Novel Cover Image

Married To The Cruel Devil"

User Avatar

Poonam Rana

Comments

0

Views

6

Ratings

0

Read Now

Description

"मदद करना एक नेक काम होता है, लेकिन क्या हो जब वही मदद आपके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन जाए?" यह कहानी है जानवी चव्हाण की — एक मासूम, नेकदिल लड़की, जिसने इंसानियत के नाते एक अजनबी की मदद की। लेकिन वह अजनबी कोई साधारण इंसान नहीं था — वह था मृत्युंजय राणा...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. चली जाओ यहां से " - Chapter 1

    Words: 1097

    Estimated Reading Time: 7 min

    ---

    जयपुर रात का वक्त।

    सड़क पर एक रेड कलर की गाड़ी आगे बढ़ रही थी, ड्राइविंग सीट पर एक 25 साल की खुबसूरत लड़की, जिसने ब्लैक कलर की साड़ी पहनी हुई थी, बैठी हुई थी। उसका पूरा ध्यान सड़क पर था। खुबसूरत चेहरे पर घबराहट लिए हुए वो लड़की खुद से ही बोली, "उफ्फ! कितनी देर हो गई है, घरवाले बहुत परिशान हो रहे होंगे, हे भगवान!" बोल कर उसने गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी।

    तभी उसकी बगल वाली सीट पर रखा मोबाइल फोन बजने लगा। वो लड़की उस तरफ देख कर फोन को अपने हाथ में लेती है, तभी उसकी नज़र सामने सड़क पर गई — उसकी गाड़ी के ठीक सामने एक शख्स आ गया था। लड़की जल्दी से ब्रेक लगाती है और गाड़ी उस शख्स से टकराने से बच जाती है।

    लड़की ने गहरी सांस ली और मन ही मन भगवान का धन्यवाद किया। जैसे ही सामने देखा, उसने पाया कि वो शख्स ज़मीन पर गिर गया है। ये देखकर वो लड़की जल्दी से गाड़ी से उतर कर शख्स के पास गई, तो उसकी चीख निकल पड़ती है। वो अपने मुंह पर हाथ रखकर, बड़ी-बड़ी आंखों से ज़मीन पर पड़े उस शख्स को देख रही थी, जिसके कंधे पर गोली लगी थी और उस ज़ख्म से खून पानी की तरह बह रहा था।

    लड़की जल्दी से अपने घुटनों के बल बैठ कर पूछती है, "अ... आप ठीक तो हैं ना? चलिए उठिए, मैं आपको हॉस्पिटल लेकर चलती हूं।"

    शख्स, जो ज़मीन पर पड़ा था और जिसकी आंखें बंद थीं, वो अचानक अपनी आंखें खोलकर उस लड़की को देखता है, जो बहुत घबराई हुई थी।

    कुछ देर तक उस लड़की को देखते हुए बोला, "चली जाओ यहां से, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।" उस शख्स का ज़ख्म बहुत गहरा था, पर उसकी आवाज से लग रहा था कि जैसे वो बिल्कुल ठीक है — न चेहरे पर कोई शिकन, न आवाज में कोई दर्द।

    उसकी बात सुनकर वो लड़की पहले तो हैरान हुई, फिर थोड़े सख्त अंदाज़ में बोली, "आप पागल हो क्या? ऐसे कैसे चली जाऊं? इतना खून बह रहा है, देखिए ना! आप चुपचाप उठिए और मेरे साथ हॉस्पिटल चलिए।" बोलकर उसने उसका हाथ पकड़ा तो वो शख्स पहले हाथ को, फिर लड़की को घूरते हुए बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की? हाथ छोड़ो मेरा, मुझे किसी की भी मदद की जरूरत नहीं है।"

    ये सुनकर लड़की कुछ पल के लिए सन्न रह गई। उसके हाथ उस शख्स के हाथ से छूटे नहीं थे, लेकिन उसकी आंखों में अब डर से ज़्यादा जिद थी।

    लड़की ने ठंडे लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, "देखिए, आप चाहे जो भी हों, लेकिन इस वक्त आपकी हालत बहुत खराब है। अगर वक्त रहते इलाज नहीं मिला, तो आप जान भी गंवा सकते हैं। और रही बात छूने की, तो इंसानियत में शर्म की कोई जगह नहीं होती।"

    लड़की की ये बात सुनकर शख्स की आंखों में एक पल के लिए हैरानी झलकी। जैसे किसी ने उससे वो बात कह दी हो, जो वो सालों से सुनना चाहता था, पर खुद को उसकी इजाज़त नहीं देता था।

    पर अगले ही पल वो फिर सख्त हो गया। उसने धीमे लेकिन कड़े लहज़े में कहा, "तुम समझ नहीं रही हो। जिस दुनिया से मैं आया हूं, वहां किसी पर भरोसा करना जान देने जैसा होता है। और तुम... तुम कुछ नहीं जानती।"

    लड़की अब तक उसका चेहरा ठीक से देख चुकी थी — 28 के करीब उम्र, चौड़ी जबड़े वाली मूंछ-दाढ़ी से भरी कठोर शक्ल, पर नीली आंखें — ऐसी आंखें जैसे समंदर के अंदर कोई तूफान छिपा हो।

