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रणनीति ( साजिशों का खेल)

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miss Sharma

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रणनीति — एक साज़िश, एक सच, और एक जिद्दी लड़की की जंग सिया त्रिपाठी — तेज़, निडर और उसूलों पर चलने वाली एक युवा पत्रकार, जिसे न तो डर का मतलब आता है और न ही झुकना आता है। जब वो देश के सबसे ताक़तवर और चालाक नेता वसुंध भाटिया के भ्रष्टाचार का पर्...

Total Chapters (30)

Page 1 of 2

  • 1. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 1

    Words: 682

    Estimated Reading Time: 5 min

    "कुछ भी लिखने से पहले, ये जान लो सिया — ये देश वो नहीं जहां सच बोलने पर तालियां मिलती हैं, यहां या तो मुकदमे मिलते हैं… या माउथ शट कर दिया जाता है।”



    दिल्ली का दिसंबर और पत्रकार सिया त्रिपाठी का मिज़ाज दोनों एक जैसे सख्त और बर्फ जैसे ठंडे। लेकिन जहां मौसम खुद को बदलता है, सिया अपने उसूलों से एक इंच नहीं हटती। वह पत्रकारिता में नई है, लेकिन उसके सवाल इतने सीधे होते हैं कि सामने वाले की गर्दन झुक जाती है या अहंकार उठ खड़ा होता है।
    आज भी कुछ ऐसा ही हुआ था।



    NDT Prime चैनल की सुबह की मीटिंग में जब चीफ एडिटर ने कहा — "ये नेता वसुंध राठौड़ की फंडिंग रिपोर्ट कैंसिल कर दो, ऊपर से कॉल आया है",

    तो सिया ने एक पल को रुककर उसकी आँखों में देखा –" ""सर, सवाल कैंसिल करने से सच मरता नहीं है। सिर्फ डर बढ़ता है।"उसकी आवाज़ धीमी थी लेकिन शब्द भारी थे।



    सिया त्रिपाठी — उम्र 26, बीते तीन सालों से पत्रकारिता में। भोपाल की रहने वाली, दिल्ली आई थी सिर्फ एक जुनून के साथ — सच्चाई।

    उसका स्टाइल सिंपल था — जीन्स, कुर्ता और एक पुराना कैमरा बैग जो हर समय उसके कंधे से लटकता रहता।



    उस दिन, जब बाकी रिपोर्टर्स ऑफिस छोड़कर अपने "बीट" पर गए,सिया अकेली थी जो सीधे वसुंध राठौड़ के क्षेत्र, करोलबाग के स्लम एरिया में जा पहुंची।



    वसुंध — दिल्ली का एक नामी राजनेता, जिसका चेहरा टीवी पर "विकास" की बातें करता था और परदे के पीछे वही सबसे बड़ा सौदागर था "वोटों और वायदों" का।



    सिया ने एक छोटे बच्चे से पूछा —"क्या तुम्हारे स्कूल में कोई नया कम्प्यूटर आया है?"

    बच्चे ने मासूमियत से कहा —"दीदी, स्कूल तो कब का टूट गया। अब तो यहां शराब की दुकान है।"
    बस, सिया की अगली स्टोरी वहीं से शुरू हुई।


    रात के 11 बजे तक, उसकी रिपोर्ट ऑन-एयर जा चुकी थी —"विकास का नकाब: राठौड़ की सच्चाई"

    और सुबह चैनल के बाहर दो बाइक पर हेलमेट वाले दो लोग आए, और एक धमकी भरा लिफाफा छोड़ गए —
    "अगली बार सिर्फ कैमरा नहीं टूटेगा, रिपोर्टर भी गिरेगा।"



    चीफ एडिटर घबरा गया —

    "सिया, अब रुक जाओ। ये दिल्ली की गली नहीं, राजनीति की गलियां हैं।"लेकिन सिया ने बस एक ही बात कही —"सर, मेरे पापा पोस्टमैन थे। उन्होंने कहा था कभी किसी का सच मत छुपाना।अब मैं कैसे रुक जाऊं?"





    ---



    अब सिया अकेली नहीं थी, बल्कि निशाने पर थी।

    दूसरी तरफ… वसुंध राठौड़।



    आरोपों के बीच भी मुस्कुराते चेहरे वाला नेता —
    उम्र 36, स्मार्ट, तेज दिमाग और बेहद चालाक।
    हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में वो सिया से आंखें मिलाता… जैसे कोई खेल खेल रहा हो।



    "आपके पास कोई सबूत है मिस सिया?"

    "या फिर TRP के लिए कहानी बना रही हैं?"



    सिया उसकी बातों से नहीं डरती थी, लेकिन उसकी आँखों में एक बात जरूर चुभती थी —

    वो उसे कमजोर समझता था।





    ---



    एक दिन, लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में सिया ने सवाल दागा —

    "सर, आपने करोड़ों की फंडिंग कहां लगाई? अस्पताल की जगह वहां अब पार्किंग लॉट बन रहा है।"



    वसुंध मुस्कराया —

    "आप बहुत बोलती हैं, मिस त्रिपाठी।

    मेरे पास वक्त नहीं बेवजह की बहस का।"



    सिया आगे बढ़ी —

    "तो जवाब दीजिए न, सच क्या है?"



    वसुंध ने उसे ठहरकर देखा, पहली बार थोड़ी तीखी नजरों से —"सच? सच वो होता है जो जनता सुनना चाहती है…और आप जैसी लड़कियां वो कहती हैं जो दिखाना चाहती हैं।

    आपकी पत्रकारिता नहीं, आपकी नीयत मुझे तकलीफ देती है।"कमरे में सन्नाटा छा गया।





    ---



    यहीं से शुरू हुआ “रणनीति” का असली खेल।



    सिया को समझ आ गया था —

    वो नेता सिर्फ सियासत का खिलाड़ी नहीं है, वो मनोविज्ञान का भी मास्टर है।



    और अब सिर्फ रिपोर्टिंग नहीं होगी —

    एक मनोयुद्ध होगा, जिसमें हथियार होंगे शब्द, साजिश, और कभी-कभी… दिल की बेचैनी।





    ---



    रणनीति — एक ऐसी कहानी जहां सवालों से क्रांति होगी, और जवाबों में चुप्पी से सत्ता डोलेगी।

    जहां एक लड़की, अपनी कलम से उस सत्ता की नींव हिलाएगी —







    ---



    क्या आप तैयार हैं उस जंग के लिए,

    जहां मोहब्बत, बदला और सियासत — तीनों ही बराबर चलेंगे?



    coming soon............

  • 2. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 2

    Words: 1038

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात 11:47 PM –


    सिया का घर, दिल्ली दरवाज़ा खोलते ही सामने अंधेरा था।एक थकी हुई सांस लेकर सिया ने लाइट ऑन की।कमरे में एक दीवार पर भारत का नक्शा टंगा था हर राज्य पर चिपका हुआ पोस्ट-इट, हर जगह पर एक राज़ दर्ज था। सिया ने बैग रखा, लैपटॉप खोला, और वो फाइल खोल दी जिसमें वसुंध राठौड़ की कंपनियों, उसकी बीवी की NGO, और उसकी बहन के स्कूल ट्रस्ट की डिटेल थी।

    “हर महान आदमी की परछाई में एक गंदगी होती है… बस ज़रूरत है उसे उजागर करने की,” सिया खुद से बड़बड़ाई।

    उसी वक्त फोन बजा उसका फोन बजने लगा, उसने देखा तो बॉस लिखा हुआ आ रहा था! फोन को उठाते ही " तभी सामने से एक आवाज आई " "तुमने क्या किया है आज?"आदित्य की आवाज़ थी। गुस्से में, मगर परवाह के साथ।

    "सवाल पूछा है, वो भी कैमरे पर क्या गुनाह किया है मैने?" सिया ने लापरवाही से कहा!

    "सिया, तुम्हारे पीछे लोग लग गए हैं। मेरी टीम के दो लड़कों को अज्ञात नंबर से धमकी आई है। अगर तुमने ये केस आगे बढ़ाया, तो वो…" इतना बोल आदित्य चुप हो गया!"

    " "तो क्या? मुझे मार देंगे?"सिया ने हँसते हुए कहा—"तो फिर सही कहानी मिलेगी उन्हें… 'पत्रकार मरी, लेकिन झुकी नहीं'।

    " "पागल हो तुम," इतना बोल आदित्य ने फोन काट दिया।
    सिया ने फोन रखा और सब कुछ समेट कर वही सो गई!" "


    " - -- सुबह – चैनल ऑफिस

    कॉरिडोर में सिया और आदित्य आमने-सामने हुए। "तुम हर बार बहादुरी और बेवकूफी के बीच बहुत पतली लाइन पर चल रही हो," आदित्य ने कहा।

    "और आप हर बार डर और समझदारी के बीच खुद को जस्टिफाई करते हो," सिया मुस्कुरा दी

    । "तुम मेरी बेस्ट रिपोर्टर हो, सिया। इसलिए नहीं चाहता कि तुम जली हुई मिलो कहीं गली में।"

    "और मैं जली हुई नहीं, इतिहास में दर्ज होना चाहती हूं, सर।"

    आदित्य एक पल को चुप हुआ, फिर बोला— "ओके। शाम 6 बजे रेडी रहना। तुम्हें एक इन्फॉर्मर से मिलवाना है, जो वसुंध के पुराने स्कूल घोटाले का हिस्सा रहा है। लेकिन मेरी एक शर्त है—तुम अकेली नहीं जाओगी। मैं खुद चलूंगा।"

    "अरे वाह, अब बॉस मुझे एस्कॉर्ट करेंगे?"सिया ने आंखें घुमाईं।

    "तुम्हें बॉस समझ नहीं आता या मर्द?"आदित्य ने चिढ़ते हुए कहा।

    "दोनों ही नहीं। मुझे सिर्फ फाइल समझ आती है," सिया मुस्कराई और वाह से निकल गई।

    उसके जाते ही आदित्य भी चल गया था!"


    " शाम 6:30 PM – पुरानी दिल्ली की गली........

    अंधेरा, गंदगी, और एक टूटी हुई चाय की दुकान। एक बूढ़ा आदमी उनके सामने बैठा था आंखों में डर, पर दिल में बोझ।

    "आप जानते हैं वसुंध के स्कूल घोटाले के बारे में?" सिया ने पूछा।
    "जानता हूं बिटिया... वो स्कूल मेरे ही प्लॉट पर बना था। वो ज़मीन गैरकानूनी तरीके से छीनी गई थी। और स्कूल सिर्फ दिखावे का था, असल में वहां पार्टी के पैसे ट्रांसफर होते थे।मेरे पास सारे डॉक्युमेंट हैं… लेकिन…"

    "लेकिन?" सिया ने आंखे घुमाते हुए पूछा?" "

    "अगर मैंने तुम्हें ये दिए… तो मैं कल तक नहीं बचूंगा।" उस आदमी ने थोड़ा घबरा कर कहा!"

    " सिया ने एक सांस ली, और चुपचाप अपना रिकॉर्डर स्टार्ट कर दिया।"तो बोलिए... ताकि मरने से पहले सच्चाई जी ले प्लीज अंकल!"

    " रात का समय हो गया था, वही एक बड़ा सा बंगला था जिसपर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था" वसुंध राठौड़ "उस बंगले के एक बड़े से रूम में सोफे पर एक आदमी बैठा हुआ था और सामने एक बड़ी स्क्रीन पर सिया की फुटेज देख रहा था।

    उसके PA ने कहा—"सर, ये लड़की रुकने वाली नहीं।

    " वसुंध ने धीरे से कहा—"हर क्रांतिकारी की एक कमजोरी होती है।ढूंढो इसकी... चाहे प्यार हो, परिवार... या खुद उसका जुनून।"

    तो वही रात के बारह बज रहे थे सिया का घर थकी हारी वो जैसे ही अपने अपार्टमेंट में घुसी, एक लिफाफा सामने पड़ा था। उसे देखकर दिया ने तुरंत उसे उठाया और देखा जिसमें सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी—"सच की कीमत चुकानी पड़ती है, मिस त्रिपाठी तुम तैयार हो?" सिया ने उसे हाथ में पकड़ा और अंदर आकर बैठ गई!"

    " तो वही वसुंध राठौड़ अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा हुआ खुद से ही बोला–" ""इस लड़की में आग है… लेकिन आग को बुझाना आता है मुझे।" वसुंध राठौड़ ने यह कहते हुए सिगार की राख फर्श पर झाड़ी,और एक लंबा कश लेकर अपनी आंखें बंद कर लीं। कमरे की रोशनी मद्धम थी — मूल्यवान लकड़ी से बना फर्नीचर, दीवारों पर पुराने स्वतंत्रता सेनानियों के फोटो,और बीच में रखी एक भारी टेबल जिस पर राजनीतिक नक्से, कुछ गोपनीय फाइलें, और एक लैपटॉप खुला पड़ा था।

    "PA," उसने एक जोरदार आवाज़ दी।

    "Yes, sir." उसके सामने खड़े उसके PA ने कहा!""
    "जिस लड़की का नाम सिया त्रिपाठी है मुझे उसकी पूरी ज़िंदगी चाहिए।कहाँ पैदा हुई, किस स्कूल में गई, कॉलेज में क्या किया, किससे मिली, कौन से रिश्ते टूटे…सब।"

    "Sir, privacy regulations…"

    वसुंध की आंखें लाल हो उठीं, उसने गुस्से से कहा!""जब तक वो सांस ले रही है, कोई regulation उसे नहीं बचा सकता।मीडिया में काम करती है मैं उसे उसी की भाषा में जवाब दूंगा। पब्लिक इमेज को ढहा कर।

    " PA चुपचाप झुक गया और हा में गर्दन हिलाते हुए चला गया!""

    अगली सुबह – सिया का अपार्टमेंट

    खिड़की से धूप झांक रही थी, लेकिन कमरे के भीतर साया पसरा था। सिया अलार्म से पहले ही उठ चुकी थी। रात भर नींद नहीं आई —घटनाएं उसके ज़हन में बार-बार घूमती रहीं:वसुंध की आंखों में दिखा वो अहंकार, वो अनदेखी धमकी,और अपने ही चैनल में आदित्य का संयमित डर। उसने बाल बांधे, और टूथब्रश करते हुए फ्रिज खोला—खाली था।
    "शायद मेरी भूख भी अब समझौतों से परे हो गई है,"उसने खुद से कहा। फिर वो डायरी उठाई, जिसके पहले पन्ने पर उसके पापा की हैंडराइटिंग में लिखा था— > "तू कलम पकड़े रहना सिया, कभी न कभी ये दुनिया स्याही से हिलती है।"
    उसके चेहरे पर एक हल्की, थकी सी मुस्कान आई।

    --- 9:30 AM – न्यूज चैनल ऑफिस

    "ब्रेकिंग न्यूज़!""मंत्री वसुंध राठौड़ के NGO की जाँच शुरू!" टीवी स्क्रीन पर बार-बार ये लाइन फ्लैश हो रही थी।लेकिन सिया को चैन नहीं था।वो अपने डेस्क पर बैठी फाइलों में सिर गड़ाए थी,और दूसरी तरफ़ आदित्य, धीरे-धीरे उसके व्यवहार को देख रहा था। "तुम्हें लगता है ये सब इतनी आसानी से रुक जाएगा?"


    To Be Continued… ?

  • 3. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 3

    Words: 1000

    Estimated Reading Time: 6 min

    आदित्य ने परेशान होकर आखिरकार पूछा। "नहीं,"और शायद इसी में इसकी खूबसूरती है— जो लड़ाई आसान हो, वो पत्रकारिता नहीं, PR कहलाती है।"सिया ने दो टुक में जवाब दिया!"" आदित्य कुछ देर उसे देखता रहा।फिर धीरे से मुस्कराया, और उसके सामने एक फोल्डर रख दिया। "ये लो। अगला असाइनमेंट। नॉर्थ दिल्ली के एक अस्पताल में घोटाले की खबर है,लेकिन वहां पहुंचने से पहले तुम अपने घर चली जाओ।" "घर?" सिया ने सवाल भरी नजरे से देखा!" " "हां। तुम्हारी मां कल रात 4 बार ऑफिस कॉल कर चुकी हैं।और सुबह से तुम्हारा फोन बंद है।" सिया एकदम चुप हो गई।उसने अपना सर टेबल पर टिका लिया!" " --- 11:15 AM – लाजपत नगर, सिया का घर सिया अपना मुंह कवर करके एक छोटे से घर के सामने थी, उसने दरवाजा खटखाया तो दरवाज़ा मां ने खोला।चेहरे पर झुर्रियां, लेकिन आंखों में आज अजीब घबराहट थी। "इतनी बड़ी-बड़ी बातें करती है, पर अपनी मां को कुछ नहीं बताती?" उसकी मां ने सीधा सवाल।करते हुए कहा!"" "मां…" सिया ने कहा!"" "तू जिस आदमी से भिड़ रही है ना, उसने तेरे कॉलेज के एक दोस्त को फोन करवाया था।वो बोला, 'सिया को कह देना, अबकी बार सवाल पूछने से पहले घर की सुरक्षा देख लेना।'" सिया स्तब्ध रह गई।"मां… मुझे माफ़ करना…" "माफी नहीं चाहिए। बस मेरी एक बात याद रख—सच का रास्ता अच्छा होता है, लेकिन उसमें कांटे बहुत होते हैं। और जो कांटे मेरी बेटी के खून से लाल हों,तो उस रास्ते को जलाना पड़ेगा सिया ।" सिया कुछ नहीं कह सकी। बस मां के कंधे पर सिर रख दिया। --- शाम – न्यूज़ ऑफिस के बाहर एक कार कार में बैठा आदमी मोबाइल पर बोल रहा था— "सिया त्रिपाठी ने फिर से कदम बाहर रखा है। जैसा आपने कहा था, हम उसके पीछे हैं।"










    दूसरी तरफ़ से वसुंध की आवाज़ आई— "कभी-कभी किसी को सबक सिखाने के लिए, उसे डराने की नहीं… उसके सबसे कीमती रिश्ते को तोड़ने की ज़रूरत होती है।" "समझ गया, सर।" --- रात – चैनल का प्रोडक्शन रूम सिया स्क्रीन पर खबर एडिट कर रही थी, जब अचानक आदित्य आया। "तुम्हारी मां का कॉल आया था।" "फिर से?" "नहीं। इस बार सिर्फ कहा कि तुम अगर ऑफिस में हो, तो जल्दी घर लौट जाना। और हां, उसने मुझसे पूछा, ‘क्या आप मेरी बेटी के साथ हैं?’" सिया थोड़ी चौंकी, फिर बोली— "और आपने क्या कहा?" "मैंने कहा, ‘जब तक वो सवाल करती रहेगी, मैं जवाब देने वालों से लड़ता रहूंगा।’" एक पल को सन्नाटा छा गया। सिया की आंखों में हल्का पानी उतर आया था, लेकिन उसने मुंह फेर लिया। आदित्य धीरे से बोला— "सिया… अगर तुम चाहो तो आज रात मेरे घर रुक सकती हो। सेफ है, लोकेशन भी किसी को नहीं पता।" "क्यों? डर है आपको?" "डर नहीं, पर कभी-कभी जो अकेले लड़ते हैं, उन्हें बस कोई इतना चाहिए होता है— जो उनके साथ खड़ा रहे।" --- कहीं और – वसुंध की मीटिंग "उसे तोड़ो। रिश्तों से, डर से, या अपमान से। लेकिन तोड़ो। सिया त्रिपाठी को गिराओ, तभी मेरी राजनीति सुरक्षित रहेगी।"


    रात के डेढ़ बज चुके थे। दिल्ली की सड़कों पर अब केवल ट्रैफिक लाइट्स की लाल-पीली लहरें झिलमिला रही थीं और दूर से आते किसी ट्रक की आवाज़ बीच-बीच में सन्नाटे को काट रही थी।

    सिया त्रिपाठी अब भी जाग रही थी।उसके कमरे की लाइट बुझी थी, बस लैपटॉप की स्क्रीन हल्की नीली रोशनी दे रही थी, जिसमें कुछ फाइलें खुली थीं वसुंध पांडे के पुराने इंटरव्यूज़, चुनावी वादे, और हाल ही में हुए दो टेंडरों की रिपोर्ट।

    उसकी आंखें भारी हो रही थीं, लेकिन दिमाग थमा नहीं था।पास ही चाय का प्याला ठंडा पड़ा था और मां के कमरे से धीमी सांसों की आवाज़ आ रही थी। बाहर की बालकनी में कुछ देर पहले तक कोई बिल्ली घूम रही थी। अब सब शांत था, बहुत ज़्यादा।सिया ने एक लंबा सांस भरा और आंखें बंद कीं। कुछ पल को बस यही सोचना चाहा कि उसने जो शुरू किया है, क्या वो अकेली पूरी कर पाएगी? तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ।एकदम अचानक से फोन का वाइब्रेट देख सिया हल्का सा घबराई और उसने फौरन फोन उठाया उसने देखा तो " प्राइवेट नंबर था कोई नाम नहीं, कोई आईडी नहीं।उसने कॉल रिसीव करने से पहले हल्के से होठ भींचे। फिर, रिसीव बटन दबा दिया।

    "हैलो?" सिया ने कहा!"

