आर्य और श्रापित योद्धा
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पिछले भाग में आपने देखा, विनम्र के पास जो सुदर्शन चक्र था। अब वह आधा-अधूरा सुदर्शन चक्र नहीं था, बल्कि एक पूरा चक्र बन चुका था, जिसकी ऊर्जा को संभाल पाना उसके बस की बात नहीं थी। मगर विनम्र ने फिर भी कुछ देर तक इंतज़ार किया, और आखिरकार सुदर्शन चक्र की ऊर्जा धीरे-धीरे कम होती रही। फिर वह इस तरह बदला कि विनम्र उसे संभाल पा रहा था। आखिरकार, उसने पूरा सुदर्शन चक्र हासिल कर ही लिया था। अब कहानी आगे… विनम्र के ठीक सामने आन्या थी, जो अब हार चुकी थी। आन्या की हार के बाद उसके पास करने के लिए कुछ नहीं था, क्योंकि वह चाहकर भी विनम्र से मुकाबला नहीं कर सकती थी। आन्या ने अपनी जगह से खड़े होने की कोशिश की, लेकिन वह खड़ी नहीं हो पाई। वह वापस अपनी जगह पर गिर गई और गिरे हुए कहा, "मैं अब हार चुकी हूँ। अब तो तुम्हें खुशी मिल ही चुकी होगी। अब वह लोग बेगुनाह लोगों की जान लेंगे, और शायद तुम्हें उससे सुकून मिलेगा? बताओ, यही चाहते थे ना तुम?" विनम्र ने अपनी जगह पर मुस्कुराते हुए कहा, "यह बस तुम्हारे मन का भ्रम है, जबकि मैं ऐसा कुछ भी नहीं चाहता था। मुझे नहीं लगता मैं तुम्हें कभी समझा भी पाऊँगा, क्योंकि जो चीज़ तुम्हें समझ में ही नहीं आएगी, उसे समझाने का कोई मतलब नहीं बनता है। अब जो भी है, वह ऐसा ही रहेगा, और कोई भी इसे बदल नहीं सकता है।" आन्या पूरी तरह से हार चुकी थी, और थोड़ी ही देर में संयोगिता और वनिला ने आकर उसे पकड़ लिया। वनिला ने उसे पकड़ते हुए कहा, "अब तुम्हारी असली जगह जेल में है। बहुत घूम लिया तुमने आज़ादी से। आखिरकार, हाइपर एक्स ग्रुप की लीडर हमारे हाथ लग गई है।" आन्या ने गुस्से से कहा, "अभी के लिए तो तुम मुझे जेल में डाल सकती हो, लेकिन मैं एक दिन ज़रूर बाहर आऊँगी, और जब मैं बाहर आऊँगी, तब मैं वापस अपने बदले का ऐसे ही आगे बढ़ाऊँगी।" संयोगिता ने जवाब दिया, "अभी तो इसके लिए वक्त है। कौन सा तुम आज ही जेल से बाहर आने वाली हो? जब तुम जेल से बाहर आओगी, तब का तब देखा जाएगा।" रॉबर्ट जूनियर, जो काफी देर से बेहोश पड़ा था, उसे होश आ गया। जब उसे होश आया, तो उसने देखा लड़ाई खत्म हो चुकी थी। वह अपनी जगह से गायब होकर तुरंत आया और विनम्र के पास प्रकट हुआ। उसने आते ही कहा, "लगता है मैंने काफी कुछ मिस कर दिया है। मेरी किस्मत खराब थी, जो मेरी ताकत ने मेरा साथ नहीं दिया। मैं अभी-अभी होश में आया हूँ, इसलिए मेरी ताकत ठीक से काम नहीं कर रही।" विनम्र ने उसे जवाब दिया, "तुम्हारी ताकत कम ही काम करती थी। तुम पहले भी इस तरह से बेहोश हो चुके हो। चलो अच्छा है इस बार तुम लंबी बेहोशी में नहीं गए, वरना तुम्हें ठीक करने के लिए पता नहीं क्या कुछ दोबारा करना पड़ता।" रॉबर्ट जूनियर विनम्र को तिरछी नज़रों से देखने लगा, "क्या तुम मेरा मज़ाक बना रहे हो?" विनम्र ने हाँ में सिर हिलाया, "और नहीं तो क्या? तुम्हें क्या लग रहा है? मैं तुम्हारी तारीफ़ कर रहा हूँ? चलो अब लड़ाई खत्म हुई है, हमें यहाँ से चलना चाहिए और एजेंसी जाकर आन्या को संभाल देना चाहिए।" विनम्र आन्या की बात कर रहा था। रॉबर्ट जूनियर ने विनम्र को जवाब दिया, "आन्या को संभालने का काम तुम्हारा है, क्योंकि हमारी लड़ाई बस यही तक थी, और हमारा साथ भी बस यही तक था। अब से तुम अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते। अब से हम दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। हम आन्या को छोड़ देंगे, और उसके बाद हमारा यह वादा भी पूरा हो जाएगा।" रॉबर्ट जूनियर ने संयोगिता और वनिला की तरफ देखा, जो आन्या को विनम्र को सौंप कर जाने लगी। संयोगिता जाने से पहले विनम्र के पास आई। वनिला और रॉबर्ट जूनियर दूर जा चुके थे, इसलिए उन दोनों के पास सिर्फ़ आन्या थी। संयोगिता ने विनम्र से कहा, "थैंक्स, मुझे नहीं पता मैं तुम्हें किस लिए थैंक्स कह रही हूँ, लेकिन शायद मुझे तुम्हें थैंक्स कहना ही चाहिए। तुम्हारी वजह से मैंने काफी कुछ एक्सपीरियंस किया है, और कई सारी नई चीज़ें देखी हैं, जिसके बारे में मैं तुम्हें कभी बत भी नहीं सकती। मैं नहीं जानती हमारी आगे मुलाकात होगी या फिर नहीं, लेकिन मैं अपनी पुरानी मुलाकात को हमेशा याद रखूँगी। हमने एक-दूसरे के साथ जो समय बिताया है, मैं उसे याद रखूँगी, और बाकी सभी चीज़ों को भी।" यह कहकर संयोगिता जल्दी से विनम्र के गले लग गई। विनम्र ने भी उसे गले से लगा लिया और फिर गले से लगाते हुए बोला, "तुमने भी काफी कुछ किया है, और जो भी तुमने किया है, मैं उसे भी याद रखूँगा। तुम्हारी वजह से रॉबर्ट जूनियर मेरा साथ देने के लिए माना, क्योंकि अगर तुम मेरे साथ नहीं आतीं तो हमारे बीच में यह डील कभी नहीं होती। तुम लोगों ने यहाँ पर भी मेरा काफी साथ दिया, खासकर इस सुदर्शन चक्र को पूरा करने में। मैं खुश हूँ, अब मेरे पास एक पूरा सुदर्शन चक्र है।" संयोगिता ने उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, "और मैं भी इस बात से खुश हूँ। चलो अब अगर आगे ज़िंदगी रही, तो हम दोबारा मुलाकात करेंगे, वरना तो जैसे चल रहा है, वैसे ही चलता रहेगा।" यह कहकर संयोगिता ने विनम्र को अलविदा कहा और फिर दोनों ही एक-दूसरे से अलग हो गए। उसके अलग होने के बाद विनम्र ने आन्या को उठाया और अपने साथ एजेंसी वापस ले आया। फिर वहाँ पर उस पर जो भी कार्रवाई होनी थी, वह हुई, और फिर उसे सरकार के हवाले करके जेल में बंद कर दिया गया। हाइपर एक्स ग्रुप का सेकंड हैंड अभी भी बाकी था, लेकिन वह कहाँ है और उसे कैसे पकड़ा जाना है, इसकी जानकारी वनिला के पास थी, तो विनम्र ने कुछ लोगों को उसे पकड़ने के लिए भी भेज दिया था। एक दिन के बाद शैनाया वापस आ गई थी, और जैसे ही विनम्र ने शैनाया को देखा, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह दौड़कर शैनाया के पास गया और उसे कसकर गले से लगा लिया। विनम्र ने शैनाया से कहा, "तुम सोच भी नहीं सकती, तुम्हारे आने से मुझे कितनी खुशी मिली है। मैंने तुम्हें बहुत मिस किया।" सामने से शैनाया रो पड़ी थी, क्योंकि उसने विनम्र को एक लंबे अरसे के बाद देखा था। उसने भी विनम्र को बहुत याद किया था।
अध्याय 17 छुपी हुई स्नो गोल भाग-3 ★★★ हिना को समझ नहीं आ रहा था कि उसने अपनी आंखों के सामने जो देखा, वह क्या था? नेहा की आखिर आर्य की मौत के मंत्र से क्या संबंध था? फिलहाल, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसी समय, उसके पास मौजूद डेनियल ने कहा, "पता नहीं यह सब क्या है? वह लड़की कौन थी? क्या तुम इसके बारे में कुछ जानती हो?" हिना ने सिर हिलाकर मना कर दिया। तभी, सामने से मामानर्थ बोला, "मुझे यह लड़की आश्रम की लगती है। लगता है आश्रमवासी पहले आर्य के मंत्र को हासिल करने की कोशिश करेंगे ताकि हम उसे मारने का राज न जान सकें। लेकिन डरो मत, तुम्हें इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हम इन आश्रमवासियों को ऐसा सबक सिखाएँगे कि वे फिर कभी हमसे पंगा लेने के बारे में नहीं सोचेंगे।" मामानर्थ अभी भी बोल ही रहा था कि अचानक तूफान और तेज हो गया। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यह तूफान क्यों तेज हो रहा है। मामानर्थ ने दौड़कर खिड़की से बाहर देखा तो उसकी आँखें हैरानी से फटी रह गईं। उसका बेटा भी दौड़ता हुआ खिड़की के पास आया और बाहर देखा। उसका हाल भी वैसा ही हो गया जैसा उसके पिता का। आशावादी (बेटा) अपने पिता से बोला, "पिताजी, यह क्या है? क्या उस लड़के के मंत्र में इतनी ताकत है? मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा!" मामानर्थ ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा, "ऐसा कुछ नहीं है। चीजें बदल रही हैं, बस इसी वजह से यह सब हुआ होगा।" उनके ठीक सामने एक चक्रवाती तूफान था जिसमें हवा नहीं, बल्कि बर्फ बह रही थी। एक बड़ा बर्फ का घेरा पूरे घर के आसपास बन गया था जो धीरे-धीरे घर की ओर आ रहा था। बाकी लोग भी खिड़कियों के पास जाकर बाहर के दृश्यों को देख रहे थे। जो भी बाहर देख रहा था, वह हैरान और स्तब्ध हो रहा था। बर्फ की एक विशाल चादर लगातार तेजी से घूमते हुए घर की ओर आ रही थी। यह दृश्य भयावह था; इसे देखकर कोई भी डर जाएगा, चाहे वह इंसान हो, अंधेरी परछाईं हो या कोई और। हिना ने डेनियल से कहा, "अगर हम सब यहाँ से बाहर नहीं निकले, तो सब मारे जाएँगे। यहाँ किसी की भी शक्ति काम नहीं कर रही है, इसलिए हम सब सामान्य इंसानों की तरह ही हैं।" डेनियल सहमति में बोला, "लेकिन हम लोग चार घंटे का समय पूरा होने से पहले यहाँ से नहीं जा सकते। चार घंटे बाद यह स्नो गोल अपने आप ही बाहर ले जाएगी। अभी बस दो घंटे हुए हैं। हमें अगले दो घंटे तक यहाँ इंतज़ार करना होगा।" डेनियल अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि अचानक ऊपर की छत उड़ गई और बारीक बर्फ के टुकड़े छत के ऊपर उड़ने लगे। मामानर्थ चिल्लाया, "सब बेसमेंट में! अभी के लिए वही सुरक्षित जगह है!" यह कहते ही सब लोग बेसमेंट की ओर भागे। बेसमेंट में जाने के लिए लोग धक्का-मुक्की करने लगे। एक बूढ़ी औरत इस धक्का-मुक्की में जमीन पर गिर गई और लोग उसके ऊपर से गुज़रते चले गए जैसे वह पैरों का पायदान हो। जब हिना वहाँ पहुँची, तो उसने उस बूढ़ी औरत को संभाला और लोगों के पैरों से बचाते हुए उसे खड़ा किया। लेकिन जब उसने उस बूढ़ी औरत का चेहरा देखा, तो वह सकते में आ गई। उसका चेहरा पूरी तरह से कटा हुआ था और जबड़े का एक टुकड़ा बाहर लटक रहा था। उसके मुँह से खून बह रहा था। वह अपने टूटे हुए मुँह से बोली, "तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद, बेटी।" बोलते-बोलते उसके कुछ दांत नीचे गिर गए और हिना ने एक भयावह चेहरा बना लिया। वह बूढ़ी औरत बाकी अंधेरी परछाइयों के साथ बेसमेंट में चली गई और फिर हिना और डेनियल भी बेसमेंट में आ गए। बेसमेंट काफी बड़ा था; इतना बड़ा कि काफी सारी अंधेरी परछाईयाँ इसमें आ सकती थीं। मामानर्थ और उसका बेटा, आशावादी, सबसे आखिर में बेसमेंट में आए। बाहर के तूफान की वजह से भयानक शोर हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे हज़ारों मशीनें एक साथ चल रही हों और उन मशीनों के बीच में पत्थरों को पीसा जा रहा हो। लोगों के एक साथ अंदर आ जाने और घबराहट की वजह से वे लगातार बड़बड़ा रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे। इनमें से एक बूढ़ी औरत कह रही थी, "मैंने आज तक ऐसी तबाही नहीं देखी! मैं पहले भी यहाँ आई थी। पता नहीं उस मनहूस लड़के की किस्मत कैसी है जिसके मंत्र को पढ़ने से यह सब हुआ है। हे शैतान, हम पर दया करो और हमें इस लड़के से बचाओ!" हिना उसकी बात सुन रही थी। डेनियल ने बूढ़ी औरत की बात सुनकर कहा, "उम्र के साथ-साथ इसका दिमाग भी बुढ़ा हो गया है। यह जो सब हो रहा है, वह उस बर्तन में कांच के टुकड़ों के गिरने की वजह से हो रहा है। मंत्र को पढ़ते वक्त अगर किसी तरह की कोई दिक्कत हो जाए, तो उसके बहुत भयानक परिणाम सामने आते हैं। यह बात इस बूढ़ी औरत को कभी समझ नहीं आएगी।" तभी हिना के कानों में एक और लड़के की आवाज गूँजी, जो लगभग सोलह साल का लग रहा था। उसने अपने पास खड़े आदमी (शायद उसके पिता) से कहा, "डैड, मुझे भी उतना ही ताकतवर बनना है, इतना ताकतवर कि अगर कोई मेरा मंत्र पढ़े, तो इस तरह का तूफान आ जाए। सिर्फ़ मेरे मंत्र को पढ़ने से नहीं, बल्कि मेरा नाम लेने से ही इतना बड़ा तूफान आ जाए!" उसके पिता ने अपने बेटे को दिलासा देते हुए कहा, "तुम बनोगे बेटा, तुम ज़रूर बनोगे। देख लेना, बड़े होकर तुम इतने खतरनाक बनोगे कि तुम्हारा नाम लेने से ही लोग डरेंगे।" उसके बेटे ने अपने चेहरे पर मुस्कान दिखाई और फिर अपने लंबे-चौड़े दांतों की श्रृंखला दिखाते हुए बोला, "क्या सच में, पिताजी?" उसके पिता ने सिर्फ़ सिर हिलाया। तूफान लगातार तेज होता जा रहा था और उसकी आवाज़ के साथ-साथ बेसमेंट में लोगों का शोर भी बढ़ता जा रहा था। मामानर्थ ज़ोर से चिल्लाया, "शोर करना बंद करो बेवकूफों! क्या तुम लोग यहाँ शांति से नहीं बैठ सकते?" अचानक एक बूढ़ा आदमी आगे आया और उसने मामानर्थ से कहा, "हमारी जान पर बन आई है और तुम्हें शांति की पड़ी है? अगर हमें कुछ भी हुआ, तो इसकी ज़िम्मेदार सिर्फ़ तुम होंगे क्योंकि तुम्हारी वजह से ही यह आफत आई है। तुम आरदु की तरह बिल्कुल नहीं हो। वह तुम्हारी तरह गलतियाँ नहीं करता था, ऐसी गलतियाँ नहीं जिनमें हमें मौत के मुँह में जाना पड़े। यहाँ बेवकूफ़ हम सब नहीं हैं, बल्कि तुम हो!" मामानर्थ ने गुस्से से अपने बेटे की ओर देखा। उसके बेटे ने अपना मुँह खोला और उसके मुँह से ऑक्टोपस की तरह कई हाथ बाहर निकल आए। उन हाथों ने उस आदमी को घेर लिया और अगले ही पल उसे कसकर दबा दिया, जैसे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया हो। पूरी भीड़ यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई। इस दुनिया में किसी की भी शक्ति काम नहीं कर रही थी, लेकिन इन दोनों बाप-बेटे की शक्ति अभी भी वैसी ही थी जैसी उनकी बाहरी दुनिया में होती थी। मामानर्थ अपने हाथों को लंबा कर सकता था और उसने अपने हाथ को लंबा करके एक आदमी के शरीर से उसका दिल निकाल दिया था। अब उसका बेटा अपने मुँह से ऑक्टोपस की तरह कई शाखाएँ निकाल सकता था। हिना यह देखकर हैरान थी कि ये बाप-बेटा अपनी शक्ति का इस्तेमाल यहाँ कैसे कर पा रहे हैं। उसने डेनियल से पूछा, "यहाँ किसी की भी शक्ति काम नहीं कर रही है, फिर इन लोगों की शक्ति यहाँ कैसे काम कर रही है?" डेनियल ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया, "इसके पीछे का कारण यह है कि उनके पास जो शक्ति है, वह उनकी अंधेरी परछाई होने की वजह से नहीं है। यह सब एक प्रयोग का नतीजा है। इस दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है। इस दुनिया के किसी कोने में अंधेरी परछाइयों के डीएनए को निकालकर इंसानों पर प्रयोग किए जाते हैं ताकि उन्हें सुपर पावर वाला इंसान बनाया जा सके। हमने कभी इस बारे में जाँच-पड़ताल करने की कोशिश नहीं की, लेकिन हमें कई ऐसे लोग मिले जो इस प्रयोग के नतीजे थे और हमारे पास आ गए थे। ये दोनों भी उनमें से हैं। और ऐसे कितने लोग होंगे जो हमारी जानकारी से बाहर हैं। यहाँ तो बस ये दोनों ही हैं।" डेनियल जिस एक्सपेरिमेंट की बात कर रहा था, वह उस फाइल से जुड़ा था जो आर्य ने पाकिस्तान में देखी थी; उसमें अंधेरी परछाइयों पर किए जा रहे प्रयोगों का ज़िक्र था। हिना को इस बारे में कुछ नहीं पता था, इसलिए उसने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और बस यही समझा कि उनके पास यह शक्ति इसलिए है क्योंकि वे एक प्रयोग से बनी अंधेरी परछाईयाँ हैं। फिर सब लोगों की तरह वह भी तूफान के खत्म होने का इंतज़ार करने लगी ताकि यहाँ से बाहर जाया जा सके। स्नो गोल से बाहर, आयशा हिना की जादुई अंगूठी को ढूँढ़ने की कोशिश कर रही थी। उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं और आसपास के वातावरण में एक हल्की चमक को कॉटन कैंडी के रेशों की तरह फैला रही थी। उसका ध्यान पूरी तरह से इस बात पर था कि वह जादुई अंगूठी को महसूस कर पाएगी या नहीं। वह काफी देर तक ऐसे ही कोशिश करती रही, तभी अचानक उसने अपनी आँखें खोलीं और कहा, "आखिरकार मुझे पता चल गया! वह स्नो बॉल यहाँ से तीन घड़ी दूर, एक कबाड़ी की दुकान में है।" आयशा को स्नो बॉल की लोकेशन पता चल गई थी और यह देखकर शौर्य और आददु दोनों ही खुश हो गए। आरदु ने कहा, "चलो, फिर चलकर उसे हासिल करते हैं! आखिर देर किस बात की?"
