❤️ 𝐂𝐇𝐀𝐇𝐀𝐓 ❤️ ✨ The Unbreakable Love ✨ कभी-कभी मोहब्बत इतनी खामोशी से दिल में उतरती है कि हमें खुद भी पता नहीं चलता... पर जब अहसास होता है, तब तक वो मोहब्बत हमारी रूह में घर कर चुकी होती है।... ❤️ 𝐂𝐇𝐀𝐇𝐀𝐓 ❤️ ✨ The Unbreakable Love ✨ कभी-कभी मोहब्बत इतनी खामोशी से दिल में उतरती है कि हमें खुद भी पता नहीं चलता... पर जब अहसास होता है, तब तक वो मोहब्बत हमारी रूह में घर कर चुकी होती है। तपिश ठाकुर — एक बेफिक्र, मस्तमौला और ज़िंदगी को हल्के अंदाज़ में जीने वाला लड़का, जिसे लोग गैरज़िम्मेदार और नकारा समझते हैं। लेकिन उस चेहरे के पीछे छुपी गहराई, जुनून और एक बेपनाह इश्क की दास्तां... किसी को मालूम नहीं। एक अनजान सी लड़की से पहली नजर में हुई मोहब्बत, उसे दीवाना बना गई। वो उसे ढूंढता रहा, हर राह, हर चेहरा टटोलता रहा... लेकिन नाकामी ही उसके हिस्से आई। और फिर एक दिन, जब किस्मत ने उसके साथ एक बेरहम खेल खेला — उसे पता चला कि वो लड़की कोई और नहीं, बल्कि उसके अपने भाई रेयांश ठाकुर, जो ठाकुर कॉरपोरेशन का भावी सीईओ है, उसकी मंगेतर है। अब सवाल ये है — क्या तपिश अपने इश्क को पाने के लिए अपने ही भाई के खिलाफ खड़ा होगा? क्या उसका जुनून मोहब्बत की हर हद पार कर जाएगा? या फिर वो खुद को उस मोहब्बत से जुदा कर देगा जो उसकी ज़िंदगी बन चुकी है? क्योंकि कभी-कभी इश्क सिर्फ मोहब्बत नहीं होता — वो एक चाहत बन जाता है... जो ना पूरी होती है, ना खत्म... जानने के लिए पढ़ते रहिए — ❤️ 𝐂𝐇𝐀𝐇𝐀𝐓 ❤️ ✨ The Unbreakable Love ✨
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“मेरी एक नई स्टोरी है जिसमें प्यार, तकरार, नफरत, ग़ुस्सा, जुनून, ड्रामा, परिवार—सब कुछ है। ये पूरी तरह काल्पनिक है, इसलिए इसे उसी नजर से देखिएगा। और अगर आपको मेरी कहानी पसंद आए, तो रिव्यू और कमेंट देना न भूलिएगा।”
“चलिए अब चलते हैं अपनी कहानी की तरफ…”
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मुंबई के ठाणे और नवी मुंबई के बीच बसा एक खूबसूरत, मीडियम साइज का घर—जो भले ही एक मंज़िला था, पर बाहर से देखने पर किसी आलीशान बंगले से कम नहीं लगता था।
बाहर लोहे का मजबूत गेट और उसके आगे फैला हुआ एक बड़ा-सा मैदान, जिसमें पेड़-पौधों की भरमार थी। ज्यादातर पेड़ फलों वाले थे, और मैदान के चारों ओर फूलों के रंग-बिरंगे गमले और शो-प्लांट्स लगे थे।
जिसने भी इस घर को देखा, वही कह उठा, "यह घर सुकून से भरा है।"
मगर सुकून सिर्फ दीवारों में नहीं था, वो तो यहां रहने वालों के बीच बसे प्यार और मोहब्बत में था।
यह था ‘सपनों का घर’, जिसे अपने खून-पसीने से एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर रामेश्वर दयाल अग्निहोत्री ने खड़ा किया था।
अपनी मेहनत की कमाई और जीवन की पूंजी लगाकर उन्होंने यह घर अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। बाद में उनके बेटों ने भी अपनी मेहनत से इस घर को और खास बना दिया।
जब कोई इंसान एक निम्न वर्ग से उठकर खड़ा होता है और अपनी कमाई से एक घर बनाता है—तो वो सिर्फ ईंट-पत्थरों का नहीं होता, उसमें सपनों और जज़्बातों की नींव जुड़ी होती है। ऐसा ही कुछ था यह घर भी।
पर आज इस घर में कुछ अलग ही हलचल थी। अंदर एक 65 साल की बुजुर्ग महिला, जिनके चेहरे पर हमेशा एक शांत चमक होती थी,आज वह थोड़ी परेशान और झुंझलाई हुई लग रही थीं।
वो थीं रानी अग्निहोत्री, रामेश्वर जी की पत्नी।
वो बार-बार ज़ोर से आवाज़ लगाकर पूछ रही थीं, ""प्रिया, तेरी छोटी मालकिन का किचन वाला सारा काम हुआ या नहीं?"
"तूने अभी तक सोफे के कवर क्यों नहीं बदले? पता है ना, मेहमानों के आने का वक्त हो गया है!"
फूलों की माला हाथ में पकड़े प्रिया झुंझलाते हुए बोली, "दादी! आप ना रोज़-रोज़ की चीं-चपड़ मत किया करो। सुबह से एक मिनट भी आराम नहीं मिला है। मैं एक ही इंसान हूं!"
तभी प्रिया, जो घर की मेड कम बेटी जैसी थी, हंसते हुए बोली।
"तभी दादी जी बोली, एक नंबर की कामचोर है यह लड़की!"
"यहां तेरी दीदी को देखने वाले लोग आ रहे हैं, और तू कामचोरी कर रही है!"
रानी जी फिर गरजती हैं,"जा संजीव को बोल, बाहर की तैयारी करवा दे!"
प्रिया झल्लाते हुए, ""फिर से एक नया काम! अब संजीव को भी मैं ही बुलाऊं?"
बड़बड़ाते हुए वो चली जाती है।
रामेश्वर जी पास आते हैं और मुस्कुराकर कहते हैं, "अरे भाग्यवान, थोड़ा आराम कर लो। क्यों खामाखा अपना बीपी बढ़ा रही हो?"
रानी जी तुरंत बोलती हैं,"मैं चिंता ना करूं तो घर का कोई काम ठीक से हो भी तो कैसे!"
तभी लगभग 42 साल के एक आदमी, राम, जो उनके छोटे बेटे थे, अंदर आते हैं और सोफे पर बैठते हुए कहते हैं,"मां, आप इतनी परेशान क्यों लग रही हैं? हमारी बेटी की शादी हो रही है या कोई जंग? किसी चीज की कोई कमी नहीं रहने देंगे हम!"
रामेश्वर जी हंसते हुए कहते हैं, "अब तू ही समझा अपनी मां को, मैं तो समझाते-समझाते थक गया हूं। और वैसे भी रजत बहुत खुले विचारों वाला लड़का है, वह इन सब बातों पर ध्यान नहीं देगा।"
रानी जी गंभीर स्वर में कहती हैं, "समय के साथ लोग बदल जाते हैं। जब अपने ही अपने नहीं रहते, तो परायों पर कैसे यकीन करें? मैं नहीं चाहती कि हमारी बेटी को किसी तरह की कमी महसूस हो।"
किचन के दरवाज़े पर खड़ी एक औरत यह सब सुन रही थी। वो थी कांति, राम की पत्नी।
उसकी आंखों में नमी थी, जो शांति (उसकी जेठानी) ने तुरंत भांप ली।
शांति बोली,"क्या हुआ कांति? आंखों में आंसू क्यों हैं?"
कांति हल्के स्वर में बोली,"क्या बताऊं जीजी, बच्चों को बड़ा होते देर ही कहां लगती है। पढ़ाई के लिए दूर चली गई थी, उम्मीद थी कि पढ़ाई के बाद हमारे साथ रहेगी, पर अब तो शादी की बात चल रही है..."
शांति मुस्कुराते हुए कहती है, "अरे पगली, अभी कौन-सी शादी हो रही है! और ऐसा रिश्ता मिलना भी तो नसीब की बात है।"
"बेटियां जब पैदा होती हैं, तो मांओं के मन में उनके भविष्य की चिंता शुरू हो जाती है। हम दिन-रात उनके लिए जोड़ते हैं, और जब कोई उन्हें सच्चे प्यार और इज्ज़त से अपनाने वाला मिल जाए, तो वो हमारी जीत होती है।"
कांति की आंखों में थोड़ी तसल्ली झलकने लगी थी।
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उसी घर के एक कमरे में एक लड़की खिड़की के पास खड़ी थी।
बाहर हल्की बारिश और हवा चल रही थी, जो उसके चेहरे को सहला रही थी।
उसकी आंखें बंद थीं, लेकिन उनमें एक दृश्य तैर रहा था... कोई ऐसा दृश्य जो उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था। उसकी आंखों में एक गहरा खालीपन था, और उसका चेहरा एक चुप्पी ओढ़े हुए था।
पीछे से एक लड़की आती है और आवाज़ देती है, "दी!"
वो लड़की आंखों की नमी छुपाते हुए मुस्कुराकर पीछे मुड़ी।
पीछे खड़ी लड़की बोली, "आप कितनी खूबसूरत लग रही हो, दी! इतने सिंपल कपड़ों में भी कोहिनूर जैसी चमक रही हो!"
वो लड़की मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी।
उसने पहना था हल्का पिंक रंग का लॉन्ग सूट, जिस पर उसी रंग का वर्क किया हुआ दुपट्टा एक साइड रखा था।
उसका रंग गोरा था और वो पिंक रंग उस पर बहुत फब रहा था।
खुले हुए सिल्की बाल कमर तक आ रहे थे।
माथे पर एक छोटी सी काली बिंदी, आंखों में गहरा काजल, होंठों पर हल्का पिंक लिप कलर, कानों में छोटी सी झुमकी, हाथ में मेटल की चूड़ियां और पैरों में पतली-पतली चांदी की पायल।
बस इतना ही श्रृंगार था, लेकिन वो किसी परी से कम नहीं लग रही थी।
ऐसी खूबसूरती देखकर अगर लड़कियां मोहित हो सकती हैं , तो फिर लड़कों का तो अंदाज़ा लगाना ही मुश्किल है।
अचानक ही एक लड़की की आवाज गूंजती है, ""अंजू, तुम कहां खो गई?"
ये सुनते ही अंजू, जो सामने खड़ी लड़की की खूबसूरती में खोई हुई थी, जैसे किसी ख्वाब से जागती है। होश में आते ही वो दौड़कर उस लड़की से लिपट जाती है और मुस्कुराते हुए कहती है, "चाहत दी, आप आज तो ग़ज़ब की सुंदर लग रही हो! मन कर रहा है आपके गालों को चूम लूं।"
वो झुककर चाहत के गालों की ओर बढ़ती है, लेकिन तभी वो लड़की, चाहत अग्निहोत्री, जो राम और कांति की बेटी थी — अंजू को हल्के से परे हटाते हुए शरारती मुस्कान के साथ कहती है, "बस करिए छोटी! हमें पता है हम कितने खूबसूरत हैं। आपके मुंह से तो ये तारीफ़ें हम न जाने कितनी बार सुन चुके हैं। लेकिन आप भी कम नहीं हो, मेरी प्यारी सी क्यूट डॉल।"
ये कहते हुए वह अंजू के गालों को खींच लेती है।
अंजू झेंपते हुए गाल सहलाती है और फिर माथा पीटते हुई बोली,"अरे! मैं यहां क्यों आई थी, ये तो मैं भूल ही गई। दी, ज़रा मेरे बाल बना दो ना। देखो ना, मैं कब से ट्राई कर रही हूं, पर कुछ बन ही नहीं रहा।"
चाहत मुस्कुरा देती है और प्यार से उसके बालों को कंघी से संवारने लगती है।
तभी दरवाज़े से आवाज़ आती है,"अच्छा! देखने वाले बड़ी बहन को आ रहे हैं और सजना हमारी छोटी को है?"
दोनों ने पलटकर देखा एक लड़की कमर पर हाथ रखे उन्हें घूर रही थी। वो चाहत की बचपन की इकलौती दोस्त संगीता थी, जो हमेशा की तरह नटखट और बिंदास थी। वह दोनों की ओर बढ़ते हुए कहती है,
"छोटी को तो मैं तैयार कर दूं, पर ! आपने अपना क्या हाल बना रखा है? ज़रा खुद को भी संवार लीजिए, आखिर ठाकुर खानदान की बहू बनने जा रही हो।"
उसकी बात सुनते ही चाहत का चेहरा फीका पड़ जाता है। वो धीमे स्वर में बोली,
"संगीता, तुम्हें नहीं लगता ये सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा है?"
संगीता ने अपनी दोस्त को गहराई से देखा, फिर मुस्कुराकर बोली, "हां मेरी जान, बहुत जल्दी हो रहा है। लेकिन सोच, तेरी शादी देश के टॉप बिज़नेस फैमिली में हो रही है। और वो लोग भी तो तुझसे रिश्ता जोड़ना चाहते हैं—इससे बड़ी बात क्या होगी?"
चाहत नाक सिकोड़ती हुई मुंह बनाकर बोली,
"हम तुमसे अपने दिल की बात कर रहे हैं, और तुम उस खानदान की तारीफ़ों के गीत गा रही हो?"
संगीता हँसते हुए बोली,"क्योंकि अब तेरे पास पीछे हटने का कोई चांस नहीं है मैडम! चल, अब ज़रा खुद को आईने में देख।"
वो चाहत को आईने के सामने खड़ा करती है, उसके बिखरे बालों को सहेजते हुए बोली,
"क्योंकि अब सब लोग बाहर आ चुके हैं।"
ये सुनकर चाहत की नज़र खुद पर जाती है, फिर संगीता की ओर... और न जाने क्यों, उसका दिल एक अजीब से अंदाज़ में तेज़ धड़कने लगता है।
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अब आगे —
बाहर से संजीव दौड़ते हुए आता है और दादी को आवाज़ लगाता है, "दादी! मेहमान आ चुके हैं!"
यह सुनते ही जो लोग हाल में बैठे हुए थे, सब एक साथ खड़े हो जाते हैं और स्वागत के लिए बाहर निकलते हैं।
बाहर बड़ी-बड़ी तीन से चार गाड़ियाँ रुकती हैं। गाड़ियों के रुकते ही अग्निहोत्री परिवार के सभी लोग दरवाजे पर आकर स्वागत के लिए खड़े हो जाते हैं। पीछे की गाड़ी से आठ -दस बॉडीगार्ड उतरते हैं जिनके हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें होती हैं। वे तेजी से बाकी गाड़ियों के दरवाज़े खोलते हैं।
तभी एक गाड़ी से एक बुज़ुर्ग व्यक्ति बाहर निकलते हैं, सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, हाथ में एक छड़ी थामे। उम्र के इस पड़ाव में भी उनके चेहरे पर एक अलग ही रौब और शान थी। उन्हें देखकर कोई भी बता सकता था कि वे कितने रुतबेदार व्यक्ति हैं। उनका नाम था रजत ठाकुर।
उनके पीछे एक और महिला उतरती हैं, जिनकी उम्र उनसे थोड़ी कम थी। दूसरी गाड़ी से एक और महिला उतरती हैं, उम्र करीब 55 साल, बनारसी साड़ी पहने, गले में मोतियों की माला, जूड़ा बाँधे, चेहरे पर गज़ब का तेज। उनके साथ एक और सज्जन भी उतरते हैं, लगभग 58 वर्ष के, लेकिन उम्र के बावजूद काफी सजीले दिखते थे।
यह दृश्य देखकर रामेश्वर जी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान फैल जाती है। वे रजत ठाकुर के पास जाकर गले मिलते हैं।
रजत ठाकुर भी खुलकर हँसते हुए उन्हें गले लगाते हैं।
तभी पीछे की गाड़ी से एक लड़की उतरती है उम्र करीब 21–22 साल। वो बगल में खड़े एक लड़के की तरफ देखकर कहती है,
"भैया, ये हिटलर इतना हँस कैसे रहे है?"
यह सुनकर रेयांश उसे एक कोल्ड लुक देता है, और वो चुप हो जाती है।
रामेश्वर जी रजत ठाकुर की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, "राज , ये है मेरा बड़ा पोता रेयांश ठाकुर।"
रेयांश आगे आकर सबके पैर छूता है। उसे देखकर सभी के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ जाती है। आखिर वही था, जिसे चाहत का हमसफ़र चुना गया था।
दादी के इशारे पर कांति जी सभी लोगों का तिलक करती हैं और उन्हें अंदर आने का आग्रह करती हैं। सभी मेहमान अंदर आने लगते हैं।
तभी वो लड़की, जिसका नाम स्मृति था, अपनी मीठी आवाज़ में कहती है,
"अभी हमारे भैया आने वाले हैं।"
यह सुनकर अग्निहोत्री परिवार के सभी लोग थोड़ा अचकचाकर एक-दूसरे को देखने लगते हैं। तभी रजत जी सख्त आवाज़ में कहते हैं,
"उस नालायक इंसान का कोई इंतज़ार नहीं करेगा। चलो अंदर!"
यह सुनकर सभी लोग अंदर चले जाते हैं।
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वहीं दूसरी ओर, एक तेज़ रफ्तार स्पोर्ट्स कार हाईवे पर दौड़ती जा रही थी। कुछ लोग उसे देखकर चौंक जाते हैं,
"अरे भाई! ऐसा भी कोई गाड़ी चलाता है? ना जाने कितनों को कुचल कर आ रहा होगा!"
वहीं कुछ लोग उसकी तारीफों के पुल बाँधते हैं,
"हाय! क्या कार है! और चलाने वाला तो उससे भी कमाल लग रहा है!"
कार के अंदर बैठा एक लड़का, ड्राइविंग सीट पर बैठे अपने दोस्त से काँपती आवाज़ में कहता है, "तपिश, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी तेरे साथ आकर। प्लीज़ यार रोक, मैं पैदल ही चला जाऊंगा। पर तेरे साथ दोबारा कभी नहीं बैठने वाला!"
तभी ड्राइविंग सीट पर बैठा लड़का, तपिश, हँसते हुए कहता है,"भूल मत यार, हमने साथ जीने मरने की कसमें खाई हैं! अगर मरे तो साथ, और अगर बच गए, तो जल्दी से हिटलर के पास पहुँचना है!"
उसका दोस्त विहान बोलता है, "तेरे दादा जी का तो मुझे नहीं पता, पर मैं अपने मम्मी-पापा का इकलौता बेटा हूँ। मुझे लग रहा है आज से मेरे माता-पिता अनाथ हो जाएंगे!"
विहान की ऐसी दशा देखकर तपिश जोर-जोर से हँसने लगता है।
अचानक वह कार को 120 की स्पीड से चलाते हुए एक मोड़ पर तेज़ ब्रेक मारता है। गाड़ी अपनी जगह पर कई बार घूमती है और फिर एक हाईवे के पुल के किनारे जाकर रुकती है।
विहान डर के मारे आँखें बंद कर लेता है और जैसे ही देखता है कि सब सही है, उसकी साँस में साँस आती है।
तपिश बाहर निकलता है, पुल पर खड़ा हो जाता है, दोनों हाथ फैला कर आँखें बंद करता है, जैसे किसी तूफान को गले लगाने जा रहा हो।
उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी।
उसकी इस मुस्कान को देखकर विहान हैरानी से बोला, “क्या हुआ तपिश? तू ऐसे क्यों मुस्कुरा रहा है?
वैसे... ये मुस्कान दिल से निकली लग रही है।
कितने सालों बाद तेरी हँसी में फिर से वो सच्चाई दिख रही है।
पहले की तरह, पर अब कुछ अलग सी लग रही है।”
यह सुनकर तपिश ने आँखें बंद कर लीं और धीमे स्वर में बोला, “न जाने क्यों... आज सुकून सा लग रहा है।
इन हवाओं में एक अलग ही कशिश है,
ऐसा लग रहा है जैसे ये मुझे छूकर कुछ कह रही हैं...
जैसे मेरी मोहब्बत मुझे महसूस हो रही है... मेरे बहुत करीब।”
फिर तपिश मुस्कराते हुए आगे कहता है:
❤️"हवा में घुली है बस तेरी ही खुशबू,
लगता है आज तू मुझे महसूस करवाने आई है।
ये जो दिल बेवजह मुस्कुरा रहा है,
शायद तेरी रूह ने चुपचाप मुझे फिर से छुआ है कहीं।"❤️
विहान हँसते हुए बोला, "लोगों से सुना था कि मोहब्बत में इंसान पागल हो जाते हैं,
आज तुझे देख लिया।
ऐसी लड़की से मोहब्बत की है तूने,
जिसकी बस एक झलक देखी है।
ना जाने कितने सालों से उसे दिल में बसा रखा है और आज तुझे लग रहा है कि हवाओं में वो तेरे पास है?"
यह सुनकर तपिश ने अपनी आँखें खोलीं,
सामने बहती उस ठंडे समुद्र को देखते हुए बोला, "वो एक झलक ही इन आँखों में बसने के लिए काफी थी, विहान।
आज ऐसा लग रहा है जैसे वो यहीं कहीं है… मेरे बेहद करीब…"
विहान उसकी बातों पर फिर से हँसने लगा,
और तपिश बस मुस्कुराते हुए उसे देखता रहा… कुछ कहे बिना।
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अग्निहोत्री निवास में…
सभी लोग बड़े से हॉल में एकत्रित थे।
रजत जी पूरे घर का जायज़ा ले रहे थे और उनके साथ उनकी पत्नी अग्नि ठाकुर जी थीं।
रजत बोले, "क्या बात है राज, घर तो तूने बेहद खूबसूरती से बनवाया है।"
यह सुनकर सभी एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
कांति और शांति, जो थोड़ी चिंतित थीं,
यह सुनते ही सुकून की सांस लेती हैं।
उसी समय रेयांश की माँ, विशाखा, बोलीं,
"और सबसे अच्छी बात यह है कि इस घर को जितने अच्छे से सजाया गया है,
वो सुकून कहीं बड़े घरों में भी नहीं मिलता।"
यह सुनकर शांति जी खुशी से चहक उठीं,
"हां, क्योंकि इस घर की पूरी मेंटेनेंस हमारी बेटियों ने की है।"
सभी की निगाहें उनकी ओर मुड़ गईं।
रागिनी जी मुस्कुराकर बोलीं,
"अब जब आपने इतना कुछ कह दिया,
तो हम उस बेटी से भी मिलना चाहेंगे जिसने इस घर को इतनी खूबसूरती से सजाया है।"
शांति जी, पास खड़ी संगीता से बोलीं,
"संगीता बेटा, चाहत को लेकर आओ।"
संगीता सिर हिलाकर अंदर चली जाती है।
तभी बाहर गाड़ी रुकने और टायरों की तेज़ घर्षण की आवाज़ आती है।
ये सुनकर विशाखा जी अचानक आंखें बंद कर लेती हैं,
जबकि रजत जी के चेहरे पर साफ गुस्सा दिखता है।
स्मृति के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है।
रामेश्वर जी बोले, "इतनी तेज़ गाड़ी किसकी आई है? कौन होगा?"
और तभी दरवाज़े से एक आवाज़ गूंजी, "हम हैं ठाकुर खानदान के छोटे बड़े, स्वागत नहीं करोगे हमारा?"
सभी की निगाहें दरवाज़े की ओर मुड़ती हैं।
एक नौजवान अंदर आता है उम्र लगभग 25–26 साल, 6 फुट 2 इंच की ऊँचाई, गठीला शरीर, शर्ट के ऊपर से भी उसकी फिटनेस साफ़ झलक रही थी,
बिखरे बाल, गहरी काली आंखें जो गोरे चेहरे पर चमक रही थीं,
गालों पर हल्की दाढ़ी जो उसे एक स्मार्ट लुक दे रही थी,
पैरों में स्टाइलिश लोफ़र्स जूते।
उसे देख सभी ठहर से जाते हैं।
रजत जी के चेहरे पर गुस्सा और भी गहरा हो जाता है।
उन्होंने कहा था वह वेल्मिंटन होकर आएगा,
पर वे जानते थे कि ये लड़का कभी किसी की सुनता नहीं।
रानी जी एक्साइटेड होकर बोलीं,
"ये इतना स्मार्ट लड़का कौन है?"
तभी तपिश मुस्कुराते हुए अंदर आता है और बोलता है, "अभी तो बताया ना ब्यूटीफुल दादी, मेरा नाम तपिश ठाकुर है।
ठाकुर साहब के बड़े बेटे का छोटा बेटा।
इतना इंट्रोडक्शन काफी होगा ना?"
…कहकर वह सबको अपनी चार्मिंग स्माइल से देखता है।
जहाँ अग्निहोत्री परिवार के लोग मुस्कुरा रहे थे, वहीं विशाखा जी अपने ससुर को देख रही थीं,
जिनका गुस्सा अब भी थमा नहीं था।
विशाखा जी ने तपिश को इशारा किया,
वह जाकर सभी से गले मिलने लगा।
रजत जी कुछ कर नहीं पाए,
बस उसे गुस्से में देखते रहे।
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तो कौन है तपिश की मोहब्बत?
क्या रियांश और चाहत का रिश्ता जुड़ पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए…
अगर आपको स्टोरी पसंद आ रही है तो कमेंट और रिव्यू देना ना भूलें,
आपका साथ ही इस कहानी को आगे ले जाएगा।
अब आगे__
तपिश, रेयांश के बगल में बैठकर अपनी कोहनी से उसे हल्का सा मारते हुए फुसफुसाया, "क्या हुआ भाई? लड़की देखी या नहीं?"
रेयांश ने उसे केवल नज़रों से चुप रहने का इशारा किया, क्योंकि उसके सामने बैठे दादाजी के गुस्से की आंच वह साफ महसूस कर सकता था।
लेकिन तपिश कहां रुकने वाला था! सामने पड़े ढेर सारे स्नैक्स में से एक समोसा उठाते हुए बोला, "अरे वाह! ये किसने बनाए हैं? क्या लाजवाब स्वाद है!"
वह मज़े से खाए जा रहा था।
विशाखा हँसते हुए बोली, "तपिश, स्पष्ट बताइए, क्या आप पूरा घर खाली करना चाहते हैं?"
उनकी बात पर सब मुस्कुरा दिए।
चाहत की दादी ने तपिश की तरफ देखकर कहा, "अरे, ऐसा मत कहिए, बच्चा है, खाने दीजिए।"
तपिश मासूम चेहरा बनाते हुए बोला,
"अरे ब्यूटीफुल दादी, आप ही समझाइये, मैं तो बार-बार कहता हूं कि मैं अभी बच्चा हूं, पर कोई मानता ही नहीं।"
वहीं बैठा विहान धीरे से बोला, "तू तो ऐसे खा रहा है जैसे कोई बकरी हो, और तुझे खास मिल गई हो। देख नहीं रहा, तेरा 'हिटलर' तुझे घूर रहा है।"
तपिश ने बात बदलते हुए कहा, "अरे भाई, अब हमारी होने वाली भाभी को भी बुला दो ना! देखो ना, भैया कितने बेचैन हैं उन्हें देखने के लिए।"
इस पर सब मुस्कुरा दिए।
रेयांश के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आ गई। वहीं, विशाखा अपने बेटे को देखकर मन ही मन बोली, "उम्मीद है कि रेयांश को लड़की पसंद आ जाए..."
उसे पता था कि रेयांश को यहां जबरदस्ती लाया गया था। रजत जी की सख्त हिदायत थी, की शादी करनी ही है। रेयांश चाहता नहीं था, लेकिन ठाकुर परिवार में अभी भी रजत जी की ही चलती थी।
इसी बीच रेयांश की दादी बोलीं, "अब हमें अपनी बेटी से भी मिलवा दीजिए, ताकि हम आगे का काम शुरू कर सकें।"
यह सुनकर शांति जी चाहत को बुलाने चली जाती हैं। रेयांश टाई ढीला करने लगा, जैसे उसे यहां घुटन हो रही हो।
तपिश अब भी खाने में लगा हुआ था। विहान उसे धीरे से टोकते हुए बोला,
"बस कर, जब शादी हो जाएगी तब खा लेना !"
