जिसे वो चाहता है, उसे पाना उसका हक़ है — चाहे ज़बरदस्ती क्यों न हो। वो अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह था — विराट सिंह राठौड़। जिसकी दुनिया में इश्क़ की कोई जगह नहीं थी, बस हुकूमत और खून का खेल चलता था। लेकिन उसकी ज़िंदगी उस दिन बदल गई जब... जिसे वो चाहता है, उसे पाना उसका हक़ है — चाहे ज़बरदस्ती क्यों न हो। वो अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह था — विराट सिंह राठौड़। जिसकी दुनिया में इश्क़ की कोई जगह नहीं थी, बस हुकूमत और खून का खेल चलता था। लेकिन उसकी ज़िंदगी उस दिन बदल गई जब उसने एक मासूम सी लड़की को देखा — अवनि, जो उसकी दुनिया से बिलकुल अलग थी। ना किसी माफिया की बंदिश में रहने वाली, ना किसी की जिद बनने वाली। लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। वो माफिया था — और माफिया को जो पसंद आ जाए, वो उसकी “मिल्कियत” बन जाती है। अब अवनि उसकी कैद में है, उसकी ज़िंदगी में — और उसके दिल के करीब भी। पर क्या विराट का प्यार, उसकी हदें, उसकी जबरदस्ती — अवनि को भी बदल देगी? यह कहानी है एक बेबस सी लड़की की और एक जुनूनी माफिया की — जहां नफरत और मोहब्बत की लकीर बहुत पतली है।
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जब मोहब्बत एक सौदा बन जाए और नफ़रत उसका इनाम
वो शहर जहां अंधेरों का अपना राज है... जहां नाम से नहीं, खून से पहचान बनती है...
जहां रियासतें अब कुर्तों में नहीं, कोटों में चलती हैं... और गोलियों से बात होती है।
और उस शहर का सबसे बेख़ौफ़ नाम था — विराट सिंह राठौड़।
एक नाम, जिससे पुलिस भी डरती थी, और दुश्मन मौत मांगते थे।
उसकी दुनिया में कोई नहीं आता... और जो आता है, लौट कर नहीं जाता।
लेकिन फिर एक दिन, उसकी नज़रें टकराईं अवनी कपूर से —
एक सीधी-सादी लड़की, जिसकी नज़रों में कुछ ऐसा था जो विराट की दुनिया में नहीं था:
सच, मासूमियत… और वो ज़िद, जो किसी से नहीं डरती।
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Scene 1: पहली नज़र — एक गुनाह या एक मुक्ति?
विराट अपनी गाड़ी में बैठा था, रेड सिग्नल पर।
चारों ओर बिखरी भीड़ — एक छोटा बच्चा सड़क पर गिरा, ट्रैफिक में कोई रुका नहीं।
लेकिन एक लड़की भागती हुई आई, बच्चे को उठाया, और ट्रैफिक के बीच उसे सुरक्षित किया।
सड़क पर शोर था, लोग चिल्ला रहे थे। लेकिन विराट के लिए वक्त थम गया था।
उसने पहली बार किसी के चेहरे को इतने गौर से देखा।
"ये कौन है?" उसने मॉन्टी से पूछा।
"शायद कोई कॉलेज स्टूडेंट…"
"नाम?" उसकी आवाज़ सख़्त थी।
"अवनी कपूर।"
उस पल से उसका नाम विराट की किस्मत बन गया।
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Scene 2: जब मोहब्बत एक आदेश बन गई
अवनी को जब पहली बार किसी अजनबी ने कॉलेज गेट के बाहर रोका, उसने डरने की बजाय आंखों में आंखें डालकर जवाब दिया:
"तुम्हारे जैसे लोग ही इस शहर को गंदा करते हैं। हटो रास्ते से।"
उसी शाम, उसे किसी ने किडनैप कर लिया।
और जब आँखें खुलीं, सामने खड़ा था वही आदमी — विराट सिंह राठौड़।
"तुम्हें क्या लगता है… मुझसे बच जाओगी?"
अवनी ने डरी नहीं, पलट कर कहा:
"तुम जैसे लोग सिर्फ़ ताक़त के भूखे होते हैं। और तुम्हारी भूख मैं नहीं मिटाने वाली।"
विराट पहली बार चौंका था।
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Scene 3: बंधन जो साँसों में नहीं, ज़ख़्मों में बंधा था
अवनी कैद थी… लेकिन हार नहीं मानी।
हर दिन, हर पल — वो उसके खिलाफ़ लड़ी।
और विराट?
वो उसे तोड़ना चाहता था — लेकिन धीरे-धीरे ख़ुद टूटने लगा।
एक रात, विराट ने उसके बालों में हाथ फिराते हुए कहा:
"तुम्हारे जैसा कोई कभी मेरी दुनिया में आया नहीं था… और शायद अब मैं चाहूँ भी नहीं कि जाए।"
अवनी की आँखें भर आईं — पर उसने कहा:
"तुम्हारी दुनिया ज़हर है… और मैं साँसें लेना चाहती हूँ।"
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Scene 4: जब नज़दीकियाँ बनने लगीं… और फिर सब उजड़ गया
वो लम्हे जब दोनों एक-दूसरे को समझने लगे…
अवनी की हँसी विराट के सीने में गूंजने लगी, और विराट की खामोशी अवनी की आँखों में उतरने लगी।
लेकिन... जिस माफिया की दुनिया में प्यार गुनाह हो — वहाँ सज़ा सिर्फ़ मौत होती है।
एक रात — जब अवनी ने विराट के लिए गोली खाई…
और विराट चीख पड़ा:
"तू मर नहीं सकती… मैं तुझे मरने नहीं दूँगा!"
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Scene 5: बदले की वो आग… जो मोहब्बत से पैदा हुई थी
जब अवनी को लगा कि विराट ने उसे धोखा दिया —
उसने अपनी आँखों में वो आग भर ली, जो अब किसी भी माफिया को जला सकती थी।
"अब ये जंग है विराट — और इस बार, मैं हारने नहीं आई।"
और विराट?
उसने कहा:
"तू मोहब्बत थी… लेकिन अब तू मेरी सबसे बड़ी जंग बन चुकी है।"
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अब ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं है… ये है 'माफिया का बंधन'
एक ऐसा बंधन जो:
जब टूटेगा, तो लहू बहाएगा
जब जुड़ेगा, तो रूह कांपेगी
और जब ख़त्म होगा… तो या तो कोई एक मरेगा, या दोनों का प्यार अमर हो जाएगा।
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क्या तुम तैयार हो?
तैयार हो उस सफ़र के लिए:
जहाँ हर चैप्टर में एक ज़ख़्म है,
हर लाइन में एक तड़प,
और हर मोड़ पर एक ऐसा ट्विस्ट जो रूह कंपा दे।
ये "माफिया का बंधन" है — मोहब्बत की वो किताब, जिसे खून से लिखा गया है।
पढ़ना शुरू करोगे... तो छोड़ नहीं पाओगे।
coming soon.......
पढ़ते रहिए और कमेंट करते रहिए
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Disclaimer (अस्वीकरण):
“माफिया का बंधन” एक काल्पनिक कहानी है। इसमें दर्शाए गए सभी पात्र, स्थान, घटनाएँ और परिस्थितियाँ लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति, वास्तविक संस्था, समुदाय या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई समानता पाई जाती है तो वह मात्र संयोग है। इस कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है, ना कि किसी प्रकार की हिंसा, अपराध, अथवा सामाजिक मान्यताओं का समर्थन करना।
नोट:
यह कहानी वयस्क पाठकों के लिए है और इसमें कुछ संवेदनशील विषयवस्तु हो सकती है। कृपया अपने विवेक से पढ़ें। लेखक किसी भी प्रकार की गलत व्याख्या या दुरुपयोग के लिए उत्तरदायी नहीं है।
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बहुत बढ़िया! तो लीजिए पेश है — "माफ़िया का बंधन" का पहला चैप्टर, एक दमदार और दिल में उतर जाने वाली शुरुआत के साथ:
रात का समय और एक नाम जिससे शहर कांपता था
मुंबई की चमकती रफ्तार के पीछे एक ऐसी दुनिया थी, जिसे न कोई देखता था, न जानना चाहता था। वहां सिर्फ़ एक नाम गूंजता था — विराट सिंह राठौड़।
काले शीशों वाली गाड़ियों का काफिला, हर तरफ बिखरी खामोशी और वो चेहरा — जिसकी आंखें सीधे दिल तक उतर जाती थीं। विराट कोई आम माफिया नहीं था… वो ‘किंग’ था। और किंग बनने के लिए उसने बहुत कुछ खोया था — अपने अपनों को, मासूमियत को… और शायद, खुद को भी।
उसकी हवेली, शहर के सबसे ऊँचे टीले पर बनी थी — दूर से भी उसकी रौब झलकती थी। और उस हवेली में, रात के एक बजे, विराट अपने स्टडी रूम की खिड़की के पास खड़ा था।
काले शर्ट की बाज़ुएं मोड़ी हुईं, चेहरे पर थकान नहीं — मगर आंखों में कुछ ऐसा था जो किसी को चैन से सोने नहीं देता।
उसने व्हिस्की का गिलास उठाया, और धीरे से बुदबुदाया —
"हर किसी की ज़िन्दगी में एक मोड़ आता है… या तो सब मिटा देता है… या सब बना देता है। मेरा वक़्त आने वाला है…"
दरवाजे पर मॉन्टी खड़ा था, उसका सबसे भरोसेमंद आदमी।
"भाई… कल सुबह एक कॉलेज के बाहर सिक्योरिटी लगा दी है। आपने कहा था… किसी लड़की पर नज़र रखनी है?"
विराट की निगाहें स्थिर थीं।
"हां… नाम है 'अवनी कपूर'। मुझे नहीं पता क्यों… लेकिन उस दिन उसे देखा तो ऐसा लगा जैसे कुछ सालों से खोया हुआ, अचानक सामने आ खड़ा हुआ हो।"
मॉन्टी ने सिर हिलाया। उसने देखा था अपने भाई को कभी किसी के लिए इस तरह परेशान होते हुए — शायद पहली बार किसी लड़की ने विराट के दिल की दीवारों पर दस्तक दी थी।
तभी विराट को उस दिन वाली मुलाकात याद आने लगी उसने बाहर खिड़की से देखा और वही सब याद करने लगा"
दो दिन पहले", सुबह की रौशनी में हल्की सी ठंडी हवा चल रही थी लड़की, जिसकी मुस्कान सच्ची थी और नज़रें मासूम। दिल्ली यूनिवर्सिटी के बाहर एक बूढ़े रिक्शा वाले की गिरी हुई टोकरी को उठाने में मदद कर रही थी।
"दादाजी, ध्यान रखिए अगली बार… सब्ज़ियाँ गिर गईं तो कौन उठाएगा," उसने हँसते हुए कहा।
वो झुकी, सब्जियाँ उठाईं, हाथ में उसकी किताबें थीं, और बाल हवा में उड़ रहे थे। आस-पास कई लोग थे, लेकिन उस एक कार में बैठा इंसान दूर से ये सब देख रहा था।
विराट सिंह राठौड़, जो उस समय अपनी कार में बैठा फोन पर किसी डील की बात कर रहा था, उसकी नजर अचानक उस लड़की पर टिक गई। आवाजें धीमी पड़ गईं। उसकी आँखें पहली बार किसी मासूमियत पर रुकी थीं, जहाँ ना खून था, ना डर सिर्फ एक अनजानी सी शांति।
विराट के दाहिने हाथ में अंगूठी चमकी। मोंटी ने पास बैठकर पूछा, “सर, अगली मीटिंग…?”
विराट की नज़रें अब भी उस लड़की पर थीं। “वो लड़की… कौन है?”
मोंटी ने चौंककर कहा, “कौन लड़की, सर?”
“वो… सब्ज़ियाँ उठा रही थी अभी। उसके बारे में पता लगाओ।”
“ओके सर।”
विराट ने सीट पीछे की और झुकते हुए आँखें बंद कीं… लेकिन अवनी की छवि अब उसमें बस चुकी थी। उसकी मासूम हँसी, वो सादा सलवार सूट, बिना किसी बनावट के… ये सब विराट के लिए नया था। वो आदतों से गुलाम नहीं था, लेकिन आज दिल ने पहली बार किसी को कैद किया था।
विराट वापस से उस याद से बाहर आया और पास पड़ा ग्लास उठाकर पीते हुए बोला" , “जो मुझे रोकने की सोचते हैं, उन्हें सबसे पहले अपना नाम मिटाना पड़ता है।” उसकी आवाज़ ठंडी थी, लेकिन उसमें मौत की गूंज थी।
विराट सिंह राठौड़, अंडरवर्ल्ड का ऐसा राजा जिसने अपनी सल्तनत खून से सींची है। कारोबार सिर्फ गैरकानूनी नहीं, बल्कि उसे खुद कानून बनाना पसंद है। लेकिन ये कहानी सिर्फ उसकी सत्ता की नहीं, उसके उस पहलू की है जो शायद दुनिया से छुपा है और एक लड़की जिसे वो न चाहकर भी अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लेना चाहता था। "
विराट वाह से उठकर सोफे पर आकर बैठ गया उसके लिए ये रात कब निकली पता ही नहीं चला!" "
सुबह की चिलचिलाती सूरज की किरणें धीरे-धीरे खिड़की के हल्के पर्दों को पार करती हुईं, उस चेहरे तक पहुँचीं, जो अब तक नींद में डूबा था।
सफेद चादर में लिपटी अवनी कपूर, बिखरे बाल, होंठों पर हल्की मुस्कान और आंखों के पास बिखरे कुछ सपने।
अवनी का कमरा छोटा था, लेकिन उसमें एक अजीब-सी शांति थी जैसे वहां हर चीज़ को उसका स्पर्श मिला हो। दीवार पर उसकी मां की तस्वीर टंगी थी। हर सुबह की शुरुआत उसके लिए एक रूटीन थी माँ की दवाई, और फिर खुद की कॉलेज क्लास।
अवनी की आंखें खुलीं… उसने खिड़की से बाहर देखा — एक चिड़िया मुंडेर पर बैठी थी, शायद गुनगुना रही थी।उसने बिस्तर से उठते हुए खुद से बुदबुदाया —"हर सुबह कुछ नया लाती है… शायद आज भी कुछ अलग हो।"वो नहीं जानती थी कि आज की सुबह, उसकी ज़िन्दगी की आख़िरी 'सामान्य' सुबह होगी।
वो वाह से जल्दी से तैयार होकर नीचे आई और अपनी मां से मिलने के बाद कॉलेज के लिए निकल गई" "
विराट की कार कुछ दूरी पर खड़ी थी। काले चश्मे में वो गेट की ओर देख रहा था। आज पहली बार उसका दिल किसी को देखने के लिए बेकरार था बेनाम, बेसबब।और तभी सामने से अवनी आती दिखाई दी सफेद सलवार सूट, कंधे पर बैग, और चेहरे पर वो मुस्कान जो शहर की भीड़ को भी थाम दे।विराट की सांस कुछ पल को रुक गई।"यही है… यही वो लड़की है…"
लेकिन अचानक…एक बाइक तेज़ रफ्तार में आई और एक बच्चा अवनी के सामने आ गया। बिना सोचे, अवनी ने बच्चे को धक्का देकर बचा लिया… और खुद गिर गई।लोग दौड़ पड़े… लेकिन वो बच्चा बच गया।
विराट अपनी जगह से हिला तक नहीं… उसकी आंखें अब सिर्फ़ अवनी पर थीं जो जमीन पर बैठी थी, लेकिन उसके चेहरे पर डर नहीं था… सिर्फ़ सुकून था।
वो उठी, बच्चे को गले लगाया और फिर खुद कॉलेज के अंदर चली गई।
विराट ने धीरे से बुदबुदाया —"ये लड़की… मासूम भी है… बहादुर भी। अब ये सिर्फ़ एक लड़की नहीं… ये एक सवाल बन गई है। और मैं जवाब लिए बिना नहीं रहूंगा।"अगले ही पल, उसकी आंखें बंद थीं और अब लेकिन खेल शुरू हो चुका था।
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पढ़ते रहिए माफिया के बंधन
पीछे चैप्टर में
विराट सिंह राठौड़ ने पहली बार अवनी को कॉलेज के गेट पर देखा था, जब वो एक घायल बच्चे की मदद कर रही थी। उस पल में, विराट की ठंडी आंखों में पहली बार कोई हलचल हुई थी। लेकिन उसने खुद को रोका और वहां से निकल गया — अपने उसूलों और खून से सनी दुनिया में लौटते हुए।
अब आगे...
शाम के धुंधलके में कोलाबा की गलियों में हलचल थी। सड़क के किनारे लगे पुराने लैम्पपोस्ट्स की पीली रोशनी में मुंबई शहर कुछ अलग ही रंग में दिख रहा था। गाड़ियों की आवाजें, लोगों की चहल-पहल और हवा में बहती समुद्र की नमी — सब कुछ रोज जैसा ही था, लेकिन विराट की दुनिया आज कुछ असामान्य सी लग रही थी।
विराट सिंह राठौड़ आज बहुत शांत दिख रहा था — कम से कम बाहर से। लेकिन अंदर एक तूफान चल रहा था। आज उसकी एक अहम मीटिंग थी, किसी बड़े प्रॉपर्टी डील को लेकर, जिसके लिए वो सिटी सेंटर मॉल के प्राइवेट वीआईपी लाउंज में जा रहा था। उसका काफिला हमेशा की तरह सिक्योरिटी से घिरा हुआ था, लेकिन उसके चेहरे पर एक गहरी गंभीरता थी। बिज़नेस मीटिंग उसकी दुनिया का हिस्सा था, लेकिन आज उसे जाने क्यों एक बेचैनी महसूस हो रही थी… कुछ अलग, कुछ अनजान सा
तभी मोंटी की आवाज उसके कानो में पड़ी
"विराट भाई, अभी मीटिंग का लोकेशन बदल गया है।"मॉन्टी ने ड्राइव करते हुए साइड मिरर से देखते हुए कहा।
"क्यों?"विराट की आवाज़ में सख़्ती थी, लेकिन नज़रें खिड़की से बाहर गहरी सोच में थीं।
"शायद पुलिस को भनक लग गई थी। अब मीटिंग कॉलेज स्ट्रीट के पास एक पुराने कैफे में है।"
कॉलेज स्ट्रीट।
एक पल को ही सही, लेकिन विराट की आंखों के सामने वही चेहरा कौंधा अवनी। वही आंखें, जो नर्म थीं लेकिन आत्मविश्वास से भरी। वही लड़की, जिसने बच्चे की मदद करते वक़्त उसे चुनौतीपूर्ण नज़र से देखा था जैसे पूछ रही हो, "तुम क्या करोगे?"
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इधर, अवनी कपूर अपनी क्लास खत्म कर रही थी। वो एक साधारण सी लड़की थी, लेकिन उसकी आंखों में कुछ अलग था एक बेचैनी, एक सपना, जो शायद इस दुनिया की नहीं थी।
"अवनी, तुम चलीं नहीं अभी तक?"
उसकी दोस्त रिद्धिमा ने पूछा।
"बस...कुछ देर यहीं बैठना है, थक गई हूँ आज।"
अवनी ने मुस्कुराते हुए कहा और कॉलेज गेट के पास बने छोटे से कैफे की ओर चल दी।
उसी वक्त, एक काली रेंज रोवर कैफे से कुछ मीटर दूर आकर रुकी।
"यहीं?"विराट ने पूछा।
"हाँ, मीटिंग ऊपर वाले रूम में है, लेकिन भीड़ है नीचे... शायद कॉलेज की छुट्टी का वक्त है।"
विराट ने सिर हिलाया और दरवाज़ा खोलकर उतरा। लेकिन जैसे ही उसने कुछ कदम बढ़ाए उसकी टक्कर किसी से हो गई, तभी सामने से एक प्यारी सी आवाज आई "ओह सॉरी!"
अवनी ने एकदम पलटकर कहा, और जैसे ही उसकी नज़र उस आदमी पर पड़ी उसकी सांसें थम गईं।
वही आँखें वही चेहरा वही खामोश मगर खतरनाक मौजूदगी।
"तुम?"विराट के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आई, लेकिन आँखों में एक अजीब सी शरारत थी।
"त...तुम कौन और यहां क्या कर रहे हो?"अवनी ने थोड़ा पीछे हटते हुए पूछा।
"क्यों? क्या मैं यहां नहीं आ सकता?"उसकी आवाज़ में वही ठंडक थी जो उसे बाकी दुनिया से अलग करती थी।
अवनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उसकी किताबें नीचे गिर गईं। उसने झुककर उठानी शुरू की, लेकिन एक किताब की ओर विराट ने हाथ बढ़ाया।उन दोनों की उंगलियाँ एक पल के लिए टकराईं तो मानो वक्त जैसे थम गया।
"तुम्हारा नाम?"विराट ने पूछा बिना पलकें झपकाए।
"तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?" अवनी ने किताबें उठाते हुएभी कहा!""
"शायद अब से बहुत फर्क पड़ेगा।"
उसने किताब थमाते हुए कहा और बिना एक शब्द और बोले सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।
अवनी वहीं खड़ी रही, दिल की धड़कनों को थामे हुए खुद से बोली–" "वो कौन था?उसकी आँखों में ऐसा क्या था जो सीधा आत्मा को छू गया?
