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The prince of Dimensions

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stuty Kumari

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Description

यह कहानी है "वैयम" की — एक रहस्यमयी त्रैतीय आयाम का राज्य जो पृथ्वी से तीन आयाम दूर स्थित है। यहाँ समय रुकता है, दूरी मायने नहीं रखती, और आयामी द्वार पल-पल बदलते रहते हैं। इस राज्य के दयालु और शक्तिशाली राजा वेनार्थ पर सबका विश्वास है, पर जब एक आकाशव...

Total Chapters (15)

Page 1 of 1

  • 1. The prince of Dimensions - Chapter 1

    Words: 1067

    Estimated Reading Time: 7 min

    पृथ्वी से तीन आयाम दूर एक देश  था , जिसके बारे मे उस आयाम के लोग भी सही से नही जानते थे । पृथ्वी के लोगो के लिए इन चीजो का कोई  अस्तित्व  ही नही था । उस राज्य  का नाम था - "वैयम "





    आकाश में तैरता हुआ एक सुनहरा महल ।  यहा इधर-उधर आयामी द्वार लहरों की तरह खुलते-बंद होते हैं । लोग एक पल में गायब होते हैं और  अगले ही पल किसी दूसरी जगह प्रकट हो जाते हैं । यहा के लोग आयामी द्वार  बनाने मे अभ्यस्त  है ।


    जहाँ समय झुकता है, और दूरी मायने नहीं रखती... वही  जगह है त्रैतीय आयाम का देश वैयम । एक ऐसा देश  जहाँ के निवासी एक आयाम से दूसरे में विचरण कर सकते हैं और इस राज्य का संरक्षक है राजा वेनार्थ – एक दयालु लेकिन शक्तिशाली सम्राट । इनकी शक्तिया इतनी है कि पूरे देश  के लोगो की कुछ शक्तियो के आधार वह ही है ।

    सीन 1

    वैयाम देश के राजमहल  का  सिंहासन कक्ष

    सिंहासन कक्ष में प्रवेश करते ही जैसे समय रुक जाता है । दीवारें आयामी पत्थरों से जड़ी हैं, जो हल्की-हल्की रोशनी बिखेरते हैं — कभी नीली, कभी सुनहरी । छत पर विशाल जड़े हुए झूमर, जिनसे आयाम-ऊर्जा की लहरें टपकती हैं, पूरे कक्ष को दिव्यता का स्पर्श देती हैं ।

    कक्ष के बीचोंबीच बना है राजसिंहासन — काले और सफेद संगमरमर से तराशा गया, जिसके पीछे विशाल खिड़की से आकाश की विविध छायाएँ झलकती हैं । सिंहासन के पीछे उकेरे गए हैं वैयम के पूर्वज राजाओं की छवियाँ, जो अपने उत्तराधिकारी को देखती प्रतीत होती हैं ।

    सिंहासन पर बैठा है राजा वेनार्थ , आँखों में तेज, चेहरे पर शांति — एक ऐसा शासक जो अपनी शक्ति से अधिक अपने हृदय से शासन करता है  और अपनी प्रजा का नायक है ।


    ---



    उस कक्ष में एक बुज़ुर्ग स्त्री, अपनी दस वर्षीय पोती के साथ, घुटनों के बल बैठी है । उनके वस्त्र फटे हैं, चेहरे पर दुख की लकीरें हैं ।

    राजा वेनार्थ  (सिंहासन से उठते हुए, नीचे उतरते हैं) , फिर  करुणामय  आवाज  मे कहते है -

    "राजा वहीं महान होता है, जहाँ प्रजा रोती नहीं । बताओ माता, कौन सा  दुःख तुम्हें यहाँ तक खींच लाया ?"

    बुज़ुर्ग स्त्री (काँपते स्वर में):

    "महाराज... हमारे गाँव में सूखा पड़ा है । मेरे बेटे की मृत्यु हो गई । अब ये बच्ची और मैं अनाथ हैं । हमें खाने को कुछ नहीं मिलता ।"

    दरबार में सन्नाटा ।  यह सुन कर  सारे लोग  शाॅक  थे कि ऐसा कैसे हो सकता  है  कि वैयम  देश  मे ऐसा कुछ  हो गया हो और  उसकी किसी को खबर  नही लगी । सबकी निगाहें राजा पर टिकी हैं ।

    राजा वेनार्थ (रानी अमाया की ओर देखते हैं, फिर सेनापति अग्रद को बुलाते हैं):

    "सेनापति अग्रद, आज से इनका जीवन वैयम की जिम्मेदारी है । इन्हें महल की देखरेख में रखा जाए । बच्ची को शिक्षा और माता को सम्मान मिले ।"


    फिर वह बच्ची की आँखों में देखते हैं ।

    राजा वेनार्थ :

    " तुम्हारा बहुत  शुक्रिया । तुम  यहा सिर्फ अपना  दुख लेकर नहीं आईं, बेटी... तुम हमें याद दिलाने आईं कि हम राजा क्यों हैं ।"

    पूरे कक्ष में तालियाँ बजने लगती हैं । झारक जो राजा वेनार्थ  का भाई  था , वह थोड़ी देर तक मुस्कुराता है, फिर चेहरा नीचा कर लेता है — कुछ छुपाने के लिए ।


    ---
    सीन : 2




    राजकीय  काम पूरा करने के बाद राजा वेनार्थ सिंहासन पर बैठा है ।  उनकी  आंखों में थकान, चेहरे पर शांति थी । पास ही रानी अमाया भी बैठी थी ।

    रानी अमाया (धीरे से):
    "आपने इस राज्य को हर शत्रु से बचाया, हर संकट से उबारा… पर भगवान ने हमें संतान का सुख नहीं दिया, वेनार्थ ।"

    राजा वेनार्थ (संवेदनशील होकर):
    "मैंने सब कुछ सह लिया अमाया, लेकिन तुम्हारी आंखों में ये खालीपन… ये मेरी सबसे बड़ी हार है ।"

    रानी की आंखों में आंसू भर आते हैं ।

    सीन : 3


    रात्रि, महल का आंगन

    रानी आकाश की ओर देख रही हैं, हवाएं तेज़ चल रही हैं । तभी एक तेज़ चमकदार रोशनी आकाश से उतरती है – और आवाज गूंजती है .....

    आकाशवाणी (गूंजती हुई):
    "सुनो , माणिक  राजकुल की वंशज अमाया… तुम्हारी कोख से उत्पन्न होने वाला बालक… अद्भुत शक्तियों का स्वामी होगा । इक्कीस वर्ष की आयु में वह अजेय बनेगा । यदि वह सिंहासन पर बैठा… तो कोई शक्ति उसे हरा नहीं सकेगी ।"

    रानी स्तब्ध रह जाती हैं । महल में घंटियों की आवाज गूंजती है, आसमान में चमक दिखाई देती है ।

    रानी अमाया (आंखें बंद कर):
    "ईश्वर… क्या ये सच है?"

    सीन 4 – महल की एक छिपी जगह
    एक काला लिबास पहने शख्स – राजा का साला "जर्कस" – दीवार की ओट से सब सुन रहा है । उसकी आंखों में ईर्ष्या जल रही है ।

    जर्कस (क्रूर मुस्कान के साथ):

    "अगर वह बालक सच मे  अजेय होगा… तो यह राज्य कभी मेरा नहीं हो सकेगा ।  इसलिए उसे जन्म लेने से पहले ही खत्म करना होगा…"

    वह मुट्ठी भींचता है और परछाई में गायब हो जाता है ।

    सीन : 5

    महल की छत पर, राजा और रानी साथ खड़े थे ।

    राजा वेनार्थ:
    "अब मैं समझ पाया  हूँ… क्यों मेरी शक्तियाँ आज और प्रबल लग रही हैं । तुम्हारे गर्भ में वह संतान है, जो त्रैतीय आयाम को एक नई दिशा देगा और हमारा देश और  तरक्की करेगा ।"

    रानी अमाया (डरते हुए):
    "लेकिन आकाशवाणी को सुनकर कोई भी हमारे विरुद्ध हो सकता है… क्या हम उसे सुरक्षित रख पाएँगे ?"

    राजा वेनार्थ (दृढ़ होकर):

    "मैं उसे हर हाल में बचाऊँगा । अगर ज़रूरत पड़ी, तो इस पूरे आयाम की शक्ति छीन लूंगा – लेकिन उसे कुछ नहीं होने दूंगा ।"

    तभी अपनी शक्तियो का इस्तेमाल कर  वह एक आयाम  द्वार  का निर्माण  करता है जिसमे से केवल  वह , रानी अमाया और  उसकी संतान ही सफर कर  सकती थी ।

    यह  द्वार महल से धरती की ओर  खुलता है ।
    उस दरवाज़े के पार एक अलग, शांत, प्राकृतिक दुनिया दिखाई देती है – धरती ।


    "जब भविष्य की रोशनी जल उठती है, तो अंधेरा उसे निगलने की कोशिश करता है। यह कहानी है उस रोशनी की… जो आयामों को जोड़ती है, और नियति को बदल देती है ।"


    अगले भाग  मे जारी .....
    क्या वेनार्थ  अपने  बेटे की रक्षा कर पाएगा .....

    जानने के लिए  पढते रहे

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  • 2. The prince of Dimensions - Chapter 2

    Words: 1258

    Estimated Reading Time: 8 min

    एपिसोड 2 – "अंधविश्वास और  विश्वासघात

    सीन : 1


    राजसभा, वैयम राज महल

    राजा वेनार्थ अपने सिंहासन पर बैठे हैं ।  उनका भाई झारक बगल में खड़ा है, शांति से, जो इस देश का महामंत्री भी है । महल के गलियारों में हलचल है, क्योंकि आकाशवाणी की खबर फैल चुकी है । सब लोग आने वाले युवराज  के लिए  खुश थे , पर उन्हे अब तक  भरोसा नही हो रहा था ।

    राजा वेनार्थ:

    (गंभीर स्वर में)
    "आज वैयम की हवा में कुछ बदला-बदला सा है, महामंत्री झारक । लोगों की आंखों में उत्सव नहीं, चिंता है।"

    झारक:

    मुस्कुराते हुए, नकली सहानुभूति से
    "भाईसाहब, यह बदलाव नया जीवन लाने वाला है । जब कोई शक्ति जन्म लेती है, तो पुरानी शक्तियाँ डरने लगती हैं । यह सिर्फ समय का प्रभाव है ।"

    राजा वेनार्थ:

    (धीरे से मुस्कुराते हैं)
    *"तुम हमेशा शब्दों में सच्चाई ढूंढ लेते हो, झारक ।"


    (राजा झारक के कंधे पर हाथ रखता है)


    "अगर तुम्हारा साथ न होता, तो शायद मैं इतने वर्षों की पीड़ा सह नहीं पाता ।"

    झारक झुककर सिर झुका देता है, लेकिन  उसके चेहरे पे एक छुपे हुए व्यंग्यात्मक मुस्कान  होता  है ।


    ---

    सीन : 2

    रात का अंधेरा,

    गुप्त सुरंग (वैयम महल के नीचे)

    सेनापति अग्रद, एक भारी शरीर वाला, घातक रणनीतिकार, गुप्त सुरंग में टहल रहा है । तभी झारक भी वहा  आता है । दोनों गुप्त रूप से मिलते हैं ।



    अग्रद:

    (क्रोधित)
    " यह मूर्ख राजा अब भी तुम पर आँख मूँदकर भरोसा करता है? ये क्या मज़ाक है । यह राजा बनने योग्य ही नही है !"

    झारक:

    (शांत, पर शातिर लहजे में)
    "वो मेरा 'भाई' है अग्रद...  मै उसकी सबसे बड़ी कमजोरी हू । और यही कमजोरी उसे गिराने के लिए काफी है ।"

    अग्रद:

    "पर आकाशवाणी का क्या? अगर बच्चा अजेय हुआ, तो हमारे सारे प्रयास बेकार होंगे ! हमने इतने दिनो तक जो भी प्रयत्न किया ,सब विफल हो जाएगा । मै अपने प्रयासो को इस तरह बर्बाद होते नही देख सकता । झारक , हमे कुछ ना कुछ बहुत जल्द करना होगा ।"

    झारक (धीरे-धीरे चलता हुआ):

    "इक्कीस साल बहुत होते हैं किसी को मिटाने के लिए... पर हम उसके जन्म से पहले ही उसे मिटा देगे । उसके वजूद  को ही आग लगा देंगे । अमाया अब सुरक्षित नहीं है । मै बीज की जगह पेड को ही मार डालूंगा ।"

    उसकी बात  सुनकर अग्रद (घातक हंसी में ) के साथ  कहता है -

    " झारक,  क्या बात  कही है तुमने । इसलिए  तो मै तुम्हारा एडमायर  हू । अगर वह बच्चा जन्म ही न ले, तो अजेय बनने का सवाल ही नहीं उठता । उसे जन्मम ही नही लेने देंगे ।"

    दोनों एक नक्शा खोलते हैं जिसमें महल के आंतरिक भाग, रानी का कक्ष और आयामी द्वार दिखाए गए हैं ।


    ---

    सीन 3 –

    अमाया का शयन  कक्ष,

    उस समय  रानी नींद में है । लेकिन जैसे ही खिड़की से आने वाली सर्द हवा से पर्दा फड़फड़ाता है, वह चौंककर उठ जाती है । उसे किसी का साया नजर आता है ।

    रानी अमाया (धीरे से):

    "कोई है वहाँ...?"

    उसे कोई  जवाब  नही मिलता । वह सोचती है कि  यहा कोई नहीं है,  यह शायद  उसका भ्रम है । लेकिन उसी समय पर्दे की छाया में एक हल्का सा साया उसे दिखाई देता है । वह सिक्योरिटी गार्ड को बुलाने ही वाली होती है, तभी…

    राजा वेनार्थ अंदर आते हैं:

    "अमाया, सब ठीक तो है ?"

    रानी अमाया

    (चुपचाप सिर हिलाती है)


    "हाँ, पर एक अजीब-सी बेचैनी है... जैसे कोई हमारी निगरानी कर रहा हो । मुझे डर है कि कोई  मुझे नुकसान पहुंचाना चाहता है । मुझे अपनी परवाह नही , इस बच्चे की परवाह है ।"

    राजा वेनार्थ (उसके पास बैठते हुए) कहते है -

    "यह वैयम है, अमाया । यहाँ हवा भी हमारी रक्षा करती है ।  तुम  डर मत, मैं हूँ न । और झारक ने पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली है ।"

    रानी के चेहरे पर अब भी अशांति थी – उसे ये बात पूरी तरह संतोष नहीं देती, पर वह कुछ नहीं कहती ।


    ---

    सीन : 4

    अगली सुबह,

    महल के पिछवाड़े झील के पास

    (झारक अकेला खड़ा है, झील में खुद को निहारता है।)

    झारक (मन में):

    "वेनार्थ... तुमने मुझे भाई कहा । लेकिन तुम्हारा सिंहासन... वो मेरा अधिकार है ।
    अब समय है उसे छीन लेने का ।
    अब समय है 'वैयम' को नया उत्तराधिकारी देने का — मुझे । वेनार्थ... तुमने मुझे हमेशा अपना भाई माना... लेकिन क्या कभी मेरी आँखों में मेरा अधिकार देखा? नहीं ।"

    (थोड़ा रुककर)

    अब समय है — तुम्हारा सिंहासन मेरा हो । अब वैयम को तुम्हारे बेटे की नहीं, मेरी संतानों की ज़रूरत है । अब ये भूमि एक नए उत्तराधिकारी को जन्म देगी... मुझे ।"

    (पानी में उसकी परछाईं विकृत हो जाती है — मानो कोई अंधकार उसमें प्रवेश कर गया हो ।)


    सीन : 5

    वैयम महल का गुप्त तहखाना (रात)

    अग्रद और झारक महल के नीचे छिपे उस प्राचीन कक्ष में प्रवेश करते हैं, जिसे सदियों से बंद रखा गया था । दीवारों पर आयामी चिन्ह हैं जो हल्की रोशनी में चमकते हैं ।

    अग्रद
    (हाथ से जाले हटाते हुए)
    "यही है? यही वो द्वार है, जिसके पीछे वो शक्ति है जिससे हम जन्म को रोक सकते हैं ?"

    झारक
    (धीरे, मंत्रोच्चार जैसा स्वर)
    "यह कोई आम द्वार नहीं, अग्रद । यह ‘किरण-छाया द्वार’ है — जहाँ समय भी झुकता है । अगर इसे सही क्षण पर खोला जाए... तो जन्म को नष्ट किया जा सकता है, बिना किसी खून के ।"

    अग्रद
    (संदेह से)
    "पर इसका मूल्य क्या होगा, झारक? हर शक्ति का मूल्य होता है ।"

    झारक
    (आंखें बंद करते हुए, दीवार छूता है)
    "मैं वो मूल्य चुकाने को तैयार हूँ... क्योंकि मुझे सिर्फ सिंहासन नहीं चाहिए, मुझे अमरता चाहिए।"





    उनकी ध्यान  द्वार  पर जाता है जो धीरे-धीरे कांपने लगता है, जैसे जाग रहा हो ।


    ---

    सीन :6 –

    राजमहल, रानी अमाया का कक्ष

    अमाया नींद में कराहती है । पसीने से लथपथ है । वह सपना देख रही है — एक धुंधला चेहरा उसे पुकार रहा है, एक बच्चे की चीख... और काली परछाई जो धीरे-धीरे उसके गर्भ की ओर बढ़ रही है ।

    अमाया
    (नींद में चिल्लाती है)
    "नहीं!!... उसे मत छुओ!"