उसी वक्त शांति जी की आवाज आई,
"लीजिए, आ गई हमारी बिटिया चाहत।"
सभी की नजरें सामने देख रहीं थीं चाय की थाल लिए आती चाहत।
उसकी सादगी, झुकी नज़रें, और धीमी चाल ने सबका मन मोह लिया।
विशाखा मन ही मन बोलीं, "इतनी खूबसूरत लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी।"
चाहत को देखकर राजत जी के चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी जैसी बहू वो चाहते थे, वैसी मिल रही थी।
रेयांश, जो अब तक बेचैनी में था, चाहत को देखते ही एक क्षण के लिए ठहर गया।
विहान तपिश को कोहनी मारकर बोला,
"अब देख भाभी आ गई है!"
तपिश ने नजरें उठाईं और चाहत को देखा नजर ठहर गई। हाथ में गुलाब जामुन वैसे ही रह गया।
विहान ने हाथ से उसका चेहरा पोछते हुए कहा, "बस कर, तेरी होने वाली भाभी है।"
लेकिन तपिश की मुस्कान धीरे-धीरे फीकी हो गई। वह बुदबुदाया, "इम्पॉसिबल..."
कोई नहीं समझ पाया कि उसकी आंखों में वो गहराई किस बात की थी।
विहान ने उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा,
"क्या हुआ तुझे?" तपिश चौंकते हुए बोला,
"कुछ नहीं... मैं बस... हाथ धोकर आता हूं।"
वह उठा ही था कि अंजू बोल पड़ी,
"चलिए, हम आपके हाथ धुलवा देते हैं।"
जैसे ही तपिश के हाथ चाहत से टच होते हैं, चाहत का दिल जोर से धड़कने लगता है। वह एक बार नजरें उठाकर देखती है, लेकिन बस तपिश की जाती हुई पीठ देख पाती है।
चाहत की सादगी और मधुरता से सब प्रभावित होते हैं। शांति जी को चिंता थी कि कहीं चाहत शादी के बाद बस एक बहू बनकर न रह जाए, पर रजत जी ने खुद कहा,
"आपको पढ़ाई और हर आजादी की पूरी छूट होगी।"
यह सुन रामेश्वर जी और रानी जी को सुकून मिला।
रेयांश कुछ कहना चाहता था, चाहत भी, पर किसी की नहीं सुनी गई।
सबने रिश्ता पसंद कर लिया।
रेयांश ने जब दादाजी से बोलना चाहा,"दादू, मुझे कुछ कहना है..."पर उन्होंने अनसुना कर दिया।
विशाखा सोचने लगीं, "कहीं पापा जी की ये जबरदस्ती इन बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद न कर दे..."
छोटी सी रस्म के लिए चाहत के आँचल में नारियल, फल और पैसे रख दिए गए। विशाखा ने उसे लाल चुनरी उड़ा दी।
चाहत चुपचाप बैठी रही, पास में रेयांश बैठा था उसका मूड बहुत खराब था।
शांति जी ने अंगूठी निकलवाई और तभी बाहर से तपिश आता है चेहरा धोकर।
जैसे ही वह दृश्य देखता है लाल चुनरी, सगुन, और चाहत के पास गहनों की थाली...
उसके हाथों की मुट्ठी कस जाती है। नसें उभरने लगती हैं।
विहान सब देख रहा था — तपिश के भीतर कुछ टूट रहा था।
रिंग एक्सचेंज हो जाती है। सब ताली बजाते हैं। संगीता चाहत को उठाकर ले जाती हैं। जाते हुए चाहत एक बार तपिश की तरफ देखती है, पर तुरंत नज़रें झुका लेती है।
तपिश की मुट्ठियाँ अब भी कसी हुई थीं।
डाइनिंग टेबल पर सब खाना खा रहे थे, पुराने किस्से ताज़ा कर रहे थे।
तभी रजत जी पूछते हैं,"तपिश कहां गया?"
सब इधर-उधर देखते हैं, पर वह कहीं नहीं दिखता।
सबकी नजरें विहान पर जाती हैं।
विहान मन ही मन बुदबुदाया, "साला फिर से फंसा कर चला गया..."
फिर बोला, "अर्जेंट मीटिंग थी उसकी, इसलिए चला गया।"
ठाकुर परिवार जानता था कि वह झूठ बोल रहा है, लेकिन अब चुप रहना ही बेहतर था।
रीना जी बोलीं,""बड़ा प्यारा बच्चा है आपका।"
वहीं विहान मन ही मन बोला, "तपिश... तुझे हुआ क्या है?"
इधर चाहत अपने कमरे में पहुंचते ही बिस्तर पर धम्म से गिरती है।
उसकी हथेलियों की मुट्ठीयां बिस्तर पर कस जाती हैं। और उसकी आंखों से एक चुप आंसू गाल पर बह निकलता है।
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मुंबई के एक पॉश इलाके में...
मुंबई के एक पोर्श इलाके में, कई गाड़ियाँ एक भव्य गेट से होकर लगभग 500 मीटर अंदर जाती हैं। सभी गाड़ियाँ एक आलीशान, सफेद संगमरमर से बने हवेलीनुमा महल के सामने आकर रुकती हैं। हवेली के बाहर लगे एक बड़े से बोर्ड पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था ‘ठाकुर निवास’।
गेट पर एक जैसी यूनिफॉर्म पहने हुए सुरक्षाकर्मी तत्परता से आगे बढ़ते हैं और सभी गाड़ियों के दरवाज़े खोलते हैं। गाड़ियों से कोई और नहीं, बल्कि रजत जी और उनका पूरा परिवार उतरता है। सभी भीतर प्रवेश करते हैं।
वहीं, रेयांश अपनी गाड़ी से उतरते ही बिना किसी से बात किए सीधे अपने कमरे की ओर बढ़ जाता है।
बाकी सभी हॉल में इकट्ठा हो जाते हैं, जहाँ पहले से ही कुछ लोग बैठे हुए थे
आर्य ठाकुर (रजत जी के छोटे बेटे), उनकी पत्नी मानवी ठाकुर, उनका बेटा वंश ठाकुर (उम्र 24 वर्ष) और बेटी वर्तिका ठाकुर (उम्र 23 वर्ष)।
मानवी, वर्तिका को आँखों से इशारा करती हैं। वर्तिका तुरंत उठकर जाती है, मेड को सभी के लिए चाय लाने के लिए कहती है और स्वयं पानी के ग्लास लेकर बाहर आ जाती है। वह सबको पानी देती है।
सभी पानी पी ही रहे होते हैं कि तभी आर्य जी सवाल करते हैं, "पापा, क्या हुआ? आप लोग लड़की पसंद करने गए थे, कुछ बात बनी क्या?"
रजत जी कुछ कह पाते उससे पहले ही स्मृति उत्साह से बोल उठती हैं, "चाचा जी, आप सोच भी नहीं सकते! भाभी तो बेहद सुंदर हैं। और उनकी और भाई की सगाई भी हो गई।"
यह सुनते ही सब चौंककर एक-दूसरे की तरफ देखने लगते हैं।
मानवी, विशाखा से हल्का सा शिकायती लहज़े में बोलती हैं, "क्या बात है जी, रेयांश की सगाई हो गई और हमें खबर तक नहीं?"
इस पर विशाखा मुस्कुराकर कहती हैं,
"मानवी, लड़की बहुत पसंद आई, तो वहीं पर रिंग एक्सचेंज कर दिया। वैसे भी बाकी सारे रीति-रिवाज तो अभी बाकी हैं। अब तुम सब भी तैयार रहो, शादी की तैयारियाँ शुरू कर दो।"
फिर विशाखा ने आर्य की ओर मुड़ते हुए कहा,"पंडित जी को जल्दी से जल्दी बुलवाओ घर पर। मुहूर्त देखना है।"
इतना सुनकर सब आपस में बातों में लग जाते हैं। तभी वंश उठकर खड़ा होता है और हैरानी से कहता है, "मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि रेयांश भैया ने शादी के लिए हाँ कैसे कर दी!""
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क्यूँ हुआ तपिश चाहत को देखकर? परेशान रेयांश का चेहरा कुछ बुझा हुआ सा क्यों है? विशाखा रेयांश और चाहत के रिश्ते को लेकर परेशान जानने के लिए पढ़ते रहिए...........
अब आगे
वंश उठकर खड़ा होते हुए बोला, “मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि रेयांश भाई ने शादी के लिए हाँ कैसे कर दी?”
“उन्होंने तो साफ कहा था कि वह रावी के अलावा किसी और से शादी नहीं करेंगे!” वो इतना ही बोल पाया था कि तभी दादाजी की तेज़ और कठोर आवाज़ गूंजी,“वंश! अपनी ज़ुबान पर लगाम दो! उस लड़की का नाम दोबारा हमारे परिवार में नहीं आना चाहिए। और एक बात कान खोलकर सुन लो, रेयांश की शादी अब चाहत से होगी, और ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है। अगर किसी को ये फ़ैसला मंज़ूर नहीं तो वो इस घर और इस परिवार को छोड़ सकता है!”
यह कहते हुए वे ऊपर खड़े रेयांश को देखते हैं जो चुपचाप उनकी ओर देख रहा था। उसे देखते हुए वह और आगे कहते हैं,“और एक बात, मेरी बात ना मानने वालों का अंजाम क्या होता है, ये तो सब जानते ही हैं, लेकिन जो उसकी तरफदारी करेगा... उसके चाहने वालों का क्या हाल करूंगा, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।”
ये सुनकर रेयांश के हाथ बालकनी की रेलिंग पर कस जाते हैं और वह चुपचाप अपने कमरे की ओर चला जाता है। उसके जाते ही पूरे घर में एक सन्नाटा छा जाता है।
दूसरी ओर—
विहान तब से तपिश को फोन लगाए जा रहा था, लेकिन न कॉल उठाया गया, न ही कोई मैसेज का जवाब आया। वो गुस्से से बुदबुदाया, “ये आखिर गया कहां? कौन सी चुड़ैल पट गई है इससे जो इसका कोई अता-पता ही नहीं मिल रहा!”
तभी पीछे से विशाखा की आवाज़ आती है जिससे विहान थोड़ा घबरा जाता है।
विशाखा बोली— “विहान बेटा, क्या हुआ? तपिश कहां है? और प्लीज़ सच-सच बताओ मुझे।”
विहान गहरी साँस लेकर बोला,“आंटी, मुझे खुद नहीं पता। मैं तो खुद उसे लगातार फोन कर रहा हूं, लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा।”
यह सुनकर विशाखा अपने सिर पर हाथ रखती है और चिंता में बोलती हैं, “ना जाने इस लड़के की वजह से मुझे और कितना सुनना होगा... मेरे दोनों बेटे मेरी कोई बात नहीं मानते!”
यह कहते हुए वह अंदर चली जाती है और विहान फिर से कॉल लगाने में व्यस्त हो जाता है।
उधर तपिश...
एक सुनसान पहाड़ी इलाके में, बिल्कुल अकेला, शांत माहौल में बैठा था। उसके हाथ में शराब की बोतल थी। वो जब भी आंखें बंद करता, सामने चाहत का चेहरा आ जाता झुकी हुई आंखें, एक सादगी भरा चेहरा।
वो वहीं ज़मीन पर लेट गया, आसमान को देखते हुए बुदबुदाया,“क्या मैं इतना बुरा हूं? क्या यही मुक़द्दर था मेरा?”
“ज़िंदगी में पहली बार किसी से दिल लगाया, और वो भी इतनी शिद्दत से... पर मेरे इश्क़ ने तो मुझसे नज़रें नहीं मिलायी।”
"मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था, मुलाक़ात से पहले ही बिछड़ने का दस्तूर था। जिसे चाहता था साँसों से भी ज़्यादा, वो किसी और की दुआओं में मशगूल था..."
“सोचा था पहली बार मिलूंगा, तो उसे अपनी बाहों में समेट लूंगा... पर अब वो किसी और की दुल्हन बनने जा रही है!”
उसकी आँखों से एक आँसू बह निकला।
“मुझे नहीं पता हमारे नसीब में क्या लिखा है... पर इस दिल ने तुझसे बेइंतहा मोहब्बत की है, करता है और करता रहेगा...”
“ज़रूरी नहीं मोहब्बत हर बार नाम पाए।”
इतना कहकर वह फिर से शराब की बोतल अपने होंठों से लगा लेता है।
इधर चाहत...
अपने कमरे की बालकनी में खड़ी थी। उसने खुले बालों में चाँद को एकटक निहारते हुए महसूस किया, जैसे हवा उसकी रूह को छू रही हो। वो अपनी हथेलियों को देखने लगीं, जिन्हें कभी अनजाने में तपिश ने छुआ था।
अपने दिल पर हाथ रखते हुए वह खुद से बोली, “ये कैसा एहसास है? क्यों मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं जब मैं उस छुअन को महसूस करती हूं? क्या मेरे नसीब में कुछ और ही लिखा है?”
इतना कहकर वो खुद को अपने ही आगोश में ले लेती है।
अगली सुबह—
चाहत और प्रिया रसोई में चाय बना रही थीं। चाहत ने हरे रंग का सूट पहन रखा था, बालों की चोटी बनी हुई थी। वो चाय लेकर बाहर आई और सबको देने लगी। तभी रामेश्वर जी का फोन बजता है।
फोन पर रजत जी कुछ कहते हैं, जिसे सुनकर रामेश्वर जी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। रीना जी पूछती हैं, “क्या बात है जी? इतनी बड़ी मुस्कान क्यों?”
रामेश्वर जी उत्साह से बोले, “रजत जी ने बताया है कि पंडित जी से बात हो गई है और एक हफ्ते बाद शादी का शुभ मुहूर्त निकल आया है।”
यह सुनते ही चाहत के हाथ से चाय की ट्रे गिर जाती है।
रीना जी घबराकर पूछती हैं, “क्या हुआ बेटा? कहीं चोट तो नहीं लगी?”
चाहत मुस्कुराने की कोशिश करती है— “नहीं दादी... मैं... मैं दूसरी चाय बना लाती हूं।”
यह कहकर वो तुरंत रसोई की ओर चली जाती है।
कांति फुसफुसाकर बोली, “माँ, आपको नहीं लगता ये शादी कुछ ज़्यादा ही जल्दी हो रही है?”
रानी जी गंभीरता से बोलीं— “बात जल्दी की नहीं कांति, बात भरोसे की है। रजत जी पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें जल्दी शादी करनी है। और हम भी ऐसा अच्छा रिश्ता गंवाना नहीं चाहते। सब कुछ भली भांति हो, हम यही चाहते हैं।”
कांति चुप हो जाती है।
चाहत रसोई में वापस आती है, और दूसरी चाय बनाते वक्त उसकी आंखों से आँसू गिरने लगते हैं। वो जल्दी से आँसू पोंछकर चाय लेकर बाहर जाती है।
शाम को...
ठाकुर परिवार में आज अग्निहोत्री परिवार आने वाला था। रजत जी चाहते थे कि शादी से पहले एक पारिवारिक डिनर रखा जाए, ताकि दोनों परिवार एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचित हो जाएं। अग्निहोत्री परिवार ने भी सहमति जताई।
लेकिन ठाकुर हाउस में तनाव था।
रजत जी सोफे पर बैठकर गुस्से में बोले,“तुम लोग क्या बच्चों की परवरिश यही करते हो? एक बेटा—तपिश—कहीं गायब है, और दूसरे—रेयांश—की आज मीटिंग है? आज जब उसके ससुराल वाले आ रहे हैं, तब वो लोग ग़ायब हैं !”
राज ठाकुर बोले, “पापा, रेयांश ने बताया था उसे एक जरूरी मीटिंग है...”रजत जी गुस्से से बोले— “मीटिंग बाद में होती, शादी पहले! और उस तपिश के बारे में तो कुछ मत ही कहो! 25 साल का हो गया, पर आज तक ज़िम्मेदारी का मतलब नहीं समझा!”
वहीं वंश बुदबुदाया— “सबसे बड़े सीरियस इस घर में आप ही हैं, और आप ही सबसे ज़्यादा गुस्से में रहते हैं...”
मानवी ने उसे घूरते हुए चुप कराया।
तभी इंटरकॉम बजता है। मानवी उसे उठाकर कहती है— “पापा, वो लोग आ गए हैं...”
ठाकुर विला के बाहर एक गाड़ी आकर रुकती है। गाड़ी के रुकते ही पूरे घर में हलचल मच जाती है। सभी लोग दरवाज़े की ओर दौड़ पड़ते हैं। गाड़ी से उतरी कांति की नज़र जब से उस विला के गेट के अंदर पड़ी थी, वह बस घर को ही निहार रही थीं। उस घर को देखकर उनकी आँखों में एक अनकही खुशी झलक रही थी, लेकिन साथ ही एक संकोच, एक झिझक भी थी।
उनकी यह झिझक वहाँ खड़े सभी लोग साफ़ समझ पा रहे थे। वह अंदर मौजूद रानी जी से भी थोड़ी सकुचाई हुई थीं। लेकिन दरवाज़े पर जब उन्हें पूरा परिवार स्वागत के लिए खड़ा दिखा, तो उनका संकोच खुद-ब-खुद खत्म हो गया।
वहीं दूसरी ओर, चाहत के मन में एक अजीब सी घबराहट थी। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यह सब इतनी जल्दी कैसे हो रहा है। लेकिन फिर भी, वह गाड़ी से उतरती है। उसके साथ अंजू और संगीता भी थीं।
संगीता को चाहत ने ज़बरदस्ती अपने साथ चलने के लिए मनाया था। वह चाहती थी कि संगीता उसके परिवार से पहले ही मिल ले, ताकि जब वह वहाँ पहुंचे तो कोई अजनबी न लगे। संगीता भी चाहत की स्थिति समझती थी, इसलिए उसने भी उसके साथ चलने का निर्णय लिया।
तभी दरवाज़े पर खड़े राजा जी बेहद ख़ुशी से आगे बढ़ते हुए कहते हैं, "अंदर आ जाओ रामेश्वर, हम तो कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं।"
रामेश्वर जी को देखकर रजत बहुत प्रसन्न होते हैं। सभी लोग अंदर की ओर बढ़ते हैं।
वहीं दूसरी ओर, वंश, मानवी और वर्तिका, तीनों लड़कियाँ में चाहत को कौन हैं देख रहे थे, मन ही मन यह जानने की कोशिश कर रही थे कि इनमें से उनके घर की बड़ी बहू कौन है।
उनके सवालों का जवाब वहीं खड़ी स्मृति दे देती है।
स्मृति दौड़कर चाहत के पास आती है और मुस्कराते हुए कहती है — "हैलो, चाहत भाभी!"
'भाभी' शब्द सुनते ही मानवी, वर्तिका, और बाकी सभी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फैल जाती है। सबकी निगाहें अब चाहत पर टिक जाती हैं।
चाहत, जिसने रेड कलर का बेहद खूबसूरत लॉन्ग अनारकली सूट पहना था, एक सलीके से डाला हुआ दुपट्टा, कानों में छोटे-छोटे झुमके, माथे पर वही प्यारी सी नग वाली बिंदी। बिना मेकअप की सादगी में भी उसकी ब्राउन आँखें बेहद ख़ूबसूरत लग रही थीं।
वंश की नज़रें भी चाहत पर टिक जाती हैं। तभी वर्तिका उसे हल्का सा धक्का देते हुए चुटकी लेती है, "भाई! नजर मत लगाओ हमारी होने वाली भाभी पर!"
यह सुनकर वंश उसे घूरते हुए जवाब देता है, "तुम्हें बताने की ज़रूरत नहीं है। मैं बस ये देख रहा था कि ये तो कितनी कम उम्र की लगती है... और दादू ने भाई के लिए इतनी कम उम्र की लड़की पसंद की है?"
कहते हुए वह फिर से चाहत को देखने लगता है, और सोचता है — "मैंने इसे पहले कहाँ देखा है...?"
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स्टोरी पसंद आये तो कमैंट्स और रिव्यू जरूर दीजिएगा 🙏
अब आगे
वहीं कुछ देर में सभी को अंदर लाया जाता है अंदर जिस तरह से राजशाही सेवा पूरे अग्निहोत्री परिवार की हो रही थी उससे उनकी रुतबा का भी एहसास उन सभी को हो रहा था
सभी के सभी को मान सम्मान भी मिल रहा था बात विचार में ही दादी जी पूछ पड़ती है, ""भाई साहब वह तपिश बेटा नहीं दिख रहे हैं।"
" यह सुनते ही सभी एक बार के लिए एक दूसरे को देखते हैं तभी वर्तिका धीरे से अपनी मां मानवी से बोली, " मां इनका रिश्ता रेयांश भाई से जुड़ रहा है पर पूछ रहे हैं तपिश भाई को यह क्या झोल है? "
ये सुन मानवी आंखें तरेरते हुए बोली, "" अब तपिश है ही ऐसा की कोई उसको बिना पूछे रह नहीं सकता। "
"यह सुन वर्तीका हाँ में सिर हिला देती है, तभी 1 मेड चाय नाश्ता लाती है यह देख रजत जी बोलते हैं,"" ये ले रामेश्वर जैसे तुझे पकोड़े पसंद है वैसे ही बनवाए हैं। "
ये कहकर उनकी तरफ देखते हैं तो रामेश्वर खाते हुए अपने पुराने दिनों को याद कर हंसने मुस्कुराने लगते हैं।
वहीं चाहत चुपचाप बैठी हुई थी और संगीता के हाथ को पकड़े थी।
ये देख विशाखा मुस्कुराते हुए स्मृति से बोली, ""स्मृति आप अपनी भाभी को सारा घर दिखाइए और उन्हें थोड़ा आराम करने के लिए बोलिए हम डिनर पर आप लोगों को बुलवाते हैं।"
स्मृति और वर्तिका दोनों ही खड़े हो जाते हैं और वह बोलती है, ""जी बड़ी मां।""यह सुनते ही स्मृति वर्तिका से बोली, "" मां मुझे घूमाने के लिए बोली है यह सुन वर्तिका उसके सिर पर मारते हुए बोली, ""तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा यदि मैं घूमाने ले चलूंगी इसी बहाने मैं भी भाभी को जान पाऊंगी...।"
ये सुन स्मृति अपने सर को सहलाती हुए बोलती हैं, " आप ना बड़े हो ना तो इसका फायदा मत उठाया करो। "
दोनों को लड़ते देख वही खड़ी संगीता बोली, ""वैसे घर तो हम और अंजू भी घूमना चाहते हैं।"
यह सुनते ही अंजू भी जल्दी-जल्दी हां मैं सिर हिलाती है तो संगीता बोली, " अगर आप दोनों चलेंगे तो हम सभी को कंपनी मिल जाएगी घर देखने के लिए। "" उसकी बात सभी को सही लगती है और सभी वहां से चले जाते हैं।
राम जी पूछते हैं, ""रेयांश बेटा नहीं है क्या?"" यह सुन विशाखा बोली, "" भाई साहब यह सब इतना अचानक से हो रहा है कि किसी को समझ नहीं आया और उनकी काफी मीटिंग थी जिसको वह डिले नहीं कर सकते थे और फिर कुछ दिन के बाद शादी की रस्म भी शुरू हो जाएगी, तो उन्हें उनका काम भी मैनेज करना था और तपिश भी उनकी हेल्प करवा रहे हैं। "
उनकी बातों से सभी लोग कन्वेंस हो जाते हैं वही स्मृति चाहत का हाथ पकड़ उसे अपने साथ खींचते हुए बोली, "" वर्तिका दी आप ब्यूटीफुल दीदी को घुमाओ, मैं अपनी भाभी को घूमाने वाली हूं। "" यह बोल खींचते हुए लेकर चली जाती है।
वर्तिका नागवारी से अपना हिला देती है और मुस्कुरा देती है यह देख संगीता बोली, कितना बचपना भरा है इसमें। "
ये सुन वर्तिका बोली, "छोटी है ना तो ऐसे ही लड़ती रहती है, चलिए मैं आप सभी को घर दिखाती हूं यह कहकर वह दोनों को हीं घर दिखाने लगती है।
वही स्मृति एक-एक घर की चीजों को दिखा रही थी और उसके बारे में जितना कुछ उसे पता है वह सब बताते जा रही थी।
तभी एक्साइटेड होकर स्मृति बोली,"देखिए चाहत भाभी यह आप जो पेंटिंग देख रही हैं ना इसे मेरे भाई ने खुद बनाया है। " यह बोल एक बड़ी सी पेंटिंग को दिखाती है जो किसी लेडी की आकृति थी जिसे बेहद खूबसूरती से पेंटिंग में तराशा गया था। ""
ये सुन चाहत भी मंत्र मुक्त होकर उस पेंटिंग को देखने लगती है, और वो उसे हाथों से छूने ही वाली थी, तभी स्मृति उसका हाथ पकड़ते हुए बोली, ""भाभी भाई को बिल्कुल नहीं पसंद उनकी पेंटिंग को कोई हाथ लगाए।"
ऐसा बोल हाल में लगी कई सारी पेंटिंग्स को दिखाती है और बोली, "" यह सारी पेंटिंग देख रही है ना यह सारी पेंटिंग्स हमारे भाई ने हीं बनाई है। "
चाहत जिसे पेंटिंग करना उसे भी बेहद पसंद था और वह भी इसका क्लास लेना चाहती थी पर समय ही नहीं मिला वह खुद से ही बोली, ""चलिए हमारा कुछ तो मेल हुआ।"
तभी स्मृति उसे आगे खींचते हुए लेकर जाते हुए बोलती है, "यह देखिए यह हमारा कमरा है।" यह बोल अपने कमरे की तरफ दिखती है स्मृति का कमरा बहुत ही खूबसूरत था बीच में एक राउंड शेप का बेड था, जिसमें चारों तरफ टेडी बेयर लगे हुए थे और उसका पूरा कमरा किसी प्रिंसेस की तरह भी लग रहा था चारों तरफ पिंक एंड व्हाइट कलर का कंबीनेशन एक अलग ही रूप दे रहा था।
अपना कमरा दिखाने के बाद स्मृति आगे बढ़ते हुए बोलती है, "" यह है हमारे भाई का कमरा आई मीन आपकी होने वाले हस्बैंड का। ""
ये सुनते ही चाहत के हाथ अपने सूट पर कस जाते हैं, तभी वह उस कमरे में ले जाती है जिसे बड़े हीं सलीके से सजा गया था, किंग साइज का बेड, रेयांश की बड़ी सी फोटो फ्रेम लगा हुआ था, साइड बुक सेल्फ एक साइड वॉशरूम बहुत ही खूबसूरत नजारा था।
वही एक बड़ी सी बालकनी जहां पर एक झूला लगा हुआ था, झूले को देखते ही उसके चेहरे पर एक स्माइल आ जाती है, तभी स्मृति उसे रूम से निकलते हुए बोलती है, "भाई को साफ सुथरा और हर चीज मेंटेन बहुत पसंद है।"
यह बोल घर के दूसरे हिस्से में इशारा कर बताती है, ""और ये साइड का पूरा तपिश भाई का एरिया है और वह तरफ नहीं आने देते। ""
तपिश नाम सुनते ही चाहत उसे तरफ देखने लगती है वह सभी सेकंड फ्लोर पर थे नीचे हॉल से ही बीच का साइड से बड़ी सी सीडियां गई थी, जिसके एक तरफ बाकी सभी बच्चों का कमरा था, तो दूसरी साइड में तपिश का, तपिश ने अपना कब्जा जमाया था, कब्जा जमाना कहना शायद सही होगा, क्योंकि उसने काफी ज़िद से वह पूरा एरिया लिया हुआ था, जिस पर उसने अपना अलग ही एडवेंचर किया हुआ था।
स्मृति इधर-उधर देखते हुए बोलती है," वैसे भाई पिछले दो दिन से यहां नहीं आए हैं, चलिए हम उनके कमरे की तरफ जा सकते हैं।" यह बोल जाने लगती है।
तो चाहत मना करते हुए बोली, "जब वह नहीं चाहते, तो आप हमें वहां क्यों ले जा रहे हैं?"