जब-जब पृथ्वी पर संकट आया है तब तब मैंने अवतार लिया है। मैं अब तक 9 अवतार ले चुका हूं। अपने हर एक अवतार में मैंने बुराई को खत्म किया और उसे बुरे इंसान को जो उसे बुराई का नेतृत्व करता था। क्योंकि यही मेरा काम है। मुझे आज भी अपने हर एक जन्म की कहानी याद है। अपने पहले जन्म में मैंने एक मछली के रूप में जन्म लिया था। फिर मुझे मेरा एक अवतार याद आ रहा है जहां मेरा चेहरा एक शेर के जैसा था। बुराई कभी भी कमजोर नहीं होती है। कई बार उसे खत्म करना सच में हद से मुश्किल हो जाता है, यहां तक की मैं एक देवता हूं, तभी उसे खत्म करना मेरे बस की बात नहीं होती। इस पूरे ब्रह्मांड में मुझे भी ऊपर के लोग हैं, मैं एक देव हूं तो मुझे ऊपर के लोगों को भगवान कहा जाता है। बुरे लोग अक्सर इन भगवानो से किसी न किसी तरह का वरदान ले लेते हैं, कुछ वरदानों के बारे में हम देवताओं को जानकारी होती है तो कुछ वरदानों के बारे में हमें भी नहीं पता होता। यही वरदान आगे चलकर हमारे लिए मुसीबत बनते हैं। मुझे अच्छे से याद है मेरे एक अवतार में मेरा जो दुश्मन था, उसने वरदान ले लिया था वह ना तो दिन में खत्म हो सकता है ना ही रखत को खत्म हो सकताहै, ना ही बाहर और ना ही अंदर और नहीं किसी तरह की हथियारसे। सच में मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था मैं उसे कैसे खत्मकरूं। कभी-कभी तो मैं यह सोचकर भी हैरान हो जाता हूं बुरे लोगों के पास इतना दिमाग खाता कहां से हैं जो वह इस तरह के वरदान मांग लेते हैं। तब जाकर मैंने एक ऐसा अवतार लिया था जिसमें मेरा चेहरा शेर के जैसा था। और मैंने उसे आदमी को शाम के ठीक पहले के कुछ वक्त पर दरवाजे के बीचों बीचमारा था। जैसा कि उसके वरदान में कहां गया था। बुरे लोग अक्सर अमर होने की कोशिश करते हैं लेकिन अमृता भगवान से प्राप्त नहीं होती है। इसलिए वह वरदान में कुछ ऐसी चीज मांगते हैं जिससे वह पूरी तरह से अमर तो नहीं हो पाए लेकिन फिर भी लगभग अमृता के करीब पहुंच जाते हैं। मेरे नौ अवतारों की कहानी दिलचस्प थी और मैं अपने सभी जो अवतारों में अलग-अलग तरह से वरदान हासिल करके कभी न करने वाले शख्स को खत्मकिया है। हर कोई अपने दिमाग खर्च से इस्तेमाल करता था और खुद को ऐसे कर लेता था कि उसे किसी भी हालत में खत्म नहीं किया जा सकता था लेकिन फिर भी मैंने किया। अब यह मेरा दसवां अवतारहै, और अपने इस तस्वीर में अवतार में भी एक ऐसी ही बुराई को खत्म करूंगा इसके बारे में फिलहाल मुझे कुछ भी नहींपता है। कुछ भी से मेरा मतलब कुछ भीनहीं। इस बार का अवतार मेरे बाकी के अवतारों से अलगहोगा। अपने पहले के सभी अवतारों में मैं अवतार लेने के बाद भी अपनी दैविक शक्ति का इस्तेमाल किया है। यह मेरे कहने का मतलब है मैंने अपनी देवी शक्ति का इस्तेमाल भूत और भविष्य देखने के लिएकिया, ताकत के मामले में तुम इस बार भी अपनी देवी शक्ति का इस्तेमाल करूंगा। भूत और भविष्य देखने की वजह से मुझे दुनिया के बारे में पता होता था और यह भी पता था यहां पर कौन बड़ा शख्सहै। अगर आपके पास किसी दुनिया में पहुंच करो वहां के भूतकालऔर भविष्य को देखने की पावर हो तो आप उसे दुनिया को आसानी से समझ लेते हो और दुनिया में रहने वाले लोगों कोभी। इस बार का मेरा अवतार इसलिए अलग है क्योंकि मैं अवतार लेने से पहले यह डिसाइड किया था कि मैं अपनी इस पावर का इस्तेमाल नहीं करूंगा। मैं ना तो अपनी पावर का इस्तेमाल करके भूतकाल देख सकता हूं ना ही अपनी पावर का इस्तेमाल करके भविष्य देखसकता हूं। यहां तक कि मैं अपनी पावर का इस्तेमाल करके आसपास के वातावरण को समझ भी नहींसकता हूं। मेरे पहले के अवतारों में अनंत दूरी पर भी क्या है मैं इसका पता लगा लेता था लेकिन अबकी बार ऐसाभी नहीं होगा। इस बार मुझे किसी आम शख्स की तरह ही अवतार लेना होगा जिसके पास अपनी दैविक शक्तियों तो होगी मगर वह उसे तरह से नहीं होगी जिस तरह से वह वास्तविक मेंहै। मेरी शक्तियां लिमिटेडहोगी। मुझे दुनिया के बारे में पता नहीं होगा दुनिया में रहने वाले लोगों के बारे में नहीं पता होगा यहां तक कि मुझे इस बात की भी जानकारी नहीं होगी मैं कौन सीदुनिया में हूं। सन कौन सा चल रहा है। माहौल क्या है। वहां रहने वाला बड़ा शख्स कौन है जिसके लिए मैं अवतार लेने जा रहा हूं। सब कुछ मेरे लिए अनजान होगा क्योंकि इस बार अपनी आखिरी अवतार में मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूं जो मैंने आज तक नहींकिया। ताकि जिस तरह से मैं अपने जो अवतारों में लोगों के लिए आदर्श बना हूं उसे तरह से अपने देश में अवतार में भी लोगों के लिए आदर्श बनूं। एक ऐसा आदर्श जिसे लेकर लोग अगले हजारों सालों तक अच्छाई के रास्ते पर चलें। अब से ठीक हूं चांद पलों के बाद मेरा जन्म होगा। कुछ देर पहले मुझे पता था मैं कहां पर जन्म लेने वाला हूं, और मैं यह भी जानता था मैंने इस जगह का निर्धारण क्यों किया लेकिन अब मैं यह सारी बातें भूल चुका हूं। अपने दसवें में अवतार से जुड़ी हुई जो भी चीज मेरे लिए जरूरी है मैं उस पूरी जानकारी को भूल चुका हूं। मुझे अगर कुछ याद रहेगा तो यह है कि मैं एक अवतार हूं और मैं अपने पिछले जन्मों में क्या किया है। और जो याद नहीं रहेगा वह यह है कि मैं इस जन्म में किस खत्म करने के लिए जन्मलिया है। बस अब थोड़ी देरऔर, फिर मैं जन्म ले लूंगा एक नईदुनिया में, एक अनजान दुनिया में, और मुझे फिर वहां पर खत्म करना होगा उसे बुराई को इसके लिए मैं लेने जा रहा हूं अपना दसवां अवतार। ........................ दसवां अवतार दुनिया - अनजान समयधारा - अनजान ओल्ड मेमोरी - सभी नों अवतार की जानकारी न्यु ममोरी - 10वीं अवतार में जो बुराई का नेतृत्व कर रहा है उसे शख्स को खत्म करना पावर - शुन्य (जैसे जैसे दुनिया की जानकारी हासिल होगी, यह डाटा चेंज होता रहेगा) ”ओह, यह जन्म के समय होने वाले चिपचिपे एहसास, मुझे इनसे नफरत है। मैं एक प्राकृतिक तरीके से जन्म ले रहा हूं, यानी कि यह कोई एडवांस समय नहीं है जहां मशीनों के द्वारा जन्म हो, ओह, मैं कुछ ज्यादा ही जल्दी समय के बारे में सोचने लगा हूं, अभी मैं ठीक से पैदा भी नहीं हुआ, मुझे पैदा होने का इंतजार करना चाहिए, मैंने एक्साइटमेंट के मारे कहे तो दिया मुझे कोई जानकारी नहीं होगी, मगर अब ऐसे लग रहा है मैंने खुद को ही सजा दी है” एक छोटा सा कमरा जो किसी झोपड़ी की तरह लग रहा था मैं औरतों की भीड़ जमा थी। वो सब एक गदें मिट्टी से भरे बिस्तर पर लेटी एक औरत के चारों और खड़ी थी। वो औरत एक बच्चे को जन्म देने जा रही थी। औरतों की भीड़ में से एक औरत ने कहा ,"थोड़ा सा जोर लगाओ, आहुदी, तुम्हें थोड़ा सा और जोर लगाना होगा.." वही उसके पीछे मौजूद औरतें आपस में ही बात कर रही थी। उन औरतों में ऐसे एक औरत बोली ,"इसकी किस्मत कितनी अच्छी है, शादी के पुरे 10 बाद इसे बच्चा होने जा रहा है, हर कोई जवाब दे चुका था, हमारे गांव के जितने भी वेद हैं सबने अपने हाथ खड़े कर दिए थे मगर फिर भी यह आज मां बनने वालीहै।" दूसरी औरत उसके जवाब में बोली ,"यह तो किसी भगवान के चमत्कार से काम नहीं है, ऐसे चमत्कार बहुत कम होते हैं, यहहमारे गांव की सबसे प्रसिद्ध वैद्य मनी वर्धमान के पास भी गई थी और उन्होंने भी यही कहा था तुम मन नहीं बन सकती हो, मगर फिर भी चमत्कार हो गया।" पहली औरत दोबाराबोली ,"अब तो बस यह देखना है इस लड़का होता है या फिर लड़की?" दूसरी औरत ने जाट से काडाला ,"क्या फर्क पड़ता है चाहे लड़का हो चाहे लड़की, जिस किसी को औलाद ना हो उसे तो औलाद मिल जाए यही उसके लिएकाफी होता है।" आहुदी अपना पूरा जोर लगा रही थी। उसका चेहरा पसीने से लटपट था और एक औरत लगातार उसके सर पर हाथ रखकर उसको शांत करने की कोशिश कर रहीथी। चेहरे पर दर्द के भाव दिखाई दे रहेथे। उसे दो और औरतों ने पकड़ रखा था। आहुदी ने अपना पूरा जोर लगाया जिससे उसे जिंदगी भर का दर्द एक साथ महसूस हुआ और फिर अचानक सब कुछ थम गया। दर्द एक झटके में काम हो गया। एक औरत ने बच्चों को अपने हाथ में पकड़ा और उसे ऊपर उठकरबोली ,"मुबारक हो लड़का हुआ है।" कमरे में जितने भी औरतें मौजूद थे उनमें से कुछ के चेहरे खुशी से भर गए थे तो कुछ को जलन हो रही थी। "ओह, इस तरह से उल्टा लटकना बंद करो, अब जब पता चल गया है मैं एक लड़का हूं तो मुझे नीचे रख दो वरना मुझे चक्कर आने लग जाएंगे।" औरत ने अभी तक बच्चों को पकड़ रखा था और उसे ऐसे देख रही थी जैसे मानो उसने कोई नई चीज देख ली हो। उसे औरत ने बच्चों के चेहरे को गौर से देखते हुएकहा ,"अरे बाप रे इसने तो अपनी आंखें खुद में खुद खोली वरना कोई जब तक उसे ठीक से साफ नहीं करते अपनी आंखों को नहीं खोलता है।" उसने जल्दी से बच्चे को नीचे लेट आया और फिर कपड़े से उसकी सफाई करनेलगी। जब बच्चा अच्छी तरह से साफ हो गया तब उसने उसे उसकी मां को शौकदिया आहूदी ने बच्चों को अपनी गोद में लिया और फिर ऊपर देखतेहुए बोली ,"भगवान आपका लख-लख शुक्रिया जो आपने मेरी खाली झोली को फिर से भर दिया। मैं आपका यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी। देखना अब मैं आपके मंदिर में 1001 दिनों तक रोज 1001 फेरी लगाने के लिए आऊंगी।" "चलो मुझे कम से कम यह तो याद है मैंने इसे अपने लिए क्यों चुना था, यह मेरे मंदिर में पिछले 9 सालों से लगातार आरही है। हर दिन जब भी यह आई थी तब यही कहती थी मुझे एक औलाद चाहिए। 3 सालों तक तो मैं इसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया था फिर बाद में सोचा क्या पता इसकी किस्मतखुद ही बदल जाए। लेकिन अगले 6 सालों तक भी ऐसा नहीं हुआ और फिर जब 9 साल के बाद में मैं अवतार लेने के बारे में सोचा तो यही औरत मेरे दिमाग में घूमी। अच्छा वह यह रोज मेरे पास आती थी वरना यह एक या दो साल के बाद आना बंद कर देती, तब शायद मुझे इसका ध्यान नहीं रहता और मैं कहीं और अवतार ले लेता।" छोटे जन्मे लड़के की आंखें घर की हालत की तरफ घूमनेलगी। औरतों की भीड़ के बीच में उसे ज्यादातर घर की हालत देखने को नहीं मिल रही थी मगर फिर भी वह छत को और कुछ आसपास की चीजों को देखपा रहा था। छत पर घास पूछ के तिनके लगे हुए थे जो नीचे की तरफ लटकरहे थे। "इन घास पूछ के तिनको को देखकर लगता है यह परिवार एक अमीर परिवार नहीं है, चलो कोई बात नहीं, मेरे लिए अभी भी गरीबी मतलब नहींरखती। अगर मेरे लिए कुछ मतलब रखता है तो वह मैं जिस दुनिया में हूं वह कौन सी दुनिया है और यहां पर मुझे किस खत्म करना है? मेरे कई जन्मों में मेरे दुश्मन को मेरे पैदा होते ही पता चल जाताथा, इस जन्म में भी पता चल हीगया होगा, क्या पता कोई भविष्यवाणी भी हुई हो? ओह, मतलब अब आगे आने वाले दिनों में जब तक मैं बड़ा नहीं हो जाता तब तक मुझ पर एक के बाद एक खत्री आएंगे और मैं सबका सामना करूंगा। अगला हमला कुछ ही देर मेंहो जाए? मेरे दुश्मन के लिए इसे अच्छा मौका क्या होगा वह मुझे पैदा होते ही खत्म करने की कोशिश करें? ऐसे में मैं उसके लिए एक आसान शिकार रहूंगा। ओह, मेरा दुश्मन जल्दी मुझ पर हमला करने के लिए आता ही होगा। इस बार मैं क्या करूंगा? क्या मैं अपने हाथ की छोटी-छोटी उंगलियों से हमला करूं या फिर अपने पैर की छोटी-छोटीउंगलियों से " छोटा जन्मा लड़का अजीब तरीके से अपने हाथों को ऊपर करके उंगलियां को मरोड़ रहा था जैसे वह उसका मुक्का बना रहा हो और पैरों को भी ऊपर उठारहा था। औरतों में से किसी का भी ध्यान बच्चे पर नहीं था।
पिछले भाग में आपने देखा कि शनाया और विनम्र की दोबारा मुलाक़ात हो गई थी, जबकि रॉबर्ट जूनियर, संयोगिता और वनीला अपने रास्ते पर निकल गए थे। क्योंकि अब उनका सफ़र ख़त्म हो गया था और उन्होंने विनम्र की मदद करने का जो वादा किया था, वह भी पूरा हो गया था। उनके वादे के पूरे होने के बाद अब उनका कोई काम नहीं बचा था, इसलिए वे चले गए थे। शनाया को विनम्र ने गले से लगा रखा था। काफ़ी देर तक विनम्र ने शनाया को गले से लगाकर रखा। इसके बाद उसने शनाया से पूछा, "क्या तुमने मुझे याद किया था? मैं नहीं जानता तुमने मुझे याद किया था या नहीं, मगर मैंने तुम्हें बहुत याद किया था?" शनाया ने जवाब देते हुए कहा, "ऐसा कैसे हो सकता है कि सिर्फ़ तुम मुझे याद करो और मैं तुम्हें याद ना करूँ? मुझे तो यह लग रहा था तुम मुझे भूल ही गए हो क्योंकि काफ़ी दिनों तक तुम मुझसे मिलने के लिए नहीं आए थे और ना ही तुमने मुझे कॉल किया था।" विनम्र हँसते हुए बोला, "मैं जिस जगह पर चला गया था, वहाँ से ना तो मैं तुम्हें कॉल कर सकता था और ना ही कुछ और, क्योंकि वहाँ के हालात ही कुछ ऐसे थे। फिर भी मैं खुशकिस्मत हूँ जो मैं वापस आ गया हूँ। मैं तुम्हें कभी फ़ुरसत से बताऊँगा मैंने वहाँ पर क्या-क्या किया था और मेरे जो भी वहाँ हुआ था, वो सब भी तुम्हें मैं फ़ुरसत से ही बताऊँगा।" शनाया ने जवाब देते हुए कहा, "मुझे उस वक़्त का इंतज़ार रहेगा जब तुम मुझे ये सारी बातें बताओगे। फ़िलहाल के लिए मुझे घर जाना होगा क्योंकि मेरे घर पर मेरे बाकी के लोग मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। पता नहीं मुझे ढूँढ़ने के लिए उन्होंने क्या-क्या किया होगा?" फ़िर विनम्र ने शनाया को अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर घर भेज दिया, जबकि वह ख़ुद अकादमी में ही रह गया था। आन्या को अभी के लिए अकादमी में ही रखा गया था, मगर जल्दी ही उसे जेल में भेज दिया जाएगा। शैनाया को रवाना करने के बाद विनम्र आन्या से मिलने के लिए गया। जब वह आन्या के पास पहुँचा, तो आन्या जेल में एक तरफ़ बैठी हुई थी, अपनी सोच में ही डूबी हुई थी। जैसे ही विनम्र वहाँ पर पहुँचा, वह अपनी जगह से खड़ी हुई और विनम्र की तरफ़ देखते हुए बोली, "अब तुम्हें यहाँ पर क्या चाहिए? अगर तुम अपने किसी काम की वजह से यहाँ पर आए हो तो मैं तुम्हें बता दूँ, मैं तुम्हारा कोई भी काम नहीं करने वाली हूँ। और अगर तुम मुझसे कुछ पूछने के लिए आए हो, तब भी मैं तुम्हें बता दूँ, मैं तुम्हें किसी भी बात का जवाब नहीं देने वाली हूँ। अब तुम मुझसे किसी भी तरह की उम्मीद मत रखना, क्योंकि तुमने गलत का साथ दिया है।" विनम्र को समझ में नहीं आ रहा था आन्या अभी भी कैसे कह सकती थी कि वह गलत की तरफ़ था और वह ख़ुद नहीं। विनम्र ने उसे समझाने की कोशिश नहीं की और यह कहा, "मैं तुम्हें यहाँ पर कुछ भी समझाने के लिए नहीं आया हूँ, मैं बस यह कहने के लिए आया हूँ कि तुमने जिन भी लोगों को अपने साथ मिलाकर रखा है, मुझे उनके बारे में बता दो ताकि वे ख़ुद को खतरे में ना डालें। तुम्हें पता भी है तुम्हारी वजह से कितने लोगों की जान एक ही बार में जाती है। जब मैं वापस जा रहा था, तब मेरे पीछे काफ़ी सारे लोग आए थे और वे सब इस तरह से पागल थे कि उन्हें मारने पर भी उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। तुम अपने बारे में ना सोचो, मगर तुम्हें इन सब लोगों के बारे में सोचना चाहिए। इस हिसाब से तो तुम एजेंसी के लोगों से भी ज़्यादा दूसरे लोगों की जान ले रही हो। मुझे बताओ, क्या यह सही है?" आन्या वापस अपनी जगह पर बैठ गई और वहाँ बैठते हुए बोली, "अगर तुम मुझे सही-गलत का पाठ समझाओगे तो मुझे रहने दो। मुझे तुमसे नहीं सीखना है क्या सही है क्या गलत है। मैं अपने किसी भी आदमी को पीछे हटने के लिए नहीं कहने वाली हूँ। मुझे अच्छे से पता है वे लोग मेरा बदला लेने के लिए आएंगे और मुझे छुड़ाने के लिए भी आएंगे। क्या पता कोई मुझे छुड़वाने का ही बड़ा टास्क दे दे, फिर तो तुम्हारी एजेंसी की टाइम वेस्ट हो जाएगा।" अचानक आन्या अपनी जगह से खड़ी हुई और विनम्र के पास आकर धीमे से बोली, "अभी तक तो मेरा एक सीक्रेट हथियार बाकी है, मैं नहीं चाहती थी मैं कभी इसका इस्तेमाल करूँ, लेकिन मैंने अपने बुरे वक़्त के लिए इसे बचा रखा था। देखना, बस कुछ ही दिनों की बात है, तब तुम्हें पछतावा होगा। पछतावा इस बात का कि आख़िर तुमने मुझे क्यों पकड़ा?" अब विनम्र को आन्या की बातों में एक नई चाल की बू आ रही थी। कुछ तो था जो उसके दिमाग में पक रहा था, मगर विनम्र उसके बारे में नहीं जानता था। कुछ ऐसा जिसके बारे में विनम्र को पता होना चाहिए था। विनम्र ने आन्या को गुस्से भरी नज़रों से देखते हुए कहा, "जो भी है, मुझे बता दो। अगर तुमने किसी को भी नुकसान पहुँचाने की कोशिश की तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा। तुम्हारे नखरे इस एजेंसी में मौजूद हर कोई झेल चुका है, लेकिन अब कोई भी तुम्हारे नखरे नहीं झेलने वाला। अगर पता चला तुमने कोई बड़ा खेल खेला है तो तुम्हें सीधे फाँसी की सज़ा होगी और कोई भी तुम्हें नहीं बचा सकता है।" आन्या इस वक़्त एक छोटी जेल में बंद थी। उसने सलाखों को पकड़ा और तेज़ी से उसके करीब आते हुए विनम्र को गुस्से में बोली, "अच्छा, तुम्हें क्या लगता है मुझे मौत से डर लगता है? बिल्कुल भी नहीं, मुझे मौत से डर नहीं लगता है। चाहे मुझे फाँसी हो और चाहे तुम ही मुझे जान से क्यों ना मार दो, लेकिन मुझे जो करना है वह तो मैं करके ही रहूँगी। कोई भी मुझे रोक नहीं सकता है, चाहे वह कितना भी जोर क्यों ना लगा ले। मैं तुम्हें वार्निंग दे रही हूँ, अगले तीन दिनों के अंदर अगर तुम मुझे छोड़ देते हो तो तुम्हारे लिए ठीक रहेगा, वरना वह होगा जिसकी ना तो तुमने कल्पना की होगी और ना ही किसी और ने कल्पना की होगी।" विनम्र उसे गुस्से सेदख रहा था और वही शैनाया भी उसे गुस्से से देख रही थी। दोनों ही एक दूसरे को गुस्से भरी निगाहों से देख रहे थे।
विनम्र इस बारे में सोच रहा था कि क्या उसे संयोगिता को बताना चाहिए या नहीं। क्योंकि अगर वह संयोगिता को बताता है, तो वह एक बार फिर से संयोगिता को खतरे में डाल देगा और उसे इस मुसीबत में अपना साथ देने के लिए मजबूर कर देगा। अब कहानी आगे - संयोगिता ने फिर से विनम्र से पूछा, "अरे भाई, मुझे बताओ तो सही, क्या समस्या है? अगर ऐसी कोई समस्या है जो तुम्हें परेशान कर रही है, तो मुझे लग रहा है कि वह ज़रूर कोई बड़ी समस्या होगी, क्योंकि तुम छोटी-मोटी समस्याओं से परेशान नहीं होते हो। तुम्हारे सामने कोई राक्षस आ जाए, तब भी तुम इतने परेशान नहीं होते, फिर ऐसी कौन सी बात हो सकती है जिसने तुम्हारे चेहरे पर इतना असर डाल दिया है?" विनम्र ने गहरी साँस ली और आखिरकार उसने बताना ही सही समझा। वह बोला, "मुझे आन्या के इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं। मैं आज उससे बात करने गया था, तब उसने मुझे धमकी दी और कहा कि अगर मैंने उसे नहीं छोड़ा, तो आने वाले कुछ दिनों में कुछ ऐसा होगा जिसके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता हूँ। वह भारत पर किसी तरह का कोई खतरा लेकर आने वाली है, लेकिन वह खतरा क्या है, मुझे इसके बारे में नहीं पता है।" संयोगिता ने अपने चेहरे पर सोचमंथन वाला भाव दिखाते हुए कहा, "क्या तुम्हें लगता है कि उसकी बातें गंभीर हैं? क्योंकि हो सकता है वह डर दिखाने के लिए भी ऐसा बोल रही हो। वह हाइपर ग्रुप की मालकिन है, तो वह कुछ भी कर सकती है, और उसने अभी-अभी एक बड़ी लड़ाई भी हारी है, तो क्या पता वह बस उसका बदला ले रही हो। अब वह तेज तो है ही, क्योंकि अगर वह इतना कुछ कर सकती है, तो हम उसके दिमाग़ को कम नहीं आँक सकते। ज़रूर यह उसके किसी बुरे आइडिया की वजह से हुआ होगा। हमें उसकी बातों को इतना गंभीर नहीं लेना चाहिए।" विनम्र कमरे में चहल-कदमी करते हुए बोला, "मैं उसकी बातों को गंभीर नहीं लेना चाहता, लेकिन कुछ चीज़ें हैं जो मुझे इन बातों को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर कर रही हैं। पहली बात, उसने आज से पहले मुझे कभी भी कोई ऐसी बात नहीं कही जो वह नहीं करती हो, यहाँ तक कि धमकी के मामले में भी उसकी धमकियाँ हमेशा पूरी होती हैं। दूसरी बात, मैं इंसान के चेहरे को देखकर समझ जाता हूँ कि वह गंभीर है या उसकी कोई चाल है, और मुझे उसके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि उसने सच में कोई योजना बना रखी है।" संयोगिता ने विनम्र की बात को सही मानते हुए उसके सामने खड़े होकर बोला, "अगर उसने कोई योजना बना रखी है, तो फिर हमें पता लगाना होगा कि वह क्या सोच रही है। क्या तुम्हारे पास कोई तरीका है जिससे तुम पता लगा पाओ?" विनम्र ने ऊपर की ओर देखा। तभी उसके दिमाग़ में आया कि संयोगिता ने उस आदमी को बंधक बनाकर रखा है, तो उसे इस बारे में ज़रूर कुछ पता होगा। यह बात उसके दिमाग़ में आते ही वह बोला, "तुमने उस आदमी को कहाँ बंधक बनाकर रखा है? ज़रूर उसे इस बारे में कुछ पता होगा। हमें जाकर उससे बात करनी होगी। मैं