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Ishq hai tumse

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💫 The Arzoo Queen 👑

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ये कहानी है दो ऐसे लोगो की जो एक दुसरे से बिल्कुल अलग है । एक आग है तो दूसरा पानी । पार्थ बिरला एशिया का टोप 5 मे कंपनियो मे एक कंपनी हे, बिरला गुप ओफ इंडस्ट्री का सीईओ है । वही प्रिया अग्निवंशी एक बेहद, खूबसूरत , समझदार ओर बेहद प्...

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Parth Birla

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Total Chapters (38)

Page 1 of 2

  • 1. Ishq hai tumse - Chapter 1

    Words: 1457

    Estimated Reading Time: 9 min

    मालाबार हिल्स, मुंबई

    अरब सागर की ठंडी हवाओं से घिरा एक शानदार विला था। उसकी बाहरी दीवारों पर उकेरे गए नक्काशीदार पत्थर और करीने से कटी हरियाली इस बात का संकेत देते थे कि यह कोई आम घर नहीं, बल्कि रुतबे और शानो-शौकत की मिसाल है। विला के गेट पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था—"बिरला मैनशन"।

    अंदर की हवा में अगरबत्तियों की खुशबू और ताज़े गुलाब की भीनी महक घुली हुई थी। विशाल डाइनिंग हॉल में एक भव्य टेबल पर बिरला परिवार नाश्ते में व्यस्त था। सफेद झक पर्दे, कीमती झूमर की रोशनी और कीमती क्रॉकरी इस सुबह को और भी शाही बना रही थी।

    इसी बीच, लकड़ी की सीढ़ियों से तेज़ कदमों की आवाज़ आई। फर्स्ट फ्लोर से एक लंबा-सा नौजवान, काले ब्लेज़र को हाथ में थामे, जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ उतरते हुए बाहर की ओर बढ़ रहा था। उसकी उम्र लगभग 25-26 साल रही होगी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी, बाल सलीके से पीछे जमे हुए, आँखों में गंभीरता और चाल में आत्मविश्वास।

    तभी पीछे से एक मधुर, पर हल्की चिंतित आवाज़ आई—
    "पार्थ, रुको ना बेटा... नाश्ता तो करके जाओ!"

    यह आवाज़ पायल बिरला की थी—पार्थ की माँ, उम्र लगभग 38 साल, साड़ी में लिपटी, सज्जन और सौम्य महिला। उनकी आँखों में बेटे की चिंता साफ़ झलक रही थी।

    पार्थ ने चलते-चलते पलटकर कहा,
    "मोम, पहले ही लेट हो चुका हूँ। ब्रेकफास्ट ऑफिस में कर लूंगा।"

    पायल कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी टेबल के एक कोने से सख़्त आवाज़ आई—
    "देखा माँ, आपका पोता अब मेरी भी नहीं सुनता।"

    पायल चुप हो गईं, लेकिन उनकी आँखों में एक हल्की शिकायत तैर रही थी।

    पास ही बैठीं शोभा बिरला, उम्र 75, पार्थ की दादी और पायल की सास—सफेद बालों में पिन फँसी हुई, माथे पर बड़ी लाल बिंदी, रेशमी साड़ी में लिपटी, पूजा-पाठ में विश्वास रखने वाली एक दयालु लेकिन सख़्त महिला—उन्होंने धीमी मुस्कान के साथ कहा,
    "सही कहा तुमने, पायल बहू... पार्थ अब हफ़्ते में चार दिन मुश्किल से हमारे साथ नाश्ता करता है।"

    और फिर थोड़ा मुँह बनाकर नाराज़ी जताई।

    पार्थ मुस्कराते हुए बोला,
    "ऐसा कुछ नहीं है दादी... आज एक बहुत ही इंपॉर्टेंट मीटिंग है बस।"

    दादी भौंहें चढ़ाते हुए बोलीं,
    "क्या इंपॉर्टेंट मीटिंग? कभी अपनी माँ की बात को भी इंपॉर्टेंस दो!"

    "दादी यार..." पार्थ ने थोड़ा झेंपते हुए कहा।

    "क्या 'दादी यार'? अब इस घर में मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है!"

    शोभा बिरला ने जैसे ही ऊँची आवाज़ में कहा, पूरा डाइनिंग हॉल कुछ सेकंड के लिए ठहर गया।

    सबके चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गई, और सबने एक-दूसरे को देख कर चुपचाप नाश्ता जारी रखा।

    पार्थ ने भी मुस्कराते हुए शांत भाव से कुर्सी खींची और कुछ निवाले खाकर, फिर जल्दी से उठ खड़ा हुआ।
    "चलता हूँ, दादी... मोम... बाय!"

    और वह तेज़ी से विला के बाहर निकल गया—एक नई सुबह, एक नया दिन, और एक नई कहानी का आगाज़...


    बांद्रा, मुंबई

    एक और आलीशान विला था। अंदर एक बड़ा कमरा था जिसकी खिड़कियों पर से सुनहरी धूप पर्दों को चीरती हुई अंदर आ रही थी। कमरे की दीवारों पर हल्का पिंक और व्हाइट शेड था, दीवारों पर कुछ मोटिवेशनल कोट्स और हैंडमेड मंडला आर्ट लटक रहे थे।

    सफेद रज़ाई में लिपटी एक लड़की बड़ी ही मासूमियत से सो रही थी। तभी अलार्म की आवाज़ गूंजती है। नींद में करवट लेती वह लड़की धीरे-धीरे आँखें खोलती है, चेहरे पर नींद की मासूमियत और होंठों पर हल्की मुस्कान। यह थी—प्रिया अग्निवंशी।

    प्रिया अग्निवंशी, उम्र 23 साल, काली आँखें, गोरा रंग, गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे, height 5 फीट 5 इंच है, होंठों के नीचे काला तिल। प्रिया की मुस्कराहट देखते ही कोई भी कायल हो जाए। प्रिया ने अभी कॉलेज पूरा किया था। उसका एक ही सपना था—एक अच्छी नौकरी और अपने परिवार को उनके ऊपर गर्व हो।

    नींद भरी आँखों से मोबाइल बंद किया, और बाथरूम की ओर बढ़ गई। कुछ ही देर में तैयार होकर वह नीचे उतरती है जहाँ पूरा परिवार ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठा हुआ है।

    "गुड मॉर्निंग एवरीवन!"

    कहते हुए वह मुस्कुराकर सबको विश करती है और कुर्सी खींचकर बैठ जाती है।

    "लाडो, आराम से खाओ... खाना कहीं भागा नहीं जा रहा!"

    यह रणविजय अग्निवंशी थे—प्रिया के दादाजी, उम्र 77, रौबदार आवाज़ वाले लेकिन दिल से बेहद स्नेही व्यक्ति। वे अपने परिवार को समेट कर रखते हैं। सभी उनकी एक आवाज़ से डरते हैं। वे अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री से रिटायर हो चुके हैं और घर पर आराम कर रहे हैं।

    प्रिया मुँह बनाते हुए कहती है,
    "दादू, आज मेरा पहला दिन है ऑफिस का... लेट नहीं होना!"

    इतना कहकर वह जल्दी-जल्दी नाश्ता करती है।

    बगल में बैठे उसके पापा मुस्कुराकर बोले,
    "बेटा, आराम से खाओ... ड्राइवर तुम्हें सही समय पर कंपनी पहुँचा देगा।"

    यह थे प्रिया के पापा, राजवीर अग्निवंशी, उम्र 39 साल, अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के मालिक। वे एक ईमानदार और शांत स्वभाव के व्यक्ति हैं और अपने परिवार और काम को बहुत प्यार करते हैं। प्रिया में उनकी जान बसती है।

    प्रिया मुस्कुराते हुए बोली,
    "नहीं पापा, मैं खुद स्कूटी से जाऊँगी। रास्ते में सिया मिलेगी, हम दोनों साथ चलेंगे।"

    राजवीर थोड़ा परेशान होकर बोले,
    "लेकिन जब हमारी अपनी कंपनी है, तो तुम्हें दूसरी जगह नौकरी करने की क्या ज़रूरत?"

    प्रिया की आँखों में आत्मविश्वास था। उसने धीरे से कहा,
    "पापा, मुझे अपनी पहचान खुद बनानी है... मैं नहीं चाहती कि लोग कहें—‘राजवीर अग्निवंशी की बेटी कुछ खुद नहीं कर पाई।’ मुझे खुद के दम पर कुछ बनना है, और जब मैं कुछ हासिल करूँगी, तो आप सबको मुझ पर गर्व होगा।"

    पूरे परिवार की आँखों में गर्व की चमक थी।

    रणविजय जी के बगल वाली कुर्सी पर सुनीता अग्निवंशी बैठी थीं, प्रिया की दादी जी, उम्र 75 साल। वे खूब दयालु और पूजा पाठ में विश्वास रखती हैं।

    उनके सामने वाली कुर्सी पर, राजवीर जी के बगल में रिद्धि अग्निवंशी बैठी थीं, प्रिया की माँ, उम्र 37 साल। वे एक दयालु और समझदार औरत हैं और घर जोड़कर रखती हैं। अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हैं।

    उनके बगल वाली कुर्सी पर प्रिया के बड़े भाई, कृष अग्निवंशी बैठे थे, उम्र 25 साल। वे अग्निवंशी ग्रुप ऑफ इंडस्ट्री के सीईओ हैं। वे बिजनेस में व्यस्त रहते हैं, काली आँखें, सिल्की बाल, होंठों पर मुस्कान, लेकिन जब गुस्सा आता है तो कोई नहीं सुनता।

    तो यह है हमारी प्यारी नायिका का परिवार।


    बाहर गेट पर

    सिया स्कूटी पर इंतज़ार कर रही थी। गॉगल्स लगाए, बाल खुले, होंठों पर हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर झुँझलाहट।

    "अरे यार! कहाँ रह गई ये? कब से वेट कर रही हूँ!"

    यह थी—सिया सिंघानिया—प्रिया की बेस्ट फ्रेंड। चुलबुली, नटखट, और सच्ची दोस्त। उम्र 23 साल, हल्का गोरा रंग, लंबे बाल, होंठ बिल्कुल गुलाबी, चुलबुली सी नटखट। सिंघानिया परिवार की बेटी। इनका एक छोटा बिजनेस है।

    "आ रही हूँ यार!" प्रिया दौड़ती हुई आती है।

    "तुझे पता है ना आज हमारा पहला दिन है? और ईशा कब से राह देख रही है!"

    "पता है बाबा... चल जल्दी!"

    "एक तो तू खुद लेट होती है, ऊपर से मुझे डाँटती है!"

    "हाँ हाँ, बहुत सुना लिया तूने!"

    "चोरी ऊपर से सीना जोरी!"

    दोनों हँसते-झगड़ते ऑफिस के लिए रवाना हो जाती हैं।


    दूसरी ओर—बिरला ग्रुप ऑफ कंपनी का हेड ऑफिस

    एक बड़ी कॉर्पोरेट बिल्डिंग थी, शीशे की दीवारें, लॉबी में लगे ऑर्किड्स और सफाई का सख़्त इंतज़ाम। अचानक पूरे ऑफिस में सन्नाटा छा गया। लोग अपनी सीटों की तरफ भागने लगे। हर कोई एकदम अनुशासन में आ गया।

    जूते की खटखट की आवाज़ गूंजने लगी। सबने एक लंबी साँस खींची और देखा—दरवाज़े से पार्थ बिरला अंदर आ रहा था। चेहरे पर तेज़, चाल में आत्मविश्वास, आँखों में जुनून—पार्थ, CEO के रुतबे से ज़्यादा अपने अनुशासन और कठोर नियमों के लिए जाना जाता था।

    "मैनेजर, फाइल लेकर मेरे ऑफिस में आओ!"

    कहते हुए वह अपने केबिन की ओर बढ़ गया।

    एक नई जॉइनर ने बगल में बैठी लड़की से धीरे से पूछा,
    "इनसे सब इतना डरते क्यों हैं?"

    लड़की बिना आँख उठाए बोली—
    "अभी नई हो ना... दो दिन में समझ आ जाएगा। काम करो, नहीं तो पहले ही दिन रिज़ाइन देने की नौबत आ जाएगी!"

    कौन है यह लड़की? प्रिया और सिया की जॉब कहाँ लगी है? क्या प्रिया अपने बलबूते पर काम कर सकेगी? जानने के लिए बने रहिए मेरे इस कहानी के साथ।

  • 2. Ishq hai tumse - Chapter 2 प्रिया ने देखा पार्थ का गुस्सा

    Words: 662

    Estimated Reading Time: 4 min

    पार्थ का केबिन –

    कमरे में एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी। दीवारों पर लगे मोटे काँच पार्थ की गंभीरता को और गहराते दिखा रहे थे। तभी...

    तुषार धीमी, कंपकंपाती आवाज़ में बोला, "May I come in, sir?"

    पार्थ गंभीर, कठोर स्वर में बोला, "Coming..."

    कमरे में कदम रखते ही तुषार के चेहरे से हवाइयाँ उड़ चुकी थीं। हाथ में फाइल पकड़ते हुए उसने कांपती आवाज़ में कहा, "सर, ये रही सारी स्टाफ की डिटेल... इन्हीं में से मेहरा ग्रुप की जानकारी लीक हुई है..."

    पार्थ ने बिना उसकी ओर देखे आदेश दिया, "सभी स्टाफ को अभी बुलाओ।"

    "ओके सर!" तुषार मानो बंधा हुआ सा बाहर भाग गया।

    कुछ ही देर में पूरे ऑफिस के स्टाफ का एक छोटा हुजूम पार्थ के केबिन में खड़ा था। सबकी नज़रें ज़मीन में गड़ी थीं, जैसे सबकी सांसें थम गई हों। कोई भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।

    पार्थ की पीठ अब भी सभी की ओर थी, और तभी...

    पार्थ कड़क, गरजती आवाज़ में बोला, "जिसे भी जानकारी मिली है, खुद सामने आओ।"

    मौन... मानो पूरे कमरे को किसी ने जकड़ लिया हो।

    पार्थ बोला, "मिस्टर अजय ठाकुर, सामने आओ!"

    अजय काँपते हुए बोला, "जी... जी सर... मैं..."

    पार्थ बोला, "अपनी जान प्यारी नहीं है क्या?"

    अजय बोला, "सर... मैंने कुछ नहीं किया..."

    पार्थ गर्दन घुमाकर, खतरनाक निगाहों से बोला, "सच बोलो वरना तुम जानते हो अंजाम क्या होगा।"

    अजय घुटनों पर गिर पड़ा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

    अजय गिड़गिड़ाते हुए बोला, "प्लीज़ सर... माफ कर दीजिए... मैंने जानबूझ कर नहीं किया... मेरे परिवार को जान से मारने की धमकी दी थी... मजबूरी में किया..."

    पार्थ तेज़ आवाज़ में बोला, "तुमने मेरी कंपनी से गद्दारी की है!"

    तुषार बोला, "सर..."

    पार्थ बोला, "इसका रेज़िग्नेशन लेटर तैयार करो... सुबह तक ये यहाँ नज़र नहीं आना चाहिए। और सुन लो, आगे से अगर ऑफिस की एक बात भी बाहर गई, तो इस दुनिया में तुम्हारा नामोनिशान नहीं रहेगा!"

    सबके चेहरे सर्द पड़ गए। अजय ज़मीन पर गिरकर रोता रहा और बोला, "सर Please सर आगे से कभी नहीं होगा।" अजय गिड़गिड़ाते हुए बोल रहा था।

    पार्थ के लिए शायद कोई फर्क ही ना पड़ रहा हो। उसकी आँखों में कोई दया नहीं थी। वह बर्फ की तरह ठंडा और लोहे की तरह सख़्त था।


    ऑफिस के बाहर –

    भीड़ छंट चुकी थी। तभी ईशा, सिया और प्रिया को अंदर लाती है।

    प्रिया धीरे से बोली, "ये यहाँ के सीईओ सर हैं ना? कितना गुस्सा करते हैं!"

    सिया बोली, "खाली गुस्सा? अकड़ू, खडूस, हार्टलेस इंसान है वो! किसी पर दया नहीं आती और कभी किसी को माफ भी नहीं करता।"

    प्रिया बोली, "बाप रे! कितना एरोगेंट है यार। लेकिन हमें क्या, हमें तो बस अपना काम करना है।"

    सिया बोली, "सही कहा, चल अब जल्दी वरना ईशा फाड़ खाएगी।"

    दोनों लड़कियाँ आगे बढ़ जाती हैं। पर तभी...

    प्रिया की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने अपने सीने पर हाथ रखा, इधर-उधर देखा... कोई नहीं था। पर कोई तो था... कोई अहसास था जो उसके दिल को छू गया था।

    प्रिया धीरे से खुद से बोली, "क्या हो रहा है मुझे...? ये कैसा अहसास है?"

    वहीं, पार्थ, जो अपने केबिन की ओर जा रहा था, कुछ पल को रुका। दिल की धड़कनें... कुछ अजीब था।

    पार्थ मन में सोचा, "ये अजीब सी बेचैनी क्यों...?"

    पर उसने ध्यान नहीं दिया और अपने केबिन में चला गया।


    एक सिक्योरिटी एजेंट पार्थ के सामने खड़ा था।

    एजेंट बोला, "सर, आपने जो पता लगाने को कहा था... हमें पता लग गया है।"

    तो आप सब को क्या लगता है? किसका पता लगाने को बोल रहा है पार्थ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी ishq hai tumse.....

  • 3. Ishq hai tumse - Chapter 3 पहली मुलाकात

    Words: 921

    Estimated Reading Time: 6 min

    पार्थ अपनी पर्सनल लिफ्ट से सीधा अपने केबिन में दाखिल हुआ।

    हर कदम में वही तेज़ी, वही गुरूर, वही क्लास झलकती थी। दरवाज़ा खुलते ही उसका दबदबा पूरे कमरे में फैल गया। वह अपनी बड़ी, चमचमाती चेयर पर बैठते हुए लैपटॉप खोला और काम में व्यस्त हो गया।

    वह आज कुछ ज़्यादा ही हैंडसम लग रहा था।

    सिल्की बाल, हल्की सी बिखरी लट, नीली आंखों की चमक और फॉर्मल शर्ट की परफेक्ट फिटिंग – मानो कोई रॉयल कैरेक्टर किसी कॉर्पोरेट दुनिया में उतर आया हो।

    काम में डूबा पार्थ कुछ देर बाद अचानक रुक गया। क्योंकि कोई उसका दरवाजा खटखटा रहा था। जिसे सुनकर पार्थ बोला, "अंदर आ जाओ।"

    "सर, आपने जो पता लगाने को कहा था... हमें पता लग गया है। वो यहीं मुंबई में रहती है।" ये सुन बाहर खड़ा आदमी अंदर आया और बोला।

    "ये रही उनकी डिटेल्स।" फिर एक फाइल देते हुए बोला।

    पार्थ ने उस आदमी के हाथ से फाइल ली और उसे बाहर जाने का इशारा किया। उसका इशारा पाते ही वह आदमी वहाँ से चला गया।

    उसके जाने के बाद पार्थ ने वो फाइल खोलकर देखनी शुरू कर दी। पहले पेज में उस इंसान की कुछ फोटो थीं। जिन्हें देखकर पार्थ बोला, "जान तुम कितनी क्यूट लग रही हो इसमें। काश तुम इस वक्त मेरे पास होतीं। तो मैं अभी तुम्हें जी भर के प्यार करता।"

    "I miss you Jaan. कहाँ कहाँ नहीं ढूँढा तुम्हें पर तुम तो अपने ही शहर में मिलीं। मैं भी कितना बुद्धू हूँ ना तुम्हें इंडिया के हर कोने में खोज डाला। पर तुम यहीं मिलीं। काश मैं ये पहले कर दिया होता। तो तुम मेरे पास होतीं अब तक।" फिर उस फोटो को अपने सीने से लगाते हुए बोला।

    इससे आगे की वो और डिटेल्स पढ़ रहा था। उसके कानों में बाहर से किसी के धीमे कदमों की आहट सुनाई दी... जैसे कोई बहुत नर्म पैर रख रहा हो।

    बाहर प्रिया, गुलाबी पलाज़ो पहने हुए, एक फाइल लेकर पार्थ के केबिन की ओर बढ़ रही थी।

    उसका दुपट्टा ज़मीन को छू रहा था और हवा में हल्के-हल्के लहरा रहा था। तभी किसी आवाज़ से चौंककर वह पीछे मुड़ी और उसका दुपट्टा उसके ही पाँव में फँस गया।

    "अरे..."

    वह खुद को संभालने की कोशिश करने लगी। गिरने से बचने के लिए दरवाज़े के हैंडल को पकड़ना चाहती थी, लेकिन तभी...

