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Love after marriage

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Evil queen era.. Dora

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एक कहानी है अनन्या और जय सिंघानिया की.... जहां अनन्या को सिर्फ दर्द तकलीफों के और दर्दनाक मौत के शिवाय कुछ नहीं मिला, जहां वह अपनों का प्यार पाने के लिए तड़पती थी वही आज उसे ऐसे राह पर अकेला छोड़ देते हैं जहां उसकी जिंदगी खत्म हो जाती है, तभी उसे...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. Love after marriage - Chapter 1

    Words: 1477

    Estimated Reading Time: 9 min

    "ये तो नामुमकिन है..." अनन्या ने अपनी उंगलियों के बीच में फंसे मैरिज सर्टिफिकेट को देखा। "मैं कब शादीशुदा हो गई?"

    अनन्या ने प्रिंटआउट्स को गौर से देखा। सर्टिफिकेट में जो लड़की थी, वो साफ़ तौर पर वही थी। लेकिन ये आदमी… अनन्या को याद भी नहीं था कि वो कभी उससे मिली है। सर्टिफिकेट में जो आदमी था, उसके चेहरे की बनावट परफेक्ट थी—शार्प जबलाइन, गहरी और आकर्षक आँखें, जो थोड़ी रहस्यमयी थीं लेकिन काफी प्रभावशाली भी।

    वो इस रहस्यमयी सिचुएशन को समझ ही रही थी कि तभी उसका फोन बजा।

    "हेय! शादी कैसी रही?"—दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।

    "तुम्हें पता चला कि मैं शादीशुदा हूँ।"

    "बधाई हो!"
    उसकी बातों को सुनकर

    अनन्या की भौंहें सिकुड़ गईं। शायद मायरा ने उसकी बात का मतलब नहीं समझा। "मायरा, क्या तुम इस आदमी को सर्च कर सकती हो जिसका नाम है…" तभी उसकी नजर अपने ‘पति’ के नाम पर गई—"जय सिंघानिया।"

    "वो कौन है?"
    रिसीवर से मायरा की आवाज आई
    जिसे सुनकर अनन्या उसे कहने लगी

    "यही तो मैं जानना चाहती हूं।

    खैर में बाद में कॉल करती हूं।" कह अनन्या ने कॉल काट दी और फिर से सर्टिफिकेट को घूरने लगी।

    पूरी ज़िंदगी वो इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी—जिस दिन वो अपने हिसाब से शादी करके अपने घर से निकल सके। सबको पता था कि अनन्या हमेशा से अपने परिवार से अलग होना चाहती थी। ये हर किसी के लिए बेहतर था, खासकर उसके लिए। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अनन्या के पास एक और बहुत बड़ा सीक्रेट था—

    ये उसकी दुसरी जिंदगी थी।

    और उसने इस बार वादा किया था कि वो अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जिएगी। लेकिन अब ये 'पति' नाम का आदमी उस प्लान के बीच आ चुका था।

    "पता नहीं ये अच्छा है या बुरा," उसने बुदबुदाते हुए कहा, "लेकिन मुझे ये पता करना होगा कि ए कौन है। मैं वही गलती दोबारा नहीं कर सकती जो पिछले जिंदगी में की थी।"
    उसने खुद से ही कहा।

    उसकी पहली जिंदगी को याद करते ही अनन्या का मन कांप उठा।


    ---उसे धिरे धिरे याद आने लगा ,किस तरह से उसने अपनी जिंदगी को दी और कैसे वो reborn हुई


    "मैंने... कुछ नहीं किया।"



    अनन्या ने उस आदमी की तरफ देखा जो काँच के उस पार बैठा था। सबसे पहले उसका बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल और थकी हुई आँखों के नीचे काले घेरे दिखे। वो उसका बड़ा भाई था—आर्यन मल्होत्रा

    कभी मल्होत्रा कंपनी का सीईओ था ।

    "भाई, बस एक बार... प्लीज़।" अनन्या ने काँच पर हाथ रखा और उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं। "...मुझ पर यकीन करो। मैंने कुछ नहीं किया। मैं बेकसूर हूं।"

    आर्यन ने धीरे से अपनी काली भूरी आँखें उठाईं। उनमें अब भी थोड़ी नरमी थी, लेकिन उनसे भी ज्यादा बेबसी झलक रही थी।

