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Toxic bro in law

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khan sahiba

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एक ऐसी कहानी जो शुरू हुई बदले, डर और खौफ से..... जो बदल जाएगी  दीवानगी और आवारगी मे..... हद से zyda पगलपन की  बेहद जुनूनी दस्ता.. जहा एक हस्बैंड अपनी बीबी कि मौत का ज़िम्मेदार ठहराए गा उसकी ही मासूम बहन को और कैद कर लेगा अपने पिंजरे...

Total Chapters (71)

Page 1 of 4

  • 1. Toxic bro in law - Chapter 1

    Words: 1537

    Estimated Reading Time: 10 min

    सन्नाटा था... ऐसा सन्नाटा जो हर आहट को चीरता हुआ दिल के आर-पार हो जाता है। हल्की-हल्की हवा उस कमरे में बह रही थी, जहाँ लाल जोड़े में लिपटी एक लड़की अर्थी पर लेटी थी। उसके चेहरे पर अब भी वही मासूमियत थी जो उसे देख पहली ही नज़र में किसी को अपना बना ले। मानो वो सिर्फ सो रही हो... बस अब कभी जागेगी नहीं।

    कमरे में खड़े लोग एकटक उस अर्थी को देख रहे थे, और उन सबके बीच एक शख्स ऐसा भी था जो पत्थर की मूरत बना खड़ा था — समय मित्तल। उसकी आंखें गुस्से से लाल थीं, होंठ भींचे हुए और हाथ में एक पत्र जो काँपते हाथों में मरोड़ा जा रहा था।

    अंकुर वालिया ने जैसे ही समय के कंधे पर हाथ रखा, वह चौंक पड़ा।

    "समय बेटा..." अंकुर जी की आवाज़ भरी हुई थी। "कुछ तो बोलो... स्वीटी ने कहा था कि जब तक तुम कुछ नहीं कहोगे, उसकी अर्थी इस घर से नहीं निकलेगी।"

    समय ने एक झटके में उनके हाथ को झटक दिया। उसकी मुट्ठियाँ भिंची हुई थीं। फिर उसने उस पत्र को देखा जो उसके हाथ में था — स्वीटी का आखिरी पत्र।

    > "वादा करो मुझसे... वादा करो कि तुम मुझे भूलकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ोगे... तुम्हारे आगे पूरी जिंदगी पड़ी है..."



    समय की नज़रें पत्र के अक्षरों पर दौड़ने लगीं, लेकिन हर शब्द उसके भीतर एक जख्म-सा कर रहा था।

    > "मेरा मरना तो तय था... दुनिया का कोई डॉक्टर मेरे कैंसर का इलाज नहीं कर सकता था। मेरी मौत के बाद तुम किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाओगे... मेरी मौत एक नेचुरल डेथ है। इसमें किसी का दोष नहीं... मैंने अपनी मर्जी से जो किया, वही सही था। मरना तो था ही मुझे, तो अपनी बहन को जिंदगी देकर मरना बेहतर समझा..."



    समय के हाथ काँपने लगे। उसकी सांसें तेज़ हो गईं।

    > "मुझे पता है जब तुम वापस आकर सच जानोगे, तो बहुत दुख होगा... लेकिन वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। एक दिन तुम मुझे भूल जाओगे... सब ठीक हो जाएगा..."



    "भूल जाऊँ?" समय के होंठ फड़फड़ाए। उसकी आवाज़ टूट रही थी।

    > "मेरे बाद मम्मी-पापा की जिंदगी में किसी का होना जरूरी था। अगर मैं अपना हार्ट मिनल को नहीं देती, तो मैं तो मरती ही, वो भी ज्यादा वक्त ज़िंदा नहीं रहती। तुम यहाँ होते तो मुझे ये करने नहीं देते, इसलिए मैंने झूठ बोलकर तुम्हें अमेरिका भेजा... ये बोलकर कि वहाँ एक दवा है जो मेरा इलाज कर सकती है। लेकिन ये तुम भी जानते थे, और मैं भी... मेरी बीमारी चौथी स्टेज तक पहुँच चुकी थी और आज नहीं तो कल मुझे जाना ही था... तुम समझ रहे हो ना..."



    "समय... बेटा..." अंकुर वालिया ने फिर पुकारा।

    समय का धैर्य टूट चुका था। उसने एकदम मुड़कर अंकुर वालिया का गला दबोच लिया। अंकुर जी के चेहरे की रंगत उड़ गई, वो बुरी तरह छटपटाने लगे।

    "मैंने अपनी बीवी तुम लोगों के भरोसे इसलिए छोड़ी थी... ताकि तुम लोग उसका दिल निकालकर अपनी दूसरी बेटी को बचा सको?" समय की आवाज़ में दर्द से ज्यादा गुस्सा था। "मुझे धोखे से यहाँ भेजकर मेरी बीवी को ही छीन लिया तुम लोगों ने!"

    सिमरन वालिया, जो अब तक रोती हुई कोने में खड़ी थीं, दौड़कर समय के पैरों में गिर पड़ीं।

    "बेटा... हमारी बात सुनो... इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है," वो बिलखते हुए बोलीं। "हमें तो खुद डॉक्टर से ही पता चला कि स्वीटी तुम्हें भेजकर अपने हार्ट को मिनल को देने के लिए बोल चुकी थी... हमें इस बारे में कुछ नहीं पता था... प्लीज़ मेरे पति को छोड़ दो... वो मर जाएँगे..."

    समय की नजरें नीचे गईं। उसने सिमरन जी को देखा — उनकी आँखें आसुओं से भरी थीं, चेहरे पर दहशत थी।

    एक झटके में उसने अंकुर वालिया को छोड़ दिया। अंकुर ज़मीन पर गिरते ही जोर-जोर से खाँसने लगे।

    लेकिन समय रुका नहीं... उसने तुरंत सिमरन जी के बालों को मुट्ठी में जकड़ लिया और उन्हें उठाकर उसकी आंखों में झाँकते हुए बोला, "मेरी पत्नी के दिमाग में ये बात डालकर अब मुझसे कह रही हो कि तुम्हें कुछ नहीं पता? सब जानता हूँ... यही तू थी जिसने मेरी पत्नी के दिमाग में ये बात डाली थी... क्या समझती है तू?"

    सिमरन जी की चीख कमरे में गूँज उठी। अंकुर जी अपनी बची-खुची ताकत से घिसटते हुए समय के पास आए और उसके हाथ पकड़ लिए।

    "समय... स्वीटी तुम्हें माफ़ नहीं करेगी बेटा... मत करो ये सब..."

    समय के हाथ ढीले पड़ गए। उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे... लेकिन वह फूट-फूट कर रो भी नहीं सका।

    उसने अपनी लाल आँखों से स्वीटी की अर्थी की ओर देखा। वो अब भी वैसी ही लग रही थी — जैसे किसी ने गुड़िया को सुला दिया हो... बस अब वो कभी नहीं उठेगी।

    समय के घुटने ज़मीन पर टिक गए। उसके होंठों से एक फुसफुसाहट निकली —

    "मैंने वादा किया था... कि तुम्हें कभी रोने नहीं दूँगा... लेकिन आज... मैं खुद भी टूट गया स्वीटी..."

    उसकी आवाज़ काँप रही थी... जैसे उसके भीतर का सारा दर्द बाहर बहने को मचल रहा हो।

    कमरे में मौजूद हर आंख नम हो चुकी थी... और वो सन्नाटा, वो खामोशी... अब और भी गहरी हो गई थी।


    समय अब भी स्वीटी की अर्थी के पास बैठा था। उसकी लाल आंखें लगातार उस चेहरे को देख रही थीं जिसे वो दुनिया में सबसे ज़्यादा चाहता था। वो चेहरा, जो अब भी गुलाब की तरह खिला लग रहा था, मानो बस आँखें बंद करके सो रही हो... पर हकीकत कुछ और थी — स्वीटी अब कभी नहीं उठने वाली थी।

    समय के दिल में दर्द की लहरें हिलोरें मार रही थीं, लेकिन उन लहरों के नीचे एक आग भी धधक रही थी — एक ऐसी आग जिसने उसके भीतर के इंसान को जलाकर राख कर दिया था और अब उसकी जगह सिर्फ बदले की लपटें बची थीं।

    धीरे-धीरे समय ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला। उसकी उंगलियां कांप रही थीं, लेकिन उसकी आँखों में गुस्से की एक ठंडी लपट थी — वो लपट जो जलाती कम और भस्म ज़्यादा करती है। उसने नंबर मिलाया और बिना किसी भूमिका के ठंडे स्वर में बोला —

    "प्रेम... वालिया फैमिली की छोटी बेटी मिनल वालिया को हॉस्पिटल से उठा लो... मेरे अड्डे पर ले आओ।"

    उसकी आवाज़ में इतनी सख्ती थी कि उधर मौजूद आदमी को एक पल के लिए सांस लेना तक मुश्किल हो गया।

    "लेकिन सुन... मरनी नहीं चाहिए वो। उसकी जिंदगी मेरे लिए बहुत कीमती है।"

    समय के होंठों पर हल्की सी क्रूर मुस्कान आई — एक ऐसी मुस्कान जो किसी शिकारी के चेहरे पर अपने शिकार को घेरते वक्त आती है।

    "लेकिन एक बात ध्यान रखना... उसकी जिंदगी मौत से भी बदतर बनानी है। वो जिंदा रहेगी... लेकिन ऐसी हो जाएगी जैसे मरी हुई हो। समझ रहे हो ना तुम?"

    "जी... बॉस!" दूसरी तरफ से आवाज़ आई, और फिर कॉल कट गया।

    समय की उंगलियाँ अब भी उस मोबाइल को कसकर पकड़े हुए थीं, जैसे उसकी मुट्ठी में दुनिया का पूरा दर्द और गुस्सा समा गया हो।

    अभी वह फोन जेब में रखने ही वाला था कि तभी पीछे से सिमरन और अंकुर वालिया उसके पैरों पर गिर पड़े।

    "बेटा, भगवान के लिए ऐसा मत करना..." सिमरन जी बिलखते हुए गिड़गिड़ाईं। "वो हमारी इकलौती बेटी बची है... अगर उसे भी कुछ हो गया तो हम जीते-जी मर जाएंगे..."

    समय का चेहरा बिना किसी भाव के सख्त पड़ा था। उसने धीरे-धीरे नजरें उठाईं और एक गहरी सांस लेते हुए बर्फ जैसी ठंडी आवाज़ में बोला —

    "तो मर जाइए... वैसे भी मेरी स्वीटी इस दुनिया में नहीं रही।"

    उसने अपनी जलती हुई नज़रों को स्वीटी के शांत चेहरे पर टिका दिया। उसकी आवाज़ और भी ठंडी हो गई थी —

    "जब मेरी स्वीटी ही नहीं रही तो तुम लोग जीकर क्या करोगे?"

    अंकुर वालिया के आँसू उनके झुर्रियों भरे गालों पर लुढ़कने लगे। सिमरन वालिया अपने दोनों हाथ जोड़कर करुण स्वर में बोलीं —

    "बेटा... प्लीज़... माफ कर दो हमें... तुम्हें जो भी सज़ा देनी है, दे दो... लेकिन मिनी 0को मत छूना। वो तो मासूम है..."

    समय ने अचानक अपना हाथ हवा में उठाया। एक पल के लिए लगा कि वो उन्हें थप्पड़ मार देगा... मगर उसने अपना हाथ हवा में ही रोक लिया। उसकी मुठ्ठी भिंच गई, और वो दर्द भरी आवाज़ में फुफकारा —

    "मासूम? वो मासूम है?"

    उसकी आवाज़ इतनी भयानक थी कि सिमरन और अंकुर वालिया के रोंगटे खड़े हो गए।

    "जिसके सीने में मेरी स्वीटी का दिल धड़क रहा है, उसे मैं मारूँगा नहीं... मगर ये ज़रूर तय कर दूँगा कि वो हर सांस पर पछताएगी... उसकी हर धड़कन उसके लिए एक सज़ा बन जाएगी... मेरी स्वीटी का दिल उसकी छाती में धड़कते हुए भी उसे मरने नहीं देगा... वो हर रोज़ ज़िंदा रहते हुए मौत को तरसेगी। ये मेरा तुमसे वादा है।"

    उसकी आँखों में वो ठंडापन था जो किसी जलते हुए अंगारे को ठंडा करके भी राख में दबा देता है।

    "और हाँ..." समय ने रुककर एक आखिरी वार किया, "अगर तुम्हें अपनी बेटी से दोबारा मिलने की उम्मीद है... तो वो उम्मीद छोड़ दो। वो जिंदा रहेगी... मगर तुम दोनों के लिए वो मर चुकी है।"

    समय उठ खड़ा हुआ। उसकी उंगलियाँ अब भी काँप रही थीं, लेकिन उसकी आँखों में अब आँसू की जगह बदले की आग थी। वो आग जो सिर्फ जलाना जानती है — राख के सिवा कुछ नहीं छोड़ती।

  • 2. Toxic bro in law - Chapter 2

    Words: 1207

    Estimated Reading Time: 8 min

    हरी-भरी घास पर पसरा नीला आसमान मानो आज बस उन्हीं का गवाह था। हल्की-हल्की हवा उनके बालों को छेड़ रही थी, और पास के फूलों से आती खुशबू माहौल को और भी खुशनुमा बना रही थी। एक लड़का ज़मीन पर बैठा था, उसकी गोद में एक लड़की सिर टिकाए लेटी थी। दोनों हँसी-मज़ाक में मशगूल थे, जैसे दुनिया में उनके सिवा कोई और था ही नहीं।

    "अच्छा एक बात बताओ," लड़की ने उसकी ओर करवट लेते हुए शरारती अंदाज़ में कहा, "ये नाम कैसा है तुम्हारा?"

    "कौन सा नाम?" लडके ने भौंहें उठाकर पूछा।

    "यही 'हिमांशु'... मतलब सच में... ये भी कोई नाम होता है?" लड़की ने नकली गंभीरता से कहा, फिर हँसी रोकते हुए बोली, "बिलकुल बुड्ढे-वाले वाइब्स देता है! ऐसा लगता है जैसे पेंशन लेकर गार्डन में ताश खेल रहे हो!"

    "ओ हो! अब नाम में क्या रखा है?" हिमांशु हँसते हुए बोला, " अब क्या मैं पैदा होते ही  धरने पर बैठ जाता कि 'नहीं... मुझे अपना नाम  हिमांशु नहीं रखना.. मुझे नाम बदलवाना है!'"

    "लेकिन अब तो मैं बैठ सकती हूँ न?"  वो लड़की उठकर बैठ गई और उसकी आँखों में शरारत की चमक थी। "मुझे तुम्हारा नाम पसंद नहीं है। मेरी वेडिंग कार्ड पर 'स्वीटी weds हिमांशु' बिलकुल नहीं चलेगा! मैं तुम्हारा नाम बदल रही हूँ।" यह लड़की और कोई नहीं स्वीटी थी

    "ओहो!" हिमांशु मुस्कुराते हुए बोला, "अच्छा... तो अब मैं जानूँगा कि मेरी दुल्हन मुझे क्या नया नाम देने वाली है?"

    स्वीटी ने कुछ देर सोचा, फिर उसकी आँखें चमक उठीं। "तुम्हारा नाम होगा... समय।"

    "समय?" हिमांशु ने चौंकते हुए कहा।

    "हाँ, समय!" स्वीटी ने उसकी नाक पर हलकी-सी ऊँगली रखते हुए कहा, "क्योंकि एक तो तुम हर काम टाइम पर करते हो... और दूसरा, मेरे लिए तुम सबसे कीमती हो... और समय से ज़्यादा कीमती क्या होता है?"

    हिमांशु के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान खिल गई। उसने स्वीटी को अपनी बाँहों में खींच लिया और उसके माथे पर प्यार से किस करते हुए फुसफुसाया, "ओके मिसेज़ समय मित्तल।"

    स्वीटी खिलखिला उठी, उसकी हँसी जैसे पूरी फिज़ा में गूंजने लगी। हिमांशु उसे बस देखता रहा, उसके चेहरे की उस चमक को महसूस करता रहा, जैसे वो सच में उसके लिए 'समय' बन चुका हो... जिसे वो कभी खोना नहीं चाहता था।
    प्रेजेंट टाइम...

    जलती चिता की लपटें आसमान को चीरने की कोशिश कर रही थीं। लपलपाती आग की लपटें मानो अपनी भूख से सब कुछ निगल जाने को बेताब थीं। धुएं का गुबार धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था, मानो वो भी उस लाश की रूह को आसमान तक ले जाने का रास्ता बना रहा हो। जलते हुए लकड़ियों की चटक-चटक कानों में पड़ रही थी, मगर समय के लिए ये आवाजें अब एक सन्नाटे में बदल चुकी थीं — एक ऐसा सन्नाटा, जो उसके भीतर की नफरत और बदले की आग को और भड़का रहा था।

    उसकी सूनी, ठंडी आँखें बस उस जलती हुई अर्थी को घूर रही थीं, जहाँ कभी उसका प्यार... उसकी स्वीटी... उसकी जिंदगी थी। मगर अब वहाँ सिर्फ राख में बदलती हुई एक बेवफा की लाश थी। उसके चेहरे पर न आँसू थे, न अफसोस — बस एक भयानक सन्नाटा था, जिसकी गहराई में बदले की दहकती आग भड़क रही थी।

    "अगर तूने मुझे छोड़ने का फैसला अपनी मौत कि मर्जी से किया होता, तो मैं तेरी हर खुशी कुबूल कर लेता, स्वीटी.... और तेरे साथ इसी चिता पर साथ मे राख़ बन जाता ." समय की मुट्ठियाँ भिंच गईं, नाखून उसकी हथेलियों में धंस गए और खून की हल्की धार हथेलियों से रिसने लगी, मगर उसे इसका एहसास भी न हुआ। उसकी आँखों में सिर्फ एक छवि थी — स्वीटी की वो झुकी हुई नज़रें, जब स्वीटी ने समय को झूठ बोल भेजा था।

    "लेकिन तूने मुझे धोखा दिया... मुझे धोखे से दूर भेज दिया, सिर्फ इसलिए कि तेरी बहन की जिंदगी बच सके?" समय के होंठों पर एक जहर बुझी मुस्कान उभर आई — वो मुस्कान जो प्यार में पागल इंसान को हैवान बना देती है।

    "अब देखना, स्वीटी मैं तेरी बहन मीनल... का हर दिन, हर सांस मैं जहन्नुम बना दूँगा... उसे वो दर्द दूँगा, जिसे सहते हुए वो मौत की भीख मांगेगी... मगर मैं उसे इतनी आसानी से मरने भी नहीं दूँगा।"

    समय की आँखें जलती चिता से हटकर भीड़ में स्वीटी के पेरेंट्स को खोजने लगीं। वहाँ पास ही खड़ी स्वीटी की माँ चीत्कार कर रही थी, उसके पिता सिर झुकाए गहरे शोक में डूबे हुए थे। उनके दुख का समंदर वहाँ उमड़ रहा था, मगर समय के दिल में कोई लहर न उठी — उसका दिल तो कब का राख हो चुका था, उसी चिता की राख में जिसकी लपटें आसमान छू रही थीं।

    "रोओ... चिल्लाओ... चीखो... ये तो सिर्फ शुरुआत है।" समय के मन में ये ख्याल दौड़ा।

    उसके होठों पर एक भयानक मुस्कान उभरी — ऐसी मुस्कान, जिसे देखकर खुद मौत भी कांप जाती।

    "तूने मेरी मोहब्बत का सौदा किया था, स्वीटी... अब देख, मैं उस सौदे की कीमत कैसे वसूल करता हूँ।"

    जलती चिता की लपटें मानो समय के भीतर की आग का ही प्रतिबिंब थीं — एक ऐसी आग, जो तब तक नहीं बुझेगी जब तक उसकी नफरत का तूफान मीनल की जिंदगी को बर्बाद न कर दे।

    समय मित्तल का विला अपने आलीशान आभा में जितना भव्य दिखता था, उसके भीतर इस वक्त उतना ही गहरा सन्नाटा पसरा था। विला के ऊपरी माले पर बने एक खास कमरे में एक लड़की व बेसुध पड़ी थी — मशीनों के बीच, नाजुक और कमजोर।

    उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था, मानो खून की एक भी बूंद न बची हो। उसकी साँसें धीमी थीं, और उसके सीने पर लगे मॉनिटर पर उसकी धड़कनों की लय कमजोर पड़ रही थी। उसकी कलाई में लगी ड्रिप से दवाइयाँ उसके शरीर में धीरे-धीरे जा रही थीं। ऑक्सीजन मास्क के नीचे उसकी हल्की-हल्की चलती साँसें बस यह साबित कर रही थीं कि वह अभी जीवित थी।

    कमरे के कोने में खड़ा प्रेम, जो मीनल के पास इस वक्त एक संरक्षक के रूप में खड़ा दिखाई दे रहा था, असल में मिनल को हॉस्पिटल se यहाँ लाने का जिम्मेदार था। प्रेम समय का असिस्टेंट था — और मीनल को यहाँ लाने का पूरा खेल उसी का था।



    प्रेम ने अस्पताल के स्टाफ के सामने खुद को समय का कर्मचारी बताया था। उसकी बातों में ऐसा आत्मविश्वास था कि डॉक्टरों ने उस पर भरोसा कर लिया। मेडिकल टीम को ये भरोसा दिलाया गया कि मीनल को बेहतर देखभाल के लिए समय के विला में शिफ्ट किया जा रहा है। प्रेम ने चालाकी से समय के दस्तखत की नकल वाले फर्जी कागजात पेश किए, और डॉक्टरों को भरोसा हो गया।

    जब मीनल को एंबुलेंस में रखा गया, तो प्रेम ने खुद ड्राइवर की सीट संभाली। उसके साथ दो  डॉक्टर भी थे

    अब प्रेम वहीं खड़ा था, अपनी ही चाल का नतीजा देख रहा था। मीनल की नाजुक हालत देखकर उसके भीतर हल्की बेचैनी होने लगी थी। वह जानता था कि अगर मीनल को कुछ हो गया, तो उसका मालिक बहुत नाराज़ होगा — और समय वालिया का गुस्सा भी आग में घी डालने का काम करेगा।

    प्रेम ने कमरे की ओर एक नजर डाली — मशीनों की बीपिंग आवाज़ें रह-रहकर सन्नाटे को भंग कर रही थीं। खिड़की के बाहर अंधकार घना हो चुका था। प्रेम जानता था कि यह सन्नाटा कब तक रहेगा — और कब ये खेल अपनी खतरनाक चरम सीमा पर पहुँच जाएगा।

  • 3. Toxic bro in law - Chapter 3

    Words: 829

    Estimated Reading Time: 5 min

    मौत की दहलीज़ पर मीनल

    प्रेम की धड़कनें तेज़ हो रही थीं, जैसे उसकी खुद की जान निकलने वाली हो। मीनल के कमजोर शरीर को देखकर उसकी आत्मा कांप गई थी। डॉक्टरों की टीम ने तुरंत उसे जांचने के लिए अपने उपकरण निकाल लिए। घर को अस्थायी आईसीयू में बदल दिया गया था। मॉनिटर पर उसकी हार्टबीट की रफ्तार लगातार गिरती जा रही थी— 60… 50… 40…

    "शिट!" एक डॉक्टर घबराकर बोला, "अगर ये 30 से नीचे गई, तो हम उसे नहीं बचा पाएंगे!"

    प्रेम ने डॉक्टर को पकड़कर झकझोर दिया, "कोई भी हालात में उसे मरने नहीं देना! तुम जानते हो ना कि समय ने क्या कहा था?"

    डॉक्टर सहम गए। हां, वे जानते थे कि अगर मीनल को कुछ हुआ, तो समय का कहर उनके पूरे खानदान पर टूट पड़ेगा। लेकिन वे चाहकर भी मौत को मात नहीं दे पा रहे थे। मीनल की सांसें टूट-टूट कर आ रही थीं। ऑक्सीजन मास्क लगाने के बावजूद उसका चेहरा नीला पड़ने लगा था।

    डॉक्टरों ने एक आखिरी कोशिश के तौर पर एड्रेनलिन इंजेक्शन तैयार किया।

    "अगर ये भी फेल हुआ, तो हमें उसे शॉक देना होगा," सीनियर डॉक्टर ने कहा।

    इंजेक्शन मीनल की नाजुक नसों में घुसाया गया। उसके छोटे से शरीर ने हल्का सा झटका लिया, लेकिन हार्टबीट अभी भी 30 पर ही टिकी थी।

    "डेम इट! डिफाइब्रिलेटर लाओ!"

    स्टाफ ने मशीन को सेट किया। एक डॉक्टर ने पैडल्स उठाए, मीनल के सीने पर रखे और जोर से बोला, "क्लियर!"

    झटका दिया गया।

    मीनल का शरीर हवा में उछल गया, लेकिन मॉनिटर पर हार्टबीट फिर भी गिरती जा रही थी।

    प्रेम की आँखों में टेंशन नज़र आने लगी थी.. उसकी मुठ्ठियाँ भींच गईं। उसने अपने हाथ जोड़कर ऊपर देखा, " हे भगवान इसे बचा ले अगर इसे कुछ हुआ तो समय किसी को नहीं छोड़ेगा "

    डॉक्टर ने दूसरा झटका दिया।

    "बीप—बीप—बीप..."

    हार्टबीट 30 से 50 पर आ गई थी!

    "हाँ!" एक डॉक्टर चिल्लाया, "हमने उसे वापस ला दिया!"

    लेकिन प्रेम जानता था कि यह अभी खत्म नहीं हुआ। मीनल बस मौत की दहलीज से थोड़ी दूर खींची गई थी, मगर पूरी तरह से लौट नहीं पाई थी। उसे बचाने के लिए सिर्फ डॉक्टरों का हुनर नहीं, बल्कि किसी चमत्कार की जरूरत थी…


    ---

    हिमांशु मित्तल का दर्द

    समय (हिमांशु मित्तल) बार के अंदर बैठा था, और उसके सामने छः खाली बोतलें बिखरी पड़ी थीं। उसकी आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थीं, मगर नशे का असर अभी भी दूर-दूर तक नहीं दिख रहा था।

    वह बोतल उठाकर घूरता, फिर गिलास में शराब उड़ेलता और गहराई से उसे देखता, जैसे उस लाल तरल में अपने सारे सवालों के जवाब तलाश रहा हो।

    "क्यों नहीं चढ़ता मुझे नशा?" वह बड़बड़ाया। "क्यों मेरी ज़िन्दगी के गम इतने बड़े हैं कि शराब भी हार मान लेती है?"

    वह गिलास को होठों तक ले जाता, मगर पीने से पहले ही उसे स्वीटी की दर्दभरी शक्ल याद आ जाती।  जो   मौत से लड़ रही थी।

    उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं। उसने गिलास उठाकर ज़मीन पर पटक दिया।

    "धत्त तेरी की!"

    बार टेंडर ने डरते-डरते कहा, "सर, हमें अफ़सोस है, मगर हम आपको और ड्रिंक नहीं दे सकते।"

    समय ने धीरे से उसकी तरफ देखा। बार टेंडर कांप उठा।

    "तू... तू मुझसे ड्रिंक देने से मना कर रहा है?"