    सामने से कोई आवाज नहीं आई सिर्फ चुप्पी।

    "कौन है?" उसकी आवाज़ में हल्की झुंझलाहट थी।

    फिर एक आवाज़ आई। धीमी, बुझी हुई और डरावनी सी।"सच जानने का बहुत शौक है ना? लेकिन कहीं ऐसा न हो कि ये सच… तुम्हारी मां की सांसें रोक दे।"

    सिया एकदम खड़ी हो गई।उसके हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा। दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वह कुछ कहती, उससे पहले ही कॉल कट गया।

    उसने फौरन मां के कमरे की तरफ देखा।मां गहरी नींद में थीं, सब ठीक था। पर उसका खुद का चैन जा चुका था।वो वापस कमरे में आई और खिड़की का पर्दा थोड़ा हटाकर बाहर देखा।एक स्कूटी नीचे सड़क के कोने पर रुकी थी। हेलमेट पहने कोई शख्स कुछ देख रहा था। अगले ही पल वह मुड़कर चला गया।सिया के भीतर हलचल थी। एक अजीब सी बेचैनी जो अब सिर्फ सवालों में नहीं, डर में भी बदल रही थी।वो वापस टेबल पर बैठी। खुद को शांत करने की कोशिश की।तभी नज़र सामने पड़े एक भूरे रंग के लिफाफे पर गई—जो वहां पहले नहीं था।

    वो चौंकी। उठकर लिफाफा उठाया।उस पर कुछ नहीं लिखा था। न नाम, न पता। उसने उसे धीरे से खोला। अंदर एक तस्वीर थी।

    एक फोटो—वसुंध पांडे किसी पुराने सरकारी अफसर के साथ एक होटल के कमरे में, समय और तारीख के साथ।और साथ में एक लाइन:

    "अगर ये बाहर आई, तो सिर्फ वसुंध नहीं गिरेगा… कोई और भी हमेशा के लिए खामोश हो जाएगा।"





    सिया की उंगलियां कांपने लगीं।अब ये सिर्फ पत्रकारिता नहीं रही। ये निजी हो चुका था।

    उसने तस्वीर को मेज पर रखा, गहरी सांस ली और खुद से कहा—"अब पीछे नहीं हट सकती। जो डर गया, वो बिक गया।" इतना बोल उसने सब कुछ समेट कर रखा और सो गई!"


    to be continue.......


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  • 4. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 4

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक फोटो—वसुंध पांडे किसी पुराने सरकारी अफसर के साथ एक होटल के कमरे में, समय और तारीख के साथ।और साथ में एक लाइन:

    "अगर ये बाहर आई, तो सिर्फ वसुंध नहीं गिरेगा… कोई और भी हमेशा के लिए खामोश हो जाएगा।"

    सिया की उंगलियां कांपने लगीं।अब ये सिर्फ पत्रकारिता नहीं रही। ये निजी हो चुका था।

    उसने तस्वीर को मेज पर रखा, गहरी सांस ली और खुद से कहा—"अब पीछे नहीं हट सकती। जो डर गया, वो बिक गया।" इतना बोल उसने सब कुछ समेट कर रखा और सो गई!"





    सुबह 6:30 बजे

    सिया की आंखें पूरी रात नहीं लगीं। अब उसने आंखों में ठंडा पानी डाला, खुद को शीशे में देखा थकी हुई, लेकिन आंखों में आग थी उसके उसने किचेन में आकर चाय बनाई तो उसकी मां की नींद टूटी।

    वो उठकर उसके पास आई और बोली–" "आज भी ऑफिस जा रही है तू?" मां ने थकी सी आवाज़ में पूछा।

    "हां मां। आज ज़रूरी काम है।"सिया ने चाय बनाते हुए कहा!"

    "कल रात कोई फोन आया था?"

    सिया ठिठकी। एक पल रुकी। फिर मुस्कराकर कहा—"नहीं मां। कोई गलती से लगा दिया होगा। तुम आराम करो।"

    उसने मां को देखा—वो अब भी नहीं जानतीं कि उनकी बेटी किस आग से गुजर रही है।




    न्यूज रूम – 9:15 AM

    आदित्य कपूर, एडिटर-इन-चीफ, जब सिया को आते देखता है, तो सिर हिलाता है।

    "तुम फिर टाइम पे आ गई? कौन हो तुम , सुपरहीरो?"

    सिया ने आंखों से झुककर हँसने की कोशिश की, लेकिन आवाज़ गंभीर थी—"सर, मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी है। अकेले में।"

    आदित्य ने उसकी आंखें देखीं—वो पहले वाली नहीं थीं।"चलो अंदर चलते हैं।"

    सिया ने ज़ोर से दरवाज़ा खोला।

    कागज़, फोटोज़ और फ़ाइल्स उसके हाथ में थीं। आँखों में गुस्सा, होठों पर खामोशी, और साँसें तेज़।

    "ये देखिए सर..." उसने टेबल पर दस्तावेज़ फेंके।

    आदित्य ने धीरे से अख़बार नीचे रखा। सिर उठाया, मगर उसकी आँखों में कोई हैरानी नहीं थी।

    "हम्म..."वो बस धीरे से फाइल उलटता गया।

    "आप जानते हैं न इसका क्या मतलब है?"
    सिया ने तीखे लहज़े में पूछा।

    "जानता हूँ। पर ये भी जानता हूँ कि तुम्हें जो मिल रहा है... वो सिर्फ शुरुआत है।"

    "धमकी देना आसान है, सर। मुझे डराना नहीं।"

    "ये डराना नहीं है, सिया... ये तुम्हें बचाने की आखिरी कोशिश है।"

    उसके इतना बोलते ही एक पल की चुप्पी छा गई।

    बाहर बारिश तेज़ हो चुकी थी। खिड़की के कांच पर पानी की बूंदें लिपटी थीं, जैसे किसी खामोश खतरे की सरसराहट।

    "सर, मैं उस फंडिंग घोटाले का सच सबूत के साथ सामने ला सकती हूँ। वसुंध के खिलाफ़। क्या आप मेरा साथ देंगे?"

    आदित्य कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। धीरे-धीरे उसके करीब आया और बोला" सच का साथ देना आसान नहीं होता, सिया। कभी-कभी सच के लिए... बहुत कुछ खोना पड़ता है।"

    "तो खोने के लिए तैयार रहिए, सर। क्योंकि मैं ये लड़ाई अकेले भी लड़ सकती हूँ।"

    वो मुड़ी, और कंधे पर बैग डालते हुए बाहर निकल गई।


    ---

    अगला दिन — न्यूज़ रूम

    टीवी स्क्रीन पर सिया की रिपोर्ट चल रही थी—
    "स्थानीय विधायक वसुंध भाटिया के इलाके में एक अधूरे हॉस्पिटल का पर्दाफाश। आठ साल से अधूरी इमारत और करोड़ों का गायब बजट।"

    सिया ने जैसे ही कैमरे के सामने रिपोर्ट खत्म की, फोन बजा। उसने फोन उठाया और कान के लगाया ही था कि तभी उसके कानो में आवाज आई

    "तुमने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है..."
    वो आवाज़ जानी-पहचानी थी और ये वसुंध भाटिया। की आवाज थी उसने वापस से कहा–" ""अब हर तरफ तुम्हारे नाम की 'खबर' चलेगी। लेकिन पत्रकार नहीं, आरोपी बनकर।"

    सिया मुस्कुराई।"जब आप जैसे लोग डराने लगें, तो समझिए रास्ता सही है। इतना बोल उसने फोन काट दिया


    रात का समय सिया का घर

    वो थकी हुई थी। रिपोर्ट भेज चुकी थी, कैमरा बंद। घर की खामोशी में एक सुकून था… लेकिन ज्यादा देर नहीं।दरवाज़े के नीचे से एक लिफाफा सरका।

    सिया ने धीरे से उठाया। खोला।
    अंदर सिर्फ एक लाइन लिखी थी —
    "अब वक्त खत्म हो रहा है, मिस त्रिपाठी। अगली बार... सिर्फ धमकी नहीं होगी।"

    उसके हाथ थोड़े कांपे, लेकिन चेहरा ठंडा था। वो सीधा वॉरड्रोब के पास गई, नीचे से एक पुराना डब्बा निकाला। उसमें से एक पुरानी पेन ड्राइव बाहर निकाली।

    "अब खेल मैं भी शुरू कर सकती हूँ..."


    ---

    अगली सुबह – एक कॉफी शॉप

    "तो तुम वाकई पागल हो," आदित्य सामने बैठा था।

    "थोड़ी पागलपंती में ही तो क्रांति होती है, सर।"

    "तुम्हें लग रहा है वसुंध अकेला खेल रहा है?"

    "नहीं... लेकिन शिकार को पहले अकेला दिखाना ज़रूरी होता है। ताकि बाकी शिकारी खुद सामने आ जाएं।"


    "और तुम?" आदित्य ने उसकी आंखो में देखते हुए पूछा!"

    सिया मुस्कराई।"मैं शिकारी नहीं… मैं वो शिकार हूँ जो जाल देख सकता है।"


    रात — शहर के एक पॉश होटल में

    वसुंध भाटिया एक प्राइवेट मीटिंग रूम में बैठा था। सामने उसके करीबी मंत्री, पार्टी वर्कर और एक तेज़तर्रार महिला खड़ी थी — दिया सक्सेना, पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट।

    “उसकी हर हरकत ट्रैक हो रही है,” दिया ने कहा,
    “लेकिन जितना हमला करोगे, उतनी ज़्यादा ज़िद बढ़ेगी उस लड़की में।”

    वसुंध ने मुस्कराते हुए कहा,“ज़िद तोड़नी है… जान नहीं लेनी अभी। उसे डराना है, टूटने तक।”

    “तो फिर कसर नहीं होनी चाहिए,” दिया ने धीमे से जोड़ा, “मैं इसे अपनी रणनीति में शामिल करती हूँ।” दिया ने उसे देखते हुए कहा!"




    अगली सुबह — सिया का अपार्टमेंट

    सिया चाय बनाते हुए खबरों की हेडलाइंस देख रही थी। एक रिपोर्टर वसुंध की सफाई दिखा रहा था।

    "यह सब मेरे खिलाफ़ साज़िश है। मैं एक जनसेवक हूँ, चोर नहीं!" वसुंध ने कहा

    सिया ने टीवी म्यूट किया।
    “जनसेवक? तुम तो ‘जनता की चिता’ परपॉलिटिक्स कर रहे हो…”

    इसी बीच उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ। उसने मैसेज देखा जिसमें लिखा था, “बैग में देखो।”

    वो चौंकी और फौरन अपना बैग चेक किया।भीतर एक छोटा सा कैमरा निकला — चुपचाप फिट किया गया था।सिया का चेहरा सख्त हो गया। उसने उसे देखा और थोड़ा परेशान हो गई!"




    ब्यूरो ऑफिस

    “सर!”वो सीधे आदित्य के केबिन में घुसी।

    “ये कैमरा आज सुबह मेरे बैग में मिला है। कोई मेरी मूवमेंट ट्रैक कर रहा है।” सिया गुस्से से बोली!"

    आदित्य शांत रहा।“मैंने कहा था, सिया... ये लोग सिर्फ राजनीतिक नहीं, पेशेवर शिकारी हैं।”

    “तो हम क्या करें? चुप रहें?” सिया ने उसकी आंखो में देखते हुए कहा!"

    “नहीं,” आदित्य ने उसकी तरफ देखा, “अब उन्हें दिखाते हैं कि तुम्हारा डर उन्हें कितना भारी पड़ सकता है।”

  • 5. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 5

    Words: 1010

    Estimated Reading Time: 7 min

    “तो हम क्या करें? चुप रहें?” सिया ने उसकी आंखो में देखते हुए कहा!"

    “नहीं,” आदित्य ने उसकी तरफ देखा, “अब उन्हें दिखाते हैं कि तुम्हारा डर उन्हें कितना भारी पड़ सकता है।”


    ---

    रात — न्यूज़ रूम

    सिया ने अपने लैपटॉप पर एक नई रिपोर्ट टाइप करनी शुरू की "कहां गए हॉस्पिटल के करोड़ों?"

    टाइप करते हुए उसने खुद से कहा —"अब लड़ाई सिर्फ राजनीति की नहीं… इंसाफ की है।"




    दूसरे दिन — लाइव प्राइमटाइम डिबेट

    स्टूडियो कैमरा ऑन होता है।सिया, एंकर की कुर्सी पर।

    “हमारे साथ हैं विधायक वसुंध भाटिया जी,” सिया ने संयमित स्वर में कहा,“और आज हम बात करेंगे उनके क्षेत्र की उस अस्पताल की, जो फंड मिलने के बावजूद आठ सालों से अधूरी है।”

    वसुंध की तस्वीर स्क्रीन पर आई।

    सिया ने पहला सवाल दागा —“आपकी राजनीति में मानवता कहां है, सर?”

    वसुंध की आँखें ठंडी थीं, लेकिन मुस्कान ज़हरीली —“आप जज नहीं हैं, मिस त्रिपाठी। पत्रकार हैं। आप सवाल कर सकती हैं, सज़ा नहीं।”

    “सच सामने रखना सज़ा से कम नहीं होता, सर,” सिया बोली,“क्योंकि सच्चाई कई बार लोगों की सत्ता हिला देती है।”

    वसुंध का चेहरा एक पल के लिए सख्त हो गया।


    ---

    एंड सीन — सस्पेंस मोमेंट

    सिया ऑफिस से घर के लिए निकलती है।

    बाहर एक बाइक उसके पीछे धीरे-धीरे चलती है।

    रास्ता सुनसान है। सिया तेज़ चलती है।

    अचानक बाइक रुकती है। पीछे से एक आदमी उतरता है, चेहरा ढंका हुआ।

    वो कुछ कहने ही वाला होता है कि—

    “रुक जाओ!”
    आवाज़ आती है — आदित्य की।

    उसने समय रहते पहुंचकर सिया को पीछे खींच लिया।

    बाइक वाला भाग जाता है।

    सिया कांप रही थी। आदित्य ने उसकी आंखों में देखा।

    “अब तुम्हारी जंग मेरी भी है, सिया। तुम अकेली नहीं हो।”


    सुबह — न्यूज़रूम

    सिया ने पिछली रात की घटना की CCTV फुटेज निकलवाने के लिए चैनल के टेक्निकल डिपार्टमेंट को कहा।

    आदित्य उसके साथ खड़ा था।

    “क्लियर शॉट नहीं मिला, हेलमेट और मास्क से पूरा चेहरा ढका हुआ है,” टेक्नीशियन ने कहा।

    सिया ने स्क्रीन को एकटक देखा।

    “चाहे चेहरा छिपा हो, इरादा सामने है।”

    आदित्य ने पास आकर कहा —“इस हमले की रिपोर्ट पुलिस में करवानी चाहिए।”

    सिया ने नकार दिया —“पुलिस उन्हीं की जेब में है, सर। ये लड़ाई अब सबूतों से नहीं, सिस्टम से है।”


    ---

    दूसरी ओर वसुंध का बंगलो

    दिया सक्सेना अपने लैपटॉप पर कुछ ग्राफिक्स और मीडिया स्ट्रैटेजी खोलकर बैठी थी।

    “सिया त्रिपाठी की पब्लिक इमेज अब एक क्रूसेडर जैसी बन रही है,” उसने कहा।

    “तो बदल दो इमेज,” वसुंध ने सिगार जलाते हुए कहा, “उसे ऐसा दिखाओ जैसे वो एजेंडा चला रही हो।”

    दिया ने मुस्कराते हुए कहा —“मैं एक लीक प्लान करती हूँ। जिसमें सिया को किसी NGO से फंड लेते हुए दिखाया जाएगा और सवाल उठेंगे कि वो निष्पक्ष है या बिकाऊ।”

    वसुंध ने कहा —“बस इतना ध्यान रखना… उसे मिटाना नहीं है। सिर्फ जनता की नज़रों में गिराना है।”उसके इतना बोलते ही दिया ने मुस्कुराते हुए अपना काम शुरू कर दिया!"


    सिया का घर

    सिया ने मॉनिटर पर अपने सभी पुराने रिपोर्टिंग आर्काइव्स निकाले।एक फाइल खोलते ही उसका चेहरा गंभीर हो गया।“अस्पताल घोटाले में जिस कॉन्ट्रैक्टर का नाम आया था, वो अब वसुंध की पार्टी के सोशल मीडिया हेड का छोटा भाई है…”

    वो खुद से बुदबुदाई —“यानी घोटाले का पैसा पार्टी तक गया… और सब कागज़ों में दफ्न है।”

    उसने फ़ौरन एक व्हाट्सएप मैसेज भेजा —
    "मुझे उस कॉन्ट्रैक्टर की बैंक स्टेटमेंट्स और बिलिंग डिटेल्स चाहिए — 2015 से 2021 तक।"
    उसने फोन रखा और स्क्रीन पर वापस कुछ देखने लगी!"

    ---

    दोपहर — चैनल मीटिंग रूम
    सिया ने आदित्य और एडिटर को सारी नई जानकारी दिखाई।

    “मैं अब सिर्फ सवाल नहीं पूछूंगी। मैं पब्लिक को जवाब दूंगी।” सिया आत्मविश्वास के साथ बोली!"

    आदित्य ने कहा —“तो अगला शो तुम्हारा नहीं, तुम्हारा स्टेटमेंट होगा। तैयार रहो… backlash के लिए भी।”

    सिया ने कहा —“backlash से नहीं डरती… बस सच्चाई के गले में फांसी न लगे, यही चाहती हूँ।”
    उसकी बात सुनकर किसी ने कुछ नहीं कहा था, और धीरे धीरे में शाम भी हो गई थी,

    शाम — लाइव डिबेट स्पेशल

    स्टूडियो में इस बार दर्शक भी बैठे थे।

    स्क्रीन पर सिया ने वसुंध की पार्टी के सोशल मीडिया हेड की तस्वीर और उस कॉन्ट्रैक्टर की प्रोफाइल दिखाते हुए सीधा लिंक बताया।

    “एक अस्पताल जो 8 सालों में तैयार नहीं हुआ, उसका पैसा कैसे निजी अकाउंट्स में पहुंचा और ये लोग आज देशसेवा की बातें कर रहे हैं?”

    विपक्ष के नेता ने डिबेट में कहा —“हम इसकी जांच की माँग करेंगे।”

    सिया ने एक लाइन में कहा —“जांच नहीं, जवाब चाहिए… और जनता को अब इंतज़ार नहीं।”

    कुछ ही पलो में वो स्पेशल डिबेट खत्म भी हो गया था


    रात — सिया का अपार्टमेंट

    टीवी पर डिबेट का क्लिप वायरल हो चुका था।

    सोशल मीडिया पर ट्रेंड चल रहा था#सिया_पूछेगी_तो_जवाब_दोगे?

    सिया बालकनी में खड़ी चाय पी रही थी। हवा में ठंडक थी, लेकिन उसके अंदर जो गर्मी थी वो किसी तूफान से कम नहीं।

    तभी उसका फोन वाइब्रेट हुआ उसने देखा तक आदित्य का कॉल आया था उसने फोन कान के लगाया तो आदित्य की आवाज आई—“रिपोर्ट जब हथियार बन जाए… तो अगला कदम क्या होता है?”

    सिया ने धीरे से कहा —“क्रांति।”

    इतना बोल उसने फोन रखा और सुकून की सांस ली सिया बालकनी से शहर की ओर देख रही है।तभी वो खुद से बोली–" "जो सच बोलता है, उसे डराया जा सकता है…
    पर जो सच को जीता है, उसे कभी हराया नहीं जा सकता।
    अब ये सिर्फ रिपोर्टिंग नहीं… रण है।
    और मैं सिर्फ पत्रकार नहीं… रणचंडी हूँ।"

    इतना बोल उसने चाय का आख़िरी घूंट लिया और बुदबुदाई —“जब वार कर चुके हों... तो अब चोट दिखाने का वक़्त है।”

    वो अंदर गई, लैपटॉप ऑन किया। टेबल पर एक फाइल रखी थी — "हॉस्पिटल केस: कच्चे लिंक"

    उसने उसे खोला — लेकिन तभी—

    दरवाज़े की घंटी बजी।वो चौंकी। घड़ी रात के 11:40 बजा रही थी।

    दरवाज़ा खोला — सामने एक लड़का खड़ा था, डिलिवरी बॉक्स के साथ।

    “मैम, ये आपके नाम एक कूरियर है।”

    “मैंने कुछ मंगाया नहीं,” सिया ने कहा।

    “नाम सिया त्रिपाठी है न? यही लिखा है,” उसने पुष्टि की।

    सिया ने बॉक्स लिया। लड़का चला गया।


    ---





    To be continued...

  • 6. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 6

    Words: 1004

    Estimated Reading Time: 7 min

    अंदर गई, लैपटॉप ऑन किया। टेबल पर एक फाइल रखी थी — "हॉस्पिटल केस: कच्चे लिंक"

    उसने उसे खोला — लेकिन तभी—

    दरवाज़े की घंटी बजी।

    वो चौंकी। घड़ी रात के 11:40 बजा रही थी।

    दरवाज़ा खोला — सामने एक लड़का खड़ा था, डिलिवरी बॉक्स के साथ।

    “मैम, ये आपके नाम एक कूरियर है।”

    “मैंने कुछ मंगाया नहीं,” सिया ने कहा।

    “नाम सिया त्रिपाठी है न? यही लिखा है,” उसने पुष्टि की।

    सिया ने बॉक्स लिया। लड़का चला गया।


    ---

    अंदर — सिया का अपार्टमेंट

    सिया ने डिब्बा खोला।

    भीतर एक पुराना फोटो फ्रेम था — सिया, उसके दिवंगत पिता, और अस्पताल के उस दिन की तस्वीर जब उन्होंने गरीबों के इलाज के लिए पहली बार फंडिंग मांगी थी।

    तस्वीर के पीछे लिखा था —

    "हर सच्चाई की एक कीमत होती है। तय है कि तुम क्या खोने को तैयार हो?"

    सिया ने पढ़ा और उसकी उंगलियाँ थरथरा गईं।

    “ये लोग अब निजी वार कर रहे हैं… परिवार तक पहुंच गए हैं।”


    ---

    अगली सुबह — न्यूज़ चैनल

    सिया मीटिंग में थी।

    आदित्य, एडिटर और HR हेड भी मौजूद थे।

    “तुम्हारे खिलाफ सोशल मीडिया पर एक पेड ट्रेंड चल रहा है,” एडिटर ने कहा, “तुम पर NGO से ब्लैकमनी लेने का आरोप लगाया जा रहा है।”

    सिया हंसी। कड़वी हंसी।

    “ये वही ‘लीक’ है जो वसुंध चाहता था। अब झूठ को सच बनाकर पेश किया जाएगा।”

    HR हेड ने कहा —
    “माफ़ कीजिए, लेकिन चैनल पर भी दबाव है। अगर ये ट्रेंड बढ़ा, तो हमें शो से हटाना पड़ेगा आपको।”

    आदित्य ने बीच में टोका —
    “हमारे चैनल की नींव सच पर है। और अगर हम सच बोलने वालों को ही हटा देंगे, तो हम बाकी चैनलों से अलग कैसे होंगे?”