उससे पूछताछ करके पता लगाने की कोशिश करता हूँ कि आखिर वह क्या योजना बना रही है। शायद हमें कुछ पता चल जाए।" थोड़ी ही देर बाद संयोगिता और विनम्र एक पतले से गलियारे में चल रहे थे, जो नीचे की ओर जा रहा था। इस गलियारे में ज़्यादा रोशनी नहीं थी, और बस कुछ छोटी-छोटी लाइटें ही जल रही थीं। संयोगिता चलते हुए बोली, "मुझे तो वह आदमी भी ज़्यादा होशियार नहीं लगता। तुम्हें पता है, जब हम उसे पकड़ने गए थे, तो उसने हमारे बीच में से कई लोगों को मार दिया था। वह तब तक नहीं पकड़ा गया जब तक डेनियल ने अपनी सैनिकों की मदद नहीं ली। उसमें काफ़ी जान है।" विनम्र ने कहा, "अगर वह किसी तरह की कोई योजना बना रहा है, तो यही आदमी हमें कुछ बता सकता है, वरना मुझे नहीं लगता कि हमें आसानी से पता लगने वाला है कि इन लोगों के दिमाग़ में क्या चल रहा है।" दोनों तब तक चलते रहे जब तक कि वे गलियारे के आखिर में नहीं पहुँच गए, जहाँ एक बड़ा लोहे का दरवाज़ा था। विनम्र ने अपनी जेब से एक कार्ड निकाला और उसे दरवाज़े के पास बनी एक जगह पर स्वाइप किया। उसके ऐसा करते ही दरवाज़ा खुल गया। दरवाज़े के दूसरी ओर, लोहे की कुर्सी पर एक आदमी बंधा हुआ था। इस कमरे में इस आदमी को पहले कभी नहीं रखा गया था। उसे भी विनम्र के कहने पर ही यहाँ लाया गया था और फिर दरवाज़े से बाँध दिया गया था। विनम्र उसके ठीक सामने रखी एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया और उस आदमी के चेहरे की ओर देखने लगा। सफ़ेद रंग की छोटी दाढ़ी और मूँछ वाले उस आदमी के चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था। लगभग 50 साल का दिखाई देने वाला वह आदमी, ऐंजंसी के उन शिकारियों में से एक था जिसे उसे मारने के लिए भेजा गया था, मगर आन्या उससे मिल गई थी और उसने उस आदमी को नहीं मारा था। विनम्र ने गहरी साँस ली और फिर कुर्सी पर पीछे होकर अपने पैर फैलाते हुए कहा, "तुम्हारी किस्मत अच्छी है कि तुम इतने सालों तक ज़िंदा बच गए, वरना तुम्हारी किस्मत में मौत दस साल पहले ही लिखी गई थी।" वह आदमी जोर-जोर से हँसने लगा, जैसे कोई राक्षस अपने पेट पकड़कर जोर-जोर से हँसते हुए किसी का मज़ाक उड़ा रहा हो। वह हँसते हुए बोला, "किसी की किस्मत का फ़ैसला करने वाले तुम कौन होते हो? किस्मत ऊपरवाला लिखता है, और ऊपर वाले ने मेरी मौत नहीं लिखी है। तुम और तुम्हारे जैसे लोग मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।" विनम्र ने संयोगिता की ओर देखा और फिर धीमी आवाज़ में संयोगिता से कहा, "इतना गुस्सा तो कभी तुम्हारा बॉस भी नहीं हुआ था, जिसके पास अमर होने की शक्ति है, लेकिन अभी तक उसने उसका इस्तेमाल नहीं किया, फिर यह इतना खुश क्यों हो रहा है?" "अमर होने की शक्ति?" यह सुनकर वह आदमी हैरान हो गया। उसने अपनी हैरानी दिखाते हुए विनम्र से पूछा, "यह आखिर तुम किस बारे में बात कर रहे हो? कौन सी अमर होने की शक्ति?" फिर वह अपनी कुर्सी पर हिलते हुए बंधी हुई रस्सियों को खोलने की कोशिश करने लगा। "मुझे आन्या ने जब सुदर्शन चक्र के बारे में बताया था, तब इतना तो ज़रूर पता चल गया था कि इस दुनिया में बहुत सारी अलग-अलग चीज़ें भरी हुई हैं, लेकिन क्या यहाँ पर अमर होने का भी राज़ छुपा हुआ है? बताओ, इस दुनिया में और क्या-क्या है जिसके बारे में कोई नहीं जानता है? मुझे हर एक चीज़ के बारे में जानना है।" विनम्र उसके इस तरह से चिल्लाने की वजह से उसकी ओर घोर विचारों से देखते हुए बोला, "अरे मेरे भाई, इतना भी क्या तड़प रहा है? मुझे तो लगा था कि अगर तुम्हें आन्या और सुदर्शन चक्र के बारे में पता है, तो तुम्हें सभी चीज़ों के बारे में पता होगा, लेकिन अब लग रहा है कि तुम तो बहुत नादान हो। तुम्हें इस दुनिया की समझ नहीं है। अब तो मुझे तुम्हारी वह 'कभी ना मरने वाली' बात भी किसी जोक से कम नहीं लग रही है।" संयोगिता ने उस आदमी की ओर देखते हुए कहा, "लगता है तुम्हें अमर होने में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी है। ठिक है तो तुम्हारे लिए आॅफर है"
अध्याय - 18 भाग - 2 हुगा ★★★ आर्य की तलवार मकड़ी जैसे दिखने वाले व्यक्ति की गर्दन के ऊपर थी। आर्य ने दोबारा उससे पूछा, क्योंकि पहले के प्रश्न का उस मकड़ीमानुष ने उत्तर नहीं दिया था। आर्य ने जोर से, धमकी भरे स्वर में कहा, "मैं तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूँ, बताओ तुम कौन हो? क्या तुम ही हुगा हो...?" वह व्यक्ति अपनी मकड़ी जैसी टांगों से आगे झुका और एक खतरनाक मुस्कान दिखाई, जिसमें उसके गंदे, पीले दांत दिखाई दे रहे थे। इतना ही नहीं, उसके दांतों में अजीब से, केंचुए जैसे दिखने वाले जीव भी घूम रहे थे, जो उसे और भी भयानक बना रहे थे। वह अपनी गंदी दांतों वाली मुस्कान दिखाते हुए बोला, "क्या तुम्हें लगता है मैं हुगा हूँ? बिल्कुल नहीं। मैं जो हूँ, वह हूँ, और मैं बहुत खतरनाक हूँ; इतना खतरनाक कि मैं तुम्हें एक मिनट में ही काट डालूँगा।" यह कहकर उसने अपने पैर से हल्का सा इशारा किया, जिससे एक मोटा धागा आर्य के दाईं ओर से तेजी से आया। इससे पहले कि वह धागा आर्य को नुकसान पहुँचा पाता, आर्य ने अपनी असाधारण गति का उपयोग किया और तुरंत अपनी जगह से हट गया। लेकिन खतरा कम नहीं हुआ था; अचानक कई धागे चारों ओर से उसकी ओर आने लगे थे। आर्य छलांग लगाकर पीछे हटा और अपनी तलवार फेंकी। लेकिन उसकी तलवार कई धागों में फँस गई और अगले ही पल मकड़ी जैसे दिखने वाले व्यक्ति ने अपने हाथ झटके, जिससे तलवार हवा में लटक गई और उसे कई मोटे धागों ने घेर लिया। वह मकड़ीमानुष जोर-जोर से हँसने लगा। "तुम्हारी तलवार तो गई बेटा! अब तुम्हारा क्या होगा? बिना तलवार के तुम कैसे लड़ोगे?" यह कहकर उसने अपना मुँह खोला और उससे हवा नहीं, बल्कि बारीक मकड़ी के जाले जैसा जाल निकलने लगा जो तेजी से फैल रहा था। आर्य के पास बचने का एक ही रास्ता था: बगल में हटना। आर्य ने वैसा ही किया, मगर मकड़ी के जाले के सामने आए पेड़ हजारों टुकड़ों में बिखर गए। उस व्यक्ति ने अपने चारों ओर जालों का एक सुरक्षात्मक आवरण बना लिया था, जिसे आर्य पार नहीं कर सकता था। आर्य ने खुद से कहा, "इस तरह से तो यह मुझ पर भारी पड़ जाएगा। मुझे इसे हराने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा।" यह कहकर आर्य ने एक जाल के पास जाकर उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने जाल को छुआ, उसके हाथ से खून निकलने लगा। आर्य ने अपना हाथ पीछे कर लिया। "यह बहुत ताकतवर है, और इसके जाले भी बहुत मज़बूत हैं। न तो मेरी तलवार इन्हें काट पा रही है और न ही मैं इन्हें पकड़ पा रहा हूँ।" तभी आर्य के दाईं ओर से एक धागा तेजी से उसके गले को काटने के लिए आया, लेकिन आर्य फटाफट नीचे झुक गया और फिर उस जगह से गायब होकर दूर चला गया। वहाँ पहुँचकर उसने कहा, "मुझे आका को ढूँढना होगा। वह यहाँ के लोगों के बारे में अच्छी तरह जानता है और उनकी कमजोरियों के बारे में भी। मेरी तलवार भी वहीं है।" यह कहकर उसने अपना हाथ अपनी तलवार की ओर बढ़ाया ताकि वह किसी तरह से अपनी तलवार को वापस बुला सके। आर्य की तलवार जाले से निकलने के लिए छटपटाने लगी, मगर उस व्यक्ति की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि तलवार अपनी कोशिशों के बावजूद वहाँ से नहीं निकल सकी। आर्य ने अपनी कोशिश छोड़ दी। "अब जब तक मैं उसे खत्म नहीं कर देता, तब तक मैं अपनी तलवार को वापस हासिल नहीं कर पाऊँगा। यह भी एक अलग मुसीबत है।" आर्य जंगल में आका को ढूँढने लगा। अपनी असाधारण गति से वह पहले वाली जगह पर वापस आया, तो वहाँ केवल जीप के अलावा कुछ भी नहीं था। आर्य ने जीप में मौजूद कुछ उपकरणों को देखा, तो उसे एक छोटा सा खंजर मिला, जिसे उसने अपने पास रख लिया ताकि वह ज़रूरत के वक्त उसका इस्तेमाल कर सके। फिर वो अपनी असाधारण गति का इस्तेमाल करके वापस जंगल में चला गया और आका को ढूँढने लगा। अंधेरे और घने जंगल में आर्य अपने शरीर की रोशनी का इस्तेमाल कर रहा था ताकि आसपास की चीज़ों को देख सके। आर्य ने आका को आवाज़ लगाने की कोशिश की, "आका... आका... कहाँ हो तुम? क्या तुम्हें मेरी आवाज़ सुनाई दे रही है?" मगर सामने से कोई जवाब नहीं मिला। वह काफी देर तक उसे ढूँढता रहा, तभी उसके दाईं ओर से कोई तेज़ी से नीचे उतरा। आर्य ने पीछे मुड़कर देखा, तो यह कोई और नहीं, बल्कि विश्वसुंदरी विवा थी। आर्य एक बार फिर उसे देखकर दंग रह गया। उसने नीले रंग का सूट पहन रखा था, जो आर्य की रोशनी की वजह से चमकने लगा था; यहाँ तक कि उसके बालों का ऊपरी सिरा भी चमकने लगा था। आर्य के गाल लाल हो गए थे। फिर आर्य ने अपने होश संभाले और उससे पूछा, "क्या तुम्हें आका का कुछ पता चला?" विवा ने ना में सिर हिलाया। "नहीं, मुझे नहीं पता चला। मैंने काफी ऊँचाई पर जाकर भी उसे ढूँढने की कोशिश की, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। हुगा उसे अपने कब्ज़े में ले चुका है, और अब हमें भी सावधान रहना होगा। हुगा अक्सर ऐसा ही करता है; अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए पहले वह उन्हें अलग-अलग करके कैद करता है।" आर्य और विवा दोनों ही अब जंगल में चलते हुए आका को ढूँढने लगे। आर्य ने विवा से कहा, "यहाँ जंगल में हमारे अलावा कोई और भी है जो मकड़ी जैसे जाले छोड़ता है। मेरी तलवार वहीं पर है।" विवा बोली, "तब तो पहले हमें उसका सामना करना चाहिए। चलो, चलकर तुम्हारी तलवार वापस लेकर आते हैं।" आर्य ने सिर हिलाया और फिर उसे अपने साथ ले जाने लगा। आर्य अपनी तलवार को महसूस कर सकता था, इसलिए उसे पता था कि उसकी तलवार कहाँ पर है। आर्य ने कहा, "मुझे समझ में नहीं आ रहा, अगर यह जगह हुगा की है, तो वह यहाँ पर क्या कर रहा है?" विवा बोली, "मुझे इस दुनिया के बारे में कुछ भी ठीक से समझ में नहीं आता है। जब मैं पहली बार यहाँ पर आई थी, तो काफी दिनों तक तो मैं यहाँ पर घूमने-फिरने की कोशिश करती रही, लेकिन जब पता चला कि यहाँ पर मेरे दुश्मनों के अलावा और कोई नहीं है, तो मैं अपना एक ठिकाना बनाकर बैठ गई। हर तरफ़ ऐसे-ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जिनकी शक्ल तक हम देखना पसंद नहीं करेंगे और न ही उनसे लड़ने की मेहनत करेंगे। यह पूरी जगह ब्रह्मांड की तरह अनंत तक फैली हुई है, और इस जगह में भी अनंत लोगों को कैद किया गया है। खुद जननी के हज़ारों बच्चे थे जो यहाँ पर कैद हैं, और फिर बाद में भगवान ने भी कई सारे लोगों को यहाँ पर कैद किया है।" आर्य ने कहा, "क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि अनंत समय तक के कारावास की बजाय भगवान को या फिर जननी को कोई ऐसी सज़ा बनानी चाहिए थी जिसमें कुछ समय के लिए कैद मिले, या फिर जितना बड़ा अपराध हो, उसके हिसाब से सज़ा दी जाए, जैसा कि हमारी दुनिया में होता है? हमारी दुनिया में अलग-अलग अपराधों के हिसाब से अलग-अलग सज़ा का प्रावधान किया गया है।" विवा जवाब देते हुए बोली, "वैसा ही तो होता है। यहाँ पर कैद होने का मतलब है सज़ा की आखिरी हद, जिसमें मौत के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता। यहाँ पर आने का मतलब है कि बाहरी दुनिया में आपकी मौत हो चुकी है।" दोनों बात करते-करते उस जगह तक पहुँच गए जहाँ पर आर्य ने अपनी तलवार खोई थी, मगर वहाँ पर वह मकड़ी जैसा दिखने वाला व्यक्ति नहीं था; बस उसकी तलवार थी जो हवा में मकड़ी के धागों के सुरक्षात्मक आवरण के बीच में फँसी हुई थी। विवा ने चारों ओर देखते हुए कहा, "उसने तुम्हारी तलवार के चारों ओर सुरक्षात्मक आवरण बना दिया है ताकि तुम भी चाहकर अपनी तलवार को वापस न हासिल कर पाओ।" आर्य ने विवा से पूछा, "तो फिर हमें यहाँ पर क्या करना चाहिए?" विवा मुस्कुराई और बोली, "तुम्हारी तलवार इन धागों को नहीं काट सकती है, मगर मेरे बाल इन्हें काट सकते हैं।" यह कहकर उसने तेज़ी से अपने बालों का उपयोग किया, जैसे वह एक कुशल एथलीट हो, और एक के बाद एक उसने सारे धागों को काट दिया। आर्य की तलवार आज़ाद हो गई थी और वह फटाफट उसके हाथ में आ गई। तलवार को पाते ही आर्य को अच्छा महसूस हुआ। इससे पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, तभी ढेर सारे धागे ऊपर से उनके ऊपर गिरने लगे। आर्य ने पलक झपकते ही उन धागों को देख लिया था। यह काफी संख्या में ऊपर से नीचे आ रहे थे, और आसपास भी कई किलोमीटर तक फैले हुए थे। विवा भले ही धागे काट सकती थी, मगर धागे इतने ज़्यादा थे कि वह सब नहीं काट पाती। आर्य ने फौरन विवा को अपनी कमर से पकड़ा और जितनी ज़्यादा सुपर स्पीड हो सकती थी, उतनी ज़्यादा सुपर स्पीड से एक तरफ़ जाने लगा। आर्य ने अपनी सामान्य सुपर स्पीड से भी कई गुना अधिक सुपर स्पीड का इस्तेमाल किया था। इतनी ज़्यादा सुपर स्पीड के इस्तेमाल से आसपास सब कुछ सफ़ेद रंग का दिखाई देने लगा था। विवा को चक्कर आ रहे थे, क्योंकि उसने कभी भी इतनी ज़्यादा सुपर स्पीड से यात्रा नहीं की थी। हालाँकि वह खुद भी काफी तेज़ी से उड़ सकती थी, मगर यह बहुत ज़्यादा था। उसके बाल, उसके कपड़े, सब कुछ उड़ गया था। आर्य ने सुपर स्पीड को कम किया और विवा को फौरन जमीन पर उतारा। विवा को चक्कर आने लगे थे। तभी वह मकड़ी जैसा दिखने वाला व्यक्ति दाईं ओर से पेड़ों से लटकते हुए दिखाई दिया। आर्य ने विवा का भाला पकड़ा, उसका निशाना साधा और उसे फेंककर मारा। भाला उस व्यक्ति के सीने के आर-पार हो गया और फिर उसे अपने साथ ले जाते हुए एक पेड़ में गड़ गया, जिससे वह व्यक्ति लटकने लगा। आर्य उसके पास पहुँचा। "तो तुम मारने की कोशिश कर रहे हो? मगर तुम यह भूल गए हो कि यहाँ पर किसी की भी मौत नहीं हो सकती है?" उसने हँसते हुए कहा, "यहाँ पर हम लोगों में से किसी की मौत नहीं हो सकती है, मगर तुम तो मर सकते हो। क्योंकि तुम न तो कोई देवता हो और न ही जननी की पैदा की गई संतान। तुम एक इंसान हो; एक कमज़ोर इंसान जिसे मारा जा सकता है। तुम यहाँ दीक्षा से मिलने आए हो, मगर तुम उससे कभी नहीं मिल पाओगे। दीक्षा तुम्हारे बारे में सब जानती है; उसने ही मुझे तुम्हें मारने के लिए भेजा है। बस कुछ देर और है, इसके बाद और भी लोग तुम्हें मारने के लिए यहाँ पर आएंगे; तुम उनका सामना नहीं कर पाओगे।" आर्य ने अपने चेहरे पर आत्मविश्वास दिखाया। "मैं किसका सामना कर पाऊँगा और किसका नहीं, यह समय ही बताएगा, मगर फिलहाल, तुम्हारी दीक्षा को मेरा सामना ज़रूर करना पड़ेगा। जाओ और उसे बोल दो इस तरह से मोहरो को भेजने की कोई ज़रूरत नहीं है; मैं खुद उसके पास आ रहा हूँ। अगर उसे मुझे देखने की इतनी ही जल्दी है, तो जब मैं उसके पास पहुँच जाऊँगा, तब वह जितना हो सके, मुझे देखती रहे।" विवा लड़खड़ाते हुए आर्य के पास पहुँची, क्योंकि उसका सिर भी चकरा रहा था, और उसने अपना भाला अपने हाथ में वापस बुला लिया। भाला बुलाकर वह बोली, "दीक्षा ने जितना आतंक मचाना था, वह उतना आतंक मचा चुकी है; अब बारी है उसके आतंक के ख़त्म होने की।" यह कहकर उसने अपना भाला जितना हो सके उतना पीछे किया और फिर जोर से फेंककर उससे दोबारा उस पर हमला कर दिया। भाला उसके पेट के आर-पार हुआ और वहाँ से निकलते हुए उसके पेट की सारी आंतों को बाहर ले गया। इतना ही नहीं, वह कई सारे पेड़ों को भेदता हुआ भी चला गया। मकड़ी वाला वह व्यक्ति अपने पेट की ओर देखता ही रह गया, क्योंकि वह अपनी ही जगह पर खड़ा था, मगर उसके पेट का हिस्सा फट चुका था और वहाँ पर एक बड़ा छेद हो गया था। विवा बहुत ताकतवर थी।
पिछले भाग में आपने देखा कि आन्या और विनम्र आपस में एक सौदा करते हैं। इस सौदे के अनुसार आन्या एंटीडोट के निर्माण की विधि बताएगी और प्रतिदिन कुछ साथियों के बारे में भी जानकारी देगी। विनम्र इस प्रस्ताव को स्वीकार करता है। कहानी आगे बढ़ती है... लगभग दो दिन बीत चुके थे। दो दिन बाद, डॉक्टर डी एक छोटी नीली परखनली में द्रव लेकर विनम्र के सामने आए और बोले, "आन्या ने एटीट्यूड के निर्माण के बारे में जो बताया था, मैंने वह बना लिया है। उसकी विधि सही है, उस पर भरोसा किया जा सकता है।" विनम्र ने मुट्ठियाँ बंद कर रखी थीं। उसने कैप्टन रोड को फ़ोन करके पूरी स्थिति बता दी। वह पहले भी कैप्टन रोड को हालात से अवगत करा चुका था, जिस पर कैप्टन रोड ने चिंता व्यक्त की थी। सारी बात सुनने के बाद, कैप्टन रोड ने कहा, "अगर हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है, तो फिर हम क्या कर सकते हैं? अगर कोई और रास्ता होता, तो हम उसका इस्तेमाल करते, लेकिन हमारे हाथ बंधे हुए हैं। हम बेगुनाह लोगों की जान नहीं जाने दे सकते।" विनम्र ने कहा, "मैं समझ सकता हूँ कि कुछ साल पहले हम कुछ लोगों को बचाने के लिए कुछ लोगों की जान क्यों कुर्बान कर देते थे। आन्या जैसी शत्रु एक ऐसी शत्रु है जिसे हम किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकते। अगर हमारी एजेंसी पुराने नियमों पर चलती, तो वह कुछ निर्दोषों को मरने देती, लेकिन आन्या को कभी नहीं छोड़ती। मगर अब हम बदल चुके हैं।" कैप्टन रोड ने कहा, "मैं पहले ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन तब एजेंसी की नई शुरुआत हुई थी और हमारे निदेशक चाहते थे कि हमारी एजेंसी सबसे अलग बने। खैर, इस बात को यहीं समाप्त करते हैं। मुझे तुम पर भरोसा है। उसे छोड़ने के बाद भी तुम उसे पकड़ लोगे..." विनम्र ने फ़ोन काट दिया। तभी संयोगिता वहाँ आ गई। संयोगिता ने विनम्र से कहा, "इस तरह परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। चिंता मत करो, मैं अपने कुछ लोगों को उसके पीछे लगा दूँगी। मैंने डेनियल से बात कर ली है, वह अपने कुछ भूतों को उसके पीछे लगा देगा, जिन्हें आन्या भी नहीं देख पाएगी।" विनम्र ने संयोगिता की ओर देखा, "मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ। जब आन्या को लगभग एक महीने का समय हो जाएगा और हमें लगेगा कि वह किसी तरह की मुसीबत नहीं बनेगी, तब हम उसे दोबारा पकड़ लेंगे।" फिर वे दोनों आन्या की कैदगाह की ओर जाने लगे। जब वे सलाखों के पास पहुँचे, तो आन्या उनका इंतज़ार कर रही थी। आन्या ने हाथ फैलाकर कहा, "तो तुमने उसे परख लिया होगा, और तुम्हें पता चल गया होगा कि मैं बिल्कुल सही थी। तो फिर, क्या तुम मुझे छोड़ने के लिए तैयार हो? तुम्हारा चेहरा देखकर तो यही लग रहा है कि तुम मुझे छोड़ने के लिए ही आए हो। हाँ या ना? मैं सच कह रही हूँ ना?" विनम्र ने सिर हिलाया और सलाखें खोल दीं। "हमसे धोखा करने की कोशिश मत करना, वरना मैं तुम्हें पाताल से भी ढूँढ निकालूँगा, और इस बार तुम्हें यहाँ सलाखों के पीछे नहीं छोड़ूँगा, बल्कि तुम्हें जान से मार दूँगा।" आन्या विनम्र के पास आई और उसके चेहरे के बिल्कुल पास अपना चेहरा लाकर बोली, "मार तो मैं तुम्हें दूँगी। तुम्हारे पास अब सिर्फ़ पन्द्रह दिन का समय है। सिर्फ़ पन्द्रह दिन। इसके बाद मैं अपना बदला लेने के लिए वापस आऊँगी। अगर तुम पन्द्रह दिनों के बाद किसी तरह बच जाते हो, तो फिर मैं न तुम्हारे लिए ख़तरा बनूँगी और न ही इस एजेंसी के लिए। यह मेरा तुमसे वादा है।" यह कहकर आन्या वहाँ से चली गई, और विनम्र उसे हाथ बंधे हुए जाते हुए देखता रहा। जब वह काफी दूर चली गई, तब विनम्र ने जोर से अपनी मुट्ठी दीवार पर मारी। मुक्का मारते हुए विनम्र ने कहा, "जब-जब मैं हारता हूँ, तब मुझे मुझ पर गुस्सा आता है, और अपनी कमज़ोरी पर... कई बार हम इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं रहता।" यह कहकर विनम्र ने गहरी साँस ली और अपने कमरे की ओर चला गया। वह बहुत गुस्से में था। संयोगिता उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में चली गई। विनम्र कमरे का दरवाज़ा बंद करने वाला था, मगर तभी संयोगिता ने दरवाज़ा पकड़ लिया और विनम्र को बिस्तर पर बिठाते हुए बोली, "देखो, अब जो हो गया है, उस पर बात करने का कोई फ़ायदा नहीं है, और न ही गुस्सा करने का। मैं तुम्हें कह तो चुकी हूँ, हम उसे पकड़ लेंगे। उसने तुम्हें पन्द्रह दिन की धमकी दी है ना? हम उसे दस दिनों के अंदर-अंदर ही पकड़ लेंगे।" संयोगिता विनम्र के पास बैठ गई। विनम्र अभी भी गुस्से में था, गुस्से से उसका पूरा चेहरा लाल हो गया था। विनम्र ने गहरी साँस लेकर कहा, "अभी भी इतने सारे ख़तरे हैं कि मुझे ठीक से समझ भी नहीं आ रहा है कि मैं उन सबका सामना कैसे करूँगा। मुझे सबसे पहले मेरे गले में लटके इस अमृत को उनकी दुनिया में वापस छोड़कर आना है। इसके बाद मुझे उस बंदे को भी ढूँढना है जो राक्षसों की दुनिया से यहाँ आया है और चक्र शक्ति का इस्तेमाल करके तबाही मचाने को तैयार है। फिर मौत की देवी और तुम्हारा बॉस भी, जिसका मुझे नहीं पता अभी वह मेरे पक्ष में है या मेरे विरुद्ध।" अपने बॉस का नाम आते ही संयोगिता बोली, "उसका तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा। अभी तो ऐसा लग रहा है कि वह किसी के भी पक्ष में नहीं है; न वह तुम्हारे विरुद्ध है और न ही तुम्हारे पक्ष में। मेरे बॉस के पास अब सब कुछ है, तो शायद वह अमर होने की रस्म जल्दी पूरी कर लें। सिर्फ़ एक सुदर्शन चक्र की कमी है, और मुझे नहीं लगता कि अब उन्हें सुदर्शन चक्र चाहिए। जिस तरह की उनकी बातें हैं, उन्होंने बिना सुदर्शन चक्र के ही इस दुनिया पर कब्ज़ा करने का सपना देख लिया है। उन्होंने कहा है कि ज़रूरी नहीं कि सुदर्शन चक्र ही दुनिया जीतने के लिए ज़रूरी हो, हम और चीज़ों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।" विनम्र हँसने लगा, क्योंकि वह जानता था कि जब तक सुदर्शन चक्र उसके पास है और वह ज़िंदा है, तब तक इस दुनिया को कोई भी मुसीबत में नहीं डाल सकता।