    "सर, आपकी हेल्थ के लिए—"

    "सुन! मैं हिमांशु मित्तल हूँ!"****"समय मित्तल नहीं, हिमांशु मित्तल! और मैं जो चाहता हूँ, वो लेकर ही रहता हूँ!"

    इतना कहते ही उसने बार टेंडर का गिरेबान पकड़ लिया और उसे काउंटर पर दे मारा।

    "सर, छोड़िए... प्लीज!"

    मगर हिमांशु के हाथ नहीं रुके। उसने बार टेंडर के चेहरे पर दो मुक्के जड़ दिए। उसकी आँखों में खून उतर आया था। वहाँ बैठे बाकी लोग सहमे हुए थे, कोई भी उसके रास्ते में आने की हिम्मत नहीं कर रहा था।

    लेकिन तभी…

    ट्रिन-ट्रिन… ट्रिन-ट्रिन…

    उसका फोन बजा।

    हाथ खून से सना हुआ था, मगर उसने फोन उठाया। दूसरी तरफ प्रेम की घबराई हुई आवाज़ थी।

    "समय... मीनल..."

    बस यही दो शब्द सुनते ही हिमांशु के माथे की नसें फड़क उठीं।

    "क्या हुआ उसे को?" समय बोरियत से

    "वो मरने वाली है…"

    "क्या?"  समय हैरानी और गुस्से से

    "घर पे, जल्दी आ!"

    समय ने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया। उसने बार टेंडर को एक आखिरी गुस्से भरी नज़र से देखा, फिर बिना कुछ कहे बार के दरवाजे की ओर बढ़ गया।

    बार के गेट पर खड़ा होते ही उसने गहरी सांस ली। एक पल के लिए उसकी आँखें बंद हुईं… और जब वो खुलीं, तो उनमें बस एक ही चीज़ थी— गुस्सा

    अपनी गाड़ी की तरफ जाते हुए समय अपने मन में सोचता है-“नहीं इतनी आसानी से नहीं मरने दूँगा मैं तुम्हें। तुमने मेरी स्वीटी को मुझसे छीना है, मुझे तिल तिल  मरने के लिए जिंदा छोड़ा है तुमने। तुम्हें ऐसी मौत मारूँगा कि तुम थूकोगी अपनी जिंदगी पर। समय की आँखों में एक अजीब सी आग जल रही थी, जो उसके मन की भावनाओं को दर्शा रही थी। वह अपनी गाड़ी की तरफ जाता है, और गाड़ी में बैठकर एक अजीब सी मुस्कान के साथ ड्राइव करना शुरू कर देता है।

  • 4. Toxic bro in law - Chapter 4

    Words: 1195

    Estimated Reading Time: 8 min

    (विला के अंदर—रात की घनी कालिमा में अंधेरा अपने पंख फैला चुका था। हवाओं में ठंडक थी, मगर माहौल में बारूद की गर्मी घुली थी।)

    समय की कार धड़धड़ाती हुई विला के सामने आकर रुकती है। टायरों की चीखती आवाज़ इतनी तेज़ थी कि ऐसा लगा जैसे ज़मीन से चिंगारियां निकल आई हों। वह दरवाजा धक्का मारकर अंदर घुसता है, उसके बदन से शराब की तीखी गंध उठ रही थी, मगर उसकी आंखें नशे में नहीं, जुनून में जल रही थीं—एक पागलपन भरा, जहरीला जुनून!

    अंदर का माहौल सर्द और तनाव भरा था। प्रेम दरवाजे के पास खड़ा था, उसके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ गहरी हो चुकी थीं। मिनरल अंदर जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। प्रेम से डॉक्टर ने कहा था कि मिनल को आईसीयू की जरूरत है, लेकिन समय ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया था।

    समय की आंखें प्रेम पर अटक गईं, और अगले ही पल उसने बिजली की तेजी से प्रेम का कॉलर झपट लिया। उसके चेहरे पर नफरत और गुस्से का ऐसा तूफान था कि प्रेम को सांस लेना भी भारी लगने लगा।

    "मैंने कहा था ना कि इस लड़की को कुछ नहीं होना चाहिए! इसे ज़िंदा रखना है, मगर तड़पा-तड़पा कर! हर सांस इसके लिए सज़ा होनी चाहिए!" समय की आवाज़ गूंज उठी, उसके शब्दों में ज़हर घुला था।

    प्रेम ने पूरी ताकत से उसके हाथ झटके और दहाड़ उठा, "समय, तू पागल हो गया है क्या? तू जानता भी है कि तू क्या कह रहा है? वो एक मासूम बच्ची है! अभी उसका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है, और तू उसके लिए इतनी नफ़रत रख रहा है? ये वही बच्ची है जो  भाभी की बहन है!"

    बस, यह सुनते ही समय की आंखों में खून उतर आया। गुस्से की लहर उसके जिस्म में दौड़ पड़ी। वह किसी वहशी दरिंदे की तरह प्रेम पर झपटा और उसका गला पकड़ लिया। प्रेम की सांसें घुटने लगीं, उसकी आंखें हैरानी से चौड़ी हो गईं।

    "ना उसका नाम लेना, ना स्वीटी का! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किसकी बहन है! मुझे सिर्फ बदला लेना है! स्वीटी ने मुझे धोखा दिया, मेरा हक  उसका दिल जो मेरे था किसी और को दे दिया! अब मैं उसकी बहन को ऐसी सज़ा दूंगा कि दर्द उसकी रगों में दौड़ेगा... हर घड़ी, हर पल!"

    समय की पकड़ और मजबूत हो गई, प्रेम के चेहरे की लालिमा नीली पड़ने लगी। मगर अगले ही पल समय ने उसे एक झटके से ज़मीन पर फेंक दिया। प्रेम बुरी तरह खांसते हुए खुद को संभालने की कोशिश करने लगा।

    समय उसके ऊपर झुका और बर्फ सी ठंडी आवाज़ में कहा, "याद रखना, ये लड़की मरेगी नहीं… इसे हर रोज़ मरना होगा, हर पल!"

    फिर वह घूमकर चला गया, उसकी चप्पल की आवाज़ संगमरमर के फर्श पर गूंजती रही। कमरे में एक खतरनाक सन्नाटा पसर गया, मगर प्रेम की धड़कनें अब भी तूफान की तरह उबल रही थीं…
    (विला के अंदर—रात गहरी और डरावनी हो चली थी। हवाओं में अजीब सा सन्नाटा घुला हुआ था, मगर प्रेम के अंदर एक तूफान मच रहा था।)

    समय गुस्से से भरा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके कदमों में वही वहशीपन था जो उसकी आँखों में जल रहा था। जैसे ही वह अपने कमरे में पहुँचा, उसने दरवाजा ज़ोर से बंद किया, अलमारी खोली, और बिना गिने ही नींद की गोलियाँ अपने हाथ में रख लीं। एक घूंट पानी के साथ सारी गोलियाँ अंदर उतार लीं और खुद को बेड पर पटक दिया।

    उधर, प्रेम अभी भी हॉल में खड़ा था, उसकी आँखें शून्य में टिकी हुई थीं। वह सोच भी नहीं सकता था कि कोई इतना बेरहम हो सकता है। समय का गुस्सा, उसकी नफरत... ये सब प्रेम को अंदर तक झकझोर रहे थे। लेकिन उससे ज्यादा वह इस बात से डर रहा था कि अब इस आग की लपटों में मिनल झुलसने वाली थी। वह नन्ही बच्ची, जो पहले ही इतनी तकलीफें झेल चुकी थी, अब इस राक्षस के हाथों और कितना सहेगी?

    पहले तो प्रेम मिनल के लिए दुआ कर रहा था कि वह बच जाए, लेकिन अब समय की बातें सुनकर उसे लग रहा था कि मौत ही उसके लिए बेहतर होगी। कम से कम उसे इस तड़प से छुटकारा तो मिलेगा। मगर नहीं, वह ऐसा नहीं सोच सकता था। मिनल को बचाना उसका फर्ज़ था, चाहे कुछ भी हो जाए!

    रातभर प्रेम जागता रहा, मिनल के कमरे में डॉक्टर हर आधे घंटे में आते, उसका चेकअप करते और फिर चले जाते। प्रेम ने खुद ही मिनल के लिए आईसीयू जैसा पूरा इंतजाम किया था—वेंटिलेटर, मॉनिटरिंग मशीनें, ऑक्सीजन सपोर्ट—हर ज़रूरी चीज़ उसने लगवा दी थी। वह जानता था कि समय मिनल को बचाने के लिए नहीं, बल्कि उसे तड़पाने के लिए ज़िंदा रखना चाहता था। लेकिन प्रेम का मकसद अलग था। वह मिनल को इस जहन्नुम से बाहर निकालना चाहता था!

    तीन दिन बाद…

    समय का वही सिलसिला जारी था—रातभर शराब, और फिर नींद की गोलियों के सहारे सो जाना। दिनभर वह अपने कमरे में ही बंद रहता, बाहर आता भी तो सिर्फ प्रेम से मिनल की तबीयत के बारे में पूछने के लिए। मगर उसका सवाल किसी चिंता से नहीं, बल्कि इंतजार से भरा होता था—वह चाहता था कि मिनल जल्दी से ठीक हो जाए, ताकि वह उस पर अपनी नफरत निकाल सके।

    लेकिन दूसरी तरफ, मिनल का हाल ठीक नहीं था। हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद से उसकी बॉडी इतनी कमजोर हो गई थी कि उसे अभी तक होश नहीं आया था। आज तीन दिन हो चुके थे उसे इस विला में आए हुए, मगर उसने एक उंगली तक नहीं हिलाई थी।

    और फिर...

    आज की सुबह कुछ अलग थी। कमरे में अब भी मशीनों की बीप-बीप गूँज रही थी। प्रेम वहीं बैठा था, उसके चेहरे पर थकान थी, मगर आँखों में अब भी उम्मीद थी। वह सोच ही रहा था कि डॉक्टर को बुलाए, तभी...

    मिनल की उंगलियां हल्की सी हिलीं।

    प्रेम को लगा शायद उसकी आँखें धोखा खा रही हैं। उसने जल्दी से मिनल की नब्ज़ देखी—हल्की तेज़ हो गई थी। उसकी साँसें भी अब पहले से बेहतर लग रही थीं।

    और फिर, एक पल बाद, मिनल की आँखें धीरे-धीरे खुलने लगीं।

    उसकी पलकें कांप रही थीं, जैसे बहुत भारी बोझ उठा रही हों। उसकी सांसें उखड़ी हुई थीं, और चेहरा सफेद पड़ा था। उसने कुछ देखने की कोशिश की, लेकिन आँखों के सामने सब धुंधला था।

    प्रेम का दिल जोर से धड़क उठा। उसने तुरंत नर्स को बुलाया, डॉक्टर भागते हुए अंदर आए।

    "वो होश में आ रही है!" प्रेम की आवाज़ में राहत थी।

    डॉक्टर मिनल की आँखों में टॉर्च मारते हैं, उसकी पल्स चेक करते हैं।

    "शुक्र है, उसने रेस्पॉन्ड किया है। मगर अभी उसकी बॉडी बहुत कमजोर है, इसे ज्यादा स्ट्रेस नहीं देना होगा," डॉक्टर ने कहा।

    प्रेम ने सिर हिलाया। वह जानता था कि यह खबर अगर समय के कानों तक पहुँची, तो वह तुरंत यहाँ आएगा।

    और वाकई...

    दरवाजे के बाहर अचानक किसी के कदमों की आहट गूँजी। अगले ही पल दरवाजा ज़ोर से खुला...

    समय दरवाजे पर खड़ा था, उसकी आँखों में वही पागलपन था।

    "अच्छा... तो आखिरकार आँखें खोल ही लीं इस पनौती ने!" उसकी आवाज़ में अजीब सी नफरत थी।

    प्रेम का बदन सख्त हो गया। वह जानता था कि अब तूफान उठने वाला है…

    Gyz कमैंट्स खूब bhut सारे करे plzzz

  • 5. Toxic bro in law - Chapter 5

    Words: 1183

    Estimated Reading Time: 8 min

    प्रेम ने जैसे ही समय को दरवाजे पर खड़ा देखा, उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसे एहसास हो गया कि अगर समय मीनल के पास पहुँच गया, तो कुछ भी हो सकता है। समय की आँखें गुस्से से लाल थीं, उसका पूरा शरीर गुस्से की तपिश में जल रहा था, और सबसे खतरनाक बात—वो शराब  पिये हुए था।

    "समय, प्लीज़! ये सही वक्त नहीं है!" प्रेम ने तेजी से उसके सामने आकर कहा, "वो अभी होश में आई है, तुम्हारा गुस्सा नहीं सह पाएगी! प्लीज़, पहले उसे ठीक होने दो!"

    समय ने प्रेम की तरफ देखा, और फिर अचानक, बिना किसी चेतावनी के, एक जोरदार मुक्का उसके पेट में दे मारा। प्रेम पीछे की तरफ झुका, लेकिन उसने अपने पैरों को ज़मीन पर मजबूती से जमाए रखा।

    "तू मुझे रोकने की कोशिश कर रहा है?" समय की आवाज़ गरजी।

    प्रेम दर्द के बावजूद अपने पैरों पर खड़ा रहा। "हाँ, मैं तुम्हें रोकूंगा!" उसने आँखों में निडरता भरते हुए कहा।

    समय का गुस्सा और बढ़ गया। उसने फिर से वार किया—इस बार एक सीधा मुक्का प्रेम के जबड़े पर। प्रेम लड़खड़ा गया, लेकिन गिरा नहीं। खून का एक कतरा उसके होंठ से बहकर नीचे गिरा।

    समय ने एक कदम आगे बढ़ाया और प्रेम को कॉलर से पकड़कर ऊपर उठाया। "हट जा मेरे रास्ते से, वरना बहुत पछताएगा!"

    "नहीं!" प्रेम ने पूरी ताकत से समय को धक्का देकर पीछे किया, लेकिन समय बेकाबू था। उसने प्रेम के पेट में एक ज़ोरदार घुटना मारा, जिससे प्रेम दर्द से कराह उठा।

    लेकिन प्रेम हार मानने को तैयार नहीं था। उसने अपने शरीर की पूरी ताकत समेटी और एक घूंसा समय के चेहरे पर मारा। समय थोड़ा पीछे हटा, लेकिन उसने तुरंत ही अपना संतुलन बना लिया।

    "तू मुझसे लड़ रहा है, प्रेम?" समय ने एक क्रूर हंसी के साथ कहा। "तेरी हिम्मत कैसे हुई?"

    इसके बाद समय ने एक के बाद एक वार किए—पहला मुक्का प्रेम के कंधे पर, दूसरा उसकी पसलियों पर, और तीसरा उसके चेहरे पर। प्रेम का पूरा शरीर दर्द से चीख उठा, लेकिन उसने अपने कदम पीछे नहीं हटाए।

    "मैं तुझे अंदर नहीं जाने दूँगा!" प्रेम ने हिम्मत जुटाकर कहा।

    समय ने अब और भी क्रूरता से हमला किया। उसने प्रेम को पकड़कर पूरी ताकत से दीवार पर पटका। प्रेम का सिर दीवार से टकराया और खून बहने लगा। लेकिन फिर भी, उसने अपनी पूरी ताकत से खुद को खड़ा किया।

    समय अब पूरी तरह हिंसक हो चुका था। उसने प्रेम को ज़मीन पर गिराया और उसके ऊपर चढ़कर लगातार घूंसे बरसाने लगा। हर वार के साथ प्रेम की साँसें भारी होती जा रही थीं।

    "तू क्या समझता है? मैं उस लड़की को इतनी आसानी से मार दूँगा?" समय ने ज़ोर से कहा। "नहीं! मैं उसे मारने नहीं, बल्कि तड़पाने आया हूँ!"

    प्रेम ने अपनी धुंधली होती आँखों से समय को देखा। "तुम ऐसा मत करो... वो निर्दोष है..."

    समय ने गुस्से में आकर प्रेम का कॉलर पकड़कर उसे उठाया और एक आखिरी वार किया, जिससे प्रेम पूरी तरह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गया।

    अब समय सीधे मीनल के कमरे की तरफ बढ़ा। उसने डॉक्टर को घूरकर देखा और गरजते हुए कहा, "डॉक्टर! इसे जल्दी ठीक कर! इसे मैं तड़पाना चाहता हूँ, और इसके लिए इसकी ज़िंदगी जरूरी है!"



    समय की आखिरी धमकी हवा में गूँज रही थी। वह गुस्से में आग बबूला होकर वहाँ से निकल गया, लेकिन प्रेम वहीं ज़मीन पर पड़ा दर्द से कराह रहा था। उसके शरीर में असहनीय पीड़ा थी, खून बह रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब-सी तसल्ली थी। उसकी हड्डियाँ टूटी थीं, पर दिल को सुकून था कि कम से कम इस वक्त समय ने मिनल को नुकसान नहीं पहुँचाया।

    दूसरी तरफ, मिनल अभी-अभी होश में आई थी। उसकी मासूम आँखों ने जो देखा, वो किसी बुरे सपने से कम नहीं था। दो लोग उसके सामने इतनी बुरी तरह लड़ रहे थे—या यूँ कहें कि एक मार रहा था और दूसरा बस पीट रहा था। प्रेम का बेहाल हाल देखकर मिनल की आँखों में डर बैठ गया। उसका पूरा शरीर काँपने लगा और वह अचानक ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।

    "म..मुझे घर जाना है..." मिनल ने हिचकियों के बीच सुबकते हुए कहा।

    वह दस साल की एक मासूम बच्ची थी, जो अपनी जान बचाने की उम्मीद में यहाँ-वहाँ देख रही थी, लेकिन जिस जगह उसे बचपन में प्यार और सुरक्षा मिलनी चाहिए थी, वहाँ उसे सिर्फ़ डर और हिंसा दिखाई दी।

    समय की गूँजती आवाज़ और डॉक्टर को दी गई धमकी ने उसके डर को और बढ़ा दिया। वह अब और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी, उसकी हिचकियाँ बढ़ने लगीं।

    "अ...अंकल! मुझे यहाँ नहीं रहना, प्लीज़!" मिनल चीख पड़ी।

    प्रेम, जो बुरी तरह ज़ख्मी था, मिनल के रोने की आवाज़ सुनकर किसी तरह दर्द सहते हुए उठा। गिरता-पड़ता वह कमरे की ओर भागा और मिनल के पास पहुँचते ही उसे अपनी बाहों में समेट लिया।

    "अरे, अरे बेबी, रोते नहीं हैं, देखो! देखो, मैं यहीं हूँ! प्लीज़, चुप हो जाओ, मेरी बच्ची!" प्रेम ने कांपती आवाज़ में कहा, लेकिन मिनल अब खुद को रोक नहीं पा रही थी।

    "मुझे मम्मा के पास जाना है... मुझे यहाँ नहीं रहना!" वह छटपटाते हुए रोने लगी।

    उसका हर एक आँसू प्रेम के दिल को चीर रहा था। प्रेम ने उसे अपने सीने से और ज़ोर से लगा लिया।

    "मैं वादा करता हूँ, कुछ नहीं होगा तुम्हें! मैं हूँ ना? देखो, रोना बंद करो, वरना तुम्हें तकलीफ होगी!"

    लेकिन मिनल जितना रोती, उसके सीने में उतनी ही तकलीफ बढ़ती जा रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, उसकी छोटी-सी देह हिल रही थी। डॉक्टर भी यह देखकर घबरा गए।

    "अगर ये इसी तरह रोती रही, तो इसे सांस लेने में दिक्कत हो सकती है!" एक डॉक्टर ने कहा।

    प्रेम ने घबराकर डॉक्टर की ओर देखा। "तो कुछ करो ना, इसे रोको! अगर इसे कुछ हो गया तो... तो हम सब मर जाएँगे!"

    डॉक्टर भी चिंता में पड़ गए। उन्हें अच्छी तरह पता था कि अगर समय को पता चला कि मिनल की तबीयत और बिगड़ गई है, तो उनकी जान पर भी बन आएगी।

    "जल्दी से इसे शांत करना होगा!" एक डॉक्टर ने कहा और बिना कोई वक्त गँवाए, उसने एक नींद का इंजेक्शन निकाला।

    प्रेम ने मिनल को कसकर पकड़ लिया। "श... शांत हो जाओ बेटा! देखो, कुछ नहीं होगा!"

    डॉक्टर ने झटपट मिनल के बाजू में इंजेक्शन लगा दिया। कुछ ही पलों में मिनल का शरीर धीरे-धीरे शांत होने लगा। उसकी आँखें भारी होने लगीं, साँसें सामान्य होने लगीं, और कुछ ही सेकंड में वह गहरी नींद में सो गई।

    जैसे ही मिनल सोई, प्रेम का शरीर निढाल होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। अब तक उसकी सहनशक्ति खत्म हो चुकी थी।

    "जल्दी से इसकी पट्टी करो, बहुत ज्यादा खून बह चुका है!" एक डॉक्टर ने कहा।

    फौरन ही प्रेम को सहारा देकर उठाया गया। डॉक्टरों ने उसकी चोटों की मरहम-पट्टी शुरू की।

    करीब ढाई घंटे के बाद...

    प्रेम होश में आया। उसका शरीर अब भी दर्द से कराह रहा था, लेकिन उसका दिमाग अब भी मिनल को लेकर परेशान था। उसकी नज़र जैसे ही मिनल पर पड़ी, जो अभी तक गहरी नींद में थी, उसके चेहरे पर हल्की राहत आई।

    लेकिन राहत कितनी देर तक टिकेगी? यह सोचते ही उसका दिल फिर से बेचैन हो गया...

  • 6. Toxic bro in law - Chapter 6

    Words: 1367

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुनसान कमरा। दीवारों पर हल्की-हल्की रोशनी टिमटिमा रही थी। अंधेरे और उजाले के इस अजीब मेल में प्रेम की आंखें बस सामने पड़ी उस नन्हीं सी जान पर टिकी थीं। मिनल—जो अभी भी बेहोश थी, उसके चेहरे पर हल्के आंसू के निशान थे। प्रेम के मन में अजीब उथल-पुथल थी। वह यहाँ अपनी वफादारी निभाने आया था, लेकिन यह मासूम बच्ची उसे कमजोर बना रही थी। उसके दिल में मिनल को लेकर कोई गंदी भावना नहीं थी। उसके लिए वो सिर्फ एक छोटी बहन की तरह थी—एक मासूम, जो इस वहशी दुनिया के लिए बनी ही नहीं थी।

    "क्यों लाया गया इसे यहाँ?" प्रेम ने खुद से पूछा। वह जानता था कि समय, जो अब हिमांशु बन चुका था, इस बच्ची के साथ कुछ ऐसा करने वाला था, जिसे सोचकर ही उसका खून खौल उठता था।

    तभी, मिनल के हल्की-हल्की आँखें खुलने लगीं। उसकी छोटी पलकों के बीच से झांकती मासूम आंखें अपने चारों ओर देखने लगीं। जैसे ही उसने प्रेम को देखा, उसकी आँखों में दहशत दौड़ गई। अचानक, जैसे सारी यादें वापस लौट आईं। उसकी आंखों से आँसू फूट पड़े। वह घबराई हुई थी, डरी हुई थी।

    "भाई! भाई! आप... आप मुझे यहाँ से ले चलो!"

    मिनल ने रोते हुए प्रेम का हाथ पकड़ लिया। उसकी छोटी-छोटी उंगलियां प्रेम की हथेलियों में थरथरा रही थीं। उसके आँसुओं में दर्द था, डर था, और उम्मीद थी—वही उम्मीद, जो प्रेम को अंदर तक हिला रही थी।

    "वो... वो अंकल ने बहुत मारा था!" मिनल सिसकने लगी। "आप भी चलो, मुझे भी ले चलो! वो बहुत गंदे हैं! वो आपको भी मार देंगे, मुझे भी मार देंगे! भाई, मुझे बचा लो!"

    प्रेम की आँखों में दर्द उतर आया। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं, लेकिन वह जानता था कि वो खुद बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। उसकी आँखें धीरे-धीरे भीगने लगीं।

    मिनल अचानक और जोर से रोने लगी। "मुझे मम्मी-पापा के पास ले चलो... वो मुझे बचा लेंगे... वो बहुत स्ट्रॉन्ग हैं ना! और मेरी दीदी के पास भी! मेरे जीजू बहुत बहादुर हैं, वो इस गंदे आदमी को बहुत मारेंगे! बहुत मारेंगे! दीदी ने कहा था, वो मेरी रक्षा करेंगे, हमेशा मेरा ख्याल रखेंगे... भाई, मुझे उनसे मिलवा दो!"

    प्रेम की सांसें थम गईं। मिनल जिसे रक्षक समझ रही थी, वही उसका सबसे बड़ा भक्षक बन चुका था। उसकी आँखें दर्द से भर गईं। वह कुछ बोलना चाहता था, लेकिन उसकी जुबान कांप गई।

    उसने धीरे से मिनल को अपनी बाहों में भर लिया। उसके हाथ मिनल के सिर पर थे, उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन खुद उसका दिल अंदर ही अंदर बिखर रहा था।

    "नहीं बच्चा..." प्रेम की आवाज भारी हो गई। "कोई तुम्हें कुछ नहीं करेगा। मैं हूँ ना तुम्हारा भाई? तुम्हें कुछ नहीं होगा, मैं हूँ तुम्हारे साथ!"

    लेकिन इस दिलासे के पीछे की सच्चाई केवल प्रेम जानता था। उसे पता था कि इस मासूम लड़की का क्या अंजाम होने वाला है। वह जानता था कि जिसे मिनल अपना रक्षक मान रही थी, वही उसके सबसे बड़े खतरे में से एक था।

    मिनल अब भी रो रही थी, लेकिन उसके आँसू प्रेम के दिल में आग की तरह गिर रहे थे। वह इस बच्ची के लिए कुछ कर भी सकता था? या उसकी किस्मत पहले ही लिखी जा चुकी थी?

    प्रेम ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं। वह अब तक अपनी निष्ठा को लेकर स्पष्ट था, लेकिन मिनल के आँसू उसे एक नए रास्ते पर खींच रहे थे।
    बेड पर छोटी-सी बच्ची मिनल लेटी हुई थी, आँखों में आँसू, चेहरे पर मासूमियत और दिल में एक अनकहा डर।

    प्रेम उसके ठीक सामने बैठा था, गहरी नजरों से उसे देख रहा था। उसका दिल अंदर से टूट रहा था, लेकिन चेहरे पर उसने सुकून का नकाब डाल रखा था। मिनल की मासूम आँखें जब प्रेम से टकराईं, तो उनमें उम्मीद की एक हल्की किरण चमक उठी।

    "भाई... आप मुझे यहाँ से ले चलो न?" मिनल की आवाज काँप रही थी, आँसू उसके गालों पर लगातार बह रहे थे।

    प्रेम ने गहरी सांस ली, फिर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में भर लिया। उसकी उंगलियाँ बेहद नरमी से मिनल के गालों पर टिकीं, जैसे कोई टूटी हुई चीज़ को सहेज रहा हो। उसने बहुत आराम से कहा—

    "बेटा, मेरी बात सुनो।" उसकी आवाज़ में ऐसी नरमी थी कि मिनल की सिसकियाँ हल्की पड़ने लगीं। "आपकी जो दीदी हैं न, स्वीटी दीदी, उन्होंने ही आपको यहाँ भेजा है, और आपके जो जीजू हैं, वो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। उन्होंने मुझे आपकी सुरक्षा के लिए यहाँ भेजा है। इसलिए जब तक मैं यहाँ हूँ, आपको कोई भी कुछ नहीं करेगा।"

    मिनल ने आँसू भरी आँखों से उसे देखा, जैसे सच को परख रही हो।

    "और आपकी मम्मी-पापा..." प्रेम थोड़ी देर के लिए रुका, फिर अपने झूठ को सच की तरह पेश करते हुए बोला, "वो हरिद्वार गए हैं। वहाँ पर आपकी सेहत के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। वो चाहते हैं कि आप जल्दी से ठीक हो जाएँ।"

    मिनल के छोटे हाथ उसके चेहरे के आँसू पोंछने लगे। उसने हल्की सी मुस्कान के साथ पूछा, "सच्ची में? दीदी ने जीजू से इस गंदे अंकल की शिकायत कर दी है?"

