कबीर जिसने ज़िंदगी से हार मान ली थी।और खुद को खत्म करने के लिए उसने एक पहाड़ी से छलांग लगा दी थी। लेकिन मौत ने भी उसे अपनाने से इनकार कर दिया। जब उसकी आंखें खुलीं, तो सामने का दृश्य…जैसे कोई सपना हो… या शायद, सपना भी इतना सुंदर न होता। कबीर के ऊप... कबीर जिसने ज़िंदगी से हार मान ली थी।और खुद को खत्म करने के लिए उसने एक पहाड़ी से छलांग लगा दी थी। लेकिन मौत ने भी उसे अपनाने से इनकार कर दिया। जब उसकी आंखें खुलीं, तो सामने का दृश्य…जैसे कोई सपना हो… या शायद, सपना भी इतना सुंदर न होता। कबीर के ऊपर एक सुंदर सी लड़की झुकी हुई थी। वो कोई साधारण लड़की नहीं थी बल्कि वो एक परी थी। और इसी मुलाक़ात से शुरू हुई एक प्रेम कहानी। अब सवाल ये है कि क्या इंसान और एक परी के बीच इश्क़ मुमकिन है?या ये मोहब्बत किसी भारी क़ीमत की माँग करेगी?जानने के लिए पढ़िए — "परी से इश्क़"
परी
Princess
कबीर
Hero
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शीतपुरा (काल्पनिक शहर)
शाम का वक्त था।
शीतपुरा की उस वीरान सड़क पर, एक कार तूफ़ान की रफ़्तार से दौड़ रही थी।
कार के अंदर... एक लड़का बैठा था। उम्र कोई 23-24 की होगी।
उसने काली ओवरसाइज्ड हुडी पहन रखी थी।
उसके बाल माथे पर बिखरे हुए थे, और आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं।
उसका चेहरा बेहद सुंदर था, लेकिन उस सुंदरता में एक अजीब सी वीरानी छिपी थी, जैसे उसके भीतर कुछ मर चुका हो।
स्टेयरिंग पर उसकी उंगलियां कसकर जमी हुई थीं।
गियर चेंज करते वक्त उंगलियां कांप रही थीं।
उसके होंठ फड़क रहे थे, जैसे कुछ कहना चाहते हों पर कह नहीं पा रहे हों।
वो कहां जा रहा था इतनी तेज़ी से?
क्या कोई उसका पीछा कर रहा था?
या वो खुद से ही भाग रहा था?
इन सवालों के जवाब तो शायद वो खुद भी नहीं जानता था।
और फिर... अचानक...
कार ने जोर से ब्रेक मारे।
कार एक ऊँची पहाड़ी के किनारे पर रुक गई थी, जहां नीचे गहरी खाई थी।
लड़के ने तुरंत दरवाज़ा खोला।
ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे पर पड़ा, जिससे उसके बिखरे बाल और भी बिखर गए।
उसने आकाश की ओर देखा, और तभी आसमान में बिजली कड़क उठी।
साथ ही उसके दिल की धड़कनें भी तेज़ हो गईं।
अचानक, बादलों ने गुस्से में गरजना शुरू कर दिया।
लेकिन ये बारिश पतली बूंदों में नहीं, बल्कि धार बनकर गिर रही थी।
उसने पीछे मुड़कर अपनी कार को देखा।
वो वापस कार की ओर मुड़ने ही वाला था कि...
अचानक...
उसका पैर फिसल गया। वो खाई में गिरने लगा।
एक तेज़ चीख हवा में गूंज गई।
वो चीख उसकी अपनी ही थी।
बारिश और आंसू का फर्क मिट सा चुका था।
उसके हाथ हवा में लहराए...और चेहरे पर एक अजीब सी फीकी हंसी फैल गई।
"फिल्मी एंड है... पर ठीक है..." वो बेपरवाह सी हंसी में बोला।
उसने अपनी आंखें बंद कर ली थीं।
“सिर्फ 7 सेकंड…”
सिर्फ 7 सेकंड में उसकी पूरी ज़िंदगी उसकी आंखों के सामने घूम गई।
पहले सेकंड में उसे अपनी मां की याद आई ।
दूसरे सेकंड में उसे पोहे-जलेबी वाले चाचा की वो बिल्ली (गुलगुली) की याद आई, जो रोज़ उसके पैर में लिपट जाया करती थी, और वो खुद हंसते हुए उसे गोद में उठा लेता था।
तीसरा सेकंड…उस तीसरे सेकंड में उसे अपना पहला प्यार याद आया।
हाई स्कूल में पीछे वाली सीट पर बैठती हुई वो लड़की।
जब वो हंसती थी तो उस वक़्त उसके गालों में डिंपल पड़ते थे ।
चौथा सेकंड…आवाजें गूंजने लगी कानों में।
बहुत सारी आवाजें।
उन आवाजों में सबसे पहले अपने पिता की गुस्सैल आवाज़ गूंजी—“ नालायक तेरे बस का कुछ नहीं है!”
फिर टीचर की आवाज़—“फेल हो जाएगा तू!कुछ नहीं के पाएगा तू जिंदगी में।”
फिर रिश्तेदारों की कड़वी हंसी—“लूज़र है, लूज़र रहेगा!”
हर आवाज़ एक तीर बनकर सीने में धंस रही थी।
हर आवाज़ याद दिला रही थी कि उसने कोशिश की, पर सफल नहीं हो पाया।
उन हर आवाज़ में ‘नाकामी’ की गंध थी।
पांचवां सेकंड…
वो दिन याद आया , जब वो पहली बार घर छोड़कर गया था।
नया शहर, नए लोग, और उसकी जेब में बस कुछ सिक्के थे।
उसे वो रातें याद आई जब स्टेशन की बेंच पर उसे सोना पड़ा था।
छठा सेकंड…उसके सपने ।
वो स्केचबुक जिसमें उसने सपनों के स्केच बनाए थे।
वो गाने जो उसने खुद से गुनगुनाए थे।
वो कहानियां जो उसने अपने अंदर ही अंदर लिखी थीं।
वो सब सपने, जो भीड़ में कही खो से गए थे।
सातवां सेकंड…इस सातवें सेकंड में उसके अंदर खालीपन ,सन्नाटा और अंदर तक गूंजता हुआ अकेलापन फैल गया।
बस एक आवाज़ रह गई थी उसके अंदर—“ हां अब अंत है ये मेरा।”
वो गिरता गया… गिरता गया…
फिर अचानक…
धड़ाम…
सारी यादें टूट गईं।उसका शरीर पानी से टकराया।
पानी में गिरते ही सब कुछ काला हो गया।
लेकिन उससे पहले, उसके चेहरे पर एक फीकी मुस्कान आ गई थी।
पानी की धार ने उसके शरीर को खींचना शुरू कर दिया।
वो खुद को संभालने की कोशिश कर रहा था,लेकिन उसका शरीर अब थक चुका था।
उसके गले में पानी भरने लगा।
उसने खांसने की कोशिश की, पर आवाज़ दब गई।
उसकी सांसें उखड़ने लगींऔर सीना भी जलने लगा।
वो हाथ मार रहा था,पर हर बार उसका हाथ सिर्फ पानी को ही पकड़ पा रहा था।
उसकी सांसें और धीमी होती गईं।
और आखिरकार उसकी आंखें धीरे-धीरे बंद हो गईं।
उसका शरीर पानी में डूबने लगा,और उसकी उंगलियां आखिरी बार ऊपर उठीं, जैसे किसी अनदेखे हाथ को पकड़ना चाह रही हों।
धीरे-धीरे सब काला होने लगा।
जब उसे होश आया,
तो उसने खुद को झील के किनारे मखमली घास पर पड़ा पाया।
और सबसे अजीब बात… उसके होंठों पर किसी के नरम नरम होंठ थे।
एक पल को उसकी धड़कन रुक सी गई।
जब उसने आंखें खोलीं, तो सामने का दृश्य… जैसे कोई सपना हो… या शायद, सपना भी इतना सुंदर न होता।
ऊपर का आसमान एकदम नीला और साफ सुथरा सा था ।
लड़के के चेहरे के ठीक ऊपर एक चेहरा झुका हुआ था।
हां वो कोई लड़की थी.... जैसे कल्पनाओं में होती है न ठीक वैसी ही।
उसके बाल भूरे रंग के थे जो उसके कंधों तक आ रहे थे।
और माथे पर एक नीली रोशनी सी चमक रही थी, जैसे कोई बिंदी, पर वो बिंदी तो नहीं थी।
और उसकी आंखें…
वो आंखें…
जैसे उनमें पूरी कायनात समाई हो।
जैसे हर सवाल का जवाब उन्हीं आंखों में छुपा हो।
जैसे उसकी सारी तन्हाई उन आंखों में डूब कर खत्म हो जाए।
वो लड़की उसके होंठों पर अपने होंठ रखे थी…जैसे उसे सांस दे रही थी…या शायद… उसे ज़िंदगी लौटा रही थी।
लड़का हड़बड़ा कर थोड़ा उठने की कोशिश करने लगा,
पर उसकी सांसें जैसे उखड़ सी गईं थी।उसके सीने में फिर से जलन हुई, और उसकी उंगलियां घास को पकड़ने लगीं।
लड़की ने उसकी ओर देखा, उसकी सांसों की आवाज़ सुनी, और हल्के से मुस्कराई।उसकी मुस्कान में एक अजीब सी शांति थी, जैसे कोई आश्वासन दे रही हो—“मैं यहीं हूं…”
लड़का कुछ कहना चाहता था, पर उसके गले से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी।और अचानक लड़के की आंखें भारी हो गईं।उसने महसूस किया जैसे दुनिया घूम रही हो।
और फिर अचानक…लड़की ने अपनी पीठ सीधी की।उसने अपनी आंखें बंद कीं, और उसके चारों ओर हल्की सी नीली रोशनी फैलने लगी।
लड़का घबरा गया।उसने अपनी आंखों को मलकर देखा, पर वो रोशनी बढ़ती ही जा रही थी।
और अगले ही पल…
उस लड़की की पीठ से दो चमकीले, नीले पंख बाहर निकल आए।वो पंख रौशनी से बने हुए थे, पारदर्शी और चमकदार।
हाँ, वो कोई इंसान नहीं थी।
वो एक परी थी।
लड़के की आंखें फटी की फटी रह गईं।उसके मुंह से हल्की सी आवाज़ निकली—“ये… ये क्या है…?”
हवा में नमी और ठंड बढ़ गई थी।झील की लहरें धीरे-धीरे तेज होने लगीं।पत्ते हवा में उड़ने लगे।
परी ने अपनी नीली आंखें खोलीं।
“ये पंख… ये रोशनी… ये सब क्या था?”
लड़का कुछ पूछने ही वाला था कि उसकी सांसें फिर लड़खड़ा गईं।उसका सिर एक बार फिर ज़मीन पर गिर गया।
उसकी आंखें बंद हो गईं।
परी का चेहरा बदल गया।वो घबरा गई। उसने उसके गालों को थपथपाया—“सुनो… उठो…”
लेकिन लड़का बेहोश हो चुका था।
परी ने अपनी आंखें बंद कीं।फिर अपने दोनों हाथ हवा में उठा दिए ।उसकी हथेलियों से एक नीली रौशनी फूट पड़ी ।
और अगले ही पल…
उसने लड़के को अपनी गोद में उठाया।जैसे वो कोई कीमती चीज़ हो…या शायद, जैसे वो अब सिर्फ उसी की ज़िम्मेदारी हो।
फिर उसके पंख फड़फड़ाए।
और वो परी… उड़ गई ऊपर की ओर।
नीचे से ऊपर … और ऊपर…
वो उसे गोद में लिए उड़ती जा रही थी।
नीचे झील… पेड़… और पूरी धरती छोटी होती जा रही थी।
उड़ते-उड़ते लड़के की आंखें खुल गईं।
उसने देखा —
वो परी उसे अपनी गोद में लिए हवा में उड़ रही थी।
“बाप रे!!!”आखिरकार उसकी चीखती हुई आवाज़ बाहर निकल ही गई।
“म… म… मुझे नीचे उतारो…!!”
उसने घबराकर कहा।
पर परी ने बस मुस्कराकर उसकी ओर देखा।
फिर परी धीरे-धीरे नीचे की ओर आई,और उसे एक हरी घास वाली जगह पर उतार दिया।
ये वहीं जगह थी जहां से लड़का फिसल गया था।
लड़का घबराया हुआ उठ बैठा।
“ये... ये है...? मैं... मैं जिंदा कैसे हूं?”
परी ने धीरे से एक कदम उसकी ओर बढ़ाया।
लड़का तो पहले से ही घबराया हुआ था ।उसने घबराहट में पीछे हटना शुरू किया।
“र... र... रुको... म... मेरे पास मत आओ...”
परी ने कुछ नहीं कहा।बस मुस्कुरा दी।
उसकी मुस्कान देख लड़का डर के मारे और पीछे हट गया।
“मत आओ... प्लीज... मुझे जाने दो... मत आओ मेरे पास...”
परी ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
लड़के ने अचानक मुड़कर पीछे देखा।कुछ दूरी पर उसकी वही कार खड़ी थी।
वो तुरंत पलटा।और कार की तरफ दौड़ लगा दी।
पीछे...परी अब भी खड़ी थी।
लड़का दौड़ता हुआ कार के पास पहुंचा।उसने दरवाज़ा खोला,
हांफते हुए सीट पर बैठा।कंपकंपाते हाथों से उसने कार की चाबी घुमाई।
अगले ही पल...कार इंजन की गड़गड़ाहट के साथ दौड़ गई।
और वो उसी तूफ़ानी रफ्तार में फिर से सड़क पर भाग गया।
पीछे...परी अब भी खड़ी थी।
तो जनाब…
ये तो बस शुरुआत थी!
अब ज़रा सोचिए....
जिस कहानी की शुरुआत खाई में गिरने से हो…
जिसका पहला चैप्टर होंठों की मुलाकात से शुरू हो…
और जिसमें परी की एंट्री ऐसे हो जैसे किसी फिल्म का क्लाइमेक्स चल रहा हो…
तो आगे क्या होगा?
कौन है ये परी?
कहाँ से आई है?
और सबसे बड़ा सवाल —आगे क्या होगा?
जानने के लिए इंतेज़ार करते रहिए अगले पार्ट का…
और हाँ, कमेंट कर के बताना मत भूलिए —
कहानी की शुरुआत आपको कैसी लगी?
और हाँ, अगले पार्ट का स्वाद लेने के लिए मुझे फॉलो करना न भूलिए! 😊
कुछ देर बाद…
लड़के की कार ने बॉयज हॉस्टल के सामने आकर ब्रेक मारी।
हॉस्टल के बाहर लगी ट्यूबलाइट झिलमिला रही थी।
लड़के ने एक लंबी सांस ली।
हॉस्टल में घुसते ही उसे शोर सुनाई देने लगा।
हॉल में लड़कों की आवाज़ें गूंज रही थीं।कोई मोबाइल पर गेम खेलते हुए चिल्ला रहा था,कोई मैगी बनाते हुए गाली दे रहा था,कोई गिटार बजाने की कोशिश कर रहा था,और कोई लूडो में चीटिंग करते पकड़ा गया था।
लड़के ने अपने रूम का दरवाज़ा खोला।
जैसे ही उसने अपना एक कदम अंदर रखा—“ओए कबीर!!”एक तेज़ आवाज़ गूंजी।
ये था दर्श। उसके छोटे बाल छोटे छोटे से थे, कान में बाली पहनी हुई थी, और मुंह में हरवक्त रहने वाला च्युइंगम।
लेकिन इस वक्त गुस्से में उसकी भौंहें चढ़ी हुई थीं।
“किधर मर गया था बे तू? रात के ढाई बज रहे हैं!
भूतनी के, तू गया कहां था??”
कबीर कुछ बोलने ही वाला था कि....
“लड़की पटाने गया था ना? साले ने कॉल तक नहीं उठाई।”
ये बोला हर्षित।
हर्षित लंबा सा , दुबला सा था, उसकी आंखों पर चश्मा लगा हुआ था, और हाथ में एक किताब थी।
“क्या लड़की-वड़की यार, कबीर तो बस रूम से बाहर निकले तो समझो ब्रेकिंग न्यूज़ है।”
ये था आदित्य।
इसके बाल कंधों तक आते थे, बैंड पहने हुए , वो हाथ में गिटार लिए हुए कबीर की तरफ आ रहा था। ।
कबीर ने बस एक हल्की सी मुस्कान देने की कोशिश की। लेकिन सच तो ये था कि उसकी सांस अब भी तेज़ चल रही थी।
उसने अपनी घबराहट छुपाने के लिए हुडी का हुड सिर पर खींच लिया।
“अबे बोल भी दे, गया कहां था?”
दर्श ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर धौल जमाई।
कबीर चौंक गया।
“बस... थोड़ी हवा खाने गया था...” बड़ी मुश्किल से बोला वो ये।
“हवा खाने? तू? कब से?”
हर्षित ने किताब बंद कर दी, और शक से कबीर को देखने लगा।
“पागल है यार, इसकी शक्ल तो देख। मिट्टी में खेल कर आ रहा है लग रहा है ये। ओय सच सच बता कबीर कहीं गिर कर आ रहा है क्या?”आदित्य ने हंसते हुए कहा।
कबीर ने नीचे देखा।उसकी जीन्स पर मिट्टी और घास के दाग लगे थे। उसे परी का चेहरा याद आ गया, वो नीली आंखें, वो पंख…एक झुरझुरी सी दौड़ गई उसके शरीर में।
दर्श ने उसके कंधे पकड़ लिए।“देख भाई, अगर कोई दिक्कत है तो बोल।हम सब यार हैं, तू जानता है न ।”
कबीर ने उसकी आंखों में देखा,फिर झट से नीचे नजर झुका ली।“कुछ नहीं यार... बस... घूमने गया था...”
“घूमने गया था?रात के ढाई बजे?”हर्षित फिर से घूरने लगा।
कबीर ने इस बार कोई जवाब नहीं दिया।बस अंदर बढ़ गया।
“अबे कबीर! ओ कबीर!!”
पीछे से आदित्य ने आवाज़ दी,
“कल 9 बजे प्रेजेंटेशन है, भूल मत जाना! और हां, तेरा लैपटॉप चार्ज में लगा है!”
