ये कहानी है प्यार और मासूमियत की। बदले और जलन की। सम्राट अपने प्यार को हासिल करने के लिए सबकुछ करता है लेकिन कोई फायदा नहीं होता, आखिर उसकी जिंदगी में आती है प्रज्ञा जो उसकी बेरंग जिंदगी में खुशियां लेकर आती हैं तो क्या सम्राट रागनी को भुला कर प्रज्ञ... ये कहानी है प्यार और मासूमियत की। बदले और जलन की। सम्राट अपने प्यार को हासिल करने के लिए सबकुछ करता है लेकिन कोई फायदा नहीं होता, आखिर उसकी जिंदगी में आती है प्रज्ञा जो उसकी बेरंग जिंदगी में खुशियां लेकर आती हैं तो क्या सम्राट रागनी को भुला कर प्रज्ञा से प्यार करेगा..? क्या होगा जब दो अलग अलग व्यक्तित्व के लोग जुड़ेंगे एक साथ..? क्यों रागनी ने सम्राट का प्यार ठुकरा दिया..? आखिर क्या होने वाला था इस अजीब सी प्रेम कहानी का अंजाम..? रहस्य और रोमांच से भरी ये कहानी आपको संतुष्ट जरूर करेगी जानने के लिए पढ़िए my toxic man
Page 1 of 1
बजाज विला। हल्दी की रस्म चल रही थी। एक २६ साल का लड़का, जिसने पीले रंग की शेरवानी पहनी हुई थी, उसके चेहरे पर खुशी की चमक साफ दिखाई दे रही थी।
सारी औरतें उससे मजाक करके हँसी के ठहाके लगातीं और उसके गालों पर हल्दी लगा देती थीं। उसके दोस्त-यार सभी वहाँ मौजूद थे।
औरतों के मजाक पर वह लड़का मुस्कुरा देता और हल्की मुस्कान के साथ कहता, "जितना छेड़ना है, छेड़ लीजिए।"
अभी हँसी चल ही रही थी कि तभी बड़ी सी थाली लेकर वहाँ पर एक ५० साल की महिला आ गई, हालाँकि देखने में वह बहुत यंग थी। जैसे ही वह वहाँ पहुँची, वहाँ मौजूद सारी औरतों की निगाहें उनकी ओर चली गईं।
"Mrs. Bajaj!"
"आई, बैठिए ना..."
"अरे नहीं... और मेहमानों को भी तो देखना है। आप सब रस्म जारी रखिए, हम अभी आते हैं।" उन्होंने वह थाली वहीं पर रखी और अपने बेटे के गाल को छूकर बोली, "तुम्हें देखकर बहुत ज़्यादा खुश हूँ मैं।"
"Yl हमेशा ऐसे ही खुश रहना।" इतना कहकर उन्होंने उसकी नज़र उतार ली और मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गईं। अपनी माँ की इस बात को सुनकर लड़के के चेहरे पर और बड़ी स्माइल आ गई।
"क्या बात है कार्तिक, तुम्हारी मॉम तो वाकई में दुनिया की सबसे बेस्ट मॉम है।"
कार्तिक के गालों और कपड़ों पर पूरी तरह से हल्दी लग चुकी थी। उसने अपने दोस्त की बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। मेरी माँ इस दुनिया की सबसे बेस्ट मॉम है।"
वह औरत जैसे ही कमरे में पहुँचीं, तभी उनके पति, Mr. विजय बजाज, वहाँ पर पहुँच गए।
Mrs. बजाज अपने आप को आईने में देखकर मुस्कुरा रही थीं।
की तभी उनकी आईने में उनके साथ-साथ उनके पति का भी प्रतिबिंब दिखाई देने लगा। उन्होंने पलटकर अपने पति की ओर देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोलीं, "अरे आप कब आए...?"
अपनी पत्नी के सवाल को सुनकर उनके चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आ गई। उन्होंने अपनी पत्नी को गौर से देखा और फिर बोले, "यह सब क्या है सुनीता? यह जानते हुए कि सम्राट उस लड़की से प्यार करता है, तुमने उसकी शादी अपने बेटे कार्तिक के साथ तय कर दी...?"
"तुम्हें पता है ना कि वह उसे कितना ज़्यादा पसंद करता है, फिर भी तुमने यह किया...?"
अपने पति की बात सुनकर सुनीता के चेहरे पर गुस्से के भाव बिखर गए, पर उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने भावों को दबाया और अपने चेहरे पर हल्की सी स्माइल लाते हुए बोलीं, "विजय, तुम कैसी बातें कर रहे हो? मेरे लिए कार्तिक ही सब कुछ है। सम्राट को नहीं, बल्कि रागिनी कार्तिक को पसंद करती है और यह बात तुम भी जानते हो, और कार्तिक भी रागिनी को पसंद करता है। अगर दोनों बच्चे एक-दूसरे के साथ खुश हैं तो क्या प्रॉब्लम है...?"
"तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे बेटे की शादी हो रही है, पर तुम्हारी बातों को सुनकर ऐसा लग रहा है जैसे तुम मुझ पर संदेह कर रहे हो। देखो विजय, शादी का माहौल है, पूरे घर में रिलेटिव भरे पड़े हैं। अगर तुम कोई भी बखेड़ा खड़ा करोगे तो हमारे खानदान का बहुत बड़ा मज़ाक बन जाएगा।"
अपनी पत्नी की बात सुनकर विजय बोले, "यह सारी बातें करके तुम मुझे धमका नहीं सकती। मैं जानता हूँ कि तुम मुझे डरने की कोशिश कर रही हो, लेकिन सुनीता, एक बार यह भी तो सोचो, अगर इस बारे में सम्राट को पता चल गया तो वह क्या करेगा? तुमने सोचा है? सम्राट कोई कार्तिक जैसा समझदार लड़का नहीं है। उसे आज तक कोई नहीं समझ पाया, मैं भी नहीं। अगर उसे पता चला कि रागिनी और कार्तिक की शादी हो रही है तो वह क्या करेगा? हमें खुद नहीं पता। अगर उसने गुस्से में आकर कोई गलत कदम उठा लिया तो...?"
विजय की बात सुनकर सुनीता हँसते हुए बोलीं, "वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगा। आप निश्चित रहिए। सबसे पहली बात, उसे शादी के बारे में कुछ नहीं पता। और अगर पता चल भी जाता है तो वह कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि मैंने पहले ही बाबूजी को कह दिया है कि वह हमारी ओर से सम्राट से बात करें।"
विजय जी ने गहरी साँस ली और बोले, "मेरे समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा। पर अगर तुम्हारी बात सच हो गई तो अच्छी बात है, वरना..."
विजय वहाँ से चले गए। उनके दिमाग पर अभी भी इस बात का बोझ था कि कहीं सम्राट को इस बारे में पता ना चल जाए।
विजय जी जैसे ही कॉरिडोर में पहुँचे, तभी उनके पास एक १९ साल की खूबसूरत दिखने वाली लड़की, जिसमें बहुत साधारण से कपड़े पहने थे, माथे पर पसीने की बूँदें थीं, आँखों में घबराहट और चेहरे पर सौम्य भाव दिख रहे थे, आई। दिखने में वह बिल्कुल किसी बादल में छुपे चाँद की तरह दिखाई देती थी। उसके चेहरे पर बालों की लट लटक रही थी, जिसे वह बार-बार अपने हाथों से ऊपर करने की कोशिश कर रही थी। वह जब विजय बजाज के पास आई तो उसने अपने हाथ में पड़ा हुआ पानी उनकी ओर बढ़ाया और फिर घबराते हुए बोली, "बड़े साहब, यह पानी आपके लिए..."
विजय की नज़र जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, अचानक उनके चेहरे के भाव बदल गए। उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई, एक अजीब तरह की। उन्होंने पानी का गिलास उठाया और पानी पीने के बाद गिलास वापस ट्रे में रखा और फिर मुस्कुराकर बोले, "क्या हुआ? आज तो कार्तिक की हल्दी है ना, तो तुमने ये कपड़े क्यों पहने हैं? जाकर इसे चेंज करो। और हाँ, तुम्हारे कपड़े मैंने अपने कमरे में बेड पर रखे हैं, जाकर ले लो। और हाँ, शादी के लिए भी तुम्हारा ड्रेस मैं ही खरीद लूँगा, इसीलिए इस तरह के कपड़े तब तक मत पहनना जब तक शादी नहीं हो जाती..."
वह मुस्कुराते हुए वहाँ से जाने लगी कि तभी विजय उसे पीछे से रोकते हैं और कहते हैं, "और एक बात, तुम्हें यह सब करने की ज़रूरत नहीं है। तुम यह सब काम क्यों कर रही हो? देखो, अगर हल्दी की रस्म में कोई मदद की ज़रूरत हो तो वह कर दो, यह सब रहने दो। यह सब बाकी सर्वेंट कर लेंगे।"
विजय की बात सुनकर उस लड़की के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई और वह मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई। विजय उसे देखते ही रह गए।
उछलते हुए अपने आप में गुम होकर आगे जा ही रही थी कि तभी वह अचानक सुनीता जी से टकरा गई।
उसका कंधा धीरे से सुनीता जी से लगा, लेकिन वह अपने आप में इतनी ज़्यादा खुश थी कि उसने ध्यान ही नहीं दिया। वह सीधा विजय के बेडरूम में पहुँची और बेड पर रखा पार्सल उठाया। उसने जैसे ही पार्सल खोलकर उसमें रखे कपड़े की ओर देखा तो उसके चेहरे पर खुशी की चमक आ गई। वह कपड़ा बहुत ही ज़्यादा कॉस्टली था और बहुत ही ज़्यादा ब्यूटीफुल भी। उसके साथ उसकी मैचिंग ज्वैलरी और शूज़ भी रखे हुए थे।
सबसे पहले उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि विजय जी ने उसके लिए इतने महंगे कपड़े और जूते खरीदे हैं।
वह उन कपड़ों को गौर से निहार ही रही थी कि तभी सुनीता जी कमरे में आ गईं। उनकी नज़र जैसे ही उन कपड़ों पर गई, वह ताली बजाती हैं और फिर दाँत पीसते हुए बोलीं, "क्यों रे? तुझे अपने घर में जगह देना इतना काफी नहीं, जो मेरे पति को फँसाने के लिए नए-नए तरीके आजमाने लगी...?"
अचानक से सुनीता जी की आवाज सुनकर वह सहमकर घबरा गई। उसने अपनी नज़रें नीचे की और काँपते होठों से बोली, "मैडम, आप गलत समझ रही हैं। इसलिए तो उन्होंने अपने मन से..."
उसकी बात खत्म भी नहीं हो पाई थी कि तभी सुनीता जी ने उसका बाल पकड़ लिया और उसके बालों को कस के खींचते हुए, दाँत पीसते हुए बोलीं, "अगर वह कुछ देंगे तो तुम ले लोगी? शर्म है कि नहीं? अरे, तुम्हें सर पर छत दी, इस घर में शरण दी, इतने साल से यहाँ पर रह रही हो, अब तुम इतनी जवान हो गई हो कि मेरे पति को फँसाने के लिए यह सब करोगी...?"
प्रज्ञा सिर्फ़ १९ साल की अल्हड़ सी लड़की थी, जिसे जवान होने का मतलब ही नहीं पता था। उसे तो सिर्फ़ इस घर में काम करने के लिए रखा गया था। इस घर में दादाजी और Mr. बजाज थे जो उसका ख्याल रखते थे।
सुनीता जी ने तो कभी उसे कुछ समझाया ही नहीं, सिवाय तकलीफ देने के। उन्होंने आज तक उसे एक फूटी कौड़ी तक नहीं दी थी।
पर फिर भी वह खुशी-खुशी इस घर का सारा काम करती थी क्योंकि उसके सिर पर दादाजी का हाथ था, जो उसे बहुत ज़्यादा पसंद करते थे। Mr. बजाज भी उसे हमेशा इज़्ज़त देते थे, उसकी ख्वाहिशों को पूरा करते थे, और सबसे बड़ी बात, उनके नज़र में प्रज्ञा उनकी बेटी की तरह थी। उन्होंने कभी भी प्रज्ञा के लिए अपने मन में गलत इरादे नहीं रखे। इसके अलावा, उन्होंने ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश की कि प्रज्ञा पढ़ाई करे, लेकिन प्रज्ञा को पढ़ने की इजाज़त कैसे मिल सकती थी? वह तो घर की नौकरानी थी। पर फिर भी प्रज्ञा ने काफी मेहनत करके थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीख लिया था।
आज इस घर के छोटे बेटे कार्तिक की हल्दी की रस्म थी। सारे रिलेटिव मौजूद थे। सबने एक से बढ़कर एक कपड़े पहने थे, और इसीलिए Mr. बजाज भी प्रज्ञा के लिए सुन्दर सी ड्रेस लेकर आए थे, पर सुनीता जी इस बात का गलत मतलब निकाल रही थीं।
"मैडम जी, मेरे बाल दर्द कर रहे हैं। आपको विश्वास नहीं हो रहा है तो आप सब से पूछ लीजिए। मैंने उनसे नहीं कहा था मेरे लिए लाने के लिए, वह अपने मन से लाए थे।" वह अपने बालों को छुड़ाने की कोशिश करती है, लेकिन जैसे-जैसे उसके मुँह से शब्द निकल रहे थे, वैसे-वैसे सुनीता जी उसके बालों को और नोच रही थीं। आखिरकार उसकी आँखों में आँसू आ गए। तब कहीं जाकर उन्होंने उसके बाल को छोड़ा और दूर धकेलकर गुस्से से बोलीं, "ख़बरदार जो तुमने इस ड्रेस को छुआ भी! अपनी औक़ात जानो! तुम्हारे जैसे जन्म लेते हैं ऐसी ड्रेस पहनने में। और एक बात, आइंदा से अगर मेरे पति के आसपास भी दिखाई दी ना तो तुम्हारी टाँगें तोड़ दूँगी।"
सुनीता जी कपड़े और जूते लेकर वहाँ से चली गईं। प्रज्ञा की आँखों में सिर्फ़ आँसू थे, सिर्फ़ और सिर्फ़ आँसू।
प्रज्ञा ने बड़ी मुश्किल से अपने आँसुओं को रोका और अपने दुपट्टे से अपना चेहरा साफ़ करके खुद से बोली, "मैडम जी ने जो कहा वह बिल्कुल सही ही तो था। मैं घर की नौकरानी हूँ और मेरा काम है कि मैं घर के लोगों का ख्याल रखूँ। यह शादी में शामिल होना वगैरह, यह मेरा काम थोड़ी ना है? मैं भी ख़ामख़ाह परेशान हो रही हूँ।" उसने अपने आप को समझाया कि यह जो हो रहा है, वह सही हो रहा है।
रात का वक़्त था। रात के लगभग ९:०० बज चुके थे। दादाजी टेरेस पर बैठे अकेले ड्रिंक पर ड्रिंक किए जा रहे थे।
तभी उन्हें पैरों की आहट सुनाई दी, जिसकी वजह से उन्होंने जल्दी से ड्रिंक को छुपा दिया और फिर चुपचाप सामने की ओर देखने लगे। उन्होंने इतना ड्रिंक कर लिया था कि ठीक से बैठना भी मुश्किल था। अचानक से किसी के आने की आहट सुनकर उन्होंने देखा कि सामने से प्रज्ञा आ रही है। प्रज्ञा को देखकर दादाजी ने गहरी साँस ली और बोले, "मुझे लगा कि कोई मेरी जासूसी कर रहा है।"
उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर प्रज्ञा उन पर नाराज़ होते हुए बोली, "दादाजी, यह अच्छी बात नहीं है। आप चुप-चुप करके यहाँ पर ड्रिंक कर रहे हैं। आपको पता है ना, आपकी सेहत के लिए यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है।"
दादाजी ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोले, "बेटा, सेहत तो मेरी बहुत पहले ही ख़राब हो गई थी। अब तो सिर्फ़ यह पिंजर बचा है। भगवान जब अपने पास बुला लेंगे..."
"नहीं दादाजी, आप ऐसे क्यों कह रहे हैं? आपका भरा-पूरा परिवार है, सबको आपकी ज़रूरत है।"
प्रज्ञा ने जब घबराते हुए कहा तो दादाजी उसके बालों पर हाथ से सहलाते हुए बोले, "बेटा, हर कोई तुम्हारी तरह साफ़ दिल का नहीं होता। कल मेरे पोते की शादी होने वाली है, उस लड़के से, जिसे मेरे बड़े पोते ने दिलो-जान से प्यार किया था, पर नसीब देखो, वह उसके अपने ही भाई की दुल्हन बनने जा रही है। अगर वह लड़की इस घर में आई तो कितना अजीब सिचुएशन हो जाएगा ना? बड़ा भाई अपने छोटे भाई की दुल्हन से ठीक से बात भी नहीं करेगा। मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि अनर्थ कैसे रोकूँगा मैं..."
दादाजी की बात सुनकर प्रज्ञा कुछ ठीक-ठाक से समझ नहीं पाई। प्यार क्या होता है, यह उसे भी नहीं पता था। उसे तो सिर्फ़ काम करना सिखाया गया था। थोड़े वक़्त के लिए बाकी नौकर टीवी भी देख लिया करते थे, तो प्रज्ञा को वह भी देखने की इजाज़त नहीं थी।
उसके ज़िन्दगी में काम और सिर्फ़ काम था। इसके अलावा, उसके पास थोड़ा बहुत जो टाइम बचता था, उस वक़्त में वह पढ़ाई करती थी। इसलिए उसे प्यार के बारे में ज़्यादा कुछ पता नहीं था।
उसने कई बार इस घर में सम्राट का नाम सुना था, पर कभी उससे मिली नहीं थी। इसलिए वह नहीं जानती थी कि घर के लोग सम्राट से इतना डरते क्यों हैं। और इतनी बड़ी शादी हो रही है, इतने बड़े-बड़े डिज़ाइनर को बुलाया गया है, सभी लोग इस शादी में शामिल हो रहे हैं, तो फिर सम्राट क्यों नहीं...?
अगले दिन, प्रज्ञा ने बड़ी मुश्किल से अपने आँसू रोके और अपने दुपट्टे से चेहरा साफ करते हुए खुद से बोली, "मैडम जी ने जो कहा, वह बिल्कुल सही ही तो था। मैं घर की नौकरानी हूँ, और मेरा काम है घर के लोगों का ख्याल रखना। यह शादी में शामिल होना वगैरह, यह मेरा काम थोड़ी ना है! मैं ख़ामख़ा परेशान हो रही हूँ।" उसने अपने आप को समझाया कि जो हो रहा है, वह सही हो रहा है।
रात के लगभग 9:00 बज चुके थे। दादाजी टेरिस पर बैठे, अकेले ड्रिंक पी रहे थे। तभी उन्हें पैरों की आहट सुनाई दी। उन्होंने जल्दी से ड्रिंक छुपा दिया और चुपचाप सामने देखा। उन्होंने इतना ड्रिंक कर लिया था कि ठीक से बैठना भी मुश्किल था। अचानक किसी के आने की आहट सुनकर उन्होंने देखा कि प्रज्ञा आ रही है। प्रज्ञा को देखकर दादाजी ने गहरी साँस ली और बोले, "मुझे लगा कि कोई मेरी जासूसी कर रहा है।"
उनके चेहरे पर मुस्कान देखकर प्रज्ञा नाराज़ होते हुए बोली, "दादाजी, यह अच्छी बात नहीं है। आप चुपचाप यहाँ ड्रिंक कर रहे हैं। आपको पता है ना, आपकी सेहत के लिए यह बिल्कुल ठीक नहीं है।"
दादाजी ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोले, "बेटा, मेरी सेहत तो बहुत पहले ही ख़राब हो गई थी। अब तो सिर्फ़ यह पिंजर बचा है। भगवान जब अपने पास बुला लें..."
"नहीं दादाजी! आप ऐसे क्यों कह रहे हैं? आपका पूरा परिवार है, सबको आपकी ज़रूरत है।"
प्रज्ञा ने घबराते हुए कहा। दादाजी ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा, "बेटा, हर कोई तुम्हारी तरह साफ़ दिल का नहीं होता। कल मेरे पोते की शादी है, उस लड़के से, जिसे मेरे बड़े पोते ने जान से प्यार किया था। पर नसीब देखो, वह उसके अपने ही भाई की दुल्हन बनने जा रही है। अगर वह लड़की इस घर में आई, तो कितना अजीब सिचुएशन हो जाएगा ना? बड़ा भाई अपने छोटे भाई की दुल्हन से ठीक से बात भी नहीं करेगा। मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि अनर्थ कैसे रोकूँगा..."
दादाजी की बात सुनकर प्रज्ञा कुछ समझ नहीं पाई। प्यार क्या होता है, यह उसे पता ही नहीं था। उसे तो सिर्फ़ काम करना सिखाया गया था। बाकी नौकर टीवी देखते थे, पर प्रज्ञा को इजाज़त नहीं थी। उसके जीवन में काम और सिर्फ़ काम था। थोड़े वक़्त में वह पढ़ाई करती थी। इसलिए उसे प्यार के बारे में ज़्यादा कुछ पता नहीं था।
उसने कई बार इस घर में सम्राट का नाम सुना था, पर कभी उससे मिली नहीं थी। इसलिए वह नहीं जानती थी कि घर के लोग सम्राट से इतना डरते क्यों हैं। इतनी बड़ी शादी हो रही है, इतने बड़े-बड़े डिज़ाइनर बुलाए गए हैं, सभी लोग इस शादी में शामिल हो रहे हैं, तो फिर सम्राट क्यों नहीं...?
सुनीता बजाज जब कार्तिक के कमरे में पहुँची, तो उन्होंने देखा कि कार्तिक उदास बैठा हुआ था। सभी लोग मैरिज हॉल जाने के लिए तैयार हो चुके थे। मुंबई शहर का सबसे लग्ज़रियस और महँगा मैरिज हॉल बुक किया गया था। बजाज इंडस्ट्रीज़ दुनिया भर में मशहूर थी, इसीलिए उसे हर कोई जानता था। इसके अलावा, बजाज ग्रुप के चेयरमैन, Mr. Vijay Bajaj, बिज़नेस के मामले में इंडिया की टॉप कंपनी के ओनर थे। जाहिर सी बात थी कि इतने बड़े आदमी के घर की शादी मामूली नहीं हो सकती थी।
सुनीता जी ने अपने बेटे के चेहरे पर उदासी देखकर अपना दिल छोटा हो गया। वह अपने बेटे के पास गई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए आराम से बोली, "क्या हुआ बेटे? तुम परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो? देखो बेटा, यह तुम्हारी शादी है। अगर तुम ही ऐसे उदास रहोगे, तो फिर शादी में रौनक कैसे आएगी...?"
"मॉम, आप यहाँ? आप कब आईं? मुझे तो पता ही नहीं चला..." कार्तिक हैरान रह गया।
सुनीता जी उसके पास आईं और सामने रखी कुर्सी पर बैठ गईं। "कार्तिक बेटे, आज तुम्हारी शादी है। अगर तुम्हारे चेहरे पर रौनक नहीं होगी, तो शादी अच्छी कैसे लगेगी? तुम्हारी शादी तुम्हारी मनपसंद लड़की से हो रही है, तुम्हें तो खुश होना चाहिए।"
"माँ, आपकी बात बिल्कुल सही है। मुझे इस शादी से खुश होना चाहिए। इन फैक्ट, मैं बहुत खुश हूँ। राघिनी अगर मेरी ज़िन्दगी में आएगी, तो मेरी ज़िन्दगी खुशियों से भर जाएगी। पर क्या बड़े भैया के बगैर इस तरह से शादी करना अच्छा रहेगा? मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे जीवन के इतने ख़ास मौके पर मेरे बड़े भाई मेरे साथ नहीं रहेंगे।" कार्तिक की आवाज़ में सम्राट का ज़िक्र सुनकर सुनीता जी के चेहरे पर कड़वाहट आ गई। वह अपने चेहरे के भाव छुपाते हुए मुस्कराई और अपने बेटे के गाल पर हाथ रखकर बोली, "कार्तिक बेटे, तुम जानते हो ना अपने भाई को। वह कितना बिज़ी है। मैंने उसे कई बार फ़ोन किया, बहुत रिक्वेस्ट की, पर इस वक़्त वह नहीं है। उसने मुझसे कहा था कि अगर मैं ज़िद करूँगी, तो वह अपना शो छोड़कर आ जाएगा, लेकिन खुद के लिए उसके करियर को दांव पर लगाना अच्छी बात नहीं है।"
कार्तिक ने गहरी साँस ली और उदास होते हुए कहा, "मैं भी नहीं चाहता कि सम्राट भाई मेरे लिए अपना करियर छोड़ दे। लेकिन माँ, अगर यह बात पहले पता होती, तो मैं शादी को दो-तीन महीने के लिए टाल देता। जब उन्हें फुर्सत मिलती, तब यह शादी होती।"
सुनीता जी ने समझाते हुए कहा, "बेटा, लेकिन यह सोचने का वक़्त निकल गया है। आज तुम्हारी शादी है। सभी लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। बारात सज चुकी है, और इस वक़्त तुम ऐसी बातें कर रहे हो! अपने दिमाग को ठिकाने पर लो और सोचो कि क्या सही है, क्या गलत। और एक बात, सम्राट ने अगर यह सुना कि शादी के दिन भी तुम उसके लिए परेशान हो, तो उसे अच्छा नहीं लगेगा। अब तुम डिसाइड करो कि तुम्हें अपनी शादी के दिन खुश होना है या फिर अपने भाई के बारे में सोचकर उदास।"
अगले ही पल कार्तिक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। हालाँकि वह दिखाने की कोशिश कर रहा था कि वह खुश है, पर अंदर ही अंदर उसे अपने भाई की याद आ रही थी।
1 घंटे बाद, बारात पूरी तरह से सजकर मैरिज हॉल जाने के लिए निकल गई। वहाँ से मैरिज हॉल की दूरी लगभग 2 घंटे की थी।
हल्के पीले रंग का गाउन पहने प्रज्ञा भी बारात में शामिल हुई थी। गाड़ी में बैठी सुनीता जी की नज़र जब खुशी से झूमती हुई प्रज्ञा पर पड़ी, तो उनकी आँखों में नफ़रत और गुस्सा उतर आया। वह गाड़ी से उतरी और प्रज्ञा का हाथ पकड़कर साइड में ले जाकर गुस्से से चिल्लाई, "तुझे मना किया था ना कि इस खुशी के मौके पर अपनी मनहूस शक्ल मत लेकर आना! पर तुम्हें चैन नहीं है! किसने कहा था बारात में शामिल होने के लिए? खुद-ब-खुद ऐसे नाच रही हो जैसे तुम्हारी अपनी शादी हो! यह लड़की, मैं तुमसे कह रही हूँ, कान खोलकर सुन लो, अगर अपनी भलाई चाहती हो तो इस शादी से दूर रहना, वरना तुम्हारी टाँगें तोड़कर हाथ में दे दूँगी!"
उनके हर शब्द में इतनी नफ़रत थी कि प्रज्ञा की आँखें भर आईं। सुनीता जी ने प्रज्ञा की कलाई कसकर मरोड़ा था। प्रज्ञा दर्द से छटपटाते हुए घबराई हुई आँखों से उन्हें देखते हुए बोली, "मुझे तो साहब जी ने कहा था कि मैं भी बारात में शामिल हो सकती हूँ। अगर मुझे पता होता कि आपको बुरा लगेगा तो मैं..."
वह घबराते हुए कह रही थी। उसे बहुत दर्द हो रहा था। सुनीता जी ने उसकी बाजू और कसकर मरोड़ा और गुस्से से बोली, "उन्होंने कहा और तुमने मान लिया? तुम्हें क्या लगता है कि मेरे समझ में कुछ नहीं आता? ऐसी अदाएँ दिखाकर मेरे पति को फँसाना चाहती हो?"
"चप्पल चाहे कितनी भी महँगी क्यों ना हो, उसे पैरों में ही पहना जाता है। इसलिए अपनी औक़ात मत भूलना! अब जाओ यहाँ से! हम सभी मैरिज हॉल के लिए निकल रहे हैं। घर पर रहकर घर की रखवाली करना। कोई भी सामान इधर-उधर नहीं होना चाहिए। अगर कोई गड़बड़ हुई तो तुम्हारी ख़ैर नहीं!"
विजय बजाज व्यस्त थे, इसलिए कुछ नोटिस नहीं कर पाए। सुनीता जी ने बहुत ही नफ़रत भरी नज़रों से प्रज्ञा को देखा और दूर धक्का देते हुए बोली, "तुम्हें वार्निंग दे रही हूँ, अपनी ख़ैरियत चाहती हो तो अपनी हद में रहो!"
19 साल की मासूम प्रज्ञा की कलाई की चूड़ियाँ टूटकर उसके कलाई पर गहरे निशान छोड़ चुकी थीं। कलाई पर हल्का ख़रोच का निशान भी बन चुका था। आँखों में दबे आँसू राहत मिलते ही बहने लगे। उसने अपने दुपट्टे से आँसू पोछे और बारात से धीरे-धीरे अलग हो गई। बारात आगे बढ़ रही थी, और वह सबकी नज़रें बचाते हुए पीछे छूट गई। दर्द से तड़पती हुई प्रज्ञा, कार्तिक की शादी देखना चाहती थी, पर सुनीता जी ने उसे यह मौका भी छीन लिया था।
वह चुपचाप बाज़ार में पहुँची। वहाँ ज़्यादा कर्मी नहीं थे, सभी लोग मैरिज हॉल के लिए निकल गए थे। कुछ डेकोरेट करने वाले कर्मी और कुछ लेडीज़ सजावट कर रही थीं। एक छोटा सा ड्राइवर क्वार्टर, उससे अटैच्ड एक छोटा सा बाथरूम और सबसे बड़ी बात, विजय बजाज ने उसके लिए एक सुन्दर सा सिंगल बेड भी लगाया था। काफी कम्फ़र्टेबल कमरा था।
उसने अपने कपड़ों को देखा और फिर खुद से बोली, "यह कपड़े ज़रूरत से ज़्यादा अलग हैं। मुझे इनकी जगह नॉर्मल कपड़े पहन लेने चाहिए।" उसने जो पीले रंग का गाउन पहना था, वह बहुत चमकीला और एक्सपेंसिव था। उसने पहली बार इतनी महँगी ड्रेस पहनी थी। उसने उन कपड़ों को समेटकर अपने ड्रॉअर में रख दिया और सोचा कि किसी ख़ास दिन पर पहनेगी। उसने नीले रंग का घाघरा, लाल रंग की चोली और ऊपर से नीले रंग का दुपट्टा पहना। फिर अपने आप को देखकर बोली, "इसमें मैं बहुत कम्फ़र्टेबल हूँ।" उसने जो चोली पहनी थी, उसका बैक बहुत ज़्यादा डीप था। उसने कई बार कहने के बाद भी दर्ज़ी ने उसे डीप ही बनाया था। लेकिन उसे पहनना उसकी मजबूरी थी।
उसे इन सब चीज़ों की ज़्यादा समझ नहीं थी। उसे बस इतना पता था कि इस दुनिया में बिना काम किए कुछ नहीं मिलता। कुछ हासिल करने के लिए काम करना पड़ता है। अगर कोई बड़ा कुछ कह रहा है, तो उसे चुपचाप सुन लेना चाहिए। इस घर में रहकर उसकी मानसिकता ऐसी ही हो गई थी।
प्रज्ञा जब अपने कमरे से निकली, तो उसके चेहरे के भाव नॉर्मल थे। किसी से डाँट सुनना उसके लिए आम बात थी। वह हमेशा ही इस तरह की बातें सुनती और चुपचाप सह लेती। आज भी उसे इस बात का दुख था कि सुनीता जी ने उसे इतना सुनाया, पर अगले ही पल अपने कामों में लग जाना चाहती थी।
वह गुनगुनाते हुए कमरे से बाहर निकली, कि तभी अचानक वह किसी से टकरा गई। वह खुद को संभाल पाती, उससे पहले किसी ने बड़े ज़ोर से उसके कमर को पकड़कर अपने बाहों में समेट लिया। उसने घबराई हुई आँखों से उस शख्स को देखा, तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। चेहरे पर परफेक्ट शेप वाली दाढ़ी के साथ, उसने आँखों पर ब्लैक रंग का चश्मा लगाया हुआ था। उसका रंग गोरा और बाल मैसी थे, जैसे अभी-अभी वह नहाकर आया हो। उसने व्हाइट रंग के फ़ॉर्मल ड्रेस पहने हुए थे।
उसने जैसे ही चश्मा उतारा, प्रज्ञा की आँखें उसके चेहरे पर ठहर गईं। उसकी आँखें समंदर की तरह शांत थीं, और उसकी आँखों में एक अलग सा जुनून था। अगले ही पल उसके चेहरे का भाव बदला, और उसके चेहरे पर शांति की जगह गुस्सा आ गया। उस शख्स ने प्रज्ञा को जमीन पर फेंक दिया और गुस्से से चिल्लाया, "बेवकूफ लड़की! तुम्हें दिखाई नहीं देता...? भगवान ने आँखें दी हैं, उसका इस्तेमाल क्यों नहीं करती...?"