पिछले भाग में आपने देखा, विनम्र आन्या को आजाद कर चुका था और जाने से पहले उसे धमकी भी देकर गया था कि वह 15 दिनों के अंदर-अंदर उसे खत्म कर देगी, जिस पर विनम्र का कोई खास रिएक्शन नहीं दिखा। विनम्र परेशान होता है और जब वह अपने कमरे में आता है, तब संयोगिता उसे समझाने की कोशिश करती है कि इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर परेशान हुआ जाए, मगर फिर भी विनम्र खुद को परेशान होने से नहीं रोक पाता। संयोगिता विनम्र के काफी पास थी, तभी बिना कुछ कहे संयोगिता ने विनम्र की तरफ देखा। वहीं संयोगिता विनम्र को पहले से ही देख रही थी; दोनों का एक-दूसरे की तरफ आकर्षण था। कुछ देर तक दोनों ही एक-दूसरे की तरफ देखते रहे। इसके बाद संयोगिता आगे आई और उसने विनम्र को किस कर दिया। कुछ देर तक तो विनम्र कुछ नहीं बोला, फिर वह भी उसे किस करने लगा। अगले दिन सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ ही एजेंसी में एक खतरे वाला अलार्म जोर-जोर से बज रहा था। विनम्र और संयोगिता दोनों ही एक बिस्तर पर थे। विनम्र फ़ौरन उठा और देखा, उसके कमरे की रोशनी भी लाल रंग से जगमगा रही थी। उसके उठने के बाद संयोगिता भी उठी और उसने भी यह सब देखा। दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है। संयोगिता ने विनम्र से पूछा, "आखिर यह क्या है? खतरे वाला अलार्म क्यों बज रहा है?" विनम्र ने जवाब देते हुए कहा, "मुझे भी इस बारे में कुछ पता नहीं है। चलो जल्दी नीचे चलकर देखते हैं, वहाँ पर क्या हो रहा है। ज़रूर कुछ बड़ा हुआ है। मुझे डर है, कहीं आन्या ने दोबारा से एजेंसी पर हमला ना कर दिया हो।" दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और फिर नीचे आए जहाँ पर डॉक्टर डी, परेशान होते हुए, एजेंटों को कुछ ना कुछ आर्डर दे रहे थे। "इस वक्त जितने भी लोग हैं, वे मेरे साथ चलें, क्योंकि हमें एंटीडोट बनाने पर ध्यान देना है।" डॉक्टर डी ने अपनी तेज आवाज़ में कहा। सारे एजेंट उनके पीछे-पीछे चलने लगे। इतने में ही विनम्र आया और उसने डॉक्टर डी को रोकते हुए कहा, "डॉक्टर डी, आखिर क्या हुआ है? सब इतने परेशान क्यों हैं? क्या किसी तरह की कोई समस्या आ गई है? मुझे भी बताइए। और आपने अभी तक मुझे क्यों नहीं जगाया? आपको मुझे अब तक जगा देना चाहिए था!" डॉक्टर डी ने अपने चेहरे पर परेशानी को कायम रखते हुए कहा, "मुझे खुद इसके बारे में थोड़ी देर पहले ही पता चला है। मैं तुम्हें भी इन्फॉर्म करने के लिए अपने आदमियों को भेजने वाला था, लेकिन उससे पहले ही एजेंसी का खतरे वाला अलार्म बज गया। दरअसल, आन्या हमारे साथ धोखा कर चुकी है। वह बीमारी, जिसके बारे में उसने कहा था कि यह कुछ ही लोगों के बीच में है, इस वक्त 3000 अलग-अलग जगहों पर इस बीमारी के फैलने की सूचना आई है।" विनम्र ने जैसे ही यह सुना, उसके होश ही उड़ गए। 3000 से भी अधिक जगहों पर बीमारी के फैलने की सूचना! यानी कि आन्या झूठ बोल रही थी। विनम्र ने अपने बालों में हाथ फेरा और कहा, "मुझे बस इसी बात का डर था। वह आन्या एक नंबर की कमीनी निकली। आखिरकार उसने हमें धोखा दे ही दिया। उसने कहा था कि सिर्फ़ 980 लोग हैं, लेकिन फिर यह 3000 लोगों का चक्कर?" संयोगिता डॉक्टर डी से बोली, "हमारे पास जो एंटीडोट है, वह कितने आदमियों के लिए है और बनाने में कितना वक्त लगेगा?" डॉक्टर डी ने कहा, "हमारे पास सिर्फ़ 200 लोगों का एंटीडोट है, जबकि इस वक्त 3000 से ज़्यादा लोग तो मरीज़ हैं और थोड़ी देर में यह बीमारी और जगहों पर फैल जाएगी। अगले तीन दिनों तक इसके असर को देखते-देखते संख्या इतनी ज़्यादा हो जाएगी कि हम इसे कंट्रोल नहीं कर पाएँगे। एंटीडोट को बनने में भी वक्त लगता है। इस खतरे को देखते हुए, इसे सीधे राष्ट्रीय स्तर का खतरा बना दिया गया है और जल्दी प्रधानमंत्री भी इस पर एक्शन लेने वाले हैं।" अब विनम्र के चेहरे पर और भी ज़्यादा परेशानी दिखाई देने लगी थी। "यानी कि हमारे इस मिशन में प्रधानमंत्री तक इंवॉल्व होने वाले हैं। ठीक है, सब को छोड़िए, यह बताइए, आगे की प्लानिंग क्या है?" डॉक्टर डी बोले, "फ़िलहाल मैं सभी एजेंटों को अपने साथ लेकर जा रहा हूँ ताकि उन सबको एंटीडोट बनाने के लिए लगा सकूँ और फिर मैंने कुछ और कंपनियों को भी एंटीडोट बनाने की जानकारी दे दी है ताकि हम ज़्यादा से ज़्यादा एंटीडोट को बनाकर पहले से ही तैयार रखें। इतनी बड़ी बीमारी के फैलने में लगने वाले वक्त और फिर बाद में कितने शिकार हमारे सामने होंगे, उसके हिसाब से हमें एंटीडोट बनाकर पहले से ही तैयार रखना होगा। फिर किसी में बीमारी हो या फिर ना हो, हमें यह एंटीडोट हर किसी को देना होगा।" विनम्र ने कहा, "क्या आपके पास यही इकलौता रास्ता है? आपको पता है ना आप क्या कह रहे हैं? हमारे देश की जनसंख्या 125 करोड़ है। क्या हम इतने सारे लोगों को एंटीडोट दे पाएँगे?" डॉक्टर डी ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, "नहीं, इतने सारे लोगों को एंटीडोट दे पाना पॉसिबल नहीं होगा, लेकिन इन 3000 लोगों के टारगेट के हिसाब से हम यह पता लगा सकते हैं कि कौन से एरिया में संक्रमण ज़्यादा होगा, फिर हम उन एरिया को ब्लॉक कर देंगे और वहाँ पर जितने भी लोग मौजूद होंगे, उन्हें यह एंटीडोट देंगे। फ़िलहाल हमें जिन 3000 लोकेशन्स की जानकारी मिली है, यह बात पुख्ता नहीं करती कि सिर्फ़ यही 3000 लोग हैं या फिर और भी अलग-अलग जगहों पर इस बीमारी के फैलने की आशंका है। यह बस एक प्रारंभिक जानकारी है। हो सकता है जब हकीकत सामने आए, तो पता चले कि आन्या ने और भी ज़्यादा शिकार छोड़ रखे थे, या फिर हो सकता है उसके हाइपर-एक्स ग्रुप के जितने भी मेंबर यहाँ इंडिया में भर्ती थे, वे सब के सब इसके शिकार हो चुके हों।" डॉक्टर डी थोड़ा सा रुकने के बाद दोबारा बोले, "एक वक़्त के लिए आन्या के निशाने पर सिर्फ़ एजेंसी के लोग थे, मगर अब उसने पूरे देश को ही अपने निशाने पर ले लिया है। उसने ना तो हमारे देश पर बम से हमला किया है, ना ही गोलियों से, बल्कि उसने हमला किया है एक वायरस से; एक ऐसा वायरस जो तीन दिन में फैलता है और जिस किसी को भी यह लग जाए, अगर उसे तीन दिन से पहले एंटीडोट ना दिया जाए, तो उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं। जिसे भी यह बीमारी होती है, वह एक धमाके के बाद फट जाता है और उसका खून आस-पास बिखरकर और लोगों को संक्रमित कर देता है। इस बीमारी के लक्षण शुरुआत में दिखाई नहीं देते, मगर फटने से चार-पाँच मिनट पहले ही दिखाई देते हैं। इसलिए इस बात की भी कोई उम्मीद नहीं कि किसी को इसके बारे में पता चलेगा कि उसे यह बीमारी हुई है या नहीं। मतलब इस बार बहुत बड़ी समस्या हमारे सामने है।" विनम्र को भी अब यह बात समझ में आ रही थी कि सच में सामने कितनी बड़ी समस्या है।
अध्याय-18 भाग-3 हुगा ★★★ आर्य और विवा आका को ढूँढ़ रहे थे। मकड़ी जैसे दिखने वाले इंसान ने उनका काफी समय बर्बाद कर दिया था। आर्य को जल्द ही तलवार की समस्या का निपटारा करके वापस जाना था। विवा ने मकड़ी वाले आदमी के बारे में बात करते हुए आर्य से पूछा, "क्या तुम्हें इस बात का डर नहीं लगता कि दीक्षा तुम्हारे बारे में जानती है और वह जल्द ही तुम्हें खत्म करने के लिए अपने गुर्गों की सेना भेजने वाली है?" आर्य ने कोई जवाब नहीं दिया। विवा बोली, "मैं उस लड़की को अच्छी तरह जानती हूँ। वह खुद कभी सामने नहीं आएगी, मगर अपने गुर्गों को हमेशा आगे कर देती है। उसके गुर्गे भी पागल कुत्तों की तरह लार टपकाते हुए उसकी बात मानते हैं।" आर्य ने गहरी साँस लेकर जवाब दिया, "तुम्हें पता है, हमें लड़ाई लड़नी है; तो क्या फर्क पड़ता है कि वह खुद आए या फिर अपने गुर्गों को भेजे? वैसे भी, अब मैंने तलवार हाथ में ले ली है, तो मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस तलवार से कौन कटने के लिए सामने आने वाला है। दीक्षा की समस्या का समाधान करना ज़रूरी है, क्योंकि अगर इसकी समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो मेरी पूरी दुनिया खतरे में आ जाएगी, और मैं नहीं चाहता कि एक छोटी सी वजह से मेरी दुनिया का नामोनिशान मिट जाए।" विवा बोली, "भगवान की यह तलवार उनका सबसे महत्वपूर्ण हथियार था। भगवान कभी नहीं चाहते थे कि इस तलवार का मालिक उनके अलावा कोई और बने; और जब उन्हें पता चला कि तलवार को संभालना अब उनके बस से बाहर होता जा रहा है, तब उन्होंने हमेशा के लिए इससे छुटकारा पाना ही सही समझा। तुम्हारी किस्मत ही अच्छी थी कि तुम्हें यह तलवार मिल गई और तुम इसके मालिक बन गए। सही कहूँ तो मुझे हमेशा इस बात पर शक होता था कि इस तलवार का प्रयोग करने वाले इसके सभी मालिक बुरे ही होंगे, मगर तुम मुझे पहली बार ऐसा इंसान मिले हो, जिसे देखकर लगता है कि दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है।" दोनों सावधानी से अंधेरे जंगल में चल रहे थे। दोनों की नज़रें चौकन्नी थीं और वे आसपास के अंधेरे और घनी झाड़ियों में किसी भी खतरे के लिए पूरी तरह तैयार थे। आर्य विवा की बात का जवाब दे ही रहा था कि अचानक एक झाड़ी से कोई तेज़ी से निकला और उसने हमला करने के लिए झपटा मारा। अगले ही पल सारे दृश्य स्लो मोशन में हो गए। आर्य ने स्लो मोशन में देखा कि एक इंसान, जिसके चेहरे पर सफ़ेद रंग पुता हुआ था और जिसने अपने शरीर पर केवल एक लॉन्ग कोट पहना हुआ था, अपने हाथ में चाकू लिए तेज़ी से हमला करने के लिए तैयार था। पतले से शरीर वाला यह शख़्स हुगा था। इससे पहले कि वह हमला करता, आर्य ने उसके हाथ को कलाई से पकड़ा और अगले ही पल झटका देकर उसे नीचे गिरा दिया। इससे पहले कि वह आदमी कोई और प्रतिक्रिया कर पाता, आर्य ने अपनी तलवार उसके कंधे में गड़ा दी, जिससे वह दर्द से चिल्लाया। वह असली हुगा तो नहीं था, मगर उसका एक रूप अवश्य था, और इस वक़्त वह दर्द से तड़प रहा था। उसने अपने हाथ से तलवार को हटाने की कोशिश की तो उसे तेज जलन महसूस हुई। वह दर्द भरे लहजे में बोला, "मुझे छोड़ दो, प्लीज़! मुझे छोड़ दो! मैंने तुम लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ा है। मैं तो बस अपने आका की आज्ञा का पालन कर रहा हूँ।" आर्य ने अपनी तलवार नहीं निकाली और उसे बेरहमी से उसके हाथ में घुमाते हुए बोला, "मुझे बताओ, तुम्हारा आका कहाँ है और तुमने मेरे दोस्त को कहाँ कैद करके रखा है? तुम्हारे पास यह आखिरी मौका है। अगर तुमने मुझे नहीं बताया, तो मैं तुम्हें यहीं मार दूँगा।" वह बुरी तरह डर गया था। उसने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "मैं तुम्हें सब कुछ बता दूँगा, मगर मुझे मत मारो, प्लीज़! मुझे मत मारो! मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ।" विवा ने आर्य की ओर देखा और अपने भाले को उसकी ओर इशारा करते हुए कहा, "अगर तुमने धोखा देने के बारे में सोचा, तो याद रखना, मैं भी तुम्हें मारने से पहले एक पल के लिए भी नहीं सोचूँगी।" उसने फिर से हाँ में सिर हिलाया और फिर आर्य ने अपनी तलवार निकाली। दर्द से कराहता हुआ वह खड़ा हुआ और एक तरफ चलते हुए बोला, "मेरे पीछे-पीछे आ जाओ। तुम्हारे दोस्त का अपहरण मैंने नहीं किया था। मुझे पता है कि मैंने उसे कहाँ छोड़ा है और मेरे आका ने मुझे कहाँ सब कहा था।" दोनों धीरे-धीरे उसका पीछा करने लगे। लगभग 15 मिनट तक चलते रहने के बाद, उसी जंगल में एक जलता हुआ इलाका आया, जो नीचे किसी सुरंग जैसी गुफा में जा रहा था। वह आदमी यहीं पर आकर रुक गया और उसने सुरंग की गुफा की ओर इशारा करते हुए कहा, "मैंने तुम्हारे दोस्त को इस गुफा के अंदर छोड़ा था, जहाँ मेरे आका उसे अपने साथ ले गए थे। मैं यहाँ से तुम लोगों के साथ नहीं जा सकता हूँ, क्योंकि अगर मेरे आका ने मुझे तुम लोगों के साथ देख लिया, तो वे मुझे जान से मार देंगे।" विवा ने अपने भाले को उसके गले पर रखा और बोली, "हमारे साथ होशियारी करने की कोशिश मत करो। तुमने यहाँ पर कहीं कोई जाल छोड़ा होगा। हम तुम्हारी इस चाल में नहीं फँसने वाले हैं। चुपचाप हमारे साथ चलो, और जब तक हम तुम्हारे आका को नहीं देख लेते, तब तक तुम्हें हमारे साथ ही चलना होगा।" उसने दोनों हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा, "मेरी बात समझने की कोशिश करो! मेरे आका को छोड़ो, अगर उनके किसी रूप ने भी मुझे देख लिया, तो मुझे जान से मार दिया जाएगा। मैं तुम लोगों से झूठ नहीं बोल रहा हूँ, मैं सच कह रहा हूँ। मैंने यहीं पर तुम्हारे दोस्त को छोड़ा था, और मेरे आका भी यहीं पर हैं।" वह हाथ जोड़कर विनती कर रहा था, मगर विवा ने उसकी बात नहीं मानी और उसे अपने साथ उस सुरंग जैसी गुफा में जाने के लिए कहा। थोड़ी देर में आर्य और विवा दोनों ही उस आदमी के साथ उस सुरंग जैसी गुफा में धीरे-धीरे चल रहे थे। गुफा की दीवारों पर जलते हुई मशालें रखी गई थीं, जिससे उन्हें आगे का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखाई दे रहा था। कुछ आगे चलने के बाद, अचानक बहुत सारे हुगा के प्रतिरूप सामने से उनकी ओर आने लगे। विवा आगे आई और बोली, "इनसे मुझे निपटने दो।" उसने अपने भाले को अपने दाहिने हाथ में उठाया, जिससे उसमें बिजली की लपटें दिखाई देने लगीं। विवा स्वर्ग की रानी हुआ करती थी, इस वजह से वह बिजली के हमले का भी इस्तेमाल कर सकती थी। जैसे ही बहुत सारे हुगा के प्रतिरूप उसके काफी करीब आ गए, उसने अपने भाले को फेंक कर मारा। सारे दृश्य स्लो मोशन में हो गए और तेज़ी से उसका भाला तीन-चार प्रतिरूपों को आर-पार करते हुए बिजली से चमकने लगा और उसने बाकी के सभी प्रतिरूपों को बिजली से ही मार डाला। विवा के एक ही हमले ने बहुत सारे प्रतिरूपों को ढेर कर दिया था। आर्य ने अपने पकड़ में आए हुगा को धक्का मारकर उसे आगे जाने के लिए कहा। थोड़ा और आगे जाने पर बहुत सारे प्रतिरूप फिर से हमला करने के लिए आगे बढ़े, जिन्हें खत्म करने के लिए आर्य ने अपनी तलवार फेंक कर मारी। तेज़ी से आगे बढ़ती हुई तलवार बहुत सारे प्रतिरूपों को काटती हुई चली गई, और जब थोड़े से प्रतिरूप बच गए, तब आर्य ने अपनी तलवार को वापस अपने हाथ में ले लिया। अगले ही पल आर्य ने सुपर स्पीड पकड़ी और उन प्रतिरूपों के बीच से होते हुए उन्हें काटता हुआ चला गया। एक के बाद एक, कभी विवा हुगा के प्रतिरूपों को खत्म कर रही थी, तो कभी आर्य, और इस तरह से वे उस जगह पर पहुँच गए जहाँ आर्य के दोस्त को रखा गया था। वह एक उबलते हुए पानी के कुंड के ऊपर उल्टा लटका हुआ था। जैसे ही आका ने देखा कि विवा और आर्य आ चुके हैं, उसने अपने चेहरे पर खुशी दिखाते हुए कहा, "ओ मेरे भाइयों! तुम दोनों की उम्र भगवान लाखों-लाखों साल लंबी करें! मैं तुम दोनों को पता नहीं कब से याद कर रहा था। आशिकों! तुम लोगों ने आने में इतनी देर क्यों की? इतने में तो तुम लोगों को यहाँ आकर 50 बार चले भी जाना चाहिए था!" हुगा का असली रूप इसी जगह पर मौजूद था। यह गुफा पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों से बनाई हुई थी, जिस वजह से उनके बीच में बहुत सारी खाली जगह थी, जो दरार के रूप में यहाँ पर मौजूद थी। हुगा ऊपर वाले हिस्से पर एक दरार में अपने दोनों हाथों के सहारे लटका हुआ था। आर्य ने उसकी ओर देखा और अपनी तलवार उसकी ओर करते हुए कहा, "मैं तुमसे यहाँ लड़ने के लिए नहीं आया हूँ। अगर तुम शांति से मेरी बात सुनोगे, तो मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छा प्रस्ताव है।" वह दूर से ही बोला, "जो भी है, जल्दी से बता दो! तुम्हारे पास 1 मिनट है। अगर तुमने मुझे 1 मिनट में नहीं बताया, तो मैं तुम्हारे दोस्त को इस पानी में गिरा दूँगा।" आर्य ने विवा की ओर देखा और उसे कुछ इशारा किया, फिर उसने हुगा से कहा, "मैं इस तलवार का स्वामी हूँ, और इस तलवार की दुनिया में यहाँ का आतंक खत्म करने के लिए आया हूँ। मैं यहाँ पर दीक्षा को खत्म करने के लिए आया हूँ। मैं यहाँ कुछ लोगों के साथ मिलकर उसके ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू कर रहा हूँ। अगर तुम इसमें मेरा साथ दोगे, तो मैं तुमसे वादा करता हूँ कि जब यह लड़ाई ख़त्म हो जाएगी, तब मैं तुम्हें इस तलवार की दुनिया से आजाद कर दूँगा।" आर्य जैसे ही यह बोला, हुगा जोर-जोर से हँसने लगा, "क्या तुम मेरे साथ मज़ाक कर रहे हो? तुम्हें पता भी है कि मैं इस दुनिया में कब से कैद हूँ? तब से कैद हुं, जब से इस ब्रह्मांड की शुरुआत भी नहीं हुई थी! और तुम मुझे बेवकूफ़ बनाने की कोशिश कर रहे हो? तुमने आखिर मुझे क्या समझा है? क्या तुम्हें मेरे माथे पर बेवकूफ़ लिखा हुआ नज़र आ रहा है, जाओ, जाकर अपनी यह चाल किसी और के साथ खेलो?" यह कहकर उसने अपने एक इशारे से उस रस्सी को छोड़ दिया, जिसे ऊपर उसके एक प्रतिरूप ने पकड़ रखी थी। आका जोर से चिल्लाया, "बचा लो, मेरे भाइयों! मुझे बचा लो!" तभी विवा ने अपने भाले को इतनी तेज़ी से मारा कि वह आका के कपड़ों को चीरते हुए उसे रस्सी से अलग करते हुए दूसरी तरफ पत्थर में जाकर घुस गया। आका को झटका लगा और वह भाले से अलग होकर नीचे गिर गया। हुगा का असली रूप कुछ कर पाता, उससे पहले ही आर्य ने अपनी तलवार को फेंककर उस पर हमला किया। तेज़ और सटीक हमले की वजह से हुगा का हाथ कटने वाला था, मगर उसने अपनी सुपर स्पीड दिखाई और तेज़ी से वहाँ से गायब होकर आर्य के पास आ गया। उसकी स्पीड इतनी तेज़ थी कि आर्य भी एक बार के लिए हैरान रह गया, क्योंकि वह पल भर के समय में ही आर्य के पास आ गया था। जबकि आर्य स्लो मोशन में भी दृश्य को देख सकता था, मगर इसके बावजूद उसे पता नहीं चला। हुगा आर्य पर हमला करने ही वाला था, तभी आर्य ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ बहुत तेज़ी से घटित हुआ और आर्य हवा में लटकता हुआ दिखाई दिया। आर्य को कुछ समझ में भी नहीं आया कि आखिर कब हुगा ने उस पर हमला किया था और कब वह इस तरह से हवा में लटकने लगा था। आर्य ने अपनी आँखों से आस-पास देखने की कोशिश की, तो हुगा दाहिनी तरफ़ से दौड़ता हुआ नज़र आया। आर्य ने अपनी आँखें बंद की और अपना पूरा जोर लगा दिया ताकि वह हुगा से भी ज़्यादा स्पीड पकड़ सके। हुगा उसके पास आकर हमला करने ही वाला था, तभी आर्य की पॉवर ने काम किया और आर्य पल भर में उसके ठीक पीछे आ गया। हुगा हमला करता उससे पहले ही आर्य ने उसकी गर्दन पकड़ी और उसे ज़ोर से पत्थर पर दे मारा। हुगा का सिर एक ही बार में टूट गया और आर्य ने उससे पूछा, "क्या तुम मेरा साथ दे रहे हो? या फिर मैं तुम्हारे सिर को फिर से फोड़ दूँ?" हुगा अपनी सुपर स्पीड के भरोसे ही टिकने वाला शख़्स था, और जैसे ही वह किसी के शिकंजे में आ जाता था, वह अपने हाथ ऊपर कर देता था, जैसे उसके प्रतिरूपों ने किया था। उसने फौरन अपने हाथ ऊपर किए और आर्य की बात मानते हुए बोला, "हाँ-हाँ! मैं इस लड़ाई में तुम्हारा साथ देने के लिए तैयार हूँ।" हुगा पल भर में ही मान गया, जिसे सुनकर आर्य और विवा दोनों ही खुश हो गए। मगर इससे पहले कि दोनों थोड़ा और खुश हो पाते, तभी हुगा का एक प्रतिरूप आया और वह परेशान लहजे में बोला, "आका! गड़बड़ हो गई है! बाहर बहुत सारे लोगों ने हम पर हमला बोल दिया है! वे सब पागलों की तरह हमें मारते जा रहे हैं! मुझे नहीं पता हमने उनका क्या बिगाड़ा है, मगर दीक्षा...वह हमें, हमारे इस पूरे जंगल के साथ निपटने आ रही है।" हुगा के चेहरे पर कभी न खत्म होने वाली परेशानी दिखाई दी, "क्या? दीक्षा ने हम पर हमला कर दिया?"