कबीर ने बिना मुड़े बस हाथ हिला दिया।
रूम नंबर 206 का दरवाज़ा उसने खोला।
कमरा छोटा था, पर उसमें दोस्ती की गूंज हमेशा रहती थी।
बायीं दीवार पर आदित्य का म्यूजिक वाला पोस्टर था।
दूसरी तरफ हर्षित की किताबें बिखरी पड़ी थीं।
बेड के पास दर्श का प्रोटीन शेक रखा था, जो उसने हफ्ते भर से नहीं पिया था।
कोने में कबीर की स्केचबुक और पुरानी पेंसिलें रखी थीं।
कबीर धीरे से बेड पर बैठ गया।उसने झील में गिरते हुए खुद को याद किया।वो परी, उसके नीले पंख…और वो होठों की छुअन उसके शरीर को अभी भी कंपकंपा रही थी।
“ओ भूतनी के! दरवाज़ा तो बंद कर।”
पीछे से दर्श ने आते ही उसकी हुडी खींच दी।
कबीर चौंक कर मुड़ा।
दर्श दरवाज़ा बंद कर रहा था और उसकी तरफ देखकर हंस रहा था।“तू जब भी लौटता है, तूफान साथ लेकर आता है। पता है?”
तभी आदित्य और हर्षित भी पीछे-पीछे अंदर आ गए।
आदित्य ने गिटार दीवार पर टिकाया और बोला,
“बैठ यहां। आज गाना नहीं, पहले सच बता। क्या सीन है?”
हर्षित ने अपनी किताब साइड में रख दी, चश्मा उतारा और बोला,“देख, मैं साइकोलॉजी पढ़ रहा हूं। तेरा चेहरा बता रहा है कि कुछ तो जरूर हुआ है।”
कबीर ने उन तीनों की तरफ देखा।उनकी आंखों में गुस्सा नहीं था, सवाल भी नहीं थे।बस एक दोस्ती वाली चिंता थी।
“यार, कुछ नहीं… बस… बाहर गया था।” कबीर ने कहा, पर उसकी खुद की आवाज़ उसे झूठी लगी।
आदित्य ने गिटार के तार छेड़ते हुए कहा,“चलो, अब बता दिया तूने कि कुछ नहीं हुआ, तो अब बकवास बंद। मैं गाना बजाता हूं, तू सुन और सो जा।”
हर्षित कबीर के पास बैठते हुए बोला,“भाई, तू जानता है, जब हम से कोई अकेला टूटता हैं तो वो अकेला ही नहीं, पूरी गैंग टूट जाती है। तू अगर गिरा न, तो हम भी गिरेंगे तेरे साथ।”
कबीर ने एक पल को आंखें बंद कर लीं। उसकी आंखों में पानी भर आया था, पर वो हल्के से हंस भी पड़ा।“पागल हो तुम लोग।”
“हां, पागल ही हैं, और तू भी है। अब मैगी खाएगा या भूखा मरेगा?”दर्श ने कहा और कबीर की पीठ पर फिर हल्का सा धौल जमा दिया।
कबीर ने हां में सिर हिला दिया।
“तू बैठ, मैं मैगी बनाता हूं।और हां, हर्षित तू चाय बना दे, और आदित्य, प्लीज़ गाना मत बजा अभी।”दर्श ने हाथ नचाते हुए कहा।
“ओए! गाने के बिना खाना नहीं पचता मेरा।”आदित्य ने अपना मुंह फुला लिया।
“तेरे गाने से हमारा खाना बाहर आ जाएगा। पहले खा लो, फिर बजा लेना।”हर्षित अपना चश्मा साफ करते हुए बोला।
कबीर उन तीनों को देख रहा था।उनकी बकवास, उनकी हंसी, और उनका शोर,उसके दिल की घबराहट पर एक मुलायम सा कंबल डाल रहे थे।
पर किसी का भी ध्यान नहीं गया…
दरवाज़ा खुलते ही एक नीली, चमकती हुई तितली भी उनके साथ अंदर आ गई थी।
वो धीमे से अपनी हल्की सी नीली रोशनी छोड़ती हुई उड़ती हुई आई,और फिर… धीरे से कबीर के कंधे पर आकर बैठ गई।
किसी का भी ध्यान वहां नहीं गया।
कबीर ने एक सांस भरी।उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे छुआ हो…पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
अगली सुबह रोज जैसी नहीं थी।
हवा में एक मीठी सी खुशबू घुली हुई थी।इतनी तेज़, कि नींद में भी कबीर की नाक में वो खुशबू घुस गई थी।
कबीर करवट बदलते हुए नाक सिकोड़कर चिढ़ गया।
“अबे आदित्य, ये क्या इतना परफ्यूम छिड़का है बे सुबह-सुबह… घुटन हो रही है…”
वो बंद आंखों से ही चिढ़ कर बोला।
उसने करवट बदली, कम्बल खींचा, पर खुशबू और गहरी हो गई।
“अबे आदित्य… दिमाग खराब है क्या…”
कबीर झटके से आंखें खोल कर बैठ गया।
लेकिन जैसे ही उसने सामने देखा.... उसका दिल उछल कर गले में आ गया।
उसके सामने, ठीक बिस्तर के किनारे, वो परी खड़ी थी।
वही परी। वहीं नीली आंखें। वहीं भूरे बाल। वहीं नीली चमक।
परी उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुराकर पलके झपका रही थी।
कबीर की सांसें रुक सी गईं। उसका मुंह खुला का खुला रह गया। उसने आंखें मल लीं, फिर दोबारा देखा...हां वो सच में वही परी थी।
परी ने बेहद कोमल आवाज में कहा,“तुम ठीक हो न?”
कबीर का कलेजा बैठ गया।
उसने एक तेज चीख मारी—
“आआआआआआ!!!!”
ये चीख पूरे हॉस्टल में गूंज गई।
दर्श बुरी तरह चौंक कर उठ बैठा,“क्या हरामीपना है बे! सुबह-सुबह क्यों चीख रहा है??”
हर्षित की किताब उसके चेहरे पर गिर गई,“क्या हुआ बे कबीर! भूत दिखा क्या??”
आदित्य का गिटार भी नीचे गिरते-गिरते बचा,“अबे ओ कबीर! सुबह-सुबह बाप का सपना देख लिया क्या??”
कबीर का चेहरा सफेद हो चुका था।वो घबराकर उंगलियों से परी की तरफ इशारा कर रहा था, पर उसकी आवाज़ नहीं निकल रही थी। “वो… वो… वो… देखो…”
हर्षित अपना चश्मा चढ़ाते हुए चिढ़ बोला,“क्या देखूं? कुछ नहीं है वहाँ!”
दर्श ने उसकी तरफ देखा,“अबे किसकी बात कर रहा है?”
आदित्य ने चिढ़ कर तकिया मारा, “अबे, पागल हो गया है क्या सुबह-सुबह!”
पर कबीर की नजरें अब भी उस परी पर जमी थीं,जो अब भी मुस्कुरा रही थी, उसकी आंखों में देखते हुए।
“ये… ये तुम लोग देख क्यों नहीं रहे…??” कबीर की घबराई हुई आवाज़ निकली।
“अबे क्या देखे ? हवा में क्या देखें??”दर्श ने गुस्से में कहा।
हर्षित बड़बड़ाया,“इसका दिमाग हिल गया है, नींद में कुछ उल्टा सीधा देखा होगा।”
आदित्य ने कंबल उसके मुंह पर डाल दिया“सो जा बे! भूत-भूत कुछ नहीं होता!”
पर कबीर अब भी परी को देख रहा था।
परी ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया।“मैं तुम्हें डराने नहीं आई… बस, बात करनी है।”
कबीर के मुंह से हकलाती हुई आवाज़ निकली,“त… तुम… तुम कौन हो… क्यों आई हो…?”
“ अबे कबीर, किससे बात कर रहा है तू??” हर्षित ने हैरानी से कहा।
“अबे पागल हो गया है क्या??” आदित्य ने कहा।
कबीर ने आंखें कस कर बंद कर लीं, पर जब खोलीं, तो परी अब भी सामने थी।
“मुझे सिर्फ तुम ही देख सकते हो...तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दूंगी… पर भागो मत…” परी की आवाज़ आई।
कबीर का गला सूख गया।
उसने घबराकर पानी की बोतल उठाई, हाथ कांप गए, और पानी का ढक्कन गिर गया।
और सब फिर से चिढ़ गए।
“अबे कमीने! तू सुबह-सुबह दिमाग खा गया हमारा!”दर्श गुस्से में चिल्लाया।
“साले, पूरी सुबह तूने खराब कर दी, नींद तोड़ दी हमारी!”
आदित्य ने कहा।
हर्षित ने आंखें मटकाईं,“चल, अब नहाने जा, और होश में आ!”
कबीर ने कांपते हाथों से मुंह पोंछा, उसकी नजरें अब भी परी पर थीं।
परी ने एक पल के लिए आंखें बंद कीं।उसके चारों ओर वही हल्की नीली रोशनी फिर से फैल गई।
कबीर ने हैरानी से देखा....परी का आकार अब धीरे-धीरे छोटा होने लगा।
उसके नीले पंख सिकुड़कर छोटे होते गए,उसके भूरे बाल नीले रंग में घुलने लगे,और कुछ ही सेकंड में…
वो परी एक छोटी, चमकदार नीली तितली में बदल गई।
कबीर की आंखें फटी की फटी रह गईं।
“बाप रे… ये… ये क्या…” उसकी सांसें फिर तेज़ हो गईं।
वो तितली हवा में फड़फड़ाई,और एक पल के लिए कबीर के चेहरे के करीब आकर रुक गई।
कबीर की घबराई सांसों में अचानक एक अजीब सी ठंडी शांति उतर आई।
फिर वो नीली तितली,हल्की सी चमक छोड़ती हुई,खिड़की की ओर मुड़ी और धीरे-धीरे उड़ते हुए बाहर निकल गई।
खिड़की के बाहर, सुबह की सुनहरी रोशनी में,वो नीली तितली हवा में गोल घूमी,और फिर ऊपर की ओर उड़ गई।
कबीर खिड़की की ओर भागा।
उसने तितली को ऊपर उड़ते हुए देखा।उसकी नीली रोशनी धीरे-धीरे धूप में घुलती जा रही थी। पर वो तितली अभी भी चमक रही थी।
कबीर खिड़की पर हाथ टिकाकर खड़ा रहा,उसकी सांसें अब भी तेज़ चल रही थीं, पर उसकी आंखों में अब डर से ज्यादा हैरानी और सवाल थे।
पीछे से दर्श ने आवाज़ लगाई,“अबे ओ! कबीर! खिड़की में क्या घुसे जा रहा है?साले, सच में तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या?”
कंटिन्यू.....
कबीर खिड़की की ओर भागा।
उसने तितली को ऊपर उड़ते हुए देखा।उसकी नीली रोशनी धीरे-धीरे धूप में घुलती जा रही थी। पर वो तितली अभी भी चमक रही थी।
कबीर खिड़की पर हाथ टिकाकर खड़ा रहा,उसकी सांसें अब भी तेज़ चल रही थीं, पर उसकी आंखों में अब डर से ज्यादा हैरानी और सवाल थे।
पीछे से दर्श ने आवाज़ लगाई,“अबे ओ! कबीर! खिड़की में क्या घुसे जा रहा है?साले, सच में तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या?”
कुछ देर बाद…
यूनिवर्सिटी के कॉमर्स डिपार्टमेंट की बिल्डिंग के बाहर भीड़ लगी थी।लड़कियां अपनी नोट्स लेकर घूम रही थीं,लड़के हेडफोन लगाए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे।
कबीर ने अपनी फाइल संभाली। दर्श उसके बगल में खड़ा था,अपने मुंह में च्युइंगम चबाते हुए।
“अबे टेंशन मत ले, तू बढ़िया प्रेजेंटेशन देगा।
वैसे भी तेरी शक्ल पर क्यूटनेस का टैक्स लगता है,
प्रोफेसर ज्यादा सवाल नहीं पूछेगी।”
“भाई, तू छोड़, मुझे बस आज जल्दी खत्म करना है, सिर भारी हो रहा है…”कबीर ने कहा।
तभी…
“हाय कबीर…”
एक मीठीसी आवाज़ आई।
कबीर ने पलटकर देखा।
वो श्रुति थी।
कॉलेज की सबसे पॉपुलर लड़की।
“तुम्हारा आज प्रेजेंटेशन है ना? ऑल द बेस्ट!”श्रुति ने उसे आंख मार दी।
दर्श के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई।
उसने धीरे से कबीर को कोहनी मारी,“अबे ओ कब्बू, देख कौन लाइन मार रही है तुझपे…”
कबीर ने उसे चिढ़ कर देखा,“अबे, कुछ भी मत बोल…”
श्रुति ने आगे बढ़कर कबीर के कंधे पर हाथ रखा,
“तुम्हें मेरी कोई हेल्प चाहिए प्रेजेंटेशन में?”
कबीर तुरंत एक कदम पीछे हटते हुए बोला,“न… नहीं, थ… थैंक्यू।”
दर्श की हंसी छूट गई,“ओ भाई, दिल तोड़ दिया बेचारी का…”
श्रुति अपने बालों को पीछे करती हुई हंसकर बोली,“ओके, बेस्ट ऑफ लक…”
और फिर मुड़कर चली गई।
दर्श ने कबीर के कंधे पर हाथ रखकर कहा,
“भाई, अगर तेरी जगह मैं होता ना…सीधा ‘हां’ कर देता!
यू नो… कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती मेन्टेन रखना बहुत जरूरी है!”
कबीर ने उसे घूरकर देखा,
“पागल है क्या? मुझे ये सब नहीं पसंद…”
कॉमर्स डिपार्टमेंट की 103 नंबर क्लासरूम में हलचल थी।
लड़कियां सीटें संभाल रही थीं, लड़के लैपटॉप और नोट्स खोल रहे थे।
प्रोफेसर मिसेज वर्मा डेस्क पर बैठीं, अपनी चाय फूंक रही थीं।
दर्श ने कबीर की फाइल सीधी की, “अबे अच्छे से देना, ये प्रेजेंटेशन हमारी अटेंडेंस के साथ नाम भी बना देगा।”
हर्षित भी बोला, “और अगर फेल हुआ तो तू हमारा नाम डुबो देगा।”
आदित्य ने गिटार बैग में डालते हुए कहा, “चुप कर बे! कबीर ने मेहनत की है। सब सही से होगा।”
कबीर ने गहरी सांस ली। उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं।
परी के बारे में सोचकर ही एक अजीब सी घबराहट हो रही थी,
पर अभी वो सिर्फ प्रेजेंटेशन पर फोकस करना चाहता था।
प्रोफेसर ने आवाज़ लगाई,“कबीर, रेडी?”
कबीर ने फाइल संभाली, लैपटॉप कनेक्ट किया,और स्लाइड्स स्क्रीन पर आने लगीं।
“गुड मॉर्निंग एवरीवन, आज का मेरा टॉपिक है ‘इनोवेशन इन मार्केटिंग’…”
कबीर ने बोलना शुरू किया।
बोलते-बोलते उसकी नजर पीछे की सीटों पर गई।
श्रुति उसे देख कर स्माइल कर रही थी।दर्श और हर्षित पीछे से ‘पिन ड्रॉप साइलेंस’ में बैठे थे, आदित्य उंगली से जीत का इशारा कर रहा था।
तभी…
उसकी नजर क्लासरूम की खिड़की पर गई।
सुबह की धूप में कुछ चमक रहा था।
हां वो वही नीली तितली थी।
तितली खिड़की के पास मंडराई,और फिर उड़ती हुई कबीर के लैपटॉप स्क्रीन पर आकर बैठ गई।
कबीर का गला सूख गया। उसकी आवाज़ अटक गई।
टीचर ने भौंह चढ़ाई,
“कबीर, कांटिन्यू!”
कबीर ने खुद को संभालने की कोशिश की।उसने स्लाइड पर नजर डाली,पर तितली वहां बैठी हुई थी।
तभी…
तितली अचानक हिलने लगी,
और कुछ ही सेकंड में वो तितली फिर से परी में बदल गई।
लेकिन इस बार भी वो सिर्फ कबीर को ही दिख रही थी। बाकी सबके लिए वहां कुछ था ही नहीं ।
परी उसके करीब झुक कर बोली,“डरो मत, मैं यहां तुम्हारी मदद के लिए हूं…”
कबीर कांपते हुए बोला,“यहां मत आओ… प्लीज…”
प्रोफेसर चौंक गई,“व्हाट? किससे बात कर रहे हो कबीर?”
पूरी क्लास की नजरें कबीर पर टिक गईं।
हर्षित बड़बड़ाया,“अबे, क्या कर रहा है ये?”
दर्श ने भी अपना माथा पकड़ लिया,
“कबीर, ब्रो, प्लीज नॉर्मल बिहेव कर…”
आदित्य ने धीरे से कहा,
“ये फट्टू, रात से अजीब हरकते कर रहा है।”
पर कबीर को कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।
उसकी नजर परी पर थी, जो अब भी मुस्कुरा रही थी।
क्लासरूम में पिन ड्रॉप साइलेंस था।सभी की नजरें कबीर पर टिकी थीं,और कबीर की नजरें सिर्फ परी पर।
प्रोफेसर वर्मा ने जोर से टेबल पर हाथ मारा,
“कबीर! व्हाट इज दिस बिहेवियर??”
कबीर हड़बड़ाकर सचेत हुआ।
“किससे बात कर रहे थे तुम अभी??”
प्रोफेसर की आवाज में गुस्सा और हैरानी दोनों थे।
कबीर ने घबराकर इधर-उधर देखा,परी अब भी उसके पीछे खड़ी थी।
कबीर ने लड़खड़ाती आवाज में कहा,“म… मैं… कुछ नहीं मैम…”
प्रोफेसर की भौंहें तन गई,“कुछ नहीं? पूरी क्लास के सामने तमाशा बना रहे हो?प्रेजेंटेशन के बीच में बड़बड़ा रहे हो?
क्या ये कोई मजाक लग रहा है तुम्हें??”
पीछे से किसी की आवाज आई,“ये कबीर को क्या हो गया…”
दर्श बेचारे ने अपना सिर पकड़ लिया,हर्षित ने अपना चेहरा छुपा लिया,आदित्य ने नीचे नजर कर ली,
पर तीनों के चेहरे पर फिक्र साफ दिखाई दे रही थी।
कबीर ने कांपते हुए कहा,“मैम, मैं… कंटिन्यू करता हूं…”
प्रोफेसर ने सख्त आवाज में कहा,“आखिरी मौका दे रही हूं कबीर।फोकस करो, वर्ना जीरो मार्क्स देंगे!”
