यह कहानी है ज़ेन मालवीय और अनाथ धानी की, शादी की पहली रात ही ज़ेन ने धानी को इस बात का एहसास करवा दिया था कि यह शादी उसके लिए एक धोखा है। ना तो वह इस शादी को मानता है और ना ही धानी को अपनी पत्नी मानता है. वह जहां चाहे वहां जा सकती है. शादी के अगले दि... यह कहानी है ज़ेन मालवीय और अनाथ धानी की, शादी की पहली रात ही ज़ेन ने धानी को इस बात का एहसास करवा दिया था कि यह शादी उसके लिए एक धोखा है। ना तो वह इस शादी को मानता है और ना ही धानी को अपनी पत्नी मानता है. वह जहां चाहे वहां जा सकती है. शादी के अगले दिन ही ज़ेन ने धानी को घर से निकाल दिया था।. ज़ेन ने धानी से जो बात कही थी उसे सुनने के बाद धानी पूरी तरह से टूट चुकी थी, कैसे निभैगी वह इस टूटी हुई शादी को जिसकी बुनियाद ही धोखे और झूठ पर रखी गई थी. शादी की पहली रात जो रिश्ता खत्म हो चुका है। क्या धानी इस शादी का बोझ अकेले उठाएगी या जैन को कभी होगा अपने रिश्ते का एहसास जानने के लिए पढ़िए " Trapped Marriage"
ज़ेन मालवीय
Hero
धानी
Heroine
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कमरे का दरवाज़ा खुला और धानी, मेहँदी लगे पैरों के साथ, कमरे में दाखिल हुई। पूरा कमरा फूलों और मोमबत्तियों से सजा हुआ था। आज धानी की सुहागरात थी।
वह कमरे में धीरे-धीरे चली। उसने अपना लहँगा दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था। धीरे-धीरे चलते हुए वह बेड के पास आई।
बेड चारों तरफ़ से फूलों से सजाया गया था। बीच में लाल गुलाब की पंखुड़ियों से एक दिल बनाया गया था। पूरे कमरे में जलने वाली खुशबूदार कैंडल्स माहौल को और खूबसूरत बना रही थीं।
धानी के चेहरे पर हल्की शर्म की मुस्कान थी। वह मुस्कुराते हुए पूरे कमरे को देख रही थी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िन्दगी में यह दिन आएगा। वह भी कभी दुल्हन बनेगी और इस तरह उसकी सुहागरात होगी।
बचपन से अनाथ आश्रम में पली धानी, आज शहर के सबसे बड़े रईस खानदान, मालवीय खानदान की बहू थी। लेकिन एक हफ़्ते पहले तक उसे इस बात का अंदाज़ा तक नहीं था कि उसकी ज़िन्दगी अचानक कैसे बदल जाएगी, और न ही उसे एहसास था कि उसके आने वाले ज़िन्दगी में क्या होने वाला है।
शर्म से लिपटी धानी अपने आप को आईने में देख रही थी। काली आँखें, जो इस वक़्त काजल से भरी हुई थीं। हल्के गुलाबी होंठ, जिन पर लाली लगी हुई थी। दुल्हन के श्रृंगार से तैयार धानी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी।
तभी अचानक कमरे के दरवाज़े पर आहट हुई। धानी की धड़कनें बढ़ गईं और वह जल्दी से अपने दुपट्टे को संभालते हुए दरवाज़े की तरफ़ देखती है, इस उम्मीद से कि दरवाज़े पर उसका पति खड़ा होगा।
लेकिन उसके चेहरे पर जो चमक थी, वह हल्की मायूसी में बदल गई जब दरवाज़े पर एक मेड, हाथों में दूध का गिलास लिए, खड़ी थी।
"मैडम, बड़े साहब ने यह दूध कमरे में रखने के लिए कहा है! मैं इसे कहाँ रखूँ?" मेड ने धानी को देखते हुए कहा।
धानी घबरा गई। वह इधर-उधर देखती है और फिर मेड से कहती है,
"कहीं भी रख दीजिए, जहाँ आपको जगह मिले।"
मेड मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है और अंदर जाकर दूध को बेड के पास रखे साइड टेबल पर रख देती है।
मेड वहाँ से जाने ही वाली थी कि दरवाज़े पर पहुँचते ही धानी कहती है,
"सुनो..."
मेड के कदम रुक जाते हैं और वह पलट कर धानी को देखकर कहती है,
"जी मैडम, कहिए, आपको कुछ चाहिए क्या...?"
धानी शर्म से अपनी पलकें झुका लेती है और हल्की आवाज़ में, दुपट्टे को हल्का सा चेहरे की तरफ़ करते हुए कहती है,
"ये कब तक आएंगे?"
मेड के चेहरे पर हल्की घबराहट आ जाती है। उसने जल्दी से अपना चेहरा नीचे करते हुए उदासीनता से कहा,
"साहब कब तक आएंगे? यह बात तो खुद बड़े साहब भी नहीं बता सकते, तो फिर हम कहाँ से बताएँगे? लेकिन मैं आपके भले के लिए ही कह रही हूँ मैडम, आप साहब का इंतज़ार मत कीजिए। आपके कपड़े काफी भारी हैं, बदलकर आराम कर लीजिए। और अगर कुछ चाहिए तो आप इस बेल को दबा दीजिएगा। यह बेल सीधे मेरे कमरे में जाती है। बेल की आवाज़ सुनकर मैं आ जाऊँगी।" यह बोलकर मेड वहाँ से चली जाती है।
लेकिन धानी हैरानी से उसे जाते हुए देखती रह जाती है। क्या मतलब था उसके कहने का कि आज रात उसका पति घर नहीं आएगा?
मेड ने उसे सलाह दी थी कि वह कपड़े बदलकर आराम कर ले, लेकिन धानी कमरे में खड़ी असमंजस में इस सब के बारे में सोच रही थी।
उसने धीरे से अपने दुपट्टे को दोनों हाथों से पकड़ा और आईने के सामने चली गई। वह दुल्हन की तरह तैयार खड़ी थी। गले में मंगलसूत्र, मांग में सिंदूर और हाथों में भरी हुई चूड़ियों के साथ, उसने लहँगा पहन रखा था। यह श्रृंगार उसने अपनी शादी के लिए किया था और शादी के बाद वह अपने पति के साथ पहली बार अकेले में वक़्त गुज़ारने वाली थी। ऐसे में क्या उसे यह श्रृंगार उतार देना चाहिए...?
नहीं, नहीं। बिना अपने पति को दिखाए वह श्रृंगार कैसे उतार सकती है? यही सोचते हुए धानी ने दुपट्टे को दोबारा सिर पर सही से ओढ़ लिया और बेड के किनारे पर बैठ जाती है।
उसने पूरे कमरे को देखना शुरू किया। सारे कमरे में ऐसे सामान रखे गए थे जो ब्लैक लवर को दर्शाते थे। वहाँ पर पेंटिंग से लेकर स्टैचू तक, सब ब्लैक और ग्रे कलर में था। इतना काला रंग किसी को कैसे पसंद आ सकता है?
अगर सजावट को हटा दिया जाए, तो उस कमरे में रखी हर एक चीज कालेपन को दर्शा रही थी।
धानी बेड के किनारे बैठे हुए कमरे को देख रही थी। वह वैसे भी काफी थक गई थी। पिछले एक हफ़्ते से उसकी ज़िन्दगी बिल्कुल पेंडुलम की तरह इधर-उधर झूल रही थी और आखिरकार अब जाकर उसे सुकून मिल रहा था।
शांति से बैठे हुए कमरे में उसकी नज़र सिर्फ़ दरवाज़े पर थी और वह एकटक लगाए हुए वहाँ से अपने पति के आने का इंतज़ार कर रही थी। सिर पर इतना भारी दुपट्टा और उसके ऊपर से इतना हैवी लहँगा, सारे दिन की भाग-दौड़ के बाद वह काफी थक गई थी।
धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद होने लगीं और उसे नींद आने लगी। बेड के सिरहाने पर सिर टिकाते हुए वह हल्की नींद में सो गई।
इतनी थकान के बाद वह चैन की नींद ले रही थी, तभी एक तेज आवाज़ के साथ दरवाज़ा खुल गया। धानी डर गई, लेकिन दरवाज़े पर खड़े शख्स को देखकर धानी की धड़कनें बढ़ गईं और चेहरे पर हल्की घबराहट आ गई।
वह अपनी जगह पर खड़ी हो गई और दोनों हाथों से दुपट्टे को सामने की तरफ़ करते हुए अपना चेहरा नीचे झुका लिया। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपना चेहरा उठाकर सामने देख सके।
दरवाज़े पर खड़ा शख्स कमरे में दाखिल हुआ। उसके चेहरे पर गुस्सा और आँखों में भड़कती हुई ज्वाला थी। कमरे में आते ही उसने अपने बालों पर हाथ फेरा और सीधे क्लोज़ेट की तरफ़ चला गया।
इस वक़्त उसने शेरवानी पहन रखी थी। क्लोज़ेट में जाकर वह अपने कपड़े निकालने लगा।
धानी देखती रही कि वह नॉर्मल कपड़े ढूँढ रहा है। शायद जैसे धानी लहँगे में अनकंफरटेबल है, उसी तरह शायद उसका पति भी शेरवानी में अनकंफरटेबल है। इसीलिए वह अपने पहनने के लिए कंफर्टेबल कपड़े देख रहा था।
उसने देखा कि उसके पति ने एक नॉर्मल शर्ट और ट्राउज़र लिया और सीधे बाथरूम की तरफ़ चला गया। धानी उसे जाते हुए देखती रह गई।
दस मिनट बाद जब वह बाथरूम से वापस आया, तो उसने कपड़े बदल दिए थे और फिर वह शीशे के सामने जाकर अपने बाल सेट करने लगा।
धानी हैरान हो गई। इतनी रात को कपड़े बदलकर बाल सेट कर रहा है, इन्हें तो सोना ही है ना, तो फिर बाल बनाने की क्या ज़रूरत है? पूछूँगी तो कहीं गुस्सा न हो जाए...!
आईने के सामने खड़ा धानी का पति अपने बाल सेट कर रहा था, तभी उसके सामने एक दूध का गिलास आ गया। उसकी आँखें तीखी हो गईं और वह घूरते हुए उस गिलास को देखने लगा।
उसने अपना चेहरा घुमाकर देखा तो अपने हाथों में दूध का गिलास लिए हुए धानी खड़ी थी।
वह धीरे से उस गिलास को अपने पति की तरफ़ बढ़ाते हुए कहती है,
"दूध पी लीजिए।"
उस आदमी के हाथ कंघी पर कस गए और उसने उसे ड्रेसिंग टेबल पर फेंक दिया। ऐसा करने पर धानी घबरा गई। उसके कदम अपने आप पीछे की तरफ़ हो गए और वह डरते हुए अपने पति को देखने लगी, लेकिन जब उसने अपने पति की गुस्से से लाल आँखें देखीं, तो उसने अपना चेहरा जल्दी से नीचे कर लिया क्योंकि वह इन आँखों से आँखें मिलाकर बात नहीं कर पा रही थी।
उस आदमी ने गुस्से में धानी से कहा,
"कौन हो तुम...? 🤨"
धानी हक्की-बक्की रह गई। वह हैरानी से अपना चेहरा उठाती है और अपने पति को देखकर कहती है,
"जी, यह आप क्या कह रहे हैं? यह मैं हूँ, आज ही आपसे शादी हुई है, मैं आपकी पत्नी हूँ।"
धानी की बात सुनकर उस आदमी को इतना गुस्सा आया कि अगले ही पल वह धानी की बाज़ू को कस के पकड़ लेता है। धानी का चेहरा अचानक डर से भर गया। उस आदमी ने इतनी कस कर उसके बाज़ू को पकड़ा हुआ था कि धानी को लग रहा था कि उसका हाथ उसके शरीर से अलग हो जाएगा।
उस आदमी ने एक हाथ से धानी के बाजू को कसकर पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ में धानी के हाथों में पकड़ा हुआ दूध का गिलास ले लिया।
वो गुस्से में धानी की आँखों में देखकर कहता है, "तुम्हारी इतनी औकात नहीं कि तुम जैन मालवीय की पत्नी बन सको। अब सच-सच बताना, क्या जादू किया है तुमने मेरे दादाजी के ऊपर? जो उन्होंने जबरदस्ती तुम्हें मेरे गले में बाँध दिया है?"
धानी घबरा गई। उसने अपने आप को जैन की पकड़ से आजाद करने की कोशिश की।
उसकी आँखों में आँसू आ गए थे और वह घबराते हुए जैन को देखकर घबराई हुई आवाज़ में कहती है, "नहीं जी, आप गलत समझ रहे हैं। मैंने कुछ भी नहीं किया है। आपके दादाजी ने खुद मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था।"
जैन गुस्से से अपने दाँत पीसते हुए कहता है, "अगर मेरे दादाजी ने तुम्हारे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था, तो तुम उसे इनकार कर देती। तुम्हें हाँ कहने की क्या ज़रूरत थी? तुम्हें उस इंसान के साथ शादी कैसे कर सकती हो? जिसे तुमने कभी देखा तक नहीं है और न ही उसके बारे में कुछ जानती हो।"
"ओह, अब पता चला कि क्यों तुमने मुझसे शादी करने के लिए हाँ कही थी, क्योंकि तुम्हें मेरी दौलत नज़र आई थी। तुम्हें पता था कि मैं एक अमीर घर का लड़का हूँ और मेरे पास बेइंतिहा दौलत है। जिस दौलत पर तुम ऐश करके सारी ज़िंदगी रानी की तरह रहोगी। अब मुझे तुम्हारे इरादे अच्छी तरह से समझ में आ गए हैं। इसीलिए तुमने मेरे दादाजी के सामने ये अच्छाई का मुखौटा पहना हुआ था, पर मुझे पता चल गया है कि तुम एक नंबर की लालची लड़की हो।"
"पैसे और दौलत के लिए तुम किसी के साथ भी शादी करने के लिए तैयार हो जाती हो। बताओ, कितने पैसे चाहिए तुम्हें? मैं तुम्हें दूँगा। बोलो, कितने पैसे चाहिए तुम्हें? मेरी ज़िंदगी जाने के लिए..!"
धानी का पूरा चेहरा आँसुओं से भर गया था। उसका दिल टूट गया था। वह हताश भरे चेहरे के साथ जैन को देख रही थी। उसे लगा नहीं था कि जैन उससे ऐसी बात करेगा।
पहले तो उसे लगा कि जैन शायद किसी बात से नाराज़ है, लेकिन उसकी बातों से धानी को पता लग गया था कि जैन उससे नफ़रत करता है, लेकिन क्यों? उसने तो कुछ भी नहीं किया है।
जैन के दिल में धानी के लिए कितनी बड़ी गलतफ़हमी है। यह सोचकर धानी और ज़्यादा निराश हो गई थी। वह उससे कहना चाहती थी कि वह ऐसा कुछ भी नहीं सोचती है। उसे तो पता भी नहीं था कि उसकी शादी किसके साथ होने जा रही है? ऐसे में वह किसी को धोखा कैसे देगी? उसे तो यह भी नहीं पता था कि दादाजी असल में कौन हैं? वह तो शादी वाले दिन ही उसे इस बात का पता चला था।
धानी रोते हुए जैन की तरफ़ देखकर बोली, "आप गलत समझ रहे हैं जी! मेरा इरादा आपको तकलीफ पहुँचाने का बिल्कुल भी नहीं था और मेरे दिल में ऐसा कुछ भी नहीं है! ना ही मैंने आपसे शादी किसी लालच में की है और ना ही मुझे पैसों की कोई चाहत है। मैंने तो दादाजी की खुशी के लिए शादी की थी।"
"उन्होंने खुद मुझसे शादी के लिए कहा था और कहा था कि आपको भी शादी से कोई परेशानी नहीं होगी! अब भी अपनी मर्ज़ी से शादी कर रहे हैं, अगर मुझे पता होता कि आप यह शादी नहीं करना चाहते हैं, तो मैं यह शादी कभी नहीं करती, मेरा यकीन कीजिए..!"
जैन गुस्से में धानी के बाजू को और कसकर दबाते हुए कहता है, "यकीन करूँ? तुम्हारा यकीन करूँ? क्यों करूँ मैं तुम्हारा यकीन? लगती कौन हो तुम मेरी? बीवी? मैं तुम्हें अपनी बीवी नहीं मानता हूँ और किसी अनजान लड़की पर भरोसा करने की आदत नहीं है मेरी।"
धानी की आँखों में आँसू जैन की बातें सुनकर और ज़्यादा बढ़ गए थे। वह हैरानी से जैन को देख रही थी।
जैन ने अपने हाथों में पकड़े हुए दूध के गिलास को अगले ही पल ज़मीन पर फेंक दिया और गिलास में पड़ा हुआ दूध पूरे फर्श पर फैल गया।
जैन गुस्से में धानी के हाथ को खींचता हुआ उसे बालकनी की तरफ़ ले गया। वह गर्म दूध, जो नीचे फर्श पर गिरा हुआ था, धानी के पैर उस गर्म-गर्म दूध के ऊपर पड़ गए थे और उसके पैरों में तेज जलन का एहसास हो रहा था।
धानी का पूरा चेहरा दर्द से लिपट चुका था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। शादी की पहली रात के लिए उसने क्या-क्या सपने सजाए हुए थे? लेकिन उसके सारे सपने यहीं टूट चुके थे।
जैन धानी को खींचता हुआ बालकनी में ले गया और बालकनी का दरवाज़ा खोलकर, उसे बालकनी में लगे सोफ़े पर धकेल दिया। धानी संभल नहीं पाई और सीधे सोफ़े पर जाकर गिर गई।
जैन गुस्से में धानी को देखकर कहता है, "यही तुम्हारी जगह है, मेरी ज़िंदगी और मेरे कमरे से बाहर। रात का वक़्त है, इसीलिए तुम्हें घर से बाहर नहीं निकाल सकता हूँ, लेकिन कमरे से तो बाहर निकाल सकता हूँ ना।"
"चुपचाप बालकनी में पड़ी रहो। और हाँ, यहाँ बैठकर रोना-धोना मत शुरू कर देना! वो क्या है ना, मेरी नींद बहुत कच्ची है। हल्की आवाज़ से मेरी नींद टूट जाती है। मैं नहीं चाहता हूँ कि तुम्हारे रोने की आवाज़ मेरे कानों में आए और मेरी नींद में डिस्टर्बेंस हो। अगर मेरी बात समझ गई हो, तो अच्छी बात है और नहीं भी समझी हो, तो मुझे इन सब से फ़र्क नहीं पड़ता है। मुझे जो कहना था, वो कह दिया है।"
इतना कहकर जैन वापस कमरे में चला गया और दरवाज़ा बंद कर लिया।
धानी अपनी आँखों में आँसू लिए हुए उस बंद दरवाज़े को देख रही थी। खुली बालकनी में ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थीं और धानी को ठंड भी लग रही थी। उसने अपने दोनों हाथों को क्रॉस करते हुए अपने बाजू पर रखा और खुद में ही सिमटने लगी।
बालकनी में कुछ था भी नहीं। ना कोई ब्लैंकेट और ना ही कोई चादर, जिसे वह खुद को गर्मी का एहसास करवा सके। ऊपर से वह इतने हैवी जोड़े में बैठी हुई थी। उसकी नज़र रह-रह कर उस बंद दरवाज़े की तरफ़ जा रही थी। आँखों से आँसू तो बह रहे थे, लेकिन होंठ बिल्कुल खामोश थे।
क्योंकि जैन ने उसे धमका कर गया था कि उसे नींद में धानी की आवाज़ नहीं आनी चाहिए। इसलिए धानी ने अपने मुँह से एक सिसकी तक नहीं निकलने दी, लेकिन आँखों के आँसू बता रहे थे कि वह अंदर से कितनी टूट चुकी है।
दुल्हन के जोड़े में, बालकनी में बैठी हुई, ठंड को गले से लगाते हुए धानी अपने गुज़रे एक हफ़्ते के बारे में सोच रही थी।
एक हफ़्ते पहले तक तो उसकी ज़िंदगी में सब कुछ ठीक था। कोई भी परेशानी नहीं थी। उसकी ज़िंदगी वैसे ही चल रही थी जैसे कि चलती आ रही थी। पर उसे क्या पता था कि उसकी एक हरकत से उसकी पूरी ज़िंदगी बदल जाएगी।
एक हफ़्ते पहले तक धानी मालवीय अनाथ आश्रम में एक केयरटेकर थी। हाँ, वह फ़िलहाल वहाँ पर एक केयरटेकर ही थी, लेकिन उससे पहले वह भी उस अनाथ आश्रम में रहा करती थी।
धानी एक अनाथ लड़की है और बचपन से ही उस अनाथ आश्रम में ही पली-बढ़ी है। अनाथ आश्रम में हर चीज़ उसे बहुत अच्छे से पता है। वहाँ की हर एक टीचर, हर एक मेंट्रेन से लेकर, हर साल आने वाले गेस्ट, धानी हर किसी को जानती है, लेकिन 18 की होने के बाद, धानी का अनाथ आश्रम छोड़ना ही पड़ा।
लेकिन वह इस जगह को नहीं छोड़ना चाहती थी, जिसे वह अपना घर कहती है। इसीलिए उसने इस अनाथ आश्रम में केयरटेकर की जॉब करना शुरू कर दिया। सैलरी ज़्यादा नहीं थी, लेकिन धानी वहाँ पैसों के लिए काम नहीं करती थी। ऊपर से वह बच्चों का और बाकी सब चीज़ों का बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी।
फ्लैशबैक..
एक हफ़्ते पहले, धानी अनाथ आश्रम के काम में लगी हुई थी। आज इस अनाथ आश्रम में 50वीं सालगिराह का उत्सव मनाया जा रहा था। इसी खुशी में सभी बच्चों ने एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित किया था।
धानी भी आयोजन में शामिल थी। वह बच्चों के साथ स्टेज की तैयारी कर रही थी, तभी उसकी नज़र आश्रम की हैड मैडम, प्रमिला जी पर पड़ी।
उनके चेहरे पर थोड़ी परेशानी थी। धानी उनके पास जाती हुई कहती है,
"क्या बात है बड़ी मैडम? आप इतनी परेशान क्यों हैं? आपके चेहरे पर खुशी क्यों नहीं है? अनाथ आश्रम को 50 साल हो गए हैं। आज तो कितनी बड़ी खुशी का दिन है, देखिए बच्चों ने कितना प्यारा स्टेज तैयार किया है।"
धानी की मुस्कान देखकर प्रमिला जी के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है।
वह धानी के चेहरे को देखते हुए मुस्कुरा उठती हैं। आखिर धानी है ही इतनी प्यारी। उसकी बातों में इतनी प्यारी मिठास है, जिसे सुनकर कोई भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता।
प्रमिला जी भी हाँ में सिर हिलाती हैं और कहती हैं,
"हाँ धानी, तुम सही कह रही हो और सच में बहुत खुशी का दिन है, लेकिन इस खुशी को हम अकेले कैसे सेलिब्रेट कर सकते हैं? इस अनाथ आश्रम के जो मालिक हैं, वे यहाँ के मुख्य अतिथि हैं।"
"हम लोगों ने उनके ऑफिस में जाकर उन्हें निमंत्रण पत्र दिया था और उनसे यह भी कहा था कि बच्चे एक बार उनसे मिलना चाहते हैं, पर देखो इतना समय हो गया है, वे अब तक नहीं आए हैं और न ही उनके आने की कोई खबर आई है। मुझे नहीं लगता कि वे आएंगे।"
प्रमिला मैडम की बात सुनकर धानी थोड़ी हैरान और परेशान हो जाती है। उसने फिर कुछ सोचते हुए कहा,
"मैडम, मैं यहाँ बचपन से हूँ! एक तरह से देखा जाए तो यह अनाथ आश्रम ही मेरा घर है। आज मेरे घर में इतना बड़ा फंक्शन है, मैं इसे अधूरा नहीं छोड़ना चाहती हूँ।"
"जब मैं छोटी सी थी, तब मैंने उन्हें देखा था, जिन्होंने यह आश्रम बनवाया था, तब वे थोड़े जवान दिखते थे, लेकिन अब तो उनकी उम्र काफ़ी हो गई होगी ना।"
प्रमिला मैडम हँसते हुए कहती हैं,
"हाँ, अब उनकी उम्र 55 साल हो गई है। उनका 27 साल का एक पोता भी है। उनके बेटे की मौत कुछ साल पहले एक प्लेन क्रैश में हो गई थी और उनकी बहू तो सालों पहले ही उनके पोते को जन्म देते हुए गुज़र गई।"
"इस अनाथ आश्रम के ओनर मिस्टर उत्कर्ष मालवीय, इस शहर में उनका नाम और रुतबा आज भी वैसा ही है, जैसा सालों पहले हुआ करता था और वह भी सिर्फ़ उनके पोते की वजह से। अपने खानदान के नाम को कभी भी झुकने नहीं दिया। लेकिन इतने बड़े बिज़नेस होने के कारण, वे लोग कभी भी किसी सोशल गेदरिंग में नहीं जा पाते हैं।"
"अब आज का ही देख लो! यह अनाथ आश्रम उनके डोनेशन का एक छोटा सा अंश है! वे इतने बड़े लोग हैं, हमारे जैसे छोटे अनाथ आश्रम में क्यों आएंगे?"
धानी खड़ी होती है और अपने दोनों हाथों को कमर पर रखते हुए कहती है,
"क्यों नहीं आएंगे? छोटा है तो क्या हुआ, इस अनाथ आश्रम में पूरे 250 बच्चे हैं और इन 250 बच्चों की उम्मीद है कि वे लोग हमारे मुख्य अतिथि से मिलेंगे।"
"आप फ़िक्र मत कीजिए। मैं उन्हें यहाँ लेकर आऊँगी। वे जितने भी बड़े इंसान होंगे और बहुत बिज़ी भी रहे होंगे, लेकिन इन बच्चों के लिए उन्हें अपने बिज़ी शेड्यूल में से 5 मिनट निकालना ही होगा। आप मुझे उनका पता दीजिए। कहाँ है उनका ऑफिस? मैं उन्हें यहाँ लेकर आऊँगी।"
प्रमिला मैडम धानी की बात सुनकर हँसने लगती हैं, लेकिन उन्हें धानी पर विश्वास था। इसलिए उन्होंने धानी को मालवीय इंडस्ट्री का पता दे दिया। धानी ऑटो लेकर सीधे मालवीय इंडस्ट्री पहुँच जाती है।
इतनी बड़ी कंपनी को देखकर धानी को घबराहट होने लगती है। उसने वहाँ पर कॉन्फिडेंस होकर कह तो दिया था, लेकिन इतनी बड़ी कंपनी में वह एक इंसान को कैसे ढूँढेगी?
फिर उसने अपने ही सिर पर हाथ मारते हुए कहा,
"पागल हो गई है धानी, जिसे ढूँढने आई है, उसे ढूँढने के बारे में सोच रही है। मिस्टर उत्कर्ष मालवीय, इस कंपनी के मालिक हैं। उन्हें ढूँढना कौन सा मुश्किल काम होगा, जाकर बस पूछना है कि वे कहाँ मिलेंगे! उन्हें तो सब जानते हैं, Wow धानी तू कितनी स्मार्ट है।"
खुद को ही प्राउड करते हुए धानी वहाँ से एंट्रेंस की तरफ चली जाती है। वह देखती है कि लिफ़्ट आने में अभी समय है और वहाँ पर बहुत सारे लोग हैं, जो लिफ़्ट का इंतज़ार कर रहे हैं।
धानी भी लिफ़्ट के पास जाकर खड़ी हो जाती है। वह देखती है कि लिफ़्ट के दूसरी तरफ़ दो लड़कियाँ खड़ी हैं, जिन्होंने बहुत ही अतरंगी या फिर यूँ कहें कि रिवीलिंग कपड़े पहने हुए थे।
पीछे की तरफ़ जो चार आदमी खड़े हैं, वे शायद इस कंपनी में ही काम करते हैं, क्योंकि उन्होंने फ़ॉर्मल कपड़े पहने हुए हैं और उनके गले में जो आई कार्ड है, उस पर मालवीय का लोगो लगा हुआ है।
लेकिन उन सबके आगे एक बुज़ुर्ग आदमी सफ़ारी सूट में खड़ा हुआ था। उसकी आँखों पर मोटा चश्मा था और वह छड़ी के सहारे खड़ा हुआ था।
धानी उस बुज़ुर्ग आदमी को हैरानी से देख रही थी। ऐसा लग रहा था कि उसने पहले कभी उन्हें देखा हुआ है, लेकिन उसे याद नहीं आ रहा था।
उस बुज़ुर्ग ने जब धानी की तरफ़ देखा और खुद को देखते पाया, तो उसने एक हल्की सी मुस्कान धानी को दी और बदले में धानी भी मुस्कुरा देती है।
वह दोनों लड़कियाँ, जिन्होंने छोटे कपड़े पहने हुए थे, आपस में बात कर रही थीं।
धानी ने जब उनकी बात सुनी, तो थोड़ी हैरान हो गई। कैसी सोच है आजकल की लड़कियों की? एक लड़की, जिसने रेड कलर की ड्रेस पहन रखी थी, अपनी दोस्त से कहती है,
"अरे यार, इस कंपनी में एंट्रेंस करने का मेरा कब से सपना था। अब जाकर मौका मिला है, तुम्हें क्या लगता है, क्या हमारा लक लग सकता है?"
दूसरी लड़की भी एक्साइटेड होते हुए कहती है,
"अरे अगर वह हमें सामने से नहीं देखेगा, तो क्या हो गया। इस कंपनी में एंट्री मिल गई है ना, उसके केबिन में भी एंट्री मिल जाएगी और उसके बाद उसके बेड पर भी एंट्री मिल जाएगी।"
धानी हैरानी से उनकी बात सुन रही थी। वह बुज़ुर्ग आदमी भी उनकी बात सुन रहा था और बाकी सारे एम्प्लॉयी थोड़े हैरान हो रहे थे। शायद आज उन सबका इस कंपनी में पहला दिन था।
रेड ड्रेस वाली लड़की ने कहा,
"मैंने सुना है कि उसका केबिन टॉप फ़्लोर पर है। एक काम करना, जब हम लोग एंट्रेंस में मीटिंग हॉल में बिज़ी रहेंगे, तब तुम सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींच लेना, ताकि मैं पीछे से निकलकर उसके केबिन में जा सकूँ।"
दूसरी वाली लड़की कहती है,
"तुम क्यों पहले जाओगी? मैं पहले जाऊँगी ना। इतने हैंडसम इंसान से मिलने का मौका, मैं तुम्हें पहले क्यों दूँगी? मैं पहले जाऊँगी। मुझे देखते ही वह मुझ पर फ़िदा हो जाएगा। जैन माय लव। तुम्हें पता है, मैं उसे इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो करती हूँ और उसकी फ़िटनेस को देखकर तो मैं खुद अपनी डाइट भूल जाती हूँ।"
"उसको रात को सपने में देख-देख कर मैं अपनी आहें भरती हूँ, उसी के लिए तो मैंने बिज़नेस जॉइन किया है। वरना मुझे तो मॉडलिंग करनी थी।"
बुज़ुर्ग आदमी के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान आ जाती है।
लेकिन धानी उनकी बातें सुनकर अजीब तरीके से उन्हें देख रही थी। कैसी पागल लड़कियाँ हैं? ऐसे खुलेआम कैसी गंदी बातें कर रही हैं!
तभी लिफ़्ट आ जाती है और लिफ़्ट का दरवाज़ा खुलता है। लिफ़्ट में पहले से ही तीन लोग मौजूद थे। सारे लोग लिफ़्ट में एंटर हो जाते हैं।
धानी भी लिफ़्ट के अंदर चली जाती है। बुज़ुर्ग आदमी सबको जाने देता है और उसके बाद सबसे लास्ट में लिफ़्ट में एंटर होता है, लेकिन तभी लिफ़्ट ओवरलोड का सिग्नल देती है।
सब लोग हैरानी से एक-दूसरे को देखने लगते हैं। अब लिफ़्ट से बाहर कौन जाए? वह दोनों लड़कियाँ बुज़ुर्ग आदमी को देखकर कहती हैं,
"ओल्ड मैन, तुम निकलो यहाँ से।"
धानी हैरान हो जाती है और हैरानी से उन लड़कियों को देखती है, जो उस बुज़ुर्ग को लिफ़्ट से बाहर जाने के लिए कह रही थीं।
वह बुज़ुर्ग आदमी कहता है,
"बेटा, तुम लड़कियाँ तो जवान हो ना, सीढ़ियों से जा सकती हो। तुम्हें नहीं लगता कि लिफ़्ट ऐसे इंसान के लिए होती है, जिन्हें चलने-फिरने में परेशानी होती हो।"
बुज़ुर्ग आदमी की बात सुनकर वह दोनों लड़कियाँ नाराज़ हो जाती हैं।
उनमें से रेड ड्रेस वाली गुस्से में कहती है,
"यू ओल्ड मैन! तुम जानते हो हम कौन हैं? हम इस कंपनी की होने वाली मालकिन हैं और तुम हमसे ऐसी बात कर रहे हो। ज़्यादा बकवास की ना, तो लिफ़्ट से धक्के मारकर बाहर निकाल देंगे।"
दूसरी वाली भी गुस्से में कहती है,
"और नहीं तो क्या? एक पैर क़ब्र में है और तुम्हें यह घूमने-फिरने की पड़ी है? पता नहीं यह बुड्ढा यहाँ पर आया ही क्यों है? इस ऑफ़िस में क्या काम है? इस उम्र में क्या करेंगे? हाँ, झाड़ू-पोछा का काम, इसे बहुत अच्छे से मिल जाएगा। तुम देख क्या रही हो? बोलने से क्या होता है, इसे धक्के देकर यहाँ से बाहर ही निकाल दो।"
रेड ड्रेस वाली के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई और उसने कहा,
"बिल्कुल ठीक कहा तुमने, इसे तो यहाँ से बाहर ही निकालना चाहिए। इसी की वजह से लिफ़्ट भारी हो रही है। शरीर में जान नहीं है, लेकिन फिर भी लिफ़्ट रोके हुए खड़ा है।"
उस लड़की ने बुज़ुर्ग आदमी के बाजू को पकड़ा और उसे धक्का देने ही वाली थी कि तभी धानी ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में उसके हाथ को पीछे की तरफ़ धकेल दिया!
