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Married To The Cruel Devil"

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Poonam Rana

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मदद करना एक नेक काम होता है, लेकिन क्या हो जब वही मदद आपके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन जाए?" यह कहानी है जानवी चव्हाण की — एक मासूम, नेकदिल लड़की, जिसने इंसानियत के नाते एक अजनबी की मदद की। लेकिन वह अजनबी कोई साधारण इंसान नहीं था — वह था मृत्युंजय राण...

Total Chapters (4)

Page 1 of 1

  • 1. Married To The Cruel Devil" - Chapter 1

    Words: 1121

    Estimated Reading Time: 7 min

    जयपुर रात का वक्त।

    सड़क पर एक रेड कलर की गाड़ी आगे बढ़ रही थी, ड्राइविंग सीट पर एक 25 साल की खुबसूरत लड़की जिसने ब्लैक कलर की साड़ी पहनी हुई थी, वो बैठी हुई थी, उसका पूरा ध्यान सड़क पर था, खुबसूरत चेहरे पर घबराहट, लिए हुए वो लड़की खुद से ही बोली," उफ्फ! कितनी देर हो गई है, घरवाले बहुत परिशान हो रहे होंगे, हे भगवान, ! बोल कर उसने गाड़ी की स्पीड थोड़ी बढ़ा दी, ।

    तभी उसकी बगल वाली सीट पर रखा, मोबाइल फोन बजने लगा, वो लड़की उस तरफ देख कर फोन को अपने हाथ में लेती है, तभी उसकी नज़र सामने सड़क पर गई, उसकी गाड़ी के ठीक सामने एक शख्स आ गया था, लड़की जल्दी से ब्रेक लगाती है तो, गाड़ी उस शख्स से टक्कराने से बच गई,

    लड़की ने गहरी सांस ली, और मन ही मन भगवान का धन्यवाद कर, जैसे ही सामने देखा तो, उसने पाया कि, वो शख्स जमीन पर गिर गया है, । ये देखकर वो लड़की जल्दी से गाड़ी से उतर कर, शख्स के पास गई, तो उसकी चीख निकल पड़ती है, । वो अपने मुंह पर बड़ी बड़ी आंखों से, जमीन पर पड़े उस शख्स को देख रही थी, जिसके कंधे पर गोली लगी थी, और उस ज़ख्म से खून पानी की तरह बह रहा था।

    लड़की जल्दी से अपने घुटनों के बल बैठ कर पूछती है," अ आप ठीक तो हैं ना,? चलिए उठिए मैं आपको हाॅस्पिटल ले कर चलती हूं, ।

    शख्स, जो जमीन पर पड़ा था, और जिसकी आंखें बंद थी, वो अचानक से अपनी आंखें खोल कर, उस लड़की को देखता है, जो बहुत घबराई हुई थी।

    कुछ देर तक उस लड़की को देखते हुए बोला," चली जाओ यहां से, वरना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा,। उस शख्स का ज़ख्म बहुत गहरा था, पर उसकी आवाज से लग रहा था कि, जैसे वो बिल्कुल ठीक है, ना चेहरे पर कोई शिकन, ना आवाज में कोई दर्द।


    वहीं पर उस शख्स की बात सुनकर, वो लड़की पहले तो हैरान हुई, फिर उसने थोड़े सख्त अंदाज में कहा," आप पागल हो क्या?" ऐसे कैसे चली जाऊं, इतना खून बह रहा है, देखिए ना, आप चुपचाप उठिए, और मेरे साथ हाॅस्पिटल चलिए, बोल कर, उसने उस शख्स का हाथ पकड़ा तो वो शख्स, पहले हाथ को फिर लड़की को घूरते हुए बोला," तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, ?' हाथ छोड़ो मेरा, मुझे किसी की भी मदद की जरूरत नहीं है,,,

    ये सुनकर लड़की कुछ पल के लिए सन्न रह गई। उसके हाथ उस शख्स के हाथ से छूटे नहीं थे, लेकिन उसकी आंखों में अब डर से ज़्यादा जिद थी।

    ,लड़की ने ठंडे लेकिन दृढ़ स्वर में कहा ," देखिए, आप चाहे जो भी हों, लेकिन इस वक्त आपकी हालत बहुत खराब हैअगर वक्त रहते इलाज नहीं मिला, तो आप जान भी गंवा सकते हैं। और रही बात छूने की, तो इंसानियत में शर्म की कोई जगह नहीं होती।"