    HR हेड चुप हो गया।


    ---

    वसुंध का ऑफिस — उसी समय

    वसुंध और दिया एक टीवी स्क्रीन पर सिया का नाम ट्रेंड होते देख रहे थे।

    #SiaExposed
    #FakeJournalism
    #NGOScamQueen

    दिया मुस्कराई —
    “हमने उसकी विश्वसनीयता हिला दी है। अब जनता ही सवाल करेगी उस पर।”

    वसुंध ने सिगार जलाया —
    “युद्ध जीतने के लिए ज़रूरी नहीं कि दुश्मन को मारा जाए... बस उसे अकेला छोड़ दो, टूट जाएगा।”


    ---

    रात — सिया का घर

    फोन की घंटी बजी।

    दूसरे तरफ एक भारी आवाज़ थी —
    “जो आग तुमने जलाई है, उसमें तुम ही जलोगी।”

    सिया ने शांत स्वर में कहा —
    “उस आग में तुम भी हो, और राख जब उड़ेगी… तो हवा तय करेगी किसका नाम बचेगा।”

    फोन कट गया।

    सिया का निर्णय

    अगली सुबह, सिया कैमरे के सामने खड़ी थी।

    कोई स्क्रिप्ट नहीं, कोई टेलीप्रॉम्पटर नहीं। बस सीधा लाइव।

    “कल रात किसी ने मेरी निजी तस्वीर भेजी, आज मेरा नाम घसीटा जा रहा है। लेकिन मैं यहां ये कहने आई हूं —
    'सच्चाई पर सवाल उठाना आसान है, लेकिन सच्चाई को मिटाना नहीं।'

    मैं एक रिपोर्टर हूं। और अब, मैं सिर्फ सवाल नहीं पूछूंगी…
    मैं वो जवाब बनूंगी, जिससे कोई भी सत्ता बच न पाए।”

    कैमरा धीरे-धीरे क्लोज होता है।

    सिया की आंखों में अब डर नहीं —
    आग है।


    अगली सुबह — देशभर के टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया

    लाखों लोग सिया की वो बिना स्क्रिप्ट की गई सीधी बात देख चुके थे।

    एक ट्रेंड तेजी से उठ रहा था:
    #WeStandWithSia
    #TruthNeedsNoPermission
    #HospitalScam

    लोग ट्वीट कर रहे थे:
    "कम से कम एक तो है जो डरी नहीं।"
    "वसुंध भाटिया, अब जवाब दो!"
    "सिया त्रिपाठी — सैल्यूट!"


    ---

    वसुंध का बंगला — मीटिंग हॉल

    वसुंध, दिया, और उनके वफादारों के बीच माहौल भारी था।

    दिया ने टीवी की आवाज़ कम करते हुए कहा —
    “पब्लिक के मूड का रुख बदल रहा है। जो हमने ट्रेंड चलाया था, अब उल्टा पड़ रहा है।”

    वसुंध ने बर्फ गिरा कर व्हिस्की का गिलास उठाया।

    “अगर पब्लिक जवाब चाहती है, तो अब उन्हें वो जवाब मिलेगा… जो डराता है, समझाता नहीं।”

    उसने पास खड़े एक आदमी की ओर इशारा किया।

    “विक्रम… सिया का पीछा करो, उसकी कमज़ोर नस ढूंढो। आदित्य से भी कोई लिंक हो, तो तोड़ दो।”

    विक्रम ने सिर हिलाया और तुरंत निकल गया।


    ---

    सिया का न्यूज़ रूम — दोपहर

    आदित्य के केबिन में सिया बैठी थी, उसकी आँखों में थकावट नहीं… जिद थी।



    “अब ये सिर्फ अस्पताल की रिपोर्ट नहीं रही,” उसने कहा, “अब ये उस पूरे सिस्टम की रिपोर्ट है जो लोगों के जिंदा होने पर मुनाफा गिनता है।”

    आदित्य ने गहरी सांस ली।

    “तो अगला कदम क्या?”

    सिया ने सामने फाइल रखी।

    "MLA फंड से बनाई गई 3 फर्जी संस्थाओं के डॉक्यूमेंट्स। तीनों वसुंध की भतीजी के नाम पर रजिस्टर्ड। और इनसे 42 करोड़ की ट्रांसफर एंट्री।"

    आदित्य की आँखें चमकीं।

    “तो अब फेयरवेल पार्टी तय है वसुंध के लिए...”


    ---

    दूसरी ओर — एक सुनसान जगह पर विक्रम

    सिया के पुराने कॉलेज प्रोफेसर से मुलाकात करता है।

    “क्या कुछ ऐसा है… जो मिस त्रिपाठी के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सके?”

    प्रोफेसर ने संकोच से कहा —
    “सिया बहुत होशियार थी… लेकिन हां, उसके पिता एक बार आर्थिक घोटाले में फंसे थे, हालांकि साबित कुछ नहीं हुआ था।”

    विक्रम मुस्कराया —
    “हमें बस आग जलानी है, सच तो बाद में देखेंगे…”


    शाम — लाइव शो में सिया

    उसने एक स्क्रीन पर दस्तावेज़ दिखाए।

    “तीन संस्था, एक नाम — ‘निकिता भाटिया’। और इन तीनों के अकाउंट में एक ही दिन 42 करोड़ ट्रांसफर किया गया, और उसी दिन निकाल लिया गया।”

    लोग फोन कर-करके चैनल की लाइन्स ब्लॉक करने लगे।

    दूसरी तरफ वसुंध के PA का फोन लगातार बज रहा था —
    “सर, हाईकमान पूछ रहा है... प्रेस कॉन्फ्रेंस कब रखनी है?”

    वसुंध ने गुस्से में फोन फेंका।


    ---

    रात — एक गाड़ी सिया का पीछा करती है

    गाड़ी तेज़ होती है। सिया अपनी बाइक पर है।

    एक मोड़ पर अचानक दो बाइक वाले उसे घेर लेते हैं।

    “साइकिल चलाना छोड़ दो, पत्रकारिता भारी पड़ने वाली है…”

    सिया घबराती है… लेकिन तभी एक गाड़ी आकर रुकती है।

    आदित्य उतरता है।

    उसने उन लड़कों पर तमककर कहा —
    “सच को डराकर नहीं मिटाया जा सकता।”

    लड़के भाग जाते हैं।

    सिया की सांसें अब भी तेज़ थीं।

    “तुम ठीक हो?” आदित्य ने पूछा।

    सिया ने कहा —
    “ठीक हूं… पर अब थक चुकी हूं सिर्फ बचते-बचते। अब वार की बारी है।”

  • 7. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 7

    Words: 1016

    Estimated Reading Time: 7 min

    सिया घबराती है… लेकिन तभी एक गाड़ी आकर रुकती है। जिसमें से आदित्य उतरता है।

    उसने उन लड़कों पर तमककर कहा — “सच को डराकर नहीं मिटाया जा सकता।” भागो यहां से उसके इतना बोलते ही लड़के भाग जाते हैं।

    सिया की सांसें अब भी तेज़ थीं।

    “तुम ठीक हो?” आदित्य ने पूछा।

    सिया ने कहा — “ठीक हूं… पर अब थक चुकी हूं सिर्फ बचते-बचते। अब वार की बारी है।”


    अगले दिन

    सिया एक NGO कैंप में जाती है। वहां गरीब मरीज, अधूरी बिल्डिंग्स और टूटी पड़ी मशीनें देखती है।

    वो कैमरे की ओर मुड़ती है। “ये इमारतें वसुंध भाटिया के झूठ का कंकाल हैं। अब समय है कि इन्हें गिराया जाए… ताकि इंसाफ की एक नई नींव डाली जा सके।” कुछ ही देर में कैमरा क्लोज़ होता है।

    सिया त्रिपाठी अब रिपोर्टर नहीं… क्रांति बन गई है।
    ऐसे ही सिया इन सब से फ्री होकर निकल ही रही थी कि तभी आदित्य ने कहा –"मैं तुम्हे ड्रॉप कर देता हूं?

    आदित्य की बात सुनकर सिया ने मुस्कुराते हुए कहा–" आप डर थे है कि मुझे कल की तरह कुछ हो न जाए तो आप गलत है,

    आदित्य ने उसकी बात सुनी और बोला–" ऑफकोर्स डरता हूं डर लगता है तुम जानती हो न वो कौन है फिर तो मेरा डरना जायज है,

    आदित्य के इतना बोलते ही सिया ने उसे देखा और बिना बोले निकल गई!"



    बारिश की बूँदें ज़मीन पर पड़ते हुए जैसे आग सी सुलगा रही थीं। सड़क सुनसान थी, रात अजीब सी खामोशी ओढ़े खड़ी थी। सिया के कदम तेज़ थे लेकिन दिल की धड़कनें उससे भी तेज़।उसके ठीक पीछे किसी के क़दमों की आहट थी।

    उसने मुड़कर देखा—कोई नहीं था लेकिन किसी की साँसे हवा में महसूस हो रही थीं।

    उसने अपने बैग से चाबी निकाली और बिल्डिंग के गेट तक पहुँचते ही एक साया तेज़ी से उसकी तरफ लपका।

    “हटो!” सिया चिल्लाई और अपने बैग से पेपर स्प्रे निकालने की कोशिश की, मगर हमलावर ने उसकी कलाई को पकड़कर काफी जोर से मोड़ दिया और इसी वजह से एक हल्की सी चीख उसके मुँह से निकली

    लेकिन तभी एक कार ब्रेक्स की आवाज़ के साथ रुकी और आदित्य दरवाज़ा खोलते ही बाहर निकला।

    “हाथ नीचे!” उसने गुस्से से चिल्लाया।

    हमलावर पलटा, और भागने की कोशिश करने लगा। उसने सिया को जोर से धक्का देकर छोड़ दिया!""सिया ज़मीन पर बैठी थी, उसका हाथ काँप रहा था।

    आदित्य ने उसका सहारा लेते हुए पूछा, “तुम ठीक हो ना सिया?”

    “हाथ में मोच है शायद… पर हाँ, मैं ठीक हूँ,” सिया ने धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन उसकी आँखें डरी नहीं थीं, सिर्फ़ गुस्से से भरी हुई थीं।

    आदित्य ने उसकी आँखों में देखा और पहली बार बिना कुछ कहे समझ गया वो अब पीछे हटने वालों में से नहीं थी। उसने उसे सही से पकड़कर खड़ा किया और उसके साथ अंदर आ गया उसने सिया को बिठाया और कहा –" दवाई कहा है?"

    सिया ने आदित्य को देखा और कहा–" मैं कर लूंगी मैं अभी ठीक हुं

    आदित्य ने उसे देखा और कहा–" पूछ नहीं रहा हूं, इतना बोल उसने सिया को देखा तो उसने उंगली से सामने की और इशारा किया तो आदित्य डिब्बा ले आया और सिया के हाथ में दवाई लगा दी कुछ देर बाद आदित्य भी वाह से चला गया था!"

    अगली सुबह — न्यूज़ रूम

    सिया के हाथ पर बैंडेज थी, लेकिन वो अपने सिस्टम के सामने बैठी थी, स्क्रीन पर नया आर्टिकल टाइप करती हुई:

    "जब चुप कराने से डर न लगे, तो अगला कदम होता है मिटाना। और हम मिटने नहीं वाले।”

    आदित्य उसकी डेस्क के पास आया और उसे देखते हुए बोला“तुम एक दिन अपना सब कुछ खो बैठोगी इस जिद में,”

    “तो फिर वही बचाऊँगी, जो लोग रोज़ खो रहे हैं,” सिया ने पलटकर जवाब दिया। सिया के जवाब से आदित्य चुप हो गया था!" "



    दूसरी ओर — वसुंध का फार्महाउस)

    दिया सक्सेना मेज पर फैले हुए कुछ डॉक्यूमेंट्स की तरफ इशारा करती हुए बोली“ये लड़की सिर्फ़ जर्नलिस्ट नहीं रही अब। ये मूवमेंट बनती जा रही है। अगर तुम इसे अभी भी हल्के में ले रहे हो, तो तुम वाक़ई पॉलिटिक्स में पुराने हो चुके हो।”

    वसुंध ने सिगार का एक लंबा कश खींचा और बोला, “तो अबकी बार वो मरे नहीं… पर टूटे ज़रूर।”

    तो वही सिया अपनी बालकनी में बैठी थी, एक कप कॉफी के साथ। उसके चेहरे पर बैंडेज के नीचे हल्की खरोंचें थीं, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी।

    मोबाइल पर एक अननोन मैसेज आया: उसने फोन देखा और मैसेज पढ़ा जिसमें लिखा था“तुम नहीं समझती, तुम किससे लड़ रही हो।”

    उसने मैसेज पढ़ा और मुस्कराई—और मैसेज के जवाब में लिखा “तुम नहीं समझते, मैं किस हद तक जा सकती हूँ।” इतना लिख उसने खुद से कहा शिकारी अब शिकार की परछाई से डरने लगा है... यही तो शुरुआत है।"सिया बालकनी से उठी, कॉफी का आखिरी घूंट लिया और फोन की स्क्रीन बंद कर दी। जिस मुस्कान ने उसके होंठों को छुआ था, वो अब पूरे चेहरे पर एक आत्मविश्वास की छाया बन चुकी थी, आज उसके चेहरे पर थोड़ी थकान थी वो चुप चाप रूम में आकर सो चुकी था!""

    अगली सुबह उसने अपनी डायरी खोली पुरानी, लेकिन अब भी हर पन्ना जैसे एक वादा करता हो। उसने पेन उठाया और लिखा:"डराने वाले अब खुद डर रहे हैं। अब वक्त है, उन्हें आईना दिखाने का।" इतना बोल उसने डायरी बंद की और सुकून की सांस ली और वाह से निकल गई!" "



    न्यूज़ रूम, सुबह 10:30 बजे

    सिया अपने कंप्यूटर के सामने बैठी थी। सामने खुला था एक डॉक्यूमेंट — टाइटल था: “राजनीति या अपराध?”

    उसने डेटा और विटनेस स्टेटमेंट्स जोड़ने शुरू किए। हर लाइन सोच-समझ कर, कानूनी रूप से बैलेंस करते हुए।

    तभी वाह आदित्य आया। आज वो बदला हुआ लग रहा था उसकी आँखों में सिया के लिए एक नई इज्ज़त थी।

    "तुम जानती हो ना, ये रिपोर्ट सिर्फ़ सिस्टम पर नहीं, तुम्हारे जान पर भी भारी पड़ सकती है," आदित्य ने धीरे से कहा।

    "और अगर मैं नहीं लिखूँ, तो क्या फर्क पड़ेगा? कोई और मर जाएगा, किसी और की आवाज़ दबा दी जाएगी। अब बहुत हो गया, आदित्य।"

    सिया की आवाज़ सख्त थी, लेकिन काँपती नहीं थी।

    ---




    ---

    To Be Continued…

  • 8. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 8

    Words: 1008

    Estimated Reading Time: 7 min

    तभी वाह आदित्य आया। आज वो बदला हुआ लग रहा था उसकी आँखों में सिया के लिए एक नई इज्ज़त थी।

    "तुम जानती हो ना, ये रिपोर्ट सिर्फ़ सिस्टम पर नहीं, तुम्हारे जान पर भी भारी पड़ सकती है," आदित्य ने धीरे से कहा।

    "और अगर मैं नहीं लिखूँ, तो क्या फर्क पड़ेगा? कोई और मर जाएगा, किसी और की आवाज़ दबा दी जाएगी। अब बहुत हो गया, आदित्य।"

    सिया की आवाज़ सख्त थी, लेकिन काँपती नहीं थी।


    वसुंध का फार्महाउस

    वसुंध गार्डन के बीच बनी एक बड़ी बैठक में बैठा था। चारों ओर उसके वफादार लोग पुलिस से लेकर लोकल गुंडों तक सब खड़े हुए थे तभी वसुंध ने कहा "सिया को खत्म करना अब बस मजबूरी नहीं, ज़रूरत है।

    तभी दिया सक्सेना बोली, "अगर तुम उसे मार दोगे, तो वो शहीद बन जाएगी। और शहीद कभी मरते नहीं, आंदोलन बन जाते हैं।"

    वसुंध ने सिगार बुझाया। उसकी नजरें ठंडी थीं, लेकिन भीतर ज्वाला थी उसने कुछ सोचकर फिर कहा"तो फिर उसकी आवाज़ छीन लो।"





    शाम का समय

    सिया ऑफिस से निकल रही थी, तभी उसकी बाइक का टायर पंचर हो गया सड़क सुनसान थी। वो झुकी ही थी कि दो बाइक पर चार लोग पास आए।

    "बहुत बोलती हो बहनजी," एक ने कहा और दूसरा बोला, "आज सिखाते हैं चुप रहना।"

    लेकिन इससे पहले कि कोई कुछ करता — पीछे से पुलिस की गाड़ी की सायरन बजी और उसी के साथ आदित्य की एंट्री हुई"काफ़ी हिम्मत है तुम लोगों में," उसने गुस्से में कहा और पिस्तौल निकाल ली। बाइक सवार भाग खड़े हुए।

    सिया चुप रही उसने कुछ देर आदित्य को देखा , पहली बार उसकी आँखें भर आईं, लेकिन आँसू गिरने नहीं दिए।

    ---

    रात के समय सिया ने अपने घर की लाइट बंद की, और लैपटॉप खोला और एक वीडियो रिकॉर्ड किया:

    "अगर आप ये वीडियो देख रहे हैं, तो शायद मैं ज़िंदा न रहूँ। लेकिन सच ज़िंदा रहेगा। वसुंध नाम है उस आदमी का जो राजनीति को माफिया बन चुका है..."उसने डॉक्यूमेंट्स अटैच किए, नाम लिए, सबूत दिखाए। वीडियो को एन्क्रिप्ट किया और अपने ट्रस्टेड नेटवर्क में भेज दिया।

    फिर उसने फोन उठाया — नंबर मिलाया:

    "हेलो... मैं तैयार हूँ। जो करना है, आज रात ही करो।"

    फिर फोन उठाया। नंबर डायल किया।

    "हेलो... मैं तैयार हूँ। जो करना है, आज रात ही करो।"


    ---


    वसुंध की योजना

    वसुंध ने अपने वफादारों को निर्देश दे दिए थे। आज रात, सिया को हमेशा के लिए ख़ामोश कर देने का आदेश जारी हो चुका था। पर उसे नहीं पता था कि इस बार सिया अकेली नहीं थी।


    ---


    रात 12:30 बजे — सिया का घर

    चार नकाबपोश लोग सिया के घर की खिड़की से अंदर घुसे। सब तरफ अंधेरा था। सन्नाटा फैला हुआ था।तभी क्लिक और लाइट ऑन हुई।सामने खड़े थे: सिया, आदित्य, और क्राइम ब्रांच की टीम।

    “हाथ ऊपर करो!” आदित्य गरजा।

    छिपे हुए कैमरे चालू हो गए। हर एक चेहरे की रिकॉर्डिंग शुरू हो चुकी थी।

    वो पूरी योजना जो वसुंध ने बनाई थी, सिया ने पहले ही भांप ली थी —l और अब सबूत समेत सामने थी।

    सिया की आवाज़ कमरे में गूंजी:“अब शिकारी की कहानी खत्म नहीं, शुरू हुई है। क्योंकि अब शिकार जाग चुका है।”


    क्राइम ब्रांच की टीम ने चारों हमलावरों को हथकड़ियों में जकड़ लिया था।
    सिया अब भी वहीं खड़ी थी। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था, न ही कोई जीत का उत्साह। उसकी आँखें अब ठंडी नहीं थीं — उनमें अब वो आग थी जो चुप नहीं बैठती, जो लड़ती है, जलती है और सामने वाले को राख कर देती है।

    आदित्य ने कैमरे बंद करवा दिए और सिया को देखते हुए बोला–"जो रिकॉर्डिंग हुई है, वो सुबह की हेडलाइन बनेगी,"

    सिया ने बस एक धीमा सिर हिलाया। चेहरा थका हुआ था, मगर नजरें साफ थीं — ये लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, ये तो बस पहली चाल थी।

    आदित्य भी वाह से चला गया था लेकिन सिया की आंखो में आज नींद नहीं थी!""


    अगली सुबह — न्यूज चैनल्स पर ब्रेकिंग न्यूज:

    "लोकल राजनेता वसुंध के खिलाफ साजिश का पर्दाफाश। जर्नलिस्ट सिया त्रिपाठी बनीं जनआंदोलन की प्रतीक।"

    हर स्क्रीन पर सिर्फ़ एक चेहरा — सिया त्रिपाठी।

    सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड कर रहा था:
    #सत्य_की_आवाज़

    सिया जब ऑफिस पहुंची, तो पूरा स्टाफ खड़ा हो गया। तालियाँ बज रही थीं। कुछ लोगों की आँखों में आँसू थे गर्व के सिया ने उन सब को ध्यान से देखा और सिया सीधा आदित्य के पास पहुंची।

    "अब अगला कदम क्या है?" आदित्य ने उसे आता देखकर पूछा

    सिया की आवाज़ एकदम स्थिर थी — "अब वक्त है उस खेल में घुसने का जहाँ राजा खुद अपने प्यादों से डरता है।"


    ---

    वसुंध का बंगला — दोपहर

    वसुंध के चारों तरफ फोन बज रहे थे। कुछ झल्लाहट में, कुछ डरे हुए। उसने एक-एक कर सारे फोन काट दिए।

    दिया सक्सेना अंदर आई और बोली –"""सिया ने इस बार तुम्हारे प्लान के चार टुकड़े कर दिए हैं,"

    वसुंध ने धीरे से उसकी ओर देखा। उसकी मुस्कान में नफरत थी "अब उसे मारूंगा नहीं... उसे मिटा दूँगा। उसकी पहचान, उसकी इज्ज़त, उसका अस्तित्व — सब छीन लूंगा।"

    दिया थोड़ा झिझकी, "तुम्हारे पास है क्या?"

