ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने पर... ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार वालों से ही करता था। अपनी मां और दादी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। वहीं तारा एक मासूम सी लड़की है। तारा उसकी सौतेली मां और सौतेली बहन के द्वारा प्रताड़ित हो रही थी। जहां शौर्य आग था वही तारा पानी थी। अपने मां और दादी के प्रेशर में आ कर शौर्य ने तारा से शादी कर ली। वहीं तारा की मां और बहन लालच में तारा की शादी शौर्य से करा रहे थे। क्या होगा जब आग और पानी एक साथ आयेंगे? क्या होगा जब तारा को पता चलेगा शौर्य की बीमारी? क्या है शौर्य का वो राज़? क्या करेगी तारा उस राज़ को जान कर? क्या शौर्य की नफ़रत में तारा की मासूमियत चली जायेगी? क्या कभी शौर्य और तारा के बीच प्यार पनप पायेगा? जानने के लिए पढ़िए "Hukumat-E-Dil"......
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Chapter 1 एक झलक
एक छोटा, अधूरा-सा कमरा था। दीवारों पर सीलन थी, खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी, और ज़मीन पर एक पुरानी दरी बिछी थी, जिस पर एक लड़की सिकुड़ी हुई सो रही थी।
उसके ओढ़े हुए कपड़े कई जगह से फटे हुए थे। पहनावे से साफ लग रहा था—बरसों पुराने होंगे। रातभर की थकान और ठंड से उसका शरीर थरथरा रहा था।
अचानक एक बाल्टी ठंडा पानी उसके ऊपर गिराया गया।
"उठ! कितनी देर तक सोएगी तू?" एक तीखी आवाज़ आई। लड़की हड़बड़ा कर उठ बैठी।
दरवाज़े पर किरण मिश्रा खड़ी थी—उम्र लगभग 40, चेहरे पर तानों और नफरत की स्थायी लकीरें थीं।
"घर का काम तेरा मरा हुआ बाप करेगा क्या? जल्दी जा, नाश्ता बना! मेरी साक्षी को कॉलेज के लिए देर हो रही है!"
किरण ने घृणा से उसे देखा और चली गई।
तारा मिश्रा, जो पूरी तरह भीग चुकी थी, चुपचाप उठी। वह जानती थी—अगर उसने वक्त पर काम नहीं किया, तो जो दो वक्त की रोटी मिलती थी, वह भी छिन जाएगी। उसने जल्दी से पुराने कपड़े बदले और कमरे से बाहर निकल गई।
यह है हमारी कहानी की नायिका तारा मिश्रा। रंग गोरा था। दिखने में किसी परी की तरह थी। उम्र 22 वर्ष। बिलकुल नेचुरल ब्यूटी। जिसे कोई भी एक नज़र में ही पसंद कर ले। पर उसकी सौतेली माँ उसकी इसी खूबसूरती से घृणा करती थी। वह सभी के चेहरे पर मुस्कान ले आती थी। तारा के दोस्त उसे प्यार से तारा बुलाते थे। तारा जब 5 साल की थी, तभी उसकी माँ एक एक्सीडेंट में इस लोक को छोड़ गई थी। माँ की कमी तारा को महसूस न हो, इसके लिए अभिनव जी ने तारा की माँ की छोटी बहन किरण से शादी कर ली थी।
शुरुआत में किरण मिश्रा तारा को अपनी बेटी जैसा ही मानती थी। वैशाली के जाने के बाद उसने तारा को गोद में उठाया था, उसके आँसू पोछे थे। सबको यही लगता था कि अब तारा को एक माँ का प्यार मिलेगा।
लेकिन वक्त जैसे-जैसे आगे बढ़ा और साक्षी का जन्म हुआ, सब कुछ बदलने लगा। किरण का रवैया तारा के लिए धीरे-धीरे सख्त होता चला गया। वह उससे घर का हर छोटा-बड़ा काम करवाती—झाड़ू, बर्तन, खाना, कपड़े धुलना सब कुछ।
अगर तारा थक जाती या गलती से कुछ रह जाता, तो किरण का गुस्सा लात-घूँसों में बदल जाता। मगर यह सब अभिनव मिश्रा को कभी पता नहीं चलता था। वह अक्सर अपने कारोबार के सिलसिले में शहर से बाहर रहते थे।
घर आते तो किरण प्यार से तारा के सिर पर हाथ फेरती, ऐसे जैसे वह उसकी अपनी बेटी हो। अभिनव को कभी कुछ संदेह नहीं हुआ। लेकिन असल में, उनकी फूल जैसी मासूम बेटी तारा, हर रोज़ किरण की बेरहमी का शिकार हो रही थी।
वक्त बीतता गया। जब तारा 18 साल की हुई, तो ज़िंदगी का सबसे बड़ा दुख उसके सामने आ खड़ा हुआ। एक दिन खबर आई—अभिनव मिश्रा अब इस दुनिया में नहीं रहे।
जिस गोदाम के वे मालिक थे, वहाँ अचानक भीषण आग लग गई थी। वे दूसरों की जान बचाने में लग गए थे और खुद की जान गँवा बैठे थे।
अब चलते हैं कहानी में वापस…
जैसे-तैसे तारा उठी। बदन अब भी भीगा हुआ था और थकावट आँखों से झलक रही थी। लेकिन काम रुके तो खाना भी रुक जाएगा। यही सोचकर वह चुपचाप किचन की ओर बढ़ गई।
सारा काम निपटाने के बाद वह धीरे-धीरे साक्षी के कमरे में गई। हल्का-सा दरवाज़ा खटखटाकर बोली, "साक्षी... उठ जाओ, तुम्हारा कॉलेज का वक्त हो गया है।"
बिस्तर पर करवट बदलती साक्षी अचानक गुस्से में उठी और तारा को ऐसे घूरती है जैसे उसने कोई जुर्म कर दिया हो। तारा थोड़ा घबरा गई, पर फिर हिम्मत जुटाकर बोली, "मैंने... तुम्हारी चाय यहीं टेबल पर रख दी है... पी लेना।"
वह कप रखकर जैसे ही पीछे मुड़ी, तभी "छपाक!!" की आवाज़ आई।
जिससे उसकी चीख निकल गई। गरम चाय उसकी पीठ पर गिर चुकी थी।
साक्षी ने बिना एक शब्द कहे वह कप तारा पर दे मारा था। तारा का चेहरा दर्द से तड़प उठा, आँखों से आँसू छलक पड़े। पर उसने एक भी शब्द नहीं कहा। बस होंठ भींचे, आँखें झुकाईं और वहाँ से चुपचाप अपने कमरे की ओर भाग गई।
पीठ जल रही थी, लेकिन आँखों में आँसू रोककर उसने खुद को जैसे-तैसे संभाला। उसने एक लोटा ठंडा पानी लिया और खुद पर उड़ेल दिया। ठंडे पानी से थोड़ी राहत मिली। लेकिन दिल में उठता दर्द अब भी वैसा ही था।
वह जल्दी-जल्दी कपड़े बदलती है, बाल बाँधती है और अपने बैग में एक छोटा स्पीकर और म्यूज़िक नोट्स रखकर घर से निकल गई। गंतव्य—मंदिर के पास वाली गार्डन, जहाँ वह हर दिन बच्चों को डांस सिखाने जाती थी।
जैसे ही वह वहाँ पहुँची, छोटे-छोटे बच्चे दौड़ते हुए उसके पास आ गए।
"दीदी, आज आप लेट क्यों हो गईं?" सभी के चेहरों पर मासूम सी चिंता थी।
तारा मुस्कुराकर बोली, "अरे थोड़ा काम आ गया था घर पर... अब आ गई ना! चलो, सब तैयार हो जाओ। आज से इंडिपेंडेंस डे के डांस कम्पटीशन की तैयारी शुरू करते हैं।"
बच्चे खुशी से उछल पड़े और "हाँ दीदी!" कहकर लाइन में लग गए।
असल में, जयपुर में एक बड़ा Independence Day Dance Competition होने वाला था, जहाँ तारा की डांस एकेडमी को भी भाग लेना था। एकेडमी के मैनेजर ने यह ज़िम्मेदारी तारा को दी थी और वह हर दिन बच्चों को अपने पूरे दिल से डांस सिखाती थी।
वह एक-एक करके गाने के लिरिक्स सुनाती थी, स्टेप्स समझाती थी, और खुद करके दिखाती थी। बच्चे भी उतने ही मन से सीखते थे। उनकी मुस्कानें और तालियों की गूंज तारा के भीतर की पीड़ा पर एक पल का मरहम बन जाती थीं।
करीब एक घंटे की डांस क्लास के बाद जब संगीत बंद हुआ और बच्चों की हँसी थमी, तारा ने अपने हाथ जोड़कर सभी को बाय बोला।
बच्चे खुशी-खुशी हाथ हिलाते हुए बोले, "बाय दीदी। कल फिर मिलेंगे ना?"
तारा मुस्कुराकर सिर हिलाती हुई बोली, "ज़रूर… कल फिर कुछ नया सिखाऊँगी।"
इसके बाद वह सीधे मंदिर की ओर बढ़ी—वहीं पास में, पुराने पीपल के नीचे बना एक छोटा सा मंदिर था। घंटी बजाकर वह आँखें बंद करती है।
मन ही मन प्रार्थना करती है, "भगवान… बस थोड़ा सा सुकून दे देना… और बच्चों की हँसी कभी ना छिने।"
थोड़ी देर बैठकर शांति महसूस करने के बाद, उसने चप्पल पहनकर पैदल ही घर की ओर निकल पड़ी। धूप तेज थी, पर तारा के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। आदत बन गई थी दर्द को मुस्कान के नीचे छिपाने की।
घर पहुँचते ही वह जल्दी से अपने कमरे में गई। छोटे से गद्दे पर कुछ देर आँखें मूँदकर लेटी रही। पीठ अब भी हल्की जलन दे रही थी, लेकिन नींद नहीं आ रही थी।
आराम कम और ज़िम्मेदारियाँ ज़्यादा थीं।
थोड़ी देर बाद वह उठी और किचन की ओर गई—दोपहर का खाना बनाने। रसोई में वही सिलसिला—चावल चढ़ाना, सब्ज़ी काटना, रोटियाँ बेलना। किरण और साक्षी के लिए टेबल सजाना, फिर बचा हुआ खुद के लिए रख लेना।
इसी तरह… दिन बीतते गए। हर सुबह वही गालियाँ, वही काम, हर दोपहर वही थकावट, हर शाम वही बच्चों की मुस्कान और हर रात अकेलापन।
क्या तारा के जीवन में ऐसा ही चलता रहेगा या होगा कुछ बदलाव उसके जीवन में? जानने के लिए आगे पढ़िए।
इंडिपेंडेंस डे पर…
राजस्थान में एक बड़े आयोजन की धूम थी। वहाँ डांस की एक भव्य प्रतियोगिता आयोजित की जा रही थी, जिसमें बड़े-बड़े जजेस आने वाले थे। यह आयोजन और प्रतियोगिता हर साल की तरह इस बार भी उत्साह से भरा हुआ था, और राज्य के हर कोने से लोग वहाँ पहुँचने के लिए तैयार थे।
दूसरी ओर, राज महल में शारदा देवी अपने पोते शौर्य से बात कर रही थीं।
वह प्रेम और आग्रह से बोल रही थीं, "शौर्य, प्लीज़, आप आज डांस कंपटीशन में जज बनकर जाइए। यह वही आयोजन है, जो आपके दादा जी के द्वारा हर साल आयोजित किया जाता था। हम हमेशा वहाँ जाते थे, पर इस बार हमारी इच्छा है कि आप भी हमारे साथ चलें और जज बनकर हमारी मदद करें।"
शारदा देवी की आवाज में एक मासूमीयत और तल्लीनता थी, जैसे वह अपने पोते को किसी और रूप में देखना चाहती थीं, जैसे पुराने दिनों की यादें वापस लौट आई हों। लेकिन शौर्य का चेहरा नीरस था। वह अपनी कुर्सी पर थका-थका बैठा था, और उसकी आँखों में अवसाद था।
उसने धीरे से उत्तर दिया, "नहीं दादी, प्लीज़ आप मुझे फोर्स मत कीजिए। आप जानती हैं, कि मैं कहीं भी जाने लायक नहीं हूँ। मेरी ज़िंदगी अब पहले जैसी नहीं रही, और फिर भी आप मुझे जबरदस्ती कर रही हैं।"
शारदा देवी शौर्य की आँखों में दिखती उदासी को समझ रही थीं, लेकिन फिर भी वह बहुत देर तक चुप रहीं।
उन्होंने उसकी पीठ पर प्यार से हाथ रखा और कहा, "मैं जानती हूँ बेटा, तुम्हारे लिए यह आसान नहीं है, लेकिन कभी-कभी हमें अपनी पुरानी ज़िंदगी की राह पर कदम रखना होता है, ताकि हम फिर से खुद को पा सकें।"
अब जानते हैं हमारे हीरो शौर्य के बारे में…
शौर्य, 29 साल का एक बेहद होशियार और आकर्षक नौजवान था, जिसकी लंबाई 5 फुट 10 इंच थी। लेकिन एक भयानक एक्सीडेंट ने उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी थी। उसके पैरालाइज हो जाने के बाद, वह शारीरिक रूप से किसी काम का नहीं रह गया था।
शौर्य की हालत देखकर कई लड़कियाँ उस पर मर-मिटने को तैयार थीं, लेकिन उसे किसी भी लड़की में दिलचस्पी नहीं थी।
वह हमेशा कहता था, "लड़कियाँ सिर्फ अपने मन बहलाने के लिए होती हैं, और उनका उद्देश्य हमेशा सिर्फ पैसे ही होते हैं।"
यह उसकी नफरत और घृणा का परिणाम था, जो उसकी बीती ज़िंदगी और दर्दनाक अनुभवों के कारण उत्पन्न हुआ था। उसका अतीत बहुत ही दुःखद था, और उस दुःख का असर उसकी हर सोच और निर्णय में झलकता था।
वह किसी भी लड़की से भावनात्मक रूप से जुड़ने से डरता था, क्योंकि उसके लिए प्यार अब केवल एक छलावा जैसा था। उसकी यह सोच और गहरी नफरत उसकी बीती ज़िंदगी से जुड़ी थी, और इसके बारे में खुलासा बाद में किया जाएगा।
क्या शौर्य कभी अपनी इस नफरत से बाहर आ पाएगा? क्या उसकी ज़िंदगी में कोई ऐसा आएगा, जो उसे फिर से प्यार और विश्वास सिखा सके?
यह सब समय के साथ ही सामने आएगा…
रणविजय—शौर्य के पिता
सविता—शौर्य की माँ
अरुणा—शौर्य की दादी
स्वभाव से सविता जी और अरुणा जी दोनों ही शांत स्वभाव की थीं। दोनों ही अपने समय की बेहतरीन डांसर थीं। इसी वजह से अभिनव के दादा जी ने अपनी पत्नी के सम्मान में हर वर्ष दो बार डांस प्रतियोगिता का आयोजन शुरू किया था। उनके निधन के बाद भी यह परंपरा रणविजय जी निभाते आ रहे थे।
बाकी कैरेक्टर्स से आप धीरे-धीरे कहानी में परिचित हो जाएँगे।
अब कहानी की ओर चलते हैं… अरुणा जी और सविता जी डांस कंपटीशन के लिए निकल पड़ीं।
वहीं दूसरी ओर, तारा भी बच्चों को तैयार कर रही थी। थोड़ी ही देर बाद डांस की अनाउंसमेंट हुई। तारा सभी बच्चों को "All the best" कहकर बाहर ऑडियंस की सीट्स की तरफ चली गई। वह वहीं बैठकर बाकी ग्रुप्स के डांस परफॉर्मेंस देख रही थी। पाँच ग्रुप अपना डांस परफॉर्म कर चुके थे, फिर बारी आई तारा के ग्रुप की।
उनका ग्रुप "माँ तुझे सलाम" गाने पर परफॉर्म करता है। बच्चों का प्रदर्शन बहुत शानदार था। इसके बाद पाँच और ग्रुप्स परफॉर्म करते हैं, और फिर कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।
तभी होस्ट स्टेज पर आकर घोषणा करता है, "एक घंटे बाद आपको रिज़ल्ट पता चल जाएगा!"
सभी टीमें और ऑडियंस बाहर की ओर निकल जाती हैं। वहीं तारा अपने बच्चों के पास जाती है। उनके चेहरों पर घबराहट साफ झलक रही थी।
तारा मुस्कुराकर कहती है, "बच्चों, घबराओ मत। तुम सबने बहुत अच्छा डांस किया है। चलो अब कुछ खा लेते हैं, रिज़ल्ट आने में अभी वक्त है।"
इसके बाद तारा बच्चों को लेकर खाने के स्टॉल की ओर जाती है। पर जैसे ही वे लोग हॉल के अंदर लौटते हैं, तारा की नज़र अचानक एक ओर जाती है—और वह बिना कुछ कहे उस दिशा में दौड़ पड़ती है…
तो आप सब को क्या लगता है? ऐसा क्या देखा तारा ने जो वह दौड़कर भागती है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी…
सभी ग्रुप्स की परफॉर्मेंस खत्म हो गई। आखिरी ग्रुप ‘मां तुझे सलाम’ जोश से भरा परफॉर्म किया, और ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा।
तभी मंच पर होस्ट माइक लेकर आया और मुस्कुराते हुए कहा,
"दोस्तों, सभी परफॉर्मेंस कमाल के थे। अब एक घंटे बाद रिजल्ट्स घोषित किए जाएँगे। तब तक आप सब बाहर रिफ्रेशमेंट एरिया में जा सकते हैं।"
बच्चे धीरे-धीरे मंच से नीचे उतरे। तारा दौड़ती हुई उनके पास आई। बच्चों के चेहरों पर तनाव और बेचैनी साफ झलक रही थी। कोई अपने हाथ मसल रहा था, तो कोई चुपचाप ज़मीन की ओर देख रहा था।
तारा उनके कंधों पर हाथ रखते हुए नर्मी से मुस्कुराई और कहा,
"अरे बच्चों, ये क्या टेंशन वाले चेहरे बना रखे हैं? स्टेज तो जैसे हिला दिया तुम सब ने! चलो अब जीत के पहले पेट पूजा कर लेते हैं।"
बच्चे थोड़ा मुस्कुराए और सभी मिलकर बाहर रिफ्रेशमेंट ज़ोन की तरफ बढ़े। तारा उनके साथ हँसते-बोलते जा रही थी।
थोड़ी देर बाद, जब सब खाने से वापस लौटे, तो जैसे ही तारा ऑडिटोरियम के पास पहुँची, उसकी नज़र अचानक एक कोने में भीड़ पर पड़ी। वहाँ कुछ लोग इकट्ठे हो रखे थे।
उसका दिल धक-धक करने लगा। वो बिना कुछ कहे बच्चों को रोकी और खुद तेज़ी से उस दिशा में दौड़ी। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
जैसे ही तारा बच्चों के साथ ऑडिटोरियम के भीतर लौटी, उसकी नज़र अचानक एक कोने में खड़े एक शख्स पर गई—जो किसी वृद्ध महिला की ओर गन ताने खड़ा था।
तारा की आँखें चौड़ी हो गईं। बिना एक पल गँवाए वो बच्चों को पीछे रोकी और खुद उस तरफ दौड़ पड़ी।
“रुकिए!” उसकी चीख पूरे हॉल में गूँजी, लेकिन तभी—गोली चली। आवाज़ दबाई गई थी, इसलिए किसी को भनक तक नहीं लगी।
तारा दौड़ते हुए उस महिला को धक्का दिया—लेकिन देर हो चुकी थी। गोली उसके लेफ्ट चेस्ट में लग चुकी थी। वो वहीं ज़मीन पर गिर गई। उसकी सफ़ेद ड्रेस पर खून फैलने लगा।
सभी लोग उसकी इस हरकत से हैरान रह गए। कुछ सेकंड के लिए सब सुन्न हो गए, फिर अचानक शोर मच गया।
भीड़ उस वृद्ध महिला के पास दौड़ी। सब घबरा गए क्योंकि अगर उस महिला को कुछ हो जाता, तो बड़ा हंगामा हो सकता था।
तभी हॉल का मैनेजर दौड़कर आया और घबराते हुए उस महिला को सहारा दिया।
"मिसेज़ सिंघानिया! आप ठीक हैं ना?"
वो महिला कांपती आवाज़ में सिर हिलाई, "मैं... मैं ठीक हूँ।"
वो और कोई नहीं, शौर्य की दादी करुणा सिंघानिया थीं।
लेकिन जैसे ही उनकी नज़र नीचे खून से लथपथ तारा की बेहोश बॉडी पर पड़ी, उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
"हे भगवान... इस लड़की ने मेरी जान बचाई... कोई इसे हॉस्पिटल ले चलो! अभी!" उनकी आवाज़ में पछतावा और चिंता दोनों साफ झलक रहे थे।
भीड़ में से कुछ लोग तारा को उठाया और दौड़ते हुए बाहर ले गए।
उसी समय हॉल के पिछले हिस्से से तेज़ आवाज़ में सविता जी दौड़ती हुई आईं। जैसे ही उनकी नज़र करुणा जी के माथे पर चोट के निशान पर पड़ी, वो घबरा गईं।
"माँ जी! आपको तो बहुत गहरी चोट लगी है। चलिए, आपको भी हॉस्पिटल ले चलते हैं... फ़ौरन।"
करुणा जी बस तारा की ओर देखती रहीं... उनकी आँखों में अफ़सोस, हैरानी और एक अजीब सा अपनापन झलक रहा था...