    लड़की की ये बात सुनकर शख्स की आंखों में एक पल के लिए हैरानी झलकी। जैसे किसी ने उससे वो बात कह दी हो, जो वो सालों से सुनना चाहता था, पर खुद को उसकी इजाज़त नहीं देता था।

    पर अगले ही पल वो फिर सख्त हो गया। उसने धीमे लेकिन कड़े लहज़े में कहा, "तुम समझ नहीं रही हो," । "जिस दुनिया से मैं आया हूं, वहां किसी पर भरोसा करना जान देने जैसा होता है। और तुम... तुम कुछ नहीं जानती।"

    लड़की अब तक उसका चेहरा ठीक से देख चुकी थी। 28 के करीब उम्र, चौड़ी जबड़े वाली मूंछ-दाढ़ी से भरी कठोर शक्ल, पर नीली आंखें — ऐसी आंखें जैसे समंदर के अंदर कोई तूफान छिपा हो।


    ठीक है, अगर आप मेरी मदद नहीं लेना चाहते, तो मैं पुलिस को फोन कर देती हूं," उसने अपने पर्स से फोन निकालते हुए कहा।

    उसकी ये बात सुनकर शख्स झटपट बोल पड़ा," पुलिस! पुलिस नहीं।" पुलिस को मत बताना वरना ठीक नहीं होगा,।

    लड़की ने गौर किया, उसकी हथेली अब कांप रही थी, और खून अब ज़्यादा बहने लगा था।

    ये सुनकर लड़की ने दृढ़ता से कहा, "तो फिर चलिए, मेरी गाड़ी में बैठिए। एक शब्द और नहीं सुनूंगी," और उसका दूसरा हाथ पकड़ कर सहारा देने लगी।

    इस बार शख्स ने विरोध नहीं किया। शायद कमजोरी जीत गई थी, या फिर पहली बार किसी की आंखों में उसे सच्ची फिक्र दिखी थी।

    लड़की ने जैसे-तैसे उसे कार की पिछली सीट पर लिटाया। गाड़ी का एसी बंद कर, हीटर ऑन किया और मोबाइल से नजदीकी प्राइवेट क्लिनिक सर्च करने लगी।

    गाड़ी एक बार फिर चल पड़ी — इस बार सन्नाटे, रहस्य और खतरे को साथ लिए।


    लड़की ने कार ड्राइव करते हुए कहा ," वैसे मेरा नाम जानवी है, जानवी चव्हाण, आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं, वैसे लगी कैसे आपको?

    पर पीछे से कोई जवाब नहीं आया। शायद वो बेहोश हो चुका था। या शायद उस नाम को अपने भीतर बिठा रहा था।

    जवाब ना पाकर जानवी ने शीशे में एक बार उसकी आंखों को देखा जो सामने ही देख रही थी, उनमें कुछ भी नहीं था, ना दर्द और ना घबराहट, जानवी को अजीब लगा, ।

    कुछ देर बाद पीछे बैठा हुआ शख्स अपनी ठंडी आवाज में बोला," मैं किसी पर भरोसा नहीं कर सकता, खुद पर भी नहीं करता,

    उसकी बात सुनकर जानवी को अजीब लगा, वो कहती है," ये कैसी बात हुई, आप खुद पर भरोसा नहीं करते, ?"


    पर जानवी के इस सवाल पर वो शख्स कुछ भी नहीं कहता,। जानवी ने भी कुछ देर तक कुछ भी नहीं कहा, फिर उसने शीशे में देख कर धीरे से कहा," "मैं नहीं जानती आप कौन हैं, लेकिन एक बात जानती हूं — दर्द को छुपाना ताकत नहीं होता।"

    पर इस बार भी वो शख्स कुछ भी नहीं कहता, तो जानवी भी चुपचाप गाड़ी चलाने लगी।

    एक घंटे बाद,

    जानवी ने कार एकदम दरवाजे के पास रोकी। वो जल्दी से नीचे उतरी और रिसेप्शन पर भागी। कुछ ही पल में दो कम्पाउंडर स्ट्रेचर लेकर बाहर आए।

    पर शख्स स्ट्रेचर को पूरी तरह इग्नोर कर गाड़ी से उतरा, और लड़खड़ाते हुए कदमों से हाॅस्पिटल के अंदर चला गया। दो कम्पाउंडर और जानवी हैरान थे। जानवी भी उसके पीछे पीछे चली गई।


    एक वार्ड में, डॉ बेड बैठे हुए शख्स की पट्टी कर रहा था, । डॉ पट्टी करते हुए शख्स से बोला," शुक्र है कि, गोली छू कर निकली, वरना.. ये पुलिस केस है, आपको पुलिस को बताना चाहिए,,।

