कुल्लू की बर्फीली वादियों में पलती शिजा, सपनों से भरी एक मासूम लड़की थी । जो खुद को एक दिन दिल्ली की चमचमाती रौशनी में उड़ते देखती थी। लेकिन किसे पता था कि एक छोटी सी चाहत, उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देगी? जब पहली बार उसका... कुल्लू की बर्फीली वादियों में पलती शिजा, सपनों से भरी एक मासूम लड़की थी । जो खुद को एक दिन दिल्ली की चमचमाती रौशनी में उड़ते देखती थी। लेकिन किसे पता था कि एक छोटी सी चाहत, उसकी ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल देगी? जब पहली बार उसका दिल धड़कता है, तो वो नाम सामने आता है — आदित का। पर... जो दिल उसकी धड़कनों में बस गया था, वो दिल उसके नसीब में कभी लिखा ही नहीं था। कहानी यहीं मोड़ लेती है — शिजा की शादी उस इंसान से हो जाती है जिसे वह चाहती तक नहीं थी — अदिल से। अदिल, जो उसे शिद्दत से चाहता है, मगर शिजा का दिल अब भी बीते पलों में उलझा है। क्या शिजा अपने अतीत की परछाइयों से बाहर निकल पाएगी? क्या वो अदिल के प्यार को स्वीकार कर पाएगी? या फिर उसकी मासूम चाहत की एक चिंगारी, उसकी पूरी दुनिया को राख कर देगी...? एक लंबा सफर — दर्द, इनकार और टूटे सपनों का। और फिर... एक मोड़, जो तय करेगा कि शिजा का दिल आखिर किसके नाम होगा। "यह सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं... यह उस दिल की दास्तान है जो टूटकर भी धड़कना नहीं छोड़ता।"
आदिल
Hero
शिजा
Heroine
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कुल्लू, हिमाचल प्रदेश: रात से ही भारी बर्फबारी हुई थी। सुबह तक हर तरफ बर्फ की सफ़ेद चादर बिछ गई थी। पेड़ों से लेकर झाड़ियों तक, घरों की छतों से लेकर सड़कों तक, हर तरफ बर्फ ही बर्फ थी। वहीं ढलान पर बने एक घर में लगातार किसी औरत की आवाज़ आ रही थी। वो घर दिखने में सामान्य था, लेकिन अंदर से काफी अच्छे से सजाया गया था। हॉल की दीवारों पर बहुत सी यादों को फोटो फ्रेम करके लगाया गया था। और उन फोटो फ्रेम्स में से एक फोटो में चार जन थे। सभी के चेहरों पर प्यारी सी मुस्कान चमक रही थी। "क्या हुआ मम्मी..?" शिवानी रसोई में आती हुई कविता जी से बोली। कविता जी सुबह से ही काफी गुस्से में लग रही थीं। "ये कोई उठने का समय है..? पता है ना कि पापा दुकान पर चले गए। और...और वो एक और महारानी! उसे आज उठना नहीं है क्या..? ट्यूशन भी जाना है। कल आखिरी पेपर है। जैसी उसकी हरकतें हैं, मुझे नहीं लगता कि ये ट्वेल्थ में पास भी हो पाएगी।" कविता जी अपनी कमर पर हाथ रखकर गुस्से में बोलीं। "अरे माता श्री! इतना गुस्सा सही नहीं है आपके लिए... थोड़ा चिल कीजिए। और वो बच्ची है, बचपना है उसमें अभी... और उसकी उम्र ही कितनी है। मैं उठाती हूँ। तब तक आप उसके लिए दूध बना दीजिए।" शिवानी ने कविता जी के कंधे को दबाते हुए कहा। "बनाती हूँ।" कविता जी थोड़ी शांत हुईं और प्यार से शिवानी के गाल को थपथपाया। शिवानी रसोई से निकलकर हॉल के सामने बने एक कमरे के पास आकर खड़ी हुई और काफी आहिस्ता से दरवाजा खोलकर अंदर आ गई। कमरे की खिड़कियों पर पर्दे लगे थे और कमरे की लाइट्स भी बंद थीं। जिस वजह से पूरे कमरे में हल्का अंधेरा था। "गेटअप शिजू! बेबू.. उठो, मम्मी गुस्सा कर रही है। ट्यूशन जाना है ना.. देरी हो रही है।" शिवानी ने खिड़की पर लगे पर्दों को हटाते हुए कहा। वहीं बेड पर लेटी शिजू, यानी शिजा, किसी खरगोश के बच्चे की तरह कंबल में दुबक कर सो रही थी। शिवानी की आवाज़ अभी तक उसके कानों में नहीं पहुँची थी क्योंकि वो जरा भी टस से मस नहीं हुई थी। "शिज़ु! बेबू.. उठ जाओ ना..." शिवानी ने बेड के पास आकर शिजा के ऊपर से कंबल हटाया। शिजा उनींदी सी उठकर बैठ गई और बुरा सा मुँह बनाकर बोली, "शावु! बेबू सुबह सोई थी ना..." शिजा बच्चों की तरह रोने जैसी शक्ल बनाकर बोली। "तो बेबू रात भर क्या कर रही थी..?" शिवानी ने प्यार से उसकी ठुड्डी को पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर किया। दूधिया रंगत, छोटी-छोटी आँखें, तीखी सी नाक, गुलाब की पंखुड़ियों से गुलाबी होंठ और राइट साइड गाल पर उसका वो काला तिल, जो काफी फब रहा था। दोनों बहनें खूबसूरती के मामले में कम नहीं थीं। शिजा ने अपनी आँखें खोलीं और अपनी भूरी-भूरी आँखों से शिवानी को देखते हुए काफी मासूमियत से बोली, "बेबू पढ़ रही थी ना... कल मेरा सबसे टफ एग्जाम है। आप तो जानती हैं ना... तो मैंने पूरी रात जागकर बायोलॉजी की तैयारी की..." "तो बायोलॉजी लेने को किसने कहा था? अब ये कौन सा कॉम्बिनेशन हुआ, आर्ट्स विथ बायोलॉजी..?" "मुझे बायोलॉजी पसंद है।" शिजा ने पाउट बनाकर कहा। "फिर आगे का क्या..?" "दिल्ली जाकर वहाँ से ग्रेजुएशन करूंगी।" शिजा की आँखों में अलग सी चमक आ गई। "मम्मी-पापा जाने नहीं देंगे।" शिवानी ने फीका सा मुस्कुराकर कहा। शिजा बेड पर खड़ी हुई और काफी कॉन्फिडेंस के साथ बोली, "लेट्स सी शावु! दिल्ली तो मैं जाकर ही रहूंगी। मैंने सोच लिया है। फिर चाहे यहाँ से भागकर जाना पड़े।" "पागल लड़की! मम्मी घर से बाहर जाने से पहले तेरे पैर तोड़ देंगी..." "मुझे डर नहीं लगता मम्मी से..." शिजा मुस्कुरा कर बोली। तभी उसके कानों में कविता जी की आवाज़ पड़ी, जो शायद उन्हें ही बुला रही थीं। शिजा घबराते हुए तुरंत बेड से नीचे कूदी और कमरे से बाहर चली गई। उसकी इस हरकत पर शिवानी हँस दी और अपना सिर ना में हिलाती हुई वहाँ से बाहर चली गई। उधर, दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में स्थित एक बड़ा सा बंगला था, जो बाहर से जितना आलीशान था, उतना ही अंदर से। बंगले के चारों ओर बड़ी-बड़ी बाउंड्रियाँ थीं, जिनके अंदर काफी प्यारा सा गार्डन लगा हुआ था। रंग-बिरंगे फूलों पर कई ओस की बूँदें दिख रही थीं, जो एक अलग सी ताजगी का अहसास करवा रही थीं। वहीं घर के अंदर का माहौल भी काफी शांत सा लग रहा था। रसोई से लगातार किसी के गुनगुनाने की आवाज़ आ रही थी। आवाज़ किसी औरत की नहीं, बल्कि किसी मर्द की थी। जो खाना बनाता हुआ कोई पुराना गाना गा रहा था, जिसके बोल कुछ इस तरह थे: आपका अरमाँ, आपका नाम मेरा तराना और नहीं इन झुकती पलकों के सिवा दिल का ठिकाना और नहीं जँचता ही नहीं आँखों में कोई दिल तुम को ही चाहे तो क्या कीजिए? ओ मेरे दिल के चैन चैन आए मेरे दिल को, दुआ कीजिए "क्या बात है पापा! आज बड़े मूड में लग रहे हैं आप.." ये आवाज़ जैसे ही उनके कानों में पड़ी, उन्होंने मुस्कुराकर पीछे मुड़कर देखा। सामने उनके मंझले बेटे आहिल को देखकर उनके होठों पर मुस्कान और फैल गई। "आहिल! उठ गए तुम..?" "जी पापा.. लेकिन आज आप यहाँ.. वो भी इतनी सुबह-सुबह..?" आहिल अंदर आते हुए बोला। "आज क्या है पता है तुम्हें..?" "जी पता है, आज आपकी और मम्मी की शादी को पूरे 29 साल हो गए। हैप्पी मैरिड एनिवर्सरी पापा।" आहिल ने मुस्कुराकर कहा। "थैंक्यू! बस इसलिए आज तुम्हारी मम्मी के उठने से पहले मैं उनका मनपसंद नाश्ता बना रहा था।" "हाउ रोमांटिक पापा.." आहिल ने अपने पापा, यानी मोक्ष जी से कहा। मोक्ष जी मुस्कुरा दिए। "आदिल कब आ रहा है..?" आहिल ने पूछा। तो मोक्ष जी सोचकर बोले, "कल बात हुई थी। कह रहा था कि अभी उसे कुछ दिन और घूमना है। कुल्लू गया है। तो मैंने भी कह दिया कि अपने अंकल से और उनकी फैमिली से मिल आए। शायद आज उनके घर जाएगा वो..." "हम्मम! ओके।" आहिल ने एक गहरी साँस छोड़कर कहा। "हैप्पी एनिवर्सरी पापा!" ये एक काफी गंभीर सी आवाज़ थी जो मोक्ष जी और आहिल के कानों में पड़ी। दोनों ने एक साथ मुड़कर रसोई के दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ मोक्ष जी का बड़ा बेटा, यानी आदित खड़ा था। जिसके होठों पर एक छोटी सी मुस्कान थी। ब्लैक कलर के फॉर्मल बिज़नेस सूट में वह काफी हैंडसम लग रहा था। "थैंक्यू! तुम कहीं जा रहे हो आदि..?" मोक्ष जी ने उसे तैयार हुआ देखा तो पूछ बैठे। "जी पापा! मुझे अभी एक मीटिंग के लिए जयपुर के लिए निकलना पड़ेगा।" आदित वहीं खड़ा हुआ बोला। "लेकिन भाई आज मम्मी-पापा की एनिवर्सरी है।" आहिल ने कहा। तो आदित ने मोक्ष जी की ओर देखकर अपना कान पकड़ लिया। "आई एम सॉरी पापा! पर मीटिंग ज़रूरी है।" "कोई बात नहीं, वहाँ पहुँचकर कॉल करना।" मोक्ष जी आदित के पास आए और उसका कंधा थपथपाते हुए बोले। आदित मुस्कुरा दिया और फिर उन दोनों को बाय बोलकर वहाँ से चला गया। "पापा! आपको नहीं लगता कि भाई दिन-ब-दिन काफी अलग-अलग से होते जा रहे हैं? हमसे सही से बात करना, ना सही से हमारे साथ बैठना, चाहे तो ऑफिस रहते हैं और फिर अपने कमरे में घुसे रहते हैं।" आहिल ने शिकायती लहजे में कहा। तो मोक्ष जी ने एक गहरी साँस छोड़ी। "पता नहीं क्या हो रहा है। इसे जब ट्रिप से वापस आएगा तब बात करता हूँ... खैर! तुम छोड़ो ये सब... और ये नाश्ता बन चुका है। तुम जरा इसे टेबल पर लगाओ, तब तक मैं तुम्हारी मम्मी को अपने स्टाइल में उठाता हूँ।" कहते हुए मोक्ष जी का मिजाज फिर पहले जैसा हो गया था। जिसे देख आहिल ने मुस्कुराकर अपनी गर्दन ना में हिला दी। क्रमश:
मोक्ष जी रसोई से निकल अपने कमरे में आए तो उनकी पत्नी, आरोही जी, पहले ही उठ चुकी थीं। यह देखकर उन्होंने अपना मुँह बना लिया और धीरे से बोले,
"क्या आप कुछ देर और नहीं सो सकती थीं?"
"पर क्यों..?" आरोही जी अपने पैर बेड से नीचे फर्श पर रखती हुईं, थोड़ा हँसकर बोलीं।
"ताकि मैं आपको प्यार से जगा सकूँ। लेकिन आपने तो मेरे प्लान का ही कचरा कर दिया।"
"अच्छा जी.. सॉरी! वैसे आज क्या बात है, बड़े रोमांटिक हो रहे हैं आप।" आरोही जी ने मुस्कुराकर पूछा तो मोक्ष जी भी मुस्कुरा दिए। वे उनके पास आए और धीरे से उनका हाथ पकड़, उनकी आँखों में देखते हुए बोले, "शादी की 29th एनिवर्सरी मुबारक हो आपको.."
"ओह्ह्ह्ह्! मैं तो भूल ही गई इस बार... खैर! थैंक्यू... और आपको भी बहुत-बहुत मुबारक हो..."
"हम्मम! अब जल्दी से तैयार होकर बाहर आइए। आज मैंने आपकी पसंद का नाश्ता बनाया है, वो भी अपने हाथों से..."
"नॉट बैड! मोक्ष जी... आप चलिए, मैं बस आती हूँ।"
"ठीक है, मैं आपका इंतज़ार कर रहा हूँ। जल्दी आइएगा।" कहते हुए मोक्ष जी ने आरोही जी के माथे को चूमा और कमरे से बाहर चले गए। उनके जाते ही आरोही जी ने मुस्कुराते हुए अपनी गर्दन ना में हिला दी। फिर बाथरूम की तरफ बढ़ते हुए खुद में बुदबुदाईं,
"यहाँ बच्चों की शादी करके की उम्र हो रही है और इन जनाब की आशिकी ही नहीं खत्म हो रही..."
उधर, शिजा हड़बड़ी में अपना बैग उठाकर अपने कमरे से बाहर निकली। उसने वहीं रखे अपने जूते पहने। तब तक कविता जी उसका नाश्ता प्लेट में रखकर वहीं ले आई थीं। वहीं शिजा के खुले बाल देखकर कविता जी ने अपना सिर पीट लिया।
"शिजा! बाल..?"
"मम्मी, आप जानती हैं ना कि मुझे नहीं बनाने आते हैं बाल... (वाशबेसिन में अपने हाथ धोते हुए) जब तक मैं नाश्ता करूँ, बना दीजिएगा।" शिजा ने कहा तो कविता जी ने उसके सिर पर एक चपत लगाई। तो वह अपने सिर को सहलाती हुई वहीं बिछी कालीन पर बैठ अपना नाश्ता करने लगी। कविता जी अंदर कमरे से एक हेयर ब्रश लेकर आईं और उसके पास ही बैठकर उसके बाल बनाने लगीं।
"19 साल की हो जाएगी तीन महीने बाद, लेकिन! अकल तुझ में पिंडी भर नहीं... खुद से तो जैसे कुछ कर ही नहीं सकती। अगर तेरी लाइफ में हम ना हों तो मुझे नहीं लगता कि तेरा गुजारा भी हो इस दुनिया में... हर वक्त बस बच्चों की तरह उछल-कूद..." कविता जी उसे सुनाए जा रही थीं। जबकि शिजा को जैसे कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। मानो उसे आदत हो कविता जी द्वारा ऐसी बातें सुनने की। वह तो जल्दी-जल्दी अपना नाश्ता करने में लगी हुई थी ताकि समय पर ट्यूशन जा सके।
कविता जी ने उसके बाल बनाए और उठकर रसोई में चली गईं। उनके जाने के बाद शिजा ने अपना आधा-सा नाश्ता प्लेट में ही छोड़ दिया और जल्दी से अपना बैग उठाकर वहाँ से जाने लगी। तभी कविता जी रसोई के दरवाजे पर ही खड़ी होकर उसे टोकते हुए बोलीं,
"शिजा! पैसे..?"
"पापा से ले जाऊँगी।" कहते हुए वह तुरंत बाहर निकल गई। कविता जी ने अपनी गर्दन ना में हिलाई और वापस रसोई में चली गईं। शिजा अपने घर की उस ढलान वाली संकरी सी गली से बाहर की ओर बढ़ गई। कुछ देर चलने के बाद वह संकरी सी गली एक बड़ी गली पर खुल गई। शिजा ने इधर-उधर देखा जहाँ हर तरफ दुकानें ही दुकानें थीं। वह अपने दाहिने हाथ की तरफ मुड़ आगे बढ़ गई। अभी वह चार-पाँच दुकानें चली ही थी कि उसके पाँव एक दुकान के सामने रुक गए जहाँ दुकान के बाहर बहुत से पश्मीना शॉल लटक रहे थे। वह बिना कुछ सोचे-समझे दुकान के अंदर चली आई जहाँ दो आदमी अपनी दुकान के अंदर बैठे कस्टमर्स को शॉल दिखा रहे थे और एक आदमी काउंटर सम्भाले हुए था। वह उसके सामने जाकर खड़ी हुई और अपनी छोटी सी हथेली उस आदमी, अभिमान जी, के सामने करती हुई अपनी प्यारी सी आवाज़ में बोली,
"पापा! पैसे..?"
अभिमान जी शिजा को देख हल्का सा मुस्कुराए और बिना कुछ कहे अपनी जैकेट की जेब में हाथ डालकर एक दो सौ का नोट निकाल उसे शिजा की हथेली पर रख दिया। तो शिजा आशा भरी नज़रों से उन्हें देखने लगी। वहीं अभिमान जी काफी अच्छे से वाकिफ थे अपनी लाड़ली की निगाहों से। उन्होंने अपनी गर्दन ना में हिलाई और एक बार फिर अपनी जेब में हाथ डाल एक बीस रुपए का नोट निकाला और उसे उसके हाथ में रख दिया। यह देख शिजा के होठों की मुस्कान और गहरी हो गई।
"बदमाश लड़की!... बचपन से लेकर अभी तक आदत नहीं गई है अलग से चीज़ के पैसे लेने की..."
"पापा... मैं बड़ी नहीं हुई। मैं बच्ची ही हूँ।" कहते हुए शिजा ने अपने पैसे को फोल्ड कर उन्हें अच्छे से अपने बैग में रखा और बच्चों की तरह पाउट बनाकर बोली। उसकी इस हरकत पर अभिमान जी हँस दिए।
शिजा ने आगे बढ़कर अभिमान जी के गाल को चूम लिया, "थैंक्यू पापा... अच्छा अब मैं ट्यूशन के लिए लेट हो रही हूँ। बाय..."
"हाँ! हाँ! बाय... ध्यान से जाना..."