    राजा वेनार्थ दौड़ते हुए आते हैं, और उसे थामते हैं।

    वेनार्थ
    "अमाया! जागो... मैं हूँ, सब ठीक है।"

    अमाया
    (डरते हुए, आँखें खोलती है)
    "वो... कोई था... एक परछाई जो मेरे भीतर झाँक रही थी ।"

    राजा वेनार्थ
    (धीरे से उसे थामते हुए)
    "यह बस सपना था... बस एक डर ।"

    ( दीवार की एक दरार के पीछे कोई झांक रहा होता है। कुछ देख रहा है, चुपचाप — पर उसकी आँखें लाल हैं।)


    ---

    सीन :7

    एक रहस्यमयी जंगल, वैयम के बाहर

    एक बूढ़ा साधु, जिसके शरीर पर राख लगी है, और आँखें अजीब नीली रोशनी से चमक रही हैं, आग के सामने बैठा है ।

    साधु
    (धीरे-धीरे)
    "द्वार खुल चुका है ।
    अंधकार जाग चुका है।
    और वह... जो न जन्मा है... अब सबसे अधिक जीवित है।"

    (उसके सामने जलती लकड़ी में एक आकृति उभरती है — एक भ्रूण की — जो अंदर से रोशनी दे रहा है।)


    ---

    सीन :8

    महल की छत (रात)

    झारक अकेला खड़ा है, उसके पीछे दूर से आग की लपटें उठ रही हैं — शायद द्वार खुलते ही कुछ क्षति हुई है।

    झारक
    (आकाश की ओर देखते हुए)
    "वक्त आ गया है वेनार्थ... तुम्हारे अंधविश्वास का सामना अब मेरी सच्चाई से होगा ।
    अब जो जन्म लेगा... वह या तो मेरा होगा, या फिर होगा ही नहीं ।"


    अगले भाग  मे जारी .......

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  • 3. The prince of Dimensions - Chapter 3

    Words: 1186

    Estimated Reading Time: 8 min

    अब आगे :-

    एपिसोड 3: धोखे का बीज

    (A Seed of Betrayal)

    तीन महीने बीत चुके थे... अमाया की कोख में पलता जीवन अब केवल वैयम का वारिस नहीं रहा — वह बन चुका था एक रहस्य, एक आशा, और सबसे बढ़कर... एक भय ।"

    "वक्त की रेत फिसल रही थी, और हर पल के साथ झारक का षड्यंत्र और भी विषैला होता जा रहा था । लेकिन अब वो अकेला नहीं था । उसके साथ था — जर्कस । एक नाम, जो वैयम के काले जादू का सिरमौर रहा था... और अमाया का... बड़ा भाई ।"

    झारक के लिए यह केवल एक सत्ता प्राप्ति का  खेल था... लेकिन जर्कस के लिए? यह युद्ध था अपने भीतर के भाई से, अपनी बहन से... और उस वंशज से, जो अंधकार को मिटा सकता था ।"

    सीन :1

    लोकेशन: शाही दरबार

    शाही महल की दीवारों पर जले दीपकों की लौ किसी अज्ञात आशंका से काँप रही थी । रात की हवा ठंडी थी, लेकिन वैयम की रानी अमाया के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं । वे सिंहासन के समीप खड़ी थीं, और राजा वेनार्थ मंत्रियों से गहन चर्चा में व्यस्त थे ।

    “हमारे आयाम की सीमाएँ बंद हैं,” वेनार्थ ने ठंडे स्वर में कहा । “अब कोई न बाहर आ सकता है, न भीतर । लेकिन हम इस बंधन  को भी चुनौती की तरह स्वीकारेंगे । वैयम झुका नहीं करता ।”

    उसकी आवाज़ दृढ़ थी, पर अमाया को उसमें छिपी थकान सुनाई दी । वेनार्थ ने हँसना छोड़ दिया था । वह अब केवल सोचता था—रणनीतियाँ, सुरक्षा, और... अपने बच्चे की रक्षा ।

    अचानक अमाया की नज़र धुंधलाने लगी । उसकी साँसें तेज़ हो गईं । कुछ था... कोई परछाई... कोई उपस्थिति... जो उनके समीप आ चुकी थी ।

    “अमाया?” वेनार्थ उसकी ओर दौड़ा, जब रानी लड़खड़ाती हुई दीवार का सहारा लेने लगी ।

    “मैंने... महसूस किया...” उसकी आवाज़ फुसफुसाहट सी निकली, “कोई हमारे पुत्र को देख रहा है... उसकी ओर खींचा चला आ रहा है...”

    वेनार्थ ने तुरंत उसे थाम लिया । उसकी आँखें भय से फैल गई थीं ।


    ---
    सीन : 2


    दूसरी ओर... अंधकार में...

    राजा का छोटा  भाई, झारक, एक पुरातन कक्ष में खड़ा था । कमरा ठंडा था, पर उसकी आत्मा में लपटें थीं । उसकी आंखें बुझी नहीं थीं — वे जली हुई थीं ।

    “तुम्हारे इरादे खतरनाक हो सकते हैं,” उसके पीछे खड़े अग्रद ने कहा । वह वैयम का सेनापति था, लेकिन उसकी निष्ठा अब धुंधली हो चुकी थी ।

    “खतरनाक?” झारक हँसा, लेकिन उस हँसी में संगीत नहीं था, केवल ज़हर था । “खतरनाक वो संतान होगी जो पैदा होते ही देवताओं से ऊपर बैठाई जाएगी। और मैं... मैं फिर से उपेक्षित रह जाऊँगा ?”

    उसने एक शिला छुई। वह शिला, जो सदियों से किसी के रक्त को तरस रही थी। उसके स्पर्श से वह जीवंत हो उठी।

    “राजा सोचता है कि द्वार बंद हैं,” झारक फुसफुसाया, “लेकिन अंधकार के लिए द्वार नहीं होते ।”


    ---
    सीन :3

    रानी का शयन कक्ष


    रानी अमाया का सपना

    उस रात, अमाया गहरी नींद में थी, लेकिन उसकी आत्मा एक दूसरी भूमि पर भटक रही थी । चारों ओर धुंध थी, और उसके बीच खड़ी एक स्त्री... उसका चेहरा अस्पष्ट था, पर उसकी आँखें... जैसे उनमें पूरा ब्रह्मांड समाया हो ।

    “तुम्हारा पुत्र,” वह स्त्री बोली, “सिर्फ एक उत्तराधिकारी नहीं... एक भविष्य है । लेकिन ध्यान रहे, अमाया—कभी-कभी भविष्य को मिटा देने की योजना, उसके जन्म से पहले ही तैयार हो जाती है ।”

    “कौन हो तुम?” अमाया की आवाज़ टूटी हुई थी ।

    “मैं समय की प्रतिध्वनि हूँ,” वह बोली । “जब अंधकार का दरवाज़ा खुलेगा... मैं फिर आऊँगी ।”


    ---
    सीन :4


    सुबह – राजा और रानी का संवाद

    रात का तीसरा पहर था । महल की ऊँची छतों के नीचे, सन्नाटे में सिर्फ़ दीपों की लौ काँप रही थी । रानी अमाया अपने कक्ष की बालकनी में खड़ी थी । उसके लंबे केश हवा में लहराते जा रहे थे, और आँखें आकाश की ओर टिकी थीं — जैसे वहाँ कोई उत्तर हो, जिसे वह देखना चाहती थी।

    पीछे से राजा वेनार्थ आया। उसकी चाल भारी थी, और आँखों में चिंता का गहराता समुद्र ।

    वेनार्थ:
    "तुम अब भी जाग रही हो, अमाया? क्या सपनों ने फिर से तुम्हारा पीछा किया?"

    अमाया धीरे से उसकी ओर मुड़ी, उसकी आँखें नम थीं, पर वो मुस्कुराई—बस दिखाने के लिए ।


    अमाया:
    "इस बार यह सपना नहीं था... यह कोई संदेश था । कोई चेतावनी । कोई... विलाप । जैसे किसी माँ की चीख, जो अपने अजन्मे शिशु को खो चुकी हो..."

    वेनार्थ उसका हाथ थामता है, उसकी हथेली को अपने सीने से लगाता है।

    वेनार्थ:
    "तुम्हारे डर भी मेरे हैं, प्रिय । मैं राजा हूँ, पर एक पिता भी । और एक पिता जब रात को सोते हुए भी जागता रहता है, तो समझ लो... कुछ बहुत बड़ा आने वाला है ।"

    अमाया:
    "मुझे डर है, वेनार्थ... डर है कि ये बच्चा, जिसे सृष्टि ने अपने सबसे पवित्र उद्देश्य के लिए चुना है, वो जन्म से पहले ही किसी की आँखों में काँटा बन गया है ।"

    वेनार्थ की मुट्ठियाँ भींच गईं । उसकी आवाज़ भारी और धीमी हो गई ।

    वेनार्थ:
    "जो कोई भी हमारे पुत्र की ओर एक बुरी नज़र भी डालेगा, मैं उसका अस्तित्व ही मिटा दूँगा । चाहे वो बाहर से आए या... हमारे भीतर ही छिपा हो ।"

    अमाया (धीमे स्वर में):
    "क्या तुम्हें भी कभी लगता है... कि धोखा हमारे अपने रक्त में छिपा है?"

    वेनार्थ चौंका । उसने कुछ पल अमाया की आँखों में देखा । फिर धीमे से बोला—

    वेनार्थ:
    "हाँ... कई बार । मुझे लोगो की चुप्पी, उनकी आँखों का गहराता अंधेरा... वो मुझे मेरे ही बंधुओं से अनजान बना देता है ।"

    अमाया:
    "अगर समय आ गया कि हमें किसी अपने से भी लड़ना पड़ा... तो क्या तुम अपने दिल को इतना कठोर बना पाओगे?"

    वेनार्थ (संघर्ष में):
    "अगर मेरे पुत्र का भविष्य उसके रक्त से लिखा जाना है, तो मैं अपने हाथों से इतिहास रचूँगा, अमाया । मैं राजा हूँ... और तुम माँ हो । हम सिर्फ़ जीवन देने वाले नहीं... जीवन की रक्षा करने वाले भी हैं ।"

    अमाया उसकी बाहों में सिमट गई, और पहली बार उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । लेकिन वे आँसू केवल भय के नहीं थे—वे संकल्प के थे ।

    अमाया:
    "तो चलो, वेनार्थ । अपने शिशु के लिए वैयम का हर पत्थर, हर तारा, हर द्वार... हमारा हो ।"

    वेनार्थ:
    "और जो हमारे रास्ते में आए, वह अंधकार हो या भाई—हम उसे मिटा देंगे । क़सम वैयम की..."

    सीन : 5

    धोखे का बीज

    कहीं दूर, महल के अंधेरे तहखाने में, झारक एक रक्तरंजित रूमाल पर वैयम की राजमुद्रा उकेर रहा था । उसके होंठ धीमे-धीमे कोई मंत्र बुदबुदा रहे थे । उसकी आँखों में जुनून नहीं था—बल्कि एक पागलपन था ।

    “अब खेल शुरू होता है,” वह बोला । “और इस बार, जीत मेरी होगी। उससे पहले कि वह पुत्र इस भूमि पर साँस ले... मैं उसकी साँसें चुरा लूँगा ।”

    अगले भाग मे जारी ........

    अब झारक के वार से अमाया बच पाएगी .....

    जानने के लिए पढते रहे ......

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  • 4. The prince of Dimensions - Chapter 4

    Words: 1447

    Estimated Reading Time: 9 min

    अब आगे :-


    वैयम की हवाओं में जब साज़िश की सरगर्मी घुल रही थी, जब सन्नाटे भी कानाफूसी करने लगे थे — तब रानी अमाया अपनी अंदर एक चमत्कारी जीवन को आकार दे रही थी ।
    हर पल, हर धड़कन एक संघर्ष थी — बाहर युद्ध की आहट थी और भीतर जन्म का इंतजार ।
    जब दुनिया के सबसे ताकतवर राज्य के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा था,
    तब एक स्त्री अपने भीतर उस आशा को पाल रही थी जो एक दिन अंधकार को हराएगी ।
    पर हर प्रकाश से पहले गहनतम अंधकार होता है… और आज वही रात है, जब एक माँ को दो जन्मों का सामना करना है — एक अपने पुत्र का... और एक अपने भाग्य का ।"

    ---

    सीन : 1


    वैयम का महल,


    शरद रात्रि की गूंजती हुई खामोशी में स्याह बादल मंडरा रहे हैं । तेज़ हवाओं के बीच महल के गगनचुंबी शिखर काँप रहे हैं जैसे कोई आसन्न तूफान उन्हें निगलने आ रहा हो ।

    अंदर — रानी अमाया का शयनकक्ष
    दीयों की रौशनी मंद हो चुकी है । अमाया की साँसें तेज़ हैं, पसीने से भीगा चेहरा, पर चेहरे पर मातृत्व की कोमल परछाईं है ।  तभी अमाया की एक जोरदार  चीख आती है और  सब कुछ  शांत हो जाता है । उसकी गोद में नन्हा शिशु है — शांत, दिव्य, और आँखें बंद किए जैसे किसी और लोक से आया हो ।

    तभी वहा घबराये हुए  वेनार्थ  आता है  । उसके चेहरे से परेशानी झलक  रही है ।


    वेनार्थ (गंभीर स्वर में):
    "अब और समय नहीं बचा अमाया । वो आ चुके हैं… मैं उनके कदमों की गूंज महसूस कर सकता हूँ ।"

    अमाया (कांपते स्वर में, पर माँ की दृढ़ता से):
    "हमारा बेटा... वैयम की अंतिम आशा है । मैं उसे कुछ नहीं होने दूँगी, वेनार्थ ।"

    *[अचानक एक ज़ोरदार धमाका होता है । महल की पूर्वी दीवार काँप उठती है । जर्कस की जादुई शक्ति से बना लाल ज्वालामुखी तीर महल की सुरक्षा पर प्रहार करता है ।

    झारक (दूर से गूंजती आवाज़):
    "छुपते रहोगे कब तक, राजन? आज रात्रि का अंत… तुम्हारे वंश का अंत होगा !"

    *[वेनार्थ तेजी से उठता है, अपना आयामी रत्न निकालता है और कमरे के मध्य में एक गोलाकार आकृति बनाता है । मंत्रों से बना हुआ दरवाज़ा हवा में आकार लेने लगता है — एक आयाम द्वार — जो नीले प्रकाश में जगमगा रहा  है ।]

    वेनार्थ (दृढ़, पर आँखें नम):


    " अमाया , यह द्वार पृथ्वी से जुड़ा है । वहाँ कोई तुम्हारा पता नहीं लगा पाएगा । जाओ अमाया... मैं तुम्हें और हमारे पुत्र को सुरक्षित देखना चाहता हूँ ।"

    अमाया (उसके पास आती है, बच्चे को प्यार करती है):
    "और तुम...? अकेले रह जाओगे इस युद्ध में?"

    वेनार्थ (हल्की मुस्कान, पर आँखें डबडबाई):
    "हर  राजा और  पिता की नियति  होती है कि वो अपने राज्य  और बेटे को बचाने के लिए खुद को आग में डाले । तुम जाओ... मैं अभी जिंदा  हूँ। जब तक मै जिंदा हू मै किसी शक्ति को तुम्हे या हमारे पुत्र को नुकसान पहुंचाने नही दूंगा ।"

    *[अमाया काँपते हाथों से बच्चे को एक सुरक्षात्मक झिल्लीनुमा  कार  जैसे वाहन में रखती है — वह विशेष कार एक आयामी रथ है, जो पृथ्वी के वातावरण के अनुकूल बना है । वेनार्थ उस कार को अपनी शक्ति से  आयाम द्वार के भीतर  धकेलता है ।]

    वेनार्थ (जोर से चिल्लाते हुए मंत्र पढ़ते हैं):
    "वायोम-इला-गर्त! द्वार खुल जा... और मेरे पुत्र को नई भूमि दे । "

    *[बच्चे वाली कार नीले प्रकाश में लुप्त हो जाती है, पृथ्वी की ओर प्रस्थान कर जाती है ।]

    *लेकिन... तभी अमाया का चेहरे का रंग बदल जाता है । वो वेनार्थ को देखती है — उसकी आँखों में वो पीड़ा है जो एक माँ महसूस करती है जब उसे अपना बच्चा छोड़ना पड़ता है ।]

    अमाया (धीरे, पर ठान चुकी):
    "मैं नहीं जा सकती..."

    वेनार्थ (हैरान):
    "क्या...? अमाया! तुम क्या कर रही हो?"

    अमाया (वापस द्वार की ओर आते हुए):
    "मेरा दिल... मेरे पुत्र के साथ चला गया, पर मेरा अस्तित्व अब भी आपके  साथ बंधा है, वेनार्थ । मैं आपको  अकेला छोड़कर कैसे जा सकती हूँ?"

    वेनार्थ (गुस्से और दर्द से):
    "यह पागलपन है! अमाया, उस बच्चे को तुम्हारी ज़रूरत है!"