वह लड़की संभल नहीं पाती है और पीछे लिफ़्ट से लग जाती है।
बुज़ुर्ग आदमी हैरानी से धानी को देखता रह जाता है और वहाँ सभी लोग खड़े हैरानी से बस तमाशा ही देख रहे थे।
धानी गुस्से में उनकी तरफ़ देखती है और कहती है,
"ज़ुबान बताती है कि परवरिश घटिया ही हुई है।"
वह लड़की गुस्से में धानी के ऊपर चिल्लाते हुए कहती है,
"हाउ डेयर यू.."
धानी गुस्से से उसे घूरते हुए कहती है,
"डेयर तो तुमने अभी तक देखा ही नहीं है। अगर दिखाने पर आ गई ना, तो राधा रानी की कसम इतनी जोर से थप्पड़ लगाऊँगी कि दो बार टप्पा खाकर जमीन से लगोगी।"
वह लड़की गुस्से में धानी की तरफ़ देखकर उसे उंगली दिखाती है और कहती है,
"तुम्हारी दो टके की लैंग्वेज से पता चल रहा है कि तुम कितनी घटिया लड़की हो।"
लेकिन धानी ने अगले ही पल उसकी उंगली को अपने हाथों में पकड़ लिया और अगले ही पल उसकी कलाई पकड़कर मरोड़ कर, उसके कमर से लगा दिया।
वह लड़की चिल्लाती रह गई और उसकी दोस्त तो हक्की-बक्की खड़ी थी। उसकी आँखें एकदम बड़ी हो गई और वह घूरते हुए धानी को देखने लगी। धानी ने उसे उसकी दोस्त के ऊपर धकेल दिया और वह दोनों लड़कियाँ लिफ़्ट की दीवार से जाकर लग जाती हैं।
धानी गुस्से में उन्हें देखकर कहती है,
"ज़बान तो अच्छी है नहीं, कम से कम नियत तो अच्छी रखो। यह तो देख लो किसके सामने क्या कह रही हो? इनकी उम्र का तो लिहाज करो। ये उम्र में तुमसे कितने बड़े हैं और जहाँ तक मुझे लगता है, कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों को इतना तो सिखाते ही हैं कि अपने बड़ों की इज़्ज़त करनी चाहिए।"
"और क्या कह रही थी तुम, कि यह बुड्ढा आदमी यहाँ पर झाड़ू-पोछा का काम करेगा? चलो इनमें इतनी तो काबिलियत होगी कि यह यहाँ पर साफ़-सफ़ाई के काम कर सकते हैं, लेकिन तुम्हारा क्या? क्या सोचकर तुम खुद को इस कंपनी की मालकिन बता रही थी? मालकिन छोड़ो, तुम तो यहाँ की नौकर बनने लायक भी नहीं हो। यहाँ की नौकरों में भी बहुत तमीज़ होती होगी।"
"मुझे नहीं पता कि तुम दोनों कौन हो और यहाँ किस इरादे से आई हो, लेकिन इतना ज़रूर जानती हूँ कि तुम्हारे इरादे तुम्हारे ख़यालों में ही अच्छे लगते हैं। असल ज़िंदगी में ना तो वे पूरे होंगे और ना ही तुम कामयाब होगी।"
धानी उन लड़कियों से लड़ ही रही थी कि तभी वहाँ पर ब्लैक कपड़ों में कुछ लोग आ जाते हैं।
वे लिफ़्ट के दरवाज़े पर खड़े हो जाते हैं और बुज़ुर्ग आदमी को देखते हुए कहते हैं,
"अरे बड़े साहब आप यहाँ पर? यहाँ से क्यों जा रहे हैं? यह तो पब्लिक लिफ़्ट है, वीआईपी लिफ़्ट उस तरफ़ है।"
ब्लैक कपड़ों में खड़े बॉडीगार्ड उस बुज़ुर्ग आदमी को लिफ़्ट से बाहर निकालते हैं। वह आदमी मुस्कुराते हुए एक नज़र धानी को देखता है और फिर वहाँ से चला जाता है।
सब लोग हैरानी से उसे जाता हुआ देखते रह जाते हैं। यहाँ तक कि धानी भी हैरान हो गई थी। कौन था यह आदमी और उसे लेने के लिए इस तरीके से यूनिफ़ॉर्म में लोग कैसे आ सकते हैं?
तभी लिफ़्ट बंद हो जाती है और ऊपर वाले फ़्लोर पर जाने लगती है। दोनों लड़कियाँ गुस्से में धानी को देख रही थीं, तो धानी भी उन्हें गुस्से में घूरकर देखती है, तभी एक फ़्लोर आता है और वहाँ पर कुछ लोग उतर जाते हैं, जिनमें वे लड़कियाँ भी शामिल थीं। उसके बाद लिफ़्ट सीधे प्रेसिडेंट फ़्लोर आता है।
धानी प्रेसिडेंट फ़्लोर पर जाती है और वहाँ पर मौजूद रिसेप्शन पर खड़ी लड़की से कहती है,
"हेलो, मेरा नाम धानी है। मैं मालवीय अनाथ आश्रम से आई हूँ, मुझे मिस्टर उत्कर्ष मालवीय से मिलना है।"
उस लड़की ने धानी को देखते हुए कहा,
"आपका कोई अपॉइंटमेंट है मैडम?"
धानी कुछ सोचती है और फिर ना में सिर हिलाते हुए कहती है,
"नहीं, मेरा अपॉइंटमेंट तो नहीं है, लेकिन मैं जिस अनाथ आश्रम से आई हूँ, वह अनाथ आश्रम मालवीय ट्रस्ट के अंडर ही आता है।"
रिसेप्शन पर खड़ी लड़की मुस्कुराते हुए कहती है,
"जी मैडम, आप सही कह रही हैं, लेकिन हमारी कंपनी के ट्रस्ट में ऐसे बहुत सारे अनाथ आश्रम, एनजीओ और संस्थाएँ आती हैं। अब हम हर किसी को तो बॉस से मिलने की परमिशन नहीं दे सकते ना। वे इस समय बहुत बिज़ी हैं।"
"वैसे भी कंपनी के सीईओ अभी बाहर गए हैं एक मीटिंग के लिए। इसीलिए सारी कंपनी की ज़िम्मेदारी बिग बॉस पर आ गई है। उनके पास समय नहीं है, प्लीज़ अगर आपको उनसे मिलना है, तो आप अपॉइंटमेंट लेकर आइए। हम ऐसे आपको उनसे मिलने की परमिशन नहीं दे सकते हैं और इस पूरे महीने तो उनका कोई भी शेड्यूल खाली नहीं है। आप चाहे तो अगले महीने का अपॉइंटमेंट, मैं आपको दे सकती हूँ।"
रिसेप्शनिस्ट की बात सुनकर धानी हैरान हो जाती है और सोचने लगती है। अगले महीने का अपॉइंटमेंट लेकर वह क्या करेगी? उसे तो आज ही उत्कर्ष मालवीय से मिलना है।
यही सोचते हुए वह इधर-उधर टहल रही थी, तभी उसे खाली सोफ़ा नज़र आता है और वह रिसेप्शन से कहती है,
"क्या मैं वहाँ बैठ सकती हूँ?"
रिसेप्शन मुस्कुराते हुए हाँ में अपना सिर हिलाती है और धानी वहीं पर लगे सोफ़े पर बैठ जाती है। वह सोचने लगती है कि उसे आगे क्या करना चाहिए?
तभी वहाँ पर कुछ ब्लैक कपड़ों में लोग आते हैं। धानी देखती है, इन्होंने बिल्कुल वैसे ही कपड़े पहने हुए हैं, जैसा कि अभी थोड़ी देर पहले लिफ़्ट के बाहर उन बॉडीगार्ड ने पहने हुए थे।
वे लोग धानी को देखते हैं और कहते हैं,
"एक्सक्यूज़ मी मैडम, बिग बॉस आपसे मिलना चाहते हैं।"
धानी हैरानी से उन लोगों को देखती है और फिर सोचने लगती है। बिग बॉस मतलब कौन? मिस्टर उत्कर्ष मालवीय क्या? वे धानी से मिलना चाहते हैं। लगता है उन्हें पता चल गया है कि धानी अनाथ आश्रम से आई है। इसीलिए वे उनसे मिलना चाहते हैं।
धानी मुस्कुराते हुए हाँ में अपना सिर हिलाती है और कहती है,
"हाँ हाँ बिल्कुल, मैं खुद उनसे मिलना चाहती हूँ, चलिए चलिए।"
यह कहते हुए धानी उन सारे बॉडीगार्ड से पहले ही वहाँ से निकल जाती है। वे सब लोग हैरानी से एक-दूसरे को देखते हैं और फिर धानी के पीछे-पीछे जाने लगते हैं।
कैबिन के दरवाज़े पर पहुँचकर धानी गहरी साँस छोड़ती है और केबिन के दरवाज़े पर नॉक करती है। अंदर से एक आदमी की आवाज़ आती है, जो धानी को अंदर बुला रहा था।
धानी मुस्कुराते हुए केबिन में जाती है, तो देखती है कि विंडो के पास एक आदमी सफ़ारी सूट में खड़ा है, जिसका चेहरा विंडो की खिड़की की तरफ़ था।
धानी कमरे के अंदर दाखिल होती है और दरवाज़े के पास खड़े होते हुए कहती है,
"नमस्ते सर, मेरा नाम धानी है। मैं मालवीय अनाथ आश्रम से आई हूँ। आपको तो शायद अपना बनाया हुआ आश्रम याद भी नहीं होगा, लेकिन वह आपके ट्रस्ट के अंडर ही आता है।"
"और मैं उस अनाथ आश्रम में रहने वाली और काम करने वाली एक एम्प्लॉयी हूँ। दरअसल मैं यहाँ पर आपको इनवाइट करने आई हूँ। वैसे तो हमारी बड़ी मैडम ने आपको खुद इनवाइट किया था।"
"आज हमारे अनाथ आश्रम का 50 साल पूरा हो गया है और उसकी खुशी में बच्चों ने एक छोटा सा फंक्शन रखा हुआ है। मुझे पता है आप बहुत बड़े इंसान हैं, आपके पास इन सब चीज़ों के लिए समय नहीं है, लेकिन अगर फिर भी आप सिर्फ़ 5 मिनट के लिए वहाँ पर आ जाते, तो उन बच्चों का मन बहल जाता।"
"आप इतने समय से उस अनाथ आश्रम की देखभाल कर रहे हैं। वहाँ पर बच्चों को कोई परेशानी नहीं होती है। समय पर हर चीज़ मिल जाती है, खाना, कपड़ा, त्योहार पर खिलौने, सब चीज़ वहाँ पर आपके द्वारा समय पर भेजी जाती है। लेकिन फिर भी लोगों को एक उम्मीद रहती है कि जिसके नाम पर यह अनाथ आश्रम है, एक बार बस उन्हें देख लें। क्या आप उन बच्चों की खुशी के लिए 5 मिनट के लिए अनाथ आश्रम आ सकते हैं?"
"क्यों नहीं, मैं तो कब से इसी चीज़ का इंतज़ार कर रहा हूँ।" वह बुज़ुर्ग आदमी बोलता है और धानी जब उसे देखती है, तो एकदम से उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं।
यह शख्स कोई और नहीं बल्कि लिफ़्ट में मौजूद वह बुज़ुर्ग इंसान ही था, जिनके लिए धानी उन लड़कियों से लड़ी थी।
धानी अपने दोनों हाथों से ताली बजाते हुए खुद से ही कहती है,
"औ तेरी के.. अंकल आप? आप यहाँ क्या कर रहे हैं?"
सफ़ारी सूट में सिंपल पर्सनालिटी के साथ इस वक़्त कोई और नहीं बल्कि इस कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर यानी के मिस्टर उत्कर्ष मालवीय हैं और उत्कर्ष मालवीय कोई और नहीं बल्कि ज़ेन के दादाजी हैं।
दादाजी ने मुस्कुराते हुए धानी को देखा और कहा,
"अरे, मैं तुम्हारे इनविटेशन के बारे में सोच रहा हूँ। अभी तुमने मुझे अपने अनाथ आश्रम इनवाइट किया है ना, बस वही सोच रहा हूँ कि वहाँ जाने के लिए कपड़े बदलने चाहिए या यही कपड़े चलेंगे।"
दादाजी के कहने पर धानी एकदम हैरान हो जाती है और अब उसे समझ आता है कि दरअसल वह इंसान कोई और नहीं बल्कि उत्कर्ष मालवीय हैं, जिन्हें वह लेने आई थी।
अपनी बेवकूफ़ी पर अब धानी को गुस्सा आ रहा था और वह हल्के अफ़सोस के साथ कहती है,
"सॉरी, मुझे लगा आप कोई और हैं। मुझे नहीं मालूम था कि आप ही वह हैं। वरना मैं ऐसी हरकत कभी नहीं करती।"
उत्कर्ष मालवीय उसकी बात सुनकर बोले,
"क्या तुमने कुछ भी नहीं किया है जो सही है, तुमने वही किया है और सही को सही करने के लिए तुम्हें किसी से माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है। क्या नाम बताया तुमने अपना, धानी? हाँ, धानी। मैं तुमसे पूछ रहा था। बच्चे, क्या ये कपड़े सही हैं या मुझे दूसरे कपड़े बदलने चाहिए? अगर बच्चों ने मुझे इन कपड़ों में देखा तो कहीं वे घबरा तो नहीं जाएँगे?"
धानी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है। इतना बड़ा आदमी लेकिन पर्सनालिटी बिल्कुल सिंपल।
वह ना में सिर हिलाती है और कहती है,
"जी नहीं, आप जैसे हैं, वैसे ही बहुत अच्छे लग रहे हैं। आपको कपड़े बदलने की ज़रूरत नहीं है।"
आधे घंटे बाद…
दादाजी अनाथ आश्रम के ग्राउंड में बैठे हुए थे, जहाँ पर फंक्शन चल रहा था। छोटे-छोटे बच्चे दादा जी के स्वागत के लिए गीत गा रहे थे और सब लोग बहुत खुश थे, क्योंकि इतने सालों में पहली बार दादाजी अनाथ आश्रम आए थे।
प्रमिला जी धानी को देखकर मुस्कुरा उठती हैं। जो काम उनके इतनी रिक्वेस्ट करने के बावजूद भी नहीं हो पाया था, क्योंकि कभी भी उन्हें दादाजी से मिलने की परमिशन ही नहीं मिलती थी। वे हमेशा से ही रिसेप्शनिस्ट पर ही निमंत्रण देकर आ जाया करती थीं, पर शायद वह निमंत्रण कभी दादाजी तक पहुँचा ही नहीं।
लेकिन आज धानी दादा जी को अपने साथ लेकर आई थी, यह देखकर प्रमिला मैडम बहुत खुश होती हैं। सिक्योरिटीज़ ने वहाँ पर हर इंतज़ाम कर दिए थे। दादाजी की सुरक्षा के लिए उन्होंने पूरे अनाथ आश्रम को अपने अंडर ले लिया था और छोटे-छोटे बच्चे स्टेज पर परफ़ॉर्म कर रहे थे।
दादाजी यह देखकर बहुत खुश हो रहे थे, क्योंकि स्टेज के पीछे से धानी उन बच्चों की मदद कर रही थी। राधा-कृष्ण से लेकर राम-लक्ष्मण और सीता वनवास तक का प्यारा सा एक दृश्य मंच पर दिखाया जा रहा था।
दादाजी उस दृश्य को तो अच्छी तरह देख रहे थे, लेकिन साथ ही वे बीच-बीच में नज़र आने वाली धानी की मेहनत को देख रहे थे। आज तक वे कितने चैरिटी प्रोग्राम में गए थे, कितने इवेंट में गए थे। वहाँ पर लड़कियाँ छोटे-छोटे कपड़े पहनकर अश्लील गानों पर डांस किया करती थीं, लेकिन अनाथ आश्रम में बच्चों ने भक्ति और ईश्वर से जुड़े हुए प्रोग्राम दिखाए थे।
यह देखकर दादाजी बहुत खुश हुए। जब प्रोग्राम ख़त्म हो गया, तो दादाजी ने सभी बच्चों को तोहफ़े देकर उनका प्रोत्साहन बढ़ाया।
प्रोग्राम ख़त्म हो गया था। प्रमिला मैडम दादाजी के पास खड़ी थी और उनके आने का धन्यवाद कर रही थी,
"आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर, आप हमारे मामूली से प्रोग्राम में शामिल हुए हैं।"
दादाजी हँसते हुए कहते हैं,
"मैडम जी, अगर आपको धन्यवाद कहना है, तो धानी का कीजिए, अगर वह मुझे यहाँ नहीं लाती, तो शायद मुझे पता ही नहीं चलता कि 50 साल हो गए हैं इस अनाथ आश्रम को बनाए हुए और कितने बच्चों ने इसी अनाथ आश्रम से अपने जीवन में आगे बढ़ाया है।"
"आपको अनाथ आश्रम के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत हो, तो आप मेरे सेक्रेटरी से कह सकती हैं। आपको वह चीज़ मुहैया करवा दी जाएगी।"
लेकिन तभी दादाजी की नज़र धानी पर जाती है, जो बच्चों को लड्डू बाँट रही थी।
दादाजी बड़े गौर से धानी को देखते हैं और फिर उन्होंने प्रमिला मैडम से कहा,
"प्रमिला जी, आप बता सकती हैं कि धानी यहाँ पर कब से है?"
प्रमिला मैडम उनकी बात सुनकर थोड़ी हैरान होती हैं, लेकिन फिर उन्होंने कहा,
"धानी, वह तो यहाँ पर बचपन से ही है, शायद वह तीन या चार महीने की रही होगी, तब उसे कोई हमारे पालने में छोड़ गया। बस तब से ही धानी इस अनाथ आश्रम में ही है और वह इसी अनाथ आश्रम को अपना घर कहती है। इतना तो यह अनाथ आश्रम हमारा अपना भी नहीं है, जितना उसने अपना बना लिया है। बहुत प्यारी बच्ची है, बहुत मासूम है। इसे न तो छल-कपट करना आता है और न ही दिखावा करना आता है, जैसी है वैसी ही दिखती है।"
"ऐसी ही तो चाहिए।" दादाजी ने धीरे से कहा, तो प्रमिला मैडम हैरानी से कहती हैं,
"जी, मैं कुछ समझी नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं सर?"
दादाजी एक हल्की मुस्कान के साथ प्रमिला मैडम को देखकर कहते हैं,
"प्रमिला जी, यह अनाथ आश्रम धानी का घर है और धानी के लिए यहाँ के लोग ही यहाँ का परिवार है, तो इस नाते शायद आप धानी के परिवार का हिस्सा हुईं, तो इसलिए मैं घुमा-फिराकर बात नहीं करूँगा, मैं धानी को अपने घर की बहू बनाना चाहता हूँ। मैं उसकी शादी अपने पोते ज़ेन के साथ करवाना चाहता हूँ, क्या आपको यह रिश्ता मंज़ूर है?"
प्रमिला मैडम यह सुनकर पूरी तरह से शॉक हो जाती हैं। उन्हें समझ ही नहीं आया, वे इस बात का क्या जवाब दें? क्या वे इस बात के लिए हाँ कहें या फिर ना कहें? क्योंकि धानी के लिए रिश्ता आया भी तो कहाँ से। सीधे मालवीय खानदान से, जिनका नाम इस पूरे शहर में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है।
उन्हें तो खुद ही नहीं पता कि उनके कितने अनाथ आश्रम और हैं इस शहर में और बिज़नेस में तो उनका नाम हमेशा ही नंबर वन की पोजीशन पर ही रहा है। ऐसे में ज़ेन मालवीय के साथ धानी जैसी अनाथ लड़की की शादी के बारे में सोचकर प्रमिला मैडम हैरानी से कहती हैं,
"सर, यह आप क्या कह रहे हैं? कहाँ आपका पोता और कहाँ धानी?"
एक हफ़्ते बाद, मालवीय अनाथ आश्रम जगमगाती लाइटों और फूलों से सजा हुआ था। आज यहाँ शादी थी। धानी की शादी। क्योंकि यह धानी का घर था, इसीलिए सारे अनाथ आश्रम ने मिलकर धानी की शादी अपने ही आश्रम में करवाने का फैसला किया था।
धानी अपने कमरे में थी और बेचैनी से खिड़की पर खड़ी थी। उसने दुल्हन का जोड़ा पहना हुआ था और पूरी तरह तैयार थी, लेकिन फिर भी उसके दिल में बेचैनी थी।
उसे याद आया जब दादाजी और प्रमिला मैडम ने उसे शादी के बारे में बताया था। धानी एकदम से स्तब्ध हो गई थी और उसे समझ नहीं आया था कि वो क्या जवाब दे।
दादाजी धानी से अकेले बात कर रहे थे। उन्होंने धानी से कहा, "धानी बेटा, बहुत उम्मीद के साथ तुम्हारा हाथ माँग रहा हूँ। अगर इनकार करोगी, तो तुम्हारी ना मंज़ूर होगी। लेकिन कुछ भी कहने से पहले, क्या तुम इस बूढ़े आदमी की बात सुनोगी?"
धानी और दादाजी पलंग पर बैठे हुए थे। दादाजी ने धानी को देखते हुए कहा, "मेरा बेटा और बहू, बहुत साल पहले मुझे छोड़कर चले गए। मेरे पास जीने का बस वही एक सहारा था, लेकिन अपने बाद, वो मेरे पास एक ज़िम्मेदारी छोड़कर गए, अपने छोटे से बच्चे, ज़ेन के रूप में।"
"मेरे पास अब जीने का बस एक ही सहारा था, मेरा पोता, लेकिन बिज़नेस और ज़ेन को मैं अकेले नहीं संभाल पा रहा था। एक तरफ़ बिज़नेस को डूबने से बचाना था, क्योंकि ज़ेन को देने के लिए वही मेरे पास आखिरी विरासत थी। और दूसरी तरफ़ मुझे ज़ेन को भी संभालना था।"
"इसलिए मैंने बिज़नेस पर ज़्यादा ध्यान दिया और ज़ेन को अपने से दूर रखा, पर मैंने कोशिश की थी कि उसे हर वो चीज मिले जिसका वो हक़दार है; एक अच्छी पढ़ाई, एक अच्छी परवरिश। और इन सब के लिए मैंने ज़ेन को विदेश भेज दिया था, पर मुझे नहीं पता था कि उसे विदेश की हवा ऐसी लगेगी कि हमारे संस्कार और संस्कृति को वो पूरी तरह से भूल जाएगा।"
"जब वो अपनी पढ़ाई पूरी करके अमेरिका से वापस आया, तो मैंने उसे बिज़नेस संभालने के लिए दे दिया। उसने मेरा बिज़नेस बहुत अच्छे से संभाला, लेकिन उसके तेवर और बर्ताव पूरी तरह से बदल गए थे। वो बच्चा ही नहीं था जिसमें मैं अपने बेटे की झलक देख सकता था।"
"दुनिया के तौर-तरीकों में मेरा बच्चा कहीं खो गया है। इसलिए मैं उसके लिए एक अच्छी जीवनसाथी की तलाश कर रहा हूँ जो उसे अपने प्यार और विश्वास से संभाले। धानी, मुझे तुम में वो लड़की नज़र आ रही है। क्या तुम इस बूढ़े आदमी की यह आखिरी इच्छा कबूल करोगी? क्या तुम मेरे पोते से शादी करोगी?"
"मैं चाहता हूँ कि तुम हाँ करो, पर हाँ करने से पहले मैं तुम्हें एक बात बता दूँ। ज़ेन बहुत ज़िद्दी और गुस्से वाला है, उसे संभालना बहुत मुश्किल होता है। कभी-कभी तो वो मेरे भी कंट्रोल में नहीं आता है। तुम्हें उसे हमेशा प्यार और अपनेपन से संभालना होगा।"
"मुझे विश्वास है कि तुम्हारे सिम्पल स्वभाव के कारण वो एक दिन संभल जाएगा और वो बन जाएगा जो मैं उसे बनता हुआ देखना चाहता हूँ। बस मरने से पहले मैं अपने पोते को खुश देखना चाहता हूँ।"
"मुझे पता नहीं मेरी ज़िन्दगी कितने दिन की है, लेकिन मरने से पहले अगर मेरी आखिरी इच्छा पूरी हुई, तो यही होगी कि मैं ज़ेन को एक अच्छा आदमी बनता हुआ देखूँ।"
धानी का मन बेचैन हो गया और चेहरा घबराहट से भर गया, क्योंकि यह कहते हुए दादाजी की आँखों में आँसू आ गए थे।
धानी जल्दी से दादाजी के पास आई और उनके घुटनों के पास बैठ गई। उसने दादाजी के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, "दादाजी, प्लीज़ आप रोना बंद कीजिए। मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकती। आप तो हमारे सब कुछ हैं। आपने हमें रहने के लिए घर दिया है।"
"यह अनाथ आश्रम हमारा घर है और आप मुझे ऐसी बात कह रहे हैं जिसे मैं चाहकर भी इनकार नहीं कर सकती हूँ। लेकिन दादाजी, जैसा कि आपने बताया कि आपका पोता बहुत गुस्से वाला है। क्या वो इस शादी के लिए हाँ कहेगा?"
दादाजी अपनी आँसू पोछते हुए हल्की सी मुस्कान के साथ बोले, "ज़ेन अगर उससे शादी की बात भी कहूँगा ना, तो वो इंडिया छोड़कर फिर किसी बिज़नेस मीटिंग के लिए अब्रॉड भाग जाएगा। इसलिए मैं बताऊँगा भी नहीं कि उसकी शादी है। बस शादी वाले दिन उसे मंडप पर लाकर खड़ा कर दूँगा। मुझे बस तुम्हारी हाँ चाहिए।"
धानी को समझ नहीं आया कि वो क्या करे? दादाजी को मना करने का उसका दिल नहीं कर रहा था। दादाजी ने इतने विश्वास और उम्मीद के साथ धानी के सामने इस रिश्ते का प्रस्ताव रखा था, कि जो कुछ भी होगा, वो भगवान के भरोसे छोड़कर धानी ने दादाजी को हाँ कह दिया।
धानी की हाँ मिलने के बाद दादाजी बहुत खुश हुए। उन्होंने प्रमिला मैडम को शादी की तैयारी करने के लिए कहा और ठीक एक हफ़्ते बाद बारात लेकर आने का वादा किया था। आज वह एक हफ़्ता पूरा हो गया था।
धानी की हल्दी, मेहंदी सब अनाथ आश्रम में ही हुई थी। उसे यह तक नहीं पता था कि जिससे उसकी शादी होने वाली है, वह शख्स दिखता कैसा है? लेकिन बस उसे दादाजी पर भरोसा था।
आज धानी की शादी थी। अपने हाथों में ज़ेन के नाम की मेहँदी लगाई धानी खिड़की पर खड़ी थी। नीचे गार्डन में शादी की तैयारी हो रही थी। वह खिड़की से नीचे सज रहे मंडप को देख रही थी। सब लोग कितने खुश थे! पूरा अनाथ आश्रम महल की तरह सजाया गया था और सभी बच्चों के लिए नए कपड़े आए थे।
धानी उन बच्चों को मुस्कुराता हुआ देखकर खुश हो रही थी। उसका खुद का जोड़ा भी बहुत खूबसूरत और काफी महँगा था। यह दादाजी की तरफ़ से धानी के लिए आया था।
लेकिन फिर भी धानी घबरा रही थी। उसके मन में बेचैनी थी। ज़ेन इस बारे में क्या सोचेगा? वो कैसे रिएक्ट करेगा? शादी के मंडप पर ज़ेन उसके साथ होगा? तो वो उसे क्या कहेगा? धानी यहाँ पर अपने विचारों में उलझी हुई थी।
तो वहीं दूसरी तरफ़, मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर, दादाजी अपने गार्ड और सिक्योरिटी के साथ वेटिंग एरिया में खड़े थे। वो ज़ेन की फ़्लाइट के आने का इंतज़ार कर रहे थे। अपने बिज़नेस ट्रिप को कंप्लीट करके ज़ेन आज पूरे २ महीने बाद वापस आ रहा था।
पर उसे नहीं पता था कि दादाजी उसे लेने एयरपोर्ट पर आएंगे। जैसे ही ज़ेन ने अपने दादाजी को वेटिंग एरिया में देखा, वो एकदम से हैरान हो गया।
ज़ेन इस समय बिज़नेस सूट में था और उसके सिक्योरिटी उसके साथ थे। मीडिया को अलग रखा गया था। उन्हें ज़ेन के आसपास भी भटकने नहीं दिया जा रहा था।
ज़ेन जल्दी से दादाजी के पास आया और खुश होते हुए दादाजी को देखकर बोला, "दादू आप यहाँ पर? What a pleasant surprise!"
ज़ेन खुश होते हुए अपने दादाजी के गले लग गया। दादाजी उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे खुद से अलग करते हुए मुस्कुराते हुए बोले, "नहीं बेटा, अभी सरप्राइज़ मिला कहाँ है? सरप्राइज़ मिलना तो अभी बाकी है।"
ज़ेन को दादाजी की बात कुछ समझ नहीं आई, लेकिन उसने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। दादाजी को मज़ाक करने की आदत थी, यह बात तो वो जानता ही था।
दादाजी ज़ेन का हाथ पकड़कर उसे एग्ज़िट की तरफ़ लाते हुए बोले, "चलो, तुम्हारा सरप्राइज़ इंतज़ार कर रहा है।"
लेकिन ज़ेन उन्हें रोकते हुए बोला, "दादू आप कहाँ लेकर जा रहे हैं? मेरी गाड़ी उस तरफ़ है। मेरी सिक्योरिटी के साथ पार्किंग में! आप मुझे बाहर की तरफ़ क्यों लेकर जा रहे हैं?"
दादाजी ज़ेन का हाथ पकड़कर उसे बाहर लाते हुए बोले, "अरे तुम चलो तो सही, हम घर नहीं जा रहे हैं। इससे पहले कि तुम अगला सवाल करो, मैं तुम्हें बता दूँ कि हम ऑफ़िस भी नहीं जा रहे हैं। दरअसल हम एक शादी में जा रहे हैं।"
ज़ेन एकदम से हैरान हो गया। शादी में?
वो जल्दी से बोला, "दादू प्लीज़ यार, मुझे किसी फैमिली फंक्शन में या फिर किसी बिज़नेस पार्टनर के यहाँ पर फंक्शन में जाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। आप जानते हैं ना, मुझे ये सब चीजें पसंद नहीं हैं। प्लीज़ मुझे घर जाने दीजिये। मैं जल्दी से फ्रेश होकर एक मीटिंग के लिए जाना चाहता हूँ।"
लेकिन दादाजी ने उसकी एक नहीं सुनी। वो उसका हाथ पकड़कर बाहर लाते हुए बोले, "तुम्हें जहाँ भी जाना है, शादी के बाद जाना। फ़िलहाल के लिए तुम मेरे साथ चलो।"
ज़ेन हैरान रह गया। उसके दादाजी ने कभी उसके सामने इस तरीके की ज़िद नहीं की थी।
दादाजी की कार सीधे अनाथ आश्रम के सामने आकर रुकी। ज़ेन हैरानी से अनाथ आश्रम को देख रहा था। यह अनाथ आश्रम उसके ट्रस्ट के अंदर आता है... यह तो उसे पता भी नहीं था!
वैसे उसके ट्रस्ट में बहुत सारी संस्थाएँ ऐसी हैं, जिनके बारे में उसे मालूम नहीं था। लेकिन अनाथ आश्रम इतना सजा हुआ देखकर वो हैरानी से दादाजी की तरफ़ देखकर बोला, "ये क्या है दादू?? आप मुझे अनाथ आश्रम लेकर आए हैं और ये इतना सजा हुआ क्यों है? आज दिवाली है क्या? मैं इतना लेट आया हूँ..."
दादाजी मुस्कुराते हुए गाड़ी का दरवाज़ा खोलते हुए बोले, "बेटा, लेट तो आप बहुत हो गए हैं, लेकिन और ज़्यादा लेट हो जाए... उससे पहले ये काम करना ज़रूरी है! अंदर आओ।"
ज़ेन को उनकी बात समझ नहीं आई। वो हैरानी से दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला, लेकिन जैसे ही वो दादाजी के साथ अंदर जाने के लिए बढ़ा...
वो एकदम से हैरान हो गया। सामने ढोल बजने लगे। छोटे-छोटे बच्चे ढोल के सामने पागलों की तरह नाच रहे थे।
"What the hell..."
