धृति, एक मासूम लड़की, जिसे उसकी अपनी चाची ने एक दरिंदे के हाथों बेचने की साजिश रची। इज़्ज़त बचाने का उसके पास सिर्फ एक रास्ता था — मौत। और उसने वही चुना, खाई में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। दूसरी तरफ थी अंशिका, एक बेबस लड़की, जिसके अपने ही उ... धृति, एक मासूम लड़की, जिसे उसकी अपनी चाची ने एक दरिंदे के हाथों बेचने की साजिश रची। इज़्ज़त बचाने का उसके पास सिर्फ एक रास्ता था — मौत। और उसने वही चुना, खाई में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। दूसरी तरफ थी अंशिका, एक बेबस लड़की, जिसके अपने ही उसके सपनों को कुचल कर उसे जबरदस्ती एक गुस्सैल और डेविल बिज़नेस मैन रणवीर से बांधना चाहते थे। रणवीर के गुस्से और उसके बर्ताव की कहानियों ने अंशिका को भीतर तक डरा दिया — इतना कि उसने अपने ही हाथों अपनी नसें काट लीं। मगर... किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। धृति की आत्मा को मिला एक और मौका — एक नया जीवन। लेकिन इस बार अंशिका के नाम, उसके चेहरे और उसकी अधूरी कहानी के साथ। क्या धृति भी अंशिका की तरह डर कर जीना छोड़ देगी? या फिर उठेगी, टूटे सपनों को जोड़ने के लिए? क्या वो रणवीर जैसे गुस्सैल और डेविल पति के साथ रहकर उसे बदल पाएगी… या खुद टूट जाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी कहानी "Reborn as Devil's Bride" ......
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रात का अँधेरा हर ओर पसरा हुआ था, और ठंडी हवा किसी अनजान डर की तरह बह रही थी। एक लड़की बिना रुके, लगातार भाग रही थी। उसके पैर ज़मीन से बस कुछ ही सेंटीमीटर ऊपर थे, जैसे वो अपने किसी भयानक सपने से भाग रही हो। उसके सांस तेज़ थे, और दिल में एक अनजाना डर, जो हर कदम के साथ बढ़ता जा रहा था। वह अपने कदमों की आहट सुनती, पर कोई पीछे नहीं था, फिर भी उसका डर कम नहीं होता था।
धृति, एक मासूम पर दर्द से भरी लड़की, हल्की गोरी और थोड़ा फीकी त्वचा वाली थी, जैसे उसने बहुत दिनों तक धूप नहीं देखी हो। उसकी बड़ी काली आंखों में डर और जज़्बा दोनों झलकते थे। भूरे बाल कंधों तक लहराते थे, जो अक्सर खुले रहते थे। उसके चेहरे पर मासूमियत के साथ एक गहरी उदासी साफ दिखती थी। वह साधारण और साफ-सुथरे कपड़ों में थी, जो उसकी मजबूरी और मासूमियत को बयां करते थे।
धीरे-धीरे वह खाई के किनारे पहुंची। नीचे गहरी खाई थी, अँधेरी और अनंत। उसने ऊपर देखा और अपनी टूटी हुई आवाज़ में कहा, "हार गई आप की धृति, मां-पापा। हार गई आपकी धृति। माफ करना, मां-पापा, मैं आपका सपना पूरा नहीं कर सकती।" उसकी आवाज़ में बेचैनी और अपमान दोनों थे। "अगर मैं आज जिंदा बच गई, तो चाची मुझे उस बूढ़े गुंडे को बेच देगी, जिसे मैं जिंदा कभी नहीं सह सकती।"
इतना कहकर उसने एक गहरी सांस ली, उसकी आंखों में आँसू और हिम्मत दोनों चमक रहे थे। फिर बिना किसी और सोच-विचार के, वह खाई में छलांग लगा दी।
वहीं दूसरी ओर, एक विशाल और पुरानी हवेली की दीवारों के बीच, एक कमरा था। कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था, और उसके पीछे एक लड़की दरवाजे से सट कर बैठी थी। उसका चेहरा सिसकियों और डर के बीच धुंधला हो रहा था।
अंशिका, खूबसूरत लेकिन भीतर से टूट चुकी, हल्की गुलाबी और निखरी हुई त्वचा वाली लड़की थी। उसकी काली घनी आंखें अक्सर नीली पलकों से नम होती थीं। लंबे काले बाल बिखरे हुए थे, जो उसकी बेचैनी को दर्शाते थे। वह महंगे लेकिन सिंपल कपड़ों में थी, जो उसकी सामाजिक स्थिति को दिखाते थे, पर उसकी आंखों की गहराई उसकी असली कहानी बयां करती थी।
वह खुद से ही फुसफुसाते हुए बोली, "नहीं, कुछ भी हो जाए, मैं उस जानवर से शादी नहीं कर सकती। वह बहुत गुस्से वाला है। मैं उसके साथ नहीं रह सकती।"
उसकी आवाज़ टूट रही थी, आंसू उसकी आवाज़ को रोक रहे थे। वह दर्द में डूबी हुई थी, अपने अधूरे सपनों के बारे में सोच रही थी। "और मेरी पढ़ाई भी अधूरी रह गई।"
इतना कहकर उसने अपने ही हाथों को काट लिया, अपनी तकलीफ़ को खत्म करने की कोशिश में। उसके बाद उसकी आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं, और वो इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गई।
धीरे-धीरे अंधेरा छंटने लगा और धृति की आंखें खुलीं। उसने महसूस किया कि वह एक नरम और आरामदायक बिस्तर पर पड़ी है। पहला एहसास उसे चौंका गया। वह अचानक उठ बैठी और चारों तरफ नजर दौड़ाई। कमरे की दीवारें साफ-सुथरी थीं, और हर चीज़ एकदम नई और अजनबी लग रही थी।
धीरे-धीरे उसकी समझ में आया कि वह अब उस खाई में नहीं है जहां उसने अपनी जिंदगी खत्म करने की हिम्मत दिखाई थी। गहरी सोच में पड़ते हुए, उसने धीरे-धीरे अपने होठों से कहा, "ये तू कहां आ गई धृति? मैं तो अपनी जान खाई में कूद कर दे दी थी। फिर मैं यहां कैसे आ गई?"
उसके मन में कई सवाल उमड़ने लगे। सोच की इस उलझन से बाहर निकलते हुए, वह बिस्तर से नीचे उतरी। तभी उसकी नजर सामने लगे मिरर पर पड़ी। वह झट से मिरर के सामने खड़ी हो गई और अपनी परछाई को घूरने लगी।
मिरर में जो चेहरा उसे दिखा, उसे देखकर वह चीख पड़ी, "ये कौन है? ये तो मैं नहीं हूं!"
उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उस पर अनजाने का डर और आश्चर्य एक साथ छा गया। सवालों की बाढ़ ने उसे घेर लिया था।
धृति के दिल में डर और उलझन के बीच अचानक कमरे का दरवाजा खुला। एक तेज़ और सख्त आवाज़ ने उसकी सोच को तोड़ दिया। एक महिला अंदर आई और बिना कोई देर किए, धृति के हाथ पकड़कर जोर से मोड़ दिया। उसकी आवाज़ में गुस्सा और घबराहट दोनों थे, "तू पागल हो गई थी, अंशिका! जो तुम हमें ऐसे मुसीबत में छोड़ कर मरने जा रही थी। क्या तुम्हें पता है अगर राजावत फैमिली के लोगों को इस बारे में पता चलता तो क्या होता? हमारा बिजनेस जो अभी डूबने के कगार पर है, उसे और कहीं का नहीं छोड़ते।"
धृति की आंखें बड़ी हो गईं, और वह घबराकर बोली, "आह! ये क्या कह रही हो आप? और आप कौन हैं? मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हैं?"
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। सब कुछ इतना असली लग रहा था, पर वो खुद को इस स्थिति में पाकर चौंक गई थी। उसने अभी तक यह समझ ही नहीं पाया था कि वह कहाँ है और क्या हो रहा है।
कमरे की हवा अचानक भारी हो गई। पीछे खड़ी महिला ने धृति की मासूम सी बातों पर झल्लाकर उसका हाथ और भी ज़ोर से मोड़ दिया। दर्द से तिलमिलाती धृति कुछ कह पाती, उससे पहले वो महिला गुस्से में बोली,
"ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत कर, अंशिका! चुपचाप तैयार हो जा। थोड़ी देर में मेकअप वाली आ रही है। वो तुझे अच्छे से तैयार कर देगी।"
उसकी आवाज़ में कोई ममता नहीं थी, सिर्फ दबाव और स्वार्थ की चुभन थी। झटके से उसका हाथ छोड़ते हुए वो महिला दरवाज़ा तेज़ी से खोलकर चली गई, जैसे उसके पास और भी बहुत ज़रूरी काम हों — पर इंसानियत उनमें से एक नहीं था।
धृति स्तब्ध खड़ी रही। उसकी आंखें लाल हो गई थीं और हाथ की नसों में अब भी दर्द की लहर दौड़ रही थी। उसने खुद से बुदबुदाते हुए कहा,
"ये कौन थी? और ये मुझे अंशिका क्यों बुला रही थी? मैं तो… मैं तो धृति हूं!"
कंफ्यूज़न और डर ने मिलकर उसके भीतर तूफान मचा दिया था। फिर अचानक, उस कमरे के सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज़ उसके कानों में गूंजने लगी — कोई बाहरी नहीं, बल्कि जैसे उसकी आत्मा के भीतर से कोई बोल रहा हो।
"धृति, तुमने अपने जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। हमेशा दूसरों की मदद की। इसलिए भगवान ने तुम्हें दूसरा जीवन दिया है। मगर एक औरत के अधूरे जीवन में, जो अपने ही लोगों से टूटी थी।"
वो सुन्न सी खड़ी रह गई। आवाज़ फिर बोली —
"अब पांच मिनट के लिए अपनी आंखें बंद करो। तुम्हारे सामने वो सारे दृश्य आएंगे जो इस शरीर ने जिए हैं… और तुम जान जाओगी कि अब तुम सिर्फ धृति नहीं, अंशिका भी हो।"
धृति का शरीर कांप उठा। उसका मन कह रहा था कि ये सब भ्रम है, लेकिन दिल कहीं गहराई से यह सब सच मानने को मजबूर था। कांपते हाथों से उसने अपने चेहरे को छुआ, और फिर धीरे-धीरे पलकों को बंद कर लिया।
धृति ने जैसे ही अपनी आंखें बंद कीं, एक अनदेखा अंधेरा उसके चारों ओर फैल गया। लेकिन वो अंधेरा सन्नाटे भरा नहीं था — वो तो एक दरवाज़ा था… किसी और की अधूरी ज़िंदगी का।
उसकी बंद पलकों के भीतर, एक के बाद एक दृश्य तैरने लगे…
सजी-संवरी एक हवेली, जिसकी दीवारें महंगी सजावटों से चमक रही थीं। हर कोना रोशनी में नहाया हुआ था। बाहर मेहमानों की भीड़, कैमरों की चमक और भीतर एक लड़की — लाल रंग का भारी लहंगा पहने, आंखों में आंसू छिपाए। वो लड़की थी अंशिका अग्रवाल।
धृति के मन में गूंजती आवाज़:
"तो ये है वो, जिसकी जगह मुझे जीवन मिला है…"
वो आगे देखती है — अंशिका शीशे के सामने बैठी है, पर चेहरे पर दुल्हन वाली खुशी नहीं… बस थकावट, दर्द और लाचारी।
"आज मेरी शादी है," अंशिका धीमे स्वर में खुद से कहती है, "पर इस रिश्ते में मेरा कोई सपना नहीं, कोई सहमति नहीं… बस सौदा है।"
फ्लैशबैक में अगला दृश्य बदलता है —
अंशिका अपने कमरे में अपने चाचा-चाची से कह रही है,
"प्लीज़! मुझे अभी शादी नहीं करनी, मेरी पढ़ाई अधूरी है, मेरे अपने सपने हैं!"
पर जवाब में सिर्फ एक ठंडी हँसी आती है,
"सपने बाद में देखना… पहले घर और बिज़नेस बचाना सीखो।"
अंशिका की आंखों में आंसू और मन में डर उतरता जाता है — क्योंकि शादी रणबीर ओबेरॉय से थी… एक ऐसा आदमी जिसकी गुस्से की कहानियां अख़बारों तक में छपी थीं।
फ्लैशबैक का आखिरी दृश्य सबसे तीखा था —
दुल्हन का जोड़ा पहने, आंखों में गीला दर्द और हाथ में ब्लेड लिए अंशिका आईने के सामने खड़ी थी।
"माफ करना मां-पापा… मैं अब और सह नहीं सकती। न अपने सपनों की मौत… और न इस इंसान की पत्नी बनने का बोझ…"
और फिर… चीख… और सन्नाटा।
अचानक, धृति की आंखें खुल गईं। उसने घबराकर इधर-उधर देखा। साँसें तेज़ थीं। माथे पर पसीना।
"तो इस शरीर की असली मालिक… अंशिका थी…"
***** तो अब से में धृति को अंशिका ही बोलूंगी। *****
तभी उस के कमरे का दरवाजा कोई खटखटाता है। अंशिका दरवाजा खोलती है। तो सामने का नजारा देख हैरान हो जाती है।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या देखा होगा अंशिका ने जिस से वो हैरान हो गई?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
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HUKUMAT-E-DIL
ये कहानी है तारा और शौर्य की। जहां शौर्य राजस्थान का राजकुमार है जिसके एक एक्सीडेंट के वजह से पैर पैरालाइज हो गए थे। उसका एक राज़ था, जो सिर्फ उसके घर वालों को ही पता है। शौर्य अपने अतीत की वजह से लड़कियों से नफरत करता था। वो सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार वालों से ही करता था। अपनी मां और दादी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था। वहीं तारा एक मासूम सी लड़की है। तारा उसकी सौतेली मां और सौतेली बहन के द्वारा प्रताड़ित हो रही थी। जहां शौर्य आग था वही तारा पानी थी। अपने मां और दादी के प्रेशर में आ कर शौर्य ने तारा से शादी कर ली। वहीं तारा की मां और बहन लालच में तारा की शादी शौर्य से करा रहे थे। क्या होगा जब आग और पानी एक साथ आयेंगे? क्या होगा जब तारा को पता चलेगा शौर्य की बीमारी? क्या है शौर्य का वो राज़? क्या करेगी तारा उस राज़ को जान कर? क्या शौर्य की नफ़रत में तारा की मासूमियत चली जायेगी? क्या कभी शौर्य और तारा के बीच प्यार पनप पायेगा? जानने के लिए पढ़िए "Hukumat-E-Dil"......
