका था कुसुम जी बात बात पर उसे ताने देती लेकिन बाद में देव अपनी बातों से उस पर मरहम रख देता था...
    धीरे धीरे आरना उस घर में रमने लगी मगर कभी कभी देव की बातें उसे उलझा देती थी कभी तो बहुत प्यार जताता था मगर जब कुसुम जी उसे डांटती थी वो स्टैंड लेने की जगह उसे ही कॉम्प्रोमाइज करने को बोलता था...
    एक दिन आरना अकेली बैठी यही सब सोच रही थी और ये सब सोचते हुए उसकी आँखें भर आईं...

    यही सब सोच कर उसका दिल फिर से भर आया और वो किचेन में आ गई, वहां आते ही उसके रुके हुए आंसू बाहर गिर पड़े और वो सिसक कर रोने लगी...
    नई नई शादी हुई थी और उस पर उसके साथ इस तरह का भेदभाव उसे बार रुला दे रहा था।
    देव खाना खा कर बाहर चला गया और आरना अपने आंसू पोंछ कर खाना खाने लगी,मगर वो ज्यादा नहीं खा पाई मन ही नहीं हुआ।
    खाना खा कर वो बर्तन धोने लगी...उसे कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसकी शादी को कुछ ही दिन हुए हैं बर्तन धोते हुए उसकी नज़र अपने हाथों की मेहंदी पर पड़ी...उसके हाथ रुक गए...
    मेहंदी देख कर उसे देव और अपनी बातें याद आने लगीं जो वो अक्सर शादी से पहले करते थें।

    "अरे तुम एक बार मेरी तो हो जाओ फिर तो तुम्हें रानी बना कर रखूंगा"...देव ने हँसते हुए कहा...

    "तुम्हारी माँ बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी"...

    "क्यूँ नहीं कर पाएंगी अरे पत्नी मेरी है तो उससे कब कितना काम कराना है मैं तय करूंगा न"...

    "अच्छा...लेकिन शादी के बाद तो सबको काम करना पड़ता है"...

    "जानता हूं लेकिन इतना याद रखो जब तक तुम्हारी हाथ की मेहंदी का रंग पूरी तरह नहीं छूट जाएगा तुम्हें एक काम नहीं करने दूंगा"...देव ने पूरे यक़ीन से कहा तो आरना हँसते हुए बोली,"ऐसा कहाँ होता है भला"...

    "न होता हो लेकिन मैं तो करूंगा"...

    "हा...हा...हा... मैं भी देखती हूं कि तुम क्या क्या करोगे"...

    "उड़ा लो मज़ाक लेकिन शादी के बाद अपना हर वादा पूरा करूंगा"...देव ने फोन पर उसे किस देते हुए कहा था...

    वर्तमान में आरना के होंठों पर एक फीकी मुस्कुराहट आ गई, मेहंदी का रंग उतरना तो दूर अभी तो मेहंदी का रंग सही से चढ़ा भी नहीं था कि वो घर के काम ऐसे कर रही थी जैसे वो इसी काम के लिए घर में लाई गई हो...
    ऐसा नहीं था कि आरना को काम करने से प्रॉब्लम थी बल्कि उसे तो प्रॉब्लम थी यहां उसके साथ होने वाले भेदभाव से जिसके लिए देव भी कुछ नहीं बोल रहा था...
    अगर वो अभी से स्टैंड नहीं लेगा तो आगे क्या करेगा...
    यही सब सोच कर आरना परेशान हो गई।
    उसने बर्तन धो कर किचेन का सारा सामान समेटा और कमरे की तरफ जाने लगी की तभी कुसुम जी आ गईं और आते ही बोलीं,"अगर सारा काम खत्म हो गया हो तो चाय बना दो"...

    "जी आंटी"... आरना इनकार नहीं कर सकती थी उसने कुसुम जी के साथ साथ खुद के लिए भी चाय बनाया और उन्हें दे कर अपना कप ले कर कमरे में आ गई...
    वहां बैठ कर उसने चाय से पहले बिस्किट खाने की सोची...उसने जैसे ही ड्रॉवर खोला उसकी छोटी नन्द संध्या वहां आ गई...
    उसे देखते ही आरना ठिठक गई...वो ड्रॉवर से किनारे हट गई और संध्या के आने के चक्कर में वो ड्रॉवर बंद करना भूल गई...
    "आप...आइए!"...

    वो आ कर बैठ गई फिर कमरे को घूरते हुए बोली,"पता है आज से पहले यहां आने में कभी हिचक नहीं हुई लेकिन आज पहली बार आने यहां आने से पहले सोचना पड़ा है"...

    "ऐसा क्यूँ?"...

    "क्यूँ की पहले ये कमरा सिर्फ भईया का था अब तो आपका भी हो गया है न क्या पता आपको मेरा आना पसंद आए या न आए"... संध्या की आवाज़ में तीखापन था जिसे आरना भाँप चुकी थी फिर भी वो सहजता से बोली,"ऐसा बिल्कुल नहीं है...मुझे क्यूँ नापसंद होगा आप और सरिता तो मेरी छोटी बहन की तरह हैं"...

    "आप सच बोल रही हैं?"...संध्या ने हैरानी और व्यंग्य के मिले जुले भाव से कहा...

    "हाँ"... आरना मुस्कुरा कर बोली...संध्या अब कमरे में इधर उधर घूमने लगी,घूमते हुए उसकी नज़र उसी ड्रॉवर पर गई जिसमें से कुछ देर पहले आरना बिस्कुट निकाल रही थी।
    उसमें बिस्किट के साथ चॉकलेट्स भी थें जिन्हें देखते ही संध्या आरना से पूछे बगैर ड्रॉवर के पास चली गई...
    "अरे वाह,इतनी सारी चॉकलेट्स...सब महंगी लग रही हैं?"...संध्या ने सारे चॉकलेट्स हाथ में ले लिए...
    आरना कुछ बोल नहीं सकी...
    आरना की सोच की परवाह किए बगैर संध्या इतरा कर बोली,"जरूर ये सारे चॉकलेट्स आपको भईया ने दिए होंगे हैं न?"...
    संध्या ने उसकी तरफ देख कर कहा तो आरना ने धीरे से हाँ में सिर हिला दिया ये सोच कर कि अब न जाने इस पर क्या बवाल होगा...
    लेकिन संध्या ने कुछ कहने की जगह सारे चॉकलेट्स अपने हाथ में रख कर कहा,"मैं ये सारे ले रही हूं आप भईया से और मंगवा लेना प्लीज"... और आरना का ज़वाब सुने बग़ैर वो वहां से चली भी गई...
    आरना को बहुत बुरा लगा मगर वो क्या कह सकती थी...उसे चॉकलेट्स जाने का बुरा नहीं लगा था बल्कि बुरा उसे इस बात का लगा था कि संध्या ने पूछे बगैर उसके सामान पर अधिकार जताया,वो सब देव उसके लिए प्यार से लाया था और उसने थकान की वजह से खाया भी नहीं था मगर अब वो क्या ही कर सकती थी...अगर शादी के चंद दिनों बाद ही वो रोक टोक करने लग जाती तो न जाने उसे क्या क्या सुनने को मिलता...
    कुछ देर बाद देव आया तो आरना का चेहरा उतरा हुआ था...
    उसका उदास चेहरा देखते ही देव ने प्यार से कहा,"क्या बात है अरु उदास हो?"...

    आरना ने मायूसी से उसे देखा,"नहीं ठीक हूं"...

    देव उसके लहज़े की मायूसी भांपते हुए बोला,"घर में किसी ने कुछ कहा है तुमसे"...
    आरना ने न में सिर हिला कर कहा,"कुछ देर पहले संध्या आई थी और पता है तुमने जो चॉकलेट्स दी थी फर्स्ट नाइट को वो मुझसे पूछे बिना सब ले कर चली गई"...
    देव अब तक उसकी बात बहुत ध्यान से सुन रहा था मगर पूरी बात सुनते ही हँस कर बोला,"ले कर चली गई तो क्या हुआ मैं तुम्हें और ला कर दे दूंगा"...

    आरना झुंझला गई,"बात और लाने की नहीं है देव,वो तुमने मुझे फर्स्ट नाइट पर दिया था सोचा था कि सारे तोहफे के साथ उनके रैपर्स को भी संभाल कर रखूंगी"...
    देव अब गंभीर हो गया,"ये कैसी बचकाना बातें कर रही हो अरु ये भी कोई संभालने की चीज होती है"...

    "यादें जुड़ी होती हैं तोहफे से इसमें बचकाना बातें क्या है और तुम्हारी बहन को इतनी तमीज़ नहीं है कि किसी का भी सामान पूछे बगैर नहीं लेते"... आरना गुस्से में बोल गई...अपनी बहन के बारे में ऐसी बात देव को अच्छी नहीं लगी अब वो भी नाराज़ हो कर बोला,"वो बच्ची है लेकिन तुम तो समझदार हो...कुछ चॉकलेट्स के लिए तुम मुँह फूला कर बैठी हो मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी"...

    "तो कैसी उम्मीद थी"... आरना का गुस्सा भी बढ़ गया...
    देव ने अब नाराज़गी से उसे देखा,"तुम्हें क्या हो गया है इतनी सी बात को इतना क्यूँ बढ़ा रही हो,शाम में बाज़ार चलना तुम्हें पहले से ज्यादा चॉकलेट्स दिला दूंगा"...इतना कह कर वो गुस्से में कमरे से बाहर निकल गया...उसे गुस्से में देख कर अब आरना को बुरा लग रहा था वो देव को नाराज़ नहीं करना चाहती थी मगर अब बात आगे बढ़ गई थी...
    उसने सोचा कुछ देर में देव घर आएगा तो उसे मना लेगी लेकिन देव घर नहीं आया... आरना ने बुझे मन से सारा खाना बनाया और कमरे में आ कर उसका इंतज़ार करने लगी...
    कुछ देर बाद देव कमरे में आया और उखड़े लहज़े में बोला,"तैया हो जाओ बाहर चलते हैं"...
    आरना उसे देखते ही उसकी तरफ़ बढ़ गई और प्यार से उसके गले में बाहें डाल कर बोलीं,"मुझे नहीं जाना पहले अपनी नाराज़गी खत्म करो"...

    देव के ऊपर उसके इस अदा का कोई असर नहीं हुआ उसने आरना का हाथ झटकते हुए कहा,"तुम्हें चाहिए या नहीं लेकिन मैं तुम्हें दिलवाऊंगा ताकि फिर तुम बाद में शिक़ायत न करो"...
    आरना ने प्यार से कहा,"बहुत ज्यादा नाराज़ हो?"...

    देव ने कुछ नहीं कहा तो आरना ने आगे बढ़ कर उसके एक गाल को चूम लिया और उसके चेहरे पर अपनी उंगली घुमाते हुए बोली,"अभी भी नाराज़ हो पतिदेव"...

    देव ने अब बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखा तो आरना ने  तुरंत दूसरे गाल को चूम लिया,उसके मनाने की इस अदा पर देव का सारा गायब हो गया लेकिन वो अभी भी नाराज़ होने का नाटक करते हुए खामोशी से खड़ा था...आखिर में आरना ने उसे मनाने के लिए उसके होंठों को चूम लिया...होंठों को छू कर वो जैसे ही अलग होने को हुई की देव ने उसके कमर पर हाथ रख कर उसे खुद के क़रीब खींच लिया और शरारती निगाहों से उसे देखते हुए बोला,"अब इतने प्यार से मनाओगी तो मैं रोज नाराज़ हो जाऊंगा"...

    आरना हँसते हुए बोली,"तो मैं रोज मना लूंगी तुम्हें"

    "अच्छा...!"...

    "हाँ...!"...

    "सोच लो बात कहीं आगे न बढ़ जाए फिर मुझे दोष न देते रहना"...देव ने उसके गले के नीचे उंगली घुमाते हुए कहा... आरना के शरीर ने झुरझुरी ली उसने फ़ौरन देव को धक्का दे कर हँसते हुए कहा,"तुम्हारी नियत एक ही जगह टिकी रहती है न"...
    इस बात पर देव भी जोर से हँस दिया और अब बाहर निकलते हुए बोला,"चलो तैयार हो जाओ मैं जरा माँ को देख लूं और सुनो वो मैजेंटा कलर वाली सूट पहनना उसमें बहुत प्यारी लगती हो तुम"...

    आरना उसकी तारीफ़ पर मुस्कुरा दी और अब वार्डरोब से देव के पसंद का सूट निकाल कर तैयार होने लगी...

    क्रमशः...

  • 9. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 9

    Words: 1169

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरना और देव बाज़ार निकल गए, हालांकि कुसुम जी को ये पसंद नहीं आया लेकिन जब बहु बेटे की पसंद की ले आईं थीं तो कुढ़ने के अलावा क्या ही कर सकती थी।

    बाज़ार से आते हुए आरना सबके लिए भी कुछ न कुछ पैक करा कर ले आई, उन्हें सब कुछ लाया देख कर कुसुम जी नाखुशी से बोलीं,"ये इतना खर्च करने की क्या ज़रूरत थी...तुम लोग घूम आए वो काफी नहीं था"...
    आरना ने सोचा था कि उन्हें अच्छा लगेगा लेकिन एक बार फिर उन्होंने मुँह बना ही लिया...
    देव ने बात को संभालते हुए कहा,"माँ...हम सबके लिए कुछ न कुछ ले कर आए हैं आपको तो खुश होना चाहिए कि आरना को आप सबका इतना ख्याल है"...

    "फ़िज़ूलखर्ची पर तुम सबको खुश होना आता होगा मुझे नहीं"...कुसुम जी ने हल्की नाराज़गी दिखाते हुए कहा...
    आरना का चेहरा उतर गया वो वहां सा जाने लगी लेकिन जाते जाते भी उसे देव की बातें सुनाई दे रही थीं जो अपनी माँ को सफाइयां पेश करते नहीं थक रहा था...
    उसके कमरे में जाने के कुछ देर बाद देव भी आ गया,उसे देखते ही आरना का उतरा चेहरा किसी फूल की तरह खिल गया।
    देव भी उसे प्यार से निहारते हुए मुस्कुरा दिया... आरना कपड़े बदलने के लिए अपने जेवर उतार रही थी ये देख कर देव ने तत्परता से कहा,"क्यूं उतार रही हो?"...

    आरना हल्का सा मुस्कुरा कर बोली,"तुम जानते हो न मुझे ये सब पहने रहना पसंद नहीं है"...

    "हाँ जानता हूं लेकिन मुझे बहुत पसंद है तुम्हें इस रूप में देखना"...देव ने पीछे से आ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया...
    अब दोनों एक दूसरे को आइने में देख रहे थें... यही वो ख़्वाब था जिसे वो हक़ीक़त में बदलना चाहते थें...न कोई रोक टोक न ही किसी का डर बस एक दूसरे को पा लेने की चाहत और प्यार ही प्यार बस बेशुमार...
    दोनों आइने में एक दूसरे को प्यार से देख रहे थें आखिर में देव ने पूछ ही लिया,"क्या देख रही हो ऐसे?"...

    "तुम्हें!"...

    "जानता हूं लेकिन..."...

    "लेकिन ये देख रही थी कि जिस ख़्वाब को सात सालों से आँखों में सजा कर रखा था वो हक़ीक़त में और भी खूबसूरत लग रहा है"... आरना अब उसकी तरफ घूम गई...
    देव ने अपने लहज़े में बेशुमार मोहब्बत भरते हुए कहा,"मुहब्बत का पा लेना ही खुद में एक खूबसूरत एहसास है और यही एहसास तो इस हक़ीक़त को खुबरु करता है"...और इसी के साथ उसने आरना के चेहरे पर आई लटों को कान के पीछे किया...
    आरना ने बस उसके सीने पर सिर रख दिया...
    दोनों अब यूं ही खड़े खड़े बात कर रहे थें...