ज़ेन हैरानी भरी नज़रों से उन्हें देखकर बोला तो दादाजी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, "हेल नहीं है, हेवन है। शादी-विवाह में ऐसी बातें नहीं करते हैं। शुभ-शुभ बोला जाता है और खुशी का समय है... लोग अपनी खुशी नाचकर दिखा रहे हैं तो तुम्हें उनकी खुशी में खुश होना चाहिए! थोड़ा मुस्कुराओ... शादी में आए हो।"
ज़ेन को दादाजी की गोल-गोल बातें समझ में नहीं आ रही थीं। दादाजी उसका हाथ पकड़कर उसे अनाथ आश्रम के अंदर लेकर आए, तभी ज़ेन हैरान हो गया क्योंकि उसके सामने पूजा की थाली आ गई।
प्रमिला मैडम ज़ेन की आरती उतारने लगीं। ज़ेन घबराकर पीछे हो गया और दादाजी को देखने लगा।
दादाजी उसका हाथ पकड़कर उसे आगे करते हुए बोले, "अरे डर क्यों रहे हो? आरती ही तो कर रही हैं। विलायत में रह-रहकर तुम आधे विलायती हो गए हो। हमारे इंडिया के संस्कार भूल गए हो। अच्छे से देख लो, आरती ऐसे होती है।"
ज़ेन इरिटेट हो रहा था और उसे चिढ़ हो रही थी, लेकिन दादाजी के सामने वो कुछ नहीं बोला।
प्रमिला मैडम मिठाई ज़ेन की तरफ़ बढ़ाते हुए बोलीं, "बेटा, मुँह मीठा करो।"
पर ज़ेन ने अपना हाथ दिखाकर उन्हें रोका और इरिटेटिंग फेस बनाते हुए कहा, "मुझे मीठा पसंद नहीं है।"
प्रमिला मैडम और वहाँ खड़े बाकी के स्टाफ़ हैरान हो गए। दादाजी ठहाका लगाकर हँसने लगे।
वो प्रमिला मैडम के हाथों से मिठाई लेते हुए बोले, "कोई बात नहीं, मैं खा लेता हूँ।"
"आपको शुगर है दादाजी..."
ज़ेन हैरानी से दादाजी की तरफ़ देखकर बोला, लेकिन इससे पहले कि वो उन्हें रोक पाता, मिठाई का टुकड़ा दादाजी के मुँह में जा चुका था।
दादाजी खुश होते हुए मिठाई चबाते हुए ज़ेन को देखकर बोले, "आज की इस खुशी के मौके पर इस मिठाई के लिए मैं दो इंजेक्शन और चार गोलियाँ ज़्यादा खाने को तैयार हूँ।"
प्रमिला मैडम उन सबको लेकर गार्डन में आईं। दादाजी ने देखा कि गार्डन में मंडप लगा हुआ था और बहुत खूबसूरत लग रहा था। पंडित जी वहाँ बैठे हुए थे और पूजा की सारी चीजें संभाल रहे थे।
प्रमिला मैडम ज़ेन और दादाजी को बैठने के लिए कहती हैं, तो ज़ेन इरिटेट होते हुए बोला, "दादाजी अब यहाँ आ गए हैं ना... आपको जिनसे मिलना है जल्दी मिलिये... मैंने कहा ना मुझे कहीं जाना है। देखिये अभी तो शादी की तैयारी भी नहीं हुई है! आप एक काम कीजिये, रूम में जाकर दूल्हे से मिलकर आ जाइए।"
तभी वहाँ पर अनाथ आश्रम का एक स्टाफ़ आया, जिसके हाथों में एक थाल थी जिस पर शेरवानी और शादी का साफ़ा रखा हुआ था। दादाजी उसके हाथों से वो थाल लेते हैं और ज़ेन की तरफ़ बढ़ाते हुए बोले, "बिल्कुल बेटा... दूल्हे से मैं बिल्कुल मिलूँगा, लेकिन तब जब दूल्हा तैयार होगा।"
और यह कहते हुए उन्होंने वह थाल ज़ेन के हाथों में थमा दिया। ज़ेन हैरानी से उस थाल को देखता है और इरिटेट होते हुए दादाजी से बोला, "दादाजी... प्लीज़ यार, अब आप मुझसे ये सब काम मत करवाइएगा। मैं किसी को जाकर कपड़े नहीं पहनाने वाला हूँ। माना अनाथ आश्रम में बच्चे हैं... इसका मतलब यह तो नहीं है कि बच्चों की शादी हो रही है! अगर ऐसा होगा तो मैं चाइल्ड मैरिज में कंप्लेंट कर दूँगा।"
प्रमिला मैडम और बाकी सब हैरानी से दादाजी को देख रहे थे। दादाजी ने सबको आश्वस्त किया और फिर ज़ेन का कंधा पकड़कर उसे आश्रम की तरफ़ लाते हुए बोले, "नहीं बेटा... तुम्हें किसी को कपड़े नहीं पहनाने हैं और ना ही यहाँ बच्चों की शादी हो रही है। बल्कि दूल्हा अभी तक तैयार नहीं हुआ है क्योंकि वो अपने काम से बाहर गया हुआ था और अभी-अभी लौटा है। इसीलिए पहले उसका तैयार होना बनता है, उसके बाद जाकर ही शादी की रस्में आगे बढ़ेंगी।"
"तो दादू... हम यहाँ टाइम पास क्यों कर रहे हैं? मेरे पास इतना टाइम नहीं है! आपको यहाँ रुकना है तो आप रुकिए... मैं गर्ल्स और बाकी लोगों को यहीं बुला लेता हूँ, वो आपके साथ रहेंगे! मुझे जाने दीजिये।"
"तुम्हें कैसे जाने दे सकते हैं ज़ेन?? अगर तुम चले गए तो शादी किसकी होगी?"
अब तक दादा और ज़ेन कमरे में आ चुके थे, लेकिन जैसे ही ज़ेन ने दादाजी की बात सुनी, उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो गईं और चेहरा हैरानी से भर गया। वो अपनी जगह पर ही जम गया था।
उसके हाथों में जो कपड़ों की थाली रखी थी, उसमें ज़ेन के हाथों की मुट्ठी कस गई थी और वो अचंभित होते हुए दादाजी को देख रहा था। मुँह इतना खुल गया था कि उसके अंदर मक्खी छोड़ो, मगरमच्छ चला जाए।
ज़ेन बिल्कुल स्तब्ध हो गया था और दादाजी को देख रहा था। दादाजी मुस्कुराते हुए उसके हाथों से थाल लेते हैं और उसे साइड टेबल पर रखते हैं। ज़ेन अभी भी अपनी जगह पर ही खड़ा था... बिल्कुल पत्थर की तरह।
दादाजी ने धीरे से ज़ेन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मेरी बात सुनो ज़ेन..."
लेकिन ज़ेन ने दादाजी का हाथ अपने कंधे पर नहीं आने दिया। वो अपने दो कदम पीछे ले लेता है और हैरानी से दादाजी को देखते हुए बोला, "क्या कहा आपने अभी... क्या मेरे कान बज रहे हैं या फिर आपने मुझसे जो कहा... इसका मतलब यह है कि यहाँ पर शादी मेरी हो रही है।"
दादाजी ने अब बात को ज़्यादा घुमाना और लपेटना सही नहीं समझा। वो एक गहरी साँस छोड़ते हुए और जो हाथ उन्होंने ज़ेन के कंधे पर रखने के लिए उठाया था, उसे अपनी जेब में डालते हुए बोले, "कुछ गलत नहीं सुना है तुमने और जो समझा है, वो भी बिल्कुल सही समझा है। यहाँ पर तुम्हारी ही शादी है।"
अचानक से ज़ेन हँसने लगा। उसकी हँसी कोई नार्मल हँसी नहीं थी... वो डरावने तरीके से हँस रहा था, लेकिन दादाजी को इस बात का बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ रहा था!
ज़ेन हँसते हुए दादाजी को देखकर बोला, "आप मज़ाक कर रहे हैं ना... ये सब एक जोक है, मज़ाक है, सच में दादा जी... आपने एक जोक के लिए इतना सब कुछ किया! अब बस बहुत हो गया... अब मुझे बहुत हँसी आ गई, चलते हैं यहाँ से।"
यह कहते हुए वो आगे बढ़ ही रहा था कि दादाजी ने उसकी कलाई पकड़ ली। ज़ेन का चेहरा गुस्से में सख्त हो गया और वो गुस्से में दादाजी की तरफ़ देखने लगा।
दादाजी ज़ेन के पास आकर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, "ये ना तो कोई मज़ाक हो रहा है और ना ही मैंने तुमसे कोई मज़ाक किया है। ये सच्चाई है, आज तुम्हारी शादी है धानी के साथ।"
"व्हाट? धानी...? मुझे किसी धानी के साथ शादी नहीं करनी है!"
ज़ेन एकदम गुस्से में चिल्लाया और साइड में रखे टेबल पर लात मारते हुए कहा।
दादाजी को इस रिएक्शन की उम्मीद थी। वो अपनी आँखें बंद कर लेते हैं और गहरी साँस छोड़ते हुए कहते हैं, "उसका नाम धानी है... पर वो बहुत अच्छी, प्यारी और समझदार लड़की है।"
ज़ेन को गुस्सा आ रहा था। इससे पहले कि दादाजी ने जो सोच लिया है, वो कर लें... ज़ेन को यहाँ से निकलना था। वो तेज़ी से दरवाज़े की तरफ़ अपने कदम बढ़ाता है, लेकिन जैसे ही उसने हैंडल पर अपने हाथ रखे... दादाजी के शब्दों ने उसे रोक दिया।
"अगर तुम यहाँ से धानी से शादी किये बिना गए तो ये धानी का नहीं... बल्कि मेरा अपमान होगा... जीते जी मर जाती हैं वो लड़कियाँ जिनकी शादी का मंडप तो सजा होता है, लेकिन उसमें शादी नहीं होती है... और अपने हाथों से इस गुनाह को करने वाला मैं खुद बनूँगा... इसीलिए ऐसी ज़िन्दगी से तो मर जाना ही बेहतर होगा। मैंने धानी से वादा किया था कि आज उसकी शादी इसी मंडप से होगी और अगर उसकी शादी नहीं होती है... यहाँ से धानी की डोली उठे ना उठे... मेरी अर्थी ज़रूर उठेगी।"
"😡 आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते हैं..." ज़ेन गुस्से में बौखलाते हुए कहता है, तो...
दादाजी मुस्कुराते हुए उसके पास आते हुए बोले, "तुम्हारे भविष्य के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ... मुझे पता है कि मैं आज जो कर रहा हूँ, वो गलत है। तुम्हें ये नहीं बताया गया कि तुम्हारी शादी है और किसके साथ है, लेकिन यकीन मानो... कल को तुम्हें मेरा यह फैसला गलत नज़र नहीं आएगा और ना ही तुम इसके लिए कभी पछताओगे। फैसला तुम्हारे ऊपर है... बाहर शादी का मंडप तैयार है और एक लड़की, जिसे मैंने वादा किया है... फैसला तुम्हें करना है कि तुम्हें क्या करना है?? अपने दादाजी के शब्दों का मान रखना है या फिर नहीं रखना है... मैंने तुम्हें इतना तो ज़रूर सिखाया होगा कि रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए। अब तुम बताओ?? मैं अपने शब्दों को पूरा करने के लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ।"
अगले आधे घंटे बाद, ज़ेन शेरवानी पहनकर मंडप पर खड़ा था। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रखा था। उसके ठीक पीछे दादाजी खड़े थे, जिनका चेहरा खुशी से लाल हो रखा था।
तभी आश्रम के अंदर से प्रमिला मैडम और एक और अनाथ बच्ची, दोनों धानी को अपने साथ लेकर आती हैं। ज़ेन की नज़र धानी पर जाती है, तो उसका गुस्सा और सख्त हो जाता है।
धानी ने इस समय घूँघट पहना हुआ था... खूबसूरत से लहंगे में आधे हाथ का घूँघट... उसके चेहरे को दिखाने में असमर्थ था, लेकिन उसके हाथों की मेहँदी, चूड़ियाँ और छम-छम करती उसकी पायल की आवाज़ से वहाँ के माहौल में एक अलग सी रौनक बनी हुई थी। वो धीरे-धीरे कदमों के साथ मंडप की तरफ़ बढ़ रही थी।
उसे देखकर दादाजी का चेहरा फूले नहीं समा रहा था, लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ ज़ेन के हाथ मुट्ठियों में कसे हुए थे। उसने सिर्फ़ दादाजी के लिए शादी को हाँ कहा है, पर इस तरीके से उसकी शादी हो रही है, वो इसे कभी एक्सेप्ट नहीं करेगा।
ज़ेन की नज़र गुस्से में धानी पर जाती है जो धीरे-धीरे कदमों से उसकी तरफ़ बढ़ रही थी और एक पल के बाद उसके पास आकर खड़ी हो जाती है। उसे अपने पास देखकर ज़ेन ने बेहद बेरुखी से अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया था और उसके हाथ मुट्ठी में कसे हुए थे।
दादाजी अपने जेब से एक नोट निकालते हैं और उसे उन दोनों पर घुमाते हुए प्रमिला मैडम को देते हैं ताकि वो बच्चों में बाँट दें।
और इसी तरीके से ज़ेन और धानी की शादी हो जाती है... जहाँ पर ज़ेन ने ना तो धानी को देखा और ना ही धानी ने ज़ेन को देखा था... घूँघट और नफ़रत के बीच में यह शादी का रिश्ता कैसे अपनी जगह बनाएगा?
फ़्लैशबैक...
और दरवाज़ा खुलता है। मेड बालकनी में आते हुए कहती है, "मैडम..."
इसी के साथ धानी नींद से जाग जाती है। उसने देखा वो दुल्हन के जोड़े में थी और बालकनी में सो रही थी। कल रात उसके और ज़ेन के बीच जो कुछ भी हुआ था, उसे सब याद आने लगा।
मेड ने जब दरवाज़ा खोला, तो धानी की नींद खुल गई और वह हैरानी से उस मेड को अपने सामने देख रही थी। यह वही मेड थी जो कल रात उसके कमरे में दूध का गिलास लेकर आई थी। धानी अपने लहंगे को संभालते हुए उठकर खड़ी हो गई।
"मैडम, रूम में आ जाइए, सुबह हो गई है," मेड ने धानी से कहा।
धानी का चेहरा निराशा से भर गया। प्रमिला मैडम, और अनाथ आश्रम में काम करने वाली बाकी औरतों ने धानी को बताया था कि घर में कितनी ही बड़ी परेशानी क्यों ना हो जाए, पति-पत्नी के बीच कितना भी बड़ा झगड़ा क्यों ना हो जाए, बाहर वाले को उस बात की भनक नहीं लगनी चाहिए। लेकिन यहां धानी क्या करे? शादी के पहले दिन ही घर में काम करने वाली मेड को उसके और उसके पति के बीच हुई लड़ाई के बारे में पता चल गया था।
"क्या सोच रही होगी वो?"
धानी यही सोच रही थी कि इतने में मेड ने दरवाज़ा पूरा खोल दिया और धानी को अंदर आने के लिए कहा। धानी अपने लहंगे को संभालते हुए कमरे में कदम रखा।
और जैसे ही वह कमरे के अंदर पहुँची, तो देखा कि कमरा पूरी तरह से बदल चुका था। कल रात जहाँ सजावट थी, जहाँ डेकोरेशन था, फूलों और मोमबत्तियों ने जिस कमरे को सजाया हुआ था, अब वहाँ पर कुछ भी नहीं था। सारे डेकोरेशन को हटा दिया गया था, सारे फूलों को उतार दिया गया था। ऐसा लग रहा था कि उस कमरे में कभी कोई फूल लगा ही नहीं था। बेड से भी फूल हटा दिए गए थे। अगर कुछ था, तो सिर्फ वो चादर जिस पर कल रात धानी बैठी हुई थी; वो गुलाबी रंग के हल्के-हल्के फूलों के प्रिंट के साथ। उस चादर को धानी ने पहचान लिया था। वो जैसे ही कमरे में अंदर की तरफ दाखिल हुई, वैसे ही बाथरूम का दरवाज़ा खुला और जैन निकला। जैन को देखकर धानी का चेहरा एक बार फिर से घबराहट से भर गया और वह जल्दी से अपना चेहरा नीचे कर ली।
लेकिन धानी को देखकर जैन की आँखें सख्त हो गई थीं, और हाथों की मुट्ठियाँ कस गई थीं। जैन ने इस वक्त नॉर्मल शर्ट और ट्राउज़र पहना हुआ था। मेड कमरे की सफाई कर रही थी।
"बेला," जैन ने धानी को देखते हुए मेड को बुलाया।
मेड जल्दी से अपना काम छोड़कर उसकी तरफ आई और उससे कुछ कदम की दूरी पर खड़े होकर अपना सर झुकाते हुए बोली, "यस सर।"
जैन गुस्से में अभी भी धानी को देख रहा था, जिसका चेहरा और पलकें दोनों नीचे जमीन की तरफ झुकी हुई थीं। जैन ने बेला से कहा,
"मेरे कमरे में किसी को भी आने की ज़रूरत नहीं है और ना ही किसी को मेरा सामान छूने की इजाजत है। घर का कचरा घर के बाहर ही रहे तो बेहतर है; उसे घर के अंदर नहीं लाया जाता है। और जब कोई कचरा हमारी किसी पसंदीदा जगह पर पड़ा हो तो हमें उस जगह को भी अच्छे से साफ करना पड़ता है। इस कमरे की अच्छे से सफाई करना और हाँ, मेरे बेड की बेडशीट बदलना और हो सके तो गद्दे भी। वो क्या है ना, मुझे पसंद नहीं कोई बाहर वाला आकर मेरी चीज़ों को हाथ लगाए। समझ में आया तुम्हें मेरी बात? क्या कहना चाहता हूँ मैं?"
जैन घूरते हुए बेला को देखकर बोला तो बेला डर गई और जल्दी से हाँ में सर हिलाते हुए बोली, "जी सर, फ़िक्र मत कीजिए, मैं आपके कमरे को अच्छे से साफ कर दूँगी। और बेडशीट और गद्दे भी बदल दूँगी। जब आप ब्रेकफास्ट करके वापस कमरे में आएंगे तो आपको पुराना कुछ भी नज़र नहीं आएगा।"
जैन एक घूरती हुई नज़र धानी के ऊपर डाला और फिर वहाँ से चला गया। लेकिन पीछे खड़ी धानी को जैन के हर एक शब्दों का मतलब समझ में आ रहा था कि वह क्या कहना चाहता है; बाहर का कचरा यानी कि धानी और उसकी पसंदीदा चीज़ों पर गंदगी यानी कि धानी का स्पर्श।
धानी के आँसू निकल रहे थे। उसने सोचा नहीं था कि शादी के बाद उसकी ज़िंदगी इस तरीके से बदल जाएगी। उसे इतना तो पता था कि शादी के बाद हर लड़की की ज़िंदगी में थोड़े बहुत बदलाव आते हैं, जिसे वह अपने जीवनसाथी के साथ मिलकर पार कर लेती है। पर धानी का केस यहाँ पर कुछ डिफ़रेंट था।
वह इस चीज़ से कैसे उलझे जहाँ पर उसका लाइफ़ पार्टनर खुद उसके साथ खड़ा नहीं है और शादी की पहली रात ही उसने धानी से यह कह दिया कि ना तो वह शादी को मानता है और ना ही धानी को अपनी पत्नी मानता है। ऐसे में धानी कैसे शादी जैसे पवित्र रिश्ते को निभाएगी? वह बस यही सोच रही थी।
धानी इधर-उधर देखने लगी। उसका सूटकेस कमरे के कोने में पड़ा हुआ था। वह जल्दी से अपने सूटकेस के पास गई और जैसे ही उसने अपना सूटकेस उठाया, उसका सूटकेस बहुत भारी था। दरअसल, पूरे अनाथ आश्रम ने अपनी तरफ़ से धानी को कोई ना कोई सामान गिफ़्ट किया था, जिसकी वजह से उसके सूटकेस का वज़न ज़्यादा हो गया था।
वह अपने सूटकेस को लाकर जमीन पर रख देती है और उसे खोल देती है। उसके अंदर से वह अपने पहनने के लिए कपड़े निकालती है और सोचती है, "ससुराल में उसका पहला दिन है। उसे कोई अच्छी सी साड़ी पहननी चाहिए।"
धानी ने एक गुलाबी रंग की, जिसमें लाल रंग के फ्लावर बने हुए हैं, वो साड़ी निकाली। वो साड़ी बहुत खूबसूरत थी। इसे प्रमिला मैडम ने खुद धानी को दिया था, यह सोचकर कि इस साड़ी में धानी बहुत खूबसूरत लगेगी।
साड़ी ले कर और बाकी सारा सामान लेकर धानी खड़ी होती है। वह बाथरूम की तरफ़ जाने ही वाली थी कि मेड ने उसे रोकते हुए कहा, "मैडम, प्लीज़ आप सर के बाथरूम में मत जाइए, वो नाराज़ होंगे। आपको तैयार होना है ना? मैं आपको मेहमानों वाले कमरे में ले जाती हूँ।"
मेड की बात सुनकर धानी हैरानी से उसे देखती रह जाती है। लेकिन तभी उसे याद आता है कि जैन कमरे से जाने से पहले क्या बोलकर गया था। अगर उसने जो बोला है वैसा नहीं हुआ तो वह ज़रूर बेला को डांटेगा और उस पर नाराज़ होगा। धानी ने हाँ में सर हिलाया और चुपचाप मेड के साथ मेहमानों वाले कमरे में चली गई जो दो कमरे के बाद ही था।
धानी तैयार हो गई थी। उसने वहीं गुलाबी-लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी, और उस पर दुल्हन का श्रृंगार अभी भी खिल रहा था। हाथों में लाल चूड़ा, मांग में भरा सिंदूर, माथे पर लाल बिंदी और गले में मंगलसूत्र... उसके चेहरे पर इतना निखार था कि उसे मेकअप की ज़रूरत ही नहीं थी। अपनी आंखों में हल्का सा काजल और होठों पर हल्की सी लाली लगाकर धानी खुले बालों के साथ गेस्ट रूम से बाहर निकली।
बाहर उसकी नज़र उस मेड पर पड़ी जो ज़ेन के कमरे को साफ़ कर रही थी। शायद कमरे की सफ़ाई हो गई थी, इसीलिए वो मेड कमरे से बाहर आ रही थी। उसने दरवाज़ा लगाते ही धानी को देखा और कहा, "मैडम, आप तैयार हो गई हैं? मैं आपको नीचे ले चलती हूँ। सब डाइनिंग टेबल पर इंतज़ार कर रहे होंगे..."
धानी मुस्कुराते हुए हाँ में सर हिलाई। उसे नहीं पता था कि वहाँ पर उसे कैसे रहना है या फिर क्या करना है, इसीलिए जो उसे कहा जा रहा था वो वैसा ही कर रही थी। धानी मेड के पीछे-पीछे डाइनिंग टेबल की तरफ़ आ गई। जैसे ही वो नीचे हॉल में आई, उसकी नज़र दादा जी पर पड़ी।
जो सोफ़े पर बैठे हुए थे, उनके हाथों में एक न्यूज़पेपर था, और आँखों पर वही नज़र का चश्मा था। दादा जी को देखकर धानी मुस्कुरा दी। धानी के पायल की आवाज़ सुनकर दादा जी सीडीओ की तरफ़ देखे, तो धानी को आता हुआ पाया। उन्होंने इतने सालों के बाद इस घर में पायल की झंकार सुनी थी। यह सुनकर उनका दिल खुशी से भर गया था।
उन्हें एक ही बात का डर सता रहा था, कहीं ज़ेन किसी बिलाइती लड़की को अपने साथ ना ले आए... और अगर ऐसा हुआ तो वो कभी भी हिंदुस्तानी संस्कार को अपने घर में नहीं देख पाएँगे... क्योंकि धानी के आते ही, जैसे ही दादा जी पर उसकी नज़र पड़ी, वैसे ही वो अपने आँचल को अपने सर पर रख लिया और धीरे से चलकर दादा जी के पास आई और झुककर दादा जी के पैर छुए।
दादा जी ने उसके सर पर हाथ रखा और "सदा सुहागन होने का आशीर्वाद दिया..." धानी का चेहरा और ज़्यादा निखर गया। सारे आशीर्वाद एक तरफ़ और सदा सुहागन होने का आशीर्वाद एक औरत के लिए कितना मायने रखता है, यह उसके चेहरे की चमक ही बता रही थी।
धानी की नज़रें इधर-उधर थीं। दरअसल वो ज़ेन को ढूँढ रही थी। ज़ेन उसे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। उसकी नज़रों को पहचानते हुए दादा जी बोले, "वो स्टडी रूम में है। गुस्से में बैठा हुआ है। कह रहा है खाने के लिए किसी का इंतज़ार नहीं करता है। लेकिन मैंने भी साफ़ कह दिया है। आज उसे खाने के लिए भी इंतज़ार करना पड़ेगा और खाने के बाद मेरी बहू को कोई अच्छा सा शगुन भी देना होगा, क्योंकि आज मेरी बहू का इस घर में पहला दिन है और उसकी पहली रसोई की रस्म भी है..."
धानी हल्का सा शर्मा गई और हाँ में सर हिलाई। उसे खाना बनाना आता था, इसीलिए उसने दादा जी से कहा, "जी दादा जी, आप फ़िक्र मत कीजिए, मैं सब कुछ बना लूँगी। आप बताइए मुझे क्या बनाना है..."
"घर की लक्ष्मी हो तुम। जो भी प्यार से बनाओगी हम सब खा लेंगे। बस खाने से पहले मीठा ज़रूर बनाना। दरअसल ज़ेन की दादी ने यह रस्म ज़ेन की माँ के हाथों से करवाई थी, जब वो पहली बार बहू बनकर आई थी, इसलिए मुझे याद है कि तुम्हारी सास ने पहले दिन हलवा बनाया था, और वो बहुत स्वादिष्ट बना था... और ज़ेन को भी हलवा बहुत पसंद है।"
दादा जी ने यह बात थोड़ी शरारत भरे अंदाज़ में कही थी। उनकी बात सुनकर धानी के चेहरे पर और शर्म की लाली आ गई। वो हाँ में सर हिलाते हुए बोली, "मैं कोशिश करूँगी अच्छा हलवा बनाने की।"
धानी ने अपने और ज़ेन के बीच हुई बातों को दादा जी के सामने नहीं रखा। वो नहीं चाहती थी कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता चले... ज़ेन और उसकी शादी होने से वो कितने खुश थे, यह बात वो उनके चेहरे पर देख सकती थी, इसीलिए उसने इस बात को अपने तक ही सीमित रखा। वैसे भी यह पति-पत्नी के बीच की बात है, उन दोनों के बीच ही रहे तो ज़्यादा बेहतर है। आपस में कितनी ही परेशानी क्यों ना हो, बाहर वाले को यही दिखाना चाहिए कि वो दोनों एक-दूसरे के साथ बहुत खुश हैं...
बेला धानी को अपने साथ किचन में ले गई और उसके लिए हलवे का सारा सामान निकालकर तैयार कर दिया। सबसे पहले अग्नि देव यानी चूल्हे की पूजा करके उसने कढ़ाई चढ़ाई और हलवा बनाया... अपने हिसाब से धानी ने पूरी कोशिश की कि वो स्वादिष्ट हलवा बनाए ताकि ज़ेन को पसंद आए... और फिर उसने खाने के लिए मेड की मदद से खाना बनवाया।
एक बार सारा खाना बनने के बाद धानी मेड की मदद से सारा खाना डाइनिंग टेबल पर लगाती है। दादा जी जाकर हेड ऑफ़ द फैमिली की कुर्सी पर बैठे हुए थे, लेकिन ज़ेन की कुर्सी खाली थी। दादा जी को देखते हुए धानी के चेहरे पर भी निराशा आ गई क्योंकि ज़ेन की खाली कुर्सी उसने भी देखी थी। उसे लगा शायद वो नाश्ते के लिए नहीं आएगा...
धानी के साथ कल रात और आज सुबह उसका जैसा व्यवहार था, उसके हिसाब से उसने उम्मीद छोड़ दी थी कि जैन उसके हाथों का बना नाश्ता करने के लिए यहाँ आएगा। दादा जी ने बेला की तरफ़ देखते हुए बोला, "जाओ ज़ेन को बुलाकर लाओ। कहो नाश्ता लग चुका है, आकर पहले नाश्ता कर ले, उसके बाद बाकी का काम होता रहेगा..."
मेड हाँ में सर हिलाते हुए लाइब्रेरी की तरफ़ चली गई। वो लाइब्रेरी के दरवाज़े पर गई और दरवाज़ा खटखटाते हुए अंदर बैठे ज़ेन से नाश्ते के लिए कहा। लाइब्रेरी घर के बिल्कुल कॉर्नर पर था। धानी को लाइब्रेरी के दरवाज़े पर खड़ी मेड नज़र आ रही थी... पर थोड़ी ही देर में उसे अंदर से ज़ेन के चिल्लाने की आवाज़ आई...
"नहीं खाना मुझे किसी के हाथों का खाना... मेरे लिए खाना वैसे ही बनेगा जैसे रोज़ बनता आया है... जाओ यहाँ से, मैं अपना खाना खुद ऑर्डर कर लूँगा..." ज़ेन इतनी तेज़ चिल्लाते हुए कहता है कि धानी की आँखों से आँसू बह निकले थे...
और उसकी आँखों में आँसू देखकर दादा जी के हाथ सख्त हो गए। वो गुस्से में अपनी जगह से उठे और धानी को देखते हुए बोले, "इन आँसुओं को बहने मत दो... ये बहुत कीमती हैं और किसी ऐसे के लिए तो बिल्कुल भी ये आँसू जाया मत करना जिसे इसकी क़दर ना हो... तुम २ मिनट रुको, मैं अभी आता हूँ।"
दादा जी ये कहकर लाइब्रेरी की तरफ़ बढ़ गए। लाइब्रेरी पर पहुँचकर वो देखते हैं ज़ेन अंदर कुर्सी पर बैठा हुआ है और उसके हाथों में एक फ़ाइल है। वो अपनी छड़ी को दरवाज़े पर दो-तीन बार जोर से मारते हैं। ज़ेन काँप जाता है और हैरानी से दादा जी की तरफ़ देखता है, तो दादा जी उसे घूरकर देखते हुए कहते हैं...
"आज मेरी बहू की पहली रसोई है और उसने आज सबके लिए नाश्ता अपने हाथों से बनाया है। इसीलिए मैं यहाँ पर खुद तुम्हें लेने आया हूँ ताकि तुम बहू की पहली रसोई का बना खाना खा सको..." ज़ेन गुस्से में दादा जी को देख रहा था। उसने कुछ कहने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि दादा जी ने अपनी छड़ी को हवा में ऊपर डंडे की तरह उठाते हुए कहा...
"और अगर किसी ने उसके हाथ के खाने को मना किया तो याद रखना इस घर में आज के बाद उसके लिए खाना छोड़ो, रोटी का टुकड़ा भी नसीब नहीं होगा..."
दादा जी यह कहकर लाइब्रेरी से चले जाते हैं और ज़ेन गुस्से में उन्हें जाते हुए देखता रह जाता है। वो कस के अपनी आँखें बंद कर लेता है, एक गहरी साँस छोड़ता हुआ वो अपनी जगह पर खड़ा होता है और बाहर आ जाता है।
बाहर धानी डाइनिंग टेबल के पास खड़ी थी। उसे देखकर ज़ेन का गुस्सा एक बार फिर से भड़क जाता है। वो गुस्से में धानी को देखने लगता है और ज़ेन की आँखों को देखकर धानी भी घबरा जाती है। उसने जल्दी से वो कुर्सी छोड़ दी और दो कदम पीछे होकर खड़ी हो जाती है।
ज़ेन तेज़ कदमों से आता है और दादा जी के बगल वाली कुर्सी पर आकर बैठ जाता है... धानी दादा जी की कटोरी में हलवा डाल रही थी। हलवे की खुशबू से दादा जी का चेहरा खिल उठा था और वो धानी से कहते हैं, "अरे वाह! खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है। मुझे यकीन है यह बेहतर नहीं, बेहतरीन होगा..."
लेकिन जैसे ही धानी ने दूसरी कटोरी उठाई, ज़ेन ने खुद ही अपने लिए हलवा कटोरी में निकालकर अपने सामने रख लिया... धानी हैरान हो जाती है और ज़ेन को देखने लगती है और उसने फिर हैरानी से दादा जी की तरफ़ देखा। दादा जी हँसते हुए कहते हैं, "कोई बात नहीं बेटा, वैसे भी हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र सिंह मोदी जी ने कहा है आत्मनिर्भर बनो, सबको अपना काम खुद करना आना चाहिए।"
ज़ेन और दादाजी डाइनिंग टेबल पर एक साथ बैठे थे। आज धानी की पहली रसोई थी, और उसने सबके लिए नाश्ते के साथ-साथ मीठा भी बनाया था। हलवे की खुशबू से पूरा माहौल महक रहा था। धानी ने दादाजी के सामने हलवे की कटोरी रखी, लेकिन ज़ेन ने अपनी कटोरी खुद ही उठाई और हलवा अपनी प्लेट में डाल लिया। ऐसा लग रहा था जैसे उसने कटोरी को प्लेट में पटक कर रखा हो।
दादाजी मुस्कुराते हुए धानी को शांत रहने का इशारा करते हैं। धानी भी मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है। दादाजी हलवे का पहला निवाला लेते हैं, और उसका स्वाद इतना मीठा था कि उनकी आँखें बंद हो जाती हैं। वह मुस्कुराते हुए धानी को देखते हैं और कहते हैं, "बेटा, तुमने तो बहुत अच्छा हलवा बनाया है, बिल्कुल ज़ेन की दादी के जैसा। आज तुम्हारे हाथों से यह मीठा हलवा खाकर मुझे शीला की याद आ गई।"
धानी अपने मुँह पर हाथ रखकर हैरानी से "होओओओ" की आवाज निकालते हुए दादाजी से बोली, "दादाजी, आप यह क्या कह रहे हैं? इस उम्र में शीला की जवानी याद कर रहे हैं?"
