धृति, एक मासूम लड़की, जिसे उसकी अपनी चाची ने एक दरिंदे के हाथों बेचने की साजिश रची। इज़्ज़त बचाने का उसके पास सिर्फ एक रास्ता था — मौत। और उसने वही चुना, खाई में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। दूसरी तरफ थी अंशिका, एक बेबस लड़की, जिसके अ... धृति, एक मासूम लड़की, जिसे उसकी अपनी चाची ने एक दरिंदे के हाथों बेचने की साजिश रची। इज़्ज़त बचाने का उसके पास सिर्फ एक रास्ता था — मौत। और उसने वही चुना, खाई में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। दूसरी तरफ थी अंशिका, एक बेबस लड़की, जिसके अपने ही उसके सपनों को कुचल कर उसे जबरदस्ती एक गुस्सैल और डेविल बिज़नेस मैन रणवीर से बांधना चाहते थे। रणवीर के गुस्से और उसके बर्ताव की कहानियों ने अंशिका को भीतर तक डरा दिया — इतना कि उसने अपने ही हाथों अपनी नसें काट लीं। मगर... किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। धृति की आत्मा को मिला एक और मौका — एक नया जीवन। लेकिन इस बार अंशिका के नाम, उसके चेहरे और उसकी अधूरी कहानी के साथ। क्या धृति भी अंशिका की तरह डर कर जीना छोड़ देगी? या फिर उठेगी, टूटे सपनों को जोड़ने के लिए? क्या वो रणवीर जैसे गुस्सैल और डेविल पति के साथ रहकर उसे बदल पाएगी… या खुद टूट जाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी "Rebirth as Devil's Bride" ......
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रात का अँधेरा हर ओर पसरा हुआ था, और ठंडी हवा किसी अनजान डर की तरह बह रही थी। एक लड़की बिना रुके, लगातार भाग रही थी। उसके पैर ज़मीन से बस कुछ ही सेंटीमीटर ऊपर थे, जैसे वो अपने किसी भयानक सपने से भाग रही हो। उसके सांस तेज़ थे, और दिल में एक अनजाना डर, जो हर कदम के साथ बढ़ता जा रहा था। वह अपने कदमों की आहट सुनती, पर कोई पीछे नहीं था, फिर भी उसका डर कम नहीं होता था।
धृति, एक मासूम पर दर्द से भरी लड़की, हल्की गोरी और थोड़ा फीकी त्वचा वाली थी, जैसे उसने बहुत दिनों तक धूप नहीं देखी हो। उसकी बड़ी काली आंखों में डर और जज़्बा दोनों झलकते थे। भूरे बाल कंधों तक लहराते थे, जो अक्सर खुले रहते थे। उसके चेहरे पर मासूमियत के साथ एक गहरी उदासी साफ दिखती थी। वह साधारण और साफ-सुथरे कपड़ों में थी, जो उसकी मजबूरी और मासूमियत को बयां करते थे।
धीरे-धीरे वह खाई के किनारे पहुंची। नीचे गहरी खाई थी, अँधेरी और अनंत। उसने ऊपर देखा और अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहा, "हार गई आप की धृति, मां-पापा। हार गई आपकी धृति। माफ करना, मां-पापा, मैं आपका सपना पूरा नहीं कर सकती।" उसकी आवाज़ में बेचैनी और अपमान दोनों थे। "अगर मैं आज जिंदा बच गई, तो चाची मुझे उस बूढ़े गुंडे को बेच देगी, जिसे मैं जिंदा कभी नहीं सह सकती।"
इतना कहकर उसने एक गहरी सांस ली, उसकी आंखों में आँसू और हिम्मत दोनों चमक रहे थे। फिर बिना किसी और सोच-विचार के, वह खाई में छलांग लगा दी।
वहीं दूसरी ओर, एक विशाल और पुरानी हवेली की दीवारों के बीच, एक कमरा था। कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था, और उसके पीछे एक लड़की दरवाजे से सट कर बैठी थी। उसका चेहरा सिसकियों और डर के बीच धुंधला हो रहा था।
अंशिका, खूबसूरत लेकिन भीतर से टूट चुकी, हल्की गुलाबी और निखरी हुई त्वचा वाली लड़की थी। उसकी काली घनी आंखें अक्सर नीली पलकों से नम होती थीं। लंबे काले बाल बिखरे हुए थे, जो उसकी बेचैनी को दर्शाते थे। वह महंगे लेकिन सिंपल कपड़ों में थी, जो उसकी सामाजिक स्थिति को दिखाते थे, पर उसकी आंखों की गहराई उसकी असली कहानी बयां करती थी।
वह खुद से ही फुसफुसाते हुए बोली, "नहीं, कुछ भी हो जाए, मैं उस जानवर से शादी नहीं कर सकती। वह बहुत गुस्से वाला है। मैं उसके साथ नहीं रह सकती।"
उसकी आवाज़ टूट रही थी, आंसू उसकी आवाज़ को रोक रहे थे। वह दर्द में डूबी हुई थी, अपने अधूरे सपनों के बारे में सोच रही थी। "और मेरी पढ़ाई भी अधूरी रह गई।"
इतना कहकर उसने अपने ही हाथों को काट लिया, अपनी तकलीफ़ को खत्म करने की कोशिश में। उसके बाद उसकी आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं, और वो इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गई।
धीरे-धीरे अंधेरा छंटने लगा और धृति की आंखें खुलीं। उसने महसूस किया कि वह एक नरम और आरामदायक बिस्तर पर पड़ी है। पहला एहसास उसे चौंका गया। वह अचानक उठ बैठी और चारों तरफ नजर दौड़ाई। कमरे की दीवारें साफ-सुथरी थीं, और हर चीज़ एकदम नई और अजनबी लग रही थी।
धीरे-धीरे उसकी समझ में आया कि वह अब उस खाई में नहीं है जहां उसने अपनी जिंदगी खत्म करने की हिम्मत दिखाई थी। गहरी सोच में पड़ते हुए, उसने धीरे-धीरे अपने होठों से कहा, "ये तू कहां आ गई धृति? मैं तो अपनी जान खाई में कूद कर दे दी थी। फिर मैं यहां कैसे आ गई?"
उसके मन में कई सवाल उमड़ने लगे। सोच की इस उलझन से बाहर निकलते हुए, वह बिस्तर से नीचे उतरी। तभी उसकी नजर सामने लगे मिरर पर पड़ी। वह झट से मिरर के सामने खड़ी हो गई और अपनी परछाई को घूरने लगी।
मिरर में जो चेहरा उसे दिखा, उसे देखकर वह चीख पड़ी, "ये कौन है? ये तो मैं नहीं हूं!"
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उस पर अनजाने का डर और आश्चर्य एक साथ छा गया। सवालों की बाढ़ ने उसे घेर लिया था।
धृति के दिल में डर और उलझन के बीच अचानक कमरे का दरवाजा खुला। एक तेज़ और सख्त आवाज़ ने उसकी सोच को तोड़ दिया। एक महिला अंदर आई और बिना कोई देर किए, धृति के हाथ पकड़कर जोर से मोड़ दिया। उसकी आवाज़ में गुस्सा और घबराहट दोनों थे, "तू पागल हो गई थी, अंशिका! जो तुम हमें ऐसे मुसीबत में छोड़ कर मरने जा रही थी। क्या तुम्हें पता है अगर राजावत फैमिली के लोगों को इस बारे में पता चलता तो क्या होता? हमारा बिजनेस जो अभी डूबने के कगार पर है, उसे और कहीं का नहीं छोड़ते।"
धृति की आंखें बड़ी हो गईं, और वह घबराकर बोली, "आह! ये क्या कह रही हो आप? और आप कौन हैं? मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हैं?"
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सब कुछ इतना असली लग रहा था, पर वो खुद को इस स्थिति में पाकर चौंक गई थी। उसने अभी तक यह समझ ही नहीं पाया था कि वह कहाँ है और क्या हो रहा है।
कमरे की हवा अचानक भारी हो गई। पीछे खड़ी महिला ने धृति की मासूम सी बातों पर झल्लाकर उसका हाथ और भी ज़ोर से मोड़ दिया। दर्द से तिलमिलाती धृति कुछ कह पाती, उससे पहले वो महिला गुस्से में बोली,
"ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत कर, अंशिका! चुपचाप तैयार हो जा। थोड़ी देर में मेकअप वाली आ रही है। वो तुझे अच्छे से तैयार कर देगी।"
उसकी आवाज़ में कोई ममता नहीं थी, सिर्फ दबाव और स्वार्थ की चुभन थी। झटके से उसका हाथ छोड़ते हुए वो महिला दरवाज़ा तेज़ी से खोलकर चली गई, जैसे उसके पास और भी बहुत ज़रूरी काम हों — पर इंसानियत उनमें से एक नहीं था।
धृति स्तब्ध खड़ी रही। उसकी आंखें लाल हो गई थीं और हाथ की नसों में अब भी दर्द की लहर दौड़ रही थी। उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा,
"ये कौन थी? और ये मुझे अंशिका क्यों बुला रही थी? मैं तो… मैं तो धृति हूं!"
कंफ्यूज़न और डर ने मिलकर उसके भीतर तूफान मचा दिया था। फिर अचानक, उस कमरे के सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज़ उसके कानों में गूंजने लगी — कोई बाहरी नहीं, बल्कि जैसे उसकी आत्मा के भीतर से कोई बोल रहा हो।
"धृति, तुमने अपने जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। हमेशा दूसरों की मदद की। इसलिए भगवान ने तुम्हें दूसरा जीवन दिया है। मगर एक औरत के अधूरे जीवन में, जो अपने ही लोगों से टूटी थी।"
वो सुन्न सी खड़ी रह गई। आवाज़ फिर बोली —
"अब पांच मिनट के लिए अपनी आंखें बंद करो। तुम्हारे सामने वो सारे दृश्य आएंगे जो इस शरीर ने जिए हैं… और तुम जान जाओगी कि अब तुम सिर्फ धृति नहीं, अंशिका भी हो।"
धृति का शरीर कांप उठा। उसका मन कह रहा था कि ये सब भ्रम है, लेकिन दिल कहीं गहराई से यह सब सच मानने को मजबूर था। कांपते हाथों से उसने अपने चेहरे को छुआ, और फिर धीरे-धीरे पलकों को बंद कर लिया।
धृति ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, एक अनदेखा अंधेरा उसके चारों ओर फैल गया। लेकिन वो अंधेरा सन्नाटे भरा नहीं था — वो तो एक दरवाज़ा था… किसी और की अधूरी ज़िंदगी का।
उसकी बंद पलकों के भीतर, एक के बाद एक दृश्य तैरने लगे…
सजी-संवरी एक हवेली, जिसकी दीवारें महंगी सजावटों से चमक रही थीं। हर कोना रोशनी में नहाया हुआ था। बाहर मेहमानों की भीड़, कैमरों की चमक और भीतर एक लड़की — लाल रंग का भारी लहंगा पहने, आंखों में आंसू छिपाए। वो लड़की थी अंशिका अग्रवाल।
धृति के मन में गूंजती आवाज़:
"तो ये है वो, जिसकी जगह मुझे जीवन मिला है…"
वो आगे देखती है — अंशिका शीशे के सामने बैठी है, पर चेहरे पर दुल्हन वाली खुशी नहीं… बस थकावट, दर्द और लाचारी।
"आज मेरी शादी है," अंशिका धीमे स्वर में खुद से कहती है, "पर इस रिश्ते में मेरा कोई सपना नहीं, कोई सहमति नहीं… बस सौदा है।"
फ्लैशबैक में अगला दृश्य बदलता है —
अंशिका अपने कमरे में अपने चाचा-चाची से कह रही है,
"प्लीज़! मुझे अभी शादी नहीं करनी, मेरी पढ़ाई अधूरी है, मेरे अपने सपने हैं!"
पर जवाब में सिर्फ एक ठंडी हँसी आती है,
"सपने बाद में देखना… पहले घर और बिज़नेस बचाना सीखो।"
अंशिका की आंखों में आंसू और मन में डर उतरता जाता है — क्योंकि शादी रणबीर ओबेरॉय से थी… एक ऐसा आदमी जिसकी गुस्से की कहानियां अख़बारों तक में छपी थीं।
फ्लैशबैक का आखिरी दृश्य सबसे तीखा था —
दुल्हन का जोड़ा पहने, आंखों में गीला दर्द और हाथ में ब्लेड लिए अंशिका आईने के सामने खड़ी थी।
"माफ करना मां-पापा… मैं अब और सह नहीं सकती। न अपने सपनों की मौत… और न इस इंसान की पत्नी बनने का बोझ…"
और फिर… चीख… और सन्नाटा।
अचानक, धृति की आंखें खुल गईं। उसने घबराकर इधर-उधर देखा। साँसें तेज़ थीं। माथे पर पसीना।
"तो इस शरीर की असली मालिक… अंशिका थी…"
***** तो अब से में धृति को अंशिका ही बोलूंगी। *****
तभी उस के कमरे का दरवाजा कोई खटखटाता है। अंशिका दरवाजा खोलती है। तो सामने का नजारा देख हैरान हो जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या देखा होगा अंशिका ने जिस से वो हैरान हो गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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HUKUMAT-E-DIL
ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार वालों से ही करता था। अपनी मां और दादी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। वहीं तारा एक मासूम सी लड़की है। तारा उसकी सौतेली मां और सौतेली बहन के द्वारा प्रताड़ित हो रही थी। जहां शौर्य आग था वही तारा पानी थी। अपने मां और दादी के प्रेशर में आ कर शौर्य ने तारा से शादी कर ली। वहीं तारा की मां और बहन लालच में तारा की शादी शौर्य से करा रहे थे। क्या होगा जब आग और पानी एक साथ आयेंगे? क्या होगा जब तारा को पता चलेगा शौर्य की बीमारी? क्या है शौर्य का वो राज़? क्या करेगी तारा उस राज़ को जान कर? क्या शौर्य की नफ़रत में तारा की मासूमियत चली जायेगी? क्या कभी शौर्य और तारा के बीच प्यार पनप पायेगा? जानने के लिए पढ़िए "Hukumat-E-Dil"......
अभी कुछ ही मिनट बीते थे जब धृति की आंखें अंशिका की अधूरी ज़िंदगी की झलकियों से खुली थीं। दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था, पर अब डर से ज़्यादा सवाल थे उसके भीतर।
"रणवीर ओबेरॉय… ये वही है जिससे मेरी शादी हो चुकी है? पर कौन है ये इंसान?"
अभी उसके पास जवाब नहीं थे, पर उसके सामने पड़ा मोबाइल — जो अब उसका था — उसमें इंटरनेट ज़रूर था।
उसने कांपते हाथों से फोन उठाया और गूगल खोला। टाइप किया —
“Oberoi Family India”
जैसे ही सर्च रिज़ल्ट खुले, एक के बाद एक नाम और चेहरे सामने आने लगे…
सबसे ऊपर था:
राजवर्धन ओबेरॉय — ओबेरॉय खानदान के मुखिया। एक ज़माने में प्रसिद्ध पॉलिटिशियन रह चुके थे। गहरी आँखें, सफेद बाल, और अब भी चेहरे पर सत्ता का असर साफ़ दिखता था।
फिर नाम आया:
जानकी ओबेरॉय — राजवर्धन की पत्नी। एक शांत और संयमी महिला, जिनके बारे में लिखा था:
"The binding thread of the Oberoi household."
उनकी तस्वीरों में वो हर परिवारिक फंक्शन में सबसे पीछे, मगर सबसे स्थिर नज़र आती थीं।
फिर धृति की नज़र पड़ी:
राजवीर ओबेरॉय — इंडिया के प्रेसिडेंट। और हाँ, ये केवल कहानी की दुनिया में था — लेकिन एक झटका तो लगता ही है जब आप खुद को अचानक उनके बहू के रूप में देख लें।
उनकी पत्नी, सीमा ओबेरॉय, के बारे में लिखा था:
"Soft-spoken, graceful and the silent strength of the Oberoi mansion."
फिर आया:
राजीव ओबेरॉय — रणवीर का छोटा भाई। पेशे से एक एक्टर।
एक ग्लैमरस इंस्टा प्रोफाइल खुली, जिसमें वो शूटिंग लोकेशन्स, अवार्ड शोज़ और फ़ैन्स के बीच में था।
फिर थे, जयराज ओबेरॉय — राजवीर के छोटे भाई, और परिवार के बिज़नेस पार्टनर।
उनकी पत्नी, रश्मि ओबेरॉय, एक पॉपुलर फैशन डिज़ाइनर थीं, जिनकी डिज़ाइन्स बॉलीवुड में भी चर्चित थीं।
इनके बच्चे —
आर्यमान ओबेरॉय, जो अब पॉलिटिक्स में थे।
और किया ओबेरॉय, जो बिज़नेस स्टडीज कर रही थी और सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव थी।
पर कुछ अजीब था…
रणवीर ओबेरॉय का नाम तो बार-बार सामने आ रहा था — "ओबेरॉय ग्रुप का चेयरमैन", "Most Influential Young Businessman", "India's Ruthless Tycoon" — लेकिन कहीं भी उसकी तस्वीर नहीं थी।
ये बात खटकने लगी धृति को।
उसे बस यही जानने को मिला:
रणवीर गुस्से का तेज़ है। उसके ऑफिस में कोई उसके सामने आवाज़ नहीं उठाता। उसका क्रोध इतना कड़ा होता है कि बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स भी उससे बात करते वक्त दो बार सोचते हैं।
"ये शादी… एक सौदा थी। मेरी मर्जी बिना मुझे उस इंसान से बांध दिया गया है, जिसका चेहरा भी किसी ने ठीक से नहीं देखा…" धृति का मन बुरी तरह बेचैन हो गया।
उसने फोन बंद किया, और कमरे की खिड़की की ओर देखा —
जहाँ दुनिया चमक रही थी, लेकिन उसके भीतर डर, उलझन और एक अदृश्य कैद घर कर गई थी।
अब उसकी शादी को कुछ ही घंटे बचे थे…।
अंशिका फोन में ओबेरॉय परिवार के बारे में पढ़ ही रही थी, कि तभी कमरे का दरवाज़ा धीरे से नॉक हुआ।
वो चौंकी। एक पल को मन हुआ कुछ न बोले, लेकिन फिर धीमी आवाज़ में बोली,
"आ जाइए..."