    ये सुनकर वो शख्स जो आराम से बैठा हुआ था, वो उस डाॅ को घूरते हुए बोला," डॉ साहब आपका काम है दवाई देना, राय देना नहीं,, अपना काम करिए आप, ।

    डॉ उस शख्स की बात सुनकर दंग रह गया, वो कुछ कहता नहीं है और चुपचाप अपना काम कर वार्ड से बाहर चला गया

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  • 2. Married To The Cruel Devil" - Chapter 2

    Words: 1025

    Estimated Reading Time: 7 min

    डॉ के जाने के बाद वो शख्स अपना ज़ख्म देखता है, जिसपर अब पट्टी थी, । वो ज़ख्म देख रहा था, तभी, वार्ड में जानवी आकर, कहती है," हो गई पट्टी? चलो अच्छा हुआ, सुनो मैंने बिल भर दिया है, आप अपनी फैमिली को काॅल करके बुला लिजिए... वो आपको घर ले जाएंगे,?

    मैं खुद का ख्याल रख सकता हूं,?" तुम बताओ तुम्हें क्या चाहिए,?" कहते हुए शख्स ने अपने पैंट की जेब से Wallet निकाल कर खोला तो Wallet एक दम खाली था, ये देखकर जानवी की हंसी छूट गई, ।

    शख्स उसे घूरता है, तो जानवी ने मुस्कुराते हुए कहा," ये तो खाली है, कोई बात नहीं, आप ना... जानवी ने अपने purse से पांच सौ का नोट निकाल कर उस शख्स की तरफ बढ़ाया," ये रख लिजिए, आपके काम आएंगे, ।

    शख्स ने जानवी को देखा फिर उस पांच सौ के नोट को, शख्स कुछ पल तक उस पांच सौ के नोट को घूरता रहा। उसके चेहरे पर कोई भावना नहीं थी — न गुस्सा, न शर्म, । कुछ देर बाद वो शख्स बोला," "ये मेरी आदत में नहीं कि मैं किसी से पैसे लूं..."

    ये सुनकर जानवी ने भौंहें चढ़ाईं, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली, "तो फिर क्या आपकी आदत में ये है कि आप गोली खाकर सड़क पर गिरे रहें, और अजनबी आपकी जान बचाएं?"

    इस पर शख्स के होंठ ज़रा से हिले, जैसे जवाब देना चाहता हो, मगर उसने कुछ नहीं कहा।

    जानवी ने उसके बेड के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, "सुनिए, आप बड़े अकड़ू किस्म के इंसान लगते हैं... लेकिन दिल से शायद उतने ही टूटे हुए भी। अब ये नाटक बंद कीजिए और कम से कम अपना नाम तो बताइए।"


    ये सवाल सुनकर शख्स ने गहरी सांस ली। फिर कुछ देर की चुप्पी के बाद वो धीरे से बोला," मृत्युंजय.. राणा।

    ये सुनकर जानवी ने मुस्कुराते हुए कहा," ओके राणा जी, आप ये पैसे रख लिजिए, घर जाने में काम आएंगे, आपके, बोल कर जानवी ने नोट को मृत्युंजय के हाथ में पकड़ा दिया।

    वैसे आपने बताया नहीं कि, आपको गोली कैसे लगी, ?" आप पुलिस वाले हो क्या?" जानवी ने उस शख्स से पूछा, ।

    शख्स उसके इस सवाल पर हल्के से मुस्कुरा कर बोला," ना पुलिस वाला नहीं पुलिस वालों का दुश्मन,

    जानवी को बात पल्ले नहीं पड़ी, वो कंफ्यूज़न से पूछती है," क्या मतलब है आपका?"

    मतलब जान कर क्या करोगी, ये तुम्हारे मतलब की बात नहीं है, तो अपने मतलब से मतलब रखो, वरना आगे किसी से मतलब नहीं रख पाओगी .. जानवी के सवाल पर मृत्युंजय ने कहा,

    वहीं पर जानवी तो उलझ चुकी थी, उसे मृत्युंजय की बात का मतलब समझ में नहीं आ रहा था,

    कुछ देर तक मृत्युंजय को देखने के बाद जानवी बेबाकी से बोली,"मतलब की बात है या नहीं, ये तय करने का हक मुझे है।


    ये सुनकर मृत्युंजय ने एक भौंह उचकाते हुए कहा," "तुम बहुत सवाल पूछती हो ... ये आदत एक दिन तुम्हें किसी मुश्किल में डाल देगी।"


    जिसके जवाब में जानवी तुरंत बोल पड़ी "और आप बहुत जवाब छुपाते हो राणा जी। ये आदत एक दिन आपको अकेला कर देगी।"


    वो तो मैं पहले से हूं, मृत्युंजय ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा।

    तो जानवी के चेहरे की मुस्कान धीरे धीरे गायब हो गई। जानवी कुछ कहती तभी मृत्युंजय बोला," मोबाइल मिल सकता है तुम्हारा,?