शीला दादी का नाम था। ज़ेन ने घूर कर धानी को देखा, तो उसने जल्दी से अपना मुँह बंद कर लिया और कहा, "सॉरी, मुझे नहीं पता था।"
दादाजी हँसते हैं और कहते हैं, "कोई बात नहीं, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। वैसे भी जब मैंने खुद वह गाना सुना था, तो मुझे भी बहुत हँसी आई थी। अगर तुम्हारी दादी ज़िंदा होती, तो मैं उसके साथ इस गाने पर ज़रूर डांस करता।"
दादाजी हलवे की कटोरी को साइड में रखते हैं और नाश्ता शुरू करते हैं। उन्होंने आलू की सब्जी, पूरी, और कचौड़ी उठाई। लेकिन तभी, खाने के पहले ही निवाले के साथ उन्हें खांसी आने लगती है। ज़ेन और धानी दोनों हैरान होकर दादाजी को देखते हैं। ज़ेन अपनी जगह से उठता है और जल्दी से दादाजी की तरफ पानी का ग्लास बढ़ाता है। वह गुस्से में धानी से कहता है, "क्या मिला है तुमने खाने में? सच बताओ, क्या किया तुमने दादू के खाने में कि उन्हें खांसी आ गई? एक बात याद रखना, अगर दादू को कुछ हुआ तो मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।"
धानी बेबस होकर दादाजी को देखते हुए कहती है, "जी, मैंने कुछ भी नहीं मिलाया है। सच कह रही हूँ, राधा रानी की कसम।"
दादाजी पानी पीकर शांत होते हैं और ज़ेन का हाथ पकड़कर उसे वापस कुर्सी की तरफ धकेलते हुए कहते हैं, "इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि तुम धानी को नहीं छोड़ोगे। हम सब तो चाहते हैं कि तुम धानी को ना छोड़ो। शांत रहो, मुझे कुछ भी नहीं हुआ है।"
दादाजी गहरी साँस छोड़ते हैं और कहते हैं, "अरे, खाने में कंकर आ गया था, बस वही अचानक से गले में फंस गया था। इसलिए खांसी आई है। तुमने बेचारी को डाँट दिया है, उसकी पहली रसोई है, उसे प्यार से तोहफा देने की बजाय तुम उसे डाँट रहे हो।"
ज़ेन गुस्से में एक नज़र धानी को देखता है और अपनी जगह पर बैठते हुए कहता है, "देख लीजिए दादू, आपकी पसंद कहीं आप पर ही भारी न पड़ जाए। अभी तो आपको खांसी आ गई, और दिन अभी बाकी है। मुझे लगता है, डॉक्टर अंकल से बात करके आपकी मेडिकल किट तैयार करवानी पड़ेगी, क्योंकि इस लड़की पर मुझे बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।"
धानी का चेहरा निराशा से डूब गया, वह अपना चेहरा नीचे किए हुए चुपचाप बातें सुन रही थी। लेकिन दादाजी ने ज़ेन के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "एक और शब्द नहीं, तुम मेरी बहू के बारे में कुछ नहीं कहोगे। वह बहुत अच्छी लड़की है, और जब तक यह इस घर में है, मुझे डॉक्टर की कोई ज़रूरत नहीं है।"
फिर दादाजी गहरी साँस लेते हैं और कहते हैं, "मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है। धानी बेटा, मुझे पता है कि यह बहुत जल्दी है, लेकिन मैं क्या करूँ, इस काम को भी जल्द से जल्द खत्म करना है। दरअसल, मैंने केदारनाथ की मन्नत रखी हुई है। मैंने कहा था कि अगर ज़ेन की शादी किसी अच्छी लड़की से हो जाएगी, जो मेरे घर को संभाल ले और ज़ेन का ख्याल रख ले, तो मैं केदारनाथ दर्शन करने के लिए जाऊँगा। अब मन्नत तो पूरी हो गई है, तो भगवान का बकाया भी चुकाना होगा।"
दादाजी के केदारनाथ यात्रा पर जाने की बात सुनकर धानी का दिल काँपने लगा। इस घर में दादाजी ही उसका सहारा थे। अगर वह भी चले गए, तो उसका सहारा कौन बनेगा? वह इसी सोच में थी कि ज़ेन अपने दोनों हाथ बंधे हुए वहीं बैठा था। दादाजी की बात सुनकर वह जल्दी से कहता है, "हाँ दादू, अगर आपकी मन्नत है तो आपको जाकर उसे पूरी करनी चाहिए। चलिए, मैं आपकी पैकिंग में मदद करता हूँ। और उसके बाद मैं मानव को कह दूँगा, वह आपको कंपनी ले जाएगा। आप हमारे प्राइवेट हेलीकॉप्टर में केदारनाथ दर्शन करने के लिए जाएँगे। कोई भी परेशानी हुई तो आप तुरंत वापस आ जाएँगे। आपकी मदद से बढ़कर और कुछ नहीं है।"
दादाजी मुस्कुराते हुए सिर हिलाते हैं और धानी के हाथ में शगुन का लिफाफा रखकर वहाँ से चले जाते हैं। ज़ेन अभी भी वहीं बैठा हुआ था, उसने ना तो खाना चखा था और ना ही धानी की तरफ देखा था। दादाजी के जाने के बाद, ज़ेन अपनी जगह से खड़ा होता है और धानी से कहता है, "दादू तो यात्रा पर जा रहे हैं, और मैं पूरी कोशिश करूँगा कि वह वहाँ से चार धाम की यात्रा पर जाएँ। एक बार दादू को यहाँ से भेज दूँ, उसके बाद तुम्हारे बारे में सोचूँगा कि तुम्हारा क्या करना है।"
ज़ेन यह कहकर दादू के कमरे की तरफ बढ़ने लगता है कि धानी कहती है, "ए जी..."
ज़ेन के कदम रुक जाते हैं, और सख्त निगाहों से पलटकर धानी को देखता है। धानी उसे नाश्ते की प्लेट की तरफ इशारा करते हुए कहती है, "नाश्ता तो कर लीजिए।"
ज़ेन ने एक नज़र प्लेट को देखा और फिर धानी को देखने लगा। उसने वह प्लेट उठाई और उसे उठाकर घर के दरवाजे के पास जाकर फेंक दिया, जहाँ पर सुरक्षा के लिए कुत्ते बंधे हुए थे। उसने सारा नाश्ता कुत्तों के बर्तन में डाल दिया और प्लेट को वहीं पर फेंक दिया।
ज़ेन ने धानी का बनाया हुआ खाना बाहर कुत्तों को डाल दिया। धानी यह देखकर हैरान हो गई और उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने हैरानी से ज़ेन की तरफ देखा, जो मुस्कुराते हुए वापस अंदर आ रहा था। उसने डाइनिंग टेबल से टिशू पेपर उठाया और उससे अपने हाथ साफ करते हुए कहा, "मुझे बासी खाना पसंद नहीं है। मुझे जब भी खाना चाहिए, तो नया, ताजा और फ़्रेश चाहिए।"
धानी हल्की आवाज़ में बोली, "पर वो खाना ताज़ा ही था, मैंने अभी बनाया है।"
ज़ेन ने कहा, "तुमने खाना अभी बनाया होगा, लेकिन उसे बनाकर डाइनिंग टेबल तक लाने में तुम्हें आधा घंटा तो लग ही गया होगा। इतनी देर में तो उसका स्वाद चला गया होगा। कोई बात नहीं, मैं वैसे भी यह ऑयली फ़ूड नहीं खाता। मेरा खाना हेल्दी और डाइट-कॉन्शियस होता है। वो तुम्हें बनाना नहीं आता होगा। तुम्हें तो बस लोगों को बेवकूफ़ बनाना आता है, जैसे तुमने मेरे दादाजी को बनाया है।"
धानी की आँखों में आँसू आ गए, और उसका चेहरा लाल हो गया। उसने जल्दी से अपने जज़्बातों को काबू में किया और ज़ेन की ओर देखते हुए कहा, "आप गलत समझ रहे हैं जी। मैंने आपके दादाजी को बेवकूफ़ नहीं बनाया। और यह भी गलत है कि मुझे कोई काम नहीं आता। मैं बहुत सारे काम अच्छे से कर सकती हूँ।"
ज़ेन ने कहा, "जैसे क्या?"
धानी ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, "मैं साफ़-सफ़ाई अच्छी कर लेती हूँ। आपका तो पता नहीं, लेकिन दूसरों के लिए खाना भी अच्छा बना लेती हूँ। थोड़ा बहुत सिलाई-कढ़ाई भी आती है।"
ज़ेन ने आँखें छोटी कर लीं और धानी को घूरते हुए कहा, "सिलाई-कढ़ाई? मुझे नहीं पता तुम क्या बकवास कर रही हो, लेकिन यह सब मेरे घर में नहीं आना चाहिए। दादाजी पैकिंग कर रहे हैं, मैं उनकी मदद करने जा रहा हूँ। एक बार दादाजी को यात्रा पर जाने दो, उसके बाद तुम्हें देखता हूँ।"
यह कहकर ज़ेन वहाँ से चला गया। धानी हैरानी से उसे देखती रह गई, जैसे उसकी आधी बात ज़ेन को समझ नहीं आई थी। वैसे ही ज़ेन की भी आधी बात धानी को समझ नहीं आई। उसने सोचा, "दादाजी के जाने के बाद मुझे देखेंगे? यह क्या मतलब है? मैं तो पहले से ही उनके सामने हूँ।"
आधे घंटे बाद धानी दादाजी के गले लगी हुई थी। दादाजी गाड़ी के पास खड़े थे, और उनका सारा सामान ज़ेन गाड़ी में रख रहा था, लेकिन उसकी निगाहें दादाजी और धानी पर थीं।
धानी रोते हुए दादाजी से बोली, "दादाजी, आप मुझे इस घर में लाने के बाद ही जा रहे हैं। मैं यहाँ पर आपके अलावा किसी को नहीं जानती हूँ। अगर आप मुझे अकेले छोड़कर चले जाएँगे तो मैं कैसे रहूँगी? आप जानते हैं ना, यह सब मेरे लिए कितना मुश्किल है।"
दादाजी ने धानी के सिर को सहलाते हुए कहा, "बेटा, यह मेरी भी मजबूरी है। अगर शादी के तुरंत बाद की मन्नत नहीं रखी होती, तो मैं थोड़ा रुक जाता, जब तक तुम्हारा और ज़ेन का रिश्ता थोड़ा संभल न जाता। लेकिन यह करना भी ज़रूरी है ना! भगवान का बकाया हम पर नहीं रहना चाहिए। जब उन्होंने हमारी मन्नत सुनी है, तो हमें भी उसे पूरा करना होगा। तुम फ़िक्र मत करो, मैं केदारनाथ के दर्शन करके तुरंत वापस आ जाऊँगा। तुम्हें ज़्यादा देर तक इस जालिम इंसान के साथ अकेला नहीं छोड़ूँगा। बस जब तक मैं वापस नहीं आता हूँ, तब तक इन सबका ध्यान रखना।"
दादाजी ने जैसे ही ज़ेन को "जालिम" कहा, धानी की हल्की सी हँसी छूट गई। वह दादाजी से अलग हो गई और अपने आँसू पोछते हुए मुस्कुराने लगी। उसने सिर हिलाया। दादाजी ने प्यार से उसके सिर पर आशीर्वाद रखते हुए कहा, "इस घर और ज़ेन की ज़िम्मेदारी तुम्हें देकर जा रहा हूँ। मुझे पता है, तुम मुझे निराश नहीं करोगी।"
धानी के चेहरे पर मुस्कान थी, और उसने झुककर दादाजी के पैर छूए। दादाजी ने एक नज़र ज़ेन को देखा और आँखों से कुछ इशारा किया, लेकिन ज़ेन इरिटेट होकर अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया। दादाजी गाड़ी में बैठ गए और वहाँ से चले गए। धानी तब तक गाड़ी को देखती रही, जब तक वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गई।
दादाजी के जाने के बाद धानी ने पलटकर पीछे खड़े ज़ेन को देखा, लेकिन जब वह पलटी, तो देखा कि ज़ेन वहाँ नहीं था। वह हैरानी से उसे गार्डन में ढूँढने लगी, लेकिन ज़ेन वहाँ कहीं भी नहीं था। कुछ सोचते हुए वह वापस घर के अंदर आ गई। जैसे ही वह हॉल में पहुँची, उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो गईं—सामने ज़ेन खड़ा था और उसके ठीक पीछे बेला, अपने साथ दो सूटकेस लेकर खड़ी थी। उन सूटकेस को देखकर धानी की आँखें चौड़ी हो गईं, क्योंकि यह दोनों सूटकेस उसी के थे जो वह कल शादी के बाद यहाँ लेकर आई थी, जिसमें उसके कपड़े और ज़रूरत का सामान था।
हैरानी से उन सूटकेस को देखते हुए धानी ने ज़ेन से पूछा, "क्या बात है जी? आपने मेरा सामान यहाँ क्यों रखवाया है?"
ज़ेन के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान थी। उसने ठंडे लहजे में कहा, "तुम्हारा सामान इसलिए यहाँ रखा है ताकि तुम्हें यह न लगे कि इस घर में तुम्हारा कुछ रह गया है। वैसे भी, यह जगह तुम्हारे लायक नहीं है। यहाँ रहने के लिए कुछ और ही चाहिए, जो तुम्हारे पास शायद नहीं है।"
धानी ने उसकी बातों में छिपे ताने को महसूस किया और धीरे से बोली, "आपका मतलब क्या है?"
ज़ेन ने हँसते हुए जवाब दिया, "साफ़-साफ़ कहूँ तो, तुम्हारा और इस घर का रिश्ता जितना जल्दी ख़त्म हो, उतना अच्छा है। मेरी दादू की ज़िद पर तुम्हें यहाँ जगह मिली है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं इस घर में तुम्हें रहने दूँगा।"
धानी उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गई।
धानी की आँखों में आँसू आ गए, यह सुनकर कि ज़ेन उसे घर से बाहर निकालना चाहता है। वह हैरानी से बोली, "आप क्या कह रहे हैं? आप मुझे घर से बाहर निकालने की बात कैसे कह सकते हैं? मैं आपकी पत्नी हूँ। कल ही हमारी शादी हुई है, और आज आप मुझे घर से बाहर निकाल रहे हैं? आप ऐसा नहीं कर सकते।"
ज़ेन ने एक ठंडी हँसी के साथ व्यंग्य भरे लहजे में कहा, "पत्नी? तुमने मेरे दादाजी को बहला-फ़ुसलाकर इस घर में कदम रखा है, और अब पत्नी होने का दावा कर रही हो? यह शादी मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती। यह सब तुमने मेरे दादाजी की भावनाओं का फ़ायदा उठाकर किया है, ताकि इस घर और मेरी ज़िन्दगी में अपनी जगह बना सको। पर मैं तुम्हें बता दूँ, तुम्हारा यहाँ कोई हक़ नहीं है, न इस घर पर और न मेरी ज़िन्दगी पर।"
धानी ने घबराकर कहा, "आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?"
ज़ेन ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कठोर स्वर में कहा, "तुम्हें समझना चाहिए कि मैं तुम्हें इस घर में बिलकुल भी नहीं देखना चाहता। तुम दादाजी को बहकाकर यहाँ तक आ गई हो, लेकिन अब तुम्हें यहाँ से जाना होगा। दादाजी का मामला मैं खुद संभाल लूँगा, लेकिन तुम्हारा इस घर में कोई भविष्य नहीं है।"
धानी उसकी कठोरता और नफ़रत भरे शब्दों से टूट-सी गई, और एक बार फिर से उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
धानी की आँखों के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वह रोते हुए और हताश चेहरे से ज़ेन को देख रही थी, जिसके चेहरे पर जरा भी अफ़सोस नहीं था कि वह अपनी नई-नवेली दुल्हन को घर से बाहर निकाल रहा है। उधर, बेला ने गार्ड की मदद से दोनों सूटकेस घर के बाहर रखवा दिए और फिर धानी के पास आकर कहा, "मैडम, प्लीज़ चलिए यहाँ से। सर बहुत गुस्से में हैं।"
धानी अविश्वास और सदमे से बस ज़ेन को देखती रही, लेकिन ज़ेन ने बेरुख़ी से अपना चेहरा दूसरी ओर मोड़ लिया, जैसे उसकी हालत से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बेला ने धानी का हाथ पकड़कर उसे बाहर की ओर ले जाने लगी।
धानी को घर के बाहर ले जाकर बेला ने उसे गाड़ी के पास खड़ा किया और उसके हाथों में कुछ पैसे रखते हुए बोली, "मैडम, इससे ज़्यादा मैं आपके लिए कुछ नहीं कर सकती हूँ। प्लीज़ अपना ख्याल रखिए।"
धानी के हाथों में पैसे थमाते हुए बेला की आँखों में भी हल्का-सा दर्द झलक रहा था, लेकिन वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
धानी दरवाजे पर खड़ी थी। बेला उसका सामान धानी के पास छोड़कर घर के अंदर चली गई थी। धानी हैरान नज़रों से बंद दरवाजे को देख रही थी। एक दिन पहले दुल्हन बनकर उसका गृह प्रवेश हुआ था, लेकिन अब उसे उसी घर से बाहर निकाल दिया गया था।
उसे बाहर निकालने वाला कोई और नहीं, खुद उसका पति था। धानी के पैरों तले जमीन खिसक गई थी। उसने हाथों में जो थोड़े पैसे थे, उन्हें कसकर पकड़ लिया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, जैसे उसकी दुनिया यहीं खत्म हो गई हो।
वह कहाँ जाएगी, क्या करेगी? वह अनाथ आश्रम भी वापस नहीं जा सकती थी। प्रमिला मैडम ने बहुत उम्मीद से उसकी शादी करवाई थी। शादी के अगले ही दिन अगर वह वापस जाती, तो उसे अपमान सहना पड़ता। इसके अलावा उसका और कहीं भी कोई ठिकाना नहीं था।
धानी धीरे-धीरे अपने सूटकेस को उठाती है और कदम बढ़ाती है। हर कदम के साथ उसे शादी के वे फेरे याद आते हैं, जो उसने ज़ेन के साथ लिए थे। हर फेरे के साथ उसने एक वादा किया था कि वे दोनों एक-दूसरे का साथ निभाएँगे, एक-दूसरे के साथ हर मुश्किल का सामना करेंगे, चाहे रास्ते में कितनी भी बाधाएँ आ जाएँ।
पर उन वादों का कोई अर्थ नहीं था, वे एक दिखावा थे। शादी की पहली रात ज़ेन ने कहा था, "वो न तो इस शादी को मानता है और न ही धानी को अपनी पत्नी मानता है।" जब उसने धानी को अपनी पत्नी ही नहीं माना, तो उसे अपने घर में क्यों रहने देगा?
धानी आँसू पोंछती हुई दरवाजे के पास पहुँची। उसने लोहे के गेट पर हाथ रखा। और बाहर कदम रखने ही वाली थी कि पीछे से बेला की आवाज आई।
"धानी मैडम, रुक जाइए!"
धानी ने कदम पीछे खींचे और पलटकर देखा। बेला तेजी से दौड़ती हुई उसकी ओर आ रही थी। बेला ने पास आकर जल्दी-जल्दी साँस लेते हुए कहा,
"मैडम, आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। सर ने आपको वापस बुलाया है।"
धानी हैरान रह गई। उसने घबराते हुए पूछा, "क्या तुम सच कह रही हो? उन्होंने मुझे वापस बुलाया है, लेकिन क्यों? उन्होंने तो कहा था कि मुझे इस घर में नहीं रहने देंगे।"
बेला मुस्कुराई और बोली, "मैडम, आप अंदर चलिए। मैं आपको सब बताती हूँ।"
बेला धानी का बैग लेकर आगे-आगे बढ़ने लगी। धानी के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई, लेकिन उसकी खुशी लंबे समय तक टिक नहीं सकी। वह घर के अंदर पहुँची, लेकिन हाल में ज़ेन को देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
ज़ेन गुस्से में तमतमाया हुआ था। उसने गुस्से में साइड टेबल पर जोर से लात मारी, जिससे टेबल टूट गया और उस पर रखा फूलदान भी गिर गया। धानी डरकर वहीं खड़ी रह गई। ज़ेन गुस्से में कार की चाबी उठाकर घर से बाहर चला गया। उसने एक बार भी पलटकर धानी को नहीं देखा। ज़ेन के जाने के बाद धानी ने राहत की साँस ली।
बेला ने धानी का बैग गेस्ट रूम में रखा। धानी ने पूछा, "बेला, ये सब क्या हो रहा है? इन्होंने तो मुझे जाने के लिए कह दिया था, फिर अचानक से क्या हुआ?"
बेला मुस्कुराई और बोली, "मैडम, सर ने आपको जाने के लिए कहा था, लेकिन आपके घर से निकलते ही बड़े सर का फ़ोन आ गया। बड़े सर ने जो भी कहा, उसे सुनकर सर ने तुरंत आपको वापस बुलाने के लिए कहा। उन्होंने मुझसे कहा, 'जाकर धानी को रोको। अगर वो चली गई तो मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।' इसी वजह से मैं दौड़ते हुए आपको लेने चली गई।"
धानी यह सब सुनकर हैरान थी। वह सोच रही थी कि दादाजी ने ऐसा क्या कहा होगा जिससे ज़ेन ने अपना फैसला बदल लिया। दरअसल, हुआ कुछ ऐसा था कि...
आधे घंटे पहले:
ज़ेन के घर से निकलते ही ज़ेन बहुत खुश हो गया था। वह सोफ़े पर ऐसे चौड़े होकर बैठा जैसे घर का राजा वही हो और मानो उसने धानी को बाहर निकालकर कोई बड़ा काम कर दिया हो। अपनी खुशी में उसने खुद को बधाई दी और अपने दोस्तों के ग्रुप में पार्टी की घोषणा कर दी। आज वह बहुत खुश था, इसलिए उसने क्लब में दोस्तों के साथ पार्टी करने का फ़ैसला कर लिया।
ज़ेन ने फ़ोन रखा, एक अंगड़ाई ली, और तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर बढ़ा ही था कि अचानक उसके फ़ोन पर दादाजी का एक मैसेज आया। यह एक वॉइस नोट था। ज़ेन हैरान रह गया—दादाजी तो अभी-अभी घर से निकले थे, वे फ़्लाइट में भी नहीं पहुँचे होंगे। ऐसे में उन्होंने ज़ेन को वॉइस नोट क्यों भेजा? उसने जल्दी से वॉइस नोट प्ले किया, और दादाजी की गंभीर, सख्त आवाज सुनाई दी...
जिसमें दादाजी ने कहा, "मैं भले ही कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, लेकिन धानी तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। अगर उसे कुछ हुआ, तो तुम भी अपने आप को घर से बाहर समझो। मेरे घर की बहू मेरे घर में ही रहेगी, और अगर तुमने उसे किसी भी तरह की तकलीफ़ पहुँचाई, तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहो।"
दादाजी के वॉइस नोट को सुनकर ज़ेन को जल्दी-जल्दी धानी को वापस लाने का फ़ैसला करना पड़ा।
धानी गेस्ट रूम में थी। ज़ेन ने उसे अपने कमरे में रहने से मना कर दिया था, लेकिन उसे खुशी थी कि कम से कम वह गेस्ट रूम में तो आराम से रह सकती है। ज़ेन के साथ एक कमरे में रहना उसे काफ़ी अनकंफरटेबल महसूस करवाता था।
धानी सुबह से लेकर शाम तक हाल में बैठी ज़ेन का इंतज़ार कर रही थी, लेकिन ज़ेन घर वापस नहीं आया। जिस तरह से वह सुबह गुस्से में घर से निकला था, उसने धानी को चिंतित कर दिया था। उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया क्योंकि उसे ज़ेन की इतनी फ़िक्र थी कि खाने का मन ही नहीं हुआ। शाम से रात हो गई, 10 बजे से 11, और फिर 12 बज गए, लेकिन ज़ेन अब तक नहीं लौटा।
धानी को चिंता सताने लगी कि कहीं ज़ेन किसी मुसीबत में तो नहीं फँस गया। उसके पास न तो ज़ेन का कोई नंबर था और न ही उसका खुद का फ़ोन, जिससे वह ज़ेन से संपर्क कर सके। बेचैनी से इधर-उधर टहलते हुए धानी का दिल घबराने लगा। अब वह इंतज़ार से ज़्यादा सहन नहीं कर पाई, और घर से बाहर पार्किंग में पहुँची, जहाँ एक ड्राइवर गाड़ी के पास खड़ा था।
जैसे ही ड्राइवर ने धानी को देखा, उसने सीधा खड़े होकर सैल्यूट किया और कहा, "मैडम, आप को कहीं जाना है क्या?"
धानी ने जल्दी से उससे पूछा, "भैया, क्या आपको पता है कि ये कहाँ हैं?"
ड्राइवर थोड़ा घबराया और बोला, "मैडम, आप मुझे भैया क्यों कह रही हैं, मेरा नाम बबलू है। मुझे मेरे नाम से बुलाइए, नहीं तो किसी ने सुन लिया तो मुझे डाँट पड़ेगी।"
धानी बहुत परेशान थी, उसने तुरंत पूछा, "बबलू भैया, क्या आपको पता है कि ये कहाँ हैं? काफ़ी रात हो गई है और ये अब तक घर वापस नहीं आए हैं। मुझे उनकी बहुत फ़िक्र हो रही है।"
बबलू ने जवाब दिया, "ज़ेन सर तो अभी क्लब में होंगे। आज उनके दोस्तों के साथ पार्टी है। मैं खुद उन्हें क्लब छोड़कर आया था। क्लब पहुँचने पर उन्होंने कहा कि वो खुद ही घर आ जाएँगे और मुझे घर भेज दिया। मैडम, आप अंदर जाकर आराम कर लीजिए। जब उनकी पार्टी खत्म हो जाएगी तो वो घर आ जाएँगे।"
लेकिन धानी का मन बहुत बेचैन हो रहा था। उसने जल्दी से बबलू से कहा, "नहीं भैया, मेरा दिल घबरा रहा है। मुझे उनकी बहुत फ़िक्र हो रही है। वो सुबह से घर से बाहर हैं, और पता नहीं उन्होंने कुछ खाया भी है या नहीं। कृपया, आप मुझे वहाँ ले चलिए जहाँ आपने उन्हें छोड़ा था। दादाजी की उनकी ज़िम्मेदारी मुझे देकर गए हैं। ऐसे में मैं उन्हें अकेला कैसे छोड़ सकती हूँ? प्लीज़ भैया, मुझे वहाँ लेकर चलिए जहाँ आपने उन्हें छोड़ा है।"
धानी उस वक्त क्लब के दरवाज़े पर खड़ी थी। क्लब के अंदर चारों तरफ शोर-शराबा था, और नशे में झूमते हुए लोग दिख रहे थे। उसने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और उसे धीरे से बाजू पर रख लिया। वह घबराते हुए क्लब के अंदर कदम रखा। ऐसी जगह उसने पहले कभी नहीं देखी थी और न ही ऐसी जगह पर कभी आई थी। क्लब में जैसे ही वह कदम बढ़ाया, उसे देखते ही लोग चौंक कर उसकी ओर देखने लगे। एक लड़की क्लब में साड़ी पहने, हाथों में चूड़ियाँ, मांग में सिंदूर और चेहरे पर मासूमियत लिए हुए दाखिल हो रही थी। जितनी हैरानी धानी को यहां आकर हो रही थी, उससे भी ज़्यादा हैरान वहाँ मौजूद लोग उसे देखकर हो रहे थे।
धानी ने नज़र घुमाकर चारों ओर देखा और ज़ेन को ढूँढने लगी। उसकी नज़र पहले फ्लोर के वीआईपी रूम पर पड़ी, जो पूरा कांच से बना हुआ था। वहाँ सोफ़े पर बैठे लोग नज़र आ रहे थे, और ज़ेन भी खड़ा था, उसके हाथ में शैंपेन की बोतल थी। ज़ेन ने शैंपेन का ढक्कन खोला और उसमें से निकलते झाग को हवा में उड़ाते हुए सेलिब्रेट करने लगा।
ज़ेन को देखकर धानी को कुछ सुकून मिला। वह जल्दी से सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ी और तेज कदमों से वीआईपी एरिया की ओर जाने लगी। जैसे ही वह वीआईपी रूम के सामने पहुँची, उसकी आँखें बड़ी हो गईं और उसके कदम ठिठक गए। ज़ेन सोफ़े पर बैठा हुआ था, और उसके ठीक बगल में एक लड़की बैठी थी। ज़ेन ने अपना हाथ उस लड़की के कंधे पर रखा हुआ था, मानो उसे अपनी बाहों में ले रखा हो।
वीआईपी रूम में बैठे बाकी लोग भी मस्ती में थे और किसी का ध्यान धानी पर नहीं था। हवा में शराब और नशे की गंध धानी को परेशान कर रही थी। वह धीरे-से वीआईपी रूम में दाखिल हुई और ज़ेन की तरफ़ देखते हुए कहा,
"ए जी..."
ज़ेन के होंठों पर शैंपेन का ग्लास लगा हुआ था, पर धानी की आवाज़ सुनकर उसका हाथ रुक गया। वहाँ मौजूद सभी लोग दरवाज़े की तरफ़ देख रहे थे। ज़ेन ने जैसे ही दरवाज़े की ओर देखा, उसकी आँखें बड़ी हो गईं और चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वहाँ बैठे लोग हैरानी से धानी को देख रहे थे।
धानी भी अचंभे से उन लोगों को देख रही थी। ज़ेन ने धानी को देखकर ग्लास को टेबल पर पटक दिया और अपने हाथ उस लड़की के कंधे से हटा लिया। वह गुस्से में खड़ा हुआ। इससे पहले कि वह कुछ कहता, उसके दोस्तों ने भी उसे चौंक कर देखा। रॉकी, जो ज़ेन का दोस्त था, उससे बोला, "ज़ेन, यह लड़की तुझे बुला रही है क्या?"
धानी एक कदम और आगे बढ़ी और ज़ेन से कहा, "ए जी..रात काफी हो गई है। आप अब तक घर क्यों नहीं आए? मुझे आपकी चिंता हो रही थी, इसलिए मैं आपको लेने आई हूँ। चलिए, मैं आपको घर ले चलती हूँ।"
धानी की बात सुनकर ज़ेन हक्का-बक्का रह गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कोई इतनी रात को सिर्फ़ उसे लेने क्लब में आ सकता है। उसकी बात सुनकर ज़ेन का गुस्सा और भी बढ़ गया। वह गुस्से में धानी पर चिल्लाया, "पागल हो गई हो क्या? किसने कहा तुम्हें यहाँ आने के लिए? क्यों चिंता कर रही हो मेरी? मैं कोई बच्चा हूँ क्या जो कहीं खो जाऊँगा? जब मन करेगा, तब घर आऊँगा। फ़िलहाल घर जाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।"
यह कहकर ज़ेन अपनी जगह पर वापस बैठ गया, पर उसके दोस्त उसे हैरानी से देखने लगे। रॉकी फिर से कहा, "ज़ेन, कौन है ये लड़की?"
तभी रॉकी की गर्लफ्रेंड समायरा बोल पड़ी, "रॉकी, तुम इसे लड़की कैसे कह सकते हो? इसका लुक देखो, ये तो भाभी टाइप की है। ऐसे लोग क्लब में कैसे आ सकते हैं? इसे एंट्री किसने दी और ये ज़ेन से कैसे बात कर रही है? ज़ेन, कौन है ये?"