    अमाया (आँखों से बहते आँसुओं के साथ):
    "और  आपको मेरी... उस युद्ध के लिए ... जो आप अकेले नहीं लड़ सकते । माँ बनना मुझे कमज़ोर नहीं करता, वेनार्थ... यह मुझे और भी शक्तिशाली बनाता है ।"

    *[अमाया द्वार को अपने हाथ से बंद कर देती है — द्वार धीरे धीरे मद्धिम  होता है और धीरे-धीरे बंद हो जाता है । अब वेनार्थ, अमाया और पूरा वैयम शत्रुओं के सामने है, पर उनके भीतर एक अलग शक्ति जाग चुकी है ।]

    *[दूर से जर्कस और झारक की परछाइयाँ अब और पास आती दिखती हैं ।]


    ---

    [ अमाया और वेनार्थ, दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे, महल की बालकनी में खड़े हैं — नीचे आकाश काला हो चुका है, और शत्रु उनके दरवाज़े पर है । पर अब यह केवल सत्ता की लड़ाई नहीं... यह एक परिवार का युद्ध है ।]


    ---




    ---

    Scene : 2 —

    पृथ्वी, एक सुनसान पहाड़ी रास्ता,
    घना कोहरा


    | समय: तड़के 4 बजे]

    वह आकाश जो अभी कुछ पलों पहले तक शांत था, अचानक एक सुनहरी चमक से जगमगा  जाता है ।
    एक नीली-रौशनी से ढकी कार आसमान से गिरती है, पेड़ों के बीच से गुज़रती हुई एक छोटी सी पहाडी  में आ टिकती है ।


    “वो जो एक आयाम में राजकुमार था… अब किसी और लोक में सिर्फ एक अनजान बच्चा है । लेकिन उसकी नसों में बहता है वो रक्त... जो उसे वापस  वैयम  जाने को मजबूर  करेगा  । वह आग की लपटों में जन्मा था ।”


    शिशु अब भी शांत है । उसके माथे पर चमकती एक नीली बिंदी सी रेखा है — वैयम की पहचान ।
    कार की खिड़कियाँ धीमे से खुलती हैं — स्वचालित सुरक्षा बंद होती है ।

    तभी एक व्यक्ति वहा से गुजरता है जिसका नाम  विजय था ।

    विजय (आश्चर्य से):
    "अरे बाप रे... ये क्या चीज़ है ... ये कहा से आया ...आसमान से...? गाड़ी...? और अंदर... बच्चा ....?!"

    [वह दौड़ कर आता है, कांपते हाथों से बच्चा उठाता है ।]

    विजय (धीरे से मुस्कराता है):
    "तू तो किसी और लोक से आया लगता है बेटा... चल, अब तू मेरा है ।"

    विजय उस बच्चे को अपनी गाड़ी में लेकर निकलता है । उसकी आँखों में पिता जैसी कोमलता है।]


    ---

    Scene : 3





    वैयम, महल के मुख्य द्वार | समय: रात का अंतिम प्रहर]

    (तेज़ संगीत, युद्ध की गूंज)
    वेनार्थ और अमाया एक साथ खड़े हैं — तलवारें, ढालें, और अमाया के चेहरे पर वह रौशनी जो किसी स्त्री को योद्धा बना देती है ।

    झारक (हँसते हुए):
    "बधाई हो, भाभी । माँ बनने की खुशी तो मना ही लो… पर अब तुम और तुम्हारा पति, दोनों इस राज्य को अलविदा कह दो !"

    जर्कस (धीरे, ज़हर से भरे स्वर में):
    "भले ही तुमने  बच्चे को छुपा लिया हो... उसकी शक्ति तुम्हारी मौत के बाद भी हमें मिल ही जाएगी ।"

    अमाया (आँखों में आँसू और आग):
    "तुम मेरे भाई कहलाने के लायक नहीं रहे, जर्कस । जब किसी और की गोद सूनी कर दी जाती है, तब एक माँ में रानी से भी बड़ा तूफ़ान जन्म लेता है !"

    वेनार्थ (गर्जना करते हुए):
    "वैयम की आत्मा तब तक जीवित है जब तक हम जीवित हैं । और आज, यह आत्मा लहू में भीग कर भी सत्य की लौ जलाएगी !"

    *[युद्ध शुरू होता है — गगन में बिजली, धरती पर रक्त।]
    झारक और जर्कस की सेनाएँ महल में टूट पड़ती हैं। अमाया और वेनार्थ अपने प्रचंड जादू से एक समय के लिए उन्हें रोकते है। लेकिन उनकी  संख्या  भारी है , जिस कारण वो लोग इन दोनो पर हावी हो जाते है ।

    *[वेनार्थ घायल होता है, पर फिर भी लड़ता है । अमाया उसकी रक्षा में कवच बन जाती है ।]

    (वॉयसओवर - गहराता हुआ)
    “कभी-कभी एक राजा की जीत उसकी अंतिम लड़ाई नहीं होती… उसकी असली विरासत वो बीज होता है, जिसे वह अपने आखिरी क्षण में धरती पर बोता है ।”


    ---

    वही दूसरी ओर विजय की गोद में वह बच्चा मुस्कराता है, दूसरी ओर वैयम जल रहा है ।

    अगले भाग  मे जारी .....

    "वैयम का वारिस धरती पर है... पर उसका अस्तित्व अब भी एक खतरे में है । क्‍या विजय उसे बचा पाएगा... या अंधकार उससे पहले पहुँच जाएगा?"
    जानने के लिए  पढते रहे ..........

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  • 5. The prince of Dimensions - Chapter 5

    Words: 1590

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे :-
     
    सीन : 1
     
    पृथ्वी,
     
     
    एक वीरान पहाड़ी सड़क
     
     
    | समय: तड़के का अंधेरा]
     
     
    हल्की बारिश हो रही है ।  जिस कारण  वहा धुंध छाया है ।  उसी  धुंध में डूबी एक पुरानी कार एक सुनसान मोड़ पर खड़ी है ।
     
     
     
    कार की पिछली सीट पर — रेशमी वस्त्रों में लिपटा एक नवजात  शिशु — उसकी मासूम आँखें खुली हैं,  वह जोर  जोर  से रो  रहा है … वो  रोते रोते ही अपने आस पास  का माहौल  देख रहा है… जैसे वह यह जानना चाह रहा  हो कि वो अकेला नहीं है या नही ।
     
    बच्चे के माथे पर एक नीला चिन्ह हल्के से चमकता है । वही चिन्ह जो वैयम के राजघराने की पहचान था ।
     
    तभी दूर से एक बाइक की रोशनी आती है । वह रुकती है । उस पर  एक सामान्य ग्रामीण, मजबूत कद-काठी का, पर चेहरे पर संवेदना और थकान का भाव लिए  एक इंसान  उतरा । उसका नाम है विजय है ।
     
    विजय (बुदबुदाते हुए):
    " इतनी सुबह…  इतनी बारिश  मे ये कार यहाँ क्या कर रही है ? और… ये  क्या ...बच्चे के रोने की आवाज  कहा से आ रही है … "
     
     
    वह घबराकर इधर उधर खोजता है और  तभी उसका ध्यान  कार की तरफ  जाता है ।  वह जल्दी से कार का दरवाज़ा खोलता है ।
     
     
    "हे भगवान… ये तो अकेला है… और ये चिह्न… ये कोई आम बच्चा नहीं लगता…"
     
    (बच्चा उसकी ओर देखता है । उसकी छोटी सी हथेली विजय की उँगली पकड़ लेता है ।)
     
    विजय (धीरे से, भावुक होकर):
    "तेरे जैसी मासूम आँखें… मैंने अपने बेटे में भी देखी थीं… जिसे मैंने खो दिया । शायद तू... मेरी अधूरी  कहानी का जवाब है।" उसी समय  उसकी नजर  आसमान  मे जाती है ,जहा नीला आयामी द्वार  बन  रहा था ।
     
    (आसमान में बिजली चमकती है । एक पल के लिए, विजय को वह नीला आयाम द्वार खुलता दिखता है, फिर गायब हो जाता है । वह सन्न खड़ा रह जाता है ।)
     
     
     
    विजय (धीरे से मुस्कराता है):
    "तू धरती पर आया है… पर मैं जानता हूँ… तू कहीं और का है… कोई और ही दुनिया का खून  तेरे रगो में है ।
    पर मुझे फर्क  नही पडता । तुम  मुझे मेरे बप्पा की दी हुई  सौगात  हो । आख़िरकार  बप्पा ने मेरी सुन ली । मै तुझे अपने बेटे जैसा नहीं… अपना बेटा ही मानूंगा ।"
     
     
     
    उसी समय  वहा एक रोशनी प्रकट हुई  -
      आज से   इस बच्चे का नाम…  नाम होगा — “ईव्यक्ष”।
    जिसका अर्थ है —
    'वो जो समय और आयाम की दृष्टि से जन्मा है । विजय , तुम्हे इस बच्चे का ध्यान  रखना है । यह किसी की उम्मीद  का सितारा है । यह आने वाली  अच्छे भविष्य की बुनियाद  है । "
     
    विजय बच्चे को गोद में उठाए, आसमान की ओर देखता है । धुंध के पीछे कहीं अमाया की मौन चीख गूंजती है - लेकिन यह बच्चा अब उस चीख का उत्तर बनेगा ।
     
    विजय  -" यह सिर्फ  और  सिर्फ  मेरा बेटा बनेगा । मै इसे कभी खुद  से दूर नही जाने दूंगा । मै इस मुसीबत  मे पडने नही दूंगा ।"
    ---
     
    नाम की व्याख्या — "ईव्यक्ष"
     
    संस्कृत जड़ों से: ई (काल/आयाम) + व्यक्ष (दृष्टि, दृष्टिगोचर)
     
    मतलब: "जो समय और आयाम की चेतना से जन्मा है", या "The One Seen Across Dimensions."
     
     
    सीन : 2
     
    नासिक
     
    नंदगांव
     
    विजय उस बच्चे को अपने साथ  लेकर  अपने गांव  आ जाता है फिर  वह  एक छोटे से कच्चे मकान  के पास  रुक जाता है और  अपनी वाइफ  को आवाज देता है ।
     
    विजय -" बाईको ,  सुनो । देखो मै क्या लेकर  आया हू ।"
     
    माया , जिसकी उम्र  लगभग  पच्चीस  साल  होगी , उसका बेटा एक साल  का था , तभी बीमारी की वजह  से मर गया था । वह अब दुबारा मा नही बन  सकती थी । वह बाहर  आई -" अहो , क्या हुआ  ? ऐसे जोर जोर  से आवाज  क्यो दे रहे हो ?  ऐसा कौन सा खजाना हाथ  लग गया है जो तुम  इतना शोर मचा रहे हो ।"
     
    उसकी बात सुनकर  विजय  बोल पडा -" बाईको  , देखो ,  बप्पा ने हमे हमारी जिंदगी का सबसे बडा खजाना दिया है । हमे हमारा बेटा वापस  मिल गया है ।"
     
    माया को उसकी बात सुनकर  कहती है -" अहो , क्या हुआ  ? तुम  बहकी बहकी बात क्यो कर रहे हो ? बप्पा ने तो सालो पहले मुझसे मेरा बेटा छीन  लिया । अब तो मै मा भी नही बन सकती ।"
     
    विजय -" बाइको , इसलिए  तो बप्पा ने हमारी झोली मे इतना खुबसूरत  औलाद  डाला है ।  " यह कह कर  वह  अपने साथ  लाए  उस बच्चे को उसकी गोद  मे डाल देता है । जिसे देख  कर  वह बहुत  खुश  थी ।
     
    ...........
     
     
     
     
    सीन: 2
     
    वैयम, राज महल का मुख्य द्वार
     
     
    समय: रात का अंतिम प्रहर
     
    पृष्ठभूमि में तेज़ युद्ध-ढोल, गगन में गड़गड़ाहट, और महल के द्वार पर आग की चमक
     
    अमाया और वेनार्थ दोनो एक-दूसरे की पीठ पर — तलवारें हाथ में, चेहरे पर राख, पर आंखों में सच्चाई की जलती लौ के साथ मुकाबला कर रहे है ।
     
    झारक (अपने अश्व से उतरता है, व्यंग्य से):
    "बधाई हो, आज तुम दोनो का आखिरी दिन है । अब इस राज्य पर मेरा शासन होगा ।"
     
    जर्कस (कंधे पर भारी कुल्हाड़ा रखकर, धीमे और ज़हर से भरे स्वर में):
    "बच्चा छिप गया… लेकिन उसकी शक्ति वैयम के खून में बसी है और तुम्हारा अंत ही वो द्वार खोलेगा, अमाया।"
     
    अमाया (साँसें तेज़, आँखों में बर्फ और आग का संगम):
    "जिस दिन तुमने माँ की ममता को चुनौती दी थी, उसी दिन मौत ने तुम्हें गिनना शुरू कर दिया था, जर्कस । अब जो आएगा… वो तूफ़ान नहीं, तुम्हारे पापों की सज़ा होगी!"
     
    वेनार्थ (एक कदम आगे बढ़ते हुए, तलवार उठाकर):
    "यह युद्ध शक्ति का नहीं… यह युद्ध आत्मा का है! वैयम की आत्मा हम हैं — और जब तक हमारी साँसे चलती हैं, ये मिट्टी तुम्हारी गंध बर्दाश्त नहीं करेगी!"
     
    (एक क्षण के लिए सन्नाटा। फिर…)
    BOOM!! — आग का गोला मुख्य द्वार को चीर देता है।
     
     
     
    अमाया ने हाथ उठाया — नीली ऊर्जा की ज्वाला से एक लहर झारक की सेनाओं को दस गज पीछे फेंक देती है।
     
    वेनार्थ अपने ढाल से एक तीरों की बौछार रोकता है और दुश्मनों की तीन गर्दनें एक साथ उड़ा देता है।
     
     
    जर्कस और झारक अपनी सेनाओं को संकेत देते हैं —
     
    विशालकाय लोहे के जानवरों जैसे सैनिक आगे बढ़ते हैं।
     
    जमीन कंपकंपाती है ।
     
     
     
    अमाया (किसी योद्धा देवी की तरह):
    "वेनार्थ, पीछे हटो! इस बार मैं तुम्हारी ढाल हूँ ।"
     
    अमाया हाथ फैलाती है — आसमान से बिजली गिरती है, और दुश्मन चीखते है । लेकिन उनके पीछे कई गुना भारी सैन्य बल है ।
     
    वेनार्थ, घायल हो चुका है — बायां कंधा लहूलुहान । पर आँखों में वह लौ अब भी जल रही ह ै। वह अमाया की ओर देखता है ।
     
     
    वेनार्थ (काँपते स्वर में):
    "अगर हम गिरेंगे भी, तो इतिहास थमेगा नहीं । हमारा बेटा… वो हमारी कहानी को पूरी करेगा।"
     
    [झारक और जर्कस एक साथ हमला करते हैं]
     
    वेनार्थ और अमाया दोनों अपने प्राणों से युद्ध करते हैं।
     
    हर वार एक आग है । हर एक वार इस बात का प्रतीक था कि वैयम की सुरक्षा उन्हे प्राणो से ज्यादा प्रिय था ।
     
     
    "राजा और रानी हार नहीं रहे थे… वे एक वंश को बचाने के लिए मर रहे थे । एक बीज बो रहे थे… जो अंधकार के नीचे दबेगा, पर किसी नई दुनिया में सूरज बनकर उगेगा ।"
     
    झारक तलवार घुमाता है और वेनार्थ को सीने पर गहरी चोट पहुँचाता है । वेनार्थ ज़मीन पर गिरता है — रक्त से भीगा, पर मुस्कराता है ।
     
    अमाया (चीखते हुए):
    "वेनार्थ!"
     
    [वेनार्थ की आखिरी सांस —]
    *" हे देव , मेरे बच्चे को … बचा लो…"
     
    अमाया के चेहरे पर आंसू और गुस्से का तूफ़ान था । वो एक तीव्र वार से जर्कस के चेहरे पर गहरा घाव कर देती है, लेकिन संख्या भारी है । उसे दबोच लिया जाता है । हाथ बाँध दिए जाते हैं ।
     
    जर्कस (खून बहाते हुए, हँसते हुए):
    "बहन… देखो, आज तुम मेरी कैदी हो । और तुम्हारा बेटा… वह इस ताबूत का आखिरी कील बनेगा । उसे तो हम ढूंढ कर रहेंगें । तुम लोगो की कोशिश व्यर्थ रहेगी !" यह कह कर वह हंसने लगा ।
     
    सीन :4
     
     
    वैयम का कारावास
     
    अमाया बेड़ियों में जकड़ी है । शरीर घायल है, लेकिन उसकी आँखों में अब भी तेज है । उसके सामने झारक खड़ा है ।
     
    झारक (ठहाका लगाते हुए):
    "तुम्हारा बेटा अब तक मर चुका होगा… और वैयम अब मेरा है ।"
     
    अमाया (धीरे पर सख्ती से):
    "वो मरा नहीं है… वो साँस ले रहा है… और तुम्हारी हर साँस का हिसाब लेकर आएगा । वह अपनी मा और मातृभूमि के लिए एक दिन जरुर वापस आएगा । तुम अपने अंतिम समय की तैयारी शुरु कर दो ।"
     
    (झारक चिढ़कर बाहर चला जाता है । अमाया अपनी मुट्ठी भींचती है । उसकी आँखों में नीली आग जलती है — और एक धीमी फुसफुसाहट सुनाई देती है, जैसे आयाम खुद उससे कुछ कह रहे हों।)
     
    अगले भाग मे जारी....
     
    ईव्यक्ष की कभी अपनी सच्चाई जान पाएगा ......
     
    जानने के लिए पढते रहे ......
     