भीड़ में हलचल मची हुई थी। कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक क्या हुआ। तभी तारा को उठाकर जब बाहर ले जाया जा रहा था, उसी पल पीछे से सविता जी गुस्से में आगे बढ़ीं।
उनकी आँखों में चिंता भी थी और गुस्सा भी। उन्होंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई, फिर तेज़ और सख्त आवाज़ में कहा—
"किसने किया ये? बताओ मुझे... किसने गोली चलाई?"
पूरा हॉल जैसे सहम गया। जो जहाँ खड़ा था वहीं जम गया। किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि कुछ कहे।
(वैसे तो सविता जी बेहद शांत और संयमी स्वभाव की थीं। लेकिन जब बात उनके परिवार की सुरक्षा की हो, तो उनका गुस्सा संभालना मुश्किल हो जाता था। और जब एक बार उन्हें गुस्सा आ जाए, तो फिर उन्हें मनाना... आसान नहीं होता।)
उन्हें देख मैनेजर से लेकर बाकी स्टाफ़ तक सब डर के मारे चुप थे। तभी करुणा जी धीरे से उनके पास आईं और उनके कंधे पर हाथ रखते हुए शांत स्वर में बोलीं—
"सविता... कुछ नहीं हुआ है मुझे। बाद में सब बताऊँगी तुम्हें... पहले चलो, हमें हॉस्पिटल जाना है।"
सविता जी ने जैसे ही करुणा जी के माथे से बहता खून देखा, उन्हें अपने गुस्से का ख्याल ही नहीं रहा। वो घबरा गईं और तुरंत बोलीं—
"माँ! आपको तो इतनी गहरी चोट लगी है... चलिए जल्दी... मैं तो गुस्से में सब भूल ही गई।"
करुणा जी ने सिर्फ़ हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन उनके चेहरे पर बेचैनी साफ़ थी। वो जानती थीं कि जो हुआ वो बहुत गंभीर था। लेकिन अभी वो सविता को कुछ नहीं बताना चाहती थीं।
उन्होंने कार की ओर बढ़ते हुए मन में सोचा—‘सब कुछ कार में बता दूँगी... अभी नहीं।’
सविता जी करुणा जी को सहारा देते हुए बाहर ले जा रही थीं। तभी उन्होंने जाते-जाते पीछे मुड़कर मैनेजर को सख्त लहजे में कहा—
"प्राइज सेरेमनी कल सुबह 10 बजे आयोजित होगी। अभी अनाउंस कर दीजिए।"
मैनेजर ने तुरंत सिर हिलाया और माइक से घोषणा की—
"सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि प्राइज सेरेमनी अब कल सुबह 10 बजे होगी। कृपया समय पर उपस्थित रहें।"
घटना की गंभीरता को देखते हुए लोग चुपचाप, चिंता में डूबे अपने-अपने घर लौटने लगे।
वहीं दूसरी तरफ, ऑडिटोरियम के कोने में खड़े तारा के डांस ग्रुप के बच्चे बेहद घबराए हुए थे। कुछ छोटे बच्चे रो रहे थे, कुछ सहमे हुए एक-दूसरे का हाथ पकड़े खड़े थे।
तभी एक 22 साल की लड़की वहाँ आई—उसकी चाल में तेज़ी और आँखों में चिंता थी।
"अरे बच्चों, ये क्या हुआ? तुम सब रो क्यों रहे हो?" उसने घुटनों के बल बैठते हुए बच्चों से पूछा।
उनमें से एक थोड़ी बड़ी बच्ची ने रुँधी हुई आवाज़ में कहा—
"तारा दीदी को गोली लग गई है... बहुत सारा खून बह गया था उनका..."
वो लड़की सन्न रह गई। उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
"क्या! क्या कहा तुमने? गोली... कैसे? किसने मारी?"
तभी दूसरी बच्ची मीता, जो बाकी बच्चों के मुकाबले शांत थी, आगे आई और बोली—
"वो Mrs. सिंघानिया को गोली लगने वाली थी। तारा दीदी ने उन्हें बचा लिया... और खुद को गोली लग गई..."
लड़की की आँखें भर आईं। उसने बच्चों को गले से लगा लिया।
"ओह तारा... तुमने फिर किसी की जान बचा ली..." वो बड़बड़ाई।
वो लड़की बच्चों को प्यार से समझाते हुए कहती है,
"ये लड़की भी न... हमेशा सबकी मदद करते-करते खुद को ही मुश्किल में डाल देती है..."
फिर बच्चों की तरफ देखकर नरम आवाज़ में बोली—
"तुम सब अब अपने-अपने पैरेंट्स के साथ घर जाओ। मैं तारा के पास जा रही हूँ।"
बच्चे जिद करने लगे—
"पर दीदी... हमें भी तारा दीदी के पास जाना है..."
वो लड़की थोड़ा सख्ती से लेकिन प्यार से बोली—
"नहीं बच्चों, अभी नहीं। बाद में ज़रूर मिलवाऊँगी... लेकिन अभी तुम लोग घर जाओ।"
बच्चों के चेहरे उतरे हुए थे, लेकिन वो सुने और धीरे-धीरे वहाँ से चले गए।
लड़की मैनेजर से पूछकर हॉस्पिटल का नाम जानी और तेज़ी से एस.एस. हॉस्पिटल की ओर निकल पड़ी।
कुछ ही देर बाद, हॉस्पिटल के रिसेप्शन पर पहुँचते ही वो लड़की पूछती है—
"अभी कुछ वक्त पहले एक पेशेंट आया है... गोली लगने का केस... क्या आप बता सकती हैं कि वो कहाँ हैं?"
रिसेप्शनिस्ट ने कंप्यूटर चेक करते हुए कहा—
"मैम, थोड़ी देर पहले दो पेशेंट आए हैं। आप किसके बारे में पूछ रही हैं?"
वो लड़की तुरंत बोली—
"जिसे गोली लगी है।"
रिसेप्शनिस्ट ने तुरंत कहा—
"उनका ऑपरेशन चल रहा है। आप थर्ड फ़्लोर पर ओटी सेक्शन में चली जाइए।"
लड़की बिना वक्त गँवाए लिफ़्ट की ओर दौड़ी। जैसे ही लिफ़्ट थर्ड फ़्लोर पर पहुँची, वो तेज़ी से बाहर निकली और ओटी की ओर बढ़ने लगी।
लेकिन... कुछ ही कदम चलते ही उसके कदम रुक गए। वो ओटी की तरफ़ देखते हुए वहीं खड़ी रह गई... उसकी आँखों में एक अजीब सा भाव उभर आया—दर्द... उलझन... और शायद कोई पुरानी याद।
और यहीं ख़त्म करते हैं आज की कहानी।
तो आप सब को क्या लगता है—
ये लड़की कौन है?
आखिर क्यों रुक गए उसके कदम ओटी के दरवाज़े तक पहुँचकर?
क्या है उसका तारा से रिश्ता...?
जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ... और मेरी कहानी के साथ।
थोड़ी देर बाद वह लड़की अस्पताल पहुँची। वह जल्दी-जल्दी रिसेप्शन की तरफ बढ़ी और घबराई हुई आवाज़ में पूछा—
"अभी कुछ देर पहले एक पेशेंट आया है... गोली लगने का केस... प्लीज़, बता सकते हैं वो कहाँ है?"
रिसेप्शनिस्ट कंप्यूटर पर नज़र डालते हुए जवाब दिया—
"मैम, अभी दो पेशेंट आए हैं। आप किसके बारे में पूछ रही हैं?"
लड़की तुरंत बोली—
"जिसे गोली लगी है... तारा नाम है उनका।"
रिसेप्शनिस्ट थोड़ा और स्पष्ट किया—
"मैम, उनका ऑपरेशन चल रहा है। आप थर्ड फ्लोर पर ओटी ब्लॉक में जाएँ।"
एक पल भी गँवाए बिना लड़की लिफ्ट की ओर भागी। लिफ्ट के बंद होते दरवाज़े और तेज़ी से ऊपर जाती संख्या की टिक-टिक उसकी बेचैनी बढ़ा रही थी।
जैसे ही लिफ्ट थर्ड फ्लोर पर रुकी, दरवाज़ा खुलते ही वह तेज़ी से बाहर निकली और ऑपरेशन थिएटर की ओर भागी।
लेकिन... तभी उसके कदम रुक गए।
ओटी के बाहर पहले से ही बहुत से लोग जमा थे—कुछ नर्सें, कुछ फैमिली मेंबर्स, और पुलिस के दो अफ़सर।
इतनी भीड़ और माहौल की गंभीरता देखकर उसके दिल की धड़कन और बढ़ गई। उसका साँस रुकने लगा।
एक पल के लिए उसकी आँखें नम हो गईं... जैसे कुछ पुरानी यादें, कुछ अधूरी बातें, और बहुत सारे डर उसे वहीं रोक लेते हैं।
वह कुछ सेकंड वहीं खड़ी रही...
हाथ धीरे-धीरे सीने के पास जाकर रुके... होंठों से बस एक फुसफुसाहट निकली—
"तारा..."
फिर भी वह लड़की—अदिति—हिम्मत जुटाई।
गहरी साँस लेकर धीरे-धीरे ओटी की ओर बढ़ी और ओटी के दरवाज़े पर लगे उस छोटे से गोल कांच से अंदर झाँकी।
अंदर डॉक्टर और नर्सें तारा के चारों तरफ जुटे हुए थे... तारा बेहोश पड़ी थी... मशीनों की बीप की आवाज़ें और डॉक्टर की गंभीर आँखें देख अदिति की आँखें भीगने लगीं।
उसी वक्त करुणा जी और सविता जी की नज़र अचानक अदिति पर पड़ी। वे दोनों एक-दूसरे को देखकर चौंक गईं।
सविता जी धीरे से खड़ी होकर अदिति के पास आईं और उसके काँपते कंधे पर हाथ रखा।
"बेटा... तुम कौन हो? और यहाँ क्या कर रही हो?"
अदिति थोड़ी घबराई, थोड़ी टूटी आवाज़ में बोली—
"वो... मैं... मैं तारा की दोस्त हूँ... अदिति..."
सविता जी थोड़ा नरम होकर कहती हैं—
"अच्छा... ठीक है बेटा, आओ बैठो। उसका ऑपरेशन चल रहा है... थोड़ी देर में खत्म हो जाएगा।"
अदिति बस चुपचाप सिर हिला दिया। उसकी आँखों से नमी साफ़ झलक रही थी, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
तीनों वहीं बाहर ओटी के सामने, एक लंबी साँसों और भारी धड़कनों के साथ बैठ गए...
हर बीतती सेकंड जैसे एक युग बन गई थी।
तभी अचानक अस्पताल के गलियारे में हलचल हुई।
तीन-चार बॉडीगार्ड्स के साथ तेज़ कदमों से कोई आया... वह सीधा ओटी के बाहर बैठी करुणा जी की तरफ़ बढ़ा।
यह शौर्य था। चेहरे पर चिंता और आँखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
"दादी... आप ठीक हैं न?"—वह झुककर करुणा जी के पास बैठते हुए पूछा।
"आपको कुछ हुआ तो नहीं? और ये माथे पर चोट कैसी है?"
करुणा जी मुस्कराने की कोशिश करती हैं, लेकिन आवाज़ में दर्द छुपा नहीं पातीं—
"अरे बेटा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ... बस थोड़ी सी चोट है। लेकिन मुझे बचाते हुए एक लड़की... तारा... उसके सीने में गोली लग गई। अभी उसका ऑपरेशन चल रहा है।"
शौर्य का चेहरा सख्त हो गया। जबड़े कस गए। एक पल के लिए वह कुछ सोचा, फिर कहा—
"ठीक है, आप और मम्मी घर चलिए। यहाँ मैं संभाल लूँगा सब कुछ।"
लेकिन करुणा जी तुरंत दृढ़ता से बोलीं—
"नहीं बेटा, मैं कहीं नहीं जाऊँगी। जब तक उस बहादुर लड़की का ऑपरेशन पूरा नहीं होता... मैं यहाँ से एक कदम भी नहीं हिलूँगी।"
शौर्य उनकी आँखों में देखता है और जान जाता है कि अब उन्हें मनाना नामुमकिन है।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद हार मानते हुए बोला—
"ठीक है दादी, जैसी आपकी इच्छा। हम यहीं रुकते हैं।"
करीब दो घंटे की बेचैन प्रतीक्षा के बाद ओटी के ऊपर की लाल लाइट अचानक बुझ गई।
सभी की साँसें जैसे थम गईं।
डॉक्टर बाहर आए। सफ़ेद कोट पर खून के हल्के दाग, थके चेहरे पर गंभीरता।
शौर्य, करुणा जी, सविता जी और अदिति तुरंत उनके पास आए।
"डॉक्टर... वो लड़की कैसी है?"—शौर्य ने तेज़ लेकिन संयमित आवाज़ में पूछा।
डॉक्टर गहरी साँस लेकर बोले—
"ऑपरेशन सफल रहा... गोली हटाई जा चुकी है।"
सभी के चेहरे पर थोड़ी राहत आई, लेकिन डॉक्टर का अगला वाक्य सब कुछ थाम देता है—
"पर... अगर 24 घंटे के अंदर उसे होश नहीं आया... तो वह कोमा में जा सकती है।"
यह सुनकर अदिति की आँखों से अचानक आँसू बहने लगे। वह खुद को रोक नहीं पाई और वहीं फूट-फूट कर रोने लगी।
करुणा जी उसे पास खींचकर गले से लगा लेती हैं। उनके चेहरे पर ममता झलकती है, जैसे किसी अनजान पर भी अपनापन लुटा रही हों।
कुछ देर यूँ ही अदिति उनकी बाहों में सिसकती रही। फिर अचानक उसे कुछ एहसास हुआ... और वह धीरे से खुद को अलग कर लेती है।
करुणा जी कुछ नहीं कहतीं... बस उसकी आँखों में देखकर हल्का सा मुस्कराती हैं।
क्योंकि वह समझ चुकी थीं—अदिति उन लोगों के बीच सहज नहीं थी जिन्हें वह अच्छी तरह नहीं जानती।
सविता जी नरम स्वर में पूछती हैं—
"बेटा... तुम ठीक हो?"
अदिति बस चुपचाप सिर हिला देती है। उसकी आँखें अब भी नम थीं।
समय बीतता गया... अस्पताल के उस कॉरिडोर में एक अजीब-सी चुप्पी पसरी रही।
रात के 8 बज चुके थे... पर तारा को अब तक होश नहीं आया था।
दूसरे तरफ़ तारा के घर पर,
किरण हॉल में बैठकर टीवी देख रही थी। तभी साक्षी नीचे आती है और कहती है, "मॉम मुझे ज़ोरों की भूख लगी है। वह चुड़ैल कब आएगी और हमारे लिए कब खाना बनाएगी?"
तो किरण जी, जिसे तारा की बिल्कुल परवाह नहीं थी, वह तारा को कोसते हुए बोलती है, "करमजली अभी तक नहीं आई है।"
तो साक्षी बोलती है, "मॉम उसकी बात छोड़ो ना हम चलते हैं बाहर खाना खाने मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। मैं अब और नहीं रह सकती। नहीं तो मेरे पेट के चूहे आत्महत्या कर लेंगे।"
तो किरण जी साक्षी की बात पर हँसते हुए बोलती है, "ठीक है चल। तू जा रेडी होके आ, मैं भी तब तक रेडी हो जाती हूँ। फिर चलते हैं।"
तो साक्षी खुशी-खुशी किरण जी के गले लगते हुए बोलती है, "you are so sweet mom"
फिर वहाँ से अपने रूम में चली जाती है।
थोड़ी देर बाद साक्षी की चीख गुंजती है। जब किरण जी बाहर आकर देखती हैं तो उनके होश ही उड़ जाते हैं।
आज के लिए इतना ही.......
तो आप सब को क्या लगता है साक्षी क्यों चीख रही है? किरण जी बाहर आकर ऐसा क्या देखती हैं जिससे उनके होश उड़ जाते हैं? जानने के लिए बने रहिए मेरे साथ और मेरी कहानी के साथ.......
करुणा जी चुपचाप अदिति के पास आकर बैठ गईं। उनकी आँखों में सवाल तो थे, पर वे कुछ पूछती नहीं थीं। शायद माँ का दिल समझ गया था कि यह लड़की कुछ कहना नहीं चाहती—या शायद कह नहीं पा रही थी। अदिति की सहमी सी नज़रों और कांपते होंठों ने करुणा जी को एहसास दिला दिया था कि वह अनजान माहौल से डर गई थी, और किसी भी तरह का दबाव उसे और ज्यादा तोड़ सकता था।
थोड़ी देर बाद सविता जी अदिति के पास आईं। उनके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। वे उसके सामने बैठकर धीमे स्वर में पूछती हैं, "बेटा, तुम ठीक हो?"
अदिति ने बस हल्के से 'हाँ' में सिर हिला दिया। आवाज़ तो जैसे कहीं गुम हो गई थी। उसकी आँखें फर्श पर टिकी थीं, और हाथ आपस में भींचे हुए थे। वह वहाँ तो बैठी थी, लेकिन उसका मन कहीं और भटक रहा था—तारा की ओर।
समय धीरे-धीरे रेंग रहा था। दीवार पर लगी घड़ी ने 8 बजा दिए थे। पूरा घर चिंता और बेचैनी के साए में घिरा हुआ था। हर कुछ मिनटों में किसी के कदमों की आहट होती, और सबकी नज़रें दरवाज़े की तरफ उठ जातीं—शायद कोई खुशखबरी मिले। मगर तारा को अभी तक होश नहीं आया था।
अदिति की आँखें दरवाज़े पर टिकी थीं। हर बार जब कोई डॉक्टर या नर्स निकलती, उसकी साँसें थम जाती थीं। उसे तारा के साथ बिताया हर लम्हा याद आ रहा था। उसके हँसते चेहरे, वो छोटी-छोटी बातों पर रूठना, और फिर बिना बोले ही मन मान जाना... अदिति की पलकों के किनारे भीगने लगे थे।
करुणा जी ने उसके हाथों को धीरे से थाम लिया। वे कुछ नहीं बोलीं, बस उसके सिर पर हाथ फेरती रहीं। शायद यही सुकून इस वक़्त अदिति को सबसे ज़्यादा चाहिए था—एक माँ की खामोश पर गहरी ममता।
दूसरी तरफ तारा के घर का माहौल बिल्कुल अलग था।
हॉल में किरण सोफे पर आराम से पसर कर टीवी देख रही थीं, एक हाथ में रिमोट और दूसरे हाथ में पॉपकॉर्न का बाउल। टीवी पर उनका पसंदीदा डेली शो चल रहा था, और वे पूरी तल्लीनता से उसमें डूबी हुई थीं, जैसे घर में सबकुछ सामान्य हो।
तभी ऊपर से साक्षी सीढ़ियाँ उतरती हुई आई, चेहरे पर झल्लाहट साफ थी। वह सीधे हॉल में आकर बोली, "मॉम, मुझे ज़ोरों की भूख लगी है। वो चुड़ैल कब आएगी और हमारे लिए कब खाना बनाएगी?"
किरण जी, जिन्हें तारा की कोई चिंता नहीं थी, नज़रों को टीवी से हटाए बिना बोलीं, "करमजली अभी तक नहीं आई! पता नहीं कहाँ मुँह उठाए फिर रही है।"
साक्षी ने आँखें घुमाईं और झुंझलाते हुए बोली, "मॉम, उसकी बात छोड़ो ना! हम बाहर चलते हैं खाना खाने। मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। मैं अब और नहीं रह सकती, नहीं तो मेरे पेट के चूहे आत्महत्या कर लेंगे!"
किरण जी उसकी बात पर हँस पड़ीं। उन्होंने पॉपकॉर्न का बाउल साइड में रखते हुए मुस्कराते हुए कहा, "ठीक है चल, तू जा रेडी हो के आ, मैं भी तब तक तैयार हो जाती हूँ। फिर चलते हैं।"
साक्षी झट से आगे बढ़ी और किरण जी को गले लगाते हुए बोली, "You are so sweet, mom!"
किरण जी मुस्कराई और उसके गाल पर हल्का सा चांटा मारते हुए बोलीं, "जा अब, वरना तेरे चूहे सच में आत्महत्या कर लेंगे!"
साक्षी खिलखिलाते हुए सीढ़ियों की तरफ दौड़ी और अपने कमरे में चली गई, मानो घर में कुछ भी अनहोनी नहीं घटी हो।
घर में कुछ ही पल की शांति थी कि अचानक साक्षी की तेज़ चीख पूरे घर में गूंज उठी—
"आआह्ह मॉम!!"