"हाँ पापा..." कहते हुए वह जैसे ही जाने के लिए मुड़ी कि सामने से अंदर दुकान में घुसते एक शख्स से टकरा गई। लेकिन उसने तुरंत खुद को सम्भाल लिया था।
"अंधे हैं आप.. जो आपको दिखा.... ई...ई.... आदिल! तुम यहाँ...?" शिजा, जो कि अपने सिर को सहलाती हुई सामने खड़े शख्स पर भड़क ही उठी थी, लेकिन जैसे ही उसने उसकी ओर देखा, सहसा ही उसकी आवाज़ में हैरानी झलकने लगी। वहीं अभिमान जी उसे देखकर मुस्कुरा दिए।
"मैं बस यह पूछ रहा था कि यह शॉल कितने का है...?" अपने हाथ में पकड़े शॉल को अभिमान जी की ओर बढ़ाते हुए आदिल काफी सहजता से बोला। जबकि खुद को यूँ नज़रअंदाज़ होता देख शिजा ने बच्चों की तरह मुँह फुला लिया था। 🫤
क्रमश:
"अंधे हैं आप.. जो आपको दिखा... ई...ई... आदिल! तुम यहां..." शिजा, जो अपने सिर को सहलाती हुई सामने खड़े शख्स पर भड़क ही उठी थी, लेकिन जैसे ही उसने उसकी ओर देखा, सहसा ही उसकी आवाज़ में हैरानी झलकने लगी। वही अभिमान जी उसे देखकर मुस्कुरा दिए।
"मैं बस ये पूछ रहा था कि ये शॉल कितने का है...?" अपने हाथ में पकड़े शॉल को अभिमान जी की ओर बढ़ाते हुए आदिल काफी सहजता से बोला। जबकि खुद को यूँ नज़रअंदाज़ होता देख शिजा ने बच्चों की तरह मुँह फुला लिया था। 🫤
"ये शॉल तुम्हारे लिए फ्री है आदिल बेटा... अगर तुम्हें पसंद आया तो तुम रख लो..." अभिमान जी ने प्यार से कहा।
"तो एक काम कीजिए कि दुकान की सारी शॉल पैक कर दीजिये। वो भी फ्री में... क्योंकि मुझे तो सभी पसंद हैं।" अभिमान जी की बात सुन आदिल ने मुँह बनाकर कहा। अभिमान जी मुस्कुरा दिए। तो आदिल उनके पास ही बैठकर बोला, "अंकल! जान पहचान में दुकान नहीं चलती... समझ आई आपको बात? अब मुझे बिलकुल वैसे ट्रीट कीजिए जैसे आप बाकी ग्राहकों को करते हैं। थोड़ी देर के लिए भूल जाइए कि मैं आपके फ्रेंड का बेटा हूँ।"
"ठीक है! ठीक है!... जैसा तुम कहो।" अभिमान जी ने अपने हाथ खड़े कर लिए।
"मुझे और भी शॉल लेने हैं।" आदिल शिजा की ओर देखकर बोला, जो उसे घूर रही थी।
"हाँ! हाँ! बेटा अंदर चले जाओ... जो तुम्हें पसंद आए वो ले लो..."
"मैं बस अभी आता हूँ अंकल।" कहते हुए उसने अपने बैग्स को अभिमान जी के पास रखा और खुद अंदर चला गया।
"अब तुम्हें देरी नहीं हो रही ट्यूशन के लिए...?" शिजा को वहीं खड़ा देख अभिमान जी ने कहा तो वह मुँह बनाकर वहाँ से चली गई।
कुछ देर बाद आदिल वापस उनके पास आया तो उसके हाथों में बहुत से शॉल थे। जिन्हें देख अभिमान जी बोले, "इतने सारे शॉल का क्या करोगे...?"
"ये मैंने सब के लिए लिए हैं। ये वाला मम्मी के लिए, ये पापा के लिए, ये वाला आहिल भाई के लिए और ये ग्रे वाला आदि भाई के लिए... उन्हें ग्रे कलर बहुत पसंद है। और ये मेरे लिए..." आदिल ने अपने हाथ में पकड़े सभी शॉल को गिना दिया था।
"अच्छा ये सब तो ठीक है पर ये तीन शॉल किसके लिए...?"
"एक कविता आंटी के लिए, एक शिवानी भाभी के लिए और (एक लाइट ब्ल्यू कलर के शॉल को देखते हुए) ये... ये हमारी किड्डो के लिए... ब्लू कलर उसका फ़ेवरेट है ना... देखना देखकर बहुत खुश हो जाएगी।" आदिल ने मुस्कुराकर कहा। तो अभिमान जी भी मुस्कुरा दिए।
"अच्छा! अब दुकान वाले अंकल जी... जल्दी से इन सबका बिल बनाइए और इन सबको पैक भी करवा दीजिए।" आदिल ने कहा।
"सब पाँच मिनट रुको..." अभिमान जी ने कहा और सभी शॉल का बिल बना दिया। वहीं दुकान में काम करने वाले एक वर्कर ने सभी शॉल को पैक भी कर दिया था। आदिल ने क्यूआर कोड से पे कर दिया।
"अच्छा चलो तुम्हें घर छोड़ आऊँ।" अभिमान जी ने उठते हुए कहा तो आदिल ने तुरंत कहा, "नहीं अंकल! यही तो घर है। मैं चला जाऊँगा। आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं..."
"अच्छा ठीक है।" अभिमान जी वापस अपनी जगह बैठ गए। आदिल अपने बैग्स को लेकर वहाँ से निकल गया। उसके जाते ही अभिमान जी ने मुस्कुराकर अपनी गर्दन ना में हिला दी।
आदिल उस संकरी सी गली में चढ़ते हुए ऊपर की तरफ़ आया और अभिमान जी के घर के बाहर रुक गया। मेन गेट खुला हुआ था। शायद! शिजा जाते हुए बंद करना भूल गई थी। वह धीरे से अंदर आया तो उसकी नज़र शिवानी पर जा टिकी, जो कपड़े को तार पर सुखा रही थी।
"क्या कभी भाई ने आपको ये नहीं कहा कि आप सिर पर दुपट्टा पहने बहुत प्यारी लगती हैं। एकदम मेरी भाभी टाइप्स।" आदिल ने उसके पास आते हुए मुस्कुराकर कहा। वही आदिल की आवाज़ सुन शिवानी ने हैरानी और खुशी के मिले-जुले भाव के साथ उसकी ओर देखा।
"अरे! तुम यहां...?"
"भाभी!... पहले आप मेरे सवाल का जवाब दीजिये।"
"नहीं!... कभी नहीं कहा..."
"क्या उन्होंने आपको इस अवतार में नहीं देखा...?"
"शायद से नहीं!" शिवानी मुस्कुराकर बोली।
"तभी तो... वरना अगर आपकी ये खूबसूरती देख ले तो जरा भी देर ना लगाए बारात लेकर यहाँ आने में..." आदिल ने बटरिंग करते हुए कहा।
"ऐसी भी कोई बात नहीं..." शिवानी लज्जाते हुए बोली।
"ऐसी ही बात है।"
"अच्छा अब क्या सारी बातें यहीं खड़े होकर करोगे? (उसका हाथ पकड़) चलो अंदर चलते हैं।" शिवानी ने कहा तो आदिल अपने बैग्स लेकर अंदर चला आया।
आदिल को देखकर कविता जी तो काफी खुश हुई थीं। उन्होंने उसकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। नाश्ता करने के बाद आदिल, शिवानी के साथ बातें करने लगा जबकि कविता जी बाकी बचा हुआ काम करने लगी थीं। कविता जी को बिज़ी देख, आदिल ने शिवानी की तरफ़ देखा और काफी गंभीरता से बोला, "क्या आपके और भाई के बीच कुछ हुआ है...?"
आदिल का सवाल सुन शिवानी के चेहरे के भाव बदल गए। उसके चेहरे की मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई। वही आदिल बड़े गौर से शिवानी के बदलते एक्सप्रेशंस को नोटिस कर रहा था। और इतना वह समझ चुका था कि ज़रूर उन दोनों के बीच कुछ हुआ है।
क्रमश:
कविता जी को व्यस्त देख, आदिल ने शिवानी की ओर देखा और काफी गंभीरता से बोला, "क्या आपके और भाई के बीच कुछ हुआ है..?"
शिवानी के चेहरे के भाव आदिल के सवाल सुनकर बदल गए। उसकी मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई। आदिल बड़े गौर से शिवानी के बदलते एक्सप्रेशन्स को नोटिस कर रहा था।
"भाभी! अगर आप नहीं बताना चाहतीं कि आपके और भाई के बीच क्या हुआ, तो कोई बात नहीं। लेकिन! अगर आपको उनकी किसी बात का बुरा लगा हो तो आई एम सॉरी!, उनकी तरफ़ से..." आदिल ने अपना एक कान पकड़ लिया। यह देखकर शिवानी ने तुरंत उसका हाथ उसके कान से हटाया और अपनी गर्दन ना में हिलाती हुई बोली,
"पता है आदिल! जब दो अलग और एक-दूसरे से मुख्तलिफ (जुदा) इंसान मिलते हैं तो उनके बीच एकदम से राह-ओ-रस्म (मेलजोल) हो जाएँ, यह ज़रूरी नहीं। मेरे थॉट्स अलग हैं, उनके अलग। एक-दूसरे को समझने में, एक-दूसरे के ख्यालों को समझने में... थोड़ा वक्त लगेगा। (आदिल के गाल को थपथपाते हुए) तुम फ़िक्र मत करो... हमारे बीच सब ठीक है।"
"पक्का ना..?"
"हाँ! हाँ! पक्का..."
"हम्मम!, अब ठीक है।"
"अच्छा... वैसे तुम्हें किसने बताया कि हमारे बीच कुछ अनबन चल रही है...? क्या तुम्हारे भाई ने...?"
"नहीं।"
"तो फिर...?"
"मम्मी ने..."
"लेकिन आंटी को कैसे पता चला...?"
"आप शायद भूल रही हैं भाभी कि वो एक माँ हैं... और माँ अपने बच्चों का चेहरा देखकर बता सकती हैं कि उन्हें क्या हुआ है... या फिर उन्हें क्या दिक्कत है। मम्मी को सही नहीं लगा, आपसे पूछा ना तो उन्होंने मुझसे कहा, और मैंने तो बस तुक्का मारा था, पर यहाँ तो वाकई झोल निकला।" आदिल मुस्कुराकर बोला।
"नहीं!... ज़्यादा नहीं है हमारे बीच अनबन। आंटी को कहना कि सब ठीक है। ओके..."
"जी!... जैसा आप कहें..." आदिल ने उसकी बात मानते हुए अपनी गर्दन हाँ में हिलाई।
"अच्छा! अब ये इधर-उधर की बातों को छोड़ो और थोड़ी देर आराम करो..."
"हाँ! घूम-घूम कर मैं काफी थक सा गया हूँ। मुझे थोड़ी देर सोना है।"
"मैं गेस्ट रूम तैयार करती हूँ, तब तक तुम हमारे रूम में आराम कर लो..." शिवानी ने उठते हुए अपने और शिजा के कमरे की ओर इशारा किया। तो आदिल मुस्कुराकर उनके कमरे में चला गया। उसके जाते ही एक बार फिर शिवानी के चेहरे की मुस्कान काफ़ूर हो गई। उसने एक गहरी साँस ली और गेस्ट रूम की तरफ़ बढ़ गई।
दोपहर के समय शिजा जैसे ही ट्यूशन क्लासेस से बाहर आई, एक लड़के ने उसका रास्ता रोक लिया। शिजा ने उसे घूरा और उसका हाथ सामने से झटक कर बोली,
"ये क्या बदतमीजी है, वैभव!"
"सॉरी यार! पर मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" वैभव ने उसके सामने खड़े होते हुए कहा।
"हम कल स्कूल में भी कर सकते थे।"
"कल तो लास्ट एग्जाम है। तो उसके बाद टाइम नहीं मिलेगा। इसलिए मैं यहीं आ गया।"
शिजा की भौंहें तन गईं। उसने अपने हाथों को सीने पर बाँधा और उखड़े से लहजे में बोली,
"क्या बात है, बताओ...?"
वैभव कुछ देर चुप रहा, फिर थोड़ा झिझकते हुए बोला,
"क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी...?"
"हम तो पहले ही दोस्त हैं ना...?" शिजा ने शक भरी नज़रों से उसे देखा। वैभव ने एक गहरी साँस ली और शिजा की ओर देखकर बोला,
"दरअसल! बात ये है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, पहले कभी कह नहीं पाया क्योंकि हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी। आज भी बड़ी हिम्मत करके मैं तुम्हें ये बात कह रहा हूँ, तो क्या तुम भी मुझसे..."
"सॉरी! बट आई हैव अ बॉयफ्रेंड।" वैभव की बातों को बीच में ही काटते हुए शिजा सपाट लहजे में बोली। वही उसकी बात सुन वैभव चौंक गया।
"तुम झूठ बोल रही हो..."
"नहीं!... मुझे कोई ज़रूरत नहीं झूठ बोलने की..." उसने बड़े आराम से कहा।
"कौन है...? क्या कोई स्कूल से है या फिर यहीं से...?"
"नहीं... ना वह यहाँ का है और ना ही वह हमारे स्कूल में है।" शिजा ने मुस्कुराकर कहा।
"तो फिर कौन है...?"
"सॉरी!... मैं ये नहीं बता सकती। लेकिन ये ज़रूर बता सकती हूँ कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ।" कहते हुए शिजा की आँखों के सामने एक जाना-पहचाना सा चेहरा आ गया था। वैभव का मुँह लटक गया।
"ओके!... भगवान से प्रार्थना करूँगा कि तुम्हें तुम्हारी मोहब्बत मिल जाए।" कहते हुए वैभव वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद शिजा हलका मुस्कुराई और फिर मन-ही-मन बोली,
"आप चाहे मुझे कुछ समझें, लेकिन शादी तो मैं आपसे ही करूँगी... पर उससे पहले पापा का सपना पूरा करना है।"
अपने आप से ही बातें करते हुए वह घर की तरफ़ बढ़ गई थी। कुछ देर में वह घर आकर जैसे ही अपने कमरे में आई, वहाँ आदिल को सोता देख उसने मुँह बना लिया। उसने अपने बैग को जोर से स्टडी टेबल पर पटका। तभी शिवानी अंदर आते हुए धीमे से बोली,
"शिज़ु!... यहाँ शोर मत करना। आदिल सो रहा है..."
"तो मैं कहाँ जाऊँ...?" शिजा ने रोती सी शक्ल बनाकर कहा। उसी वक्त आदिल, जो बेड पर लेटा हुआ था, अपनी नींद से भरी आवाज़ में बोला,
"भाड़ में जा सकती हो।"
"नाटकबाज़ आदमी!" कहते हुए शिजा उसकी तरफ़ बढ़ी।
"हे... हे किड्डो! मारा तो देख लेना, तुझसे बड़ा हाथ है मेरा। एकाध हड्डी टूट गई तो मुझसे मत कहना..." शिजा को अपनी ओर बढ़ते देख आदिल फुर्ती दिखाते हुए बेड से उठ खड़ा हुआ था।
उन दोनों को यूँ लड़ता देख शिवानी ने अपनी गर्दन ना में हिला दी थी।
"तुम दोनों का कुछ नहीं हो सकता।" और कमरे से बाहर निकल गई थी, जबकि शिजा ने बेड पर रखे तकियों को उठाकर आदिल की तरफ़ फेंकना शुरू कर दिया था और वह बेचारा उसके हर वार से बचने का प्रयास कर रहा था। लेकिन वह बच पा नहीं रहा था। एक तो सीधा उसके मुँह पर जाकर लगा था, जिसके बाद वह उधर ही बेड पर ढेर हो गया था। आदिल के बेड पर गिरते ही शिजा के होठों पर मुस्कराहट आ गई थी।
क्रमश:
"पापा.."
"हाँ शिजा..?" अभिमान जी ने तुरंत कहा। उस वक्त सभी डिनर के लिए हॉल में ही बैठे थे।
"पापा... कल मेरे एग्जाम खत्म हो जाएँगे। आपने प्रॉमिस किया था कि आप मुझे फोन लगाकर देंगे..?"
"हाँ! मुझे याद है। तुम एग्ज़ाम देकर आओ... घर पर तुम्हें तुम्हारा फ़ोन आया मिलेगा।" अभिमान जी ने मुस्कुराकर कहा तो शिजा ने खुशी से उन्हें साइड हग किया।
"थैंक्यू! पापा..."
"अच्छा! अब खाना खाओ.." अभिमान जी ने प्यार से उसके सिर को थपथपाया।
"क्या हो जाता है आपको? क्यों हमेशा इसकी ज़िद पूरी करने पर लगे रहते हैं? यह तो है ही पागल.." कविता जी ने शिजा को घूरते हुए कहा।
"तो क्या हो गया कविता जी? यदि हम अपने बच्चों की ही ज़िद पूरी नहीं करेंगे तो फिर किसकी करेंगे और इतना जोड़कर कहाँ लेकर जाएँगे..." अभिमान जी ने शिवानी और शिजा की ओर बारी-बारी देखते हुए कहा।
"वाह! अंकल.. पापा हो तो आप जैसे.." आदिल ने खाना खाते हुए मुस्कुराकर उनकी तारीफ़ की।
"मेरे पापा बेस्ट हैं।" शिजा ने उसकी ओर देखकर कहा। तो अभिमान जी के चेहरे की मुस्कान और बढ़ गई।
सबने अपना-अपना डिनर किया और फिर सब सोने अपने-अपने कमरों में चले गए। आदिल गेस्ट रूम में चला गया था।
वहीं शिजा और शिवानी दोनों अपने कमरे में बेड पर लेटी लगातार सीलिंग को देख रही थीं। शिजा बच्चों की तरह शिवानी से लिपटी हुई थी, वहीं शिवानी भी उसके बालों में हाथ घुमा रही थी।
"शावु.. क्या तुम परेशान हो..?" काफ़ी देर बाद शिजा ने बात शुरू करते हुए उससे पूछा। वहीं शिवानी जैसे अपने होश में आई, उसने उसकी तरफ़ देखा और हल्का सा मुस्कुराकर बोली, "नहीं तो... क्यों? क्या हुआ..?"
"मुझे पता है कि तुम मुझसे झूठ बोल रही हो। तुम्हारे चेहरे से दिख रहा है कि तुम बहुत परेशान हो। क्या तुम अपनी शिजू.. अपनी बेबू को भी नहीं बताओगी कि क्या बात है..?" शिजा ने थोड़ी ज़िद की तो शिवानी फिर मुस्कुराकर बोली, "तुम अभी छोटी हो... इसलिए नहीं समझोगी.."
"शावु! अगर आप बताएँगी तो ज़रूर समझ जाऊँगी।"
"कुछ खास नहीं..."