और दूसरी तरफ विराट, सीढ़ियाँ चढ़ते हुए रुक गया।उसने पलटकर नीचे देखा — अवनी अब भी वहीं खड़ी थी।वो पहली बार किसी चेहरा को भूल नहीं पा रहा था।और शायद, ये सिर्फ़ शुरुआत थी।
वो पल बहुत छोटा था, लेकिन असर बहुत गहरा। अवनी ने जैसे ही विराट को जाते देखा, उसके अंदर कुछ खिंचने लगा।
वो कौन था? उसका रवैया इतना अजीब क्यों था? और उसकी आँखें... जैसे सब कुछ पढ़ रही हों।
"अवनी!"रिद्धिमा की आवाज़ ने उसे चौंकाया।
"तू ठीक है?"
"हाँ... बस, वो... एक लड़का था... कुछ अजीब लगा बस।"
"कैसा अजीब?"
रिद्धिमा ने चाय का कप उठाते हुए पूछा।
"जैसे... वो मुझे जानता हो, या फिर जानना चाहता हो। उसकी आँखों में कुछ था, रिद्धिमा... डर भी था और जिद भी।"
ऊपर, कैफ़े के एक सुनसान रूम में विराट की मीटिंग शुरू हो चुकी थी। सामने एक आदमी काँपते हुए बैठा था मुंबई के लोकल हथियार सप्लायर्स में से एक।
"तुम्हें पता है गलती क्या की?"विराट की आवाज़ शांत थी, लेकिन माहौल में सिहरन दौड़ गई।
"स...साहब, मेरी कोई मंशा नहीं थी... मैं तो बस उस आदमी ने हकलाते हुए कहा!""
"झूठ!"विराट ने टेबल पर रखा ग्लास ज़ोर से गिराया, और वो आदमी चुप हो गया।
मॉन्टी ने आगे बढ़कर उसका कॉलर पकड़ लिया।
"तूने दुश्मनों को डील की खबर दी। किसके कहने पर?"
"मैं मजबूर था... मेरी बेटी..."
विराट का चेहरा एक पल को सख़्त हो गया। उसकी आँखें धीमे से झपकीं।
"बेटियाँ... हमेशा कमज़ोर बना देती हैं ना।"
विराट की निगाहों में कुछ पुराना सा तैर गया।
उसने चुपचाप खड़ा होकर कहा,
"मॉन्टी, इसका काम ख़त्म करो। लेकिन इसकी बेटी को कोई छू नहीं पाए ।"
"जी, भैया।" इतना बोल मोंटी उसे लेकर चल है और विराट वाह से नीचे चला गया कैफ़े से निकलते वक्त, विराट की नज़र एक बार फिर उस कोने की टेबल पर पड़ी जहां " कुछ देर पहले अवनी से टकराया था लेकिन अवनी अब वहाँ नहीं थी।
"वो लड़की चली गई?"उसने मॉन्टी से पूछा।
"कौन सी लड़की?"मॉन्टी थोड़ा चौंका।
"छोड़। चलो।"विराट ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा लेकिन उसकी आँखें अब भी उसी चेहरे को ढूंढ रही थीं।
उधर, अवनी कॉलेज के रास्ते पर थी, लेकिन दिमाग में अब भी वो अजनबी घूम रहा था।
घर पहुंचते ही उसकी माँ ने दरवाज़ा खोला।
"अवनी! देर क्यों हो गई आज?" उसकी मां ने चिंता करते हुए कहा!" "
"माँ, बस... थोड़ा रुक गई थी।"
"चलो, खाना खा लो।"माँ ने प्यार से कहा।
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पढ़ते रहिए
रात गहरी हो चुकी थी।
विराट अपनी हवेली के लॉन में अकेला बैठा था। उसके पास शराब का गिलास था — लेकिन इस बार वो सिर्फ़ शराब नहीं पी रहा था, किसी की याद भी पी रहा था।
"मॉन्टी।"उसने आवाज़ दी।
"हाँ भैया?"
"उस लड़की का पता चाहिए मुझे। नाम, घर, सब कुछ।"
मॉन्टी थोड़ा झिझका।
"आप...?"
"तुम बस पता लगाओ। बाकी मैं देख लूंगा।"
अवनी ने अपने कमरे में जाकर खुद को आईने में देखा और पहली बार... अपने चेहरे में किसी और की परछाईं खोजी।
उसी वक्त, अवनी की खिड़की के बाहर एक काली गाड़ी कुछ देर रुकी।
और फिर धीरे-धीरे चली गई।
अवनी को कुछ अहसास हुआ। उसने परदे हटाए — लेकिन बाहर सिर्फ अंधेरा था।
कहीं कोई था... जो अब उसकी हर सांस पर नज़र रखने वाला था।
मुंबई की सड़कों पर रात गहराने लगी थी। चमकते हुए शहर की ऊँची इमारतों के बीच एक इमारत ऐसी भी थी, जिसकी खिड़कियाँ हमेशा काली होती थीं।
वहीं ऊपर, टॉप फ्लोर के एक पेंटहाउस में विराट सिंह राठौड़ खड़ा था, बालकनी से शहर को नज़रअंदाज़ करते हुए।
उसके हाथ में सिगार नहीं था, शराब नहीं थी — बस उसकी आंखों में एक चेहरा था: अवनी।
वो टक्कर, वो हल्का सा गुस्सा उसके चेहरे पर, और फिर उसकी आँखों में वो बेचैनी — विराट के ज़हन में सब कैद हो चुका था।
“वो इत्तेफाक नहीं था,” उसने खुद से कहा।
पीछे मॉन्टी खड़ा था — वही वफादार जो बिना कहे सब समझ जाता था। उसके हाथ में एक फोल्डर था।
“यह रही उसकी फाइल, सर,” मॉन्टी ने धीरे से कहा।
विराट ने धीरे से फोल्डर खोला। अंदर अवनी की तस्वीर थी — लाइब्रेरी में बैठी, एक नॉर्मल से कॉलेज लुक में।
उसकी प्रोफाइल — उम्र 21, B.Com सेकेंड ईयर, दो पार्ट टाइम जॉब्स, एक बीमार माँ और छोटा भाई।
विराट ने तस्वीर को हाथ में लिया और कुछ पल उसे चुपचाप देखा।
“सीधी-सादी है… लेकिन आँखों में कोई बात है।”
उसने खुद से कहा।
“क्या करना है अब, सर?” मॉन्टी ने पूछा।
विराट ने जवाब नहीं दिया। उसने फोल्डर बंद किया और टेबल पर रख दिया।
“उसके आसपास मौजूद रहो… लेकिन उसे पता न चले। वो डरे नहीं। बस इतना समझे कि कोई है, जो उसे देख रहा है।”
“Understood.”
“और एक लड़का भेजो उसके कॉलेज में। ऐसा जो भरोसा जीत सके। लेकिन वो हमारा आदमी हो।”
मॉन्टी ने सिर झुकाया, “हाँ सर।”
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अगली सुबह — अवनी का घर
घड़ी का अलार्म सुबह 6:30 बजे बजा।
अवनी की आंख खुली। पलंग के किनारे उसकी माँ बैठी थी, खाँस रही थीं। उसने जल्दी से उठकर उन्हें पानी दिया।
“माँ, आपको कितनी बार कहा है, बिना दवा के उठना मत…”
माँ मुस्कुराईं, “तू रहती कहाँ है, सब कुछ अकेले कैसे करेगी…”
अवनी कुछ नहीं बोली। वह जानती थी इस शहर में अगर कोई सच में उसका अपना है, तो वो उसकी माँ है बाक़ी सब… बस जरूरत पर काम आने वाले चेहरे।
अवनी ने जल्दी से नाश्ता बनाया, माँ को दवा दी और खुद तैयार होकर निकल पड़ी।
आज उसे कॉलेज के बाद बुकस्टोर की शिफ्ट भी करनी थी। उसका दिन अक्सर 14-15 घंटे का होता था — और फिर भी महीने के अंत में जेब में कुछ नहीं बचता था।
बस स्टॉप पर खड़ी अवनी किताब पढ़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका ध्यान बार-बार भटक रहा था।
उसे लग रहा था कोई उसे देख रहा है।
पीछे मुड़कर देखने पर कुछ नहीं — बस एक बूढ़ा आदमी अखबार पढ़ता दिखा, एक बच्चा साइकिल चला रहा था, और एक बाइक वाला अपनी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा था।
“मैं ज़्यादा सोच रही हूँ शायद…”
उसने खुद को टोका।
लेकिन कहीं न कहीं एक बेचैनी अब उसकी रूटीन का हिस्सा बन चुकी थी।
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कॉलेज — दोपहर 1:30 बजे
लंच टाइम में अवनी लाइब्रेरी में बैठी थी, कान में ईयरफोन लगाए, और एक पन्ना पलटती जा रही थी बिना कुछ समझे।
तभी एक नया चेहरा उसकी टेबल के पास आया।
“Hi,”लड़का हँसा। “May I sit here?”
अवनी ने चौंककर देखा।
लड़का बिल्कुल नया था —साफ-सुथरे कपड़े, हल्की मुस्कान, और आत्मविश्वास भरा व्यवहार।
“Umm… sure,” उसने सिर हिलाया।
“मैं आर्यन हूँ। ट्रांसफर हुआ हूँ इस वीक। तुम… अवनी हो, न?”
उसने थोड़ी हैरानी से देखा।
“तुम्हें कैसे पता?”
आर्यन हँसा, “क्लास में बैठा हूँ। बस… आज तक तुमसे बात नहीं हो पाई थी।”
अवनी ने सिर हिलाया। ओह अच्छा…”
“वैसे, ये इकॉनॉमिक्स का चैप्टर बड़ा बोरिंग है, न?”
उसकी बात पर अवनी हँस पड़ी — पहली बार पिछले कई दिनों में।
आर्यन ने एक चॉकलेट टेबल पर रखते हुए कहा,
“शुक्रिया… बैठने देने के लिए। और हाँ, तुम्हारी मुस्कुराहट असली है नकली नहीं, आजकल ऐसा बहुत कम दिखता है।”
अवनी कुछ नहीं बोली लेकिन उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान बनी रही।
वहीं दूर एक कार में बैठे विराट ने सब कुछ देखा।
कार के अंदर AC चल रहा था, लेकिन उसके माथे पर एक बूंद पसीना था।
“कैमरा ज़ूम करो।”
आर्यन की और अवनी की बातचीत स्क्रीन पर दिखाई देने लगी। विराट के हाथ की मुठ्ठी कस गई।
“उसे हँसी आ रही है…” विराट ने कहा!"
मॉन्टी ने पीछे से कहा, “सर, यही प्लान था…”
विराट ने धीमे से कहा,“प्लान था कि वो आर्यन से बात करे… " हँसे नहीं।”
कुछ पलों की चुप्पी के बाद उसने कहा —“आर्यन को अलर्ट रहने को बोलो। अगर उसने एक भी लाइन क्रॉस की, मैं खुद उसे खत्म कर दूँगा।”
शाम को बुकस्टोर में अवनी की शिफ्ट खत्म हो चुकी थी।
अवनी ने रजिस्टर में टाइम लिखा और अपना बैग उठाया। बाहर अंधेरा हो चुका था। रोड पर स्ट्रीट लाइट्स जल चुकी थीं।
तभी बगल की गली में उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं।
“छोड़ो मुझे… क्या कर रहे हो…”
एक लड़की रो रही थी और दो लड़के उसे खींच रहे थे। कोई आसपास नहीं था।
अवनी ने एक पल सोचा — आगे बढ़े या नहीं?
पर उसकी अंतरात्मा ने उसे रोका नहीं।
वो तुरंत भागी और लड़की के पास पहुँची।
“क्या कर रहे हो तुम लोग? छोड़ो इसे!”
उसने चीखकर कहा।
लड़कों ने चौंककर उसे देखा — फिर हँस पड़े।
“तू कौन है बे?”
“पुलिस को कॉल कर रही हूँ मैं!”
एक लड़के ने लड़की को छोड़कर उसकी तरफ बढ़ने की कोशिश की तभी पीछे से एक काली SUV रुकी और दरवाज़ा खुला और बाहर उतरा — विराट।
उसकी आँखें एक सेकंड में हालात को स्कैन कर चुकी थीं।
“तुम लोग… उसके सामने से हट जाओ।”
उसकी आवाज़ कम और खतरे से भरी थी।
लड़कों ने उसे पहचान लिया और अगले ही पल भाग खड़े हुए।
अवनी ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
“तुम…?”
विराट ने एक हल्की मुस्कान दी लेकिन उसमें कोई गर्माहट नहीं थी।
“मैंने कहा था न… मैं तुम्हारा रास्ता तय कर रहा हूँ।”
विराट ने इतना कहा और वाह से अपनी कार में।बैठकर निकल गया था, वो लड़की भी वाह से चली गई थी अवनी ने उन दोनो को जाए देखा और खुद भी वाह से निकल गई!""
लाइब्रेरी की उस मुलाक़ात के बाद अवनी को पहली बार कॉलेज का माहौल थोड़ा हल्का महसूस हुआ। हर रोज़ की भागदौड़, जिम्मेदारियों और तनाव के बीच जैसे कुछ पल ऐसे थे जहां वो बस खुद के लिए मुस्कुरा सकती थी।
आर्यन अब उसकी दिनचर्या का हिस्सा बनता जा रहा था।
वो कोई भी सवाल पूछता, तो सिर्फ क्लास से जुड़ा नहीं लगता जैसे वो जानबूझकर ऐसी बातें करता था जिनसे अवनी ज़्यादा देर तक उससे बात करती रहे।अवनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वो शांति जो आर्यन के आसपास उसे मिलती थी, क्या वो सच्ची थी… या बस एक झलक?
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उधर दूसरी तरफ,
विराट के लिए यह शांति नहीं, बल्कि बेचैनी का दौर था। उसने मॉन्टी को एक नई लोकेशन पर बुलाया था मुंबई की भीड़ से दूर एक पुराना फार्महाउस, जो उसकी गुप्त बैठकों का अड्डा था।
टेबल पर वो ही स्क्रीन खुली थी जहां आर्यन और अवनी की बातचीत रिकॉर्ड हो रही थी।
मॉन्टी आया, और उसने बिना कुछ कहे सामने एक फाइल रख दी।
“यह क्या है?” विराट ने पूछा, पर वो जानता था कि जवाब उसके लिए सुखद नहीं होगा।
“अवनी…” मॉन्टी रुका, “…कॉफी शॉप में काम करते हुए एक कस्टमर को समझाते वक्त CCTV में कुछ ऐसा रिकॉर्ड हुआ जो शायद आपको जानना चाहिए।”
विराट ने रिकॉर्डिंग चालू की।
अवनी किसी लड़की को समझा रही थी वो लड़की शायद परेशान थी, रो रही थी।
अवनी ने उसके हाथ थामे, और बहुत ठंडे लेकिन साफ़ लहज़े में कहा —"डर से भागना इलाज नहीं होता। सामना करने में जितना टूटोगे, उतना ही असली खुद को पाओगे।"
विराट ने वीडियो पॉज़ किया।
एक गहरी साँस ली।फिर उसने मॉन्टी की ओर देखा।
“इस लड़की में हिम्मत है। ये डर को जज़ब कर सकती है।”
“हाँ, सर,” मॉन्टी ने सहमति में सिर हिलाया।
“इसीलिए शायद इसे तोड़ने में मुझे ज़्यादा वक्त लग सकता है।”
विराट की ये बात किसी धमकी जैसी नहीं थी, बल्कि जैसे वो कोई रणनीति बना रहा हो।
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अगले दिन
कॉलेज के बाद अवनी थकी हुई थी, लेकिन आर्यन ने ज़िद की कि वो उसे एक आइसक्रीम खाने साथ चले।
“तुम हमेशा इतनी सीरियस क्यों रहती हो?” आर्यन ने रास्ते में पूछा।
“क्योंकि ज़िंदगी सीरियस है।”
“पर ज़िंदगी को हँसकर भी जिया जा सकता है…” आर्य ने आराम से पूछा
अवनी चुप रही, लेकिन उसकी आंखों में एक पल को हँसी तैर गई।
“कभी-कभी लगता है, तुम जैसे लोग बहुत आसान होते हो पर तुममें भी कुछ छुपा होता है…” उसने कहा।
आर्यन ने हल्की सी हँसी में बात टाल दी, पर उसका चेहरा थोड़ा खिंच गया।
क्योंकि अवनी का सवाल सीधा उसके दिल पर लगा था वो सचमुच कुछ छुपा रहा था।
रात को अवनी घर लौटी, तो माँ की तबीयत कुछ बिगड़ी हुई थी।
माँ बिस्तर पर लेटी थीं, बुखार में तपती हुईं।
“मम्मी… आपको डॉक्टर के पास चलना होगा।”
“पैसे… कहाँ से लाएगी तू? अभी तो अगले हफ्ते की तनख्वाह भी नहीं आई…”
“मैं कुछ न कुछ कर लूंगी। आपको बस ठीक रहना है।”उस रात अवनी की आँखों में नींद नहीं थी।
छत की तरफ देखते हुए, उसने खुद से कहा —“अगर कोई चमत्कार होता, तो मैं माँ की सारी तकलीफ़ें छीन लेती…”
उसी वक्त उसके फोन पर एक मैसेज आया — आर्यन का।
“कल मेरे साथ एक जगह चलोगी? बस कुछ देर के लिए। कोई प्रॉब्लम नहीं, मैं पूरी रिस्पेक्ट रखता हूँ।”
अवनी थोड़ी हैरान हुई। लेकिन उसे आर्यन पर भरोसा हो गया था कम से कम इतना कि वो उसकी बात बिना डर के सुन सके।
उसने रिप्लाई किया —“ठीक है। पर ज़्यादा देर नहीं।”
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अगले दिन
आर्यन ने उसे एक पुराने आर्ट गैलरी टाइप कैफ़े में बुलाया।भीड़ नहीं थी। दीवारों पर पेंटिंग्स थीं — कुछ अधूरी, कुछ बोलती हुईं।
“तुम ये सब पसंद करती हो न?” आर्यन ने पूछा।
अवनी चौंकी।“तुम्हें कैसे पता?”
“जब तुम बोलती हो तो आँखें ज़्यादा कहती हैं।”
कुछ पल दोनों चुप रहे फिर आर्यन ने जेब से एक छोटा सा लिफ़ाफ़ा निकाला।
“ये तुम्हारे लिए है।”
“क्या है ये?” अवनी ने सवाल किया
“गिफ्ट नहीं है। कर्ज भी नहीं। ये... शायद एक दोस्त की मदद है।”
अवनी ने खोला — अंदर कुछ पैसे थे।
उसका चेहरा सख्त हो गया।
“तुमने मेरी मजबूरी का मज़ाक बनाया है?”
“नहीं!” आर्यन घबरा गया। “मैं जानता हूँ तुम्हारी माँ की तबीयत… मैं बस…”
“तुम नहीं जानते आर्यन। और ना ही तुम समझ सकते हो।मेरी हालत कोई दया का सामान नहीं है।”
वो उठ खड़ी हुई। उसकी आंखों में गुस्सा था और आत्मसम्मान की आग।
आर्यन खड़ा हुआ — पर उसके चेहरे पर झेंप थी।
“माफ़ करना… मेरा इरादा… सिर्फ मदद करना था…”
“इंसान की इज़्ज़त सबसे बड़ी मदद होती है,” वो कहकर चली गई।
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उसी रात, वो कैफ़े जहां मुलाकात हुई थी — उसकी सीसीटीवी फीड विराट देख रहा था।
हर शब्द, हर चेहरा, हर भाव।वो अवनी की आंखों को देखकर मुस्कराया।
“ये लड़की… आग है। और आग को अपने काबू में करना हो, तो पानी नहीं और आग ही चाहिए।”
उसने फोन उठाया।“आर्यन… अब वक़्त आ गया है। अगला कदम बड़ा होगा।”
मुंबई की बारिश उस शाम अचानक शुरू हुई। आसमान काला पड़ चुका था और सड़कें कुछ ही देर में पानी से भर गई थीं। ट्रैफिक की आवाज़ें और हॉर्न अब सिर्फ बैकग्राउंड शोर बनकर रह गए थे।
लेकिन एक कार, बाकी सब आवाज़ों को चीरती हुई, कॉलेज के पास एक सुनसान गली में आकर रुकी।
विराट उसकी पिछली सीट पर बैठा था शांत, स्थिर, लेकिन आँखों में कुछ बहुत तेज़ चल रहा था।
मॉन्टी बगल में था, लेकिन आज उसकी आंखें भी कुछ कह रही थीं जैसे वो समझ रहा हो कि अब खेल असली मोड़ पर आ चुका है।
विराट ने स्क्रीन की ओर देखा लाइव कैमरा फीड में आर्यन और अवनी की कॉलेज कैंटीन की बातचीत चल रही थी।
वो देख रहा था, हर हावभाव, हर बात, हर मुस्कान को।
“तुम उसे महसूस करने लगे हो,” मॉन्टी ने कहा।
विराट ने धीमे से उसकी ओर देखा, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।
विराट ने स्क्रीन की ओर देखा लाइव कैमरा फीड में आर्यन और अवनी की कॉलेज कैंटीन की बातचीत चल रही थी।
वो देख रहा था, हर हावभाव, हर बात, हर मुस्कान को।
“तुम उसे महसूस करने लगे हो,” मॉन्टी ने कहा।
विराट ने धीमे से उसकी ओर देखा, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया।
मॉन्टी समझ गया — ये खामोशी, इकरार से ज़्यादा भारी थी।
शाम को अवनी अपनी माँ को लेकर क्लीनिक से वापस आ रही थी।
“डॉक्टर ने कहा है, कुछ टेस्ट्स ज़रूरी हैं…” अवनी ने माँ से कहा।
“इतने पैसे नहीं हैं बेटा… मैं ठीक हूँ।”
“नहीं माँ, अब और नहीं। हर बार हम पैसे के डर से इलाज नहीं छोड़ सकते। मैं कुछ कर लूंगी।”
“क्यों हर बार तू ही सब करती है अवनी?” माँ ने भरी आँखों से कहा।
“क्योंकि मैं आपकी बेटी हूँ,” अवनी ने हल्की मुस्कान से कहा — लेकिन उसकी आंखें नम थीं।
रात का समय था" अवनी की कॉलोनी में एक काली गाड़ी आई।
आर्यन उतरा — हाथ में एक चिट्ठी।
वो सीधे अवनी के दरवाज़े तक पहुँचा, दरवाज़ा नहीं खटखटाया। बस चिट्ठी नीचे रखकर चला गया।अवनी ने वो लिफाफा दरवाज़ा खोलने पर देखा।
**"अगर तुम कभी खुद को अकेला महसूस करो...
तो ये मत भूलना कि कोई है जो तुम्हारे लिए खड़ा है दूर से, लेकिन सच्चे मन से।
आर्यन"**
नीचे एक एड्रेस लिखा था —
"Ocean Blue Café, शाम 5 बजे। सिर्फ एक बार आओ... उसके बाद तुम्हारी मर्ज़ी।"
उसने लेटर पढ़ा और अंदर आ गईं उसने आर्यन के बताए एड्रेस पर जाने का सोच लिया था!"