यह सुनते ही स्मृति आंखें छोटी कर बोली, "हम भी उन्हीं की बहन है जिद और बात ना मानने वाले।"यह बोल उसे ले जाती है और एक कमरा खोलकर अंदर जाती है अंदर का नजारा देख फिर स्मृति तो शॉक्ड नहीं होती, पर चाहत की आंखें हैरानी से बड़ी हो गई थी, उसकी आंखें बड़ी देख स्मृति हंसते हुए बोली, " यही अंतर है मेरे दोनों भाइयों में एक भाई जहां बैडमेटन रहना जानते हैं तो दूसरे भैया को अपने सामानों का कूड़ा करना आता है। "
तपिश का पूरा कमरा फैला हुआ था, चाहत एक बार अपनी नजर में चारों तरफ घूमाती है तभी स्मृति जल्दी से बोली, ""उनके कमरे में जल्दी चलते हैं नहीं तो उन्हें पता चला कि हम यहां आए हैं, तो हमारा वह जीना हराम कर देंगे।"
चाहत भी निकलने को होती है तभी अचानक से एक गिरे कपड़े में उसका पैर फस जाता हैं और वह थोड़ा से बिस्तर पर गिर जाती यह देख स्मृति बोली, " भाभी यह क्या?
वह चाहत को उठाती है,चाहत का पैर पर फंसे कपड़े को उठा उसे ऊपर रख देती है और फिर स्मृति के साथ कमरे से बाहर चली जाती है।
एक बार रुक कर अपनी नज़रें पीछे करती है और फिर वहां से चली जाती है डिनर के लिए सभी लोग बैठे हुए थे वहीं अंजू काफी एक्साइटेड होकर बोली, " वैसे आंटी जी आपका घर सच में पूरा का पूरा महल है। कितनी बड़ी-बड़ी झूमर है कितना बड़े-बड़े कमरे है और यहां का वॉशरूम में पूरे एक कमरे के बराबर है। "
अंजू बस बोले जा रही थी, वही अंजू को कांति जी शांत करने की कोशिश कर रही थी अंजू से बात पर वंश बोलता है, " अच्छा जी मतलब आपको इस पूरे घर में सबसे ज्यादा पसंद वॉशरूम ही आया? "
यह सुन तो अंजू और ज्यादा एक्साइटेड होकर बोली, "हां जी अब इतने बड़े वॉशरूम में नहाने का भी एक अलग ही मजा होगा।" यह वह सब कहती है की चाहत उसके मुंह पर हाथ रख देती है, तो अंजू चाहत को देखती है तो चाहत उसे आंखों से चुप रहने को बोलती है तो अंजू एक बार सभी को देखती हैं, जो उसे देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
तभी अंजू की नजर वंश पर जाती है, जो नीचे मुंह करके खाए जा रहा था और मुस्कुराए जा रहा था।
इस तरीके से वंश ने अंजू का मजाक बना दिया था। अंजू चुपचाप अपना खाना खाने लगती है।
चाहत का यह अंदाज वहां पर सभी को बहुत पसंद आता है, रजत जी तो और भी ज्यादा गदगद हो जाते हैं।
चाहत ने बिना किसी शब्द बोले भी किसी को इतने प्यार से समझा देती है चाहत।
रजत जी खुद बोले, " हमें आप जैसे ही इस घर में बड़ी बहू चाहिए थी, जो मेरे पूरे परिवार को बांधकर रख सके। "
वहीं डिनर के समय अब तक विहान भी आ चुका था। विहान को देख विशाखा आंखों से इशारा करती हैं, बिहार ना में गर्दन हिला देता है, यह देख विशाखा गहरी सांस लेती हैं, फिर विहान भी जाकर चेयर पर बैठ जाता है और चाहत की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोलता है, "हेलो भाभी मैं तपिश का दोस्त डॉक्टर विहान मिश्रा।"
ये सुन चाहत अपना हाथ जोड़ लेती है, यह देख विहान बोला, " ओह सॉरी। " यह बोल वह भी अपने हाथ जोड़ लेता है।
उसका ऐसे देखते ही उसके पास बगल में बैठी संगीता की हंसी छूट जाती है उसे हंसना देख विहान की नज़र संगीता पर पड़ती है और तभी उसका फोन रिंग करता है।
फोन पर सो हो रहे नंबर को देख विहान बोला, "इट्स अर्जेन्ट और खड़ा हो जाता है विशाखा जी विहान के बारे में बताती हैं," ये हार्ट सर्जन हैं और उनके मां-बाप बाहर ही रहते हैं और यह हमारे ही साथ रहता है।" यह सुन सभी मुस्कुरा देते हैं।
वही बिहान बाहर जाकर फोन उठाते हुए बोलता है, " तपिश तू है कहां पर तू सच बताना नहीं तो मैं तेरा सर फोड़ दूंगा। "
"इस बार यार तूने हद पार कर दी हैं, एक तो तू बिना बताए चले आना और ऊपर से इतने दिन गायब रहना, फोन भी नहीं उठाता, तुझे पता भी है दादाजी यहां कितने गुस्से में है।"
विहान लगातार बोले जा रहा था, जब उधर से कोई आवाज नहीं आती तो विहान चिल्लाते हुए बोला,"तपिश मेरी बात सुन रहा है? "
यह सुनते ही उधर तपिश की कुछ बुझी हुई सी आवाज आती है, "क्या हुआ क्यों फोन पर मुझे बुला रहा है?"
ये सुन विहान बोलता है, " तुझे पता भी है आज अग्निहोत्री फैमिली वाले यहां पर डिनर के लिए आए हैं और ना ही तू है और ना ही रेयांश भैया। "
यह सुन तपिश बोरियत में, " यह अग्निहोत्री परिवार कौन है? "
तभी बिहान बोलता है, " तू नशा करके बैठा हुआ है क्या? अग्निहोत्री परिवार वहीं जहां पर रेयांश भाई का रिश्ता तय हुआ है चाहत के साथ और वह सभी लोग आए हैं। "
चाहत का नाम सुनते ही तपिश जो अभी भी लेता था उठकर बैठ जाता है और बोला, "तू क्या कह रहा है, चाहत, क्या वह भी आई है?"
ये सुनते ही विहान बोला, " हां उसके साथ-साथ उसके पूरे परिवार वाले आए हैं और सब लोग डिनर कर रहे हैं। "
यह सुनते ही तपिश उठ कर खड़ा होते हुए बोलता है, " विहान तू तू सभी को रोक के रखना, मैं अभी आता हूं, तू किसी को जाने मत देना। " यह कहकर वह वहां फोन कट कर देता है।
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अब आगे
विहान तपिश की बातों को समझ नहीं पाता वह खुद से कहता है, " लगता है इसका दिमाग सटक गया है। "यह बोल वह अंदर जाता है, तो उसकी नजर खुद पर घूरते हुए रजत जी की नजरों पर पड़ी।
यह देख वह तुरंत चुपचाप बैठ कर डिनर करने लगता है, डिनर करने के बाद सभी वहां पर बैठे हुए थे।
यह देख राम जी रजत जी से बोले," अंकल जी यह सब इतनी जल्दी हो रहा है, कि हमें भी समझ नहीं आ रहा की शुरुआत कहां से करें?"
" पर हमारी खुशनसीबी है कि हमारी बेटी की शादी आपके घर से हो रही है, पर अभी हमारा बेटा किसी काम से बाहर गया है, हम चाहते हैं कि वह आ जाए तो हम आपस में बात कर ले, उसके बाद ही हम शादी की तैयारी शुरू
करें? "
राम जी की काफी उम्मीद से उन्हें देख रहे थे, कि कहीं वह उनकी बात ना माने, पर बड़े ही प्यार से राज जी बोले, " भाई साहब इसमें इतना सोचने की बात क्या है? "
"माना कि हम शादी जल्दबाजी में कर रहे हैं, पर इसका मतलब यह नहीं की आपको अपनी इच्छा भी छिन गई है, आप जैसा चाहे वैसा होगा, आप अपने बेटे से विचार विमर्श कर लीजिए। "
यह सुनकर राम मुस्कुरा देते हैं तभी रीना जी बोली, "वैसे रात काफी हो गई है,हमें घर चलना चाहिए।"
यह सुन रागनी जी बोली, "आप लोग आज रात यहीं रुक जाइए, ये सुन रीना जी मुस्कुराती हुई बोली,"अब तो हमारी बेटी का रिश्ता इस घर से जुड़ चुका है और हमें भी काफी तैयारी करनी है, विचार विमर्श करना है, कुछ ही देर का रास्ता है, हम घर पहुंच जाएंगे, हम इसके लिए माफी चाहते हैं।"
ये सुन रागिनी की मुस्कुराहट और बढ़ जाती है, कोई बात नहीं बेटियों की शादी की जिम्मेदारी ऐसी ही होती है, हम समझ सकते हैं। "
अग्निहोत्री परिवार को ठाकुर परिवार का बोलचाल, मेल मिलाप, काफी पसंद आया था और काफी प्रभावित भी हुए थे, कोई भी नहीं चाहता था, कि यह रिश्ता टूटे।
वही चाहत इस समय स्मृति और वर्तिका के साथ उसके कमरे में थी।
तभी एक मेड जाकर उन सभी को बुलाती है, तो वह सभी नीचे आते हैं।
वही विहान बार-बार अपनी घड़ी को देख रहा था, तभी वह सभी उठने को होते हैं, कि विहान बोला, " आंटी जी इतनी भी जल्दबाजी क्या है?अभी तो 8:00 है अभी थोड़ी देर और रुक जाइए, एक कप चाय हो जाए, उसके बाद जाइएगा, वो ये बोलता हीं हैं की तभी रजत जी बोलते हैं, " क्यों खाने के बाद
चाय? "
"लगता है, तुम अपनी डॉक्टरी भूल चुके हो। कि यह सेहत के लिए हानिकारक होता है।"
उनकी यह बात सुन विहान चुप हो जाता है, वहीं आ रही संगीता और अंजू की हंसी निकल जाती है, विहान खुद का पोपट बनते देख, वह खुद से ही बोलता है, " तपिश तुझ से तो मैं चुन-चुन कर बदला लूंगा। "
वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया, सभी उठकर खड़े हो जाते हैं, वह उम्मीद करता है कि शायद तपिश आ जाए क्योंकि तपिश की बातों में घबराहट वो साफ मुहसूस कर सकता था, पर तपिश नहीं आया।
वह सभी लोग विदा लेते हैं और चाहत जाकर सभी के पर छूती है, विशाखा जी मुस्कुरा कर चाहत के चेहरे को छूती हैं और फिर उसका माथा चूम लेती हैं, इस पर चाहत को भी बहुत अच्छा लगा, वह भी इतनी जल्दी किसी से अटैच नहीं होती थी, पर यहां स्मृति और वर्तिका के साथ विशाखा जी से एक अलग ही अटैचमेंट हो चुका था ।
कुछ देर बाद वह लोग वहां से निकल जाते हैं, उनकी गाड़ी निकलते ही एक तेज गाड़ी अंदर एंटर करती है, अभी तक ठाकुर फैमिली अंदर गए भी नहीं थे और वह गाड़ी तुरंत रूकती है और उनमें से तपिश बाहर निकलते ही अपनी नजर इधर-उधर करने लगता है।
जैसे किसी को बेसब्री से देखने की चाहत उसके अंदर हो, लेकिन वह चेहरा उसे नहीं दिख रहा था, उसकी पागल पंती देखकर विहान अपना सिर पिट लेता है और सोचता हैं, "इसे हो क्या गया है?"
विशाखा जी एक नजर अपने बेटे की हालत देखती है और एक नजर अपने पीछे खड़े अपने ससुर जी को जो गुस्से में ही तपिश को देखे जा रहे थे, तभी विशाखा कुछ कहने के लिए आगे बढ़ती है, तभी रजत जी आगे बढ़ते हैं और उसके गाल पर एक जोर से थप्पड़ मार देते हैं।
यह सब इतनी जल्दी होता है कि तपिश भी समझ नहीं पाता और दो कदम लडखडा कर अपने ही गाड़ी से टिक जाता है, वह सामने देखते हुए अब होश आता है, कि वह कहां है और क्या कर रहा है? "
वह अपने गाल पर हाथ रख अपने गुस्से को दबाते हुए अपने दादाजी से बोला, "दादू आपने मुझे थप्पड़ क्यों मारा?"
यह सुनते ही रजत जी बोले, " शायद मैंने तुझे बचपन से ही मारा होता, तो तेरी इतनी हिम्मत नहीं होती, की दो दिन से घर से गायब रहता और यह नशेड़ियों की तरह अपनी हालत बना के रखी है, जरा खुद को स्मेल कर, पूरे के पूरे शराब में डूबे हुए शराबी लग रहे हो, यही संस्कार, यही परंपरा हमारे घर से तुमने सीखे हैं? "
"अगर तुम्हारी ऐसी हालत मेरे दोस्त की फैमिली वाले देख लिए होते तो क्या इज्जत रह जाती मेरी उन लोगों की नजर में?"
यह सुनते वो अपने हाथों की मुट्ठीयां कसकर भींच लेता है और कुछ कहने को होता है, कि विशाखा की आंसू भरी आंखें और उनकी ना में सिर हिलाना देख चुप रह जाता है।
तपिश अपने हाथों की मुठिया कस कर चुप हो जाता है। यह देख रजत जी आगे बोलते हैं, " अब तुम मेरे घर में तब तक अपना मुंह मत दिखाना, जब तक कि मैं ना चाहूं, निकल जाओ मेरे घर से।"
यह सब सुनते ही तपिश की आंखों में आंसू निकल जाते हैं और वह एक नजर विहान को देखता है और एक नजर अपने चारों तरफ और वह गुस्से में अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से निकल जाता है।
उसके निकलते ही विशाखा दौड़ती है, पर तब तक उसकी गाड़ी तेजी से निकल चुकी होती है, वही विशाखा रजत जी की तरफ मुड़कर बोली, " पापा जी आपने यह क्या किया?"
"पता है ना वह कितना जिद्दी है, अगर आपने कहा है, तो आप जब तक नहीं बुलाएंगे, तब तक वह नहीं आएगा। "
यह सुन रजत बोले, "अगर मेरे घर की इज्जत और मर्यादा पर इसकी वजह से यही परछाई पढ़ने वाली है, तो मैं चाहता भी नहीं वह यहां आए।"
यह बोल वो वहां से चले जाते हैं, विशाखा रोते हुए वहीं पर बैठ जाती हैं. यह देख रागनी जी उसके पास आती है और वह विशाखा रोते हुए बोली, "मां पापा को समझाइए ना, जैसे वो जिद्दी है वैसे ही तपिश भी जिद्दी है।"
वह जिद्दीपन में उन्ही पर गया है और पापा भी अपनी जिद नहीं छोड़ेंगे और ना ही वह जिद छोड़ेगा, एक तो बहुत मुश्किल से वो घर आता है। " यह बोल वह रोने लगती है।
वही कार में चाहत खिड़की पर चुपचाप आँखे बंद किए हुए बैठी थी।
संगीता उसे ही देखे जा रही थी अंजू तो अपनी ही फोटो को देखे जा रही थी, जो उसने ठाकुर विला में खिचवाई थी।
संगीता चाहत को देखकर कुछ पूछना चाहती थी, पर वह अभी कुछ पूछती नहीं, तभी अचानक एक तेज गाड़ी पूरी रफ्तार से उनकी गाड़ी को ओवरटेक कर आगे निकलती है, उस गाड़ी के निकलते ही अचानक चाहत अपनी आंखें खोल कर देखती है, तो वह गाड़ी हवा को चीरते हुए आगे बढ़ जाती है. ना जाने क्यों चाहत का दिल फिर से धड़कने लगा था। वह अपने दिल पर हाथ रखकर अपनी आंखें बंद कर लेती है, तो उसे दो आंखें नजर आती है और उन आँखो को देखते हीं चाहत अपनी झट से आँखे खोल लेती है।
चाहत को ऐसा बिहेव करता देख बगल में बैठी संगीता उसके कंधे पर हाथ रख पूछती है, "चाहत क्या हुआ?आर यू फाइन? "
वहीं दूसरी तरफ स्पीड से गाड़ी चलाते हुए फिर से तपिश एक क्लब में पहुंचता है, और क्लब में पहुंचते ही वो बार काउंटर पर जोर से टैप करते हुए बोला, "2 बोतल बोडका।"
यह सुनते ही वह सभी सामने खड़े इंसान को देखने लगते हैं, यहां एक शॉट में ही इंसान को इतनी चढ़ जाती है और वह भी इंसान इतना एक्सपेंसिव बोडका मांग रहा है।
यह देख वहां का मैनेजर एक बार उसकी स्थिति पर ऊपर से नीचे नजर डालता है और देखते हुए बोलता है, " सर क्या आप इस पे कर पाएंगे? "
ये सुनते ही तपिश एक बार अपने गर्दन पर हाथ सहलाता है और अगले ही पल गुस्से में उसका कॉलर पकड़ लेता है और कॉलर पकड़ते ही अपने गुस्से और लाल आंखों से उसे घूरते हुए बोला," एक्सक्यूज मी, तुझे क्या मैं भिखारी दिखता हूं? "
" तपिश ठाकुर मेरा नाम है, तपिश ठाकुर।"
यह बोल अपनी जेब से कई सारे कार्ड उसके मुंह के ऊपर फेंकते हुए बोलता है, "यह ले इसे चेक कर ले।"और यह बोल वह एक कांच का गिलास उठाकर जोर से पटकता है, जिसे सभी उसे देखने लगते हैं, वहां पर अचानक सॉन्ग भी बंद हो जाता है।
तपिश जो पहले से ही अपने नशे में था, वह बोला," आज तुम सभी का बिल मैं पे करूंगा।" सभी उसे अजीब नजरों से देखने लगते है, क्योंकि तपिश के कपड़े इतने गंदे हो चुके थे जैसे दो दिन से ऐसे ही घूम रहा हो।
उन सब लोगों को लगा कि यह इंसान झूठ बोल रहा है। सभी को अपनी तरफ देखते हुए तपिश हसनें लगता हैं, और हंसते हुए चेयर पर बैठ सभी लोगों को देख बोला, "आज मेरे घर वालों ने मुझे घर से निकाल दिया, इस खुशी में एक सेलिब्रेशन हो जाए और दूसरा मैंने अपने प्यार को अपनी इन्हीं आंखों से दीदार नहीं कर पाया, तो इस गम में डबल सेलिब्रेशन।"
मैनेजर अब तक कार्ड चेक कर चुका था और कार्ड में इतना पैसे देख अगले ही पल किसी नौकर की तरह तपिश के आगे खड़ा होकर उसे बड़े ही रिस्पेक्ट से बोला, " सर हमें माफ कर दीजिए। हमें नहीं पता था आप कौन है। यह सुनते ही तपिश अपना हाथ आगे करता है। तो मैनेजर पुरानी ब्रांड बोडका की एक बोतल उसके सामने कर देता है।
बोतल को देख तपिश उसका ढक्कन बड़ी स्वैग से खाेलता है और उसे मुंह में लगाकर लगभग आधा खाली कर देता है।
उसका यह स्टाइल वहां कुछ लोगों को आकर्षण भी कर रहा था, तो कुछ हैरान भी थे।
शराब पूरी गले से उतारने के बाद वह अपनी आंखों को गोल घुमाकर हंसते हुए बोला, " कितनी अजीब बात है ना मैनेजर, तुम सभी इंसान ऊपरी चीजों को देखकर अंदाजा लगा लेते हो और देखो पैसों की पावर। तू मेरे सामने इस समय किसी पालतू कुत्ते की तरह आगे पीछे घूम रहा है। "
मैनेजर को उसकी बात सुन गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर वह कुछ बोल नहीं सकता था, क्योंकि उसकी यही ड्यूटी थी, अमीरों को हाथ से ज्यादा लूटना।
तपिश डीजे वाले को इशारा कर बोलता है, "सॉन्ग प्लीज। " डीजे वाला सॉन्ग बजा देता है, तो तपिश जा कर स्टेज पर डांस करने लगता है।
वहीं कुछ लड़कियां जो उस पर कब से अपनी नज़रें गाड़ाई हुई थी, उसके आगे पीछे होकर नाचने लगती है। वहीं अब तक तपिश भी पूरा नशे में डूब चुका था और लड़कियां आगे पीछे से प्रवोक करने में लगी थी। प्रवॉक करने में ही सभी आपस में ही झगड़ने लगी थी। तभी एक लड़की जो वहां बैठे कब से ये सब देख रही थी। वो खड़ी होती है और अपने कदम तपिश की तरफ बढ़ाती है और तपिश के कंधे पर हाथ रखती है।
तपिश पीछे मुड़कर उसे देखता है। तो वह लड़की तपिश की गर्दन में अपने हाथ डालते हुए बोलती है, " मुझे लगता है मेरे साथ भी एक डांस हो जाना चाहिए।"
तपिश उसकी कमर से पकड़ खुद के पास खींच लेता है। वह लड़की बेहद सुंदर थी। सभी लड़कियां जो अभी तक तपिश को प्रवॉक कर रही थी और तपिश बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा था।
लेकिन इस लड़की जो की बेहद खूबसूरत है उसे खुद की तरफ खींचते हुए वह बोलता है, " ब्यूटीफुल लेडी क्या एक डांस हो जाए? "
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अब आगे
"चाहत की आंखें कोयल की आवाज़ से खुलती हैं। जब वह अपनी आंखें खोलती है, तो पाती है कि वह अभी भी बालकनी में बैठी है। वह आंखें मलते हुए उठती है और जैसे ही सीधी होकर बैठती है, उसकी नज़र सामने रखी एक पेंटिंग पर जाती है।
वह पेंटिंग दो आंखों का स्केच थी। चाहत उसे उठाकर ध्यान से देखने लगती है और फिर उन आंखों को निहारते हुए बुदबुदाती है—
"कौन हैं आप? क्यों मैं आपकी आंखें भूल नहीं पाती?"
जैसे ही वह अपनी आंखें बंद करती है, एक पुराना पल उसकी यादों में लौट आता है...
वो पल, जब वह रात के अंधेरे में सड़कों पर बदहवास भाग रही थी। उसके पीछे कुछ लड़के थे। डर से कांपती चाहत तेज़ी से भाग रही थी, तभी वह किसी से टकरा जाती है — एक लंबा, चौड़ा इंसान। उसका चेहरा अंधेरे में छुपा हुआ था, लेकिन कार की लाइट में पीछे खड़े गुंडों की परछाइयाँ साफ दिख रही थीं।
चाहत डरी हुई आवाज़ में बोली, "प्लीज़... हेल्प मी।"
इतना सुनते ही वह अजनबी उसे एक तरफ खींचकर अपने पीछे कर लेता है। और तभी चाहत पहली बार उसकी आंखों को देखती है — वही आंखें, जो अब उसकी हर सुबह का हिस्सा बन चुकी थीं।
उस रात अगर वह शख्स नहीं होता, तो चाहत आज कुछ और होती — शायद टूटी, लुटी हुई। वह लड़कों से खुद को नहीं बचा पाती। इसलिए उस रात की वो आंखें, वो अहसास आज भी उसके ज़ेहन में ज़िंदा हैं।
चाहत उन्हीं ख्यालों में डूबी होती है, तभी पीछे से एक आवाज़ आती है —
"चाहत बेटा..."
वह फौरन स्केच को फोल्ड करके उठती है और पलटकर कहती है —
"जी माँ।"
कांति जी चाहत को देखकर कहती हैं — "बेटा, फ्रेश होकर नीचे आओ, हमें मंदिर जाना है।"
चाहत सिर हिलाकर हां में जवाब देती है। कांति जी एक नज़र चाहत पर डालती हैं और बाहर चली जाती हैं।
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वहीं दूसरी ओर...
सुबह के 10 बज चुके थे। तपिश शर्टलेस होकर बिस्तर पर औंधे मुंह सोया था। तभी एक लड़की कमरे में दाखिल होती है और उसके पास जाकर उसकी पीठ पर लेट जाती है। फिर दोनों की कई तस्वीरें क्लिक करती है।
फोटो खींचने के बाद वो उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहती है —
"हेलो माय हैंडसम बॉय, अब उठ भी जाओ... इतनी नींद बहुत है।"
वह धीरे से उसकी पीठ पर सेंसिटिव टच करती है। तपिश तकिये में मुंह छुपाते हुए कहता है —
"शानवी, डोंट प्रोवोक मी... वरना लेने के देने पड़ जाएंगे।"
यह सुनकर शानवी और भी पास आ जाती है — "यहीं तो लेने आई हूं बेबी।"
इतना सुनते ही तपिश आंखें खोलता है और एक झटके में उसे अपने नीचे ले आता है। पलभर में दोनों की पोज़ीशन बदल जाती है।
शानवी, जो अब उसके नीचे थी, उसकी गर्दन में हाथ डालकर बोलती है — "बेबी, यू आर सो हॉट।"
तपिश बगल में रखा फोन उठाकर उनकी कुछ तस्वीरें क्लिक करता है और किसी को भेज देता है — इतनी जल्दी कि शानवी कुछ समझ भी नहीं पाती।
तभी शानवी का फोन बजता है — स्क्रीन पर नाम आता है: अभय।
शानवी गुस्से में तपिश से कहती है — "कमीने! तुझमें हिम्मत कैसे हुई ये फोटो उसे भेजने की?"
तपिश हँसता है और बिस्तर पर लेटते हुए कहता है — "जिसकी बीवी रात भर क्लब में नाचती रहे, लड़कों को प्रोवोक करे, और फिर किसी को घर लाए — उसके पति को ये सब पता चलना तो बनता है ना!"
शानवी उठते हुए उसे लात मारती है — "साले! अगर मैं वहां नहीं होती, तो अब तक लड़कियां तुझे नोच खा जातीं!"
इतने में फिर से अभय का कॉल आता है। शानवी फोन उठाती है और बोलती है — "अभय! इस कमीने को तो तुम जानते ही हो।"
तपिश हँसते हुए कहता है — "शानवी, यार... सर में दर्द है, नींबू पानी बना दो।"
शानवी झल्लाकर कहती है — "भाड़ में जाओ!" और बाहर चली जाती है।
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असल में बीती रात शानवी क्लब में थी। जब उसने तपिश को बिल ऑफर करते देखा, तो उसकी नज़र तपिश पर पड़ी। वह उसकी हालत देखकर समझ गई कि उसने बहुत पी रखी है। दोस्ती में वह उसे घर ले आई।
शानवी, तपिश और अभय — तीनों अच्छे दोस्त थे। शानवी फ्लर्टी नेचर की थी, लेकिन प्यार सिर्फ अभय से करती थी।
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अब आगे
तपिश और शानवी कॉलेज के दिनों में भले ही सबकी नजरों में एक लवी-डबी कपल माने जाते थे, लेकिन हकीकत में दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं था।
काफी देर बाद तपिश फ्रेश होकर बाहर आता है तो टेबल पर ब्रेकफास्ट सजा हुआ देखता है।
शानवी सैंडविच रखते हुए तपिश को देखती है और तंज कसते हुए कहती है,
"द तपिश ठाकुर, जो अपने स्टाइल और फैशन के लिए जाने जाते हैं, आज इस वक्त एकदम फटीचर जैसे लग रहे हो।
तेरी हालत देखकर लगता है जैसे कई दिनों से नहाया तक नहीं।"
तपिश चुपचाप चेयर पर बैठ जाता है। शानवी उसे अभय की एक शर्ट थमा देती है, जिसे तपिश बिना कुछ बोले पहन लेता है।
शानवी सामने बैठकर ब्रेकफास्ट सर्व करते हुए कहती है,
"अब तो बता भी दे, ऐसा क्या हो गया है कि तू इस हालत में देवदास बनकर घूम रहा है?"
जैसे ही शानवी ने ये सवाल किया, तपिश जो कुछ पल को सब भूल चुका था, एकदम से ठिठकता है। वह तेजी से खड़ा होकर खिड़की के पास चला जाता है और कुछ ढूंढ़ने लगता है।
शानवी सब समझ जाती है। वह ड्रॉअर से सिगरेट निकालकर उसे देती है।
तपिश सिगरेट को होंठों से लगाकर गहरी कश लेता है।
शानवी जानती थी, जब तपिश बहुत डिस्टर्ब होता है, तो वो इसी तरह खुद को संभालता है।
खिड़की से आ रही धूप सीधी तपिश के चेहरे पर पड़ रही थी। शर्ट के बटन खुले थे और उसके सिक्स-पैक ऐब्स साफ़ नजर आ रहे थे।
वो बेहद हैंडसम लग रहा था, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग ही ज्वाला सुलग रही थी।
तपिश कुछ कश लेकर बोला,
"मेरे प्रिय दादाजी ने मुझे घर से निकाल दिया है।"
शानवी हँस पड़ी और बोली,
"अरे ये कौन सी नई बात है? तेरे दादाजी तो तुझे रोज़ ही निकालते हैं!"