अभी कुछ ही मिनट बीते थे जब धृति की आंखें अंशिका की अधूरी ज़िंदगी की झलकियों से खुली थीं। दिल अभी भी तेज़ धड़क रहा था, पर अब डर से ज़्यादा सवाल थे उसके भीतर।
"रणवीर ओबेरॉय… ये वही है जिससे मेरी शादी हो चुकी है? पर कौन है ये इंसान?"
अभी उसके पास जवाब नहीं थे, पर उसके सामने पड़ा मोबाइल — जो अब उसका था — उसमें इंटरनेट ज़रूर था।
उसने कांपते हाथों से फोन उठाया और गूगल खोला। टाइप किया —
“Oberoi Family India”
जैसे ही सर्च रिज़ल्ट खुले, एक के बाद एक नाम और चेहरे सामने आने लगे…
सबसे ऊपर था:
राजवर्धन ओबेरॉय — ओबेरॉय खानदान के मुखिया। एक ज़माने में प्रसिद्ध पॉलिटिशियन रह चुके थे। गहरी आँखें, सफेद बाल, और अब भी चेहरे पर सत्ता का असर साफ़ दिखता था।
फिर नाम आया:
जानकी ओबेरॉय — राजवर्धन की पत्नी। एक शांत और संयमी महिला, जिनके बारे में लिखा था:
"The binding thread of the Oberoi household."
उनकी तस्वीरों में वो हर परिवारिक फंक्शन में सबसे पीछे, मगर सबसे स्थिर नज़र आती थीं।
फिर धृति की नज़र पड़ी:
राजवीर ओबेरॉय — इंडिया के प्रेसिडेंट। और हाँ, ये केवल कहानी की दुनिया में था — लेकिन एक झटका तो लगता ही है जब आप खुद को अचानक उनके बहू के रूप में देख लें।
उनकी पत्नी, सीमा ओबेरॉय, के बारे में लिखा था:
"Soft-spoken, graceful and the silent strength of the Oberoi mansion."
फिर आया:
राजीव ओबेरॉय — रणवीर का छोटा भाई। पेशे से एक एक्टर।
एक ग्लैमरस इंस्टा प्रोफाइल खुली, जिसमें वो शूटिंग लोकेशन्स, अवार्ड शोज़ और फ़ैन्स के बीच में था।
फिर थे, जयराज ओबेरॉय — राजवीर के छोटे भाई, और परिवार के बिज़नेस पार्टनर।
उनकी पत्नी, रश्मि ओबेरॉय, एक पॉपुलर फैशन डिज़ाइनर थीं, जिनकी डिज़ाइन्स बॉलीवुड में भी चर्चित थीं।
इनके बच्चे —
आर्यमान ओबेरॉय, जो अब पॉलिटिक्स में थे।
और किया ओबेरॉय, जो बिज़नेस स्टडीज कर रही थी और सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव थी।
पर कुछ अजीब था…
रणवीर ओबेरॉय का नाम तो बार-बार सामने आ रहा था — "ओबेरॉय ग्रुप का चेयरमैन", "Most Influential Young Businessman", "India's Ruthless Tycoon" — लेकिन कहीं भी उसकी तस्वीर नहीं थी।
ये बात खटकने लगी धृति को।
उसे बस यही जानने को मिला:
रणवीर गुस्से का तेज़ है। उसके ऑफिस में कोई उसके सामने आवाज़ नहीं उठाता। उसका क्रोध इतना कड़ा होता है कि बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स भी उससे बात करते वक्त दो बार सोचते हैं।
"ये शादी… एक सौदा थी। मेरी मर्जी बिना मुझे उस इंसान से बांध दिया गया है, जिसका चेहरा भी किसी ने ठीक से नहीं देखा…" धृति का मन बुरी तरह बेचैन हो गया।
उसने फोन बंद किया, और कमरे की खिड़की की ओर देखा —
जहाँ दुनिया चमक रही थी, लेकिन उसके भीतर डर, उलझन और एक अदृश्य कैद घर कर गई थी।
अब उसकी शादी को कुछ ही घंटे बचे थे…।
अंशिका फोन में ओबेरॉय परिवार के बारे में पढ़ ही रही थी, कि तभी कमरे का दरवाज़ा धीरे से नॉक हुआ।
वो चौंकी। एक पल को मन हुआ कुछ न बोले, लेकिन फिर धीमी आवाज़ में बोली,
"आ जाइए..."
दरवाज़ा खुलते ही तीन लड़कियाँ अंदर आईं।
एक के हाथ में लाल सुनहरी कढ़ाई वाला शादी का जोड़ा, दूसरी के हाथों में चमकते आभूषण, और तीसरी — एक प्रोफेशनल मेकअप आर्टिस्ट, अपने टूल किट के साथ। ये सब देख अंशिका की आँखें हैरानी से बड़ी बड़ी हो गई।
पहली लड़की ने मुस्कराते हुए लहंगा आगे बढ़ाया,
"ये लीजिए मैम, आप ये पहन लीजिए। फिर हम मेकअप कर देंगे।"
अंशिका ने कुछ नहीं कहा, बस हल्के से सिर हिला कर जोड़ा ले लिया और धीरे-धीरे ड्रेसिंग रूम की तरफ बढ़ गई।
कुछ ही देर में वो बाहर आई — लाल रंग की भारी पोशाक में सजी — लेकिन उसका चेहरा अब भी सपाट था। कोई चमक नहीं, कोई खुशी नहीं।
मेकअप आर्टिस्ट ने बिना एक शब्द बोले काम शुरू कर दिया। काजल, लिपस्टिक, बेस, ब्लश — सब कुछ जैसे मशीन की तरह।
वहीं दूसरी लड़की ने उसके बालों को सँवार कर जूड़ा बनाया, और फिर एक-एक कर सारे गहने पहनाने लगीं — मांगटीका, झुमके, हार, चूड़ियाँ, पायल।
हर चीज़ चमक रही थी, बस अंशिका की आँखें बुझी हुई थीं।
पूरे एक घंटे में वो लड़की जो कुछ घंटे पहले खुद को खत्म करना चाहती थी, अब एक शानदार दुल्हन की तरह तैयार थी।
लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान — नकली थी। उसकी आँखों में एक ही सवाल तैर रहा था: "क्या में उस डेविल के साथ अपनी आगे की जिंदगी जी सकूंगी?"