    वसुंध ने टेबल से एक फोल्डर उठाया।

    उसमें थे —सिया के भाई के मेडिकल रिकॉर्ड्स
    उसकी मां की सरकारी नौकरी की फाइल
    और एक वीडियो — एडिटेड, मगर खतरनाक झूठ

    "अब वो जितना भी सच बोलेगी... लोग उसे झूठा समझेंगे। और झूठ जब बार-बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है।"


    ---

    शाम — सिया का घर

    सिया कंप्यूटर पर बैठी थी। एक नया ईमेल स्क्रीन पर खुला था।

    प्रेषक: Whistle Blower
    विषय: "सावधान रहो — वो तुम्हारी ज़िंदगी नहीं, परछाईं भी छीनने वाला है"

    साथ में अटैचमेंट — एक वीडियो क्लिप, जिसमें ऐसा दिखाया गया कि सिया किसी नेता से पैसे ले रही है।झूठ मगर बहुत चालाकी से गढ़ा हुआ।

    सिया की आँखों में न आँसू थे, न हैरानी — बस एक स्थिर आग।उसने फोन उठाया। अपने डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट को कॉल किया।

    "अब सिर्फ़ रिपोर्टिंग नहीं होगी। अब सारा सच पब्लिक डोमेन में जाएगा। नाम, सबूत, आडियो, सीसीटीवी सब कुछ।" इतना बोल उसने फोन रख दिया और बालकनी में आ गई!""


    ---

  • 9. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 9

    Words: 1050

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगला दिन — प्रेस कॉन्फ्रेंस

    हॉल खचाखच भरा था। मीडिया, सोशल वर्कर्स, आम लोग। सबकी निगाहें मंच पर थीं — सिया के चेहरे पर।

    सिया ने माइक उठाया — उसकी आवाज़ साफ, ठोस और सीधी थी:"अगर आज मैं चुप रही, तो कल आपमें से कोई मुझसे भी बुरी हालत में होगा। ये सिर्फ़ मेरी नहीं, हम सबकी लड़ाई है।"

    स्क्रीन पर वीडियो चला —
    पहले एडिटेड वर्जनफिर उसके पीछे की असलियत
    ऑडियो टाइमस्टैम्प्स, फ्रेम कट्स और आखिर में वसुंध की असली रिकॉर्डिंग

    जिसमें वो अपने आदमी से कह रहा था:
    "उसकी छवि तोड़ो। झूठ का सच बना दो।"

    पूरा हॉल कुछ सेकंड चुप रहा फिर तालियों की आवाज़ उठी।ये तालियाँ सच्चाई के लिए थीं और सिया के लिए भी। सिया के चेहरे पर मुस्कान थी एक सुकून की!" "


    ---

    दिल्ली — पार्टी हेडक्वार्टर

    अब वसुंध अकेला था। सबने किनारा कर लिया था। कॉल्स बंद, सपोर्ट गायब लेकिन उसने हार नहीं मानी थी उसने अपना फोन उठाया और एक पुराना नंबर मिलाया।

    "नाम बताओ?" उधर से आवाज़ आई।

    वसुंध बोला — "नाम नहीं... काम बताता हूँ। लड़की का नाम सिया त्रिपाठी है अब उसकी ज़िंदगी तुम्हारी जिम्मेदारी है।" इतना बोल उसने फाइन अख दिया था!""


    ---

    रात का समय सिया का घर सिया बालकनी में खड़ी थी। नीचे अंधेरा पसरा था। हवा ठंडी थी, मगर एक सिहरन दे रही थी।

    तभी अंदर से एक धीमी आवाज़ आई जैसे कोई चीज़ हिली हो सिया को अजीब लगा तो मोबाइल उठाया उसमें " " नो नेटवर्क

    वो किचन से चाकू लेकर निकली। घर में अंधेरा था। एक परछाईं दीवार के पास हिलती हुई दिखाई दी सिया ने हिम्मत की और कहा –""कौन है?"

    लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं।वो धीरे-धीरे आगे बढ़ी... तभी पीछे से एक हाथ उसकी गर्दन की तरफ बढ़ा।सिया झुकी और पलटी और चाकू सीधा आगे किया कि वो हमलावर पीछे हट गया उसका चेहरा अजनबी था!" सिया ने जल्दी से पॉट उठाया और पास की खिड़की का कांच तोड़ दिया और तुरंत अलार्म ऑन कर दिया बाहर सायरन बज उठा।

    हमलावर भाग चुका था लेकिन सिया जान चुकी थी... अब खेल में मोहरे नहीं, शिकारी उतर आए हैं।


    सिया टेबल पर बैठी थी। चारों ओर दस्तावेज़ बिखरे थे —वीडियो क्लिप्स, सोशल मीडिया सपोर्ट, गवाहों के बयान।

    उसने अपनी डायरी खोली, और लिखा:

    "अब युद्ध व्यक्तिगत नहीं रहा।
    अब ये जनयुद्ध है।
    और मैं आख़िरी सांस तक लडूँगी।"
    -





    सिया का चेहरा अब पहले से ज़्यादा सख़्त था। उसकी आँखों के नीचे हल्के डार्क सर्कल थे — लेकिन उनमें नींद की नहीं, लड़ाई की छाया थी। सुबह के चार बजे थे। पूरे शहर में अंधेरा था, लेकिन उसके घर की लाइटें अब भी जल रही थीं।

    टेबल पर बिखरे दस्तावेज़ों को उसने एक बार फिर देखा — हर फाइल, हर रिकॉर्डिंग, हर ट्रांसक्रिप्ट। उसने हर चीज़ को नाम दिया था —
    A-1: वसुंध के फाइनेंशियल लिंक,
    B-2: उसके ड्रग नेटवर्क के लोकेशन,
    C-4: संदिग्ध लड़कियों की लिस्ट।

    हाँ, ये वही फाइल थी जिसे उसने उस रात हमले के बाद घर आकर दोबारा खंगाला था। "अब मैं हर चीज़ को सुबूत में बदलूंगी," उसने खुद से कहा।

    तभी दरवाज़ा खटकने की आवाज आई तो वो चौंकी और जल्दी से कैमरा ऑन किया, और चुपचाप खिड़की से बाहर झाँक कर देखा तो — आदित्य था।

    "इतनी सुबह?" सिया ने दरवाज़ा खोलते ही पूछा।

    "नींद उड़ गई," आदित्य ने मुस्कराने की कोशिश की, लेकिन चेहरा उतरा हुआ था। "तुझे कुछ दिखाना है।" इतना बोल वो अंदर आ गया!""


    ---

    सीबीआई डेटा लैब — 6:15 AM

    सिया ने सुबह सुबह आदित्य की लाई जगह को देखा और कहा–" इतनी सुबह हम यहां? आदित्य ने कुछ नहीं कहा और उसे अंदर ले आया!" "
    एक बड़ी स्क्रीन पर GPS Tracking सिस्टम खुला था।

    "हमने वसुंध के एक क्लोज़ आदमी — मनोहर दास — की कॉल डीटेल्स और लोकेशन को मिक्स करके एक पॅटर्न निकाला है," आदित्य ने बताया।

    सिया ने गौर से स्क्रीन पर देखा — एक पुरानी बिल्डिंग, शहर से बाहर, जहां रोज़ रात 2:30 बजे एक कार पहुंचती है और सुबह 5 बजे निकलती है।

    "ड्रग शिपमेंट?" सिया ने पूछा।

    "शायद। या कुछ और... ज्यादा गंदा।" आदित्य ने एक और फोल्डर खोला — CCTV से निकाली गई कुछ ब्लर तस्वीरें।

    कुछ लड़कियाँ, आँखों पर पट्टी, किसी रूम में ले जाई जा रही थीं। सिया का गला सूख गया। "ये...?"

    "इलीगल ह्यूमन ट्रैफिकिंग की संभावना है। सिर्फ़ लड़कियाँ ही नहीं — कुछ ट्रांस और समलैंगिक कम्युनिटी के लोग भी टारगेट किए जा रहे हैं। बहुत ही सॉफ्ट तरीक़े से जैसे किसी 'सेवा केंद्र' के नाम पर।"

    सिया की उंगलियाँ मुट्ठी में बदल गईं। "अब ये सिर्फ़ एक भ्रष्ट नेता की कहानी नहीं रही"ये उन सबकी लड़ाई है जिनकी आवाज़ कभी गिनती में नहीं आई।"



    उसी शाम सिया का भेष बदल कर पहला मिशन था!" "सिया ने सिंपल सलवार-कुर्ता पहना, चेहरा हल्के स्कार्फ से ढँका, और आदित्य से नकली NGO का कार्ड लिया — "हेल्प हाउस वेलफेयर ट्रस्ट"


    वो उसी पुरानी बिल्डिंग के पास गई, जहाँ रात को संदिग्ध गतिविधियाँ होती थीं। एक सिक्योरिटी गार्ड बाहर खड़ा था।

    "भाई साहब, मैं हेल्प हाउस से हूँ। कुछ महिलाओं की सुरक्षा की रिपोर्ट मिली थी सोचा चेक कर लूँ।"

    गार्ड ने शक से देखा, लेकिन जब उसने कार्ड दिखाया और कुछ सरकारी शब्दों का इस्तेमाल किया, तो थोड़ी देर बाद गेट खुला।

    अंदर का दृश्य सन्न कर देने वाला था। सिया एक एक चीज बहुत ध्यान से देख रही थी"

    दीवारों पर पोस्टर लगे थे — "New Life Center", "Mental Rejuvenation Program", "Spiritual Therapy for LGBTQ+"

    लेकिन कमरे में सिहरन थी बंद दरवाज़े, सीसीटीवी, दबा-दबा सा किसी का रोना।

    तभी एक लड़की सिया की ओर भागी हुई आई उसकी आँखें डरी हुई थीं।

    "मैडम, आप NGO से हैं न? हमें यहाँ से निकाल दो... ये लोग हमें ठीक करने के नाम पर दवाइयाँ देते हैं... और..." उसकी आवाज़ रुक गई।

    एक पुरुष नर्स तेजी से पास आया, लड़की को खींचते हुए ले गया — "माफ कीजिएगा, ये 'ट्रीटमेंट' में है।" उसने सिया से कहा!" "

    सिया चुप रही, लेकिन उसकी आँखों में अब लावा उबलने लगा था।


    अगली सुबह —

    सिया काम कर रही थी जब स्क्रीन ब्लिंक करने लगी। कुछ फाइलें अपने आप खुलीं, कुछ मेसेजेस अपने आप डिलीट हुए, और एक इनबॉक्स में नोटिफिकेशन आया:

    "तुम हमारे पास आई थी अब हम तुम्हारे भीतर घुस चुके हैं। वक़्त रहते रुक जाओ, वरना अगली बार दस्तावेज़ नहीं, कोई ज़िंदा इंसान ग़ायब होगा।"






    To Be Continued...

  • 10. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 10

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    कमरे में आधी जलती टेबल लैंप की मद्धम रोशनी थी। सिया डायरी के पन्ने बंद कर चुकी थी, लेकिन उसकी आँखें अब भी जाग रही थीं। बाहर बारिश की कुछ बूंदें खिड़की के शीशे से टकरा रही थीं — जैसे कोई धीरे-धीरे दस्तक दे रहा हो। उसने एक डायरी का पन्ना खोला और लिखा!" "


    "अब ये सिर्फ़ स्टोरी नहीं रही — अब ये धंधे की तह तक जाने की कसम है।
    जो भी मोहरा बना था, अब रानी की चाल चलेगा — और इस बार, मात होगी उस राजा की।"

    उसने एक गहरी सांस ली और बालकनी में कदम रखा हवा में नमी थी, और दिल में बेचैनी। पिछली रात घर में घुसे हमलावर की परछाईं अब भी उसकी आँखों में बसी थी।

    वो जानती थी ये अब निजी लड़ाई बन चुकी थी।

    तभी फोन की स्क्रीन एक हल्के वाइब्रेशन के साथ चमकी।"नमन कॉलिंग..."

    सिया ने तुरंत कॉल रिसीव किया।

    "मैंने उसे देखा" नमन की आवाज़ धीमी लेकिन गंभीर थी।

    "किसे?" सिया की आवाज़ में सन्नाटा था।

    "जिसने तुम्हारे घर में घुसने की कोशिश की... उसका चेहरा एक पुराने CCTV में कैद हो गया है। और उससे भी बड़ी बात — उसका लिंक सीधे वसुंध की फर्म 'PRISMA TECH' से जुड़ता है।"

    सिया का दिल एक पल को रुक गया।

    "क्या तुम मिल सकते हो? अभी?" उसने पूछा।

    "30 मिनट में तुम्हारे पास।"इतना बोल सीधा कॉल कट गया।


    ---

    30 मिनट बाद — सिया का ड्रॉइंग रूम
    नमन, एक दुबला-पतला लड़का, आँखों पर फ्रेम वाला चश्मा, हाथ में लैपटॉप, और पीठ पर पुराना सा बैग। वो अंदर आया तो सिया ने दरवाज़ा तुरंत लॉक कर दिया।

    "तुम ठीक हो?" नमन ने उसकी आंखों की थकान को देख लिया।

    "शायद नहीं," सिया ने सिर झुकाकर कहा, "लेकिन डर के पास अब मेरे लिए जगह नहीं बची।"

    नमन ने लैपटॉप खोला। स्क्रीन पर एक फुटेज चला — एक अनजान आदमी, सिया के अपार्टमेंट की पार्किंग में घूमता हुआ, फिर छत की ओर चढ़ता हुआ दिखाई दे रहा था सिया ये बड़े ध्यान से देख रही थी!""

    "उसका नाम 'मुकुल थरेजा' है। असली नाम शायद नहीं... लेकिन इस ID से पिछले साल PRISMA TECH के किसी ‘सिक्योरिटी कंसल्टिंग’ प्रोजेक्ट में पेमेंट हुआ था।" नमन ने उसे जानकारी दी!""

    सिया ने स्क्रीन की ओर झुककर देखा। "PRISMA TECH..." वो बुदबुदाई, "इसका कनेक्शन ड्रग्स रैकेट से भी था न?"

    नमन ने सिर हिलाया, "और सिर्फ़ ड्रग्स ही नहीं... ये फर्म 'डेटा माइनिंग', 'वुमन ट्रैफिकिंग', और... समलैंगिक ब्लैकमेलिंग रैकेट्स में भी इन्वॉल्व है।"

    सिया का चेहरा सफेद पड़ गया।

    "क्या... क्या तुम्हारे पास सबूत हैं?"

    नमन ने एक USB ड्राइव टेबल पर रखी।

    "इसमें 8 महीने की फाइनेंशियल ट्रेल्स, 37 ईमेल्स, 12 ऑडियो रिकॉर्डिंग्स और तीन whistleblower टेस्टिमोनियल्स हैं। लेकिन ये बहुत भारी चीज़ है, सिया। इसे जारी करने का मतलब है — अपने हर रिश्ते, हर सुरक्षा को आग में झोंक देना।"

    सिया ने ड्राइव उठाई उसकी उंगलियां कांप रही थीं, लेकिन आँखों में दृढ़ता थी।

    "अगर मैं अब रुकी, "तो शायद ज़िंदा भी रह गई तो चैन से नहीं जी पाऊँगी।" सिया ने उस पेन ड्राइव को देखते हुए कहा!""


    ---

    सिया के कमरे की दीवार अब केस फाइलों, प्रिंटेड ईमेल्स, तस्वीरों, टारगेट मैप्स और वायर कनेक्शन चार्ट से भर चुकी थी। ये एक रिपोर्टर का कमरा नहीं था ये एक जंग का बंकर बन चुका था।

    हर तस्वीर के नीचे सिया ने खुद हाथ से कैप्शन लिखा था:

    वसुंध — मास्टरमाइंड

    दिया सक्सेना — PR Front

    मुकुल थरेजा — ऑपरेटिव

    PRISMA TECH — ग्लोबल कवर

    Target Pattern — सोशल जस्टिस वॉइस


    नमन कॉफी का मग लिए आया और बोला "एक और बात..." उसने चुपचाप कहा, "PRISMA का लिंक एक और पॉलिटिशियन से जुड़ता है — नाम है धवल पारेख। वो दिल्ली में अगले चुनाव में खड़ा होने वाला है।"

    सिया की भौंहें सिकुड़ गईं, "धवल पारेख? ये आदमी कई महिलाओं की सुरक्षा योजनाओं का चेहरा बना हुआ है। अगर ये सच्चाई निकली, तो..."

    "...तो सिस्टम खुद ही हिल जाएगा," नमन ने बात पूरी की।



    सिया ने एक वाइटबोर्ड पर चार फेज की योजना बनाई:

    1. सत्य की तैयारी — सारे डिजिटल सबूतों की फॉरेंसिक पुष्टि


    2. आवाज़ की तैयारी — असली गवाहों से इंटरव्यू और रिकॉर्डिंग


    3. सुरक्षा की तैयारी — खुद को और नमन को लॉ प्रोसेक्शन की प्रोटेक्शन लिस्ट में डालना


    4. बम फोड़ना — लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस और डॉक्यूमेंटरी पब्लिकेशन



    नमन ने उसके हर प्लान के सामने 'डन' का टिक मार्क लगाया।लेकिन अंत में एक खाली कॉलम रह गया — “पर्सनल लॉस”

    उस कॉलम में सिया ने सिर्फ़ एक लाइन लिखी:
    “अगर सब खोया... तो क्या खुद को बचा पाऊँगी?”




    रात ढल चुकी थी। दिल्ली की सड़कों पर हलकी नमी और कोहरा था, लेकिन किसी के इरादों में कोई धुंध नहीं थी। दिया सक्सेना अपनी गाड़ी के अंदर बैठी थी, सामने सीट पर एक आदमी — वही मुकुल थरेजा। उसकी आँखों में घबराहट थी, जैसे वो किसी अनकहे डर से काँप रहा हो।

    "सिया त्रिपाठी अभी तक ज़िंदा क्यों है?" दिया की आवाज़ में वो ठंडापन था जो बर्फ़ से भी ज़्यादा काट रहा था!""

    "मैंने कोशिश की थी, लेकिन... वो लड़की अकेली नहीं है, उसके पास एक लड़का है... हेकिंग में बहुत तेज़ है," मुकुल की आवाज़ कांप रही थी।

    दिया ने धीमे से होंठ भींचे। "नाम?"

    "नमन... सिर्फ़ यही पता है।" धवल ने जवाब दिया!"

    दिया ने फोन उठाया, एक कोड डायल किया, और बोली, "उस लड़के का पता करो। और सुनो — ये काम इस बार अधूरा नहीं होना चाहिए।"


    ---

    अगली सुबह — सिया का घर

    सिया नमन के साथ बैठी थी, दोनों पूरी रात जागकर एक प्लान तैयार कर चुके थे। एक डॉक्यूमेंटरी जो सारे सबूतों को एक कहानी में बुन सके वो बनने लगी थी।

    "हमें पहले PRISMA TECH के फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स को ट्रैक करना होगा," नमन ने कहा, "ये ट्रांजैक्शन्स लंदन, दुबई और मॉरिशस के अकाउंट्स में जा रहे हैं।""

    सिया ने टेबल पर हाथ रखा, उसकी आँखों में थकावट थी लेकिन दृढ़ता भी। "हम एक टीम बना सकते हैं। मेरी पुरानी जर्नलिस्ट फ्रेंड अदिति उसे इन्वेस्टिगेटिव वॉरफेयर में अनुभव है। मैं उसे कॉल करती हूँ।"
    इतना बोल दिया ने कुछ टाइम बाद अदिति को कॉल किया!"


    "

  • 11. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 11

    Words: 1024

    Estimated Reading Time: 7 min

    अदिति के चेहरे पर गंभीरता थी। "मैंने सुना, तुम वसुंध के नेटवर्क पर हाथ डाल चुकी हो। क्या तुम जानती हो इसके क्या मायने हैं, सिया?"

    "हाँ, अदिति। लेकिन अब पीछे हटना मुमकिन नहीं।"सिया ने उसे देखते हुए कहा!""

    अदिति ने सिर हिलाया, "ठीक है, मैं अपने लंदन के कनेक्शन से बात करूंगी। एक दोस्त है — मेहरान अली। उसने यूरोपियन फाइनेंशियल क्राइम्स पर काम किया है। अगर उसने हामी भरी, तो हम बैंक रिकॉर्ड्स तक पहुंच सकते हैं।"

    सिया की आँखों में हल्की उम्मीद चमकी।


    ---

    शाम का समय हो चुका था दिया अपने पर्सनल अंडरग्राउंड ऑफिस में थी। दीवारों पर डिजिटल स्क्रीन थीं, और एक मैप जिसमें दिल्ली के कुछ हिस्सों पर लाल निशान लगे थे। मुकुल उसकी तरफ बढ़ा।

    "हमने लड़के की लोकेशन ट्रैक की है — IP एड्रेस तिलक नगर का है।"

    दिया मुस्कराई — एक धीमी लेकिन भयावह मुस्कान। "अब वक्त है शिकार को जाल में फंसाने का। एक मैसेज भेजो उस लड़की को — उसकी माँ के नाम पर।


    सिया और नमन डॉक्यूमेंटरी एडिट कर ही रहे थे कि तभी सिया के फोन पर एक मैसेज आया: उसने तुरंत अपना फोन चेक किया तो उसमें मैसेज था
    "तुम्हारी माँ अस्पताल में है — सिविक हॉस्पिटल, वार्ड 4।"

    सिया ने बिना एक शब्द कहे दौड़ लगाई। नमन भी उसके पीछे भागा।अस्पताल पहुंचते ही सिया ने पूछा — "माँ... माँ कहाँ हैं?"

    एक नर्स ने कहा, "यहाँ कोई नहीं आई आज इस नाम से।"

    नमन ने अचानक कुछ महसूस किया। "ये फेक था... तुम्हें यहां लाने के लिए। जल्दी घर चलो सिया ये हमे सिर्फ पागल बनाया है!""


    ---

    सिया का घर वो दोनों जब पहुंचे तो दरवाज़ा खुला पड़ा था। चीज़ें बिखरी थीं, फाइल्स नदारद थीं।

    नमन ने कंप्यूटर ऑन किया सारा डेटा गायब था। सिर्फ़ एक स्क्रीन बची थी जिस पर लिखा था:

    "Truth dies when you delay."

    सिया घुटनों के बल बैठ गई।"वो सब चला गया... सारी मेहनत...सब कुछ चल गया नमन इतना बोल उसकी आंखो में उदासी आ गई थी!""