    "बेकसूर?" वो बुदबुदाया। "अगर तूम बेकसूर होती, तो इस काँच के पीछे नहीं होती, अनन्या।"


    इतना सुनते ही अनन्या रो पड़ी

    "नहीं!" आँसू उसके चेहरे पर बह निकले। उसका पूरा शरीर और आवाज़ कंपकपा उठी। "मैं सच में बेकसूर हूं। प्लीज़… मेरी मदत करो।"

    अनन्या ने गिड़गिड़ाते हुए कहा इस वक्त उसके चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी, और आंखें लाल हुई पड़ी थी
    तभी उसके कानों में आर्यन कि आवाज गुंजी जो उसे कह रही थी,

    "मान भी लूं कि तूम सही बोल रही हो… लेकिन अब सब खत्म हो चुका है।" आर्यन ने हल्की हँसी के साथ कहा।

    देखो अब "तुमने जो किया है, उसकी कीमत सबको चुकानी पड़ रही है।"
    उसकी बातों को सुनकर

    वो कुछ नहीं कह पाई। उसका गला भर आया।

    "राघव मर चुका है, और धीरज... उसका करियर भी खत्म हो गया।" उसकी आँखें नम हो गईं। "हम सबकी ज़िंदगी तबाह हो चुकी है। लोग हमें धोखेबाज कह रहे हैं, देशद्रोही। ये तूने खुद कुबूल किया था, अनन्या।"

    उसकी बातों को सुनकर अनन्या खुद को कहने से रोक नहीं पाई

    "लेकिन मैंने वो इसलिए किया था ताकि तुम्हें लोग न पकड़ लें—"
    उसकी बातों को सुनकर आर्यन गुस्से से कहने लगा

    "बस!"

    इतना कहते ही

    आर्यन ने गुस्से में काँच पर मुक्का मारा। "हमसे तो तूम पहले से ही नफरत करती थी, लेकिन इस बार हद कर दी तूमने।"
    उसकी बातों को सुनकर अनन्या चिल्ला उठी

    "क्योंकि मैं सच में बेकसूर हूं!"

    "चुप रहो!" इस बार आर्यन भी जोरों से चिल्लाया इस वक्त गुस्से में उसकि माथे कि नसें तन गई थी

    "तो बताओ, क्यों किया तुमने ऐसा? मैं सिर्फ सच जानना चाहता हूं।"

    अनन्या ने काँपते होंठों को दबाया, अपनी आँखों के आँसू और बहती नाक का पोंछा मैं वो सब कुछ बता चुकी थी। लेकिन तुमने एक भी बार यकीन नहीं किया। कभी नहीं।

    "अब जब मुझे फांसी की सज़ा मिल चुकी है..." उसने हिचकी ली, "तो बस चाहती थी कि एक बार... तुम मेरी साइड लो। सिर्फ एक बार।"

    वो ज़्यादा नहीं माँग रही थी। बस थोड़ा-सा अपनापन, थोड़ी-सी जगह इस परिवार में।

    लेकिन अब नहीं उसने अपनी पलके उठाई आंखों से बह रहे आंसूओं को पूछा, फिर एक सांस में चिल्ला कर कहने लगी
    "मुझे नफरत है तुम सबसे..." उसने कांपती आवाज़ में कहा। "अब सुन लिया न कारण? शांति मिल गई?"

    वही उसकी बातों को सुनकर आर्यन पीछे हट गया। फिर गुस्से से कहने लगा"मुझे पता था… तूम जलती थी।"

    "हाँ, मैं जलती हूं!" अनन्या चिल्लाई। "मुझे मेरे पैदा होते ही बदल दिया गया था! मैंने अपनी ज़िंदगी एक ऐसी औरत के साथ गुज़ारी जिसने मुझे पैसों में बेचने की भी कोशिश की! और जब मुझे लगा कि अब मैं अपने परिवार में हूं, तुम तीनों ने मुझे हर दिन ये महसूस करवाया कि मैं वहां की नहीं हूं!"

    "मैंने सब कुछ किया, आर्यन। सब कुछ! फाइटिंग सीखी ताकि राघव से दोस्ती हो सके , म्यूजिक और आर्ट्स पढ़ी ताकि धीरज से बात कर सकूं!" यह कहते वक्त उसकी आवाज़ टूट रही थी। "लेकिन रागिनी को तो कुछ भी नहीं करना पड़ा और तुम सब उसे इतना प्यार करते थे!"