    "ठीक है, अगर आप मेरी मदद नहीं लेना चाहते, तो मैं पुलिस को फोन कर देती हूं," उसने अपने पर्स से फोन निकालते हुए कहा।

    उसकी ये बात सुनकर शख्स झटपट बोल पड़ा, "पुलिस! पुलिस नहीं।" पुलिस को मत बताना वरना ठीक नहीं होगा।

    लड़की ने गौर किया, उसकी हथेली अब कांप रही थी, और खून अब ज़्यादा बहने लगा था।

    ये सुनकर लड़की ने दृढ़ता से कहा, "तो फिर चलिए, मेरी गाड़ी में बैठिए। एक शब्द और नहीं सुनूंगी," और उसका दूसरा हाथ पकड़ कर सहारा देने लगी।

    इस बार शख्स ने विरोध नहीं किया। शायद कमजोरी जीत गई थी, या फिर पहली बार किसी की आंखों में उसे सच्ची फिक्र दिखी थी।

    लड़की ने जैसे-तैसे उसे कार की पिछली सीट पर लिटाया। गाड़ी का एसी बंद कर, हीटर ऑन किया और मोबाइल से नजदीकी प्राइवेट क्लिनिक सर्च करने लगी।

    गाड़ी एक बार फिर चल पड़ी — इस बार सन्नाटे, रहस्य और खतरे को साथ लिए।

    लड़की ने कार ड्राइव करते हुए कहा, "वैसे मेरा नाम कशिश है, कशिश चव्हाण। आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं। वैसे लगी कैसे आपको?"

    पर पीछे से कोई जवाब नहीं आया। शायद वो बेहोश हो चुका था। या शायद उस नाम को अपने भीतर बिठा रहा था।

    जवाब ना पाकर कशिश ने शीशे में एक बार उसकी आंखों को देखा जो सामने ही देख रही थीं — उनमें कुछ भी नहीं था, ना दर्द और ना घबराहट। कशिश को अजीब लगा।

    कुछ देर बाद पीछे बैठा हुआ शख्स अपनी ठंडी आवाज में बोला, "मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता, खुद पर भी नहीं करता।"

    उसकी बात सुनकर कशिश को अजीब लगा। वो कहती है, "ये कैसी बात हुई, आप खुद पर भरोसा नहीं करते?"

    पर कशिश के इस सवाल पर वो शख्स कुछ भी नहीं कहता। कशिश ने भी कुछ देर तक कुछ नहीं कहा, फिर उसने शीशे में देख कर धीरे से कहा, "मैं नहीं जानती आप कौन हैं, लेकिन एक बात जानती हूं — दर्द को छुपाना ताकत नहीं होता।"

    पर इस बार भी वो शख्स कुछ नहीं कहता, तो कशिश भी चुपचाप गाड़ी चलाने लगी।

    एक घंटे बाद,

    कशिश ने कार एकदम दरवाजे के पास रोकी। वो जल्दी से नीचे उतरी और रिसेप्शन पर भागी। कुछ ही पल में दो कम्पाउंडर स्ट्रेचर लेकर बाहर आए।

    पर शख्स स्ट्रेचर को पूरी तरह इग्नोर कर गाड़ी से उतरा, और लड़खड़ाते हुए कदमों से हॉस्पिटल के अंदर चला गया। दो कम्पाउंडर और कशिश हैरान थे। कशिश भी उसके पीछे-पीछे चली गई।

    एक वार्ड में, डॉक्टर बेड पर बैठे हुए शख्स की पट्टी कर रहा था। डॉक्टर पट्टी करते हुए शख्स से बोला, "शुक्र है कि गोली छूकर निकली, वरना... ये पुलिस केस है, आपको पुलिस को बताना चाहिए।"

    ये सुनकर वो शख्स, जो आराम से बैठा हुआ था, डॉक्टर को घूरते हुए बोला, "डॉ साहब, आपका काम है दवाई देना, राय देना नहीं। अपना काम करिए आप।"

    डॉ उस शख्स की बात सुनकर दंग रह गया। वो कुछ कहता नहीं है और चुपचाप अपना काम कर वार्ड से बाहर चला गया।



    चैप्टर कैसा लगा कमेंट करके जरूर बतायें।

  • 2. , "ये मेरी आदत में नहीं है कि मैं" - Chapter 2

    Words: 700

    Estimated Reading Time: 5 min

    ---

    डॉ के जाने के बाद वो शख्स अपना ज़ख्म देखता है, जिस पर अब पट्टी थी। वो ज़ख्म देख ही रहा था, तभी वार्ड में कशिश आकर कहती है, "हो गई पट्टी? चलो अच्छा हुआ। सुनो, मैंने बिल भर दिया है, आप अपनी फैमिली को कॉल करके बुला लीजिए... वो आपको घर ले जाएंगे?"