प्रज्ञा उसकी कड़वी बात सुनकर सच में डर गई थी। यह शख्स इससे पहले कभी भी यहाँ नहीं आया था। प्रज्ञा ने उसे पहले कभी नहीं देखा था। प्रज्ञा इस घर में बहुत सालों से रह रही थी, इसलिए वह लगभग सभी रिश्तेदारों को जानती थी, पर यह जो शख्स आया था, उसे प्रज्ञा पहली बार देख रही थी।
वह जोर से चिल्लाते हुए अंदर की ओर गया, "दादाजी! दादाजी! आप सुन रहे हैं मेरी बात? दादाजी! मैं सम्राट! कहाँ है आप...?"
सम्राट दादाजी को आवाज़ लगा रहा था। वह दादाजी को ढूँढ रहा था, पर पूरा बजाज विला खाली था।
वह दादाजी को आवाज लगाते हुए अंदर की ओर जा रहा था। प्रज्ञा बड़ी मुश्किल से खुद को खड़ा किया और कहा, "यह पागल आदमी कौन है? जिसे इतना भी नहीं पता कि घर पर आज कोई नहीं है?"
उसके पीछे, "हेलो मिस्टर! हेलो! आप सुन रहे हैं मेरी बात?" वह बार-बार सम्राट को आवाज लगाती रही। पर जब वह नहीं सुना, तो वह जोर से चिल्लाई, "हेलो मिस्टर सम्राट! आप सुन रहे हैं मुझे?"
अचानक अपना नाम सुनकर सम्राट पीछे मुड़ा। उसने देखा कि उसके सामने वही लड़की खड़ी है जिससे वह थोड़ी देर पहले टकरा गया था। उसने लड़की की ओर देखा और फिर आवाज में बोला, "तुम्हें मेरा नाम कैसे पता? और यह क्या तरीका है...?"
प्रज्ञा ने अपने कमर पर हाथ रखा और उसे ऊपर से नीचे तक देखकर बोली, "तरीका बिल्कुल भी गलत नहीं है। जहाँ तक मुझे पता है, यही तरीका होना चाहिए।"
"आप हैं कौन? और बिना पूछे घर में कैसे आ गए? आप अपने आप को सम्राट कहते हैं। आपके जानकारी के लिए बता दूँ कि सम्राट यहाँ नहीं रहते। और हाँ, सम्राट के बारे में सभी लोग बात करते हैं, पर किसी ने उन्हें देखा नहीं है।"
प्रज्ञा की बात सुनकर वह उसकी आँखों में देखा और कहा, "तुम कौन हो? और तुम सम्राट के बारे में कैसे जानती हो?"
वह लड़की इतराते हुए बोली, "अच्छी बात यह है कि मुझे इस घर का सब सीक्रेट पता है। हर किसी के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी मुझे भी है।"
सम्राट उसकी बातों को इग्नोर किया और फिर दादाजी को ढूँढने के लिए सीढ़ियों से होते हुए ऊपर चला गया। प्रज्ञा उसका पीछा करते हुए बोली, "अरे! आप सुनते क्यों नहीं? घर पर कोई भी नहीं है। सभी लोग, छोटे साहब की शादी में गए हैं। आपके यहाँ पर कोई भी नहीं मिलेगा। इतना मेहनत करना बेकार है।"
"शादी.....???? 😲 1 मिनट! 1 मिनट! तुम कहना चाहती हो कि कार्तिक की शादी हो रही है? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है ना? तुम्हें पता भी है कि तुम क्या बोल रही हो...?"
प्रज्ञा ने उसे देखा और फिर स्माइल करते हुए बोली, "मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। सच यही है कि सभी लोग कार्तिक बाबा की शादी के लिए गए हैं और आज शाम को उनकी शादी भी है। सभी लोग मैरिज हॉल पहुँच भी गए होंगे। वैसे तुम बताओ, तुम खुद को सम्राट कह रहे हो और जहाँ तक मुझे पता है, सम्राट इस घर के बड़े बेटे का नाम है। अगर तुम वाकई में इस घर के बड़े बेटे हो, तो फिर तुम अब तक कहाँ थे?"
प्रज्ञा के इस तरह के इंटेलिजेंस सवालों के जवाब देने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे।
"अच्छा, वह सब छोड़ो। एक बात बताओ, क्या तुम्हें पता है कि वह लोग किस मैरिज हॉल में गए हैं...?"
वह परेशान होकर जब प्रज्ञा से सवाल करता है, तो प्रज्ञा भी परेशान हो जाती है और कहती है, "मुझे भी इस बारे में ठीक से नहीं पता। वहाँ तो बुकिंग भी जल्दी नहीं मिलती, लेकिन बड़े साहब की कृपा से वहाँ बुकिंग मिल गई है।"
सम्राट उसकी बात सुनता है और फिर बिना आगे कुछ पूछे उसका हाथ पकड़ता है और सीधे बजाज विला से बाहर लेकर जाने लगता है।
"यह क्या कर रहे हैं आप? मेरा हाथ छोड़िए! कहाँ लेकर जा रहे हैं?" वह बार-बार चिल्लाकर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सम्राट उसे खींचते हुए गाड़ी की ओर बढ़ रहा था। आखिरकार वह परेशान होकर अपने दोनों हाथों से झटका देती है और अपना हाथ छुड़ा लेती है और भागने की कोशिश करती है। कि तभी सम्राट आगे बढ़ा और उसकी कमर पकड़कर उसे ऊपर की ओर हवा में उठाकर सीधा गाड़ी में पटक देता है और जोर से चिल्लाकर बोला, "तुम्हें समझ नहीं आता क्या? तुम मेरे साथ चलोगी, समझी? तुम! और एक बात, अपने मुँह से एक शब्द भी मत निकालना, वरना चलती हुई गाड़ी से नीचे फेंक दूँगा।"
उसकी धमकी सुनकर वह चुप हो गई। उसने वही कपड़े पहने हुए थे; वह जल्दी-जल्दी में अपने बैक साइड की डोरी बाँधना भी भूल गई थी।
ट्रैफिक पर जब सम्राट ने गाड़ी रोकी, तो उसी के बगल में एक जीप में बैठे तीन लड़के लगातार अपने गाड़ी के मिरर में प्रज्ञा को देख रहे थे। इस बात से अनजान प्रज्ञा चुपचाप आगे देख रही थी। प्रज्ञा के बैक साइड का पूरा प्रतिबिम्ब उनके आईने में दिख रहा था। वे कभी आईने को हवस भरी नज़रों से देखते, और उसे टच करके अपने होठों से टच करते हुए कहते, "क्या कमाल की है... भगवान ने बड़ी फुर्सत से बनाई है।"
"ओहो... ये तो बिलकुल फ्रेश लग रही है।"
इसके अलावा और भी बहुत सारे गंदे-गंदे कमेंट कर रहे थे। जिससे आक्रांत, वह चुपचाप अपना सर गाड़ी के आगे वाले हिस्से पर रखकर अपनी आँखें बंद कर चुकी थी। सम्राट जो कब से उनकी बदतमीजी भरी बातें सुन रहा था, उसकी निगाह जैसे ही उनके आईने पर पड़ी, उसकी आँखें फटकर बड़ी हो गईं। चेहरे पर गुस्सा आ गया। उसकी आँखें पूरी तरह से लाल हो चुकी थीं। उसने गाड़ी का दरवाजा खोला। गाड़ी के खुलने की आवाज की आहट से भयभीत होकर प्रज्ञा उसकी ओर देखने लगी। वह कुछ बोल पाती, उससे पहले ही वह गाड़ी से उतर चुका था। वह सीधा उन लड़कों के पास गया और बिना सोचे-समझे एक-एक करके सब की वाट लगा दी। उसने किसी को भी नहीं छोड़ा। वह तीनों लड़के उसे हार मान चुके थे। सम्राट ने उन तीनों को अकेले ही इतनी बेरहमी से मारा था कि वे हाथ जोड़कर माफी माँग रहे थे।
"आइंदा से अगर तुमने किसी भी लड़की के बारे में गंदे कमेंट किए, तो एक बार अपनी मार याद रख लेना। फिर तुम्हारे मन में जो ख्याल आएंगे, उससे तुम दोनों की ज़िंदगी बदल जाएगी।"
गाड़ी में बैठी प्रज्ञा अपनी भोली-मासूम आँखों से उन गुंडों को पीटते हुए देख रही थी। जब वह उन्हें पीट रहा था और उन्हें तकलीफ हो रही थी, तो प्रज्ञा अपने सीने पर हाथ रखकर बोली, "कितना बेरहम आदमी है! उन्हें किस तरह से मार रहा है! बेचारे कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं। सच में यह बहुत ज़्यादा बेरहम है।"
प्रज्ञा को सम्राट पर गुस्सा आ रहा था। सम्राट ने उन लड़कों को बहुत बुरी तरह से मारा था। सम्राट के होंठ फट चुके थे, उसके गाल के किनारे से खून रिस रहा था। वह जाकर गाड़ी में बैठा और फिर प्रज्ञा से बोला, "अपनी ज़ुबान ठीक करो।"
पारुल ने जब सम्राट को उन लड़कों को इस तरह मारते देखा, उसका मुँह बन गया। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था।
"मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूँ जो तुम कहोगे मैं करूँगी!" वह मुँह फुलाकर बोली, "मुझे मेरी चुन्नी जैसी है, वैसे ही पसंद है।"
सम्राट ने उसकी ओर देखा। वह कुछ बोलता, इससे पहले ही सिग्नल क्लियर हो गया। गाड़ियाँ आगे बढ़ने लगीं और पीछे से गाड़ियों के हॉर्न सुनाई देने लगे। सम्राट मजबूर था; उसने गाड़ी स्टार्ट कर दी। वह गाड़ी को हाई स्पीड पर चला रहा था। उसकी निगाहें बार-बार बगल में बैठी प्रज्ञा के दुपट्टे की ओर जा रही थीं। प्रज्ञा ने अपने दुपट्टे को बड़े बेपरवाह तरीके से ओढ़ा हुआ था। ऊपर से उसने जो चोली पहनी हुई थी, उसकी डोरी भी नहीं बाँधी थी, जिसकी वजह से उसका डीप बैक नेक साइड सब विजिबल हो रहा था। वह कभी उसके बैक साइड को देखता, तो कभी वेदांग तरीके से ओढ़े हुए उसके पेट को। जबकि प्रज्ञा एकदम एटीट्यूड के साथ बैठी हुई थी।
शहर पार करके अब गाड़ी सुनसान इलाके में आ गई थी। प्रज्ञा का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, लेकिन वह जानती थी कि वह सम्राट से नहीं जीत सकती, इसलिए वह चुपचाप शांत थी।
एक झटके के साथ सम्राट ने गाड़ी रोक दी। प्रज्ञा कुछ समझ पाती, उससे पहले ही सम्राट उसके बिल्कुल नज़दीक आ गया। सम्राट का इतना नज़दीक आने से वह एकदम शॉक हो गई थी। यह पहली बार था जब कोई उसके इतने करीब आया था; इतने करीब कि वह उसकी साँस तक महसूस कर पा रही थी। उसने जो व्हाइट रंग की ड्रेस पहनी हुई थी, उससे हल्की सी परफ्यूम की खुशबू आ रही थी, जो उसके बिल्कुल सीने में उतर रही थी। उसकी आँखें बिल्कुल शांत समंदर की तरह थीं, जिसमें इस वक्त हलचल दिखाई दे रही थी।
वह कुछ कहती, उससे पहले ही सम्राट का हाथ उसके कंधे पर था। सम्राट के हाथ एकदम सख्त थे; प्रज्ञा का शरीर एकदम ठंडा था, तो वहीं सम्राट के हाथ एकदम गरम थे। जैसे ही उसने प्रज्ञा के कमर पर हाथ रखा, प्रज्ञा के होश उड़ गए। वह कुछ बोल नहीं पाई। सम्राट ने उसे बड़े ही बेरूखी से अपनी तरफ़ खींच लिया। वह कुछ भी कर पाती, उससे पहले ही वह सीधा सम्राट के ऊपर झुक गई। सम्राट ने उसके बैक साइड में देखा और बिना कुछ कहे, उसके ब्लाउज़ की डोरी कसकर बाँध दी। प्रज्ञा ने कभी नहीं सोचा था कि उसके लाइफ में ऐसी भी सिचुएशन आएगी। प्रज्ञा बहुत ज्यादा ऑकवर्ड महसूस कर रही थी; उसे मन ही मन बहुत ज्यादा लाज लग रहा था।
सम्राट ने उसके दुपट्टे को उसके गले से होते हुए, उसके कमर में बंधे घाघरे के किनारे में ठूँस दिया और फिर उसे खुद से अलग करके गुस्से से बोला, "अगर कपड़े ठीक से पहनना नहीं आता, तो पहनती क्यों है? इससे अच्छा कि तुम..."
गुस्से में उसके मुँह से कुछ गलत ही निकलने वाला था, लेकिन उसने अपने आप को रोक लिया।
प्रज्ञा की आँखें फटी की फटी रह गई थीं। मौन समंदर में किसी ने कंकर फेंक कर हिलोर पैदा कर दिया था। उसकी आँखों में नमी आ गई थी। सम्राट का उसे ऐसे छूना उसे बेचैन कर गया था। वह सम्राट की ओर चोरी-छिपे नज़रों से देखती और फिर शर्माकर खुद से कहती, "यह सब क्या हो रहा है? मैं बहुत ज्यादा कंफ्यूज हूँ।"
सम्राट की उम्र तकरीबन 28 साल थी। देखने में वह बहुत ही ज़्यादा हैंडसम था; चेहरे पर बहुत ही अच्छे शेप में बनी हुई भौहें, गहरी शांत आँखें, बाल बिल्कुल सेट किए गए, परफेक्ट तरीके से कटे हुए बाल। चेहरे पर कॉन्फिडेंस और बातों में एटीट्यूड उसकी पर्सनालिटी को सबसे अलग बनाता था।
आज वह बहुत सालों बाद अपने घर आया था। बहुत पहले वह अपने घर यहीं पर रहता था, लेकिन तब प्रज्ञा इस घर में काम नहीं करती थी। वह अपने करियर के सिलसिले में जब घर छोड़कर बाहर चला गया, तब से अगर किसी को मिलना होता, तो वह बाहर ही मिल जाता था। वह कभी उसके बाद घर नहीं आया था; इसी वजह से प्रज्ञा को थोड़ी सी मुश्किल हो रही थी।
सम्राट ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। सम्राट ने तिरछी नज़रों से प्रज्ञा की ओर देखा और बोला, "ठीक से बैठो। मेरे साथ चलता है, तो बदतमीज़ी कम करनी पड़ेगी।" प्रज्ञा ने उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। प्रज्ञा के मन में एक अजीब सी गुदगुदी हो रही थी। प्रज्ञा चोरी-छिपे नज़रों से सम्राट की ओर देखती और फिर मन ही मन खुद से कहती, "ज़ुबान तो एकदम कड़वा है, लेकिन देखने में कितना हैंडसम है! मुझे नहीं लगता कि पूरे मुंबई में इससे ज़्यादा हैंडसम कोई होगा। पर पता नहीं क्यों क्या चल रहा है इसकी फैमिली में? समझ नहीं आता। विजय साहब तो इतने अच्छे हैं, और दादाजी... दादाजी तो हमेशा ही इसकी बातें करते हैं, पर इसका तो कुछ पता नहीं है।" वह मन ही मन इन्हीं सब ख्यालों में सोच रही थी।
सम्राट बेचैन होकर उसकी ओर देखता है और कहता है, "और कितना वक्त लगेगा? तुमने तो कहा था कि शहर से 2 घंटे की दूरी पर है, पर पिछले तीन घंटे से हम वहाँ जाने के लिए निकले हैं, लेकिन अभी तक मंज़िल नहीं मिली।" इतना कहकर उसने गाड़ी रोकी और फिर प्रज्ञा के नज़दीक आकर गुस्से से बोला, "कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे गोल-गोल घुमा रही हो? एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर तुमने मुझे धोखा देने की, या फिर मेरे साथ कोई घटिया मज़ाक करने की कोशिश की ना, तो यह तुम पर बहुत भारी पड़ेगा।" वह जब यह बात गुस्से से कहता है, तो वह चुप और शांत हो जाती है।
"जवाब क्यों नहीं देती? क्यों इतना टाइम लग रहा है?" वह जब सवाल करता है, तो वह कहती है, "मुझे क्या पता इतना वक्त क्यों लग रहा है? आप ये भूल जाते हैं कि आपको 3 घंटे हो गए, लेकिन डेढ़ घंटे तो सिग्नल पर ही बीत गए, और ऊपर से वहाँ पर मारामारी भी हो गई, और आपकी यह हालत हो गई! आप वह सब क्यों भूल जाते हैं?"
एक बड़े, लग्ज़रियस कमरे में रागिनी को ब्यूटीशियन और दो-तीन लड़कियों ने तैयार किया जा रहा था। विवाह-भवन को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था; यह एक रॉयल वेडिंग वेन्यू था जहाँ सब कुछ रॉयल था। आज रागिनी सुंदर दुल्हन बनने वाली थी। शहर की सबसे बड़ी ब्यूटीशियन को उसके लिए बुलाया गया था। कुछ लड़कियाँ उसके पैरों की देखभाल कर रही थीं, और दो लड़कियाँ उसके बालों को सजा रही थीं। एक युवा ब्यूटीशियन आर्टिस्ट उसे तैयार कर रही थी।
रागिनी तैयार होने के बाद आईने में अपने आप को देखती है और कहती है, "मुझे मेकअप बिल्कुल न्यूड चाहिए। जैसा कि आप देख रही हैं, मेरा शेड बिल्कुल भी डार्क नहीं है।"
"मैं चाहती हूँ कि मेरा मेकअप एकदम नेचुरल और लाइट हो। मुझे बिल्कुल भी डार्क मेकअप नहीं चाहिए, एकदम न्यूड मेकअप चाहिए। लिपस्टिक भी बिल्कुल म्यूट और हाँ, माथे पर जो बिंदी है, वह मैरून रंग की होनी चाहिए। इसके अलावा, ज्वेलरी मुझे ज़्यादा हैवी नहीं चाहिए, पर ज़्यादा कम भी नहीं।"
ब्यूटीशियन ने उसकी ओर देखा और बोली, "मैडम, आप चिंता मत कीजिए। आपने जैसा कहा है, आपको बिल्कुल वैसा ही तैयार किया जाएगा।"
लगभग 1 घंटे बाद, जब उसने आईने में अपने आप को देखा, तो वह अपने आप को देखते ही रह गई। वह बेहद खूबसूरत लग रही थी।
वह अपने आप को देखकर खुश ही हो रही थी कि तभी हवा में उड़ता हुआ एक हथौड़ा आया और आईने से जा टकराया। आईने के टूटने की तेज आवाज सुनकर वह घबरा गई और अपने कान पर हाथ रखकर जोर से चिल्लाई।
जब उसने पीछे पलटकर देखा, तो बड़ी-बड़ी लाल आँखों से घूरता हुआ सम्राट उसे दिखाई दिया। सम्राट की आँखों में गुस्सा, नफ़रत, जलन सब कुछ साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था। उसे देखकर वह एकदम घबरा गई।
सम्राट ने रागिनी की ओर देखा और एक शब्द चबाते हुए गुस्से से बोला, "तुम्हें देखकर लगता नहीं है कि तुम्हें जरा सा भी अफ़सोस है। जब मैं तुमसे पहली बार मिला था, तभी मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे कदमों में रखकर अपने आप को तुम्हारे हवाले कर दिया था क्योंकि मुझे तुमसे प्यार हो गया था। पर सोचा नहीं था कि तुम मुझे इतना बड़ा धोखा दोगी। तुम्हें लगा था कि मैं धोखा खाकर आशिक़ मजनूँ की तरह अपने आप को बर्बाद कर लूँगा। तुम्हें ऐसा लगा था ना? पर ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं सम्राट बजाज हूँ, सम्राट! वह सम्राट जो एक पल में किसी को धूल में मिला सकता है और एक पल में सातवें आसमान पर बिठा सकता है। तुम्हें लगा था कि तुम मुझे धोखा दोगी और मुझे पता भी नहीं चलेगा? तुम्हारी शादी होने वाली है ना आज? मैं तुम्हारा वह हाल करूँगा कि तुम इस जन्म में तो शादी कर नहीं पाओगी, मुझे या फिर किसी से भी नहीं…"
"नहीं सम्राट, प्लीज़! मेरी बात समझने की कोशिश करो। तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा कुछ भी नहीं है। प्लीज़, एक बार मेरी बात सुन लो।" वह बार-बार सम्राट को अपनी बात समझाने की कोशिश कर रही थी।
"नहीं रागिनी! बहुत हुआ, बहुत हो गई तुम्हारी बकवास, और बहुत हो गई तुम्हारी यह चला। लेकिन अब यह चला कोई काम नहीं आएगी।"
"बहुत नाज़ है ना तुम्हें इस चेहरे पर? इसी भोले-भाले चेहरे से तुमने मुझे फँसाया था ना? लेकिन देखो, मैं तुम्हें पछताने का भी मौक़ा नहीं दूँगा।" इतना कहकर उसने अपने हाथ में लिया हुआ एसिड उसके चेहरे की ओर उछाला। उसने अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को बचाने की कोशिश की और जोर से चिल्लाई।
वह जोर से चिल्लाते हुए अपनी आँखें खोलती है। उसने जब अपनी आँखें खोलीं, तो देखा कि वह पूरी तरह से तैयार नहीं हुई थी। और तो और, उसका आईना अभी भी सही था; बिल्कुल भी टूटा नहीं था। इसके अलावा, उसके चेहरे पर कहीं भी कोई डार्क मार्क नहीं थे। उसने अपने आप को देखा तो वह बिल्कुल ठीक थी। उसने आसपास देखा तो सम्राट उसे कहीं भी दिखाई नहीं दिया। सम्राट की वह इमेजिनेशन ने उसे अंदर ही अंदर डरा दिया था।
"नहीं-नहीं रागिनी! ऐसा कैसे हो सकता है? ज़रूर तुझे कोई गलतफ़हमी हुई है। यह बस एक बुरा सपना था। इसे सपना समझकर भूल जा।"
"सम्राट तेरा अतीत था। अगर तू उससे शादी करेगी, तो तुझे कुछ हासिल नहीं होगा। सम्राट से शादी करके तुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ तकलीफ़ मिलेगी। सम्राट के साथ तुझे एक पल का भी सुकून नहीं मिलेगा। लेकिन कार्तिक… कार्तिक तुम्हारी ज़िंदगी बदल सकता है। तुम अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ अचीव कर सकती हो।"
"एक बार इस बारे में सोचो कि तुम्हें अपनी ज़िंदगी सँवारनी है या बिगाड़नी। नहीं-नहीं, मैं सम्राट के बारे में नहीं सोच सकती। सम्राट के बारे में अगर सोची, तो मेरी ज़िंदगी ख़राब हो सकती है। मेरी अगर शादी कार्तिक से हुई, तो मेरे पापा के बिज़नेस को भी चार चाँद लग जाएँगे। मुझे अपने पापा के लिए भी कुछ करना है।"
उसने अपने सिर पर हाथ रखा और खुद को कन्विन्स करते हुए बोली, "शांत हो जा! एक बात याद रखना, तेरे लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी और कुछ है, तो वह है पैसा।"
"अगर तुझे सम्राट से नहीं, कार्तिक से शादी करने पर पैसे मिलते हैं, तो यही सही।"
"मुझे अपने पापा के बिज़नेस के बारे में सोचना है। अगर मैं इमोशनल होकर अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाई, तो यह मेरी सबसे बड़ी बेवकूफ़ी होगी।"
"मैडम, आपने जैसा कहा था, आपका मेकअप बिल्कुल वैसा ही करने की कोशिश की है हमने।"
मेकअप आर्टिस्ट ने उसके कंधे पर हाथ रखकर और उसके सिर पर चुम्मी रखते हुए उससे बोली, "एक बार अपने आप को आईने में देखो।"
उसने अपने आप को आईने में देखा। वह बहुत ज़्यादा घबरा रही थी।
"मैडम, उम्मीद करती हूँ कि आपको यह पसंद आया होगा।" मेकअप आर्टिस्ट ने बड़े प्यार से रागिनी से कहा।
सम्राट बहुत तेज रफ्तार से गाड़ी चला रहा था। उसके बगल में बैठी प्रज्ञा चुपचाप अपने मंज़िल पर पहुँचने का इंतज़ार कर रही थी।
लगभग आधे घंटे बाद, आखिरकार वे वेडिंग वेन्यू पहुँच गए। उसने राहत की साँस ली।
सम्राट उसका हाथ पकड़कर अंदर जा ही रहा था कि प्रज्ञा ने अपना हाथ छुड़ा लिया और बोली, "आप चाहिए, मैं आपके साथ अंदर नहीं जाऊँगी।"
सम्राट ने गुस्से भरा लुक प्रज्ञा को दिया और दाँत पीसते हुए बोला, "अगर तुम नहीं जाओगी, तो मैं जबरदस्ती लेकर जाऊँगा। और वैसे भी, मुझे तुम पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।"
प्रज्ञा ने उसकी ओर आश्चर्य भरी नज़रों से देखा और बोली, "अगर आपको भरोसा नहीं है, तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? और वैसे भी, यह शादी का फ़ंक्शन है, और मैंने जो कपड़े पहने हैं, वे बहुत ज़्यादा कैज़ुअल हैं। अगर मैं इन कपड़ों में गई, तो मेरा मज़ाक बनेगा।"
उसकी यह बात सुनकर सम्राट के चेहरे पर एक सार्कैस्टिक मुस्कान आ गई। उसने उसे तिरछी नज़रों से देखा और बोला, "तुम चाहे कोई भी कपड़े पहन लो, लगोगी वही सड़क छाप।"
उसकी यह बात सुनकर प्रज्ञा को बहुत इन्सल्ट महसूस हुआ। उसने अपनी नज़रें नीचे की और बोली, "मुझे अपनी हैसियत पता है। बार-बार यह बातें कहकर मुझे और शर्मिन्दा करने की कोशिश मत कीजिए। और वैसे भी, आपको सिर्फ़ यहाँ तक आना था, और मैंने आपको पहुँचा दिया है। मुझे लगता है कि अब आपको अंदर जाकर सब कुछ खुद ही देखना चाहिए। मैं यहीं बाहर इंतज़ार करती हूँ।" इतना कहकर प्रज्ञा बाहर गाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई।
सम्राट ने एक नज़र उसकी ओर देखा और फिर उसके पास आया। उसने उसका हाथ पकड़ा और बोला, "साथ यहाँ तक आई हैं, तो अंदर भी साथ ही जाएँगी। मुझे चालाकी करने की कोशिश मत करना।"
प्रज्ञा के पास कोई ऑप्शन नहीं था। वह किसी भी सूरत में उसे नहीं जीत सकती थी। अगर वह जबरदस्ती भी हाथ छुड़ाना चाहती, तो कोई फ़ायदा नहीं था।
आखिरकार प्रज्ञा चुपचाप उसके साथ जाने लगी। सम्राट उसका हाथ पकड़कर जब एंट्रेंस पर पहुँचा, कि तभी वहाँ सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोक लिया।
सम्राट ने सिक्योरिटी गार्ड को देखा और कहा, "यह क्या बदतमीज़ी है?"
"यहाँ जो फ़ंक्शन ऑर्गेनाइज़ किया गया है, वह मेरे घर का है। क्या मैं अपने घर की शादी में शामिल नहीं हो सकता?"
वह खड़ा सिक्योरिटी गार्ड उसे रिस्पेक्टफुली बात करते हुए बोला, "आई एम सॉरी सर, पर हम बिना इनविटेशन कार्ड के आपको अंदर नहीं आने दे सकते। अगर आपके पास इनविटेशन कार्ड है, तो हम आपको रोक नहीं सकते, लेकिन अगर आप बिना इनविटेशन कार्ड के अंदर आना चाहते हैं, तो आई एम सॉरी, ऐसा नहीं हो सकता।"
"यह क्या अनाप-शना बातें कर रहे हैं? यह हमारे फैमिली का event है, और क्या मैं अपने फैमिली के event में शामिल नहीं हो सकता...?"
"सर, प्लीज़ समझने की कोशिश कीजिए। हम मजबूर हैं। अगर हमने बिना इनविटेशन कार्ड के आपको अंदर आने दिया, तो हमारी नौकरी भी जा सकती है। बाकी लोगों की बात तो और है, लेकिन यह मिस्टर बजाज के घर का फ़ंक्शन है। आप प्लीज़ समझने की कोशिश कीजिए।"
सम्राट अंदर आने की कोशिश कर रहा था, जबकि सिक्योरिटी गार्ड उसे अंदर नहीं आने दे रहा था। उसके बगल में खड़ी प्रज्ञा गुस्से से बोली, "अब समझते क्यों नहीं? वह बेचारा अगर आपको अंदर जाने देगा, तो उसकी नौकरी चली जाएगी। क्या आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि दूसरों को आपकी वजह से तकलीफ़ हो रही है?"
प्रज्ञा की इस बात को सुनकर सम्राट का ध्यान सिक्योरिटी गार्ड से हटकर उसके ऊपर आ गया। उसने प्रज्ञा की ओर देखा और धीमी आवाज़ में गुस्से से बोला, "सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी जाए या रहे, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। दूसरों की तकलीफ़ से मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। समझी? तो तुम भी यह बड़ी-बड़ी बातें मेरे सामने ना करो, तो ही बेहतर होगा।"
प्रज्ञा समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इस इंसान को क्या प्रॉब्लम है। अगर इतनी प्रॉब्लम है, तो फिर यह मेरे साथ यहाँ क्यों आया...?
जिंदगी में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब हम सवाल ढूँढते रह जाते हैं, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं होता, क्योंकि शायद हमारा सवाल ही गलत होता है।
उसके गुस्से भरे लुक को देखकर, प्रज्ञा घबराकर चुपचाप अपनी नज़रें नीचे कर ली।
सम्राट का गुस्सा भड़कता उससे पहले, वहाँ पर मैनेजर आ गया। मैनेजर ने जैसे ही सम्राट को देखा, तो वह घबराते हुए सिक्योरिटी गार्ड से बोला, "तुम्हें अक्ल नहीं है क्या? तुम इन्हें नहीं जानते? यह मिस्टर सम्राट बजाज हैं। The famous fashion designer... इंडिया में शादी कोई होगा जो इनके बारे में नहीं जानता होगा... खैर, मैं इनसे बात करता हूँ, तुम जाओ यहाँ से।" मैनेजर ने सिक्योरिटी गार्ड को वहाँ से भेज दिया। सिक्योरिटी गार्ड मैनेजर से थोड़ी ही दूर पर जाकर चुपचाप सर झुकाकर खड़ा हो गया। मैनेजर ने लगभग रिक्वेस्ट करते हुए सम्राट से बोला, "आई एम सॉरी सर, वह स्टाफ़ नया है ना, वह आपके बारे में कुछ नहीं जानता। इसलिए थोड़ी सी मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई। आइए ना, आपका स्वागत है।" वह बहुत देर तक सम्मान के साथ सम्राट को अंदर ले जाता है और उसके साथ चल रही प्रज्ञा को देखकर अजीब मुँह बनाता है।
प्रज्ञा और सम्राट जब वहाँ से अंदर की ओर चले जाते हैं, तो मैनेजर खुद से कहता है, "आजकल के लोगों के दिमाग़ का कोई भरोसा नहीं होता। अरे, बजाज ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ का सबसे बड़ा बेटा है, फिर भी इसे एक थर्ड क्लास की लड़की में इंटरेस्ट है। खैर, यह बड़े और अमीर लोग क्या सोचते हैं, इस बारे में हम छोटे लोग कभी समझ नहीं सकते।"
काफी रात हो चुकी थी। सम्राट जब उसे लेकर अंदर गया, तो उसने देखा कि लगभग शादी के सारे रस्म हो चुके थे। भीड़ को चीरते हुए वह अंदर की ओर बढ़ रहा था कि तभी मौका पाकर प्रज्ञा ने उसे अपना हाथ छुड़ा लिया।
सम्राट को इस बात पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन उसने अपने गुस्से को साइड में रखा और अपने मन में सोचा कि उसके भाई की शादी हो रही है, वह आज सब कुछ भूलकर अपने भाई की शादी में शामिल होना चाहता था। जब वह भीड़ को चीरते हुए अंदर की ओर बढ़ रहा था, तो प्रज्ञा वहाँ से भाग गई। सम्राट ने इस बात को इग्नोर कर दिया। प्रज्ञा वहाँ से भागकर मंडप के साइड में आकर खड़ी हो गई। वह वहाँ शादी के रस्मों को देख रही थी। मंगलसूत्र पहनने के बाद फेरे पूरे हो चुके थे। सिंदूरदान की रस्म के बाद अब सभी लोग वर-वधू को आशीर्वाद दे रहे थे। प्रज्ञा यह देखकर बहुत खुश हो रही थी। भले ही सम्राट की वजह से ही सही, लेकिन आखिरकार उसने कार्तिक की शादी देख ली थी। प्रज्ञा ताली बजा-बजाकर खुश हो रही थी कि तभी अचानक सुनीता जी की नज़रें प्रज्ञा पर पड़ीं। प्रज्ञा ने जब यह सब देखा, तो बिना देरी किए वहाँ से भाग गई।
सम्राट आगे बढ़ ही रहा था कि तभी भीड़ आगे की ओर बढ़ गई और सम्राट आगे बढ़ ही नहीं पाया। उसके आगे बड़ी सी भीड़ खड़ी थी, जिसको पार करके आगे बढ़ना बहुत मुश्किल था। सम्राट बहुत कोशिश कर रहा था, लेकिन वह भीड़ इतनी घनी थी, जो वर-वधू पर फूल बरसा रही थी कि ना तो सम्राट अपने भाई कार्तिक को देख पा रहा था और ना ही यह देख पा रहा था कि आखिर दुल्हन बनी कौन है?