    "अच्छा अरु...एक बात बताओ!"...

    "हाँ पूछो"...

    "हम अपने बच्चे का नाम क्या रखेंगे?"...देव की आँखों में चमक आ गई...
    आरना की आँखें भी बच्चे का नाम सुन कर चमक उठीं... उसने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा,"लड़का हुआ तो देवांश और लड़की हुई तो देवांशी"...

    "बस एक एक नाम क्यूँ सोचा तुमने?"...देव ने मुस्कुरा कर कहा...

    "एक बेटा और एक बेटी यही तो होगी हमारी फैमिली"... आरना की आँखें अब भी चमक रही थीं देव ने तपाक से कहा,"ये तुमसे किसने कहा?"...
    आरना ने चौंक कर उसे देखा,"कोई नहीं मैंने खुद सोचा है"...

    देव अब शरारत करने के मूड में था उसने फ़ौरन न में सिर हिलाया,"बिल्कुल नहीं...कम से कम ग्यारह तो होंगे ही"...

    आरना घबरा गई,"तुम पागल हो गए हो क्या बक रहे हो?"...

    "कम हैं...ठीक है कोई न पंद्रह कर लेंगे"...देव ने हँसते हुए कहा...
    आरना ने उसके सीने पर मुक्का मारते हुए कहा,"सोचना भी मत... दांत तोड़ दूंगी तुम्हारे पंद्रह बच्चे के करेंगे...कर लेना दूसरी शादी और उसी से बच्चे पैदा करवाना"... आरना ने ये बात ये सोच कर कही थी कि देव तुरंत डर जाएगा लेकिन देव ने उल्टा ही बोला,"अरे वाह...ये भी बढ़िया है"...

    "क्या?"... आरना ने अब उसे गुस्से से घूरा...उसके गुस्से को नज़र अंदाज़ करते हुए देव वहीं सोफे पर बैठ गया और आरना को ऐसे दिखाने लगा जैसे वो सच में दूसरी शादी का सोच रहा हो,"अरु प्लान तो मस्त है...तुमसे मैं सिर्फ प्यार करूंगा और बच्चों के लिए दूसरी शादी कर लूंगा...एक दिन उसका एक दिन तुम्हारा... लड़ाई भी नहीं होगी ऐसे तुम दोनों में"... आरना को बहुत बुरा लगा वो खुद के आंसू नहीं रोक पाई और रोने लगी...
    देव ने कानों में उसकी सिसकियों की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंक कर आरना को देखा... आरना तो अपनी आँखों से गंगा यमुना बहा रही थी...
    देव का सारा मज़ाक हवा में उड़ गया उसने तुरंत आरना के आंसू पोंछते हुए कहा,"अरु...यार मैं मज़ाक कर रहा था"...

    आरना ने नाराज़गी से उसका हाथ झटक दिया और सिसकते हुए बोली,"रहने दो...झूठे कहीं के...अभी शादी को एक सप्ताह भी नहीं हुआ है और तुम दूसरी शादी की प्लानिंग कर रहे हो, हट जाओ मेरे सामने से वरना मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी"...

    देव ने बत्तीसी चमकाते हुए अपना चेहरा आगे कर दिया,"तोड़ दो"...
    आरना ने अब गुस्से से उसे घूरा...देव ने उसे अपनी गोद में में बैठा लिया और उसका सिर कंधे पर रख कर उसे छोटे बच्चे की तरह थपकी देते हुए बोला,"पगली... मैं तुम्हारे अलावा किसी और का सोच भी नहीं सकता हूं... मैं तो यूं ही मज़ाक कर रहा था"...

    "मैं तुम्हें किसी और के साथ नहीं बाँट सकती हूं देव...न ख़्वाब में न ही मज़ाक में"... आरना ने उसकी हथेली को कस कर पकड़ लिया...देव ने कुछ देर सोचने का नाटक करते हुए कहा,"एक न एक दिन बाँटना तो पड़ेगा अरु"...

    आरना घबरा कर उसे देखने लगी,उसकी घबराहट कर देव हल्के से मुस्कुरा कर बोला,"हमारे बच्चे के साथ"...उसकी बात सुन कर आरना की घबराहट खत्म हो गई और वो शरमा कर उसके गले लग गई...
    उसके शरमाने की इसी अदा पर तो देव पिघल जाता था और अभी भी यही हुआ । कुछ देर बाद दोनों एक दूसरे की बाहों में सोए हुए लम्बी साँसें ले रहे थें...

    इधर आरना और देव के कमरे में जाने के बाद उसकी मंझली ननद सरिता ने अपनी माँ से कहा,"कुछ भी कहो माँ भाभी बहुत प्यारी हैं,बाहर जा कर भी उन्हें हम सबका ख्याल था"...
    कुसुम जी ने आँखें तरेर कर से देखा,"ये सब कुछ दिन का दिखावा है"...

    "ज़रूरी तो नहीं है माँ,वो देव भईया को इतना चाहती हैं वो क्यूँ करेंगी ऐसा"... सरिता का मिज़ाज उन सबसे अलग था हालांकि वो छोटी थी लेकिन उसने समझ अच्छी थी इसलिए अभी भी वो आरना के साथ सबकी तरह व्यवहार नहीं कर रही थी...उसे वाकई आरना अच्छी लगी थी...
    कुसुम जी का चेहरा शांत था उन्होंने सरिता की बात पर नाराज़गी से कहा,"ये सब उसकी चाल है, मैंने बहुत देखे हैं ऐसे रिश्ते... पति के सामने सीधी बनती हैं और उसके जाते ही रंग बदल लेती हैं आखिर में तो है लव मैरिज ही ये सब दिखावा नहीं करेगी तो अच्छी कैसे बनेगी दुनिया की नज़रों में भी और मेरे बेटे की नज़रों में भी"...
    सरिता ठंडी साँस भर कर रह गई...वो अपनी माँ को क्या ही समझाती जब वो समझने को तैयार ही नहीं थी तो... कुछ देर बाद पढ़ाई का बहाना कर के वो वहां से उठ गई और अपने कमरे में आ कर पढ़ने बैठ गई...


    क्रमशः...

  • 10. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 10

    Words: 1049

    Estimated Reading Time: 7 min

    आरना और देव के गृहस्थ जीवन की शुरुआत हो चुकी थी...
    देव की मुश्किल तो बस अपने घरवालों के मनाने तक की थी जबकि असल इम्तिहान तो अब आरना का था कि वो किस तरह से देव और उसके घरवालों के दिल में जगह बनाती हैं या फिर वो उन्हें कभी अपनत्व एहसास करा भी पाएगी या नहीं...
    देव और आरना ने शादी से पहले हनीमून पर जाने का प्लान बनाया था मगर शादी के बाद तो देव ने एक बार भी हनीमून का ज़िक्र नहीं किया इसलिए आरना ने भी बात नहीं छेड़ी...

    धीरे धीरे वक़्त गुजरता जा रहा था और आरना और देव के रिश्ते भी आगे बढ़ रहे थें...देव की माँ और बहन आरना को तानों से चोट देते तो देव उन तकलीफों को अपने प्यार से गायब कर देता है...
    इसी तरह शादी हुए सात दिन बीत गए और आरना खुद को देव के घरवालों के हिसाब से ढालने में लग गई...
    देव की छुट्टियां खत्म हो चुकी थीं और शादी के बाद आज देव पहली बार ऑफिस जाने वाला था...
    आरना सुबह पहले जगी, शॉवर लिया और तैयार हो कर देव के माथे को चूमा और किचेन में आ गई...

    उसने सबके लिए सबसे पहले चाय बनाया और उसे ले कर कुसुम जी के कमरे में आ गई,कुसुम जी उससे नाखुश जरूर थीं लेकिन उससे ज्यादा बात नहीं करती थी...और आरना ने उन्हें इन सात दिनों में शिकायत का मौका नहीं दिया था...
    उन्हें चाय दे कर आरना ने सहजता से पूछा,"आंटी... नाश्ते में क्या बनाऊं?"...

    "आज तुम सत्तू की पूड़ी और टमाटर आलू का भरता बना दो"... उन्होंने सादे अंदाज़ में कहा...
    आरना हाँ में सिर हिला कर वापस किचेन में आ गई उसने अब अपने और देव की चाय भी कप में डाली और कमरे में आ गई...
    देव औंधे मुंह सोया हुआ था उसे देखते ही आरना के लब मुस्कुरा उठें...उसने टेबल पर चाय रखा और देव के सिरहाने बैठ गई...
    उसने स्नेह भरी नजरों से देव को देखा और धीरे धीरे उसके सिर को सहलाते हुए बोली,"देव...उठ जाओ... चाय ठंडी हो रही है"...
    देव ने गर्दन दूसरी तरफ़ मोड़ ली आरना ने उसे हल्का सा हिला कर कहा,"उठ जाओ चाय ठंडी हो गई तो मुझे न कहना समझें"... और वो उठ कर जाने लगी की देव ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया...
    आरना इसके लिए तैयार नहीं थी वो सीधा देव के ऊपर जा गिरी...
    "ये क्या तरीका है देव...मुझे लग जाती तो"... आरना मुँह बनाते हुए बोली...
    देव ने अलसायी आवाज़ में हँसते हुए कहा,"लगी तो नहीं न मेरी जान"...

    "हटो यार छोड़ो तुम"... आरना झिल्ला कर बोली...देव ने उसे छोड़ने की जगह कस कर पकड़ लिया...
    आरना धीरे से मुस्कुरा दी और बोली,"एक बात बताओ मैं जब भी तुम्हें छोड़ने का कहती हूं तुम मुझे और कस कर क्यूं पकड़ लेते हो?"...

    "वैसे ये अच्छा सवाल है"...देव ने ज़वाब देने की जगह उसे चूमना शुरू कर दिया...
    आरना सुबह सुबह बहकना नहीं चाहती थी इसलिए छूटने के लिए कसमसाने लगी...
    देव की पकड़ और मजबूत हो गई,"रुक जाओ न यार सुबह सुबह अच्छा काम कर रहा हूं"...

    आरना ने हँसते हुए कहा,"ये अच्छा काम है?"...

    "और नहीं तो क्या...किसी महापुरुष ने कहा है कि सुबह सुबह अपनी पत्नी को प्यार करने से दिन अच्छा जाता है और बिगड़े काम बनते हैं"...

    "ओह... और ये किस महापुरुष ने कहा है देव जी"... आरना को हँसी आ रही थी...
    देव ने मुँह फूला कर उसे देखा तो आरना हँसते हुए बोली,"महापुरुष देव जी ने कहा है... है न"...
    इस बार देव ने बुरा सा मुँह बनाया और उसकी गर्दन को चूमते हुए बोला,"बोला किसी ने भी हो करना तो मुझे है न"...
    आरना ने हँसते हुए उसे देखा,देव ने उसे कस कर खुद के सीने से लगाया और उसके होंठों को चूमने लगा...

    नई नई शादी का नशा ऐसा ही होता है जिसमें पार्टनर के अलावा किसी और की ख्वाहिश ही नहीं रहती और यही देव और आरना के साथ भी हो रहा था।
    आरना ने कुछ देर उसका साथ दिया फिर मौका देख कर आरना उससे अलग हो गई और उसके ऊपर पड़ा कम्बल खींचते हुए बोली,"उठ जाओ... मैं अकेले चाय नहीं पीना चाहती"...

    देव ने बहुत बुरा सा मुँह बना कर उसे देखा और बाथरूम की तरफ जाते हुए बोला,"तुम शादी से पहले ही ठीक थी...सारे रोमांस का कचरा कर दिया तुमने"...
    उसने जिस अंदाज़ में कहा आरना को हँसी आ गई...वो खिलखिला कर हँस पड़ी...थोड़ी देर में देव हाथ मुँह धो कर आया तो दोनों ने साथ में चाय पी...
    उसके बाद आरना वापस किचेन में आ गई और नाश्ता बनाने में जुट गई...
    एक एक कर के सब डाइनिंग टेबल पर जमा हो गए...
    संध्या को स्कूल जाना था और सरिता को कॉलेज और देव को ऑफिस...
    आरना अकेले ही उनके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी...

    उसने गरम गरम रोटी सेक कर सबको खिलाया...देव ने उसकी तरफ देखा तो आरना धीरे से मुस्कुरा दी...
    नाश्ता करने के बाद उसने जल्दी से देव का लंच पैक किया और उसे देने कमरे में आ गई...
    सरिता और संध्या कॉलेज निकल गईं थीं...

    देव तैयार हो चुका था आरना ने उसका लंच बैग में डाल रही थी तभी पीछे से आ कर देव ने हग कर लिया...
    आरना मुस्कुरा दी और उसी तरह बिना मुड़े उसने उसके सिर पर हाथ रख दिया...
    "क्या हुआ?"...

    "तुम्हें छोड़ कर जाने का मन नहीं हो रहा है"...

    "लेकिन काम तो करना पड़ेगा न देव"... आरना ने उसकी तरफ़ देखा तो देव ने जबरन हाँ में सिर हिला दिया...

    "गुड...अब ऑफिस जाओ वरना देर हो जाएगी"... आरना ने प्यार से कहा तो देव ने उसके होंठों को अपने होंठों में क़ैद कर लिया... आरना ने भी कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और उसका साथ देने लगी...
    कुछ देर बाद खुद से अलग हुआ और आरना की आँखों में देखते हुए बोला,"मोबाइल अपने पास ही रखना मैं बार बार कॉल करूंगा...मन नहीं लगेगा तुम्हारे बिना"...

    आरना ने धीरे से हाँ के सिर हिला दिया देव ने एक आखिरी बार उसके होंठों को धीरे से चूमा और ऑफिस जाने के लिए निकल गया...
    आरना उसे छोड़ने उसके पीछे गई,देव कमरे से निकल कर कुसुम जी के पास गया उनके पाँव छुए और ऑफिस के लिए निकल गया...

    आरना ने उसे दरवाज़े तक छोड़ा जाते हुए देव ने उसके माथे पर एक चुम्बन किया और उसे बाय बोल कर ऑफिस निकल गया...

    क्रमशः...

  • 11. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 11

    Words: 1265

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरना ने उसे दरवाज़े तक छोड़ा जाते हुए देव ने उसके माथे पर एक चुम्बन किया और उसे बाय बोल कर ऑफिस निकल गया...

    देव के जाने मात्र से ही आरना को घर सुना सुना लग रहा था,देव को होने से ही ये घर उसे अपना घर लगता था लेकिन उसके घर से निकलते ही उसे पराया महसूस होने लगा...
    अपने मन के विचारों को रोक कर वो किचेन में आ गई और किचेन के काम समेटने लगी,उसे किचेन में आए दस मिनट ही हुए होंगे कि आरना का मोबाइल घनघना उठा... वो जानती थी कि देव ही होगा इसलिए उसने मुस्कुराते हुए कॉल रिसीव कर ली...

    "क्या कर रही हो अरु?"...

    "काम कर रही हूं"...

    "हूं...!"...

    "पहुंच गए ऑफिस?"...

    "अभी कहां मेरी जान...अभी तो आधा सफ़र भी तय नहीं हुआ है"...देव ने ऊब कर कहा उसकी आवाज़ पर आरना हँसते हुए बोली,"तुम्हारी आवाज़ से लग रहा है तुम अब रो दोगे"...

    "मेरा मज़ाक उड़ा रही हो?"...

    "बिल्कुल भी नहीं"... आरना  तपाक से बोली...

    देव ने फोन पर ही शरारती अंदाज़ में कहा,"उड़ा लो बाबू मज़ाक,सारे बदले मैंने रात में न लिए तो कहना"...

    "धत्त...!"... आरना शरमा गई...देव फोन पर उसका शर्म से लाल चेहरा याद कर के मुस्कुरा उठा वो बेसब्र हो कर बोला,"शरमाते हुए तुम इतनी प्यारी लगती हो कि क्या कहूं अभी सामने होता तो अपनी बाहों में जकड़ कर ढेर सारा प्यार करता तुम्हें"...
    आरना का चेहरा शर्म से लाल हो उठा उसने शरमाते हुए कहा,"फोन पर ऐसी बातें न किया करो देव"...