    दरवाज़ा अंदर से खुल गया... और प्रिया सीधे उस शख्स के ऊपर गिर पड़ी।

    वह शख्स कोई और नहीं, खुद पार्थ था।

    प्रिया का शरीर उसका बैलेंस बिगाड़ दिया और दोनों ज़मीन पर गिर गए। पार्थ के हाथ प्रिया की कमर को थाम लिए, उसे गिरने से बचाने के लिए।

    प्रिया डर से अपनी आँखें भींच लेती है और उसकी दोनों मुट्ठियाँ कसकर पार्थ की कॉलर पकड़ लेती हैं। एक अजीब सी खामोशी भर गई केबिन में... बस दिलों की धड़कनों की आवाज़ें रह गई थीं।

    पार्थ के चेहरे पर हैरानी थी, पर उसकी आँखों में बस एक ही चेहरा – प्रिया।

    उसके गुलाबी पलाज़ो में, हल्के खुले बाल, कानों में झुमके, हाथ में घड़ी, और गले में R लिखी पतली सी चेन – वह बेहद खूबसूरत लग रही थी।

    वह एकदम नज़दीक थी।

    पार्थ का हाथ अब भी उसकी कमर को थामे हुए था, और वह उसकी मासूम, डरी हुई बंद आँखों को निहार रहा था।

    धीरे-धीरे प्रिया अपनी आँखें खोलती है...

    और सामने जैसे कोई सपना हक़ीक़त बनकर खड़ा हो। उसकी नज़रें पार्थ की नीली आँखों में खो जाती हैं।

    पार्थ की मस्कुलर बॉडी, गुलाबी होठ, हल्की सी ठंडी साँस... सब कुछ जैसे प्रिया की धड़कनें बढ़ा रहे थे।

    एक पल को दोनों एक-दूसरे की आँखों में खो जाते हैं।

    जैसे दुनिया की सारी आवाज़ें बंद हो गई हों। लेकिन तभी...

    पार्थ का फ़ोन बज गया।

    वह होश में आया और प्रिया की कमर से हाथ हटाकर थोड़ा दूर जाकर फ़ोन रिसीव किया।

    प्रिया अब भी उसे देख रही थी।

    जैसे उसकी आँखें कह रही हों, "तुम कौन हो? क्यों इस तरह दिल को छू गए?"

    फ़ोन खत्म होते ही पार्थ वापस आया और देखा कि प्रिया अब भी उसे देख रही है।

    एकदम गंभीर होकर गुस्से में बोला:

    पार्थ (सख़्त लहजे में):

    "तुमको यहाँ आने के लिए किसने कहा?"

    प्रिया (घबराई हुई, सिर झुकाकर धीरे से बोलती है):

    "सॉरी सर... वो... वो फ़ाइल में आपकी सिग्नेचर चाहिए थी... और सीनियर ने मुझे भेजा..."

    पार्थ उसकी काँपती आवाज़ सुनकर जैसे ठहर गया।

    उसकी आवाज़ में मासूमियत थी, डर था, पर सच्चाई भी थी।

    पार्थ (धीमे लहजे में, खुद को संयमित करते हुए):

    "फ़ाइल डेस्क पर रख दो... मैं जब सिग्न कर लूँगा, तब मैनेजर से भिजवा दूँगा।"

    प्रिया (धीरे से, नज़रें झुकाए):

    "जी सर..."

    और बिना पलटे, जल्दी से बाहर निकल गई।

    बाहर आते ही, प्रिया अपना एक हाथ सीने पर रख लेती है और खुद से बड़बड़ाती है, "क्या बंदा है यार... सीईओ सर कितना गुस्सा करते हैं... मैं तो बच गई..."

    (फिर अपनी डेस्क की ओर चली जाती है, लेकिन दिल अब भी तेज़ धड़क रहा था)

    उधर पार्थ, केबिन के अंदर प्रिया के पीछे जाती निगाहों से देखता है...

    फिर खुद से बड़बड़ाता है, "शीट..."

    पार्थ धीमी, खोई हुई आवाज़ में बोलता है, "जो देखा वो सपना नहीं था... वो सच में मेरे सामने थी... और... वो मेरी ही कंपनी में काम कर रही है..."

    वह अपनी चेयर पर बैठते हुए आँखें बंद करता है... और अतीत की गलियों में खो जाता है...।

    तो आप सब को क्या लगता है?

    किसके बारे में बात कर रहा है पार्थ?

  • 4. Ishq hai tumse - Chapter 4 फ्लैशबैक (प्रिया नशे में)

    Words: 1144

    Estimated Reading Time: 7 min

    पार्थ अपनी चेयर पर बैठा था, आँखें बंद थीं, लेकिन ज़ेहन में एक ही चेहरा घूम रहा था – प्रिया।

    "वो बिल्कुल वैसी ही है जैसी मैंने उसे याद किया था... बल्कि शायद उससे भी ज़्यादा ख़ूबसूरत..." – वह खुद से बड़बड़ाया।

    कई सालों बाद किसी की मौजूदगी ने उसे अंदर तक हिला दिया था।

    पार्थ ने अपनी आँखें खोलीं, फिर सामने रखी उस फाइल को देखा जिसमें प्रिया की फोटो लगी थी।

    "लेकिन वो मुझे पहचानती क्यों नहीं...? क्या वो मुझे भूल गई...? या फिर... उसने कभी मुझे वैसे देखा ही नहीं जैसे मैंने उसे देखा था?"

    उसकी आँखें हल्की सी नम हो गईं, लेकिन चेहरा अब भी ठंडा और कठोर बना हुआ था।

    "अगर वो मुझे नहीं पहचानती... तो कोई बात नहीं। अब मैं उसे खुद से दूर नहीं जाने दूँगा।"


    दूसरी ओर, प्रिया अपने डेस्क पर बैठी थी, लेकिन उसका ध्यान फाइल पर नहीं था।

    उसका दिल अब भी थोड़ी देर पहले की घटना को दोहरा रहा था।

    "वो शख्स... उनका चेहरा... उनकी आँखें... इतनी तीव्रता से मुझे क्यों देख रहे थे...? जैसे मुझे जानते हों... लेकिन मैंने तो उन्हें पहले कभी नहीं देखा..."

    वो अपने चेहरे पर हाथ फेरती है और धीरे से मुस्कुरा देती है,

    "मुझे तो लग रहा था मैं फिल्म के किसी सीन में आ गई थी। गिरना, पकड़ना, वो भी किसी हैंडसम सीईओ के ऊपर..."

    फिर खुद को झटका देती है,

    "नहीं नहीं प्रिया, अब फालतू सपने देखना बंद कर। वो तुम्हारे बॉस हैं, और बहुत गुस्सैल भी। उनका मूड पल में बदल सकता है। बस... उनसे दूरी बनाए रखना ही ठीक रहेगा।"


    अगले दिन, पार्थ अपने ऑफिस में बैठा था। आज उसकी आँखें बार-बार उस डेस्क की ओर चली जाती थीं जहाँ प्रिया बैठी थी।

    वो उसे निहारना नहीं चाहता था, लेकिन रोक भी नहीं पा रहा था।

    कभी-कभी ऐसा भी लगता जैसे वो उठकर सीधे उसके पास चला जाए और कह दे...

    "तुम्हें नहीं पता, लेकिन मैं तुम्हें बहुत पहले से जानता हूँ... और तुम मेरे दिल के बहुत क़रीब हो।"

    लेकिन नहीं...

    पार्थ जानता था कि प्रिया के लिए वह सिर्फ एक बॉस है — एक अजनबी।


    दो साल पहले, गोवा की एक समर नाइट। पार्टी अपने शबाब पर थी। चारों ओर रंग-बिरंगी लाइट्स, तेज़ म्यूज़िक और लोगों की हँसी गूंज रही थी। भीड़ के बीच, सफेद ड्रेस में एक लड़की डगमगाते क़दमों से बार काउंटर की तरफ जा रही थी — वो थी प्रिया।

    उसके होठों पर हँसी थी लेकिन आँखों में खालीपन। शायद किसी से लड़कर आई थी... या फिर अकेलेपन से भागने की कोशिश कर रही थी।

    "एक और ड्रिंक..." – उसने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा।

    बारटेंडर थोड़ा झिझका, लेकिन फिर उसने दे दिया।

    पास खड़े कुछ लड़कों की निगाहें उस पर थीं। उनमें से एक ने अपने दोस्तों से कहा,

    "देखो यार, वो लड़की तो पूरी टल्ली हो चुकी है। चलो बात करते हैं... क्या पता आज रात की मस्ती पक्की हो जाए।"


    वहीं दूसरी ओर, पार्थ अपने कुछ क्लाइंट्स के साथ उसी होटल में मीटिंग अटेंड करने आया था। मीटिंग खत्म होने के बाद वो थोड़ी देर लॉबी में टहल रहा था कि किसी शोर-गुल की आवाज़ सुनकर उसका ध्यान उधर गया।

    उसकी आँखें अचानक उस लड़की पर अटक गईं — प्रिया।

    सफेद ड्रेस, खुले बाल, नशे से भरी आँखें... लेकिन चेहरा ऐसा जैसे उसने कहीं देखा हो।

    और तभी उसने देखा — एक लड़का प्रिया का हाथ पकड़कर जबरदस्ती उसे बाहर की ओर ले जाने लगा।

    प्रिया उसके खिलाफ झिझक रही थी लेकिन नशे में बोल नहीं पा रही थी।

    पार्थ की आँखों में गुस्सा भर आया। उसने बिना कुछ सोचे उस लड़के का कॉलर पकड़ लिया और गुस्से में घसीट कर दूर फेंक दिया।

    "अगर दोबारा किसी लड़की की तरफ गंदी नज़र डाली तो ज़ुबान काट दूंगा..." – उसकी आवाज़ में खौफ था।

    लड़के भाग गए।

    पार्थ ने प्रिया की तरफ देखा — वो अब भी नशे में थी। उसकी आँखें बोझिल थीं और वो खुद को संभाल नहीं पा रही थी।

    "तुम ठीक हो?" – पार्थ ने धीरे से पूछा।

    प्रिया ने बस उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कुरा दी, "आपकी आँखें... बहुत खूबसूरत हैं।"

    फिर उसकी पकड़ ढीली पड़ी और वो बेहोश हो गई।


    कुछ देर बाद, पार्थ उसे अपनी कार में बैठाकर होटल के प्राइवेट रूम में ले आया। उसके लिए पानी और हल्का खाना मंगवाया, लेकिन वो अब भी बेसुध थी।

    वो उसे बेड पर ले गया, उसकी जूती उतारी, कंबल ओढ़ाया और बस देखता रहा...

    "तुम्हें नहीं पता, पर तुमने आज मेरी धड़कनें रोक दी थीं।"

    थोड़ी देर बाद जब वो करवट ले रही थी, उसने धीरे से पार्थ का हाथ थाम लिया। नशे में ही बड़बड़ाई,

    "आपको कहीं जाना नहीं है... बस यहीं रहना है..."

    पार्थ उसकी मासूमियत से हिल गया।

    "मैं कहीं नहीं जाऊँगा..."

    और जैसे ही वो उसके पास बैठा, प्रिया ने उसकी कॉलर पकड़कर हल्का सा खींचा — और दोनों के बीच एक अनजाने पल में एक किस हो गई।

    पार्थ स्तब्ध रह गया।

    लेकिन प्रिया वो किस करते ही कंबल में दुबक गई... और सो गई।


    अगली सुबह, पार्थ बाथरूम में शॉवर ले रहा था। बाहर हल्की धूप कमरे में घुस रही थी।

    तभी प्रिया की नींद खुलती है। उसका सिर थोड़ा भारी था।

    "ये कौन सी जगह है...? मैं यहां कैसे आई...?"

    उसकी नज़र सामने टेबल पर रखे पानी और कंबल पर पड़ी। फिर बाथरूम के शॉवर की आवाज़ आई।

    वो घबरा गई।

    "मैं किसी अनजान कमरे में हूँ...? और कोई अंदर नहा रहा है...? ओ माय गॉड!" – वो डर के मारे तुरंत खड़ी हुई।

    उसने अपना पर्स उठाया, दुपट्टा संभाला और बिना पीछे देखे भाग गई।


    पार्थ जब बाहर आया...

    कमरा खाली था।

    उसने इधर-उधर देखा, फिर खिड़की से झांका... लेकिन वो जा चुकी थी।

    उसके चेहरे पर सिर्फ एक उदास मुस्कान थी।

    "तुम्हें कुछ याद नहीं रहेगा... लेकिन मेरे लिए वो रात हमेशा रहेगी... तुम्हारी पहली मासूम मुस्कान से लेकर, तुम्हारे जाने तक।"

    क्या होगा अब? पार्थ कैसे अपने प्यार का एहसास दिलाएगा प्रिया को?

  • 5. Ishq hai tumse - Chapter 5 नए PA की खोज

    Words: 1136

    Estimated Reading Time: 7 min

    वर्तमान — पार्थ का केबिन, मुंबई

    पार्थ अपनी आँखें बंद किए कुर्सी पर बैठा था। फ्लैशबैक की हर तस्वीर उसकी आँखों में ताज़ा थी—प्रिया का डगमगाता चेहरा, उसका हाथ थामना, वो एक छोटी-सी किस... और अगली सुबह उसका भाग जाना।

    उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में टीस।

    "तुम भूल गई... लेकिन मैं नहीं भूल सका।"

    तभी उसके केबिन का दरवाज़ा हल्के से खुला। प्रिया फिर से दाखिल हुई, उसी फाइल के साथ जिसमें पहले पार्थ ने साइन नहीं किया था।

    "सर... आपने बोला था सीनियर से भिजवाने को... लेकिन उन्होंने कहा कि आपसे डायरेक्ट ले लूँ।"

    पार्थ आँखें खोलीं। उसके सामने खड़ी वही लड़की—प्रिया।

    बिलकुल वैसी ही मासूमियत। वैसी ही सीधी-सादी चाल।

    पार्थ कुछ पल उसे चुपचाप देखता रहा। उसे आज फिर वही रात याद आई—जब वो इसी तरह सफ़ेद ड्रेस में कांप रही थी और उस पर विश्वास करके उसके सीने से लग गई थी।

    "तुम अब भी उतनी ही मासूम हो, प्रिया।"

    प्रिया उसकी नज़रें महसूस करती है, पर समझ नहीं पाती।

    "क्या हुआ सर?"—वो धीरे से पूछती है।

    पार्थ एकदम चौंका—जैसे उसकी सोच में घुस आई हो।

    "कुछ नहीं। फाइल दो।"

    वो साइन करता है और फाइल लौटाता है।

    "थैंक्यू सर..."—प्रिया कहती है, और जाने लगती है। लेकिन जाते-जाते उसका दुपट्टा एक बार फिर टेबल के कोने से अटक जाता है।

    वो हल्का सा झुकती है, और उसे निकालकर संभालती है।

    पार्थ उस दृश्य को देखता है, और उसी पल उसे उस रात का वो पल याद आ जाता है—जब प्रिया नशे में थी और उसका दुपट्टा फर्श पर घसीटता चला जा रहा था।

    उसका दिल एक बार फिर डोल जाता है।

    "क्या तुम मुझे फिर से उसी तरह अनदेखा कर दोगी, प्रिया?"—उसने मन ही मन कहा।

    प्रिया कुछ समझ नहीं पाती। उसकी नज़रें अब भी उस शख्स को समझने में उलझी हैं—जो कभी गुस्से से भर जाता है, तो कभी चुपचाप उसे देखता रहता है।


    अगले दिन, बीरला कॉर्पोरेट हेडक्वार्टर—सुबह 10 बजे

    पार्थ अपने केबिन में बैठा था, लैपटॉप के स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए। तभी दरवाज़ा खटखटाया गया।

    "Come in!"—उसकी तेज़ आवाज़ गूंजती है।

    उसका PA, आदित्य अंदर आता है, थोड़ा घबराया हुआ।

    "सर... एक ज़रूरी बात करनी थी।"

    पार्थ आँखें उठाकर देखता है—उसकी तीखी नज़रें सीधे आदित्य पर टिक जाती हैं।

    "बोलो।"

    "सर... मुझे कंपनी छोड़नी है। एक पर्सनल फैमिली इशू के चलते... मैं बाहर शिफ्ट हो रहा हूँ।"—आदित्य ने धीमे स्वर में कहा।

    कुछ देर खामोशी छा जाती है। पार्थ की आँखें स्थिर हो जाती हैं।

    "Fine।"—उसने संक्षेप में कहा।
    "HR को बोलो, मेरी नई पर्सनल असिस्टेंट के लिए आज ही इंटरव्यू शुरू करवा दें। I don’t have time to waste."

    "Yes sir।"—आदित्य सिर झुकाकर बाहर चला जाता है।


    अगले दिन—HR कॉन्फ्रेंस रूम

    इंटरव्यू का सिलसिला शुरू हो चुका था।

    पार्थ टेबल पर बैठा था, बगल में HR हेड। एक-एक कर कैंडिडेट्स अंदर आ रहे थे।

    पहली लड़की आई—ज़्यादा बनावटी मुस्कान, ज़रूरत से ज़्यादा मेकअप।

    "Hi sir, I’m Priyanka. MBA gold medalist..."—वो शुरू हुई।

    पार्थ ने पाँच मिनट में ही उसे रिजेक्ट कर दिया।

    "Next।"—उसकी आवाज़ सख़्त थी।

    दूसरी आई—बहुत नर्वस।

    "आपको Excel आता है?"—पार्थ ने पूछा।

    "थोड़ा-बहुत..."—लड़की कांपती हुई बोली।

    "Out।"—पार्थ ने ठंडे लहजे में कहा।

    तीसरी, चौथी, पाँचवीं...

    हर कोई किसी न किसी वजह से रिजेक्ट होता जा रहा था।

    HR हेड धीरे से बोलती हैं, "सर, आज तो 200 से ज़्यादा इंटरव्यू हो चुके हैं... लेकिन आपको कोई पसंद नहीं आ रहा।"

    पार्थ गहरी साँस लेकर आँखें बंद करता है। फिर कहता है,

    "क्योंकि कोई भी उस लेवल की नहीं है जिसकी मुझे ज़रूरत है।"

    HR कुछ कहती उससे पहले ही दरवाज़ा फिर से खटखटाता है।

    "Last candidate है सर। Shall I send her in?"

    "Yes।"

    "सर, आज की लास्ट कैंडिडेट ने कुछ देर पहले कॉल करके इंटरव्यू कैंसल कर दिया है।"

    पार्थ (थोड़ा चिढ़कर):
    "Useless। किसी को काम की कद्र ही नहीं।"

    वो कुर्सी से उठता है, अपनी घड़ी देखता है और गुस्से में केबिन की ओर चला जाता है। आज की इंटरव्यू यहीं खत्म होती है।


    ऑफिस की गलियारा,

    प्रिया फाइल्स ले जा रही होती है, जब सामने से पार्थ आता है। एक पल को दोनों की नज़रें मिलती हैं।

    पार्थ की आँखें कुछ पल के लिए ठहर जाती हैं—उसे रात की वो हल्की छवि याद आती है... वो गुलाबी पलाज़ो, डर से कांपती आँखें...

    लेकिन प्रिया बिना कुछ कहे आगे निकल जाती है।

    पार्थ मुड़कर देखता है... और खुद से बड़बड़ाता है,

    "ये लड़की कुछ ज़्यादा ही असर डाल रही है मुझ पर..."

    एक हफ़्ता बीत चुका था। पार्थ के ऑफिस में इंटरव्यूज़ की लाइनें लगी रहतीं, रोज़ नए चेहरे आते, फ़ॉर्मल कपड़ों में सजे लोग आत्मविश्वास से इंटरव्यू देने आते, मगर...

    नतीजा हर दिन वही होता—"Rejected।" अब तक 1000 से भी ज़्यादा लोग इंटरव्यू दे चुके थे।

    पार्थ हर किसी को देखकर सिर्फ़ एक ही चीज़ कहता—"No spark. No sense. No class."

    HR टीम परेशान थी। ऑफिस का काम ठप होने लगा था क्योंकि पार्थ बिना असिस्टेंट के काम करने को तैयार नहीं था।

    एक सुबह, जब पार्थ अपने केबिन में अकेला बैठा था, माथे पर झुंझलाहट साफ़ दिख रही थी।

    तो आप सब को क्या लगता है?
    क्या करेगा अब पार्थ?
    क्या पार्थ के मुश्किल का हल मिलेगा?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "Ishq hai tumse"...

  • 6. Ishq hai tumse - Chapter 6 ऑफिस के एम्पलाइज का इंटरव्यू

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    एक हफ़्ता बीत चुका था। पार्थ के ऑफिस में इंटरव्यूज़ की लाइनें लगी रहती थीं, रोज़ नए चेहरे आते, फॉर्मल कपड़ों में सजे लोग आत्मविश्वास से इंटरव्यू देने आते, मगर…

    नतीजा हर दिन वही होता—“Rejected.”

    अब तक 1000 से भी ज़्यादा लोग इंटरव्यू दे चुके थे। पार्थ हर किसी को देखकर सिर्फ़ एक ही चीज़ कहता—“No spark. No sense. No class.”

    HR टीम परेशान थी। ऑफिस का काम ठप होने लगा था क्योंकि पार्थ बिना असिस्टेंट के काम करने को तैयार नहीं था।

    एक सुबह, जब पार्थ अपने केबिन में अकेला बैठा था, माथे पर झुंझलाहट साफ़ दिख रही थी। वो लगातार अपना पेन टेबल पर घुमा रहा था। तभी दरवाज़ा खटखटाया गया।

    "May I come in, bro?"