कबीर ने गहरी सांस ली,लैपटॉप की ओर देखा, उसने धीरे से आंखें बंद कीं,‘प्लीज अभी मत आओ… प्लीज…’
उसने धीमे से परी से कहा।
आंखें खोलते ही परी ने बस एक बात कही,
“डरो मत… मैं यहां तुम्हारी मदद के लिए हूं…”
और फिर वो धीरे-धीरे वापस तितली बन गई।
कबीर ने खुद को संभाला.... माइक पकड़ा और अपनी आवाज साफ की फिर बोला,“सो… जैसा कि मैंने कहा… इनोवेशन इन मार्केटिंग…”
इस बार उसकी आवाज स्थिर थी।
प्रेजेंटेशन के दौरान
हर्षित धीरे से दर्श के कान में बोला,“अबे… तूने देखा, ये किससे बात कर रहा था?”
दर्श ने आंखें मटकाईं,“पता नहीं यार… कुछ तो गड़बड़ है…”
आदित्य ने भी गंभीरता से कहा,
“जो भी है, बाद में बात करनी होगी इससे… अकेला मत रहने देना इसे।”
कुछ ही देर बाद कबीर ने अपना प्रेजेंटेशन खत्म किया।
प्रोफेसर वर्मा ने कहा,“गुड। लेकिन अगली बार ऐसी हरकतें क्लास में नहीं चाहिए।यू मे गो।”
कबीर ने राहत की सांस ली,फाइल समेटी और अपनी सीट की तरफ बढ़ गया।
जैसे ही वो सीट पर बैठा,दर्श ने उसे कंधे से पकड़ लिया,
“अबे ओ पगले, क्या कर रहा था क्लास में??”
हर्षित ने कहा,“तू किससे बात कर रहा था बे?? सच-सच बता!”
आदित्य ने गहरी नजरों से देखा,“कबीर, जो भी है… हम सब दोस्त हैं,कोई दिक्कत है तो बता दे।”
कबीर ने थके हुए अंदाज़ में कहा,“तुम लोग नहीं समझोगे यार… कुछ मत पूछो अभी…”
दर्श ने उसका बैग उठाया,“चल… कैफेटेरिया चलते हैं… कोल्ड ड्रिंक पिलाता हु मैं…फिर तू बोलेगा कि क्या माजरा है…”
हर्षित ने जबरदस्ती उसे ऊपर उठाया और बोला,“शक्ल देख तेरी? सफ़ेद पड़ गई है… पहले खा ले, फिर बात करेंगे।”
कैफेटेरिया में भीड़ थी।
दर्श, हर्षित और आदित्य एक टेबल पर कबीर के साथ बैठ गए।
दर्श ने बिस्किट का पैकेट फाड़ते हुए कहा,
“अबे कब्बू, बता न… क्या हुआ था क्लास में?तूने पागल कर दिया था सबको!”
हर्षित बोला,“और किससे बात कर रहा था बे?
तेरे दादाजी का भूत आया था क्या बे?”
उसकी बात पर आदित्य हंस पड़ा।
कबीर का मन बेचैन था।
वो जानता था कि वो परी के बारे में किसी को नहीं बता सकता।
कोई मानेगा भी नहीं… उल्टा उसे पागल समझ लेगा
कबीर ने जबरदस्ती हंसते हुए कहा,
“कुछ नहीं यार… मैं नर्वस हो गया था बस, इसलिए…”
दर्श ने संदेह भरी नजरों से देखा,“पक्का? कुछ छुपा तो नहीं रहा?”
कबीर ने सिर हिलाया,“पक्का, कुछ नहीं…”
फिर कबीर ने राहत की सांस ली,उसकी नजर अब भी इधर उधर थी,जैसे उसे डर हो, कहीं वो परी फिर न आ जाए।
तभी पीछे से परफ्यूम की खुशबू आई।कबीर के चेहरे पर तनाव आ गया। उसने तुरंत अपनी गर्दन घुमाई।
सामने का नजारा देख कर उसकी भौहें तन गई।
श्रुति अपने दो दोस्तों के साथ उसके पास आकर खड़ी हो गई थी।
“हाय कबीर!”
दर्श बड़बड़ाया,“अबे कब्बू, लो… मैडम फिर आ गईं!”
श्रुति पास आकर झुक गई,“आज क्लास में क्या हुआ था?तुम बहुत नर्वस दिख रहे थे…सब ठीक है ना?”
वो बोलते-बोलते कबीर की कुर्सी के पास बहुत पास आ गई।
उसके बाल कबीर के चेहरे से छूने ही वाले थे।
“सीरियसली कबीर , तुम न बहुत क्यूट लग रहे थे…”
श्रुति बोले जा रही थी।
दर्श,आदित्य और हर्षित एक दूसरे को इशारेबाजी कर रहे थे।
कबीर ने झट से अपनी कुर्सी सरकाई, और श्रुति से थोड़ा दूर पीछे हटने की कोशिश की,“थ… थैंक्यू, श्रुति… बैठ जाओ न…”
लेकिन श्रुति ने कबीर के कंधे पर हाथ रख दिया,“तुम्हारे साथ बैठना अच्छा लगता है… आज साथ में नोट्स भी डिस्कस कर लेंगे!”
तभी…
कबीर की नजर कैफेटेरिया के कोने में गई।
वहाँ वही नीली तितली मंडरा रही थी।कुछ सेकंड में तितली चमकते हुए हवा में ठहर गई,और धीरे-धीरे परी में बदल गई।
परी की नीली आंखों में इस बार एक तेज चमक थी।
वो कबीर और श्रुति को ही देख रही थी।
श्रुति कबीर के और करीब झुकी,“तुम्हें पता है कबीर, तुम जैसे लड़के बहुत कम होते हैं…”
तभी…
एक ठंडी हवा का झोंका आया।
परी ने अपनी नजरें श्रुति पर गड़ा दीं। और श्रुति का हाथ अचानक ठंडा पड़ गया।
कंटिन्यू.....
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें.......
तभी…
एक ठंडी हवा का झोंका आया।
परी ने अपनी नजरें श्रुति पर गड़ा दीं। और श्रुति का हाथ अचानक ठंडा पड़ गया।
“ऊह… इतनी ठंडी हवा कहाँ से आ गई…”
श्रुति ने अपना हाथ कबीर के कंधे से तुरंत हटा लिया और अपनी हथेली रगड़ने लगी।
दर्श हँसते हुए बोला,“हवा नहीं, कबीर का आइस कोल्ड एटीट्यूड है मैडम, संभल कर!”
हर्षित बोला,“वैसे भी कबीर को हग-फग से एलर्जी है!”
आदित्य ने भी हँसते हुए कहा,“अबे ओ कबीर! तूने क्या बेचारी का हाथ जमा दिया ?”
कबीर ने कुछ नहीं कहा।
उसकी नजरें कैफेटेरिया के कोने में खड़ी परी पर थीं।
परी का चेहरा गंभीर था, और उसकी नीली आँखें श्रुति पर टिकी हुई थीं।
श्रुति ने दोबारा पास आने की कोशिश की,
“कबीर, आज शाम एक कॉफी? तुम्हें रिलैक्स करवा दूंगी, बहुत स्ट्रेस में दिख रहे हो…”
कबीर का चेहरा शांत ही था।
उसने धीरे से कहा,“नहीं, मुझे कही नहीं जाना… प्लीज…”
श्रुति चौंक गई,“व्हाट? तुम हमेशा ऐसे ही क्यों बात करते हो… कोई बात है क्या?”
तभी परी ने धीरे से अपने हाथ हवा में लहराए।
एक ठंडी हवा का झोंका फिर से आया,इस बार इतना तेज कि श्रुति के बाल उड़कर उसके चेहरे पर चिपक गए।
“ओह गॉड…”श्रुति ने बाल हटाए और चिढ़ कर कहा,“यहाँ बहुत अजीब हवा चल रही है, मैं जा रही हूँ!”
वो पलटी, गुस्से में अपने दोस्तों को इशारा किया,और तीनों वहाँ से चली गईं।
जैसे ही श्रुति गई, परी की आंखों की चमक धीरे-धीरे कम हो गई।उसके चेहरे पर अब एक हल्की सी मुस्कान लौट आई ।
कबीर ने गहरी सांस ली।
उसने एक पल के लिए आँखें बंद कीं, मानो खुद को संभाल रहा हो। जब खोली, तो परी वहाँ से गायब हो चुकी थी।
दर्श अपना च्यूइंगम फुलाते हुए बोला, “अबे कबीर, तू तो कड़क निकला बे… मैडम को ऐसे काट दिया!”
हर्षित ने नोट्स उठाते हुए कहा, “औरतों से दूर रहना तुझे बखूबी आता है भाई!”
आदित्य ने हँसकर कबीर की पीठ पर हाथ मारा, “पर भाई, दिल तोड़ दिया बेचारी का… वैसे आजकल लड़की पटाना फैशन में है, और तू है कि सन्यासी बना बैठा है!”
कबीर ने बस हल्की सी मुस्कान दी। पर बोला कुछ नहीं।
शाम का वक्त ।सूरज ढल रहा था, और आसमान हल्का नारंगी हो चुका था।
हॉस्टल की छत पर हवा ठंडी बह रही थी।
कबीर चुपचाप छत की रेलिंग पर कोहनी टिकाए खड़ा था।
नीचे हॉस्टल के कमरे में लड़कों की हँसी और स्पीकर पर बजते गानों की आवाज आ रही थी, पर कबीर उनसे दूर, बस आसमान को देख रहा था।
उसने गहरी साँस ली।उसे लगा जैसे किसी ने उसके आसपास से हल्की सी खुशबू उड़ाई हो।
कबीर ने तुरंत गर्दन घुमाई।
छत के कोने में, जहाँ एक पुरानी पानी की टंकी रखी थी, उसके पास नीली सी रोशनी चमकी।
कुछ सेकंड के लिए वो रोशनी हवा में ठहर गई, और फिर…
वो वहीं खड़ी थी।
परी।
कबीर के चेहरे का रंग उड़ गया।उसने जल्दी से एक कदम पीछे लिया।
वो घबराई आवाज में बोला,“द… देखो, मेरे पास मत आओ…”
परी ने कुछ नहीं कहा। बस उसकी तरफ धीरे-धीरे कदम बढ़ा दिए।
कबीर और पीछे हुआ। उसके कदम लड़खड़ाए। पीछे रेलिंग थी।उसके पैर फिसले और वो गिरने ही वाला था…
तभी…
परी हवा में झटके से उड़ते हुए आई।
उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए, और एक नीली रोशनी उसकी हथेलियों निकलती हुई कबीर की तरफ बढ़ गई।
कबीर गिरते-गिरते हवा में रुक गया।उसकी पीठ रेलिंग से टकराई, पर वो नीचे गिरा नहीं।
परी उसके सामने हवा में उड़ती हुई आई, और बहुत धीमे से बोली,“मैं तुम्हें गिरने नहीं दूंगी…”
कबीर की सांसें और तेज हो गईं। उसका दिल बेतहाशा धड़क रहा था। उसकी आँखों में डर और आश्चर्य एक साथ था।
“त… तुम कौन हो…? मेरे पीछे क्यों आ रही हो…? मुझसे क्या चाहती हो…?”
परी की नीली आँखों में हल्का सा दर्द उभरा। उसने धीरे से अपने बाल पीछे किए, और कबीर की ओर एकटक देखने लगी।
फिर धीमे से बोली, “कबीर, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है… मैं तुम्हें सिर्फ बचाने आई हूँ…”
कबीर ने तेजी से सिर हिलाया। उसकी साँसें अब भी तेज थीं। उसकी आँखों में डर भी साफ साफ दिख रहा था।
“न-नहीं… प्लीज… मुझे अकेला छोड़ दो… मुझे डर लगता है… तुम… जो भी परी-वरी हो… मुझसे दूर रहो…”
परी कुछ कदम और आगे बढ़ी। उसकी चाल में एक अजीब सी बेफिक्री थी, जैसे उसे पता था, कबीर कितना भी पीछे हट जाए, वह हमेशा उसके पास पहुँच ही जाएगी।
कबीर ने फिर से एक कदम पीछे लिया। उसकी पीठ फिर से रेलिंग से लग गई। उसने घबराकर अपने दोनों हाथ आगे किए जैसे खुद को बचाने की कोशिश कर रहा हो।
“मैं नहीं जानता तुम कौन हो… और तुम्हारे पास… तुम्हारे पास ये… ये शक्तियाँ कहाँ से आती हैं… प्लीज… मत आओ मेरे पास…”
परी ने उसके सामने आकर धीरे से सिर झुकाया।
“मैं बेवजह नहीं आई, कबीर…और तुम्हें मुझसे डरने की जरूरत नहीं है…”
कबीर का दिल तेज तेज धड़कने लगा।उसने देखा, परी की हथेलियों से हल्की सी नीली रोशनी फिर से निकल रही थी। ये देख उसने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं और रेलिंग पकड़ ली।
फिर बोला, “प्लीज… मत दिखाओ ये सब … मैं… मैं इंसान हूँ… मैं इन चीज़ों से डरता हूँ… मुझे नहीं चाहिए ये सब…”
परी ने धीरे से अपनी हथेली की रोशनी बंद कर ली।
फिर शांत स्वर में बोली ,“ मैने तुम्हारे प्राण बचाए है मूर्ख…”
“मैं… मैं नहीं चाहता कोई मुझे बचाए… प्लीज… बस दूर रहो मुझसे…मै जीना भी नहीं चाहता। ”
“मृत्यु की बातें मत करो, कबीर…”
“त… तुम क्यों आई हो मेरी ज़िंदगी में…?अगर मैं मर जाता तो सब ठीक हो जाता…कोई परेशान नहीं होता… मैं भी नहीं…”
“तुम्हें लगता है मृत्यु आसान है…?
तुम्हें लगता है तुम्हारे प्राण से सब खत्म हो जाएगा…?तुम्हें नहीं पता, तुम्हारी मृत्यु से कितनी अनकही कहानियाँ अधूरी रह जाएँगी…”
“प… परी… तुम जो भी हो… मुझे मर जाने दो…प्लीज… मुझे अकेला छोड़ दो… मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा बचाना…”
परी का चेहरा कठोर हो गया।
“कबीर, मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगी। क्योंकि तुम्हारा जीना, सिर्फ तुम्हारा नहीं है…”
कबीर चीखते हुए बोला,“क्यों? क्यों नहीं मर सकता मैं? कौन हो तुम?तुम्हें किसने हक दिया मेरी ज़िंदगी में दखल देने का!”
“मैं वो हूँ, जिसे तुम्हारी साँसों का हिसाब रखना है।मैं वो हूँ, जिसने तुम्हारे प्राण बचाए हैं।मैं वो हूँ, जिसके लिए तुम्हारा जीना ज़रूरी है।”
“मुझे नहीं चाहिए ये सब… मैं थक गया हूँ…मैं बस… मैं बस मर जाना चाहता हूँ…”
“अबे कबीर… कबीर… उठ साले…”
कबीर ने झटके से आँखें खोलीं। उसने हड़बड़ाकर इधर-उधर देखा।
दरअसल… वह लाइब्रेरी में था।लकड़ी की मेज पर सिर टिकाकर सो गया था।
दर्श उसके सामने खड़ा था एक बुक पकड़े हुए।
“अबे कब्बू… क्लास बंक करके यहाँ सोने आता है क्या बे… चल उठ…”
कबीर अभी भी घबराया हुआ था। उसने जल्दी से अपनी गर्दन इधर-उधर घुमाई।कोई परी नहीं थी…कोई नीली रोशनी नहीं थी…कोई ठंडी हवा नहीं थी…
सब कुछ शांत था।
उसने तुरंत अपनी घड़ी देखी। दोपहर के 2:27 बज रहे थे।
धूप खिड़की से छन कर अंदर आ रही थी, और किताबों पर पड़कर सुनहरी रेखाएँ बना रही थी।
कबीर ने गहरी साँस ली।उसके हाथ अब भी काँप रहे थे। उसने अपने माथे पर से पसीना पोंछा।
दर्श ने उसे घूरते हुए पूछा,“क्या हुआ बे… सपना देखा क्या? वैसे चेहरा तो ऐसे बना रखा है जैसे कोई भूत देख लिया हो…”
कबीर ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया।उसने पानी की बोतल उठाई और एक लंबा घूँट लिया।
उसका दिमाग अभी भी छत का वही सपना याद कर रहा था…
परी… उसकी ठंडी नीली आँखें…हवा में उड़ते हुए आना…
उसकी आवाज़…“मैं तुम्हें गिरने नहीं दूंगी…”
उसने तेजी से अपनी आँखें बंद कीं और खुद को संभालने की कोशिश की।पर कानों में परी की आवाज़ अभी भी गूंज रही थी।“मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगी…”
दर्श उसे झकझोरते हुए बोला,“अबे कबीर… चल बे, साइकोलॉजी वाले रावत सर ने एक काम दिया है, सबको लाइब्रेरी से केस स्टडी निकाल कर लाने को कहा है, और तू यहाँ सपने में खोया पड़ा है…”
“साइकोलॉजी…”
यह शब्द सुनते ही कबीर का दिमाग ठनका।उसके चेहरे पर एक पल को हल्का सा तनाव आया। उसने अपने होंठ भींच लिए।
साइकोलॉजी… मतलब दिमाग की बातें।मतलब दिमाग की गड़बड़ी।
मतलब… शायद वो किसी को बता सकता है।
उसके दिल में हल्की सी उम्मीद जागी कि रावत सर को वो सब बता दे, जो उसे दिखता है…जो वो महसूस करता है…वो परी ...वो नीली रोशनी…उसकी आवाज़…
पर तुरंत उसका दिल बैठ गया।
नहीं…कोई भी सुनेगा, तो पागल समझेगा।सब हँसेंगे… रावत सर भी शायद उसे हॉस्पिटल भेज दें।
कबीर ने अपनी उँगलियों को आपस में मरोड़ते हुए नीचे देखा।
उसके दिल की धड़कन फिर से तेज़ हो गई थी।
“अबे, क्या सोच रहा है? चल, वरना सर क्लास में फिर फटकार देंगे, कि तुम लोग टाइम वेस्ट करते रहते हो…” दर्श ने उसकी पीठ पर हाथ मारते हुए कहा।
कबीर कुछ नहीं बोला।बस चुपचाप अपना बैग उठाया और उठ खड़ा हुआ।
और फिर कबीर चुपचाप दर्श के पीछे-पीछे साइकोलॉजी क्लास की तरफ बढ़ गया।
रावत सर क्लास के दरवाज़े पर खड़े थे, स्टूडेंट्स की कॉपियाँ चेक कर रहे थे।
उनकी मोटी ऐनक नाक पर खिसकी हुई थी, और उनके माथे पर सिलवटें थीं।
“आ गए? सब ले आए केस स्टडी?”रावत सर ने सबको घूरते हुए पूछा।
दर्श ने फाइल आगे बढ़ाई। हर्षित और आदित्य ने भी बढ़ा दी।
कबीर धीमी आवाज़ में बोला,“सर… वो… मैं…”
कंटिन्यू.....
