जो लोग दिल साफ होते हैं ना वो अक्सर दिमाग वालों से हार जाते है! ये कहानी है 1990 की एक विधवा जिसकी तीन बिटिया है, मानसी-मंजू-महक तीनों की कहानिया बहुत अलग है, एक जो कम पढ़ी लिखी तो वहीं दूसरी ने डिग्री कम्प्लीट करने के बाद सक्सेस मिलता है, पर कहते है... जो लोग दिल साफ होते हैं ना वो अक्सर दिमाग वालों से हार जाते है! ये कहानी है 1990 की एक विधवा जिसकी तीन बिटिया है, मानसी-मंजू-महक तीनों की कहानिया बहुत अलग है, एक जो कम पढ़ी लिखी तो वहीं दूसरी ने डिग्री कम्प्लीट करने के बाद सक्सेस मिलता है, पर कहते है ना सब कुछ मिल जाए तो तमन्ना किसकी करोगे..? एक ने नहीं बल्कि दो लोगों ने उसका दिल तोड़ा फिर आता है उसकी जिंदगी में तेज पटेल और वह हो जाती है उसके प्यार में गुमराह, कच्ची उम्र में उसे धोखा मिला और नादान समझ के उसने दूसरी बार भी मोहब्बत कर ली? क्या इस तीसरी बार भी मोहब्बत होगा? और महक की जिंदगी कैसी होगी? जानने के लिए पढ़िए " Dagabaaz Ishq" सिर्फ "Story Mania " पर।
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मन की गहराई कोई नहीं जाने,
जो जाने वह कभी नहीं समझ पावे..!
और जो समझता है वह कभी खुलकर कह नहीं पाता या समझ नहीं पाता, सिर्फ फर्क़ इतना होता है कि अपनी बात बताने से डरते है..!
यह कहानी है एक नारी के उपर, वैसे तो औरतों को लक्ष्मी, देवी के नाम से पूजा जाता है पर बात अगर चरित्र पर आ जाए तो उसे गालियां देने में भी पीछे नहीं हटते..!
मध्य प्रदेश _ जबलपुर _ बिलारी गाँव
कच्चा मकान तीन कोठरी.. एक बरांडा और बड़ा सा द्वारा.. इस घर में बुढ़े - जवान - बच्चे कुल मिलाकर नौ लोग रह रहे थे |
इस घर में एक औरत थी जिसका पेट काफी बड़ा दिख रहा था उसे देखकर ही समझ में आ रहा है कि आठवां या नवा महीना चालू है..!
इस घर में एक अधेड़ उम्र की औरत थी, जो तेज आवाज में बोल रही थी "अरे ओ.. सुनीता.. ज़रा पूजा- पाठ में मन लगाकर कर ताकि बेटा पैदा हो जाये, पहले ही इस घर में दो बेटियां तूने पैदा कर चुकी है अब और नहीं..!"
सुनीता को यह सब सुनने का आदत पड़ चुका था, वह चेहरा लटकाए घर का झाड़ू- पोछा करने लगे क्योंकि पहले ही दो बच्चों की मां थी और बेटियां पैदा होने की वजह से उससे कोई सीधे मुंह बात नहीं करता पर उस बेचारी के हाथ में कुछ नहीं था |
एक हफ्ते बाद _ सरकारी हॉस्पिटल
गवर्नमेंट हॉस्पिटल के बाहर दो-चार लोग खड़े होकर आपस में बातें कर रहे थे |
" मदन को इस बार भी बेटी हुई है.. अब तो तीन बेटियां हो गई .. एक बेटा हो जाता तो बहुत अच्छा रहता.. पर क्या कर कसते है सब किस्मत का खेल है..!"
अंदर जनरल वार्ड में जहां पर न जाने कितनी औरतें ने आज बच्चों को जन्म दिया, उसी में से एक दरवाजे के कॉर्नर साइड में सुनीता खाट था |
जिस पर वह अपनी बच्ची को लेकर सोई थी क्योंकि उसका एक घंटे में डिस्चार्ज होने वाला था पर घर का कोई उसके पास दिखाई नहीं दे रहा..!
तकलीफ तो बहुत था उसके शरीर में पर अपना दर्द बांटने वाला इस वक्त कोई मौजूद नहीं था |
सुनीता की आंखों में इस वक्त आंसू था और वह लेटे ही रो रही थी, तभी उसे अपनी बच्ची के रोने का आवाज़ आया, वह तुरंत अपना दर्द भूल गई और जल्दी से करवट बदल कर अपनी बच्ची को देखने लगी बल्कि उससे प्यार करने लगी |
सुनीता को पानी पीना था, पर अगल-बगल में स्टूल पर कुछ भी नहीं था | वह एक नजर सभी की तरफ देखने लगी, जहां पर बाकी औरतें थी जिनके घर वाले उनके लिए फल- फ्रूट खाने के लिए दे रहे थे लोग मिलने आ रहे थे, बच्चों को हाथ में लेकर प्यार कर रहे थे, पर उसके पास कोई नहीं था |
तकरीबन 10 मिनट के बाद एक लड़की हाथ में थैला पकड़े वॉर्ड के अंदर आई, दिखने में उसकी उम्र करीब 5 से 6 वर्ष की होगी, अंदर आते ही चारों तरफ नजर फेर कर देखने लगी और जैसे वह अपनी मां को देखी तो चहकते हुए उसी की तरफ आई..!
" मम्मी... मम्मी.. मैं आपको कब से ढूंढ रही थी.. मैं तो दूसरे रूम में चली गई थी..!"
सुनीता ने जैसे देखा तो उसकी आंखों में चमक आ गया और वह थोड़ा सा उठकर उस बच्ची के चेहरे पर हाथ फेरते हुए बोली_" मानसी.. मेरा बच्चा किस के साथ तू यहां आई..? और मंजू कहा है..? "
" मम्मी.. मंजू ना दादी के साथ खाना खा रही थी, इसलिए उसे लेकर नहीं आई... आपको भूख लगा होगा ना.. मैं खाना लेकर आई हू और साथ चाय बिस्कुट भी..! "
मानसी की नजर तब तक मां के बगल में लेटी छोटी बच्ची पर गया और वह थैला नीचे रखकर जल्दी से उसके पास जाकर उसके माथे पर चूमने लगी, जो देख सुनीता को भी अच्छा लगा |
सुनीता धीरे-धीरे उठकर बैठी, तब तक मानसी अपनी मां का हाथ पकड़ के उसे बिठाने में मदद की, आज सुनीता के पास कोई नहीं था अगर कोई था तो उसकी बड़ी बेटी थी, जो वह बहुत छोटी और बच्ची थी |
मानसी ने एक बोतल में चाय लेकर आई थी, जो पूरी तरह ठंड हो गई थी |
सुनीता ने तो एक घूंट पी रहेगी कि उसे अच्छा नहीं लगा और उसने वैसे ही छोड़ दी..!
मानसी ने अपनी मम्मी के लिए एक प्लेट में दाल - चावल और रोटी खाने के लिए दी, मानसी ने तुरंत खाने से मना कर दी और वह एक नजर बाकी लोगों की तरफ देखी जहां उनके घर वाले दूध - मेवा खाने को दे रहे थे |
सुनीता को यह दाल- चावल सूखी रोटी गले से उतरता भी नहीं क्योंकि अभी-अभी उसकी डिलीवरी हुई थी वह वापस वैसे ही लेट गई..!
मानसी छोटी बच्ची के साथ उसकी उंगलियां पड़कर खेलने लगी |
थोड़ी देर में नर्स वहां आई और पेशेंट से घरवालों के बारे में पूछने लगी, जो देख सुनीता कुछ बोली नहीं पर उसकी आंखों से आंसू कोने से बहने लगे |
2 घंटे बाद _
तकरीबन 2 घंटे बाद उसे गवर्नमेंट हॉस्पिटल में एक बूढ़ा आदमी आया, उस बुढ़े शख्स को देख मानसी जोर-जोर से ताली बजाते हुए चिल्लाने लगी |
" मम्मी नाना आ गए.. नाना आ गए..!"
मानसी का इतना कहना कि सुनीता थोड़ी सी सिर उठाकर दरवाजे की ओर देखी तो उसके पिताजी आए थे और उन्हें देख वह एक दफा फिर रो पड़ी..!
उसके पिताजी एकदम उसके पास है और उसके माथे पर हाथ रख उसकी तबीयत के बारे में पूछने लगे, वह समझ गये कि उसके पास इस वक्त कोई नहीं है उन्होंने छोटी बच्ची को देख चुटकी बजाते हुए प्यार देने लगे |
उन्होंने अपनी बेटी के लिए ढेर सारी चीजें खाने के लिए लाया था ताजे फल, ड्राई फ्रूट, घी के बने लड्डू बहुत कुछ लेकर वह आए थे |
तभी नर्स उनके पास आकर बोली _" आप नाम क्या है..? और आप पेशेंट के कौन है..? "
यह सोन बुढ़े शख्स ने कहा_" मेरा नाम दामोदर लोधी है, यह मेरी बेटी है और मैं इसका बाप हूं..! "
" अच्छा ठीक है, आप यह फॉर्म भर दीजिए पेशेंट का डिस्चार्ज करना है और यह दवाइयां बाहर से ले लीजियेगा , और पेशेंट बहुत कमजोर है इसे खाने में पौष्टिक चीजें दिया करें.. हरी सब्जियां दूध दही अंडा सभी चीज इन्हें खिलाएं..! "
दामोदर जी ने तुरंत डिस्चार्ज का फॉर्म भरा और रिक्शा बुलाकर अपनी बेटी को लेकर अपने घर चले गए क्योंकि उन्हें पता था कि इस हालत में उसका कोई देखभाल नहीं करेगा |
जिसकी वजह से वह अपने पास लेकर गए पहले तो सुनीता मना कर रही थी कि वह अपने घर जाएगी, पर दामोदर जी ने डांट लगाते हुए कहा_" देख लिया तुम्हारे घर वालों का तुम्हें देखने तक नहीं आए कि तुम किस हाल में हो और तुम वहां जाओगी.. वे सब तुम्हारा देखभाल करेंगे..? अरे बल्कि तुम्हें जिंदा खा जाएंगे.. अब तुम एक महीने के बाद ही जाओगी..!
" मंजू अकेली है, रात में डर जाती है..!"
यह सुन दामोदर जी बोले_" ठीक है, जब तुम्हारे घर वालों का फोन आएगा तो मैं उसे लेने चला जाऊंगा.. अभी तुम चलो..! "
इतना बोलकर वह अपनी बेटी और दोनों नातिन को लेकर चले गए..!
जबलपुर सिटी_
दामोदर जी जैसे अपनी बेटी को लेकर घर में प्रवेश किये कि उनकी पत्नी यानि सुनीता की मां अपनी बेटी को देख तुरंत उसकी नजर उतारने लगी और छोटी बच्ची को लेकर गए हैं कमरे में चली गई..!
सुनीता की भाभी दूर खड़ी होकर यह सब देख रही थी, जिसे देख पता चल रहा था कि उसके आने से उसे बिल्कुल भी खुशी नहीं हुआ वह मुंह टेढ़ा करते हुए अपने कमरे में चली गई..!
सुनीता को यहां आकर बहुत अच्छा लगा क्योंकि उसकी मां ने तुरंत उसे दूध में रोटियां भिगोकर नरम करके उसे खिलाया, उसके बाद थोड़ा फल भी अपने हाथों से खिलाया |
खाने के वजह से उसे नींद आ गया और वह सो गई और उसकी छोटी बेटी अपने नानी के पास खेलने लगी |
शाम होते ही दामोदर जी बाजार से ढेर सारी चीजें लेकर आए द्वार पर आते ही वह जोर से चिल्लाने लगे |
" शकुंतला... अरी ओ शकुंतला... कहा रह गई.. जल्दी आवो..!"
घर में से शकुंतला जी माथे के नीचे तक घूंघट लिए तेजी से बाहर आई और आते ही उन्होंने दामोदर जी के साइकिल पर जितनी भी चीजें था.. वह सब उतार कर अंदर लेकर चली गई..!
दामोदर जी आज मछली लेकर आए थे, शकुंतला जी पहले अच्छे से साफ- सफाई की उसके बाद वह चूल्हा जलाकर खाना बनाने लगी, पर उनकी बहू कमरे से बाहर नहीं निकली...!
बल्कि शकुंतला जी ने एक - दो बार उसे आवाज भी लगा कर बुलाया पर उन्होंने माथा दर्द कर रहा है, ऐसा बहाना बनाकर वह नहीं बाहर आई..!
शकुंतला जी को खाना बनाने में देर हुआ क्योंकि चूल्हे पर बनाने के लिए उन्हें काफी देर लगा और घर के सभी सदस्य का उन्हें अकेले बनाना पड़ रहा था, अब उनकी भी उम्र ढल रही थी जिसके वजह से वह काम बहुत धीरे-धीरे करने लगी थी |
खाना बनते ही उनकी बहू खाना लेने आ गई और चूल्हे पर से उसने अच्छे और और बड़े-बड़े मजेदार वाला मछली के पीस उठाकर अपने कमरे में लेकर चली गई..अपने बच्चों के साथ बैठकर खाने लगी |
शकुंतला जी कुछ नहीं बोली, क्योंकि बेटी भी उनकी बहू भी उनकी थी वह घर में बिल्कुल भी कलश नहीं चाहती थी क्योंकि यह एक बार का नहीं था जब भी उनकी बेटी घर आती तो यही हाल रहता अब तो उन्हें आदत पड़ गया था |
पर मन होने की वजह से वह सब कुछ बर्दाश्त करती, उन्होंने अपने हाथ से अपनी बेटी को खाना खिलाया सबके खाने के बाद वह बर्तन की सफाई की उसके बाद सो गई..!
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अब आगे
10 दिन बाद
सुनीता को मायके आकर पूरे 10 दिन बीत गया, पर उसे देखने उसके ससुराल वाले आया नहीं, उसे अगर किसी की फिक्र लगा था तो वह अपनी बेटी का लगा था, जो मछली बेटी को वह छोड़कर आई थी |
क्योंकि वह घर वालों के स्वभाव अच्छे से जान गई थी कि उसे यहां देखने तो दूर.. अगर वह उस घर में भी होती तभी कोई उसे पूछता तक नहीं..!
यह सब याद कर करके उसके आंखों में आंसू आ जाता, वह दुखी तो बहुत थी पर क्या ही करें..!
दामोदर जी और शकुंतला जी भी बहुत परेशान थे क्योंकि उनकी इकलौती बेटी थी और उसके ससुराल वाले बिल्कुल भी अच्छे नहीं मिले, जब से उसकी शादी हुआ था तब से लेकर आज तक वह सिर्फ दुख ही झेल रही है.. पूछने पर भी वह नहीं बताती, पर मां-बाप होने के नाते उसका दर्द समझ जाते थे |
बिलारी गाँव _
मंजू अपनी मां के लिए रोज-रोया करती थी, रात में तो वह कितनी बार उठकर एक ही रट लगाए रहती है कि_" दादी.. मुझे मम्मी के पास जाना है... मुझे मम्मी के पास जाना है..! "
जो देखकर उसकी दादी है उसे फटकार लगाते हुए यही कहती_" मार के तेरा मुंह तोड़ दूंगी.. वरना चुपचाप सो जाओ.. आई बड़ी मम्मी के पास जाना है..! "
दादी की डांट सुनकर उस वक्त तो मंजू चुप हो जाती, पर थोड़ी देर बाद वह वापस रोना चालू कर देती, पर उसके दादाजी जब उसे कुछ खाने के लिए कुछ देते तो वह चुप हो जाती, उसकी बुआ भी उसे खाने के लिए दिया करती थी |
देखते - देखते एक महीना बीत गया और उसके ससुराल वाले अभी तक उसे देखने नहीं आए..जिससे उसे अंदर ही अंदर शर्मिंदगी हो रहा था |
सुनीता की भाभी मोहिनी कितनी बार तो ताने दे चुकी थी_" कैसे घर वाले है जो एक बार भी बच्ची को देखने नहीं आए.. कहीं ऐसा तो नहीं हमेशा के लिए छोड़ दिया है या अपनाने से मना कर दिया है..! "
सुनीता रोज सुना करती थी कि उसकी भाभी घर में कोई बाहरी लोग आते तो उनके सामने हमेशा ऐसी बाते करती, अब उसने थान ली की वह अपने घर चली जाएगी, चाहे उसे कोई लेने आए या नहीं वह खुद से चली जाएगी |
सुनीता आज अपने पिता जी से बोली _" बाबा.. अब मुझे घर जाना चाहिए.. मंजू अकेली है.. वह लोग नहीं आयेंगे.. मुझे उसी घर में रहना है तो मुझे खुद जाना होगा..! "
यह सुन दामोदर जी तैयार नहीं हुए, वह कहने लगे_" नहीं तुम नहीं जाओगी, जब तक वह लोग तुम्हें लेने नहीं आएंगे..! "
पर सुनीता ज़िद करने लगी कि वह अब यहां रहना नहीं चाहती क्योंकि उसे अंदर ही अंदर पता था कि उसका नालायक पति उसे कभी लेने नहीं आएगा |
दामोदर जी, ने शकुंतला जी को तैयारी करने के लिए कह दिए जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए बहुत कुछ खाने का सम्मान बांधने लगी, इतना सारा समान देख मोहिनी आते- जाते मुह टेढ़ा करने लगी |
दामोदर जी ने हार मानकर एक बार अपने दामाद को कॉल लगाया ताकि वह खुद आए उसे लेने..!
उधर मदन दारू पीकर लेटा था और जैसे उसके मोबाइल बजा तो वह फोन उठाकर हेलो बोला..! उस समय मे नोकिया का बटन वाला मोबाइल था |
दामोदर जी उसकी आवाज से ही समझ गए की वो शराब के नशे में दूत है, फिर भी उन्होंने इज्जत से बात करते हुए कहा_" दामाद जी... आप कब आ रहे है, मेरी बेटी को लेने..? "
" क... कौन.. बोल.. रहा..? स.. सु.. र.. जी.. पाय.. लागू..! "
मदन इतना ही बोला होगा, उसके बाद उसके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल पाया और उधर से दामोदर जी हेलो हेलो करते रह गए..!
दामोदर जी अपनी बेटी को भेजना तो नहीं चाहते थे, पर उनकी बेटी की ज़िद करने लगी थी कि वह अपने घर जाएगी, जिसकी वजह से मजबूरन उन्हें अपनी बेटी को छोड़ने जाना पड़ा और वह खुद अपनी बेटी और दोनों नातिन को लेकर उनके घर छोड़ने चले गए..!
दोपहर के - 3:00 बजे
दामोदर जी कड़कती धूप मे अपनी बेटी को लेकर उसके ससुराल पहुंच गए.. जैसे जीप घर के सामने रुका तो आसपास के लोग देखने लगे, महिलाए घूंघट मे से देखे जा रही थी |
जीप जैसे रुका, सबसे पहले दामोदर जी उतरे और मानसी को उतारा उसके बाद सुनता अपने हाथ में लिए उतरी.. बाकी का जो समान था वह सब लेकर दामोदर जी ने किराया दिया |
तीनों घर के तरफ गए, जैसे द्वार पर पहुंचे कि सामने सुनीता की सास (कुंती देवी) बैठी थी, उनके चेहरे पर ज़रा भी खुश नजर नहीं आ रही थी |
दामोदर जी आगे आते दोनों हाथ जोड़ नमस्ते किए और सुनीता पैर छूकर आशिर्वाद ली, कुंती देवी बेमन से आशीर्वाद देते हुए बोली _" जीती रह..! "
इतना बोल चुप हुई और तेज आवाज़ में बोली _" शालिनी पानी लाकर दे..! "
आवाज सुनकर घर में से एक लड़की कटोरे में चीनी और लोटे मे पानी लेकर निकली और लाकर दामोदर जी को दे दी..एक नज़र अपनी भाभी के तरफ देखी जो हाथ में बच्ची पकड़े घूंघट मे खड़ी थी |
वह आगे आकर बोली _" भाभी बच्ची.. मुझे दीजिये..
सुनीता खुशी खुशी से बच्ची को अपनी ननंद के हाथ में पकड़ा दी, तभी मंजू जो कहीं से खेलते हुए घर के तरफ आ रही थी , वह जैसे अपनी माँ को देखी कि वह दौड़ते हुए आकर अपनी माँ के दोनों पैरों को पकड़ के लिपट गई, ब्लकि जोर जोर से रोने लगी |
सुनीता ने अपनी बेटी को उठा लिया उसके आंख में पानी आ गया | दामोदर जी आगे बोले _" भाई साहेब कहा है..? "
" शालिनी को लड़का देखने गए हुए है..! "
दामोदर जी आधे घंटे और बैठे रहे, तब तक कोई नहीं आया | नाही दामाद और नाही उसके बाप जो देख वह हाथ जोड़ अलविदा लिए अपनी बेटी को आशीर्वाद दे वहा से चले गये |
शाम का वक़्त
शाम होते होते रामेश्वर जी साइकिल लिए घर आ पहुंचे जैसे घर मे छोटी बच्ची के रोने का आवाज गूंजा, जिससे उन्हें समझ गया कि उनकी बहु घर आ गई है, वह खुश हो गये | वह खुद बच्ची को गोद में लेकर प्यार देने लगे |
सुनीता ने अपने मायके से जो कुछ लेकर आई थी वह सबने खा लिया, शाम होते वह अपनी बच्ची को तेल लगाकर मालिश करने लगी जिसके वज़ह से वह बहुत रोने लगी |
उसकी आवाज़ से कुंती देवी बोली _" अरे वों.. बहूरिया.. कितना उसका सेवा करेगी... अब खाना - वाना बना..! "
" माझी हो गया..! "
इतना बोलकर सुनीता ने बच्ची को दूध पिलाई और मानसी को बुलाकर उसे देखने के लिए कह दी और खुद रसोई घर में जाकर चूल्हा जलाई..!
उसने घर के सभी लोगों के लिए खाना बनाने लगी, बहुत गर्मी भी हो रहा था, उपर से लाइट नहीं.. दिया जला कर उसकी रोशनी में वह खाना बनाने लगी, इतने लोगों के लिए रोटियां सेकना बहुत मुश्किल का काम था |
जब सब खाना खा रहे थे, सुनीता का पति नशे मे लड़खड़ाते हुए घर के अंदर आया ब्लकि उसे किसी ने सहारा देकर लाया था, वह जैसे गया तो वह वहीं गिर गया |
जो देख उसका छोटा भाई (निखिलेश) उठाया और सहारा देकर उसे घर के अंदर लाकर छोड़ दिया, यह आज का काम नहीं था जब से उसका शादी हुआ तब से लेकर आज तक वह सहन करते आ रही है |
वह तो सो गया, उसी वक़्त छोटी बच्ची रोने लगी, जिसकी आवाज से मदन नशे में बड़बड़ाने लगा |
" कौन है रे...? इसकी माँ की... ****......!!!"
सुनीता तुरंत बच्ची को गोद में लेकर चुप कराने लगी, ब्लकि उसे दूध पिलाने लगी |
सुनीता ने अपनी छोटी बेटी का नाम महक रखी थी, प्यार से कहने लगी _" शांत हो जा मेरी बिटिया रानी..! "
थोड़ी देर मे बच्ची सो गई, सुनीता अंधेरे कमरे में रो रही थी जो कोई नहीं देख सकता, अक्सर वह अंधेरे में ही रोया करती..!
To be continue...
(डियर रीडर्स starting के कुछ चैप्टर मे आप लोगों को कहानी बोरिंग लगेगा, उसके बाद इंटरेस्टिंग आएगा, क्यूंकि सुनीता के तीनों बेटियों के उपर कहानी है)
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अब आगे _
अगली सुबह _
मदन की नींद उसकी छोटी बेटी के रोने के वजह से खुला और जब वह पूरी तरह आंख खोल कर देखा तो उसकी छोटी बेटी गला फाड़ कर रोए जा रही थी |
मदन अपनी बेटी को आज देखा, जबसे वह पैदा हुई थी तब से उसने एक बार नहीं देखा, उसे तो बिल्कुल भी अपने बेटियों का फिक्र नहीं था |
मदन के नींद खुल गया जिसकी वजह से उसे गुस्सा आया, पर वह तेज आवाज में अपनी पत्नी को आवाज देते हुए बोला_" सुनीता... ये सुनीता.. इसे चुप करा..! "
अपने पति की आवाज सुनकर सुनीता रसोई घर में से भागती हुई अंदर कमरे में आई और अपनी नन्ही सी बच्ची को हाथ में ले उसे चुप करने लगी और उसका पति उठकर बाहर जाने लगा जो ठीक तरह से बाहर जा भी नहीं पा रहा था |
सुनीता यह सब देख- देख कर थक चुकी थी, अब उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था, उसके पति का रोज का काम है, सुबह उठाना और दिन भर दारू पीना..!