दरवाज़ा खुलते ही तीन लड़कियाँ अंदर आईं।
एक के हाथ में लाल सुनहरी कढ़ाई वाला शादी का जोड़ा, दूसरी के हाथों में चमकते आभूषण, और तीसरी — एक प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट, अपने टूल किट के साथ। ये सब देख अंशिका की आँखें हैरानी से बड़ी बड़ी हो गई।
पहली लड़की ने मुस्कराते हुए लहंगा आगे बढ़ाया,
"ये लीजिए मैम, आप ये पहन लीजिए। फिर हम मेकअप कर देंगे।"
अंशिका ने कुछ नहीं कहा, बस हल्के से सिर हिला कर जोड़ा ले लिया और धीरे-धीरे ड्रेसिंग रूम की तरफ बढ़ गई।
कुछ ही देर में वो बाहर आई — लाल रंग की भारी पोशाक में सजी — लेकिन उसका चेहरा अब भी सपाट था। कोई चमक नहीं, कोई खुशी नहीं।
मेकअप आर्टिस्ट ने बिना एक शब्द बोले काम शुरू कर दिया। काजल, लिपस्टिक, बेस, ब्लश — सब कुछ जैसे मशीन की तरह।
वहीं दूसरी लड़की ने उसके बालों को सँवार कर जूड़ा बनाया, और फिर एक-एक कर सारे गहने पहनाने लगीं — मांगटीका, झुमके, हार, चूड़ियाँ, पायल।
हर चीज़ चमक रही थी, बस अंशिका की आँखें बुझी हुई थीं।
पूरे एक घंटे में वो लड़की जो कुछ घंटे पहले खुद को खत्म करना चाहती थी, अब एक शानदार दुल्हन की तरह तैयार थी।
लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान — नकली थी। उसकी आँखों में एक ही सवाल तैर रहा था: "क्या में उस डेविल के साथ अपनी आगे की जिंदगी जी सकूंगी?"
मेकअप खत्म होते ही मेकअप आर्टिस्ट ने आखिरी बार अंशिका के चेहरे पर ब्रश फिराया और फिर मुस्कराते हुए बोली,
"बहुत खूबसूरत लग रही हैं आप। देखना, आपका पति तो आपको देखता ही रह जाएगा आज!"
उसकी हँसी कमरे में हल्की सी गूंजती है — एक आम शादी की हलचल जैसी — पर अंशिका की मुस्कान फिर भी नहीं लौटती।
वो बस आईने में खुद को निहारती रहती है।
वो आईना उसे एक परी जैसी दुल्हन दिखा रहा था — भारी जोड़ा, परफेक्ट मेकअप, चमचमाते गहने —
मगर अंदर से वो एक टूटी हुई आत्मा थी।
मेकअप आर्टिस्ट अपना सामान समेटते हुए धीरे-धीरे बाहर चली गई।
उसके पीछे पीछे दोनों लड़कियाँ भी कमरे से निकल गईं,
दरवाज़ा पीछे से बंद कर दिया गया।
अब कमरे में सिर्फ खामोशी थी — और उस खामोशी के बीच अंशिका नहीं, बल्कि धृति बैठी थी।
दूसरी तरफ, नीचे मंडप में शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं।
दूल्हा — रणवीर ओबेरॉय — भारी शेरवानी में बेहद शाही लग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर भाव पढ़ना मुश्किल था।
पंडित जी ने अगली रस्म के लिए सिर उठाकर कहा,
"अब दुल्हन को बुलाइए। शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है।"
यह सुन अंशिका की चाची — सुरेखा अग्रवाल — फौरन उठीं और ऊपर की ओर चल दीं।
उनके चेहरे पर मुस्कान थी — सामाजिक मुखौटा — लेकिन मन में था डर कि कहीं ये लड़की फिर से कोई नाटक न कर दे।
जब वो कमरे में पहुँचीं, तो देखा अंशिका पूरी तरह से सजी-धजी, अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई थी — शांत, पर बेहद गंभीर।
सुरेखा जी तेज़ी से उसके पास आईं और बिना कोई भूमिका बांधे बोलीं,
"चल लड़की, तुझे नीचे बुला रहे हैं। सब इंतज़ार कर रहे हैं..."
अंशिका ने उसकी बात सुनी, फिर धीरे-धीरे उठ खड़ी हुई।
उसकी चाल में कोई झिझक नहीं थी।
दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए वो ठहरे हुए स्वर में बोली,
"आज से आपके सारे एहसान मेरे ऊपर से खत्म हुए सुरेखा चाची... और साथ ही हमारा रिश्ता भी।"
ये कहकर वो बिना एक पल रुके दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।
उसकी चाल में अब सिर्फ़ दर्द नहीं, एक नई सोच और एक बगावत की चिंगारी थी।
सुरेखा जी एक पल को सन्न रह गईं।
लेकिन फिर खुद को संभालते हुए जल्दी से उसके पीछे निकल पड़ीं —
क्योंकि अब उन्हें सबके सामने एक स्नेही चाची बनकर दिखाना था।
ओबेरॉय परिवार को यह दिखाना था कि उन्होंने अंशिका को कितने लाड़-प्यार से पाला है।
कमरे से बाहर जाते हुए सुरेखा के मन में चल रहा था:
"आज सब कुछ दांव पर लगा है... कहीं ये लड़की सब बर्बाद न कर दे..."
मंडप में जब अंशिका दुल्हन के रूप में नीचे आई, तो पूरा माहौल एक पल को थम-सा गया।
हर आँख उसी एक चेहरें पर टिक गई — उस परदे के पीछे छिपी एक सौम्य सुंदरता पर।
हालाँकि उसने अपना चेहरा हल्के से नेट की चुनरी से ढक रखा था,
पर उसकी झलक भी काफी थी सबका मन मोह लेने को।
हर कोई बस एक ही बात सोच रहा था —
"ओबेरॉय खानदान को सच में रत्न मिल गया है..."
अंशिका की नज़र धीरे से मंडप में बैठे दूल्हे पर पड़ी —
जो शेरवानी और सेहरे में लिपटा हुआ था।
उसका चेहरा पूरी तरह से सेहरे के पीछे छुपा हुआ था।
इसलिए अंशिका रणवीर को ठीक से देख नहीं पाई।
बस एक अजनबी था, जिससे उसकी सारी ज़िंदगी जुड़ने जा रही थी।
पंडित जी ने शादी की रस्में शुरू करवा दीं।
मंत्रों की ध्वनि, अग्नि की लौ और फूलों की महक के बीच फेरे पूरे हुए।
अब बारी थी सबसे महत्वपूर्ण रस्म की —
सिंदूर भरने की।
पंडित जी बोले,
"वर वधु की मांग में सिंदूर भरे।"
सीमा जी ने आगे बढ़कर अंशिका की चुनरी को थोड़ा ऊपर उठाया,
और जैसे ही रणवीर की नज़र पहली बार उस चेहरे पर पड़ी —
वो एक पल को ठिठक गया।
वो चेहरा... वो मासूम आँखें... एक पल को उसे सब कुछ थमता हुआ महसूस हुआ।
पर बिना कुछ बोले उसने आगे बढ़कर उसकी मांग में सिंदूर भर दिया।
कुछ बूंदें नीचे गिरकर अंशिका की नाक पर आ गईं।
सीमा जी ने जैसे ही उसे पोंछने की कोशिश की,
पंडित जी ने तुरंत रोका —
"रुकिए बहन जी, यह शुभ संकेत है। नाक में सिंदूर गिरना दर्शाता है कि पति अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करेगा।"
सीमा जी मुस्करा कर पीछे हट गईं।
फिर रणवीर ने मंगलसूत्र निकाला और धीरे से अंशिका के गले में पहनाया।
उसका हाथ जैसे ही उसके गले से छूता है,
एक झटका-सा दोनों ने महसूस किया —
मानो दो जानी-पहचानी रूहें टकराई हों।
और उसी क्षण पंडित जी की आवाज आई —
"शादी संपन्न हुई। अब आप दोनों पति-पत्नी हैं।
गुरुजनों का आशीर्वाद लीजिए।"
शंख की ध्वनि गूंज उठी।
लोगों की तालियाँ, बधाइयाँ और मुस्कराहटों के बीच दो अनजाने जीवन एक पवित्र बंधन में बंध गए थे।
बिदाई शुरू हुई। तभी अंशिका के कानों में सुरेखा जी ने कुछ कहा जिसे सुन कर अंशिका की आंखों में आशु आ गए।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा सुरेखा जी ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
MERE PROFESSOR SAHEB:-
रूहानी शर्मा— एक शर्मीली, सादगी से भरी लड़की, वो ज़्यादा बोलती नहीं, पर जब भी बोलती है तो दिल से और हमेशा मुस्कुराते रहती थी। वो मानती है कि प्यार ही ज़िंदगी का असली रंग है।
दूसरी ओर है एकांश सिंघानिया — गुस्से वाला, बेरुखा। उस की मुस्कान देखना तो ईद की चांद देखने की तरह होता था। जो दुनिया से नहीं, सिर्फ अपनी family से प्यार करता है। वो मानता है कि प्यार एक धोखा है... एक कमजोरी।
जब ये दो बिल्कुल उलटी सोच वाले इंसान कॉलेज में पहली बार टकराते हैं, जहां एकांश रूहानी का प्रोफेसर था, वहीं रुहानी स्टूडेंट।
एक वो जो प्यार को इबादत मानती है और एक वो जो प्यार को ख्वाब मानने से भी डरता है।
क्या रूहानी की मासूमियत एकांश के प्यार पर भरोसा दिला पाएगा? क्या होगा जब रूहानी के सामने आएगी एकांश की सच्चाई? क्या किस्मत उन्हें एक साथ जोड़ पाएगी?
फिर रणवीर ने मंगलसूत्र निकाला और धीरे से अंशिका के गले में पहनाया।
उसका हाथ जैसे ही उसके गले से छूता है,
एक झटका-सा दोनों ने महसूस किया —
मानो दो जानी-पहचानी रूहें टकराई हों।
और उसी क्षण पंडित जी की आवाज आई —
"शादी संपन्न हुई। अब आप दोनों पति-पत्नी हैं। गुरुजनों का आशीर्वाद लीजिए।"
शंख की ध्वनि गूंज उठी।
लोगों की तालियाँ, बधाइयाँ और मुस्कराहटों के बीच दो अनजाने जीवन एक पवित्र बंधन में बंध गए थे।
रणवीर और अंशिका ने जब सभी बड़ों के चरणों में झुककर आशीर्वाद लिया, तो उर्मिला जी और राजवर्धन जी के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती थी।
जैसे बरसों से जो सपना उन्होंने संजो रखा था, आज वो सच हो गया हो।
"अब हमारे रणवीर को संभालने वाली आ ही गई," उर्मिला जी ने स्नेह से अपने पति के कान में कहा, जिस पर राजवर्धन जी ने गर्व से सिर हिलाया।
हर कोई नवविवाहित जोड़े को शुभकामनाएँ दे रहा था। चारों ओर शहनाइयों की मधुर ध्वनि गूंज रही थी। पर इस चहल-पहल के बीच एक कोना ऐसा भी था,
जहाँ दिल अंदर ही अंदर टूटा हुआ था — अंशिका का।
अब समय था बिदाई का।
अंशिका की आंखें भर आई थीं — पर वो आंसू उसके दिल के बोझ से नहीं,
बल्कि अंदर के डर, गुस्से और असहायता से बह रहे थे। उसे किसी रिश्ते की जुदाई नहीं सताती थी, बल्कि उन रिश्तों का झूठा मुखौटा तकलीफ दे रहा था।
सुरेखा जी औपचारिकता निभाते हुए पास आईं, और सबके सामने उसे गले से लगा लिया। उनकी आँखों में आँसू थे कम से कम दिखावे के लिए।
पर तभी उन्होंने अंशिका के कान में धीरे से फुफकारा, "याद रख, तुम्हारी कोई भी शिकायत यहाँ नहीं आनी चाहिए। आज से इस घर के दरवाज़े तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। अपने रिश्ते को ठीक से निभाना… नहीं तो कहीं की नहीं रहोगी!"
ये शब्द किसी तलवार से कम न थे। अंशिका की रग-रग काँप उठी, पर चेहरे पर कोई भाव नहीं लाया उसने। क्योंकि अब वो सिर्फ बेटी या भांजी नहीं थी — अब वो रणवीर ओबेरॉय की पत्नी बन चुकी थी।
बिदाई की रस्में पूरी हुईं। अंशिका की आंखों में अश्रु थमने का नाम नहीं ले रहे थे।कार में बैठी, वो अपने पिछले जन्म की यादों में खो गई थी। धृति के उस दर्दनाक वक्त की यादें, जब उसने अपनी जान देने की हिम्मत दिखाई थी। और अब, इस जन्म में भी वही कहानी दोहराई जा रही थी।
वो अपने दिल से यही पूछ रही थी, "क्या हम सच में इतने बुरे हैं? क्या भगवान भी हमें नहीं चाहते? पहले जन्म में भी मुझे पैसों के लालची चाचा-चाची के हवाले छोड़ दिया, और इस जन्म में भी वही लोग मेरे साथ हैं। क्या मुझे किसी के प्यार पाने का कोई हक नहीं है।"
आंसू उसके गालों से बह रहे थे, पर उसकी आवाज़ में एक टूटन थी, जो बताती थी कि अब उसे अपने लिए लड़ना होगा।
वो धीरे-धीरे सिसक रही थी, अपने हाथों से बुदबुदाते हुए आंसू पोंछ रही थी। कार के अंदर उसकी चूड़ियों की खनकती आवाज़ हर थोड़ी देर बाद सुनाई दे रही थी, जो उसके अंदर की बेचैनी को और बढ़ा रही थी। तभी उसकी सुनाई दी एक कर्कश आवाज़, "ये लो, और अपने आंसू इससे पोंछ लो।" अंशिका ने डरते हुए अपना सिर उठाया और देखा कि रणवीर हाथ में सफेद रुमाल लिए उसके पास बढ़ रहा था।
धीरे-धीरे उसने रणवीर के हाथ से रुमाल लेने की कोशिश की, लेकिन अनजाने में दोनों की उंगलियां एक-दूसरे को छू गईं। इस छोटे से स्पर्श ने दोनों की धड़कनों को तेज कर दिया और उनकी नजरें एक-दूसरे की आँखों में टकरा गईं। कुछ पल के लिए समय थम सा गया, और अगर घूंघट और सेहरा न होते तो वे दोनों एक-दूसरे के चेहरे को साफ़ देख पाते। लेकिन तभी कार रुकने की आवाज़ ने उनकी आंखें खोल दीं और वे दोनों होश में आकर अपनी जगहों पर फिर से बैठ गए।
अंशिका ने संकोच के साथ आंसू पोंछे और रुमाल अपने पास रख दिया। उसकी आंखों में अब भी भय और उलझन साफ़ झलक रही थी। ठीक उसी वक्त ड्राइवर रणवीर के दरवाज़े को खोलकर उसे बाहर निकलने का संकेत दे रहा था। रणवीर ने मुस्कुराते हुए कार से बाहर कदम रखा, लेकिन जैसे ही ड्राइवर अंशिका के दरवाज़े को खोलने को था, रणवीर ने तुरंत कहा, "Stop, I will open the door।"
ड्राइवर ने पीछे हटते हुए उसकी बात मानी और रणवीर ने खुद धीरे से दरवाज़ा खोला।
रणवीर ने धीरे से कार का दरवाजा खोला और बाहर आने के लिए अंशिका का इंतजार करने लगा। पर अंशिका अपने भारी-भरकम लेहंगे की वजह से खुद को बाहर निकालने में असमर्थ थी। वह धीरे-धीरे पैर बढ़ाने की कोशिश करती रही, पर लेहंगे की सिलाई ने जैसे उसे जकड़ रखा हो।
यह देखकर रणवीर ने अपने हाथ को आगे बढ़ाया और गहरा आवाज़ में बोला, "Hold my hand and come out."
अंशिका ने एक नजर रणवीर के चेहरे पर डाली—वह गंभीर लेकिन सहज था। कुछ हिचकिचाते हुए उसने अपने नन्हे, कोमल हाथ उसके कठोर हाथ के ऊपर रख दिए। उसके हाथों की नर्मी और उसकी गर्माहट को महसूस कर रणवीर के दिल की धड़कन अचानक तेज हो गई।
अब अंशिका बाहर निकलने की पूरी कोशिश करने लगी, लेकिन लेहंगा उसे ऊपर उठने नहीं दे रहा था। रणवीर ने बिना देर किए एक झटके में उसे अपने करीब खींच लिया। उस पल अंशिका अचानक रणवीर की बाहों में आ गई।
रणवीर के मजबूत हाथ अंशिका की कमर को कसकर थामे हुए थे, और अंशिका के नाजुक हाथ रणवीर के बाइसेप्स पर हलके से टिके थे। दोनों के बीच की दूरी बिलकुल खत्म हो गई थी, लेकिन कोई भी इस नज़दीकी का एहसास नहीं कर पा रहा था। दोनों की सांसें अनियंत्रित हो गई थीं, और वे दोनों एक-दूसरे के दिल की धड़कनों को अपने सीने में महसूस कर रहे थे।
एक अजीब सी गर्माहट ने उनके दिलों को घेर लिया था, जो शायद इस नए रिश्ते की पहली अनजानी एहसास थी।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में गहराई से डूबे थे, जैसे समय थम सा गया हो। तभी अचानक आसमान से ठंडी ठंडी पानी की बूँदें गिरने लगीं। उस भीगती हवा में वे होश में आए और एक-दूसरे से थोड़ा दूर हट गए।
रणवीर ने हिचकते हुए कहा, "सॉरी, वो आप उठ नहीं पा रही थी, इस लिए..."
लेकिन रणवीर अपनी बात खत्म कर पाता उससे पहले अंशिका ने मुस्कुराते हुए कहा, "It's ok।"
दोनों ने ऊपर देखा तो पता चला कि हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई है। बारिश की बूंदों से बचने के लिए वे जल्दी से अंदर की तरफ बढ़ गए।
अंदर पहुंचते ही सीमा जी और बाकी परिवार वाले पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे, उनकी आँखों में हल्की चिंता और उम्मीद दोनों साफ झलक रही थी।
उनके आते ही सीमा जी ने दोनों की आरती उतारी और अंशिका से कहा,
"बेटा, इस कलश को अपने सोने बाएं पैर से गिराकर अंदर प्रवेश करो।"
सीमा जी की बात सुनकर अंशिका ने ध्यान से अपने बाएं पैर से कलश गिराया और फिर सावधानी से अंदर कदम रखा। उसके बाद सीमा जी ने उसे आलते की थाली में पैर रखकर आने को कहा। अंशिका ने भी वैसा ही किया। नीचे बिछी सफेद चद्दर पर उसके गोरे पैरों के निशान साफ दिखाई देने लगे।
फिर सभी लोग धीरे-धीरे अंदर आने लगे। सबसे पहले वे दोनों मंदिर की ओर गए, जहां उन्होंने भगवान के सामने प्रणाम किया। इसके बाद वे हॉल की ओर बढ़े।
फिर उर्मिला जी ने बोला,
"आज सभी बहुत थक चुके हैं, इसलिए बाकी की रस्में हम कल पूरी करेंगे।"
यह सुन सभी लोग अपने-अपने कमरे में आराम करने चले गए। किया ने अंशिका को गले लगाते हुए "गुड नाइट" कहा और अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
ठीक उसी वक्त रणवीर का फोन बजने लगा। कॉल सुनते ही उसने कहा,
"Excuse me, जरूरी कॉल है,"
इतना कहकर वह वहां से साइड में चला गया।
सिमा जी धीरे से बोलीं,
"बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारी शादी बहुत जल्दी-जल्दी में हुई है। इसलिए तुम दोनों को एक-दूसरे को समझने का वक्त मिलना बाकी है। मैं जानती हूँ रणवीर थोड़ा गुस्सैल है, पर दिल का वो बहुत अच्छा है बेटा। ये बात तुम्हें अभी समझ नहीं आएगी। तुम सोच रही होगी कि हर माँ के लिए उसका बेटा अच्छा होता है, पर मैं भरोसा दिलाती हूँ, जब तुम उसे समझना शुरू कर दोगी, तब तुम भी मानोगी कि मैं सच कह रही थी।"
फिर उन्होंने प्यार से पूछा,
"तुम निभाओगी न इस शादी को? और रणवीर को समझोगी न, बेटा?"