    सवाल सुनकर उसने थोड़ी देर तक उसे घूरा — जैसे परख रही हो कि ये सवाल महज़ एक फोन कॉल के लिए है या इसके पीछे कोई और वजह छुपी है। फिर बिना कुछ कहे उसने अपना मोबाइल बैग से निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दिया।

    "लो," उसने सधी हुई आवाज़ में कहा, "लेकिन किसी गलत नंबर पर कॉल करोगे, तो फोन जब्त कर लूंगी।"

    मृत्युंजय ने हल्की मुस्कान के साथ उसका फोन लिया। फिर किसी को काॅल किया, जानवी एक टक उसे देख रही थी।

    कुछ देर बाद मृत्युंजय आर्डर देते हुए बोला," हम्म जिंदा हूं, वैदेही हाॅस्पिटल में हूं, जल्दी आओ, । इतना कहकर उसने फोन डिस्कनेक्ट किया, फिर मोबाइल को जानवी की तरफ बढ़ाते हुए बोला," ये लो तुम्हारा फोन ,

    जानवी ने अपना फोन लेकर बैग में रखा, फिर कुर्सी से उठ कर बोली," अच्छा अपना ख्याल रखिएगा, मैं चलती हूं, बाय, कह कर जानवी वार्ड से बाहर चली गई।
    अगली सुबह।

    अभी ना जाओ छोड़ कर कि.... दिल अभी भरा ही नहीं... अभी ना जाओ छोड़ कर कि.... दिल अभी भरा ही नहीं..., एक आदमी बड़े से गार्डन में खड़ा पौधों को पानी देते हुए गुनगुना रहा था , उम्र 40 साल, पर वो बहुत फिट था, इसलिए वो गुड लुकिंग था, काले बालों के बीच कुछ सफेद बाल, मूंछें, और डस्की स्किन, ब्लैक टी शर्ट और ब्राउन पैंट,। उसके पीछे एक बहुत बड़ा सफेद बंगला था, जिसके चप्पे-चप्पे पर बंदूक पकड़े हुए गार्ड्स पहरा दे रहे थे।

    वो गुनगुनाते हुए पानी दे ही रहा था, तभी उसके पीछे एक शख्स आकर खड़ा हो गया, जिसके चेहरे पर डर था, । वो कहने की कोशिश करता है," म... मालिक एक बुरी खबर है?

    ये सुनकर वो आदमी गुनगुनाना बंद करता है, पर उसके हाथ नहीं रूकते, वो पौधों को पानी देते हुए अपनी भारी आवाज में पूछता है," क्या...?", बुरी ख़बर है?"

    शख्स सवाल सुनकर थोड़ी देर चुप रहता है फिर डरते हुए बोला," म मालिक... वो बच गया,,

    जो आदमी पानी दे रहा था, उसने गर्दन घुमाकर पीछे उस आदमी को देखा, फिर सामने देखते हुए लगभग फुसफुसाते हुए कहता है," "बच गया...?" उसकी आवाज़ में एक बहुत हल्की हँसी थी — ठंडी, खोखली और खतरनाक। पता था, इतनी आसानी से नहीं मरेगा वो आदमी, ना! पर बचा है तो, वो चुप तो नहीं बैठेगा,?"

    वो आदमी इतना ही कह पाया था तभी वहां पर एक और शख्स भागते हुए आया, वो शख्स हांफते हुए बोला," म मालिक, वो व विवान बाबा कल रात से घर नहीं आए, उनका फोन भी नहीं लग रहा है, और उनके साथ जो गार्ड्स थे, उनका भी कुछ अता पता नहीं है, ।

    जैसे ही ब्लैक टी शर्ट वाले ने ये बात सुनी तो, उसके हाथ से पानी का पाइप छूट कर नीचे गिर गया था, और उसकी आंखें हैरानी से बड़ी बड़ी हो गई थी।

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  • 3. Married To The Cruel Devil" - Chapter 3