--- अगले दिन अवनी वहीं पहुँची जा आर्यन ने उसे बुलाया था!" कैफ़े बेहद आलीशान था — समुद्र के किनारे, बड़ी-बड़ी खिड़कियों से लहरों की आवाज़ भीतर आती थी।
वो जैसे ही अंदर गई, सामने एक औरत ने उसे रोका।
“आप मिस अवनी हैं?”
“हाँ…” अवनी ने जवाब दिया!"
“आपके लिए एक खास टेबल बुक है।”
वो अवनी को एक कोने की टेबल पर ले गई — सामने समुद्र, और टेबल पर एक सफेद गुलाब रखा था।
अवनी हैरान थी।
कुछ ही देर में आर्यन आया।
“तुमने बुलाया, मैं आ गई,” अवनी ने कहा। “अब बताओ क्या बात है।”
आर्यन कुछ सेकंड चुप रहा।फिर बोला, “मैंने झूठ बोला था।”
“किस बारे में?” अवनी ने सवाल।किया!"
“मैं ट्रांसफर स्टूडेंट नहीं हूँ… मैं इस कॉलेज का हिस्सा कभी नहीं रहा।”
उसकी बात सुनकर अवनी चौंकी।
आर्यन ने उसकी आँखों में देखा।
“मुझे तुम्हारे करीब आने के लिए भेजा गया था… और आज, मैं वो चेहरा तुम्हें दिखाने जा रहा हूँ जो सब कुछ बदल देगा।”
आर्यन ने जेब से एक छोटा सा रिमोट निकाला और सामने दीवार पर प्रोजेक्टर चालू हुआ।
एक विडियो चला — जिसमें विराट की तस्वीर थी। उसकी आँखों में ठंडा गुस्सा, चाल में ताक़त और पीछे पूरे माफ़िया नेटवर्क की झलक।
अवनी ने बमुश्किल सांस ली।“ये कौन है?” उसकी आवाज़ कांप रही थी।
“विराट सिंह राठौड़,” आर्यन बोला। “मैं उसी के लिए काम करता हूँ। और वो चाहता है… तुम्हें।”
“मुझे?” अवनी चिल्लाई। “क्यों? मैंने ऐसा क्या किया?”
“कुछ नहीं,” आर्यन ने कहा। “बस तुम हो… और वो तुम्हें चाहता है।”
“तो तुमने मुझसे झूठ बोला… मुझे धोखा दिया…” उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे।
आर्यन ने हाथ बढ़ाया — पर अवनी पीछे हट गई।
“अब तुमसे कोई बात नहीं करनी। और उस विराट से कहना " मैं बिकाऊ नहीं हूँ।”
वो उठी और जाने लगी।आर्यन ने सिर्फ एक बात कही —“अवनी… अब खेल तुम्हारे इंकार से नहीं रुकेगा।”
उसकी बात सुनते अवनी कैफ़े से भागकर बाहर आई — उसका दम घुटने लगा था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन उसका था, कौन दुश्मन। क्या वाकई ये कोई मज़ाक था या उसकी ज़िंदगी एक नई दलदल में धकेली जा रही थी?रास्ते में, उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो।
उसने मुड़कर देखा लेकिन सड़क खाली थी।
पर वो एहसास जा नहीं रहा था।
उसी वक्त, विराट अपने अंधेरे कमरे में बैठा था।
उसके सामने आर्यन खड़ा था — सिर झुकाए।“उसने मना कर दिया,” आर्यन ने कहा।
“स्वाभाविक था,” विराट बोला। “लेकिन अब… हम सच्चा चेहरा दिखाएँगे।”
उसने एक बटन दबाया।एक नई स्कीम तैयार थी अवनी की ज़िंदगी को घेरने की।
“अब वक्त है… शिकंजा कसने का।”
शाम की ठंडी हवा ने अवनी को भीड़भाड़ वाले रास्ते में भी अकेला कर दिया था। उसके अंदर हलचल मची थी — आर्यन की बातें, उसका झूठ, विराट का नाम… ये सब एक बुरा सपना लग रहा था।
वो चलते-चलते अचानक रुक गई।
एकदम ठिठककर, जैसे दिल की धड़कनें उसे कुछ कह रही हों।
फिर पलटी और एकदम सीधी सड़क पार कर उस मंदिर की ओर बढ़ी, जहाँ वो अक्सर अपनी माँ के लिए मन्नत मांगने जाती थी।
छोटा सा मंदिर था — शांत, कोनों में दीए जल रहे थे, और पंडित जी माला फेर रहे थे।
अवनी ने आँखें बंद कीं और बस एक सवाल मन में दोहराया —“मेरे साथ ये सब क्यों हो रहा है?”
उसी और विराट अपने ऑफिस की बालकनी में खड़ा सिगार जला रहा था।
नीचे पूरी मुंबई उसके पैरों में थी — वो ऊँचाई पर खड़ा था, लेकिन सोच जमीन से भी नीचे उतर चुकी थी।
पीछे मॉन्टी आकर खड़ा हुआ। उसने विराट को देखते हुए कहा “सर, उसका फोन ट्रैक किया है हमने। वो अब ज्यादा समय कॉलेज और घर के बीच ही गुज़ार रही है।”
“डर गई है,” विराट ने सिगार का कश लेते हुए कहा।“अब वो खुद को कैद करेगी… और मैं उस कैद में दरार डालूंगा।”
मॉन्टी थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला–" ",क्या अगला कदम शुरू करें?”
विराट ने सिर हिलाया और बोला“अब अवनी को ये एहसास करवाना है कि इस शहर में उसकी परछाईं भी सिर्फ मेरी मरज़ी से ज़िंदा है।”
अगली सुबह
अवनी जब कॉलेज पहुंची, तो माहौल कुछ अजीब था।क्लास में उसकी सीट पर पहले से कोई बैठा था। उसे उसे घूर के देखा और उसके पास आकर उसने हल्की सी आवाज़ में कहा “Excuse me… ये मेरी सीट है,”
पर वो लड़का मुड़ा ही नहीं।सुना नहीं क्या?” अवनी ने वापस से ज़रा तेज़ कहा।
तभी प्रोफेसर ने क्लास में प्रवेश किया और बोले, “अवनी, आज आप दूसरी सीट ले लें। नए ट्रांसफर स्टूडेंट्स आए हैं, और रूम सेटिंग बदली है।”
अवनी थोड़ी चौंकी, लेकिन चुपचाप जाकर पीछे बैठ गई।
आर्यन पीछे ही बैठा था। उसकी नज़रें लगातार अवनी पर थीं, पर उसने कुछ नहीं कहा।
---to be continue
तभी प्रोफेसर ने क्लास में प्रवेश किया और बोले, “अवनी, आज आप दूसरी सीट ले लें। नए ट्रांसफर स्टूडेंट्स आए हैं, और रूम सेटिंग बदली है।”
अवनी थोड़ी चौंकी, लेकिन चुपचाप जाकर पीछे बैठ गई।
आर्यन पीछे ही बैठा था। उसकी नज़रें लगातार अवनी पर थीं, पर उसने कुछ नहीं कहा।
ब्रेक के दौरान अवनी कैंटीन गई तो उसका कार्ड वर्क नहीं कर रहा था।
काउंटर बॉय ने कहा, “मैम, कार्ड ब्लॉक हो गया है। सिस्टम में ‘invalid’ शो कर रहा है।”
“पर ये तो कॉलेज कार्ड है…”अवनी ने उसे देखकर कार्ड को देखते हुए कहा!""
“आप अकाउंट्स में जाकर पूछिए, हम कुछ नहीं कर सकते।” काउंटर बॉय ने कहा और अपना काम करने लगा!" "
अवनी को अब बेचैनी होने लगी थी।कॉलेज के हर कोने में जैसे कोई अदृश्य दीवार खड़ी हो गई थी न कोई उसकी सुन रहा था, न समझ रहा था। और उसके साथ अजीब अजीब ही हो रहा था सब कुछ
उसी वक्त एक चिट्ठी उसकी सीट पर रखी मिली। उसने इधर उधर देखा और उस चिठ्ठी को खोलकर पढ़ा तो उसने लिखा था
“जब पूरी दुनिया अजनबी लगे, तब सिर्फ एक हाथ होता है जो सच में अपना होता है…
– वी”
अवनी ने उस चिट्ठी को फाड़कर वहीं फेंक दी। आज उसका दिमाग खराब हो चुका था और वही हॉल पूरा दिन रहा जब शाम को जब वो घर लौटी, तो दरवाज़ा खुला हुआ था।
“माँ?” उसने दरवाजा खुला देख अपनी मां को आवाज दी!""
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं था! और ये उसके लिए और बड़ी थी वो अंदर गई हर चीज़ अपनी जगह पर थी, लेकिन माँ गायब थीं उसकी नजर अचानक ही टेबल पर गई झा एक लिफाफा रखा था। उसने आगे बढ़कर उस लिफाफे को उठकर खोला और पढ़ा तो उसमें लिखा था" "
“माँ को उनकी तबीयत के लिए एक अच्छे क्लिनिक में भेजा गया है। चिंता न करें।
अगर मिलना है तो इस पते पर आएं —
White Orchid Building, 9th Floor, 7:30 PM – अकेली।”
अवनी के पैरों से ज़मीन खिसक गई उसकी आंखो से आंसू लुढ़क गए थे वो वही जमीन ही बैठ गई
तो वही उसके घर के कुछ दूरी पर मॉन्टी खड़ा था जो उसके हर मोमेंट को देख रहा था,
अवनी जल्दी से घर से निकली और वह से चली गई मोंटी उसे जाते हुए देख रहा था लेकिन अवनी ने उसे नहीं देखा था!" "
---
White Orchid बिल्डिंग एक प्राइवेट टावर था — कांच की दीवारों वाला, ऊंचा और चुप।
अवनी ने उस बड़ी सी बिल्डिंग को देखा और चुप चाप उपर चली गई उसने 9वीं मंज़िल पर पहुँचते ही देखा — पूरा फ्लोर खाली था। सिवाय उस एक गेट के, जो सामने था।गेट पर कोई गार्ड नहीं, कोई आवाज़ नहीं।वो डरते हुए अंदर गई।वो एक एक चीज को गोर से देख रही थी एक लंबा कॉरिडोर… और फिर एक बड़ा सा हाल, जहाँ विराट खड़ा था।
सूट में, शेर जैसी चाल और आंखों में वही गहराई… वही आग।
उसको देखते ही एक पल तो अवनी ठिठकी लेकिन वापस बोली“तुम…?”
“मैं, जिसका नाम अब तक सिर्फ तुमने दूसरों की जुबां से सुना था… अब खुद सामने खड़ा है।”विराट अवनी को देखते हुए बोला
“मेरी माँ कहाँ है?” अवनी ने विराट से सीधा सवाल किया!" "
“वो सुरक्षित हैं। और रहेंगी… अगर तुम समझदारी दिखाओ।” विराट ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा
“क्या मतलब?”अवनी ने तुरंत कहा!" तभी विराट ने पास आकर बोला,“तुम्हारे चारों तरफ जो हो रहा है — तुम्हारा कार्ड ब्लॉक होना, क्लास शिफ्ट होना, अकेलापन बढ़ना — ये सब इत्तेफाक नहीं था। मैं सिर्फ तुम्हारे इर्द-गिर्द से दुनिया हटाना चाहता हूँ… ताकि तुम्हें दिख सके कि सिर्फ मैं हूं जो तुम्हारे करीब खड़ा है।”
“तुम बीमार हो लगता है ,” अवनी विराट को देखते हुए बोली।
“शायद,” विराट उसकी बात पर मुस्कराया।
“लेकिन जो जुनून मेरे पास है, वो तुम्हें दुनिया में कहीं और नहीं मिलेगा।”इतना बोल वो चुप हो गया!" "
“और तुम क्या सोचते हो? मैं डर जाऊँगी?” अवनी ने उसकी आंखो में देखते हुए कहा!" "
“नहीं,” वो गंभीर हो गया। मुझे डरने वाली लड़कियाँ पसंद नहीं। मुझे लड़ने वाली पसंद हैं — और तुम्हारी लड़ाई मुझे और पास खींचती है।”
अवनी उसकी बात सुनकर पलटी और जाने लगी कि तभी विराट की आवाज़ गूंजी —“तुम जा सकती हो, पर तुम्हारी माँ यहीं रहेंगी — जब तक तुम मेरे साथ दो दिन अकेले नहीं बिताओगी।”
अवनी का दिल धड़कने लगा उसने विराट को कुछ देर देखा और कहा–" ये मेरी मजबूरी है?”
“नहीं,” विराट बोला।“ये विकल्प है — अपनी माँ के लिए। सोच लो।”
अवनी का दिमाग सुन्न हो चुका था। विराट के उस एक वाक्य ने जैसे उसकी पूरी दुनिया को जकड़ लिया था।“दो दिन मेरे साथ रहो… फिर माँ तुम्हारी होगी।”
वो चाहती थी कि वो चिल्लाए, उसे थप्पड़ मारे, दरवाज़ा तोड़कर भाग जाए।पर दूसरी ओर, उसकी माँ की सांसें चल रही थीं — और उन्हें चलाए रखने के लिए उसे ये सौदा करना ही था।
वो चुपचाप कुछ सेकंड विराट की आंखों में देखती रही जैसे वहाँ से कोई रास्ता तलाश रही हो।पर ऐसा कुछ नहीं होना था वह फिर बोली, “ठीक है… पर ये सिर्फ दो दिन होंगे। उसके बाद मैं और मेरी माँ—”उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विराट बोला
“—पूरी आज़ादी से जा सकती हो,” विराट ने बात पूरी की, “और मैं वादा करता हूँ, तुम्हें फिर कभी नहीं छूऊँगा… अगर तुम चाहोगी तो ।”
अवनी की आंखें भर आईं, लेकिन वो आंसू निगल गई। उसने विराट को देखते हुए कहा–" लेकिन "मुझे अभी माँ से मिलना है।”
विराट ने मॉन्टी को फोन किया।
“उसे उसकी माँ से मिलवा दो, लेकिन सिर्फ 10 मिनट। और याद रहे — डॉक्टर और सिक्योरिटी दोनों आसपास रहें।”
अवनी ने विराट की ओर देखा — अब वो उसे इंसान नहीं, सौदेबाज़ लग रहा था। मगर उसकी मजबूरी इस सौदे को सच बना रही थी।
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लगभग 30 मिनट बाद – एक प्राइवेट क्लिनिक, जुहू अवनी उस हॉस्पिटल में अंदर भागती हुई माँ के पास पहुँची।
माँ बेहोश सी लेटी थीं, सलाइनों से जुड़ीं, ऑक्सीजन मास्क पहने वो सब देखते ही अवनी का कलेजा कांप गया। उसने एक एक कदम बढ़ाए और वही बैठते हुए बोली" "उसने माँ का हाथ पकड़कर माथे से लगाया —“मैं यहीं हूँ माँ… कुछ नहीं होने दूंगी।”
अवनी को देखते ही डॉक्टर ने पास आकर कहा,
“थोड़ा ब्लड प्रेशर डाउन हुआ है, लेकिन खतरे से बाहर हैं।”
मॉन्टी दरवाज़े पर खड़ा था, निगाहें झुकाए।
10 मिनट पूरे होते ही एक नर्स ने अंदर आकर कहा,“मैम… समय पूरा हो गया।”
माँ बेहोश सी लेटी थीं, सलाइनों से जुड़ीं, ऑक्सीजन मास्क पहने वो सब देखते ही अवनी का कलेजा कांप गया। उसने एक एक कदम बढ़ाए और वही बैठते हुए बोली" "उसने माँ का हाथ पकड़कर माथे से लगाया —“मैं यहीं हूँ माँ… कुछ नहीं होने दूंगी।”
अवनी को देखते ही डॉक्टर ने पास आकर कहा,
“थोड़ा ब्लड प्रेशर डाउन हुआ है, लेकिन खतरे से बाहर हैं।”
मॉन्टी दरवाज़े पर खड़ा था, निगाहें झुकाए।
10 मिनट पूरे होते ही एक नर्स ने अंदर आकर कहा,“मैम… समय पूरा हो गया।”
अवनी ने एक बार माँ की ओर देखा… फिर खुद को कड़ा किया, और उठकर बाहर आ गई।
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उस रात – विराट का फार्महाउस,
एक बड़ी सी काली गाड़ी जंगलों के बीच बने एक आलीशान विला के सामने आकर रुकी।
विराट पहले से वहाँ था — व्हाइट शर्ट में, स्लीव्स मोड़ी हुईं, और एक ग्लास में वाइन लिए खिड़की के पास खड़ा।
गाड़ी से उतरकर अवनी जैसे ही अंदर आई, उसे एक अजीब सन्नाटा महसूस हुआ।
ना कोई नौकर, ना शोर — बस एक खामोश, पर हर चीज़ का हिसाब रखने वाला माहौल।
“तुम्हारा कमरा ऊपर है,“तुम्हें जो चाहिए, सब मिलेगा — बस भागने की कोशिश मत करना। जंगल बहुत गहरा है, और मैं… उससे भी ज़्यादा।”विराट ने कहा
अवनी ने कोई जवाब नहीं दिया। वो बस सीढ़ियों की ओर बढ़ी।और कमरे में आ गई, कमरा बेहद खूबसूरत था — खुली खिड़की से पहाड़ों की ठंडी हवा आ रही थी। बेड पर रखे गए कपड़ों से लेकर अलमारी तक, सब उसकी पसंद के थे। पर ये सब और भी डरावना लग रहा था उसे क्योंकि इसका मतलब था, वो उसे पहले से बहुत जानता था।
अवनी बाथरूम में गई, दरवाज़ा बंद किया… और फूट-फूटकर रो पड़ी।“ये मैं कहाँ फँस गई… और ये इंसान मुझसे क्या चाहता है?” कुछ ही देर बाद वो रूम में आज और बेड पर लेट गई!" "
अगली सुबह –
अवनी की आंख खुली तो खिड़की से धूप अंदर आ रही थी।सने घड़ी देखी… जिसमें सुबह के सात बज रहे थे!" "और तभी दरवाज़ा खटका।
एक नौकरानी आई, सिर झुकाए बोली —
“साहब ने कहा है, आप तैयार होकर नीचे आएं… ब्रेकफास्ट तैयार है।”
अवनी ने कुछ नहीं कहा।वो तैयार हुई, लेकिन सिंपल कपड़े पहने — कोई मेकअप नहीं, कोई मुस्कान नहीं।
नीचे हॉल में बिल्कुल शांति थी और ये शांति जैसे उसे खाने को दौड़ रही थी, उसी एक साइड एक लंबी डाइनिंग टेबल थी एक ओर विराट बैठा था, सामने खाली कुर्सी।
“गुड मॉर्निंग,” विराट ने उससे कहा।
“ज़रूरत नहीं है,” अवनी ने सीधा जवाब दिया और वो बैठी और चुपचाप खाना लेने लगी।
“क्या तुम हमेशा इतनी खामोश होती हो, या सिर्फ मुझसे?” विराट ने पूछा।
“जिसने माँ को अपने फायदे के लिए बंधक बनाया हो, उससे बातें करने का मन नहीं करता।” अवनी ने बेरुखी से जवाब दिया!" "
विराट ने वाइन का सिप लिया।“अगर मेरी जगह कोई और होता, तो तुम आज भी शायद किसी गली में सिसक रही होतीं। मैंने तुम्हें उस दुनिया से निकाला है अब तुम इस दुनिया का हिस्सा बनोगी।” विराट ने उसकी आंखो में देखते हुए कहा!" "
“ये काली दुनिया तुम्हारी है, मेरी नहीं।” अवनी ने उसे जवाब दिया
“तुम चाहो तो अपनी बना सकती हो,” विराट ने कहा, “या फिर दो दिन बाद उसी पुराने डर के साथ लौट सकती हो।”
अवनी ने चाकू उठाया और टेबल पर रखे सेब को काटने लगी।
विराट उसकी आँखों में देख रहा था — उसकी जिद, उसका गुस्सा, उसका डर… सब कुछ।
“तुम्हारे अंदर आग है,“और मुझे आग पसंद है।” विराट ने मुस्कुराते हुए कहा!"