तभी वो लड़की, जो ज़ेन के पास बैठी थी और जिसका नाम कमोलिका था, अपने वाइन के गिलास को घुमाते हुए, व्यंग्यात्मक लहजे में धानी की ओर देखकर कहा,
"क्या यार! तुम लोग कैसी-कैसी बातें कर रहे हो? ज़ाहिर है कि ज़ेन की कोई सर्वेंट होगी। अब नौकरी की आदत होती है ना मालिक का नाम नहीं लेने की लेकर फ़िक्र करने की। वैसे ज़ेन, तुम अपने नौकरों को तनख्वाह बढ़िया देते हो। पर ये क्या, शादी के अगले दिन ही इसे काम पर बुला लिया? लग रहा है कल ही इसकी शादी हुई होगी, बेचारी अभी भी अपने पति को छोड़कर ज़ेन की सेवा में है।"
कमोलिका की बात सुनकर बाकी लोग ठहाके लगाकर हंसने लगे, पर ज़ेन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उनकी हँसी और कमोलिका की बातों से धानी का चेहरा उदासी से भर गया। उसने धीरे से ज़ेन की तरफ़ देखा, जो बिना किसी भावना के उसे घूर रहा था। धानी ने उन सबकी ओर देखकर कहा, "आपने सही कहा, मेरी कल ही शादी हुई है। और मैं अपने पति को छोड़कर नहीं आई हूँ, बल्कि अपने पति को लेने आई हूँ।"
धानी की यह बात सुनकर ज़ेन के हाथों की मुट्ठियाँ कस गईं और उसकी गुस्से भरी निगाहें अब भी धानी पर टिकी थीं। कमोलिका हँसते हुए धानी का मज़ाक उड़ाती है और कहती है, "अपने पति को लेने आई हो? ये कोई भजन करने की जगह नहीं है। यह क्लब है, लोग यहाँ मस्ती करने आते हैं। तुम जैसी लड़की का पति किस टाइप का होगा, ये तो तुमसे ही ज़ाहिर है। ड्राइवर, माली या सर्विस टाइप का। वैसे भी, ऐसे लोगों को क्लब में एंट्री नहीं मिलती।"
कमोलिका की बात सुनकर बाकी लोग भी हँसने लगे। धानी की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह हैरानी से सिर्फ़ ज़ेन को देख रही थी, जो अब भी कुछ नहीं कह रहा था। समायरा भी अपना ड्रिंक उठाते हुए बोली, "कमोलिका, तुम सही कह रही हो। ऐसे लोग चोरी-छिपे क्लब में घुस जाते हैं और यहाँ आकर तमाशा करते हैं। मैंने सुना है कि ऐसे लोग पैसे वाले आदमी को अपना पति बताकर पैसे ऐंठने की कोशिश करते हैं।"
धानी अपनी आँखों में आँसू लिए ज़ेन से कहा,
"ए जी, ये लोग कैसी बातें कर रहे हैं? आप कुछ क्यों नहीं कह रहे?" ज़ेन का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। लेकिन जब सभी ने देखा कि धानी अब भी ज़ेन से ही बात कर रही है, तो कमोलिका हैरानी से ज़ेन की तरफ़ देखकर बोली, "ज़ेन, ये लड़की तुमसे क्या कह रही है? तुम इसे जानते हो क्या?"
ज़ेन ने cold expression से कहा, "हाँ, जानता हूँ। She is my wife. Mrs. धानी ज़ेन मालवीया।"
ज़ेन की बात सुनकर कमोलिका, रॉकी और समायरा के होश उड़ गए। तीनों की निगाहें ज़ेन पर टिक गईं, जबकि ज़ेन का ध्यान सिर्फ़ धानी पर था, जिसकी आँखों में अब चमक थी। जब ज़ेन ने सबके सामने कहा कि धानी उसकी पत्नी है, तो धानी को अनजानी खुशी हुई और उसने मुस्कुराते हुए ज़ेन को देखा।
समायरा ने हैरानी से पूछा, "ज़ेन, ये तुम क्या कह रहे हो? ये लड़की तुम्हारी वाइफ है? तुमने शादी कर ली और हमें नहीं बताया?"
रॉकी भी उससे ज़्यादा हैरान होकर बोला, "हम सब तुम्हारे दोस्त हैं, कम से कम हमें तो बताना चाहिए था ना। कहीं तुम मज़ाक तो नहीं कर रहे?"
ज़ेन के चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी। उसने धानी को देखते हुए कहा, "नहीं, ये कोई मज़ाक नहीं है। बल्कि मज़ाक तो मेरे साथ हुआ है, लेकिन इस मज़ाक पर मुझे हँसी भी नहीं आ रही। ये लड़की जो तुम्हारे सामने खड़ी है, मेरी पत्नी है। मेरे दादा जी के कहने पर मुझे इससे शादी करनी पड़ी। वरना, तुम लोग मुझे जानते हो, मैं शादी में विश्वास नहीं रखता।"
कमोलिका ने ज़ेन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "अगर ऐसा है तो फिर इस लड़की के साथ जबरदस्ती क्यों रिश्ता निभा रहे हो? Get him divorce, उसे तलाक दे दो, कुछ पैसे दे देना और ये तुम्हारी ज़िन्दगी से चली जाएगी।"
धानी के पैर सुन्न हो गए थे और आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गई थीं। कोई और उनके रिश्ते पर इतनी बड़ी बात कह रहा था, और ज़ेन पूरी तरह शांत था। वह हैरानी से ज़ेन को देख रही थी। जिसने गुस्से में कहा, "नहीं, मैं इसे तलाक नहीं दे सकता। अगर दे सकता तो शादी की रात ही तलाक के पेपर रख देता। पर मैं दादा जी के फैसले के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता। अगर उन्हें पता चला कि मैंने इसे छोड़ दिया है, तो वे इस लड़की को परमानेंट गोद ले लेंगे और मुझे प्रॉपर्टी से बाहर निकाल देंगे।"
धानी की आँखों में आँसू आ गए। सब लोग चुप थे और धानी ने अपने आँसू पोंछते हुए ज़ेन से कहा, "हमारे रिश्ते का तमाशा क्यों बना रहे हैं? चलिए, घर चलते हैं।"
ज़ेन मुस्कुराया और सोफ़े पर टिक गया। उसने वाइन की बोतल उठाते हुए व्यंग्य से कहा, "ले जा सकती हो मुझे? यकीन है, संभाल पाओगी?"
धानी ने हिम्मत करते हुए कहा, "जी, मैं आपको संभाल लूंगी। चलिए मेरे साथ।"
ज़ेन की मुस्कान और गहरी हो गई। उसने पूरी बोतल खत्म की और उसकी आँखें लाल हो गईं। फिर बोतल पटकते हुए नशे में धानी से कहा, "तो ठीक है, संभालो मुझे। तुम इसी काम के लिए तो रखी गई हो, ताकि मेरा ख्याल रख सको।"
ज़ेन लड़खड़ाते हुए भारी कदमों से सोफ़े से उठा और सोफ़े और दीवार का सहारा लेकर धीरे-धीरे धानी के पास आया। अगले ही पल, उसने धानी पर अपने शरीर का सारा वज़न छोड़ दिया। नाज़ुक और दुबली-पतली धानी, ज़ेन को संभाल नहीं पाई और एक पल में ही लड़खड़ा गई। उसने बड़ी मुश्किल से ज़ेन को बाजू से पकड़ा और उसे दीवार का सहारा दे दिया ताकि वह ज़मीन पर न गिरे। वह हैरानी से ज़ेन को देख रही थी, जिसका चेहरा पूरी तरह नशे में डूबा हुआ था। उसने हसरत भरी निगाहों से सबकी ओर देखा, और उसके दोस्तों के चेहरों पर एक मज़ाकिया मुस्कान थी, जैसे वे किसी कॉमेडी फ़िल्म का मज़ा ले रहे हों।
धानी को काफ़ी परेशानी हो रही थी, क्योंकि ज़ेन का भारी-भरकम शरीर पार्किंग तक ले जाना उसके लिए आसान नहीं था। ज़ेन का शरीर भी उससे दुगुना था, और उसका वज़न भी बहुत ज़्यादा था। रॉकी हँसते हुए कहता है, "क्या बात है, भाभी जी! आप तो यहाँ अपने पति को लेने आई थीं, तो अब ले जाइए उन्हें।"
तभी प्राइवेट रूम का दरवाज़ा खुला, और एक वेटर अंदर आते हुए उनके सामने वाइन की कुछ बोतलें रख देता है। जैसे ही वह जाने के लिए मुड़ता है, ज़ेन और धानी को देखकर हैरान हो जाता है। धानी उसे देखकर बहुत ही विनम्रता से कहती है, "भैया, प्लीज़ मेरी मदद कीजिए। मेरे पति को पार्किंग तक ले जाना है।"
वेटर देखता है कि धानी, ज़ेन को संभाल रही है, जो नशे में इतना लड़खड़ा रहा है कि अगर धानी ने उसे संभाल न रखा होता, तो वह ज़मीन पर गिर जाता। धानी अपने नाज़ुक हाथों से ज़ेन के मज़बूत शरीर को जैसे-तैसे संभाले हुए है। यह देखकर वेटर हैरान हो जाता है और जल्दी से धानी के पास आता है। वह ज़ेन को संभालते हुए कहता है, "जी मैडम, मैं आपकी मदद करता हूँ।"
वेटर की मदद से धानी, ज़ेन को क्लब से बाहर ले जाती है, और ज़ेन के सारे दोस्त उन्हें देखकर हँसने लगते हैं। धानी ज़ेन को पार्किंग में लाती है, जहाँ बबलू ड्राइवर पहले से ही गाड़ी के पास खड़ा होता है। जैसे ही वह देखता है कि ज़ेन नशे में क्लब से बाहर आ रहा है और उसका एक हाथ वेटर के कंधे पर तथा दूसरा हाथ धानी के कंधे पर है, तो वह तुरंत उनकी मदद के लिए आता है। बबलू धानी की ओर जाकर ज़ेन को संभालने लगता है। वेटर और बबलू, दोनों मिलकर ज़ेन को गाड़ी तक पहुँचाते हैं। ज़ेन गाड़ी में बैठते ही लेट जाता है, क्योंकि नशे में वह ठीक से बैठ भी नहीं पा रहा था।
धानी वेटर को धन्यवाद कहती है और उसे पैसे देने की कोशिश करती है, लेकिन वेटर मना कर देता है और अपने काम पर लौट जाता है। बबलू भी धानी को लेकर मेंशन वापस आता है, जहाँ मेंशन की सुरक्षा में लगे गार्ड की मदद से धानी, ज़ेन को गाड़ी से बाहर लाती है। जैसे ही वे ज़ेन को लेकर हाल में आते हैं, ज़ेन सोफ़े की ओर बढ़ने लगता है। वे लोग उसे सोफ़े पर बिठा देते हैं। धानी हैरान हो जाती है कि ज़ेन को कमरे में क्यों नहीं ले जाया गया। वह सोचने लगती है कि अगर ज़ेन कमरे में नहीं जाएगा, तो वह उसे कमरे तक कैसे पहुँचाएगी। इसी बीच, सिक्योरिटी और बबलू वहाँ से जा चुके होते हैं। तभी बेला जल्दी से पानी लेकर आती है और ज़ेन के सामने रख देती है। ज़ेन गिलास उठाकर अपने सिर पर पानी डाल लेता है।
इससे उसकी आँखें कुछ-कुछ खुलने लगती हैं और उसे अपनी आँखों के सामने धानी का चेहरा दिखाई देता है। गुस्से में वह धानी को देखकर नशे में कहता है, "तुम्हारी वजह से मेरी पार्टी खराब हो गई है, तुम्हारी वजह से मेरे दोस्तों ने मेरा मज़ाक उड़ाया, तुम्हारी वजह से मुझे न चाहते हुए भी घर आना पड़ा। तुम गंदी लड़की हो, पूरी 'बुरी' लड़की हो। तुम बुरी हो।"
धानी जानती थी कि ज़ेन यह सब नशे में कह रहा है, उसने उससे कहा, "देखिए, अगर आपको कोई भी शिकायत है, तो आप मुझे कमरे में चलकर कह सकते हैं। लेकिन प्लीज़, यहाँ मत कहिए। कमरे में चलिए, मैं आपके लिए खाना लाती हूँ।"
लेकिन ज़ेन लड़खड़ाते कदमों से उठा और गुस्से में धानी से कहता है, "मुझे तुम्हारे हाथों का गन्दा खाना नहीं चाहिए। मैं तो अपने कमरे में जा रहा हूँ, लेकिन तुम मेरे कमरे में नहीं जा सकती। तुम्हारे लिए सर्वेंट क्वार्टर है, तुम जाकर वहीं रहो। अगर तुम मेरे सामने रही तो मेरा गुस्सा आउट ऑफ़ कंट्रोल हो जाएगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम जितना हो सके मुझसे दूर रहो।"
यह कहते हुए, ज़ेन लड़खड़ाते कदमों से सहारा लेते हुए आगे बढ़ने लगा। अचानक, वह अपने कदम रोककर धानी की ओर देखने लगा। धानी हैरानी से उसे देख रही थी। ज़ेन के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ जाती है और वह धानी से कहता है, "सुबह तुमने मुझसे कहा था ना कि तुम घर के कामों में बहुत अच्छी हो। सफ़ाई बहुत अच्छी कर लेती हो। अगर ऐसा है तो ठीक है। तुम इस घर में सिर्फ़ इसलिए हो क्योंकि दादू ने कहा है। लेकिन यहाँ रहने के लिए तुम्हें काम करना होगा, मुफ़्त में यहाँ कुछ भी नहीं मिलेगा। इसीलिए आज तुम पूरे हॉल की सफ़ाई करोगी, वह भी अकेले।"
धानी ये सुनकर हैरान रह जाती है और उसकी आँखें बड़ी हो जाती हैं। ज़ेन हँसते हुए धानी को देखता है और फिर वहाँ से लड़खड़ाते हुए एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए अपने कमरे में चला जाता है। धानी उसे जाते हुए देखती है और डरने लगती है कि कहीं ज़ेन का संतुलन बिगड़ न जाए, लेकिन ज़ेन मज़बूती से सारी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर अपने कमरे में चला जाता है और दरवाज़ा बंद कर लेता है। धानी का चेहरा अफ़सोस से भर जाता है। उसने शादी के बाद क्या-क्या सपने देखे थे, क्या-क्या उम्मीदें की थीं, लेकिन यहाँ उसकी हर उम्मीद टूट रही थी।
धानी ने अपनी साड़ी के पल्लू को कमर पर बाँधा और पास की टेबल से एक कपड़ा उठाने लगी। लेकिन बेला जल्दी से कहती है, "मैडम, साहब तो नशे में हैं, उन्होंने ऐसे ही आपसे कह दिया होगा। आपको यह सब करने की ज़रूरत नहीं है। आप अपने कमरे में जाकर आराम कीजिए, ये सब मैं कर लूँगी।"
धानी हल्के से मुस्कुराते हुए कहती है, "नहीं बेला, आप अपना काम कीजिए। इन्होंने मुझे सफ़ाई करने के लिए कहा है, तो सफ़ाई मैं ही करूँगी। भले ही ये नशे में हैं, लेकिन शायद ये कल सुबह इस बात को भूलेंगे नहीं।"
घर के बाकी कमरों की सफाई ज्यादातर नौकर ही करते थे, लेकिन ज़ेन के कमरे की सफाई सिर्फ़ बेला ही करती थी। ज़ेन को पसंद नहीं था कि कोई उसके कमरे में जाकर उसके सामान को हाथ लगाए। इसीलिए सिर्फ़ बेला ही उसके कमरे की सफाई करती थी। लेकिन उस वक़्त रात के 2:00 बज रहे थे और धानी हॉल की सफाई कर रही थी। पूरे हॉल को साफ़ करने के बाद, धानी ने जब घड़ी देखी, तब उसे एहसास हुआ कि वह पिछले डेढ़ घंटे से हॉल की सफाई कर रही है और अब वह बहुत ज़्यादा थक चुकी है।
अपने थके हुए शरीर को लेकर, वह सबसे पहले नहाना चाहती थी और फिर थोड़ा आराम करना चाहती थी। ज़ेन ने उसे सर्वेंट के कमरे में रहने के लिए कहा था, लेकिन बेला ने, मालिक और नौकर की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए, धानी को मेहमानों वाले कमरे में जाने के लिए कह दिया था।
रात का वक़्त था और धानी इस वक़्त बेला को परेशान नहीं करना चाहती थी, लेकिन वह खुद एक अजीब दुविधा में फंसी हुई थी। दरअसल, वह बाथरूम में खड़ी थी, सामने एक स्मार्ट बाथटब था और ऊपर से शावर और बाथरूम का सिस्टम टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ था। धानी ने बाथरूम के अंदर एक हाथ से पानी के पाइप को घुमाया, तो फिर से आवाज़ आई, "सिस्टम स्टार्टिंग..." फिर अचानक शावर से ठंडा पानी गिरने लगा।
धानी ने झट से बटन दबाया, अब गर्म पानी आना चाहिए था, लेकिन उसके बजाय बाथटब के पानी में एक रिमोट कंट्रोल जैसी चीज़ तैरने लगी। वह घबरा गई। "ये क्या है?" उसने सोचा, "क्या ये बाथटब में छुपा कोई फ्रिज?"
धानी को याद आया कि अनाथ आश्रम में तो नहाने के लिए सिर्फ़ एक पुरानी बाल्टी और पानी ही मिलता था, जबकि यहाँ तो शावर, बटन, और रिमोट बर्थटब भी है—बाथरूम में भी हाई-टेक सिस्टम! घबराते हुए उसने बाथटब में नहाने का फैसला किया, पर जैसे ही उसने शावर ऑन किया, पानी की जगह bubbles की एक लहर बहने लगी।
वह घबराते हुए कहने लगी, "ये क्या नया है..."
धानी मुस्कुराते हुए कहती है, "सिस्टम तो कमाल का है, पर मेरी समझ के पार है। लगता है एक और जन्म लेना पड़ेगा इसे चलाने के लिए!"
आखिरकार ठंडे पानी से नहाकर धानी रात को आराम से अपने बिस्तर पर सो गई। वैसे भी यह धानी के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। अनाथ आश्रम में कई बार उसे ठंडे पानी से नहाना पड़ता था, इसीलिए वह इन सब की आदी हो चुकी थी।
रात चाहे जितनी भी हो गई हो, धानी चाहे कितनी ही थकी हुई क्यों ना सोई हो, लेकिन अपनी आदत के अनुसार वह सुबह जल्दी जाग गई थी। उठते ही उसने फिर से ठंडे पानी से नहाया। उसे अभी भी नहीं पता था कि गर्म पानी कहाँ से आएगा, इसलिए वह ठंडे पानी से नहाकर तैयार हो जाती है और रसोई में जाती है। उसने देखा कि बेला पहले से ही नाश्ता तैयार कर रही थी। लेकिन बेला ने नाश्ता बनाने के लिए सारा सामान फ्रिज से निकाला था। धानी को फ्रिज का मामला समझ में नहीं आता था। उसके लिए फ्रिज में रखा सामान बासी होता है, जो सामान बाजार से लाकर ताजगी से तैयार किया जाए, वही सामान ताज़ा होता है। बाकी सब्ज़ियाँ और अन्य सामान धानी के लिए ताज़ा नहीं नज़र आते थे।
लेकिन बेला ने सारा खाना बना लिया था, तो धानी ने कुछ नहीं कहा। बेला ने ज़ेन का ब्रेकफास्ट तैयार किया और उसे टेबल पर रख दिया। धानी जब ज़ेन का ब्रेकफास्ट देखती है, तो हैरान हो जाती है। "क्या ये सब बस खीरे, ककड़ी और कच्ची सब्ज़ियाँ ही हैं?" वह सोचती है। "इन्हें खाने में रोटी, सब्ज़ी या फिर दाल-चावल नहीं चाहिए?"
तभी उसकी नज़र घड़ी पर जाती है और वह देखती है कि सुबह के 11:00 बज चुके हैं, लेकिन ज़ेन अभी तक नीचे नहीं आया है। घर का माहौल देखकर धानी को अंदाजा हो जाता है कि ज़ेन अभी तक ऑफिस नहीं गया है, तो वह घर पर ही होगा, लेकिन वह अभी तक नीचे क्यों नहीं आया?
धानी के मन में कल रात का दृश्य फिर से आता है। उसे याद आता है कि ज़ेन नशे की हालत में अपने कमरे में गया था। वह सोचती है, "ऐसा तो नहीं हुआ कि उसे कुछ हो गया हो, वह कहीं गिर तो नहीं गया होगा या फिर चोट तो नहीं लगी?" यह सोचते हुए उसका दिल जोर से धड़कने लगता है। वह घबराते हुए ज़ेन के कमरे की तरफ़ देखती है और सोचती है, "नहीं, राधा रानी! ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा, वह ज़रूर अभी तक सो रहे होंगे।" लेकिन इतनी देर हो गई है, वह अब तक कैसे सो सकते हैं? कहीं वह सोते-सोते बेहोश तो नहीं हो गए?
बस उसी पल धानी की आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं और वह डर जाती है। उसने अपनी साड़ी का आँचल संभाला और जल्दी से सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ज़ेन के कमरे की तरफ़ बढ़ गई।
कमरे के बाहर पहुँचकर धानी हैरानी से दरवाज़े को देखती है। उसने एक-दो बार दरवाज़े को खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया। ऐसा होने पर धानी के चेहरे पर डर छा जाता है। वह सोचती है, "कहीं सच में ज़ेन बेहोश तो नहीं हो गए होंगे, तभी वह दरवाज़ा नहीं खोल रहे?" यह सोचते हुए धानी डर जाती है और जल्दी से दरवाज़ा खोलकर अंदर चली जाती है।
लेकिन जैसे ही उसकी नज़र ज़ेन पर पड़ी, जो सो रहे थे, उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। ज़ेन बिना कपड़ों के, यानी सिर्फ़ बॉक्सर पहनकर सो रहे थे। धानी की आँखें और मुँह दोनों बड़े हो गए थे। भले ही वह अपने पति को देख रही थी, लेकिन ज़ेन को ऐसे देखकर उसका दिल थोड़ी देर के लिए बेकाबू हो गया था।
धानी अपने ही पति को अजीब नज़रों से देख रही थी, और देखे भी क्यों न, ज़ेन की बॉडी और उसका अट्रैक्टिव चेहरा इस समय किसी को भी अपनी ओर खींचने में सक्षम थे।
वह बॉक्सर में सो रहा था, और उसकी बॉडी पर सूरज की किरणें पड़ रही थीं, जैसे प्रकृति ने उसकी बॉडी की हर हरकत को अपने प्यार से गले लगा लिया हो। उसके मसल्स बखूबी उभरे हुए थे, मानो हर एक अंग में ताकत हो। उसकी सीने का हर एक हिस्सा, कंधों की चौड़ाई, और सिक्स पैक एब्स की परफेक्ट लाइनें, जैसे किसी फिटनेस मॉडल की तरह, उसकी मेहनत दर्शा रही थीं। सूरज की हल्की रौशनी में उसकी ओपन बॉडी पर जो निखार था, वह किसी आर्ट के पेंटिंग की तरह खूबसूरत लग रहा था, जो उसे और भी आकर्षक बना रहा था।
धीरे-धीरे चलते हुए धानी उसके काफी करीब पहुँच गई थी और ज़ेन को देखकर उसका गला सूख रहा था। उसकी निगाहें ज़ेन के बॉडी स्ट्रक्चर पर घूम रही थीं, जिसे वह चाहकर भी नहीं भूल सकती थी।
ज़ेन की आँखें अभी भी बंद थीं, लेकिन धानी का डर अपनी जगह पर कायम था, कहीं ज़ेन सच में बेहोश तो नहीं हो गया है। यही सोचते हुए वह थोड़ा सा ज़ेन के ऊपर झुकती है, लेकिन अपनी साड़ी के प्लेट्स में उलझकर वह संभाल नहीं पाती और अगले ही पल वह सीधे ज़ेन के ऊपर गिर जाती है।
अचानक से ज़ेन की नींद खुल जाती है और वह हड़बड़ाता है। उसने जल्दी से अपने सीने से धानी का शरीर दूर धकेल दिया और अगले ही पल में उसकी गर्दन को अपने हाथों में पकड़ लिया। उसका चेहरा गुस्से से भर गया था। धानी उसके हाथों को अपने हाथों से हटाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन ज़ेन की आँखें एकदम खूंखार और लाल हो गई थीं।
धानी को अपने गले पर ज़ेन की उंगलियों का दबाव महसूस हो रहा था, और अगले ही पल उसने ज़ेन के गालों पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।
धानी के हाथ हवा में रुके थे, उसकी आँखें डर से भर चुकी थीं। दूसरी तरफ, ज़ेन का हाथ भी हवा में थमा हुआ था। उसने धीरे-धीरे अपनी उंगलियाँ अपने गाल पर फेरीं। उसके चेहरे पर गुस्से में जलते लावे की लपटें छा गई थीं। उसकी आँखें गुस्से से धधक रही थीं।
धानी घबराहट में तुरंत ज़ेन के सामने से हट गई। ज़ेन अब भी गुस्से भरी नज़रों से उसे घूर रहा था। अगले ही पल धानी वहाँ से ऐसे भागी जैसे उसके पैरों में पंख लग गए हों। वह हवा में उड़ती हुई कमरे से निकल गई—फुर्ररररर!
अगले दो घंटे धानी अपने कमरे में छुपी बैठी रही। उसे बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी, ज़ेन का सामना करने की तो बात ही अलग थी। उसने बस इतना इंतज़ार किया कि कब ज़ेन घर से बाहर जाए, ताकि वह चैन की साँस ले सके।
धानी अपने कमरे में बेड के कोने पर बैठी थी, अपने हाथों को घूरते हुए सोच रही थी, "हे भगवान! मैंने उन्हें थप्पड़ कैसे मार दिया? वो भी अपने ही हाथों, मुझे पाप लगेगा।"
वह बड़बड़ाने लगी। "अब क्या होगा? शायद वो मेरा सिर ही तोड़ डालेगा। और ये मेरे हाथ! लगता है अब इस हाथ को सिलाई में लगाना रखना पड़ेगा, ताकि फिर कभी कोई पंगा ना कर सके," धानी ने अपने हाथों को देखकर खुद से ही कहा। उसने गहरी साँस ली और खुद को सांत्वना देने की कोशिश की।
कुछ पल बाद, उसने अचानक कमरे के दरवाज़े की तरफ देखा, उसकी साँस रुक सी गई। "अगर ज़ेन यहाँ आ गया तो? क्या करूँगी मैं? सीधे कह दूँगी कि मैं तो थी ही नहीं, ये तो बस हवा का झोंका था।
हाँ, हाँ… बस हवा! क्या उसे भरोसा होगा?" वह अपने ही ख्यालों पर खुद पर ही नाराज़ होते हुए कहती है, "कितना नॉनसेंस बात सोची है उसने अपने दिमाग में।"
फिर खुद को आईने में देखा और गंभीरता से बुदबुदाई, "धानी, तू कोई फिल्म की हीरोइन नहीं है कि थप्पड़ मारकर छुप जाएगी। इन्हें मारा है, ऐसे ही माफ़ नहीं करेगा। तेरा तो आज पक्का काम तमाम है, बहन!"
अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी, और वह दरवाज़े की तरफ बढ़ी, जैसे वह देख रही हो कि ज़ेन बाहर खड़ा है या नहीं। उसने कानों को दरवाज़े से सटाकर सुनने की कोशिश की, लेकिन कुछ भी नहीं सुना। "राधा रानी की कृपा है! वो नहीं आया!"
एक गहरी साँस लेते हुए, उसने आँखें बंद कर लीं। लेकिन तभी उसे ख्याल आया, "वैसे, अगर वो मुझसे डर गया हो, तो? मतलब थप्पड़ का असर हुआ हो, वो शायद समझ गया कि धानी से पंगा लेना मतलब अपनी शामत बुलाना है। वाह, धानी! तेरा तो रौब ही अलग है!"
लेकिन अगले ही पल उसकी मुस्कान फिर गायब हो गई। "अरे! वो मुझसे डरने वाले थोड़े ही है। अगर उसने बदला लेने का सोच लिया तो? धानी, तेरा तो कच्चा-पक्का सब हिसाब होने वाला है!"
बेला की आवाज़ से धानी का ध्यान टूटा। उसने देखा कि बेला गैलरी के दूसरी तरफ से उसके पास आ रही थी, हाथ में प्रेस किए हुए कपड़े पकड़े हुए थे। बेला ने कपड़े धानी की तरफ बढ़ाते हुए कहा, "मैडम, ये सर के कपड़े हैं, क्या आप इन्हें सर के कमरे में रख देंगी?"
धानी ने उन कपड़ों को घबराहट से देखा और जल्दी से सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, मैं नहीं जाऊँगी…"
बेला ने उसे डरते हुए देखा तो आश्चर्य से पूछा, "क्या हुआ मैडम? आप सर के कमरे में क्यों नहीं जा रही हैं? मैंने तो बस आपसे ये कपड़े रखने के लिए कहा था।"
धानी ने अपनी घबराहट को छुपाते हुए बेला के कंधे पर हाथ रखा और उसे आगे की तरफ धकेलते हुए कहा, "हाँ, मुझे पता है बेला कि आप मुझसे बस कपड़े रखने के लिए कह रही हैं। लेकिन… लेकिन मैं आपसे विनती कर रही हूँ कि इन इस्त्री किए हुए कपड़ों को लेकर आप यहाँ से तुरंत जाएँ और… 'ओ स्त्री, कल आना’।"
दोपहर तक धानी अपने कमरे में ही बंद रही, यह सोचते हुए कि आखिर क्या करना है। वह ऐसे सारा दिन छुप नहीं सकती थी। आखिरकार, उसने फैसला कर लिया कि शाम को ज़ेन से इस बारे में बात करेगी और माफ़ी भी मांग लेगी।
जब वह कमरे से बाहर निकली, तो देखा कि सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे। थोड़ी ताजगी महसूस करने के लिए वह गार्डन एरिया की तरफ बढ़ गई। वहाँ पहुँचकर वह रंग-बिरंगे फूलों की क्यारी को देखने लगी, जो उसके मन को एक अजीब सा सुकून दे रही थी। तभी उसकी नज़र गार्डन के एक कोने में उगी जंगली घास पर पड़ी। इतने सुंदर और साफ़ गार्डन में ये जंगली घास बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थी।
धानी ने आसपास देखा और उसे मिट्टी खोदने का औज़ार नज़र आया। वह उसे लेकर सीधे उस जंगली घास के पास चली गई। एक-एक करके उसने सारी जंगली घास उखाड़कर फेंक दी, मिट्टी को साफ़ किया और वहाँ टिंडे के बीज लगा दिए।
काम खत्म होने के बाद उसने अपने हाथ झाड़ते हुए उस जगह को देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "चलो, अब कुछ ही दिनों में यहाँ टिंडे के पौधे उग जाएँगे। फिर मैं इन्हें टिंडों से बनी अपनी हाथों की सब्ज़ी सबको खिलाऊँगी।"
जब धानी घर के अंदर वापस आई, तो उसने देखा कि नौकर अभी भी पूरे हॉल की सफ़ाई कर रहे थे। वह मन ही मन सोचने लगी, "बाप रे! ये लोग कितनी सफ़ाई करते हैं। इतनी तो गंदगी भी नहीं होती यहाँ। लेकिन, खैर, इनका काम है। अच्छा है, कोई तो अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहा है।"
अपने विचारों में खोई हुई वह धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर बढ़ रही थी। उसे महसूस हो रहा था कि यहाँ सबको अपना-अपना काम दिया गया है, और वे उसे पूरी निष्ठा से कर रहे हैं। लेकिन खुद धानी? उसके पास तो करने के लिए कोई काम ही नहीं था। जब भी वह कुछ करने की कोशिश करती, नौकर तुरंत आकर वह काम अपने हाथों में ले लेते। यह स्थिति उसे परेशान कर रही थी।
वह सोचने लगी, "मैं ऐसे इस घर में नहीं रह सकती। भले ही मैं इनकी पत्नी बनकर यहाँ आई हूँ, पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं यहाँ पर बोझ बनकर रहूँ।"
अपनी स्वाभिमानी सोच के साथ, उसने पर्स उठाया और कुछ सोचते हुए घर से बाहर निकल गई।
बबलू ड्राइवर उसे अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन धानी ने हाथ उठाकर मना कर दिया और कहा, "नहीं, मैं पास के मार्केट में ही जा रही हूँ, पैदल ही चली जाऊँगी।"
मार्केट पहुँचकर धानी ने घर के लिए ताज़ी और हरी सब्ज़ियाँ खरीदीं। सब कुछ एकदम ताज़ा ही लेना उसे पसंद था। सब्ज़ियाँ खरीदने के बाद उसकी नज़र मार्केट के कोने में मौजूद एक छोटे से ब्यूटी पार्लर पर गई, जहाँ उसकी ओनर बाहर बैठी हुई थी। उस महिला के चेहरे पर निराशा झलक रही थी।
धानी ने उसके पास जाकर कहा, "क्या बात है, आंटी? आप परेशान क्यों हैं?"
महिला ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "क्या बताऊँ, बेटा। उम्र हो चली है, अब हाथों में वह ताकत नहीं रही। लड़कियाँ आती हैं, पर मैं उनकी ठीक से सर्विस नहीं कर पाती। ना तो अब आईब्रो ठीक से बना पाती हूँ और ना ही फेशियल। इसीलिए मेरा पार्लर घाटे में जा रहा है। यह ही मेरा एकमात्र रोज़गार है, और अगर यह भी बंद हो गया, तो मैं क्या करूँगी?"