    वो था युग—पार्थ का कॉलेज वाला सबसे करीबी दोस्त, उसका एक प्रोजेक्ट का पार्टनर भी था। पार्थ कुर्सी से टेक लगाते हुए, गहरी साँस लेकर बोला, "यार मैं थक गया हूँ युग। इतने लोगों को देखा, पर कोई भी उस लेवल का नहीं मिला। कोई ओवर स्मार्ट, कोई ओवर स्टाइलिश, किसी को बेसिक मैनर्स नहीं।"

    युग मुस्कराते हुए पास की चेयर खींचता है।

    "तो फिर एक आइडिया सुन।"

    पार्थ बोला,

    "अगर फिर से कोई एजेंसी वाला भेजा तो खुद एजेंसी खरीद लूँगा।"

    युग हँसता है, फिर गंभीर होकर कहता है:

    "नहीं... इस बार सोचा है, क्यों न तुम्हारी ही कंपनी के अंदर से कुछ स्टाफ्स का इंटरव्यू करवा लिया जाए?"

    पार्थ थोड़ा चौंकता है:

    "मतलब?"

    युग बोला,

    "मतलब यह कि तुम्हारी कंपनी में काफी लोग ऐसे हैं जो सालों से हैं, या नए हैं पर स्मार्ट हैं। उन्हें मौका दो। HR से कहो कि वो इंटरनल सर्कुलर निकाले। उसमें कुछ अच्छे कैंडिडेट्स को इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट करें।"

    पार्थ थोड़ी देर सोचता है, फिर हल्के से मुस्कुराता है।

    "Hmm… interesting. और उससे पहले की स्क्रीनिंग तुम करवा दो। जिनमें spark लगे… उन्हें मेरे पास भेज देना।"

    युग (कंधा थपथपाते हुए):

    "Done bro. अब देखते हैं तुम्हारे लिए असली डायमंड कौन निकलेगा…"

    उसके बाद दोनों अपने-अपने घर के लिए निकल गए क्योंकि आज का ऑफिस टाइम ख़त्म हो गया था।

    अगली सुबह, ऑफिस के हर डिपार्टमेंट में एक ही चर्चा थी—

    "सीईओ सर खुद इंटरव्यू लेने वाले हैं।"

    "इस बार इंटरनल स्टाफ को भी चांस मिलेगा!"

    "आज तो सब अपनी बेस्ट आउटफिट में आए हैं।"

    कल की मीटिंग के बाद पार्थ का संदेश हर डिपार्टमेंट में गूंज चुका था।

    “Internal Interview for Personal Assistant – Starts Tomorrow. Prepare Well.”

    HR ने घोषणा कर दी थी कि आज हाफ डे रहेगा ताकि सभी इच्छुक उम्मीदवार अपनी तैयारी कर सकें।

    अगले दिन—सुबह 9:30 बजे, पार्थ अपनी usual royal walk के साथ अपने पर्सनल लिफ्ट से ऑफिस में दाखिल होता है। उसके साथ उसके तीन करीबी दोस्त और ऑफिस के टॉप मेंबर्स—युग, करण और तुषार भी होते हैं। चारों अलग-अलग इंटरव्यू रूम में जाते हैं। युग, तुषार, करण तीनों कैंडिडेट्स का इंटरव्यू लेकर उनमें से बेस्ट एम्प्लॉयी को चुनने वाले थे और पार्थ—अभी केबिन में था, लेकिन फ़ाइनल शॉर्टलिस्टेड लोगों का इंटरव्यू वो खुद लेने वाला था।

    ---

    ऑफिस हॉल, जहाँ कुछ 200 से ज़्यादा एम्प्लॉयीज़ लाइन में अपनी फ़ाइल्स के साथ खड़े हैं। सबके चेहरों पर टेंशन साफ़ दिखती है। प्रिया, अपने डेस्क पर चुपचाप बैठी थी। उसे इस इंटरव्यू का कोई आइडिया नहीं था। वो बस अपनी फ़ाइल्स देख रही थी, जैसे कोई आम दिन हो। तभी उसके पास रीना, उसकी कलीग आती है—

    "अरे प्रिया! तूने नाम नहीं दिया क्या इंटरव्यू के लिए?"

    प्रिया थोड़ा चौंकती है,

    "इंटरव्यू? कौन सा इंटरव्यू?"

    रीना उसे बताती है पूरी बात—पार्थ का इंटरव्यू, इंटरनल कैंडिडेट्स को चांस, और आज आधा दिन इंटरव्यू के लिए रखा गया है। प्रिया सोच में पड़ जाती है। क्या वो अप्लाई करे? उसे याद आता है वो दिन जब पार्थ से पहली बार टकराई थी… और फिर उसकी आँखों में छिपा वो अजनबी सा सन्नाटा…

    ---

    उधर, पार्थ अपने केबिन से बाहर निकलता है और तुषार से धीरे से पूछता है:

    "अब तक कोई मिला?"

    तुषार सिर हिलाते हुए:

    "Not yet bro. बहुत formal answers हैं। कोई spark नहीं है।"

    पार्थ धीरे से बोलता है,

    "मुझे वक़्त बर्बाद नहीं करना… send only those who stand out."

    शाम 6:15 PM—ऑफिस कॉरिडोर में हलचल अब शांत हो चुकी थी। इंटरव्यू का आखिरी राउंड ख़त्म हो चुका था। युग, करण और तुषार अपने-अपने फॉर्म्स और रिव्यू फ़ाइल्स लेकर पार्थ के केबिन में जमा हो चुके थे।

    युग बोलता है,

    "आज का दिन लंबा था। लेकिन कुछ कैंडिडेट्स अच्छे थे।"

    करण बोलता है,

    "हमने टॉप 20 नाम शॉर्टलिस्ट किए हैं। ये रहे उनके रिज्यूमे और रिव्यू।"

    तुषार बोलता है,

    "डिसाइड तू ही कर, भाई। कल छुट्टी है, लेकिन जिन्हें चुना है, बस उन्हें ही बुलाना।"

    पार्थ उन फ़ाइल्स को खोलता है। एक-एक चेहरा, एक-एक फ़ीडबैक पढ़ता जाता है।

    तो आप सब को क्या लगता है? क्या पार्थ को उसकी मनपसंद PA मिलेगी? या फिर ये सिलेक्टेड कैंडिडेट्स भी फ़ेल हो जाएँगे? कौन-कौन सिलेक्ट हुआ है फ़ाइनल राउंड के लिए? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "ISHQ HAI TUMSE"......

  • 7. Ishq hai tumse - Chapter 7 झुमके / फाइनल इंटरव्यू

    Words: 1173

    Estimated Reading Time: 8 min

    शाम 6:15 बजे – ऑफिस कॉरिडोर में हलचल अब शांत हो चुकी थी। इंटरव्यू का आखिरी राउंड खत्म हो चुका था। युग, करण और तुषार अपने-अपने फॉर्म्स और रिव्यू फाइल्स लेकर पार्थ के केबिन में जमा हो चुके थे।

    युग बोला,
    "आज का दिन लंबा था। लेकिन कुछ कैंडिडेट्स अच्छे थे।"

    करण बोला,
    "हमने टॉप 20 नाम शॉर्टलिस्ट किए हैं। ये रहे उनके रिज्यूमे और रिव्यू।"

    तुषार बोला,
    "डिसाइड तू ही कर, भाई। कल छुट्टी है, लेकिन जिन्हें चुना है, बस उन्हें ही बुलाना।"

    पार्थ ने उन फाइल्स को खोला। एक-एक चेहरा, एक-एक फीडबैक पढ़ता गया। फिर अचानक उसकी नज़र एक फाइल पर अटक गई… नाम पढ़ते ही उसकी आँखें कुछ पल के लिए स्थिर हो गईं।

    नाम था — "प्रिया अग्निवंशी"। फाइल के साथ अटैच उसकी तस्वीर… वही मासूम आँखें, वही मुलायम मुस्कान…

    पार्थ के होंठों पर एक हल्की सी स्माइल उभरी…
    "तो तुम भी शामिल थी… और मुझे पता भी नहीं चला…"

    वह धीरे से बड़बड़ाया —
    "एक बार फिर… तुम मेरे पास आ ही गई। काश तुम जानतीं कि यह सिर्फ एक इत्तेफाक नहीं… किस्मत है।"

    वह फाइल साइड में रख दिया, बाकी सब को गौर से देखा, फिर कहा—
    "Send final mails to these peoples."

    यह सुनकर करण बोला,
    "Done. अभी भेज देता हूँ।"


    रात 9 बजे – प्रिया का रूम। प्रिया अपने बेड पर बैठी थी, लैपटॉप खोलकर कुछ नोट्स देख रही थी। तभी एक मेल का नोटिफिकेशन आया।

    Subject: Final Interview Call Letter – By CEO Himself
    From: Birla Group – HR

    वह चौंककर स्क्रीन देखी।
    "मेरा सिलेक्शन हो गया?"

    फिर पढ़ा —
    "Dear Ms. Priya Agnivesh,
    Congratulations! You are selected for the final interview with our CEO, Mr. Parth Birla.
    Please report at 10:00 AM sharp tomorrow.
    Note: Office is closed except for the selected candidates."

    प्रिया की आँखों में एक अलग सी चमक आ गई।
    "कितना स्ट्रिक्ट है वो इंसान… अब उनके सामने फिर से जाना है?"

    उसका दिल तेज़ धड़कने लगा… ना जाने क्यों।


    रात 11:45 बजे — बिखरे जज़्बात, बिखरे एहसास… प्रिया अपने बेड पर लेटी थी। तकिया सीने से लगाए, आँखें बंद कर चुकी थी… लेकिन नींद अब भी उससे दूर थी।

    आज का दिन भारी था। इंटरव्यू, सिलेक्शन मेल, और कल का सीईओ इंटरव्यू— सब कुछ एक अजीब सी बेचैनी दे रहा था।

    प्रिया (मन ही मन):
    "ना जाने क्यों, उस इंसान के सामने जाते ही दिल धड़कने लगता है… जैसे कोई अनदेखा रिश्ता हो। क्या यह डर है… या कुछ और?"

    धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद हुईं… और वह नींद में चली गई।


    उधर… पार्थ अपने पर्सनल बेडरूम में खिड़की के पास खड़ा था। हाथ में एक छोटा सा झुमका थामे हुए… वही झुमका जो उस रात उसे प्रिया के बालों में उलझा मिला था।

    वह झुमका उसकी हथेली में जैसे अब भी गर्म था। उसका हर कोना, हर मोड़, उसे उसी रात की याद दिला रहा था।

    पार्थ (धीमी आवाज़ में, आँखों में नमी के साथ):
    "जान… फाइनली तुम मिल गई।
    इतना ढूँढा तुम्हें… हर शहर, हर कोने में…
    और तुम यहीं थी… मेरी दुनिया में… मेरी ही कंपनी में…"

    वह झुमके को होंठों से लगाकर बुदबुदाया —
    "I miss you… हर रोज़, हर पल… बस अब और दूर नहीं जाना है तुम्हें।"

    फिर वह झुमका एक काले वेलवेट बॉक्स में रख दिया, जिसे वह रोज़ देखता था। बॉक्स को बंद किया… और धीरे से लाइट बंद कर दी।

    कमरे में अंधेरा हो गया… पर दिलों में एक नई रोशनी जलती है— कल की सुबह, एक नई शुरुआत होगी… कुछ अधूरी कहानियों की, कुछ अनजाने रिश्तों की।

    अगले दिन सुबह की हल्की धूप कमरे की खिड़कियों से छन कर भीतर आ रही थी। पार्थ की दिनचर्या हमेशा की तरह अनुशासित थी। अलार्म बजते ही वह बिना देर किए बिस्तर छोड़ दिया। अपने फिटनेस रूटीन को लेकर वह बेहद सख्त था। कुछ ही देर में वह ट्रैक सूट पहनकर जिम की ओर बढ़ गया। जिम में उसके चेहरे पर न फुर्सत की परछाईं थी, न किसी और ख्याल की जगह—बस पसीने की बूंदें और डेडिकेशन झलक रहा था।

    करीब एक घंटे की वर्कआउट के बाद, वह फ्रेश होकर ब्लैक फॉर्मल सूट में तैयार हुआ। उसकी कलाई पर महंगी घड़ी चमक रही थी, बाल सलीके से सेट और आँखों में वही सख्त पर गंभीर लुक। कार में बैठते ही ड्राइवर उसे ऑफिस की ओर लेकर निकल गया।

    बिरला ग्रुप के ऑफिस में पहले से ही युग, करण और तुषार उसकी राह देख रहे थे। जैसे ही पार्थ ऑफिस में प्रवेश किया, तीनों तुरंत उसकी ओर बढ़े। कोई औपचारिक हलचल नहीं, बस सिर झुकाकर "गुड मॉर्निंग सर" कहा गया। पार्थ ने सिर्फ हल्के से सिर हिलाया और कहा, "Let’s go to the meeting hall."

    चारों बिना समय गँवाए मीटिंग हॉल की ओर बढ़े। वहाँ माहौल बिल्कुल प्रोफेशनल था। सभी जरूरी डॉक्यूमेंट्स, फाइल्स और इंटरव्यू लिस्ट टेबल पर करीने से रखी गई थीं। करीब आधे घंटे की तैयारी और रणनीति के बाद इंटरव्यू प्रक्रिया शुरू हुई।

    पहला कैंडिडेट अंदर आया—एक लड़का, जो फाइनेंस डिपार्टमेंट के लिए शॉर्टलिस्ट हुआ था। वह थोड़ा घबराया सा कुर्सी पर बैठा। पार्थ अपनी सख्त निगाहों से उसकी ओर देखा और बिना किसी मुस्कान के सवाल शुरू किया—“Tell me about your last project in numbers, not emotions.”

    लड़का जवाब दिया, थोड़ा हकलाते हुए लेकिन कोशिश की खुद को संभालने की। पार्थ बीच-बीच में तकनीकी सवाल करता रहा, उसकी सोच और तैयारी को परखता रहा। अंत में एक सिचुएशनल टास्क उसे दिया गया, जो उसकी समस्या-समाधान क्षमता की परीक्षा थी।

    करीब 15 मिनट के बाद पार्थ बिना भाव बदले बोला, "You may leave. Wait for the result." उसका टोन नर्म नहीं था, लेकिन स्पष्ट और निर्णायक था। लड़का उठा, "Thank you sir," कहकर बाहर निकल गया।

    उसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिससे पार्थ घूरकर तीनों को देखने लगा। जिससे तीनों अपनी नज़रें चुराने लगे।

    आप सब को क्या लगता है क्या हुआ होगा ऐसा जिससे पार्थ घूर कर देख रहा है तीनों को? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी…

  • 8. Ishq hai tumse - Chapter 8 corporate interview not a fashion show

    Words: 1044

    Estimated Reading Time: 7 min

    उसके बाद एक लड़की आई। वह लड़की मीटिंग रूम में आत्मविश्वास से भरकर दाखिल हुई। उसने बहुत छोटा ड्रेस पहना था और वह ऐसे चल रही थी जैसे किसी को सिड्यूस करने की कोशिश कर रही हो। उसका पहनावा और चाल-ढाल, दोनों ही ध्यान खींचने वाले थे—जैसे उसका मकसद पार्थ के प्रोफेशनल रवैये को परखना नहीं, बल्कि उसे प्रभावित करना हो।

    ये देख पार्थ अपने तीनों दोस्तों को घूर कर देखा।

    तभी वह लड़की अपनी कमर हिलाते हुए आई और सीधा आकर चेयर पर बैठ गई। वह ऐसे बैठी थी कि उसका अंदर का सब कुछ सामने वाले को दिखाई दे। जैसे ही वह सामने की कुर्सी पर बैठी, पार्थ के माथे पर शिकन आ गई। उसका अंदाज़ बिल्कुल भी एक कॉर्पोरेट इंटरव्यू के लायक नहीं था।

    पार्थ का चेहरा सख़्त हो गया। उसने बिना कुछ कहे अपने दोस्तों की ओर एक सख्त नज़र डाली।

    यश धीमे से फुसफुसाते हुए बोला,
    "यार, कल तो ये एकदम मासूम बनकर आई थी... हमें क्या पता था ये सब बस दिखावा था।"

    पार्थ ने उसे एक कड़ी नज़र से चुप रहने का इशारा किया।

    फिर, बहुत ही संयमित आवाज़ में, पार्थ उस लड़की से बोला—

    पार्थ गंभीर लहजे में बोला,
    "This is a corporate interview not a fashion show. उम्मीद है आप समझती हैं कि यहां प्रोफेशनलिज़्म की क्या अहमियत होती है।"

    लड़की के चेहरे पर बनावटी मुस्कान फीकी पड़ गई।

    पार्थ स्पष्ट स्वर में बोला,
    "आप जा सकती हैं।"

    वह चुपचाप उठी और बाहर निकल गई।

    कमरे में थोड़ी देर तक खामोशी छा गई।

    करण धीरे से बोला,
    "तू वाकई अब सीईओ वाला बिहेव करने लगा है भाई… पूरा बॉस वाइब था अभी।"

    पार्थ कुछ नहीं कहा, बस अगली फाइल उठाई।

    पहले कैंडिडेट के बाहर जाते ही पार्थ ने युग को आँखों से इशारा किया। युग ने फाइल पलटी और अगले नाम की घोषणा की—“Candidate no. 3 – Ms. Rhea Malhotra, Marketing Department.”

    कुछ ही क्षणों में एक आत्मविश्वास से भरी लड़की कमरे में दाखिल हुई। उसके पहनावे और चाल-ढाल में साफ professionalism झलक रहा था। उसने विनम्रता से “Good Morning, Sir” कहकर बैठ गई।

    पार्थ ने उसकी फाइल खोली, कुछ सेकंड तक चुपचाप पढ़ता रहा। फिर बिना मुस्कराए बोला, “Tell me, what is the one marketing campaign you admire the most, and why?”

    रिया बिना समय गंवाए जवाब दिया—“Sir, I admire the Fevicol ad campaign. It stayed relevant across generations, made an emotional connect with humor, and never really had to change its tagline. That’s brand consistency.”

    पार्थ उसकी ओर देखा, कुछ सेकंड चुप रहा, फिर अगला सवाल दाग़ा, “If I give you a 2 crore budget for a failing product, what’s your first step?”

    रिया थोड़ी देर सोची, फिर बड़े संयम से उत्तर दिया, “Consumer analysis, sir. First I need to know why it's failing. Without that, any strategy would be a blind shot.”

    ऐसे ही कुछ और सवाल पूछे गए। युग, करण और तुषार एक-दूसरे की ओर देखकर हल्की मुस्कान साझा करते हैं, लेकिन पार्थ का चेहरा वैसा ही सख्त बना रहा। अंत में वह बोला, “You can go. Wait for the result.”

    रिया “Thank you, sir,” कहकर बाहर चली गई।

    ऐसे ही कुछ कैंडिडेट्स का इंटरव्यू हुआ।

    युग ने अगला नाम पुकारा, “Candidate no. 7– Mr. Rohit Sinha, HR Department.”

    राहुल थोड़ा घबराया हुआ कमरे में दाखिल हुआ। वह कुर्सी पर बैठते ही पसीना पोंछता है। पार्थ गौर से उसे देखता है और पहले सवाल से उसे चौंका देता है—“Why HR? You don’t look like someone who can deal with people’s emotions.”

    राहुल थोड़ा हड़बड़ाया, लेकिन जवाब दिया—“Sir, because I believe HR is not just about handling emotions but managing people with logic and empathy both.”

    पार्थ उसकी बात को बीच में काटते हुए पूछा, “Tell me how you would handle a sexual harassment complaint if the accused is your reporting manager?”

    कमरे में एक पल को सन्नाटा छा गया। राहुल गहरी साँस लेकर सोचा, फिर कहा, “By following protocol, without bias. Internal Committee exists for a reason, and emotions should not cloud the facts.”

    इस तरह उसे कुछ टास्क दिए गए। आखिरकार पार्थ चुपचाप उसकी फाइल बंद करता है। “You may leave. Result will be communicated.”

    करीब 12-13 कैंडिडेट्स का इंटरव्यू खत्म हो चुका था। मीटिंग हॉल में अब एक स्थिरता सी आ चुकी थी। पार्थ अपनी घड़ी पर नज़र डाली और फिर युग को इशारा किया।

    युग लिस्ट देखता है और कहता है, “Next – Ms. Priya Agnivanshi, PR Department.”