    "क्यूँ?"...

    "ऐसे ही...मुझे...मुझे अजीब लगता है"...

    "तुम्हारा यही अजीब तो मुझे तुम्हारी तरफ़ और ज्यादा खींचता है...सच कहूं तो मेरा दिल ही नहीं करता तुम्हें छोड़ कर दूर जाने को"...

    "अच्छा जी!"...

    "हां...बस दिल चाहता है तुम्हारे साथ रहूं... तुम्हें प्यार करूं और"...

    "और कुछ नहीं समझे"... आरना शरमा कर बोली तो देव  शरारती लहज़े में बोला,"मैं न आज छुट्टी कर लेता हूं"...

    आरना ये सुन कर घबरा गई और तुरंत बोली,"क्यूं छुट्टी करना है?"...

    "तुम्हें प्यार करने के लिए"...

    "तुम पागल हो क्या"...

    "हाँ न मेरी अरु तुम्हारे लिए"...

    "बकवास मत करो...चुपचाप ऑफिस जाओ"...

    "कैसी पत्नी हो यार मुझे तुम्हें प्यार करना है और तुम मुझे ऑफिस भेज रही हो जबरदस्ती"...देव चिढ़ कर बोला...आरना उसके जज़्बात समझती थी क्योंकि वो भी तो देव के साथ वक़्त गुजारना चाहती थी लेकिन वो एक परिवार में रहते थें इसलिए बहुत सी बातों को बोलने और करने से पहले आगे पीछे देखना पड़ता था...
    आरना नहीं चाहती थी कि देव उससे नाराज़ हो इसलिए उसने सुलझे अंदाज़ में कहा,"देव... मैं सब समझती हूं लेकिन तुम भी तो समझो...अगर तुम छुट्टी ले कर घर आ गए तो सब क्या सोचेंगे...हम एक परिवार में रहते हैं न देव तो हमें ये सब तो सोचना पड़ेगा"...

    उसकी बात पर देव ने कोई जवाब नहीं दिया, उसकी खामोशी पर आरना प्यार से बोली,"नाराज़ हो गए?"...

    "नहीं!"...

    "तो चुप क्यूं हो?"...

    "सोच रहा हूं कि जो बात मुझे सोचनी चाहिए थी वो तुम सोच रही हो"...देव ने कहा तो आरना धीरे से मुस्कुरा दी...फिर कुछ देर की खामोशी के बाद बोली,"ठीक है...अब तुम ऑफिस जाओ... मैं रात को तुम्हारा इंतजार करूंगी"...

    "लव यू अरु"...

    "लव यू टू देव"... आरना का ज़वाब सुन कर देव ने फोन पर ही उसे प्यार से किस किया और अब सारा ध्यान ड्राइविंग पर लगा दिया...
    उसके खोने रखने के बाद आरना कुछ देर तक फोन को देखती रही... देव की बातों को याद कर वो ब्लश कर रही थी...

    नई नई शादी का खुमार ऐसा ही होता है,सब कुछ अच्छा लगता है...एक दूसरे को देखना देख कर शरमा जाना कभी झिझक जाना तो कभी बेझिझक वो सब कुछ कह देना जो किसी से नहीं कहा...ये एक अलग ही एहसास होता है जिसके होने से ही सब कुछ खूबसूरत लगता है और ऐसा आभास होता है जैसे ये रिश्ता हमेशा यूं ही रहेगा...देव और आरना के लिए भी सब कुछ नया ही था फोन पर बातें करने में और साथ ज़िंदगी जीने में फर्क होता है और दोनों अब साथ मिल कर उन ख़्वाबों को जी रहे थें जो कभी उन्होंने फोन पर बात करते हुए बुने थे...


    आरना ने मोबाइल किनारे रखा फिर पहले झूठे बर्तन साफ किए फिर जो छोटे छोटे काम थें उन्हें निपटाने लगी...ये सब करते हुए उसे एक घंटे से ऊपर का वक़्त लग गया...
    सारा काम निपटा कर देखा तो घर में अभी साढ़े ग्यारह ही बज रहे थें... खाना अभी नहीं बनाना था इसकिए उसने आराम करने का सोचा और कमरे में आ गई...
    देव के न होने से कमरे में भी सन्नाटा पसरा हुआ था...लेकिन देव तो देव था जाते जाते भी उसने आरना को अपने होने का एहसास करवा दिया था...
    कमरे में सारा सामान बिखरा पड़ा था,देव के शर्ट टॉवेल क्रीम और भी बाकी चीजें जो देव ने ऑफिस जाने से पहले इस्तेमाल की थीं वो कमरे में बिखरी पड़ी थीं...
    आरना को थोड़ा बुरा लगा कि देव ने लापरवाही की फिर भी उसने धीरे धीरे सारा सामान समेट कर रख दिया और खुद आराम करने के लिए लेट गई...

    कुछ देर आराम करने के बाद उसने अपनी माँ को कॉल लगा दी...
    आरना का फोन देख कर लता जी मुस्कुरा उठीं...
    "हैलो...कैसी हो अरु"...

    "अच्छी हूं माँ"... आरना धीरे से बोली...उसके लहज़े में छुपी उदासी लता जी महसूस कर सकती थीं लेकिन वो मजबूर थीं क्योंकि वो उसकी शादी देव से करा सकती हैं देव के परिवार का दिल तो आरना ने ही जीतना था...
    उन्होंने प्यार से पूछा,"नाश्ता कर किया?"...

    "हां माँ"... आराम फिर से धीरे से बोली तो लता जी ने इस बार टोक ही दिया,"बुझी बुझी सी क्यूं है कोई परेशानी है क्या?"...

    "नहीं माँ कोई परेशानी नहीं है बस आप सबकी याद आती है"... आरना का गला भर आया...
    लता जी ने सहजता से कहा,"ये तो ज़िदंगी की रीत है आरना,आज तक किस की बेटी घर में बैठी है जो तु रह जाती और फिर हमसफर तो तेरी पसंद का है"...

    "हाँ माँ लेकिन"...

    "लेकिन क्या अरु...देव तो ठीक है न तेरे साथ?"...लता जी परेशान हो कर बोलीं...
    आरना ने लम्बी साँस ले कर कहा,"हाँ वो तो ठीक है माँ लेकिन कभी कभी कुछ समझ नहीं आता है"...

    "क्या समझ नहीं आता है?"...लता जी ने पूछा तो आरना बोली,"माँ वो शादी से पहले कहता था कि मेरी हर काम में मदद करेगा लेकिन जब से शादी हुई है सब कुछ मैं अकेले कर रही हूं इनफैक्ट बोल भी दूं तो भूल जाता है और कोई मदद नहीं करता...आज भी जब ऑफिस गया तो कमरे में सारा सामान बिखेर कर गया ऐसा थोड़े होता है माँ"... लता जी सब कुछ ध्यान से सुन रही थीं उन्हें अब आरना की उदासी की वजह पता चली...
    आरना देव की बातों को दिल से लगाए बैठी थी और ये सोच रही थी कि देव ऑफिस जाने से पहले उसके घर के कामों में मदद कर के जाए...
    उन्होंने बात को सुलझाते हुए कहा,"आरना वो मर्द है...हो सकता है कि उसने तुमसे ऐसा कोई वादा किया हो लेकिन शादी से पहले और शादी के बाद के हालात में बहुत अंतर होता है...तुम्हारी शादी को अभी एक सप्ताह हुआ है और देव को अपने तरीके से जीने की आदत है...अब जब तुम उसे समझोगी और समझाओगी ये सारी बातें खत्म हो जाएंगी और रही बात मदद करने की तो बेटा वो सब फ़िल्मों में होता है... मर्द बाहर कमाते हैं और औरतें घर को चलाती हैं उसे सजाती हैं ये सदियों से चला आ रहा है और यही चलता रहेगा..."...

    "हूं...!"...आरना उनके इस तर्क के आगे कुछ ज़वाब नहीं दे पाई...वो उन्हें भला क्या ही समझाती जब देव को समझ नहीं पा रही थी...
    उसने बात की दिशा बदल दी और फिर थोड़ी बहुत बात कर के फोन रख दिया...


    क्रमशः...

  • 12. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 12

    Words: 1066

    Estimated Reading Time: 7 min

    लता जी से बात करने के बाद आरना थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गई... दोनों नन्द घर पर नहीं थीं और सास अपने कमरे में थीं उसे ऐसा लगा जैसा वो अकेली हो इस घर में...कोई उससे बात नहीं करता था सिवाय देव के...
    उसने अपना ध्यान भटकाने के लिए मोबाइल में गेम खेलना शुरू कर दिया...थोड़ी देर बाद ही उसका मूड अच्छा हो गया...
    वक्त देखा तो खाना बनाने का समय भी हो ही गया था...
    वो कुसुम जी के पास जा कर खाने का पूछ कर किचेन में आ गई...

    उसने वक्त देखा तो मुस्कुराते हुए देव के बारे में सोचने लगी,अभी तक तो ऑफिस भी पहुंच गया होगा वो... शायद बिजी है तभी कॉल नहीं किया उसने अभी तक...वो सोच ही रही थी कि देव के नाम की कॉल आ गई...
    किसी के बारे में सोचो और वही आपको याद कर ले तो दिल खुशी से झूम उठता है,उसने जल्दी से कॉल रिसीव कर के कहा,"हैलो...!"...

    उसकी इतनी चहकती आवाज़ सुन कर देव की आँखें भी चमक उठीं,"ओहो...क्या बात है इतनी ख़ुश क्यूँ हो?"...

    "अभी तुम्हें ही याद कर रही थी और तुम्हारा कॉल आ गया"... आरना ब्लश कर रही थी...देव ने सुना तो उसके मन में तितलियां उड़ने लगीं उसने एक लम्बी साँस ले कर कहा,"ऐसी बातें मत करो अरु दिन गुजारना मुश्किल हो जाएगा"...

    "मैंने ऐसी भी कोई बात नहीं देव!"...

    "ये तो तुम्हें लगता है लेकिन मेरे दिल से तो पूछो उसे क्या लगता है"...

    "अच्छा...क्या लगता है तुम्हारे दिल को?"...

    "मेरे दिल को बस यही लगता है की तुम जब जब ऐसी बातें करो तो मैं तुम्हारे सामने रहूं तुम्हारे ब्लश होते चेहरे की देखूं और जब भी मौका मिले तुम्हें जी भर कर चूम लूं"... आरना मुस्कुरा उठी...
    देव फोन पर था लेकिन उसकी मुस्कुराहट वो यहीं से देख सकता था...

    "अच्छा रात अच्छे से तैया रहना!"...

    "क्यूं?"...

    "बाहर चलेंगे"...

    "आंटी गुस्सा करेंगी"...

    "उन्हें मैं संभाल लूंगा अरु"...

    "ठीक है तब"...

    "वैसे क्या कर रही थी अभी"...

    "खाना बनाने जा रही हूं"...

    "ओह तो मैं भी आ जाऊं खाना खाने"...

    "आ जाओ..."आरना के मुंह से निकल गया...

    "सच में आ जाऊं"...

    आरना का दिल तो था कि वो उसे बुला ले लेकिन काम भी ज़रूरी था इसलिए उसने खुद के मन को बदलते हुए कहा,"काम पहले है देव...अब चलो तुम भी काम करो और मैं भी अपना काम निपटाती हूं"...

    देव का मन नहीं था कॉल रखने को लेकिन रखना तो था ही,वो अभी और बात करना चाहता था लेकिन आरना को प्रॉब्लम न हो ये सोच कर उसने कॉल रख दिया...
    दोनों अब काम करने लगें... आरना ने जल्दी जल्दी काम निपटाया और सब कुछ करते हुए उसे डेढ़ बज गए...
    इस बीच एक बार भी कुसुम जी ने आ कर उसे नहीं देखा और न ही उससे कुछ पूछा...
    आरना को बुरा तो लग रहा था लेकिन वो चुप ही रही।

    खाना बना कर किचेन समेट कर उसने कुसुम जी को इन्फॉर्म कर दिया...कुसुम जी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा,"सरिता और संध्या तो चार बजे तक आएंगी तुम दो बजे मेरे लिए खाना लगा देना"...

    "ठीक है आंटी"...वो जाने लगी तो कुसुम जी ने उसे रोक लिया,"रुको!"...

    आरना ने मुड़ कर उन्हें देखा तो कुसुम जी ने उसे एक कपड़े की गठरी देते हुए कहा,"ये धोने वाले कपड़े हैं ये सब धो देना"...
    आरना ने असमंजस में उन्हें देखा,कुसुम जी वापस बेड पर बैठ गईं और वहां से भी कुछ कपड़े देते हुए बोलीं,"सफ़ेद कपड़ों और रंगीन कपड़ों को अलग अलग धोना...ध्यान रहे कि किसी में भी रंग न लगें"...

    आरना ने हां में सिर हिलाया और कपड़े ले कर वहां से बाहर आ गई...उसने कपड़े बाथरूम में रखें और डाइनिंग टेबल पर बैठ गई...उसने एक नज़र कपड़ों की गठरी पर डाली तो उसे देव की बातें याद आ गई

    "मैं सारे काम कर सकती हूं देव सिवाय एक के"...


    "वो कौन सा काम है जो तुम्हें नहीं पसंद "...

    "कपड़े धोना"...

    "हैं...?"...

    "हां मुझे न कपड़े धोने से चिढ़ है...पता नहीं क्यूं लोगों के उतरन मुझसे धोए नहीं जाते"...

    "लेकिन शादी के बाद कैसे करोगी"...

    ये सुन कर आरना परेशान हो गई उसने घबरा कर कहा,"तुम तो मेरे देव हो न कोई हल तो होगा न इस बात का"...

    देव उसकी घबराहट पर हँसते हुए बोला,"पागल लड़की...मेरे घर के सारे कपड़े धोबी के घर जाते हैं... माँ ही सारे कपड़े देती है धोबी को इसलिए तुझे परेशान होने की जरूरत नहीं है"...देव ने कहा था तो आरना बहुत खुश हुई थी...

    "वैसे भी मेरी आरना के हाथ इतने सुंदर हैं उसे कपड़े धो कर खराब नहीं करूंगा...उसे तो मैं बहुत आराम दूंगा देखना"...

    वर्तमान में देव की बातें याद कर आरना के दिल में एक उम्मीद जगी थी,उसने सोचा कि कपड़े अभी रहने देती है शाम को देव ही अपनी माँ से बात करेगा...
    वो यही सोच रही थी कि कुसुम जी वहां आ गईं और उसे खाली बैठा देख कर नाराज़गी से बोलीं,"ये क्या तुम ऐसे बैठी हो... कपड़े नहीं भिगोए धोने के लिए"...

    आरना उनकी बात पर झिझक उठी,उसे दहेज़ में वाशिंग मशीन मिली थी लेकिन वो अब तक उसे इस्तेमाल नहीं कर पाई थी...उसे लगा अब तो वो इस्तेमाल कर ही सकती थी इसलिए उसने धीरे से कहा,"आंटी...मुझे कपड़े धोने नहीं आते...अगर आप कहें तो वाशिंग मशीन में...!"...

    उसकी बात पूरी होने से पहले ही कुसुम जी ने उसे झिड़की दे दी,"कपड़े धोने नहीं आते तो सीख लो...मेरे यहां कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं धुलते हैं...उसमें कपड़ों का रंग उड़ जाता है और कपड़े भी कमजोर होते हैं"...