सम्राट हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करता है कि भगवान उसके भाई और उसकी पत्नी को हमेशा खुश रखे। भले ही उसकी ज़िन्दगी में अंधेरा क्यों ना हो, लेकिन उसके जीवन के अंधेरे का जरा सा भी अंश उसके भाई को न पड़े।
दूसरी तरफ़, कार्तिक अपने मन में कहता है, "काश भाई आप भी मेरी शादी में शामिल होते। आपके बिना सब कुछ अधूरा-अधूरा सा लगता है।"
उसके चेहरे पर मुस्कान तो थी, लेकिन मन में एक पीड़ा रह गई थी कि काश उसका भाई भी इस शादी में शामिल होता, तो शादी की रौनक कुछ और ही होती।
वर-वधू पर फूल बरसाए जा रहे थे। सुनीता जी अपने गुस्से को संभाल नहीं पाई और सबकी नज़र बचाकर वहाँ से चली गई।
प्रज्ञा, जो सुनीता जी को देखकर घबराकर कॉरिडोर में आ गई थी, उसने जब देखा कि कोई नहीं आ रहा, तो वह खुशी से झूमते हुए खुद से कहती है, "कितना मज़ा आया! उसे खड़ूस की वजह से ही सही, लेकिन कम से कम मैंने शादी तो देख ली! सच में शादी की रस्म वाकई लाजवाब होती है, और जब दूल्हा-दुल्हन कार्तिक भाई और राघिनी जैसी हों, तो और भी ज़्यादा अच्छा लगता है।" दोनों कितने खुश दिखाई दे रहे थे! आई मीन, देखकर लग रहा था जैसे दोनों एक-दूसरे के लिए बने हैं।" वह अपने आप से बातें करते हुए खुश हो रही थी कि तभी उसके गले में पहनी हुई मोती की माला टूटकर जमीन पर बिखर गई।
प्रज्ञा उन मोतियों को समेटने के लिए नीचे झुकी। उसने जैसे ही एक मोती उठाने के लिए अपना हाथ जमीन पर रखा, कि तभी किसी ने भारी भरकम पैर उसके हाथों पर रख दिए।
अचानक से दर्द की अनुभूति से वह चिल्ला पड़ी। उसने पलकें उठाकर सामने की ओर देखा, तो सुनीता जी ने अपनी जूतियों समेत अपने पैर को उसके नाज़ुक हाथों पर रख दिया था और उसे कुचल रही थी। प्रज्ञा को ऐसा लगा जैसे एक ही पल में उसकी जान चली जाएगी। दर्द की तीव्र अनुभूति हो रही थी। प्रज्ञा की आँखों में अचानक ही आँसू आ गए। सुनीता जी दाँत पीसते हुए बोली, "तुझे कहा था ना, अपनी ये अदाएँ मेरे बच्चों और मेरे पति के सामने मत दिखाना! फिर भी नौटंकी करने के लिए तुम यहाँ तक पहुँच ही गई... मुझे लगा था कि तुम भोली-भाली हो, पर अब धीरे-धीरे तुम्हारी चालाकी समझ रही हूँ। मैं बारात में आई हो ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रिझा सको..."
"मैडम जी, बहुत दर्द हो रहा है!" वह लगभग रोते हुए अपना हाथ हटाने की कोशिश करती है और रिक्वेस्ट करती है कि वह उसे बख्श दे, लेकिन सुनीता जी की आँखों में नफ़रत और गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। वह अपना हाथ हटाने की बहुत कोशिश कर रही थी, लेकिन सुनीता जी उसके हाथों पर अपने पैर को जमाती जा रही थी, जिससे उसका दर्द और भी ज़्यादा बढ़ रहा था।
प्रज्ञा के दर्द की इंतहा हो गई थी। उसकी आँखों से आँसू झर-झर करके गिर रहे थे। वह और ज़्यादा दर्द में तड़पती, उससे पहले एक कड़कती हुई, जानी-पहचानी सी आवाज़ आई, जिसे सुनकर सुनीता जी ने तुरंत अपने क़दम पीछे खींच लिए और प्रज्ञा को जान में जान आई।
आखिरी आवाज़ किसकी थी और क्यों करती थी सुनीता जी प्रज्ञा से इतनी ज़्यादा नफ़रत? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आपको अगले एपिसोड का इंतज़ार करना होगा।
एक तीखी, कड़कती आवाज सुनकर सुनीता जी का दिल धड़क गया। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें यह आवाज इतनी अचानक सुनने को मिलेगी।
एक जानी-पहचानी सी आवाज थी, जिसे प्रज्ञा भी पहचान चुकी थी। सुनीता जी ने जल्दबाजी में अपने कदम पीछे खींच लिए।
प्रज्ञा के हाथ से धीरे-धीरे खून निकलने लगा था। उसने जल्दी से अपना हाथ हटाया और उसे फूंकने लगी। दर्द काफी था, लेकिन अब थोड़ी राहत मिल रही थी। उसने अपने हाथ को पकड़कर सामने देखा तो उसके सामने एक लंबा-चौड़ा शख्स खड़ा था। यह कोई और नहीं, बल्कि सम्राट था, जिसकी आँखों में गुस्सा, नफ़रत, और ग़लतफ़हमी सब कुछ एक साथ दिखाई दे रहा था।
सुनीता जी ने उसे देखा तो उनके होश उड़ गए। हवाओं में एक अलग सा बदलाव आ गया था। ऐसा लग रहा था जैसे यह होटल अभी आसमान में उड़ जाएगा। अजीब सी सिचुएशन हो गई थी। सुनीता जी के माथे पर पसीने की बूँदें आ गई थीं। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस तरह से सम्राट उनके बेटे की शादी में आकर शामिल हो जाएगा।
यह सम्राट यहां कैसे आया? क्या इसे पता चल गया है कि रागिनी शादी कर रही है? मेरे बेटे से? नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। अगर इससे कुछ भी पता चला तो यह किसी को चैन से जीने नहीं देगा...??
"क्या हुआ? आपके चेहरे का रंग क्यों उड़ गया?" वह कड़कती आवाज में सामने खड़ी सुनीता जी से सवाल करता है। सुनीता जी उसकी ओर देखती हैं और फिर एक नज़र प्रज्ञा की ओर देखती हैं। प्रज्ञा के सामने वह अपने आप को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहती थी।
वह अपने चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान लाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन अंदर के डर की वजह से वह चाहकर भी मुस्कुरा नहीं पा रही थी। बहुत कोशिश करने के बाद भी वह ठीक से शब्द नहीं निकाल पा रही थी।
तब तक सम्राट भी उनके करीब आ चुका था। सम्राट ने थोड़ा तिरछा होकर प्रज्ञा की ओर देखा, जिसके हाथों में जगह-जगह काटने के निशान बन गए थे। उसने जो जूती पहनी थी, उसमें जगह-जगह डिजाइन थे, जिसकी वजह से वह पूरी तरह से जख्मी हो चुकी थी। उसके हाथ को देखकर सम्राट को नहीं पता क्या हुआ, वह गुस्से से बौखला गया और सुनीता जी से सवाल करता है...??
"Mrs. Bajaj, क्या आपके यहाँ मेहमानों की ख़िदमत ऐसे होती है...??”
"मेहमान? आखिर तुम किसकी बात कर रहे हो?" सुनीता जी उसकी ओर देखकर सवाल करती हैं। तो सम्राट कहता है, "यह लड़की आपके बेटे की शादी में शामिल होने आई है और आपने इसके साथ इतना बड़ा मज़ाक किया। आपको देखकर लगता नहीं है कि आप मज़ाक ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ की मालकिन हैं। सच कहूँ तो आपका दिल तो एक दो साल के बच्चे से भी छोटा है। लगता है कि आपको पैसों का कुछ ज़्यादा ही घमंड है।"
सम्राट की बात सुनकर सुनीता जी बगल में खड़ी प्रज्ञा की ओर देखती हैं। उन्हें बहुत बुरा लग रहा था कि सम्राट एक नौकरानी के सामने उनकी बेइज़्ज़ती कर रहा है। वह सम्राट की ओर देखती हैं और अपने चेहरे पर एक फेक स्माइल लाने की कोशिश करती हैं और कहती हैं, "सम्राट, सम्राट, कैसी बातें कर रहे हो तुम? यह कोई नौकरानी, आई मीन कोई मेहमान नहीं है, बल्कि हमारे घर की नौकरानी है। इसे तुम्हारे दादा ने काम के लिए रखा है। प्लीज़, तुम इस पर ध्यान मत दो। यह नौकर तो होते ही इसलिए हैं कि मालिक लोगों के काम को आसान कर दें।"
"मुझे आपसे जाने की ज़रूरत नहीं है कि मुझे किस बात पर ध्यान देना चाहिए और किस बात पर नहीं। अभी-अभी आपने जो नीच हरकत की है ना, उसकी वजह से मैं चाहूँ तो आपको जेल भिजवा सकता हूँ। यह बात याद रखिएगा। आप चाहे कितने भी बड़े ख़ानदान की मालकिन क्यों ना हों, आपको कोई हक़ नहीं बनता कि आप दूसरों को तकलीफ़ दें। और आप यह क्या लगा रखा है?? नौकरानी है, घर का काम करती है। आप कहना क्या चाहते हैं? जो लोग घर का काम करते हैं, उनमें जान नहीं होती? उन्हें तकलीफ़ नहीं होती? या फिर उन्हें फ़र्क़ नहीं पड़ता कि सामने वाला उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहा है...?"
"देखो सम्राट, यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह हम दोनों का पर्सनल मैटर था। ख़ैर, हमें लगा था कि तुम नहीं आओगे। अब जब तुम आ ही गए हो तो चलो, चलकर दुल्हन और दूल्हे से मिल लो।" इतना कहकर वह सम्राट की ओर देखती हैं और आगे-आगे चलने लगती हैं। सम्राट उन्हें आवाज़ लगाता है और कहता है, "आपकी इस मेहरबानी की ज़रूरत नहीं है मुझे। अगर आप चाहतीं तो मुझे शादी से पहले बुला सकती थीं, लेकिन आपने मुझे एक बार इन्फ़ॉर्म करना तक ठीक नहीं समझा। पता नहीं आपके दिमाग में यह सब कैसे आ जाता है। ख़ैर, मैं अपने भाई से खुद मिल लूँगा। आपको इतनी रहमत दिखाने की ज़रूरत नहीं है।"
वह उनके पीछे जाने ही वाला था कि तभी उसे ध्यान आया कि प्रज्ञा का हाथ बुरी तरह से जख्मी है। प्रज्ञा अभी भी अपने हाथ को पकड़े हुए खड़ी थी।
प्रज्ञा को ऐसे देखकर सम्राट को उस पर तरस आ गया। उसने एक नज़र सुनीता जी को देखा और फिर अगले ही पल वह प्रज्ञा के पास आ गया। प्रज्ञा अभी भी नम आँखों से अपने हाथ को देख रही थी। सम्राट ने उसकी ओर देखा और बोला, "ज़्यादा दर्द हो रहा है?" सम्राट की पोलाइट आवाज़ सुनकर प्रज्ञा उसकी ओर देखती है। प्रज्ञा के लिए इस बात पर यकीन कर पाना बहुत मुश्किल था कि सम्राट जैसा शख्स किसी से प्यार से बात कर सकता है। सम्राट ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोला, "तुम २ मिनट तक यहीं इंतज़ार करो, मैं कुछ करता हूँ।" प्रज्ञा ने उसकी ओर देखा और बोली, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं।" सम्राट समझ गया कि प्रज्ञा घबरा रही है। सम्राट ने प्रज्ञा का दूसरा हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लेकर सीधा होटल मैनेजर के पास आया। थोड़ी ही देर बाद, प्रज्ञा के सामने डॉक्टर खड़ा था, जो प्रज्ञा के हाथों पर पट्टी कर रहा था। प्रज्ञा ने एक हाथ से सम्राट का हाथ पकड़ा हुआ था। उसे जब थोड़ा सा भी तकलीफ़ होता, वह सम्राट के हाथ को कस के दबा देती और अपनी आँखें बंद कर लेती। सम्राट को इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता था। उसे सिर्फ़ मतलब था इस बात से कि प्रज्ञा का हाथ ठीक हो जाए।
प्रज्ञा को वहीं छोड़कर सम्राट डॉक्टर के साथ कॉरिडोर में आया और बोला, "डॉक्टर, उसके हाथ पर निशान तो नहीं रहेंगे ना? देखिए आप, आप चाहें तो मैं इसे बड़े अस्पताल में भी दिखा सकता हूँ, पर उसके हाथ पर मार्क नहीं रहने चाहिए। अभी वह बहुत टीनएज उम्र की है। अगर उसके हाथों पर निशान रह गए तो बहुत अजीब लगेगा। डॉक्टर, एक और बात, क्या उसे यह दर्द बहुत ज़्यादा दिन तक सहना होगा?" डॉक्टर ने एक बार सम्राट की ओर देखा और मुस्कुराकर बोले, "Mr. Samrat, आप ज़्यादा ही सोच रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं है। मामूली सी चोट है, ठीक हो जाएगा। और हाँ, दवा वक़्त पर लेनी होगी। अब मैं चलता हूँ।" डॉक्टर के वहाँ से चले जाने के बाद,
सम्राट की ओर देखा और धीरे से बोली, "आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।" वैसे मैंने सोचा नहीं था कि वह कुछ बोलेगी, उससे पहले ही सम्राट कड़कती आवाज़ में बोला, "तुम्हें मुझे थैंक यू बोलने की ज़रूरत नहीं है। यह सब मैंने इसलिए किया क्योंकि यह जो भी हुआ है, मेरी वजह से हुआ है। जबरदस्ती तुम्हें यहाँ लेकर आया और यह सब कुछ हो गया। इसलिए तुम यह मत सोचना कि मैं तुम्हारा फ़िक्र कर रहा हूँ। और वैसे भी, तुम जैसी लड़कियाँ मुझे दिन में दर्शन मिलती हैं, जिन्हें मैं देखता तक नहीं। ख़ैर... अब चलो यहाँ से..."
सुनीता जी का हाल बेहाल हो चुका था। उन्हें पता था कि जब सम्राट वापस आ गया है, तो उनके दांव-पेंच अब काम नहीं आएंगे।
वह कैसे भी करके सम्राट को वापस भेजना चाहती थीं।
"Per unhen kuchh bhi samajh mein nahin a raha tha.."
अभी तक परिवार के किसी सदस्य को यह नहीं पता था कि सम्राट वापस आ गया है। अगर किसी को पता होता, तो अब तक सम्राट को सब कुछ पता चल चुका होता; लेकिन सम्राट अभी भी अपने परिवार से मिल नहीं पाया था। शादी संपन्न हो चुकी थी। जब सम्राट वापस वेडिंग वेन्यू की ओर आया, तो उसने देखा कि शादी समाप्त हो चुकी है और सारे लोग वापस कमरे में जा चुके हैं। शादी की सारी गतिविधियाँ अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही थीं।
सम्राट ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोला, "तुम्हारा हाथ ठीक नहीं है ना? तो तुम यहीं रुको और हाँ, कुछ भी गड़बड़ करने की कोशिश मत करना।"
इतना कहकर वह वहाँ से कार्तिक से मिलने के लिए चला गया। अभी वह दरवाजे तक ही पहुँचा था कि तभी अचानक एक औरत उसे जाकर टकरा गई। वह कुछ समझ पाता, उससे पहले ही उसके हाथ में पड़ा हुआ जूस का ग्लास सम्राट के ऊपर गिर गया। सम्राट के कपड़े बुरी तरह से खराब हो चुके थे। सम्राट ने महसूस किया कि भले ही वह जूस का ग्लास था, लेकिन उसकी स्मेल बहुत ही ज़्यादा ख़राब थी। उसे जूस के ग्लास से इतनी बुरी दुर्गंध आ रही थी कि सम्राट के लिए उन कपड़ों को बर्दाश्त करना भी मुश्किल हो गया था।
सम्राट ने गुस्से भरी आँखों से उस औरत को देखा और दांत पीसते हुए बोला, "अंधी हो क्या? दिखाई नहीं देता...?"
वह औरत घबरा कर वहाँ से भाग गई। सम्राट कुछ कर भी नहीं पाया। अब सम्राट के पास सिर्फ़ एक ही ऑप्शन बचा था और वह था कि वह अपने कपड़े बदल ले। लेकिन कपड़े बदलने के लिए उसके पास दूसरा कपड़ा नहीं था।
इतनी बदबू के साथ वह पब्लिक एरिया में नहीं जा सकता था, इसलिए वह सीधा बाथरूम में चला गया। वहाँ जाकर उसने अपने कपड़ों को बहुत साफ करने की कोशिश की, लेकिन अभी भी उसके कपड़ों से स्मेल आ रही थी। उसने अपने हाथों को एक बार सूँघकर देखा और बोला, "यह बहुत ख़राब बदबू है।"
जब तक वह बाथरूम में था, तब तक सुनीता जी जल्दी से बाथरूम के पास आई और उस पर ताला लगाकर वहाँ से चाबी लेकर भाग गई। वह वहाँ से जा ही रही थी कि तभी होटल में काम करने वाले एक स्टाफ की नज़र उन पर पड़ी। वह कुछ कहता, उससे पहले ही उन्होंने उसे होटल स्टाफ के हाथ में नोटों का बंडल थमा दिया और बोली, "याद रहे, यह बात किसी को बताना मत। और हाँ, जितना देर हो सके कोशिश करना कि ताला ऐसे ही लटका रहे। अगर यह ताला कभी न खुले, तो तुम्हें और पैसे दूँगी।"
इतना कहकर वह वहाँ से मुस्कुराते हुए चली गई। होटल स्टाफ जानता था कि यह कोई मामूली औरत नहीं है। अगर उसने जो कहा है, वह करेगा, तो उसकी ज़िंदगी संवर सकती है।
जब सम्राट वापस आने के लिए दरवाज़ा खोलने गया, तो वह हैरान रह गया क्योंकि दरवाज़ा लॉक था। वह बार-बार आवाज़ दे रहा था, बार-बार दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी सारी मेहनत, सारी कोशिशें बेकार थीं क्योंकि दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था। बड़ा सा लगता हुआ ताला देखकर किसी को भी यही लगता कि बाथरूम में कोई प्रॉब्लम है या फिर बाथरूम इस्तेमाल करने लायक नहीं है; तभी तो बाथरूम के दरवाज़े पर ताला लगा हुआ है।
वह कोशिश करते-करते थक चुका था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि दरवाज़ा बंद था।
शादी संपन्न हो गई थी और विदाई की तैयारी हो रही थी। सुनीता जी, रागिनी के माँ-बाप से विदाई लेकर बजाज मैंशन के लिए निकल रही थीं। दादाजी, गाड़ी में आकर बैठ गए। विजय बजाज कुछ ज़्यादा खुश दिखाई नहीं दे रहे थे। उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह इस शादी से ज़्यादा खुश नहीं हैं।
सुनीता जी ने जब इस बात को नोटिस किया, तो वह उनके पास आईं और बोलीं, "क्या कर रहे हैं आप? आपको दिखाई नहीं दे रहा...? यहाँ पर सभी लोग हैं और आपके चेहरे के एक्सप्रेशन को देखकर लग रहा है कि आपको इस शादी से ज़्यादा खुशी नहीं है।"
विजय बजाज ने जब उनकी बात सुनी, तो गुस्सा करते हुए बोले, "तो और क्या करूँ मैं? जब मन में खुशी नहीं है, तो चेहरे पर खुशी का मुखौटा लगाकर तुम्हारी तरह नहीं घूम सकता। और वैसे भी, यह शादी देखकर मेरा दिल जल रहा है। सबको पता है कि रागिनी और सम्राट एक-दूसरे को कॉलेज टाइम से पसंद करते थे। एक-दूसरे को इतने साल डेट करने के बाद अचानक से रागिनी ने अपना फ़ैसला बदल लिया। यह जानकर मुझे बहुत अजीब लग रहा है। और तो और, हमारा बेचारा कार्तिक, उसे तो इस बारे में पता भी नहीं है। तुम्हारी कसम की वजह से यह सब कुछ हो रहा है। अगर उस दिन तुमने कसम नहीं दी होती, तो शायद यह सब कुछ नहीं होता।"
विजय बजाज अपनी पत्नी को डाँट रहे थे, वहीं उनकी पत्नी सुनीता, अपने पति के डाँट से गुस्सा करते हुए कहती हैं, "आप, शादी हो चुकी है। यह सारी बातें करने का कोई फ़ायदा नहीं। और वैसे भी, कार्तिक को रागिनी बहुत पसंद है, तो कम से कम अपने बच्चों की खुशी के लिए ही खुश हो जाइए।"
विजय चाहते तो थे कि वह इस शादी से खुश रहे, मुस्कुराए, पर अंदर ही अंदर उनके मन में एक ख़लल मची हुई थी। वहीं दादाजी एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठे चुपचाप सब कुछ देख रहे थे। उनकी आँखें नम थीं। वह अपना चश्मा निकालकर आँखों से बहते हुए आँसुओं को अपने कंधे पर रखे गए गमछे से पोछते हैं और खुद से कहते हैं, "अगर सम्राट यहाँ होता...? पता नहीं वह कहाँ होगा, क्या हाल में होगा...?"
थोड़ी देर बाद विदाई की सारी रस्में पूरी हो गईं। इस शादी में मौजूद सभी लोग सिर्फ़ दिखाने के लिए मुस्कुरा रहे थे। असल में किसी के भी चेहरे पर स्माइल नहीं थी।
शादी से सबसे ज़्यादा अगर कोई खुश था, तो वह थी रागिनी और सुनीता जी। इसके अलावा किसी को भी शादी से ज़्यादा खुशी नहीं थी। कार्तिक और उसके पापा इस वक़्त सम्राट को बहुत ज़्यादा मिस कर रहे थे।
दूसरी तरफ़ सम्राट बहुत बुरी तरह से फँस चुका था। वह हज़ार कोशिशें कर रहा था वहाँ से निकलने के लिए, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं था।
"Vahi dusri taraf Pragya corridor mein khadi khadi thak chuki thi to vah vahan rakhi kursi per baith gai. Vah apne hathon ki aur dekhti hai aur fir apni gardan unchi karke bahar ki aur dekhte hue kahati hai, 'Itna waqt kahan lag raha hai...??'"
वह अभी यह बात सोच ही रही थी कि तभी उसकी नज़र सामने से आ रही सुनीता जी पर पड़ी। सुनीता जी अपनी बहू को लेकर कार की ओर बढ़ रही थीं। पूरा परिवार खुशी-खुशी बहू को विदा करके अब वहाँ से घर के लिए रवाना हो रहा था। प्रज्ञा ने जब उन सभी को देखा, तो वह समझ गई थी कि दादाजी और विजय जी उसे अपने साथ ले जाने की ज़रूर कोशिश करेंगे, लेकिन वह यह भी जानती थी कि सुनीता जी को इस बात से दिक्कत होगी। इसीलिए उसने अपना चेहरा छुपाने के लिए अपने दुपट्टे को अपने चेहरे पर रख लिया। हर कोई नई बहू के स्वागत में लगा हुआ था, इसलिए किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया।
गाड़ी में कार्तिक और रागिनी बैठे हुए थे। रागिनी ने कार्तिक का हाथ अपने हाथों में लिया और उसके कंधे पर अपना सिर रखकर बोली, "कार्तिक, मैं प्रॉमिस करती हूँ कि हमेशा तुम्हारा साथ दूँगी, हमेशा तुम्हें खुश रखने की कोशिश करूँगी।" कार्तिक भी हल्की सी स्माइल देता है, लेकिन कुछ भी नहीं कहता। उसका दिमाग तो इस वक़्त कहीं और ही था।
इतनी अच्छी-अच्छी बातें करने के बाद भी कार्तिक के मुँह से कोई शब्द नहीं निकला। यह देखकर रागिनी को बहुत बुरा लगा, लेकिन उसने अपने आप को निराश नहीं होने दिया और अपने मन में सोचने लगी कि कार्तिक तो है ही सीधा-साधा, उसे ज़्यादा बातें करना या फिर ज़्यादा किसी की तारीफ़ करना पसंद नहीं है। पर फिर भी, जो भी है, वह बजाज इंडस्ट्रीज़ का मालिक है, तो फिर क्या फ़र्क पड़ता है कि वह मुझे कॉम्प्लीमेंट देता है या नहीं...?
सम्राट बहुत कोशिश कर रहा था कि वह दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल जाए। पर उसकी कोशिश का कोई फायदा नहीं था।
दूसरी तरफ, धीरे-धीरे दोपहर बीतने लगी थी। प्रज्ञा का सब्र अब जवाब दे रहा था। सम्राट ने उसे सुबह 7:00 बजे यहां खड़े होने के लिए कहा था। अब 6 घंटे बीत चुके थे। भूख और प्यास से उसका गला सूख रहा था। वह इधर-उधर देखती और फिर चुपचाप वहीं खड़ी रह जाती। उसे विश्वास था कि सम्राट उसे अपने साथ जरूर लेकर जाएगा।
थोड़ी-थोड़ी देर में वह किसी न किसी स्टाफ से सम्राट के बारे में पूछ रही थी, पर किसी ने भी सम्राट के बारे में कुछ नहीं बताया।
प्रज्ञा थोड़ी देर और इंतज़ार करती है और फिर अपने आप से कहती है, "प्रज्ञा, तू कितनी बड़ी बेवकूफ है! तुमने एक ऐसे इंसान पर भरोसा किया जिसे तू ठीक से जानती भी नहीं। वह तुझे छोड़कर जा चुका है।" प्रज्ञा ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा। उसे अपने आप ही बजाज मैंशन जाना होगा। क्योंकि अगर वह और देर यहां पर रही, तो उसके लिए घर जाना मुश्किल हो जाएगा।
प्रज्ञा जाकर रिसेप्शन पर रिसेप्शनिस्ट से कहती है, "मैडम, जहाँ जो शादी हो रही थी, मैं भी उसी में आई थी और सभी लोग चले गए। मैं कुछ पर्सनल रीज़न की वजह से छूट गई हूँ। क्या प्लीज़ फोन करके इन्फॉर्म कर देंगे कि मैं यहाँ पर छूट गई हूँ?" रिसेप्शनिस्ट उसे गौर से देखती है। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि इतने बड़े खानदान की शादी में एक मामूली सी दिखने वाली लड़की, जिसने कपड़े भी ढंग से नहीं पहने, वह शामिल हुई है।
रिसेप्शनिस्ट को पहले उसके बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था, लेकिन उसके बार-बार रिक्वेस्ट करने पर उसे उस पर दया आ गई। उसने प्रज्ञा की ओर देखा और बोली, "तो तुम कहना चाहती हो कि तुम मिस्टर बजाज के फैमिली की तरफ़ से हो..."
"नहीं नहीं मैडम, मैं उनकी फैमिली की तरफ़ से नहीं हूँ। पर मैं उनके घर में काम करती हूँ और मैं भी उन्हीं के साथ आई थी, पर यहाँ छूट गई। समझ नहीं आता कि क्या करूँ। क्या प्लीज़ फोन करके बता देंगे उन्हें?" रिसेप्शनिस्ट को उसकी बातों पर दया आ गई। उसने बजाज मैंशन को कॉल किया। लैंडलाइन पर कई बार कॉलिंग करने के बाद भी किसी ने कॉल नहीं रिसीव किया।
"मैडम, एक आखिरी बार प्लीज़ कॉल कीजिए ना, मेरे ख़ातिर।" वह रिक्वेस्ट करती है। आखिर में, जब फिर से उसने कॉल मिलाया, तो किसी ने कॉल रिसीव किया।
रिसेप्शनिस्ट स्माइल करते हुए कहती है, "हेलो मैडम, मैं वेडिंग रॉयल होटल से बात कर रही हूँ। जहाँ पर आप लोगों ने थोड़ी देर पहले शादी के फ़ंक्शन के लिए होटल बुक किया था। मैडम, एक्चुअली बात यह है कि आपके घर की प्रज्ञा यहाँ छूट गई है। तो अगर आप कहें, तो मैं इन्हें अपनी टैक्सी से घर भिजवा सकती हूँ या फिर आप किसी को भेज दीजिए रिसीव करने के लिए..."
दूसरी तरफ़ से एक टेढ़ी आवाज़ आई, "अगर छूट गई है, तो उसे कह दो कि यहाँ वापस आने की ज़रूरत नहीं है। हमें उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। और हाँ, दोबारा कॉल मत कीजिएगा।" इतना कहकर उस औरत ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। रिसेप्शनिस्ट ने कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद प्रज्ञा की ओर देखा और मायूस होकर बोली, "आई एम सॉरी प्रज्ञा, पर उन्होंने कहा कि उन्हें तुम्हारी ज़रूरत नहीं है।"
"क्या कहा आपने? पर ऐसे कैसे हो सकता है? दादाजी की दवाइयाँ और घर के बाकी सारे काम, और तो और मिस्टर विजय को तो..."
प्रज्ञा बोलते-बोलते चुप हो गई। उसने रिसेप्शनिस्ट की ओर देखा और बोली, "आई एम सॉरी, मैंने आपका भी टाइम वेस्ट कर दिया।" रिसेप्शनिस्ट ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोली, "तुमने कुछ खाया है?" प्रज्ञा ने उसकी ओर देखा और अपनी आँखें नीचे कर लीं। रिसेप्शनिस्ट स्माइल करते हुए कहती है, "तुम सच में बहुत अलग हो।"
"हेलो, मेरा नाम आशी है। मैं इस होटल की असिस्टेंट डायरेक्टर हूँ। फ़िलहाल यहाँ रिसेप्शन पर इसीलिए हूँ क्योंकि मुझे कोई काम नहीं था और मुझे यहाँ पर काम करना अच्छा लगता है। वैसे, एक बात बताओ, तुम जब शादी में आई हो, तो भूखी कैसे रह गई...? इतने वैरायटी के मेनू होने के बाद भी क्या तुम्हें एक भी डिश पसंद नहीं आया?" आशी ने जब यह सवाल किया, तो प्रज्ञा अपनी नज़रें नीचे करके बोली, "एक्चुअली बात यह है कि मैं कैंटीन एरिया में गई ही नहीं थी। मेरे साथ कोई और भी आए थे और उन्होंने कहा कि मैं उनका इंतज़ार करूँ। पर कब से उनका इंतज़ार कर रही हूँ, लेकिन वे वापस नहीं आए मुझे लेने। मुझे लगता है वे मुझे छोड़कर जा चुके हैं।"
जब उसने उदास होकर यह कहा, तो आशी बोली, "कोई बात नहीं। इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। देखो, मेरा ड्राइवर इस वक़्त लंच के लिए गया है। जैसे ही वह वापस आता है, मैं तुम्हें घर भिजवा दूँगी। तुम चिंता मत करो।" आशी की बात सुनकर प्रज्ञा की जान में जान आई।
Pragya ने वहाँ पर लैपटॉप की ओर देखा और फिर आशी से बोली, "मुझे यकीन नहीं हो रहा कि वह मुझे छोड़कर चले गए। दरअसल बात यह है कि..."
वह कुछ कहती, उससे पहले आशी ने कहा, "देखो, अगर तुम्हें अभी भी डाउट है कि वह इस होटल में ही है, तो हम इस बात का पता आराम से लगा सकते हैं।" इतना कहकर उसने बाहर जाने वाले सिस्टम के कैमरे की फ़ोटोज़ को स्टार्ट कर दिया। हालाँकि बहुत ज़्यादा भीड़ थी, पर फिर भी आशी ने प्रज्ञा से कहा, "तुम उस आदमी को ठीक से पहचानती हो ना? तो इस वीडियो फ़ुटेज में देखकर बताओ कि क्या वह वापस जा रहे हैं..."