"प्लीज़! .. और वैसे भी कोई कहता है कि अगर हम अपनी परेशानी किसी और के साथ शेयर करें तो हमें हल्का महसूस होता है।"
"यह बात मैंने ही तुमसे कही थी।"
"तो क्या हो गया। अब बात भी दीजिए कि क्या बात हो गई है। आई प्रॉमिस मैं किसी को नहीं बताऊँगी।"
"अच्छा! .. पर प्लीज़ तुम यह बात किसी को मत बताना..." शिवानी ने उठकर बैठते हुए कहा तो शिजा भी उठकर बैठ गई और शिवानी की तरफ़ देखकर बोली, "शावु! तुम मुझ पर यकीन कर सकती हो..."
"दरअसल हुआ यूँ कि कुछ दिन पहले मैंने उनकी फ़ोटो एक लड़की के साथ देखी तो मुझे अच्छा नहीं लगा। और मैंने बोल दिया... उन्होंने कहा कि वो उनकी कोई फ़्रेंड है। पर मैं उस वक्त काफ़ी परेशान थी तो मैंने उनकी बात नहीं सुनी... और फिर हमारी लड़ाई हो गई। (थोड़ा रुककर) हमारे यहाँ के माहौल में और वहाँ के माहौल में काफ़ी फ़र्क है। जैसे कि अगर यहाँ हम किसी लड़के और लड़की को साथ में देखते हैं तो सबसे पहले हमारे दिमाग में ख्याल आता है कि ज़रूर यह लड़की इस लड़के की गर्लफ़्रेंड होगी लेकिन वहाँ तो यह सब नॉर्मल है। लड़का लड़की साथ में घूमे-फ़िरे। वहाँ एक लड़के और लड़की के बीच नॉर्मल फ़्रेंडशिप हो सकती है। (शिजा की ओर देखकर) मुझे पता है कि मैंने ओवर रिएक्ट किया पर मैं क्या करूँ शिजा? मुझे डर लगता है कि कहीं मेरी खुशियों को किसी की नज़र न लग जाए। बहुत प्यार करती हूँ मैं इन्हें। नहीं खो सकती.." शिवानी ने अपने मन की बात उसके सामने रखी तो शिजा ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा और हल्का मुस्कुराकर बोली,
"जीजू के साथ किसी और लड़की को देखकर तुमको जलन हुई यानी कि तुम वाकई उनसे बहुत प्यार करती हो। पर तुम जीजू पर यकीन करो। मैंने देखा है कि वह तुमसे भी उतना ही प्यार करते हैं जितना तुम उनसे करती हो। तो प्लीज़... अपने बीच की यह लड़ाई ख़त्म करके खुशी-खुशी रहो ना..."
"यकीन है मुझे उन पर और तुम सही कह रही हो। मैं एकदम बुद्धू हूँ। मुझे अपनी गलती का एहसास है लेकिन अब समझ नहीं आ रहा कि मैं कैसे उनसे सॉरी बोलूँ..? अगर उन्होंने माफ़ नहीं किया तो..?" शिवानी फिर परेशान होकर बोली तो शिजा ने अपनी गर्दन हिला दी। फिर शिवानी का फ़ोन उठाकर, जो टेबल पर रखा था और उसे शिवानी के हाथ में रखती हुई बोली, "पहले तुम उनको फ़ोन करो, और फिर सॉरी! भी बोल दो। ज़्यादा मुश्किल नहीं है। अगर तुम ज़्यादा समय लगाओगी तो तुम दोनों के बीच की दूरियाँ भी उतनी ही बढ़ती जाएँगी। इसलिए कह रही हूँ कि अभी-के-अभी उनसे फ़ोन पर बात करो और अपने बीच का जो भी मसला है उसे सॉर्ट आउट कर लो।"
"वो माफ़ तो करेंगे ना..?"
"हाँ! शावु..." शिजा ने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा तो थोड़ा झिझकते हुए ही सही शिवानी ने एक नंबर डायल कर दिया था।
क्रमश:
थोड़े झिझकते हुए, शिवानी ने एक नंबर डायल किया। जैसे-जैसे फोन में रिंग बज रही थी, वैसे-वैसे शिवानी के दिल की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं।
"मिल नहीं रहा क्या..?" शिजा ने बेसब्री से पूछा।
"रिंग जा रही है, पर उठा नहीं..."
"हेलो..?" शिवानी अचानक बोलते हुए रुक गई, क्योंकि सामने से एक जानी-पहचानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी। शिवानी ने शिजा की ओर इशारा किया और बेड से उठकर खिड़की के पास बैठ गई। शिजा ने जम्हाई ली और सोने के लिए बेड पर लेट गई।
कुछ क्षण के लिए दोनों तरफ़ सन्नाटा छा गया।
"आहिल!... क्या आप यहीं हो..?" शिवानी ने बात शुरू की।
उधर, आहिल अपने बेड पर बैठा, एकटक सीलिंग को देख रहा था। उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं थे।
"हम्मम..." उसने हुंकार भरी।
"क्या कर रहे हैं आप..?"
"कुछ नहीं..."
"और आपकी प्रैक्टिस कैसी चल रही है..?"
"हम्मम! ठीक चल रही है।"
"आप... आप नाराज़ हैं..?"
"अं..."
"आई एम सॉरी! आहि... आई एम रियली सॉरी!... मुझे इतना ओवर रिएक्ट नहीं करना चाहिए था। आई एम सॉरी..." कहते हुए शिवानी का गला भर आया था।
"हम्मम!"
"आप मुझसे अभी भी नाराज़ हैं ना... प्लीज़ आहि!... माफ़ कर दीजिये... आइन्दा मैं कभी भी ऐसा नहीं कहूँगी..."
"अभी भी समय है शिवानी, अगर तुम्हें आगे भी ऐसा करना है तो तुम इस रिश्ते के लिए मना कर सकती हो। कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है तुम्हारे साथ।" आहिल सपाट लहजे में बोला।
"ये आप कैसी बातें कर रहे हैं? हमारी सगाई हो चुकी है।" शिवानी का दिल धड़क उठा।
"सगाई हुई है... शादी तो नहीं हुई ना..."
"आप क्या चाहते हैं?"
"जो मेरे पापा चाहते हैं, मैं भी वही चाहता हूँ।"
"मैं भी वही चाहती हूँ, जो मेरे पापा चाहते हैं।" शिवानी ने अपनी आँखों में आई नमी को साफ़ करते हुए, भर्राए गले से कहा।
"मैं अभी भी कहना चाहूँगा कि कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है..."
"आपकी बातें सुनकर मुझे लग रहा है कि आप अभी भी नाराज़ हैं..?"
"मुझे लगता है कि रात बहुत हो गई है। अब सो जाना चाहिए... मुझे कल जल्दी हॉस्पिटल जाना है।" आहिल ने बात को वहीं छोड़ने के इरादे से कहा।
"आई एम सॉरी!... मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था। लेकिन आप..." शिवानी ने तुरंत कहा, लेकिन आहिल ने उसकी बात सुनने से पहले ही कॉल काट दी थी। शिवानी ने बेचारगी से अपने फोन को देखा और फिर लटके चेहरे के साथ बेड पर लेट गई। उसने एक नज़र शिजा को देखा, जो आराम से सो रही थी, फिर दूसरी तरफ़ करवट लेकर लेट गई। कई गर्म आँसू उसकी आँखों से छलक पड़े।
शिवानी के करवट बदलते ही शिजा ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। उसके चेहरे से साफ़ लग रहा था कि वह उनके बीच हुई बातों को सुन चुकी है। हाँ, सुनी सिर्फ़ शिवानी की कही बातें थीं, पर वह अंदाज़ा लगा सकती थी कि आहिल ने क्या कहा होगा। उसे वाकई बहुत बुरा लग रहा था शिवानी के लिए, पर वो क्या ही कर सकती थी। उसने वापस अपनी आँखें बंद कर लीं।
अगली सुबह...
"हे कुड्डो! चलो यार..." आदिल अपनी शूज़ लेसेस बाँधते हुए शिजा से बोला, जो जल्दी-जल्दी नाश्ता कर रही थी। दरअसल, आज शिजा का लास्ट एग्ज़ाम था, और आदिल भी फ्री था, जिस वजह से वह उसके साथ उसका एग्ज़ाम दिलाने जा रहा था।
"बस दो मिनट..." उसने इशारे से कहा।
"सब रख लिया ना... पेंसिल बॉक्स, एडमिट कार्ड... सब..?" उसकी प्लेट में एक और पराठा रखते हुए शिवानी बोली।
"हाँ! शावु... मैंने सब रात में ही रख लिया था।"
"गुड! ऑल द बेस्ट... अच्छे से एग्ज़ाम देकर आना।" शिवानी ने प्यार से उसके बालों को चूम लिया।
"जन्मों की भुक्कड़ है ये..." आदिल मन-ही-मन बोला।
शिजा के नाश्ते के बाद दोनों ही एग्ज़ाम सेंटर के लिए निकल गए। करीब आधे घंटे बाद, वह दोनों जैसे ही एग्ज़ाम सेंटर पहुँचे, तो एंट्री चालू हो चुकी थी। शिजा ने अपने बैग से अपनी पानी की बोतल, पेंसिल बॉक्स और एडमिट कार्ड निकाला और अपना बैग आदिल को पकड़ाकर अंदर चली गई।
आदिल कुछ देर तो इधर-उधर घूमता रहा, फिर खामोशी से एक जगह बैठ गया। उसे बैठे अभी कुछ देर ही हुई थी कि तभी उसका फोन बज उठा। वहीं स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। उसने बिना वक़्त गँवाए फोन रिसीव किया।
"हेलो आदि भाई..."
"आदिल!... घर कब जा रहे हो..?" आदित ने अपनी गंभीर सी आवाज़ में पूछा।
"अभी एक-दो दिन अंकल के यहीं रुकूँगा। फिर घर ही आऊँगा।"
"मैं कुल्लू आ रहा हूँ।" आदित ने सपाट लहजे में कहा।
"व्हाट.. भाई पर आप तो... कल पापा ने बताया कि आप जयपुर गए हैं...? किसी ज़रूरी मीटिंग के लिए तो आप यहाँ...?" आदिल ने चौंकते हुए कहा।
"मीटिंग हुई नहीं... क्योंकि जिस क्लाइंट को जयपुर आना था, उनकी बीवी की तबीयत खराब हो गई और वह आए नहीं... तो उनसे बात होकर पता चला कि वह कुल्लू से ही है। तो बस मैं वहीं आ रहा हूँ।"
"ओह्ह्ह् ये बात है... ठीक है। मैं अंकल को बता दूँगा कि आज आप आ रहे हैं।" आदिल ने मुस्कुराकर कहा।
"नहीं! उसकी ज़रूरत नहीं है। मैं वहीं किसी होटल में रुक जाऊँगा।"
"और अगर आपके होटल में रुकने की बात उन्हें पता चली तो पता है ना कि वह कितना हर्ट होंगे। इसलिए कह रहा हूँ।" आदिल ने तुरंत कहा तो आदित ने कुछ सोचकर हाँ कर दी। और फिर फोन रख दिया।
क्रमश:
आदिल को एग्ज़ाम सेंटर के बाहर लगभग तीन घंटे बैठे हुए बीत चुके थे। एग्ज़ाम खत्म होते ही स्कूल का गेट खुल गया था। एक-एक कर स्टूडेंट्स वहाँ से जाने लगे। आदिल उन स्टूडेंट्स की भीड़ में शिजा का चेहरा ढूँढने लगा। तभी उसकी नज़र सबसे आखिर में आती शिजा पर गई, जिसका चेहरा काफी लटका हुआ सा महसूस हुआ उसे।
"एग्ज़ाम कैसा हुआ..?" शिजा जैसे ही उसके पास आई, तो वह उससे पूछ बैठा।
"बिल्कुल भी अच्छा नहीं हुआ.." कहते हुए शिजा का गला रुँध चुका था और आँखें पनीली हो गई थीं।
"हे कुड्डो! क्या हो गया, एक पेपर ही तो था। कोई बात नहीं...अगर अच्छा नहीं हुआ तो कुछ नहीं होता..." आदिल ने तुरंत शिजा के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया था।
"इतना मुश्किल पेपर था। दो क्वेश्चन रह गए...क्योंकि मुझे आते ही नहीं थे..."
"दो क्वेश्चन ही तो थे...रोओ मत! अच्छा, वैसे कितने मार्क्स के थे...?" आदिल ने उसके आँसुओं को साफ़ करते हुए काफी सहजता से पूछा।
"दो-दो नंबर के थे। चार नंबर तो कट ही गए।"
"चार नंबर...?" आदिल ने अजीब नज़रों से उसे देखा। जो चार नंबर के लिए रो रही थी। "पता है, मैं सिर्फ़ पास होने जितना एग्ज़ाम में लिखकर आता था।"
"हाँ! क्योंकि तुम एक नंबर के डफर हो। मैं मेरी क्लास की टॉपर गर्ल हूँ। हाँ, माना कि इस बार प्री बोर्ड में वो छिपकली विद्या के मार्क्स ज़्यादा थे, पर ज़्यादा नहीं, सिर्फ़ दो मार्क्स से...वरना मैं ही टॉप करती हूँ हर बार..." शिजा ने मुँह बिगाड़कर कहा और अपना सारा सामान बैग में रख, बैग को पीठ पर लटका लिया।
"मुँह मियाँ मिट्ठू..." आदिल ने अपनी आँखें छोटी करके उसे घुरा। तो वह हल्का सा मुस्कुरा दी।
दोनों पैदल ही वहाँ से आगे बढ़ गए। दोनों ही बराबर में चल रहे थे। तभी आदिल, चलते हुए उसकी ओर देखकर बोला,
"आदि भाई आ रहे हैं..."
"आदित...?" शिजा चलते हुए अचानक रुक गई और आदिल की ओर चौंकते हुए देखा।
"हाँ, आदि...आदित भाई। लेकिन तुम इतनी हैरान क्यों हो रही हो...?"
"नहीं! नहीं!...वह तुमने एकदम से कहा ना, तो मैं थोड़ा हैरान हो गई। (थोड़ा रुककर) तो तुमने मुझे पहले यह क्यों नहीं बताया...चलो जल्दी घर चलते हैं..." कहते हुए शिजा ने खुद को तुरंत सम्भाला फिर आगे बढ़ गई।
"अच्छा, वैसे कब तक आ रहे हैं...? क्या हम जब तक घर पहुँचेंगे, वो आ मिलेंगे...?"
"नहीं। अभी नहीं!"
"ओके...अच्छा, वैसे क्यों आ रहे हैं...? मतलब कुछ काम है क्या...? या फिर यूँ ही घूमने...?"
"नहीं!...कोई काम ही है भाई को, वरना...उनके पास इतना समय कहाँ, जो वह घूम सकें।" आदिल ने मुस्कुराकर कहा तो शिजा ने कुछ सोचकर अपनी गर्दन हाँ में हिला दी।
कुछ देर बाद दोनों घर पहुँचे। शिजा बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। वहीं आदिल, कविता जी और शिवानी के पास हॉल में ही बैठ गया। शिजा ने अपने बैग को साइड में फेंका, तभी उसकी नज़र बेड पर रखे एक नए फ़ोन पर पड़ी, जिसे देखकर वह खुशी से उछल पड़ी। उसने जल्दी से उसे खोला। तो वाकई! उसके अंदर एक नया फ़ोन था।
"थैंक्यू...पापा..." शिजा ने खुशी से फ़ोन को चूमकर उसे अपने सीने से लगा लिया। तभी उसके दिमाग में आदित का ख्याल आया। तो उसके चेहरे की मुस्कान और बढ़ गई। शिजा ने अपने फ़ोन को वहीं बेड पर रखा और खुद अलमारी की ओर बढ़ गई। उसने उसमें से अपनी सबसे नई वाली ड्रेस निकाली, जो कि ब्लू कलर का एक कश्मीरी सूट था। कपड़े चेंज करके वह ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हुई और अपने बालों को खोल दिया, जो कि उसकी कमर तक आ रहे थे। जिन्हें उसने काफी करीने से सेट कर दिया था। माथे के बीचो-बीच एक छोटी सी क्रिस्टल वाली बिंदी लगाई और उसी के साथ होठों पर हल्की सी लिपस्टिक लगाकर, उसने अपने नए फ़ोन को उठाया और बाहर आ गई।
वहीं आदिल की नज़रें जब उस पर गईं, तो एक लम्हे के लिए वह उससे अपनी नज़रें हटाना ही भूल चुका था। सादगी में भी कोई इतना खूबसूरत कैसे लग सकता था, आदिल ने मन-ही-मन सोचा और फिर अपना सिर झटक दिया।
"शिजा!...कहीं जा रही हो तुम...?" कविता जी ने उसे इतना तैयार देखा तो वह पूछ बैठी।
"नहीं, मम्मी!...मैं तो यहीं हूँ।" शिजा ने नॉर्मल से अंदाज़ में कहा।
"बहुत प्यारी लग रही हो...पर ये इतनी तैयार किस खुशी में हुई...? (सोचते हुए) क्या नया फ़ोन आया इसलिए ताकि तुम उसमें अपनी अच्छी-अच्छी फ़ोटोज़ क्लिक कर सको...?" शिवानी ने मुस्कुराकर कहा तो शिजा ने अपनी गर्दन हाँ में हिला दी। लेकिन! असल सच्चाई तो वह काफी अच्छे से जानती थी कि आखिर वह इतनी तैयार क्यों हुई थी...?
"पागल लड़की है ये...(आदिल की ओर देखकर) बेटा, मैं अभी खाना लगाती हूँ। तब तक तुम हाथ-मुँह धो लो..." कविता जी वहाँ से उठकर अंदर रसोई में चली गई।
आदिल ने उठकर उसका फ़ोन लिया और उसमें कैमरा ओपन कर बोला, "आओ! तीनों साथ में एक सेल्फी लेते हैं।"
"हाँ! हाँ! चलो..." कहते हुए शिजा तुरंत आदिल की बाजू पकड़ खड़ी हो गई। तो वहीं शिजा के अचानक इतने करीब आने से आदिल की धड़कनें थोड़ा तेज हो गईं। लेकिन! ये बात उसने ज़ाहिर नहीं होने दी। पर शिवानी से बच भी नहीं पाई थी। वह शिजा के पास आकर खड़ी हो गई जबकि उसका सारा ध्यान आदिल और शिजा के बनते-बदलते एक्सप्रेशंस पर था। वहीं उसके दिमाग़ में कुछ अलग ही खिचड़ी पकनी शुरू हो गई थी। जिसकी ख़बर दूर-दूर तक शिजा को नहीं थी।
क्रमश:
शाम तक आदित अपने सामान के साथ अभिमान जी के घर के सामने खड़ा था। अंदर से काफी हल्ले की आवाज़ें आ रही थीं। उसने एक गहरी साँस लेकर धीरे से दरवाज़ा खटखटाया।
रसोई में काम करती कविता जी के कानों में दरवाज़े की खटखटाहट पड़ी। वे हॉल में झाँकती हुईं शिजा और आदिल से बोलीं, जो एक-दूसरे से लड़-झगड़ रहे थे।
"अरे! रुक भी जाओ... जरा देखो शिजा, कौन आया है दरवाज़े पर?"