    प्रेम ने अपनी आँखों में उमड़ते आँसुओं को किसी तरह रोकते हुए हाँ में सिर हिलाया।

    मिनल की आँखों में एक नई चमक आ गई। वह झट से प्रेम के गले लग गई, जैसे एक मासूम बच्ची को किसी ने उसकी सुरक्षा का पूरा भरोसा दिला दिया हो।

    "मुझे पता था, मेरी दीदी कभी झूठ नहीं बोलती। अब मैं बिल्कुल नहीं डरूंगी!" उसने पूरे जोश से कहा। "अब मैं स्ट्रॉन्ग गर्ल बनूंगी! अब मैं देखती हूँ, एक गंदा अंकल मुझे कैसे नुकसान पहुँचाता है। अब तो मेरे पास मेरे भाई भी हैं!"

    प्रेम ने कसकर उसे गले लगा लिया। उसके हाथ मिनल के सिर पर थे, उसे सहेजते हुए, उसकी मासूमियत को महसूस करते हुए। लेकिन अंदर से वह टूट रहा था।

    आज प्रेम को ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे उसकी जिंदगी में पहली बार किसी रिश्ते का असली एहसास हुआ हो। वह खुद एक अनाथ था, बचपन से हिमांशु (समय) के साए में पला-बढ़ा, लेकिन आज उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी एक बहन है—एक नन्हीं बहन, जिसे वह हर हाल में बचाना चाहता था।

    लेकिन क्या वो सच में बचा पाएगा?

    उसने धीरे से मिनल को लेटाया, उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा, और बेहद कोमल लहजे में कहा—

    "अब आप यहाँ थोड़ी देर आराम करो, बेटा। अभी मैं आपके लिए कुछ खाने-पीने का इंतज़ाम करता हूँ, और दवाई भी लाता हूँ। लेकिन तब तक आप यहाँ से मत उठना, ठीक?"

    मिनल ने अच्छे बच्चों की तरह सर को तीन-चार बार हाँ में हिलाया।

    प्रेम उसे मासूमियत से देखता रहा। उसकी छोटी-छोटी हरकतें, उसके विश्वास से भरे शब्द... प्रेम की आँखें एक बार फिर भीगने लगीं। लेकिन उसने खुद को संभाला, और किसी तरह कमरे से बाहर निकल आया।

    जैसे ही उसने दरवाजा बंद किया, उसकी सांसें तेज हो गईं। उसके कदम लड़खड़ाए, और अगले ही पल वह दीवार से टिककर फूट-फूट कर रो पड़ा।

    "ये बच्ची... ये बच्ची क्या जानती है कि जिसे वो अपना रक्षक समझ रही है, वही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है?"

    उसका सिर झुक गया।

    समय ने जो कसम खाई थी, वह प्रेम जानता था। समय इस बच्ची को बर्बाद करने का फैसला कर चुका था, और उसे कोई रोक नहीं सकता था। लेकिन क्या प्रेम सच में कुछ नहीं कर सकता था?

    उसकी आँखों में दर्द और गुस्सा एक साथ उमड़ने लगा। आज तक वह हमेशा हिमांशु (समय) के आदेशों का पालन करता आया था। लेकिन इस बार... इस बार उसका दिल कुछ और कह रहा था।

    क्या प्रेम हिमांशु के खिलाफ जाकर मिनल को बचाएगा?
    या फिर वह भी इस मासूमियत की मौत का गवाह बनेगा?

    उसकी आँखों में एक अलग ही संकल्प चमक उठा।

    "मैं इसे बचाऊँगा… चाहे इसकी कीमत मेरी जान ही क्यों न हो।".

    प्रेम बहुत हिम्मत करके अपने पॉकेट से मोबाइल निकालता है और किसी को फोन कर कहता है, "तुम चाहते थे ना कि समय की अफ्रीका वाली कंपनी के सीक्रेट मैं तुम्हें दे दूँ? ठीक है, मैं तैयार हूँ। लेकिन इसके बदले तुम्हें मेरा एक काम करना पड़ेगा।"

    दूसरी तरफ से कोई कुछ कहता है..
    जिसके जवाब में प्रेम भी उससे कुछ कहता है..
    अब इन दोनों के बीच क्या बात हुई वह कल पता चलेगा

  • 7. Toxic bro in law - Chapter 7

    Words: 1696

    Estimated Reading Time: 11 min

    समय अपने कमरे में अकेला बैठा था, हाथ में शराब का गिलास और सामने दीवार पर लगी अपनी और स्वीटी की शादी की तस्वीर। तस्वीर में दोनों मुस्कुरा रहे थे, लेकिन समय की आँखों में अब वही तस्वीर नफरत और जलन की आग भर रही थी। उसने गिलास होंठों से लगाया, मगर वो जानता था कि ये शराब उस पर असर नहीं करेगी। उसके शरीर में नशा घुल सकता था, मगर उसकी आत्मा अब तक होश में थी—खून खौलता हुआ, धड़कनें तेज़, और दिल में बसी प्रतिशोध की ज्वाला।

    उसने अपनी उंगलियाँ तस्वीर के शीशे पर फिराईं, जैसे स्वीटी को छू रहा हो। फिर उसके चेहरे पर एक कड़वी हँसी आई।

    "बहुत गलत किया, स्वीटी। बहुत गलत!" उसकी आवाज़ काँच की तरह सख्त और धारदार थी। "तुमने अपना दिल उसे दे दिया? वो दिल जिस पर सिर्फ मेरा हक था? जानती थी ना तुम कि मैं उसे नुकसान नहीं पहुँचा सकता, फिर भी तुमने मुझे कमजोर बना दिया! लेकिन नहीं… मैं अब तुम्हारी उम्मीदों पर नहीं चलूँगा। मैं तुम्हारी बहन को वो ज़िंदगी दूँगा, जिसे वो कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी… एक ऐसी अंधेरी, बेरहम ज़िंदगी!"

    उसने गिलास ज़मीन पर दे मारा, शराब के छींटे दीवारों पर पड़ गए, जैसे उसके अंदर जल रही नफरत अब बाहर छलक रही हो।

    तभी उसके फोन की घंटी बजी। पहले तो उसने अनदेखा किया, लेकिन जब घंटी लगातार बजती रही तो उसने गुस्से में फोन उठाया।

    "क्या?" उसने झल्लाकर कहा।

    दूसरी तरफ से कोई कुछ कह रहा था, और जैसे-जैसे शब्द उसके कानों में घुसते गए, उसकी आँखों में खून उतरता गया। उसकी साँसें गहरी और भारी हो गईं। उसकी मुट्ठियाँ कस गईं।

    "तुमने क्या कहा?" उसकी आवाज़ में इतना ज़हर था कि अगर शब्द किसी को छू जाते तो वो जलकर राख हो जाता।

    दूसरी तरफ से जवाब आया और इस बार समय की आँखों में ऐसी आग भड़क उठी, जो सिर्फ बर्बादी लाने वाली थी। उसने बिना कुछ कहे फोन काट दिया और तुरंत प्रेम का नंबर डायल कर दिया।

    दूसरी ओर...

    प्रेम इस वक्त मीनल के पास बैठा था, लेकिन जैसे ही उसके फोन पर "समय" का नाम चमका, उसके अंदर एक बेचैनी दौड़ गई। वो जानता था कि ये फोन किसी अच्छे कारण से नहीं आया है। उसने फोन उठाया, और उधर से समय की गरजती आवाज़ सुनाई दी—

    "प्रेम! तुझे पता भी है कि क्या हो रहा है?"

    "समय, सुनो—"

    "बकवास बंद कर और मुझसे छिपाने की कोशिश मत करना! मैंने तुझे उस पर नज़र रखने को कहा था, लेकिन तू... तू निकला एक नाकारा आदमी!"

    प्रेम चुप रहा। उसे पता था कि इस वक़्त कुछ भी कहना सिर्फ आग में घी डालने जैसा होगा।

    फिर कुछ देर बाद

    प्रेम (संजीदा लहजे में): "देखो समय, हम दोनों में से किसी एक को वहाँ रुकना चाहिए था। मैंने तुमसे पहले भी कहा था, लेकिन तुमने न मुझे वहाँ रुकने दिया और न खुद वहाँ रुके।"

    [समय गहरी गहरी साँस लेता है, उसकी आँखों में चिंगारी जल उठती है।]

    प्रेम (आगे बोलता है): "मुझे पहले ही पता था कि यह सब होना तय था। आखिर हम अपने दुश्मन को कब तक अंडरएस्टिमेट कर सकते थे? उसने हमारे वहाँ से जाने का इंतजार किया... और उसे मौका मिल गया।"

    [समय का चेहरा कठोर हो जाता है। उसके जबड़े भिंच जाते हैं, और गुस्से से उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं।]

    समय (आवाज़ भारी और गुस्से से भरी): "जस्ट शट अप! मुझे तेरी बकवास सुननी ही नहीं है। मुझे तुझसे कोई काम लेना ही नहीं चाहिए था!"

    [वह कुर्सी से उठता है, हाथ में पकड़ी बोतल ज़मीन पर दे मारता है। काँच के टुकड़े बिखर जाते हैं।]

    समय (और तीखे स्वर में): "अब जो भी होगा, मैं खुद करूँगा। गेट लॉस्ट, लूज़र!"

    [वह बिना जवाब सुने ही फोन काट देता है। उसकी साँसें तेज़ चल रही हैं, और क्रोध उसके पूरे शरीर में दौड़ रहा है।]

    [कुछ सेकंड्स तक वह अपनी मुट्ठियाँ भींचे खड़ा रहता है, फिर अचानक अपनी जेब से फोन निकालकर दूसरे आदमी को कॉल करता है।]

    समय (कड़े शब्दों में): "चेक रेडी कराओ। हम एक घंटे में रूस के लिए निकल रहे हैं।"

    [फोन काटते ही वह फिर से बोतल उठाने की कोशिश करता है, लेकिन हाथ रुक जाता है। उसकी आँखें गहरी हो जाती हैं, जैसे किसी गहरे ख्याल में डूब गया हो।]


    ---

    दूसरी तरफ...

    [प्रेम एक कमरे में खड़ा है। हल्की रोशनी में उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति है। सामने बिस्तर पर मीनल सो रही है—दवाइयों के असर से बेहोश। उसकी मासूमियत को देखते हुए प्रेम की आँखों में हल्की नमी आ जाती है, लेकिन उसके चेहरे पर एक सख्त संकल्प भी झलकता है।]

    प्रेम (धीमे स्वर में, खुद से): "समय अगर एक जिंदगी बचाने के लिए मुझे तुझे धोखे में रखना पड़ा, तो कोई बात नहीं।"

    [वह एक गहरी साँस लेता है, उसकी उँगलियाँ मुट्ठी में बदल जाती हैं।]

    प्रेम (हल्की मुस्कान के साथ): "लेकिन न तो मैं इस लड़की को कुछ होने दूँगा और न ही तुझे अपने ही हाथों अपना विनाश करने दूँगा।"

    [वह मीनल की ओर एक आखिरी नज़र डालता है और फिर दरवाजा बंद करके बाहर निकल जाता है।]


    ---

    आधे घंटे बाद – हवेली का हॉल

    [हॉल में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। हवेली के सारे स्टाफ मेंबर्स, डॉक्टर्स, नर्सें, और गार्ड्स वहाँ खड़े हैं। सबकी नज़रें एक ही शख्स पर टिकी हैं—समय सूर्यवंशी। वह अपनी जलती हुई आँखों के साथ वहाँ खड़ा है, उसके चेहरे पर तीव्र गुस्सा साफ झलक रहा है।]

    [ समय की मौजूदगी ने माहौल को और भी भारी बना दिया था। उसकी नजरें鋭ी थीं, आवाज में वही पुरानी ठहराव भरी सख्ती। सामने खड़े नौकरों की कतार मानो किसी फैसले का इंतजार कर रही थी।

    समय ने एक गहरी सांस ली और ठंडे लहजे में बोला, "मुझे रूस जाना है। मेरे पीछे तुम सबको एक खास काम अंजाम देना होगा।"

    वह धीमे कदमों से डॉक्टरों की ओर बढ़ा। सीनियर डॉक्टर के सामने आकर रुका और कठोर आवाज़ में पूछा, "लड़की के ठीक होने में कितना वक्त लगेगा?"

    डॉक्टर हड़बड़ा गया। कांपती आवाज़ में बोला, "स..सर, कम से कम... छह महीने।"

    समय ने उसकी आंखों में झांका, फिर शांत मगर धमकी भरे लहजे में कहा, "तीन महीने। सिर्फ तीन महीने में मुझे वो लड़की पूरी तरह ठीक चाहिए। अगर तीन महीने बाद भी वो इसी हालत में मिली, तो इस हवेली में तुम नहीं मिलोगे।"

    डॉक्टर का चेहरा सफेद पड़ गया। उसके होंठ थरथराए, "ज..जी, सर।"

    समय अब गार्ड्स की तरफ़ मुड़ा। उसकी आँखों में वही नर्मी थी, जो तूफान के पहले आती है।

    "जब तक मैं वापस ना आऊँ, वो लड़की इन चार दीवारों से बाहर नहीं जानी चाहिए। उसकी ज़िंदगी अब इस हवेली में कैद है। अगर वो एक कदम भी बाहर गई... तो समझ लेना, तुम सबकी ज़िंदगी खत्म।"

    गार्ड्स सिर झुका लेते हैं, आदेश स्पष्ट था— और अटल।

    पर हवेली के लोगों को तब सबसे बड़ा झटका लगा, जब समय ने नौकरों के पास जाकर अगला फरमान सुनाया।

    वह सीधे शेफ के सामने जाकर खड़ा हुआ। उसकी आँखों में ठंडा सा धैर्य था।

    "इस घर में जो भी खाना बनेगा, किचिन की साफ सफाई  सिर्फ और सिर्फ उस लड़की को करनी होंगी होगा। किचन से लेकर सफ़ाई तक, हर चीज़  होनी चाहिए।"

    शेफ हकबका गया। उसे समझ नहीं आया कि यह लड़की कौन थी, जिसे लेकर समय इतना भयंकर फरमान सुना रहा था । हिम्मत जुटाकर उसने कहा, "सर, लेकिन वो तो सिर्फ दस साल की बच्ची—"

    शब्द अधूरे रह गए।

    समय ने बिजली सी फुर्ती से अपनी जेब से गन निकाली और सीधे शेफ के माथे पर टिका दी। पूरा कमरा सन्नाटे में डूब गया।

    उसकी आवाज़ बेहद धीमी मगर जानलेवा थी, "तुम कुछ कह रहे थे?"

    शेफ के गले से आवाज़ नहीं निकली। पसीने की बूँदें उसके चेहरे से टपकने लगीं।

    समय मुस्कराया, लेकिन उसकी आँखों में वो ठंडक बरकरार रही। उसने धीरे से गन नीचे की और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया। हवेली में मौजूद हर शख्स अब जान चुका था


    समय तेज़ कदमों से नौकरों के पास जाकर ठहरता है, उसकी आँखों में एक ठंडा क्रूर भाव झलक रहा था। उसने कठोर स्वर में कहा,

    "इस घर की सफ़ाई से लेकर हर छोटी-बड़ी ज़िम्मेदारी उस लड़की के सिर पर होनी चाहिए। उसे एक पल भी चैन नहीं मिलना चाहिए। वो इस घर में सिर्फ़ दुख और तकलीफ़ झेलेगी... एक-एक सांस उसके लिए सज़ा बन जाएगी। समझे?"

    नौकर सहम गए, किसी ने हिम्मत नहीं की सवाल करने की।

    कोने में खड़ा प्रेम सब सुन रहा था। वह समझ गया था कि समय उस मासूम दस साल की बच्ची को शारीरिक रूप से तो प्रताड़ित नहीं कर सकता, लेकिन मानसिक रूप से उसे तोड़ने का हर तरीका आज़मा रहा था। प्रेम के मन में हलचल मच गई। वह आगे बढ़ा और समय के सामने खड़ा हो गया।

    "तुम ये ठीक नहीं कर रहे हो, समय।" प्रेम की आवाज़ में गुस्सा और दर्द था।

    समय ने एक उपहास भरी हँसी हँसते हुए प्रेम को ज़ोर से धक्का दिया, जिससे वह पीछे हट गया। समय की आँखों में जलता हुआ जुनून था।

    "जो मैं सोचता हूँ, वही करता हूँ! और मैं उसे तड़पा-तड़पा कर जहन्नुम के दर्शन कराऊँगा!" समय की आवाज़ में नफ़रत थी।

    फिर वह एक शैतानी हँसी हँसते हुए प्रेम के करीब आया और दाँत भींचते हुए बोला,

    "तुझे एक और ज़िम्मेदारी निभानी होगी, प्रेम! इस घर में हर पल उस लड़की पर नज़र रखना। उसका कोई भी काम गलत हुआ, तो उसे सज़ा देने की ज़िम्मेदारी तेरी होगी। और हाँ, एक बात ध्यान रखना..."

    समय ने प्रेम के कंधे पर कसकर हाथ रखा और फुसफुसाया,

    "तू उसे बचा नहीं सकता।"

    प्रेम ने समय की आँखों में देखा, एक वक्त था जब यह शख़्स उसका भाई और दोस्त हुआ करता था, लेकिन अब उसे उसमें सिर्फ़ अंधेरा और नफ़रत दिख रही थी। प्रेम की आँखें नम हो गईं, लेकिन आवाज़ मज़बूत थी।

    "कभी मुझे तुम पर नाज़ था, समय। तुम मेरे भाई थे, मेरे दोस्त। लेकिन अब... अब मुझे तुमसे नफ़रत हो रही है।"

    उसके शब्दों में निराशा थी। वह रुककर कुछ सोचने लगा और फिर धीमे लेकिन ठोस लहजे में बोला,

    "वो लड़की... जिसने अपनी बहन के पति को अपना संरक्षक माना है, जिसे उम्मीद है कि उसकी बहन और उसका पति उसे बचाएंगे... उसे तुमसे बचाना अब मेरी ज़िम्मेदारी है, समय।"

    समय की आँखें सख़्त हो गईं,

  • 8. Toxic bro in law - Chapter 8

    Words: 1282

    Estimated Reading Time: 8 min

    समय प्रेम के करीब जाता है, उसकी आँखों में झांकते हुए हल्की मुस्कान के साथ उसके सीने पर उंगली रखता है।

    समय (गंभीर लहजे में):
    "तुझे पता है, मैं अभी के अभी उसे खत्म कर सकता हूँ... तेरी आँखों के सामने। और तू कुछ नहीं कर पाएगा। या फिर, मैं किसी और को हायर कर सकता हूँ, लेकिन फिर क्या पता उसके साथ उसकी इज्जत के साथ उसकी जान के साथ क्या हो जाए।"

    समय की बात सुनकर प्रेम का गुस्सा फूट पड़ता है। वह झटके से समय का कॉलर पकड़ लेता है और आँखों में आग भरकर उसे घूरता है।

    प्रेम (गुस्से में दाँत भींचते हुए):
    "तू ये सब धमकियाँ देना बंद कर, समय! मैं तुझे पहले भी कह चुका हूँ—अगर बात उससे जुड़ी है, तो मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ!"

    समय हल्के से हँसता है, मानो प्रेम की बौखलाहट से उसे मज़ा आ रहा हो।

    समय (हलक़ी हँसी के साथ):
    "क्या बात है, ये प्रेम तो बड़ा गहरा लग रहा है! मतलब, एक लड़की के लिए तू अपने दोस्त... अपने बॉस... अपने बिज़नेस पार्टनर से टकराने को तैयार है? नॉट बैड... नॉट बैड!"

    समय प्रेम की आँखों में देखकर एक पल को रुकता है और फिर धीमे मगर वजनदार शब्दों में बोलता है।

    समय (संजीदा होते हुए):
    "अगर तू नहीं चाहता कि ये काम मैं किसी और को दूँ, तो तुझे वही करना होगा जो मैं कहूँ। और दूसरी सबसे बड़ी बात... तू आज भी मेरा कर्ज़दार है, भूल मत! याद कर, तेरी माँ के इलाज के लिए पैसे मैंने दिए थे... अगर मैं न होता, तो शायद आज वो भी न होती। तेरी ज़िंदगी मेरी देन है, प्रेम।"

    समय के शब्द प्रेम के सीने में एक धारदार तीर की तरह उतरते हैं। उसका चेहरा सख्त से नरम पड़ने लगता है। उसकी पकड़ समय के कॉलर से ढीली हो जाती है। उसकी आँखों के सामने एक धुंधला सा अतीत चमक उठता है...


    ---

    [फ्लैशबैक: तीन साल पहले]

    बारिश की रात थी। अस्पताल की सफेद रोशनी में प्रेम बेतहाशा डॉक्टर से विनती कर रहा था।

    प्रेम (गिड़गिड़ाते हुए):
    "डॉक्टर, प्लीज मेरी माँ को बचा लीजिए! मैं किसी भी तरह पैसे अरेंज कर लूँगा... बस ऑपरेशन रोकिए मत!"

    डॉक्टर की आवाज़ ठंडी और कठोर थी।

    डॉक्टर:
    "सॉरी, मिस्टर प्रेम! जब तक डिपॉज़िट नहीं होगा, हम ऑपरेशन शुरू नहीं कर सकते।"

    प्रेम की आँखों में आँसू थे, पर उसके पास कोई चारा नहीं था। तभी पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई।

    समय:
    "कितने पैसे चाहिए?"

    प्रेम ने चौंककर देखा। समय सामने खड़ा था, हाथ में एक चेक था।

    समय (आँखों में ठंडा आत्मविश्वास लिए हुए):
    "ले, ये पैसे... तेरी माँ बच जाएगी। मगर याद रखना, ये एहसान मैं यूँ ही नहीं करता। तुझे इसकी कीमत चुकानी होगी।"

    प्रेम ने बिना सोचे समझे चेक पकड़ लिया। उसके पास और कोई रास्ता ही नहीं था। उसी रात उसकी माँ की जान बच गई, लेकिन प्रेम की ज़िंदगी समय की मुट्ठी में आ गई।


    ---

    [वापस वर्तमान में]

    प्रेम का चेहरा दर्द और ग़ुस्से के मिले-जुले भावों से भर जाता है। उसके हाथ पूरी तरह से समय के कॉलर से हट जाते हैं। वह कुछ कहना चाहता है, मगर शब्द गले में अटक जाते हैं।

    समय मुस्कुराता है।

    समय (हल्के तंज के साथ):
    "देखा? तेरा ग़ुस्सा, तेरा अहंकार, तेरा प्रेम... सब कुछ मेरे एक एहसान के बोझ तले दब गया। अब फैसला तेरा है, प्रेम। तुझे वही करना होगा जो मैं कहूँ, वरना अंजाम... तू जानता ही है।"

    प्रेम की मुट्ठियाँ भिंच जाती हैं, लेकिन वह जानता था कि समय ने उसे ऐसी जगह खड़ा कर दिया है, जहाँ से भागने का कोई रास्ता नहीं।


    ---

    [सीन: प्रेम और समय आमने-सामने]

    गहरी रात थी। माहौल में एक ठंडा सन्नाटा पसरा हुआ था। समय का चेहरा कठोर था, आँखों में एक ठंडा गुस्सा भरा हुआ। सामने खड़ा प्रेम जानता था कि अगर उसने अभी उसे नहीं रोका, तो शायद सब कुछ खत्म हो जाएगा।

    प्रेम ने गहरी साँस ली और धीरे से अपने दोनों हाथ जोड़ दिए।

    प्रेम (विनम्र मगर दृढ़ आवाज़ में):
    "समय, तू इस वक्त गुस्से और बदले में अंधा हो चुका है। इसलिए जो बोल रहा है, शायद तुझे खुद नहीं पता कि ये तेरे अपने शब्द हैं या तेरे दर्द का ज़हर। जब तेरा गुस्सा ठंडा होगा, जब तू अकेला बैठेगा, तब तुझे एहसास होगा कि तू क्या कहकर जा रहा था।"

    समय की भौहें तन गईं। उसकी आँखों में एक ठंडा नज़रिया था, लेकिन प्रेम ने हार नहीं मानी।

    प्रेम (गहरी साँस लेते हुए):
    "मैं जानता हूँ, मैं तेरे आगे अपनी नहीं चला सकता, लेकिन एक बात मेरी मान ले, बस एक बार... प्लीज़। उस बच्ची को इस लायक तो होने दे कि वो तेरा गुस्सा समझ सके। वो अभी बच्ची है, मासूम है, उसकी जिंदगी अभी शुरू भी नहीं हुई। कम से कम उसे अठारह साल का तो होने दे।"

    समय ने नज़रें झुका लीं, लेकिन उसकी मुट्ठियाँ अब भी भिंची हुई थीं।

    प्रेम (आँखों में उम्मीद के साथ):
    "अगर तू चाहे, तो इन अठारह सालों तक उसे यहाँ कैद रख, कहीं जाने मत देना। लेकिन इन अठारह सालों में उसे अपने गुस्से में मत जलाना, उसे अपने बदले की आग में मत झोंक। कम से कम उसे इन सालों में दर्द से महरूम रख, ताकि जब वो अठारह की हो, तो तेरा सामना करने के लिए तैयार हो।"

    समय की साँसें तेज़ हो गई थीं। उसकी आँखों में अजीब सा तूफ़ान उमड़ रहा था। लेकिन प्रेम ने अपनी आखिरी कोशिश जारी रखी।

    प्रेम (धीमे मगर वजनदार शब्दों में):
    "समय, तेरी और भाभी की ज़िंदगी के वो हसीन पल... जिनमें सिर्फ हँसी थी, प्यार था, सुकून था... उन पलों की कसम, कम से कम उनकी याद में ही सही, मेरी ये आखिरी बात मान ले।"

    जैसे ही प्रेम ने ये कहा, समय की आँखों में एक अजीब सी बेचैनी आ गई। उसकी भिंची मुट्ठियाँ और कस गईं। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। और तभी...


    ---

    [फ्लैशबैक: स्वीटी और समय का प्यार भरा लम्हा]

    गुनगुनी शाम थी। हल्की बारिश हो रही थी। स्वीटी और समय अपने कमरे में बैठे थे, खिड़की के बाहर बारिश की बूँदें टकरा रही थीं।

    स्वीटी, जो एक हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में थी, समय के कंधे पर सिर रखकर मुस्कुरा रही थी।

    स्वीटी (मुस्कुराते हुए):
    "समय,  जानते हो? मेरी बहन मीनल... वो कितनी ज़िद्दी है, लेकिन दिल की कितनी मासूम भी!"