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  • 6. The prince of Dimensions - Chapter 6

    Words: 2412

    Estimated Reading Time: 15 min

    अब आगे :-






    सीन : 1

    डरपोक राजपुत्र



    विजय के घर का आंगन सुबह की सुनहरी धूप से नहाया हुआ था । मिट्टी की दीवारों पर पीले-सुनहरे किरणों की परछाइयाँ झिलमिला रही थीं । तुलसी के चौबारे के पास माया, लाल किनारी वाली सूती साड़ी में, हर रोज़ की तरह जल चढ़ा रही थी । उसका चेहरा शांत था, पर आँखों में कहीं एक असहज चिंता की लहर थी — जो पिछले कुछ वर्षों में ईव्यक्ष को देखकर धीरे-धीरे उग आई थी ।

    आंगन के एक कोने में, तुलसी के पेड़ से कुछ दूर, लगभग दस वर्ष का एक दुबला-पतला लड़का बैठा था । आँखों पर बड़ी-बड़ी पलकें झुकी हुई थीं और उसका चेहरा किताब के पन्नों में छुपा हुआ था, जैसे वह पूरी दुनिया से खुद को उस पुराने, फटे हुए पन्नों के बीच छुपा लेना चाहता हो ।

    “ईवू… ईवू .... बेटा कहा है तू ?” माया ने पुकारा, “बेटा, ज़रा बाहर जाकर तो देखो, बच्चे खेल रहे हैं । थोड़ा मन बहलाओ ।”

    ईव्यक्ष ने सिर उठाया । उसकी आँखें गहरी थीं, पर उनमें आत्मविश्वास का अभाव झलक रहा था । होंठ फड़फड़ाए, लेकिन आवाज़ नहीं निकली । फिर कुछ पल बाद उसने धीरे से कहा, “ मुझे नही जाना ... वो लोग  सब मिलकर  मेरा मजाक  बनाते है । वह लोग मुझे डरपोक कहते हैं, आई… मैं नहीं जाना चाहता । मै किसी लायक  नही हू । मै तो आपकी या बाबा की मदद  भी नही कर पाता । पता नही , मै ऐसा क्यो हू ?”

    माया का हृदय कस गया । वह धीरे से उसके पास आकर बैठ गई और उसके बालों को सहलाने लगी ।

    “सब कुछ समय से होता है बेटा । तुम जैसे हो, वैसे ही ठीक हो ।”

    पर वह जानती थी, सब कुछ ठीक नहीं था ।


    ---
    सीन :2


    गांव की पगडंडी पर

    बाहर गांव के बच्चे खुले मैदान में तीर-कमान, मिट्टी के घोड़े और छोटी सी लकड़ी की तलवारों से खेल रहे थे। लड़कों की टोली ने धूल उड़ाई हुई थी, और हवा में बच्चों की चिल्लाहटें गूंज रही थीं ।

    कुछ देर बाद  ईव्यक्ष संकोच से भरा धीरे-धीरे वहां पहुँचा । वह चाहता तो था कि उन सबके बीच घुल जाए, लेकिन आत्मा की गहराई में बसी असहजता उसे बाँध कर रखती थी । उसके पाँव खुद-ब-खुद धीमे हो गए ।

    उन बच्चों में से एक, मणिकेत, जिसने खुद को हमेशा ही  उस छोटे ग्रुप  का लीडर घोषित कर रखा था, उसे देखकर ठिठक गया । और फिर एक उपहासभरी हँसी के साथ बोला, “अरे-अरे! देखो कौन आया है! महाराज ईव्यक्ष!  वह महान  इंसान  जो डर के मारे खुद की परछाईं से भी काँप जाता है ।”

    उसकी बात सुनकर साथ खड़े दूसरे लड़के भी खिलखिलाने लगे ।

    “एक दिन रस्सी को साँप समझकर पेड़ पर चढ़ गया था… और  अपनी माँ को बुला रहा था — ‘माँ! माँ!’” दूसरे  लडके अरुण ने चिढ़ाते हुए नकल की ।

    ईव्यक्ष ने सिर नीचा कर लिया । चेहरा गर्म हो गया था, आँखों में पानी भर आया, पर उसने कोशिश की कि कोई देख न ले ।

    सारे बच्चे  उसका मजाक  बनाने लगे ।



    ............




    सीन :3


    अगला दिन

    दोपहर की धूप गांव की खुली ज़मीन पर तप रही थी । बबूल के पेड़ों की छांव में एक मैदान बसा था, जो बच्चों की चीखों-पुकार और हँसी से गूंज रहा था । धूल उड़ रही थी, और हवा में मिट्टी और पसीने की मिली-जुली गंध थी ।

    बच्चे कबड्डी खेल रहे थे । ईव्यक्ष एक कोने में खड़ा था, जैसे खुद से जूझ रहा हो कि खेल में हिस्सा ले या वापस चला जाए ।

    तभी उसे देख कर उन बच्चो मे से एक रघु ने कहा -"अरे डरपोक! आ भी जा, नहीं तो फिर मत कहना कि बुलाया नहीं!" बाकी बच्चे रघु का साथ  देते हुए  उसका  मजाक  उडाते हुए  कहा ।


    ईव्यक्ष हँसी की आवाज़ को निगलता हुआ मैदान में आ गया । उसकी चाल धीमी थी, आत्मविश्वास लगभग शून्य ।

    "तू हमारी टीम में नहीं," — एक लड़का बोला ।

    "हां, हां... इसे तो सामने वाली टीम में डालो । कम से कम जीतने का मजा आएगा ।"
    — और फिर ज़ोर का ठहाका ।

    ईव्यक्ष चुपचाप सिर झुकाए दूसरी टीम में चला गया ।


    ---

    खेल की चाल

    खेल शुरू हुआ । पहली बार ईव्यक्ष को रेड के लिए भेजा गया । वह घबराया हुआ सीमा रेखा की ओर बढ़ा, धीरे-धीरे "कबड्डी कबड्डी" की ध्वनि को दोहराता — लेकिन जैसे ही उसने सामने पैर रखा, रघु और उसके दोस्त जान-बूझकर उसके ऊपर झपट पड़े ।

    उसका संतुलन बिगड़ गया, और वह ज़मीन पर गिर पड़ा ।

    "अरे गिर गया! यह तो डरपोक है ।!"
    "इतना भी नहीं आता ?"
    "जा, स्कूल में टीचरों के पीछे बैठ, यही तेरे लायक है ।"

    बच्चे उसकी ओर मिट्टी फेंकने लगे, जैसे वह कोई खेल का हिस्सा नहीं, एक मज़ाक बन चुका हो ।

    ईव्यक्ष की आँखों में आँसू भर आए । उसके चेहरे पर धूल लगी थी, और पीठ पर छोटे-छोटे खरोंच । वह कुछ नहीं बोला । न पलट कर देखा, न जवाब दिया ।


    ---
    सीन :4


    अकेलापन

    वह चुपचाप मैदान से बाहर निकल गया ।

    पेड़ों के पीछे जाकर एक पत्थर पर बैठ गया, और अपने घुटनों में सिर छुपा लिया । उसकी साँसें तेज़ थीं, और आँखों से आँसू बहते जा रहे थे ।

    उसे अब भी याद था — स्कूल में जब टीचर ने उसकी तारीफ की थी, तब भी यही बच्चे चुपचाप खीझते हुए उसे घूर रहे थे ।

    "क्यों सब मुझसे नफ़रत करते हैं?"
    "मैंने क्या किया है?"

    इन सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे ।

    लेकिन दूर... बहुत दूर… हवा में कुछ बदल रहा था । जैसे किसी अनजाने आयाम में उसकी पीड़ा की गूंज सुनाई दे रही हो ।
    ---


    सीन :5


    रात का सन्नाटा

    ईव्यक्ष  खाना खाकर  सो चुका था । विजय घर लौट चुका था । हाथ-मुँह धोकर वह दीपक के सामने बैठा था, जबकि माया रसोई से तवा नीचे उतार रही थी । कमरे में सिर्फ़ दीये की मद्धम लौ जल रही थी, पर उसकी रोशनी में दोनों के चेहरों की चिंता साफ झलक रही थी ।

    “ अहो , वह आज फिर रोता हुआ आया,” माया ने धीमे स्वर में कहा, “  वह कुछ  बोलता भी नहीं, बस गुमसुम बैठा रहता है ... आंखों में वो चुप्पी... अहो , कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रहे हम ?”

    विजय ने एक लंबा साँस भरा, फिर कहा, “बाईको , मैंने एक बात सुनी थी... जो बीज पेड़ बनता है, वह जमीन में चुपचाप सालों छुपा रहता है । उसका बड़ा होना किसी को दिखता नहीं, जब तक वह एक दिन अचानक अंकुर बनकर बाहर नहीं आता ।”

    माया चुप रही ।

    “वो आम बच्चा है... ये तो हम जानते हैं । लेकिन जो सामान्य होते हैं, उन्हें समय की ज़रूरत होती है । उसका डर... शायद अभी उसका बचाव है । पर मुझे  यक़ीन  है कि एक दिन उसका डर उसकी ताक़त बन जाएगा ।”

    दीये की लौ हिल रही थी, जैसे समय खुद किसी तूफान से पहले थरथरा रहा हो ।


    ---

    सीन : 6

    विद्यालय की दीवारों के पीछे

    अगले दिन 

    गांव के छोटे-से विद्यालय की घंटी जैसे ही सुबह के समय बजी, धूल भरी हवाओं के बीच बच्चे एक-एक करके स्कूल की ओर भागते दिखे । किसी के हाथ में टिफिन था, किसी की पीठ पर किताबों का भारी बोझ । मगर इन सबसे अलग, अपने फटे लेकिन साफ़ यूनिफॉर्म में, ईव्यक्ष रोज़ की तरह समय से पहले स्कूल पहुँच चुका था ।

    उसका बैग एकदम करीने से रखा हुआ था, और आँखों में वही शांत-सी चमक थी जो उसके स्वभाव का हिस्सा बन चुकी थी । वह पढ़ाई में अव्वल था — मैथ, साइंस , इतिहास, कोई भी सब्जेक्ट हो, वह गहराई से पढ़ता और शिक्षक की हर बात को आत्मसात कर लेता ।

    शिक्षकगण उसे "बाबू " कहकर पुकारते थे, कभी उसकी पीठ थपथपाते तो कभी उसे क्लास में खड़े होकर पढ़ाने तक को कह देते । उसकी आंसर  शीट आइडियल मानी जाती थीं, और रिपोर्ट कार्ड में हर साल पहला स्थान उसी के नाम होता ।

    पर जहाँ एक तरफ़ शिक्षक उसके ज्ञान से प्रभावित थे, वहीं दूसरी ओर कुछ बच्चे — विशेषकर वही जो गांव के बड़े घरानों से थे — उससे चिढ़ने लगे थे । मणिकेत उनमें सबसे आगे था ।

    “बड़ों का चेला बन गया है ये डरपोक!” वह अक्सर अपने साथियों के सामने चिढ़कर कहता । “हर बार नंबर लूट लेता है… अबकी बार इसे सबक सिखाना होगा ।”


    ---

    सीन :7

    षड्यंत्र की छाया

    एक दिन की बात थी । साइंस  की लेबोरेट्री में ईव्यक्ष ने सौर मंडल का मॉडल बनाया था — हाथ से काटी गई गेंदों, धागों और लकड़ी के सहारे वह सुंदर-सा स्पेस  का दृश्य सजा रहा था । शिक्षक उसकी मेहनत से इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने स्कूल  में आयोजित होने वाली इंटर डिस्ट्रिक्ट  स्कूल  साइंस कंपीटीशन में उसी का मॉडल भेजने का निर्णय लिया ।

    बस यही बात मणिकेत को चुभ गई ।

    “अब ये ज़िला में नाम कमाएगा... और हम क्या करेंगे? तमाशा देखेंगे?” वह अपने दोस्तों से बोला ।

    फिर एक योजना बनी — और वह योजना खतरनाक थी ।


    ---
    सीन : 8


    घात

    अगले दिन जब सभी बच्चे स्कूल पहुँचे, तो खेल मैदान के पीछे बने जर्जर गोदाम की ओर मणिकेत ने ईव्यक्ष को बुलाया ।

    “हमने सुना, वहाँ किसी ने तुम्हारा सौर मंडल मॉडल गिरा दिया है,” उसने झूठ बोला । “जल्दी चलो, शायद अभी बच जाए ।”

    ईव्यक्ष घबरा गयाण। “वो मॉडल… मैंने बहुत मेहनत की थी…”

    बिना कुछ सोचे-समझे वह उनके पीछे-पीछे दौड़ पड़ा ।

    गोदाम सुनसान था । दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला, और अंदर अंधेरा था ।

    जैसे ही ईव्यक्ष अंदर गया, दरवाज़ा बंद कर दिया गया ।

    फिर... खटाक! किसी ने बाहर से कुंडी लगा दी ।


    ---

    सीन :9

    ईव्यक्ष  की खोज

    स्कूल  टाइम  पूरा होने के बाद  भी ईव्यक्ष  घर नही पहुंचा । यह देख कर  वह पगली सी दौड़ती हुई स्कूल आई । शिक्षक, विद्यार्थी और गांववाले इकट्ठा हो गए । सब मिलकर  ईव्यक्ष  की खोज करने लगे ।  खोज करते हुए  वह स्कूल  के गोदाम  के पास  पहुंचे । गोदाम के अंदर की हवा भारी थी — और वहां पड़ा लकड़ी का पुराना ढांचा अचानक गिर पड़ा था ।

    ईव्यक्ष उस ढांचे के नीचे दबने ही वाला था… लेकिन तभी—

    किसी अदृश्य बल ने उसे पीछे की ओर धकेल दिया ।

    उसके शरीर से हल्की-सी नीली चमक फूटी । उसके हाथ काँप रहे थे, आँखें बंद थीं, जैसे वह किसी अनदेखी शक्ति के संपर्क में आ गया हो ।

    दरवाज़ा खुलते ही सबने देखा — लकड़ी का मलबा बिखरा पड़ा था… और ईव्यक्ष ज़मीन पर बैठा काँप रहा था, मगर पूरी तरह सुरक्षित था ।


    ---





    माया और विजय की आँखों में भय और आशा दोनों थी । माया के लिए  यह  घटना बहुत  डरावनी थी । वह विजय  को यह समझ आ रहा था कि शायद  ईव्यक्ष  की शक्ति  जाग रही है जो वह बिल्कुल  नही चाहता था ।

    शिक्षकों ने उसके साथ हुई घटना की सख्ती से निंदा की । मणिकेत और उसके साथियों को सजा मिला, लेकिन उन्हें पता नहीं था — उन्होंने जो करने की कोशिश की, वही उस बच्चे के भीतर छुपी शक्ति को धीरे-धीरे जाग्रत करने का कारण बन गया ।



    सीन : 10

    नींद की परछाइयाँ

    उस दिन के बाद जैसे सबकुछ बदल गया था ।

    ईव्यक्ष भले ही बच गया था, पर वह वैसा नहीं रहा । उसके चेहरे पर थकान की एक अजीब-सी परत थी — जैसे कोई अंदर से उसे खोखला कर रहा हो । उसकी आँखें पहले जैसी मासूम नहीं रहीं, अब उनमें अनजाना डर और बेचैनी बस गई थी ।

    रातों में वह चीखकर उठ जाता, बिस्तर पर पसीने से लथपथ ।

    "वो... वो मुझे बुला रहा है..."
    उसकी काँपती आवाज़ हर बार माया के दिल में कांटे की तरह चुभती ।

    "कौन, बेटा?" माया सहमी आवाज़ में पूछती ।

    पर वह जवाब नहीं दे पाता । उसका चेहरा पीला पड़ जाता । कभी-कभी वो दीवारों को घूरता रहता, जैसे उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा हो ।


    ---

    सीन : 11

    सपनों की स्याही

    हर रात अब एक युद्ध बन चुकी थी — आँखें बंद होते ही ईव्यक्ष को वो चमकती हुई दीवारें दिखतीं, एक बड़ा नीला आकाश जिसके नीचे एक स्वर्णमहल जल रहा होता ।

    कभी-कभी एक घायल पुरुष की चीखें गूंजतीं — "बचाओ मेरे बेटे को..."
    और एक छाया — बड़ी, भयावह — हर बार उसकी ओर बढ़ती जाती ।

    कभी किसी द्वार से नीली रोशनी निकलती, तो कभी कोई शब्द उसके कानों में गूंजता जो किसी भाषा में नहीं होते... लेकिन फिर भी वह उन्हें समझता था । कभी कोई  काली परछाई  उसे निगलने की कोशिश  कर रही थी ।


    ---
    सीन :12


    माया और विजय की चिंता

    "वो ठीक नहीं है, अहो ," माया ने एक शाम कहा, जब ईव्यक्ष की आँखों के नीचे गहरे स्याह घेरे बन चुके थे ।
    "दिन में वो बोलता नहीं, रात में चीखता है । ये कोई सामान्य सपना नहीं है ।"

    विजय ने गहरी साँस ली । उसका हाथ कांप रहा था — क्योंकि वो जानता था, ईव्यक्ष उनके खून का नहीं था । और शायद… ये सब उसी से जुड़ा था ।

    "हमें कुछ करना होगा," माया ने कहा ।

    विजय ने सर हिलाया ।

    "मुंबई चलेंगे," उसने ठहरते हुए कहा । "वहाँ बड़े अस्पताल हैं । डॉक्टर हैं... शायद कोई मनोचिकित्सक..."