पर जैसे ही उसने तपिश का चेहरा देखा, वो चुप हो गई — तपिश इस बार सच में गंभीर था।
तपिश ने कहा,
"शानवी, मैं किसी से प्यार करता हूँ।"
शानवी मुस्कुराकर बोली,
"ये तो हमें सबको पता है, तू उस अनजान लड़की से प्यार करता है जिसके लिए तूने न जाने कितनी लड़कियों को ठुकरा दिया। और ऊपर से, वो कोई बच्ची है!"
तपिश ने सिगरेट के कश लेते हुए जवाब दिया,
"वो मुझे मिल चुकी है।"
यह सुनकर शानवी एक्साइटेड होकर बोली,
"क्या! तू मिल चुका है उससे? कौन है? कैसी है? मुझे भी मिलवाएगा?"
तपिश उसकी आंखों में खोए हुए धीमे से बोला,
"अगर कहूं वो आसमान से उतरी कोई परी है, तो ये उसकी तौहीन होगी।
अगर कहूं वो किसी एंजेल जैसी है, तो भी उसकी सुंदरता के आगे ये कुछ नहीं।
वो इतनी हसीन है कि बस एक नज़र में दिल में उतर जाए।
उसकी वो झुकी हुई आंखें... जो सब कुछ बयां कर देती हैं,
और उसकी पलके... जो बंद होकर भी बहुत कुछ कह जाती हैं।"
तपिश इतना ही कह पाया था कि शानवी ने उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए पूछा,
"अगर वो इतनी सुंदर है और तुझे मिल भी चुकी है, तो फिर तू इतने टूटे हुए क्यों लग रहा है?"
तपिश उदास होकर बोला,
"मिल तो गई है... लेकिन अब भी बहुत दूर है।"
शानवी उसकी उलझी हुई बातें सुन गुस्से में बोली,
"तपिश! तू सीधे-सीधे बता, दिमाग मत चकरा।"
तपिश उसकी तरफ मुड़ा और सीधा बोला,
"वो... रेयांश भाई की होने वाली वाइफ है — मेरी होने वाली भाभी।"
ये सुनकर शानवी का हाथ अपने आप उसके मुंह पर चला गया। तभी दरवाजे के पास एक आवाज गूंजी,
"What?"
दरवाज़े पर कोई और नहीं, विहान खड़ा था,
जिसे शानवी ने मैसेज करके बुलाया था — क्योंकि वो जानती थी कि तपिश के अचानक गायब होने पर सबसे ज्यादा फिक्रमंद वही होगा।
विहान यह सुनकर सन्न रह गया।
जिस लड़की के लिए तपिश इस कदर पागल है, वो रेयांश की मंगेतर है?
वो धीरे से आगे बढ़ा और तपिश को देखकर बोला,
"तपिश... तुझे अंदाजा भी है कि तू क्या कह रहा है? चाहत...? सीरियसली?"
दूसरी तरफ
शाम हो चली थी, पर अग्निहोत्री हाउस में एक अलग ही माहौल बना हुआ था।
उन्होंने भले ही शादी के लिए ‘हाँ’ कर दी थी, पर इतनी जल्दी सब कुछ कैसे होगा — यह सवाल सबके मन में था।
भले ही ये सब ठाकुर परिवार के लिए आसान था,
पर अग्निहोत्री परिवार के लिए उतना ही मुश्किल।
क्योंकि उनके घर की यह पहली शादी थी, और वे इसे पूरे धूमधाम से करना चाहते थे।
सभी आपस में शादी से जुड़ी बातें कर ही रहे थे,
तभी बाहर एक गाड़ी आकर रुकती है।
गाड़ी रुकते ही रानी जी बोलीं,
"मुझे लगता है व्योम आ गया है। प्रिया, जाकर दरवाज़ा खोलना।"
प्रिया जो किचन में कुछ काम कर रही थी, आते हुए बोली,
"जी दादी जी, जा रही हूँ।"
प्रिया दरवाज़ा खोलती है तो सामने सच में व्योम खड़ा होता है।
व्योम प्रिया को देख कर बोला,
"प्रिया, ज़रा एक कड़क चाय बना कर लाना।"
यह सुनकर प्रिया मुस्कुराई और बोली,
"जी भाई," और वह वहां से चली गई।
शांति जी भी उसे देखकर उठकर खड़ी हो जाती हैं।
व्योम अपनी मां को सामने देखकर झुककर उनके पैर छूता है।
उसे देख कांति जी उसके सिर को सहलाते हुए बोलीं,
"कोई इतनी भी देर करता है क्या आने में?"
यह सुन व्योम अपनी मां को गले लगाते हुए बोला,
"मां, आपने इतनी अर्जेंटली बुलाया इसलिए आया हूं…
वरना मुझे कुछ दिन और रुकना था।
आपकी ‘अर्जेंट बात’ ऐसी थी कि मुझे ना चाहते हुए भी अपनी डील कैंसिल करके आना पड़ा।"
"क्या मैं पूछ सकता हूं, ऐसी क्या इमरजेंसी थी जो आपने इतनी शॉर्ट नोटिस पर बुला लिया?"
कांति जी मुस्कुराते हुए बोलीं,
"अब पहले अंदर तो आ, थोड़ा पानी-चाय नाश्ता कर ले।
फिर जिस काम के लिए बुलाया है वो भी बता दूंगी।"
यह सुनकर व्योम मुस्कुरा देता है और आगे बढ़कर दादी और बाकी सभी के पैर छूता है।
फिर दादी को देखते हुए बोला,
"मेरी डॉल नहीं दिख रही? मेरी उससे बात हुई थी, उसने कहा था वो आने वाली है।"
तभी किचन से आवाज आती है:
"आपकी डॉल किचन में है… आपके लिए आपकी फेवरेट चाय बना रही है, भाई।"
यह सुनते ही व्योम के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
वह मुस्कुराते हुए अपनी फैमिली को देखता है और बोला,
"अब तो इसका ग्रेजुएशन का पहला साल भी पूरा हो गया है,
अब सिर्फ दो सेमेस्टर बचे हैं।
और दो महीने की छुट्टियाँ भी हैं…
तो अब कम से कम ये हमारे साथ तो रहेगी!"
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अब आगे
ये सुनते ही व्योम के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वह मुस्कुराते हुए अपने परिवार को देखते हुए बोलता है, " चलिए अब तो उसका ग्रेजुएशन का फर्स्ट इयर कंप्लीट हो गया है, अब इसका लास्ट टू सेमेस्टर बचे हैं और अब 2 महीने की छुट्टी भी हो गई है,कम से कम हमारे साथ तो रहेगी। "
वहीं उसकी बात सुनकर सभी एक दूसरे को देखने लगते हैं, वहीं चाहत भी उसकी यह बातें सुनती है,पर कुछ बोलती नहीं और वह चाय को बाहर लाते हुए अंजू को आवाज दी, "अंजू आपकी कॉफी किचन में है जाकर ले लो। "
वही अंजू हेड फोन कान में लगाए हुए नीचे आते हुए बोली, "दी आप मुझे दे दो ना मैं पढ़ाई करने जा रही हूं। "
ये सुन चाहत उसे घूरते हुए बोली, "मुझे दिख रहा है आपकी कितनी पढ़ाई चल रही है और कुछ हाथ भी चलाया करो। "
चाहत की बात सुन अंजू को एहसास होता है कि वह तो अपने कमरे की तरफ जा रही थी और वह अपने ही धुन में सीढ़ी की तरफ आ जाती है, तभी उसकी नजर नीचे जाती है जहां शांति और घर के सारे लोग उसे बुरी तरह से घूर रहे थे।
तभी सामने उसकी नजर व्योम पर पड़ती है तो व्योम को देखकर वह दौड़कर उसके पास जाते हुए बोली, " भाई यह क्या? "वहीं चाहत जो व्योम के पास ही जा रही थी, वह चाहत के पहले ही अंजू जाकर व्योम से लिपट जाती है।
व्योम उसके सिर पर मारते हुए बोला,"बंदरिया तू अब बड़ी हो गई है और उछल-कूद कम किया कर।" यह सुन शांति बोली, " अब तुम ही बताओ इसको कि ये महारानी बड़ी हो गई है और बिल्कुल भी उठने-बैठने का तरीका ही नहीं सीखा जा रहा है।"
यह सुन अंजू मुंह बनाते हुए बोली, " इस घर में आपकी एक बेटी संस्कारों से भरी है ना तो मुझे आप बिगड़ा ही रहने दे... "यह कहकर वह अपना मुंह बना लेती है सभी बस नागवरी से सिर हिला देते हैं।
तभी चाहत को देख भी व्योम पूरा इमोशनल हो जाता है, चाहत चाय की ट्रे टेबल पर रखती है और जाकर व्योम के गले लग जाती है।
व्योम उसका सिर सहलाते हुए बोला," कैसा है मेरा बच्चा?"
चाहत मुस्कुरा कर बोली, " हम ठीक हैं भाई।"सभी उन भाई बहनों के प्यार को देखे जा रहे थे।
तभी व्योम चाय पीते हुए बोला, " तुझे आज भी मेरी पसंद याद है। " यह सुन चाहत हंसते हुए बोली, " भाई मैं सिर्फ कुछ महीने पहले ही यहां से गई थी और आप लोग ऐसी बातें कर रहे हो जैसे मैं ना जाने कितने समय से आपसे दूर हूं। "
व्योम चाय पीते हुए अपनी फैमिली वालों को देख बोला, " तो अब मुझे मेन मुद्दा बताइए आखिर क्या बात है जिसके लिए आप लोगों ने मुझे यहां पर बुलाया है? "
वही व्योम की बात सुन सभी घर वाले एक दूसरे को देख रहे थे तभी व्योम चाय पीते हुए ही बोला, "तो आप सभी कुछ बताएंगे?क्योंकि मुझे काफी बेचैनी हो रही है।" यह सुनते ही शांति की रानी जी की तरफ देखकर इशारा करती है तो रानी जी अपने पति रामेश्वर जी की तरफ।
तो रामेश्वर जी अपना गला साफ करते हुए बोलते हैं, "वह हम तुमसे बताने वाले थे की चाहत की शादी.... "
यह सुनते ही व्योम बोला, " चाहत की शादी का नाम भी मत लीजिए, वह सिर्फ अभी 19 साल की है, अभी उसकी उम्र ही क्या है जो आप उसकी शादी की बात कर रहे हैं। "
ये सुन सभी एक दूसरे को देखते हैं तभी फिर रामेश्वर जी बोले, " मेरे कहने का मतलब है कि हमने चाहत के लिए एक रिश्ता देखा है।"
यह सुन व्योम अपने दादाजी को घूरते हुए बोला, " हमारी इस बारे में पहले ही बात हुई थी ना कि दादाजी, की चाहत की शादी जब तक वह 22 साल की नहीं हो जाती या फिर जब तक चाहत ना चाहे उसकी शादी के लिए फोर्स नहीं करेंगे। "
"वह एक फैशन डिजाइनर बनना चाहती हैं,और आर्टिस्ट उसका सपना है और हम उसकी शादी कर देंगे, तो उसकी सपने टूट सकते हैं, आप सभी को पता ही है लोग शादी के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं पर होता ऐसा कुछ नहीं है। "
यह सुन सभी टेंशन से एक दूसरे को देखने लगते हैं। सभी को पता था व्योम चाहत के प्रति कितना ज्यादा पजेसिव है। वह अपनी बहन को अपनी पलकों की छांव में बड़ा किया है। भले ही कहने को माता-पिता राम और कांति थी। पर उसकी परवरिश व्योम ने की थी। व्योम चाहत से सात आठ-साल लगभग बड़ा था। वह चाहत को अपनी बच्ची की तरह मानता था।
रामेश्वर जी की भली ही इस घर में चलती थी। पर चाहत के लिए व्योम का ही सारा डिसीजन मायने रखता था। क्योंकि यदि उसकी ना तो उसकी ना और वह किसी के खिलाफ खड़े हो जाता था।
तभी रामेश्वर की हिम्मत करके बोले, " व्योम बेटा मेरे कहने का मतलब है कि एक रिश्ता जिसमें वह चाहत को आगे बढ़ाने और पढ़ने लिखने की सारी छूट होगी और यह गारंटी है कि...... यह सुन थोड़ा चिढ़कर बोला, "दादाजी यह क्या आप लोग चाहत की शादी-शादी का अलाप गा रहे हैं। "
" आपको कोई जरूरी काम नहीं था यही बात करने के लिए आप लोगों ने मेरी इतनी बड़ी मीटिंग को छुड़वाया कर बुलाया है। "
सभी थोड़े टेंशन में हो जाते हैं जब शादी के नाम पर ही व्योम इतना चिढ़ा हुआ है तो जब उसे पता चलेगा की चाहत की इंगेजमेंट और आने वाले चार-पांच दिन में उसकी शादी की बात हो रही है तब वह कैसे रिएक्ट करेगा।
तभी व्योम अपने परिवार वालों को एक नजर देखता है और हाथ बांधकर बैठते हुए एक नजर सभी को घूरता है उसे कुछ तो गड़बड़ लगती है।
अंजू व्योम का गुस्सा देख चुपचाप एक जगह बैठ गई थी, चाहत तो पहले ही वहां से जाकर अपने दरवाजे की आड़ में सब कुछ सुन और देख रही थी।
तभी व्योम बोला, "मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कुछ ऐसी बात है जिसे आप लोग मुझे बताने में हिचकिचा रहे हैं और अब मैं साफ-साफ सुनना चाहता हूं कि आखिर बात क्या है।" यह सुन राम जी गहरी सांस लेते हैं और क्यों कोई एक सिरे से सब कुछ बता देते हैं।
यह सब सुनते ही व्योम अपना सर पकड़ लेता है, कुछ देर तक तो वहां शांति थी, फिर वह सामने सभी को देखते हुए बोलता है, "आप लोगों का दिमाग खराब हो गया है मेरी बहन की इंगेजमेंट भी हो गई और मुझे अभी तक कुछ पता भी नहीं है क्या आप लोगों ने इस बारे में चाहत से उसकी हामी पूछी है? "
यह सुनते ही रामेश्वर जी बोले, "व्योम तुम्हें क्या लगता है कि हम अपनी प्रिंसेस की कहानी ऐसी जगह पर शादी करेंगे जिससे वह ना खुश रहे। "
" प्रैक्टिकल होकर सोचो आज नहीं तो कल हमें शादी करनी ही है पर हमें इतना अच्छा रिश्ता इतना अच्छा परिवार कहां मिलेगा। " और लड़का भी काफी अच्छा है, अभी तुमने कहा कि तुम उसे जानते भी हो तो तुम बताओ कि रेयांश ठाकुर कैसा है? "
यह सुन व्योम चुप हो जाता है।वह बिजनेस की सिलसिले में रेयांश से एक बार मिला था वह उसे काफी अच्छा बिजनेसमैन लगा था।
तभी कांति जी बोली, " बेटा इस दुनिया में लड़का तो हम खोज लेते पर परिवार मिलना बहुत मुश्किल होता है, हम गए यही जानने के लिए कि आखिर उनका परिवार कैसा है? "
"बेटा हम हम खुद शॉक्ड थे इतना बड़ा खानदान जो किसी कितनी बड़ी रहीसी में आता है पर वह इतना डाउन टू अर्थ है एकदम उनसे मिलकर ऐसा लग ही नहीं जैसे हम उनके आगे इतने छोटे हैं। "उनकी बात पर एक बार व्योम भी सोचने पर मजबूर हो जाता है।
आखिर वह भी तो चाहता था कि उसकी बहन की शादी हो तो एक अच्छे घर हो परिवार में क्योंकि चाहत एक परिवार में रहने वाली लड़की थी और अगर ऐसा परिवार मिले तो क्या खराबी थी बस यह सब थोड़ी जल्दबाजी में हो रहा था।
व्योम कुछ देर तक कुछ सोच उठकर खड़ा होते हुए बोला," मैं इस बारे में कुछ देर सोच कर ही और चाहत से इस बारे में बात कर ही अपना डिसीजन बताऊंगा। " यह बोल वो वहां से चला जाता है सभी एक गहरी सांस लेते हैं क्योंकि व्योम ने यदि हामी नहीं भरी थी तो उसे ना भी नहीं किया था।
फिर वो वहां से जाते हुए बोलता है, " मैं इस बारे में चाहत से बात करूंगा उसके बाद ही आप सभी को अपना डिसीजन बताऊंगा…"
वहीं रात के समय (ठाकुर निवास)
रात के 12:00 बजे ठाकुर विला के सामने एक कार आकर रूकती है।
कार से रेयांश बाहर निकलता है, तो रेयांश अपनी आंखों पर लगाए हुए चश्मे को अपनी जेब में रख अपने कोर्ट को हाथों में लिए अंदर आता है, अंदर आते ही उसकी नजर सामने बैठी विशाखा जी पर जाती है.....
विशाखा मायूस सी चुपचाप सोफे पर बैठी हुई थी, रेयांश अपने कमरे की तरफ जाने लगता है पर उन्हें देख रुक जाता है और अपनी मां के पास जाकर सामने बैठ जाता है, विशाखा अपना चेहरा घूमा लेती हैं यह देख रहे रेयांश गहरी सांस लेकर उनके हाथ पकड़ बोला, " क्या हुआ मन आप इतनी रात को जगी हुई है? "
यह सुन विशाखा है उसकी तरफ देख एक फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली, " मां जब अपने बच्चों को पैदा करती है ना सिर्फ इसलिए ताकि बड़े होने पर वह उनका सहारा बने वह उनके दुखों को मिटा सके पर मेरे सारे के सारे बच्चे मेरे ही दुखो का कारण बनते जा रहे हैं तो एक मां कैसे खुश रह सकती है? "
यह सुन रेयांश उन्हें देख बोला, " क्या हुआ मां मुझसे कोई गलती हुई है? " यह सुन विशाखा उसकी तरफ देख उसे देख बोली, "तुमसे गलती नहीं गलती मुझसे हुई है, एक मां अपने बेटों के मन की बात को नहीं जान पायी, तभी तो मेरे बेटे मुझे यह तक बताना जरूरी नहीं समझते कि वह कहां जा रहे हैं?क्यों जा रहे हैं?कब आएंगे? कब नहीं? यह बोलते हुए उनकी आंखों में नमी आ जाती है।
यह सुन रेयांश उनके हाथों को पकड़ अपने गालों से लगाते हुए बोला," मां ऐसी बात नहीं है, आप बहुत अच्छी मां है और आपको ऐसा क्यों लगता है, आखिर क्या गलती हुई है मुझसे? जो आप मुझसे ऐसी बातें कर रहे हैं और आप भी यह जानती हैं कि मैं यह शादी नहीं करना चाहता।"
यह सुन विशाखा बोली, " यही तो मैं आपसे पूछना और समझना चाहती हूं, कि जिस शादी को आप नहीं करना चाहते वह शादी कुछ दिन बाद है। "
पर आप इस तरह से बिहेव कर रहे हैं, आप अपने नहीं तो कम से कम उस लड़की के बारे में सोचिए जो किसी उम्मीद से इस घर में आएगी, यह सुन अचानक रेयांश को चाहत की याद आती है और वह तो भूल ही चुका था, कि उसकी जिससे शादी होने वाली है और एक लड़की उसकी जिंदगी में आ रही है, तभी विशाखा उसके हाथ की तरफ इशारा करते हुए बोली, " आपने तो इतनी जल्दी अंगूठी भी उतार दी, आप इस रिश्ते को नहीं निभाना चाहते पर कभी सोचा है उस लड़की का क्या होगा? "
"अगर आपको शादी नहीं करनी तो आप हमें बताइए हमें शादी को हर हाल में तोड़ेंगे।" तभी रेयांश खुद से बोला, " नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता, अगर मैं शादी को नहीं की तो दादाजी ने जो कहा है वह करके रहेंगे। "
वह खुद से बोला, "नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता.." उसे खोया हुआ देख विशाखा उसे हिलती हैं और रेयांश अपने सेंस में आते हुए बोला, " माँ ऐसा कुछ नहीं है, आप ज्यादा सोच रही हैं, हां मैं इस रिश्ते को इतनी जल्दी एक्सेप्ट नहीं कर पा रहा हूं, क्योंकि आप ही जानती है मैं शादी के खिलाफ था और यह सब इतनी जल्दबाजी हो रही है कि मुझे भी समझ नहीं आ रहा, पर मैं इस रिश्ते को निभाने की कोशिश करूंगा। " यह सुन विशाखा जी की आंखों में एक हल्की सी चमक आ जाती है और वह उसे देख बोली, " क्या आप सच कह रहे हैं? "
रेयांश बोला, " हां माँ मैं सच कह रहा हूं। " तभी विशाखा बोली, " तो ठीक है परसों आपकी हल्दी शुरू होने वाली है और कल का समय है, मैं चाहती हूं कि आप चाहत से मिले, और उन्हें जाने और समझे मैं चाहती हूं कि आप दोनों शॉपिंग पर जाएं और इसी बहाने एक दूसरे को थोड़ा बहुत जान ले, क्योंकि जिंदगी आप दोनों को ही बितानी हैं। "
ये सुन रेयांश अपनी मां को देख सिर्फ सिर हिला कर वहां से चला जाता है।
वहीं विशाखा खुद से कहती है, "उम्मीद करती हूं कि आप जैसा कह रहे हैं वैसा ही हो, मैं उस मासूम सी लड़की की आंखों में तकलीफ नहीं देख सकती।"
तभी उन्हें तपिश का ख्याल आता है तो वह खुद से बोली, "इस लड़के का मैं क्या करूं यह इतना जिद्दी है, ना जाने कहां हैं, मुझे पता भी नहीं चल रहा है, भगवान मेरा बच्चा सुरक्षित हो। "
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अब आगे
रात गहरी थी, गर्मी का मौसम… और ऊपर छत पर ठंडी हवा अपनी पूरी राहत के साथ बह रही थी।
चाहत छत पर खड़ी, उस हवा को जैसे अपने अंदर उतार रही थी।
शायद उसके दिल में कुछ बेचैनी थी, शायद कोई हलचल... और उसी बेचैनी को सुकून में बदलने के लिए वो इस रात, इस छत पर आ गई थी।
तभी पीछे से एक आवाज आई,"कितना सुकून है ना छत पर।"
व्योम उसके पास आकर खड़ा हो गया और उसके हाथ में चाय का कप थमा दिया।
उसे पता था, उसकी बहन को भी उसकी तरह चाय बहुत पसंद है।
चाय का कप देखकर चाहत मुस्कुराई,
"भाई, आपके हाथ की चाय… वो भी ऐसे मौसम में! ये तो मेरी खुशनसीबी है।"
उसकी मुस्कान जैसे उस रात को भी रोशन कर रही थी।
व्योम चाय की चुस्की लेते हुए बोला,
"सोचा तुझे अपनी हाथों की चाय पिला दूँ। फिर तू अपने ससुराल चली जाएगी… न जाने फिर ये मौका मिले या ना मिले।"
‘ससुराल’ शब्द सुनते ही चाहत की चाय रुक गई।
उसने धीमे से अपने भाई की ओर देखा।
व्योम उसकी आँखों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन जितना वो चाहत के भाव पढ़ना जानता था,
उससे कहीं ज़्यादा चाहत अपने भाव छुपाना जानती थी।
चाहत मुस्कुराते हुए बोली,
"भाई, आपको क्यों लगता है कि ये हमारी आख़िरी चाय है?
क्या आप नहीं चाहते कि मैं शादी के बाद भी इस घर में आऊं?"
व्योम तुरंत उसे अपनी ओर मोड़ते हुए बोला,
"ऐसा फिर कभी मत कहना।
ये घर सिर्फ़ मेरा नहीं, हमारा है…
तू हमेशा इस घर की प्रिंसेस थी और हमेशा रहेगी।"
ये सुनकर चाहत की आँखों में नमी तैर गई,
पर उसने अपनी मुस्कान की ओट में उन आँसुओं को छुपा लिया।
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यही तो एक लड़की चाहती है,
कि शादी के बाद भी उसका मायका, उसका अपना ही घर रहे।
कोई उसे पराया न कहे।
जब उसे कोई तकलीफ़ हो, तो वह बेहिचक अपने भाई या परिवार से कह सके।
व्योम ने चाय का कप पास में रखा,
फिर चाहत का हाथ थामकर हल्के स्वर में पूछा, "बच्चा… क्या तू इस शादी से खुश है?
क्या ये फैसला तूने खुद लिया है?
कोई दबाव तो नहीं था ना? अगर तू मना करना चाहे, तो मैं तेरे साथ हूं। पर ये फैसला तू दिल से ले… मजबूरी में नहीं।"
व्योम के इन सवालों को सुन चाहत बस उसे देखती रही, उसकी आँखों में भाई का निःस्वार्थ प्यार साफ झलक रहा था।
उसने व्योम का हाथ थामते हुए जवाब दिया,
"भाई… मुझे नहीं पता कि मैं उसे जानती हूं या नहीं, पर मैं जानती हूं कि मेरी फैमिली मेरे लिए कभी गलत नहीं चुनेगी। अब तक वहां कुछ भी ऐसा नहीं लगा जो बुरा हो।
वहां की फैमिली… स्मृति, विशाखा, मानवी, वर्तिका… सब बहुत अच्छे हैं।"
वो सबके नाम लेते हुए मुस्कुरा रही थी।
आख़िर मुस्कुराहट की वजह भी तो थी —
“ठाकुर फ़ैमिली” ने उसे इतना स्नेह दे दिया था पहले ही दिन, कि वो उनकी तारीफ़ों के पुल बांधने लगी थी।
लेकिन तभी, व्योम ने सीधा सवाल पूछ लिया,
"और रेयांश? जिससे तेरी शादी हो रही है…
क्या वो तुम्हें पसंद है?"
चाहत का दिल जैसे एक पल को थम गया…
ना उसे पहले कभी ये नाम सुनाई दिया था,
ना कभी देखा था… ना ही जाना था।
लेकिन अब उसका नाम, उसकी ज़िंदगी से जुड़ने जा रहा था।
उसका मन डोल गया, पर भाव छुपाना उसे आता था।
उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, "भाई, जब परिवार इतना अच्छा है… तो उसमें पले-बढ़े बेटे में भी तो जरूर संस्कार होंगे ना?"
व्योम भी मुस्कुरा दिया — यही तो सच था।
फिर वो बोला, "चाहत, एक बार फिर सोच ले… ये रिश्ता जुड़ गया तो फिर टूटेगा नहीं।"
चाहत उसकी आँखों में देखती हुई बोली,
"जब मुझे अपनी ही तरह एक और ऐसी प्यारी फैमिली मिल रही है, तो मैं क्यों चाहूंगी कि ये रिश्ता टूटे?"
ये सुनते ही व्योम ने अपनी बहन को सीने से लगा लिया।
चाहत की आँखों से आँसू निकल पड़े…
मगर उसने जल्दी से अपने दुपट्टे से पोंछ लिए।
उसे नहीं पता था उसके दिल में क्या चल रहा था… पर एक सुकून था — एक अपनापन।
तभी पीछे खड़े कांति जी और घर के बाकी सदस्य, जो शादी की तैयारियों में व्यस्त थे,
ये दृश्य देख नज़रों से ओझल हो गए।
कांति जी की आँखें भी नम थीं —
बेटे और बेटी का ये रिश्ता देखकर।
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और यही तो असली रिश्ते होते हैं…
जहाँ शब्दों से ज़्यादा एहसास बोलते हैं,
जहाँ सादी सी चाय, प्यार की सबसे गहरी चुस्की बन जाती है।
ज़रूर साथी, मैं आपके द्वारा लिखे इस सुंदर दृश्य को थोड़ा और सजीव, भावनात्मक और शुद्ध रूप में प्रस्तुत करता हूँ, साथ ही कुछ शब्दों को परिष्कृत कर देता हूँ ताकि पढ़ने में सहज लगे, पर भाव वही रहे —
छत पर रात का सन्नाटा और एक प्यारा सा रिश्ता...
आख़िरकार, एक मन बस यही तो चाहता है — अपनापन, सुकून, और वो एक जगह जहाँ सब कुछ सही लगे। तभी चाहत की नज़र दरवाज़े की ओर जाती है। वह व्योम से थोड़ी दूर हो जाती है। व्योम उसकी नज़र की दिशा में देखता है, तो वहाँ खड़े पूरे परिवार को देखकर मुस्कुराते हुए कहता है,
"तो आप सभी को चैन नहीं है?"