    "लेकिन आंटी मुझे...!"... आरना ने उन्हें कन्वेंस करने के लिए कुछ बोलना चाहा तो कुसुम जी ने सर्द लहज़े में कहा,"इस घर में मेरा कहना चलता है... और अगर तुम्हें काम से इतनी ही दिक्कत है तो अपने कमरे में रहा करो मैं कर लूंगी"...
    आरना को बहुत बुरा लगा आँखों में तुरंत आंसू आ गयें,उसने कुछ नहीं कहा बस कपड़ों की गठरी खोल कर कपड़ो को एक एक कर के पानी में भिगोने लगी...

    कुसुम जी वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठ गईं...उनके बैठने के बाद आरना ने उन्हें खाना का कर दिया...
    राहत यही थी कि आरना खाना बहुत अच्छा बनाती थी कि वो चाह कर भी उसे इसके लिए ताना नहीं दे पाती थीं...
    वो खाना खा कर जैसे ही उठीं घर की डोर बेल बजी, दोनों ने हैरानी से एक दूसरे को देखा...
    इस वक्त कौन आ गया ये सोच कर कुसुम जी खुद ही दरवाज़ा खोलने चली गईं...

    दरवाज़ा खोलते ही उन्होंने हैरानी से कहा,"तुम...?"...

    क्रमशः....

  • 13. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 13

    Words: 1385

    Estimated Reading Time: 9 min

    वो खाना खा कर जैसे ही उठीं घर की डोर बेल बजी, दोनों ने हैरानी से एक दूसरे को देखा...
    इस वक्त कौन आ गया ये सोच कर कुसुम जी खुद ही दरवाज़ा खोलने चली गईं...

    दरवाज़ा खोलते ही उन्होंने हैरानी से कहा,"तुम...?"...

    आरना भी हैरान हो गई कि इस वक्त ऐसा कौन आ गया जो कुसुम जी ऐसे बर्ताव कर रही हैं वो देखने के लिए आगे बढ़ी ही थी कि एक भारी आवाज़ उसके कानों में पड़ी,"हाँ माँ...वो तबियत ठीक नहीं थी"...  हाँ ये देव था जो इस वक्त घर आया था उसकी आवाज़ सुन कर आरना के दिल में गुदगुदी सी होने लगी...
    कुसुम जी अब तक किनारे हो गईं थीं, अंदर आते हुए देव की नज़र आरना पर पड़ी तो वो उसे प्यार से देख कर मुस्कुरा उठा जिसे कुसुम जी ने भी देख लिया और उन्हें ये बिल्कुल पसंद नहीं आया...
    उन्होंने बीच में पड़ते हुए कहा,"क्या हुआ है तेरी तबियत को..."...

    देव चौंक गया,"हाँ... हाँ वो पेट में दर्द है"...

    आरना ये सुन कर घबरा गई उसने फ़ौरन कहा,"कैसे पेट में दर्द हो रहा है... मैं... मैं अजवाइन का पानी लाती हूं उसे पी कर आराम मिलेगा"...कुसुम जी ने नाराज़गी से आरना को देखा और रुखे तरीके से बोली,"उसे सिर्फ़ पेट में दर्द है तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे न जाने इसे क्या हो गया है"...
    आरना को बुरा तो लगा लेकिन हमेशा की तरह वो चुप ही रही और किचेन में चली गई...
    उसे किचेन में जाने के बाद देव ने धीरे से कहा,"माँ मैं कमरे में जा रहा हूं थोड़ा आराम मिले शायद...आप ने खाना खा लिया?"...

    "हाँ...!"...

    "ठीक है मैं जा रहा हूं पता नहीं क्यूं दर्द हो रहा है अचानक से"...देव चला गया कुसुम जी ने कातर नजरों से देव को देखा...

    किचेन में आरना को सब कुछ सुनाई दे रहा था ,वहां उसने पानी गरम कर के उसमें अजवायन डाला और उसे ले कर कमरे में आ गई...
    कमरे में आई तो देखा देव बिस्तर पर लेटा हुआ था,वो धीरे से मुस्कुरा कर बोली,"देव ये पी लो... दर्द में आराम मिलेगा"...
    देव उठ कर बैठ गया उसने ग्लास उसके हाथ से ले लिया और उसे पीने की जगह टेबल पर रख दिया...
    आरना ने असमंजस में उसे देखा,"ये रख क्यूँ दिया पियो न?"...

    देव ने हँसते हुए कहा,"पेट में दर्द हो तब न पिऊंगा"...

    "क्या मतलब?"... आरना ने चौंकते हुए कहा...देव एक झटके में उठा और उसे अपनी गोद में उठा कर प्यार से बोला,"यही की मैं तुम्हारे लिए आया हूं"...

    आरना हैरानी और खुशी के मिले जुले भाव से देव को देखने लगी,देव ने उसके गालों को चूमते हुए कहा,"तुम्हें मेरी याद आ रही थी न?"...

    "तुम इसलिए आए हो?"...

    "हाँ और नहीं तो क्या... तुम्हें मेरी याद आए और मैं तुम्हारे पास न आऊं ऐसा हो सकता है भला"...देव उसे प्यार से देख रहा था...
    आरना के पास अपनी खुशी बयान करने के लिए शब्द नहीं थें उसने देव के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया...
    देव उसके लिए ऑफिस से छुट्टी ले कर आया था यही बहुत था उसके लिए...
    देव ने अब उसे नीचे उतारा और उसकी आँखों में प्यार से देखते हुए बोला,"खुश हो?"...

    "बहुत!"...

    "बस इसीलिए आया हूं समझी"...

    आरना ने मुस्कुरा कर उसे देखा तो देव ने अब उसे अपने बगल में बैठा लिया,"खाना खा लिया?"...

    "नहीं...!"...

    "क्यों?"...

    "अभी तो आंटी को खिलाया है अब जाती खाने तो तुम ही आ गए"...
    देव ने उसकी बात पर कुछ सोचते हुए कहा,"चलो जाओ खाना खा लो उसके बाद बाहर चलेंगे"...

    "सच में?"... आरना खुश हो गई...
    देव ने पलकें झपका दीं... आरना खाना खाने बाहर आ गई तो देखा कुसुम जी अभी तक हॉल में ही बैठी हुईं थीं... उन्हें देख कर वो ठिठक गई...कुसुम जी उसे देखते ही सपाट भाव से बोलीं,"कैसी है देव की तबियत?"...


    "ज...ज...जी ठीक है"...

    "हूं...ठीक है जब उसे आराम हो जाए तो उसे कहना मुझ से आ कर मिले"...कुसुम जी बोल कर अपने कमरे में चली गईं...
    वो कमरे में आईं तो कुछ बेचैन नज़र आईं,हो भी क्यों न आखिर उनका बेटा हाथ से जो निकल रहा था...
    उन्होंने पहले लव मैरिज के लिए रजामंदी दी थी लेकिन अब वो अपने बेटे को उसकी बीवी का ग़ुलाम बना हुआ नहीं देख सकती थी...
    क्या वो समझ नहीं रही थी कि देव अभी बहाने से घर आया था,वो सब समझ रही थीं लेकिन आरना को सुनाने की जगह उन्हें देव से ही बात करना सही लग रहा था...

    आरना खाना खा कर कमरे में आई तो देव मोबाइल चला रहा था,उसने आते ही उसे कुसुम जी की कही बात उसे बता दी...उसने मोबाइल किनारे रखा और बाहर जाते हुए बोला,"तुम तैयार हो जाओ माँ से मिल कर आता हूं फिर बाहर चलते हैं"...

    "ठीक है!"...आरना अपने कपड़े निकालने लगी...

    देव कुसुम जी के कमरे में आया,कुसुम जी कपड़े तह कर रही थीं ये देख कर देव ने उनके हाथ से कपड़े ले लिए,"माँ आप ये क्या कर रही हैं...आप आरना को कह देती वो कर देती"...

    कुसुम जी ने कुछ नहीं कहा तो देव तुरंत नॉर्मल हो गया,"आरना ने बताया कि आप ने मुझे बुलाया है"...

    "हाँ बैठो"...कुसुम जी स्नेह से बोलीं...
    देव वहीं कुर्सी पर बैठ गया...
    उसके बैठने के बाद कुसुम जी ने गंभीरता से कहा,"तबियत कैसी है अब?"...

    "ठीक है माँ!"...

    "ज्यादा दर्द था क्या जो दवा से भी ठीक नहीं हो सकता था"...कुसुम जी ने कातर नजरों से उसे देखा...
    देव ने सकपका कर उन्हें देखा तो कुसुम जी का लहज़ा अब कठोर हो गया,"देव तुम लव मैरिज करना चाहते थें मैंने ये बात मान ली लेकिन शादी के बाद ये मत भूलो कि तुम्हारे घर में दो जवान बहनें हैं"...

    देव ने असमंजस में कहा,"माँ आप कहना क्या चाह रही हैं मैं कुछ समझ नहीं"...
    कुसुम जी गहरी साँस ले कर बोलीं,"मैं बस ये समझा रही हूं कि तुम जो भी कर रहे हो बस इतना ध्यान रखो कि कल को घर का माहौल ख़राब न हो...अगर तुम परहेज़ नहीं करोगे तो कल को तुम्हारी बहनें भी मर्यादा लांघने की कोशिश करेंगी ये सोच कर कि जब मेरा बड़ा भाई कर सकता है तो हम क्यूं नहीं इसलिए थोड़ा ख्याल रखो और अपनी पत्नी को भी ये समझा दो"...

    देव समझ गया उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया,"ठीक है माँ"...
    देव उठने लगा तो कुसुम जी ने पीछे से पूछा,"लंच कर किया था तुमने?"...

    "हाँ..."...

    "ठीक है अब आराम करो"...कुसुम जी ने भी इतना ही कहा और फिर उठ कर अपना काम करने लगीं...

    देव कमरे में आया तो आरना तैयार हो चुकी थी और उसके आने का इंतजार कर रही थी...उसे देखते ही वो खुशी खुशी बोलो,"मैं तैयार हूं चलें"...

    देव ने उसकी तरफ़ देखा फिर कुछ बोले बग़ैर उस पर से नज़र हटा कर बोला,"नहीं यार मन हो रहा है कल चलेंगे!"...
    आरना ने हैरानी से उसे देखा,"देव मैं तैयार हो चुकी हूं कपड़े बदल लिए हैं और तुम कह रहे हो नहीं जाना है"...

    "तो कपड़े वापस बदल लो न ऐसी कौन सी बड़ी बात है"...देव झिल्ला कर बोला... आरना का जो चेहरा कुछ देर पहले खुशी से खिला हुआ था वो खत्म हो गया...उसने एक उम्मीद भरी नज़र देव पर डाली मगर देव ने न तो दुबारा उसकी तरफ़ देखा और न ही उससे कुछ पूछा... कुछ देर इंतजार करने के बाद बुझे मन से आरना ने अपने कपड़े बदल लिए और अपना मेकअप उतारने आइने के सामने खड़ी हो गई...

    जब वो अपने झुमके उतार रही थी तो देव उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया,"ये मत उतारो"...

    "क्यूं न उतारूं"... आरना ने बुझे स्वर में कहा...और झुमका वापस से उतारने लगी देव ने उसके हाथ पकड़ लिए,"कहीं नहीं जा रहे हैं इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम ये सब घर भी न पहनो"...

    आरना ने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया,"जा कर आराम करो...पहले खुद कहा खुद तैयार करवाया और अब मना कर दिया मुझे नहीं करनी है तुमसे बात"...
    देव उसकी नाराज़गी समझता था लेकिन वो अपनी माँ की बातों की वजह से परेशान था इसलिए उसने आरना को मनाने की कोशिश भी नहीं की उसने आरना को कुछ कहा नहीं और कमरे से बाहर निकल गया...
    आरना हैरान रह गई जो देव उसकी थोड़ी सी नाराज़गी पर बेचैन हो जाता था उसने उसे मनाया तक नहीं... आरना ये बात बर्दाश्त नहीं कर पाई और धीरे से रो पड़ी...


    क्रमशः...
    कहानी कैसी लग रही है...अगर अच्छी लग रही है तो प्लीज कॉमेंट्स और स्टिकर्स दे कर अपना प्यार जताइए

  • 14. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 14

    Words: 1103

    Estimated Reading Time: 7 min

    आरना हैरान रह गई जो देव उसकी थोड़ी सी नाराज़गी पर बेचैन हो जाता था उसने उसे मनाया तक नहीं... आरना ये बात बर्दाश्त नहीं कर पाई और धीरे से रो पड़ी...

    देव बहुत देर तक कमरे से बाहर ही रहा, आरना ने अपने कपड़े बदले और पहले वाले कपड़े पहन कर बाहर आ गई... चार बजते बजते सरिता और संध्या भी घर आ गईं आते ही दोनों ने कपड़े बदले और आरना से खाने की फरमाइश कर दी...
    आरना ने उन दोनों को खाना परोसा तो देव ने उसे देखे बग़ैर कहा,"मुझे एक कप चाय देना"...

    आरना ने भी उसकी तरफ नहीं देखा गुस्सा तो वो पहले ही थी देव के चाय मांगने पर और गुस्सा हो गई...सबके सामने उसने कुछ नहीं कहा बस चाय बनाने चली गई उसने कुसुम जी के लिए भी चाय बनाई क्यूँ की वो जानती थीं अभी दस मिनिट में कमरे से बाहर निकलेंगी और उससे चाय की फरमाइश करेंगी...
    उसने चाय बना कर कुसुम जी और देव को दिया और खुद भिगोए हुए कपड़े धोने बैठ गई...
    देव ने उसे हाथ से कपड़े धोते देखा तो कुछ बोला नहीं आरना को कपड़े धोने में दो घंटे लग गए...

    सारे कपड़े उसने अकेले ही धोए और उन्हें बालकनी में सूखने के लिए डाल कर जैसे ही कमरे में जाने लगी कुसुम जी ने पकौड़ों की फरमाइश कर दी...
    दो घंटे कपड़े धोने के बाद उसमें हिम्मत नहीं बची थी लेकिन मना कैसे करती जब देव ने ही कुछ नहीं कहा...
    वो वापस किचेन में आई और सबके लिए पकौड़े बनाने लगी...

    पकौड़े बना कर उसने सबको चाय के साथ सर्व कर दिया और खुद कमरे में आ गई...
    कमरे में आ कर वो सुस्ताने लगी देव की खामोशी उसे चुभ रही थी, माना बाहर जाने का मन नहीं था फिर उसे तैया क्यूँ करवाया और अगर मना भी किया तो कोई वजह क्यूँ नहीं दी...
    और अब जबकि उसे पता था कि आरना से किसी के उतरन नहीं उतारे जाते उसने एक बार भी अपनी माँ से सवाल नहीं किया कि आख़िर क्यूँ कपड़े आरना से धुलवाए जा रहे हैं...

    वो ये सब सोच रही थी कि देव कमरे में आ गया,उसने देव को मुड़ कर नहीं देखा,देव आ कर उसके बगल में बैठ गया... आरना उससे दूर खिसकने लगी ये देख कर देव ने उसके क़मर पर हाथ रख कर उसे अपनी तरफ़ खींच लिया, आरना गुस्से में खुद को छुड़ाते हुए बोली,"छोड़ो मुझे!"...

    देव ने छोड़ने की जगह उसे और कस कर पकड़ लिया और प्यार से बोला,"नाराज़ हो?"...

    "नहीं...!"... आरना उखड़ कर बोली...

    देव ने उसे मुस्कुरा कर देखा और उसके कुछ सोचने से पहले ही उसे उठा कर अपनी गोद ने बैठा दिया... आरना ने गुस्से से उसे देखा मगर देव के ऊपर उसके गुस्से का कोई असर नहीं हो रहा था...
    उसने आरना को उसी तरह गोद में बैठाए हुए प्यार से कहा,"सॉरी...!"...

    सॉरी सुन कर आरना का गुस्सा और तेज हो गया...उसने उखड़ कर कहा,"छोड़ दो मुझे देव,बात मत करो समझे"...

    "क्यूँ न करूं पत्नी हो तुम मेरी"...