    प्रिया का नाम सुनते ही करण और तुषार एक-दूसरे को देखकर हल्का मुस्कराते हैं—उन्होंने प्रिया को वेटिंग रूम में देखा था। सादगी और आत्मविश्वास का एक खूबसूरत मेल। लेकिन पार्थ के चेहरे पर कोई बदलाव नहीं था—कम से कम ऊपर से।

    कुछ ही सेकंड बाद दरवाज़ा खुला।

    और जैसे ही प्रिया कमरे में दाखिल हुई, पल भर के लिए समय रुक गया।

    उसने सिंपल लेकिन क्लासी सफेद कुर्ता-पायजामा पहना था, बाल खुले थे और आँखों में साफ-सुथरी मासूमियत थी। उसके चेहरे पर न कोई बनावट थी, न दिखावा—सिर्फ आत्मविश्वास और सादगी की चमक।

    वह कमरे में आई, हल्की मुस्कान के साथ बोली, “Good morning, sir,” और सबकी ओर एक विनम्र नज़र डालकर बैठ गई।

    पार्थ ने पहली बार बिना फाइल खोले उसकी ओर देखा।

    उसकी आँखों में कुछ था—कुछ ऐसा जो पार्थ को अचानक असहज कर गया। वह खुद को तुरंत संभालता है और प्रिया की फाइल उठाता है।

    “Miss Agnivanshi,” पार्थ की आवाज़ सामान्य थी, लेकिन उसकी नज़रें अब भी फाइल पर टिक नहीं पा रही थीं। “Tell me, what is PR to you? And don’t give textbook definitions.”

    तो आप सब को क्या लगता है?
    प्रिया इसका जवाब दे पाएगी?
    क्या पार्थ को उसकी मनपसंद PA मिलेगी? या फिर ये सिलेक्टेड कैंडिडेट्स भी फ़ेल हो जाएँगे?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी।

  • 9. Ishq hai tumse - Chapter 9 3 selected candidates

    Words: 1027

    Estimated Reading Time: 7 min

    युग ने लिस्ट देखकर कहा, “Next – Ms. Priya Agnivanshi, PR Department.”

    प्रिया का नाम सुनते ही करण और तुषार एक-दूसरे को देखकर हल्का मुस्कराए। उन्होंने प्रिया को वेटिंग रूम में देखा था। सादगी और आत्मविश्वास का एक खूबसूरत मेल। लेकिन पार्थ के चेहरे पर कोई बदलाव नहीं था—कम से कम ऊपर से।

    कुछ ही सेकंड बाद दरवाज़ा खुला।

    और जैसे ही प्रिया कमरे में दाखिल हुई, पल भर के लिए समय रुक गया।

    उसने सिंपल लेकिन क्लासी सफेद कुर्ता-पायजामा पहना था, बाल खुले थे और आंखों में साफ-सुथरी मासूमियत थी। उसके चेहरे पर न कोई बनावट थी, न दिखावा—सिर्फ आत्मविश्वास और सादगी की चमक।

    वह कमरे में आई और हल्की मुस्कान के साथ बोली, "Good morning, sir," और सबकी ओर एक विनम्र नज़र डालकर बैठ गई।

    पार्थ ने पहली बार बिना फाइल खोले उसकी ओर देखा।

    उसकी आँखों में कुछ था—कुछ ऐसा जो पार्थ को अचानक असहज कर गया। वह खुद को तुरंत संभाला और प्रिया की फाइल उठाई।

    "Miss Agnivanshi," पार्थ की आवाज़ सामान्य थी, लेकिन उसकी नज़रें अब भी फाइल पर टिक नहीं पा रही थीं। "Tell me, what is PR to you? And don’t give textbook definitions.”

    प्रिया की मुस्कान हल्की-सी गहरी हुई। उसने कहा, “PR, sir, is perception. आप जो हैं और लोग जो समझते हैं, उनके बीच का पुल। लेकिन वो पुल अगर सच्चाई पर बना हो, तो भरोसा बनता है। वरना सिर्फ इमेज मैनेजमेंट रह जाता है।”

    कमरे में एक पल को सन्नाटा छा गया।

    करण के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन पार्थ…वह अब भी प्रिया को देख रहा था—जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा हो।

    वह अगला सवाल किया, “If you had to handle a crisis where the media is targeting our CEO personally, what would be your approach?”

    प्रिया बिना घबराए जवाब दिया, “First, I would understand the truth—not just the PR angle. फिर अगर वो आरोप बेबुनियाद हैं, तो facts and human side दोनों को use कर के एक empathic statement release करूंगी। But if there's even 1% truth, then sir... silence speaks louder than denial.”

    इस बार पार्थ कुछ नहीं कहा—बस उसे देखता रहा। कुछ तो था उसमें, जो बाकी सब से अलग था। उसकी बातें नहीं, उसका अंदाज़ नहीं—कुछ और… शायद उसकी सादगी, या शायद… उसकी नज़रों की सच्चाई।

    फिर वह फाइल बंद कर वही ठंडा, प्रोफेशनल वाक्य दोहराया, “You may leave. Wait for the result.”

    प्रिया ने सिर झुकाया, "Thank you, sir," और जैसे आई थी, वैसे ही शांत भाव से चली गई।

    लेकिन उसके जाने के बाद पहली बार पार्थ की निगाहें दरवाज़े की तरफ कुछ पल तक रुकी रहीं।

    प्रिया के बाद भी इंटरव्यू जारी रहा। एक-एक करके बाकी कैंडिडेट्स आते गए, कुछ घबराए हुए, कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आत्मविश्वास से भरे, लेकिन किसी ने भी प्रिया जैसी सादगी और समझदारी का संतुलन नहीं दिखाया।

    करीब दो घंटे बाद आखिरकार इंटरव्यू खत्म हुआ।

    मीटिंग हॉल की हवा अब हल्की थकान से भरी हुई थी। पार्थ ने पानी की एक घूंट ली, और फिर धीरे से अपनी फाइल्स बंद करने लगा। युग, करण और तुषार अब उसके निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे थे।

    पार्थ ने कुछ पल चुप रहकर गहरी नज़र से तीन नामों पर टिक कर कहा—

    “These three – Rhea Malhotra, Rohit Sinha and... Priya Agnivanshi.”

    तीनों असिस्टेंट्स ने एक-दूसरे की ओर देखा। तुषार के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, जैसे उसे यह अनुमान पहले से था।

    पार्थ ने कहा, “Call them in. Together.”

    कुछ ही देर में तीनों कैंडिडेट्स—रिया, रोहित और प्रिया—मीटिंग हॉल में दाखिल हुए। तीनों के चेहरे पर उत्सुकता और हल्की घबराहट का मिश्रण था।

    पार्थ खड़ा हो गया, और अपनी सख्त आवाज़ में बोला—

    “You three are selected for the final round. But before I give you your appointment letters, you need to complete one task.”

    वह एक फाइल खोली और टेबल पर तीन कॉपियाँ रख दी।

    “This is a hypothetical crisis. The Birla Group's image has been damaged due to a false rumour involving embezzlement. Social media is on fire, media is slamming us, and internal employee morale is dropping. You have 24 hours to come up with a joint solution plan covering finance, PR, and internal HR communication.”

    तीनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं—यह सिर्फ एक टास्क नहीं था, यह उनकी क्षमताओं की असली परीक्षा थी।

    पार्थ आगे कहा— “Only one of you will be selected. Whoever completes this task first, with clarity and practical depth, gets the job. The rest... better luck next time.”

    तीनों के चेहरे बदल गए। अब जो एक टीम थी, वह अनजाने में तीन प्रतिद्वंद्वियों में बदल चुकी थी।

    पार्थ ने अपनी घड़ी की ओर देखा और कहा, “Your 24 hours begin now.”

    तीनों कैंडिडेट्स मीटिंग हॉल से बाहर निकले। कॉरिडोर में सन्नाटा था, लेकिन उनके मन में हलचल तेज़ थी।

    रिया, जो कॉर्पोरेट गेम्स में माहिर थी, सबसे पहले कॉमन रूम की ओर दौड़ी। वह लैपटॉप खोला और डेटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया—सोशल मीडिया ट्रेंड्स, न्यूज हेडलाइंस, पुराने ब्रांड कैंपेन।

    रोहित, थोड़ी देर तक वहीं खड़ा सोचता रहा। फिर वह HR की दृष्टि से योजना बनाने लगा—एक आंतरिक मेल ड्राफ्ट किया, कर्मचारियों के विश्वास को फिर से जीतने की योजना तैयार की।

    प्रिया, शांत लेकिन सजग, छत पर गई। ठंडी हवा में खड़े होकर वह सबसे पहले स्थिति को महसूस करती है—क्या इस ब्रांड की असली ताकत इमेज है या लोग? फिर वह एक डायरी में अपना प्लान लिखना शुरू किया—कुछ नया, कुछ सच्चा, और कुछ दिल से।

    वह खुद से कहती है—“इसे जीतने के लिए दिमाग से ज़्यादा दिल की ज़रूरत है।”

    घंटों बीत गए। तीनों अपने-अपने तरीके से डटे हुए थे। हर मिनट कीमती था, और हर सेकंड निर्णायक।

    तो आप सब को क्या लगता है?
    कौन होगा विजेता? कौन बनेगा पार्थ का पर्सनल असिस्टेंट?
    जानने के लिए next chapter पढ़ते रहिए......

  • 10. Ishq hai tumse - Chapter 10 प्रिया बनी पार्थ की PA

    Words: 1100

    Estimated Reading Time: 7 min

    पार्थ ने अपनी घड़ी की ओर देखा और कहा, "Your 24 hours begin now."

    तीनों कैंडिडेट्स मीटिंग हॉल से बाहर निकले। कॉरिडोर में सन्नाटा था, लेकिन उनके मनों में हलचल तेज थी।

    रिया, जो कॉर्पोरेट गेम्स में माहिर थी, सबसे पहले कॉमन रूम की ओर दौड़ी। उसने लैपटॉप खोला और डेटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया—सोशल मीडिया ट्रेंड्स, न्यूज हेडलाइंस, पुराने ब्रांड कैंपेन।

    रोहित थोड़ी देर तक वहीं खड़ा सोचता रहा। फिर उसने HR की दृष्टि से योजना बनानी शुरू कर दी—एक आंतरिक मेल ड्राफ्ट किया, कर्मचारियों के विश्वास को फिर से जीतने की योजना तैयार की।

    प्रिया, शांत लेकिन सजग, छत पर गई। ठंडी हवा में खड़े होकर उसने सबसे पहले स्थिति को महसूस किया—क्या इस ब्रांड की असली ताकत इमेज है या लोग? फिर उसने एक डायरी में अपना प्लान लिखना शुरू किया—कुछ नया, कुछ सच्चा, और कुछ दिल से।

    "इसे जीतने के लिए दिमाग से ज़्यादा दिल की ज़रूरत है," वो खुद से बोली।

    घंटों बीत गए। तीनों अपने-अपने तरीके से डटे हुए थे। हर मिनट कीमती था, और हर सेकंड निर्णायक।

    सुबह 8:47 पर, एक मेल पार्थ के इनबॉक्स में गिरा—Subject: Task Submission – Priya Agnivanshi.

    वह पहला मेल था।

    पार्थ ने तुरंत फाइल खोली। उसकी आँखें तेज़ी से पन्ने स्कैन करती रहीं—एक सादा लेकिन प्रभावी PR प्लान, संकट को पारदर्शिता और सच्चाई से हैंडल करने की रणनीति, और साथ ही एक सशक्त संदेश, जो CEO की इंसानियत को सामने लाता था।

    फाइल के आखिरी लाइन में प्रिया ने लिखा था:

    "When trust breaks, don’t rebuild the walls. Rebuild the bridge."

    पार्थ एक पल के लिए मुस्कराया—बहुत हल्के से।

    करीब एक घंटे बाद रिया और फिर दो घंटे बाद रोहित अपनी-अपनी रिपोर्ट जमा कर चुके थे।

    लेकिन तब तक फैसला हो चुका था।

    दोपहर के करीब मीटिंग हॉल की खामोशी फिर से टूटी। पार्थ ने युग को इशारा किया, "Call all three in."

    कुछ ही मिनटों में रिया, रोहित और प्रिया फिर से मीटिंग रूम में दाखिल हुए। इस बार तीनों के चेहरे अलग-अलग भाव लिए हुए थे। रिया आत्मविश्वास से भरी हुई थी, रोहित थोड़ा डरा हुआ था, और प्रिया… शांत, लेकिन उसकी आँखों में दृढ़ता साफ झलक रही थी।

    पार्थ अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था, आँखें फाइल्स पर, लेकिन ध्यान उन तीन चेहरों पर था।

    उसने सीधे बात शुरू की—

    "I gave you all a challenge—not just to test your skills, but to see who understands pressure, clarity, and purpose."

    वह एक-एक की फाइल उठाता गया।

    "रिया—आपकी योजना आक्रामक और विस्तृत थी। लेकिन इसमें सहानुभूति का अभाव था। आप इरादे से ज़्यादा छवि पर केंद्रित थीं।"

    रिया का चेहरा थोड़ा कस गया, लेकिन वह चुप रही।

    "रोहित—आपका विचार आदर्शवादी था, लेकिन संकट के समय में कार्यान्वित करने योग्य नहीं था। आंतरिक संचार मायने रखता है, लेकिन पहले हमें बाहरी तूफान को स्थिर करना होगा।"

    रोहित ने गर्दन झुका ली।

    फिर पार्थ ने तीसरी फाइल उठाई। उसे कुछ पल देखा, फिर बिना नज़र हटाए बोला—

    "प्रिया…"

    कमरे में सन्नाटा गहरा गया।

    "आपने सबसे पहले जमा किया। यह प्रभावशाली था। लेकिन आपकी योजना को जो अलग बनाता है… वह यह है कि आपने ब्रांड को केवल एक कंपनी के रूप में नहीं, बल्कि लोगों के रूप में देखा।"

    अब उसकी आँखें फाइल से हटकर प्रिया की आँखों में थीं।

    "आप समझ गईं कि विश्वास चालाक शब्दों से नहीं खरीदा जा सकता। इसके लिए सच्चाई चाहिए। और साहस।"

    पार्थ अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ।

    "बधाई हो, प्रिया अग्निवंशी। आपका चयन हो गया है।"

    एक पल को सब चुप रहे। रिया की आँखों में निराशा थी, रोहित के चेहरे पर हार की स्वीकारोक्ति, लेकिन प्रिया…

    वह पहले कुछ नहीं बोली। बस खड़ी हुई, और धीमे से कहा—

    "Thank you, sir."

    उसकी आवाज़ में गर्व नहीं था, न घमंड… सिर्फ सच्ची कृतज्ञता।

    पार्थ ने हल्के से सिर हिलाया, लेकिन अंदर कुछ और था—कुछ ऐसा, जो उसने अब तक खुद से भी छुपा रखा था। प्रिया का दिल जोरों से धड़क रहा था।

    अगले दिन सुबह 8:30 बजे—

    Birla Group का मुख्य ऑफिस धीरे-धीरे जाग रहा था, लेकिन CEO का केबिन और उसका फ्लोर पहले से ही तैयार था—साफ-सुथरा, परफेक्टली ऑर्गनाइज़्ड, जैसे हर चीज़ टाइम से पहले अपनी जगह पर हो।

    प्रिया, हल्के नीले शर्ट और काले फॉर्मल पैंट में, बालों को neatly बाँधे हुए, ऑफिस की पहली मंज़िल पर पहुँची। उसके हाथ में एक डायरी, पेन और एक छोटा सा बैग था। वह अंदर आई तो रिसेप्शन पर बैठी पूजा ने मुस्कराकर उसे देखा—

    "Good morning, ma'am. Mr. Parth is in his cabin. You can wait in the assistant's desk."

    प्रिया ने हल्के से मुस्करा कर सिर हिलाया।

    उसका डेस्क CEO के केबिन के ठीक सामने था। वह बैठी ही थी कि युग आ गया।

    "Welcome, Miss Agnivanshi. You'll be reporting directly to Mr. Parth. Here's your system access, login credentials, and daily schedule."

    प्रिया ने शालीनता से सब कुछ लिया और एक-एक चीज़ ध्यान से पढ़नी शुरू की।

    सुबह 9:00 बजे

    पार्थ केबिन से बाहर आया, वही ठंडा और सख्त चेहरा। उसकी आँखें सीधे प्रिया पर गईं—बस एक सेकंड को रुकीं—फिर वह बोला—

    "Follow me."

    प्रिया फौरन उठी और उसके पीछे केबिन में चली गई।

    "I don't like delays. Everything should be on my desk 10 minutes before I ask. Emails, meetings, follow-ups, travel, press—everything will go through you. You'll also note my mood. When not to talk… matters more than what to talk."

    प्रिया ने बस एक शब्द में जवाब दिया, "Understood, sir."

    पार्थ ने उसे एक दिन की स्केड्यूल शीट थमाई।

    "I don't like repeating myself. So remember."

    प्रिया बाहर आई और तुरंत अपने काम में लग गई।

    10:00 AM तक उसने पार्थ की मीटिंग्स की लिस्ट, क्लाइंट कॉल्स का अपडेट, इंटरनल ईमेल शेड्यूलिंग और डेली प्रेस रिपोर्ट तैयार करके उसे भेज दी थी।

    11:30 AM – पार्थ का लंच का टाइम नहीं था, लेकिन प्रिया को पता था कि वह मीटिंग के बाद अक्सर चाय पीता है। उसने बिना पूछे चुपचाप उसके केबिन के बाहर चाय लेकर खड़ी हो गई।

    पार्थ ने दरवाज़ा खोला, उसे देखा, और बिना कुछ कहे चाय ले ली।

    1:00 PM – एक क्लाइंट ने मीटिंग कैंसिल कर दी। प्रिया ने तुरंत उसका कारण पता किया, बैकअप अपॉइंटमेंट ली और पार्थ को अपडेट भेजा— "Cancelled. Rescheduled for Thursday. Reason: MD on medical leave."

    तभी कुछ ऐसा हुआ जिससे प्रिया की हार्टबीट बढ़ गई।

    आप सब को क्या लगता है?
    क्या हुआ होगा ऐसा?
    जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....

  • 11. Ishq hai tumse - Chapter 11

    Words: 1041

    Estimated Reading Time: 7 min

    11:30 बजे – पार्थ का लंच का समय नहीं था, लेकिन प्रिया को पता था कि वह मीटिंग के बाद अक्सर चाय पीता है। वह बिना पूछे चुपचाप उसके केबिन के बाहर चाय लेकर खड़ी हुई।


    पार्थ ने दरवाज़ा खोला, उसे देखा, और बिना कुछ कहे चाय ले ली।


    1:00 बजे – एक क्लाइंट ने मीटिंग कैंसल कर दी। प्रिया ने तुरंत उसका कारण पता किया, बैकअप अपॉइंटमेंट ली और पार्थ को अपडेट भेजा— "Cancelled. Rescheduled for Thursday. Reason: MD on medical leave."


    पार्थ ने पहली बार उसके मेल पर "Good" टाइप किया। जिसे पढ़कर प्रिया का दिल जोर से धड़कने लगा।


    शाम 5:00 बजे, युग, करण और तुषार कॉरिडोर से गुजरते हुए बोले, "बिलकुल मशीन की तरह काम कर रही है… लेकिन दिल से।"


    लेकिन प्रिया अंदर से मशीन नहीं थी। वह हर चीज़ को दिल से करती थी—सलीके से, समझदारी से, और बिना दिखावे के।


    और पार्थ, जो अब तक किसी भी असिस्टेंट का नाम तक याद नहीं रखता था… आज उसके कंप्यूटर स्क्रीन पर बार-बार एक नाम खुल रहा था—Priya Agnivanshi।


    ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। प्रिया बहुत अच्छे से पार्थ की PA के रूप में काम कर रही थी। पार्थ को भी कोई मौका नहीं मिलता था शिकायत का। पार्थ को जैसी PA चाहिए थी आखिरकार उसे मिल ही गई। साथ ही, वह इस बात से खुश था कि उसका प्यार खुद उसके पास आ गई थी।


    एक दिन की बात है, दोपहर 3:00 बजे पार्थ और प्रिया को एक बड़ी क्लाइंट कंपनी, Mehra Enterprises, की मीटिंग के लिए शहर के एक हाई-प्रोफाइल होटल में जाना था। यह एक कोलैबोरेशन मीटिंग थी—जहाँ CEO अरविंद मेहरा के साथ उसका बेटा राज मेहरा भी शामिल होने वाला था, जो कंपनी का डायरेक्टर था।


    प्रिया ने आज हल्का ग्रे फॉर्मल कुर्ता और ब्लैक पैंट पहन रखा था—साफ-सुथरी, प्रोफेशनल और आत्मविश्वासी।


    3:30 बजे – होटल का कॉन्फ्रेंस हॉल। पार्थ और प्रिया समय पर पहुँचे। अरविंद मेहरा ने गर्मजोशी से स्वागत किया।


    "Mr. Birla, always a pleasure."


    पार्थ ने संयमित स्वर में कहा, "Let’s get started."


    राज मेहरा वहाँ पहले से बैठा था। करीब 28 साल का, स्मार्ट लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चालाकी थी। जब उसकी नज़र प्रिया पर पड़ी, वह कुछ पल के लिए रुका। फिर धीरे से मुस्कराया—वह मुस्कान जो किसी शरीफ इंसान की नहीं होती।


    राज ने जानबूझकर नज़रें प्रिया पर टिकाए रखीं—ऊपर से नीचे तक, बिना झिझक। बातों के दौरान वह बार-बार प्रिया से आँखें मिलाने की कोशिश करता, कुछ सवाल सीधे उससे पूछता जो अनावश्यक थे—जैसे उसकी पर्सनल पसंद या हॉबीज़।


    "So Miss Agnivanshi, do you always accompany Mr. Birla?"
    "I must say… Birla Group has a very charming assistant."