    "या कोई जो… आत्मा, स्वप्न, और इन सब बातों को समझे ।"

    माया की आवाज़ में एक नया डर था । उसे समझ आ रहा था — बात डॉक्टरों से आगे की है ।


    ---

    यात्रा की तैयारी

    अगली सुबह, उन्होंने एक छोटी सी गठरी बाँधी — ईव्यक्ष की दवाएं, स्कूल की किताबें, और एक पुराना माला जो गांव के मंदिर से माया लाई थी ।

    ईव्यक्ष शांत था, पर जैसे-जैसे ट्रेन स्टेशन के पास पहुँची, उसकी आँखों में फिर वो नीली चमक लौट आई — और एक फुसफुसाहट उसके कानों में गूंजी—

    "मुंबई नहीं... वैयम..."


    ---

    अगले भाग मे जारी .....

    मुंबई का सफर ईव्यक्ष के जिंदगी मे क्या मोड लाएगा ....

    जानने के लिए पढते रहे .......


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  • 7. The prince of Dimensions - Chapter 7

    Words: 2032

    Estimated Reading Time: 13 min

    अब आगे :-





    मुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में, तीन परछाइयाँ धीरे-धीरे घुल रही थीं—विजय, माया और उनका सोलह वर्षीय बेटा ईव्यक्ष ।

    गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू अब उनकी साँसों में धूल बन चुकी थी । मगर सपनों ने रुकना नहीं सीखा । विजय ने अपनी ज़िंदगी का हर हिस्सा दांव पर लगा दिया था—एक कमरे का छोटा सा किराए का घर, लंबी शिफ्टों वाली मज़दूरी, और थकी आंखों में बस एक ही तमन्ना—"ईवू पढ़ेगा... आगे बढ़ेगा..."

    माया, उसकी मां, एक शांत नदी की तरह थी । कम बोलती थी, पर हर खर्च, हर ज़िम्मेदारी को अपने धैर्य के साथ संभाल लेती । उसके हाथों की बनी रोटियाँ, ईव्यक्ष के लिए दुनिया की सबसे महंगी डिश होतीं । वो दोनो ही अपने बेटे को हर वह खुशी देने की कोशिश करते थे जो वो लोग दे सकते थे ।


    उन्होने उसका एडमिशन स्कूल मे करा दिया था ।

    वह अब स्कूल में टॉप करता था । उसकी मासूम आंखों में कुछ सवाल होते, कुछ सपने, और बहुत सारे डर ।

    वह हर बात पर चौंक जाता था । किसी के अचानक बोलने पर, किसी कुत्ते के भौंकने पर, यहाँ तक कि स्कूल की घंटी की तेज़ आवाज़ भी उसे विचलित कर देती ।

    पर उसका मन अनोखा था—उसमें एक अनदेखी गहराई थी, जैसे कोई समुद्र जो अभी शांत है, लेकिन एक दिन लहरों से भर जाएगा ।


    ---

    सीन :1

    क्लास टीचर मिसेस शर्मा ने मुस्कराते हुए कहा,
    "ईव्यक्ष, तुमने एक बार फिर मैथ्स में फुल मार्क्स लाए हो । क्या राज़ है तुम्हारी इस एचीवमेंट का?"

    ईव्यक्ष ने धीरे से जवाब दिया,
    "शायद... मैं बोलने से ज़्यादा सुनना पसंद करता हूँ, मैम । मुझे चीजो को गहराई से समझने का आदत है ।

    पूरी क्लास खामोश हो गई ।
    किसी ने पहली बार देखा, कि ये लड़का... अलग है । इसकी बातो मे भले ही आत्मविश्वास की कमी हो , फिर भी अपने गोल को लेकर वह स्पष्ट है ।


    ---

    शाम को स्कूल से लौटकर वह एक बुक स्टोर में पार्ट टाइम काम करता था—कभी किताबें सजाता, कभी रसीद बनाता ।
    जो पैसे मिलते, वह सीधा माया के हाथ में रख देता ।

    "आई , इस बार सब्ज़ी में टमाटर ज़रूर लाना... मुझे पसंद है ना," वह हौले से कहता ।

    माया की आंखें भर जातीं ।


    ---

    वो शक्ति जो उसकी रगों में सोई थी, अब भी गहरी नींद में थी ।
    उसे नहीं पता था कि जिस दिन वह जागेगी, वो पूरी कायनात को बदल कर रख देगी ।

    लेकिन तब तक...
    वह एक आम लड़का था ।
    डरपोक, मगर दिल से मज़बूत ।
    काँपता हुआ, मगर अपनों के लिए लड़ने को तैयार । वह एक साथ दो अलग अलग व्यक्तित्व को अपने मे समाये रखा था ।

    सीन :2


    वैयम से दूर...

    वैयम से अनगिनत प्रकाश वर्षों दूर, एक रहस्यमय आयाम में आरवेश नामक राजा शासन करता था । उसका राज्य ईग्मार सौंदर्य, शक्ति और ज्ञान का अद्वितीय संगम था । आरवेश केवल शक्तिशाली नहीं, बल्कि स्वर्गिक सौंदर्य का धनी था—उसकी आँखों में चाँदनी की शांति और स्वर में समंदर की गहराई थी ।

    किंवदंती थी कि एक दिन एक दिव्य आत्मा जन्म लेगी, जो ब्रह्मांड की ऊर्जा को संतुलित कर सकेगी । जब ईव्यक्ष का जन्म हुआ, तब ईग्मार की कुलदेवी अन्या ने आरवेश को दर्शन दिए । उन्होंने कहा—

    "जिस आत्मा का जन्म वैयम में हुआ है, वही तुम्हारा सोलमेट है—तुम्हारी शक्ति का विस्तार, तुम्हारे अस्तित्व का उत्तर। वह ही तुम्हे पूरा करेगा । वह सारे आयामो का राजा और तुम्हारा रानी बनेगा । अगर ऐसा नही हुआ तो बहुत बुरा होगा । "

    आरवेश का हृदय, जो सदियों से अकेला था, एक पल में किसी अदृश्य बंधन से जुड़ गया । उसे एहसास हुआ कि ईव्यक्ष केवल शक्ति का स्रोत नहीं, बल्कि उसका भाग्य है ।

    "मुझे उसे अपने पास लाना होगा..."
    उसने दृढ़ स्वर में कहा ।

    राजा आरवेश ने अपने आयाम के सबसे शक्तिशाली रहस्यमय योद्धाओं को तैयार किया—दृशां, लियोथ, और तैरुन—जिनका काम था ईव्यक्ष को पृथ्वी से सुरक्षित रूप से ईग्मार लाना ।

    लेकिन आरवेश को नहीं पता था कि वैयम की तबाही के बाद ईव्यक्ष अब एक सामान्य बालक के रूप में विजय के संरक्षण में है, और उसके अंदर छुपी शक्ति अभी निष्क्रिय है ।.....


    सीन : 3

    स्थान: ईग्मार का दर्पण-गर्भ, जहाँ ब्रह्मांड की ऊर्जा समय के झरोखों से झांकती है ।

    धुँधलाए हुए नीले प्रकाश में आरवेश अकेला खड़ा था, सामने एक विशाल जलदर्पण, जो अतीत और भविष्य दोनों को दर्शा सकता था । उसकी आँखों में एक अधूरी तलाश थी... और होठों पर एक खामोश इंतज़ार ।

    “कितनी बार ये जलदर्पण देखा है मैंने, और हर बार बस उसकी परछाई... पर उसकी आँखें, उसकी ऊर्जा... वो मेरी आत्मा में उतरती जा रही है । ईव्यक्ष... तुम कहाँ हो ?” उसने उस दर्पण को देखते हुए कहा ।

    राजा आरवेश एक लम्बा कद काठी , तीखे नयन-नक्श, त्वचा चाँदी के हल्के आभा लिए हुए था । उसकी आँखें नीले और बैंगनी के बीच बदलती हैं—भावनाओं के हिसाब से उसकी आंखो का रंग बदलता है ।



    उसे आयामों के द्वार देखने और खोलने की शक्ति है।
    वो किसी की आत्मा की ऊर्जा से पहचान सकता है कि वो कौन है—पर केवल जब वह शक्स उसके सामने हो ।

    उसके शब्दों में ऊर्जा होती है; जो वो कहे, वो सच होने लगता है ।

    उसका सबसे बड़ा डर है भावनात्मक जुड़ाव, क्योंकि ज वह जब भा किसी से जुड़ा, उसने उसे खोया ।
    उसे ईव्यक्ष से प्रेम है, पर उसे खोने का भय उसकी शक्ति को बाँध देता है ।

    सीन :4

    आरवेश ने गहराई से साँस ली, फिर अपने तीनों योद्धाओं—दृशां, लियोथ और तैरुन—की ओर देखा ।

    आरवेश (गंभीर स्वर में):
    “वह अब केवल भविष्य की कुंजी नहीं है... वह मेरा उत्तर है । वह मेरे अस्तित्व का एक अंग है ।
    तुम उसे लाओगे, पर ध्यान रखना—वह अभी नहीं जानता कि वह कौन है । उसे मत छूना, मत डराना । उसकी आत्मा अभी भी मासूम है ।”

    दृशां:
    “महाराज, क्या आप उसे अपने पास चाहते हैं... प्रेम के लिए, या शक्ति के लिए ?”

    आरवेश (धीरे मुस्कुराता है, आँखें झुकाकर):
    “कभी-कभी, प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति होता है ।”



    सीन: 5

    पृथ्वी की ओर पहला आगमन – “छाया और चेतना”

    स्थान: आयामी द्वार के किनारे, पृथ्वी की कक्षा के समीप एक अस्थिर ऊर्जा-मंडल ।

    आरवेश, नीले-काले वस्त्रों में, एक ऊर्जा गोले में लिपटा हुआ पृथ्वी की सतह पर देख रहा है । उसके आसपास तारे ठहरे हुए हैं, जैसे ब्रह्मांड भी उसकी बेचैनी को महसूस कर रहा हो ।

    आरवेश (खुद से ):
    “ वह यहीं कहीं है... उसकी ऊर्जा इस हवा में घुली है । मैं उसकी धड़कनें महसूस कर सकता हूँ, जैसे वो किसी सपने से मुझे पुकार रहा हो ।”

    वह हाथ उठाता है, उसकी हथेली से निकलती है नीली आभा जो पृथ्वी की ओर संकेत करती है—जहाँ विजय और माया, अपने बेटे ईव्यक्ष के साथ रहते हैं ।

    आरवेश की आँखों में हल्का कंपन होता है ।
    उसकी आँखों में जलदर्पण सी छवि उभरती है—एक किशोर, जो किताबें उठाए दौड़ रहा है... उसकी आँखें मासूम हैं, पर उनमें कहीं एक छुपी हुई दिव्यता है ।

    आरवेश (धीरे, फुसफुसा रहा हो):
    “तुम यहीं हो...”

    वह हाथ बढ़ाता है, जैसे उस छवि को छूना चाहता हो, लेकिन जैसे ही उसकी उँगलियाँ छवि के पास जाती हैं, वह बिखर जाती है... जैसे धुएँ में घुल जाती हो ।

    उसकी साँस तेज़ होती है, चेहरा कठोर, फिर भी पीड़ा से भरा ।

    आरवेश:
    “अभी नहीं... तुम्हारी शक्ति अब भी सो रही है । अगर मैं ज़ोर डालूँ, तुम्हें छीन लूँ, तो मैं तुम्हें तो पाऊँगा—but not your truth. And I want all of you... तुम्हारी आत्मा, तुम्हारा साथ... तुम्हारा प्रेम ।”

    वह पीछे मुड़ता है, पर एक आँसू उसके गाल से बह जाता है ।

    सीन:6


    “आँखें जो नींद में दिखीं”

    स्थान: मुंबई, एक छोटा फ्लैट – रात के 2:47 बजे

    कमरे में मंद नीली रोशनी है । ईव्यक्ष पढ़ाई की किताबों के बीच अधलेटा सो गया है । उसके माथे पर पसीना है, चेहरा बेचैन । अचानक, एक झटका खाकर वह उठता है।

    ईव्यक्ष (हांफते हुए):
    “वो... कौन था? इतनी... गहरी आँखें…”

    वह पानी पीने उठता है, लेकिन हाथ काँप रहे हैं। उसके जेहन में अभी भी सपना गूंज रहा है—


    ---



    धुंधली रोशनी । किसी मंदिर जैसे स्थान पर वह खड़ा है, पर खुद को देख नहीं सकता ।

    एक परछाईं उसके पास आती है । लंबा, चमकदार वस्त्र पहने एक अद्भुत पुरुष उसके सामने खड़ा है—आरवेश ।

    आरवेश की आँखें सीधे ईव्यक्ष की आत्मा को देखती हैं।

    आरवेश (धीरे, बिना आवाज़ के, पर सुनाई देता है):
    “तुम मुझे ढूँढ़ते नहीं, फिर भी मेरी ओर खिंचे चले आते हो । तुम मुझे नहीं पहचानते, फिर भी तुम्हारी धड़कन मुझे जानती है ।”

    ईव्यक्ष (सपने में):
    “तुम कौन हो?”

    आरवेश (मुस्कराकर):
    “तुम्हारा भविष्य... और शायद, तुम्हारा अतीत भी।”


    ---

    ईव्यक्ष का सपना टूट गया । उस की साँसें तेज़ हैं । वह शीशे में खुद को देखता है—एक साधारण, थोड़ा सहमा हुआ किशोर, लेकिन उसकी आँखों में आज कुछ अलग है... जैसे कोई दरवाज़ा अंदर से धीरे-धीरे खुल रहा हो ।

    ईव्यक्ष (धीरे, खुद से):
    “ये सपना था... या कोई मुझे देख रहा है ?”
    (रुकता है, फिर बुदबुदाता)
    “मैं... डर रहा हूँ, और मुझे नहीं पता क्यों ।”



    उस रात की नींद कुछ अलग थी”

    अगली रात.....

    मुंबई, रात 2:47 बजे

    कमरे में बिखरे थे स्कूल के नोट्स, बिस्तर पर अधखुली किताबें और खिड़की से झांकती ठंडी हवा । लेकिन इन सबके बीच, सोया था सोलह साल का एक लड़का—ईव्यक्ष।

    उसकी साँसें तेज़ थीं, माथा पसीने से नम, और होंठों पर एक अधूरा नाम… जो शायद अभी तक उसने कभी किसी से नहीं कहा था ।

    "आर...वेश..."
    उसके होंठ हौले से फुसफुसाए ।

    सपने में उसने पहली बार उसे देखा था।

    एक ऊँचा, तेजस्वी चेहरा, जिसकी आँखों में चाँदनी का जादू था। शब्द नहीं थे, फिर भी हर भाव बोलता था ।
    वह उसकी ओर आया, जैसे सदियों से उसका इंतज़ार कर रहा हो ।

    "तुम नहीं जानते, पर मैं जानता हूँ..."
    उसने कहा, और उसकी आवाज़ समंदर की लहरों सी लहराई।

    "मैं तुम्हारा अंत नहीं... शुरुआत हूँ ।"

    ईव्यक्ष का दिल ज़ोर से धड़कने लगा था । उसकी रूह ने जैसे किसी खोए हुए हिस्से को छू लिया था ।

    सपना टूटा ।
    और वह एक झटके में उठ बैठा ।

    उसका शरीर यहीं था, पर मन अब भी वहीं ठहरा हुआ था—उस अनजान आँखों में जो उसे पहली बार देख रही थीं, पर शायद जन्म से पहले से जानती भी थीं ।

    ईव्यक्ष (धीरे-धीरे खुद से):
    "ये कैसा सपना था... और क्यों ऐसा लग रहा है जैसे... मैं उसे जानता हूँ?"

    वह आईने के सामने खड़ा हुआ । खुद को देखा—एक साधारण सा लड़का । एक पल को लगा जैसे उसके चारों ओर कुछ बदल गया हो । जैसे कोई अनदेखा संगीत उसकी धड़कनों से बजने लगा हो ।

    वह खुद से नज़रें नहीं मिला पा रहा था ।

    और फिर... उसने ड्रॉइंग शीट उठाई । बिना जाने, बिना सोचे, बस पेंसिल उठाई... और बन गईं वे आँखें ।

    वही आँखें — गहरी, शांत, और उसे जानने वाली ।


    ---

    यह पहली बार था, जब ईव्यक्ष ने आरवेश की आँखों को कागज़ पर उतारा ।
    और ये पहली बार था, जब उसकी आत्मा ने किसी को पहचानना शुरू किया ।

    वही जर्कस और झारक दोनो ही लगातार उसकी खोज मे थे ।

    अगले भाग मे जारी .......

    आरवेश का आना ईव्यक्ष की जिंदगी मे क्या तूफान लेकर आएगा .......

    जानने के लिए पढते रहे .........

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  • 8. The prince of Dimensions - Chapter 8

    Words: 1900

    Estimated Reading Time: 12 min

    अब आगे :-





    सीन : 1


    "उसके सपनों में कौन उतर आया है?"