    समय ने हल्की हँसी के साथ उसे देखा।

    समय (शरारत भरे लहजे में):
    "तेरे जैसी?"

    स्वीटी ने हल्का सा मुक्का उसके सीने पर मारा।

    स्वीटी:
    "नहीं! मैं ज़िद्दी नहीं हूँ, बस थोड़ी अलग हूँ।"

    समय ने उसकी कमर में बाहें डाल लीं और उसे थोड़ा करीब कर लिया।

    समय (नरम आवाज़ में):
    "और मैं तुझसे थोड़ा ज्यादा अलग हूँ... लेकिन फिर भी, तूने मुझे अपना लिया।"

    स्वीटी की आँखों में नमी आ गई, लेकिन चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी।

    स्वीटी (धीमे स्वर में):
    "क्योंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ, समय। और ये प्यार हमेशा रहेगा... जब तक मैं हूँ, तब तक।"

    समय ने उसके माथे पर एक हल्का सा चुम्बन दिया। कमरे में सिर्फ बारिश की आवाज़ गूँज रही थी और दो दिलों की धड़कनें...


    ---

    [वापस वर्तमान में]

    समय की साँस अटक गई। फ्लैशबैक उसकी आँखों के सामने एक धुंधली मगर गहरी छवि की तरह दौड़ गया। उसकी भिंची मुट्ठियाँ काँपने लगीं।

    प्रेम उसकी आँखों में झाँक रहा था।

    समय ने एक पल के लिए आँखें बंद कीं, और फिर बिना कुछ कहे मुट्ठी खोल दी। उसने एक लंबी साँस भरी और प्रेम के चेहरे की ओर देखा।

    एक पल की ख़ामोशी के बाद...

    समय (गंभीर आवाज़ में):
    "अठारह साल। सिर्फ अठारह साल।यानि आज से 8 साल इसके बाद... कोई दया नहीं होगी।"

    प्रेम ने राहत की साँस ली, लेकिन उसे पता था कि यह सिर्फ एक डील थी... असली तूफान अभी भी आने वाला था।


    4 साल बाद,,,,,

  • 9. Toxic bro in law - Chapter 9

    Words: 1231

    Estimated Reading Time: 8 min

    स्वर्ग विला, एक सुनहरी सुबह

    चार साल बीत चुके थे...

    वक़्त ने बहुत कुछ बदला था, मगर उस सुबह की रौशनी में एक  खास चीज़ और बदल चुकी थी—एक नन्हीं सी हँसी, जो पूरे विला को जगा देती थी।

    सूरज की नरम किरणें खिड़कियों से छनकर हॉल में बिखरी थीं। उसी रौशनी में एक चौदह साल की लड़की—घुंघराले खुले बाल, नी-लेंथ फ्रॉक, नंगे पाँव—मरमरी ज़मीन पर फुर्ती से भाग रही थी। उसकी चंचल हँसी दीवारों से टकराकर गूंज रही थी।

    वो लड़की... मीनल थी।
    जिसे प्रेम ने अपनी जान से बढ़कर इन चार सालो मे पाला था।

    मीनल आगे-आगे भाग रही थी, और पीछे-पीछे दौड़ रहा था प्रेम—हाथ में कंघा और एक रबर बैंड लिए, पूरी तरह हांफता हुआ मगर मुस्कुराता हुआ।

    प्रेम (भागते हुए, ज़ोर से):
    "अरे छोटे! रुक जा पगली, देख मैंने कहा ना... तू अगर अब मेरे हाथ लग गई, तो चोटी बनवाए बिना तो नहीं छोड़ूगा मैं तुझे! और साथ मे बहुत मारूँगा, सच्ची!"

    मीनल (ठिठोली करते हुए, ज़ोर से हँसते हुए):
    "नहीं भैय्या! आज तो आप मुझे नहीं पकड़ने वाले! मैं उड़ जाऊँगी आपकी पकड़ से पहले! और हाँ—अगर पकड़ भी लिया ना, तब भी मैं चोटी नहीं बनवाऊँगी! मैं बड़ी हो गई हूँ, चोटी अब नहीं सूट करती!"

    प्रेम (थोड़ा झल्लाते हुए, लेकिन प्यार से):
    "बड़ी हो गई है, हाँ? तेरी हरकते अभी भी 3 साल के बच्चे वाली है और बातें देखो महारानी की!"

    मीनल (हँसते हुए, शरारत से):
    "तो क्या करूँ, भैय्या? आप ही ने तो कहा था कि मीनल स्पेशल है! और स्पेशल लोग स्पेशल दिखते हैं। मैं अब ओपन हेयर वाली क्वीन हूँ!"

    प्रेम (मुस्कुराते हुए):
    "क्वीन हो? अच्छा... अभी दिखाता हूँ तुझे राजा का डंडा!"

    इतना कहकर प्रेम थोड़ा तेज़ भागा, और मीनल की हँसी और ऊँची हो गई। वो ज़िगज़ैग में भाग रही थी—कभी सोफे के पीछे, कभी डाइनिंग टेबल के नीचे, और कभी सीढ़ियों की तरफ।

    प्रेम (हँसते हुए, मगर साँस फूलती हुई):
    "ओए रुकेगी भी या पूरा घर दौड़वा के दम लेगी मुझसे?"

    मीनल:
    "अगर इतनी जल्दी थक जाओगे तो पकड़ोगे कैसे और चोटी कैसे बांधोगे आप"

    प्रेम (हाफ़्ते हुए, मुस्कराते हुए):“ओके मैं हार गया,अब तो रुक जा छोटे ”
    "मीनल (एक पल को रुकती है, फिर धीमे से मुस्कुरा कर):
    “ आप मेरे हीरो हो, भैय्या... लेकिन आज भी चोटी नहीं बनवाऊँगी!"

    प्रेम (हँसते हुए सिर झटकता है):
    "हद है यार! तू तो मेरी नानी बन गई है... और बाल संभालने नहीं देती!"

    मीनल फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी। और प्रेम... वो तो उस हँसी में अपनी सारी थकान, सारे ज़ख्म भूल गया।



    ---

    स्वर्गविला,
    इंडिया – एक शांत, धूप से भरी दोपहर

    प्रेम अब थककर सोफे पर बैठ चुका था। माथे पर पसीना, सांसें तेज़, और चेहरे पर वो हार जो असल में जीत से कम नहीं थी।

    वो आँखें बंद कर ही रहा था कि नन्हें-नन्हें कदमों की आहट सुनाई दी। मीनल, जो अब थोड़ी सी लंबी हो गई थी, मगर अब भी उतनी ही मासूम, प्रेम के पास आई। वो फुर्ती से ज़मीन पर बैठी, प्रेम के पैरों के पास।

    मीनल (शरारती मुस्कान के साथ):
    "अच्छा ठीक है, बना लो मेरी चोटी... अब क्या याद करोगे? किस दरिया दिल से पाला पड़ा है मेरा हूउउ?"

    प्रेम उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। उसके चेहरे की थकान जैसे पल में उड़ गई। वो जानता था—मीनल हमेशा उसकी हार का इंतज़ार करती थी, लेकिन उसे हराती कभी नहीं थी।

    वो अपना कंघा उठाता है, और मीनल के बालों में हल्के हाथों से कंघी करने लगता है। हर कंघी के साथ एक याद उसके ज़ेहन में लौटती है...

    (फ्लैशबैक - चार साल पहले)
    समय का ठंडा चेहरा, प्रेम का झुका सिर, और वो फैसला—“अठारह साल तक, उसे आज़ादी की इजाज़त है उसके बाद……...”
    वो धमकी अब भी कानों में गूंजती थी।

    (वर्तमान में)
    इन चार सालों में प्रेम ने मीनल की ज़िंदगी को एक सुंदर सपने की तरह बुना था। स्कूल, पेंटिंग, कहानियाँ, बर्थडे पार्टीज़, पेड़ पर चढ़ना, और हर उस चीज़ की आज़ादी जो बचपन को खूबसूरत बनाती है।

    लेकिन अब... वक़्त बीत रहा था। अब हर गुज़रता दिन, प्रेम के दिल में एक डर भरता था।
    बस चार साल और।
    चार साल बाद—मीनल को उस शख्स को सौंपना था, जो अब इंसान नहीं, आग बन चुका था।


    ---

    लोकेशन 2: रूस – एक काली रात, एक दमकता बदन, और एक सुलगता बदला

    एक गहरे, साइलेंट जिम के कोने में—शर्टलेस, सांसों को काबू में करते हुए—समय मित्तल ज़मीन पर अपने हाथ टिकाए पुश-अप्स कर रहा था। हर पुश-अप, उसके सीने की मांसपेशियाँ खींच रही थीं। पसीने की बूँदें उसकी पीठ से लुढ़क रही थीं, लेकिन उसके माथे पर शिकन नहीं थी—बस एक ठंडा, पक्का इरादा।

    उसके सामने एक पुराना खत पड़ा था। फटा हुआ, किनारे मुड़ा हुआ। वो खत... जो उसकी जान, उसकी स्वीटी, मरने से पहले छोड़ गई थी।

    स्वीटी की आवाज़ (मन में गूंजती हुई):
    "समय, मीनल को  मत ब्लेम देना। उसे ज़िंदगी देना... मेरी मौत का बदला मत लेना मेरी मौत एक नेचुरल death है, मेरी बहन को कुछ ना कहना । वो मेरी आख़िरी निशानी है।"

    समय की आँखों में आग सी चमक उठती है।

    चार साल... उसने इन चार सालों में कोई दया नहीं की, कोई माफ़ी नहीं सोची। उसका गुस्सा वक्त के साथ ठंडा नहीं हुआ—बल्कि अब वो लावा बन चुका था, जो फटने का इंतज़ार कर रहा था।

    उसने स्वर्गविला की ओर कभी मुड़कर नहीं देखा, लेकिन उसकी नज़र वहाँ से कभी हटी भी नहीं।
    हर खबर, हर तसल्ली, हर हँसी—जो मीनल की ज़िंदगी में प्रेम भर रहा था—समय के सीने में ज़हर घोल देती थी।

    समय (आहिस्ता, खुद से):
    "चार साल बीत चुके हैं, प्रेम। अब बचे हैं सिर्फ चार... फिर मैं आऊँगा। और इस बार, मैं सिर्फ लेने नहीं... छीनने आऊँगा।"


    ---
    बैकग्राउंड में धीमा, भारी म्यूज़िक बजता है

    एक तरफ मासूमियत और ममता का संसार...
    दूसरी तरफ बदले की आँधी में सुलगता एक तूफ़ान।

    वक़्त अब दौड़ रहा है।
    और जब आठ साल पूरे होंगे...
    तो समय लौटेगा।
    तूफ़ान बनकर।



    स्वर्गविला – शाम का वक्त, डाइनिंग हॉल

    डाइनिंग टेबल पर सब कुछ परफेक्ट था—मीनल की पसंद का खाना, उसका फेवरेट गिलास, और प्रेम की वो बेकरार निगाहें जो हर पल सीढ़ियों की ओर देख रही थीं।

    प्रेम (धीरे से बड़बड़ाते हुए):
    "हमेशा तो वक्त पर आ जाती है... आज इतनी देर क्यों?"

    घड़ी की सुइयों के साथ उसकी बेचैनी भी घूमने लगी। नौकरों से पूछने का कोई फायदा नहीं था—यहाँ सब सिर्फ "समय" के आदेश पर चलते थे। प्रेम जानता था कि अगर मीनल की देखभाल किसी ने सबसे अच्छे से की है, तो वो सिर्फ उसी ने।

    थोड़ी देर बाद जब सब्र जवाब दे गया, तो उसने खुद खाना ट्रे में सजाया और मीनल के कमरे की ओर बढ़ गया।


    ---

    मीनल का कमरा – दरवाज़ा खुलता है]

    कमरे का दरवाज़ा हल्के से धक्का देने पर ही खुल गया।

    अंदर हल्की-हल्की रोशनी थी, खिड़की से आती हवा परदे को हिला रही थी, लेकिन कमरे में एक अजीब सी चुप्पी थी। और फिर उसकी नजर पड़ी — मीनल पर।

    वो ज़मीन पर बैठी थी, पीठ बेड से टिकी हुई। उसका चेहरा सफेद था, आँखें बंद, और हाथ उसके इर्द गिर्द लिपटे हुए थे।

    प्रेम के हाथ से ट्रे छूटकर ज़मीन पर गिर गई।

    छन्नन!
    आवाज़ के साथ ही उसके सीने में जैसे कुछ टूट गया।

    प्रेम (हकलाती साँसों के साथ):
    "मीनल...? मीनल!!"

    वो दौड़कर उसके पास आया, घुटनों के बल ज़मीन पर गिरा और उसका चेहरा अपनी गोद में रखा। उसकी धड़कनें तेज़ थीं, लेकिन साँसे बेहद धीमी।
    क्या हुए मिनल को koi बता सकता है??

  • 10. Toxic bro in law - Chapter 10

    Words: 806

    Estimated Reading Time: 5 min

    ---



    लोकेशन: स्वर्गविला – शाम का वक्त

    प्रेम अब भी डाइनिंग टेबल पर बैठा था, आँखें सीढ़ियों की तरफ, और मन बेचैन। हर रोज़ की तरह आज भी उसने मीनल के पसंदीदा व्यंजन बनवाए थे—राजमा चावल, आलू की सूखी सब्ज़ी, और गुलाब जामुन। लेकिन आज वक्त हो गया था, और मीनल अब तक नीचे नहीं आई थी।

    प्रेम (धीरे से बड़बड़ाता है):
    "आज इतना लेट क्यों हो गई छोटे...?"

    किसी अनजानी आशंका ने उसे घेरना शुरू कर दिया था। उसने फिर एक बार घड़ी देखी और उठा। नौकरों से पूछने का सवाल ही नहीं था—स्वर्गविला में सिर्फ "समय" का हुक्म चलता था। प्रेम खुद ही खाना ट्रे में सजाता है और मीनल के कमरे की ओर बढ़ता है।


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    [लोकेशन: मीनल का कमरा]

    दरवाज़ा बंद था, लेकिन कुंडी नहीं लगी थी। प्रेम ने हल्का सा धक्का दिया। कमरा शांत था, बहुत शांत। खिड़की से आती हल्की रोशनी कमरे को गुमसुम बना रही थी।

    "छोटे...? मीनल?"
    प्रेम ने आवाज़ दी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

    जैसे ही उसकी नज़र बेड की ओर गई, उसके दिल की धड़कनें एक पल को रुक गईं।

    मीनल ज़मीन पर बैठी थी, पीठ बेड से टिकी हुई, सिर झुका हुआ, साँसें धीमी। और सबसे डरावनी बात—उसके नीचे फर्श पर खून फैल चुका था।

    प्रेम (घबरा कर दौड़ते हुए):
    "छोटे!! मीनल!! हे भगवान… ये क्या हुआ?!"

    उसने घुटनों के बल बैठकर उसे अपनी गोद में लेने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने उसे छुआ, मीनल कराह उठी।

    मीनल (धीमी आवाज़ में):
    "भाई... बहुत दर्द हो रहा है... मुझे समझ नहीं आ रहा ये क्या हो रहा है..."

    प्रेम के हाथ काँपने लगे। उसकी आँखें नीचे गईं—खून था, लेकिन कोई घाव नहीं। उसने तेजी से मीनल की ड्रेस को चेक किया और तब उसे समझ में आया—ये कोई चोट नहीं थी।

    वो उठा, मीनल को बेड पर लिटाया और दौड़ता हुआ कमरे से बाहर गया। एक मेड को तेज़ आवाज़ में पुकारा।

    प्रेम (तेज़ आवाज़ में):
    "नर्स! फौरन चलो! जल्दी!"

    कुछ ही मिनटों में नर्स कमरे में दाखिल हुई। प्रेम कमरे के बाहर टहलता रहा, जैसे उसकी अपनी ज़िंदगी दांव पर हो। उसकी साँसें तेज़ हो गईं थीं, माथे पर पसीना, और आँखों में डर—not physical harm का, बल्कि उस पल का… जब ये मासूम लड़की अब ‘मासूम’ नहीं रही थी।

    उसकी मिन्नतें, वो आठ साल जो उसने समय से माँगे थे… अब आधे हो चुके थे। चार साल मीनल के बचपने में बीत चुके थे, लेकिन अब बचपना खुद उसे छोड़ गया था।


    ---

    [कुछ देर बाद]

    मेड बाहर आई और धीमे से सिर हिलाकर बोली,
    "सब ठीक है, सर। मिस मीनल को पीरियड्स शुरू हुए हैं। पहली बार है, इसलिए घबरा गई हैं। मैंने सारा अरेंजमेंट कर दिया है।"

    प्रेम के चेहरे की हवाइयाँ अभी भी उड़ रही थीं। उसने सिर झुकाया और भीतर चला गया।


    ---

    [मीनल का कमरा – भावनाओं से भरा एक पल]

    मीनल बेड पर बैठी थी, घुटनों को सीने से लगाए, आँखों से आँसू बह रहे थे। वो बहुत डरी हुई थी। जैसे ही उसने प्रेम को देखा, उसकी आँखों में राहत की एक हल्की सी चमक आई।

    मीनल (रोते हुए, काँपती आवाज़ में):
    "भाई... ये क्या हो रहा है? मुझे बहुत डर लग रहा है। मुझे नहीं समझ आ रहा... इतना खून... इतना दर्द..."

    प्रेम ने बिना एक पल गँवाए उसे अपनी बाहों में भर लिया।

    प्रेम (धीमी, भावुक आवाज़ में):
    "बच्चा... मेरी जान... कुछ नहीं हुआ है। जो हो रहा है, वो बिल्कुल नॉर्मल है। नैचुरल है। हर लड़की के साथ होता है। ये तेरे शरीर का बदलता वक्त है... जवानी का पहला पड़ाव। और हाँ, दर्द है, लेकिन मैं हूँ ना। मैं सब ठीक कर दूँगा।"

    मीनल उसकी बाहों में सिसकती रही और प्रेम के सीने में खुद को और ज़्यादा छुपा लिया। प्रेम ने उसका सिर सहलाया, उसे शांत किया।


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    [कुछ देर बाद – जानकारी और विश्वास का संवाद]

    प्रेम ने मोबाइल निकाला, गूगल पर जल्दी से सर्च किया—“How to explain first period to a teenage girl?”
    उसने सारी बातें पढ़ीं और फिर पूरे धैर्य से मीनल के पास बैठ गया।

    प्रेम:
    "देख छोटे, अब तू बड़ी हो रही है। तेरे शरीर में बदलाव आ रहे हैं। हर महीने ऐसा होगा—कुछ दिनों के लिए। इस दौरान तुझे अपना ख्याल रखना होगा। साफ-सफाई, आराम, और थोड़ी सावधानी। जो दर्द है, वो मैं दवा से ठीक कर दूँगा, लेकिन जो डर है... वो तुझे मुझसे बाँटना होगा।"

    मीनल ने सिर हिलाया। उसकी आँखों में भरोसा था, और प्रेम की आँखों में एक डर—समय का।

    प्रेम (मन में सोचते हुए):
    "अब ये चार साल मुझे एक और जंग लड़नी है—वक़्त से, समय से और खुद से। मीनल को अब उस आग के लिए तैयार करना होगा जिसमें समय उसे झोंकने की कसम खा चुका है।

    ---



    मीनल अब सो चुकी थी। प्रेम उसके सिर पर हाथ रखे बैठा था। बाहर रात गहरा रही थी, और अंदर… एक नया सवेरा आकार ले रहा था।


    ---

  • 11. Toxic bro in law - Chapter 11

    Words: 1475

    Estimated Reading Time: 9 min

    रूस, एक आलीशान लेकिन सुनसान अपार्टमेंट।

    रात के तकरीबन तीन बजे थे। हर ओर सन्नाटा था, बस खिड़की से आती बर्फ़ीली हवा का सरसराता शोर था। अंधेरे कमरे में नीली रौशनी की झलक थी। समय बिस्तर पर लेटा था, बेचैन और थका हुआ। उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन माथे पर शिकनें साफ़ दिखा रही थीं कि वो किसी भारी सपने में डूबा हुआ है।

    सपने में...

    वो और स्वीटी, एक सुनहरी धूप में नहाया बाग़ — स्वीटी सफेद सूट में, चेहरे पर वही प्यारी सी मुस्कान, बालों में गजरा लगाए, जैसे उसे आखिरी बार देखा था।
    वो धीरे-धीरे समय से दूर जा रही थी, पीछे मुड़कर देखती “समय... माफ़ कर देना। ”

    समय दौड़ता है — “स्वीटी, नहीं! मत जाओ, मत छोड़ो मुझे!”

    लेकिन स्वीटी बस मुस्कुराकर हवा में घुल जाती है।
    उसकी आवाज़ जैसे दूर से आती है — “मीनल को मत तोड़ना, समय... उसने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा...”

    रियलिटी में,
    समय की चीख निकलती है:
    “स्वीटी!"

    वो पसीने-पसीने होकर बिस्तर से उठ बैठता है। साँसें तेज़, चेहरा गुस्से और डर से तमतमाया हुआ। वो चारों ओर देखता है, खुद को टटोलता है, फिर समझ जाता है कि वो सपना था।

    समय खुद से फुसफुसाते हुए, पागलों की तरह:

    “नहीं... नहीं... तुम मेरी हो स्वीटी... सिर्फ मेरी। और उस लड़की... उस मीनल की वजह से तुम मुझे छोड़ कर गईं।"

    वो बिस्तर से उठकर शीशे के सामने जाता है, खुद को देखता है — उसकी आँखों में लहू उतर आया था।

    “जिस लड़की की वजह से मैं आज भी हर रात करवटें बदलता हूँ... जिसकी वजह से मैं तड़पता हूँ... वो लड़की सुकून से कैसे रह सकती है?”

    वो जोर से शीशा तोड़ देता है, उसका हाथ लहूलुहान हो जाता है, लेकिन चेहरे पर मुस्कान आ जाती है — एक खतरनाक, बदले से भरी मुस्कान।

    वो अपने मोबाइल की स्क्रीन पर उंगलियाँ घुमाता है, किसी का नंबर खोलता है — एक msg टाइप करता है:



    फिर अपनी सूजी हुई आँखों से स्क्रीन को घूरता है और एक ज़हर बुझी हँसी हँसते हुए कहता है:
    Happy फर्स्ट पीरियड...


    ---

    स्वर्ग विला – मीनल का कमरा – रात के लगभग 2:15 बजे

    मिनल के रूम की अचानक बिजली चली जाती है। कमरे में घना अंधेरा और अचानक से बंद हुई एसी की वजह से हवा भारी और गर्म लगने लगती है। कुछ पल के लिए सब शांत था।

    मीनल बिस्तर पर गहरी नींद में थी। अचानक उसकी नींद खुलती है। उसकी नाक में पसीने और बंद कमरे की घुटन भरी हवा घुसती है।

    वो आँखें खोलती है और अंधेरे में घबरा कर बैठती है।

    "इतना गरम क्यों हो रहा है...?" वो धीमे से बड़बड़ाती है और हाथ से माथा पोंछती है।

    "भाई...? भाई...? क्या लाइट चली गई?"

    कोई जवाब नहीं। सिर्फ घुप्प सन्नाटा।

    वो बेड से नीचे उतरती है, लेकिन अचानक उसे अपनी टाँग पर कुछ सरकता हुआ महसूस होता है। जैसे कोई रेशमी चीज़ लिपटती हो।

    वो झट से उछल जाती है। "आह!" उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं।

    फिर धीरे-धीरे, जैसे जैसे वो ठहर कर खड़ी होती है... उसे अपने पैरों, अपने हाथों, अपनी पीठ पर रेंगती हुई दर्जनों चीज़ों का अहसास होने लगता है।

    छोटे-छोटे कीड़े। रेंगते हुए। सरसराते हुए।

    "न... नहीं... ये क्या है?" वो पैनिक में आ जाती है।

    वो दीवार के सहारे पीछे हटती है लेकिन उसका पाँव किसी कीड़े पर पड़ता है और वो फिसल जाती है। ज़मीन पर गिरते ही उसके चेहरे के पास एक कीड़ा रेंगता है — वो डर से बुरी तरह काँपने लगती है।

    "भाई!!" अब उसकी आवाज़ थरथरा रही थी।

    उसकी धड़कनें बेकाबू हो रही थीं। दिल जैसे फटने को हो।

    "कोई... कोई है क्या... प्लीज़... मदद करो..." वो अंधेरे में हाथ जोड़ कर रोने लगती है।

    अब उसके पूरे शरीर पर पसीना बह रहा था, डर से उसकी छाती में तेज़ दर्द उठता है। वो खुद को समेट कर एक कोने में बैठ जाती है, दोनों घुटनों को पकड़ कर काँपती है।

    "मैं मर जाऊँगी क्या... क्या हो रहा है मेरे साथ..." उसकी आवाज़ टूट रही थी।

    कमरे में कीड़े अब ज़मीन पर, दीवारों पर, उसके बेड पर थे। कोई उसे काट नहीं रहा था, लेकिन उनकी उपस्थिति ही जैसे एक भयानक सज़ा थी।

    वो ज़ोर से चिल्लाना चाहती थी, पर उसकी आवाज़ गले में अटक गई थी। साँस घुटने लगी थी। दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी जैसे सीने को फाड़ देगी।

    "भाई... भाई... आप कहाँ हो... मुझे बचा लो..."

    वो आँखें बंद कर लेती है। पूरी तरह पसीने से लथपथ। दहशत में डूबी। दिल की धड़कनें जैसे एक-एक सेकंड में उसे बेहोश कर देने को हों।

    अचानक... कमरे के बाहर से एक हल्की सी खटखटाहट होती है।




    ---

    स्वर्ग विला – स्टडी रूम – रात 2:25 बजे

    प्रेम अपनी फाइल्स में डूबा हुआ था। कंप्यूटर की स्क्रीन पर चार्ट्स और मीटिंग नोट्स बिखरे हुए थे। कमरे में हल्की-सी टेबल लैंप की रोशनी थी, और AC की धीमी सरसराहट।

    पर अचानक... उसका दिल जैसे धक से रुक जाता है।

    उसके हाथ में पकड़ा पेन ज़मीन पर गिर जाता है।

    "क्या हुआ..." वो बुदबुदाता है, अपनी छाती को हल्के से दबाता है। एक अजीब बेचैनी ने उसे घेर लिया था। जैसे उसके अंदर कुछ तड़प उठा हो।

    वो उठकर कमरे में टहलने लगता है।

    "ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कुछ ग़लत हो रहा है?"

    उसकी नज़र घड़ी पर जाती है — रात के 2:26। और तभी... बिजली चली जाती है।

    पूरा विला अंधेरे में डूब जाता है।

    "मीनल!" प्रेम के मुँह से ये नाम खुद-ब-खुद निकलता है। उसका चेहरा डर से सफेद हो चुका था।

    वो भागता है... तेज़ कदमों से, जैसे उसका दिल उसे खींच रहा हो।

    "मीनल... मीनल!"

    वो हॉलवे से गुज़रता हुआ सीधे उस कॉरिडोर की ओर बढ़ता है जो मीनल के रूम की ओर जाता है। रास्ते में वो एक टॉर्च उठाता है, उसकी टिमटिमाती रोशनी में भागता है।

    "कुछ हुआ तो नहीं उसे..." उसका दिल दहशत से कांप रहा था। वो जानता था कि बिजली जाना मामूली बात नहीं है... और इस घुटन भरे मौसम में मीनल... अकेली?