    Words: 1022

    Estimated Reading Time: 7 min

    दूसरी तरफ, शहर के बाहर बना एक संगमरमर से बना एक बहुत ही बड़ा और खुबसूरत बंगला, हरे भरे बगीचे के बीच में खड़ा वो बंगला बहुत ही बड़ा और खुबसूरत था, जो किसी का भी ध्यान अपनी तरफ खींच ले, । गेट पर दो हट्टे कट्टे गार्ड्स हाथों में बंदूक पकड़े खड़े थे। वहीं पर बंगले के अंदर एक बड़े से,hall में सोफे पर बैठा हुआ था, एक आदमी, जो और कोई नहीं बल्कि मृत्युंजय था,। उसका एक हाथ ग्रे कलर के, (arm sling में था, और दूसरे हाथ में वो पांच सौ का नोट था, जो जानवी ने उसे दिया था । मृत्युंजय एक टक उस नोट को देख रहा था, और उसके आंखों के सामने जानवी का चेहरा आ रहा था,।

    मृत्युंजय नोट को देख ही रहा था, तभी उसके पास एक आदमी आया, उम्र,29 साल, दिखने में गुड लुकिंग, ब्लैक कोट पैंट और टाई,।

    वो आदमी अपने हाथ में पकड़े हुए काॅफी मग को मृत्युंजय के सामने रख कर बोला," सर?" आपकी काॅफी,,

    मृत्युंजय नोट उसकी तरफ बढ़ा देता है, ये देखकर आदमी के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो जल्दी से नोट पकड़ कर," थैंक्यू सर थैंक्यू सो मच... आप बहुत अच्छे हैं.. चलो आज का डिनर का इंतजाम हो... हो....

    वो आदमी आगे कहता तभी उसने देखा कि मृत्युंजय उसे ही खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था, ये देखकर आदमी के चेहरे की मुस्कान पलभर में गायब हो गई,

    मृत्युंजय उस आदमी को घूरते हुए बोला," इसे फ्रेम करवाना है,, अगर ये नोट खोया, या फिर इसे हल्की सी भी खरोंच आई तो,, तुझे दो हिस्सों में फाड़ कर, उतर दक्षिण में फेंक दूंगा, समझे ना, ?"

    जैसे ही उस आदमी ने ये सुना तो वो चौंक गया, उसने मृत्युंजय को देखा फिर अपने हाथ में पकड़े उस नोट को, वो आदमी जबरदस्ती मुस्कुराते हुए बोला," स... सर इस नोट को फ्रेम क्यों करना है?" पिज़्ज़ा मंगवा लेते हैं ना सर, मस्त...

    मृत्युंजय अब उस आदमी को और भी बुरी तरह से घूरने लगा, था तो आदमी चुप हो गया, था, और नोट को देखने लगा, पर गलती से नोट उसके हाथ से नीचे गिर जाता है, ।

    जैसे ही नोट ज़मीन पर गिरा, पूरे हॉल का माहौल एकदम सन्नाटे में बदल गया। टाइल्स पर गिरते उस नोट की हल्की सी आवाज़ भी मृत्युंजय को किसी धमाके जैसी लगी। उसका चेहरा एकदम सख्त हो गया, नीली आँखों में तूफ़ान उमड़ आया। सामने खड़ा आदमी — जिसका जिसे सब शुक्ला के नाम से जानते थे — काँप उठा। उसने झुककर झटपट नोट उठाया, लेकिन अब तक देर हो चुकी थी।

    मृत्युंजय सोफे से उठा और शुक्ला के पास आया, उसका एक हाथ अभी भी स्लिंग में था, लेकिन उसकी चाल में वही पुराना दबदबा था। शुक्ला ने कांपते हुए हाथ से नोट उसकी ओर बढ़ाया और बोला, "स... सर, मैं माफ़ी चाहता हूँ... हाथ से फिसल गया, मेरी गलती थी।"

    मृत्युंजय ने धीरे से वो नोट पकड़ा, उसे साफ़ किया, और एक पल को फिर से उसे देखने लगा — उसकी आँखें उस कागज़ के टुकड़े में जैसे जानवी की झलक ढूंढ रही थीं। फिर वो बिना कुछ कहे वापस अपनी जगह बैठ गया ।

    नील को बुलाओ," मृत्युंजय की आवाज़ में वो बर्फीली ठंडक थी जिससे शुक्ला का गला सूख गया।

    "अभी... अभी बुलाता हूँ, सर," शुक्ला ने जल्दी से फोन निकाला और फिर किसी को काॅल किया, ।

    कुछ ही पलों में नील — करीब 40-45 साल का गंभीर चेहरा और डार्क ब्लू यूनिफॉर्म पहने एक व्यक्ति — हॉल में दाखिल हुआ। उसने आते ही हल्के से झुककर मृत्युंजय को सलाम किया।

    "जी सर?"