    "तू सच में... बहुत घटिया हो।" आर्यन ने नफरत से हँसते हुए कहा। "जिस दिन तूम हमारे घर आई थी, मुझे पता चल गया था कि तूम एक मुसीबत हो "

    उसकी बातों को सुनकर अनन्या के होठों से सिर्फ एक ही शब्द निकला
    "आर्यन…"

    "मैंने सुना है तुम्हारी सज़ा की तारीख तय हो चुकी है।" उसने कड़वाहट से मुस्कुरा कर कहा। "मैं तुझे एक अच्छा कब्र दिला दूंगा, लेकिन हमारे माँ-बाप और राघव के पास नहीं।"

    इतना कह आर्यन वहा से चला गया।

    उसके जाने के कितने घंटे बाद भी अनन्या वहीं कुर्सी पर जड़ बनकर बैठी रही।

    उसने सब कुछ सही कहा था, लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। सच्चाई ये थी कि अपने भाइयों का प्यार पाने के लिए अनन्या ने एक बहुत ही खतरनाक इंसान पर भरोसा कर लिया था। नतीजा—उन सब पर ऐसे इल्ज़ाम लगे जो उन्होंने किए ही नहीं थे।

    उसने सारी गलती अपने सिर ले ली, ताकि उसके भाई जेल न जाएं। लेकिन बाकी नुक़सान… उसे भी रोक नहीं सकी।

    और फिर आया उसका आखिरी दिन।


    ---

    उस कमरे तक चलते हुए जिसमें उसकी ज़िंदगी खत्म होने वाली थी, अनन्या ने सिर झुका रखा था। उसने न अपनी घड़ी देखी थी, न वक़्त का हिसाब रखा था। जब वह लोहे की कुर्सी पर बैठी, ऑफिस ने उसके हाथ-पैर बांध दिए। फिर सब बाहर चले गए। सामने सिर्फ एक शीशा था।

    कई महीनों बाद उसने खुद को पहली बार देखा—वो बिखरी हुई, थकी, और बेबस लग रही थी। तब उसे वो आर्यन की एक झलक याद आ गई जब वो उससे आखिरी बार मिलने आया था।

    "प्रोसेस शुरू की जा रही है। कोई आखिरी बात?"

    कोई आखिरी बात?

    उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई—"अगर अगला जन्म मिला, तो मैं अनाथ बनना पसंद करूंगी, लेकिन उनकी बहन नहीं।"

    फिर बिजली उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। वो चीख भी नहीं पाई। दर्द इतना तेज था।

    और फिर अंधेरा छा गया।

    धीरे-धीरे उसकी आंखें बंद हो गई कि तभी

    धीमी सी लोरी की आवाज़ ने उसे नींद से जगाया।

    'इतनी गर्मी?' अनन्या ने आँखें खोले बिना ही भौंहें सिकोड़ीं। 'मैं ज़िंदा कैसे हूं?'

    मै तो मर चुकी थी, ना? मैरी कहानी तो खत्म हो चुकी थी।

    'कहीं इलेक्ट्रिक चेयर खराब तो नहीं हो गई? फिर से सब कुछ झेलना पड़ेगा?'
    ढेर सारे सवालों ने उसे घेर लिया

    वो डर के मारे उठना चाहती थी, लेकिन तभी उसे अहसास हुआ—वो हिल नहीं पा रही।

    'क्या मैं बंधी हूं?' उसने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन जो आवाज़ आई, वो थी एक न्यू बच्चे की वाह वाह।

    हां?

    'ये क्या—' तभी एक अजनबी चेहरा झुका और एक लैंब की गर्म रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी।

    "हाय, बेबी," नर्स ने धीरे से कहा। "मम्मी अभी लेने आएंगी, ठीक है?"

    अनन्या ने डर के मारे इधर-उधर देखा। 'बेबी डेकोरेशन... वॉर्म लाइट्स... छोटे टब...'

    'मैं... मैं क्या सोच रही हूं वही सच है? हे भगवान—'

    "हा... हा... वाह!"