किरण जी के हाथ से रिमोट तक छूट गया। वे घबरा कर तुरंत हॉल से बाहर की ओर भागीं। जैसे ही उन्होंने सीढ़ियों के पास नज़र दौड़ाई, उनके होश उड़ गए। साक्षी सीढ़ियों के पास ज़मीन पर बैठी थी, एक हाथ से अपना पैर पकड़े कराह रही थी। उसका चेहरा दर्द से लाल हो रहा था और आँखों से आँसू बह रहे थे।
"साक्षी!" किरण चीखते हुए उसके पास पहुँचीं और घुटनों के बल बैठकर उसे सहारा देकर उठाया। किसी तरह उसे पकड़ कर सोफे तक लाईं और धीरे से बैठाया।
"क्या हुआ बेटा? पैर में क्या हो गया?" उन्होंने जल्दी से उसका पैर देखा। मोच आ गई थी, और सूजन साफ नज़र आ रही थी।
किरण जी हड़बड़ाते हुए फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आईं। जल्दी से पेन रिलीफ स्प्रे और पट्टी निकाली और साक्षी के पैर पर लगाना शुरू कर दिया। उनके चेहरे पर घबराहट और परेशानी दोनों थी—लेकिन सिर्फ इसलिए कि उनकी बेटी तकलीफ में थी।
साक्षी आँसू रोकते हुए बोली, "अब बाहर खाना खाने का प्लान भी गया..."
किरण जी ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, "सुन, आज हम यहीं खा लेते हैं। मैं ही कुछ बना देती हूँ तेरे लिए, तुझे क्या पसंद है बता ना।"
साक्षी ने मन मार कर हामी में सिर हिला दिया। अब दर्द के साथ भूख भी सताने लगी थी।
थोड़ी देर में किरण जी रसोई में गईं और साक्षी के लिए उसकी पसंद की चीज़ें बनाईं। ट्रे में खाना लेकर आईं और साक्षी के सामने रख दिया।
"चल, अब खा ले बेटा। फिर दवा देकर तुझे आराम करवाऊँगी," उन्होंने कहा।
साक्षी ने बिना कुछ बोले खाना खाना शुरू किया। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उस पूरे वक़्त, ना साक्षी ने और ना ही किरण जी ने तारा के बारे में एक बार भी पूछा। न कोई चिंता, न कोई बेचैनी। जैसे उसकी मौजूदगी या गैर-मौजूदगी से उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
रात गहराने लगी और खाना खाकर दोनों अपने-अपने कमरों में चली गईं। घर में सन्नाटा था… और उस सन्नाटे में कहीं तारा की गैरहाज़िरी दबी रह गई। दोनों जैसे घोड़े बेच कर सो गईं, बेफिक्री के साथ… जबकि दूसरी ओर अस्पताल में तारा अब भी होश में नहीं आई थी।
दूसरी तरफ, हॉस्पिटल में कुछ ऐसा हुआ जिससे अदिति घबरा गई।
तो आप सब को क्या लगता है?
क्या हुआ होगा?
दूसरे तरफ, अस्पताल में,
अस्पताल की सफेद दीवारों के बीच एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी। रात गहरा गई थी, और थकान अब चेहरों पर दिखने लगी थी।
शौर्य ने करुणा जी और सविता जी की ओर देखा; दोनों घंटों से वहीं बैठी थीं, चिंता से भरी निगाहें तारा के वॉर्ड के दरवाज़े पर टिकी थीं।
“आप दोनों घर जाइए... बहुत देर हो चुकी है, थोड़ी देर आराम कर लीजिए... मैं और अदिति यहीं हैं।” शौर्य ने धीरे से कहा।
शुरू में दोनों ने मना कर दिया, पर शौर्य के बहुत कहने पर आखिरकार वे मान गईं।
“अगर कुछ भी हो तो तुरंत फोन करना।” सविता जी ने अदिति के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
अदिति ने बस चुपचाप सिर हिला दिया।
दोनों महिलाएँ भारी कदमों से अस्पताल से निकल गईं।
अब उस सूनसान कॉरिडोर में सिर्फ़ शौर्य और अदिति रह गए थे।
शौर्य ने अपने बॉडीगार्ड को इशारा किया और कुछ ही देर में वह अदिति के लिए खाने का डब्बा लेकर लौट आया।
शौर्य ने खाना अदिति के सामने रखा और नर्मी से कहा, “कुछ खा लो... सुबह से कुछ नहीं खाया तुमने।”
अदिति ने बिना नज़र मिलाए बस सिर हिलाकर ‘नहीं’ कहा।
कुछ पल की चुप्पी के बाद शौर्य का स्वर अचानक सख्त हो गया।
“अदिति, तुम ये खाना खा रही हो या नहीं?”
उसकी आवाज़ में ऐसा गुस्सा और सख्ती थी कि अदिति एकदम डर गई। उसने झट से खाना उठाया और धीरे-धीरे खाने लगी। उसका हाथ काँप रहा था, पर वह कुछ कह नहीं सकी।
शौर्य का चेहरा अब फिर से शांत हो चुका था। शायद उसे एहसास हुआ कि वह ज़्यादा सख्त हो गया था। उसने कुछ नहीं कहा, बस वहीं पास की कुर्सी पर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद अदिति भी उसके पास आकर बैठ गई। दोनों की नज़रें एक ही तरफ थीं—तारा के वॉर्ड के बंद दरवाज़े की ओर।
अदिति के सो जाने के बाद अस्पताल की रात और भी शांत हो गई थी, जैसे समय ठहर गया हो। चारों ओर पसरा सन्नाटा शौर्य के मन में उठते अनगिनत सवालों से बिल्कुल उलटा था।
धीरे-धीरे उसने अपनी व्हीलचेयर को तारा के वॉर्ड की ओर बढ़ाया। दरवाज़ा हल्के से खोला और अंदर प्रवेश किया।
वहाँ, सफेद चादरों के बीच एक नाजुक सी लड़की बेहोश पड़ी थी—तारा। उसका चेहरा बेहद पीला और मुरझाया हुआ था। वह मासूमियत जो उसकी आँखों में हमेशा झलकती थी, अब पूरी तरह शांत थी।
शौर्य कुछ देर वहीं खड़ा रहा, बस उसे निहारता रहा। पता नहीं क्यों… उसका सीना भारी होने लगा था। एक अजीब सी टीस… जैसे दिल के किसी कोने में कुछ चुभ रहा हो।
व्हीलचेयर को थोड़ा और पास ले जाकर वह उसके सिरहाने बैठ गया। उसका चेहरा देखता रहा… जैसे कोई अनदेखी कहानी पढ़ रहा हो। एक गहरी सांस लेते हुए उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं, जैसे कोई भावनाओं को काबू में लाने की कोशिश कर रहा हो।
कुछ देर बाद, बिना कुछ कहे, वह बाहर निकल गया। बाहर कॉरिडोर में आकर वह वहीं दीवार के पास रुक गया… और सारी रात वहीं गुज़ार दी। एक पहरेदार की तरह… खामोश।
सुबह की हल्की रोशनी अस्पताल की दीवारों से टकराने लगी थी। पर तारा अब भी बेहोश थी। ऑपरेशन को पूरे 20 घंटे हो चुके थे। इस वक़्त अदिति ही तारा के सिरहाने बैठी थी। उसके हाथ थामे, उसकी हर साँस को गौर से देखती।
तभी तारा की साँसें अचानक तेज़ होने लगीं।
“तारा...!!” अदिति घबरा गई।
उसने झट से बेल दबाई और कुछ ही पलों में डॉक्टर अंदर आ गए।
“आप बाहर जाइए।” डॉक्टर ने सख्त आवाज़ में कहा।
अदिति की आँखों में डर और चिंता एक साथ तैर उठी। उसने एक बार पीछे मुड़कर तारा को देखा—वह अब भी छटपटा रही थी—और फिर भारी मन से बाहर निकल गई।
उधर, अस्पताल के एक साइड रूम में, शौर्य लैपटॉप पर एक जरूरी ऑनलाइन मीटिंग में था। चेहरे पर वही बिज़नेस वाला सख्त नकाब था।
लेकिन तभी उसका गला अचानक सूखने लगा। साँस लेने में तकलीफ सी महसूस होने लगी। माथे पर पसीना आ गया और दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने लैपटॉप बंद किया और गहरी साँस ली, लेकिन बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी।
“क्या हो रहा है मुझे?” वह मन ही मन बड़बड़ाया… लेकिन कोई जवाब नहीं था।
मीटिंग कैंसल करने के बाद शौर्य ने गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं। उसका मन बेचैन था, दिल किसी अनजाने डर से काँप रहा था। थोड़ी देर वह बस चुपचाप बैठा रहा… फिर हाथ जोड़कर आँखें मूँद लीं।
“हे भोलेनाथ…” उसकी आवाज़ धीमी थी, पर भावों से भरी हुई, “…मेरे इस बेचैन दिल को सुकून दे दीजिए… मेरे अपने सही सलामत रहें… उनकी रक्षा करना प्रभु…”
कुछ ही पल बाद उसकी आँखें खुलीं। और तभी… उसके ज़ेहन में एक चेहरा उभरा—तारा का। वह तुरंत अपनी व्हीलचेयर मोड़कर तारा की ओर बढ़ने लगा, पर तभी रुक गया। जैसे उसे कुछ याद आ गया हो। उसने जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया।
“जैसा मैंने कहा था, वैसा हुआ या नहीं?” उसका स्वर शांत था, लेकिन उसमें कहीं एक अनजानी उम्मीद छुपी थी।
फोन कटते ही उसके मोबाइल पर एक मैसेज आया। शौर्य स्क्रीन पर नज़र डाला… और फिर उसके होंठों पर एक हल्की, क्यूट सी स्माइल उभर आई।
वह स्माइल… जो बेहद कम लोगों ने उसके चेहरे पर देखी होगी।
और यहीं आज का चैप्टर खत्म होता है…
अस्पताल का माहौल पहले से ही गम्भीर था।
डॉक्टर के कहने पर अदिति ने एक बार फिर तारा की ओर देखा। मशीनों की आवाज़, उसके मुँह पर लगा ऑक्सीजन मास्क, और लगातार गिरते-बढ़ते वाइटल्स देखकर उसका दिल जैसे अंदर से टूटा जा रहा था। तारा की साँसें भारी हो रही थीं, और हर पल उसके जीवन की डोर और कमज़ोर होती प्रतीत हो रही थी।
अदिति की आँखों में आँसू थे, पर मजबूरी में उसने खुद को खींचा और डॉक्टर के कहने पर धीरे-धीरे बाहर निकल गई। बाहर आकर वह बेंच पर बैठी, दोनों हाथ जोड़ लिए और सिर ऊपर कर लिया।
“हे प्रभु… मेरी तारा को कुछ मत होने देना… वो हमेशा दूसरों के लिए जीती रही, कभी अपने लिए कुछ नहीं माँगा… अब कम से कम उसे वो ज़िंदगी दे दो, जिसमें वो खुलकर साँस ले सके…”
उसी वक़्त अस्पताल के दूसरे कोने में, कॉन्फ्रेंस रूम में बैठा शौर्य, एक ज़रूरी मीटिंग में था। स्क्रीन पर कई लोग डिस्कस कर रहे थे, चार्ट्स और ग्राफ्स चल रहे थे, पर शौर्य का मन वहाँ नहीं था। उसका चेहरा बेचैनी से भरा हुआ था। वो बार-बार अपनी घड़ी देखता, फिर दरवाज़े की ओर, मानो किसी अनदेखे डर को महसूस कर रहा हो।
उसका दिल बेकाबू होकर धड़क रहा था। उसकी साँसें भारी थीं, जैसे सीने पर कोई अदृश्य बोझ रख दिया गया हो। माथे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं, और हाथ व्हीलचेयर के हत्थे को कसकर पकड़े हुए।
अचानक उसने आँखें बंद कीं और धीमे स्वर में बोला, "हे भोलेनाथ… मुझे तीन साल बाद फिर वही घुटन महसूस हो रही है। वही बेचैनी… वही डर। कहीं कोई अनहोनी तो नहीं होने वाली? अगर ऐसा कुछ है, तो मेरे अपनों की रक्षा करना प्रभु।"
उसके शब्द धीमे थे, लेकिन उसके भावों में गहराई थी। इस प्रार्थना के बीच, एक नाम उसके दिल के किसी कोने से गूंजा—"तारा"।
शौर्य का दिल धक से रह गया। उसने झट से अपनी व्हीलचेयर घुमाई और लैपटॉप बंद कर दिया। फिर जैसे ही वार्ड की ओर बढ़ने वाला था, उसे एक बात याद आई।
उसने जल्दी से अपनी जेब से मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया।
"रोहित… मैंने तुमसे जो कहा था… पता चला?" उसकी आवाज़ में सख़्ती तो थी, पर उसमें एक गहरी ज़िम्मेदारी और चिंता भी झलक रही थी।
दूसरी ओर से आवाज़ आई, “बस दो मिनट दीजिए सर, सब कुछ भेज रहा हूँ।”
कुछ ही पलों में मोबाइल की स्क्रीन जल उठी। एक नोटिफिकेशन आया—"रोहित का मेसेज"।
शौर्य ने बिना देर किए स्क्रीन पर अंगूठा फिसलाया और जैसे ही फाइल ओपन की, उसकी आँखों में चमक और दिल में एक हल्की सी मुस्कान उभर आई। पहली बार… एक मासूम, शांत सी मुस्कान।
वो फाइल दरअसल तारा की लाइफ रिपोर्ट थी—एक डोज़ियर, जिसमें उसका पूरा अतीत समाया हुआ था।
पहले ही पेज पर एक पुरानी तस्वीर लगी थी—एक छोटी बच्ची, दो प्यारी सी चोटियाँ, मासूम सी बड़ी आँखें और एक दिल छू लेने वाली मुस्कान। शौर्य का दिल पिघल गया।
उसने खुद से ही बुदबुदाया, “कितनी प्यारी लगती है ये लड़की ऐसे…”
पर जितना वो आगे बढ़ता गया, उतना ही उसकी मुस्कान फीकी होती गई। हर पन्ने पर एक नया दर्द लिखा था—बचपन से तारा ने क्या कुछ नहीं सहा था। माँ-बाप का बेरुखा बर्ताव, रिश्तेदारों की उपेक्षा, समाज की नज़रों में गिरना और खुद को हर बार अकेला महसूस करना।
शौर्य की उंगलियाँ थम गईं। उसका चेहरा गंभीर हो गया। आँखें कुछ सोचने लगीं और दिल में एक भारीपन सा छा गया। उसने फाइल बंद की और गहरी साँस लेते हुए सोचा—"शायद इसलिए वो लड़की इतनी खामोश है… सब कुछ अंदर ही रखती है।”
अब देर नहीं थी। वह तुरंत तारा के वार्ड की ओर बढ़ गया।
जैसे ही दरवाज़े के पास पहुँचा, वहाँ एक अलग ही अफरा-तफरी का माहौल था। डॉक्टर और नर्स भागते हुए अंदर जा रहे थे। तारा का ऑक्सीजन लेवल तेजी से गिर रहा था, उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं और मशीनों की बीप लगातार बढ़ रही थी।
शौर्य के चेहरे का रंग फक हो गया। एक पल को वह कुछ समझ ही नहीं पाया। अंदर से जैसे कुछ टूट गया था। बिना किसी से कुछ कहे, वो वहाँ से मुड़ा और तेज़ी से अस्पताल के मंदिर की ओर बढ़ गया।
मंदिर में शांति थी। एक ओर गणेश जी की मूर्ति स्थापित थी, और दीपक की लौ स्थिर जल रही थी।
शौर्य ने अपनी व्हीलचेयर रोकी, हाथ जोड़े और बंद आँखों से प्रार्थना करने लगा।
"हे गणपति बप्पा… अगर कोई पाप किया हो, तो सज़ा मुझे देना। लेकिन उस मासूम को मत तड़पाओ। उसका कोई कसूर नहीं है। उसने अब तक सिर्फ सहा है—मगर कभी किसी से कुछ नहीं कहा। उसे मत तोड़ो प्रभु… उसे बचा लो।"
शौर्य की आँखों से दो बूंद आँसू निकले, लेकिन उसने उन्हें पोंछा नहीं। वो वहीं बैठा रहा—आँखें बंद, होंठों पर बस एक ही प्रार्थना—"उसे थोड़ी सी खुशी दे दो प्रभु… बस थोड़ी सी… इतनी कि वो फिर मुस्कुरा सके…"
उधर बाहर, अदिति भी तारा के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसकी भी आँखें नम थीं।
वो आसमान की ओर देखती हुई बोली, “हे भगवान… मेरी तारा को बचा लो। वो बचपन से ही टूटी हुई है। हर बार बस समझौते किए हैं उसने। अब तो उसके जीवन में कोई ऐसा भेज दो… जो उसका दर्द समझ सके। कोई राजकुमार… जो उसका हाथ थाम सके… और बिना शर्त उससे प्यार कर सके…”
दोनों अलग-अलग जगहों पर, एक ही दिल की पुकार लिए बैठे थे—तारा को बचा लो।
कुछ देर बाद…
डॉक्टर तेजी से वार्ड से बाहर निकले। उनके पीछे दो नर्सें और एक असिस्टेंट थे। शौर्य और अदिति, दोनों दौड़ते हुए उनकी ओर पहुँचे। चेहरे पर चिंता साफ थी।
शौर्य ने धीमे स्वर में, पर गहराई से पूछा—"डॉक्टर… तारा अब ठीक है?"
तो आप सब को क्या लगता है
क्या तारा ठीक होगी?
क्या अदिति की प्रार्थना भगवान जी सुनेंगे?
क्या सच में तारा के जिंदगी में कोई राजकुमार आएगा जो उसे खुश रखेगा या फिर तारा ऐसी ही जिल्लत भरी जिंदगी जीती रहेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी....
अगर कहानी पसंद आ रही है, तो मुझे follow करना मत भूलना।
कुछ देर बाद, शौर्य अपने व्हीलचेयर से तारा के वार्ड की ओर बढ़ा। तभी उसने देखा—डॉक्टर बाहर आ रहे थे। उन्हें देखकर अदिति और शौर्य दोनों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगीं। दोनों ही जल्दी से डॉक्टर के पास गए।
शौर्य बिना देर किए उनके पास गया और हल्के से पूछा, "डॉक्टर... वो अब ठीक है?"
डॉक्टर मुस्कुरा कर बोले, "हाँ, अब उन्हें होश आ गया है। हालत स्टेबल है।"
यह सुनते ही शौर्य का दिल एक पल के लिए सुकून से भर गया। पर उसने अपने चेहरे पर कोई इमोशन ज़ाहिर नहीं किया… बस हल्की सी गर्दन हिलाकर चुप हो गया। वहीं पास खड़ी अदिति की आँखों में चमक लौट आई।
वह तुरंत आगे बढ़ी और डॉक्टर से पूछा, "क्या मैं उससे मिल सकती हूँ?"
डॉक्टर बोले, "हाँ, मिल सकती हैं… लेकिन ध्यान रखिएगा, ज़्यादा बात मत करिएगा। अभी उसे आराम की ज़रूरत है।"
"थैंक यू, डॉक्टर!" कहते हुए अदिति बिना देर किए अंदर चली गई।
शौर्य वहीं खड़ा रहा—मन में अजीब सी राहत, और दिल में एक अनकहा एहसास…
अदिति अंदर गई और तारा को देख उसे डांटने लगी।
"तुझे क्या ज़रूरत थी वो गोली खुद पर खाने की?" वो तारा को डांटते हुए बोली।
"मैंने कुछ नहीं किया। वो उन्हें धक्का दे रही थीं। पर पता नहीं कैसे लग गई गोली?" तारा बोली।
"बुद्धू।" अदिति बोली।
तारा हँस दी।
"क्या वो दादी जी ठीक हैं?" तारा ने पूछा।
"हाँ, वो ठीक हैं। बस माथे पर चोट लग गई है गिरने की वजह से।" अदिति ने कहा।
तारा उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी। थोड़ी देर बात करने के बाद अदिति बोली, "ठीक है, तुम अब आराम करो। मैं कुछ खाने के लिए लाती हूँ।"
तारा ने हाँ में सर हिला दिया। अदिति तारा के वार्ड से निकल गई। उसके जाने के बाद शौर्य अंदर आया और एकटक तारा को देखने लगा। शौर्य की शांत आँखें अब भी तारा के चेहरे पर टिकी थीं। तारा थोड़ी असहज सी हो गई थी, पर उसकी आवाज़ में शालीनता बनी रही।
"आपकी दादी जी अब कैसी हैं?" उसने धीमे से पूछा।
शौर्य ने नरमी से जवाब दिया, "अब बेहतर हैं… आपके कारण।"
तारा ने हल्की सी मुस्कान दी, "मैंने कुछ नहीं किया… बस जो सही लगा, वो किया।"
शौर्य की नज़रों में एक पल के लिए इज़्ज़त और भावुकता दोनों झलक गए। वो बोला, "कभी-कभी 'बस सही लगना' जान बचा लेता है… और आपने मेरी दादी की जान बचाई है। उसके लिए मैं उम्र भर एहसानमंद रहूँगा।"
तारा को उसकी बात सुनकर कुछ कहने को शब्द नहीं मिले। उसने सिर्फ हल्के से गर्दन झुका दी।
फिर शौर्य उसकी तरफ देखते हुए बोला, "आप आराम कीजिए। अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो… कुछ भी… तो बेहिचक बताइएगा।"
तारा धीमे से बोली, "धन्यवाद…"
शौर्य बस एक नज़र और उस पर डाली और फिर धीरे-धीरे कमरे से बाहर चला गया… लेकिन उसके चेहरे पर अब भी एक अजीब सी गहराई थी—जैसे वो पहली बार किसी की सच्चाई से प्रभावित हुआ हो।
कमरे में कुछ पल की खामोशियाँ पसरी हुई थीं। शौर्य और तारा की निगाहें जैसे आपस में उलझी थीं—अनकहे जज़्बातों की एक डोर सी, जो दोनों के बीच एक पल को गहरा बना रही थी।
तभी दरवाज़ा हल्का सा खुला और उसी खामोशी को चीरती हुई अदिति की चहकती आवाज़ आई, "देख, मैं तेरे लिए क्या लाई हूँ?"