पिछले भाग में आपने देखा कि आन्या ने एक खतरनाक बीमारी फैला दी, वह भी तब जब उसने वादा किया था कि वह किसी तरह का धोखा नहीं देगी। लेकिन उसने विनम्र को धोखा दिया। अब कहानी आगे... किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, और प्रधानमंत्री जल्द ही एजेंसी आने वाले थे। इस वजह से सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी, और एसपीजी के कमांडर भी एजेंसी के आसपास तैनात हो गए थे। कैप्टन रोड को आपातकालीन स्थिति में वापस आना पड़ा, अपना केस बीच में छोड़कर। वह इस वक्त एजेंसी में थे और प्रधानमंत्री के आने का इंतजार कर रहे थे। विनम्र उनके ठीक पास बैठा था, और डायरेक्ट टीम के कुछ सदस्य भी वहाँ मौजूद थे। डायरेक्टर राजेश ने कहा, "यह सब हमारी एजेंसी की वजह से हुआ है। आन्या, हमारी एजेंसी की एक एजेंट हुआ करती थी। आज प्रधानमंत्री यहाँ आएंगे, तब हम उनके सामने कुछ नहीं बोल पाएँगे। मुझे यह तक समझ में नहीं आ रहा कि हम अपनी बेगुनाही कैसे साबित करेंगे? तुम्हें पता है, इस वजह से प्रधानमंत्री भी काफी तनाव में हैं। भारत में इस बीमारी से उनके नाम को भी धक्का लग सकता है, और वह ऐसा नहीं चाहते हैं।" कैप्टन रोड ने अपने चेहरे पर परेशानी दिखाते हुए कहा, "यहाँ आने से पहले मेरी गृहमंत्री से बात हुई थी। वह भी खुश नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि इतनी बड़ी गलती आखिर हमसे कैसे हो सकती है? अगर यह बीमारी ज़्यादा फैल गई, तो इस एजेंसी को बंद करने की नौबत भी आ सकती है।" डॉ. विकास, जो एजेंसी के एक निदेशक थे, बोले, "आन्या को हमें छोड़ना नहीं चाहिए था। हमारी एजेंसी के पहले कुछ नियम हुआ करते थे, जिसमें चाहे खतरा कितना भी बड़ा हो, हम अपराधी को नहीं छोड़ते थे। इसी वजह से सरकार हमें बड़े-बड़े केस देती थी, क्योंकि उन्हें भी पता था कि हम अपराधी को कभी नहीं छोड़ते। तो इस बार आन्या को छोड़ने का फैसला कैसे कर दिया गया?" कैप्टन रोड ने कहा, "क्योंकि आन्या एजेंसी के नियमों की वजह से हमारी दुश्मन बन गई थी। उसके माता-पिता एक ऐसे ही केस में मारे गए थे, जहाँ उन्हें बचाया जा सकता था, मगर हमने अपराधी को पकड़ने के लिए उनके माता-पिता को मरने दिया। फिर वह हमारी एजेंसी में आ गई, और तब से यह बदला उसके मन में पल रहा था। यह इतना बढ़ गया कि अब वह पूरे देश को नुकसान पहुँचाने पर आ गई है।" विनम्र, जो काफी देर तक खामोश रहा था, उसे भी ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा था। कैप्टन रोड ने आगे कहा, "अब इस एजेंसी का भविष्य दाव पर है। ऐसी कोई चीज़ नहीं है जो इस एजेंसी को बचा पाए, क्योंकि हमने जो गलती की है, उसकी माफ़ी नहीं होगी। प्रधानमंत्री जब यहाँ आएंगे, पहले तो वह हम पर गुस्सा करेंगे, और फिर शायद हमसे हमारे सारे अधिकार छीन लेंगे। इस केस को या तो सीबीआई को दे दिया जाएगा, या फिर RAW को सौंप दिया जाएगा, फिर वही आन्या को रोकने का काम करेगी।" अचानक विनम्र ने सभी के चेहरों की ओर देखा और फिर अपनी जगह से खड़े होकर बोला, "क्या होगा अगर हम प्रधानमंत्री को किसी ऐसी चीज़ के बारे में बताएँ जो बेहद कीमती है, और उसे सुनने के बाद उनका हमारी एजेंसी पर भरोसा भी बढ़ जाए? रही बात आन्या की, तो वह अब इस देश के लिए एक आतंकवादी ही है, और आतंकवादियों का न तो कोई धर्म होता है और न ही कोई मजहब। वे बस एक ही चीज़ के लिए जाने जाते हैं, और वह है अपने बुरे इरादों से लोगों को नुकसान पहुँचाना।" कैप्टन रोड ने विनम्र की ओर देखते हुए पूछा, "अच्छा, और तुम्हारे पास ऐसा क्या है जिससे तुम प्रधानमंत्री को खुश कर लोगे?" विनम्र ने ऊपर की ओर देखा और सोचने लगा कि वह इस बारे में बताए या नहीं। मगर कुछ देर सोचने के बाद वह बोला, "मुझे नहीं पता आपको सुनकर यह कैसा लगेगा, मगर जो भी है, मैं वह बता देता हूँ। दरअसल, कुछ दिनों पहले मैं एक मिशन पर गया था, जिसके चलते मुझे कई दिनों तक गायब रहना पड़ा था। उस दौरान मुझे एक ऐसी जगह के बारे में पता चला, जो हमारे इतिहास में है और हम उसकी इज़्ज़त भी करते हैं, लेकिन कभी हमें मिली नहीं।" डायरेक्टर के दोनों सदस्य और कैप्टन रोड, तीनों ही एक-दूसरे के चेहरों की ओर देखने लगे। आखिर विनम्र यहाँ किस बारे में बात कर रहा था? फिर सभी ने विनम्र की ओर देखा और एक साथ कहा, "आगे बताओ! इस तरह से बातों को घुमाने का काम मत करो!" विनम्र बोला, "मैं जानता हूँ कि महाभारत के समय मौजूद द्वारका नगरी कहाँ मौजूद है। मुझे उसके बारे में पता है। मैं उसे ढूँढ चुका हूँ, यहाँ तक कि मैं वहाँ जाकर आ भी चुका हूँ।" कैप्टन रोड ने अपना सिर नीचे कर दिया और इस बात पर ध्यान न देते हुए कहा, "मैं प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए किसी और चीज़ की तलाश करूँगा, ताकि हमारी इज़्ज़त बची रहे।" दोनों डायरेक्टर ने भी कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया, और उन्होंने कैप्टन रोड की ही बात पर ज़ोर देते हुए कहा, "हम भी बाकी अधिकारियों से बात करेंगे और पूछेंगे कि आगे क्या करना है। अगर यह एजेंसी बंद होती है, तो किस तरह से क्या प्लानिंग रहेगी। सब कुछ जानने की कोशिश करेंगे।" संयोगिता, जो वहीं मौजूद थी, जब विनम्र की बात पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, वह आगे आई और बोली, "आप सबको विनम्र की बातों पर यकीन नहीं है, मगर वह बिल्कुल सच कह रहा है। इस मिशन में मैं भी साथ थी, हालाँकि मैं इसके साथ नहीं, बल्कि इसके विरोध में थी, लेकिन मैं वहाँ मौजूद थी। द्वारका नगरी की खोज के पीछे भी विनम्र का ही हाथ था, और फिर मैं रोबोट जूनियर के साथ वहाँ पहुँच गई थी।" अब तीनों का ध्यान विनम्र की ओर गया था। कैप्टन रोड अपनी जगह से खड़े हुए और विनम्र से पूछा, "सच-सच बताओ, क्या-क्या है जो तुमने मुझसे छुपा रखा है? और तुमने यह बात अभी तक एजेंसी को क्यों नहीं बताई? जो भी है, सब कुछ बता दो। अब अगर तुमने एक भी बात छुपाई, तो कुछ भी ठीक नहीं होगा। और वह भी सिर्फ़ तुम्हारे लिए। तो पहले से ही तुम तीन साल की सज़ा भुगत रहे हो। अब अगर मुझे पता चला कि तुमने कुछ ऐसा किया है, तो मैं तुम्हें तीस साल की सज़ा दे दूँगा।"
पिछले भाग में आपने देखा अन्य विनम्र को धोखा दे देती है और जिस बीमारी को उसने नहीं फैलाने के लिए कहा था वह उसे बीमारी को फैला देती है। वह भी एक तो जगह पर नहीं बल्कि पूरी 3000 अलग-अलग जगह पर और उसे बीमारी का एंटीडोट उसने बता दिया था मगर यह संख्या इतनी ज्यादा थी कि इस निपट पाना आसान नहीं था। एजेंसी में भगदड़ मत जाती है और गवर्नमेंट तक इसमें शामिल हो जाती है। गृहमंत्री कैप्टन फ्रॉड को उसके मिशन से वापस बुला लेते हैं और वही प्रधानमंत्री भी एजेंसी उनके लोगों से मिलने के लिए आने वाले थे। सब परेशान होते हैं और सोचते हैं अब प्रधानमंत्री को क्या जवाब दिया जाएगा। तभी वह नंबर कहता है कि उसके पास एक ऐसा रास्ता है जिससे उनके पास प्रधानमंत्री को बताने के लिए कुछ अच्छी खबरें होंगी और अगर वह अच्छी खबरें प्रधानमंत्री को बता देते हैं तो इस वक्त जो भी समस्या पैदा हुई है उसे लेकर प्रधानमंत्री द्वारा वक्त दे दिया जाएगा या फिर उनके द्वारा इतना गुस्सा नहीं किया जाएगा। कैप्टन रोड और फिर डायरेक्ट के दो सदस्य जो यहां पर मौजूद थे वह भी नंबर की सच्ची जानकारी के बारे में सुनते हैं तो एक बार के लिए इस पर कोई यकीन नहीं करता लेकिन जब संयोगिता कर बताती है विनम्र ने जो भी कहा है वह बिल्कुल सच कहा है तब हर कोई इस पर यकीन कर लेता है और कैपिटल रोड के नंबर को सब कुछ बताने के लिए कहते हैं अब तक की कहानी में बस इतना ही अब आगे की कहानी द नंबर सारी बातें कैप्टन रोड को बता चुका था। हालांकि उसने सारी बातें उसे तरह से नहीं बताई थी जिस तरह से वह हुई थी बल्कि घुमा फिरा कर अपनी बातों को बताया था जैसे वह किसी जरूरी मिशन का हिस्सा बना हो और फिर उसी के दौरान उसे द्वारका नगरी मिल गई हो। पूरी बात बताने के बाद आखिर में विनम्रबोला ,"तो इस तरह से द्वारका नदी समुद्र में एक ऐसी जगह पर काफी गहराई में जा चुकी है जिसके बारे में सिर्फ मुझे ही पता है क्योंकि मैं ही उसकी लोकेशन को नोटकिया था। और भी लोग वहां पर थे मगर उन्हें इस लोकेशन के बारे में नहीं पताहै।" कैप्चर रोड यह सारी बातें सुनकर पूरी तरह से हैरान थे उन्होंने अपने चेहरे पर ऐसे ही हैरानी को कायम रखा औरबोले,"मुझे समझ में नहीं आ रहा द्वारका नगरी को तो इंडिया के आसपास होना चाहिए फिर मैं इतनी दूर कैसे चली गई?" विनम्र यह नहीं बता सकता था उसे ले जाया गया इसलिए उसनेकहा ,"ऐसा इसलिए क्योंकि जब द्वारका नगरी अपने हिस्से से टूटकर अलग हो गई थी तो मैं समंदर मेंतैरने लगी थी। द्वारका नगरी को इस तरह से बनाया गया था कि वह आपस में जुड़ी हुई थी इसलिए जब वह टूटकर अलग हो गई थी तो वह एक तरह से बड़े जहाज मेंतब्दील हो गई। पूरा सोने की बनी होने की वजह से यह पूरा जहाज पानी में ही आगे बढ़ने लगा। यह काफी सालों तक डूबा नहीं तो यह समंदर में काफी दूरी पर चला गया और फिर वहीं पर मौजूदरहा। खुशकिस्मती से उसके नीचे एक चट्टान आ गई थी तो पूरा का पूरा द्वारका शहर उसे चट्टान के ऊपरटिक गया। फिर जब मैं वहां पर गया और हमने द्वारका नगरी के अंदर की जगह को देखा तो हमारी ही गलती की वजह से नीचे की चट्टान टूट गई और पूरा द्वारका शहर पानी मेंडूब गया।" डायरेक्टर विकास ने कहा ,"दुनिया सच में निराली है यहां पर कब क्या हो जाए कुछ भी कहा नहीं जा सकता अब खुद ही देख लो भगवान श्री कृष्ण की नगरी कहां पर थी और वह कहां पर चली गई है भगवान श्री कृष्ण की लीला भी अपने आप में अलग है। उनके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है यह भगवान श्री कृष्ण की वजह से ही हुआ है कि उनकी द्वारका नगरी पानी में जाने के बाद भी डूबीनहीं। यह एक चमत्कार नहीं है तो और क्याहै। भगवान श्री कृष्ण आपकी जयहो। आज ऐसे लग रहा है जैसे मैं आपका चमत्कार अपनी आंखों के सामने ही देख लियाहै।" दूसरे डायरेक्टर ने भी इसी तरह से बात करतेहुए कहा ,"मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। महाभारत को लेकर किसी के मन में संशोध तो नहीं था मगर फिर भी दुनिया मोहब्बत को किसी किताब की तरह लेती थी जिसे किसी लेखक ने लिखा हो लेकिन इन सब सबूत के बाद कोई भी इसी किताब नहीं मानेगा बल्कि यह हमारे इतिहास का हिस्सा बन जाएगी। महाभारत और महाभारत के वक्त पर जो भी हुआ है वह सब हमारे इतिहास का हिस्सा बन जाएगा इससे बड़ा आखिर हमारे लिए और क्या है। इसे हमारे देश का नाम दुनिया में खेलेगा और हमारे देश का गौरवशाली इतिहास सबके सामने आएगा और हमारे देश का गौरव भीबढ़ेगा।" कैप्टन नॉट बे आखिर खुद को इस मुद्दे पर बोलने से रोक नहीं सके वह इस मुद्दे पर बोलते हुए बोले ,"मैंने तो हमेशा ही हमारे भारत के इतिहास का हिस्सा माना है लेकिन अब दुनिया भी इसे हमारे इतिहास का हिस्सा मांगी इससे बड़ी खुशी की बात हमारे लिए क्या हो सकती है। मैं खुद को खुश किस्मत समझ लूंगा मैं एक ऐसे समय में पैदा हुआ हूं जहां द्वारका नगरी के पूरे हिस्से के सक्सेस से हमारे सामने है। ऐसे साक्षी है जिसमें सोने की बनी हुई नगरी हमारी आंखों के सामने होगी और हम भगवान श्री कृष्ण की हर एक पल को हमारी आंखों के सामने महसूस करेंगे।" सब की बातों के बीच में दखलअंदाजी देते हुए भी नंबर बोला ,"लेकिन अभी इतनी खुश होने की जरूरत नहींहै, समस्या यह है कि वह समंदर के काफी गहरी हिस्से में है और वहां तक जा पाना किसी की भी बस की बातनहीं है। हमने अभी तक ऐसे टेक्नोलॉजी बिल्ड नहीं की जो हम इतनी गहराई तक जा पाए। पहले बात वहां तक जब अपना नामुमकिन है और दूसरी बात अगर हम किसी तरह से वहां पर पहुंच भी गए तो हम इतने बड़े द्वारका शहर को तो छोड़ो उसके टुकड़े को भी बाहर नहीं लेकरआ पाएंगे। पानी के दबाव के बीच वहां मौजूद 1 किलो के किसी टुकड़े का भार भी हजारों क्विंटल के बराबर होजाएगा।" कैपिटल नोट ने अपना फोन निकाला और फौरन डॉक्टर दी को यहां पर आने के लिए कहा ताकि वह डॉक्टर डीसी इस बारे में डिस्कशन कर सके। तभी संयोगिताने कहा ,"हमारे पास भी कुछ वैज्ञानिक है और उन्होंने भी कई तरह की टेक्नोलॉजी का निर्माण किया है लेकिन वह भी ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं बना सकते जो किसी को समंदर में इतना अंदर तक लेकर जासके। हमारे पास एक से बढ़कर एक वैज्ञानिक है और उनकी क्षमता भी अपने आप में अनोखी है लेकिन फिर भी यहनामुमकिन है।" कैप्टन रोड ने संयोगिता की तरफ देखाऔर कहा ,"हो सकता है तुम लोगों के पास काफी बड़े वैज्ञानिक हो लेकिन हमारे पास डॉक्टर दी है और जब तक डॉक्टर डी नहीं कह देते यह नामुमकिन है तब तक मैं इस चीज को नामुमकिन नहीं मान सकता हूं क्योंकि डॉक्टर डी नाम हर एक चीज को मुमकिन किया है जो शुरुआत में नामुमकिन हीहोती है।" संयोगिता नेट पर कोई कमेंट नहीं किया और थोड़ी देर बाद डॉक्टर डीपी यहां पर आगे जिसे सारी बात कैप्टन रोड ने बताइए तो डॉक्टर डी सी नंबर की तरफ घूर-घूर कर देखनालगे ,"मुझे लगा नहीं तो तुम इन्हें भी सब कुछ बता दोगे अच्छा तुमने और क्या-क्या बताया है क्या तुमने?" डॉक्टरी सुदर्शन चक्र का नाम लेने ही वाले थे तभी भी नंबर नहीं उन्हें बीच में टोका। विनम्र का तालकटिवबोला ,"कंट्रोल कीजिए डॉक्टर दी खुद पर मैंने जो भी बताया है वह सब कैप्टन रोड आपको बता चुके हैं इसके अलावा मैं भला और क्या बता सकता हूं आप भी ना पता नहीं कैसी बहकी बहकी बातें करते रहते हैं?" बात करते-करते भी नंबर डॉक्टर दी को आंख भी मार दी जिससे डॉक्टर इस बात को समझ गए की विनम्र ने सुदर्शन चक्र के बारे में नहीं बताया बस मोटी-मोटी बातें बताइए जो कैप्टन रोड ने उसे बात ही दीथी। सबको आप डॉक्टर डीके बात का इंतजार था और उनके जवाब का जिसमें यह बताएंगे कि क्या इस चीज को मुमकिन किया जा सकता है। डॉक्टर ने काफी देर तक सोचा फिर प्रशांत चेहरे के साथकहा ,"देखो मैं यह तो नहीं कहूंगा हम इतनी गहराई तक नहीं जा सकते हैं मगर फिर भी यह इतना आसान नहींहै। जिस गहराई की बात विनम्र कह रहा है उसे गहराई तक जाने का मतलब है किसी भी अंतर जाने वाली चीज के ऊपर पूरे पृथ्वी के जितना बाहर आ जाना इसलिए हमें कोई ऐसी मजबूत धातु चाहिए जिसमें इतना दम हो कि वह पृथ्वी के बाहर को अपने ऊपर झेल सके तब जाकर ही कुछ मुमकिन किया जा सकता है वरना यह मुमकिन नहींहोगा।" कैप्टन रोडबोले ,"लेकिन अब हम ऐसी धातु कहां से लेकर आए जो इतनी मजबूत हो कि वह इस भर को भी झेल सके?" अभी नंबर किस बारे में कुछ नहीं कह सकता था और ना ही संयोगिता के पास इसका कोई जवाब था जबकि जो दो डायरेक्ट यहां पर मौजूद थे उनके पास तो इसका जवाब होने का सवाल ही नहीं था क्योंकि उनका साइन से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था। कैपिटल रोड में डॉक्टर डीसे कहा ,"ठीक है हम इस बारे में बाद में बात कर लेंगे लेकिन हमारे पास प्रधानमंत्री को बताने के लिए चलो कम से कम कुछ अच्छी खबरें तो होगीही। वो हम एक और मौका दे देंगे और हमें इसमौके में आन्या की इस मुसीबत को हमेशा हमेशा के लिए निपटाना है।" विनम्र ने कहा ,"हम इस मामले में प्रधानमंत्री से मदद ले सकते हैं ताकि वह इंडियन मिलिट्री को भी इसमें इंवॉल्व करें और उन सभी लोकेशन को टारगेट करने में हेल्प करें जहां पर यह बीमारी फैली है दूसरी तरफ वह नेशनल डॉक्टर्स की टीम को भी हमारे लिए अप्वॉइंट कर सकते हैं जो एटीट्यूड बनाने के काम को इतना तेज कर दें कि हम बीमारी फैलने के मुकाबले ज्यादा एटीट्यूड बनासके। अगर हमारे पास टारगेट लोकेशन और ढेर सारे एटीट्यूड होंगे तो हम इस बीमारी को फैलने से रोकसकते हैं।" कैप्टन रोड ने इस बात पर हम ही भरी औरकहा ,"ठीक है अब सभी जाकर अपना-अपना काम कर सकते हैं प्रधानमंत्री को आने में अभी भी दो से तीन घंटे का वक्त लग जाएगा तब तक मैं देखता हूं मुझे क्या करनाहै। मैं कोशिश करूंगा प्रधानमंत्री हमें वक्त दे ही दे और वह हमसे इतना नाराज ना हो जितना उन्हें होना चाहिए फिर देखते हैं हमें आगे क्या करना है अगर वह यह कैसे हमारे हाथों से लेकर किसी और को देते हैं तब भी हमें समस्या से पीछे नहीं हटेंगे और इसे सुलझाने के लिए जो भी हम कर सकते हैं वह हम करेंगे। अगर हमारी एजेंसी बंद भी हो जाती है कभी हम इस देश के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहेंगे क्योंकि हमारे लिए एजेंसी का होना या ना होना जरूरी नहीं है हमारे लिए अगर कुछ जरूरी है तो इस देश का होना और इस देश में शांतिका होना।" अभी नंबर नहीं यहसुनते ही कहा ,"बिल्कुल, और मैं कोशिश करता हूं उसे आने का पता लगाने की ताकि अगर हम उसे तक भी पहले पहुंच जाएंगे तो वह आगे क्या सोच रही है या फिर आगे क्या करने की प्लानिंग कर रही हमें इसकी जानकारी मिल जाए और हम उसे आगे कुछ भी करने से पहले उसे रोकसके।" कप्तान और ने हम ही भरी और फिर भी नंबरसे कहा ,"ठीक है तुम इसे अपने एक मिशन की तरह लो मैं नहीं जानता यह तुम्हारा आखिरी मिशन हो सकता है या फिर नहीं क्योंकि यह प्रधानमंत्री के डिसीजन के बाद ही डिसाइड होगा लेकिन फिलहाल के लिए तुम इस मिशन की तौर पर लेकर चलो जो तुमसे भी ज्यादा इस देश के लिए जरूरीहै। आने इस दुनिया की चाहे किसी भी कोने में क्यों ना हो जाओ और जाकर उसेढूंढो। तुम चाहो तो उसे मार भी सकते हो लेकिन कुछ भी करने से पहले यह सोच लेना इससे हमें कोई और नुकसानना हो। आने को लेकर क्या करना है क्या नहीं