    इस नोट को फ्रेम करवाओ, और नहीं चाहता कि इसके ऊपर धूल का एक कण भी लगे। इसे मेरी स्टडी रूम की दीवार पर उस जगह लगाना, जहाँ सुबह सबसे पहले नज़र पड़े," मृत्युंजय ने शांत लेकिन सख्त लहजे में कहा।

    "जी सर," नील ने नोट सावधानी से लिया, जैसे वो कोई खजाना हो।

    शुक्ला अब भी वहीं खड़ा था, सोच में डूबा — एक मामूली नोट के लिए इतना सख्त रवैया? उसे समझ नहीं आया, लेकिन वो जानता था कि मृत्युंजय हर बात यूं ही नहीं करता। कुछ तो राज़ है इस नोट में... कोई खास याद, कोई गहरी भावना।

    नील नोट लेकर चला गया था, अब मृत्युंजय अब धीरे-धीरे खिड़की की तरफ गया, जहां से बंगले का पूरा बागीचा दिखता था। उसने बाहर देखा — हवा में हल्की ठंडक थी, फूलों की खुशबू थी, पर उसकी नीली आँखों में अब भी जानवी का अक्स तैर रहा था।


    शुक्ला जल्दी से मग लेकर मृत्युंजय के पास जाता है, मृत्युंजय ने हाथ बढ़ाकर शुक्ला से मग ले लिया,

    एक सिप लिया, फिर बिना शुक्ला की तरफ देखकर बोला," सबसे अच्छे स्केच आर्टिस्ट को बुलाओ, मुझे किसी का स्केच बनाना है।

    किसका सर ?" शुक्ला ने कंफ्यूज़ हो कर सवाल किया।

    मृत्युंजय शुक्ला का सवाल सुनकर उसे घूरते हुए बोला," तुम्हें मैं सैलरी सवाल पूछने के लिए देता हूं, ?"

    इस पर शुक्ला को तुरंत अपनी गलती का एहसास हो गया। वो थोड़ा सकपकाया, फिर सिर झुकाते हुए बोला,"Sorry सर, अभी कॉल करता हूं।" और फिर तेज़ी से मोबाइल निकाल कर कॉल डायल करने लगा।

    मृत्युंजय —वापस कांच की उस दीवार की तरफ देखने लगा। बाहर फैली हरियाली, नीला आसमान और दूर तक फैला वो बगीचा… पर उसकी आंखें जैसे किसी और ही जगह टिकी थीं, किसी और ही वक़्त में।

    मृत्युंजय काॅफी पीते हुए अपने मन में बोला," तुम्हारी आंखें... तुम्हारी मुस्कान... तुम्हारा चेहरा मैं भूल नहीं सका तुम्हें..." मैं किसी भी हालत में तुम्हें ढूंढ लूंगा, चाहे तुम जहां कहीं पर भी हो।

    कुछ देर बाद शुक्ला फोन अपनी जेब में रख कर बोला," सर, स्केच आर्टिस्ट दो घंटे में पहुंच जाएगा ।


    शुक्ला की बात सुनकर मृत्युंजय," hmmm..... जब तक वो आता है तब तक अपना दूसरा काम निपटा देते हैं,। चलो जरा सा?" कह वो मृत्युंजय तेज कदमों से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।

    शुक्ला अब भी अपनी जगह पर खड़ा था, वो बिचारा मुंह बना कर कहता है," क्या है यार, मेरी गर्लफ्रेंड वेट कर रही है, इसकी तो ऐसी की तैसी...

    शुक्ला.…..

    yes सर आया .. शुक्ला भी जल्दी जल्दी सीढियां चढ़ कर ऊपर चला गया।

    चैप्टर कैसा लगा कमेंट करके जरूर बतायें प्लीज़,

  • 4. Married To The Cruel Devil" - Chapter 4

    Words: 1150

    Estimated Reading Time: 7 min

    अब आगे……

    मृत्युंजय अपने कमरे में पहुंचा, जिसकी थीम ब्लैक एंड व्हाइट थी। कमरे के बीच में एक ब्लैक कलर का किंग साइज मखमली बेड, और वाइट सोफा सेट। बेड के बगल में एक बड़ी सी बालकनी जिसमें लाल और काले गुलाब के पोधे रखे हुए थे। और एक झूला, लगाया गया था। ये बेडरूम था मृत्युंजय का। वो बड़े से कमरे को अच्छी तरह से देखता है, फिर wardrobe खोल कर उसमें से अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चला गया।