    "मैं खुद का ख्याल रख सकता हूं। तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिए?" कहते हुए शख्स ने अपने पैंट की जेब से वॉलेट निकाला और खोला, तो वॉलेट एकदम खाली था। ये देखकर कशिश की हंसी छूट गई।

    शख्स उसे घूरने लगा, तो कशिश ने मुस्कुराते हुए कहा, "ये तो खाली है। कोई बात नहीं, आप ना..." कहते हुए कशिश ने अपने पर्स से पांच सौ का नोट निकाल कर उस शख्स की तरफ बढ़ाया, "ये रख लीजिए, आपके काम आएंगे।"

    शख्स ने कशिश को देखा, फिर उस पांच सौ के नोट को। शख्स कुछ पल तक उस नोट को घूरता रहा। उसके चेहरे पर कोई भावना नहीं थी — न गुस्सा, न शर्म। कुछ देर बाद वो बोला, "ये मेरी आदत में नहीं है कि मैं किसी से पैसे लूं..."

    ये सुनकर कशिश ने भौंहें चढ़ाईं, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली, "तो फिर क्या आपकी आदत में ये है कि आप गोली खाकर सड़क पर गिरे रहें और अजनबी आपकी जान बचाएं?"

    इस पर शख्स के होंठ ज़रा से हिले, जैसे जवाब देना चाहता हो, मगर उसने कुछ नहीं कहा।

    कशिश ने उसके बेड के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, "सुनिए, आप बड़े अकड़ू किस्म के इंसान लगते हैं... लेकिन दिल से शायद उतने ही टूटे हुए भी। अब ये नाटक बंद कीजिए और कम से कम अपना नाम तो बताइए।"

    ये सवाल सुनकर शख्स ने गहरी सांस ली। फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद धीरे से बोला, "धनंजय... ठाकुर।"

    ये सुनकर कशिश ने मुस्कुराते हुए कहा, "ओके ठाकुर साहब, आप ये पैसे रख लीजिए, घर जाने में काम आएंगे आपके," बोल कर कशिश ने नोट को धनंजय के हाथ में पकड़वा दिया।

    "वैसे आपने बताया नहीं कि आपको गोली कैसे लगी? आप पुलिस वाले हो क्या?" कशिश ने पूछा।

    धनंजय उसके इस सवाल पर हल्के से मुस्कुरा कर बोला, "ना, पुलिस वाला नहीं, पुलिस वालों का दुश्मन।"

    कशिश को बात पल्ले नहीं पड़ी। वो कंफ्यूज़ होकर पूछती है, "क्या मतलब है आपका?"

    "मतलब जान कर क्या करोगी? ये तुम्हारे मतलब की बात नहीं है, तो अपने मतलब से मतलब रखो, वरना आगे किसी से मतलब नहीं रख पाओगी..." — कशिश के सवाल पर धनंजय ने कहा।

    वहीं पर कशिश तो उलझ चुकी थी, उसे धनंजय की बात का मतलब समझ में नहीं आ रहा था।

    कुछ देर तक धनंजय को देखने के बाद कशिश बेबाकी से बोली, "मतलब की बात है या नहीं, ये तय करने का हक मुझे है।"

    ये सुनकर धनंजय ने एक भौंह उचकाते हुए कहा, "तुम बहुत सवाल पूछती हो... ये आदत एक दिन तुम्हें किसी मुश्किल में डाल देगी।"

    जिसके जवाब में कशिश तुरंत बोल पड़ी, "और आप बहुत जवाब छुपाते हो ठाकुर साहब। ये आदत एक दिन आपको अकेला कर देगी।"

    "वो तो मैं पहले से हूं," — धनंजय ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा।

    तो कशिश के चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे गायब हो गई। कशिश कुछ कहती, तभी धनंजय बोला, "मोबाइल मिल सकता है तुम्हारा?"

    सवाल सुनकर उसने थोड़ी देर तक उसे घूरा — जैसे परख रही हो कि ये सवाल महज़ एक कॉल के लिए है या इसके पीछे कोई और वजह छुपी है। फिर बिना कुछ कहे उसने अपना मोबाइल बैग से निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दिया।

    "लो," उसने सधी हुई आवाज़ में कहा, "लेकिन किसी गलत नंबर पर कॉल करोगे, तो फोन जब्त कर लूंगी।"

    धनंजय ने हल्की मुस्कान के साथ उसका फोन लिया। फिर किसी को कॉल किया, कशिश एक टक उसे देख रही थी।

    कुछ देर बाद धनंजय ऑर्डर देते हुए बोला, "हम्म, जिंदा हूं। वैदेही हॉस्पिटल में हूं, जल्दी आओ।" इतना कहकर उसने फोन डिस्कनेक्ट किया, फिर मोबाइल को कशिश की तरफ बढ़ाते हुए बोला, "ये लो तुम्हारा फोन।"

    कशिश ने अपना फोन लेकर बैग में रखा, फिर कुर्सी से उठ कर बोली, "अच्छा, अपना ख्याल रखिएगा। मैं चलती हूं। बाय।" कह कर कशिश वार्ड से बाहर चली गई।


    आपको चैप्टर कैसा लगा कमेंट करके जरूर बतायें

  • 3. Married To The Cruel Devil" - Chapter 3

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min