तारा और शौर्य, दोनों की नज़रें फौरन उस आवाज़ की ओर घूमीं। अदिति के हाथ में एक छोटा सा डिब्बा था, जिसे उसने अपनी ओढ़नी में लपेट रखा था, जैसे उसमें कोई बहुत खास खजाना हो।
तारा ने उत्सुकता से देखा, और जैसे ही अदिति ने वो ओढ़नी हटाकर डिब्बा खोला, एक जानी-पहचानी खुशबू हवा में घुल गई—पावभाजी की! तारा की आँखें चमक उठीं, और होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गई। वो मुस्कान जो एकदम दिल से निकली थी—नाटक नहीं, ना दिखावा, बस खुशी।
"पाव भाजी?" उसने आश्चर्य और खुशी के मेल से पूछा, जैसे किसी भूखे बच्चे को अचानक उसका पसंदीदा खिलौना मिल गया हो।
अदिति ने हँसते हुए कहा, "हाँ, वही तेरी फेवरेट। तुझे पता है ना, तुझसे पहले मैं खुद भी नहीं खाती ये!"
तारा की आँखें भर आईं, पर उसने मुस्कुराते हुए अपने आँसू छुपा लिए। उसे याद आया, कैसे उसके घर में उसे कभी उसका मनपसंद खाना नहीं मिला। सौतेली माँ और बहन हमेशा उसे बचा-कूचा थमा देती थीं। पर अदिति… वो हमेशा उसके लिए कुछ न कुछ खास लाती थी—सिर्फ खाने में ही नहीं, हर चीज़ में।
अदिति ने धीरे से एक प्लेट में पाव भाजी निकाली और उसके हाथ में दी। तारा ने बच्चों जैसी मासूमियत से प्लेट थामी और बिना किसी संकोच के खाने लग गई—जैसे वो इस छोटे से पल में अपनी सारी तकलीफें भूल गई हो।
शौर्य चुपचाप सब देख रहा था। तारा की आँखों की चमक, उसके चेहरे की खुशी… ये सब उसके दिल को एक अजीब सी ठंडक दे रहे थे। जैसे कोई बेचैनी बिना वजह ही थम सी गई हो।
वो हल्के से मुस्कुराया और मन ही मन बुदबुदाया, "बिल्कुल बच्ची है… पर बहुत प्यारी है।"
वह दोनों को एक-दूसरे में व्यस्त देख बोला, "मैं चलता हूँ।"
तारा ने खाते हुए हाँ में सर हिला दिया। शौर्य व्हीलचेयर से बाहर चला गया।
शौर्य बाहर जाकर कॉल पर माँ और दादी को तारा के होश आ जाने के बारे में बता दिया। तभी किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया।
तो आप सब को क्या लगता है? कौन है वो इंसान जिसने शौर्य को पीछे से गले लगाया है? क्या वो शौर्य का कोई दुश्मन है? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी…
वह दोनों को एक-दूसरे में व्यस्त देखकर बोला, "मैं चलता हूँ।"
तारा खाते हुए हाँ में सिर हिला दी। शौर्य व्हीलचेयर से बाहर निकल गया।
शौर्य बाहर जाकर कॉल पर अपनी माँ और दादी को तारा के होश आ जाने के बारे में बता दिया। तभी कोई आकर उसे पीछे से पकड़ लिया। इससे शौर्य पहले तो चौंक गया, पर जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखा, वह रिलैक्स हो गया।
"क्या हुआ है तुझे? तू हॉस्पिटल में क्या कर रहा है?" लड़का बोला।
उसके चेहरे पर परेशानी देखकर शौर्य बोला, "रिलैक्स, वीर। कुछ नहीं हुआ है। मैं बस तारा को देखने आया था।"
पहले चलिए, वीर के बारे में जान लेते हैं। वीर 27 साल का एक हैंडसम लड़का है, पर हमारे हीरो से थोड़ा कम। इस दुनिया में उसका कोई नहीं है। जब वह मंदिर में भीख माँग रहा था, तभी शौर्य ने उसे देख लिया था।
वह उसे लेकर अपने घर ले आया। शौर्य घर का इकलौता बेटा होने के कारण, वीर को भी उन्होंने अपने पास रख लिया। सभी उसे बहुत प्यार करते थे। उसे कभी किसी ने यह एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर का बेटा नहीं है। वह भी सभी से बहुत प्यार करता था, खासकर शौर्य से। शौर्य तो उसका जान था। उसके लिए कुछ भी करने से वीर कभी पीछे नहीं हटता था।
अब चलते हैं कहानी पर...
यह सुनकर वीर बोला, "क्या बात है? मैं क्या बिज़नेस ट्रिप पर गया? तू तो अपने लिए गर्लफ्रेंड खोज लिया। चल, अब मुझे मिलवा अपनी भाभी से। मैं भी तो देखूँ ऐसा क्या है भाभी में जो मेरे ब्रह्मचारी भाई को नॉर्मल आदमी बना दिया।"
यह सुन शौर्य उसे घूरते हुए बोला, "हो गया तेरा बकवास। चल, डॉक्टर के पास जाना है तारा के बारे में बात करने के लिए। फिर मैं तुझे तारा के बारे में बता दूँगा।"
फिर शौर्य, तारा के बारे में डॉक्टर से बात करने के लिए अपने असिस्टेंट वीर के साथ निकल पड़ा। वीर व्हीलचेयर को धीरे-धीरे धक्का देते हुए डॉक्टर के केबिन तक ले गया और दरवाज़ा नॉक किया।
अंदर से आवाज़ आई, "कम इन।"
दोनों अंदर दाखिल हुए। डॉक्टर शौर्य को देखते ही कुर्सी से खड़े हो गए और कहा, "क्या हुआ सर? कोई परेशानी है क्या?"
शौर्य हाथ उठाकर इशारा किया, "बैठिए डॉक्टर।"
डॉक्टर अपनी सीट पर बैठ गए और वीर भी सामने की कुर्सी पर बैठ गया।
शौर्य सीधा सवाल किया, "तारा की तबीयत अब कैसी है?"
डॉक्टर ने जवाब दिया, "जी सर, अब उनकी हालत स्थिर है। लेकिन उन्हें पूरी तरह आराम की ज़रूरत है। इसलिए हमने फैसला किया है कि उन्हें कम से कम पाँच दिन हॉस्पिटल में ही रुकना होगा।"
शौर्य गंभीरता से सिर हिला दिया। फिर डॉक्टर को धन्यवाद दिया और वीर के साथ केबिन से बाहर निकल गया।
तारा को एक VIP कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था। वहाँ हर सुविधा मौजूद थी, जिससे मरीज को किसी भी तरह की असुविधा न हो। कमरे में एक आरामदायक सोफा था, और दो अतिरिक्त बेड भी थे, ताकि मरीज के साथ रहने वालों को भी आराम मिल सके।
शाम को शौर्य की दादी, माँ और रणविजय जी तारा से मिलने आने वाले थे। दोपहर की दवा लेने के बाद तारा गहरी नींद में सो गई थी।
शाम के वक्त जब उसकी आँखें खुलीं, तो सामने तीन लोगों को देखकर वह चौंक गई। उनमें से एक चेहरा उसे जाना-पहचाना लगा, मगर बाकी दो उसके लिए बिल्कुल अजनबी थे।
वह घबराकर उठने की कोशिश करने लगी, तो अदिति तुरंत आगे बढ़ी और उसे सहारा देकर पीछे तकिए लगा दिए।
"आराम से तारा... कुछ देर पहले ही तुम्हें दवा दी गई थी," अदिति ने कोमलता से कहा।
तभी करुणा जी, यानी शौर्य की दादी, तारा के पास रखी कुर्सी पर बैठ गईं। फिर मुस्कुराते हुए सबका परिचय कराया। पहले सविता जी की ओर इशारा करते हुए कहा, "ये हैं मेरी बहू, शौर्य की माँ — सविता रणविजय सिंघानिया... और राजस्थान की हुकुम रानी सा।"
फिर रणविजय जी की ओर मुड़कर कहा, "और ये हैं मेरा बेटा — रणविजय सिंघानिया। शौर्य के पापा... और राजस्थान के हुकुम सा।"
तारा शालीनता से हाथ जोड़कर प्रणाम किया। दोनों ने उसे प्यार से आशीर्वाद दिया, "खुश रहो बेटी, हमेशा स्वस्थ रहो।"
फिर करुणा जी उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए पूछा, "अब कैसी हो बेटा? तबीयत ठीक लग रही है?"
तारा हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "मैं ठीक हूँ, दादी। आपको कोई चोट तो नहीं आई थी न?"
जिसे सुनकर करुणा जी बोलीं, "हाँ बेटा, तुम्हारी वजह से आज ठीक हूँ। नहीं तो आज मैं ऊपर भगवान के पास होती..."
तो तारा ने तुरंत मुस्कुराते हुए कहा, "अरे दादी माँ, ऐसे क्यों बोल रही हैं? आपको कुछ नहीं होगा। आप तो अभी भी जवान हैं।"
दादी ने प्यार से उसके सर पर हल्की सी चपत मारते हुए कहा, "बेशर्म लड़की! कुछ भी बोलती है..."
सब ठहाका मारकर हँसने लगे। तारा शर्मा गई, लेकिन उसके चेहरे पर वही चिरपरिचित नटखट मुस्कान थी।
इसी हँसी के माहौल में, सविता जी ने कुछ ऐसा कहा जिससे सुनकर तारा एकदम चौंक गई। उसके चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे गायब हो गई, और उसकी आँखें सवालों से भर गईं।
अब सवाल यह है — आखिर सविता जी ने क्या कहा था? क्या कोई पुराना राज खुलने वाला था? या कोई ऐसी बात कह दी, जो तारा के दिल को छू गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग...
तारा की मज़ाकिया बात पर सब हँसने लगे, माहौल खुशनुमा हो गया। लेकिन यह खुशी क्षणिक थी। सविता जी धीरे से मुस्कराती हुईं तारा के पास आईं। उनकी आँखों में कृतज्ञता और चेहरे पर स्नेह का भाव स्पष्ट था।
उन्होंने धीरे से तारा के गाल पर हाथ फेरा और कहा,
"बहुत अच्छी हो बेटा तुम। इस ज़माने में कोई किसी की इतनी परवाह नहीं करता, जितनी तुमने हमारी की। तुमने हमारे परिवार पर बहुत बड़ा एहसान किया है। तुम्हें जितना धन्यवाद कहूँ, वो कम है।"
इतना कहकर उन्होंने हाथ जोड़ लिए। तारा हक्का-बक्का रह गई। उसकी आँखें नम होने लगीं। राजस्थान की रानीसाहिबा - सविता जी - उसके सामने हाथ जोड़ रही थीं। वो थोड़ा घबराकर उठी और उनके हाथों को पकड़ते हुए बोली,
"अरे रानीसाहिबा, आप ये क्या कर रही हैं? आप ऐसा करके मुझे शर्मिंदा कर रही हैं।"
सविता जी मुस्कराईं, लेकिन उनकी आँखें अब भी नम थीं।
"नहीं बेटा, इसमें शर्मिंदा होने जैसी कोई बात नहीं है। तुमने जिस वक़्त हमारी मदद की, उस वक़्त तो अपने भी मुँह फेर लेते हैं। तुम्हारा दिल इतना बड़ा है... उसके सामने हाथ जोड़ना कोई बड़ी बात नहीं।"
तारा ने थोड़े रूठे हुए अंदाज़ में कहा, "आप मुझे बेटा भी कह रही हैं, और फिर ऐसे बोलकर मुझे पराया भी कर रही हैं। अगर पराया ही समझना है तो 'बेटा' कहने का हक़ नहीं है आपको!"
सविता जी थोड़ा मुस्कराईं, फिर उसके दोनों हाथों को पकड़ते हुए बोलीं,
"अच्छा ठीक है, नहीं बोलूंगी ऐसे... पर एक शर्त है। उसके लिए तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी।"
तारा ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "हाँ रानीसाहिबा, बोलिए न…"
सविता जी ने उसकी आँखों में देखा और हल्के से मुस्कराईं,
"तुम आज से मुझे रानीसाहिबा नहीं, आंटी बोलोगी।"
तारा को यह बात सुनकर कोई हैरानी नहीं हुई। बल्कि उसके चेहरे पर एक सुकून-भरी मुस्कान आ गई। उसने धीरे से सिर हिलाकर कहा,
"ठीक है… आंटी।"
सभी के चेहरे पर एक हल्का सुकून था। सर्द रिश्तों में जैसे गर्माहट घुलने लगी थी। उसी पल, एक नर्स ने दरवाज़ा खटखटाए बिना भीतर कदम रखा। उसके चेहरे पर प्रोफेशनल सख्ती थी।
वो बोली, "प्लीज़ आप सब बाहर जाएँ। पेशेंट का इतनी देर तक किसी के भी साथ बात करना उनकी तबीयत पर असर डाल सकता है।"
नर्स की बात सुनकर सबने एक-दूसरे को देखा और बिना विरोध किए उठ खड़े हुए। करुणा जी, शौर्य की दादी, तारा के पास आईं। उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं,
"हम तुझसे मिलने शाम को आएंगे, ठीक है न?"
तारा ने खुशी-खुशी सिर हिलाया। उसकी आँखों में अब कोई डर या झिझक नहीं थी - बस अपनापन था। एक-एक करके सब कमरे से बाहर निकलने लगे, शौर्य भी उनके साथ ही चला गया।
सबके जाते ही अदिति तारा के पास झुकी और बोली,
"तू थोड़ी देर इंतज़ार कर… मैं तेरे लिए खाना लेकर आती हूँ।"
तारा ने धीरे से मुस्कराकर ‘ठीक है’ में सिर हिलाया। कमरे में अब शांति थी - लेकिन तारा का दिल उन रिश्तों की आवाज़ से भरा हुआ था, जो अब उसे पराया नहीं समझते थे।
करीब 15 मिनट बाद अदिति हाथ में ट्रे लेकर कमरे में दाख़िल हुई। ट्रे में एक कटोरी गरमागरम सूप और खिचड़ी थी - अस्पताल की स्टैंडर्ड डाइट।
अदिति ने ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा,
"चल, तेरे लिए कुछ लायी हूँ। खा ले, फिर दवा भी लेनी है।"
जैसे ही तारा ने ट्रे की तरफ़ देखा, उसका चेहरा उतर गया। वो बच्चों जैसे मुँह बनाते हुए बोली,
"मुझे ये नहीं खाना... खिचड़ी देखकर तो भूख ही उड़ गई।"
अदिति ने आँखें तरेरते हुए कहा,
"चुपचाप खा ले इसे। कल डॉक्टर से छुपाकर तेरे लिए पावभाजी लायी थी, याद है? आज तो ये ही खाना पड़ेगा!"
तारा ने और ज़्यादा मुँह बना लिया। अदिति उसके सामने बैठते हुए थोड़ा नरम पड़ी और बोली,
"आज खा ले ना… कल कुछ चटपटा ला दूंगी। और फिर तुझे जल्दी ठीक भी तो होना है, है ना?"
तारा ने धीमे से सिर हिलाया और धीरे-धीरे चम्मच उठाया। माहौल थोड़ी देर के लिए शांत था, फिर तारा की मासूमियत एक बार फिर ज़ुबान पर आ गई। मुँह बिचकाते हुए बोली,
"फिर अगर मेरी सौतेली माँ किरण को पता चल गया न कि मैं हॉस्पिटल में हूँ, तो ताने मार-मार के मेरी तबीयत और बिगाड़ देगी!"
अदिति ने झट से कहा,
"इसलिए तो कहती हूँ जल्दी ठीक हो जा। वरना उस औरत की बातें सुन-सुनकर डॉक्टर भी तुझे डिस्चार्ज करने से मना कर देगा!"
दोनों थोड़ी देर के लिए खिलखिलाकर हँस पड़ीं। तारा के होंठों पर पहली बार सुकून की मुस्कान आई। शायद दोस्ती और अपनापन ही उसकी सबसे बड़ी दवा था। अदिति की बातों में तल्खी थी, गुस्सा था - पर उसके पीछे एक दोस्त का दर्द भी था।
उसे इतने गुस्से में देख, तारा ने धीमे से कहा,
"तू ऐसे मत बोल अदिति... वो जैसी भी है, माँ है मेरी।"
अदिति का सब्र टूट गया। वो तारा की तरफ़ थोड़ा झुकते हुए बोली,
"माँ? वो माँ जो तुझे नौकरानी की तरह दिन-रात खटवाती है? जिसे इस बात की भी चिंता नहीं कि तू जिंदा है या… हॉस्पिटल में? तू बस उनके लिए एक एटीएम है, तारा। तेरे पैसों के लिए तुझे झेल रही है, वरना कब की तुझे निकाल चुकी होती!"
तारा ने उसे घूरते हुए बीच में टोका,
"हो गया तेरा? चल अब दे, खिचड़ी खा लेती हूँ!"
अदिति ने गहरी साँस ली और मुस्कराकर कहा,
"ठीक है… तू बैठ शांति से, मैं ही खिला देती हूँ तुझे।"
तारा ने मानो हार मानते हुए सिर हिला दिया। अदिति ने प्यार से एक-एक चम्मच खिचड़ी उसके मुँह में डाली। फिर सूप पिलाया, और दवा दी। दवा लेने के बाद तारा को फिर से लेटने में मदद की। डॉक्टर की हिदायत थी - ज़्यादा देर तक बैठना मना है।
तारा ने जैसे ही सिर तकिये पर रखा, हाई पावर दवाओं का असर उसके नाज़ुक शरीर पर छा गया। कुछ ही मिनटों में वो गहरी नींद में चली गई। उसे सुकून से सोते देख, अदिति पास वाले सोफे पर बैठ गई। फ़ोन उठाया, और स्क्रॉल करने लगी - लेकिन उसका ध्यान बार-बार तारा की तरफ़ ही जाता रहा।
दिन का बाकी समय शांति से बीत गया। शाम को शौर्य का परिवार एक बार फिर तारा से मिलने आया - थोड़ी देर रुके, हालचाल लिया और चले गए। शौर्य भी कुछ देर के लिए कमरे में आया। उसने तारा को सोते हुए देखा, माथे पर हल्की शिकन थी - शायद कोई सपना या थकान।
उसने अदिति से धीमे से पूछा,
"सब ठीक है न?"
अदिति ने बस सिर हिला दिया। शौर्य कुछ पल वहीं खड़ा रहा, फिर चुपचाप बाहर निकल गया। कमरे में अब फिर से वही शांति थी। दिन की थकान, भावनाओं की हलचल… सब अब नींद की परतों में समा चुकी थी।
अगली सुबह तारा की आँख किसी शोर से खुली। तो आप सब को क्या लगता है? कैसा शोर सुना तारा ने? जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी ये कहानी "हुकूमत-ए-दिल"।
अगली सुबह तारा की आँखें अचानक किसी शोरगुल से खुलीं। धीरे-धीरे उसकी नज़रें साफ़ हुईं और सामने के दृश्य को देखकर उसके चेहरे पर हैरानी के भाव छा गए। उसकी सौतेली माँ किरण और साक्षी—अस्पताल में! वे दोनों अदिति से ऊँची आवाज़ में बहस कर रही थीं।
"तुम होती कौन हो हमें रोकने वाली?"
"तारा हमारी बेटी है, हम जब चाहें मिल सकते हैं!"
अदिति भी पीछे हटने वाली नहीं थी।
"अब माँ बनने का नाटक मत करो किरण आंटी… जब ज़रूरत होती है, तब तो पहचानती नहीं!"
अभी अदिति कुछ और कहने ही वाली थी कि वॉर्ड के बाहर से कदमों की आवाज़ आई। शौर्य!