यह सुनते ही सब थोड़े सकपका जाते हैं। तभी रीना जी हल्की मुस्कान के साथ पूछती हैं,
"तो बेटा, तुम्हारा क्या निर्णय है?"
व्योम एक गहरी सांस लेकर धीमे स्वर में कहता है,
"अगर आप सबको और चाहत को सब कुछ पसंद है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।"
यह सुन सभी के चेहरे पर संतोष और मुस्कान बिखर जाती है। तभी अंजू खुशी से उछलते हुए बोलती है,
"हुर्रे! अब तो हम शादी को जमकर एंजॉय करेंगे। मैं अभी अपनी फ्रेंड को कॉल करती हूँ!"
यह बोलते हुए वह भाग जाती है।
उसे देखकर सभी मुस्कुरा देते हैं। वहीं शांति जी चाहत के पास आकर उसके माथे को प्यार से चूमते हुए कहती हैं,
"थैंक यू बेटा... हमारी पसंद को अपनी पसंद बनाने के लिए, और हम पर विश्वास करने के लिए।"
चाहत बस मुस्कुरा देती है।
थोड़ी देर बाद सभी लोग वहां से चले जाते हैं। चाहत कहती है कि वो कुछ देर छत पर और रुकना चाहती है, तो व्योम भी बिना कुछ कहे चला जाता है।
सबके जाने के बाद चाहत अपनी मुट्ठी खोलती है। उसमें एक कागज होता है — वही कागज़ जो उसने वहाँ भेजा था। कागज़ खोलते ही दो आंखों की तस्वीर सामने आती है। वही आंखें जिन्हें उसने ना कभी देखा था, ना जाना था — लेकिन अब उन्हीं आंखों से उसका रिश्ता जुड़ने वाला था। उन आंखों को देखकर उसकी आंखों में भी नमी आ जाती है।
सुबह का दृश्य — अग्निहोत्री हाउस
सुबह का समय।
अग्निहोत्री हाउस में हलचल की शुरुआत चाहत की मधुर आरती और पूजा की घंटियों से होती है। चाहत पूरे मन से आरती कर रही थी। उसके हाथों से अग्नि की रोशनी पूरे वातावरण में फैल रही थी।
तभी कांति जी और रीना जी नहा-धोकर पूजा घर में आती हैं।
चाहत बचपन से ही जल्दी उठने वालों में रही है। दादी उसके पास आकर प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं,
"भगवान तुझे सदा खुश रखे, बेटी।"
चाहत आरती खत्म कर थाल नीचे रखती ही है कि व्योम तेज़ी से पूजा घर में आता है और मज़ाकिया लहज़े में बोलता है,
"छोटी, तू लेट पूजा नहीं कर सकती!"
यह सुन चाहत मुस्कुराते हुए थाल उठाती है और किचन की ओर बढ़ते हुए कहती है,
"भाई, आपको पता होना चाहिए कि सुबह के 8 बज चुके हैं।"
वातावरण हंसी और सुकून से भर जाता है।
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अब आगे
व्योम भी आंखें खोल आते हुए बोला,"छोटी, तू लेट पूजा नहीं कर सकती।"
यह सुनते ही चाहत आरती की थाल रखकर हाथ जोड़ते हुए किचन की ओर बढ़ते हुए बोली,"भाई, आपको पता होना चाहिए, कि सुबह के 8:00 बज चुके हैं।"
यह सुन व्योम मुंह बनाते हुए चेयर पर बैठ गया और बोला,"फिर ठीक है, जा मेरे लिए छोले भटूरे बना... मुझे तेरे हाथों का खाना है।"
ये सुन चाहत किचन में जाते हुए बोली, "छोले भटूरे आपको रात को मिलेंगे, अभी के लिए आलू के पराठे बने हैं, उन्हें इंजॉय करें।"
ये सुनकर व्योम उसे घूरता ही रह गया।
बाहर से राम जी किसी से बात करते हुए आ रहे थे और बोले,"जी, मैं बता दूंगा।"
ये कहकर उन्होंने कॉल काट दी। उनके इस तरह बात करने पर कांति जी ने पूछा,
"क्या बात है? कहां जा रहे हैं आप?"
राम जी उन्हें देखकर बोले,"अरे भाग्यवान, हम नहीं... राज जी का फोन आया था। उन्होंने बताया कि शादी इतनी जल्दी में हो रही है कि बच्चे आपस में अच्छे से बात या मिल भी नहीं पाए हैं। तो, एक-दूसरे को थोड़ा जानने के लिए उन्होंने आज शॉपिंग पर जाने को कहा है।"
ये सुनकर कांति जी कुछ सोचने लगीं। वहीं चाहत ये सब सुन रही थी, लेकिन चुपचाप किचन में काम कर रही थी। तभी कांति जी ने कहा,"अकेली लड़की को उनके साथ?"
एक मां का सोचना भी सही था।
तभी व्योम बोला,"मां, ये तो अच्छी बात है कि उन्होंने छोटी और रेयांश को शॉपिंग के बहाने मिलने को कहा है।"
ये सुनकर कांति थोड़ी होलीं, पर तभी रवि ओम बोले,"आप टेंशन मत लीजिए, चाहत के साथ अंजू और संगीता भी जाएंगी।"
यह सुनकर अंजू, जो सीढ़ियों से आ रही थी और सारी बातें सुन रही थी, उछल पड़ी।
उसे देखकर शांति बोली,"क्या सच में इस लड़की को वहां जाना चाहिए?"
यह सुनकर अंजू चिढ़ कर बोली,"मां, आप ना मेरी दुश्मन हो! मैं कोई छोटी बच्ची नहीं हूं जो वहां जाकर कुछ गड़बड़ कर दूंगी।"
ये सुनकर सभी उसे अजीब नजरों से देखने लगे। तभी व्योम बोला,"और मैं खुद छोटी को छोड़ने जाऊंगा।"
यह सुनकर कांति को थोड़ी राहत मिली।
दिन के 1:00 बजे व्योम तीनों को मॉल के बाहर छोड़ता है। तीनों कार से उतरते हैं। तभी व्योम बोला,"तुम तीनों अंदर जाओ, मैं वापसी में तुम्हें लेने आ जाऊंगा।"
यह सुनकर चाहत व्योम का हाथ पकड़ लेती है। यह देख व्योम मुस्कुरा कर बोला,"जिंदगी में तुम्हें आगे बढ़ना है बच्चा... और तुम्हारे पास फोन है, कुछ भी गड़बड़ लगे तो मुझे कॉल करना। और रही बात कि मैं तुम्हारे साथ अंदर चलूं, तो मेरी छोटी स्ट्रॉन्ग है... है ना?"
यह सुनकर चाहत 'हाँ' में सिर हिला देती है।
व्योम ने कभी चाहत को लड़की होने पर यह एहसास नहीं होने दिया कि वह कमजोर है। चाहत को पढ़ने के लिए उसने उसे अकेले भेजा, पर हमेशा उसकी सेफ्टी का ध्यान भी पीछे से रखा। पर वह अंदर से चाहत को स्ट्रॉन्ग रखना चाहता था, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह अपने लिए स्टैंड ले सके।
मुंबई जैसे शहर में लड़कियों की सेफ्टी कैसी होती है, यह हम सभी जानते हैं। पर व्योम को क्या पता था कि चाहत उसके सामने खुद को स्ट्रॉन्ग दिखा देती थी, पर अंदर से वह उतनी ही नाज़ुक थी।
व्योम वहां से चला जाता है।
यह देख संगीता चाहत का हाथ पकड़ते हुए बोली,"क्या तू भी चाहत? जब हम हैं, तो तुझे डरने की क्या बात है?"
यह बोलकर वे सभी अंदर जाने को होती हैं, कि मेन डोर पर उन्हें एक आदमी रोक लेता है।वह देखने से गार्ड लगता था। वह तीनों को एक बार अजीब नजरों से देखता है।
तीनों ने नॉर्मल से आउटफिट्स पहने हुए थे।
संगीता और चाहत ने सूट पहना था, वही अंजू जींस और टॉप में थी, पर तीनों देखने में एवरेज ही लग रही थीं।
यह मॉल काफी बड़ा था, पर कहते हैं ना लोग... कपड़ों से ही सामने वाले की औकात आंक लेते हैं।शायद यही देखकर गार्ड बेरुखी से बोला,"कहां जाना है तुम सभी को?"
यह सुनकर संगीता बोली,"हमें अंदर जाना है, हमें किसी ने इनवाइट किया है।"
यह सुनकर गार्ड बोला,"किसने इनवाइट किया है तुम्हें?"
यह सुनकर अंजू एक्साइटेड होकर बोली,
"हमें रेयांश ठाकुर ने बुलाया है।"
यह सुनते ही वहां खड़े दो गार्ड एक-दूसरे को देखकर हंसने लगे।उनके हंसते ही चाहत अपने दुपट्टे को हाथों में उलझाने लगी, जैसे अपनी घबराहट को छुपा रही हो।
तभी एक गार्ड हंसते हुए बोला,"क्या तुमने हमें पागल समझ रखा है? जो रेयांश ठाकुर तुम जैसी लड़कियों को बुलाएंगे!
आज तक तो हमने उन्हें कभी किसी लड़की के साथ, क्या... ऐसी वैसी लड़की के साथ भी देखा नहीं।"
वह इतना कह ही रहा था कि तभी अंदर खड़ी एक लेडी बाहर आती है और उन तीनों को देखकर पूछती है,"आप सबका नाम क्या है?"
यह सुनते ही चाहत बोली,"हमारा नाम चाहत अग्निहोत्री है।"
यह सुनते ही वह लड़की थोड़ी घबरा गई और घबराते हुए बोली,"जी... जी प्लीज आइए, आपके लिए हमें इन्फॉर्म किया गया है।"
यह कहकर वह बड़े सम्मान से तीनों लड़कियों को अंदर ले जाती है।
यह देख गार्ड एक-दूसरे को देखने लगते हैं।
तीनों ही अंदर जाती हैं। तभी वह लड़की बोली,"आप दूसरे फ्लोर पर जाइए, आपको सर वहीं पर मिलेंगे।"
तीनों वहां से जाने लगती हैं। तभी वह लड़की आकर गार्ड्स के सामने खड़ी हो जाती है।
दोनों गार्ड्स अपना सिर झुका लेते हैं।
तभी वह लड़की बोली,"तुम दोनों को फायर किया जाता है।"
यह सुनकर गार्ड समझ भी नहीं पाते और बोले,"मैम, हमने क्या किया? हम तो अपनी ड्यूटी..."
वह इतना ही बोल पाया था कि लड़की बोली,
"यह बिग बॉस का हुक्म है।"
यह कहकर वह चली जाती है।गार्ड को तो अपनी गलती भी समझ नहीं आती।
वो तीनों जैसे ही ऊपर वाले फ्लोर पर पहुँचीं, चाहत की नज़रें खुद-ब-खुद इधर-उधर भटकने लगीं। दिल की धड़कनें मानो अपनी रफ्तार भूल चुकी थीं। उसका चेहरा थोड़ा सहमा हुआ था, और उसने अपना दुपट्टा दोनों हाथों से कसकर पकड़ रखा था — जैसे वही उसे हिम्मत दे रहा हो।
तभी पीछे से एक सख़्त और गंभीर आवाज़ आई —"आपको नहीं लगता कि आप लोग काफी लेट हैं? मुझे वक्त पर न आने वाले लोग बिल्कुल पसंद नहीं।"
चाहत उस आवाज़ को सुनते ही कांप सी गई। उसने धीरे-से पलटकर देखा, तो सामने एक तेज़ व्यक्तित्व वाला, रौबदार चेहरा हाथ बांधे खड़ा था, "रेयांश..."
उसे देखते ही चाहत की नज़रें खुद-ब-खुद झुक गईं, जैसे उसकी नज़रों की तपिश सह न पाई हो।
पीछे खड़ी संगीता और अंजू के चेहरे पर उत्साह था। अंजू तो खुशी से चहक पड़ी —
"हाय जीजू!"
रेयांश ने बस एक हल्की सी मुस्कान दी, और ठंडे स्वर में बोला,"आप सब शॉपिंग कीजिए, मुझे एक अर्जेंट मीटिंग में ऊपर फ्लोर पर हूँ । जो पसंद आए, ले लीजिए। फिर हम सब साथ में लंच करेंगे।"
उसके शब्द सीधे और साफ़ थे, लेकिन चाहत के लिए उन चंद लफ़्ज़ों में भी एक अजीब सा डर छुपा हुआ लगा। वो उसे जाते हुए बस देखती रही… जब तक वो उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गया।
संगीता ने चाहत का उतरा चेहरा देखा, फिर उसका हाथ पकड़ते हुए बोली,"तुझे पता है ना, ये लोग कितने बड़े हैं? वो तेरा टाइम निकालकर मिलने आया, यही क्या कम है? चल, कुछ देखते हैं… इस बहाने घूमना भी हो जाएगा।"
संगीता की बातों से चाहत थोड़ा मुस्कराई, और उनके साथ मॉल घूमने लगी। पर हर बार जब वो कुछ पसंद करती, तो उसकी नज़र सबसे पहले प्राइस टैग पर जाती और फिर चीज़ को वापस रख देती। यूँ ही घूमते-घूमते दो घंटे कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला।
पर अब उसके दिल में अजीब सी बेचैनी घर करने लगी थी। बार-बार ऐसा लग रहा था, जैसे कोई उसे देख रहा हो। चाहत ने दो-तीन बार पलटकर देखा, पर हर बार कोई नज़र नहीं आया।
तभी एक स्टाफ मेंबर उसके पास आया और बोला,"मैम, सर ने आपको ऊपर बुलाया है।"
ये सुनते ही चाहत घबरा जाती हैं.......
संगीता मुस्कराते हुए बोली,"जा चाहत, तुझे बुलाया है तो कोई ज़रूरी बात होगी। वैसे भी तुझे उनके साथ थोड़ा टाइम बिताना चाहिए।"
चाहत थोड़ी हिचकिचाई, पर फिर चुपचाप लिफ्ट की ओर बढ़ गई।
लिफ्ट में दाखिल होते हुए चाहत ने अपनी साँसें थोड़ी तेज़ महसूस कीं। जैसे ही उसने अपनी नज़र साइड में डाली, उसका दिल ज़ोर से धड़का। एक लंबा-चौड़ा आदमी, गहरे रंग के कपड़े पहने, उसके ठीक पास खड़ा था। उसके चेहरे पर गंभीरता और रहस्य की एक परत थी।
चाहत एक पल के लिए डर गई। उसकी आँखें खुद-ब-खुद नीचे झुक गईं। दूसरी ओर, वो शख़्स अपने जेबों में हाथ डाले, बस खामोशी से खड़ा था। उसका चेहरा छिपा हुआ था, जिससे चाहत उसे ठीक से देख नहीं पाई। पर एक हल्की सी स्माइल जो उसके चेहरे पर आई, वो चाहत को किसी अनजाने डर से भर गयी।
वो खुशबू… वो रहस्यमयी महक… जो उस आदमी से आ रही थी, चाहत को बेचैन कर रही थी।
तभी अचानक लिफ्ट की लाइट्स झपकने लगीं और एक झटका महसूस हुआ,लिफ्ट रुक गई।
चाहत एक झटके से घबरा गई,"क्या हो रहा है?"वो डरते हुए लिफ्ट के दरवाज़ों को पीटने लगी,"प्लीज़... कोई है? मुझे सफोकेशन हो रही है... प्लीज़ दरवाज़ा खोलिए!"
पर सामने खड़ा वो आदमी अब भी शांत खड़ा था, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए।
चाहत का चेहरा पसीने से भीगने लगा, साँसें तेज़ हो रही थीं। वो गिरने को ही थी कि अचानक अपने को संभालने के लिए उस अजनबी का हाथ पकड़ लिया।
उसे छूते ही चाहत को जैसे बिजली सी दौड़ गई।
और तभी... वो आदमी एक झटके में उसकी तरफ मुड़ा, और चाहत को अपने बेहद करीब खींच लिया।
उसकी पकड़ मज़बूत थी, और नज़रों में एक रहस्यमयी आग…चाहत की साँस जैसे थम गई थी।
"तेरी साँसों की थरथराहट कुछ कहती थी,
तेरे दिल की धड़कन आज रुक-सी गई थी।
जो छाया था पास, वो अजनबी क्यों अपना-सा लगा,
और जो अपना था... वो इतना दूर क्यों रह गया था?"
_________________________________
अब आगे
चाहत उस अजनबी से मदद मांग रही थी, पर वह आदमी उसकी गुहार सुनने के बजाय अचानक से उसे कमर से पकड़कर अपने करीब खींच लेता है। सब कुछ इतनी तेजी से होता है कि चाहत को समझ ही नहीं आता, कि आखिर हुआ क्या है। और जब उसे कुछ समझ आता है, तब तक वह उसकी पकड़ में आ चुकी होती है।
वो डरकर उसे पीछे धकेलने की कोशिश करती है, पर जैसे ही वह उसे दूर करती है, वह अजनबी और ज्यादा करीब आने लगता है। अब दोनों लिफ्ट की दीवार के ठीक पास आ चुके थे। चाहत की सांसें तेज हो रही थीं।
वह घबराई सी, कांपती आवाज़ में बोलती है,
"प्लीज़… दूर रहो… प्लीज़…" और लगातार उसे धक्का देती जा रही थी।
तभी अचानक वह आदमी उसका हाथ पकड़कर ऊपर कर देता है। अब चाहत सच में डरने लगती है। उसकी आंखों में डर साफ़ झलकने लगता है। तभी वह व्यक्ति उसके और करीब आता है, और अपने गाल को चाहत के गाल से हल्के से छू लेता है।
इस एक एहसास से ही चाहत कांप उठती है। वह आंखें बंद कर लेती है, भय और अनजाने स्पर्श की उलझन में।
वह आदमी कोई और नहीं, तपिश था।
उसने जानबूझकर चाहत को बुलवाया था। उसने ही एक कर्मचारी को भेजा था जिससे वह इस लिफ्ट तक पहुंचे। और वही लिफ्ट को रुकवाया भी गया था। वह बस चाहत को पास से महसूस करना चाहता था।
चाहत के डरते ही तपिश ने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।
चाहत का बदन डर के मारे कांपने लगा। उसके अंदर से लड़ने की शक्ति खत्म हो गई थी। वह उसे दूर करने की कोशिश कर रही थी लेकिन नाकाम रही।
थककर वह बस खुद को ढीला छोड़ देती है और तपिश उसे उसी हाल में अपने सीने से लगाकर खड़ा रहता है।
तपिश उसकी खुशबू में डूबते हुए उसके बालों में अपना चेहरा रब करता है और बेहद धीमी आवाज़ में बोलता है,"तुम्हारी ये खुशबू… तुम कहीं भी रहो, मुझे तुम्हारी ओर खींच लाती है।
कौन सी कशिश है तुम्हारे अंदर जो मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ?"
वह चाहत का चेहरा पकड़कर उसे अपने सामने करता है।चाहत की आंखों से आंसू बहने लगे थे।उसके सामने एक ऐसा मजबूत, दबंग इंसान खड़ा था, जिससे वह चाहकर भी खुद को आज़ाद नहीं कर पा रही थी।
अब वह चिल्ला चिल्ला कर थक चुकी थी।
तपिश उसके होंठों पर अपनी उंगली रखता है, और धीमे से कहता है,"प्लीज़… मेरी बात सुनो…"
वह चाहत की आंखों में देखकर कहता है:
"ओपन योर आइज़… जान…"
चाहत हल्के से आंखें खोलती है, पर सामने बस अंधेरा नजर आता है। उसे सिर्फ उस आदमी की नज़दीकियाँ महसूस हो रही थीं।
तपिश उसके गालों को सहलाते हुए फिर बोलता है,"क्या मेरी ये नज़दीकियाँ तुम्हें डर लगने वाली लगती हैं? क्या ये एहसास तुम्हें किसी गलत इरादे की तरह लगते हैं?"
चाहत हकलाते हुए कहती है, "कौन हैं आप?"
यह सुनकर तपिश उसके होंठों के पास अपने होंठ लाता है। चाहत डरकर आंखें बंद कर लेती है।
तभी वह धीमे से फुसफुसाता है,"मैं कौन हूँ, ये जरूरी नहीं…जरूरी ये है कि तुम सिर्फ मेरी हो, सिर्फ और सिर्फ मेरी…
और तुम मेरे सिवा कभी किसी और की नहीं हो सकती।"
उसकी बातों में पागलपन और एक जूनून साफ झलक रहा था।
चाहत अब उस एहसास में डूबती जा रही थी,
पर तभी उसे याद आया,उसकी सगाई हो चुकी है, उसकी किसी और से शादी होने वाली है। यह सब गलत है!
जैसे ही यह एहसास जागता है, वह उसे खुद से दूर करने लगती है।
तभी तपिश उसे फिर से जकड़ते हुए बोलता है,"आखिरी सांस तक मैं तुमसे यूं ही प्यार करता रहूंगा।तुम्हारी शादी होगी… पर वो सिर्फ मुझसे!"
चाहत हकला कर कहती है,"ऐसा नहीं हो सकता…"
तभी तपिश उसकी उंगली को होठों पर रखता है और कहता है,"ऐसा होगा… बस तुम मेरा इंतज़ार करना…"
यह कहकर वह उससे धीरे-धीरे दूर हो जाता है…
…और तभी लिफ्ट की लाइट जलती है… और दरवाज़ा खुल जाता है।
“कोई... चाहत को आवाज़ दे रहा था...”
कानों में गूंजती आवाज़, दिल की धड़कनों से तेज़ थी। "चाहत… दीदी… दीदी…"
अचानक चाहत की पलकों में हलचल हुई। आंखें खुलीं तो उसने चारों तरफ देखा, एकदम घबराई हुई, पर वहां कोई नहीं था।
संगीता सामने खड़ी थी, घबराई हुई आवाज़ में बोली, "तू कहां खो गई थी? लिफ्ट रुक गयी थी... हम सब दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहे थे, मैं तो डर ही गई थी कि कहीं तू अपने किसी ख्वाब में ही ना बेहोश हो जाए।"
पर चाहत... कुछ सुन ही नहीं रही थी। उसकी नज़रों में कोई और था। होंठ थरथरा रहे थे, आवाज़ कांप रही थी, "वो... वो कहां गया?"
इतना कहने के बाद चाहत की आंखें फिर से बंद हो गईं, और वो वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी।
इसी दौरान, नीचे एक मीटिंग में व्यस्त रेयांश को उसकी असिस्टेंट ने कुछ देर इंतज़ार के बाद आकर खबर दी, "सर... एक लड़की आई थी... कह रही थी कि लिफ्ट अटक गई है... और उसमें चाहत फंसी हुई है।"
रेयांश की आंखों में गुस्से की लपट थी,
"तुम ये बात मुझे अब बता रहे हो?"
वो दौड़ता हुआ ऊपर गया। तब तक लिफ्ट का दरवाज़ा खुल चुका था। सामने चाहत बेहोश पड़ी थी।
रेयांश बिना देर किए उसे गोद में उठा लिया, सोफे पर लिटाया और तुरंत डॉक्टर को बुलाया।
कुछ ही देर में डॉक्टर आए और जाँच के बाद बोले, "ये बेहोशी तनाव की वजह से हुई है। कोई गहरा झटका लगा है इन्हें।"
करीब 30 मिनट बाद चाहत को होश आया। आंखें खुलते ही सामने रेयांश था।
"यू ओके?" — उसकी आवाज़ में चिंता थी।
चाहत कुछ पल चुप रही, फिर धीरे से बोली,
"मुझे... घर जाना है।"
"ठीक है, मैं छोड़ देता हूँ," कहकर रेयांश बाहर चला गया।
पूरे रास्ते चाहत लिफ्ट में हुई उस रहस्यमयी मुलाकात को याद करती रही। उसकी आंखें बार-बार भर आती थीं।
तभी संगीता ने टोका,"क्या हुआ, तू ठीक है ना?"
चाहत ने जबरन मुस्कुराते हुए सिर हिलाया,
"हां... सब ठीक है।"
रेयांश ने एक किनारे गाड़ी रोक दी, उतरकर पानी की बोतल लाया और चाहत की ओर बढ़ाया। "लो, पानी पी लो।"
उसकी निगाहें चाहत के चेहरे पर टिकी थीं। पानी पीने के बाद रेयांश बोला, "चाहत… अगर तुम सहज महसूस करो तो… मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं। सॉरी, वहां वक्त नहीं मिला।"
तभी संगीता हँसते हुए बोली, "ठीक है, तुम लोग बात करो। हम दोनों थोड़ा टहलकर आते हैं।"
कुछ दूरी पर चाहत और रेयांश धीरे-धीरे टहलते हुए बातें करने लगे। करीब 15 मिनट बाद दोनों वापस लौटे तो उनके चेहरे पर गहराई और शांति का अजीब सा मेल था।
संगीता और अंजू ने एक-दूसरे को देखकर धीरे से पूछा,"इतनी जल्दी इनकी बातें खत्म हो गईं?"
घर पहुंचते ही रेयांश गाड़ी से उतरा, सभी परंपराओं का पालन करते हुए बड़ों के पाँव छुए। सभी को उसका व्यवहार अच्छा लगा। पर रेयांश ने कहा, "हमें अब निकलना चाहिए।"
किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसकी मौजूदगी सबको अच्छी लगी।
चाहत भी कुछ देर बाद डिनर टेबल पर आ गई, पर उसका चेहरा बुझा हुआ था। सभी ने समझा शादी नजदीक है, इसीलिए भावुक है। लेकिन सच्चाई कुछ और थी।
डिनर के बाद चाहत अपने कमरे में चली गई। बालकनी में खड़ी चाहत की आंखें बंद थीं और दिल अंदर ही अंदर एक फैसला ले चुका था।
"मैंने डिसीजन ले लिया है… रेयांश जी, मेरे परिवार की खुशी आपसे शादी में है… तो मैं पीछे नहीं हटूंगी।"
दूसरी ओर… रात के गहरे अंधेरे में, खुले आसमान के नीचे, तपिश मुस्कुरा रहा था। उसकी आंखें बंद थीं, पर दिल में चाहत की महक तैर रही थी।
वो लम्हा, वो पास आकर बैठना, वो आंखों की जुंबिश, सब कुछ उसकी रगों में दौड़ रहा था।
तभी उसे किसी ने झकझोरा।
"तपिश!" विहान सामने खड़ा था।
"क्या कर रहा है तू? तुझे पता है आज तूने क्या किया है? लिफ्ट रुकवाना? यह सब तू चाहत के साथ क्यों कर रहा है?"
तपिश मुस्कुराते हुए बोला, "अपनी जान को उसका प्यार महसूस करवा रहा हूं।"
विहान गुस्से से भर उठा, "वो तेरे भाई की होने वाली बीवी है!"
"अभी हुई नहीं ... होने वाली हैं । और मैं जानता हूं, मेरा भाई चाहत से प्यार नहीं करता। वो किसी और से मोहब्बत करता है।"
विहान शांत हुआ, पर गंभीरता से बोला,
"अगर भाई किसी और से प्यार करते, तो शादी के लिए हामी नहीं भरते।"
तपिश ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा,
"जो इंसान अपने प्यार को छोड़ सकता है अपने फायदे के लिए, वो शादी शादीशुदा कभी नहीं तोड़ेगा ।"
विहान तपिश को घूरते हुए चुपचाप चला गया। लेकिन उसका मन बेचैन था।क्योंकि वो जानता था, चाहे कुछ भी हो, उसका भाई रेयांश भी जिद्दी है… और तपिश भी।
दोनों एक ही खून से जुड़े थे… और इस जंग में हार किसी की भी हो सकती थी… पर आग चाहत के चारों ओर सुलग चुकी थी।
"तेरे ख्यालों में जो लम्हा गुजर गया,
वो मेरी धड़कनों से कुछ कह गया।
बंद लिफ्ट में थी तनहाई की साज़िश,
पर तेरी साँसों की आहट सब सह गया।
नज़रों से उतरा नहीं तेरा चेहरा,
दिल की गलियों में तू रह गया।
जिसे समझा था फासला वक़्त का,
वो लम्हा मेरी रूह में बस गया।"
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क्या चाहत का फैसला टूटेगा?
क्या रेयांश सच में किसी और से प्यार करता है?