सुनीता दिन भर घर का काम और अपने बच्चों का देखभाल करने में लग जाती, इतना तो अच्छा था कि खेत का अनाज मिलता था जिससे उसे कोई ताने तो नहीं देता, पर उसकी तीन बेटियां होने के नाते उसकी सासू मां का चेहरा हमेशा उतरा ही रहता |
जब भी बच्चे बीमार पड़ते थे तो वह जबलपुर चली जाती थी उसके पिताजी कुछ पैसे दे दिए थे, जैसे- तैसे करके वह दिन काट रही थी..!
5 महीने बाद
सुनीता इन दोनों बहुत व्यस्त रहने लगी थी क्योंकि उसकी ननंद की शादी को बस 8 दिन रह गया था और घर में काम इतना बढ़ गया था और अब उसकी छोटी बेटी भी पूरे 7 महीने की हो चुकी थी |
घर में अब मेहमान भी आने चालू हो गए थे, जो एकदम करीबी लोग थे, पर मदन का तो शराब पीना और भी बढ़ गया था यहां तक कि वह बीमार भी रहने लगा था |
वह दिन भर खासा करता था उसकी तबीयत खराब होने लगा था सब उसे मना करते थे कि घर में शादी है कम से कम इन दोनों तो पीना कम कर दे.. पर वह कहां किसी का सुनता..!
सुनीता और 8 दिनों में अपनी नंनद के लिए रोज ब्लाउज और पर्दे सब कुछ अपने हाथों से सी रही थी, उसे सिलाई करना तो आता है जो दिन भर उसके लिए कपड़े सिलने लगी |
आखिरकार वह दिन आ ही गया और आज शालिनी का विवाह होने लगा करीब शाम को बारात आ गई थी, द्वार पर बहुत बड़ा रंगोली निकाला गया था औरत ढोल - ताशा बजाकर नाच- गाना कर रही थी |
सुनीता को तो दिन भर बिल्कुल भी फुर्सत नहीं मिलता था, सभी मेहमानों की खातिरदारी करती रहती थी, चूहे के सामने बैठा रहना पड़ता था यहां तक कि वह अपनी बेटी को दूध भी टाइम पर नहीं पीला पाती..!
शालिनी की शादी पूरे रीति - रिवाज से हो गया और जब सुबह उसकी विदाई हो रहा था तो, सुनीता बहुत जोर - जोर से रो रही थी क्योंकि शालिनी दिन में बहुत बार बच्चों को संभाला करती थी.. कभी-कभी उसके खाना बनाने में हाथ बटाया करती थी, जिसके जाने के वजह से सुनीता को दुख हो रहा था |
शालिनी को घर से जाते ही घर में उदासी छा गया और कुछ मेहमान तो उसी वक्त चले गए, पर अभी भी बहुत सारे मेहमान थे |
वही मदन दारू पीकर लगातार बड़बड़ाये जा रहा था, उसके वजह से सुनीता को बेज्जती भी महसूस होता क्योंकि शादी में बहुत से औरतें ऐसी थी जिनके पति उनके अच्छे से देखभाल करते पर सुनीता के नसीब में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था |
वही उसकी सास बाकी लोगों से कहा करती_" मेरे घर में तो अब पांच लड़कियां हो गई है, अब मैं अपनी एक बेटी की ब्याह करुँगी, तब तक इसकी तीन बेटियां तैयार हो जाएंगी..! "
सुनीता सब की बातें सुनती पर वह किसी को कोई जवाब नहीं देती क्योंकि उसका पति ही सही नहीं था उसके सारे रास्ते बंद थे, उसे तो उन्हीं लोगों का सहारा था |
शालिनी की शादी होने के बाद फिर दिन धीरे-धीरे दिन बीतने लगा, अब धीरे-धीरे मदन की तबीयत खराब हो रहा था फिर भी वह पीना नहीं छोड़ रहा था, आजकल तो वह न जाने कहीं पर भी दारू पीकर पड़ा रहता..!
एक दिन अचानक से उसकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गया, जिसकी वजह से रामेश्वर जी उसे गवर्नमेंट हॉस्पिटल में लेकर गए जहां पर उसे एडमिट कराया गया |
चेकअप करने के बाद डॉक्टर ने उसे सिटी हॉस्पिटल ले जाने के लिए कहा, क्योंकि उसकी पूरी तरह लिवर खराब हो चुका था, जो सुनकर रामेश्वर जी घबरा गए क्योंकि यह बात तो उन्हें पहले से ही पता था पर डॉक्टर ने कुछ ऐसा कहा जिससे वह उदास हो गए और जब घर आकर उन्होंने बताया तो घर में रोना पीटना चालू हो गया |
सुनीता के पास मोबाइल तो नहीं था उसने अपने देवर निखिलेश से मोबाइल मांगते हुए बोली_" मुझे अपने बाबा को फोन करना है आप मुझे 5 मिनट के लिए मोबाइल दे दीजिए..! "
निखिलेश अपना मोबाइल देते हुए कहा_" हां पर ज्यादा बैलेंस खत्म मत करना अभी मैं ₹50 का डाला हूं..!"
सुनीता मोबाइल ले अपने बाबा को फोन लगाई और रोते हुए सब कुछ बता दी..!
सुनीता ने करीब 2 मिनट ही अपने बाबा से बात की होगी, उतने मे उसकी सासु माँ कुंती देवी ने रोते हुए जोर से बोली _" तेरा भाई तो दुबई में काम करता है, उसके पास तो ढेर सारे पैसे होंगे.. उसे कह दे की मदद करे..! "
सुनीता रो रही थी पर कुछ बोली नहीं क्योंकि वह कैसे अपने भाई से पैसे मांग सकती है अब तो उसका वहां कोई अधिकार नहीं..!
कुछ घंटे में दामोदर जी पहुंच गए, सुनीता ने रोते हुए अपने सरे गहने संदूक में से निकालकर अपने आप के आगे रख दी और बोली_" बाबा जब मेरा सुहाग ही नहीं रहेगा तो मैं इन सब का क्या करूंगी..? आप यह सब भेज कर उन्हें अस्पताल लेकर चलिए..! "
यह देख दामोदर जी बोले_" बेटी अगर तुम यह सब बेच दोगी तो वापस तुम्हें यह सब कभी नहीं मिल पाएगा..! "
सुनीता अपने दोनों हाथों से चेहरे पर रख जोर-जोर से रोने लगी और बोली_" इन सब कि मुझे जरूरत नहीं है बस आप मेरी सुहाग बचा लीजिए दामोदर जी बाप होने के नाते वह फिर लाचार हो गए और गहने लेकर चले गए उन्होंने सब कुछ बेचकर मदन को जबलपुर सिटी हॉस्पिटल में लेकर गए..!
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अब आगे _
दामोदर जी ने अपनी बेटी के सारे गहने बेचकर पैसे इकट्ठे किए और उनके पास भी जो कुछ था वह सब पैसे लेकर हॉस्पिटल पहुंच गए पर शायद भगवान को भाया नहीं..!
हॉस्पिटल पहुंचने के बाद करीब एक घंटे के बाद डॉक्टर ने बताया कि पेशेंट मदन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे..!
यह सुनकर तो सभी लोग जोर-जोर से रोने लगे, सबसे ज्यादा आवाज सुनीता का आ रहा था जो अपनी छोटी बेटी को गोद में लिए धड़ाम से नीचे बैठ गई जोर-जोर से चीख के रोने लगी |
वह जिस तरह से रो रही थी, अस्पताल में बाकी लोग देखने लगे बल्कि सभी के आंखों में आंसू आ गया क्योंकि भरी जवानी में उसने अपने पति को खो दिया |
हां यह सही था कि वह दारू के नशे में रहता था, उसे अपनी बीवी बच्चों का फिक्र नहीं था, पर सुनीता के लिए जैसा भी था उसका पति था |
करीब 4 घंटे तक सभी लोग अस्पताल में रोते रहे.. दामोदर जी ने अपनी बेटी को की हालत देखा नहीं जा रहा था | एक तो छोटी बेटी महक को गोद में लिए वह परेशान होने लगे, क्योंकि छोटी बेटी भी बहुत रो रही थी और सुनीता की तो हालत खराब हो गई..!
करीब शाम होते-होते डॉक्टर ने डेड बॉडी पोस्टमार्टम करके भेज दिया, जितने भी उनके रिश्तेदार थे सभी आ गए..!
शकुंतला जी भी आई और वह अपनी बेटी की हालत देख उनका दिल बैठ गया |
शालिनी और उसके पति सभी लोग इकट्ठा हो गए पूरे गांव वाले इकट्ठा हो गए सभी लोग रो रहे थे और कुछ ही देर बाद मदन सिंह का अंतिम संस्कार किया |
पूरी रात सब लोग रोते रहे शालिनी के तीनों बेटियां अपनी मां की हालत देखकर रो रही थी, मानसी तो थोड़ी समझदार थी वह कई दफा अपनी मां के लिए पानी लेकर आई पर सुनीता शुद्ध- बुद्ध में नहीं थी |
वह पूरी रात अपने कमरे में रोती रही, मदन के कुछ पैंट शर्ट थे जो हाथ में लिए वह देख- देख रोये जा रही थी |
औरतों ने अब उसकी मांग का सिंदूर हाथ की चूड़ियां सब कुछ निकाल दिया था, अब वह पूरी तरह विधवा हो चुकी थी |
ऐसे ही 15 दिन बीत गए मौत के सारे कार्यक्रम हो चुका था, तब तक दामोदर जी और शकुंतला जी अपनी बेटी के साथ थे और आज शालिनी अपने ससुराल जाने वाली थी |
कुंती देवी सभी को इकट्ठा की और और सभी के सामने उन्होंने कहा_" दामोदर भाई साहब आप अपनी बेटी को यहां से लेकर जाइए.. जब मेरा बेटा ही नहीं रहा.. तो इसे रख कर क्या करूंगी.. मैंने अपना बेटा खो दिया है..! "
यह सुनकर तो सुनीता और भी रोने लगी, वहीं उसके बाबा और मां सब परेशान हो गए पर आखिर वह ऐसा - कैसे कह सकती हैं..!
दामोदर जी ने कहा _" मेरी बेटी आखिर कहां जाएगी..? उसके तीन बच्चे हैं, मैं हर महीने कुछ ना कुछ अपनी बेटी की मदद करता रहूंगा पर वह यही रहेगी उसका हक है..! "
" कैसा हक..? कोई हक नहीं है..? क्योंकि इसने बेटी को जन्म नहीं दिया, तीन बेटियां हैं... आज नहीं तो कल वह शादी करके चली जाएगी... इसे आप अपने घर ही ले जाइए.. वैसे भी यह मनहूस है..! "
कुंती जी ने एक नहीं ऐसे ना जाने कितनी सुनीता के ऊपर लांछन लगाने लगी |
वहां खड़े मौजूद बहुत लोग थे, कुछ लोगों का कहना था कि यहां रहेगी तो सब लोग उसे तकलीफ देंगे... तो कुछ लोगों का कहना था कि जब बच्चे बड़े हो जाएंगे तो वह यहां आ जाए..!
सुनीता यहां से जाना नहीं चाहती थी क्योंकि वह अपने पति के यादों में अपने बच्चों को लेकर यही रहना चाहती थी, मेहनत करके खाना चाहती थी पर शायद अब उसका यहा रहना किसी को अच्छा नहीं लग रहा..!
दामोदर जी लाचार हो गए थे, उन्हें अपनी बेटी की हालत देख नहीं जा रहा था क्योंकि इतने लोगों के बीच में खड़ी होकर वह फिर से कमजोर पड़ने लगी है..!
शकुंतला जी ने अपने पति से कहा_" मैं अपनी बेटी को इस हालत में छोड़कर नहीं जा सकती, मैं इसे अपने साथ लेकर जाऊंगी..! "
आखिर ठहरे मां-बाप दोनों मान गया और उन्होंने अपनी बेटी को यहां से ले जाने के लिए हां कह दिया |
पूरा दिन इस पंचायत में बीत गया शाम होते उनकी बेटी ने जो कुछ कपड़े थे उन सब लेकर बांध लिये और अपने तीनों बेटियों को लेकर अपने माँ - बाप के साथ निकल पडी..!
वे सब जैसे जा रहे थे कि पीछे से कुंती जी ने कहा _" हक चाहे तो एक बेटी को यहां छोड़ कर जा सकती है.. मंजू को यहीं रहने दे..! "
" नहीं.. मैं अपनी तीनों बेटियों को कहीं नहीं छोड़ सकती जहां रहूंगी अपनी बेटियों के साथ रहूंगी.. वरना नहीं..! "
सुनीता इतना बोलकर एक नजर घर को देखी और अपनी सासू मां के पैर छूकर वहां से चली गई..!
तकरीबन रात 8:00 बजे _ जबलपुर
वे लोग जबलपुर पहुंच गए.. मोहिनी ने जैसी अपनी नंनद और उसके तीनों बेटियों को देखी तो वह तुरंत आगे जाकर सबसे पहले गले लगाई क्योंकि वह आज दुख में यहां आई थी और उसने सबसे पहले ही खाना बना लिया था |
सभी को खाना अपने हाथों से निकाल कर दी, जो देखकर सुनीता और भी रोने लगी मोहिनी को भी दुख हुआ..!
यह सब शकुंतला जी को अच्छा लगा कि उनकी बहू बगैर लड़ाई झगड़े के आज इज्जत और सम्मान दे रही है, वह चाहती थी ऐसे ही हमेशा रहे..!
पर मोहिनी को यह नहीं पता था कि उसकी नंनद अभी यहां हमेशा- हमेशा के लिए यहां रहने आई है.. उसे तो यही लग रहा था कि वह दुख में यहां कुछ दिन के लिए आई है..!
दो-तीन दिन और बीत गया, सुनीता सुबह से लेकर शाम तक रोया करती, जैसे घर का काम हो जाता है, वह फिर से बैठकर अपने बेटियों के बारे में सोचने लग जाती, आखिरकार वह तीन बेटियों का कैसे पालन- पोषण करेगी |
आज उसके मां-बाप हैं, तो उसे फ़िक्र नहीं कल को भी नहीं रहेंगे तो क्या होगा..?
To be continue....
(इस कहानी मे अब यहां से नया मोड़ चालू हो जाएगा, बहुत ही अच्छी कहानी है.. प्लीज आप लोग पढ़िए क्योंकि आगे चैप्टर में बहुत कुछ बदलाव होने वाला है..!)
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अब आगे
एक महीने बाद _
धीरे-धीरे वक्त बीत रहा था, जाने वाले तो चले जाते हैं पर वक्त थोड़ी ना रूकता और दिन तेजी से बीतने लगा |
सुनीता को मायके आए हुए एक महीना बीत गया, अब तो उसकी भाभी मोहिनी के पेट में दर्द होने लगा कि जब से आई है वह जा नहीं रही..!
स्टार्टिंग के दो-चार दिन तो वह अच्छे से पेश आ रही थी, पर सुनीता को न जाता देख उसे कहीं ना कहीं तकलीफ होने लगा |
वह खुल के तो बात ही नहीं कर सकती थी, जिसके वजह से वह काम में अपना गुस्सा निकालने लगी या तो वह घर के काम नहीं करती या करती भी तो बहुत ज्यादा शोर - शराबा करके काम कर रही थी |
जिससे शकुंतला जी को समझ में आ गया कि वह गुस्से में है बल्कि सुनीता को भी समझ में आ रहा था कि उसकी भाभी अब उसे परेशान करेंगी|
सुनीता के मन में अब एक डर बस चुका था कि उसे कब कोई क्या कह दे..? चिल्ला दे..? या कुछ भला - बुरा कह देगा..?
इसलिए वह सिर्फ चुपचाप काम किया करती थी और जब काम हो जाता तो वह कमरे में ही अपने बेटियों को लेकर रहती ताकि उसकी भाभी उसे कुछ सुनाये ना, उसे तरह-तरह के मन ही में डर समाने लगा था |
दामोदर जी सुबह-सुबह कुल्हाड़ी लेकर खेत में चले जाते थे, खेत का काम करते सुनीता सब घर का काम करके वह चाय और पानी लेकर अपने बाबा को देने खेत में चली जाती थी |
उसकी बड़ी बेटी मानसी वह सारी बातें उसकी सुना करती थी जैसे नल से पानी भरना हो.. झाडू लगाना हो.. चूल्हा चौका उपरी काम वह बहुत सारा कर देती..!
ऐसे ही दिन बीतने लगे मोहिनी ने अपने पति को कॉल लगाकर कहने लगी की_" तुम्हारी बहन और उसके तीनों बेटियां अब तो यही रहेगी.. क्योंकि बाबूजी तो भेज नहीं रहे और मैं इतने लोगों का खाना बना बनाकर थक जा रही हूं.. मेरे भी अपने चार बच्चे हैं और उन चारो का काम करना, बाबू जी - अम्मा जी 11- 12 लोगों का खाना बनाकर मेरी तो जान निकल रही है, ऐसे ही रहा तो मैं अपने मायके चली जाऊंगी, वरना आप यहां आए और कुछ हल निकाले..! "
रमेश इस वक्त दुबई में था, जिसकी वजह से वह उसे समझाते हुए कहा कि _" जब मैं आऊंगा तब मैं बात करूंगा अभी मैं किसी को कुछ नहीं कह सकता हूं और वैसे भी मेरी बहन तकलीफ में है उसे कुछ कहना बेकार है.. उसका दर्द तुम भी थोड़ा समझो..! "
अपने पति की बातें सुनकर मोहिनी को और भी गुस्सा आने लगा और उसने गुस्से में कॉल काट दी, उसे अब बात नहीं करना था |
खुद से बडबडाते हुए कहने लगी _" मेरी फूटी किस्मत जो मैं इस घर में आई मेरा पति भी मेरी बात ही नहीं सुनता है, वह तो उन लोगों का ही सुनेगा, क्यों नहीं आखिर उसकी बहन है.. पर मैं क्या हूं..? मुझे तो नौकरानी बनाकर इस घर में रख दिया है..! "
वह लगातार ऐसे ही बड़बड़े जा रही थी, सुनीता के चारों बच्चे स्कूल जाते थे, तो वही सुनीता के दोनों बेटियां मानसी और मंजू चुपचाप देखा करती थी |
बल्कि जब उसके चारों बच्चे स्कूल से आते तो.. यह दोनों भी उनके पास जाकर बैठती..!
जो देखकर मोहिनी कितनी दफा तो डांट लगाते हुए कहती _"तुम दोनों यहां क्या कर रही हो.. मेरे बच्चों को पढ़ने दो.. तुम दोनों की वजह से उनकी पढ़ाई नहीं हो पा रही..! "
मंजू तो अभी छोटी थी वह नहीं हटती थी, पर मानसी समझदार होने लगी थी वह मंजू का हाथ पकड़ कर बार-बार हटा देती..!
मोहिनी का इस तरह बार-बार चिल्लाना कई बार तो दामोदर जी भी सुन लिए और जब स्कूल की छुट्टियां मिली तो दामोदर जी ने सोचा कि जब स्कूल चालू होगा तो दोनों बच्चियों का नाम लिखवा दूँगा, ताकि यह दोनों भी कुछ पढ़ लिख ले..!
सुनीता तो किसी से कुछ भी नहीं मांगती और नाही उसने अपने बच्चों का स्कूल में नाम लिखवाने का कोई फैसला लिया..!
पर दामोदर जी समझ चुके थे कि जब तक वह जिंदा है तब तक उसकी बेटी को कोई कुछ नहीं रहेगा पर जिस दिन वह मर गए उसे दिन उनकी बहू उसे इस घर से निकाल देगी..!
जिसके वजह से दामोदर जी रोज परेशान होने लगे और ऐसे ही दो महीना और बीत गया जब स्कूल चालू हुआ तो उन्होंने दोनों बच्चियों का नाम सरकारी स्कूल में लिखवा दिया |
कुछ दिन तो दोनों बच्चियों प्लास्टिक बैग में एक बुक और पेन लेकर जा रही थी |
जो दामोदर जी को अच्छा नहीं लगा इसलिए उन्होंने सस्ते वाले दो स्कूल बैग खरीद कर ले आए और उन्हें स्कूल से यूनिफॉर्म भी मिल गया |
सुनीता अपनी दोनों बेटियों को सुबह तैयार कर देती थी उनकी चोटिया बनाना उन्हें यूनिफॉर्म पहनना और अपनी बेटियों को देखकर उसे गर्व हो रहा था कि उसकी भी बेटियों पढ़ - लिख लेंगी तो अच्छा हो जाएगा |
अब उसकी छोटी बेटी भी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी थी बल्कि वह घुटने के बाल पूरे घर में घूमने लगी थी |
उधर रमेश दुबई से घर वालों के लिए कुछ कपड़े चॉकलेट काजू- बादाम भेजा था और जो आदमी उसका सामान लेकर आया था वह घर जब देने के लिए आया तो मोहिनी ने अपने पति के भेजे हुए सारे सामान उसने खुद लिया क्योंकि यह सामान उसके पति ने भेजा था भला वह कैसे दे सकती है..!
सुनीता के भी दोनों बेटियां जाकर आगे तक झांक करती पर मोहिनी देना नहीं चाहती थी पर मजबूरन उसे थोड़े से चॉकलेट निकाल कर देना पड़ा..!
आखिरकार वह पल आ ही गया, दामोदर जी का बेटा दुबई से घर आया |
शुरुआत में वह कुछ बोला नहीं पर रोज उसकी बीवी उसका कान भरने लगी, जिसके वजह से रमेश भी धीरे-धीरे अपनी बहन से नफरत करने लगा |
करीब ऐसे ही एक साल बीत गया और अब सुनीता की छोटी बेटी महक एक साल की हो गई अब वह धीरे-धीरे चलने भी लगी थी |
आज रमेश घर में बहुत झगड़ा कर रहा था बल्कि सारा सामान निकाल निकाल कर फेंक रहा था |
जो देखकर आसपास के लोग जमा हो गए और पूछने पर पता चला कि गाय का जो दूध है, वह कम पड़ गया था क्योंकि सुनीता की बेटियां भी पीती थी |
गांव के लोग तो समझदार ही थे, जो पुराने बुजुर्ग थे वह कहने लगे |
" अरे बच्ची है कितना दूध पी जाती है..? एक ग्लास.. आधा ग्लास में बच्चों का पेट भर जाता है.. इन नन्हे बच्चों से क्या दुश्मनी निकालना... बिन बाप की बच्चियों है, इनको संभाल तुम्हारे लिए पुण्य का काम है..!"
जो सुनकर रमेश बोला_" तो मेरे बच्चे कहां जाएंगे..? इन चारों को संभालना मैं तो बिक जाऊंगा, मेरा भी एक बेटा है.. तीन बेटियां है..! मैं तो इनको ही संभालता रह जाऊंगा..! "
सुनीता कोने में बैठकर रो रही थी, क्योंकि उसका दिमाग भी तो कुछ काम नहीं कर रहा था, भला वह क्या कर सकती है..? कौन उसकी मदद करेगा..? कोई तो ऐसा नहीं था जो कहें कि इनकी मदद करूंगा |
दामोदर जी सभी के सामने अपनी बात रखते हुए बोले_" मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी विधवा हो गई है.. क्या मैं उसे फेंक दूं आप सब बताइए... वह तो तीनों बेटियां हैं आज नहीं तो कल उनकी शादी हो जाएगा, वह अपने घर चली जाएगी... मेरी बेटी दिन भर घर का काम करती है अगर एक टुकड़ा तुम लोग उसके सामने डाल दोगे तो क्या बिगड़ जाएगा..!"
