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His brother's bride his dark Desire

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shalini singh(ss)

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दो भाई... एक नफरत... एक आग... जिसमें जलने वाली थी सिर्फ़ जारा, या शायद... कोई और। सूर्या राणा और आर्यन — खून के रिश्ते में बंधे दुश्मन, और उनके बीच फँसी मासूम जारा, जो नफ़रत और बदले के इस खेल को समझ भी नहीं...

Total Chapters (1)

Page 1 of 1

  • 1. His brother's bride his dark Desire - सुबह तक तो मैं तुझे इतना थका दूँगा… कि पूछने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी…" Chapter 1

    Words: 2046

    Estimated Reading Time: 13 min

    एक शानदार और बेहद लग्जरी होटल... बाहर से ही ऐसा लग रहा था जैसे रॉयल्टी खुद वहां ठहरी हो। ऊँची-ऊँची ग्लास की दीवारें, गोल्डन लाइट्स की चमक, और रेड कारपेट सा बिछा एंट्रेंस।

    एक ब्लैक कलर की शाइनी स्पोर्ट्स कार होटल के सामने आकर रुकी। कार से निकला एक लंबा, स्मार्ट और स्टाइलिश आदमी... ब्लैक फॉर्मल शर्ट, स्लिम फिट ब्लू ट्राउज़र, हाथ में घड़ी और आंखों पर काला चश्मा। उसका वॉक... जैसे पूरी दुनिया को फर्क नहीं पड़ता, वो बस अपने ही रूल्स पे जीता है।

    होटल के बाहर खड़ी कुछ लड़कियाँ उसकी तरफ़ देख रही थीं, फुसफुसा रही थीं।

    "ओ माय गॉड... he's so hot..." किसी ने धीरे से कहा।

    वो बस हल्के से एक मुस्कान फेंकता है... और अपने एटीट्यूड के साथ अंदर चला जाता है। लड़कियाँ उसे जाते हुए अब भी देख रही थीं... जैसे कोई मूवी सीन आंखों के सामने चल रहा हो।

    वो सीधा होटल के उस हिस्से की तरफ बढ़ा जहाँ क्लबिंग चल रही थी — तेज़ म्यूज़िक, डिस्को लाइट्स, शोर, और लोगों की हंसी। क्लब का माहौल electrifying था। सबके बीच वो सीधा बार के पास जाकर रुका।

    "One neat whisky," उसने बारटेन्डर से कहा।

    बारटेन्डर ने एक झलक में ही समझ लिया — ये आदमी स्पेशल है।

    जैसे-जैसे वो धीरे-धीरे अपनी ग्लास से सिप लेने लगा, उसके आसपास लड़कियाँ खुद-ब-खुद आकर gather करने लगीं। कोई उसकी आंखों में देख रही थी, कोई सिर्फ उसके आसपास रहने को ही काफी समझ रही थी।

    वो हर किसी को देखता था... एक हल्की सी मुस्कान के साथ... लेकिन उसकी नज़र जैसे किसी को ढूंढ रही थी।

    तभी एंट्री होती है एक लड़की की...

    ब्लैक कलर की off-shoulder बॉडीकॉन ड्रेस, knee-length तक, जो उसके परफेक्ट फिगर को और भी एलिगेंट बना रही थी। लंबे खुले बाल, रेड लिपस्टिक, हील्स की टक-टक करती चाल... जैसे कोई मिस्टीरियस क्वीन चलती हुई उसके पास आ रही हो।

    उसकी आंखों में काजल था, लेकिन दर्द भी... होंठों पर मुस्कान थी, मगर वो अधूरी सी।

    जैसे ही उसकी नज़र उस आदमी से मिली, कुछ सेकेंड्स के लिए टाइम रुक गया।

    वो लड़की भी सीधे उसी बार तक आई... और उसके बगल में खड़ी हो गई।

    "वोडका, स्ट्रैइट," उसने कहा, बिना उसकी तरफ देखे।

    आदमी ने एक हल्की सी नज़र उसकी तरफ डाली... फिर अपने व्हिस्की का एक और घूंट लिया।

    दोनों की नजरें मिलीं... और जैसे एक साइलेंट स्टोरी शुरू हो गई हो।

    ***तभी लड़की उसकी तरफ़ झुककर बोली —
    "इस तरह अगर देखते रहे न… तो कहीं तुम्हें मुझसे प्यार ना हो जाए।"

    लड़का एक हल्की मुस्कान के साथ अपनी व्हिस्की का सिप लेकर बोला —
    "प्यार? वो तो उनके लिए होता है जो हर रात एक ही जिस्म के साथ करवट बदलना चाहते हैं… और मैं बोरियत से नफ़रत करता हूँ।"