कविता जी की बात सुनकर शिजा ने हाथ में पकड़े तकिए को नीचे रखा और आदिल को घूरते हुए बोली,
"बदला लिया जाएगा... याद रखना..." वह दरवाज़े की ओर बढ़ गई। दरवाज़ा खोलते ही सामने आदित को खड़ा देखकर उसके दिल में एक झटका सा लगा। आदित ने अपनी आँखों पर से शेड्स हटाए और शिजा की ओर देखा। उसके चेहरे के भाव ऐसे थे मानो वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। शिजा हल्का सा मुस्कुरा कर उसे देख रही थी। आदित को देखकर उसके दिलो-दिमाग में घंटियाँ बज रही थीं।
"शिजा... ये तुम हो...?" आदित ने सधी हुई आवाज़ में पूछा।
आदित की आवाज़ सुनकर वह अपने होश में आई। उसने खुद को संभाला और मुस्कुराकर अपना सिर हाँ में हिला दिया। उसे हाँ करते देख आदित ने हैरान नज़रों से उसे देखा।
"तुम तो बड़ी हो गई हो... पहले जब देखा था तो एकदम छोटी सी थी तुम..."
"हाँ! हाँ! बड़ी हो गई हूँ आदि!... आपको पता है मेरे ट्वेल्थ के एग्ज़ाम आज खत्म हो गए।" शिजा ने चहकते हुए कहा।
"वेरी गुड!..." आदित हल्का सा मुस्कुराया। फिर थोड़ा रुककर बोला, "अब अंदर भी आने दोगी या फिर यहीं बाहर ही खड़ा रखने का इरादा है...?"
"ओह!... सॉरी... आइए। आइए अंदर..." शिजा तुरंत आगे हटी। आदित अपना बैग लेकर अंदर आ गया। शिजा ने दरवाज़ा बंद किया और भागकर अंदर आई।
"आदिल!, मम्मी... आदि आ गए हैं।" शिजा ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा। कविता जी रसोई से बाहर आ गईं। आदिल उठकर अपने भाई के गले लगा। आदित ने उसकी पीठ थपथपाई और कविता जी के पैर छुए।
"अरे! बस...बस बेटा। हमेशा खुश रहो। भगवान तुम्हारी ज़िंदगी में एक अच्छी सी लड़की को भेज दे।" कविता जी ने मुस्कुराकर उसके गाल को थपथपाया।
"बिल्कुल! सही आशीर्वाद दिया है आंटी। वैसे भी अब भाई को वाकई एक अच्छे जीवनसाथी की ज़रूरत है। कब तक यूँ ही अकेले रहेंगे? अट्ठाईस के तो हो ही चुके हैं।" आदिल ने तुरंत कहा। उसकी बात सुनकर कविता जी मुस्कुरा दीं। आदित ने अपने छोटे भाई को घूरा, मानो उसे यह सब कहना पसंद नहीं आया हो। आदिल ने अपने दाँत दिखा दिए। आदित ने अपना सिर हिला दिया।
"आप दोनों भी कैसी बातें करने लगे हो? आदि को बैठने तो दो। आते ही सवाल पर सवाल पूछ रहे हो।" शिजा ने कहा क्योंकि आदित के लिए अच्छी जीवनसाथी वाली बात उसे बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी थी।
"मैं भी ना... आदित बेटा, तुम बैठो। मैं तुम्हारे लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूँ।" इतना कहकर कविता जी चली गईं।
"भाई! आओ यहाँ बैठो।" आदिल ने आदित को सोफे पर बिठाया और खुद भी उसके पास बैठ गया। शिजा मुस्कुराकर वहाँ खड़ी थी। आदिल ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने बगल में बिठा दिया।
"कुड्डो! तुम यहाँ बैठो..."
इस वक्त आदिल, आदित और शिजा सोफे पर बैठे थे। आदिल आदित से बातें कर रहा था। शिजा चोरी-छिपे आदित को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी। बाहर से आवाज़ें सुनकर शिवानी भी हॉल में आ गई थी।
डिनर के बाद कविता जी सारा काम समेटकर कमरे में सोने चली गईं। आदिल, आदित, शिजा, शिवानी और अभिमान जी हॉल में बैठकर बातें कर रहे थे। हाँ, यह बात अलग थी कि आदित उन सबके बीच बैठकर भी वहाँ नहीं था। वह अपना लैपटॉप खोले काम कर रहा था। कुछ देर बाद अभिमान जी ने सबको सोने को कहा और खुद भी चले गए।
"आदि!... हम सब से बातें करो, क्या आप यह लैपटॉप लेकर बैठ गए? एक तो इतने दिन बाद आए हैं... पूरे 4 साल बाद...और...और ऊपर से यह काम करने लगे...?" शिजा, शिवानी की तरफ़ से उठकर आदित के पास आई और उसकी बाजू पकड़कर थोड़े शिकायती लहजे में बोली।
"हाँ भाई!, किड्डो सही कह रही है। प्लीज़ अब तो बंद कर दीजिए यह..." आदिल ने शिजा की बात पर सहमति जताई। आदित ने हल्का सा मुस्कुराकर लैपटॉप बंद कर दिया और सबकी ओर देखकर बोला,
"लो!... कर दिया। अब बताओ क्या करना है...?"
"मुझसे शादी करेंगे आप...?" शिजा ने झट से कहा। उसकी बात सुनकर कुछ देर के लिए वहाँ सन्नाटा छा गया।
क्रमश:
"मुझसे शादी करेंगे आप...?" शिजा ने झट से कहा। उसकी बात सुनकर कुछ देर के लिए वहाँ सन्नाटा छा गया था।
थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद शिवानी और आदिल ठहाके लगाकर हँस दिए। आदित ने मुस्कुराकर अपनी गर्दन ना में हिला दी और शिजा की ओर देखकर थोड़ा मजाकिया अंदाज़ में कहा,
"हाँ! हाँ! करूँगा। लेकिन तुम बड़ी तो हो जाओ..."
"लेकिन! जब आप आए थे तब तो आपने कहा था कि मैं बड़ी हो गई हूँ...?"
"बेबू! आदित के साथ मज़ाक करने की आदत गई नहीं तुम्हारी। जब छोटी थी तब भी इसका यही सवाल होता था और अब बड़ी हो गई है, अब भी यही सवाल है।" शिवानी हँसते हुए बोली। आदिल ने भी मुस्कुराकर उसकी बात में सहमति जताई।
"ठीक कहा भाभी आपने... हमारी किड्डो बहुत नॉटी है।"
आदित ने प्यार से उसके सिर को थपथपाया और उसे समझाते हुए बोला,
"शिजा! अब तुम बड़ी हो गई हो। हमें पता है कि तुम मज़ाक कर रही हो क्योंकि तुम बचपन में भी यही करती थी। लेकिन! अगर कोई और सुनेगा तो उसे तो लगेगा ना कि तुम मज़ाक नहीं कर रही हो। तो थोड़ा सोच-समझकर, किससे क्या बातें करनी चाहिए... ये सब तुम्हें ध्यान रखना होगा... क्योंकि हर कोई हम सब के जैसा नहीं होता, जो तुम्हें समझे।"
आदित की बात सुनकर शिवानी और आदिल ने हाँ में गर्दन हिलाई। शिजा बिना कुछ कहे आदित को देख रही थी। शिजा के चेहरे से साफ़ लग रहा था कि उसने अभी कोई मज़ाक नहीं किया था। आदित के साथ शादी को लेकर वह हमेशा से ही सीरियस थी। शादी के बारे में उसने कभी मज़ाक नहीं किया था। लेकिन बाकी घरवालों ने ज़रूर उसे मज़ाक में उड़ा दिया था। एक यही तो ख़्वाहिश थी उसकी कि वह आदित की दुल्हन बने। क्योंकि उसे हमेशा से ही आदित की दुल्हन बनना था।
"रात बहुत हो गई है, चलो अब सो जाते हैं।" आदित अपने लैपटॉप को लेकर उठ खड़ा हुआ और सबको गुड नाईट बोलकर गेस्ट रूम में चला गया। आदित के जाने के बाद आदिल भी चला गया। शिवानी और शिजा अपने कमरे में आ गईं। शिवानी तो बेड पर लेटते ही सो गई थी, लेकिन शिजा की आँखों में आज नींद कोसों दूर थी। वह एकटक सीलिंग को देख रही थी, जबकि उसके मन में काफ़ी कुछ चल रहा था।
"मैंने कोई मज़ाक नहीं किया आदि! मैं आपसे ही शादी करना चाहती हूँ।" वह मन-ही-मन बोली। उसका गला रुँध चुका था और आँखें पनीली हो चुकी थीं, जिन्हें उसने बिल्कुल भी नहीं पोछा। बस उन आँसुओं को बहने दिया। "आप भी तो कहते थे कि जब मैं बड़ी हो जाऊँगी तब आप मुझसे शादी करेंगे। मुझे नहीं पता... मुझे बस आपसे ही शादी करनी है। चाहे कुछ हो जाए।" कहते हुए शिजा ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं।
सुबह के नाश्ते के बाद आदित अपने क्लाइंट के साथ मीटिंग के लिए निकल गया था। अभिमान जी अपनी दुकान पर थे और कविता जी किसी काम से बाहर गई थीं। शिजा अब वापस नॉर्मल हो चुकी थी। वह आदिल के साथ मिलकर धमाचौकड़ी मचा रही थी। शिवानी दोपहर के खाने की तैयारी कर रही थी।
"शिजा!... तुम हार जाओगी।" आदिल ने मुस्कुराकर कहा।
"मैं लूडो में कभी नहीं हारती।" शिजा ने उसे घूरते हुए कहा।
दोनों ही इस वक़्त शिजा के नए फ़ोन में लूडो खेल रहे थे। आदिल बस उसे परेशान करने के लिए बार-बार उसके हारने की बात कह रहा था क्योंकि उसे बड़ा ही मज़ा आ रहा था उसे यूँ चिढ़ाने में। और वह बुरी तरह चिढ़ भी रही थी। कुछ देर बाद जब शिजा को लगा कि अब वह हार रही है तो उसने अपना फ़ोन लेकर मुँह फुलाकर अपने कमरे में चली गई, यह कहते हुए कि, "अब मेरा मन नहीं कर रहा खेलने का..."
और उसकी इस हरकत पर आदिल हँस दिया था। वह काफ़ी अच्छे से वाकिफ़ था शिजा की इस आदत से। खाना बनाकर शिवानी बाहर आई तो आदिल को अकेला बैठा पाया। वह उसके पास आकर बैठी और शांत से लहज़े में बोली,
"क्या चल रहा है ये सब आदिल...?"
"क्या...?" आदिल को समझ नहीं आया कि आखिर शिवानी किस बारे में बात कर रही है।
"डू यू लाइक शिजा...?" शिवानी ने सीधा ही सवाल कर दिया था। शिवानी का सवाल सुनकर आदिल का दिल धड़क से हुआ। उसका चेहरा एकदम सफ़ेद पड़ गया, मानो उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो, जिसे वह सब से छिपाने की कोशिश कर रहा हो...?
"ओके! ओके!... बताओ क्या तुम शिजा को पसंद करते हो...? मतलब उससे प्यार...? देखो! आदिल... तुम्हें मुझसे कुछ भी छिपाने की ज़रूरत नहीं है। हम हमेशा से ही फ़्रेंड्स की तरह रहे हैं। आई प्रॉमिस मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगी... और-तो-और शिजा को भी नहीं जब तक तुम नहीं चाहोगे..." शिवानी ने काफ़ी सहजता से कहा। आदिल हल्का सा मुस्कुरा दिया, फिर थोड़ा रुककर बोला,
"मुझे नहीं पता कि प्यार क्या होता है। लेकिन मुझे शिजा के साथ रहना पसंद है। उसकी बेतुकी बातें, उसकी बेतुकी हरकतें, उसके बेतुके जॉक्स...(हँसते हुए) आपको पता है, हँसी उसके जॉक्स सुनकर नहीं, बल्कि जैसे वो कहते हुए सौ तरह के आड़े-तिरछे मुँह बनाती है, उन पर आती है। उसकी मासूमियत... उसका बचपना... मुझे सब अच्छा लगता है। और मैं ये भी अच्छे से जानता हूँ कि जैसा मैं उसके लिए फ़ील करता हूँ, वैसा वो नहीं करती। बस इंतज़ार है कि वह भी महसूस करे, जैसा मैं करता हूँ उसके लिए..."
"मेरी शिजू! मेरी देवरानी बनेगी तो मुझसे ज़्यादा खुशी किसी को नहीं होगी..." शिवानी ने मुस्कुराकर आदिल के कंधे को थपथपाया। आदिल के चेहरे की मुस्कान और बढ़ गई।
"लेकिन! तुम्हें इंतज़ार करना पड़ेगा क्योंकि उसके अपने कुछ सपने हैं जिसे वह पूरा करना चाहती है। उसके बाद बेशक! तुम उससे शादी कर सकते हो..." शिवानी ने थोड़ा रुककर कहा। आदिल ने अपनी गर्दन हिला दी।
"मैं चाहता भी नहीं कि वह किसी पाबंदियों में रहे। उसे जो करना है वह करे।"
"बहुत ही अच्छे थॉट्स हैं।" शिवानी ने कहा। आदिल बस मुस्कुराकर रह गया।
क्रमश:
शाम को आदित घर वापस आया। उसकी डील सफल रही थी, जिसकी खुशी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। रात का खाना खाकर सब लोग फ़्री हुए ही थे कि मोक्ष जी का फ़ोन अभिमान जी के पास आया। अभिमान जी उठकर अपने कमरे में गए और आराम से बिस्तर पर बैठकर मोक्ष जी का कॉल रिसीव किया।
"हेलो.. मोक्ष, कैसा है मेरा यार..?" अभिमान जी ने मुस्कुराकर पूछा।
सामने से मोक्ष जी ने भी मुस्कुराते हुए कहा, "मैं तो ठीक हूँ, तूँ सुना और कैसा चल रहा है सब..?"
"सब बढ़िया।"
"आदिल बता रहा था शिजा के एग्ज़ाम ख़त्म हो गए। तो मैं क्या कह रहा हूँ कि आदित और आदिल कल दिल्ली आ ही रहे हैं, तो एक काम करना, बच्ची को कल उनके साथ भेज देना। कुछ दिन हमारे यहाँ रुकने के लिए...(थोड़ा रुककर) अगर तूने कोई ना-नुकुर की तो लड़ाई हो जाएगी... भेज देना चुपचाप।" मोक्ष जी ने काफी सख्ती से कहा। अभिमान जी मुस्कुरा दिए।
"मेरी इतनी जुर्रत है क्या भला..? जो मैं तुझे मना कर सकू.. भेज दूँगा।"
"ये हुई ना बात... अच्छा मुझे ना एक और बात करनी है।"
"हाँ बोल ना..?"
"भाई अब एक अच्छे से मुहूर्त पर शादी कर देते हैं बच्चों की... आहिल की इंटर्नशिप भी अगले महीने पूरी हो जाएगी। अब तक कुछ नहीं कहा क्योंकि बच्चों का फ़ैसला था, लेकिन! मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता।"
"मोक्ष, तुमने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। मैं भी यही चाह रहा था। दोनों की सगाई को चार साल हो गए। अब शादी भी करवा ही देते हैं।"
"ठीक है, तो मैं पंडित जी से पूछकर बताऊँगा.. आस-पास अगर कोई अच्छा और शुभ मुहूर्त निकला तो..."
"ठीक है।"
अभिमान जी और मोक्ष जी ने कुछ देर बात की और फिर फ़ोन रख दिया। मोक्ष जी ने फ़ोन को बंद करके साइड में रखा, तो आरोही जी उन्हें घूरकर देख रही थीं।
"अब क्या हुआ..?"
"मैंने आपको कहा था ना कि शिजा का रिश्ता माँगो... लेकिन! आपने ऐसा नहीं किया..? बात तक नहीं की इस बारे में, क्यों मोक्ष जी...?"
"इसलिए क्योंकि शिजा! बच्ची है। और कहाँ तुम उसका रिश्ता माँगने की बात कह रही हो। अभी तो उसने ट्वेल्थ की है। अगर मेरे बात करने के बाद अभिमान कन्विन्स हो भी गया तो मुझे ये कुछ सही नहीं लग रहा। बाल विवाह के चक्कर में जेल जाओगी..."
"कोई बाल विवाह नहीं हो रहा। और वो 19 साल की हो जाएगी तीन महीने बाद... ऐसा कविता जी कह रही थी। क्योंकि जब उसके टेंथ के बोर्ड एग्ज़ाम थे तब वो बीमार पड़ गई थी जिस कारण वो एग्ज़ाम दे नहीं पाई थी और वही एग्ज़ाम फिर उसने अगले साल दिए थे। हाँ! ठीक है, माना कि मेरे बेटे की उम्र उससे थोड़ा ज़्यादा है। पर इतना तो चलता है।" आरोही जी तुरंत बोलीं।
"कहाँ शिजा 19 साल और कहाँ आदिल 24..."
"अरे ठीक तो है। मुझे तो कुछ खराबी नहीं लग रही।"
"अभी एक-दो साल रुक जाते हैं।"
"नहीं!.. आदित के लिए मैं लड़की ढूँढ रही हूँ। आहिल की शादी के साथ.... मुझे मेरे बाकी दोनों बेटों की भी शादी करा देनी है। अगर आप में हिम्मत नहीं उनसे बात करने की तो मैं खुद ही कर लूँगी कल..."
"आरोही जी समझिए प्लीज... वो अभी बच्ची है। उसके भी अपने कुछ सपने होंगे..."
"हाँ तो शादी के बाद उसे कोई मनाही नहीं... वो जो करना चाहती है करे।"
"उफ़्फ़! मैं आपको कैसे समझाऊँ..."
"मुझे नहीं ज़रूरत कुछ समझने की, बल्कि आपको है कि आप समझे... शिजा मेरे घर की छोटी बहू बनेगी, मतलब बनेगी!... मुझे अपने तीनों बेटों की शादी एक ही दिन करनी है। तो करनी है, बस.. बात ख़त्म..." आरोही जी मोक्ष जी की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थीं। बस उन्होंने तो मन बना लिया था।
"शिजा बेटा... जाओ अपना सामान पैक करो..." अभिमान जी वापस हॉल में आते हुए शिजा से बोले तो वही उनकी बात सुन सभी ने सवालिया निगाहों से उन्हें देखा।
"क्यों पापा..?" शिजा ने सवाल किया।
"थोड़े दिन घूम आओ।"
"कहाँ..?"
"दिल्ली! तुम्हारे अंकल बुला रहे थे तुम्हें... कल आदित और आदिल के साथ चली जाना..." अभिमान जी ने जैसे ही यह कहा शिजा खुशी से उछलते हुए उनके गले लग गई।
"थैंक्यू पापा..."