    प्रिया ने संयमित रहते हुए जवाब दिए, लेकिन उसकी आँखों में हल्की बेचैनी थी।


    पार्थ की आँखें सब कुछ देख रही थीं—हर वह नज़र, हर वह शब्द जो राज कह रहा था। उसका जबड़ा हल्का कस गया, उंगलियाँ टेबल पर धीरे-धीरे टैप करने लगीं—यह उसका क्लासिक रिएक्शन था जब वह अंदर से उबल रहा होता था।


    "Let’s focus on business, Mr. Mehra," पार्थ ने एकदम सख्त लहज़े में कहा।


    राज ने हँसते हुए बात टाल दी, "Of course, of course. Just being friendly."


    मीटिंग खत्म होते-होते, राज ने एक आखिरी हरकत की—जब सब खड़े हो रहे थे, उसने जानबूझकर प्रिया के हाथ को छूने की कोशिश की, जैसे हैंडशेक की आड़ में।


    लेकिन तभी… पार्थ ने बीच में कदम रख दिया। उसकी आँखें सीधी राज की आँखों में थीं—ठंडी, कठोर और चेतावनी से भरी।


    "I don’t tolerate unprofessional behaviour towards my staff. Specially… her."


    राज थोड़ा चौंका, पीछे हट गया। पार्थ की आवाज़ कम थी, लेकिन उसकी आँखों में आग साफ थी।


    "Next time you cross the line, I won’t care who your father is."


    कमरे का माहौल एकदम भारी हो गया। अरविंद मेहरा ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, "I apologize on his behalf, Mr. Birla. I’ll handle it."


    पार्थ ने बिना कुछ कहे बस प्रिया की तरफ देखा—उसकी आँखों में अब गुस्से से ज़्यादा चिंता थी।


    वापसी की कार में सन्नाटा था। कुछ मिनट बाद पार्थ ने पूछा, "Are you okay?"


    प्रिया ने धीमे से कहा, "Yes, sir."


    पार्थ ने कहा, "If someone ever crosses the line again… you don’t need to answer. Just look at me."


    एक पल को दोनों की आँखें मिलीं। प्रिया की आँखों में भरोसा था, और पार्थ की आँखों में एक ऐसा जज़्बा, जो उसने खुद कभी नहीं चाहा था—बचाने वाला, सम्भालने वाला, और शायद… चाहने वाला।


    वापसी के बाद की शाम – ऑफिस में, करीब 6:30 बजे। पार्थ अपने केबिन में अकेला बैठा था। सामने खुला लैपटॉप, लेकिन स्क्रीन ब्लर हो चुकी थी। उसकी नज़रें कहीं और थीं। सिर हल्का झुका हुआ, हाथों की उंगलियाँ इंटरलॉक कर रखी थीं।


    वहीं बाहर, प्रिया अपने डेस्क पर बैठी थी। उसने पार्थ को बहुत बार शांत देखा था—सख्त, अनुशासित, कम बोलने वाला। लेकिन आज… आज वह शख़्स बिल्कुल अलग था।


    आज दूसरी बार था जब उसने पार्थ का वह चेहरा देखा था जिसे देखकर कोई कांप जाए।


    वह सोच रही थी—


    "पार्थ सर का गुस्सा सिर्फ गुस्सा नहीं था… वह जैसे किसी को अपनी जगह दिखा रहे थे, जैसे मैं सिर्फ उनकी ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि कोई ऐसा रिश्ता हूँ जिसे वह खुद भी समझ नहीं पा रहे।"


    एक हफ़्ते में यह दूसरी बार था। पहली बार—जब उसने प्रिया की मेहनत देखी थी और बाकी सबको सख्ती से झाड़ दिया था, लेकिन प्रिया से कभी ऊँची आवाज़ नहीं की। और आज—जब एक बाहरी इंसान ने उसकी ओर बुरी नज़र डाली, पार्थ ने किसी CEO की तरह नहीं, बल्कि किसी अपने की तरह बीच में आकर खड़ा हो गया।


    अगले कुछ दिनों में कुछ ऐसा हुआ जो किसी एम्प्लॉई ने सोचा भी नहीं था।


    आप सब को क्या लगता है? क्या हुआ होगा ऐसा जिसकी कल्पना employees ने कभी किया ही नहीं था? जानने के लिए मेरे साथ बने रहिए मेरे इस कहानी में.....

  • 12. Ishq hai tumse - Chapter 12

    Words: 1105

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगले कुछ दिनों में, ऑफिस का वातावरण बदल गया था। पहले हर कोना तनाव से भरा रहता था, अब वहाँ एक अजीब सी शांति थी—एक सुकून, जो धीरे-धीरे सब महसूस करने लगे थे।

    और इस बदलाव की केंद्रबिंदु थी – प्रिया।

    पार्थ, जो किसी की बात सुनना पसंद नहीं करता था, अब मीटिंग्स में शांत रहता था। उसकी आवाज़ अब डांट से नहीं, निर्देशों से गूंजती थी।

    लेकिन ये बदलाव यूँ ही नहीं आया था। असल कारण था – प्रिया की परफेक्शन।

    वह हर काम को इतनी सफाई, समयबद्धता और समझदारी से करती थी कि पार्थ को कभी भी कोई शिकायत का मौका ही नहीं मिला।

    "Sir, your flight is pre-booked. The updated itinerary is in your inbox."
    "The client file has already been cross-checked and mailed, sir."
    "Meeting room is prepared, all participants confirmed."

    हर जवाब सटीक, हर तैयारी मुकम्मल।

    अब पार्थ का गुस्सा दूसरों पर भी कम होने लगा था। क्योंकि जो काम समय पर नहीं होता था, वहाँ भी प्रिया चुपचाप मदद कर देती थी, बिना किसी क्रेडिट के।

    शुरुआत में कुछ लोग हैरान हुए—"क्यों कर रही है ये सब?"

    लेकिन धीरे-धीरे सभी को एहसास हुआ—प्रिया में कोई बनावटीपन नहीं था। वह मदद करती थी क्योंकि उसे सब कुछ सलीके से, एकजुट होकर, खूबसूरती से करना पसंद था।

    अब ऑफिस में जब भी कोई परेशानी आती, सबकी नज़रें प्रिया की तरफ जाती थीं। और एक दिन एक लड़के ने कह दिया—

    "तुम सिर्फ सर की असिस्टेंट नहीं हो, पूरी टीम की strength हो।"

    सब हँस पड़े, लेकिन दिल से मानते थे। अब वह सबकी चहेती बन चुकी थी। न सिर्फ उसकी समझदारी और काम की वजह से, बल्कि उसके व्यवहार, संवेदनशीलता, और दूसरों को बिना बताए संभालने की खूबी के कारण।

    और पार्थ? वह सब देख रहा था। कभी कुछ नहीं कहता, लेकिन उसकी नज़रें बहुत कुछ बयां करती थीं। कभी चुपचाप मुस्करा देना, कभी सामने बैठी प्रिया को देखकर एक लंबा साँस लेना…

    वह जानता था—ये लड़की सिर्फ उसके ऑफिस की नहीं… शायद उसके जीवन की सबसे बड़ी कमी को भरने आई है—एक ऐसा रिश्ता… जो कुछ कहे बिना सब कह रहा था।

    प्रिया अपनी सीट पर बैठी थी, जब इंटरकॉम बजा—

    "Priya, board room में सभी department heads को बुलाओ। In 15 minutes. – Parth Sir"

    प्रिया ने फौरन सबको सूचना दी और खुद भी फाइल्स लेकर मीटिंग रूम की तरफ बढ़ गई।

    Board Room – Birla Group Head Office

    वहाँ युग, करण, तुषार पहले से मौजूद थे। धीरे-धीरे मार्केटिंग, फाइनेंस, HR, टेक्निकल, डिजाइन, रिसर्च, सभी डिपार्टमेंट्स के हेड आ गए।

    पार्थ ने कमरे में कदम रखा। उसकी मौजूदगी हमेशा की तरह गूंज बनकर फैल गई। वह खड़ा रहा, और धीमे मगर दमदार लहजे में बोलना शुरू किया—

    “मैं आज आप सबसे एक खास ऐलान करने जा रहा हूँ। Birla Group का एक ड्रीम प्रोजेक्ट है। जिसे अमेरिका की सबसे टॉप कंपनी के mr जॉन नेल्सन इंडिया आने वाले हैं। एक प्रोजेक्ट की खोज में। उन्हें जिस कंपनी का प्रोजेक्ट बेस्ट लगेगा, वह उस कंपनी के पार्टनरशिप करेंगे और उस प्रोडक्ट को अमेरिका और बहुत से देशों में, जहाँ उनकी कंपनी है, वहाँ पब्लिश करेंगे। इसलिए मैं चाहता हूँ आप सब अपने डिपार्टमेंट के 3 ऐसे होनहार कैंडिडेट को चुनकर उन्हें अपनी-अपनी आइडिया के बारे में एक प्रोजेक्ट बनाकर एक हफ्ते में सबमिट करने के लिए कहें। और अगर आप सब भी इसमें पार्टिसिपेट करना चाहते हैं, तो आप भी कर सकते हैं।”

    तभी प्रिया हिचकिचाते हुए बोली, "सर, क्या मैं भी इस प्रोजेक्ट के लिए कुछ बना सकती हूँ?"

    ये सुनकर पार्थ उसे एक नज़र देखता है और बोलता है, "तुम्हारी मर्ज़ी। अगर तुम चाहती हो ये करना, तो कर सकती हो।"

    ये सुन प्रिया खुश हो जाती है।

    तभी पार्थ बोलता है, “इस प्रोजेक्ट की लीडरशिप उसी को दी जाएगी जिसकी प्रोजेक्ट सबसे ज़्यादा योग्य साबित होगी। और एक बात, सभी कैंडिडेट्स की फ़ाइल मिस अग्निवंशी को दे देना। वह मुझे इन्फॉर्म कर देंगी। Now meeting is over. All the best.”

    सबकी नज़रें गंभीर हो गईं। वहीं पार्थ इतना बोलकर अपने केबिन में चला गया। मीटिंग खत्म होते ही ऑफिस में खलबली सी मच गई।

    हर कोई चुना जाना चाहता था। कुछ अपना बेस्ट देना चाहते थे, तो कुछ सिर्फ़ पार्थ को इम्प्रेस करना।

    अगले दिन सुबह – Birla Group Office

    प्रिया सुबह जल्दी ऑफिस पहुँच चुकी थी। जैसे ही वह अपनी डेस्क पर बैठी, एक-एक करके सभी डिपार्टमेंट हेड्स अपने तीन-तीन चुने गए कैंडिडेट्स की रिपोर्ट लेकर उसके पास आने लगे।

    फ़ाइल पर फ़ाइल जमा होने लगी।

    प्रिया हर रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ रही थी—कौन-कौन चुना गया है, उनका बैकग्राउंड क्या है, अब तक की परफ़ॉर्मेंस कैसी रही है। वह हर रिपोर्ट को व्यवस्थित कर रही थी ताकि पार्थ को सटीक और क्लियर जानकारी दी जा सके।

    दोपहर तक:

    सभी चयनित कैंडिडेट्स को मेल के माध्यम से निर्देश भेजे गए:

    “आपको 7 दिनों में एक यूनिक प्रोडक्ट आइडिया के साथ पूरी रिपोर्ट तैयार करनी है। क्या बनाना है (Product Idea), क्यों बनाना है (Market Need), कैसे बनाना है (Process), कितना खर्च लगेगा (Budget), कितनी टीम चाहिए होगी (Resource Planning) और Expected Output and Impact. रिपोर्ट PowerPoint और डॉक्युमेंट दोनों फ़ॉर्मेट में होनी चाहिए।”

    शाम तक सभी टीम्स अलग-अलग कॉन्फ़्रेंस रूम्स में बैठकर brainstorming कर रही थीं। कहीं व्हाइटबोर्ड पर मार्कर चल रहा था, कहीं कॉफ़ी कप्स के साथ intense discussions हो रहे थे।

    प्रजेंटेशन डे – Birla Group Auditorium

    सभी चुने गए कैंडिडेट्स ने अपने-अपने प्रोजेक्ट्स तैयार कर लिए थे। मंच पर एक बड़ी स्क्रीन थी और पार्थ के साथ युग, करण, तुषार जूरी पैनल में बैठे थे।

    कई टीमों ने प्रोडक्ट आइडिया पेश कर चुके थे—कोई eco-friendly gadget बना रहा था, कोई smart wallet, तो कोई travel-based app।

    सभी प्रोडक्ट्स को पार्थ गहराई से देख रहा था। धीरे-धीरे एक-एक कैंडिडेट्स प्रेजेंटेशन देते गए।

    तभी एक ऐसा प्रोडक्ट सभी के सामने आया जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। सभी आपस में कुसुर्-फुसुर करने लगे। कोई कहने लगा, “ये कितना अच्छा दिख रहा है!” तो कोई कहता, “इसके फ़ीचर्स कितने अच्छे हैं!”

    ऐसे ही कई तरह की बातें होने लगीं।

    तो आप सबको क्या लगता है? किसकी प्रोजेक्ट है यह? और ऐसा क्या बनाया है उसने जो सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी यह कहानी…

  • 13. Ishq hai tumse - Chapter 13

    Words: 938

    Estimated Reading Time: 6 min

    फिर बारी थी प्रिया की ।

    वह मंच पर आत्मविश्वास से पहुँची । उसके हाथ में एक sleek black box था ।

    "Good afternoon everyone,"

    "मैं आज आपको एक ऐसे डिवाइस से परिचित कराने जा रही हूँ जो न सिर्फ हमारी सेहत को ट्रैक करेगा, बल्कि उसे बेहतर करने के लिए समय रहते हमें चेतावनी भी देगा ।"

    Product Name: LIFEBEAT – Your Smart Health Partner

    Design: पतला, स्किन-फ्रेंडली और वॉटरप्रूफ ।

    Features: Heart rate monitoring, Sleep pattern analysis, Water intake reminder......

    ऐसे ही बहुत कुछ, जिसे सुनकर सभी हैरान रह गए । वहीं पार्थ के चेहरे पर एक संतुष्टि और गर्व भरे भाव थे ।

    सभी सदस्य उसकी बातों को गौर से सुन रहे थे । स्क्रीन पर visuals और mockup designs देखकर कुछ लोग तो हैरान रह गए ।

    "यह सिर्फ एक हेल्थ डिवाइस नहीं है, बल्कि यह आपकी लाइफस्टाइल को बेहतर करने की दिशा में आपका सबसे वफादार साथी है ।”

    ताली बज उठी । प्रिया सिर झुकाकर सभी को धन्यवाद बोली और अपनी सीट पर आ गई ।

    उसके बाद एक और लड़की आई । उसका नाम था नीता शर्मा ।

    नीता मंच पर खड़ी हुई । उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था ।

    "आज का हमारा समय तेज है, लेकिन सुरक्षा और परिवार जैसी ज़रूरतें अभी भी सबसे ज़्यादा अहम हैं । मेरा डिवाइस सिर्फ फिटनेस नहीं, आपके जीवन से जुड़ा हर पहलू संभालेगा ।"

    प्रोडक्ट का नाम: ACTI-SAFE Band – Your Life Companion

    मुख्य विशेषताएं: इमरजेंसी SOS फीचर, Family Connect App, खेल के साथ ज्ञान (Gamified Learning):

    नीता ने कहा:

    "ACTI-SAFE केवल एक बैंड नहीं, यह एक स्मार्ट फैमिली गार्ड है—जो आपके दिन की आदतों को सुधारता है, आपको सुरक्षित रखता है और पूरे परिवार को एक-दूसरे से जोड़ता है और परिवार का सदस्य क्या कर रहा है, कहाँ है, सुरक्षित है कि नहीं, बुजुर्ग लोगों की स्वास्थ्य की रिपोर्ट अपने परिवार तक अपने आप पहुँचेंगे ।"

    हॉल में तालियाँ गूँजीं । जूरी में बैठे युग, करण और तुषार एक-दूसरे की तरफ देखकर सिर हिला रहे थे ।

    पार्थ की आँखों में गहराई थी ।

    उसके मन में चल रहा था—"नीता ने इस बार सच में एक व्यावहारिक और नवीन दृष्टिकोण दिखाया है…"

    ऐसे ही सभी का प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन समाप्त हुआ । पार्थ अपने दोस्तों से बातचीत कर फाइनल विनर का ऐलान किया ।

    पार्थ ने सबको एक नज़र देखा और बोला,

    "हमारे पास दो बेहतरीन आइडियाज़ हैं । एक प्रिया का — Lifebeat Band, और दूसरा नीता का — Acti-Safe Band । दोनों की सोच अलग है, लेकिन मकसद एक—Health और Safety को एक नई ऊँचाई तक ले जाना ।"

    "इसलिए मेरा निर्णय है — इन दोनों प्रोजेक्ट्स को मिलाया जाएगा । प्रिया और नीता दोनों इस Project की सह-प्रमुख होंगी । और बाकी आप सब मिलकर इन दोनों की टीम का हिस्सा बनोगे ।"

    सभी कर्मचारी आपस में देखकर मुस्कुराए—क्योंकि यह उनके लिए एक सीखने का भी मौका था । सभी को मीटिंग रूम में बैठने को कहा गया । और इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे उम्मीदवारों को ऑफिस के कामों से मुक्त कर दिया गया था ।

    मीटिंग रूम,

    सभी विभागों के चुने हुए लोग एक गोल मेज़ के चारों ओर बैठे थे । प्रिया और नीता सामने वाली सीट पर थीं, एक व्हाइटबोर्ड पर पूरा प्लान बनना शुरू हुआ ।

    Priya बोली:

    "हम दो अलग-अलग फीचर वाले बैंड को एक साथ मिलाएँगे । मेरा डिज़ाइन अनोखा होगा और नीता के फीचर्स इस बैंड को और सुरक्षित बनाएँगे ।"

    नीता ने सिर हिलाते हुए कहा:

    "और हम यूज़र्स को एक ऐसा इंटरफेस देंगे जहाँ खेल, स्वास्थ्य और परिवार एक साथ जुड़ेंगे ।"

    प्रिया और नीता कुछ समय एक-दूसरे के साथ बात करती रहीं । फिर प्रिया व्हाइटबोर्ड पर टीम के बारे में लिखती है । वहीं नीता सभी को बताती जाती है ।

    1. Design & Appearance Team (Priya के नेतृत्व में)

    इस टीम के सदस्य बैंड का बाहरी डिज़ाइन और पहनने में आरामदायक अनुभव हो, वैसा बनाएँगे । हमारा बैंड सिर्फ हेल्थ ट्रैकर नहीं, एक फैशन एक्सेसरी जैसा दिखना चाहिए, ताकि हर उम्र का इंसान इसे पहन सके ।

    2. Technology & Safety Feature Team (नीता के नेतृत्व में)

    इस टीम के सदस्य SOS, Alerts और Activity Tracking सिस्टम की तकनीकी विकास करेंगे । हर सेकंड की गणना ज़रूरी है । यह बैंड तब काम आना चाहिए जब वक्त कम हो और रिस्पॉन्स तेज चाहिए ।

    3. App Development & Connectivity Team

    इस टीम के सदस्य एक ऐसा मोबाइल ऐप बनाएँगे जो बैंड को परिवार और डिवाइस से जोड़ सके ।

    4. Marketing & Survey Team

    इस टीम के सदस्यों को यूज़र्स की ज़रूरतें समझना और मार्केट स्ट्रेटेजी बनाना होगा । क्योंकि उन्हें क्या चाहिए, वह उनसे अच्छा कोई नहीं बता सकता ।

    5. Finance Team

    पूरे प्रोजेक्ट का खर्च, निवेश, लाभ और प्राइसिंग स्ट्रेटेजी तय करना ।

    अंत में नीता बोली,"प्रोडक्ट ऐसा होना चाहिए कि सभी के बजट में आए ।"

    ऐसे ही सब कुछ चर्चा में शाम हो गई । इसलिए सभी ने कल काम शुरू करने का सोचा और सभी अपने-अपने घर चले गए ।

    अगले दिन से ही ऑफिस का माहौल पूरी तरह बदल चुका था । हर कोई अपने-अपने डेस्क पर पहले से ज़्यादा जोश और लगन से जुटा हुआ था । यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं था, बल्कि हर एक कर्मचारी के लिए सपनों का सच होने जैसा मौका था । दिन बीतते गए, रातों की नींदें कुर्बान हुईं, लेकिन किसी के चेहरे पर थकान नहीं, बल्कि संतोष था ।

    आखिरकार वह दिन आ पहुँचा जब प्रोडक्ट की टेस्टिंग होनी थी । मीटिंग रूम में गूंजता हुआ सन्नाटा और घड़ी की टिक-टिक सबकी धड़कनों के साथ मेल खा रही थी । प्रोटोटाइप टेबल पर रखा गया ।

    क्या उनका प्रोडक्ट सक्सेसफुल रहेगा?