    उसकी सोच को तोड़ते हुए, एक तेज़ रोना गूंजा—उसका खुद का।

    और फिर बाकी सारे बच्चे भी गाना शुरू कर दिए... जैसे एक नई ज़िंदगी ने फिर से जन्म लिया हो।

  • 2. Love after marriage - Chapter 2

    Words: 1477

    Estimated Reading Time: 9 min

    "ये तो नामुमकिन है..." अनन्या ने अपनी उंगलियों के बीच में फंसे मैरिज सर्टिफिकेट को देखा। "मैं कब शादीशुदा हो गई?"

    अनन्या ने प्रिंटआउट्स को गौर से देखा। सर्टिफिकेट में जो लड़की थी, वो साफ़ तौर पर वही थी। लेकिन ये आदमी… अनन्या को याद भी नहीं था कि वो कभी उससे मिली है। सर्टिफिकेट में जो आदमी था, उसके चेहरे की बनावट परफेक्ट थी—शार्प जबलाइन, गहरी और आकर्षक आँखें, जो थोड़ी रहस्यमयी थीं लेकिन काफी प्रभावशाली भी।

    वो इस रहस्यमयी सिचुएशन को समझ ही रही थी कि तभी उसका फोन बजा।

    "हेय! शादी कैसी रही?"—दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।

    "तुम्हें पता चला कि मैं शादीशुदा हूँ।"

    "बधाई हो!"
    उसकी बातों को सुनकर

    अनन्या की भौंहें सिकुड़ गईं। शायद मायरा ने उसकी बात का मतलब नहीं समझा। "मायरा, क्या तुम इस आदमी को सर्च कर सकती हो जिसका नाम है…" तभी उसकी नजर अपने ‘पति’ के नाम पर गई—"जय सिंघानिया।"

    "वो कौन है?"
    रिसीवर से मायरा की आवाज आई
    जिसे सुनकर अनन्या उसे कहने लगी

    "यही तो मैं जानना चाहती हूं।

    खैर में बाद में कॉल करती हूं।" कह अनन्या ने कॉल काट दी और फिर से सर्टिफिकेट को घूरने लगी।

    पूरी ज़िंदगी वो इसी दिन का इंतज़ार कर रही थी—जिस दिन वो अपने हिसाब से शादी करके अपने घर से निकल सके। सबको पता था कि अनन्या हमेशा से अपने परिवार से अलग होना चाहती थी। ये हर किसी के लिए बेहतर था, खासकर उसके लिए। लेकिन कोई नहीं जानता था कि अनन्या के पास एक और बहुत बड़ा सीक्रेट था—

    ये उसकी दुसरी जिंदगी थी।

    और उसने इस बार वादा किया था कि वो अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जिएगी। लेकिन अब ये 'पति' नाम का आदमी उस प्लान के बीच आ चुका था।

    "पता नहीं ये अच्छा है या बुरा," उसने बुदबुदाते हुए कहा, "लेकिन मुझे ये पता करना होगा कि ए कौन है। मैं वही गलती दोबारा नहीं कर सकती जो पिछले जिंदगी में की थी।"
    उसने खुद से ही कहा।

    उसकी पहली जिंदगी को याद करते ही अनन्या का मन कांप उठा।


    ---उसे धिरे धिरे याद आने लगा ,किस तरह से उसने अपनी जिंदगी को दी और कैसे वो reborn हुई


    "मैंने... कुछ नहीं किया।"



    अनन्या ने उस आदमी की तरफ देखा जो काँच के उस पार बैठा था। सबसे पहले उसका बढ़ी हुई दाढ़ी, बिखरे बाल और थकी हुई आँखों के नीचे काले घेरे दिखे। वो उसका बड़ा भाई था—आर्यन मल्होत्रा

    कभी मल्होत्रा कंपनी का सीईओ था ।

    "भाई, बस एक बार... प्लीज़।" अनन्या ने काँच पर हाथ रखा और उसकी आँखें आँसुओं से भर आईं। "...मुझ पर यकीन करो। मैंने कुछ नहीं किया। मैं बेकसूर हूं।"

    आर्यन ने धीरे से अपनी काली भूरी आँखें उठाईं। उनमें अब भी थोड़ी नरमी थी, लेकिन उनसे भी ज्यादा बेबसी झलक रही थी।

    "बेकसूर?" वो बुदबुदाया। "अगर तूम बेकसूर होती, तो इस काँच के पीछे नहीं होती, अनन्या।"


    इतना सुनते ही अनन्या रो पड़ी

    "नहीं!" आँसू उसके चेहरे पर बह निकले। उसका पूरा शरीर और आवाज़ कंपकपा उठी। "मैं सच में बेकसूर हूं। प्लीज़… मेरी मदत करो।"