मेकअप खत्म होते ही मेकअप आर्टिस्ट ने आखिरी बार अंशिका के चेहरे पर ब्रश फिराया और फिर मुस्कराते हुए बोली,
"बहुत खूबसूरत लग रही हैं आप। देखना, आपका पति तो आपको देखता ही रह जाएगा आज!"
उसकी हँसी कमरे में हल्की सी गूंजती है — एक आम शादी की हलचल जैसी — पर अंशिका की मुस्कान फिर भी नहीं लौटती।
वो बस आईने में खुद को निहारती रहती है।
वो आईना उसे एक परी जैसी दुल्हन दिखा रहा था — भारी जोड़ा, परफेक्ट मेकअप, चमचमाते गहने —
मगर अंदर से वो एक टूटी हुई आत्मा थी।
मेकअप आर्टिस्ट अपना सामान समेटते हुए धीरे-धीरे बाहर चली गई।
उसके पीछे पीछे दोनों लड़कियाँ भी कमरे से निकल गईं,
दरवाज़ा पीछे से बंद कर दिया गया।
अब कमरे में सिर्फ खामोशी थी — और उस खामोशी के बीच अंशिका नहीं, बल्कि धृति बैठी थी।
दूसरी तरफ, नीचे मंडप में शादी की रस्में शुरू हो चुकी थीं।
दूल्हा — रणवीर ओबेरॉय — भारी शेरवानी में बेहद शाही लग रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर भाव पढ़ना मुश्किल था।
पंडित जी ने अगली रस्म के लिए सिर उठाकर कहा,
"अब दुल्हन को बुलाइए। शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है।"
यह सुन अंशिका की चाची — सुरेखा अग्रवाल — फौरन उठीं और ऊपर की ओर चल दीं।
उनके चेहरे पर मुस्कान थी — सामाजिक मुखौटा — लेकिन मन में था डर कि कहीं ये लड़की फिर से कोई नाटक न कर दे।
जब वो कमरे में पहुँचीं, तो देखा अंशिका पूरी तरह से सजी-धजी, अपने बिस्तर के किनारे बैठी हुई थी — शांत, पर बेहद गंभीर।
सुरेखा जी तेज़ी से उसके पास आईं और बिना कोई भूमिका बांधे बोलीं,
"चल लड़की, तुझे नीचे बुला रहे हैं। सब इंतज़ार कर रहे हैं..."
अंशिका ने उसकी बात सुनी, फिर धीरे-धीरे उठ खड़ी हुई।
उसकी चाल में कोई झिझक नहीं थी।
दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए वो ठहरे हुए स्वर में बोली,
"आज से आपके सारे एहसान मेरे ऊपर से खत्म हुए सुरेखा चाची... और साथ ही हमारा रिश्ता भी।"
ये कहकर वो बिना एक पल रुके दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई।
उसकी चाल में अब सिर्फ़ दर्द नहीं, एक नई सोच और एक बगावत की चिंगारी थी।
सुरेखा जी एक पल को सन्न रह गईं।
लेकिन फिर खुद को संभालते हुए जल्दी से उसके पीछे निकल पड़ीं —
क्योंकि अब उन्हें सबके सामने एक स्नेही चाची बनकर दिखाना था।
ओबेरॉय परिवार को यह दिखाना था कि उन्होंने अंशिका को कितने लाड़-प्यार से पाला है।
कमरे से बाहर जाते हुए सुरेखा के मन में चल रहा था:
"आज सब कुछ दांव पर लगा है... कहीं ये लड़की सब बर्बाद न कर दे..."
मंडप में जब अंशिका दुल्हन के रूप में नीचे आई, तो पूरा माहौल एक पल को थम-सा गया।
हर आँख उसी एक चेहरें पर टिक गई — उस परदे के पीछे छिपी एक सौम्य सुंदरता पर।
हालाँकि उसने अपना चेहरा हल्के से नेट की चुनरी से ढक रखा था,
पर उसकी झलक भी काफी थी सबका मन मोह लेने को।
हर कोई बस एक ही बात सोच रहा था —
"ओबेरॉय खानदान को सच में रत्न मिल गया है..."
अंशिका की नज़र धीरे से मंडप में बैठे दूल्हे पर पड़ी —
जो शेरवानी और सेहरे में लिपटा हुआ था।
उसका चेहरा पूरी तरह से सेहरे के पीछे छुपा हुआ था।
इसलिए अंशिका रणवीर को ठीक से देख नहीं पाई।
बस एक अजनबी था, जिससे उसकी सारी ज़िंदगी जुड़ने जा रही थी।
पंडित जी ने शादी की रस्में शुरू करवा दीं।
मंत्रों की ध्वनि, अग्नि की लौ और फूलों की महक के बीच फेरे पूरे हुए।
अब बारी थी सबसे महत्वपूर्ण रस्म की —
सिंदूर भरने की।
पंडित जी बोले,
"वर वधु की मांग में सिंदूर भरे।"
सीमा जी ने आगे बढ़कर अंशिका की चुनरी को थोड़ा ऊपर उठाया,
और जैसे ही रणवीर की नज़र पहली बार उस चेहरे पर पड़ी —
वो एक पल को ठिठक गया।
वो चेहरा... वो मासूम आँखें... एक पल को उसे सब कुछ थमता हुआ महसूस हुआ।
पर बिना कुछ बोले उसने आगे बढ़कर उसकी मांग में सिंदूर भर दिया।
कुछ बूंदें नीचे गिरकर अंशिका की नाक पर आ गईं।
सीमा जी ने जैसे ही उसे पोंछने की कोशिश की,
पंडित जी ने तुरंत रोका —
"रुकिए बहन जी, यह शुभ संकेत है। नाक में सिंदूर गिरना दर्शाता है कि पति अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करेगा।"
सीमा जी मुस्करा कर पीछे हट गईं।
फिर रणवीर ने मंगलसूत्र निकाला और धीरे से अंशिका के गले में पहनाया।
उसका हाथ जैसे ही उसके गले से छूता है,
एक झटका-सा दोनों ने महसूस किया —
मानो दो जानी-पहचानी रूहें टकराई हों।
और उसी क्षण पंडित जी की आवाज आई —
"शादी संपन्न हुई। अब आप दोनों पति-पत्नी हैं।
गुरुजनों का आशीर्वाद लीजिए।"
शंख की ध्वनि गूंज उठी।
लोगों की तालियाँ, बधाइयाँ और मुस्कराहटों के बीच दो अनजाने जीवन एक पवित्र बंधन में बंध गए थे।
बिदाई शुरू हुई। तभी अंशिका के कानों में सुरेखा जी ने कुछ कहा जिसे सुन कर अंशिका की आंखों में आशु आ गए।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा होगा सुरेखा जी ने?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी.....