    "हाँ बस नाम के लिए"...

    देव को ये बात बुरी लग गई उसने अब नाराज़ हो कर कहा,"मैंने बाहर नहीं ले जाने का कहा तो कुछ वज़ह थी उसके लिए ऐसी बात बोल रही हो"...

    आरना उससे दूर खड़ी हो गई और रुआंसी हो कर बोली,"बात बाहर जाने तक की नहीं है देव,उसके अलावा भी घर में मेरे साथ बहुत कुछ हो रहा है जिसे तुम देख कर नज़र अंदाज़ कर रहे हो"...

    "ऐसा क्या हो रहा है तुम्हारे साथ अरु?"...देव ने गहरी नज़र उस पर डाली तो आरना ने कपड़े धोने वाली सारी बात उसे बताते हुए कहा,"तुमने भी मुझे देखा कपड़े धोते हुए लेकिन तुमने अपनी माँ से कुछ नहीं पूछा...तुम जानते हो न मुझसे किसी और के उतरन नहीं धोए जाते हैं फिर भी...फिर भी तुमने अपनी माँ से या मुझसे ये पूछना गवारा क्यूँ नहीं किया कि धोबी को देने वाले कपड़े मैं क्यूँ धूल रही हूं"...
    उसकी बात सुन कर देव ने अपना सिर पकड़ लिया... आरना अब रोने लगी थी उसने रोते हुए कहा,"शादी से पहले तुमने मुझसे क्या क्या वादे नहीं किए थें, मैं अपनी तरफ से कोशिश कर रही हूं तुम्हारी माँ का दिल जीतने की लेकिन तुमने तो मौन धारण कर लिया है देव...आज भी न जाने आंटी ने क्या कहा कि मुझे तैयार करवा कर बाहर नहीं ले गए"...

    "यार तुम पहले रोना बंद करो"...देव चिढ़ कर बोला...उसकी चिढ़ पर आरना रोते हुए उसे हैरानी से देखने लगी...
    देव को तुरंत अपनी ग़लती का एहसास हुआ लेकिन वो उसी तरह बोला,"आरना मैं बात बात पर घर के मामले में दख़ल नहीं दे सकता हूं...तुम क्या चाहती हो कि मैं सिर्फ तुम्हारे लिए माँ से सवाल ज़वाब करूं उनसे हिसाब मांगू कि ऐसा क्यूँ हो रहा है"...

    "मैंने ऐसा तो नहीं कहा देव"... आरना ने बात को संभालने की कोशिश की तो देव झिल्ला गया,"लेकिन मतलब तो वही था न तुम्हारा... मैंने पहले ही तुमसे शादी कर के माँ का दिल दुखाया है इसलिए अगर वो कुछ कहती भी हैं तो हमें नज़र अंदाज़ करना चाहिए...तुम ये सोचोगी की माँ तुम्हें एक पल में स्वीकार कर लोगी तो ये नहीं होगा और न ही ये होगा कि घर के छोटे छोटे मैटर में पड़ कर मैं माँ से बहस करूं"...

    "तो क्या यूं ही चलता रहेगा ये सब...सिर्फ शादी करने तक की जिम्मेदारी थी तुम्हारी उसके बाद मेरे लिए कभी स्टैंड नहीं लोगे तुम"... आरना ने रोते हुए कहा...
    देव अब गुस्से से बोला,"तुम पागल हो गई हो अरु,शादी को अभी सिर्फ एक हफ़्ता ही हुआ है...सब कुछ इतनी जल्दी नहीं होगा वक़्त लगेगा इसलिए प्लीज़...थोड़ा धैर्य रखो और मुझे परेशान करना बंद करो"...देव की ये बात आरना के मन को चुभ गई वो अब कुछ बोल नहीं पाई...
    उसने अपने आंसू पोंछे और बाथरूम में जाने लगी तो देव की झल्लाहट सुनाई दी,"मैं ही पागल था जो तुम्हें सरप्राइज़ देने के लिए ऑफिस में झूठ बोल कर आ गया और यहां आ कर तुमने ये सब कुछ तमाशा कर दिया...अरे तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि बाहर भले ही न गए लेकिन तुम्हारे लिए घर तो आया मैं...लेकिन नहीं तुम्हें तो बाहर ही जाना है"... आरना का रोना बढ़ गया...वो तेजी से बाथरूम में घुस गई और सिसकियां ले कर रोने लगी...

    शादी को सिर्फ़ एक हफ़्ता हुआ था और आरना देव के बीच ऐसी बहस हो गई थी जिसकी वजह से आरना का दिल तो दुखा ही था साथ ही देव का मिज़ाज भी गरम हो गया था...
    न तो देव ने आरना से ऐसी बातों की उम्मीद थी न ही आरना को देव से इसलिए दोनों का ही दिल बुरी तरह से दुखा जिसका अंदाज़ा सिर्फ़ दोनों को ही था...


    क्रमशः...

  • 15. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 15

    Words: 1297

    Estimated Reading Time: 8 min

    आरना ने खुद को संभाला और किचेन में आ गई,जब से वो यहां आई थी ऐसा लग रहा था जैसे किचेन ही उसका सब कुछ है...वो यहां ब्याह कर तो आई है लेकिन बस काम करने के लिए...

    देव घर से बाहर चला गया था... आरना ने अपने विचलित को समझाते हुए खाना बनाया और काम समेट कर बाहर आने लगी तो सरिता आ गई...
    उसे देख कर आरना ने नज़रें चुरा लीं मगर सरिता सहजता से बोली,"भाभी...आप ठीक हैं?"...

    आरना हिचकिचा गई,उसने अपनी नज़रें चुरा लीं,"हाँ... हाँ ठीक हूं"...
    आरना की आवाज़ सुन कर सरिता भांप गई कि आरना परेशान है वो आरना से बात करना चाहती थी लेकिन अपने अंतर्मुखी व्यवहार के कारण कुछ पूछ नहीं पाई...
    सरिता शांत मिज़ाज की लड़की थी अपनी माँ और बहन के विपरीत...इसलिए उसे आरना से की दिक्कत नहीं थी बल्कि देव के सिवा आरना अगर इस घर में किसी को पसंद थी तो वो सरिता ही थी...
    वहां खामोशी छा गई फिर कुछ देर के बाद सरिता ने धीरे से कहा,"माँ बुरी नहीं है बस अभी सब कुछ नया नया है इसलिए वक्त लगेगा भाभी...आप हिम्मत मत हारना आप एक दिन जरूर सबके दिल में जगह बना लेंगी"...

    आरना बस मुस्कुरा कर रह गई इस घर में वो अभी तक वो किसी से घुलमिल नहीं सकी थी ऐसे में सरिता को क्या ही कहती...
    कुछ देर बाद सरिता वहां से चली गई... आरना फिर से अकेली रह गई...देव ने एक बार भी उसका हाल नहीं पूछा न ही मनाने की कोशिश की...ये बात उसे अंदर ही अंदर चुभ रही थी...
    उसने काम निपटाए तो खाना खाने का वक्त हो चुका था उसने सबको खाना खिलाया...सबके साथ देव भी खाने बैठा था...वो कहीं बाहर से आया था आरना ने एक बार भी उसकी तरफ़ नहीं देखा...जबकि देव उसकी रोई हुई आँखें देख रहा था...उसे एहसास हुआ कि उसे आरना से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी एक वही तो था इस घर में जिससे आरना शिक़ायत कर सकती थी और देव ने उसे रुला दिया...वो सबके साथ बैठ गया था मगर अब आरना को मनाए बगैर खाना खाने का दिल नहीं हो रहा था...
    सबके साथ बैठ गया था तो किसी तरह खाना ही था...
    उसने मुश्किल से एक रोटी खाई और फिर सबको एक्स्यूज कर के उठ गया...
    कुसुम जी कब से ये सब देख रही थीं उन्होंने उसके उठते ही कहा,"क्या हुआ देव...खाना सही से नहीं खाया तुमने?"...

    "नहीं माँ वो तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है"...देव ने बिल्कुल सामान्य हो कर कहा... अंदर किचेन में आरना सब कुछ सुन रही थी...

    "ठीक है दवा खा कर आराम करो"...कुसुम जी ने कहा देव हाँ में सिर हिला कर कमरे में आ गया...
    सब खा कर चले गए तो आरना खुद खाना खाने बैठी मगर देव की नाराज़गी ने एक निवाला भी गले से उतरने नहीं दिया...उसने खाने को ढंक कर उसी तरह रख दिया और सारे बर्तन धो कर कमरे में आ गई...
    कमरे में देव नहीं था...आरना को अजीब लगा कि आया तो कमरे में ही था फिर गया कहाँ वो परेशान हो गई...
    वो उसे देखने के लिए बालकनी की तरफ़ बढ़ी की देव ने पीछे से आ कर उसे हग कर लिया...
    आरना सकपका गई लेकिन फिर तुरंत सामान्य हो कर बोली,"छोड़ो मुझे"...

    "सॉरी...!"...

    आरना चुप हो गई,उसकी सॉरी पर उसकी आँखें नम हो गईं वो रुआंसी हो कर खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी मगर देव ने उसे छोड़ने की जगह और जोर से पकड़ लिया...
    आरना को बहुत गुस्सा आ रहा था इसलिए वो गुस्से में रोते हुए बोली,"छोड़ो मुझे देव,मुझे नहीं करनी है तुमसे बात"...
    देव को उसका रोना बहुत बुरा लग रहा था उसने आरना को छोड़ दिया, आरना वहीं खड़े खड़े सिसकने लगी देव ने धीरे से उसे अपनी तरफ़ घुमाया आरना ने एक बार भी उसकी तरफ़ नहीं देखा...
    देव ने उसके आंसू पोंछते हुए दोषी भाव से कहा,"माफ कर दो न अरु...मैं तुम्हें रुलाना नहीं चाहता था लेकिन पता नहीं गुस्से में क्या क्या बोल गया"...
    आरना ने अब उसे देखा देव कि आँखें उसका साथ दे रही थीं वो बेहद उम्मीद से उसे देख रहा था... आरना सिसकते हुए बोली,"मैं... मैं तुमसे न कहूं तो किससे कहूं देव,इस घर में तुम्हारे सिवा कोई मुझसे बात नहीं करता है"...
    उसकी बातें सुन कर देव और दोषग्रस्त हो गया...उसे अब खुद पर गुस्सा आ रहा था कि आखिर वो गुस्से मेन्यु सब कुछ भूल कैसे गया...

    उसने देर किए बग़ैर आरना को सीने से लगा लिया, आरना ने बदले में कोई हरकत नहीं की देव उसकी नाराज़गी समझ रहा था...
    उसने बस प्यार से कहा,"माफ कर दो अरु... आइंदा ऐसी गलती नहीं करूंगा...न जाने क्या हो गया था मुझे की मैं गुस्से में वो सब भूल गया शायद मुझे ही स्थिति को हैंडल करना नहीं आया"...

    आरना ने अलग हो कर शिकायती नजरों से उसे देखा देव ने बात बदलते हुए कहा,"खाना तो नहीं खाया होगा तुमने?"...

    "नहीं...!"...

    "जानता था मैं मेरे गुस्से में खाना क्यूं नहीं खाया अब से ऐसा मत करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं ये सब"...देव ने अब नाराज़गी से कहा...
    आरना कुछ नहीं बोली...देव ने उसे वहीं छोड़ कर जल्दी से कमरे का दरवाज़ा बंद किया और एक अलमारी पर रखा बॉक्स उठा लाया...
    आरना ने असमंजस में उसे देखा मगर फिर उसकी आँखें खुशी से चमक उठी और वो जोर से चीखते हुए बोली,"पि...!"...मगर वो अपने शब्द पूरे कर पाती उससे पहले ही देव ने भाग कर उसके मुँह को बंद कर दिया...

    "ए पागल लड़की मरवाना है क्या मुझे अभी कोई सुन लेता?"...
    आरना ने उसका हाथ अपने मुँह पर से हटाते हुए कहा,"खुशी के मारे कंट्रोल नहीं कर पाई"...

    "अच्छा फिर बाहर बवाल समेटने के लिए भी तैयार रहती"...देव ने मुंह बनाया...
    आरना धीरे से हँस पड़ी...देव ने अब उसे बेड पर बैठाया...
    आरना ने देखा वो दो पनीर चीज बर्गर और दो चीज बर्स्ट पिज़्ज़ा ले कर आया था...
    आरना ने बिना इंतजार किए पिज़्ज़ा खाना शुरू कर दिया...देव को वो इस वक्त बहुत क्यूट लग रही थी...वो भी मुस्कुराते हुए खाने लगा...
    आरना खाते खाते बोली,"ये कब ले कर आए तुम?"...

    "जब तुम खाना अधूरा छोड़ कर बर्तन धो रही थी"...देव ने आराम से कहा लेकिन आरना को उस पर बहुत प्यार आया...वो अब मन ही मन खुद को डांट रही थी कि इतना प्यार करता है फिर भी लड़ने बैठ गई वो...

    "पसंद आया?"...देव ने पूछा तो आरना ने थम्स अप कर दिया...देव खुश हो गया...वो जानता था आरना कितना भी गुस्सा हो पिज़्ज़ा देखते ही मान जाएगी आखिर फूडी जो थी...
    दोनों ने साथ पिज़्ज़ा बर्गर खत्म किया...देव ने सारे खाली बॉक्स किनारे रख दिए...
    ये देख आकर चिंतित हो गई,"अभी तो खा लिया हमने सुबह इसे फेकूँगी कैसे?"...

    "कचरे के डब्बे में डाल देना अरु सिंपल"...

    आरना ने परेशान हो कर कहा,"नहीं सुबह कचरा फेंकते वक्त आंटी जगी हुई रहती हैं अगर उन्होंने देख लिया तो"...ये सुन कर देव सोच में पड़ गया आखिर रिस्क तो था...अपनी माँ को वो अच्छे से जानता था उन्हें बाहर का ये पिज़्ज़ा बर्गर बिल्कुल पसंद नहीं था न खुद खाती थी न ही बच्चों को खाने देती थीं...अगर उन्हें थोड़ी भी भनक लग गई तो सुबह रायता फैल जाना था...
    बहुत देर सोचने के बाद देव ने कहा,"तुम इसे प्लास्टिक में पैक कर के सुबह मुझे दे देना मैं अपने बैग में रख आऊंगा और बाहर कहीं डस्टबिन में डाल दूंगा"...
    आरना को भी यही सुझाव पसंद आया...

    कुछ देर बाद दोनों कपड़े बदल कर बिस्तर पर सोने चले गए...देव ने उसे क़रीब खींच कर चूमा तो आरना ने थके स्वर में कहा,"देव...आज बहुत थक गई हूं... प्लीज"...
    देव ने उसे सिर पर थपकी मारते हुए कहा,"मैं जानता हूं पगली मैं तो बस गुड नाइट किस कर रहा था चलो अब सो जाओ"...देव ने आखिरी बार प्यार से आरना के माथे को चूमा और उसे खुद के सीने से लगा कर सोने की कोशिश करने लगा...

    क्रमशः...

  • 16. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 16

    Words: 1350

    Estimated Reading Time: 9 min

    देव ने आखिरी बार प्यार से आरना के माथे को चूमा और उसे खुद के सीने से लगा कर सोने की कोशिश करने लगा...
    दोनों सोने की कोशिश कर रहे थें लेकिन नींद तो आ नहीं रही थी...कुछ देर बाद आरना ने ही धीरे से कहा,"सो गए?"...

    "नहीं...!"...

    "मुझे भी नींद नहीं आ रही है"... आरना ने मासूमियत से कहा...देव उठ कर बैठ गया और उसे उठा कर खुद की गोद में बैठा लिया...