और तपिश की ये दीवानगी किस मोड़ पर ले जाएगी इस कहानी को?
जाने के लिए पढ़ते रहिए –चाहत......
अब आगे
अगली सुबह
अग्निहोत्री हाउस में सभी लोग सुबह का नाश्ता कर रहे थे और आपस में शादी की तैयारियों की बातें चल रही थीं। शादी में अब सिर्फ़ 6 दिन बचे थे और अभी तक ढंग से तैयारी शुरू भी नहीं हुई थी। तभी रामेश्वर जी ने रामजी से पूछा, "राम, तुमने यशवर्धन को खबर दी?"
यशवर्धन, जो चाहत के चाचा और संध्या के पति हैं, एक बिजनेस मैन हैं। उनका ज़्यादातर समय काम की वजह से बाहर ही बीतता है।
यह सुनकर दादी जी बोलीं, "हाँ बेटा, उसे खबर करो। इतनी अर्जेंट शादी पड़ जाने से पता नहीं उसे टाइम मिलेगा या नहीं और अगर उसे ये पता चला, कि हमने चाहत की शादी ऐसे ही अचानक तय कर दी, तो वो नाराज़ ही होगा।"
यह सुनते ही बाहर हॉल में अख़बार पढ़ते हुए व्योम बोला, "जब आप सभी ऐसे अचानक शादी फिक्स करोगे और उम्मीद करो कि कोई गुस्सा न हो, तो वो मुमकिन है क्या?"
तभी कांति जी व्योम से बोलीं, "बेटा, तूने ज्वेलरी वाले से बात की है?"
व्योम बोला, "माँ, आप टेंशन मत लो, 11 बजे तक ज्वेलरी वाला यहाँ हाज़िर हो जाएगा। और मैं कपड़े वाले से भी बात कर चुका हूँ। नहीं तो आप लोग खुद जाकर सेलेक्ट कर लो।"
यह सुन संध्या, चाय पकड़ाते हुए बोली,
"लड़के वालों के लिए भी हमें सब कुछ खरीदना होगा और जो भी खरीदें, अच्छा ही हो। हमारी तरफ से कोई कमी नहीं होनी चाहिए।"
तभी कांति बोलीं, "संध्या, इस मामले में तुम्हारी चॉइस ठीक है। तुम एक लिस्ट बना लो कि हमें क्या देना है और हमारे बजट में क्या आएगा।"
व्योम बोला,"माँ, आप क्यों बजट की चिंता करती हो? मैं किसलिए दिन-रात काम कर रहा हूँ? आप जो चाहो वो आर्डर करो। मेरी डॉल की शादी में कोई कमी नहीं रहेगी।"
तभी चाहत बाहर आती है। व्योम बोला,
"चाहत, कहाँ जा रही हो?"
चाहत बोली,"भाई, मैं मंदिर जा रही हूँ।"
दादी रानी जी बोलीं,""अकेले?"
चाहत बोली,"नहीं, मैं संगीता के साथ जा रही हूँ।"
सभी ने हामी भरी और चाहत बाहर चली गई। उसे बाहर स्कूटी पर खड़ी संगीता दिखती है। संगीता आवाज लगाती है, "अरे वाह, मेरी होने वाली दुल्हनिया! आज तुझे मैं अपनी 'धन्नो' पर सवारी करवाती हूँ।"
चाहत मुस्कुरा कर उसके पीछे बैठ जाती है, और दोनों मंदिर के लिए निकल पड़ती हैं।
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(कहीं दूर से एक आदमी कॉल करता है)
"बॉस... वो लड़की निकल गई है।"
कहते ही कॉल कट हो जाता है।
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ठाकुर हाउस में
वहीं दूसरी तरफ ठाकुर हाउस में भी तैयारियाँ चल रही थीं। उनके घर के पहले बेटे की शादी थी, और वो लोग कोई भी कमी नहीं छोड़ रहे थे। उनके सामने इस समय ज्वेलरी वाला शर्मा जी बैठे थे।
विशाखा बोलीं, "देखिए शर्मा जी, जैसे-जैसे बताया है, हमारी बहू के लिए वैसे ही गहने तैयार होने चाहिएँ। हम किसी भी प्रकार की कमी बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
शर्मा जी बोले, "अरे मैडम ठाकुर, क्या कभी हमारी तरफ से कोई कमी हुई है? आप तो ऐसे कह रही हैं। हम देखने में देसी हैं, पर पसंद और बनावट एकदम विदेशी और यूनिक है।"
विशाखा घूरते हुए बोलीं, "हमें विदेशी नहीं, इंडियन चाहिए।"
शर्मा जी बस दाँत दिखाते रह गए, लेकिन सच्चाई ये थी कि उनका काम बेहद अच्छा था, तभी तो ठाकुर परिवार ने उन्हें चुना था।
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मंदिर में
संगीता स्कूटी रोकती है, चाहत उतरकर फूल वाले के पास जाती है। तभी अचानक उसकी टक्कर एक लड़की से हो जाती है। उस लड़की की पूजा की थाली गिर जाती है।
वो लड़की गुस्से में चिल्लाती है, "अंधी हो क्या? दिखाई नहीं देता? गिरा दिया ना मेरा प्रसाद!"
चाहत बोली, "सॉरी, हमने देखा नहीं। आप हमारा प्रसाद ले लीजिए।"
लड़की बोली, "तो क्या मैं भिखारी दिख रही हूँ तुझे? मैं दूसरा प्रसाद नहीं ले सकती?"
वो जाकर नया प्रसाद लेने लगती है। संगीता, जो ये सब देख रही थी, बोली,
"कितनी बदतमीज़ है ये लड़की।"
चाहत बोली, "बदतमीज़ी के साथ-साथ कितनी दर्द में भी है ये लड़की।"
संगीता बोली, "अरे मैडम, कौन सी किताबें पढ़कर आई हो? हर किसी की आँखें पढ़ने लगी हो?"
चाहत बोली, "ना जाने क्यों, उसकी आँखों में अजीब सा दर्द दिखा।"
संगीता झुंझलाकर उसे खींचते हुए बोली,
"मुझे तो ये किसी अमीर बाप की बिगड़ी औलाद लग रही है।"
वो लड़की एक बार पीछे मुड़कर चाहत को देखती है और मंदिर के अंदर चली जाती है।
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मंदिर के अंदर
चाहत अपना प्रसाद आगे कर रही थी तभी पीछे से वही लड़की बोलती है, "पंडित जी, पहले आप मेरा प्रसाद चढ़ाइए।"
दोनों के हाथ में प्रसाद था। संगीता गुस्से में थी, लेकिन चाहत बोली, "पंडित जी, आप इनका प्रसाद चढ़ा दीजिए। भगवान के दरबार में देर से भी कृपा ज़रूर मिलती है।"
लड़की उसे घूरती है, फिर गुस्से में प्रसाद लेकर चली जाती है।
चाहत भी अपनी पूजा करती है। दोनों बाहर निकलती हैं। तभी वो लड़की चाहत से कहती है,
"तुमने मेरी आँखों में दर्द देखा ना?"
चाहत चौंक जाती है।
लड़की बोली, "तो जान लो, मेरे इस दर्द की वजह और कोई नहीं, तुम हो।"
चाहत हैरान होती है। लड़की उंगली दिखाकर बोली, "दुआ करना, हम दोबारा न मिलें... वरना तुम्हारी जान ले लूंगी।"
ये कहकर वो चली जाती है। संगीता चिल्लाती है, "ओए अंग्रेज की छोड़ी हुई नमूनी! दिमाग खराब है क्या? जब न जान न पहचान, दुश्मन बनने पे तुली है?"
लड़की एक नज़र उन्हें देखती है और चली जाती है। संगीता चाहत से बोली,"तू क्यों परेशान हो रही है? वो पगली लग रही थी।"
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रास्ते में स्कूटी बंद
रास्ते में संगीता की स्कूटी खराब हो जाती है। चेक करने पर पता चलता है कि पेट्रोल खत्म है।
संगीता बोली,"मैंने तो फुल पेट्रोल भरवाया था!"
चाहत बोली, "तेरी भुलक्कड़ आदत फिर से आ गई!"
संगीता बोली, "अब क्या करें? यहाँ से पेट्रोल टंकी 10 किमी दूर है।"
तभी एक गाड़ी उनके सामने आकर रुकती है। संगीता चिढ़कर बोली, "अंधे हो क्या? दिन में टल्ली होकर गाड़ी चला रहे हो!"
और गुस्से में गाड़ी के गेट पर मुक्का मारती है।
तभी एक लड़का बाहर आता है और कुछ कहता है, लेकिन संगीता उसे ज़ोर का मुक्का मार देती है।
लड़का बोला,"What the hell! पागल हो क्या?"
तभी संगीता ने गौर किया और बोली,
"छछूंदर, क्या मैं तुम्हें जानती हूँ?"
लड़का- विहान बोला,"अगर यही बात तुम मारने से पहले सोच लेती,तो बड़ी कृपा होती।"
चाहत पहचान जाती है विहान को।
विहान बोला,"भाभी जी, आप यहाँ रोड पर? मैं यहाँ से गुजर रहा था, आपको देखा तो गाड़ी रोक दी।"
तभी पीछे का दरवाज़ा खुलता है और उसमें से तपिश बाहर आता है।
ब्लैक शर्ट, ब्लैक पैंट, गॉगल्स, खुले बटन, ब्रांडेड घड़ी, स्पेशल शूज़ – मानो कोई सुपर मॉडल या फिल्म स्टार।
संगीता का मुंह खुला का खुला रह जाता है।
नज़र चाहत की भी थी तपिश पर, आखिर तपिश है ही इतना हैंडसम और अट्रैक्टिव।
तपिश बड़ी स्टाइल में अपनी आंखों का चश्मा हटाकर गाड़ी से टिककर खड़ा होता है और सामने खड़ी लड़कियों को देखकर मुस्कुराता है,"उम्मीद है कि तुम दोनों मुझे जानती होंगी।"
यह सुन संगीता झट से बोल पड़ती है, "हां हां! मैं तो आपको जानती हूं। आप तो तपिश ठाकुर हैं ना? मैंने आपको चाहत के घर देखा था।"
यह सुनते ही तपिश हल्के मुस्कान के साथ हाथ मिलाते हुए बोलता है, "हेलो जी ! मैं हूँ ही.....इतना हैंडसम कि कोई मुझे भूल ही न सके।"
इतना कहकर वह एक नजर चाहत की ओर डालता है, जो उसे ही देख रही होती है। लेकिन जैसे ही उसकी आंखें तपिश से टकराती हैं, वह तुरंत नजरें नीचे कर लेती है।
ये देखकर तपिश के चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल तैर जाती है।
वहीं खड़ा विहान खुद से बुदबुदाता है,
"मुझे देखके पूछ रही है क्या मैं आपको जानती हूं? जबकि मुझसे दो बार मिल चुकी है। और तपिश से तो बस कुछ देर मिली और पहचान गई… अजीब है!"
तभी तपिश उसे इशारे में कुछ कहता है।
विहान तुरंत बोलता है, "अगर आपको ऐतराज़ न हो तो हम आपको छोड़ देते हैं। देखिए, दोपहर के 12 बज रहे हैं और इस एरिया में गाड़ियां कम ही आती-जाती हैं।"
चाहत कुछ कहने को होती है कि संगीता तपिश की ओर देखकर बोल पड़ती है,"हां-हां, क्यों नहीं! हम जरूर चलेंगे। लेकिन हमारी स्कूटी का…"
इतना सुनते ही तपिश बड़े ही अंदाज़ से बोलता है, "आप जैसी ब्यूटीफुल लड़की के लिए, मेरे जैसा बंदा आपकी खिदमत में हाज़िर है।"
यह सुनते ही संगीता और हवा में उड़ने लगती है।
उधर विहान खुद से बोल पड़ता है,"अबे ओवरएक्टिंग बंद कर साले।"
चाहत बोली, "आप लोग हमारी वजह से परेशान न हों, आपको कहीं जाना होगा।"
विहान जवाब देता है, "अरे, इस वक्त हम उसी रास्ते से जा रहे हैं, कोई परेशानी नहीं।"
संगीता चहकते हुए बोलती है, "मेरी धन्नो…"
तभी पीछे से एक गार्ड आता है और संगीता की स्कूटी लेकर जाने लगता है।वो चिल्लाती है, "अरे मेरी फूलमती को कहां ले जा रहे हो!"
तभी तपिश पास आकर बोलता है, "अरे डोंट वरी , आपकी गाड़ी सही-सलामत आपके घर पहुंच जाएगी। तब तक के लिए आप हमारे साथ चलिए…
क्या इस धूप में खड़ी होकर अपनी खूबसूरती को दाग़ लगाना चाहती हैं?"
संगीता तुरंत तैयार हो जाती है और पीछे बैठने को होती है।लेकिन तभी विहान उसका हाथ पकड़ उसे आगे बैठा देता है। यह सब इतनी जल्दी होता है कि वह कुछ समझ ही नहीं पाती।
अब चाहत के पास कोई विकल्प नहीं बचता।
वह चुपचाप पीछे बैठ जाती है। उसे तपिश का बात करना, उसे बार-बार देखना अजीब सा लग रहा था। वह चुपचाप खिड़की से बाहर देखने लगती है।
कुछ देर की ख़ामोशी के बाद तपिश उससे पूछता है, "क्या आप हमेशा इतनी ही शांत रहती हैं?"
चाहत नज़र उठाकर उसे देखती है,
तपिश मुस्कुरा रहा होता है। उसकी आंखों में कोई नर्म सी बात छुपी होती है।
चाहत तुरंत नज़रें फेर लेती है।
तपिश कहता है, "मेरे हिसाब से हम अभी तक एक-दूसरे के लिए फैमिलियर नहीं हैं।
तो क्यों न हम अपना इंट्रोडक्शन कर लें?"
वह हाथ आगे बढ़ाते हुए कहता है,"मैं हूं तपिश ठाकुर — रेयांश ठाकुर का छोटा भाई… और आपका…"
तभी संगीता चहकते हुए बोल पड़ती है,
"देवर!"
तपिश की ये बात सुन चाहत थोड़ी असहज हो जाती है। उसके हाथ अपने सूट पर चलते हुए रुक जाते हैं।
संगीता उसे इशारा करती है, तब जाकर वह तपिश की तरफ देखती है और धीरे से हाथ बढ़ाती है। तपिश उसके हाथ थाम लेता है।
चाहत उसकी आंखों में देखती है, न जाने क्यों, उन आंखों में कुछ ऐसा था…
कुछ ऐसा जो कहने से पहले ही महसूस हो रहा था। पर तभी उसे अहसास होता है कि तपिश कब से उसका हाथ पकड़े हुए है।
वह तुरंत अपना हाथ खींच लेती है।
तपिश फिर खुद से बुदबुदाता है —
> "कब तक रहोगी ख़ामोश निगाहों से,
कुछ तो लबों से कह जाना है।
कब तक करोगी इनकार उस एहसास से,
जो हर रोज़ तुझे मेरे पास लाना है।
जब दिल ने कुबूल किया है तुझे,
तो जुबां को भी अब इज़हार निभाना है।"
चाहत के घर के कुछ ही कदम पहले विहान गाड़ी रोक देता है। "भाभी, हमें थोड़े काम से कहीं जाना है, इसलिए अंदर नहीं जा पाएंगे। आप लोग जाइए।"
चाहत झट से गाड़ी से उतर जाती है।
उतरते ही उसे एक अजीब सा सुकून महसूस होता है।
संगीता उतरते हुए तपिश को आंख मारती है और कहती है, "गुड बाय!"
तपिश उसके बालों से बिगाड़ते हुए मुस्कुराता है,"तुम बहुत क्यूट हो यार।"
गाड़ी फिर आगे बढ़ जाती है।
चाहत पीछे पलटकर देखती है, तपिश रियर व्यू मिरर से उसे देख मुस्कुरा रहा था।
तभी विहान के फोन पर कॉल आता है।
कॉल उठाते ही उधर से दादाजी की आवाज़ आती है, "मेरी बात तपिश से करवा।"
विहान स्पीकर ऑन करता है।
तपिश थोड़ा अलग मूड में बोलता है,
"क्या हुआ? मेरे बिना काम नहीं चल रहा?
या भगा देने के बाद भी याद आ रही है?"
दादाजी गंभीर स्वर में बोलते हैं, "तुझ जैसे बेहूदा इंसान को कौन याद करेगा! पर परिवार के उसूल और इज्ज़त का सवाल है। अगर तू शादी में मौजूद नहीं रहा,तो लोग क्या कहेंगे?
अगर तुझे ज़रा भी परिवार की इज्ज़त का ख्याल है,तो घर वापस आ जा…
बाकी शादीशुदा के बाद तू दफा हो जाना !"
इतना कहकर दादाजी फोन काट देते हैं।
तपिश फोन को कुछ देर घूरता रह जाता है।
और विहान उसकी हालत देखकर हंसने लगता है।
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चैप्टर कैसा लगा कमेंट्स और रिव्यू देना ना भूले। 🙏
अब आगे
ऐसे ही आज का दिन भी निकल गया...
आज जल्दी थी, जिसकी तैयारियाँ दोनों परिवारों में ज़ोरों-शोरों से शुरू कर दी गई थीं।
तपिश भी दादाजी के कहने पर घर आ गया था, आखिरकार अगर वो वहाँ नहीं होता, तो बार-बार चाहत से मिलने कैसे जाता?
तपिश हमेशा चाहत से मिलने की कोई न कोई कोशिश करता रहता था।
वहीं, रेयांश को देख, तो ऐसा लग रहा था जैसे उसे अपनी शादी में कोई दिलचस्पी ही नहीं है।
पर वो फिर भी चुपचाप बैठा रहा।
हल्दी उसने खुद नहीं लगवाई थी, तभी विशाखा तपिश को हल्दी देते हुए बोली,
"ये हल्दी लड़की वालों को दे आओ।"
वो हल्दी दरअसल चाहत को ही लगाई जानी थी, और चाहत की नज़रें अनचाहे भी तपिश पर ही टिकी हुई थीं।
तपिश सब से बातें कर रहा था, पर उसे एहसास था कि चाहत उसे ही देख रही है।
अचानक जब वो पीछे मुड़ा, तो उसकी नज़र चाहत से टकराई और चाहत ने झट से नज़रें झुका लीं।
ये देख तपिश के चेहरे पर एक दिलकश मुस्कान आ गई।
फिर वो उसके पास गया, और हल्दी उसके गालों पर लगाते हुए बोला,"हैप्पी हल्दी, चाहत।"
"तुझे देखा तो लगा ज़िंदगी कुछ खास है,
तेरे बिना हर लम्हा अधूरा एहसास है।
अब जो भी हो, तुझसे दूर नहीं जाना,
क्योंकि तू ही मेरी मोहब्बत का आख़िरी विश्वास है।"
तपिश का स्पर्श महसूस होते ही चाहत ने अनजाने में अपनी आंखें बंद कर लीं।
फिर कुछ महसूस हुआ…
उसने चौंककर आंखें खोलीं, तो उसकी नजर तपिश पर ही पड़ी।
इसी बीच, पास खड़ी एक औरत बोली,
"अरे, ये तो तुम्हारी भाभी लगती है ना? तो तुम 'चाहत' क्यों बुला रहे हो?"
तपिश ने उस बुढ़िया आंटी को देख मुस्कुराते हुए कहा,"वैसे आपका क्या नाम है, ब्यूटीफुल गर्ल?"
ये सुनकर वो औरत, जो कुछ औरतो के साथ बातें बना रही थी, मुस्कुराकर बोली,"चांदनी।"
तपिश उसके पास गया और हल्दी उसके गालों पर लगाते हुए बोला,"तो मेरी प्यारी चांदनी, आपको क्या लगता है, आज के ज़माने में 'भाभी' या 'देवर' नाम से रिश्ते नहीं चलते, रिश्ते दिल से निभाए जाते हैं... नाम में क्या रखा है?"
तपिश अपनी बातों की मिठास से सभी को अपना बना चुका था।
उधर चाहत अब भी आंखें बंद किए बैठी थी।
उसे लग रहा था जैसे तपिश उसे ही 'चाहत' कहकर बुला रहा है।
ये कैसा एहसास था...?
वो झट से आंखें खोल देती है।
तभी वंश, तपिश के सामने फोन बढ़ाते हुए बोला,"भाई, बड़ी माँ का फोन है।"
विशाखा तपिश को बुला रही थी।
कुछ देर बाद तपिश वहाँ से चला गया।
उसके जाने के बाद चाहत अपनी हल्दी को साफ कर रही थी।हल्दी साफ करते हुए उसकी नजर अपने गाल पर लगी उस हल्दी पर पड़ी, जिसे तपिश ने लगाया था।
उसे छूते हुए वो आंखें बंद कर धीरे से बोली —
"क्यों? ये एहसास इतना अजीब क्यों है...?
कहीं जाना-पहचाना सा लगता है..."
वो खुद को ही देखे जा रही थी… खोई-सी…
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रात का वक़्त...
विशाखा रेयांश के कमरे में जाती है —
वो अब तक काम में व्यस्त था।उसे देख विशाखा नाराज़ होते हुए बोली, "दो दिन में तुम्हारी शादी है, और तुम अब भी काम कर रहे हो? तुम्हारी वाइफ घर आएगी और तुम ऐसे ही बोरिंग बनकर काम करते रहोगे?"
रेयांश बोला,"काम और शादी का क्या कनेक्शन है, माँ? मुझे काम करने दीजिए। आपने तो ऑफिस जाना भी मना कर दिया है।"
विशाखा बोली,"क्योंकि अब तुम होने वाले दूल्हे हो! मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे चेहरे पर कहीं से भी कोई थकावट या रेखा दिखे।"
ये कहकर वो उसके हाथ से फाइल ले लेती है,
"चलो, अब सोने जाओ।"
रेयांश को ना चाहते हुए भी लेटना पड़ा।
विशाखा मुस्कुराई और फिर तपिश के कमरे की ओर चली।
"जाकर देखूं ये शैतान अब क्या कर रहा है…
इसकी शैतानी से तो मैं तंग आ चुकी हूं।
बड़ी मुश्किल से पिताजी की बातों से इसे समझाकर बुलवाया है,अब कोई ऐसा काम ना करे जिससे घर की इज़्ज़त पर आँच आए!"
वो कमरे में जाती है, तपिश गहरी नींद में सोया हुआ था, पेट के बल, ओंधे मुँह…
बिलकुल शर्टलेस उसकी आदत थी बिना शर्ट के सोना।
विशाखा खिड़की बंद करती है, हल्की-सी चादर उसके ऊपर डालती है, और उसका सिर सहलाने लगती है।तभी उसकी नजर तपिश के मोबाइल पर पड़ती है, जो उसके सीने के नीचे दबा था।
वो मोबाइल खींचती है, जैसे ही रखने लगती है, उसकी नजर एक फोटो पर टिक जाती है —
चाहत की फोटो।
वो चौंकती है,फिर मोबाइल की गैलरी खोलती है, जो लॉक न होने की वजह से खुला था।
उसमें ढेर सारी चाहत की तस्वीरें थीं।
वो सन्न रह जाती है,"तपिश के फोन में चाहत की इतनी सारी तस्वीरें...?
कहीं मैं गलत तो नहीं सोच रही...?
पर उसने चाहत की तस्वीर को यूँ सीने से क्यों लगाया हुआ है?"
उसके माथे पर पसीना आ जाता है।
"अगर मैं जैसा सोच रही हूं, वैसा कुछ हुआ —
तो पिताजी को पता चला, तो घर की इज़्ज़त के लिए वो न जाने क्या कर देंगे…"
"और अगर देवर ही अपनी भाभी को दिल दे बैठे, तो...?ऐसे एक ही छत के नीचे कोई कैसे रह सकता है?"
ये सोचकर विशाखा बेचैन-सी हो जाती है…
जब से विशाखा ने तपिश के फोन में चाहत की तस्वीरें देखी थीं, तब से वो बेहद परेशान थीं।अपने कमरे में सिर पकड़कर बैठी, कुछ सोचती जा रही थीं।
उधर, राज जी जो अब तक सो चुके थे, प्यास के कारण जाग गए। जैसे ही उठे, उनकी नजर विशाखा पर पड़ी,वो चिंता में डूबी बैठी थीं।
राज जी ने धीरे से उनके कंधे पर हाथ रखा।
विशाखा ने उनकी ओर देखा, तो राज जी ने पूछा,"क्या हुआ विशाखा? इतनी रात को जाग क्यों रही हो? कोई बात है जो तुम्हें परेशान कर रही है?"
यह सुनकर विशाखा कुछ घबराई सी बोलीं:
"राज जी, आपको क्या लगता है... पापा ने जो फैसला लिया है, वो सही है?"
राज जी थोड़े हैरान होकर बोले,"तुम ये सवाल अब क्यों कर रही हो? क्या कुछ हुआ है?"
विशाखा धीरे से बोलीं,"क्या हम रेयांश की शादी चाहत से कर के सही कर रहे हैं?"
राज ने चौंककर पूछा,"तुम कहना क्या चाहती हो?"
विशाखा बोलीं,"आप जानते हैं कि रेयांश इस शादी से खुश नहीं है, वो शादी नहीं करना चाहता...!"
राज जी गहरी सांस लेकर बोले,"मुझे पता है कि पापा ने अपनी आख़िरी इच्छा का हवाला देकर उस पर दबाव डाला है... पर विशाखा, तुम जानती हो पापा कोई भी फ़ैसला यूं ही नहीं लेते।"
"चाहत एक अच्छी लड़की है। माना कि रेयांश उसे अभी प्यार नहीं करता, लेकिन एक पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा होता है जिसमें प्यार को पनपने में वक़्त नहीं लगता, अगर हमसफ़र अच्छा हो।"
"आख़िर हमारी शादी भी तो हमारी मर्ज़ी से नहीं हुई थी ना? मैं भी शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन जब तुम मेरी ज़िंदगी में आई, तो सब कुछ बदल गया। अब मैं तुम्हारे साथ खुश हूँ..."
ये सुनकर विशाखा की घबराहट और बढ़ गई।
और वो अपने मन में कहती हैं.......
"काश बात इतनी ही होती तो शायद मैं कुछ न कहती... पर बात ये नहीं है..."
"मुझे लगता है कि तपिश चाहत को पसंद करता है... और ये बात मुझे उसके फोन में वो तस्वीरें देखकर साफ़ समझ आ गई है।"
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स्टोरी पसंद आये तो रीव्यू एंड कमेंट देना ना भूले..........
अब आगे
भाग – मेहंदी और मन के द्वंद्व
विशाखा की बेचैनी लगातार बढ़ रही थी। अगर मामला केवल चाहत की तस्वीर तक सीमित होता, तो शायद वह नज़रअंदाज़ कर देती। लेकिन मसला कुछ और था,वह साफ़ देख चुकी थी कि तपिश चाहत को पसंद करने लगा है। वह तपिश को अच्छी तरह जानती थी। हां, वह फ्लर्टी था, लड़कियों को अपने इर्द-गिर्द घूमाने में माहिर था। मगर कभी उसने किसी लड़की की मर्यादा नहीं लांघी थी, न ही कभी किसी और की तस्वीर उसके फोन में देखी थी,सिवाय शानवी और उसकी बहनों के।
पर चाहत की फोटो का इस तरह फोन में होना…
विशाखा को वो सोचने पर मजबूर कर रहा था, जो वो सोचना भी नहीं चाहती थी। उनकी बेचैनी देखकर राज ने कहा, "अब क्यों परेशान हो?"
विशाखा हल्की मुस्कान के साथ बोली, "नहीं… कुछ नहीं।" पर मन में सोच रही थी, “अब इस बारे में पापा से जरूर बात करनी होगी। आख़िर ये मेरे बेटों की ज़िंदगी का सवाल है।”
राज माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए बोले, "अब चलिए सो जाइए। कल मेहंदी और संगीत है, चेहरे की रौनक चाहिए होगी। आपकी पहली बेटे की शादी है,आपको सबसे सुंदर दिखना है।"
राज की बातों से विशाखा मुस्कुरा उठती है। वह विशाखा को बाँहों में भर लेते हैं। विशाखा भी आंखें मूंद लेती है, लेकिन दिल अब भी बेचैन था।
अगली सुबह
सगाई और मेहंदी की रस्म को एक ही दिन और जगह रखा गया था। ठाकुर परिवार ने अपने घर पर ही अग्निहोत्री परिवार को आमंत्रित किया था। व्योम को भी यही एक मौका चाहिए था माहौल समझने का।
उधर विशाखा किसी को बार-बार कॉल कर रही थी। पास खड़ी मानवी पूछती है,
“क्या हुआ दीदी? किसे फोन कर रही हैं?”