MERE PROFESSOR SAHEB:-
रूहानी शर्मा— एक शर्मीली, सादगी से भरी लड़की, वो ज़्यादा बोलती नहीं, पर जब भी बोलती है तो दिल से और हमेशा मुस्कुराते रहती थी। वो मानती है कि प्यार ही ज़िंदगी का असली रंग है।
दूसरी ओर है एकांश सिंघानिया — गुस्से वाला, बेरुखा। उस की मुस्कान देखना तो ईद की चांद देखने की तरह होता था। जो दुनिया से नहीं, सिर्फ अपनी family से प्यार करता है। वो मानता है कि प्यार एक धोखा है... एक कमजोरी।
जब ये दो बिल्कुल उलटी सोच वाले इंसान कॉलेज में पहली बार टकराते हैं, जहां एकांश रूहानी का प्रोफेसर था, वहीं रुहानी स्टूडेंट।
एक वो जो प्यार को इबादत मानती है और एक वो जो प्यार को ख्वाब मानने से भी डरता है।
क्या रूहानी की मासूमियत एकांश के प्यार पर भरोसा दिला पाएगा? क्या होगा जब रूहानी के सामने आएगी एकांश की सच्चाई? क्या किस्मत उन्हें एक साथ जोड़ पाएगी?
फिर रणवीर ने मंगलसूत्र निकाला और धीरे से अंशिका के गले में पहनाया।
उसका हाथ जैसे ही उसके गले से छूता है,
एक झटका-सा दोनों ने महसूस किया —
मानो दो जानी-पहचानी रूहें टकराई हों।
और उसी क्षण पंडित जी की आवाज आई —
"शादी संपन्न हुई। अब आप दोनों पति-पत्नी हैं। गुरुजनों का आशीर्वाद लीजिए।"
शंख की ध्वनि गूंज उठी।
लोगों की तालियाँ, बधाइयाँ और मुस्कराहटों के बीच दो अनजाने जीवन एक पवित्र बंधन में बंध गए थे।
रणवीर और अंशिका ने जब सभी बड़ों के चरणों में झुककर आशीर्वाद लिया, तो उर्मिला जी और राजवर्धन जी के चेहरे पर खुशी देखते ही बनती थी।
जैसे बरसों से जो सपना उन्होंने संजो रखा था, आज वो सच हो गया हो।
"अब हमारे रणवीर को संभालने वाली आ ही गई," उर्मिला जी ने स्नेह से अपने पति के कान में कहा, जिस पर राजवर्धन जी ने गर्व से सिर हिलाया।
हर कोई नवविवाहित जोड़े को शुभकामनाएँ दे रहा था। चारों ओर शहनाइयों की मधुर ध्वनि गूंज रही थी। पर इस चहल-पहल के बीच एक कोना ऐसा भी था,
जहाँ दिल अंदर ही अंदर टूटा हुआ था — अंशिका का।
अब समय था बिदाई का।
अंशिका की आंखें भर आई थीं — पर वो आंसू उसके दिल के बोझ से नहीं,
बल्कि अंदर के डर, गुस्से और असहायता से बह रहे थे। उसे किसी रिश्ते की जुदाई नहीं सताती थी, बल्कि उन रिश्तों का झूठा मुखौटा तकलीफ दे रहा था।
सुरेखा जी औपचारिकता निभाते हुए पास आईं, और सबके सामने उसे गले से लगा लिया। उनकी आँखों में आँसू थे कम से कम दिखावे के लिए।
पर तभी उन्होंने अंशिका के कान में धीरे से फुफकारा, "याद रख, तुम्हारी कोई भी शिकायत यहाँ नहीं आनी चाहिए। आज से इस घर के दरवाज़े तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। अपने रिश्ते को ठीक से निभाना… नहीं तो कहीं की नहीं रहोगी!"
ये शब्द किसी तलवार से कम न थे। अंशिका की रग-रग काँप उठी, पर चेहरे पर कोई भाव नहीं लाया उसने। क्योंकि अब वो सिर्फ बेटी या भांजी नहीं थी — अब वो रणवीर ओबेरॉय की पत्नी बन चुकी थी।
बिदाई की रस्में पूरी हुईं। अंशिका की आंखों में अश्रु थमने का नाम नहीं ले रहे थे।कार में बैठी, वो अपने पिछले जन्म की यादों में खो गई थी। धृति के उस दर्दनाक वक्त की यादें, जब उसने अपनी जान देने की हिम्मत दिखाई थी। और अब, इस जन्म में भी वही कहानी दोहराई जा रही थी।
वो अपने दिल से यही पूछ रही थी, "क्या हम सच में इतने बुरे हैं? क्या भगवान भी हमें नहीं चाहते? पहले जन्म में भी मुझे पैसों के लालची चाचा-चाची के हवाले छोड़ दिया, और इस जन्म में भी वही लोग मेरे साथ हैं। क्या मुझे किसी के प्यार पाने का कोई हक नहीं है।"
आंसू उसके गालों से बह रहे थे, पर उसकी आवाज़ में एक टूटन थी, जो बताती थी कि अब उसे अपने लिए लड़ना होगा।
वो धीरे-धीरे सिसक रही थी, अपने हाथों से बुदबुदाते हुए आंसू पोंछ रही थी। कार के अंदर उसकी चूड़ियों की खनकती आवाज़ हर थोड़ी देर बाद सुनाई दे रही थी, जो उसके अंदर की बेचैनी को और बढ़ा रही थी। तभी उसकी सुनाई दी एक कर्कश आवाज़, "ये लो, और अपने आंसू इससे पोंछ लो।" अंशिका ने डरते हुए अपना सिर उठाया और देखा कि रणवीर हाथ में सफेद रुमाल लिए उसके पास बढ़ रहा था।
धीरे-धीरे उसने रणवीर के हाथ से रुमाल लेने की कोशिश की, लेकिन अनजाने में दोनों की उंगलियां एक-दूसरे को छू गईं। इस छोटे से स्पर्श ने दोनों की धड़कनों को तेज कर दिया और उनकी नजरें एक-दूसरे की आँखों में टकरा गईं। कुछ पल के लिए समय थम सा गया, और अगर घूंघट और सेहरा न होते तो वे दोनों एक-दूसरे के चेहरे को साफ़ देख पाते। लेकिन तभी कार रुकने की आवाज़ ने उनकी आंखें खोल दीं और वे दोनों होश में आकर अपनी जगहों पर फिर से बैठ गए।
अंशिका ने संकोच के साथ आंसू पोंछे और रुमाल अपने पास रख दिया। उसकी आंखों में अब भी भय और उलझन साफ़ झलक रही थी। ठीक उसी वक्त ड्राइवर रणवीर के दरवाज़े को खोलकर उसे बाहर निकलने का संकेत दे रहा था। रणवीर ने मुस्कुराते हुए कार से बाहर कदम रखा, लेकिन जैसे ही ड्राइवर अंशिका के दरवाज़े को खोलने को था, रणवीर ने तुरंत कहा, "Stop, I will open the door।"
ड्राइवर ने पीछे हटते हुए उसकी बात मानी और रणवीर ने खुद धीरे से दरवाज़ा खोला।
रणवीर ने धीरे से कार का दरवाजा खोला और बाहर आने के लिए अंशिका का इंतजार करने लगा। पर अंशिका अपने भारी-भरकम लेहंगे की वजह से खुद को बाहर निकालने में असमर्थ थी। वह धीरे-धीरे पैर बढ़ाने की कोशिश करती रही, पर लेहंगे की सिलाई ने जैसे उसे जकड़ रखा हो।
यह देखकर रणवीर ने अपने हाथ को आगे बढ़ाया और गहरा आवाज़ में बोला, "Hold my hand and come out."