धानी ने कुछ सोचते हुए कहा, "आंटी, अगर आप कहें तो क्या मैं आपके पार्लर में काम कर सकती हूँ? मुझे आईब्रो बनाना आता है, और फेशियल वगैरह YouTube से सीख लूँगी। अगर आप मुझे नौकरी देंगी, तो आपका बहुत उपकार होगा। मुझे इस वक़्त काम की बहुत ज़रूरत है। जो भी सैलरी आप देंगी, मुझे मंज़ूर है।"
महिला धानी की बात सुनकर बहुत खुश हो गई और मुस्कुराते हुए बोली, "अगर तुम काम करना चाहती हो, तो मुझे क्या परेशानी है! क्लाइंट से जो भी पैसा मिलेगा, हम आधा-आधा बाँट लेंगे। इससे हम दोनों का काम चल जाएगा। चलो, तुम कल से ही काम पर आ जाना।"
"थैंक यू आंटी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!" धानी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर दोनों ने एक-दूसरे के फ़ोन नंबर एक्सचेंज किए। घर की तरफ़ लौटते हुए धानी बेहद खुश थी। उसे नौकरी मिल गई थी। काम बड़ा या छोटा होना उसके लिए मायने नहीं रखता था, बल्कि उसके लिए काम को ईमानदारी से करना ही सबसे महत्वपूर्ण था।
रास्ते में वह सोच रही थी कि अच्छा हुआ उसे यह काम मिल गया। पार्लर घर के पास ही था, जिससे वह काम करते-करते ज़ेन का भी ख्याल रख सकेगी। घर पहुँचकर उसने ताज़ी सब्ज़ियाँ और बाकी सामान बाहर निकाला। जैसे ही बेला किचन में आई, धानी ने उसे रोकते हुए कहा कि आज वह खुद खाना बनाएगी। वह अपने हाथों से खाना बनाकर ज़ेन को सुबह की हरकत के लिए माफ़ी कहना चाहती थी।
उसे याद था कि पिछले दिनों ज़ेन ने कैसे आधा-कच्चा, उबला हुआ खाना खाया था। धानी ने सोचा कि आज वह उसे मसालेदार और स्वादिष्ट खाना खिलाएगी। उसने ज़ेन के लिए मसालेदार सब्ज़ियाँ और हाथ से पिसी हुई ताज़ी चटनी बनाई। सारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजाने के बाद वह ज़ेन के लौटने का इंतज़ार करने लगी।
वह डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी थी, और उसे उम्मीद थी कि ज़ेन रात के 10 बजे तक आ जाएगा। यह उसने बेला और बाकी नौकरों से सुना था, लेकिन पिछले दो दिनों से उसने देखा था कि ज़ेन के घर आने का कोई निश्चित समय नहीं था। फिर भी, एक अच्छी पत्नी की तरह उसे ज़ेन की चिंता हो रही थी और वह उसके बिना खाना नहीं खा सकती थी। इसीलिए वह बैठकर उसका इंतज़ार करने लगी।
रात काफी हो चुकी थी, और धीरे-धीरे इंतज़ार करते-करते उसकी आँख लग गई।
बाहर ज़ेन की गाड़ी आकर रुकती है। आज उसकी एक बिज़नेस मीटिंग और साथ में डिनर पार्टी भी थी, और वह काफी थक चुका था। गाड़ी से निकलकर जैसे ही वह घर की ओर कदम बढ़ाता है, उसकी नज़र अपने गार्डन एरिया पर जाती है। जो दृश्य उसके सामने था, उसे देखकर उसका चेहरा सख्त हो जाता है।
वह तेज कदमों से घर के अंदर दाखिल होता है। जैसे ही वह हॉल में प्रवेश करता है, उसकी नज़र सामने डाइनिंग टेबल पर जाती है, जहाँ एक मद्धम रोशनी में धानी का चेहरा नज़र आ रहा था। पूरे हॉल की लाइट बंद थी, लेकिन इमरजेंसी लाइट की हल्की रोशनी में धानी का चेहरा दमक रहा था। धानी अपनी आँखें बंद किए हुए, डाइनिंग टेबल पर सो चुकी थी, यह उसे खुद भी पता नहीं था।
ज़ेन के कदम वहीं थम गए, और उसकी आँखें धानी पर टिक गईं। क्या उसका कोई इंतज़ार कर रहा है? क्या किसी को उसके घर आने की परवाह है?
वह धानी के उस मासूम चेहरे को देखते हुए धीरे-धीरे उसकी ओर कदम बढ़ाने लगा। हर कदम के साथ ज़ेन की नज़रें धानी के चेहरे को और गहराई से निहारने लगीं। उसे अपने अंदर एक हलचल सी महसूस हो रही थी, उस अहसास के साथ कि धानी उसका इंतज़ार कर रही थी। डाइनिंग टेबल पर लगा डिनर सेट इस बात की गवाही दे रहा था कि वह ज़ेन के साथ खाना खाने के लिए उसका इंतज़ार कर रही थी।
जैसे ही ज़ेन उसके करीब पहुँचता है, कदमों की आहट से धानी की नींद टूट जाती है। वह हड़बड़ाते हुए उठती है और सामने ज़ेन को देखकर जल्दी से खड़ी हो जाती है। उसने अपने नींद भरे चेहरे को हाथों से रगड़कर जागृत किया और ज़ेन को देखते हुए घबराहट भरे स्वर में बोली, "आप आ गए… आप बैठिए, मैं खाना गर्म कर देती हूँ।"
लेकिन तभी ज़ेन को कुछ याद आया, और वह सख्ती से बोला, "तुमने मेरे बल्ब्स का क्या किया है?"
धानी के हाथ डिनर सेट पर रुक गए, और वह हैरानी से ज़ेन को देखकर बोली, "बल्ब? कौन से बल्ब? मैंने किसी बल्ब को हाथ नहीं लगाया है।"
ज़ेन गुस्से में बोला, "वो बल्ब्स जो गार्डन में लगाए थे। तुमने क्या किया है उनके साथ? मुझे पता है, यह तुमने ही किया होगा। तुम्हारे अलावा और किसी की यह करने की हिम्मत नहीं होगी। तो बताओ, क्या किया है तुमने मेरे बल्ब्स के साथ?"
धानी चौंकते हुए बोली, "मैं सच कह रही हूँ जी, गार्डन में मैंने किसी बल्ब को हाथ नहीं लगाया है। यहाँ देख लीजिए, सारे बल्ब अपनी जगह पर हैं और उनमें रोशनी भी जल रही है। मैं पागल हूँ क्या जो बिजली के बल्ब को हाथ लगाऊँगी? मुझे करंट नहीं लग जाएगा?"
ज़ेन अपना सिर पकड़कर बोला, "अरे पागल लड़की, मैं बिजली के बल्ब की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं प्लांट बल्ब्स की बात कर रहा हूँ! मैंने जर्मनी से स्पेशल ऑर्किड बल्ब्स मँगवाए थे और उन्हें गार्डन में लगाया था। अब वो वहाँ नहीं हैं। यकीनन तुमने कुछ किया होगा। बताओ, क्या किया तुमने? तुम्हें पता है, वो कितने महँगे थे?"
धानी की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं और उसने कहा, "क्या? वो जंगली घास नहीं थे बल्कि विदेशी पौधे थे? सच कह रही हूँ जी, मुझे नहीं पता था। मैंने उन्हें जंगली घास समझकर उखाड़ दिया और वहाँ टिंडे के बीज लगा दिए।"
ज़ेन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने झल्लाते हुए कहा, "क्या? 5 लाख के ऑर्किड्स की जगह तुमने टिंडे लगा दिए? दादू, कहाँ फँसा दिया आपने मुझे!" वह अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए अपने कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा। तभी धानी ने घबराकर कहा, "ए जी…"
ज़ेन के कदम रुक गए, उसने गुस्से से पलटकर धानी की तरफ़ देखा। धानी ने खाना की ओर इशारा करते हुए कहा, "खाना तो खा लीजिए…"
ज़ेन को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उसने खुद को काबू में किया। वह तेज़ी से वापस डाइनिंग टेबल पर गया और खाने का ढक्कन हटाया। उसने देखा, बर्तन में टिंडे की सब्ज़ी रखी थी।
वह गुस्से में धानी की ओर देखते हुए बोला, "अगर तुम्हें खाना बनाना नहीं आता है, तो बेला से सीख लो। मैंने तुमसे कहा था ना कि मुझे ऐसे फ़ालतू खाने की ज़रूरत नहीं है। अगर कुछ ढंग का बना सकती हो, तो ठीक है, वरना वही खाओ जो बनता है। खाने की बर्बादी मत करो। वैसे भी, बर्बादी के अलावा तुम जानती ही क्या हो! मेरे 5 लाख के पौधों को तुमने बर्बाद कर दिया।"
यह कहकर ज़ेन गुस्से में वहाँ से चला गया, और धानी बस हैरानी से उसे जाते हुए देखती रह गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। वह दौड़कर गार्डन एरिया में गई और देखा कि सभी ऑर्किड्स के पौधे कूड़े की तरह किसी कोने में पड़े हुए थे, सूख चुके थे। अब उनमें कुछ भी नहीं बचा था जिससे पौधे फिर से उग सकें।
उधर, ज़ेन अपने कमरे में गया। उसने कोट उतारकर सोफ़े पर फेंका और सिगरेट का पैकेट लेकर बालकनी में चला गया। उसने सिगरेट जलाई ही थी कि उसकी नज़र गार्डन में बैठी धानी पर गई, जो उन सूखे हुए पौधों के सामने बैठकर रो रही थी।
यह देखकर ज़ेन का दिल हल्का सा पिघल गया। उसने होंठों में दबी सिगरेट निकाल दी और धानी को देखकर मन में कहा, "क्या पागल लड़की है… मेरे दोस्तों के सामने मेरी बेइज़्ज़ती की, मुझे थप्पड़ मारा, और मेरे इतने महँगे पौधों को बर्बाद कर दिया… और रो भी खुद ही रही है।"
ज़ेन कमरे की बालकनी में खड़ा होकर नीचे गार्डन में धानी को देख रहा था। धानी के आँसुओं से भरे चेहरे को देखकर ज़ेन को समझ नहीं आया कि यह औरत रो क्यों रही है। एक तो उसने दादाजी को बहला-फुसलाकर ज़बरदस्ती ज़ेन से शादी कर ली, दोस्तों के सामने उसकी इतनी बेइज्जती करवाई और सुबह का थप्पड़...वो तो खैर छोड़ो, इसका हिसाब बाद में लूँगा। फिर भी यह ऐसे आँसू बहा रही है, जैसे दुनिया भर के सारे दुःख उसी के ऊपर आ गए हों।
धानी को इस बात का एहसास ही नहीं था कि बालकनी से कोई उसे देख रहा है। कुछ देर रोने के बाद उसने अपने आँसू पोंछे और खुद को संभाला। उसने गार्डन के उन छोटे-छोटे पौधों पर ध्यान दिया, जो अब जंगली घास की तरह लग रहे थे। उसने देखा कि ऊपर की धूप से कुछ पौधे झुलस चुके थे और शायद अब उनमें जान नहीं बची थी। लेकिन जो पौधे नीचे की तरफ थे, उनमें थोड़ी-बहुत हरियाली अभी बाकी थी। धानी ने सोचा कि शायद अगर वह इन्हें फिर से लगाए, तो उनमें से कुछ पौधे वापस हरे-भरे हो सकते हैं और शायद एक खूबसूरत ऑर्किड का पौधा उग आए।
धानी ने अपने आँसू पोंछे और उन पौधों को, जिनमें थोड़ी-बहुत जान बची हुई थी, वापस जमीन में लगाने लगी। वह वहीं बैठकर एक-एक करके सभी पौधों को वहीं लगा रही थी, जहाँ से उसने उन्हें उखाड़ा था।
ज़ेन अपने कमरे की बालकनी से सिर्फ धानी को ही देख रहा था। धानी को पता ही नहीं था कि ज़ेन बालकनी में बैठा, सिगरेट का कश लेते हुए, उसे ध्यान से देख रहा है। ज़ेन देख सकता था कि कैसे धानी अपनी साड़ी का पल्लू कमर में खोंसे हुए और हाथों में भरी चूड़ियों के साथ पौधों को वापस लगा रही थी।
आधी रात के बाद ज़ेन ने अपनी बची हुई सिगरेट को वहीं फेंक दिया और अंदर जाकर सोने के लिए लेट गया। उसकी आँखों के सामने धानी का चेहरा था, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। बिस्तर पर पड़े-पड़े ही उसकी आँख लग गई।
सुबह की पहली रोशनी के साथ ही ज़ेन के कानों में कुछ आवाजें पड़ीं, जिसने उसकी नींद तोड़ दी। अंगड़ाई लेते हुए वह बालकनी में आया। हमेशा की तरह एक्सरसाइज के लिए तैयार होते हुए उसने अपनी बनियान उतारकर साइड की कुर्सी पर रख दी और पुशअप करने के लिए बालकनी की रेलिंग पर हाथ रखे। तभी उसकी नज़र गार्डन में पड़ी और उसने देखा कि धानी वहीं जमीन पर लेटी हुई है।
उसे देख ज़ेन की आँखें चौड़ी हो गईं और वह बुदबुदाया, "ये गार्डन में क्यों सो रही है? इसके कमरे में बिस्तर नहीं है क्या?"
जैसे ही उसे कुछ याद आया, वह बिना कुछ सोचे-समझे, सिर्फ ट्राउज़र में ही भागता हुआ नीचे गार्डन में आ गया। दरअसल, धानी रात भर उन पौधों को फिर से लगाने में जुटी रही थी, जिससे उसकी तबीयत बिगड़ गई थी। कल उसने ठंडे पानी से दो बार नहाया था और रात भर गार्डन में रहकर मेहनत करने के कारण उसे बुखार हो गया था।
जब धानी पौधों को वापस लगा रही थी, तो उसे एहसास हो गया था कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है। लेकिन ज़ेन ने जब उन पौधों की कीमत बताई थी, तो उसकी बीमारी उसे बहुत मामूली लगी। इतने पैसे अगर धानी के पास होते, तो वह शायद अनाथालय के बच्चों के लिए अच्छा खाना और कपड़े ला सकती थी। पैसे की अहमियत समझते हुए, वह पौधों को बचाने की पूरी कोशिश में जुटी रही और अपनी तबीयत की परवाह नहीं की।
ज़ेन गार्डन में पहुँचा, तो उसने देखा कि धानी का चेहरा बुखार से लाल हो गया है और उसके होंठ हल्के-हल्के काँप रहे हैं। यह देख ज़ेन डर गया। उसने जल्दी से धानी को अपनी गोद में उठाया और उसे लेकर अपने कमरे में आ गया।
धानी का नन्हा सा शरीर ज़ेन ने अपनी गोद में उठा रखा था। उसका चेहरा ज़ेन के सीने से लगा हुआ था, और उसके होंठों से निकलती हल्की-हल्की गर्म सांसें ज़ेन के दिल के पास महसूस हो रही थीं। ज़ेन ने एक नज़र धानी पर डाली, उसके छोटे-छोटे गुलाबी होंठों को देखते ही उसे कुछ बेचैनी सी महसूस होने लगी। धानी का गाल ज़ेन के सीने से सटा हुआ था, और बेहोशी की हालत में वह अपना चेहरा उसके सीने पर हल्के-हल्के रगड़ रही थी, जिससे ज़ेन की धड़कनें और तेज हो गईं और उसे भीतर ही भीतर एक गर्माहट का एहसास होने लगा।
लेकिन अगले ही पल, उसने अपनी भावनाओं पर काबू पाया और धानी को लेकर घर के अंदर जाने लगा। हालांकि, उसके चेहरे पर एक हल्का डर भी नज़र आ रहा था।
ज़ेन को डर था कि अगर दादाजी को पता चल गया कि धानी की तबीयत खराब है, तो वे इसका जिम्मेदार ज़ेन को ही ठहराएँगे। इसलिए वह उसे धानी के कमरे में ले जाने की बजाय अपने कमरे में ले आया।
ज़ेन ने धानी को बिस्तर पर लिटाया और फर्स्ट एड बॉक्स में से बुखार की दवाई ढूँढने लगा। जैसे ही उसे दवाई मिली, वह जल्दी से धानी के पास गया। उसने दवाई को एक हाथ में लिया और दूसरे हाथ से धानी के मुँह में डालते हुए कहा, "उठो, दवाई ले लो।"
धानी के होठ हल्के-हल्के खुले हुए थे और उसकी हालत इतनी खराब थी कि उसे कुछ करने की ताकत ही नहीं थी। ज़ेन के पास धैर्य की कमी थी, वह किसी चीज के लिए इंतजार नहीं कर सकता था। इसलिए उसने सीधे ही दवाई उसके मुँह में ठूँस दी।
जैसे ही दवाई धानी के मुँह में जाती है और कड़वाहट उसके जीभ और पूरे मुँह में फैलती है, उसकी आँखें खुल जाती हैं। उसका चेहरा अजीब-सा बन जाता है, जिससे साफ पता चलता है कि उसे दवाई का कड़वापन महसूस हो रहा है। पीठ के बल थोड़ा उठाते हुए, वह अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेती है ताकि दवाई को बाहर थूक सके। लेकिन इससे पहले कि वह ऐसा कर पाती, ज़ेन ने पानी का गिलास उठाया और सीधे उसके होठों पर लगाते हुए कहा, "इसे थूकने की हिम्मत भी मत करना।"
धानी सच में कड़वी दवाई को थूकना चाहती थी, लेकिन ज़ेन के सामने ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। अनचाहे ही उसने दवाई को निगल लिया।
पानी पीने के बाद धानी फिर से निढाल होकर बिस्तर पर गिर जाती है, और ज़ेन उसे देखता रह जाता है। जैसे ही उसके चेहरे पर हल्की हरकत होती है, ज़ेन ने अपना सिर हिलाया और उसके ऊपर कंबल रख दिया।
दवाई के असर से धानी की आँखें धीरे-धीरे बंद होने लगी थीं और उसे आराम की ज़रूरत भी थी। उसके चेहरे पर पसीना आने लगा था। ज़ेन को महसूस होता है कि दवाई के असर से उसका बुखार उतर रहा है और वह बिस्तर पर किसी छोटे बिल्ली के बच्चे की तरह सुकून से सो रही है। उसे इस तरह सोता देखकर ज़ेन ने एक गहरी साँस ली और अपनी आँखें बंद कर लीं। इस समय कोई भी ज़ेन को देखकर यह अंदाजा नहीं लगा सकता था कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है।
जब धानी की नींद खुली, तो उसने देखा कि दोपहर के 2 बज चुके हैं। इसका मतलब है कि सुबह दवाई के असर से जो सोई थी, उसकी नींद अब दोपहर में खुली है। उसने महसूस किया कि अब उसे बुखार नहीं है। लेकिन कल रात उसने कुछ भी नहीं खाया था और दिन भर सोती रही, तो अब उसे भूख लगने लगी थी। ज़ेन द्वारा दी गई दवाई शायद बहुत अच्छी थी, जिससे बुखार पूरी तरह उतर गया था और शरीर में थकान भी नहीं थी। लेकिन अब पेट में भूख थी और उसे खाने की ज़रूरत महसूस हो रही थी।
जैसे ही धानी ने अपने पैर फर्श पर रखे, उसे एहसास हुआ कि वह ज़ेन के कमरे में है। इसी के साथ उसे उन पौधों का भी ख्याल आया। अपनी साड़ी को संभालते हुए वह जल्दी से उठी और दौड़ती हुई सीधे गार्डन में पहुँच गई। सबसे पहले उसने ऑर्किड के पौधों को देखा। उसने देखा कि कुछ पौधे पहले की तरह हरे-भरे हो गए हैं, लेकिन कुछ के पत्ते अब भी मुरझाए हुए लग रहे हैं। इन पौधों को देखकर धानी को बहुत बुरा लगा, लेकिन उसने दिल ही दिल में दुआ की कि एक-दो दिन में ये पौधे फिर से खिल उठें।
जब धानी अपने कमरे में लौटी, तो उसने देखा कि बेला दरवाजे पर खड़ी है और उसके हाथों में मोबाइल फोन है। धानी ने हैरानी से बेला की ओर देखा। बेला ने फोन उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "मैडम, बड़े साहब का फोन है। आप अपना फोन नहीं उठा रही थीं, इसलिए उन्होंने मेरे नंबर पर फोन किया है।"
धानी मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है और बेला का फोन कान से लगाकर कहती है, "नमस्ते दादा जी, आप कैसे हैं? आप केदारनाथ पहुँच गए?"
दूसरी ओर से दादाजी कहते हैं, "हाँ बेटा, मैं ठीक हूँ। अभी थोड़ी देर पहले ही केदारनाथ धाम पहुँचा हूँ। आप कैसी हैं? और ज़ेन कैसा है? उसने आपको परेशान तो नहीं किया? अगर कुछ किया है तो मुझे बताइए। आपको मुझसे कुछ छुपाने की ज़रूरत नहीं है। अगर उसने आपको तकलीफ़ दी है, तो मैं उसकी अच्छी तरह से क्लास लूँगा। किसी को भी मेरी बहू को तकलीफ़ देने का हक़ नहीं है, और ज़ेन को तो बिल्कुल भी नहीं। उसे तो आपका ख्याल रखना चाहिए। अगर वहीं आपको तकलीफ़ देगा तो फिर हम और किसी से क्या ही उम्मीद कर सकते हैं। बताइए, उसने कुछ किया तो नहीं?"
दादाजी की इस चिंता और प्यार को महसूस करते हुए धानी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वह हमेशा से अनाथ आश्रम में रही है और आज तक उसकी इतनी परवाह और प्यार किसी ने नहीं किया। दादाजी का यह अपनापन देखकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं, जिन्हें वह मुश्किल से छुपाते हुए कहती है, "नहीं दादा जी, आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। यहाँ सब कुछ ठीक है। उन्होंने मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं किया। आप बेफ़िक्र रहिए, यहाँ सब ठीक है और यह भी बहुत अच्छे हैं। आप अपनी यात्रा को आराम से पूरा कीजिए।"
धानी की यह बात सुनकर दादाजी बहुत खुश होते हैं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनके पोते के बारे में कोई इतनी अच्छी बात कहेगा। उन्हें हमेशा से ज़ेन की फ़िक्र रहती थी। उसका बर्ताव और रवैया देख उन्हें हमेशा डर रहता था कि ज़ेन कहीं अपनी ज़िन्दगी को खुद ही न बिगाड़ ले। उसके दोस्तों और संगति के कारण दादाजी को हमेशा चिंता होती थी।
लेकिन अब धानी के ज़िन्दगी में आने से दादाजी की यह चिंता कुछ हद तक कम हो गई है, क्योंकि पहली बार किसी ने ज़ेन के बारे में कहा है कि वह अच्छा है। दादाजी की ख्वाहिश थी कि धानी और ज़ेन का रिश्ता ऐसा हो, जैसे शरीर और आत्मा का अटूट संबंध होता है। वह चाहते थे कि उनके बीच का बंधन इतना गहरा हो कि एक-दूसरे के बिना वे अधूरे महसूस करें, जैसे "Soulmate in Shadow" की तरह, जहाँ दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व में समाते हुए पूरी दुनिया से परे केवल एक-दूसरे में खो जाएँ।
दादाजी को धानी की बात सुनकर काफी सुकून मिला, लेकिन वह यह भी अच्छी तरह जानते थे कि फ़िलहाल वह ज़ेन और धानी की शादी को पब्लिक नहीं कर सकते। अगर उन्होंने ऐसा किया, तो इसका सबसे बड़ा असर धानी पर पड़ेगा। धानी एक अलग दुनिया से आई लड़की है, और अचानक बदलते इस माहौल में शायद वह सहज नहीं हो पाएगी। ज़ेन फिर भी इस दुनिया को पहले देख चुका है, लेकिन धानी के लिए यह सब बहुत नया है। इसीलिए, दादाजी पहले चाहते हैं कि धानी इस दुनिया का पूरी तरह हिस्सा बने, फिर ही उसे सबके सामने ज़ेन की पत्नी के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
थोड़ी देर और बात करने के बाद धानी ने फोन रख दिया और अपने कमरे में जाकर सोचने लगी कि अब क्या करना है। शाम के समय धानी किचन में आई और अपने लिए कुछ हल्का-फुल्का बनाने लगी। उसे फ़िजूलखर्ची की आदत नहीं थी और महंगे खाने का शौक भी नहीं था, इसलिए उसने बेसन के पकोड़े बनाए, ताकि शाम की चाय के साथ उनका आनंद ले सके।
पकोड़े बनाने के बाद जैसे ही वह किचन से बाहर निकली, तभी ज़ेन घर के अंदर दाखिल हुआ। उसे देखकर धानी की आँखें बड़ी हो गईं। ज़ेन के घर आने का कोई तय समय नहीं होता था, तो फिर आज वह शाम को घर कैसे आ गया?
ज़ेन, धानी को घूरता हुआ देख रहा था और धानी के चेहरे पर घबराहट झलक रही थी। उसने ज़ेन का पूरा बगीचा बर्बाद कर दिया था और उसे थप्पड़ भी मारा था। इसके बावजूद, ज़ेन ने उसकी बीमारी में उसकी देखभाल की थी। धानी ने महसूस किया था कि ज़ेन का रवैया उसके लिए बहुत कठोर और तकलीफ़ देने वाला है, लेकिन इसके बावजूद, ज़रूरत पड़ने पर मदद के लिए वह इतना बुरा इंसान भी नहीं है।
ज़ेन उसे नज़रअंदाज करते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगा, लेकिन तभी धानी ने उसे पीछे से रोकते हुए कहा,
"ऐ जी..."
ज़ेन के कदम रुक गए और उसने गहरी साँस लेते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। वह गुस्से में था और कुछ कहने ही वाला था, तभी धानी ने अपने हाथ में पकड़े पकोड़ों की प्लेट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, "मैंने पकोड़े बनाए हैं... क्या आप इसे खाना चाहेंगे?"
ज़ेन ने कुछ पल सोचा, क्योंकि उसने कल ही कहा था कि धानी का खाना उसके खाने लायक नहीं है। लेकिन अगले ही पल, जब उसने ज़ेन को डाइनिंग टेबल पर बैठते देखा, तो उसकी आँखें बड़ी हो गईं। इसका क्या मतलब है? क्या ज़ेन सच में उसके हाथ के बने पकोड़े खाना चाहता है? यह सोचकर ही धानी के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई।
धानी जल्दी से डाइनिंग टेबल के पास आई और ज़ेन के सामने एक प्लेट रखी, जिसमें उसने दो-चार पकोड़े और साइड में हरी और लाल चटनी भी रख दी।
ज़ेन ने एक नज़र प्लेट पर डाली और फिर उसकी नज़र धानी पर गई, जो उसके पास ही खड़ी थी। उसे घूरते हुए ज़ेन ने कहा, "अब क्या खड़े होकर गिनोगी कि मैं कितने पकोड़े खा रहा हूँ?"
धानी उस वक्त अपने कमरे में थी और परेशानी से इधर-उधर टहल रही थी। पूरे दिन जो कुछ भी हुआ था, उसकी वजह से धानी का शरीर बहुत दर्द कर रहा था। पहले से ही उसे बुखार था, ऊपर से बाग़ की देखभाल करने के चक्कर में उसके शरीर पर अजीब सी मिट्टी की चिपचिपाहट हो गई थी। इसी कारण उसने नहाने का सोचा था। लेकिन भला हो उन तकनीकी लोगों का जिन्होंने ऐसा बाथरूम बनाया था कि नहाना तो छोड़ो, उसमें मुँह धोने में भी डर लग रहा था।
धानी बाथरूम के अंदर गई और सिस्टम को फिर से देखने लगी। अब तो उसका हाल यह था कि डर के मारे शावर या किसी और चीज को छूने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। पिछली बार गलती से ठंडा पानी आ गया था, इस बार उसे कहीं नॉर्थ पोल जैसा अनुभव न हो जाए और शावर से बर्फ के टुकड़े ना निकलने लगें। यह सोचते हुए धानी ने ठंडे पानी से न नहाने का फैसला किया था, हालाँकि उसे बीमार होने का डर नहीं था। लेकिन जिस तरीके से ज़ेन ने उसकी देखभाल की थी और दवाई दी थी, उसे अच्छा नहीं लगा था कि वह किसी पर बोझ बने।
काफी देर तक सिस्टम को देखते हुए धानी परेशान हो गई। नहाना ज़रूरी था; बिना नहाए तो उसे नींद भी नहीं आएगी। यही सोचते हुए वह कमरे से बाहर निकली। रात के करीब 10 बजे थे, और इतनी रात को वह बेला को परेशान नहीं करना चाहती थी। धानी देख सकती थी कि बेला दिन भर घर के सारे काम संभालती है और नौकरों को भी अच्छी तरह से मैनेज करती है।
धानी लिविंग हॉल के सोफे की ओर गई, जहाँ ज़ेन अपने फोन पर स्क्रॉल कर रहा था। वह धीरे से ज़ेन के पास जाकर कुछ दूरी पर खड़ी हो गई और धीरे से कहा,
"ऐ जी!"
ज़ेन, जो इस वक्त इंस्टाग्राम पर रील देख रहा था, अचानक से उसकी बात सुनकर रुक गया और उसे घूर कर देखने लगा। घबराई हुई आवाज़ में धानी बोली,
"क्या आप मेरे साथ बाथरूम में चलेंगे?"
"व्हाट?" ज़ेन चौंकते हुए बोला और उठकर बैठ गया। उसे घूरते हुए बोला,
"क्या बकवास कर रही हो? मैं तुम्हारे साथ बाथरूम में चलूँ? क्यों?"
धानी मासूमियत से बोली,
"मुझे नहाना है ना, और मुझे आपकी मदद चाहिए।"
ज़ेन उसे घूरते हुए बोला,
"तुम्हें नहाना है, तो क्या चाहती हो कि मैं तुम्हारे साथ बाथरूम में चलूँ और तुम्हारे बदन साबुन लगाऊँ?"
"छी! कैसी बातें करते हैं!" धानी झेंपकर बोली, "मैं ऐसा कुछ नहीं कह रही हूँ। मुझे बस इतना चाहिए कि आप मुझे बताएँ कि बाथरूम में गर्म पानी कैसे आएगा। वहाँ इतनी साइंस लगा रखी है कि समझ नहीं आता, पानी कहाँ से आएगा। मुझे ठंडे पानी से नहाना पड़ रहा है!"
ज़ेन उसे घूरते हुए बोला,
"मैं क्या कुकर हूँ, जो तुम्हारे लिए पानी गर्म करूँगा?"
धानी उसकी बात सुनकर अजीब से चेहरे के साथ बोली,
"बड़े लोगों की बड़ी बातें! पानी भी कुकर में गर्म करते हैं!"
ज़ेन उसे घूरता है, तो धानी जल्दी से अपनी पलकें झपकाकर खुद को संयत करते हुए बोली,
"छोड़िए, मुझे क्या करना है, आप लोग ही जानें। बस इतना बता दीजिए कि गर्म पानी कैसे आएगा।"
"मुझे तुम्हारी कोई मदद नहीं करनी है। क्या मैं तुम्हें हेल्पलेस नज़र आता हूँ?" ज़ेन बोला।
"अब जाओ यहाँ से, मुझे परेशान मत करो। कच्चा बादाम पर एक अच्छा रील आ रहा था, तुम्हारी वजह से मिस हो गया। अब जाओ यहाँ से!"
ज़ेन वापस सोफे पर लेट गया और अपने फोन पर सोशल मीडिया स्क्रॉल करने लगा। उसे इस तरह देखकर धानी मुँह बनाते हुए उसे घूरकर बोली,
"शक्ल तो मूंगफली जैसी है और पसंद है कच्चा बादाम!"
धानी वहाँ से वापस चली गई। ना चाहते हुए भी उसे इतनी रात को बेला को मदद के लिए बुलाना ही पड़ा। बेला लगभग सो गई थी, लेकिन जब धानी ने उसे बताया कि उसे गर्म पानी के लिए मदद चाहिए, तो बेला ने कहा कि वह बाथरूम में जाए, वह बस दो मिनट में आ जाएगी।
धानी अपने बाथरूम में वापस आ गई और सभी उपकरणों को एक बार फिर से देखने लगी। उसका दिमाग फिर से उलझ गया था कि आखिर गर्म पानी कहाँ से आएगा। धानी ने सोचा कि इतने दिमाग लगाने से अच्छा है, किचन में जाकर गैस पर ही पानी गर्म कर ले। लेकिन किचन नीचे था, और नीचे से गर्म पानी लाकर वापस ऊपर आने तक पानी ठंडा हो जाएगा। धानी का दिमाग काम नहीं कर रहा था कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
तभी गलती से उसका हाथ सेंसर पर लग जाता है और बाथटब में ठंडा पानी भरने लगता है। यह देखकर धानी अपना सिर पीट लेती है।
"भगवान जी! जब मैं आपसे कहती हूँ कि मेरी ज़िंदगी में और कितनी परेशानियाँ आएंगी, तो मैं आपको चुनौती नहीं दे रही होती हूँ, बस अपनी फीलिंग शेयर कर रही होती हूँ। पता नहीं आप उसे चैलेंज क्यों समझ लेते हैं! मेरी लाइफ से एक प्रॉब्लम जाती नहीं है कि आप दूसरी एंट्री करवा देते हैं। बच्चों की जान लोगे क्या? मान जाओ ना!"
धानी यह कहते हुए बाथटब के पास आती है। उसने हाथ लगाकर पानी को महसूस किया तो पाया कि पानी ठंडा है, और पूरा बाथटब ठंडे पानी से भर गया था। यह देखकर उसकी आँखें कसकर बंद हो जाती हैं।
वह गुस्से में बाहर जाने ही वाली थी कि तभी अचानक दरवाज़ा खुलता है, और ज़ेन बाथरूम में दाखिल हो जाता है। ज़ेन को देखकर धानी के कदम अपनी जगह पर ही रुक जाते हैं, और वह हैरानी से उसे देखती रह जाती है।
ज़ेन ने एक नज़र धानी पर डाली और फिर उसकी नज़र बाथटब में भरे हुए पानी पर गई। वह धानी को घूरते हुए बाथरूम के अंदर आता है और कहता है,
"तो तुम मुझे बेवकूफ बना रही थी? यह मेरे लिए कोई हैरानी की बात नहीं है। तुम लोगों को बेवकूफ बनाना तो जैसे बहुत ही आसान है। जैसे दादू को बनाया, वैसे मुझे बनाने की कोशिश कर रही हो! अभी थोड़ी देर पहले तो तुमने नीचे आकर मुझसे कहा था कि तुम्हें नहीं पता कि बाथरूम में पानी कैसे ऑन होता है, और यहाँ तुम बाथटब में पानी भरकर बैठी हो। मानना पड़ेगा, बातें बनाने में तो तुम एक्सपर्ट हो!"