प्रज्ञा ने एक बार नहीं, बल्कि तीन बार उस वीडियो फ़ुटेज को देखा, लेकिन एक बार भी उसे सम्राट दिखाई नहीं दिया। उसने आशी की ओर देखा और बोली, "शायद आप सही कह रही हैं। मुझे थोड़ी सी मिसअंडरस्टैंडिंग हो गई थी। वीडियो फ़ुटेज में तो कहीं भी वह शख़्स जाते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं..."
"तो... इसका मतलब साफ़ है कि वह यहीं होटल में ही है। देखो, तुम चिंता मत करो... मैं तुम्हारी हेल्प करूँगी।"
यह पहली बार था जब कोई प्रज्ञा से सामने से हेल्प के लिए कह रहा था। प्रज्ञा की आँखों में चमक आ गई। आशीष और प्रज्ञा, टेरेस और सभी जगह पर ढूँढने की कोशिश करने लगीं, पर दोनों के लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें कहीं भी सम्राट दिखाई नहीं दिया। आखिर में, परेशान होकर प्रज्ञा बोली, "मैडम, मैं अभी 2 मिनट में आती हूँ। यहाँ पर वॉशरूम एरिया कहाँ है...?"
आशी के साथ वॉशरूम एरिया की ओर गई, लेकिन जैसे ही... Pragya...
वॉशरूम में गई, उसे दूसरी तरफ़ से कुछ गिरने की आवाज़ सुनाई दी। मेन्स वॉशरूम के बगल में ही वूमेन्स वॉशरूम था। जिसकी वजह से उसमें होने वाली हलचल वह बहुत आसानी से सुन सकती थी।
जैसे ही कुछ गिरने की तेज आवाज़ सुनाई दी, वह घबराकर बाहर निकली और आशी से बोली, "Madam, यह वॉशरूम यूज़ नहीं होता है क्या...??”
आशी ने उसे मेन्स वॉशरूम की ओर देखा और फिर हैरान होकर बोली, "नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कल शाम तक तो यह बिल्कुल सही था। इन फ़ैक्ट, सुबह भी इस पर ताला नहीं लगा हुआ था। और यह जो ताला है, यह तो हमारे होटल का ताला नहीं है। इन फ़ैक्ट, हम लोग इस तरह के ताले ही नहीं यूज़ करते।"
अभी वह दोनों बातें कर ही रही थीं कि तभी वह स्टाफ़ वहाँ पर आ गया। उसने जैसे ही वहाँ पर आशी को देखा, उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसने अपने आप को बहुत अच्छे से मैनेज किया और फिर आशी के पास आकर बोला, "हेलो मैडम, कैसी हैं आप...?"
"शेखर, मैं कैसी हूँ, इस बारे में बाद में सोचना। पहले यह बताओ कि यहाँ पर यह ताला किसने लगाया...??”
शेखर ने उसे ताले को ऐसे देखा जैसे उसने ज़िन्दगी में पहली बार यह ताला देखा हो। फिर वह स्माइल करते हुए कहता है, "दरअसल बात यह है कि आज सुबह ही वॉशरूम का फ़्लश ख़राब हो गया और आने वाले गेस्ट बहुत ज़्यादा परेशान हो रहे थे। उनका कहना था कि अगर यह फ़्लश नहीं आ रहा, तो फिर इसे खोलकर क्यों रखा है? इसलिए मैंने मैनेजर साहब से पूछकर इस पर ताला लगा दिया।"
जैसे ही यह बात प्रज्ञा ने सुनी, वह आशी से बोली, "मैडम, लेकिन अभी-अभी मैंने इस वॉशरूम में कुछ गिरने की आवाज़ सुनी है। मुझे बहुत अजीब लग रहा है। मिस्टर शेखर, क्या आप 1 मिनट के लिए इस ताले को खोलेंगे? मुझे बस तसल्ली करनी है।"
प्रज्ञा घबराते हुए जब यह बात कहती है, तो शेखर कहता है, "आई एम सॉरी मैडम, पर इसका चाबी मेरे पास नहीं है।"
आशी सब कुछ सुन रही थीं। आशी ने शेखर की ओर देखा और वार्निंग देते हुए बोली, "शेखर, मैं बहुत दिनों से तुम्हारे बर्ताव को नोटिस कर रही हूँ। अगर इस बार तुमने कोई गड़बड़ की होगी, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" इतना कहकर आशी ने तुरंत मैनेजर को कॉल लगाया और बोली, "सर, क्या आपने..."
"...पर ताला लगाने के लिए कहा था...?" आशी के सवाल के बाद दूसरी तरफ़ से जो जवाब आया, उसे सुनकर आशी ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया और तुरंत शेखर का कॉलर पकड़कर गुस्सा करते हुए बोली, "तुमने सभी को बेवकूफ़ समझ रखा है। तुम्हें लगता है कि तुम जो कहोगे, उस पर हम विश्वास कर लेंगे? यह तुम्हारी आखिरी वार्निंग थी, लेकिन तुम कभी नहीं सुधरोगे, यह साबित हो गया है।"
आशी ने उसे पीछे की ओर धक्का दिया और फिर वहाँ रखे बड़े से हथौड़े को उठाकर ताले पर पीटने लगी। शेखर उसे बार-बार मना कर रहा था, लेकिन आशी ने एक नहीं सुनी। आशीष, शेखर पर नाराज़ होते हुए कहती है, "अगर कुछ गड़बड़ हुई ना, तो तुम्हारी ख़ैर नहीं।"
प्रज्ञा और आशी दोनों कोशिश करती हैं और फिर ताले को तोड़ देती हैं। प्रज्ञा ने जल्दी से दरवाज़ा खोला तो देखा कि अंदर सम्राट बेहोश पड़ा हुआ था। सम्राट ने अपना कोट उतारकर वहीं वॉशरूम में फेंक दिया था। उसका चेहरा पूरी तरह से भीग चुका था, जगह-जगह पानी-पानी हुआ पड़ा था। अजीब सिचुएशन देखकर वह एकदम घबरा गई।
आशी और प्रज्ञा दोनों मिलकर उसे बाहर निकालती हैं और फिर तुरंत आशी डॉक्टर को कॉल करती हैं।
Ashwini होटल मैनेजर को तुरंत बुलाया और फिर शेखर को पुलिस के हवाले कर दिया।
डॉक्टर ने सम्राट की जाँच की और फिर प्रज्ञा से कहा, "देखिए मैडम, घबराने वाली कोई बात नहीं। कभी-कभी सिचुएशन नाज़ुक हो जाती है। एक बंद कमरे में रहने की वजह से इनका यह हाल हो गया है। इन्हें कोई बड़ी प्रॉब्लम नहीं है। यह थोड़ी देर में ठीक हो जाएँगे। मैंने इंजेक्शन लगा दिया है। थोड़ी देर में ही बिल्कुल नॉर्मल हो जाएँगे। आप चिंता मत कीजिए।"
प्रज्ञा की जान में जान आई। उसने आशी की ओर देखा और उसका हाथ पकड़कर रोते हुए बोली, "समझ नहीं आता कि आपका शुक्रिया कैसे करूँ। आपने एक अनजान लड़की के लिए इतना सब कुछ किया। अगर कभी भी आपको मदद की ज़रूरत हो, तो प्लीज़ एक बार ज़रूर बताइएगा। आपके लिए तो जान भी हाज़िर है।"
"अरे प्रज्ञा, कैसी बातें कर रही हो? अगर इंसान इंसान के काम नहीं आएंगे, तो फिर कौन आएगा? और वैसे भी, मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारे काम आई। अब तुम सम्राट को लेकर जा सकती हो। और हाँ, अपना ख़्याल रखना और अपने सम्राट का भी।"
आशी ने मुस्कुराते हुए कहा। मैनेजर प्रज्ञा की ओर देखा और बोला, "इन्हें जैसे ही होश आ जाता है, मैं आप दोनों के जाने का इंतज़ाम कर दूँगा। आप चिंता मत कीजिए। और हाँ, प्लीज़ सम्राट सर से कहिएगा कि वह हमारे होटल पर कोई केस न करें। यह जो भी हुआ है, शेखर की वजह से हुआ है। हमने उसे पुलिस के हवाले कर दिया है। पर प्लीज़, प्लीज़ आपसे रिक्वेस्ट करता हूँ, आप दोनों इतने क्लोज़ हैं, तो वह आपकी बात ज़रूर मानेंगे।"
प्रज्ञा को समझ नहीं आ रहा था कि वह उसे मैनेजर से क्या कहे। सच तो यह था कि प्रज्ञा और सम्राट के बीच कोई रिश्ता नहीं था। पर जब प्रज्ञा ने सम्राट को उस हालत में देखा, तो ऐसा लगा जैसे उसकी खुद की जान जा रही है। उसे बहुत बुरा लग रहा था सम्राट के लिए, और उसका यह केयर करना, उसकी परवाह करना, आशी और मैनेजर को यही एहसास दिला रहा था कि दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं। सिचुएशन बहुत अजीब थी। प्रज्ञा किसी को एक्सप्रेशन नहीं देना चाहती थी।
रात के लगभग 8:00 बज चुके थे। सम्राट तेज रफ्तार से गाड़ी चला रहा था। उसके बगल में बैठी प्रज्ञा डरी और घबराई हुई थी। उसे पता था कि घर जाने के बाद उसे काफी कुछ सुनने को मिलेगा।
उसकी वजह से सम्राट ने जो सुनीता जी की बेइज़्ज़ती की थी, उसका बदला भी उसे ही चुकाना पड़ेगा।
सम्राट घर का बड़ा बेटा है, इसलिए उसे कोई कुछ नहीं कहेगा। लेकिन प्रज्ञा के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएँगी। वैसे भी, सुनीता जी को प्रज्ञा कुछ खास पसंद नहीं थी, लेकिन दादाजी की वजह से उसे घर में रखा गया था। लेकिन आज सुबह जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह से प्रज्ञा की जिंदगी में तबाही आने वाली थी।
और उससे भी बड़ी दुख की बात यह थी कि वह खुद के बचाव के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी।
इन्हीं सब बातों को सोचते हुए वह गहरी चिंता में डूबी हुई थी। वहीं दूसरी ओर, सम्राट गाड़ी की रफ्तार और तेज कर रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे गाड़ी हवा से बातें कर रही है।
ढाई घंटे के बाद आखिरकार वे बजाज मेंशन पहुँचने वाले थे।
दूसरी तरफ, कार्तिक की वेडिंग नाइट की तैयारी चल रही थी।
पूरा मेंशन मेहमानों से भरा हुआ था। कुछ मेहमान शादी अटेंड करके वापस जा चुके थे, लेकिन कुछ क्लोज रिलेटिव अभी भी मौजूद थे।
हालांकि कार्तिक को रागिनी बहुत पसंद थी, पर शादी उसे कुछ खास अच्छा नहीं लगा। क्योंकि उसके लिए जो सबसे ज्यादा स्पेशल था, वही शादी में शामिल नहीं हुआ था।
खाने में तो सुनीता जी ने हमेशा दिखाया था कि वे सम्राट और कार्तिक में फर्क नहीं करतीं। पर उनके क्लोज लोगों को अच्छे से पता था कि सम्राट के घर छोड़ने की असली वजह सुनीता जी हैं।
कार्तिक लॉबी में चुपचाप कुर्सी पर बैठा हुआ था। वह किसी गहरी चिंता में डूबा हुआ था।
दूसरी तरफ, रागिनी को वेडिंग नाइट के लिए तैयार किया जा रहा था।
सुनीता जी को बहुत बुरा लगा जब उन्होंने अपने बेटे को इस तरह उदास और मायूस देखा।
जब उनसे रहा नहीं गया, तो वे उसके पास गईं।
"कार्तिक बेटा, आज तो तुम्हारे जिंदगी का सबसे अच्छा दिन है, और तुम इस तरह से उदास बैठे हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि कम से कम आज के दिन तुम्हें सम्राट के बारे में नहीं, बल्कि अपने बारे में सोचना चाहिए...???"
अचानक अपनी माँ की आवाज़ सुनकर कार्तिक पीछे की ओर देखा और फिर गहरी साँस लेकर कहा, "मॉम, ऐसी कोई बात नहीं है।"
"हाँ, यह बात बिल्कुल सही है कि मुझे इस बात का दुख है कि वह मेरी शादी में शामिल नहीं हो पाया। पर मैं हर पल उन्हीं के बारे में नहीं सोचता। मुझे नहीं समझ में आता कि मैं अपनी जिंदगी से क्या चाहता हूँ। अब तो मेरे साथ किसी और की जिंदगी भी जुड़ चुकी है। क्या मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठाने के काबिल हूँ...???"
अपने बेटे की बात सुनकर सुनीता जी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बोलीं, "हाँ, हाँ, क्यों नहीं? बिल्कुल! आखिर तुम बजाज ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ के इकलौते वारिस हो। और तुम ऐसा क्यों सोचते हो? अगर तुमने अपने करियर में कुछ हासिल नहीं भी किया, तो तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी। तुम्हारे पापा इतने बड़े कंपनी के अध्यक्ष हैं, उनकी सारी बातें, सारा कारोबार तुम्हें हैंडओवर होने वाला है। तो फिर तुम इतना क्यों सोच रहे हो? और ही कोई वक्त है यह सारी बातें सोचने का...???"
अपनी माँ की बात सुनकर उसके चेहरे पर एक सारकास्टिक मुस्कान आ गई। उसने अपनी माँ की ओर देखा और कहा, "मॉम, कम से कम आपसे तो यह उम्मीद नहीं थी।"
"आप हर बार यह क्यों भूल जाती हैं कि मेरा एक बड़ा भाई भी है...???"
"और एक बात, आइंदा से कभी मत कहिएगा कि मैं बजाज ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ का इकलौता वारिस हूँ। अगर बजाज ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़ किसी के हिस्से में जाएगा, तो वह है सम्राट। वह मुझसे ज़्यादा काबिलियत रखता है।"
फिर से सम्राट का नाम सुनकर सुनीता जी के चेहरे पर गुस्से का इज़हार आया। लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर एक फेक स्माइल लाते हुए कहा, "अच्छा बाबा, ठीक है, समझ गई। तो अपनी मां को इस वक्त यही सब सुनाओगे या फिर... जो सामने है उसके बारे में सोचोगे? देखो बेटा, यह सब सोचने के लिए बहुत सारा वक्त है, पूरी ज़िंदगी पड़ी है काम के बारे में सोचने के लिए। लेकिन तुम्हारा आज का दिन बहुत ज़्यादा स्पेशल है..."
"मॉम, आप चलिए, मैं अभी आता हूँ।"
कार्तिक ने अपनी माँ को भेज दिया और अभी भी वह कुर्सी पर चुपचाप उदास बैठा हुआ था।
सुनीता जी वहाँ से जाते हुए अपने मन में सोच रही थीं कि आखिर वह ऐसा क्या करें कि उनके बेटे के दिमाग से सम्राट का नाम उतर जाए।
यहाँ पर नहीं है, फिर भी मेरे बेटे के दिमाग पर कब्ज़ा करके बैठा है। कभी-कभी मन तो करता है कि.....
वह आगे कुछ बोलती, उससे पहले अचानक उनकी नज़र सामने से आ रहे विजय जी पर पड़ी। उन्हें देखकर वे घबरा गईं।
"क्या हुआ? कोई परेशानी वाली बात है? आप इतनी परेशान क्यों दिख रही हैं?" उनके पति ने जब उनसे यह सवाल किया, तो उन्होंने फिर से अपने चेहरे पर एक फेक स्माइल लाई और कहा, "नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। इन फैक्ट, मैं तो बहुत ज़्यादा खुश हूँ। हमारी बहू घर आ गई है, और मेरा बेटा सेटल हो गया है। अब तो उसके जिंदगी में... बहुत कुछ बदलने वाला है। और मैं तो कहती हूँ कि अब आप उसे अपने बिज़नेस के सारे तौर-तरीके भी सिखा दीजिये। आखिरकार आपके बाद वही तो इसे संभालेगा..."
उन्होंने उनकी ओर देखा और बोले, "...कम से कम बात करने से पहले यह तो देख लीजिए कि वक्त कौन सा है। आपको नहीं लगता कि यह सारी बातें करने के लिए यह वक़्त उचित नहीं है...???"
अपने पति के इस जवाब से वह थोड़ी शर्मिंदा हो गईं। उन्होंने बात बदल दी और बोलीं, "अरे नहीं-नहीं, आप गलत समझ रहे हैं। मेरे कहने का वह मतलब बिल्कुल भी नहीं था। खैर, आप जाकर मेहमानों को देखिए, मैं अभी आती हूँ।"
दूसरी ओर, रागिनी पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी। रागिनी की सहेली निशा, जो उसके बारे में सारी बातें जानती थी, उसकी बचपन की दोस्त थी। इसलिए दोनों के बीच कुछ भी सीक्रेट नहीं था। निशा रागिनी से ज़्यादा मैच्योर और बहुत ज़्यादा प्रैक्टिकल भी थी।
निशा ने रागिनी की ओर देखा और उसकी नज़र उतारते हुए बोली, "बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही हो..."
निशा की तारीफ़ सुनकर रागिनी मुस्कुराई और बोली, "यह तो ज़्यादा एक्साइटमेंट देने वाला अप्रिशिएशन नहीं है। मुझे लगा कि तुम कुछ अलग कहोगी।"
"I mean today's very special day for me..."
"आई कैन्ट इमेजिन आई एम डॉटर इन लव बिकॉज़ ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज़..."
रागिनी की बात सुनकर निशा मुस्कुराई और बोली, "रागिनी, तुम सिर्फ़ बजाज खानदान की बहू नहीं हो, कार्तिक की पत्नी भी हो। क्या तुम्हारे लिए यह बात मायने नहीं रखती...?"
इस सवाल को सुनकर रागिनी मुँह बनाती है और कहती है, "क्या फ़र्क पड़ता है? मतलब तो एक ही हुआ ना, चाहे मैं कार्तिक की पत्नी हूँ या फिर बजाज खानदान की बहू, दोनों का मतलब तो एक ही है ना।"
निशा को उसकी बातों पर गुस्सा आ गया। वह नाराज़ होते हुए बोली, "देखो रागिनी, आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत ज़्यादा स्पेशल है, इसलिए मैं तुम्हें डाँटना नहीं चाहती और ना ही कुछ गलत कहना चाहती हूँ। पर जो सच है, वह तो सच है ना? तुम्हें इस बात से खुश होना चाहिए कि एक सीधा-साधा आदमी तुम्हारा पति है, ना कि इस बात से कि तुम बहुत बड़े करोड़पति इंसान की बहू हो। क्या तुम्हें इस बात से ज़्यादा फ़र्क पड़ता है कि तुम बहुत बड़े पैसे वाले आदमी की बहू बन चुकी हो या फिर इस बात की खुशी है कि तुम एक मैच्योर इंसान की पत्नी हो...???"
निशा की बात सुनकर रागिनी भड़क गई। "अपना लेक्चर देना बंद करो! तुम मेरी सहेली हो, तो मुझे लगा कि तुम मेरा साथ दोगी। लेकिन अभी भी लगता है कि तुम्हें सम्राट के लिए बुरा लग रहा है।"
रागिनी की कड़वी बातों से निशा भी काफी आहत हो चुकी थी। उसने भी रुकने का नाम नहीं लिया और जवाब देते हुए बोली, "हाँ, बिल्कुल बुरा लगा है मुझे सम्राट के लिए! 7 साल उसे डेट करने के बाद अचानक से तुमने उसके छोटे भाई से शादी कर ली, और तुम्हें लगता है कि यह बहुत छोटी बात है? सोचो, जब सम्राट को पता चलेगा कि तुम उसके अपने ही भाई की पत्नी हो, तो उसे कैसा लगेगा....."
"एक तो तुमने उसे धोखा दिया, उसे चीट किया, और उसी के फैमिली में, उसी के खानदान की बहू बनकर आ गई। क्या तुम्हें जरा सा भी शर्म नहीं आता...."
"निशा, बस करो! मुझे नहीं लगा था कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति इतनी कड़वाहट होगी। अगर तुम्हें इतनी परवाह है सम्राट की, तो फिर मेरे साथ क्यों हो? क्यों नहीं चली जाती उसी के पास?" रागिनी के शब्द और भी कड़वे हो चुके थे। निशा उसकी ओर देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है, "तुमने वह कुत्ते की कहानी सुनी है ना, जो रोटी की परछाई पानी में देखता है और फिर उसे पकड़ने की कोशिश करता है, और उसके मुँह की रोटी भी पानी में चली जाती है? तुम्हारा हाल भी ऐसा ही होगा, देख लेना।"
रागिनी को निशा पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने अपने माथे पर लगी मांग-पट्टी उतार कर फेंक दी और गुस्से से बोली, "निशा, अभी इसी वक़्त मेरी आँखों से दूर हो जाओ! मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।"
निशा ने जवाब देते हुए कहा, "यहाँ रहना भी कौन चाहता है? ऐसे मतलबी लोगों के साथ रहने से अच्छा है कि इंसान तन्हा रहे। वैसे, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि अभी भी सम्राट को पता नहीं है कि..."
इतना कहती कि रागिनी पीछे से चिल्लाई और बोली, "सम्राट का नाम लेना बंद करो! वह एक साइको था! मेरे पीछे इतना पड़ा था कि उसके साथ जीना मुश्किल हो गया था। इसलिए मैंने यह रास्ता चुना। जानती हूँ कि यह रास्ता गलत है, पर ऐसा इंसान, जो हर वक़्त तुम्हें अपने कंट्रोल में रखे, क्या उसके साथ जीना पॉसिबल है? नहीं ना! मुझे पैसे भी चाहिए थे और एक अच्छा पति भी। इसलिए मैंने यह रास्ता चुना। कार्तिक सीधा-साधा है, अच्छा है, मुझे समझेगा। इसलिए मैंने उसे अपना जीवन साथी चुना। और रही बात पैसों की, तो यह शादी का प्रपोजल खुद कार्तिक की माँ लेकर आई थी, और मेरे फैमिली को यह रिश्ता मंज़ूर था। इसलिए मुझे भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी.."
"सम्राट को कब पता चलेगा? कैसे पता चलेगा? क्या रिएक्ट करेगा? मुझे नहीं पता। लेकिन मेरा डिसीज़न सही है।"
रागिनी की बात सुनकर निशा मुस्कुराई और बोली, "ठीक है रागिनी, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा डिसीज़न सही था, तो मुझे भी इस बात से कोई परेशानी नहीं है। मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में खुश रहो। बस इतना चाहती हूँ कि तुमने अभी तक जो पाया है, उसी से संतुष्ट रहो। क्योंकि तुमने इससे ज़्यादा हद पार की, तो शायद तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा।" इतना कहकर निशा वहाँ से चली गई।
निशा के चले जाने के बाद रागिनी एकदम बौखला गई। उसने अपना मेकअप पूरी तरह से बिगाड़ लिया था। कानों में लगे झुमके और बाकी गहने भी उतार कर ज़मीन पर फेंक दिए। सर की चुनरी भी उतार कर उसने बेड के साइड में फेंक दी और अपना सिर पकड़कर चिल्लाकर रोने लगी। अभी उसका ही ड्रामा चल ही रहा था कि तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी। अभी वह कुछ समझ पाती, उससे पहले सुनीता जी कमरे में दाखिल हो चुकी थीं। अपनी बहू की यह दुर्दशा देखकर उन्हें कुछ समझ नहीं आया।
"रागिनी बेटा, यह सब क्या है? तुम ठीक तो हो ना..?" उन्होंने अपनी बहू से बड़े प्यार से पूछा। रागिनी को समझ नहीं आया कि वह जल्दबाजी में कौन सा बहाना बनाए। उसके मुँह में जो आया, वह बोलती गई। "एक्चुअली मॉम, बात यह है कि, मैं... वो..."
"कोई बात नहीं बेटा, मुझे इस बात में कोई इंटरेस्ट नहीं कि क्या हुआ, बस इसे ठीक करो।"
"और हाँ, आधे घंटे में तैयार होकर हाल में आओ। सभी लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। सबसे पहले तुम्हें और कार्तिक को पूजा करनी है, उसके बाद तुम लोग..."
सुनीता जी वहाँ से चली गईं। रागिनी का दिमाग पूरी तरह से ब्लैक हो चुका था। उसके दिमाग में इस वक़्त सिर्फ़ और सिर्फ़ सम्राट की बातें गूंज रही थीं।
उन्होंने उनकी ओर देखा और बोले, "कम से कम बात करने से पहले यह तो देख लीजिए कि वक्त कौन सा है? आपको नहीं लगता कि यह सारी बातें करने के लिए यह वक्त उचित नहीं है...?"
अपने पति के इस जवाब से वह थोड़ी शर्मिंदा हो गई। उन्होंने बात को बदल दिया और बोली, "अरे नहीं नहीं, आप गलत समझ रहे हैं। मेरे कहने का वह मतलब बिल्कुल भी नहीं था। खैर, आप जाकर मेहमानों को देखिए, मैं अभी आती हूँ।"
दूसरी ओर, रागिनी पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी। रागिनी की सहेली निशा, जो उसके बारे में सारी बातें जानती थी, उसकी बचपन की दोस्त थी। इसलिए दोनों के बीच कुछ भी सीक्रेट नहीं था। निशा रागिनी से ज़्यादा मैच्योर थी और बहुत ज़्यादा प्रैक्टिकल भी।
निशा ने रागिनी की ओर देखा और उसकी नज़र उतारते हुए बोली, "बहुत ज़्यादा खूबसूरत लग रही हो..."
निशा की तारीफ़ को सुनकर रागिनी मुस्कुराई और कहती है, "यह तो ज़्यादा एक्साइटमेंट देने वाला अप्रिशिएशन नहीं है। मुझे लगा कि तुम कुछ अलग कहोगी।"
"I mean today's very special day for me..."
"आई कैनटी इमेजिन आई एम डॉटर इन लव बिकॉज़ ग्रुप का इंडस्ट्रीज..."
रागिनी के मुँह से यह बात सुनकर निशा मुस्कुराई और कहती है, "रागिनी, तुम सिर्फ़ बजाज खानदान की बहू नहीं हो, कार्तिक की पत्नी भी हो। क्या तुम्हारे लिए यह बात मायने नहीं रखती...?"
इस सवाल को सुनकर रागिनी मुँह बनाती है और कहती है, "क्या फ़र्क पड़ता है? मतलब तो एक ही हुआ ना, चाहे मैं कार्तिक की पत्नी हूँ या फिर बजाज खानदान की बहू, दोनों का मतलब तो एक ही है ना।"
निशा को उसकी बातों पर गुस्सा आ गया। वह नाराज़ होते हुए कहती है, "देखो रागिनी, आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत ज़्यादा स्पेशल है, इसलिए मैं तुम्हें डाँटना नहीं चाहती और ना ही कुछ गलत कहना चाहती हूँ। पर जो सच है, वह तो सच है ना? तुम्हें इस बात से खुश होना चाहिए कि एक सीधा-साधा आदमी तुम्हारा पति है, ना कि इस बात से कि तुम बहुत बड़े करोड़पति इंसान की बहू हो। क्या तुम्हें इस बात से ज़्यादा फ़र्क पड़ता है कि तुम बहुत बड़े पैसे वाले आदमी की बहू बन चुकी हो या फिर इस बात की खुशी है कि तुम एक मैच्योर इंसान की पत्नी हो...?"
निशा की बात सुनकर रागिनी भड़क गई। "अपना लेक्चर देना बंद करो! तुम मेरी सहेली हो, तो मुझे लगा कि तुम मेरा साइड लोगी, लेकिन अभी भी लगता है कि तुम्हें सम्राट के लिए बुरा लग रहा है।"
रागिनी की कड़वी बातों से निशा भी काफी ज़्यादा आहत हो चुकी थी। उसने भी रुकने का नाम नहीं लिया और उसे जवाब देते हुए बोली, "हाँ, बिल्कुल बुरा लगा है मुझे सम्राट के लिए! 7 साल उसे डेट करने के बाद अचानक से तुमने उसके छोटे भाई से शादी कर ली और तुम्हें लगता है कि यह बहुत छोटी बात है? सोचो, जब सम्राट को पता चलेगा कि तुम उसके अपने ही भाई की पत्नी हो, तो उसे कैसा लगेगा...?"
"एक तो तुमने उसे धोखा दिया, उसे चीट किया और उसी के फैमिली में, उसी के खानदान की बहू बनकर आ गई। क्या तुम्हें जरा सा भी शर्म नहीं आता...?"
"निशा, बस करो! मुझे नहीं लगा था कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति इतनी कड़वाहट होगी। अगर तुम्हें इतनी परवाह है सम्राट की, तो फिर मेरे साथ क्यों हो? क्यों नहीं चली जाती उसी के पास?" रागिनी के शब्द और भी ज़्यादा कड़वे हो चुके थे। निशा उसकी ओर देखती है और मुस्कुराते हुए कहती है, "तुमने वह कुत्ते की कहानी सुनी है ना, जो रोटी की परछाई पानी में देखा है और फिर उसे पकड़ने की कोशिश करता है और उसके मुँह की रोटी भी पानी में चली जाती है? तुम्हारा हाल भी ऐसा ही होगा, देख लेना।"
रागिनी को निशा पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसने अपने माथे पर लगी माथे की पट्टी को उतार कर फेंक दिया और गुस्से से बोली, "निशा, अभी इसी वक़्त मेरी आँखों से दूर हो जाओ! मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती।"
निशा भी उसे जवाब देते हुए बोली, "यहाँ रहना भी कौन चाहता है? ऐसे मतलबी लोगों के साथ रहने से अच्छा है कि इंसान तन्हा रहे। वैसे, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि अभी भी सम्राट को पता नहीं है..."
इतना सब हो ही रहा था कि तभी रागिनी पीछे से चिल्लाई और बोली, "सम्राट का नाम लेना बंद करो! वह एक साइको था! मेरे पीछे इतना ज़्यादा पड़ा हुआ था कि उसके साथ जीना मुश्किल हो गया था। इसलिए मैंने यह रास्ता चुना। जानती हूँ कि यह रास्ता गलत है, पर ऐसा इंसान, जो हर वक़्त तुम्हें अपने कंट्रोल में रखे, क्या उसके साथ जीना पॉसिबल है? नहीं ना! मुझे पैसे भी चाहिए थे और एक अच्छा पति भी, इसलिए मैंने यह रास्ता चुना। कार्तिक सीधा-साधा है, अच्छा है, मुझे समझेगा, इसलिए मैंने उसे अपना जीवन साथी चुना। और रही बात पैसों की, तो यह शादी का प्रपोजल खुद कार्तिक की माँ लेकर आई थी और मेरे फैमिली को यह रिश्ता मंज़ूर था, इसलिए मुझे भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी।"
"सम्राट को कब पता चलेगा? कैसे पता चलेगा? क्या रिएक्ट करेगा? मुझे नहीं पता, लेकिन मेरा डिसीज़न सही है।"
रागिनी की बात सुनकर निशा मुस्कुराई और कहती है, "ठीक है रागिनी, अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा डिसीज़न सही था, तो मुझे भी इस बात से कोई परेशानी नहीं है। मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में खुश रहो। बस इतना चाहती हूँ कि तुमने अभी तक जो पाया है, उसी से संतुष्ट रहो, क्योंकि तुमने इससे ज़्यादा हद पार की, तो शायद तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा।" इतना कहकर निशा वहाँ से चली गई।
निशा के वहाँ से चले जाने के बाद रागिनी एकदम बौखला गई। उसने अपना मेकअप पूरी तरह से बिगाड़ लिया था। कानों में लगे झुमके और बाकी गहने भी उतार कर ज़मीन पर फेंके। सर की चुनरी भी उतार कर उसने बेड के साइड में फेंक दी और अपना सिर पकड़ कर चिल्ला कर रोने लगी। अभी उसका ही ड्रामा चल ही रहा था कि तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी। अभी वह कुछ समझ पाती, उससे पहले सुनीता जी कमरे में दाखिल हो चुकी थीं। अपनी बहू की यह दुर्दशा देखकर उन्हें कुछ समझ नहीं आया।
"रागिनी बेटा, यह सब क्या है? तुम ठीक तो हो ना...?" उन्होंने अपनी बहू से बड़े प्यार से पूछा। रागिनी को समझ नहीं आया कि वह जल्दबाजी में कौन सा बहाना बनाए। उसके मुँह में जो आता गया, बस बोलती गई। "टु एक्चुअली मॉम, बात यह है कि, मैं... वो..."
"कोई बात नहीं बेटा, मुझे इस बात में कोई इंटरेस्ट नहीं कि क्या हुआ, बस इसे ठीक करो। और हाँ, आधे घंटे में तैयार होकर हाल में आओ। सभी लोग तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। सबसे पहले तुम्हें और कार्तिक को पूजा करनी है, उसके बाद तुम लोग..." सुनीता जी वहाँ से चली गईं। रागिनी का दिमाग पूरी तरह से ब्लैक हो चुका था। उसके दिमाग में इस वक़्त सिर्फ़ और सिर्फ़ सम्राट की बातें गूंज रही थीं।
काफी देर तक चुप रहने के बाद आखिरकार प्रज्ञा ने अपनी चुप्पी तोड़ी और सम्राट से बोली, "क्या आपने कार्तिक भाई और रागिनी भाभी को देखा? बहुत प्यारी लग रहे थे दोनों...?"