अंशिका ने एक नजर रणवीर के चेहरे पर डाली—वह गंभीर लेकिन सहज था। कुछ हिचकिचाते हुए उसने अपने नन्हे, कोमल हाथ उसके कठोर हाथ के ऊपर रख दिए। उसके हाथों की नर्मी और उसकी गर्माहट को महसूस कर रणवीर के दिल की धड़कन अचानक तेज हो गई।
अब अंशिका बाहर निकलने की पूरी कोशिश करने लगी, लेकिन लेहंगा उसे ऊपर उठने नहीं दे रहा था। रणवीर ने बिना देर किए एक झटके में उसे अपने करीब खींच लिया। उस पल अंशिका अचानक रणवीर की बाहों में आ गई।
रणवीर के मजबूत हाथ अंशिका की कमर को कसकर थामे हुए थे, और अंशिका के नाजुक हाथ रणवीर के बाइसेप्स पर हलके से टिके थे। दोनों के बीच की दूरी बिलकुल खत्म हो गई थी, लेकिन कोई भी इस नज़दीकी का एहसास नहीं कर पा रहा था। दोनों की सांसें अनियंत्रित हो गई थीं, और वे दोनों एक-दूसरे के दिल की धड़कनों को अपने सीने में महसूस कर रहे थे।
एक अजीब सी गर्माहट ने उनके दिलों को घेर लिया था, जो शायद इस नए रिश्ते की पहली अनजानी एहसास थी।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में गहराई से डूबे थे, जैसे समय थम सा गया हो। तभी अचानक आसमान से ठंडी ठंडी पानी की बूँदें गिरने लगीं। उस भीगती हवा में वे होश में आए और एक-दूसरे से थोड़ा दूर हट गए।
रणवीर ने हिचकते हुए कहा, "सॉरी, वो आप उठ नहीं पा रही थी, इस लिए..."
लेकिन रणवीर अपनी बात खत्म कर पाता उससे पहले अंशिका ने मुस्कुराते हुए कहा, "It's ok।"
दोनों ने ऊपर देखा तो पता चला कि हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई है। बारिश की बूंदों से बचने के लिए वे जल्दी से अंदर की तरफ बढ़ गए।
अंदर पहुंचते ही सीमा जी और बाकी परिवार वाले पहले से ही उनका इंतजार कर रहे थे, उनकी आँखों में हल्की चिंता और उम्मीद दोनों साफ झलक रही थी।
उनके आते ही सीमा जी ने दोनों की आरती उतारी और अंशिका से कहा,
"बेटा, इस कलश को अपने सोने बाएं पैर से गिराकर अंदर प्रवेश करो।"
सीमा जी की बात सुनकर अंशिका ने ध्यान से अपने बाएं पैर से कलश गिराया और फिर सावधानी से अंदर कदम रखा। उसके बाद सीमा जी ने उसे आलते की थाली में पैर रखकर आने को कहा। अंशिका ने भी वैसा ही किया। नीचे बिछी सफेद चद्दर पर उसके गोरे पैरों के निशान साफ दिखाई देने लगे।
फिर सभी लोग धीरे-धीरे अंदर आने लगे। सबसे पहले वे दोनों मंदिर की ओर गए, जहां उन्होंने भगवान के सामने प्रणाम किया। इसके बाद वे हॉल की ओर बढ़े।
फिर उर्मिला जी ने बोला,
"आज सभी बहुत थक चुके हैं, इसलिए बाकी की रस्में हम कल पूरी करेंगे।"
यह सुन सभी लोग अपने-अपने कमरे में आराम करने चले गए। किया ने अंशिका को गले लगाते हुए "गुड नाइट" कहा और अपने कमरे की ओर बढ़ गई।
ठीक उसी वक्त रणवीर का फोन बजने लगा। कॉल सुनते ही उसने कहा,
"Excuse me, जरूरी कॉल है,"
इतना कहकर वह वहां से साइड में चला गया।
सिमा जी धीरे से बोलीं,
"बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारी शादी बहुत जल्दी-जल्दी में हुई है। इसलिए तुम दोनों को एक-दूसरे को समझने का वक्त मिलना बाकी है। मैं जानती हूँ रणवीर थोड़ा गुस्सैल है, पर दिल का वो बहुत अच्छा है बेटा। ये बात तुम्हें अभी समझ नहीं आएगी। तुम सोच रही होगी कि हर माँ के लिए उसका बेटा अच्छा होता है, पर मैं भरोसा दिलाती हूँ, जब तुम उसे समझना शुरू कर दोगी, तब तुम भी मानोगी कि मैं सच कह रही थी।"
फिर उन्होंने प्यार से पूछा,
"तुम निभाओगी न इस शादी को? और रणवीर को समझोगी न, बेटा?"
अंशिका ने निडर होकर जवाब दिया,
"हाँ आंटी, मैं इस रिश्ते को 100% दूंगी और उन्हें समझने की पूरी कोशिश करूँगी।"
सिमा जी के दिल को ये सुनकर बड़ी राहत मिली और उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई।
तभी उन्होंने कुछ ऐसा कहा जिस से अंशिका के आखों में आशु आ गए।
तो आप सब को क्या लगता है
क्या कहा सीमा जी ने जिसे सुन कर अंशिका जी के आंखों में आशु आ गए?
जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी .......
THE LOVE BOND: PYAR KA BANDHAN
रिश्ते जब मजबूरी में बनते हैं, तो क्या उनमें कभी मोहब्बत पनप सकती है?”
प्रियल, एक अनाथ लड़की, जिसने अपना बचपन एक आश्रम में गुजारा। सपनों को पूरा करने की चाह में वह आती है मुंबई — जहां उसे मिलता है सिर्फ तन्हाई और संघर्ष।
वहीं उसकी मुलाकात होती है श्रेयस अग्निहोत्री से — एक बेरहम और भावहीन बिज़नेस टाइकून, जिसकी दुनिया सिर्फ उसकी नन्हीं बेटी रूही के इर्द-गिर्द घूमती है।
रूही की मुस्कान को बचाने के लिए श्रेयस को करनी पड़ती है प्रियल से कॉन्ट्रैक्ट मैरिज। प्रियल, जो हमेशा सच्चे प्यार के बाद शादी का सपना देखती थी, अब बिना प्यार के शादी करने पर मजबूर है।
क्या इस मजबूरी के रिश्ते में कभी प्यार पनपेगा?