धानी उसे देखती हुई कहती है,
"आप गलत समझ रहे हैं जी। मुझे बस यह नहीं पता कि गर्म पानी कैसे ऑन होता है, वरना ठंडा पानी तो मुझे भी..."
धानी अपने शब्द पूरे कर पाती, इससे पहले ही ज़ेन ने हैंड शॉवर उठाया और उसे ऑन करके धानी के ऊपर पानी की बौछार कर दी। ज़ेन के हाथों में हैंड शॉवर था और धानी शॉवर के पानी से भीगने लगी।
उसने घबराई हुई नज़रों से ज़ेन को देखा और बोली,
"यह क्या कर रहे हैं आप? मेरी तबीयत खराब है, और आप मुझे ठंडे पानी में भिगो रहे हैं! प्लीज़, ऐसा मत कीजिए। मैं और बीमार पड़ जाऊँगी।"
लेकिन ज़ेन के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी। उसने शॉवर का पानी और तेज कर दिया और बोला,
"जहाँ तक मुझे पता है, तुम तीन दिन से इस घर में हो और तीन दिन से तुमने ठंडे पानी से ही नहाया होगा। तो अब क्या हो गया? देखो, कितना ठंडा पानी आ रहा है, मज़े लो!"
धानी की गुलाबी साड़ी उसके बदन से पूरी चिपक गई थी, और उसका चेहरा ठंड की वजह से काँपने लगा था। उसके गुलाबी होंठों पर ठंडे पानी की बूँदें और बंद आँखें इस समय ज़ेन का ध्यान अपनी ओर खींच रही थीं। धानी इस तरह हिम्मत नहीं हार सकती थी। उसने अपने आप को संभालते हुए शॉवर को ज़ेन के हाथ से लेने की कोशिश की, लेकिन उसकी छोटी हाइट की वजह से वह शॉवर तक ठीक से पहुँच ही नहीं पा रही थी। ज़ेन ने उसे अपने करीब आते देख अपने हाथ और ऊँचे कर दिए, जिससे धानी का संघर्ष बढ़ गया।
धानी ज़ेन के शरीर से बिल्कुल सटी हुई थी, और अपने हाथ बढ़ाकर उछलते हुए शॉवर तक पहुँचने की कोशिश कर रही थी। इस खींचातानी में उसका बैलेंस बिगड़ गया, और बाथरूम गीला होने की वजह से ज़ेन भी संतुलन नहीं रख पाया। धानी ने दोनों हाथों से उसे सहारा दिया, लेकिन इसी खींचातानी में दोनों सीधे बाथटब में गिर गए, जिसमें पहले से ही ठंडा पानी भरा हुआ था।
धानी और ज़ेन एक दूसरे से लिपटे हुए बाथटब में गिर गए। धानी का साड़ी का पल्लू उसके कंधों से फिसल कर नीचे तैरने लगा था, और जब धानी ने ज़ेन की शर्ट को खींचते हुए उसे अपने साथ खींचा, तो ज़ेन की शर्ट के सारे बटन टूट गए, जिससे उसकी शर्ट सामने से खुल गई।
धानी ने खुद को देखा, वह पूरे ठंडे पानी में भीगी हुई थी और उसे याद आया कि वह तो बीमार थी। ऐसे में और ज़्यादा ठंडा पानी सहन नहीं कर पाएगी। उसने गुस्से में ज़ेन को देखा और थोड़े गुस्से से कहा,
"यह क्या किया आपने? मैं यहाँ ठीक होने की कोशिश कर रही हूँ, और आप मुझे और बीमार करना चाहते हैं? अगर मैं और बीमार हो गई, तो आपका ख्याल कौन रखेगा?"
ज़ेन धानी को हैरानी से देख रहा था। क्या धानी सिर्फ़ इसलिए बीमार होने से डर रही थी कि अगर वह बीमार हो गई तो उसका ख्याल कौन रखेगा? उसकी नज़रें धानी के ऊपर टिकी हुई थीं, और धानी की आँखें जो ठंड से सिकुड़ गई थीं, ज़ेन पर ही टिकी थीं।
दोनों का ध्यान तब टूटा जब दरवाज़ा खुला और बेला अंदर आई। सामने का दृश्य देखकर बेला अवाक् रह गई।
बेला ने जल्दी से अपना चेहरा दूसरी ओर फेर लिया। इस नज़ारे को देखकर वह घबरा भी रही थी और उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी आ गई थी। बेला तुरंत बाथरूम से बाहर चली जाती है। उसके जाने के बाद धानी गुस्से में ज़ेन की ओर देखते हुए कहती है,
"आप मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? मैंने आपका क्या बिगाड़ा है? मैं तो बस आपका ख्याल रखना चाहती हूँ, आपकी देखभाल करना चाहती हूँ। बताइए, इसमें मेरी क्या गलती है?"
ज़ेन हैरानी से धानी को देखता रह गया। उसकी नज़रें धानी के उतरे हुए आँचल पर थीं, और उसकी आँखों में एक अजीब सी भावना उभर रही थी। ठंडा पानी भी इस वक्त ज़ेन के भीतर उमड़ते हुए लावा का एहसास जगा रहा था।
ज़ेन का ध्यान तब टूटा जब उसने देखा कि धानी की आँखों में भी वहीँ उबलता हुआ लावा झलक रहा है। ऐसा लग रहा था कि धानी आज के इस हादसे से सच में नाराज़ हो गई है, तभी तो उसने ज़ेन से रूठे हुए लुगाई के लहजे में यह बात कर रही है। Such a typical Indian wife.
ज़ेन ने धानी की बात सुनकर हैरान हो गया। क्या वह बस इसीलिए बीमार पड़ने से डर रही थी क्योंकि उसे ज़ेन की देखभाल करनी थी? धोनी के चेहरे पर एक गुस्से की लकीर थी और ज़ेन हैरानी से उसे देख रहा था। वह धीरे से अपनी जगह पर खड़ा हुआ और व्हाट्सएप से बाहर निकल आया। उसने साइड में रखा हुआ तौलिया खुद लिया और फिर एक तौलिया बाथटब के पास रखते हुए कहा, "लिटिल गर्ल, जल्दी से तैयार होकर मेरे कमरे में आओ।"
और उसके बाद ज़ेन वहाँ से बाहर निकलने लगा। दरअसल, वह इस माहौल में खुद को एडजस्ट नहीं कर पा रहा था। धानी इस वक्त जिस तरीके से उसके सामने अपनी हालत खराब होती हुई दिख रही थी, उसे देखकर ना जाने क्यों उसे अंदर ही अंदर बेचैनी महसूस हो रही थी। और वह इसी बेचैनी से निजात पाने के लिए बाथरूम से निकल रहा था।
पर इससे पहले कि वह बाथरूम से निकल पाता, धानी ने उस पर नाराजगी जताते हुए अपनी काँपती हुई आवाज़ में कहा, "मैं क्यों आऊँगी आपके कमरे में? और हाँ, मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ। मेरा एक नाम है, तो मुझे मेरे नाम से बुलाइए।"
"जैसे तुम्हारी हरकत है, तुम बिल्कुल एक छोटी बच्ची की तरह ही हो। इसलिए तुम्हारा नाम आज से लिटिल गर्ल ही है। इसलिए चुपचाप से नाटक बंद करो और जल्दी से तैयार होकर मेरे कमरे में आओ।"
ऐसा कहते हुए अगले ही पल ज़ेन वहाँ से बाहर निकल गया क्योंकि इससे ज़्यादा वह खुद को कंट्रोल नहीं कर पा रहा था।
धानी गुस्से में ज़ेन को जाता हुआ देखती रही। उसके बाद वह भी बाथटब से बाहर निकली, लेकिन जब उसने आईने में खुद को देखा तो उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो गईं। उसके साड़ी का आँचल सीने से हटा हुआ था और यह देखकर वह घबरा गई। उसने जल्दी से अपने आँचल को संभालकर वापस खुद को ढँका। अब उसके चेहरे पर जो शर्म थी...
उसे महसूस हो रहा था कि वह ज़ेन के सामने कैसे अजीब तरीके से बैठी हुई थी। ज़ेन ने उसे ऐसे देखा था, और यह महसूस होते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढँक लिया था।
कमरे में आकर उसने देखा तो उसके लिए कपड़े और दवाइयाँ पहले से ही तैयार थीं। बेला ने यह तैयार करके गया था। उसने जल्दी से अपने कपड़े बदले और दवाई खाई ताकि ठंड की वजह से उसे दोबारा से बुखार ना चढ़े। लेकिन उसे याद आया ज़ेन ने उसे अपने कमरे में बुलाया था। ऐसे में उसका कमरे में जाना ज़रूरी था। उसने गहरी साँस छोड़ी और ज़ेन के कमरे की तरफ़ बढ़ गई। वैसे तो उसका मन नहीं था, लेकिन वह जानती थी कि इस आइडियल की बात को नज़रअंदाज़ करके वह अपना ही नुकसान करेगी।
खुद को एक शॉल में लपेटे हुए, ज़ेन के कमरे में जाती है तो उसे अजीब लगा। क्योंकि उसने देखा कि ज़ेन अपने बिस्तर पर लेटा हुआ है और उसकी आँखें बंद थीं। ज़ेन जागते हुए जितना आइडियल और डरावना लगता था, सोते हुए वह उतना ही मासूम और निश्छल लगता था। सोते हुए ऐसा लग रहा था जैसे उससे ज़्यादा मासूम इंसान इस दुनिया में है ही नहीं। पर वह कितना मासूम है और उसमें कितनी मासूमियत है, यह बात धानी ने पिछले तीन दिनों में पहचान ली थी।
धानी धीरे-धीरे करके उसके कमरे में दाखिल हुई, लेकिन फिर उसके कदम अपने आप ही रुक गए। वह हैरानी से ज़ेन को देखने लगी। पिछली बार जब वह यहाँ पर आई थी, तो कैसे वह ज़ेन के ऊपर किसी आलू की बोरी की तरह गिर गई थी। और फिर वह थप्पड़... ज़ेन ने अभी तक उसके लिए उसे कुछ नहीं कहा है।
हो सकता है ज़ेन धानी को यहाँ पर उस थप्पड़ का बदला लेने के लिए बुलाया है। यही सोचते हुए धानी के चेहरे पर घबराहट आ गई। तभी कमरे की लाइट जली और वह देखती है कि ज़ेन अपनी जगह पर उठकर बैठ गया है।
धानी उसे देखकर घबरा गई और जल्दी से कहती है, "मारना मत... मारना मत... मैंने जानबूझकर नहीं किया है..."
ज़ेन की भौंहें सिकुड़ गईं और वह गुस्से में धानी को देखते हुए कहता है, "मैं तुम्हें मार रहा हूँ क्या? और किसी को यह बात बोल मत देना, वरना लगेगा कि मैं कितना ज़ालिम इंसान हूँ जो अपनी बीवी पर हाथ उठाता है। और तुम क्या कर रही हो यहाँ मेरे कमरे में? मुझे चैन से सोने भी नहीं देती हो। कल भी तुमने मेरी नींद खराब कर दी थी और अब फिर मेरी नींद खराब कर रही हो।"
धानी घबराते हुए उसे देखकर कहती है, "मैं आपकी नींद क्यों खराब करूँगी जी? मैं तो यहाँ पर आपके बुलाने पर ही आई हूँ, आप ही ने तो मुझे बाथरूम में कहा था कि मेरे कमरे में आओ, अब मैं आ गई हूँ।"
ज़ेन कुछ याद करता है और फिर अपनी आँखें बंद करते हुए गहरी साँस छोड़ता है और कहता है, "हाँ, मुझे याद आया, मैंने कहा था। ठीक है, इधर आओ।"
ज़ेन ने जैसे ही धानी को बुलाया, धानी एकदम से हैरान हो जाती है और वह धीरे से अपने कदम पीछे लेते हुए कहती है, "क्यों जी? मैं क्यों उधर आऊँ? आप मुझे मारेंगे ना?"
ज़ेन का चेहरा गुस्से में भर जाता है और उसने कस के अपनी आँखें बंद करके अपने गुस्से को कंट्रोल करते हुए कहा, "अब अगर एक बार और तुमने यह शब्द कहा ना, तो मेरा इरादा नहीं भी होगा तुम्हें मारने का, तो भी एक हाथ लग जाएगा। इसीलिए चुपचाप से नाटक बंद करो और इधर आओ।"
धानी डर जाती है, लेकिन हिम्मत करते हुए वह धीरे-धीरे ज़ेन के करीब जाती है। वह बेड के पास जाकर खड़ी हो जाती है। ज़ेन उसे बैठने को कहता है। धानी डरते हुए कोने पर बैठ जाती है। लेकिन उसने अपने आप को पूरा एक्टिव मोड में रखा हुआ था कि ज़ेन जैसे ही उसे डराएगा, धमकाएगा या फिर मारेगा, वैसे ही धानी वहाँ से भाग जाएगी। इसलिए उसने अपना एक पैर पहले से ही दरवाज़े की तरफ़ करके खुद को तैयार रखा हुआ था। ज़ेन ने धानी को देखा और घूरकर उसे देखते हुए कहा, "हम शादीशुदा हैं।"
"मुझे पता है जी, बस आप नहीं मानते हैं..." धानी ने उसे घबराते हुए देखकर कहा। ज़ेन उसे घूरकर देखता है और कहता है, "हाँ, मुझे पता है, मैं नहीं मानता हूँ, लेकिन अब मेरी बात ध्यान से सुनो, हम शादीशुदा हैं, मतलब हस्बैंड-वाइफ हैं, और हस्बैंड-वाइफ को एक साथ रहना चाहिए।"
धानी की आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं और वह हैरानी से ज़ेन से कहती है, "यह आप क्या कह रहे हैं? मैं कुछ समझी नहीं। आपने तो खुद मुझे कमरे से बाहर निकाला था ना, तो अब आप चाहते हैं कि मैं आपके साथ आपके कमरे में रहूँ?"
"तुम ऐसा नहीं चाहती हो क्या?" ज़ेन ने उसे देखते हुए कहा। धानी सोच में पड़ जाती है। ज़ेन के सवाल को तो वह समझ गई थी कि ज़ेन उसे एक कमरे में रहने के लिए कह रहा है, लेकिन वह अचानक से यह क्यों कह रहा है?
यह हृदय परिवर्तन उसमें अचानक से आया है या वह कुछ सोच रहा है क्या? वह अभी भी उस थप्पड़ का बदला लेने के बारे में सोच रहा है? लेकिन बाहर सबके सामने वह धानी से बदला नहीं ले सकता है, इसलिए उसने सोचा क्यों ना एक कमरे में रहकर उसे बदला लिया जाए। वह यही सोचते हुए घबरा रही थी और उसने धीरे से ज़ेन को देखते हुए कहा, "नहीं, मैं आपके साथ नहीं रहना चाहती हूँ। मुझे अकेले कमरे में अच्छा लगता है और मैं वहाँ अच्छे से रह भी रही हूँ। मुझे अब आपके साथ आपके कमरे में नहीं रहना।"
उसकी बात सुनकर ज़ेन के चेहरे पर सिकन आ जाती है और वह अपने कोल्ड वॉइस में उसे कहता है, "अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है, तुम मुझे मेरे पैसे वापस कर रही हो।"
धानी उसकी बात सुनकर एकदम से हैरान हो जाती है और कहती है, "पैसे कौन से पैसे? मैंने आपसे कोई पैसे नहीं लिए हैं, आप गलत कह रहे हैं, मैं आपसे ₹1 भी नहीं लिया है।"
"हाँ, तुमने मुझे ₹1 नहीं लिया है, लेकिन मेरे ₹500000 तुमने बर्बाद कर दिए हैं। मेरे विदेशी फूल, ऑर्किड का बगीचा तुमने पूरा का पूरा बर्बाद कर दिया है। इसीलिए तुम्हें मुझे वो पैसे वापस करने होंगे।"
धानी हैरान हो जाती है और उसका चेहरा हैरानी और घबराहट से भर जाता है। वह बस अपनी आँखें फटी हुई ज़ेन को देख रही है। क्या पति है उसका, अपनी बीवी से पैसे मांग रहा है? धानी कहाँ से लाएगी इतने पैसे? वह बस यही सोच रही थी। उसने घबराते हुए ज़ेन को देखकर कहा, "लेकिन मैंने वो पौधे वापस लगा दिए हैं और देखना उनमें से कुछ में से फूल भी निकल आएंगे।"
"सच में? तुम्हें यकीन है?" ज़ेन उससे पूछता है। और उसकी इतनी कॉन्फिडेंस को देखकर धानी और ज़्यादा घबरा जाती है। "सच में, अगर उनमें से फूल नहीं आए तो वो फूल काफी ज़्यादा महंगे थे और धानी ने उन्हें बर्बाद कर दिया है।" वह घबरा जाती है और ज़ेन को देखकर कहती है, "ठीक है, मैंने आपका नुकसान किया है तो मैं इसकी भरपाई भी कर दूँगी। लेकिन अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं, तो मैं इसे आपको बाद में दे दूँगी।"
ज़ेन के चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ जाती है और उसने साइड के ड्रॉअर में से एक पेपर और पेन निकालते हुए कहा, "मेरे पास इससे बेहतर ऑप्शन है।"
ऐसा कहते हुए उसने कागज़ पर कुछ लिखा और जब उसने वह लिख दिया, तो फिर उसने वह कागज़ धानी की तरफ़ बढ़ा दिया।
धानी ने हैरानी से उसे कागज़ लिया और फिर उसने पढ़ा तो उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं। उस पर लिखा गया था कि अगर वह ज़ेन के साथ उसके कमरे में रहेगी, तो ज़ेन उसके द्वारा किए गए नुकसान को माफ़ कर देगा। और धानी को इसके बदले कोई पैसा नहीं देना होगा।
धानी यह देखकर एकदम से हैरान हो जाती है और उसकी आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं। वह ज़ेन को देखकर हैरानी से कहती है, "आप चाहते हैं कि आपको पैसे देने के बदले में आपके कमरे में रहूँ?"
ज़ेन एटीट्यूड के साथ अपने दोनों हाथ बाँधता है और फिर मुस्कुराते हुए कहता है, "बिलकुल सही समझा तुमने, मतलब कि तुम बेवकूफ़ नहीं हो, मेरे कहे हुए शब्दों का मतलब समझ सकती हो। मैं यही चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहो, इसके बदले तुम्हें मुझे मेरे ऑर्किड के पैसे नहीं देने होंगे। आज रात है तुम्हारे पास सोचने के लिए, कल सुबह मुझे जवाब चाहिए।"
अगली सुबह...
धानी हैरानी से हाल के सोफ़े पर बैठी हुई थी और वह ज़ेन के बारे में ही सोच रही थी। कल रात ज़ेन ने उसे जो कुछ कहा था करने के लिए, वह सुनकर तो उसकी हालत खराब हो गई थी। अब उसे पता नहीं चल रहा था कि उसे क्या करना है और क्या नहीं।
वह यह सब सोच रही थी कि तभी दरवाज़े से उसे प्रमिला मैम की आवाज़ आती है, "धानी!"
मैम की आवाज़ सुनकर धानी एकदम से चौंक जाती है और पलट कर देखती है तो प्रमिला मैम उसके आश्रम की एक दोस्त, सुमन के साथ वहाँ खड़ी थीं। उन दोनों के हाथों में बड़े-बड़े पैकेट थे। लेकिन धानी की नज़र प्रमिला मैम और सुमन पर जाती है, वह जल्दी से दौड़कर प्रमिला मैम के पास आती है। प्रमिला मैम उसे गले लगा लेती हैं।
धानी बहुत ज़्यादा इमोशनल हो जाती है। देखा जाए तो एक तरीके से प्रमिला मैम ही तो उसका परिवार थी और अनाथ आश्रम के लोग उसे बढ़ाकर, उसके लिए और कौन सोचेगा? उसकी आँखों से आँसू आ गए थे। प्रमिला मैम उसे संभालते हुए कहती है, "धानी, तुम रो क्यों रही हो? हम यहाँ पर तुमसे मिलने इसलिए थोड़ी ना आए ताकि तुम्हारे आँसू देख सकें। और देखो, मैं तो सुमन को भी अपने साथ लाई हूँ, यह तुम्हारी शादी में नहीं थी ना? इसलिए जब आश्रम वापस आई तो मैं सबसे पहले इसे तुमसे मिलवाने के लिए लेकर आई हूँ।"
धानी मुश्किल से अपने आँसू रोकती है और मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है। वह प्रमिला मैम और सुमन को लेकर अंदर आती है और प्रमिला मैम वह सारा सामान सोफ़े पर रखते हुए कहती है, "धानी, यह तुम्हारे और दामाद जी के लिए है। आश्रम की तरफ़ से सब लोगों ने तुम्हें शादी का तोहफ़ा दिया है।"
धानी ने जब इतने सारे पैकेट देखे तो हैरानी से कहती है, "मैम, प्लीज़ यह सब लाने की क्या ज़रूरत थी? आप लोगों ने वैसे ही शादी में बहुत कुछ किया है, अब इन सब की कोई ज़रूरत नहीं है। प्लीज़ मैम, आगे से आप कोई गिफ़्ट अपने साथ लेकर नहीं आएंगी, वरना मैं नाराज़ हो जाऊँगी।"
प्रमिला मैम मुस्कुराते हुए कहती है, "अच्छा, ठीक है, नहीं लाऊँगी आज के बाद तुम्हारे लिए आश्रम की तरफ़ से कोई गिफ़्ट, लेकिन फिर भी खाली हाथ लड़की के घर नहीं आया जाता है... अच्छा, यह सब छोड़ो और यह बताओ, तुम्हारे पति कहाँ हैं? मैं यहाँ उनसे मिलने आई हूँ, मुझे आश्रम की तरफ़ से उनसे कुछ बात करनी है।"
धानी कहती है, "मैम, अभी तो यह सो रहे होंगे, इनकी तो सुबह ही 10:00 बजे होती है... आप कहें तो मैं उठा देती हूँ।"
लेकिन प्रमिला मैम ने जल्दी से कहा, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं तो आराम से तुम्हारा घर देखकर जाऊँगी। हमें अभी जाने की कोई जल्दी नहीं है। तो तुम अभी उन्हें सोने दो।"
तभी तक बेला वहाँ पर चाय लेकर आ जाती है। चाय ट्रे टेबल पर रखी तो धानी कहती है, "बेला दीदी, आप मैम को घर दिखा दीजिए, तब तक मैं सुमन के साथ बातें करती हूँ।"
बेला मुस्कुराते हुए सिर हिलाती है और प्रमिला मैम बेला के साथ घर देखने के लिए चली जाती है। तभी सुमन खुद आते हुए धानी के पास आती है और उसके बगल में बैठते हुए कहती है, "अरे बातें तो होती रहेंगी, सबसे पहले तो यह बताओ कि सुहागरात पर क्या-क्या हुआ था?"
सुमन धानी के सामने बैठी हुई थी और वह एक्साइटेड होते हुए धानी से कह रही थी, "अरे यार, बातें तो होती रहेंगी, पहले तो मुझे यह बता तेरी सुहागरात कैसी थी?"
सुहागरात का जिक्र सुनते ही धानी के रोंगटे खड़े होने लगे। अपनी और जेन की शादी की पहली रात को याद करते हुए धानी का पूरा चेहरा एक बार फिर से उन यादों में गिर गया था, और वह घबराहट एक बार फिर से महसूस करने लगी थी जो उसे जेन के कमरे में मिलने और उसे पूरी रात बालकनी में सोने पर मजबूर करने पर हुई थी। यह सब याद करते ही धानी की आँखों के सामने फिर से वही सब आने लगा। धानी को कुछ ना बोलते देख सुमन खुद ही उसे हिलाते हुए कहती है, "अरे, क्या हुआ? बोल क्यों नहीं रही है?"
अचानक से धानी होश में आई और सुमन की तरफ देखने लगी। वह जल्दी से ना में सर हिलाते हुए कहती है, "नहीं-नहीं, मैं कुछ नहीं सोच रही थी।"
सुमन ने उसके कंधे से अपना कंधा मारा और शरारती अंदाज़ में कहा, "अच्छा जी, मुझसे झूठ बोल रही है। सच बताना, तू अपनी सुहागरात के बारे में सोच रही है? कैसे जीजा जी ने आकर तुझे पूरी रात परेशान किया होगा। यही सोचते-सोचते तो फिर से उन्हें ख्यालों में खो गई है ना? अच्छा चल, अब जल्दी से मुझे बता, उस रात क्या-क्या हुआ था?"
धानी घबराते हुए बोली, "नहीं, तू जैसा सोच रही है वैसा कुछ भी नहीं हुआ था।"
सुमन उसकी बात पर हंसते हुए कहती है, "अरे यार, मैं तो कुछ सोची ही नहीं हूँ। मेरा दिमाग तो इन सब मामलों में काम ही नहीं करता है। मैं तो तेरे कुछ कहने का इंतज़ार कर रही हूँ ताकि तू मुझे जो बताए फिर मैं सोचूँ कि क्या सब हो सकता है। जल्दी-जल्दी बता, कहाँ से शुरू हुआ था?"
धानी घबरा गई थी और घबराते हुए सुमन को देख रही थी। उसने फिर से याद करने की कोशिश की। उसे याद आया, जेन कमरे में आया था। वह घबराते हुए सुमन को देखकर कहती है, "वो उस रात पहले वो कमरे में आए थे।"
इस बार सुमन एक्साइटेड होते हुए कहती है, "हाँ-हाँ, सबसे पहले तो कमरे में ही आएंगे। जो कुछ होगा, कमरे में आने के बाद ही होगा ना। उसके आगे क्या हुआ, वह बता।"
उसके बाद धानी खोए हुए खयालों में हैरानी से उस रात की सोच में जाते हुए कहती है, "उसके बाद वो मेरे पास आए और उन्होंने मेरी कलाई पकड़ ली।"
"ओ माय गॉड! जीजू ने तेरी कलाई पकड़ ली? उसके बाद क्या हुआ?" सुमन एक्साइटेड होते हुए पूछ रही थी, और धानी सिर्फ यही सोच रही थी कि वह आगे क्या बताए। कलाई पकड़कर जेन उसे सीधे बालकनी में ले गया और वहाँ जाकर छोड़ दिया। पूरी रात धानी ने ठंडी आसमान के नीचे गुजारी थी। वह हैरानी से सुमन को देख रही थी, पर इससे पहले कि वह उसके आगे कुछ कह पाती, पीछे से जेन की दमदार और दिल दहला देने वाली आवाज आती है।
"थ्योरी क्या सुन रही हैं, साली साहिबा? आप कहें तो मैं प्रैक्टिकल करके दिखा देता हूँ।"
जेन को देखकर सुमन और धानी, दोनों की आँखें एकदम से बड़ी हो जाती हैं और दोनों अपनी जगह से खड़ी हो जाती हैं। दोनों के चेहरे पर ही घबराहट आ रही थी। हालाँकि सुमन के चेहरे पर हल्की घबराहट थी, पर धानी... उसकी तो हालत पूछो ही मत। चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया था। जेन उसे घूमती हुई नज़रों से देख रहा था।
तभी वहाँ पर बेला और प्रमिला मैडम आती हैं। प्रमिला मैडम जेन को देखकर कहती हैं, "जेन बेटा, आप उठ गए? मैं आपसे मिलने के लिए यहाँ आई हूँ। दरअसल, आपके दादाजी का फ़ोन आया था। उन्होंने आश्रम के लिए मुझसे आपसे बात करने को कहा है। दरअसल, आश्रम में कुछ सामान की ज़रूरत है, जिसके लिए मैं लिस्ट लेकर आई हूँ।"
जेन की घूरती हुई नज़र अभी भी धानी के ऊपर थी, पर उसने धीरे से सर हिलाते हुए कहा, "जी बिल्कुल। आपको आश्रम के लिए जो कुछ भी चाहिए, उसकी लिस्ट आप मेरे असिस्टेंट को दे दीजिएगा। वह सामान पहुँचा देगा।"
धानी के चेहरे पर घबराहट अभी भी थी। बेला ने प्रमिला मैडम से कहा, "मैडम, ब्रेकफ़ास्ट तैयार है। आप लोग नाश्ता करके जाइए।"
इस पर प्रमिला मैडम कहती हैं, "नहीं, बेला जी। हम कुछ नहीं खाएँगे। बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते हैं।"
इस पर जेन कहता है, "ये सब पुरानी बातें हैं। मैं इन सब को नहीं मानता हूँ। और जहाँ तक मुझे लगता है, आप यहाँ पर आश्रम के काम के लिए आई हैं। अगर सच में आप बेटी का घर मानते हुए आई हैं, तो फिर आपको आश्रम के बारे में यहाँ पर बात करने की ज़रूरत नहीं थी। आप यहाँ पर आश्रम को रिप्रेज़ेंट कर रही हैं, तो मुझे नहीं लगता कि यह बेटी के घर वाला डायलॉग यहाँ पर सूट करता है। ब्रेकफ़ास्ट तैयार है, लीजिए ब्रेकफ़ास्ट कर लीजिए।"
इस पर धानी ने भी जल्दी से सुमन का हाथ पकड़ते हुए उसे डाइनिंग टेबल की तरफ़ ले जाते हुए कहा, "जी मैडम, चलिए ना। साथ में ब्रेकफ़ास्ट करते हैं। बहुत दिन हो गए मैं आप लोगों के साथ बैठकर खाना खाते हुए बातें नहीं करी हूँ। चलिए, चलकर ब्रेकफ़ास्ट करते हैं। बेला, चलो जल्दी-जल्दी नाश्ता लगाओ।"
धानी का मन तो था कि डाइनिंग टेबल पर बैठकर बहुत सारी बातें करेगी, लेकिन उसका सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ जेन के ऊपर था। और जेन की गुस्से भरी निगाहें देखकर तो धानी के गले के नीचे खाना ही नहीं उतर रहा था। लेकिन उन दोनों को ऐसा देखकर सुमन को बड़ा मज़ा आ रहा था।
नाश्ता करने के बाद सब लोग दरवाज़े पर खड़े थे। दरअसल, प्रमिला मैडम और सुमन जा रही थीं। प्रमिला मैडम से मिलने के बाद धानी सुमन के गले लगती है। सुमन उसके गले लगते हुए धीरे से उसके कान में कहती है, "आज तो मौका नहीं मिला, लेकिन जब तुम आश्रम आओगी ना, तब मुझे डिटेल में बताना कि तुम्हारी सुहागरात पर क्या हुआ।"
प्रमिला मैडम सुमन को लेकर वहाँ से चली जाती हैं। और उनके जाने के बाद वहाँ पर सिर्फ़ जेन और धानी ही थे। जिसके बाद जेन ने घूरते हुए धानी की तरफ़ देखा। तो धानी जल्दी से अपनी साड़ी को संभालते हुए सीढ़ियों की तरफ़ दौड़ जाती है।
और उसे इस तरीके से भागता देख जेन अपने मन में कहता है, "जहाँ मर्ज़ी, वहाँ भाग लो, लेकिन जेन मालवीय से बच नहीं पाओगी।"
धानी वहाँ से भाग गई थी और ज़ेन बस उसे घूरता हुआ देख रहा था। इसके बाद ज़ेन वहाँ से ऑफिस निकल गया। दरअसल, उसने कुछ प्लान किया था, जिसके लिए उसे रात का इंतज़ार करना था। रात को जब वह घर वापस आया, तो धानी हाल में नज़र नहीं आई। ज़ेन के चेहरे पर एक डेविल स्माइल थी। उसने एक नज़र बेला को देखा। बेला ने घबराते हुए हाँ में सर हिलाया। दरअसल, हुआ कुछ ऐसा था कि ज़ेन के ऑफिस जाने के बाद बेला धानी के कमरे में गई थी और उसे एक लिस्ट पकड़ाई थी। यह वही लिस्ट है जो धानी को आज सारे दिन घर पर रहकर करना था।
जब धानी ने वह लिस्ट पढ़ी, तो वह हैरान हो गई। इसमें पर्दों की सफ़ाई, सोफ़े के कुशन कवर और टेबल कवर की सफ़ाई, अलमारी और उसमें मौजूद कपड़ों की सफ़ाई और जो कपड़े लॉन्ड्री बास्केट में हैं, उनकी सफ़ाई अलग से करनी थी। यहाँ तक कि ज़ेन के कोट, टाई, पैंट और जुराबों तक को ठीक से साफ़ करके अपनी-अपनी जगह पर लगाना था।
सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह थी कि धानी को ज़ेन की अलमारी, ड्रेसिंग टेबल और बालकनी में लगे घरेलू सामान की भी सफ़ाई करनी थी। पूरा दिन धानी का इसी में चला गया। वह सुबह से ही ज़ेन के कमरे की सफ़ाई कर रही थी और इतनी सफ़ाई करने के बावजूद उसकी हालत ख़राब हो गई थी। लेकिन शाम को उसकी हालत तब ज़्यादा ख़राब हो गई, जब बेला ने उसे कहा कि उसे ज़ेन के लिए खाना बनाना है। वह हैरानी से बेला को देख रही थी क्योंकि उसे पता था कि ज़ेन कभी भी उसके हाथ का बना खाना नहीं खाएगा। उसने पहले ही कहा था कि धानी अच्छा खाना नहीं बनाती। पकौड़ों की बात अलग थी।
ज़ेन को पकौड़े पसंद थे। वह तो सड़क पर मिलने वाले पकौड़े भी खा लेता था, फिर घर का कैसे छोड़ देता। लेकिन खाने के लिए उसे खाना चाहिए था। जब धानी ने वह लिस्ट देखी तो उसकी आँखें और ज़्यादा बड़ी हो गईं। लिस्ट में लिखा था कि ज़ेन को तला हुआ खाना नहीं देना है। उसे उबला हुआ खाना ही पसंद है। उसका खाना हमेशा डाइट-कॉन्सेप्ट वाला होना चाहिए। ज़्यादा कैलोरीज़ वाला खाना वह नहीं खाता, ज़्यादा मीठा पसंद नहीं है और तीखा तो बिलकुल खाया नहीं जाता। नमक उसके खाने में होना नहीं चाहिए और तेल से उसे सख्त नफ़रत है।
खाने के इतने सारे नखरों की लिस्ट देखकर धानी हैरानी से अपना सर पीट लेती है और कहती है, "इस इंसान को खाने में दूँ क्या? हवा? तेल नहीं डालूँगी, मसाले नहीं डालूँगी, नमक नहीं डालूँगी तो खाना कैसे बनाऊँ? और तड़का क्या मैं पानी में लगाऊँगी?"