“आन्या को। मेरा फोन उठा नहीं रही। मैंने उसे रेयांश की शादी के बारे में बताया था, पर वो आने को तैयार ही नहीं लग रही,” विशाखा बोली।
मानवी ने विशाखा का हाथ थामा और बोली,
“वो आएगी भी नहीं दीदी। आपको पता है, आन्या रावी से कितनी जुड़ी हुई थी…”
इतना कहकर मानवी चुप हो गई।
विशाखा सब समझ गई।
पीछे से आता रेयांश रावी का नाम सुनकर ठिठक गया। फोन देखा—‘लव’ नाम से कॉल आ रहा था। गहरी साँस लेकर वह वहाँ से चला गया।
अग्निहोत्री हाउस में
चाहत के कमरे में अंजू और संगीता तपिश को लेकर बहस में उलझी हुई थीं।
“तूने देखा ना, उन्होंने मुझे देखा था!” अंजू बोली।
संगीता बोली, “अरे मैडम, अभी तो उनके सामने बच्ची हो, बच्ची ही बने रहो। उन्होंने मुझे ‘ब्यूटीफुल’ बोला!”
चाहत ने थक हारकर टोका, “अब बस भी करो तुम दोनों। बच्चे हो क्या?”
संगीता बोली, “तो बता, तपिश मुझमें इंट्रेस्टेड है या अंजू में?”
पीछे से आवाज़ आई,“वो किसी में इंटरेस्टेड नहीं है। वो फ्लर्टी है। चाहता है हर लड़की उसे देखे, उसके बारे में सोचे।”
सबने मुड़कर देखा—व्योम खड़ा था।
व्योम ने कहा, “मैं उसे जानता हूँ… वह मेरे कॉलेज में सीनियर था। अपने कॉलेज का ‘कृष्ण’ था—लड़कियाँ उसके इर्द-गिर्द घूमती थीं।”
संगीता और अंजू दोनों चुप हो गईं।
व्योम संगीता को अपनी बहन की तरह मानता था, और तीनों ही अपनी बातें उससे बिना हिचक शेयर करती थीं। चाहत को यह सब सुनकर जाने क्यों कुछ अजीब लगा, पर उसने अनदेखा कर दिया।
फिर व्योम ने चाहत को एक गिफ्ट थमाया, झुमका।
“यही वो झुमका है जो तूने पहली बार देखकर पसंद किया था,” व्योम मुस्कराया।
चाहत भावुक हो गई, “इतना महंगा क्यों?”
“तू उससे कहीं ज्यादा कीमती है। अब तेरा भाई भी कमाने लगा है,” व्योम बोला।
चाहत ने उसे गले से लगा लिया।
पीछे खड़ी अंजू का चेहरा देखने लायक था। संगीता हँसी रोक न सकी। व्योम ने चिढ़ाते हुए कहा,“तेरे लिए भी कुछ लाना पड़ेगा। चल फिर तेरी जल्दी शादी कर देते हैं!”
अंजू गुस्से में पैर पटकती चली गई।
शाम का दृश्य
ठाकुर हाउस दुल्हन की तरह सजा था। हर कोना चमक रहा था। सब मेहमानों के स्वागत के लिए तैयार थे।
रजत जी ने पूछा, “विशाखा कहाँ है?”
सब ढूँढते रहे, विशाखा नहीं दिखी। मानवी का मेहमानों का स्वागत किया।
छत से तपिश चाहत को देख रहा था—मेहंदी कलर की बनारसी साड़ी में। वह अपनी छाती पर हाथ रखकर आंखें बंद कर लेता है।
पीछे से विहान आया, “क्या तू जो करने जा रहा है, वो हो पाएगा?”
“अगर अब चाहत मेरी नहीं हुई, तो कभी नहीं होगी,” तपिश बोला।
शानवी आई, “मेरे पास फूलप्रूफ प्लान है।”
“बोल,” विहान बोला।
“शादी के दिन रेयांश को किडनैप करवा देते हैं। फिर मजबूरी में दादाजी तुम्हारी शादी चाहत से करवाएंगे,” शानवी बोली।
विहान बोला, “वंश से करवा देंगे!”
“वंश का जुगाड़ पहले कर देंगे,” शानवी बोली।
तपिश की आँखों में चमक थी। वह बोला,
“जिस लड़की को पाने के लिए मेरा दिल तड़पा है, जो मेरी धड़कनों में बसी है… मैं उसे किसी और का होते नहीं देख सकता। अगर अब भी खो दिया, तो शायद जिंदा न रह सकूं…”
तपिश की बात सुन विहान डर गया।
कोई छुपकर यह सब सुन रहा था… और जो अब होने वाला था, वह किसी तूफ़ान से कम नहीं होगा।
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क्या वाकई रेयांश की जगह तपिश मंडप में बैठेगा?
क्या चाहत का जीवन फिर किसी मोड़ पर नया मोड़ लेगा?
या कोई ऐसा खुलासा होगा जो सब कुछ बदल देगा?
पढ़ते रहिए – अगले अध्याय में...
अब आगे
आज मेहंदी और सगाई की रस्म ठाकुर हाउस पर शुरू हो चुकी थी।
सभी का स्वागत किया जा रहा था। रेयांश और चाहत को एक जगह पर बैठाया जाता है। दोनों के हाथों में मेहंदी लग रही थी। वहीं सभी अपने-अपने डांस प्रोग्राम भी कर रहे थे।
स्मृति और अंजू ने भी अपना डांस कर अपनी खुशी जाहिर की।
वहीं मानवी चाहत के पास आकर उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली,"आप बहुत प्यारी लग रही हैं।"
यह सुन चाहत मुस्कुरा देती है।
चाहत के हाथों में मेहंदी लग चुकी थी, और चाहत अपनी सुनी आंखों से अपनी मेहंदी को देखे जा रही थी।
आज के बाद उसकी जिंदगी बदलने वाली थी,
उसके हाथों में रेयांश के नाम की मेहंदी जो लग चुकी थी।
वहीं तपिश अपने ही प्लान में खुश था, क्योंकि शानवी ने जो प्लान दिया था, वह इमरजेंसी में बिल्कुल फिट बैठ रहा था और उसने वही करने का सोचा था।
तपिश की खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी।
उसकी खुशी देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह रेयांश और चाहत की शादी से बहुत खुश है –
पर किसी को क्या पता, वह अपने ही अलग प्लान में है।
इस बात से अनजान कि उसके लिए भी एक प्लान बन चुका था।
तभी तपिश वहां पर आता है और उसे देखते ही सभी लड़कियां उसके पास जाने को होती हैं,पर तपिश तो सीधे चाहत के पास जाता है और उसके हाथों को देखने लगता है,
जिसमें रेयांश के नाम की मेहंदी लगी थी।
वह उसकी मेहंदी देखता है, और उसे अच्छा नहीं लगता। वह चाहत का हाथ पकड़ता है और उसे खींचकर उठा देता है।
यह होते ही सभी उसे देखने लगते हैं।
तभी तपिश डीजे वाले से बोला,"तो भैया… मेरे और मेरी होने वाली भाभी के लिए एक डांस हो जाए!"
फिर खुद से बोला, "ये पहली और आखिरी बार है जब मैं तुम्हें भाभी कह रहा हूं…
क्योंकि कल से तो तुम मेरी…"
यह कहकर वह मुस्कुरा देता है।
चाहत तपिश के हाथ पकड़ने से हैरान हो जाती है।
सभी को यही लगता है कि तपिश अपनी खुशी जाहिर कर रहा है,और ये सच भी था…
क्योंकि तपिश किसी को नहीं दिखाना चाहता था कि वह इस शादी से नाखुश है।अगर वह नाखुश दिखता तो कहीं ना कहीं दोष उसी पर जाता,इसलिए उसने ये कदम उठाया।
वहीं दूर खड़ा विहान बोला,"कितना बड़ा ड्रामेबाज़ है!"
ये सुनकर शानवी बोली,"हां तो हमने कितनी क्लास तक एक्टिंग की है, आज कुछ तो काम आया।"
विहान उसे घूरते हुए बोला,"लगता है अभय तुम पर ध्यान नहीं दे रहा है, इसलिए तुम्हारा दिमाग कुछ ज़्यादा ही दौड़ रहा है।"
ये सुन शानवी भी उसे घूरती है और एक लात उसके पैर पर मारते हुए बोली,"क*** आदमी! मुझे धमकी क्या देता है? मैं तेरे अभय से डरती थोड़ी ना हूं!"
यह कहकर वह अपने बाल झटकते हुए वहां से चली जाती है।
वहीं दूर खड़ी संगीता यह सब देख रही थी, उसकी हंसी निकल जाती है।हंसी की आवाज़ सुनते ही जैसे ही विहान उधर देखता है, तो संगीता को घूरने लगता है।
तभी डीजे पर गाने की आवाज आती है…
तपिश चाहत के हाथों को पकड़ उसे घूमाते हुए गाने के बोल खुद गाते हुए बोलता है…
(उसकी आवाज सिर्फ चाहत सुन सकती है…)
🎵 (तपिश का गाना) 🎵
"तेरी इन आंखों में जो भी लिखा है,
वो मेरा नाम है क्या… ये पूछ लूं क्या?
तेरे हर ख्वाब में जो रंग घुले हैं,
क्या उनमें मेरा ही वास्ता है…?"
चाहत उसकी आंखों में देखने लगती है।
तपिश लगातार उसकी आंखों में ही देख रहा था।यह देख वह अपनी नजरें झुका लेती है।
"छू लूं तुझे तो जैसे रुके वक्त भी,
सांसें कहें तू ही ज़िंदगी…
होंठों से कहूं या नज़रों से कह दूं,
तू ही है… बस तू ही…!"
(अब तपिश उसकी साड़ी से झांकती पतली कमर पर हाथ रखता है)
चाहत इस छुअन से सिहर सी जाती है और सामने देखती है, तभी तपिश दूसरी तरफ देखते हुए फिर गाता है:
"तेरे होने से जो महसूस होता है,
वो एहसास कहीं और मिलता नहीं…
तू है तो सब कुछ है पास मेरे,
तेरे बिन कुछ भी मेरा नहीं…"
सभी चाहत को देख उन दोनों के डांस में खो चुके थे…
हालांकि चाहत डांस नहीं कर रही थी,
पर तपिश अपने अंदाज़ में डांस कर रहा था,
और चाहत उसकी हरकत से छुई-मुई सी हो रही थी।
चाहत उसे खुद से दूर करना चाह रही थी।
तपिश जब चाहत को दूर होते देखता है,
उसकी अनकंफरटेबल सी हालत देख,
वह उससे थोड़ा दूर हो जाता है और उसके अगल-बगल घूमते हुए फिर गाता है:
"तेरा चेहरा जैसे सुबह की धूप,
तेरी हँसी में छुपा है रूप…
तू जो ना हो तो अधूरी लगे,
हर ख़ुशी, हर दुआ, हर सोचना भी झूठ…"
गाते हुए तपिश उसके पास आता है
और उसकी साड़ी का पल्लू अपने हाथ में लेकर
उसकी खुली पीठ को ढक देता है —
गला बड़ा होने से वह काफी आकर्षक दिख रही थी।
उसे ढकते हुए आगे बोला:
"तेरे बिन अब हर साज़ अधूरा,
तू मिले तो हर नग़मा मुकम्मल…
तू ही है वो बात अनकही सी,
तू ही है हर लफ़्ज़ की मंज़िल…"
तपिश चाहत का हाथ पकड़ उसे वापस उसकी जगह पर बैठा देता है।
वहीं बैठे रेयांश की नजर सामने पड़ती है,कोई दूर खड़ी दो आंखें सब कुछ देख रही थीं।
ये देखकर रेयांश बिना कुछ बोले वहां से चला जाता है।
वहीं डांस पर शानवी तपिश के पास आती है।
तपिश उसका हाथ पकड़ डांस करते हुए बोला:
"नहीं कहीं, ना होगी कभी,
तू जैसी कोई और नहीं…"
तभी शानवी भी उसके गले में बाहें डालते हुए गाने के लिरिक्स में बोली:
"तुम हुए मेहरबान तो ये है दास्तां,
अब तुम्हारा मेरा एक ही कारवां,
तुम जहां… मैं वहां…"
चाहत एकटक दोनों को ही देख रही थी।
तपिश डांस कर रहा था — पर उसकी नजर चाहत पर ही टिकी थी।
गाना खत्म होता है, तालियों की गूंज जाती है।
वहीं शानवी और तपिश बड़ी अदा से सभी का अभिवादन करते हैं…
तभी तपिश के पास एक लड़का आता है और बोला –
"भैया, आपको आंटी बुला रही हैं।"
यह सुनते ही तपिश जाने लगता है।ना जाने क्यों, उसे जाता देख चाहत के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।वह झटके में अपने दिल पर हाथ रख लेती है जैसे उसे घबराहट सी हो रही हो।
वहीं न जाने तपिश को भी क्या होता है…
वह एक बार पीछे मुड़कर चाहत को देखता है और फिर वहां से चला जाता है।
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विशाखा तपिश से कुछ कहती है।यह सुन तपिश थोड़ा परेशान सा हो जाता है और कुछ कहने ही वाला होता है,तभी विशाखा बोल उठती हैं,"ये ज़रूरी है, बेटा।"
यह सुन तपिश बोला,"ठीक है, मैं जा रहा हूं। मैं समय पर वापस आ जाऊंगा।"
यह कहकर जाते हुए वह एक नज़र चाहत को देखता है और वहां से निकल जाता है।
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विशाखा की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
वहीं दूसरी तरफ चाहत के दिल की धड़कनें तेज़ हो चुकी थीं।
वह अपने हाथों की मेहंदी को देखती है —
और उसकी आंखों से आंसू बह निकलते हैं।
रेयांश के नाम की मेहंदी मिट चुकी थी… और बचा था वहां सिर्फ ‘C’ से ‘चाहत’।
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सगाई की रस्म बेहद खूबसूरती से पूरी होती है।
कुछ समय बाद सभी लोग वहां से जाने लगते हैं।
विशाखा चाहत के चेहरे पर हाथ रखकर बोलीं –
"आज तो आप बेटी के हक से आई थीं,
पर कल हमारी बहू के हक से आपका स्वागत होगा।"
फिर उसका हाथ पकड़कर कहा –
"हमें उम्मीद है कि आप हमारे घर की मान-मर्यादा हमेशा बनाए रखेंगी।"
यह सुन चाहत सिर हिला देती है और उनके पैर छू लेती है।
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तभी विशाखा बोलीं –
"वंश, आप जाकर बच्चों को घर पर छोड़ दीजिए।"
तभी व्योम बोला –
"कोई बात नहीं आंटी, हम एक और गाड़ी कर लेते हैं।"
यह सुनकर विशाखा बोलीं –
"ये बच्चियां हमारे घर की भी कुछ लगती हैं बेटा।
आप अपने मां-बाप को लेकर चलिए, हम बच्चों को छुड़वा देते हैं।"
दरअसल संगीता के भी मम्मी-पापा आए हुए थे, और काफी लोग थे।
कुछ देर बाद सभी लोग वहां से निकल जाते हैं।
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वहीं विशाखा एक नज़र ऊपर चाँद की ओर देख रही थीं।
तभी उनके पीछे राज जी उनके कंधे पर हाथ रखते हैं।
विशाखा तुरंत उनके गले लग जाती हैं —
और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।
राज जी बोले –
"क्या आपको अपने किए पर पछतावा हो रहा है?"
यह सुनकर विशाखा बोलीं –
"नहीं…
मेरे लिए प्यार-मोहब्बत के साथ-साथ इस घर की इज़्ज़त भी मायने रखती है।
मैं जानती हूं कि अगर कुछ भी ऐसा हुआ,
तो पापा को पहले ही दो हार्ट अटैक आ चुके हैं…
और तीसरा वो बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।"
राज जी उन्हें सांत्वना देते हैं।
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वहीं चाहत घर लौट रही थी — और उसके दिल में एक अजीब सा खालीपन था।
उसे बार-बार तपिश की बातें, उसका छूना, उसकी आंखें…
यह सब कुछ याद आ रहा था।
ये एहसास उसे बेचैनी दे रहे थे।
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घर आते हुए वह खुद से बोली,"मैं ये क्या सोच रही हूं?ये नहीं हो सकता…
कल मेरी शादी है…!"
थोड़ी देर में गाड़ी अग्निहोत्री हाउस के सामने रुकती है।
चाहत भागकर अंदर चली जाती है।
संगीता यह देख हैरान होती है और उसके पीछे दौड़ती है।
तभी वंश पूछता है,"क्या हुआ भाभी को?"
यह सुन अंजू बोली,"दीदी को गाड़ी में उल्टी वाली प्रॉब्लम हो गई है।इसलिए वह चली गई हैं।"
यह कहकर वह भी जाने लगती है।
तभी वंश बोला, "ये बैग यह सुनते ही..."
अंजू बैग उठाते हुए बोली, "आप एक ड्राइवर अच्छे हैं।"
यह सुनकर वंश उसे घूरता है,और वह घर के अंदर भाग जाती है।
वंश अपनी गाड़ी मोड़ देता है।
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वहीं संगीता जब उसके कमरे में जाती है,
तो चाहत को रोते हुए देख परेशान हो जाती है।
वह उसे अपनी ओर घुमाते हुए पूछती है –
"क्या हुआ चाहत? तू रो क्यों रही है?"
चाहत संगीता को देखते ही उसके गले लग जाती है,और फूट-फूट कर रोने लगती है।
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संगीता घबरा जाती है।वह उसे पानी का गिलास देते हुए शांत करने की कोशिश करती है,"क्या हुआ, बता ना, चाहत?"
चाहत कहती है,"वो… ये…" कहते-कहते चुप हो जाती है।वह क्या बताती… कि उसे किसी के छूने से फर्क पड़ता है…
किसी और के करीब आने से अजीब सा एहसास होता है…
और ये सब सोचते-सोचते वह चुप रह जाती है।
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फिर वह संगीता से बोली,"बस… मेरी कल शादी है… और मुझे घबराहट हो रही है। कैसे संभालूंगी?"
यह सुनकर संगीता हँसते हुए बोली,"पागल लड़की!बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रही है?तुझे तो खुश होना चाहिए, इतना अच्छा परिवार मिला है।जा, कपड़े चेंज कर ले।मैं तेरे और अपने लिए कॉफी लेकर आती हूं।"
यह कहकर वह चली जाती है।
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चाहत बालकनी में जाकर सामने चाँद को देखने लगती है।और अपनी आंखें बंद करती है,तो फिर से तपिश का चेहरा सामने आ जाता है।
यह देखते ही वह घबरा जाती है,अपनी आंखें झट से खोलती है…
और उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
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🔥 अगले भाग की झलक…
क्या तपिश चाहत की शादी को रोक पाएगा?
विशाखा ने तपिश के खिलाफ कौन सा प्लान बनाया है?
क्या चाहत भी तपिश से प्यार करने लगी है?
क्यों हो रही है चाहत को इतनी घबराहट?
क्या कुछ अनहोनी होने वाली है?
👉 जानने के लिए पढ़ते रहिए… " Chaht The Unbreakable Queen"
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अब आगे
अगली सुबह
चाहत के रूम के दरवाज़े को कांति जी ने नॉक किया, तो संगीता उठकर जैसे ही दरवाज़ा खोलती है, कांति जी के चेहरे पर थोड़ी परेशानी थी। वह बोलीं, “चाहत कहाँ है?”
चाहत उस समय वॉशरूम में थी। तभी संगीता उन्हें परेशान देख बोली, “क्या हुआ आंटी?”
उसी वक्त चाहत भी बाहर आ जाती है। कांति जी की नजर जैसे ही चाहत पर पड़ी, वो उसके पास जाकर बोलीं,
“बेटा, जो बारात शाम 8 बजे आने वाली थी, वो अब सुबह 10 बजे आएगी।”
यह सुनते ही चाहत हैरान हो जाती है। संगीता भी बोली, “ये आप क्या कह रही हैं आंटी? अचानक समय कैसे बदल गया?”
कांति जी बोलीं, “मैं खुद परेशान हूँ। कहा जा रहा है कि पंडित जी ने दोनों की कुंडली दोबारा देखी है और इस समय का मुहूर्त और भी ज्यादा शुभ है।”
यह सुन चाहत को घबराहट हो जाती है। यह देख कांति उसके पास आकर बोलीं,
“आप परेशान मत हो। वैसे भी मैं आपको यह बताने आई थी। संगीता, तुम सारी तैयारी शुरू कर दो, क्योंकि कुछ ही घंटों में बारात आ जाएगी।”
यह कहकर वो चली जाती हैं। वहीं चाहत और संगीता दोनों ही समझ नहीं पातीं कि आख़िर हुआ क्या है। ठाकुर हाउस में भी कुछ लोग इस बात से हैरान थे, तो कुछ पंडित जी की बातों को सुनकर चुप थे।
वहीं जब यह बात विहान और शानवी को पता चली, तो वो बार-बार तपिश को कॉल करने लगे। घंटी जा रही थी पर वह कॉल रिसीव नहीं कर रहा था।
विहान परेशान होते हुए बोला, “यह सब क्या हो रहा है? अचानक मुहूर्त कैसे बदल गया? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कुछ तो है जो हमें नहीं बताया गया। तपिश को बताना ही होगा, नहीं तो कहीं देर न हो जाए।”
विहान फिर से कॉल ट्राई करता है, लेकिन वो कॉल तपिश के पास नहीं, विशाखा के पास जा रहा था।
विशाखा, विहान का फोन देखते हुए खुद से बोली,
“तपिश, तुम्हें यह बलिदान देना होगा... और मुझे विश्वास है, तुम खुद को संभाल लोगे... क्योंकि तुम मेरे स्ट्रॉन्ग बच्चे हो।”
यह कहते हुए उन्होंने गहरी साँस ली।
वहीं तपिश, जिसे विशाखा ने कुलदेवी के मंदिर भेजा था, गांव में था जो ठाकुर हाउस से कई मील दूर था। तपिश रात को ही वहाँ पहुंच गया था, लेकिन मंदिर सुबह 9 बजे खुलता था क्योंकि वह एक पहाड़ी मंदिर था।
उसे वहां पंडित जी से सिंदूर लेना था।
तपिश ने सोचा था कि शादी शाम तक है, तब तक वह लौट आएगा। पर उसे क्या पता था कि उसके लिए कितना बड़ा जाल बिछाया गया है।
विशाखा जी ने कहा था, “यह सिंदूर जरूरी है। यह सिंदूर आएगा, तभी शादी संपन्न होगी।”
वह मना करना चाहता था, पर यह सोचकर कि बिना सिंदूर के शादी नहीं होगी, वह चला गया।
सिंदूर लेकर वापस लौटते समय, उसका ध्यान अपने फोन पर गया। जब वह अपना फोन ढूंढता है, तो उसे याद आता है कि उसने फोन लाया ही नहीं। पर वह फोन गया कहाँ, यह उसे याद नहीं आता।
अचानक उसके हाथ में पहनी घड़ी क्लिक होती है। घड़ी को देखकर तपिश थोड़ा परेशान हो जाता है, क्योंकि यह घड़ी उसके सभी दोस्तों के पास थी। यह एक इमरजेंसी क्लिक बटन था, जिसे तपिश ने ही बनाया था।
इमरजेंसी के लिए जब किसी का भी फोन न लगे और एक-दूसरे से बात करनी हो।
तपिश थोड़ी दूर जाकर एक आदमी से मोबाइल मांगता है और उससे विहान को कॉल करता है।
विहान जैसे ही अनजान नंबर देखकर कॉल उठाता है और तपिश की आवाज़ सुनता है, घबरा जाता है,
“तपिश, तू कहाँ चला गया है?”
तपिश बोला, “मैं तो गांव में सिंदूर लेने आया हूँ।”
यह सुनकर विहान परेशान होकर बोला, “तूने क्या किया! तुझे पता है, यहाँ सब कुछ गड़बड़ हो गया है।”
यह सुन तपिश भी घबरा जाता है और बोला,
“क्या हुआ?”
विहान बोला, “चाहत और रेयांश भाई की शादी जो शाम को होनी थी, वो अब सुबह 10 बजे हो रही है। पंडित जी ने कहा है, यही मुहूर्त सबसे शुभ है।”
यह सुनते ही जैसे तपिश के सिर पर से आसमान टूट पड़ता है।
उसने घड़ी का समय देखा 9:00 बज चुके थे।
यह देखकर तपिश नम आवाज़ में बोला,
“विहान, तू किसी भी तरह शादी को टाल... मैं आ रहा हूँ।”
तभी विहान मायूस होकर बोला,
“बारात वहाँ पहुंच चुकी है तपिश...”
तपिश बोला, “मैं आऊँगा... बस तुम मेरा इंतजार करना।”
यह कहकर उसने फोन काट दिया।
फिर वो खुद से बोला, “माँ... आपने मुझसे झूठ बोला। मैं आपको कभी माफ़ नहीं करूंगा।
आख़िर आपने दिखा ही दिया कि मैं आपका सगा नहीं हूँ...”
यह बोलते ही वह अपनी गाड़ी में बैठता है और गाड़ी की स्पीड 200 कर भगाता है।
वहीं अग्निहोत्री हाउस में चाहत को मंडप में लाया जा चुका था। शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं।
चाहत घबराहट में इधर-उधर देख रही थी। उसके मन में बहुत उथल-पुथल थी।
कभी तपिश का चेहरा... तो कभी लिफ्ट वाले आदमी की बात —
"मैं तुम्हारी शादी रेयांश से नहीं होने दूँगा।"
यह सब सोचते हुए, दुविधा में घिरी चाहत मंडप में बैठी अग्नि को एकटक देखे जा रही थी।
उधर तपिश गाड़ी को इतनी तेज चला रहा था जितनी तेज शायद उसने कभी जिंदगी में नहीं चलाई थी।
कहते हैं ना — किस्मत में जो लिखा होता है, वही होता है।
इधर फेरे की भी रस्म हो चुकी थी, और उसी के साथ चाहत की मांग में सिंदूर भी भर चुका था...
विहान मायूस हो जाता है और शानवी की आँखों से आँसू बह निकलते हैं — अपने दोस्त तपिश के लिए।
तपिश बार-बार विहान की इमरजेंसी क्लिक को याद करता जा रहा था। उसकी घबराहट इतनी बढ़ चुकी थी कि सामने से आ रहा बड़ा-सा ट्रक भी नज़र नहीं आया...
और एक ज़ोरदार धड़ाम की आवाज़ के साथ उसकी गाड़ी ट्रक से टकरा गई।
गाड़ी पलटते हुए एक ढाल की खाई में जा गिरी।
यह सब होते ही तपिश की ज़ुबान पर बस एक ही नाम था —
“चाहत…”
उधर मंडप में बैठी चाहत भी किसी अनजाने डर से चीख उठती है।
उसे यूँ चिल्लाते देख, कांति जी दौड़कर आती हैं और बोलीं,
“क्या हुआ चाहत?”
चाहत अपने दिल पर हाथ रखती हुई बोली,
“कुछ नहीं माँ…”
और उस वक़्त, दूर कहीं, तपिश खून से लथपथ पड़ा हुआ था…
"वक़्त ने जो फैसला सुनाया, वो दिल ने कब मंज़ूर किया,
इक तरफ़ सिंदूर था, तो दूजी तरफ़ टूटा हुआ दिल था।
जिसे चाहा था जान से ज़्यादा, वही आज किसी और का नसीब बना,
और जो टूट गया सड़क पर लहूलुहान…
उसी के नाम की धड़कन आज भी दिल के करीब बना…"
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क्या चाहत की उम्र रहे एहसास के लिए खत्म हो जाएगी?
क्या तपिश और चाहत की मोहब्बत का यह आखिरी पल था —
या यही है एक नए मोहब्बत के आकाश और जुनूनियत की शुरुआत?