    अनन्या ने गिड़गिड़ाते हुए कहा इस वक्त उसके चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी, और आंखें लाल हुई पड़ी थी
    तभी उसके कानों में आर्यन कि आवाज गुंजी जो उसे कह रही थी,

    "मान भी लूं कि तूम सही बोल रही हो… लेकिन अब सब खत्म हो चुका है।" आर्यन ने हल्की हँसी के साथ कहा।

    देखो अब "तुमने जो किया है, उसकी कीमत सबको चुकानी पड़ रही है।"
    उसकी बातों को सुनकर

    वो कुछ नहीं कह पाई। उसका गला भर आया।

    "राघव मर चुका है, और धीरज... उसका करियर भी खत्म हो गया।" उसकी आँखें नम हो गईं। "हम सबकी ज़िंदगी तबाह हो चुकी है। लोग हमें धोखेबाज कह रहे हैं, देशद्रोही। ये तूने खुद कुबूल किया था, अनन्या।"

    उसकी बातों को सुनकर अनन्या खुद को कहने से रोक नहीं पाई

    "लेकिन मैंने वो इसलिए किया था ताकि तुम्हें लोग न पकड़ लें—"
    उसकी बातों को सुनकर आर्यन गुस्से से कहने लगा

    "बस!"

    इतना कहते ही

    आर्यन ने गुस्से में काँच पर मुक्का मारा। "हमसे तो तूम पहले से ही नफरत करती थी, लेकिन इस बार हद कर दी तूमने।"
    उसकी बातों को सुनकर अनन्या चिल्ला उठी

    "क्योंकि मैं सच में बेकसूर हूं!"

    "चुप रहो!" इस बार आर्यन भी जोरों से चिल्लाया इस वक्त गुस्से में उसकि माथे कि नसें तन गई थी

    "तो बताओ, क्यों किया तुमने ऐसा? मैं सिर्फ सच जानना चाहता हूं।"

    अनन्या ने काँपते होंठों को दबाया, अपनी आँखों के आँसू और बहती नाक का पोंछा मैं वो सब कुछ बता चुकी थी। लेकिन तुमने एक भी बार यकीन नहीं किया। कभी नहीं।

    "अब जब मुझे फांसी की सज़ा मिल चुकी है..." उसने हिचकी ली, "तो बस चाहती थी कि एक बार... तुम मेरी साइड लो। सिर्फ एक बार।"

    वो ज़्यादा नहीं माँग रही थी। बस थोड़ा-सा अपनापन, थोड़ी-सी जगह इस परिवार में।

    लेकिन अब नहीं उसने अपनी पलके उठाई आंखों से बह रहे आंसूओं को पूछा, फिर एक सांस में चिल्ला कर कहने लगी
    "मुझे नफरत है तुम सबसे..." उसने कांपती आवाज़ में कहा। "अब सुन लिया न कारण? शांति मिल गई?"

    वही उसकी बातों को सुनकर आर्यन पीछे हट गया। फिर गुस्से से कहने लगा"मुझे पता था… तूम जलती थी।"

    "हाँ, मैं जलती हूं!" अनन्या चिल्लाई। "मुझे मेरे पैदा होते ही बदल दिया गया था! मैंने अपनी ज़िंदगी एक ऐसी औरत के साथ गुज़ारी जिसने मुझे पैसों में बेचने की भी कोशिश की! और जब मुझे लगा कि अब मैं अपने परिवार में हूं, तुम तीनों ने मुझे हर दिन ये महसूस करवाया कि मैं वहां की नहीं हूं!"

    "मैंने सब कुछ किया, आर्यन। सब कुछ! फाइटिंग सीखी ताकि राघव से दोस्ती हो सके , म्यूजिक और आर्ट्स पढ़ी ताकि धीरज से बात कर सकूं!" यह कहते वक्त उसकी आवाज़ टूट रही थी। "लेकिन रागिनी को तो कुछ भी नहीं करना पड़ा और तुम सब उसे इतना प्यार करते थे!"