इतनी परेशानियों में घिरी रहने के बावजूद उसे अपने घर में एक उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी—वह थी बेला। बेला को देखकर उसने अपनी रिक्वेस्टिंग भरी नज़रों से देखा। बेला की हँसी छूट गई। वह हाँ में सर हिलाती है क्योंकि काफ़ी समय से वही ज़ेन के लिए खाना बना रही थी। इसीलिए उसने धानी की खाना बनाने में मदद की।
धानी यह देखकर हैरान हो गई कि ज़ेन यह सब उबली और कच्ची सब्ज़ियाँ कैसे खा लेता है। लेकिन फिर भी जैसा खाना ज़ेन को पसंद है और वह बस भरपेट खाना खा ले, इससे बड़ी संतुष्टि धानी के लिए और क्या हो सकती थी। उसने ना चाहते हुए भी बेला के साथ मिलकर वह अजीब-ओ-गरीब तरीके का कॉन्टिनेंटल फ़ूड बनाया और ज़ेन के आने का इंतज़ार करने लगी।
लेकिन तभी हाल में रखा हुआ लैंडलाइन बजने लगा। उसे पता था इस वक़्त कौन कॉल कर सकता है। वह मुस्कुराते हुए लैंडलाइन के पास जाती है और फ़ोन उठाते हुए कहती है, "नमस्ते, दादाजी! आप पहुँच गए केदारनाथ?"
सामने से दादाजी मुस्कुराते हुए कहते हैं, "धानी बेटा, तुम्हें पता था मैं फ़ोन करूँगा?"
"जी दादाजी, मुझे पता था आप फ़ोन ज़रूर करेंगे। कल पूरा दिन आपने मुझसे बात नहीं की और ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप मुझसे दो दिन से ज़्यादा बात किए बिना रह जाएँ।"
दादाजी हँसते हुए कहते हैं, "चलो, अच्छी बात है। पोता तो आज तक समझ नहीं पाया, बहू ने आने के दो दिन बाद ही समझ लिया है। हाँ बेटा, मैं केदारनाथ पहुँच गया हूँ और दर्शन भी बहुत अच्छे से हो गए हैं। अच्छा बेटा, मुझे तुमसे एक बात कहनी है। ज़ेन है क्या वहाँ पर?"
धानी जल्दी से कहती है, "नहीं दादाजी, वह तो अभी तक ऑफिस से घर नहीं आए हैं। मैं उनका इंतज़ार कर रही हूँ। आप बताइए, क्या बात है?"
दादाजी कहते हैं, "दरअसल, बात ऐसी है कि मेरा चचेरा भाई कल घर आ रहा है। वह तुमसे और ज़ेन से मिलना चाहता है। दरअसल, उसे शादी पर इनवाइट किया था, लेकिन कुछ फैमिली इश्यू की वजह से वह शादी पर आ नहीं पाया था। क्योंकि मुझे अभी आने में एक हफ़्ता और लगेगा, इसीलिए मैं चाहता हूँ कि तुम उसकी अच्छे से देखभाल करो। और हाँ, उसे मुझसे अलग मत समझना। उसे ज़ेन के बारे में और तुम्हारे बारे में सब पता है। लेकिन फिर भी ज़ेन थोड़ा सा बेरुख़ा है। मुझे पता है वह नालायक है, लेकिन मेरी बहू तो समझदार है। मुझे पता है मेरी धानी बेटा इस बात को ज़रूर संभाल लेगी। एक बात याद रखना बेटा, घर के अंदर जो भी मनमुटाव हो, वह घर वालों के सामने ही रहने चाहिए। बाहर वालों को इस बात की खबर नहीं होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना कि मेरे भाई को इन सब बातों का पता ना चल पाए।"
धानी सोच में पड़ जाती है। एक तो ज़ेन के लिए उसका रवैया वैसे ही बेरुख़ा है, ऊपर से घर में बड़े दादाजी के चचेरे भाई आ रहे हैं। मतलब उनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। लेकिन ज़ेन जिस तरीके से उसके साथ बर्ताव करता है, वह कैसे बाहर वालों के सामने इस रिश्ते की सच्चाई छुपा पाएगी?
पर जैसे भी हो, दादाजी ने उस पर भरोसा किया है। वह मुस्कुराते हुए कहती है, "फ़िक्र मत कीजिए, दादाजी। मैं सब संभाल लूँगी। आप बस अपनी यात्रा पूरी कीजिए।"
उसने सोचा, ज़ेन से इस बारे में आराम से बात करेगी। लेकिन तभी उसे याद आया कि ज़ेन ने उसके सामने एक दिन की शर्त रखी थी कि उसे आज रात तक ज़ेन को यह बताना होगा कि वह उसके साथ उसके कमरे में रहेगी या नहीं। और यह सोचकर धानी की हालत और ज़्यादा ख़राब हो जाती है।
मतलब, एक तरफ़ कुआँ और दूसरी तरफ़ खाई। वह जल्दी से अपने कमरे में चली जाती है। अपनी साड़ी चेंज करके उसने हल्का सूट और प्लाज़ो पहन लिया। अपने दुपट्टे को गले में लपेटे हुए वह पूरे कमरे में चक्कर लगाने लगी और यही सोच रही थी कि ज़ेन को क्या जवाब देगी।
एक तरफ़ बड़े दादाजी के भाई का घर पर आना, और दूसरी तरफ़ ज़ेन की शर्त। धानी तो पागल हो रही थी। लेकिन तभी उसे ज़ेन की गाड़ी की आवाज़ सुनाई देती है और इसी के साथ उसका दिल जोर से धड़कने लगता है। वह जल्दी से अपने बेड पर चढ़ जाती है और आँखें बंद करके लेट जाती है ताकि ज़ेन को लगे कि वह सो गई है। उसे एक दिन का टाइम और मिल जाएगा। "कल दादाजी के भाई के आने के बाद जो होगा देखा जाएगा। लेकिन फ़िलहाल, मुझे ज़ेन के साथ उसके कमरे में नहीं जाना है," उसने मन में सोचा।
तभी उसे दरवाज़े के पास जूतों की आवाज़ आती है और वह जल्दी से अपनी आँखें कसकर बंद कर लेती है। दरवाज़ा खुलने की आवाज़ धानी को सुनाई देती है और उसके अंदाज़ के मुताबिक़, दरवाज़े पर ज़ेन ही खड़ा था।
ज़ेन ऑफिस से सीधे लिविंग रूम में उतरा और धानी के कमरे में ही आ गया। जब उसने धानी को इस तरीके से देखा तो समझ गया कि धानी सो नहीं रही है बल्कि सोने का नाटक कर रही है।
धानी भी कम नौटंकीबाज नहीं थी। बेड पर लेटते ही वह ऐसी रिएक्ट कर रही थी जैसे नींद की पूरी बोतल पीकर सो चुकी हो। ना उसके शरीर में कोई हरकत हो रही थी और ना ही एक्सप्रेशन बदल रहे थे।
ज़ेन को यह सब देखकर हँसी आ गई। वह धीरे-धीरे करते हुए धानी के करीब आया और ठीक उसके सामने बैठ गया। उसने बिलकुल भी आवाज़ नहीं की। दो मिनट तक जब धानी को लगा कि ज़ेन शायद कमरे में आकर वापस चला गया है, तब उसने धीरे से अपनी एक आँख खोलकर दरवाज़े की तरफ़ देखा।
जब उसने देखा कि दरवाज़े पर कोई नहीं है तो उसने सुकून भरी गहरी साँस छोड़ी और करवट लेते हुए सीधी हो गई। लेकिन जैसे ही उसने बेड के दूसरी तरफ़ खड़े ज़ेन को देखा, तो तुरंत अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं।
"मुझे पता है तुम सो नहीं रही हो, सोने का नाटक कर रही हो। ओपन योर आइज़," ज़ेन ने सख्त लहज़े में कहा।
धानी को समझ आ गया कि उसकी चोरी पकड़ी गई है। वह तुरंत अपनी आँखें खोलकर उठकर बैठ गई और ज़ेन को अपनी टिमटिमाती नज़रों से देखने लगी।
ज़ेन किसी खडूस इंसान की तरह उसके सामने खड़ा था। उसने अपने दोनों हाथ बाँधते हुए कहा, "क्या कह रही थी तुम अपनी दोस्त से? क्या किया था मैंने तुम्हारे साथ सुहागरात पर?"
धानी के तो छक्के छूट गए। उसे लगा जैसे इस कमरे में भी उसे पसीना आ रहा है। वह घबराते हुए जल्दी से बोली, "न... नहीं जी, मैं तो उसे कुछ भी नहीं कह रही थी। वह तो वह ही थी जो बोले जा रही थी। मेरा यकीन मानिए, मैंने उसे कुछ नहीं कहा।"
ज़ेन उसे घूरते हुए कहता है, "अच्छा, इसका मतलब जो मैंने सुना वह गलत था? तुम अपनी दोस्त से यह नहीं कह रही थीं कि कैसे मैं कमरे में आया और तुम्हारा हाथ पकड़ा?"
धानी ने फट से जवाब दिया, "हाँ तो! इसमें गलत क्या है? आप कमरे में आए तो थे और आपने मेरा हाथ भी पकड़ा था। लेकिन उसके आगे मैंने उसे कुछ नहीं कहा। और ना ही मेरा इरादा उसे कुछ बताने का था। वैसे भी मैं उसे क्या बताती, जब हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं तो मैं उसे क्या बोलती।"
ज़ेन ने उसकी बात सुनकर गहरी साँस ली और थोड़े गुस्से में बोला, "तो तुम चाहती हो कि हमारे बीच कुछ हो?"
धानी ने हैरानी से उसकी तरफ़ देखा और मासूमियत से पूछा, "हमारे बीच क्या होगा? क्या हो सकता है? जब से मैं इस घर में आई हूँ, हमारे बीच झगड़े के अलावा कुछ भी नहीं हो रहा।"
ज़ेन उसकी बात सुनकर अचानक झुका और उसकी कमर पकड़कर उसे खींच लिया। धानी को संभलने का मौक़ा तक नहीं मिला। अब वह ज़ेन के एकदम करीब थी, इतनी करीब कि उसकी साँसें महसूस हो रही थीं।
उसने चौड़ी आँखों से ज़ेन को देखा। उसका मुँह खुला का खुला रह गया था। ज़ेन ने अपनी एक बाजू उसकी कमर के चारों ओर लपेटी हुई थी। वह उसकी आँखों में गहराई से देखता हुआ बोला, "तुम चाहो तो बहुत कुछ हो सकता है हमारे बीच। लेकिन इसके लिए तुम्हारा चाहना ज़रूरी है। क्या तुम ऐसा चाहती हो?"
धानी की घबराहट बढ़ गई। उसने हल्के काँपते हुए पूछा, "कैसा... कैसा जी?"
ज़ेन ने अपनी डेविल स्माइल के साथ उसकी आँखों में देखते हुए जवाब दिया, "सोना चाहती हो मेरे साथ?"
यह सुनते ही धानी का चेहरा एकदम लाल पड़ गया। उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या जवाब दे। उसकी नज़रें झुकीं और आवाज़ धीमी पड़ गई।
"यह आप क्या कह रहे हैं... मैं... मैं..." उसने अटकते हुए कहा।
ज़ेन ने उसकी ठुड्डी को हल्के से पकड़कर ऊपर उठाया और उसे देखने पर मजबूर करते हुए कहा, "मैंने सीधा सवाल किया है। हाँ या ना?"
धानी ने काँपते हुए कहा, "मुझे... मुझे नहीं पता।"
ज़ेन ने उसकी बात सुनकर एक पल के लिए उसकी तरफ़ देखा। फिर हल्की हँसी के साथ बोला, "ठीक है। तुम चाहो तो इस बारे में सोच सकती हो लेकिन पहले मेरे कमरे में आओ मुझे तुमसे ज़रूरी बात करनी है।"
यह कहकर उसने उसे धीरे से छोड़ा और कमरे से बाहर चला गया। धानी वहीं बेड पर बैठी रह गई। उसका दिल इतनी जोर से धड़क रहा था कि उसे लगा, वह बाहर निकल आएगा।
ज़ेन के जाने के बाद उसने गहरी साँस ली और अपने दिल को संभालने की कोशिश की। लेकिन उसके दिमाग में ज़ेन के शब्द गूंज रहे थे। "सोना चाहती हो मेरे साथ?
ज़ेन अपने कमरे के सोफे पर बैठा हुआ था। धानी उसके सामने खड़ी थी, घबराई हुई। ज़ेन ने उसे कमरे में बुलाया था। जैसे ही धानी आई, ज़ेन ने फिर से पूछा, "क्या तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहोगी?" धानी परेशान थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ज़ेन उसे क्यों रखना चाहता है। तभी उसका एक्सप्रेशन बदल गया। वो हैरानी से ज़ेन को देखने लगी।
ज़ेन ने उसके चेहरे का भाव देखा। उसे समझ आ गया कि इस बेवकूफ लड़की के छोटे से दिमाग में क्या चल रहा होगा। उसने आँखें बंद कीं और चिड़चिड़ेपन से कहा, "ज्यादा दिमाग चलाने की ज़रूरत नहीं है। मुझे तुममें कोई इंटरेस्ट नहीं है।"
"इंटरेस्ट नहीं है...? तो मैंने कब कहा मुझमें इंटरेस्ट दिखाइए? मैं तो बस ये कह रही थी कि आप क्या चाहते हैं? मैं आपके कमरे में कहाँ रहूँ? आपको तो पसंद नहीं ना कि कोई आपकी चीज छुए, तो फिर मैं कैसे यहाँ रह सकती हूँ?" धानी हैरानी और मासूमियत से बोली।
ज़ेन ने कहा, "हाँ, कोई भी मेरी चीज छूता है तो मुझे वो चीज बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है। लेकिन तुम्हारे लिए मैं एडजस्ट कर सकता हूँ। और जहाँ तक बात रही है रहने की, तो तुम मेरे बेड पर सो सकती हो।"
धानी हैरानी से ज़ेन के बेड को देख रही थी। उनकी सुहागरात पर ये बेड कितनी अच्छी तरीके से फूलों से सजा हुआ था, लेकिन अब यहाँ पर सिर्फ़ चादर के अलावा कुछ भी नहीं था। वो हैरानी से इतने बड़े बेड को देखती है और फिर ज़ेन से कहती है, "तो क्या हम दोनों बेड पर सोएँगे?"
"क्यों, तुम्हें बेड पर नहीं सोना है क्या?" ज़ेन ने कहा।
धानी घबराते हुए बोली, "नहीं, ऐसी बात नहीं है। बेड पर ही सोना है। लेकिन आप और मैं बेड पर सोएँगे तो क्या हम दोनों एक साथ सोएँगे? पर ऐसा कैसे हो सकता है? आपने अभी-अभी तो कहा कि आपको मुझमें कोई इंटरेस्ट नहीं है।"
ज़ेन ने अपना सर पकड़ लिया। "कहाँ दीवार पर सर मारूँ जाके..." ज़ेन मन ही मन सोचता रहा।
धानी ने कहा, "ठीक है, ठीक है। आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। मैं समझ गई। हम दोनों को बेड पर सोना है लेकिन बीच में तकिया की दीवार बनानी है ताकि हम दोनों एक-दूसरे को टच न कर सकें।"
ज़ेन ने गहरी साँस छोड़ी, अपनी जगह से खड़ा हुआ और कहा, "जो करना है करो, बस जाकर चुपचाप सो जाओ। वरना तुमने जो मेरा बगीचा बर्बाद किया है, उसके पैसे मैं बहुत अच्छी तरीके से वसूल करूँगा।"
धानी एकदम से घबरा गई और जल्दी से बेड पर चढ़ गई। वो अपने कमरे से दवाई खाकर आई थी। इसलिए बिस्तर पर लेटते ही दवाइयों के असर से उसे जल्दी नींद आ गई। ज़ेन की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं। लड़की उसके बिस्तर पर आराम से सो गई। और वो भी इतनी जल्दी? क्या लड़की है या कुंभकरण?
एक ड्रिंक लेने के बाद ज़ेन बालकनी में चला गया। वहाँ बालकनी की रेलिंग से लगकर उसने सिगरेट के कश लेने शुरू कर दिए। लेकिन उसकी निगाहें अपने बिस्तर पर सो रही धानी पर ही थीं। उसकी निगाहें इस वक़्त सख्त हो रही थीं। उसने एक नज़र अपने घर के मेन दरवाज़े की तरफ़ देखा, जहाँ सिक्योरिटी ने अभी-अभी दरवाज़ा खोला था और एक गाड़ी घर के अंदर दाखिल हुई थी। गाड़ी देखकर ज़ेन के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कान आ गई।
वो अपनी सिगरेट वहीं फेंक देता है और जल्दी से कमरे के अंदर आ जाता है। बिस्तर के पास आकर लेट जाता है और सबसे पहले उन दोनों के बीच में रखी तकिया की दीवार को हटाता है। ज़ेन धीरे से धानी की चादर में घुस गया और उसने अपना एक हाथ धानी के शोल्डर पर डाल दिया। ये सब करने के बाद ज़ेन ने अपनी आँखें बंद कर लीं और जो होने वाला था, उसके लिए तैयार होने लगा।
2 मिनट बाद ही उसके कमरे का दरवाज़ा खुलता है और एक शख्स कमरे में झाँकने लगता है। लेकिन जब उसने बेड पर सो रहे दो लोगों को देखा, तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है। वो जल्दी से अपना फ़ोन निकालता है और उन दोनों की एक तस्वीर अपने फ़ोन के कैमरे से खींच लेता है।
उसने धीरे से कमरे का दरवाज़ा बंद किया ताकि उन दोनों की नींद ख़राब न हो। जैसे ही वो शख्स बाहर आता है, उसने तस्वीर को एक नंबर पर सेंड करते हुए लिखा, "सब कुछ ठीक है, दादाजी।"
कमरे का दरवाज़ा बंद होते ही ज़ेन की आँखें खुलती हैं। वो बंद दरवाज़े को देखकर एक शैतानी मुस्कान देता है। उसके चेहरे पर मिक्स एक्सप्रेशन थे। लेकिन दूसरी बार जब उसने धानी की तरफ़ देखा, तो उसके सारे एक्सप्रेशन बदल गए। वो धानी को हैरानी से देख रहा था। ये छोटी सी लड़की उसके बेड पर ऐसे सो रही थी जैसे कि ये उसी का बेड हो।
वैसे देखा जाए तो ज़ेन को इसके पास थोड़ा सुकून भी मिल रहा था। धानी के शरीर से एक भीनी-भीनी सी खुशबू आ रही थी। ज़ेन को पता नहीं कि ये कौन सा परफ़्यूम है। कोई परफ़्यूम है भी या ये कपड़े धोने वाले साबुन की खुशबू है। पर ये जो भी है, बहुत मीठी और बहुत आकर्षक है। ज़ेन एक पल के लिए धानी के छोटे से चेहरे को देखता रह जाता है।
लेकिन अगले ही पल ज़ेन ने खुद को कंट्रोल किया और अपने हाथों से धानी की कमर को धकेलते हुए उसे बेड से नीचे गिरा दिया। धानी गहरी नींद में थी लेकिन बेड से नीचे गिरने की वजह से वो संभल नहीं पाई और हड़बड़ाते हुए खड़ी हो जाती है। वो घबराकर इधर-उधर देखती है और जब उसकी नज़र ज़ेन पर जाती है, तो वो डरते हुए कहती है, "क्या हुआ जी?"
"बाहर निकलो!" ज़ेन ने बेरुखी से कहा।
धानी हैरानी से उसे देखती रह जाती है। अब तक तो ज़ेन उसे अपने करीब लाने की कोशिश कर रहा था। उसने उसे अपने बेड पर सोने के लिए खुद ही कहा था। लेकिन अब जब वो उसके बेड पर आराम से सो रही थी, तो उसे धक्का मारकर जमीन पर गिरा दिया और अब उसे बाहर जाने के लिए भी कह रहा है।
धानी की आँखों से आँसू आ गए थे। वो हैरानी से ज़ेन को देखकर बोली, "क्यों जी, क्या हुआ? मैंने तो कुछ भी नहीं किया। मैं तो बस आराम से सो रही थी।"
"अगर तुम्हें सोना है तो कमरे के बाहर जाकर आराम से सो, पर मेरे कमरे में नहीं। तुम्हारी मौजूदगी से मुझे घुटन हो रही है," ज़ेन ने एकदम बेरुखी और शक्ति भरे अंदाज में कहा। धानी की आँखों में सिर्फ़ सवाल और आँसू थे। लेकिन वो ज़ेन से क्या सवाल करती?
ज़ेन ने चादर को पूरा अपने सिर के ऊपर तान लिया और पीठ के बल घूमकर सो गया। धानी बस हैरानी से उसे देखती रह जाती है। वो जल्दी से अपनी जगह पर खड़ी होती है और धीरे-धीरे करके कमरे से बाहर चली जाती है।
अगले दिन सुबह
धानी बेला जी के बताए गए तरीके के हिसाब से नाश्ता बना रही थी। लेकिन उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ज़ेन कल रात इतना रूखा क्यों था जबकि उसने खुद ही धानी को कहा था कि वो उसके कमरे में सोएगी, तो फिर वो उसके साथ इस तरीके का बर्ताव क्यों कर रहा था।
लेकिन दूसरी परेशानी धानी के सामने ये थी कि दोपहर के खाने में बड़े दादाजी आने वाले थे। और दादाजी ने उन दोनों को एक अच्छे आदर्श पति-पत्नी की तरह उनके सामने पेश होने के लिए कहा था। लेकिन अब परेशानी की बात तो ये थी कि कल रात के व्यवहार के बाद धानी इस बारे में ज़ेन से कैसे बात करे।
धानी ने नाश्ता बनाया लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी इस नाश्ते को ले जाकर ज़ेन के सामने रखने की। ज़ेन डाइनिंग टेबल पर बैठा हुआ था और ईमेल चेक करते हुए वो नाश्ते का इंतज़ार कर रहा था। धानी ने नाश्ते की ट्रे बेला जी को दी और उनसे कहा कि वो डाइनिंग टेबल पर नाश्ता रख दें। अगर धानी लेकर जाएगी तो ज़ेन शायद खाना नहीं खाएगा।
बेला जाकर डाइनिंग टेबल पर नाश्ते की ट्रे रख देती हैं और ज़ेन आराम से नाश्ता खाने लगता है।
तभी वहाँ पर धानी आ जाती है। उसे ज़ेन से बात करनी थी, इसीलिए वो ज़ेन की तरफ़ देखते हुए कहती है, "मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
ज़ेन के हाथ रुक जाते हैं और वो घूरकर धानी को देखता है। धानी घबराते हुए अपना चेहरा नीचे कर लेती है और एक झिझक के साथ उसने कहा,
"आज दोपहर को बड़े दादाजी आने वाले हैं। क्या हम उनके सामने एक अच्छे पति-पत्नी की तरह नहीं जा सकते हैं?"
ज़ेन नाश्ता कर रहा था। धानी थोड़ी हिचकिचाहट के साथ उसके पास आई और बोली,
"दादाजी ने मुझे फोन किया था। उन्होंने बताया कि उनके चचेरे भाई, यानी बड़े दादाजी, आज हमारे घर खाने पर आ रहे हैं। तो क्या हम उनके सामने एक अच्छे पति-पत्नी की तरह पेश नहीं आ सकते?"
ज़ेन ने नाश्ता करते हुए बेरुखी से कहा,
"नहीं।"
धानी का चेहरा उदासी से भर गया। उसने धीमे से कहा,
"लेकिन क्यों? वो आपके बड़े दादाजी हैं, आपके परिवार का हिस्सा हैं।"
ज़ेन ने ठंडे लहजे में जवाब दिया,
"मुझे इसकी परवाह नहीं है।"
धानी उसे भावशून्य होकर देखती रही। वह हैरान थी कि ज़ेन अपने परिवार के साथ भी इतना बेरुखा हो सकता है। उसने फिर हिम्मत जुटाकर कहा,
"आपने दादाजी से वादा किया था कि हमारे रिश्ते की कड़वाहट बाहर वालों को नजर नहीं आएगी, और रिश्तेदारों को तो बिल्कुल भी नहीं। बड़े दादाजी की उम्र हो चुकी है। अगर उन्होंने हमारे रिश्ते का सच देखा तो उनकी सेहत पर असर पड़ सकता है।"
ज़ेन ने उसकी बात सुनी और अपने चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ बोला,
"ठीक है, मैं तुम्हारे साथ एक दिन के लिए नॉर्मल कपल्स की एक्टिंग कर सकता हूँ, लेकिन इसके बदले तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी।"
धानी ने जल्दी से कहा,
"जो भी कहेंगे, मैं सब करने को तैयार हूँ।"
ज़ेन ने खतरनाक नज़रों से उसकी ओर देखा और कहा,
"ठीक है, तुम्हें इस घर को छोड़कर जाना होगा। बोलो, मंजूर है?"
धानी की आंखें एकदम बड़ी हो गईं। वह अविश्वास में उसे देख रही थी। उनकी शादी अभी कुछ ही दिन पहले हुई थी, और इन दिनों में उसने केवल कठिनाइयाँ ही झेली थीं। लेकिन उसने कभी ज़ेन को छोड़ने के बारे में सोचा भी नहीं था। वह शादी को अपने दिल से स्वीकार कर चुकी थी। उसने हैरानी से कहा,
"ये आप क्या कह रहे हैं? मैं आपको कैसे छोड़कर जा सकती हूँ? मैंने दादाजी से वादा किया है कि आपकी पत्नी होने के नाते मैं आपकी देखभाल करूँगी।"
ज़ेन उसकी बात सुनकर जोर से हंसने लगा।
"क्या तुम्हें लगता है कि मुझे तुम्हारी केयर की ज़रूरत है? तुम्हारे आने से पहले ये घर बेला संभालती थी। वह तुमसे कहीं ज़्यादा एक्सपीरियंस्ड थी। कम से कम उसने मेरा गार्डन तो बर्बाद नहीं किया। ये घर पहले भी ठीक था और आगे भी रहेगा।"
धानी को एहसास हुआ कि ज़ेन सच में उसे नापसंद करता है। वह उसे अपनी ज़िंदगी से बाहर निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। ज़ेन ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा,
"देखो धानी, मैं तुम्हें घुमा-फिराकर बात नहीं करूँगा। यह शादी मेरी मर्ज़ी के खिलाफ हुई थी। मैंने इसे सिर्फ़ दादाजी की खुशी के लिए किया। इसमें ना मेरी खुशी है और ना मेरी मर्ज़ी। तुम्हारी मेरी ज़िंदगी में कोई भी अहमियत नहीं है।"
"अगर तुम इस घर से जाने का वादा करती हो, तो मैं तुम्हें एक वादा करता हूँ—तुम्हें दोबारा अनाथ आश्रम में नहीं रहना होगा। मैं तुम्हें मुंबई में एक घर दिला दूँगा और हर महीने तुम्हारे खर्चे के लिए पैसे भिजवाता रहूँगा।"
धानी हैरानी से उसे देखती रही। ज़ेन कैसे इतने विश्वास के साथ ये बातें कह सकता था? क्या उसे इस बात का एहसास नहीं था कि उसका यह फैसला दादाजी पर कितना असर डालेगा?
धानी की आँखों में आँसू आ गए, जिन्हें वह बहुत मुश्किल से रोक पाई। उसने अपने जज़्बातों को काबू में रखते हुए कहा,
"ठीक है, मुझे आपकी शर्त मंज़ूर है। लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"
ज़ेन ने हँसते हुए कहा,
"मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। पैसे कमाने का मौका तो कोई तुमसे सीखे। बताओ, क्या है तुम्हारी शर्त?"
धानी ने गहरी साँस ली और खुद को संयत करते हुए कहा,
"मुझे आपका घर नहीं चाहिए। मेरी सिर्फ़ एक शर्त है—बड़े दादाजी को हमारे रिश्ते के बारे में कुछ पता न चले। उनके सामने हम एक नॉर्मल पति-पत्नी की तरह पेश आएंगे। उनके लिए और दादाजी के लिए, मैं चाहती हूँ कि आप मेरी इस एक बात को मान लें। अगर आप तैयार हैं, तो मैं अपने रहने का इंतज़ाम खुद कर लूँगी। मुझे आपके पैसे की ज़रूरत नहीं है। मैं अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठा सकती हूँ, जैसे पहले उठाती थी।"
ज़ेन ने उसे गहरी निगाहों से देखा और फिर कंधे उचका कर कहा,
"ठीक है। अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम नहीं है, तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं।"
धानी ने राहत की साँस ली, लेकिन उसके चेहरे पर दर्द अब भी झलक रहा था।
दोपहर तक बड़े दादाजी वहाँ आ चुके थे। बड़े दादाजी, दादाजी के बड़े भाई थे और उम्र में उनसे भी काफी बड़े लगते थे। वे छड़ी का सहारा लेकर चलते थे और उनके चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ थीं। दादाजी इतने बूढ़े नहीं लगते थे। उनके सिर्फ़ बाल सफ़ेद हुए थे, लेकिन उनके चेहरे पर अब भी एक ख़ास चमक बरकरार थी। वहीं, बड़े दादाजी की उम्र साफ़ झलक रही थी। उन्होंने सफ़ारी सूट पहना हुआ था, और उसके ऊपर एक महँगा ब्रोच लगाया था।
जैसे ही वे घर के अंदर दाखिल हुए, धानी ने उन्हें देखते ही आगे बढ़कर उनके पैर छू लिए। दादाजी यह देखकर मुस्कुरा उठे। उन्होंने सोचा, "धानी सच में संस्कारी लड़की है। जितना मेरे भाई ने बताया था, उससे भी ज़्यादा।" धानी ने पैर छूते वक़्त अपनी साड़ी का पल्लू सिर पर रख लिया था। दादाजी को यह देखकर बहुत खुशी हुई। वे सोचने लगे कि जिस समाज में वे रहते हैं, वहाँ तो उन्होंने लड़कियों को छोटे-छोटे कपड़े पहनकर बड़ों से गले मिलते देखा है।
धानी ने बड़े दादाजी को मुस्कुराते हुए कहा,
"नमस्ते, दादाजी। मैं धानी हूँ।"
बड़े दादाजी ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखा और बोले,
"तुम्हें अपना परिचय देने की ज़रूरत नहीं है, बेटी। उत्कर्ष ने तुम्हारी तस्वीर भेजी थी और तुम्हारे बारे में बताया भी था। हमें यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि हमारे घर की बहू इतनी संस्कारी है।"
तभी बड़े दादाजी की नज़र पास खड़े ज़ेन पर गई, जिसके चेहरे पर कोई ख़ास भाव नहीं थे। जब ज़ेन ने देखा कि बड़े दादाजी उसे देख रहे हैं, तो वह इरिटेट होते हुए थोड़ा आगे आया। हल्का सा झुककर उसने बड़े दादाजी के घुटनों को छुआ और कहा,
"नमस्ते, दादाजी।"
लेकिन अगले ही पल बड़े दादाजी ने अपनी छड़ी की नोक ज़ेन के कंधे पर मारते हुए कहा,
"पैर छू रहे हो तो ढंग से छुओ। यूँ दिखावा करने से आशीर्वाद नहीं मिलता। अगर पैर छूना नहीं आता, तो हमारी बहू से सीखो।"
ज़ेन के चेहरे पर झुंझलाहट साफ़ दिख रही थी, लेकिन वह चुपचाप बड़े दादाजी की बात मानकर पूरी तरह झुक गया और ठीक से उनके पैर छू लिए। धानी यह सब देखकर चुपचाप खड़ी रही, लेकिन अंदर ही अंदर वह मुस्कुरा रही थी।