    अगली सुबह, मुंबई

    रसोई से चाय की ख़ुशबू कमरे में फैल रही थी । हल्की धूप बालकनी से अंदर आकर दीवारों पर सजी तस्वीरों को छू रही थी—विजय की हँसी, ईव्यक्ष की मुस्कान सजी थी ।

    माया चाय लेकर ईव्यक्ष के पास जाने लगी -" ईवू , ईवू , तैयार हो गया । मै तेरे लिए चाय लेकर आई हू । तभी उसकी नजर बेड पर चली जाती है , जहाँ उसका बेटा अब भी उनींदा सा बैठा था । हाथ में पेंसिल, गोद में स्केचबुक... और पन्ने पर एक चेहरा ।

    "ये कौन है ?"
    उसने खुद से फुसफुसाकर पूछा।

    वो आंखे... जो किसी राजा जैसी लगती थी । आँखें जैसे जादू, ऐसा लग रहा था जैसे बोल रही हों । माया ने झुककर देखा—हर लकीर में एक अपनापन था, लेकिन वो अजनबी था ।

    माया (धीरे से मुस्कुराते हुए):
    "बड़ा हो गया है मेरा बच्चा... अब दिल की बातें भी छुपाने लगा है ।"

    ईव्यक्ष की पीठ सीधी थी, पर उसकी आँखों में बेचैनी थी । उसे देखकर माया को कुछ अजीब-सा एहसास हुआ ।

    शायद एक माँ की छठी इंद्रिय थी, या शायद दिल का डर...
    "कहीं वो किसी ऐसे रास्ते पर तो नहीं जा रहा जहाँ मैं उसका हाथ नहीं थाम पाऊँगी ?"

    उसने चुपचाप चाय नाश्ता का प्लेट टेबल पर रखा और ईव्यक्ष के पास बैठते हुए कहती है -

    "ईवू..."

    ईव्यक्ष ने चौंककर सिर उठाया, फिर मुस्कराया—वही मासूम मुस्कान, लेकिन आँखें... अब वैसी नहीं रहीं ।

    "आई, आज स्कूल में असाइनमेंट सबमिट करना है, मैं निकलता हूँ ।" ईव्यक्ष ने कहा ।

    माया ने सिर हिलाया, फिर उसने कहा -" पहले नाश्ता कर, फिर जा । " वह बात तो ईव्यक्ष से कर रही थी पर उसकी निगाहें अब भी स्केचबुक पर थीं ।
    वो आंखे , वो राजा... और ईव्यक्ष की आँखों में छुपा वो सपना—जो अब धीरे-धीरे हकीकत बन रहा था।


    ---

    माया को नहीं पता था,
    कि उसके बेटे की किस्मत अब सिर्फ इस शहर की गलियों में नहीं, बल्कि किसी और आयाम की रूहानी हवाओं में भी चल रही है ।


    सीन :2

    चाँद के शहर में आया था एक तारा...


    मुंबई की भीड़ भरी सड़कों पर जब ट्रैफिक की लाइटें थककर झपकने लगीं,
    आसमान से उतरती एक परछाई धीरे-धीरे ज़मीन को छू रही थी ।

    राजा आरवेश—ईग्मार का सम्राट ।
    असंभव रूप से सुंदर, ऐसे जैसे समय ने खुद रुककर उसे गढ़ा हो ।

    उसकी आंखें... दो झीलें जिनमें तारे डूब जाएं ।
    उसकी चाल... जैसे आकाशगंगा खुद ज़मीन पर उतर आई हो ।

    पर इस बार वह सिर्फ एक राजा नहीं था—
    वह एक प्रेम की खोज में था ।
    एक आत्मा की तलाश में, जो उसकी शक्ति को पूर्ण बनाए...
    ...और उसका हृदय, जिसे उसने जन्मों से सिर्फ उसी के लिए सहेज रखा था ।


    ---

    ईग्मार की कुलदेवी अन्या की आवाज़ अब भी उसके दिल में गूंजती थी—
    "वह लड़का... जिसकी शक्ति अभी सो रही है, वही तेरी आत्मा का उत्तर है ।"

    आरवेश ने आंखें बंद कीं और अपने जादुई क्रिस्टल में झाँका—
    एक धुंधली तस्वीर उभरी—मुंबई के किसी इलाके की, भीड़, ट्रैफिक, एक किताबों की दुकान, और...

    एक लड़का । पतले फ्रेम का, मासूम चेहरा, बड़ी आँखें।

    वह लड़का था—ईव्यक्ष ।


    ---

    रात को:

    ईव्यक्ष बुक स्टोर से घर लौट रहा था, जब अचानक हवा ठहर गई ।

    सड़कें, लाइटें, शोर—सब एक क्षण को शांत हो गया ।

    एक कोने में कोई खड़ा था । लंबा, चमकता हुआ, उसकी मौजूदगी जैसे हर अंधेरे को रोशन कर रही थी ।

    ईव्यक्ष ने चौंककर देखा ।

    वह नहीं जानता था क्यों, पर उस अजनबी को देखते ही उसका दिल धड़क उठा ।

    आरवेश ने बस एक नजर डाली, और फुसफुसाया—
    "तुम हो... आखिरकार मिल ही गए..."

    ईव्यक्ष ने डरते हुए पीछे हटना चाहा, पर उसकी टांगें जैसे बंध गई थीं ।
    उसकी आँखें आरवेश की आंखों में जैसे डूब रही थीं ।

    "तुम कौन हो?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा ।

    आरवेश मुस्कराया, धीमे से बोला—
    "जो सदियों से तुम्हें ढूँढ रहा है..."


    ---

    आरवेश की सोच:
    "मुझे ईव्यक्ष को बिना डराए उसके करीब जाना होगा ।
    क्योंकि जब तक उसका विश्वास नहीं जीतता,
    वह शक्ति जागेगी नहीं... और तब तक,
    मेरे राज्य का अस्तित्व अधूरा रहेगा ।"


    सीन : 3

    मुंबई की धुंधली गलियों में, जहाँ हर चेहरा अपनी दौड़ में खोया था, वहाँ अब एक चेहरा था, जो भीड़ में सबसे अलग चमकता था ।

    आरवेश ।

    अब वह कोई स्वर्णमुकुट धारी सम्राट नहीं था ।
    ना चमकदार पोशाकें, ना रथ, ना सेना ।

    सामने खड़ा था एक साधारण लड़का के रूप मे —
    साधारण कपड़ों में, साधारण मुस्कान के साथ...
    लेकिन उसकी आँखों में वही गहराई थी, जो सितारों से होती है ।

    नाम: आरव ।
    उम्र: लगभग बीस... (हालांकि उसकी असली उम्र का कोई पैमाना नहीं था ।)
    पहचान: एक नया लड़का जो इसी इलाके में रहने आया था, पढ़ाई और पार्ट-टाइम जॉब के बहाने ।


    --

    सीन : 4

    पहली मुलाकात:

    ईव्यक्ष अपने बैग को संभालते हुए बस स्टॉप पर खड़ा था ।
    बारिश की कुछ बूँदें गिरीं, तो वह जल्दी से अपने किताबों को भीगने से बचाने लगा ।

    तभी...
    एक हल्की सी छतरी उसके सिर के ऊपर आ गई ।

    "तुम्हें भीगना पसंद नहीं है, है ना?"
    एक नर्म, मीठी आवाज़ उसके कानों में पड़ी ।

    ईव्यक्ष ने चौंककर ऊपर देखा ।

    आरव ।

    गहरी नीली जींस, हल्की सफेद शर्ट, और मुस्कराती आँखें ।
    उसकी मुस्कान में कुछ था... कोई पुरानी याद... कोई अनजाना सा अपनापन ।

    ईव्यक्ष ने झेंपते हुए सिर झुकाया ।
    "थ-थैंक्स..." उसने बमुश्किल कहा ।

    आरव (आरवेश) ने मुस्कुराकर जवाब दिया:
    "बारिश में अकेले भीगना बहुत उदास कर देता है । अच्छा है, हम दोनो अब साथ हैं ।"


    ---



    आरवेश जानता था—ईव्यक्ष डरपोक था, कमजोर था, खुद पर भरोसा नहीं कर पाता था ।
    लेकिन उसकी आत्मा... उसकी आत्मा एक दिन चमकेगी, पूरे ब्रह्मांड को रोशन करेगी ।

    और तब तक, उसे धैर्य रखना था ।
    ना अपनी असली पहचान दिखानी थी, ना उसकी शक्ति को जबरदस्ती जगाना था ।
    पहले उसे उसका विश्वास चाहिए था ।
    ...और फिर उसका प्यार ।


    ---

    रात को:
    जब ईव्यक्ष अपने छोटे से कमरे में पढ़ाई कर रहा था,
    बाहर खड़ा आरव (आरवेश) आसमान की तरफ देखकर बुदबुदाया—

    "एक दिन... तुम मेरी दुनिया बनोगे, ईव्यक्ष ।
    पर तब तक, मैं तुम्हारे हर डर के आगे दीवार बनूंगा...
    तुम्हारे हर आँसू के पीछे मुस्कान..."

    हवा हल्के से मुस्कुराई, जैसे नियति भी उनकी प्रेम कहानी पर धीरे-धीरे दस्तक दे रही थी ।


    ---


    मुंबई की बरसात ने जैसे उस दिन कुछ खास तय किया था ।

    सीन : 5

    विजय का घर

    विजय जब अखबार पढ़ रहे थे, तो अचानक पड़ोस की आंटी एक युवक को लेकर घर आईं ।

    "भाईसाहब, ये आरव है । गांव से पढ़ाई के लिए आया है । कोई सस्ता किराया चाहिए । बहुत भला बच्चा है । सोचिए ना, आपके ऊपर वाले कमरे में जगह खाली पड़ी है ।"

    विजय ने आरव की तरफ देखा—
    साफ-सुथरे कपड़े, विनम्र मुस्कान, और आँखों में इतनी ईमानदारी कि एक पल को भी शक न हो ।

    माया ने भी मुस्कुराकर कहा, "हमें भी किराए का थोड़ा सहारा मिल जाएगा । क्यों न रख लें?"

    विजय ने हामी भर दी ।
    और उस दिन से, आरव, यानी आरवेश, ईव्यक्ष के बिल्कुल करीब रहने लगा ।


    ---

    सीन :6

    पहली शाम:

    ईव्यक्ष, हमेशा की तरह, अपने कमरे में किताबों में डूबा था ।
    जब आरव ने धीरे से दरवाजा खटखटाया ।

    "हाय, मैं तुम्हारा नया पड़ोसी हूँ... और अब रूममेट जैसा कुछ ।"
    उसने हँसते हुए कहा ।

    उसे अपने घर मे देख कर ईव्यक्ष चौक गया । जिस कारण उसने कोई उत्तर नही दिया ।


    आरव -" हे बडी , कहा खो गए ? "



    ईव्यक्ष ने झेंपते हुए सिर हिलाया ।
    "ह-हाय..."

    आरव ने उसके बिखरे बालों को देखा, किताबों का ढेर, और आँखों में छुपा वो मासूम डर ।
    उसका दिल एक बार फिर से उस धड़कन से भर गया, जो सदियों से सोया हुआ था ।

    आरव ने मुस्कराते हुए एक चॉकलेट बार उसकी तरफ बढ़ाई—
    "दोस्ती की शुरुआत मीठी होनी चाहिए, है ना ?"

    ईव्यक्ष ने थोड़ी हिचकिचाहट के बाद चॉकलेट ली और पहली बार हल्की सी मुस्कान दी ।

    आरव ने मन ही मन कसम खाई:
    " अब से तुम्हारे चेहरे पर हर दिन ये मुस्कान खिलाऊंगा । चाहे मुझे अपना पूरा वजूद क्यों न लुटाना पड़े..."


    ---

    रात को:
    आरव अपनी खिड़की के पास खड़ा था, ईव्यक्ष की खिड़की से आती हल्की सी रौशनी को देखते हुए।

    उसने आसमान की ओर देखा—
    वो सितारे जो उसके राज्य ईग्मार से भी चमकते थे।

    धीरे से उसने फुसफुसाया—
    "मैं तुम्हें डर से नहीं, प्यार से जीतूंगा ।
    तुम्हें जब लगेगा कि तुम्हारी दुनिया में कोई हमेशा तुम्हारे साथ है...
    तभी तुम मेरी दुनिया बनोगे ।"

    और इस तरह, एक साधारण से किरायेदार के बहाने, एक सम्राट अपने सोलमेट के दिल का रास्ता बना रहा था।


    ---
    सीन : 7

    तुम हमेशा इतने सीरियस रहते हो?"

    सुबह की नमी भरी ठंडी हवा में मुंबई कुछ ज्यादा ही सुस्त लग रही थी ।
    ईव्यक्ष अपने छोटे से कमरे में बैठा स्कूल का प्रोजेक्ट बना रहा था —
    बिल्कुल वही संजीदगी, वही गहरी तन्मयता, जैसे दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध लड़ रहा हो ।

    तभी—

    धप्प!

    आरव ने चुपके से आकर उसकी किताब के ऊपर अपनी कोहनी टिकाई और मुस्कुराते हुए कहा,
    "तुम्हें कभी हँसना भी आता है ?"

    ईव्यक्ष चौंककर पीछे हटा ।
    "त-तुम... ऐसे अचानक मत आया करो!"
    उसने घबराकर कहा ।

    आरव हँसा, उसकी घबराहट पर, उसके मासूम गुस्से पर ।
    "और तुम हमेशा ऐसे ही डरते हो?
    मैं कोई भूत नहीं हूँ ।" आरव ने कहा ।

    ईव्यक्ष ने होंठ भींचे और सिर झुका लिया ।
    "मुझे काम करना है... डिस्टर्ब मत करो ।"

    "अच्छा?"
    आरव ने शरारती अंदाज़ में उसकी नोटबुक उठाई और भागा,
    "अगर इतना ही सीरियस हो, तो पहले मुझे पकड़ के दिखाओ ।"

    "अरे! वो मेरी असाइन्मेंट है । !"
    ईव्यक्ष बौखला गया और उसके पीछे दौड़ा ।
    पर उसका छोटा सा शरीर, और डरपोक स्वभाव —
    आरव बस हल्के-हल्के कदमों से पीछे-पीछे भागता और हँसता रहा ।

    आखिरकार, ईव्यक्ष ने गुस्से में भरकर कहा,
    "तुम बहुत... बहुत परेशान करते हो !"

    आरव एक पल को रुका, उसकी बड़ी बड़ी आँखों में गुस्सा और शर्मिंदगी की हल्की सी नमी देखी।
    फिर मुस्कुराते हुए नोटबुक वापस उसकी ओर बढ़ा दी ।

    "ठीक है, जीनियस।
    पर एक शर्त पर..."
    उसने झुककर फुसफुसाया,
    "आज रात खाने के बाद छत पर मेरे साथ एक गेम खेलोगे । थोड़ा जीना भी सीखो, बुक वर्म ।"

    ईव्यक्ष ने चुपचाप नोटबुक छीनी और बड़बड़ाया,
    "पागल हो तुम..."

    पर उसकी धड़कनें पहली बार किसी के लिए थोड़ी तेज़ हो गई थीं ।
    वो समझ नहीं पा रहा था कि वो गुस्से में ज्यादा था या...
    उस मुस्कान में कहीं खो गया था ।

    छत पर मुलाकात का वादा अनकहा ही रह गया था,
    पर दोनों दिलों में एक हल्की सी कसक छोड़ गया था ।

    अगले भाग मे जारी .......

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  • 9. The prince of Dimensions - Chapter 9

    Words: 1548

    Estimated Reading Time: 10 min

    अब आगे :-

    सीन: 1

    लोकेशन: ईव्यक्ष  का घर


    मुंबई की गर्मी से भरी रात थी, लेकिन आज की हवा में कोई अनजानी ठंडक घुली थी । आसमान पर फैला अनंत नीला विस्तार, मानो नीले चादर में जड़े अनगिनत हीरे चमक रहे हों । आज शहर रोज से कुछ  ज्यादा ही खामोश था ।

    लेकिन... दो दिल मे अजीब  सा झंकार कर रहे थे , एक बेचैनी में, और दूसरा इंतज़ार में । दोनो की धडकने सामान्य  से अधिक  तेज चल रही थी ।

    ईव्यक्ष अपने छोटे से कमरे में चुपचाप बैठा था ।
    उसकी उंगलियाँ अपने तकिये के कोने को बार-बार मरोड़ रही थीं । वह बार बार अपने दांतो के बीच  होठो को,हल्के से दबा रहा था ।  वह अभी इतना प्यारा लग रहा था कि अगर आरव  उसके पास  होता तो वह भी खुद को संभाल  नही पाता ।
    ईव्यक्ष  के मन के भीतर एक जंग चल रही थी , वह कोई  डिसीजन  नही ले पा रहा था । वह सोच  रहा था -
    'जाऊँ या न जाऊँ...  अगर उसने  भी औरो की तरह  मेरा मज़ाक उड़ाया तो? अगर नही गया और  वो नाराज़ हुआ तो? कही वह मुझे छोडकर चला गया तो मै क्या करुंगा ? मुझे जाना चाहिए ? क्या मै उस पर भरोसा कर सकता हू ? पर पता नही क्यो मुझे उस पर  विश्वास करने का मन कर रहा है ।'

    उसने गहरी साँस ली, आँखें भींच लीं । उसके दिल की धड़कनें इतनी तेज़ थीं कि लगता था पूरा कमरा सुन रहा होगा ।
    हथेलियाँ पसीने से  भीगी थीं, होंठ सूख चुके थे ।

    लेकिन कुछ था उस आरव में... एक अजीब-सी खिंचाव, जो उसे रुकने  नहीं दे  रही थी । उसका दिल  उससे मिलने को बेताब  था । उसके कदम अपने आप उठ गए । धीमे-धीमे, बिना आवाज़  कोई किए, जैसे किसी अनजानी डोर से बंधे हुए हो ।

    छत की सीढ़ियाँ चढ़ते ही एक धीमी ठंडी हवा ने उसका स्वागत किया और सामने ही  रेलिंग के पास आरव खड़ा था ।