"अच्छा अब जाओ...(शिवानी की ओर देखकर) शिवानी मदद करो इसकी..." अभिमान जी ने मुस्कुराकर कहा तो शिवानी ने अपनी गर्दन हिला दी और शिजा के साथ अपने कमरे में चली गई।
"भाई! मैं एक और टिकिट बुक कर देता हूँ।" आदिल मुस्कुराकर तुरंत आदित से बोला तो उसने भी अपनी गर्दन हिला दी।
"अच्छा! बच्चों अब सो जाओ... सुबह तुम्हें निकलना भी है।" कविता जी सोफे से उठते हुए बोलीं और अपने कमरे में चली गईं। उनके साथ ही अभिमान जी भी चले गए।
"थैंक्यू! थैंक्यू! थैंक्यू सो मच पापा..." आदिल मन-ही-मन खुशी से बोला। वह वाकई! बहुत खुश था शिजा के दिल्ली आने की बात से। और यह सब पॉसिबल हुआ था मोक्ष जी के कारण और उन की इसी बात पर फ़िलहाल! आदिल को बड़ा प्यार आ रहा था उन पर।
"मोक्ष भाई साहब को हाँ करने से पहले एक बार मुझसे तो पूछ लेते आप... कि शिजा को भेजना है या नहीं..." कविता जी कमरे में आते ही बोल उठीं।
"इसमें पूछने वाली कौन सी बात है कविता जी.. हो आएगी कुछ दिन... उसके लिए भी थोड़ा बदलाव सा हो जाएगा। और वैसे भी आज तो उसके एग्ज़ाम ख़त्म हुए हैं... अब निश्चिंत होकर घूमेगी।"
"आपने बिगाड़कर रख दिया है उसे..." कविता जी मुँह बनाकर बोलीं तो अभिमान जी मुस्कुरा उठे।
क्रमश:
"शिजा! .. शिजा! .. उठो, हम दिल्ली आ गए..?" ट्रेन दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आ रुक गई थी। पूरा सफर शिजा ने सोते हुए निकाला था, जबकि आदिल ने सोती हुई शिजा को निहारते हुए बिताया था। आदित भी पूरे सफर के दौरान अपना लैपटॉप खोले बैठा रहा था। शिजा अभी भी सो रही थी, तो आदिल ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए धीरे से कहा,
"इतनी जल्दी...?" शिजा ने उनींदी सी आवाज़ में अपनी आँखें मलते हुए कहा। आदित अपने बैग्स को ऊपर वाली सीट से उतारते हुए बोला, "हाँ! शायद.."
जैसे ही तीनों बाहर आए, उन्हें आहिल दिख गया। शायद वह उनका ही इंतज़ार कर रहा था। आहिल को देखकर शिजा बच्चों की तरह खुश होकर सीधे उसके गले लग गई। आहिल ने भी मुस्कुराकर उसका सिर थपथपाया।
"कैसी हो शिजा..?"
"मैं तो बढ़िया हूँ जीजू! .. आप बताइए, आप कैसे हैं..? (उससे अलग होकर उसे थोड़ा गौर से देखते हुए) क्या बात है जीजू! दिन-ब-दिन आप तो कुछ ज़्यादा ही हैंडसम होते जा रहे हैं.." शिजा ने थोड़े मज़ाकिया लहजे में कहा तो आहिल हँस दिया। फिर थोड़ा इत्तराते हुए बोला, "मैं तो पैदा ही हैंडसम हुआ था..."
"ये भी है.." कहते हुए शिजा खिलखिला दी। आदित और आहिल आगे बढ़ गए। आदिल शिजा के साथ-साथ चलते हुए, अपने बालों में हाथ घुमाकर बोला, "और मैं..?"
"क्या..?" शिजा ने नावाकिफ बनते हुए पूछा।
"अरे! .. क्या मैं हैंडसम नहीं हूँ..?"
"ओह्ह्! .. तुम भी हो.. लेकिन! जीजू और आदि से कम.."
"अब आदि भाई बीच में कहाँ से आ गए।" आदिल ने मुँह बनाया। लेकिन शिजा उसकी बात नहीं सुन पाई।
कुछ देर बाद सभी घर पहुँचे। आरोही जी और मोक्ष जी वहाँ उनका ही इंतज़ार कर रहे थे। शिजा को देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए। आहिल और आदित अपने कमरे में चले गए। बाकी सब हॉल में बैठे बातें कर रहे थे।
"शिजा बेटा! घर पर सब ठीक है ना..?" आरोही जी ने पूछा तो शिजा ने मुस्कुराकर अपनी गर्दन हिला दी। "हाँ आंटी! घर पर सब ठीक है। आप सभी के लिए उन्होंने अपना प्यार भेजा है।"
आरोही जी और मोक्ष जी दोनों ही मुस्कुरा दिए। तभी आदिल आरोही के कंधे पर अपना सिर रखकर बोला, "पता है आपको मम्मी! .. ये शिजा पूरे रास्ते सोती आई है।"
"तो तुमको क्या दिक्कत है.. है ना आंटी..?"
"बिल्कुल!" शिजा की हाँ-में-हाँ मिलाती हुई आरोही जी ने कहा। तो आदिल ने मुँह बना लिया। "क्या मम्मी! आप तो इसके आते ही इसकी साइड लेने लगीं।"
"मैं तो अपनी बहू की साइड लूंगी ही..." सहसा ही आरोही जी की ज़ुबान फिसल गई थी। उनकी बात सुनकर मोक्ष जी ने अपना सिर पकड़ लिया, जबकि शिजा हैरत सी नज़रों से उन्हें देख रही थी। आदिल का भी रिएक्शन कुछ ऐसा ही था। जल्द ही आरोही जी को अपनी गलती का एहसास हो गया कि शायद जल्दबाजी में उन्होंने कुछ गलत कह दिया। वह अपना गला साफ करती हुई बोली, "वो... वो.. मेरा मतलब था कि मैं अपनी बेटी की साइड लूंगी ही... गलती से बहू निकल गया..."
आरोही जी की बात सुन शिजा और आदिल नॉर्मल हो चुके थे, जबकि मोक्ष जी ने अपना सिर हिला दिया था क्योंकि वे काफी अच्छे से जानते थे कि आरोही जी के कहने का क्या मतलब था।
"आदिल! .. जाओ शिजा को गेस्ट रूम दिखाओ। मैंने उसे रेडी करवा दिया है। थोड़ी देर आराम कर लेगी वो... मैं और तेरे पापा किसी काम से बाहर जा रहे हैं। शाम तक आ जाएँगे।" आरोही जी ने कहा तो आदिल ने अपना सिर हिला दिया। वह शिजा को लेकर गेस्ट रूम की तरफ़ बढ़ गया, जबकि आरोही जी और मोक्ष जी अपने काम से बाहर चले गए।
"ये है तुम्हारा रूम.." आदिल गेस्ट रूम का दरवाज़ा खोलते हुए बोला और दोनों अंदर आ गए। शिजा गेस्ट रूम को देखती हुई सीधे बेड पर जा बैठी।
"अच्छा है..?"
"हाँ.."
"अच्छा! तुम अब आराम करो.. अगर किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरा रूम कॉर्नर वाला ही है।"
"ठीक है।"
आदिल मुस्कुराकर वहाँ से चला गया। उसके जाते ही शिजा बेड पर गिर गई।
कुछ ही देर में आरोही जी और मोक्ष जी दोनों ही मंदिर के प्रांगण में बैठे थे और उनके सामने एक पंडित जी शायद पत्रा देख रहे थे। आरोही जी और मोक्ष जी उनके बोलने का ही इंतज़ार कर रहे थे।
"देखिए महाशय! आपने जो कुंडलियाँ दिखाई थीं उसके हिसाब से.. शादी के लिए एक अच्छा मुहूर्त पन्द्रह दिन बाद का है।"
"पन्द्रह दिन बाद का तो कुछ ज़्यादा ही जल्दी हो गया पंडित जी.. कोई और हो तो बताइए..?" आरोही जी ने कहा।
"फिर एक और मुहूर्त है (थोड़ा रुककर) लेकिन! वह एक साल बाद का है। यानी आपको 1 साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा।" पंडित जी ने एक और मुहूर्त बताया तो आरोही जी और मोक्ष जी दोनों ही किसी सोच में पड़ गए।
"ठीक है, 15 दिन वाला मुहूर्त फिक्स करते हैं।" कुछ देर बाद आरोही जी ने कहा तो मोक्ष जी चौंक पड़े। वह थोड़े धीमे स्वर में बोले, "आरोही जी आप क्या कह रही हैं? 15 दिन में तो कुछ भी नहीं होगा..."
"हम मिलकर कर लेंगे क्योंकि मैं एक साल तक का इंतज़ार नहीं कर सकती अब।" आरोही जी ने साफ़ शब्दों में कह दिया था जिसके बाद मोक्ष जी कुछ नहीं बोले।
थोड़ी देर पंडित जी से बात करने के बाद दोनों ही मंदिर से बाहर आ गए। गाड़ी में बैठते ही आरोही जी बोल उठीं, "15 दिन बाद मैं अपने तीनों बेटों की शादी करवाऊंगी।"
"आप कुछ ज़्यादा ही जल्दबाज़ी नहीं कर रही हैं..?"
"मैं कोई जल्दबाज़ी नहीं कर रही हूँ। आज ही मैं कविता जी और अभिमान भाई साहब से बात करूंगी। मुझे पता है कि वे इनकार नहीं करेंगे और आदि के लिए भी एक लड़की मिल गई है। कल उसे भी जाकर देख आऊंगी।" आरोही जी ने कहा तो मोक्ष जी ने अपनी गर्दन हिला दी।
क्रमश:
रात के खाने के बाद, आदिल शिजा को आइसक्रीम खिलाने बाहर ले आया था। आहिल भी उनके साथ आ गया था। आहिल खोए-खोए से अंदाज़ में अपनी आइसक्रीम खा रहा था। शिजा और आदिल काफी देर से यह बात नोटिस कर रहे थे। तभी शिजा कुछ सोचकर बोली,
"जीजू..?"
"उम्! हां..!"
"कहाँ खोए हुए हैं आप..?"
"कहीं भी तो नहीं.." आहिल ने तुरंत कहा। शिजा और आदिल एक-दूसरे को देखने लगे। किसी के कुछ कहने से पहले ही आहिल का फ़ोन बज उठा। वह शांति से बात करने के लिए एक तरफ़ चला गया।
"जीजू और शावू! में लड़ाई हुई है।"
"हाँ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। और यह सिलसिला काफी समय से चल रहा है। मैंने भाभी से बात करनी चाही, लेकिन उन्होंने यह कहकर टाल दिया कि सब ठीक है।" आदिल ने शिजा की बात में हामी भरी।
"ना यहाँ जीजू ठीक है और ना वहाँ शावू! अब हमें ही कुछ करना होगा जिससे इन दोनों के बीच सब ठीक हो जाए।"
"हाँ! पर क्या..? मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करूँ..?"
"सोचते हैं।" शिजा ने आइसक्रीम खाते हुए कहा। आदिल ने बस अपनी गर्दन हिला दी। कुछ देर बाद आहिल वापस आया। तीनों ने अपनी-अपनी आइसक्रीम खत्म की और घर के लिए निकल गए।
उधर, आरोही जी और मोक्ष जी दोनों अपने कमरे में बैठे एकटक अपने फ़ोन को देख रहे थे, जो वहीं बेड पर रखा था। तभी शांति को तोड़ते हुए फ़ोन से कविता जी की आवाज़ आई।
"बहन जी!.. इस बात में कोई दोराय नहीं कि आदिल जैसा अच्छा और काबिल लड़का हमारी शिजा को नहीं मिल सकता, पर शिजा की उम्र अभी काफी छोटी है शादी के लिए.. और अभी तक उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई। तो मैं कैसे हां कर दूँ शादी के लिए, जो कि पंद्रह दिन के बाद है... शिवानी और आहिल की शादी तो ठीक है। उनकी शादी की तैयारियाँ हमने पहले ही शुरू कर दी थीं। तो एकदम से ज़्यादा बोझ नहीं पड़ेगा। पर..."
"मैं समझ रही हूँ आपकी फ़िक्र! लेकिन शिजा शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती है। उस पर कोई दबाव नहीं होगा, किसी भी प्रकार का.. आप देखना, शिजा यहाँ बहुत खुश रहेगी। और दोनों बहनें एक ही घर में आ जाएँगी, तो इससे अच्छी बात क्या ही होगी..?" आरोही जी ने कविता जी को समझाने के इरादे से कहा।
"आप कह तो सही रही हैं, पर शिजा अभी छोटी है। उसमें बहुत बचपना है। वह शादी के बाद नहीं निभा पाएगी अपनी ज़िम्मेदारियाँ, क्योंकि इतनी समझ नहीं है अभी उसमें.. घर-गृहस्थी को सम्हालना और पति की ज़िम्मेदारियाँ! नहीं कर पाएगी वह.."
"इस बात से आप बेफ़िक्र हो जाइए। मैं उसे सब सिखा दूँगी धीरे-धीरे.. बस आप एक बार हां कर दीजिए। आपको कभी कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"
आरोही जी की बात सुनकर कविता जी ने अपने सामने बैठे अभिमान जी की तरफ़ देखा, जो सभी बातें सुन चुके थे क्योंकि फ़ोन स्पीकर पर था। उन्होंने धीरे से अपनी गर्दन हिला दी। उनका इशारा समझ कविता जी ने एक गहरी साँस ली, "मैं एक बार शिजा से पूछकर बताती हूँ आपको..."
"हाँ! हाँ! बिल्कुल.."
"ठीक है फिर, मैं आपको पूछकर ही बताती हूँ।"
"जी.." कहते हुए आरोही जी ने फ़ोन काट दिया था।
"कविता जी की बात से मैं एकदम सहमत हूँ। क्योंकि शिजा अभी छोटी है।" मोक्ष जी ने कहा। आरोही जी ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि इस वक़्त उनके दिमाग में यही चल रहा था कि जब कविता जी शिजा से शादी के लिए पूछेंगी, तो वह क्या जवाब देंगी..?
उधर,
"आप पागल तो नहीं हो गए हैं जो हाँ कर रहे हैं। अरे! शिजा बच्ची है।" कविता जी अभिमान जी की ओर देखकर थोड़ी नाराज़गी से बोलीं।
"हाँ, मानता हूँ कि शिजा अभी छोटी है। पर आदिल जैसा लड़का हमें दिया लेकर ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा। और उन्होंने कहा तो कि शिजा पर शादी के बाद किसी भी प्रकार का कोई बोझ नहीं होगा...वह अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी। और वैसे भी शिजा तो दिल्ली से ही अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती है...तो इससे अच्छा मौका हो ही नहीं सकता। उसकी सेफ़्टी की चिंता भी नहीं रहेगी हमें.."
"आप समझ नहीं रहे हैं। जहाँ मैं सोच रही हूँ, उनके कहने से क्या होता है। शादी के बाद ना चाहते हुए भी उस पर ज़िम्मेदारियों का बोझ आ जाएगा। और मेरी बेटी उन्हीं के तले दबकर रह जाएगी। क्या नहीं करना पड़ेगा उसे... क्या उसे एक बहू की ज़िम्मेदारी नहीं निभानी पड़ेगी..? क्या उसे अपना पत्नी धर्म नहीं निभाना पड़ेगा..? (थोड़ा रुककर) फिर बच्चे हुए तो पढ़ाई गई तेल लेने। सब करना पड़ेगा उसे... और फिर कुछ कह भी नहीं सकती..." कविता जी ने कहा तो अभिमान जी चुप हो गए। क्योंकि कहीं-ना-कहीं कविता जी का कहना भी सही ही था। कविता जी शिजा के बारे में सोच रही थीं, उसकी पढ़ाई के बारे में सोच रही थीं। तो वहीं अभिमान जी शिजा के भविष्य के बारे में सोच रहे थे।
"अच्छा ठीक है। पर एक बार शिजा से पूछ लेते हैं। उसका जो फैसला होगा, मुझे वही मंज़ूर होगा... उसके आगे फिर मैं कुछ नहीं कहूँगा।" अभिमान जी ने कहा तो कविता जी ने कुछ सोचकर फ़ोन शिजा को मिला दिया।
क्रमश:
अगला भाग जल्द ही...❤️
शिजा गेस्ट रूम में बेड पर लेटी ही थी कि तभी उसका फ़ोन बज उठा। शिजा ने फ़ोन की स्क्रीन पर देखा तो कविता जी का कॉल था। यह देखकर शिजा खुद से बोली,
"इतनी रात में मम्मी क्यों फ़ोन कर रही है..?" कहते हुए उसने कॉल रिसीव किया। वह "हेलो" कहती, उससे पहले ही सामने से कविता जी की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
"शिजा! तुम सो गई क्या..?"
"अगर सो गई होती तो क्या आपका फ़ोन उठा पाती मम्मी!"
"अच्छा बेटा, अगर तुम्हारे पास थोड़ा समय हो तो क्या मैं तुमसे कुछ बात कर लूँ..?"
"आप कब से पूछने लगीं मम्मी..? क्या बात है बताइए..?" कविता जी की बात सुनकर ही शिजा ने अंदाज़ा लगा लिया था कि बात कुछ गंभीर ही है।
"दरअसल! बेटा, बात यह है कि पंद्रह दिन बाद आहिल और शिवानी की शादी है।"
"क्या सच में.. अरे! यह तो खुशी की बात है मम्मी।" शिजा खुश होकर बोली। तो कविता जी ने कहा, "शिजा बेटा, एक बार मेरी पूरी बात तो सुनो।"
"सॉरी! जी कहिए..?"
"वो दरअसल! आरोही जी ने तुम्हारा हाथ माँगा है.. वह तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहती हैं। (थोड़ा रुककर) बेटा! तुम्हारी मर्ज़ी के बिना कुछ नहीं होगा.. मुझे पता है अभी तुम काफी छोटी हो... और तुम पहले अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हो। आरोही जी बस अपने तीनों बेटों की शादी एक साथ करना चाहती हैं, तो वह चाह रही हैं कि हम हाँ कर दें.. हमने अभी कोई जवाब नहीं दिया है।" कविता जी ने काफी सहजता से कहा। वहीं उनकी बात सुन शिजा हैरान रह गई।
"मम्मी! मैं अभी शादी नहीं करूँगी। पहले मुझे मेरे गोल्स पूरे करने हैं, जो मैंने सोचकर रखे हैं। आप उन्हें मना कर दीजिए।"
"शिजा मेरा बच्चा, एक बार सोच लो..." शिजा के इनकार करते ही अभिमान जी बोल उठे।
"पापा.. आप अभी सोच भी कैसे सकते हैं मेरी शादी के बारे में...?" शिजा अवाक सी बोली।
"बेटा मैं तो यही कह रहा था कि आदिल अच्छा लड़का है। तुम खुश रहोगी उसके साथ..." अभिमान जी ने जैसे ही यह कहा, शिजा पहले से भी ज़्यादा अवाक हो गई। बेसाख़्ता ही उसके मुँह से निकला, "आदिल..?"