    लगभग एक घंटे बाद मृत्युंजय बाथरूम से बाहर निकला तो अब उसके बदन पर काले रंग का मखमली का रॉब था। उसके भीगे बालों से टपकती बूंदें उसकी आंखों के नीचे की चमक को और गहरा कर रही थीं। उसने वॉशरूम के दरवाज़े पर खड़े होकर एक गहरी सांस ली—मानो अंदर की थकान और गुस्से को वहीं छोड़ रहा हो।

    कमरे में लौटते ही उसकी नजर उस झूले की तरफ गई जो बालकनी में हल्के-हल्के हिल रहा था। बाहर से आती ठंडी हवा और गुलाबों की खुशबू कमरे के माहौल को और रहस्यमयी बना रही थी।

    वो बालकनी के पास गया, बालकनी की रेलिंग पर हाथ रख कर दूर आकाश की तरफ देखा। सूरज ढलने को था, और पूरा आसमान नारंगी और लाल रंग में रंगा हुआ था। वो कुछ देर तक चुपचाप उस नज़ारे को देखता रहा।

    तभी कमरे का दरवाज़ा हल्के से खटका। मृत्युंजय बोला,"आ जाओ शुक्ला।"

    शुक्ला अंदर आया, फिर बालकनी में जाकर बोला," सर वो स्केच आर्टिस्ट आ गया है, स्टडी रूम में है?' आप चलिए, या फिर उसे लेकर यहीं आऊं,?"

    मृत्युंजय ने शुक्ला की बात सुनकर एक पल को कुछ नहीं कहा। उसकी आंखें अब भी दूर आसमान में उलझी हुई थीं । फिर उसने धीरे से गर्दन घुमाई और शुक्ला को देखते हुए बोला, "उसे यहीं ले आओ… ।

    ये सुनकर मयंक सर हिला कर कहता है, "जी, सर," इतना कहकर शुक्ला तुरंत पलटा और बाहर चला गया।

    शुक्ला के जाने के बाद उसने भी कपड़े पहने और अपने बालों को सुखा कर सेट किया, । जब तक मृत्युंजय पूरी तरह से रेडी हुआ, तब तक शुक्ला भी अपने साथ उस स्केच आर्टिस्ट को लेकर आ गया। एक दुबला-पतला, लगभग तीस-पैंतीस का आदमी था। उसके हाथ में एक स्केचबुक और पेंसिलों का छोटा बॉक्स था। मृत्युंजय ने उसकी ओर देखा, फिर सिर के इशारे से उसे बालकनी के पास वाली कुर्सी पर बैठने को कहा।


    स्केच आर्टिस्ट जाकर कुर्सी पर बैठ चुका था, और मृत्युंजय भी उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ चुका था। नाम क्या है तुम्हारा?" मृत्युंजय ने उस स्केच आर्टिस्ट को देख कर पूछा।

    सवाल सुनकर स्केच आर्टिस्ट ने जवाब देते हुए कहा," साहिल, सर!

    मृत्युंजय ने अपनी उंगलियों को आपस में फंसाते हुए साहिल से कहा," मेरा नाम मृत्युंजय है, साहिल… जो चेहरा मैं तुम्हें बताने वाला हूं, उसे बनाने में कोई गलती मत करना। ये सिर्फ एक स्केच नहीं है । बल्की मेरी पूरी जिंदगी है। समझे ना?

    मृत्युंजय की बात सुनकर साहिल ने गंभीरता से सिर हिलाया और पेंसिल थाम ली।

    साहिल ने उसे देख कर इशारा किया तो मृत्युंजय ने अपनी आंखें बंद कर लीं, और धीरे-धीरे उस चेहरे का वर्णन करने लगा ।‌ जैसे-जैसे मृत्युंजय बोलता गया, साहिल की उंगलियां तेज़ी से चलने लगीं।

    कुछ देर बाद साहिल ने कहा, "सर… हो गया। आप देखना चाहेंगे?"

    साहिल की बात सुनकर मृऊ ने अपनी आंखें खोली, और साहिल को देखा। मृत्युंजय खड़ा हुआ, फिर साहिल की तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए बोला," दिखाओ मुझे, ।

    साहिल ने स्केच बुक, मृत्युंजय को दे दी, वीर ने स्केच बुक ली, फिर उसमें देखा, । मृत्युंजय के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई, वो स्केच बुक में देखते हुए बोला," शुक्ला shoot it ,,.