  • 14. Ishq hai tumse - Chapter 14

    Words: 1096

    Estimated Reading Time: 7 min

    अगले दिन से ही ऑफिस का माहौल पूरी तरह बदल चुका था । हर कोई अपने-अपने डेस्क पर पहले से ज़्यादा जोश और लगन से जुटा हुआ था । यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं था, बल्कि हर एक कर्मचारी के लिए सपनों का सच होने जैसा मौका था । दिन बीतते गए, रातों की नींदें कुर्बान हुईं, लेकिन किसी के चेहरे पर थकान नहीं, बल्कि संतोष था ।

    आखिरकार वह दिन आ पहुँचा जब प्रोडक्ट की टेस्टिंग होनी थी । मीटिंग रूम में गूंजता हुआ सन्नाटा और घड़ी की टिक-टिक सबकी धड़कनों के साथ मेल खा रही थी । प्रोटोटाइप टेबल पर रखा गया ।

    तकनीकी टीम ने एक-एक फंक्शन की जांच शुरू की और जब आखिरी "टेस्ट पास" की रिपोर्ट स्क्रीन पर आई, तो पूरे रूम में जैसे जश्न का माहौल बन गया ।

    उसने मुस्कुराते हुए सबको देखा । यह मुस्कान कुछ अलग थी – गर्व से भरी, स्नेह से सजी ।

    उसने मुस्कुराते हुए सबको देखा । यह मुस्कान कुछ अलग थी – गर्व से भरी हुई ।

    "Congratulation to everyone! आप सबने जो कर दिखाया है, वो सिर्फ़ एक प्रोडक्ट नहीं... उन सब का सपना था । अब से यह सिर्फ़ एक हेल्थ बैंड नहीं है, यह 'Lifebeat' है – ज़िन्दगी की धड़कन ।" पार्थ बोला ।

    "इस महीने आप सभी को बोनस सैलरी दी जाएगी । और अगर हमारा प्रोजेक्ट सिलेक्ट हो गया... तो उस महीने की सैलरी डबल होगी ।" फिर वह गंभीर होते हुए बोला ।

    कुछ सेकेंड्स सन्नाटा रहा... फिर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा । प्रिया की आँखें भीगीं, नीता मुस्कुरा रही थी, और बाकी सभी कर्मचारी खुशी से पार्थ को देख रहे थे ।

    पार्थ और उसके दोस्त मुस्कुराते हुए मीटिंग रूम से बाहर निकल गए ।

    जैसे ही पार्थ और उसके दोस्त मीटिंग रूम से बाहर निकले, कमरे में जश्न का माहौल और भी ज़ोरों पर पहुँच गया । सभी कर्मचारी खुशी से एक-दूसरे के गले लगने लगे, कोई ताली बजा रहा था, तो कोई म्यूजिक ऑन करके डांस करने लगा । वह पल जैसे बरसों की मेहनत का इनाम था, जिसे सबने खुलकर जीना चाहा ।

    इसी उत्साह के बीच अचानक किसी का कंधा प्रिया से टकरा गया । वह संतुलन खो बैठी और गिरने लगी । सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि किसी को समझने का मौका नहीं मिला, लेकिन राकेश—जो पास ही खड़ा था—ने फुर्ती से आगे बढ़कर प्रिया को थाम लिया ।

    एक पल के लिए समय जैसे थम गया । प्रिया उसकी बाहों में थी, और राकेश का हाथ उसकी कमर पर था । प्रिया ने डर के मारे आँखें कस कर बंद कर ली थीं । लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि वह ज़मीन पर नहीं गिरी, तो उसने धीरे से आँखें खोलीं । खुद को किसी की बाहों में सुरक्षित देखकर वह थोड़ी सकपका गई, लेकिन फिर मुस्कुरा कर बोली, "थैंक यू..."

    "नो वरी... ध्यान रखा करो ।" राकेश ने भी हल्के से मुस्कराकर कहा ।

    प्रिया ने झेंपते हुए खुद को उसकी बाहों से अलग किया और सीधी खड़ी हो गई । आसपास खड़े कुछ लोगों ने यह दृश्य देखा, पर वे भी उस खुशी के माहौल में ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाए । मगर राकेश की नज़रें थोड़ी देर तक प्रिया पर ही टिकी रहीं, जैसे कुछ नया महसूस हुआ हो ।

    आँखें दूर खड़े होकर सब कुछ देख रही थीं—आँखों में गुस्सा, जलन और बेचैनी साफ झलक रही थी । वे और कोई नहीं, बल्कि पार्थ था ।

    पार्थ ने जैसे ही प्रिया को राकेश की बाहों में देखा, उसके भीतर कुछ टूटने सा लगा । उसके चेहरे पर वह सख्त सी शांत सतह बनी रही, लेकिन आँखों में एक तूफान उठ चुका था । बिना किसी से कुछ कहे वह तेज़ कदमों से अपने केबिन की ओर चला गया ।

    जैसे ही उसने केबिन का दरवाज़ा बंद किया, भीतर का गुस्सा फट पड़ा । एक-एक कर उसने अपनी मेज़ पर रखी फाइलें, पेन्स, पेपरवेट सब फेंकना शुरू कर दिया । दीवार पर टंगी तस्वीरें भी नीचे गिर गईं । उसकी साँसें तेज़ थीं, माथे पर पसीना और आँखों में ऐसा दर्द जिसे वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था ।

    "वो राकेश कौन होता है... उसे छूने वाला..." पार्थ की आवाज़ दबी थी लेकिन हर शब्द में आग थी ।

    पार्थ के भीतर का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था । वह अब भी बड़बड़ा रहा था—“उसे छूने का हक सिर्फ मेरा है…”—हर शब्द उसके दिल की गहराइयों से निकल रहा था । उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं और हाथ लगातार मेज़ पर रखी चीज़ों को फेंकते जा रहे थे ।

    उसी वक्त बाहर से बेपरवाह, प्रिया उसके केबिन की ओर बढ़ी, क्योंकि उसे अगली मीटिंग के बारे में जानकारी देनी थी । दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, इसलिए उसने बिना दस्तक दिए ही अंदर कदम रखा ।

    जैसे ही प्रिया ने अंदर झांका, उसकी साँस रुक गई ।

    कमरे की हालत देखकर वह चौंक गई—कुर्सियाँ उलटी पड़ी थीं, कांच की कोई डेकोरेशन चीज़ फर्श पर बिखरी हुई थी, फाइलें बेतरतीब थीं । और पार्थ… अपनी रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा, आँखें बंद किए, माथे की नसें तनी हुई, जैसे खुद से लड़ रहा हो ।

    प्रिया धीरे-धीरे कमरे में कदम रखती है, आँखों में चिंता और दिल में हल्का डर लिए । उसके लिए यह सब समझना मुश्किल था—एक सख्त, शांत, अनुशासित पार्थ का ऐसा रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था ।

    वह कुछ पल दरवाज़े पर खड़ी रही, फिर धीरे से बोली, "सर... सर?"

    लेकिन पार्थ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा तनाव से भरा हुआ ।

    प्रिया झिझकते हुए उसके करीब आई । उसकी साँसें तेज़ थीं । एक पल के लिए उसने खुद को संभाला और फिर धीरे से पार्थ के कंधे पर हाथ रखा ।

    "सर..." उसकी आवाज़ बेहद मुलायम थी ।

    पार्थ ने जैसे ही उसकी आवाज़ और छुअन को महसूस किया, उसकी आँखें खुल गईं । उसकी नज़रें सीधे प्रिया पर टिक गईं । उस एक पल में जैसे सब थम गया । जो आँखें अब तक गुस्से से जल रही थीं, अचानक उनमें एक सुकून उतर आया । कुछ देर तक वह बस प्रिया को देखता रहा, बिना कुछ कहे ।

    लेकिन जैसे ही उसके ज़हन में फिर से वह दृश्य घूम गया—राकेश की बाहों में प्रिया, राकेश की नज़रें जो हद से ज़्यादा लंबी टिकी थीं—तो उसकी आँखों की चमक फिर से बुझ गई और चेहरा कठोर हो गया ।

    उसके भीतर फिर से वही ज्वाला भड़क उठी । तभी पार्थ कुछ ऐसा करता है जिससे प्रिया हैरान हो जाती है ।

    तो आप सब को क्या लगता है क्या किया होगा पार्थ ने?

  • 15. Ishq hai tumse - Chapter 15 तुम सिर्फ मेरी हो

    Words: 1157

    Estimated Reading Time: 7 min

    पार्थ ने जैसे ही उसकी आवाज़ और स्पर्श को महसूस किया, उसकी आँखें खुल गईं । उसकी नज़रें सीधे प्रिया पर टिक गईं । उस एक पल में जैसे सब थम गया । जो आँखें अब तक गुस्से से जल रही थीं, उनमें अचानक एक सुकून उतर आया । कुछ देर तक वह बस प्रिया को देखता रहा, बिना कुछ कहे ।

    लेकिन जैसे ही उसके ज़हन में फिर से वह दृश्य घूम गया—राकेश की बाहों में प्रिया, राकेश की नज़रें जो हद से ज़्यादा देर तक टिकी थीं—तो उसकी आँखों की चमक फिर से बुझ गई और चेहरा कठोर हो गया ।

    उसके भीतर फिर से वही ज्वाला भड़क उठी ।

    अचानक ही, बिना कुछ सोचे, पार्थ ने प्रिया की कलाई थाम ली और एक झटके में उसे अपनी ओर खींच लिया । प्रिया कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वह सीधे पार्थ की गोद में आ गिरी । उसके होंठों से एक हल्की सी चीख निकली, लेकिन अगले ही पल पार्थ ने उसे कसकर थाम लिया, जैसे वह किसी और की नज़रों से बचा रहा हो… या फिर किसी और की बाहों में जाने से रोक रहा हो ।

    प्रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा । वह पल एकदम अजीब और अनचाहा था उसके लिए । उसने खुद को सम्भालते हुए पार्थ की गोद से उठने की कोशिश की, लेकिन पार्थ की पकड़ ढीली नहीं हुई । बदले में पार्थ का गुस्सा और बढ़ गया ।

    “उसकी बाहों में तो तुम कितनी खुशी से थीं…” पार्थ की आवाज़ अब गुस्से से काँप रही थी, “फिर मेरी बाहों में क्या प्रॉब्लम हो रही है तुम्हें?”

    प्रिया स्तब्ध रह गई । उसकी आँखें हैरानी और घबराहट से भर गईं । वह काँपती आवाज़ में बोली,
    “सर… ये आप क्या कर रहे हैं… प्लीज़… छोड़िए मुझे… कोई आ गया तो हमें ऐसे देखकर गलत समझेगा…”

    पार्थ का गुस्सा अब जैसे आग बनकर फूट पड़ा था । उसकी आँखों में जलन, दिल में बेचैनी और ज़ुबान पर वह कड़वाहट थी जिसे वह अब तक दबाए बैठा था ।

    “समझाना है तो समझाओ,” पार्थ तीखी आवाज़ में बोला, “जब तुम किसी और की बाहों में थीं तब यह सोचने की समझ नहीं आई तुम्हें, कि कौन क्या समझेगा?”

    प्रिया एक पल को सन्न रह गई । उसकी आँखें हैरानी से फैल गईं । वह समझ ही नहीं पाई कि पार्थ किस बारे में इतना भड़का हुआ है । फिर अचानक, जैसे किसी ने उसके ज़हन का पर्दा हटाया—उसे याद आया वह पल, जब वह राकेश की बाहों में थी… वह बस एक संयोग था, लेकिन अब पार्थ उसे कुछ और ही समझ रहा था ।

    “सर…!” प्रिया की आवाज़ काँपने लगी, “जैसा आप समझ रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं है । उन्होंने सिर्फ़ मेरी मदद की थी, और कुछ नहीं । मैं गिर रही थी… बस उसी वक़्त उन्होंने थाम लिया… प्लीज़…”

    उसकी आँखों में डर और बेबसी दोनों थे । वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी ।
    “सर, प्लीज़… छोड़िए… मुझे जाने दीजिए… कोई आ गया तो गलत समझेगा… मैं… मैं ऐसी नहीं हूँ…”

    पार्थ की पकड़ अब भी मज़बूत थी, लेकिन उसके दिल में अंदर ही अंदर एक झिझक पनपने लगी थी । वह जानता था कि प्रिया सच कह रही है, लेकिन उसका गुस्सा, उसकी जलन, उसकी possessiveness उस पर हावी हो गई थी ।

    पार्थ की आँखों में जलती आग अब भी शांत नहीं हुई थी । प्रिया की सफ़ाई सुनने के बावजूद उसके भीतर की कसक कम नहीं हुई । उसकी पकड़ अब भी प्रिया की कलाई पर थी, और उसकी आँखें सीधे उसकी आँखों में झाँक रही थीं ।

    फिर, एक पल को उसने प्रिया की कलाई को थोड़ा मरोड़ा—not दर्द देने के लिए, बल्कि यह जताने के लिए कि वह उसे खोने का ख्याल भी सहन नहीं कर सकता ।

    वह झुका, उसके चेहरे के करीब आया, और धीमी लेकिन सख्त आवाज़ में बोला—

    “आगे से ध्यान रखना… कोई भी… कोई भी तुम्हें इस तरह छूने की हिम्मत न करे…”

    प्रिया सन्न रह गई । वहीं पार्थ इतना बोलकर प्रिया के कान के पास कर उसके ईयरलोब पर बाइट कर देता है । जिससे न चाहते हुए प्रिया की चीख निकल गई । जिसे सुनकर पार्थ अपने होठों से उसके ईयरलोब को चूसने लगा । जिसे महसूस करते ही प्रिया का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा । पार्थ के शब्दों में सिर्फ़ गुस्सा नहीं, अधिकार था—एक ऐसा अधिकार जो उसने कभी उसे दिया ही नहीं था ।

    पार्थ की साँसें उसके चेहरे से टकरा रही थीं, और उसकी नज़रों में एक ऐसी गहराई थी जिसे पढ़ना मुश्किल था । प्रिया को उसकी आँखों में एक अलग ही possessiveness दिख रहा था । जिससे प्रिया घबरा रही थी ।

    साथ ही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है ।

    तभी पार्थ की गूंजती आवाज़ उसके कानों में पड़ी, एक ऐसी आवाज़ जिसमें चेतावनी थी, अधिकार था, और छुपा हुआ डर भी—

    “वरना… अगली बार तुम्हारी सज़ा… और भी कड़वी होगी ।”

    प्रिया के कदम वहीं ठिठक गए । वह पलटकर कुछ कह पाती, उससे पहले पार्थ धीरे-धीरे उसके करीब आया, उसकी आँखों में गहराई से देखा और बेहद ठंडी, लेकिन सीधी आवाज़ में कहा—

    “एक बात याद रखना, तुम सिर्फ़ मेरी हो । इसलिए आगे से उन सब लड़कों से थोड़ी दूरी बनाकर रखना… खासकर उन लोगों से जो तुम्हें उस नज़र से देखें ।”

    उसने प्रिया की कलाई छोड़ दी ।

    प्रिया ने जैसे ही खुद को आज़ाद महसूस किया, वह झटके से उठी और बिना पीछे देखे तेज़ी से कमरे से बाहर भाग गई । उसकी साँसें तेज थीं, और दिल में अजीब-सी घबराहट, जैसे कुछ ऐसा घट गया हो जिसे वह समझ नहीं पा रही थी ।

    वह सीधा अपने केबिन में गई, दरवाज़ा बंद किया ।

    प्रिया अपने केबिन के दरवाज़े के पास दीवार से टिककर खड़ी हो गई । उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, जैसे कोई भागकर आई हो । मगर असल दौड़ तो उसके दिल में चल रही थी… सोचों की, एहसासों की ।

    उसके ज़हन में बार-बार पार्थ की आवाज़ गूंज रही थी—“तुम सिर्फ़ मेरी हो…”

    उसकी आँखों के सामने वह पल तैर रहा था जब पार्थ उसके बेहद करीब आया था, उसकी कलाई थामी थी, और उसकी आँखों में देखकर वह बात कही थी जो अब तक किसी ने नहीं कही थी ।

    उसका इस तरह पास आना… उसका स्पर्श… उसकी आँखों का वह गुस्सा और वह अधिकार…

    कुछ भी बुरा नहीं लगा प्रिया को ।

    बल्कि… एक अजीब-सा सुकून महसूस हो रहा था ।

    “क्यों?” उसने खुद से सवाल किया ।

    उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, मगर डर के नहीं… एक ऐसे एहसास के जो धीरे-धीरे उसके भीतर जगह बना रहा था ।

    उसका गुस्सा… वह possessive होना… यह सब शायद… सिर्फ़ एक बॉस का गुस्सा नहीं था ।

    तभी कुछ ऐसा होता है जिसके बारे में उसने कभी सोचा नहीं था ।

    तो आप सब को क्या लगता है, क्या हुआ होगा ऐसा?

    जानने के लिए अगले चैप्टर पढ़ते रहिए…

  • 16. Ishq hai tumse - Chapter 16 असर हो रहा है मेरा तुम पर

    Words: 1187

    Estimated Reading Time: 8 min

    “क्यों?” उसने खुद से सवाल किया ।

    उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, मगर डर के नहीं… एक ऐसे एहसास के जो धीरे-धीरे उसके भीतर जगह बना रहा था । उसका गुस्सा… वो पजेसिव होना… ये सब शायद… सिर्फ एक बॉस का गुस्सा नहीं था ।

    पार्थ की हरकत याद कर प्रिया के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई । उसने अपनी आँखें बंद कर उस फिलिंग को जीने की कोशिश की । तभी अचानक वो होश में आई और सोची, “मैं ये क्या सोच रही हूँ? ऐसा ठीक नहीं है । बॉस और एंप्लॉई के बीच ।”

    वो अपनी कुर्सी पर बैठ गई, दोनों हाथों से चेहरा ढँक लिया और आँखें बंद कर लीं । अब उसे खुद से भी डर लगने लगा था… कहीं वो भी तो...?

    काफी देर तक खुद से जूझने के बाद, प्रिया ने अपने सिर को हल्का सा झटका दिया, जैसे अपने ज़ेहन में चल रही बातों को दूर फेंक देना चाहती हो ।

    “नहीं… ये सब सोचने का वक्त नहीं है,” उसने खुद से कहा और टेबल पर रखी फाइल्स उठाकर खुद को काम में डुबो दिया । उसकी उंगलियाँ तेज़ी से लैपटॉप पर चल रही थीं, मगर उसका दिल अब भी हल्का-हल्का कांप रहा था ।

    उसी वक्त, पार्थ अपने केबिन में बैठा, सामने लगी स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए हुए था । स्क्रीन पर उसके ऑफिस की CCTV फ़ीड चल रही थी, और उसमें एक कैमरा सीधे प्रिया के केबिन को कवर कर रहा था । वो देख रहा था कि कैसे प्रिया खुद से लड़ते हुए अचानक खुद को काम में झोंक रही है । उसके चेहरे की उलझन, उसकी झिझक… और फिर वो हल्की सी मुस्कान, जो उसने खुद भी शायद महसूस नहीं की थी ।

    पार्थ के होंठों पर एक धीमी-सी मुस्कान आ गई ।
    “तो असर हो रहा है मेरा तुम पर…” उसने मन ही मन सोचा ।

    एक पल को उसकी आँखों में नरमी झलकी, फिर उसने एक गहरी साँस ली और अपने सामने रखे कागज़ों की ओर ध्यान लगाया । मगर अब उसकी उंगलियाँ भी कुछ धीमी हो गई थीं… शायद उसका ध्यान अब पूरी तरह काम पर नहीं था । पर जैसे-तैसे उसने खुद को काम में लगाए रखा ।

    करीब पंद्रह मिनट बाद, खुद को सामान्य करते हुए प्रिया ने एक फ़ाइल तैयार की और एक पियॉन को बुलाया ।

    “ये फ़ाइल सर के केबिन में दे देना और कहना कि एक घंटे बाद अगली मीटिंग है । साथ ही, केबिन की सफाई भी करवा लेना ।”

    पियॉन सिर हिलाता है और धीरे-धीरे पार्थ के केबिन की ओर बढ़ गया ।

    पार्थ अब भी अपने सिस्टम पर नज़रें गड़ाए बैठा था, मगर जैसे ही पियॉन ने दरवाज़ा खटखटाया, पार्थ ने उसे अंदर आने के लिए कहा ।

    पियॉन केबिन के अंदर आया और कहा, “सर, प्रिया मैम ने कहा है कि एक घंटे बाद मीटिंग है और मैं आपका केबिन साफ कर दूँ ।”

    ये सुनकर पार्थ की उंगलियाँ रुक गईं । उसका चेहरा कुछ पल के लिए शांत रहा, लेकिन फिर उसकी भौंहें सिकुड़ गईं । उसने बिना कुछ कहे, पियॉन को हाथ के इशारे से काम करने को कहा और खुद कुर्सी पर पीछे झुक कर बैठ गया । उसकी आँखें अब किसी एक बिंदु पर टिक गई थीं । अंदर कुछ चुभा था… एक अजीब-सी कसक ।

    वो मन ही मन सोचने लगा, “क्या वो मुझसे दूर रहने की कोशिश कर रही है…”

    पर प्रिया की ये बात उसे अच्छी नहीं लगी । पर प्रिया की सिचुएशन के बारे में सोचकर उसने खुद को शांत किया और अपने काम में व्यस्त हो गया ।

    करीब आधे घंटे बाद…

    पार्थ ने अपने फ़ोन की स्क्रीन पर प्रिया का नंबर खोजा और कॉल मिलाई । दूसरी तरफ फ़ोन की घंटी बजते ही प्रिया का दिल धड़क उठा ।

    “सर का कॉल… अभी?”