    नमन ने उसका हाथ थामा और हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला"नहीं, सब नहीं। मेरे पास बैकअप है ऑफलाइन, हार्ड ड्राइव में। लेकिन अब हमें एक और खतरा है... दिया को हमारी पहचान मिल चुकी है।"







    अगले दिन नमन गायब था। सिया का फोन बंद, घर सूना, और टेबल पर एक चिट्ठी — "या तो चुप रहो, या उसे हमेशा के लिए खो दो। - V"

    सिया की आँखों से आंसू नहीं गिरे। वो एकदम शांत खड़ी रही, जैसे किसी तूफान के बीच एक चट्टान।

    उसने फोन उठाया — अदिति को कॉल किया।

    "अब ये सिर्फ़ एक स्टोरी नहीं रही, अदिति। ये मेरी लड़ाई बन चुकी है। मुझे मेरी आवाज़ वापस चाहिए। और नमन भी। इस बार — हर कीमत पर।"

    रात के साढ़े तीन बज चुके थे। बाहर हल्की बारिश हो रही थी और सड़कें लगभग सुनसान थीं। सिया त्रिपाठी, अपनी पुरानी जीन्स और ओवरसाइज़ हुडी पहने, एक पुरानी सी स्कूटी पर निकली थी — किसी को बिना बताए, नमन को ढूंढने। उसका फोन अब भी सिग्नल नहीं पकड़ रहा था और आख़िरी लोकेशन जो उसे मिली थी, वो शहर के उस इलाके की थी जहाँ जाने से खुद पुलिस भी कतराती थी " पुराना रेलवे यार्ड उसके भीतर डर था, लेकिन उससे बड़ा था एक अधूरापन एक जवाब, जो नमन के बिना नहीं मिल सकता था।




    पुराना रेलवे यार्ड — साढ़े चार बजे सुबह

    रेलवे यार्ड में एक वीरानी सी थी। टूटी हुई पटरियाँ, जंग लगे सिग्नल पोल और कंटीली झाड़ियों के बीच से सिया धीरे-धीरे स्कूटी को धकेलती अंदर आई। चारों तरफ़ सन्नाटा ऐसा था मानो समय खुद यहाँ रुक गया हो एक छाया दूर से हिली सिया ठिठकी। उसने चुपचाप स्कूटी रोक दी और झाड़ी के पीछे छुप गई। उस छाया ने कुछ पल बाद एक मोबाइल की लाइट जलाई वो नमन था।

    लेकिन उसका चेहरा तनाव से भरा हुआ था, कपड़े गीले थे और उसकी आँखों में जैसे एक बेचैनी थी।

    "नमन!" सिया ने धीमे लेकिन तेज़ स्वर में कहा।

    नमन चौंका, जैसे किसी ख्वाब से बाहर आया हो। उसने सिया को देखा, और फिर निगाहें फेर लीं।

    "तुम यहाँ क्यों आई हो, सिया?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

    "क्योंकि मुझे जवाब चाहिए। तुमने जो कहा, जो बताया, सब अधूरा था। और तुमने भागकर मुझे भी अकेला छोड़ दिया।"

    नमन ने गहरी सांस ली, फिर अपनी जैकेट की जेब से एक कागज़ निकाला।

    "ये सबूत हैं — वसुंध के ड्रग नेटवर्क के, लड़कियों की ट्रैफिकिंग के, और... एक लिस्ट है उन लोगों की जो इस सिस्टम में शामिल हैं। मगर... मैं अब भाग चुका हूँ। मेरे खिलाफ़ वारंट है, मेरे अपने लोग मुझसे मुंह फेर चुके हैं।"

    सिया ने कागज़ लिया। उसकी आंखें एक पल को भर आईं दर्द से नहीं, लड़ाई की कीमत से।

    "तो चलो," उसने कहा, "मुझे बताओ, ये खेल कब और कैसे शुरू हुआ। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

    नमन हँसा नहीं, पर उसके चेहरे पर एक राहत सी आई। वो जानता था — ये जर्नलिस्ट सिर्फ़ कहानी ढूंढने नहीं आई थी, ये अब उसकी आख़िरी उम्मीद थी।



    नमन ने उसका हाथ पकड़ और कहा–" चलो" इतना बोल दोनो वाह से निकल गए
    सुभाष नगर — गुप्त अड्डा

    सिया और नमन एक पुराने गोदाम में पहुँचे जिसे नमन ने 'सेफ हाउस' बनाया था। अंदर कंप्यूटर, फाइलें, हार्ड ड्राइव्स और पुराने अख़बारों की कटिंग्स का अंबार था।

    "ये सब क्या है?" सिया ने पूछा।

    "ये मेरी रिसर्च है... पिछले चार सालों की। वसुंध की पोलिटिकल चढ़ाई के हर स्टेप के पीछे एक क्राइम है — एक मर्डर, एक लड़की की तस्करी, या फिर एक मीडिया का चुप करवाया गया गला।"

    सिया ने एक-एक फाइल उठाकर पढ़नी शुरू की। उसमें एक लड़की की फोटोग्राफ थी — पायल चौधरी। नीचे लिखा था: गायब — केस बंद कर दिया गया, सबूत नहीं मिले।

    "ये सब... कोर्ट में नहीं चला क्या?" सिया ने पूछा।

    "कुछ चला, पर ज़्यादातर केस 'प्रेशर' में दबा दिए गए। जो जज बोला, उसका ट्रांसफर हो गया, जो पुलिस वाला निकला, वो लापता हो गया।"

    सिया चुप हो गई। लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं, एक औरत की आग थी।

    "हम ये सब लाइव करेंगे। ऑन रिकॉर्ड। हम ये फाइल्स, ये वीडियो, ये इंटरव्यू सब जनता के सामने लाएंगे। और इस बार, कोई भी चैनल इसे काट नहीं पाएगा।"

  • 12. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 12

    Words: 1079

    Estimated Reading Time: 7 min

    "कुछ चला, पर ज़्यादातर केस 'प्रेशर' में दबा दिए गए। जो जज बोला, उसका ट्रांसफर हो गया, जो पुलिस वाला निकला, वो लापता हो गया।"

    सिया चुप हो गई। लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं, एक औरत की आग थी।

    "हम ये सब लाइव करेंगे। ऑन रिकॉर्ड। हम ये फाइल्स, ये वीडियो, ये इंटरव्यू — सब जनता के सामने लाएंगे। और इस बार, कोई भी चैनल इसे काट नहीं पाएगा।"

    नमन ने उसकी ओर देखा, पहली बार आँखों में उम्मीद के साथ।"और अगर हम मारे गए तो?" उसने पूछा।

    सिया ने मुस्कराकर जवाब दिया, "तो मरेंगे, पर जिए बिना नहीं।"


    ---



    रात गहराती जा रही थी, लेकिन सिया त्रिपाठी की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। उसके सामने दीवार पर एक बड़ा वाइटबोर्ड था, जिस पर तमाम कागज़, तस्वीरें और लाल धागों से जुड़े कनेक्शंस दिख रहे थे — वसुंध, दिया सक्सेना, पुलिस इंस्पेक्टर खन्ना, और अब एक नया नाम — 'जय मल्होत्रा'।

    सिया ने नमन की तरफ देखा, जो कॉफी मग लिए उसकी ओर आ रहा था।

    "ये लो," नमन ने कहा, "तुम्हें इसकी ज़रूरत है।"

    सिया ने मग लिया और एक छोटा घूंट लिया। उसकी आंखें वहीं दीवार पर टिकी थीं।

    "जय मल्होत्रा... ये नाम पहली बार नहीं सुना है मैंने। लेकिन अब ये कैसे जुड़ता है वसुंध से?" वो खुद से बुदबुदाई।

    नमन ने पास रखे लैपटॉप को ऑन किया और कुछ फाइल्स खोलीं। "जय मल्होत्रा, एक रिटायर्ड मिलिट्री ऑफिसर, लेकिन पिछले पाँच सालों से उसका नाम कुछ बेहद संदिग्ध ट्रांज़ैक्शंस में आ रहा है। और सबसे बड़ा लिंक — उसके फाउंडेशन को सबसे बड़ी डोनेशन मिली थी 'वसुंध इंडस्ट्रीज' से।"

    सिया ने एकदम से चेहरा उसकी ओर घुमाया। "मतलब ये लोग सिर्फ़ राजनीती और मीडिया नहीं, आर्मी से जुड़े सिस्टम्स तक को इस्तेमाल कर रहे हैं।"

    नमन ने धीरे से सिर हिलाया। "और ये सिर्फ शुरुआत है। मुझे शक है कि वसुंध के नेटवर्क में कुछ ऐसे चेहरे हैं जो अभी तक हमारी आंखों से छुपे हुए हैं — 'परछाइयों के चेहरे'।"

    सिया ने वाइटबोर्ड से एक तस्वीर निकाली — एक कमजोर सी दिखती लड़की की। उसकी आंखों में डर था। "ये लड़की दो महीने पहले लापता हुई थी। अब जय मल्होत्रा की बिल्डिंग में एक गुप्त तलघर के फुटेज में दिखी है।"

    नमन ने फोटो को गौर से देखा। "सिया, तुम कहना क्या चाहती हो?"

    "मैं कहना चाहती हूं कि ये सिर्फ़ भ्रष्टाचार नहीं, ये मानव तस्करी है। वसुंध और उसके साथी — ड्रग्स, लड़कियां, अवैध हथियार — सब कुछ इसमें शामिल है। और अब हमें सबूतों के साथ सबको सामने लाना होगा।"


    ---

    अगली सुबह — गुप्त मीटिंग

    सिया, नमन, आदित्य और कुछ विश्वसनीय लोग एक पुराने गोदाम में मिले। वहाँ एक पुराना नक्शा फैलाया गया था जय मल्होत्रा की प्रॉपर्टी का, जिसमें एक हिस्सा लाल घेरे में किया गया था।

    "ये वो हिस्सा है जहाँ वो 'फाउंडेशन' चलाता है," आदित्य बोला। "और वहीँ, नीचे की मंजिल में हमें वो सुरंग मिली है।"

    सिया ने आंखें बंद कर सोचते हुए कहा, "हमें वहां जाना होगा। लेकिन नॉर्मल तरीके से नहीं।"

    नमन ने हा में सिर हिलाया। "मैं अपनी पुरानी यूनिट से कुछ भरोसेमंद लोगों को ला सकता हूँ। वो साइलेंट ऑपरेशन कर सकते हैं।"

    "हमारे पास सिर्फ़ 72 घंटे हैं," सिया ने कहा, "उसके बाद वो सारे सबूत या तो गायब हो जाएंगे या फिर हमारी ज़िंदगी।"


    ---

    रात का समय ऑपरेशन 'परछाईं' शुरू चार गाड़ियों का काफिला बिना किसी रोशनी के सुनसान इलाके में दाखिल हुआ। सभी ने ब्लैक कमांड सूट पहना था, और साइलेंसर लगे हथियार लिए थे।

    सिया और नमन सबसे आगे थे। उनके पीछे आदित्य कैमरा और ऑडियो रिकॉर्डिंग गियर संभाले हुए था।

    एक छोटी सी दीवार के पास पहुंचते ही नमन ने इशारा किया — "दीवार के पीछे ट्रिप वायर है। अगर छुआ तो अलार्म एक्टिवेट हो जाएगा।"

    सिया ने एक पतली वायर से ट्रिप वायर को काटा और धीरे-धीरे दीवार पार की। सब अंदर दाखिल हुए।वो जगह किसी नरक से कम नहीं थी। नीचे के तलघर में लड़कियाँ बंद थीं, कई नशे में, कई बेहोश, कुछ डरी-सहमी।

    एक कमरा ऐसा था जहाँ दर्जनों मोबाइल कैमरे और लाइव स्ट्रीमिंग सिस्टम्स लगे हुए थे।

    सिया के होंठ कांप गए। "ये सिर्फ़ भारत नहीं, बाहर की मंडियों तक जा रहा है।"

    वो सबूत इकट्ठा करने लगे — वीडियो, चेहरों की तस्वीरें, लॉग बुक्स, और एक पासवर्ड प्रोटेक्टेड हार्ड ड्राइव।

    लेकिन तभी...एक छुपा हुआ गार्ड ये सब देखकर अलार्म ट्रिगर कर देता है।

    सायरन बज उठता है।

    "भागो!" नमन चिल्लाया। और तभी गोलियाँ चलने लगीं।


    और तभी सिया की बाजू पर एक गोली छूकर निकल गई। लेकिन वो रुकी नहीं। उसने कैमरे को आदित्य को थमाया, "तुम निकलो! अगर मैं ना आ सकी, ये रिकॉर्डिंग सबके सामने लाना।"

    नमन ने सिया को पीछे खींचा। "हम सब निकलेंगे, साथ में।"

    आख़िरकार, टीम किसी तरह पीछे के रास्ते बाहर निकल गई। पुलिस तक वीडियो पहुंचा। प्रेस में हलचल मच गई। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इसे कवर किया।




    दो दिन बाद, वसुंध को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान थी।

    "ये तो मेरी पहली गिरफ़्तारी है," उसने कहा, "लेकिन तुम जानती नहीं, असली खेल अब शुरू हुआ है।"

    सिया दूर से उसे देख रही थी। उसके चेहरे पर संतोष नहीं था — सिर्फ़ तैयारी थी।

    वो जानती थी — जो परछाइयाँ बच गई हैं, वो अब और गहरी होंगी। और अगली बार, शायद सिर्फ़ सच्चाई नहीं, बलिदान की ज़रूरत हो।


    रात गहराती जा रही थी। शहर के एक कोने में—जहाँ कभी चहल-पहल होती थी, अब सिर्फ़ सन्नाटा था। सिया त्रिपाठी अपनी खिड़की के पास बैठी थी, लैपटॉप स्क्रीन की हल्की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। वो बार-बार वीडियो रिकॉर्डिंग को रिवाइंड कर रही थी, हर फ्रेम, हर ध्वनि को बारीकी से जांच रही थी। उसके पास अब नाम था, समय था, और कुछ चेहरे भी — लेकिन जवाब नहीं थे।

    नमन कुछ दूरी पर बैठा नोट्स बना रहा था। उसके सामने खुली डायरी में जगह-जगह लाल स्याही से गोले बनाए गए थे।

    "ये तीसरी बार है जब यही नंबर ट्रैकिंग में आया," उसने कहा।

    सिया ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया, "पर ये नंबर किसी के नाम पर रजिस्टर्ड नहीं है। वर्चुअल ID है।"

    "और IP एक मास्क की गई लोकेशन दिखा रहा है—दिल्ली से बाहर, पर असल में वही दिल्ली के अंदर है," नमन ने सिर हिलाया।

    दोनों की आँखों में नींद नहीं थी। शायद डर था, शायद आदत बन गई थी।


    ---

    अगली सुबह सिया एक लोकल NGO के ऑफिस पहुंची। वाह उसका एक पुराना दोस्त था—राहुल, जो कभी उसके कॉलेज का साथी हुआ करता था और अब समाजिक मामलों में ऐक्टिविस्ट बन चुका था।

  • 13. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 13

    Words: 1203

    Estimated Reading Time: 8 min

    अगली सुबह — चुप्पियों का शहर

    सिया एक लोकल NGO के ऑफिस पहुंची। वो एक पुराना दोस्त था—राहुल, जो कभी उसके कॉलेज का साथी हुआ करता था और अब समाजिक मामलों में ऐक्टिविस्ट बन चुका था।

    "तू ठीक है?" राहुल ने पूछा, उसके चेहरे पर चिंता थी।

    "मैं ठीक हूँ, पर सवाल ठीक नहीं हैं," सिया ने कहा। उसने फोल्डर निकाला और उसे थमाया।

    "ये सबूत हैं—लेकिन एक सिरे से बंधे नहीं हैं। मुझे लोगों की जरूरत है, ऐसे लोग जो सच्चाई से डरते नहीं।"

    राहुल ने फोल्डर देखा और फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, "मैं हूं तेरे साथ। और सिर्फ़ मैं नहीं, बहुत लोग हैं। पर हमें सब कुछ डॉक्युमेंटेड, लीगली और डिजिटल सबूतों के साथ चाहिए।"

    सिया ने सिर हिलाया। उसके अंदर एक आग थी, और अब उसे हवा मिल रही थी।


    ---

    दूसरी ओर वसुंध की दुनिया वसुंध के बंगले में एक सीक्रेट मीटिंग चल रही थी। चार लोग टेबल के चारों ओर बैठे थे। टेबल के बीच में रखे प्रोजेक्टर पर सिया त्रिपाठी की तस्वीर थी।

    "ये लड़की हमारी नींव हिला रही है," एक आदमी ने कहा।

    वसुंध मुस्कराया, "नींव नहीं हिल रही, दीवार पर दरार आई है। और दीवारों को गिराने के लिए एक धक्का काफी होता है।"

    दिया सक्सेना पास आई, उसके हाथ में कुछ फोटोज़ थे।"ये उस NGO के ऑफिस से निकली हैं, जहां सिया गई थी," उसने कहा।

    वसुंध ने फोटोज़ देखे और बोला, "अब वो अकेली नहीं। हमें उसकी पूरी दुनिया को तोड़ना होगा। एक-एक करके।"


    ---

    रात का समय सिया का घर नमन ने सिया के लिए चाय बनाई। वो समझता था कि कुछ रिश्ते खामोशियों में पनपते हैं, और कुछ सिर्फ़ साथ बैठकर साँस लेने में।

    "तू डरती नहीं?" उसने पूछा।

    सिया ने हल्की मुस्कान दी, "डरती हूँ, पर रुकती नहीं। हर बार जब किसी लड़की का नाम अखबार से मिटा दिया जाता है, जब कोई बच्चा भूखा सोता है, जब कोई माँ अपने बेटे की लाश पहचानती है — मैं और भी कम डरती हूँ।"

    नमन ने चाय का प्याला उसकी तरफ बढ़ाया, "तो चल, सिप कर। क्रांति चाय से शुरू होती है।"


    ---

    सुबह सिया और नमन ने एक नई योजना बनाई थी। अब वो वसुंध के नेटवर्क के भीतर घुसने वाले थे। उसका एक पुराना आदमी, रमेश — जो ड्रग ट्रैफिकिंग के मामलों में छोटा मगर महत्वपूर्ण नाम था, पिछले कुछ हफ्तों से गायब था। लेकिन उनके पास एक क्लू था—एक पुराने सीसीटीवी फुटेज से निकली एक गाड़ी की नंबर प्लेट।

    वो गाड़ी एक गुप्त गेस्ट हाउस तक जाती थी — एक ऐसी जगह जिसे सरकारी फाइलों में 'अबandoned Property' लिखा गया था।

    सिया ने खुद वहाँ जाने का फैसला किया।

    गेस्ट हाउस —

    दरवाजे जंग लगे थे, लेकिन एक खिड़की से वो अंदर घुसी। नमन बाहर खड़ा था, उसे अलर्ट रहना था। अंदर सिया ने मोबाइल फ्लैशलाइट ऑन की और धीरे-धीरे आगे बढ़ी।

    कमरे में एक पुराना बेड, एक अलमारी, और दीवार पर लगे कुछ कैलेंडर थे। लेकिन असली चीज़ अलमारी के पीछे छुपी थी—एक फोल्डर, प्लास्टिक में लिपटा हुआ।उसमें थी लड़कियों की तस्वीरें, नाम, तारीखें और ट्रांसफर लोकेशन। ये सब वसुंध के ट्रैफिकिंग रैकेट का हिस्सा था।

    "ये मिल गया," सिया ने बाहर निकलते ही कहा।

    नमन ने उसे गाड़ी में बैठाया और फौरन वहाँ से निकल गए।


    ---

    अंत नहीं, आगाज़ है... अब उसका इतना बोल वो अपना काम करने लगी कुछ देर में सिया ने अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। इस बार सिर्फ़ मीडिया नहीं, कुछ पुलिस अधिकारी, कुछ पूर्व न्यायधीश और एक्टिविस्ट्स भी आमंत्रित थे।

    उसने फोल्डर टेबल पर रखा और कहा, "ये सबूत सिर्फ़ एक आदमी के नहीं हैं — ये एक व्यवस्था के खिलाफ हैं, जिसमें सड़ांध फैल चुकी है।"
    प्रेस हॉल में सन्नाटा था। कैमरे फ्लैश कर रहे थे। लेकिन सिया की आँखें स्थिर थीं।


    ---




    ---

    देर रात नमन के अपार्टमेंट के कमरे में हल्की नीली रोशनी थी। लैपटॉप स्क्रीन पर डेटा की लाइनों के बीच सिया त्रिपाठी की आंखें तेज़ी से दौड़ रही थीं। नमन बगल में खड़ा था, हाथ में कॉफी का मग और माथे पर चिंता की सिलवटें।

    "तुम्हें यकीन है कि ये वही सर्वर है?" सिया ने पूछा, स्क्रीन पर झुकी हुई।

    नमन ने जवाब दिया, "वसुंध का ब्लैक मार्केट नेटवर्क इसी रूट से ऑपरेट करता है। फर्जी NGO, डमी अकाउंट्स, ट्रांसजेंडर ट्रैफिकिंग से लेकर ड्रग्स... सब यहीं से ट्रैक होता है।"

    सिया ने एक वीडियो फोल्डर खोला। एक झटका लगा उसे— एक 14 साल की लड़की की फुटेज, जो किसी तहखाने में बंद थी। कैमरे की आवाज़ में एक पुरुष की हंसी गूंज रही थी।

    सिया का चेहरा सख्त हो गया। उसकी सांसें गहरी हो गईं।

    "ये अब बस रिपोर्टिंग नहीं है, नमन। ये इंसानियत के खिलाफ युद्ध है।"


    ---

    सुबह — इंडिया गेट के पास एक सुनसान गली एक गाड़ी आकर रुकी। बाहर कोई नहीं था। ड्राइवर सीट से उतरे एक बुज़ुर्ग आदमी — उसकी चाल लंगड़ाई हुई थी, लेकिन आंखें बाज जैसी तेज।

    नमन ने सिया से कहा, "ये है मुरलीधर शुक्ला — वसुंध के पुराने चार्टर्ड अकाउंटेंट। एक वक्त था जब इसका खौफ इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में था। लेकिन अब ये खुद कटपुतली बन चुका है।"

    सिया ने मुरलीधर को देखा। "क्या तुम्हारे पास सबूत हैं?"