रमेश गुस्से में बोला_" मैं आज से अपना अलग चूल्हा जलाऊंगा.. हमें तुम्हारे साथ नहीं रहना.. देख लो तुम लोगों को क्या करना है.. क्योंकि मैं इतने लोगों का जिम्मेदारी लेकर नहीं चल सकता.. इसे कह दो कि यह अपनी बेटियों को लेकर अपने घर जाए.. इसके घर वाले कितने चालक है जो इस घर से निकाल दिया और तुम लोग इसे लेकर यहां आ गए...! अगर लेकर नहीं आते उन्हें रखना ही पड़ता |"
शकुंतला जी रोते हुए बोली_" अगर उधर रख कर आई होती ना बेटा... तो इसे जिंदा खा गए होते..! "
" तो खाने दिया होता.. अपने घर रहती ना वह.. उसे जिंदा खाए या पका कर खाए.. यहा लाने की क्या जरूरत था? "
अब तो झगड़ा हद से ज्यादा बढ़ने लगा था, सुनीता अपने बाबा के पैरों में जाकर गिरकर रोते हुए बोली_" बाबा झगड़ा मत करो.. मैं अपनी बेटियों को लेकर कहीं चली जाऊंगी..! "
आसपास के लोग यह सब देखकर उन्हें बहुत तकलीफ हो रहा था पर लोग क्या कर सकते हैं.. समझा तो रहे थे पर रमेश को समझ नहीं आया... तो कोई कुछ नहीं कर सकता ..!
बल्कि यह झगड़ा दो-तीन घंटे तक चलता रहा और आखिरकार रमेश अपना बीवी बच्चों को लेकर अलग हो गया |
To be continue....
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अब आगे _
रमेश अपनी बीवी बच्चों को लेकर आना हो गया | तो वही सुनीता अपने बाबा और मां के साथ रहने लगी |
दुख तो उसे बहुत हो रहा था कि उसकी वजह से घर में दरार पड़ गया, पर बेचारी क्या कर सकती... कहां जाएगी..!
दामोदर जी सुबह होते ही खेत का काम करने चले जाते थे, पर उनके काम करने से तो घर नहीं चल सकता |
जो देखकर सुनीता बोली_" बाबा अपना दो-तीन खेत और पकड़ लो अब मैं भी आपके साथ काम करूंगी, जिससे हमें तकलीफ नहीं होगा और घर भी अच्छे से चलेगा..! "
यह सुनकर दामोदर जी मना करते हुए बोले _" नहीं बेटी इसकी कोई जरूरत नहीं है.. मैं हूं ना... मैं जब तक जिंदा हूं.. मैं तुम सबको पा लूंगा..! "
सुनीता बोली_" बाबा आप मना मत कीजिए.. अगर आप नहीं देखेंगे तो मैं कहीं जुगाड़ लगा लूंगी और खेत का काम करूंगी, आप मेरी बात समझिए बाबा.. अभी से अगर मैं कुछ काम करूंगी तो मैं अपनी बेटियों के लिए कुछ पैसे रख सकती हूं.. ताकि जब वह बड़ी होगी तो मुझे और आप सबको तकलीफ नहीं होगा..! "
सुनीता काफी देर तक अपने बाबा को समझती रही, शकुंतला जी भी अपनी बेटी की तकलीफ समझ रही थी और उन्होंने कहा कि_" सुनीता सही कह रही है तीन बेटियां थी, कुछ पैसे रखेंगे तो तकलीफ नहीं रहेगा..! "
दामोदर जी दूसरे तीसरे दिन से लोगों से बात करके उन्होंने दो-तीन खेती बांध लिया, अगर एक खेत में दामोदर जी जाते तो दूसरे खेत में उनकी बेटी, वे दोनों सुबह से शाम तक खेती में काम करने लगे |
बाप - बेटी दोनों का काम में बहुत मन लगा कर करने लगे, शकुंतला जी घर का पूरा काम करती और तीनों नातिन की देखभाल करने लगी थी, जिसमें उनका पूरा दिन निकल जाता |
ऐसी ही दिन बीतने लगा.. दिन से महीने बीतने लगे.. महीने से साल बीतने लगा, अब बगैर फिक्र के बाप- बेटी- मां और तीनों बेटियां बेफिक्र होकर रह रही थी बल्कि अच्छे से खाते - पीते भी थे |
खेती का अनाज जैसे तैयार होता था, बाप - बेटी काटने लग जाते थे तो वही मानसी अपनी मां और नाना को खेत में पानी देने.. खाना देने लेकर जाती थी |
बाप- बेटी खेत का पुराना अनाज काटते थे और कोई उन्हें खेती का काम करने के लिए बुलाता तो दोनों जाते थे, बदले में उन्हें पैसे अनाज भी मिलता था |
घर में इतना अनाज तैयार हो जाता था कि वे लोग बोरा - बोरा अनाज बेचने भी लगे थे, जिससे उन्हें पैसे मिलते थे और वह पाई- पाई जोड़कर बैंक में रखने रखने लगे थे |
सुनीता दिनभर खेती का काम करती और शाम को जब उसे टाइम मिलता था, तब वह हाथ से लोगों की साड़ियों में फाॅल लगाना का काम करती थी, उसके पास मशीन तो नहीं था और पैसे भी नहीं थे की मशीन ले ले... वरना वह और भी पैसे कमा सकती थी |
सुनीता की मेहनत देखकर उसकी भाभी मोहिनी तो अब जलन होने लगा था, क्योंकि दामोदर जी ने अपनी बेटी से कहा_" सुनीता मैंने पुराना मशीन देखा है जो ₹1200 में मिल जाएगा, मैं चाहता हूं वह मशीन ले लो, जिससे तुम बरसात में लोगों के कपड़े सिलना और अपनी बेटियों के भी सिलना..! "
मोहिनी दिनभर यहां - वहां घूमा करती थी और लोगों से अपनी नंनद की बुराइयां करने लगी थी, जो लोग समझदार थे वह तुरंत उसे कह देते कि बेचारी विधवा है.. अपने बेटियों के लिए अगर मेहनत कर रही तो अच्छी बात है, और जो लोग उसके दिमाग जैसे थे वह तो उसके हां में हां मिलाते थे | "
पर कहते हैं ना.. भगवान भी उसी का परीक्षा लेता है जो उसके काबिल होता है, शायद सुनीता का भी परीक्षा ही ले रहे थे.. भगवान ने उसे इतना तकलीफ़ दिया था, जब वह हार मानने लगी थी तब भगवान को भी दुख हुआ और वह उसका हाथ पकड़ के उस गड्ढे में से निकालने लगे |
5 साल बाद _
महक आज पूरे 5 साल की हो गई थी, मानसी पूरे 11 साल की हो गई थी, मंजू 8 साल की हो गई थी |
अब तो मानसी घर के बहुत सारे काम करने लगी थी, बल्कि मंजू भी छोटे- मोटे घर के काम करने लगी थी, तीनों बहन साथ में सरकारी स्कूल में पढ़ने जाया करती थी |
वही दामोदर जी की उम्र घटने लगा था बल्कि अब वह खेती के काम कर करके थक चुके थे, पहले जितना वह काम करते थे अब उनसे उतना काम काम नहीं होता |
पर बेचारी सुनीता के ऊपर बहुत जिम्मेदारी आ चुका था, वह दिन रात मेहनत करने लगी थी, दिन भर खेती का काम रात में सिलाई भी किया करती थी ताकि अपनी बेटियों का भविष्य बना सके..!
दिन तेजी से बीतने लगा, एक-एक दिन काटना कोई आसान बात नहीं था क्योंकि अब दामोदर जी धीरे-धीरे बूढ़े होते जा रहे थे बल्कि उनकी हिम्मत जवाब दे रहा था |
जो बात सुनीता बहुत अच्छे से समझ पा रही थी कि उसके बाबा से अब ज्यादा काम नहीं हो पा रहा, वही तीनों बेटियों को भी पालन कोई आसान काम नहीं था |
बीच-बीच में उनका भी बीमार पड़ना, खिलाना - पिलाना, त्योहार मनाना बहुत सी चीजों से सुनीता को संघर्ष करना पड़ रहा था |
कई दफा तो मोहिनी जानबूझकर झगड़ा निकलती क्योंकि उसे देखा नहीं जा रहा था कि वह यहां आकर उसके घर में रह रही है..!
मोहिनी दिन-ब-दिन निर्दय होते जा रही थी क्योंकि वह अपनी आंखों से देखी थी कि सुनीता कितनी मेहनत कर रही है, उसके थोड़े से मेहनत में भी उसे जलन महसूस होने लगा |
कई दफा तो बच्चों के लिए वह झगड़ा करती थी, क्योंकि महक छोटी थी और वह बार-बार मोहिनी के बच्चों के पास जाती थी.. जिससे उसे बहुत गुस्सा आता था |
वह एक दो दफा हाथ भी उठा दी, सुनीता अपनी भाभी को कुछ नहीं कहती बल्कि वह अपनी बेटी को डांट लगा देती, वह नहीं चाहती थी कभी लड़ाई झगड़ा हो..!
मोहिनी बिल्कुल भी झगड़ा नहीं चाहती थी क्योंकि उसका तुम अब सब कुछ उजड़ चुका था, सिर्फ अपनी बेटियों के लिए जी रही थी, वारना वह कब का मर गई होती |
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( अब यहा से कहानी तेजी से आगे बढ़ेगा, प्लीज आप लोग पढ़ते रहिए)
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अब आगे
एक महीने बाद _
दामोदर जी जब ठीक थे, तब घर में खुशियां ही खुशियां था.. पर उनके बीमार होते ही घर की सुख शांति में बाधा आने लगा, जिससे घर के सभी लोग उदास रहने लगे थे, क्योंकि दिन-ब-दिन वह और भी बीमार होने लगे |
उनके दवाइयां के लिए भी पैसा लगता था एक दिन तो ऐसा आया कि दामोदर जी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गया और जब उन्हें पास के अस्पताल में ले जाया गया, तो डॉक्टर ने उन्हें जबलपुर में सिटी में भेज दिया |
दामोदर जी को जब अस्पताल ले जा रहे थे, तब उनका शरीर एकदम से ठंड पड़ गया था, जो देखकर सुनीता जोर-जोर से रोए जा रही थी |
वही हाल शकुंतला जी का भी था और तीनों बच्चे घर में अकेले थे, मानसी अपने दोनों बहनों को लेकर रो रही थी |
शाम हो गया कोई खबर नहीं मिला, तीनों बहनें घर में अकेली थी, मानसी ने खाने के लिए कुछ भी बनाई नहीं क्योंकि तीनों बहनों को अपने नाना से बहुत लगाव था |
तीनों बहने रात भर अकेली घर में थी , सुबह खबर मिला कि उसके नाना अब इस दुनिया में नहीं रहे..!
यह सुनते ही तीनों बहनें जोर-जोर से रोने लगी, सबसे ज्यादा मानसी चीख- चीख के रो रही थी और उसको रोता देख मंजू और महक वे दोनों ही उससे लिपटकर रोने लगी |
उसके मामा और मामी वे दोनों भी हॉस्पिटल गए क्योंकि अभी तक लाश घर पर आया नहीं था |
करीब दोपहर के 1:00 बजे, अस्पताल की गाड़ी में सभी लोग बैठकर और लाश को लिए घर आए... अब द्वार पर आसपास के लोग सभी लोग इकट्ठा हो गए थे |
सब का रोना पीटना चालू था सुनीता और शकुंतला जी दोनों कल से रो रोकर बेहाल हो गई थी |
करीब 2 घंटे तक लाश को तैयार किया गया, उसके बाद शमशान घाट लेकर गए..!
रमेश ने अपने बाप का अंतिम संस्कार किया, सुनीता की दुनिया ही उजड़ गया, पहले पति गया और अब बेचारी फिर से अकेली पड़ गई और इस बार तो उसे अब अकेले जंग लड़ना था |
आसपास की औरतें जाकर उनके बगल में बैठकर उन्हें बहुत समझने लगी, ऐसा नहीं था कि सब लोग बुरे थे, बहुत लोग अच्छे थे जो कहते थे सुनीता मत रो... देखो बेटी भगवान तुम्हारे सब्र का परीक्षा ले रहे हैं... सब ठीक हो जाएगा... उम्र के हिसाब से सबको एक न एक दिन जाना पड़ता है..!
अगल-बगल की औरत है यही सुनीता और शकुंतला जी को समझ रही थी, उन्होंने रात में खाना भी लाकर दिया पर किसी ने भी नहीं खाया.।!
दूसरे दिन मानसी ने चूल्हे पर काली चाय बनाई और अपनी मम्मी और नानी को जबरदस्ती पीने के लिए दी, आखिरकार में दोनों ने चाय पिया क्योंकि रो-रो करूंगा गला सूख गया था |
नानी भी पूरी तरह बेहाल हो चुकी थी और अगर ऐसी ही रहा तो, वे बहुत जल्दी बीमार पड़ जाएगी |
दूसरे दिन से जो भी कार्यक्रम था, वह सब चालू हो गया और पूरे 15 दिन लग गए तब जाकर कहीं दामोदर जी का पूरा कार्यक्रम खत्म हुआ..!
घर में रोना और उदासी तो रोज का बना था और शायद अब बना ही रहेगा, क्योंकि पांच औरतें थी आदमी कोई नहीं था और अब सब सुनीता को झेलना था |
ऊपर से उसकी बेटी अब जवान हो रही थी, बिचारी अकेली पड़ गई थी जितना उसके पति जाने का दुख नहीं उससे ज्यादा उसके बाप के जाने का दुख था, क्योंकि उसके बाबा ने पूरी जिम्मेदारी ले रखा था और शायद इन्हीं सबसे वह टेंशन लेकर बहुत जल्द अलविदा हो गए..!
धीरे-धीरे अब एक महीना बीत गया | दामोदर जी के मरने के बाद मानसी कितने दिन स्कूल नहीं गई और अब उसके भी परीक्षा नजदीक आ गया था |
सुनीता ने अपने तीनों बेटियों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए बोली, क्योंकि अब उनकी परीक्षा भी नजदीक आ रहा था, वह नहीं चाहती थी कि उनकी बेटियां फेल हो..!
अब नानी भी थोड़ी कमजोर हो चुकी थी, पर वह अभी भी अंदर से हिम्मत दिखा रही थी ताकि उनकी बेटी अकेली ना पड़े.. वह फिर से अपनी तीनों पोती और बेटी का ख्याल रखने लगी और सुनीता फिर से खेत में काम करना शुरू कर दी..!
वह जब खेत में जाती, सबसे पहले बैठकर जी भर के रोने लग जाती.. उसे अपने बाबा की बहुत याद आता.. वह जहां बैठते थे उस जगह पर जाकर वह भी बैठती और उन्हें याद करके खूब रोया करती थी |
दिन तो काटना ही था.. अब वह दुख से कटे या सुख में कटे.. पर समय तो बीतेगा ही और बीतने भी लगा |
कई दफा रमेश ने अपनी बहन से झगड़ा किया, उसकी भाभी मोहिनी ताने भी देती थी कि अपना पति खाकर यहां आ गई और हमारे ससुर को भी खा लिया, इसका पैर अच्छा नहीं है..!
रोज ऐसे उसे बहुत कुछ सुनाया करती थी, रोज घर में कुछ ना कुछ उसे सुनना पड़ता था, पर बेचारी सब कुछ सहन करती थी अगर उसके बाबा होते तो शायद यह दोनों उसे कुछ कह नहीं पाते..!
महक तो मानसी से कितनी बार पूछती थी _" हमारे पापा कहां है..? अगर हमारे पापा होते हमें कोई कुछ नहीं कहता ना..? वह भी हमें बहुत सारा खान के लिए लाकर देते..! "
मानसी उसे प्यार से समझाते हुए बोली _" मम्मी है ना.. मम्मी तो हमें कुछ भी कमी नहीं करती है..! "
यह सुनकर मंजू बोली _" मामा के घर में तुम मछली भी बनता है, और वह लोग अच्छा-अच्छा खाते हैं बार-बार दुकान पर जाते हैं.. मेरे पास तो पैसे भी नहीं है, हमारे घर में तो कभी तो मछली बनता है..! "
यह बात तो सच था कि सुनीता अपने बच्चों को कुछ अच्छा लाकर खिला नहीं पाती थी, पर हां सादा खाना ही उनके घर में रोज बनता था |
पर वह अपने बच्चों को बगैर खाए सोने नहीं देती थी, हा बाकी लोगों की तरफ अपने बच्चों को बाहर का और अच्छा-अच्छा नहीं दे पाती थी, क्योंकि उसे अपनी तीनों बेटियों का भविष्य जो बनाना था |
5 महीने बाद अब वह घड़ी आ गया था, मानसी के दसवीं का फाइनल परीक्षा था और वह 4:00 बजे उठकर अपना मन लगाकर पढ़ाई करती थी और जब वह परीक्षा देने जाती तो नानी उसे रोज दही और शक्कर खाने में दे रही थी |
मानसी रोज सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करती और तैयार होकर वह परीक्षा देने चली जाती थी, मानसी को इंतजार था कि कब परीक्षा खत्म हो जाए और वह अपनी मां का हाथ बटाए..!
उसके लिए तो वही सबसे बड़ा परीक्षा था और जैसे उसका परीक्षा खत्म हुआ तो वह अपनी मां से बोली _" मम्मी मैं भी आपके साथ खेत में काम करने चलू..! "
यह सुनकर सुनीता उसे डांट लगाते हुए बोली_" नहीं.. तू खेत में कभी काम करने नहीं जाएगी..! "
" क्यों मम्मी..? आप भी तो करती हो ना.. मैं भी करूंगी तो थोड़ा और पैसा आएगा..! "
यह सुनकर सुनीता के आंसू आ गये और वह बोली _" नहीं मेरी बेटी तू बहुत छोटी है.. खेत में काम करना कोई आसान काम नहीं है यह बड़े लोग खून पी जाते हैं.. दिन भर धूप में तुझे खेत में काम करना पड़ेगा और मैं नहीं चाहती हूं मेरी बच्ची अभी से एकदम कमजोर पड़ जाए... यही तो तुम्हारी उम्र है खाने - पीने की.. मैं तुमसे वह भी नहीं छीनना चाहती... तुम लोगों को कुछ दे भी नहीं पा रही हू..! "
सुनीता ने अपनी बेटी को खेत में जाने से मना कर दी, तो मानसी सिलाई पर ज्यादा ध्यान देने लगी और लगभग एक महीने बाद ही वह बहुत अच्छे से सिलाई करने लगी |
वैसे वह पहले से ही रोज थोड़ा-थोड़ा मां को देखकर वह सीखने लगी थी, पर बहुत ज्यादा साड़ी में ब्लाउज में वह थोड़ा-थोड़ा सिलाई करने लगी थी | पर अब वह इतना दिन भर मन लगाकर करने लगी जिससे उसका हाथ एकदम साफ हो गया |
सबसे पहले उसने अपनी दोनों बहनों के लिए फ्रॉक सिलने लगी और कुर्ती सिलने लगी.. पहले थोड़ा फिनिशिंग उसका खराब हो रहा था पर धीरे-धीरे और 2 महीना लगा जिससे उसकी फिनिशिंग और अच्छा हो गया और वह अपनी मम्मी और नानी के लिए ब्लाउज भी सिलने लगी |
जैसे उसका हाथ साफ हुआ तो वह लोगों के भी ब्लाउज ड्रेस सिलना शुरू कर दी, वह दिन भर में ज्यादा तो नहीं सिलाई कर पाती थी.. क्योंकि उसे मशीन हाथ से चलाना पड़ता था और वह घर का काम भी करती थी, पर सुबह से लेकर रात तक वह एक से दो कपड़े तो आराम से सील लेती थी |
दिन बीत रहा था, दोनों बहनों का भी परीक्षा चालू हो गया और उन दोनों ने भी अपना फाइनल परीक्षा दिया |
अब वह घड़ी आया जब मानसी को 11वीं में एडमिशन लेना था और अब उसे पैसे चाहिए थे और एडमिशन के लिए पूरे 20-25 हजार लग रहे थे |
उसने इतना सिलाई की होगी तो भी हजार रुपए ही जमा हो पाया उतने में उसका एडमिशन नहीं हो सकता, उसने तो अपनी उम्मीद भी छोड़ दी थी कि एडमिशन हो पाएगा |
मानसी ने अपनी पढ़ाई यही स्टॉप कर दी क्योंकि एडमिशन भी उसे नजदीक तो नहीं था क्योंकि कॉलेज करने के लिए उसे मेन सिटी में जाना पड़ेगा |
मानसी सिर्फ और सिर्फ सिलाई पर ध्यान देने लगी और अब वह इतना ध्यान देने लगी और उसका इतना हाथ स्पीड हो गया कि दिन में वह तीन- चार सौ का सिलाई करने लग गई थी और उसकी दोनों बहने तो अभी पढ़ाई कर रही थी |
सुनीता भी अपनी बेटी को देखकर ताजू होने लगा था.. इतना तो सुनीता कभी सिल नहीं पाती थी, जितना कि उसकी बेटी सिलाई करने लगी है बल्कि ज्यादा पैसा कमाने लगी |
मानसी अपनी नानी के साथ बाजार भी जाती थी और अपनी सिलाई में से वह कभी कबार मछली.. गोलगप्पे या कुछ और खाने के लिए लेकर आई थी, उसे कोई मना नहीं करता था क्यूंकि शकुंतला जी और सुनीता भी जानती थी कि बच्चे हैं उनका मन करता होगा खाने पीने के लिये |
To be continue...
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अब आगे _
मानसी ने अपनी पढ़ाई छोड़कर सिलाई के काम में लग गई, एक बार फिर से सुनीता की उम्मीद बढ़ने लगा क्योंकि अब उसकी बेटी उसकी सहारा बन चुकी थी और वह सुबह से लेकर सोने तक वह सिलाई करती थी |
जो पैसे बचते थे वह बहुत अच्छे से संभल के भी रखती थी, यहां तक की जरूरत की चीजें वह खुद भी मार्केट जाकर लाया करती थी..!
मानसी धीरे-धीरे घर की जिम्मेदारी लेने लगी थी, जिससे सुनीता को बहुत सपोर्ट मिलने लगा वह जिस कदर टूट चुकी थी उसे नहीं लगा था कि वह जिंदगी झेल सकती है..!
पर अब उसकी उम्मीदें फिर से जुड़ने लगी क्योंकि अब एक नहीं बल्कि उसकी तीन-तीन बेटियां तैयार हो रही थी |
मोहिनी के तो चारों बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, बल्कि उनके मां-बाप ने उन्हें बहुत अच्छे स्कूल में एडमिशन भी करवा दिया, मानसी का भी बहुत मन था कि वह पढ़ाई करें पर बेचारी अपना मन बहुत पहले ही उसने मार चुकी थी |
मंजू बहुत शर्मीली थी पर वह कई दफा अपने मां के बच्चों के पास जाती थी पर वह लोग उससे बात नहीं करते थे, बल्कि जब पढ़ाई करते थे तो अपनी किताबें साइड में रख देते थे |
मंजू का टीवी देखने का भी मन करता था क्योंकि उसके मामा के घर में टीवी था और वह बार- बार देखने जाती थी, उनके पास 10 मिनट बैठी थी |
पर उससे कोई बात नहीं करता था जिसकी वजह से मंजू बार-बार जाया करने लगी और एक दिन मोहिनी उससे बातें करते बोली _" तुम्हारी मां कहां है..? "
जो सुनकर मंजू बोली _" मम्मी तो खेत में गई है..! "
जो सुनकर मोहिनी बोली_" एक बात कहू मंजू.. बुरा मत मानना..! "
" हां बोलो ना.. मामी..! " मंजू तुरंत बोली
मोहिनी उसे पाठ पढ़ाते हुए बोली_" तुम्हारी मां ने जो किया वह सही किया..? हमारे घर आकर हमारे घर में रहकर दादागिरी कर रही है.. तेरी मां की वजह से ससुर जी अलग हो गए.. यह जो रोज का बखेड़ा हो रहा है.. वह सिर्फ तेरी मां की वजह से हो रहा है, क्या बिगड़ जाता अगर वह अपने घर रहती तो..? आज तुम लोगों का भी भविष्य बना रहता पर नहीं तेरी मां को तो यहां ही जाकर रहना था..! "
मोहिनी मंजू को पाठ पढ़ा ही रही थी कि तब तक बगल वाली औरत आकर बैठ गई जो देखा वह उसके सामने उसकी मां की हजार बुराइयां करने लगी |
मोहिनी को लगा कि मंजू उसकी बातें सीखेगी पर वह गलत थी क्योंकि मंजू वह अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा आने लगा और आता भी क्यों नहीं क्योंकि अब वह धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी और बढ़ते बच्चों के अंदर समझदारियां तेजी से आ जाती है और उनके ही बच्चे कम उम्र में बड़े हो जाते हैं जिनके घर में मां को सबसे ज्यादा तकलीफ मिला हो..!