करना है मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी तुम्हें देता हूं बस तुम उसे इस दुनिया में आजाद मत छोड़ना। भैया तो नर्क में होनी चाहिए या फिर हमारी इस एजेंसी में से लाखों के पीछे या फिर सरकार के पास सलाखों के पीछे।" भी नंबर दे हमें सिर्फहिलाया। वह और संयोगिता दोनों ही बाहर आगई। वह दोनों अपने कमरे में थे। संयोगिता में विनम्र से पूछा ,"लेकिन हम इतनी जल्दी उसे लड़की को ढूंढेंगे कहां पर? मैंने डेनियल से बात करने की कोशिश की थी लेकिन मेरा उससे कांटेक्ट नहीं हो पाया। जब तक हम उससे कांटेक्ट नहीं कर पाएंगे तब तक हम उसके भूतों की मदद भी नहीं ले सकते हैं। क्या तुम्हारे पास कोई आईडिया है जिससे हम उसे ढूंढ सके?" विनम्र ने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट दिखाई औरकहा ,"मुझे यह पूरी तरह से शोर तो नहीं था आने इस तरह की गलती करेगी लेकिन फिर भी मैंने बैकअप प्लान पहले ही बना कर रख लिया था। जब आने यहां पर आई थी तब उसके कपड़े उसे ले लिए गए थे और उसे कैदियों वाले कपड़े दिए गए थे। लेकिन जब उसे यहां से जाना था तब उसे उसके कपड़े वापस दिए गए थे और मैंने उसके कपड़ों में 24 एक ट्रैकिंग डिवाइस लगादिया था। डॉक्टर डेक बनाया क्या वह ट्रैकिंग डिवाइस इतना छोटा है कि आने के कपड़ों में ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। आन्या इतनी जल्दी कपड़े नहीं बदलने वाली है क्योंकि सबसे पहले वह किसी सुरक्षित जगह पर जाने के बारे मेंसोचेगी।" संयोगिताबोली ,"यह तो बहुत अच्छी बात है तब तो हम आने को जल्दी पकड़ सकते हैं चलो जल्दी से उसकी लोकेशन को देखें और फिर उसे पकड़ने के लिएजैन।" द नंबर अपना लैपटॉप लेकर आया और उसे खोलकर उसमें आने की लोकेशन ढूंढनेलगा। थोड़ी ही देर में उसे आने की लोकेशन मिल गई थी और इस वक्त वह एक ऐसी जगह पर थी जहां पर भी नंबर और संयोगिता दोनों जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। संयोगिता ने अपने चेहरे पर हैरानी दिखाईहुए कहा ,"क्या मैं लड़की इस वक्त नॉर्थ कोरिया मेंहै? तुम्हें पता है ना नॉर्थ कोरिया का शासक कौन है? वहां के नियम क्या है? हम वहां पर जाकर अपनी मनमर्जी नहीं कर सकते हैं और ना ही मुझे लगता है भारत सरकार इसमें हमारी कुछ मदद कर सकती है। आखिर इस लड़की को इस पूरी दुनिया में एक नॉर्थ कोरिया ही मिला था जाने के लिए?" विनम्र दोनों हाथ टेबल पर रखकर आने की लोकेशन को देख रहा था और उसकी नज़रें बस अब आने की लोकेशन पर ही टिकी हुई थी। वह काफी देर तक उसकी लोकेशन को देखता रहा फिर वह बोला ,"यह अब इस दुनिया के किसी भी कोने में क्यों ना चली जाए अगर मुझे ऐसे पकड़ कर लाना है तो मतलब लेकरआना है। चाहे यह नॉर्थ कोरिया में हो या फिर किसी पाताल में से लेकर हीआऊंगा।" संयोगिता ने परेशान चेहरे के साथ कहा ,"मगर फिर भी नंबर नॉर्थ कोरिया यह कुछ मजाक नहीं है वहां पर छोटी-छोटी बात के लिए सीधे गोली मारती जाती है।" विनम्र ने थोड़ा सा सोच और फिरकहा ,"यह मत बोलो हमारे पास एक ऐसी चीज है जो जब तक हमारे पास होगी तब तक हमारा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा। हमारे पास सुदर्शन चक्र है और उसके आगे किसी की भी नहीं चलने वाली।" यह सुनकर हास्य योग्यता को थोड़ा सा हौसला आ गया था।
विनम्रने अब नॉर्थ कोरिया जाने की तैयारी कर ली थी। संयोगिता भी उसके साथ ही सफर में जाने वाली थी। लेकिन अभी तक दोनों नहीं कैप्टन रोड से इजाजत नहीं ली थी और संयोगिता ने अपनी बहन से नहीं पूछा था। विनम्र कैपिटल रोड से बात करने के लिए चला गया वहीं संयोगिता अभी तक कंफ्यूज थी वह अपनी बहन से पूछे या फिर नहीं क्योंकि उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कैप्टन रोड अभी भी प्रधानमंत्री के आने का इंतजार कर रहे थे। विनम्र उनके कमरे में गया औरबोला ,"मुझे पता चल गया है आन्या कहां पर है, वह इस वक्त नॉर्थ कोरिया में है कहीं ना कहीं उसे वहां पर गवर्नमेंट की सुरक्षा मिल रही होगी तभी उसमें इतनी हिम्मत है कि वह नॉर्थ कोरिया जाने के बारे में सोचसके।" यह सुनकर कैपिटल रोड के चेहरे पर परेशानी आगई। वह अपने परेशान चेहरे के साथबोले ,"यह लड़की भी ना, पता नहीं अब यह क्या करना चाहती है? क्या चल रहा है इसके दिमाग में तो यह नॉर्थ कोरिया चलीगई।" यह नंबर बोला ,"यह तो वहां जाकर ही पता चलेगा मैं यह आपके पास परमिशन लेने के लिए आया हूं। मुझे नॉर्थ कोरिया जाने की परमिशन चाहिए। संयोगिता भी मेरे साथ जाएगी।" कप्तान और अपनी जगह से खड़े हुए और भी नंबर के पास आकर बोले ,"तुम नॉर्थ कोरिया जा सकते हो लेकिन तुम्हें पता है ना हमें गवर्नमेंट से किसी तरह की हेल्प नहीं मिलने वालीहै। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ही हमसे नाराज हैं ऐसे में अगर हम उनसे हमारी किसी एजेंट को नॉर्थ कोरिया में भेजने की बात करेंगे तो वह इस बात की कभी भी मंजूरी नहीं देंगे। यह काम तुम्हें अपने ही रिस्क पर करना होगा क्या तुम इसे अपने रिस्क पर करने के लिए तैयार हो ध्यान रहे अगर तुम वहां पर पकड़े गए या फिर तुम्हारे साथ कुछ भी होता है ना तो इंडियन गवर्नमेंट इस चीज की जिम्मेदारी लेकर और ना ही मैं एजेंसी का हेड होने के नाते इस चीज की जिम्मेदारी ले सकता हूं। मुझे अभी से तुम्हारा नाम को एजेंसी से बाहर निकलना होगा ताकि अगर कुछ होता भी है तो इस एजेंसी के ऊपर कोई और खतरा ना आए।" विनम्र को समझ में नहीं आ रहा था वह इसका क्या जवाब दें लेकिन अब जब बात इतनी भर चुकी थी तब वह पीछे भी नहीं है सकता था ,"ठीक है कोई बात नहीं मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है। अगर इस देश की सेवा के लिए मैं इस देश के नाम को अपने साथ नहीं जोड़ सकता हूं तब भी मैं कभी इसके लिए जिद नहीं करूंगा मेरा काम बस इस देश की सेवा करना है और मैं इस सेवा पर ही अपना ध्यान लगाऊंगा अन्य की कहानी और।" यह बोलकर विनम्र ने सेल्यूट किया जिसका जवाब में कैप्टन रोड ने भी सामने से सलूट किया और फिर भी नंबर यहां से निकल गया। मैं संयोगिता दूसरी तरफ अपनी बहन से बात कर रही थी उसने अपनी बहन वनीला को कहा ,"सॉरी दीदी मैं आपको बात नहीं सकती, लेकिन अब मेरे पास इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है मुझे भी नंबर की मदद करनी होगी, वह बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ गया है और अगर मैं उसकी मदद नहीं की तो मुझे नहीं लगता वह इस मुसीबत से निकालपाएगा।" उसकी बहन ने सामने से कहा ,"हां तुम तो जैसे कोई अंतर्यामी देवी हो जिसे हर एक चीज के बारे मेंपता है, तुम भला उसे लड़के की क्या मदद करोगी जिसके पास सुदर्शन चक्कर है उल्टा हमें उसकी मदद की जरूरत पड़ी थी जब हमारे बॉस खतरे में पड़ गए थे तुम चुपचाप वापस आजो।" वनीला ने जो कहा था वह अपनी जगह पर बिल्कुल सही कहा था क्योंकि एक तरह से भी नंबर को उसकी मदद की कभी जरूरत नहीं पड़ेगी और भी नंबर खुद इतना कैपेबल है कि वह अपने दम पर कुछ भी कर सकता है। मगर इसके बावजूद सहयोगिता को उसके साथ रहना था क्योंकि वह विनम्र को पसंद करती थी और वह उसके साथ रहने के लिए कुछ भी कर सकतीथी उसने अपनी बहन की बात का जवाब देते हुएकहा ,"मैं जानती हूं लेकिन फिर भी एक से भले दो होते हैं इसलिए मैं उसके साथ उसकी हेल्प करने के लिए जा रही हूं मुझे नहीं पता मैं उसके कितना काम आऊंगी कितना काम नहीं लेकिन जब भी उसे मेरी जरूरत पड़ेगी मैं उसके साथरहूंगी।" वनीला ने कुछ देर तक सोच और फिरकहा ,"ठीक है अगर तुम जिद कर रही हो तो मैं फिर क्या कर सकती हूं वैसे भी मुझे पता है अगर तुम उसके साथ रहोगी तो वह तुम्हें कुछ नहींहोने देगा। मैं उसे लड़के पर विश्वास नहीं करती हूंमगर इतना तो मुझे उसे लड़के पर विश्वास है कि वह अपने साथ जाने वाले को नुकसान नहीं पहुंचने देताहै। ठीक है जो मगर उसे दूर रहना और उसके साथ प्यार वार में मत पढ़ना वरना मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा।" संयोगिता ने इस पर हम ही भरी और फिर फोन कट कर दिया तभी भी नंबर वहां पर आगया था। विनम्र नहीं आते ही संयोगिता को कहा ,"एक बुरी खबर है हम इस मिशन पर तो जा रहे हैं मगर हमें एजेंसी से कोई सपोर्ट नहीं मिलेगा और ना ही वहां पर अगर हमें पकड़ लिया जाता है तो वह हमारी आकर मदद करने वाली है जो भी करना होगा वह हमें अपने दम पर करना होगा। अगर हम वहां मुसीबत में भी पड़ जाते हैं तो हम किसी से भी उम्मीद नहीं करसकते हैं। मेरे ख्याल से मुझे ही इस मिशन पर अकेले जाना चाहिए तुम इस मिशन पर मत जाओ क्योंकि मैं नहीं चाहता तुम भी मेरे साथ-साथ खतरे में पड़ जाओ।" संयोगिता ने जाट से कहा ,"यह तुम क्या बकवास कर रहे हो मैं तुम्हारे साथ इस मिशन पर चल रही हूं और यह बात डिसाइड हो चुकी है अब तुम्हारे उसे कैप्टन के कुछ कह देने से मेरा यह डिसीजन बदलने वाला नहीं है। चलो हम दोनों नॉर्थ कोरिया चले और उसे आने की बच्ची को पड़कर वापस इंडिया लेकर आए" विनम्र ने संयोगिता के कंधों पर हाथ रखे और फिर उसे कसकर पढ़ते हुएकहा ,"मुझे समझ में नहीं आ रहा मैं तुम्हारा थैंक यू कैसे कहूं लेकिन जो भी है मेरा साथ देने के लिए थैंक्स।" और भी नंबर नहीं उसे अपने करीब करके गले से लगा लिया। संयोगिता इस बात से काफी खुश थी क्योंकि वह नंबर ने पहली बार अपनी तरफ से उसे प्यार से गले लगाया था जबकि हर बार वही उसे गले लगाती थी।
पिछले भाग में आपने देखा अभी नंबर और अन्य को अब नॉर्थ कोरिया जाना था क्योंकि उनके लिए नॉर्थ कोरिया जाना जरूरी था।
पिछले भाग में आपने देखा विनम्र को अब नॉर्थ कोरिया जाना था क्योंकि आने वहां चली जाती है लेकिन इस मामले में उसका सफर आसान नहीं था क्योंकि कप्तान और कह देते हैं एजेंसी उसके इस सफर की कोई जिम्मेदारी नहीं लगी वह नंबर यह बात आकर सहयोगिता को बताता है और उसे कहता है वह अकेला ही इस मिशन पर जाएगा और संयोगिता को अपने साथ नहीं जानने के लिए कहता है मगर संयोगिता की यह बात नहीं मानती और वह कहती है वह उसके साथ ही जाएगी अब कहानी में आगे देर रात को विनम्र और संयोगिता दोनों ही एक प्राइवेट एयरपोर्ट पहुंचे। तेज तूफान चल रहा था जिस वजह से कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। संयोगिता विनम्र के साथ थोड़ा और आगे पहुंची तो उसने पायलट के चेहरे की तरफ देखा जो और कोई नहीं बल्कि शंभू ही था। शंभू ने विनम्र के पास आते हीकहा ,"तुम्हारी जिंदगी में कभी लफड़े खत्म नहीं होंगे ना अब यह कौन सी मुसीबत तुमने अपने सर पर पालली? मैं तुम्हारे उसे पादरी को छोड़ने क्या चल गया तुमने तो यहां पर पूरी दुनिया हिला कर रख दी है सुना है इंडिया में एक ऐसी महामारी फैल गई है जो काफी तेजी से आगे बढ़ेगी अगर किसी ने उसका सही वक्त पर इलाज नहींकिया तो।" विनम्र शंभू के जब काफी करीब आ गया तब उसने शंभू को जवाब देते हुएकहा ,"फिक्र मत करो इस बीमारी के इलाज के लिए काफी सारे डॉक्टर लगे पड़े हैं यह काम हम उन पर छोड़ देते हैं हमारा काम है उसे लड़की का इलाज करना जो इस वक्त नॉर्थ कोरिया है।" शंभू ने अपनी गर्दन झटका हुएकहा ,"हां तुमने पूरी दुनिया तो घूम ली है मगर दुनिया का यह कौन अभी बाकि पड़ा था जहां तुम अब जा रहे हो। समझ में नहीं आ रहा सुबह उठकर जब तुम भगवान से प्रेम करते होंगे तो उनसे क्या मांगते होंगे जो वह तुम्हें इस तरह के एडमिशन लाल ला कर देते हैं।" शंभू उन दोनों को अपने प्लेन की तरफ लेकर जाने लगा यह प्लान वह प्लान नहीं था जिस पर शंभू भी नंबर को पहले लेकर गया था बल्कि यह एक नया प्लान था। हालांकि यह भी वर्ल्ड वॉर सेकंड के टाइम का प्लान था। शंभू ने प्लान के पास आते हुए कहा ,"कैप्टन नोट ने मुझे कहा था मुझे तुम दोनों को नॉर्थ कोरिया लेकर जाना है तो मैं उनसे एक अच्छा प्लान की मांग की थी तुम्हें पता है उन्होंने मुझे क्याजवाब दिया? वह मुझे बोले तुम लोग घुसपैठ करने जा रहे हो होने की वहां शाही मेहमान बनकर जा रहे हो इसलिए खुद ही इंतजामकर लो।" अभी नंबर जब प्लेन के पास आया तो उसने देखा इसकी हालत तो पहले वाले प्लेन से भी काफी खराब थी इसे देखकर तो यह भी नहीं कहा जा सकता था कि यह सफल भी पूरा कर पाएगा या फिर नहीं क्योंकि हवा के चलने की वजह से इसकी पुर्जे ही अपने आप में हिल रहे थे। अभी नंबर ने प्लेन की तारीफ मेंकहा ,"और तुम्हें यह कबाड़ मिला हद है इससे ज्यादा अच्छा होता हम पैराशूट लेकर ही चले जाते इतनी हवा में तो कोई भी नॉर्थ कोरिया पहुंच जाएगा। पैराशूट से भी रहेगा तुम्हारे प्लेन की तरह उसमें कम से कम दर तो नहींलगेगा।" शंभू ने अपनी तारीफ करते हुएकहा ,"बेटा चलने वाला ड्राइवर अच्छा होना चाहिए प्लेन खराब भी हो तब भी ड्राइवर अच्छा हो तो वह उसे पर लगा हीदेता है। चलो अब आज के टाइम में हाईटेक प्लेन आ गए हैं तो इसका मतलब यह थोड़ी ना है वर्ल्ड वॉर फर्स्ट और सेकंड के टाइम जो प्लेन उड़ने वाले पायलट थे उनके पास कबाड़ था उनके पास उसे टाइम के हाईटेक प्लेन थे और यह है उन्हें हाईटेक प्लेन में से एक है अब चुपचाप इसमें बैठ जाओ वरना मैं तुम लोगों को यहीं पर छोड़कर नोट खुला निकल जाऊंगा फिर तुम लोग आते रहना वहां पर मुझे ढूंढने और मैं तुम लोगों को वहां पर किसी न किसी जेल मेंमिल ही जाऊंगा।" विनम्र और संयोगिता दोनों ही प्लान के पीछे बनी जगह पर बैठकर जबकि शंभू प्लेन के आगे बैठा और उसने उसको मोड़कर हवा की दिशा में करते हुए उसकीउड़ान भर दी। आमतौर पर ऐसे प्लान तेज तूफान में उड़ा नहीं भर सकते मगर शंभू को तेज तूफान में भी प्लेन चलाने का एक्सपीरियंस था तो वह हवा की दिशा में प्लेन को करके उसके रफ्तार को स्टेबलरख रहा था। कुछ ही देर में तेज तूफान के बीच प्लेन आसमान में था और हवाओं के बीच लड़खड़ाते हुए किसी तरह से आगेबढ़ रहा था। इस खराब मौसम में शंभू को प्लेन उड़ाने में थोड़ी सी दिक्कत तोहो ही रही थी। तकरीबन 1 घंटे तक किसी तरह से उड़ान भरने के बाद प्लेन तूफान से बाहर आ गया और साफ मौसम में आते ही उसने रफ्तारपकड़ ली। वही पीछे भी नंबर और सहयोगिता अपने प्राइवेट रूम में थे और वहां पर्सनली अपना टाइमस्पेंड कर रहे थे। विनम्र के हाथ संयोगिता की बॉडी पर चल रहे थे और वह उसे पर्सनली किसी कर रहा था। वह संयोगिता भी इस मोमेंट को इंजॉय कर रही थी क्योंकि कहीं ना कहीं वह ऐसी चीज के लिए तो भी नंबर के साथ आईथी। शंभू ने पीछे की तरफ देखा तो उसे दोनों रोमांस करते हुएदिखाई दिए। यह नंबर यह देखकरबोला ,"यह लड़का बिना लड़कियों के मामले में इसकी किस्मत कभी भी खराब नहीं रही। देखो अभी से एक अच्छी लड़कीमिल ही गई।" तकरीबन 6 घंटे बाद शंभू के पास आकर बैठगया। इस वक्त वह जिस इलाके में थे वहां पर भी रात का ही टाइमथा। अभी नंबर ने मैप में देखा तो वह लोग नॉर्थ कौरके करीब ही थे। विनम्र ने शंभू सेपूछा ,"तुम्हें क्या लगता है हम इजीली नॉर्थ कोरिया के इलाके में प्रवेश कर पाएंगे?" शंभू हंसने लगा औरबोला ,"हां वहां तक जाने में हमें कोई दिक्कत नहीं होगी, शुक्र मनाओ नॉर्थ कोरिया के प्रेसिडेंट ने एयर डिफेंस पर उसे तरह से ध्यान नहीं दिया जिस तरह से इजरायल और अमेरिका ने ध्यान दिया है। इनका एयर डिफेंस इतना पावरफुल नहीं है कि यह उनके चारों ओर की बाउंड्री से आने वाले किसी भी प्लान को पकड़ सके। बाकी मैं भी तुम लोगों को सिर्फ बाउंड्री से थोड़ा आगे ही छोड़ने वाला हूं इसके बाद मैं यहां से वापसचला जाऊंगा। हम इन्हें इतना भी कमजोर नहींसमझ सकते की खुलेआम घूमतेफायर।" अभी नंबर नहीं अपना फोन निकाला और उसे पर अलग-अलग तरह के नक्शे देखने लगा क्योंकि उसे पता था जब वह नॉर्थ कोरिया की बॉर्डर में चला जाएगा तब इंटरनेट कनेक्शन इस तरह से काम नहींकरेगा। फिर भी नंबर दे काफी सारे ऑफलाइन नक्शा को प्रिंट करने के लिए छोड़ दिया ताकि वह उन्हें अपने साथ लेकरजा सके। विनम्र शंभू से कहा ,"मेरे पास आने की लास्ट लोकेशन है, तुम जहां पर मुझे छोड़ोगे वहां से वह लोकेशन तकरीबन 125 किलोमीटर दूर है, 125 किलोमीटर का सफर, देखते हैं क्या हो करना है और क्या नहीं? तेरे सच में आसान नहीं है। हां यह लोग मुझे आसानी से नुकसान नहीं पहुंचा सकते और जरूरत पड़ने पर मैं सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल भी कर सकता हूं लेकिन अगर मैं इस तरह की चीज करने की कोशिश की तो मैं सबके ध्यान मेंआ जाऊंगा " विनम्र अपनी तरफ से सही बात कर रहा था और शंभू इस बातको समझ रहा था। शंभू ने नशे की तरफदेखा और कहा ,"हम थोड़ी देर में नॉर्थ कोरिया के बाउंड्री मेंजाने वाले हैं।" फिर वह काफी देर तक लक्ष्य की तरफ देखता रहा और जब नॉर्थ कोरिया के बाउंड्री में चला गया तब इस बात पर नेट बनाकर रखने लगा कहीं उसे पकड़ तो नहींलिया गया है। तकरीबन 5 मिनट तक किस तरह की कोई हलचल नहीं हुईशंभू ने कहा ,"मुझे लग रहा है हम सेफ है हम इनके किसी भी रडार में नहींआए।" यह नंबर अभी भी रक्षा की तरफ देख रहा था तभी अचानक एक रेड कलर का अलार्म बजने लगा इसके बचते हीशंभू ने कहा ,"सहित उन्होंने हम पर मिसाइल लॉन्च कर दी है हम लॉक होचुके हैं।" द नंबर परेशान नहीं दिखाते हुए बोला जो सिर्फ इसलिए थी क्योंकि अब उनके जहाज पर एक मिसाइलदाग दी गई थी ,"मगर तुमने तो कहा था मैं हमें पकड़ नहीं पाएंगे फिर यह सबक्या है?" शंभू अजीब सा चेहरा बनाते हुएबोला ,"अरे मुझे थोड़ी ना पता था आप इन्होंने अपनी टेक्नोलॉजी हाई कर ली है मुझे तो लगा था यह बस अपने प्रेसिडेंट को खुश करने पर ध्यान देते होंगे कौन टेक्नोलॉजी के बारे मेंसोचेगा।" यह कहकर शंभू ने अपने प्लेन को नीचे की तरफकर लिया ,"मिसाइल के अटैक से बचने के लिए मुझे जमीन के करीब उड़ान भरनी होगी जरूरत पड़ने पर इस लैंड भी करना होगा ताकि हम मिसाइल के रेंज में ना सके और रडार भी हमेंना पकड़ सके।" यह नंबर जल्दी से ऑफलाइन लक्ष्य देखनेलगा ,"ठीक है अगर तुम ऐसे लैंड करना है तो तकरीबन 15 किलोमीटर दूर लैंड करो वह इलाका जंगलीहै, और उसे तकरीबन 5 किलोमीटर दूर है पथरी पहाड़ियांहै, जरूरत पड़ने पर हम इन पत्राली पहाड़ों का इस्तेमाल इस प्लान को दोबारा उड़ाने के लिएकर सकते हैं।" शंभू ने भी नशे को दिखा ,"तुमने लोकेशन तो सही बताई है लेकिन, यह इस जहाज के हिसाब से बिल्कुल भी सही नहींहै, मैं यहां से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर मौजूद जगह को टारगेट करूंगा, यह खाली पड़ी जमीन है, यहां से जहाज को उड़ान भरना आसान होगा वरना पहाड़ी इलाकों में यह क्रश भीकर सकता है।" अभी नंबर भी उसे जगह को देखने लगा मगर देखते ही उसने मना करते हुए कहा ,"बिल्कुल नहीं अगर हम यहां पर लैंड करेंगे तो यह लोग हमें सेटेलाइट के जरिए ही पकड़ लेंगे तुम इस जंगल में ल** करो वहां पेड़ों के बीच में हमेशा छुपा सकते हैं और आसानी से हम उनके हाथभी नहीं आएंगे।" शंभू ऐसा करना तो नहीं चाहता था मगर बचते हुए लाल रंग का अलार्म और मिसाइल का लगातार करीब आने की वजह से उसके पास और कोई रास्ता नहीं था उसने तुरंत प्लेन को जंगल की तरफले लिया। मैं उसे जमीन की करीब करता जा रहा था और जैसे-जैसे जमीन के करीबकर रहा था वैसे वैसे आवाज तेज होतीजा रही थी। व्हिच इस द संयोगिता आई और उसने पूछा ,"आखिर यह सब होक्या रहा है?" विनम्र ने उसकी तरफदेखा और कहा ,"तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा क्या हमारा स्वागत हो रहा है।" संयोगिता उन दोनों के पास आकर बैठ गई उसे भी पता लग गया वह सबएक खतरे में फंस चुके हैं। उनकी लैंड की जगह अभी भी दूर थी मगर उनके पीछे आ रही मिसाइल उनके काफी करीब आ गई थी। मैं किसी भी वक्त मिसाइल के निशाने पर आ सकते थे।