अंशिका ने निडर होकर जवाब दिया,
"हाँ आंटी, मैं इस रिश्ते को 100% दूंगी और उन्हें समझने की पूरी कोशिश करूँगी।"
सिमा जी के दिल को ये सुनकर बड़ी राहत मिली और उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई।
तभी उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिस से अंशिका के आखों में आशु आ गए।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा सीमा जी ने जिसे सुन कर अंशिका जी के आंखों में आशु आ गए?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .......
THE LOVE BOND: PYAR KA BANDHAN
रिश्ते जब मजबूरी में बनते हैं, तो क्या उनमें कभी मोहब्बत पनप सकती है?”
प्रियल, एक अनाथ लड़की, जिसने अपना बचपन एक आश्रम में गुजारा। सपनों को पूरा करने की चाह में वह आती है मुंबई — जहां उसे मिलता है सिर्फ तन्हाई और संघर्ष।
वहीं उसकी मुलाकात होती है श्रेयस अग्निहोत्री से — एक बेरहम और भावहीन बिज़नेस टाइकून, जिसकी दुनिया सिर्फ उसकी नन्हीं बेटी रूही के इर्द-गिर्द घूमती है।
रूही की मुस्कान को बचाने के लिए श्रेयस को करनी पड़ती है प्रियल से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। प्रियल, जो हमेशा सच्चे प्यार के बाद शादी का सपना देखती थी, अब बिना प्यार के शादी करने पर मजबूर है।
क्या इस मजबूरी के रिश्ते में कभी प्यार पनपेगा?
क्या प्रियल सिर्फ रूही की मां बनकर रह जाएगी या श्रेयस के दिल तक भी उसकी पहुंच होगी?
सिमा जी धीरे से बोलीं, "बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारी शादी बहुत जल्दी-जल्दी में हुई है। इसलिए तुम दोनों को एक-दूसरे को समझने का वक्त मिलना बाकी है। मैं जानती हूँ रणवीर थोड़ा गुस्सैल है, पर दिल का वो बहुत अच्छा है बेटा। ये बात तुम्हें अभी समझ नहीं आएगी। तुम सोच रही होगी कि हर माँ के लिए उसका बेटा अच्छा होता है, पर मैं भरोसा दिलाती हूँ, जब तुम उसे समझना शुरू कर दोगी, तब तुम भी मानोगी कि मैं सच कह रही थी।"
फिर उन्होंने प्यार से पूछा, "तुम निभाओगी न इस शादी को? और रणवीर को समझोगी न, बेटा?"
अंशिका ने निडर होकर जवाब दिया, "हाँ आंटी, मैं इस रिश्ते को 100% दूंगी और उन्हें समझने की पूरी कोशिश करूँगी।"
सिमा जी के दिल को ये सुनकर बड़ी राहत मिली और उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई। उन्होंने अंशिका के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "आंटी नहीं, ‘माँ’ बोलो बेटा।"
फिर वो दोनों वहीं इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद रणवीर वापस लौट आया।
सिमा जी ने कहा, "बेटा, आओ, तुम अंशिका को अपने गोद में उठा कर कमरे में ले जाओ।"
शुरू में दोनों हिचकिचाए, लेकिन ये रस्म थी और उन्हें इसे निभाना था। इसलिए दोनों ने खुद को तैयार कर लिया।
रणवीर बिना कुछ बोले अंशिका को अपनी मजबूत बाँहों में उठा लेता है और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगता है। अंशिका को इतना अचानक उठाया गया कि वो घबरा जाती है और डर के मारे रणवीर की शेरवानी का कॉलर कसकर पकड़ लेती है। उसके नर्म, हल्के हाथों का ये स्पर्श रणवीर को कुछ पल के लिए अजीब सा एहसास कराता है।
रणवीर का चेहरा अचानक सख्त हो जाता है, उसकी आँखों में गुस्से की झलक आने लगती है। लेकिन जैसे ही वो नीचे झुककर अंशिका की घूंघट से हल्की सी दिख रहे आँखों में झांकता है, उसकी मासूम सी झुकी हुई पलकों, डरे-सहमे चेहरे और कांपती हुई सांसों को देखकर उसकी आँखें खुद-ब-खुद नर्म पड़ जाती हैं।
एक पल को जैसे उसकी सारी नाराजगी गायब हो जाती है। उसकी आँखों में अब एक अजीब सी शांति, एक अजीब सा अपनापन दिखने लगता है। अंशिका का मासूम चेहरा उसे किसी अनकहे जुड़ाव का एहसास दिला देता है।
अब बिना किसी हिचक के, रणवीर उसे धीरे-धीरे लेकर उनके कमरे की ओर बढ़ने लगता है।
शायद सच ही कहा जाता है—कभी-कभी कुछ रिश्तों में एक अजीब सी कशिश होती है, जो बिना कहे ही दिल को छू जाती है।
रणवीर, जो आम तौर पर किसी की एक हरकत पर भड़क उठता था, आज शांत था। उसकी बाहों में उसकी दुल्हन थी—अंशिका। और शायद आज अगर उसकी जगह कोई और लड़की होती, जो यूं डरकर उसे कस कर पकड़ लेती, तो रणवीर अब तक उसे झिड़क चुका होता। पर ये तो अंशिका थी। उसकी पत्नी। उसकी ज़िम्मेदारी। जो अब उसकी सुकून बन रही थी... और न जाने क्यों, उससे अलग महसूस हो रही थी।
वो उसे एक नज़र देखता और आगे बढ़ता, बिना कोई सवाल किए। एक अजीब सा सुकून उसके चेहरे पर था।
वहीं अंशिका की नजरें जैसे रणवीर पर थम सी गई थीं। जब से उसने उसका चेहरा देखा था—सेहरे के पीछे छुपा वो चेहरा, जो अब पूरी तरह सामने था, जिसे उसने गृहप्रवेशके बाद ही निकाल लिया था। वो चाह कर भी अपनी नजरें हटा नहीं पा रही थी। रणवीर का चेहरा कुछ अलग था... सख्त पर कहीं गहराई से भरा हुआ। उसकी आँखों में जो गहरी थी, अंशिका उसे पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
हर कदम के साथ दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता जन्म ले रहा था—नाजुक, अनजाना, लेकिन बेहद सच्चा।
रणवीर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हर कदम संभालकर रख रहा था, ताकि अंशिका को कोई झटका न लगे। उसके लिए ये सिर्फ एक रस्म नहीं थी—ये एक जिम्मेदारी थी, जिसे उसने खुद नहीं चुना था, पर अब पूरी सच्चाई से निभा रहा था।
पर उसे क्या पता था कि उसकी बाँहों में सजी-धजी अंशिका के मन में क्या चल रहा है।
अंशिका अपने मन में बड़बड़ा रही थी, "हे भगवान! ये कितने हैंडसम हैं। इनकी आंखें... इनका जबड़ा... और ये हल्की सी दाढ़ी—बस अभी तो फिल्मी हीरो लग रहे हैं। कौन कहता है ये गुस्से वाले हैं? मुझे तो अब तक घूरा भी नहीं, उल्टा इतने प्यार से गोद में उठाया है। थैंक यू गॉड इतना अच्छा, हैंडसम और शांत पति देने के लिए!"
(लेकिन अरे कोई इस मासूम लड़की को समझाओ कि रणवीर सबके लिए इतना 'शांत' नहीं होता। जैसा उसने इंटरनेट पर पढ़ा था, उससे भी ज्यादा खतरनाक है रणवीर। पर शायद अंशिका कुछ अलग है। क्योंकि रणवीर का गुस्सा जैसे उसके सामने घुल जाता है। उसे देखता है तो गुस्सा नहीं आता, उल्टा दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।)
वहीं रणवीर भी कम परेशान नहीं था। मन में सोच रहा था— "हे भोलेनाथ! ये मुझे ऐसे क्यों घूर रही है जैसे मुझे चबा ही जाएगी। क्या करूं, इनकी ये नज़रे... पता नहीं क्यों, मैं भी इनके चेहरे को देखने के लिए बेताब हो रहा हूं। घूंघट हटा दे तो शायद चैन मिले..."
रणवीर को अपने सीने के करीब महसूस करती अंशिका की साँसे तेज हो रही थीं, और रणवीर को वो महसूस भी हो रही थी। उसका चेहरा धीरे-धीरे लाल हो रहा था—न शर्म से, बल्कि उस बेचैनी से, जो अंशिका की आँखों और नज़दीकी से पैदा हो रही थी।
कमरे तक पहुंचने में भले चंद सेकंड बचे हों, पर दोनों के मन में एक फिल्म पूरी चल चुकी थी—बिना बोले, बिना छुए... बस एक अहसास के सहारे।
जैसे ही रणवीर और अंशिका कमरे में पहुंचे, रणवीर ने दरवाज़ा बंद किया और अंदर आया। कमरे की सजावट इतनी खूबसूरत थी कि दोनों की नज़रें खुद-ब-खुद चारों तरफ घूमने लगीं। गुलाब की पंखुड़ियों से सजा बिस्तर, मद्धम रोशनी में झूमते पर्दे, और हल्की सी महक कमरे में एक अजीब सी शर्म और रुमानियत घोल रही थी।
रणवीर ने अंशिका को धीरे से नीचे उतारा। अंशिका जैसे ही ज़मीन पर खड़ी हुई, होश में आई और तुरंत नज़रें झुका लीं। उसकी नज़रें जब सजावटी बिस्तर पर पड़ीं, तो वह घबरा गई। घबराहट में उसने अपनी उंगलियां एक-दूसरे में उलझा लीं और चुपचाप खड़ी रही।
ये देख रणवीर थोड़ा असहज हुआ, उसने अपनी खामोशी तोड़ते हुए हल्के से गला साफ किया और बोला, 2w"आप बेझिझक बिस्तर पर सो जाइए, मैं सोफे पर सो जाऊंगा। और प्लीज़... ऐसे घबराइए मत।"
उसके लहज़े में एक अजीब सी नम्रता थी, मानो वो अंशिका को भरोसा दिला रहा हो कि उसे डरने की ज़रूरत नहीं। अंशिका ने चुपचाप 'हां' में सिर हिलाया और दिल में राहत की सांस ली। रणवीर भी खुद को संयमित रखने की पूरी कोशिश कर रहा था।
रणवीर की बोलता है – "आपकी अनुमति के बिना मैं कभी आपको उस नज़र से नहीं देखूंगा, न ही आपके करीब आऊंगा। इस लिए बेफिक्र रहिए। "
रणवीर की ये बात सुनकर अंशिका अचरज से उसकी तरफ़ देखने लगी। उसकी आँखों में हैरानी भी थी और एक अनकही राहत भी।
रणवीर उसकी तरफ़ देखे बिना चुपचाप अपने कपड़े उठाता है और वॉशरूम की ओर बढ़ते हुए अंदर चला जाता है। दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ के साथ अंशिका गहरी सोच में डूब जाती है। वह बिस्तर पर बैठते हुए खुद से बड़बड़ाने लगती है,
"ये रणवीर जी तो बिल्कुल वैसे नहीं हैं जैसे मैंने सोशल मीडिया पर पढ़ा था... वहाँ तो लिखा था कि वो गुस्से वाले, अकड़ू और किसी की ना सुनने वाले हैं। पर यहाँ तो... ये तो बिल्कुल अलग हैं।"
फिर चुपचाप मुस्कुराते हुए खुद से कहती है,
"पता नहीं आगे क्या होगा…"
वो अब भी अपनी ही सोचों में उलझी थी, जब अचानक वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है।
रणवीर बाहर आता है—ब्लैक शर्ट और ब्लैक पायजामा में। उसके गीले बाल अब भी माथे पर झूल रहे थे। उसकी पर्सनैलिटी और अंदाज़ ने जैसे कमरे की रौशनी को भी रोक लिया था। अंशिका एक पल को उसे देखकर ठिठक जाती है।
वो खुद से बुदबुदाती है,
"हे भगवान! ये तो... कहर ढा रहे हैं आज तो।"
रणवीर उसकी तरफ़ नज़र उठाता है, पर बिना कुछ कहे कमरे के एक कोने में जाकर सोफे पर बैठ जाता है और तकिया सीधा करता है।
कमरे में अब एक अलग ही शांति छा चुकी थी—जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, बस एहसास ही काफी थे।
जैसे ही अंशिका की नज़र रणवीर पर पड़ी, वो बस वहीं ठहर गई। उसकी नज़र हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। रणवीर की मौजूदगी में कुछ तो था, जो उसे बाँध सा रहा था।
रणवीर ने भी जब अंशिका की लगातार नजरें खुद पर महसूस कीं, तो उसने धीरे से अपना चेहरा ऊपर उठाया। और फिर—उनकी निगाहें एक-दूसरे से टकरा गईं।
कुछ पलों के लिए समय थम-सा गया।
अंशिका की बड़ी-बड़ी आँखों में हल्की झलक उस मासूमियत की थी, जो रणवीर को भीतर तक छू गई। रणवीर की निगाहें उसके गोल चेहरे से फिसलती हुईं, उसके होंठों तक आ गईं—जो डार्क मैरून लिपस्टिक में और भी आकर्षक लग रहे थे। और फिर...
उसके होठों के किनारे जो छोटा सा तिल था, उस पर जाकर उसकी नज़र अटक गई। रणवीर के भीतर कुछ तो बदलने लगा था। उसकी साँसों की रफ्तार थोड़ी तेज़ हो गई।
तभी रणवीर ........
आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले चैप्टर को पढ़ते रहिए।
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ये कहानी है आरुषि शर्मा और अक्षांश कपूर की । आरुषि मुंबई की रहने बाली सभी की मदद करने वाली बहत ही सिंपल लड़की है । वही अक्षांश दिल्ली के रहने वाला एक रुड एंड एरोगेंट लड़का जो सिर्फ अपने घर वालों और दोस्तों के लिए ही स्वीट है । आरुषि और अक्षांश की मुलाकात दिल्ली में होता है और दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते है । अक्षांश आरुषि को पहली ही नजर में अपना दिल दे देता है । पर वो आरुषि को अपने दिल की बात बताने से डरता है । तभी आरुषि और अक्षांश की शादी एक unexpected situation में हो जाता है । इसी बीच आरुषि और अक्षांश के जिंदगी में एक ऐसा तूफान आता है जिससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है । कैसा तूफान आया उनके जिंदगी में? क्या अक्षांश कभी आरुषि को अपने दिल की बात बता पाएगा ? क्या आरुषि और अक्षांश इस unexpected शादी को निभा पाएंगे ? क्या अक्षांश और आरुषि की शादी को घर वाले मानेंगे ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "Falling in love with you" ....
कमरे में अब एक अलग ही शांति छा चुकी थी—जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, बस एहसास ही काफी थे।
जैसे ही अंशिका की नज़र रणवीर पर पड़ी, वो बस वहीं ठहर गई। उसकी नज़र हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। रणवीर की मौजूदगी में कुछ तो था, जो उसे बाँध सा रहा था।
रणवीर ने भी जब अंशिका की लगातार नजरें खुद पर महसूस कीं, तो उसने धीरे से अपना चेहरा ऊपर उठाया। और फिर—उनकी निगाहें एक-दूसरे से टकरा गईं।
कुछ पलों के लिए समय थम-सा गया।
अंशिका की बड़ी-बड़ी आँखों में हल्की झलक उस मासूमियत की थी, जो रणवीर को भीतर तक छू गई। रणवीर की निगाहें उसके गोल चेहरे से फिसलती हुईं, उसके होंठों तक आ गईं—जो डार्क मैरून लिपस्टिक में और भी आकर्षक लग रहे थे। और फिर...
उसके होठों के किनारे जो छोटा सा तिल था, उस पर जाकर उसकी नज़र अटक गई। रणवीर के भीतर कुछ तो बदलने लगा था। उसकी साँसों की रफ्तार थोड़ी तेज़ हो गई। उसने जल्दी से अपनी नज़रें इधर-उधर फेर लीं, ताकि खुद को काबू में रख सके।
अपने मन को शांत करते हुए वो खुद से बोला,
"नहीं रणवीर... ये सही नहीं है। अभी नहीं। ये रिश्ता वक्त माँगता है... ।"
वो खुद को सँभालते हुए सोफे की ओर मुड़ गया, पर अंशिका अब भी उसे एक टक देख रही थी—शायद वो भी रणवीर की नज़रों में अपने लिए कुछ अलग-सा देख चुकी थी।
वहीं रणवीर के यूँ अचानक नज़रें हटा लेने से अंशिका को न जाने क्यों अच्छा नहीं लगा। उसे एक अजीब सी खालीपन महसूस हुई, जैसे कोई अपना एकदम से दूर हो गया हो। मगर उसने अपने आप को सँभाला और चुपचाप अपने लगेज बैग से एक सिल्की, हल्के पिंक रंग की साड़ी निकाली और बाथरूम की ओर बढ़ गई।
जैसे ही वो बाथरूम के अंदर गई, रणवीर ने अपनी जगह बनाने के लिए अपना फ़ोन, तकिया और एक बेडशीट उठाई और सोफे की तरफ बढ़ गया।
वो सोफे के पास खड़ा होकर एक नज़र उस पर डालता है। उसकी हाइट और चौड़ी कद-काठी के मुकाबले वो सोफा बहुत छोटा लग रहा था। पर उसने कोई शिकवा नहीं किया।
उसके मन में एक ही ख्याल था — "मैं अंशिका को अभी किसी भी तरह से असहज महसूस नहीं होने दूँगा। चाहे इसके लिए मुझे खुद तकलीफ़ क्यों न उठानी पड़े।"
रणवीर सोफे पर बैठकर अपना सिर पीछे टिकाता है और कुछ पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लेता है। थकान से ज़्यादा, वो उन एहसासों से उलझ रहा था जो उसके अंदर उठ रहे थे।
वो खुद से बुदबुदाता है, "अंशिका के छूने से मुझे ऐसा अजीब सा क्यों महसूस हो रहा है? इतनी लड़कियाँ अब तक मेरे करीब आने की कोशिश कर चुकी हैं—कभी दिखावे से, कभी बहाने से। पर मुझे हमेशा उनसे घुटन सी होती थी।"
"उन्हें पास आते ही एक दीवार खड़ी हो जाती थी मेरे और उनके बीच। तभी तो मैंने हर किसी को दूर कर दिया, और साफ कह दिया कि मुझसे दूर रहो।"
पर आज... अंशिका के पास होने से वो दीवार जैसे खुद-ब-खुद ढहने लगी थी। उसकी मासूम सी छुअन में एक अजीब सी गर्मी थी, एक शांति भी और एक बेचैनी भी।
"उसके पास आते ही मेरा दिल तेज़ धड़कने लगता है, जैसे वो मेरे हर जज़्बात को बिना कुछ कहे समझ रही हो।"
रणवीर अपने सीने पर हाथ रखता है, "ये क्या हो रहा है मुझे... क्यों मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा?"