    "ज्यादा थक गई हो क्या?"...देव ने धीरे से उसके गालों को सहलाया...
    आरना ने बदन में झुरझुरी दौड़ गई,वो धीरे से मुस्कुरा कर बोली,"हाँ...मुझे कपड़े धोने की आदत नहीं है...ये देखो मेरे हाथ कैसे रखे हो गए हैं"... आरना ने अपने हाथ आगे कर दिए...
    देव ने एक नज़र उसकी हथेली पर डाली और फिर उसकी हथेली को बंद करते हुए सहज भाव से बोला,"मैं समझता हूं अरु लेकिन अभी माँ से किसी तरह की बात कर के मैं उन्हें नाराज़ नहीं कर सकता"...
    आरना चुप हो गई,उसे देव से इस ज़वाब की उम्मीद नहीं थी...

    देव ने उसके चेहरे पर अपनी उंगली फेरते हुए कहा,"माँ हमारी शादी के लिए बहुत मुश्किल से मानी है अरु, मैं चाहता हूं कि जैसा स्नेह उनके दिल में मेरे लिए है वैसा ही स्नेह वो तुमसे भी करे इसलिए जहाँ तक हो सके माँ के मन की करो ताकि जल्द से जल्द तुम माँ से अपने मन की करवा सको"...

    "क्या ये सब मैं ही अकेले करूं तुम आंटी से कुछ नहीं कहोगे?"... आरना को बुरा लगा था और ये बात उसके शब्दों में झलक रही थी...
    देव ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा,"करूंगा लेकिन तब,जब मुझे लगेगा कि मुझे बोलना है इतनी छोटी छोटी बात तुम खुद से हैंडल करना सीखो...अगर मैं हर मामले में बोलने लगा तो तुम्हारा और माँ का रिश्ता और बिगड़ जाएगा"...
    आरना की उसकी बात बिल्कुल गलत लग रही थी लेकिन वो चुप रहना बेहतर समझ रही थी...वो बात बढ़ा कर अपने और देव के बीच फासले नहीं बढ़ाना चाहती थी...
    नई नई शादी थी शायद इसलिए ये मुश्किल हो वो भी यही सोच कर संतोष कर गई...
    गलत और सही के बीच आरना उलझी हुई थी,उसे देव के परिवार की बातें ग़लत लग रही थीं यहां तक कि देव भी लेकिन वो देव की बातों को सही भी समझ रही थी...वो इसी उलझन में ही देव के कंधे पर सिर रख कर सो गई...
    देव ने उसे किनारे सुला दिया और खुद भी उसे पकड़ कर सो गया...

    अगली सुबह से आरना की वही रूटीन शुरू हो गई,सुबह उठ कर किचेन में सबके लिए नाश्ता बनाना खाना बनाना कपड़े धोना और बातों बातों में ही कुसुम जी के ताने सुनना...
    वो सब कुछ देव की वज़ह से सुन रही थी...
    देव ने भी अपनी तरफ से प्यार में कोई कमी नहीं रखी थी लेकिन वो आरना के लिए बहुत कम स्टैंड ले रहा था...मगर उस रोज के बाद देव और आरना में कोई बहस नहीं हुई... दोनों जब साथ होते तो खुशी खुशी प्यार से बातें करते...

    इसी तरह शादी को एक महीने बीत गए,और आज उन दोनों की शादी को एक महीने हो गए थें...सुबह हुई तो उसने हर रोज़ की तरह देव के माथे पर किस किया और नहा कर किचेन में चली आई...
    सबके लिए चाय ले कर कमरे में आ गई...
    उसने सबसे पहले कुसुम जी को चाय दी और अपनी और देव की चाय ले कर कमरे में आ गई...

    "उठ जाओ देव चाय ठंडी हो रही थी"... आरना ने स्नेह भरी आवाज़ में कहा...देव ने अपनी आँखें मसलते हुए खोली और नजर सीधा आरना पर पड़ी...वो झटके से उठ कर बैठ गया...
    आरना ने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना था जिसमें वो बहुत प्यारी लग रही थी...
    खुद पर देव की नज़र भांप कर आरना ब्लश करने लगी...
    उसने बाहर जाते हुए कहा,"फ्रेश हो कर चाय पी लो मैं आ रही हूं थोड़ी देर में"...

    देव जल्दी से बाथरूम में चल गया मुँह हाथ धो कर फ्रेश हुआ और बाहर आ गया...
    तब तक आरना बिस्कुट ले कर आ चुकी थी...देव बेहद रूमानियत से उसे देख रहा आखिर में आरना चिढ़ कर बोली,"मुझे देखना बंद करो और चाय पियो"...

    देव चाय पीने लगा दोनों ने चाय पी लिया तो आरना वापस किचेन में जाने लगी,ये देख कर देव ने तेजी से उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया...
    आरना हँसते हुए उसके सीने से जा लगी,"क्या कर रहे हो?"...

    "वही जो तुम करने नहीं देती हो"...देव उसकी आँखों में झांक कर बोला... आरना भी देव की नजरों से नज़र मिला कर बोली,"हर चीज़ का अपना एक वक्त होता है"...

    "प्यार का कोई वक्त नहीं होता अरु"...ये कह कर देव ने आरना को दीवार से लगा दिया और अपने हाथ उसके बगल रख दिए...
    आरना ने शरमा कर उसे देखा मगर देव शर्माना नहीं जानता था,उसने बिना कुछ सोचे आरना के होंठों को चूमना शुरू कर दिया...
    आरना भी उसका साथ दे रही थी, दोनों एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थें जैसे न जाने कितने दिनों के प्यासे हो...
    किस करते हुए देव के हाथ अब आरना के जिस्म पर हरकत कर रहे थें...लगभग दस मिनट तक आरना और देव एक दूसरे को बेतहाशा चूमते रहें...जब आरना को साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी तो उसने देव को खुद से दूर कर दिया...

    देव उससे दूर हुआ लेकिन उसकी लाल आँखें बता रही थीं कि देव को उसका यूं दूर करना पसंद नहीं आया था...
    आरना वहां से खिसकते हुए बोली,"ऑफिस भी जाना है...शाम में घर आना सरप्राइज़ है तुम्हारे लिए"...
    देव ने नाराज़ हो कर कहा,"सारा मूड खराब कर के बोल रही हो सरप्राइज़ दोगी... नहीं चाहिए तुम्हारा सरप्राइज़"...देव की नाराज़गी पर भी आरना को प्यार आ रहा था वो दरवाज़े तक जा कर वापस पलटी और लपक कर उसके गालों को चूमा और वहां से भाग गई...
    उसके जाने के बाद देव अपने गाल पर हाथ रख कर ब्लश कर रहा था...

    आरना का पूरा दिन वैसे ही गुजरा जैसे रोज़ बीत रहा था...लेकिन आज वो खुश थी,देव और उसकी शादी को एक महीना हो गया था...कहां एक वक्त लगा था कि वो और देव कभी एक नहीं हो पाएंगे आज वही दोनों एक साथ पति पत्नी के रूप में एक साथ ज़िंदगी जी रहे थें...

    दोपहर का खाना बना कर वो रूम में आई तो देव की कॉल आ गई,उसका दिल खुश हो गया...
    उसने तुरंत कॉल रिसीव कर ली...
    "अरे वाह मेरे ही इंतजार में थी क्या मैडम"...देव ने कॉल रिसीव होते ही प्यार से कहा...

    "जी हाँ...!"... आरना अपने पैर के नाखून को कुरेदते हुए बोली...होंठों पर शर्म की हल्की सी मुस्कुराहट और आँखों में देव के लिए बेइंतहा मुहब्बत...

    "वाह लगता है याद आ रही है मेरी"...

    "मैं तुम्हें भूलती कहां हूं देव,बस तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद एक एक पल गिन कर निकालती हूं कि तुम कब घर आओगे"... आरना ने अपना हाल ए दिल कह सुनाया...
    देव ने हँसते हुए कहा,"जिस तरह मुझे दूर करती हो उसे देख कर ये बात झूठ नहीं लगती तुम्हें"...

    "तुम बहुत बुरे हो देव"... आरना को उसकी ये बात अच्छी नहीं लगी...देव ठहाका मार कर हँस दिया...
    उसकी हँसी सुन कर उसके आसपास बैठे स्टाफ भी उसे देखने लगे...
    देव ने इधर उधर नज़र घुमाया तो वो झेंप गया और अपनी डेस्क पर झुक कर बोला,"सब मुझे ही देख रहे हैं मैं बाद में बात करता हूं बाय द वे हैप्पी फर्स्ट मंथ वेडिंग एनिवर्सरी अरु"... और उसने तुरंत कॉल कट कर दी...
    आरना को लगा था कि देव भूल गया है लेकिन उसे याद था...देव के फोन रखने के बाद वो मोबाइल हाथ में ले कर  मोबाइल हाथ में रख कर मुस्कुरा रही थी...कुछ देर बाद खुद के ही पागलपन पर झेंप उठी और बाहर आ गई...
    बाहर आई तो कुसुम जी किचेन में थी उन्हें किचेन में देख कर वो जल्दी से किचेन में भागी...
    वहां जा कर देखा कुसुम जी खुद के लिए खाना निकाल रही थी... आरना वहां पहुंची तो उन्होंने उसे ऐसे नज़र अंदाज़ किया जैसे वो वहां हो ही नहीं...
    आरना ने चुपके से मोबाइल में टाइम देखा तो ढाई बज रहे थें,टाइम देख कर उसे अब अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो कुसुम जी से बात करने के लिए आगे बढ़ी...

    क्रमशः...

  • 17. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 17

    Words: 1350

    Estimated Reading Time: 9 min

    देव ने आखिरी बार प्यार से आरना के माथे को चूमा और उसे खुद के सीने से लगा कर सोने की कोशिश करने लगा...
    दोनों सोने की कोशिश कर रहे थें लेकिन नींद तो आ नहीं रही थी...कुछ देर बाद आरना ने ही धीरे से कहा,"सो गए?"...

    "नहीं...!"...

    "मुझे भी नींद नहीं आ रही है"... आरना ने मासूमियत से कहा...देव उठ कर बैठ गया और उसे उठा कर खुद की गोद में बैठा लिया...

    "ज्यादा थक गई हो क्या?"...देव ने धीरे से उसके गालों को सहलाया...
    आरना ने बदन में झुरझुरी दौड़ गई,वो धीरे से मुस्कुरा कर बोली,"हाँ...मुझे कपड़े धोने की आदत नहीं है...ये देखो मेरे हाथ कैसे रखे हो गए हैं"... आरना ने अपने हाथ आगे कर दिए...
    देव ने एक नज़र उसकी हथेली पर डाली और फिर उसकी हथेली को बंद करते हुए सहज भाव से बोला,"मैं समझता हूं अरु लेकिन अभी माँ से किसी तरह की बात कर के मैं उन्हें नाराज़ नहीं कर सकता"...
    आरना चुप हो गई,उसे देव से इस ज़वाब की उम्मीद नहीं थी...

    देव ने उसके चेहरे पर अपनी उंगली फेरते हुए कहा,"माँ हमारी शादी के लिए बहुत मुश्किल से मानी है अरु, मैं चाहता हूं कि जैसा स्नेह उनके दिल में मेरे लिए है वैसा ही स्नेह वो तुमसे भी करे इसलिए जहाँ तक हो सके माँ के मन की करो ताकि जल्द से जल्द तुम माँ से अपने मन की करवा सको"...

    "क्या ये सब मैं ही अकेले करूं तुम आंटी से कुछ नहीं कहोगे?"... आरना को बुरा लगा था और ये बात उसके शब्दों में झलक रही थी...
    देव ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा,"करूंगा लेकिन तब,जब मुझे लगेगा कि मुझे बोलना है इतनी छोटी छोटी बात तुम खुद से हैंडल करना सीखो...अगर मैं हर मामले में बोलने लगा तो तुम्हारा और माँ का रिश्ता और बिगड़ जाएगा"...
    आरना की उसकी बात बिल्कुल गलत लग रही थी लेकिन वो चुप रहना बेहतर समझ रही थी...वो बात बढ़ा कर अपने और देव के बीच फासले नहीं बढ़ाना चाहती थी...
    नई नई शादी थी शायद इसलिए ये मुश्किल हो वो भी यही सोच कर संतोष कर गई...
    गलत और सही के बीच आरना उलझी हुई थी,उसे देव के परिवार की बातें ग़लत लग रही थीं यहां तक कि देव भी लेकिन वो देव की बातों को सही भी समझ रही थी...वो इसी उलझन में ही देव के कंधे पर सिर रख कर सो गई...
    देव ने उसे किनारे सुला दिया और खुद भी उसे पकड़ कर सो गया...

    अगली सुबह से आरना की वही रूटीन शुरू हो गई,सुबह उठ कर किचेन में सबके लिए नाश्ता बनाना खाना बनाना कपड़े धोना और बातों बातों में ही कुसुम जी के ताने सुनना...
    वो सब कुछ देव की वज़ह से सुन रही थी...
    देव ने भी अपनी तरफ से प्यार में कोई कमी नहीं रखी थी लेकिन वो आरना के लिए बहुत कम स्टैंड ले रहा था...मगर उस रोज के बाद देव और आरना में कोई बहस नहीं हुई... दोनों जब साथ होते तो खुशी खुशी प्यार से बातें करते...

    इसी तरह शादी को एक महीने बीत गए,और आज उन दोनों की शादी को एक महीने हो गए थें...सुबह हुई तो उसने हर रोज़ की तरह देव के माथे पर किस किया और नहा कर किचेन में चली आई...
    सबके लिए चाय ले कर कमरे में आ गई...
    उसने सबसे पहले कुसुम जी को चाय दी और अपनी और देव की चाय ले कर कमरे में आ गई...

    "उठ जाओ देव चाय ठंडी हो रही थी"... आरना ने स्नेह भरी आवाज़ में कहा...देव ने अपनी आँखें मसलते हुए खोली और नजर सीधा आरना पर पड़ी...वो झटके से उठ कर बैठ गया...
    आरना ने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना था जिसमें वो बहुत प्यारी लग रही थी...
    खुद पर देव की नज़र भांप कर आरना ब्लश करने लगी...
    उसने बाहर जाते हुए कहा,"फ्रेश हो कर चाय पी लो मैं आ रही हूं थोड़ी देर में"...

    देव जल्दी से बाथरूम में चल गया मुँह हाथ धो कर फ्रेश हुआ और बाहर आ गया...
    तब तक आरना बिस्कुट ले कर आ चुकी थी...देव बेहद रूमानियत से उसे देख रहा आखिर में आरना चिढ़ कर बोली,"मुझे देखना बंद करो और चाय पियो"...

    देव चाय पीने लगा दोनों ने चाय पी लिया तो आरना वापस किचेन में जाने लगी,ये देख कर देव ने तेजी से उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया...
    आरना हँसते हुए उसके सीने से जा लगी,"क्या कर रहे हो?"...

    "वही जो तुम करने नहीं देती हो"...देव उसकी आँखों में झांक कर बोला... आरना भी देव की नजरों से नज़र मिला कर बोली,"हर चीज़ का अपना एक वक्त होता है"...

    "प्यार का कोई वक्त नहीं होता अरु"...ये कह कर देव ने आरना को दीवार से लगा दिया और अपने हाथ उसके बगल रख दिए...
    आरना ने शरमा कर उसे देखा मगर देव शर्माना नहीं जानता था,उसने बिना कुछ सोचे आरना के होंठों को चूमना शुरू कर दिया...
    आरना भी उसका साथ दे रही थी, दोनों एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थें जैसे न जाने कितने दिनों के प्यासे हो...
    किस करते हुए देव के हाथ अब आरना के जिस्म पर हरकत कर रहे थें...लगभग दस मिनट तक आरना और देव एक दूसरे को बेतहाशा चूमते रहें...जब आरना को साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी तो उसने देव को खुद से दूर कर दिया...