    "तू सच में... बहुत घटिया हो।" आर्यन ने नफरत से हँसते हुए कहा। "जिस दिन तूम हमारे घर आई थी, मुझे पता चल गया था कि तूम एक मुसीबत हो "

    उसकी बातों को सुनकर अनन्या के होठों से सिर्फ एक ही शब्द निकला
    "आर्यन…"

    "मैंने सुना है तुम्हारी सज़ा की तारीख तय हो चुकी है।" उसने कड़वाहट से मुस्कुरा कर कहा। "मैं तुझे एक अच्छा कब्र दिला दूंगा, लेकिन हमारे माँ-बाप और राघव के पास नहीं।"

    इतना कह आर्यन वहा से चला गया।

    उसके जाने के कितने घंटे बाद भी अनन्या वहीं कुर्सी पर जड़ बनकर बैठी रही।

    उसने सब कुछ सही कहा था, लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। सच्चाई ये थी कि अपने भाइयों का प्यार पाने के लिए अनन्या ने एक बहुत ही खतरनाक इंसान पर भरोसा कर लिया था। नतीजा—उन सब पर ऐसे इल्ज़ाम लगे जो उन्होंने किए ही नहीं थे।

    उसने सारी गलती अपने सिर ले ली, ताकि उसके भाई जेल न जाएं। लेकिन बाकी नुक़सान… उसे भी रोक नहीं सकी।

    और फिर आया उसका आखिरी दिन।


    ---

    उस कमरे तक चलते हुए जिसमें उसकी ज़िंदगी खत्म होने वाली थी, अनन्या ने सिर झुका रखा था। उसने न अपनी घड़ी देखी थी, न वक़्त का हिसाब रखा था। जब वह लोहे की कुर्सी पर बैठी, ऑफिस ने उसके हाथ-पैर बांध दिए। फिर सब बाहर चले गए। सामने सिर्फ एक शीशा था।

    कई महीनों बाद उसने खुद को पहली बार देखा—वो बिखरी हुई, थकी, और बेबस लग रही थी। तब उसे वो आर्यन की एक झलक याद आ गई जब वो उससे आखिरी बार मिलने आया था।

    "प्रोसेस शुरू की जा रही है। कोई आखिरी बात?"

    कोई आखिरी बात?

    उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई—"अगर अगला जन्म मिला, तो मैं अनाथ बनना पसंद करूंगी, लेकिन उनकी बहन नहीं।"

    फिर बिजली उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। वो चीख भी नहीं पाई। दर्द इतना तेज था।

    और फिर अंधेरा छा गया।

    धीरे-धीरे उसकी आंखें बंद हो गई कि तभी

    धीमी सी लोरी की आवाज़ ने उसे नींद से जगाया।

    'इतनी गर्मी?' अनन्या ने आँखें खोले बिना ही भौंहें सिकोड़ीं। 'मैं ज़िंदा कैसे हूं?'

    मै तो मर चुकी थी, ना? मैरी कहानी तो खत्म हो चुकी थी।

    'कहीं इलेक्ट्रिक चेयर खराब तो नहीं हो गई? फिर से सब कुछ झेलना पड़ेगा?'
    ढेर सारे सवालों ने उसे घेर लिया

    वो डर के मारे उठना चाहती थी, लेकिन तभी उसे अहसास हुआ—वो हिल नहीं पा रही।

    'क्या मैं बंधी हूं?' उसने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन जो आवाज़ आई, वो थी एक न्यू बच्चे की वाह वाह।

    हां?

    'ये क्या—' तभी एक अजनबी चेहरा झुका और एक लैंब की गर्म रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी।

    "हाय, बेबी," नर्स ने धीरे से कहा। "मम्मी अभी लेने आएंगी, ठीक है?"

    अनन्या ने डर के मारे इधर-उधर देखा। 'बेबी डेकोरेशन... वॉर्म लाइट्स... छोटे टब...'

    'मैं... मैं क्या सोच रही हूं वही सच है? हे भगवान—'

    "हा... हा... वाह!"