मंजू जब भी स्कूल से आती थी तो वह टीवी देखने अपने मामा के घर में बैठ जाती, मंजू कहीं दफा अपनी मामी के मुंह से अपनी मां की बुराइयां सुन चुकी थी वह दूसरे औरतों से हमेशा उनकी बुराइयां ही करती थी |
उसे लगता था कि मंजू सुन नहीं रही पर वह सब कुछ सुनती थी वह टीवी कम पर अपनी मामी की बातों पर ज्यादा ध्यान देने लगी |
धीरे-धीरे मंजू का उम्र बढ़ने लगा बल्कि तीनों बहनें तेजी से बढ़ रही थी तो वही उसकी नानी की उम्र अब ढलते जा रहा था |
मोहिनी ने ढेर सारे फूलों के पौधे लगाए हुई थी, मंजू स्कूल से आई तो वह हाथ में बर्फ का गोला लेकर खा रही थी |
तभी उसने शालिनी को फूल तोड़ते हुए देखी और वह भी उसके पास जाकर गोला खाते हुए बोली_" शालिनी दीदी.. गुलाब के फूल क्या तू बालों में लगाने वाली है..! "
जो सुनकर शालिनी बोली_" नहीं रे... यह तो मैं अपनी किताब में रखूंगी..! "
दो गुलाब के फूल आए थे, जो तोड़कर शालिनी लेकर चली गई उसके जाने के बाद मंजू वही खड़ी होकर गोला खा रही थी कि तभी मोहिनी आई और उसने मंजू को पौधों के पास खड़ी हुई देखी..!
और जैसे उसे गुलाब के फूल टूटे हुए दिखे तो वह उसके पास आकर तेज आवाज में पूछी_" मंजू क्या तुमने यह फूल तोड़ा..? "
यह सुनकर मंजू हडबडाते हुए बोली_" नहीं मामी.. मैंने नहीं तोड़ी बल्कि शालिनी दीदी फूल तोड़ कर लेकर गई..! "
मोहिनी अपनी बेटी को आवाज लगाकर बुलाए अपनी मां को इतना भड़का हुआ देख शालिनी डर गई और जब मोहिनी उससे सवाल करते हुए पूछी_" शालिनी यह गुलाब के फुल तूने तोड़ा..? "
मोहिनी इतनी तेज- तेज चिल्ला रही थी कि आसपास की औरतें इकट्ठा हो गई, जो देखकर शालिनी डरते हुए ना मे सिर हिलाते बोली_" मम्मी यह फूल मैं नहीं तोड़ी बल्कि मंजू ने तोड़ी.. मैंने अपनी आंखों से देखी थी..! "
शालिनी का इस तरह झूठ बोलना मंजू डर गई और वह घबराते हुए बोली _" मामी में सच कह रही हूं.. मैं नहीं तोड़ी.. शालिनी दीदी को मैंने तोड़ते हुए देखी... दीदी झूठ क्यों बोल रही हो..तूने तो तोड़ा..! "
मोहिनी अब मंजू को हजार बातें सुनाने लगी बल्कि वह हाथ भी उठाने जा रही थी पर वहां मौजूद औरतों ने उसे रोक लिया, तब तक शकुंतला जी और मानसी भी आ गई..!
शकुंतला जी गुस्से में बोली _" एक फूल के लिए तू बच्ची को इतना चिल्ला रही है, क्या तेरे बच्चे गलतियां नहीं करते..? "
मोहिनी को बस मौका चाहिए था कि किसी बात से झगड़ा हुए और उसने आज इतना बढ़ा दिया कि इतना जोर-जोर से सुनीता को गालियां देने लगी की आसपास के क्या दूर-दूर के लोग इकट्ठा हो गए..!
वह इतना सुनने लगी उसका तो बस एक ही मुद्दा था.. सुनीता को भला बुरा कहना, बल्कि उसने तो आज उसके ऊपर हजार लांछन भी लगाए की वह खेत में जाकर पता नहीं किसके साथ क्या-क्या करती है..?
बहुत कुछ उसने उसपर इल्जाम लगा दिए, वही मानसी को बहुत गुस्सा आया और वह बर्दाश्त नहीं की और आकर वह झगड़ा करते हुए बोली_" मामी तमीज से बात करना वारना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा..! "
इतना बोलकर वह मंजू को दो थप्पड़ लगा दी और बोली _" तुझे समझ में नहीं आता है, तुझे पता है ना यह लोग कैसे है फिर भी तू जाकर इनका मुंह देखती है..! "
मानसी अपनी बहन को ही मारने लगी, उसे बहुत बुरा लगा कि उसकी गलती की वजह से उसकी मां को उसकी मामी गालियां दे रही है..!
सुनीता तो इस वक्त खेत में काम रही थी, बेचारी इन सब से वह अनजान थी उसे नहीं पता कि आज घर पर इतना झगड़ा हो रहा है..!
बड़े बुजुर्ग लोग आकर मोहिनी को चिल्लाने लगे कि उसे एक फूल पत्ती के लिए इतना बात नहीं बढ़ना चाहिए..!
मोहिनी नाटक करते हुए बोली_" देखा यह किस तरफ जुबान लड़ा रही है... अरे यह भी अपने मां के ऊपर गई है, बहुत इसकी जुबान चलता है.. सब कुछ अपनी मां की सीख गई है और जहां जाएगी वहां इसका ठिकाना नहीं लगेगा, भाग कर यही आएगी..! "
ऐसे उसने न जाने कितनी बातें मानसी को सुनाई, पर मानसी ने कोई जवाब नहीं दी.. पर जब बात उसकी मां का आता तो वह पीछे भी नहीं हट रही थी, वह सब बर्दाश्त कर शक्ति पर उसकी मां को कोई कुछ कहे तो उसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो पा रहा..!
करीब 2 घंटे तक यह लड़ाई चलता रहा, मोहिनी आज फिर से पानी पी- पी कर सुनीता को गालियां देती रही, बल्कि शकुंतला की रोने लगी क्योंकि अब तो उनके पति भी नहीं रहे.. बेटी भी विधवा थी और बहू इस तरह गलियां देगी तो कहीं उसकी बेटी को कुछ ना हो जाए..!
यह सोच सोच कर शकुंतला जी रोने लगी बल्कि उनकी तबीयत भी खराब होने लगा, मानसी उनका हाथ पकड़ के घर के अंदर लेकर चली गई..!
वह नहीं चाहती थी कि उनकी तबीयत खराब हो, करीब शाम होने के बाद मोहिनी शांत हुई वरना वह तो दोपहर से ही जो बड़बड़ाना चालू की थी तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रही..!
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अब आगे _
लोधी परिवार में झगड़ा ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता, आए दिन मोहिनी झगड़ा करती थी |
पर सुनीता तो दिन भर खेत में रहने के वजह से उसे ज्यादातर घर का कुछ पता नहीं रहता क्योंकि मानसी बहुत सारी बातें अपनी मां को बात कर परेशान नहीं करना चाहती थी |
अगर वह कभी अपनी मामी के साथ बहस भी करती थी तो अपनी बहनों को मना कर देती थी की मम्मी को कुछ ना कहे वरना वह परेशान हो जाएगी |
पर मोहिनी कहां हार मानने वाली सुनीता के आते ही वह सारा मिर्च मसाला लगाकर बता देती, कई बार तो सुनीता अपनी बेटियों को डांट भी लगती थी उन्हें मारने की धमकी भी देती थी |
वह बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी अपनी मामी से बदतमीजी करें..!
सुनीता और सुनीता की बेटियां बहुत कुछ सहन कर रही थी और ऐसे ही सहन करते-करते आखिरकार मंजू दसवीं तक आ गई..!
अब वह 17 बरस की हो गई थी तो वही मानसी 20 बरस की हो गई थी, तो वही महक 13 बरस की हो गई थी |
तीनों बहनें सरकारी स्कूल में ही पड़ रही थी, मानसी ने तो दसवीं तक पढ़कर उसने पढ़ाई स्टॉप कर दी क्योंकि पैसे ना होने की वजह से उसने आगे की पढ़ाई बंद करना पड़ा..!
मानसी, मंजू पर प्रेशर डालती थी कि वह पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दें वरना फेल हो जाएगी |
वैसे तो मंजू पढ़ाई में ठीक-ठाक ही थी, वह अच्छे से पढ़ाई करती थी फेल होने का तो कोई गुंजाइश नहीं था, पर मानसी चाहती थी कि उसकी बहन बहुत अच्छे मार्क्स से पास हो..!
रात 9:00 बजे_
रमेश और मोहिनी में झगड़ा हो रहा था.. किस बात से उन दोनों में झगड़ा हो रहा था यह किसी को नहीं पता, पर यह झगड़ा बढ़ाते- बढ़ाते इस हद तक बढ़ गया की मोहिनी अपना सारा गुस्सा सुनीता पर निकालने लगी |
सुनीता और उसके बच्चे और शकुंतला जी कुछ देर पहले ही खाना खाकर लेटे थे, पर मोहिनी जैसे गाली देना शुरू की की सबका नींद हराम हो गया और सभी लोग उठ गए..!
पहले तो सुनीता घर में से बाहर निकली और परेशान होते हुए पूछी की हुआ क्या है..? बात क्या है..?
पर मोहिनी जो गाली देना शुरू की तो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी |
उसके जुबान में हमेशा एक ही शब्द रहता था, तूने तो अपना पति खाकर यहां आ गई है, और अपने बाप तक को नहीं छोड़ी... अब न जाने कितने लोगों को खाएगी..!
मोहिनी हर दफा एक ही शब्द बोलकर उसे नीचा दिखाती थी, उसके झगड़ा करने का कारण तो किसी को भी समझ में नहीं आया..? पर हां वह जी भर कर सुनीता को गालियां दे रही थी |
रात होने के वजह से लोग तो इकट्ठा नहीं हुए.. पर हां दूर से अपने घर में खिड़की छत पर से तमाशा देख रहे थे, बगल में दो बुजुर्ग थे जो थोड़ी तेज आवाज में आवाज लगाते हुए बोले_" अरे ओ रमेश... अपने लूगाई को घर में ले जा.. तुम्हारा जो कुछ रहेगा सुबह निपट लेना..! "
जब आसपास के कुछ लोग रमेश को बोलने लगे, तब जाकर कहीं रमेश अपनी बीवी को घर के अंदर लेकर गया |
आज शकुंतला जी भी चुप नहीं रही, वह भी मोहिनी को बहुत कुछ सुनाने लगी | सुनीता तो ज्यादा कुछ बोली नहीं क्योंकि उसके बदले का सब कुछ मानसी जवाब दे रही थी |
मोहिनी को सबसे ज्यादा गुस्सा तो इसी बात का था कि मानसी अब उससे लड़ाई झगड़ा करने लगी है, क्योंकि उसके हर एक बात का जवाब उसकी बेटी देने लगी है, सबसे ज्यादा गुस्सा उसके मन में यही भरा था |
सुनीता बार-बार अपनी बेटी को चुप कर रही थी, पर मानसी चुप होने का नाम नहीं ले रही थी, उसने भी जी भर के बातें सुनाने लगी वह गलियां तो नहीं दे रही थी पर हां इज्जत भी नहीं दे रही थी |
महक बहुत छोटी थी जिसके वजह से वह चुपचाप घर के अंदर ही बैठी थी, तो वही मंजू बहुत डरी हुई थी वह बचपन से ही शर्मीली और थोड़ी डरपोक थी |
जब झगड़ा खत्म हो गया तो शकुंतला जी अपनी बेटी और पोती को घर के अंदर लेकर गई और अंदर से दरवाजा बंद कर दी सुनीता बैठकर रोने लगी उसको रोता देख मानसी भी रोने लगी |
शकुंतला जी भी रोने लगी, वह सब काफी देर तक रोती रही तो वही मंजू कब से सभी को देख रही थी, रो तो वह भी रही थी |
मंजू इसके पहले सोई थी, पर अब उसका नींद गायब हो गया था, वह किसी के बातों का जवाब नहीं देती, पर हा सब की बातों को वह मन में रखे जा रही थी |
उसे अपनी मामी से इतना नफरत होने लगा था कि वह शब्दों में बयां नहीं कर सकती |
मानसी अपनी नानी को सोने के लिए बोली और अपनी माँ को भी धीरे-धीरे सभी लोग सो गए..!
पर मंजू अभी भी जाग रही थी और वह अपने बैग खोलकर बुक्स निकाली पढ़ाई करने लगी, पहले तो वह किताब खोलकर सामने रखी पर उसका शब्दों पर ध्यान नहीं था |
उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था और उसने आज थान ली कि वह इतना पढ़ाई करेगी की अपने परिवार के लिए वह मर्द बन सके..!
वह मन लगाकर पढ़ाई करने लगी, बल्कि उसे जो 9:00 बजे नींद आ रहा था |
अब वह रात के 2:00 बजे तक जाकर पढ़ाई करने लगी और जब वह दूसरे दिन भी सबसे जल्दी उठकर तैयार हो गई और स्कूल जाने के लिए तैयार भी हो गई..!
अब मानसी को मंजू को कहना नहीं पड़ता था कि वह पढ़ाई करें क्योंकि अब वह एकदम से मन लगाकर पढ़ाई करने लगी, उसका मकसद एक ही था कि अच्छे से पढ़ाई करना और घर की जिम्मेदारी खुद पर लेना |
क्योंकि उसके परिवार की तरफ से अब कोई बोलने वाला नहीं था, और उसकी मां के ऊपर हमेशा अत्याचार ही हो रहा है..!
धीरे-धीरे दिन बीत रहा था और मंजू एकदम से मन लगाकर पढ़ाई में ध्यान दे रही थी, अब कुछ ही वक्त उसके फाइनल एग्जाम्स के रह गए थे |
पर उसे भी टेंशन लगा था की कहीं दसवीं पढ़ने के बाद वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सकती क्योंकि पैसे की तंगी तो उनके घर में रोज ही रहता था, अब उसे यही बात अंदर सताने लगा |
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(डियर रीडर्स तीनों बहनों का age का थोड़ा ऊपर नीचे हो सकता है क्योंकि मैंने परफेक्ट कैलकुलेशन नहीं की हूं, जो स्टार्टिंग में डाली थी उसी के हिसाब से.. मैं पकड़ के चल रही हूं तो मैं हर जगह एक साल ऊपर नीचे ही रख रही हूं तो आप समझ लीजियेगा)
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10th Exams
मंजू के एग्जाम के दिन नजदीक आ गए और वह मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी और रोज जाकर उसने एग्जाम्स भी दिए और उसकी मेहनत रंग लाई और वह पास भी हो गई..!
जब उसका रिजल्ट आया तो वह बहुत खुश हो गई बेटी घर के सभी लोग खुश होंगे मानसी तो अच्छी नहीं लगी क्योंकि उसकी बहन 72% से पास हुई थी |
अगर यही खुश किसी और के घर में आता और इतनी अच्छी मार्क्स मिलता तो वह लोग जश्न मनाया करते, पर मंजू के घर में ऐसा नहीं था |
वह तो ठहरे गरीब जहां सब चीजों के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ता और अधिकतर उनके नसीब में तो यही था कुछ मिल नहीं पता..!
पर मानसी ने आज दूध लाकर खीर बनाई क्योंकि उसकी छोटी बहन पास जो हुई थी |
हां यह बात अलग है की जब वो पास हुई थी, तब किसी ने कुछ नहीं किया था | पर वह बड़ी थी और वह अपनी बहनों को खुशियां देना चाहती थी |
मानसी ने आज रात खीर - पूरी - सब्जी बनाई थी और सभी घरवाले मिलकर साथ में खाना खाए आज उनके लिए दिवाली से बढ़कर था |
अब मंजू को स्कूल की छुट्टियां मिल चुका था, पर उसे सिलाई में जरा भी इंटरेस्ट नहीं था, जिसकी वजह से वह घर का पूरा काम करने की जिम्मेदारी ली ताकि उसकी बड़ी बहन सिलाई कर सके.. वरना वह दोनों काम करके थक जाएगी |
तीनों बहनों में बहुत ही समझदारी था, वह सभी काम मेलबाटकर करती थी अभी उनमे लड़ाई- झगड़ा या बहस देखने को नहीं मिला |
तीनों बहनें अपनी मां को कभी भी घर का काम नहीं करने देती थी, क्योंकि उसकी मां दिन भर खेत में काम करके आई थी, जिसके वजह से वे लोग अपनी मां की सेवा करती थी |
जब वह रात में सोती थी तो.. मंजू या मानसी उनके पैर दबाया करती थी, ताकि उन्हें अच्छी नींद आ जाए... यहां तक कि वह अपनी नानी की भी सेवा करती थी |
सुनीता ने बहुत दुख कटे थे.. पर अब जैसी उसकी बेटियां बड़ी हो रही थी, उसके दुख कम होते जा रहा था... पर अपनी बेटियों की शादी करने का टेंशन सताने लगा |
_4 महीने 13 दिन _
मंजू ने दसवीं का परीक्षा दिया और वह पास भी हो गई और इन्हीं सब मे 4 महीने बीत भी गया, सभी बच्चे एडमिशन ले रहे थे |
उसके साथ की सभी सहेलियों ने एडमिशन ले लिया, पर उसका एडमिशन अभी तक नहीं हो पा रहा था क्योंकि जहां पर सभी लोग एडमिशन ले रहे थे, वहां पर अब Rs.25000 ऐडमिशन के पैसे लग रहे थे ,जो उनके पास नहीं थे |
सुनीता ने जो पैसे पेट काट - काट के बचाये थे, उसके ज्यादा नहीं बल्कि 50000 तक ही जमा कर पाई थी, क्योंकि बीच में उसके बाबा भी मर गए और शकुंतला की बीमारी थी, जिसकी वजह से पैसे खर्च हो जाते थे.. वह ज्यादा बचा नहीं पा रही थी |
मंजू ने रोते हुए अपनी मां से 25000 रुपए मांगे, पर सुनीता जी ने देने से मना कर दिया.. क्योंकि मानसी की उम्र 21 चालू हो गया था, और वह चाहती थी कि 1-2 साल बाद उसकी शादी कर दे..!
मंजू बहुत रोने लगी उसे इतना रोता देख सुनीता जी समझते हुए बोली_" मंजू देख.. अगर मैंने 25000 दे दिए तो इतना पैसा वापस इकट्ठा नहीं कर पाउंगी, कितने साल से इतने पैसे इकट्ठा कर रही हूं.. मेरे अलावा और कौन है कमाने वाला..! "
सुनीता जो कह रही थी उसकी बातें उसकी बेटियां पूरी तरह समझ पा रही थी कि उसकी मां के सिवाय इस घर में कोई और कमाने वाला नहीं है..!
मानसी जो सिलाई करती है, उससे इतना पैसा तो नहीं आता जितना की तीनों बहनों की शादी हो जाए क्योंकि घर में पांच लोगों का खर्चा भी तो था |
सभी बच्चों का एडमिशन भी हो गया कॉलेज स्टार्ट भी हो गया, वे लोग कॉलेज जाने लगे, पर मंजू का अभी तक एडमिशन नहीं हो पाया |
इन दिनों वह इतनी उदास रहने लगी थी.. इतनी कि मानो उसकी सारी उम्मीदें टूट गई हो, उसका मन था कि वह पढ़ लिखकर अपने परिवार के लिए कुछ करें.. पर शुरुआती ही बेकार था तो बेचारी क्या करेगी..!
मंजू दिन भर दिमाग लगाकर सोचा करती थी कि कैसे उसका एडमिशन हो जाए बल्कि वह अपनी सहेलियों से भी पूछा करती कि कोई सस्ती कॉलेज के बारे में पता लगे तो बताना, जहां पर उसे कम पैसों में एडमिशन मिल जाए..!
पर ऐसा तो कोई कॉलेज नहीं था बल्कि इससे भी बड़ी-बड़ी कॉलेज थे जहां पर और भी पैसे लग रहे थे और दूर भी थे, जहां उसे रिक्शा से आना - जाना पड़ेगा, अगर सब मिलाकर देखा जाए तो उसका बजट बिल्कुल भी नहीं था |
कॉलेज चालू हुए पूरे एक महीना बीत गया, पर मंजू का एडमिशन नहीं हो पाया |
बेचारी की सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गई, वैसे तो उसकी आत्मा इतनी तड़प रही थी कि जैसे- तैसे करके उसका एडमिशन हो जाए.. लाख कोशिश करने के बावजूद भी बेचारी का एडमिशन नहीं हो पाया, अब वह पूरी तरह हिम्मत हार चुकी थी |
एक दिन मंजू घर का सब काम करके घर के बाहर बैठी थी कि तभी उसकी एक सहेली जिसका नाम प्रिया था, वह उसके पास आई उसे भी बुरा लग रहा था कि उसकी फ्रेंड का एडमिशन नहीं हो पाया |
अगर हजार 500 की बात होता तो वह शायद उसकी मदद कर देती, पर बात 25000 की थी जिसकी वजह से उसका किसी ने मदद नहीं किया |
प्रिया बहुत तेजी से चलते हुए आई और जब वह मंजू को देखी तो आते ही उसका हाथ पकड़ खुशी से झूमते हुए उसके गले लिपट गई..!
दोनों सहेलियां काफी देर तक बातें करती रही बल्कि प्रिया कॉलेज की रिलेटेड काफी कुछ उससे बता रही थी |
अपने पुराने दोस्तों के बारे में दोनों बातें कर रही थी कि किसने कौन-कौन से कॉलेज में एडमिशन लिया है, क्योंकि अब काफी बच्चे अलग-अलग कॉलेज में एडमिशन लेने से बिछड़ गए थे |
दोनों काफी देर तक बातें करती रही तभी प्रिया ने बातों ही बातों में कहा _" अरे तुझे पता है.. वह मनोज.. उसने तो अभी एडमिशन लिया वह भी कोई इंटरनेशनल कॉलेज में... जहां पर 15000 में उसका एडमिशन हो गया | "
प्रिया का इतना कहना कि मंजू रिएक्ट करते हुए बोली_" क्या बात कर रही है तू..? अभी तो कहीं पर भी एडमिशन होना नामुमकिन है, पर उसका कैसे एडमिशन हो गया..? "
प्रिया बोली _" अरे यह सब कहने की बातें है, मनोज ने मुझे बताया कि उसने प्रिंसिपल से रिक्वेस्ट किया और घर का बहुत सारा प्रॉब्लम बता दिया, जिससे उसे एडमिशन मिल गया और तो और उसने पूरा पैसा भी नहीं भरा, सिर्फ कुछ 5000 भर के एडमिशन लिया है.. बाकी के पैसे वह एक साल में चुकाएगा..! क्योंकि उसके भी घर का प्रॉब्लम है किसी का डेथ हो गया था जिसके वजह से उसका एडमिशन नहीं हो पाया, पर बेचारे को देख अब एडमिशन हो गया..! "
प्रिया बोल ही रही थी कि उतने में मंजू का दिल एक बार फिर से धड़कने लगा कि वह एक बार अगर कोशिश की तो शायद उसका भी एडमिशन हो जाएगा..!
वे दोनों बातें कर रही थी मानसी भी उनकी बातें सुन रही थी और जब प्रिया चली गई तो मंजू अपनी बहन को सारी बातें विस्तार से बता दी..!
जो सुनकर उसकी बहन ने कहा_" मंजू तू सच में पढ़ना चाहती है..? "
मानसी का इतना कहना कि मंजू का आंख भर आया और वह अपनी बहन के गले लिपटते हुए बोली_" हां दीदी.. मैं सच में पढ़ना चाहती हूं..इतना पढ़ना चाहती हूं कि हमारे सारे दुख कट जाए.. बस इतना ही..! "
मंजू का इतना कहना कि मानसी भी उदास हो गई और वह कुछ तरकीब निकलने लगी..!
पर वे दोनों ने ना नानी और ना अपनी मां को कुछ नहीं बताया मानसी सिलाई तो कर रही थी पर कुछ सोच कर तरकीब भी निकलने लगी |
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अब आगे
अगली सुबह _
सुनीता जैसे खाना खाकर खेत में काम करने गई, कि मानसी और मंजू दोनों बैठकर फिर से एडमिशन के बारे में बातें करने लगी |
मानसी ने मंजू से बोली _" चल हम दोनों जाकर देखेंगे हो सकता है वहां जाकर कुछ पता चल पाए और तेरा एडमिशन हो जाए..! "
मानसी का इतना कहना कि मंजू तो तुरंत रेडी हो गई क्योंकि उसे तो पढ़ाई करना था और दोनों बहने जाने के लिए तैयार हो गई..!
मानसी नानी से झूठ बोलते हुए बोली_" नानी... मैं बाजार जा रही हूं थोड़ा सिलाई का सामान लेकर आना है..! "
इतना बोलकर वह मंजू को लेकर कॉलेज पहुंच गई, कॉलेज काफी दूर था दोनों रिक्शे से गए..!