    लड़की उसकी ये बात सुनकर एक कदम और करीब आई, उसके कॉलर को उंगलियों से पकड़ते हुए बोली —
    "बात तो सही कही तुमने… मुझे भी एक ही किस्म की आग में बार-बार जलना पसंद नहीं। रोज़ कुछ नया जले… उसी में असली मजा है।"

    लड़का उसकी नज़रों की आग को पढ़ चुका था… उसने धीरे से अपनी ग्लास टेबल पर रखी, फिर उसकी ज़ुल्फों में हाथ डालकर हल्के से उन्हें मुट्ठी में भरते हुए कहा —
    "अगर आज रात मेरा साथ निभाओगी… तो पूरी ज़िंदगी का रास्ता खुद चल पड़ेगा। और फिर पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"

    लड़की उसकी पकड़ में सिहरते हुए, होंठों पर शरारती मुस्कान लिए बोली —
    "ज़िंदगी लंबी है, उसकी फिक्र बाद में करेंगे… एक रात का सफ़र भी अगर सही हो, तो काफी है जलने के लिए।"

    लड़का थोड़ा और झुका, उसके कान के पास अपनी गर्म साँसें छोड़ते हुए बोला —
    "तो चलो, आज की रात तुम्हें ऐसे जलाऊँ कि हर लम्हा चीख़ बन जाए… और तुम खुद देखो कि मेरे अंदर कितनी आग बाकी है।"

    लड़की उसकी बात सुनकर उसके गर्दन पर होंठ टिका कर धीमे से बोली —
    "अगर सच में आग है… तो मैं खुद चलकर उस आग में कूदने को तैयार हूँ… बस शर्त इतनी है, कि आज की रात सिर्फ़ तुम्हारी होगी… और मेरी, सिर्फ़ जलने के लिए।"

    इतना कहकर दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में वो इज़हार किया, जो लफ़्ज़ों से परे था… और फिर एक-दूसरे की उंगलियों में उलझे, होटल के कमरे की तरफ बढ़ गए—जहाँ नाम नहीं था, सिर्फ़ जिस्म और आग थी।


    कमरा बंद हो चुका था। अब ना बाहर की आवाज़ थी, ना किसी रिश्ते का नाम। बस उसकी आँखों में एक ही बात थी — 'मुझे प्यार नहीं, डिज़ायर चाहिए।'

    लड़की ने लड़के की शर्ट की कॉलर पकड़कर उसे दीवार से टिकाया, उसकी गर्दन के पास मुँह ले जाकर धीमे से कहा —
    "मुझे तुम्हारे अल्फ़ाज़ नहीं चाहिए… बस तुम्हारे हाथ, तिम्हारी साँसें, और तुम्हारी पूरी रात चाहिए।"

    लड़का एक पल उसे घूरता रहा, फिर मुस्कुराया और उसके कान में बेहद धीमे लहजे में कहा —
    "फिर कोई नाम मत देना इस रात को… ये सिर्फ़ जिस्म की ज़रूरत है, एहसास की नहीं।"

    लड़की ने उसकी कमर पकड़ते हुए खुद को और करीब खींचा —
    "अगर मैं चिल्लाऊँ भी… तो मत समझना कि मुझे दर्द हो रहा है। वो तो बस ये जिस्म है… जो सालों से जगाया नहीं गया।"

    लड़के ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —
    "और मैं वो नहीं जो संभाले… मैं तो सिर्फ़ बिखेरने आया हूँ।"

    लड़की ने होंठों के बीच उसकी साँसें महसूस करते हुए फुसफुसाया —
    "तो बिखेर दो ना… मुझे… इस बिस्तर पर, इस रात में… लेकिन वादा करो… सुबह कुछ पूछोगे नहीं।"

    लड़का उसकी कमर को अपनी बाँहों में भरते हुए बोला —
    "सुबह तक तो मैं तुझे इतना थका दूँगा… कि पूछने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी…"

    और फिर, कपड़े गिरते गए… साज़िशें चादरों के नीचे छिप गईं… वहाँ कोई रिश्ता नहीं था, सिर्फ़ प्यास थी।

    ये न रात थी, न सुबह का इंतज़ार… ये बस एक भूख थी… जो दोनों को एक-दूसरे के जिस्म से पूरी करनी थी।