उसे देख अदिति एक पल के लिए चुप हो गई। इस मौके का फ़ौरन फ़ायदा उठाते हुए किरण और साक्षी तेज़ी से वॉर्ड में दाखिल हो गईं। तारा उन्हें एकटक देखती रही। अब तक वह पूरी तरह जाग चुकी थी, लेकिन दिल में बेचैनी साफ़ थी। शौर्य भी उनके पीछे-पीछे वॉर्ड में आ चुका था।
अंदर आते ही किरण का चेहरा दर्द से भर गया, मानो उन्हें अपनी बेटी की हालत देखकर सदमा लग गया हो। किरण तारा के बिस्तर के पास बैठ गई। उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए बोली—
"कैसी है मेरी बेटी? कहीं दर्द तो नहीं हो रहा ना? मैंने जैसे ही सुना तू हॉस्पिटल में है, देख… दौड़ी-दौड़ी चली आई तेरे पास।"
साक्षी ने भी उसी सुर में सुर मिलाया।
"दीदी… हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि तुम्हारी तबीयत इतनी बिगड़ गई है। पता होता तो रातों-रात आ जाते।"
शौर्य चुपचाप खड़ा सब देख रहा था—उसकी नज़रें तारा पर थीं। वह साफ़ देख सकता था कि तारा की आँखों में नमी है—पर वह आँसू नहीं बहा रही थी। बस देख रही थी—अपनी 'माँ' और 'बहन' को—जो दुनिया के सामने एक बेहतरीन शो पेश कर रही थीं।
धीरे से उसने जवाब दिया—"जी माँ… मैं ठीक हूँ।"
अदिति का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। वह कुछ बोलने ही वाली थी कि शौर्य ने हल्का सिर हिलाकर उसे चुप रहने का इशारा कर दिया। शौर्य की निगाहें अब भी किरण पर जमी थीं। एक शांत, गहरी नज़र—जिसमें उन दोनों के लिए नफ़रत और सच को पकड़ लेने की क्षमता थी।
अदिति उसकी बगल में खड़ी थी। उसके चेहरे पर साफ़ झलक रहा था कि वह उस नाटक से घृणा कर रही है। साक्षी भी पीछे खड़ी पूरे आत्मविश्वास से मुस्कुरा रही थी। शायद सोच रही थी कि उनका यह अभिनय शौर्य के मन को छू रहा है।
लेकिन शौर्य चुपचाप, संयम से सब देख रहा था। उसकी आँखें बोल रही थीं—'सब समझ रहा हूँ मैं… बस वक़्त आने दो।'
तभी साक्षी धीरे-धीरे तारा के पास आई और उसकी पलंग के पास बैठ गई। उसके चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान थी। उसने तारा का हाथ पकड़कर बोला,
“दीदी… तुम जल्दी से ठीक होकर घर आ जाओ ना… फिर हम मिलकर बहुत मस्ती करेंगे। माँ के हाथ की खीर भी खाएँगे और एक रात फिर से छत पर लेटकर तारे गिनेंगे… जैसे पहले करते थे।”
साक्षी की मासूमियत और प्यार से भरी बात सुनकर तारा की आँखें भीग गईं। पर उसने अपने ज़ज़्बाते छुपा लिए और बस हल्की सी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया।
दूर खड़ी अदिति यह सब देख रही थी। साक्षी की बातें सुनकर वह मन ही मन सोचती है—
"हाँ, तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तू मेरी नंदू के बिना जी ही नहीं सकती… पर हक़ीक़त क्या है, यह मैं जानती हूँ…"
तभी शौर्य का फ़ोन बजा। उसने जेब से फ़ोन निकाला, स्क्रीन देखी और धीमी आवाज़ में कहा, "एक ज़रूरी कॉल है, मैं अभी आया।"
इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया।
शौर्य के जाते ही जैसे कमरे का माहौल एकदम बदल गया। किरण जी जो अब तक चुप थीं, अचानक तारा की ओर घूरते हुए बोल उठीं,
“बहुत नाटक हो गया तेरा यह मासूम बनने का। तुझे क्या ज़रूरत थी किसी की मदद करने की? अब घर के सारे काम क्या तेरी मरी हुई माँ करेगी? हर बार कुछ न कुछ मुसीबत ले आती है तू।”
उनकी बात सुनकर तारा एकदम सन्न रह गई। आँखों में आँसू भर आए, लेकिन वह कुछ कह नहीं पाई।
तभी तारा को गुस्सा आ गया। वह बीच में बोल पड़ी,
“आपको जो बोलना है, मुझे बोलिए। मेरी माँ को बार-बार बीच में मत लाइए। वह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन कम से कम उनका अपमान तो मत कीजिए।”
किरण जी साक्षी की बात सुनकर और भड़क गईं। गुस्से में तारा के पास आईं और उसके बाल पकड़कर ज़ोर से झटकते हुए कहती हैं,
“क्यों री? बाहर निकलते ही तेरी पर निकल आई हैं? तुझमें ज़रा भी तमीज़ नहीं बची है!”
तारा दर्द से कराह उठी, "आह… छोड़िए… मत खींचिए…" वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है लेकिन कमज़ोरी के कारण सफल नहीं हो पाती। किरण जी के हाथों की पकड़ और भी मज़बूत हो जाती है। तारा की चीख सुनकर अदिति एकदम घबरा जाती है और आगे बढ़ती है—
“छोड़िए ना उन्हें! दीदी बीमार हैं, दर्द हो रहा है…!”
कमरे में तारा की सिसकियाँ, अदिति की घबराई आवाज़ और किरण जी की फटकारें गूंजने लगीं… लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि दरवाज़े के उस पार खड़ा यह सब कुछ सुन चुका था।
तो आप सब को क्या लगता है? कौन-कौन सुन रहा है यह सब? क्या कभी तारा इन माँ-बेटी के अत्याचार से मुक्त हो पाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी "contract marriage"......
वहीं बाहर खड़ा शौर्य, दरवाज़े की ओट से सब कुछ देख रहा था। तारा की कराह, साक्षी की घबराई आवाज़ और किरण जी की कड़कती हुई डांट उसके कानों में गूंज रही थी। उसके दिल में कुछ चुभने सा लगा। एक बेचैनी सी उठी... और फिर अचानक, जैसे ही वह अंदर जाने के लिए आगे बढ़ा, उसके कदम वहीं ठिठक गए।
क्योंकि उसके सामने का नज़ारा और भी ज़्यादा चौंका देने वाला था।
अदिति, जो अब तक चुपचाप खड़ी सब देख रही थी, तारा के बालों को बेरहमी से खींचते हुए देख नहीं पाई।
वह फुर्ती से आगे बढ़ी और किरण जी का हाथ पकड़कर तारा के बाल छुड़ाते हुए गुस्से से बोली,
"आप क्या कर रही हैं? दिख नहीं रहा उसे गोली लगी है? वह अभी-अभी मौत से वापस आई है... और आप फिर भी उसे ऐसे तकलीफ़ दे रही हैं? अगर आपने अब से उसे छुआ तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
अदिति की आवाज़ में वह तेवर था जो शायद किसी ने उससे पहले कभी नहीं देखा था। यह कहकर उसने ज़ोर से किरण जी का हाथ झटका और तारा को उनसे दूर खींच लिया। तारा दर्द से काँप रही थी, लेकिन अब अदिति की बाँहों में थी।
अचानक धक्का लगने से किरण जी पीछे की ओर लड़खड़ा गईं। वे गिरने ही वाली थीं कि साक्षी ने जल्दी से आगे बढ़कर उन्हें संभाल लिया।
"संभालिए अपने आप को!" साक्षी ने कहा और उन्हें खड़ा किया।
लेकिन किरण जी का गुस्सा अब सातवें आसमान पर था।
वे साक्षी का सहारा लेकर खड़ी हुईं और फिर गुस्से से आँखें तरेरती हुई अदिति की ओर बढ़ने लगीं। उनके चेहरे पर अपमान और क्रोध साफ़ झलक रहा था।
"तू होती कौन है मुझसे ऐसे बात करने वाली?"
शौर्य अब और नहीं रुका। वह तुरंत कमरे के अंदर आ गया—चेहरे पर सख्ती और आँखों में गुस्सा लिए। कमरे के बाहर से गेट खुलने की आवाज़ आई। एक पल को सबका ध्यान उस ओर चला गया। किरण जी और साक्षी दोनों चौंक कर दरवाज़े की तरफ देखने लगीं।
जैसे ही उन्होंने देखा कि दरवाज़े पर शौर्य खड़ा है, दोनों माँ-बेटी के चेहरे के हाव-भाव पल भर में बदल गए। किरण जी ने अपने गुस्से को मुस्कान में छुपा लिया और साक्षी ने भी जैसे मासूम सी शक्ल बना ली।
वहीं पलंग पर बैठी तारा जल्दी से अपने आँसू पोछ लेती है। वह नहीं चाहती थी कि शौर्य उसे इस हालत में देखे।
किरण जी ने झूठी हँसी के साथ कहा,
"अच्छा बेटा, तुम आराम करो। हम शाम को फिर मिलने आएंगे।"
फिर उन्होंने शौर्य की ओर देखकर ज़बरदस्ती की मुस्कान के साथ कहा,
"अरे शौर्य बेटा, तुम आ गए... बहुत अच्छा किया, अब तारा को तुम्हारी ज़रूरत है।"
शौर्य ने उनकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। न सिर हिलाया, न मुस्कुराया—बस एक ठंडी नज़र दोनों पर डालता रहा। उनकी बनावटी हँसी और अचानक बदले हाव-भाव को वह साफ़ महसूस कर चुका था।
उनका यह बेरुखा स्वागत देखकर किरण जी और साक्षी दोनों को एक पल को झटका लगा। उन्हें अहसास हो गया कि शौर्य ने शायद सब कुछ देख लिया है। अपमान और असहजता से भरे भाव उनके चेहरों पर साफ़ झलकने लगे। चुपचाप, बिना कुछ कहे दोनों बाहर निकल गईं।
शौर्य की नज़र अब भी दरवाज़े की तरफ थी जहाँ से वे गई थीं।
उन्हें जाते देख शौर्य का दिल भारी हो गया। उसने मन ही मन सोचा—
"पता नहीं ये तारा उनके साथ कैसे रहती है... अभी हॉस्पिटल में होने पर भी वो लोग उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहे हैं… तो घर में क्या करते होंगे? कितनी तकलीफ़ सहती होगी वो... अकेले।"
उसका दिल एक अजीब सी टीस से भर गया था। तारा की चुप्पी, उसकी आँसुओं भरी आँखें याद कर... शौर्य को बेचैन करने लगी थीं।
शौर्य अब भी दरवाज़े की ओर देख रहा था, जहाँ से किरण जी और साक्षी बाहर जा चुकी थीं। उसके मन में कई सवाल, कई भाव उठ रहे थे, जब तभी उसके कानों में किसी के फुसफुसाने की हल्की सी आवाज़ पड़ी। वह चौंक कर सामने देखने लगा।
अदिति, जो अब तक गुस्से में उबल रही थी, धीमे-धीमे बड़बड़ाते हुए बोल रही थी,
"आने की कोई ज़रूरत ही नहीं है आप दोनों को... दिखावा कर के चले गए जैसे बहुत अपनापन दिखाना था…"
उसकी यह बात किसी और ने तो नहीं सुनी, लेकिन वह तारा के बहुत पास खड़ी थी। इसलिए तारा को साफ़ सुनाई दे गया।
तारा ने हल्की-सी आँखें तरेरते हुए उसकी ओर देखा और धीमी आवाज़ में डाँटती हुई बोली,
"चुप रह, अदिति।"
अदिति ने तारा की घूरती नज़रों की बिल्कुल परवाह नहीं की। वह थोड़ी सी मुस्कुराई और अपने दाँत दिखाते हुए धीरे से फुसफुसाई,
"क्यूँ चुप रहूँ? सच ही तो बोला मैंने… और तू ऐसे घूर क्यों रही है, जैसे मैंने तेरा कोई गुनाह कर दिया हो।"
तारा हल्का सा होंठ भींचती है, लेकिन कुछ नहीं कहती। वह जानती थी कि अदिति का गुस्सा जायज़ है… पर उसकी खुद की हालत, हालात और दिल की उलझनों ने उसे और ज़्यादा थका दिया था।
शौर्य यह सारा दृश्य देख रहा था—दोनों लड़कियों के बीच की यह धीमी लड़ाई, उसमें छिपा अपनापन, नाराज़गी और चिंता... सब समझ रहा था। तभी कुछ ऐसा होता है जिससे अदिति और तारा दोनों चौंक गए।
वहीं दूसरे तरफ, यह सब नज़ारा एक इंसान बड़े गौर से देख रहा था।
अदिति ने तारा की घूरती नज़रों की बिल्कुल परवाह नहीं की। वह थोड़ी सी मुस्कुराई और अपने दाँत दिखाते हुए धीरे से फुसफुसाई,
"क्यूँ चुप रहूँ? सच ही तो बोला मैंने… और तू ऐसे घूर क्यों रही है, जैसे मैंने तेरा कोई गुनाह कर दिया हो।"
तारा हल्का सा होंठ भींचती है, लेकिन कुछ नहीं कहती। वह जानती थी कि अदिति का गुस्सा जायज़ है। पर उसकी खुद की हालत, हालात और दिल की उलझनों ने उसे और ज़्यादा थका दिया था।
शौर्य यह सारा दृश्य देख रहा था—दोनों लड़कियों के बीच की यह धीमी लड़ाई, उसमें छिपा अपनापन, नाराज़गी और चिंता... सब समझ रहा था। तभी कुछ ऐसा होता है जिससे अदिति और तारा दोनों चौंक गए।
अदिति अभी भी हल्के फुसफुसाते हुए तारा से बहस कर ही रही थी कि तभी एक जानी-पहचानी आवाज़ ने दोनों को चौंका दिया—
“आप दोनों ऐसे क्या खुसर-पुसर कर रहे हैं?”
शौर्य की अचानक आती आवाज़ पर दोनों ही चौंक गईं। तारा ने झट से शौर्य की ओर देखा और थोड़ा हड़बड़ाकर बोली,
“कुछ नहीं... ऐसे ही, बात कर रहे थे।”
अदिति ने भी तुरंत अपना चेहरा सीधा कर लिया और जैसे कुछ हुआ ही न हो।
शौर्य उनके रिएक्शन को देखकर हल्का सा मुस्कुराया, फिर तारा की ओर मुड़ते हुए एक नरमी भरी आवाज़ में बोला,
“ठीक है... लेकिन आपकी तबीयत तो सही है ना? कहीं दर्द तो नहीं हो रहा?”
उसकी बातों में चिंता साफ झलक रही थी। वह तारा की आँखों में झाँक कर देख रहा था, जैसे जवाब सिर्फ शब्दों से नहीं, उसके चेहरे से भी लेना चाहता हो।
तारा उसकी आँखों में देखकर हल्के से मुस्कुराई और धीरे से सिर हिलाते हुए बोली,
“जी... मैं ठीक हूँ।”
शौर्य ने उसके जवाब से संतोष पाते हुए हल्के से सिर हिलाया और बोला,
“ठीक है, तो मैं चलता हूँ... लेकिन अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो मेरे असिस्टेंट वीर को कह दीजिएगा। वह आपके लिए सब कुछ अरेंज कर देगा।”
अदिति और तारा दोनों उसकी इस केयरिंग अटिट्यूड को देखकर थोड़ी देर के लिए चुप हो गईं।
अदिति ने तारा की ओर देखकर धीमे से फुसफुसाया,
"तेरा हीरो तो बड़ा केयरिंग निकला…"
और इससे पहले कि तारा कुछ कहती, वह मुस्कुराते हुए दूसरी ओर मुड़ गई।
शौर्य तारा की हालत देख चुका था। वह कुछ पल चुपचाप खड़ा रहा, फिर अपनी कोट की जेब से एक विज़िटिंग कार्ड निकाला और अदिति की ओर बढ़ाया।
"ये रहा मेरा कार्ड," उसने सौम्य लेकिन गंभीर लहजे में कहा, "इसमें मेरा नंबर है। जब भी ज़रूरत हो, बेझिझक कॉल कर सकती हैं। मैं कोशिश करूँगा कि हर संभव मदद दे सकूँ। और अब आप थोड़ा आराम कीजिए... मैं चलता हूँ।"
अदिति ने कार्ड लिया, उसकी आँखों में कृतज्ञता की एक चमक थी, लेकिन वह कुछ बोली नहीं। शौर्य एक हल्की मुस्कान के साथ कमरे से निकल गया, और उसके जाते ही कमरे में एक शांत सा सन्नाटा फैल गया।
अदिति ने तारा की ओर देखा जो अब भी बिस्तर पर चुपचाप लेटी थी।
"तू आराम कर, मैं थोड़ी देर के लिए घर जा रही हूँ। एक नर्स को बोल देती हूँ कि तेरा ध्यान रखे,"
कहते हुए अदिति ने नर्स से बात की और तारा के सिर पर हल्के से हाथ रखकर बाहर चली गई।
तारा अब भी दर्द और थकावट से भरी थी। डॉक्टर ने उसे जो दवाइयाँ दी थीं, उनके असर से उसकी आँखें जल्द ही बंद हो गईं और वह नींद में डूब गई।
वहीं दूसरी तरफ, यह सब नज़ारा एक इंसान बड़े गौर से देख रहा था। शौर्य का एक्शन और किरण और साक्षी का एक्टिंग सब कुछ बहुत अच्छे से देख रहा था।
(यह इंसान कौन है, आपको आगे के चैप्टर में पता चलेगा।)
समय धीरे-धीरे बीत गया। तारा की हालत अब पहले से कहीं बेहतर थी।
इस एक हफ़्ते में शौर्य ने भले ही ज़्यादा समय उसके साथ ना बिताया हो, लेकिन वह हर दिन अस्पताल आता था। दवाइयों से लेकर खाने तक, तारा की ज़रूरत की हर चीज़ का ध्यान उसने खुद रखा। वह खुद कम बोलता था, पर उसके किए गए छोटे-छोटे काम, उसकी चुप सी फ़िक्र… सब कुछ बयाँ कर जाते थे।
इस दौरान शौर्य का परिवार भी कई बार तारा से मिलने आया। सविता जी ने तारा के सिर पर प्यार से हाथ रखा था, और दादी अरुणा जी ने उसके माथे को चूमते हुए कहा था,
"जल्दी ठीक हो जा बच्ची… घर पर सब तेरा इंतज़ार कर रहे हैं।"
तारा को वह अपनापन अच्छा लगा, पर साथ ही एक अजीब सी झिझक भी हुई—क्योंकि यह सब कुछ उसे बहुत नया लग रहा था। जिस घर में वह रहती थी वहाँ ऐसा स्नेह उसे कभी नहीं मिला था।
एक हफ़्ते बाद... रविवार की सुबह...
आज का दिन तारा के लिए खास था—एक हफ़्ते अस्पताल में बिताने के बाद आज उसे डिस्चार्ज मिल रहा था। कमरे की खिड़की से आती हल्की धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, जैसे उसे आज़ादी की राहत दे रही हो।
अभी कुछ ही देर बीती थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। शौर्य हाथ में फ़ाइल लिए भीतर आया। तारा ने उसे देखा तो चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
"गुड मॉर्निंग," शौर्य ने नज़रों से उसका हाल पूछा।
"गुड मॉर्निंग," तारा ने धीरे से जवाब दिया।
शौर्य ने डॉक्टर्स से सारी औपचारिकताएँ पूरी कीं और फिर डिस्चार्ज पेपर पर साइन कर दिए।
"अब आप जा सकती हैं… डॉक्टर ने कहा है कि घर पर आराम की ज़रूरत है। दवाइयों का ध्यान रखिएगा।"
तारा ने सिर हिलाकर हामी भरी।
थोड़ी ही देर में सारी प्रक्रिया पूरी हो गई। शौर्य ने खुद ड्राइवर को बुलाया और तारा का सारा सामान कार में रखवाया।
"आपका सामान कार में है… वीर (असिस्टेंट और दोस्त) आपको घर तक छोड़ देगा," उसने तारा से कहा।
तारा उसे देखती रही। कुछ कहने को मन था, पर शब्द नहीं मिले। वह बस धीमे से बोली, "थैंक यू…"
शौर्य ने हल्के से सिर हिलाया और बिना कुछ बोले मुस्कुराया।
जैसे ही कार निकलती है, शौर्य अपने फोन पर एक नोटिफिकेशन देखता है—आज की मीटिंग का रिमाइंडर।
वैसे तो तारा के एक्सीडेंट के बाद से वह ऑफिस से दूर ही था, लेकिन आज की मीटिंग उसके लिए बेहद अहम थी। यह मीटिंग उसके ड्रीम प्रोजेक्ट की नींव थी—एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसे वह सालों से साकार करने का सपना देख रहा था।
वह अपनी गाड़ी में बैठते हुए बुदबुदाया, "आज का दिन... मेरे लिए बहुत अहम है। इतने सालों की मेहनत आज रंग लाने वाली है।"
वह यह सब सोचते हुए गाड़ी में बैठा और फिर गाड़ी ऑफिस की ओर रवाना हो गई।
दूसरे तरफ, तारा के घर पर,
तारा और अदिति जैसे ही तारा के घर पहुँचते हैं, किरण जी कुछ ऐसा कहती हैं जिसे सुनकर अदिति की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
तो आप सब को क्या लगता है? क्या कहा होगा किरण जी ने? कौन है जो छुप-छुप कर तारा के ऊपर नज़र रख रही है? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी "हुकुमत ए दिल"...