    उसने कांपती उंगलियों से फ़ोन उठाया ।

    “हाँ… सर?”

    पार्थ की आवाज़ ठंडी मगर सख्त थी — “Meeting के लिए निकलना है । तुम सभी files लेकर मेरे cabin में आओ ।”

    बस इतना कहकर उसने कॉल काट दिया ।

    प्रिया कुछ पल तक यूँ ही फ़ोन को देखती रही । उसके चेहरे पर हल्की घबराहट आ गई थी, जैसे किसी परीक्षा के पहले छात्र को होती है । उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, और दिल की धड़कनें जैसे कानों में सुनाई देने लगी थीं ।

    “वो कैसे रिएक्ट करेगा… क्या फिर से कुछ बोलेगा… या फिर बिल्कुल चुप रहेगा?” हर सवाल उसे परेशान कर रहा था ।

    मगर एक बात वो जानती थी—वो पार्थ की बात को टाल नहीं सकती थी । इसलिए उसने जल्दी से सारी फाइलें समेटीं, अपनी साँसें नियंत्रित कीं, और धीरे-धीरे पार्थ के केबिन की ओर बढ़ गई ।

    हर कदम उसे भारी लग रहा था… जैसे दरवाज़े के उस पार सिर्फ मीटिंग नहीं, बल्कि उसके दिल के जवाब भी छिपे हों ।

    प्रिया धीरे-धीरे पार्थ के केबिन में दाखिल हुई, फाइलें हाथ में थीं और नज़रें ज़मीन पर टिकी थीं । पार्थ ने एक बार भी उसकी ओर नहीं देखा । बस उठ खड़ा हुआ और बोला, “चलो, मीटिंग बाहर है ।”

    फिर वो अपनी पर्सनल लिफ्ट की ओर बढ़ गया । प्रिया ने बिना कुछ पूछे उसके पीछे चलना बेहतर समझा । लिफ्ट में सन्नाटा था, केवल दिल की धड़कनों की आवाज़ जैसे सुनाई दे रही थी ।

    कुछ ही सेकंड में दोनों पार्थ की प्राइवेट पार्किंग में थे ।

    जैसे ही ड्राइवर ने गाड़ी आगे की ओर बढ़ाई, प्रिया सामने की सीट पर बैठने लगी । मगर तभी पार्थ की आवाज़ आई—नरम लेकिन हुक्म देने वाली:

    “पीछे बैठो ।”

    उसका लहजा न तेज़ था, न ही कोमल । मगर उसमें एक ऐसी ठंडक थी जो सीधे प्रिया की रीढ़ तक उतर गई ।

    प्रिया का दिल ज़ोर से धड़का । उसने बिना कुछ बोले गर्दन झुकाई और पीछे की सीट पर बैठ गई ।

    कुछ पल बाद पार्थ भी उसके साथ पीछे की सीट पर आकर बैठ गया । उसके ठीक बगल में ।

    गाड़ी चल पड़ी, मगर उस सन्नाटे ने जैसे सब कुछ जकड़ लिया था । प्रिया खिड़की की तरफ़ मुँह किए, बाहर देखने का बहाना कर रही थी, जबकि अंदर से उसका पूरा वजूद कांप रहा था ।

    पार्थ चुप था… लेकिन उसकी मौजूदगी किसी साए की तरह प्रिया को महसूस हो रही थी । पार्थ उसके ठीक पास बैठा था, लेकिन उनके बीच कुछ इंच की दूरी ने जैसे मीलों की दूरी का एहसास दिला दिया ।

    पार्थ ने ड्राइवर की ओर हल्के से सिर हिलाया, और कार धीमे-धीमे आगे बढ़ने लगी ।

    चंद पलों की खामोशी के बाद पार्थ की गहरी आवाज़ गूंजी —

    “तुमने एक बार file re-check कर ली है ना?”

    प्रिया ने तुरंत गर्दन हिलाते हुए जवाब दिया,

    “जी सर, मैंने पूरी file चेक कर ली है । अगर आप चाहें तो... एक बार फिर देख सकती हूँ ।”

    पार्थ ने बिना उसकी तरफ़ देखे जवाब दिया,

    “No need.”

    इतना कहकर वो अपने फ़ोन में emails चेक करने लगा ।

    तभी प्रिया के दिमाग में कुछ आया । जिससे प्रिया का चेहरा पूरा उतर गया ।

    तो आप सब को क्या लगता है? ऐसा क्या सोचा प्रिया ने जिससे उसका चेहरा उतर गया? जानने के लिए अगला चैप्टर पढ़ते रहिए… ।

  • 17. Ishq hai tumse - Chapter 17

    Words: 999

    Estimated Reading Time: 6 min

    चंद पलों की खामोशी के बाद, पार्थ की गहरी आवाज़ गूँजी—

    "तुमने एक बार फाइल री-चेक कर ली है न?"

    प्रिया ने तुरंत गर्दन हिलाते हुए जवाब दिया,

    "जी सर, मैंने पूरी फाइल चेक कर ली है । अगर आप चाहें तो... एक बार फिर देख सकती हूँ ।"

    पार्थ ने बिना उसकी तरफ देखे जवाब दिया,

    "No need."

    इतना कहकर वह अपने फ़ोन में ईमेल चेक करने लगा ।

    प्रिया ने हल्की साँस छोड़ी, मगर उसकी निगाहें अब पार्थ पर ही टिकी थीं । वह उसके प्रोफ़ेशनल एक्सप्रेशन को देख रही थी, उसकी उंगलियों की हरकतें, उसका गंभीर चेहरा, और उसकी आँखों का ध्यान ।

    कुछ पल को वह भूल ही गई कि वह कार में मीटिंग के लिए जा रही है । उसका दिल बस यही जानना चाहता था—

    "क्या वह सच में मुझसे गुस्से में है? या बस दिखा रहा है? क्या वह सब कुछ भूल गए हैं जो उन्होंने केबिन में किया?"

    उसे पार्थ का चुप रहना, उसकी शांति... सबसे ज़्यादा बेचैन कर रही थी । शायद उसे पार्थ का ऐसे चुप रहना अच्छा नहीं लग रहा था । वह शायद कुछ और ही एक्सपेक्ट कर रही थी । पर इसमें तो वह कुछ नहीं कर सकती । इसलिए उसका चेहरा उतर गया ।

    पार्थ भले ही फ़ोन की स्क्रीन पर नज़रें टिकाए बैठा था, लेकिन उसे अपने दाईं ओर से आती प्रिया की नज़रों की गर्माहट साफ़ महसूस हो रही थी । वह जानता था कि प्रिया उसे लगातार देख रही है ।

    पर उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस अपनी उंगलियों को स्क्रीन पर यूँ घुमाता रहा जैसे किसी ज़रूरी ईमेल का जवाब दे रहा हो ।

    प्रिया पूरी तरह खोई हुई थी—पार्थ के शांत चेहरे में, उसकी गर्दन की रेखाओं में, और उस सख्त पर समझदार व्यक्तित्व में ।

    लेकिन जैसे ही उसे अहसास हुआ कि वह नज़रों से पार्थ को घूर रही है, वह झेंप गई । उसकी आँखें एकदम सकपकाते हुए खिड़की की ओर भागीं, फिर सीट पर, फिर अपने दुपट्टे को ठीक करने लगी ।

    उसका चेहरा हल्का गुलाबी हो गया था ।

    उसके चेहरे की यह उलझन, यह चोरी पकड़े जाने जैसी हड़बड़ाहट... पार्थ देख रहा था । अंदर ही अंदर उसकी मुस्कान और गहरी हो रही थी । लेकिन चेहरे पर वही गंभीरता बनाए रखी ।

    "कितनी मासूम है..."

    उसने मन ही मन सोचा, पर बाहर से वही शांत सी मुद्रा बनाए बैठा रहा ।

    अगले दिन, सुबह की मीटिंग में प्रिया आई, शेड्यूल टेबल पर रखा और बिना आँखों से संपर्क किए तुरंत मुड़ गई और अपने केबिन में चली गई । पार्थ ने देखा, उसने "Good morning sir" तक नहीं कहा ।

    "इतनी भी क्या जल्दी थी..." उसने खुद से कहा, उसकी नज़रों में हल्की चुभन थी ।

    कुछ देर बाद जब पार्थ ने अपने केबिन के इंटरकॉम से प्रिया को चाय लाने के लिए कॉल किया, कुछ मिनट बाद चाय आई... लेकिन प्रिया की जगह एक जूनियर स्टाफ़ ले आया । पार्थ ने बिना कुछ कहे कप उठाया और उस स्टाफ़ को जाने को बोला । फिर वह एक घूँट लिया... और गुस्से में कप वापस रख दिया ।

    "इतना शक्कर कौन डालता है..." उसने बुदबुदाया ।

    लेकिन असली खलिश... प्रिया की गैरमौजूदगी थी ।

    ऐसे ही दो दिन गुज़र गए । एक दिन पार्थ और प्रिया को एक मीटिंग के सिलसिले में बाहर एक होटल में जाना था । दोनों ही पार्थ के पर्सनल लिफ़्ट से नीचे जा रहे थे । पहले प्रिया अक्सर पार्थ की बगल में खड़ी होती थी, पर इस बार वह लिफ़्ट के कोने में जाकर खड़ी हो गई । नज़रें फ़र्श पर थीं, और साँसें थोड़ी तेज । पार्थ ने बिना बोले, सिर्फ़ एक गहरी साँस ली... और उसकी आँखें कुछ ठंडी पड़ गईं ।

    कार में भी वह पार्थ से दूरी बनाए हुए बैठी थी । जितना उससे हो रहा था । वह पार्थ से नज़रें मिलाने से बच रही थी । मीटिंग के दौरान पार्थ की नज़रें बार-बार प्रिया की तरफ़ जाती रहीं, लेकिन प्रिया हर बार उसका सामना करने से बचती रही—या तो लैपटॉप की स्क्रीन में व्यस्त होने का बहाना बनाती, या डायरी में नोट्स लिखती । उसकी नज़रें कभी भी पार्थ से नहीं टकराईं ।

    कुछ दिन ऐसे ही बीत गए ।

    प्रिया ने खुद को पूरी तरह काम में झोंक दिया था । वह जानती थी कि पार्थ की मौजूदगी उसके दिल की धड़कनों को तेज कर देती है—पर वह यह भी जानती थी कि यह सब गलत है... और इसलिए, जितना हो सके, वह उससे दूर रहने लगी ।

    अब वह पार्थ के सामने तभी आती थी जब सुबह की मीटिंग शेड्यूल उसे देना होता ।

    बाकी समय ऐसे ही... कभी किसी जूनियर से चाय भिजवाती, तो कभी कोई ज़रूरी फ़ाइल किसी और के हाथों भेज देती । पार्थ यह सब नोट कर रहा था ।

    हर बार जब उसकी नज़रें केबिन के दरवाज़े की तरफ़ जातीं, तो उसे प्रिया की जगह कोई और दिखता । हर बार जब उसकी टेबल पर चाय रखी जाती, तो साथ में उसकी मीठी मुस्कान नहीं होती ।

    शुरू में उसने सोचा—शायद व्यस्त है या फिर कोई प्रॉब्लम होगी या फिर उस दिन की हरकत से वह कम्फ़र्टेबल नहीं होगी । इसलिए ऐसा कर रही है । पर अब लग भग 15 दिन ही गए थे उस दिन को ।

    पर अब तक प्रिया का यह हरकत लगातार चलता रहा, तो उसके गुस्से की चिंगारियाँ भीतर ही भीतर भड़कने लगीं ।

    उसने एक दिन मन ही मन कहा, "मुझसे भाग रही हो, प्रिया? देखते हैं कितने दिन और तुम्हारी यह हरकत जारी रहेगी? और जब मेरी बारी आएगी तब मैं देखता हूँ तुम्हें मेरे से कौन बचाता है जान?"

    इतना सोच वह मन ही मन मुस्कुरा देता है ।

    एक दिन प्रिया कुछ कर रही थी । तभी अचानक उसके केबिन का दरवाज़ा एक धड़ाम की आवाज़ के साथ खुलता है ।

    तो आप सब को क्या लगता है? किसने यह हरकत किया है? जब पार्थ को इस बारे में पता चलेगा तो क्या होगा? जानने के लिए अगले chapter को पढ़ने मत भूलना ।

  • 18. Ishq hai tumse - Chapter 18 पार्थ के दिल की बात प्रिया के सामने

    Words: 1557

    Estimated Reading Time: 10 min

    पार्थ का गुस्सा उस दिन अपने चरम पर था। जैसे ही उसने प्रिया के केबिन के शीशे से देखा कि कोई लड़का हँसते हुए प्रिया से बातें कर रहा था, उसकी आँखें एक पल को सुर्ख हो गईं। उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं और अगले ही पल—

    धड़ाम!!

    प्रिया के केबिन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला।

    भीतर बैठे दोनों चौंक गए। प्रिया ने घबरा कर सिर घुमा कर देखा—पार्थ सामने खड़ा था, चेहरा तमतमाया हुआ, आँखें जैसे आग उगल रही थीं।

    "क्या हो रहा है यहाँ?" पार्थ की आवाज़ इतनी सख्त थी कि लड़के का चेहरा एकदम फीका पड़ गया।

    "स... सर, मैं बस रिपोर्ट की बात कर रहा था..." लड़का घबराया।

    पार्थ ने उसकी तरफ़ देखा, जैसे पल में निगल जाएगा।

    "तुम्हारा काम रिपोर्ट देना है या स्माइल कलेक्ट करना? बाहर निकलो!"

    लड़का बिना कुछ बोले उठ खड़ा हुआ और झटपट बाहर चला गया।

    अब कमरे में केवल पार्थ और प्रिया रह गए थे। प्रिया ने धीरे से कहा,
    "सर, आप ओवररिएक्ट कर रहे हैं। वो बस रिपोर्ट—"

    पार्थ ने उसकी बात काटते हुए आगे बढ़कर उसकी कुर्सी के पास आकर कहा,
    "तुम हर किसी से इतनी स्माइलिंग होकर प्रोफेशनल बातें करती हो? या बस मुझसे दूर रहने के लिए दूसरों को इतना पास लाना ज़रूरी है?"

    प्रिया को यह बात चुभ गई। उसका चेहरा थोड़ी देर को लाल पड़ गया, और आँखों में नमी तैरने लगी।

    "सर, आप लिमिट क्रॉस कर रहे हैं। हर बार आपका गुस्सा... अब समझ नहीं आता कि बॉस हैं या..."

    पार्थ ने बीच में ही बोलते हुए कहा,
    "या क्या, प्रिया? बॉस हूँ या कुछ और? जो भी हूँ, तुम्हें किसी और के साथ इस तरह देख नहीं सकता। बात खत्म।"

    एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। प्रिया ने नजरें चुरा लीं, उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं। वो कुछ बोलती उससे पहले ही पार्थ ने अपनी आवाज़ थोड़ी नरम करते हुए कहा,
    "तुम्हें पता है प्रिया, तुम जब किसी और से ऐसे बात करती हो, तो लगता है जैसे कोई मेरी चीज़ मुझसे छीन रहा हो।"

    ये सुनकर प्रिया स्तब्ध रह गई। उसके चेहरे पर हैरानी और उलझन की परतें साफ झलक रही थीं। उसे समझ ही नहीं आया कि वह कैसे प्रतिक्रिया दे। वहीं प्रिया को यूँ शांत और स्तब्ध देखकर, पार्थ अचानक उसका हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ कहे उसे अपने केबिन की ओर ले जाने लगा।

    प्रिया इस अचानक खिंचे जाने से जैसे होश में आई। वह घबराई-सी स्वर में बोल उठी,
    "सर... ये आप क्या कर रहे हैं? छोड़िए मुझे... कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा?"

    इतना कहकर वह लगातार अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी, लेकिन पार्थ के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी—वो बस दृढ़ता से आगे बढ़ता जा रहा था। उसकी आँखों में एक अलग ही गहराई थी, जिसे प्रिया उस क्षण पढ़ नहीं पाई।

    ये सुनकर भी पार्थ पर जैसे कोई असर नहीं हुआ। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी दृढ़ता थी—जैसे आज वो किसी की भी नहीं सुनने वाला। प्रिया का बार-बार हाथ छुड़ाने की कोशिश करना, उसकी घबराई हुई आँखें... कुछ भी पार्थ को रोक नहीं पाया।

    प्रिया अब थक चुकी थी। उसने हार मान ली थी—या शायद उस क्षण की गंभीरता को समझ नहीं पा रही थी। वह चुपचाप पार्थ के साथ चलती रही।

    जैसे ही दोनों केबिन के पास पहुँचे, पार्थ ने झटके से दरवाज़ा खोला और प्रिया को अंदर ले गया। अंदर जाते ही उसने दरवाज़ा बंद कर दिया।

    प्रिया अभी भी स्तब्ध थी, कुछ कह नहीं पा रही थी। पार्थ ने उसके काँपते हुए हाथों को थामा और उसे ले जाकर केबिन के कोने में रखे सोफे पर बैठा दिया।

    उसकी हरकतें तेज़ थीं, लेकिन उस तेज़ी में भी एक सच्चाई थी—जैसे वो बहुत कुछ कहना चाहता हो, पर शब्दों में नहीं कह पा रहा हो।

    प्रिया को सोफे पर बिठाने के बाद, पार्थ कुछ पल उसे देखता रहा। फिर बिना एक शब्द कहे वह खुद धीरे से नीचे ज़मीन पर बैठ गया—बिलकुल उसके सामने। प्रिया हैरान रह गई... इतने अकड़ू और सख्त मिज़ाज वाले पार्थ को यूँ अपने पैरों के पास बैठा देख, वह कुछ पल को बिल्कुल स्तब्ध रह गई।

    पार्थ ने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया—उसका स्पर्श सर्द था, लेकिन दिल से काँपता हुआ। उसने धीमे लेकिन भावभरे स्वर में कहा,
    "देखो प्रिया... मैं जो आज कहने वाला हूँ, प्लीज़ ध्यान से सुनना। एक भी शब्द बीच में मत काटना।"

    प्रिया, जो पहले से ही पार्थ के इस बदले व्यवहार से चौंक गई थी, अब पूरी तरह शांत हो गई। उसकी साँसें धीमी हो गई थीं, और नज़रें पार्थ की आँखों में टिक गई थीं। कुछ था उन आँखों में... कोई बेचैनी, कोई छिपा दर्द।

    पार्थ ने गहरी साँस ली, जैसे खुद को संभाल रहा हो, फिर बमुश्किल शब्दों को समेटते हुए बोला—
    "प्रिया, देखो... मैं नहीं जानता कि मैं इन दिनों तुम्हारे लिए क्या महसूस कर रहा हूँ। बस ये जानता हूँ कि ये एहसास... दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। और अब इसे नज़रअंदाज़ करना मुझसे नहीं हो पा रहा।"

    "पर जो भी हो..." पार्थ ने गहरी साँस ली और फिर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए बोला, "फिर भी मुझे लगा कि तुम्हें ये सब बता देना चाहिए, बिना किसी झिझक के।"

    उसने प्रिया की आँखों में सीधे देखा—गहरी, सच्ची और थोड़ी काँपती हुई नज़रों से।
    "मैं... मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ, प्रिया। शायद... शायद प्यार भी करने लगा हूँ।"

    ये शब्द जैसे कमरे की हवा को एकदम स्थिर कर गए। प्रिया के दिल की धड़कनें अचानक तेज़ हो गईं। वो पलकों को झपकाना भूल गई थी, उसका चेहरा एकदम स्याह और स्तब्ध हो उठा।

    उसने थरथराती आवाज़ में कहा,
    "आप... आप झूठ बोल रहे हैं न, सर?"

    पर फिर जैसे उसे खुद अपनी ही बात पर यकीन नहीं रहा। उसने घबराकर अपना सिर थोड़ा पीछे खींचते हुए खुद ही बड़बड़ाया,
    "नहीं... नहीं... शायद मेरे ही कान बज रहे हैं... मैंने कुछ ग़लत सुन लिया है..."