जानने के लिए पढ़ते रहिए — चाहत की कहानी 💔✨
अब आगे
6 महीने बाद
मुंबई के एक काफी महंगे और लग्जरीज हॉस्पिटल के एक वार्ड में एक आदमी बिस्तर कुछ मशीनों से घिरा हुआ था।
उसकी आंखें बंद थी वह बेजान सा लेट हुआ था। कुछ डॉक्टर जाकर उसे चेक कर रहे थे उसकी नब्ज चैक कर उस आदमी को इंजेक्शन लगा.. वह उसे देखते हुए बोला, " जाने कितने समय से यह इंसान बिस्तर पर पड़ा है कौन है कुछ भी नहीं पता? "
जिस हालत में हमें यह मिला था हमें तो उम्मीद भी नहीं थी कि हम उसे बचा पाएंगे पर मरते मरते भी जीने की उम्मीद कर रहा था।
बिस्तर पर बेसुध सा लेटा इंसान कोई और नहीं तपिश था।तपिश जिसका इतना बुरी तरह से एक्सीडेंट हुआ था।
उस एक्सीडेंट को होते हुए एक कपल जो अपनी गाड़ी से अपने घर की तरफ जा रहे थे, उन्होंने देखा था।
वह कपल जो की खुद एक डॉक्टर थे। अपनी ड्यूटी को देखते हुए वह तुरंत उसकी मदद करने के लिए जाते हैं।
उस समय तपिश बहुत बुरी स्थिति में था। उसके काफी फैक्चर भी हो चुके थे। उसकी बॉडी के भी काफी हद तक भाग डैमेज हो चुके थे।
क्योंकि शीशे के टुकड़े उसकी बॉडी में भी कई जगह चुभे हुए थे। वहीं जब उस डॉक्टर ने उसे चेक किया तो उसकी सांसे धीमी-धीमी चल रही थी।
सांसों को देखते हुए वह उसे तुरंत उस गाड़ी से निकालते हैंm उसकी सांस एकदम धीमी चल रही थी। पर फिर भी उसके होंठ हिल रहे थे।
यह महसूस कर की कुछ पता चले, इस उम्मीद में डॉक्टर जब उसके बेहद नजदीक जाते हैं तो उसके मुंह से सिर्फ एक ही आवाज़ बड़ी मुश्किल से निकल रही थी, " चाहत!चाहत!
यह सुन दोनों ही पति-पत्नी एक दूसरे को देखते हैं और फिर बिना किसी देरी की वह उसे अपने हॉस्पिटल में लाते हैं वह उसे बड़े से हॉस्पिटल के डॉक्टर थे और साथ में ऑनर भी।
आज पिछले 6 महीने से बिस्तर में कोमा में तपिश पड़ा हुआ था, उसे चेक करते हुए उसे देख श्रीमती अग्रवाल उसके सर पर हाथ रखते हुए बोली, " जब हमें तुम्हारे जागने का इतना बेसब्री से इंतजार हैं, तो तुम्हारे परिवार वाले तुम्हें कितना मिस कर रहे होंगे, जल्दी जाग जाओ बेटा। "
मिसेज अग्रवाल जो खुद एक डॉक्टर थी। उन्हें पता था कि मेडिसिन से तपिश ठीक हो रहा है। तो वो जरूर उनकी बातें सुन रहा होगा और शायद इतनी महीने के बाद भी हुआ वह जैसे जाने को होती है, वैसे ही अचानक मिसेज अग्रवाल पीछे मुड़ी तो उनकी नजर उसकी हिलते हुए हाथों पर पड़ी।
यह महसूस होते ही और रिस्पांस देखकर वह तुरंत अपने पति श्रेयांश को बोली, "श्रेयांश देखो ना, यह मुव कर रहा है।" यह सुनते ही दोनों तुरंत उसे चेक करने लगते हैं। यह रिस्पांस पाते ही दोनों के चेहरे पर एक स्माइल आ जाती है और वह खुद से बोले, " हमें उम्मीद है यह कुछ ही देर में जाग जाएगा। "
और हुआ भी कुछ ऐसा ही लगभग 1 घंटे बाद तपिश ने अपनी आंखें खोली।
आंखें खोलते ही अचानक वह उठकर बैठने को होता है और उसके मुंह से जोर से सिर्फ एक आवाज निकली, " चाहत। "
अचानक बैठने से उसका सर चकराने सा लगता है, डॉक्टर उसे संभालते हुए बोले, "बेटा आप ऐसे घबराइए मत, आपके पैर में काफी फैक्चर हुए जो ठीक तो हो गए हैं,पर इतने दिन से ना चलने की वजह से आपको थोड़ा संभल कर काम करना होगा।"
तपिश जिसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। जब उसे समझ में आया इतने दिनों से, तो अचानक डॉक्टर की तरफ देखकर बोलने की कोशिश करने लगता है, " मैं कितने समय से.....पर मुंह सूखने के कारण वह कुछ बोल नहीं पा रहा था, तभी एक नर्स आती है और उसके चेहरे को पोछ और उसे दो घूंट पानी पिला जाती है, उसके बाद बड़ी मुश्किल से बोला, " मैं कितने दिनों से यहां पर....? "
यह सुनते ही डॉक्टर श्रेयांश बोले, "बेटा अभी आप आराम कीजिए। "
तभी तपिश अपनी कमजोर सी आवाज में बोला, " डॉक्टर हमें जवाब दीजिए? "
ये सुनते ही मिसेज अग्रवाल और मिस्टर अग्रवाल एक दूसरे को देखते हैं और फिर बोले आप पिछले 6 महीने से यहां पर है। पिछले 6 महीने आज ही के दिन हम आपको लाए थे और तब से आप कोमा में पड़े हैं।"
"और भगवान का करिश्मा देखिए, आज एक दिन आपकी आंखें खुली।" यह सुनते ही तपिश जैसे जम जाता है और उसकी आंखों से आंसू गिर जाते हैं और उसकी सांसे तेज हो जाती है और वहीं बेहोश हो जाता है।
डॉक्टर भी एक पल के लिए घबरा जाते हैं आखिर तपिश को हुआ क्या?
पर उन्हें क्या पता था, की तपिश का यह सुनकर वह 6 महीने से कोमा में है, वह खुद को महसूस करता है जैसे उसकी दुनिया खत्म हो गई, डॉक्टर उसे चेक करते हैं, तो वह ठीक था, सिर्फ बेहोश हुआ था,यह देख वह गहरी सांस लेते हैं।
तभी मिसेज अग्रवाल श्रेयांश से बोली श्रेयांश, ""हमें उनकी फैमिली के बारे में पता करना होगा, इससे पूछना चाहिए,यह सुनते ही श्रेयांश बोले,"" पिछले 6 महीने से हमारा भी रिश्ता बन गया हैं, अच्छा हो जाये फिर हम खुद इन्हें छोड़ने चलेंगे, पर हमें पता तो चले कि आखिर यह है कौन और यह अभी कॉम से बाहर आए हैं अभी इन्हें दो महीने की ट्रीटमेंट की जरूरत है यह सुनते ही उनकी पत्नी सुरभि बोली, " इन्हे इलाज की नहीं, परिवार की केयर की जरूरत है। "
जान यह लड़की कौन है जिसका नाम यह बार-बार लेते हैं पर इतना ही समझ आता है कि यह उसे लड़की से बेहद प्यार करता है या तो यह लड़की उसकी प्रेमिका है या तो वह लड़की कोई बहुत नजदीक होगी। "
तभी डॉक्टर श्रेयांश थोड़े परेशानी के भाव से बोले, " क्या हमें इनके बारे में जानवी को बताना चाहिए? " यह सुनते ही सुरभि उन्हें देखते हुए बोली, "नहीं अभी इस लड़के को हमें इसकी फैमिली के बारे में पता करना होगा। "
यह सुन दोनों ही हां मैं सिर हिलाते हैं, कुछ घंटे बाद तपिश फिर से होश में आता है, पर इस बार वह कुछ शांत सा था।
उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। पर क्या? इसका किसी को अंदाजा नहीं था, तभी बड़े ही प्यार से सुरभि बोली, " बेटा हम पिछले 6 महीने से आपका इलाज कर रहे हैं, हमें नहीं पता आप कौन हैं, क्या आप ठीक समझे तो हमें बताएंगे, ताकि हम आपकी फैमिली को इन्फॉर्म कर दें। "
फैमिली, फैमिली शब्द सुनते ही तपिश को अपनी फैमिली की याद आती है, उसके चेहरे पर अजीब से भाव आ जाते हैं, तभी वह उन्हें देख उठने की कोशिश करते हुए बोला, " मुझे अपने घर जाना है।"
यह सुनते ही श्रेयांश बोले, " हां बताइए कुछ तो आपको याद होगा? "
वो इतना ही बोले तभी तपिश बोला, "ठाकुर हाउस। "
ठाकुर नाम भला कौन नहीं जानता था, यह सुनते ही दोनों एक दूसरे को देखने लगे तभी श्रेयांश जी बोले, " ठाकुर, आप उनके क्या लगते हैं? "
यह सुनते ही तपिश बोला, " मैं रजत महेश्वरी का छोटा पोता हूं। "यह सुनते ही दोनों एक दूसरे को देखने लगे, तभी तपिश बोला," क्या आप जानते हैं? " यह सुनते ही श्रेयांश जी बोले, " बिल्कुल, बल्कि हमें आज वहां जाना भी था।"
यह सुनते ही तपिश उन्हें देखता हैं,जैसे पूछ रहा हो क्यों? यह सुनते ही सुरभि बोली, " उनके घर में आज एक पार्टी है और हमें उसी के लिए इनवाइट किया गया है।"
पार्टी सुनते ही तपिश बोला, " कैसी पार्टी? " यह सुनते ही सुरभि बोली, " आज रजत ठाकुर के बड़े पोते का शादी के बाद पहला बर्थडे हैं।"
यह सुनते ही तपिश के हाथों की मुट्ठी कश गई और वह बोला, " मैं वहां जाना चाहता हूं। "दोनों ही हां में सिर हिलाया।लेकिन दोनों के ही मन में कई सारे सवाल थे। आखिर उनके घर का छोटा-पोता 6 महीने गायब है और इस बारे में मीडिया में कोई खबर नहीं, ऐसा क्यों?
इस सवाल का जवाब ना तपिश से पूछ सकते थे और ना ही रजत जी से। वही तपिश की आंखे गुस्से से लाल हो चुकी थी।
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" अब जब तपिश की आंखें खुल चुकी हैं... तो क्या अब सच सामने आएगा? क्या चाहत अब भी उसी की है या उसकी किस्मत उसे किसी और की बाहों में देखकर टूट जाएगी? 6 महीने पहले की उस रात का राज़ क्या है... और वो कौन था जिसने तपिश को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश रची थी?
अब सवाल एक नहीं, कई हैं — और जवाब... बहुत जल्द सामने आने वाले हैं।"
अब आगे
ठाकुर हॉउस
वहीं शाम के समय ठाकुर हाउस में काफी ज्यादा चहल-पहल थी, मेहमान अंदर आ और जा रहे थे। चारों तरफ बेहद ही खूबसूरती से डेकोरेट किया गया था और तैयारी हो भी क्यों ना आखिर ठाकुर खानदान के बड़े पोते की शादी के बाद पहला बर्थडे जो था।
बहुत बड़े-बड़े बिजनेसमैन, पॉलिटिक्स और काफी सारे रिश्तेदार आए हुए थे। कुछ तो बड़े लोगों की रॉब होते हैं।जितनी बड़ी पार्टी उतनी ही बड़े उनकी हैसियत का अंदाजा। वही यहां भी कुछ ऐसा ही था।
वहीं पर इस समय अग्निहोत्री परिवार भी आया हुआ था वही अंजू और संगीता आते हुए ही चाहत के कमरे में जा चुकी थी,वही बाहर सभी अग्निहोत्री परिवार बैठा हुआ था, कांति जी पूरे घर की रौनक को देखते हुए बोली, " कितनी खुशनसीब है ना हमारी बेटी, कि इतने बड़े घर में उसकी शादी हुई है।"
देखो ना कितनी धूमधाम से हमारे दामाद का बर्थडे मनाया जा रहा है। उनकी बात का समर्थन वहां बैठी शांति भी करती हैं।
वहीं दूसरी तरफ विशाखा सीडीओ से उतरते हुए वह अपनी नजर इधर-उधर घूमा रही थी, तभी उनकी नजर वहां खड़े विहान पर जाती है।
विहान को देखते हैं वह उसके पास जाते हुए बोली, "विहान।"
विहान उनकी तरफ मुड़ा तो विशाखा जी अपने चेहरे पर परेशानी लाते हुए बोली, " क्या हुआ बेटा तपिश का कुछ पता चला? "
यह सुनते ही विहान बोला, " क्यों आंटी आपको उसकी इतनी चिंता क्यों हो रही है? " यह सुनते ही विशाखा थोड़ा घबरा कर बोली, "कैसी बातें कर रहा है बेटा? पिछले 6 महीने से वह अभी तक घर नहीं आया, ना ही कोई फोन कॉल....."
यह सुनते ही विहान सारकास्टिक तरीके से बोला, " फोन कैसे उठेगा आंटी, उसका फोन आपने जो ले लिया था। "
यह सुनते ही विशाखा शर्म से सर झुका लेती है।
विहान को कुछ दिन बाद ही उसका फोन विशाखा के पास मिला था।
फोन के मिलने के बाद उसके मन में जो शक था,वह धीरे-धीरे यकीन में बदल चुका था, कि कहीं ना कहीं इस शादी और तपिश को दूर भेजने के पीछे कुछ तो वजह है और उसने इस बात को क्लियर भी कर लिया था।
तभी विहान की ऐसी बातें सुन चुप हो जाती हैं।
तभी दादाजी आते हुए बोले," क्या हुआ विशाखा बेटा आप इतना परेशान क्यों है? " यह सुनते ही विशाखा बोली, " पापा तपिश.... वह इतना ही बोली तभी रजत जी बोले, " वह हमारे लिए मर चुका है, सही कहा जाता है, खून-खून होता है।"
"देखा ना कैसे हमारी इज्जत डुबो कर चला गया, कितना हमें जवाब देना पड़ा, कहां है? कहां गया? क्यों किया? लेकिन नहीं, कोई भी उसका अता पता नहीं था।
यह बोल वह गुस्से में वहां से चले जाते है। वहीं जैसे ही विशाखा जी यह सुनती है उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, यह देख विहान उनके पास आते हुए बोला,"आंटी अपने यह झूठे आंसू मत बहाइए, हमें भी लगता है कि आप सच में तपिश से बेइंतेहा प्यार करती हैं, पर जब आपको तपिश और रेयांश भाई में से चुनने की बारी आयी, तो आपने अपने ही खून को चुना।" यह बोल वह वहां से चला जाता है।
विशाखा की आंखों से दो बूंद आंसू बह जाते हैं।
चाहत का कमरा
वही कमरे में छह जो चुपचाप रात की चांदनी को देखे जा रही थी अचानक दरवाजा खुला और अंदर रेयांश आता है तो उसकी नजर चाहत पर पड़ी तो उसकी नजर उस पर ठहर सी जाती है।
चाहत ने आज पिंक कलर की साड़ी में पूरे साज सिंगर के साथ तैयार हुई थी।
ऐसा बहुत कम ही होता था की चाहत ऐसे तैयार होती हो, पर आज सभी लोग 6 महीने बाद उनकी बहू को देखने आने वाले भी थे, क्योंकि शादी के बाद इतने लोगों को आना मुमकिन नहीं था।
तभी पीछे से अंजू और संगीता आते हुए बोली, "चाहत तुम तैयार तो हो गई हो।"
तभी रेयांश चाहत को देख बोला, " चले। "
सुनते ही चाहत उसके पास आती है तो तेरा सपना हाथ बढ़ा देता है तो चाहत उसके हाथों में अपना हाथ दे देती है वही नीचे होस्ट सभी का स्वागत करते हुए बोले तो लेडिस एंड जैंटलमैन आप सभी का इंतजार अब खत्म होता है हमारी ब्यूटीफुल कपल मिस्टर ठाकुर और उनकी प्यारी वाइफ चाहत ठाकुर। आज मिस्टर ठाकुर का बर्थडे है।
आज अपने जीवन के 6 महीने एक साथ पूरे किए हैं, उनके हम खूबसूरत से जीवन का स्वागत करते हैं। "यह बोलते हुए एक लाइट सीडीओ पर चलती है तो सीडीओ से उतरते हुए चाहत और रेयांश दोनों ही नीचे आते हैं।
उन दोनों को देख सभी के मुंह से तारीफ ही निकल रही थी, तो कुछ लड़कियां जलन के मारे बोली," देखो ना कितनी कम उम्र की लड़की है, इसके साथ मिसमैच है। " यह सभी आपस में बातें करने लगी, तो कुछ लोग उनकी खूबसूरती की तारीफ भी की।
दोनों ही नीचे आते हैं, रजत ठाकुर बड़े ही कब से स्टेज पर जाते हैं चाहत और रेयांश जाकर वहां पर खड़े होते हैं। वहां पर एक बड़ी सी ट्रॉली में केक लाया जाता है। जो काफी बड़ा था। संगीता और अंजू स्मृति वर्तिका सभी उसके अगल-बगल खड़े हो जाते हैं।
अभी गेस्ट लगभग आ चुके थे। वहीं रीना जी अपनी पोती को देख बोली, " देखो ना कितनी सुंदर लग रही है, कितनी अच्छी जोड़ी लग रही है, दोनों कितने खुश। "
दोनों ही एक दूसरे के पास पड़े थे वही व्योम कब से अपनी मां दादी चाचा की तारीफों के पुल बंदे जा रहा था अपनी बहन की आंखों में झांकने लगता है।
जैसे उसकी उस सूनी आंखों में कुछ तो ढूंढने की कोशिश कर रहा था। जो उसे मिल नहीं रहा था।
चाहत सभी के कहने पर मुस्कुरा तो रही थी, पर उसकी आंखों में एक सूनापन था जिसे कोई नहीं पढ़ पा रहा था।
विशाखा वहां आती है और बोली चलो बेटा तुम दोनों लोग केक कार्टून यह सुनते ही रेयांश हां में सिर हिलता है। चाहत और रेयांश ने साथ में केक कट किया।
केक कटते ही तालिया की गूंज चारों तरफ गूंज जाती है, वही तालिया की गूंज बाहर तक जाती है और वही एक बड़ी सी कार वहां पर आकर रूकती है।
कार के रुकते ही वहां के गार्ड तुरंत जाकर गाड़ी खोलते हैं, तो गाड़ी में से मिसेज अग्रवाल और मिस्टर अग्रवाल निकलते हैं।
तभी पीछे की गाड़ी से एक और इंसान निकलता है जो कोई और नहीं तपिश था।
तपिश ने नॉर्मल ही कपड़े पहने हुए होते हैं। तपिश जैसे ही अपने कदम बाहर रखता है उसके पैर लड़खड़ा जाते हैं, दोनों ही लोग उसे सहारा देते हैं। क्योंकि तपिश अपने पैर पर खड़ा नहीं हो पा रहा था।
वही गार्ड जब तपिश को देखते हैं तो वह हैरान से हो जाते हैं और वह तुरंत तपिश के पास जा कर बोले, " तपिश बाबा। "
वहीं तपिश की हालत देख एक गार्ड दौड़कर अंदर जाता है, अंदर जो केक कट होने के बाद चाहत रेयांश को खिलाने ही जा रही थी, तभी एक गार्ड दौड़ते हुए बोला, " बड़े मालिक, बड़े मालिक। " अचानक किसी को ऐसे चिल्लाते देख माहौल एकदम शांत हो जाता है, सभी लोग उस तरफ देखने लगे, तभी गार्ड को ऐसे देख रजत जी बोले, "क्या हुआ महेश, तुम ऐसे चिल्ला कर क्यों भाग रहे हो, क्या हुआ है?
"
यह सुनते ही महेश हकलाते हुए बोला, "बड़े साहब वह छोटे मलिक....." वह इतना ही बोलता है कि सभी की नजर उसके हाथ के दिखाए हुए इशारे पर जाती है, सबकी नजर जैसे ही सामने पड़ती है सबकी आंखें बड़ी हो जाती है और चाहत के हाथ से केक छूट कर नीचे जमीन पर गिर जाता है।
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क्या होगा आगे जब चाहत और तपिश की मुलाकात होगी?
क्या तपिश इस बदले हुए रिश्ते को अपना कर पाएगा? या यहां से होगी किसी नए अध्याय का शुरुआत?
जानने के लिए पढ़ते रहिए..........
अब आगे
सभी सामने देखते हैं तो सामने तपिश खड़ा था,तपिश को देख सभी की आंखें हैरानी से बड़ी हो जाती है।
रजत जी को तपिश पर गुस्सा तो बहुत आया, पर वह कुछ बोलते उससे पहले ही उनकी नजर तपिश की हालत पर गई, उसकी हालत देखते ही वह तुरंत नरम पड़ जाते हैं।
वहीं अभी पार्टी में आये लोगों का ध्यान तपिश पर जा चुका था। अब सभी के सभी तपिश की तरह बढ़ चले थे। वही वहां खड़ा रेयांश जब यह देखता है तो उसके हाथों की मुठिया कस जाती है।
आखिर जिस बिजनेस, जिस पार्टी का नाम उसने इतना कमाया था, कि लोग उसे एक बिजनेसमैन के नाम से जाने, वह सारी लाइमलाइट तपिश ने खींच ली थी।
वह अपने कदम आगे बढ़ता, पर रुक जाता है।
वहीं पर एक जगह सोफे पर मिसेज अग्रवाल और मिस्टर अग्रवाल तपिश को बैठा देते हैं, तपिश की स्थिति को देखते हुए रजत जी ने सभी को देखकर कहा, " हम आप सभी से क्षमा चाहते हैं, हमें लगता है कि आप सभी को इससे कोई आपत्ति नहीं होगी, पार्टी को यहीं खत्म किया जाता है और आप सभी से निवेदन है, कि भोजन की व्यवस्था की गई है, आप सब भोजन करके ही जाइएगा।"
कुछ लोगों को पारिवारिक स्थिति समझ कर चुपचाप वहां से चले जाते हैं। तो कुछ लोग बातें बनाते हुए वहां से ऐसे सभी लोग चले जाते हैं। बच जाते हैं तो वहां पर सिर्फ और सिर्फ फैमिली वाले।
वहीं विहान जो कुछ काम से अंदर गया हुआ था, जब वह बाहर आता है अचानक माहौल इतना शांत देख स्मृति से पूछता है, " यह इतनी जल्दी पार्टी क्यों खत्म हो गई? "
तभी स्मृति की आंखों में नमी देख और जिस तरफ स्मृति देख रही थी उसे दिशा में देख तो वहां तपिश को देख उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है, पर उसकी हालत को देखकर वह उसके पास दौड़ कर जाता है और उसके गले लग जाता है।
विहान परेशान सी आवाज में बोला, " तपिश तू ठीक तो है, यह तुमने अपनी क्या हालत बना ली है?क्या हुआ है तुझे?विहान बोलते हुए उसे झकझोरने लगता है।
वही तपिश जो जब से आया था, तब से एक टक चाहत को ही देखे जा रहा था, पूरी सुहागन में बनी खड़ी चाहात जिसके मांग में सिंदूर अपने नाम का डालना चाहता था, जिसके हाथों में चूड़ियां वह अपने नाम की पहनाना चाहता था, जिसके गले में मंगलसूत्र अपने नाम का पहनना चाहता था, वह किसी और की दुल्हन बनकर खड़ी थी।
चाहत बिना की भाव के तपिश को ही देखे जा रही थी। जब उसे तपिश की नजरे और बर्दाश्त नहीं होती तो अपनी नज़रें झुका लेती है।
यह देखते हुए तपिश के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कुराहट आ जाती है, वही बार-बार विहान के उसे ऐसे हिलाने पर तपिश खींच कर बोला, " अब तू मुझे छोड़, कहां से तूने डॉक्टर की डिग्री हासिल की है। "
"तुझे इतना भी नहीं पता, कि कोई अगर ऐसी हालत में हो तो उसे ऐसे ट्रीट नहीं करना चाहिए."
जब विहान को उसकी दशा का ख्याल आता है, तो उसे" सॉरी सॉरी "बोलकर थोड़ा दूर हो जाता है।
तभी स्मृति दौड़ कर आती है और तपिश के गले लगते हुए बोलती है," भाई आप कहां चले गए थे और आपकी क्या हालत है? " यह बोल वह रोने लगती है। तपिश बस मुस्कुरा देता है, उसकी नजर नम आंखों से खड़ी वर्तिका पर पड़ती है, तो वह उसे देख बोला, " पगली तेरे से तो तेज हमेशा यह नौटंकी जीत जाती है, तू वहां क्यों खड़ी है? "यह सुनते ही वर्तिका भी दौड़ कर आती है और दूसरी साइड से तपिश के गले लग जाती है।
उसकी यही तो छोटी सी दुनिया थी जिसके बिना वह तड़पता था।
तभी रजत जी थोड़ी कड़क भाव में बोले,"तो तुम 6 महीने बाद वापस आए हो और वह भी ऐसी हालत में, जरूर तुमने शराब पीकर कहीं गाड़ी से टक्कर मारी होगी।" यह सब बोलते हुए रजत जी उसे कटाक्ष करते हैं।
यह सुनते ही मिस्टर अग्रवाल और मिसिस अग्रवाल एक दूसरे को देखने लगे। वही दूर खड़े राज की तपिश को वहां से देखे जा रहे थे।
तपिश की भी नज़र उन पर पड़ती हैं, तभी रजत जी बोले, " मिस्टर अग्रवाल एंड मिसेज अग्रवाल यह कहां पड़ा मिला आपको? जो आप इसे उठाकर यहां लाए हैं। "
यह सुनते ही मिस्टर अग्रवाल बोले, " मिस्टर ठाकुर मेरे हिसाब से आपको आपको कोई गलतफहमी हुई है। "
यह सुन रजत जी बोले, " कैसी गलतफहमी? "
यह सुनते ही श्रेयांश जी बोले, "तपिश कौन है यह तो हमें आज पता चला।पर यह हमारे साथ 6 महीने से है। "
यह सुन सभी उनकी तरफ देखते हैं।तो मिस्टर अग्रवाल बोले, " 6 महीने पहले हमारी आंखों के सामने उनकी गाड़ी की एक जोरदार ट्रक से टक्कर हुई थी। "
यह बोलते हुए वह सारी बातें बताते हैं कि कैसे उसकी टक्कर हुई और कैसे वह लोग वहां से उसे ले गए और आज ही वह काेमा से बाहर आया है। "
यह सुनते ही रानी जी अपने मुंह पर हाथ रख लेती है। विशाखा जी की आंखों में भी हल्की सी नमी आ जाती है।
यह सुनते ही विहान अपनी लाल और गुस्से भरी आंखों से विशाखा को देखने लगा।आखिर वह अच्छे से जानता था, कि जब उसने फोन पर तपिश से बात की थी तो वह कितना टूटा हुआ था, कितना रोया था वहां पर पहुंचने के लिए।
वहीं यह सुनते ही मानवी बोली, " पर तपिश तुम आखिर वहां गए ही क्यों थे? शादी के दिन तुम्हें यहां रहना चाहिए था? "
यह सुनते ही विहान को अब बर्दाश्त नहीं होता तो वह बोला, "यह बात आप अपनी जेठानी से पूछाे, सॉरी मेरा मतलब आप मिसेज ठाकुर से पूछे कि उन्होंने तपिश को कहां भेजा था? "
यह सुनते ही विशाखा थोड़ा घबरा से जाती है और घबराते हुए बोली, " मैंने तपिश को गांव में सिंदूर लाने के लिए भेजा था। " यह सुन सबकी नजर विशाखा पर चली जाती हैं।
यह सुन रजत जी बोले, " जब आपको पता था की तपिश सिंदूर लेने आपने भेजा है, तो तपिश के लापता होने पर आपने हमें यह बात बताई क्यों नहीं? "
यह सुनते ही विशाखा घबरा सी जाती है और वह घबराहट में बोली, " पापा मैंने इसलिए नहीं बताया, क्यूंकि मुझे लगा तपिश फिर हमेशा की तरह कहीं चला गया होगा? "
यह सब सुन और देख तपिश जो कब से बैठा था? उसके चेहरे पर एक तिरस्कार भरी स्माइल आ जाती है, वह एक टक विशाखा को देखे जा रहा था।
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क्या विशाखा का सच सबके सामने आएगा?
रेयांश तपिश को देखकर खुश क्यूँ नहीं हैं?
जानने के लिए पढ़ते रहिये..........