    उसकी रफ्तार तेज़ हो जाती है।

    और तभी... जैसे उसे दूर से आती एक टूटी हुई सिसकी सुनाई देती है।

    "भाई..."

    वो सन्न रह जाता है। उसका दिल चीरता है वो आवाज़।

    "मीनल!" अब वो दौड़ने लगता है।


    ---

    मीनल का कमरा – अंधेरा और डर से भरा माहौल

    मीनल फ़र्श पर बैठी कांप रही थी, उसके बदन पर जगह-जगह कीड़े रेंग रहे थे। वो खुद से चिपके अपने कपड़ों को नोच रही थी, जैसे बदन पर रेंगती हर चीज़ उसके डर को और बढ़ा रही हो। उसकी सिसकियाँ अब चीखों में बदल चुकी थीं, लेकिन आवाज़ जैसे दीवारों में घुट रही थी।

    तभी दरवाज़ा जोर से खुलता है — प्रेम अंदर दाखिल होता है, हाथ में टॉर्च लिए।

    टॉर्च की रोशनी सीधी मीनल के कांपते बदन पर पड़ती है। वो फौरन दौड़कर उसके पास पहुँचता है।

    "मीनल!" उसके गले से टूटी हुई आवाज़ निकलती है।

    वो झुककर उसे बाँहों में भरता है, पर मीनल डर से काँप रही थी।

    "भाई… भाई… बचाओ मुझे… ये क्या हो रहा है मेरे साथ… ये क्या है!"

    प्रेम उसकी हालत देखकर खुद भी हिल गया था। उसकी आँखों में आंसू थे लेकिन चेहरा सख्त बना रखा था।

    "कुछ नहीं बच्चा… कुछ नहीं… अब कुछ नहीं होगा… मैं हूँ ना…"

    वो मीनल को उठाकर भागता है — उसके कांपते हुए बदन को अपनी छाती से लगाए — जैसे अपनी जान बचा रहा हो।


    ---

    सीन कट – प्रेम का कमरा

    वो कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद करता है, और मीनल को बाथरूम मे ले जाकर खड़ा करता है। उसका बदन अब भी काँप रहा था, चेहरे पर सिहरन और बाल बिखरे हुए।

    प्रेम उसके सिर पर हाथ रखकर कहता है —
    "बच्चा, तुम बहुत बहादुर हो… लेकिन अभी तुम्हें नहाना होगा… तुम्हारे कपड़ों से शायद कीड़े आ गए थे… पानी से सब उतर जाएगा, ओके?"

    मीनल कुछ कहती नहीं, बस सिर हिलाकर अंदर की ओर बढ़ जाती है।

    जैसे ही मीनल बाथरूम में दाख़िल होती है, प्रेम दरवाज़े के पास खड़ा हो जाता है। उसके हाथ अब भी काँप रहे थे… आँखें दरवाज़े पर और दिमाग किसी और जगह।

    "ये हुआ क्या… विला में इतने सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ… फिर आज क्यों?"

    तभी अचानक —
    "समय!"

    उसके दिमाग में जैसे आग लग जाती है।

    "नहीं… ये इत्तेफाक नहीं हो सकता… ये वही है… वही! वही जो अब तक दूर था… पर अब लौट आया है?????…अभी 4साल बाकि है phir यह सब???।"

    प्रेम का चेहरा गुस्से से लाल हो उठता है, लेकिन फिर अगले ही पल वह खुद को रोक लेता है। उसके गुस्से में एक खौफ भी छुपा है।



    वो जेब से मोबाइल निकालता है, एक नंबर पर मेसेज टाइप करता है —
    "I know it's you."

    दूसरी तरफ से एक msg आता है
    "Happy First Periods, ... बहन के लाडले भई"


    ---

    यह सुनते ही प्रेम के हाथ से फोन नीचे गिर जाता है मतलब समय ko मिनल की hr खबर मिल रही है यह सोच वो हैरान था..

  • 12. Toxic bro in law - Chapter 12

    Words: 1211

    Estimated Reading Time: 8 min

    प्रेम का चेहरा तमतमा उठा था। मीनल की हालत ने उसे झकझोर दिया था, लेकिन अब जब उसे धीरे-धीरे यकीन होता जा रहा था कि यह सब कोई साधारण हादसा नहीं था, उसके ज़हन में एक ही नाम गूंज रहा था — समय!

    वो तेज़ी से कमरे से बाहर निकला, उसका हाथ अब भी काँप रहा था। जैसे ही उसका फोन जेब से निकालने को हुआ, हाथ से छूटकर फर्श पर गिर गया। लेकिन प्रेम ने खुद को सँभाला, झुका, और फोन उठाकर तेजी से नंबर डायल किया। उंगलियाँ कांप रही थीं, लेकिन चेहरा आग बबूला था।

    ट्रिन ट्रिन... कॉल कनेक्ट होती है।

    फोन रिसीव होते ही दूसरी तरफ से एक गूंजती हुई, शातिर और ठंडी हँसी सुनाई देती है।

    समय (साँस भरते हुए, एक शातिर मुस्कान के साथ):
    "तो फाइनली… बहन की देखभाल से फुर्सत मिली? याद आ ही गया तुम्हें इस बंदे का नंबर?"

    प्रेम (गुस्से को ज़ब्त करते हुए, दाँत भींचते हुए):
    "समय! जो भी तूने किया… वो बहुत नीच हरकत थी। मीनल अभी एक ट्रॉमा से गुज़र रही है… और तूने उस पर कीड़ों का हमला करवाया? उसे जानवरों की तरह डरा दिया! वो अभी बच्ची है, damn it!"

    समय (ठहाका मारता है, लेकिन आवाज़ में एक सिहरन सी है):
    "बच्ची? नहीं प्रेम… वो अब बच्ची नहीं रही… उसका पहला ख़ून बह चुका है… और अब मेरी नज़रें उस पर हैं। उसकी हर साँस मेरी इजाज़त से चलेगी।"

    प्रेम (गुस्से से फुंफकारते हुए):
    "समय! तुझे हो क्या गया है? तुझे याद है न… स्वीटी ने अपनी मर्ज़ी से मीनल को दिल दिया था। वो तेरी मर्ज़ी नहीं थी, वो स्वीटी का प्यार था। तू ये कैसे भूल सकता है?"

    समय (अब आवाज़ में तीखापन और पागलपन घुला है):
    "स्वीटी ने मुझसे मेरी ज़िंदगी छीन ली, प्रेम! उसने मुझसे ज़िंदा रहने की वजह छीन ली। और बदले में? उस मीनल को दे दिया… मेरा सब कुछ!"

    "तू जानता है ना पहले मैंने स्वीटी से क्या कहा था? 'रुको स्वीटी, कोई और रास्ता ढूँढते हैं'… लेकिन वो नहीं रुकी। उसने मुझसे मेरी बीवी छीनी… और अब, मैं उस लड़की को एक-एक दिन जीने की सज़ा दूँगा… क्योंकि हर धड़कन जो अब मीनल के सीने में चल रही है… वो मेरे स्वीटी के दिल की है!"

    प्रेम (शॉक में, लेकिन अब भी समझाने की कोशिश करता है):
    "समय, ये तेरा ग़म है… लेकिन ग़म को गुनाह मत बना… स्वीटी तुझे बदला लेने के लिए नहीं, माफ़ करने के लिए छोड़ गई थी… तू उसकी आखिरी वसीयत को ऐसा रौंदेगा?"

    समय (धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए, लेकिन हौले से ज़हर घोलते हुए):
    "माफ़ी? नहीं प्रेम… अब माफ़ी की कोई जगह नहीं। अब सिर्फ बदला है… और उसकी शुरुआत हो चुकी है। मीनल का पहला पीरियड, मेरा पहला वार…"

    (एक क्रूर, जीत की हँसी के साथ)


    "Happy First Periods, मीनल।"

    कॉल डिस्कनेक्ट हो जाता है।


    ---

    प्रेम, जो दरवाज़े से सटकर खड़ा है। उसकी मुट्ठियाँ भींची हुई हैं, माथा पसीने से भीग चुका है।
    उसकी आँखों में गुस्से और बेबसी का तूफ़ान चल रहा है।
    प्रेम (अपने आप से बड़बड़ाता है):
    "नहीं... मैं तुझे मीनल की तरफ़ बढ़ने नहीं दूँगा समय… तू अपनी बर्बादी खुद लिख चुका है…"


    ---



    ---

    समय का लोकेशन, एक अंधेरे कमरे में लाल रोशनी के बीच

    फोन कटते ही समय गहरी साँस लेता है, उसकी आँखें सुलगती हुई आग की तरह चमक रही होती हैं। उसके चेहरे पर शातिर मुस्कान लौटती है, मगर इस बार वो मुस्कान सुकून की नहीं, किसी पागल बदले की गवाही देती है।

    समय (आहिस्ता से खुद से बड़बड़ाते हुए, निगाहें ज़मीन पर):
    "चार साल… हाँ, पूरे चार साल मैंने तुझे बचपन जीने दिया, मीनल। तू खेली, तू हँसी, तू जीती... मेरी स्वीटी का दिल लिए हुए, जैसे तेरा कोई हक़ था उस पर!"

    (फिर उसकी आवाज़ भर्राने लगती है पर चेहरा ठंडा बना रहता है)

    "अब चार साल और बाकी हैं... फिर मैं खुद आऊँगा… इंडिया… और अपनी स्वीटी की कातिल से खुद हिसाब लूँगा। एक-एक सांस का हिसाब...!"

    वो धीरे से अपनी उंगलियाँ चटकाता है, जैसे किसी मानसिक युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रहा हो।


    ---
    प्रेम के घर, मीनल का कमरा।

    बाथरूम का दरवाज़ा हल्के से खुलता है। मीनल, भीगी हुई, कांपती हुई बाहर निकलती है। उसका चेहरा पीला है, आँखों में डर गहराया हुआ है। अब भी बदन पर अजीब सी घिन और सिहरन बाकी है। वो खुद को टॉवल में लपेटे धीमे-धीमे बाहर निकलती है।

    कमरे में सन्नाटा है। प्रेम वहाँ नहीं है।

    मीनल (हल्की आवाज़ में, डरी हुई):
    "भ… भाई? भाई कहाँ हो?"

    कोई जवाब नहीं आता।

    मीनल (अब घबराकर थोड़ा तेज़ आवाज़ में):
    "भाई!!"

    उसकी आवाज़ काँप रही है। आँखों से आँसू बह निकले हैं। वो अपने हाथों से खुद को पकड़े खड़ी है, काँपती हुई। आँखों के सामने फिर से उन रेंगते हुए कीड़ों का दृश्य घूम जाता है। अचानक ही उसकी साँसें तेज़ होने लगती हैं।

    मीनल (फूट-फूटकर रोते हुए):
    "भाई… भाई… मुझे डर लग रहा है… भाई… प्लीज़… भाई!!"


    ---

    कट टू — प्रेम, जो अभी भी समय की बातों को सोच रहा था। उसकी आँखें गुस्से से भरी थीं लेकिन जैसे ही उसे मीनल की चीख सुनाई देती है, उसका दिल धड़क उठता है।

    वो बिना एक पल गंवाए रूम की तरफ़ भागता है।


    ---

    कट टू — मीनल का कमरा।

    प्रेम दरवाज़ा खोलता है और देखता है मीनल काँपती हुई एक कोने में खड़ी है, टॉवल में लिपटी, चेहरे पर आंसुओं की धार।

    प्रेम (दौड़ते हुए उसके पास जाता है, धीरे से उसका चेहरा पकड़ता है):
    "बच्चा… ओह माई गॉड… मीनल… कुछ नहीं हुआ… मैं आ गया…"

    मीनल (उसे कसकर पकड़ते हुए, चीखते हुए रोती है):
    "भाई! भाई वो कीड़े… वो फिर से आएँगे ना… वो… वो सब मेरे ऊपर थे… मुझे बहुत डर लग रहा है भाई… बहुत…"

    प्रेम (उसके बाल सहलाते हुए, उसे सीने से लगाता है):
    "नहीं, मेरी जान, कुछ नहीं होगा अब… देखो, अब तुम मेरे पास हो। और जब मैं हूँ, तो तुम्हारे पास कोई डर नहीं आएगा। एक कीड़ा भी तुम्हारे पास नहीं फटकेगा। मैं हूँ न?"

    वो उसे चुप कराता है, धीरे से बेड तक ले जाता है और उसे ओढ़ा देता है।

    प्रेम (धीरे से):
    "अब सो जाओ मीनल… बस आज का दिन बुरा था… गुज़र गया… अब कुछ नहीं होगा… मैं यहीं हूँ।"

    मीनल (धीरे से):
    "भाई… आप कहीं मत जाना… प्लीज़…"

    प्रेम:
    "नहीं जाऊँगा बच्चा… यही हूँ तुम्हारे पास… हमेशा।"

    मीनल रोते-रोते ही थककर सो जाती है। उसके साँसों की रफ्तार धीरे-धीरे शांत हो जाती है।


    ---

    प्रेम, मीनल के सोने के बाद।

    वो धीरे से उठकर खिड़की के पास जाता है, बाहर अंधेरा है लेकिन उसके भीतर आग जल रही है। उसका चेहरा सख्त है, आँखे लाल।

    प्रेम (अपने आप से बड़बड़ाता है):
    "समय ने जो कहा… वो सिर्फ शब्द नहीं थे… वो चेतावनी थी। वो सचमुच उसे तोड़ने आ रहा है।"

    (वो पलटकर सोती हुई मीनल को देखता है)

    "लेकिन नहीं… जब तक मैं ज़िंदा हूँ, तब तक मीनल तक कोई नहीं पहुँच सकता। कोई समय भी नहीं।"

    (उसकी आँखों में संकल्प की चमक उभरती है)

    "अब उसे मजबूत बनाना होगा। बहुत मजबूत। ये मासूमियत… ये डर… ये आंसू… इन सबको पीछे छोड़कर उसे खुद के लिए लड़ना सिखाना होगा।"

    (एक लंबी सांस लेकर)

    "मैं तेरा भाई नहीं हूँ मीनल… लेकिन जब तक मेरी सांस चलेगी… तू मेरी बेटी बनकर जीएगी। और मैं तुझे टूटने नहीं दूँगा।"

    2 साल बाद
    ---
    कमैंट्स करे और फॉलो भी plz

  • 13. Toxic bro in law - Chapter 13

    Words: 1207

    Estimated Reading Time: 8 min

    दो साल बाद – मीनल की ट्रेनिंग, हिम्मत और डर]

    वक़्त बीत चुका था, दो साल पूरे हो चुके थे…

    अब मीनल वो नहीं थी  अब वो तेज़ थी, निडर थी, चौकन्नी थी। उसे हर उस चीज़ में निपुण बना दिया गया था, जिसकी उसे समय से लड़ने में जरूरत पड़ने वाली थी। और इस सफ़र में उसका सबसे बड़ा साथी था—प्रेम।

    स्वर्ग विला का अंडरग्राउंड फाइट क्लब, जो प्रेम ने मिनल के लिए tyar करवाया था..

    मीनल बनाम कम्पीटिटर

    धुएँ से भरे एक अंडरग्राउंड फाइटिंग रिंग में तालियों और शोर की गूंज उठ रही थी। रिंग के बीचों-बीच खड़ी थी मीनल—ब्लैक ट्रैकसूट, आंखों पर सटी हुई फोकस की एक रेखा, और पैरों में फुर्ती जैसे बिजली हो।

    उसके सामने था एक प्रोफेशनल फाइटर—कद में लंबा, वजन में भारी, लेकिन मीनल के चेहरे पर एक शिकन नहीं।

    क्लैश की आवाज़ के साथ फाइट शुरू हुई। फाइटर ने पहला पंच फेंका—मीनल ने डक किया, घुटने से मिड-सेक्शन पर वार किया, एक हाथ पीछे खींचा और अगले ही पल उसका घूंसा फाइटर के जबड़े पर पड़ा। फाइटर लड़खड़ाया… और फिर ज़मीन पर गिरा।

    भीड़ सन्न थी। फिर ताली बजने लगी। मीनल बस हल्की-सी सांस लेकर शांत खड़ी रही—जैसे ये उसके लिए आम बात हो।

    मिनल रिंग se बाहर आकर प्रेम को देख कर, “ कब तक लडू इन मेड़को se कोई ढंग का फाइटर लाओ मेरे लिए afterall 16 को हो चुकी हूँ मैं...
    प्रेम मिनल कि बात सुन कुछ नहीं कहता वो मिनल का हाथ पकड़ le चलता है दूसरे बंकर मे,,

    काली रात में, विला के बंकर जैसी एक रूम में मीनल के सामने तीन मॉनिटर जल रहे थे। स्क्रीन पर एक मल्टीनेशनल कंपनी का सिक्योरिटी फायरवॉल दिख रहा था। मीनल की उंगलियाँ की-बोर्ड पर नाच रही थीं।

    "प्रोटोकॉल बाईपास्ड... एक्सेस ग्रांटेड..." स्क्रीन पर लिखा आया।

    "Boom!" मीनल फुसफुसाई। फिर उसने सारी इनसाइड डिटेल्स, फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स, और टेंडर इंफॉर्मेशन खींच लीं।

    प्रेम पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

    "अब तुझे कोई बेवकूफ नहीं बना सकता, मीनल," वो बोला।

    "मैं भी यही चाहती हूँ, भाई... अब डरना नहीं, सिर्फ लड़ना है।"

    [सीन – रात का सन्नाटा और मीनल का डर]

    लेकिन जैसे ही रात होती थी, जब वक़्त ठहर सा जाता, तब मीनल के अंदर की बच्ची जाग जाती।

    वो अपने बिस्तर पर करवट बदलती थी, आँखें खुली होतीं लेकिन मन एक ख्वाब में फंसा होता। वो भयानक ख्वाब जिसमें उसका रूम बंद था, और दीवारों से, जमीन से, अंधेरे से निकलते कीड़े उसके बदन पर रेंगते थे। उसकी चीखें, उसकी तड़प, और दरवाज़े की वो साँकल जो खुलती ही नहीं थी...

    मीनल पसीने में भीग जाती। साँसें तेज़, दिल की धड़कन जैसे कांप रही हो।

    वो खुद को ज़बरदस्ती शांत करती, पर जब-जब आँखें बंद करती, वो ख्वाब फिर लौट आता।

    उसने धीरे से खुद से कहा, "मैं सोऊंगी ही नहीं... आज नहीं।"

    [सीन – प्रेम की चिंता]

    दूसरे कमरे में प्रेम सीसीटीवी पर मीनल को देख रहा था। उसकी आँखों में चिंता थी।

    "वो सोई नहीं फिर... दो साल हो गए... लेकिन उस एक रात ने उसे छोड़ना नहीं सीखा..." उसने खुद से कहा।

    वो उठा, मीनल के कमरे की ओर चल पड़ा।

    [सीन – भाई-बहन का खूबसूरत रिश्ता]

    सुबह की पहली किरणों में जब मीनल किचन में थी, उसने देखा प्रेम बैग्स उठा रहा है।

    "क्या अब मैं चाय बनाऊँ या फिर आज खुद ही लड़ना चाहते है मुझसे?" मीनल मुस्कुराई।

    "ओ, अब तू चाय भी बनाती है? कमाल है, हैकर बाबू!" प्रेम मुस्कुराते हुए बोला

    "अरे भाई, अब तूमने सिखाया है तो हर फील्ड में टॉप पर रहना है," मीनल ने आँख मारते हुए कहा।

    प्रेम ने पास जाकर मीनल की नाक खींची और बोला, "बस अब तुझे उस एक रात को जीतना है, मीनल। और जब तेरा डर तुझसे हार जाएगा... तब समय भी तुझसे हार जाएगा।"

    मीनल कुछ पल चुप रही, फिर बोली, "वो रात रोज़ आती है भाई, लेकिन अब मैं भी रोज़ लड़ती हूँ। तू साथ है ना, बस इतना काफी है।"


    प्रेम मन मे,
    "अब यह सिर्फ और सिर्फ मेरी बहन नहीं... अब यह खुद  की रखवाली करने वाली लड़की है.. और अब डर को नहीं, सिर्फ समय को जवाब देना है।"

    कहानी अभी बाकी है…

    दूसरी तरफ, समय का अड्डा | अंधेरे का खेल और आग से भरी हँसी]

    रात के साढ़े तीन बज चुके थे।
    कहीं दूर किसी पहाड़ के बीचों-बीच एक आलीशान लेकिन वीरान-सी हवेली थी—उस हवेली के तहखाने में बैठा था वक़्त से पहले बूढ़ा हो चुका एक शातिर दिमाग़… समय।

    कमरे में रौशनी कम थी, दीवारों पर पुरानी घड़ियाँ टंगी थीं जो अब टिक-टिक नहीं करतीं, लेकिन समय के दिमाग़ की सुइयाँ तेज़ चल रही थीं।

    वो एक लाल बेल्ट वाली टेलीफोन लाइन से जुड़े एक फोन पर बात कर रहा था।

    वॉयस ऑन फोन (नरम लेकिन डरावनी):
    "साब, लड़की बहुत तेज़ है… पिछले महीने अंडरग्राउंड फाइट जीती है, इस हफ्ते ही एक इंटरनेशनल कंपनी का डाटा हैक किया है। उसकी एक्टिविटी हर घंटे ट्रैक कर रहा हूँ।"

    समय (धीरे से कुर्सी पर झुकते हुए, आँखें मिचकाकर)
    "ओह… मीनल नाम है ना उसका?
    मज़ा आ रहा है ये सब सुनकर।
    जिसे मैंने एक ही रात में नींद से डरना सिखाया था,
    वो अब जागती आँखों से लड़ना सीख गई है?"

    वो हँसने लगा। लेकिन ये हँसी किसी जीत की नहीं, किसी तूफान के आने की खबर थी।

    समय (आँखें बंद करके साँस लेते हुए)
    "प्रेम... तू सच में समझ बैठा है कि तू उस बच्ची को मेरे खिलाफ खड़ा कर देगा?
    भाई बन कर उसकी ढाल बनेगा?
    तू उसकी हिम्मत है, मैं उसका डर हूँ।
    और डर, हिम्मत से पहले पैदा होता है…
    उसे मिटने में वक्त लगता है।"

    वो अचानक कुर्सी से उठता है, और दीवार की तरफ मुड़कर हल्के से सिर झुकाता है – जहाँ एक फ्रेम में स्वीटी की ब्लैक एंड व्हाइट फोटो टंगी है।
    वो फ़्रेम के सामने आकर धीमे से फुसफुसाता है:

    "स्वीटी... आज भी तेरा चेहरा सामने आता है तो मुझमें आग लग जाती है।
    तेरा दिल उस लड़की के सीने में धड़क रहा है,
    और मैं हर धड़कन को गिन रहा हूँ…
    6 साल से।"

    फिर वो पीछे मुड़ता है, फ़ोन उठाता है और उस आदमी से कहता है:
    "सुन… उस लड़की की हर सांस, हर कदम, हर कंप्यूटर क्लिक – सब मेरी नज़रों में रहे।
    जिस दिन वो मेरी नज़रों के सामने आई,
    उस दिन मैं खुद उसे देखूँगा… पहली बार…
    और शायद आख़िरी बार।"

    (फिर हँसते हुए धीरे से दाँत भींचता है)
    "क्योंकि जिस लड़की का चेहरा मैंने आज तक सिर्फ इस लिए नहीं देखा…
    कहीं उसका कत्ल उसी वक़्त ना हो जाए मेरे हाथों से…
    वो अब मेरे सामने आकर मुझसे लड़ेगी?"

    वो ज़ोर से हँसता है – एक शिकारी की तरह जिसकी नज़र शिकार पर जम चुकी है।

    "अब खेल असली शुरू होगा…
    6 साल बीत चुके हैं...
    अब चार साल और नहीं लगेंगे।
    इस बार मैं खुद जाऊँगा इंडिया…
    अपनी स्वीटी की कातिल से मिलने।"

    सीन एंड — एक पुराना गाना बजता है, धीमे सुरों में:
    "Ek pal ka जीना, phir to hai मरना...
    तेरे सीने में जो दिल है, वो मेरा हैarna..."

    अगला मोड़ अब और खतरनाक होगा।
    क्या मीनल उस आदमी से लड़ सकेगी जिसका एक वार आज भी उसकी नींदें छीन लेता है?
    क्या प्रेम उसे बचा पाएगा?
    या फिर यह जंग किसी ऐसे मोड़ पर जाएगी जहाँ रिश्ते, दिल और बदले की सीमाएँ धुंधली पड़ जाएँगी…?

    22 महीने बाद

  • 14. Toxic bro in law - Chapter 14

    Words: 1370

    Estimated Reading Time: 9 min

    प्रेम का रूम – रात का वक्त, हल्का अंधेरा,
    प्रेम रूम मै टहल रहा था
    प्रेम का माथा तनाव से भरा हुआ है। वो मोबाइल को बार-बार देख रहा है, जैसे फोन का वज़न उसके सीने पर पड़ा हो। हल्की काँपती आवाज़ में वो कॉल करता है — प्रिया को।

    प्रेम (धीरे, थका हुआ लेकिन भावुक स्वर में):
    "प्रिया… प्लीज़, ट्राय टू अंडरस्टैंड।
    मैं तुम्हें अभी सब कुछ नहीं बता सकता…
    कुछ मजबूरियाँ हैं मेरी,
    तुम्हें नहीं पता… मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।
    बस थोड़ा और टाइम दो मुझे, मैं आकर तुमसे मिलूंगा,
    सब क्लियर कर दूँगा, वादा करता हूँ।"

    फोन के दूसरी तरफ से प्रिया  जो प्रेम कि बचपन कि मोहब्बत थीं,की आवाज़ आती है—
    कांपती हुई, हिचकियाँ भरती हुई, लेकिन गुस्से से जलती हुई भी।

    प्रिया (भीतर टूटती हुई, लेकिन बाहर सख्त लहज़ा):
    "कुछ टाइम...?
    प्रेम… आठ साल होने को आ गए!
    आठ साल तुमने मुझे एक उम्मीद में बाँध कर रखा…
    क्या तुम्हें लगता है कि एक लड़की के लिए आठ साल इंतज़ार मामूली बात है?"

    उसकी आवाज़ रुकती है… फिर फूट पड़ती है।

    प्रिया (अब रोते हुए):
    "मैंने तुम्हारे कहने पर सब छोड़ दिया प्रेम।
    छह साल तुमसे दूर  अबोर्ड रही,
    अपनी पढ़ाई के नाम पर मैं एक कैद काटी हूँ तुमसे दूर रह कर,…
    और अब तुमसे मिलने के लिए दो साल से रिक्वेस्ट कर रही हूँ
    और तुम हर बार टालते आए हो।
    क्या सोचते हो कि मैं बेवकूफ़ हूँ?
    मुझे बताओ ना, ऐसा कौन सा काम है
    जिसकी वजह से तुम दूर हो मुझसे?
    अगर कोई और है तुम्हरी ज़िन्दगी मै तो bol do सीधे सीधे मुड़ कर भी नहीं देखूंगी तुमको"

    प्रेम एक पल को चुप रह जाता है
    उसकी साँसें तेज़ हो जाती हैं, गला भर आता है
    फिर जैसे खुद को ज़ोर से समेटते हुए जवाब देता है—

    प्रेम (काँपते हुए):
    "यार कैसी बात कर रही हो प्रिया…
    मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे सिवा कोई भी नहीं है।"

    प्रिया (तेज़ और झनझनाती आवाज़ में):
    "ओह रियली?
    तो थोड़ी देर पहले जब मैंने कॉल किया था
    तो किसी लड़की ने फ़ोन उठाया था…
    क्या वो भी तुम्हारी 'कोई नहीं' है?"