उसके भीतर दबे हुए जज़्बात, जिन्हें उसने सालों से बंद कर रखा था, आज अचानक बाहर निकलने को बेताब थे। और वो सब जैसे अंशिका के स्पर्श से, उसकी मासूम आँखों से, और उसके साथ होने से ज़िंदा हो उठे थे।
"मैं तो कभी ऐसा नहीं था..." — रणवीर सोचते-सोचते गहरी साँस लेता है और अपने सिर को पीछे टिकाए फिर से आँखें बंद कर लेता है, मानो खुद को फिर से काबू में लाने की कोशिश कर रहा हो।
जैसे ही दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, रणवीर ने झटके से अपनी आंखें खोलीं और गेट की ओर देखा। उसके सामने अंशिका खड़ी थी—हल्की गुलाबी सिल्की साड़ी में लिपटी हुई, जैसे चांदनी रात में ओस की बूंदों से भीगी कोई परी उतर आई हो।
नहाने की वजह से उसका चेहरा और शरीर गुलाबी आभा से दमक रहा था। साड़ी का गीला कपड़ा उसकी त्वचा से चिपक कर उसकी खूबसूरती को और निखार रहा था। रणवीर की नजर जैसे ठहर सी गई हो। वो आंखें झपकाना भूल गया था।
“हे महादेव...” — रणवीर के मन में बस यही दो शब्द गूंजे।
अंशिका ने जब रणवीर की उस तीव्र नज़र को खुद पर महसूस किया, तो उसकी चाल थम गई। वो वहीं रुक गई — दरवाज़े पर। उसकी साँसें तेज़ हो गईं और हल्की सी कंपकंपी ने उसके बदन को छुआ। शर्म से उसके गाल और भी ज्यादा गुलाबी हो गए।
पर उसकी झुकी नजरों के बावजूद वो रणवीर की नजरों की आग को महसूस कर पा रही थी।
रणवीर अब खुद को रोक नहीं पा रहा था। रणवीर धीरे-धीरे उठता है, बिना एक शब्द बोले उसके पास जाने लगता है। हर कदम के साथ उसकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं। उसका शरीर गर्म हो रहा था, सांसें भारी होती जा रही थीं।
वहीं अंशिका हर कदम पर एक कदम पीछे हटती है, जब तक कि उसकी पीठ बाथरूम के दरवाज़े से नहीं लग जाती। अब उसके पास पीछे हटने की कोई जगह नहीं थी।
“क्या हो रहा है मुझे? ये खिंचाव क्यों है?” — रणवीर खुद को बार-बार सवाल कर रहा था, पर जवाब सिर्फ अंशिका की आँखों में छुपा था।
अब उनके बीच कुछ ही कदम का फासला था। कमरे की रौशनी हल्की थी, पर अंशिका की चमक हर कोने में बिखर रही थी। रणवीर अब बिल्कुल उसके सामने खड़ा था... उनके बीच बस चंद सांसों की दूरी थी।
रणवीर उसके बेहद करीब आकर रुकता है। उसकी साँसें अंशिका के चेहरे से टकरा रही थीं। अंशिका की पलकें खुद-ब-खुद झुक जाती हैं, और डर से नहीं — उस अजीब से एहसास में जो उसने कभी पहले नहीं महसूस किया था। उसने अपनी आंखें कस कर बंद कर लीं, जैसे अगर उसने उन्हें खोला, तो ये सपना टूट जाएगा।
रणवीर हल्के से उसका चेहरा ऊपर उठाता है... उसकी उंगलियाँ अंशिका की ठुड्डी से होकर उसकी गालों को छूती हैं। उसकी त्वचा की गर्माहट से रणवीर के अंदर कुछ पिघलने लगता है।
और फिर… बेहद नर्मी से वो अपने होठों को अंशिका के होठों से छुआता है — बिना किसी जल्दबाज़ी के, बिना किसी आग्रह के। एक ऐसा स्पर्श जो शब्दों से कहीं ज्यादा कहता है। कुछ पल के लिए जैसे वक्त थम गया।
धीरे-धीरे, अंशिका भी खुद को इस एहसास के हवाले कर देती है। वो खुद को रणवीर के करीब आने से रोक नहीं पा रही थी।
कुछ मिनटों तक दोनों के बीच कोई शब्द नहीं था — बस साँसों की आवाज़ थी, धड़कनों की गूँज थी, और एक मौन स्वीकार।
रणवीर फिर बिना कुछ बोले झुककर अंशिका को अपनी बाहों में उठा लेता है। वो अब भी उसी कोमलता से उसे देख रहा था जैसे कोई अपनी सबसे कीमती चीज़ को देखता है।
अंशिका की आँखें अब भी आधी बंद थीं — वो जानती थी कि वो उसकी बाहों में सुरक्षित है।
तभी अचानक, कमरे की लाइट चली जाती है। रणवीर की आँखें खुलती हैं — वो एक पल को अचकचा जाता है।
वो देखता है कि वो अपनी जगह पर ही बैठा है। और अंशिका बाथरूम के पास नहीं, बल्कि बेड पर आंखें बंद किए लेटी हुई है।
ये देखकर रणवीर चौंक जाता है। वो खुद से बड़बड़ाता है, "तो क्या... मैंने जो अभी देखा... वो सब सपना था?"
फिर अपने माथे पर हाथ रखते हुए हैरानी और उलझन में कहता है,
"हे भगवान, मैं ये सब क्या सोच रहा हूं! ये लड़की तो मुझे सच में पागल करके ही छोड़ेगी।"
तभी उसे कुछ याद आता है। वो एकदम सीधा बैठते हुए घबराई हुई आवाज़ में बोलता है, "सुनो..."
लेकिन शायद अंशिका ने नहीं सुना। वो अब भी चुपचाप लेटी हुई है।
ये देख रणवीर थोड़ी और तेज़ आवाज़ में पुकारता है, "अंशिका...?"
ये सुनकर अंशिका झट से उठकर बैठ जाती है और जल्दी से कहती है,
"जी... जी, बोलिए।"
रणवीर कुछ पल उसे देखता है, फिर हल्का सा हिचकिचाते हुए बोलता है,
"वो... मुझे तुमसे एक बात पूछनी थी।"
अंशिका धीरे से जवाब देती है,
"जी?"
रणवीर नज़रें चुराते हुए, शब्दों को तलाशते हुए कहता है,
"वो... मैं ये पूछना चाहता था कि... क्या तुम ये शादी निभाना चाहती हो... या..."
इतना कहकर वो चुप हो जाता है।
अंशिका हैरानी से उसकी तरफ देखने लगती है।
वहीं रणवीर, जो इस सवाल को पूछते हुए उसकी आँखों में झांकने से भी कतरा रहा था, अब जमीन की तरफ देखने लगता है।
जब उसे अंशिका की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिलता, तो वो भारी मन से बोलता है:
"ठीक है... अगर तुम इस शादी में नहीं रहना चाहती तो... मैं तुम्हें जल्द से जल्द डिवोर्स दे दूंगा। बस... तुम्हें कुछ दिन का इंतज़ार करना होगा। फिर मैं सब घरवालों को समझा दूंगा। मैं जानता हूँ कि हमारी शादी बहुत जल्दबाज़ी में हो गई थी... और वैसे भी... मुझे पता है, मेरे साथ कोई भी नहीं रहना चाहेगा..।आख़िर... रहना भी क्यों चाहेगा कोई एक गुस्सैल इंसान के साथ?"
आख़िरी पंक्तियाँ बोलते समय उसकी आवाज़ में एक अजीब सी तकलीफ़ थी, एक टूटा हुआ सा दर्द... ।
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क्यों है ये दर्द रणवीर को ? क्या कुछ हुआ था रणवीर के अतीत में जो उसे इस तरह टूटा हुआ बना दिया?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " rebirth as devil's bride" ......
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MERE PROFESSOR SAHEB:-
रूहानी शर्मा— एक शर्मीली, सादगी से भरी लड़की, वो ज़्यादा बोलती नहीं, पर जब भी बोलती है तो दिल से और हमेशा मुस्कुराते रहती थी। वो मानती है कि प्यार ही ज़िंदगी का असली रंग है।
दूसरी ओर है एकांश सिंघानिया — गुस्से वाला, बेरुखा। उस की मुस्कान देखना तो ईद की चांद देखने की तरह होता था। जो दुनिया से नहीं, सिर्फ अपनी family से प्यार करता है। वो मानता है कि प्यार एक धोखा है... एक कमजोरी।
जब ये दो बिल्कुल उलटी सोच वाले इंसान कॉलेज में पहली बार टकराते हैं, जहां एकांश रूहानी का प्रोफेसर था, वहीं रुहानी स्टूडेंट।
एक वो जो प्यार को इबादत मानती है और एक वो जो प्यार को ख्वाब मानने से भी डरता है।
क्या रूहानी की मासूमियत एकांश के प्यार पर भरोसा दिला पाएगा? क्या होगा जब रूहानी के सामने आएगी एकांश की सच्चाई? क्या किस्मत उन्हें एक साथ जोड़ पाएगी?
जब उसे अंशिका की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिलता, तो वो भारी मन से बोलता है: "ठीक है... अगर तुम इस शादी में नहीं रहना चाहती तो... मैं तुम्हें जल्द से जल्द डिवोर्स दे दूंगा। बस... तुम्हें कुछ दिन का इंतज़ार करना होगा। फिर मैं सब घरवालों को समझा दूंगा। मैं जानता हूँ कि हमारी शादी बहुत जल्दबाज़ी में हो गई थी... और वैसे भी... मुझे पता है, मेरे साथ कोई भी नहीं रहना चाहेगा..।आख़िर... रहना भी क्यों चाहेगा कोई एक गुस्सैल इंसान के साथ?"
आख़िरी पंक्तियाँ बोलते समय उसकी आवाज़ में एक अजीब सी तकलीफ़ थी, एक टूटा हुआ सा दर्द... ।
अंशिका तुरंत बोलती है, "नहीं... नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं... मैं इस शादी को निभाना चाहती हूँ।"
ये सुनकर जैसे रणवीर के दिल को चैन मिल जाता है। एक हल्की-सी मुस्कान उसके चेहरे पर उभर आती है, जिसे वो छुपाने की कोशिश करता है। अपनी खुशी को दबाते हुए वो शांत स्वर में कहता है,
"ठीक है... अब तुम सो जाओ। सुबह जल्दी उठना है। बाकी की रस्में भी तो हैं।"
अंशिका धीरे से 'हम्म' कहती है और अपनी आंखें बंद कर लेती है।
वहीं रणवीर भी गहरी सांस लेकर आंखें मूंद लेता है। उसे अब एक अजीब-सा सुकून महसूस हो रहा था—जैसे कोई भारी बोझ उतर गया हो।
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अगली सुबह — ठीक 5 बजे। कमरे की खिड़की से हल्की-हल्की रोशनी अंदर आ रही थी। ठंडी हवा का एक झोंका पर्दों को हल्के-हल्के हिला रहा था।
कमरे में एक सुकून भरा सन्नाटा पसरा हुआ था।
रणवीर की नींद अचानक खुल गई। उसने करवट बदली, और जैसे ही उसकी नज़र बेड की दूसरी तरफ गई — वो वहीं ठहर गई।
अंशिका सोई हुई थी। चेहरे पर अद्भुत शांति, बाल थोड़े से बिखरे हुए, और सांसों की धीमी लय — मानो खुद सवेरा भी उसकी नींद में खो गया हो।
रणवीर पलकों के नीचे से बस उसे देखता रहा। उसकी आँखें जैसे टिकी ही रह गईं उस चेहरे पर, जिसमें मासूमियत, अपनापन और एक अनजाना सा खिंचाव था।
वो सोचने लगा, "कैसे कोई इतना शांत, इतना सुंदर लग सकता है... बिना कुछ कहे बस यूं चुपचाप सोते हुए?"
उसने घड़ी की ओर देखा — 5:15 हो चुके थे। पर वो अब भी उसी पोज़िशन में अंशिका को देखे जा रहा था। हर बार उसकी साँस की लय पर रणवीर का दिल और भी ज़ोर से धड़क उठता।
वो उठकर तैयार हो सकता था, जिम जा सकता था, कुछ काम कर सकता था — लेकिन नहीं। आज उसकी सुबह किसी और वजह से ख़ास थी।
5:30... फिर 5:45... घड़ी की सुइयाँ बढ़ती रहीं, लेकिन रणवीर की नज़रें वहीं की वहीं टिकी रहीं — अंशिका के चेहरे पर।
6:00 बज गए थे। अब सूरज की किरणें कमरे में थोड़ी तेज़ी से घुसने लगी थीं।
रणवीर को खुद पता नहीं चला कि पूरा एक घंटा बीत चुका था — बस उसे देखते हुए। तभी अचानक अंशिका करवट लेती है। जिस से रणवीर हड़बड़ा जाता है और जल्दी से खड़ा हो जाता है।
पर जब वो देखता है कि अंशिका फिर से सो गई है। तो एक राहत की सांस लेता हैं और बाथरूम में चला जाता है। फिर तैयार हो कर एक नजर अंशिका को देख जिम में चला गया।
7 बजे,
अंशिका की आंखें खुलती हैं। वो घड़ी की तरफ देखती है—सुबह के 7 बज चुके थे।
घड़ी देखते ही वो घबरा जाती है और झटपट उठते हुए बोलती है, "शिट! आज इतना लेट कैसे हो गया?"
सुबह की हल्की धूप खिड़कियों से छनकर हॉल में फैल रही थी। जानकी जी अकेली सोफ़े पर बैठी थीं, हाथ में चाय का कप लिए।
चाय अब तक ठंडी हो चुकी थी, मगर उनके चेहरे पर कुछ सोचती हुई मुस्कान थी — शायद बीती रात की बातें, या फिर नई बहू की मौजूदगी का सुखद एहसास।
तभी दरवाज़े से रणवीर अंदर आता है। वो जिम के कपड़ों में था — ट्रैक पैंट, टी-शर्ट और गले में टॉवल। पसीना उसके माथे पर चमक रहा था, और चाल में हल्की थकावट भी थी।
जानकी जी की नज़र उस पर पड़ी, और उन्होंने चाय का कप टेबल पर रखते हुए मुस्कराते हुए कहा — "मुझे तो लगा था कि तू अभी तक कमरे में पड़ा सो रहा होगा… आखिरकार, शादी की पहली रात जो थी! पर तू तो सुबह-सुबह ही टहलगिरी पर निकल गया?"
रणवीर मुस्कुरा पड़ा। वो झिझकते हुए बोला, "अरे दादी… कल ही तो शादी हुई है, और आप अभी से..."
(वो कुछ बोलते-बोलते रुक गया, शायद समझ नहीं पा रहा था कि आगे क्या कहे।)
जानकी जी ने उसकी झिझक भांप ली और हँस पड़ीं। ।"अरे वाह! एक ही रात में इतनी बदलाव बेटा? आगे क्या होगा फिर? अंशिका को तो अभी से तेरी हालत देखकर डर लग रही होगी!"
रणवीर ने शरमाते हुए नज़रें चुरा लीं, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
"ऐसी बात नहीं है दादी... बस, आदत है मेरी सुबह उठकर थोड़ा एक्सरसाइज़ करने की।"
जानकी जी ने मज़ाकिया अंदाज़ में आंखें तरेरीं — "हूं... अच्छा, अब बहू के होते हुए भी ये पुरानी आदतें नहीं बदलेंगी?"
रणवीर ने दबी मुस्कान के साथ सिर झुका लिया। वो कुछ कह नहीं पाया।
रणवीर ने जब दादी का सवाल सुना — "अब बहू के होते हुए भी ये पुरानी आदतें नहीं बदलेंगी?" — तो उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, मगर वो तुरंत संभल गया।
मन ही मन सोचने लगा, "अगर अब मैंने कुछ जवाब दिया, तो दादी अगला सवाल बच्चों के नामों पर ही न पूछ बैठें!"
इसलिए बात को टालते हुए वह झेंपकर बोला, "अच्छा दादी, मैं हाथ धोकर आता हूँ।"
इतना कहकर वह जल्दी से वहाँ से खिसकने लगा।
लेकिन तभी, उसके कानों में दादी की हँसी और मज़ाकिया आवाज़ गूंजी — "हां हां, बेफिक्र रहो... अब तो तुम्हारा दिल कमरे में ही जाने का करेगा! वैसे हमारे लिए भी यही अच्छा है — जितनी जल्दी तुम कमरे में रहोगे, उतनी जल्दी हमें कोई खुशखबरी भी मिल जाएगी!"