पिछले भाग में आपने देखा कि विनम्र और संयोगिता को शंभू के साथ न्यूयॉर्क जाना पड़ा। रास्ते में ही उनके प्लेन पर मिसाइल हमला हुआ। शंभू को पूरा भरोसा था कि कोई हमला नहीं होगा, लेकिन यह हमला उसे स्तब्ध कर गया। उन्हें जबरन जंगल में लैंड करना पड़ा। लैंडिंग के दौरान ही एक मिसाइल प्लेन के बेहद करीब आ गई। अब कहानी आगे... मिसाइल बेहद करीब थी। शंभू ने तुरंत प्लेन का नियंत्रण संभाला और यू-टर्न करते हुए उसे नीचे की ओर झुका दिया। प्लेन अचानक उलट गया। सभी ने सीट बेल्ट बांधी हुई थी, इसलिए कोई नहीं गिरा, पर कुछ सामान इधर-उधर बिखर गया और पिछले डिब्बों में अफ़रा-तफ़री मच गई। मिसाइल बाल-बाल बचकर निकल गई, लेकिन शंभू ने प्लेन को संभाला ही था कि पता चला कि तीन और मिसाइलें आ रही हैं। शंभू ने शांत चेहरे से कहा, "उन्होंने हमें लॉक कर लिया है। हमें तुरंत लैंड करना होगा; तभी हम रडार से बच पाएँगे।" विनम्र ने जमीन की ओर देखा, "तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो? जल्दी लैंड करो, नहीं तो हमारा काम यहीं खत्म हो जाएगा। आन्या को पकड़ना तो दूर की बात है।" शंभू ने उसकी बात मान ली और प्लेन को विनम्र द्वारा बताए गए स्थान की ओर तेज़ी से ले जाने लगा। स्थान के पास पहुँचकर उसने देखा कि यहाँ लैंडिंग के लिए जगह है। खुशकिस्मती से पेड़ों का घना जंगल इतना घना नहीं था कि लैंडिंग नामुमकिन हो। मुश्किल यह थी कि प्लेन की गति कम नहीं थी। जंगल में लैंडिंग के बाद, गति शून्य होने तक उसे पेड़ों से बचाना बेहद मुश्किल था। शंभू ने अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए प्लेन के इंजन बंद कर दिए। इंजन बंद होने से प्लेन के सभी कार्य रुक गए और गति तेज़ी से कम होने लगी। लगभग चार किलोमीटर का सफ़र बाकी था और प्लेन की गति लगातार कम हो रही थी। शंभू ने धीरे-धीरे उसे जमीन की ओर उतारा। पेड़ों के समूह के करीब पहुँचकर उसने प्लेन को स्थिर रखा और उतरना बंद कर दिया। वह अभी भी गति कम होने का इंतज़ार कर रहा था क्योंकि गति अभी भी ज़्यादा थी। थोड़ी देर बाद, पेड़ों की निचली शाखाएँ प्लेन के नीचे से टकराने लगीं। विनम्र को यह भी देखना था कि कहीं उत्तर कोरियाई सेना के कमांडर या सैनिक तो नहीं हैं जो खतरा बन सकें। उसने अपनी सीट बेल्ट खोली और पीछे के डिब्बे में रखा अपना सूटकेस लेने गया। विनम्र ने अपना सूटकेस खोला और ओवरकोट पहन लिया ताकि लड़ाई की स्थिति में उसके पास आवश्यक चीज़ें हों। उसने सूटकेस से अपना अजेय हथियार, सुदर्शन चक्र निकाला, उसे ओवरकोट में रखा और वापस आकर बैठ गया। सुदर्शन चक्र के उपयोग के लिए विनम्र ने खास दस्ताने बनाए थे। इनमें उसी धातु का इस्तेमाल हुआ था जिससे चक्र बना था। ये दस्ताने बेहद पतले थे और विनम्र उन्हें कपड़ों के ऊपर या नीचे भी पहन सकता था। डॉक्टर डी ने इन दस्तानों के निर्माण में अपना विशेष योगदान दिया था। इतने पतले दस्ताने बनाना कठिन था कि पहनने पर भी उनका अहसास न हो। शंभू अपने पूरे अनुभव का इस्तेमाल करते हुए प्लेन को संभाल रहा था। धीरे-धीरे प्लेन की गति कम होती गई। जब गति काफी कम हो गई, तो उसने प्लेन को एकदम से नीचे की ओर झुका दिया। प्लेन पेड़ों की निचली शाखाओं से टकराया और ज़मीन पर गिरकर घिसटने लगा। ज़मीन पर गिरने से प्लेन के निचले पहिए टूटकर अलग हो गए, और फिर पीछे के पहिए भी। प्लेन पहियों के बिना ज़मीन पर घसीटता गया। यह बड़ी मुसीबत थी क्योंकि पहियों के बिना प्लेन फिर से उड़ान नहीं भर सकता था। शंभू ने विनम्र से कहा, "मुझे नहीं लगता कि यह प्लेन हमें वापस ले जा पाएगा। वापसी के लिए हमें किसी दूसरे प्लेन की व्यवस्था करनी होगी।" विनम्र ने थोड़ा सोचा और फिर सिर हिलाते हुए कहा, "कोई बात नहीं, वापसी के समय हम देख लेंगे। अभी तुम यहाँ से बाहर निकलने पर ध्यान दो। अगर ज़रूरत पड़ी, तो हम दूसरा प्लेन भी जुटा लेंगे।" शंभू का ध्यान अब सभी को सुरक्षित बचाने और प्लेन को आगे आने वाले पेड़ों से बचाने पर था, लेकिन प्लेन का नियंत्रण अब उसके हाथ में नहीं था। वह प्लेन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा था, तभी अचानक एक पेड़ सामने दिखाई दिया जो सीधे प्लेन की ओर आ रहा था। अगर प्लेन पेड़ से टकराया, तो बड़ा धमाका हो सकता था। विनम्र ने यह देखते ही दरवाज़ा खोला और बाहर देखा। फिर उसने अपने ओवरकोट से एक मज़बूत रस्सी निकाली और उसके एक सिरे को प्लेन से बाँध दिया, और दूसरे सिरे को पकड़ लिया। जब पेड़ आया, तो उसने रस्सी पेड़ पर फेंक दी, जो पेड़ में फँस गई। रस्सी के पेड़ में फँसते ही प्लेन को झटका लगा और वह अपने रास्ते से हट गया। विनम्र ने रस्सी को ढीला नहीं किया। प्लेन पेड़ के चारों ओर घूमने लगा और धीरे-धीरे रस्सी के कम होते जाने से प्लेन पेड़ के पास आ गया। बिना पहियों के इस काम के कारण प्लेन की गति भी कम हो गई थी, और वह अब आगे नहीं, बल्कि पेड़ के चारों ओर घूम रहा था। कुछ देर बाद, प्लेन का पेड़ के चारों ओर घूमना रुक गया और तीनों सुरक्षित बच गए। लेकिन अभी भी ख़तरा टला नहीं था क्योंकि वे अब इस प्लेन से वापस नहीं जा सकते थे और दूसरी ओर, उत्तर कोरियाई सेना को भी इस बात की जानकारी मिल गई थी कि कोई प्लेन यहाँ आया है।
पिछले भाग में आपने देखा प्लेन क्रैश हो गया। उसके दोनों पहिए टूट गए। तीनों एक बड़े पेड़ से टकराने वाले थे, मगर विनम्र की सूझबूझ से बच गए। प्लेन पेड़ के चारों ओर घूमकर रुक गया। अब कहानी आगे बढ़ती है... विनम्र ने अपना सामान बाहर निकाला, खासकर वह जो काम का था। संयोगिता ने कुछ कपड़े निकाले, और शंभू भी प्लेन से कुछ सामान निकालकर बाहर आ गया। विनम्र ने एक्सप्लोरर निकाला और उसे प्लेन के चारों ओर लगाते हुए बोला, "अगर यह प्लेन सही-सलामत उत्तर कोरिया के सैनिकों के हाथ लग गया, तो हमारे लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। यह अब हमारे काम का नहीं रहा, इसलिए हमें इसे पूरी तरह से नष्ट कर देना होगा।" एक्सप्लोरर लगाने के बाद वह दूर आ गया। फिर विनम्र ने अपने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल किया और उसे तेज़ गति से घुमाया। इस तेज़ गति के कारण एक्सप्लोरर में धमाके होने लगे और देखते ही देखते आग और धमाकों से प्लेन के टुकड़े-टुकड़े हो गए। वह पेड़, जिसके चारों ओर प्लेन घूमकर रुका था, वह भी आग से जलने लगा। विनम्र ने कहा, "अब अगर उत्तर कोरिया के सैनिक यहां पर प्लेन ढूंढ भी लेते हैं, तो उन्हें यही लगेगा कि हमारा प्लेन इस पेड़ से टकराने के बाद नष्ट हो गया। शायद वे हमारी तलाश छोड़ दें और यह मान लें कि हम इस धमाके में मर गए हैं।" संयोगिता को विनम्र का यह प्लान अच्छा लगा। उसने विनम्र से कहा, "तुम्हारा आईडिया अच्छा है, लेकिन अगर उन्हें यहां पर कोई शव नहीं मिला, तो उन्हें पता चल जाएगा कि हम नहीं मरे हैं। उसका क्या करेंगे?" विनम्र ने कहा, "अब जो होगा, वह बाद में देखा जाएगा। चलो, अब चलते हैं यहां से।" थोड़ी देर में तीनों जंगल में काफी दूर आ गए थे और उन्होंने उस जगह को पीछे छोड़ दिया था जहां उनका प्लेन क्रैश हुआ था। तीनों के पास पैराशूट थे और सामने पहाड़ी इलाका था जो नीचे ग्रामीण इलाके की ओर जाता था, मगर वह अभी काफी दूर था। विनम्र ने कहा, "पैराशूट के ज़रिए हम यहां पहाड़ी से कूद जाएँगे, और फिर नीचे के जंगल में पहुँच जाएँगे। हमारी तलाश तकरीबन चार-पाँच घंटे बाद शुरू हो जाएगी, लेकिन वे इतने बड़े एरिया को छानेंगे, उससे पहले ही हम यहां से काफी दूर चले जाएँगे। पास का गाँव तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है, और उसके लिए हमें 20 किलोमीटर चलना पड़ेगा। एक बार हम वहाँ पहुँच गए, तब हम अपना चेहरा बदलेंगे और उत्तर कोरिया के लोगों की तरह दिखने लगेंगे, फिर हम अपना सफ़र आगे शुरू करेंगे।" शंभू ने अपने पेट को संभालते हुए कहा, "हम उत्तर कोरिया के लोगों जैसे दिखने लग जाएँगे, मगर तुम्हें क्या लगता है, रहाँ ऐसे मोटी-तोंदे वाले लोग पाए जाते हैं?" संयोगिता ने हँसते हुए कहा, "यहाँ के राष्ट्रपति की तो खुद मोटी तोंद है। पागल, यहाँ पर भी इंसान ही रहते हैं, कोई एलियन नहीं। हमें बस अपना चेहरा बदलना पड़ेगा ताकि हम भारतीय न लगें और कोरियाई की तरह लगने लगें। इससे वे लोग हम पर शक नहीं करेंगे और हमारा सफ़र थोड़ा आसान हो जाएगा।" जल्द ही वे लोग पहाड़ी के किनारे पर आ गए थे। संयोगिता इससे पहले कभी इतना पैदल नहीं चली थी, इसलिए वह थक चुकी थी। वह अपने घुटनों पर हाथ रखकर आराम कर रही थी, तभी विनम्र ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, "अभी रुकने का वक्त नहीं है, अभी तो सफ़र शुरू हुआ है। पता नहीं हमें उत्तर कोरिया में कितने दिन रुकना पड़ेगा। चलो, चलो, थोड़ी हिम्मत दिखाओ।" सभी ने अपने पैराशूट तैयार किए और फिर नीचे की ओर छलांग लगा दी। हवा में उड़ते हुए तीनों नीचे के जंगल की ओर जा रहे थे। अभी रात थी, इसलिए विनम्र उन्हें जल्दी से लेकर आया था ताकि वे रात के अंधेरे में ही पहाड़ी से नीचे कूद सकें, वरना दिन में कूदेंगे तो किसी की नज़र में आ सकते थे। विनम्र और बाकी सभी ने नाइट विज़न लगा रखे थे ताकि वे एक-दूसरे को देखते रहें और नीचे का इलाका भी उन्हें दिखता रहे। विनम्र ने ऊपर से देखा कि जिस जंगल में वे जा रहे हैं, उस जंगल में तकरीबन चार चौकियाँ हैं और वे चारों ही ज़्यादा दूर नहीं हैं। यानी कि जैसे ही विनम्र जंगल में पहुँचेगा, उसे सावधान रहने की ज़रूरत है, क्योंकि अगर यहाँ चौकियाँ हैं, तो सैनिक भी होंगे। फिर यह इलाका बॉर्डर के काफी पास था, इसलिए यहाँ पर काफी सुरक्षा होगी। चीज़ें कहीं से भी इतनी आसान नहीं रहने वाली। जल्द ही तीनों ने एक के बाद एक जंगल में लैंडिंग की और फिर अपने पैराशूट को इकट्ठा करने लगे। तीनों अभी के लिए एक-दूसरे से काफी दूर लैंड किए थे, क्योंकि पैराशूट को नियंत्रित करना आसान नहीं था और हवा भी चल रही थी। संयोगिता अकेली थी, जबकि विनम्र और शंभू एक-दूसरे के ज़्यादा करीब तो नहीं थे, मगर ज़्यादा दूर भी नहीं थे। संयोगिता जल्दी-जल्दी पैराशूट समेट रही थी, "मुझे जल्दी करना होगा, विनम्र ने कहा था इस इलाके में काफी सारे सैनिक होंगे, तो बचकर रहना होगा।" वह पैराशूट समेट रही थी, तभी अचानक किसी ने उसके ऊपर पीले रंग की लाइट डाली, जो एक टॉर्च की लाइट थी। जैसे ही यह लाइट संयोगिता पर पड़ी, उसके हाथ रुक गए और उसकी दिल की धड़कन तेज़ हो गई। अचानक सामने से एक उत्तर कोरियाई सैनिक, जिसकी कद-काठी ज़्यादा लंबी नहीं थी, निकला और उसने पूछा, "कौन हो तुम?" (कोरियन भाषा में) फिर उसने हालात देखे और उसे समझने में देर नहीं लगी कि उसके सामने जो लड़की है, वह घुसपैठिया है। इससे पहले कि संयोगिता कुछ कर पाती, उसने अपनी बंदूक संयोगिता पर तान दी। गंभीरता से वह अपनी कोरियन भाषा में बोला, "तुम एक घुसपैठिया हो, अपने हाथ ऊपर करो। अगर तुमने जरा सी भी हलचल करने की कोशिश की, तो मैं गोली चला दूँगा।" संयोगिता को समझ में नहीं आया कि उसने क्या कहा, लेकिन उसके इशारों से साफ़ पता चल रहा था कि वह हाथ ऊपर करने के लिए कह रहा था। संयोगिता के पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उत्तर कोरिया के सैनिक काफी क्रूर होते हैं। अगर उसने अपने हाथ ऊपर नहीं किए, तो वह गोली सच में चला देता। मजबूरन संयोगिता ने पैराशूट छोड़ा और अपने हाथ ऊपर कर दिए। विनम्र और शंभू अभी भी अपने पैराशूट समेटने में लगे हुए थे, लेकिन संयोगिता यहाँ पर पकड़ी जा चुकी थी।
पिछले भाग में आपने देखा विनम्र संयोगिता और शंभू तीनों का प्लेन क्रैश हो जाता है और वह नॉर्थ कोरिया के जंगलों में गिर जाते हैं। फिर तीनों में यह बातचीत होती है और डिसाइड होता है वह सबसे पहले पास के गांव में जाएंगे और फिर वहां से अपना चेहरा बदलकर शहर के लिए निकलेंगे ताकि आने को ढूंढा जा सके और उसकी जो लास्ट लोकेशन थी वह इस लोकेशन से कुल 125 किलोमीटर की दूरी पर थी। वह सभी एक पहाड़ी के पास पहुंचते हैं और फिर पैराशूट की मदद से नीचे चलांग लगते हैं। विनम्र और शंभू एक तरफ गिर जाते हैं जबकि संयोगिताओं से थोड़ा दूर गिरती है। संयोगिता अपना पैराशूट इकट्ठा कर रही थी तभी एक नॉर्थ कोरियन सैनिक कहा जाता है और वह उसे पर गणतंत्र देता है। अब कहानी में आगे वह नॉर्थ कोरियाई सैनिक आगे आया और देखने लगा संयोगिता के पास क्या-क्या है। सबसे पहले उसने नीचे पड़ा सामान दिखा जिसमें पैराशूट और कुछ कपड़े उसे दिखाई दिए। संयोगिता ने एक छोटा भेद अपनी कमर परटांग रखा था। उसे सैनिक ने इशारे से संयोगिता को वह बैग नीचे रखने के लिएकहा। संयोगिता के पास कोई और रास्ता नहीं था इसलिए उसने उसे बैग को उतारा और फिर नीचे रख दिया। वह सैनिक संयोगिता की तरफ गणतंत्र उसे बैग को अपने पैर सेदेखने लगा। उसे बाग से कुछ हथियार बाहर निकाल कर आ गए जिसमें गर्ल्स और ग्रेनेड थी। यह देखते ही उसे कोरियन सैनिक ने गुस्से में संयोगिता से कहा,"क्या तुम यहां पर हमला करने के लिए आई हो बताओ तुम्हें कौन से देश ने भेजा है?" हालांकि वह अपनी लैंग्वेज में कह रहा था इसलिए संयोगिता को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। संयोगिता ने उसे हिंदी में कहा ,"ज्यादा चावल मत करो वरना मेरा दिमाग फिर गया तो तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी। एक तो पता नहीं क्या चू चू कर रहा है जो ठीक से सुनाई भी नहीं दे रहा और ना ठीक से समझ मेंआ रहा है।" वहीं सैनिक अब अपने कमर पर लटक रहे वॉकी टॉकी को निकाल कर उसे अपने साथियों से बात करने की कोशिश करने लगा लेकिन शायद उसका नेटवर्क नहीं था इसलिए आवाज ठीक से सामने जा नहीं रही थी। दूसरी तरफ भी नंबर और शैंपू दोनों ने अपना पैराशूट इकट्ठा कर लियाथा। विनम्र ने पैराशूट को इकट्ठा करने के बाद उसे एक पेड़ पर टांगदिया। शंभू ने भी अपना पैराशूट उसके पास ही टांग दिया था ताकि आसानी से तो यह किसी के हाथ ना लगे। पैराशूट को वह अपने साथ भी नहीं लेकर जा सकते थे। विनम्र ने कहा ,"चलो अब चलकर संयोगिता को ढूंढते हैं पता नहीं वह इस वक्त कहां पर होगी?" शंभू उसके पीछे-पीछे चलने लगा शंभूने कहा ,"इस लड़की पर विश्वास मत करना तुम्हें पता है ना यह किसकीसाथी है। कहीं यह भी मौका आने पर आने की तरह तुम्हें धोखा ना देदे। वैसे भी आजकल का जमाना विश्वास के लायक ही नहीं है जिस पर विश्वास करो वही सबसे पहले धोखा देकर जाता है। अन्य को लेकर तो मैं भी कभी नहीं सोचा था वह ऐसा कुछ करेगी मगर उसने 1 मिनट का भी वक्त नहीं दिया धोखादेने में।" वे नंबर ने हमेशा हीलाया ,"मैं इस बारे में जानता हूं हालांकि लगता तो नहीं संयोगिता किसी तरह का धोखा देगी लेकिन फिर भी इस बार में अगर हूं आने से मुझे जो धोखा मिला है उसके बाद जिंदगी में एक बड़ा सबक मिला है। बड़ा सबक किसी पर भी विश्वास न करने का।" वह दोनों बात करते हुए संयोगिता के पास आ गए लेकिन जैसे ही वह थोड़ा सा पास पहुंचे उसे एक कोरियन सैनी के बोलने की आवाज सुनाई दी। जैसे ही यह आवाज दोनों को सुनाई दी दोनों जो करना हो गए और धीमे-धीमे कदमों से आगे जानेलगे। उसे कोरियन सैनिक नाम बैक को उठाया और फिर संयोगिता की कमर पर गाना लगाते हुए उसे आगे की तरफ धक्कामारा ,"चुपचाप चलो वरना मैं गोली चल दूंगा।" वह बोला। वही पिन नंबर ने ओवरकोट में हाथ डाला और एक करंट वाली गेंद को बाहर निकाल लिया। फिर धीरे से उसे जमीन पर लोड कर दिया और वहलूटकते