जाने के बाद उन्होंने गेट पर इंक्वारी किया उसके बाद दोनों अंदर गई दोनों बहने प्रिंसिपल के सामने जाकर बैठ गई..!
प्रिंसिपल सर ने पहले तो कहा कि _" एडमिशन क्लोज हो गया है पर दो - तीन सीट खाली है जिसमें एडमिशन हो सकता है..! "
प्रिंसिपल का इतना कहना कि मानसी खुश हो गई और उससे भी ज्यादा मंजू..!
मंजू कुछ कह पाती उससे पहले मानसी बोली_" सर मेरी बहन का एडमिशन इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि हम लोगों के पास पैसे नहीं थे, पर यह पढ़ना चाहती है सर..!! "
मानसी इतना बोलकर चुप हो गई, तो वहीं प्रिंसिपल हल्की स्माइल करते हुए बोले_" कोई बात नहीं बेटा.. एडमिशन हो जाएगा तुम जाते वक्त फॉर्म लेकर जाना और कल इसी वक्त आकर सबमिट कर देना और एडमिशन मिल जाएगा और मंडे से कॉलेज ज्वाइन कर लेना..! "
प्रिंसिपल कितनी प्यारी बातें सुनकर मंजू खुशी से उछलने लगी, पर मानसी उदास होते हुए बोली_" सर यहां पर एडमिशन फीस कितना है..?? "
" 15000..!! क्या आप भर सकती हो इतना..? "
मंजू का भी चेहरा उदास हो गया, मानसी एक नजर आपनी बहन के तरफ देखी जो उसे ही देख रही थी |
मानसी आगे बोली_" सर एक साथ में तो इतना नहीं भर सकती हूं.. पर हां एक साल के अंदर जरूर चुका दूंगी..! "
प्रिंसिपल देख सकता था कि दोनों बहनें कितनी परेशानी है, वह आगे बोला_" कोई बात नहीं बेटा.. तुम्हें एक साथ में फीस भरना भी नहीं है, पहले तुम यह बताओ तुम कितना भर सकती हो..? "
यह सुन मानसी बोली _" सर पहले 2000 भरु.. तो चलेगा क्या..? "
यह सुनकर प्रिंसिपल सर बोले_" बेटा पहले तुमने 2700.. तो भरना ही पड़ेगा, ढाई हजार फीस और ऊपर के 300 तुम्हें फार्म का क्योंकि तुम लेट एडमिशन ले रही हो..! "
अब यह सिस्टम कॉलेज का था जिसे दोनों बहनों को फॉलो करना ही पड़ेगा, मानसी तुरंत हां भर दी और निकलते वक्त उसने फॉर्म ले लिये..!
जब दोनों बहने कॉलेज से बाहर निकली तो मंजू मानसी से बोली _" मानसी दीदी.. आपको क्या लगता है मम्मी एडमिशन लेने देगी..? इतना सारा पैसा कहां से आएगा..? 15000 कोई कम पैसा नहीं है मम्मी तो तुरंत मना कर देगी..! "
यह सुन मानसी बोली_" देख मेरे पास ना गले में 2000 तो रहेगा, वह मैं आज तोड़ दूंगी और उसके बाद हमें 13000 भरना है.. तो वह हम पूरे एक साल में भर ही देंगे, हां मुझे सिलाई और ज्यादा करना पड़ेगा..! "
मानसी बोल ही रही थी कि मंजू तुरंत उसके गले लिपटकर रोने लगी क्योंकि उसकी बहन उसे पढ़ने के लिए खुद को कष्ट देने वाली थी |
दोनों बहने घर आने के लिए निकल पड़ी, रास्ते में मानसी ने मंजू से कहा_" कॉलेज तो बहुत दूर है.. रो जाने के लिए रिक्शा का भाड़ा भी लगेगा.. ₹10 जाने के लिए और ₹10 आने के लिये..! "
मानसी बोल ही रही थी कि मंजू बीच में बोल पड़ी_" नहीं दीदी.. मैं रोज पैदल ही आऊंगी, मैं घर से जल्दी निकलूंगी और दोपहर में चलती हुई आ जाऊंगी, जिससे मेरा ₹20 रोज का बच जाएगा.. वरना बहुत ज्यादा लोड हो जाएगा..! "
मंजू की बातें सुनकर मानसी भी दुखी हुई पर क्या कर सकती क्योंकि इतना तो उनके पास पैसा नहीं था और वह अपनी बहन को प्यार से समझाते हुए बोली_" हां तो सही कह रही है.. कम से कम यह पैसे तो बस जाएंगे और तू जितना मेहनत करेगी एक दिन तू जरूर कामयाब हो जाएगी..! "
यह सुन मंजू मुस्कुराते हुए बोली _" मैं नहीं दीदी.. हम सब..! "
मंजू की बातें सुनकर मानसी मुस्कुराने लगी और मंजू मन ही मन खुद से बोली_" दीदी बस एक बार में पढ़ लूं उसके बाद मैं सबसे पहले आपके लिए कुछ करूंगी..! "
दोनों बहने घर आई आने में उन्हें काफी देर हो गया था, नानी पूछ रही थी उन्होंने नानी को सब कुछ बता दिया, पर एडमिशन का पैसा उन्होंने कम बताया |
वे दोनों बहने अपनी मम्मी के आने का इंतजार कर रही थी, शाम को जब सुनीता घर आई तो मानसी खुशी-खुशी सब कुछ बताई..!
सब सुनने के बाद सुनीता बोली_" 13000 कहां से आएगा..! "
मानसी बोली_" मम्मी आप सिर्फ 3000 दे दो, 10000 तो हम लोग 10 महीने में भर ही लेंगे.. वैसे भी कॉलेज का काफी टाइम निकल चुका है, और एक बार एडमिशन हो जाएगा तो कहीं न कहीं से पैसे का बंदोबस्त हो जाएगा..! "
मानसी और मंजू रिक्वेस्ट करने लगी, सुनीता भी अपनी बेटियों को पढ़ना चाहती थी और वह हां भर दी.. अब दोनों बहनें बहुत ज्यादा खुश हो गई..!
पर सुनीता को तो टेंशन लगा ही था क्योंकि 10000 तो उन्हें साल के अंदर भरना था..!
दूसरे दिन सुनीता बैंक जाकर ₹3000 निकाल कर लाकर अपनी बेटी को दे दी और जब सुनीता खेत में काम करने चली गई तो मानसी ने अपने गले का पैसा तोड़ी जिसमें से उसे 2200 रुपए निकल गए और सब पैसा मिलकर ₹5000 रुपये हो गये |
वह दोनों कॉलेज जाने के लिए निकल पड़ी..! एडमिशन का जो प्रक्रिया था दोनों बहनों ने मिलकर किया, करीब 1 से 2 घंटा उन्हें कॉलेज में लगा और फाइनली जब एडमिशन हो गया |
दोनों बहनों के चेहरे पर बहुत ज्यादा खुशी था और दोनों बहने कॉलेज से निकलने के बाद पानी पुरी खाई और ढेर सारी बातें करते हुए को घर आ गई..!
उन्होंने अपने मां - नानी और छोटी बहन के लिए भी गोलगप्पे लेकर आई थी, उनके लिए यह छोटा सा पार्टी था जो सब लोग मिलकर सेलिब्रेट करने लगी |
मंजू ने तो ढेर सारे सपने देखने लगी की वह कॉलेज करने के बाद वह क्या-क्या करेगी, अब वह यहां से अपने सपने देखना शुरू कर दी..!
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अब आगे _
मंजू ने मंडे से कॉलेज जाना स्टार्ट कर दी, पहले दिन उसका बहुत ही अच्छा रहा..!
मानसी तो आगे कॉलेज नहीं कर सकीं, पर वह अपनी बहन को पढ़ाना चाहती थी, और इस काम में और कामयाब भी हो गई
जब मोहिनी को पता चला कि मंजू का एडमिशन हो गया है, तो उसे बहुत जलन महसूस होने लगा, और वह हमेशा की तरह लोगों से सुनीता और उसकी बेटियों की चुगली करने लगी |
पर इतनी भी बुरे नहीं थे उन्हें तो सुनीता में कोई बुराई नजर नहीं आता था, पर हां कुछ औरते थी जो मोहिनी का भी साइड लेती थी |
मंजू मन लगाकर कॉलेज जाती और पढ़ाई में भी बहुत मन लग रही थी बल्कि घर के काम में भी वह पूरा हाथ बटाती, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उसकी बड़ी बहन के ऊपर ज्यादा लोड आये |
मंजू ने कुछ बुक्स भी ले लिए थे पर भी बहुत सारे बुक्स उसके पेंडिंग थे, पर उसके साथ में जो लड़कियां पढ़ती थी या उसकी नई-नई जो फ्रेंड बनी थी वह बहुत अच्छी थी सब मिलकर पढ़ाई करती..!
एक महीने बाद _
मंजू को कॉलेज जाते हुए पूरे एक महीना हो गया, उसने सारे टेक्स्ट बुक धीरे-धीरे ले लिए, पर उसने कुछ नोटबुक भी खरीदे थे पर उसे नोटबुक बहुत लग रहा था..!
मंजू आज जब कॉलेज से घर आए तो वह मानसी से बोली _" दीदी मुझे बुके खरीदना है..! "
यह सुन मानसी बोली _" कितना बुक चाहिए तुझे..?
" 6-7 तो चाहिए..!"
मंजू का इतना कहना कि मानसी बोली_" मेरे पास सिर्फ 60 - 70 रुपए ही है.. वह भी एक औरत देकर गई..! "
मंजू बोली_" कोई बात नहीं दीदी मम्मी आएगी तो मैं उनसे ले दूंगी..! "
" हां ठीक है..!! "
मानसी इतना बोलकर सिलाई करने लगी तो वही मंजू घर के काम करने लगी |
शाम का वक़्त _
सुनीता जब शाम को घर आई, उसकी छोटी बेटी महक ने पहले पानी पीने के लिए दी... उसके बाद चाय बनाकर दी..!!
8:00 बजे खाना खाने के बाद जब भी लोग बिस्तर लगा कर सो रहे थे, तभी मंजू अपनी मां से बोली _" मम्मी कल मुझे ₹400-500 रुपये मिल सकता है क्या..? क्योंकि मुझे कुछ बुक्स लेने हैं..! "
मंजू का इतना कहना कि सुनीता जो सो रही थी वह तुरंत आंखें खोल कर उसके तरफ पलट के देखी उन्हें पता नहीं क्यों पर गुस्सा आया |
वह ज्यादा गुस्से में तो नहीं पर पर चिल्लाते हुए बोली_" इसीलिए.. इसीलिए मना कर रही थी कि नाम मत लिखना.. अभी यह हाल है अभी तो 10000 भरना भी है.. कहां से आएगा इतना पैसा..? और अभी से तेरे खर्चे चालू हो गए.. किताब नहीं है..? यह नहीं है..? वह नहीं है..? पूरा साल निकलना मुश्किल हो जाएगा..! "
सुनीता गुस्से से अपनी बेटी को चिल्लाने लगी, मंजू चुपचाप बैठी सुन रही थी, वही मानसी के पास भी कोई शब्द नहीं था आखिर क्या ही बोले उसकी मां भी तो सही कह रही थी |
किसी ने कुछ नहीं कहा वही सुनीता आगे बोली_" पढ़ाई छोड़ दे, बैठ जा घर क्योंकि मुझे नहीं लगता मैं तेरे पैसे भर पाऊंगी..! "
सुनीता इतना बोलकर तुरंत लेट गई और आंखें बंद कर ली अगर पैसा होता तो अपनी बेटी को कभी इतना नहीं सुनती, इन तीनों के लिए ही तो उसने कैसे- कैसे दिन निकले बेटियों के लिए ही वह लोगों के ताने सुनती चली आ रही है..!
सबके सोने के बाद मंजू बिस्तर पर लेट गई थी, पर उसके आंखों से आंसू धीरे-धीरे बह रहा था |
वह जोर से रो भी नहीं सकती थी क्योंकि उसके बगल में उसकी बहन सोई थी और अगर उसने सिसकियां लिये तो वह जरूर सुन लेगी, रोना तो उसे बहुत आ रहा था.. वह मुंह दबाए ही ऐसे ही रोती रही..!
सुबह जब वह सो कर उठी तो उसने अपनी मां से कुछ शिकायत ही नहीं की, चुपचाप वह घर का काम कर रही थी कि तभी सुनीता अपने छोटे से बटुए में से 100 की नोट निकालते हुए मंजू के तरफ बढ़ते बोली_" यह ले इसमें जितना आएगा आज ले लेना.. दो दिन बाद मुझे पैसे मिलेगा तो दूंगी..! "
सुनीता इतना बोलकर खेत में काम करने चली गई, उसके जाते ही मंजू रोने लगी क्योंकि माँ तो माँ थी चिल्लाती भी थी और प्यार भी करती थी..!
सुनीता अपनी बेटी कभी चिल्लाती थी तो उसकी बेटियां बुरा नहीं मानती थी क्योंकि उसकी मां कभी नहीं चाहती थी कि उसकी बेटियां किसी से लड़ाई- झगड़ा करें या बहसबाजी करें वह अपने ही बच्चों को डांट फटकार लगा देती थी |
मंजू कॉलेज जाने के लिए जल्दी से तैयार हो गई उसके माँ के दिए हुए ₹100 और मानसी ने अपने पास से ₹70 दिए उसने कहा _" आज इतने में जितना मिलेगा बुक्स ले लेना, मम्मी ने तो कहा है तुझे दो दिन बाद देगी..! "
मंजू जल्दी-जल्दी पैदल चलते हुए जा रही थी, वह रोज अपने मन में यही कहते जाती..!
" भगवान कब तक हम लोग तकलीफ सहेंगे..? भगवान अब बस कर दो, अब सच में सहा नहीं जाता.. उतना ही तकलीफ दो जितना कि हम लोग सह सके..! "
मंजू यह भी सोच रही थी आज किताब लेने के लिए पैसे नहीं है कल को उसे 10000 भरना है, कहां से आएगा..? उसकी मां सही कह रही थी और अगर मैं अभी कॉलेज छोड़ी तो 5000 मेरा पानी की तरह बह जाएगा |
मंजू इसी तरह सोचते हुए कॉलेज पहुंच गई, उसने सबसे पहले कॉलेज के बाहर बुक स्टॉल पर जाकर नोटबुक ली और जल्दी से कॉलेज के अंदर गई, जाकर अपने फ्रेंड्स के बगल में बैठ गई..!
दो लेक्चर अटेंड करने के बाद उनकी क्लास टीचर आई और सभी को उन्होंने कहा_" गर्ल्स और बॉयज ध्यान से बातें सुनो, जो कॉलेज के बगल में मंदिर है उस मंदिर के अध्यक्ष मिस्टर सुनील पटेल आ रहे हैं, वह हर साल यहां पर बच्चों को बुक्स पेन और जरूरत की चीज देते हैं तो सबसे पहले गर्ल्स जाएगी और बिना शोर किये.. और जब गर्ल्स आ जाएंगी तो बॉयज जाएंगे.. बात आई समझ में..! "
" yesssss.. Mam..! " सभी ने एक साथ कहा
मंजू ने जैसे यह सुनी उसे यकीन नहीं हो रहा उसके उसे यही लग रहा था कि भगवान ने उसकी बात सुन लिया, उसके चेहरे पर एक लंबी वाली स्माइल आ गई और सभी गर्ल्स लाइन से नीचे हॉल में गई..!
बहुत लोग हाल में बुक्स बांट रहे थे जैसे मंजू की बारी आई तो उसे 12 बुक्स दो पेन और एक छोटे से पैकेट में खाने की कुछ चीजें मिली जो सभी को मिल रहा था |
वह लेकर जल्दी से क्लास में आ गई, वह इतनी खुश थी कि कब घर जाए और अपनी मां और बहन को बताएं और जब कॉलेज की छुट्टी हुआ तो वह इतनी तेजी से चलते हुए घर जा रही थी |
मानो आज उसे ऐसा लग रहा था की जमीन बहुत लंबी होती जा रही है वह कब घर पहुंचेगी..?
मंजू को जो पैकेट खाने के लिए मिला था उसने वैसे ही बैग में रखी थी क्योंकि वह घर जाकर सभी के साथ बैठकर खाना चाहती थी और जब घर पहुंची तो वह उछलते हुए घर में गई उसको इतना खुश देखकर मानसी पूछी_" क्या हो गया मंजू..?? "
मंजू तुरंत अपना बैग खोली और नोटबुक और पेन उसने अपनी बहन को दिखाएं और जो खाने का पैकेट था, वह नानी को दी नानी पैकेट खोलते हुए बोली_" यह सब किसने तुझे दिया..? "
मंजू ने खुशी-खुशी से सारी बातें बता दी, जो सुनकर मानसी बोली_" मैंने तुझे क्या बोली थी एडमिशन हो जाएगा तो कहीं ना कहीं से रास्ता निकल जाएगा..! "
यह सुन मंजू बोली_" हां दीदी सही कहा.. भगवान उतना ही दर्द देते हैं जितना कि हम लोग सह सके.. देखो आज दर्द में भी कितना खुशी मिल रहा है..! "
उस पैकेट में दो समोसे, दो जलेबी चार प्रकार की मिठाइयां और भी कुछ चीज था |
मानसी, मंजू, महक और नानी चारों ने खाई और सुनीता के लिए उन्होंने पहले ही साइड में निकाल कर रख दिया |
जब शाम को सुनीता काम करके घर आई तो मंजू ने अपनी मां को दिए और सारी बात बताई..!
जो सुनकर सुनीता बोली _" अरे वाह.. यह तो बहुत अच्छी बात है, अब तो तेरी एक साल की किताब लेने का छुटकारा मिल गया, बस पढ़ाई पर ध्यान देना बच्चा..! "
जो सुनकर मंजू अपनी मां के बालों को सवारते हुए बोली_" हां मम्मी.. मैं बहुत मन लगाकर पढ़ूंगी..!! "
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अब आगे _
After 6 month _
यह 6 महीने कैसे बीत गए पता नहीं चला इन 6 महीना में मंजू ने अपनी स्कूल की फीज सिर्फ 3000 भरी थी ,उसे और 7000 भरना था |
अब उसके पास सिर्फ चार महीने रह गए थे क्योंकि एडमिशन ही उसका लेट हुआ था और बाकी के 7000 उसे 4 महीने में भरना था
मंजू को बहुत टेंशन आने लगा था क्योंकि उसकी टीचर करती थी की फीस जल्दी से भरे क्योंकि फाइनल एग्जाम्स नजदीक आ रहा है
मंजू रोज - रोज सोच-सोच कर परेशान होने लगी थी और अपनी बहन को भी कहती थी कि दीदी इतना पैसा कहां जाएगा..? कैसे भरेंगे..? टीचर तो रोज मुझे बोल रही है पैसे भरने के लिए कॉलेज में भी टीचर बोलकर बताती थी कि 40 स्टूडेंट ने फीस नहीं भरे हैं, सभी लोग जल्द से जल्द फीस भर दे..!
जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, टीचर क्लास में आकर वैसे - वैसे बताती है, 40 से 30 लोग हो गए... उसके बाद 20 लोग,जल्दी फीस भरना एग्जाम्स के लिए सिर्फ दो महीना रह गया है..!
मंजू बेचारी अपनी मां से मांग भी नहीं सकती थी, उसी डर था कि कहीं उसकी मम्मी चिल्लाने ना लग जाएगी, क्युकी 7000 फीस भरना था |
मानसी ने मंजू को दिलासा देते हुए बोली _" मंजू तू घबराना बंद कर मैंने जो गल्ले मे पैसे जमा की हूं वह तोड़कर देखती हू उसमें कितना जमा हो गया है जरूर दो-तीन हजार जमा हो गया रहेगा.! "
यह सुनकर मंजू बोली _" दीदी इतने में क्या होगा.. 7000 भरना है..! "
परेशान तो दोनों बहने थी, पर दोनों एक- दूसरे को हौसला दे रही थी दिन तो बड़ी तेजी से बीत रहा था.. मंजू पढ़ाई में मन लगाने लगी, पर उसे फीस का भी टेंशन आ जाता था |
अगले दिन जब मंजू कॉलेज गई तो दोपहर में प्रिंसिपल ने जिन बच्चों का फीस नहीं भरा था, उन्हें सबको बाहर केबिन में बुलाया... अब टोटल 10 स्टूडेंट रह गये थे |
जिनमें से दो ने कहा कि वह खुद दिन में भर देंगे बाकी आठ जो थे उन्होंने उसे दिन की और मोहलत मांगी पर तीन स्टूडेंट ऐसे थे जिनका सच में बहुत ज्यादा परिस्थिति ख़राब था |
मंजू को थोड़ा राहत मिला के अभी भी 10 स्टूडेंट है, पर उसमें से कुछ तो भर लेंगे बाकी बचे थे तीन को बहुत टाइम लगेगा भरने के लिए.. जब सभी स्टूडेंट अपने क्लास में आकर बैठ गए तो मंजू उठकर एक लड़की के पास गई... जो मुंह लटकाए केबिन में खड़ी थी..!
मंजू से हमदर्दी दिखाते हुए पूछी _" क्या तुम्हारा भी फीस भरने में लेट हो रहा है..? "
पहले तो वह लड़की कुछ बोली नहीं, पर जो मंजू अपने घर का सब प्रॉब्लम बताइए तो वह लड़की भी इमोशनल होती हुई अपने घर का सब कुछ उसे बताते गई, दोनों की स्थिति अलग-अलग था पर फीस में भरने के पैसे उनके पास नहीं थे..!
मंजू जब घर आई तो उसने सारी बातें एक विस्तार से अपनी बहन को बता दी, उसने यह भी बताया कि उसकी क्लास में एक और लड़की है जिसको फीस भरने में प्रॉब्लम है, वह भी इतना जल्दी फीस नहीं भर सकती..!
जो सुनकर मानसी को भी बुरा लगा, ऐसे ही दो दिन और बीत गए एक दिन मंजू कॉलेज से जब घर आए तब वह बगल में एक आंटी ने उससे कहा_" अरे ओ.. मंजू.. तेरी अम्मा कहां है..? "
जो सुनकर मंजू बोली_" वह तो काम पर गई है ना..! "
" अरे तेरी अम्मा आए तो उससे कह देना मुझे आकर मिले क्योंकि इलेक्शन चालू होने जा रहा है तो प्रचार करने जाना है जिसमें एक दिन के ₹300 मिलेंगे..! "
उस आंटी का इतना कहना कि मंजू बोली_" ठीक है आंटी मैं अपनी मम्मी को बता दूंगी, पर सुनो ना आंटी क्या मैं भी आ सकती हूं..? "
" हां तू भी आ सकती है, पर पूरा दिन जाना पड़ेगा. ऐसा नहीं कॉलेज से आएगी तो फिर जाएगी... ऐसा बिल्कुल नहीं सुबह से निकलना पड़ेगा तो शाम को घर आएगी, पर हां.. खाने-पीने को सब मिलेगा, बोल मंजूर है तो ठीक..! "
उस औरत का इतना कहना कि मंजू अपना सिर हाँ में हिलाते हुए बोली_" हां आंटी मेरा भी नाम लिख दो, मैं भी आने वाली हूं..! "
इतना बोलकर मंजू जल्दी से घर में आई और मानसी को बताने लगी जो सुनकर मानसी बोली_" फिर तो मेरा भी नाम लिखवा दे.. मैं भी आऊंगी, क्योंकि देख अगर मम्मी और तू में हम तीनों जाएंगे, तो हमें एक दिन का ₹900 मिलेगा और जितने दिन हमें जाना पड़ेगा तो हम तेरे फीस के लिए जमा कर लेंगे..! "
यह सुनकर मंजू खुश भी हुई और दुखी भी हुई... क्योंकि यही तो अपनों और पराया में फर्क होता है अपने-अपने ही होते हैं और मानसी अपनी बहन के लिए जी - तोड़ मेहनत कर रही थी जो मानसी भी भली भांति जानती थी |
शाम को जब उसकी मम्मी आई तो दोनों बहनों ने अपनी मां को बताया |
सुनीता तुरंत औरत से मिलने चली गई, नानी भी तैयार हो गई उन्होंने भी कहा_" मैं भी आउंगी तो और ₹300 इकट्ठा हो जाएगा..! "
पर उस औरत ने कहा कि बूढ़े लोगों को नहीं ले जा सकती वह थक जाते हैं और तेजी से नहीं चलते..!