    मुरलीधर ने धीरे से एक पेंड्राइव निकाली, और बोला — "इसमें उसकी असली दुनिया है — डार्क नेट एक्सचेंज, हवाला, सेक्स ट्रेड और वो सब जिसे सुनकर आदमी इंसानियत से नफरत करने लगे।"

    सिया ने पेंड्राइव थामी और बोली, "अब मैं तुम्हारे डर को आवाज़ दूंगी।"


    ---

    दोपहर में वसुंध की कोठी वसुंध लॉन में बैठा था, एक विदेशी ब्रांड की व्हिस्की पीते हुए, सामने लगे टीवी पर ख़बरें देख रहा था। सिया का चेहरा हर चैनल पर था — लेकिन इस बार, वो सिर्फ एक पत्रकार नहीं, एक आंदोलन बन चुकी थी।

    दिया सक्सेना ने अंदर आकर कहा, "अब उसे रोकना पड़ेगा, नहीं तो ये आग सिर्फ तुम्हें नहीं, सबको जला देगी।"

    वसुंध मुस्कराया, "तुम्हें पता है ना दिया, मैं आग से खेलने का शौक रखता हूँ — अब बस एक चिंगारी चाहिए, और वो मैं खुद बनाऊँगा।"

    उसने फोन उठाया — "वो लड़की, जो पिछले महीने नेपाल बॉर्डर से लाई गई थी… उसे ज़रा प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले लीक कर दो। और ध्यान रखना, क्रेडिट सिया त्रिपाठी को मिले।"


    ---

    शाम का समय पत्रकार भवन सिया मंच पर थी। कैमरों की फ्लैशिंग लाइट्स, सामने सैकड़ों माइक, और उसके हाथ में वो पेंड्राइव, जो पूरे सिस्टम को हिला सकती थी।

    "ये सिर्फ एक आदमी की बात नहीं है। ये एक सोच की बात है — जो इंसान को चीज़ बना देती है, बच्चियों को सामान बना देती है और सत्ता को शैतान।"

    उसने जैसे ही फोल्डर ओपन किया, पीछे स्क्रीन पर तस्वीरें चलने लगीं — दस्तावेज़, बैंक ट्रांज़ेक्शन्स, सीसीटीवी फुटेज, और सबसे आख़िर में, एक वीडियो — जिसमें एक मंत्री, एक पुलिस अफसर, और एक NGO हेड — तीनों एक ही कमरे में नाबालिगों के सौदे तय कर रहे थे।

    भीड़ में सन्नाटा था।

    सिया ने माइक हटाया और सीधे कैमरे की ओर देखा — "मैं झुकी नहीं, क्योंकि सच को झुकाना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है।"

    रात नमन का फ्लैट सिया थकी हुई थी, लेकिन आँखों में अब भी ज्वाला थी।

    "तुम जानती हो," नमन ने कहा, "अब वो तुम्हारे पीछे नहीं, तुम्हारे सामने खड़ा होगा।"

    सिया ने एक लंबी सांस ली — "और मैं उसकी आंखों में आंखें डालकर उसका अंत देखूंगी।"


    ---

  • 14. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 14

    Words: 1058

    Estimated Reading Time: 7 min

    सिया ने माइक हटाया और सीधे कैमरे की ओर देखा — "मैं झुकी नहीं, क्योंकि सच को झुकाना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है।"

    रात नमन का फ्लैट सिया थकी हुई थी, लेकिन आँखों में अब भी ज्वाला थी।

    "तुम जानती हो," नमन ने कहा, "अब वो तुम्हारे पीछे नहीं, तुम्हारे सामने खड़ा होगा।"

    सिया ने एक लंबी सांस ली — "और मैं उसकी आंखों में आंखें डालकर उसका अंत देखूंगी।"




    अगली सुबह किसी अनजान जगह की एक सीलन भरी कोठरी कमरे में अंधेरा था। एक कोना भी रौशन न था। सिर्फ दीवार से टकराकर लौटती अपनी ही सांसें किसी को एहसास दिला सकती थीं कि वहाँ कोई मौजूद है।

    उसके हाथ रस्सियों से बंधे थे। चेहरे पर चोटों के निशान थे, होंठ फटे हुए, लेकिन आँखें अब भी जिन्दा थीं।

    "नाम?"एक रूखी आवाज़ गूंजी।

    लड़की ने धीरे से कहा, "निहारिका।"

    "सिया त्रिपाठी के साथ क्या रिश्ता है?"

    "मैं बस... उसका लिखा पढ़ती थी।" — उसने जैसे अपनी जान बचाने की कोशिश में कहा।

    "ग़लती की। अब वो तुम्हें बचा नहीं पाएगी।"


    दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस कमिश्नरेट
    सिया और नमन कमिश्नर से मिलने पहुंचे। उन्होंने वसुंध के खिलाफ सारे सबूत सामने रखे — पेंड्राइव, डॉक्युमेंट्स, और गवाहों की लिस्ट।

    कमिश्नर सिंह ने सारी फाइलें ध्यान से देखीं और कहा —"आपने बहुत बहादुरी दिखाई है, मिस त्रिपाठी। लेकिन मैं वॉर्न कर रहा हूँ — इस केस में जिन लोगों के नाम हैं, वो सिर्फ अपराधी नहीं हैं, सत्ता हैं। आपको सरकार से लेकर कोर्ट तक हर मोड़ पर लड़ाई लड़नी होगी।"

    सिया बोली —"जब एक लड़की दरिंदगी का शिकार होती है तो उससे कोई नहीं पूछता कि 'क्या तुम कोर्ट में टिक पाओगी?' वो चुपचाप सह लेती है। लेकिन मैं उस चुप्पी की आवाज़ बनना चाहती हूँ।"

    कमिश्नर ने आंखों में गंभीरता भरते हुए कहा —
    "ठीक है। केस दर्ज होगा — वसुंध कश्यप पर ठोस कार्यवाही की जाएगी।"

    नमन मुस्कराया —"खेल अब शुरू हुआ है।"



    रात — वसुंध का फार्महाउस
    दिया सक्सेना तेज़ी से भीतर आई। उसकी आंखों में खौफ था।"हमारे कई NGO के अकाउंट सील कर दिए गए हैं, CBI घर तक पहुंच गई है, और मीडिया पागलों की तरह आग लगा रही है!"

    वसुंध ने गुस्से से ग्लास ज़मीन पर दे मारा।
    "वो लड़की... सिया त्रिपाठी। उसे एक उदाहरण बनाना होगा। सबके सामने, सबके लिए।"

    "क्या सोच रहे हो?" दिया ने पूछा!" "
    "मैं उसकी ज़िंदगी का ऐसा सच सामने लाऊँगा, जिसे देखकर लोग उसकी हर बात पर शक करने लगेंगे।"


    ---

    अगले दिन सिया का फ्लैट सुबह सुबह घर की डोरबेल बजी।सिया ने दरवाजा खोला तो सामने एक छोटा सा पार्सल था। उसने उठाया, खोला — और जैसे ही भीतर देखा, उसकी सांसें थम गईं।

    एक पुराना वीडियो कैमरा... और उस पर एक स्टिकी नोट —"तुम्हारी कहानी जितनी सच्ची है, ये उससे भी ज़्यादा है। रिकॉर्ड चालू करो। सिया त्रिपाठी का अतीत अब सबके सामने होगा।"



    सिया का अपार्टमेंट कमरे में हल्की रोशनी थी। सिया ने कैमरे को कंप्यूटर से जोड़ा और फोल्डर खोला। स्क्रीन पर एक-एक कर फाइलें खुलने लगीं — पुरानी रिकॉर्डिंग्स, धुंधली तस्वीरें, और एक आवाज़... बहुत जानी-पहचानी।

    "सिया... अगर ये वीडियो कभी तुम्हारे हाथ लगे, तो समझना कि मैं अब इस दुनिया में नहीं हूँ..."

    सिया का चेहरा सफेद पड़ गया।"मैं — अंशुमान त्रिपाठी — तुम्हारा भाई..."

    उसकी आंखों से आंसू खुद-ब-खुद गिरने लगे। उसकी उंगलियां कंप्यूटर स्क्रीन पर ठहर गईं।
    "जिस स्कूल में मैं पढ़ाता था, वहाँ कुछ लोग बच्चों के नाम पर सरकारी फंड का गबन कर रहे थे। मैंने रिपोर्ट दर्ज करवाई — लेकिन उसके बाद जो हुआ, वो... मेरी ज़िंदगी का अंत था।"

    स्क्रीन पर अचानक एक CCTV फुटेज चला — अंशुमान किसी पार्टी के कार्यक्रम में वसुंध के साथ दिख रहा था, और अगले ही फ्रेम में — अंशुमान लापता।

    "वो मुझे मार देंगे, सिया। लेकिन तुम चुप मत रहना। मेरा केस बंद कर दिया जाएगा, लेकिन तुम... मेरी बहन... मेरे शब्दों को ज़िंदा रखना।"

    सिया ने कांपते हाथों से कंप्यूटर बंद किया। उसकी आंखों में आंसू नहीं, अब आग थी।



    दूसरी ओर — CBI हेडक्वार्टर

    नमन ने अंशुमान त्रिपाठी का पुराना केस उठाया। FIR में सबूतों की कमी, CCTV के 'खराब' होने का जिक्र, और मेडिकल रिपोर्ट में 'ड्रग ओवरडोज़' लिखा था।

    लेकिन नमन जानता था — ये झूठ था। उसने डिजिटल फोरेंसिक टीम को CCTV फुटेज रिकवर करने का आदेश दिया।

    एक युवा एक्सपर्ट माया चौधरी — फाइल्स को देख रही थी।"सर... ये फुटेज टेम्पर्ड है। लेकिन कुछ डीप लेयर्स में असली रिकॉर्डिंग छुपी हुई है। मैं उसे रिस्टोर कर सकती हूँ।"

    नमन ने कहा, "24 घंटे में मुझे सब कुछ चाहिए। ये केस अब सिर्फ़ पॉलिटिक्स नहीं — इंसाफ़ की लड़ाई है।"



    रात के समय वसुंध का सीक्रेट मीटिंग रूम दिया और एक नकाबपोश आदमी कमरे में बैठे थे।
    "वो वीडियो लीक नहीं होना चाहिए," वसुंध बोला।

    नकाबपोश ने कहा, "अगर वो लड़की एक और वीडियो पब्लिक करती है, तो तुम्हारा सारा नेटवर्क जल जाएगा।"

    "तो जलने से पहले... उसे ख़त्म करो।" वसुंध ने गुस्से से कहा!""


    ---

    अगली सुबह सिया की प्रेस कॉन्फ्रेंस भीड़ भरे मीडिया हॉल में सिया सामने खड़ी थी। उसके पास कोई कागज़ नहीं था, बस उसका चेहरा था — और उसकी आंखों में छिपा दर्द।

    "आज मैं एक पत्रकार नहीं, एक बहन बनकर आपसे बात कर रही हूँ। मेरा भाई — अंशुमान त्रिपाठी — एक ईमानदार शिक्षक था। उसकी हत्या को आत्महत्या बताया गया, और उसका नाम गुमनामी में खो गया।"उसने वीडियो प्ले किया — अंशुमान की आख़िरी रिकॉर्डिंग।

    हॉल में सन्नाटा छा गया। कैमरे फ्लैश कर रहे थे। लोगों की आंखों में आंसू थे।
    "अब ये मेरी लड़ाई नहीं — हर उस आवाज़ की लड़ाई है, जिसे दबा दिया गया... मार दिया गया... चुप करा दिया गया।"


    ---

    इसके बाद माया चौधरी और नमन, फुटेज के असली वर्जन को कोर्ट में ले जाते हैं।
    वसुंध को अदालत में तलब किया जाता है — उसके वकील दलील देते हैं कि ये वीडियो एडिटेड है, लेकिन माया साइंटिफिक प्रूफ सामने रखती है।

    सोशल मीडिया पर #JusticeForAnshuman ट्रेंड करता है। सिया के सपोर्ट में लाखों लोग सड़कों पर उतरते हैं।

    सरकार बैकफुट पर आती है, और पहली बार वसुंध की गिरफ्तारी की मांग उठती है।


    दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर सिया खड़ी थी उसके, हाथ में अंशुमान की डायरी थी हवा में उसके पन्ने उड़ रहे थे — जैसे हर पन्ना एक नई क्रांति की कहानी कह रहा हो।

    उसने डायरी में आख़िरी पन्ने पर लिखा:
    "तुम मरे नहीं हो भैया, तुम हर उस आवाज़ में ज़िंदा हो जो अब चुप नहीं रहेगी।"

  • 15. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 15

    Words: 1006

    Estimated Reading Time: 7 min

    दिल्ली हाईकोर्ट —

    कोर्ट के गलियारे में सन्नाटा था। मीडिया बाहर खड़ी थी। देश की निगाहें इस केस पर टिकी थीं — "People vs. वसुंध पांडेय"।

    सिया, नमन और माया चौधरी कोर्ट रूम में दाखिल हुए।जज ने कार्यवाही शुरू की।

    "इस केस में अभियोजन पक्ष वो CCTV फुटेज पेश करेगा जो वर्षों से गायब था। ये वीडियो इस बात का प्रमाण है कि अंशुमान त्रिपाठी की मौत, हत्या थी — आत्महत्या नहीं।"

    वसुंध पांडेय के वकील खड़े हुए — सफेद बाल, सिल्क की काली कोट, और आत्मविश्वास से भरे चेहरे के साथ।"माई लॉर्ड, ये वीडियो नकली है। एडिट किया गया है। ये एक राजनीतिक चाल है।"

    माया ने कम्प्यूटर से असली फुटेज और उसकी फॉरेंसिक एनालिसिस स्क्रीन पर दिखानी शुरू की।

    "यहाँ देखें — वॉइस फ्रिक्वेंसी, बैकग्राउंड नॉइज़ और कैमरा मेटाडेटा — सब मूल है। इस वीडियो को छेड़ा नहीं गया है।"कोर्ट में फुसफुसाहटें शुरू हो गईं।


    ---

    अगली रात —

    सिया अपने अपार्टमेंट की बालकनी में खड़ी थी। तभी एक साया बिल्डिंग की छत से दिखा। एक स्पॉटलाइट उस पर पड़ी, और...

    धाँय!एक गोली चली — सिया के बगल से दीवार में धँस गई।

    नमन तुरंत ज़मीन पर गिरा, उसे घसीटता हुआ अंदर ले गया। "सिया! अब तुम अकेली नहीं हो। हम सब एकजुट हैं। लेकिन तुम्हें अब छिपना पड़ेगा — दो दिन, बस दो दिन।"


    ---

    जंतर मंतर दिल्ली की सड़कों पर जन आंदोलन
    हज़ारों लोग “#JusticeForAnshuman” के पोस्टर लेकर सड़कों पर थे। स्कूल के बच्चे, शिक्षक, पत्रकार, बुज़ुर्ग — सब सिया के समर्थन में।

    एक बच्ची मंच पर आई — हाथ में एक स्केचबुक थी जिसमें अंशुमान की तस्वीर थी।

    "ये मेरे स्कूल के सर थे। वो हमें सिर्फ़ मैथ्स नहीं, इंसानियत भी सिखाते थे। मैंने उन्हें खोया है। लेकिन आप सब उनकी आवाज़ हैं।"

    भीड़ सन्न थी। फिर तालियों की गूंज ने आसमान हिला दिया।


    ---

    कोर्ट का दिन गवाही एक चश्मदीद सामने आया — वही स्कूल का चपरासी रामनारायण, जिसे कभी पुलिस ने गायब बता दिया था।

    "हाँ साब, मैंने देखा था। साहब को चार लोग खींचकर ले गए थे। वो चिल्ला रहे थे। लेकिन कोई सुन नहीं रहा था।"

    वसुंध के वकील ने पूछा, "तुम इतने साल कहाँ थे?"

    "छिपा हुआ था। डर के मारे। लेकिन अब डर नहीं लगता — अब सिया मैडम के साथ हूँ।"



    तो वही अपने बंकर में बैठा वसुंध अब खामोश नहीं था। उसका हाथ मेज़ पर पटकते हुए बोला — "अब ये सिर्फ़ केस नहीं, जंग बन चुकी है। अगर मैं गिरा... तो सबको साथ लेकर गिरूँगा।"

    "उस लड़की को ख़त्म करो। उसकी कहानी अधूरी रहनी चाहिए।" वो गुस्से से बोला


    ---

    अगली सुबह
    नमन को एक फोन आया उसने फोन देखा और उठायातो सामने से एक आवाज आई— "अगर सिया ने अगली सुनवाई में बयान दिया, तो उसकी माँ... जिंदा नहीं बचेगी।"

    सिया का चेहरा सुन्न था, लेकिन उसकी आंखों में कुछ और था — अब डर नहीं, बस संकल्प।

    "मैं चुप नहीं रहूँगी। चाहे मुझे जान देनी पड़े, मैं उस एक इंसान को इंसाफ़ दिलवाकर रहूँगी, जिसे मैंने सबसे ज़्यादा चाहा।"


    ---

    कोर्ट का अंतिम दिन

    कोर्ट में भीड़ भरी थी। जज का चेहरा गंभीर था।
    "फुटेज, गवाह, और फॉरेंसिक एविडेंस को देखने के बाद, कोर्ट ये मानती है कि अंशुमान त्रिपाठी की मृत्यु एक पूर्वनियोजित हत्या थी। दोषी व्यक्तियों की सूची में वसुंध पांडेय का नाम शामिल है।"

    "कोर्ट उन्हें दोषी ठहराते हुए न्यायिक हिरासत में भेजती है — आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी।"

    सिया ने आंखें बंद कीं।bभीड़ में किसी ने चिल्लाया — "सिया दीदी ज़िंदाबाद!"




    कुछ घंटों बाद सिया अपने भाई की तस्वीर के सामने खड़ी थी।

    "अब तुझे इंसाफ़ मिल गया, भैया। लेकिन ये लड़ाई यहीं खत्म नहीं होती। ये सिस्टम बदलना है।"

    नमन पीछे से आया, उसका हाथ पकड़ा — "मैं तुम्हारे साथ हूँ। हमेशा।"




    सुबह 6:15 बजे — एक बंद कमरा, एक खुला भविष्य
    सिया की नींद खुली, लेकिन ये किसी अलार्म की वजह से नहीं था।
    खिड़की से छनती हल्की धूप और चिड़ियों की आवाज़ में आज कुछ बदला-बदला सा था।

    वो धीरे से बिस्तर से उठी — उसके पैरों ने ज़मीन छूई तो जैसे एक नए सफ़र की शुरुआत हो गई।
    कमरे की दीवार पर लगी अंशुमान की मुस्कुराती तस्वीर अब कुछ और कह रही थी — जैसे वो उसे निहारते हुए कह रहा हो:"अब तू अकेली नहीं है, सिया। अब तू मेरा सपना जी रही है।"

    उसने तस्वीर के सामने दिया जलाया।
    उसकी उंगलियाँ हल्के कांप रहे थे — लेकिन आंखों में अब आंसू नहीं थे।सिर्फ़ संकल्प था।

    “आज से हर उस आवाज़ के लिए लडूँगी जो दबा दी गई।हर उस बच्चे के लिए लडूँगी जिसकी स्कूल की फीस घोटालों में डूब गई।और हर उस बहन के लिए, जिसका भाई… कभी वापस नहीं आया।”


    ---

    दोपहर में जैसे ही सिया घर से बाहर निकली, दर्जनों माइक उसकी तरफ बढ़े।
    “मैडम, आपने जीत दर्ज की — अब अगला कदम क्या है?”

    वो ठहर कर मुड़ी। चेहरा शांत, आवाज़ स्थिर, पर शब्दों में बिजली थी।

    “अब अगला केस नहीं, पूरा सिस्टम होगा।
    ये वसुंध की हार नहीं, लोगों की जीत थी। और मैं अब सिर्फ़ अंशुमान की बहन नहीं,हर उस परिवार की आवाज़ बनूँगी जिसे कभी दबा दिया गया था।”
    इतना बोल वो वाह से चली गई


    थोड़ी दूर खड़ा नमन ये सब देख रहा था।
    उसे गर्व था लेकिन साथ ही डर भी।
    क्योंकि वो जानता था वसुंध पांडेय हार कर चुप नहीं बैठेगा।

    रात को उसने सिया से कहा —
    “तुम अब किसी इंसान के खिलाफ नहीं,
    एक पूरी व्यवस्था से लड़ रही हो।तुम्हें हर पल, हर क़दम सोच समझकर उठाना होगा।”

    सिया की आंखों में हल्की मुस्कान थी —“तो फिर चलो, पहला क़दम उठाते हैं।”


    ---

    रात को सिया अपने लैपटॉप पर एक डॉक्यूमेंट बना रही थी — People’s Reform Manifesto।
    तभी मोबाइल वाइब्रेट हुआ — No Caller ID।

    वो जाते हुए रुक गई। कॉल उठाया।एक धीमी, भारी आवाज़ —
    “तुम्हें लगता है तुम जीत गई? ये तो शुरुआत थी, सिया।अब तुम जो बोलोगी, वो हमारे लिए खतरा है।और खतरा... मिटा दिया जाता है।”

    टू... टू... टू... इसके साथ सामने से फोन कर गया था! सिया हैरानी से फोन देख रही थी उसे कुछ भी समझ नहीं आया था


    ---

  • 16. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 16

    Words: 1072

    Estimated Reading Time: 7 min

    रुक गई। कॉल उठाया।एक धीमी, भारी आवाज़ —
    “तुम्हें लगता है तुम जीत गई? ये तो शुरुआत थी, सिया।अब तुम जो बोलोगी, वो हमारे लिए खतरा है।और खतरा... मिटा दिया जाता है।”

    टू... टू... टू... इसके साथ सामने से फोन कर गया था! सिया हैरानी से फोन देख रही थी उसे कुछ भी समझ नहीं आया था


    सिया थोड़ी देर के लिए ठिठक जाती है।
    पीछे मुड़ती है—वहां कोई नहीं।
    फिर वो तेज़ कदमों से न्यूज़ ऑफिस से निकलती है, लेकिन गेट के बाहर एक काली गाड़ी धीमे-धीमे उसके बगल से गुज़रती है। उसके शक की सुई दीया और वसुंध पर थी!""