    वह चुपचाप आसमान को देख रहा था ।
    उसकी ऊँची कद-काठी, खुले बाल जो हवा में लहरा रहे  थे, और चाँदनी में नहाया उसका चेहरा बहुत  ही खुबसूरत  लग  रहा था । वह एक  ग्रीक  गाॅड की तरह लगता था । ईव्यक्ष  उसे देखने मे खो गया था ।

    तभी आरव उसके पास  आकर  खडा हो गया । ईव्यक्ष अभी भी खुद मे खोया हुआ  था । वह आकर  उसके कंधे पर  हाथ  रखता है जिससे ईव्यक्ष  अपनी होश मे आया ।

    आरव ने हल्की आवाज़ में पुकारा -" ईवि"
    "मैं... मैं आ गया..." ईव्यक्ष  ने हडबडाते हुए  जवाब  दिया ।

    आरव उसकी आंखो मे देखते हुए  मुस्कुराया ।
    उसकी मुस्कान में किसी पुराने दोस्त जैसी गर्माहट थी ।

    "मैं जानता था तुम आओगे,"-
    उसकी आवाज़ धीमी थी, पर यकीन से भरी। फिर वह  दो कदम दूर हो गया ।

    ईव्यक्ष थोड़ी झिझकते हुए आगे बढ़ा । और बिल्कुल  उसके पास  खडा हो गया ।
    वह अपनी शर्ट के कोने को मरोड़ता रहा, जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रहा हो ।

    आरव अब उसकी तरफ मुड़ा और कहा -" ईवि , तुम्हे मुझसे कुछ  कहना है ।"
    उसकी आँखें गहरी थीं, उस रात के नीले आसमान जितनी, और उनमें कुछ था, जैसे वह ईव्यक्ष की हर कमजोरी, हर डर पढ़ सकता था, फिर भी उसे उसी रूप में स्वीकार कर रहा था ।

    उसने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा - "तुम्हें डर तो नहीं लगा ?" अब उसके चेहरे पर  डेविल स्माइल  थी ।


    ईव्यक्ष ने हल्के से सिर झुकाया, फिर फुसफुसाया,
    "थोड़ा... पर... आ ही गया ना ।"

    आरव की स्माइल  और गहरी हो गई । वह एक कदम और करीब आया ।

    "बहादुरी डर के न होने में नहीं है, बल्कि डर के बावजूद उसे जीतने में है ।" उसने नर्म शब्दो मे पूरी गहराई के साथ अपनी बात रखी ।

    उसकी बात सुनकर ईव्यक्ष ने पहली बार उसकी आँखों में झाँका । उस पल, उसे ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया थम गई हो । जैसे हर डर, हर अनजाना खतरा उस एक नज़र में कहीं पीछे छूट गया हो ।

    आरव ने अपनी जेब से एक छोटा, चमचमाता पत्थर निकाला । वह पत्थर हल्की नीली रोशनी बिखेर रहा था, जैसे किसी तारे का टुकड़ा हो ।

    "ये तुम्हारे लिए,"
    आरव ने उसे सौंपते हुए कहा,
    "जब भी डर लगे, इसे देखना... और याद रखना, तुम अकेले नहीं हो ।"

    ईव्यक्ष की आँखें नम हो गईं । पहली बार उसके आई बाबा के अलावा किसी ने उसकी फिक्र की थी ।
    उसने पत्थर को दोनों हाथों से थामा, जैसे कोई सबसे अनमोल तोहफा हो । उसका दिल पहली बार सुकून से भर गया ।

    आरव ने उसकी ठंडी उंगलियों पर अपना हाथ रखा, वह गर्म और मजबूत पकड थी ।
    "तुम्हें बहुत बड़ी चीज़ों के लिए तैयार होना है, ईवि,"
    उसने फुसफुसाया,
    "बहुत जल्दी... तुम्हारा असली सफर शुरू होगा ।"

    ईव्यक्ष  कुछ समझ नहीं पाया, वह सब कुछ उस स्माइल पर  भूल बैठा जो आरव  के चेहरे पर था । उसकी हार्ट बीट तेज हो गई  थी ।

    छत पर हवाएँ गुनगुनाने लगीं । चाँद ने अपनी चाँदनी दोनों पर और भी गाढ़ी कर दी थी । जैसे खुद ब्रह्मांड भी उनकी अनदेखी डोर को आशीर्वाद दे रहा हो ।

    सीन : 2

    लोकेशन: ईव्यक्ष  का स्कूल

    स्कूल की गलियों में धूप चटक रही थी ।
    भीड़भाड़, बच्चों की खिलखिलाहट, और शरारती धक्कों से भरे रास्ते में, ईव्यक्ष अपने बैग को सीने से भींचे तेज़ी से चलता जा रहा था । उसे डर था कि कोई उसका फिर से मजाक ना बना दे ।

    लेकिन उसकी किस्मत आज फिर रूठ गई थी ।
    कॉरिडोर के एक कोने में, कुछ सीनियर लड़कों ने उसे घेर लिया । पांच छह लडको का ग्रुप था जो बहुत ही बदमाश था । उनका लीडर पवन था । उसकी कम्पलेन से पूरा रजिस्टर भरा पडा था , पर वह स्कूल ट्रस्टी का बेटा था तो कोई कार्रवाई नही होती थी ।

    "ओई, स्कॉलरशिप वाले राजा! बहुत अकड़ है तुझमें!"
    पवन हँसा, बाकियों ने उसका रास्ता रोक लिया ।

    ईव्यक्ष का दिल धक-धक करने लगा । उसके पैर मानो ज़मीन से चिपक गए ।

    "बैग दे अपना!"- उनमे से किसी ने कहा और बैग छीनने को हाथ बढ़ाया ।

    ईव्यक्ष ने हिम्मत की, पीछे हटने की कोशिश की—
    लेकिन तभी किसी ने उसे धक्का दे दिया ।

    थप्प!

    वह दीवार से टकरा गया, बैग हाथ से गिर पड़ा ।

    आँखें भीगने लगीं ।
    वह खुद को कोसने लगा—'क्यों नहीं मजबूत हो सकता मैं... क्यों नहीं...'

    तभी अचानक ही वहा का माहौल चेंज हो गया । ऐसा लगा जैसे एक गहरी, ठंडी सी सिहरन फिज़ा में फैल गई हो ।


    उसी समय भीड़ के बीच से कोई तेज़ी से आता दिखाई दिया ।

    वह था... आरव ।

    उसकी चाल में गज़ब का ठहराव था, आँखों में चमकती हुई सख्ती ।
    वह हवा के झोके की तरह कुछ ही देर में ही ईव्यक्ष के सामने खड़ा हो गया ।

    "हट जाओ,"
    उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा था कि लड़के ठिठक गए ।

    "कौन है बे तू?" -एक लड़का बड़बड़ाया ।

    आरव ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ एक कदम आगे बढ़ाया ।
    उसके आसपास की हवा भारी हो गई थी, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने सबको जकड़ लिया हो ।

    "जो इसे हाथ लगाएगा... उसे पछताना पड़ेगा,"-
    आरव ने नर्म मगर खतरे भरे स्वर में कहा ।

    उसकी आवाज का ठहराव इतना ज्यादा था कि कोई भी उसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाया ।
    एक-एक कर सब बड़बड़ाते हुए वहाँ से खिसक गए ।

    जब सब चले गए, तब भी ईव्यक्ष वही खड़ा था, काँपते हुए ।

    आरव ने उसका बैग उठाया और धीरे से उसके हाथों में थमा दिया।

    " तुम इतना डरते क्यों हो? अपने डर का सामना किया जाता है ।"- उसने गहरे शब्दो मे उसे समझाते हुए कहा ।


    "मैं... मैं... कमज़ोर हूँ ।"- ईव्यक्ष ने कांपते होठों से कहा ।

    आरव झुका, उसकी आँखों के स्तर पर आया ।
    उसकी उंगलियाँ हल्के से ईव्यक्ष की ललाट से एक उलझी लट हटा दीं ।


    आरव की आँखों में चमक थी,
    "कमज़ोरी तब होती है जब तुम खुद पर भरोसा करना छोड़ दो । तुम खुद पर भरोसा करके तो देखो ।"

    एक पल को ईव्यक्ष ने अपने भीतर कुछ अजीब-सा महसूस किया । जैसे किसी ने उसके टूटे हुए आत्मविश्वास को अपने नर्म हाथों सेppp थाम लिया हो ।
    जैसे वह अकेला नहीं था ।

    आरव ने उसकी पीठ थपथपाई,
    "चलो... क्लास का टाइम हो गया है । तुम्हे पढ़ाई भी तो करनी होगी । चलो, मै तुमसे बाद मे मिलता हू ।"

    ईव्यक्ष ने पहली बार दिल से मुस्कुराया । छोटी-सी, भीगी-सी मुस्कान और फिर, उस दिन से, उसके दिल में कहीं आरव के लिए एक नन्हा, नाजुक बीज अंकुरित हो गया...
    जो वक़्त के साथ एक खूबसूरत बंधन बनने वाला था ।

    अगले भाग मे जारी .......

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  • 10. The prince of Dimensions - Chapter 10

    Words: 1111

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब आगे :-



    परंतु... दूर कहीं अंधकार में...

    वैयम राज्य  के पास  की जादुई  राज्य एंथ्रेला का राजा जर्कस,  काली जादू की  दुनिया का बादशाह  ,अपने जादुई  सिंहासन  पर बैठा अपना राजकाज  देख रहा था । 



    कुछ देर  बाद  वह  अपनी जादुई  कक्ष की गहराइयों में बैठा जर्कस, एक काले  पोशाक वाला राक्षसी पुरुष के साथ  एक काली क्रिस्टल बॉल के सामने बैठा था ।
    उसके होंठों पर एक शातिर मुस्कान थी ।

    वह दूसरा शक्स उसका गुप्तचर था । वह जर्कस को वो क्रिस्टल बाॅल दिखा रहा था जिसमे ईव्यक्ष की धुंधली अक्स दिखाई दे रही थी । यह देखकर जर्कस ने कहा - "तो... छोटा राजकुमार छुपा बैठा है इस धूल भरी धरती पर..।." उसकी आँखें नफरत से चमक उठीं ।

    अपने हाथ फैलाते हुए, उसने हवा में एक मंत्र फेंका ।
    धुएँ से बनी एक भयानक आकृति गढ़ी गई ,
    एक ऐसा प्राणी जो आधा छाया था और आधा काँटेदार धातु, जिसकी आँखें अंगारे सी लाल थीं ।

    "जाओ... तुम अभी धरती पर जाओगे ।"
    जर्कस ने आदेश दिया,
    "मुझे वह बच्चा चाहिए... जिंदा ।"

    प्राणी गुर्राया, और अंधकार को चीरता हुआ हवा में गायब हो गया ।

    और उस रात,
    जब ईव्यक्ष पहली बार चैन की नींद में मुस्कुरा रहा था,
    कहीं अंधेरे में उसकी ओर एक खतरा सरकता चला आ रहा था...।


    सीन  : 1

    "पहली आहट"

    रात ने मुंबई  शहर  को गहरे  काले कंबल  जैसे अंधेरे में लपेट लिया था । सब ओर आज अलग सी शांति थी । आज शहर  मे रोज से कम शोर था । फिर भी ईव्यक्ष की नींद में एक हल्की सी बेचैनी घुल गई थी ।
    उसके कमरे में खिड़की से आती चाँदनी अब फीकी पड़ गई थी, और हवा में एक अजीब-सी सिहरन थी... जैसे कोई उसे घूर रहा हो ।

    ईव्यक्ष ने करवट बदली । लेकिन तभी एक पल के लिए उसे लगा जैसे खिड़की के बाहर कोई परछाई फिसल गई हो ।

    उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा ।

    'शायद मेरा वहम होगा,'
    उसने खुद को समझाने की कोशिश की,
    लेकिन फिर अचानक—

    टक...टक...टक...

    खिड़की के शीशे पर किसी ने नाखून से खरोंचने जैसी आवाज़ निकाली ।
    धीमी... सर्द... असहज कर देने वाली । धीरे धीरे यह आवाज  बढती गई  और  ईव्यक्ष  के कानो को भेदने लगी । उसने अपने कान पर अपने दोनो हाथ  रख  दिए  और  खुद  को कंबल मे छिपाने की कोशिश  करने लगा  ।

    अचानक  ही सबकुछ  शांत  हो गया , जिसे महसूस  कर  ईव्यक्ष ने घबराकर आँखें खोलीं । कमरे में हल्की सी धुँध सी भरने लगी थी, और खिड़की के बाहर...
    एक जोड़ी चमकती लाल आँखें उसे घूर रही थीं ।

    वह चौंककर उठ बैठा । उसके मुँह से कोई आवाज़ भी नहीं निकली । सारा शरीर जैसे जम गया हो ।

    तभी दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई—
    ठक...ठक...

    ईव्यक्ष का दिल गले तक आ गया था । डर के मारे उसका गला सूख गया । हाथ-पाँव काँपने लगे ।

    अचानक उसके रुम का  दरवाज़ा खुद-ब-खुद चरमरा कर खुल गया और दरवाज़े के पार...आरव खड़ा था ।

    लेकिन इस बार कुछ अलग था । उसके चारों ओर हल्की नीली रोशनी बिखरी हुई थी, जैसे चाँदनी उसके इर्द-गिर्द जमी हो ।

    आरव की आँखें सामान्य नहीं थीं - उनमें गहरा नीला रोशनी निकल रहा था ।
    कंधों पर बँधी कमान और  सीने पर एक ऊर्जा कवच था जो अदृश्य  ऊर्जा समाये  थी ।

    "ईव्यक्ष," - उसने धीमे पर सख्त स्वर में कहा,
    "डरो मत । मैं यहाँ हूँ ।"

    आरव ने आगे बढ़ते हुए अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया । ईव्यक्ष ने बिना सोचे, लगभग दौड़ते हुए उसका हाथ थाम लिया । उसके हाथों की गर्माहट ने ईव्यक्ष के सारे डर को समाप्त कर दिया,उसे ऐसा लगा  जैसे किसी ने उसे ठंडी काली रात से खींचकर किसी सुरक्षित आग के पास बिठा दिया हो ।

    आरव ने उसके पीछे देखा—
    खिड़की के बाहर से वह भयानक प्राणी धीरे-धीरे  खिडकी के पट से सरक रहा था । उसके काँटेदार शरीर से धुएँ उठ रहे थे । उसकी साँसें इतनी भारी थीं कि कमरे की हवा भारी होने लगी थी । ईव्यक्ष  को भी सांस लेने मे प्राब्लम  हो रही थी तो  आरव ने उसके चारो ओर एक सुरक्षा घेरा  डाल दिया ।

    आरव ने गहरी साँस ली । उसकी मुट्ठी भींच गई।
    और फिर

    एक हल्की सी फुसफुसाहट उसके होंठों से निकली,
    किसी पुराने भाषा के शब्दों जैसी , उसने एक जादुई मंत्र पढा ।

    "Arventis Solen."

    और उसी पल,
    आरव के हाथ से एक चमकता नीला वृत्त फूटा —
    एक रक्षाकवच की तरह , उसने आरव को अपने घेरे मे लिया । उस कवच से निकली नीली रोशनी ने पूरे कमरे को ढक लिया ।

    जैसे ही वह प्राणी रौंदते हुए कमरे में घुसने की कोशिश करने लगा , उसी समय आरव ने अपने तलवार  का इस्तेमाल  कर  एक नीली चमकदार दीवार  का  निर्माण  किया , जिससे टकराकर वह प्राणी  दूर जा गिरा ।
    वह गुर्राया, पर अचानक  ही उसके देह से नीली रोशनी निकली जिस वजह  से वह झुलसा, और फिर धुएँ में बदलकर गायब हो गया । सब कुछ कुछ ही पलों में हो गया ।

    ईव्यक्ष अब भी आरव के सीने से लगा काँप रहा था।
    आरव ने उसे अपनी बाँहों में कसकर थाम लिया,
    उसके बालों में उँगलियाँ फेरते हुए फुसफुसाया -

    "अब कोई तुम्हें छू भी नहीं सकता, ईवी..."
    उसकी आवाज़ में गुस्सा, वादा और मोहब्बत — सब घुला हुआ था ।

    ईव्यक्ष की आँखें भर आईं । उसने भी खुद को कसकर आरव से लिपटा लिया ।  फिर  वह  उससे दूर हटने लगा । उसकी आंखो मे अब डर था । यह देख कर  आरव  ने उसके आंख  के सामने अपने हाथो को गोल घुमाया और  उसके दिमाग  से अभी की सारी मेमोरी डिलीट  कर दी ।

    ईव्यक्ष  अब सब कुछ  भूल गया था । वह आरव को अपने कमरे मे देख कर  शरमा  जाता है और  शरम भरी आवाज  मे पूछता है -" आप यहा ?"

    आरव  -" तुम नींद  मे डर कर  चिल्ला रहे थे तो मै देखने आया ।"

    ईव्यक्ष  -" साॅरी , मेरी वजह  से आपको परेशानी हुई ।"



    आरव  उसे दुबारा सुला देता है । और वहा से निकल  कर  छत पर  जाता है और  एक मंत्र पढता है जिससे उसके पास  एक दंड आता है और  वह उसे फेंक  देता है जो सीधे एंथ्रेला पर गिरा था ।

    अगले भाग  मे जारी ...