सुनीता ने अपनी मां को जाने से मना कर दी, वह बोली _" अगर लेकर भी जाएंगे ना माँ... तो भी मैं नहीं जाने दूंगी..! "
मानसी और मंजू भी मना करने लगी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनकी नानी थके या बीमार पड़े..!
मंजू ने कॉलेज से तीन-चार दिन के लिए छुट्टी ले लिए और तीनों इलेक्शन के लिए दिन भर प्रचार करने लगी, जिससे उन्हें चार दिन का उन्होंने 3600 रुपए जमा कर लिये..!
पर इन चार दिनों में मानसी और मंजू बहुत थक गई थी क्योंकि पूरे धूप में वह दोनों बहने दिन भर गला फाड़- फाड़ के चिल्लाती रहती थी, हर गली मोहल्ले में भी जोर-जोर से आवाज देखकर प्रचार कर रही थी |
उसकी मम्मी को तो आदत था धूप में काम करने का पर यह दोनों बहनें बहुत थक जाती थी, अभी भी फीस भरने के लिए उसे पैसे की कमी पड़ रहा था |
मंजू भगवान के सामने हाथ जोड़कर शाम के समय कहने लगी_" भगवान जी.. दीदी सही कहती हैं अगर हम जो चाहते हैं अगर उस रास्ते पर चलने लगे तो.. अपने आप रास्ता बन जाएगा, आज देखा आपने मेरा रास्ता बना दिया, बस ऐसे ही भगवान जी मुझे मेरे मंजिल तक पहुंचा दो..! "
यह कहते वक्त उसकी आंख में आंसू आ गया और उसने भगवान के सामने दिया जलाया |
गांव में इलेक्शन बहुत जोरों में चालू था और एक दिन दोपहर में वहां का जो नगरसेवक था वह गलियों में हाथ जोड़े घूमने लगा उसके पीछे बहुत पब्लिक थी |
वह नगरसेवक हर किसी का दुख- सुख को सुन रहा था, किसी ने रास्ते का प्रॉब्लम बताया... तो किसी ने पानी का प्रॉब्लम बताया.. तो किसी ने कुछ और बताया..!
ऐसे ही लोग अपना अपना प्रॉब्लम बता रहे थे, उस भीड़ में मंजू भी खड़ी थी पता नहीं उसके मन में क्या आया और वह जल्दी से जाकर नगरसेवक के सामने खड़ी होकर बोली_" सर मेरा भी एक प्रॉब्लम है..! "
बच्ची को बोलते हुए देख नगरसेवक उसे देखने लगा और मुस्कुराते हुए कहा_" हां बेटा बोलो.. क्या मुसीबत है..! "
" वह मेरा फीस भरने के लिए ना पैसे कम पड़ रहा है.. क़रीब 4000..! "
उसका इतना ही कहना कि नगरसेवक ने अपने बगल में खड़े आदमी को इशारा किया और उसका इशारा पाकर उस आदमी ने अपनी जेब से ₹5000 निकाल उसे देते हुए कहा_" लो इतने में तुम्हें हो जाएगा..! "
मंजू को यकीन नहीं हो रहा की उसने जैसे मुंह खोली और उसे पैसा भी मिल गया, यह तो चमत्कार ही हो गया था |
जो वहां आसपास औरतें खड़ी थी उन्होंने भी कहा_" हां साहब यह बच्ची सही कह रही है.. बिनना बाप की बेटियां हैं इनको बहुत सारे कष्ट है..! "
जो सुनकर नगर सेवक ने कहा_" इसलिए मैं कहूंगा कि आप सब मुझे वोट दीजिए ताकि मैं जीत सकूं और सभी की मदद कर पाऊं और बेटा तुम अपनी घर में जाकर सभी को कहो कि वह मुझे वोट दें..! "
मंजू तो मुस्कुराते हुए बोली_" जरूर.. जरूर सर.. मैं मम्मी को कहूंगी आपको ही वोट दे..! "
मंजू उन पैसों को मुट्ठियों में पकड़ तेजी से भागते हुए घर आई वह इतनी लंबी - लंबी सांस ले रही थी कि जो देख मानसी पूछी_" क्या हो गया जो हवाई जहाज की तरह भागते हुए आ रही है..! "
मंजू ठीक तरह से बोल भी नहीं पा रही थी और वह पैसे अपनी बहन के सामने कर दी..!
इतना सारा पैसा उसके हाथ में देखकर मानसी बड़ी-बड़ी आंखें करके पूछने लगी_" इतना सारा पैसे कहां से लेकर आ रही है..? "
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After 6 month _
यह 6 महीने कैसे बीत गए पता नहीं चला इन 6 महीना में मंजू ने अपनी स्कूल की फीज सिर्फ 3000 भरी थी ,उसे और 7000 भरना था |
अब उसके पास सिर्फ चार महीने रह गए थे क्योंकि एडमिशन ही उसका लेट हुआ था और बाकी के 7000 उसे 4 महीने में भरना था
मंजू को बहुत टेंशन आने लगा था क्योंकि उसकी टीचर करती थी की फीस जल्दी से भरे क्योंकि फाइनल एग्जाम्स नजदीक आ रहा है
मंजू रोज - रोज सोच-सोच कर परेशान होने लगी थी और अपनी बहन को भी कहती थी कि दीदी इतना पैसा कहां जाएगा..? कैसे भरेंगे..? टीचर तो रोज मुझे बोल रही है पैसे भरने के लिए कॉलेज में भी टीचर बोलकर बताती थी कि 40 स्टूडेंट ने फीस नहीं भरे हैं, सभी लोग जल्द से जल्द फीस भर दे..!
जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, टीचर क्लास में आकर वैसे - वैसे बताती है, 40 से 30 लोग हो गए... उसके बाद 20 लोग,जल्दी फीस भरना एग्जाम्स के लिए सिर्फ दो महीना रह गया है..!
मंजू बेचारी अपनी मां से मांग भी नहीं सकती थी, उसी डर था कि कहीं उसकी मम्मी चिल्लाने ना लग जाएगी, क्युकी 7000 फीस भरना था |
मानसी ने मंजू को दिलासा देते हुए बोली _" मंजू तू घबराना बंद कर मैंने जो गल्ले मे पैसे जमा की हूं वह तोड़कर देखती हू उसमें कितना जमा हो गया है जरूर दो-तीन हजार जमा हो गया रहेगा.! "
यह सुनकर मंजू बोली _" दीदी इतने में क्या होगा.. 7000 भरना है..! "
परेशान तो दोनों बहने थी, पर दोनों एक- दूसरे को हौसला दे रही थी दिन तो बड़ी तेजी से बीत रहा था.. मंजू पढ़ाई में मन लगाने लगी, पर उसे फीस का भी टेंशन आ जाता था |
अगले दिन जब मंजू कॉलेज गई तो दोपहर में प्रिंसिपल ने जिन बच्चों का फीस नहीं भरा था, उन्हें सबको बाहर केबिन में बुलाया... अब टोटल 10 स्टूडेंट रह गये थे |
जिनमें से दो ने कहा कि वह खुद दिन में भर देंगे बाकी आठ जो थे उन्होंने उसे दिन की और मोहलत मांगी पर तीन स्टूडेंट ऐसे थे जिनका सच में बहुत ज्यादा परिस्थिति ख़राब था |
मंजू को थोड़ा राहत मिला के अभी भी 10 स्टूडेंट है, पर उसमें से कुछ तो भर लेंगे बाकी बचे थे तीन को बहुत टाइम लगेगा भरने के लिए.. जब सभी स्टूडेंट अपने क्लास में आकर बैठ गए तो मंजू उठकर एक लड़की के पास गई... जो मुंह लटकाए केबिन में खड़ी थी..!
मंजू से हमदर्दी दिखाते हुए पूछी _" क्या तुम्हारा भी फीस भरने में लेट हो रहा है..? "
पहले तो वह लड़की कुछ बोली नहीं, पर जो मंजू अपने घर का सब प्रॉब्लम बताइए तो वह लड़की भी इमोशनल होती हुई अपने घर का सब कुछ उसे बताते गई, दोनों की स्थिति अलग-अलग था पर फीस में भरने के पैसे उनके पास नहीं थे..!
मंजू जब घर आई तो उसने सारी बातें एक विस्तार से अपनी बहन को बता दी, उसने यह भी बताया कि उसकी क्लास में एक और लड़की है जिसको फीस भरने में प्रॉब्लम है, वह भी इतना जल्दी फीस नहीं भर सकती..!
जो सुनकर मानसी को भी बुरा लगा, ऐसे ही दो दिन और बीत गए एक दिन मंजू कॉलेज से जब घर आए तब वह बगल में एक आंटी ने उससे कहा_" अरे ओ.. मंजू.. तेरी अम्मा कहां है..? "
जो सुनकर मंजू बोली_" वह तो काम पर गई है ना..! "
" अरे तेरी अम्मा आए तो उससे कह देना मुझे आकर मिले क्योंकि इलेक्शन चालू होने जा रहा है तो प्रचार करने जाना है जिसमें एक दिन के ₹300 मिलेंगे..! "
उस आंटी का इतना कहना कि मंजू बोली_" ठीक है आंटी मैं अपनी मम्मी को बता दूंगी, पर सुनो ना आंटी क्या मैं भी आ सकती हूं..? "
" हां तू भी आ सकती है, पर पूरा दिन जाना पड़ेगा. ऐसा नहीं कॉलेज से आएगी तो फिर जाएगी... ऐसा बिल्कुल नहीं सुबह से निकलना पड़ेगा तो शाम को घर आएगी, पर हां.. खाने-पीने को सब मिलेगा, बोल मंजूर है तो ठीक..! "
उस औरत का इतना कहना कि मंजू अपना सिर हाँ में हिलाते हुए बोली_" हां आंटी मेरा भी नाम लिख दो, मैं भी आने वाली हूं..! "
इतना बोलकर मंजू जल्दी से घर में आई और मानसी को बताने लगी जो सुनकर मानसी बोली_" फिर तो मेरा भी नाम लिखवा दे.. मैं भी आऊंगी, क्योंकि देख अगर मम्मी और तू में हम तीनों जाएंगे, तो हमें एक दिन का ₹900 मिलेगा और जितने दिन हमें जाना पड़ेगा तो हम तेरे फीस के लिए जमा कर लेंगे..! "
यह सुनकर मंजू खुश भी हुई और दुखी भी हुई... क्योंकि यही तो अपनों और पराया में फर्क होता है अपने-अपने ही होते हैं और मानसी अपनी बहन के लिए जी - तोड़ मेहनत कर रही थी जो मानसी भी भली भांति जानती थी |
शाम को जब उसकी मम्मी आई तो दोनों बहनों ने अपनी मां को बताया |
सुनीता तुरंत औरत से मिलने चली गई, नानी भी तैयार हो गई उन्होंने भी कहा_" मैं भी आउंगी तो और ₹300 इकट्ठा हो जाएगा..! "
पर उस औरत ने कहा कि बूढ़े लोगों को नहीं ले जा सकती वह थक जाते हैं और तेजी से नहीं चलते..!
सुनीता ने अपनी मां को जाने से मना कर दी, वह बोली _" अगर लेकर भी जाएंगे ना माँ... तो भी मैं नहीं जाने दूंगी..! "
मानसी और मंजू भी मना करने लगी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनकी नानी थके या बीमार पड़े..!
मंजू ने कॉलेज से तीन-चार दिन के लिए छुट्टी ले लिए और तीनों इलेक्शन के लिए दिन भर प्रचार करने लगी, जिससे उन्हें चार दिन का उन्होंने 3600 रुपए जमा कर लिये..!
पर इन चार दिनों में मानसी और मंजू बहुत थक गई थी क्योंकि पूरे धूप में वह दोनों बहने दिन भर गला फाड़- फाड़ के चिल्लाती रहती थी, हर गली मोहल्ले में भी जोर-जोर से आवाज देखकर प्रचार कर रही थी |
उसकी मम्मी को तो आदत था धूप में काम करने का पर यह दोनों बहनें बहुत थक जाती थी, अभी भी फीस भरने के लिए उसे पैसे की कमी पड़ रहा था |
मंजू भगवान के सामने हाथ जोड़कर शाम के समय कहने लगी_" भगवान जी.. दीदी सही कहती हैं अगर हम जो चाहते हैं अगर उस रास्ते पर चलने लगे तो.. अपने आप रास्ता बन जाएगा, आज देखा आपने मेरा रास्ता बना दिया, बस ऐसे ही भगवान जी मुझे मेरे मंजिल तक पहुंचा दो..! "
यह कहते वक्त उसकी आंख में आंसू आ गया और उसने भगवान के सामने दिया जलाया |
गांव में इलेक्शन बहुत जोरों में चालू था और एक दिन दोपहर में वहां का जो नगरसेवक था वह गलियों में हाथ जोड़े घूमने लगा उसके पीछे बहुत पब्लिक थी |
वह नगरसेवक हर किसी का दुख- सुख को सुन रहा था, किसी ने रास्ते का प्रॉब्लम बताया... तो किसी ने पानी का प्रॉब्लम बताया.. तो किसी ने कुछ और बताया..!
ऐसे ही लोग अपना अपना प्रॉब्लम बता रहे थे, उस भीड़ में मंजू भी खड़ी थी पता नहीं उसके मन में क्या आया और वह जल्दी से जाकर नगरसेवक के सामने खड़ी होकर बोली_" सर मेरा भी एक प्रॉब्लम है..! "
बच्ची को बोलते हुए देख नगरसेवक उसे देखने लगा और मुस्कुराते हुए कहा_" हां बेटा बोलो.. क्या मुसीबत है..! "
" वह मेरा फीस भरने के लिए ना पैसे कम पड़ रहा है.. क़रीब 4000..! "
उसका इतना ही कहना कि नगरसेवक ने अपने बगल में खड़े आदमी को इशारा किया और उसका इशारा पाकर उस आदमी ने अपनी जेब से ₹5000 निकाल उसे देते हुए कहा_" लो इतने में तुम्हें हो जाएगा..! "
मंजू को यकीन नहीं हो रहा की उसने जैसे मुंह खोली और उसे पैसा भी मिल गया, यह तो चमत्कार ही हो गया था |
जो वहां आसपास औरतें खड़ी थी उन्होंने भी कहा_" हां साहब यह बच्ची सही कह रही है.. बिनना बाप की बेटियां हैं इनको बहुत सारे कष्ट है..! "
जो सुनकर नगर सेवक ने कहा_" इसलिए मैं कहूंगा कि आप सब मुझे वोट दीजिए ताकि मैं जीत सकूं और सभी की मदद कर पाऊं और बेटा तुम अपनी घर में जाकर सभी को कहो कि वह मुझे वोट दें..! "
मंजू तो मुस्कुराते हुए बोली_" जरूर.. जरूर सर.. मैं मम्मी को कहूंगी आपको ही वोट दे..! "
मंजू उन पैसों को मुट्ठियों में पकड़ तेजी से भागते हुए घर आई वह इतनी लंबी - लंबी सांस ले रही थी कि जो देख मानसी पूछी_" क्या हो गया जो हवाई जहाज की तरह भागते हुए आ रही है..! "
मंजू ठीक तरह से बोल भी नहीं पा रही थी और वह पैसे अपनी बहन के सामने कर दी..!
इतना सारा पैसा उसके हाथ में देखकर मानसी बड़ी-बड़ी आंखें करके पूछने लगी_" इतना सारा पैसे कहां से लेकर आ रही है..? "
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अब आगे
मंजू के हाथ में इतना सारा पैसा देखकर मानसी उसे सवाल करते हुए पूछने लगी, पर मंजू इतनी खुश थी कि वह जल्दी से बात भी नहीं पा रही थी|
मंजू 2 मिनट अपने आप को शांत की उसके बाद आगे बोली _" दीदी वह जो नगरसेवक के लिए हम सब प्रचार करने के लिए गए थे ना. यह पैसे उसने मुझे दिया है..! "
यह सुनकर मानसी रिएक्ट करते हुए बोली _" क्या..? नगरसेवक ने तुझे पैसे दिया पर कैसे..? उसे कैसे मालूम कि तुझे पैसे की जरूरत है..! "
" बताती हूं.. बताती हूं.. वह अभी सारे गल्ली- मोहल्ले में घूम रहे हैं सबके प्रॉब्लम पूछ रहे हैं पता नहीं कैसे दीदी मेरे मुंह से निकल गया और पता है उन्होंने तुरंत निकाल कर मुझे पैसे दे दिया, यकीन नहीं होता मुझे.. अगर अभी कोई कहेगा मुझे उनसे बात करने के लिए तो नहीं कर पाऊंगी, पर उस वक्त पता नहीं कैसे मुंह से शब्द निकला और मैं सबके सामने पैसे मांग लिए..! "
नानी भी उसकी बातें सुन रही थी और अपने दसो हाथ की उंगलियां मोड़ते हुए बोली_" अच्छा किया कि मुंह खोली कि यह तुझे पैसे मिल गया और अब सारी समस्या टल जाएगा..! "
मानसी पैसे लेकर गिरने लगी और जो उन्होंने प्रचार में पैसे जमा किया था सब मिलकर करीब 8000 के ऊपर हो गया फीस भरने के बाद भी उनके पास पैसे बचेगा |
मंजू अब इंतजार करने लगी कि कब उसकी मम्मी आएगी और वह सारी बातें उन्हें बताएं..!
जब सुनीता शाम को घर आई तो मानसी, मंजू और नानी तीनों मिलकर उसे सारी बातें बताने लगी |
जो सुनकर सुनीता तो बहुत खुश हो गई क्योंकि उसे भी बहुत टेंशन लगा था कि उसकी बेटी का फीस कैसे भरा जाएगा |
मंजू तो अपने आप से खुद से बातें करने लगी, रात को उसे नींद भी नहीं आ रहा था, वह सिर्फ़ मुस्कुराए जा रही थी क्योंकि कल उसे इस कॉलेज जाकर फीस भरना था |
दूसरे दिन जब वह कॉलेज गई तो पूरा पैसा लेकर गई और उसने अपनी पूरे फीस भर दिए अब उसे इतना अच्छा लग रहा था कि अब जाकर उसे पढ़ाई में भी मन लगने लगा, वरना फीस न भरने की वजह से उसका मन बार-बार उसी ओर जा रहा था |
मंजू के पास अब ज्यादा टाइम नहीं रह गया , vahuमन लगाकर पढ़ाई करना था, ताकि जल्दी से एग्जाम्स देकर पास हो जाए..!
ताकि वह थोड़ी अपनी मम्मी की मदद करें ताकि वह 12वीं के लिए कुछ पैसे अभी से जमा कर सके उसके दिमाग में ऐसे ही तरह-तरह के ख्याल आते रहते हैं..!
अब उसके एग्जाम्स के लिए 2 महीने ही रह गए थे, अब यह दो महीने इतनी तेजी से बीत रहे, बेचारी एक-एक दिन गिने जा रही थी और बहुत जल्द उसके एग्जाम्स के दिन एकदम से नजदीक आ गए वह मेहनत तो बहुत कर रही थी और उसकी मेहनत का फल भी उसकी आंखों के सामने आया, वह 11वीं के एग्जाम्स दी और पास हो गई..!
मंजू को 2 महीने की कॉलेज की छुट्टियां मिला था वह उसका बहुत मन था कि वह कुछ काम करें ताकि कुछ पैसे जमा हो जाए और उसे 12वीं के स्टार्टिंग में कुछ पैसे वह भर देगी, जिसकी वजह से वह कुछ ऐसा काम ढूंढ रही थी जो वह कर सके..!
क्योंकि उसकी मम्मी उसे खेत में काम करने ले जा नहीं सकती थी और उसका सिलाई में जरा भी मन नहीं लगता था, जिसके वजह से मंजू एक बगल के आंटी के साथ सब्जियां अलग का काम करने लगी वह मार्केट में जाती थी और जो सब्जियां मिक्स रहता था उसे वह अलग करती थी और कभी कबार उसे राशन में से भी मिक्स दाल या गेहूं अलग करने के लिए उसे दिया जाता था |
वह यह भी काम करती थी दिन में कभी वह डेढ़ सौ 200 का काम कर लेती थी इससे वह ज्यादा पैसे तो नहीं जमा कर सकती पर उम्मीद लगाए वह बैठी थी कि जरूर 2000 का वह दो महीने में जमा कर लेगी |
मंजू दो महीना में 2000 से ऊपर जमा कर लिए और जब कॉलेज स्टार्ट हुआ तो स्टार्टिंग में ही उसने 2000 फीस जमा कर दिया |
वही मोहिनी अपनी बड़ी बेटी के लिए रिश्ता देख रही थी, उसका तो एक ही टारगेट था कि अपने बच्चों का जल्द-जल्द शादी कर ले और शादी होने के बाद वह एकदम से फ्री हो जाएगी |
उसे तो टेंशन लगा था कहीं गांव वाले यह ना काहे की सुनीता के बच्चों की भी शादी तू ही करे..? इसलिए वह अपने बच्चों का पहला जल्दी से अच्छी तरह से शादी करना चाहती थी |
मोहिनी ने अपनी बड़ी बेटी के लिए रिश्ता देखने चालू कर दी, बहुत सारे रिश्ते आने शुरू हो गए थे कुछ लोगों ने रिजेक्ट किया तो कुछ इन लोगों ने रिजेक्ट किया |
इसी में कई महीने बीत गए, पर मोहिनी लगातार अपनी बेटी के लिए रिश्ता ढूंढे जा रही थी, तो वहीं मंजू अपनी पढ़ाई पर एकदम से मन लगाकर पढ़ रही थी क्योंकि अब उसका 12वीं का एग्जाम था और वह बिल्कुल भी रिस्क नहीं लेना, वह नहीं चाहती कि इतना यहां तक आकर वह फेल हो...!
धीरे-धीरे मंजू ने 12वीं के भी एग्जाम दे दिए, इस बार उसे फीस भरने में कोई दिक्कत नहीं आया क्योंकि स्टार्टिंग से ही उसने थोड़ा-थोड़ा पैसे भरने शुरू कर दिए..!
तो वही मोहिनी लगातार अपनी बेटी के लिए रिश्ता देखे जा रही थी और उसकी बेटी के रिश्ते में काफी अड़चन आ रहा था, आखिरकार जनवरी महीने में उसकी बेटी के लिए एक रिश्ता आ गया |
जो देख मोहिनी ने रिश्ता फिक्स कर दी, अब उसने कॉलेज की छुट्टियों में शादी का डेट निकल दी ताकि सभी मेहमान आ सके..!
मंजू की मां को एक ही फिक्र लगा था कि अपने बच्चों को शादी में क्या कपड़े लेकर दे... क्योंकि उसके पास बिल्कुल भी अच्छे कपड़े नहीं थे जो कुछ थे वह बहुत पुराने थे |
मानसी बहुत समझदार थी, उसकी मम्मी की एक पुरानी साड़ी थी जो वह नया ही कह सकते क्योंकि उसकी मम्मी ने एक से दो बार पहनी होगी..!
मानसी ने अपनी मां से कहा कि_" मम्मी यह साड़ी में पहन लूंगी और मंजू महक के लिए मैं कपड़े लाकर खुद सिलाई कर दूंगी..! "
भला सुनीता को क्या एतराज रहेगा, मानसी ने अपने दिमाग लगाकर वैसे ही की कम पैसे में सभी के लिए इंतजाम हो गया..!
मोहिनी तो इन दोनों पैर जमीन पर नहीं थे, वह तो अपनी बेटी की शादी बड़े धूम धड़ाके से करने वाली थी |
वह आजकल रोज बाजार जाने लगी थी, ढेर सारी खरीदरियां करने लगी थी, वह आसपास के लोगों को अपने साथ लेकर जाती या अपने रिश्तेदारों को घर बुलाकर ली थी पर वह एक बार भी सुनीता को अपने साथ बाजार लेकर नहीं गई..!