    उसकी सोच को तोड़ते हुए, एक तेज़ रोना गूंजा—उसका खुद का।

    और फिर बाकी सारे बच्चे भी गाना शुरू कर दिए... जैसे एक नई ज़िंदगी ने फिर से जन्म लिया हो।

  • 3. Love after marriage - Chapter 3

    Words: 1021

    Estimated Reading Time: 7 min

    नए रूप में फिर से जन्म लेना और ज़िंदगी को दोबारा शुरू करना… अनन्या ने इस सच्चाई को जल्दी स्वीकार कर लिया था।
    लेकिन उसी डरावनी ज़िंदगी को फिर से जीना?
    इस रहस्य को समझने और स्वीकारने में उसे काफ़ी वक़्त लगा।

    तीन साल की छोटी अनन्या मुँह में चेविंग गम चबाती हुई, अपनी मौसी के दो बच्चों को देख रही थी जो एक-दूसरे के बाल खींच रहे थे। ये जुड़वाँ शैतान उससे बस कुछ महीने बड़े थे — और पहली ज़िंदगी में भी हमेशा उसके खिलाफ़ मिलकर साज़िश करते रहते थे।
    हर बार जब भी कुछ बिगड़ता, सारी गलती अनन्या पर डाल दी जाती ताकि उनकी माँ की डाँट से वो बच जाएं।

    पहले वो इस पर रोती थी, बुरा लगता था, और उनके हिस्से के प्यार से जलन होती थी।
    लेकिन इस जन्म में नहीं।
    इस बार अनन्या ने अपने हालातों को समझ लिया था — मौसी ने कभी उसे अपनाना ही नहीं चाहा था, बस उसकी माँ की मौत के बाद उसे रखने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
    तो उनका प्यार ना मिलना कोई हैरानी की बात नहीं थी।
    अब ना उसे उनके प्यार की भूख थी, ना ध्यान की।

    बल्कि…

    उसकी नज़र टेबल पर रखे स्नैक पर पड़ी और तीन साल की बच्ची के होंठों पर एक शरारती मुस्कान उभर आई।

    "मनू," उसने पुकारा, चेविंग गम चबाने से उसकी आवाज़ और भी प्यारी लग रही थी।

    मनू, तीन साल का छोटा लड़का, अपनी शैतान बहन को धक्का देकर अनन्या की ओर देखने लगा। बहन की आँखों में आँसू थे और मुँह से रुलाई की आवाज़ें आने लगीं।

    "ये क्या है?" अनन्या ने अपनी छोटी सी उंगली उठाई। "जो पहले बताएगा, वही ताकतवर बनेगा।"

    "एक!" मनू चिल्लाया। "ये एक है!"

    "और ये?" अब अनन्या ने पाँच उंगलियाँ और उसके साथ बाईं तरफ़ की दो और उँगलियाँ दिखाईं।

    मनू का गोल-मटोल चेहरा गंभीर हो गया और वो उंगलियाँ गिनने लगा।

    "सात!" इस बार अनू बोली। "ये सात है — एक, दो, तीन… सात!"

    "वाह!" अनन्या ने ताली बजाते हुए कहा, और मनू गुस्से से अनू को घूरने लगा, जबकि अनू चुपचाप दूसरी तरफ़ देखने लगी।

    "मनू, तुम अनू को ऐसे क्यों देख रहे हो? उसने तुम्हें पहले तो नहीं देखा ऐसे।"

    अनू सुबकते हुए अनन्या के पीछे छिप गई। "अनन्या, मनू बहुत बुरा है। वो मुझे डराता है!"

    "तो क्या!?" मनू उछलकर खड़ा हुआ, दोनों हाथ कमर पर रखे। "अगर मैं बुरा हूँ तो क्या हुआ? अनू तुम तो कमजोर हो और मुझसे छोटी भी! हर चीज़ में मैं पहला जवाब दूँगा!"

    अनन्या ने मासूमियत से पलकें झपकाईं और अपने सीने के नीचे हाथ बाँध लिए। "तो क्या मैं भी छोटी नहीं हूँ? इसका मतलब तो ये हुआ कि तुम मेरे गुरु बनोगे?"

    "क्या?"

    "मनू, लगता है तुम अपनी औकात भूल गए हो।" अनन्या ने भौंहे चढ़ाईं और मनू का अकड़ता चेहरा एकदम ढीला पड़ गया। "ठीक है। मैं तुम्हें याद दिलाती हूँ कि असली बॉस कौन है।"

    अनन्या उठने लगी, लेकिन उसका वज़न ज़्यादा था तो थोड़ा लड़खड़ा गई।
    पहले जन्म में तो वो मुश्किल से कुछ खाती थी — ज़्यादातर बचा-खुचा ही मिलता था।
    लेकिन अब वो वही रोती-धोती बच्ची नहीं थी, जो मौसी की मेहरबानी पर जिंदा रहे।

    "मनू अब मैं —"