क्या प्रियल सिर्फ रूही की मां बनकर रह जाएगी या श्रेयस के दिल तक भी उसकी पहुंच होगी?
सिमा जी धीरे से बोलीं, "बेटा, मैं जानती हूँ तुम्हारी शादी बहुत जल्दी-जल्दी में हुई है। इसलिए तुम दोनों को एक-दूसरे को समझने का वक्त मिलना बाकी है। मैं जानती हूँ रणवीर थोड़ा गुस्सैल है, पर दिल का वो बहुत अच्छा है बेटा। ये बात तुम्हें अभी समझ नहीं आएगी। तुम सोच रही होगी कि हर माँ के लिए उसका बेटा अच्छा होता है, पर मैं भरोसा दिलाती हूँ, जब तुम उसे समझना शुरू कर दोगी, तब तुम भी मानोगी कि मैं सच कह रही थी।"
फिर उन्होंने प्यार से पूछा, "तुम निभाओगी न इस शादी को? और रणवीर को समझोगी न, बेटा?"
अंशिका ने निडर होकर जवाब दिया, "हाँ आंटी, मैं इस रिश्ते को 100% दूंगी और उन्हें समझने की पूरी कोशिश करूँगी।"
सिमा जी के दिल को ये सुनकर बड़ी राहत मिली और उनके चेहरे पर मुस्कान छा गई। उन्होंने अंशिका के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "आंटी नहीं, ‘माँ’ बोलो बेटा।"
फिर वो दोनों वहीं इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद रणवीर वापस लौट आया।
सिमा जी ने कहा, "बेटा, आओ, तुम अंशिका को अपने गोद में उठा कर कमरे में ले जाओ।"
शुरू में दोनों हिचकिचाए, लेकिन ये रस्म थी और उन्हें इसे निभाना था। इसलिए दोनों ने खुद को तैयार कर लिया।
रणवीर बिना कुछ बोले अंशिका को अपनी मजबूत बाँहों में उठा लेता है और धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ने लगता है। अंशिका को इतना अचानक उठाया गया कि वो घबरा जाती है और डर के मारे रणवीर की शेरवानी का कॉलर कसकर पकड़ लेती है। उसके नर्म, हल्के हाथों का ये स्पर्श रणवीर को कुछ पल के लिए अजीब सा एहसास कराता है।
रणवीर का चेहरा अचानक सख्त हो जाता है, उसकी आँखों में गुस्से की झलक आने लगती है। लेकिन जैसे ही वो नीचे झुककर अंशिका की घूंघट से हल्की सी दिख रहे आँखों में झांकता है, उसकी मासूम सी झुकी हुई पलकों, डरे-सहमे चेहरे और कांपती हुई सांसों को देखकर उसकी आँखें खुद-ब-खुद नर्म पड़ जाती हैं।
एक पल को जैसे उसकी सारी नाराजगी गायब हो जाती है। उसकी आँखों में अब एक अजीब सी शांति, एक अजीब सा अपनापन दिखने लगता है। अंशिका का मासूम चेहरा उसे किसी अनकहे जुड़ाव का एहसास दिला देता है।
अब बिना किसी हिचक के, रणवीर उसे धीरे-धीरे लेकर उनके कमरे की ओर बढ़ने लगता है।
शायद सच ही कहा जाता है—कभी-कभी कुछ रिश्तों में एक अजीब सी कशिश होती है, जो बिना कहे ही दिल को छू जाती है।
रणवीर, जो आम तौर पर किसी की एक हरकत पर भड़क उठता था, आज शांत था। उसकी बाहों में उसकी दुल्हन थी—अंशिका। और शायद आज अगर उसकी जगह कोई और लड़की होती, जो यूं डरकर उसे कस कर पकड़ लेती, तो रणवीर अब तक उसे झिड़क चुका होता। पर ये तो अंशिका थी। उसकी पत्नी। उसकी ज़िम्मेदारी। जो अब उसकी सुकून बन रही थी... और न जाने क्यों, उससे अलग महसूस हो रही थी।
वो उसे एक नज़र देखता और आगे बढ़ता, बिना कोई सवाल किए। एक अजीब सा सुकून उसके चेहरे पर था।
वहीं अंशिका की नजरें जैसे रणवीर पर थम सी गई थीं। जब से उसने उसका चेहरा देखा था—सेहरे के पीछे छुपा वो चेहरा, जो अब पूरी तरह सामने था, जिसे उसने गृहप्रवेशके बाद ही निकाल लिया था। वो चाह कर भी अपनी नजरें हटा नहीं पा रही थी। रणवीर का चेहरा कुछ अलग था... सख्त पर कहीं गहराई से भरा हुआ। उसकी आँखों में जो गहरी थी, अंशिका उसे पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
हर कदम के साथ दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता जन्म ले रहा था—नाजुक, अनजाना, लेकिन बेहद सच्चा।
रणवीर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हर कदम संभालकर रख रहा था, ताकि अंशिका को कोई झटका न लगे। उसके लिए ये सिर्फ एक रस्म नहीं थी—ये एक जिम्मेदारी थी, जिसे उसने खुद नहीं चुना था, पर अब पूरी सच्चाई से निभा रहा था।
पर उसे क्या पता था कि उसकी बाँहों में सजी-धजी अंशिका के मन में क्या चल रहा है।
अंशिका अपने मन में बड़बड़ा रही थी, "हे भगवान! ये कितने हैंडसम हैं। इनकी आंखें... इनका जबड़ा... और ये हल्की सी दाढ़ी—बस अभी तो फिल्मी हीरो लग रहे हैं। कौन कहता है ये गुस्से वाले हैं? मुझे तो अब तक घूरा भी नहीं, उल्टा इतने प्यार से गोद में उठाया है। थैंक यू गॉड इतना अच्छा, हैंडसम और शांत पति देने के लिए!"
(लेकिन अरे कोई इस मासूम लड़की को समझाओ कि रणवीर सबके लिए इतना 'शांत' नहीं होता। जैसा उसने इंटरनेट पर पढ़ा था, उससे भी ज्यादा खतरनाक है रणवीर। पर शायद अंशिका कुछ अलग है। क्योंकि रणवीर का गुस्सा जैसे उसके सामने घुल जाता है। उसे देखता है तो गुस्सा नहीं आता, उल्टा दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।)
वहीं रणवीर भी कम परेशान नहीं था। मन में सोच रहा था— "हे भोलेनाथ! ये मुझे ऐसे क्यों घूर रही है जैसे मुझे चबा ही जाएगी। क्या करूं, इनकी ये नज़रे... पता नहीं क्यों, मैं भी इनके चेहरे को देखने के लिए बेताब हो रहा हूं। घूंघट हटा दे तो शायद चैन मिले..."