रणवीर के कदम वहीं ठिठक गए। उसके कान अचानक गर्म हो गए। ऐसा लगा जैसे कोई उसे पकड़कर सबके सामने छेड़ रहा हो। चेहरा तो जैसे जलने ही लगा।
वो बिना कुछ बोले, तेज़ क़दमों से वहाँ से निकल गया — जैसे पीछे कोई धमाका हो गया हो। पीछे से दादी की हँसी अब भी उसकी चाल का पीछा कर रही थी।
कमरे में हल्की धूप खिड़की के पर्दों से छनकर अंदर आ रही थी।
अंशिका बेड के पास खड़ी थी, बालों को सवारते हुए शीशे में खुद को देख रही थी। उसकी नज़रें बार-बार दरवाज़े की ओर उठतीं, जैसे किसी का इंतज़ार हो।
तभी दरवाज़ा खुला। रणवीर अंदर आया — चेहरा अब भी हल्का-सा लाल था। शायद अभी तक दादी की बातों की गर्मी बाकी थी।
जैसे ही रणवीर कमरे के अंदर दाखिल हुआ, उसके कदम दरवाज़े पर ही रुक गए। qउसकी साँसें जैसे थम-सी गईं। पूरा शरीर मानो पल भर के लिए फ्रीज़ हो गया।
उसकी नज़र सामने के दृश्य पर टिक गई — वहाँ, आईने के सामने खड़ी अंशिका तैयार हो रही थी।
गहरे लाल रंग की बनारसी साड़ी में लिपटी हुई, वो किसी देवी से कम नहीं लग रही थी।
गले में मंगलसूत्र, सुनहरी हार की हल्की चमक, हाथों में कांच की चूड़ियाँ, माथे पर चमचमाती लाल बिंदी और उस बिंदी के ठीक ऊपर — उसके नाम का सिंदूर।
आँखों में काजल की हल्की रेखा उसकी मासूमियत और गहराई को और निखार रही थी। बालों को उसने सलीके से पीछे समेटा हुआ था। उसकी हल्की मुस्कान, और वो सादगी... रणवीर बस देखता रह गया।
एक पल के लिए तो ऐसा लगा जैसे समय थम गया हो। उसने अपनी पलकें तक झपकाना भूल गया था। जैसे उसकी नज़र उस छवि से हट ही नहीं पा रही हो।
रणवीर का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। जैसे अभी छलांग लगाकर बाहर आ जाएगा। उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार ऐसा कुछ महसूस किया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या है, पर एक बात तय थी — जो भी है, सिर्फ उसी एक लड़की के लिए है… उसकी पत्नी, अंशिका के लिए।
वहीं अंशिका ने दरवाज़ा खुलने की हल्की सी आवाज़ सुनी। वो धीरे से आईने के सामने से मुड़ी और जैसे ही पीछे देखा, तो रणवीर को दरवाज़े पर खड़ा अपनी ओर इस तरह देखता पाया।
तो अंशिका का चेहरा अचानक गर्म-सा महसूस होने लगा। एक हलकी घबराहट उसके अंदर दौड़ गई।
उसने तुरंत खुद को ऊपर से नीचे तक देखा — "कहीं कुछ गलत तो नहीं पहन लिया? साड़ी ठीक से पहनी है ना? कहीं सिंदूर टेढ़ा तो नहीं लग गया?"
वो नज़रें चुराने लगी, पर रणवीर की निगाहें जैसे हिलने का नाम ही नहीं ले रही थीं। उसका चेहरा, उसकी सजावट, उसकी सादगी — सब कुछ जैसे रणवीर की आंखों में कैद हो चुका था।
कमरे में कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई। सिर्फ दिलों की धड़कनों की आवाज़ थी — जो दोनों ने साफ़-साफ़ महसूस की।
जब अंशिका ने खुद को ऊपर से नीचे तक देखा और सब कुछ ठीक पाया, तो थोड़ी राहत की सांस ली। लेकिन रणवीर की नज़रों की तपिश अब भी उसे बेचैन कर रही थी।
वो हल्का सा मुस्कराते हुए, हिचकिचाहट के साथ धीरे से बोली — "सो... सॉरी... पता नहीं कैसे नींद खुली ही नहीं सुबह। आगे से टाइम पर उठ जाऊँगी..."
वो जैसे खुद को सफाई दे रही थी, मानो कोई गलती कर दी हो।
आवाज़ में एक हल्की मासूमियत और डर था — कहीं रणवीर नाराज़ न हो जाए।
लेकिन तभी रणवीर ने कुछ ऐसा कहा, जो अंशिका को हैरान कर गया। वो हैरानी से अपनी आँखें फाड़े रणवीर को देखने लगती है।
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ऐसा क्या कहा रणवीर ने जिसे सुन कर अंशिका हैरान रह गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " rebirth as devil's bride" ......
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HUKUMAT-E-DIL
ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार वालों से ही करता था। अपनी मां और दादी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। वहीं तारा एक मासूम सी लड़की है। तारा उसकी सौतेली मां और सौतेली बहन के द्वारा प्रताड़ित हो रही थी। जहां शौर्य आग था वही तारा पानी थी। अपने मां और दादी के प्रेशर में आ कर शौर्य ने तारा से शादी कर ली। वहीं तारा की मां और बहन लालच में तारा की शादी शौर्य से करा रहे थे। क्या होगा जब आग और पानी एक साथ आयेंगे? क्या होगा जब तारा को पता चलेगा शौर्य की बीमारी? क्या है शौर्य का वो राज़? क्या करेगी तारा उस राज़ को जान कर? क्या शौर्य की नफ़रत में तारा की मासूमियत चली जायेगी? क्या कभी शौर्य और तारा के बीच प्यार पनप पायेगा? जानने के लिए पढ़िए "Hukumat-E-Dil"......
कमरे में कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई। सिर्फ दिलों की धड़कनों की आवाज़ थी — जो दोनों ने साफ़-साफ़ महसूस की।
जब अंशिका ने खुद को ऊपर से नीचे तक देखा और सब कुछ ठीक पाया, तो थोड़ी राहत की सांस ली। लेकिन रणवीर की नज़रों की तपिश अब भी उसे बेचैन कर रही थी।
वो हल्का सा मुस्कराते हुए, हिचकिचाहट के साथ धीरे से बोली — "सो... सॉरी... पता नहीं कैसे नींद खुली ही नहीं सुबह। आगे से टाइम पर उठ जाऊँगी..."
वो जैसे खुद को सफाई दे रही थी, मानो कोई गलती कर दी हो। आवाज़ में एक हल्की मासूमियत और डर था — कहीं रणवीर नाराज़ न हो जाए।
उसने अपनी नज़रें कमरे की दूसरी तरफ़ फेर लीं, मानो अंशिका की उलझन और हिचकिचाहट को नज़रअंदाज़ कर देना चाहता हो। फिर संयमित स्वर में बोला,
"कोई बात नहीं, इतनी भी देर नहीं हुई है। हम आपको ही बुलाने आए थे। आप रेडी हो तो चलें?"
ये शब्द सुनकर अंशिका ठिठक गई। उसकी आंखों में कुछ पल के लिए अविश्वास उभर आया। उसने रणवीर की ओर देखा, जैसे यकीन न कर पा रही हो कि ये वही दुनिया है जिसमें अब वो जी रही है।
उसके ज़हन में एक पुरानी सुबह कौंध गई—पिछले जन्म की एक सुबह, जब वो महज़ कुछ मिनट देर से उठी थी और बदले में चाची के कटु शब्दों और तानों की बारिश झेलनी पड़ी थी। सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि उनके हाथों की चांटे भी—जो कई बार ज़िंदगी की सबसे पहली सीख बन जाती है।
लेकिन आज... रणवीर ने कुछ नहीं कहा, न उलाहना, न नाराज़गी, बस सहजता और चिंता। वो हैरान रह गई। उसके मन में सवाल गूंजा—क्या हर रिश्ता ऐसा हो सकता है।
हल्की झिझक के साथ उसने कहा, "हाँ, चलते हैं... हम रेडी हैं।"
उसके स्वर में घबराहट थी, और होंठों पर अनजाने में दबी हुई नर्वस मुस्कान।उसने अपना निचला होंठ हल्के से काटा—पुरानी आदत, जब भी वो असहज होती थी, ऐसा ही करती थी।
रणवीर की नज़र उस पर पड़ी। उसने देखा कि अंशिका खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी—वो अपने होठों को दबा रही थी, जैसे कोई डर अभी भी उसके अंदर बाकी हो।
उसने तुरंत नज़रें फेर लीं, लेकिन तभी ध्यान गया। धीरे से कहा, "वो... वो पल्लू..."
बस इतना ही। स्वर धीमा था, लेकिन शब्दों का असर गहरा। अंशिका चौंकी। उसने झट से खुद की ओर देखा—वाकई, उसने तो सिर पर पल्लू लिया ही नहीं था। अगर ऐसे ही नीचे चली जाती तो...?
ओबेरॉय खानदान, जहां हर परंपरा, हर रिवाज़ एक अनुशासन है—जहाँ बहुओं की सादगी, मर्यादा और आदर्शों को सबसे पहले देखा जाता है।
उसने झेंपते हुए जल्दी से अपनी साड़ी का पल्लू उठाया और आदरपूर्वक सिर पर रख लिया। उसकी आवाज़ धीमी थी, लेकिन दिल से निकली हुई— "थैंक्यू... मेरा ध्यान ही नहीं गया था।"
रणवीर ने बस एक छोटा-सा "हम्म..." कहा। न कोई व्याख्यान, न कोई टिप्पणी।बस समझदारी भरा मौन। फिर उसने दरवाज़ा खोला।
कमरे के बाहर की रोशनी अब भीतर आ रही थी। अंशिका ने एक गहरी साँस ली और रणवीर के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पड़ी।
दोनों हॉल की ओर बढ़ गए।
हॉल में पहुंचते ही अंशिका ने सबसे पहले जानकी जी, सीमा जी, राजवर्धन जी, राजवीर जी, जयराज जी और रश्मि जी के पास जाकर आदरपूर्वक उनके चरण स्पर्श किए।
जानकी जी ने सहज स्नेह के साथ अपना हाथ अंशिका के सिर पर रखा। वो कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी रणवीर की निगाहें उनसे टकराईं। उसकी नज़र में एक अनकहा अनुरोध था—एक हल्का-सा इशारा।
जानकी जी ने क्षण भर के लिए उसकी आँखों में झाँका और सब समझ गईं।आख़िरकार, वो उसकी दादी थीं। रणवीर के मन के भाव अब भी उनसे छुपे नहीं थे।
पर फिर भी हाथ अंशिका के सिर पर रखे हुए ही उन्होंने धीरे से आशीर्वाद दिया, "दूधो नहाओ, पूतो फलो..."
इतना सुनना था कि अंशिका के चेहरे पर जैसे गुलाल बिखर गया। उसके दोनों गालों पर शर्म की लाली दौड़ गई। उसने तुरंत नज़रें नीचे कर लीं।
वहीं, रणवीर ने एकदम से अपनी आँखें मिच लीं—जैसे ये सब अनसुना कर देना चाहता हो, लेकिन चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी तैर रही थी। दोनों ही जानते थे इस आशीर्वाद का मतलब क्या होता है... लेकिन दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं थे—कम से कम अभी नहीं।
जानकी जी ने दोनों की प्रतिक्रिया देखी और मंद मुस्कान के साथ अपने होंठों पर हल्की-सी मुस्कान लाकर कहा, "जाओ बहू, अपनी सास के साथ अपनी पहली रसोई बनाओ।"
अंशिका ने सिर झुकाकर आज्ञा में सिर हिलाया। उसका मन थोड़ा घबराया हुआ था, लेकिन आंखों में संकल्प की हल्की-सी चमक थी—वो इस नए जीवन को पूरी श्रद्धा और समर्पण से स्वीकार करने के लिए तैयार थी।
तभी एक सधी हुई चाल से एक नौकरानी उसके पास आई और इशारे से उसे किचन की ओर चलने को कहा। अंशिका ने एक बार फिर पूरे हॉल को देखा, हल्की सी साँस ली, और फिर नौकरानी के साथ धीरे-धीरे रसोई की ओर बढ़ गई।
जैसे ही अंशिका नौकरानी के साथ रसोई की ओर बढ़ गई, रणवीर वही खड़ा रह गया। उसकी नज़रें अभी भी उसी दिशा में थीं जहाँ अंशिका गई थी — मगर उससे ज़्यादा, वो उस आशीर्वाद पर अटका हुआ था जो कुछ देर पहले उसकी दादी ने बड़ी मासूमियत और चालाकी से दे डाला था।
वो अब अपनी नजरे वहां से हटा कर जानकी जी को घूरने लगा। ये देख जानकी जी ने हँसी दबाते हुए कहा, "अब ऐसे घूर मत हमको! हमने बस उसे आशीर्वाद दिया है..."
उन्होंने बात के अंत में अपनी आँखें हल्के से रोल कीं और चुटकी लेते हुए रणवीर की तरफ देखा।
रणवीर ने हल्की नाराज़गी जताते हुए सिर ना में हिलाया। उसके चेहरे पर एक मिश्रित भाव था—थोड़ी झेंप, थोड़ी मुस्कान और थोड़ी असहजता।
"हम जाते हैं, थोड़ा काम है," उसने संक्षेप में कहा, जैसे कोई बहाना बनाकर वहाँ से हट जाना चाहता हो।
जानकी जी ने उसकी जल्दबाज़ी को तुरंत भांप लिया।
"अच्छा ठीक है," उन्होंने कहा, फिर तुरंत जोड़ा,
"लेकिन जल्दी आ जाना... बहू की पहली रसोई है आज।"
उनके स्वर में आदेश कम, प्यार और हँसी ज़्यादा थी। वो जानती थीं कि रणवीर भले कुछ कहे नहीं, मगर उसकी आँखें सब बयाँ कर रही थीं। रणवीर ने कुछ नहीं कहा, बस एक हल्की-सी मुस्कान के साथ पलटा और तेज़ कदमों से वहाँ से चला गया।
पीछे रह गईं जानकी देवी—जो अब अकेले में हल्के से मुस्कुरा रही थीं।
"अब इस घर में बहार आने वाली है..." उन्होंने मन ही मन सोचा, "बस भोलेनाथ की कृपा इन दोनों पर बने रहे।"
"बॉस, हवेली से बुलावा आया है! दादी आपको खाने पर बुला रही हैं..." एक दुबला-पतला लड़का तेज़ी से दौड़ते हुए आया। उसकी सांसें उखड़ी हुई थीं, चेहरा पसीने से तर और हाथ में रणवीर का फोन। उसके हावभाव से साफ़ झलक रहा था कि वो कई दूर से दौड़ कर आया है।
रणवीर ने बिना पलक झपकाए उसकी ओर देखा। उसके दोनों हाथों की मुट्ठियाँ अब भी खून से सनी थीं, लेकिन चेहरे पर शिकन नहीं थी—बस एक सख्त, ठंडी गंभीरता।
रणवीर बिना एक शब्द कहे केबिन से बाहर निकला। उस लड़के ने भी झाँककर अंदर देखा, और उसके चेहरे का रंग एक पल में उड़ गया।
सोफे पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बेसुध पड़ा था, उसके चेहरे से खून पानी की तरह बह रहा था। होंठ फटे थे, नाक से रक्त रिस रहा था और एक आंख के पास गहरा नीला निशान था। ये कोई आम आदमी नहीं था—ये दुश्मनों का वही सीक्रेट जासूस था जो पिछले कई हफ्तों से ओबेरॉय खानदान की हर चाल की खबर दुश्मनों तक पहुँचा रहा था। आज पकड़ा गया था... और अब उसकी हालत रणवीर ने गंभीर कर दिया था।
रणवीर बिना पीछे देखे वॉशरूम की ओर बढ़ा। उसने हैंडवॉश और ठंडे पानी से अपने हाथ और मुँह को अच्छी तरह साफ किया। पानी की धार जैसे कुछ पलों के लिए उसका गुस्सा धो रही हो।
फिर उसने टिश्यू से हाथ पोंछे और मुड़कर लड़के से कहा, "हम जा रहे हैं। तुम इसका ध्यान रखना... कोई ढील नहीं होनी चाहिए।"
वो लड़का रणवीर की गंभीर आवाज़ सुनकर तुरंत सिर हाँ में हिलाता है, "जी, बॉस!"
रणवीर ने बिना और कुछ कहे अपना फोन उसके हाथ से लिया, जेब में डाला और सधे हुए कदमों से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया। हर कदम में वही पुरानी गरिमा थी, मगर आज उसमें कुछ अलग भी था—एक जल्दबाज़ी, जो आमतौर पर रणवीर जैसे आदमी के लिए असामान्य थी।
उसकी कार के दरवाज़े खुलने की आवाज़ के साथ ही पीछे एक और लड़का, जो ये सब चुपचाप देख रहा था, धीरे से बोल पड़ा, "आज से पहले बॉस को ऐसे एक बार में हवेली की दावत में जाते नहीं देखा मैंने..."
दूसरे ने फौरन सिर हिलाते हुए मुस्कुरा कर जवाब दिया, "अरे, अब बॉस पहले वाले कहाँ रहे! अब घर पर उनकी बीवी आ गई हैं। हवेली जाने के तो अब बहाने चाहिए बॉस को!"
दोनों हल्के से हँसने लगे, मगर उनकी हँसी ज़्यादा देर टिक नहीं पाई।
एक लड़का तुरंत पलटा और सख्त लहजे में बोला, "जान प्यारी नहीं है ना तुम दोनों को! तभी ऐसी बातें कर रहे हो बॉस के बारे में..."
उसके लहजे में डर कम और चेतावनी ज़्यादा थी—जैसे वो खुद जानता हो कि रणवीर के कान बहुत तेज़ हैं, और ऐसे मज़ाक कभी-कभी बहुत महँगे पड़ सकते हैं। इतना सुनते ही दोनों लड़कों की हँसी गायब हो गई। एक ने जल्दी से गर्दन झुका ली, दूसरा पसीना पोंछने लगा।
रणवीर की गाड़ी हवेली की ओर निकल चुकी थी।
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क्या होगा जब अंशिका को रणवीर के इस काम के बारे में पता चलेगा?
क्या वो डर कर भाग जाएगी या फिर देगी साथ रणवीर का?
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THE LOVE BOND: PYAR KA BANDHAN
रिश्ते जब मजबूरी में बनते हैं, तो क्या उनमें कभी मोहब्बत पनप सकती है?”
प्रियल, एक अनाथ लड़की, जिसने अपना बचपन एक आश्रम में गुजारा। सपनों को पूरा करने की चाह में वह आती है मुंबई — जहां उसे मिलता है सिर्फ तन्हाई और संघर्ष।
वहीं उसकी मुलाकात होती है श्रेयस अग्निहोत्री से — एक बेरहम और भावहीन बिज़नेस टाइकून, जिसकी दुनिया सिर्फ उसकी नन्हीं बेटी रूही के इर्द-गिर्द घूमती है।
रूही की मुस्कान को बचाने के लिए श्रेयस को करनी पड़ती है प्रियल से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। प्रियल, जो हमेशा सच्चे प्यार के बाद शादी का सपना देखती थी, अब बिना प्यार के शादी करने पर मजबूर है।
क्या इस मजबूरी के रिश्ते में कभी प्यार पनपेगा?
क्या प्रियल सिर्फ रूही की मां बनकर रह जाएगी या श्रेयस के दिल तक भी उसकी पहुंच होगी?
एक लड़का तुरंत पलटा और सख्त लहजे में बोला, "जान प्यारी नहीं है ना तुम दोनों को! तभी ऐसी बातें कर रहे हो बॉस के बारे में..."