    देव उससे दूर हुआ लेकिन उसकी लाल आँखें बता रही थीं कि देव को उसका यूं दूर करना पसंद नहीं आया था...
    आरना वहां से खिसकते हुए बोली,"ऑफिस भी जाना है...शाम में घर आना सरप्राइज़ है तुम्हारे लिए"...
    देव ने नाराज़ हो कर कहा,"सारा मूड खराब कर के बोल रही हो सरप्राइज़ दोगी... नहीं चाहिए तुम्हारा सरप्राइज़"...देव की नाराज़गी पर भी आरना को प्यार आ रहा था वो दरवाज़े तक जा कर वापस पलटी और लपक कर उसके गालों को चूमा और वहां से भाग गई...
    उसके जाने के बाद देव अपने गाल पर हाथ रख कर ब्लश कर रहा था...

    आरना का पूरा दिन वैसे ही गुजरा जैसे रोज़ बीत रहा था...लेकिन आज वो खुश थी,देव और उसकी शादी को एक महीना हो गया था...कहां एक वक्त लगा था कि वो और देव कभी एक नहीं हो पाएंगे आज वही दोनों एक साथ पति पत्नी के रूप में एक साथ ज़िंदगी जी रहे थें...

    दोपहर का खाना बना कर वो रूम में आई तो देव की कॉल आ गई,उसका दिल खुश हो गया...
    उसने तुरंत कॉल रिसीव कर ली...
    "अरे वाह मेरे ही इंतजार में थी क्या मैडम"...देव ने कॉल रिसीव होते ही प्यार से कहा...

    "जी हाँ...!"... आरना अपने पैर के नाखून को कुरेदते हुए बोली...होंठों पर शर्म की हल्की सी मुस्कुराहट और आँखों में देव के लिए बेइंतहा मुहब्बत...

    "वाह लगता है याद आ रही है मेरी"...

    "मैं तुम्हें भूलती कहां हूं देव,बस तुम्हारे ऑफिस जाने के बाद एक एक पल गिन कर निकालती हूं कि तुम कब घर आओगे"... आरना ने अपना हाल ए दिल कह सुनाया...
    देव ने हँसते हुए कहा,"जिस तरह मुझे दूर करती हो उसे देख कर ये बात झूठ नहीं लगती तुम्हें"...

    "तुम बहुत बुरे हो देव"... आरना को उसकी ये बात अच्छी नहीं लगी...देव ठहाका मार कर हँस दिया...
    उसकी हँसी सुन कर उसके आसपास बैठे स्टाफ भी उसे देखने लगे...
    देव ने इधर उधर नज़र घुमाया तो वो झेंप गया और अपनी डेस्क पर झुक कर बोला,"सब मुझे ही देख रहे हैं मैं बाद में बात करता हूं बाय द वे हैप्पी फर्स्ट मंथ वेडिंग एनिवर्सरी अरु"... और उसने तुरंत कॉल कट कर दी...
    आरना को लगा था कि देव भूल गया है लेकिन उसे याद था...देव के फोन रखने के बाद वो मोबाइल हाथ में ले कर  मोबाइल हाथ में रख कर मुस्कुरा रही थी...कुछ देर बाद खुद के ही पागलपन पर झेंप उठी और बाहर आ गई...
    बाहर आई तो कुसुम जी किचेन में थी उन्हें किचेन में देख कर वो जल्दी से किचेन में भागी...
    वहां जा कर देखा कुसुम जी खुद के लिए खाना निकाल रही थी... आरना वहां पहुंची तो उन्होंने उसे ऐसे नज़र अंदाज़ किया जैसे वो वहां हो ही नहीं...
    आरना ने चुपके से मोबाइल में टाइम देखा तो ढाई बज रहे थें,टाइम देख कर उसे अब अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो कुसुम जी से बात करने के लिए आगे बढ़ी...

    क्रमशः...

  • 18. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 18

    Words: 1407

    Estimated Reading Time: 9 min

    आरना ने चुपके से मोबाइल में टाइम देखा तो ढाई बज रहे थें,टाइम देख कर उसे अब अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो कुसुम जी से बात करने के लिए आगे बढ़ी...

    "आंटी...मुझे आवाज़ देती तो मैं निकाल देती"...

    कुसुम जी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा,"मैं अभी इतनी भी लाचार नहीं हूं कि बार बार अपने काम के लिए किसी और पर आश्रित रहना पड़े मैं इतना तो कर ही सकती हूं"...आरना को ऐसा लगा जैसे वो कोई सपना देख रही हो कुसुम जी के मिज़ाज इतने नरम...

    आरना ने सामने से कहा,"नहीं आंटी...लेकिन फिर भी जब मैं हूं तो आपको ये सब करने की ज़रूरत नहीं है"...
    कुसुम जी कुछ कहें बगैर खाना ले कर डाइनिंग टेबल पर बैठ गई... आरना जल्दी से उनके लिए पानी ले कर आ गई उसने टेबल पर पानी रखा और उनसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई ताकि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो वो उन्हें तुरंत दे सकें...
    ये देख कर उन्होंने धीरे से कहा,"कमरे में चली जाओ... आराम कर लो"...

    "जी...आंटी"... आरना को फिर से हैरत हुई...

    "कमरे में जाओ"...कुसुम जी की आवाज़ सख़्त हुई... आरना वहां से चली गई...उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कुसुम जी का मिज़ाज बदल क्यूं गया है...
    खैर जो भी था उसके लिए तो अच्छा ही था क्यूँ की यही तो वो चाहती थी...
    उसने खुशी खुशी देव को कॉल लगा दिया मगर देव ने तुरंत कॉल काट दिया...
    आरना ने खुद को समझाया कि वो काम में बिजी होगा इसलिए रख दिया होगा फिर वो अपना रूम समेटने लगी...

    कमरे के सामान रखते हुए उसके होंठों पर एक मीठी मुस्कुराहट थी वो रूम को देखते हुए मन ही मन बोली,"कहाँ इस घर में आना मुश्किल लगता था और अब कहाँ मैं इस कमरे में हूं अपने देव के साथ...ये सब देव की वज़ह से ही तो हो पाया है कितनी मुश्किलों से उसने अपनी माँ को मनाया था"...ये सब सोचते हुए उसे वो दिन याद आया जब देव ने अपनी माँ को शादी के लिए मनाने के लिए उसने खुद के जान की भी परवाह नहीं की थी और उसने ढेर सारी फिनायल की गोली खा ली थी...
    जिसकी वजह से उसकी जान पर बन आई थी और आखिर में कुसुम जी को मानना पड़ा था...

    आज उसे लग रहा था कि एक महीने से वो जो सबकी बातें चुपचाप सुन रही थी उसका फल मिल गया...
    कुसुम जी के अंदर कमरे में जाने के बाद उसने खुद खाना खाया और फिर थोड़ा आराम करने चली आई...
    आज वो खुश थी और मन भी सुकून में था इसलिए नींद आ गई...
    आँख तब खुली जब उसका फोन बज रहा था...

    उसने आँखें मसलते हुए कॉल रिसीव किया और ऊंघते हुए बोली,"हैलो...!"...

    "सोई थी क्या?"...

    "हाँ...नींद आ गई थी तुम बोलो"...

    "कुछ नहीं मैं ऑफिस से निकल गया था इसलिए कॉल किया"...देव ने कहा तो आरना ने हड़बड़ा कर टाइम देखा पांच बज गए थें...
    टाइम देख कर वो परेशान हो गई,"मैं इतनी देर कैसे सो गई,शाम में चाय नाश्ता बनाना है किचेन में काम फैला हुआ होगा...तुम फोन रखो मैं बाद में बात करती हूं"...
    आरना ने फोन काटना चाहा तो देव का लहज़ा रूखा हो गया,"मतलब मैंने फोन किया तो अब तुम्हें सारे काम याद आ रहे हैं तब से तो सोई हुई थी"...

    "ऐसा नहीं है,तुम ने ही तो कहा था सब कुछ मन से करने के लिए ताकि मैं आंटी का दिल जीत सकूं"...देव उसकी बात सुन कर झुंझला गया,"तो उसमें मैंने ये नहीं कहा था मुझे इग्नोर कर के काम करो"...

    "मैंने तुम्हें कब इग्नोर किया है बस अभी काम है इसलिए बोल रही हूं"... आरना ने शांत लहज़े में कहा देव ने गुस्से में बिना कुछ कहे कॉल रख दिया... आरना को बहुत हैरानी हुई लेकिन अभी वो देव के बारे में सोच नहीं सकती थी वो जल्दी से मुंह हाथ धो कर हॉल में आ गई जहां कुसुम जी अपनी दोनों बेटियों के साथ बैठी हुई थीं...न जाने किस बात पर हँसी ठिठोली हो रही थी मगर उसे देखते ही सब एकदम चुप हो गए...
    आरना को ये बहुत अजीब लगा मगर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया उसे देखते ही कुसुम जी ने सादे लहज़े में कहा,"हमारे यहां दिन में नहीं सोते हैं ये बात तुम्हें देव ने बताई नहीं"...

    "जी...जी आंटी बताई थी लेकिन आज न जाने कैसे आँख लग गई"... आरना ने सफाई दी जिसका कुसुम जी पर कोई असर नहीं हुआ,"अगर तुम ऐसे करोगी तो तुम्हारी नन्द तुमसे क्या सीखेंगी...थोड़ा होश रखो बहु तुम घर की इकलौती बहु हो कल को अगर तुम्हें देख कर बच्चियां बिगड़ी तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा"...

    "सॉरी आंटी"... आरना धीरे से इतना ही बोल पाई,ज्यादा बोल कर वो करती भी क्या कौन सा उसकी किसी ने सुन लेना था...

    "आगे से ध्यान रहे कि ऐसी गलती न हो"...कुसुम जी ने सख़्ती से कहा... आरना ने हाँ में सिर हिला कर सहमति दी और किचेन में जाने से पहले कुसुम जी से कहा,"आंटी आज नूडल्स बना दूं सबके लिए"...

    "बिल्कुल नहीं वो सब खाने से पेट खराब होता है तुम ऐसा करो बेसन का छिलका बना दो"...कुसुम जी ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में कहा...
    आरना मन मसोस कर रह गई मगर उसके किचेन में जाने से पहले ही संध्या ने मचलते हुए अपनी माँ से कहा,"नहीं माँ आज नूडल्स बनवा दो न बहुत मन हो रहा है खाने का"...
    सरिता ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई तो कुसुम जी ने वही बनाने को कहा...
    आरना को कोई खुशी नहीं है क्यूँ होती खुशी जब उसका मन था तो मना कर दिया लेकिन जैसे ही बेटियों ने ज़िद की एक बार में हामी भर दी...
    उसकी खुशी इस घर में मायने नहीं रखती है...वो बुझे मन से किचेन में आ गई और सबके किए नूडल्स बनाने लगी...

    कुछ देर बाद उसने नूडल्स सबको सर्व किए और खुद किचेन में ही अकेली खाने लगी...वैसे भी उसे वहां पूछता ही कौन था...
    चाय पीने के बाद उसने झूठे बर्तन समेटे और फ्रिज खोल कर देखा वहां पालक भी था और पनीर भी फ्रेश आई हुई थी...वो समझ गई कि रात के खाने में पालक पनीर बनानी है...

    उसने खाने की तैयारी शुरू कर दी, कुछ देर बाद देव भी आ गया...
    उसने कपड़े चेंज किए और हॉल में आया तो आरना ने उसे नूडल्स और चाय दी...
    देव कुसुम जी के साथ बात करने में व्यस्त था इसलिए उसने आरना की तरफ देखा ही नहीं आरना वापस किचेन में आ कर काम करने लगी...
    उसे लगा देव उसकी बातों से नाराज़ है...

    "माँ आपकी तबियत ठीक है?"...देव ने कुसुम जी के उतरे चेहरे को देखा तो चिंतित हो कर पूछ बैठा...
    कुसुम जी स्नेह दिखाते हुए बोलीं,"हाँ ठीक हूं बस आज कल घुटनों में दर्द बढ़ गया है"...

    "कैसे दर्द बढ़ गया है आपका क्या आपको आराम नहीं मिल रहा है?"...देव चिंतित हो गया कुसुम जी ने प्यार से कहा,"अरे नहीं ऐसा नहीं है... आरना के आने के बाद आराम बहुत मिलता है लेकिन कभी कभी आरना को भी तो आराम की जरूरत पड़ती है इसलिए कुछ काम कर लेती हूं"...
    देव को ये बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी उसने गुस्से में आरना को आवाज़ दी,"अरु...अरु"...उसे इस तरह गुस्से में देख कर कुसुम जी ने धीरे से कहा,"क्यूं परेशान कर रहा है उसे काम करने दे उसे"...
    मगर तब तक देव के गुस्से वाली आवाज़ सुन कर आरना वहां आ गई थी उसके आते ही देव उस पर बरस पड़ा,"अरु तुम जानती हो कि माँ को घुटने के दर्द की शिकायत है फिर भी इन्हें काम कैसे करने दे सकती हो"...

    "लेकिन... मैंने...इनसे"... आरना ने अपनी सफाई देनी चाही इससे पहले कि उसकी बात पूरी हो पाती देव ने उसे झिड़कते हुए कहा,"क्या लेकिन अरु... तुम्हें खाना बनाने के अलावा करना ही क्या है फिर भी तुम्हें माँ के मदद की जरूरत पड़ रही है आइंदा से मैं ऐसी कोई बात न सुनूं"...
    आरना की आँखें डबडबा गईं वो तुरंत किचेन में चली गई उसके जाने के बाद कुसुम जी ने सामान्य अंदाज़ में कहा,"क्यूँ डांटा उसे,वो तो सारे काम करती ही है अगर मैंने कुछ कर दिया तो क्या हो जाएगा"...

    देव ने ये सुन कर हल्के से मुस्कुरा कर कहा,"माँ बचपन से सब कुछ आपने ही किया है अब अगर अरु के आने के बाद भी आपको काम करना पड़े तो उसके यहां रहने का क्या फ़ायदा...आप ज्यादा मत सोचिए आराम कीजिए मैं जरा ऑफिस के कुछ काम कर लूं"...देव इतना बोल कर अपने कमरे में आ गया जबकि आरना किचेन में अपने आंसू पोंछते हुए खाना बना रही थी...

    क्रमशः...

  • 19. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 19

    Words: 1014

    Estimated Reading Time: 7 min

    देव ने ये सुन कर हल्के से मुस्कुरा कर कहा,"माँ बचपन से सब कुछ आपने ही किया है अब अगर अरु के आने के बाद भी आपको काम करना पड़े तो उसके यहां रहने का क्या फ़ायदा...आप ज्यादा मत सोचिए आराम कीजिए मैं जरा ऑफिस के कुछ काम कर लूं"...देव इतना बोल कर अपने कमरे में आ गया जबकि आरना किचेन में अपने आंसू पोंछते हुए खाना बना रही थी...

    देव कमरे में आ कर लेट गया,उसका मूड बुरी तरह ख़राब था...ऑफिस से थक कर आने के बाद उसे ये सब कुछ सुनना पड़ा तो मूड खराब हो गया...
    वो बैठे बैठे मोबाइल चलाने लगा...
    कब ढाई घंटे बीत गए पता ही नहीं चला,होश तब आया जब आरना खाना बना कर कमरे में आई...उसने देव की तरफ़ देखा भी नहीं और अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई...
    देव ने भी उसे रोकने या बात करने की कोशिश नहीं की, आरना ने बाथरूम में अपने आंसू पोंछे और फिर मुंह हाथ धो कर कपड़े बदल कर बाहर आ गई...
    वो काफी देर तक ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी रही मगर देव ने उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा न ही उससे कोई बात की...
    आरना का मन भारी हो गया,वो वहां से उठ का बालकनी में आ गई...

    कुछ समझ नहीं आया तो अपनी माँ को कॉल लगा दिया...
    "हाँ माँ कैसी हो?"...