    प्रेम हक्का-बक्का रह जाता है। माथा थाम लेता है।
    गहरा सन्नाटा, फिर धीरे से बोलता है—

    प्रेम (आवाज़ भारी):
    "वो… वो मेरी बहन है प्रिया।
    मैं सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ…"

    प्रिया (खामोशी के बाद एक थकी हुई साँस लेती है):
    "बहन…?"
    (थोड़ी देर चुप… फिर खुद को सँभालते हुए कहती है)
    "ठीक है।
    अभी मिलते हैं… सिटी कैफ़े में।
    वहाँ बैठ कर सब कुछ जानना चाहती हूँ।
    उसके बाद… जो भी मेरा फैसला होगा,
    वो फाइनल होगा।"

    फोन कट।
    लेकिन इस कट में एक दिल की चीख दबी होती है।

    प्रिया का कमरा,

    प्रिया फ़ोन को बेड पर फेंकती है, फिर उसी पर गिर पड़ती है।
    उसकी आँखों से आँसू बह रहे हैं, होंठ बुदबुदा रहे हैं।

    प्रिया (धीरे-धीरे फूटते शब्दों में):
    "प्रेम…
    तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
    प्लीज़ कोई ऐसी बात मत कहना
    जिससे मेरा दिल टूट जाए…
    और मेरा मोहब्बत से भरोसा उठ जाए।"

    प्रेम का रूम

    कमरा बिखरा नहीं है, लेकिन वहाँ एक बेचैनी पसरी है।
    प्रेम कुर्सी पर बैठा है, सिर दोनों हथेलियों में दबाए।
    उसकी आँखों के नीचे थकान और दिल के अंदर एक ऐसा तूफान जो बाहर आने का रास्ता ढूंढ़ रहा है।

    प्रेम (धीरे से बड़बड़ाता है, खुद से):
    "मैं क्या करूँ…
    प्रिया को खो भी नहीं सकता,
    और मीनल को किसी की नज़रों में लाकर ख़तरे में भी नहीं डाल सकता।
    8 साल से उसे सब से छुपा कर रखा,
    हर ख़ुशी, हर तकलीफ़ से बचा कर…
    लेकिन अब... अब प्रिया को सच्चाई कैसे बताऊँ?"

    वो उठकर टहलने लगता है, आँखें लाल हैं।
    हर कदम उसके दिमाग की उलझनों को दिखा रहा है।

    प्रेम (खुद से, बुरी तरह उलझा हुआ):
    "अगर प्रिया को बताया कि मीनल कौन है…
    तो समय तक बात पहुँचेगी…
    और अगर नहीं बताया,
    तो प्रिया… हमेशा के लिए चली जाएगी…"

    वो दीवार पर मुक्का मारने ही वाला होता है कि—
    दरवाज़ा खटखटाए बिना खुलता है, और मीनल अंदर दाखिल होती है।

    मीनल (हँसते हुए, चंचल अंदाज़ में):
    "ओह हो… आज तो रूम में 'साइलेंस का हमला' हो गया है…
    क्या बात है, 'बॉस भाई' टेंशन में लग रहे हैं…
    कहीं कोई लड़की से प्रपोज़ल तो नहीं आ गया?"

    वो उसकी तरफ शरारती अंदाज़ में एक तकिया फेंकती है।

    प्रेम (चौंककर देखता है, फिर वापस आँखें फेर लेता है):
    "मीनल… अभी नहीं… प्लीज़।"

    मीनल (मुँह बनाकर):
    "अभी नहीं?
    इतनी सीरियसनेस…
    चलो ठीक है, तुम्हारा मूड ठीक करती हूँ।"

    वो ज़मीन पर बैठकर मुँह बनाती है, एक्टिंग करती है जैसे कोई जादूगरनी हो और बोले—

    मीनल (मज़ाक में):
    "अब इस टेंशन के भूत को भगाओ… झाss…"

    प्रेम (अचानक तेज़ आवाज़ में):
    "Enough, Minal!!
    क्या हर वक़्त तुम्हें हँसी-मज़ाक की पड़ी रहती है?
    हर बात मज़ाक नहीं होती!
    तुम्हें ज़रा सा भी अंदाज़ा है कि बाहर क्या चल रहा है?
    क्या कभी सोचा है कि तुम्हारी वजह से क्या-क्या दांव पर लगा हुआ है?"

    मीनल (सन्न, उसकी आँखों में जैसे आंसू तुरंत भर आते हैं):
    वो बिना कुछ कहे कुछ सेकेंड तक प्रेम को देखती है…
    जैसे समझ ही न आ रहा हो कि ये वही प्रेम है जो कभी हाथ पकड़ कर डर भगाया करता था।

    मीनल (धीरे, टूटी आवाज़ में):
    "मैं… मैं तो बस तुम्हें हँसाना चाहती थी…"

    वो वहाँ से तुरंत मुड़ती है, और भागती हुई अपने कमरे की तरफ जाती है।
    प्रेम कुछ कदम बढ़ाता है, लेकिन फिर रुक जाता है।

    मीनल का रूम
    वो कमरे में दाखिल होती है, दरवाज़ा बंद करती है और फर्श पर गिर पड़ती है।

    मीनल (आँखों से आँसू गिरते हुए):
    "आज… पहली बार…
    भाई ने मुझे डांटा…
    शायद… अब मैं उसके बोझ बन गई हूँ।"

    वो अपने घुटनों में मुँह छुपाकर चुपचाप रोती रहती है।

    प्रेम का रूम
    वो दीवार के सहारे खड़ा है, आँखें बंद कर ली हैं।

    प्रेम (धीरे से):
    "माफ़ कर मीनल…
    लेकिन मैं तुम्हें इस दुनिया के सामने लाकर खोना नहीं चाहता…
    और प्रिया…
    अगर तू चली गई…
    तो मैं खुद को भी माफ़ नहीं कर पाऊँगा…"

    रात का समय

    कमरे में चुप्पी छाई थी। मीनल खिड़की के पास बैठी बाहर आसमान को देख रही थी। चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी, लेकिन उसकी आँखों में उदासी का अंधेरा गहरा था।

    “शायद... प्रेम भैया मुझसे परेशान हो चुके हैं... मेरी बातों से, मेरी हरकतों से…” मीनल ने खुद से बुदबुदाते हुए कहा।

    वो धीरे-धीरे ज़मीन पर बैठती गई, और उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। उसके ज़ेहन में मम्मी-पापा की तस्वीरें घूमने लगीं।

    "मम्मी... पापा... आप सब कहाँ हो? क्या आप भी मुझे भूल चुके हो? क्या मैं सच में बोझ बन गई हूँ सबके लिए?"

    उसने वो पुराना पेंडेंट निकाला जो कभी उसकी माँ ने उसे दिया था, उसे सीने से लगाकर फूट-फूटकर रोने लगी।

    दूसरी ओर, प्रेम गाड़ी की चाबी उठाकर जल्दी से बाहर निकलता है। वो प्रिया से मिलने निकल पड़ा है — उसकी आवाज़, उसकी नाराज़गी अब भी कानों में गूंज रही है।

    "मैं प्रिया को खो नहीं सकता... मैं मीनल को वैसे भी समझा चुका हूँ... वो समझ गई होगी कि मैं अभी टेंशन में हूँ..."

    लेकिन मीनल ने प्रेम का गुस्सा पहली बार झेला था, और वो उसे समझ नहीं पाई। वो इस बात से बेखबर थी कि प्रिया का क्या मतलब है प्रेम की ज़िंदगी में। उसे बस लगा — “अब वो मुझसे थक चुका है।”

    मीनल का मासूम दिल अब खुद को दोषी मान बैठा था। अचानक उसने एक छोटा बैग निकाला और उसमें कुछ कपड़े रखने लगी।

    "अगर मैं चली जाऊँ... तो शायद सबको सुकून मिल जाए।"

    उसे याद था — प्रेम ने बताया था कि उसके मम्मी-पापा विदेश इलाज के लिए गए हैं, समय उन्हें वहाँ ले गया था। लेकिन हकीकत कुछ और थी... जो मीनल को नहीं पता।

    समय ने ज़बरदस्ती उन्हें विदेश भेजा था। और धमकी दी थी — “अगर मीनल से मिलने की कोशिश की... तो उसे खत्म कर दूँगा।”

    लेकिन मीनल अब अकेली थी, मासूम थी, टूटी हुई थी।

    उसने खिड़की की ग्रिल को छुआ... सोचने लगी “क्या मैं इस पिंजरे से निकल सकती हूँ?”


    ---

    क्या लगता है आप लोगो को minl भाग जाएगी, क्या समय use इतनी आसानी se जाने देगा या कुछ और होगा..
    कमैंट्स करो यार बिना कमैंट्स मज़ा नहीं आता लिखखने मे.. और जो पढ़ते है plz फॉलो भी कर लें 🥰

  • 15. Toxic bro in law - Chapter 15

    Words: 1518

    Estimated Reading Time: 10 min

    स्वर्ग विला — रात लगभग 9:30 बजे

    मीनल अपने कमरे में सब कुछ पैक कर चुकी थी। छोटा सा बैग बिस्तर के किनारे रखा था, जिसमें थोड़े बहुत कपड़े, कुछ पैसे और एक पुरानी फोटो थी — मम्मी, पापा और स्वीटी की।

    वो बैग को देखकर कुछ पल खामोश रही... फिर जैसे उसकी रूह कांप गई।

    "नहीं... मैं कैसे जा सकती हूँ यूँ ही? एक बार गुस्सा हुए हैं प्रेम भैया... इसका मतलब ये नहीं कि मैं उन्हें छोड़ दूँ। वो मेरे अपने हैं।"

    मीनल बैग छोड़कर दरवाज़े की तरफ बढ़ती है — "मैं माफ़ी मांग लूंगी... मुझे घर नहीं छोड़ना चाहिए।"

    वो तेज़ कदमों से बाहर निकलती है — तभी वो देखती है प्रेम विला के गेट से बाहर निकल रहा है।

    "भैया!!" मीनल पुकारती है, लेकिन प्रेम शायद सुन नहीं पाता... या फिर सुनकर भी अनसुना कर देता है।

    वो देखती है प्रेम फोन पर गुस्से में कुछ कह रहा है, बार-बार कॉल डायल कर रहा है।

    "उठा ना यार प्रिया... प्लीज़... एक बार सुन ले बस..." प्रेम बुदबुदाता है, उसकी आवाज़ में बेचैनी है।

    मीनल एक पल को ठिठकती है... उसका दिल धड़कता है — "कहीं मैं और ना चिढ़ा दूँ उन्हें..."

    लेकिन अगले ही पल उसका चेहरा जिद्दी हो जाता है।

    "ठीक है, बात नहीं करनी... तो मत करो... लेकिन मैं छोड़ के नहीं जा रही। मैं देखती हूँ कहां जा रहे हो!"

    वो दबे पाँव प्रेम की SUV के पीछे जाती है... गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खुला होता है, वो जल्दी से झुककर नीचे की ओर सरक जाती है और दरवाज़ा धीरे से बंद कर देती है। बैग को अपने सीने से लगाए वो चुपचाप बैठ जाती है।

    "अब चाहे डांटे... गुस्सा करें... लेकिन मैं देखूंगी, क्या बात है जिससे भैया इतने परेशान हैं।"

    दूसरी ओर, प्रेम को खबर ही नहीं होती कि उसकी मासूम बहन उसकी गाड़ी में छुपी बैठी है। वो बस फोन देखता है और गाड़ी स्टार्ट कर देता है।

    "प्रिया... प्लीज़ यार... उठा ले बस एक बार..."

    गाड़ी धीरे-धीरे अंधेरे रास्तों की ओर बढ़ती है... एक ओर प्रेम अपने प्यार के पास जा रहा है... और दूसरी ओर मीनल अनजाने खतरे की ओर...


    ---

    रात का सन्नाटा | सिटी कैफे | कोने की टेबल

    प्रेम के चेहरे पर कुछ भी कह पाने की हिम्मत नहीं बची थी। एक लंबी चुप्पी के बाद, उसने कांपती हुई उंगलियों से कॉफी का कप उठाया… फिर वापस रख दिया।

    प्रेम: (थका हुआ लहज़ा)
    "प्रिया... आज जो बताने जा रहा हूँ न... हो सकता है इसके बाद तुम मुझसे नफरत करो… लेकिन अगर आज नहीं कहा, तो शायद खुद से भी नज़रें न मिला पाऊँ।"

    प्रिया कुछ नहीं कहती। बस देख रही थी — उस इंसान को, जो कभी उसका प्यार हुआ करता था… अब एक अजनबी-सा लग रहा था।

    प्रेम: (धीरे, जैसे दिल से एक-एक लफ़्ज़ खिंचकर निकल रहा हो)
    "वो मीनल… जिसके बारे में तुम पूछ रही थी… वो मेरी कुछ नहीं लगती, लेकिन उससे ज़्यादा कोई नहीं भी है।"

    "वो स्वीटी की छोटी बहन है… मेरी भाभी की। वही स्वीटी… जो सात साल पहले ब्लड कैंसर से मरी नहीं थी… मारी गई थी।"

    प्रिया की आँखें चौड़ी हो जाती हैं।

    प्रेम:
    "उसने अपनी जान मीनल को बचाने के लिए दी… अपना दिल दिया था… सच में, फिजिकली। डॉक्टर ने कहा था — मीनल को नया दिल नहीं मिला तो बस कुछ दिन की मेहमान है…"

    "स्वीटी ने… खुद को मीनल की ज़िंदगी बना दिया… और खुद मर गई… म।"

    (प्रिया की आँखों में आँसू तैरने लगे)

    प्रेम:
    "उसके मरने के बाद… समय टूट गया था। लेकिन टूटे इंसान सिर्फ रोते नहीं… कभी-कभी राक्षस बन जाते हैं।"

    "उसे लगने लगा  स्वीटी की मौत की ज़िम्मेदार मिनल है  और फिर … उसने मीनल को  कैद कर लिया। कहा कि अब वही उसकी ज़िन्दगी बर्बाद करेगा ।"

    "लेकिन जो हुआ… वो रक्षक नहीं राक्षस की हरकत थी।"

    प्रेम: (अब उसकी आवाज़ काँपने लगी)
    "उसने मीनल को एक कमरे में बंद कर दिया प्रिया… अंधेरे कमरे में। वहाँ कीड़े छोड़ दिए… छोटे-छोटे कीड़े… जो उसके जिस्म पे चलते थे… और मीनल चीखती थी। और वो बस बाहर बैठा… सुनता रहा।"

    (प्रिया की साँस अटक जाती है। मुँह पे हाथ रख लेती है।)

    प्रेम:
    "उसने मीनल के माँ-बाप को ज़बरदस्ती विदेश भेज दिया… और कहा अगर उन्होंने मिलने की कोशिश की, तो मीनल की लाश भेजेगा।"

    "मैं बस देखता रहा… कुछ कर नहीं पाया। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे मीनल को लड़ना सिखाया,  उसकी रक्षा करने की कसम खाई।"

    (अब प्रेम की आँखों से आँसू बहने लगे)

    प्रेम:
    "समय ने मुझे कहा  था आठ साल दिए है उसने mujje उसके आतंक से बचाने ke लिए … आठ साल बाद मीनल को उसके हवाले कर दूँ।"



    प्रेम: (आवाज़ भारी होती जा रही थी)
    "बस दो महीने बचे हैं प्रिया… दो महीने बाद मैं मीनल को उस दरिंदे के हवाले करने वाला हूँ… और अब तक उसे सच भी नहीं बताया…"

    "मुझे नहीं पता क्या ज़्यादा मुश्किल है — समय का राक्षस होना… या मेरा मजबूर इंसान होना…"

    ( एक कोने में छुपी मीनल, जो सब कुछ सुन चुकी है…)

    उसकी रूह जैसे सुन्न हो चुकी हो…
    जिस रिश्ते पर भरोसा था — वही सबसे बड़ा धोखा बन गया।

    आँखों से आँसू नहीं बह रहे थे... वो बस बेआवाज़ रो रही थी।

    उसे याद आया —
    प्रेम की हर हँसी… हर सिखाई गई बात… हर “भाई” कहने वाला लहजा…
    अब बस एक सजा का हिस्सा लग रहा था।

    उसकी दुनिया वहीं, उसी कोने में — टूट गई थी।


    ---




    ---

    कैफ़े का कोना – प्रेम और प्रिया बैठे हैं। पर्दे के पीछे मीनल सब सुन चुकी है। उसके पैरों से जैसे ज़मीन खिसक गई हो। और तभी...

    उसके कानों में प्रेम की आवाज़ गूंजने लगती है… वो बातें जो उसने कभी सीधे नहीं सुनी थीं… लेकिन आज पहली बार सब कुछ खुल रहा था…

    प्रेम की आवाज़ उसके दिल में जैसे तीर बनकर उतरती है –

    "तू नहीं जानती प्रिया... उस दिन जब पहली बार होश में आई थी मीनल, तब समय उसे मारने आया था। वो हाथ उठाने ही वाला था उस पर... और मैं बीच में आ गया।"
    "वो डर गई थी... काँप रही थी... मैंने उसे छुपाया, उससे वादा किया कि अब उसे कुछ नहीं होगा।"

    मीनल की आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे। वो दीवार का सहारा लेकर खड़ी थी, लेकिन अंदर से जैसे चकनाचूर हो चुकी थी।

    और फिर…
    प्रेम की एक और बात उसे याद आती है –

    "और वो कीड़ों वाली रात? वो मेरी ज़िंदगी का सबसे बुरा सपना है प्रिया… उस रात मैं उसे बचा नहीं सका... समय ने उसे उस कमरे में बंद कर दिया था। कीड़ों से भरा अंधेरा... और मेरी बहन पूरे 3 घंटे तक चीखती रही थी अंदर।"

    "आज भी रात को चीख कर उठ जाती है… लेकिन किसी से कुछ कहती नहीं है। बस एक मुस्कुराहट पहन ली है उसने… मेरे लिए।"

    इतना सुनना था कि मीनल के सीने में जैसे कुछ फट गया। उसकी साँसें टूटने लगीं, वो चीख पड़ी — एक ऐसी चीख जो सिर्फ दर्द नहीं, एक बगावत थी।

    "आह्ह्ह्ह!"

    कैफ़े की खामोशी उस चीख से काँप उठी।

    प्रेम और प्रिया दोनों चौंक गए…
    दूर कोने की तरफ देखा… लेकिन तब तक…

    मीनल भाग चुकी थी।


    ---

    सड़क के किनारे मीनल दौड़ती हुई।

    आँखों में आँसू, दिल में भूचाल, और दिमाग में बस एक फैसला।

    "अब नहीं... अब मैं प्रेम भाई के साथ भी नहीं रहूँगी... और ना उस राक्षस समय के जाल में फँसूँगी..."

    "मैं अब किसी की मोहताज नहीं बनूँगी... मैं खुद को खुद से बचाऊँगी।"


    ---


    ---

    एक सुनसान हाईवे।

    रात का सन्नाटा, गाड़ियों की रफ्तार और एक डरी-सहमी सी मीनल जो खुद को दुनिया से छुपाती, अपनी रफ्तार बढ़ाती जा रही थी। आँखों में आँसू, दिल में ज़ख्म, और बस एक ही सोच—

    “कहीं दूर... बहुत दूर निकल जाऊँ… जहां कोई ना हो… कोई नहीं।”

    गाड़ियाँ उसके पास से तेज़ गुज़रतीं, हॉर्न बजते... लेकिन उसे अब किसी की परवाह नहीं थी।
    वो बस भाग रही थी।

    तभी —

    "चक!"

    एक गाड़ी उसके एकदम पास से गुज़री और ब्रेक की एक तीखी आवाज़ ने पूरी सड़क को झकझोर दिया।
    मीनल डर के मारे वहीं ज़मीन पर गिर गई… उसके बाल बिखरे हुए, होंठ सूख चुके थे… सांसें अटकी हुईं।

    ड्राइवर हड़बड़ाया हुआ कार से बाहर निकलता है…

    ड्राइवर (घबराकर):
    “सर! कोई लड़की थी… तकरा गई… मैं… मैं… ब्रेक लगाता नहीं तो… मर जाती!”

    कार की पीछे की सीट पर बैठा शख़्स धीरे-धीरे सामने आता है। उसका चेहरा अंधेरे में छुपा हुआ, लेकिन आँखें गुस्से से जल रही थीं।

    वो बाहर निकलता है और ड्राइवर को घूरता है…

    “तुमसे एक सीधी गाड़ी नहीं चलाई जाती?”

    ड्राइवर (काँपते हुए):
    “सर... माफ़ कर दीजिए... मैंने रोका... आप खुद देख लीजिए...”

    वो शख़्स ड्राइवर को एक तरफ धकेल कर सामने देखने लगता है…

    और जैसे ही उसकी नज़र मीनल पर पड़ती है—

    वो ठिठक जाता है।

    आँखें फटी की फटी रह जाती हैं… साँसें अटक जाती हैं…

    क्योंकि मीनल उसी की तरफ देख रही थी। उसी कार को घूर रही थी, जिसने उसे रुकने पर मजबूर कर दिया था।

    और उस आदमी का चेहरा…

    धीरे-धीरे कार की हेडलाइट से रौशन होता है…

    वो है –???????
    Next chptr ke लिए कमैंट्स करने पड़ेंगे bhut सारे वरना डो दिन बद दूंगी chptr सोच लो सब

  • 16. Toxic bro in law - Chapter 16

    Words: 964

    Estimated Reading Time: 6 min

    मिनल जिस गाड़ी से टकराई थी, वो गाड़ी किसी और की नहीं... समय की थी।

    वो कार की ज़मीन से कुछ इंच दूर बैठी, काँपती साँसों के साथ गाड़ी को घूर रही थी... और उसी पल, उस कार के पीछे वाली सीट से उतरा वो शख्स, जिसकी आँखों में जैसे पलभर को वक़्त ठहर गया।

    समय।

    उसने एक सख्त निगाह ड्राइवर पर डाली।

    "किससे टकरा गए तुम?"
    ड्राइवर घबराकर बोला,
    "स...सर, कोई लड़की आ गई थी सामने... मैंने ब्रेक मार दिए वरना..."

    लेकिन समय की आँखें अब ड्राइवर पर नहीं, उस लड़की पर थीं...
    जो गाड़ी को ऐसे देख रही थी जैसे कुछ पहचानना चाह रही हो।
    और फिर —
    उसके होंठ काँपे... उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं...

    "स्वीटी..."
    उसके लब थरथरा उठे।

    "स्वीटी!" वो दौड़ पड़ा।

    ज़मीन पर गिरती रोशनी में, मिनल के चेहरे पर खून की पतली सी लकीर थी, लेकिन वो नज़रों में वही मासूमियत, वही बेक़सी...
    उसे देख कर समय जैसे अपनी सुध-बुध खो बैठा।

    वो घुटनों के बल बैठा, मिनल को अपनी बाहों में लिया और काँपती आवाज़ में बुदबुदाया —

    "तुम... तुम वापस आ गई? मेरे पास? अपने समय के पास? देखो, मैंने कहा था न, तुम मुझसे दूर नहीं जा सकती... तुम मेरी स्वीटी हो... मेरी स्वीटी..."

    मिनल की साँसें हल्की थीं, दर्द से उसकी आँखें डबडबा गई थीं,
    लेकिन "स्वीटी" शब्द उसके कानों में गूंजता जा रहा था।

    "स्वीटी?" — उसकी हल्की सी फुसफुसाहट निकली,
    लेकिन उसके माथे से बहता खून अब उसकी पलकों तक पहुँच चुका था...

    सब कुछ घूमने लगा था।

    और फिर...

    एकदम से अंधेरा।

    वो बेहोश हो चुकी थी।

    समय ने उसे और कस कर अपनी बाहों में भींचा —
    जैसे कोई खोई हुई अमानत वापस मिल गई हो।

    "गाड़ी निकालो!"
    उसने ड्राइवर पर चीखते हुए कहा।
    "अभी! इसी वक्त!"

    ड्राइवर कांपता हुआ गाड़ी स्टार्ट करता है, और कुछ ही देर में...
    वो गाड़ी स्वर्ग विला के अंदर दाखिल हो जाती है।


    ---

    दूसरी तरफ —

    कैफ़े में बैठे प्रेम और प्रिया ने वो चीख सुनी थी।

    प्रिया ने भौंहे सिकोड़ते हुए पूछा —
    "ये आवाज़? कोई लड़की?"

    लेकिन प्रेम की रगों में जैसे खून जम गया था।

    वो आवाज़...
    वो चीख...
    वो डर...

    वो जानता था —
    मिनल ही थी।

    "नहीं... ये नहीं हो सकता... मीनल?"

    वो पागलों की तरह उठ खड़ा हुआ,
    "वो मेरे पीछे आयी थी... मैं कैसे नहीं समझ पाया!"
    वह दौड़ते हुए उधर को भगा जहाँ मिनल भागी थी

    और तभी —
    उसने देखा...
    सड़क के उस पार — समय की कार — और उसके सीने से लगी हुई बेहोश मीनल।

    समय... और मीनल... साथ।

    लेकिन समय की आँखों में सिर्फ दीवानगी नहीं थी —
    वह तो उसे स्वीटी समझ चुका था।

    प्रेम की साँसें तेज़ हो गईं, और उसका चेहरा सफेद।

    “नहीं... नहीं... अगर समय को अब पता चला कि मीनल हूबहू स्वीटी जैसी दिखती है...”
    "तो वो उसे कभी छोड़ने वाला नहीं..."

    "कभी नहीं।... और phir वह.. नहीं नहीं"


    ---



    ---

    पूरे रास्ते...
    समय पागलों की तरह कभी मिनल के माथे पर हाथ रखता, कभी उसकी पलकों पर उंगलियाँ फिराता, कभी उसके होंठों के पास आकर साँसें जाँचता।

    "स्वीटी..."
    उसकी आवाज़ काँपती थी।
    "तुम... ज़िंदा हो... सच में ज़िंदा हो?"

    उसके चेहरे पर जैसे यकीन और वहम की जंग चल रही थी।

    ड्राइवर...
    गाड़ी चला रहा था, लेकिन उसका हाथ काँप रहा था।

    "ये क्या देख रहा हूँ मैं? सर..."
    उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि जो आदमी कभी किसी के लिए एक लफ्ज़ न निकाले,
    वो आज किसी लड़की के लिए... इस कदर पागल कैसे हो सकता है?

    गाड़ी जैसे ही स्वर्ग विला के गेट के पास रुकी—
    समय बिना एक पल गंवाए मिनल को अपनी बाहों में लिए रूम की तरफ भागा।

    वो रूम... वही रूम था, जहाँ कभी स्वीटी हँसती थी, रहती थी... और जहाँ से एक दिन हमेशा के लिए चली गई थी।

    समय ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, अंदर की दीवारें भी जैसे कांप उठीं।
    वो बेहोशी की हालत में मिनल को पलंग पर लिटाता है —
    उसके माथे से खून पोंछते हुए काँपती आवाज़ में बड़बड़ाता है —

    "तुम वापस आ गई हो... क्यों गई थीं स्वीटी... मैंने तुझसे कहा था ना, तू मुझसे दूर नहीं जा सकती..."