उसके लहजे में डर कम और चेतावनी ज़्यादा थी—जैसे वो खुद जानता हो कि रणवीर के कान बहुत तेज़ हैं, और ऐसे मज़ाक कभी-कभी बहुत महँगे पड़ सकते हैं। इतना सुनते ही दोनों लड़कों की हँसी गायब हो गई। एक ने जल्दी से गर्दन झुका ली, दूसरा पसीना पोंछने लगा।
रणवीर की गाड़ी हवेली की ओर निकल चुकी थी।
ओबेरॉय मेंशन में,
सीमा जी ने जब देखा कि अंशिका ने पूरी श्रद्धा और सलीके से अपनी पहली रसोई की ज़िम्मेदारी निभा ली है, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "बहू, अब भगवान को भोग लगा दो। तब तक मैं बाहर सबको बुला लूँ और नौकरों को कह दूँ कि खाना टेबल पर लगा दें।"
अंशिका ने आदरपूर्वक सिर हिलाया और थाली में से थोड़ी-सी मिठाई लेकर मंदिर की ओर बढ़ गई।
सीमा जी बाहर निकलीं, जहाँ हवेली की बड़ी बैठक में जानकी देवी, राजवर्धन जी, जयराज जी और राजवीर जी पहले से बैठे थे। सबके चेहरे पर शादी के बाद की हल्की-सी थकान, मगर गहरी संतुष्टि थी।
जैसे ही रणवीर ने बैठक में प्रवेश किया, राजवर्धन जी ने गंभीर मगर संतोष से भरी आवाज़ में कहा, "अच्छा हुआ तुमने उस कमीने जासूस को पकड़ लिया। नहीं तो पता नहीं कितनी खबरें हमारे दुश्मनों तक जा चुकी होतीं।"
रणवीर ने बिना कुछ बोले बस सिर हिला दिया। उसकी नज़रें हॉल में इधर-उधर भटक रही थीं—कुछ या किसी को तलाश रही थीं।
ये देखकर जानकी देवी उसकी ओर मुस्कुरा कर, मज़ाकिया लहजे में बोलीं,
"जिसे ढूंढ रहे हो, वो अभी यहाँ नहीं है। तो जल्दी से जाओ, फ्रेश होकर आओ। हम सब टेबल पर इंतज़ार कर रहे हैं।"
रणवीर एकदम झेंप गया। चेहरा हल्का लाल हुआ और बिना कुछ कहे जल्दी से मुड़ गया और ऊपर अपने कमरे की ओर चला गया।
उसके जाते ही वहाँ बैठे सभी लोग, जो अब तक अपनी हँसी दबाए हुए थे, एक साथ ठहाका मारकर हँस पड़े।
जयराज जी ने हँसते हुए कहा,"मां, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि हमारा रणवीर... शादी के सिर्फ एक दिन में इतना बदल गया!"
राजवीर ने मुस्कुराकर जोड़ा, "लगता है मां का आशीर्वाद असर दिखा रहा है। 'दूधो नहाओ, पूतो फलो' वाला।"
सबकी हँसी अब और गूंजने लगी थी। हवेली में आज सिर्फ एक नई बहू ही नहीं आई थी, बल्कि रणवीर के सख्त चेहरे पर एक नई नरमी भी उभरी थी—जो सबके लिए एक सुखद आश्चर्य बन चुकी थी। सभी इस से बेहद खुश थे।
वहीं रणवीर जब कमरे में वापस लौटा, तो दरवाज़ा हल्के से खोलते ही उसकी नज़र एक कोने में रखे सूटकेस पर पड़ी। वो वैसा का वैसा बंद रखा था, जैसे अंशिका ने छूआ तक नहीं हो।
उसकी भौंहें हल्के से सिकुड़ गईं।
"तो उसने अभी तक कपड़े भी नहीं निकाले..." ये सोचते ही रणवीर के चेहरे पर हल्की बेचैनी सी उभरी। " शायद उसे वक्त ही नहीं मिला होगा। "
रणवीर ने सिर झटक कर ये सोच मन से निकालना चाहा और सीधा बाथरूम चला गया।
कुछ देर बाद, जब वो फ्रेश होकर बाहर आया, तो बाल ठीक करने के लिए ड्रेसिंग टेबल के पास पहुँचा। जैसे ही उसने कंघी उठाई, उसकी नज़र शीशे के सामने रखे कुछ छोटे-छोटे मेकअप के सामान पर पड़ी, एक हल्का गुलाबी लिप बाम, काजल, छोटी-सी कंघी, और परफ्यूम की एक स्लिम बोतल।
रणवीर कुछ पल के लिए स्थिर हो गया। उसके सख्त चेहरे पर एक मुलायम मुस्कान तैर गई। उसे महसूस हुआ कि अब इस कमरे में सिर्फ उसका नहीं, किसी और की भी मौजूदगी है, किसी ऐसी की, जो अब उसकी ज़िंदगी का हिस्सा है।
उसने धीमे से खुद से ही कहा, "अब इस जिंदगी में कोई आ गया है... जो सिर्फ मेरा है। जिसकी हर चीज़ मेरी है... जिस पर सिर्फ मेरा हक़ है।"
उसकी आवाज़ में अधिकार था, लेकिन उसमें एक अनकही कोमलता भी छुपी थी। इतना सोचते ही उसने जल्दी से कंघी उठाई, बालों को ठीक किया, और बिना देर किए दरवाज़ा खोलकर नीचे की ओर निकल पड़ा—जहाँ परिवार और अब... उसकी पत्नी उसका इंतज़ार कर रही थी।
डाइनिंग टेबल के पास अंशिका खड़ी थी। हल्की-सी झिझक, मगर चेहरे पर संयम और शालीनता थी। सभी सदस्य अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे थे, लेकिन निगाहें बार-बार सीढ़ियों की ओर जा रही थीं। सबको रणवीर का इंतज़ार था।
अंशिका की नज़र जैसे ही ऊपर की तरफ़ उठी, उसने देखा कि रणवीर सीढ़ियों से नीचे उतर रहा है। उसे देख अंशिका के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान उभर आई—धीमी, मगर बेहद कोमल।
रणवीर की नज़र भी सीधी अंशिका पर ही थी। उसका चेहरा, उसकी आँखों में छिपी गर्माहट, और सबसे ज़्यादा... वो मुस्कान—जो सिर्फ उसे देखकर आई थी।वो पल भर को थम गया।
अंशिका के चेरी-रेड होठों पर फैली मुस्कान जैसे रणवीर के दिल की धड़कनों को छू गई हो। वो खुद को रोक नहीं पाया... बस उसे ही देखता रहा।
उसे देखता देख जानकी जी की नज़र रणवीर पर पड़ी और उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा, "आ जा रणवीर, तेरा ही इंतज़ार हो रहा है सबको!"
रणवीर जैसे किसी ख्याल से बाहर आया हो। उसने हल्की-सी झेंप के साथ मुस्कुराते हुए सिर झुकाया और आकर टेबल पर बैठ गया। उसके बैठते ही सर्वेंट खाने परोसने लगे।
पर तभी, अंशिका ने उन्हें रोका और दादी की ओर देखते हुए कहा — "दादी, अगर आप इजाज़त दें तो... क्या आज मैं परोस सकती हूँ?"
यह सुनकर जानकी जी के चेहरे पर संतोष की मुस्कान फैल गई। उन्होंने प्रेमपूर्वक सिर हिलाते हुए कहा, "हां बहू, क्यों नहीं। ये तो बहुत अच्छा किया तुमने।"
फिर उन्होंने सर्वेंटों की ओर इशारा किया — "तुम लोग जाओ, आज बहू खुद सबको परोसेगी।"
सर्वेंट आदर के साथ वहाँ से हट गए। अब माहौल में एक नई मिठास आ चुकी थी।
अंशिका ने सबकी थालियाँ सजाकर एक-एक करके परोसना शुरू किया। आज उसने पोहा, आलू के पराठा और कचौरी बनाई थीं। जैसे ही लोगों ने पकवान देखे, चेहरे पर प्रसन्नता तैर आई।
राजवर्धन जी ने चाव से पराठा तोड़ा, वहीं जयराज जी ने कचौरी खूब खुशी से खा रहे थे।
राजवीर जी के मुंह से निकला, “बहू, तुमने तो आज जोरदार दावत लगा दी।”
उन सबके चटकारों और तारीफ़ों को देखकर अंशिका के पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं। उसे पहली बार इतने बड़े परिवार के सामने खाना परोसने में गहरे से संकोच हो रहा था—वो तो हमेशा से ही रसोई कर रही थी, पर पहली बार इतने लोगों के लिए खाना बनाया था। इस लिए उसे घबराहट हो रही थी।
जैसे ही सबके भोजन का दोरा पूरा हुआ, अंशिका ने मिठाई के लिए जलेबी और खीर निकालकर फिर से थालियाँ भरनी शुरू कीं। जब उसकी बारी रणवीर की आयी, तो रिया कुछ बोलने ही वाली थी। की रणवीर उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया।
अंशिका ने उसे भी जलेबी और खीर परोसी। अब पूरे परिवार ने मीठा खाना शुरू किया।
तभी उसके कानों में रिया की मीठी चहकती हुई आवाज़ पड़ी, जो बोल रही थी, “भाभी, आप तो वाकई बेस्ट हो! इतना टेस्टि खाना तो हमारे कुक भी नहीं बनाते। क्या आप रोज़ हमारे लिए ऐसा बना सकती हैं प्लीज?”
हर कोई रिया की बात पर मुस्कुरा उठा। लेकिन अंशिका के कुछ कहने से पहले जानकी जी ने रिया को डांटते हुए बोलती है, “बिल्कुल नहीं उन्हें वी अपनी पढाई पूरी करनी होगी आपकी तरह। तो आप बिल्कुल उन्हें फोर्स नहीं करेंगी खाना बनाने के लिए। हम ओबेरॉय परिवार में बहुओं को केवल रसोई में ही नहीं देखते—हम उन्हें उड़ने के लिए पंख भी देते हैं! "
फिर उन्होंने अंशिका की ओर देखते हुए सीरियस आवाज में कहा, “बेटा, तुम अपनी पढ़ाई आगे बढ़ाओगी, पर उसमें हमारे घर-परिवार की इज्जत कभी छूटने न देना। "
लेकिन अगले ही पल जानकी जी ने मुस्कुराते हुए, हल्के मजाकिया अंदाज़ में कहा,
"हाँ, लेकिन अगर ऐसे ही टेस्टी खाना बनता रहा, तो हम सबको जल्दी ही उससे लत लग जाएगी। फिर मत कहना कि ओबेरॉय खानदान के लोग बहुत खाते हैं!"
उनकी बात पर सभी ज़ोर से हँस पड़े।
वहीं उनके बगल में बैठे राजवर्धन जी ने धीरे से सिर ना में हिलाते हुए कहा,
“इसकी ये आदत कभी नहीं जाएगी।”
अंशिका ने सिर झुकाकर धन्यवाद व्यक्त किया। उसके भीतर एक हल्की राहत थी, न केवल परिवार ने उसके हुनर की कद्र की, बल्कि उसकी पढ़ाई और स्वतंत्रता का भी ध्यान रखा।
वो अपने आप से मन में बोलती है, " ये अंशिका सच में बहत डरपोक थी। इस लिए बिना सिचुएशन को सामना किए ही डर गई। थैंक यू भगवान मुझे इतनी अच्छी परिवार देने के लिए।"
(पहले वाली अंशिका जिसने अपनी जान दे दिया था शादी से पहले। ये अंशिका का पुनर्जन्म हुआ है। पहली चैप्टर में लिखा है। अगर किसी को याद नहीं तो एक बार फिर से पढ़ लीजिए।)
इसके बाद राजवर्धन जी ने अंशिका को पास बुलाया और उसकी पहली रसोई का सगुन देने के लिए एक लिफाफा थमाया।
अंशिका बार-बार मना कर रही थी, “नहीं, ये सब ज़रूरी नहीं...”
लेकिन जानकी जी ने प्यार से टोका, “बहू, ये तो सगुन है, मना करना अशुभ होता है।”
राजवर्धन जी ने एक फोल्डर अंशिका की ओर बढ़ाया। वो थोड़ा हैरान हुई, और हैरानी से उनकी ओर देखा।
तो राजवर्धन जी ने सहजता से कहा ,“पहले खोल कर देखो, क्या है उसमें। "
ये सुन कर अंशिका वो फोल्डर खोल कर देखती है। तो हैरान हो जाती है।
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क्या लगता है क्या दिया होगा राजवर्धन जी ने अंशिका को?
जानने के लिए अगले चैप्टर को पढ़ते रहिए.....
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FALLING IN LOVE WITH YOU
ये कहानी है आरुषि शर्मा और अक्षांश कपूर की । आरुषि मुंबई की रहने बाली सभी की मदद करने वाली बहत ही सिंपल लड़की है । वही अक्षांश दिल्ली के रहने वाला एक रुड एंड एरोगेंट लड़का जो सिर्फ अपने घर वालों और दोस्तों के लिए ही स्वीट है । आरुषि और अक्षांश की मुलाकात दिल्ली में होता है और दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते है । अक्षांश आरुषि को पहली ही नजर में अपना दिल दे देता है । पर वो आरुषि को अपने दिल की बात बताने से डरता है । तभी आरुषि और अक्षांश की शादी एक unexpected situation में हो जाता है । इसी बीच आरुषि और अक्षांश के जिंदगी में एक ऐसा तूफान आता है जिससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है । कैसा तूफान आया उनके जिंदगी में? क्या अक्षांश कभी आरुषि को अपने दिल की बात बता पाएगा ? क्या आरुषि और अक्षांश इस unexpected शादी को निभा पाएंगे ? क्या अक्षांश और आरुषि की शादी को घर वाले मानेंगे ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "Falling in love with you" ....
राजवर्धन जी ने अंशिका को पास बुलाया और उसकी पहली रसोई का सगुन देने के लिए एक लिफाफा थमाया।
अंशिका बार-बार मना कर रही थी, “नहीं, ये सब ज़रूरी नहीं...”
लेकिन जानकी जी ने प्यार से टोका, “बहू, ये तो सगुन है, मना करना अशुभ होता है।”
राजवर्धन जी ने एक फोल्डर अंशिका की ओर बढ़ाया। वो थोड़ा हैरान हुई, और हैरानी से उनकी ओर देखा।
तो राजवर्धन जी ने सहजता से कहा ,“पहले खोल कर देखो, क्या है उसमें। "
जैसे ही अंशिका ने पेपर्स को ध्यान से देखा, उसकी आँखें हैरानी से और भी चौड़ी हो गईं। एक आलीशान विला और एक स्टार्टअप कंपनी उसके नाम कर दी गई थी।
वो हिचकिचाते हुए धीरे से बोली, "पर दादू... मैं ये सब नहीं ले सकती।"
राजवर्धन जी ने गहरी सांस लेते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा, "ये हमारे घर की परंपरा है बेटा... जब कोई बहू इस घर में आती है, तो हम उसे सिर्फ़ बेटी बनाकर नहीं रखते, बल्कि उसे उसके हक भी देते हैं। तुम्हारी दादी सास, तुम्हारी सास और तुम्हारी चाची सास को भी उनका हिस्सा मिला था। तुम चाहो तो खुद उनसे पूछ सकती हो।"
ये सुनकर अंशिका चुप हो गई। उसकी आँखों में अब संकोच की जगह कृतज्ञता और सम्मान झलक रहा था। उसने हल्के से सिर हिलाया, सहमति में।
फिर जानकी जी ने आगे बढ़कर एक खूबसूरत हीरों का हार उसे पहनाते हुए कहा, "ये तुम्हारे नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है, बहू।"
राजवीर ने शरारती अंदाज़ में एक लिफाफा उसकी ओर बढ़ाया और बोला,
"थोड़ा कैश भी होना चाहिए बेटा, पहली रसोई में मीठा तो आपने खूब खिला दिया!"
सब हँसने लगे।
इसके बाद सीमा जी ने अपने दोनों हाथों से अपने कलाई के सोनें के कंगन उतारे।
वो थोड़ी भावुक होकर बोलीं, "ये हमारे घर के कुल-कंगन हैं... मुझे तुम्हारी दादी सास ने दिए थे, और आज मैं ये तुम्हें सौंप रही हूँ। क्योंकि अब इस घर की बड़ी बहू तुम हो।"
अंशिका के हाथ काँप रहे थे जब उन्होंने वो कंगन थामे। आँखें अब नम थीं लेकिन मन में कहीं एक सुकून था।
अंशिका ने सिर हिलाकर सभी के आशीर्वाद और उपहार को स्वीकार कर लिया। इसके बाद जयराज जी ने भी अपनी तरफ़ से कुछ नकद रुपए दिए।
रश्मि जी ने एक खूबसूरत कमरबंध अंशिका की हथेलियों पर रखा। रिया तो खुशमिज़ाज थी ही, उसने आगे बढ़कर एक ब्रांडेड वॉच अंशिका को दी और बोली, " ये गिफ्ट मेरी तरफ से मेरी खूबसूरत भाभी के लिए।"
सभी हँस पड़े। अब सबकी नज़रें रणवीर पर टिक गईं। वो जो अब तक चुपचाप बैठा था, अचानक उठ खड़ा हुआ और धीरे-धीरे अंशिका के पास चलने लगा।
सभी सोच में पड़ गए—अब रणवीर क्या करने वाला है?
तभी सबको चौंकाते हुए रणवीर ने अपनी जेब से कुछ नोट निकाले और उन्हें अंशिका के चारों ओर तीन बार घुमाया, जैसे किसी बुरी नज़र से बचाने की रस्म निभा रहा हो।
इसके बाद उसने एक नौकर को बुलाया और नोट उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, "ये ले... जाकर इन पैसों को गरीबों में बाँट देना।"
नौकर ने सिर झुकाकर ‘जी’ कहा और वहाँ से चला गया। रणवीर का ये अंदाज़ सबके लिए अप्रत्याशित था। सब एक-दूसरे को और फिर रणवीर को हैरानी से देखने लगे।
अंशिका तो बस बड़ी-बड़ी आँखों से उसे निहारती रह गई। उसके लिए ये सब अविश्वसनीय था।
रणवीर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे सच में नहीं पता था कि रसोई के बाद ऐसा भी कुछ होता है... इसलिए में कुछ लेकर नहीं आया। लेकिन बाद में मैं उसे दे दूँगा।"
इतना कहकर उसने अपना लैपटॉप बैग उठाया और बिना किसी और शब्द के ऑफ़िस के लिए निकल गया। और पीछे छोड़ गया — हैरानी, मुस्कुराहट और एक धड़कता दिल।
शाम की हल्की रौशनी हॉल में गूंज रही थी। अंशिका एक सोफे पर बैठी थी, उसका चेहरा घूंघट से ढका हुआ था। चारों ओर कुछ औरतें बैठकर धीमी आवाज़ में बातें कर रही थीं — कुछ हँसी-मज़ाक, कुछ ताने, और कुछ तो सीधा-सीधा अनुमान।
अंशिका बहुत देर से वहीं बैठी थी। भारी साड़ी का पल्लू, गहनों का वजन और ऊपर से गर्मी — सब कुछ उसकी सहनशीलता की सीमा पार कर रहे थे।
वो मन ही मन सोच रही थी, "भगवान जाने ये मुंह दिखाई की रस्म कब खत्म होगी... कितनी गर्मी है यहां... कोई तो मुझे बचा ले!"