सुनीता को इन सब की आदत पड़ चुका था, पर उसके मन में कभी किसी के प्रति बैर नहीं था , वह अपनी हैसियत बहुत अच्छे से जानती थी पर कभी उसने किसी काम में आगे - आगे नहीं की थी |
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अब आगे _
मई का महीना _
20 मई को शालिनी का शादी था, रिश्तेदारों में कार्ड बांट रहे थे मोहिनी की खरीदारी तो पूछो ही मत, वह रोज के रोज मार्केट जाती थी उसका कुछ न कुछ रह जाता था और अपनी बड़ी-बड़ी बातें हर किसी के सामने करती थी कि वह अपनी बेटी को बहुत कुछ दे रही है वह जो ज्वेलरी ले रही थी वह सभी को दिखाई थी |
मोहिनी ने सुनीता से कहा _" अपनी बेटियों को कह देना की घर के काम में हाथ बटाएं..! "
भला सुनीता क्यों ना कहेगी उसने अपनी तीनों बेटियों को कह दिया कि _" अगर तुम्हारी मामी कोई भी काम तुम्हें कहे तो कर देना और अगर नहीं भी कहे तो जाकर बर्तन, कपड़े घर का झाड़ू लगाना सब कर देना क्योंकि अब मेहमानों का आना चालू हो जाएगा..! "
यह सुनकर मंजू बोली_" हां हां क्यों नहीं मम्मी... हम लोग तो सिर्फ कपड़े धोने बर्तन धोने के लिए ही बने हैं..! "
मंजू का इतना कहना कि सुनीता अपनी बेटी को डांट लगाते हुए बोली_" मैं बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगी, तू बहुत कामचोर है.. शादी का घर है मिल बांट के सब काम किया करो..! "
मानसी तो समझदार थी उसने कुछ बगावत नहीं की क्योंकि उसकी मां सही कह रही है नानी तो मंजू का ही साइड ले रही थी कि काम करने के लिए लड़कियों का इस्तेमाल करेगी उसके बाद वही रोज ताने देती रहेगी..!
पर सुनीता अपनी मां को चुप करवा दी, वह नहीं चाहती थी की बात बढ़े..!
मंजू जानबूझकर अपने घर का काम करती, तो वही मानसी अपनी मामी के घर का झाड़ू लगाना, बर्तन धोना ऊपर से चावल की सफाई सब्जी की सफाई सब कुछ करने लगी थी..!
यहां तक की शालिनी के लिए वह सारे ब्लाउज भी सिलने शुरू कर दी |
धीरे-धीरे शादी का दिन नजदीक आ गया, पूरे घर को लाइटिंग से सजा दिया गया था | यहां तक की मेहमान भी आनी शुरू हो गए थे जो मोहिनी की बहन उसकी मां वह सब बहुत जल्दी आ चुकी थी और उनके आते ही मोहिनी के तेवर भी बदल गए..!
वह तो सिर्फ मानसी और उसकी दोनों बहनों को सिर्फ घर का काम करने के लिए कहती, बाकी सभी लोग कमरे में बैठकर बातें या चीज समेटने में या रखना में ही बिजी रहती |
शालिनी भी बिल्कुल अपनी मां पर ही गई थी, उसे भी बात करने का जरा भी तमीज नहीं था, वह जब भी मानसी और मंजू को देखती तो चीजें चुराने लग जाती थी उसे लगता था कि कहीं वह लेकर चली ना जाए या नजर ना लगा दे..!
यह सारे सिलसिला तो रोज का था उन बहनों को कोई फर्क भी नहीं पड़ता था, उन्हें भी अच्छे से पता था की जैसी माँ वैसी उसकी बेटियां भी है..!
जिस दिन शालिनी का हल्दी था, उस दिन सब के सब मेहमान इकट्ठा हो गए थे, अब तो सुनीता खेत में काम करने भी नहीं जा रही थी क्योंकि मेहमान बहुत आ चुके थे और काम भी बहुत था तो वह भी हाथ बटाने लगी थी |
जहां पर कोई शुभ काम होता था सुनीता को वहां पर कोई रुकने नहीं देता क्योंकि वह विधवा थी, सबका मानना यही था कि उसके खड़ा होने से अब शगुन हो जाएगा |
यह सब उसके दिल को बहुत छूने लगा, वह जानबूझकर कभी घर में झाड़ू लगाती तो कभी दूसरा काम करने लग जाती या किसी से बातें करने लग जाती ताकि उसे दुख ना हो..!
मंजू बहुत चालाक थी उसकी नजर हर घड़ी अपने मां पर ही रहती थी कि कोई उसकी मां को कुछ कह तो नहीं रहा या उसकी मामी उसकी मां की बुराइयां तो नहीं कर रही..?
वह काम कम इन सब चीजों पर ज्यादा ध्यान देने लगी थी और जब भी उसकी मामी बुराइयां करती तो वह सारी बातें मन में रखती थी और वह अपनी मां का लटका हुआ चेहरा भी देख सकती थी |
इस शादी में सुनीता ने शालिनी के लिए चांदी का पायल ली, जो 2000 में आ गया था क्योंकि इससे ज्यादा तो उसकी बजट नहीं था और साथ में एक साड़ी भी दी |
आज शादी था मोहिनी का घर से लेकर द्वारा तक पूरे मेहमान से भरे हुए थे, वहीं खाने की खुशबू बहुत अच्छे से आ रही थी मिठाइयों की तो बात ही मत करो..!
सुनीता यह सारी चीज देख रही थी, वह मन ही मन खुद से कहती..
" शादियों में कितना खर्च हो रहा है, क्या मैं अपनी बेटी की शादी कर पाऊंगी..? मुझे तो नहीं लगता कि मैं अपनी तीन-तीन बेटियों की विवाह कर पाऊंगी, मुझसे तो एक का भी नहीं होगा, चीजें इतनी महंगी हो गई है और मेरे पास तो पैसे भी नहीं है..!"
शाम होते ही जैसे अंधेरा छाने लगा कि शालिनी को गांव की पार्लर वाली लड़की आकर उसे तैयार कर दी, उसके अगल- बगल में बहुत सारी लड़कियां खड़ी थी |
मानसी, मंजू भी उसे देख रही थी सच में शालिनी बहुत खूबसूरत दिख रही थी | उसने लाल कलर के लहंगे पहने थे मैचिंग चूड़ियां ऊपर से गजरे बहुत ही सुंदर दिख रही थी |
कुछ ही देर बाद पटाखे की शोर से पता चल गया की बारात आ चुकी है, और बारातियों का स्वागत करने के लिए द्वार पर सभी मेहमान खड़े थे और जैसे बारात की स्वागत हुआ तो कुछ ही देर बाद शादी का विधि शुरू हो गया |
मोहिनी बहुत खुश थी बल्कि उसका पूरा परिवार यहां तक की सभी खुश थे |
सभी लोग शादी में व्यस्त थे, वही सुनीता साइड में जाकर अंधेरे में रोने लगी क्योंकि वह आज खुद को बहुत कमजोर समझ रही थी उसके पास कुछ भी नहीं था |
वह दिन भर जितना मेहनत करती वह खाने में चला जाता, उसमें से कुछ बचाकर वह जमा करती, पर कभी बीमार पड़ना.. तो कभी कुछ और जिसमें उसके पैसे चले जाते थे |
ऊपर से मंजू की पढ़ाई - लिखाई में भी बहुत खर्च होने लगा था वह चाह कर भी कुछ भी बचा नहीं पा रही थी, जिससे वह आज खुद को बहुत लाचार समझने लगी |
उसकी उम्मीद टूटने लगा कि इस तरह से वह अपनी बेटी की शादी कभी नहीं कर पाएगी, वह बहुत देर तक अकेले रोती रही मंजू उसे ढूंढने लगी क्योंकि अब सभी लोग खाना खा रहे थे |
आखिरकार मंजू अपनी मां को ढूंढ ली, सुनीता ने अपने आंसुओं को जल्दी से पोंछे पर रोने की वजह से चेहरा और आवाज दोनों में फर्क आ जाता है..!
मंजू अपनी मां से पूछने लगी, तो सुनीता झूठ बोलते हुए बोली_" शालिनी अब चली जाएगी इसलिए दुख हो रहा है क्योंकि मुझे भी तो तीन बेटियां हैं तुम तीनों चली जाओगी तो मैं एक दिन अकेली पड़ जाऊंगी इसलिए रोना आ रहा है..! "
अपनी मां का उतरा हुआ चेहरा देख मंजू हौसला देते हुए बोली_" कौन कहता है मां.. बेटियां अपनी मां को छोड़कर जाए , अगर ऐसा ही रिवाज है तो मैं कभी शादी नहीं करूंगी, मैं तो अपनी मां की देखभाल करूंगी..! "
उसकी बातें सुनकर सुनीता हंसने लगी और उसके गाल पर हल्का चांटा मारते हुए बोली_" पागल कहीं की..! "
अब मंजू भी मुस्कुराने लगी और अपनी मां का हाथ पकड़ कर बोली_" चलो जल्दी से खाना खा लेते हैं... वरना पता चला कि हमें मिलेगा ही नहीं..! "
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अब आगे _
शालिनी की जब विदाई हो रही थी तब सभी लोग को का रोना चालू हो गया, यहां तक की मेहमान से लेकर आसपास के जो लोग थे सभी लोग रो रहे थे, क्योंकि बेटियों के जाने का सभी को दुख होता है..!
सुनीता भी बहुत रो रही थी उसकी तीनों बेटियां रो रही थी, जैसे शालिनी गई कि घर में सन्नाटा छा गया |
मोहिनी तो सबके बीच में बैठे अभी भी रो रही थी, वह अपनी बेटी के तारीफ कर रही थी कि वह घर को बहुत अच्छे से संभालती थी आज से उसका घर कौन संभालेगा..!
वैसे अभी भी उसके तीन बच्चे थे, बहुत देर तक सभी का रोना चालू रहा उसके बाद औरतें मोहिनी को समझाते हुए कहने लगी |
बेटियां पराया घर की होती है जैसे हम लोग तुम सब अपना घर छोड़ कर आए हैं, ऐसे ही हमारी बेटियां भी हमें छोड़कर चली जाएंगी, यही संसार का रिवाज है जितनी औरतें उतनी बातें चालू था |
थोड़ी देर के बाद माहौल एकदम ठंडा हो गया, सुनीता भी घर में आकर बैठ गई वही मंजू न्यूजपेपर हाथ में लेकर देख रही थी क्योंकि अब उसे कॉलेज की छुट्टी मिल चुका था और वह काफी दिनों से अपने लिए काम ढूंढ रही थी |
न्यूज़पेपर में छोटे से कॉर्नर में जॉब वेकेंसी लिखा होता है, जो मंजू कैंची से कटकर निकल रही थी, उस पर कांटेक्ट नंबर भी था पर घर में मोबाइल नहीं था जिससे वह कॉल करके पूछे..?
मंजू ने काफी दिनों से वह कैंची से कटकर निकल रही थी, वैसे काम तो बहुत मिल रहे थे.. पर बहुत दूर-दूर काम था, जो मंजू को आना जाना पॉसिबल नहीं हो सकता |
जो एकदम मेन सिटी में था जैसे उसे आने-जाने में ही दो-दो घंटे लग सकते थे, पर एक काम उसको ऐसा मिला जो बाजार में था वहां पर साफ शब्दों में लिखा था टाइप राइटिंग के लिए लड़के लड़कियां चाहिए..!
मंजू ने आगे पीछे कुछ नहीं देखी बस वह एड्रेस देखकर खुश हो गई कि उसे अब काम मिल गया, उसने अपनी बड़ी बहन से ₹10 लेकर STD कॉल करने चली गई..!
मंजू ने जब कॉल की तो, कॉल की दूसरी तरफ से आवाज आया हेलो बोलिए..!
जो सुनकर मंजू बोली_" आपका न्यूज़पेपर में एडवर्टाइजमेंट देखी थी, वहां से नंबर लेकर कॉल की हूं मुझे काम चाहिए था | "
यह सुनकर कॉल की दूसरी तरफ से उस लेडिस ने कहा _" ठीक है आपको एड्रेस भी पता होगा तो आप बायो डाटा लेकर आ जाइए..! "
मंजू मुस्कुराते हुए कॉल कट कर दी, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था, उसे लगा कि अब उसे काम मिल गया पर अब सवाल उठता था बायोडाटा..?
उसे तो बनाने नहीं आता और उसके पास मोबाइल भी नहीं था कि वह बनाएं, वह घर आकर अपनी छोटी बहन को बोली_" महक मेरे साथ बाजार चलेगी..! "
महक तो तुरंत तैयार हो गई और मंजू ने मानसी को सब बता दी क्योंकि वह रोज न्यूज़पेपर बगल वाली आंटी से मांग कर आई थी और उतना कट करती थी और मानसी को भी पता था कि मंजू काम ढूंढ रही है..!
दोनों बहने बाजार चली गई, मंजू जेरॉक्स के दुकान पर गई वहां पर उसने बायोडाटा बनाने के लिए बोली, उस आदमी ने कहा_" ₹20 लगेंगे बनाने के लिये..! "
मंजू ने तुरंत हां कह दी, वह आदमी जो जो पूछ रहा था मंजू वैसे ही सब कुछ बताते गई पर उसके पास कांटेक्ट नंबर नहीं था |
10 मिनट में उसका बायोडाटा बन गया और मंजू खुश होते हुए वह पेपर लेकर महक का हाथ पकड़ के उस एड्रेस पर चली गई, यह बिल्डिंग ना ज्यादा बड़ा था ना ज्यादा छोटा मीडियम में था पर देखकर ही पता चल रहा था कि वह बहुत पुरानी बिल्डिंग है..!
पुराने टाइप का लोखंड का गेट था, वहां पर एक वॉचमैन खड़ा था उससे पूछ कर मंजू और महक अंदर चली गई अंदर जाने पर एक आदमी ने उसे और अंदर भेजा |
जब वह अंदर गई तो उसने देखा बहुत सारे आदमी औरत कंप्यूटर पर काम कर रहे थे, उनके कंप्यूटर का आवाज बहुत जोर-जोर से आ रहा था, सभी लोग अपनी उंगलियां बहुत ही स्पीड में चाला रहे थे |
मंजू बड़े ध्यान से देख रही थी, उसके मन में ख्याल आया क्या मैं भी कभी कंप्यूटर चला सकती हूं..!
उतने में एक लेडिस उसके सामने आई और बोली _" अच्छा तो आप मंजू हो, इंटरव्यू के लिए आई हो.. आ जाओ मेरे साथ..! "
मंजू ने महक को वहीं खड़ा कर दी और उस औरत के साथ एक छोटे से केबिन में चली गई उसने अपना बायोडाटा उस औरत को दे दी..!
उस औरत ने ध्यान से बायोडाटा देखी जिसमें बहुत सारे अधूरी चीज़े लिखी थी, जैसे ना कांटेक्ट नंबर था... ना ईमेल था... ना कंप्यूटर की एक्सपीरियंस था... सिर्फ नाम एड्रेस एजुकेशन लिखा था |
जो देखकर वह औरत बोली _" तुमने अभी जस्ट 12th का एग्जाम्स पास किया है, हमें एक्सपीरियंस वाले लोग चाहिए जैसे एक - दो साल का काम करने का एक्सपीरियंस हो, उसे कंप्यूटर चलाने आता हो..! "
उस औरत का इतना कहना कि मंजू उदास हो गई और रिक्वेस्ट करते हुए बोली_" मैडम मैं काम कर सकती हूं आप जो भी काम कहोगी, मैं करूंगी..! "
उस औरत मंजू को देखकर प्यार से बोली _" तुम बहुत छोटी हो बेटा... क्या तुम्हें कंप्यूटर का बेसिक नॉलेज है, क्या तुमने कोई कंप्यूटर का कोर्स वगैरह किया है..? "
जो सुनकर मंजू ने नाम ही सिर हिला दी, तो उस औरत ने कहा_" अभी आप कंप्यूटर सीखो उसके बाद फ्यूचर में आ जाना इंटरव्यू के लिए ठीक है..! "
मंजू ने उदास हो गई पर इसके आगे उसने कुछ नहीं बोली और वहां से उठकर बाहर आ गई उसका चेहरा लटक गया था और दोपहर भी हो चुका था |
सुबह से वह बगैर खाए पिए निकली थी, महक का हाथ पकड़ के वह चलते हुए जाने लगी |
महक बोली_" दीदी क्या हुआ..? काम नहीं मिला तुझे..? "
मंजू ने ना में सिर हिला दी और दोनों बहने बातें करते हुए घर आने लगी, धूप इतनी कड़क था कि महक को प्यास लग गया |
मंजू के पास अभी भी ₹10 था, वह सोच रही थी रिक्शा से घर चली जाए या कुछ खा ले क्योंकि भूख भी लगा था |
मंजू रास्ते में कुछ देखते आ रही थी, तभी उसे गन्ने का जूस दिखा और वह महक को लेकर चली गई..!
₹10 का उसने जूस ली जो प्लास्टिक के छोटे से ग्लास में आ गया और दोनों बहनों ने आधा-आधा पीकर फिर से चलते हुए घर आई..!
घर आने पर मानसी उसे पूछने लगी, मंजू ने सब कुछ बता दी मानसी बोली_" अब क्या करेगी तू..? कंप्यूटर सीखने के लिए भी तो पैसे चाहिए ना..? "
मंजू मन में बहुत उदास थी, आज पहली बार वह इंटरव्यू दी थी और पहली बार में ही रिजेक्ट हो गई पर थोड़ा सा उसका कहीं न कहीं हौसला बढ़ गया था कि उसे बहुत कुछ सीखना है..!
अगर आगे बढ़ाना है तो अभी से उसे बहुत कुछ सीखना पड़ेगा, पर अभी भूखी पेट वह ज्यादा दिमाग नहीं लगा रही थी जल्दी सो पहले खाना खाई और सो गई क्योंकि सुबह-सुबह थक चुकी थी |
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए मंजू ने अपनी मां से बोली _" मम्मी कोई ऐसा आपका पहचान का है, जो मुझे काम दिला दे ताकि मैं भी काम पर जा सकूं..! "
मंजू का इतना कहना कि सुनीता चाय पीते हुए बोली_" खेत के सिवाय में आज तक कहीं नहीं गई हूं.. तो मैं किससे बात करुंगी कि तुझे कोई काम दिला दे, वैसे भी खेत में सब के सब मेरे जैसे मजबूरी में ही आकर काम करते, किसको शौक है धूप में अपनी चमड़ी जलाने का..! "
मंजू उदास होने लगी वह सिर्फ काम के बारे में सोचे जा रही थी, अब कुछ ही महीना में वापस कॉलेज स्टार्ट हो जाएगा, एडमिशन के लिए फिर से पैसा लगेगा |
पर मंजू ने अब मन बना ली थी कि वह नहीं पढ़ेगी क्योंकि पैसे भी तो नहीं थे, पढ़ कर भी क्या करेगी..? जब उसे काम ही नहीं मिल रहा, वह यही सब दिन भर सोचा करती थी |
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अब आगे _
2 दिन बाद
मंजू अभी भी न्यूज़ पेपर में बार-बार काम ढूंढ रही थी, पर वह समझ चुकी थी कि काम करने के लिए उसे कंप्यूटर आना बहुत जरूरी है जिसके चलते अब वह ऐसा काम ढूंढ रही थी जहां पर उसे पढ़ाई का कुछ भी लेना देना ना हो..!
पर उसे यह भी पता था कि पढ़ाई लिखाई के बगैर उसे कोई भी काम मिलेगा तो उसे मजदूरी ही करना पड़ेगा जैसे उसकी मम्मी कर रही है..!
मंजू यह भी काम करने के लिए तैयार हो गई थी पर उसकी बड़ी बहन और मां कभी यह नहीं चाहती थी कि मंजू इतनी छोटी उम्र में यह सब काम करें और उसकी मां तो और भी नहीं..!
क्योंकि जो कस्ट खुद सहन कर रही है वह अपने आंखों के सामने अपनी बेटी को नहीं देख सकती |
आज दोपहर में मंजू घर के सभी काम करके बाहर बैठकर न्यूजपेपर पढ़ रही थी, उसी वक्त उसकी सहेली प्रिया आ गई और वे दोनों बैठकर काफी देर तक बातें करती रही..!
बातों ही बातों में मंजू ने उसे अपने इंटरव्यू के बारे में बता दी, जो सुनकर प्रिया भी बोली_" अरे यार ऐसे काम के लिए तो कंप्यूटर आना बहुत जरूरी है, तभी हमें अच्छा जॉब मिल सकता है वरना नहीं मिलेगा..! "
प्रिया ने आगे बोली_" मैं तो एडमिशन लेने के बाद कंप्यूटर क्लास भी लगाऊंगी क्योंकि आगे चलकर कंप्यूटर आना बहुत जरूरी है वरना बहुत प्रॉब्लम हो जाएगा क्योंकि मुझे भी जॉब करना है..!"
यह सुन मंजू बोली_" कंप्यूटर सीखने के लिए कितना पैसा लगेगा..?"
जो सुनकर प्रिया बोली_" 3 महीने का कोर्स रहेगा उसके लिए तीन हजार तो लगेगा ही, वैसे तो मुझे भी पता नहीं है फिर भी एक अंदाजा लगाकर तुझे बता रही हूं..! "
पैसे का सुनकर तो मंजू सभी चीज के लिए पीछे हट जाती, क्योंकि उसके पास इतने पैसे ही नहीं थे कि वह कुछ भी कर सके..!
प्रिया को मंजू के हालात अच्छी तरह से पता था कि उसके घर में कितने पैसों की तंगी है और प्रिया मंजू की बहुत अच्छी सहेली थी |
प्रिया ने उसे सलाह देते हुए आगे बोली_" देख मंजू तू डायरेक्ट अच्छा जॉब ढूंढेंगी तो नहीं मिलेगा, पहले तुझे ऐसा ढूंढना चाहिए कि तू कर सके.. कोई छोटा-मोटा काम मिल गया, जिससे तुझे पैसे मिलना चालू हो जाए ताकि तू आगे की पढ़ाई भी कर सके और कंप्यूटर भी सीख सके और घर में कुछ पैसा भी दे सके..! "
प्रिया बहुत अच्छे से मंजू को सलाह दे रही थी, जो सुनकर मंजू की अंदर ही अंदर इच्छा बढ़ाने लगा कि प्रिया सही कह रही है अगर मुझे कोई भी छोटा-मोटा काम मिल गया तो मैं अभी से करूं तो पैसे मिलना चालू हो जाएगा और मैं आगे की पढ़ाई भी कर सकती हूं..!
मंजू कुछ दिन पहले ही मन बना ली थी कि वह पढ़ाई नहीं करेगी क्योंकि पैसे नहीं थे पर प्रिया की बातें सुनने के बाद उसकी मन वापस पढ़ाई के तरफ जाने लगा |
मंजू आगे बोली_" पर कहां काम ढूंढू..? कहां मुझे काम मिलेगा..? अगर ऐसा ही रहा तो इस बार मेरा एडमिशन नहीं हो पाएगा..! "
उसकी बातें सुनने के बाद प्रिया बोली_" अरे ऐसा ना बोल.. क्यों ना हम दोनों कहीं जाकर काम ढूंढे..! "
यह सुन मंजू बोली_" कहां ढूंढेंगे..? कौन हमें कम पर रखेगा..? "
प्रिया बोली_" ऐसा कर तू पहले किसी दुकान में लग जा दुकान में ना पढ़ाई लिखाई की जरूरत नहीं पड़ता है..! "
" दुकान में..? और दुकान में कौन सा काम करूंगी..! "मंजू बोल पड़ी
जो सुनकर प्रिया बोली _" अरे ऐसा करते हैं कल से जाकर मार्केट में देखेंगे कोई ना कोई तो काम तुझे मिल ही जाएगा..! "
प्रिया की बातें सुनकर मंजू भी मान गई और वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी और जब प्रिया चली गई तो मंजू जाकर मानसी को सारी बातें बताने लगी |
जो सुनकर मानसी बोली _" प्रिया सही कह रही है पहले तुझे छोटा-मोटा काम मिल जाएगा तो अच्छा रहेगा..! "
अगली सुबह
मंजू जल्दी घर के काम निपटाकर तैयार हो गई और 10:00 बजे प्रिया के घर पहुंच गई, प्रिया और मंजू दोनों मार्केट चले गए वह दोनों मार्केट में एक- दूसरे का हाथ पकड़ के सभी दुकान के तरफ देख रही थी |
वे दोनों आपस में काफी बातें भी किये जा रही थी, मंजू को बहुत अजीब भी लग रहा था कि वह दुकान में क्या जाकर कहेगी क्या बात करेगी..?