    "माफ़ कर दो!" मनू घुटनों पर गिर गया और हाथ जोड़ने लगा। "मुझे माफ़ कर दो! अनू, तुम्हें भी माफ़ी! मैं ग़लत था! प्लीज़ मुझे मत मारो!"
    उसे ऐसे देख कर

    अनन्या की मुस्कान और गहरी हो गई। उसने अनू को देखा और अनू ने डरते हुए मुस्कान दी।

    "अनन्या, तुम मेरे स्नैक्स लोगी?" अनू ने मासूमियत से पूछा। "मैं लेकर आती हूँ।"

    "नहीं! मैं लाऊँगा!" मनू बोला। "मैं तुम्हारे लिए स्नैक्स लाऊँगा! बस यहीं रुको!"

    मनू दौड़ पड़ा कुछ खाने की चीज़ लाने, क्योंकि जब अनन्या भूखी होती थी, वो सबसे ज़्यादा डरावनी होती थी।
    अनू ने भी अनन्या को मुस्कुराकर देखा।

    "अनन्या… सबसे बेस्ट है!" अनू शरमाकर बोली। "मैं कल से तुम्हें अपने आधे स्नैक्स दूँगी, बस मनू मुझे परेशान ना करे।"

    अनन्या ने उसके कंधे पर हाथ रखकर भरोसा दिलाया। "चिंता मत करो, अनू। जब तक मैं हूँ, कोई तुम्हें तंग नहीं करेगा।"
    फिर मुस्कराते हुए बोली, "अब, तब तक वो ला दो, जब तक मनू वापस आता है।"

    अनू ने सिर घुमाया, वहाँ देखा जहाँ अनन्या की नज़र थी। टेबल पर बचे हुए स्नैक्स रखे थे।

    "ओह… ये तो तुम्हारे फेवरेट हैं!" अनू झटपट खाने की चीज़ें उठाने दौड़ी, ताकि अनन्या खुश हो जाए।

    पिछले तीन सालों से यही अनन्या की ज़िंदगी बन गई थी — मौसी से अपनापन पाने की बजाय, वो इन जुड़वाँ बच्चों को अपने वफ़ादार बना रही थी।
    मौसी भले ही अनन्या से बेरुख़ी रखती थी, लेकिन अपने बच्चों से वो सच्चा प्यार करती थी।

    उस दिन, अनन्या ने जी भरकर खाया — अपने वफ़ादारों से मिलने वाले 'प्रोटेक्शन फ़ीस' पर।
    पर उसके दिल के अंदर कहीं ये बात साफ़ थी — यहाँ की पहली तेरह साल की ज़िंदगी में सिर्फ़ इतना काफी नहीं होगा।


    कुछ हफ़्ते बाद…

    "ये तू क्या कर रही है?!"

    अनन्या ने पीछे मुड़कर देखा — मौसी गुस्से से भरी उसकी तरफ़ बढ़ रही थी।
    एक गुड़िया की तरह उसने अनन्या का हाथ पकड़ा और उसे लिविंग रूम की टेबल से खींच लिया।

    टेबल पर रखी महंगी टाइल्स को देखकर उसकी आँखों में आग सी जल उठी।

    "मैंने कहा था ये खिलौने नहीं हैं! इन्हें छूना मना है!" वो चिल्लाई। "बस! आज रात का खाना नहीं मिलेगा तुझे!"

    "पर मौसी, मैं तो अभी जीतने ही वाली थी!"

    "हँह!?" मौसी ने नाक सिकोड़कर कहा। "तू अकेली खेल रही है! जीत क्या रही है —"

    वो अचानक चुप हो गई, टीवी की आवाज़ सुनकर।
    टीवी पर मैच चल रहा था।
    उसकी भौहें सिकुड़ गईं, और फिर वो नीचे झुककर अनन्या की टाइल्स देखने लगी।
    फिर टीवी की स्क्रीन पर देखती गई और फिर अनन्या पर।
    धीरे-धीरे उसके होंठ कानों तक फैल गए।

    "मुझे पता था तू होशियार है, पर ये नहीं सोचा था कि तू इतनी काम की निकलेगी!"

    अगर ये किसी बच्चों की फ़िल्म का सीन होता, तो ये डरावना या अजीब मोड़ माना जाता।
    और सच में, ये अनन्या की ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट था।

    तीन साल की उम्र में… अनन्या ने उस के रूप में अपना करियर शुरू किया।