उसे ऐसा लग रहा था जैसे हर सेकंड एक घंटे के बराबर खिंच रहा हो। तभी उसके कानों में एक महिला की फुसफुसाती आवाज़ पड़ी, "लगता है रणवीर बेटा कल रात थोड़ा रफ रहा होगा... आखिर ओबेरॉय खानदान का खून है..."
दूसरी ने हँसते हुए कहा, "हां बिल्कुल! देखो ना, कितनी थकी हुई और शर्माई हुई लग रही है बेचारी!"
ये सुनते ही अंशिका का चेहरा टमाटर से भी ज़्यादा लाल हो गया। उसके तो हाथ-पैर फूल गए।
“हे भगवान! क्या सोच रही हैं ये लोग?” उसने खुद को संयत करने की कोशिश की, पर धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं।
सच्चाई तो ये थी कि — रणवीर ने एक भी कदम उसकी मर्ज़ी के बिना नहीं बढ़ाया था। सब कुछ उसकी इच्छा पर छोड़ दिया था। और अंशिका... अभी खुद को उस क़दम के लिए तैयार ही नहीं कर पाई थी।
वो उन औरतों की बातों से घबराकर बस यही सोचती रही, "काश मैं गायब हो सकती... या कम से कम ये घूंघट हटा पाती और कह पाती कि नहीं, कुछ नहीं हुआ है... और जो भी होगा, वो मेरी मर्ज़ी से होगा..."
पर ना तो घूंघट उठाने की हिम्मत थी, और ना ही कुछ कहने की। वो बस चुपचाप बैठी रही... और इंतज़ार करती रही — किसी अपने की, जो आकर उसे इस 'तमाशे' से बाहर निकाल सके।
तभी वहाँ सीमा जी, जानकी जी और रश्मि जी तीनों एक साथ आती हैं। जानकी जी ने हँसते हुए आवाज़ लगाई, "चलो, चलो! अब मुंह दिखाई की रस्म शुरू करते हैं। बहू को बहुत देर से बैठा रखा है हमने!"
इतना कहते ही एक औरत ने अंशिका के पास आकर धीरे से उसका घूंघट उठाया। उनकी आँखों में बहू को देखकर एक चमक-सी आ गई। "हाय राम! इतनी सुंदर बहू! रणवीर ने इस बार सच में हीरा चुन लिया!"
औरत ने प्यार से उसके गाल सहलाए और उसे एक मखमली डिब्बा सौंपा।
फिर दूसरी ने मुस्कुराते हुए अंशिका का चेहरा देखा और कहा, "नज़र न लगे किसी की..."
और अपने पर्स से एक रोल्ड पेपर में लिपटे हुए कुछ रुपए निकालकर उसके घूंघट पर फेर दिए।
"ये हमारी तरफ़ से सगुन।"
ऐसे ही एक के बाद एक बाद मेहमान एक-एक कर आते गए — कोई शगुन के लिफाफे, कोई साड़ी, कोई गहने, तो कोई मिठाई के डिब्बे लेकर। हर कोई अंशिका की खूबसूरती, सौम्यता और मुस्कान की तारीफ़ कर रहा था।
और वाकई... अंशिका उस वक्त किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी।
हल्की मुस्कान, शर्म से झुकी पलकें, और मन में बहती एक नई ज़िंदगी की हलचल।
थोड़ी देर बाद रस्म पूरी हुई तो सीमा जी ने प्यार से अंशिका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "बहू, अब चलो... कमरे में जाकर आराम कर लो। बहुत देर से बैठी हो, थक गई होगी।"
अंशिका ने सिर झुकाकर सहमति में हाँ की और धीरे-धीरे उठकर कमरे की ओर बढ़ गई — एक थकी, पर अंदर से हल्की मुस्कान लिए हुए। शायद इसलिए कि अब थोड़ी देर के लिए वो अपने आप में रह सकेगी... अपनी साँसों की गति को सामान्य कर सकेगी।
कमरे में जाते ही अंशिका ने चैन की सांस ली। उसने सबसे पहले अपने भारी गहनों उतार दिया। फिर बाथरूम में जाकर एक ठंडे पानी का शावर लिया — जैसे शरीर से ही नहीं, दिनभर की सारी थकावट धो रही हो। उसके बाद एक सादा-सी हल्की साड़ी पहन ली।
जब वो बाहर आई, तो कमरे की हल्की सी ठंडी हवा ने उसे सुकून दिया। बिस्तर पर आकर वो सीधे लेट गई और एक लंबी गहरी साँस ली। उसके चेहरे पर अब थकावट की जगह एक शांत मुस्कान थी।
जैसे ही उसने आंखें बंद कीं, सुबह रणवीर की वो मासूम-सी हरकत — जब उसने सबके सामने उसे घेरकर पैसे घुमाए थे — उसकी आँखों के सामने आ गई। और अनायास ही उसके होठों पर एक प्यारी-सी मुस्कान आ गई।
"कितना अजीब है ना... एक दिन भी नहीं हुआ हमारी शादी को, और फिर भी इस इंसान के साथ एक अलग ही अपनापन महसूस होता है..."
उसका दिल धीरे-धीरे रणवीर के लिए नरम होने लगा था। कोई शब्दों में नहीं कह पा रहा था, लेकिन उस एहसास में एक सुकून, सुरक्षा और भरोसा था।
धीरे-धीरे, उसकी आँखें बंद हो गईं — और वो मीठी थकावट में डूबती चली गई...
रात के खाने के बाद, सब अपने अपने कमरे में जा चुके थे। अंशिका जो अभी वहां से जाने को मुड़ी ही थी की सीमा जी ने उसे अपनी तरफ बुलाया और कहा, "अंशिका कल तुमको पग फेरे के लिए अपने मायके जाना है, तुम इस बारे में रणवीर को बताना और कहना कि उसे ही तुमको मायके छोड़ना है साथ ही शाम को लेते भी आना है।"
सिमा जी की बात सुन, अंशिका ने बस अपने सिर को हां में हिला दिया और ऊपर कमरे की तरफ जाने लगी। उसने हाँ तो कह दिया था लेकिन वो ये करेगी कैसे? उसने तो अभी तक 1 भी बात नहीं की है रणवीर से !
यही सब सोचते हुए कमरे में आ चुकी थी, उसकी नज़र सोफे पर सो लेते रणवीर पर गई, जो अपनी पूरी कोशिश कर रहा था उस छोटे से सोफे में फिट होने की।
ये देख अंशिका बोलती है, "आप बेड पर सो जाएं ।में सोफे पर सो जाऊंगी।"
ये सुनकर रणवीर तुरंत बोल पड़ा, "कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ठीक हूँ यहाँ। आप बेड पर सो जाइए।"
उसके बाद रणवीर ने जो कहा उस से अंशिका हैरान रह जाती है।
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क्या कहा होगा रणवीर ने जिस से अंशिका हैरान रह गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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THE LOVE BOND: PYAR KA BANDHAN
रिश्ते जब मजबूरी में बनते हैं, तो क्या उनमें कभी मोहब्बत पनप सकती है?”
प्रियल, एक अनाथ लड़की, जिसने अपना बचपन एक आश्रम में गुजारा। सपनों को पूरा करने की चाह में वह आती है मुंबई — जहां उसे मिलता है सिर्फ तन्हाई और संघर्ष।
वहीं उसकी मुलाकात होती है श्रेयस अग्निहोत्री से — एक बेरहम और भावहीन बिज़नेस टाइकून, जिसकी दुनिया सिर्फ उसकी नन्हीं बेटी रूही के इर्द-गिर्द घूमती है।
रूही की मुस्कान को बचाने के लिए श्रेयस को करनी पड़ती है प्रियल से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। प्रियल, जो हमेशा सच्चे प्यार के बाद शादी का सपना देखती थी, अब बिना प्यार के शादी करने पर मजबूर है।
क्या इस मजबूरी के रिश्ते में कभी प्यार पनपेगा?
क्या प्रियल सिर्फ रूही की मां बनकर रह जाएगी या श्रेयस के दिल तक भी उसकी पहुंच होगी?
*** PLEASE FRIENDS COMMENT KIYA KARIYE । AGAR KOI SUGGESTION DENA HO TO WO BHI DE SAKTE HO। AUR FOLLOW KARNA MAT BHULNA। ***
सिमा जी की बात सुन, अंशिका ने बस अपने सिर को हां में हिला दिया और ऊपर कमरे की तरफ जाने लगी। उसने हाँ तो कह दिया था लेकिन वो ये करेगी कैसे? उसने तो अभी तक 1 भी बात नहीं की है रणवीर से !
यही सब सोचते हुए कमरे में आ चुकी थी, उसकी नज़र सोफे पर सो लेते रणवीर पर गई, जो अपनी पूरी कोशिश कर रहा था उस छोटे से सोफे में फिट होने की।
ये देख अंशिका बोलती है, "आप बेड पर सो जाएं ।में सोफे पर सो जाऊंगी।"
ये सुनकर रणवीर तुरंत बोल पड़ा, "कोई ज़रूरत नहीं है। मैं ठीक हूँ यहाँ। आप बेड पर सो जाइए।"
फिर वह अपने सोफे से उठकर अलमारी के पास गया और वहाँ से एक छोटा सा बैग निकाल कर अंशिका की ओर बढ़ाया।
"ये आपका गिफ्ट है," उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा।
अंशिका ने चौंकते हुए बैग लिया और धीरे से बोली, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। आपने पहले ही गरीबों में पैसे बाँट दिए थे।"
रणवीर ने एक पल उसे देखा और फिर गंभीर लहजे में कहा, "लेकिन हमने आपको तो नहीं दिया था, अंशिका।"
उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। अपनी ज़िंदगी में पहली बार उसने किसी लड़की के लिए खुद जाकर कुछ खरीदा था।
नहीं तो रिया के लिए तो बस कार्ड थमा देता था—"जो चाहिए ले लो" कहकर।
पर आज... अंशिका के लिए खुद से कुछ चुनना, कुछ देना—उसके लिए ये नया था।
वो नर्वस था। डर था कि कहीं उसे पसंद ना आए तो.... । पर साथ ही, एक उम्मीद भी थी—कि शायद इस गिफ्ट के ज़रिए वो उसके दिल के थोड़े और करीब आ जाए।
अंशिका ने बैग को हल्के से थामा और कुछ पल उसे निहारती रही। उसकी उंगलियाँ थोड़ी काँप रही थीं—शायद इस नये रिश्ते की झिझक, या रणवीर के बदले हुए व्यवहार से उपजा हल्का-सा अचरज।
धीरे से उसने बैग खोला। अंदर एक खूबसूरत चांदी की पायल रखी थी। उसे देखते ही अंशिका ठिठक गई। उसकी आँखों में हल्की सी चमक उभरी और वह उसे एकटक निहारने लगी।
उसे यूँ चुपचाप देख रणवीर को थोड़ा संकोच हुआ। उसने धीरे से कहा, "अगर ये आपको पसंद नहीं आई... तो हम कल साथ चल कर कुछ और देख सकते हैं।"
अंशिका जैसे नींद से जागी हो। वह झट से बोली, "नहीं... नहीं, ये बहुत खूबसूरत है। सच में।"
रणवीर के चेहरे पर एक हल्की लाली दौड़ गई। वह खुद को रोक नहीं पाया और नजरें झुका लीं। कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी छा गई।
तभी अंशिका कमरे की शांति को भंग करते हुए धीमे स्वर में कहा, "वो... मम्मीजी ने कहा कि कल पग फेरे की रस्म है। मुझे मायके जाना है।"
रणवीर ने उसकी बात पर सीधे उसकी आंखों में देखा और मुस्कराते हुए बोला, "ठीक है। मैं तुम्हें छोड़ दूंगा... और शाम को लेने भी आ जाऊंगा।"
उसकी सहजता ने अंशिका को थोड़ा चौंका दिया। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए सिर हिला दिया। कमरे में फिर वही शांति लौट आई—इस बार कुछ अपनी सी लगती। रणवीर ने सोफे की ओर कदम बढ़ाए ही थे कि अंशिका की धीमी आवाज उसे रोक गई।
अंशिका बोलती है, "आप... चाहें तो... बेड पर सो सकते हैं। मैं दूसरी तरफ सो जाऊंगी।"
रणवीर ने जब अंशिका की ओर देखा, तो धीमे से पूछा, "आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी न?"
अंशिका ने बिना कुछ कहे बस धीरे से सिर हिला दिया। उसकी आंखों में भरोसा था... और हल्का सा संकोच भी। ये देख रणवीर मुस्कराया और बेड की ओर आ गया। उसे पास आता देख अंशिका ज़रा सा सिमट कर किनारे हो गई।
रणवीर ने ये नोटिस किया, लेकिन कुछ कहे बिना बेड के बिलकुल किनारे बैठ गया। फिर धीरे से बीच में एक तकिया रख कर बोला, "लो, ये रही हमारी सीमा रेखा।"
उसकी इस मासूमियत पर अंशिका के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी—एक सच्ची, निश्चिंत मुस्कान। उस पल उसे मन ही मन सुकून मिला। उसने नज़रें झुकाईं, पर दिल में एक हलचल सी मचने लगी।
"रणवीर जी... मेरे मन की झिझक इतनी जल्दी समझ गए... बिना कुछ कहे।"
उसके पेट में तितलियां उड़ने लगीं। दिल थोड़ी तेज़ी से धड़कने लगा।
"कौन लड़की नहीं चाहेगी कि उसका जीवनसाथी उसकी न कहे बात भी पढ़ ले, उसकी झिझक को समझ ले, उसकी खुशी और दर्द को महसूस कर ले..."
और यही तो हो रहा था अंशिका के साथ।
रणवीर का ये शांत, समझदार अंदाज़... उसकी फिक्र... उसकी मर्यादा... सब अंशिका को अनजाने ही उसकी ओर खींच रहे थे।
जैसे कोई अनकहा रिश्ता दोनों के बीच अपनी जड़ें जमा रहा हो—धीरे, मगर गहराई से।
अगले दिन,
अगली सुबह करीब पाँच बजे अंशिका की आँख खुली। कुछ पल उसे समझ ही नहीं आया कि वो कहाँ है… फिर जैसे ही होश आया, उसने खुद को रणवीर की बाहों में पाया।
वो पल... जैसे किसी फिल्म का स्लो मोशन सीन हो। उसकी धड़कनें अचानक तेज़ हो गईं। इतनी तेज़, जैसे खुद उसकी ही नींद तोड़ दी हो।
वो धीरे-धीरे खुद को रणवीर की बाँहों से छुड़ाने लगी, पर रणवीर की पकड़ थोड़ी टाइट थी। शायद गहरी नींद में था… अनजाने में उसे अपनी बाँहों में ले आया था।
थोड़ी सी मशक्कत के बाद अंशिका किसी तरह खुद को आज़ाद कर पाई।
बेड पर नज़र डाली, तो देखा — वो तो खुद ही खिसक कर रणवीर की जगह पर आ गई थी। उनके बीच की वो तकियों की "सीमा रेखा"… कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
अंशिका ने खुद से मुस्कराते हुए कहा, "मेरी ये रात में घूमने की आदत कब जाएगी, पता नहीं…!"
फिर हल्की सांस छोड़ते हुए बोली, "अच्छा हुआ नींद जल्दी खुल गई… वरना अगर रणवीर जी पहले उठ जाते तो… पता नहीं मैं उनसे नज़रें कैसे मिलाती!"
उसने एक नज़र रणवीर की तरफ देखा। सोते हुए रणवीर किसी मासूम से बच्चे जैसा लग रहा था—शांत, निश्छल और बहुत प्यारा। उसे देखकर अनजाने में ही अंशिका के चेहरे पर एक कोमल मुस्कान फैल गई।
"कितने क्यूट है ये..." उसका मन किया कि वो पल कुछ देर यूँ ही ठहर जाए।
लेकिन अगले ही पल उसने खुद को झटका और मन ही मन बोली, "नहीं अंशिका, ये सब क्या सोच रही हो तुम?"