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें.......
और फिर कबीर चुपचाप दर्श के पीछे-पीछे साइकोलॉजी क्लास की तरफ बढ़ गया।
रावत सर क्लास के दरवाज़े पर खड़े थे, स्टूडेंट्स की कॉपियाँ चेक कर रहे थे।
उनकी मोटी ऐनक नाक पर खिसकी हुई थी, और उनके माथे पर सिलवटें थीं।
“आ गए? सब ले आए केस स्टडी?”रावत सर ने सबको घूरते हुए पूछा।
दर्श ने फाइल आगे बढ़ाई। हर्षित और आदित्य ने भी बढ़ा दी।
कबीर धीमी आवाज़ में बोला,“सर… वो… मैं…”
रावत सर ने उसकी ओर देखा।
“हाँ कबीर, क्या हुआ?”
कबीर ने अपने होंठ भींच लिए। उसकी आवाज़ गले में अटक गई।उसने कहना चाहा, “सर, मुझे कुछ दिखता है। मुझे एक परी दिखती है, जो कहती है मैं मर नहीं सकता…”
लेकिन मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली।
रावत सर ने फिर पूछा,“क्या हुआ कबीर?”
कबीर ने अपनी नजरें झुका लीं।
उसने जल्दी से एक फाइल अपने बैग से निकाली और आगे बढ़ा दी,“ये… ये लाया हूँ, सर…”
रावत सर ने फाइल पकड़ी, पर उनकी नजरें कबीर के चेहरे पर थीं।
“ठीक है, सब अंदर आ जाओ।”
क्लास में रावत सर लेक्चर दे रहे थे।
फिर क्लास खत्म होने में बस 5 मिनट बचे थे।
रावत सर ने किताब बंद करते हुए कहा,“ठीक है, आज इतना ही।कल हम माइंड डिस्टर्बेंसेस और ह्युमन परसेप्शन पर केस डिस्कस करेंगे।और हाँ…”
उनकी नज़रें सीधे कबीर पर गईं,
“…अगर किसी को कोई प्रॉब्लम है, कोई कन्फ्यूजन है, या कुछ ऐसा है जो वो शेयर करना चाहता है,तो मुझसे बात कर सकता है।कबीर, तुम्हें भी अगर कुछ कहना हो… तो बेहिचक कहना बेटा।”
पूरी क्लास में एक पल को सन्नाटा छा गया।
दर्श, हर्षित, आदित्य ने कबीर की ओर मुंडी घुमाई।
कबीर ने अपनी उंगलियाँ मरोड़ीं, गहरी साँस ली।फिर उसने धीरे से कहा,“सर… परी… परी… रियल में होती है क्या?”
एक पल में पूरी क्लास घूमकर कबीर की ओर देखने लगी।
फिर…अगले ही पल पूरी क्लास हँसने लगी।
रावत सर ने तुरंत सबको घूर कर देखा।
फिर उनकी कड़क आवाज़ गूँजी, “इनफ़! क्या तुम लोग समझते हो, किसी के क्वेस्चन पर हँसना कूल होता है?
रिस्पेक्ट लर्निंग। रिस्पेक्ट योर क्लासमेट्स। अंडरस्टूड?”
पूरी क्लास फिर शांत हो गई और धीरे से बोली, “यस सर।”
रावत सर ने अपनी ऐनक उतारी और टेबल पर रख दी, अपने हाथ पीछे बाँधे, और कबीर की आँखों में सीधे देखते हुए बोले,
"कबीर... फेरिज़ के बारे में पूरी दुनिया में अलग-अलग थ्योरीज हैं।कहीं इन्हें सबकॉनशिइस माइंड की क्रिएशन्स कहा गया है, कहीं किसी और डाइमेंशन की एनरजीज़।"
क्लास फिर चुप। कोई फिर से हँसने की हिम्मत नहीं कर रहा था।
सभी की निगाहें अब कबीर और रावत सर पर थीं।
रावत सर आगे बोले,"कुछ कल्चर्स बिलीव करते हैं कि फेरिज़ अनसीन प्रोटेक्टर्स होती हैं।कुछ साइकॉलॉजिस्ट्स कहते हैं कि ये हैलूसिनेशन्स हैं।
ऐंड यू नो व्हाट... साइकॉलॉजी में, इमेजिनेशन और हैलूसिनेशन में फर्क होता है।"
उन्होंने धीरे से कबीर के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराकर बोले ,“डोंट वरी , कबीर , अगर तुम्हें रियल में फेरिज़ दिखती हैं, तो बता सकते हो। "
कबीर ने देखा कि सब फिर हँसने ही वाले हैं, उसने जल्दी से बात बदल दी,“सर… मेरा मतलब वो नहीं था…
मैं बस पूछ रहा था कि इमेजिनेशन और रियलिटी में फर्क कैसे करते हैं… यही पूछना था…”
रावत सर ने मुस्कराकर कहा:
“गुड क्वेश्चन, कबीर।इसका जवाब कल की क्लास में दूँगा। प्रिपेयर रहना।”
रात का वक्त।
बॉयज हॉस्टल की मेस में हलचल थी।
कबीर ने चुपचाप अपनी प्लेट में दाल-चावल और सब्ज़ी ली, और सबसे किनारे वाली टेबल पर जाकर बैठ गया।
उसकी आँखें बार-बार इधर-उधर घूम रही थीं।
दिल बेमकसद धड़क रहा था।
“अब मत आ जाना… प्लीज़…”
उसने मन में सोचा।
तभी एक ठंडी हवा का झोंका उसके पास से गुजरा और उसके कानो में आवाज गूंजी,“कबीर…कबीर... कबीर!”
कबीर की सांस अटक गई।उसने धीरे से सिर उठाया।
सामने… टेबल के दूसरी तरफ… परी खड़ी थी।
उसकी नीली आँखें सीधे कबीर को देख रही थीं।
कबीर ने तेजी से इधर-उधर देखा।
दर्श, हर्षित, आदित्य और बाकी लड़के हँसते हुए खाना खा रहे थे।पर किसी ने परी को देखा ही नहीं।
“ये… फिर से आ गई…”कबीर ने धीरे से अपनी मुठ्ठियाँ भींच ली।
परी ने मेस में रखी सब्जियों और दाल को घूरकर देखा।
फिर अजीब से मुँह बनाकर बोली,“ये… ये क्या है…?”
वो कुछ कहने ही वाला था, कि तभी परी फिर खिलखिलाकर बोली,“नाम भी नहीं पता मुझे तुम्हारे इस भोजन का… कबीर…”
कबीर चुप ही रहा। वो कुछ कह ही नहीं पाया। बस उसे देखता रहा।
परी अब भी उसके बहुत करीब झुकी हुई थी, उसकी साँसें कबीर के चेहरे को छू रही थीं।उसके बालों से हल्की सी खुशबू आ रही थी।
“कबीर, बोलो ना…”वो फिर बोली, उसकी आवाज़ में एक नटखटपन था,“ये क्या खाते हो…? ये तुम्हारे इंसानी खाने का नाम क्या है…?”
कबीर ने हिम्मत करके धीमे से कहा,“चावल… और… दाल…”
परी ने मुस्कुराते हुए धीरे से अपने होंठ भींचे, उसकी आँखों में शरारत चमकी,“चाव… अल…? दा… ल…?”
वो शब्दों को धीरे-धीरे दोहराने लगी, जैसे कोई बच्चा बोलना सीख रहा हो।
फिर वो खिलखिला कर हँस दी, उसकी हँसी हवा में गूंज गई।
कबीर धीरे से बोला,“चुप रहो… सब देख लेंगे…”
परी अपनीआँखें फैलाकर बोली,“कौन देखेगा? कोई मुझे नहीं देख सकता, कबीर…सिर्फ तुम मुझे देख सकते हो… सिर्फ तुम…”
कबीर का दिल तेज़-तेज़ धड़कने लगा।
उसने घबराकर पानी पीने के लिए गिलास उठाया, पर उसका हाथ काँप गया।
परी ने धीरे से उसके काँपते हाथ पर अपनी उंगलियाँ रख दीं।
नीली रोशनी की एक झिलमिल सी लहर कबीर के हाथ में दौड़ गई।
कबीर ने झटके से हाथ खींच लिया।
“तुम… मत करो ये सब…”
परी मुस्कुराई,“तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं है, कबीर…”
उसकी मुस्कान अचानक हल्की सी उदास हो गई,
“मुझे भी… इंसानों की दुनिया में रहना है…”
“क्या…?” कबीर ने अनजाने में पूछ लिया।
परी कुछ बोलने ही वाली थी, तभी हर्षित पीछे से कबीर की पीठ पर धौल मारता हुआ बोला,“अबे ओ कब्बू, कहाँ खोया है बे? खाना खा ना, ठंडा कर दिया सब!”
कबीर चौंककर हड़बड़ा गया। उसका गिलास कांपते हुए गिरते-गिरते बचा।उसकी नजरें तुरंत सामने गईं।
परी अब गायब हो चुकी थी।
कबीर ने तेजी से इधर-उधर देखा,लेकिन अब परी कही नहीं दिख रही थी।
दर्श भी पास आ गया,“ओए कबीर, आजकल बहुत अजीब हरकते करने लगा है तू… किसका ख्याल आ रहा है बे?”
उसने शरारती मुस्कान फेंकी।
आदित्य भी हँसते हुए बोला,“लगता है भाई को लव हो गया है… कबूल कर ले बे कबीर, कौन है वो परी?”
उसने मजाक में परी शब्द पर ज़ोर दिया।
कबीर के चेहरे का रंग उड़ गया। उसने चम्मच कसकर पकड़ ली।
हर्षित हँसकर बोला,“अबे रावत सर की क्लास में बोल भी दिया कि ‘सर परी रियल में होती है क्या’, और अब यहाँ भी परी-परी कर रहा है!”
फिर सभी लड़कों ने मिलकर बाते हँसी में उड़ा दी।
कबीर ने घबराकर कहा,“बस करो यार, बकवास मत करो…”
तभी अचानक एक जोर की आवाज़ हुई।
धड़ाम!
फिर एक तीखी जलने की गंध आई।
दर्श चिल्लाया, “अबे साले, ये जलने की गंध कहा से आ रही है?”
हर्षित ने पलटकर पीछे देखा और घबराकर बोला,“ओए! साइड में कूड़ेदान में आग लग गई बे!!”
पूरा मेस हड़कंप में आ गया।
आग ज्यादा नहीं थी, लेकिन लड़के हल्ला मचाने में उस्ताद थे।
कोई चिल्ला रहा था, कोई कुर्सियाँ खींच रहा था, कोई मोबाइल से वीडियो बनाने लगा।
“अबे पानी लाओ रे कोई!”
“अबे अबे! भाग यहाँ से!”
भीड़ में धक्कामुक्की मच गई।
कबीर घबराकर खड़ा हो गया।
उसने देखा, आग मेस के कोने में एक कूड़ेदान में लगी थी।
आग ज्यादा नहीं थी, लेकिन हवा में कुछ ज्यादा ही धुआं फैल गया था।
और वहीं… धुएं के बीच… आग के पास… परी खड़ी थी।
उसकी नीली आँखें चमक रही थीं।वो झुकी हुई थी और अपने हाथों से हवा कर रही थी,मानो फूंक मारकर आग बुझाने की कोशिश कर रही हो।
कबीर के चेहरे का रंग उड़ गया।उसने देखा, आग की दूसरी तरफ से लपटें परी को घेरने लगी थीं।
“परी…”
उसके मुँह से अनजाने में निकल गया।
पर परी ने नहीं सुना।वो बच्चों की तरह होंठ फुलाकर, अपने दोनों हाथों से हवा करती रही,“फू… फू… फू…”
कबीर का दिमाग सुन्न हो गया। उसने बिना कुछ सोचे प्लेट सरकाई और आग की तरफ दौड़ पड़ा।
हर्षित चिल्ला पड़ा,“अबे कबीर… ओए कहाँ जा रहा है बे! वहाँ आग लगी है पागल…”
दर्श ने भी पीछे से पकड़ने की कोशिश की,
“अबे रुक… मर जाएगा बे आग में…”
लेकिन कबीर उनकी सुनने की हालत में नहीं था।वो मेस के शोरगुल को चीरता हुआ आग की तरफ भागा।
आग की लपटें धीरे-धीरे परी की तरफ ही बढ़ने लगीं थी ।धुआं उसके चारों तरफ घिर गया।
कबीर के चेहरे पर डर फैल गया।
आदित्य चिल्लाया, “ओए रोक उसे! आग में क्यों जा रहा है बे!!”
लेकिन कबीर नहीं रुका।
वो भागता हुआ आग के पास पहुँचा, धुएं में घुस गया।उसने अपने हाथ से परी को पकड़ने की कोशिश की,लेकिन हाथ उसके आर-पार चला गया।
परी ने डरकर उसकी ओर देखा। “मैं… जल रही हूँ… कबीर…”
कबीर की साँसें तेज हो गईं,उसने काँपते हुए फिर से उसे पकड़ने की कोशिश की,पर फिर भी उसका हाथ खाली ही रह गया।
कंटिन्यू.....
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें.... और साथ ही कमेंट भी करे।
पीछे से दर्श, हर्षित और आदित्य भागते हुए आए,
दर्श चिल्लाया, “अबे कबीर! बाहर निकल! तू जल जाएगा बे!”
हर्षित ने उसका हाथ पकड़ा और खींचने की कोशिश की,
“अबे ओ, मरना है क्या तुझे? आग में क्यों घुसा बे!”
तभी हॉस्टल के गार्ड और दो लड़के बाल्टी में पानी लेकर दौड़ते हुए आए,पानी फेंका गया, और आग पर पानी गिरते ही धुएं में भाप उठी।
आग बुझ गई।
कबीर हाँफता हुआ वहीं बैठ गया।उसकी आँखें सामने देख रही थीं, जहाँ धुएं और भाप के बीच परी खड़ी थी।
परी ने धीरे से कबीर की ओर देखा। फिर उसने पीछे से अपने पंख खोले।
फड़फड़... फड़फड़...
पंखों की हल्की आवाज़ हुई।
और अगले ही पल…
फड़फड़... फड़फड़...
उसके पंख तेज़ी से हिले, और परी धीरे-धीरे हवा में ऊपर उठ गई।
कबीर बस बैठा रह गया, उसका हाथ अभी भी हवा में ही था।
परी उड़ गई थी।
“अबे ओ पागल!”पीछे से हर्षित ने उसकी गर्दन पकड़ ली।“मरना है तुझे? आग में घुसा क्यों बे!”
दर्श भी गुस्से में बोला,“तेरे दिमाग का दही हो गया है क्या बे? तू जानता है वो आग बढ़ जाती तो जल जाता तू!”
आदित्य ने भी खीझ कर कहा,“अबे क्या था वहाँ? जो तू दौड़ पड़ा आग में! "
कबीर चुपचाप बैठा रहा,उसका सिर झुका हुआ था, साँसें अब भी तेज चल रही थीं।उसकी उंगलियों में अब भी हल्की नीली झनझनाहट सी महसूस हो रही थी।
हर्षित ने उसकी गर्दन पर धौल मारी,“अबे! कुछ बोलेगा भी या ऐसे ही गर्दन झुकाए रहेगा?"
दर्श चिल्लाया,“क्या कर रहा था आग में घुस के? बोल!”
कबीर धीमे से बोला,“कुछ नहीं…”
दर्श फिर चिल्लाया,“कुछ नहीं? कुछ नहीं? अबे हम सब हिल गए थे यहाँ! और तू… पागल हो गया है साले!”
“अबे साले… कमीनें… हद है यार तेरी पागलपंती की…”
आदित्य ने भी गुस्से में कहा।
तीनों ने मिलकर कबीर को घेर लिया।
कबीर की आँखों में पानी भर आया, लेकिन उसने सिर उठाकर नहीं देखा।उसके गले में शब्द फँस गए।कह भी नहीं सकता था…बताए तो कौन मानेगा?फिर सब हँसी-मजाक में उड़ा देंगे।
रात का वक्त था हॉस्टल के कमरे में हल्की पीली रोशनी जल रही थी।
दर्श, हर्षित और आदित्य तीनों कबीर से नाराज थे और चुपचाप अपने-अपने बिस्तर पर बैठे थे, लेकिन उनकी नजरें बार-बार कबीर की तरफ उठ रही थीं।
जो कमरे की बालकनी में अकेला खड़ा था।
तभी…
एक ठंडी हवा का झोंका उसके पास से गुज़रा।
नीली चमकती रौशनी बालकनी में उतरी।
फड़फड़… फड़फड़… परी उड़ते हुए आई और उसके सामने हवा में ठहर गई।
“कबीर…”उसने मुस्कुराते हुए उसे पुकारा।
कबीर ने तुरंत मुंह फेर लिया।
परी मुस्कुराई,“गुस्सा हो मुझसे?"
“जाओ यहाँ से…”
उसकी आवाज़ में झुंझलाहट थी।
पर परी बेपरवाही से बालकनी की रेलिंग पर बैठ गई।
कबीर ने गुस्से में कहा,“मैं कैसे छुड़ाऊँ तुमसे पीछा… क्यों आती हो बार-बार…?”
परी ने हँसते हुए कहा,“वो तो नहीं छुड़ा सकते, कबीर…”
कबीर का गुस्सा फूट पड़ा,
“पागल कह रहे हैं सब मुझे! मेरी वजह से मेरे दोस्त मुझसे नाराज़ हैं! मैं पागल नहीं हूँ, समझी? लेकिन तुम… तुम क्यों दिखती हो सिर्फ मुझे?”
परी की मुस्कान धीमी हो गई।उसने नीचे ज़मीन की तरफ देखा, फिर धीरे से बोली,“मैं… सबको दिख सकती हूँ, कबीर……”
कबीर चौंक गया , उसकी भौंहें तन गईं।
“तो फिर दिख क्यों नहीं जाती सबको…? क्यों मुझे पागल बना रखा है?”
परी ने धीरे से कहा,“सबको दिखने के लिए तुम्हें मेरी मदद करनी होगी…”
कबीर हैरानी से बोला,“कैसी मदद…?”
“मेरी जादुई छड़ी… खो गई है इंसानों की दुनिया में…”
कबीर चौंक गया।
“क्या… जादुई छड़ी…?”