    "मैं ठीक हूं तू बता कैसा है सब कुछ वहाँ?"... लता जी ने प्यार से पुचकारा...

    "सब कुछ ठीक है माँ बस ऐसे ही फोन कर लिया था"... आरना ने ज़बरन मुस्कुरा कर झूठ कहा,क्या कहती वो देव के बारे में सबके मना करने के बाद भी उसने ही अपनी पसंद से शादी की थी... शिकायत लगा कर क्या ही करती इसलिए झूठ बोल गई...

    "खाना बना लिया?"...

    "हाँ माँ बना लिया आप बताओ छोटी ठीक है और भईया वो घर कब आएंगे?"... आरना ने आराम से कहा...

    "हाँ ऋचा बिल्कुल ठीक है और आलोक परसों घर आ रहा है"... लता जी की बातों में ही खुशी झलक रही थी...

    "ये तो बहुत अच्छी खबर है माँ"... आरना भी खुश हो गई लता जी ने स्नेह दिखाते हुए कहा,"भाई आए तो मिलने आ जाना वैसे भी शादी के बाद एक ही बार घर आई है तु"...

    "जी माँ ज़रूर आऊंगी"... आरना मुस्कुरा कर बोली...
    कुछ देर और बात कर के आरना ने कॉल रख दिया...
    उसका मन फिर से उदास हो गया...
    आरना ने बालकनी से कमरे में देखा तो देव अब भी मोबाइल देखते हुए मुस्कुरा रहा था...
    ये देख कर आरना को बहुत तेज़ गुस्सा आया,वो तेजी से चल कर देव के पास आई और उसका मोबाइल छीन कर बेड पर ही पटकते हुए बोली,"मैं यहीं हूं और तुम मोबाइल देख रहे हो?"...

    देव ने लापरवाही जताते हुए कहा,"तो रहो मैंने कब मना किया है"...उसने मोबाइल लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो आरना ने इस बार गुस्से में मोबाइल बेड से नीचे फेंक दिया और रोते हुए बोली,"तुमने मुझसे कितनी बदतमीजी से बात की है आज,ये जानते हुए भी कि मेरा दिल दुखा है उसके बाद भी तुम ऐसे बैठे हुए हो जैसे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा है तुम्हें"...
    देव ने नाराज़गी जताई और हल्के आवाज़ में बोला,"मैंने कोई बदतमीजी नहीं की है तुमसे अरु,बस तुम्हें तुम्हारी जिम्मेदारी ही बताई है इसमें इतना बुरा मानने वाली क्या बात है"...

    "बात बुरी लगने वाली ही है देव,ये बात तुम मुझे कमरे में भी तो समझा सकते थें न"... आरना रोते हुए गुस्से से बोली,देव खामोशी से उसका चेहरा देखने लगा उसकी चुप्पी पर आरना का रोना और बढ़ गया उसने सिसकियां लेते हुए कहा,"तुमने आंटी और सरिता संध्या के सामने मुझे डांटा,मेरी इज्जत की जरा सी भी परवाह नहीं है तुम्हें"... आरना ने कहा तो देव बौखला गया,"तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है अरु, मैंने बाहर बीच सड़क पर तुम्हें नहीं कहा है कुछ माँ के सामने कहा है इसमें इज़्ज़त की बात कहां से आ गई,वो सब हमारे अपने हैं"...

    देव की ये बात सुन कर आरना भी गुस्से से बिफर उठी,"हमारे नहीं सिर्फ तुम्हारे अपने हैं,मुझे इस घर में कोई सदस्य नहीं मानता है मैं यहां किचेन में काम करने के लिए लाई गई हूं इससे ज्यादा मेरी कोई हैसियत नहीं है इस घर में"...
    देव ने गुस्से से अपना सिर पकड़ लिया,"तुम बात को ग़लत दिशा में ले जा रही हो"...

    आरना अब गुस्से में दबी आवाज़ में चीखी,"मैं नहीं तुम मुझे गलत समझ रहे हो,अरे जो बातें मुझे समझाते हो कभी अपनी माँ को भी समझाओ कि मेरी तरफ से अपना दिल नरम करें लेकिन नहीं तुम्हें तो मुझे ही हमेशा भाषण देना होता है"...
    देव ने गुस्से से आँखें तरेर कर उसे देखा जैसे वो अभी आरना के साथ न जाने क्या कर बैठे...
    आरना अब बिस्तर पर एक किनारे बैठी रो रही थी देव भी एक किनारे बैठ गया और बेहद रुखाई से बोला,"तुमने आज सही नहीं किया अरु मुझे तुमसे ऐसी बातों की उम्मीद नहीं थी"...

    "हाँ तो मुझे भी तुमसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं थी मैं रोज सहन कर रही हूं और आज कह दिया तुम्हें मेरी बात बुरी लग गई ये क्यूँ नहीं कहते कि अपनी माँ की बुराई नहीं सुन पा रहे हो तुम"... आरना ने जैसे ही ये कहा देव गुस्से से चीख उठा,"चुप...!"...
    उसकी चीख सुन कर आरना सहम गई वो तो सब अपने कमरे में थें और उनके रूम का दरवाज़ा बंद था इसलिए आवाज़ बाहर नहीं गई...
    आरना ने भीगी आँखों से उसे देखा और धीरे से चलती हुई बालकनी में आ गई,देव के इस बर्ताव ने उसे अंदर तक तोड़ कर रख दिया था वो रो रही थी मगर उसके आंसू उसके दिल के तकलीफ की हद को बयां नहीं कर पा रहे थें ऐसा लग रहा था जैसे सीने में दर्द उठ रहा हो मगर वो ये दर्द किसी को दिखा नहीं सकती थी वो अचानक से अपने चेहरे को हथेली में छुपा कर हिचकियां ले ले कर रोने लगी...
    देव का गुस्सा अब आसमान छू रहा था उसने बिस्तर पर बैठे बैठे ही एक कातर दृष्टि रोती हुई आरना पर डाली और उसे मनाने की जगह की उसे रोता छोड़ दनदनाते हुए घर से बाहर चला गया...

    क्रमशः...

  • 20. बेखुदी – Pain of promise - Chapter 20

    Words: 1254

    Estimated Reading Time: 8 min

    देव का गुस्सा अब आसमान छू रहा था उसने बिस्तर पर बैठे बैठे ही एक कातर दृष्टि रोती हुई आरना पर डाली और उसे मनाने की जगह की उसे रोता छोड़ दनदनाते हुए घर से बाहर चला गया...उसे कमरे से जाते देख कर अर्न की सिसकियां तेज़ हो गईं उसने हथेली में अपना चेहरा छुपा लिया और घुटी हुई आवाज़ में रोने लगी...

    रात के खाने का वक्त हो ही चुका था, आरना जानती थी कोई भी खुद से नहीं खाएगा परोसना तो उसे ही है इसलिए उसने अपना चेहरा अच्छे से धोया और बाहर आ गई...
    कुसुम जी सरिता संध्या सब प्लेट लगते ही वहाँ पहुंच गए मगर देव को वहां नहीं देख कर कुसुम जी के शांत लहज़े में कहा,"देव कहां है?"...

    आरना नजरें चुरा कर बोली,"वो...वो बाहर है"...कुसुम जी ने उसकी सूरत को गौर से देखा रोया हुआ चेहरा देख कर उन्होंने पहले की ही तरह शांति से कहा,"तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?"...
    आरना सकपका गई उसने घबरा कर जल्दी से कहा,"न... न नहीं आंटी"...
    कुसुम जी ने एक बार फिर गौर से उसे देखा और खाने बैठ गई...

    सब खाना खा चुके थें लेकिन देव अब तक नहीं आया था ये देख कर कुसुम जी ने खुद ही उसे कॉल घुमा दिया,चार रिंग के बाद देव ने कॉल रिसीव कर ली,"हाँ माँ बोलिए!"...

    "कहाँ हो तुम खाने पर भी नहीं आए"...कुसुम जी ने सवाल पर आरना वहाँ से चली गई,उधर से देव ने खाली लहज़े में ज़वाब दिया,"दोस्त के पास आया था कुछ काम से खाना यहीं खा लिया है"...

    देव की बात पर कुसुम जी ने जल्दी आने का कह कर कॉल रख दिया और खुद भी सोने चली गईं उनके जाने के बाद आरना बर्तन धो रही थी तो सरिता फिर से उसके पास आ गई और सहानुभुति जताते हुए बोली,"भाभी आप रोई हैं न?"...

    आरना ने नज़रें चुराते हुए ना में सिर हिलाया, सरिता ने भी आगे कुछ नहीं पूछा उसने बात का सिरा बदल दिया,"भाभी आप और भईया पहली बात कहाँ मेरा मतलब है कब मिले थें?"...

    "कॉलेज में"... आरना भी अपने और देव की पहली मुलाक़ात याद कर मुस्कुरा उठी जिसे सरिता ने भी देखा उसके कुछ पूछने से पहले आरना आगे बोली,"पहले दिन ही झगड़ा हो गया था हमारा क्यूँ की तुम्हारे भईया आँखें फाड़ फाड़ कर मुझे घूर ही रहे थें मुझे भी गुस्सा आया और मैंने सुना दिया"...बोलते बोलते आरना धीरे से हँसी सरिता ने उसकी बात में दिलचस्पी दिखाई,"अच्छा फिर आप दोनों पास कब आएं?"...

    आरना इस सवाल पर ब्लश करने लगी सरिता से बात करते हुए वो अब कुछ देर पहले कमरे में हुई बात को भूल चुकी थी,उसने शर्मीली मुस्कुराहट के साथ कहा,"पता ही नहीं चला,पहले तो तुम्हारे भईया का देखना परेशानी लगता था लेकिन फिर न जाने कब उनका देखना अच्छा लगने लगा और फिर सब कुछ अपनेआप ही हो गया"...
    सरिता उसकी बात पर कुछ सोच कर मुस्कुरा उठी।

    "तुम ये सब मेरी बेटी को क्यूँ बता रही हो?"...कुसुम जी की सर्द आवाज़ उनके कानो में पड़ी,दोनों ने घबरा कर किचेन के दरवाज़े पर देखा कुसुम जी बेहद नाराज़गी से आरना को देख रही थीं आरना क्या ज़वाब दे उसे कुछ समझ ही नहीं आया,उसने घबराहट में अटक अटक कर बोलो,"में... न... नहीं आंटी...वो... सर...!"...

    "सरिता ने तुमसे पूछा था"...कुसुम जी की आवाज़ सर्द हो गई आरना कोई ज़वाब नहीं दे पाई सरिता तो डर के मारे न हाँ न ही ना बोल पाई कुसुम जी ने सरिता की तरफ़ आँखें तरेर कर देखा तो सरिता जल्दी से वहां से अपने कमरे में भाग गई...
    उसके जाने के बाद कुसुम जी ने सर्द मगर शांत लहज़े में कहा,"मैंने अपने बेटे की ज़िद में आ कर तुम दोनों का प्रेम विवाह स्वीकार कर लिया है इसका मतलब ये नहीं कि तुम अपने प्रेम के किस्से मेरी बेटियों को सुना कर उन्हें बिगाड़ती रहो"...
    आरना रुआंसी हो गई,"मैं तो बस"...

    "मुझे ज़ुबान चलाने वाली लड़की बिल्कुल पसंद नहीं है"...कुसुम जी का लहज़ा शांत था मगर उन्होंने इस तरीके से कहा कि आरना को फिर भी डर लगा...
    उसी वक्त देव भी वहां पहुंच गया कुसुम जी को आरना के साथ देख कर वो भी किचेन में दरवाज़े पर खड़ा हो गया,"क्या हो गया माँ,क्या समझा रही हैं अरु को?"...

    कुसुम जी ने तुरंत अपने तेवर बदल लिए और बिल्कुल नरम लहज़े में बोलीं,"मैं तो इसे बस ये बता रही थी कि बच्चियों से घुला मिला करे ताकि इसका भी मन बहल जाए"... आरना तो हैरान रह गई कि कैसे उन्होंने देव के सामने अपने सुर बदल लिए जबकि देव ने उनके मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे बहुत खुशी हुई कि आख़िर में उसकी माँ धीरे धीरे उसकी पत्नी को स्वीकार कर रही हैं उसने हँसते हुए कहा,"अरु बहुत फ्रेंडली है माँ वो सरिता संध्या दोनों को जल्द ही अपना दोस्त बन लेगी"...

    आरना का काम खत्म हो चुका था इसलिए वो धीरे से कमरे में आ गई,देव को ये बात अच्छी नहीं लगी उसने अपनी माँ को सोने के लिए कहा और खुद भी कमरे में आ गया...
    कमरे में आ कर देखा कि आरना पतली सी चादर डाले आँखें बंद कर के सो रही थी...

    देव ने एक नज़र उसके मुरझाए चेहरे पर डाली फिर कमरे से बाहर निकल गया,उसके जाने के बाद आरना ने आँखें खोलीं,उसकी आँखों में पानी भरा हुआ था...
    पांच मिनट बाद ही उसे फिर से देव की आहट महसूस हुई उसने झट से वापस आँखें बंद कर लीं और सोने का का नाटक करने लगी...उसकी आँखें बंद थीं मगर कान खुले हुए थे थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ कि देव उसके उसके सिरहाने खड़ा था उसके बदन में झुरझुरी हुई...
    देव ने थोड़ी देर के बाद बेहद शांत तरीके से कहा,"मैं जानता हूं कि तुम सो नहीं रही हो उठो और खाना खा लो!"...

    आरना को लगा वो रो देगी इसलिए वो करवट बदल कर लेट गई इस हरकत पर देव ने जल्दी से उसका सिर पकड़ा और उसे जबरदस्ती बैठाते हुए बोला,"मुझसे नाराज़गी अपनी जगह है मगर खाना अपनी जगह है समझी"...
    आरना ने भीगी आँखों से उसे देखा और भर्राई आवाज़ में बोली,"मुझे भूख नहीं"...

    देव के हाथ ठहर गए उसने उसकी बात को पूरी तरह नज़र अंदाज़ करते हुए कहा,"खाना खा लो मुझे फालतू का ड्रामा नहीं चाहिए"...

    आरना ये सुनते ही बिफर उठी,"मैं ड्रामा नहीं कर रही हूं तुमने रुलाया है मुझे"...
    देव ने झुंझला कर कहा,"अरु मैं पहले ही परेशान हूं प्लीज इस तरह रो कर और परेशान मत करो चलो खाना खाओ"...देव का परेशान हाल चेहरा देख कर वो शांत पड़ गई,उसने बाथरूम में जा कर चेहरा धोया और वापस आ कर खाने की थाली ले कर बैठ गई...
    ये देख कर देव ने तुरंत उससे प्लेट ले ली और खुद निवाला बना कर उसे खिलाने लगा...

    आरना को सच में भूख लगी थी इसलिए वो बिना बहस के खाने लगी, खिलाते खिलाते देव ने सहजता से कहा,"मेरा तरीका ग़लत हो सकता है लेकिन मेरी बातें नहीं तुम्हें थोड़ा संयम रखना पड़ेगा,आज देखो माँ ने तुम्हें खुद कहा है कि तुम सरिता और संध्या से बात कर के दोस्ती बढ़ाओ"...
    आरना ने कुछ नहीं कहा,वो जानती थी फिर कुछ बोलेगी तो झगड़ा होगा इसलिए वो चुप ही रही...
    देव ने पानी का ग्लास उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए प्यार से कहा,"मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं इसलिए प्लीज़ मुझे समझो और मेरी बात मानो ताकि भविष्य में हम दोनों के लिए कुछ आसानी हो सके"...

    "ठीक है"... आरना ने संक्षिप्त से उत्तर दिया...

    देव ने प्लेट वापस किचेन में रखा और वापस आ कर उसके माथे को चूमा और उसे खुद के सीने से लगा कर सोने की कोशिश करने लगा...

    क्रमशः...