जिस भी दुकान के सामने वह दोनों जाती दुकान में काफी भीड़ भाड रहता और उन्हें पूछने के लिए शर्म भी आ रहा था, बहुत आगे जाने के बाद उन्हें एक दुकान दिखाई दिया |
उस दुकान के अंदर एक ही आदमी था जिसे देखकर वह दोनों दुकान पर गई मंजू डायरेक्ट बोली_" अंकल यहां पर काम के लिए लड़कियां चाहिए आपको..? "
जो सुनकर वह अंकल मुस्कुराने लगा और कहा_" अरे नहीं बेटा मेरी दुकान खुद छोटा है तो मुझे किसी और की जरूरत नहीं है..! "
इतना सुनकर वे दोनों वहां से आगे चली गई और आगे जाकर आपस में बातें करने लगी, देखा कोई काम पर नहीं रखेगा
प्रिया बोली_" अरे वह अंकल सही तो कह रहा है वह दुकान में अकेला ही है उसकी दुकान पर एक भी ग्राहक नहीं है तो बेवजह में वह रखकर क्या करेगा, हमें बड़े दुकान में जाना चाहिए जहा पर बहुत ज्यादा भीड़ भाड़ है, वहां पर पूछना होगा क्योंकि अक्सर बड़े दुकानों में ही लोगों की जरूरत पड़ता है..! "
प्रिया की बातें मंजू को सही लगा पर उन दोनों को पूछने में बहुत अजीब लग रहा था ऐसे ही उन्होंने दो-चार दुकान पूछा जो काफी बड़े-बड़े थे पर ज्यादातर सभी लोग ना कह रहे थे क्योंकि सब दुकान में ज्यादातर लड़के ही थे |
दोनों हार मानकर घर चली आई प्रिया रास्ते भर यही बोले जा रही थी की कोशिश करते रहेंगे कभी ना कभी किसी को जरूर रहेगा तो वह जरूर तुझे काम पर रख लेगा, तू इतना उदास मत हो..!
घर आने के बाद मानसी भी मंजू से पूछने लगी जो कुछ हुआ था वह सारी बातें मंजू अपनी बहन को बता दी..!
ऐसे ही दो-तीन दिन और बीत गया आज मंजू मानसी के साथ मार्केट गई थी क्योंकि उसकी बहन को सिलाई के लिए धागा बटन बहुत कुछ सामान चाहिए था और वे दोनों करीब शाम के वक्त मार्केट में गई थी |
वे दोनों जब सामान लेकर रोड क्रॉस कर रही थी उसी वक्त सामने एक दुकान पर जोरों से पटाखे फूटने लगे, जो देख वे दोनों बहने साइड हो गई और बहुत लोग खड़े होकर देख रहे थे क्योंकि पटाखे काफी हद से ज्यादा फूट रहा था और सभी रोड पर इकट्ठे पब्लिक देख रहे थे |
मंजू मानसी से बोली_" दीदी यहा क्या हो रहा है जो पटाखे फोड़ रहे हैं..? यहां पर दुकान के अंदर तो बहुत भीड़ - भाड़ दिख रहा है..? शादी-वादी है क्या..? "
जो देखकर मानसी बोली_" नहीं रे.. यह दुकान तो नया-नया दिख रहा है लगता अभी-अभी चालू हुआ है.. उसी के खुशी में फोर्ट रहेंगे..! "
मंजू ध्यान से शॉप को देखने लगी क्योंकि यह शॉप मोबाइल का था और यह छोटा नहीं काफी बड़े में यह शोरूम बना हुआ था और उसे दुकान के अंदर बहुत लोग थे |
यहां तक की बाहर से फोटोग्राफर फोटो भी निकाल रहे थे, मानसी मंजू का हाथ पकड़ रोड क्रॉस करके रिक्शा रूकाई और वे दोनों बैठकर घर के लिए चली गई..!
यह जबलपुर का बड़ा सिटी था, जहां पर मंजू सामान लेने के लिए मेन सिटी में आना पड़ता था क्योंकि उनका घर तो गांव साइड में आता था |
वे दोनों बहने रिक्शा में बैठकर अभी भी उस दुकान के बारे में ही बातें कर रही थी |
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दोनों बहने घर आने के बाद भी उस दुकान के बारे में बातें कर रही थी दूसरे दिन मंजू प्रिया के घर उसे मिलने गई थी बल्कि वे दोनों पढ़ाई के बारे में बातें कर रही थी |
बातों ही बातों में मंजू ने प्रिया को बताया कि वह कल मार्केट गई थी और मार्केट में एक नया शोरूम चालू हुआ है और वह मोबाइल का शोरूम है और बहुत धूम धड़ाके से उसकी ओपनिंग हो रही थी..!
दोनों काफी देर तक बातें करती रही कि अचानक से प्रिया ने कहा_" सच में शोरूम बहुत बड़ा है..? "
मंजू ने सिर हा में हिला दी, जो सुनकर प्रिया आगे बोली_" फिर तो उन्हें सेल्समेन सेल्स गर्ल भी भी चाहिए रहेंगे..? "
यह सुन मंजू बोली_" इसके बारे में तो मुझे नहीं पता क्योंकि वहां पर तो बहुत भीड़ भार था..! "
प्रिया आगे बोली _" अरे पागल, जब तू मार्केट गई थी और तेरे आंखों के सामने ओपनिंग हो रहा था तो तुझे उसी वक्त पूछना चाहिए था ना..! "
" क्या..?? "
मंजू ना समझी से बोली, जो प्रिया उसे समझाते हुए बोली _" अरे तुझे शोरूम के अंदर जाना चाहिए था और पूछना चाहिए था क्या यहां पर जॉब रिक्वायरमेंट है..! "
प्रिया का इतना कहना कि मंजू सोच में पड़ गई क्योंकि प्रिया सही तो कह रही थी, उसे एक बार पूछना चाहिए था |
मंजू बोली_" तू सही कह रही है, पर उस वक्त मुझे ध्यान में नहीं आया और लोग भी तो बहुत थे, अगर मैं पूछने भी गई होती तो वह क्या कहता, आज ही दुकान खोला है और आज ही काम के लिए लोग आ गये | "
प्रिया बोली_" अब इतना बड़ा शोरूम खुलेगा तो उसे सेल्स के लिए लोग तो चाहिए ही ना और अभी 2 दिन ही हुआ है क्यों ना कल जाकर एक बार हम लोग पूछे.. वरना लेट करेंगे तो वह लोग भी कहेंगे कि अब जगह नहीं है..!
प्रिया का इतना कहना कि मंजू बोल पड़ी_" हां तो सही कह रही है कल दोपहर में हम दोनों साथ में जाएंगे इतना बोलकर वह दोनों और भी बातें करने लगी |
मंजू अपने घर आ गई थी और घर आने के बाद भी और प्रिया के कहे हुए बातों को बार-बार सोचे जा रही थी क्योंकि उसे इस बात की खुशी थी कि वह कल जाकर उसे शोरूम में अपने लिए काम पूछेगी |
पर उसे इस बात का घबराहट भी हो रहा था अगर उन्होंने ना कह दिया तो..? अगर उन्होंने कहा कि पहले से ही सेल के लिए लोगों को रख लिया गया है..!
मंजू जितना अपने आप को समझ रही थी पर बार-बार उसके दिमाग में यही बातें आने लगा था |
दूसरे दिन वह सुबह 4:00 बजे ही उठ गई थी और जल्दी-जल्दी घर के काम करने लगी और वह 9:00 तक रेडी हो गई और जब वह प्रिया के घर गई..!
प्रिया अभी तक घर के कामों में बिजी थी जिसकी वजह से मंजू को उसे उसके घर बैठना पड़ा और वे दोनों 11:00 बजे मार्केट में गई.. मार्केट पहुंचने के बाद वे दोनों दूर से शोरूम को देख रही थी सचमुच वॉशरूम बहुत खूबसूरत दिखाई दे रहा था |
बाहर ढेर सारे बल्लून और डेकोरेशन किए गए थे और उस शोरूम में बहुत से लोग मोबाइल लेने अंदर जा रहे थे, वह दोनों बाहर खड़ी होकर आपस में बातें करने लगी क्योंकि उन्हें शोरूम के अंदर जाने के लिए शर्म आ रहा था |
वे दोनों अपने आप को प्रिपेयर करने लगी कि वे दोनों किस तरह से अंदर जाकर बात करेंगे वे दोनों जैसे दो कदम आगे बढ़ती की वापस रुक जाती थी क्योंकि उन्हें अंदर जाने के लिए घबराहट हो रहा था |
इसके पहले वह दोनों कभी ऐसे शोरूम के अंदर नहीं गई थी ऐसे करते-करते उनका एक घंटा बीत गया फाइनली प्रिया बोली_" देख मंजू तुझे काम चाहिए तो तुझे हिम्मत करके अंदर जाना ही होगा..!
प्रिया का इतना कहना कि मंजू अपने आप को तैयार की और बोली_" तू भी मेरे साथ अंदर चल..! "
दोनों अंदर गई, अंदर जाने के बाद सभी लोग उन दोनों की तरफ देखने लगे जिससे वे दोनों अनकंफरटेबल हो गई अब मंजू अब कदम अंदर रखी थी, जिसकी वजह से हिम्मत करके कैश काउंटर पर गई जहां पर दो लोग बैठे थे |
जो दिखने में ही दिख रही थी कि इस शोरूम के मालिक है, मंजू हिम्मत करके बोली _" अंकल यहां पर काम के लिए लड़कियां चाहिए क्या..? "
जो सुनकर वह अंकल बोली_" अभी तो नहीं है...! "
उसे अंकल का इतना कहना कि उसके बगल में जो दूसरा आदमी बैठा था उसने कहा_" बेटा दो-तीन दिन के बाद चक्कर लगा लेना..! "
उसका इतना कहना कि मंजू के पेट में खुशी की एक लहर दौड़ उठी और वह सिर हा में हिलाकर शोरूम से बाहर निकल गई..!
दोनों आपस में बातें करने लगी की पहले वाले ने ना कहा, तो दूसरे वाले अंकल ने दो-तीन दिन के बाद बुलाया दोनों भगवान से प्रार्थना करने लगी कि काम मिल जाए..!
2 दिन ऐसे ही बीत गए मंजू तो दिन रात अपने घर में उसे शोरूम के बारे में बात कर रही थी अगर काम मिल जाए तो बहुत अच्छा हो जाएगा और जब यह दोनों वापस शोरूम में जाकर पूछी तो मालिक उसे फिर से कहा कि वह दो-तीन दिन के बाद बताएगा |
मंजू फिर से दो-तीन दिन बीतने का इंतजार कर रही थी और जैसे दिन बिता कि वह वापस पहुंच गई, आप जब वह आई तो वह मालिक नहीं था |
बल्कि कोई और था और जब वह पूछी थी यहां पर एक अंकल बैठे हैं उन्होंने मुझे काम के लिए बुलाया था |
जो सुनकर वह लड़का बोला_" वह मेरे चाचा जी है और अभी बाहर गए हैं, तुम ऐसा करो कल आ जाओ..! "
मंजू हां बोल कर निकल गई उसे लगा कि यह लोग सिर्फ उसे दौड़ा रहे हैं काम के लिए तो रखेंगे नहीं..!
मंजू बाहर से उसे दुकान को देख रही थी अंदर तीन चार लड़कियां भी थी और लड़के भी थे इसका मतलब यहां पर लड़कियां भी काम करती हैं..!
मंजू दूसरे दिन अपनी बहन को लेकर आई उसकी बहन बहरी खड़ी थी और मंजू अंदर गई.. आज वह अंकल बैठा था और अब तो वह मंजू के चेहरे को भी अच्छे से पहचान गया |
उसे देखते ही वह समझ गए कि वह काम के लिए आई है तो वह आदमी कहां _" तुम अपना नंबर देकर जाओ, तुम रोज-रोज यहां चक्कर लगा रही हो, कुछ रहेगा तुम्हें तुम्हें कॉल करता हूं..! "
मंजू के पास मोबाइल नहीं था बल्कि उसके घर में मोबाइल ही नहीं था पर वह बगल में जिसके घर से न्यूजपेपर लेकर आई थी उनके घर में मोबाइल उसने पहले सोची कि उनका मोबाइल नंबर दे दे..!
पर कुछ सोचकर वह चुप हो गई और तभी उसे प्रिया का याद आया उसने जल्दी से प्रिया का नंबर दे दी और अपनी बहन के साथ घर आ गए अब मंजू को यही लग रहा था कि यह लोग उसे काम पर नहीं बुलाएंगे क्योंकि वह रोज जाकर दुकान में पूछती थी तो उन्होंने कुछ कहा नहीं तो भला कॉल क्यों करेंगे वह उदास होकर घर चली आई उसकी उदासी उसकी बहन भी देख सकती थी |
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8 दिन बाद_
देखते- देखते 8 दिन बीत गया पर मंजू को शॉप से कॉल नहीं आया और उसने अब उम्मीदें भी छोड़ दी थी कि उसे कोई काम के लिए बुलाएगा |
दिन रात वह काम के लिए सोचा करती थी कि उसे कहीं काम मिल जाए ताकि घर की तंगी सुधर जाएगा |
बेचारी सोचा तो बहुत कुछ करती थी, सपने भी देखती थी पर काम मिलना उसके लिए मुश्किल था और मिलता भी तो उसकी इतनी एजुकेशन भी नहीं था और नाही किसी चीज की एक्सपीरियंस जिसके वजह से अच्छे अपॉर्चुनिटी वाला जॉब उसे नहीं मिल पा रहा था |
मंजू वही घर के काम करना और दिन में अपनी बहन का हाथ बटाती थी कोई सिलाई का कुछ रहता तो वह काम कर देती थी वैसे उसे आता तो कुछ नहीं था, पर छोटी-मोटी चीज वह करती थी क्योंकि उसे लगता था कि जॉब तो उसे नहीं मिलेगा इसलिए आगे चलकर उसे यही करना पड़ेगा |
दोपहर का वक्त
घर में सब्जी खत्म हो गया था, मंजू खाना खाने जा रही थी की सब्जी नहीं था जिसकी वजह से वह सिलबट्टे पर चटनी लगने लगी इस वक्त उसकी फ्रेंड प्रिया तेजी से दौड़ते हुए आई..!
मंजू की नानी इस वक्त बाहर द्वार पर बैठी थी और प्रिया आते ही बोली _" नानी मंजू कहां है..? "
नानी बोली_" अंदर है.. पर क्या हो गया तू इतनी क्यों हांफते हुए आ रही है..! "
प्रिया तेजी से भागते हुए अंदर जाती बोली_" रुको नानी में आपसे बाद में बात करती हूं..! "
प्रिया अंदर गई और मंजू के पास जाते हुए मोबाइल उसके हाथ में देते बोली _" मंजू तेरे लिए फोन आया है.. इस नंबर पर वापस कॉल कर..! "
मंजू जो सिलबट्टे पर चटनी लगा रही थी वह तुरंत उठी और पानी से अपना हाथ साफ की और आश्चर्यचकित प्रिया को देखते बोली_" मेरे लिए फोन आया है प्रिया लंबी स्माइल करते हुए सिर हा हिलाते हुए बोली_" अरे पगली.. तूने मेरा नंबर शोरूम में देकर आई थी ना.. उसी मोबाइल वाले शोरूम का कॉल आया था, मैंने उसे बोली रुको मैं 5 मिनट में कॉल करती हूं..! "
प्रिया का इतना कहना कि मंजू की हार्टबीट तेजी से धड़कने लगा, वह धक - धक - धक उसे सुनाई दे रहा था, उसे जो जोरों की भूख लगी थी वह तुरंत गायब हो गया अब मानसी, महक सब उसके पास आकर खड़ी हो गई..!
मानसी बोली_" मंजू जल्दी कॉल लगा..! "
मंजू अपनी बहन की तरफ देख बोली_" रुको दीदी मुझे खुद को पहले तैयार करने दो कि मुझे क्या बोलना है..! "
मंजू 5 मिनट का टाइम ली उसने अपने आप को तैयार की, वह किस तरह से बातें करेगी उसे लगा कि जब वह पहली बार इंटरव्यू के लिए गई थी तो वह लोग उसी तरह उससे सवाल जवाब पूछेंगे..? वह अंदर ही अंदर डर भी रही थी..!
मंजू ने तुरंत कॉल लगा दी, पूरा रिंग बजाने के बाद भी किसी ने कॉल रिसीव नहीं किया अब फिर से वह मायूस हो गई..!
मंजू अपनी बहन और प्रिया को देखने लगी, और सिर हिलाते हुए बोली _" कॉल कोई नहीं उठा रहा..! "
प्रिया ने कहा_" एक बार वापस कॉल लगा..! "
मंजू ने दोबारा कॉल लगाई जैसे रिंग बजा की किसी ने कॉल रिसीव कर लिया और बहुत ही रौबदार आवाज में बोला_" हेलो..! "
उसकी आवाज जैसे मंजू के कान में गया कि वह हड़बड़ा के हेलो बोली, कॉल की दूसरी तरफ से आवाज आया _" जी कहिए..! "
मंजू बोली_" अभी कुछ देर पहले आपने इस नंबर पर कॉल किया था.. मैं मंजू बोल रही हूं..! काम के लिए मैं आपकी दुकान में आई थी और आपने मुझे मेरा नंबर भी मांगा था..! "
" अच्छा.. अच्छा... तो तुम्हारा नाम मंजू है, तो मंजू मैंने इसलिए कॉल किया था क्या तुम कल से काम पर आ सकती हो..! "
उस आदमी का इतना कहना कि मंजू का शरीर एकदम हल्का पड़ गया, वह खुशी के मारे जोर से चिल्लाना चाहती थी पर बेचारी चिल्ला ना सके और खुशी से बोली_" ज़रूर... मैं कल से आ सकती हूं..
कॉल के दूसरी तरफ से उस आदमी का आवाज आया_" कल 10:00 बजे से आ जाना..! "
मंजू ने तुरंत कहां कह दी, और कॉल तुरंत कट हो गया कॉल कट होते ही मंजूर जोर से उछलते हुए बोली _" प्रिया.. मानसी दीदी, मुझे काम मिल गया..! "
इतना बोलते ही वह जोर-जोर से उछलने लगी बल्कि प्रिया और मानसी भी उसका हाथ पकड़ के दोनों उछलने लगी, मंजू के चेहरे पर वह खुशी था जिसकी उसे कभी उम्मीद नहीं था |
काम इतना बड़ा तो नहीं उसे मिला था, पर उसे काम मिल गया था यही उसके लिए बहुत बड़ी बात थी उनके शोर शराबे की आवाज सुन नानी बाहर से बोली_" अरे क्या बात है तुम लोग क्यों इतना चिल्ला रही हो..! "
मंजू दौड़ते हुए नानी के पास आई और अपना सिर उनके गोद में रखते हुए बोली_" नानी मुझे काम मिल गया अभी उस शोरूम से मुझे कॉल आया था, उन लोगों ने मुझे कल से कम पर बुलाया है..! "
प्रिया भी बहुत खुश थी क्योंकि वह भी चाहती थी कि मंजू को कम मिल जाए ताकि वह आगे की पढ़ाई कर सके..!
मंजू को अब भूख नहीं था, वह तो ढेर सारी बातें करने लगी प्रिया भी उसके साथ बहुत देर तक बैठी थी और उसकी खुशी में वह शामिल थी थोड़ी देर के बाद प्रिया चली गई..!
उसके बाद मंजू अपनी बहन के साथ बातें करने लगी कि कल से वह शॉप पर काम करने जाएगी, उसने छोटे-मोटे सपने देखने शुरू कर दिए अब वह इंतजार कर रही थी उसकी मम्मी का घर आएगी और वह बताएं..!
शाम होते ही उसे सुनीता जब घर आई तो मंजू.. मानसी.. महक और नानी चारों ने उसे बताने लगी जो सुनकर सुनीता के भी चेहरा खिलखिला उठा..!
अगली सुबह मंजू 5:00 बजे ही उठ गई थी उसने सबसे पहले घर के सभी काम निपटाए वह नहीं चाहती थी कि काम जाने लगी तो घर का सब काम छोड़ कर जाए..!
वह बाहर का काम करने के साथ-साथ घर का भी काम करना चाहती थी ताकि घर में किसी को कोई दिक्कत ना हो, क्योंकि उसकी बड़ी बहन दिन भर सिलाई करती थी वह भी थक जाती थी और महक अभी बहुत छोटी थी, नानी भी बूढी हो चुकी थी और उसकी मां का क्या ही कहे.. वह तो दिन भर खेत में कड़कती धूप में बेचारी दिन भर मेहनत करती थी |
मानसी भी अपनी बहन के लिए जल्दी अभी खाना बना दी और वह रिक्शा में बैठकर मेन बाजार पहुंच गई आज पहला दिन था मन में उसके घबराहट हो रहा था कि कैसे जाएगी जैसे वह शोरूम के बाहर पहुंची तो उसकी धड़कने तेजी से धड़कने लगा उसके लिए पहली बार था |
मंजू जैसे शोरूम के बाहर गई तो वॉचमैन ने दरवाजा खोला और वह तुरंत अंदर चली गई, अंदर जाते ही कैश काउंटर पर वह बोली कि कल मुझे ललित सर का काम के लिए कॉल आया था |
जो सुनकर वह आदमी बोला_" अच्छा मंजू 5 मिनट रुको क्योंकि मंजू बहुत जल्दी आ गई थी अभी तक शोरूम में बाकी की स्टाफ के लोग नहीं आए थे 10 मिनट के बाद कम से कम चार लड़कियां और आई जो दिखने में बहुत ही अच्छी देख रही थी और वह सभी ऊपर जाकर अपने बैग टिफिन उपर रख दी..!
ललित ने उसमें से एक लड़की को बुलाते हुए कहा_" रितु इधर आजा यह मंजू है आज से इसकी जॉइनिंग है और इसे काम भी समझा देना..! "
रितु ने हाँ में सिर हिला कर मंजू को अपने साथ ले गई पहले तो उसने बैग रखने के लिए जगह बताई उसके बाद जहां पर वे लोग लंच करते हुए सब बताइए उसके बाद अपने साथ लेकर काउंटर के अंदर चली गई जहां पर बहुत सारे मोबाइल रखे हुए थे |
रितु उसे मोबाइल के बारे में बताने लगी कि कस्टमर के साथ किस तरह से बातें करना है उन्हें कौन से मोबाइल में ज्यादा कन्वीनियंस करना है, मार्केट में कौन से मोबाइल का ज्यादा डिमांड है, बाकी सारे बातें उसे धीरे-धीरे समझने लगी |
मंजू जिस तरह डर रही थी अब उसे बहुत अच्छा लगने लगा क्योंकि रितु, स्नेहा बाकी लड़कियां उसके साथ बहुत प्यार से बातें कर रही थी बल्कि बहुत सब बहुत अच्छी थी दोपहर में लंच करने सब साथ में गई..!
रितु ने मंजू से बातें ही बातों में पूछा_" सर ने तुझे सैलरी देने का कितना कहा है..! "
जो सुनकर मंजू बोली_" मैंने तो अभी तक कुछ नहीं पूछी कि वह कितना देंगे मुझे.. "
यह सुनकर रितु अजीब सा चेहरा बनाते हुए बोली_" क्या कह रही है तू आज से कम पर भी लग गई और तूने अपनी सैलरी नहीं पूछी कमाल है..? "
यह सुनकर मंजू बोली_" यह मेरी पहली जॉब है इसलिए मुझे कुछ ज्यादा समझ में नहीं आया पर हां मैं बाद में उनसे पूछ लूंगी..! "
मंजू ने रितु से पूछा_" तो आप तो आपको कितना पेमेंट मिलता है..! "
रितु बोली _" पहली बात तो आप आप करके मत बात किया, कर हम सब एक ही उम्र के हैं, पता है तू हम में छोटी है, वैसे तेरी पढ़ाई कंप्लीट हो गया हम सब दोस्त की तरह रहेंगे.. और मुझे पेमेंट 18000 है क्योंकि इसके पहले भी मैं सेल्स गर्ल का जॉब कर चुकी हूं..!
यह सुनकर मंजू बाली _" मैंने सिर्फ 12th कंप्लीट की हूं मुझे आगे पढ़ाई करना है..! "
रितु का पेमेंट जानकर मंजू की आंखें बड़ी-बड़ी हो गई यकीन नहीं हो रहा की 18000 उसे पेमेंट है, आज का मंजू का दिन बहुत अच्छा गया शाम को उसे चाय और नाश्ता भी खाने के लिए मिला और जब वह घर आई तो उसकी मां घर आ गई थी और उसकी बहन नानी सभी ने उसके काम के बारे में पूछने लगी |
तो मंजू जब तक सोई नहीं तब तक वह सब बताती रही, मोहिनी को भी पता चल गया कि मंजू ऐसे काम पर जा रही है, और यह जानकर उसे जलन होने लगा |
मोहिनी अब फिर से यहा वहा औरतों में बैठ के बाते करने लगी कि ल़डकियों को काम पर भेज रही है, उनकी कमाई खाएगी..!
पर सुनीता और उसकी बेटियों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें पता था कि वही एक- दूसरे का सहारा है, उन्हें कोई और देने वाला नहीं है..!
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