रणवीर को अपने सीने के करीब महसूस करती अंशिका की साँसे तेज हो रही थीं, और रणवीर को वो महसूस भी हो रही थी। उसका चेहरा धीरे-धीरे लाल हो रहा था—न शर्म से, बल्कि उस बेचैनी से, जो अंशिका की आँखों और नज़दीकी से पैदा हो रही थी।
कमरे तक पहुंचने में भले चंद सेकंड बचे हों, पर दोनों के मन में एक फिल्म पूरी चल चुकी थी—बिना बोले, बिना छुए... बस एक अहसास के सहारे।
जैसे ही रणवीर और अंशिका कमरे में पहुंचे, रणवीर ने दरवाज़ा बंद किया और अंदर आया। कमरे की सजावट इतनी खूबसूरत थी कि दोनों की नज़रें खुद-ब-खुद चारों तरफ घूमने लगीं। गुलाब की पंखुड़ियों से सजा बिस्तर, मद्धम रोशनी में झूमते पर्दे, और हल्की सी महक कमरे में एक अजीब सी शर्म और रुमानियत घोल रही थी।
रणवीर ने अंशिका को धीरे से नीचे उतारा। अंशिका जैसे ही ज़मीन पर खड़ी हुई, होश में आई और तुरंत नज़रें झुका लीं। उसकी नज़रें जब सजावटी बिस्तर पर पड़ीं, तो वह घबरा गई। घबराहट में उसने अपनी उंगलियां एक-दूसरे में उलझा लीं और चुपचाप खड़ी रही।
ये देख रणवीर थोड़ा असहज हुआ, उसने अपनी खामोशी तोड़ते हुए हल्के से गला साफ किया और बोला, 2w"आप बेझिझक बिस्तर पर सो जाइए, मैं सोफे पर सो जाऊंगा। और प्लीज़... ऐसे घबराइए मत।"
उसके लहज़े में एक अजीब सी नम्रता थी, मानो वो अंशिका को भरोसा दिला रहा हो कि उसे डरने की ज़रूरत नहीं। अंशिका ने चुपचाप 'हां' में सिर हिलाया और दिल में राहत की सांस ली। रणवीर भी खुद को संयमित रखने की पूरी कोशिश कर रहा था।
रणवीर की बोलता है – "आपकी अनुमति के बिना मैं कभी आपको उस नज़र से नहीं देखूंगा, न ही आपके करीब आऊंगा। इस लिए बेफिक्र रहिए। "
रणवीर की ये बात सुनकर अंशिका अचरज से उसकी तरफ़ देखने लगी। उसकी आँखों में हैरानी भी थी और एक अनकही राहत भी।
रणवीर उसकी तरफ़ देखे बिना चुपचाप अपने कपड़े उठाता है और वॉशरूम की ओर बढ़ते हुए अंदर चला जाता है। दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ के साथ अंशिका गहरी सोच में डूब जाती है। वह बिस्तर पर बैठते हुए खुद से बड़बड़ाने लगती है,
"ये रणवीर जी तो बिल्कुल वैसे नहीं हैं जैसे मैंने सोशल मीडिया पर पढ़ा था... वहाँ तो लिखा था कि वो गुस्से वाले, अकड़ू और किसी की ना सुनने वाले हैं। पर यहाँ तो... ये तो बिल्कुल अलग हैं।"
फिर चुपचाप मुस्कुराते हुए खुद से कहती है,
"पता नहीं आगे क्या होगा…"
वो अब भी अपनी ही सोचों में उलझी थी, जब अचानक वॉशरूम का दरवाज़ा खुलता है।
रणवीर बाहर आता है—ब्लैक शर्ट और ब्लैक पायजामा में। उसके गीले बाल अब भी माथे पर झूल रहे थे। उसकी पर्सनैलिटी और अंदाज़ ने जैसे कमरे की रौशनी को भी रोक लिया था। अंशिका एक पल को उसे देखकर ठिठक जाती है।
वो खुद से बुदबुदाती है,
"हे भगवान! ये तो... कहर ढा रहे हैं आज तो।"
रणवीर उसकी तरफ़ नज़र उठाता है, पर बिना कुछ कहे कमरे के एक कोने में जाकर सोफे पर बैठ जाता है और तकिया सीधा करता है।
कमरे में अब एक अलग ही शांति छा चुकी थी—जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं थी, बस एहसास ही काफी थे।
जैसे ही अंशिका की नज़र रणवीर पर पड़ी, वो बस वहीं ठहर गई। उसकी नज़र हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। रणवीर की मौजूदगी में कुछ तो था, जो उसे बाँध सा रहा था।
रणवीर ने भी जब अंशिका की लगातार नजरें खुद पर महसूस कीं, तो उसने धीरे से अपना चेहरा ऊपर उठाया। और फिर—उनकी निगाहें एक-दूसरे से टकरा गईं।
कुछ पलों के लिए समय थम-सा गया।
अंशिका की बड़ी-बड़ी आँखों में हल्की झलक उस मासूमियत की थी, जो रणवीर को भीतर तक छू गई। रणवीर की निगाहें उसके गोल चेहरे से फिसलती हुईं, उसके होंठों तक आ गईं—जो डार्क मैरून लिपस्टिक में और भी आकर्षक लग रहे थे। और फिर...
उसके होठों के किनारे जो छोटा सा तिल था, उस पर जाकर उसकी नज़र अटक गई। रणवीर के भीतर कुछ तो बदलने लगा था। उसकी साँसों की रफ्तार थोड़ी तेज़ हो गई।
तभी रणवीर ........
आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले चैप्टर को पढ़ते रहिए।
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ये कहानी है आरुषि शर्मा और अक्षांश कपूर की । आरुषि मुंबई की रहने बाली सभी की मदद करने वाली बहत ही सिंपल लड़की है । वही अक्षांश दिल्ली के रहने वाला एक रुड एंड एरोगेंट लड़का जो सिर्फ अपने घर वालों और दोस्तों के लिए ही स्वीट है । आरुषि और अक्षांश की मुलाकात दिल्ली में होता है और दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते है । अक्षांश आरुषि को पहली ही नजर में अपना दिल दे देता है । पर वो आरुषि को अपने दिल की बात बताने से डरता है । तभी आरुषि और अक्षांश की शादी एक unexpected situation में हो जाता है । इसी बीच आरुषि और अक्षांश के जिंदगी में एक ऐसा तूफान आता है जिससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है । कैसा तूफान आया उनके जिंदगी में? क्या अक्षांश कभी आरुषि को अपने दिल की बात बता पाएगा ? क्या आरुषि और अक्षांश इस unexpected शादी को निभा पाएंगे ? क्या अक्षांश और आरुषि की शादी को घर वाले मानेंगे ? जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी ये कहानी "Falling in love with you" ....