और फिर जल्दी से उठकर बाथरूम की ओर चली गई… अपने चेहरे पर उभरे उन अनजाने एहसासों को छुपाने।
रणवीर की नींद थोड़ी देर बाद खुली। अलार्म बजा नहीं था, फिर भी आदत से मजबूर वो उठ गया।
हल्की अंगड़ाई लेते हुए तैयार हुआ और एक्सरसाइज के लिए गार्डन की ओर निकल गया।
इस बीच अंशिका बाथरूम से निकल कर अपने बाल सुखा रही थी। उसने बालकनी के दरवाज़े खोले और ताज़ी हवा लेने बाहर आ गई।
जैसे ही उसकी नज़र गार्डन पर पड़ी, उसका मन एक पल को ठहर सा गया।
रणवीर सामने था — टीशर्ट से चिपका हुआ उसका पसीने से भीगा शरीर, बाज़ुओं की हल्की मांसपेशियाँ और चेहरे पर कसा हुआ फोकस... सब कुछ उसे अनजाने में बहुत ही हॉट बना रहे थे। अंशिका का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
"इतने हैंडसम हैं रणवीर जी…" उसका मन हुआ कि बस ऐसे ही देखती रहे।
रणवीर उस वक़्त पुश-अप्स कर रहा था, फिर जॉगिंग करने लगा। अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उसे देख रहा हो।
उसने रुक कर चारों ओर नज़रें घुमाईं। गार्डन में कोई नहीं था। लेकिन फिर उसकी नज़र ऊपर अपने कमरे की बालकनी की ओर गई।
जैसे ही वो वहाँ देखने लगा — अंशिका चौकन्नी हो गई। उसने तुरंत खुद को नीचे झुका लिया, ताकि वो उसे देख न सके। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
"लगता है उन्हें महसूस हो गया कि कोई उन्हें देख देख रहा है।", वो मन ही मन बोलती हुए मुस्कराई, लेकिन चेहरे पर हल्की सी घबराहट भी थी।
रणवीर कुछ पल उस बालकनी को देखता रहा, फिर हल्के से मुस्कराकर वापस एक्सरसाइज में लग गया। उधर अंशिका खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।
"क्या हो रहा है मुझे? मैं क्यों ऐसे उन्हें देख रही थी? "
अंशिका जल्दी से बालकुनी से अंदर आई और रेडी हो कर नीचे चली आई और सीधे पूजा घर की ओर बढ़ गई। वहाँ जानकी दादी, सीमा माँ और रश्मि चाची पहले से ही तैयारियों में लगी थीं। अंशिका ने तुरंत मदद करना शुरू कर दिया।
पहले घर में पूजा हुई। पूजा के बाद रसोई में हलचल तेज हो गई।
सीमा जी ने कल उसे आराम करने के लिए कहा था क्योंकि शादी के भारी-भरकम साड़ी और रस्मों से वो थक चुकी थी। लेकिन आज... अंशिका खुद ही जिद कर बैठी।
"आज मैं सबके लिए कुछ खास बनाऊंगी। हर किसी के लिए उनकी पसंद का।"
सीमा जी और रश्मि चाची ने उसकी लगन और प्यार भरी कोशिशों पर मुस्कुरा कर हामी भर दी।
जानकी दादी (दादी जी) को हमेशा से ही सादा, देसी घी में बनी मूंग दाल की खिचड़ी पसंद थीं। अंशिका ने उन्हें ध्यान में रखते हुए नरम खिचड़ी में हल्का तड़का लगाकर दही के साथ परोसने की तैयारी की।
राजवर्धन दादू को खाने में थोड़ा ठाठ चाहिए होता था। उन्हें आलू वाले पराठे बहुत पसंद थे। अंशिका ने उनके लिए आलू वाले पराठे बना दिया।
राजवीर पापा को तो खीर से बहुत लगाव था। अंशिका ने उनके पसंद की खीर बना दिया। ऐसे ही सीमा माँ जी के लिए आलू के पराठे, जयवीर चाचू के लिए आलू-प्याज़ की पूरियां और टमाटर की चटनी, रश्मि चाची को सूजी का हलवा, रिया के लिए पोहा और रणवीर के लिए इडली और सांभर। इतना सब बनाने में उसकी मदद सर्वेंट ने भी कर दिया।
साढ़े 8 बजे से पहले खाना तैयार हो चुका था। सभी खाना खाने के लिए 9 बजे आने वाले थे। इस लिए अंशिका अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चली गई।
रसोई से जब खुशबुएं पूरे घर में फैलने लगीं, तो हर किसी के चेहरे पर अलग ही चमक आ गई। ये सिर्फ खाना नहीं था। इसमें अंशिका क्या प्यार और मेहनत मिला हुआ था। जो खाने को और स्वादिष्ट बना रही थी।
अंशिका जैसे ही कमरे में पहुंची। कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना उसने नहीं की थी।
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ऐसा क्या देखा अंशिका ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
आज के लिए इतना ही .....
मिलते है कल एक नए चैप्टर के साथ ......
good night my sweet friends...
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MERE PROFESSOR SAHEB:-
रूहानी शर्मा— एक शर्मीली, सादगी से भरी लड़की, वो ज़्यादा बोलती नहीं, पर जब भी बोलती है तो दिल से और हमेशा मुस्कुराते रहती थी। वो मानती है कि प्यार ही ज़िंदगी का असली रंग है।
दूसरी ओर है एकांश सिंघानिया — गुस्से वाला, बेरुखा। उस की मुस्कान देखना तो ईद की चांद देखने की तरह होता था। जो दुनिया से नहीं, सिर्फ अपनी family से प्यार करता है। वो मानता है कि प्यार एक धोखा है... एक कमजोरी।
जब ये दो बिल्कुल उलटी सोच वाले इंसान कॉलेज में पहली बार टकराते हैं, जहां एकांश रूहानी का प्रोफेसर था, वहीं रुहानी स्टूडेंट।
एक वो जो प्यार को इबादत मानती है और एक वो जो प्यार को ख्वाब मानने से भी डरता है।
क्या रूहानी की मासूमियत एकांश के प्यार पर भरोसा दिला पाएगा? क्या होगा जब रूहानी के सामने आएगी एकांश की सच्चाई? क्या किस्मत उन्हें एक साथ जोड़ पाएगी?
जानकी दादी (दादी जी) को हमेशा से ही सादा, देसी घी में बनी मूंग दाल की खिचड़ी पसंद थीं। अंशिका ने उन्हें ध्यान में रखते हुए नरम खिचड़ी में हल्का तड़का लगाकर दही के साथ परोसने की तैयारी की।
राजवर्धन दादू को खाने में थोड़ा ठाठ चाहिए होता था। उन्हें आलू वाले पराठे बहुत पसंद थे। अंशिका ने उनके लिए आलू वाले पराठे बना दिया।
राजवीर पापा को तो खीर से बहुत लगाव था। अंशिका ने उनके पसंद की खीर बना दिया। ऐसे ही सीमा माँ जी के लिए आलू के पराठे, जयवीर चाचू के लिए आलू-प्याज़ की पूरियां और टमाटर की चटनी, रश्मि चाची को सूजी का हलवा, रिया के लिए पोहा और रणवीर के लिए इडली और सांभर। इतना सब बनाने में उसकी मदद सर्वेंट ने भी कर दिया।
साढ़े 8 बजे से पहले खाना तैयार हो चुका था। सभी खाना खाने के लिए 9 बजे आने वाले थे। इस लिए अंशिका अपने कमरे में फ्रेश होने के लिए चली गई।
रसोई से जब खुशबुएं पूरे घर में फैलने लगीं, तो हर किसी के चेहरे पर अलग ही चमक आ गई। ये सिर्फ खाना नहीं था। इसमें अंशिका क्या प्यार और मेहनत मिला हुआ था। जो खाने को और स्वादिष्ट बना रही थी।
अंशिका जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोलती है, उसके कदम वहीं रुक जाते हैं।
सामने का नज़ारा उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी — रणवीर सिर्फ बॉक्सर में था और हड़बड़ी में अपनी पैंट पहन रहा था।
जैसे ही उसे दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी, उसने झट से पैंट चढ़ाई और ज़िप बंद करने की कोशिश की... । वहीं अंशिका जैसे ही रणवीर की हालत देखती है। वो पीछे मूड जाती है और रणवीर से माफी मागते हुए बोलती है, "sorry sorry ।"
“आउच!” रणवीर की हल्की सी चीख निकल गई। उसका चेहरा अचानक दर्द से सिकुड़ गया।
जैसे ही रणवीर की चीख कमरे में गूंजी, अंशिका चौंक कर पलटी। अंशिका एक पल को हड़बड़ा गई — “क्या हुआ?! आप ठीक हैं?” उसने घबराते हुए पूछा, लेकिन नज़रे झुकी हुई थीं।
उसने देखा — रणवीर अब खड़ा था, चेहरा दर्द से सिकुड़ा हुआ, और हाथ... पैंट के ज़िप वाली जगह पर था। अंशिका को एक पल में सब समझ आ गया।
"ओह... सॉरी-सॉरी!" अंशिका जल्दी से बोली, "शायद... शायद मैं मदद कर दूँ?"
रणवीर दर्द से हल्का सा कराहता हुआ बोला, "न-नहीं... प्लीज़, तुम... थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाओ।"
उसकी आवाज़ में तकलीफ़ साफ़ थी, लेकिन साथ ही एक असहज सी विनम्रता भी। अंशिका ने बिना कुछ और कहे जल्दी से सिर हिलाया और दरवाज़ा बंद करके बाहर निकल गई।
रणवीर दर्द से थोड़ा झुककर खड़ा था। उसने खुद को शांत रखने की बहुत कोशिश की, लेकिन शरीर का दर्द उसे लगातार बेचैन कर रहा था। उसने कई बार कोशिश की, ज़िप से फंसा हिस्सा निकालने की, मगर हर बार दर्द की एक लहर उसकी हिम्मत तोड़ देती।
करीब पाँच मिनट बीत गए। टॉक टॉक। दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई।
“रणवीर जी?” अंशिका की चिंतित आवाज़ आई, “अब तक नहीं निकला क्या?”
रणवीर दर्द से बोझिल स्वर में बोला, “न-नहीं... आप नीचे जाइए, मैं... मैं आ जाता हूँ।”
उसने अभी इतना ही कहा था कि दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। वो चौंका।
रणवीर अब भी दर्द से थोड़ा झुका खड़ा था, आँखें हल्की सी भीगी हुईं थीं। रणवीर को दर्द में देख वो सीधे उसके पास आती है, तभी अंशिका बिना कोई और सवाल किए उसके सामने नीचे बैठ गई और उसकी ज़िप खोलने की कोशिश करने लगती है।
वहीं अंशिका को ऐसे अचानक अपने सामने बैठा देख और अपने शरीर के उस हिस्से पर अंशिका का हाथ महसुस कर रणवीर की हालत पहले से और ख़राब हो रही थी।
उसने रणवीर के हाथ को हल्के से पकड़ कर अलग किया और कहा, "आपने बहुत कोशिश कर ली, अब मुझे करने दीजिए।"
रणवीर चौंका — वो घबराया भी और थोड़ा हिचका भी। "अ- अंशिका... नहीं, रहने दो... मैं-"
पर अंशिका ने उसकी बात बीच में ही रोक दी,
"चुपचाप खड़े रहिए। आप दर्द में हैं, इसलिए आप नहीं निकल पाएंगे और ये वक़्त झिझक का नहीं है।"
उसका स्वर शांत था, लेकिन आत्मविश्वास से भरा हुआ। रणवीर बस उसे देखता रह गया — उसकी आँखों में चिंता और अपनापन दोनों था। ये देख रणवीर के मन में एक अजीब सी गुदगुदी होने लगती है।
अंशिका ने पूरे ध्यान और सावधानी से रणवीर की ज़िप खोलने की कोशिश की। कुछ ही क्षणों में वो उसे छुड़ा पाने में सफल हो गई।
दोनों की सांसें जैसे थमी हुई थीं... और फिर एक साथ ही उन्होंने राहत की सांस ली।
"अच्छा... अब आप तैयार हो जाइए। नीचे आ जाइएगा," अंशिका ने धीमे और संयमित स्वर में कहा।
उसका चेहरा हल्का गुलाबी हो गया था — नज़रें रणवीर की ओर उठी भी नहीं थीं। वो बिना कुछ और बोले, बिना फ्रेश हुए ही तेजी से कमरे से निकल गई।
रणवीर थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा — उसे भी अजीब सा महसूस हो रहा था। लेकिन साथ ही वो ये भी समझ रहा था कि अंशिका ने जो किया, वो कितना साहसी और सच्चे दिल से किया गया था।
उसने एक हल्की सी मुस्कान के साथ खुद को संभाला। फिर धीरे से पास की अलमारी से एंटीसेप्टिक क्रीम निकाली और तकलीफ़ वाले हिस्से पर लगाया।
तैयार होकर जब वो नीचे पहुँचा। सभी खाना खाते है और अंशिका के खाने की खूब प्रशंसा करते है। अंशिका सभी को मुस्कुरा कर थैंक यू कहती है। वहीं रणवीर के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी।
खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते है रेडी होने के लिए। क्यों कि उन्हें अंशिका के घर पर जाना था।
अंशिका हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में सजी, गहनों से सधी हुई, सिर पर हल्का पल्लू लिए नीचे आई। चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखों में कुछ अनकहा सा भाव।
रणवीर पहले से तैयार खड़ा था — ग्रे कुर्ता और सफेद पायजामा में। जैसे ही अंशिका नीचे आई, दोनों ने साथ में सभी बड़ों के पैर छुए।
सीमा जी ने प्यार से अंशिका के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जल्दी आना बेटा... तुम्हारे बिना ये घर बहुत सूना लगेगा।"
सबका आशीर्वाद लेते हुए, रणवीर और अंशिका गाड़ी की ओर बढ़े। रणवीर ने पहले दरवाज़ा खोलकर अंशिका को बैठाया, फिर खुद उसके बगल में बैठ गया।
गाड़ी की आगे सीट पर ड्राइवर था।
गाड़ी चलते ही दोनों कुछ देर खामोश रहे। शायद सुबह की झिझक अब भी उनके बीच मौजूद थी, पर उस खामोशी में भी एक अजीब सुकून था।
लगभग एक घंटे बाद, गाड़ी अंशिका के मायके के दरवाज़े पर रुकी।
अंशिका को यहां आने का मन तो बिल्कुल नहीं था, लेकिन यह एक रस्म थी—परंपरा, जो निभानी ही थी। और अपने ससुराल वालों को वह मना भी कैसे करती? इसलिए उसने एक गहरी साँस ली और खुद को समझाते हुए रणवीर के साथ दरवाज़े तक आ गई।
उसने धीरे से डोरबेल दबाई। अंदर से आवाज़ें आने लगीं—किसी के तेज कदमों की आहट। कुछ ही पल में दरवाज़ा खुला।
सुरेखा जी रणवीर को देख मुस्कराईं और बिना किसी देरी के बोलीं, "आइए न Mr. Oberoi, अंदर चलिए।"
इतना कहते हुए उन्होंने रणवीर को अंदर जाने के लिए रास्ता दे दिया। इस बीच उन्होंने एक नजर भी अंशिका को नहीं देखा था।
लेकिन तभी रणवीर की नजर अपनी पत्नी पर पड़ी—जो दरवाज़े के पास खड़ी थी, सिर झुकाए हुए, जैसे खुद को वहां 'अतिथि' की तरह महसूस कर रही हो।
अंशिका को एक बार भी अंदर आने को नहीं कहा गया था।
रणवीर की आँखों में हलकी नाराज़गी झलक उठी। उसकी मुठ्ठी भींच गई—चेहरा भले ही शांत था, लेकिन उसके अंदर का गुस्सा साफ ज़ाहिर हो रहा था। पर उसने खुद को संभाला।
फिर पलटकर अंशिका की तरफ देखा और नर्म लेकिन सख़्त आवाज़ में कहा: "अंशिका, अंदर आओ हमारे साथ।"
यह सुनते ही अंशिका का चेहरा खिल गया। उसकी मुस्कान में वो सुकून था, जो शायद रणवीर के समर्थन से मिला था। वहीं सुरेखा जी का चेहरा उतर गया।
वो समझ चुकी थीं कि रणवीर के सामने उन्होंने क्या गलती कर दिया।
तभी सुरेखा जी के कानों में रणवीर की कड़कती आवाज़ गूंजी: "हम यहाँ Mr. Oberoi की हैसियत से नहीं, अंशिका के पति बनकर आए हैं।"
इतना कहते ही रणवीर ने अंशिका का हाथ थामा और बिना किसी और बात के सीधा अंदर की तरफ चल पड़ा। सुरेखा जी वहीं कुछ पलों के लिए जड़ सी खड़ी रह गईं। चेहरे पर बेमन-सी मुस्कान और भीतर चिढ़ का एक सैलाब लिए वो भी पीछे-पीछे अंदर आईं।
अंदर आते ही उन्होंने नाटक शुरू किया। अंशिका को गले लगाते हुए बोलीं: "कैसी है हमारी बिटिया? हमें तेरी बहुत याद आई..."
पर अंशिका जानती थी इस झूठ के पीछे क्या है।
वो मन ही मन बोली — "हाँ, पता है हमें… तभी तो मेरी विदाई के वक्त आपने यही कहा था कि 'यहां मत आना'।"
ये सोचते हुए उसके चेहरे पर एक कड़वी सी मुस्कान आ गई। फिर अपनी भावनाओं को दबाकर हल्के से बोली: "ठीक हूँ मैं।"
रणवीर उसकी आंखों के बदलते भाव पढ़ रहा था। उसे कुछ कुछ doubt तो हो रहा था। की यहां कुछ तो अजीब है। पर जो भी हो अब वो अपनी पत्नी, अपनी अंशिका के साथ है। वो कभी उस पर कोई मुसीबत नहीं आने देगा। वो मन ही मन अपने आप से बादा करता है।
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तो आप सब को क्या लगता है?
क्या रिएक्शन होगा रणवीर का जब रणवीर को पता चलेगा अंशिका के साथ सूखे चाचा चाची कैसा रिएक्ट करते है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी " Rebirth as Devil's Bride " ......
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HUKUMAT-E-DIL (in my profile)
ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार वालों से ही करता था। अपनी मां और दादी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। वहीं तारा एक मासूम सी लड़की है। तारा उसकी सौतेली मां और सौतेली बहन के द्वारा प्रताड़ित हो रही थी। जहां शौर्य आग था वही तारा पानी थी। अपने मां और दादी के प्रेशर में आ कर शौर्य ने तारा से शादी कर ली। वहीं तारा की मां और बहन लालच में तारा की शादी शौर्य से करा रहे थे। क्या होगा जब आग और पानी एक साथ आयेंगे? क्या होगा जब तारा को पता चलेगा शौर्य की बीमारी? क्या है शौर्य का वो राज़? क्या करेगी तारा उस राज़ को जान कर? क्या शौर्य की नफ़रत में तारा की मासूमियत चली जायेगी? क्या कभी शौर्य और तारा के बीच प्यार पनप पायेगा? जानने के लिए पढ़िए "Hukumat-E-Dil"......
इन सब की बात सुनकर, मेरा भी मन किया एक बार देखने के लिए, उस दिन तो सादे कपड़े में सुंदर दिखा रहे थे, तो आज शादी के कपड़े में कमाल ही लग रहे होंगे। पर मैं अपनी सोच को जल्दी ही दिमाग से निकाल दी, नहीं तो मुझे अभी कोई नहीं बचाता, इन शैतान भाभियों, से। एक तो सोचने भर से मेरी धड़कन बीमारी की तरह बढ़ जाती है, पेट में अजीब तरह के गुदगुदी होने लगती है रोंगटे खड़े होने लगते है, अगर अभी देखने से सर हुआ तो फिर में कैसे खुद को सम्भालुगी, इससे अच्छा हैं में देख ही ना अपने हाथो की चूड़ियों को हिलाते हुए सोचती है। आँखें और गाल पर शर्म की हया ने जगह ले ली थी। मन में उथल पुथल मची हुई थी सैया जी को देखने के लिए।
बरात आ गया, और पूरे माहौल में गाने और हँसी की लहर दौड़ गई। सभी कोई बैंड बाजे पर नाच रहे थे। गाँव वाले ऐसे देख रहे थे, जैसे आज तक ऐसा बरात कही देखी ही नहीं, शायद ऐसा ही था क्योंकि बंबई के अमीर घर से बरात आई थी। तो अलग तो होते, जो उनकी आंखों को चौंधिया दी। आस पड़ोस के लोग के मन में तो जलन के भाव भी उत्पन हो गए थे। क्योंकि राजवीरठाकुर को देख कर अपने दामाद से तुलना करने लगे थे जो कही भी खड़ा नहीं हो रहा।