परी ने हल्की सी मुस्कान दी,
“मेरी शक्ति उसी में है… अगर वो छड़ी मुझे मिल गई, तो मैं इंसानों की दुनिया में रह सकूँगी… सब मुझे देख सकेंगे… और तुम्हें मुझसे पीछा छुड़ाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।”
कबीर का दिमाग घूम गया।उसने बालकनी की रेलिंग कस कर पकड़ ली,“ये पागलपन है … मैं… मैं नहीं कर सकता ये सब…”
कबीर ने कुछ पल उसे घूरा। फिर उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं।
“और अगर मैं ये न करूँ तो?”
“और अगर तुमने मेरी मदद नहीं की…”परी की मुस्कान और गहरी हो गई।“…तो मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगी, कबीर…और सिर्फ तुम्हें दिखती रहूँगी… हर जगह… हर वक्त…”
कबीर की साँसें अटक गईं। “तुम… मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?”
“ब्लैकमेल?”उसने सवालिया अंदाज में अपना सिर टेढ़ा किया।
फिर भौंहें सिकोड़ते हुए धीरे से बोली,“ये क्या होता है? ब्लैकमेल?”
कबीर हैरानी से बोला,“मतलब… तुम्हें इंग्लिश नहीं आती?”
परी ने अपने होंठ फुला लिए,
“नहीं आती ना… ये तुम्हारे इंसानी शब्द बहुत अजीब होते हैं…”
फिर उसने बच्चों की तरह मासूमियत से कहा,“ब्लैकमेल का मतलब क्या होता है, कबीर?”
बेचारे कबीर ने अपना माथा पकड़ लिया।“मतलब… किसी को डरा कर, मजबूर करना… जैसा तुम कर रही हो…”
“ओह… तो तुम्हारे हिसाब से मैं तुम्हें डरा रही हूँ?”
कबीर ने गुस्से में नजरें फेर ली,“हाँ, वही कर रही हो अभी तक तो…”
परी ने पलकें झपकाईं, फिर धीरे से मुस्कुरा दी।
“अगर मैं डराती, तो क्या तुम मुझे बचाने आग में कूद जाते, कबीर?”
कबीर का दिल धक् कर गया।
उसने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला, पर शब्द अटक गए।
परी ने धीरे से कहा,
“मैं सच में डर गई थी वहाँ… आग में…”
कबीर ने धीमे से कहा,“मुझे मत फँसाओ… मैं ये सब नहीं कर सकता…”
“तुम कर सकते हो, कबीर…”फिर परी ने मुस्कुराते हुए कहा,“तुम्हें पता है क्यों?”
कबीर ने गुस्से में कहा,“क्यों?”
परी ने उंगलियों से हवा में गोल गोल घुमाते हुए बच्चों जैसी आवाज़ में कहा,“क्योंकि… तुम्हारे दिल में अच्छाई है…”
फिर उसने कबीर की आँखों में देखते हुए कहा,“मुझे मेरी छड़ी ढूँढने में मदद करो, कबीर……फिर मैं सबको दिख जाऊँगी, तुम्हारे दोस्त भी देख सकेंगे……और तुम्हें पागल नहीं कहेंगे…”
सुबह हो गई थी।
कबीर उनींदा सा उठा, आँखों में रात भर की थकान,चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ दिख रही थीं।
पूरी रात वो बस सोचता ही रहा…करवटें बदलता रहा,
बिस्तर पर पड़े-पड़े छत को घूरता रहा।कभी करवट बदलकर तकिये में मुँह छुपाता,तो कभी बेचैनी में उठकर पानी पीता।
“अगर मदद नहीं करोगे, तो मैं बार-बार आती रहूंगी… तुम्हें परेशान करती रहूंगी…”
परी की खिलखिलाहट जैसे रातभर उसके कानों में गूंजती रही।
“कैसे छुड़ाऊ पीछा?”कबीर के मन में सवाल उठते, पर जवाब में परी की वही हँसी गूंज जाती।
रात के तीन बजे, चार बजे, पाँच बजे…कबीर बस करवट बदलता रहा।
और अब सुबह का समय हो चुका था। और हॉस्टल के कमरे में रोज की तरह ही हल्की चहल पहल शुरू हो गई थी।
दर्श अभी तक बिस्तर में पड़ा था, हर्षित मुँह धो रहा था।
आदित्य, नहा चुका था और अभी अपनी शर्ट पहन रहा था।
तभी…
फड़फड़… फड़फड़…
ठंडी हवा का झोंका कमरे में आया, और खिड़की के परदे थोड़े हिल गए।
नीली चमकती रौशनी कमरे में झलक गई।
“शुभ प्रभात, कबीर…”
परी की खिलखिलाती आवाज कबीर के कानों में गूंज गई।
कबीर ने एकदम से नजरें उठाईं।
परी वहीं हवा में उड़ रही थी।
कबीर ने गुस्से में कहा, “फिर आ गई…?”
परी ने बच्चों जैसी मुस्कान के साथ कहा,“जब तक मदद नहीं करोगे, मैं आती रहूंगी…”
आदित्य, जो अभी शर्ट के बटन लगा रहा था,
उसने कबीर को घूर कर देखा।“अबे किससे बात कर रहा है तू सुबह-सुबह…?”
कबीर ने एक झटके में नजरें घुमा लीं,“कुछ नहीं…”
परी ताली बजाते हुए बोली, “देखा…? तुम्हें पागल कहेंगे सब…”फिर उसने हवा में गोल घूमते हुए कहा,
“मदद कर दो ना, कबीर… मेरी छड़ी ढूँढ दो… फिर मैं सबको दिख जाऊंगी…”
कबीर गुस्से में अपने दाँत भींच कर बोला,“कितनी बार कहा, मैं ये सब नहीं कर सकता…”उसने बेहद धीमी आवाज़ में कहा, ताकि आदित्य सुन न सके।
परी ने अपने होंठ फुला लिए,“मतलब, नहीं करोगे…?”
कबीर धीरे से बोला,“चुप रहो यार… दोस्त देख लेंगे…”
परी ने चुप होने की जगह और जोर से खिलखिला कर हँसना शुरू कर दिया।
“मैं चुप नहीं रहूँगी, कबीर… जब तक हाँ नहीं करोगे…”
कबीर ने गुस्से में मुँह फेर लिया फिर बड़बड़ा पड़ा ,“परी… प्लीज… चुप रहो…”
“अबे क्या बड़बड़ा रहा है तू खुद से?”आदित्य ने शक से कबीर को देखा,
कबीर ने जल्दी से नजरें झुका लीं, “कुछ नहीं यार… नींद नहीं आई तो… बस…”
परी फिर उसके पास आ गई, “नींद क्यों नहीं आई…?"
कबीर ने गुस्से में उसे घूरा कर धीमे से बोला ,“क्योंकि तुम पूरी रात मेरे दिमाग में हँसती रही… उड़ती रही…”
परी फिर से खिलखिला पड़ी,“तो मदद कर दो ना…”
कबीर खीझते हुए धीमे से बोला,“क्या करूँ… कहाँ ढूँढूँ तुम्हारी वो छड़ी… मुझे नहीं पता कुछ…”
“मैं बता दूंगी कहाँ ढूँढना है…”परी ने आँख मारते हुए कहा,
“पर उसके लिए तुम्हें ‘हाँ’ कहना पड़ेगा…”
कबीर ने गुस्से में होंठ भींच लिए,धीरे से गर्दन हिलाई,“ठीक है… देखता हूँ…”
परी की खुशी से चमक उठी।
“तो चलो! अभी चलते हैं ढूँढने!”वो बोली।
कबीर का मुँह खुला का खुला रह गया,“क्या…? अभी??”
परी ने तुरंत हवा में गोल घूमते हुए कहा,“हाँ! अभी… अभी… अभी…!!”
कबीर ने हड़बड़ाकर कहा,“अरे… अरे पागल हो क्या? अभी कैसे…? मुझे आज यूनिवर्सिटी की सारी क्लासेज अटेंड करनी हैं…”
परी ने अपने होंठ फुला लिए,“अरे वो सब छोड़ दो ना…”
कबीर आँखे चौड़ी कर बोला,“क्या??? मैं मेरी पढ़ाई छोड़ कर तुम्हारी छड़ी ढूँढने निकल जाऊं??”
परी ने बड़ी ही मासूमियत से आँखें झपकाईं,“तो क्या हुआ… तुम्हारी परीक्षाओं में भी मैं मदद कर दूंगी…”
उसकी बात सुन कबीर ने अपना माथा पकड़ लिया,
“ये परी तो पागल कर देगी मुझे…”
फिर वो आगे धीरे से बोला,“नहीं परी, आज नहीं… पहले मैं क्लासेज अटेंड कर लूँ, उसके बाद कोई प्लान बनाते हैं…”
परी ने जिद्दी अंदाज में हाथ कमर पर रख लिए,“नहीं! मुझे अभी ढूँढनी है! अभी! अभी! अभी!”
कबीर भी जिद्दी था, “मैं भी कह रहा हूँ, अभी नहीं… समझी तुम?”
परी ने गुस्से में अपना पैर हवा में पटका , “मैने कहा न अभी !अभी !अभी! ”
कबीर ने भी अपना पैर पटका जमीन पर ,“और मैंने भी कहा न कि अभी नहीं!नहीं !नहीं!"
ठीक उसी वक्त बाथरूम का दरवाजा खुला और
हर्षित नहा कर बाहर आया।उसने ऊपर शर्ट पहन रखी थी और नीचे तौलिया लपेट रखा था। हां पर उसने अपना चश्मा नहीं पहना था,इसलिए उसकी आँखों के आगे सब कुछ हल्का धुंधला दिख रहा था।
दर्श भी उठ चुका था, बिस्तर समेट कर वो बस उबासी लिए जा रहा था।
कि तभी…
ठक!!
कंटिन्यू.....
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें.......
ठक!
हर्षित का कंधा कबीर से टकरा गया,जिसकी नजरें अभी भी परी को घूर रही थीं।
“अबे… कौन है बे यहाँ…?”हर्षित आँखें मिचमिचाते हुए बोला।
कबीर भी हड़बड़ा गया,“साले देख कर चला कर…”
हर्षित ने आँखें मिचमिचाते हुए कबीर के चेहरे की तरफ हाथ बढ़ाया,“ओये कबीर तू है क्या? मुझे दिख नहीं रहा बे…”
कबीर ने पास की टेबल पर रखा हर्षित का चश्मा उठाया और उसके हाथ में थमा दिया,“ले, पहन ले पहले… वरना एक दिन मुझे ही दीवार समझ कर ठोक देगा…”
हर्षित ने अपने भीगते बालों को झटका देते हुए चश्मा पहना,
“अबे सब धुंधला-धुंधला लग रहा था, और तू भी न सुबह-सुबह खड़ा होकर हवा में क्या घूरे जा रहा था…?”
दर्श, जो उबासी लेते हुए बिस्तर समेट रहा था, पीछे से बोला,
“हाँ बे, कबीर! आज हम मंदिर के पुजारी के पास जाएंगे तेरा इलाज करवाने।"
कबीर चिढ़ कर बोला,“मैं बिल्कुल ठीक हूँ, समझे तीनों?!!”
आदित्य बोला,“अबे कबीर, गुस्सा क्यों हो रहा है सुबह-सुबह… भूत-प्रेत दिख रहे हैं क्या?”
कबीर ने पैर पटका,“हाँ, भूत ही समझ लो…”
उसने परी को घूर कर देखा।
परी भौहें चढ़ा कर बोली,“मैं भूत नहीं हूँ… परी हूँ… और मुझे अभी जाना है छड़ी ढूँढने…”
कबीर झल्ला कर बोला,“नहीं मतलब नहीं! और अब मुझे नहाने जाना है, जा रही हो या नहीं?”
परी ने फिर जिद्दी अंदाज में कमर पर हाथ रख लिए,
“मैं नहीं जा रही! जब तक ‘हाँ’ नहीं कहोगे, मैं यहीं रहूँगी…”
कबीर ने उसे घूर कर देखा और गुस्से में बाथरूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया।
लेकिन जैसे ही उसने दरवाजा बंद किया…
परी फर्र… से हवा में उड़कर बाथरूम की खिड़की से अंदर आ गई और दीवार पर टिक कर खड़ी हो गई।
कबीर, जिसने अभी बस पानी चला कर बाल्टी में भरनी शुरू की थी, वो पलटा और परी को वहाँ देखकर उछल पड़ा।
“अबे तुम यहाँ भी आ गई…???”
परी ने बड़ी ही मासूमियत से कहा,“कहा था ना, जब तक मदद नहीं करोगे, मैं जाऊंगी नहीं…”
कबीर ने खीझते हुए कहा, “यार… मुझे शर्म आती है… प्लीज बाहर जाओ…”
परी ने भी होंठ फुला लिए,“मुझे भी आती है… पर जब तक तुम हाँ नहीं कहोगे, मैं नहीं जाऊंगी…”
कबीर गुस्से में मुँह फेर कर बड़बड़ाया,“पागल… एकदम पागल है ये…”
कबीर ने धीमे-धीमे अपनी टी-शर्ट पकड़ कर उतारनी शुरू की,
और जैसे ही उसने टी-शर्ट उतारी…
परी का चेहरा लाल पड़ गया।
उसने फटाक से अपनी आँखें बंद कर लीं, और कबीर की तरफ पीठ घुमा कर खड़ी हो गई।
“अअ… ये …वस्त्र क्यों उतार रहे हो। "
कबीर ने घूर कर उसकी पीठ को देखा फिर चिढ़ कर बोला,
“क्योंकि कपड़े उतार कर ही नहाते हैं इंसान, परी जी…कम से कम हवा में उड़ते-उड़ते ये बातें तो सीख ही लेती…”
परी ने धीरे से आँखे खोलीं, लेकिन फिर फटाक से बंद कर लीं।उसकी गर्दन और कान तक लाल हो गए थे।
“मुझे नहीं पता था… मैं… मैं… मैं…”परी की आवाज में घबरा रही थी।
कबीर बाल्टी में पानी भरता हुआ खीझ कर बोला,“तो अब पता चल गया होगा… अब तो जा सकती हो न बाहर…?”
परी ने अभी भी आँखें बंद रखते हुए, हवा में हाथ इधर-उधर करते हुए रास्ता टटोलना शुरू कर दिया।“ हां मैं… मैं जा रही हूँ…”
लेकिन हवा में उड़ते हुए उसका पैर साबुन पर फिसल गया, और वो धप्प से फर्श पर गिर पड़ी।
“आउच…!”परी ने कराहते हुए कहा।
कबीर ने उसकी तरफ देखा, और हंस पड़ा।
“हाहाहा… परी जी भी फिसल सकती हैं क्या?”
परी ने गुस्से में उसकी तरफ देखा लेकिन अगले ही पल उसने तुरंत अपनी नजरे झुका ली।
“क्या… क्या सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं…?”उसने धीरे से पूछा।
कबीर ने हँस कर जवाब दिया,“हां परी जी, सभी पुरुष ऐसे ही होते हैं… अब प्लीज बाहर जाओ…”
परी ने अपने होंठ दबाए, उसके गाल और ज्यादा लाल हो गए थे,“मैं… मैं बाहर जा रही हूँ…”
फिर अगले ही पल हवा में हल्की सी नीली चमक उठी, परी ने जाने से पहले एक नजर झुकी हुई आँखों से कबीर की तरफ डाली,फिर फर्रर्र… से खिड़की से निकल कर गायब हो गई।
कबीर ने राहत की साँस ली, और मग में पानी लेकर अपने ऊपर उड़ेल लिया।
“आह… फाइनली…”
परी फर्रर्र… से हॉस्टल की खिड़की से बाहर निकल कर गार्डन में आ गई।
वो अब धीमी गति से हवा में उड़ रही थी,उसका चेहरा अब भी लाल था,साँसें तेज-तेज चल रही थीं,उसके दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि वो अपने कानों में भी सुन पा रही थी।
“हे ईश्वर… ये कैसा अनुभव था…”उसने धीरे से खुद से ही कहा।
फिर परी ने पास के गुलाब के पौधे के पास जाकर खुद को नीचे उतारा,और घास पर धीरे से बैठ गई।
उसकी आँखें अब भी शर्म से झुकी हुई थीं।
उसने अपने गालों को दोनों हाथों से छूकर देखा,वे जल रहे थे।
“मैंने आज तक… किसी पुरुष को ऐसे नहीं देखा था…”
उसकी आवाज में घबराहट और लज्जा दोनों थे।
परी ने सिर नीचे झुकाया, फिर उसने अपना सिर उठा कर आसमान की ओर देखा, फिर तुरंत नजरें झुका लीं।
“मुझे नहीं पता था… इंसान ऐसे नहाते हैं…”
फिर उसने चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा लिया।
“परी होकर भी… मैं इतनी लज्जित क्यों हो रही हूं…? मुझे तो सिर्फ अपनी छड़ी चाहिए …”
उधर हॉस्टल रूम में....
दर्श, आदित्य और हर्षित बैठकर बैग जमाते हुए बाथरूम के दरवाजे की ओर देखते जा रहे थे, जहां से कबीर अब तक नहीं निकला था।
दर्श ने बैग में किताबें डालते हुए कहा,“यार, सच में… कबीर बहुत अजीब बिहेव कर रहा है इन दो दिनों से…”
आदित्य भी बोला,“पता है… रात में भी वो नींद में कुछ बड़बड़ा रहा था!”
हर्षित ने बालों में कंघी घुमाते हुए कहा,“हाँ बे, सुना था…"
दर्श लंबी साँस लेकर बोला,“यार… हम सच में कबीर को किसी को दिखा कर आते हैं, कोई बाबा-वाबा या साइकोलॉजिस्ट… पता नहीं क्या बड़बड़ाता रहता है, और कल तो खुद से लड़ रहा था… ऐसे कौन करता है?”
इसी बीच बाथरूम का दरवाज़ा खटक से खुला।
कबीर भीगे बालों में हाथ फेरते हुए, टॉवेल लपेटे बाहर निकला। उसके मस्कुलर कंधों से पानी की बूँदें गिर रही थीं।
जैसे ही उसने कदम बाहर रखा,
तीनों अचानक से चुप हो गए।
एक पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया।
दर्श ने तुरंत अपनी किताब उठा ली और पन्ने पलटना शुरू कर दिया।
आदित्य अपना मोबाइल उठाकर स्क्रॉल करने का नाटक करने लगा।
हर्षित बालों में फिर से कंघी घुमाने लगा, जो पहले ही सेट हो चुके थे।
कबीर ने तीनों को ऐसे अजीब हरकत करते देखा तो उसकी आँखें सिकुड़ गई,“क्या हुआ? चुप क्यों हो गए सब?”