पहली बार जब उसने यह नाम लिया, तो सम्राट ने नोटिस नहीं किया, लेकिन जब उसने दोबारा रागिनी का नाम लिया, तो सम्राट उसकी ओर संभली हुई नज़रों से देखा और कहता है, "क्या नाम लिया तुमने अभी-अभी? रागिनी? क्या तुम उसका पूरा नाम बता सकती हो...?"
"हाँ बिल्कुल, उनका नाम रागिनी शिंदे है। उनके पापा रियल एस्टेट के एजेंट हैं और और ज़्यादा कुछ नहीं पता। यह सब मैं दादाजी को बात करते हुए सुना था। बहुत ज़्यादा पढ़ी-लिखी और बहुत ज़्यादा खूबसूरत थीं। मैं तो जब उन्हें पहली बार मिली थी, तो उन्हें देखते ही रह गई थी। कोई इतना ज़्यादा खूबसूरत कैसे हो सकता है?" प्रज्ञा ने अपनी मासूम आँखों को बड़ा करते हुए कहा।
सम्राट ने इस बात को सुनते ही एक तेज ब्रेक के साथ गाड़ी रोकी और प्रज्ञा की ओर देखकर बोला, "कहीं तुम झूठ तो नहीं बोल रही ना? तुमने जो कहा, क्या वह सच है? क्या वह वाकई में शिंदे परिवार की लड़की है? क्या रागिनी का पूरा नाम रागिनी शिंदे है? देखो, अगर तुमने मुझसे झूठ बोला ना, तो सुनीता से ज़्यादा बत्तर हाल में तुम्हारा करने वाला हूँ। इसलिए जो भी कहना है, सच कहना।" प्रज्ञा ने उसके ओर देखा और बोली, "आपको डराने के अलावा भी कुछ आता है? मैंने जो कहा, वह 100% सही है। यह सब मैं दादाजी को कहते हुए सुना था। और हाँ, उनके बाल बिल्कुल ब्राउन हैं, किसी बार्बी डॉल के जैसे।"
उसने अपने गाल पर हाथ रखा और अपनी आँखें बंद करते हुए कहा, "वह मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।" प्रज्ञा की बात सुनकर सम्राट को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे झटका दे दिया हो। सम्राट ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी और पलक झपकते ही उसकी गाड़ी बजाज मेंशन के आगे खड़ी थी। प्रज्ञा कुछ समझ पाती, उससे पहले सम्राट गाड़ी से उतरा और सीधा चिल्लाते हुए हाल में पहुँच गया। प्रज्ञा भी अपना घाघरा उठाकर उसके पीछे-पीछे दौड़ रही थी। वह हाल में पहुँचती है, उससे पहले सम्राट ने शोर मचाना शुरू कर दिया था।
"दादाजी..." बार-बार चिल्ला रहा था। दादाजी उस वक़्त अपने कमरे में थे। उसकी आवाज़ को सुनकर दादाजी एकदम एक्साइटेड होकर जल्दी से बाहर आये। उसके अलावा उसके पापा और उसकी मम्मी ने भी उसकी आवाज़ सुनी। घर के नौकर और बाकी जो सम्राट को जानते थे, रिलेटिव्स, सभी वहाँ इकट्ठे हो गए। सम्राट को देखकर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था।
आज पूरे 7 साल बाद सम्राट लौटा था। सम्राट जब यहाँ से गया था, तो कॉलेज स्टूडेंट था। देखने में वह कुछ खास नहीं दिखता था, लेकिन अब वह एक जवान हैंडसम मैन बन चुका था। इसके अलावा उसके चेहरे का पॉज़िटिव एटीट्यूड उसके लुक को काफी ज़्यादा एन्हांस कर रहा था।
दादाजी ने जब उसे देखा, तो वह आगे बढ़कर उसे गले लगाना चाहते थे, लेकिन उसने अपना हाथ दिखाते हुए उन्हें वहीं रोक दिया और फिर चिल्ला कर बोला, "दादाजी, कार्तिक की शादी किससे हुई है...?"
विजय बजाज समझ चुके थे कि बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा होने वाला है। वह अपने बेटे को समझाने के लिए आगे बढ़ते हैं और कहते हैं, "सम्राट बेटे, तुम तो अभी-अभी आए हो। थोड़ा आराम करो। फ़ुरसत से बात करते हैं। अभी देखो, सभी लोग परेशान हो गए।"
सम्राट ने लाल-लाल गुस्से भरी आँखों से अपने पापा की ओर देखा और कहता है, "मिस्टर बजाज, मैं आपसे नहीं, बल्कि अपने दादू से बात कर रहा हूँ। आपके लिए बेहतर यही होगा कि आप अपनी मिसेज़ के अलावा किसी और की बात ना सुनें।"
सम्राट के पापा घबराकर वहीं रुक गए। सम्राट की आँखों से ज्वाला निकल रही थी। आँखों में हज़ारों सवाल थे, चेहरे पर गुस्सा था। सुनीता जी समझ गई थीं कि आज तो बम का गोला फटने वाला है।
तो समझ गया था कि उनके सवालों का कोई जवाब नहीं देगा। उसने आखिरकार कार्तिक का नाम लिया। लगभग तीन-चार बार कार्तिक का नाम लेने के बाद कार्तिक भागता हुआ आया। कार्तिक ने जैसे ही अपने भाई को देखा, वह उसे गले लगाना चाहता था, लेकिन जब तक वह आगे बढ़कर उसे कुछ कह पाता, सम्राट बोला, "तुम्हारी पत्नी का क्या नाम है...?"
भाई का अचानक से यह सवाल... कार्तिक कुछ समझ पाता, उससे पहले सम्राट बोला, "जितना पूछा, उतना बताओ। तुम्हारी पत्नी का क्या नाम है...?"
कार्तिक ने आसपास खड़े लोगों की ओर देखा और फिर घबराते हुए बोला, "वह... दरअसल, उसका नाम रागिनी शिंदे है।"
रागिनी शिंदे का नाम सुनते ही सम्राट एक पल में उसके पास आया और उसका कॉलर पकड़कर गुस्से से चीखते हुए बोला, "तुम्हारी जुबान काट लूँगा और तुम्हें जान से मार डालूँगा! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इसका नाम लेने की! इस घर में ऐसा कोई नहीं है जिसे यह नहीं पता कि हम और रागिनी रिलेशनशिप में थे। इसके अलावा मैंने उसे अपनी घर की बहू बनाया था। दादाजी, तुम्हारे पापा और तुम्हारी यह सो-कॉल्ड माँ, सभी को पता था हमारे रिलेशनशिप के बारे में, तो फिर तुम्हें कैसे नहीं पता...?"
कार्तिक को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि जिस भाई ने उसे हर मुसीबत से बचाया, आज वह उसके जान के पीछे इसलिए पड़ा है क्योंकि उसने उस लड़की से शादी की जिसे वह पसंद करता था। अगर कार्तिक को इस बारे में पता होता, तो शायद ही वह इस शादी के लिए राजी होता, लेकिन उसे तो कुछ पता ही नहीं था।
एक ऐसा धोखा जो तीनों की ज़िंदगी तबाह करने वाला था। सुनीता जी ने अपने बेटे की लाइफ़ को सिक्योर करने के लिए और सम्राट को दुःख देने के लिए एक ऐसा षड्यंत्र रचा था जिसमें तीन ज़िंदगियाँ बहुत बुरी तरह से फँस चुकी थीं। कार्तिक अपने भाई की आँखों में गुस्सा देख रहा था। उसे भाई की आँखों में, जिसकी आँखों में सिर्फ़ प्यार और सिर्फ़ प्यार देखा था...
"भाई, आप क्या कर रहे हैं? आपको शायद गलतफ़हमी हुई है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आपको पता है ना..." कार्तिक घबराते हुए कहता है, तो सम्राट उसका कॉलर छोड़कर उसे दूर धक्का देता है और कहता है, "...अब मैं समझा कि सब तुम सब की चाल थी ना? यह सब तुम सब की चाल थी! जब मुझे तकलीफ़ दे-देकर तुम सब को चैन नहीं मिला, तो तुमने यह तरीक़ा अपनाया, उसे लड़की को इस घर की बहू बनाया, जिससे मैं बेहद प्यार करता था। अब जब भी मैं उसकी सूरत देखूँगा, मुझे हर पल दुःख होगा। पर कोई बात नहीं, जहाँ तक मैं इतना दर्द सह सकता हूँ, यह भी सह लूँगा। पर एक बात याद रखना, तुम सबको, सुनीता समेत, मेरे तकलीफ़ों का हिसाब चुकाना पड़ेगा..."
ऐसा लग रहा था कि वह बागी हो गया है। वह किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं था। उससे काफी दूर पर खड़ी प्रज्ञा अपने मुँह पर हाथ रखकर रो रही थी। उसे तो समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उसे बस डर लग रहा था, सिर्फ़ और सिर्फ़ डर। सम्राट का यह विकराल रूप देखकर वहाँ मौजूद सभी हैरान थे।
सीढ़ियों पर खड़ी रागिनी सम्राट को देख रही थी। सम्राट, जिसके बल मुट्ठियाँ कसी हुई थीं, चेहरे पर रौब ऐसा कि अभी किसी को भी जान से मार डाले। नफ़रत और सिर्फ़ नफ़रत दिखाई दे रही थी उसकी आँखों में। उसकी नज़र जैसे ही रागिनी पर पड़ी, उसने रागिनी की ओर देखा और फिर सारकास्टिक मुस्कुराते हुए बोला, "...आई मिस यू, कार्तिक बजाज। बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारा नाम कार्तिक के साथ। पैसे से ज़्यादा... तुमने भी मुझे तकलीफ़ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी..."
"तुमने मुझसे कहा था कि अगर मैं अपनी नई पहचान बना लूँ, तो तुम मेरे साथ अपने जीवन की नई शुरुआत करोगी। तुम्हारी वजह से मैं 7 साल अपने परिवार से दूर रहा, क्योंकि मैं खुद के दम पर सब कुछ हासिल करना चाहता था। आज मेरे पास वह सब कुछ है जो मेरे पापा के पास है, इनफ़ैक्ट उनसे भी बड़ी हैसियत है मेरी। सिर्फ़ तुम्हारे एक बार कहने पर मैंने सब कुछ छोड़ दिया। मैंने सोचा कि शायद तुम मेरा इंतज़ार कर रही होगी, पर यहाँ तो पूरा का पूरा मामला ही उल्टा पड़ गया है। मैं वहाँ अपने करियर के बारे में सोचता रहा और तुम यहाँ..."
"...शायद तुम लोगों को दूसरों को तकलीफ़ देने में कुछ ज़्यादा ही मज़ा आता है, क्योंकि शायद तुम लोगों ने कभी तकलीफ़ का मर्म समझ ही नहीं है। पर कोई बात नहीं, मैं हूँ ना, एक-एक को दर्द की अहमियत समझा दूँगा। और मेरे लिस्ट में सबसे आगे जिसका नाम होगा, वह है सुनीता बजाज।" उसने अपने मुँह की ओर पॉइंट करते हुए कहा।
रागिनी सम्राट की ओर देखती है और फिर... वह पहले से ही बहुत ज़्यादा क्रेज़ी हो चुकी थी, ऊपर से सम्राट के बातों ने उसे काफी ज़्यादा गिल्टी महसूस कराया था। आसपास खड़े सभी रिलेटिव्स रागिनी को शक भरी निगाहों से देख रहे थे। रागिनी समझ गई थी कि एक लड़की होने के नाते सारा ब्लेम इस पर आने वाला है। उसने अपने मन में सोचा कि सब कुछ चुपचाप सुनने से अच्छा है कि उसके दिल में जो ग़ुस्सा है, वह भी निकाल दे।
रागिनी कार्तिक के आगे आकर खड़ी हो गई और बोली, "सम्राट, जो भी कहना है, मुझसे करो। कार्तिक की कोई गलती नहीं है। हाँ, हम दोनों ने शादी की है और अपने परिवार के ज़रिए मंदिर से की है। 7 साल के लिए तुम अचानक से ग़ायब हो गए। इस दरमियान तुमने एक बार भी मुझे कॉल करना तक ठीक नहीं समझा? क्या जो लोग दूर रहते हैं, वे अपने रिश्ते को कंटिन्यू रखने के लिए कॉन्टैक्ट नहीं करते? लेकिन तुम्हारे लिए तुम्हारा करियर इम्पॉर्टेंट था, मैं नहीं। और अब जब मैं अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ चुकी हूँ, तो फिर तुम्हें प्रॉब्लम क्यों हो रही है...?"
"सम्राट, तुम्हारी ज़िंदगी थी, तुमने अपने तरीक़े से जिया। मेरी ज़िंदगी थी, मैंने अपने तरीक़े से जिया। तो इसमें गलत क्या है? ज़रूरी नहीं कि इंसान जैसे प्यार करता है, उसका गुलाम बनकर रहे। मुझे तुम्हारे साथ अपने रिश्ते को कंटिन्यू नहीं करना था। तुम्हारे जैसे पॉज़ेसिव और क्रेज़ी इंसान के साथ मैं अपना भविष्य नहीं देख रही थी, इसलिए मैंने अपना जीवनसाथी किसी और को चुन लिया, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। ज़रूरी नहीं कि तुम्हें जो गलत लगता है, वह गलत है और जो सही लगे, वही सही है। प्रॉब्लम हमें नहीं, बल्कि प्रॉब्लम तुम्हारी मेंटैलिटी में है। उसे चेंज करो। अरे वह, तुम तो ऑस्कर विनिंग एक्टिंग करती हो! चलो अच्छा है... बजाज मेंशन में हर रोज़ नया एपिसोड देखने को मिलेगा। तुम रोज़ ड्रामा करोगी, तुम्हारे सासू माँ नए षड्यंत्र करेंगे, मेरे पापा चुपचाप देखेंगे और दादू तालियाँ बजाएँगे। कितना मज़ा आएगा ना!"
सम्राट उन सब का मज़ाक उड़ाता है और सिर्फ़ रागिनी से कहता है, "अच्छा हुआ, अच्छा हुआ कि तुम मेरी ज़िंदगी से चली गई। कम से कम तुम्हारे औक़ात के बारे में तो पता चला। इन 7 सालों में मैंने तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में सोचा तक नहीं। पर तुम देखो, शादीशुदा होकर जोड़े में खड़ी हो और फिर भी तुम्हारी इतनी हिम्मत है कि मुझे आँखों में आँखें डालकर बात कर रही हो? तुम्हें जरा सा भी शर्म है या नहीं?" वह गुस्से में चिल्लाता है, तो रागिनी एक उंगली से पॉइंट करते हुए कहती है, "खबरदार! जो तुमने आगे एक लफ़्ज़ भी कहा, तो... अब मैं तुम्हारी भाभी बन चुकी हूँ, इसलिए कुछ भी कहने से पहले यह सोच लेना, तुम्हारे और मेरे औक़ात में ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है।"
सम्राट गहरी साँस लेता है और आसपास के लोगों की ओर देखता है और फिर कहता है, "तुम सब के सब ज़िंदा लाश हो! सबका ज़मीर मर चुका है। कोई भी यहाँ ज़िंदा नहीं है। जा रहा हूँ मैं यहाँ से। मैं यहाँ मर्दों के बीच रहने के लिए नहीं आया हूँ। जाने से पहले सबको वार्निंग दे रहा हूँ। तुम सब ने जो भी मेरे साथ किया है ना, बहुत गलत किया है। सबको, सुनीता समेत, इस सब का हिसाब चुकाना पड़ेगा।" सम्राट गुस्से से वहाँ से चला जाता है। उसके दादाजी उसके पीछे भागते हैं, लेकिन तब तक सम्राट वहाँ से जा चुका था।
सम्राट तो वहाँ से जा चुका था, लेकिन पूरे बजाज मेंशन में उदासी छा गई थी। हर तरफ लोग बातें कर रहे थे। जिसे सुनकर सुनीता जी अपने पति की ओर देखती हैं और कहती हैं, "मैं आपसे कहा था ना, यह लड़का कभी नहीं चाहेगा कि हमारे कार्तिक का जीवन समर जाए। आपको तो हमेशा से लगा कि मैं दोनों बच्चों में भेदभाव करती हूँ, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं।"
उन्होंने जब अपनी पत्नी की बात सुनी, तो उन्हें चुप करने की कोशिश करते हुए कहा, "शांत हो जाओ, सब देख रहे हैं हमें।" सुनीता जी मुँह बनाकर चुप हो गईं। वहीं दादाजी सब कुछ खड़े-खड़े चुपचाप देख रहे थे। सम्राट को देखने के लिए उनकी आँखें तरस गई थीं।
लेकिन अब जब सम्राट उनसे मिला था, तो वह ठीक से उसे गले भी नहीं लगा पाए थे। दादाजी के दिल में दर्द हो रहा था। उन्हें बहुत बुरा लग रहा था। सम्राट ने गुस्से में जो भी कहा हो, पर उसके हर शब्द में एक सच्चाई थी।
यह सम्राट का घर था, उसकी अपनी माँ का घर था, उसके पिता का घर था, उसके दादा का घर था। यह एक ऐसा घर था जहाँ पूरा परिवार इकलौते सम्राट को बेहद प्यार करता था। एक खुशहाल परिवार जिसमें सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ थीं। लेकिन वक्त की आँधी चली और एक दिन अचानक सम्राट की माँ का एक्सीडेंट हो गया और फिर सम्राट की ज़िन्दगी में हमेशा के लिए अंधेरा आ गया। सम्राट की माँ के देहांत के बाद, सम्राट के पिता ने 3 साल बाद सुनीता जी से शादी कर ली। शादी के बाद सुनीता जी अपने पहले पति के बेटे कार्तिक को लेकर यहाँ आ गईं।
सम्राट उस वक्त छल-कपट से दूर था। उसे तो यह भी नहीं पता था कि झूठ कैसे बोलते हैं। सम्राट की मासूमियत, उसके जज़्बात, सब कुछ सुनीता जी के पैरों तले कुचल दिए गए। वह दूसरों के सामने सिर्फ दिखावा करती थी कि उसे सम्राट की परवाह है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था।
सम्राट ने कभी भी अपने पिता से इस बात की शिकायत नहीं की, क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता सुनीता जी से संतुष्ट हैं और वह नहीं चाहता था कि कार्तिक की ज़िन्दगी खराब हो। पेरेंट्स के न होने पर बच्चों को जो तकलीफ होती है, वह सम्राट से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता था। सम्राट नहीं चाहता था कि जो तकलीफ उसे अपनी माँ के जाने के बाद हुई है, वही तकलीफ कार्तिक को दोबारा सहनी पड़े। इसलिए उसने चुपचाप सब कुछ सह लिया; सुनीता जी के जुल्म, अत्याचार और भेदभाव, लेकिन एक शब्द भी उसने कभी किसी से नहीं कहा।
उसने कार्तिक को हमेशा अपने छोटे भाई जैसा प्यार किया। और कॉलेज के दौरान उसे रागिनी मिली। रागिनी को पाकर वह दोबारा जीने लगा था। वह अपनी माँ की कमी को भूलने लगा था। धीरे-धीरे वह रागिनी से बहुत क्लोज़ हो गया। उसके छोटी-छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना उसकी आदत बन गई।
रागिनी को यह सब कुछ ओवर-प्रोटेक्टिव लग रहा था। हालाँकि रागिनी ने बहुत मना किया था, पर सम्राट उसे ज़रूरत से ज़्यादा प्यार करने लगा था।
धीरे-धीरे रागिनी को एहसास हुआ कि यह प्यार पोज़ेशन में बदल रहा है।
रागिनी ने सम्राट को अपने रास्ते से हटाने के लिए उसके सामने एक बड़ी शर्त रखी।
और आज पूरे 7 साल बाद सम्राट एक नए रूप में खड़ा था। फैशन डिज़ाइनिंग दुनिया का अकेला किंग। SR Empire, जिसके बारे में... सबको नहीं पता था कि वह Empire अकेले सम्राट की मेहनत का नतीजा है।
सम्राट की मेहनत रंग ला चुकी थी और अब वह अपनी ज़िन्दगी में वापस आ गया था। पर यहाँ तो सब कुछ बदल चुका था। सम्राट खाली सड़क पर पैदल ही चल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह एक बेजान लाश है। उसके पैर डगमगा रहे थे, आँखों में आँसू थे। आँसुओं की वजह से वह रास्ता भी ठीक से देख नहीं पा रहा था। उसकी आँखों में इस तरह धुंधलापन छाया हुआ था कि वह कोशिश करके भी कुछ देख नहीं पा रहा था। आँखों के आगे सब कुछ धुंधला-धुंधला दिख रहा था।
उसकी माँ की परछाई उसके सामने आ रही थी। अपनी माँ को याद करके उसका दिल दर्द से तड़प रहा था। यह वही सम्राट था जिसकी हल्की सी खांसी सुनकर उसकी माँ घबरा जाती थी, और आज उनका बेटा इतनी तकलीफ में था कि वह अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। लेकिन अफ़सोस की बात यह थी कि इस वक्त उसे संभालने वाला कोई भी नहीं था।
सम्राट ने अपने सीने पर हाथ रखा और अपने आप से कहा, "क्या इतना सब कुछ करने के बाद भी दुनिया में जीना इतना मुश्किल है...? क्या मैं चाह कर भी एक खुशहाल ज़िन्दगी नहीं जी सकता...? ऐसा क्यों होता है कि जिससे हम प्यार करते हैं वह हमें धोखा देता है...? ऐसा क्यों होता है कि जिसकी हम परवाह करते हैं, उसे हमारी कोई क़द्र नहीं होती...???"
सम्राट को ऐसा लग रहा था जैसे अब उसके पास जीने का कोई मकसद ही नहीं बचा। सम्राट ने अपने पापा को कभी भी अपनी तकलीफ़ों के बारे में नहीं बताया, क्योंकि वह जानता था कि उस पर परिवार की रिस्पॉन्सिबिलिटी है। सम्राट समझ गया था कि उसे अपनी ज़िन्दगी में अकेले ही आगे बढ़ाना है। लेकिन अब इस वक्त उसके सामने जो सिचुएशन थी, उसका गुस्सा हद से आगे बढ़ चुका था।
अचानक पैर में ठोकर लगी और वह धड़ाम से सड़क पर गिर गया। लगभग 2 मिनट बाद जब वह उठकर खड़ा हुआ, तो उसकी आँखों में आँसू नहीं थे, बल्कि गुस्सा और नफ़रत थी। चेहरे पर कड़वाहट थी। उसने अपने जेब से मोबाइल फ़ोन निकाला और फिर किसी को कॉल किया।
"हेलो मिस्टर भाटिया..."
दूसरी तरफ से एक घबराती हुई आवाज़ आई, "मिस्टर बजाज, आप... आप इस वक्त क्यों कॉल कर रहे हैं...? आई एम सॉरी, घबराहट में पता नहीं क्या बोल गया मैं। मेरे कहने का वह मतलब बिल्कुल भी नहीं था। प्लीज़ आप बुरा मत मानिए।"
"क़ाम डाउन मिस्टर भाटिया... मैं बस आपसे ज़रूरी बात करना चाहता हूँ। जैसा कि आपने 3 महीने पहले मेरे सामने अपनी बेटी ईशा के शादी का प्रपोज़ल रखा था और मैंने उसे एक्सेप्ट नहीं किया था, पर अब आई एम चेंजिंग माय माइंड..."
सम्राट के मुँह से जैसे ही यह शब्द निकला, उस आदमी के चेहरे पर खुशी की मुस्कान आ गई। वह खुश होते हुए बोला, "क्या आप सच कह रहे हैं? मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। मुझे अभी भी लग रहा है कि मैं सपना देख रहा हूँ।"
"देखिए मिस्टर भाटिया, आपको ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है और ना ही आपको किसी चीज़ की दिक्कत होगी। शादी में जो भी रिस्पॉन्सिबिलिटी और जो भी खर्चा लगेगा, सब कुछ मैं खुद करूँगा। आपको किसी भी चीज़ की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। आप बस शादी के लिए हाँ कर दीजिए।" सम्राट कोई आम आदमी नहीं था, बल्कि फैशन डिज़ाइनिंग दुनिया का किंग था, इसलिए ऐसा कोई नहीं था जो उसे नापसंद करता हो।
उसके काम की बात की जाए तो वह हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक सबके कपड़े डिज़ाइन करता था। इसके अलावा उसका खुद का Empire, SR डिज़ाइनिंग डिपार्टमेंट, जिसकी शोरूम अब धीरे-धीरे दुनिया भर में फैल रही थी। SR एक बहुत बड़ा ब्रांड बन चुका था। ऐसे में उसके प्रपोज़ल को कौन रिजेक्ट कर सकता था? दूसरे भाटिया बहुत ज़्यादा खुश हुए। उन्हें इतनी खुशी ज़िन्दगी में शायद पहली बार महसूस हो रही थी। सम्राट ने कॉल डिस्कनेक्ट किया और दाँत पीसते हुए बोला, "तुमने मुझे चोट पहुँचाने के लिए यह सब कुछ किया है ना? पर कोई बात नहीं, अपनी ज़िन्दगी से तो मैं इतना ज़रूर सीख गया हूँ कि अगर कोई तुम्हें दुख पहुँचाना चाहे, तो उसके सामने कभी भी आँसू मत बहाओ। उसे अपनी कमज़ोरी कभी मत दिखाओ।"
"तुमने जो सही लगा वह तुमने किया, लेकिन अब जो मैं करूँगा, उससे तुम सब हिल जाओगे।"
उसके चेहरे पर एक कड़वाहट भरी मुस्कान आ गई।
दूसरी तरफ, सुहाग की सेज पर बैठी रागिनी, अपने पति कार्तिक का इंतज़ार कर रही थी, इस उम्मीद में कि आज उसकी वेडिंग नाइट है। काफ़ी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब कार्तिक नहीं आया, तो वह परेशान हो गई।
कार्तिक लॉबी में कुर्सी पर चुपचाप बैठा हुआ था, आँखों में आँसू भरे हुए। अपने आप को रोने से रोकने की कोशिश कर रहा था।
"कार्तिक, बेटे, तुम यहाँ हो...?" कार्तिक की माँ अचानक से वहाँ आई। वह अभी भी यह नहीं देख पा रही थी कि उनका बेटा यहाँ बैठा रो रहा है। पर जैसे ही उनका ध्यान उसकी ओर गया, वह चौंक गईं। उन्होंने उसे रोते हुए देखा तो घबराकर बोलीं, "क्या हुआ कार्तिक? तुम ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहे हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि सम्राट की बातों का तुम्हें बुरा लगा है...?"
सुनीता जी अपने बेटे का हाथ पकड़ती हैं और अपनी ओर घुमाकर कहती हैं, "मेरी बात सुनो, उसकी बात मत सुनो। वह बहुत..."
वह सम्राट के बारे में कुछ बुरा कहती, उससे पहले कार्तिक बोला, "मम्मी, बस कीजिए। जब आपको सब कुछ पता था, तो आपने मुझे क्यों नहीं बताया? सब कुछ पता होते हुए भी आपने मेरी शादी रागिनी से कर दी। मैं... मैं शादी करना चाहता था, पर अपने भाई का दिल दुखाकर नहीं। और आप जानती हैं ना कि मैं... मैं सपने में भी उन्हें हर्ट करने के बारे में नहीं सोच सकता। वह मेरे बड़े भाई हैं। आपको तो याद भी नहीं होगा कि उन्होंने हमारे लिए क्या किया है...?"
सुनीता जी ने जब अपनी बेटे की बात सुनी, तो उसे समझाते हुए कहती हैं, "देखो बेटा, जो भी बातें करनी हैं, कल कर लेंगे। आज तुम्हारी वेडिंग नाइट है और आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत स्पेशल है। हाँ, मैं जानती हूँ कि कुछ बातें हैं जो हमने तुमसे छुपाकर रखीं, लेकिन वह तुम्हारे भले के लिए था। और रही बात इस बात के बारे में डिस्कशन की, तो वह तुम कल कर लेना। फिलहाल तुम चलो..." सुनीता जी जबरदस्ती अपने बेटे का हाथ पकड़ती हैं और उसे लेकर कमरे तक आती हैं। उन्होंने कमरे का दरवाज़ा खोला और जबरदस्ती उसे धक्का देकर दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया।
"Mom, stop this drama... Open the door right now. I can't tolerate all this... Mom, please try to understand... Mom, please listen to me..."
वह बार-बार दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। आखिरकार उसने हार मान ली। वह समझ गया कि दरवाज़ा बाहर से बंद है।
बेड पर बैठी हुई, घूँघट में रागिनी कार्तिक का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही उसने कार्तिक को देखा, उसके मन में उम्मीद जगी। लेकिन कार्तिक का इस तरह से दरवाज़ा खोलने के लिए कहना देखकर वह घबरा गई थी। लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि दरवाज़ा तो बाहर से बंद है, रागिनी के चेहरे पर एक बड़ी सी निराशा आ गई।
कार्तिक ने रागिनी की ओर अपने क़दम बढ़ाए। रागिनी अपने दिल को थामे हुए, उसके लिए प्रिपेयर हो रही थी। रागिनी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। जैसे ही वह उसके करीब आया, रागिनी ने अपनी आँखें बंद कर लीं। कार्तिक उसके करीब आता है और वहाँ पड़ा तकिया उठाकर कहता है, "Ragini, at least तुम मुझे तो बताना ही चाहिए था..."
उसने वहाँ पड़ा तकिया उठाया और उसे लेकर सोफ़े की ओर बढ़ गया। रागिनी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। रागिनी अपने कॉलेज की सबसे बेहतरीन और खूबसूरत लड़की थी। वह बहुत ज़्यादा खूबसूरत तो थी, साथ ही वह बहुत अट्रैक्टिव भी दिखती थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिससे उसकी शादी होगी, वह उसे ऐसे इग्नोर कर देगा। रागिनी यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाई और अपना घूँघट उतारकर फेंक दिया और जल्दी से उसके पास आकर खड़ी हो गई और बोली, "कार्तिक, यह सब क्या ड्रामा है? पहले तो तुम्हारे बड़े भाई ने ड्रामा किया, उसके बाद अब तुम ड्रामा कर रहे हो। मेरी बात कान खोलकर सुनो, मैं उन सीधी-साधी लड़कियों में से नहीं हूँ जो घर में पड़ी रहती हैं और सारे जुल्म सहती हैं। मुझे मेरा अधिकार चाहिए..."
रागिनी की बात सुनकर कार्तिक उसकी ओर देखता है और फिर करवट बदलकर अपनी आँखें बंद कर लेता है। कार्तिक का यह बर्ताव देखकर रागिनी जोर से चिल्लाती है और कहती है, "आज हमारी सुहागरात है, तुम्हें समझ नहीं आता क्या...?"
कार्तिक ने फिर से उसकी ओर देखा और फिर अपनी आँखें बंद करके बोला, "रागिनी, बहुत रात हो चुकी है। जाकर सो जाओ।"
रागिनी के सारे अरमानों पर पानी फिर चुका था। वह अपनी आँखें बंद किए हुए करवट बदलकर लेटा हुआ था, जबकि रागिनी गुस्से में पागल हो गई थी।
"कार्तिक, मैं तुमसे आखिरी बार कह रही हूँ, तुम यहाँ से उठकर बेड पर आओ, या फिर मैं..."
रागिनी का स्वर ऊँचा हो गया था। इसकी तीखी और शोर भरी आवाज़ को सुनकर वह उठकर खड़ा हो गया और रागिनी की ओर देखकर बोला, "स्टॉप दिस लाउडस्पीकिंग। Are you mad...? Listen Ragini, I can't do that... I know this is special moment for us, but I can't do...?"
"क्या मतलब है कि तुम कुछ नहीं कर सकते? क्या तुम मर्द नहीं हो...?" रागिनी गुस्से से चिल्लाई। रागिनी की आवाज़ सुनकर कार्तिक उसके मुँह पर हाथ रखता है और उसे चुप करने की कोशिश करता है और कहता है, "...मैं क्या हूँ, वह मुझे तुम्हें बताने की ज़रूरत नहीं है। अगर तुमने पहले ही बता दिया होता कि तुम्हारा नेचर कैसा है, तो शायद आज यह दिन हम दोनों को ही नहीं देखना पड़ता। खैर, मैं और ज़्यादा तमाशा नहीं खड़ा करना चाहता। जाकर चुपचाप सो जाओ..."
रागिनी चीखना-चिल्लाना चाहती थी, उसे पीटना चाहती थी, लेकिन वह मजबूर थी। वह जाकर भी यह सब नहीं कर सकती थी।
प्रज्ञा ने दादाजी को उनके कमरे में सुलाया। उन्होंने दादाजी को हाई बीपी की दवाई दी और बोली, "दादाजी, क्या सच में आपको यह सब पता था? मेरा मतलब है कि क्या वाकई में रागिनी मैडम और सम्राट सर का...?"