    वो मोबाइल उठाता है, काँपती उँगलियों से नंबर डायल करता है।

    ट्रिंग... ट्रिंग...

    दूसरी तरफ प्रेम।

    "समय, सुनो, मुझे तुमसे ज़रूरी बात करनी है, वो लड़की—"

    "डॉक्टर लाओ, अभी! एक सेकेंड नहीं रुकना चाहिए!"
    समय बिना प्रेम की बात सुने फोन काट देता है।

    प्रेम का चेहरा सूख गया था।

    "वो मीनल है, स्वीटी नहीं... अगर समय को अभी ये बात पता नहीं चली, तो..."
    "तो बहुत देर हो जाएगी..."


    ---

    कुछ ही मिनट बाद... डॉक्टर विला पहुँच चुका था।
    प्रेम उसके साथ अंदर आता है — और समय,
    डॉक्टर का हाथ खींचकर उसे बेड की ओर घसीट ले जाता है।

    "इसे होश में लाओ... ये मेरी स्वीटी है... इसे कुछ नहीं होना चाहिए!"

    डॉक्टर ठिठक गया।
    उसने एक नज़र प्रेम को देखा... फिर मिनल के चेहरे को...

    वो पहचान गया — ये वही लड़की है जिसका इलाज वो सालों से करता आया है।
    लेकिन वो भी जानता था, समय के आगे सच कहना... खुद मौत को बुलावा देना है।

    डॉक्टर:
    "सर... इन्हें हल्का सदमा लगा है... चोटें गहरी नहीं... कुछ ही देर में होश आ जाएगा।"

    समय:
    (डॉक्टर की कॉलर पकड़कर)
    "मुझे देर नहीं चाहिए... अभी होश में लाओ उसे... अभी!"

    डॉक्टर हड़बड़ाकर सिर हिलाता है, कुछ इंजेक्शन निकालता है।

    प्रेम कोने में खड़ा सब कुछ देख रहा था।
    समय की आँखों में जो दीवानगी थी, वो अब उसकी सबसे बड़ी चिंता बन चुकी थी।

    "अगर अब भी समय को मीनल की हकीकत पता नहीं चली..."
    "तो इस बार वो............"

    Coin लगते ही रीडर्स गयाब..
    अब जो रेगुलर पढ़ रहे हो आप लोग कम से कम कमैंट्स तो कर दिआ करे..
    अगर कमैंट्स ज़्यदा होंगे तो chptr बड़े होंगे और कमैंट्स कम तो chptr भी छोटे...

  • 17. Toxic bro in law - Chapter 17

    Words: 1562

    Estimated Reading Time: 10 min

    ---

    प्रेम का दिल...
    उसकी छाती को ऐसे पीट रहा था जैसे किसी घड़ी का बिगड़ा हुआ पेंडुलम।

    समय की आँखें...
    बिलकुल सनकी सी चमक रही थीं।
    जैसे कोई भटका हुआ मुसाफिर मंज़िल को छूते ही पागल हो गया हो।

    धीरे-धीरे... मिनल की पलकें काँपने लगीं।
    धीरे-धीरे उसने आँखें खोलीं।
    हर चीज़ धुंधली थी... फिर साफ़ होती चली गई।

    और सामने का चेहरा —
    वही चेहरा...

    जिसे देखकर उसकी नसों में डर की लहर दौड़ जाती थी।

    समय।

    मिनल की साँसें अटक गईं।
    उसकी पूरी देह काँपने लगी।

    समय उसके होश में आते ही उसके इतने क़रीब आ गया कि उसकी साँसें मिनल के चेहरे से टकरा रही थीं।
    "स्वीटी... मेरी जान... देखो, तुम्हारा समय तुम्हारे पास आ गया..."

    समय ने उसके चेहरे को दोनों हथेलियों से जकड़ लिया था, जैसे डरता हो कि अगर छोड़ा तो फिर खो देगा।

    मिनल का गला सूख गया।
    उसकी धड़कनें बेकाबू हो गईं।
    अचानक उसका दिमाग एक अंधेरे हादसे में लौट गया —

    रूह का वो कोना...
    वो चीखें...
    वो हाथ जो उसकी गर्दन तक आए थे...
    और वही चेहरा... वही आँखें... वही सनक...!

    "नहीं... नहीं!"
    मिनल चीख पड़ी।
    वो एक झटके से खुद को समय की पकड़ से छुड़ाकर पलंग के कोने में दुबक गई।

    "प्लीज... प्लीज मत मारो मुझे... मैंने कुछ नहीं किया... प्लीज..."

    उसकी आवाज़ इतनी टूटी हुई थी कि कमरा भी थर्रा गया।
    उसके आँसू बहने लगे थे।

    समय का चेहरा सख्त हो गया।
    उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
    "स्वीटी... ये क्या कह रही हो तुम?"

    लेकिन मिनल अब बेकाबू थी।
    वो रेंगती हुई पीछे हटती रही — जैसे सामने कोई दरिंदा खड़ा हो।

    "मैंने स्वीटी दी को नहीं मारा... मैंने कुछ नहीं किया... प्लीज मुझे मत मारो..."

    प्रेम...
    जो अब तक जड़ हो चुका था, भागते हुए मिनल की तरफ बढ़ा।

    "छोटे!"
    उसने उसे बाँहों में समेट लिया।

    मिनल अब प्रेम के सीने से चिपक चुकी थी।
    "प्रेम भाई... प्रेम भाई मुझे बचा लो... मुझे मत मारने देना... प्लीज..."

    प्रेम के सीने में चुभन सी उठी।
    उसने कसकर मिनल को पकड़ा, जैसे सारी दुनिया से बचा रहा हो।

    लेकिन समय...
    समय तो अब रुकने वाला नहीं था।

    वो लाल आँखों से प्रेम की तरफ बढ़ा।
    उसके चेहरे पर अब सिर्फ सवाल नहीं था... आग थी... भयानक आग।

    "हट जा उसके सामने से..."
    समय का गला भर्राया हुआ था।
    उसके अंदर का तूफान उसकी आवाज़ में फूट पड़ा था।

    प्रेम ने एक सेकंड के लिए भी मिनल को नहीं छोड़ा।
    बल्कि उसने और भी कसकर उसे पकड़ लिया।

    "वो स्वीटी नहीं है समय..."
    प्रेम की आवाज़ भी काँप रही थी।
    "वो स्वीटी नहीं है...!!"

    समय एक पल को ठिठक गया।

    "क्या कहा तूने?"
    उसकी साँसे भारी हो गईं।

    प्रेम:
    (गहरी सांस लेते हुए)
    "वो मीनल है... स्वीटी की छोटी बहन... स्वीटी मर चुकी है समय... आठ साल पहले..."

    कमरा जैसे सन्नाटे में डूब गया।
    समय की आँखों में गहरा साया उतरने लगा था।

    लेकिन...
    उसका दिमाग इस सच को मानने को तैयार नहीं था।
    उसका गुस्सा अब उबलकर बाहर आने को था।

    वो प्रेम के पास आकर उसकी कॉलर पकड़ लेता है —

    "झूठ बोल रहा है तू...! ये स्वीटी है! मेरी स्वीटी...!!"

    मिनल काँपती हुई प्रेम के पीछे छुपती रही...
    और प्रेम ने उसकी जान को बचाने के लिए खुद को ढाल बना लिया।


    ---

    प्रेम- मैं सच बोल रहा हूँ यह मिनल है जिसको तूने aaj तक नहीं देखा था, जिसको तूने 8 साल से कैद किया हुआ है, मिनल जिसके सीने मै स्वीटी का दिल है..
    इसकी बदकिस्मती  की यह स्वीटी की हमशक्ल भी है..

    ---

    समय...
    जैसे ही ये शब्द सुनता है —
    "ये स्वीटी नहीं है, ये मीनल है..."

    उसके चेहरे का रंग पल भर में बदल जाता है।
    उसकी आँखों में जैसे आग भड़क उठती है।

    खून उतर आया था उसकी आँखों में।

    वो पत्थर की तरह खड़ा, एकटक मीनल को घूरने लगा।
    इतनी गहरी, इतनी पैनी नज़र थी...
    कि अगर निगाह से घायल किया जा सकता, तो मीनल अभी वहीं ढेर हो जाती।

    समय के दिमाग में मानो कोई भूचाल आ गया था।
    एक-एक पल —
    एक-एक हादसा —
    वापस उभरने लगा।

    स्वीटी का चेहरा...
    उसका कमजोर होता जिस्म...
    अस्पताल का सफेद बिस्तर...
    मिनल की सेर्जरी...
    स्वीटी का मिनल को दिल देना..
    सब कुछ फटा पड़ा लौटने लगा।

    समय की साँसें अब काबू में नहीं थीं।
    उसका चेहरा एकदम सुन्न, लेकिन आँखों से आग बरसती हुई।

    अब वो मीनल को ध्यान से देखता है।

    हाँ...
    ये स्वीटी नहीं थी।
    स्वीटी के जिस्म पर बीमारी का असर था — वो बुझ चुकी थी।
    और ये लड़की...
    ये मीनल...
    इसकी आँखों में अब भी जिंदगी थी, जवानी का नशा था, सांसों में गर्मी थी।

    बीच का फर्क साफ था।

    समय के भीतर कुछ दरकने लगा।
    कुछ जलने लगा।
    कुछ फूटने लगा।

    "स्वीटी..."
    वो बुदबुदाया,
    लेकिन खुद को ही झूठा साबित करते हुए उसकी आँखों से एक लहर गुज़र गई —
    नफरत की...
    प्यार की...
    गुस्से की...
    और दर्द की।

    धीरे-धीरे समय के चेहरे पर वो सनकी हँसी फैलने लगी थी,
    जो सिर्फ तब आती है जब किसी का दिल और दिमाग दोनों एक साथ टूटते हैं।

    उसकी मुट्ठियाँ भिंच गईं।
    उसके जबड़े कस गए।
    उसकी साँसें धधकती हुई आग बन गईं।

    "तू..."
    वो दाँत पीसते हुए फुसफुसाया,
    "तू ही थी न...?
    जिसकी वजह से मेरी स्वीटी मरी थी...?"

    उसकी आँखें मीनल में से स्वीटी का दिल ढूँढ रही थीं।

    "तू ही है...
    जिसके सीने में मेरी स्वीटी का दिल धड़क रहा है...?"

    प्रेम ने मीनल को और कसकर पकड़ लिया।
    मीनल काँपती हुई रो रही थी।

    समय अब एक-एक कदम मीनल की तरफ बढ़ रहा था।
    हर कदम पर उसके भीतर का गुस्सा भड़कता जा रहा था।

    "तुझे जिंदा क्यों छोड़ा मैंने?"
    उसकी आवाज़ अब काँप रही थी।
    "तुझे तो उसी दिन मार देना चाहिए था... उसी दिन जब तूने मेरी स्वीटी को मुझसे छीना था..."

    कमरा एक डरावने सन्नाटे से भर गया था।

    मीनल अब पूरी तरह प्रेम के पीछे छिप चुकी थी।
    प्रेम का दिल फटा जा रहा था, लेकिन वो मिनल को अपनी ढाल बनाकर खड़ा था।

    समय अब सामने खड़ा था —
    आँखों में दीवानगी,
    हाथ में बर्फ़ीला गुस्सा,
    और लहजे में मौत का ऐलान।


    ---



    ---

    समय की आँखों में अब सिर्फ एक आग थी —
    घना, जहरीला गुस्सा।
    जिसने उसके होश, उसकी इंसानियत, सब कुछ निगल लिया था।

    वो मिनल को ऐसे देख रहा था जैसे उसे फाड़कर रख देगा।

    "तू..."
    उसके होंठ काँपते हुए खुले।
    "तू सिर्फ उसकी धड़कन ही नहीं चुराई है...
    तू उसकी शक्ल भी चुरा लाई है...!"

    समय दहाड़ते हुए आगे बढ़ा।

    प्रेम जो अब भी मिनल के सामने ढाल बनकर खड़ा था,
    समय ने उसे दोनों हाथों से धक्का दे मारा।

    "हट जा मेरे रास्ते से...!"

    प्रेम सीधा ज़मीन पर जा गिरा —
    हाथ फिसले, पीठ घिसटी, और उसकी कुहनी से ज़मीन छिल गई।

    मिनल जो काँप रही थी, उसकी आँखों में डर का समंदर उमड़ आया।

    समय अब उसे घूरता हुआ आगे बढ़ा।

    उसने मिनल की पतली, नाज़ुक बाजू को इस जोर से पकड़ा —
    कि उसकी उंगलियों के निशान वहीं छपते चले गए।

    " तुझे तेरी सही औक़ात दिखाउंगा अब चल... बाहर...!!!"

    वो दाँत पीसते हुए, मीनल को कमरे से घसीटते हुए बाहर लाया।

    मीनल रोते हुए खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन समय का हाथ लोहे की पकड़ बन चुका था।

    हॉल में घुसते ही...
    समय ने उसे पूरे गुस्से में झटका दे मारा —
    "तुझे दिखाता हूँ तेरा असली चेहरा...!!!"

    मिनल का बदन हवा में उछला और धड़ाम से जाकर हॉल की बीचों-बीच काँच की मेज़ से टकराया।

    "चर्र्रर्र्र..."
    काँच की मेज़ का कोना सीधे उसके बाजू पर लगा।

    गहरा कट...
    खून...
    और मीनल की कराहती चीख।

    मीनल दर्द से छटपटाई, लेकिन समय की आँखों में न एक कतरा तरस था, न एक कतरा पछतावा।

    वो सिर्फ गुस्से से उसे देख रहा था —
    जैसे सामने उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बैठी हो।

    उधर प्रेम भी गिरते-पड़ते हॉल की तरफ भागा।
    "मिनल...!"
    उसकी आवाज़ फटी पड़ रही थी।

    लेकिन जैसे ही वो मिनल के पास जाने को हुआ —
    समय के गार्ड्स जो पहले से तैयार खड़े थे,
    बिजली की तरह आगे बढ़े और प्रेम को बीच में रोक लिया।

    प्रेम धक्का-मुक्की करता रहा, चिल्लाता रहा —
    "मिनल को मत छूना...!! छोड़ो उसे...!!"
    लेकिन गार्ड्स ने उसे कसकर पकड़ रखा था।

    समय अब भी वहीं खड़ा था —
    मीनल की तरफ झुका हुआ,
    आँखों में ज़हर,
    और मुँह से निकलते हुए बर्फ जैसे शब्द —

    "अब तुझे दिखाऊँगा...
    स्वीटी....... बनने की सज़ा क्या है...!!"

    यह कह कर समय table पर फ़्रूट बास्केट me लगी छुरी उठा लेता है और मिनल की तरफ बढ़ते हुए-“  बहुत छीन चुकी तू मेरी स्वीटी की चीज़ें अब वक़्त है हर चीज़ वापस करने का.... "
    समय मिनल की तरफ झुकते हुए आगे बढ़ता है और मिनल डर se पीछे होती चली जाती है
    ---
    समय छुरी को मिनल के चेहरे ke करीब le जाकर use चेहरे पर फेराते हुए -“ इससे शुरू करू ”
    फिर उस छुरी को सीने ke करीब लेकर जाता है और  दिल पर रख कर कहता है, “ya फिर इससे "
    मिनल डर कर रोते हुए, “ मु मुझे छ छोड़ दो plz plz.. "
    समय उसके आंसू देख हस्ते हुए, “ हाहाहाहाहा
    छोड़ दू ओके छोड़ देता हूँ तुझे इस दुनिया se दूर... "
    यह कह कर वह अपने हाथ me मौजूद छुरी को मिनल के सीने me ज़ोर se मार देता है"
    Nhiiiiiiiiiii

    बड़े chptr को बोला था lekin अचनाक तबियत बिगड़ गई बड़ी मुश्किल se इतना लिखा है  sorry..
    हिम्मत कर कल जल्दी देने की कोशिश करूंगी...

  • 18. Toxic bro in law - Chapter 18

    Words: 1834

    Estimated Reading Time: 12 min

    ---

    समय का चेहरा अब इंसान का नहीं रहा था,
    वो एक वहशी दरिंदे की तरह बर्ताव कर रहा था।
    उसकी आँखों में खून उतर आया था, साँसें तेज़ चल रही थीं।
    मिनल ज़मीन पर पड़ी थी, बाजू से खून बह रहा था, फिर भी वो डर से थर-थर काँपती हुई खुद को पीछे सरकाने लगी।

    समय गुस्से से दाँत पीसता हुआ धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा।
    उसके हाथ में नज़दीकी टेबल से उठाई हुई छुरी थी.
    मिनल ने जब समय के हाथ में वो हथियार देखा, उसकी चीख गले में ही घुट गई।
    वो अपने दोनों हाथ जोड़कर धीरे-धीरे पीछे सरकती रही, पर समय उसे पीछे नहीं जाने दे रहा था।
    वो एक शिकारी की तरह आगे बढ़ रहा था, उसकी आँखों में बस एक ही प्यास थी — सज़ा देने की।

    समय ने गुस्से में भरा हुआ हाथ ऊपर उठाया,
    छुरी को सीधे मिनल के दिल के पास ले जाकर रोक दिया।
    बस एक इंच दूर था —
    अगर वह थोड़ा भी और आगे करता, तो काँच मिनल के दिल के आर-पार हो जाता।

    मिनल ने डर के मारे आँखें बंद कर लीं।

    और ठीक उसी पल—
    पीछे से प्रेम की आवाज़ गूंजी,
    "समय!! रुक जा!!"

    समय का हाथ हवा में थम गया।
    उसकी साँसें और तेज़ हो गईं।
    उसके हाथ काँपने लगे — गुस्से और दुविधा में।

    मिनल की आँखें भी धीरे से खुलीं,
    वो काँपते हुए अपने सामने छुरी को देख रही थी, जो उसके दिल से बस एक इंच दूर था।

    समय ने गर्दन घुमाकर प्रेम की तरफ देखा,
    जिसकी आँखों में डर, और बेहिसाब दर्द दोनों थे।

    पूरा हॉल अब एक पल के लिए बिल्कुल खामोश था,
    जैसे सब कुछ थम गया हो।
    सिर्फ मिनल के तेज़-तेज़ साँसों की आवाज़ उस सन्नाटे को चीर रही थी।


    ---




    ---

    प्रेम की तेज़ आवाज़ ने समय के हाथ को रोक दिया था।
    उसके हाथ में पकड़ी हुई छुरी, मीनल के दिल से बस एक इंच की दूरी पर थम गई थी।

    मीनल की धड़कनें जैसे अब सीने को चीरकर बाहर निकलने को तैयार थीं। उसकी साँसें बेकाबू थीं, जैसे अभी उसके जीवन की डोर किसी भी पल टूट सकती थी।

    प्रेम तेजी से आगे बढ़ा और काँपती आवाज़ में बोला,
    "समय! मत कर... भूल गया तू? इस सीने में  मीनल का नहीं, स्वीटी भाभी का दिल भी धड़क रहा है...!
    तूने ही तो कहा था ना, तू मीनल को हर पल तड़पाएगा, हर पल सज़ा देगा... तो फिर इतनी आसान मौत कैसे दे सकता है उसे?"

    समय ने धीमी-धीमी चाल से प्रेम की तरफ कदम बढ़ाए, छुरी को उंगलियों पर घूमाते हुए ऐसे जैसे कोई शैतान खेल रहा हो।
    उसकी आँखों में पागलपन नाच रहा था।
    वो ठंडी हँसी हँसते हुए बोला,
    "वाह भई वाह... भाई होने का दावा कर रहा है... और खुद ही अपनी बहन के लिए मौत से भी बदतर ज़िंदगी मांग रहा है?"

    प्रेम की आँखें भीग गईं, लेकिन उसने अपने दिल को पत्थर करते हुए अपने मन मे कहा,
    "मैं सिर्फ वक़्त माँग रहा हूँ... थोड़ा वक़्त... ताकि मैं मीनल को यहाँ से दूर ले जा सकूँ... तेरी पहुँच से बहुत दूर..."

    समय एक पल के लिए रुका।
    फिर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई।
    उसने ज़ोर से ठहाका मारा और बोला,
    "ठीक है! चलो, इस भाई की तमन्ना भी पूरी कर ही देते हैं...
    पल-पल मरने की दुआ माँगी है ना? तो अब हर सांस पर तड़पने का इन्तज़ाम करूँगा!"

    यह कहकर समय ने अचानक गुस्से से गरजते हुए ज़ोर से चिल्लाया —
    "गार्ड्स!!"

    दरवाज़ा खुलते ही उसके गार्ड दौड़ते हुए अंदर आ गए, और पूरा माहौल अचानक डर से भर गया...


    ---



    ---

    समय के एक हुक्म पर दो हट्टे-कट्टे गार्ड आगे बढ़े।
    उनके हाथों में जंजीरें थीं।
    मीनल जो ज़मीन पर गिरी थी, उठने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
    उसका बाजू अब भी टेबल के टूटे किनारे से कट चुका था, खून बह रहा था, लेकिन समय को उसमें कोई तरस नहीं आ रहा था।

    गार्ड्स ने बेरहमी से मीनल को बालों से पकड़ कर घसीटना शुरू कर दिया।
    मीनल चीखी, "भाई...भाई...!" उसकी आवाज़ दर्द से कांप रही थी, लेकिन गार्ड्स के हाथ और समय की आँखों में कोई रहम नहीं था।

    प्रेम जैसे ही आगे बढ़ा उसे रोकने, तो समय ने एक हाथ का इशारा किया —
    और दो गार्डों ने प्रेम को पीछे से पकड़ लिया, ज़मीन पर धकेल कर घुटनों से उसकी कमर और कंधे दबा दिए।
    प्रेम तड़प कर चिल्लाया, "समय! छोड़ उसे! छोड़ दे!"
    लेकिन समय ने उसकी आवाज़ को जैसे हवा में उड़ा दिया था।

    समय आगे बढ़ा, मीनल के सामने झुका —
    उसके कटे हुए बाजू से बहते खून को देखते हुए बोला,
    "अब तू तड़पेगी, हर धड़कन के साथ...
    हर सांस के साथ अपनी मौत मांगेगी, लेकिन मैं तुझे मरने नहीं दूंगा।
    तुझे उस दिल की सजा दूंगा जो तूने चुराया है... स्वीटी का दिल!!"

    फिर समय ने मीनल के बाल और बाजू पकड़ कर उसे ज़मीन पर घसीटते हुए हॉल के बीचों-बीच ला पटका।
    मीनल का सिर फर्श से टकराया, हल्की सी चीख उसके मुँह से निकली।
    वो अब ज़ख्मी परिंदा बन चुकी थी, जो उड़ने की ताक़त भी खो चुका था।

    समय ने गार्ड्स को हुक्म दिया,
    "जंजीरों से बाँध दो इसे! और याद रहे, ये जिंदा रहे... हर पल मौत की भीख माँगती रहे!"

    गार्ड्स ने तुरंत लोहे की भारी जंजीरें निकालीं और मीनल के हाथ-पैर बाँधने लगे।
    मीनल चीखती रही, खुद को छुड़ाने की कोशिश करती रही, लेकिन उसकी ताक़त अब जवाब दे चुकी थी।

    प्रेम दर्द से छटपटा रहा था, गार्ड्स की पकड़ से निकलने की कोशिश कर रहा था।
    उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन समय के सामने उसकी बेबसी एक तमाशा बन चुकी थी।

    पूरा स्वर्ग मिला अब एक सज़ा घर बन चुका था...
    जहाँ अब हर धड़कन पर सिर्फ दर्द लिखा जाने वाला था।


    ---



    ---

    गार्ड्स ने मीनल को जंजीरों से बाँधकर, खींचते हुए एक अंधेरे तहखाने में फेंक दिया।
    वहाँ सिर्फ एक बल्ब टिमटिमा रहा था, जो भी आधा झूल रहा था... एक डरावना माहौल बना रहा था।

    मीनल काँपती हुई ज़मीन पर पड़ी थी, उसके बाजू से अब भी खून रिस रहा था।
    और तभी दरवाज़ा चरमराता हुआ खुला —

    कुछ देर मे समय आया।
    हाथ में एक ट्रे थी, जिसमें कुछ नुकीली चीज़ें रखी थीं — चाकू, ब्लेड, और जंग लगी छोटी-छोटी सलाखें।
    उसकी आँखों में एक पागल मुस्कान थी, जैसे वह खुद अपनी ही हैवानियत से मज़ा ले रहा हो।

    वो मीनल के पास झुकते हुए फुसफुसाया,
    "स्वीटी के दिल की चोर... आज से हर दिन तुझे तेरे ही खून से अपनी वफादारी साबित करनी होगी।"

    फिर समय ने धीरे से एक ब्लेड उठाया — और मीनल के ज़ख्मी बाजू के पास ले जाकर उसकी त्वचा पर एक छोटा, लंबा कट खींच दिया।
    मीनल दर्द से चीखी, उसका पूरा जिस्म झटके खाने लगा।
    लेकिन समय तो जैसे उसके आँसुओं से अपना जश्न मना रहा था।

    वो धीरे-धीरे उसकी कलाई पर, उसकी उंगलियों पर छोटे-छोटे निशान बनाता गया।
    हर चीख, हर आह पर वो और गहरी मुस्कुराहट के साथ कहता,
    "कमज़ोर मत पड़ना मीनल... ये तो बस शुरुआत है...!"

    फिर उसने उसके सामने एक शीशा फेंका —
    मीनल ने देखा, उसका चेहरा, जो कभी मासूमियत से भरा था, अब दर्द और खून से सना हुआ था।
    उसकी आँखों में बेबसी थी, लेकिन समय के चेहरे पर सिर्फ शैतानी चमक थी।

    समय ने उसके बाल पकड़कर उसका चेहरा जबरदस्ती ऊपर किया और कहा,
    "हर दिन तुझे तेरी ही शक्ल से नफरत करवाऊँगा,
    हर धड़कन पर तुझे स्वीटी का नाम चिल्लवाऊँगा!"

    फिर समय ने गार्ड्स को आदेश दिया —
    "इसे भूखा रखना... पानी भी तब मिलेगा जब ये स्वीटी के नाम की भीख माँगेगी!"

    गार्ड्स हँसते हुए वहाँ से निकल गए, दरवाज़ा जोर से बंद हो गया।
    कमरे में अंधेरा और मीनल की टूटी हुई सिसकियाँ रह गईं।

    उसकी हर साँस अब दर्द का एक नया सबक बनने वाली थी।
    और समय... धीरे-धीरे उस अंधेरे के पीछे से अपनी अगली यातनाओं की तैयारी कर रहा था।


    ---




    ---

    तहख़ाने के सन्नाटे में मीनल दीवार से सिर टिकाए बैठी थी।
    आँखों में आंसू थे, दिल बुरी तरह थक चुका था,
    जिस्म से जैसे जान ही निकल रही थी।

    "अब नहीं सह सकती...मै उन खताओ  ki सज़ा पा रही हूँ जो मैंने की ही नहीं क्यू दी क्यू आपने मुझे ज़िंदा रखने ke लिए ऐसा क्यू किया मर जाने देती कम se कम यह ऐसी ज़िन्दगी to नहीं मिलती "
    उसने टूटी हुई आवाज़ में खुद से कहा।
    "अब बस... अब सब खत्म कर दूँगी..."