"हाँ! बेटा... आदिल के लिए ही तुम्हारी आंटी ने तुम्हारा हाथ माँगा है।" इस बार कविता जी ने कहा। शिजा का दिल धड़कना ही भूल गया। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था ऐसा। और आदिल के बारे में तो बिलकुल! नहीं, क्योंकि कहीं-ना-कहीं वह आदित को पसंद करती थी। तो वह कैसे आदिल के साथ... नहीं... बिलकुल नहीं। शिजा ने तुरंत अपना सिर झटका और जल्दी से बोली,
"नहीं!, मुझे नहीं करनी कोई शादी... और अभी तो बिलकुल नहीं..."
"लेकिन बेटा एक बार......"
अभिमान जी ने कहना चाहा, लेकिन कविता जी ने उनकी बात को पूरा ही नहीं होने दिया और बीच में ही बोल उठीं,
"आपने कहा था कि शिजा का जो फैसला होगा वही आपको मंज़ूर होगा.. तो अब आप उसे फ़ोर्स नहीं कर सकते।"
उनकी बात सुन वह बस ख़ामोश हो गए। क्योंकि अब वह शिजा को फ़ोर्स भी तो नहीं कर सकते थे शादी के लिए। उनकी सारी बातें सुनने के बाद शिजा का मन एकदम अशांत सा हो गया था। उसने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया। कविता जी ने अभिमान जी की ओर देखा, जो उनकी ओर ही देख रहे थे। उन्होंने धीरे से अपनी गर्दन हिला दी। वह काफी सहजता से बोलीं,
"कल मना कर दूँगी। मुझे पता है उन्हें बुरा लगेगा, लेकिन हम अपनी बेटी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं कर सकते और ना उसकी शादी के लिए किसी भी प्रकार की कोई जल्दबाज़ी। (थोड़ा रुककर) यदि आपको लग रहा है कि आदिल के रिश्ते को इनकार कर हमारी शिवानी के रिश्ते में कोई फ़र्क पड़ेगा तो ऐसा कुछ नहीं होगा... आरोही जी और मोक्ष जी ऐसे लोग नहीं हैं... जो कहीं की कड़वाहट कहीं निकालें.. काफी समझदार हैं वे। समझ जाएँगे।"
"जानता हूँ यह बात मैं... लेकिन...(थोड़ा रुककर) खैर! अब सोचने का क्या ही फ़ायदा.. जब शिजा ही नहीं चाहती।" अभिमान जी ने एक गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।
सुबह नाश्ते के लिए सब डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। सिवाय शिजा के। शायद वह अभी उठकर नहीं आई थी। तभी आरोही जी आदित की प्लेट में नाश्ता परोसते हुए उससे बोलीं,
"आज एक लड़की देखने जा रही हूँ तुम्हारे लिए... अगर तुम आज फ़्री हो तो चलो मेरे साथ..?"
"मैंने लड़की ढूँढ़ ली है आपको अब कोई और देखने की ज़रूरत नहीं है..." आदित ने आराम से कहा, लेकिन उसकी बात जैसे ही सबके कानों में पड़ी, सब हैरान से उसे देखने लगे। और वहीं आती शिजा के पाँव भी आदित की यह बात सुनकर ठिठक गए थे। बाकी सब की तरह वह भी काफी हैरान थी। बल्कि उसे तो ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। तो क्या 'आदित किसी और से प्यार करता है..?' सबसे पहला सवाल था, जो उसके दिमाग़ में आया था।
क्रमश:
"मैंने लड़की ढूँढ ली है, अब आपको कोई और देखने की ज़रूरत नहीं है..." आदित ने आराम से कहा। लेकिन उसकी बात जैसे ही सबके कानों में पड़ी, सब हैरान होकर उसे देखने लगे। वहीं आती शिजा के पांव भी आदित की यह बात सुनकर ठिठक गए थे। बाकी सब की तरह वह भी काफी हैरान थी। बल्कि उसे तो ऐसा लग रहा था कि किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। 'क्या आदित किसी और से प्यार करता है..?' सबसे पहला सवाल था जो उसके दिमाग़ में आया।
आहिल और आदिल कभी एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, कभी आदित की ओर... क्योंकि यह बात तो वे भी आज तक नहीं जान पाए थे कि आदित की लाइफ में कोई लड़की भी है, जिसे आदित पसंद करता है। उन्हें कभी महसूस ही नहीं हुआ।
"तुम्हारे कहने का क्या मतलब है आदि..?" आरोही जी ने पुष्टि करना चाही।
"अर्पिता नाम है उसका... कुल्लू में जिस डील के सिलसिले में मैं अभी गया था। वह डील उसके पापा के साथ ही हुई है। मेरी बात हुई थी उससे, अच्छी लड़की है..." आदित ने जूस का ग्लास अपने होठों से लगाते हुए कहा। जबकि सभी उसकी बात सुनकर कुछ नहीं बोले। आरोही जी और मोक्ष जी दोनों के चेहरे से लग रहा था कि उन्हें कोई एतराज़ नहीं था। क्योंकि वे दोनों ही खुश थे अपने बच्चों की खुशियों में। उनके लिए कुछ भी चीज़ मैटर नहीं करती थी सिवाय उनके बच्चों की खुशियों के। बच्चे खुश तो वे खुश।
"ज़रा नंबर दो, बात करूँ मैं..." आरोही जी ने कहा। तो आदित ने तुरंत अपना फ़ोन निकालकर एक नंबर आरोही जी के फ़ोन पर भेज दिया। "मम्मी, मैंने भेज दिया है।"
"हम्मम!... काम से फ्री होकर बात करूँगी।" कहते हुए आरोही जी मुस्कुराईं और बाकी सब को भी नाश्ता परोसने लगीं।
"भाई! आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले... कभी बताया भी नहीं कि आप किसी को पसंद करते हैं..?" आदिल ने मज़ाकिया लहजे में कहा। तो आदित के होठों पर मुस्कान थोड़ी फीकी हुई। 'पसंद' यह शब्द जरा खटका था उसे, लेकिन होठों से एक अल्फ़ाज़ ना निकला। बस ख़ामोश रह गया। और उसे यूँ ख़ामोश देख सबको लगा कि वह शर्मा रहा है। जबकि ऐसा नहीं था... और यह बात आदित का मन काफी अच्छे से जानता था। क्योंकि वह सब से झूठ कह सकता था, पर खुद से नहीं। उसकी ख़ामोशी को उसकी शर्म समझ आहिल और आदिल ने काफी टाँग खींची आदित की। जबकि उनसे थोड़ा दूर खड़ी शिजा की आँखों में आँसू भर आए। वही जानती थी कि वह कैसे खड़ी थी वहाँ। अचानक उस खुले हॉल में भी उसे घुटन का एहसास होने लगा था। आदित की बात सुनकर दिल के तो टुकड़े हो ही चुके थे। वह बस वहाँ से जल्दी से जाना चाहती थी। और जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, तभी आरोही जी की नज़र उस पर चली गई थी।
"अरे! शिजा बेटा... आओ ना..."
शिजा के आगे बढ़ते कदम वहीं रुक गए। उसने जल्दी से अपने आँसू साफ़ किए, क्योंकि वह नहीं दिखाना चाहती थी किसी को भी, और फिर ज़बरदस्ती मुस्कुराकर उनकी ओर मुड़ी। "जी..."
शिजा ने खुद के जज़्बातों को नियंत्रण किया और सब के पास आई। आरोही जी ने उसका हाथ पकड़ उसे आदिल की साइड वाली खाली कुर्सी पर बिठा दिया और उसकी प्लेट में नाश्ता परोसने लगीं।
"बेटा, अभी तो मैंने यूँ ही नाश्ता बना दिया। लेकिन आज का लंच तुम्हारी पसंद का होगा... तो मुझे बता देना कि तुम्हें क्या पसंद है...(शिजा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए) अपनी बेटी के लिए वही बना दूँगी।"
"नहीं आंटी!... इतनी तकलीफ की ज़रूरत नहीं है आपको... आप प्यार से जो बनाएंगी, मैं वही खा लूँगी।" शिजा ने ज़बरदस्ती मुस्कुराकर कहा।
"फिर भी बता दो..?" आरोही जी ने फिर पूछा।
शिजा कुछ कहती उससे पहले ही आदिल ने शिजा के हाथ पर अपना हाथ रखा और आरोही जी की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला,
"हमारी कुड़्डो को बॉयल्ड राइस और उसके साथ दही तड़का बहुत ही पसंद है। है ना..?" कहते हुए उसने शिजा की ओर देखा, जो काफी असहज सी लग रही थी क्योंकि आदिल का हाथ उसके हाथ के ऊपर था। उसके चेहरे के भाव को वह तुरंत समझ गया था, इसलिए उसने उसी पल अपना हाथ उसके हाथ पर से हटा लिया। तो शिजा ने अपना हाथ फोल्ड कर लिया।
"क्या बात है बेटा... बड़ी पसंद पता है तुमको मेरी बेटी की..?" आरोही जी की आँखों में शरारत थी। जबकि उनकी बात सुन आदिल झेंप गया, वह अपनी सफ़ाई में तुरंत बोला,
"नहीं मम्मी, ऐसी बात नहीं है, वह दरअसल! भाभी कह रही थी तो बस मुझे याद आ गया। बाकी कोई बात नहीं है..."
"हाँ! हाँ!... तो मैं कौन सा कह रही हूँ कि कोई बात है।"
"अच्छा अब बस भी कीजिए आरोही जी आप... बच्चों को नाश्ता भी करने दीजिए... या भी अपनी बातों से ही उनका पेट भर देंगी..?" मोक्ष जी ने कहा। तो सभी अपना-अपना नाश्ता करने लगे। आदित की बात सुन शिजा के गले से एक भी निवाला नीचे नहीं जा रहा था, लेकिन फिर भी वह बेमन से खा रही थी। वह यहाँ घूमने नहीं आई थी। बल्कि इस सोच के साथ आई थी कि कम-से-कम कुछ दिन उसे आदित के साथ बिताने को तो मिलेंगे। लेकिन यहाँ तो कुछ अलग ही सियाप्पा हो गया था। मन बैचेन के साथ, एक अजीब सी उदासी उसके चेहरे पर आ रूकी थी, जिसे किसी ने भी अब तक नोटिस नहीं किया था क्योंकि सब बिजी थे शादी की बातों में। और इस खुशी भरे माहौल के बीच शिजा के अलावा भी कोई था, जो खुश नहीं था। और वह और कोई नहीं बल्कि खुद आदित था। सबको दिखाने के लिए कि वह भी खुश है, बस चेहरे पर एक मुस्कान लिए था।
क्रमश:
अपने ऑफिस के केबिन में, अपनी कुर्सी पर बैठा आदित काफी परेशान लग रहा था। उसकी पीठ पूरी तरह कुर्सी पर टिकी थी। वह लगातार अपनी एक उंगली को सामने रखी टेबल पर टैप कर रहा था, जबकि उसकी नज़रें ऊपर सीलिंग को देख रही थीं। लेकिन मन में कुछ अलग ही चल रहा था।
"पता नहीं जब बाकी सब को पता चलेगा तो उनका क्या ही रिएक्शन होगा..." बेसाख़्ता ही उसके मुँह से निकला।
दो दिन पहले कुल्लू में, आदित एक बड़े से घर के हॉल में अकेला बैठा था। शायद वह किसी के आने का इंतज़ार कर रहा था। हॉल के सामने की पूरी दीवार कांच की बनी थी, जिससे बाहर का एक बहुत ही खूबसूरत दृश्य दिखाई पड़ रहा था। उसके सामने रखी मिडल टेबल पर कुछ बेहद खूबसूरत फूल एक पॉट में रखे थे, जो एक अलग सी ताज़गी का अहसास करा रहे थे। पूरा हॉल काफी आलीशान था। लेकिन इस वक्त आदित का ध्यान ना उस खूबसूरत दृश्य पर था और ना ही बाकी किसी चीज़ पर। कुछ देर बाद किसी ने हॉल में कदम रखा। वहाँ आहट महसूस कर आदित ने अपनी नज़रें उठाकर दरवाजे की ओर देखा, जहाँ एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति, चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान लिए, खड़ा था। आदित उसे देखकर अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ। वह व्यक्ति थोड़ा हँसते हुए बोला,
"अरे! मिस्टर सिन्हा, उठने की ज़रूरत नहीं है, प्लीज़ बैठिए। और सॉरी कि आपको थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा। वो दरअसल, आप तो जानते हैं कि मेरी वाइफ की थोड़ी तबीयत खराब है, तो इस..."
"आई अंडरस्टैंड सर! ...तो क्या हम अब बात कर लें...?" आदित ने उनकी बात को बीच में काटते हुए काफी सहजता से कहा। तो मिस्टर मुकुल त्रिपाठी आदित के सामने वाले सोफे पर बैठ गए।
"हाँ! हाँ!... बिल्कुल करेंगे...लेकिन! पहले थोड़ा चाय नाश्ता लीजिए...क्योंकि हमारे यहाँ किसी भी मेहमान को खिलाए बिना नहीं जाने देते।" कहते हुए मुकुल त्रिपाठी ने एक सर्वेंट को बुलाकर चाय मँगवाई। सर्वेंट दो कप चाय के साथ कुछ नाश्ते की चीज़ें टेबल पर रख गया।
"अब बात करें सर...?" मुकुल त्रिपाठी का यह अनप्रोफेशनल बिहेवियर देखकर आदित थोड़ा रूड होकर बोला, क्योंकि उसे ऐसा कुछ पसंद नहीं था। वह यहाँ काम के सिलसिले में आया था, और उसे बस काम करके यहाँ से जल्दी-से-जल्दी जाना था।
"हाँ! चाय पीते हुए...प्लीज़ लो...?" कहते हुए मुकुल त्रिपाठी ने एक चाय का कप उठाकर आदित के हाथ में पकड़ा दिया और एक खुद लेकर बैठ गया। आदित ने एक गहरी साँस ली और अपनी बात शुरू की।
"लास्ट मंथ से ही हमारी कंपनी में थोड़ा लॉस चल रहा है, और इसके लिए मैं चाहता हूँ कि आप अपने शेयर्स मुझे दे दें... (थोड़ा रुककर) मैं आपको उनकी पूरी मुँह मांगी क़ीमत दूँगा, लेकिन फ़िलहाल नहीं, क्योंकि हमारी कंडीशन अभी ऐसी नहीं है कि हम आपको वो क़ीमत दे सकें। लेकिन मुझे उनकी ज़रूरत है। अगर आप चाहो तो हम कॉन्ट्रैक्ट बनवा सकते हैं, या फिर एक टाइम सेट करते हैं...? आई प्रॉमिस आपको घाटा नहीं होगा..."
अपनी बात समाप्त कर आदित मुकुल त्रिपाठी की ओर देखने लगा। शायद उसे उनके बोलने का इंतज़ार था।
"हम्मम! मिस्टर सिन्हा, मुझे आपकी काबिलियत पर पूरा यकीन है। लेकिन! मेरी भी एक शर्त है, तब ही मैं वो शेयर्स आपको वापस दूँगा..."
"क्या...?"
"आपको मेरी बेटी से शादी करनी होगी..."
"व्हाट...?" आदित के हाथ से अचानक चाय का कप फ़र्श पर गिर गया। मुकुल त्रिपाठी की बात सुनकर उसे एक झटका सा लगा था।
"अरे! मिस्टर सिन्हा, आराम से..."
"मिस्टर मुकुल त्रिपाठी, मैं यहाँ आपसे प्रोफ़ेशनल बात कर रहा हूँ और आप बीच में परिवार को घसीट रहे हैं। और यह कैसी शर्त हुई भला...? सॉरी टू से दिस, लेकिन! आप अपनी ही बेटी को एक शर्त के रूप में मेरे सामने पेश कर रहे हैं, जो एक बेहद वाहियात विचार है। मुझे लगा था कि आप एक सुलझे हुए शख्सियत के मालिक हैं, लेकिन! शायद मैं गलत था।"
इस बार आदित थोड़ा गुस्से में बोला। उसकी बात सुनकर भी मुकुल त्रिपाठी ख़ामोश थे।
"और कुछ साल पहले तक मुझे भी ऐसा ही लगा था मिस्टर सिन्हा! कि आप एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो किसी को राह पर छोड़कर नहीं, बल्कि साथ मंज़िल तक ले चलने की ताक़त रखते हैं...लेकिन! शायद...मैं गलत थी।" अचानक ही यह तीसरी आवाज़ उस हॉल में गूंज उठी। मुकुल त्रिपाठी ने नज़रें उठाकर देखा, तो उनके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान खिल गई। जबकि आदित का दिल धड़क से रह गया। यह आवाज़ उसके लिए कुछ-कुछ जानी-पहचानी सी थी। और वह समझ भी गया था कि यह आवाज़ आखिर किसकी है, लेकिन उसकी जरा भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह एक दफ़ा मुड़कर इस आवाज़ के मालिक को देख सके।
"अर्पिता, आओ बेटा..." मुकुल त्रिपाठी ने जैसे ही यह कहा, दरवाजे पर खड़ी अर्पिता उनके पास आकर बैठ गई। आदित की नज़रें जैसे ही अर्पिता से मिलीं, एक अतीत का साया उसके ज़हन में कौंध सा गया। अर्पिता के होठों पर एक दर्द भरी मुस्कान थी, जिसे आदित काफी अच्छे से समझ रहा था। उसने अपनी नज़रें हटा लीं।
"मिस्टर सिन्हा! मीट माई डॉटर अर्पिता त्रिपाठी...और वो जो शेयर्स हैं ना, वो मेरी बेटी के ही नाम हैं। तो बाकी की बातें आप दोनों कंटिन्यू करिए। मैं जरा मेरी वाइफ की तबीयत देखकर आता हूँ।" कहते हुए मुकुल त्रिपाठी ने एक नज़र अर्पिता पर डाली और फिर मुस्कुराते हुए वहाँ से चले गए।
"तुम...तुम मुकुल त्रिपाठी की बेटी हो...?" आदित ने हैरान सी नज़रों से पूछा।
"अब क्या डीएनए टेस्ट करवाऊँ...?" उसने खीझकर कहा।
"नो!...(थोड़ा रुककर) क्या हम शेयर्स की बात कर सकते हैं...?" आदित मुद्दे पर आता हुआ बोला।
"मेरी वही शर्त है, जो पापा ने बताई...शेयर्स चाहिए तो शादी करनी पड़ेगी मुझसे..." अर्पिता ने काफी गंभीरता से कहा।
"बिल्कुल नहीं!" आदित ने तुरंत इनकार किया।
"भूल जाओ उन शेयर्स को..."
"तुम मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रही हो...?"
"आपसे ही सीखा है।"
"मैंने तुम्हारी कौन सी मजबूरी का फ़ायदा उठाया...?"
"कौन-कौन सी बताऊँ...?"
"अर्पिता...?" आदित थोड़ा तेज़ आवाज़ में बोला।
"चिल्लाई मत, क्योंकि यह घर आपका नहीं है।" अर्पिता ने उसी टोन में कहा, तो आदित ख़ामोश हो गया।
"तुम ऐसा क्यों कर रही हो...? क्या मिलेगा तुम्हें यह सब करके...?"