    **


    दूसरी तरफ...
    सिर्फ़ 18 साल की एक मासूम-सी लड़की किचन में खड़ी थी। हाथों में चाकू था और सामने प्याज रखा हुआ था। जैसे ही उसने प्याज काटने की कोशिश की, अचानक से ब्लेड उसके हाथ की उंगली में लग गया।

    “ओ मम्मा... लग गई मुझे!” — वो चीखते हुए रो पड़ी।

    उसी पल, किसी के दौड़ते कदमों की आहट आई और उसकी बड़ी बहन भागते हुए किचन में पहुंची। उसने बिना कुछ कहे फौरन उसका हाथ थाम लिया और ज़ख्मी उंगली को अपने मुंह में डालकर चूसने लगी — जैसे किसी माँ की ममता उसमें उतर आई हो।

    वो लड़की नीचे नज़रें झुकाकर खड़ी थी, जैसे कोई चोरी पकड़ी गई हो।

    बड़ी बहन ने उसे कड़ी नज़रों से घूरते हुए कहा,
    “कितनी बार कहा है तुझे! समझ क्यों नहीं आता? अगर और ज्यादा कट जाता तो? निशान पड़ जाता तो? कुछ हो जाता तो...?”

    छोटी बहन ने धीरे से क्यूट सा मुंह बनाकर बोला —
    “उफ़्फो दिदु... कुछ भी तो नहीं हुआ। अगर छोटा-मोटा निशान पड़ भी जाता, तो कौन सा मैं शादी करने जा रही हूँ अभी!”

    बड़ी बहन का गुस्सा और बढ़ गया —
    “चुप! बिल्कुल चुप! तुझे जो भी चाहिए, मुझसे कह दिया कर। मम्मा हैं, पापा हैं, सब हैं... लेकिन तू अब किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाएगी। समझी?”

    छोटी बहन ने मासूम-सी शक्ल बनाते हुए धीरे से कहा —
    “मुझे मैगी खानी है... पर आप लोग तो मुझे कभी जंक फूड खाने ही नहीं देते।”

    बड़ी बहन ने सख्ती से जवाब दिया —
    “क्योंकि वो हेल्थ के लिए भी खराब है और स्किन के लिए भी! हर वक्त बाहर की चीज़ें खा-खा के खुद को बर्बाद मत कर।”

    पर छोटी बहन ज़िद पर उतर आई, पैर पटके और बोली —
    “नहीं! मुझे आज मैगी ही खानी है। आप नहीं बनाओगी तो मैं खुद बना लूंगी!”

    बड़ी बहन ने हार मानते हुए उसका हाथ थाम लिया और बोली —
    “ठीक है... लास्ट टाइम बना रही हूँ। लेकिन इसके बाद कोई जंक फूड नहीं मिलेगा, कसम से।”

    छोटी बहन की आंखें चमक उठीं, उसने फौरन उसे कसकर गले लगा लिया —
    “थैंक यू दिदु... यू आर द बेस्ट! वर्ल्ड की बेस्ट दिदु हो तुम!”

    बड़ी बहन मुस्कुराई, पर खुद को सख्त दिखाते हुए बोली —
    “हां-हां ठीक है, ज़्यादा मस्का मत लगाओ, वरना ये भी नहीं दूंगी।”

    दोनों बहनों की ये नोकझोंक भरी प्यार भरी बॉन्डिंग पूरे घर में मिठास घोल रही थी।
    ***

    दूसरी तरफ...

    वो कोई आम कमरा नहीं था, जैसे किसी राजा का दरबार हो।
    कमरे की हर चीज़ काले रंग में — काले मार्बल का फर्श, रेशमी काले पर्दे, और लाइट भी ऐसी कि चेहरा आधा ही साफ दिखे।
    बीच में एक बड़ी सी हाई बैक कुर्सी पर बैठा था — सूर्या राणा।

    उम्र करीब 30 साल, पीछे की तरफ सलीके से सेट किए हुए बाल, आंखों में गहरी थकान नहीं बल्कि साज़िशों की चमक थी।
    काले कपड़े, काली घड़ी, और हाथ में एक महंगी सिगार।
    उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसकी आंखें साफ कह रही थीं — यह बंदा मज़ाक नहीं करता।

    धीरे से, ठंडी आवाज़ में बोला —
    "रिपोर्ट?"

    उसकी आवाज़ भले ही शांत थी, लेकिन उसमें एक सख्ती थी जो सामने वाले के रोंगटे खड़े कर दे।
    सामने खड़ा आदमी थोड़ा डरते हुए बोला —
    "सर... मिस्टर सिंघानिया मुंबई आ चुके हैं... होटल में ठहरे हैं। कल उन्होंने डील साइन कर ली..."