कार जैसे ही तारा के घर के सामने रुकी, अदिति उसके साथ उतरी और उसकी कमर को सहारा देते हुए उसे अंदर ले गई। तारा के चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी, लेकिन घर लौटने की एक अजीब सी राहत भी थी।
"चल, तुझे आराम करना चाहिए," अदिति ने कहा और धीरे-धीरे उसे उसके कमरे तक ले गई।
वहीं ऊपर की बालकनी से साक्षी ने उन्हें आते देखा। वह बिना वक्त गंवाए सीधा भागती हुई अपनी माँ के पास गई।
"माँ... माँ... तारा आ गई है!"
उसने जैसे ही कहा, किरण जी की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई—लेकिन वह खुशी की नहीं, बल्कि शिकंजा कसने की थी।
"अच्छा! तो आ गई महारानी..."
कहते हुए वह तेज़ी से तारा के कमरे की ओर बढ़ीं।
कमरे में पहुँचते ही उनका लहजा तानों से भरा हुआ था,
"तो अब आराम काफी हो गया... चल जा, रसोई में जा और खाना बना। हम माँ-बेटी ने तेरे बिना खट-खट कर के दम निकाल लिया है।"
तारा ने कुछ कहने की कोशिश की, पर थकावट और कमजोरी ने उसकी आवाज़ को गले में ही रोक लिया।
ये सब सुनते ही अदिति का खून खौल गया। उसने तारा के सामने खड़े होकर थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा,
"आपको दिख नहीं रहा है कि उसकी हालत अभी भी ठीक नहीं है? उसे गोली लगी थी, वो अभी ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही… और आप उससे खाना बनाने को कह रही हैं? अगर कुछ हुआ ना इसे, तो मैं आपको छोड़ूंगी नहीं।"
किरण जी कुछ पल के लिए सकपका गईं, लेकिन फिर उनका चेहरा गुस्से से तमतमा उठा।
"अब तू हमें सिखाएगी कि घर कैसे चलता है? तू होती कौन है बीच में बोलने वाली?"
जिसे सुन अदिति को बहुत बुरा लगा।
पर वो तारा का सोचकर, अदिति पलटे बिना बोली,
"मैं कुछ भी नहीं, लेकिन इंसानियत रखने वाली एक लड़की हूँ… और तारा की दोस्त भी। इतना तो हक़ बनता है मेरा, कि जब कोई उसकी हालत में भी उस पर ज़ुल्म करे… तो मैं बोल सकूँ।"
तारा दोनों के बीच खड़ी होकर उन्हें शांत कराने की कोशिश करती रही, लेकिन उसके चेहरे की घबराहट और बेचैनी साफ दिख रही थी।
किरण जी की आवाज़ में आदेश और ताना दोनों मिले हुए थे,
"चल, जा रसोई में और हमारे लिए खाना बना। आराम तो तूने बहुत कर लिया!"
तारा ने अदिति की तरफ एक नज़र डाली, जो अभी भी क्रोध से कांप रही थी, और फिर हल्की आवाज़ में बोली,
"जी माँ... मैं बना देती हूँ खाना... आप जाकर आराम करिए..."
अदिति का चेहरा एकदम सख्त हो गया।
"पर..." उसने कुछ कहने की कोशिश की।
पर उससे पहले ही तारा की निगाहें उसकी तरफ उठीं—नरम लेकिन दृढ़। उस एक नज़र में इतनी ममता और विनती थी कि अदिति की ज़बान वहीं रुक गई।
किरण जी की तीखी नज़रें अदिति को घूरती रहीं और फिर वह सिर ऊँचा किए कमरे से निकल गईं। उनके पीछे साक्षी भी खामोशी से चली गई।
जैसे ही वे दोनों गईं, अदिति ने गुस्से में तारा की ओर घूरते हुए कहा,
"तुझे इतना महान बनने का शौक कब से चढ़ गया? तुझे पता है ना तेरी गोली की चोट अभी तक भरी नहीं है, फिर भी तू उस चुड़ैल की बात मान गई!"
तारा ने हल्की मुस्कान के साथ उसके पास आकर कहा,
"अच्छा शांत हो जा, मेरी गदाधारी भीम। हमेशा लड़ने को तैयार रहती है तू। कभी खुद के लिए भी तो कुछ कर ले..."
अदिति का चेहरा एक पल के लिए ढीला पड़ गया। उसने गहरी साँस लेते हुए कहा,
"तू जानती है ना... मैं क्यों खुद के लिए स्टैंड नहीं ले पाती... फिर भी तू मुझसे ये कह रही है?"
थोड़ा रुककर उसने जैसे कोई पुराना घाव कुरेदा हो, वैसे ही धीमी लेकिन भारी आवाज़ में कहा,
"और वैसे भी, अगर मैं कभी अपने लिए स्टैंड ले भी लूँ... तो क्या फर्क पड़ेगा? जिस लड़की पर उसके अपने माँ-बाप ही भरोसा नहीं करते... उस पर और कौन करेगा?"
ये कहते-कहते उसकी आँखें नम हो गईं और उसके चेहरे पर एक करारी, दर्द से भरी मुस्कान फैल गई—जैसे अपने ही दर्द पर हँसना सीख गई हो।
तारा का दिल भर आया। उसने बिना कुछ कहे चुपचाप अपना हाथ अदिति के कंधे पर रख दिया। कोई शब्द नहीं, सिर्फ उस स्पर्श में ढेर सारा अपनापन था।
जैसे ही अदिति तारा के गले लगी, उसका दर्द आखिरकार बहकर बाहर निकल गया। उसके आँसू तारा के कंधे को भिगोने लगे। तारा उसकी पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरती रही, जैसे हर एक स्पर्श से उसे सुकून देने की कोशिश कर रही हो।
थोड़ी देर बाद, माहौल को हल्का करने के लिए तारा हँसी में कहती है,
"लगता है अब फायर ब्रिगेड को कॉल करना पड़ेगा... तेरे इन आँसुओं की गंगा में डूबने का पूरा खतरा है आज!"
अदिति, जो अभी कुछ पलों पहले तक सिसक रही थी, उसकी बात सुनकर हल्की सी मुस्कान दे देती है। उसकी आँखों में आँसू अब भी हैं, पर चेहरे पर एक सुकून भी।
तारा मुस्कुरा कर उसके आँसू पोंछते हुए कहती है,
"चल अब हँस दे... तुझे रोते हुए देखना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। तू तो मुझे मेरी गदाधारी भीम के जैसी ही अच्छी लगती है—झांसी की रानी टाइप!"
अदिति हँस पड़ती है, और दोनों की आँखों में अब एक गर्मजोशी भरी चमक आ जाती है।
फिर तारा उसे थोड़ा सख्ती से लेकिन प्यार से कहती है,
"अच्छा अब तू घर जा... मुझे भी थोड़ा काम करना है।"
पर अदिति हाथ नचाते हुए कहती है,
"नहीं, मैं अभी कहीं नहीं जा रही। चल, तेरी रसोई में थोड़ा हाथ बंटा देती हूँ। वो दोनों माँ-बेटी तो तुझसे मदद करने से रहीं, और तुझे भी ज़्यादा काम करने से मना किया गया है। इसलिए अब मैं ही कमान संभालती हूँ!"
तारा जानती थी कि अदिति को मना करना बेकार है, इसलिए वह बस हल्के से सिर हिला देती है। दोनों हँसते-बोलते किचन की तरफ बढ़ जाती हैं।
जैसे ही वे किचन में पहुँचती हैं, उनके कदम ठिठक जाते हैं और मुँह खुला का खुला रह जाता है।
अदिति, जो अभी कुछ पलों पहले तक सिसक रही थी, उसकी बात सुनकर हल्की सी मुस्कान देती है। उसकी आँखों में आँसू अब भी हैं, पर चेहरे पर एक सुकून भी है।
तारा मुस्कुरा कर उसके आँसू पोंछते हुए कहती है,
"चल अब हँस दे... तुझे रोते हुए देखना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। तू तो मुझे मेरी गदाधारी भीम के जैसी ही अच्छी लगती है—झांसी की रानी टाइप!"
अदिति हँस पड़ती है, और दोनों की आँखों में अब एक गर्मजोशी भरी चमक आ जाती है।
फिर तारा उसे थोड़ा सख्ती से लेकिन प्यार से कहती है,
"अच्छा अब तू घर जा... मुझे भी थोड़ा काम करना है।"
पर अदिति हाथ नचाते हुए कहती है,
"नहीं, मैं अभी कहीं नहीं जा रही। चल, तेरी रसोई में थोड़ा हाथ बंटा देती हूँ। वो दोनों माँ-बेटी तो तुझसे मदद करने से रहीं, और तुझे भी ज़्यादा काम करने से मना किया गया है। इसलिए अब मैं ही कमान संभालती हूँ!"
तारा जानती थी कि अदिति को मना करना बेकार है, इसलिए वह बस हल्के से सिर हिला देती है। दोनों हँसते-बोलते किचन की तरफ बढ़ जाती हैं।
जैसे ही वे किचन में पहुँचती हैं, उनके कदम ठिठक जाते हैं और मुँह खुला का खुला रह जाता है।
किचन पूरी तरह अस्त-व्यस्त था। सिंक में बर्तन भरे पड़े थे, प्लेटों पर अधखाया खाना था, स्टोव पर दूध उबल कर गिर पड़ा था और गैस अब भी धीमी आँच पर जल रही थी।
अदिति भौचक्की होकर बोलती है,
"ये क्या हालत बना रखी है! क्या किसी युद्ध के बाद का नज़ारा है ये?"
तारा भी हैरानी से कहती है,
"लगता है साक्षी ने कल कुछ बनाने की कोशिश की थी... और रसोई ने हार मान ली!"
दोनों कुछ देर सन्न रह जाती हैं, फिर एक-दूसरे की तरफ देखती हैं और जोर से हँसने लगती हैं।
एक घंटे बाद शौर्य अपने ऑफिस पहुँचा। हमेशा की तरह उसका चेहरा गंभीर और भावशून्य था। ऑफिस की बिल्डिंग के बाहर पहले से ही वीर उसका इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही शौर्य की गाड़ी रुकी, वीर आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला और बेहद प्रोफेशनल अंदाज़ में बोला,
"गुड मॉर्निंग सर।"
शौर्य बस हल्के से गर्दन हिलाता है और बिना कुछ कहे ऑफिस की ओर बढ़ जाता है। अंदर पहुँचते ही हर तरफ से स्टाफ उसे ग्रीट करता है — "गुड मॉर्निंग सर", "वेलकम बैक सर", "ग्लैड टू सी यू सर!" — लेकिन शौर्य बस एक झलक भर देखकर सबकी ग्रीटिंग्स को एक साइलेंट नोड में स्वीकार कर लेता है।
वीर उसे पर्सनल लिफ्ट से सीधे उसके कैबिन में ले जाता है। लिफ्ट के बंद होते ही वीर धीरे से बोलता है,
"सर, आज आपकी मीटिंग 11 बजे है। Mr. जॉनसन 11 बजे तक यहाँ पहुँच जाएँगे।"
शौर्य का चेहरा एकदम प्रोफेशनल मोड में आ जाता है।
"ठीक है। तुम प्रोजेक्ट की सारी फाइल्स मुझे दे दो। और मीटिंग की तैयारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।"
वीर तुरंत हाँ में सिर हिलाकर कैबिन से बाहर चला जाता है।
करीब दस मिनट बाद, वीर एक फाइल लेकर वापस आता है।
"सर, ये रही पूरी प्रेज़ेंटेशन फाइल और क्लाइंट रिपोर्ट। मीटिंग रूम की सारी टेक्निकल चीज़ें भी चेक कर ली गई हैं।"
शौर्य बिना ज़्यादा बोले फाइल लेता है और ध्यान से पढ़ने में लग जाता है। वीर समझ जाता है कि अब उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए, इसलिए वह चुपचाप कैबिन से बाहर निकल जाता है।
शौर्य लैपटॉप के सामने गंभीरता से बैठा अपनी ऑनलाइन मीटिंग अटेंड कर रहा था। उसकी आँखों में थकान साफ झलक रही थी, लेकिन काम के प्रति समर्पण भी उतना ही गहरा था। कमरे में हल्की रौशनी थी, और बाहर शाम की नर्म किरणें खिड़की से छन-छन कर अंदर आ रही थीं।
तभी कमरे के दरवाज़े पर हल्की-सी दस्तक होती है।
शौर्य तुरंत सीधा बैठते हुए अपनी रोबीली आवाज़ में बोला, "आ जाइए।"
दरवाज़ा धीरे से खुला और अंदर से एक स्नेहिल मुस्कान लिए करुणा जी, उसकी दादी, प्रवेश करती हैं। सफेद साड़ी में लिपटीं, उनके चेहरे पर उम्र की रेखाएँ थीं, मगर प्यार और अपनापन आज भी उतना ही ताज़ा था।
उन्हें देखते ही शौर्य की गंभीरता एक पल में पिघल गई। उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फैल गई।
"अरे दादी आप! आइए न बैठिए," वह बोला और तुरंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ, "मुझे बता दिया होता तो मैं खुद आ जाता।"
करुणा जी ने हल्का सा सिर हिलाया, उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी।
"क्यों? हम हमारे पोते के पास नहीं आ सकते क्या?" वे प्यार भरी झिड़की के अंदाज़ में बोलीं।
शौर्य हल्के से मुस्कुराया, उनके पास जाकर उनके हाथों को पकड़ते हुए बोला, "नहीं दादी... आप तो हमेशा मेरे दिल के सबसे करीब हैं।"
कमरे में एक गहरा अपनापन भर गया। ऑफिस की मीटिंग्स, बिज़नेस डील्स और दिनभर की भागदौड़ के बाद, यह पल शौर्य के लिए सबसे ज़्यादा सुकून देने वाला था।
करुणा जी शौर्य के पास बैठ जाती हैं। कुछ क्षण वे बस अपने पोते को देखती रहती हैं, जो अब उनका छोटा सा शौर्य नहीं रहा था—अब वह एक गंभीर, जिम्मेदार और परिपक्व पुरुष बन चुका था।
फिर उन्होंने नर्मी लेकिन गंभीर लहजे में कहा, "शौर्य, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी।"
शौर्य ने हल्के से सिर हिलाया, "हाँ दादी, बोलिए।"
करुणा जी ने शांति से उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारी उम्र 29 हो गई है... कुछ वक्त बाद 30 के हो जाओगे। कब शादी करोगे बेटा?"
शौर्य का चेहरा अचानक सख्त हो गया। उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई। वह गहरी साँस लेकर बोला, "कभी नहीं दादी। आपको पता है ना मेरी शादी न करने की वजह। फिर भी आप वही सब क्यों बोल रही हैं?"
करुणा जी का चेहरा थोड़ा उदास हो गया, लेकिन उनका स्वर अब भी नरम था, "बेटा, सभी उसके जैसे नहीं होते। इस दुनिया में कुछ अच्छे लोग भी रहते हैं... जो तुम्हारे ज़ख्मों को समझेंगे, उन्हें भरने की कोशिश करेंगे।"
शौर्य ने अपनी निगाहें झुका लीं। पलभर की चुप्पी के बाद उसने ठंडी आवाज़ में कहा, "नहीं दादी, मुझे शादी नहीं करनी। प्लीज़, आप यह बात और मत कीजिए। अभी मुझे एक ऑनलाइन मीटिंग अटेंड करनी है... आप जाइए।"
करुणा जी उसकी तरफ एक पल तक बस देखती रहीं—गुस्से से नहीं, टूटे हुए दिल से।
तभी वह कुछ ऐसा बोलती हैं जिसे सुनकर शौर्य हैरान रह जाता है।
तो आप सब को क्या लगता है क्या कहा होगा करुणा जी ने जिससे शौर्य हैरान रह जाता है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी......
फिर उन्होंने नर्मी, लेकिन गंभीर लहजे में कहा, “शौर्य, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी।”
शौर्य ने हल्के से सिर हिलाया। “हाँ दादी, बोलिए।”
करुणा जी ने शांति से उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी उम्र २९ हो गई है… कुछ वक्त बाद ३० के हो जाओगे। कब शादी करोगे बेटा?”
शौर्य का चेहरा अचानक सख्त हो गया। उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई। वह गहरी साँस लेकर बोला, “कभी नहीं दादी। आपको पता है ना मेरी शादी न करने की वजह। फिर भी आप वही सब क्यों बोल रही हैं?”
करुणा जी का चेहरा थोड़ा उदास हो गया, लेकिन उनका स्वर अब भी नरम था। “बेटा, सभी उसके जैसे नहीं होते। इस दुनिया में कुछ अच्छे लोग भी रहते हैं… जो तुम्हारे ज़ख्मों को समझेंगे, उन्हें भरने की कोशिश करेंगे।”
शौर्य ने अपनी निगाहें झुका लीं। पलभर की चुप्पी के बाद उसने ठंडी आवाज़ में कहा, “नहीं दादी, मुझे शादी नहीं करनी। प्लीज़, आप ये बात और मत कीजिए। अभी मुझे एक ऑनलाइन मीटिंग अटेंड करनी है… आप जाइए।”
करुणा जी उसकी तरफ एक पल तक बस देखती रहीं—गुस्से से नहीं, टूटे हुए दिल से।
फिर उन्होंने गहरी आवाज़ में कहा, “अगर इस बार तुमने मेरी मर्ज़ी से शादी नहीं की, तो भूल जाना कि तुम्हारी कोई दादी भी है। जब शादी के लिए तैयार हो जाओ… तभी मुझसे बात करना।”
इतना कहकर वे उठीं, और बिना पीछे देखे कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाते ही कमरे में एक भारी सन्नाटा छा गया… और शौर्य की आँखों में एक हल्का-सा पछतावा तैर गया, जिसे वह खुद से भी छुपा गया।
करुणा जी बिना कुछ कहे, शौर्य के कमरे से बाहर निकल गईं। उनके कदमों में थकावट थी, आँखों में नमी और दिल में भारीपन।
उधर शौर्य, जो अब फिर से लैपटॉप की ओर मुड़ चुका था, मन ही मन सोचता है—
“हर बार की तरह इस बार भी दादी गुस्से में बोल गई होंगी। गुस्सा ठंडा होगा तो फिर खुद ही बात कर लेंगी।”
इतना सोचकर वह फिर से अपने काम में व्यस्त हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
लेकिन नीचे, घर के ड्रॉइंग रूम में माहौल कुछ और ही था।
करुणा जी धीरे-धीरे सीढ़ियाँ उतरती हैं, चेहरे पर थकावट और मन पर भारी बोझ लिए। उन्हें देखते ही सविता जी आगे बढ़ती हैं।
“माँ जी… शौर्य राज़ी हुआ क्या शादी के लिए?” उम्मीद से भरी आवाज़ में पूछा गया सवाल, हवा में ही अटक सा गया।
करुणा जी ने निगाहें झुका लीं। उनकी आवाज़ बुझी हुई थी। “नहीं… वह अब भी पुरानी बातों से आगे बढ़ना नहीं चाहता।”
सविता जी के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ खिंच जाती हैं। “अब आप क्या करेंगी?” उन्होंने धीरे से पूछा।
करुणा जी की आँखों में अब दृढ़ता आ गई थी। वे धीमे लेकिन ठोस स्वर में बोलीं,
“इस बार अगर शौर्य शादी के लिए मानेगा… तभी मैं उससे बात करूंगी। नहीं तो… नहीं करूंगी।”
उनकी आवाज़ में एक ऐसी पीड़ा थी, जिसे सिर्फ एक माँ या दादी ही समझ सकती है—प्यार भी था, ठोकर भी… लेकिन सबसे ज़्यादा एक आखिरी उम्मीद।
सविता जी करुणा जी की आँखों में देखते हुए बोलीं, “आप उससे बात किए बिना रह सकती हैं? आपकी तो जान बसती है शौर्य में…”
करुणा जी का चेहरा भावशून्य हो गया। फिर उन्होंने गहरी साँस लेते हुए कहा, “उसकी भलाई के लिए मुझे ये करना ही होगा। वरना वह कभी आगे बढ़ ही नहीं पाएगा।”
सविता जी ने चुपचाप सिर झुकाया। “जैसी आपकी इच्छा, माँ जी… मैं लंच की तैयारी करती हूँ।”
करुणा जी ने हल्के से सिर हिला दिया, मगर उनकी आँखों की चमक अब भी बुझी हुई थी।
कुछ देर बाद पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर लंच के लिए इकट्ठा हुआ। मेज़ सज चुकी थी, सर्वेंट्स सबको खाना परोस रहे थे। माहौल में रोज़ की तरह शांति थी, लेकिन आज एक अनकहा तनाव भी तैर रहा था।
शौर्य भी नीचे आता है। व्हीलचेयर को खुद धकेलते हुए अपनी जगह पर आता है और करुणा जी के ठीक बगल में बैठ जाता है। हमेशा की तरह वह हल्की मुस्कान के साथ सबका अभिवादन करता है, लेकिन आज माहौल में कुछ अलग था।
सर्वेंट्स प्लेटें सजाने लगते हैं। तभी शौर्य ध्यान देता है कि करुणा जी बिना उसकी तरफ देखे, बिना कुछ कहे—खाने में जुट जाती हैं।
ना कोई नज़र, ना कोई बात।
शौर्य का चेहरा एक पल में उतर जाता है। उसका दिल कुछ भारी-सा महसूस करता है।
“दादी मुझसे नाराज़ हैं… लेकिन इतना?”—यह सवाल उसे भीतर ही भीतर कचोटने लगता है।
डाइनिंग टेबल पर सब शांत बैठे थे। तभी अचानक, करुणा जी के गले में खाना अटक जाता है और वे जोर-जोर से खांसने लगती हैं।
शौर्य तुरंत चौकन्ना हो जाता है। वह अपनी प्लेट छोड़कर तेजी से उनकी ओर झुकता है और बोतल उठाकर पानी बढ़ाता है, “दादी… पानी लीजिए।”
लेकिन करुणा जी उसका हाथ नजरअंदाज़ करते हुए, पानी लेने से इनकार कर देती हैं। वे अब भी खांस रही होती हैं।
यह देख सविता जी घबरा कर अपनी कुर्सी से उठती हैं और जल्दी से उनके पास जाकर उन्हें पानी पिलाती हैं। करुणा जी धीरे-धीरे ठीक होती हैं।
शौर्य वहीं बैठा रह जाता है—उसका हाथ अब भी हवा में रुका हुआ था, और चेहरा… उदास। दादी का ऐसा व्यवहार उसे भीतर तक चुभ जाता है।
“इतनी नाराज़गी… मुझसे?” वह कुछ नहीं कहता, बस अपनी प्लेट की ओर देखता है।
लेकिन खाना न खाने की बात सोचकर वह मन ही मन खुद को समझाता है—
“दादी से नाराज़ होकर मैं खाना नहीं छोड़ूँगा… यह गलत होगा।”
वह चुपचाप थोड़ा-बहुत खाता है, और फिर बिना किसी से कुछ कहे, अपनी व्हीलचेयर घुमा कर वापस अपने कमरे की ओर चला जाता है।
उसके जाते ही सविता जी करुणा जी की ओर पलटती हैं—चेहरे पर नाराज़गी और चिंता दोनों साफ झलकते हैं।
“माँ जी, आपके इस रूखे बर्ताव की वजह से वह बिना ढंग से खाए चला गया।”
करुणा जी ने एक लंबी साँस ली। फिर बिना किसी पछतावे के बोलीं,
“तू चिंता मत कर बहू। अगर इस बार मैंने अपने दिल पर पत्थर नहीं रखा… तो वह कभी नहीं मानेगा। वह हर रोज़ खुद को बीती बातों में जला रहा है। अब वक्त है उसे बाहर निकालने का… और अगर उसके लिए मुझे कठोर बनना पड़े, तो मैं बनूँगी।”
उनकी आवाज़ भले ही सख्त थी, लेकिन आँखों के कोने भीग चुके थे… क्योंकि सच्चाई यही थी—वे टूट रही थीं… पर अपने पोते को फिर से जोड़ने के लिए।
करुणा जी थोड़ी देर तक चुप रहीं, फिर एक गहरी साँस भरकर बोलीं,
“वो लड़की… क्या कहूँ… जैसे तूफान बनकर आई और हमारे शौर्य की ज़िंदगी को उजाड़ गई। इतना मासूम, इतना हँसमुख लड़का… आज किसी भी लड़की की तरफ देखना तक पसंद नहीं करता। लेकिन बहू, इस बार मैंने जिसे चुना है… मुझे पूरा विश्वास है—वह हमारे शौर्य को फिर से पहले जैसा बना देगी। उसे फिर से जीना सिखा देगी।”
सविता जी ने नम आँखों से हाँ में सिर हिला दिया। उनके चेहरे पर उम्मीद की हल्की-सी रेखा उभरी थी।
तभी, अब तक चुप बैठे रणविजय जी ने धीरे से पूछा,
“वैसे माँ… आपने अभी तक उस लड़की का नाम या पता तो हमें बताया ही नहीं। कौन है वह?”