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शाम का समय फार्महाउस का गार्डन
अवनी अकेले बैठी थी, एक बेंच पर। सामने पेड़, पक्षियों की आवाज़ और शांत नीला आसमान विराट दूर से ही उसे देख रहा था।वो उसकी दूरी और नज़दीकी दोनों को समझता था — उसे पता था, ये लड़की अब उसके दिल में घर कर चुकी है। लेकिन उसके पास इसे पाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था।
अवनी ने किताब खोली लेकिन पढ़ नहीं पाई।वो उठी और विराट के पास जाकर बोली —“तुम्हें मुझसे क्या चाहिए, विराट?”
वो एकदम शांत था। उसने अवनी को देखा और कहा“सच बोलूं?”
“हाँ।” अवनी ने जवाब दिया
“मुझे तुम्हारी सच्चाई चाहिए… तुम्हारा गुस्सा, तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारा डर, तुम्हारी जिद — सब कुछ। मैं तुम्हें पूरी तरह जानना चाहता हूँ विराट ने सामने देखते हुए कहा!" "
“और अगर मैं ये सब नहीं दूँ तो ?” उसने उसकी और देखकर जवाब दिया!""
“तो तुम्हारे जाने के बाद भी मैं तुम्हें कभी चैन से जीने नहीं दूँगा।” विराट के कोल्ड एक्सप्रेशन थे
अवनी की साँस अटक गई उसने सलाइवा गटकते हुए कहा" "तुम… पागल हो।”
“हूँ,” तुम्हारे लिए।” इतना बोल विराट मुस्कराया, उसके अवनी तुरंत वाह से चली गई!" "
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रात का समय फार्महाउस की बालकनी
अवनी अकेली खड़ी थी, और उसके अंदर एक तूफान चल रहा था।विराट की बातें, उसकी नज़रों की गहराई, उसकी ठंडी पर ईमानदार बातें…क्या वो वाकई सिर्फ जबरदस्ती चाहता था?या उसके पीछे कोई ऐसा दर्द था, जिसे वो किसी और तरीके से दिखा ही नहीं सकता?अवनी की आंखों से एक आँसू टपका।“ये दो दिन मेरे लिए नरक बनेंगे… या शायद कोई नई शुरुआत?” अवनी के दिमाग में बस यही सब चल रहा था!
रात के दो बज चुके थे। पूरा फार्महाउस गहरी नींद में डूबा था — लेकिन विराट की आंखों में नींद नहीं थी।
वो बालकनी में बैठा था, हाथ में सिगार और सामने आसमान में फैला अंधेरा। नीचे गार्डन में हल्की लाइट्स की चमक — और वहीं बाईं ओर अवनी का कमरा। खिड़की पर हल्का पर्दा हिलता हुआ दिखाई दे रहा था।वो जानता था वो भी सोई नहीं है। बस वो सामने देखते हुए न जाने क्या क्या सोच रहा था!"
अवनी का कमरा उसी समय
अवनी बिस्तर पर लेटी थी, पर करवटें बदलते हुए।
कभी विराट की वो बातें याद आतीं —“मैं तुम्हें पूरी तरह जानना चाहता हूँ।”
कभी उसका वो चेहरा — जो सख़्त भी था, मगर जाने क्यों अब उतना डरावना नहीं लगता था। विराट ने कभी उसे जबरदस्ती छुआ नहीं, कभी कोई सीमा पार नहीं की। वो बस… पास रहता था। निगाहों से, मौजूदगी से।"
अवनी का कमरा उसी समय
अवनी बिस्तर पर लेटी थी, पर करवटें बदलते हुए।
कभी विराट की वो बातें याद आतीं —“मैं तुम्हें पूरी तरह जानना चाहता हूँ।”
कभी उसका वो चेहरा — जो सख़्त भी था, मगर जाने क्यों अब उतना डरावना नहीं लगता था। विराट ने कभी उसे जबरदस्ती छुआ नहीं, कभी कोई सीमा पार नहीं की। वो बस… पास रहता था। निगाहों से, मौजूदगी से।
“ये खतरनाक है… पर कहीं ये सच भी तो नहीं?”उसने खुद को झटका दिया।“नहीं, ये सब बस दिखावा है। कोई इंसान इतने मासूम लहजे में इतनी खतरनाक बात नहीं कर सकता।”
ये सब सोचते हुए उसकी कब आंख लगी उसे भी पता नहीं लगा!" "
अगली सुबह – 10:00 AM
अवनी देर से उठी थी।आज नौकरानी ने नहीं जगाया। वो उठी और इधर उधर देख रही थी कि अचानक ही उसकी नजर दरवाजे पर गई जहां एक छोटा-सा नोट पड़ा था। उसने उसे उठाया और देखा तो उसमें लिखा था! “Good morning. तुम्हारी नींद ज़रूरी थी। जब तैयार हो जाओ तो गार्डन में मिलो — विराट।”
अवनी ने कागज़ को घूरा और मुस्करा दी, अनजाने में और खुद से बोली–" “ये इंसान हर बार मुझे उलझा क्यों देता है?”
वो सिंपल सफ़ेद कुर्ता पहनकर नीचे आई। उसने गेट खोला और वो गार्डन में पहुँची — विराट झूले पर बैठा था, एक किताब पढ़ रहा था।
“लेट हो गई?” विराट ने बिना देखे पूछा।
“मैं कोई तुम्हारी Employee नहीं हूँ,” अवनी ने उसे ताना मारा।
“अभी नहीं… पर हो सकती हो,” विराट अब मुस्कराकर उसकी ओर देख रहा था।
अवनी उसकी मुस्कान से थोड़ा चौंकी वो असली लग रही थी, पहली बार उसे कुछ देर की खामोशी के बाद विराट खड़ा हुआ और उसका हाथ पकड़ लिया दोनों गार्डन में साथ टहल रहे थे
अवनी ने काफी देर विराट को देखा लेकिन आखिर में उसने चुप्पी तोड़ी और बोली —“तुम्हें सच में क्या लगता है? कि मैं इन दो दिनों में तुम्हें समझ जाऊँगी, या तुम मुझे?”
“मैं चाहता हूँ कि तुम खुद को समझो… और मुझे भी।” विराट ने नीचे देखते हुए कहा!""
“इतना आसान होता तो लोग इतने साल साथ ना बिताते।” अवनी ने कहा!"
“कुछ रिश्ते… वक्त नहीं, वक़्त की कमी से बनते हैं।”विराट की आवाज़ में एक अलग सी गहराई थी।
उसकी ऐसी बात सुनकर अवनी चुप हो गई।
दोपहर – विला का आर्ट रूम
विराट ने एक दरवाज़ा खोला और अवनी से बोला—“तुम्हें पेंटिंग पसंद है?”
अवनी ने आश्चर्य से पूछा –“तुम्हारे पास आर्ट रूम भी है?”
“मेरे पास सब है… सिवाय एक सुकून के।” विराट ने अंदर आते हुए कहा
कमरे में रंग-बिरंगे कैनवास, ब्रश, स्केचिंग बुक्स, और एक लंबी खिड़की थी, जहाँ से जंगल की हरियाली दिख रही थी।
“तुम चाहो तो कुछ बना सकती हो,” विराट ने कहा।
अवनी ने झिझकते हुए एक कैनवास उठाया —वो लंबे समय बाद ब्रश हाथ में ले रही थी।
वो रंग भरती रही एक लड़की की आँखें बना रही थी। गहरी, उलझी हुई, उदास आँखें।
तभी विराट उसके पास आकर खड़ा हो गया और बोला–“ये… तुम हो?”
अवनी चौंकी,और फिर बोली —“ये वो है… जो खुद को हर दिन समझाने की कोशिश करती है कि वो कमज़ोर नहीं है।”
विराट ने पहली बार उसे ऐसे देखा — जैसे वो किसी पहेली को नहीं, एक इंसान को देख रहा हो।
वो बोला, “ये पेंटिंग मैं रखूंगा… जब तुम जाओगी तब भी।”
“क्यों?” अवनी ने पूछा!" "
“ताकि मैं भूल न सकूं… कि एक बार किसी ने मेरी दुनिया को रंगों से भरा था।” विराट ने अवनी और उस पेंटिग दोनो को देखते हुए कहा!""
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शाम का समय था बारिश शुरू हो चुकी थी अवनी बालकनी में खड़ी थी ठंडी हवा, बूंदें, और हल्का संगीत। वो अपनी सोच के बस उन गिरती हुई बूंदों को देख रही थी तभी पीछे से विराट आ गया, दो कप कॉफी लिए।
“कॉफी?” उसने कप आगे करते हुए अवनी से कहा!""
“थैंक्स,” अवनी ने हाथ आगे बढ़ाया कि उसका हाथ विराट के हाथ से छू गया एक हल्की सिहरन दोनों के बीच दौड़ी।अवनी ने कॉफी ली, लेकिन उसकी नजरें झुकी रहीं। कुछ सेकंड तक दोनों चुप थे और सिर्फ बारिश की आवाज़ थी!" "
इस चुप्पी को तोड़ते हुए फिर विराट बोला —
“तुम्हारे पास जबरदस्ती आने का हक नहीं है मुझे… ये मैं जानता हूँ। लेकिन फिर भी, अगर मैं कहूँ कि मैं तुम्हारे साथ हर सुबह ऐसे ही जीना चाहता हूँ… तो क्या ये गुनाह होगा?”
अवनी ने उसकी ओर देखा और पहली बार उसकी आँखों में डर नहीं, उलझन थी। उसने विराट की आंखो में देखते हुए कहा“तुम मुझसे कुछ माँगते नहीं हो, लेकिन मुझे खोने की बात करते हो।”
“क्योंकि तुम्हें पाना मेरी ख्वाहिश है… ज़रूरत नहीं।” विराट ने कॉफी पीते हुए कहा!"
अवनी की आंखों में नमी थी। वो कुछ कहना चाहती थी, लेकिन शब्द नहीं मिले।वो बस उठी, और कमरे में चली गई।
कुछ समय विराट वही रहा और फिर खुद भी वाह से चला गया!""
रात का समय विराट का कमरा वो अकेला खड़ा था, खिड़की पर।आज पहली बार उसे लग रहा था कि अवनी सिर्फ उसकी बंदी नहीं, उसकी धड़कन बन चुकी है। लेकिन वो ये भी जानता था —"धड़कनों को कैद नहीं किया जा सकता।"
बारिश अब भी हो रही थी, लेकिन अब वो ज़्यादा सर्द और गहरी लग रही थी। विला की खामोशी में हर बूंद की आवाज़ गूंजती थी जैसे सब कुछ ठहर सा गया हो।
अवनी खिड़की के पास खड़ी थी। बाहर अंधेरा, मगर उसके अंदर एक अजीब सी रोशनी जल रही थी जो डर और उलझन के साथ-साथ किसी और एहसास को भी जन्म दे रही थी।वो नहीं जानती थी कि ये जो धड़कनें बढ़ रही हैं, क्या ये डर है… या कुछ और।
विराट के कहे शब्द अब भी उसके कानों में गूंज रहे थे —“तुम्हें पाना मेरी ख्वाहिश है… ज़रूरत नहीं।”
रात के 12:15 बज रहे थे अवनी अब भी जाग रही थी। उसने पेंटिंग के रंग और ब्रश फिर से हाथ में लिए। लेकिन अब हाथ कांप रहे थे दिमाग और दिल लड़ रहे थे।तभी दरवाज़े पर धीमी सी दस्तक हुई।
“अवनी?”विराट की आवाज़ थी अवनी उसकी आवाज सुनकर कुछ देर चुप रही और फिर दरवाज़ा खोला" "
विराट की आंखों में वही गहराई थी पर आज उसमें कुछ और भी था। एक बेचैनी, एक सच्चाई।
“क्या मैं कुछ देर अंदर आ सकता हूँ?” विराट ने सामने खड़ी अवनी को देखकर पूछा!" "
“अवनी?”विराट की आवाज़ थी अवनी उसकी आवाज सुनकर कुछ देर चुप रही और फिर दरवाज़ा खोला" "
विराट की आंखों में वही गहराई थी पर आज उसमें कुछ और भी था। एक बेचैनी, एक सच्चाई।
“क्या मैं कुछ देर अंदर आ सकता हूँ?” विराट ने सामने खड़ी अवनी को देखकर पूछा!"
अवनी ने धीमे से सिर हिलाया। तो विराट अंदर आया, और दोनों कुछ सेकंड खामोश रहे।
फिर विराट ने टेबल पर रखी अधूरी पेंटिंग की ओर इशारा किया और बोला–" "“ये तुमने बनाई हैं ?”
“हाँ… आज अधूरी रह गई,” अवनी ने धीरे से कहा।
“जैसे तुम्हारा दिल,” उसने आंखों में देखते हुए कहा।
वो चौंक गई, मगर पलटकर कुछ ना कहा। वो बस बैठ गई, और विराट भी उसके सामने बैठ गया — कुछ इंच की दूरी पर।
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कमरे में सिर्फ हल्की नीली लाइट थी — और उनकी सांसें
विराट ने हाथ बढ़ाया — बहुत धीरे से — और अवनी की हथेली पर रखा।
उसने तुरंत हाथ नहीं हटाया। बस उसकी ओर देखा।
“मैं हर बार तुम्हारे करीब आने से डरता हूँ… सिर्फ इसलिए कि कहीं मैं तुम्हें खुद से दूर न कर दूं।”
“और मैं हर बार तुम्हारे करीब आने से डरती हूँ… कि कहीं मैं खुद को खो न दूं।”
विराट थोड़ा और पास आया — अब दोनों के बीच सिर्फ एक सांस की दूरी थी।
“अगर हम दोनों डरते रहे… तो जो होना चाहिए, वो कभी होगा ही नहीं।”
अवनी की आंखें अब नम हो गई थीं।
“क्या हो अगर मैं… तुम्हारे करीब आऊँ?” उसने धीरे से पूछा।
विराट ने कोई जवाब नहीं दिया — उसने बस बहुत धीरे से अवनी के बालों को उसके चेहरे से हटाया।
उनकी आंखें एक-दूसरे में डूबी थीं — जैसे सब कुछ थम गया हो।
विराट ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया — धीरे, बेहद नर्मी से।
अवनी की पलकों में हल्की कंपकंपी थी — लेकिन उसने विरोध नहीं किया।
और तब… विराट ने उसके माथे पर एक धीमा, लंबा चुम्बन रखा।
ना होंठों पर, ना गर्दन पर — सिर्फ माथे पर।
एक इज़्ज़त भरा, सच्चा एहसास।
अवनी की आंखों से एक आंसू बह गया — मगर इस बार वो डर का नहीं था।
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कुछ देर बाद — कमरे में हल्की खामोशी
अवनी अब विराट के कंधे से लगकर बैठी थी — उसकी सांसें थोड़ी तेज़ थीं, लेकिन वो सुकून में थी।
“मैं नहीं जानती ये सब सही है या गलत… लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि मैं किसी के साथ कमज़ोर हो सकती हूँ, बिना टूटे।”
विराट ने उसका हाथ थामा —
“कमज़ोर होना गुनाह नहीं है, अवनी… खासकर जब कोई तुम्हें टूटने नहीं देगा।”
वो उसकी ओर देखती रही — और पहली बार, उसे विराट की आँखों में अपना अक्स दिखा।
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रात गहराने लगी थी — लेकिन इस बार, नींद करीब थी।
अवनी ने धीरे से कहा,
“आज… यहीं रुको।”
विराट कुछ नहीं बोला। वो बस उसकी आंखों में देखता रहा।
वो दोनों एक ही बेड पर लेटे — एक-दूसरे की ओर मुंह किए हुए।
कोई जल्दबाज़ी नहीं… कोई सीमा पार नहीं… बस एक एहसास था, जो दोनों के बीच साँस ले रहा था।
विराट ने हल्के से उसके सिर पर हाथ रखा —
“Good night, fighter.”
अवनी ने आंखें बंद करते हुए कहा —
“Good night… विरा—”
वो नाम अधूरा रह गया।
लेकिन जो अधूरा था… वही सबसे खूबसूरत था।
सुबह की पहली किरण खिड़की से अंदर आई तो वो सीधे अवनी के चेहरे पर पड़ी। उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन चेहरा सुकून में था — वो पहली बार बेफिक्र सोई थी।बिस्तर पर विराट नहीं था।
वो धीरे से उठी, एक हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर थी… फिर जैसे अचानक कोई एहसास उसे जगा गया। उसने खुद से ही कहा “मैं ये क्या कर रही हूँ?”
वो उठकर आईने के सामने खड़ी हो गई।"कल रात वो मेरे इतने करीब था, और मैंने कुछ नहीं कहा… कुछ महसूस किया। पर क्यों?"
उसने अपने होंठों को छूते हुए खुद से सवाल किया "क्या ये प्यार है? या कैद में पनपता कोई भ्रम?"
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किचन – सुबह 9:15
विराट किचन में अकेला खड़ा था, कॉफी बना रहा था।
वो शांत दिख रहा था, लेकिन उसके मन में एक हलचल थी।
“क्या मैं उसकी दुनिया में जगह बना रहा हूँ या जबरदस्ती किसी खाली कोने में बैठ गया हूँ?”
वो ये नहीं जानता था कि अवनी उसकी पीठ के पीछे खड़ी थी।
“इतनी फिक्र है मेरी?”
विराट ने मुड़कर देखा —
“हर दिन बढ़ती जा रही है।”
“तुम्हें डर नहीं लगता?”
“तुमसे? बहुत लगता है।”
उसने मुस्कुराकर कहा — लेकिन उसके लहजे में सच्चाई थी।
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नाश्ते की टेबल पर – कुछ मिनट बाद
अवनी कुछ खा नहीं रही थी। वो बस चुपचाप विराट को देख रही थी — वो पहले जैसा खतरनाक नहीं लग रहा था, लेकिन अब वो और भी रहस्यमयी लगता था।
“कल रात… तुम्हें मेरे पास रहना क्यों ठीक लगा?” उसने अचानक पूछा।
विराट ने उसकी आँखों में देखा —
“क्योंकि तुम्हारे साथ मैं खुद को भूलना चाहता हूँ, ना कि तुम्हें हासिल करना।”
अवनी की उंगलियाँ कांप उठीं —
उसका दिल जैसे खुद से लड़ रहा था।
"कहीं मैं सच में उसे चाहने तो नहीं लगी?"
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दोपहर – लाइब्रेरी रूम
अवनी अकेली बैठी किताब पढ़ने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हर पन्ना उसे विराट की बातों की ओर ले जा रहा था।
“कमज़ोर होना गुनाह नहीं है…”
“मैं तुम्हें खोने से डरता हूँ…”
वो किताब बंद कर देती है।
उसी वक्त विराट अंदर आता है।
“तुम्हारे मन में बहुत कुछ चल रहा है,” उसने सीधे कहा।
“हाँ… और तुम्हारा नाम हर उस ख़याल में है,” अवनी ने नज़रे नहीं मिलाईं।
“तो लड़ क्यों रही हो इन ख़यालों से?” विराट ने उसको देखते हुए कहा
“क्योंकि मैंने कभी सोचा नहीं था… कि मैं किसी ऐसे इंसान के करीब जा सकती हूँ, जिसने मुझे कैद किया।”
विराट उसके पास आया और धीरे से वापस बोला“मैंने तुम्हें कभी कैद नहीं किया… सिर्फ तुम्हें उस दुनिया से बचाया है, जो तुम्हारे सच को कुचल देती।”
“और क्या तुम खुद सच हो, विराट?” अवनी ने आंखों में आँखें डालकर पूछा।
“नहीं… मैं एक अधूरा झूठ हूँ। लेकिन शायद तुम मेरी एकमात्र सच्चाई हो।”
“और क्या तुम खुद सच हो, विराट?” अवनी ने आंखों में आँखें डालकर पूछा।
“नहीं… मैं एक अधूरा झूठ हूँ। लेकिन शायद तुम मेरी एकमात्र सच्चाई हो।”
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शाम का समय सूरज डूब रहा था। दोनों एक साथ छत पर बैठे थे खामोशी अब बोझ नहीं, सुकून बन गई थी।
विराट ने धीरे से उसका हाथ थामा इस बार बिना इजाजत माँगे।अवनी ने विरोध नहीं किया। उसका सिर उसके कंधे पर टिक गया।
“क्या हम वैसे नहीं हो सकते जैसे और लोग होते हैं?” उसने धीमे से पूछा।
“नहीं,” विराट ने फुसफुसाते हुए कहा, “क्योंकि हम जैसे लोग… प्यार में नहीं, आग में जलते हैं।”
अवनी मुस्करा दी एक छोटी, टूटी-सी हँसी।
“तब तो कम से कम एक बार उस आग को महसूस कर लेना चाहिए…” अवनी ने कहा!"