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  • 11. The prince of Dimensions - Chapter 11

    Words: 1099

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब आगे :-



    सीन :1

    ईव्यक्ष का कमरा

    रात का समय


    ईव्यक्ष खिड़की के पास फर्श पर बैठा है । घुटनों को सीने से लगाकर चुपचाप बाहर देख रहा है । उसके चेहरे पर बेचैनी है ।

    दरवाज़ा हल्के से खुलता है । आरव अंदर आता है, हाथ में दो कप चाय लिए । वह धीमे क़दमों से पास आता है और बगल में बैठता है ।

    आरव (धीरे से, मुस्कराकर):
    "तुम्हारे लिए ले आया… डर भगाने वाली स्पेशल चाय ।"

    ईव्यक्ष (साँस छोड़ते हुए):
    " आरव , एक बात  पुछू । तुम्हे मुझ पर  शर्म नही आती ? मै इतना डरपोक  हू । चाय पीने से डर  चला जाता तो मै कब का इससे बच नही जाता । ऐसा कुछ  नही होता है ।"

    आरव (चाय उसकी ओर बढ़ाते हुए)-
    "हां… लेकिन चाय के बहाने कोई साथ बैठ जाए, तो डर कुछ कम हो जाता है ।"

    ईव्यक्ष चाय लेता है, लेकिन नजरें झुकी हुई है ।वह अभी भी अपने आस पास  देख रहा था । वह शायद  अब  भी उस बात  से बाहर नही निकल  पाया था ।

    आरव (थोड़ी देर की चुप्पी के बाद)-
    "वो सपना फिर आया, ना?"

    ईव्यक्ष (कंधे सिकोड़ते हुए, धीरे से):
    "हाँ… वही अजीब, धुँधला मैदान, आग… और कोई मुझे पुकार रहा था ।
    सब कुछ... बहुत डरावना था।"

    आरव (धीरे से मुस्कराकर):
    "तुम जब डरते हो तो बहुत शांत हो जाते हो। मैं पहचानता हूँ अब तुम्हारे चुप रहने को।"

    ईव्यक्ष:
    "मैं समझ नहीं पाता ये सब क्यों हो रहा है…
    कभी-कभी लगता है जैसे मैं… मैं खुद को नहीं पहचानता ।"

    आरव (साँस लेते हुए, थोड़ी गंभीरता से):
    "कभी-कभी कुछ बातें याद न रहना ही बेहतर होता है ।
    जो बीत चुका है, वो तुम पर हक नहीं रखता ।
    मगर जो आने वाला है… उसके लिए तुम्हें मजबूत बनना होगा ।"

    वह ईव्यक्ष का हाथ थाम लेता है, हल्के से ।

    आरव (धीरे से):
    "डर से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है… उसका सामना करना ।
    लेकिन अकेले नहीं ।
    जब तक तुम खुद पर यकीन नहीं करना सीखते, मैं तुम्हारे साथ हूँ ।"

    (ईव्यक्ष की आँखें भर आई हैं, वह चुपचाप सिर हिलाता है।)

    ईव्यक्ष (हौले से):
    "कभी-कभी लगता है मैं बहुत कमजोर हूँ… और...
    और तुम जैसे लोग कभी समझ नहीं सकते वो डर..."

    आरव (उसकी आँखों में देखते हुए):
    "मैं समझता हूँ, ईव्यक्ष।
    और सुनो… जो डर के बावजूद खड़ा होता है — वही असली योद्धा होता है।
    और तुम… शायद तुम्हें खुद नहीं पता, लेकिन तुम एक सच्चे फाइटर हो।"

    (एक लंबा साइलेंस… फिर ईव्यक्ष मुस्कुरा देता है)

    ईव्यक्ष (हल्के से):
    "तुम हमेशा इतना अच्छा बोलते हो?"

    आरव (हँसते हुए):
    "नहीं… बस जब सामने वाला ख़ास हो, तब शब्द खुद-ब-खुद अच्छे हो जाते हैं।"

    (आरव उठता है और हाथ बढ़ाता है)

    आरव:
    "चलो, नीचे चलते हैं। आज रात डर को डराना है — भूतिया फिल्म देखेंगे।"

    ईव्यक्ष (हँसते हुए):
    "तुम पागल हो…"

    आरव (चिढ़ाते हुए):
    "और तुम डरे हुए हीरो!"

    (दोनों हँसते हैं। आरव ईव्यक्ष का हाथ थामे उसे उठाता है और कमरे से बाहर निकलते हैं।)

    तभी खिड़की की ओर… वहाँ एक धुँधली परछाई नज़र आती है — आँखें चमक रही हैं ।


    ईव्यक्ष का कमरा – रात, लगभग 2:30 AM)
    कमरे की बत्तियाँ बुझी हुई हैं । बाहर हल्की बारिश हो रही है। खिड़की के शीशे पर बूँदों की आवाज़ एक रहस्यमयी संगीत-सी बज रही है।

    ईव्यक्ष अब थोड़ी सहजता महसूस कर रहा है। आरव के शब्दों ने उसे राहत दी है। वह चुपचाप सोने की कोशिश कर रहा है लेकिन नींद अभी भी उससे दूर है।

    ईव्यक्ष (सोचता है):
    "सब सपना था... बस सपना। मैं पागल नहीं हो रहा। आरव ठीक कहता है..."

    अचानक… खिड़की के शीशे पर एक "ट्रैसिंग" सी आवाज़ होती है। जैसे किसी नाखून ने शीशा खुरचा हो। ईव्यक्ष चौंक कर उठ बैठता है ।

    बिल्डिंग के बाहर – रेन स्लो-मोशन में
    एक काले, भाप उड़ाते, इंसानी आकृति जैसे प्राणी की परछाई दीवार पर सरकती है। उसकी चमकती, स्याह नीली आँखें सीधे ईव्यक्ष के कमरे की खिड़की पर टिकी हैं।


    ---

    ( वैयम का राजमहल)
    झारक एक जलते हुए मंत्र-चक्र के बीच खड़ा है। उसके हाथ आसमानी ऊर्जा से लहूलुहान हो रहे हैं।

    झारक (घिनौनी मुस्कान के साथ):
    "तू भले ही यादें मिटा दे, आरवेश...
    पर मैं अतीत को मिटने नहीं दूँगा।
    वो लड़का, वो राजपुत्र, आज मरेगा…"

    (वह एक जादुई काले पत्थर पर खून की बूंद गिराता है।)
    अचानक एक भयानक काली आकृति उस पत्थर से निकलती है — काँटों जैसी पीठ, साँप जैसी गर्दन और इंसानी चेहरा, पर विकृत और भयावह।

    झारक:
    "जाओ, 'कालशेष'…
    उसके अस्तित्व का अंत करो… लेकिन धीरे।
    उसे पहले डराओ…
    फिर तोड़ो…
    फिर मारो।"


    -- मुंबई – ईव्यक्ष का कमरा)
    ईव्यक्ष की साँसें तेज हो रही हैं। खिड़की के बाहर जैसे कोई है… वह पास जाकर पर्दा हटाता है… कुछ नहीं।

    फिर अचानक — बिजली चमकती है। खिड़की के शीशे पर एक चेहरा दिखता है।
    भयानक, नीली आँखें… मुड़ी-तुड़ी त्वचा… और मुस्कान जिसमें सड़ांध है।

    ईव्यक्ष (डरते हुए चीखता है):
    "आरव!!"

    (हॉल – आरव दौड़ता है)
    आरव तुरंत दौड़कर कमरे में आता है और ईव्यक्ष को पकड़ लेता है, जो अब दीवार से चिपक चुका है।

    आरव:
    "क्या हुआ? क्या देखा?"

    ईव्यक्ष (हकबकाते हुए):
    "वो… वो यहाँ था! खिड़की पर… उसकी आँखें... नीली थीं… और… और चेहरा… इंसानी नहीं था!"

    आरव (गंभीर होकर, सोचता है):
    "झारक ने चाल चल दी है..."

    आरव (धीमे स्वर में, मगर दृढ़ता से):
    "कुछ नहीं होगा तुम्हें। मैं हूँ न।"

    ईव्यक्ष:
    "तुम समझ नहीं रहे, वो कुछ और था… कोई इंसान नहीं था । तुम उससे नही लड सकते हो। प्लीज मेरी बात पर यकीन करो और यहा से भाग चलो ।"

    आरव (धीरे से):
    "शांत हो जाओ, ईव्यक्ष। ये तुम्हारा डर नहीं था, ये तुम्हारा अतीत था… जो तुम्हें ढूँढने आया है।"

    ईव्यक्ष (हैरान होकर):
    "क्या मतलब?"

    आरव (एक क्षण रुककर, उसके कंधे पर हाथ रखते हुए):
    "वो कोई सपना नहीं था... और मैं... मैं सिर्फ एक दोस्त नहीं हूँ।
    लेकिन अभी तुम पर सब कुछ बताने का वक्त नहीं।
    अभी बस एक बात याद रखो —
    जो भी हो, मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूँ…
    तब तक जब तक तुम्हारा हर डर ख़त्म न हो जाए।"


    ---

    (बिल्डिंग की छत – उसी समय)
    "कालशेष" धीरे-धीरे दीवार पर चढ़ता है। उसके नाखून दीवार पर निशान छोड़ते हैं। उसके होंठ फड़फड़ाते हैं, जैसे कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो।

    कालशेष (गर्जना में):
    "राजकुमार ईव्यक्ष…
    तेरा अंत निकट है।
    अभी नहीं…
    पर जल्द ही…"

    (बिजली कड़कती है, और वह छाया में विलीन हो जाता है।)


    अगले भाग मे जारी .......

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  • 12. The prince of Dimensions - Chapter 12

    Words: 1112

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब आगे :-






    सीन  :1

    काल अमावस  की रात

    आज काल अमावस की रात  थी । यह रात सौ साल  मे एक बार  आती है । इस दिन  ईग्मार  के योद्धाओ  की शक्ति क्षीण  या कम हो जाती है ।

    मुंबई

    आरव का कमरा

    रात  : 3 बजे

    चारों तरफ स्याह सन्नाटा पसरा है । बिजली चली गई है । बाहर घुप अंधेरा है । आज आरव  कमजोर है । उसकी आंखों में हल्का पीलापन है । वह बिस्तर पर बैठा है, माथे पर पसीना है ।


    ईव्यक्ष  उसकी ऐसी हालत देख कर  उसके पास  बैठा था । वह चितिंत  होकर  धीमे स्वर  मे पूछता है -"आरव, सब ठीक है न ? तुम्हारा चेहरा… पीला क्यों लग रहा है ?"

    उसका अपने प्रति कंसर्न  देख कर  आरव को अच्छा लग रहा था । वह एक स्माइल  के साथ  उसकी तरफ  देखते हुए  कहता है -" "आज... आज वो रात है, जब मेरी शक्ति मेरे पास नहीं होती । ये चक्र है, हर काल अमावस पर मेरी ऊर्जा लुप्त हो जाती है … मुझे कमज़ोर छोड़ जाती है ।"

    उसकी बात  सुनकर  वहा एक खामोशी छा जाती है और  कुछ  समय बाद  एक आवाज आई,  जो ईव्यक्ष  की थी ।

    ईव्यक्ष  धीमे और  परेशान  आवाज  मे कहता है -""तो क्या... कोई हमें कुछ कर सकता है आज ?"

    उसके आवाज  मे मौजूद  घबराहट  को महसूस कर  आरव  उसे अपने सीने से लगा कर  कहता है -" ईवि , मेरी आंखो मे देखो । जब तक  मै हू , तुम्हे कोई छू नही सकता । मेरी हर सांस  तुम्हारा रक्षा करेगी ।"

    उसकी बात सुनकर  ईव्यक्ष  स्माइल  कर  देता है और  कसकर  उसके सीने से लग गया ।

    सीन : 2

    कालशेष  की इंट्री


    कालशेष काली भाप में लिपटा हुआ टेरेस पर उतरता है । उसके हाथों से आग निकल रही है । वह ज़मीन पर एक विनाश चक्र बनाता है और बुदबुदाने लगता है ।

    कालशेष (धीरे से):
    "अमावस…  ओ अंधकार  के स्वामी ...... आज तुम्हारा दिन  है । आज तुम्हारी शक्तिया  अपने चरम  पर  रहती है । मै वैयम  महाराज  झारक  का जनरल कालशेष तुम्हारी शरण में आया हूँ ।
    ले जाओ  महाराज आरवेश की रक्षा कवच …
    और मुझे दो उसकी मृत्यु…"


    वही अपने कमरे मे अचानक आरव दर्द से कराहता है ।
    उसके सीने पर काली  छाया का निशान उभरता है । वह ज़मीन पर गिर पड़ता है । उसके मूंह  से चीख  निकल  जाती है ।

    ईव्यक्ष घबराकर  तेजी से उसके पास  आकर बैठता है  और  उसके सिर  को अपनी गोद  मे लेकर  पूछता है -
    "आरव! क्या हो रहा है तुम्हें ?"


    तभी दरवाजे की कुंडी अपने आप खुल जाती है — एक रहस्यमयी साया भीतर दाखिल होता है । वह धुंध  मे ढका हुआ  था और  धीरे धीरे धुंध छंटती है और उससे प्रकट होता है कालशेष — काँटों से भरी पीठ, साँप की तरह हिलती गर्दन, विकृत चेहरा जिसमें जलती हुई नीली आँखें हैं । उसकी पीठ से कांटे निकले हैं, वो उन्हें अपनी मुट्ठी में पकड़कर तेज़ी से नुकीले चाकुओं में बदल देता है ।


    उसे देख कर  आरव  ईव्यक्ष  को अपने पीछे छिपा कर  कहता है -" तुम  यहा किस  लिए  आए हो ? अगर तुम  ईवि को नुकसान  पहुंचाने आए हो तो मेरे रहते हुए  तुम  यह नही कर  सकते ।"

    उसकी बात सुनकर  कालशेष  हसते हुए  कहता है -" आज मेरा टारगेट  तुम  हो । आज तुम्हारी मौत  होगी । " यह कह कर  वह  उन चाकूओ  का निशाना आरव को बना देता है । जिससे जैसे तैसे इधर उधर  कूद कर  आरव बच रहा था । वह अपनी पूरी शक्ति का उपयोग  कर  एक तलवार  का निर्माण  करता है और  उसे कालशेष  की ओर फेंक  देता है । पर तलवार  उस तक पहुंच  पाता , उससे पहले ही वह गायब  हो गया और  अगले ही पल ईव्यक्ष  के पीछे प्रकट हुआ  ।

    यह देख कर  आरव  तलवार  उठाकर उस ओर हमला करना चाहता है तो वह  गायब हो कर  अलग अलग जगह प्रकट  होता रहा । उसके छद्म  युद्ध  के कारण  आरव की शक्ति धीरे धीरे कम होती जा रही थी । वह अपनी पूरी कोशिश कर  रहा था पर कामयाब  नही हो पा रहा था ।



    कालशेष हवा में गायब हो गया और अगले ही पल ईव्यक्ष के ठीक पीछे प्रकट होता है , आरव की आंखे हैरानी से बडी हो जाती है , जब वह देखता है कि  कालशेष अपनी साँप जैसी गर्दन से ईव्यक्ष की ओर झपटता है ।

    यह देख कर  आरव जोर  से चिल्लाया -" ईवि , बचो ।"

    उसकी बात सुनकर  ईव्यक्ष  का ध्यान पीछे जाता है । वह देखता है कि कालशेष उसे चोट पहुंचाने वाला है तो अचानक  ही उसका पूरा शरीर  पीछे की ओर  झुक  जाता है और  कालशेष  का वार खाली जाता है । यह देख कर  वह  गुस्से से लगातार  ईव्यक्ष  पर वार  करने लगा । ईव्यक्ष भी लगातार खुद को बचा ले रहा था । यह देख कर वह खुद शाॅक था पर अभी उसके पास यह सब सोचने का टाइम नही था । उसके लिए अपनी रक्षा करना जरुरी था ।

    वही यह देख कर कालशेष चिढ गया था । वह कहता है -" ऐसे भी अभी मेरा शिकार तुम नही महाराज आरवेश है । आज उनका आखिरी दिन है । पहले मै उन्हे समाप्त करुंगा और फिर तुम्हे बंदी बनाकर महाराज झारक के पास लेकर जाऊगा ।"

    वह अपने शरीर मे आग पैदा करने लगा । कालशेष की आग की लपटें दीवारों को झुलसाने लगती हैं । वह लगातार ही अपनी आग का प्रयोग कर रहा था । अब
    उसके शरीर पर मौजूद कांटे चाकू बन रहे थे और उसके शरीर से अलग होकर हवा में घूमते हुए आरव की ओर बढ़ते हैं । साथ मे उससे उत्पन्न होने वाली आग भी एक साथ आकर आरव की ओर बढने लगी ।

    यह देख कर आरव खुद को बचाने के लिए अपनी शक्ति जागृत करने की कोशिश करता है और असफल होकर वही गिर जाता है । उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी । अब उसके अंदर की लगभग सारी ऊर्जा समाप्त हो रही थी । वह बेबस होकर अपनी ओर बढते हुए मौत को देख रहा था । अपनी मौत को सामने देख कर वह एक नजर ईव्यक्ष को देखता है । ईव्यक्ष की नजर भी केवल और केवल आरव पर ही थी । वही उसकी मौत अब तेजी से उसकी ओर बढ रही थी ।


    अगले भाग मे जारी .....

    क्या आरव बच पाएगा ....

    जानने के लिए पढते रहे ......

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  • 13. The prince of Dimensions - Chapter 13

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 14. The prince of Dimensions - Chapter 14

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 15. The prince of Dimensions - Chapter 15

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min