अर्पिता कुछ नहीं बोली। कुछ देर बाद आदित अपनी जगह से उठा और ख़ामोशी से वहाँ से जाने लगा। तभी अर्पिता उसे टोकती हुई बोली,
"शादी नहीं तो फिर भूल जाइए कि आपको कोई शेयर्स भी मिलेंगे। वैसे मेरे पास आपकी ऑपोज़िट कंपनी का ऑफ़र भी है...सोच रही हूँ कि जब आपको उनकी ज़रूरत नहीं तो मैं ये शेयर्स उन्हें दे दूँ।" अर्पिता ने काफी चलाकी से दाव खेला था।
आदित के कदम अपनी जगह पर ही रुक गए। वह इस वक्त अजीब सी दुविधा में पड़ गया था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर करे तो करे क्या...?
क्रमश:
"शादी नहीं तो फिर भूल जाइए कि आपको कोई शेयर्स भी मिलेंगे। वैसे मेरे पास आपकी ऑपोजिट कंपनी का ऑफर भी है.. सोच रही हूँ कि जब आपको उनकी ज़रूरत नहीं तो मैं ये शेयर्स उन्हें दे दूँ।" अर्पिता ने काफी चलाकी से दाव खेला था।
आदित के कदम अपनी जगह पर ही रुक गए। वह इस वक्त अजीब सी दुविधा में पड़ गया था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह आखिर करे तो करे क्या? उसे उन शेयर्स की ज़रूरत थी। अगर वह नहीं मिले तो उनकी कंपनी कुछ समय बाद शायद बैंक करप्ट भी हो सकती थी। और इसी चक्कर में उसकी पूरी फैमिली भी पीस सकती थी। और वह ऐसा बिलकुल नहीं होने दे सकता था। आदित ने काफी सोच-विचार किया और फिर एक गहरी साँस ले कर अर्पिता की ओर मुड़ गया। उसके मुड़ते ही अर्पिता के होठों पर एक विजयी मुस्कान तैर आई।
"आखिर क्यों तुम ऐसा कर रही हो..?"
"इस सवाल का जवाब देना मैं ज़रूरी नहीं समझती आदित.. प्लीज़! कम टू द पॉइंट.."
"ओके! ..लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हें मेरी लाइफ़ में इंटरफ़ेयर करने का मौका मिल गया। बिलकुल नहीं..." आदित ने काफी सख्ती से कहा।
"शेयर्स के पेपर्स मिल जाएँगे..."
"कब..?"
"हमारी शादी के बाद..." कहते हुए अर्पिता अपनी जगह से उठी और आदित के बिलकुल सामने आकर खड़ी हो गई।
"क्या मिल रहा है तुम्हें ये सब करके...?"
"सुकून!"
"सुकून..?"
"हाँ! सुकून.. खैर! तुम नहीं समझोगे क्योंकि तुमने कभी प्यार में धोखा नहीं खाया ना... बल्कि प्यार में धोखा दिया है।"
"तुम आज भी उन्हीं बातों में उलझी हुई हो..?" आदित ने परेशान होकर कहा।
"अट्रैक्शन होता तो शायद भूल चुकी होती आपको कब का। लेकिन आपके प्रति ये मेरा प्यार ही है, जो इतने सालों बाद भी यूँ का यूँ है। पहले भी आपको पाने की तमन्ना थी और आज भी है..." अर्पिता ने आदित की आँखों में देखते हुए वशवश से कहा।
"तुम्हारा ये ओवर पोज़ेसिव बिहेवियर ही था हमारे रिलेशनशिप का द एंड पॉइंट। प्यार..? प्यार नहीं है ये, जो तुम दिखा रही हो। इसे पागलपन कहते हैं। तुम सब कुछ पहले से जानती थी। तुम ये भी जानती थी कि मुझे उन शेयर्स की कितनी ज़रूरत है और मेरी इसी ज़रूरत, मेरी इसी मजबूरी का तुम फायदा उठा रही हो।" आदित भड़कते हुए बोला।
"मेरे प्यार को अगर आप ओवर पोज़ेसिव, पागलपन का नाम दे रहे हो तो ठीक है। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे बस आपसे शादी करनी है।"
"तुम मुझे मजबूर कर के मेरी ज़िन्दगी में तो आ सकती हो पर मेरे दिल में कभी भी नहीं... पहले मुझे लगता था कि शायद तुमसे ब्रेकअप करके मैंने तुम्हारा दिल तोड़ दिया लेकिन मैं गलत था। मैंने सबसे सही फैसला लिया था तुम्हारे साथ ब्रेकअप करके..." आदित ने जैसे ही ये कहा अर्पिता की आँखें अचानक कठोर सी हो गईं।
"रिश्ता मैं भेजूँ या आप भेजेंगे..?" उसने अपनी सर्द सी आवाज़ में कहा। तो आदित बस उसके चेहरे को ही तकता रह गया।
"पछताओगी..."
"ठीक है।"
"कुछ नहीं मिलेगा तुमको मुझसे शादी करके..."
"मुझे कुछ चाहिए भी नहीं बस आपसे शादी करनी है।"
"ये ज़िद्द है।"
"क्या ये ज़िद्द बेवजह है..?"
"हाँ.."
"मुझे नहीं लगता। मैं बस चाहती हूँ कि मेरी उससे शादी हो जिससे मैं मोहब्बत करती हूँ। कॉलेज टाइम से ही..."
"और मेरा क्या..?"
"क्या आप मोहब्बत नहीं करते मुझसे..?"
"नहीं..." आदित ने साफ़ इनकार कर दिया था। वही इसका जवाब सुन कुछ देर अर्पिता खामोश रही लेकिन फिर वापस से मुस्कुराते हुए, "मेरा प्यार हम दोनों के लिए काफी है।"
"तुम पागल हो गई हो..."
"हाँ, ना आपके प्यार में..." अर्पिता ने मज़ाकिया लहजे में कहा तो आदित ने लाचारी में अपना सिर हिला दिया। और फिर बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया।
"मे आई कम इन सर..?" आदित के कानों में जैसे ही ये आवाज़ पड़ी वह अपने होश में आया और सही से बैठकर दरवाज़े पर खड़े अपने असिस्टेंट को अंदर आने का इशारा किया।
"शिजा!.. पता है मम्मी के बाद तुम ही आई हो मेरे रूम में पहली बार...वरना तो यहाँ ना पापा और ना ही आदि या फिर आहिल भाई को आने की इज़ाज़त है।" आदिल, शिजा को अपने कमरे में अंदर लाते हुए बोला। शिजा ने एक नज़र पूरे कमरे में डाली। काफी बड़ा कमरा था वो। और काफी करीने से सजाया गया था। वहाँ के वॉल कलर से ले कर वहाँ के इंटीरियर डिज़ाइन तक ऐवन था।
"कैसा लगा मेरा रूम..?"
"हम्मम! अच्छा है।"
"वैसे ये मैंने खुद ही डिज़ाइन किया है।"
"तुम्हारी पसंद काफी अच्छी है।" शिजा ने फीका सा मुस्कुरा कर कहा तो आदिल ने प्यार से शिजा की ओर देख कशिश के साथ बोला, "हाँ, वाकई मेरी पसंद काफी अच्छी और अलग है।"
आदिल की नज़रों से वह थोड़ी असहज हो गई थी तो उसने अपनी नज़रें झुका लीं।
"मैं अपने रूम में जाऊँ..?"
"हाँ! हाँ! तुम जाओ और आराम करो..." आदिल ने तुरंत कहा तो शिजा वहाँ से जाने के लिए जैसे ही मुड़ी, तभी उसका पैर लड़खड़ा गया। लेकिन वह गिरती उससे पहले ही आदिल ने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में सम्भाल लिया। आदिल का एक हाथ शिजा की कमर पर तो दूसरा हाथ उसके पेट पर कसा हुआ था। शिजा की पीठ आदिल के सीने से लगी हुई थी। इत्तफ़ाक़ से ही सही पर इस वक़्त दोनों ही एक दूसरे के बेहद करीब खड़े थे। बेसाख़्ता ही आदिल का दिल तेज़ी से धड़क उठा था। शायद शिजा की करीबी का असर था। पर आदिल इस खूबसूरत अहसास को ज़्यादा देर महसूस नहीं कर पाया था क्योंकि शिजा फ़ौरन सही खड़ी हो गई थी। और आदिल से अलग होते ही वह वहाँ से बाहर भाग गई थी। उसके जाते ही आदिल ने मुस्कुरा कर अपने बालों में हाथ घुमाया। और फिर अपने दिल पर हाथ रखकर, "पता नहीं मेरे दिल का हाल तुम कब समझोगी शिजा!"
क्रमश:
"आज बात हुई मेरी अर्पिता से.. काफी अच्छी लड़की है। फिर लगे हाथ उसकी मम्मी-पापा से भी बात हो गई। घर-परिवार भी अच्छा है। मुझे तो अच्छी लगी।" रात के डिनर के बाद सभी हॉल में बैठे थे। तभी बात की शुरुआत करते हुए आरोही जी बोलीं।
उनकी बात सुनकर सब मुस्कुरा दिए, लेकिन शिजा का दिल कट गया। पर मजाल है उसने चेहरे पर कुछ भी दिखाया हो।
"तो क्या अब भाई की भी शादी होगी..?" आदिल ने खुशी से पूछा। तो आरोही जी आदित की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोलीं,
"हाँ! आहिल और शिवानी की शादी के साथ, आदित और अर्पिता की भी शादी होगी...(थोड़ा रुककर) अगर तुम कहो तो तुम्हारी भी करवा दूं..?"
उन्होंने आदिल से पूछा तो आदिल बस मुस्कुरा गया। आरोही जी हँस दीं। आदिल ने सबकी नज़रों से बचकर शिजा की ओर देखा, तो वह काफी उदास लगी। शिजा को यूँ उदास देख आदिल के माथे पर बल पड़ गए। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
"पता नहीं कविता जी ने अब तक जवाब क्यों नहीं दिया..." आरोही जी मन-ही-मन बोलीं। फिर सबकी ओर देखकर बोलीं, "वैसे अर्पिता के पेरेंट्स बोल रहे थे कि दस दिन बाद दिल्ली आएंगे। तो उनके रहने का इंतज़ाम हम लोगों को ही करना होगा ना..? और फिर अभिमान भाई साहब, कविता जी और शिवानी के भी रुकने का इंतज़ाम करना होगा क्योंकि शादी से पहले शिवानी हमारे यहाँ भी तो नहीं रुक सकती..?"
"ये कोई बड़ा मसला नहीं है आरोही जी! पास वाले होटल में रूम बुक करवा देंगे। काफी अच्छी फैसिलिटीज़ हैं यहाँ की..." मोक्ष जी ने सोचते हुए कहा। तो बाकी सब ने सहमति में अपनी गर्दन हिला दी।
"हाँ पापा, ये सही रहेगा। और आने-जाने में ज़्यादा टाइम भी नहीं लगेगा।" आदिल ने कहा।
"आप सब बातें कीजिए। मुझे जरा काम है तो मैं रूम में जा रहा हूँ।" कहते हुए आदित अपनी जगह से उठा और वहाँ से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कुछ देर बाद आहिल, मोक्ष जी और आरोही जी भी सोने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए। उनके जाने के बाद शिजा भी अपनी जगह से उठी और अपने कमरे, यानी गेस्ट रूम की तरफ जाने लगी। तभी आदिल ने उसे टोका।
"एक मिनट किड्डो.."
शिजा के कदम वहीं रुक गए। आदिल चलकर उसके पास आया और उसका हाथ पकड़कर काफी नरमी से बोला,
"मन नहीं लगा हुआ तुम्हारा..?"
"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" शिजा जबरदस्ती मुस्कुराई।
"मतलब तुम कहना चाहती हो कि तुम्हारा मन यहाँ पर लगा हुआ है.. हम्मम, अगर तुम्हारा मन यहाँ पर लगा हुआ है तो तुम्हारे चेहरे पर इतनी टेंशन क्यों नज़र आ रही है मुझे..? अगर कोई परेशानी है तो तुम मेरे साथ शेयर कर सकती हो शिजा..? आफ्टऑल वी आर फ्रेंड्स।" आदिल का एक हाथ खुद-ब-खुद शिजा के गाल पर जा रुका था। और अपनी बात कहते हुए वह शिजा के थोड़ा करीब आ गया था। जिसका अंदाज़ा उसे तो नहीं हुआ, लेकिन शिजा थोड़ा असहज हो गई थी।
"मुझे कोई परेशानी नहीं है। तुम्हें शायद गलतफ़हमी हुई है..." शिजा ने आदिल का हाथ अपने चेहरे से हटाकर अपना सिर नीचे झुकाते हुए कहा।
"लेकिन मुझे तुम कुछ बुझी-बुझी सी लग रही हो। यार तुम्हें तो भाई और भाभी की शादी की खुशी में हल्ला मचा देना चाहिए था। क्योंकि मैं जानता हूँ अपनी शिजा को, वो ऐसा ही करती, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। क्यों..? क्या तुम्हें खुशी नहीं हुई ये गुड न्यूज़ सुनकर..?"
"मैं खुश हूँ और अब ज़रूरी तो नहीं कि हर बात पर इतना ओवर ही रिएक्ट किया जाए.. ? मैं बहुत ही एक्साइटेड हूँ शावू और जीजू की शादी के लिए... (थोड़ा रुककर) अच्छा अब मुझे नींद आ रही है तो मैं रूम में जा रही हूँ। गुड नाइट..." शिजा ने अपनी बात खत्म की और बिना आदिल की कोई बात सुने वहाँ से अपने कमरे की तरफ चली गई। आदिल बस उसे जाते हुए देख रहा था। बेशक शिजा ने कहा कि वह ठीक है, और उसे खुशी है, लेकिन आदिल को नहीं लगा.. ना उसके चेहरे से और ना उसकी बातों से। वह क्यों उदास थी इसका भी उसे पता नहीं था। उसे यूँ उदास देखकर आदिल को अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकता था। उसने एक गहरी साँस ली और अपने कमरे में चला गया।
शिजा ने गेस्ट रूम में आकर पहले दरवाज़ा बंद किया और वहीं दरवाज़े के सहारे ही नीचे फर्श पर बैठ गई। फिर अपना चेहरा अपने घुटनों में छुपाते हुए सिसक उठी।
"क्यों भगवान् जी!, दो ही तो सपने थे मेरे.. जिन्हें पूरा करने के लिए आपसे प्रार्थना करती थी। एक पापा का सपना पूरा करना और दूसरा आदित से शादी, लेकिन आपने मेरे एक सपने को क्यों तोड़ दिया.. क्यों आप ऐसा कर रहे हैं? जबकि आपसे मेरे मन की बात नहीं छुपी है। बहुत पसंद करती हूँ मैं आदित को.. और आज से नहीं बल्कि बहुत पहले से ही... जब आपने मेरी किस्मत में उन्हें लिखा ही नहीं था तो क्यों मेरे दिल में उनके लिए चाह पैदा की.. ? वो सारे ख़्याल क्यों मेरे ज़हन में लाए जिन्हें कभी पूरा ही नहीं करना था। आखिर क्यों..? क्या आपको मुझे यूँ रुलाकर मज़ा आ रहा है..? प्लीज़ ऐसा मत कीजिए... मैं इंतज़ार कर लूँगी, लेकिन आप आदित को ही मेरी ज़िंदगी में ला दीजिए... मुझे उनके अलावा कुछ नहीं चाहिए.... प्लीज़ भगवान् जी प्लीज़!"
कहते हुए शिजा का सिसकना और भी तेज हो गया था और वह वहीं फर्श पर बेजान सी गिर पड़ी थी। फिलहाल वह काफी तकलीफ़ से गुज़र रही थी, जिसका अंदाज़ा भी किसी को नहीं था। और वह किसी के सामने तक अपनी इस तकलीफ़ का ज़िक्र नहीं कर सकती थी। क्योंकि वह काफी अच्छे से जानती थी कि उसका प्यार सिर्फ़ एकतरफ़ा ही है। हाँ! सिर्फ़ एकतरफ़ा...
क्रमशः
"पता नहीं कविता जी ने अभी तक कोई जवाब क्यों नहीं दिया...? क्या मैं एक बार फोन करके पूछूँ...?" आरोही जी ने मोक्ष जी की ओर देखकर, काफी बेसब्र होते हुए कहा। मोक्ष जी ने उनके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा,
"उन्हें थोड़ा सोचने का मौका दीजिए। यहाँ रिश्ते-नातों की बात है, जिनमें जल्दबाजी नहीं की जाती। थोड़ा सब्र रखिए..."
"अगर उन्होंने इंकार कर दिया तो...?"
"तो कोई बात नहीं, हम हमारे आदिल के लिए बाद में कोई अच्छी सी लड़की ढूँढ लेंगे।"
"लेकिन! मुझे तो शिजा ही पसंद है मेरे आदिल के लिए..."
"आपको शिजा पसंद है और मुझे भी लेकिन! शिजा की जोड़ी ऊपर वाले ने किसके साथ जोड़ी है, ये ना आपको पता है और ना मुझे। अगर शिजा, हमारे आदिल की किस्मत में होगी तो पक्का वो हमारे घर की बहू ही बनेगी और अगर नहीं, तो शायद ऊपर वाले ने इससे भी बेहतर कुछ सोचा है।"
"लेकिन! शिजा..."
"आप ज़्यादा ना सोचें। अगर हाँ होगी तो वह खुद से फोन कर देंगी, लेकिन अगर वह कोई ज़िक्र ना करें तो आप भी उन्हें ज़्यादा फ़ोर्स नहीं करेंगी। बस आदित और आहिल की शादी की तैयारियाँ शुरू करें..." आरोही जी बोलना चाहती थीं, लेकिन मोक्ष जी ने उनकी बात बीच में ही काट दी थी।
मोक्ष जी की बात सुनकर आरोही जी कुछ नहीं बोलीं।
"मम्मी! आप ना शिजा को कहीं घुमाने ले जाइएगा। इसी बहाने उसका भी मन बहल जाएगा।" आदिल ने आरोही जी से कहा, जो सुबह का नाश्ता बना रही थीं।
"हाँ, मैं सोच रही हूँ कि आज उसे अपने साथ शॉपिंग पर ले जाऊँ।"
"हम्मम..."
"वैसे बड़ी फ़िक्र हो रही है उसकी..." आरोही जी ने शरारत से कहा तो आदिल मुँह बनाकर बोला,
"मम्मी! वो हमारी मेहमान है तो उसके बारे में थोड़ा सोच सकता हूँ। कल से देख रहा हूँ कि काफी बुझी-बुझी सी लग रही है, इसलिए मैंने आपको उसे कहीं घुमाने ले जाने के लिए कहा।"
"अच्छा! अच्छा! मैं समझ गई।"
"वो मैं निकल रहा हूँ कोर्ट के लिए। आज एक ज़रूरी केस की हीयरिंग..."