    ---



    रात को दस से ज्यादा का टाइम हो गया था सिया अपने अपार्टमेंट में पहुंची और दरवाज़ा बंद करते ही सिया ने सारी खिड़कियाँ चेक कीं। फिर उसने फोन से रिकॉर्डिंग ऑन की और धीमे से कहा—
    "अगर मेरे साथ कुछ भी हुआ, तो इसकी जिम्मेदारी उन नेताओं पर होगी जिनके नाम आज जनता जान चुकी है। इतना बोल वो फोन अलमारी के अंदर एक किताब के नीचे छुपा देती है।

    तभी—एक ज़ोर की आवाज़!आती है बालकनी के बाहर कोई परछाईं सी दिखाई देती है।सिया फौरन किचन से चाकू उठाती है।धीरे-धीरे बालकनी के दरवाज़े की ओर बढ़ती है। लेकिन बाहर बालकनी खाली थी, वो सांस छोड़ती ही है कि पीछे कोई दरवाज़ा खड़कता है।अचानक से सिया की डर से हालत खराब हुई लेकिन वो पलटती है, और बाहर देखती है तो —वाह कोई नहीं था!" सिया ने दरवाजा बंद किया और रूम में आ गई!""


    ---

    दूसरी ओर वसुंध का फार्महाउस

    दीया फोन पर है। किसी से बात कर रही थी–" "उसे डराने के लिए साए काफी हैं अभी। हम हमला नहीं करेंगे, बस उसे इतना असहज कर देंगे कि वो खुद ही थक जाए।"

    वसुंध व्हिस्की का घूंट भरते हुए बोला—
    "और अगर न थकी तो ?"

    "तो उसकी थकान हम बना देंगे," दीया मुस्कराई।


    ---

    अगली सुबह – न्यूज़रूम

    सिया काफी देर से आई। बाल बिखरे हुए, आंखों के नीचे हल्के डार्क सर्कल। थकान उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी,

    आदित्य ने देखा और पूछा –“तुम ठीक हो?”
    “हां… बस नींद नहीं आई।” सिया ने जवाब दिया!" "

    आदित्य उसकी आंखों में कुछ खोज रहा था।
    "अगर कुछ गड़बड़ है, तो तुम अकेली नहीं हो सिया।"

    सिया चुप रही। फिर उसने वो कैमरा दिखाया जो पहले मिला था, और साथ ही बताया—कल रात कोई उसकी बालकनी तक पहुंचा था।

    आदित्य का चेहरा सख्त हो गया।"अब वक़्त आ गया है… कि हम खेल उनके नियमों पर नहीं, अपने नियमों पर खेलें।"


    ---

    शाम – लाइव रिपोर्टिंग

    सिया एक बड़े अस्पताल के बाहर लाइव रिपोर्टिंग कर रही थी।वो बोल रही थी—"इस अस्पताल को पिछले पाँच सालों में 8 बार फंड मिला, लेकिन अंदर ना डॉक्टर हैं, ना मशीनें…"

    भीड़ बढ़ती जा रही थी।तभी, पीछे से एक मोटरसाइकिल सवार अचानक ब्रेक मारता है।

    सिया पलटती हैकि तभी बाइक सवार एक चिट फेंकता है और भाग जाता है।

    सिया ने उसे देखा और खोला तो उस चिट में सिर्फ चार शब्द लिखे हैं—“इतनी हिम्मत अच्छी नहीं।”

    सिया ने कैमरा बंद किया और वो चिट आदित्य को दी।

    वो चिट देखते ही आदित्य का दिमाग खराब हो चुका था!" "


    ---

    रात का समय था दीया ने एक नया चेहरा खड़ा किया—एक नकली whistleblower, जो मीडिया के सामने आकर कहेगा कि सिया ने पैसे लेकर झूठी रिपोर्टिंग की है।

    वसुंध बोला,“इस बार उसे मारने की ज़रूरत नहीं, बस उसकी साख को मार दो।”


    ---

    देर रात सिया का अपार्टमेंट
    सिया दरवाज़ा बंद करके बुकशेल्फ़ के पास पहुंची और फोन निकालती है लेकिन तभी बिजली चली जाती है।पूरे कमरे में सन्नाटा।
    मोबाइल की फ्लैशलाइट ऑन करके वो आगे बढ़ती है—तभी… दरवाज़े पर दस्तक। होना शुरू हो जाती है कभी धीमी… फिर कभी तेज़…

    वो कांपती है,और जल्दी से चाकू हाथ में लेती है… और दरवाज़ा खोलती है।दरवाज़े पर आदित्य था, उसको देखते ही उसने एक गहरी सान ली तभी आदित्य ने पूछा–" “तुम ठीक हो?”
    सिया की आंखें नम थी।वो कुछ कह नहीं पाती।

    आदित्य अंदर आता है।“अब बहुत हो गया,” उसने कहा,“मैंने तुम्हें बहुत स्ट्रॉन्ग समझा था, पर अब मैं इंसान बनकर सोच रहा हूं। ये लड़ाई अब सिर्फ तुम्हारी नहीं है।”कुछ देर बाद आदित्य बाहर बालकनी से फोन पर बात कर रहा था!“उसके अपार्टमेंट के चारों तरफ मेरे लोग होंगे। कोई हरकत हुई तो पहले खबर मुझे मिलेगी।”

    तभी पीछे से सिया की आवाज आई“सर…”

    "अब तुम ‘सर’ मत कहो। अब ये लड़ाई मेरी ज़िम्मेदारी है… तुम्हारे लिए।” उसने सिया के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा" उसकी आंखो में एक अलग ही चमक थी!" ""

    सिया पहली बार उसके इतना पास महसूस करती है, सिया तुरंत अंदर चली गई थी!""।लेकिन उसी पल, बिल्डिंग के सामने वही काली गाड़ी फिर से धीमे-धीमे चल रही थी, कार के अंदर वसुंध दीया थे

    तभी दीया बोली—अब अगला वार उसकी ज़िंदगी पर नहीं, उसकी सच्चाई पर होगा।”

    अंदर बैठा वसुंध, सिगार जलाते हुए खिड़की से देख रहा था।बगल में दीया, एक लैपटॉप खोले बैठी थी।

    “उसकी पूरी प्रोफाइल तैयार है,” दीया बोली, “अब बस एक क्लिक और मीडिया में सिया त्रिपाठी बिक चुकी है, ये खबर फैल जाएगी।”

    वसुंध ने धीमे से कहा—“हर हिम्मती आवाज़ को चुप कराना है… लेकिन खून से नहीं। शक से।”


    ---

    सिया का अपार्टमेंट आदित्य बालकनी से लौटकर आया। सिया अब भी चुपचाप खड़ी थी।

    “तुम्हारे चेहरे पर खामोशी दिख रही है,” आदित्य ने कहा, “लेकिन तुम्हारी आंखें लड़ने की ज़िद से भरी हैं।”

    “पर कब तक?” सिया की आवाज़ टूटी हुई थी।
    “हर बार डर को पीछे छोड़ देती हूं… लेकिन ये डर पीछा छोड़ने को तैयार नहीं।”

    आदित्य ने धीरे से कहा—“डर उन्हीं के पास आता है, जो लड़ते हैं। हारने वाले डर से पहले ही समझौता कर लेते हैं।”

    सिया ने उसकी ओर देखा। पहली बार उसे लगा जैसे आदित्य सिर्फ एक बॉस नहीं… एक ढाल है उसके लिए!""


    ---

    अगली सुबह न्यूज़ चैनल का कॉन्फ्रेंस रूम एक ज़ोरदार बैठक बुलाई गई।एडिटर-इन-चीफ़ ने भारी आवाज़ में कहा—“हमें सोशल मीडिया से जानकारी मिली है कि सिया ने एक प्रोजेक्ट पर वसुंध भाटिया से पैसे लिए हैं। अब तक ये सिर्फ अफवाह थी, पर अब फॉर्मल शिकायत आई है।”

    सिया स्तब्ध थी उसे इस चीज की उम्मीद ज्यादा नहीं था उसने अपने पक्ष में कहा “ये झूठ है! मैं…”

    “हम जानते हैं, सिया,” आदित्य बीच में बोला
    “पर हमें इसे हैंडल करना होगा। सच को साबित करना होगा।”

    एडिटर ने कहा,“तुम्हें फिलहाल ऑन-एयर से हटाया जा रहा है, जब तक ये साफ़ नहीं होता।”
    सिया के हाथ कांप गए। उसकी आंखें एकदम सूनापन ओढ़ चुकी थीं।

  • 17. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 17

    Words: 1060

    Estimated Reading Time: 7 min

    सिया स्तब्ध थी उसे इस चीज की उम्मीद ज्यादा नहीं था उसने अपने पक्ष में कहा “ये झूठ है! मैं…”

    “हम जानते हैं, सिया,” आदित्य बीच में बोला
    “पर हमें इसे हैंडल करना होगा। सच को साबित करना होगा।”

    एडिटर ने कहा,“तुम्हें फिलहाल ऑन-एयर से हटाया जा रहा है, जब तक ये साफ़ नहीं होता।”
    सिया के हाथ कांप गए। उसकी आंखें एकदम सूनापन ओढ़ चुकी थीं।


    दोपहर आदित्य का ऑफिस

    सिया फाइलें लेकर अंदर आई और आदित्य से सीधा बोली“मुझे सबूत चाहिए, आदित्य। मुझे वो सब चाहिए जिससे मैं खुद को निर्दोष साबित कर सकूं।”

    “मिलेगा,” आदित्य ने कहा,“वो रिपोर्ट मैंने खुद क्लीन की थी। अगर तुम्हारे नाम पर कुछ गया भी होता, तो मेरे सिस्टम में रजिस्टर होता।”

    “तो फिर ये फॉर्मल कंप्लेंट किसने की?”सिया ने सवाल किया!""

    एक सेकंड की चुप्पी।के बाद आदित्य ने कहा, “दीया सक्सेना,” “नाम नहीं लिखा है, लेकिन जिस लॉ फर्म से शिकायत आई है… वो उसी की पिछली कंपनियों में से एक से जुड़ी है।”

    सिया बस आदित्य को देख रही थी!" "


    ---

    शाम दीया का ऑफिस

    दीया एक प्रोजेक्टर स्क्रीन पर सिया के झूठे ट्रांजैक्शन दिखा रही थी।"ये देखो, इन तारीखों में सिया के अकाउंट में ₹2 लाख ट्रांसफर हुए, एक्स-न्यूज़ ट्रस्ट के नाम से। दिखेगा जैसे किसी NGO से आए हों, लेकिन ट्रेस करोगे तो हमारी शेल कंपनी से हैं।”

    वसुंध मुस्कराया—“तो अब सिया का सच लोगों के सामने झूठ लगने लगेगा। और यही सबसे घातक चोट होती है।”


    ---

    रात सिया का अकेलापन उसे अब अंदर से डरा रहा था, सिया अपने फ्लैट में बैठी थी। टीवी ऑन था, लेकिन आवाज़ बंद।उसकी स्क्रीन पर वही न्यूज़ फ्लैश हो रही थी—

    "Anchor Sia Tripathi under investigation for bribery link with opposition fund."

    सिया ने रिमोट उठाकर स्क्रीन बंद कर दी।
    आंसू अब आँखों से नहीं, अंदर बह रहे थे।

    तभी… उसके फोन पर मैसेज आया उसने देखा एक अनजान ईमेल आया था उसने तुरंत ओपन किया था तो लिखा था: सच जानना चाहती हो तो अकेले रेलवे यार्ड आओ – रात 11 बजे

    सिया कांपती उंगलियों से लैपटॉप बंद करती है।
    कोई नाम नहीं… कोई ट्रेस नहीं। ये उसे अजीब लगा लेकिन वो अब खुद को बेगुनाह साबित करना चाहती थी!" "


    ---

    रेलवे यार्ड रात के ग्यारह बज रहे थे सिया अकेली पहुंची। थी चारों तरफ सन्नाटा। छाया हुआ था
    तभी एक बूढ़ा आदमी छाया से निकलता है।

    "तुम्हें नहीं पता, बच्ची… सियासत की साजिश कितनी गहरी है। वो ट्रांजैक्शन तुम्हारे नाम से नहीं किए गए, पर तुम्हारी ID से किए गए।"

    ये आवाज सुनते ही सोया ने सवाल किया"कौन हो तुम?"

    "एक वक़्त में भाटिया की टीम में था… फिर जब मेरे बेटे को मार दिया गया, तो मैंने सब छोड़ दिया। अब तुम्हें सिर्फ इतना बताने आया हूं कि कल सुबह 9 बजे प्रेस में तुम्हारे खिलाफ़ वीडियो रिलीज़ होगा—Edited. Fake. लेकिन असली जैसा।"

    "उसकी कॉपी तुम्हारे पास है?"सिया ने सवाल किया

    "नहीं, लेकिन उसका सर्वर लोकेशन है मेरे पास… जो सिर्फ एक कोड से खुलेगा।"

    सिया को वो कोड देता है—
    VX-349-KT "जाओ… और तय करो—अब तुम सिर्फ पत्रकार हो… या इंसाफ की आखिरी उम्मीद?" कुछ देर में सिया तुरंत वाह से चली गई थी,

    ---

    अगली सुबह

    सिया फिर से न्यूज़ ऑफिस पहुंचती है।
    आदित्य उसे देखता है—“तुम्हें रोका गया था सिया यहां आने से”

    “अब मैं नहीं रुकूंगी,” उसने फाइल आदित्य की टेबल पर रखी।“ये सर्वर लोकेशन है… और इस बार मैं सिर्फ रिपोर्ट नहीं कर रही… मैं अपने खिलाफ़ क्राइम साबित करने जा रही हूं।”


    --- चैनल का बेसमेंट आर्काइव रूम

    सिया की आंखों में रात की नींद नहीं, लेकिन इरादा साफ़ था।आदित्य सामने खड़ा था, कोड की पर्ची पकड़े।“VX-349-KT…” उसने स्क्रीन पर टाइप किया।

    एक पुरानी फाइल खुली — बड़ी-बड़ी वीडियो थम्बनेल्स में एडिट की गई क्लिप्स थीं। सब कुछ हाई-प्रोफेशनल तरीके से तैयार।

    एक वीडियो प्ले किया गया।सिया उसमें किसी कमरे में बैठी थी — एक आदमी पैसे रख रहा था, और वो मुस्कुरा रही थी।

    लेकिन…“ये मैं नहीं हूं…” सिया की आवाज़ लड़खड़ाई।

    “ये तुम्हारा चेहरा है, लेकिन त
    तुम नहीं,” आदित्य ने कहा।

    “हमें ये फेक साबित करना होगा, पब्लिक के सामने, टेक्निकल एनालिसिस से।”सिया ने टूटना कहा!""

    “पर उसके लिए forensic lab चाहिए — और वो भी ऐसा जो बिके नहीं।”


    ---

    सुबह दस बजे दीया सक्सेना का ऑफिस
    दीया ने अपने टेक एक्सपर्ट से पूछा, “सर्वर तो ट्रैक नहीं हो सकता न?”

    “नहीं मैम। हमने स्पूफिंग लगा रखा है। कोई डायरेक्ट प्रूफ नहीं मिलेगा।”

    वसुंध कमरे में घुसा।“लेकिन अगर सिया को उस सर्वर की लोकेशन मिल गई हो…?”

    दीया मुस्कराई, “तो फिर अब वक्त है प्लान B का।”


    ---

    दोपहर सिया और आदित्य एक फॉरेंसिक प्रोफेशनल के पास जा रहे थे — डॉ. ईशान मल्होत्रा, जो पहले साइबर सेल में थे, लेकिन अब एक निजी रिसर्च लैब चलाते हैं।रास्ते में सिया खामोश रही। शहर की खिड़कियों से भागती ज़िंदगी को देखती रही।

    आदित्य ने उसकी ओर देखा।“डर लग रहा है?”

    “नहीं। अब सिर्फ गुस्सा है। और एक सवाल— क्या ये लड़ाई वाकई किसी को जीतने देती है?”

    आदित्य बोला—“जिस दिन डर के बाद भी कोई उठ खड़ा होता है… उस दिन ये लड़ाई हार नहीं होती।"


    -ईशान की लैब सर्वर की क्लिप्स forensic software में डाली गईं।

    डॉ. ईशान ने कहा—“ये डीपफेक है। AI से बनाया गया चेहरा, पर ऑडियो भी सिंथेटिक है। अगर ये क्लिप पब्लिक में गई, तो 90% लोग असली मान लेंगे।”

    “तो क्या कुछ किया जा सकता है?”आदित्य ने कहा

    “अगर हम raw metadata निकाल लें और उसकी origin layer ट्रेस कर लें, तो इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।”

    सिया की आंखों में हल्की उम्मीद चमकी।“तो शुरू कीजिए।”


    लैब के बाहर तभी दो बाइकें सामने आकर रुकीं। हेलमेट पहने दो आदमी उतरे और अंदर की ओर बढ़े।

    एक ने रिसेप्शन से पूछा — “डॉ. ईशान मल्होत्रा?”

    जैसे ही रिसेप्शनिस्ट कुछ कहने लगी — एक शॉट हवा में गूंजा!गनफायर! की और आवाज के आते ही लोग भागना शुरू कर चुके थे लैब के भीतर — भगदड़ मची हुई थी ईशान, सिया और आदित्य को एक इमरजेंसी रूम में ले जाया गया।

    “पीछे रास्ता है,” ईशान ने कहा, “सीढ़ियों से होकर नीचे गाड़ी पार्किंग में निकल सकते हो।”

    “और आप?” सिया ने पूछा।

    “मुझे रोकना उनका मकसद नहीं… तुम हो।”
    आदित्य ने सिया का हाथ पकड़ा —“चलो, वक्त नहीं है सिया!"

    जैसे ही दोनों पीछे की सीढ़ियों से उतरे एक और शॉट चला!

    गोलियां दीवार से टकराईं। एक छर्रा सिया के बाजू में लगा और वो गिर पड़ी।

    “सिया!” आदित्य घबराया।

  • 18. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 18

    Words: 1083

    Estimated Reading Time: 7 min

    मुझे रोकना उनका मकसद नहीं… तुम हो।”
    आदित्य ने सिया का हाथ पकड़ा —“चलो, वक्त नहीं है सिया!"

    जैसे ही दोनों पीछे की सीढ़ियों से उतरे एक और शॉट चला!

    गोलियां दीवार से टकराईं। एक छर्रा सिया के बाजू में लगा और वो गिर पड़ी।

    “सिया!” आदित्य घबराया।




    उसने फौरन अपनी शर्ट फाड़कर उसका घाव बांधा।“मैं ठीक हूं,” सिया ने कांपते हुए कहा।

    “झूठ मत बोलो। तुम्हें चोट लगी है।”

    “लेकिन मैं रुकी तो सच मर जाएगा सर उसने धीमी आवाज में कहा
    आदित्य ने गाड़ी स्टार्ट की। “तो फिर बैठो — अब हम रुकेंगे नहीं।”



    कुछ दिन सिया और आदित्य अब एक पुराने गैरेज में थे, जहाँ ईशान ने अपने टेक डिवाइसेज भेज दिए थे।

    “अब हम मोबाइल पर live debunk करेंगे,” आदित्य ने कहा।

    “और ये सिर्फ टेक्निकल रिपोर्ट नहीं… एक जंग का एलान होगा।”


    ---

    रात 8:00 PM न्यूज़ चैनल की लाइव फीड हाइजैकटीवी स्क्रीन पर अचानक लाइव डिबेट कट हो गई।और एक नई फीड आई — सिया त्रिपाठी।

    चेहरा गंभीर, आंखें सीधी कैमरे में।
    “मैं पत्रकार सिया त्रिपाठी, आज अपने खिलाफ़ एक गहरी साज़िश का सच आपके सामने रख रही हूं।”

    उसने फेक वीडियो दिखाया — और फिर उसका forensic debunk। हर टेक्निकल लेयर, हर timestamp, हर glitch जो उसके झूठे होने की गवाही दे रहा था।
    “ये साज़िश सिर्फ मेरी नहीं, आपकी आवाज़ को दबाने की है। आज मुझे झूठा बनाया गया… कल आप बन सकते हैं।”“तय कीजिए — आप किसके साथ हैं? सच्चाई के… या सत्ता के?”