विराट चौंका — उसने उसकी ओर देखा, और उसके चेहरे पर वही उलझी, मगर सच्ची आँखें थीं।
“क्या तुम सच में…?” विराट ने पूछा।
अवनी ने कोई जवाब नहीं दिया बस उसकी शर्ट की कॉलर थाम ली… धीरे से उसे करीब खींचा।
उनके बीच की हवा भारी हो गई आँखें जुड़ी थीं, लब कांप रहे थे।विराट ने उसकी पलकों पर होंठ रखे फिर गालों पर एक नर्म, खामोश स्पर्श।अवनी ने आंखें बंद कर लीं अब न डर था, न शर्म बस एहसास था।और उन कुछ पल की नज़दीकी में…दोनों की दुनिया थम सी गई थी।
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रात का समय
अवनी ने पहली बार खुद अपने मन में कबूल किया
“हाँ… मैं उसे चाहने लगी हूँ। लेकिन ये चाहत एक सवाल बन गई है।”“क्या वो भी वैसा ही महसूस करता है?”
वो आईने में खुद को देखती और खुद से बोलती और अब उसकी ये आँखें खुद उससे कह रही थी “तुम बदल रही हो, अवनी। और शायद यही विराट की सबसे बड़ी जीत है।”
विराट की बाहों में बीती पिछली रात अब भी अवनी की धड़कनों में सहेजी हुई थी। उसे आज कुछ भी गलत नहीं लगा था न उसका करीब आना, न उसके होठों का स्पर्श, न वो सुकून जो किसी की बांहों में था।लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी।
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सुबह विला का गार्डनअवनी नंगे पांव बगीचे में चल रही थी। घास पर ओस की बूँदें अब भी चिपकी थीं, और उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी जैसे पहली बार उसने किसी को दिल से महसूस किया हो।विराट उसे छुपकर देख रहा था, पहली बार चुपचाप।
“वो हँस रही थी… बिना किसी डर के।”ये दृश्य उसके लिए अनमोल था।“कभी सोचा नहीं था कि एक लड़की मेरे अंधेरे घर में इतनी रौशनी भर देगी…” विराट खुद से हो धीरे से बड़बड़ाया
अवनी की नजरें अचानक विराट से टकराईं वो मुस्कराई, और उसने धीरे से कहा–" यहां से देख लो छुपकर क्यों देख रहे हो, और वैसे भी"कभी-कभी कैद भी आज़ादी से खूबसूरत लगती है…"
विराट बिना कुछ बोले वाह से चला गया था लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान थी!"
दोपहर में विला की लाइब्रेरी में विराट और अवनी एक साथ किताब पढ़ रहे थे लेकिन दोनों के दिमाग में किताब से ज़्यादा एक-दूसरे की मौजूदगी घूम रही थी।
विराट ने धीरे से उसकी उंगलियों को छुआ।
अवनी ने उसकी तरफ देखा, लेकिन हाथ नहीं हटाया।
“अगर मैं कहूं कि मैं तुम्हें इस दुनिया से दूर ले जाना चाहता हूँ… एक ऐसी जगह जहाँ कोई हमें पहचान न पाए क्या चलोगी मेरे साथ?”
विराट की आवाज़ में एक सच्चा डर था उसे खो देने का।
अवनी चुप रही, फिर बोली —"अगर तुम मुझे उसी जगह छोड़ दोगे तो?"
“कभी नहीं… जब तक मैं जिंदा हूँ।” तुम्हे कुछ नहीं होगा विराट ने कहा!"
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शाम का समय दोनो एक साथ बैठकर बात कर रहे थे तभी विराट का फोन बजा उसने अवनी को देखा और वो तुरंत कमरे से बाहर चला गया था
"वो लड़की तुम्हारी कमजोरी बन रही है। दुश्मनों को पता चल गया तो उसे निशाना बनाएंगे।"
फोन पर उसकी टीम का आदमी था।
“जिस दिन किसी ने उसकी तरफ आंख उठाई, वो दिन उनका आखिरी होगा…”
विराट ने गुस्से से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक डर भी था।
“तू प्यार में पड़ गया है, विराट। तू कमज़ोर हो रहा है।”
विराट ने फोन काट दिया — लेकिन इस बार वो खुद से भी डर रहा था।
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रात का समय अवनी का कमरा अवनी बिस्तर पर बैठी थी, जब दरवाज़ा खटखटाया। तो उसने दरवाजे पर देखा तो विराट था
“मैं अंदर आ सकता हूँ?” विराट ने पूछा।“दरवाज़ा कब से बंद है?”
वो मुस्कराई लेकिन जैसे ही वो पास आया, उसने कहा —“कुछ छुपा रहे हो मुझसे?”
अवनी की बात सुनकर विराट चौंका। तभी वापस अवनी ने कहा “तुम्हारी आँखें कहती हैं कि कोई तूफ़ान आने वाला है…”
विराट ने उसे करीब खींचा।“जो भी आए, मैं तुम्हारे सामने खड़ा रहूँगा।”
अवनी ने उसकी छाती पर हाथ रखकर महसूस किया —“ये दिल जो मेरे लिए धड़क रहा है… क्या एक दिन यही मुझे तोड़ देगा?”
अगली सुबह
विराट जल्दी उठ गया था वो बाहर गार्डन में जा ही रहा था कि उसे गन चलने की आवाज आई वो तुरंत बाहर आया और देखा तो विराट के एक गार्ड को गोली लग गई थी , विला के बाहर। वो आदमी बस आखिरी बार बस एक नाम कहता है —"अर्जुन वर्मा..."
और ये नाम सुनकर विराट के चेहरे का रंग उड़ गया था।“वो वापस आ गया?”
तो वही अपने रूम में खड़ी अवनी ने ये महसूस कर लिया था कि कुछ तो गड़बड़ थी कुछ देर बाद दोनों रूम में थे अवनी ने विराट को देखा और कहा–" क्या हुआ कौन था ?
विराट ने कुछ नहीं कहा तो अवनी ने वापस कहा–" कही कुछ ऐसा तो नहीं जिससे हम बिखर जाएंगे उसने बड़ी ही मासूमियत से कहा था
विराट ने उसका सवाल सुना और कहा–" कुछ नहीं मेरा एक दुश्मन था हमे लगा मर गया लेकिन वो जिंदा है, ""
अवनी ने उसकी बात सुनकर कहा–" और अब!"
विराट ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया था!"
रात का समय था कमरे की घड़ी में रात के 2 बज रहे थे, विला के बाहर बारिश की हल्की बूँदें ज़मीन से टकरा रही थीं। विला की दीवारों पर सायरन की लाल लाइटें चमक रही थीं चारों ओर गार्ड्स चौकसी में थे।
अंदर से बाहर झांकती अवनी की आँखों में बेचैनी थी।उसने विराट को इतनी गंभीर हालत में पहले कभी नहीं देखा था। “कौन है ये अर्जुन वर्मा?”
उसके मन में बार-बार यही सवाल घूम रहा था। और आंखों में नींद तो जैसे गायब ही थी!""
“कौन है ये अर्जुन वर्मा?”
उसके मन में बार-बार यही सवाल घूम रहा था।लेकिन नींद तो उसकी आंखों से गायब ही थी
विराट सोफे पर रूम में बैठा हुआ था उसे याद आया कि
फ्लैशबैक – 6 साल पहले, लखनऊ
विराट और अर्जुन एक ही गैंग में थे। दोनों साथ खून, धोखा और सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़े थे। लेकिन जब माफिया की गद्दी का सवाल आया अर्जुन ने उसके साथ गद्दारी की और इसी के चलते अर्जुन मारा गया था लेकिन विराट ने उसे मरा हुआ समझकर छोड़ दिया। लेकिन अब… वो लौट आया था।
अवनी का कमरा – सुबह 7:00 बजे
अवनी पूरी रात नहीं सोई थी।वो अब विराट की बाहों में नहीं, उसकी सच्चाई में उलझी थी। उसकी आंखो में जैसे हजारों सवाल थे जिसके जवाब उसके पास थे ही नहीं!" "
“अगर विराट का अतीत इतना खूनी और खतरनाक है… तो मेरा उसमें क्या स्थान है?” वो खुद से ही बोली, उसे उसके फोन से एक पुरानी फोटो मिली —विराट और अर्जुन की साथ की तस्वीर, जिसमें किसी एक के हाथ में खून से सना चाकू था। उसे देखते ही अवनी सिहर गई थी!" "
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विराट का ऑफिस उसी समय विराट अपनी कुर्सी पर बैठा था, सामने अर्जुन की तस्वीर दीवार पर लगी थी।
“Monty,” उसने गुस्से में कहा, “इस बार मैं उसे ज़िंदा नहीं छोड़ूंगा।”
“सिर्फ एक बात कहूँ भाई…”
मॉन्टी रुककर बोला —“वो अब अवनी को भी टारगेट बना सकता है। तुम्हारी कमजोरी बन चुकी है वो।”
विराट ने मुट्ठी भींच ली।“मैं उसे सबसे छीन सकता हूँ… पर अगर किसी ने उसे मुझसे छीना, तो मैं ये दुनिया जला दूँगा।” विराट गुस्से से बोला!" "
शाम – अवनी और विराट आमने-सामने बैठे हुए थे अवनी की आंखो में उसे सवाल नजर आ रहे था तभी अवनी ने सीधे सवाल किया —
“अर्जुन कौन है? और तुमने उस का क्या छुपाया है मुझसे?”
विराट चुप रहा।
“तुम मुझसे प्यार करते हो या बस एक पजेशन की तरह रखते हो?” अवनी ने उसकी आंखो में देखकर पूछा!" "
विराट ने धीमे से कहा —“मैं तुम्हें खोने से डरता हूँ, इसीलिए बताना नहीं चाहता था।”
“पर मैं जानना चाहती हूँ, विराट — मुझे भी हक है ये जानने का कि मेरा अतीत किस से जुड़ रहा है।”
विराट ने एक लंबी साँस ली —“अर्जुन मेरा साया था… और मेरी सबसे बड़ी गलती। मैंने उसे धोखा दिया, या शायद वो पहले से ही ज़हर था।” धीरे धीरे में उसने अवनी को सब बता दिया था!" "
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रात जंगल के पास एक वीरान बंगला वहीं कहीं अर्जुन बैठा था हाथ में शराब, और सामने विराट की तस्वीर।
“विराट सिंह राठौड़… तेरा अंत अब मेरे हाथों होगा। और तुझसे पहले, तेरा दिल…”
उसने अवनी की तस्वीर को जलती सिगरेट से छुआ —
“वो मेरी होगी, मेरी चाहत होगी मेरे बिस्तर पर होगी या तेरी मौत की वजह। होगी ”
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तो वही अवनी का मन न जाने क्या क्या सोच रहा था, वो अकेले बाथरूम में आईने के सामने खड़ी थी —विराट की बातें, अर्जुन की सच्चाई और अपने दिल की धड़कनें सब उसे हिला रही थीं।
"क्या मैं किसी अपराधी से प्यार कर बैठी हूँ?" उसकी आँखों में आँसू थे पर वो कमजोर नहीं, बस उलझी थी।
रात में विराट अकेला छत पर खड़ा था। दूर बिजली चमक रही थी।
तभी अवनी ने आकर पीछे से उसकी जैकेट पकड़ ली।“मैं नहीं जानती तुम कौन हो, विराट…“पर जो भी हो… मेरी तरफ़ पीठ मत मोड़ना।क्योंकि अगर तुम गए, तो शायद मैं किसी और को खुद के करीब आने ही नहीं दूँगी।”
विराट पलटा, उसकी आंखों में एक अधूरा प्यार और खतरे की आहट थी।“और अगर मैं मर गया तो ?”
अवनी ने उसकी बात का जवाब दिया —“तो मैं अर्जुन को अपने हाथों से मार दूँगी।” उसकी आंखो में बेहद प्यार नजर आ रहा था, विराट ने उसे कस के गले लगा लिया था!"
कुछ देर बाद दोनों अलग हुआ और वही बैठ गए विराट, अवनी के सामने बैठा था चाय की प्याली उसके हाथ में थी, पर उसकी निगाहें अवनी की आँखों से हटी ही नहीं थीं। अवनी शांत थी, पर अंदर कुछ टूटने की आवाज़ उसे सोने नहीं दे रही थी।
“आज कुछ बड़ा होने वाला है… ना?”अवनी ने अचानक पूछा।
विराट ने कुछ नहीं कहा बस सिर हिलाया।
अवनी ने आखिरी बार उसकी आँखों में झाँका —
“अगर आज के बाद मैं तुम्हें वैसे ना देख पाऊँ, तो मुझे माफ़ करना…” इतना बोल वो सो गई थी!"
सुबह से दोपहर हो गई थी पूरे विला में गार्ड फैले हुए थे अवनी का दिल बेचैन हो रहा था और विराट कभी ऊपर नीचे तो अंदर बाहर बस कुछ न कुछ सही कर रहा था!"""
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दोपहर –
विराट हाल में सोफे पर आकर बैठ ही था की उसके पास एक नंबर से कॉल आया स्क्रीन पर नाम चमका: “ARJUN”
विराट की साँसें गहरी हो गईं। उसने फोन कान के लगाया और सीधा कहा “कहाँ मिलना है?”
“जहाँ तेरा सच दफ़न है… पुराने बंद पड़े चर्च में।” इतना बोल फोन कट हो गया था!" "
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शाम – 5:30 PM, वीरान चर्च
चर्च के खंडहर में धूप की किरणें टिकी थीं, दीवारें सीलन भरी और दरारों से घिरीं। लेकिन इस बार वहाँ केवल ईश्वर नहीं था वहाँ आज बदला, नफरत और एक अधूरी मोहब्बत थी।
विराट ने अकेले कदम रखा लेकिन पीछे से अवनी ने उसकी जैकेट थामी।
“मैं साथ चलूँगी। जो भी है, मुझे भी जानना है।”
विराट ने रोकना चाहा, पर उसकी आँखें जिद्दी थीं। और शायद अवनी की जिद्द के आगे उसकी चली भी नहीं!""
चर्च के भीतर अर्जुन का सामना वो वहीं खड़ा था पुरानी जैकेट, आँखों में नफरत, और होठों पर ज़हर।
“विराट… तू अब भी जिंदा है, ये देखना दिलचस्प है।” अर्जुन ने उसे देखते हुए कहा!" "
विराट ने गुस्से से कहा —“तेरे जैसे गद्दार के लिए मैं कब का मर चुका हूँ।”
अर्जुन की नज़रें अवनी पर गईं।“तो ये है तेरा दिल? जानती है ये लड़की, कि जिस तदिन इसके बाप का कत्ल हुआ था, तू कहाँ था?”
अवनी की सांसें अटक गईं।“क्या मतलब?” उसने काँपती आवाज़ में पूछा।
अर्जुन ने जेब से एक पुरानी फोटो निकाली —
उसमें खून से लथपथ एक बुज़ुर्ग इंसान ज़मीन पर पड़ा था और पीछे विराट खड़ा था, खून से सना।
“तेरे पापा, अवनी। विराट के लोगों ने मारा था। और ये वहाँ मौजूद था बस कुछ नहीं बोला।” बस किया इसी का है,
उस अर्जुन के इतना बोलते ही उस माहौल में सन्नाटा भारी, दर्द भरा सन्नाटा छा गया था!" "अवनी की दुनिया तो जैसे ठहर गई थी।उसके हाथ से फोटो गिर पड़ी थी उसने पीछे हटना चाहा, लेकिन विराट ने उसे थाम लिया।"
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अर्जुन ने जेब से एक पुरानी फोटो निकाली —
उसमें खून से लथपथ एक बुज़ुर्ग इंसान ज़मीन पर पड़ा था और पीछे विराट खड़ा था, खून से सना।
“तेरे पापा, अवनी। विराट के लोगों ने मारा था। और ये वहाँ मौजूद था बस कुछ नहीं बोला।” बस किया इसी का है,
उस अर्जुन के इतना बोलते ही उस माहौल में सन्नाटा भारी, दर्द भरा सन्नाटा छा गया था!" "अवनी की दुनिया तो जैसे ठहर गई थी।उसके हाथ से फोटो गिर पड़ी थी उसने पीछे हटना चाहा, लेकिन विराट ने उसे थाम लिया।"
“ अवनी सुनो मेरी बात—” विराट बोलने ही वाला था कि अवनी ने जोर से उसका हाथ झटक दिया।
“मेरे पापा… तुम वहाँ थे? और कुछ नहीं किया?”
“मैंने उन्हें नहीं मारा… मैं बस देर से पहुँचा था…”
विराट की आवाज़ कांप रही थी।
“पर तुमने कुछ नहीं कहा, कुछ नहीं रोका! तुमने मुझसे ये सब छुपाया क्यों?”अवनी की आंखो में आँसू भर आए थे।
“क्योंकि मैं जानता था कि सच सुनकर… तुम मुझसे नफरत करोगी।” विराट बोला
अर्जुन मुस्कराया —“अब नफरत करेगी ये तुझसे… और मैं इसका भरोसा जीतूँगा।” इतना बोल वो मन ही मन खुश होने लगा!" "
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विराट अकेला वही खड़ा था अवनी ने बिना कुछ और कहे वहाँ से निकलने की कोशिश की लेकिन विराट ने एक आखिरी बार उसका रास्ता रोका।
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ… और अगर मुझे इस प्यार की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, तो भी मैं चुका दूँगा। पर ये मत मानो कि मैंने तुम्हें खो दिया…”
अवनी ने उसकी आँखों में देखा उनमें प्यार था, पर अब अवनी का दिल भरोसे से टूट चुका था।
“मैं तुमसे नफरत नहीं करूँगी, विराट… पर अब प्यार भी नहीं कर सकती।” इतना बोल अवनी उसकी आंखो में कुछ पल देखने लगी!" "
इतना बोल वो अपने रूम में चली गई थी!" ये रात काटना दोनो के लिए ही आसान नहीं था और नींद कोसों दूर थी"
सुबह , विला के कमरे की खिड़की खुली थी। हल्की ठंडी हवा परदों को हिला रही थी।
विराट के कमरे में वो सन्नाटा था, जो किसी अपने के जाने के बाद बसता है। वो सोफे पर बैठा था और उसके सामने टेबल टेबल पर एक चिट्ठी रखी थी अवनी की आखिरी बातों जैसी शांत, पर चुभती हुई: वो उसे पढ़ चुका था बस अब उसके दिमाग में वही सब चल रहा था" "मैं जा रही हूँ, विराट। तुमने जो छुपाया… वो मेरी आत्मा को चीर गया।
शायद मैं कभी माफ़ कर पाऊँ, लेकिन आज नहीं।
और अगर लौटूँ भी, तो शायद कोई और बनकर लौटूँगी।”
अवनी)
विराट के दिल और दिमाग में सिर्फ अवनी थी!" उसकी आंखो में जैसे कोई भाव था ही नहीं, "
पंद्रह दिन बाद –
दूसरी ओर अवनी का नया सफर शुरू हो चुका था अवनी अब एक छोटे से फ्लैट में शिफ्ट हो चुकी थी शहर से थोड़ी ही दूर वो अपनी मां को साथ तो ले आई थी लेकिन वो अपनी माँ और मॉन्टी से भी बात नहीं कर रही थी।
वो आईने के सामने खड़ी हुई थी “मैं बस खुद को खो बैठी थी… अब खुद को ढूंढना है।”उसने आईने में खुद से कहा।पर दिल के किसी कोने में एक बेचैन कर देने वाली आवाज़ अब भी गूंज रही थी "क्या विराट सच में गुनहगार था… या बस हालात का शिकार?" उसने खुद को कुछ देर आईने में देखा और एक गहरी सांस लेकर वही बैठ गई थी!""
धीरे धीरे दिन निकल रहे थे तो वही अर्जुन वो अब लगातार अवनी से संपर्क में था कभी किताब भेजता, कभी फूल, तो कभी उसकी मम्मी की मदद का बहाना बनाकर मिलने की कोशिश करता।एक दिन वो सीधे उसके दरवाज़े पर आ गया।
“तुम्हारी माँ की दवाएं खत्म हो गई थीं। सोचा मदद कर दूँ।” उसने अंदर आते हुए कहा!" "
अवनी को समझ नहीं आया अर्जुन गलत है या अब सच में बदल चुका? “धोखे खाने के बाद इंसान दोबारा प्यार नहीं करता, अर्जुन।”
उसने साफ कहा।
पर अर्जुन मुस्कराया और बोला —“और सच्चा प्यार एक बार हार नहीं मानता, अवनी।”
धीरे धीरे ही सही लेकिन अर्जुन और अवनी की बाते शुरू होने लगी थी,
तो वही विराट का विला अब वीरान सा हो गया था।हर जगह अवनी की आवाज़, हँसी और मौजूदगी की कमी महसूस हो रही थी। वो बस उन सब जगह को देख रहा था जहां उसने अवनी के साथ थोड़ा टाइम बिताया था!" उसके पास मोंटी खड़ा हुआ था!" तभी उसने विराट से धीरे से पूछा, “भाई… कोई प्लान है उसे वापस लाने का?”