दर्श झट से बोला,“कुछ… कुछ नहीं बे… बस वही… आज का टाइमटेबल देख रहे थे…”
आदित्य ने भी बात बदलते हुए कहा,“हाँ हाँ, आज यूनिवर्सिटी में कौन सी क्लास है पहले, वही देख रहे थे…”
हर्षित ने भी हां में हां मिलाई।
कबीर ने तीनों को संदेह भरी नज़र से देखा।
उसे यू संदेह से देखते हुए पाकर दर्श ने झटके से किताब बंद की और उठ खड़ा हुआ।
“अबे… मैं नहा कर आता हूँ, फिर क्लास के लिए रेडी होऊंगा…”
कहते-कहते वो फटाक से बाथरूम की ओर भाग गया।
कबीर ने उसे घूर कर देखा और बड़बड़ा दिया,“अभी तो बोल रहा था टाइमटेबल देख रहा हूं करके…”
उधर आदित्य ने मोबाइल जेब में डाला और पानी की बोतल उठाई।
“अबे मैं मेस में जा रहा हूँ… दूध ले आता हूँ, नहीं तो खत्म हो जाएगा…”
कहते-कहते वो दरवाजे की ओर भाग गया और बाहर निकल गया।कबीर ने उसकी तरफ भी शक भरी नजरों से देखा।
अब कमरे में सिर्फ हर्षित और कबीर रह गए।
हर्षित ने बालों में कंघी घुमाते हुए कबीर की तरफ जबरदस्ती मुस्कान फेंकी।
कबीर ने उसे भी घूर कर देखा, और फिर अलमारी से अपनी शर्ट निकालने लगा।
हर्षित धीरे से बोला ,“कबीर… वो… आज का प्लान क्या है बे?”
कबीर ने अलमारी में से शर्ट निकाल कर कुछ पल यूँ ही थामे रखा।
उसके चेहरे पर वो जाने-पहचाने सवालों वाली उलझन फिर लौट आई थी। आंखों के सामने वही परी की झलक मंडराने लगी, जो अभी कुछ देर पहले बाथरूम में खड़ी थी…
उसका मासूम चेहरा,झुकी पलकों पर अटकी शर्म की लाली,
हड़बड़ी में हवा में हाथ टटोलते हुए गिर पड़ना,और जाते-जाते उसकी झुकी नजर…
सब कुछ उसके दिमाग में घूम रहा था।
परी की जिद याद आ गई उसे,“जब तक मदद नहीं करोगे, मैं जाऊंगी नहीं…”
कबीर ने तेजी से अपना सिर झटका, जैसे खुद को हकीकत में वापस खींच रहा हो।
अब वो अच्छी तरह समझ चुका था…
आज क्लास में जाना मुश्किल है।
क्योंकि परी के लिए छड़ी ढूँढने निकलना पड़ेगा,
और वो भी… आज ही… अभी ही…
उसने धीरे से शर्ट पहननी शुरू की,मगर हर्षित अभी भी उसकी ओर सवालिया नजरों से देख रहा था।
उसकी नजरें जैसे कबीर के दिमाग में घुस कर जवाब खोजना चाह रही थीं।
हर्षित फिर बोला,“अबे बोल भी दे, चुप क्यों है? आज का प्लान क्या है?”
कबीर ने बिना उसकी ओर देखे कॉलर सीधा करते हुए शर्ट के बटन लगाने शुरू कर दिए,फिर उसने गहरी सांस लेकर हर्षित की ओर देखा।
कबीर जानता था कि क्लास छोड़नी पड़ेगी,दोस्तों से झूठ बोलना पड़ेगा,और परी की वो छड़ी ढूँढने निकलना पड़ेगा जिसके बारे में कबीर को कुछ भी नहीं पता।
वो खुद से ही बोला,“अब दोस्तों से क्या झूठ बोलूंगा… और सबसे बड़ा सवाल… आखिर ये छड़ी है कहाँ…?”
कंटिन्यू....
पहला लेक्चर चल रहा था।
सबसे पीछे की बेंच पर कबीर, हर्षित, दर्श और आदित्य साथ बैठे थे।
हर्षित अपनी नोटबुक खोलकर बेमन से पेन घुमा रहा था।
दर्श बगल में बैठा बुक में टिक-टिक कर कुछ लिख रहा था।
आदित्य नोटबुक में स्पाइडर ड्रॉ कर रहा था।
और कबीर…
वो तो क्लास में होकर भी क्लास में था ही नहीं।
उसके ठीक ऊपर, हवा में हल्की नीली रौशनी के साथ परी मंडरा रही थी।वो कभी उसके बाल खींच देती,
कभी उसके कान में फुसफुसा देती,कभी उसकी नोटबुक पर झुक कर झांकने लगती।
“चलो ना… अभी चलो ना… छड़ी ढूंढनी है…”परी बार-बार बड़बड़ा रही थी।उसके चेहरे पर वही जिद्दी भाव था, और आँखें बस कबीर को घूर रही थीं।
कबीर ने गुस्से में पेन पटक दिया।
हर्षित ने उसकी तरफ देखा,“क्या हुआ बे? पेन क्यों फेंक रहा है?”
कबीर झल्ला कर बोला,“कुछ नहीं यार…”
कबीर के माथे की नसें तन गईं, उसने नजर घुमा कर परी को देखा, जो मुँह फुलाए हवा में तैर रही थी।
परी ने फिर धीरे से कहा,“चलो न… प्लीज… चलो न…”
कबीर का दिमाग फटने वाला था।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे दोस्तों से बहाना बनाए,
कैसे क्लास छोड़े, और कैसे परी के साथ छड़ी ढूँढने निकल जाए।
परी अब धीरे-धीरे चिल्लाने लगी,“चलो चलो चलो…”
कबीर ने गुस्से में बेंच पर हाथ पटका।पूरी क्लास उसकी तरफ देखने लगी।प्रोफेसर ने भी चश्मा नीचे खिसका कर घूरा,“क्या बात है मिस्टर कबीर?”
कबीर हड़बड़ा गया,“न…न… कुछ नहीं सर…”
प्रोफेसर ने आँखें सिकोड़कर घूरा, फिर वापस बोर्ड पर लिखना जारी कर दिया।
लेकिन पीछे की बेंच पर कबीर का हाल बेहाल था।
उसकी साँसें तेज हो गई थीं, माथे पर पसीना आ गया था।
परी अब उसके कान में फुसफुसा रही थी,“चलो न… चलो न…”
“परी… प्लीज़…” कबीर बेचारगी से बोला।
“अभी चलो… अभी… अभी…” परी ने जिद में फिर कहा।
आदित्य ने धीरे से अपनी कोहनी दर्श की बाह में मारी।
दर्श ने आँखें उठाईं, आदित्य ने आँखों से कबीर की तरफ इशारा किया जैसे कह रहा हो कि, “देख इसको…”
हर्षित धीरे से झुक कर बोला,“बे, ये फिर अपने आप से बड़बड़ा रहा है…”
दर्श ने भी भौंहें चढ़ाईं,“कहीं सच में इसका दिमाग न खराब हो गया हो…”
तीनों ने गर्दन आगे कर के देखा,कबीर सिर झुकाए धीमे-धीमे बड़बड़ा रहा था,कभी उसकी नजर हवा में कहीं टिक जाती,
कभी वो अपने हाथ से जैसे किसी अदृश्य चीज को दूर करता।
आदित्य बोला,“पागल हो गया है लगता है… इसको दिखाना पड़ेगा किसी को…”
दर्श ने गंभीर होकर कहा,“ सीरियसली दिमाग गड़बड़ लग रहा है इसका…”
इसी बीच प्रोफेसर ने पीठ घुमाई और कहा,“अच्छा, आज का लेक्चर यहीं समाप्त… अब आप लोग अगले लेक्चर के लिए रेडी रहें…”
और उसी के साथ कबीर ने झटके से अपना बैग उठाया,फिर बैग काँधे पर डाला और तेजी से उठ खड़ा हुआ।
दर्श ने उसकी ओर देखा,“अबे कहाँ जा रहा है… ब्रेक में कैंटीन चलेंगे…”
कबीर ने बिना देखे जवाब दिया,“जरूरी काम है, मुझे जाना है…”
आदित्य ने भी उसे पकड़ने की कोशिश की,“अबे सुन तो…”
लेकिन कबीर तेज कदमों से बाहर निकल गया।
पीछे से हर्षित, आदित्य, दर्श एक दूसरे को देखने लगे।
हर्षित ने कहा,“कुछ तो गड़बड़ है…”
उधर कबीर कॉरिडोर में तेज़ी से निकल रहा था।
उसके दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि उसे खुद भी सुनाई दे रही थी।
उसके ठीक ऊपर, परी हवा में उल्टी लटक कर उसकी तरफ देख रही थी।
उसके बाल हवा में लहरा रहे थे, चेहरा चमक रहा था, आँखें बेसब्री से भरी थीं।
“आखिरकार… चल दिए तुम…” परी मुस्कुराते हुए बोली।
कबीर ने गुस्से में कहा,“तुम्हारे कारण मेरी इमेज खराब हो जाएगी यार… सबको लग रहा है मैं पागल हूँ…”
उसकी बात सुन परी खिलखिलाकर हँस पड़ी।
कबीर ने उसकी हँसी पर गुस्से से नजरें तरेरी,“बहुत मजाक लग रहा है तुम्हें… अब बताओ भी कहाँ है तुम्हारी छड़ी, ताकि जल्दी से ढूंढ कर तुम जाओ और मैं अपनी नॉर्मल लाइफ में वापस लौट जाऊँ…”
परी ने बड़ा ही मासूम चेहरा बनाया और बोली,“अम्म… वो…”
कबीर ने अपनी भौंहें चढ़ाईं,“‘अम्म’ क्या…? आगे बोलो ना…”
परी ने हौले से कहा,“मैंने कोशिश करी थी उसे ढूंढने की… लेकिन मुझे कुछ दिखा ही नहीं…”
कबीर का माथा सनका,“क्या मतलब?? तुम परी हो, तुम्हें तो पता होना चाहिए न…”
परी मुंह फुलाते हुए बोली,“हम परियों की छड़ी अगर खो जाए तो हमें आभास हो ही जाता है कि वो कहाँ है, लेकिन मुझे कुछ आभास ही नहीं हुआ…”
फिर उसने मासूमियत से अपनी बड़ी-बड़ी आँखें घुमाईं,“अब बस मुझे तुम्हारे साथ उसे पूरी पृथ्वी पर ढूंढना है…”
कबीर के पैरों तले जमीन खिसक गई।उसने हताश होकर आसमान की ओर देखा, फिर परी की तरफ, फिर अपने बैग की ओर।
“क्या?? पूरी पृथ्वी पर?? पागल हो क्या तुम?? मैं आज तक अपना खुद का पूरा शहर तक नहीं घूमा और तुम मेरे साथ पूरी पृथ्वी पर छड़ी ढूंढने की बात कर रही हो??”
परी हवा में गोल घूम गई,“हम्म… हां… क्योंकि छड़ी मिलेगी तभी मैं इंसान की तरह अपना रूप ले पाऊंगी। और अपने परीलोक भी वापस जा पाऊंगी…वरना मुझे तो यहीं रहना पड़ेगा, तुम्हारे साथ…”
कबीर ने झटके से कहा,“न-न-न… मेरे साथ नहीं, बिल्कुल नहीं…”
परी हवा में उल्टी लटकते-लटकते अचानक सीधी हो गई।
फिर तीखे स्वर में बोली,“सुनो कबीर, मजाक नहीं है ये… अगर छड़ी नहीं मिली तो… हड़कंप मच जाएगा।”
कबीर का दिल धक् से रह गया।उसकी साँसें अटक गईं।
कबीर हकला कर बोला, “ह…हड़कंप? क…क्या मतलब?”
“वो छड़ी सिर्फ मेरी नहीं है, कबीर।उससे परीलोक और धरती की सीमा जुड़ी है।अगर गलत हाथों में पड़ गई, तो धरती और परीलोक का संतुलन बिगड़ जाएगा।”
कबीर हक्का-बक्का खड़ा रह गया।उसकी पकड़ बैग की स्ट्रैप पर और मजबूत हो गई।पसीना उसके माथे से टपकने लगा।
अचानक…
कॉरिडोर के छोर से दर्श और आदित्य की आवाज आई,
“अबे कबीर! कहाँ छुप गया रे तू… यहाँ है क्या तू?”
अचानक…
कॉरिडोर में कदमों की आहट तेज होती गई।
कबीर ने घबराकर पीछे मुड़कर देखा।
“शिट… ये लोग यहाँ आ गए…”
उसने घबराहट में कहा और परी की तरफ देखने ही वाला था कि…
परी की आँखों में अचानक बिजली सी चमक उठी।
एक झटके में परी ने हवा में हाथ घुमाया।
कबीर के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई।उसका शरीर हल्का होते ही हवा में ऊपर उठा, और धड़ाम से कॉरिडोर की ऊपरी दीवार से चिपक गया।
“उफ्फ…” कबीर के मुँह से दर्द भरी कराह निकल गई।
कबीर की साँसें तेज हो गईं, दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था कि उसकी आवाज खुद को सुनाई दे रही थी।उसकी नजरें परी की ओर गईं, जो अब उसके ठीक सामने हवा में तैर रही थी।
परी ने धीरे से अपना हाथ कबीर के होंठों पर रख दिया।
उसकी ठंडी, मुलायम उंगलियाँ कबीर के होंठों पर पड़ते ही कबीर का पूरा शरीर सिहर उठा।
कबीर के रोंगटे खड़े हो गए।उसकी साँसें और तेज हो गईं।
परी का चेहरा कबीर के बेहद करीब था।
इतना करीब कि कबीर उसकी पलकों की हर झपक महसूस कर सकता था।उसके बाल कबीर के चेहरे को छूकर उसके गालों पर रेंग रहे थे। परी के शरीर से आती मीठी सी खुशबू उसकी सांसों में घुल गई थी।
परी की नीली आँखें नीचे कॉरिडोर में झांक रही थीं।
जहाँ दर्श और आदित्य अभी भी उसे ढूंढते हुए कॉरिडोर में घूम रहे थे।
परी धीमे पर सख्त स्वर में बोली,“चुप… एक शब्द भी मत निकालना…”
कबीर ने आँखें फैलाकर उसकी तरफ देखा।उसके होंठों पर परी की उंगली थी, और उसकी खुद की गर्म साँसें परी की उंगलियों से टकरा रही थीं।
परी का ध्यान नीचे था, पर उसकी उंगलियाँ कबीर के होंठों पर थी।
कबीर की हालत अजीब हो गई।
उसकी धड़कनें इतनी तेज हो गईं कि उसे डर लगने लगा कहीं परी को सुनाई न दे जाए।
परी अब भी नीचे देख रही थी,
परी धीमे से बोली,“इन्हें नहीं दिखना चाहिए… अभी नहीं…”
कबीर ने हल्की सी आवाज में “म्म्म…” किया, लेकिन परी ने उसकी आँखों में देखते हुए उंगली दबा दी।
“श्श्श… बस कुछ देर… शांति से रहो…”
कॉरिडोर में नीचे दर्श ने चारों ओर देखते हुए कहा,
“अबे आदित्य, लगता है कोई और रूट लेकर निकल गया ये…”
आदित्य ने बोरियत से गर्दन खुजाई,
“मुझे तो लगता है, वो लैब के पीछे गया होगा… चल पहले हम कैंटीन चलते हैं… भूख लग रही…”
दर्श ने आखिरी बार चारों ओर देखा, फिर लंबी सांस छोड़ते हुए बोला,“चल, साला अजीब है ये कबीर भी… बाद में खबर लेंगे इसकी तो…”
दोनों के कदमों की आहट दूर होती गई।
ऊपर परी ने धीरे से अपनी उंगली कबीर के होंठों से हटाई, लेकिन उसका चेहरा अब भी कबीर के बेहद करीब था।
कबीर की साँसें तेज थीं। उसका चेहरा और कान दोनों लाल हो गए थे , गले की नसें भी तन गई थीं।
वो बमुश्किल से बोला,“अब… अब तो उतार दो मुझे…”
परी बेपरवाह हँसी हँसी,“तुम इतने भारी भी नहीं हो, आराम से लटका सकती हूँ पूरे दिन…”
कबीर की आँखें और फैल गईं,“पूरा… दिन??”
परी ने हवा में उंगली घुमाई।
कबीर का शरीर धीरे-धीरे फिसलता हुआ नीचे आने लगा,
और धप्प की आवाज के साथ वो फर्श पर अपने पैरों पर खड़ा हो गया,लेकिन उसकी टाँगें अभी भी काँप रही थीं।
परी अब भी उसके सामने हवा में तैर रही थी।
कंटिन्यू.....
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें.......
कबीर गुस्से में बोला,“पागल हो क्या तुम? अगर किसी ने देख लिया होता तो? मुझे दीवार पर चिपका रखा था तुमने!”
परी ने आँखें गोल कर लीं,“अरे पर देखा तो नहीं न किसी ने।”
कबीर ने आँखें तरेरी,“बहुत मजाक लग रहा है तुम्हें सब? मेरी धड़कनें अभी भी साधारण नहीं हुई हैं!”
परी ने धीरे से उसकी तरफ झुककर बोली,“अच्छा… सुनूँ क्या?”
कबीर का मुँह खुला का खुला रह गया, “क...क्या… क्या सुनना है?”
परी उसके सीने की तरफ अपना कान झुका कर बोली,
“धक… धक… धक…”और फिर उसकी तरफ देखकर खिलखिला पड़ी।
कबीर तुरंत पीछे हट गया ,“द… दूर रहो मुझसे!”
परी अब थोड़ी सख्त होकर बोली,“अब चलो, हमें काम पर लगना है।”
कबीर थका हुआ सा बोला,“क्या काम? मुझे क्लास अटेंड करनी है, नोट्स पूरे करने हैं, प्रोजेक्ट सबमिट करना है, और… और… मम्मी को कॉल भी करनी है…”
परी ने उसकी बात बीच में काट दी,“नहीं हमे सिर्फ छड़ी ढूँढनी है!”
कबीर मुँह बनाकर बड़बड़ा दिया,“इस परी ने तो 2 दिन में ही मेरी पूरी लाइफ ही चौपट कर दी…”
परी भौंहें चढ़ा कर बोली, “क्या कहा?”
कबीर ने जल्दी से कहा,““न…नहीं कुछ नहीं, कुछ नहीं… चलो...मैं तो बस… साँस ले रहा था…”
परी ने आँखें सिकोड़कर उसकी तरफ देखा, फिर उसके इतने करीब आ गई कि कबीर को एक कदम पीछे हटना पड़ा।
“देखो कबीर…” परी ने गंभीर स्वर में कहा, “ये कोई मजाक नहीं है। हमें जल्दी करना होगा। अगर छड़ी गलत हाथों में पड़ गई, तो सब खत्म हो जाएगा।”
कबीर ने चिढ़कर कहा,“तुम्हें कैसे पता कि वो छड़ी अभी गलत हाथों में नहीं गई?”