दादाजी को प्रज्ञा की बात सुनकर थोड़ा बुरा लगा, पर फिर भी उन्होंने गहरी साँस ली और कहा, "हाँ बेटा, यह बिल्कुल सही है। पर रागिनी ने जो कहा, वह भी सच है। जिस वक्त रागिनी और सम्राट का रिलेशन चल रहा था, उस वक्त सम्राट इतना ज्यादा मैच्योर नहीं था।"
आजकल के बच्चे अट्रैक्शन को प्यार समझ लेते हैं। उम्र का तकाज़ा होता है जब इंसान किसी को पसंद करने लगता है। प्यार की सही परिभाषा क्या है, यह तो उसे उम्र में इंसान को पता ही नहीं होता।
"उसने जब इस बारे में मुझे बताया, तो मुझे इस बात का दुख नहीं हुआ। इन फैक्ट, मैं बहुत ज़्यादा खुश था क्योंकि मैं बस सम्राट को खुश देखना चाहता था। एक दादा होने के नाते अपने पोते को खुश देखना, यही मेरी इच्छा थी। और जब रागिनी उसकी ज़िन्दगी में आई, तो वह पूरी तरह से बदल चुका था।"
"सच कहूँ तो मुझे बहुत अच्छा लगा। पर अचानक उसने हमसे अब रोड जाकर पढ़ने की परमिशन मांगी और हमने दे दी क्योंकि हम उसे मना नहीं कर पाए।"
लगभग 10 दिनों तक वह हमारे कांटेक्ट में रहा। फिर अचानक से हमारा और उसका कांटेक्ट टूट गया। एक साल बाद उसके बारे में चिट्ठी आई। उसके पास से हर बार उसके बारे में पत्र मिलता रहा कि वह सही-सलामत है और ठीक है। इससे ज़्यादा वह क्या करता है, कहाँ रहता है, कुछ भी नहीं पता। पर अचानक से आ जाएगा, यह नहीं पता था।
"मैं तो उसे अपने सीने से भी नहीं लगा पाया," दादाजी थोड़े परेशान होते हुए बोले।
"कोई बात नहीं दादाजी। अगर वह आपके पोते हैं, तो वह वापस ज़रूर आएंगे। आप देख लेना, आपको परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।" प्रज्ञा ने उन्हें पॉज़िटिव उम्मीद रखने के लिए कहा और फिर वहाँ से चली गई। प्रज्ञा के वहाँ से चले जाने के बाद दादाजी अपनी आँखें बंद कर लेते हैं और गहरी साँस लेकर खुद से कहते हैं, "सोचा तो हमने भी कभी नहीं था कि उसे इस तरह से मिलना होगा।"
एक तरफ़ प्रज्ञा इस बात से कन्फ़्यूज़ थी कि आखिर रागिनी ने सब कुछ जानते हुए भी यह सब क्यों किया होगा।
वहीं दूसरी ओर रागिनी गुस्से से तमतमा गई थी। आज उसकी सुहागरात थी, लेकिन सम्राट की वजह से सब ख़राब हो गया था।
उसे सम्राट पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था। यह जो कुछ भी हुआ था, सब कुछ सम्राट की वजह से ही तो हुआ था।
काफ़ी देर तक वह इसी बारे में सोचती रही। "ये शादी तब तक अपने असली मुकाम तक नहीं पहुँचेगी जब तक वो उसे हासिल नहीं कर लेती....!!!!"
"ये रात खराब हो गई तो क्या हुआ....?? अब तो मैं कार्तिक की बीवी हूँ और मुझ जैसी खूबसूरत बला को अपने से दूर कब तक रख पाएगा, मैं भी देखती हूँ।"
रागिनी को विश्वास था कि उसकी खूबसूरती की वजह से कार्तिक अपने आप को उससे अलग नहीं रख पाएगा। उसे पूरा कॉन्फ़िडेंस था कि उसकी खूबसूरती कार्तिक को उसके करीब आने के लिए मजबूर कर देगी।
कार्तिक सोफ़े पर पड़ा आँसू बहा रहा था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसकी माँ ने जब रागिनी की तस्वीर दिखाई थी, तो उसे देखकर वह बहुत खुश हुआ था। हालाँकि उसे अब सब कुछ पता चल चुका था, लेकिन उस वक़्त उसे कुछ भी नहीं पता था। उसे यह भी नहीं पता था कि उसके भाई का और रागिनी का कोई रिलेशन है। उसकी माँ तो सब कुछ चाहती थी, पर उन्होंने भी इस बारे में कुछ नहीं बताया।
कार्तिक को बहुत बुरा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सब ने मिलकर उसके साथ धोखा किया है। "मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगा, कभी भी नहीं। अपने आप को आईने में देखता हूँ तो खुद पर तरस आता है। मैंने उसे, भाई को, तकलीफ़ दी, जिसने मेरे ऊपर आने वाली हर मुसीबत को पहले खुद पर लिया है। मैं ऐसा कर भी कैसे सकता हूँ......"
दूसरी तरफ़ सुनीता जी को नींद नहीं आ रही थी। वह बार-बार करवट बदल रही थी। आख़िरकार वह उठकर बैठ गई। वह बेड से उतर कर जाने ही वाली थी कि तभी विजय बजाज ने उनका हाथ पकड़ लिया।
"क्या बात है सुनीता जी? आप कहाँ जा रही हैं? रात काफ़ी हो चुकी है, सो जाइए।"
जब उन्होंने यह बात कही, तो सुनीता जी परेशान होकर बोलीं, "पता नहीं क्यों बहुत अजीब लग रहा है। आज कार्तिक अपने कमरे में भी नहीं जा रहा था। वह तो मैं जबर्दस्ती इस कमरे में ले आई हूँ।"
"हाँ, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। हमारा कार्तिक बहुत ज़्यादा सीधा-साधा है। हो सकता है कि वह नर्वस हो।" जब उन्होंने यह बात कही, तो सुनीता जी मुँह बनाते हुए बोलीं, "यह इस वजह से नहीं है। आप समझ नहीं रहे हैं बात को। कार्तिक को लगता है कि उसने अपने बड़े भाई को धोखा दिया है।"
सुनीता जी ने जब यह बात कही, तो विजय जी उनकी ओर देखते हैं और कहते हैं, "सच कहो तो धोखा तो हम सब ने उसे दिया है। खैर, इस बात को जाने देते हैं। देखिए, मैं आपको ठेस नहीं पहुँचाना चाहता, पर सच तो यही है ना कि हमने वह किया है जो हमें नहीं करना चाहिए था। माता-पिता होने के नाते हमें जिस तरह से कार्तिक के ज़ज़्बातों की फ़िक्र है, इस तरह से सम्राट के बारे में भी सोचना चाहिए था।"
"पर हमने ऐसा नहीं किया! तो एक तरह से तो यह सब कुछ उसके साथ बेईमानी ही हुई!" अपने पति की यह बात सुनकर सुनीता जी को गुस्सा आ गया। उन्होंने अपना हाथ छुड़ाकर अलग कर लिया और बोलीं,
"आपका सम्राट बेटा घर छोड़कर भाग गया था। उसका कहीं अता-पता नहीं था। काफ़ी ढूंढने की कोशिश की थी हमने। आपको तो याद ही होगा। पर फिर भी उसका कहीं पता नहीं चल रहा था और कार्तिक की शादी की भी बात चल रही थी। रागिनी अच्छी लड़की है, समझदार है और उसे हम सब अच्छे से जानते थे। इसीलिए मैंने कार्तिक की शादी के लिए हाँ कर दी। पर मुझे क्या पता था कि अचानक से सम्राट आ जाएगा और बात इतनी बिगड़ जाएगी।"
अगली सुबह प्रज्ञा ने दादाजी के लिए नाश्ता लेकर गया। उसने दादाजी को नाश्ते के साथ दवाइयाँ दीं और फिर वापस किचन में आ गई।
जैसे ही वह किचन के दरवाज़े पर पहुँची, उसकी नज़र सुनीता जी पर पड़ी। सुनीता जी ने लाल रंग की बनारसी साड़ी पहनी हुई थी; उसकी मैचिंग ज्वैलरी और कंगन भी पहने हुए थे। उनका लुक आज बहुत ही प्यारा लग रहा था।
सुनीता जी को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह उनकी तारीफ करने ही वाली थी कि तभी सुनीता जी ने कड़वे शब्दों में कहा, "कहाँ मर गई थी? कब से आवाज़ दे रही हूँ, तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या...?"
अचानक उनकी आवाज़ सुनकर वह घबरा गई और उनकी ओर देखकर बोली, "वह दरअसल मैं..."
वह अपनी बात पूरी करने से पहले ही सुनीता जी ने उसे बीच में काट दिया और बोली, "बस बस, बहाने मत बनाओ। सब जानती हूँ मैं। पिताजी की सेवा के बहाने आराम करती हो। वह तो भोले-भाले हैं, कुछ नहीं समझते, पर मैं भोली-भाली नहीं हूँ। सब समझती हूँ तुम्हारी चालाकियाँ। जितना कह रही हूँ, उतना सुनो।"
"ये Uptan लेकर रागिनी को दे दो और उससे कहना कि नहाने से पहले इसे लगाकर थोड़ी देर तक वेट करे। 5 मिनट बाद इसे वॉश करके नहाए। इससे त्वचा में निखार आता है। मुझे थोड़ा काम है, इसलिए मैं नहीं जा पा रही हूँ। मुझे किचन में भी देखना है, सारी चीज़ें ठीक से बन रही हैं या नहीं..."
"आज उसकी पहली रसोई है ना, तो मैं नहीं चाहती कि मेरी फ़्रेंड या फ़ैमिली मेंबर कोई भी उसके बारे में कुछ कहे।"
"अभी यहाँ खड़े-खड़े टाइम वेस्ट मत करो। जल्दी करो।" सुनीता जी के हुक्म सुनते ही प्रज्ञा उठकर दौड़ी।
जब वह कमरे के दरवाज़े पर पहुँची, तो उसने देखा कि दरवाज़ा खुला था। उसे लगा कि वह अंदर जा सकती है। वह बिना ज़्यादा सोचे-समझे कमरे के भीतर चली गई।
जब वह अंदर पहुँची, तो उसने देखा कि रागिनी बड़े आराम से सो रही थी। उसे सोता हुआ देखकर प्रज्ञा की आँखों में चमक आ गई।
वह मुस्कुराते हुए खुद से बोली, "ये कितनी प्यारी है! बिलकुल किसी परी की तरह। सोते हुए भी कितनी अच्छी लग रही हैं।"
प्रज्ञा ने काले रंग का सलवार सूट पहना हुआ था। बाल खुले हुए थे और बहुत अच्छे लग रहे थे। गोरे बदन पर काला सूट जच रहा था। माथे की काली बिंदी उसके लुक को एन्हांस कर रही थी।
अगर गौर से देखा जाए, तो रागिनी से कई गुना ज़्यादा खूबसूरत थी प्रज्ञा। लेकिन वह इस बात से बिलकुल अनजान थी।
प्रज्ञा काफी देर तक उसे ऐसे ही देखती रही। थोड़ी ही देर बाद अचानक रागिनी की नींद खुली।
जब रागिनी की नींद खुली, तो उसने देखा कि सामने प्रज्ञा हाथ में कटोरी लिए खड़ी थी।
उसने बगल में सोफ़े की ओर निगाह डाली, तो वहाँ पर कार्तिक नहीं था। सामने प्रज्ञा खड़ी थी। प्रज्ञा को देखकर उसका माथा ठंडा हो गया और गुस्से से उसका दिमाग एकदम पागल हो गया था।
प्रज्ञा अभी भी अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे देख रही थी। उसके चेहरे पर मुस्कान थी और उसके आत्मा को एक अत्यंत ही खुशी की अनुभूति हो रही थी।
रागिनी जल्दी से उठी। उसने प्रज्ञा की ओर देखा और चिल्लाते हुए बोली, "तुम यहाँ क्या कर रही हो? और कार्तिक कहाँ है...?"
उसका सवाल सुनकर प्रज्ञा अपनी आँखें और बड़ी करती है और कहती है, "कार्तिक भाई के बारे में मुझे नहीं पता। जब मैं यहाँ आई थी, तो वह वहाँ नहीं थे...?"
रागिनी कमरे से बाहर निकलने वाली थी कि तभी प्रज्ञा उसके पीछे भागती है और कहती है, "यह मैडम ने आपके लिए भेजा है।"
रागिनी ने उसके हाथों की ओर देखा और फिर नाक सिकोड़कर बोली, "यह अजीब सी चीज़ क्या है...?"
प्रज्ञा मुस्कुराती है और कहती है, "यह मैडम ने कहा है कि आपकी स्किन के लिए बहुत अच्छी रहेगी। इससे स्किन स्मूथ होती है..."
"I don't care. अपनी मैडम से जाकर कहो कि मुझे यह सब नहीं चाहिए..."
प्रज्ञा को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात का क्या जवाब दे, क्योंकि उसे अच्छे से पता था कि वह वापस वह कटोरी लेकर मैडम के पास गई, तो फिर से उसे डाँट सुनने को मिलेगी। और रागिनी तो इतने गुस्से में थी कि वह उसकी बात ही नहीं सुन रही थी।
प्रज्ञा रागिनी को समझने की कोशिश करती है और कुछ बोलने की कोशिश करती है। इससे पहले ही रागिनी ने उसे एक उंगली दिखाते हुए कहा, "तुम्हें समझ नहीं आता क्या? एक बार कहने पर इस घर में किसी को कुछ समझ में नहीं आता है।"
"मैंने कहा ना, मुझे यह नहीं चाहिए। और वैसे भी, मुझे अपने स्किन केयर का बहुत अच्छे से ख्याल है और मेरे पास चीज़ों की कमी नहीं है। अपनी मैडम से कहो कि मुझे यह सब नहीं चाहिए।"
एक तो सुबह-सुबह कार्तिक पता नहीं कहाँ चला गया, ऊपर से यह...
प्रज्ञा कुछ बोल नहीं पाई, क्योंकि वह बोल भी क्या सकती थी? आखिर वह तो इस घर की नौकरानी थी।
"अभी यहाँ खड़ी-खड़ी आँखें क्यों दिखा रही हो? जाओ जाकर अपना काम करो। और हाँ, यह ले जाकर अपनी बड़ी मैडम को दे दो।"
रात में तेज कदमों से एक कमरे से निकल गई रागिनी। उसने अभी भी वही जोड़ा पहना हुआ था जो उसने रात को पहना था। उसका पूरा मेकअप पूरी तरह से खराब हो चुका था और उसकी ज्वैलरी भी जगह-जगह से टूट चुकी थी।
आँखों में आँसू और चेहरे पर तेवर लिए वह कॉरिडोर से होते हुए सीधे अपनी सास के कमरे में पहुँची।
सुनीता जी उस वक्त बेड पर बैठी जूस पी रही थीं। जैसे ही उनका ध्यान रागिनी की ओर गया, उनके चेहरे पर बड़ी मुस्कान आ गई, पर अगले ही पल उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।
"यह सब क्या है बेटा? और तुमने यह..."
वह कुछ आगे कहती, इससे पहले ही रागिनी चिल्लाकर बोली, "यह मुझे नहीं, अपने बेटे से पूछिए।"
"शादी से पहले आपको पता था ना कि मेरा और सम्राट का अफ़ेयर चल रहा है? फिर भी आपने मेरी शादी अपने बेटे से कराई। और ऊपर से, जब उसे पता चला, तो वह मेरे साथ ऐसे बर्ताव कर रहा है जैसे मैं कोई..."
सुनीता जी इधर-उधर देखती हैं और अपनी बहू को शांत करने की कोशिश करती हैं और कहती हैं, "बेटा, शांत हो जाओ। अगर आस-पास लोग सुनेंगे, तो क्या सोचेंगे? हम बात करते हैं ना इस बारे में।"
"देखिए, मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी। आप क्या करेंगे, कैसे करेंगे, मुझे नहीं पता, लेकिन मेरी शादीशुदा लाइफ़ अच्छे से चाहिए, जैसा मैंने इमेजिन किया था। अरे, आपने कितने सपने दिखाए थे मुझे! और यहाँ आने के बाद पता चला कि वह सारे झूठे थे। मैं आपको वार्निंग दे रही हूँ, अगर आपने कुछ भी गलत करने की कोशिश की, तो मैं सीधा पुलिस में जाऊँगी।"
Ragini short-tempered ladki thi; उसे बहुत कम वक़्त में गुस्सा आ जाता था...
पर उसका सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र यह था कि वह बहुत ज़्यादा खूबसूरत थी और दिखने में बहुत इनोसेंट भी लगती थी, इसलिए सामने वाले को उस पर ज़्यादा गुस्सा नहीं आता था।
सुनीता जी ने बड़े प्यार से उसे अपने बगल में बिठाया और उसे समझाते हुए बोली, "देखो रागिनी, मैं समझती हूँ कि तुम क्या सोच रही हो, पर थोड़ी एडजस्टमेंट तो सबको करनी पड़ती है।"
"मेरा कार्तिक पाखी लड़कों जैसा नहीं है; बहुत इनोसेंट है और सीधा-साधा है। थोड़ा वक़्त लगेगा, पर सब ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ, तुम्हें पुलिस में जाने या फिर कुछ और सोचने की ज़रूरत नहीं है।"
"आप कहती हैं तो मान लेती हूँ, पर एक महीने से ज़्यादा मैं इंतज़ार नहीं कर सकती।"
कमरे में आने के बाद उसने मुझे इतना सुनाया, इतना सुनाया कि शायद मेरे अपने जिंदगी में इतनी ज़्यादा डाँट कभी अपने पेरेंट्स से भी नहीं सुनी होगी।
उसे समझाइए कि मैं इस घर की नौकरानी नहीं, बल्कि उसकी बीवी हूँ, तो मुझे इस तरह से नहीं सुनाया जाए। वरना अगर उसने मुझे एक डाँटा, तो दो सुनने में वक़्त नहीं लगाऊँगी।
सुनीता जी किसी तरह से रागिनी का गुस्सा शांत करती हैं और फिर उसे वापस कमरे में भेज देती हैं।
सुनीता जी ने अभी तक आधा गिलास ही जूस पिया था, लेकिन रागिनी की बातें सुनने के बाद उनका मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था जूस पीने का। दूर की बात है, वह उसकी तरफ देख भी नहीं रही थीं। अब उनका हाथ उनके सिर पर था। अपने सर को पकड़कर वह चुपचाप बैठी हुई थीं, गहरी सोच में डूबी हुई।
उन्हें पता था कि अगर उन्होंने इस बारे में कार्तिक से बात की, तो उल्टा उसी को सुनने को मिलेगा। ऊपर से रागिनी की धमकियाँ उन्हें और परेशान कर रही थीं।
एक तरफ़ सुनीता जी अपने बेटे की शादी कर कर फँस चुकी थीं, तो वहीं दूसरी तरफ़ सम्राट गुस्से से बौखला गया था। उसे कैसे भी करके शादी करनी थी, जल्द से जल्द।
सुबह के 10 बजे।
भाटिया निवास।
भाटिया निवास के ग्राउंड फ्लोर के हाल में सोफ़े पर चार लोग बैठे हुए थे, जिसमें से मिस्टर भाटिया की बेटी ईशा, उसका भाई नमन, मिस्टर भाटिया और उनकी पत्नी।
"पापा, मैंने आपसे कहा था ना, मुझे अपनी लाइफ़ में मयंक के अलावा कोई और नहीं चाहिए।"
"और 1 महीने पहले ही तो आपने हमारे रिलेशनशिप के लिए मंज़ूरी दी थी, तो फिर क्या हुआ...?"
"पापा, मैं एक्सेप्ट करती हूँ कि सम्राट बहुत अच्छा है। सम्राट के पास वह हर चीज़ है जिसके सपने लड़कियाँ देखती हैं, पर मुझे वह सब नहीं चाहिए।"
"मुझे समझ नहीं आता कि आप मेरी बात को समझ क्यों नहीं रहे हैं...?"
ईशा अपने पापा को डायरेक्टली शादी के लिए मना कर रही थी। ईशा का कहना था कि वह मयंक के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती।
मिस्टर भाटिया एक रियल एस्टेट कंपनी के एजेंट थे और उनका फ़ैमिली बैकग्राउंड भी अच्छा था; खानदानी लोग थे, पर बजाज इंडस्ट्री के सामने वह लोग कुछ भी नहीं थे।
एक बिज़नेस मीटिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात सम्राट से हुई थी। इतनी कम उम्र में इतना सक्सेस होना कोई मामूली बात नहीं थी।
सम्राट कोई छोटी हस्ती नहीं था। बस लोग उसे किसी और नाम से जानते थे। लोग उसे अंपायर उसी ने खड़ा किया था, अपनी काबिलियत से।
सम्राट को जो लोग अच्छे से जानते थे, वो लोग उसकी हैसियत को भी जानते थे। और उन्हें यह बात भी पता थी कि सम्राट के आगे खड़े होने की औकात हर किसी की नहीं है।
इसीलिए मिस्टर भाटिया इस रिश्ते को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। सम्राट के साथ रिश्ता रखने का मतलब है कि एक पावर को अपने साथ मिलाकर चलना। इतनी बड़ी अपॉर्चुनिटी भला कौन खोना चाहता था? मिस्टर भाटिया इस रिश्ते से खुश थे; इसके लिए तैयार थे। कितनी खुशी होगी जब इतने बड़े अंपायर का मालिक उनका दामाद बनेगा...?
उन्हें इस रिश्ते से कामयाबी मिल सकती थी।
अपनी बेटी की बात सुनकर मिस्टर भाटिया बोले, "तुम क्या चाहती हो? कि मैं सम्राट को मना कर दूँ...?"
"अरे, ऐसा रिश्ता हमें कभी नहीं मिलेगा! सम्राट खुद सामने से तुमसे शादी करना चाहता है। उसने मुझे कॉल करके खुद कहा है कि वह तुमसे शादी करेगा, और तुम चाहती हो कि मैं इतनी बड़ी अपॉर्चुनिटी को मना कर दूँ? यह बहुत बड़ा मौका है मेरे लिए, अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने का।"
अपने पापा की बात सुनकर ईशा नाराज़ हो गई। उसके बगल में बैठा उसका भाई, नमन बोला, "पापा, कुछ बोलने से पहले एक बार सोच लीजिये। आपका कहना है कि आप यह शादी एक बिज़नेस एजेंडा को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। अगर आपको अपना बिज़नेस एजेंडा पूरा करना ही है, तो अपने बिज़नेस मार्केटिंग को सही कीजिये। मेरी बहन को क्यों इस गांव पर लगे शादी के मज़ाक़ में डाल रहे हैं? शादी कोई मज़ाक नहीं है।"
"अगर ईशा को मयंक पसंद है, तो फिर ज़बरदस्ती किसी और के साथ शादी करने के लिए क्यों फ़ोर्स कर रहे हैं आप इसे...?"
नमन की बात सुनकर उसके पापा उस पर भड़क गए और गुस्से से बोले, "पहले पैसे कमाना सीखो, फिर तुम्हें पैसे की कीमत समझ में आएगी! बातें करना बहुत आसान है, लेकिन उसे पूरा करना बहुत मुश्किल। तुम्हें अपनी बहन की बहुत फ़िक्र है ना? तो क्या तुम अपनी बहन की शादी का खर्चा उठा सकते हो? बताओ मुझे!"
अपने पापा की बात सुनकर नमन चुप हो गया। नमन एक कॉलेज स्टूडेंट था, अपनी पढ़ाई पूरी करने की तैयारी कर रहा था और अपनी नौकरी पर ध्यान देना चाहता था। उसे न तो बिज़नेसमैन बनने की दिलचस्पी थी और न ही बहुत ज़्यादा पैसा कमाने की। उसे सिर्फ़ एक सिम्पल लाइफ़ चाहिए थी, खुशियों से भरा घर और शांतिपूर्ण वातावरण। इसके अलावा उसे और किसी चीज की चाह नहीं थी। ऐसा उसकी बड़ी बहन के साथ भी था, लेकिन वह उसकी बहुत केयर करता था। वह कभी नहीं चाहता था कि ईशा की शादी उसकी मर्ज़ी के बगैर हो; इसलिए आज वह अपने पापा से उलझ गया था।
नमन ने गहरी साँस ली और फिर बोला, "हाँ... मैं मानता हूँ कि मैं अभी पैसे नहीं कमा रहा, क्योंकि अभी मेरी स्टडी कंप्लीट नहीं हुई है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप पैसों के लिए मेरी बहन की ज़िन्दगी को दांव पर लगा देंगे।"
मिस्टर भाटिया अपने बेटे की बात सुनकर नाराज़ हो गए। उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखा और बोले, "अपने लाडले को समझाओ ज़रा! आपसे कैसे बात की जाती है? इसे इतनी भी तमीज़ नहीं है! अरे, मैं इन दोनों के भले के बारे में सोच रहा हूँ, और ये दोनों मुझ पर ही इल्ज़ाम लगा रहे हैं! अरे, कौन सा बाप होगा जो अपने बच्चों को खुश नहीं देखना चाहेगा? मैं भी तो यही चाहता हूँ कि तुम दोनों की आने वाली ज़िन्दगी खुशियों से भरी रहे! अरे, वह मयंक, उसका पापा एक साधारण सा सब्ज़ी बेचने वाला इंसान है। उसके पास सब्ज़ी बेचने के अलावा और कोई हुनर नहीं है, और वह मयंक उसी में अपने पापा की हेल्प करता है। इसके अलावा उनका कोई और फैमिली बिज़नेस नहीं है। और तुम चाहते हो कि इतने बड़े खानदान का रिश्ता टुकड़ा करके मैं मयंक के हाथ में अपनी बेटी का हाथ दे दूँ? तो ऐसा नहीं होगा!"
मिस्टर भाटिया ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि वह सम्राट से ही अपनी बेटी की शादी करेंगे। नमन और ईशा लाख कोशिश करते रहे, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ, क्योंकि मिस्टर भाटिया का इरादा पक्का हो गया था।
मिस्टर भाटिया कॉरिडोर में आते हैं और सम्राट को कॉल करके उसे शादी के लिए हाँ कर देते हैं। नमन और ईशा चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते।
जैसे ही सम्राट को पता चला कि भाटिया अपनी बेटी की शादी करने के लिए तैयार हो गया है, उसके चेहरे पर एक डेविल स्माइल आ गई। उसने मोबाइल फ़ोन को अपने जेब में रखा और गाड़ी में बैठकर तेज रफ़्तार से चल दिया। उसकी गाड़ी इतनी तेज थी कि सारी गाड़ियाँ पीछे छूट रही थीं। लगभग आधे घंटे बाद उसकी गाड़ी बजाज विला के सामने खड़ी थी।
उसके चेहरे पर स्माइल थी, आँखों में कॉन्फ़िडेंस था, और वह सीधा गेट से होते हुए हाल में पहुँच गया। उसने अपनी आँखों से चश्मा उतारा और बड़े ही स्टाइल के साथ अपने जेब में रख लिया। उसने अपने ब्लैक रंग के सूट और ब्लैक रंग के बूट में वह बिल्कुल किसी सुपरस्टार की तरह लग रहा था। आँखों पर चश्मा चढ़ाए वह ऐसे देख रहा था जैसे कोई शेर अपने शिकार को देखता है।
वह पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ सीधे घर के हाल में खड़ा था। उसने आस-पास नज़र दौड़ाई, तो काम करने वाले नौकर के अलावा उसे कोई और दिखाई नहीं दिया। वहाँ मौजूद नौकर उसे देखते हैं और फिर अपने काम में लग जाते हैं। कल रात को जब उसने तमाशा खड़ा किया था, तो सबको समझ में आ गया था कि उसकी हैसियत क्या है।
इतने सालों से दादाजी पोते का इंतज़ार कर रहे थे, आख़िरकार वह आ गया था, पर अफ़सोस की बात यह थी कि पूरा विला खाली था। उसने जब एक नौकरानी से पूछा, तो उसने बताया कि सारे लोग मंदिर गए हैं माता जी के दर्शन के लिए।
सभी लोग मंदिर गए हैं, मतलब घर पर कोई नहीं है। उसने इस बात को इग्नोर किया और सोफ़े पर बैठ गया। काफ़ी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब कोई नहीं आया, तो वह बोर होने लगा और वह सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर वाले कमरे में चला गया। वह सीधा अपने कमरे में गया और फिर दादाजी के कमरे में। दादाजी के कमरे में बहुत सारी फ़ोटो लगी हुई थीं, जिसमें उसकी बचपन की तस्वीरें थीं और एक फ़ोटो ऐसा भी था जिसमें वह दादाजी के साथ था। उसे फ़ोटो में दादाजी और वह बिल्कुल भी पहचान में नहीं आ रहे थे।
उसकी तस्वीरों को देखकर कोई नहीं अंदाज़ा लगा सकता था कि वह वही बच्चा है जो बचपन में ऐसा दिखता था, लेकिन अब यंग होने के बाद उसमें काफ़ी बदलाव आ चुके थे। गहरी काली आँखें, बिल्कुल परफ़ेक्ट बॉडी फ़िगर, बड़ी-बड़ी भौहें, तीखा नाक और पतले होंठ; आँखों में कॉन्फ़िडेंस, बॉडी लैंग्वेज बिल्कुल परफ़ेक्ट, किसी साहबज़ादे की तरह।
वह उन तस्वीरों को अपनी उंगलियों से टच करता है और फिर इमोशनल हो जाता है। दादाजी के साथ बिताए हुए बाल उसकी आँखों के सामने तैरने लगते हैं। अगले ही पल वह खुद को संभालता है और कमरे से निकलता है। कमरे से निकलने के बाद उसने देखा कि उसी के बगल में एक छोटा सा स्टोर रूम है। उसने सोचा कि शायद स्टोर में उसकी पुरानी चीजें रखी हुई हों। जब वह उस कमरे में पहुँचा, तो...
उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।
प्रज्ञा नहाकर कपड़े चेंज कर चुकी थी, और वह बैक साइड में डोरी को बांधने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हर बार नाकाम हो जाती। उसके हाथ वहाँ तक पहुँच ही नहीं पा रहे थे। जब भी वह कोशिश करती, उसका हाथ दुखने लगता।
"कितने बार कहा है, आंटी इतना डीप मत रखिये!" लेकिन वह सुनती ही नहीं है। अब तो और ज़्यादा परेशानी हो रही है। यह कपड़ा भी कितना तंग है!
दरवाज़े पर खड़ा सम्राट कुछ समझ नहीं पा रहा था। वह अभी-अभी नहा कर आई थी और उसके बाल एकदम गीले थे; मासूम सा चेहरा और आँखों में घबराहट। वह किसी काँच की गुड़िया की तरह नाज़ुक लग रही थी।
सम्राट पीछे मुड़कर वहाँ से जाने ही वाला था कि तभी उसके हाथों से लगकर वहाँ रखी शीशी नीचे गिर गई। अचानक से प्रज्ञा पीछे मुड़ी, तो उसने देखा कि सामने सम्राट खड़ा है। सम्राट को देखकर वह इतना घबरा गई कि उसका बैलेंस बिगड़ गया और वह गिरने वाली थी कि तभी सम्राट ने उसे पकड़ कर संभाला। लेकिन प्रज्ञा इतनी जल्दबाजी में थी कि उसने सम्राट का हाथ पकड़ने की कोशिश की, और इसी कोशिश में सम्राट उसके बिल्कुल नज़दीक आ गया और प्रज्ञा नीचे गिर गई।
प्रज्ञा को सम्राट ने अपने बांहों में कस कर पकड़ा हुआ था और वह घबराकर खुद को बचाने की कोशिश कर रही थी। सम्राट और प्रज्ञा एक-दूसरे के बिल्कुल नज़दीक थे, एक-दूसरे की आँखों में देखते हुए। ऐसा लग रहा था जैसे वक़्त वहीं थम गया है। दुनिया के लिए भले ही सम्राट कैसा भी हो, लेकिन प्रज्ञा को एक पल में एहसास हो गया था कि सम्राट का आस-पास होना किसी जादू से कम नहीं। वह जब भी आस-पास होता था, हवाओं में एक अलग सा बदलाव आ जाता था। काफ़ी देर तक दोनों एक-दूसरे को ऐसे ही देखते रहे। अचानक प्रज्ञा प्रेजेंट में आई, उसने अपने आप को देखा और फिर वह सीधा उठकर खड़ी होने लगी।
सम्राट नर्वस हो गया था। "तुम यहाँ क्या कर रही हो?" सम्राट ठीक से सवाल भी नहीं कर पा रहा था।
प्रज्ञा घबराते हुए बोली, "ये मेरा कमरा है... मेरा मतलब है कि दादाजी ने मुझे यहाँ रहने के लिए कहा है, और आप यहाँ... अचानक... घर पर तो कोई नहीं है।" प्रज्ञा ने मासूमियत भरे शब्दों में जवाब दिया।
"हाँ, मुझे पता है। सब लोग कब तक आ जाएँगे...?"