    उसी पल अचानक उसके सामने एक नर्म-सी रौशनी फूटी।
    हल्की हल्की सी...
    जैसे किसी ने फूँक मार कर अंधेरे में दिया जला दिया हो।

    और फिर —
    उस रौशनी के बीच से एक जाना-पहचाना चेहरा उभरा —
    स्वीटी।

    सफेद कपड़ों में, चेहरे पर वही पुरानी प्यार भरी मुस्कान,
    आँखों में ढेर सारा सुकून।

    "मीनल..."
    स्वीटी ने नर्म लहजे में पुकारा।

    मीनल का दिल धक् से रह गया।
    "दी..."
    उसके होंठ काँपे।
    "दी....दी.. मुझे ले चलो यहाँ से... मैं टूट गई हूँ दी..."

    स्वीटी ने पास आकर उसके गाल पर हाथ रखा —
    हाथ बेहद नर्म था, बिल्कुल माँ के दुलार जैसा।
    "तू कमजोर नहीं है मीनल..."
    स्वीटी की आवाज़ बहुत ठहराव भरी थी।
    "मैंने तुझे अपना दिल इसलिए नहीं दिया था कि तू हार मान जाए।
    तेरे सीने में मेरा दिल है —
    यह दिल डरने के लिए नहीं, लड़ने के लिए बना है।"

    मीनल की आँखों से आंसू बहते रहे।
    लेकिन कहीं उसके भीतर से एक टूटी हुई लौ फिर से जलने लगी थी।
    बहुत हल्की, बहुत छोटी, मगर जिंदा।

    "दी... मैं डरती हूँ..."
    मीनल ने कांपते हुए कहा।

    स्वीटी मुस्कुराई, उसकी उंगलियाँ मीनल के माथे पर टिक गईं।
    "डर को अपनी ताकत बना मीनल।
    समय तुझे तोड़ना चाहता है, लेकिन तू याद रख —
    तू सिर्फ मेरी बहन नहीं है...
    तू मेरी आखिरी साँसों की उम्मीद है।
    अगर तू हार गई, तो मेरी कुर्बानी भी हार जाएगी।"

    स्वीटी के शब्द जैसे मीनल की रगों में आग बनकर दौड़ने लगे।

    "मत झुक मीनल..."
    स्वीटी का चेहरा धीरे-धीरे धुंधला पड़ने लगा।
    "मत टूट... मैं हमेशा तेरे साथ हूँ।
    तेरे हर धड़कन में... हर साँस में....
    तुझे खुद भी जीना है और मेरे समय को भी वापस इंसान बनाना है...... वह समय जो दर्द को दर्द समझता था"
    मिनल समय का नाम सुन हैरानी से, “ दी वह इंसान नहीं है वह वैसे बिलकुल नहीं जैसे आप बताती थी देखो उन्होंने क्या किया " यह बोल मिनल अपने ज़ख्म रोते हुए स्वीटी को दिखाती है..
    स्वीटी रोते हुए, “ वह सिर्फ तेरी दीदी से नाराज़ है तुझे मिनल नहीं स्वीटी बन कर use संभालना है "
    यह बोल कर स्वीटी गयाब हो गई और मिनल को सवालों me उलझा छोड़ गई..

    स्वीटी की रौशनी मिट गई,
    लेकिन मीनल अब पहले जैसी नहीं रही थी।

    उसकी साँसें तेज हो रही थीं —
    पर अब डर से नहीं, जिद से।

    उसने अपने घुटनों पर हाथ रखकर खुद को उठाया —
    लड़खड़ाते हुए खड़ी हुई —
    लेकिन आँखों में एक नया जुनून चमक रहा था।

    अब वो बस एक डरी हुई लड़की नहीं थी —
    अब वो अपनी बहन की दी हुई आखिरी अमानत की रक्षक थी।


    ---

  • 19. Toxic bro in law - Chapter 19

    Words: 1470

    Estimated Reading Time: 9 min

    तहख़ाना — रात के दो बजे

    तहख़ाने की दीवार पर टंगी रौशनी की मद्धम पीली बत्ती में मीनल चुपचाप बैठी थी।
    चेहरा शांत, लेकिन आँखें अब कमजोर नहीं, बल्कि गहरी और गिनती में लगी हुई थीं।

    उसे मालूम था — हर दो घंटे में एक गार्ड झाँकने आता है।
    और पिछली बार उसने देखा था — गार्ड की बेल्ट में चाबी लटकती है... बस वहीं से चाल शुरू होनी थी।

    अगली बार जैसे ही गार्ड आया, मीनल चुपचाप फर्श पर बैठी मिली।
    वो जानबूझकर तेज साँसें लेने लगी, चेहरा पसीने से लथपथ कर लिया, जैसे बुख़ार हो।

    गार्ड घबराया —
    "ओए! क्या हुआ?  दौरे पड़े क्या?"
    वो अंदर आया और जैसे ही झुका मीनल के पास —
    मीनल ने एक झटके में उसके गले पर अपनी दोनों हथेलियाँ कस दीं।

    "तू समझता है मैं हर बार डर जाऊँगी?"
    उसकी आँखों में अब खौफ़ नहीं, जिद थी।

    गार्ड हड़बड़ा गया, उसने खुद को छुड़ाया —
    लेकिन तभी मीनल उसकी कमर से चाबी खींचने में कामयाब हो चुकी थी।

    गार्ड ने उसे धक्का दिया और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया, अलार्म बजाने के लिए —
    मगर मीनल अब रुकने वाली नहीं थी।

    उसने फौरन दीवार से सटा अपना बैग उठाया (जो स्वीटी की रूह के बाद से उसके पास था — शायद उसमें कुछ खास चीज़ें हों),
    चाबी निकाली, दरवाज़ा बंद किया, और अंदर से ही कुंडी मार दी।

    अलार्म तो बज गया था, लेकिन अब वक्त मीनल के पास था।


    ---

    मिनल तहख़ाने के रास्ते से दौड़ती हुई बाहर को निकल रही थी।
    उसकी साँसें तेज़ थीं, चेहरे पर खून लगा था — शायद उसे रास्ते में किसी गार्ड ने रोकने की कोशिश की थी।

    समय — अपनी स्क्रीन पर अलार्म देखता है, और हँसता है।

    "तो अब खेल शुरू हुआ है...
    चलो मीनल, देखता हूँ तेरी चालें...
    तेरा दिमाग...
    तेरा डर...
    तेरी बगावत..."


    समय का रूम – रात के 2:37 AM

    कमरे की लाइट्स बुझी थीं। बस कंप्यूटर स्क्रीन की हल्की नीली रौशनी समय के चेहरे को नहलाए हुए थी।
    वो बेमन से रेड वाइन का गिलास घुमा रहा था — और उसकी नजरें स्क्रीन पर थीं।

    CCTV फुटेज: मीनल कोने-कोने से बचती, गार्ड्स को चकमा देती, टॉर्च की रौशनी से बचते हुए छुपकर बढ़ रही थी।

    समय धीरे से हँसा...
    "वाह... क्या बात है।
    एक बार दिल चुराया, अब चाबी...
    चलो मीनल, और चलो... मैं देखना चाहता हूँ... तू कितनी दूर तक जाएगी।"

    वो रिमोट उठाकर एक बटन दबाता है — स्क्रीन पर गेट के पास का कैमरा ज़ूम होता है।


    ---

    मीनल – विला का मेन हॉल पार करते हुए

    कंधा अब भी लहूलुहान था लेकिन वो रुकी नहीं।
    हर खून की बूँद के साथ उसकी हिम्मत और बढ़ती जा रही थी।

    मेंन गेट – वहाँ कीचड़ भरे ट्रैक, और धुआँधार बारिश शुरू हो चुकी थी।

    मीनल फिसलती, लड़खड़ाती हुई वहाँ तक पहुँची —
    उसकी साँसें टूटी हुई, पर आँखों में सिर्फ एक चीज़ — आज़ादी।

    जैसे ही उसने गेट का हैंडल पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया...

    "घ्र्र्र्र्र्र..."

    वो जमी रह गई।

    उसके सामने दो  (White Tigers) —
    बिल्कुल सफेद, मगर आँखें सुर्ख़ — एकदम खून की तरह।

    दोनों उसकी तरफ़ ऐसे घूर रहे थे जैसे किसी शिकारी ने शिकार को आख़िरी बार जीने दिया हो।


    ---

    समय – अपनी स्क्रीन देखता हुआ, धीरे-धीरे उठता है।

    वो अब सीधा कैमरे की तरफ देखकर जैसे मीनल से बात कर रहा हो —
    "तू पहुँची तो सही...
    मगर ये सिर्फ दरवाज़ा नहीं, ये मेरी दुनिया का आख़िरी पड़ाव है...
    और उस पर दो रक्षक रखे हैं — जो भूखे हैं... सिर्फ तेरे लिए।"

    वो ज़ोर से हँसता है —
    "चल, अब देखता हूँ —
    दिल में मेरी स्वीटी...
    हौसले में तू...
    लेकिन सामने मौत खड़ी है —
    क्या करेगी मीनल...?"


    ---
    मूसलाधार बारिश — बिजली चमक रही है

    मीनल के कदम थम चुके थे।

    सामने दो सफेद बाघ — गरजते, दाँत दिखाते, ज़मीन कुरेदते।

    मीनल की आँखें डर से फैल गईं —
    उसने हल्का-सा एक कदम पीछे लिया...
    और तभी उसकी पीठ किसी सख्त और ठंडी चीज़ से टकराई।

    वो चौंक कर मुड़ी —

    वो समय था।

    सिर झुका हुआ, आँखें अधपलकी, और चेहरे पर ऐसी मुस्कान जो जैसे किसी शिकारी ने शिकार के हार मानने का इंतज़ार किया हो।

    मीनल डर से काँपते हुए:
    "न-नहीं... नहीं..."

    समय धीमे से फुसफुसाता है:
    "बहुत दूर आ गई न तू...
    अब लगेगा असली खेल।"

    वो जोर से धक्का देता है — मीनल पीछे फिसलती हुई कीचड़ में गिर जाती है।
    उसके कपड़े गीले और गंदे हो चुके हैं, चेहरा कीचड़ से सना, आँखों में आंसू और दिल में डर।

    समय उसके पास आता है — उसकी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर करता है।
    "देख तू कैसी लग रही है...
    स्वीटी के दिल को ले के और उसका चेहरा लेकर, तू ये सोच बैठी कि तू उससे बड़ी हो गई...?
    तेरी औक़ात यही कीचड़ है, मीनल।"

    वो उसके गाल पर ज़ोर से एक थप्पड़ मारता है —
    फिर घसीटता हुआ उसे गेट के पास बने पत्थर के चबूतरे तक खींचता है।

    समय उसकी बाँह मरोड़ते हुए:
    "तू जानती है न, इस दिल ने मुझसे क्या वादा किया था?
    अब ये देखेगा कि मैं कैसे हर धड़कन को उसकी मौत बना देता हूँ।"

    वो उसके गले में अपनी बेल्ट लपेटता है — बस इतना कि सांस रुके नहीं, मगर डर मौत जितना गहरा हो।

    मीनल हाँफती है, काँपती है — मगर तभी उसकी आँखों के सामने एक धुंधली सी परछाईं आती है...

    स्वीटी की — सफेद जोड़े में, मुस्कराती हुई।

    वो उसके पास झुकती है और बहुत धीरे से कहती है:

    "मीनल... ये दिल मेरा है...
    पर हिम्मत तेरी।
    डर मत, मैं हूँ तेरे साथ।
    अब तू उसके नहीं — अपनी साँसों की मालिक है।"

    मीनल की आँखों में अचानक वो डर के नीचे जिद की चिंगारी जल उठती है।


    ---


      इधर समय बेल्ट को टाइट करने लगता है.. और मिनल....उसकी उंगलियाँ बेल्ट पर कसती हैं, सांस रुकती है, आंखें फटी की फटी...

    साँसें हल्की पड़ने लगती हैं... होंठ नीले... बदन काँपता है।

    तभी समय बेल्ट ढीली कर देता है।

    वो झुककर मीनल के चेहरे के पास आता है और शैतानी मुस्कान के साथ फुसफुसाता है:

    "रोज़ मौत से मिलाऊँगा... लेकिन मौत तुझे छू भी नहीं सकेगी...
    हर पल तड़पेगी...
    हर सांस तेरे लिए सज़ा होगी..."

    मीनल ज़मीन पर गिर जाती है — अधमरी।

    समय उसे अपने कंधे पर उठा लेता है जैसे कोई शिकार को उठाता है।



    समय का  रूम — अंधेरे और ठंडी दीवारों से घिरा बाथरूम।

    समय बाथरूम का दरवाज़ा खोलता है — अंदर की सफेद रोशनी मीनल के गंदे और ज़ख़्मी शरीर पर पड़ती है।

    वो उसे एक झटके में bathtub में फेंक देता है।

    "छोटी सी गंदगी भी मुझे बर्दाश्त नहीं..."

    शावर का नॉब घुमाता है — तेज़ बर्फीला पानी सीधे मीनल के जिस्म पर गिरता है।

    मीनल की आँखें खुलती हैं — वो काँप रही है, होश में तो है लेकिन ज़ख़्म और ठंड से सुन्न।

    पानी की धार उसके ज़ख़्मों को बहा रही है...

    पुराने सूखे घाव अब दोबारा से रिसने लगे हैं, लाल धारों की तरह बहते हुए।

    समय दूर खड़ा मुस्कुरा रहा है — बिल्कुल पागलपन भरी तसल्ली के साथ।

    "अब सही लग रही है तू... टूटी हुई, बेजान... और मेरी बनाई हुई..."


    --- मीनल अब भी बाथटब में है।

    तेज़ बहते शावर के नीचे मीनल का चेहरा धीरे-धीरे साफ हो रहा है। उसके कपड़े उसके बदन से चिपक गए हैं। भीगे बाल गालों से लिपटे हैं। आँखें बंद हैं, लेकिन सांस अब तेज़ है — उसकी ज़िंदा होने की गवाही देती हुई।

    समय कुछ दूर खड़ा उसे घूर रहा होता है। गुस्सा, नफ़रत, पागलपन — सब उसकी आँखों में था... लेकिन अब... अब कुछ और भी है।

    वो झटके से ठिठक जाता है।

    उसकी आँखें चौड़ी होती हैं।

    “स्वीटी...” एक फुसफुसाहट उसके होंठों से निकलती है।

    फ्लैशबैक शुरू होता है:

    लोकेशन: वही बाथरूम — सालों पहले।

    समय बाथटब में बैठा है, बाल गीले, चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान।

    "स्वीटी... ज़रा अंदर तो आना..."

    स्वीटी हँसती हुई दरवाज़े पर खड़ी होती है, "कभी खुद भी नहा लिया करो पगले..."

    समय उसका हाथ पकड़ता है और उसे एक झटके में खींचकर बाथटब में गिरा देता है।

    छपाक! पानी उड़ता है।

    "तू न मुझसे बच नहीं सकती..."

    फिर शुरू होती है दोनों के बीच हँसी-मज़ाक और हल्का-सा रोमैंस... स्वीटी गीली होकर झल्ला जाती है, समय और छेड़ता है... दोनों की आँखों में प्यार... वो आख़िरी हँसी थी जिसे समय ने देखा था...

    फ्लैशबैक खत्म होता है।

    वापस वर्तमान समय,

    समय की साँसें तेज़ हो गई हैं। वो काँपता है... उसकी आँखों से दर्द, उलझन, और नफरत एक साथ टकरा रहे हैं।

    "स्वीटी..." उसका स्वर टूटता है।

    मीनल अब धीरे-धीरे होश में आ रही है।

    समय दो कदम पीछे हटता है — उसकी उंगलियाँ काँपती हैं। बदन में अजीब सी सिहरन है, जैसे भूत और वर्तमान की दीवारें गिर रही हों।

    वह अब मीनल को केवल मीनल की तरह नहीं देख पा रहा... उसे उसमें स्वीटी की झलक दिखने लगी है।


    Next पार्ट me  शुरू होगा मिनल का टशन.....

  • 20. Toxic bro in law - Chapter 20

    Words: 1347

    Estimated Reading Time: 9 min

    बाथरूम में, मिनल अब भी बाथटब में पड़ी है।

    समय की साँसें तेज़ हैं। उसके चेहरे का गुस्सा अब एक अजीब जुनून में बदल चुका है। उसकी नज़र मीनल के चेहरे पर टिकी है, जो अब भीगी हालत में उसकी आँखों में अजनबी सी घबराहट और स्वीटी जैसी मासूमियत दोनों लिए हुए है।

    वो धीरे-धीरे मीनल के पास जाता है।

    घुटनों के बल बैठता है। हाथ बढ़ाता है लेकिन फिर रुक जाता है... उसकी उंगलियाँ काँपती हैं।

    "तू नहीं है... तू नहीं हो सकती..." वह खुद से बुदबुदाता है।

    फिर अचानक उसकी आँखों में ज्वालामुखी फूटता है। उसका हाथ मीनल के चेहरे तक पहुंचता है... और वह उसका गाल झटके से पकड़ लेता है।

    "तू उसकी शक्ल में मेरे साथ खेल खेल रही है?"

    मीनल डर के मारे कांप जाती है, होंठ सूख चुके हैं, लेकिन होंठों से एक टूटी-सी फुसफुसाहट निकलती है —
    "मैं... मैं स्वीटी नहीं हूँ..."

    समय एक ज़ोरदार ठहाका लगाता है —
    "पता है मुझे!! लेकिन तू बनती क्यों है!! तूने मेरा प्यार चुराया है, मेरी यादें, मेरी रातें...!!"

    वो मीनल के गले तक हाथ ले जाता है, लेकिन इस बार न मारने के लिए, बल्कि उसे महसूस करने के लिए...

    "तेरे सीने में उसका दिल है... और अब उसकी धड़कन भी मेरी नहीं रही..."

    वो अपना सिर पीछे ले जाकर दीवार से मारता है... ज़ोर से। खून की एक लकीर माथे से बहने लगती है।

    मीनल चीख़ कर डर जाती है।

    समय फिर उसकी तरफ देखता है – अब उसकी आँखों में कुछ टूटा हुआ है, जैसे कोई अंधेरे में गिर गया हो।

    "अगर मैं तुझे नहीं मार सकता... तो तेरे अंदर की उस धड़कन को तड़पाकर मारूँगा... एक-एक सांस को आग बनाऊँगा..."

    वो मीनल के ऊपर झुकता है... लेकिन तभी—मीनल उसकी आँखों में सीधे देखती है।

    "स्वीटी दीदी मुझमें जिंदा हैं... और वो मुझे लड़ना सिखा रही हैं। तुम चाहे जितनी भी सज़ा देलो, मैं जीती रहूँगी... क्योंकि अब ये मेरी नहीं, उनकी साँसें हैं।"

    समय कुछ पल के लिए रुकता है।

    फिर वो एक पागल हँसी हँसते हुए उठता है...

    "तो अब खेल असली शुरू होगा..."




    ---

    समय की आँखों में जुनून, ग़ुस्सा और एक पागलपन तैर रहा था। मिनल बाथटब में गिरी, भीगी हुई, लहूलुहान और थरथर कांप रही थी। उसके कपड़े बदन से चिपक चुके थे। चेहरा अब साफ़ था… और समय की आँखों में जैसे अतीत की परछाइयाँ उतर आईं थीं।

    वो अटकती साँसों और डरे हुए चेहरे में अपनी स्वीटी को ढूँढने लगा। वही मासूम चेहरा, वही आँखें… और वही कंपकंपाता बदन।

    समय ने एक गहरी सांस ली, अपने बालों में हाथ फेरा, और जैसे कोई अंधा जुनून उस पर हावी हो गया।

    वो झुका, मिनल को गोद में उठाया — जैसे कोई अपनी टूटी गुड़िया को फिर से पकड़ रहा हो।

    “अब असली खेल शुरू होगा,” उसके लहजे में एक बर्फ़ जैसी ठंडक थी।

    वो उसे अपने कमरे के बेड तक लाया और बिना किसी कोमलता के उसे बिस्तर पर पटक दिया। मिनल की साँसें रुकीं, दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। वो कुछ कहने को हुई, लेकिन उसकी ज़ुबान जैसे हलक में अटक गई।

    समय उसके पास बैठा, उसकी ओर झुकते हुए पागलों की तरह बड़बड़ाया,
    “ये ज़िन्दगी... ये चेहरा... ये सब कुछ मेरी स्वीटी मुझे देकर गई है... तो अब इसका इस्तेमाल भी मेरा होगा... सिर्फ़ मेरा।”
    यह कह कर समय ne एक झटके se मिनल की ड्रेस फाड़ डाली..

    मिनल काँप रही थी। उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। उसने खुद को समेटने की कोशिश की लेकिन समय की नज़रों में अब जो था वो मिनल नहीं, स्वीटी थी।
    समय जिसने सिर्फ मिनल को डराने और तोड़ने ke लिए यह हरकत की थी वो अब खुद होश खो बैठा था मिनल को देख..
    मिनल इनर वियर me समय के सामने थी और वो अब मिनल नहीं बल्कि स्वीटी बन कर समय को रिझाती हुई नज़र aa रही थी jo सिर्फ समय का वहम था..

    “तू भाग सकती है मुझसे?” समय ने झुककर फुसफुसाया, “तू मेरी थी, मेरी है... और अब मेरी ही रहेगी।”


    ---


    ---

    समय का चेहरा अब पहचान की हर सरहद लांघ चुका था। उसकी आँखों में कोई होश बाकी नहीं था—वो सिर्फ एक छाया देख रहा था, एक अक्स, जो कभी उसकी ज़िंदगी थी—स्वीटी।
    मिनल बेबस थी, डरी हुई, कांपते होंठों से 'प्लीज़' कहने की कोशिश करती, लेकिन समय जैसे किसी और ही दुनिया में था।

    "स्वीटी..." उसके लब बुदबुदाए, और वो धीरे-धीरे मिनल के करीब आने लगा।

    मिनल ने खुद को पीछे खींचा, लेकिन पीठ बेड के हेडरेस्ट से जा लगी। "मैं मिनल हूँ..." वो चीखना चाहती थी, मगर आवाज़ गले में ही फँस गई।

    समय अब इतनी क़रीब आ गया था कि उसका साँस भी मिनल की साँसों से टकराने लगा। हाथ बढ़ा ही था कि...

    ठक-ठक-ठक!

    दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से किसी ने थपथपाया। "समय!"—प्रेम की गूंजती हुई आवाज़ ने जैसे वक़्त को जकड़ लिया।

    समय ठिठक गया।

    उसकी आँखों में जैसे अचानक कोई धुंध छंट गई हो। सामने खड़ी काँपती, डरी-सहमी मिनल को देखकर उसके कदम रुक गए। वो पीछे हटा, और आँखें मींचकर ज़ोर से साँस ली।

    उसे अहसास हुआ—वो क्या करने जा रहा था।

    कंधे झटकते हुए, अपने बालों में उंगलियाँ फिराते हुए, वो बेड पर बैठ गया... जैसे अपनी ही सोच से डर गया हो।


    ---



    ---

    मिनल एक कोने में सिमटी पड़ी थी। उसकी साँसें अब भी अनियंत्रित थीं। पलकें भीग चुकी थीं, और बदन कांप रहा था — डर, अपमान और सदमे से। उसके कपड़े अस्त-व्यस्त थे, और उसकी नज़रों में अभी-अभी मर कर जिंदा हुई आत्मा की सी खामोशी थी।

    समय, जो कुछ पल पहले पागलपन की हद तक पहुँच गया था, अब खुद से नज़रें नहीं मिला पा रहा था। उसकी साँस भारी थी, आँखें झुकी हुईं।

    कुछ देर तक चुपचाप खड़ा रहा, फिर धीरे से एक चादर उठाई और मिनल की तरफ फेक कर बिना उसे देखे।

    "ढँक लो खुद को..." उसकी आवाज़ टूटती हुई थी, लेकिन अब भी भीतर एक कठोरता बाकी थी — शायद खुद से नफ़रत की।

    मिनल की आँखें उस चादर की तरफ गईं, फिर उसकी आँखों से टकराईं — एक ज़ख्मी नज़रिया जो पूछ नहीं रहा था, बस महसूस कर रहा था।

    वो चादर अपने काँपते हाथों से पकड़ी, अपने बदन पर लपेट ली, और उसी पल उसके आँसू बेआवाज़ बहने लगे।

    समय कुछ पल ठहरा... जैसे अपने भीतर के शोर को रोकने की कोशिश कर रहा हो। फिर बिना प्रेम की तरफ देखे, बिना कुछ कहे—कमरे से बाहर चला गया।



    मिनल वहीं बेड पर बैठी थी...
    टूट चुकी थी, लेकिन ज़िंदा थी।
    बिखर चुकी थी, लेकिन शायद अब लड़ने के लिए तैयार हो रही थी।


    ---

    समय बाहर निकलता है...

    समय का चेहरा गुस्से, शर्म और उलझन से भरा हुआ था। उसकी चाल तेज़ थी, और आँखों में कोई तूफान सुलग रहा था। उसकी शर्ट की बटन आधी खुली थी, बाल बिखरे हुए... और चेहरा —  खून और एक अजीब बेचैनी से भरा।

    प्रेम, जो दूर से ये सब देख रहा था, घबरा गया।

    वो समझ गया — अंदर कुछ बहुत बुरा हुआ है।
    बिना एक पल गंवाए वो दौड़ता हुआ अंदर गया।

    कमरे के अंदर

    दरवाज़ा खोलते ही प्रेम की आँखें सुन्न हो गईं।

    मिनल, बेड पर बैठी थी। चादर में लिपटी, सिर झुका हुआ, बदन काँपता हुआ।
    उसका चेहरा लाल था, आँखें सुजी हुईं, और गालों पर सूखे आँसुओं की लकीरें साफ़ दिख रही थीं।

    प्रेम के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।

    "मिनल...!" वह फुसफुसाया और अगले ही पल दौड़कर उसके पास पहुँचा।

    उसने बिना कुछ पूछे, बिना एक शब्द कहे, उसे गले से लगा लिया।

    मिनल टूटकर उसके सीने से लग गई।
    जैसे सारा दर्द अब किसी अपने के कंधे पर गिर पड़ना चाहता हो।

    प्रेम के गले में आँसुओं की गरमी महसूस हुई तो उसका दिल चीर गया।
    उसने धीरे से सिर पर हाथ फेरा, उसकी काँपती पीठ को सहारा दिया।

    "मैं... मैं तुझे बचा नहीं पाया..."
    उसके शब्द रुकते थे, काँपते थे...
    लेकिन उसमें एक भाई का पश्चाताप झलक रहा था।

    "माफ़ कर... माफ़ कर मुझे..."

    मिनल ने कुछ नहीं कहा।
    बस आँसू बहते रहे।
    और प्रेम की छाती भीगती रही।

    पर अफ़सोस... वो कुछ कर नहीं सकता था।
    क्योंकि जिसके खिलाफ ये लड़ाई थी...
    वो कोई आम इंसान नहीं था — समय सूर्यवंशी था।


    ---