विराट ने खाली आँखों से जवाब दिया —“नहीं। अगर उसे मेरी ज़रूरत होगी, तो वो खुद लौटेगी।
मैं उसे फिर से पिंजरे में नहीं रखना चाहता।” वो अब जैसे चाहे जिए!""
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तो वही रात में अवनी बेड पर लेटी हुई थी पूरा दिन जो गया था लेकिन उसकी ये बेचैनी कम ही नहीं हो रही थी वो बेड से उठी और अपनी डायरी खोली कई दिनों से जो बंद पड़ी थी। उसने वाह लिखना शुरू किया " "
“वो मुझे कैद करके भी आज़ाद कर देता था,
और तुम मुझे आज़ादी देकर भी बाँधने की कोशिश कर रहे हो, अर्जुन।”
शायद अवनी सच पहचान रही थी पर अभी दिल की दरार गहरी थी जो कि यूंही भरना आसान नहीं था
अर्जुन की एक नई साजिश शुरू हो गई थी वो अब धीरे-धीरे अवनी को अपने करीब करने का प्लान बना रहा था —उसे पता था कि अवनी का अकेलापन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।
“अगर वो विराट के करीब नहीं आ रही,
तो मैं उसके करीब आकर उसे तोड़ दूँगा…” वैसे भी वो बहुत ही हसीन है उसके करीब देखकर विराट टूट ही जाएगा!" इतना बोल वो खुद ही मुस्कुरा दिया,! और उसने अपना फोन निकाला और अपने किसी आदमी को फोन लगाया और कहा “अगली बार… उसकी माँ को टारगेट करो।” उसे अपने करीब लाने और विराट को तोड़ने का मेरे पास एक यही रास्ता है
रात होने लगी थी अचानक ही अवनी का फोन बजा तो उसने देखा कोई अननोन नंबर था उसने फोन कान के लगाया कि सामने से कुछ कहा गया जिसे सुनकर अवनी थोड़ा हैरान हो गई थी, क्योंकि सुबह उसने उसकी मां को हॉस्पिटल में एडमिट किया था और अब उनकी तबीयत अचानक से और खराब हो गई थी वो अभी वाह से घर ही आई थी लेकिन अचानक ही अब वो वापस जा रही थी!""
कुछ देर बाद अवनी हॉस्पिटल के बाहर खड़ी थी
अर्जुन वहाँ पहले से मौजूद था वो अवनी के पास खड़ा हुआ था उसने अवनी को देखा और कहा –" मेने जैसे ही सुना मैं यहां आ गया था, "“मैंने कहा था ना, अवनी… मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
वहीं दूर एक गाड़ी में बैठा विराट सब देख रहा था —
कुछ देर बाद अवनी हॉस्पिटल के बाहर खड़ी थी
अर्जुन वहाँ पहले से मौजूद था वो अवनी के पास खड़ा हुआ था उसने अवनी को देखा और कहा –" मेने जैसे ही सुना मैं यहां आ गया था, "“मैंने कहा था ना, अवनी… मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
वहीं दूर एक गाड़ी में बैठा विराट सब देख रहा था
उसकी आँखों में आंसू नहीं थे, पर उस शेर जैसी ख़ामोशी थीजो तब आती है जब कोई सिर्फ टूटता नहीं…बल्कि बदला लेने के लिए उठता है।
अगली सुबह फ्लैट में अवनी अभी सोकर हो उठी थी कि अचानक ही उसका फोन बजने लगा उसने देखा तो एक अनजान नंबर था उसने कुछ देर देखा और जैसे ही उसने कॉल उठाया, आवाज रसुनाई दी:“तुम्हारा बाप अगर ज़िंदा होता, तो विराट उसे दोबारा मार देता।”
अवनी का चेहरा ज़र्द हो गया क…कौन हो तुम?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
“जो विराट के सच को जानता है… और अब तुम भी जान जाओगी।” इतना बोल फोन कट गया।
अवनी फोन को देख रही थी उसके दिल और दिमाग में अब वही बात चल रही थी, सुबह से उसे अजीब सा लग रहा था वो हॉल में बैठी थी कि घर की डोर बेल बजी अवनी उठकर दरवाजे पर आई और दरवाज़ा खोला तो एक लिफाफा पड़ा था उसने उसे उठाया हर खोला तो उसके अंदर कुछ तस्वीरें थीं: विराट और उसके लोग किसी को धमकाते हुए, एक अंधेरी गली में… और एक पेपर FIR की कॉपी जिसमें अवनी के पिता के मर्डर केस में विराट का नाम संदिग्धों में था। ये सब देखकर अब अवनी के अंदर बचा हुआ भरोसा भी दरक गया था
"मुझे तुमसे नफ़रत हो रही आज विराट तुमने मेरा सब कुछ छीन लिया मुझसे इतना बोल उसकी आंखो में आंसू आ गए थे!" "
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विराट अपने रूम में बैठा था और मोंटी ने उसके सामने लैपटॉप रखा हुआ था उसमें विराट को एक ईमेल मिला —"अब तेरी बारी है, Virat Singh Rathore"
E-mail में एक वीडियो क्लिप थी — अर्जुन और अवनी एक कॉफ़ी शॉप में साथ बैठे थे। अर्जुन उसके हाथ को थामे कह रहा था:“तुम्हारा अतीत झूठ था… और तुम्हारा प्यार भी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, अवनी।”वीडियो में कोई छेड़छाड़ की गई थी, लेकिन विराट के दिल में जहर बनकर उतर गई उसका सर बुरी तरह से घूम रहा था!" "
उसने अपने सामने बैठे “मॉन्टी, से कहा –" "अर्जुन को ट्रैक करो। अब अगर अवनी मेरे खिलाफ खड़ी है… तो अब वो भी मेरी दुश्मन है।” जाओ इतना बोल उसने लैपटॉप बंद किया और आंखे बंद कर ली!" "
शाम का समय था मौसम खराब हो रहा था, तूफान आ रहा था और बारिश की हल्की हल्की बूंदे गिर रही थी, विराट खुद आज अवनी के फ्लैट पर आया था।
“क्या अब अर्जुन तुम्हारा नया मसीहा बन गया?” उसने अवनी के दरवाजा खोलते ही कहा।
अवनी ने दरवाज़ा खोला — लेकिन उसकी आँखों में अब वो softness नहीं थी, बस तिरस्कार था वो भी एकनफ्रत के साथ “कम से कम वो तुम्हारी तरह झूठा तो नहीं।”
“झूठा?” विराट चीखा, “जिस दिन मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, उसी दिन से सब कुछ छोड़ने का मन बना लिया था… सोचा था तुम्हारे लिए खुद को बदलूंगा और आज तुम मेरे सबसे बड़े दुश्मन के साथ बैठी हो?”
अवनी ने ठंडे लहजे में कहा:“प्यार नहीं किया था तुमसे, विराट। बस तुम्हारी उस जेल से भागने का तरीका ढूँढ रही थी।”
विराट चुप हो गया — जैसे किसी ने उसकी रूह को चीर दिया हो।और अवनी के शब्द कम भी नहीं थे!" "
विराट अवनी के करीब झुका,और उसके कान में फुसफुसाया:“तुम मेरी थी, हो और रहोगी… और अब, मैं तुम्हें तोड़कर रख दूँगा।”
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विराट चला गया था अवनी अकेली बैठी थी उसने अपने मन में फैसला कर लिया —“अब कोई विराट सिंह राठौड़ नहीं… अब सिर्फ मेरा बदला बचेगा।”
रात 11:00 बजे | अर्जुन का पेंटहाउस के कमरे में हल्की रोशनी थी। दीवारों पर महंगे आर्टवर्क, फर्श पर गहरा कालीन और सामने एक बड़ी टेबल — जहां बैठी थी अब वो अवनी, जो कभी नाज़ुक थी, पर अब उसकी आँखों में आग थी।"मैं उसे गिरते देखना चाहती हूँ..."उसने ठंडे लहजे में कहा।
अर्जुन मुस्कराया — "तुम सही रास्ते पर आ रही हो, अवनी। अब वो तुम्हें सिर्फ खोएगा, हर दिन, हर पल।"
“मैं सिर्फ उसका नुकसान नहीं चाहती…”
उसने टेबल पर हथियारों की फाइल फेंकी — “...मैं उसके हर राज़ को उजागर करना चाहती हूँ। उसे उसकी ही दुनिया में नंगा करना है।”
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विराट मॉन्टी के साथ गाड़ी में था गाड़ी तेज़ रफ्तार से शहर के किनारे की ओर बढ़ रही थी।
"भाई, यकीन नहीं होता भाभी— मतलब, अवनी— उस अर्जुन के साथ जा मिली…" मॉन्टी ने कहा।
विराट की आँखें सामने सड़क पर टिकी थीं, लेकिन उसका गुस्सा अंदर लावा बनकर उबल रहा था।
“अब वो तेरी भाभी नहीं रही। अब वो मेरी दुश्मन है। और दुश्मनों के साथ क्या होता है, ये तुझे पता है।” मोंटी इतना बोल वो वापस से सामने देखने लगा!" "
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अगले दिन शहर की तंग गलियाँ अवनी पहली बार किसी माफिया डील की जगह पर पहुंची थी अर्जुन के आदमी के साथ।“तुम्हें डर नहीं लगता?” उस आदमी ने पूछा।
अवनी ने एक कागज़ उसकी तरफ बढ़ाया एक दस्तावेज़ जो विराट के एक पुराने गैरकानूनी सौदे का सबूत था।"अब डर नहीं लगता... अब सिर्फ आग लगती है।" अवनी ने कहा!
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तो वही अचानक से विराट के फार्म हाउस में हो रही आज की डील पर रेड गिरने की खबर उन्हें मिली ही थी कि अचानक पुलिस की टीम ने विराट के फार्म हाउस पर रेड मारी जहाँ एक सीक्रेट मीटिंग हो रही थी। सबूत लीक हो चुका था।
विराट बाहर खड़ा देख रहा था, और उसकी मुठ्ठी कस चुकी थी।“अवनी कपूर... तुमने मेरे खिलाफ जंग छेड़ दी है। अब मैं भी अपने हर उसूल तोड़ूंगा।” उसकी आंखो में गुस्सा, नफरत आगे सब दिख रही थी!" "
रात के समय अवनी ने अपना लैपटॉप खोला — एक नई रिपोर्ट तैयार थी, जिसमें विराट के कई पुराने काले धंधों की जानकारी थी।
“तुमने मुझे पिंजरे में कैद किया था, विराट। अब मैं तुम्हारी दुनिया को उसी पिंजरे में बंद करूंगी।” इतना बोल वो उसमें काम करने लगी!" "
दूसरी तरफ विराट का बदला शुरू हो चुका था विराट ने अर्जुन के एक करीबी आदमी को उठा लिया।"कह दो अपनी बहन जैसी अवनी से... अब उसके पीछे उसकी छाया भी नहीं रहेगी।"
उसने उस आदमी को ज़िंदा छोड़ा ताकि मैसेज पहुँचे और खुद वाह से घर के लिए निकल गया था
दूसरी तरफ विराट का बदला शुरू हो चुका था विराट ने अर्जुन के एक करीबी आदमी को उठा लिया।"कह दो अपनी बहन जैसी अवनी से... अब उसके पीछे उसकी छाया भी नहीं रहेगी।"
उसने उस आदमी को ज़िंदा छोड़ा ताकि मैसेज पहुँचे और खुद वाह से घर के लिए निकल गया था
तो वही विराट अपने रूम में रेडी हो रहा था और मोंटी उसके सामने खड़ा हुआ था उसने विराट को देखते हुए कहा–" चले भाई हम?"
विराट ने गर्दन हिलाई और दोनों वाह से निकल गए आज एक फंडरेज़र पार्टी थी, जिसमें शहर के बड़े लोग जमा थे। जहां सब आगे थे विराट भी यही के लिए निकला था वो लोग आ चुके थे वो किसी से बात कर ही रहा था कि उसके नजर दरवाजे की साइड जहां अवनी एक खूबसूरत काले गाउन में दाखिल हुई, अर्जुन के साथ।
अर्जुन ने अवनी को देखा और कहा –" सामने ही खड़ा है मिलते है, इतना बोल डंक उसके पास चले गए "
विराट उन दोनो के सामने था बिल्कुल सख्त चेहरे के साथ।
अवनी और विराट की उनकी निगाहें मिलीं और मानो कुछ पल के लिए समय रुक सा गया था" "—
एक वक्त था जब इन आँखों में मोहब्बत थी,अब वहां सिर्फ राख थी।
अवनी मुस्कराई और बोली— "कैसे हो, मिस्टर राठौड़?"
विराट झुककर बोला —“बेहतर अब हूँ... क्योंकि अब जानता हूँ, तुम क्या हो।”
रात को अवनी गहरी नींद में थी।अचानक उसके दरवाज़े की घंटी बजी।
“इतनी रात को कौन होगा …?” उसने चौंकते हुए उठकर दरवाज़ा खोला।दरवाज़े के बाहर कोई नहीं था। नीचे एक छोटा-सा डिब्बा पड़ा था।
उसने झुककर उठाया और खोला —
भीतर एक टूटा हुआ ब्रेसलेट था — वही ब्रेसलेट जो कभी विराट ने उसे ज़बरदस्ती पहनाया था। और उसके साथ एक नोट:
“तुम्हारा अतीत लौट आया है… अब हर रात तुम्हारी नींद हराम होगी।”
अवनी का चेहरा स्याह पड़ गया। वो जानती थी — विराट वापस वार कर रहा है। और इस बार… बहुत नज़दीक से।
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अगली सुबह अर्जुन का घर ,अर्जुन का गार्ड गायब हो गया था , tअर्जुन का सबसे भरोसेमंद बॉडीगार्ड ‘निखिल’ गायब था। उसका फोन बंद, था और घर खाली।
अर्जुन ने उसका सीसीटीवी चेक किया गया —
काले कपड़ों में एक शख्स, जो अंधेरे में भी पहचान में आ सकता था — विराट।
अर्जुन गुस्से से बोला — “अब उसने लाइन क्रॉस की है।”
अवनी जो कि सुबह ही आई थी उसने कहा, “नहीं अर्जुन... अब मैं जवाब दूंगी। मैं उसका डर नहीं, उसका अंधेरा बनना चाहती हूँ।”
निखिल एक गंदे तहखाने में बंद था।
विराट उसके सामने बैठा था — सिगरेट के धुएं के बीच, उसकी आंखों में बर्फीली नफरत।
“क्या बोला था अर्जुन ने? मेरी दुनिया खत्म कर देगा?” विराट के कस भरते हुए कहा!" "“अब देखो कैसे उसके अपने लोग ग़ायब होते हैं... एक-एक करके ! इतना बोल वो उठा, और निखिल के पास झुका:“अवनी को बोल देना — अब यह खेल सिर्फ उसका नहीं है। अब मेरी बारी है।”
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अगली शाम
अवनी अपने कॉलेज में थी, और कॉलेज के प्रोजेक्टर स्क्रीन पर अचानक एक वीडियो चला — अवनी और अर्जुन की कुछ प्राइवेट तस्वीरें।
पूरे हॉल में फुसफुसाहट और तंज भरे ठहाके गूंज उठे।अवनी भागकर बाहर निकली — आँखें भर आई थीं, पर चेहरा अब भी पत्थर जैसा सख्त।
उसी वक्त उसके फोन पर एक मैसेज आया:
“तुम्हें जो सिखाया था… अब उसका इस्तेमाल कर रही हो? अब सीखो — क्या होता है जब विराट सिंह राठौड़ टूटता नहीं… तोड़ता है।”
अवनी ने उसे पढ़ा और तुरंत वाह से निकल गई!" "
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रात में अवनी अकेली थी, मगर डरी हुई भी उतनी ही थी, वो अब अपने ही साये से डरने लगी थी।
कभी जो लड़की दुनिया के सामने निडर खड़ी थी, आज खिड़की से बाहर अंधेरे में झांकती रही।
उसने खुद से कहा —“विराट अब बस एक नाम नहीं रहा… वो अब मेरी रगों में उतर चुका है। ये लड़ाई सिर्फ बाहर नहीं, अंदर भी चल रही है।” तुमने अच्छा नहीं किया ये सब करके !""
इन कुछ दिनों में बहुत कुछ हुआ था अवनी की मां ने ऑफिस देख लिया था, वो कोई छोटा मोटा काम करती थी, और अवनी की मां को ऑफिस से लौटते समय किसी ने फॉलो किया और फिर अचानक गायब हो गईं।
इस बात बेखबर अवनी अपने लैपटॉप पर कुछ देख रही थी, तभी उसके पास एक फोन पर मैसेज आया उसने देखा तो एक फोटो थी उसने जैसे ही देखी तो— उसकी मां एक कुर्सी पर बंधी हुई, बेहोश।नीचे सिर्फ एक लाइन थी:
“अब तुम्हारी मां भी मेरी दुनिया का हिस्सा है… जैसी तुम थी।”
अवनी के हाथ से अपना फोन छूट गया था उसकी सांस जैसे कुछ पल रुक गई हो,
रात के 3:00 बजे | अर्जुन का अंडरग्राउंड सेफहाउस
अवनी की आँखों में नींद नहीं थी। मोबाइल की स्क्रीन पर वो तस्वीरें बार-बार जलती बुझती रहीं — माँ की कुर्सी से बंधी हालत, उसके मुंह पर पट्टी।
"ये आदमी... सच में हैवान बन चुका है…" उसने फुसफुसाते हुए कहा।
अर्जुन ने एक पेपर सामने फेंका — "तुम कहो तो अभी उठवा लूँ उसे?"
अवनी ने नज़रें उठाईं। उनकी चमक बुझ चुकी थी, पर भीतर आग बहुत तेज़ जल रही थी।
“नहीं... इस बार मैं जाऊँगी। और सिर्फ माँ को नहीं, उसका घमंड भी लेकर लौटूँगी।”
सुबह – विराट के फार्महाउस का गुप्त तहखाना
विराट हाथ में चाय का कप लिए अपने गार्ड को निर्देश दे रहा था — "उसे तकलीफ़ मत देना। पर ये एहसास लगातार बना रहना चाहिए कि वो अब किसी की माँ नहीं… मेरे दुश्मन की कमजोरी है।"
मॉन्टी पास आया, "भाई, अवनी खुद मिलने आना चाहती है। उसने कॉल किया है।"
विराट की मुस्कान खतरनाक थी —“वो खुद आ रही है? अच्छा है… अब बदले में कुछ और भी खोएगी।”
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दोपहर का समय लोहे के भारी दरवाज़े खुले। अंदर वही विराट बैठा था — उसी अँधेरे रौब और सख्ती के साथ।अवनी तेज़ क़दमों से अंदर दाखिल हुई। चेहरे पर कोई डर नहीं — सिर्फ दर्द को पी जाने वाला गुस्सा।
विराट ने मुस्कराते हुए कहा,“आख़िरकार, अवनी कपूर ने झुकने का हुनर सीख ही लिया?”
अवनी उसके करीब आई — ठीक उसकी आँखों में झांककर बोली:“मैं झुकी नहीं हूँ, मैं उतरी हूँ… तुम्हारे नर्क में। ताकि तुम्हे उसी आग में जला सकूं।”
उसकी बाते सुनकर विराट का चेहरा तन गया था
तभी अवनी ने पूछा–" "माँ कहाँ है?”
विराट उठकर पास आया और दो कदम की दूरी पर।धीरे से उसकी बाहें अवनी के कंधों को छूने लगीं–"क्या फर्क पड़ता है? तुम भी तो कभी मेरी कैद में थी… उसे भी सिर्फ तुम्हारा अतीत समझो।”
अवनी ने उसका हाथ झटक दिया। “तुम तब भी दरिंदे थे, आज भी हो । फर्क सिर्फ इतना है — अब मैं शिकार नहीं, शिकारी हूँ।”
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उसकी बाते सुनकर विराट का चेहरा तन गया था
तभी अवनी ने पूछा–" "माँ कहाँ है?”