    सूर्या ने धीरे से सिगार हटाई, धुएं का गोल सा घेरा बनाते हुए उसकी तरफ देखा और कहा —
    "होटल में हैं?"
    उसने हल्का सिर झुकाया और बोला —
    "तो क्या मैं उनका स्वागत फूलों से करूं?"

    सामने वाला चुप।

    अब सूर्या थोड़ा आगे झुका, उसकी आंखें बिल्कुल किसी शिकारी जैसी हो गई थीं।
    "डील उन्होंने फाइनल की है, लेकिन मुझसे पूछे बिना।"

    अब उसकी आवाज़ थोड़ी गहरी हो गई थी —
    "जहां सूर्या राणा की मर्ज़ी के बिना लोग बैठते हैं, वहां मैं मेज़ को ही जला देता हूं... और कुर्सियां गिनने वाले लोग फिर अपनी कब्रें गिनते हैं।"

    उसने सिगार बुझाई और कुर्सी से उठा —
    सीधा खड़ा हुआ लंबा-चौड़ा शरीर, काले बूट, और चलने का अंदाज़ एकदम रॉयल था।

    "मुझे सौदे पसंद हैं... लेकिन शर्तें मेरी होंगी।
    वरना जिन कागज़ों पर उन्होंने साइन किए हैं, वो उनके आख़िरी बनेंगे।"

    अब उसकी आंखों में एक ही बात थी —
    शांति से रहने वाला शेर, लेकिन जब दहाड़ता है… तो सब कांप जाते हैं।

    सिंघानिया अपने होटल के कमरे में बैठा हुआ था, वाइन के ग्लास में इधर-उधर देखता हुआ, हल्के से उबाऊ तरीके से अपने फोन के स्क्रीन को घूर रहा था। तभी अचानक उसकी स्क्रीन पर एक वीडियो लिंक आया। फोन का स्क्रीन हल्का चमका, और उसके अंदर की घबराहट बढ़ने लगी।

    सिंघानिया ने धीमे से सांस ली, हाथ से ग्लास रखा, और वीडियो पर क्लिक किया। वीडियो शुरु होते ही उसके चेहरे की रंगत बदल गई, आंखों में हल्का सा डर, फिर घबराहट उभरने लगी। वीडियो की शुरुआत में कुछ अस्पष्ट था — धुंधला सा वातावरण, और फिर कुछ कटी-कटी आवाज़ें। उसकी आंखों में साफ़ दिखाई दे रहा था कि वीडियो में कुछ अजीब था। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।

    वीडियो में जो कुछ भी था, उसने उसकी धड़कन को और तेज़ कर दिया। वह कांपता हुआ फोन की स्क्रीन को घूरने लगा। कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन जो महसूस हो रहा था, वह बहुत भयानक था। अब उसकी सांसें रुकने लगीं। वह अजनबी डर और घबराहट से खुद को रोक नहीं पाया।

    अचानक, वीडियो अचानक कट हो गया। यह असामान्य था। उसकी आंखें फैल गईं, पसीने की बूंदें उसके माथे पर आ गईं। वह झटके से उठा, और फोन को ज़ोर से उठाकर कॉल किया।

    कॉल के बाद, सूर्या की आवाज़ आई, "देख लिया?"

    सिंघानिया के हाथ कांपने लगते हैं। पसीना-पसीना हो जाता है।
    वो फौरन कॉल पर बोला, "सर! माफ कीजिएगा, अब जो कहेंगे वही होगा। बताइए कहां साइन करना है? कौन सी डील चाहिए? मैं फिर से साइन कर दूंगा।"

    सूर्या राणा अपने काले रूम में, अंधेरे में अकेले बैठा।

    फोन पर हल्की मुस्कान के साथ बोला,
    "इतनी जल्दी भी क्या है सिंघानिया... डर अभी तो शुरू हुआ है।"

    सिगार का एक लंबा कश लेते हुए फिर ठंडी आवाज़ में कहता है:

    "आज की रात तड़पने के लिए है...
    कल सुबह बात करेंगे — जब डर तेरे जिस्म में पूरी तरह उतर जाए।"

    टच कर के कॉल डिस्कनेक्ट कर देता है।

    अब सिर्फ कमरे में धुएं का हल्का सा जाल… और सूर्या राणा की आंखों में एक ऐसी चमक जो बताती है —
    खेल अब शुरू हुआ है।