    देशभर में हलचल मची हुई थी सोशल मीडिया पर #StandWithSia ट्रेंड करने लगा।

    न्यूज़ स्टूडियोज में बवाल मच गया।दीया सक्सेना का चेहरा पहली बार डरा हुआ दिखा। वसुंध ने गुस्से में फोन पटक दिया।


    रात 10 बजे सिया छत पर खड़ी थी। हाथ में पट्टी, आंखों में थकावट… पर होंठों पर सुकून था उसके तभी आदित्य उसके बगल में आ कर खड़ा हुआ

    “तुमने कर दिखाया सिया आदित्य ने बड़े प्यार से उसे देखते हुए कहा“नहीं,” सिया ने कहा, “मैंने बस शुरुआत की है।”उसने आसमान की ओर देखा।

    “अब मेरी लड़ाई उस हर आवाज़ के लिए है, जो सच बोलने से पहले कांपती है।”


    दो दिन बाद रात का समय, सिया की आँखें कंप्यूटर स्क्रीन से हट ही नहीं रही थी उसके होठ सूख चुके हैं, माथे पर पसीना था।
    उस मेल में लोकेशन थी — ‘D-Block, Civil Archive Basement’।

    वहीं छिपे हैं वो कागज़, जो वसुंध भाटिया की सत्ता की नींव हिला सकते हैं।सिया ने धीरे से लैपटॉप बंद किया। आदित्य को कॉल करने का मन हुआ — पर नहीं। हर बार किसी और को खतरे में नहीं डाल सकती।”

    वो अपने छोटे से बैग में पेन कैमरा, पावरबैंक, और टॉर्च रखती है।सड़कों पर तेज़ हवाएं चल रही थी
    तहखाने तक पहुंचने का रास्ता अधजली सरकारी फाइलों से भरा था , दीवारों पर ताजगी की कोई निशानी नहीं।सीढ़ियों के नीचे हर कदम पर धूल उड़ती है। उसकी टॉर्च की रोशनी कमजोर होती जा रही है।

    “कहीं ये मेल भी झूठ तो नहीं?” उसने खुद से पूछा।

    और तभी — सामने से किसी की परछाई टॉर्च की रोशनी में आती है।

    “कौन है?” सिया पीछे हटती हुई बोली

    "तुम सच में अकेली आ गई..." एक धीमी आवाज़ गूंजी

    सिया घबराकर टॉर्च घुमाती है। वो चेहरा उसे अपने पीछे की तरफ दिखता है

    "दीया सक्सेना... उसके मुंह से बस इतना ही निकला था "उसके हाथ में एक फोल्डर था उसने सिया को दिखाते हुए कहा “यही चाहिए न तुम्हें?” दीया ने फोल्डर उसकी तरफ फेंका।
    सिया ने लपका — और उसी पल किसी ने उसके सिर पर वार किया। और अगले ही पल सब कुछ धुंधला नजर आने लगा!" "


    ---

    कुछ घंटे बाद सिया की आँखें खुली तो उसका — सिर भारी हो रहा था कमरे में अंधेरा था
    वो ज़मीन पर पड़ी थी । हाथ बंधे नहीं थे लेकिन शरीर थक चुका था!" दूर दरवाज़े की दरार से हल्की रोशनी आ रही थी

    "तुम्हें लगा, हम तुम्हें दस्तावेज़ ऐसे ही थमा देंगे?" दीया की आवाज़ फिर गूंजी थी

    सिया बोल नहीं पा रही थी सिर्फ देख रही थी

    दीया पास आज और बोली तुम बहुत स्मार्ट हो, सिया। लेकिन ये लड़ाई सिर्फ तुम्हारी ज़िद से नहीं जीती जा सकती।"

    “तो क्या मैं हार मान लूं?” सिया की धीमी आवाज़।उसके कानो में पड़ी

    दीया मुस्कराती है, और धीरे से कहती है,
    "नहीं। तुम्हें हारने नहीं देंगे... तुम्हें तोड़ेंगे।" इतना बोल वो चली गई


    ---

    उसी वक्त आदित्य का घर रात के दो बज रहे थे तभी उसका मोबाइल वाइब्रेट हुआ उसने इतनी रात को देखा तो तो कोई अनजान नंबर था उसने जैसे ही फोन उठाया कि सामने से एक आवाज आज “उसे बचा सकते हो तो बचा लो। लोकेशन भेज दी है।”]

    आदित्य का चेहरा सख्त हो गया था उसके दिमाग में सिफ एक ही नाम आया “सिया…”वो बिना समय गंवाए निकल पड़ा था



    30 मिनट बाद पुरानी बिल्डिंग के बाहर आदित्य की गाड़ी आकर रुकी थी, उसने खुद से कहा अंदर जाना मुश्किल है गार्ड्स हैं, सीसीटीवी कैमरे एक्टिव। है इतना बोल वो अगले ही पल वो दीवार फांदता है और धीमे से इमारत में दाखिल होता है।
    नीचे बेसमेंट में हल्की चीख जैसी आवाज़ें आती हैं।

    “सिया…” वो फुसफुसाता है।


    ---

    भीतर अंधेरे कमरे में दीया बाहर जा चुकी है।

    सिया उठने की कोशिश करती है, लेकिन उसका सिर अब भी भारी थे तभी अचानक से दरवाज़ा खुलता है और आदित्य अंदर आता है।

    “तुम ठीक हो?” वो दौड़कर उसके पास आया और बोला
    सिया उसकी तरफ देखती है — “तुम आ गए आदित्य


    ---

    कुछ देर बाद — दोनों बाहर निकलते हैं, लेकिन… तभी एक शॉट फायर होता है। गोली दीवार से टकराकर निकल जाती है।

    वसुंध खुद बाहर खड़ा था उसने उन दोनो को देखा और कहा “मैंने कहा था न, ये सिर्फ खेल नहीं है। ये जंग है। और जंग में जज़्बातों के लिए जगह नहीं होती।” ये आवाज सुनकर सिया और आदित्य दोनों चौंक गए थे

    “अब क्या करोगे?” वसुंध ने पूछा।

    आदित्य ने सिया की तरफ देखा — फिर जेब से एक रिकॉर्डिंग डिवाइस निकाली।

    “जो तुमने अभी कहा… वो पूरा रिकॉर्ड हुआ है। और ये लाइव जा चुका है।”वसुंध का चेहरा सख्त हो गया था, कुछ ही देर में पुलिस आ गई थी

    अगले दिन,सुबह सुबह न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन यही थी :

    “MLA वसुंध भाटिया का आपराधिक बयान हुआ वायरल — केस दर्ज”रात में पत्रकार सिया त्रिपाठी पर हमला — लोकतंत्र पर हमला कहा जा रहा है”


    ---

    सिया अपने कमरे में अकेली बैठी थी उसने दीवार पर टंगा नक्शा देखा — जिस पर अब भी कई पिन लगे थे।

    “ये तो सिर्फ शुरुआत है…”उसकी आंखों में चमक थी
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  • 19. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 19

    Words: 1073

    Estimated Reading Time: 7 min

    सिया अपने कमरे में अकेली बैठी थी उसने दीवार पर टंगा नक्शा देखा — जिस पर अब भी कई पिन लगे थे।

    “ये तो सिर्फ शुरुआत है…”उसकी आंखों में चमक थी

    और तब ही उसकी खिड़की के बाहर एक ड्रोन मंडरा रहा थावो खिड़की बंद करने जा ही रही थी लेकिन नीचे सड़क पर खड़ी एक SUV उसे देखकर चल पड़ी थी उस SUV में कौन था?

    क्या दिया और वसुंध अब भी सबकुछ हार मान चुके हैं? उसके मन में अब हजारों सवाल उभर आए थे


    सिया का अपार्टमेंट

    बारिश की बूंदें खिड़की के शीशे पर धीमे-धीमे दस्तक दे रही थीं। कमरे में हल्की पीली रौशनी और दीवार पर लटकती साया की परछाई — सिया अकेली बैठी थी। आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं था। उसकी हथेलियों में अब भी हल्की जलन थी — जैसे किसी अनदेखे डर ने उसे जकड़ रखा हो।

    आदित्य ने कहा था, "तुम अकेली नहीं हो।"
    पर सिया जानती थी — लड़ाई वो खुद से लड़ रही थी, और ये लड़ाई अब निजी होती जा रही थी।

    वो उठी। अलमारी से अपना फाइल बैग निकाला — उसमें से कुछ पुराने डॉक्यूमेंट्स और पेनड्राइव बाहर निकाले।"अब तुम्हारी चालें नहीं, तुम्हारा सच सामने आएगा, वसुंध भाटिया…"उसने फाइल को टेबल पर रखा और धीरे से कंप्यूटर ऑन किया।


    दूसरे दृश्य — वसुंध का बंगला

    दिया सक्सेना एक नीली सिल्क की साड़ी में सीढ़ियाँ उतर रही थी। उसका चेहरा शांत था, पर आँखों में एक स्पष्ट योजना तैर रही थी।

    "सिया त्रिपाठी... एक नाम, जो अब सत्ता की नींदें उड़ा रहा है," दिया ने कहा।

    वसुंध खामोशी से दिया की ओर देख रहा था, सिगार का धुआँ हवा में उड़ता जा रहा था।
    "वो डरती नहीं है, वसुंध। और ना ही झुकती है। ऐसे लोगों को मिटाया नहीं जा सकता — उन्हें थकाया जाता है।"

    वसुंध मुस्कराया — वो वही मुस्कान थी जो उसकी हर साजिश की शुरुआत होती थी।

    "तो थकाओ उसे। उसकी दुनिया को उलझाओ। रिश्तों को तोड़ो, भरोसे को कुचलो," वसुंध बोला।

    "उसके पास कोई नहीं है..."

    "लेकिन अब उसे यह भी महसूस कराना है कि वह खुद भी खुद के साथ नहीं है।"


    ---
    न्यूज़ ऑफिस, अगली सुबह सिया की आंखों में नींद नहीं, लेकिन चेहरे पर अडिगता थी। वो जैसे अब खुद को अपने शब्दों में बदल चुकी थी।

    आदित्य ऑफिस में दाखिल हुआ, हाथ में कॉफी और एक फोल्डर।

    "यह क्या है?" सिया ने पूछा।

    "वो फाइल जिसमें उस अधूरे हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के टेंडर की पूरी कॉपी है। और देखो — साइन वसुंध के भतीजे के नाम पर हैं।"

    सिया ने पेपर को गहराई से पढ़ा। उसकी उंगलियों में कंपन था, पर निगाहों में विश्वास।

    "तो क्या हम इसे ऑनएयर ले सकते हैं?"

    "हाँ," आदित्य बोला, "लेकिन इसके बाद कुछ भी सामान्य नहीं रहेगा।"


    ---

    रात में प्राइम टाइम शो
    स्क्रीन पर वसुंध का चेहरा, नीचे हेडलाइन — "हॉस्पिटल नहीं, भ्रष्टाचार बना है ये भवन।"

    सिया की आवाज़ स्पष्ट थी — "जब जनता की ज़रूरतें भ्रष्टाचार में डूब जाएं, तो पत्रकारिता मौन नहीं रह सकती।"

    वसुंध का चेहरा स्क्रीन पर आते ही हलचल बढ़ गई। लेकिन इस बार, कुछ बदल चुका था। लोगों की आंखों में सवाल थे।


    ---

    रात शो के बाद, सिया अपनी स्कूटी से घर लौट रही थी। रास्ते सुनसान थे। अचानक एक गाड़ी उसका पीछा करने लगी। सिया ने रफ्तार बढ़ाई, पर वो SUV लगातार उसके पीछे बनी रही।

    एक मोड़ पर आते ही गाड़ी ने स्कूटी को टक्कर मार दी।सिया ज़मीन पर गिर पड़ी, कोहनी और माथे से खून बह रहा था।

    SUV रुकी लेकिन उसमे से उतरने वाला कोई नहीं था।वो दरवाज़ा खुला और फिर बंद हुआ — कोई साया पास आया, लेकिन एक और गाड़ी का हॉर्न सुनकर SUV भाग निकली।

    सिया अधमूर्झी थी… तभी किसी ने उसे बाँहों में उठाया।"सिया!" — वो आदित्य था।
    उसकी आँखों में गुस्सा, डर और बेचैनी सब कुछ था। उसने सिया को अपनी गाड़ी में डाला और अस्पताल की ओर भागा।


    ---अस्पताल कुछ घंटे बाद

    सिया की पट्टियाँ बंध चुकी थीं। लेकिन नींद अब भी कोसों दूर थी।

    "ये पहली बार नहीं है, आदित्य," उसने धीमे से कहा।"पर आज… पहली बार मुझे लगा कि शायद ये लड़ाई मेरी जान ले सकती है।"

    आदित्य ने उसकी हथेली थाम ली।
    "तुम्हारी जान नहीं जाएगी, सिया। लेकिन अब... हम इसे अकेले नहीं लड़ेंगे।"




    उसी रात — एक गोदाम, अंधेरे में दिया और एक अनजान आदमी की बातचीत।

    "अगला कदम क्या है?"
    "सिया को मारना नहीं है — पर उसे ऐसा तोड़ो कि वो अपने माइक से नफ़रत करने लगे।"

    "और अगर न टूटी?"

    दिया की आंखें चमक उठीं —"तो फिर... हम उसे ऐसा कुछ दिखाएँगे, जिसे देखकर उसके शब्द हमेशा के लिए चुप हो जाएँगे।"


    कमरे की हवा ठंडी थी, पर सिया के माथे पर पसीने की बूंदें थीं। धीरे-धीरे उसकी आंखें खुलीं। कमरे की सफेद दीवारें और उस पर टंगी घड़ी, जो लगातार टिक-टिक कर रही थी, जैसे समय के हर पल को चीख-चीख कर बता रही हो।

    उसके पास बैठा आदित्य चुपचाप उसकी नब्ज देख रहा था।

    "तुम... ठीक हो?" उसकी आवाज़ बेहद धीमी थी, लेकिन चिंता गहराई तक उतरी हुई थी।

    सिया ने निगाहें मोड़ी, ज़रा सी मुस्कान उभरी— "मुझे लगा मैं..."

    "नहीं," आदित्य ने बीच में ही कहा, "तुम अब सुरक्षित हो।"

    वो उठकर खिड़की के पास गया और परदे के पार झाँका। बाहर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी। लेकिन आदित्य जानता था, ये मामला सिर्फ पुलिस से नहीं सुलझेगा। ये एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें जीतने के लिए साया भी काफी नहीं होता।


    ---

    दूसरी ओर दिया सक्सेना का ऑफिस दिया ने कांच की खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा— "हमने उसे डराना चाहा, मगर वो डरने वालों में से नहीं है। अब प्लान बदलना होगा।"

    वसुंध, जो अब तक अपने फोन पर संदेश पढ़ रहा था, बोला— "तो उसे खत्म करने का वक्त आ गया है?"

    "नहीं," दिया ने पलटकर उसकी ओर देखा, "उसे खत्म करना आसान है, मगर अगर उसे जनता के सामने बदनाम किया जाए... वो खुद मिट जाएगी।"

    वसुंध की आंखों में चमक आई— "घायल शेर को तड़पाकर मारने में जो मज़ा है..."


    ---

    अगली सुबह न्यूज़ चैनल का ऑफिस सिया अब भी घायल थी, हाथ पर पट्टी थी, लेकिन उसकी आंखों में पहले से ज़्यादा आग थी।

    "तुम्हें कुछ दिन आराम करना चाहिए," आदित्य ने कहा।

    सिया ने उसके सामने एक फाइल रख दी। "ये रहा उनका अगला घोटाला — ज़मीन अधिग्रहण का। एक गांव की ज़मीन हड़प ली गई, और वहां फैक्ट्री बन रही है वसुंध की।"

    आदित्य ने फाइल खोली, पढ़ा, फिर मुस्कराया—"तो अगली बमबारी यहीं से शुरू होगी।"


    ---


    To Be Continued...

  • 20. रणनीति ( साजिशों का खेल) - Chapter 20

    Words: 1028

    Estimated Reading Time: 7 min

    रात लाइव रिपोर्टिंग सिया ने पट्टी के साथ कैमरे का सामना किया।"आज हम एक ऐसे सच का पर्दाफाश करने जा रहे हैं, जिसे दबाने के लिए न सिर्फ ताकत का, बल्कि खून का इस्तेमाल किया गया है।"

    वीडियो में दिखी झोपड़ियां, उजड़े चेहरे, और गांव की एक बुजुर्ग महिला, जो कह रही थी— "हमसे सब ले लिया... खेत, पानी, छांव तक। और बदले में क्या मिला? डर।"

    सिया की आवाज़ भर्रा गई, पर उसने कंट्रोल किया।"ये रिपोर्ट सिर्फ सवाल नहीं है — ये आरोप है। और अगर हमारे सवालों का जवाब नहीं मिला, तो हम हर गांव, हर गली तक ये सच्चाई लेकर जाएंगे।"

    और दूसरी और दिया सक्सेना ने अपनी टीम से कहा— "अब वक्त है प्लान 'डिजिटल ब्लैकआउट' का। उसकी हर रिपोर्ट को इंटरनेट से गायब कर दो। सोशल मीडिया से, वेबसाइट से, यू-ट्यूब तक से। उसे लगे कि उसकी आवाज़ अब कहीं नहीं सुनी जा रही।"इतना सुन टीम एक्टिव हो गई।


    ---

    दूसरे दिन सिया की स्क्रीन पर Error आ रहा था ये देखकर सिया चौंक गई। उसकी रिपोर्टें, उसके वीडियो — सब गायब।"ये... ये कैसे..."

    आदित्य कमरे में आया, और बोला— "साया अब भी है, लेकिन उसे अब पहचान नहीं मिल रही।"

    सिया की आंखों में आंसू थे, लेकिन वो रुकी नहीं।
    "अगर आवाज़ को दबाया जाए, तो उसे और ऊँचा करना पड़ता है। अब हम सिर्फ चैनल से नहीं लड़ेंगे... सड़कों से लड़ेंगे।"




    सड़क की उस वीरान गली में, जहाँ आदित्य और सिया कुछ पल पहले मौत के साए से गुज़रे थे —अभी कुछ देर पहले ही उन दोनो पर एक जोरदार हमला हुआ था लेकिन सिया को थोड़ी चोट आई थी और आदित्य के सर पर भी चोट आई थी लेकिन एक सन्नाटा अब भी पसरा था। हवा ठंडी थी, पर उनके भीतर जो गर्मी थी, वह अब भय की नहीं… प्रतिशोध की थी।

    सिया की साँसें अब भी तेज़ थीं। उसका दायां कंधा खरोंच गया था — खून की एक पतली लकीर उसकी बाँह से नीचे बह रही थी। लेकिन चेहरा — वह अब भी सख्त था।

    "तुम ठीक हो?" आदित्य ने झुकते हुए उसकी ओर देखा।

    "शरीर को खरोंच आई है," सिया बोली, "इरादों को नहीं सर ।"

    आदित्य ने एक हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी उसने सिया को देखा और कहा –" सर बोलना बंद नहीं करोगी ना"

    सिया ने आदित्य को देखा और कहा –" बिल्कुल नहीं इतना बोल वो हल्का सा मुस्कुराई और बोली"
    "अब ये लड़ाई पन्नों पर नहीं लड़ी जाएगी, "अब मैदान वही होगा जहाँ ये लोग खेलते हैं…"

    "सड़कें?" आदित्य ने गोर करते हुए कहा

    "हां, और जनता भी ।" सिया ने कहा


    ---

    अगली सुबह न्यूज़ रूम
    कांफ्रेंस हॉल में एक गंभीर बैठक चल रही थी। चैनल के कई वरिष्ठ पत्रकार, संपादक और तकनीकी टीम सिया के चारों ओर खड़ी थी।

    "ये जो हमला हुआ, वो सिर्फ सिया पर नहीं था," आदित्य ने कहा, "वो पत्रकारिता पर हमला था। और हम चुप नहीं बैठेंगे।"

    "क्या योजना है?" एक सीनियर रिपोर्टर ने पूछा।

    सिया ने अपने सामने लगे प्रोजेक्टर की ओर इशारा किया। स्क्रीन पर वसुंध भाटिया के पिछले पाँच सालों के भाषणों, वादों और अधूरे प्रोजेक्ट्स की सूची खुली थी।

    "अब हम सब मिलकर 'अधूरे वादों की रिपोर्ट कार्ड' सीरीज़ शुरू करेंगे," सिया ने कहा, "हर दिन एक नया झूठ, एक नया सच।"

    "और नाम?"

    सिया की आँखों में चिंगारी थी—
    "रणनीति: पर्दा उठा सच का।"


    ---

    वसुंध का बंगला

    वसुंध ने चुपचाप सिगार सुलगाया। कमरा धुएँ से भर गया।"तुम्हारी चेतावनी के बावजूद वो लड़की बाज नहीं आई, दिया," उसने कहा।

    दिया ने मुस्कराकर उत्तर दिया, "क्योंकि उसे लगता है कि वो अकेली नहीं है।""तो क्या करो?"

    "तोड़ो उसे वहीं से, जहाँ वो सबसे मज़बूत दिखती है — आदित्य से।"

    वसुंध ने सिर घुमाया।
    "उस बॉस को?"

    "हां। उसकी ईमानदारी, उसका साथ… यही सिया का कवच है। और हर कवच के पीछे कोई एक 'कमज़ोर बिंदु' जरूर होता है।"


    चैनल पर लाइव शो — जनता की आवाज़

    सिया स्टूडियो में बैठी थी। स्क्रीन पर लिखा था —
    "रणनीति: वादे और धोखे की कहानी"

    उसने कैमरे की ओर देखा —"आज हम बात करेंगे उस पुल की, जिसका उद्घाटन तीन बार हुआ, लेकिन आज भी वहाँ से सिर्फ झूठ गुजरता है… गाड़ियाँ नहीं।"

    स्क्रीन दो हिस्सों में बंटा — एक तरफ सरकारी विज्ञापन, दूसरी तरफ जमीनी रिपोर्ट।

    "ये पुल वसुंध जी के कार्यकाल की पहली उपलब्धि बताई जाती है… लेकिन क्या एक अधूरा पुल, एक झूठा विज्ञापन बन सकता है?"

    लोग कॉल करने लगे। सोशल मीडिया पर #रणनीति ट्रेंड करने लगा।


    ---

    एक सुनसान कॉरिडोर आदित्य अपने ऑफिस से घर लौट रहा था। तभी उसके फोन पर एक वीडियो आया — अनजान नंबर से।

    उसने वीडियो देखा तो वीडियो में था सिया, अपने कमरे में थी … और खिड़की के पार एक छाया, जो उसे देख रहा था और उसपर गण प्वाइंट की हुई थी तभी उसने उस वीडियो के नीचे देखा जहां लिखा था "हम सिर्फ डराते नहीं," "अब तुमसे वो छीनेंगे, जो तुम्हें सबसे ज़्यादा प्रिय है।"आदित्य का चेहरा ये सब देखकर कठोर हो गया था।


    दूसरी और दिया एक पुरानी फैक्ट्री में किसी से मिल रही थी।

    "तैयारी कर लो," उसने कहा,
    "अगला हमला सीधा होगा। और इस बार, हमें सिर्फ डराना नहीं है।
    हमें उन्हें चुप कराना है… अंदर से।"

    परछाईं से एक गहरी आवाज़ आई —
    "उसे तबाह करने में मज़ा तभी है, जब वो लड़े… और फिर गिरे।"दिया मुस्कराई।

    दोपहर — चैनल का एडिटिंग रूम

    "वीडियो फुटेज की क्वालिटी ठीक नहीं है," टेक्निकल हेड बोला,
    "लेकिन साफ़ दिख रहा है — कोई सिया की खिड़की के पास मंडरा रहा था।"

    आदित्य स्क्रीन की ओर देखता रहा, उसकी आंखों में आग थी।"इस बार खेल पर्सनल हो चुका है।"

    सिया पास खड़ी थी। उसने आदित्य की बाज़ू पर हाथ रखा।"ये जो लड़ाई है, आदित्य... अब हमारे बीच की नहीं रही। ये उन सबकी है जो सच बोलने से डरते हैं।"

    "लेकिन अब डर को डराने का वक़्त आ गया है।"


    ---

    वसुंध भाटिया का बंगला

    दिया सक्सेना ने एक मोटी फ़ाइल टेबल पर रखी।
    "ये है तुम्हारी अगली चाल का नक्शा।"

    वसुंध ने फ़ाइल खोली। पन्नों पर तस्वीरें थीं — सिया और आदित्य की, कुछ पुराने वीडियो, कुछ रिपोर्ट्स।

    "तुम्हें क्या लगता है, दिया?" वसुंध बोला, "इतना काफी है?"

    "
    ---






    To Be Continued...