"मुझे नहीं पता। अब तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था। पता नहीं क्यों इतना वक़्त लग रहा है।" प्रज्ञा ने अनजान बनते हुए कहा।
सम्राट वहाँ से जाने लगा, तो प्रज्ञा वापस अपना डोरी बांधने की कोशिश करने लगी। सम्राट पीछे मुड़कर प्रज्ञा की ओर देखा। प्रज्ञा की बैक साइड का नेकलाइन बहुत ही डीप कटा हुआ था, जिसकी वजह से बेचारी अपनी डोरी को भी ठीक से बंद नहीं पा रही थी। उसे इतना मेहनत करता हुआ देखकर सम्राट को न जाने क्या हुआ। वह एकदम से उसके पास आता है।
उसने उसकी डोरी बहुत सॉफ्ट हाथों से पकड़कर बाँध दी।
प्रज्ञा नर्वस हो गई थी। सम्राट पीछे हट गया और दरवाज़े पर जाकर एक नज़र उसकी ओर देखा। वह घबराई हुई दिखाई दे रही थी। सम्राट की निगाह उस पर ठहर गई थी। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता था कि प्रज्ञा देखने में बेहद खूबसूरत थी; वह बदल में छुपे चाँद की तरह थी। उसके कपड़े बिल्कुल पुराने थे, लेकिन उसकी खूबसूरती उसके कपड़ों की वजह से छुप नहीं सकती थी।
प्रज्ञा और सम्राट की उम्र में 10 साल का फ़र्क़ था। सम्राट लगभग 28 साल का नवयुवक था, तो वहीं प्रज्ञा ने अभी-अभी जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा था। देखने में आकर्षक और झुकी हुई निगाहें, बिल्कुल हिरनी की तरह चंचल आँखें, लेकिन चेहरे पर मासूमियत, मानो बड़ी फुर्सत से बनाया हो भगवान ने उसे। पर किस्मत के मामले में बेचारी पीछे रह गई थी। इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी इस दुनिया में उसका कोई नहीं था। दादाजी उसे अनाथ आश्रम से लेकर आए थे उनकी सेवा-टहल के लिए। पर यहाँ आने के बाद उसे बहुत सारे काम करने पड़ते थे। दादाजी ने पैसे भी उसकी शादी के लिए जमा कर रखे थे। दादाजी ऐसे इंसान थे जो इस पूरे विला में सबसे ज़्यादा उससे स्नेह करते थे। और यह बात प्रज्ञा अच्छे से जानती थी। दादाजी की सेवा करना ही उसकी प्रायोरिटी थी। इसके अलावा वह बाकी लोगों की भी मदद किया करती थी, पर सुनीता जी को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
सम्राट उसे जितना देखा, उतना ही उसका दिल बह गया। विश्वास करना मुश्किल था कि सम्राट की निगाहें किसी लड़की पर इस तरह ठहर गई थीं कि वह नज़रें नीचे ही नहीं कर रहा था; वह उसे बस देख ही जा रहा था। अगले ही पल उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह उसे हर अंदाज़ में बड़ा है, चाहे वह हैसियत हो या फिर उम्र। इस बात का एहसास होते ही वह पीछे हट गया। उसने अपने कदम पीछे लिए और फिर उसे तिरछी नज़रों से देखकर कड़क शब्दों में बोला, "ऐसे कपड़े पहनती ही क्यों हो जिससे इतनी परेशानी हो? और यह क्या है? तुम अभी इतनी कम उम्र की हो, फिर भी इस तरह के कपड़े पहनती हो...?"
"इंसान की खूबसूरती ढके हुए कपड़ों में है, ना कि इस तरह के उटपटंग कपड़ों में। आइंदा से अगर तुमने इस तरह के कपड़े पहने, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
प्रज्ञा उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाई, क्योंकि उसके पास इसके अलावा और कोई कपड़े थे ही नहीं। उसके जो भी कपड़े थे, वह सभी इसी डिजाइन के थे। वह जिस गाँव से थी, उस गाँव के सभी लोग घाघरा-चोली पहना करते थे, और अनाथ आश्रम में भी बचपन से वह घाघरा ही पहनती आई थी। यहाँ आने के बाद भी सुनीता जी ने उसके लिए घागरे ही सिलवाए थे। घागरे में वह कम्फ़र्टेबल महसूस करती थी; बाकी कपड़े उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आते थे। वह उन कपड़ों में अपने आप को अनकम्फ़र्टेबल महसूस करती थी। शायद इसलिए क्योंकि उसे आदत पड़ चुकी थी घागरे की।
सम्राट वहाँ से निकल गया। सम्राट के वहाँ से जाने के बाद प्रज्ञा ने जल्दी से चुनरी को अपने कमर में अटैच कर, दूसरे किनारे से निकलते हुए अपने बैक साइड से डालकर दूसरी ओर कमर में खोंस लिया। अपने आप को आईने में देखकर उसने खुद से कहा, "इन्हें लगता है कि सारे लोग इन्हीं की तरह अमीर हैं।" फिर वह अपने बालों को सुलझाने लगी।
सम्राट सीढ़ियों से उतर ही रहा था कि तभी उसे तेज आवाज़ सुनाई दी। जिसे सुनकर वह जल्दी से कमरे की तरफ भागा, और जब कमरे में पहुँचा तो उसने देखा कि डरी और घबराई हुई प्रज्ञा भाग रही है। सम्राट समझ नहीं पाया और उसे बचाने के लिए कमरे में गया। बिना सोचे-समझे प्रज्ञा आकर सीधा उसके सीने से लग गई और उसे बाहों में पकड़कर जोर-जोर से चिल्लाने लगी। सम्राट को कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वहाँ पर तो कोई भी नहीं था।
"आ... आ... बचाओ... बचाओ..."
वह जोर-जोर से चिल्ला रही थी। अभी भी उसने सम्राट को कस के पकड़ा हुआ था। सम्राट हैरानी से हर तरफ़ देख रहा था, लेकिन उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वह उसे शांत करने की कोशिश करता है और कहता है, "शांत हो जाओ। मुझे बताओ, क्या प्रॉब्लम है? यहाँ तो कोई भी नहीं है। कुछ हुआ है क्या? बताओ मुझे।" पर वह इतना चिल्ला रही थी कि कुछ सुनने का नाम ही नहीं ले रही थी।
"प्रज्ञा, मेरी बात सुनो। क्या हुआ है? यहाँ पर तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा..."
प्रज्ञा अपनी आँखें बंद करके अपना सर उसके सीने से सटाती है और अपनी एक उंगली से पीछे की ओर, जमीन पर इशारा करके कहती है, "वहाँ पर छिपकली है।"
सम्राट की नज़र जमीन पर पड़ी छिपकली की ओर जाती है, तो उसकी हँसी छूट जाती है, लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे के भाव सख्त हो जाते हैं। उसने प्रज्ञा को खुद से दूर किया और बोला, "तुम बेवकूफ़ हो क्या? अगर छिपकली है, तो उसे इतना डरने की क्या ज़रूरत है...?"
प्रज्ञा को भी अब एहसास हो चुका था कि वह शायद अपनी हदें भूल गई थी। प्रज्ञा भोली और मासूम आँखों से उसे देख रही थी। उसकी आँखों में ग़िल्त और बेचारगी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। सम्राट अपने शब्दों को और कड़क करता है और कहता है, "दिमाग़ खराब करके रख दिया है जब से तुमसे मिला हूँ। मेरी लाइफ़ में सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रॉब्लम, प्रॉब्लम ही हो रहे हैं। ए लड़की, कान खोलकर सुन ले, आइंदा से अगर तुमने कोई ड्रामा किया ना, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" प्रज्ञा की आँखों में वाकई आँसू आ चुके थे। इस बात को झूठा नहीं कहा जा सकता था कि वाकई में वह डर गई होगी। 18 साल की बच्ची इतनी भी मैच्योर नहीं होती कि वह सभी प्रॉब्लम्स को सॉल्व कर सके। हालाँकि वह इतनी समझदार थी कि वह सही-ग़लत समझती थी, पर उसे वाकई में छिपकली से डर लगता था। सम्राट की डाँट सुनकर वह मुँह बना लेती है, पर सम्राट का ध्यान उसे छिपकली की ओर जाता है, तो वह छिपकली को उठाकर खिड़की से बाहर फेंक देता है और कहता है, "अंदर से अगर तुम्हें ऐसी हरकत की, तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
सम्राट वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद अभी भी प्रज्ञा को कुछ अजीब लग रहा था; कोई खुशबू थी जो उसे महसूस हो रही थी। प्रज्ञा ने अपने कलाई को अपने पास ले जाकर स्मेल करने की कोशिश की, तो उसे समझ में आया कि उसके दुपट्टे और उसके कलाई पर से हल्की-हल्की खुशबू आ रही थी। यह कोई हाई-ब्रांडेड कंपनी की परफ़्यूम की खुशबू थी, और यह शायद इसलिए आ रही थी क्योंकि वह सम्राट के करीब गई थी। सम्राट के नज़दीक जाने से उसे ऐसी ही खुशबू की अनुभूति हुई थी; उसके कपड़ों से ऐसी ही हल्की-हल्की खुशबू आ रही थी। वह अपने कलाई को अपने नाक के पास ले जाकर स्मेल करती है और अपनी आँखें बंद करके कहती है, "यह कितना ज़्यादा सेटिस्फ़ाइंग है! अगर एक बार इसे महक लिया जाए, तो न जाने कितने दिनों तक चैन की नींद आ जाएगी।"
पर वह इतने ज़्यादा ख़डूस क्यों है...? शायद इसलिए क्योंकि वह बजाज खानदान से है। इस खानदान के सभी लोग गुस्सा ही तो करते हैं, लेकिन दादाजी ऐसे नहीं हैं; वह बहुत अच्छे हैं। वह अपने आप से कहती है और मुस्कुरा देती है। वह बार-बार अपने चुनरी और अपने कलाई को महका रही थी।
"Hmmm... सच में यह खुशबू बहुत अच्छी है... मुझे वाकई में डर लगता है।"
प्रज्ञा को याद आया कि सम्राट यहाँ आया था, पर उसने बताया नहीं कि वह क्यों आया था। प्रज्ञा जल्दी से कमरे को ठीक करती है। उसने जो कपड़े इधर-उधर बिखरे थे, उसे भी ठीक से रखा और जल्दी से नीचे भागी। जब वह सीढ़ियों से नीचे पहुँची, तो उसने देखा कि सम्राट हॉल में नहीं है। अचानक उसे लगा जैसे उसने किसी की परछाई देखी। वह पीछे मुड़कर देखती है, तो उसे कोई भी नहीं दिखता, पर अगले ही पल वह बालकनी की ओर भागी। उसने बालकनी में जाकर देखा तो सम्राट वहीं खड़ा आसपास के नज़ारों को देख रहा था।
तभी सम्राट के हाथ पर एक सुंदर सा कबूतर जाकर बैठ गया। प्रज्ञा बड़ी-बड़ी आँखों से सम्राट को देख रही थी। जैसे ही सम्राट के हाथ पर वह कबूतर आकर बैठा, सम्राट ने अपना हाथ उसके सिर पर से लेकर उसके पंखों को सहलाते हुए बड़े प्यार से कहा, "कैसे हो दोस्त? मुझे लगा था कि तुम सब भूल गए हो। मुझे लगा था कि अब तुम सब यहाँ नहीं आते हो, पर शायद मैं ग़लत था।" इतना कहकर वह अपनी जेब से कुछ निकाला और अपने हाथ पर रख दिया। वह कबूतर उसके हाथ पर रखे गए दाने को खाया और फिर अपने चोंच में एक दाना लेकर उड़ गया।
सम्राट अपने जेब में वापस हाथ डालता है और खुद से कहता है, "लगता है यहाँ भी कोई है जिसे कबूतर बहुत ज़्यादा पसंद है।" इतना कहकर वह स्माइल करता है। उसका स्माइली फ़ेस देखकर प्रज्ञा हैरान हो गई थी। कोई इतना ज़्यादा परफ़ेक्ट और हैंडसम कैसे लग सकता है...? प्रज्ञा ने बहुत सारी फ़िल्मों में हीरो को देखा था, पर यह बहुत अलग था; बिल्कुल परफ़ेक्ट, इसमें तो कोई कमी ही नहीं थी; देखने में, बात करने में, कॉन्फ़िडेंस में, गुस्से में, एक्शन में, और तो और उसके प्यार भरी आवाज़ को तो उसने पहली बार सुना था। यह सच था कि जब वह गुस्सा करता था तो रोम-रोम काँप जाता था, पर वह जिससे प्यार करेगा, वह दुनिया की सबसे लकी लड़की होगी। प्रज्ञा के चेहरे पर स्माइल थी, ना जाने क्यों, लेकिन उसे मुस्कुराता हुआ देखकर उसका भी दिल मुस्कुराने को कर रहा था।
सम्राट जैसे ही वहाँ से निकला, प्रज्ञा दीवार से छिप गए, जिससे सम्राट उसे नहीं देख पाया। सम्राट सीधे हाल में आया और थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद बोर हो गया। उसे समझ में आ गया कि ये लोग जल्दी आने वाले नहीं हैं। सम्राट वहाँ से निकलने लगा था कि तभी दरवाज़े पर पहुँचकर उसने देखा कि एक बड़ी सी ब्लैक रंग की गाड़ी दरवाज़े पर आकर रुकी। गाड़ी जानी-पहचानी सी लगी, इसलिए वह वहीं रुक गया। थोड़ी देर बाद, गाड़ी से सभी लोग एक-एक करके अंदर आने लगे।
सबसे पहले कार्तिक था। कार्तिक को देखकर सम्राट के चेहरे पर मुस्कान आ गई, लेकिन अगले ही पल वह मुस्कान गायब हो गई। जैसे ही कार्तिक ने सम्राट को देखा, अपने भाई से गले मिलने के लिए अपनी बाहें फैलाकर उसकी ओर दौड़ा, लेकिन सम्राट ने उसे ऐसे इग्नोर किया जैसे उसने कार्तिक को देखा ही नहीं।
अपने दादाजी को देखकर सम्राट ने उनके पास जाकर कहा, "दादाजी, कैसे हैं आप?"
दादाजी सम्राट को देखते हैं और कुछ बोल नहीं पाते। उनकी आँखों में नमी थी और उनका पूरा मन विचलित हो गया था। उनका दिल कर रहा था कि वे अपने पोते को गले से लगाकर जोर-जोर से रोएँ; आखिर इतने दिनों बाद मिला था वह। उन्होंने तो सोचा नहीं था कि अपने पोते के साथ ऐसी भी सिचुएशन आएगी कि उन्हें इतना ज्यादा सोचना पड़ेगा।
सुनीता जी ने सम्राट को देखा और मुँह बनाते हुए बोलीं, "तुम... तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
"आपके इस सवाल का भी जवाब दे दूँगा, लेकिन मुझे लगता है कि हमें बैठकर बात करनी चाहिए।" इतना कहकर वह वापस उन सबके साथ हाल में आ गया। सभी लोग आकर सोफ़े पर बैठ गए। कार्तिक भी उन्हीं के साथ बैठा हुआ था, हालाँकि सम्राट कार्तिक को इग्नोर कर रहा था।
विजय जी ने अपने बेटे की ओर देखा और बोले, "देखो बेटा, हम मानते हैं कि थोड़ी-बहुत मिस्टेक सभी से हुई है, पर इन सब बातों को लेकर बैठने से कुछ नहीं होगा। इन सब बातों को छोड़ते हैं और हम एक नई शुरुआत करते हैं। अब तुम आ गए हो, तो अब बिज़नेस के बारे में भी सोचना पड़ेगा।"
"नहीं, मिस्टर बजाज, आपको कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं है। आपके लिए तो हमेशा से आपका एक ही बेटा था, और वह था कार्तिक। पढ़ा-लिखा है, समझदार है। मैं... मैं चोर हूँ, और तो और आपका साँगा बेटा हूँ, तो फिर इतना क्यों सोचना...?"
"मुझे लगता है कि आपको ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है। इसे ही अपना वारिस बना दीजिये। और हाँ, मुझे आपके बिज़नेस में कोई इंटरेस्ट नहीं है, तो please calm down।"
सुनीता जी ने यह सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ गई। आखिरकार कुछ तो समझदारी की बात की इस लड़के ने।
थोड़ी देर गहरी साँस लेकर सम्राट बोला, "मैं मुद्दे से भटकना नहीं चाहता। मैं आप सभी को बता देना चाहता हूँ कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ।"
इतना कहकर उसने एक वेडिंग कार्ड निकाला और अपने पिता के हाथ में देकर बोला, "जी, मेरी शादी का कार्ड है। और हाँ, उससे भी बड़ी बात यह है कि मैं अपनी शादी की सारी रस्म इसी घर में करना चाहता हूँ। After all, यह मेरा भी तो घर है ना? पर चिंता मत कीजिए, रहने के लिए मैं यह घर नहीं छीनूँगा, क्योंकि उसके लिए मैंने अपना इंतज़ाम कर लिया है। लेकिन मेरी शादी के सारे रस्म, सारे रिवाज इसी घर में होंगे। और आप सब ने जो मेरे साथ किया है, उसका प्रायश्चित यही है कि आप सब खुशी-खुशी मेरी शादी में शामिल होंगे।"
प्रज्ञा, जो दूर खड़ी यह सारी बातें सुन रही थी, सम्राट की शादी की बात सुनकर कुछ समझ नहीं पा रही थी। वहीं दूसरी तरफ, इस फैमिली का हर सदस्य यह सुनकर शौक में था। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि कल रात को जो लड़का इतने गुस्से और टूटे हुए हालात में घर से निकला था, वह आज सुबह तक इतना खुश और कॉन्फिडेंट हो जाएगा।
रागिनी अपने मन में बोली, "अब यह कौन सा नया नाटक है? मुझे अच्छे से पता है कि यह मेरे अलावा किसी और से प्यार कर ही नहीं सकता। मेरे लिए इतना पागल हुआ फिरता था, फिर यह किसी और को कैसे देख सकता है? ज़रूर यह कोई ड्रामा है ताकि मैं इसके पास चली जाऊँ। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी।"
"दो पैसे का फैशन डिज़ाइनर बनकर इसे लगता है कि इससे मुझे जीत लिया है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। अगर मुझे अपनी लाइफ सिक्योर करनी है, तो मुझे इसके भाई के साथ ही रहना पड़ेगा।"
सम्राट ने सबके चेहरे की ओर देखा और फिर हँसते हुए बोला, "क्या हुआ? आप सबको शौक क्यों लग गया? मुझे लगा था कि मेरी शादी की बात सुनकर आप सब खुश हो जाएँगे। आखिरकार यही तो चाहते थे कि मैं अपनी लाइफ में आगे बढ़ जाऊँ। जब मेरी सो-कॉल गर्लफ्रेंड मुझे छोड़कर किसी और को एक्सेप्ट कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं? मैं तो एक सक्सेसफुल आदमी हूँ। मेरे पास लड़कियों की लंबी लाइन है। उसी में से एक अच्छी लड़की देखकर मैंने खुद के लिए सिलेक्ट किया है। मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी को प्रॉब्लम होगी।"
उसने सुनीता जी की ओर देखा और बोला, "जहाँ तक मुझे पता है, सबसे ज़्यादा किसी को खुशी हो रही होगी, तो वह मेरी अपनी फैमिली है, क्योंकि आप सब तो बहुत ज़्यादा खुश हैं, और आप सब की खुशी आपके चेहरे से दिख रही है। खैर, मुझे और भी काम है, इसलिए मैं चलता हूँ, और उम्मीद करता हूँ कि आप सब इस शादी को अटेंड करने के लिए एक्साइटेड होंगे।"
जाने से पहले उसने पलटकर सबकी ओर देखा और फिर बोला, "अरे हाँ, मैं तो बताना भूल ही गया। दो दिन बाद हमारी इंगेजमेंट है, फिर मेहँदी, संगीत, और उसके बाद शादी, और उसके बाद रिसेप्शन। और फिर आखिरकार हम हनीमून के लिए यह घर छोड़ देंगे। और जब हनीमून के बाद वापस आएंगे, तो उसकी व्यवस्था हमने कर ली है, तो तब तक तो आप सबको हम दोनों को टॉलरेट करना ही होगा। उम्मीद करता हूँ कि अपने घर के बड़े बेटे के लिए आप सब इतना तो करेंगे, है ना...?"
इतना कहकर वह वहाँ से चला गया। पूरी फैमिली शौक में थी।
सभी लोग शौक में थे, तो वहीं रागिनी सरदर्द का बहाना बनाकर वहाँ से उठकर सीधा उसका पीछा करते हुए बाहर, गेट पर आ गई।
उसने सम्राट का हाथ पकड़ लिया और बोली, "यह क्या नया ड्रामा है...?"
"ड्रामा? कौन सा ड्रामा?" सम्राट सवालिया नज़रों से उसे देख रहा था। रागिनी बोली, "बस करो यह सब! मुझे अच्छे से पता है कि तुम यह सब ड्रामा कर रहे हो। तुम यह सब इसलिए कर रहे हो क्योंकि तुम्हें लगता है कि ऐसा करने पर मैं तुम्हारे पास वापस आ जाऊँगी। तो मेरी बात कान खोलकर सुन लो, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। मुझे अच्छे से पता है कि तुम मेरे अलावा किसी से शादी, तो दूर की बात है, किसी के बारे में सोच भी नहीं सकते। भूल ही नहीं हूँ मैं वह दिन जब एक लड़की ने तुम्हें प्रपोज़ किया था, और तुमने उसे बेइज़्ज़त करके उसे इतना नीचा दिखाया था, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वह तुम्हें पसंद करती थी। तुमने अपनी बहुत सारी खामियाँ भी बताई थी ताकि वह तुमसे नफ़रत करने लगे! इस हद तक प्यार करते थे? तो मुझे उसके बाद भी तुम्हें लगता है कि तुम्हारे इस बेफ़िज़ूल की बातों पर विश्वास कर लूँगी मैं?"
रागिनी ने यह कहा तो सम्राट का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसने दाँत पीसते हुए कहा, "अच्छा, तुम्हें सब पता था? फिर भी... फिर भी तुमने मुझे धोखा देने की हिम्मत की? तुम्हें लगता है कि तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो? तो मेरी बात सुनो, तुम खूबसूरत हो, बहुत ज़्यादा खूबसूरत हो, पर तुमसे लाख गुना सुंदर लोग इस दुनिया में एक्ज़िस्ट करते हैं। इन फैक्ट, वह लड़की... क्या नाम है उसका... हाँ, प्रज्ञा... वह तुमसे हज़ार गुना बेहतर दिखती है, हर मामले में।"
"ज़रा कभी उसके सामने खड़े होकर खुद को आईने में देखना। तुम्हें खुद पर शर्म आएगी। और एक बात, तुम क्या कह रही थी कि मैं तुम्हारे अलावा किसी और को प्यार नहीं कर सकता? ठीक है, फिर अपनी शादी की एक-एक रस्म तुम्हारे सामने करूँगा, और तुम देखना मैं प्यार करता हूँ या नहीं। जितने शिद्दत से मैं तुमसे प्यार किया है, उतने ही शिद्दत से अपनी नफ़रत भी निभाऊँगा।"
"तुमने औकात की बात की है ना? तो औकात तो तुम्हें मेरी पता चलेगी, लेकिन उसके लिए तुम्हें दो दिन तक का वेट करना पड़ेगा।"
"लेकिन तब तक यह मत भूलना कि तुम वह लड़की हो जिसे चाँदी की चाहत में हीरे को खो दिया। चलता हूँ मैं।"
"क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हम दोनों के बीच बात करने के लिए कुछ बचा है। अब तुम मेरे भाई की बीवी हो, इसलिए तुम्हारे बारे में मैं इससे ज़्यादा गंदे अल्फ़ाज़ यूज़ नहीं कर सकता।"
इतना कहकर वह वहाँ से निकल गया। उसके जाने के बाद वह गुस्से से बौखला गई। वह सीधा अपने कमरे में आई। कमरे में आकर उसने पास रखा हुआ वास उठाया और ज़मीन पर फेंक दिया, और गुस्से से चिल्लाकर बोली, "समझता क्या है खुद को? अगर उसने इन 7 सालों में अपना करियर सेट किया होता, तो मैं क्या, उसे रिजेक्ट करती? नहीं ना! मुझे अपने पापा का बिज़नेस बचाना था, अपने लिए एक लग्ज़ेरियस लाइफस्टाइल चाहिए थी, और मुझे वह सिर्फ़ और सिर्फ़ कार्तिक दे सकता था। इसलिए मैंने शादी की। और तो और, उसने इन 7 सालों में मेरे बारे में पूछना तक ठीक नहीं समझा। बस बोल दिया कि इंतज़ार करना! अरे, कितना इंतज़ार करते? कोई हो भी तो होना चाहिए! सारी मेरी गलती बता रहा है! सारी गलती उसी की है, सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी!"
रागिनी को सम्राट पर बहुत गुस्सा आ रहा था। सम्राट ने उसे इतना ज़्यादा बेइज़्ज़त कर दिया था, और रागिनी कुछ बोल नहीं पाई थी। रागिनी चाहती तो बहुत कुछ कर सकती थी, लेकिन शायद सम्राट के सामने उसका दिमाग पूरी तरह से ब्लैक हो चुका था। लेकिन जो भी हो, रागिनी ने वाकई में सम्राट को धोखा दिया था, और इस बात को वह झूठला नहीं सकती थी।
सम्राट के वहाँ से चले जाने के बाद, सुनीता जी अपना सिर पकड़कर सोफे पर बैठ गईं और अपने पति से बोलीं, "देखा आपने इस लड़के का तेवर? आप तो कह रहे थे कि हमारी वजह से वह बहुत ज़्यादा दुखी है। आप ही बताइए, क्या कोई इंसान दुखी होने के बाद इस तरह का डिसीजन लेता है? मुझे तो लगता है कि यह पूरी तरह से पागल हो गया है।"
दूर खड़ी प्रज्ञा सब कुछ देख रही थी और सबकी बातें सुन रही थी, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह नीचे आकर करीब से उन सबकी बातें सुन सके।
दादाजी वहाँ से चुपचाप कमरे में चले गए क्योंकि उन्हें पता था कि यह सारी कड़वाहट भरी बातें वे उनसे नहीं सुन पाएँगे।
कार्तिक ने अपनी माँ की ओर देखा और बोला, "माँ, प्लीज अब आप वापस से यह सारी बातें शुरू मत कीजिए। और वैसे भी, जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं हो रहा।"
कार्तिक भी वहाँ से चला गया।
सुनीता जी अपने पति के बगल में बैठ गईं और बोलीं, "मुझे अच्छे से पता है कि यह लड़का यह सब कुछ क्यों कर रहा है। इसे जलन हो रही है कि मेरे बेटे को इतनी सुंदर लड़की कैसे मिल गई...?"
वह अपनी बात खत्म करती उससे पहले ही, उनके पति ने उन्हें डाँटते हुए कहा, "बस करिए सुनीता जी! मैं कुछ बोल नहीं रहा, इसका मतलब यह नहीं कि मुझे यह सारी बातें अच्छी लगती हैं। आप इस तरह की बातें क्यों कर रही हैं? वह दोनों हमारे बच्चे हैं और हम दोनों को एक साथ मिलकर दोनों का ख्याल रखना है। लेकिन फिर भी आप इस तरह से बातें करती हैं जैसे सम्राट हमारा कुछ नहीं लगता।"
"मैं जा रहा हूँ। मुझे भूख नहीं है।"
विजय बजाज सीधे वहाँ से बाहर की ओर निकल गए। वे सीधे ऑफिस जा रहे थे क्योंकि वे यहाँ रहकर अपने आप को और ज़्यादा मेंटली टॉर्चर नहीं करना चाहते थे।
कार्तिक कमरे में अपने कपड़े निकाल रहा था कि तभी कमरे में रागिनी आई। रागिनी ने कार्तिक की ओर देखा और बोली, "यह सब क्या है? तुम अपने कपड़े अलग क्यों रख रहे हो...?"
कार्तिक ने रुक-रुक कर जवाब दिया, "क्योंकि मैंने अपने लिए नया अलमारी बनवा लिया है और मैं उसी में मेरे सारे कपड़े रखूँगा। तुम्हें मेरी फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"
"हाँ, लेकिन इसकी क्या ज़रूरत है? ऑलरेडी तो हम दोनों के लिए ज़रूर से ज़्यादा जगह थी ना? तो फिर क्या ज़रूरत है यह मँगवाने की?" रागिनी ने जब सवाल किया, तो कार्तिक बोला, "रागिनी, तुम्हें अपने अलग-अलग कपड़े रखने के लिए ज़्यादा स्पेस की ज़रूरत होगी। मुझे लगा कि मुझे तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए, इसलिए मैंने ऐसा किया।" इतना कहकर वह वापस अपने काम में लग गया। रागिनी उसके रुक-रुक कर बोले शब्दों को सहन नहीं कर पा रही थी।
रागिनी उसके पास गई और उसका हाथ पकड़कर खुद की ओर देखने के लिए कहा, लेकिन कार्तिक अभी भी नज़रें झुकाए हुए था।
"कार्तिक, मैंने कहा ना, मेरी ओर देखो! यह सब क्या है? कार्तिक, तुम्हारी माँ खुद शादी का रिश्ता लेकर मेरे घर पर आई थीं। यह शादी हमारी फैमिली ने तय किया है, तो फिर मुझे नाराज़गी क्यों है तुम्हें...?"
रागिनी जल्द से जल्द अपने और कार्तिक के रिश्ते को ठीक करना चाहती थी, लेकिन कार्तिक था जो उसकी ओर देख भी नहीं रहा था। रागिनी को पहली बार इतनी बेइज़्ज़ती महसूस हो रही थी। रागिनी वही लड़की थी जिसके पूरे कॉलेज के लड़के दीवाने बने फिरते थे। इसके अलावा, रागिनी जहाँ भी जाती, सब लोग उसके हुस्न के कायल हो जाते, पर आज उसका खुद का पति उस पर ध्यान नहीं दे रहा था। रागिनी के लिए इस बात को सहन कर पाना बहुत मुश्किल था।
कार्तिक ने टेढ़ी नज़रों से उसकी ओर देखा और फिर बोला, "रागिनी, मुझे लगता है कि मुझे जाना चाहिए।" इतना कहकर वह जाने लगा कि तभी रागिनी दो कदम आगे बढ़ी और उसका हाथ ज़बरदस्ती पकड़ लिया और खुद की ओर देखने की रिक्वेस्ट करते हुए बोली, "कार्तिक, प्लीज! यह सब जो भी है, यह ठीक नहीं है। अपने भाई की वजह से तुम मेरे साथ ऐसा करोगे...?"
रागिनी कार्तिक से ज़बरदस्ती कर रही थी जबकि कार्तिक चीज़ों को अवॉइड करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन जब उसे लगा कि यह सब कुछ इग्नोर करना मुश्किल है, तो वह एकदम से रुक गया। उसने रागिनी की ओर देखा और नाराज़गी भरे शब्दों में बोला, "रागिनी, स्टॉप दिस ड्रामा, ओके?"
"मुझे इस बात से तकलीफ नहीं है कि तुम्हारे और भाई के बीच क्या रिश्ता था, बल्कि मुझे इस बात से तकलीफ है कि तुमने शादी से पहले इस रिश्ते के बारे में मुझे क्यों नहीं बताया? क्यों नहीं बताया कि तुम और भाई रिलेशनशिप में रह चुके हो? तुम्हें पता है, मैं गलती से भी अपने भाई के बारे में बुरा नहीं सोच सकता और मैंने... मैंने उनके मनपसंद की लड़की से शादी कर ली। तुम्हें आइडिया भी है कि मैं इन सब बातों को सोचकर रात को ठीक से सो भी नहीं पा रहा हूँ। तुम्हें लगता है कि यह सब कुछ बहुत नॉर्मल है, पर मेरे लिए इस बात को एक्सेप्ट करना बहुत मुश्किल है। मुझे वक़्त चाहिए।" इतना कहकर उसने अपना हाथ छुड़ा दिया और वहाँ से चला गया।
उसके चले जाने के बाद, रागिनी दाँत पीसते हुए कहती है, "इस वक़्त चाहिए? लेकिन मुझे डर है कि सम्राट कोई चालबाज़ी करके सारी दौलत अपने नाम ना कर ले।" सोचकर इतना ज़्यादा गुस्से में है उसे तो यही लगता है कि वह इस पूरे घर में तांडव ज़रूर करेगा। "मैं नहीं चाहती कि मेरे हाथ से इस घर का एक सिक्का भी जाए। अगर मैं जल्द से जल्द अपने और कार्तिक के बीच की दूरियाँ नहीं मिटाई, तो मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा सरवाइव करना।"
रागिनी को डर था कि सम्राट इस घर पर कब्ज़ा न कर ले, क्योंकि रागिनी सम्राट के नेचर से अच्छे से वाकिफ़ थी। सम्राट ऐसा शख़्स था जो एक बार ज़िद ठान ले, तो उसे पूरा करके ही मानता था और उसने तो ओपन चैलेंज किया था कि वह इस घर के सभी लोगों को सबक सिखाएगा। ऐसे में उसका अगला कदम क्या होगा, किस पता...?