    साहिल की आंखें हैरानी से चौड़ी हो जाती हैं, वो कुछ समझ पाता, उसकी दर्दनाक चीख पूरे कमरे में गूंज उठी, और वो निढाल जमीन पर गिर गया।

    मृत्युंजय की नजरें अब भी उसी स्केच बुक में गढ़ी थी, मृत्युंजय कमरे की तरफ बढ़ते हुए बोला," लाश हटाओ,।

    शुक्ला ने किसी को काॅल किया, कुछ देर बाद दो आदमी आकर साहिल की लाश को वहां से ले गए, एक आदमी पोछा मार कर बालकनी साफ करता है।

    रात के आठ बजे।

    मृत्युंजय अपने कमरे में बैठा हुआ था। और उसके सामने शुक्ला खड़ा था। वीर ने मयंक को स्केच दिखा कर कहा," मयंक मुझे ये लड़की चाहिए, किसी भी कीमत पर, अकाश पताल एक करो मुझे ये लड़की ढूंढ कर दो, ।

    शुक्ला ने उसकी बात सुनकर स्केच को देखा, फिर मृत्युंजय को देख कर बोला," इसका नाम क्या है? और ये रहती कहां हैं?"

    शुक्ला के सवाल पर मृत्युंजय ने उसे सरसरी निगाह से देखा, फिर कंधे उचकाते हुए बोला," जानवी चव्हाण, ये लड़की वही है जिसने कल रात मेरी मदद की थी, मुझे सहारा दिया था,।

    शुक्ला ने ये सुना और फिर स्केच को देख कर बोला," क्यों की,,, आई मीन सर, आजकल भले लोग भी होते हैं, वरना जब से आपके साथ हूं अच्छाई से भरोसा ही उठ गया था. ।।।

    तभी शुक्ला ने देखा कि मृत्युंजय उसे ही घूर रहा था, ये देखकर शुक्ला ने सिर झुकाकर कहा," साॅरी सर....

    जुबान कुछ ज्यादा ही लंबी नहीं है इस बार तेरी..?" लपेट इसको वरना काट कर फेंक दूंगा, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी गूंगे पर्सनल असिस्टेंट को अपने साथ रखने में...

    जैसे ही शुक्ला ने ये सुना तो वो अपने मुंह पर हाथ रख लेता है, फिर आंखें बड़ी बड़ी कर मृत्युंजय को देखने लगा, ।

    मृत्युंजय की धमकी सुनकर शुक्ला अपने मुंह से बिना हाथ हटाए बोला," न नहीं सर, मैं लपेट कर अंदर रखता हूं, और आपके लिए लड़की ढूंढता हूं, अभी आता हूं, कह शुक्ला वहां से नौ दो ग्यारह हो गया, ।

    अगला दिन।

    कल रात बारिश आई थी, चारों तरफ कोहरा छाया हुआ था। हल्की हल्की धूप निकली हुई थी, पर उससे ज्यादा ठंड थी। एक मंदिर के बाहर एक ऑटो रुकी, और उसमें से एक खूबसूरत सी लड़की हाथों में पूजा की थाली लेकर बाहर आई। उस लड़की ने पर्पल कलर का सिंपल सा अनारकली सूट पहना हुआ था। खूबसूरत बालों को ढीला बांधा हुआ था और एक सफेद सोल ओढ़ी हुई थी। ये लड़की और कोई नहीं बल्कि जानवी थी। ठंड से जानवी के गोरे गोरे गाल हल्के लाल हो चुके थे, और उसकी नाक भी। उसने ऑटो वाले को पैसे देकर उसे वहां से रवाना किया, फिर मंदिर की तरफ देखा। वो पास की दुकान से कुछ सामान लेती है, फिर मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगी। जानवी मंदिर में प्रवेश करती है। जानवी को देखकर पंडित जी मुस्कुराते हुए बोले, "अरे जानवी बेटा, आ गई तुम, कैसी हो बेटा? और सुना है कि तुम्हारा रिश्ता पक्का हो गया है। बहुत बहुत बधाई हो तुम्हें!"

    जानवी ने पहले भगवान के सामने अपना सिर झुकाया, फिर पंडित जी को पूजा की थाली देकर बोली, "मैं एकदम ठीक हूं पंडित जी, भगवान की कृपा से। और बधाई के लिए धन्यवाद," कहकर हल्के से मुस्कुरा दी।

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