विराट उठकर पास आया और दो कदम की दूरी पर।धीरे से उसकी बाहें अवनी के कंधों को छूने लगीं–"क्या फर्क पड़ता है? तुम भी तो कभी मेरी कैद में थी… उसे भी सिर्फ तुम्हारा अतीत समझो।”
अवनी ने उसका हाथ झटक दिया। “तुम तब भी दरिंदे थे, आज भी हो । फर्क सिर्फ इतना है — अब मैं शिकार नहीं, शिकारी हूँ।”
विराट ने आख़िर उसकी माँ को उसके सामने लाने का आदेश दिया। मां बेहोश थीं, पर सुरक्षित।
अवनी उनके पास दौड़कर बैठ गई — आँखों में आँसू थे, पर होठ कांप रहे थे ग़ुस्से से।“बहुत बड़ी भूल की है तुमने, विराट... अब ये जंग तुम्हारे पैरों तक नहीं, तुम्हारे सीने तक पहुँच गई है।”
विराट ने उसकी पीठ पर निगाहें गढ़ाईं और बस एक लाइन कही:“और अब तुम्हारे सीने में जो दिल धड़कता है... उसे भी मैं चुराकर ले जाऊँगा।”
अवनी ने उसको कड़वी निगाहों से देखा और जाने के लिए मां को लिया, अवनी वापस मुड़ने लगी, माँ के साथ। लेकिन दरवाज़े तक पहुँचते ही विराट ने कहा:“एक बात याद रखना... ये जो नफरत तुम पाल रही है, वो किसी दिन थक जाएगी। लेकिन जो मैंने तुम्हारे लिए महसूस किया था, वो आज भी जिंदा है... और इसलिए, ये लड़ाई ख़त्म नहीं होगी… कभी नहीं।”
अवनी पलटी उसकी आँखें भरी थीं, पर आवाज़ कड़वी:“अगर तुम्हे ये प्यार लगता है… तो भगवान हर लड़की को तुम जैसा दुश्मन दे… ताकि उसे असली प्यार की कदर हो।”
हवेली की छत पर चाँद पूरी तरह से धुंधला था। एक सन्नाटा जो सब कुछ कह रहा था, मगर कोई सुन नहीं रहा था। ज़मीन पर टूटी चूड़ियों की किरचें बिखरी थीं — जैसे किसी की उम्मीदें टूटी हों।
विराट सिंह राठौड़, अब तक जो सिर्फ़ हुक्म देता आया था, आज उसके चेहरे पर वो सख्ती थी जो किसी अपने के धोखे से आती है।
नीचे कमरे में अवनी खड़ी थी, आँखों में आँसू नहीं — सिर्फ़ आग थी।“तुम्हें क्या लगता है विराट? तुम मुझे बंदी बनाकर रखोगे और मैं तुम्हारे अहंकार के आगे झुक जाऊँगी?” अवनी की आवाज़ लोहे जैसी ठंडी थी।
विराट धीरे-धीरे उसके पास आया, और आँखों में झाँकता हुआ बोला,“मैंने तुम्हें आज़ाद छोड़ा था... पर तुमने उसी आज़ादी में मुझे धोखा दिया। मेरे दुश्मनों से मिलने गई थी, अवनी?”
अवनी की आँखें सिकुड़ गईं, “मैं किसी से मिलने गई थी क्योंकि मैं इंसानियत नहीं भूली विराट! तुम्हारी तरह नहीं, जो सिर्फ़ खून, हथियार और सत्ता की भाषा जानता है!”
विराट का चेहरा तमतमा उठा, “मैंने तुम्हें अपनी दुनिया में जगह दी थी, और तुमने मेरी पीठ में छुरा घोंपा!”
"पीठ में छुरा?" अवनी आगे बढ़ी, "तुम्हें अपनी परछाईं पर भी भरोसा नहीं, विराट! तुम क्या समझते हो, तुम्हारा प्यार... तुम्हारी सुरक्षा... ये सब एहसान हैं मुझ पर?"
विराट ने दीवार पर ज़ोर से घूँसा मारा। “ये एहसान नहीं था... ये मोहब्बत थी! पर तुम... तुम उस मोहब्बत के लायक नहीं हो।”
अवनी की आँखें चमक उठीं। “तो सुनो विराट... मैं अब तुम्हारे नज़दीक आने से पहले सौ बार सोचूँगी। क्योंकि जो हाथ एक बार मुझे छूकर सुकून देता था, अब वही ज़ंजीर लगता है।”
विराट ने पास रखी टेबल पर रखा ग्लास ज़मीन पर दे मारा — टुकड़े जैसे दोनों की कहानी बन चुके थे।
"अब हम आमने-सामने हैं, अवनी..." विराट की आवाज़ अब मौत जैसी ठंडी हो गई, “अब मैं वो विराट बनूँगा... जिससे इस शहर के शेर भी काँपते हैं।”
अवनी उसकी आँखों में देखते हुए बोली, “और मैं वो अवनी बनूँगी... जो तुम्हारे जैसे शेर को उसके ही जंगल में शिकारी बना देगी।”
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एक हफ्ता बाद —
मुंबई की रातें अब शांत नहीं थीं। माफ़िया की दो टीमें एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ी थीं।
अवनी अब अर्जुन के साथ मिलकर विराट के खि़लाफ़ रणनीति बना रही थी।
"तुम्हें पता है वो तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा?" अर्जुन ने पूछा।
"और मैं उसे चैन से नहीं जीने दूँगी," अवनी ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा, "अब इस जंग में कोई जीतता नहीं, बस सब कुछ खो देता है।"
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विराट के अड्डे पर
“उसने मेरी दुनिया को ठुकराया है... अब मैं उसकी दुनिया को राख करूँगा,” विराट ने अपनी गाड़ी की खिड़की से बाहर झाँकते हुए कहा।
"उसने तुम्हारे सबसे भरोसेमंद आदमी को अपने साथ कर लिया है, सर," मॉन्टी ने बताया।
विराट की आँखें जल उठीं, "अब उस लड़की को बचाने वाला कोई नहीं बचेगा... और ये जंग अब दिल की नहीं, जान की होगी।"
कुछ देर में दोनों वाह से कही चले गए थे एक गुप्त मीटिंग थी,
अर्जुन और अवनी आमने सामने थे
"हम उसका गोदाम उड़ाएँगे," अवनी बोली।
“तुम्हें डर नहीं लगता?” अर्जुन ने पूछा।
अवनी मुस्कुराई, "डर अब उसी को लगता है, जिसने कुछ खोने को रखा हो। और मेरे पास अब कुछ नहीं बचा..."
---मुंबई की एक वीरान रात। शहर सो रहा था, लेकिन दो दिलों के अंदर नफ़रत की आग अब भी धधक रही थी। एक तरफ विराट सिंह राठौड़ — जो अब अपनी मोहब्बत की राख पर सत्ता की नई ईमारत खड़ी कर रहा था। और दूसरी तरफ अवनी कपूर — जो अब मासूम नहीं, बल्कि बदले की सबसे खतरनाक शक्ल बन चुकी थी।
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विराट का अड्डा वो अपने अड्डे पर पहुंचा तो उसने देखा रात के दो बज रहे थे विराट एक बड़े कमरे में अपने लोगों के साथ बैठा था, दीवार पर मुंबई का नक्शा था और उस पर लाल निशान।
"अवनी अब सिर्फ़ एक नाम नहीं है," वो बोला, "वो एक मिसाल बनना चाहती है — मेरे खिलाफ।"
"सर, उसने कल रात हमारे गोदाम पर हमला करवाया था। दो आदमी मर चुके हैं," मॉन्टी बोला।
विराट की मुठ्ठी कस गई। "अब बात दिल की नहीं रही... अब ये जंग है... और इस बार मैं उसे ज़िंदा पकड़ूँगा — सिर्फ़ उसके टूटते चेहरे को देखने के लिए।"
दूसरी तरफ अवनी आईने के सामने खड़ी थी। उसने अपनी चूड़ियाँ उतार दीं, बाल कसकर बाँध दिए और काले रंग की जैकेट पहन ली।
"अब मैं वो लड़की नहीं जो किसी से डरती थी," उसने खुद से कहा।
अर्जुन पीछे से बोला, "वो तुम्हें मार डालेगा, अवनी।"
"तो मारे," अवनी की आँखें बुझी हुई थीं, "क्योंकि अब मैं जी भी नहीं रही... सिर्फ़ जला रही हूँ — उसे और खुद को।"
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तो वही एक घर में एक आदमी बैठा है था काले चश्मे, नीला सूट और हाथ में गोल्डन रिंग्स — समर खान, विराट का पुराना दुश्मन, अब वापस आया था।
"दोनों एक-दूसरे को मिटाने पर तुले हैं... और मैं सिर्फ़ माचिस बनूँगा," समर ने अपने आदमी से कहा।
"सर, किसके साथ जाएंगे आप?" उसके आदमी ने पूछा!""
"जिसकी हार से मुझे ज्यादा मजा आए," इतना बोल समर हँसा।
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अगली सुबह अवनी सोकर उठी थी कि उसके पास फोन आया उसे पता लगा कि उसके सबसे भरोसेमंद आदमी, अर्जुन पर हमला हुआ है आहे वो ज़ख़्मी हालत में है और उसे अस्पताल ले जाया गया।
विराट तक खबर पहुँची — मगर सच्चाई ये थी कि हमला समर ने करवाया था... दोनों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए।
"ये वार... अवनी का था," समर ने जानबूझकर विराट को मैसेज भिजवाया।
विराट का चेहरा पथरा गया।
“अब कुछ नहीं बचेगा... ना वो लड़की... ना उसका साया।”
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अवनी — दूसरी चाल
अवनी ने विराट के खिलाफ मीडिया में एक वीडियो लीक करवाया जिसमें उसके गैर-कानूनी धंधों के सबूत थे।
शहर का माफिया किंग अब पुलिस की नजर में आ गया।
अवनी ने विराट के खिलाफ मीडिया में एक वीडियो लीक करवाया जिसमें उसके गैर-कानूनी धंधों के सबूत थे।शहर का माफिया किंग अब पुलिस की नजर में आ गया।
मीडिया: “क्या माफिया सरदार अब गिरेगा?”
विराट की नज़रें स्क्रीन पर टिकी थीं — लेकिन अंदर आग जल रही थी।"अब ये सिर्फ़ मेरी हार या जीत की बात नहीं... अब ये बात है, उसकी चीख़ें सुनने की।"
— रात के समय विराट ने समर खान से मिलकर एक योजना बनाई अवनी के घर पर हमला।
लेकिन उसे नहीं पता था — समर दोनों ओर खेल रहा है।
अवनी को पहले ही खबर मिल चुकी थी।
रात के अंधेरे में गोली चली। जवाबी फायर हुआ।
चीखें, धमाके, दौड़ते कदम।एक गोली अवनी के कंधे को छूती हुई निकल गई— वो गिर गई, पर वो उठ गई उसके सामने विराट दरवाज़े पर खड़ा था — दोनों की आँखें मिल रही थी
"तुम मुझे मार सकते हो..." अवनी बोली, "लेकिन तुम मुझे हरा नहीं सकते।"
"मैं तुम्हें नहीं मारूँगा," विराट फुसफुसाया, "ताकि तुम्हारी हर साँस, हर दिन... तुम्हारा सबसे बड़ा सज़ा बने।"
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राम को समर खान का प्राइवेट पेंटहाउस कमरे में धीमी रौशनी थी। एक बड़ा स्क्रीन सामने चल रहा था जिसमें CCTV फुटेज में विराट और अवनी की झड़प दिखाई जा रही थी।
समर खान सिगार का कश लेते हुए मुस्कराया,
“एक को ज़िंदा जलाओ… दूसरे को राख बना दो।”
उसके साथ खड़ा था उसका खास आदमी — अफजल।
“सर, अगला कदम?”“अब असली चाल होगी अब वक्त है धोखे का — ऐसा धोखा जो इन दोनों को खुद से भी पराया कर दे।”
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सुबह 6:30 विराट का मेन ऑफिस विराट को सुबह-सुबह एक डिलीवरी मिली — एक पेनड्राइव। उस पर लिखा था, "तुम जिस पर भरोसा करते हो, वही तुम्हें गिराएगा।"वह ध्यान से स्क्रीन पर वीडियो प्ले करता है।
वीडियो शुरू होता है:
सीसीटीवी फ़ुटेज में अवनी, समर खान से मिलती हुई दिखाई देती है — गले मिलती है, और फिर दोनों एक पेपर साइन करते हैं।
विराट की साँसें थम जाती हैं।
मॉन्टी: “सर, ये तो...”
विराट: “बस! अब कुछ मत बोलो।”
उसकी आँखों में कुछ टूटता है — कोई विश्वास, कोई अहसास।“अवनी कपूर… अब तुम सिर्फ़ दुश्मन नहीं — गद्दार भी हो ।”
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दूसरी ओर
अवनी दरवाज़े पर खड़ी थी , चाय का प्याला हाथ में। था अर्जुन उसके पास आया और बोला , “एक और खबर आई है... समर खान हमारे फंडिंग सिस्टम से जुड़ गया है — जो हमने विराट को गिराने के लिए बनाई थी।”
अवनी चौंकी। “क्या मतलब?”
“वो वीडियो... जो तूने रिकॉर्ड नहीं किया था, वो वायरल हो गया।”
“कौन सा वीडियो?” अवनी चौंकते हुए बोली
“जिसमें तू समर से गले मिल रही है… अर्जुन न कहा”अवनी का चेहरा सख्त हो गया।“मैंने कभी ये वीडियो नहीं बनवाया। ये फेक है।”
“फिर किसने?” अर्जुन ने फिर से कहा
“वो ही जिसने दोनों ओर आग लगाई — समर खान शायद
विराट ने अपने लोगों को इकट्ठा किया।
“वक़्त आ गया है एक एक साँप को कुचलने का।”
“सर?”“अवनी कपूर अब मेरे हाथों से नहीं बचेगी — ये वादा है मेरा।”
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शाम समर खान अब सीधा मैदान में उतर रहा था। वो मीडिया में एक बड़ा खुलासा करता है — जिसमें अवनी और विराट दोनों की काली सच्चाइयाँ लीक होती हैं।
टीवी स्क्रीन पर लाइव चल रहा है: “अवनी कपूर — मासूम नहीं, माफिया की रकीब। और विराट सिंह — शहर का छुपा हुआ डॉन।”
अवनी टूट जाती है।
अर्जुन: “अब क्या करें?”
“अब ये लड़ाई सिर्फ़ हमारी नहीं रही, अर्जुन। ये समर के खिलाफ़ है — जो हमें एक-दूसरे के खिलाफ़ इस्तेमाल कर रहा है।”
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रात विराट को अब कुछ नहीं सुनना — न दलील, न सच्चाई।वो सीधा अवनी के ठिकाने पर धावा बोलता है। गोलीबारी होती है दौड़ते कदम। और इन सब में अर्जुन घायल होता है।
अवनी सामने खड़ी होती है, सीने में सांसें तेज़।
विराट की बंदूक उस पर तनी हुई।
विराट: “क्यों किया ऐसा? तुमने मेरे साथ खेला?”
अवनी: “जिस खेल की तुमने नींव रखी थी, उसी में गिर गए अब?”
विराट: “तुमने समर से हाथ मिलाया — गद्दारी की।”
अवनी: “वो वीडियो फेक था... पर तुम्हे तो सच्चाई नहीं चाहिए थी, ना?”
विराट: “मुझे सिर्फ़ तुम्हारा अंत चाहिए।”
अवनी: “फिर गोली चला दो विराट — मगर याद रखो, इस बार तुम सिर्फ़ मुझे नहीं मारोगे… अपनी बची-खुची इंसानियत को भी खत्म कर दोगे
विराट की आँखें काँप रही थी और हाथ भी उसकी उँगली ट्रिगर पर थी पर अचानक ही गोली पीछे से चल गई और इसने अर्जुन घायल हो गया था
सबने पीछे देखा तो पीछे खड़ा था समर खान खुद।
समर: “क्या हुआ, विराट? तू भी कमज़ोर निकला?”
अवनी और विराट दोनों चौंक गए थे
समर: “अब मज़ा आएगा… जब दोनों एक-दूसरे को मारेंगे — और मैं राजा बनूँगा।”
बाहर तेज़ बारिश हो रही थी। बिजली की चमक जब आसमान को फाड़ती, तो विराट की आँखों में वही आग जल उठती जो अब उसकी रग-रग में दौड़ रही थी। उस आग का नाम था — अवनी कपूर।
छत के नीचे एक पुरानी फैक्ट्री का स्टोर रूम था, जहां मजबूरी ने दो लोगों को फिर आमने-सामने खड़ा कर दिया था। दरवाज़ा तेज़ हवा में खुद-ब-खुद बंद हो गया। अब वो दोनों अंदर थे — और बाहर समर खान के लोग चारों ओर फैल चुके थे।
अवनी ने दीवार से पीठ टिकाई, और विराट को घूरा।"अगर मैं तुम्हारी दुश्मन हूँ, तो साथ क्यों लाए?"
विराट की आँखों में सन्नाटा था।
"क्योंकि मैं तुम्हें अपनी बंदूक से मारना चाहता हूँ, किसी और की नहीं।"
अवनी हँसी। कड़वी, थकी हुई हँसी।
"और मैं तुम्हारी आँखों में देखती हूँ — वहाँ अब भी वो लड़का है जो मुझसे नफ़रत करने से पहले मुझसे... कुछ और चाहता था।"
विराट पास आया। उसके कदम भारी थे, लेकिन इरादे सख़्त।"भरोसा नहीं कर सकता तुम पर। लेकिन फिलहाल समर को खत्म करना है। उसके बाद..."
उसने आगे बढ़कर उसकी आँखों में देखा —
"उसके बाद या तो तुम मरोगी... या मैं।"
अवनी ने सिर उठाया।"हम दोनों अगर ज़िंदा रह गए, तो क्या तब भी दुश्मनी बाकी रहेगी, विराट?"
वो खामोश हो गया।
पल भर की वो नज़दीकी — इतनी कड़वी थी कि उसमें नफ़रत भी काँप जाए। और उतनी ही गहरी... कि अगर कोई देखे, तो उसे प्यार की गंध भी लगे तभी एकाएक बाहर से गोलियों की आवाज़ आई।
अवनी ने खुद-ब-खुद विराट की तरफ देखा।
"समर आ चुका है।"
विराट ने बंदूक भरी।"तो अब वक़्त है — एक आखिरी बार साथ चलने का। लेकिन याद रखना... मेरी पीठ पर वार किया, तो खुद अपनी कब्र खोद लोगी।"
अवनी ने भी अपनी पिस्तौल उठाई।"मैं दुश्मन हूँ, विराट... लेकिन गद्दार नहीं।"
वो दोनों साथ निकले — एक छत के नीचे, एक दुश्मन के खिलाफ़।
मगर दिल में अभी भी तलवारें खिंची थीं — नज़दीकियाँ सिर्फ़ वक्त की मजबूरी थीं, जज़्बात अभी भी जंग में थे।
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विराट ने बंदूक भरी।"तो अब वक़्त है — एक आखिरी बार साथ चलने का। लेकिन याद रखना... मेरी पीठ पर वार किया, तो खुद अपनी कब्र खोद लोगी।"
अवनी ने भी अपनी पिस्तौल उठाई।"मैं दुश्मन हूँ, विराट... लेकिन गद्दार नहीं।"
वो दोनों साथ निकले — एक छत के नीचे, एक दुश्मन के खिलाफ़।
मगर दिल में अभी भी तलवारें खिंची थीं — नज़दीकियाँ सिर्फ़ वक्त की मजबूरी थीं, जज़्बात अभी भी जंग में थे।
समर खान की छतरी तले बारिश नहीं पड़ती थी।
वह जहां जाता, वहाँ सिर्फ़ खून की बूंदें गिरती थीं।
इस बार उसके सामने थे — दो दुश्मन जो कभी एक-दूसरे के लिए जान लेने को तैयार थे… और अब ज़िंदगी बचाने के लिए मजबूर होकर साथ खड़े थे।
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पुरानी मिल के तहखाने में चारों ओर अंधेरा और छिपे हुए दुश्मन।विराट ने चुपचाप अवनी की ओर देखा — वो अपनी जगह तैयार खड़ी थी। उसकी आँखों में वही ज़िद थी — लेकिन एक डर भी छुपा था, जिसे वो किसी को नहीं दिखाना चाहती थी।
"तैयार हो ?" विराट ने पूछा, बिना भाव के।
"तुम्हें लगता है मैं नहीं हूँ?" उसने पलकें झपकाए बिना जवाब दिया।
"नहीं... मुझे बस याद दिलाना था कि अगर मरी, तो अपनी गलती से मत मरना।"
अवनी का चेहरा तमतमाया।"मरूंगी नहीं… लेकिन अगर किसी को ढाल बनाना पड़ा, तो शायद तुम्हें ही चुना जाए।" उनके बीच की यह खामोशी गोली से कम नहीं थी।
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तभी वो दरवाज़ा जो खुला हुआ था उसे देखते हुए दोनों आगे बढ़े, एकाएक चारों ओर से गोलियों की बौछार हुई।विराट और अवनी दीवार के पीछे छिप गए थे विराट ने अपने आदमियों को संकेत दिया — एक ओर से हमला शुरू हुआ।
फैक्ट्री का हर कोना आग की तरह जल उठा।
और तब — समर खान सामने आया।
लंबा कोट, हाथ में रिवॉल्वर और चेहरे पर वही मुस्कराहट जो इंसान के दिल को काट देती थी।
"वाह, दोनों प्रेमी साथ में आए हैं मुझे मारने?"
उसकी हँसी गूंज रही थी ।
विराट ने बंदूक तानी।"ये मोहब्बत नहीं... बदला है" समर खान!"