दोपहर का वक़्त था।
सुनीता जी किटी पार्टी के लिए घर से निकल रही थीं।
कार्तिक अस्पताल जा चुका था।
Vijay Bajaj office में थे। लगभग घर में कोई नहीं था...
दादाजी के कमरे में... प्रज्ञा दादाजी के कपड़े एडजस्ट कर रही थी...
"दादाजी, मैंने आपसे कहा था ना कि आपको ज़्यादा... स्वीट चीज़ नहीं खाना। और तो और, डॉक्टर ने साफ़ कहा है कि आप थोड़ा सा भी मीठा नहीं खा सकते। मैं तो आपकी सेहत का बहुत ख्याल रखती हूँ, पर लगता है कि कार्तिक भाई की शादी में आपने ज़रूर कोई गोलमाल किया है, तभी तो आपका शुगर लेवल इतना बढ़ गया है..."
दादाजी नज़रें चुराते हुए उसकी ओर देखते हैं और घबराते हुए कहते हैं, "नहीं तो... बस एक ही लड्डू खाया था, और वह भी पूरा नहीं खा पाया। कार्तिक ने देख लिया, इसलिए रखना पड़ा। मुझे नहीं लगता कि एक लड्डू की वजह से शुगर लेवल इतना हाई हो गया होगा।" दादाजी की बात सुनकर प्रज्ञा उन कपड़ों को वहीं छोड़ देती है और दादाजी की ओर देखकर स्माइल करते हुए कहती है, "सब जानती हूँ मैं! आप इसी तरह के बहाने बनाते हैं। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मेरे प्यारे दादू को एक लड्डू से संतोष आ जाए।"
प्रज्ञा की ओर देखकर दादाजी मुस्कुरा देते हैं और कहते हैं, "...बेटा, जिस चीज़ को हम पसंद करते हैं ना, वह चाहे हम कितना भी खा लें, उससे पेट तो भर जाएगा, लेकिन आत्मा नहीं। लड्डू मेरा फ़ेवरेट है। जब तुम्हारी दादी ज़िंदा थीं, तो मेरे लिए अपने हाथों से लड्डू बनाया करती थीं, और मैं बहुत लड्डू खाया करता था..."
इतना कहते-कहते दादाजी उदास हो गए। दादाजी को उदास देखकर प्रज्ञा बोली, "वह तो है दादाजी, आप भी ना इस तरह से सेंटी मत हो जाया कीजिए। आपको पता है, मैंने सुना है कि जो लोग हमसे प्यार करते हैं, वह हमेशा हमारे आसपास रहते हैं। आप सोचिए, अगर दादी माँ आपको देख रही होंगी, तो उन्हें तो यही लग रहा होगा ना कि आप उन्हें याद करके दुखी हो जाते हैं।"
"तो दादाजी, जब भी आपके दादी की याद आए, आप स्माइल कीजिए, ताकि आपको मुस्कुराता हुआ देखकर उन्हें भी सुकून मिले।" प्रज्ञा ने यह कहा तो दादाजी उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहते हैं, "धत तेरी! के सच में यह पागल है।"
प्रज्ञा मुस्कुराते हुए दादाजी के कपड़े को फिर से अलमारी में रखने लगती है।
अचानक दरवाजे पर किसी के आने की आहट मिलती है। प्रज्ञा बिना देखे मुस्कुराते हुए कहती है, "प्लीज, यह दादाजी, आपका लंच भी आ गया। मैं तो भूल ही गई थी।"
इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए पीछे देखती है, तो दरवाजे पर खड़े शख़्स को देखकर वह अंदर से एकदम हिल गई। वह कोई और नहीं, बल्कि सम्राट था। सम्राट ने इस वक़्त एकदम सादे कपड़े पहने हुए थे। ऊपर उसने वाइट रंग की ट्रांसपेरेंट शर्ट पहनी हुई थी और नीचे एक ब्लैक रंग की सिंपल सी पैंट। कपड़ा बिल्कुल कैज़ुअल था, देखने में बिल्कुल सिंपल।
इन सिंपल कपड़ों में वह बहुत ही ज़्यादा क्यूट लग रहा था।
दादाजी ने जब सम्राट को देखा, तो उनकी आँखें भर आईं। दादाजी बिस्तर से उठते उससे पहले ही, सम्राट जाकर उनके सीने से लगकर रोने लगता है। दादाजी बहुत दिन बाद उसे ऐसे देख रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपने पोते को किस तरह से प्यार दिखाएँ।
सम्राट काफ़ी देर तक दादाजी के सीने से यूँ ही लगा रहा और फिर रोते हुए बोला, "दादाजी, मैंने आपको बहुत याद किया, बहुत ज़्यादा।"
प्रज्ञा उन दोनों को देखती है और चुपचाप वहाँ से जाने लगती है।
सम्राट दादा जी के बगल में बैठ गया और फिर दादा जी से बोला, "आप ठीक तो हैं ना, दादू? मुझे आपकी बहुत याद आती थी।"
दादाजी हँसते हैं और कहते हैं, "मैं तो ठीक हूँ, पर अगर तुम मेरे पास होते, तो अभी मैं बूढ़ा नहीं हुआ होता।"
सम्राट उनकी बात सुनकर रोते-रोते हँस देता है और कहता है, "अगर पता होता कि मेरे रहने से आप कभी बूढ़े नहीं होंगे, तो आपको छोड़कर जाता ही नहीं। पर अब समझ गया हूँ कि दुनिया में फैमिली से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।"
दादाजी ने सम्राट की ओर देखा और उसके गाल पर हाथ रखकर बोले, "बहुत बदल गए हो, बेटा।"
सम्राट अपनी तकलीफ़ को अपनी मुस्कुराहट के पीछे छुपाते हुए दादाजी की ओर देखता है और नाम आँखों से कहता है, "क्या करें दादाजी? इस जमाने ने मुझे बदल दिया। पर आपका पोता इतना भी नहीं बदला कि अपने दादू की बात ना समझ सके। पर दादू, मैं जानता हूँ कि मैं जो कर रहा हूँ, उसका तरीका गलत है, पर मेरे पास और कोई तरीका नहीं है। छोटी माँ मुझे तकलीफ पहुँचाने का एक भी मौका नहीं छोड़ती।"
"मैंने पापा से कभी कुछ नहीं चाहा। कार्तिक और छोटी माँ के उनके जीवन में आने के बाद, जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, तब मैंने अपने पापा के प्रति अपनी सारी इच्छाओं को मार दिया। अपनी ज़िंदगी को सिमट कर जीना सीख लिया था मैंने, पर कभी सोचा नहीं था कि मुझे यह सब भी फेस करना पड़ेगा। लेकिन अब जब मुक़ाबला हो ही रहा है, तो फिर ज़्यादा सोचने की क्या ज़रूरत है।"
दादाजी ने उसके बालों को छुआ और बोले, "बेटा, मैं जानता हूँ कि तुम कभी कुछ गलत नहीं करोगे, पर फिर भी अपना ध्यान रखना। अगर तुम सलामत रहोगे, तो मैं समझूँगा कि मेरी साँसें चल रही हैं।"
"यह आँखें देखने के लिए तरस गई थीं तुम्हें।"
तभी प्रज्ञा दादाजी के लिए लंच लेकर आ गई। उसने लंच की थाली दादा जी की ओर बढ़ाई, तो सम्राट अपने हाथों से दादाजी को खाना खिलाने लगा। खाना खिलाने के बाद, उसने दादाजी को दवाइयाँ दीं और फिर उनके लेट जाने पर कंबल ओढ़ा दिया। वह कमरे से बाहर निकला, तो उसने देखा कि कॉरिडोर में प्रज्ञा खड़ी थी।
सम्राट ने एक नज़र प्रज्ञा को देखा और फिर धीरे-धीरे कदमों से उसके पास आ गया।
प्रज्ञा ने जब सम्राट को देखा, तो वह तेज कदमों से वहाँ से जाने लगी। वह सीधा बालकनी में आकर खड़ी हो गई। उसे लगा कि शायद अब सम्राट चला गया होगा, लेकिन जैसे ही वह मुड़ी, उसके बिल्कुल सामने सम्राट खड़ा था। प्रज्ञा के पास तो पीछे जाने का भी जगह नहीं था। सम्राट के दोनों हाथ प्रज्ञा के दोनों हाथों के बिल्कुल पास में थे। उसने अपने दोनों हाथों से उसे रोक दिया था। प्रज्ञा सम्राट के साँसों से टकरा रही थी।
सम्राट उसकी आँखों में देखा और फिर बड़े पोलाइट शब्दों में कहा, "तुम्हें कोई बात समझ में क्यों नहीं आती...?"
"तुमसे मना किया था ना, इस तरह के कपड़े मत पहनना।"
प्रज्ञा एकदम कमज़ोर हो गई थी। उसे खुद के इतना करीब देखकर प्रज्ञा अपनी नज़रें नीचे करती है और काँपते होठों से कहती है, "मैं वह... ऐक्चुअली मेरे पास..."
"वह क्या है? सर... मेरे पास सिर्फ़..."
"मेरे पास सिर्फ़ इसी तरह के कपड़े हैं और नए कपड़े बनवाने के लिए मैं किसी को बोल नहीं सकती।"
इतना कहते-कहते वह एकदम नॉर्मल सी हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था कि अभी उसकी आँखों से आँसू छलक आएंगे। वह सच में किसी काँच की गुड़िया की तरह थी।
जैसे कोई सफ़ेद पन्ना, जिसे छूने से ही वह मैला हो जाए।
जैसे कोई मोम का पुतला, जो हल्की सी तपिश से भी गरम होकर पिघल जाए।
वह वाकई में बहुत ज़्यादा नाज़ुक थी, जैसे कोई फूलों की राजकुमारी।
सम्राट को न जाने क्या हो गया। कुछ सोचे-समझे बिना ही उसके क़दम अपने आप ही उसकी ओर बढ़ गए थे।
सम्राट के लिए यह विश्वास करना भी मुश्किल था कि आज के जमाने में किसी को कपड़ों की दिक्कत हो सकती है, खासकर बजाज विला जैसी जगह पर।
सम्राट ने उसे सवालिया नजरों से देखा और बोला, "क्या कहा तुमने? तुम्हारे पास कपड़े नहीं हैं? क्या मज़ाक है यह? तुम्हें पता है कि तुम क्या बोल रही हो? दादाजी जिसके साथ भी रहते हैं, उसकी बहुत परवाह करते हैं। इसके अलावा, इस घर में बहुत सारे लोग हैं। क्या किसी ने भी इस बात को नोटिस नहीं किया...?"
इस सवाल को सुनकर वह धीरे से बोली, "दरअसल, एक बार कार्तिक भाई ने कहा था कि मैं अपने कम्फ़र्टेबल के लिए कपड़े ले लूँ। तो मैंने उन्हें बताया कि मैं इन्हीं कपड़ों में कम्फ़र्टेबल महसूस करती हूँ। तो शायद इसी वजह से उन्होंने इस बात पर ज़्यादा दबाव नहीं डाला।"
वह घबराते हुए उसके सवाल का जवाब दे रही थी। सम्राट उसके जवाब को सुनकर मुस्कुराया और बोला, "ठीक है, यह कोई बड़ी बात नहीं है। तुमने मेरी जान बचाई है, तुम्हारे लिए इतना तो कर ही सकता हूँ। चलो मेरे साथ।"
सम्राट उसे अपने साथ जाने के लिए कह रहा था, लेकिन वह वहीं खड़ी रही। सम्राट ने उसकी ओर देखा और बोला, "तुम्हें सुनाई नहीं दिया क्या? मैंने कहा, चलो मेरे साथ।" सम्राट के दोबारा कहने पर भी वह वहीं खड़ी रही।
"अब क्या हुआ तुम्हें? तुम्हें सुनाई नहीं दे रहा? मैंने कहा कि चलो मेरे साथ।"
"जी, मुझे सुनाई दे रहा है। माफ़ कीजिए। मैं आपको थैंक्स कहना चाहती हूँ, पर मैं आपके साथ नहीं जा सकती। अगर मैडम को पता चलेगा कि मैं घर पर नहीं हूँ, तो बहुत नाराज़ होंगी वह।"
उसने जब घबराते हुए यह बात कही, तो सम्राट को उस पर तरस आ गया। उसने उसकी ओर देखा और बोला, "तुम इतना डरती क्यों हो? आगे क्या होगा, क्या नहीं, वह मैं संभाल लूँगा। तुम बस मेरे साथ चलो।" सम्राट जानता था कि वह इतनी आसानी से उसके साथ नहीं जाएगी, इसलिए वह आगे बढ़ा। उसने प्रज्ञा का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लेकर सीधा अपनी गाड़ी के पास आ गया। उसने प्रज्ञा के लिए दरवाज़ा खोला और उसे बैठने का इशारा किया।
प्रज्ञा के बार-बार कहने पर अपने आप को रोक नहीं पाई और चुपचाप ड्राइवर सीट के बगल वाली फ्रंट सीट पर बैठ गई। सम्राट ने सीट बेल्ट लगाई और फिर गाड़ी स्टार्ट कर दी। लगभग डेढ़ घंटे बाद सम्राट की गाड़ी एक बड़े से मॉल के सामने खड़ी थी।
वह मॉल देखने में बहुत ही ज़्यादा लग्ज़रियस लग रहा था। मॉल के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में 'RS गारमेंट्स' लिखा था।
मॉल के अंदर की खूबसूरती और भी ज़्यादा आकर्षक थी। जब वह अंदर कदम रखा, तभी उसके सामने सारे स्टाफ़ आकर खड़े हो गए। उन्होंने बड़े ही अदब के साथ अपना सर झुकाकर उसे सम्मान दिया।
सम्राट ने अपनी बगल में खड़ी प्रज्ञा की ओर देखा और वहाँ खड़ी एक लेडीज़ स्टाफ़ से बोला, "नगमा, यह मेरी फ़्रेंड प्रज्ञा है। इसके लिए कम्फ़र्टेबल कपड़े चाहिए, और इसे जो भी चाहिए होगा, सब कुछ। और हाँ, क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए।"
नगमा प्रज्ञा को लेकर एक अलग से स्टोर में चली गई।
उसके जाने के तुरंत बाद, ब्लैक रंग के सूट में, हाथ में सूटकेस लिए हुए एक आदमी ने आकर सम्राट के सामने अपना सर झुकाया और बोला, "सर, जैसा कि आपने कहा था, मैंने सारी चीज़ों का इंतज़ाम कर दिया है। २ घंटे बाद सारी चीज़ें बजाज विला पहुँच जाएँगी।"
उसने जब अपनी आँखों से चश्मा उतारा, तो सम्राट उसे देखकर मुस्कुराया और बोला, "आहान, तुम... इस बात का ख़ास ख़्याल रखना कि कोई गड़बड़ ना हो जाए। और हाँ, हमारे इस बार की डिज़ाइन बहुत ख़ास है, तो इस बात का ख़ास ख़्याल रखना कि उसकी सिक्योरिटी का पूरा इंतज़ाम किया जाए। मैं नहीं चाहता कि इस पर कोई भी गड़बड़ हो..."
आहान सम्राट का असिस्टेंट था, जो उसे असिस्ट करता था और उसके सभी कामों में मदद करता था। सम्राट आहान के काफी क्लोज़ था, क्योंकि आहान उसके सेक्रेटरी होने के साथ-साथ उसका एक अच्छा दोस्त भी बन गया था। दोनों काफी बातें एक-दूसरे को शेयर किया करते थे, यहाँ तक कि सम्राट के बहुत सारे सीक्रेट थे जो आहान जानता था।
आहान ने वह सूटकेस सम्राट की ओर बढ़ाया और फिर दोनों वहाँ से लिफ़्ट से होते हुए मॉल के सबसे ऊपर वाले फ़्लोर पर चले गए।
दूसरी तरफ़, नगमा प्रज्ञा को लेकर एक बड़े से कमरे में गई। यह वेस्टर्न ड्रेस का स्टोर था, जहाँ पर एक से बढ़कर ब्रांडेड वेस्टर्न ड्रेस रखी गई थीं।
जैसे ही प्रज्ञा ने उन वेस्टर्न ड्रेस को पहना, उसने अपना दोनों हाथ अपने सीने पर रखा और बोली, "मैं यह नहीं पहनूँगी। यह बहुत अजीब लगेगा, और तो और मैं इसमें बिल्कुल भी कम्फ़र्टेबल महसूस नहीं कर पाऊँगी।"
नगमा उसे ऐसा करते हुए देखकर समझ गई कि वह बहुत ज़्यादा भोली है। प्रज्ञा का नेचर बहुत ही ज़्यादा सिम्पल था, और तो और वह बातें भी बहुत पोलाइट करती थी। आवाज़ इतनी मीठी थी कि इंसान दिन भर सुनना चाहे।
नगमा ने प्रज्ञा की ओर देखा और बोली, "क्या वाकई आपको वेस्टर्न ड्रेस नहीं पहनना? देखिए, अगर आपको वेस्टर्न ड्रेस नहीं चाहिए, तो आप एथनिक वेयर ले सकती हैं।"
आखिरकार प्रज्ञा बोली, "नहीं-नहीं, मुझे सिर्फ़ अनारकली सूट चाहिए, और कुछ भी नहीं। और एक ब्लैक रंग का दुपट्टा भी।"
नगमा उसकी आवाज़ को सुनकर मुस्कुरा दी और कहती है, "आप निश्चिंत हो जाइए। आपको जो भी चाहिए, बस एक बार बता दीजिए।"
सम्राट लिफ़्ट से उतरकर अपने कमरे में जा ही रहा था कि अचानक उसे कुछ याद आया। जैसे ही उसे कुछ याद आया, उसने अपने बगल में खड़े आहान की ओर देखा और फिर बोला, "आहान, एक काम करो। नगमा को कॉल करो और उससे कहो कि हमने जो मॉडल लॉन्च किया था, उसकी जितने भी ब्रांडेड पीस हैं, मुझे सब चाहिए।"
आहान ने एक नज़र सम्राट की ओर देखा और फिर चुप हो गया। सम्राट ने आहान की ओर देखा और बोला, "तुम्हें कुछ सुनाई नहीं दिया क्या?" आहान बोला, "आई एम सॉरी सर, पर मेरे पास नगमा का नंबर नहीं है।" इतना कहकर वह बात को इग्नोर करने की कोशिश कर रहा था। नगमा का ज़िक्र आते ही आहान के चेहरे के भाव बदल गए।
सम्राट ने आहान की ओर देखा और बोला, "तुम दोनों की फिर से लड़ाई हुई है? इस बात पर आहान कुछ भी नहीं कहा। सम्राट उसे डाँटते हुए बोला, "तुमसे कितनी बार कहा है कि अपने पर्सनल झगड़े को प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में मत लो, लेकिन तुम दोनों समझते ही नहीं हो। खैर, अगर तुमसे नहीं हो पा रहा, तो साफ़-साफ़ बोल दो।"
आहान चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। बदले में उसने एक शब्द भी नहीं कहा। सम्राट लिफ़्ट से वापस उस फ़्लोर पर आया जहाँ पर नगमा प्रज्ञा को लेकर गई थी। सम्राट जब उस कमरे में दाखिल हुआ, तो वहाँ आस-पास खड़ी लेडी वहाँ से चली गई। नगमा ने सम्राट की ओर देखा और बोली, "सर, जैसा कि आपने कहा था, मैंने सारे कम्फ़र्टेबल कपड़े पैक कर दिए हैं। यह देखने में बहुत ही ज़्यादा सिम्पल हैं, लेकिन बहुत ही कम्फ़र्टेबल हैं।"
सम्राट ने उसकी ओर देखा और सीरियस होकर बोला, "मुझे तुम पर विश्वास है। इन सभी को बजाज विला में दादाजी के नाम से डिलीवर कर दो।"
नगमा ने एक नज़र प्रज्ञा की ओर देखा और फिर सम्राट की ओर देखने लगी। सम्राट के इशारे से नगमा और आहान दोनों वहाँ से चले गए। उन दोनों के जाने के तुरंत बाद ही प्रज्ञा ने सम्राट की ओर देखा और संकोच करते हुए बोली, "आपको पता भी है कि आप क्या कर रहे हैं? इतने लग्ज़रियस मॉल को मैंने कभी अंदर से देखा तक नहीं, बस दूर से ही देखा है। पर पहली बार अंदर आकर देख रही हूँ।"
सम्राट ने पूरे कॉन्फ़िडेंस के साथ कहा, "इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। और वैसे भी, तुमने मेरी जान बचाई थी, इसके लिए इतना तो बनता है।"
सम्राट की इस बात को सुनकर प्रज्ञा बोली, "सर, आप जो कह रहे हैं वह बिल्कुल सही है, पर वह सब मैंने किसी लालच या फिर फायदे में आकर नहीं किया था। और वैसे भी, अगर हम किसी चीज़ की उम्मीद में कुछ करते हैं, तो उसका कोई फायदा नहीं होता। अगर हम किसी के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो बिना किसी उम्मीद, बिना किसी अपेक्षा के करना चाहिए। और मुझे आपसे किसी भी चीज़ की तमन्ना नहीं है, तो प्लीज़ आप मेरे लिए... यह सब मत कीजिए।"
प्रज्ञा की बात सुनकर सम्राट ने उसकी ओर देखा और फिर स्माइल करते हुए बोला, "अच्छी बात है। अगर तुम्हारे अंदर इतनी सिन्सिरिटी है, तो यह तो बहुत अच्छी बात है। पर मैं किसी का एहसान नहीं रखना चाहता। अगर तुमने मेरे लिए कुछ किया है, तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं भी तुम्हारे लिए कुछ करूँ, और तुम इसके लिए मुझे मना नहीं कर सकती।"
प्रज्ञा के पास अब कोई शब्द नहीं बचे थे उससे बात करने के लिए, इसलिए वह शांत हो गई।
सम्राट ने उसका हाथ पकड़ा और स्टोर रूम से अटैच्ड एक लग्ज़रियस कमरे में चला गया। वह कमरा काफी ज़्यादा ब्यूटीफुल था, या यूँ कहें कि यह एक मास्टर बेडरूम था। बड़ा सा किंग साइज़ बेड, सोफ़ा, ड्रॉअर, और उसे अटैच्ड एक लग्ज़रियस बाथरूम। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी सेवन स्टार होटल के कमरे में चेक इन कर चुकी है। यह वाकई में बहुत ही शानदार था। कमरे का इंटीरियर भी बहुत ही प्यारा था। कमरे को इंडियन टच देने के लिए कमरे में भारत के अलग-अलग जगह की तस्वीरें लगी हुई थीं। यह सच में बहुत ही ज़्यादा शानदार था।
वह बड़ी-बड़ी आँखों से वहाँ रखी हर एक चीज़ को देख रही थी। वहाँ पर हर एक चीज़ कीमती थी। छूने से भी डर लग रहा था कि कहीं उसके छूने से कोई चीज़ ख़राब ना हो जाए। बड़ी-बड़ी आँखों से बेड को निहारती तो कभी बैठकर पैर वाले साइड पर उसे टच करके देखती। उसकी इस तरह से सभी चीज़ों को अजूबे की तरह देखना सम्राट को काफी अच्छा लग रहा था। अनजाने में ही उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई थी।
सम्राट ने कहा, "क्या बात है? तुम इन सब चीजों को ऐसे क्यों देख रही हो?" देखो प्रज्ञा, तुम यहाँ २, ४, १० दिन या महीनों तक रह सकती हो, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। तुम्हें पता है इस कमरे की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ़ मेरे लिए बना है। लेकिन अभी तक मैंने यहाँ ज़्यादा वक़्त नहीं बिताया है। एक्चुअली मेरा शेड्यूल इतना बिज़ी है कि मुझे टाइम ही नहीं मिलता कि मैं यहाँ आकर स्टे कर सकूँ।
प्रज्ञा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। प्रज्ञा की आँखों में सवाल देखकर सम्राट मुस्कुराया और अपनी जेब से एक चॉकलेट निकालकर अपने मुँह में रख ली। फिर, एक क्यूट स्माइल के साथ उसने कहा, "क्या हुआ? तुम्हें अजीब लग रहा है ना? वो यूं है कि... 'Kind of information mister. क्या दिस इज़ माय माल? आई एम ओनर ऑफ़ दिस लग्ज़री...' स्मॉल..."
प्रज्ञा को लगा जैसे वह अभी चक्कर खाकर गिर जाएगी। विश्वास करना मुश्किल था कि इतने बड़े मॉल का मालिक सम्राट था। सम्राट एक डिजाइनर था, यह बात घर में सभी जानते थे, लेकिन अपनी ज़िंदगी में वह इतना आगे बढ़ चुका था, यह कोई नहीं जानता था। यहाँ तक कि रागिनी को भी इस बारे में पता नहीं था। रागिनी को तो सिर्फ़ यही पता था कि वह एक डिजाइनर है; सिर्फ़ एक डिजाइनर जिसे कपड़े डिजाइन करने आते हैं और वह कुछ ब्रांड्स के साथ कोलैब करके अपनी कंपनी शुरू करना चाहता है। पर रागिनी को यह नहीं पता था कि उसका इस शहर में इतना बड़ा मॉल भी है। इसके अलावा, RS एम्पायर भी उसी का है।
शहर के अलग-अलग जगहों पर उसके खुद के मॉल खुल चुके थे, जिनका सालाना टर्नओवर अरबों से भी ऊपर था। पर सम्राट कभी यह नहीं चाहता था कि रागिनी पैसों की वजह से उससे प्यार करे, इसलिए उसने अपनी सक्सेस वाली बात छुपाई थी। रागिनी को अभी भी यही लग रहा था कि वह एक डिजाइनर है और ब्रांड्स के साथ कोलैब करके फेमस होना चाहता है, पर उसके इतने बड़े सक्सेस के बारे में उसे कुछ नहीं पता था।
प्रज्ञा ने अपनी आँखें झपकीं और फिर कहा, "क्या कहा आपने? आप इस मॉल के ओनर हैं...?"
सम्राट सोफ़े पर बैठ गया और अपने एक पैर पर दूसरा पैर रखकर उसे देखकर मुस्कुराया और कहा, "हाँ, बिलकुल। दिस मॉल इज़ मीन, ओनली माइन।"
प्रज्ञा के लिए, आँखों में इतना आत्मविश्वास देखकर, उसके बातों पर विश्वास न करना बहुत मुश्किल था।
"चलिए मान लेते हैं कि आपका है, तो बताइए, आपने रागिनी मैडम से यह सब कुछ क्यों छुपाया?" प्रज्ञा के इस सवाल पर वह नाराज़ हो गया और कहा, "प्रज्ञा, हम जिस काम के लिए आए हैं, उस पर फ़ोकस करते हैं ना? क्यों बेकार की बातें लेकर बैठ गई हो?"
प्रज्ञा भी उसका मूड ख़राब नहीं करना चाहती थी, इसलिए वह भी शांत हो गई।
प्रज्ञा ने वहाँ लगे एक बड़े से पेंटिंग की ओर देखा और कहा, "कितना सुंदर है!"
वह बड़ी सी पेंटिंग पृथ्वीराज चौहान की थी। पृथ्वीराज चौहान के चेहरे पर गौरव साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था; आँखों में उत्साह, गौरव और जोश से भर देने वाला। इस तस्वीर को देखकर प्रज्ञा की आँखें ठहर गई थीं। उसी के पास खड़ा सम्राट मुस्कुराया और कहा, "मेरी फ़ेवरेट तस्वीर है। तुम्हें पता नहीं है, पर मैं पृथ्वीराज चौहान का बहुत बड़ा फ़ैन हूँ। मुझे हिस्ट्री में अगर किसी का लाइफ़ स्टोरी सबसे अच्छा लगा, तो वह है पृथ्वीराज चौहान। आई मीन, कोई इंसान इतना बेबाक कैसे हो सकता है...?"
"मुझे उनका कैरेक्टर बहुत पसंद आया। हालाँकि हमें यह नहीं पता कि एक्चुअली में सच क्या है, पर हमारे हिस्ट्री के अनुसार उनकी जो भी लाइफ़ स्टोरी पढ़ाई गई है, वह सच में शानदार है और मुझे वह बहुत ज़्यादा पसंद है।"
सम्राट की क्यूट और मासूम बातें सुनकर प्रज्ञा हैरान थी। उसने सम्राट की ओर देखा और फिर अपने आप से बोली, "कोई इंसान इतना ज़्यादा अलग कैसे हो सकता है? एक वक़्त में बिलकुल अलग और अगले ही पल बिलकुल भिन्न व्यक्ति बन जाते हैं यह..."
प्रज्ञा वहाँ से टहलती हुई अचानक से एक ड्राफ़्ट से टकरा गई। वह टकराकर अपने घुटनों पर हाथ रखती ही थी कि तभी सम्राट वहाँ आ गया। सम्राट ने उसकी ओर देखा और घबराते हुए बोला, "तुम ठीक तो हो? संभल के चलना चाहिए।" प्रज्ञा कुछ समझ पाती, उससे पहले ही सम्राट ने उसे गोद में उठाया और सीधा बेड पर बिठा दिया।
"घाघरा ऊपर करो," उसने कहा।
प्रज्ञा उसकी ओर देखने लगी और अपना सिर हिलाया, क्योंकि वह ऐसा नहीं करना चाहती थी। लेकिन सम्राट जबरदस्ती ऐसा करने की कोशिश कर रहा था।
"एक बार देखने तो दो, चोट कहाँ लगी है? अगर ऐसा ही रहा तो वहाँ पर खून जम जाएगा। मैं... मैं अभी डॉक्टर को बुलाता हूँ।" इतना कहकर वह अपनी जेब से फ़ोन निकालने वाला था कि प्रज्ञा बोली, "नहीं, इतनी भी चोट नहीं लगी है। मैं ठीक हूँ।" लेकिन सम्राट कहाँ मानने वाला था।
प्रज्ञा के बार-बार मना करने के बाद भी सम्राट संतुष्ट नहीं हो रहा था; जब तक वह नहीं देख लेगा, उसे तसल्ली नहीं होगी।
बेचारी प्रज्ञा बुरी तरह से फँस चुकी थी। सम्राट की ज़िद के आगे कहाँ उसकी एक भी चलने वाली थी।
आखिरकार वह अपने स्कर्ट को ऊपर करने ही वाली थी कि तभी अचानक कमरे का दरवाज़ा खुला और अहान अंदर आ गया। अहान ने जैसे ही दोनों को ऐसे देखा, वह एकदम से पीछे मुड़ा और खुद से कहने लगा, "मैंने कुछ भी नहीं देखा! एम सॉरी! एम सॉरी सर! सर, मैं थोड़ी देर बाद आता हूँ। वह एक्चुअली बात यह है कि... आप लोग... आई मीन... मेरा मतलब है कि मैं क्या बोल रहा हूँ..."
वह इतना घबरा गया था, इतना नर्वस हो गया था कि उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह बहुत ही ज़्यादा नर्वस हो चुका था। वह जल्दी से वहाँ से भाग गया।
"अहान! रुको तो सही! तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा कुछ भी नहीं है!" सम्राट भी उसके पीछे भाग गया और प्रज्ञा अपना सिर पकड़कर खुद से बोली, "मैंने कहा था, हमसे ऐसा कुछ भी नहीं है, पर यह समझे तो ना..."
अहान जल्दी-जल्दी चल रहा था और अपने आप से बोल रहा था, "मुझे नहीं लगा था कि सर ऐसे होंगे! पर आज अपनी आँखों से जो देखा है, उसके बाद से तो इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता। और वह लड़की देखने में कितनी मासूम और क्यूट है! मुझे लगता है कि वह सर से काफी ज़्यादा छोटी होगी। पर क्या फ़र्क पड़ता है? प्यार में ऐज कौन देखता है...?"
"चलो अच्छा है! कम से कम हमारे सर के लाइफ़ में थोड़ा सा बसंत तो आएगा! और वैसे भी... मुझे खुश होना चाहिए! आखिरकार वह मेरे सर हैं! और... है भगवान! मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा!" वह खुद से बात कर रहा था, मुस्कुरा रहा था और खुद से कह रहा था कि उसने जो भी देखा, वह सच है; बिलकुल सच! सम्राट बजाज किसी के साथ रिलेशनशिप में है! अगर यह न्यूज़ मैंने मीडिया को दे दी, तो करोड़ों कमा सकता हूँ! पर... पर मुझे ऐसा नहीं करना। मुझे बस उन्हें खुश देखना है..."
अहान सम्राट का बहुत ही ज़्यादा चाहने वाला और उसका भरोसेमंद इंसान था। वह हमेशा उसकी हेल्प करता था और उसके सीक्रेट बातों को सीक्रेट ही रखता था।