हुए हुसैनी के पैरों के पास पहुंचकर उसे टकरागई। जैसे ही बोल उसके पैरों से टकराई उसे एक बारी कृषि निकाली और वह सैनिक के पैरों की तरफ लिपटगई। इससे पहले सैनिक को समझ पाता उसे 440 वाट का एक झटका लगा जो सिर्फ दो सेकंड के लिए था मगर यह इतना बड़ा था कि उसे पल भर में बेहोश करने के लिए काफी था। जैसे ही वह बेहोश हुआ वह नंबर फॉरेन से योग्यता के पास पहुंचा ,"तुम ठीक तो होना।" संयोगिता पीछे की तरफ पलटी और नीचे गिरे सैनिक की तरफ देखते हुएबोली ,"हां मैं ठीक थी अच्छा हुआ तुम आगे वरना मैं ही पलट कर इस पर हमला करने वाली थी क्योंकि उसने मुझे इरिटेट कर दिया था जब मुझे इसकी लैंग्वेज समझ ही नहीं आ रही थी तब यह बार-बार उसे बोलकर मेरा क्यों दिमाग खराब कर रहाथा।" अभी नंबर ने फोन सैनिक के कपड़े चेक किया और जो भी जरूरी का सामान था वह दिखा। फिर उसने सैनिक के कपड़े निकाल कर शंभू को दिए और कहा ,"इसे रख लो जब हम अपना चेहरा बदलेंगे तब यह हमारे काम आएंगे।" संयोगिता ने सैनिक की तरफ देखा ,"मगर इस सैनिक का क्या अगर इसने यहां मौजूद लोगों को बता दिया हम यहां पर आए थे तब क्या होगा इसने तो मेरा चेहरा भी देखरखा है?" अभी नंबर अपनी जगह से खड़े होते हुए बोला ,"फिक्र मत करो घबराने की कोई बात नहीं है, हम कल सुबह ही अपना चेहरा बदल लेंगे तो इसके चेहरे देखने या ना देखने से कोई फर्क नहीं पड़ता। चलो अब यहां से चलते हैं इससे पहले की इसके और भी साथी आ जाए और हम एक बड़ी मुसीबत मेंपड़ जाए।" तीनों ने बड़ी-बड़ी उसे सैनिक की तरफ देखा और फिर यहां से गांव की तरफ निकलगए। वह सैनिक अभी युवा था और ऐसा लग रहा था जैसे हाल फिलहाल में ही भर्ती हुआ था। कुछ इधर में उसके साथ ही आए और उसने उसकी यह हालत देखी तो वह सभी एक दूसरे की तरफ घूर-घूर कर देखनालगे। उन्होंने जगह की जांच की तूने कुछ पैराशूट यहां परमिले। थोड़ी ही देर बाद तीनों के तीनों पैराशूट उन्होंने ढूंढ निकालेथे। एक कोज सैनिक ने अपने पास खड़े दूसरे कोरियन सैनिकसे कहा ,"लगता है घुसपैठ हुआ है कोई हम पर हमला करने की कोशिश कर रहा है हमें जल्दी कमांडो को इस बारे में बताना होगा।" वह दूसरे सैनिक ने कहा ,"मगर मुझे समझ में नहीं आ रहा हम पर कौन हमला कर सकता है किसकी इतनी हिम्मत जो वह हमारे देश में आकर घुसपैठ करने की कोशिश करें और अगर वह घुसपैठ कर भी रहा है तो उसका मकसद क्याहोगा?" एक और सैनिक में थोड़ा सा सोच और फिरकहा ,"कहीं ऐसा तो नहीं वह यहां पर प्रेसिडेंट को करने के लिए आयाहूं?" सारे सैनिक उसकी यह बात सुनकर हंसने लगे एक सैनिकबोला ,"और तुम्हें क्या लगता है प्रेसिडेंट को मारना इतना आसान है कि कोई भी यहां बाउंड्री पर आएगी और फिर हमारे सेंट्रल सिटी में मौजूद प्रेसिडेंट को मार कर चला जाएगा बिल्कुल भी नहीं जरूर वह किसी और काम केलिए आया है। हम कमांडो के बारे में बताएंगे तो वही इस बारे में कुछ ना कुछ करने की कोशिशकरेंगे।" सभी सैनिकों ने उसे सैनिकों को उठाया और फिर अपने साथ ले गए। सबके जाने के बाद है एक और सैनिक जहां पर रुक रहा उसने देखा जमीन पर एक गेंद गिरी हुई थी जो की भी नंबर की जयंती और उसने बिजली का झटका निकलता था लेकिन अभी उसमेंबिजली खत्म हो गई थी। उसने उसे भी उठाया और अजीब नजरों सेदेखा हम। फिर उसने गेंद पर एक खास अक्षर पर ध्यान केंद्रित किया जिस पर एक मुहूर्त लगी हुई थी। इस मोर पर एस ए लिखा हुआ था जो की भी नंबर की एजेंसी का नाम था। सैनिक अध्ययन इस नाम पर ही था।
पिछले भाग में आपने देखा विनम्र संयोगिता और शंभू तीनों ही गांव की तरफ निकल जाते हैं, वही जिस कोरीयन सैनिक को उन्होंने गिराया था, उसे लेने के लिए उसके दूसरे साथी आ जाते हैं। उनमें से एक साथी को विनम्र की फेंकी गई गेंद मिलती है जिसके ऊपर एसए लिखा हुआ था जो उसकी एजेंसी का नाम था अब कहानी में आगे। देर रात को ही वह अपने कैंप वापस आ गया और सीधे अपने कमांडर के टेंट में पहुंचा। उसका कमांडर इस वक्त सो रहा था। यह सैनिक गश्त लगाने वाले सैनिक थे। सनी को समझ में नहीं आ रहा था वह अपने कमांडर को जगाए या फिर नहीं जगह है क्योंकि कमांडो को जागने पर कड़ी सजा मिलतीथी। फिर उसने गेंद की तरफ देखा और इस खबर पर ध्यान दिया कि वह यहां पर घुसपैठियों की खबर बताने के लिए आया है जो जरूरी है और इसके लिए कमांडर को जगायाजा सकता है। थोड़ी हिम्मत करके उसने टमाटर के कंधे को हिलाया औरबोला , “कमांडर एक इमरजेंसीहै। ” एक बार हिलाने पर कमांडर नहीं उठा लेकिन उसने दो से तीन बार उठाया तो कमांडो उठ गया। उसका कमांडर शक पकाते हुए उठा था जैसे भूकंप आ गयाहो। वह उठते हीबोला , “क्या हो गया क्या किसी दुश्मन देश ने हम पर हमला कर दिया है बताओ क्या हो गया क्या बाहर आग लग गई है बताओ बताओ क्या हो क्या है क्या गांव के लोगों ने विद्रोह किया है जल्दी बताओ बेवकूफ सैनिक तुमने मुझे जगाया क्यों। ” कमांडर उठते ही इतना कुछ बोल गया था कि सैनिक यह सब सुनकर ही डर गया अब उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी वह उसे बात को बताई या फिर नहीं जिसे मैं बताने के लिएआया था। सैनिक के मुरझाए हुए चेहरे को देखकर कमांडर ने अपने चेहरे पर गुस्सा दिखाया और बोला , “क्या तुमने मुझे अपना यह सड़ा हुआ चेहरा दिखाने के लिए जगाया था अगर तुम्हें यह अपना सड़ा हुआ चेहरा ही दिखाना था तो तुम सुबह ही आ जाते ” अपने इंसल्ट सुनकर उसे सैनिक ने हिम्मत दिखाई और गेंद को कमांडर की तरफ करते हुए देखा , “कमांडर किसी ने घुसपैठ किया है, हम नहीं जानते वह कितने लोग हैं, लेकिन जो भी है उनके मकसद मुझे अच्छे नहीं लग रहे हैं ऐसे लग रहा है उनकी संख्या कम से कम सात या आठ लोगों मेंहोगी। हमारा एक सैनिक हमें बेहोश मिला है उसके होश आने पर हमें बाकी की जानकारी भी मिल जाएगी अभी के लिए मुझे वहां पर यह मिला है। इस पर मुझे कुछ खास तो नहीं मिला मगर एक नाम जरुर दिखाई दे रहा है जो शायद हमें यह ढूंढने में मदद कर सके यह घुसपैठ किसनेकिया है ” कमान ने उसे गेंद को लिया और उसे अजीम नजरों से देखनेलगा , “कोई आखिर हमारे देश में घुसपैठ करने की कोशिश क्यों करेगा इस वक्त हमारे किसी से भी लड़ाई नहीं चल रही है। पड़ोसी देशों में भी इतनी हिम्मत नहीं है वह हमारे ऊपर घुसपैठ करने के बारे में सोच सके क्योंकि उन्हें पता है हमारे पास हाइड्रोजन बम है जिससे हर कोई डरता है उसका कोई नाम भी सुन ले तो उसके पैर कामपर लग जाते हैं। ” कमांडर उसे बाल को अच्छे से देख रहा था तभी उसने देखा वह एक साइड से खोलीभी जा सकती है। कमांडर ने उसे खोला तो उसे अंदर इंडिया काझंडा दिखाई दिया। फिर वहां पर लिखा गया था मेड इन इंडिया। विनम्र को इस बात के बारे में नहीं पता था कि डॉ डी ने उसे उसकी नॉर्मल बॉस ने देखकर आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली गंदे दे दी थी जिस पर मेड इन इंडिया काटेक लगा रहता था। इन गेंद को इस्तेमाल करने की इजाजत सिर्फ इंडिया के अंदर ही थी इसलिए उन पर मेड इन इंडिया का टैग लगाया जाता था बाहर की दुनिया में इन्हें इस्तेमाल करने के लिए नहीं बनायागया था। मगर डॉक्टर दी को इस मिशन की पूरी जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने गलती से इस गेंद को रख दिया था और अब इसी गेंद को कैप्टन देख रहा था कप्तान ने अपने चेहरे पर गुस्सा दिखातेहुए कहा , “इसे इंडिया में बनाया गया है मगर इंडिया के लोग हमारे देश में घुसपैठ करने की कोशिश भला क्यों करेंगे उनकी तो हमसे किसी तरह की दुश्मनीभी नहीं है? ” सैनिक कमांडर के पास आकर गेंद में बने इंडिया के निशान को देखा और फिरकहा , “कैप्टन जॉर्डन आजकल इंडिया का प्रेसिडेंट काफी हाई लेवल की चौथी पास कर रहा है कहीं ऐसा तो नहीं उन्होंने यह आर्डर पासकरवाया हो। ” कमेंट में सैनी की तरफ देखा और गुस्से वाला चेहरा बनाते हुएकहा , “बेवकूफ वहां पर प्रेसिडेंट की बजाय प्राइम मिनिस्टर इंपॉर्टेंट होता है मगर इंडिया का प्राइम मिनिस्टर हमारे प्रेसिडेंट के अगेंस्ट ऐसा कुछ क्यों करेगा? मुझे दाल में कुछ काला लग रहा है। मैं यह बात हूं अपने हाई पोस्ट के लोगों तक पहुंचता हूं और उन्हें बोलता हूं कुछ लोगों ने घुसपैठ किया है और उनके पास हमें जो चीज मिली है वह इंडिया में बनाई गई है। ” सैनिक ने सेल्यूट किया और फिर वह यहां से चला गया वहीं कमांडर उसकी जाने के बाद गेंद को लापरवाही से फेंक कर वापस होने के लिए चलागया। जैसे उसे इस बात की बिल्कुल भी फिक्र ना हो किसी ने घुसपैठ किया है और ना ही उसे कोई लेना देना हो बस उसे तो अपनी नींद से प्यार है। वही विनम्र सहयोगिता और शंभू तीनों सुबह होते-होते कम तक पहुंचेगए थे। गांव की बाउंड्री पर आते ही तीनों ने अपने-अपने चेहरों को बदला और कोरियन लोक की तरह दिखनेलगे। वही शंभू नहीं सोल्जर की भर्ती को पहन लिया और फिर दोनों को ऐसे लेकर जाने लगा जैसे उसने दोनों को जंगल में से पड़ा हो और वह गांव से होते हुए उन्हें शहर लेकर जाने की तैयारी कर रहाहो। द नंबर ऑफ़ शंभू दोनों ही कुशल लेवल के एजेंट थे तो दोनों को ही कोरियन लैंग्वेज आती थी इसके अलावा उन्हें और भी कई सारी भाषाएं आती थी और वह कुर्सी एक्शन में बोल सकते थे जिस एशेंट में इसे ठीक से बोला जाता था। जैसे ही वह लोग गांव में पहुंचे इन दिन हो चुका था और लोग अपने-अपने घरों से बाहर आकर अपने-अपने काम करने लगे थे। शंभू दोनों को गांव के बीचो-बीच से लेकर जा रहा था तभी कुछ गांव वाले आए और उन्होंने सैनिकसे पूछा , “क्या हुआ यह लोग कौन है जिसे तुम पकड़ कर लेकर आ रहेहो? ” शंभू नेकहा , “यह लोग पास के शहर से आए हैं। यह लोग देश छोड़कर जाने की कोशिश कर रहे थे। अब इनको इसकी सजा मिलेगी मैं पास के शहर लेकर जा रहा हूं। ” उत्तर कोरिया में से छोड़ने की सजा दी जाती थी और यह सजा काफी बड़ी सजा होती थी। वह गांव वाला अपने चेहरे पर दिखाते हुएबोला , “भाई इनकी कोई मजबूरी रही होगी, हो सके तूने छोड़ देना क्योंकि आपको तो पता ही है अगर सजा हो गई तो फिर सिर्फ यह नहीं बल्कि उनकी आने वाली आगे की वीडियो भी जेल में चढ़ती रहेगी। यहां पर वैसे भी जिंदगी नरक हो रखी है और लोग यहां पर रहना नहीं चाहते हैं ऐसे में कुछ जाने के बारे में सोच रहा है तो उसे जाने क्यों नहींदे देते ्” यह कहकर उसे गांव वाले ने शंभू की परवाह नहीं की और अपना काम करने के लिए चलागया। उसके जाते ही शंभू ने भी नंबरसे कहा , “लगता है यहां के लोग प्रेसिडेंट से काफी परेशान है, फिर क्या कर सकते हैं हम यहां उनकी परेशानी सॉल्व करने नहीं आए हैं बल्कि हम तो यहां अपना काम करने के लिए आए हैं। ” अविनम्र ने हमें से हिलाया और फिर बोला , “हम चाह कर भी उनकी परेशानी सॉल्व नहीं कर सकते क्योंकि कुछ भी करना हमारे बस की बात नहीं है और फिर हम यह भी नहीं कह सकते यहां का प्रेसिडेंट अच्छा है या बुरा क्योंकि हर एक देश में ऐसे लोग होते हैं जिनको उसके रोलर से दिक्कत हो। हमारे देश में भी तो ऐसे कई सारे लोग हैं जिन्हें हमारे प्रधानमंत्री से दिक्कत है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है हम प्रधानमंत्री को बुरा कह देंगे। नहीं अमूल लोगों को जज करेंगे जिनको प्रधानमंत्री से दिक्कत है क्योंकि इसे ही संविधान कहाजाता है। इसे ही मिलकर काम करना कहां जाता है जिसमें अगर 10 में से 6 लोगों को किसी काम में आपत्ति हो और चार लोगों को आपत्ति न हो तो उनके आपस में कोई विवादपैदा नहीं होता।” थोड़ा और आगे जाने पर शंभू ने एक गांव वाले से मदद ली और उसे गाड़ी करने के लिएकहा। शंभू न्यूज़ गांव वाले को यह कह दिया था की मिलिट्री को यहां और घुसपैठ को ढूंढना है इसलिए वह अपने काम में लगी हुई है और उनकी गाड़ियां भी वहीं पर लगी हुई है कुछ ही देर में वह गांव वाला एक टैक्सी करके ले आया था और फिर विनम्र और संयोगिता को शंभू ने उसे टैक्सी में बैठा दिया था और खुद भी बैठकर शहर की तरफ चल पड़ा था। थोड़ा सा और आगे जाने पर विनम्र ने टैक्सी वाले पर हमला किया और उसे बेहोश करके टैक्सी से बाहर निकाल दिया। बाहर निकलने से पहले उसने काफी सारे पैसे उसकी जेब में डाल दिए थे ताकि वह उसकी टैक्सी ले रहा है इस बात का अफसोस विनम्र को ना हो और फिर विनम्र टैक्सी को चलते हुए आगे के शहर के लिए निकल गया था जबकि शंभु को अब संयोगिता को पकड़ने की एक्टिंग करनीथी। काफी आगे जाने के बाद शंभू ने विनम्र से पूछा , “तुम्हें क्या लगता है यह तरीका कम कर जाएगा? ” पिन नंबर नक्शा की तरफ देख रहा था क्योंकि उसे आने की लोकेशन की जो जानकारी थी उसके हिसाब से ही आगेबढ़ाना था। वहबोला , “मैं नहीं जानता लेकिन अब हमारे पास इसके अलावा और रास्ता भी क्या है? यहां आने के बाद हम यही एक तरीका अपना सकते हैं या फिर मुसाफिरों का तरीका मगर उसमें भी हम फंस सकते हैं क्योंकि इस देश में मुसाफिर ऐसे आते-जातेनहीं है। मुश्किल टेस्ट बाद में भी है कि हम शहर में भी प्रवेश नहीं कर सकते हैं क्योंकि शहर में जाने के लिए हमें कारण बताना होगा। मगर फिर भी देखते हैं क्या करसकते हैं। ” संयोगिता ने अपने चेहरे पर गुस्सादिखाते हुए कहा , “जब तुम्हारे पास शहर में जाने के लिए कोई आईडिया ही नहीं है तो फिर तुम शहर में जा ही क्यों रहे हो अगर उन्होंने हमें वहां पर पकड़ लिया तो तब हम क्या करेंगे?” अविनम्र में कुछ सोचा और फिरकहा , “फिक्र मत करो मेरे पास जो चीज है वह मेरे काम आएगी। वहीं अब काम आ सकती है। ” संयोगिता और शंभू दोनों को नहीं पता था विनम्र किस बारे में बात कर रहा है और वह किस चीज को काम में लेने वाला था लेकिन अगले विनम्र ने ऐसा कुछ कहा है तो उसके पास आइडिया जरूरहोगा। देर शाम तक विनम्र शहर के करीब पहुंच गया था और वहां पर एक पोस्ट बना हुआ था जो आने वाली गाड़ियों की चेकिंग कर रहीथी। यह नंबर दे चेहरे पर शांति बनाई रखी और धीरे-धीरे गाड़ी को उनके पास लेकर जानेलगा। जैसे ही गाड़ी उनके पास आई एक आदमी तेजी से उनकी तरफ आयाऔर बोला , “मुर्ख गाड़ी को इतनी स्पीड से क्यों लेकर जा रहा है तुमसे इसकी स्पीड कम नहीं की जाति क्या?” वह इतना गुस्से में बोला था जैसे वह यहां पर हर आने जाने पर वाले पर रोब जाड़ता हो। कोई नंबर एक नॉर्मल ड्राइवर की तरह एक्टिंग की औरबोला , “माफ करना साहब गलती हो गई आगे से ध्यान रखूंगा। ” सैनिक आया और उसने गाड़ी के पीछे की साइड पर देखा जहां शंभू एक सैनिक की भर्ती में था और उसके साथ ही एक लड़की थी जो की करी लड़की की तरह दिखाई दे रही थी। उस सैनिक ने विनम्र से पूछा , “यह सोल्जर तुम्हारी गाड़ी में क्या कर रहा है और इस लड़की को लेकर कहां जा रहे हो? ” विनम्र ने अपनी जेब से एक छोटे से कार्ड को निकाला और उसे सैनिक को देते हुए बोला , “यह मुझे सर ने दिया था, उन्होंने कहा था जो भी रोक उसे दिखा देना, इस लड़की को साहब के पास लेकर जाने के लिए लाया गया है और यह सैनिक सेफ्टी के लिए है। ” उसे निकले नंबर के लिए कागज को देखा और जैसे ही देखा उसने फौरन सामने के लोगों को बैरिकेड हटाने के लिएकहा। फिर उसने वह वापस दिया औरबोला , “सर को मेरी तरफ से हेलो बोलना, मेरा नाम तो तुम्हें याद रहेगा ना मेरा नाम किंग टंग है। ” नंबर दे हम इसलिए और फिर कार्ड को वापस ले लिया और गाड़ी आगे बढ़ादी। संयोगिता और शंभू दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगे आखिर विनम्र ने ऐसा क्या किया था जो वह सैनिक पल भर में ही मनगया। थोड़ा आगे जाने पर जब संयोगिता को लगा वह पूरी तरह से सेफ हो चुकी है तब उसने विनम्र से पूछा , “आखिर तुमने उसे सैनिक को ऐसा क्या दिखा दिया था जो वह पल भर में मांगया? ” यह नंबर नाम जो कार्ड उसके पास था वह दिखाया जो एक ताश के पत्ते के अलावा और कुछ भी नहीं था। संयोगिता को जैसे एक हल्का झटका सा लगा क्योंकि तक का पता दिखाने से कोई कैसे जाने की इजाजत दे सकता था। वह बोली , “यह क्या मजाक कर रही हो तो मेरे साथ तुमने यह नहीं कोई और कार्ड दिखाया था मैंने भी ध्यान से देखा था वह यह वाला कार्ड नहीं था बल्कि वह तो गोल्डन कलर का एक अजीबसा कार्ड था। ” विनोबा ने तक के पत्ते की तरफ गौर से देखनेके लिए कहा , “एक बार दोबारा इसेदेखो ” संयोगिता और शंभू दोनों ने दोबारा तक के पत्ते किस कार्ड को देखा तो वह इस गोल्डन कार्ड की तरह दिखाई देने लगा जो विनम्र ने सैनिक को दिखाया था। संयोगिताओं से अपने हाथ में पकड़ा और दोनों तरफ से पता कर देखा लेकिन यह ताश का पत्ता नहीं था बल्कि एक कार्ड था जिसके ऊपर एक फोटो बनी हुई थी और नीचे जनरल लिखा हुआ था। यह यहां के जनरल की फोटो थी और यह कार्ड एक एक्सेस कार्ड था जो खास लोगों को दिया जाता था जो जनरल से संबंधित होते थे और उन्हें कहीं भी आने जाने की इजाजत होतीथी। संयोगिता ने इस कार्ड की तरफ देखतेहुए कहा , “आखिर यह सब तुमने कैसे किया किस तरह काजादू है यह? ” विनम्र ने सुदर्शन चक्र को बाहर निकाला और उसे दिखातेहुए कहा , “तुम लोग शायद भूल रहे हो हमारे पास चारों सुदर्शन चक्र के टुकड़े हैं और सबकी अपनी अपनी खासियत है। इसमें से हमारे पास एक ऐसा टुकड़ा भी है जो ब्रह्मचर्य पैदा कर सकता है और किसी को भी वह दिखा सकता है जो हम उसे दिखानाचाहे। इस वक्त मैं उसी का इस्तेमाल किया और जब सैनिक से हम बात करें तो तब भी मैं उसी का इस्तेमाल किया था। सनी को मैं सिर्फ एक तक का पता दिख रहा था अब मैग्गम की दाल की वजह से उसे ऐसे लग रहा था जैसे हुए यहां के जनरल का एक्सेस कार्ड देखरहा हो। ” संयोगिता को विनम्र पर एक बार फिर से यकीन हो गया और साथ में उसके मन पर विनम्र सच में काफी तेजथा। ★★★