    लेकिन उसकी आँखों के सामने बैठा वो पार्थ अब कोई कठोर सीईओ नहीं था—वो एक टूटे हुए दिल वाला इंसान लग रहा था, जो अपनी सबसे बड़ी कमज़ोरी पहली बार किसी के सामने रख रहा था।

    उसे सुनते ही पार्थ का दिल जैसे पिघल गया। उस पल वह न केवल उसकी मासूमियत पर मोहित हुआ, बल्कि उसके प्रति अपने जज़्बात और भी गहरे महसूस करने लगा। उसका मन किया कि बस उसे सीने से लगा ले, लेकिन किसी तरह खुद को संभालते हुए वह धीमे, लेकिन दृढ़ स्वर में बोला—

    "नहीं प्रिया... मैं कोई मज़ाक नहीं कर रहा। ये कोई खेल नहीं है। मैं सच में... सच में तुम्हें बहुत पसंद करने लगा हूँ।"

    प्रिया कुछ नहीं बोली। बस उसे देखती रही—उसकी आँखों में वो सच्चाई थी, वो बेचैनी थी, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा असरदार थी।

    पार्थ ने उसके हाथों को और कसकर थामा, उसकी नज़रों में झाँकते हुए आगे कहा—
    "जब मैं तुम्हें किसी और के करीब जाता देखता हूँ न... तो ये दिल अंदर ही अंदर जलने लगता है। एक बेचैनी, एक तड़प होती है जो मैं किसी से कह नहीं पाता। तुम हँसती हुए किसी और से बात करती हो... तो मेरे अंदर कुछ टूटता है, प्रिया।"

    वो अब शब्दों में नहीं, अपनी साँसों में बोल रहा था। प्रिया अब भी मौन थी, लेकिन उसकी आँखों में आहिस्ता-आहिस्ता नमी उतरने लगी थी। शायद वो समझ रही थी, शायद वो खुद भी कुछ महसूस कर रही थी—लेकिन कह नहीं पा रही थी।

    "तुम्हें किसी और के साथ देखकर मन करता है... उसका गला घोंट दूँ। तुम्हें अपनी बाहों में छुपा लूँ... इस तरह कि कोई तुम्हें देख भी न पाए," पार्थ के लहजे में अब जुनून साफ़ झलकने लगा था। उसकी आँखों में एक पागलपन था—प्यार का, दर्द का, तड़प का।

    ये शब्द सुनकर प्रिया का दिल जैसे ज़ोर से धड़कने लगा। उसकी साँसें भारी हो गईं, और उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस इंसान से वो हमेशा डरती थी, जो उसके लिए बस एक सख़्त और अनुशासित बॉस था—वो आज यूँ टूटकर, झुककर, उसकी मोहब्बत में डूबा हुआ नज़र आ रहा है।

    वो अब भी चुप थी। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गई थीं—जैसे वो इस सच्चाई को पचा नहीं पा रही हो। उसकी उंगलियाँ हल्के से काँप रही थीं।

    पार्थ उसकी ये खामोशी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसने धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और भर्राए स्वर में बोला,
    "प्लीज़ प्रिया... कुछ तो बोलो। मैं जानता हूँ... ये सब तुमने सोचा भी नहीं होगा। शायद तुम्हारे लिए ये सब बहुत अचानक है... पर मेरे लिए ये सब दिन-रात की तड़प है। मैं अब और चुप नहीं रह सकता था..."

    पार्थ की आवाज़ में उस समय कोई अहंकार नहीं था, सिर्फ एक प्रेमी की दिल की बात थी... जो हर कीमत पर अपने दिल की बात कह देना चाहता था, चाहे जवाब जो भी हो।

    तो आप सब को क्या लगता है? प्रिया पार्थ के इस प्रपोजल को हां करेगी या फिर ठुकरा देगी? पार्थ का प्रपोजल?

    जानने के लिए next chapter पढ़ते रहिए......

  • 19. Ishq hai tumse - Chapter 19 प्रिया का पार्थ को इनकार करना

    Words: 1110

    Estimated Reading Time: 7 min

    पार्थ उसकी खामोशी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसने धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और भर्राए स्वर में बोला,

    "प्लीज़ प्रिया... कुछ तो बोलो। मैं जानता हूँ... ये सब तुमने सोचा भी नहीं होगा। शायद तुम्हारे लिए ये सब बहुत अचानक है... पर मेरे लिए ये सब दिन-रात की तड़प है। मैं अब और चुप नहीं रह सकता था..."

    पार्थ की आवाज़ में उस समय कोई अहंकार नहीं था, सिर्फ एक प्रेमी की दिल की बात थी। जो हर कीमत पर अपने दिल की बात कह देना चाहता था, चाहे जवाब जो भी हो।

    पार्थ ने एक पल के लिए अपनी साँस रोकी, जैसे दिल की धड़कनों को थामकर सबसे बड़ा सवाल पूछने जा रहा हो। उसकी आँखों में कोई हिचक नहीं थी, बस सच्चाई थी—

    "पर मैं अब ये सब तुमसे और छुपा नहीं सकता, प्रिया।"

    फिर उसने अपनी थरथराती आवाज़ में वो शब्द कहे, जो किसी भी लड़की की ज़िंदगी बदल सकते थे—

    "क्या तुम मेरी पत्नी बनोगी?"

    उसके शब्द जैसे पूरे कमरे में गूंज उठे। प्रिया की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसके लिए ये प्रस्ताव किसी तूफ़ान से कम नहीं था।

    वो झटके से पीछे हटी, और काँपते स्वर में बोली,

    "सॉरी सर... पर आप मेरे बारे में कुछ नहीं जानते। और... और ऐसे में इस तरह की बात करना... शायद ठीक नहीं है। प्लीज़, अगर आप इस बारे में बात न करें तो बेहतर होगा।"

    उसकी आवाज़ धीमी थी, पर शब्दों में स्पष्टता थी।

    पार्थ की आँखों में अभी भी एक उम्मीद की चमक थी—शायद प्रिया एक शब्द कह दे जो उसकी टूटती दुनिया को बचा ले। उसने धीरे से कहा,

    "प्लीज़ प्रिया... तुम थोड़ा वक्त ले लो। सोच कर बताना... पर यूँ सीधे मना मत करो। मुझे पूरी तरह नकार मत दो..."

    उसकी आवाज़ अब भीग चुकी थी। वो पार्थ जो कभी किसी की एक बात नहीं सुनता था, आज खुद सामने बैठकर एक 'हाँ' की भीख माँग रहा था।

    लेकिन प्रिया ने आँखें नीची करते हुए गहरी साँस ली, और उस आवाज़ में जवाब दिया जिसमें नमी थी, मजबूरी थी, लेकिन साफ़ इंकार भी—

    "सर... आप समझ नहीं रहे हैं। हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते। हमारी दुनिया अलग है... रास्ते अलग हैं।"

    फिर उसने पल भर को उसकी आँखों में देखा और कहा—

    "प्लीज़... आप मुझे भूल जाइए। यही ठीक रहेगा।"

    उसके शब्द चुपचाप कमरे की दीवारों से टकरा गए। पार्थ अब कुछ नहीं बोल पा रहा था—उसके होंठ काँपे, लेकिन आवाज़ न निकली।

    प्रिया बिना पीछे देखे उसका हाथ झटक कर अपने केबिन की ओर चली गई। उसके कदम तेज़ थे, पर दिल भारी।

    पार्थ वहीं खड़ा रह गया... जैसे वक्त वहीं थम गया हो। उसके चेहरे पर सन्नाटा था, पर जैसे ही प्रिया दरवाज़े से ओझल हुई, उसकी आँखों में थमी हुई नमी बह चली।

    उसने अपना सिर दोनों हाथों से थाम लिया और बुदबुदाने लगा, जैसे हर शब्द सीधा दिल से निकल रहा हो—

    "क्यों प्रिया...? क्यों मना कर रही हो तुम...? जब तुम्हारी ज़िंदगी में कोई नहीं है... तो फिर मुझे अपनाना गलत कैसे हो सकता है?"

    उसकी आवाज़ काँप रही थी,

    "तुम्हारी आँखों में... मैंने देखा है वो एहसास जो मेरी आँखों में तुम्हारे लिए हैं... तुम्हारे करीब आने पर जो तुम्हारा दिल तेज़ धड़कता है, वो किसी और के लिए नहीं हो सकता... जब मैं पास आता हूँ तो तुम्हारी पलकें खुद-ब-खुद झुक जाती हैं... ये सब क्या है प्रिया?"

    उसने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और दर्द में फर्श की ओर देखते हुए बोला,

    "क्या ये सब सबूत नहीं कि तुम भी मुझसे... मुझसे प्यार करती हो...? फिर क्यों भाग रही हो...?"

    थोड़ी देर तक रोने और खुद से लड़ने के बाद पार्थ ने खुद को संभालना शुरू किया। उसने अपनी भीगी हुई आँखें पोंछीं, और गहरी साँस लेते हुए एकदम से सीधा खड़ा हो गया। उसकी आँखों में अब आँसू नहीं थे—बस एक संकल्प था।

    धीरे से, जैसे खुद से वादा कर रहा हो, वो बोला—

    "ठीक है प्रिया... अगर तुम मुझसे डरकर दूर रहना चाहती हो, तो ठीक है।"

    उसकी आवाज़ अब नर्म नहीं थी—वो ठंडी थी, लेकिन उसमें एक सच्चे प्रेमी की आग छुपी थी।

    "अब से मैं तुमसे दूर ही रहूँगा। तुम्हारी मर्ज़ी का पूरा सम्मान करूँगा..."

    फिर वो एक पल रुका, उसकी आँखें आसमान की ओर उठीं, और उसने धीरे से कहा—

    "लेकिन... मैं तुम्हें ये एहसास दिलाकर रहूँगा, कि तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करती हो, जितना मैं तुमसे करता हूँ। ये पार्थ बिरला का वादा है..."

    इतना कहकर वो धीमे कदमों से अपने केबिन से सीधे अपने पर्सनल रूम की ओर चला गया।

    अगले दिन से पार्थ ने सच में खुद से किया हुआ वादा निभाना शुरू कर दिया। वो अब प्रिया से नज़रें मिलाने तक से बचता। जहाँ पहले उसकी नज़रों में एक बेकरारी थी, अब वहाँ एक सुकून भरी चुप्पी थी।

    वो जितना हो सके, काम की बातों में ही उलझा रहता, और अगर कभी प्रिया उसकी ओर देखती भी, तो वो सिर झुकाकर अपनी फाइलों में खो जाता।

    धीरे-धीरे कुछ दिन बीत गए। दोनों ने एक-दूसरे से कोई निजी बात नहीं की। दफ़्तर का माहौल तो वैसा ही रहा, पर उनके बीच की खामोशी जैसे एक अदृश्य दीवार बन चुकी थी।

    फिर एक दिन...

    एक मीटिंग के सिलसिले में पार्थ और प्रिया एक ही टेबल पर बैठे किसी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट डिस्कस कर रहे थे। प्रिया कुछ कह रही थी, और पार्थ उसकी बात को बहुत ध्यान से सुन रहा था—बिल्कुल प्रोफेशनल अंदाज़ में।

    तभी... अचानक दरवाज़ा बिना खटखटाए खुल गया।

    पार्थ का चेहरा तुरंत सख्त हो गया। उसकी भौंहें तन गईं और गुस्से से उसने सिर उठाया— "Excuse me! क्या तुम्हें नॉक करने की तमीज़ नहीं है?"

    पर तभी उसकी नज़र सामने खड़े शख़्स पर पड़ी।

    पल भर में उसका चेहरा जो अभी गुस्से से सख्त था, एक अनकही मुस्कान में बदल गया—वो मुस्कान जो पार्थ बिरला कभी किसी के सामने नहीं दिखाता था।

    उसके होंठों पर एक हल्की सी रेखा उभरी, और आँखों में चौंकाने वाली गर्माहट आ गई।

    प्रिया ने हैरानी से पार्थ को देखा—जो अभी एक पल पहले आग की तरह सुलग रहा था, अब अचानक जैसे पिघलने लगा हो।

    तो आप सब को क्या लगता है?

    कौन है वो शख्स जिसे देखते ही पार्थ का गुस्सा एकदम से शांत हो गया?

    क्यों मना कर रही है प्रिया पार्थ के प्रपोजल को?

    क्या पार्थ जो सोच रहा है सच है?

    जानने के लिए अगले चैप्टर को पढ़ते रहिए......

  • 20. Ishq hai tumse - Chapter 20 प्रिया की गलतफहमी

    Words: 1204

    Estimated Reading Time: 8 min

    पार्थ का चेहरा तुरंत सख्त हो गया। उसकी भौंहें तन गईं और गुस्से से उसने सिर उठाया। "Excuse me! क्या तुम्हें नॉक करने की तमीज़ नहीं है?"

    पर तभी उसकी नज़र सामने खड़े शख़्स पर पड़ी।

    पल भर में उसका चेहरा, जो अभी गुस्से से सख्त था, एक अनकही मुस्कान में बदल गया—वो मुस्कान जो पार्थ बिरला कभी किसी के सामने नहीं दिखाता था। उसके होंठों पर एक हल्की सी रेखा उभरी, और आँखों में चौंकाने वाली गर्माहट आ गई।

    प्रिया ने हैरानी से पार्थ को देखा—जो अभी एक पल पहले आग की तरह सुलग रहा था, अब अचानक जैसे पिघलने लगा हो।

    वो लड़की बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ी और एक झटके में पार्थ के गले लग गई।

    पार्थ पहले थोड़ा चौंका, लेकिन फिर बिना किसी प्रतिरोध के उसे अपने बाहों में भर लिया।

    यह दृश्य देखकर, वहाँ एक कोने में खड़ी प्रिया की साँसें थम सी गईं। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे मुट्ठी में कस गईं। उसके दिल में कुछ ऐसा चुभा, जिसे वो खुद भी शब्द नहीं दे पा रही थी।

    फिर... जैसे उसकी आँखों के सामने एक और तीर चला।

    वो लड़की, अब पार्थ के गले से अलग होकर, उसके चेहरे को दोनों हाथों में थामा... और फिर उसके गाल पर प्यार से किस कर दिया।

    उस पल, प्रिया को ऐसा लगा जैसे उसका पूरा वजूद थरथरा गया हो। उसका दिल ज़ोर से धड़क उठा, और उसकी नज़रें उस लड़की को ऐसे घूरने लगीं जैसे अभी उसका गला ही दबा देगी।

    पर अगले ही पल, उसने जैसे खुद को बड़ी मुश्किल से रोका। उसने अपनी साँस गहरी खींची और वहीं दीवार के सहारे खड़ी रही—बिल्कुल शांत चेहरा लिए... पर अंदर से जैसे सब कुछ टूट रहा हो।

    पार्थ ने अब तक एक बार भी प्रिया की तरफ़ नहीं देखा था। वो सिर्फ उस लड़की की मौजूदगी में खोया हुआ सा दिख रहा था।

    प्रिया वहीं खड़ी रही, लेकिन उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ जलन के भाव थे। उसकी आँखों में जो चमक थी, वो अब तमतमाहट में बदल चुकी थी। उसकी नज़रें बार-बार उस लड़की और पार्थ के बीच की नज़दीकियों पर टिक जातीं, फिर वो खुद को संभालने की कोशिश करती... पर हर बार नाकाम रहती।

    वहीं दूसरी ओर, पार्थ उस पूरे वाकये को नज़रें चुराकर देख रहा था। वो भले ही सीधे न देख रहा हो, पर हर भाव, हर प्रतिक्रिया उसकी आँखों में कैद हो रही थी।

    वो मन ही मन मुस्कराया... और धीरे से, जैसे खुद से बुदबुदाया—
    "तो अब जलन हो रही है? और कहती थी मुझसे कोई feelings नहीं हैं..."

    उसका दिल अंदर से अजीब-सी तसल्ली महसूस कर रहा था।
    "ये आँखें, ये तड़प... सब कुछ कह रही हैं प्रिया। अब देखना... कैसे तुम्हारा दिल खुद तुम्हारे खिलाफ गवाही देगा..."

    इतना कहकर वो लड़की की ओर फिर से मुस्करा कर देखने लगा, लेकिन उसकी असली नज़र अब भी प्रिया के चेहरे पर ही अटकी थी।

    थोड़ी देर तक पास बैठे रहने के बाद वो लड़की पार्थ से हल्का अलग हुई।

    तभी पार्थ ने बड़े धीमे लेकिन जान-बूझकर उसके चेहरे को अपने हाथों में थामा और बेहद नर्मी से उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।

    ये सब करते हुए उसकी नज़रें सीधी प्रिया पर थीं—तिरछी, तीखी, और जज्बातों से भरी हुई।

    प्रिया का चेहरा एक पल को सफेद पड़ गया... फिर गुस्से और जलन से लाल।

    वो अब एक पल भी वहाँ ठहर नहीं सकती थी। उसका दिल जैसे किसी ने मरोड़ दिया हो। वो तेज़ कदमों से मुड़ी और कमरे से बाहर निकलने लगी।

    तभी पीछे से पार्थ की आवाज़ आई—उस आवाज़ में एक दिखावटी मासूमियत और चुभता हुआ व्यंग्य मिला हुआ था—
    "प्लीज़ दो कप कॉफ़ी भेज देना। मेरी आयु को कॉफ़ी बहुत पसंद है। और उसके फेवरेट स्नैक्स भी साथ में भिजवा देना। तुम बस कुक को बोल देना, वो समझ जाएगा।"

    ये सुनते ही प्रिया के क़दम रुकते-रुकते रह गए... पर उसने खुद को काबू में रखा और पीछे मुड़कर जबरदस्ती मुस्कुरा कर बोला, "ओके सर, अभी भेजती हूँ।"

    उसका चेहरा देखकर पार्थ के चेहरे पर मुस्कान आ गई। पर उस मुस्कान में भी एक तड़प छुपी थी।
    "चलो... चोट तो लगी तुम्हें, प्रिया। अब बस इंतज़ार है उस पल का, जब तुम खुद आकर कहोगी कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो..."

    पार्थ अब पूरी तसल्ली से आयुषी की ओर देखने लगा। उसके चेहरे पर वो हल्की मुस्कान थी जो जान-बूझकर किसी को जलाने के लिए थी।

    आयुषी, जो अब तक सब कुछ हँसते हुए देख रही थी, अचानक सीरियस हो गई। उसने आँखें गोल करते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा—
    "वैसे भाई, वो लड़की कौन थी जो मुझे अभी खा जाने वाली नज़रों से देख रही थी?"

    पार्थ ने पहले तो एक गहरी साँस ली और फिर वही मुस्कुराहट रखते हुए कहा—
    "तुम्हारी होने वाली भाभी..."

    ये सुनते ही आयुषी की आँखें जैसे छलक उठीं हैरानी से—
    "क्या? भाभी? कौन? आपकी 'मिस क्यूटी' के अलावा कोई और कैसे भाभी हो सकती है!"
    "घर में सब उसे ही भाभी मानते हैं। और आप ऐसे कैसे मेरी भाभी को धोखा दे सकते हैं?" आयुषी एक ही सांस में सब कह गई।

    वो अब थोड़ा और करीब आकर पार्थ को हल्के से धक्का देती है—
    "भाई! Don't tell me कि आपने सच में किसी और से प्यार कर लिया..."

    पार्थ कुछ कहने ही वाला था कि तभी...
    टप...टप...
    दरवाज़े पर दस्तक हुई।

    पार्थ ने तुरंत नॉर्मल टोन में कहा—
    "Yes, come in!"

    पार्थ की "Come in" सुनते ही दरवाज़ा धीरे से खुला।

    प्रिया अंदर आई — चेहरा शांत, लेकिन आँखों में हलकी सी उदासी और उलझन साफ़ झलक रही थी। उसके पीछे-पीछे एक स्टाफ मेंबर आया, जिसके हाथों में कॉफ़ी और स्नैक्स की ट्रे थी।

    पार्थ बिना प्रिया की आँखों में देखे, एक सधे हुए लहज़े में बोला—
    "वो यहाँ टेबल पर रख दो।"

    स्टाफ ने ट्रे रखी, हल्का सिर झुकाया और चुपचाप कमरे से बाहर निकल गया।

    अब कमरे में सिर्फ तीन लोग थे—पार्थ, आयुषी और प्रिया।

    प्रिया ने एक हल्की नज़र आयुषी पर डाली... जो उसे उसी अंदाज़ में घूर रही थी जैसे कोई अपनी सबसे कीमती चीज़ पर किसी और की नज़र देखकर सतर्क हो जाता है।

    प्रिया के मन में जैसे तूफ़ान उठ गया।
    वो खुद से बुदबुदाई—
    "मैम तो बहुत सुंदर हैं... और परफेक्ट भी... पार्थ सर के लिए।"
    "मुझ जैसी मनहूस लड़की से तो लाख गुना बेहतर हैं... शायद वो पार्थ सर को खुश रख पाएंगी..."
    उसकी आँखें हल्की सी भीगने लगीं, पर चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखा।

    वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी पार्थ की आवाज़ आई—
    "प्रिया, आप जा सकती हैं। आपके लिए अब यहाँ कुछ नहीं है।"

    उसकी आवाज़ में वो ठंडापन था जो कभी प्रेम से भरे लहज़े को निगल जाता है।

    प्रिया ने एक पल को उसकी ओर देखा—वो नज़रे नहीं मिला रही थी।

    फिर बिना कुछ कहे, बस हल्के से सिर हिलाकर प्रिया ने खुद को संभाला और बाहर निकल गई।

    जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ आयुषी बोली,"अब आप बताएँगे भाई कि ये सब क्या हो रहा है? और अब आपकी क्यूटी का क्या होगा?"

    तो आप सब को क्या लगता है कौन है पार्थ की क्यूटी?
    कब दूर करेगा पार्थ प्रिया की गलतफहमी?
    जानने के लिए अगले चैप्टर को पढ़ते रहिए.....