करुणा जी की आँखों में हल्की सी मुस्कान आई।
तो आप सब को क्या लगता है?
कौन है वह लड़की जिसको करुणा जी ने पसंद किया है शौर्य के लिए?
क्या शादी के लिए शौर्य राज़ी होगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी…
करुणा जी थोड़ी देर चुप रहीं, फिर एक गहरी साँस भरकर बोलीं,
“वो लड़की... क्या कहूँ… जैसे तूफान बनकर आई और हमारे शौर्य की ज़िंदगी को उजाड़ गई। इतना मासूम, इतना हँसमुख लड़का… आज किसी भी लड़की की तरफ देखना तक पसंद नहीं करता। लेकिन बहू, इस बार मैंने जिसे चुना है… मुझे पूरा विश्वास है — वो हमारे शौर्य को फिर से पहले जैसा बना देगी। उसे फिर से जीना सिखा देगी।”
सविता जी ने नम आँखों से हाँ में सिर हिला दिया। उनके चेहरे पर उम्मीद की हल्की-सी रेखा उभरी थी।
तभी, अब तक चुप बैठे रणविजय जी ने धीरे से पूछा,
"वैसे माँ… आपने अभी तक उस लड़की का नाम या पता तो हमें बताया ही नहीं। कौन है वो?"
करुणा जी की आँखों में हल्की सी मुस्कान आई। करुणा जी की मुस्कान गहराई। वो रणविजय की ओर देखकर धीमे से कहती हैं,
"तुम उसे जानते हो…"
रणविजय थोड़ी देर तक उन्हें अपलक देखते रहे—जैसे उनके शब्दों का मतलब समझने की कोशिश कर रहे हों। फिर अचानक उनके चेहरे पर एक हल्की-सी झलक पड़ी—जैसे कोई नाम, कोई चेहरा दिमाग में कौंध गया हो।
"माँ… क्या आप… तारा की बात कर रही हैं?"
करुणा जी मुस्कुराते हुए सिर हिलाईं — "हाँ… उसी की।"
सविता जी का चेहरा भी खिल उठा। वो अपने उत्साह को छुपा नहीं पाईं,
"माँ जी… आपकी पसंद सच में कमाल की है। तारा तो जैसे इस घर के लिए बनी हो। आजकल के ज़माने में कौन इतना निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है? लेकिन वो बच्ची… सबकी मदद करती है, हर किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करती है।"
फिर अचानक उनका स्वर थोड़ा चिंतित हो गया। चेहरे पर एक हल्का संदेह और चिंता उभरी,
"लेकिन माँ… क्या वो मानेगी? शौर्य अब पहले जैसा नहीं रहा… और फिर उसके अपने परिवार वाले भी होंगे, क्या वो राज़ी होंगे?"
करुणा जी की मुस्कान अब और भी ठहराव वाली थी। उन्होंने आत्मविश्वास से कहा,
"मैंने सिर्फ लड़की नहीं देखी है, उसके संस्कार, उसकी नज़र, उसका स्वभाव देखा है। मुझे यकीन है… तारा ही वो है जो शौर्य के दिल के दरवाज़े खोल सकती है। बाक़ी… रिश्ता जोड़ने का काम ऊपर वाला करता है बहू… हम तो बस कोशिश कर सकते हैं।"
तो करुणा जी (दादी) बोलीं, "मैंने तारा के बारे में डिटेल्स रणविजय के असिस्टेंट रघु से मंगवाए हैं। वो आता ही होगा, फिर हम इस बारे में अच्छे से बात करेंगे।"
करुणा जी (माँ) और रणविजय जी (पापा) दोनों सहमति में सिर हिलाए। फिर सब लोग चुपचाप खाना खाकर अपने-अपने कमरों में चले गए। माहौल में एक अजीब सा इंतज़ार घुला हुआ था।
करीब एक घंटे बाद रणविजय जी का असिस्टेंट रघु घर पहुँचा। हॉल में झाड़ू लगा रहे एक नौकर से वह विनम्रता से पूछता है, "एक्सक्यूज़ मी, मां जी कहाँ हैं?"
नौकर सिर उठाकर जवाब देता है, "अपने कमरे में हैं।"
रघु बिना देर किए करुणा जी के कमरे की ओर बढ़ा। दरवाज़े के पास पहुँचकर वह धीरे से नॉक करता है।
अंदर से करुणा जी की आवाज़ आई, "आ जाओ अंदर।"
रघु भीतर दाखिल हुआ। उसे देखते ही करुणा जी सवाल करती हैं, "काम हो गया?"
रघु सिर हिलाकर ‘हाँ’ कहता है और एक नीली फाइल उनकी ओर बढ़ा देता है। करुणा जी गंभीरता से फाइल लेती हैं और फिर उसे इशारे से बाहर जाने को कहती हैं।
रघु दरवाज़े की ओर मुड़ता ही है कि पीछे से करुणा जी फिर बोल पड़ती हैं, "सुनो, जाते हुए किसी नौकर को कह देना कि सविता और रणविजय को मेरे कमरे में भेज दे।"
"जी," रघु विनम्रता से कहता है और कमरे से बाहर चला जाता है। हॉल में खड़े एक नौकर को करुणा जी का संदेश देता है और फिर चुपचाप घर से निकल जाता है।
एक नौकर धीरे-धीरे रणविजय जी और सविता जी के कमरे की ओर गई। दरवाज़ा खटखटाकर विनम्रता से कहती है, "माँ जी ने आपको अपने कमरे में बुलाया है।"
रणविजय जी उसकी बात सुनकर बस हल्के से सिर हिलाते हैं और हाथ से उसे जाने का इशारा करते हैं। नौकर चुपचाप लौट जाती है।
कुछ पल बाद रणविजय और सविता, दोनों करुणा जी के कमरे की ओर बढ़े। दरवाज़े पर पहुँचकर वे धीरे से दस्तक देते हैं और भीतर चले जाते हैं।
अंदर पहुँचकर रणविजय जी पूछते हैं, "माँ, आपने बुलाया था?"
करुणा जी की गंभीर आँखों में एक ठहराव था, "हाँ, रघु अभी आया था। उसने तारा की इंफॉर्मेशन वाली फाइल दी है। सोचा तुम दोनों भी साथ ही देख लो।"
रणविजय और सविता, दोनों करुणा जी के बगल में बैठ जाते हैं। फाइल को खोलते ही, एक के बाद एक पन्नों पर तारा की ज़िंदगी की परतें सामने आने लगती हैं—उसकी पढ़ाई, परिवार, व्यवहार, और वो सब कुछ जो किसी अनजान चेहरे को समझने के लिए ज़रूरी होता है।
कमरे में कुछ देर तक बस फाइल के पन्नों की आवाज़ ही गूंजती रही।
तीनों जैसे-जैसे फाइल के पन्नों को पलटते जा रहे थे, उनके चेहरों पर हैरानी और दर्द की परछाइयाँ गहराती जा रही थीं। एक पन्ना ऐसा था जिसने उन्हें अंदर तक हिला दिया।
उसमें तारा के जीवन में हो रहे अत्याचारों की सच्चाई साफ लिखी थी—उसकी मौसी और मौसी की बेटी श्रेया द्वारा किया जाने वाला मानसिक और भावनात्मक शोषण, घर में उपेक्षा, ताने, और इंसान से कमतर समझा जाना।
फाइल पढ़ते-पढ़ते सविता जी की आँखें भर आईं। उन्होंने भर्राए स्वर में कहा, "ये बच्ची कितनी दुख सह रही है... पर फिर भी कुछ कहती क्यों नहीं? कुछ करती क्यों नहीं?"
करुणा जी ने एक गहरी साँस ली और धीमे स्वर में बोलीं, "क्योंकि उसके पास कहने को कोई है ही नहीं। वो दोनों माँ-बेटी उसे कभी अपनाते ही नहीं, पर तारा अब भी उन्हें ही अपना परिवार मानती है। उसका और है भी कौन इस दुनिया में?"
सविता जी ने फाइल को हल्के से बंद कर दिया और भावुक स्वर में बोलीं, "इतना सहने के बावजूद वो अपनी मासूमियत और इंसानियत नहीं भूली... उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि वो इतना कुछ झेल रही है।"
करुणा जी ने सहमति में धीरे से सिर हिला दिया, उनकी आँखों में भी तारा के लिए ममता छलक आई थी।
तभी रणविजय जी ने कुछ सोचते हुए कहा, "माँ, सविता... शायद भगवान ने उसे इसलिए हमारी नज़रों के सामने लाया है... ताकि हम उसके जीवन में वो जगह बनें, जिसे वो अब तक तरसती रही है।"
उनकी बात सुनकर सविता और करुणा जी—दोनों के चेहरों पर एक हल्की, कोमल मुस्कान आ गई। उस मुस्कान में करुणा थी, अपनापन था... और एक अनकहा वादा भी—तारा अब अकेली नहीं रहेगी।
सविता जी ने फाइल हल्के से बंद की और भावुक स्वर में बोलीं, "इतना सहने के बावजूद वो अपनी मासूमियत और इंसानियत नहीं भूली... उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि वो इतना कुछ झेल रही है।"
करुणा जी ने सहमति में धीरे से सिर हिलाया। उनकी आँखों में भी तारा के लिए ममता छलक रही थी।
तभी रणविजय जी ने कुछ सोचते हुए कहा, "माँ, सविता... शायद भगवान ने उसे इसलिए हमारी नज़रों के सामने लाया है... ताकि हम उसके जीवन में वो जगह बनें, जिसे वो अब तक तरसती रही है।"
उनकी बात सुनकर सविता और करुणा जी के चेहरों पर एक हल्की, कोमल मुस्कान आ गई। उस मुस्कान में करुणा थी, अपनापन था... और एक अनकहा वादा भी—तारा अब अकेली नहीं रहेगी।
करुणा जी (दादी) दुख से भरे स्वर में बोलीं, "वो दोनों माँ-बेटी तारा को कभी अपना मान ही नहीं पाईं... लेकिन तारा अब भी उन्हें ही अपना परिवार समझती है। और समझे भी तो किसे? उसके पास और है ही कौन?"
सविता जी की आँखें नम थीं। उन्होंने धीरे से कहा, "हाँ माँ... इतने सारे दुख सहने के बाद भी उसने अपनी इंसानियत, अपनी मासूमियत नहीं खोई। उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि वो कितना कुछ सह चुकी है।"
करुणा जी ने सहमति में सिर हिलाया। एक माँ की तरह नहीं, एक दादी की तरह नहीं... बल्कि उस पल वो जैसे खुद तारा की तक़दीर की पीड़ा को महसूस कर रही थीं।
तभी रणविजय जी ने गंभीरता से कहा, "आपका फैसला बिल्कुल सही था माँ। तारा हमारे शौर्य के लिए एकदम परफेक्ट है। वही है जो शौर्य को उसके उस दर्द से निकाल सकती है, जिसे हम सबने महसूस किया है... पर समझ नहीं पाए।"
उनकी बात पर करुणा जी और सविता जी की आँखों में उम्मीद की एक चमक उभर आई। चेहरों पर एक संतोष था... जैसे दिल ने मान लिया हो कि वक़्त ने इस बार सही मोड़ लिया है।
सविता जी खुशी से मुस्कुराते हुए बोलीं, "तो माँ, आपने क्या सोचा है... कब चलेंगे तारा के घर?"
करुणा जी बिना एक पल गंवाए दृढ़ स्वर में बोलीं, "मैं तो सोच रही हूँ कि हमें आज ही जाना चाहिए। जितना ज्यादा दिन उस बच्ची को उन शैतानों के साथ रखा जाएगा, उतना ही उसके मन पर असर पड़ेगा। मैं चाहती हूँ कि जल्दी से जल्दी उसे इस घर की बहू बना लूँ।"
सविता जी का चेहरा खुशी से खिल गया। "हाँ माँ, मैं भी यही चाहती हूँ। इतनी समझदार, विनम्र और सहनशील लड़की... उसकी जैसी बहू आजकल कहाँ मिलती है?"
करुणा जी ने उनकी बात पर सहमति में सिर हिलाया। रणविजय जी भी चुपचाप मुस्कुराए—जैसे उनका भी मन तारा को घर लाने की बात पर पूरी तरह तैयार हो चुका था।
तीनों ने मिलकर आखिरकार फैसला कर ही लिया—वो आज ही तारा के घर जाएँगे... और उसके लिए शौर्य का रिश्ता लेकर जाएँगे।
तभी करुणा जी सविता की ओर मुड़कर बोलीं, "बहू, तुम तारा के लिए सगुन की तैयारी कर लो। हम आज ही रोका करेंगे... और अपनी बहू को शौर्य के नाम से जोड़ देंगे।"
सविता जी ने जोश और स्नेह के साथ कहा, "जी माँ, मैं अभी सब कुछ तैयार करवा देती हूँ।"
कमरे में एक अलग ही ऊर्जा थी—जैसे कोई नई सुबह अपने कदमों की आहट दे रही हो।
तभी अचानक सविता जी की मुस्कान धीमी पड़ने लगी। उनके चेहरे पर हल्की सी चिंता की रेखा उभर आई।
उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "पर माँ जी... शौर्य? क्या वो इस रिश्ते के लिए तैयार होगा?"
करुणा जी ने तुरंत उनका हाथ थाम लिया और प्यार से लेकिन दृढ़ता से बोलीं, "उसकी चिंता तुम मत करो बहू। मैं जानती हूँ, वो शादी के लिए राज़ी हो जाएगा। वो बाहर से चाहे जितना भी खुद को मजबूत दिखाए, पर अंदर से वो भी टूट चुका है... और तारा जैसी लड़की ही है जो उसे दोबारा जीना सिखा सकती है।"
सविता जी ने करुणा जी की आँखों में भरोसा देखा और धीरे से सिर हिलाते हुए सहमति जताई।
फिर रणविजय जी और सविता जी दोनों अपने-अपने कमरों की ओर बढ़ गए।
सविता जी जैसे ही अपने कमरे में पहुँचीं, उनका चेहरा फिर से खिल गया। उन्होंने तुरंत नौकरानी को बुलाया और तारा के लिए सगुन की तैयारी में जुट गईं—शगुन की थाली, मिठाई, चूड़ियाँ, साड़ी... सब कुछ वैसे ही जैसे कोई अपनी बहू को पहली बार अपनाते वक़्त करता है।
हर चीज़ में अब सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा था—तारा।
सिंघानिया विला में 3 बजे के करीब, सविता जी घर के अंदर इधर-उधर घूमकर सब सामान चेक कर रही थीं। उन्हें थोड़ी घबराहट महसूस हो रही थी, क्योंकि बहुत सी चीज़ें समय पर सही जगह पर पहुँचनी थीं।
तभी करुणा जी (दादी) उनके पास आईं और बोलीं, "सभी सामान गाड़ी में रख दिया है?"
सविता जी ने सहमति में सिर हिलाया और कहा, "हाँ माँ, सब रखा है। बस एक बार और चेक कर लूँगी, सब कुछ सही है या नहीं।"
"ठीक है," करुणा जी ने कहा, "सामान रखने के बाद मुझे बुला लेना। मैं शौर्य के कमरे में जा रही हूँ।"
सविता जी ने फिर से सिर हिलाया और करुणा जी को शौर्य के कमरे की ओर बढ़ते हुए देखा।
सविता जी ने तुरंत अपना फोन निकाला और किसी को कॉल करने लगीं। पहले रिंग में किसी ने कॉल रिसीव नहीं किया, लेकिन दूसरे रिंग पर कॉल रिसीव हो गई।
दूसरी तरफ रणविजय जी थे। कॉल रिसीव करते ही, सविता जी ने गुस्से में कहा, "आप क्या कर रहे हैं? कब तक घर पहुँच रहे हैं? जाने का वक़्त हो गया है, और अब तक आपका कोई अता-पता नहीं है।"
सविता जी की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर रणविजय जी हल्के से मुस्कराए और बोले, "अरे श्रीमती जी, थोड़ा साँस तो लीजिए। मैंने कॉल उठाया नहीं और आप पहले से ही शुरू हो गईं।"
सविता जी ने फिर से तंज करते हुए कहा, "तो और क्या करूँ? हमारा एक ही बेटा है। इसमें भी आप सही वक़्त पर नहीं आ रहे।"
रणविजय जी ने फिर धैर्य से कहा, "श्रीमती जी, मैं अभी एक मीटिंग में हूँ। 15 मिनट में मीटिंग खत्म होगी, फिर मैं घर आ रहा हूँ। ठीक है, रखता हूँ अब।"
सविता जी ने गुस्से में थोड़ा और साँस लिया और कहा, "ठीक है," फिर फोन रख दिया।
अब वह सब सामान एक बार फिर चेक करने लगीं।
वहीं दूसरी तरफ,
तारा के घर पर,
किरण जी तारा को कुछ कहते हैं जिसे सुनकर तारा हैरान रह जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है?