परी ने गहरी साँस ली,“क्योंकि अगर गई होती, तो ये पृथ्वी पर अभी तक तबाही मच चुकी होती। हमें उससे पहले छड़ी को खोजना है।”
कबीर झल्ला गया, “तबाही… छड़ी… परी… मैं इन सब में क्यों फँस गया यार!”
“अब चुपचाप चलो मेरे साथ।”
कबीर ने झुँझलाकर कहा,“कहाँ? और क्यों हमेशा तुम हवा में उड़ती रहती हो? मैं ही पैदल क्यों चलूँ हर बार?”
परी ने उसकी तरफ देखा फिर नाक सिकोड़कर कहा,“क्योंकि मैं परी हूँ, और तुम इंसान।”
कबीर ने गुस्से में कहा,“तो उड़ाकर ले जाओ न मुझे, बवाल क्यों मचा रही हो !”
परी ने आँखें गोल कर लीं,“तुम्हें उड़ाकर ले जाना इतना आसान नहीं है, तुम्हारे जैसे भारी इंसान को उड़ाना मेरी ऊर्जा खर्च करवा देता है।”
कबीर ने मुँह बिचकाया और बोला,
“अभी तो मुझे दीवार पर चिपकाने के बाद कह रही थी कि मैं हल्का हूँ, और आराम से लटका सकती हो पूरे दिन… अब बोल रही हो भारी हूँ, उड़ नहीं सकती… क्या दोहरी बातें करती रहती हो यार!”
“ओ ! तब लटकाना था, उड़ाना नहीं… और तुम जैसे ज़िद्दी इंसान को वश में रखने के लिए लटकाना हो सही रहता है।”
“वाह, क्या लॉजिक है! मैं कोई गिलहरी हूँ जो पेड़ से उल्टा लटक जाऊँगा! और वैसे भी मेरी गर्दन अभी भी दर्द कर रही है।”
परी उसकी तरफ उड़ती हुई आई, इतनी करीब कि कबीर फिर एक कदम पीछे हट गया।उसने कबीर की गर्दन पर उंगली रखी और आँखें बंद कर लीं।
कबीर का गला सूख गया,“अ… अब क्या कर रही हो?”
परी ने धीरे से कहा,“चुप… देख रही हूँ दर्द कितना है…”
कबीर की साँसें तेज हो गईं। परी की ठंडी उंगली उसके गले पर थी, और उसका चेहरा इतना करीब था कि कबीर को उसकी साँसों की ठंडक महसूस हो रही थी।
परी ने आँखें खोलीं और मुस्कुरा कर बोली,“अब ठीक है!”
कबीर ने हैरानी से गर्दन घुमाई, सच में दर्द गायब हो गया था।
“ये… ये कैसे किया तुमने?”
परी ने बेपरवाही के साथ कहा,“परी हूँ, जादू कर दिया।”
कबीर ने मुँह फुला लिया,“जादू ही करना था तो छड़ी भी खुद ही जादू से ढूंढ लेती, मुझे क्यों घसीट रही हो!”
परी ने फिर से गंभीर होकर कहा,
“तुम्हारे बिना नहीं ढूंढ सकती। इस धरती पर मेरी शक्ति सीमित है। छड़ी की खोज में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए, कबीर।”
कबीर ने झुँझलाकर कहा,
“ पर जादू है न तुम्हारे पास तो!”
परी ने ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा,
“ ये जादू नहीं, ये मेरी प्राकृतिक ऊर्जा है… समझे!"
कबीर हैरानी से बोला, “मतलब?”
कबीर ने झुँझलाकर कहा,
“ पर जादू है न तुम्हारे पास तो!”
परी ने ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा,
“ ये जादू नहीं, ये मेरी प्राकृतिक ऊर्जा है… समझे!"
कबीर हैरानी से बोला, “मतलब?”
“हम परियों की शक्ति प्राकृतिक नियमों से बंधी होती है। धरती पर आने के बाद हमारी शक्तियाँ सीमित हो जाती हैं। और हमारी शक्तियो का स्त्रोत भी वो छड़ी ही है। "
कबीर चिढ़ कर बोला,“यार, तुम लोग बड़े बेवकूफ हो… छड़ी में सारी शक्तियाँ क्यों रखते हो? खुद के अन्दर समाहित कर लेना चाहिए न तुम परियों को अपनी सारी शक्तियां।”
परी ने गहरी सांस ली, उसके चेहरे पर एक पल को गंभीरता छा गई।“शक्तियाँ इतनी घातक होती हैं, कबीर… कि हम उन्हें अपने अंदर नहीं रख सकते…”
“मतलब?”
“अगर हमने सारी शक्तियाँ अपने अंदर समाहित कर लीं… तो हमारी चेतना नष्ट हो सकती है। हम पागल हो सकते हैं… या फिर हमारी ऊर्जा इतनी अनियंत्रित हो जाएगी कि पूरे परीलोक और पृथ्वी को खतरा हो जाएगा।”
कबीर ने एक पल को उसकी ओर देखा, फिर मुँह बिचकाकर बोला,“ओ, तो तुम लोग न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह हो? ज्यादा पावर ले लिया तो फट जाओगे?”
“मजाक मत उड़ाओ… ये सच है। इसलिए छड़ी बनाई गई…ताकि शक्ति का संतुलन बना रहे।”
“ओह, वाह! एक छड़ी पर पूरी पृथ्वी और परीलोक का इंश्योरेंस रखा हुआ है… और अब वो छड़ी गायब हो गई! अद्भुत सिस्टम!”
“और वो छड़ी ढूंढनी है हमें…”
“अच्छा, ये बताओ… अगर छड़ी नहीं मिली तो? और सच में किसी ने ले ली तो?”
“अगर गलत हाथों में पड़ गई… तो वे इसका इस्तेमाल परीलोक और पृथ्वी को विनाश में झोंकने में कर सकते हैं। धरती की प्रकृति बिगड़ जाएगी, मौसम असंतुलित हो जाएंगे, जीवन के नियम टूट जाएंगे…”
कबीर की आँखे फटी की फटी रह गईं,“मतलब, तूफान… भूकंप… और सबकुछ बर्बाद?”
परी ने धीरे से सिर हिलाया,
“हाँ और इसमें तुम मेरी मदद कर रहे हो।”
“पहले मेरा प्रेजेंटेशन बिगड़ा, फिर मेरी इमेज बिगड़ी, अब ये धरती और परीलोक बिगड़ने की टेंशन भी मेरे मत्थे डाल दी… मैं ही क्यों यार!” कबीर बेचारगी से बोला।
“एक बात याद रखो, कबीर। ये सब तुम्हारे लिए भी जरूरी है। अगर छड़ी गलत हाथों में गई, तो सिर्फ मेरा नहीं, तुम्हारा भी सब खत्म हो जाएगा।”
कबीर ने झुँझलाते हुए कहा,“सब खत्म… सब खत्म… हर 10 मिनट में सुन चुका हूँ ये डायलॉग… अब बोलो कहाँ जाना है!”
परी ने गहरी सांस ली और धीरे से बोली,“समाचार…”
कबीर ने भौंहें चढ़ाई, “हां? क्या?”
परी बोली,“मैने सुना था, पृथ्वी पर समाचार बहुत तेजी से फैलते हैं… मुझे उस जगह लेकर चलो जहाँ से हम सात दिन पहले के सारे समाचार जान सकें…”
कबीर का मुँह खुला का खुला रह गया,“क्या?? सात दिन पहले के सारे समाचार??”
परी ने गंभीरता से सिर हिलाया,“हाँ, ताकि हमें पता चल सके पिछले सात दिनों में कहां-कहां अजीब घटनाएं हुई हैं… तभी हमें छड़ी का पता चल सकेगा।”
कबीर ने अपना माथा पकड़ लिया,“ओह, तभी तो तुम कह रही थी कि पूरी पृथ्वी घूमना पड़ेगा हमें…”
परी ने मासूमियत से कहा,“हाँ, कोई और तरीका नहीं है न…”
उसकी मासूमियत भरी बात सुन कबीर ने आँखें तरेरीं,“क्या बेवकूफ भरी बातें कर रही हो! इसके लिए पूरी पृथ्वी घूमने की क्या जरूरत है? तुम्हें समाचार चाहिए न?”
परी ने उत्सुकता से उसकी ओर देखा,“हाँ…”
कबीर ने ड्रामाई अंदाज में अपनी उंगली हवा में उठाई,“तो चलो लाइब्रेरी!”
परी ने हैरान होकर कहा,“लाइब्रेरी?”
कबीर ने घमंड से मुस्कुराते हुए कहा,“हाँ! न्यूजपेपर मतलब, अखबार, मतलब समाचार पत्र… पिछले सात दिन का क्या, पिछले सात सालों के भी समाचार वहीं मिल जाएंगे! तुम्हें पूरी पृथ्वी घूमने की जरूरत नहीं है!”
परी ने एक पल को उसका चेहरा देखा, फिर वही मासूमियत से बोली,“ओह… तो ये लाइब्रेरी इतनी महत्वपूर्ण जगह है?”
कबीर ने मजाक उड़ाते हुए कहा,“हाँ मैडम परी, ये लाइब्रेरी ही है, जहाँ लोग पढ़ाई भी करते हैं और तुम्हारे जैसे परी लोग बिना घूमे पूरी पृथ्वी की जानकारी भी पा सकते हैं!”
परी ने झेंपते हुए कहा,“मुझे लगा था… हमें धरती के हर कोने में जाना होगा…”
कबीर ने लंबी सांस ली,“हुंह, परी जी को इतना सिंपल तरीका नहीं पता… चलो अब, चलते हैं।”
परी ने हल्की मुस्कान दी,“ठीक है, कबीर… ले चलो मुझे… लाइब्रेरी…”
कबीर ने मुँह बिचकाते हुए कहा,“हंह, लाइब्रेरी!”
फिर उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला, स्क्रीन पर टाइम देखा,“उफ्फ, अभी भी लंच टाइम बाकी है… अगर मिस जोशी ने देख लिया कि मैं लाइब्रेरी में भटक रहा हूँ तो फिर नोट्स चेकिंग में नंबर काट देगी…”
परी ने उसकी ओर तिरछी नजर से देखा,“क्या बड़बड़ा रहे हो?”
कबीर ने घबराकर कहा,“न…नहीं कुछ नहीं! चलो, धरती और परीलोक बचाने चलें… लाइब्रेरी की ओर!”
परी हवा में उड़ती हुए उसके बराबर आई,“चलो, जल्दी करो… समय बर्बाद मत करो।”
कबीर ने उसकी तरफ देखा,“अच्छा सुनो, एक काम करो, एक बार तुम भी पैरों पर चल कर देखो न… बार-बार उड़ कर मेरे सिर पर मंडराती मत रहो, मुझे जलन हो रही है।”
“पर मुझे आदत नहीं है… उड़ने से टाइम बचता है!”
कबीर उसकी नकल उतरता हुआ मन ही मन बड़बड़ा दिया ,“हुंह, मुझे आदत नहीं है!”
कंटिन्यू....
कॉलेज की लाइब्रेरी के बाहर पहुँचते ही कबीर ने गहरी सांस ली।
बड़े से दरवाजे के ऊपर एक लकड़ी का बड़ा सा बोर्ड लटक रहा था जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में लाइब्रेरी लिखा हुआ था।
कबीर ने परी की तरफ देखा,“वेलकम टू द लाइब्रेरी!”
परी ने चारों ओर देखा, उसकी नीली आँखें कौतूहल से चमक उठीं,“ये जगह… कितनी शांत है…”
कबीर ने बड़बड़ाते हुए कहा,“हाँ, शांत है, पर यहाँ मिस जोशी का आतंक भी है… ध्यान रखना, आवाज मत करना…क्योंकि तुम आवाज करोगी तो फिर मैं तुम्हे चुप कराते कराते खुद बोलने लग जाऊंगा और मिस जोशी मुझे घूर घूर कर देखेगी। "
परी ने मासूमियत से कहा,“अच्छा…”
जैसे ही कबीर अखबार वाले सेक्शन में गया, वहाँ एक बूढ़ा लाइब्रेरियन बैठा था। उसकी नाक पर चश्मा लटका था, और वह किसी मोटी किताब में घुसा हुआ था।
कबीर ने धीरे से कहा,“स्स्स… शांति से… धीरे बोलना… वरना ये बाबा डाँटेंगे।”
परी ने धीरे से पूछा,“अब क्या करना है?”
कबीर ने स्टैंड पर रखे अखबारों के बंडल की ओर इशारा किया,
“इन्हें पलटना है… देखना है पिछले सात दिनों में कोई अजीब घटना, अजीब मौसम, कोई गड़बड़ी, कोई तूफान, बिजली गिरी हो, कोई मिस्ट्री मर्डर, कुछ भी…”
परी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा,“ अरे पर हमे तो सिर्फ छड़ी वाली घटना को खोजना है न!”
कबीर ने एक लंबी सांस ली,“अरे बेवकूफ परी! छड़ी गिर कर खुद तो नहीं बताएगी कि ‘हे पृथ्वीवासियों, मैं यहाँ गिर गई हूँ!’… कोई न कोई गड़बड़, कोई न कोई घटना हुई होगी, वहीं से सुराग मिलेगा न!”
परी उसकी बात से सहमत होकर बोली ,“ओह… सही कहा…”
कबीर ने अखबारों का बंडल खोला, धूल उड़कर उसकी नाक में घुस गई।
“छीं… छी… छी…आआछीं… उफ्फ!”
कबीर की छींक की आवाज पूरे सेक्शन में गूँज गई।
परी जोर से हँस पड़ी।उसकी हँसी हवा में घंटियों जैसी गूंज उठी।
कबीर ने झुँझलाकर उसकी तरफ देखा,
“स्स्स… पागल परी! चुप कर, हँस क्यों रही है!”
परी हँसते-हँसते बोली,“क्योंकि यहाँ तुम्हारे अलावा कोई मुझे देख नहीं सकता, और ये बूढ़े बाबा तुम्हें ऐसे देख रहे हैं जैसे तुम पागल हो!”
कबीर ने धीरे से बाबा की ओर देखा।
बूढ़ा लाइब्रेरियन अपनी मोटी ऐनक के पीछे से कबीर को घूर रहा था।
कबीर नकली मुस्कान फेंकते हुए बोला,“कुछ नहीं बाबा, डस्ट एलर्जी है…”
बाबा ने ‘हूँ’ कहकर फिर किताब में मुँह घुसा लिया।
कबीर ने परी की तरफ देखा, धीरे से बोला,“बहुत हँसी आ रही है न, मै मदद ही नहीं करूंगा फिर !”
परी तुरंत चुप होकर मासूम चेहरा बनाकर कबीर को देखने लगी।
कबीर ने उसे घूरते हुए कहा,“ऐसे मत देखो अब , चुपचाप कोई अजीब घटना ढूंढो!”
परी ने फौरन सिर हिला दिया, और बंडल में से एक अखबार खींचकर उल्टा पकड़ लिया।
कबीर ने अपना माथा पीट लिया,“अरे, सीधा पकड़ो… उल्टा कौन अखबार पढ़ता है!”
परी ने उल्टा पकड़े अखबार को सीधा किया और अपने चेहरे के पास लाकर सूँघने लगी।
कबीर उसे घूरते हुए बोला,“ये क्या कर रही हो? इसे पढ़ा जाता है, सूँघने से खबर नहीं मिलेगी!”
परी ने धीमे से कहा,“ये कागज की खुशबू अलग होती है…”
कबीर ने गुस्से में अखबार उसके हाथ से खींच लिया,“मुझे पता है खुशबू अलग होती है, पर खुशबू से छड़ी नहीं मिलेगी!”
फिर वह खुद अखबार पलटने लगा।
पन्नों को पलटते-पलटते उसके हाथ काले हो गए, पर परी बस पास में बैठकर उसे घूरती रही, जैसे टीचर टेस्ट के दौरान बच्चों को घूरती है।
कबीर ने अखबार से नजर हटाए बिना कहा,
“घूरना बंद करो, डर लग रहा है मुझे!”
परी ने झेंप कर नजर घुमा ली, फिर बोली,“मैं मदद करूँ?”
कबीर ने ताना मारते हुए कहा,“मदद करनी होती तो अब तक कर भी चुकी होती!”
परी ने इधर-उधर देखा, फिर अचानक दूसरा बंडल उठा कर बोली," हां मैं इसमें देखती हूं कुछ। "
परी ने दूसरा बंडल लेकर अख़बार पलटना शुरू किया। उसकी नाज़ुक उंगलियाँ धीरे-धीरे पन्ने पलट रही थीं, लेकिन उसकी आँखें बार-बार भटक रही थीं...कभी हेडलाइन के बड़े अक्षरों पर, कभी विज्ञापन के रंगीन पन्नों पर, कभी अखबार में छपे पिज़्ज़ा के फोटो पर।
कबीर उसकी हालत देखकर झुँझला गया,“परी, पिज़्ज़ा बाद में देख लेना, अभी छड़ी ढूँढनी है!”
परी ने फौरन पन्ना पलटा और मासूमियत से बोली,“ओह, हाँ… सही कहा।”
काफी देर तक कबीर और परी ने पन्ने पलटे, धूल से कबीर का चेहरा काला पड़ गया था। लाइब्रेरियन बाबा बीच-बीच में घूर कर देखते और फिर ‘हूँ’ कहकर किताब में मुँह घुसा लेते।
करीब एक घंटे बाद भी कुछ नहीं मिला।
परी ने अखबार किनारे रखते हुए मायूस होकर लंबी सांस ली। उसकी नीली आँखों में चमक की जगह अब उदासी उतर आई थी। वह फर्श पर बैठ गई और धीरे से बोली,“कबीर… कुछ भी नहीं मिला…”
कबीर ने पसीना पोंछते हुए अखबार का पन्ना मोड़ा,“हाँ… लग रहा था मुझे… इतनी आसानी से थोड़ी मिलेगा…”
परी ने उसकी ओर देखा, उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई,“अब क्या होगा… अगर हम छड़ी नहीं ढूँढ पाए तो?… अगर पृथ्वी और परीलोक बर्बाद हो गए तो?…”
कबीर ने उसकी तरफ देखा, उसकी मायूसी देखकर उसका गुस्सा थोड़ा कम हुआ। उसने धीमे से कहा,“अरे… मिलेगा, मिलेगा… ऐसे ही हिम्मत हार गई तो कैसे चलेगा?”