"और ये क्या है?"समर ने एक बटन दबाया — और दीवार पर एक स्क्रीन जल उठी।
स्क्रीन पर वीडियो: अवनी, अस्पताल में समर को कुछ देती हुई।
विराट का चेहरा सख्त हो गया।अवनी ने स्क्रीन की ओर देखा — और सर झटका।
"फिर से वही पुराना खेल, समर?" अवनी ने कहा
"ये पुराना है — मगर असरदार है।" समर मुस्कराया।
विराट: "अब बहानों का वक्त नहीं है, अवनी।"
अवनी (गुस्से से): "अगर तुम एक सेकंड के लिए सोचते हो कि मैं इस आदमी की मदद कर सकती हूँ… तो फिर तुम कभी मुझे जानते ही नहीं थे।"
विराट: "और शायद मैं जानना भी नहीं चाहता था।"
इतना बोलते ही गोलियों की आवाज़ फिर शुरू हो गई थी
अवनी साइड हो गई थी समर खान भी छुप कर वार कर रहा था अवनी ने देखा कि समर एक गुप्त पोजीशन में है और विराट को निशाना बना रहा है। समर ने विराट को प्वाइंट किया हुआ था और अगले ही पल गोली चलती उससे पहले ही अवनी दौड़ी, और विराट को धक्का दे दिया —और वो गोली सीधे जाकर अवनी को लगी!" विराट ने जल्दी से खड़े होकर देखा तो मानो वक़्त जैसे थम गया होविराट की आँखों में वो दृश्य जला — जैसे आत्मा को जलाने वाली कोई आग।
"अवनी...!" उसने अवनी को गिरते हुए पकड़ लिया।खून उसके हाथों में था।
"तुम पागल हो?" उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।
अवनी की साँसें लड़खड़ा रहीं थीं।
"तुम्हें... मार नहीं सकती थी... भले मैं ही मर जाऊं…"
विराट के माथे पर शिकनें थीं, और आँखें नम। वो जो आज तक नफ़रत करता रहा, आज उसका टूटना अपनी आँखों से देख रहा था।
"तुम मरने वाली नहीं हो , सुन रही हो न?"
उसने अपने लोगों को चिल्ला कर मदद मंगाई।
समर अब पीछे हट रहा था — मुस्कराता हुआ।
“देखा? ज़ख़्म तो चीखते नहीं, लेकिन दिल में छेद कर जाते हैं।”इतना बोल वो गायब हो गया था
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अस्पताल के रास्ते में विराट ने अवनी को गोद में उठाया था, उसकी साँसें धीमी थीं, और होंठों से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला...
"विश्वास..."
विराट का सीना भारी हो गया।
वो जो कहता था कि कोई उसकी दुनिया में नहीं घुस सकता — आज उसकी दुनिया उसी के हाथों में धड़क रही थी। और उसे इस बात का अहसास भी था,
कुछ देर बाद अवनी ऑपरेशन थिएटर में थी डॉक्टर अंदर उसका इलाज कर रहे थे विराट बाहर खड़ा था दीवार से टिक कर।
मॉन्टी आया। "सर… समर भाग गया।"
विराट की आँखों में आग थी मगर अब उसमें दर्द भी था।"अब ये सिर्फ़ जंग नहीं रही, मॉन्टी…
अब ये मेरा हिसाब है — उसके हर झूठ, हर ज़हर, और… इस ज़ख़्म का।"
हॉस्पिटल की दीवारों पर न जाने कितनी चीखें कैद थीं — लेकिन इस कमरे में सिर्फ़ एक ख़ामोशी थी… और एक अधूरी साँस।
विराट दरवाज़े के बाहर खड़ा था — काँच से झांकते हुए।
अवनी के चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क था, सीने पर पट्टी बंधी थी और उसकी आँखें अब भी बंद थीं।
हर beep की आवाज़ उसके सीने में एक तीर की तरह चुभ रही थी।
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“वो बस एक गोली थी…”
मॉन्टी ने धीरे से कहा।
"पर सीधी दिल के करीब लगी थी," डॉक्टर ने जोड़ा, "अगर कुछ मिनट और लेट हो जाते… तो…"
विराट ने डॉक्टर की बात बीच में ही रोक दी।
"वो नहीं मरेगी।"
उसकी आवाज़ नर्मी से ज्यादा, आदेश जैसी थी।
अंदर का सन्नाटा और बाहर की खामोशियाँ
रात कब बीत गई, किसी को पता नहीं चला।
विराट वही बैठा था — अवनी के सिरहाने, उसकी उंगलियाँ अपनी हथेली में थामे।
कभी उसकी साँसें गिनता, कभी खुद से सवाल करता।
"तू क्यों आई मेरे सामने, अवनी?"
उसने खुद से पूछा, धीरे से।
"क्यों बचाया मुझे, जब तुझे हक था मुझे खत्म करने का?"
वो पहली बार टूटा था — और टूटने में भी खामोश था।
सुबह की पहली रोशनी… और एक हल्की सी हरकत
अवनी की उंगलियाँ हिलीं।
विराट ने चौंक कर देखा — उसकी पलकें थरथराई, और फिर धीरे से खुलीं।
अवनी की धुंधली नजर सबसे पहले उसी पर पड़ी — विराट।
सिर पर बिखरे बाल, आँखों के नीचे काली रेखाएं, और होंठों पर कुछ अधूरे शब्द।
"तुम…"
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
"हां… मैं हूं
अवनी की धुंधली नजर सबसे पहले उसी पर पड़ी — विराट।
सिर पर बिखरे बाल, आँखों के नीचे काली रेखाएं, और होंठों पर कुछ अधूरे शब्द।
"तुम…"
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी।
"हां… मैं हूं
दो दिन बाद.......
विराट सिंह राठौड़ की सुबहें हमेशा शोर से भरी होती थीं—कभी फोन कॉल्स की आवाज़, कभी हथियारों की जांच, कभी वफादारों की रिपोर्ट। लेकिन आज की सुबह... एक अजीब सी चुप्पी लिए आई थी। हवेली के हर कोने में जैसे कोई सांस दबाकर बैठा हो।
विराट की आंखें अधखुली थीं, लेकिन मन पूरी तरह जगा हुआ था। बिस्तर पर उसकी बाजू खाली थी—जहां अवनी ने कल रात कुछ पल बिताए थे। एक अजीब सी गर्मी उस जगह पर अब भी बाकी थी, लेकिन वो लड़की... वो अब यहां नहीं थी।
उसने धीमे से करवट बदली और सिरहाने पड़ा उसका फोन उठाया। जैसे ही फोन ऑन किया, सबसे ऊपर मॉन्टी का मैसेज था:
"सर, कुछ देर में ज़रूरी बात करनी है। CCTV में कुछ मिला है।"
विराट ने मैसेज पढ़ते ही फोन एक तरफ रखा और उठ खड़ा हुआ। नाइट सूट की ऊपरी बटन अभी तक बंद थीं, लेकिन उसकी चाल में वही पुराना रौब था—जो दुश्मनों की नींद उड़ाने के लिए काफी था।
वो धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियों से नीचे उतरते वक्त उसकी नजरें खुद-ब-खुद लाइब्रेरी के दरवाज़े की तरफ घूम गईं—जहां कल रात अवनी आखिरी बार देखी गई थी। दरवाज़ा खुला था। हल्की रौशनी अंदर से बाहर गिर रही थी। वो एक पल को ठिठका, फिर उसके कदम खुद-ब-खुद उस दिशा में बढ़ने लगे।
"अवनी..."
उसने धीरे से पुकारा, मानो उसकी आवाज़ से ही जवाब मिल जाएगा।
अंदर झांका तो देखा, अवनी वहां नहीं थी। लेकिन मेज़ पर रखी एक किताब खुली पड़ी थी—"The Prisoner of Mind"—उसने तुरंत पहचान लिया। वही किताब, जो अवनी को लाइब्रेरी से पहली बार मिली थी और जिसे वो कई बार पढ़ते हुए देख चुका था।
विराट की आंखों में कुछ पल के लिए ठहराव आ गया। किताब के बीचोंबीच एक कागज़ रखा था। उसने धीरे से उठाया और पढ़ने लगा—
"कभी-कभी सबसे मजबूत दीवार वो होती है जो इंसान खुद के और अपने सच के बीच खड़ी कर देता है।"
वो लिखावट अवनी की थी—विराट अब उसे पहचानने लगा था। लेकिन ये लाइन... ये बस एक कोट नहीं था। ये एक संकेत था।
उसने फौरन फोन उठाया, "मॉन्टी, लाइब्रेरी और कॉरिडोर के CCTV फुटेज दो घंटे के अंदर भेजो। और एक और बात—हवेली के सारे स्टाफ से पूछताछ शुरू कर दो।"
"Yes, boss!"
फोन कटते ही विराट की आंखों में अब वो ठंडी शांति नहीं रही। उसकी जगह थी एक उबलता हुआ शक—क्या अवनी... कुछ छुपा रही थी?
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उधर, हवेली के एक कोने में...
अवनी की आंखें दीवार पर टिकी थीं। उसका चेहरा शांत था, लेकिन सांसें बारीक और भारी। उसके हाथ में एक डायरी थी, जिसमें उसने पिछले कुछ दिनों के हर एहसास को बारीकी से लिखा था।
"विराट को लगता है मैं बदल गई हूं। हां, बदली हूं। क्योंकि अब मैं सिर्फ डरी हुई लड़की नहीं हूं। मैं अब समझ गई हूं कि इस पिंजरे से निकलने के लिए सिर्फ साहस नहीं, चालाकी भी चाहिए।"
उसने डायरी बंद की और पास रखे लैपटॉप को ऑन किया। स्क्रीन पर वही CCTV फुटेज था जिसे कल रात उसने खुद एक्सेस किया था—एक गुप्त पासवर्ड से, जो उसे मॉन्टी की एक गलती से मिला था।
स्क्रीन पर एक सीन रुका था—विराट, एक अजनबी से मिल रहा था। चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन हाथ में... खून से सना हुआ रुमाल।
अवनी की आंखें सख्त हो गईं।
"वो सिर्फ माफिया नहीं है... वो एक राक्षस है जो चेहरे पर मासूमियत का मुखौटा पहनता है। और मैं... अब इस खेल में उसकी मोहर नहीं रहूंगी।"
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कुछ घंटों बाद...
विराट अपने प्राइवेट ऑफिस में बैठा CCTV फुटेज देख रहा था। मॉन्टी उसकी बगल में खड़ा था।
"सर, ये देखिए... रात 2:17 AM पर अवनी लाइब्रेरी से बाहर निकलती है, उसके हाथ में एक किताब और कुछ पेपर्स हैं। उसके बाद वो नीचे स्टाफ एरिया की तरफ जाती है। लेकिन वहां से आगे की फुटेज गायब है।"
"गायब कैसे?" विराट की आवाज़ में बर्फ जम चुकी थी।
"कोई कैमरा बंद नहीं किया गया, लेकिन फीड कट गई। जैसे किसी ने सिस्टम से छेड़छाड़ की हो।"
विराट उठ खड़ा हुआ। उसकी आंखें अब सवाल नहीं पूछ रहीं थीं, बल्कि जवाब ढूंढ रही थीं।
"वो मुझसे एक कदम आगे निकलने की कोशिश कर रही है, मॉन्टी," उसने धीरे से कहा, "और अगर ऐसा है... तो अब मुझे भी अपना असली खेल दिखाना होगा।"
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रात... हवेली का गुप्त तहखाना
अवनी धीमे कदमों से तहखाने में उतरी। उसकी सांसें तेज थीं, लेकिन चेहरे पर कोई डर नहीं। उसके पास एक डिवाइस थी—जिसे वो पुराने CCTV नेटवर्क से जोड़ने वाली थी।
उसने दीवार में एक खास ईंट को दबाया, और दीवार धीरे से खुल गई।
"तुम्हें लगता है मैं नहीं जानती इस हवेली में क्या-क्या छुपा है, विराट?" उसने बुदबुदाते हुए कहा।
अंदर एक छोटा कमरा था, जिसमें कुछ फाइल्स, पुराने हथियार, और एक कंप्यूटर टर्मिनल था।
अवनी ने कंप्यूटर ऑन किया और फाइल्स को खंगालने लगी।
"राठौड़ इंटरनेशनल... ब्लैक मनी... अंडरवर्ल्ड ट्रांसफर... ये सब सबूत हैं। अगर मैं ये दुनिया के सामने ले जाऊं तो..."
लेकिन तभी, कंप्यूटर स्क्रीन ब्लैक हो गई। और स्पीकर से विराट की आवाज़ आई—
"मुझे लगा था तुम यहां आओगी। इसलिए इंतज़ार कर रहा था।"
अवनी की सांसें रुक गईं।
"अवनी... इस खेल में तुम जीत नहीं सकती। लेकिन हारने का तरीका तुम्हारे हाथ में है। या तो सब कुछ छोड़कर मेरी बन जाओ... या फिर जिस सच्चाई की तलाश में हो, वो तुम्हें निगल जाएगी।"
अवनी की आंखों में अब सिर्फ दो रास्ते थे—या तो विराट के पास लौटना, या फिर पूरी दुनिया को उसकी सच्चाई दिखा देना। लेकिन दोनों ही रास्तों में... उसकी जान खतरे में थी।
कमरे की रौशनी धीमे-धीमे बुझने लगी। उसके चेहरे पर अब एक ठोस फैसला था।
"मैं झुकूंगी नहीं, विराट। और अगर मरना भी पड़ा... तो तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगी।" इतना बोल वो एक ही पल में वाह से निकल चुकी थी!" या बोले तो विराट ने उसे जाने दिया था!" ""
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(जारी...
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अवनी की आंखों में अब सिर्फ दो रास्ते थे—या तो विराट के पास लौटना, या फिर पूरी दुनिया को उसकी सच्चाई दिखा देना। लेकिन दोनों ही रास्तों में... उसकी जान खतरे में थी।
कमरे की रौशनी धीमे-धीमे बुझने लगी। उसके चेहरे पर अब एक ठोस फैसला था।
"मैं झुकूंगी नहीं, विराट। और अगर मरना भी पड़ा... तो तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगी।" इतना बोल वो एक ही पल में वाह से निकल चुकी थी!" या बोले तो विराट ने उसे जाने दिया था!" ""
हवेली की हवाओं में अजीब सी गूंज थी। वो सन्नाटा जो कभी एक सुरक्षा लगता था, अब साज़िश बन चुका था। रात के डेढ़ बज चुके थे। हवेली के सारे दरवाज़े बंद, सभी खिड़कियाँ शांत, और दीवारों पर पड़े अंधेरे की परतें अब डर से ज़्यादा रहस्य समेटे हुए थीं।
विराट सिंह राठौड़ अपने निजी ऑफिस में खड़ा खिड़की से बाहर देख रहा था। उसकी आंखों में वो ठंडक नहीं थी जो अक्सर उसे दूसरों से अलग बनाती थी—आज उनमें आग थी। पर एकदम सधी हुई, जैसे हर चिंगारी को वो खुद अपने अंदर कैद कर रहा हो।
पीछे से मॉन्टी की धीमी आवाज़ आई, "सर, हमने तहखाने की सुरक्षा बढ़ा दी है। अवनी अब वहां दोबारा नहीं जा पाएगी।"
"जा पाएगी," विराट ने धीमे से कहा, "अगर मैं चाहूं तो वो हर जगह पहुंच सकती है। अब मैं सिर्फ देखना चाहता हूं... वो खुद क्या चुनती है।"
मॉन्टी चुपचाप खड़ा रहा। वो जानता था, जब विराट ऐसे शांत लहजे में बात करता है, तब सबसे बड़ा तूफान पास होता है।
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उधर. अवनी का घर
अवनी दीवार के पास खड़ी थी। उसने आंखें बंद कर रखी थीं, लेकिन उसका मन जाग रहा था। भीतर की हलचल, बाहर की चुप्पी से कहीं ज़्यादा खतरनाक थी।
वो जानती थी कि विराट ने सब देख लिया होगा। उसका तहखाने में जाना, उसके सवाल, और शायद अब उसकी नीयत भी।
उसने अपनी पर्स से वो छोटी-सी पेन-ड्राइव निकाली जिसमें उसने राठौड़ परिवार की कुछ खास फाइल्स सेव की थीं। वो जानती थी कि ये पेन-ड्राइव उसकी जान से भी ज्यादा कीमती थी।
"अब वक्त आ गया है... उसे सब कुछ बताने का। लेकिन अपनी शर्तों पर," उसने खुद से कहा।
लगभग एक घंटे बाद...
हवेली के मेन हॉल में सिर्फ दो लोग मौजूद थे—विराट और अवनी, आमने-सामने बैठे दोनों, पहली बार ऐसे मिल रहे थे, जैसे अब कोई परदा बाकी नहीं रहा। और जेसे पहली बार मिल रहे हो,
विराट कुर्सी पर झुका हुआ बैठा था। आंखें उसकी आंखों में, लेकिन मुस्कान गायब।
"तुमने अच्छा खेला, अवनी। इतने चुपचाप तहखाने तक पहुंच जाना, फाइल्स निकालना... और मॉन्टी के सिस्टम से पासवर्ड चुराना—इम्प्रेसिव।"
अवनी की आंखें स्थिर थीं। "तुमने जो छुपाया वो उससे कहीं ज़्यादा चौंकाने वाला था। मैंने तुम्हें एक कैदी समझा था... फिर एक रक्षक, फिर शायद एक प्रेमी भी। लेकिन तुम... एक शातिर खिलाड़ी निकले, विराट।"
विराट का जबड़ा भिंच गया।"मैंने तुम्हें बचाया था, अवनी। अपने नाम से, अपने वजूद से, अपने खून से। और तुमने मेरी पीठ में छुरा घोंपा?"
"नहीं," अवनी ने धीरे से कहा, "मैंने सिर्फ तुम्हारा नकाब उतारा है। वो जो तुमने खुद को और पूरी दुनिया को पहना रखा है।"
एक क्षण को सन्नाटा छा गया। हवेली की दीवारों तक ने जैसे उनकी आवाज़ें सोख लीं।विराट धीरे से उठा और टेबल के किनारे चलकर खड़ा हो गया। उसने अपनी कलाई की घड़ी खोली और टेबल पर रख दी।"ये घड़ी मेरे पिता की आखिरी निशानी है। और मैं उसे कभी नहीं उतारता... जब तक कोई खेल आखिरी मोड़ पर न पहुंच जाए।"
अवनी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।"क्या मतलब?"
"मतलब ये," विराट ने उसकी ओर झुकते हुए कहा, "कि आज रात—या तो तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओगी... या फिर हमेशा के लिए इस हवेली से गायब कर दी जाओगी।"
अवनी की आंखों में आंसू नहीं थे—अब वो रोने से कहीं ज़्यादा आगे निकल चुकी थी। उसने अपनी पेन-ड्राइव निकाली और टेबल पर रख दी।
"ये रहा तुम्हारा डर। सारी सच्चाई... सबूतों के साथ। चाहो तो जला दो इसे। लेकिन याद रखना—मैं अब वो लड़की नहीं हूं जो डर के पीछे छुपती है।"
विराट ने पेन-ड्राइव उठाई, उसे देखा... फिर हंस दिया। एक ठंडी, धीमी हंसी।
"तुम सोचती हो, इससे मुझे खत्म कर दोगी? अवनी... तुम्हें मुझसे प्यार हुआ था, याद है?"
"हां," अवनी ने कहा, "और अब मैं उसी प्यार को खुद से निकाल रही हूं।"
दोनों के बीच अब सिर्फ एक टेबल की दूरी थी—लेकिन उस दूरी में नफरत, दर्द, मोहब्बत और बेवफाई की पूरी दुनिया खड़ी थी।
विराट ने अचानक एक कदम आगे बढ़ाया और अवनी की ठुड्डी को हल्के से पकड़ लिया।"तुम्हें लगता है, मैं तुम्हें जाने दूंगा?"
अवनी ने कांपती सांसों के साथ कहा, "तुम्हें लगता है, मैं अब तुम्हारे पास रुकूंगी?"
दोनों की आंखों में आंसू चमक रहे थे पर कोई गिरा नहीं।
रात बहुत शांत थी। हवाओं में हल्की ठंडक और शहर की रफ्तार में थमाव था। लेकिन विराट सिंह राठौड़ के दिल में एक तूफ़ान चल रहा था — ऐसा तूफ़ान जो उसे चैन से बैठने नहीं दे रहा था।
अवनी उसके घर से चुपचाप निकल गई थी… न कोई सवाल, न जवाब। और यह चुप्पी… विराट को काटने को दौड़ रही थी।
"वो मुझसे डरती है… मुझसे नफरत करती है… या फिर खुद से?"
विराट ने खुद से पूछा, जबकि उसकी उंगलियों में अब भी अवनी के बालों की हल्की खुशबू बसी हुई थी। वो लम्हा, जब अवनी ने उसकी तरफ देखा था — आंखों में दर्द, डर, और कहीं न कहीं एक टूटता भरोसा — विराट के दिल को खामोश कर गया था।
लेकिन वो विराट था।उसने खामोशी से जीना नहीं सीखा था — उसने दर्द से लड़ना सीखा था।पर अवनी का दर्द… उसे बेबस कर रहा था।
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उधर, अवनी अपने कमरे में बैठी, घुटनों में सिर छुपाए, सांसें खींच रही थी — जैसे खुद को ज़िंदा होने का यकीन दिला रही हो।
"मैं क्यों रो रही हूं? क्यों उसके छूने से घबराहट के साथ-साथ कुछ और महसूस हुआ...?"
उसके अंदर एक युद्ध चल रहा था।
एक तरफ उसका खुद्दार मन था — और दूसरी तरफ वो सुकून जो विराट की नज़रों में छुपा था।
पर ये सब सुकून था या छलावा?
क्या वो शेर उसकी हिफाजत कर रहा है या बस एक पिंजरे की तरह प्यार का झांसा देकर उसे तोड़ रहा है?
--जारी है