क्या कहा होगा किरण जी ने जिससे तारा हैरान रह गई?
क्या शौर्य शादी के लिए राज़ी होगा?
क्या किरण जी को शौर्य और तारा की शादी मंज़ूर होगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी...
दूसरी तरफ, तारा के घर में, तारा रसोई में व्यस्त थी। उसने घर का काम खत्म कर लिया था और अब खामोशी से खाने की तैयारी में लगी हुई थी। पहले उसने घर की सफाई की, फिर रसोई में जाकर खाना बनाना शुरू किया। आज कुछ खास था – किरण जी के मेहमान आने वाले थे, और उन्हें अच्छे से खाना बनाने के लिए तारा को कहा गया था।
तारा अपने कर्तव्यों को निभा रही थी, जैसे हमेशा करती थी। उसका ध्यान बारीकी से हर चीज पर था, खाना बनाते वक्त वह बेहद सलीके से काम करती थी ताकि कुछ भी गलत न हो जाए।
खाना लगभग तैयार था, जब अचानक किरण जी रसोई में आईं।
"खाना बन गया?" वे तारा के पास खड़ी हो गईं और थोड़ी तल्खी से बोलीं।
तारा सिर झुका कर, आराम से जवाब दिया, "हां मां, खाना लगभग बन गया है।"
किरण जी ने उसकी ओर एक हल्का सा तीखा नजर डाला और फिर कहा, "ठीक है, ये लो ये सारी पहन कर रेडी हो जाओ। महमानों के आने का वक्त हो चुका है।"
तारा किरण जी की ओर सवालिया निगाहों से देखती है, जैसे वो पूछना चाह रही हो, "मां, ये सारी पहन कर मैं क्यों रेडी होऊं?" उसकी आँखों में सवाल था, लेकिन वो शब्दों में कुछ नहीं कह सकी।
किरण जी ने उसकी नजरों को अनदेखा करते हुए, ठंडे स्वर में कहा, "जितना बोल रही हूं, उतना कर। आज लड़के वाले तुझे देखने आ रहे हैं।"
तारा को यह सुनकर एक झटका सा लगा। उसका चेहरा सफेद पड़ गया, और वह पूरी तरह शॉक हो गई। उसे समझ ही नहीं आता था कि क्या कहना चाहिए।
"मां, पर मुझे अभी शादी नहीं करनी है," वह हकलाते हुए बोली।
किरण जी का चेहरा बिना किसी भावनाओं के कठोर हो गया। उन्होंने तारा की बात को बिल्कुल इग्नोर करते हुए कड़क आवाज में कहा, "जुबान चलाने की जरूरत नहीं है। जितना बोल रही हूं, उतना कर। जा, जा कर रेडी हो जा।"
तारा फिर से कुछ बोलने की कोशिश करती है, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, किरण जी उसे गुस्से से घूरते हुए बोलीं, "तेरे मां-बाप तो मर गए, और कितने दिन तू मेरे सर पर नाचने का सोच रही है?"
किरण जी की यह कड़ी बात सुनकर तारा की आँखों में आंसू आ गए। लेकिन वह उन्हें अपनी आँखों में ही छुपा लेती है। उसकी चुप्पी बहुत कुछ कह रही थी, लेकिन उसने सिर्फ अपना सिर हां में हिलाया और चुपचाप अपनी जगह पर खड़ी रही।
किरण जी अपना काम निपटाते हुए किचन के स्लैब पर सारी रख दी और बिना तारा की ओर देखे चली गईं। उनके जाने के बाद तारा की आँखों से आंसू झर-झर बहने लगे। पर वह उन्हें रोकने की पूरी कोशिश करती है।
"रो मत, तारा। कभी न कभी तो तुझे शादी करनी ही है। फिर अब क्यों नहीं?" वह खुद से कहती है।
इतना कहकर वह अपने आंसू पोछती है और फिर फेस वॉश करके बाकी रसोई का काम खत्म करती है। उसके बाद, वह चुपचाप अपने कमरे में चली जाती है।
कुछ देर बाद, वह किरण जी द्वारा दिए गए साड़ी में खुद को तैयार करती है और बाहर आ जाती है। अब तक किरण जी के मेहमान भी आ चुके थे। तारा का दिल हल्का सा डर से धड़क रहा था, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए मेहमानों का स्वागत करने के लिए कदम बढ़ाए।
किरण जी ने तारा से किचन से स्नैक्स और चाय लाने को कहा। तारा चुपचाप किचन से स्नैक्स और चाय ले कर आई। वह धीरे-धीरे चाय और स्नैक्स को टी टेबल पर रखती है।
"ये है मेरी बेटी, तारा। इसी की शादी आपसे होने वाली है," किरण जी ने तारा को सबके सामने पेश करते हुए कहा।
तारा कुछ संकोच करते हुए सबकी ओर नजर दौड़ाती है, लेकिन वह चुप रहती है और सिर झुका लेती है।
"वैसे किरण जी, लड़की बहुत अच्छी है। लेकिन पहले हमारे दूल्हे राजा को तो पसंद आ जाए," वहां बैठे एक आदमी ने तारा को देखा और मुस्कुराते हुए कहा।
"हां हां, क्यों नहीं?" किरण जी आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए बोलीं।
"तो फिर दोनों को एक दूसरे से बात करने का मौका दिया जाए। यह दोनों के लिए अच्छा होगा," वह आदमी फिर बोला।
तारा की आँखों में एक पल के लिए झलकता है डर और चिंता, लेकिन वह चुप रहती है। उसे कोई भी विकल्प नहीं दिखता। वह बस खामोशी से देखती है।
"बिल्कुल, दोनों को बात करने का मौका मिलेगा," किरण जी ने एक ठंडी मुस्कान के साथ सहमति जताते हुए कहा।
"तारा बेटा, जरा दूल्हे राजा को अपना कमरा दिखा दो," किरण जी ने तारा की ओर देखकर कहा।
तारा ने नज़रें नीचे किए हुए धीरे से सिर हिलाया और बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई। उसके पीछे-पीछे वो आदमी—जिसे सब 'दूल्हे राजा' कह रहे थे—चल पड़ा।
तारा ने दरवाज़ा खोला और अपने कमरे के अंदर चली गई। वो चुपचाप किनारे खड़ी रही। तभी अचानक पीछे से वो आदमी आगे बढ़ा और बिना इजाज़त के तारा का हाथ पकड़ लिया।
उसके छूने का तरीका बेहूदा था, ऐसा जैसे कोई अधिकार जमाना चाहता हो—ना स्नेह, ना सम्मान। बस एक अजीब सी जबरदस्ती।
तारा की रूह सिहर उठी। उसने तुरंत अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की, पर वो आदमी और भी कस कर उसका हाथ पकड़ने लगा। उसकी आंखों में एक घिनौनी लालच थी, और उसकी पकड़ में वहशीपन।
तारा का चेहरा डर से सफेद पड़ गया, लेकिन उसने फिर कोशिश की—इस बार थोड़ा ज़ोर से।
"कृपया... मेरा हाथ छोड़िए," उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन थी दृढ़।
वो आदमी उसकी आंखों में देखकर एक कुटिल मुस्कान देता है और कहता है, "अभी तो सिर्फ शुरुआत है।"
तारा अपना सर उठा कर ऊपर देखती है। तो सामने देखते ही उसके हाथ पैर कांपने लगते हैं।
तो आप सब को क्या लगता है? क्या देखा ऐसा तारा ने जिसे देखकर उसकी ये हालत हो गई? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी......
तारा का चेहरा डर से सफेद पड़ गया, लेकिन उसने फिर कोशिश की—इस बार थोड़ा ज़ोर से।
"कृपया... मेरा हाथ छोड़िए," उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन दृढ़ थी।
वो आदमी उसकी आँखों में देखकर एक कुटिल मुस्कान देता है और कहता है, "अभी तो सिर्फ शुरुआत है।"
तारा अपना सिर उठाकर ऊपर देखती है। सामने देखते ही उसके हाथ-पैर काँपने लगते हैं। क्योंकि सामने एक 50 साल का आदमी खड़ा था। उसे देखकर एक पल के लिए तारा को विश्वास ही नहीं हुआ कि किरण जी ने उसके लिए उसके बाप के उम्र के बूढ़े को भेजा है।
तारा की आँखों में अब डर के साथ-साथ गुस्सा भी झलकने लगा था। उसने अपनी भीगी आँखों को पोंछते हुए सीधा उस आदमी की आँखों में देखा और बोली,
"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी… मेरी शादी आपसे कैसे हो सकती है? आप तो मेरे पापा के उम्र के हैं!"
उस आदमी ने एक पल के लिए हैरानी से तारा को देखा, फिर एक नीच मुस्कान देते हुए बोला, "अरे तो क्या हुआ। मेरे में अभी भी जवानी बाकी है। कहो तो दिखा भी सकता हूँ।"
इतना बोलते हुए वो आदमी तारा के करीब आने लगता है। जिसे देख तारा पीछे-पीछे जाते हुए बोलती है, "प्लीज दूर रहिए। मेरा हाथ छोड़िए।" बोलते हुए अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी और पीछे-पीछे जा रही थी।
वो व्यक्ति भी उसके पास आते हुए बोला, "और तुझे तो अभी देखना है ना मेरी मर्दानगी!"
तो तारा ना में अपना सिर हिलाते हुए उससे छूटने की कोशिश करती है। पर वो आदमी उसे छोड़ने को राजी ही नहीं था। तारा पीछे जाते हुए दीवार से जा चिपकती है।
तो वो आदमी तारा के बिल्कुल करीब आकर तारा की खुली कमर पर अपने हाथों को रखता है और उसे कसकर दबाते हुए बेहद ही घटिया तरीके से बोला, "क्या माल है रे तू!"
फिर तारा की कमर को मसलते हुए बोला, "तुझे अपने बिस्तर पर हर रोज़ मसलने में बड़ा मज़ा आने वाला है।"
इतना बोलकर वो आदमी तारा के गले को अपने होठों से छू लेता है और उस पर बाइट कर देता है।
ऐसे ही बोलता है, "उम्र से क्या फर्क पड़ता है? औरत तो बस घर संभालने और मर्द की सेवा करने के लिए होती है… तुम्हारी सौतेली माँ ने कहा, तुम बहुत समझदार हो।"
तारा को जब यह फील होता है, तो वह अपनी पूरी ताकत से उस आदमी को खुद से दूर करती है और उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाते हुए बोलती है, "आइंदा से मुझसे दूर रहना नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"
उसकी रूह काँप गई थी। वह एक कदम पीछे हटी और गुस्से से बोली,
"किसी ने कुछ भी कहा हो, पर मैं अपनी ज़िंदगी किसी ऐसे आदमी को नहीं दूँगी जिसे अपनी उम्र का भी होश नहीं। आप अब जा सकते हैं!"
वो आदमी तारा की यह बात सुनकर थोड़ा भड़क गया, पर उसकी आँखों में अब भी लालच था।
"देखो लड़की, ज़्यादा नाटक मत करो… मैं अभी नीचे जाकर बोल दूँ कि तुम मुझसे अकेले में क्या कह रही थी, तो कौन मानेगा तुम्हारी बात?"
तारा का चेहरा क्रोध से तमतमा गया।
"तो जाइए… जो कहना है कहिए, पर मैं अब चुप नहीं बैठने वाली।"
उसी वक्त नीचे से किसी के आवाज़ देने की गूंज आई,
"तारा बेटा…!"
तारा ने तुरंत दरवाज़ा खोला और उस आदमी को घूरते हुए कहा,
"अब आप खुद नीचे चलिए…वरना मैं सबको बता दूँगी कि आपने मेरे साथ क्या करने की कोशिश की।"
तो वो आदमी बोलता है, "तूने कमलेश सिंह पर हाथ उठाया है। तेरे लिए ये अच्छा नहीं होगा। देख तेरे साथ मैं क्या करता हूँ। बस एक बार शादी हो जाने दे, उसके बाद क्या करता हूँ देख।"
इतना बोलकर वो आदमी, यानी कि कमलेश, तारा के कमरे से चला जाता है।
वो आदमी कमलेश सिंह था। जिसकी उम्र करीब 50 से 55 के बीच थी। उसकी बहुत सारी बुरी आदतें थीं। जैसे लड़कियों के साथ रात बिताना, उनकी मर्ज़ी के बिना हुआ तो रेप करके लड़की को मारकर फेंक देना, ड्रग्स लेना, शराब जैसे नशीले चीज़ों का इस्तेमाल करना। वह जहाँ कहीं भी सुंदर लड़की देखता है, उसे अपना बनाने का ठान लेता है। अभी उसकी नज़र तारा पर थी।
यह तो हुआ कमलेश का परिचय। अब चलते हैं कहानी की तरफ़.....
कमलेश के जाने के बाद तारा भागते हुए बाथरूम में चली जाती है। काँपते हाथों से उसने शावर चालू किया और खुद को पानी के नीचे बैठा लिया।
ठंडा पानी उसके गीले बालों से होते हुए उसके चेहरे पर बहता रहा, पर वह सिर्फ़ सिसकती रही। जिस्म के उस हिस्से को जहाँ उस आदमी ने छुआ था, वह बार-बार रगड़ने लगी—जैसे उस लम्हे को मिटा देना चाहती हो।
रगड़ते-रगड़ते उसकी त्वचा लाल पड़ गई, पर वह तब तक नहीं रुकी जब तक थककर ढह नहीं गई।
काफी देर बाद, जब आँसुओं और पानी की धार में थोड़ा सुकून महसूस हुआ, तो वह उठी और भीगे कपड़ों में ही अपने कमरे में चली गई। कमरे के एक कोने में बैठकर उसने काँपते हाथों से अपने माँ-बाप की तस्वीर उठाई और उसे सीने से लगा लिया।
"माँ… पापा… देखिए ना, छोटी माँ क्या कर रही है मेरे साथ…" उसकी आवाज़ टूट रही थी।
"पापा की उम्र के आदमी से मेरी शादी करवाना चाहती हैं… आपने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया… मुझे भी अपने पास ले जाइए ना… प्लीज़… मुझे बहुत डर लग रहा है… बहुत अकेली हूँ मैं…"
इतना कहकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।
वहीं दूसरी तरफ़…
शौर्य की दादी (करुणा जी), माँ (सविता जी) और पापा (रणविजय जी) तारा के घर की ओर निकल चुके थे। गाड़ी जैसे ही घर के बाहर रुकी, सविता जी ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि—
अचानक अंदर से आती कुछ आवाज़ों ने उनके कदम रोक दिए।
तीनों ने चौंककर एक-दूसरे की ओर देखा। अंदर से कोई औरत किसी पर ज़ोर से चिल्ला रही थी। आवाज़ पहचानने में देर नहीं लगी—वो किरण जी की थी।
उसी वक्त, अपने कमरे में बैठी तारा के कानों में भी यह आवाज़ गूंजने लगी थी।
किरण जी की कड़वी बातें तारा के दिल को छलनी कर रही थीं… और उसकी आँखों से बहते आँसू अब थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
तो आप सब क्या सोचते हैं—
आखिर किरण जी ने ऐसा क्या कह दिया, जिसने तारा के दिल को फिर से तोड़ दिया?
कमेंट करके ज़रूर बताइए…
और जानिए आगे क्या हुआ, मेरी इसी कहानी में…
वहीं दूसरी तरफ, शौर्य की दादी (करुणा जी), माँ (सविता जी) और पिता (रणविजय जी) तारा के घर की ओर निकल चुके थे। गाड़ी जैसे ही घर के बाहर रुकी, सविता जी ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि अंदर से आती कुछ आवाज़ों ने उनके कदम रोक दिए।
कमलेश हॉल में घुसा। उसकी आँखों में वही बेशर्मी अब भी झलक रही थी। किरण जी उसकी ओर देखकर मुस्कुराईं और बोलीं,
"तो कैसी लगी आपको मेरी बेटी तारा?"
कमलेश अपनी घटिया मुस्कान के साथ बेहयाई से बोला,
"मस्त मॉल है..."
किरण जी को जैसे ये सुनकर कोई फर्क ही नहीं पड़ा। बल्कि वह अगला सवाल पूछती हैं,
"तो फिर कीमत क्या लगाओगे इसकी?"
कमलेश बिना एक पल रुके बोला,
"एक करोड़ रुपये। और बदले में ये पूरी की पूरी मेरी होगी... हमेशा के लिए।"
ये सुनते ही किरण की आँखें चमक उठीं। जैसे किसी ने उसकी गोद में खजाना डाल दिया हो।
वहीं ऊपर कमरे में, तारा के कानों में ये सब बातें उतर रही थीं। हर एक शब्द, जैसे उसके दिल को चीर रहा हो।
"मस्त मॉल है..."
"कीमत..."
"हमेशा के लिए मेरी..."
वह फूट-फूट कर रो पड़ी। उसकी रग-रग में घृणा भर गई थी—कमलेश से भी ज़्यादा अब उसे अपनी 'छोटी मां' से नफ़रत हो गई थी।
किरण जी के चेहरे पर वो लालच भरी मुस्कान पूरी तरह फैल चुकी थी। वह कमलेश को 'हाँ' कहने ही वाली थी कि तभी—
"रुकिए! ये सौदा नहीं हो सकता!"
पीछे से एक भारी, रौबदार आवाज़ गूंजती है। सभी की नज़र दरवाज़े की तरफ घूमती है। दरवाज़े पर खड़े थे रणविजय प्रताप सिंह राठौड़, राजस्थान के हुकुम सा, शौर्य के पिता... हर कदम में रॉयल ठाठ और आँखों में आग।
किरण जी एक पल के लिए डर गईं, कमलेश की तो हालत जैसे पसीने-पसीने हो गई। रणविजय जी आगे बढ़े और किरण के सामने आकर ठहरे।
"तुम्हें जितनी कीमत चाहिए, उतनी मिल जाएगी... पर अब ये सौदा मैं कर रहा हूँ।"
"मैं तुम्हें पाँच करोड़ दूँगा... लेकिन बदले में तारा अभी से हमारी बहू बन जाएगी।"
कमलेश की आँखें फटी की फटी रह गईं। रणविजय जी की नज़रें उस पर जमती हैं, और वह ठंडी आवाज़ में बोलते हैं,
"अब आप जा सकते हैं… और अगर कभी हमारे रास्ते में आए… तो अंजाम तुम्हारे ख़्वाबों से भी बुरा होगा।"
कमलेश ने एक पल में सब समझ लिया। रणविजय प्रताप सिंह से भिड़ना मतलब बर्बादी। उसने झुकी हुई नज़र से चुपचाप दरवाज़े की ओर रुख किया… और बिना कुछ बोले निकल गया।
वहीं किरण जी का चेहरा कुछ सेकंड के लिए सन्न रहा… फिर लालच भरी मुस्कान लौट आई।
"पाँच करोड़..." उनके होंठ बुदबुदाते हैं।
किरण जी के चेहरे पर कुछ सेकंड के लिए हैरानी छा गई। उनका मन जैसे खुद से झगड़ने लगा—
"एक अपाहिज लड़का... ऊपर से शादी के बदले सिर्फ़ जिम्मेदारी... और इधर मनहूस के बदले पाँच करोड़ का ऑफर!"
वह मन ही मन बुदबुदाईं,
"इतनी अच्छी कीमत मिल रही थी उस कमिनी के बदले… अब वो कहीं भी जाए, मुझे क्या!"
उनके चेहरे के बदलते हावभाव करुणा जी और सविता जी से छिपे नहीं थे। करुणा जी की पैनी आँखों ने वो हर लालची झलक पकड़ ली थी। सविता जी ने एक नज़र अपनी सास की ओर देखी… दोनों की आँखों में साफ सवाल थे—“क्या ये औरत वाकई हमारी बहू की माँ बन सकती है?”
फिर भी किरण खुद को संभालती है। मिठी सी मुस्कान ओढ़ते हुए रणविजय जी, सविता और करुणा जी को प्रणाम करती है,
"बैठिए न…"
तीनों बिना कुछ बोले जाकर सोफे पर बैठते हैं।
किरण पूछती है,
"चाय लाऊँ या कुछ ठंडा?"
सविता जी का चेहरा गंभीर था। उन्होंने सीधे जवाब दिया,
"नहीं, हमें कुछ नहीं चाहिए। हम यहाँ अपने बेटे शौर्य के लिए आपकी बेटी तारा का हाथ माँगने आए हैं। अगर आप तारा को बुला दें, तो हम बात आगे बढ़ाएँ।"
ये सुनते ही किरण के चेहरे की मुस्कान कुछ पल को गायब हो जाती है। दिमाग तेज़ी से चलने लगता है…
"शौर्य कभी ठीक नहीं होगा… ऐसे लड़के के लिए तो मेरी बेटी बिल्कुल भी ठीक नहीं है।"
पर सामने बैठे लोग कोई आम नहीं थे। तभी किरण जी कुछ ऐसा बोलती हैं जिसे सुनकर तीनों आश्चर्य हो जाते हैं।
तो आप सबको क्या लगता है क्या कहा होगा किरण जी ने? क्या शौर्य और तारा इस शादी के लिए तैयार होंगे?