परी ने धीरे से कहा,“कबीर… इन सभी अखबारों को तुम अपने साथ ले चलो… आज पूरी रात हम इन्हें फिर से देखेंगे… शायद कुछ छूट गया हो…”
कबीर की आँखें फट गईं, उसने हैरानी से कहा,“क्या?? पूरी रात??”
परी ने उम्मीद भरी आँखों से कहा,“हाँ… रात को हम दोनों बैठकर एक-एक खबर ध्यान से देखेंगे… शायद सुराग मिल जाए…”
कबीर ने अपना माथा पकड़ लिया, उसकी आवाज़ में चिढ़ साफ झलक रही थी,“अरे यार! मैं इंसान हूँ, परी! रात को सोता हूँ मैं! रात को अखबार पलटने का कौन सा नया काम पकड़ा रही हो!”
परी ने मासूमियत से कहा,“पर… पृथ्वी और परीलोक को बचाना है न…? और तुमने ही तो कहा था कि हम साथ में करेंगे…”
कबीर ने गहरी सांस ली और खुद से बड़बड़ाया,“ये परी मुझे पक्का पागल कर देगी एक दिन…”
फिर उसने गुस्से में अखबार के बंडल को उठाया, उसका वजन उसके हाथ में पड़ते ही उसकी कमर में खिंचाव सा आ गया।
“उफ्फ्फ… कितना भारी है ये! पता नहीं, छड़ी ढूँढ रहे हैं या अखबारों का गोदाम खोलने जा रहे हैं!”
परी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,“मैं भी उठाने में मदद कर दूँ?”
कबीर ने गुस्से में कहा,“अरे नहीं परी जी आप अपने कोमल नाजुक से हाथों को क्यों ही कष्ट देगी ?”
उसकी बात सुन परी ने अपनी उंगली घुमाई, अखबार का बंडल हवा में उठ गया और कबीर के पीछे हवा में तैरने लगा।
कबीर ने उसे घूरकर देखा,“अच्छा… ये कर सकती थी न पहले भी!”
परी ने मासूमियत से मुस्कुराकर कहा,“तुमने पूछा नहीं था…”
कबीर ने गहरी सांस ली और दरवाजे की ओर बढ़ गया।
जैसे ही कबीर दरवाजे की ओर बढ़ा, पीछे हवा में तैरता अखबार का बंडल उसकी पीठ के पीछे-पीछे सरकता जा रहा था। परी मज़े से उसके बगल में उड़ती हुई मुस्कुरा रही थी।
कबीर बड़बड़ाता जा रहा था,“हे भगवान, ये परी मुझे पक्का पागल कर देगी एक दिन…”
तभी पीछे से एक अजीब सी खटर-पटर की आवाज़ आई।
लाइब्रेरियन बाबा की आँखें अनजाने में जाते हुए कबीर जी तरफ उठी और उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
उन्होंने अपनी ऐनक उतार कर आँखें मलीं।
फिर सिर उठाकर देखा कि अखबार का मोटा बंडल बिना किसी सहारे के हवा में उड़ रहा था!
बाबा के मुँह से घबराई हुई आवाज़ निकली,“भगवान! ये… ये… अखबार… हवा में कैसे…!”
कबीर ने बिना पीछे देखे ही कहा,“हाँ बाबा, हम लोग जा रहे हैं… आप आराम से बैठिए…”
परी धीरे से कबीर के कान में बोली, “कबीर… ये मुझे ही दिखाई देता है न? बाकी किसी को नहीं?”
कबीर ने लापरवाही से जवाब दिया,“हाँ, हाँ… हाँ… हाँ… चलो जल्दी निकलो यहाँ से…”
तभी बाबा की घबराई हुई आवाज़ फिर गूंजी,“भूत! भूत है ये! अखबार… अखबार उड़ रहा है! ओह भगवान, मेरी आँखें खराब हो गईं क्या…!”
अब कबीर के पैर रुक गए।
उसने धीरे-धीरे गर्दन घुमाई और देखा कि लाइब्रेरी में मौजूद कुछ और स्टूडेंट्स भी पढ़ते-पढ़ते उधर देखने लगे थे, और सबकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गई थीं।
हवा में उड़ता अखबार का बंडल, सबको दिख रहा था।
कबीर के चेहरे का रंग उड़ गया।
“अरे यार…! ये तो सबको दिख रहा है! ओह नो! परी!!!”
परी मुँह पर हाथ रखकर मासूमियत से बोली,“पर… तुमने कहा था कि मुझे ही दिखता है सबको नहीं…”
कबीर हड़बड़ाते हुए बोला, “मैंने ऐसा कब कहा था? मैंने कहा था कि तुम दिखती नहीं, पर तुम्हारा उड़ता हुआ बंडल तो सबको दिखेगा न, पागल परी!”
लाइब्रेरी में हंगामा मच गया था।
बाबा चिल्ला रहे थे,“अरे कोई इस भूतिया अखबार को रोको! मेरी लाइब्रेरी में चुड़ैल आ गई! ओह भगवान! ये मेरे साथ ही क्यों होता है!”
कुछ स्टूडेंट्स मोबाइल निकाल कर वीडियो बनाने लगे।
कबीर ने माथा पीट लिया,“हे भगवान! सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएगा अब ये! परी, जल्दी कुछ करो!”
परी ने इधर-उधर देखा, फिर जल्दी से अपनी उंगली घुमाई और अखबार का बंडल वापस नीचे फर्श पर रख दिया।
फर्श पर गिरते ही बंडल से धूल का गुबार उठा।
बाबा ने आँखें मलते हुए कहा,“गायब…? वो… वो उड़ रहा था… अब… अब… नीचे कैसे आ गया?”
कंटिन्यू...
एक स्टूडेंट ने डरते हुए कहा,“सर, शायद… हवा लग गई होगी… हँ… हा… हा… हवा… हाँ, हवा लग गई होगी…”
बाबा ने गुस्से से उसे घूरा,“हवा में अखबार उड़ता है ऐसे? इतना भारी बंडल? तुमको मज़ाक सूझ रहा है?”
कबीर ने झटपट अपने चेहरे पर नकली हँसी चिपकाई और हाथ जोड़कर बोला,“बाबा, बाबा… शायद खिड़की से हवा का झोंका आया होगा… सॉरी बाबा, हम लोग जा रहे हैं, थैंक यू फॉर हेल्प!”
कबीर ने परी का हाथ पकड़कर तेजी से बाहर की ओर खींचा।
परी ने पीछे मुड़कर देखा, बाबा अभी भी आँखें मल रहे थे और बड़बड़ा रहे थे,“आज ही रिटायरमेंट की एप्लीकेशन डाल दूँगा… मेरी उम्र में मुझे भूत क्यों दिख रहे हैं… ओह भगवान!”
बाहर निकलते ही कबीर ने गुस्से में परी को घूरा।
“धन्यवाद परी जी! मेरी लाइफ का और मेरी इज्जत का भर्ता बनाने के लिए!”
परी ने होंठ भींचकर मासूमियत से कहा,“मुझे लगा था सबको नहीं दिखेगा…”
कबीर तेज़ कदमों से कॉलेज की सीढ़ियाँ उतरता जा रहा था। परी उसके पीछे-पीछे हवा में उड़ रही थी।
परी ने धीमे से कहा,“अब… अब हमें कैसे पता चलेगा कि मेरी छड़ी कहाँ है…?”
कबीर रुक गया, उसने झुँझलाकर गर्दन घुमाई,“देखो सुनो, रात को तुम आराम से ये बंडल गायब कर सकती हो और तुम खुद ढूंढ लेना यार… मुझे मत घसीटो अब इस पागलपन में!”
परी ने हैरानी से कहा,“मतलब… अकेले ढूंढूँ मैं?”
कबीर ने अपनी आँखें तरेरीं,“हाँ! तुम्हारी छड़ी है, तुम्हारा परीलोक है, तुम्हारा संकट है, तुम्हारी दुनिया है… मैं क्यों अपना BP बढ़ाऊँ हर टाइम? मैं इन्सान हूँ परी, परी नहीं हूँ मैं! मुझे पढ़ाई करनी है, प्रेजेंटेशन बनाना है, और क्लास में भी जाना है!”
परी ने धीरे से कहा,“पर… तुमने कहा था कि हम साथ में करेंगे…”
कबीर ने चिढ़कर उसकी नकल उतारी,“‘पर… तुमने कहा था कि हम साथ में करेंगे…’ बस! हर बात पर ये लाइन मत बोला करो, तंग आ गया हूँ मैं!”
परी कुछ देर तक उसे देखती रही। उसकी आँखों में हल्का पानी आ गया। उसने धीरे से कहा,“पर तुम मेरे दोस्त हो…”
उसकी इस बात पर कबीर ने गुस्से में कहा,“ओह, दोस्त? किसने कहा हम दोस्त हैं, परी? हम कोई दोस्त-वोस्त नहीं हैं, समझी?”
कबीर की बात सुनकर परी का चेहरा अचानक सख्त हो गया।
उसकी नीली आँखों में गुस्से की लहर दौड़ गई, जो कबीर ने पहले कभी नहीं देखी थी।
हवा में उसकी चमक और तेज़ हो गई। उसके बाल पीछे उड़ने लगे।
हवा में उसके चारों ओर नीली रोशनी की लपटें सी उठने लगीं।
परी ने धीमे, ठंडे स्वर में कहा,“मत भूलो, कबीर… मैं कोई आम लड़की नहीं हूँ, मैं परी हूँ… और अगर चाहूँ, तो तुम्हारी यादें भी मिटा सकती हूँ…”
कबीर घबरा गया।उसकी साँसें तेज़ हो गईं। उसने घबराकर चारों ओर देखा।कॉरिडोर सुनसान था, सिर्फ परी हवा में चमक रही थी। उसने एक कदम पीछे खिसकते हुए कहा, “प…परी… ये… ये क्या हो रहा है तुम्हें…?”
लेकिन परी की आँखों में वही नीली आग थी। उसकी उँगलियों के चारों ओर नीली चिंगारियाँ सी निकल रही थीं।
कबीर को अचानक अजीब सी ठंड का एहसास होने लगा।
कबीर ने हिम्मत कर के कहा,“मैं… मैं डर नहीं रहा तुमसे… समझी तुम?”
तभी—
कॉरिडोर के दूसरी ओर से तेज़ आवाज़ आई,“अबे कबीर!! यहाँ क्या कर रहा है बे?”
हर्षित, दर्श, और आदित्य दौड़ते हुए आ रहे थे।
कबीर और ज्यादा घबरा गया।
परी ने झटके से अपनी चमक कम कर ली, पर वह अभी भी हवा में तैर रही थी, और गुस्से में कबीर को घूर रही थी।
हर्षित ने आते ही कबीर के कंधे पर हाथ मारा,“अबे यार, पागल हो गया है क्या? कहाँ गायब हो गया था? क्लास में भी अजीब बिहेव कर रहा था तू…”
दर्श ने भी भौहें सिकोड़ कर कहा,“कुछ बता भी, तेरे चेहरे का रंग क्यों उड़ा हुआ है? और अकेले में खड़ा क्या बड़बड़ा रहा था?”
आदित्य ने भी कहा,“अबे कुछ बोल, तुझे क्या हो गया है?”
कबीर अब बुरी तरह फँस गया था।
उसका गलाभी सूख गया था।
परी अब भी उसकी आँखों में घूर रही थी, जैसे कह रही हो – “अब बोलो, कैसे बचोगे?”
कबीर ने जबरन हँसने की कोशिश की,“ह… हा… कुछ नहीं यार… बस… कुछ नहीं…”
हर्षित ने गुस्से में कहा,“अबे कुछ नहीं क्या? हम लोग परशान हो गए थे क्लास में… तू पागलों जैसी हरकत कर रहा था… टीचर भी घूर रहे थे…”
दर्श ने भी कहा,“सच-सच बता, कुछ दिक्कत है क्या? मेडिकल हेल्प चाहिए क्या?”
कबीर ने नजर चुराते हुए कहा,“न… नहीं यार, बस थोड़ी तबियत खराब थी… और…”
तभी परी झुककर धीरे से बोली,लेकिन उसकी आवाज सिर्फ कबीर को सुनाई दी—“झूठ मत बोलो, कबीर… इनसे कह दो कि मैं यहाँ हूँ, तुम्हारे साथ…”
कबीर की जान सूख गई।उसने धीमे से कहा,“परी… प्लीज… चुप रहो…”
हर्षित ने चौंक कर कहा,“क्या बोला तू? परी? कौन परी??”
अब कबीर की हालत अब और खराब हो गई। उसके होंठ सूख गए थे।
उसने जबरन हँसकर कहा,“न… न… परी नहीं… पनीर… हाँ, पनीर… पनीर खा लिया था सुबह, लगता है उल्टा पड़ गया…”
आदित्य और दर्श ने हैरानी से उसे देखा।
आदित्य बोला,“अबे तू सही में पागल हो गया है क्या?”
कबीर बुरी तरह झल्ला गया, उसने आँखें बंद कर लीं।
परी अब भी हवा में मंडरा रही थी, उसकी गुस्साई आँखें सीधे कबीर को देख रही थीं।
अचानक कबीर ने अपनी आँखें बंद कर लीं।उसकी मुट्ठियाँ भी भींच गईं थी।
हर्षित ने गुस्से में उसके कंधे को हिलाया,“अबे बोल न! ऐसे क्यों खड़ा है बुत की तरह?? कहाँ गया था तू क्लास से अचानक उठकर?? बता बे…”
कबीर ने आँखें खोलीं, लेकिन मुँह से आवाज नहीं निकली।
उसकी नजरें शून्य में टिकी थीं, लेकिन वो परी को अब भी देख रहा था, जो बस उसकी आँखों में घूर रही थी।
दर्श ने उसकी बाह पकड़ी और करीब खींच कर कहा,“कबीर… प्लीज़ बे… बता न… हमें टेंशन हो रही है… तू ऐसे पहली बार बिहेव कर रहा है…”
आदित्य ने भी कहा,“कुछ तो बता बे… अचानक क्लास छोड़कर कहाँ गया था?? हम लोग तेरे पीछे भागे थे, पता है??”
कबीर का गला भर आया।उसकी साँसें फटी-फटी सी होने लगीं।उसने हौले से कहा,“मैं… मैं…”
उससे आगे कुछ बोला नहीं गया।
दर्श ने उसकी आँखों में देखा।फिर धीरे से कहा,“बे, डर मत… बता न… कुछ प्रॉब्लम है क्या?? हम लोग हैं यहाँ…”
कबीर ने एक झटके में दर्श को अपने करीब खींच लिया और उसके गले से लग गया।
दर्श हैरानी से उसकी पीठ थपथपाने लगा,“अबे… अबे… क्या हुआ बे?? रो रहा है तू??”
हर्षित और आदित्य भी घबरा गए।
हर्षित ने जल्दी से कहा,“अबे कबीर… बोल न बे… कुछ तो बता… क्या हुआ… हम लोग हैं ना तेरे साथ…”
रात का समय था।
कबीर को बुखार आ गया था।
उसकी साँसें भारी थीं और माथा तप रहा था।
हॉस्टल रूम में पीली-सी लाइट जल रही थी। वो थककर बिस्तर पर लेटा हुआ था। आँखें बंद थीं, और पंखा धीमी-धीमी आवाज कर रहा था।
दर्श, हर्षित, और आदित्य — तीनों पास ही बैठे थे।
कमरे में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जैसे कुछ कहने-सुनने की हिम्मत सबमें है, पर बोलने की इजाज़त नहीं।
दर्श ने धीरे से कहा,“यार ये कबीर तो सही में बिगड़ गया है। एकदम हिल गया है अंदर से। कुछ तो बड़ा सीक्रेट है इस बंदे के पास।”
हर्षित ने कबीर की तरफ देखा, जो बिस्तर पर बेहोशी में बड़बड़ा रहा था। फिर बोला,“अबे मुझे तो लग रहा है किसी लड़की के चक्कर में है। वही वाला लक्षण है—बात-बात पे बड़बड़ाना, अकेले हँसना, फिर चुपचाप रोना।"
आदित्य धीरे से बोला,“पर कौन लड़की? क्लास में तो किसी से बात भी नहीं करता। कहीं कोई… भूत-वूत तो नहीं देख लिया इसने?”
दर्श आँखें गोल करते हुए बोला,“अबे पागल है क्या? भूत-वूत? हॉरर मूवी नहीं चल रही यहाँ!”
हर्षित अब सीरियस टोन में बोला,“अबे नहीं, मैं सीरियस बोल रहा हूँ… मेरी मम्मी भी एक बाबा के पास जाती हैं, बोलूं क्या उन्हें बहुत तगड़े हैं वो!"
आदित्य मुँह बनाते हुए बोला,“अबे चुप! तेरी मम्मी तो पेट दर्द के लिए भी बाबा के पास जाती हैं, उन्हें छोड़। मैं तो कह रहा हूँ किसी साइकोलॉजिस्ट को दिखाते है। "
कबीर अब भी सो रहा था, लेकिन उसके माथे पर पसीना साफ़ दिखाई दे रहा था। हल्की-हल्की बड़बड़ाहट जारी थी, लेकिन शब्द साफ़ नहीं थे।
हर्षित ने धीरे से कहा,“अबे देख, फिर बड़बड़ा रहा है… सुन… सुन न क्या बोल रहा है?”
आदित्य थोड़ा झुककर सुनने की कोशिश करने लगा।
कबीर नींद में, बड़बड़ाते हुए बोला,“…मत जाओ… प्लीज़… मत छोड़ो मुझे… मैं ढूंढ लूंगा… छड़ी मिल जाएगी…"
"अबे क्या बोल रहा है ये? 'छड़ी' ढूंढेगा? कौनसी छड़ी बे ?" दर्श अपना सिर खुजाते हुए बोला।
कंटिन्यू ....
अगला भाग जल्द ही आयेगा।
उससे पहले मैं कुछ कहना चाहती हूं।
डियर रीडर्स,
अगर आपको मेरी ये कहानी पसंद आ रही है, अगर आपने कुछ पलों के लिए भी खुद को इस कहानी में खोया है, किसी किरदार से जुड़ाव महसूस किया है, या किसी सीन ने आपको मुस्कुराने, सोचने या भावुक होने पर मजबूर किया है… तो प्लीज़ मुझे फॉलो जरूर करें और कमेंट में अपनी राय साझा करें।
आपका एक छोटा सा कमेंट मेरे लिए बहुत मायने रखता है। ये मुझे और बेहतर लिखने की प्रेरणा देता है।
शुक्रिया दिल से ❤️