"एडवोकेट साहब समय से कुछ खा लेना।"
"जी मम्मी।"
"ऑल द बेस्ट।"
"थैंक्यू मम्मी..." आदिल ने मुस्कुराकर कहा और वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद आरोही जी मुस्कुराकर खुद में ही बुदबुदाईं,
"बस भगवान् जी! आज कोई ऐसा चमत्कार कर देना कि कविता जी सामने से फोन करके इस रिश्ते के लिए हाँ कर दें। सच कह रही हूँ, कभी कुछ नहीं माँगूँगी फिर..."
"शिजा! जल्दी से तैयार हो जाओ। हम शॉपिंग पर चल रहे हैं।" आरोही जी गेस्ट रूम में आती हुई शिजा से बोलीं, जो आराम से बैठी अपना फोन चला रही थी।
"किस चीज़ की शॉपिंग...?" शिजा ने यूँ ही पूछा।
"अरे! घर में दो-दो शादियाँ हैं और तुम पूछ रही हो किस चीज़ की शॉपिंग... आदित और आहिल की बीवियों के लिए आज ज्वैलरी शॉपिंग करने का सोचा है। समय थोड़ा है तो आज से ही शुरू करनी पड़ेगी हर तैयारी।"
"ओके आंटी, मैं बस अभी आई..." शिजा ने नॉर्मली ही कहा। आरोही जी खुद भी तैयार होने चली गईं। फिर दोनों ही तैयार होकर मार्केट के लिए निकल गईं। कुछ देर बाद दोनों ही एक ज्वैलरी शॉप पर थीं। वहाँ की एक सेल्स गर्ल ने अपना एक बेहतरीन कलेक्शन उनके सामने रख दिया था, जो आरोही जी को पसंद आते गए। उन्होंने वह सब पैक करवा दिए। शिजा भी ज्वैलरी सेलेक्ट करने में उनकी हेल्प कर रही थी।
"शिजा ये रिंग ट्राई करो..." आरोही जी ने एक गोल्ड रिंग शिजा की ओर बढ़ाते हुए कहा, तो शिजा थोड़ा झिझकी।
"आंटी मैं...?"
"हाँ बेटा!... एक बार ट्राई करो..." कहते हुए आरोही जी ने खुद ही उसकी रिंग फिंगर में वह रिंग पहना दी थी, जो शिजा की पतली सी उंगली में थोड़ा ढीली थी।
"पसंद आई तुम्हें...?" उन्होंने काफी चाह से पूछा।
"काफी प्यारी है, लेकिन ये थोड़ा लूस है।"
"मैम! आप डिजाइन पसंद कर लीजिए। साइज़ तो हम कम कर देंगे।" सेल्स गर्ल ने मुस्कुराकर कहा।
"अच्छी है ये, लेकिन किसके लिए आंटी...?" शिजा ने रिंग को देखते हुए आरोही जी से पूछा तो वह मुस्कुराकर बोलीं,
"आदिल की होने वाली बीवी के लिए... जब उसकी शादी होगी तब दूँगी उसे... तुमसे तो मैं बस पसंद करवा रही थी।"
"हम्मम!... अच्छी है।" शिजा के चेहरे की मुस्कान थोड़ी फीकी हुई क्योंकि अचानक ही उसे कविता जी की बात याद आ गई थी।
जब सारी शॉपिंग खत्म हुई तो दोनों ही घर लौट आईं। आरोही जी तो अपने कमरे में चली गईं और शिजा कुछ सोचते हुए गेस्ट रूम की ओर बढ़ गई थी।
"जब उनसे मेरी शादी नहीं होगी तो फिर चाहे किसी से करूँ और कभी भी करूँ क्या ही फ़र्क पड़ता है..." कमरे में आने के बाद शिजा खुद से ही बोली। फिर थोड़ा रुककर, "नहीं शिजा! तुम खुद के लिए किसी और की लाइफ नहीं बर्बाद कर सकती।" सोचते हुए, "लेकिन सामने से तो उन्होंने ही कहा था। आसान तो नहीं है, पर जब सब अपने बारे में सोच रहे हैं तो मैं क्यों नहीं सोच सकती...?" कहते हुए वह बेड पर बैठ गई थी। फिर काफी सोचने के बाद उसने अपना फोन निकाला और सीधा कविता जी को मिला दिया। एक-दो रिंग जाने के बाद सामने से कविता जी ने फोन उठाया। तो शिजा ने उन्हें बोलने तक का मौका नहीं दिया और पहले खुद ही बोल उठी,
"मैं तैयार हूँ मम्मी शादी के लिए..."
क्रमशः
"मैं तैयार हूँ शादी के लिए..." शिजा ने जैसे ही यह कहा, दूसरी तरफ मौजूद कविता जी बुरी तरह चौंक गईं। उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। क्या उन्होंने सच में सुना था या उनके कान बज रहे थे?
"क्या कहा तुमने? जरा दोबारा कहो?"
"मैं शादी के लिए तैयार हूँ। आप हाँ कर दीजिए।" शिजा ने फिर कहा तो कविता जी के माथे पर बल पड़ गए। वह तुरंत बोलीं,
"ये क्या कह रही हो तुम?"
"वही जो आपने सुना, मम्मी।"
"पागल हो गई हो? नहीं है तुम्हारी अभी शादी की उम्र। क्या शादी करोगी तुम? तुम्हें तो शादी का मतलब तक नहीं पता।"
"मुझे नहीं पता। आपने मुझसे पूछा था कि मैं शादी करना चाहती हूँ या नहीं। हाँ, माना कि मैंने पहले मना कर दिया था, लेकिन अब मैं खुद ही इस शादी के लिए हाँ कह रही हूँ। आप आंटी से कह दीजिए कि शादी के लिए मेरी हाँ है।" शिजा ने कहा। कविता जी परेशान होकर बोलीं, "बेटा! अचानक क्या हो गया है तुम्हें? तुमने ही तो कहा था कि तुम्हें अभी अपने कुछ गोल्स पूरे करने हैं, अपनी स्टडी पूरी करनी है। तो बेटा! क्यों तुम इस शादी के चक्कर में फंस रही हो?"
"मम्मी प्लीज! मैंने काफी सोच-समझकर यह फैसला किया है। आप हाँ कर दीजिए..." कहते हुए, बिना कविता जी की कोई बात सुने, शिजा ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी। दूसरी तरफ कविता जी "हेलो-हेलो" करती रहीं।
कविता जी की आवाज़ सुनकर शिवानी बाहर आई। कविता जी उन्हें काफी परेशान लग रही थीं। वह उनके पास बैठी और उनके कंधे पर हाथ रखकर बोलीं,
"क्या हुआ है मम्मी? आप कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हैं। सब ठीक तो है ना?"
"कुछ ठीक नहीं है। वह शिजा पागल हो गई है। मैंने तुझे बताया था ना कि आदिल का रिश्ता आया है उसके लिए। पहले मना कर दिया था, लेकिन अब खुद ही हाँ कर रही है। अभी उम्र ही कितनी है उसकी? ना जाने क्या हो गया है उसे। मैं क्या करूँ, समझ भी नहीं आ रहा कुछ। उसकी पढ़ाई-लिखाई सब कुछ रहता है, लेकिन यह शादी के लिए हाँ कह रही है... उफ़्फ़! मैं क्या करूँ।" कविता जी ने अपना सिर पकड़ लिया था।
"अगर आपको उसकी पढ़ाई-लिखाई की चिंता है तो वह तो शादी के बाद भी हो सकती है ना मम्मी। जहाँ तक मैंने जाना है, वहाँ सब ओपन माइंडेड हैं, वे शिजा को आगे पढ़ाई के लिए नहीं रोकेंगे... और आप एक बात और जानती हैं?"
"क्या?"
"वैसे तो यह बात आदिल ने मुझे किसी को भी बताने के लिए मना किया था, लेकिन अब मुझे लगता है कि मुझे आपको यह बात बता देनी चाहिए..."
"शिवानी, पहेलियाँ मत बुझाओ। मुझे बताओ कि क्या बात है?"
"वह बात यह है कि आदिल शिजा को पसंद करता है।"
"क्या?" शिवानी की बात सुन कविता जी चौंक पड़ीं।
"हाँ मम्मी! आदिल हमारी बेबू को पसंद करता है। और यह बात उसने खुद मेरे सामने कही थी। (थोड़ा रुककर) आदिल एक बहुत अच्छा लड़का है हमारी शिजा के लिए। और यह बात मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि आपको कभी आदिल की ओर से कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। वह हमारी शिजा को बहुत अच्छे से रखेगा।"
"मैं तेरी बात समझ रही हूँ शिवानी, लेकिन बेटा शिजा अभी छोटी है। उसे नहीं पता कि शादी क्या होती है, उसे कैसे निभाया जाता है। उसमें अभी इतनी परिपक्वता नहीं है कि वह खुद से सब संभाल सके। तो कैसे वह खुद से जुड़े रिश्तों को संभाल पाएगी?" कविता जी का कहना कहीं-ना-कहीं सही ही था। उनकी परेशानी, उनकी चिंता एकदम जायज़ थी।
"मम्मी! माना कि उसे समझाने वाली आप नहीं होंगी वहाँ, लेकिन मैं तो होऊँगी ना। मैं उसे संभाल लूँगी और उसे समझा दिया करूँगी।" अंत में शिवानी को बस यही समझ आया। शिवानी तो खुद चाहती थी कि उसकी छोटी बहन उसकी देवरानी बने। वही उसकी बात सुन कविता जी फिर किसी सोच में डूब गईं। शिजा के रिश्ते के लिए हाँ करना उन्हें कहीं से भी सही नहीं लग रहा था। ना जाने क्यों, लेकिन उनका मन काफी घबराया हुआ सा था। बस वह अपनी भावनाएँ किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पा रही थीं इस वक्त।
"बेटा मुझे फिर भी कुछ सही नहीं लग रहा है।"
"मम्मी! आप ज्यादा ना सोचिए। बाकी ऊपर वाले ने सोचा होगा तो कुछ अच्छा ही सोचा होगा..." शिवानी ने उनके हाथ को हल्का सा दबाया। शिवानी की बात सुनकर कविता जी ने एक गहरी साँस ली और अपने उसी उदास से लहज़े में बोलीं,
"अच्छा ठीक है, लाओ आरोही जी का नंबर लगाकर दो। उन्हें बता दूँ कि हमारी हाँ है।"
"इतनी अच्छी खुशखबरी आप यूँ उदास होकर देंगी? ऐसा नहीं चलेगा। चलिए पहले मुस्कुराइए।"
"ला दे ना बेटा..." कविता जी फीका सा मुस्कुरा दीं। शिवानी ने कविता जी का फ़ोन लिया और उसमें आरोही जी का नंबर डायल करके उन्हें पकड़ा दिया। और खुद अंदर कमरे में चली गई ताकि यह खुशखबरी वह खुद आदिल को सुना सके। वैसे तो वह यह बात काफी अच्छे से जानती थी कि आदिल जब यह खुशखबरी सुनेगा तो पक्का ख़ुशी से पागल ही हो जाएगा।
उधर, शिजा ने नम आँखों के साथ अपने फ़ोन को देखा। बेसाख़्ता ही उसकी आँखों से आँसू उसके चेहरे पर छलक पड़े थे। दिल में किसी और के लिए चाह लेकर वह किसी और की ज़िन्दगी में शामिल हो रही थी। हाँ, जो उसने आदित्य के लिए फील किया था या आज तक जो भी वह उसके लिए फील करती आई थी, उसने कभी यह सब आदिल के लिए फील नहीं किया था। नहीं जानती थी कि वह आदिल के साथ सही कर रही थी या गलत, लेकिन उसे अंदर-ही-अंदर यह बात काफी चुभ सी रही थी। जज़्बातों में आकर उसने कविता जी से शादी के लिए हाँ तो कर दी थी, लेकिन अब उसे थोड़ा पछतावा सा हो रहा था।
क्रमशः
"क्या बात है मम्मी! आज आप काफी खुश नज़र आ रही हैं, मानो कोई ख़ज़ाना हाथ लग गया हो...? हमें भी बताइए कि क्या बात है आपकी इस खुशी के पीछे ताकि हम भी खुश हो सकें...?” डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए आहिल ने आरोही जी को देखकर मुस्कुराते हुए कहा। आरोही जी आदित की प्लेट में खाना परोसते हुए बोलीं,
"हाँ! हाँ! बताऊंगी आप सभी को, वह भी मिठाई के साथ, लेकिन! पहले आप सभी खाना खा लीजिए..."
"मिठाई...? यानी खुशी के पीछे की वजह वाकई! बड़ी है, तभी तो मिठाई खिलाई जा रही है बच्चों...?” मोक्ष जी ने आरोही जी की ओर देखते हुए सभी से कहा।
कोई कुछ नहीं बोला। वहीं आदिल अपने साइड में बैठी शिजा को देख मंद-मंद मुस्कुराए जा रहा था। क्योंकि उसे तो पता था कि आखिर आरोही जी सबको क्या बताने वाली थीं। और वह तो यह बात दोपहर से ही जानता था क्योंकि शिवानी ने उसे तभी सब बता दिया था। वाकई! उसकी ख्वाहिश को पंख लग गए थे, जिसके बाद उसे महसूस हो रहा था कि वह जमीन पर नहीं बल्कि आसमान में उड़ रहा है। यही तो चाहता था वह और वही हो रहा था। इससे खुशी की बात उसके लिए क्या ही हो सकती थी कि जिस लड़की से वह प्यार करता था वही कुछ दिनों बाद उसकी ज़िंदगी में शामिल हो जाएगी, उसकी हमसफ़र, उसकी जीवनसंगिनी बन। ऐसा नहीं था कि शिजा नावाकिफ़ थी आदिल की निगाहों से, बस वह उसे नज़रअंदाज़ कर रही थी।
सबका जैसे ही डिनर हुआ, आरोही जी किचन में जाकर सबके लिए गुलाबजामुन लेकर आईं। उन्होंने सबसे पहले सबका मुँह मीठा करवाया और फिर आखिर में शिजा के पास आकर उसे थोड़ी-सी गुलाबजामुन खिलाती हुई खुशी से बोलीं,
"आज कविता जी का फ़ोन आया था। उन्होंने आदिल और शिजा के रिश्ते को हाँ कहकर अपनी मंज़ूरी दे दी है। तो अब मेरे दो बेटों की नहीं बल्कि तेरे तीनों बेटों की शादी एक साथ होगी... एक साथ तीनों घोड़ी चढ़ेंगे, तीनों एक साथ हमारे इस घर में तीन-तीन गृहलक्ष्मी लेकर आएंगे। आह्ह! मैं बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूँ आज।"
आरोही जी की बात सुन मोक्ष जी तो मुस्कुरा दिए थे क्योंकि वह जानते थे इस बारे में कि आरोही जी ने आदिल के लिए शिजा का हाथ माँगा है। लेकिन आदित और आहिल के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था। दोनों की ही मिठाई मुँह में अटककर रह गई थी।
"एक मिनट! एक मिनट!...ये कब हुआ...?" आदित टिशू पेपर से अपने हाथों को पोछता हुआ उसी हैरानी के साथ बोला और उसकी ही हाँ-में-हाँ मिलाता हुआ आहिल भी बोला, "और हमें कोई ख़बर तक नहीं।"
"अरे! बेटा, सुबह तक तो मुझे खुद ही पता नहीं था कि कविता जी आज हाँ कर देंगी। दरअसल! मेरी इच्छा थी कि मैं अपने तीनों बेटों की शादी एक साथ, एक ही दिन और एक ही मुहूर्त में करवाऊँ। (शिजा के सिर पर हाथ रखकर प्यार से) और शिजा! तो मुझे हमेशा से ही पसंद थी अपने आदिल के लिए। तो बस कविता जी से माँग लिया उसका हाथ। तो उन्होंने कहा कि थोड़ा सोचकर जवाब देंगी। पहले मुझे लगा कि वह इंकार करेगी, लेकिन! आज उन्होंने फ़ोन करके कहा कि 'बहन जी, आदिल और शिजा की शादी की भी तैयारी शुरू कर दीजिए।' अरे! मैं बता नहीं सकती कि यह बात सुन मेरा क्या हाल था। मैं तो बस पागल ही हो जाना चाहती थी।" आरोही जी बिल्कुल बच्चों की तरह खुश हो रही थीं और एक-एक बात सबको बता रही थीं। वहीं उन्हें खुश देख सब खुश थे जबकि शिजा अपना सिर नीचे किए शांत सी बैठी सब सुन रही थी।
"शिजा! यार ये धोखा है। बचपन से बोलती आ रही हो कि बड़ी होकर मुझसे शादी करोगी और जब शादी करने का टाइम आया तो तुम (आदिल के सिर पर चपत लगाते हुए—जबकि आदिल ने मुँह बना लिया और सब हँस दिए थे) इस बुद्धू से शादी कर रही हो...? पता है ना कि बचपन से ही कितना लड़ता है ये तुमसे, अब जब शादी से पहले ये हाल है तो तुम खुद ही सोच सकती हो शादी के बाद जनाब के मिजाज कैसे होंगे..." आदित ने यह बात मज़ाक में कही थी, लेकिन शिजा ने गंभीर रूप से ले लिया था। वह फ़ौरन बोली,
"अगर मैं आदिल से शादी ना करूँ तो क्या आप मुझसे शादी कर लेंगे आदि...?"
शिजा का यह सवाल सुन सबको लगा कि मज़ाक भरे माहौल में वह भी मज़ाक कर रही थी। लेकिन उसके होंठों पर कोई मुस्कान नहीं खिली थी। आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी जिसे कोई भी देख नहीं पा रहा था।
"अब तो लेट हो गए।" आदित ने उसी मज़ाकिया लहजे में कहा।
"अब बस करो...कोई मेरी बेटी को परेशान नहीं करेगा। वरना पिटाई कर दूँगी।" आरोही जी शिजा को अपने गले लगाती हुई बोलीं।
"कोई नहीं कर रहा आपकी बेटी को परेशान। (आदिल की ओर देखकर) वैसे तुम भी काफी खुश नज़र आ रहे थे, यानी तुम्हें भी यह बात पहले ही पता थी...?" आहिल ने सवाल किया तो आदिल ने अपनी गर्दन ना में हिला दी।
"नहीं भाई! मुझे पहले नहीं पता था। वह तो भाभी ने कॉल करके बताया तब पता चला।"
"शिवानी ने बताया...?" आहिल थोड़ा चौंक सा गया।
"हाँ भाई! और कौन बताएगा।" आदिल ने कहा तो आहिल ख़ामोश हो गया।
"मेरा हो गया, क्या मैं रूम में जाऊँ...?" शिजा ने धीमे से आरोही जी की ओर देखकर कहा तो आरोही जी ने अपनी गर्दन हिला दी। शिजा उठी और गेस्ट रूम की तरफ़ बढ़ गई। उसके जाते ही आदिल भी फ़ोन को बहाना कर उसके पीछे-पीछे चल दिया था क्योंकि उसे शिजा से अकेले में कुछ बात करनी थी।
वहीं कमरे में आने के बाद आहिल ने गुस्से में दरवाज़ा बंद किया और अपनी पॉकेट से फ़ोन निकालकर सीधा कॉल शिवानी को लगा दिया।
क्रमश: