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कोठे पर पली-बढ़ी 17 साल की कोहिनूर, कभी उस दुनिया का हिस्सा नहीं थी।उसने हमेशा उड़ने के ख्वाब देखे थे। वो कीचड़ में खिला वो कमल थी, जो बाजार मे रहते हुए भी बाजार की रौनक का हिस्सा नहीं बनी थी। वो बाज़ार मे थी… पर बाजार की नहीं थी। लेकिन किस्मत को कब क...

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दास्तान शाह

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कोहिनूर

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Total Chapters (104)

Page 1 of 6

  • 1. रेड लाइट एरिया की कोहिनूर - Chapter 1

    Words: 1600

    Estimated Reading Time: 10 min

    मुंबई, कमाठीपुरा

    कमाठीपुरा, मुंबई का वह इलाका है जिसे शहर के सबसे पुराने और कुख्यात रेड लाइट एरिया के नाम से जाना जाता है। संकरी गलियों से भरा हुआ यह इलाका, इतिहास के कई दर्दनाक पन्नों को अपने भीतर समेटे हुए था।

    यहाँ की इमारतें बूढ़ी हो चुकी थीं — जर्जर दीवारों और पुरानी खिड़कियों में अब कोई सपना नहीं झाँकता था। हर मोड़, हर कोना एक अनकही कहानी सुनाता था — बेआवाज चीखों और थकी हुई मुस्कानों की।

    दिन में यह इलाका शांत लगता था, लेकिन वह सन्नाटा बेचैनी से भरा होता था। जैसे सब कुछ थमा हुआ था, मगर अंदर ही अंदर कुछ टूट रहा था। और जब रात उतरती थी, तो यह खामोशी चटख रंगों में बदल जाती थी — चमकते मेकअप, झिलमिलाती लाइट्स और बनावटी हँसी के पीछे छुपे दर्द के साथ।

    यहाँ हर लड़की का चेहरा एक चेहरा नहीं, बल्कि एक मुखौटा था — जो किसी मजबूरी, किसी धोखे या किसी सौदे का नतीजा था। कमाठीपुरा में ‘इंसान’ को ‘चीज़’ में बदला जाता था — और यह सब बेहद सधे, ठंडे, और व्यवस्थित तरीके से होता था।

    यह एक ऐसा इलाका था जहाँ वक्त रुकता नहीं था, लेकिन जिंदगी आगे बढ़ती रहती थी।

    कमाठीपुरा की एक पुरानी गली। लेकिन यह बाकी गलियों से थोड़ी अलग थी — यहाँ का सन्नाटा थोड़ा शांत था, और हवा में बस एक हल्का-सा इत्र घुला हुआ था।

    ऊपर पहली मंजिल की खिड़की से कोई लड़की बाहर देख रही थी। चेहरा साफ़ नहीं दिखता था, पर उसकी आँखों में कुछ अलग था — न वह बेचैन थी, न कोई मजबूरी, बस एक गहराई थी।

    वह थी — कोहिनूर।

    नाम जितना चमकदार, उसकी ज़िन्दगी उतनी ही सादगी भरी थी। कमाठीपुरा में रहते हुए भी वह इस काम का हिस्सा नहीं थी। यह बात यहाँ सब जानते थे — उसकी आँखों में एक ऐसा सपना था जो अब तक टूटा नहीं था।

    कोहिनूर यहीं पर बड़ी हुई थी। उसकी माँ कभी इसी धंधे का हिस्सा थीं, लेकिन उन्होंने हमेशा कोशिश की कि कोहिनूर की किस्मत इस रास्ते पर न जाए। माँ अब नहीं थीं, मगर कोहिनूर ने उनकी बात को अब तक थामे रखा था।

    वह गली में बच्चों को पढ़ाती थी, बुजुर्गों के लिए दवाई लाती थी और हर उस काम से खुद को जोड़ती थी जो कमाठीपुरा की तंग गलियों में इंसानियत को जिंदा रखता था।

    कमाठीपुरा के बारे में बाहर की दुनिया को सिर्फ एक चेहरा दिखता था — औरतें, देह, और सौदे।
    पर सच्चाई यह थी कि इन गलियों में सिर्फ जिस्म नहीं, रूहें भी रहती थीं।
    यहाँ दर्द भी था, लेकिन अपनेपन की एक मद्धम लौ भी जलती थी।
    और उस लौ को सहेज कर रखने वालों में से एक थी — कोहिनूर।

    जहाँ रूह बिक जाती है वहाँ दुआएँ भी काम नहीं आतीं। लोगों का ऊपर वाले से भरोसा तक उठ जाता है क्योंकि उनका इंसानियत से ही भरोसा उठ जाता है।
    पर कोहिनूर ने ना खुद से भरोसा खोया था, और ना ही ऊपर वाले से।


    "हे भगवान। मुझे केवल तुम पर यकीन है। आज की सुबह इतनी खुशनुमा करने के लिए शुक्रिया। लेकिन अंदर एक अजीब सी बेचैनी है। क्या आज का दिन भी बाकी दिनों की तरह मुझे बचाए रखेगा?"
    "पर मुझे तुम पर यकीन है। जैसे आज तक तुमने मेरा साथ नहीं छोड़ा है, वैसे आगे भी मेरा भरोसा टूटने नहीं दोगे।"

    कोहिनूर की आँखों से दो आँसू बह निकले थे। वह चुपचाप अपने गालों पर बहते आँसुओं को महसूस कर रही थी। उसका दिल नहीं चाहता था कि उसकी सुबह ऐसी हो। आँसुओं के साथ।

    उसने आँखें खोलीं तो देखा — सामने से धूप की हल्की किरणें कमरे में आ रही थीं। वह खिड़की से उठी और छत पर चली गई, जहाँ आसमान बिल्कुल साफ़ था और सूरज चमक रहा था।

    कोहिनूर ने सूरज की तरफ़ देखा, फिर धीरे से मुस्कुराई — लेकिन वह मुस्कान भी थोड़ी उदासी से भरी थी।

    आसमान में उड़ते हुए उन आज़ाद पंछियों को देखकर कोहिनूर ने खुद के मन में कहा — "ये पंछी ही तो आज़ाद गगन में उड़ रहे हैं। इन्हें भी तो कैद होने का डर नहीं है। तो फिर मुझे किस बात का डर है?"
    उसने खुद से कहा और अपनी ही बात पर हल्के से हँस दी।

    लेकिन जब उसकी निगाहें नीचे आँगन में पड़ीं, तो वही नज़ारा — एक लड़की को जबरदस्ती किसी आदमी के साथ ले जाया जा रहा था। उसकी आँखों में डर था, और उस आदमी की आँखों में हवस।

    इस कोठी की मालकिन थी माई जान, जो हर लड़की को पैसों में तौलती थी। और जिस लड़की को ले जाया जा रहा था, उसका नाम था अलका — खूबसूरत और सबकी पसंद। पर उसकी खूबसूरती ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन थी।

    लेकिन कोहिनूर। वह आज भी चाहती थी कि उसका नाम उस लिस्ट में न आए।

    वापस अपने छोटे से कमरे में आकर कोहिनूर बेड पर बैठ गई और साइड से एक किताब निकालकर पढ़ने लगी। उसे पढ़ना बहुत पसंद था। इन किताबों के ज़रिए ही तो वह बाहर की दुनिया से जुड़ी थी। आज फिर से अपनी किताबों में खुद को गुम करती कोहिनूर आज के दिन के खत्म होने का इंतज़ार कर रही थी कि तभी…

    इतने में किसी ने दरवाज़ा खटखटाया।

    "कोहिनूर। उठ जा, माई बुला रही है।" दरवाज़े पर उसकी सहेली थी — वैशाली, जो इस कमरे में उसके साथ रहती थी।

    "इतनी सुबह-सुबह क्यों?" कोहिनूर ने मन में कहा, लेकिन उसका दिल अंदर से धड़कने लगा था। उसने जाकर दरवाज़ा खोला तो वैशाली कमरे में आ गई और उससे बोली, "तू अभी तक तैयार नहीं हुई? माई तुझे जल्दी बुला रही है।"

    फिर वैशाली ने साइड में रखा दुपट्टा कोहिनूर के कंधे पर रखते हुए उसे समझाना शुरू किया।

    "देख, जब उससे मिलना तो ‘माई’ कह देना, वो खुश हो जाती है," वैशाली ने धीरे से समझाया।

    लेकिन कोहिनूर जानती थी — वह ऐसा नहीं कहेगी। उसके लिए वह एक औरत नहीं, एक सौदागर थी। औरतों की बोली लगाने वाली।

    कोहिनूर इस कोठी में तब से थी जब वह आठ साल की थी। उसने यहाँ सब देखा था — कैसे लड़कियों की ज़िन्दगी बिक जाती है, कैसे सपनों का सौदा होता है।

    लेकिन इस कोठी की कर्ताधर्ता माई जान थीं। और उनके बुलावे को कोहिनूर इग्नोर नहीं कर सकती थी। वह धीरे-धीरे माई जान के कमरे के बाहर पहुँची।

    "आपने बुलाया?" उसने दरवाज़े के बाहर से ही कहा।

    माई जान मुस्कुरा दीं, लेकिन उस मुस्कान में कोई अपनापन नहीं था — बस मतलब था।

    "मेरी चमकती कोहिनूर! आज एक बड़ा ग्राहक आया है। तुझे देखना चाहता है।"

    कमरे में चंदा भी बैठी थी। माई जान के बाद वही थी जो इस कोठी के सारे फ़ैसले लिया करती थी — या यूँ कहें कि खुद को यहाँ की होने वाली माई जान समझती थी। जो हमेशा प्यारी मुस्कान लिए रहती थी, लेकिन कोहिनूर को उसकी मुस्कान भी झूठी लगती थी।

    "तू सबसे सुंदर है, लेकिन कुछ करती नहीं। अब वक्त आ गया है। तुझे भी थोड़ा काम करना चाहिए। अरे, कब तक हम सब मिलकर तेरा खर्चा उठाते रहेंगे?" माई जान ने नोटों के बंडल को अलमारी में रखते हुए कहा।

    कोहिनूर का दिल अजीब सी घबराहट और डर से भर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे क्यों बुलाया जा रहा है। वह कभी भी इस काम का हिस्सा नहीं रही — और इसकी एक वजह थी पूजा, यानी कोहिनूर की माँ।

    "लेकिन आपने मेरी माँ से वादा किया था कि आप मुझे कभी इस काम में नहीं धकेलेंगी। क्या आप अपना वादा तोड़ रही हैं? क्या भूल गईं कि आपने मेरी मरती हुई माँ को वचन दिया था कि आप मुझे इस काम का हिस्सा नहीं बनाएंगी?" कोहिनूर ने काँपती हुई आवाज़ में सवाल किया।

    माई उसकी तरफ़ देखते हुए बड़ी-बड़ी आँखों से बोलीं, "मुझे अपना वादा अच्छी तरह याद है। तेरी माँ ने कई सालों तक इस कोठी में काम किया है, और आखिरी वक्त में उसने मुझसे वादा लिया था कि मैं उसकी बेटी की सही देखभाल और परवरिश करूँ और उसे कभी इस काम का हिस्सा नहीं बनाऊँगी। मैं आज तक उस वादे पर कायम हूँ। क्योंकि मैंने उससे आखिरी समय पर यह कहा था कि जब तक उसकी बेटी समझदार नहीं हो जाती, तब तक वह इस काम का हिस्सा नहीं बनेगी।"

    "मुझे अपना वादा याद है। पर क्या तुझे उस वादे के पूरे शब्द याद हैं या नहीं?" कोहिनूर का दिल काँप उठा। यह सच था — भले ही माई जान ने कोहिनूर की माँ से वादा किया था, लेकिन वह वादा सिर्फ़ तब तक था, जब तक कोहिनूर बालिग नहीं हो जाती। उसकी अठारह साल की उम्र तक ही उस वादे की कीमत थी। वरना उसके बाद तो कोहिनूर की भी एक कीमत तय होनी थी।

    फिर माई हल्के मजाकिया लहजे में बोलीं, "अरे तू फ़िक्र क्यों कर रही है? वहाँ कोई सौदेबाज़ी नहीं हो रही। एक छोटी सी महफ़िल है। अरे क्या कहते हैं उन बड़े लोगों में… हाँ, पालर्टी है।"

    उसकी बात पर चंदा हँसते हुए बोली, "माई, पालर्टी नहीं, पार्टी है।"
    माई ने भी हँसते हुए कहा, "हाँ हाँ, जानती हूँ, वही अंग्रेज़ी पालर्टी।"

    "और वहाँ नाचने का प्रोग्राम है। तुझे बस वहाँ जाना है और अपने नृत्य का एक अच्छा सा प्रदर्शन देना है। बदले में वो बहुत पैसे देंगे।"

    "क्या मैं अकेली जा रही हूँ?" कोहिनूर की आवाज़ हल्की काँप गई।

    "नहीं, और भी लड़कियाँ जाएँगी — सरिता, आलिया, जोया… सब," चंदा ने कहा।

    "फिर मुझे क्यों भेज रही हैं? मैं तो वैसी ख़ास नहीं हूँ। और मुझे तो ठीक से नाचना भी नहीं आता।"

    चंदा ने उसकी आँखों में देखा और पूछा, "तेरी उम्र क्या है?"

    "सत्रह।" कोहिनूर ने धीरे से कहा।

    "तो समझ जा। अब तू सबसे छोटी है। सबसे मासूम। और यही मासूमियत… बहुत कीमती है।"

  • 2. कोठे की कोहिनूर पहली बार महफिल में नीलम होने जा रही है - Chapter 2

    Words: 1343

    Estimated Reading Time: 9 min

    माई जान ने कोहिनूर से कहा था कि आज रात के जश्न में शामिल होना है, जहाँ नाचने का कार्यक्रम रखा गया था। लेकिन कोहिनूर वहाँ नहीं जाना चाहती थी। वह इस दुनिया का हिस्सा नहीं थी। भले ही वह इस जगह पर रहती थी, लेकिन आज तक उसने इस दुनिया को न अपनाया था और न ही कभी अपनाना चाहा था। वह पूजा से कहती है—


    "लेकिन आप मुझे वहाँ क्यों भेजना चाहती हैं, जबकि आप जानती हैं कि मैं अभी सिर्फ सत्रह साल की हूँ? आपके पास कोठा चलाने का लाइसेंस है, लेकिन वह भी सिर्फ अठारह साल से ऊपर के लोगों के लिए होता है। आप मुझे किसी भी काम में शामिल नहीं कर सकतीं। अगर आपकी शिकायत हो गई तो आपका लाइसेंस कैंसिल हो सकता है।"


    माई, जिसने अभी-अभी अपने मुँह में पान रखा ही था, उसकी आँखें गुस्से से एकदम चौड़ी हो जाती हैं। वह गुस्से में कोहिनूर की तरफ देखती है और कहती है—


    "२ टके की लड़की, मेरे सामने जबान चलाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई? भूल गई कि तेरी औकात क्या है? हमारे टुकड़ों पर पलने वाली है तू! और ऊपर से यह हिम्मत कि तू मुझे यह कहे कि मेरा लाइसेंस कैंसिल करवा देगी? साँस लेने का जो तेरे पास लाइसेंस है ना, मैं उसे भी कभी भी रद्द करवा सकती हूँ।"

    "तू तो बचपन से यहाँ रही है। मेरे तरीके तू अच्छे से जानती है। या तो हमारे धंधे में लड़की आती है, या फिर हमेशा के लिए चल बसती है। एक बार इस कोठे में जो लड़की आ जाती है, उसके पास सिर्फ दो ही रास्ते होते हैं—या तो शराफत से धंधे पर बैठ जाए, या फिर उसकी आँखें सीधे यमलोक में खुलती हैं।"

    "शुक्र माना कि तू आज तक यहाँ जिंदा है और मुफ्त की रोटियाँ तोड़ रही है—वह भी सिर्फ अपनी माँ की वजह से। अगर मरते वक्त उसने मुझसे वादा न लिया होता ना, तो आज तू भी किसी की रखैल बनी होती।"


    माई की बातें सुनकर कोहिनूर का गुस्सा बढ़ गया था, लेकिन वह अपनी मजबूरी और हदें जानती थी। उसने गुस्से में माई की तरफ देखते हुए कहा—


    "अगर इतनी ही नफ़रत है मुझसे, तो क्यों भेज रही हो मुझे आज रात के जश्न में? तुम्हारे पास तो लड़कियों की कमी नहीं है। यहाँ बहुत सारी लड़कियाँ हैं, जो मुझसे भी सुंदर हैं और अच्छा नाचती हैं। तो फिर मुझे उन दरिंदों के सामने क्यों परोस रही हो?"


    इतने में चंदा हँसते हुए बोली—


    "क्योंकि तुम उम्र में सबसे छोटी और सबसे खूबसूरत हो।"


    कोहिनूर चौंककर चंदा की तरफ देखती रह जाती है। चंदा अपनी इतराती मुस्कान के साथ कोहिनूर के पास आती है और उसके गाल पर उंगली रखते हुए कहती है—


    "तेरा यह जो छोटा सा चेहरा है ना, जिस पर अभी भी बचपन झलकता है, लोगों को यही तो पसंद आता है। और तुझे कौन सा वहाँ जाकर कथक करना है? बस थोड़ी सी अदाएँ दिखानी हैं, थोड़े लटके-झटके लगाने हैं।"


    इस कोठे में आने वाली हर लड़की जो इस काम को स्वीकार कर लेती है, वह माई की आज्ञा का पालन करती है। लेकिन सिर्फ एक कोहिनूर ही थी, जिसने हमेशा से माई की किसी भी बात को मानने से इनकार किया था। वह हर बार उसका विरोध करती थी।

    इसकी वजह उसकी उम्र नहीं थी, बल्कि यह था कि वह जानती थी—जिस जगह उसे भेजा जा रहा है, वहाँ शरीफ लोग तो कतई नहीं आए होंगे। और अगर वह लोग शरीफ हैं, तो नाचने के लिए कोठे की लड़कियों को क्यों बुला रहे हैं?

    वह लड़कियों के खरीदार हैं, और अगर किसी ने उसे चुन लिया और दुगनी कीमत दे दी, तो माई पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है—यह कोहिनूर ने बचपन से ही देखा और समझा है।


    गुस्से में उसने पूजा की तरफ देखा और कहा—


    "नहीं जाऊँगी मैं! कहीं नहीं जाऊँगी!"


    उसकी यह बात सुनकर माई का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उसके दाँत पान के साथ किटकिटाने लगे। उसकी आँखों में कोहिनूर के लिए नफ़रत साफ़ झलक रही थी। यह वही लड़की थी जिसे उसने बचपन से पाला था, अपने टुकड़ों पर बड़ा किया था, और आज वही लड़की उसके खिलाफ़ बोल रही थी। यह बात माई को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हुई।

    अगले ही पल माई उसके पास आती है और उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ देती है। कोहिनूर सम्भाल नहीं पाती और लड़खड़ाकर जमीन पर गिर जाती है। उसके गाल पर इतना तेज थप्पड़ पड़ा था कि पूरा चेहरा जलने लगा था और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे। लेकिन तभी चंदा ने माई को रोका और पीछे करते हुए कहा, "यह क्या कर रही हो माई? क्यों मार रही हो उसे? जानती हो ना आज रात इसका महफ़िल में होना कितना ज़रूरी है। ऐसे में अगर इसके चेहरे पर दाग लग गया तो कौन देखेगा इसे?"


    माई ने गुस्से में कोहिनूर को देखते हुए चंदा से कहा, "मेकअप ठूँस इसके चेहरे पर, जितना हो सके उतना। और शाम होते ही इसे ऐसे तैयार करना जैसे आज इसकी सुहागरात हो। वहाँ भले ही नाच-गाने का प्रोग्राम है, लेकिन अगर किसी ने इसकी बोली लगाई, तो कीमत वह होगी जो आज तक कमठीपुरा की किसी लड़की की नहीं लगी होगी। कितने सालों से इसे खिलाया-पिलाया, पाला-पोसा है, उसकी भी तो कीमत वसूल करनी है ना।"


    माई की ये बातें सुनकर कोहिनूर का चेहरा दर्द से भर गया था। मतलब उसका अंदाज़ा सही था—आज रात सिर्फ़ नाच-गाना नहीं, बल्कि लड़कियों की बोली भी लगाई जानी थी।


    कोहिनूर जमीन पर बैठी काँप रही थी। उसकी आँखें पत्थर जैसी हो गई थीं और दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। माई उसके पास आई, नीचे बैठी, और उसका जबड़ा पकड़कर चेहरा अपनी तरफ़ घुमा लिया। कोहिनूर की आँखें आँसुओं से भीगी हुई थीं और वह डरी हुई माई को देख रही थी।


    माई ने पान चबाते हुए कहा, "एक बात कान खोलकर सुन ले लड़की, तुझे वही करना है जो हम कहेंगे। अगर मेरे खिलाफ़ जाने की कोशिश की ना, तो याद रख, इस कोठे पर जो सबसे बुरी मौत है, तुझ पर उससे भी बुरी ज़िंदगी थोप दूँगी।"


    कोहिनूर की आँखें डर से फैल गई थीं। माई ने एक घिनौनी हँसी के साथ कहा, "हाँ, सही सुना तूने। तुझे सबसे बुरी ज़िंदगी मिलेगी। मैं तुझे भूखे भेड़ियों के सामने बिना कपड़ों के फेंक दूँगी, और वह तुझे हर पल नोच-नोचकर खा जाएँगे।"


    लेकिन तभी वहाँ वैशाली आ जाती है। जब वह इस तरह माई को कोहिनूर के साथ बर्ताव करते देखती है, तो जल्दी से उनके पास पहुँचती है और माई से कोहिनूर को अलग करती है। कोहिनूर इस वक्त किसी ज़िंदा लाश की तरह बस साँसें ले रही थी। उसकी आत्मा अंदर ही अंदर जल रही थी।


    वैशाली ने उसे कंधे का सहारा देते हुए माई से कहा, "माई, क्या कर रही हो? क्यों उसे परेशान कर रही हो? आप जानती हो यह उस तरह का काम नहीं करती। बताओ ना क्या काम है, मैं कर लूँगी। मैं जाने के लिए तैयार हूँ। जो भी फंक्शन है, उसमें मैं बहुत अच्छा परफॉर्म करूँगी। देखना, मेरी सबसे ऊँची बोली लगेगी। मैं आपको निराश नहीं करूँगी, बस इसे छोड़ दो।"


    माई हल्की मुस्कान के साथ अपनी जगह पर खड़ी हो जाती है और चंदा की तरफ़ देखते हुए कहती है, "देख रही है चंदा, चुहिया को बचाने के लिए छछूँदरी आ गई।"


    उनकी बात सुनकर चंदा भी हँसने लगती है, और माई भी ठहाका मार देती है। लेकिन फिर माई वैशाली की तरफ़ देखती है और कहती है, "तुझे इसकी जगह जाने की ज़रूरत नहीं है। तेरे स्पेशल कस्टमर का फ़ोन आया था। उसकी बीवी को आठवाँ महीना चल रहा है, और वह इस वक्त तड़प रहा है। अपनी तड़प मिटाने के लिए वह तेरे पास आ रहा है। इसीलिए कमरे में जा और अपने कस्टमर का इंतज़ार कर।"


    फिर माई चंदा से कहती है, "चंदा, राबिया से बोल, तैयार करे इसे। सबसे भड़कीले कपड़े देना, जिस पर इसका हुस्न निखर कर बाहर आए। इस कोठे की कोहिनूर पहली बार महफ़िल में नीलम होने जा रही है। कोई कमी नहीं होनी चाहिए।"

  • 3. शाह को रिझाना है - Chapter 3

    Words: 1756

    Estimated Reading Time: 11 min

    एक घंटे बाद कोहिनूर एक कमरे में बैठी हुई थी। उसका चेहरा हताशा से भरा हुआ था। आँखें रो-रोकर सूज चुकी थीं, लेकिन हिम्मत नहीं टूटी थी।

    यह कमरा यहाँ की लड़कियों का ग्रीन रूम था। यहाँ मेकअप से लेकर साज-सिंगार का सारा सामान रखा गया था—वाहियात से वाहियात कपड़ों के साथ-साथ, चेहरे को संवारने के लिए एक से एक चीजें।

    लेकिन कोहिनूर का ध्यान इनमें से किसी पर नहीं था। वह आईने में अपने टूटे हुए अक्स को देख रही थी। उसकी जिंदगी एक चुनौती बन चुकी थी। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती आज की रात थी। आज की रात से ज़्यादा मुश्किल उसके लिए और क्या हो सकता था? वह अभी तक अठारह साल की भी नहीं हुई थी, और आज रात उसकी बोली लगने वाली थी।

    कोहिनूर के साथ बैठी लड़की, जो अपने चेहरे पर ब्लश लगा रही थी, ने कोहिनूर को देखकर कहा,
    "अरे ओ कोहिनूर, तू तो बहुत खूबसूरत लग रही है। तेरे बालों में सजा ये फूल तेरी खूबसूरती को और बढ़ा रहा है।"
    उस लड़की का नाम जोया था।

    जोया की बात सुनकर कोहिनूर की आँखों से आँसू और तेज़ बहने लगे। उसने बेरहमी से अपने आँसुओं को पोछा और माथे से वह फूल नोचकर निकाल दिया। इससे उसके बाल भी बिखर गए—जिन्हें अभी-अभी राबिया ने सँवारा था। उसने वह फूल जोया की ओर फेंकते हुए कहा, "मुझे कोई शौक नहीं है खूबसूरत दिखने का। तुम इसे लगा सकती हो। तुम वैसे भी बहुत खूबसूरत हो, बस इसे लगाकर थोड़ी और लगोगी, जिससे लोग..."

    उसका चेहरा मेकअप की मोटी परत के नीचे छिपा हुआ था, जिस पर माई के हाथों की उंगलियों के निशान धँस चुके थे। लेकिन आँखों का क्या? आँसुओं की वजह से वे लाल आँखें छिपाना मुश्किल हो रहा था।

    उसके आँसू, उसका दर्द, उसकी तकलीफ़ें, और उसकी मर्ज़ी—ये सब यहाँ कोई मायने नहीं रखते थे। वह बचपन से ये सब देखती आ रही थी। माई लड़कियों को खरीदती थी और ‘आश्रय’ देने के नाम पर उनसे गलत काम करवाती थी। उसका मकसद सिर्फ़ पैसा था—जितना हो सके उतना पैसा। जैसे वह सारा पैसा उसके साथ ऊपर जाएगा।

    तभी वहाँ राबिया आ गई। राबिया और चंदा—दोनों ही माई की चमचियाँ थीं। चंदा को लगता था कि माई के बाद इस कोठी की मालकिन वही बनेगी, और राबिया को लगता था कि जब चंदा कोठी संभालेगी, तो अगली हुकूमत उसी की होगी। इसीलिए, जहाँ चंदा सिर्फ़ माई के तलवे चाटती थी, वहीं राबिया माई और चंदा दोनों के इशारों पर नाचती थी। यूँ कह लो कि वह दोनों की गुलाम थी।

    राबिया, कोहिनूर के होठों पर लाली लगाते हुए कहती है,
    "कोहिनूर, आज रात तुम्हें ठीक से पेश आना होगा क्योंकि ये इस शहर के बहुत बड़े रईस Mister सभरवाल की बर्थडे पार्टी है। तुम्हें पता है वहाँ बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियाँ आएंगी। इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता कौन-सी लड़की को कौन ले गया। लेकिन अगर तुम्हें चुना गया, तो बहुत ऊँची कीमत मिलेगी।"

    कोहिनूर, आईने में राबिया को देखकर हैरान रह गई। यह लड़की इस बात पर खुश कैसे हो सकती थी? सच में, उसने इस काम को अपनाया हुआ था, और इसी को ही दुनिया मान बैठी थी। उसके लिए कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि इस काम में इंसानों का सौदा हो रहा है, जैसे कि वे कोई सामान हों। उसका काम सिर्फ़ मर्दों को खुश करना था।

    राबिया, कोहिनूर को पूरी तरह से तैयार करके मुस्कुरा कर कहती है,
    "लो, तुम भी तैयार हो गई और बाकी सब भी। चलो अब चलने की तैयारी करो। आज की रात शानदार होनी चाहिए। एक भी लड़की खाली हाथ घर नहीं आनी चाहिए।"

    जोया, राबिया से पूछती है,
    "राबिया, क्या वहाँ Mister खुराना भी आएंगे? वो जो पिछली बार पार्टी में आए थे..."

    राबिया सिर हिलाते हुए कहती है,
    "हाँ, सुना है कि वो भी आ रहे हैं। मुझे पता है कि तुम उनके लिए इतनी बेचैन क्यों हो। और देखना, वो तुझे ही चुनेगा। तेरे अलावा उसे किसी और में मज़ा ही नहीं आता।"

    तभी सरिता भी वहाँ आ जाती है और हँसते हुए कहती है,
    "और मुझे पता है, मुझे वहाँ वो हीरा व्यापारी Mister गोयल चुनेगा।"

    अचानक से वहाँ का माहौल हँसी-मज़ाक में बदल जाता है और सब एक-दूसरे के कस्टमर का नाम लेकर चिढ़ाने लगते हैं। लेकिन इन सबके बीच कोहिनूर बिल्कुल पत्थर की तरह बैठी हुई थी। उसे इन सब बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। तभी राबिया ने अपने ऊपर से दुपट्टा हटाकर अपनी चोली को थोड़ा और नीचे करते हुए, अदाओं के साथ खुद को आईने में देखते हुए कहा, "तुम्हें कोई भी चुने, लेकिन मुझे पता है. वहाँ एक ही शख्स है जिसे अपना शिकार बनाना है. शाह।"

    जोया और सरिता दोनों की आँखें अचानक बड़ी हो जाती हैं और मुँह खुले के खुले रह जाते हैं। दोनों एक साथ बोलती हैं,
    "शाह? शाह?"

    जोया खुशी से उछलते हुए कहती है,
    "क्या सच में इस पार्टी में शाह भी आ रहे हैं?"

    सरिता तो लगभग कुर्सी पर बेहोश होते हुए कहती है,
    "शाह! वो पार्टी में आ रहे हैं, ये सुनकर ही मेरा बीपी हाई हो गया है। अरे कोई मुझे पानी ला दो। कहीं खुशी के मारे मैं बेहोश ना हो जाऊँ। और अगर शाहू ने मुझे चुन लिया, तो मैं तो मर ही जाऊँगी।"

    सरिता ने बात मज़ाक में कही थी और इसे सुनकर जोया को हँसी भी आ रही थी। लेकिन राबिया ने गुस्से में उसे देखते हुए कहा,
    "गलती से भी मरने का ख्याल अपने दिल में मत लाना। क्योंकि अगर तुम मर गई ना, तो माई तुम्हारी लाश को क़ब्र से निकाल कर अपने पैसे वसूल करेगी।"

    सरिता ने मुँह टेढ़ा करते हुए कहा,
    "क़ब्र में तो तुम जाओगी। मैं तो श्मशान जाऊँगी। जहाँ तक बात रही मरने की, तो शाह की बाहों में मौत आ जाए तो जन्नत नसीब होगी। Hi मेरा शाह, एक बार मेरी तरफ़ देख तो ले।"

    जोया उसकी इस नौटंकी पर उसके सिर पर हल्का सा मारते हुए कहती है,
    "चुप कर! देखना तो दूर की बात है, वो तो अपनी नज़रें तक नहीं उठाता। कितनी बार महफ़िलों में देखा है उसे, रिझाने की भी कोशिश की है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो बंदा सिर्फ़ जिस्म देखकर अट्रैक्ट होता है।"

    सरिता जल्दी से बोलती है,
    "अरे तो बताओ ना मुझे क्या करना चाहिए, कैसे पटाऊँ उसे? क्या करूँ कि उसकी बाहों में गिर जाऊँ।"

    सारी लड़कियाँ यही सब बकवास बातें कर रही थीं, जिसे सुनने में कोहिनूर को जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। वह बस एक ही बात सोच रही थी—उसे किसी भी हाल में इन सबसे बाहर निकलना है। वह इस सब का हिस्सा नहीं है।

    तभी चंदा वहाँ आ जाती है और सब की बातें सुन लेती है। वह गुस्से में उन सबको देखती हुई कहती है,
    "शाह का नाम लिया नहीं कि तुम लोगों की लार टपकने लगी। पर याद रखना, आज रात तुम लोग किसी के ऊपर भी लाइन मार लो, लेकिन शाह की नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़ कोहिनूर पर होनी चाहिए।"

    कोहिनूर कसकर अपनी आँखें बंद कर लेती है और अपनी जगह से उठकर खड़ी हो जाती है। वह गुस्से में चंदा की तरफ़ देखते हुए कहती है,
    "मेरे बारे में ऐसी बातें करना बंद करो! मैं किसी के सामने परोस देने वाला बटर चिकन नहीं हूँ। इंसान हूँ, और मैं इस घटिया काम के लिए कभी राज़ी नहीं थी। ना ही कभी रहूँगी। ना तो मैं तुम जैसी हूँ और ना ही कभी बनूँगी। इसीलिए मुझे अपने जैसा समझने की गलती मत करना।"

    सब को कोहिनूर का रवैया पहले से ही पता था, इसीलिए किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। यहाँ तक कि चंदा ने भी मुस्कुरा कर उसकी बात को उड़ाते हुए कहा,
    "फिर शुरू हो गया तुम्हारा ये ज्ञान देना। जानती हो ना, तुम्हारे इस उपदेश का यहाँ किसी पर कोई असर नहीं होगा। तो भाषण देने के बजाय चुपचाप जाकर अपने कपड़े क्यों नहीं बदलती हो?"

    चंदा वहाँ से कपड़ों के रैक पर जाती है, जहाँ बहुत सारे छोटे-छोटे कपड़े हैं। वह उनमें से एक बहुत ही छोटी सी चोली और घुटनों तक आने वाला लहँगा निकालती है और कोहिनूर के सामने रखते हुए कहती है,
    "लो, इसे पहन लो।"

    पर तभी चंदा के हाथ से वे कपड़े कोई अपने हाथ में ले लेता है। कोहिनूर और चंदा के साथ-साथ बाकी सभी लड़कियाँ उसकी तरफ़ देखती हैं, जहाँ वैशाली उन कपड़ों को लेते हुए कहती है,
    "कोहिनूर को कुछ और दे दो, ये मैं पहनने वाली हूँ आज रात।"

    कोहिनूर वैशाली को देखकर हैरान हो जाती है। चंदा ने भी पूछा,
    "तुम? तुम आज रात कहाँ जा रही हो? तुम्हारा तो कस्टमर आने वाला था ना।"

    वैशाली कुर्सी पर बैठते हुए, चेहरे पर फाउंडेशन लगाते हुए कहती है,
    "उसकी बीवी हॉस्पिटल में है, उसको बच्चा होने वाला है। तो वो अपनी बीवी के पास है। और मुझे नहीं लगता कि आज के बाद वो कभी इस कोठे पर आएगा। अब अगर तुम्हारा भाषण देना ख़त्म हो गया है, तो जाकर बाकी की तैयारी कर लो। मैं तैयार होकर कोहिनूर को अपने साथ ला रही हूँ।"

    कोहिनूर चौंक कर वैशाली को देखती है। चंदा भी हैरानी से पूछती है,
    "लेकिन उसकी बीवी का तो आठवाँ महीना चल रहा था। इतनी जल्दी बच्चा कैसे हो गया?"

    वैशाली ने शीशे में ही गुस्से से चंदा को देखते हुए कहा,
    "अगर इतनी ही फ़िक्र है, तो हॉस्पिटल जाकर पता कर क्यों नहीं लेती कि उसके बच्चे को दुनिया में आने की इतनी जल्दी क्यों है।"

    चंदा जानती थी, वैशाली से उलझने का कोई फ़ायदा नहीं, इसलिए वह वहाँ से निकल जाती है। कोहिनूर जल्दी से वैशाली के पास वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहती है,
    "ये सब क्या है। देखो, मुझे पता है ये सब अचानक नहीं हुआ। इतना तो मैं तुम्हें जानती हूँ। सच बताओ, क्या किया है तुमने?"

    वैशाली ने शरारती मुस्कान के साथ कोहिनूर को देखा और धीरे से उसके कानों के पास जाकर कहा,
    "मैंने उसकी बीवी को फ़ोन करके सब सच बता दिया है। और इस बात से उसे इतना बड़ा झटका लगा कि उसका लेबर पेन समय से पहले शुरू हो गया।"

    कोहिनूर ने जैसे ही यह सुना, उसकी आँखें बड़ी हो गईं—लेकिन उसके दिल में एक हल्की सी खुशी भी उमड़ आई। कि इस दर्द भरी दुनिया में कोई तो ऐसा है जो अपना है। और वह कस के वैशाली के गले लग जाती है।

  • 4. मोय दुपट्टे से तो तेरा सारा हुस्न छुप गया है!" - Chapter 4

    Words: 1527

    Estimated Reading Time: 10 min

    जब वैशाली ने बताया कि उसने अपने कस्टमर की पत्नी को फोन करके उसकी हरकतों के बारे में बता दिया था, कोहिनूर हैरान हो गई। वह बड़ी-बड़ी आँखें करके वैशाली से सवाल किया,

    "ये तुमने क्या कर दिया? तुम्हें पता है ना इसके बाद तुम्हारा कस्टमर कभी कोठे पर वापस नहीं आएगा। और तुम्हारे पास उसकी बीवी का नंबर कहाँ से आया?"


    वैशाली हँसते हुए बोली,

    "साला प्यार में लट्टू होना अलग बात है, पर वो तो पूरा घर ही चक्कर हो गया था! एक बार नशे में मेरे पास आया था और मुझसे कह रहा था कि मुझसे शादी करेगा। अपनी बीवी को छोड़कर मुझे अपने घर रखेगा। वो तो खुद अपनी बीवी को फोन करने ही वाला था, लेकिन उस दिन गलती से उसने अपनी जगह मेरा फोन उठा लिया। मैं समझ गई, मैंने तुरंत उसके हाथ से फोन छीन लिया, लेकिन तब तक नंबर मेरे फोन में आ चुका था। मैंने उसे सेव करके रख लिया था—कि कभी ज़रूरत पड़े तो काम आए। और देखा, आखिरकार ज़रूरत पड़ ही गई!"


    वैशाली की बात सुनकर कोहिनूर की आँखें और भी बड़ी हो गईं और वह दंग रह गई। वैशाली ने उसके लिए इतना कर दिया था। उसने अपना सबसे कीमती और सबसे महँगा कस्टमर तक खो दिया, सिर्फ़ और सिर्फ़ कोहिनूर को बचाने के लिए।


    वह कुछ और कहने ही वाली थी कि तभी अचानक दरवाज़ा खुला और राबिया अंदर आई। उसने दोनों को ऐसे देखकर गुस्से में कहा,

    "तुम अब तक खुद भी तैयार नहीं हुई और इसे भी तैयार नहीं किया? हमारी वजह से हम लेट हो जाएँगे और होटल में पार्टी शुरू हो जाएगी। तुम्हें पता है ना कितने बड़े-बड़े लोग आ रहे हैं पार्टी में। और सब मेरा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। सबको मेरा डांस देखना है।"


    राबिया की बात पर वैशाली खड़े होते हुए बोली,

    "हाँ, तुम तो कहीं की महारानी हो ना! सब तुम्हारे इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठे हैं! मत भूलो, तुम एक धंधे वाली हो। और वो लोग वहाँ तुम्हारे डांस का नहीं, तुम्हारा सौदा करने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं।"


    राबिया को उसकी यह बात चुभ गई। वह गुस्से से उसकी ओर इशारा करते हुए बोली,

    "अपनी ज़ुबान संभालकर बात करो। मैं यहाँ तुम्हारा भाषण सुनने नहीं आई हूँ। माई ने कहा था कि कोहिनूर को अच्छे से तैयार कर देना, इसलिए मैं यहाँ आई हूँ।"


    वैशाली कपड़ों के ढेर में से एक ढंग का जोड़ा निकालते हुए बोली,

    "कोहिनूर तो वैसे भी बहुत खूबसूरत है, उसे किसी दिखावे की ज़रूरत नहीं। और मुझे पता है तुम यहाँ उसे तैयार करने नहीं, देखने आई हो—कि कहीं वो तुमसे ज़्यादा खूबसूरत तो नहीं लग रही!"


    वैशाली की बातों से साफ़ था कि वह पलटकर जवाब देने में माहिर है। राबिया उसकी तरफ़ उंगली दिखाते हुए बोली,

    "अपनी ज़बान संभाल के बोल!"


    तभी चंदा वहाँ आ गई और सबको डाँटते हुए बोली,

    "तुम लोग फिर से जंगली बिल्लियों की तरह लड़ने लगी हो? नीचे माई इंतज़ार कर रही है, वह सब से बात करना चाहती है। और यहाँ तुम लोगों की लड़ाई खत्म ही नहीं हो रही। और यह कोहिनूर अब तक तैयार क्यों नहीं हुई? कोहिनूर, तुम क्या चाहती हो कि हम खुद तुम्हारे कपड़े उतारकर तुम्हें तैयार करें?"


    कोहिनूर घबरा गई और जल्दी से सिर हिलाकर हाँ में जवाब दिया। वैशाली उसे दूसरे कमरे की तरफ़ धकेलते हुए बोली,

    "जा, जाकर कपड़े बदल ले।"


    फिर चंदा और राबिया से बोली,

    "तुम दोनों नीचे जाकर बाकी सामान पैक करो, मैं उसे थोड़ी देर में लेकर आती हूँ।"


    राबिया अभी भी गुस्से में थी, लेकिन चंदा उसका हाथ पकड़कर उसे नीचे ले गई। सब नीचे आँगन में इंतज़ार कर रहे थे। थोड़ी देर बाद कोहिनूर कमरे से बाहर आई। उसने फुल लेंथ का लहँगा पहना हुआ था, लेकिन उसकी चोली अभी भी बहुत छोटी थी। वह इन कपड़ों में बहुत ज़्यादा अनकम्फ़र्टेबल फील कर रही थी।


    वैशाली उसके पास आई और उसे एक दुपट्टे से पूरी तरह ढक दिया। वह दुपट्टा उसके शरीर पर शॉल की तरह लपेटते हुए बोली,

    "तू बहुत खूबसूरत है, और यह बात माई और चंदा दोनों अच्छी तरह जानती हैं, इसीलिए आज के सौदे में उन्होंने तेरी बोली सबसे ऊपर लगाई है।"


    फिर उसने कोहिनूर की आँखों में देखते हुए कहा,

    "लेकिन तुझे फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है, वहाँ तू मेरे साथ ही रहेगी। बाकी सब मैं हैंडल कर लूँगी।"


    "मैं कोई धंधे वाली नहीं हूँ। तो मुझे इन सब में क्यों शामिल किया जा रहा है? मेरी माँ कभी मुझे यहाँ रहने नहीं देती और वह मुझे कभी भी इस काम का हिस्सा नहीं बनने देती। तो फिर क्यों मुझे ये लोग चैन से जीने नहीं देते?"


    कोहिनूर ने रोते हुए कहा। वैशाली उसके आँसू पोछते हुए बोली,

    "हम जानते हैं कि तुम्हारी माँ बहुत अच्छी औरत थीं। वह भले ही मेरे यहाँ आने से बहुत पहले गुज़र गई थीं, लेकिन मैंने उनके बारे में बहुत सारी बातें सुनी हैं। और यह भी सुना है कि वह इस कोठे की सबसे खूबसूरत औरत थीं। उनके चाहने वाले घंटों इंतज़ार करते थे उनके लिए। लेकिन पता है क्या, इस कोठे में आने के बाद एक चीज़ मैंने महसूस की है—ज़िंदगी जितनी मुश्किल है, मौत उतनी ही आसान। और इसीलिए अच्छा ही हुआ कि तुम्हारी माँ को भगवान ने इस नरक भरी ज़िंदगी से जल्द मुक्ति दे दी।"


    कोहिनूर अपनी माँ के बारे में ये शब्द सुनकर और भी ज़्यादा भावुक हो गई थी। वह वैशाली के गले लगते हुए बोली,

    "भगवान इन लोगों को कभी माफ़ नहीं करेगा।"


    वैशाली ने उसे खुद से अलग किया, उसका चेहरा पोछते हुए बोली,

    "अब अपने कर्मों का हिसाब ये लोग यहीं देंगे। पर अब तुम्हें मेरे साथ नीचे चलना होगा। और हाँ, राबिया और चंदा की किसी भी बात पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनों कितनी चालाक हैं, यह तुम जानती हो ना? तुम्हें बस वहाँ पर मेरे साथ रहना है और जैसा मैं कहूँ, वैसा ही करना है। देखो, जब तुम वहाँ जाओगी तो वहाँ तुम्हें बहुत सारे आदमी नज़र आएंगे। लेकिन तुम्हें उनमें से किसी को देखकर डरना नहीं है। अगर तुम्हारा डर किसी को समझ आ गया तो वह तुम्हारे डर का फ़ायदा उठाएँगे। मैं कोशिश करूँगी कि जितने लोग वहाँ होंगे, वह हम में से किसी और को चुनें, लेकिन तुम तक उनकी नज़र न पहुँचे। लेकिन अगर फिर भी कोई तुम्हें अपने साथ कमरे में ले जाए, तो सबसे पहले काम जो करना है, वह यह है कि उसके सिर पर कोई भारी चीज़ मार देना और वहाँ से भाग जाना।"


    कोहिनूर की आँखें हैरानी से फैल गईं। उसका मुँह खुला का खुला रह गया।

    "ये तुम क्या कह रही हो? मैं भाग जाऊँ? लेकिन कहाँ?"


    वैशाली ने आँखें बंद कीं और गहरी साँस छोड़ते हुए बोली,

    "देखो, वैसे तो मुझे नहीं लगता कि तुम भाग पाओगी, क्योंकि माई के लोग होटल के आसपास फैले होंगे। वह तुम्हें ज़रूर पकड़ लेंगे। लेकिन अगर किसी तरह तुम निकलने में कामयाब रहीं, तो कहीं भी भाग जाना। दुनिया बहुत बड़ी है, तुम कहीं भी रह सकती हो। लेकिन यहाँ मत रहना।"


    "मैं किसी को कैसे मार सकती हूँ? मैंने तो आज तक किसी चींटी को भी नहीं मारा।"

    कोहिनूर डरी हुई सी बोली।


    वैशाली जल्दी से बोली,

    "अगर तुमने उन्हें नहीं मारा, तो वह तुम्हें ऐसी ज़िंदगी देंगे जो हर रोज़ एक नई मौत जैसी होगी। वह जो चोट देंगे, वह सिर्फ़ शरीर को नहीं बल्कि तुम्हारे मन को भी तोड़ेगी। इसीलिए यह पाप नहीं है, यह तुम्हारा बचाव है। और तुम्हें उसकी जान नहीं लेनी है, सिर्फ़ सिर पर मारना है ताकि वह थोड़ी देर के लिए बेहोश हो जाए। और उस वक़्त तुम्हें भाग जाना है।"


    "तुम दोनों की बातें खत्म होंगी या नहीं?"


    बाहर से माई की चिल्लाने की आवाज़ आई, जिसे सुनकर कोहिनूर और डर गई। लेकिन वैशाली ने उसका हाथ पकड़कर उसे हिम्मत दी,

    "बिलकुल मत डरना, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ।"


    कोहिनूर ने हाँ में सिर हिलाया। वैशाली उसे लेकर आँगन में आई जहाँ बाकी लड़कियाँ पहले से तैयार खड़ी थीं। उनके साथ बॉडीगार्ड और गाड़ी का ड्राइवर भी खड़ा था।


    "क्या बातें हो रही थीं तुम दोनों के बीच?"

    माई ने पान चबाते हुए कहा।


    वैशाली बोली,

    "कुछ नहीं, मैं तो बस इसे यह समझा रही थी कि वहाँ जाकर क्या करना है।"


    माई ने एक नज़र कोहिनूर पर डाली और पान की पीक एक तरफ़ थूकते हुए बोली,

    "तो अच्छे से समझा दिया इस लड़की को? या फिर हमें अलग से क्लास लेनी पड़ेगी?"


    "नहीं, मैं इसे सब कुछ बता चुकी हूँ। अब यह पूरी तरह से तैयार है, और वहाँ जाकर कोई गड़बड़ नहीं करेगी। है ना, कोहिनूर?"

    वैशाली ने पूछा।


    कोहिनूर ने जल्दी से हाँ में सिर हिलाया। माई के चेहरे पर घमंड भरी मुस्कान आ गई। वह आगे बढ़ती हुई बोली,

    "अरे, मैं तो पहले से जानती थी, यहाँ की आबोहवा में रहकर कोई लड़की इस काम से कैसे बच सकती है। वैसे मानना पड़ेगा, तू बहुत खूबसूरत है। लेकिन यह तूने दुपट्टा अपने ऊपर ऐसे क्यों लपेटा हुआ है? इस मोय दुपट्टे से तो तेरा सारा हुस्न छुप गया है!"

  • 5. शरीफों की शराफत उत्तरी जाती है - Chapter 5

    Words: 1224

    Estimated Reading Time: 8 min

    "इस दुपट्टे ने तो तेरा सारा हुस्न ही ढक दिया?"

    ऐसा कहते हुए माई ने कोहिनूर के सीने से दुपट्टा खींच लिया और उसका खूबसूरत बदन सबके सामने आ गया। उसका ब्लाउज़ बेहद अजीब ढंग से डिज़ाइन किया गया था, जिसमें उसके क्लीवेज साफ़ दिखाई दे रहे थे। और लहंगा तो जैसे जानबूझकर नाभि के नीचे खींचा गया था, जिससे उसकी पतली कमर सामने आ रही थी। फिर, उसने बालों की एक लट जानबूझकर गाल पर गिरा ली, जिससे उसकी खूबसूरती और भी निखर गई।

    कोहिनूर ही जानती थी कि उस वक्त उसने अपने आँसुओं को कैसे रोके रखा है। वैशाली ने कोहिनूर का हाथ कसकर पकड़ रखा था, ताकि वह सबके सामने रो न दे।

    माई, एक घटिया मुस्कान के साथ हँसते हुए कोहिनूर को देखती रही और फिर चंदा से कहा,

    "चंदा, आज रात इस फ़ंक्शन को तुझे पूरा करना है… याद रखना, एक भी लड़की की कम कीमत बिल्कुल मत लगाना। मैं साबरवाल साहब से कह चुकी हूँ, शुरुआत 50,000 से होगी और फिर शून्य बढ़ते जाएँगे।"

    चंदा ने भी एक बनावटी मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए कहा,

    "फ़िक्र मत कर माई, मैं सब कुछ संभाल लूँगी।"

    उनकी बात सुनकर वैशाली ने हैरानी से माई की तरफ़ देखा और कहा,

    "माई, आप हमारे साथ नहीं चल रही हैं?"

    माई एक कुर्सी पर बैठ गई, अपना एक पैर ऊपर चढ़ा लिया और माथे पर हाथ मारते हुए कहा,

    "अरे क्या बताऊँ तुम लोगों को… आज बहुत ज़रूरी काम आ गया है। पश्चिम बंगाल से नई लड़कियों का नया कंस्ट्रक्शन आ रहा है। अगर मैं वहाँ मौजूद नहीं रही, तो सुंदर और बेहतरीन लड़कियाँ किसी और कोठे पर चली जाएँगी। इसलिए मेरा वहाँ जाना ज़रूरी है।"

    "लेकिन इसका मतलब ये मत समझना कि तुम लोग हवा में उड़ती फिरोगी। राबिया और चंदा जा रही हैं… और निगरानी के लिए कालू और पाशा को भी भेज रही हूँ। इसलिए होशियारी दिखाने की कोशिश मत करना।"

    ऐसा बहुत कम होता था कि माई खुद लड़कियों के साथ न जाए, उसे किसी पर भरोसा नहीं होता था। लेकिन राबिया और चंदा उसकी छाया जैसी थीं… और उसकी जी-हुज़ूरी करने वाली, इसलिए वह उन पर भरोसा कर सकती थी।

    कुछ ही पल हुए थे जब कोहिनूर के ऊपर से दुपट्टा हटाया गया था, और उसे बहुत अजीब लग रहा था। उसने देखा कि माई ने उसका दुपट्टा साइड में फेंक दिया था। कोहिनूर तुरंत उसे उठाकर अपने सिर पर रख लेती है ताकि उसका ऊपरी हिस्सा थोड़ा ढक जाए।

    जब माई ने उसे ऐसा करते देखा, तो वह उसके पास आकर गरज उठी,

    "तुझे दिखाना है, छुपाना नहीं… और दोबारा ऐसी हिम्मत मत करना, ख़ासकर ग्राहकों के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।"

    पर तभी वैशाली उनके सामने आ गई और बोली,

    "रहने दो माई… यहाँ रख लेने दो। जब हम वहाँ पहुँचेंगे तो हटा लेगी।"

    कोहिनूर खुद को एक दलदल में फँसा हुआ महसूस कर रही थी। उसके आँसू गले को भारी कर रहे थे।

    एक वैन में सब लड़कियों को ठूंसकर भर दिया गया था। कोहिनूर कोने में दुबकी हुई बैठी थी और वैशाली उसके साथ थी। वैशाली अपने साथ रुमाल लाई थी, जिससे वह बार-बार कोहिनूर के आँसू पोंछ रही थी। पर जितना वह पोंछती, आँसू उतने ही ज़्यादा बहते जा रहे थे।

    यह सब आगे बैठी चंदा अपनी आँखों से देख रही थी। पर वह अपने होंठों पर लिपस्टिक लगाते हुए बोली,

    "अभी जितना नाटक करना है कर लो… पर जैसे ही होटल पहुँचेंगे, आँसू रुक जाने चाहिए। वरना अगर मैंने माई को बता दिया, तो तेरा ये जो खूबसूरत सा चेहरा है, अगले दिन तू खुद आईने में नहीं देख पाएगी।"


    होटल ग्रैंड

    होटल के वीआईपी एरिया में एक शानदार बर्थडे पार्टी ऑर्गेनाइज़ की गई थी। पूरा एरिया प्राइवेट था, और आम लोगों का आना सख्त मना था। हाई सिक्योरिटी से घिरे इस एरिया में परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।

    यहाँ नितिन साबरवाल की पार्टी चल रही थी – एक जाना माना बिज़नेसमैन। एक-एक करके मेहमान आने लगे, लेकिन सब पुरुष थे – नितिन के दोस्त या बिज़नेस पार्टनर।

    तभी होटल की पार्किंग में एक ब्लैक सेडान आकर रुकी। दरवाज़ा खुला, और एक लड़का बाहर निकला – उम्र यही कोई 24-25 की। उसने वाइट शर्ट और ब्लैक ट्राउज़र पहन रखा था। उसकी आँखों पर चश्मा था, जिसे वह अभी-अभी उतार रहा था।

    वह आसपास का नज़ारा देखते हुए अपने बालों को हवा में झटकता है और कहता है,

    "अच्छी जगह है… पर पार्टी के लिए थोड़ी बोरिंग नहीं?"

    पर जब उसने पीछे देखा तो उसे पता चला कि पार्किंग में वह अकेला है और खुद से ही बातें कर रहा है। वह इधर-उधर देखते हुए वापस गाड़ी के अंदर गया और कहा, "भाई लोग मुझे देखेंगे तो पागल कहेंगे... कहेंगे मैं अकेले में बात कर रहा हूं। और आप अब तक अंदर क्या कर रहे हैं? बाहर आइए।"

    लेकिन तभी वहाँ एक दूसरी कार आ गई, जिसमें से कुछ ब्लैक कमांडो बाहर निकले और उन्होंने जल्दी से उस गाड़ी को घेर लिया। वह लड़का जब यह देखता है, तो कहता है, "अच्छा, तो इसीलिए आप बाहर नहीं निकल रहे थे... क्योंकि आपको डर है कि आपका दुश्मन आप पर हमला कर देगा।"

    तभी गाड़ी की दूसरी तरफ का दरवाज़ा खुला, जिसमें से एक शानदार जूते वाला पैर बाहर आया… और एक शख्स लंबी-चौड़ी पर्सनालिटी के साथ बाहर निकला। उसने इस वक्त ब्लैक ब्लेज़र सूट पहन रखा था और ब्लेज़र की जेब पर एक क्राउन का ब्रोच लगा हुआ था। बाल पूरी तरह सेट किए हुए थे और हाथ में महंगी रोल्स-रॉयस घड़ी थी। साथ ही उसकी उंगलियों में डायमंड और नीलम की अंगूठियां चमक रही थीं।

    उस आदमी ने अपनी आँखों पर जो सनग्लासेस लगाए थे, जब उसने उन्हें हटाया तो उसकी नज़रें सीधे उस जगह को घूरने लगीं। चौड़े माथे के बीचों-बीच एक छोटा सा तिल था जो बिल्कुल तीसरी आँख जैसा लगता था। कानों में डायमंड का स्टड… और उसकी इस पर्सनालिटी पर जो चीज़ उसे और ज्यादा डैशिंग बनाती थी, वह थीं उसकी मूंछें। हल्की दाढ़ी और मूंछों के साथ शार्प जॉ-लाइन लिए खड़ा वह शख्स इस वक्त किसी बादशाह से कम नहीं लग रहा था।

    वह शख्स अपनी निगाहों से उस जगह को गौर से देख ही रहा था कि तभी दूसरा लड़का वहाँ आ गया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या बात है भाई... आप तो पार्टी में पहुँचे भी नहीं और वहाँ की सारी रौनक अभी से अपने नाम कर ली है।"

    "शट अप…" उस आदमी ने घूरते हुए कहा, तो वह लड़का तुरंत अपने मुँह पर उंगली रखकर बोला, "बिल्कुल… मैं तो अब अपना मुँह सिर्फ़ बर्थडे का केक खाने के लिए ही खोलूँगा। लेकिन आप बताइए, आप लोगों का मुँह कैसे बंद करवाएँगे… और वहाँ आया हर शख्स यही जानना चाहता है कि आप पार्टी में आते ही क्यों हैं। ना तो आप कभी किसी लड़की के साथ हुक-आउट करते हैं, और ना ही किसी लड़की को नज़र उठाकर देखते हैं। तो फिर आप ऐसी पार्टी में आते ही क्यों हैं जहाँ पहले से ही लड़कियों का आना तय होता है?"

    उस आदमी ने अपने कोट का ऊपर वाला बटन खोलते हुए कहा, "मैं ऐसी पार्टियों में लड़कियों को देखने नहीं आता, बल्कि उन शरीफ लोगों को देखने आता हूँ जो ऐसी पार्टी में आकर अपनी शरीफ़त उतार देते हैं… और ऐसे ही लोग मेरे काम के होते हैं।"

  • 6. जो शाह के दिल में जगह बना ले. वो बाजार की नहीं, ब्रांड की होगी।" - Chapter 6

    Words: 1116

    Estimated Reading Time: 7 min

    वो लड़का मुस्कुराते हुए कहता है, "मानना पड़ेगा भाई... ऐसे ही नहीं लोग आपको बिज़नेस का बादशाह कहते हैं। मतलब, दुश्मन तो ठीक है, लेकिन दोस्तों की भी हर कमजोरी का पता रखते हैं आप... मुझे बहुत कुछ सीखना है आपसे।"


    संयम शाह ने कहा, "पहले ये सीख लो कि अपने भाई के साथ कैसे पेश आते हैं।"


    वो आदमी अपने कंधे की तरफ देखते हुए बोला। तो वो लड़का—जिसका नाम संयम शाह था—जल्दी से उसका हाथ हटाता है और अपनी उंगलियों से उसके कंधे को झाड़ते हुए कहता है,


    "क्या भाई, आप भी ना... छोटी-छोटी बातों को दिल पर ले लेते हो। मैं तो कहता हूँ, अगर दिल लगाना ही है तो किसी लड़की पर लगाओ। देखना, आज रात पार्टी में खूबसूरत लड़कियां आएंगी। अगर उनमें से कोई पसंद आ जाए तो शर्माना मत। वैसे भी शर्माना तो आपकी डिक्शनरी में है ही नहीं।"


    वो आदमी बिना किसी हाव-भाव के एक दिशा में देखते हुए कहता है,


    "बाज़ारू चीज़, बाजारू ही रहती है... उसे दिल में नहीं सजाया जाता। और इस बाज़ार में ऐसी कोई चीज़ ही नहीं जो दास्तान शाह के दिल में जगह बना सके। क्योंकि जिसने दास्तान शाह के दिल में जगह बनाई... वो बाज़ार की नहीं, ब्रांड की होगी।"


    दास्तान शाह... वो शख्स जो खुद अपने आप में एक ब्रांड है। दास्तान जिस चीज़ पर उंगली रख दे, वो चीज़ उसकी हो जाती है। और किसी और की हिम्मत नहीं होती उसे नज़र उठाकर देखने की।


    तभी वहाँ दास्तान का सिक्योरिटी हेड इमरान आ जाता है। उसने सिक्योरिटी हेड की यूनिफॉर्म पहन रखी थी और उसके कंधे पर एक गन भी टंगी हुई थी।


    वो दास्तान को देखते हुए बोला, "बॉस, वीआईपी एरिया में पार्टी की तैयारी हो चुकी है।"


    दास्तान ने हल्के से 'हाँ' में सिर हिलाया और फिर अपने कोट को ठीक करते हुए आगे बढ़ने लगा। उसके जूतों की आवाज़ से मेल खाते हुए सिक्योरिटी गार्ड्स उसके साथ-साथ चलने लगे।


    संयम, जो पास ही खड़ा था, अपनी कार पर टिकते हुए कहता है,


    "अच्छा! तो पार्टी वीआईपी एरिया में थी? मुझे लगा पार्किंग में है... तभी सोचूँ कि भाई पार्किंग में पार्टी के लिए कैसे तैयार हो गए?"


    और जैसे ही उसने देखा कि दास्तान आगे निकल गया, वो ज़ोर से चिल्लाते हुए कहता है,


    "अरे भाई, रुको! मुझे छोड़कर कहाँ जा रहे हो? कोई मुझे वीआईपी एरिया में आपके बिना एंट्री नहीं देगा!"


    दास्तान और संयम सगे भाई नहीं हैं, लेकिन कज़िन हैं। फिर भी दास्तान जितना भरोसा अपनी परछाई पर करता है, उतना ही संयम पर करता है। और संयम भी दास्तान को सिर्फ बड़ा भाई नहीं, बल्कि अपना मेंटर मानता है।


    होटल के पिछले गेट के पास एक वैन आकर रुकी। वो वैन, जिसमें लड़कियां बैठी थीं, सब बहुत उत्सुकता से बाहर झाँक रही थीं। चमचमाती हुई इमारत को वो सब हैरानी से देख रही थीं क्योंकि ये पहली बार था जब वो किसी फाइव-स्टार होटल में आई थीं। वरना इससे पहले तो या तो प्राइवेट फार्महाउस या फिर किसी अमीर के बंगले में जाना होता था।


    आज पहली बार ये सब फाइव-स्टार में आई थीं, और इस होटल को देखकर उनकी आँखें चमक रही थीं। लेकिन उनमें सिर्फ एक कोहिनूर थी, जिसकी आँखों में ना तो कोई चमक थी और ना ही कोई आशा।


    ये जगह सच में बहुत खूबसूरत थी। और वहाँ आने वाले लोग भी शहर के जाने-माने रईस। ऐसे लोगों के बीच में ये बंजर ज़मीन पर खिला एक गुलाब किसी का भी मन मोह सकता था। माय ने अपने कोटे की सबसे खूबसूरत और बेहतरीन लड़कियों को यहाँ भेजा था। और अपने सालों के अनुभव से उसे ये समझ आ गया था कि कोहिनूर सिर्फ नाम का हीरा नहीं, वाकई में कोहिनूर है।


    कोहिनूर ने जब खिड़की से बाहर देखा तो वो बहुत हैरान रह गई। उसने इस होटल को कई बार किताबों और मैगज़ीन में देखा था, लेकिन आज पहली बार सामने से देख रही थी। ये वाकई एक सुंदर और आलीशान महल जैसा था। चारों तरफ रोशनी की लड़ियाँ, जैसे किसी दुल्हन को सजाया गया हो।


    सभी लड़कियां बहुत एक्साइटेड होकर वैन से उतरती हैं, और वहाँ की खूबसूरती देखती हैं। पासा और कालू भी उनके साथ थे। जैसे ही वो अंदर जाने लगे, होटल की सिक्योरिटी ने उन्हें रोक लिया। भले ही ये पिछला दरवाज़ा था, लेकिन पहनावे से साफ पता चल रहा था कि ये लोग कहाँ से आए हैं।


    पाषा ने बताया कि वो लोग क्यों आए हैं, और सिक्योरिटी ने उन्हें पिछले दरवाज़े से होकर पिछले लिफ्ट के ज़रिए पार्टी वेन्यू की तरफ ले जाया। लेकिन डायरेक्ट नहीं, बल्कि उन्हें स्टोर रूम के रास्ते से ले जाया जा रहा था।


    पाषा ने लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा,


    "तुम लोग यहीं रुको, मैं देखकर आता हूँ कि आगे क्या चल रहा है। फिर बताता हूँ कि कब आना है।"


    उसने अपनी आँखों से चंदा को इशारा किया। चंदा सिर हिलाती है। जैसे ही पाषा वहाँ से जाता है, चंदा सीधे कोहिनूर के पास आती है, और उसके शरीर पर ढका हुआ इकलौता दुपट्टा हटाते हुए कहती है,


    "बस बहुत हो गया.. तेरा और इस शराफत का साथ… अब यही तक था।"


    कोहिनूर एकदम से डर जाती है, पर तभी दरवाज़ा खुलता है और काली वर्दी पहने एक भारी-भरकम आदमी वहाँ आता है।


    "मेरे साथ आओ," उस आदमी ने चंदा और बाकी लड़कियों को आदेश देते हुए कहा।


    चंदा ने हाँ में सिर हिलाकर इशारा किया और सब एक-एक करके उसके पीछे चल पड़ीं।


    वो आदमी उन लड़कियों को एक दरवाज़े के पास खड़ा करता है और कहता है,


    "अंदर बस केक काटने वाला है, उसके बाद तुम लोग अंदर आ जाना।"


    वैशाली कोहिनूर को लेकर सबसे कोने में खड़ी थी। जैसे ही अंदर से केक काटने और हैप्पी बर्थडे गाने की आवाज़ आती है, चंदा और राबिया एक-दूसरे को देखती हैं।


    फिर चंदा कहती है,


    "मैं पहले जा रही हूँ, उसके बाद तुम आ जाना... और फिर एक-एक करके तुम सब आ जाना।"


    एक आखिरी बार उसने कोहिनूर को देखते हुए कहा,


    "अंदर कोई होशियारी करने की कोशिश मत करना।"


    चंदा ने अपने कपड़े ठीक किए—मतलब इस तरह से बिगाड़े कि उसका बदन और ज़्यादा निखरकर सामने आए—और फिर वो दरवाज़ा खोलकर इतराते हुए अंदर चली गई।


    एक-एक करके सारी लड़कियाँ अंदर चली गईं। वैशाली और कोहिनूर सबसे आखिर में थीं। वैशाली ने कोहिनूर से कहा,


    "देख कोहिनूर, अंदर तो हमें जाना ही होगा, लेकिन मैं तुझे एक बात कह देती हूँ—तू सबसे पीछे खड़ी रहना, मेरे भी पीछे, जिससे कि किसी की भी नज़र तुझ पर न पड़े।"


    "और अगर फिर भी कोई तुझे अपने साथ ले गया... तो पता है ना तुझे क्या करना है?"


    कोहिनूर डरते हुए धीरे से सर हिलाती है और कहती है,


    "हाँ, मुझे उसके सर पर फूलदान मार कर वहाँ से भाग जाना है।"

  • 7. मुझे मस्त माहौल में जीने दे - Chapter 7

    Words: 1244

    Estimated Reading Time: 8 min

    "मेरे साथ आओ," उस आदमी ने आदेश देने वाले लहज़े में कहा। और चंदा और राबिया के साथ सारी लड़कियों को एक-एक करके वह VIP हॉल रूम में ले आया।


    चंदा सबसे आगे बढ़ गई। बाकी सब ने भी उसकी देखा-देखी उसके पीछे चलना शुरू कर दिया। जैसे ही वे अंदर दाखिल हुए, सबकी आँखें एक पल को ठिठक गईं। वह नज़ारा किसी सपने जैसा था—या शायद किसी ऐसी हक़ीक़त जैसा, जो कोठे की लड़कियों की ज़िंदगी में जगह नहीं रखती।


    दीवारें सफेद थीं, छत ऊँची थी, और हर कोने में नारंगी रोशनी तैर रही थी। एक गर्माहट पूरे माहौल में घुली हुई थी।


    छत के ठीक बीचोंबीच एक विशाल झूमर टंगा था, जिसकी रोशनी मानो वक़्त को थामे हुए थी। उसकी चमक में वहाँ सब कुछ डूबा हुआ था—फर्श, दीवारें, और वहाँ मौजूद लोगों की साँसें भी।


    कोहिनूर की आँखें उस खूबसूरती को हैरानी से देख रही थीं। यह पहली बार था जब उसने सजे हुए कोठे के अलावा किसी जगह को इतनी खूबसूरती से सजा हुआ देखा था। कोठे पर जब मुजरे का प्रोग्राम होता था तो वहाँ की रंगीन लाइट्स और रंग-बिरंगे शामियानों के साथ माहौल बहुत ज़्यादा भड़कीला लगता था। लेकिन इस जगह को इतनी नफासत और सलीके से सजाया गया था कि नज़रें हटाना मुश्किल था। हर चीज़ अपने आप में नायाब और बेशकीमती लग रही थी।


    कोहिनूर बस यही सोच रही थी—क्या सच में इस दुनिया में ऐसी जगहें होती हैं? क्या सच में इतने अमीर लोग इस दुनिया में रहते हैं?


    चंदा, राबिया, जोया, सरिता एक-एक करके कमरे में दाखिल हुईं। आख़िर में वैशाली और कोहिनूर कमरे में दाखिल हुईं और जाकर कमरे की एक तरफ खड़ी हो गईं, जहाँ बाकी सारी लड़कियाँ खड़ी थीं। लेकिन वैशाली ने कोहिनूर को अपने पीछे खड़ा रखा था। कोहिनूर बस उस जगह को हैरानी से देख रही थी। अब तक उसकी नज़र सामने बैठे लोगों पर नहीं गई थी।


    कमरे में लाउड म्यूज़िक बज रहा था, लेकिन साथ ही हँसी-मज़ाक, ठहाके, शोर-शराबा और संगीत की तेज़ आवाज़ भी आ रही थी…


    और तभी—ठाँय!


    गुब्बारा फटा, और माहौल में एक पल को सन्नाटा छा गया। कोहिनूर का दिल उछलकर गले में आ गया।


    पर किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि वह सारी लड़कियों के पीछे एकदम चुपचाप खड़ी थी। कोहिनूर ने एक लंबी साँस ली कि चलो, किसी ने नहीं देखा, किसी का ध्यान उस पर नहीं गया।


    अचानक एक तेज़ म्यूज़िक बजने लगा और म्यूज़िक की धुन पर सारी लड़कियाँ अपने बदन को इधर-उधर हिलाने लगीं। लेकिन कोहिनूर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुई। एक अजीब सी सिहरन ने उसके पूरे शरीर को घेर लिया था।


    उसकी आँखें एकदम पत्थर सी हो गई थीं और होंठ काँपने लगे थे। हाथों की उंगलियाँ आपस में इस तरह उलझ गई थीं जैसे उन्हें जान ही नहीं हो। उसने घबराकर अपनी हथेलियाँ आपस में रगड़नी शुरू कर दीं।


    कमरे की दीवारों पर सुनहरी रोशनी झिलमिला रही थी, लेकिन वह रोशनी सिर्फ़ आँखों का धोखा थी। माहौल में एक अजीब सी खुशबू फैली हुई थी—शराब, सिगरेट और मर्दों के स्ट्रॉन्ग परफ्यूम की गंध हर कोने में फैली हुई थी।


    कोठे से आई सारी लड़कियों ने बहुत हेवी, स्ट्रॉन्ग वाला इत्र लगाया हुआ था और धीरे-धीरे कमरे में दोनों तरह की खुशबुएँ आपस में मिलती जा रही थीं।


    कोहिनूर की साँसें तेज़ हो चली थीं। वह अब भी आँखें झुकाए खड़ी थी।


    वैशाली ने पूरी कोशिश की कि कोहिनूर के आसपास ही रहे। वह डांस भी उसी के आसपास कर रही थी और उसे ढक कर रखने की पूरी कोशिश कर रही थी। बाकी सारी लड़कियाँ अपने-अपने डांस स्टेप्स फॉलो कर रही थीं और वहाँ बैठे मर्दों को रिझाने की कोशिश में लगी थीं।


    "महबूब मेरे महबूब
    मेरे तेरी आँखों से मुझे पीने दे
    कुछ दर्द है मेरे सीने में
    मुझे मस्त माहौल में जीने दे"


    म्यूज़िक के साथ कोठे की हर लड़की ने अपने आप को ढाल लिया था। उन्हें अच्छी तरह पता था कि किस स्टेप पर कौन सी अदा दिखानी है ताकि मर्द उनके काबू में आ जाएँ। और धीरे-धीरे उनका यह तरीका असर कर भी रहा था। सामने बैठे मर्दों ने अपनी-अपनी पसंद की एक-एक लड़की चुननी शुरू कर दी थी।


    लेकिन कोहिनूर पर अभी तक किसी की नज़र नहीं गई थी… क्योंकि इस महफ़िल में कोई ऐसा था जो इस महफ़िल में होकर भी यहाँ नहीं था।


    मिस्टर सभरवाल अपने अय्याश दोस्तों और बिज़नेस पार्टनर्स के साथ सामने वाले सोफ़े पर बैठे हुए थे। जबकि एकदम उसके बगल वाले बड़े सोफ़े पर, जिस पर आराम से तीन लोग बैठ सकते थे, वहाँ सिर्फ़ दो लोग बैठे थे—एक दास्तान और दूसरा संयम। उनमें से भी दास्तान पीछे की तरफ बैठा हुआ था, क्योंकि उसे सामने हो रहे नृत्य कार्यक्रम में कोई दिलचस्पी नहीं थी… लेकिन संयम बेहद इंटरेस्ट ले रहा था।


    दास्तान के एक हाथ में व्हिस्की का गिलास था और दूसरे हाथ में फ़ोन, जिस पर वह अपने ईमेल चेक कर रहा था। कानों में म्यूज़िक तो बज रहा था, लेकिन शायद वह उसके कान के पर्दों तक पहुँच ही नहीं रहा था। आँखें बस फ़ोन पर स्क्रोल कर रही थीं और कभी-कभार व्हिस्की का गिलास होंठों तक जा रहा था। व्हिस्की के स्वाद के साथ दास्तान उसी सोफ़े पर आराम से बैठा रहा।


    संयम उसके बगल में बैठा काफ़ी एंजॉय कर रहा था। वह भी धीरे-धीरे अपने बदन को म्यूज़िक की लय पर हिलाने लगा और फिर अचानक दास्तान के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "भाई, एक बार नज़र उठा के तो देखो… क्या मस्त डांस कर रही हैं!"

    "जिसका डांस अच्छा लगे, आज रात के लिए साथ ले जा सकता है," दास्तान बिना किसी भाव के बोला।


    संयम एकदम एक्साइटेड होकर बोला, "सच में, भाई? लेकिन अगर मैं इनमें से किसी एक लड़की को ले जाऊँगा तो लोग मुझ पर शक तो नहीं करेंगे न?"


    दास्तान अब भी फ़ोन पर देखते हुए उसी बेजान लहज़े में बोला, "नहीं ले जाएगा तो ज़्यादा शक करेंगे… जैसे मुझ पर करते हैं।"


    तभी दास्तान के फ़ोन पर कॉल आने लगी। नंबर देखकर भी उसके चेहरे पर कोई खास भाव नहीं आया। लेकिन संयम हैरानी से पूछता है, "इतनी रात को आपको कौन कॉल कर रहा है?"

    "चाची की कॉल है," दास्तान ने जवाब दिया। संयम की आँखें चौड़ी हो जाती हैं और वह घबराई हुई आवाज़ में कहता है, "मम्मी आपको कॉल कर रही हैं? मर गए! भाई, प्लीज़ मम्मी को मत बताना कि मैं आपके साथ हूँ।"


    दास्तान के चेहरे पर हल्की सी शरारती मुस्कान आ जाती है। उसने कॉल रिसीव किया और फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा, "जी चाची, वह मेरे साथ ही है।"


    संयम का चेहरा बिल्कुल खट्टे अंगूर जैसा बन गया था और वह अजीब नज़रों से दास्तान को देखते हुए बोला, "आप मेरे भाई हो ही नहीं सकते!"


    दास्तान ने मुस्कुराते हुए फ़ोन पर कहा, "नहीं चाची, वह आज रात मेरे साथ ही रुकेगा। मैं सुबह उसे घर ड्रॉप कर दूँगा, आपको फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है।"


    जैसे ही दास्तान फ़ोन रखता है, इमरान वहाँ आता है और संयम की ओर उसका फ़ोन बढ़ाते हुए कहता है, "संयम सर, आपकी मम्मी का कॉल आ रहा है। मैंने कई बार इग्नोर करने की कोशिश की, लेकिन वह बार-बार कॉल कर रही हैं।"


    संयम गुस्से में फ़ोन लेते हुए बोला, "अब तो रायता फैल गया है, देने की क्या ज़रूरत थी!"


    संयम की परेशानी देखकर दास्तान को और मज़ा आ रहा था। उसका चेहरा अब भी दूसरी ओर था, लेकिन उस पर हल्की सी शरारती मुस्कान थी।

  • 8. उम्र अब उसके लिए एक ताला बन चुकी थी,जिसकी चाबी किसी और के पास थी। - Chapter 8

    Words: 1262

    Estimated Reading Time: 8 min

    दास्तान ने इमरान से कहा, "इमरान, तुम मेरे सबसे भरोसेमंद सिक्योरिटी गार्ड हो। अगर चाहो, तो आज की रात के लिए अपनी पसंद देख सकते हो। इसे मेरी तरफ़ से एक गिफ्ट समझो।"

    इमरान दास्तान का मतलब भली-भाँति समझता था। उसने एक नज़र उन नाचती हुई लड़कियों पर डाली, और उसकी नज़र राबिया पर टिक गई। अगले ही पल उसने अपना चेहरा फेर लिया और ना में सिर हिलाते हुए कहा, "थैंक यू सर, लेकिन मेरी लाइफ में जो लड़की आएगी, वो सिर्फ मेरी फ्यूचर वाइफ होगी। मैं ऐसी किसी लड़की के चक्कर में उसे धोखा नहीं दूँगा, जो अपना सब कुछ छोड़कर मेरे लिए आएगी।"

    इस पर संयम बोला, "अरे यार इमरान, हम कौन सा कह रहे हैं कि तुम इनमें से किसी से शादी कर लो! भाई का मतलब है कि आज की रात एंजॉय करो, कल को वो अपने घर, तुम अपने घर। और वैसे भी तुम्हारी आने वाली बीवी तुम्हारी मर्दानगी का टेस्ट थोड़ी न लेगी!"

    इमरान मुस्कुरा दिया, लेकिन उसने फिर भी सिर हिलाकर कहा, "जी सर, आपकी बात सही है, लेकिन मेरे लिए मर्दानगी के मायने कुछ और हैं। असली मर्द वो नहीं होता जो बहुत सी लड़कियों के साथ वक्त बिताए, बल्कि वो होता है जो एक ही लड़की को अपना पूरा वक्त दे दे।"

    संयम ने मुँह बनाते हुए दास्तान की ओर देखा और कहा, "भाई, आप अपने साथ भी अपने जैसे लोग ही रखते हैं क्या?"

    दास्तान के चेहरे पर अब भी वही एरोगेंट स्माइल थी। उसने जवाब दिया, "अब समझ आया, क्यों मेरे साथ काम करने वाले लोग मेरी तरह खतरनाक होते हैं — क्योंकि उनकी सोच भी मेरी जैसी होती है।"

    दास्तान ने इशारा किया और इमरान वहाँ से चला गया। इसके बाद दास्तान फिर से अपना फोन स्क्रोल करने लगा। लेकिन तभी एक शख्स ने कमरे का तापमान बहुत ज़्यादा कम कर दिया, और कमरे में अचानक ठंड बढ़ गई।

    शायद बाकी लड़कियों को ऐसे माहौल में नाचने की आदत थी, लेकिन कोहिनूर को नहीं। अचानक से ठंड बढ़ने की वजह से उसके रोंगटे खड़े हो गए और एक ज़ोरदार छींक निकल गई।

    दास्तान ने व्हिस्की का ग्लास लेने के लिए टेबल की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि अनजाने में उसकी नज़र सामने के शीशे पर चली गई, जहाँ उसे उन लड़कियों के बीच सबसे पीछे एक छोटी-सी कली पोशाक में एक आकृति नज़र आई। दास्तान ग्लास उठाकर वहाँ से अपनी नज़रें हटाने ही वाला था कि तभी वैशाली उसके सामने से पूरी तरह हट गई।

    कोहिनूर के शरीर में अजीब-सी सरसराहट हो रही थी। उसे लगा जैसे कोई उसे लगातार घूर रहा हो — इतनी गहराई से कि वो नज़रों की आग को अपने चेहरे पर महसूस कर पा रही थी। उसका निचला होंठ हल्का सा दांतों के नीचे दब गया।

    एक छोटी छींक। उसने अपने चेहरे से ध्यान हटाने की कोशिश की, पर देर हो चुकी थी। कमरे की नर्म-सी खामोशी में भी, वो छींक अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुकी थी।

    कोहिनूर का दिल तेज़ी से धड़क उठा। उसने ऊपर नहीं देखा। क्योंकि उसकी पलकों में अब डर बस चुका था। उसकी निगाहें अभी भी ज़मीन पर जमी हुई थीं।

    उसे अब यकीन हो चला था... वो सिर्फ सोच नहीं रही थी, जो वो महसूस कर रही थी, वो ही सच था। और वो एहसास... उसकी कल्पना नहीं थी। उसे अपने ऊपर किसी की नज़रें इतनी ज़्यादा महसूस हो रही थीं कि वो अपने आसपास एक स्ट्रॉन्ग औरा को महसूस कर सकती थी।

    उसके होंठ सूख गए थे, और साँसें अचानक से तेज़ हो गईं।

    "कोहिनूर… तुम ठीक हो?" वैशाली धीरे से उसके पास आते हुए पूछा। कोहिनूर किसी सूखे पत्ते की तरह कांप रही थी। उसने वैशाली के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।

    वैशाली, कोहिनूर को अपने पीछे करते हुए कहा, "तुम यहीं खड़ी रहो। सामने आने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

    ज़ोया की आवाज़ उसके कानों के पास धीमे से गूँजी, जैसे किसी कोने से कोई साया फुसफुसा रहा हो —

    "बाकी सब मैं संभाल लूंगी... देखो, यहां पाँच मर्द हैं और हम छह लड़कियां। लेकिन उनमें से एक है शाह... जो हर पार्टी की रौनक तो होता है, लेकिन उसने आज तक किसी लड़की के साथ रात नहीं बिताई है। और न ही कभी किसी लड़की को चुना है।

    तो अगर हम शाह को भी ना गिनें, तो चार लोग बचे और हम पाँच। अगर हम सब एक-एक के साथ भी जाएँगे, तो भी तू अकेली बच जाएगी।

    जब तक वो लोग हम सबको अपने साथ नहीं ले जाते, तुझे सिर्फ उनकी नज़रों से बचकर रहना है।"

    कोहिनूर ने भारी साँस ली, जबरदस्ती खुद को समेटा और धीमे से सिर हिलाते हुए कहा — "हाँ... मैं ठीक हूँ।"

    कोहिनूर के हाथों में पसीने आने लगे थे, लेकिन कमरे का माहौल बहुत ज़्यादा ठंडा हो गया था।

    वैशाली ने उसके हाथों को पकड़ते हुए पूछा, "क्या हुआ कोहिनूर, तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?"

    कोहिनूर ने भौंहें सिकोड़ लीं — वो डरती हुई नज़रों से वैशाली को देखकर कहा,

    "अगर तुम सब में से पहले मुझे किसी ने चुन लिया तो? मैं... मैं तो बस सत्रह साल की हूँ..."

    इतना तो अब कोहिनूर को भी समझ आ गया था कि उसकी उम्र अब उसे इस मामले में नहीं बचा सकती। ये उम्र अब उसके लिए एक ताला बन चुकी थी — जिसकी चाबी किसी और के पास थी।

    वैशाली ने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे संभालते हुए कहा,

    "हम बस कोशिश कर सकते हैं, बाकी तुम हिम्मत मत हारना..."

    तभी म्यूजिक बदल गया और वैशाली को वापस फ्रंट पर आकर अपना डांस पूरा करना पड़ा। सारी लड़कियां अलग-अलग दिशा में चली गईं, और फ्रंट में वैशाली आ गई।

    हर किसी को एक-एक बार फ्रंट पर आकर डांस करने का मौका मिलता है ताकि सबकी नज़र उन पर अच्छे से जाए।

    सरिता जो अब पीछे आ गई थी, जल्दी से कोहिनूर के पास आई और धीरे से उसके कानों में फुसफुसाते हुए कहा —

    "तू खड़ी क्यों है? डांस क्यों नहीं कर रही है? देख, वैशाली के बाद अब तू ही आगे जानी है... और अच्छे से डांस करना, क्योंकि... शाह की नज़र तुझ पर है।"

    लेकिन अगला ही पल... सरिता के शब्दों ने कोहिनूर की रीढ़ में बिजली दौड़ा दी।

    तो ये सच था।

    वो सिर्फ उसका वहम नहीं था।

    उसने सच में अपनी रूह को किसी की निगाहों से काँपते हुए महसूस किया था। किसी की आँखें उस पर थीं... जो उसे सिर्फ देख नहीं रहीं थीं, बल्कि निचोड़ रही थीं।

    कोहिनूर की साँसें फिर से तेज़ हो गईं।

    "साजन तुमसे प्यार की लड़ाई में टूट गई चूड़ियां कलाई में..."

    वैशाली इस वक्त इस गाने पर सामने थिरक रही थी, और उसके हाथों की लहर और चेहरे की अदाएँ किसी के दिल पर बिजलियाँ गिरा रही थीं।

    संयम की नज़रें वैशाली से हट ही नहीं रही थीं...

    संयम थोड़ा मस्तमौला और शरारती किस्म का इंसान था। वो ज़िंदगी में बहुत-सी चीज़ों को लेकर सीरियस नहीं था, जिनमें से एक था — रिलेशनशिप।

    ऐसा नहीं है कि उसने कभी प्यार किया या फिर मेकआउट नहीं किया था, लेकिन उसके लिए लड़कियाँ बस शॉर्ट-टर्म रिलेशनशिप का हिस्सा होती थीं।

    वो किसी के साथ कमिटमेंट जैसी चीज़ों पर यकीन ही नहीं करता था, क्योंकि उसका मानना था कि ऐसा कोई नहीं है जो बिना किसी मतलब के उसके साथ ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहेगा।

    पर अचानक, जब वैशाली उसके सामने आई — संयम की नज़रें उसी पर थम गईं।

    उसके हाथ, जो ड्रिंक उठाने जा रहे थे, वहीं रुक गए।

    वैशाली की आँखें... और उसके चेहरे की वो मासूमियत भरी मुस्कान... संयम को उसके इरादों की कैद से बाहर निकाल रही थी।

  • 9. इस लड़की को मारना है क्या जो भाई के सामने आ रही है?” - Chapter 9

    Words: 1595

    Estimated Reading Time: 10 min

    दास्तान की नज़र कमरे के कोने में दीवार पर चिपकी हुई थी, क्योंकि उसे दीवार पर कोहिनूर छिपकली की तरह बिल्कुल चिपकी नज़र आ रही थी। उसके हाथ कहाँ थे, ये समझ नहीं आ रहा था और उसकी आँखें ज़मीन पर कुछ इस तरह गड़ी थीं जैसे अपनी आँखों से ही ज़मीन में गड्ढा कर देगी। उसने एक बार भी नज़र उठाकर नहीं देखा... उसके चेहरे पर भड़कीला मेकअप किया गया था, लेकिन इसके बावजूद भी दास्तान ने वो देख लिया था जो शायद किसी और ने नहीं देखा था।



    उसके चमकदार और भड़कीले कपड़े साफ़ जाहिर कर रहे थे कि वो इन कपड़ों में कितनी अनकंफरटेबल है। वो बार-बार अपने कपड़ों को एडजस्ट कर रही थी और अपने हाथों से खुद को छुपाने की कोशिश कर रही थी। सामने की ओर लड़कियाँ डांस कर रही थीं, जो बार-बार सामने आकर फिर स्टेप करते हुए दूसरी तरफ़ हट जातीं, जिससे वहाँ बैठे किसी की भी नज़र शायद अब तक कोहिनूर पर नहीं गई थी। लेकिन जिसकी नज़र जानी थी, उसकी जा चुकी थी।




    दास्तान की पलकें तब से नहीं झपकी थीं जब से उसने कोहिनूर को देखा था। उसके लिए आसपास की दुनिया जैसे गायब हो गई थी और इस वक़्त उसकी पूरी दुनिया कोहिनूर के सामने सिमट आई थी।




    दास्तान खुद को उसे देखने से रोक नहीं पाया, न जाने क्यों वो उसकी आँखों में देखना चाहता था। लेकिन कोहिनूर की पलकें झुकी हुई थीं, जिसकी वजह से दास्तान उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। लेकिन उसकी नज़रें कोहिनूर के बदन को ऊपर से नीचे तक निहार रही थीं। और जिस तरह से वो वहाँ खड़ी थी, उससे साफ़ लग रहा था कि वो वहाँ आई नहीं थी, बल्कि लाई गई थी।




    दास्तान का गला सूख रहा था, उसके सीने में जलन हो रही थी। शराब उसकी सीने की आग को और भड़का रही थी। होंठ सूखने लगे थे, उसने व्हिस्की को होठों से लगाया, लेकिन वो भी उसकी प्यास नहीं बुझा सकी।




    तभी दास्तान को याद आता है कि वो किन लड़कियों के साथ आया है और किस जगह से आया है। झूठ खूबसूरत ही होता है — ये सोचते हुए उसके चेहरे पर घमंड भरी मुस्कान आ जाती है। उसने हल्के से सिर हिलाकर अपनी व्हिस्की का गिलास खत्म कर दिया। चेहरे पर तो मासूमियत थी, लेकिन शायद नीयत मासूमों जैसी नहीं थी।




    कोहिनूर कहाँ से आई है, ये जानने के बाद भी दास्तान अपनी नज़रें उस पर से हटा नहीं पा रहा था। वो रह-रहकर बस उसे ही देख रहा था — उसका छोटा सा चेहरा और खूबसूरत सा बदन — वो उसे छुए बिना कैसे रह सकता था? अगर उसे अपने सीने की आग बुझानी है, तो उसे ये लड़की चाहिए।




    राबिया भी मौके की तलाश में थी। जैसे ही वैशाली का स्टेप खत्म होता है और वो वापस मुड़कर कोहिनूर के पास जाती है, ताकि उसे लोगों के सामने आने से रोक सके, तो वो अपनी जगह राबिया को सामने कर देती है। राबिया हैरान हो जाती है क्योंकि अभी उसके डांस की बारी नहीं आई थी। लेकिन जब उसे सामने कर दिया गया, तो वो कुछ नहीं कर सकी और स्टेप करने लगी।




    वैसे तो सब लोग राबिया को देख रहे थे, लेकिन राबिया की नज़र सिर्फ और सिर्फ शाह पर थी — मतलब दास्तान पर।




    जिसने पलक तक घुमा कर राबिया को नहीं देखा... राबिया अपने हाथों को हवा में हिलाते हुए और अपनी कमर को मटकाते हुए धीरे-धीरे उन लोगों के पास आती है। उसके पास आता देख हर शख़्स बहुत ज़्यादा एक्साइटेड हो रहा था क्योंकि आमतौर पर लड़कियाँ जब पास आती हैं तो वो गोद में बैठकर अपनी अदाओं से रिझाने की कोशिश करती हैं। हर कोई यही सोच रहा था कि राबिया उसके पास आकर उसे इंप्रेस करने की कोशिश करेगी।




    लेकिन राबिया सीधे इतराती हुई दास्तान के पास चली जाती है और उसके सामने अपनी अदाओं की बिजली गिराने लगती है। उसने जानबूझकर अपने कपड़ों को थोड़ा नीचे किया था, जिससे उसका सामने का हिस्सा बहुत अच्छे से रिवील हो रहा था — और जो वो दिखाना चाहती थी, वो दिख भी रहा था।




    राबिया अब दास्तान के सामने थी, जिसकी वजह से दास्तान कोहिनूर को देख नहीं पा रहा था। उसने अपना चेहरा झुकाकर कोहिनूर को देखना चाहा, लेकिन राबिया फिर उसके सामने आ गई और ये सारा नज़ारा संयम अपनी आँखों से देख रहा था।




    वो धीरे से अपना ड्रिंक पीते हुए मन ही मन बोला — “इस लड़की को मारना है क्या जो भाई के सामने आ रही है?”

    पर तभी संयम देखता है कि दास्तान अपना चेहरा झुकाकर उन लड़कियों की तरफ़ देख रहा है। ये पहली बार था जब दास्तान ने लड़कियों की तरफ़ नज़र उठाकर देखा था। संयम थोड़ा हैरान जरूर होता है, लेकिन जब उसने दास्तान की नज़रों का पीछा किया, तब उसे पता चलता है कि वो सच में उन्हीं लड़कियों को देख रहा है।




    और इसी सोच के साथ संयम की आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं — दास्तान बार-बार अपना चेहरा दाएँ-बाएँ करके कोहिनूर को देखना चाहता था, लेकिन राबिया बार-बार उसे इंप्रेस करने के लिए उसके सामने आकर बेहूदा डांस कर रही थी।




    दास्तान ने अपना एक हाथ उठाया और राबिया का हाथ पकड़कर उसे दूर धकेल दिया... और वो सीधे नितिन सभरवाल की गोद में जाकर गिरी — जिसके नाम की आज ही पार्टी थी।




    दास्तान एक जलती हुई नज़र से राबिया को देखता है। अब उसकी निगाहें अपने ऊपर महसूस कर राबिया जल्दी से अपना चेहरा नीचे कर लेती है। दास्तान उसे इग्नोर करता है और वापस कोहिनूर पर कंसंट्रेट करने लगता है।




    अपनी ड्रिंक खत्म करने के बाद संयम दास्तान के पास खीसकता हुआ आता है और धीरे से उसके कान में कहता है, “भाई, आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि आप किसी पार्टी में आधे घंटे से ज़्यादा रुके हों। लेकिन अब एक घंटा होने वाला है और मुझे नहीं लगता कि अभी आपका पार्टी छोड़कर जाने का कोई इरादा है। और जिस तरह से आप लड़कियों को देख रहे हैं, मुझे लगता है कि ज़रूर आपको कोई पसंद आ गई है।”




    दास्तान अपनी आंखों के इशारे से संयम को सामने देखने का इशारा करता है। संयम ने जब दास्तान के इशारों को समझते हुए उस तरफ देखा तो वो एकदम से हैरान होते हुए बोला, “ये लड़की यहां पर कब आई? और ये यहां पर थी, किसी ने देखा तक नहीं! भाई, क्या आपको पसंद है?”




    दास्तान ने कुछ नहीं कहा बल्कि एक बार फिर व्हिस्की का गिलास अपने होठों से लगा लिया। संयम दास्तान की खामोशी को समझ गया और हंसते हुए बोला, “शुक्र है, पहली बार आपकी और मेरी पसंद एक नहीं है। आपको वो वाली पसंद आई है और मुझे उसकी बगल वाली...” — संयम वैशाली की तरफ देखते हुए कहता है।




    आखिरकार फंक्शन खत्म हो गया और अब सब मेन प्रोग्राम की तरफ जा रहे थे, मतलब कि अपने-अपने लिए अपनी पसंद की लड़कियां चुनने की तरफ। लेकिन नितिन ने दास्तान की तरफ देखते हुए कहा, “शाह, तुम घर जा रहे हो न?”




    सभी जानते थे कि दास्तान कभी भी ऐसी पार्टी में ज़्यादा देर नहीं रुकता, और यहां तो पूरी पार्टी खत्म हो गई थी। नितिन बस ये जानना चाहता था कि दास्तान के आगे के क्या प्लान हैं।




    लेकिन दास्तान के बजाय संयम ने जवाब देते हुए कहा, “तुम लकी हो नितिन, भाई आज रात यहीं रुकने वाले हैं। उनके नाम पर प्रेसिडेंशियल स्वीट बुक करवाओ और मेरे लिए वीआईपी रूम।”




    वहां बैठे आदमियों ने अपने-अपने लिए लड़कियां चुन ली थीं, लेकिन जैसे कि वैशाली ने कहा था कि वो कोहिनूर को किसी की नज़र में नहीं आने देगी, इसीलिए वो कोहिनूर को ढक कर खड़ी हो जाती है। और आखिर में संयम वैशाली को चुनता है।




    संयम ने अपनी उंगली के इशारे से वैशाली को अपने पास आने का इशारा किया। वैशाली को न चाहते हुए भी संयम के साथ जाना ही था, क्योंकि चंदा, राबिया, जोया और सरिता को भी चुन लिया गया था और वो सब अब वैशाली को देख रही थीं। वैशाली आगे बढ़ती है, पर तभी पीछे से कोहिनूर ने उसका हाथ पकड़ लिया।




    वैशाली ने पीछे मुड़कर कोहिनूर को देखा तो कोहिनूर की आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं। उसने धीरे से वैशाली से कहा, “मत जाओ ना।”




    वैशाली एक नजर संयम और बाकी सबको देखती है और फिर धीरे से कोहिनूर से कहती है, “कोहिनूर, मैंने जो कहा है उसे याद रखना और वैसा ही करना।”




    अब संयम से और संयम नहीं हो रहा था। वो अपनी जगह से खड़ा होते हुए तेज़ क़दमों से वैशाली के पास आता है और उसका हाथ पकड़ते हुए कहता है, “मैं बहुत ज़्यादा थक गया हूं। गुड नाइट एवरीवन।”




    और उसके बाद संयम वैशाली को लेकर वहां से चला जाता है। नितिन भी चंदा को अपने साथ ले जाता है और राबिया को भी किसी ने चुन लिया था। जोया और सरिता भी अपने पार्टनर्स के साथ वहां से निकल रहे थे। लेकिन जाने से पहले चंदा ने एक नज़र कोहिनूर को देखा, जो अब किसी ज़िंदा लाश की तरह दीवार से चिपकी हुई थी।




    कमरे में सिर्फ तीन लोग मौजूद थे... दास्तान, कोहिनूर और पासा।




    जब नाचने-गाने का प्रोग्राम खत्म हो गया तब पासा कमरे में आया था, क्योंकि उसे देखना था कि कौन सी लड़की किस कस्टमर के साथ गई है, और उसे उन लड़कियों को वापस भी लाना था। सारी लड़कियों की कीमत पहले से तय थी, इसीलिए वो यहां सबको देखने आया था। सारी लड़कियां जा चुकी थीं, लेकिन सिर्फ कोहिनूर ही बची थी। माई ने पासा को ये कहकर भेजा था कि कोहिनूर जिसके भी साथ जाएगी, उसे बता दिया जाए कि कोहिनूर की कीमत दुगनी होगी।

  • 10. कोहिनूर दास्तान के साथ अकेले कमरे में - Chapter 10

    Words: 1032

    Estimated Reading Time: 7 min

    कोहिनूर अभी भी दीवार से लगी ज़मीन को अपनी बंजारा आँखों से देख रही थी, और दास्तान की आँखें सिर्फ़ उसी को देख रही थीं। वह अपनी निगाहों से उसे ऊपर से नीचे तक निहार रहा था। अपने हाथ में पड़े व्हिस्की के जाम को खत्म करके वह अपनी जगह से उठा और एक-एक कदम कोहिनूर की ओर बढ़ा।

    कमरे में सन्नाटा था। दास्तान के कदमों की आहट से कोहिनूर को एहसास हो गया था कि कोई उसके करीब आ रहा है। एक चौड़ी और गर्म हथेली अचानक से कोहिनूर की कलाई को पकड़ लेती है। वह कलाई इतनी नाज़ुक और पतली थी कि दास्तान की पूरी मुट्ठी में एक बार में समा गई। इसी स्पर्श के साथ कोहिनूर बुरी तरह काँपने लगी। उसका स्पर्श कोहिनूर की रीढ़ की हड्डी को जला चुका था। उसकी दिल की धड़कनें एकदम से रुक सी गई थीं। वह नरम और गर्म स्पर्श कोहिनूर की त्वचा को जला रहा था। उसकी पकड़ कठोर थी, लेकिन ऐसी जैसे वह कोहिनूर पर अपना हक़ जता रहा हो।

    उसने अभी तक अपना चेहरा उठाकर नहीं देखा था।
    "मेरे साथ चलो।"

    कानों में पड़ी इस सख्त और कठोर आवाज़ वाले शख्स को कोहिनूर ने अब तक देखा भी नहीं था, और दास्तान उसे अपने साथ खींचता हुआ कमरे से बाहर ले जा चुका था।

    कोहिनूर उसके पीछे, उसके पैरों की गति के हिसाब से चल रही थी… या यूँ कहें कि उसके साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही थी। दास्तान के लंबे-चौड़े और कड़कते शरीर के कारण उसके कदम लंबे-लंबे थे, जबकि कोहिनूर उसके पीछे ऐसे चल रही थी जैसे भाग रही हो।

    जैसे ही दास्तान कोहिनूर को लेकर कमरे से बाहर निकला, वैसे ही पासा भी कमरे से निकलते हुए इमरान के पास पहुँचा और बोला,
    “जिस लड़की को वह लेकर गया है, उसकी कीमत 50 लाख रुपये है।”

    इमरान ने कुछ नहीं कहा, बस 'हाँ' में सिर हिला दिया।

    दास्तान, कोहिनूर को पकड़कर प्रेसिडेंशियल सुइट की ओर ले जा रहा था, लेकिन उसके हाथों में दर्द नहीं हो रहा था। कलाई चाहे कसकर पकड़ी गई थी, मगर उस पकड़ में कोई सख्ती नहीं थी। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता? दिल तो उसका दर्द से रो ही रहा था ना… और वह चुपचाप दास्तान के पीछे-पीछे चल रही थी। उसने कोई आवाज़ नहीं की, क्योंकि वह जानती थी कि इन सबका कोई असर नहीं होता। वह देख चुकी थी कोठे पर… जब भी कोई मर्द आता था, औरतों के रोने या गिड़गिड़ाने का उन पर कोई असर नहीं होता। उन्हें जो चाहिए होता था, वह उसे हासिल करके ही मानते थे।

    कमरे में पहुँचते ही दास्तान ने दरवाज़ा बंद किया और कोहिनूर के हाथ पकड़कर उसे दीवार के पास ले जाकर छोड़ दिया। वह तुरंत घबराकर दीवार से चिपक गई और मन ही मन ऊपरवाले से खुद को बचाने की दुआ माँगने लगी।

    दरवाज़ा लॉक करने के बाद जब दास्तान ने कोहिनूर की तरफ देखा, तो वह हैरान रह गया।
    “क्या इस लड़की को दीवार से कुछ ज़्यादा ही प्यार है?”

    लेकिन उसने महसूस किया कि वह बुरी तरह काँप रही है… और यही एहसास उसे पार्टी रूम में भी हुआ था।

    दास्तान अपने कदम धीरे-धीरे कोहिनूर की ओर बढ़ाता है। कोहिनूर की नज़रें अभी भी ज़मीन पर गड़ी थीं… लेकिन जैसे ही उसने दो चमकदार जूते देखे जो उसके करीब आ रहे थे, उसका डर और गहरा हो गया। माथे पर पसीना छलकने लगा और साँसें तेज़ हो गईं।

    दास्तान अपना कोट उतारकर एक तरफ फेंक देता है। वह धीरे से कोहिनूर के पास आता है और दीवार पर एक हाथ रखकर उसके ऊपर हल्का सा झुक जाता है।

    "जूते शानदार हैं मेरे… लेकिन मेरे चेहरे से कम।"

    दास्तान अपनी सर्द और तीखी आवाज़ में, कोहिनूर के कानों के पास फुसफुसाते हुए कहता है। कोहिनूर बुरी तरह हाँफने लगी। उसने दास्तान की आवाज़ को बहुत करीब से सुना, यानी वह उसका चेहरा उसके बहुत पास था।

    जिस डर से वह काँप रही थी, वह डर अब उसके सामने खड़ा था। उसने जल्दी से अपने दोनों काँपते हुए हाथ सामने किए और उंगलियाँ जोड़ते हुए टूटी-फूटी आवाज़ में बोली,
    “प्लीज़ सर… मुझे छोड़ दीजिए… मुझे हाथ मत लगाइए…”

    शब्द भले ही बिखरे हुए थे, मगर दास्तान के कानों तक पहुँच चुके थे। वह देख सकता था कि यह लड़की उससे बचने के लिए दीवार से चिपकती हुई धीरे-धीरे किनारे की ओर खिसक रही है। और वह इतनी बुरी तरह काँप रही थी कि कभी भी बेहोश हो सकती थी।

    लेकिन दास्तान रुका नहीं… वह खतरनाक ढंग से शांत था… और उसकी खामोशी ही कोहिनूर को डरा रही थी।

    जब उसने कोहिनूर के चेहरे पर पसीना देखा, तो एक नज़र एयर कंडीशनर की तरफ डाली… AC बंद था। वह कोहिनूर से थोड़ा दूर हुआ, जूते की आहट पीछे जाती सुन कोहिनूर की धड़कनें कुछ क्षण को थमीं… मगर दास्तान ने टेबल से रिमोट उठाकर AC चालू कर दिया और अपनी टाई खोलने लगा।

    कोहिनूर ने धीरे से अपनी पलकें उठाईं और उस शख्स को देखा जिसकी पीठ उसकी ओर थी। वह इतना लंबा था कि कोहिनूर तो मुश्किल से उसकी कमर तक पहुँच रही थी।

    वह बेचैनी से इधर-उधर देखने लगी। उसी वक्त उसकी नज़र हाथ की दूरी पर रखे एक लोहे के स्टैचू पर पड़ी। और तभी उसे वैशाली की बात याद आ गई—
    "जो भी तुम्हारे साथ कमरे में हो, उसके सिर पर मार कर वहाँ से भाग जाना!"

    कोहिनूर के हाथ काँप रहे थे। डरते हुए उसने धीरे-धीरे स्टैचू को हाथ में उठा लिया। उसे नहीं पता था कि उसमें इतनी हिम्मत है या नहीं… लेकिन अगर इस शख्स ने एक भी कदम बढ़ाया, तो सब खत्म हो जाएगा।

    वह धीरे-धीरे दास्तान की ओर बढ़ने लगी, जो अपनी टाई खोल रहा था।

    अगर कोहिनूर अपने हाथ ऊपर उठाकर दास्तान के सिर पर वार भी करती, तो शायद उसके सिर तक पहुँचती भी नहीं। वह आदमी कद में बहुत लंबा था… और कोहिनूर? बेचारी नाज़ुक सी… जिसने आज तक चींटी तक नहीं मारी थी… अब उसे इतने भारी-भरकम आदमी को मारना था।

    लेकिन हिम्मत जुटाते हुए उसने जोर से स्टैचू को दास्तान के सिर पर फेंका— उसी पल दास्तान ने पलटकर एक हाथ में स्टैचू पकड़ लिया और दूसरे हाथ से कोहिनूर की कमर पकड़कर उसे हवा में उठा लिया।

  • 11. हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं - Chapter 11

    Words: 1403

    Estimated Reading Time: 9 min

    दास्तान ने कोहिनूर को अपने एक हाथ में उठा लिया। आखिर कोहिनूर कितनी लंबी थी—ऊपर से दुबला-पतला सा शरीर और हल्का सा वज़न। दास्तान ने उसे ऐसे उठा लिया जैसे अपने एक हाथ में कोई नरम सी गुड़िया उठा रखी हो। दूसरे हाथ से उसने उस स्टैचू को पकड़ लिया, जिससे अभी-अभी कोहिनूर उस पर हमला करने वाली थी।

    दास्तान ने स्टैचू को एक तरफ फेंक दिया और कोहिनूर को सीधा दीवार से लगाकर, अपने शरीर के वज़न से उसे दीवार पर दबाने लगा। बस, यही वो पल था जब दास्तान और कोहिनूर की नज़रें एक-दूसरे की आँखों में जा अटकी थीं।

    "आँखें देखें तो मैं देखता रह गया
    जाम दो और दोनों ही दो अतिशा
    आँखें या मैकदे के वह दो बाब हैं
    आँखें उन को कहूँ या कहूँ खवाब हैं

    आँखें नीची हुईं तो हया बन गयी
    आँखें ऊंची हुईं तो दुआ बन गयी
    आँखें उठ कर झुकीं तो अदा बन गयी
    आँखें झुक कर उठीं तो क़ज़ा बन गयी
    आँखें जिन में हैं क़ैद आस्मां-ओ-ज़मीन
    नरगिसी नरगिसी सुरमयी सुरमयी
    नरगिसी नरगिसी सुरमयी सुरमयी

    हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं
    आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन

    तू भी देखे अगर तो कहे हमनशीं
    आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन
    हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं
    हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं"


    कोहिनूर पहली बार दास्तान का चेहरा इतने करीब से देख रही थी। दास्तान की कत्थई निगाहें, कोहिनूर की काली आँखों में ठहर सी गई थीं। जैसे वक्त रुक गया हो, जैसे पल थम गया हो, जैसे समय ने खुद को रोक दिया हो। चारों ओर की आवाज़ें कहीं खो गई थीं—अगर कुछ सुनाई दे रहा था तो बस दिल की धड़कन... क्योंकि उन दोनों के दिल भी तो एक-दूसरे के बेहद क़रीब थे।

    दास्तान ने जिस तरह से कोहिनूर को दीवार से लगाया था, कोहिनूर का दिल दास्तान के दिल के करीब धड़क रहा था... और उन दोनों की धड़कनों में एक वेदनात्मक शोर गूंज रहा था। दोनों की नज़रें एक-दूसरे के चेहरे को बेहिसाब देख रही थीं, जैसे उनकी आभा को पी जाना चाहती हों।


    दास्तान ने स्टैचू को एक तरफ फेंककर उसी हाथ से कोहिनूर का हाथ पकड़ लिया, और उसका हाथ ऊपर करके दीवार पर टिका दिया। यह होते ही कोहिनूर पूरी तरह से दास्तान के सामने आ गई। उसकी साँसें तेज़ चलने लगीं… उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और काजल से सजी हुई थीं — इतनी खूबसूरत, जैसे कोई हिरनी हो। कोहिनूर की इन आँखों से तो दास्तान अपनी नज़र ही नहीं हटा पा रहा था।

    वहीं कोहिनूर का भी हाल कुछ ऐसा ही था… दास्तान की आँखों में कुछ ऐसी कशिश थी, जिसने उसे उसी पल थाम लिया था। वह भी अब दास्तान से अपनी नज़रें नहीं हटा पा रही थी।

    "हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं
    आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन
    तू भी देखे अगर तो कहे हमनशीं
    आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन
    हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं
    हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं"


    उसने धीरे से कोहिनूर को नीचे ज़मीन पर उतारा। कोहिनूर के पैरों ने ज़मीन को छुआ, लेकिन उसी पल उसका चेहरा हवा की ओर ऊपर उठ गया… क्योंकि दास्तान की हाइट उससे कहीं ज्यादा थी। उसे दास्तान का चेहरा देखने के लिए अपनी गर्दन ऊपर उठानी पड़ी।

    जैसे ही दास्तान और कोहिनूर की नज़रें एक-दूसरे की गहराइयों को टटोलने लगीं, कोहिनूर को अपने दिल में एक अजीब सी बेचैनी महसूस हुई। दास्तान की निगाहों में वह कुछ था... कुछ ऐसा जो कोहिनूर के अंदर तक उतर रहा था। वह अब उसकी नज़रों को खुद पर सहन नहीं कर पा रही थी।

    उसने बेताबी से अपनी नज़रें झुका लीं। जैसे ही उसका चेहरा नीचे गया, दास्तान जैसे होश में आया। उसे एहसास हुआ कि वह किस हद तक उसे देखे जा रहा था — जैसे नज़रों से ही उसे समेट लेना चाहता हो।

    उसने धीरे से अपनी तर्जनी उंगली को कोहिनूर की ठुड्डी के नीचे रखा और उसका चेहरा फिर से ऊपर उठाया। कोहिनूर की साँस जैसे गले में ही अटक गई। उसकी नज़रें बार-बार भटक कर दास्तान के माथे पर जा रहीं थीं, जहाँ उसके कुछ बिखरे बाल गिर रहे थे — जो उसके चेहरे को और भी ज़्यादा हैंडसम बना रहे थे।

    उसके चेहरे पर कोई खास हाव-भाव नहीं थे… बस उसकी नज़रें थीं, जो अपना काम चुपचाप कर रही थीं। कोहिनूर का चेहरा अब पूरी तरह दास्तान की उंगली की पकड़ में था।

    दास्तान धीरे-धीरे उसका चेहरा अपनी ओर खींचने लगा… और उसके चेहरे की ओर झुकता चला गया। कोहिनूर का दिल जैसे तेज़ी से भागने लगा। जब दास्तान उसका चेहरा करीब लाकर अपनी नाक से उसकी नाक को हल्का सा टच करता है और धीमी, भारी आवाज़ में कहता है—

    "तुम्हारा नाम क्या है, स्वीटहार्ट?"

    कोहिनूर की आँखों में एक हल्की सी चमक जाग उठी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दास्तान उसके नाम को लेकर इतना संजीदा हो सकता है। उसकी भारी, राजस्थान-सी गूंजती हुई आवाज़ कोहिनूर के धड़कते दिल को जैसे ठंडी लहरों से भर रही थी। लेकिन उसकी यह गहराई इतनी भारी थी कि कोहिनूर सिहर उठी।

    दास्तान यह साफ महसूस कर सकता था, क्योंकि वह ठीक उसके बदन के नीचे थी। उसका शरीर, उसकी थरथराहट — सब कुछ दास्तान को महसूस हो रहा था। मगर फिर भी, उसकी नज़रें कोहिनूर से नहीं हटी थीं… और उसका चेहरा अब भी बेहद क़रीब था।

    बेचारी कोहिनूर क्या करती? यह पहली बार था जब वह किसी मर्द के इतने क़रीब, इतनी अकेली और उसकी गिरफ्त में थी। एक बार फिर दास्तान की नज़रों की तपिश ने उसे मजबूर कर दिया… उसने फिर से अपना चेहरा झुका लिया।

    दास्तान के हाथ अब भी उसकी ठुड्डी पर थे। जैसे ही उसने कोहिनूर का चेहरा झुकता देखा, उसकी नज़रें तीखी हो गईं। उसने झटके से उसका चेहरा फिर से ऊपर किया और उसकी आँखों में देखते हुए गहराई से कहा—

    "जब मैं तुमसे बात करूँ, तो तुम्हारी नज़रें सिर्फ मुझ पर होनी चाहिए। आइंदा नज़रें फेरने की गुस्ताखी मत करना... अब अपने इन नाज़ुक होठों से अपना नाम बताओ।"

    उसकी आवाज़ में ऐसी कशिश थी कि कोहिनूर के होंठ खुद-ब-खुद थरथराने लगे। उसने एक हल्की हिचकी ली, और कांपते हुए शब्द निकले—

    "क… क… को… कोहिनूर..."

    उसके नाम को सुनते ही दास्तान के चेहरे पर हल्की सी मगर रहस्यमयी मुस्कान आ गई। उसके कान जैसे एकदम से चौकन्ने हो गए थे। वह धीरे से अपने होठों को गोल करता है और अपनी ज़ुबान से होठों को नम करते हुए मनमोहन आवाज़ में कहता है — "कोहिनूर…"

    दास्तान की उंगली, जो कोहिनूर की ठोड़ी पर थी, धीरे से वहाँ से हटती है और उसके हाथ कोहिनूर की गर्दन पर सरकने लगते हैं। गर्दन से होते हुए उसकी उंगलियाँ कोहिनूर के सीने की ओर बढ़ती हैं। दास्तान के एक स्पर्श से कोहिनूर का बदन जैसे जलने लगा था। वह चाहती थी कि ज़मीन फट जाए और वह उसमें समा जाए। दास्तान के स्पर्श में इतनी गर्मी थी कि कोहिनूर अंदर से बेचैन हो उठी थी — वह भाग जाना चाहती थी, या फिर चाहती थी कि यह आग उसे पूरी तरह से राख कर दे।

    जैसे-जैसे दास्तान की उंगलियाँ उसकी गर्दन पर चलती रहीं, कोहिनूर के चेहरे पर डर और घबराहट बढ़ती गई। दास्तान उसकी नज़रों में छिपे डर को भांप चुका था। वह धीरे से उसके कानों के पास झुककर फुसफुसाया —

    "लगता है तुम्हें मेरा टच पसंद नहीं आया... तो बताओ, कैसा टच पसंद है तुम्हें, स्वीटहार्ट?"

    दास्तान बेहद हैंडसम था, लेकिन इसके बावजूद कोहिनूर को उसके पास बहुत असहज महसूस हो रहा था। उसकी साँसें तेज़ी से चल रही थीं। दास्तान का चेहरा उसके बेहद क़रीब था, और उसने धमकी दी थी कि कोहिनूर अपनी नज़रें नहीं फेर सकती। इसलिए ना चाहते हुए भी कोहिनूर को उसकी आँखों में देखना पड़ रहा था, जबकि उसके हर एक स्पर्श से वह भीतर ही भीतर तड़प रही थी।

    दास्तान के सामने कोहिनूर बस साँस ले पा रही थी — यही बहुत था, वरना उसकी हालत तो जैसे मरणासन्न हो चली थी। जब दास्तान ने उसे ऐसे तड़पते देखा, तो पूछा —

    "अगर मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊँ, तो क्या तुम्हें मज़ा आएगा?"

    उसकी उंगलियाँ अब भी कोहिनूर के नाभि से उसकी गर्दन तक का सफ़र तय कर रही थीं। कोहिनूर का बदन जैसे किसी तेज़ करंट से कांप रहा था। दास्तान की उंगलियाँ जब उसके गले के पास रुकीं, जहाँ एक छोटा सा काला तिल था, उसने उसके कपड़ों को हल्के से छूते हुए हटाना शुरू किया। यह देख कोहिनूर ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की — उसने उसे धक्का देना चाहा।

    लेकिन दास्तान का इरादा सिर्फ़ उस तिल को छूने का था।

  • 12. तो बताओ, कैसा टच पसंद है तुम्हें, स्वीटहार्ट - Chapter 12

    Words: 1105

    Estimated Reading Time: 7 min

    दास्तान के सामने कोहिनूर बस साँस ले पा रही थी—यही बहुत था, वरना उसकी हालत मरणासन्न हो चली थी। जब दास्तान ने उसे ऐसे तड़पते देखा, तो पूछा—

    "अगर मैं तुम्हारे साथ नरमी से पेश आऊँ, तो क्या तुम्हें मज़ा आएगा?"

    उसकी उंगलियाँ अब भी कोहिनूर के नाभि से उसकी गर्दन तक का सफ़र तय कर रही थीं। कोहिनूर का बदन जैसे किसी तेज करंट से काँप रहा था। दास्तान की उंगलियाँ जब उसके गले के पास रुकीं, जहाँ एक छोटा सा काला तिल था, उसने उसके कपड़ों को हल्के से छूते हुए हटाना शुरू किया। यह देख कोहिनूर ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की—उसने उसे धक्का देना चाहा।

    लेकिन दास्तान का इरादा सिर्फ़ उस तिल को छूने का था।

    जब उसने कोहिनूर के संघर्ष को महसूस किया, तो वह हैरान ज़रूर हुआ, लेकिन साथ ही उसे मज़ा भी आ रहा था। यह पाँच फुट की लड़की उसके सामने खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी—जैसे वह उसे दूर कर सकती हो! अचानक दास्तान ने उसकी कलाई पकड़ ली और दोनों हाथों को दीवार से सटा दिया।

    "प्लीज़... प्लीज़ सर, प्लीज़... मुझे कुछ मत कीजिए सर... मैं आपसे रिक्वेस्ट कर रही हूँ, प्लीज़..."

    कोहिनूर आख़िरकार रोते हुए, गिड़गिड़ाते हुए शब्द कहने लगी। वह इससे ज़्यादा कर भी क्या सकती थी? दास्तान ने जब यह सुना तो वह थोड़ा चौंका, लेकिन वह नाराज़ नहीं दिखा। उसने कोहिनूर की आँखों में देखते हुए कहा—

    "तुम मुझसे रिक्वेस्ट क्यों कर रही हो? तुम तो उन लड़कियों में से हो जो खुद आई हैं यहाँ... तो फिर यह सब तो तुम्हारा काम है ना? तुम्हारा काम है मुझे खुश करना।"

    "प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिये, सर... मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ... प्लीज़ मुझे छोड़ दीजिये..."

    कोहिनूर लगातार गिड़गिड़ा रही थी, भीख मांग रही थी। दास्तान उसके शब्दों में उलझा ज़रूर, लेकिन उसने उसे छोड़ा नहीं। बल्कि अपनी एक भौंह ऊपर उठाकर, एरोगेंट लहज़े में बोला—

    "किस बात की माफ़ी मांग रही हो तुम मुझसे, स्वीटहार्ट? तुम्हारी क़ीमत लगी है... और यकीन मानो, काफ़ी महंगी पड़ी हो तुम मुझे।"

    "नहीं सर... प्लीज़ सर, मैं इसके लिए तैयार नहीं हूँ... प्लीज़, आप मुझे हाथ मत लगाइए... प्लीज़, मैं आपके सामने रिक्वेस्ट कर रही हूँ..."

    कोहिनूर आख़िरी कोशिश करते हुए सिर्फ़ दास्तान के सामने गिड़गिड़ा रही थी और हकलाते हुए खुद को छोड़ देने की भीख मांग रही थी। दास्तान अभी भी उसकी बात नहीं समझ पा रहा था। कोहिनूर उन लड़कियों के साथ आई थी जो आज रात कमरे में दूसरों की इच्छाओं की पूर्ति कर रही थीं। तो ऐसे में कोहिनूर उसे क्यों मना कर रही थी, जबकि दास्तान ने तो कोहिनूर के लिए अच्छी-खासी क़ीमत चुकाई थी।

    "रोना बंद करो, स्वीटहार्ट..."

    दास्तान ने कहा तो कोहिनूर उसकी बात सुनकर ठहर सी गई। उसने कोहिनूर को एक नाम दिया था—एक सुंदर सा नाम—स्वीटहार्ट। यह नाम उसके अपने नाम से बिलकुल अलग था, लेकिन फिर भी यह नाम उसे कहीं न कहीं जुड़ा हुआ महसूस हो रहा था। पर दास्तान की बात भी सही थी। उसने कोहिनूर की क़ीमत दी थी और कोहिनूर जिस जगह से आई थी, वहाँ के नियम एक जैसे थे—अगर पैसा लिया है, तो सामने वाले को खुश करो। इसलिए पीछे हटना वहाँ के उसूलों में नहीं था। उसे बहुत बुरा लग रहा था—दास्तान ने उसकी क़ीमत दी थी, और अब उसे वह चीज़ नहीं मिल रही थी जिसकी क़ीमत चुकाई गई थी।

    कोहिनूर के आँसू अभी भी बह रहे थे और वह धीरे-धीरे सिसक रही थी। उसकी आँखों में आँसू देख दास्तान के दिल पर जैसे अंगारे गिरने लगे। उसने धीरे से कोहिनूर के दोनों हाथ छोड़ दिए, लेकिन खुद अब भी उसके बेहद करीब था। कोहिनूर के हाथ धीरे-धीरे नीचे आए तो दास्तान उसकी आँखों में देखकर बोला,

    "मैंने कहा ना, रोना बंद करो। मुझे तुम्हारी आँखों में आँसू बिलकुल अच्छे नहीं लगते... और तुम रोती हुई भी अच्छी नहीं लग रही हो। इसलिए गहरी साँस लो और मुझे बताओ कि तुम क्यों नहीं चाहतीं कि मैं तुम्हारे साथ कुछ करूँ? और अगर ऐसा ही था, तो फिर तुम इन लड़कियों के साथ आई ही क्यों? तुम भी तो उन्हीं में से एक हो ना... उन सबकी भी क़ीमत लगी है और वो सब अपने पार्टनर्स को खुश कर रही हैं... तो फिर तुम मुझे इंकार क्यों कर रही हो?"

    कोहिनूर होते-होते गला साफ़ करती है और धीरे से कहती है,

    "क्योंकि मुझे यहाँ ज़बरदस्ती लाया गया है। मैं यहाँ नहीं आना चाहती थी, पर मुझे यहाँ ज़बरन भेजा गया... प्लीज़ सर, मुझे माफ़ कर दीजिये... प्लीज़ मुझे जाने दीजिये..."

    कोहिनूर की बात सुनकर दास्तान थोड़ी देर के लिए हैरान रह गया। लेकिन फिर उसके चेहरे पर एक हँसी आ गई। वह हँसते हुए कोहिनूर को देखने लगा और धीरे से उसकी आँखों में देखा। लेकिन उसकी हँसी अब भी गायब नहीं हुई थी। कोहिनूर उसे देखकर एकदम हैरान रह गई। उसने सब कुछ बता दिया था, फिर भी दास्तान हँस क्यों रहा था?

    दास्तान ने हँसते हुए धीरे से उसकी कमर पकड़ ली और उसे दीवार से कसकर लगा दिया। कोहिनूर अचानक डर गई और बड़ी-बड़ी आँखों से दास्तान को देखने लगी। तो दास्तान बोला,

    "बस इसलिए तुम इतनी घबरा रही हो? क्योंकि आज तुम्हारा पहली बार है?"

    कोहिनूर की साँसें तेज़ चलने लगीं। वह हैरानी से दास्तान को देख रही थी। दास्तान अपनी डैशिंग मुस्कान के साथ उसे देखकर बोला,

    "तुम्हारे इस बिज़नेस में यह आम बात है। हर लड़की मर्ज़ी से नहीं आती, मज़बूरी से आती है... और वही मज़बूरी धीरे-धीरे आदत बन जाती है। जिस जगह से तुम आई हो, वहाँ के यही उसूल हैं। तुम आज पहली बार आई हो, फिर दूसरी बार आओगी... फिर बार-बार आती रहोगी। तुम्हारे साथ जो लड़की आई है, वह भी कभी न कभी पहली बार ही आई होगी। शायद उसे भी ज़बरदस्ती भेजा गया होगा, लेकिन आज देखो—वह सब अपनी मर्ज़ी से आती हैं, अपना काम करती हैं। भूल जाओ कि तुम्हें यहाँ ज़बरन लाया गया है... बल्कि जिस काम के लिए लाया गया है, उस पर ध्यान दो।"

    इतना कहते हुए दास्तान ने अपने हाथ कोहिनूर की ड्रेस की ज़िप पर रख दिया और धीरे-धीरे ज़िप खोलने लगा। उसकी ड्रेस आधी से ज़्यादा खुल चुकी थी। कोहिनूर ने कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी आख़िरी साँस को गले में उतारते हुए हल्की और मध्यम आवाज़ में कहा,

    "प्लीज़ सर, मुझे छोड़ दीजिये... मैं सिर्फ़ सत्रह साल की हूँ।"

    दास्तान के हाथ रुक गए। उसकी आँखें बड़ी हो गईं। वह एकदम से कोहिनूर को छोड़ देता है और चार कदम पीछे हट जाता है... लेकिन तब तक दास्तान ने कोहिनूर की ड्रेस आधी से ज़्यादा उतार दी थी... और जैसे ही उसने उसे छोड़ा, उसकी चोली अपने आप नीचे गिर गई...

  • 13. तुम्हें मसाज तो आती होगी - Chapter 13

    Words: 1283

    Estimated Reading Time: 8 min

    संयम और वैशाली का कैमरा…

    वैशाली कमरे के बीचों-बीच खड़ी थी, पर उसकी निगाहें बार-बार दरवाज़े की ओर जा रही थीं। संयम सोफे पर बैठा था। उसके सामने वाइन की एक बोतल खुली हुई थी और टेबल पर दो गिलास रखे थे। उसने अपनी ग्लास में वाइन डाली और उसे पी रहा था, लेकिन उसकी नज़रें लगातार वैशाली पर ही थीं।

    वैशाली घबराते हुए कभी कमरे में इधर-उधर देखती, कभी दरवाज़े की तरफ। जब से वैशाली कमरे में आई थी, तब से उसकी निगाहें कभी दरवाज़े पर, कभी बेचैन सी अपनी उंगलियों पर… जैसे कि वो किसी खास पल का इंतज़ार कर रही हो।

    संयम अपनी ड्रिंक की चुस्की लेते हुए वैशाली को देखकर मुस्कुराया।
    "क्या बात है… बड़ी बेचैनी से दरवाज़े की तरफ देखा जा रहा है… कोई आने वाला है क्या?"

    वैशाली एकदम से घबरा गई। उसने जल्दी से गर्दन ना में हिलाते हुए कहा,
    "न-नहीं… साहब यहां कौन आएगा…"

    संयम ज़ोर से हँस पड़ा। हँसते हुए बोला,
    "क्या पता, शायद तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड… या लवर? जो तुम्हें मुझे बचाने के लिए आने वाला हो?"

    संयम की बात सुनकर वैशाली के चेहरे पर एक गमगीन सी मुस्कान आ गई। उसने हल्के से खुद पर हँसते हुए कहा,
    "शरीर का सौदा करते हैं, दिल का नहीं।
    बाज़ार में ज़रूर रहते हैं, लेकिन मोहब्बत की दुकान नहीं खोली है।
    हमारे बाज़ार में हर चीज़ का रेट है… सिवाय जज़्बातों के।"

    वैशाली की बात सुनकर संयम हँसने लगा। वो ऐसे हँस रहा था जैसे कोई बड़ी मज़ेदार बात सुन ली हो। अपने सिर को सोफे की पुश्त पर टिकाते हुए भी संयम की हँसी नहीं रुक रही थी। उसने अपने ड्रिंक का गिलास वैशाली की तरफ बढ़ाते हुए कहा,
    "मुझे नहीं पता था कि एक तवायफ भी मोहब्बत और जज़्बातों की बातें करती है… साउंड्स इंटरेस्टिंग!"

    वैशाली ऐसी बातें सुनने की आदी थी। उसने एक गमगीन मुस्कान के साथ खुद पर ही हँसते हुए कहा,
    "हमारी तो ज़िंदगी ही मज़ाक है साहब…
    और आपको मेरी बातें मज़ाक लग रही हैं तो कोई बड़ी बात नहीं…
    हम पर तो ऊपर वाले ने हँस दिया… आप भी हँस लेंगे तो क्या ही चला जाएगा।
    लेकिन फिर भी… सब हँसी-मज़ाक से रेट नहीं बदलेगा…"

    वैशाली की ये बात सुनकर संयम की हँसी थम गई। वो घूरती हुई नज़रों से वैशाली को देखने लगा। उसने सामने रखे खाली गिलास की तरफ देखा और बोला,
    "तुम सच में नहीं पीती हो?"

    "हर तवायफ शराबी हो, ये ज़रूरी तो नहीं है ना।
    शराब का नशा तो फिर भी एक वक्त के बाद उतर जाता है…
    लेकिन तवायफ का नशा… एक ऐसा नशा है जो अगर चढ़ जाए…
    तो ता-उम्र नहीं उतरता।
    इसीलिए मैं हर रोज़ दुआ में ऊपर वाले से बस यही माँगती हूँ…
    कि किसी को भी नशे की आदत ना लगे।"

    संयम के चेहरे पर मुस्कान और गहरी हो गई। उसने अपनी ड्रिंक को खत्म करके गिलास टेबल पर रखा और अपने दोनों हाथ सोफे पर फैलाते हुए कहा,
    "ठीक है… पीती नहीं हो… पिलाना तो जानती हो ना?"

    वैशाली हैरानी से संयम को देख रही थी।
    संयम आगे बोला,
    "शराब में अगर शबाब मिल जाए…
    तो वो शराब, शराब नहीं… सुरूर बन जाता है।"

    वैशाली के चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं थे। वो धीरे-धीरे चलते हुए संयम के पास आई। वो सोफे के पास घुटनों के बल बैठ गई। टेबल से बोतल उठाकर उसने खाली गिलास में वाइन भरी और वो गिलास संयम की तरफ बढ़ा दिया।

    वैशाली ने ग्लास ठीक अपने और संयम के चेहरे के बीच रखा था। संयम को उस जाम के रिफ्लेक्शन में वैशाली की बड़ी-बड़ी, काजल से भरी आँखें नज़र आ रही थीं। संयम ने अपनी उंगलियाँ गिलास पर रखते हुए वैशाली का हाथ हल्के से साइड किया और अब वैशाली का चेहरा उसके सामने पूरी तरह से आ चुका था…


    बड़ी हुस्न से वो हुसन नजर आया,
    हर दिल में जैसे क़त्ल का मंजर छाया।
    नजरे मिलीं तो आशिक दिल थाम बैठा,
    मौत भी मुस्कुरा दी, इश्क़ ऐसा समाया।

    संयम का शायराना अंदाज़ वैशाली को एकदम से डरा देता है और उसके हाथों से गिलास छूट जाता है। वो डरकर पीछे हो जाती है और घबराई हुई नज़रों से संयम को देखने लगती है।

    संयम की आँखें छोटी हो गईं। उसने तो वैशाली के हुस्न पर बस चार लाइनें ही तो बोली थीं। जिसे सुनकर अगर कोई और लड़की होती, तो शर्मा जाती… या फिर कम से कम संयम की तरफ देखती। लेकिन ये लड़की तो बहुत अलग थी। ये तो करने के बजाय उल्टा डर रही थी।

    संयम हैरानी से वैशाली को देखता है। और वैशाली घबराते हुए अपना चेहरा इधर-उधर करने लगती है।
    उसने जल्दी से कहा,
    "माफ कर दीजिए साहब… गलती से गिलास छूट गया। आप कहें तो मैं ये साफ कर देती हूं।"

    पर संयम ने उसे अपना हाथ दिखाकर रोकते हुए कहा,
    "नहीं… इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। ये सब रूम सर्विस कर लेगी। तुम अपना काम करो।"

    वैशाली जल्दी से अपना सिर हिलाती है। उसके बाद उसने अपने कंधे पर रखा हुआ दुपट्टा उतार दिया और साइड में फेंक दिया। फिर वो अपने ब्लाउज़ के हुक खोलने लगती है।

    लेकिन जैसे ही संयम ये देखता है, वो जल्दी से कहता है,
    "ये क्या कर रही हो?"

    वैशाली तुरंत बड़ी-बड़ी आंखों से संयम को देखकर बोली,
    "जी? मतलब… मैं समझी नहीं… मैं तो अपना काम कर रही हूं।"

    संयम एक गहरी सांस छोड़ते हुए उसे देखकर बोला,
    "अभी नहीं… मेरा मतलब है, इतनी जल्दी नहीं है। तुम्हें इन सबका एक्सपीरियंस है, लेकिन मैं चीज़ें थोड़ी स्लो शुरू करता हूं… मुझे जल्दबाज़ी पसंद नहीं है।"

    फिर संयम एक अंगड़ाई लेते हुए अपने दोनों पैर सामने टेबल पर रखते हुए कहता है,
    "पता नहीं क्यों, शाम से ही मेरी बैक में बहुत पेन हो रहा है… और बदन भी टूट रहा है। तुम्हें मसाज तो आती होगी?"

    वैशाली हैरानी से संयम को देखती है। उसने धीरे से अपना सिर ना में हिलाते हुए कहा,
    "जी नहीं… मुझे मसाज नहीं आती है। अभी तक किसी कस्टमर ने करवाया ही नहीं… और ना ही कभी ज़रूरत पड़ी है।"

    संयम के चेहरे पर एक एरोगेंट स्माइल आ जाती है और वो कहता है,
    "अगर नहीं किया है तो ठीक है, आज करके देख लो। अगर मुझे पसंद आया, तो इसके पैसे अलग से दूंगा।"

    वैशाली गहरी नज़र से संयम को देखती है, उसकी बातों में छिपा घमंड साफ़ महसूस करते हुए बेहद ठंडे लहजे में जवाब देती है—
    "मैं कोठे की ज़रूर हूं साहब… पर अपनी मेहनत का खाती हूं। किसी पर बोझ नहीं हूं।
    आप जैसी नज़रों से देखा जाना तो आदत है…
    जो औरत खुद की क़ीमत तय करना जानती है, वो किसी और की क़ीमत पर नहीं बिकती।
    अपने पैसे अपने पास रखिए… मुझे बस उतना दीजिए जितना मैं काम करूंगी।
    और इस मसाज को आप मेरी तरफ़ से उपहार समझकर रख लीजिए।"

    वैशाली के शब्दों में कटाक्ष और तीखापन था, लेकिन संयम को मज़ा आ रहा था। वो हंसने लगता है। हंसते हुए ड्रेसिंग टेबल की तरफ इशारा करते हुए कहता है,
    "तेल उधर है।"

    वैशाली एक नज़र ड्रेसिंग टेबल को देखती है, फिर संयम को, और फिर वहाँ चली जाती है। उसने तेल की शीशी ली और संयम की तरफ आ गई। लेकिन जैसे ही वो सोफे के पास आती है, वो हैरानी से संयम को देखती है और पूछती है—
    "कपड़े?"

    संयम बेफिक्री से कहता है,
    "हाँ, पहने हैं मैंने।"

    वैशाली की आँखें छोटी हो जाती हैं। उसने तंज करते हुए कहा,
    "तो आप चाहते हैं मैं तेल आपके कपड़ों के ऊपर से लगाऊं?"

    संयम के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ जाती है। उसने अपनी एक आइब्रो उठाकर वैशाली को देखते हुए कहा—
    "अब गिफ्ट मिल ही रहा है तो पूरी तरह से मिले… देने वाला खुद आकर मुझ पर ये मेहरबानी क्यों नहीं करता?"

  • 14. तुम अभी भी कुंवारी हो? - Chapter 14

    Words: 1167

    Estimated Reading Time: 8 min

    वैशाली समझ गई कि संयम क्या कहना चाहता है। वो चाहता था कि वैशाली उसके कपड़े खुद उतारे।

    वैशाली धीरे से उसके पास आई और तेल की शीशी टेबल पर रखी। झुकते हुए उसने अपने हाथों से संयम की शर्ट के बटन खोलने शुरू किए। उसने ऊपर से शुरुआत की और धीरे-धीरे सभी बटन खोल रही थी। लेकिन जैसे ही वो झुकी, संयम की नज़र उसके ब्लाउज़ पर चली गई। अचानक से संयम का गला सूखने लगा और उसकी आँखें वैशाली के ऊपर ही टिक गईं। वो खुद को बहुत ज़्यादा restless महसूस करने लगा।

    अचानक से उसने वैशाली की कलाई पकड़ ली। वैशाली संभल नहीं पाई क्योंकि वो बैलेंस में नहीं थी, और अचानक से संयम के ऊपर गिर गई। संयम ने उसकी कमर थामते हुए उसे अपने करीब कर लिया। वो दोनों एक-दूसरे से चिपके हुए थे और दोनों की ही साँसें भारी हो गई थीं।

    हालाँकि वैशाली के लिए ये सब नया नहीं था, लेकिन जिस तरीके से संयम ने उसे अपने करीब किया था, वो उसके लिए अनएक्सपेक्टेड था। संयम उसकी आँखों में देखकर धीरे से कहता है—

    "कितना वक़्त हो गया है तुम्हें ये काम करते हुए?"


    वैशाली, जो अब तक संयम के चेहरे पर एक अजीब सा नशा देख रही थी, उसके सवाल से होश में आई। उसने जल्दी से खुद को संभाला और अपना चेहरा दूसरी तरफ करते हुए कहा,

    "माफ कीजिए साहब, पर हम अपनी पर्सनल लाइफ कस्टमर के साथ शेयर नहीं करते। आपने मेरी आज रात की कीमत दी है, और आज रात जो चाहें वो कर सकते हैं। लेकिन कल सुबह आप भी मेरे लिए बाकी लोगों की तरह बस एक रात के अजनबी होंगे। जैसे पिछली रातों के बाद मैं अपने किसी कस्टमर को याद नहीं रखती, वैसे ही आपको भी याद रखना ज़रूरी नहीं समझूंगी। इसलिए आज रात के लिए सिर्फ अपनी सर्विस लीजिए... जान-पहचान और मेलजोल बढ़ाने का धंधा नहीं है हमारा।"


    संयम उसकी बात सुनकर हैरानी से वैशाली को देखने लगा। वैशाली की उम्र के हिसाब से वो काफी बड़ी बातें कर रही थी... शायद इस दुनिया ने ही उसे ऐसा बना दिया था... वक़्त से पहले समझदार।


    कोहिनूर दीवार से लगी हुई थी और उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे। उसकी चोली ज़मीन पर गिरी हुई थी और उसने अपने दोनों हाथों से खुद को ढका हुआ था। हालाँकि उसके छोटे-छोटे नाज़ुक हाथ उसे पूरी तरह से ढकने में नाकाम थे, लेकिन उसके अलावा वो और कर भी क्या सकती थी? एक कपड़े के सहारे वो खुद को ढके हुए थी। वो कपड़ा तो ज़मीन की धूल चाट रहा था।

    दास्तान की आँखें बड़ी हो गईं और वो हैरानी से कोहिनूर को देख रहा था। उसने कोहिनूर को ऊपर से नीचे तक देखा। हैरानी से वो पूछ बैठा—

    "तुम... सत्रह साल की हो?"


    कोहिनूर के आँसू तेज़ हो गए थे। उसने जल्दी से अपना सिर बड़ी सी 'हाँ' में हिलाया—वो भी दो-तीन बार, जैसे वो अपने ही शब्दों की पुष्टि कर रही हो।

    दास्तान ने एक हाथ अपनी कमर पर रखा और दूसरे हाथ से बालों में उंगलियाँ फेरते हुए मुट्ठी कस ली। शायद इस वक़्त वो अपना फ्रस्ट्रेशन निकाल रहा था। इस लड़की ने कुछ ही पलों में उसे इस कदर पागल कर दिया था कि वो उसे पाने के लिए आगे बढ़ ही रहा था, पर तभी कोहिनूर ने ये ऐलान कर दिया कि उसकी उम्र दास्तान की इच्छाओं से बहुत छोटी है… और दास्तान की सारी इच्छाएँ जैसे पानी में बह गईं।

    दास्तान गुस्से में इधर-उधर टहलते हुए एक नज़र कोहिनूर पर डालता है—ये लड़की… अगर वो उसे पाने के लिए एक कदम और बढ़ा लेता, तो शायद इस हद तक जुनूनी हो जाता कि सब कुछ भूल जाता।

    दो मिनट तक तो गुस्सा उफान पर था, लेकिन फिर अचानक जैसे वो गुस्सा कहीं खो गया और दास्तान पूरी तरह शांत हो गया। उसके बेचैन कदम जो इधर-उधर भटक रहे थे, अचानक एक जगह थम गए। वो हैरानी से कोहिनूर को देखने लगा। वो उसे ऊपर से नीचे तक नज़रें घुमाकर देख रहा था, अंदाज़ा लगा रहा था कि जो बात उसके दिमाग में चल रही है, वो सही है या नहीं।

    दास्तान सीधा कोहिनूर के पास आया और उसके एक कदम सामने खड़ा हो गया। कोहिनूर की पलकें झुकी हुई थीं। दास्तान के जूते फिर से उसकी आँखों के सामने थे, और उसका चेहरा एक बार फिर डर से काँपने लगा।

    क्या ऐसा हो सकता है कि दास्तान को उसके नाबालिग होने से कोई परहेज़ न हो? क्या वो अब भी उसके साथ रिश्ता बनाना चाहता है?

    पर अगले ही पल दास्तान के सवाल ने कोहिनूर को सोचने पर मजबूर कर दिया। दास्तान धीरे से उसके चेहरे की ओर झुकते हुए कहता है—

    "इसका मतलब... तुम अभी भी कुंवारी हो?"


    दास्तान के ये शब्द कोहिनूर को अब तक याद हैं। उससे बात करते वक़्त दास्तान की नज़रों में नज़र मिलाकर बात करनी थी। वो धीरे से अपना चेहरा उठाती है और उसकी आँखों में देखते हुए हल्का सा सिर हाँ में हिलाती है।

    दास्तान के चेहरे के हावभाव को कोहिनूर ठीक से समझ नहीं पाई, लेकिन वो खुश लग रहा था। उसके चेहरे पर मुस्कान थी—सिर्फ मुस्कान नहीं, बल्कि एक हल्की सी राहत और सुकून की परछाईं। ऐसा लग रहा था जैसे ये सुनकर वो बहुत खुश हो गया हो।

    अपनी खुशी को ज़ाहिर किए बिना, दास्तान कोहिनूर के और करीब आया। उसने धीरे से कोहिनूर के चेहरे के पास अपना चेहरा लाया और दोनों हाथों से उसकी कलाई थाम ली।

    कोहिनूर डर गई थी। उसने खुद को समेटा हुआ था, अपने आप को छुपाने की कोशिश कर रही थी। दास्तान उसकी आँखों में देखता हुआ और पास आया, और बोला—

    "तो तुम अठारह की कब होगी?"


    इस सवाल ने कोहिनूर को भी बेचैन कर दिया। दास्तान जानना चाहता था कि वो बालिग कब होगी… और वो क्यों ये जानना चाहता है, ये भी कोहिनूर समझ रही थी।

    कोहिनूर ने उसे सच बताना ज़रूरी नहीं समझा… पर दास्तान की नज़रें ऐसी थीं, जो किसी के दिल से उसके राज खींच कर ज़ुबान तक ले आती थीं। कोहिनूर ने अपनी पलकें नीचे झुका लीं, क्योंकि वो आँखों में आँखें डालकर झूठ नहीं बोल पा रही थी।

    उसने धीमे से कहा—

    "अगले साल फरवरी में..."


    अचानक उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। क्योंकि ये पहली बार था जब उसने किसी से इस तरह का झूठ बोला था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मायूसी छा गई थी। वो ईश्वर पर यकीन करती थी और हमेशा सच बोलती थी। लेकिन आज… उसने पहली बार झूठ बोला था।

    और यही झूठ उसे अपराधबोध की ओर धकेल रहा था।

    हकीकत ये थी कि उसे अठारह की होने में सिर्फ़ तीन महीने बचे थे। वो तीन महीनों में बालिग हो जाएगी।

    जैसा कि होना था, दास्तान को शक हो गया कि कोहिनूर कुछ छुपा रही है। जब उसने कहा कि वो अगले साल फरवरी में अठारह की होगी, तो दास्तान के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान उभर आई।

    वो धीरे से बोला—"लेकिन अभी तो मार्च है ना, स्वीटहार्ट...

  • 15. वो इस पाप का खिलौना बन चुकी थी, - Chapter 15

    Words: 1114

    Estimated Reading Time: 7 min

    कोहिनूर ने दास्तान से झूठ बोलने की कोशिश की थी, लेकिन दास्तान ने शायद उसका झूठ पकड़ लिया था। उसकी पकड़ कोहिनूर के हाथों पर कस गई थी, और कोहिनूर को इस बात का एहसास हो गया था कि भागने की जल्दबाजी में उसने शायद कुछ गलत कह दिया था। धीरे से अपनी नज़रें उठाकर कोहिनूर ने दास्तान को देखा। दास्तान ने देखा कि उसकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं।

    दास्तान के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। उसने कोहिनूर को देखते हुए कहा, "मैं समझ सकता हूँ कि तुमने घबराते हुए मुझसे झूठ बोला है।"

    "नहीं, नहीं, मैंने आपसे झूठ नहीं बोला..." कोहिनूर डरते हुए कहती है। दास्तान हँस पड़ता है। मतलब कि वह अभी भी अपनी बात पर अड़ी हुई थी।

    दास्तान अभी भी कोहिनूर को दीवार से लगाए, उसके बेहद करीब खड़ा था। उसने कोहिनूर की आँखों में देखते हुए कहा, "ठीक है, तो मैं अभी तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा।"

    उसके ऐसा कहते ही कोहिनूर की आँखें एकदम से चमक गईं और वह दास्तान को देखने लगी। वह इस बात पर विश्वास करना चाहती थी कि क्या दास्तान सच में जो कह रहा है, वह सच है। और अगर यह सच था, तो वह मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी कि भगवान ने उसे इस जंजाल से बचा लिया है।

    अचानक से दास्तान कोहिनूर के चेहरे के बेहद करीब आ गया और अपने गालों को उसके गालों से लगाने लगा। कोहिनूर का पूरा चेहरा डर से भर गया था। उसकी ऊपर की बॉडी पर वैसे भी कुछ नहीं था और दास्तान ने उसे अपनी बॉडी से लगाकर दीवार से जोर से दबा रखा था। दास्तान उसके कानों के पास झुककर फुसफुसाते हुए कहता है, "क्योंकि मैं तुम्हारे 18 साल की होने का इंतज़ार करूँगा... अगर तुम अब तक कुंवारी हो तो तुम्हें अपने 18 साल की होने तक कुंवारी ही रहना है।"

    दास्तान उसके गर्दन पर अपनी गरम साँस छोड़ते हुए यह कह रहा था और उसकी हर एक शब्द पर कोहिनूर की साँसें अटक रही थीं। पर दास्तान इतने में ही कहाँ रुकने वाला था... उसने खुद को आगे बढ़ने से रोका था, बस इतना ही काफी था, लेकिन जो आग आज उसके अंदर जल रही थी, उसे शांत करना भी तो ज़रूरी था।

    वह धीरे से कोहिनूर के कानों के पास अपने होंठ रखता है और उसे किस करने लगता है। उसके ऐसा करते ही कोहिनूर की रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई और उसका पूरा शरीर एकदम से जकड़ गया। वह अपने हाथों से दास्तान को खुद से दूर करने की कोशिश करती है, लेकिन दास्तान ने उसके दोनों हाथों को पकड़कर ऊपर कर दिया और दीवार से चिपका दिया। उसके होंठ एक पल के लिए भी कोहिनूर की गर्दन से नहीं हट रहे थे और उसके दूसरे हाथ कोहिनूर की कमर पर बेरहमी से मसल रहे थे।

    कोहिनूर दास्तान के नीचे किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी। उसके मुँह से दर्द भरी आहें निकल रही थीं। वह अपने निचले होंठ को दबाते हुए चीखने से खुद को रोक रही थी, लेकिन दास्तान के हाथ जिस तरीके से उसे दर्द दे रहे थे, वह बहुत ज़्यादा... बहुत ज़्यादा दर्दनाक था।

    धीरे-धीरे दास्तान ने उसकी गर्दन से उठते हुए उसके सीने पर होंठ रखे और वहाँ अपने दाँतों से हिक्की के निशान बनाने लगा।

    "प्लीज सर, प्लीज मत कीजिए... प्लीज मुझे छोड़ दीजिए..." कोहिनूर गिड़गिड़ाई, लेकिन दास्तान ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं थी या फिर जानबूझकर अनसुना कर दिया था। वह उसे लगातार किस करता रहा और उसकी गर्दन से लेकर सीने तक गहरे लाल-बैंगनी निशान बनाता रहा।

    दास्तान की वह गरम साँसें कोहिनूर अपने ऊपर महसूस कर सकती थी और उसका काँपता हुआ बदन दास्तान को और ज़्यादा तड़पा रहा था। आख़िरकार कोहिनूर ने हार मान ली और दास्तान को जो करना था, वह करने दिया। उसने संघर्ष करना बंद कर दिया।

    दास्तान ने उसकी पूरी गर्दन से लेकर सीने तक इतने ज़्यादा निशान बना दिए थे कि कोहिनूर इन्हें दिन में भी नहीं छुपा सकती थी।

    कोहिनूर को बस अपनी इज़्ज़त की परवाह थी... वह इसे खोना नहीं चाहती थी।

    काफी देर तक उसे किस करने के बाद दास्तान हटते हुए कोहिनूर के कानों के पास आता है और अपनी गरम-सर्द साँसें उसके कानों में छोड़ते हुए कहता है,

    "तुम्हें मेरा शुक्रिया अदा करना चाहिए कि मैं इस वक़्त बस इतने में ही खुद को संतुष्ट कर रहा हूँ। मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि इस वक़्त मैं क्या महसूस कर रहा हूँ... और तुम्हारी जगह इस वक़्त यहाँ कोई और होती ना तो वह मेरे सामने इस तरीके से खड़ी नहीं हो पाती... मैं उसकी ऐसी हालत कर देता कि खड़ा होना तो दूर की बात है, वह अपने पैरों पर चल भी नहीं सकती थी।"

    कोहिनूर के आँसू और भी ज़्यादा तेज हो गए। उसने अपने दोनों होठों को कसकर दबा लिया था और सिसकियों में रोने की कोशिश कर रही थी। वह इस पाप का खिलौना बन चुकी थी, वह लोगों के सामने बेचे जाने वाला एक सामान बन चुकी थी।

    अपने आप को बचाने की हिम्मत में वह आख़िरकार टूटने की कगार पर आ ही चुकी थी।

    दास्तान उसके चेहरे से अपना चेहरा थोड़ा सा दूर करता है और कोहिनूर के गालों, उसकी गर्दन और सीने पर अपने दिए हुए निशानों को देख रहा था।

    वह धीरे से आगे बढ़ता है और अपनी जीभ से उन निशानों को छूते हुए अपने होठों का ठंडापन उन पर दे रहा था।

    पहले तो कोहिनूर को उन निशानों पर जलन महसूस हो रही थी, लेकिन जब उसने दास्तान के ठंडे होठों को अपने जख्मों पर महसूस किया तो वह पूरी तरह से काँप गई।

    उसकी नाभि के पास अजीब सी जकड़न होने लगी और उसकी आँखें खुलने का नाम ही नहीं ले रही थीं।

    धीरे-धीरे दास्तान उसके हर एक जख्म पर अपने गीले होठों से नरमी का एहसास करा रहा था, जिसे महसूस करते हुए कोहिनूर भी धीरे-धीरे शांत हो गई और उसके आँसू भी बंद हो गए थे।

    जब कोहिनूर पूरी तरह से शांत हो गई तो अब कमरे में बस साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही थी, लेकिन इस बीच भी दास्तान ने उसे खुद से दूर नहीं किया था।

    कोहिनूर ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं और दास्तान को देखने लगी, जिसकी निगाहें अभी भी उसी पर टिकी थीं।

    उसने अपनी कर्कश और मध्यम आवाज़ में कोहिनूर को देखा और आगे बढ़कर धीरे से अपने होठों को उसकी गीली पलकों पर रख दिया।

    कोहिनूर के लिए यह एक अलग एहसास था, ऐसा लग रहा था जैसे कि वह जो डर रही थी वह डर उसके दिल से अचानक गायब हो गया हो।

    दास्तान उसे देखते हुए बोला,

    "जब तक सुबह नहीं हो जाती, कमरे से बाहर मत निकलना।"

  • 16. अंदर की आग़ को शांत करना जरूरी है - Chapter 16

    Words: 1156

    Estimated Reading Time: 7 min

    कोहिनूर उलझन भरी निगाहों से उसे देख रही थी और हैरान हो रही थी।

    दास्तान ने धीरे से अपनी शर्ट उतारी और कोहिनूर के कंधे पर रख दी।

    कोहिनूर उस शर्ट में पूरी तरह ढक गई थी।

    दास्तान ने अपनी शर्ट को कोहिनूर के सामने रखते हुए कहा, " देखो।" कोहिनूर ने उसे जल्दी से दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया और हैरानी से दास्तान को देख रही थी।

    दास्तान का चौड़ा सीना, उसके सिक्स पैक एब्स और पॉलिश की हुई बॉडी किसी अट्रैक्टिव एथलीट से कम नहीं लग रही थी।

    उसके बाइसेप्स देखकर कोहिनूर हैरान हो गई थी।

    'ये जिम में कितना टाइम बिताता होगा...' उसके मन में सवाल उठा।

    दास्तान ने फिर बेड की तरफ इशारा किया।

    कोहिनूर असमंजस में थी। दास्तान उसे बेड पर जाने के लिए क्यों कह रहा था? कहीं उसने अपना इरादा तो नहीं बदल लिया? वैसे भी, मर्दों को अपना इरादा बदलने में ज़्यादा समय नहीं लगता।

    उसकी आँखों के डर और घबराहट को देखकर दास्तान को हँसी आ गई। उसने कहा,

    "मैंने कहा ना, मैं अभी तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा। और जब मैं कह चुका हूँ कि नहीं करूँगा, तो मतलब नहीं करूँगा। लेकिन अगर तुम यहीं खड़ी रहीं तो यकीन मानो स्वीटहार्ट, मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि किसी की ना को हाँ में कैसे बदला जाता है।"

    कोहिनूर की आँखें एकदम बड़ी हो गईं और उसके बाद वह सीधे उड़ती हुई बेड पर जा गिरी। बेड पर पहुँचते ही उसने तकिए पर सिर रख दिया और बेडशीट को अपने ऊपर ले लिया। उसके बाद वह ऐसे सो गई जैसे मर गई हो।

    उसकी इस मासूमियत पर दास्तान को फिर से हँसी आ गई। अब उसे समझ में आ रहा था कि अब तक बाज़ार में रहने के बावजूद कोहिनूर क्यों इसका हिस्सा नहीं बन पाई थी—शायद इसकी वजह उसकी यही मासूमियत थी।

    दास्तान धीरे से आगे बढ़ा और कमरे की सारी लाइट्स ऑफ कर दीं। कोहिनूर के कानों में बटन दबाने की आवाज़ आ रही थी, और उसे एहसास हो रहा था कि शायद पूरे रूम में अंधेरा हो गया है। इमरजेंसी लाइट की हल्की येलो रोशनी में कमरा चमक रहा था।

    उसके बाद कोहिनूर को कमरे में कदमों की आहट सुनाई दी। कहीं दास्तान उसके करीब तो नहीं आ रहा? उसने बेडशीट को कसकर अपने आप से लिपटा लिया और सिर को तकिए के नीचे ऐसे दबा लिया जैसे उसमें समा जाना चाहती हो।

    दो मिनट बाद कदमों की आहट बंद हो गई। वह हैरान हो गई—कहीं दास्तान चला तो नहीं गया?

    कछुए की तरह ब्लैंकेट से धीरे से निकलते हुए उसने इधर-उधर देखा। पूरे कमरे में हल्का अंधेरा था, बस इमरजेंसी लाइट की हल्की सी रोशनी कमरे को देखने में मदद कर रही थी। पर जब उसने कमरे में नज़र दौड़ाई तो उसे दास्तान कहीं नज़र नहीं आया। थोड़ा सा और उठते हुए उसने देखा कि दास्तान आलीशान और बड़ी सी बालकनी में खड़ा है, सामने शहर का शानदार नज़ारा देख रहा है। उसके होठों पर जलती हुई सिगरेट थी, और धुआँ हवा में उड़ रहा था।

    सिगरेट एकलौती ऐसी चीज़ थी जिससे कोहिनूर को बहुत ज़्यादा नफ़रत थी। उसे सिगरेट की स्मेल से दम घुटता था। वह तो ऐसी जगह पर खड़ा होना भी पसंद नहीं करती थी। कोठे पर भी जब ऐसी स्मेल आती थी तो कोहिनूर बहुत परेशान हो जाती थी। इसीलिए वह शाम का ज़्यादा वक़्त छत पर बिताया करती थी।

    कोहिनूर देखती है कि ब्लैक पैंट में, बिना शर्ट पहने, अपनी एथलीट जैसी अट्रैक्टिव और हैंडसम बॉडी के साथ दास्तान बालकनी में खड़ा है और सिगरेट के कश ले रहा है। उसका चेहरा शहर की तरफ़ था इसलिए कोहिनूर को सिर्फ़ उसकी पीठ नज़र आ रही थी।

    दास्तान की सिगरेट खत्म हो गई थी। उसने सिगरेट को अपने जूते तले मसलते हुए जैसे ही कमरे की तरफ़ चेहरा घुमाया, उसकी नज़र बेड पर पड़ी। इसी पल कोहिनूर ने भी दास्तान को पलटते हुए देख लिया। उसने जल्दी से ब्लैंकेट फिर से अपने सिर पर डाल लिया—ऐसे जैसे उसे कुछ पता ही नहीं हो और वह सारी दुनिया से बेखबर गहरी नींद में सो रही हो। पर शायद दास्तान ने उसकी चोरी पकड़ ली थी।

    दास्तान धीरे से चलता हुआ कमरे में वापस आया और बेड के पास आकर कोहिनूर को देखने लगा। वैसे तो उसे इस वक़्त कोहिनूर नज़र नहीं आ रही थी क्योंकि उसने ब्लैंकेट से खुद को पूरी तरह ढक रखा था और लार्वा की तरह लग रही थी। दास्तान को अंदाज़ा हो गया था कि वह सो नहीं रही है, बस सोने का नाटक कर रही है। और इस वक़्त तो शायद वह नाटक भी ठीक से नहीं कर पा रही थी। यही सोचते हुए दास्तान वॉर्डरोब के पास गया, जहाँ इमरजेंसी के लिए गेस्ट के कपड़े रखे होते हैं। उसने वहाँ से एक सिंपल ओवरसीज़ शर्ट निकाली और पहन ली। उसके बाद वह सीधे कमरे से बाहर निकल गया। कोहिनूर ने दरवाज़ा खुलने और फिर लॉक होने की आवाज़ सुनी। वह हैरान हो गई—क्या सच में दास्तान कमरे से बाहर चला गया?

    दास्तान बाहर जाकर सीधे हॉल में पहुँचा। हॉल में लगे सोफे पर बैठते हुए उसने अपना सिर पीछे टिकाया और गहरी साँस ली, लेकिन सुकून उसे अब भी नहीं मिल रहा था। मिलता भी कैसे, उसका सुकून तो खुद कमरे में सुकून से सो रहा था।

    आँखें बंद करते ही दास्तान के सामने कोहिनूर का छोटा सा मासूम चेहरा आ गया, जिससे उसकी नज़रें हट ही नहीं रही थीं। पार्टी हॉल में भी कोहिनूर को चुनना उसके लिए कोई ऑप्शन नहीं था, बल्कि उसे देखते ही दास्तान ने बेचैनी, तड़प और पागलपन महसूस कर लिया था। उसने अपनी बेचैनी को जुनून के हवाले कर दिया था और उसे पाना चाहता था। लेकिन खुद को किस मुश्किल से रोक रहा था, यह बस वही जानता था।

    एक बार को दास्तान उसकी उम्र को नज़रअंदाज़ कर भी देता, तो भी उसे रोकने वाली चीज़ थी उसके आँसू। कोहिनूर की आँखों से बहते हुए आँसुओं ने दास्तान के दिल पर तेज़ाब का काम किया था। उसका सीना बुरी तरह जल रहा था। और उन आँसुओं की बूँदों ने पहली बार दास्तान को कमज़ोर होने का एहसास करवाया था।

    अपने जेब से फ़ोन निकालते हुए उसने संयम को कॉल कर दिया।

    संयम अपने कमरे में पेट के बल लेटा हुआ था। उसने बस एक ट्राउज़र पहन रखा था और उसके बगल में वैशाली बैठी थी, जो उसकी पीठ पर नरम उंगलियों से तेल लगा रही थी। संयम ने थाईलैंड में स्पेशल मसाज ली थी, इसलिए उसे मसाज का बहुत अच्छा एक्सपीरियंस था। वैशाली की नाज़ुक उंगलियों का स्पर्श उसे बहुत अच्छा लग रहा था।

    तभी उसका फ़ोन बजा। बिना स्क्रीन देखे उसने फ़ोन कान पर लगाया और चिढ़ते हुए बोला,

    "कौन है बे?"

    फ़ोन पर दास्तान की आवाज़ आई,

    "जिस हालत में है, उसी हालत में अभी के अभी हॉल में आ... वरना सारी ज़िंदगी किसी लड़की के साथ कमरे में जाने लायक नहीं रहेगा!"

  • 17. वो लड़की एक धंधे वाली है... - Chapter 17

    Words: 1663

    Estimated Reading Time: 10 min

    संयम को इस हालत में देखकर दास्तान की आँखें सिकुड़ गईं और वह उसे गुस्से में देखते हुए कहता है,

    "कपड़े तो पहन लेता!"

    संयम ने इरिटेट होते हुए कहा,

    "भाई, अभी आपने फ़ोन पर कहा था ना कि जिस हालत में हूँ, उसी हालत में आ जाऊँ... देखिए, बिल्कुल उसी हालत में आया हूँ।"

    दास्तान अपनी आँखें बंद कर लेता है और गहरी साँस छोड़ते हुए कहता है,

    "ऐसे ही किसी दिन तुझे कुएँ में कूदने के लिए कहूँगा तो क्या तू वो भी करेगा?"

    संयम बेफिक्री के साथ अपने कंधे उठाते हुए दास्तान के सामने आता है और सोफ़े पर उसके साथ बैठते हुए कहता है,

    "डिपेंड करता है सिचुएशन कैसी है। अगर मेरे कुएँ में कूदने से आपको खुशी मिलती है, तो खुशी-खुशी ये खुदकुशी भी कर लूँगा।"

    दास्तान के चेहरे पर एक एरोगेंट स्माइल आ गई, लेकिन वह जानता था कि संयम पर वह सबसे ज़्यादा भरोसा करता है।

    उसने संयम से कहा, "लगता है तू अपनी वाली के साथ कमरे में काफ़ी ज़्यादा इंजॉय कर रहा था।"

    इस पर संयम इरिटेट होते हुए बोला,

    "कहाँ इंजॉय कर रहा था भाई! एंजॉयमेंट तो बस शुरू ही हुआ था कि आपने बुला लिया। वैसे होना तो आपको भी इस वक़्त अपने कमरे में चाहिए था ना। आज रात के लिए आपने भी तो एक पार्टनर सिलेक्ट किया था... तो क्या हुआ? काम जल्दी ख़त्म हो गया या फिर इंटरेस्ट नहीं आया?"

    संयम लगभग हँसते हुए और दास्तान का मज़ाक उड़ाने वाले अंदाज़ में कहता है।

    दास्तान भी उसके नेचर से अच्छी तरह वाकिफ़ था, इसलिए उसकी बात को हँसी में उड़ाते हुए कहा,

    "इंटरेस्ट तो ऐसा है कि अब लगता है ये ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेगा। पर जहाँ तक बात रही काम ख़त्म होने की... तो वो तो शुरू भी नहीं हुआ था, उससे पहले ही उसने मेरे सिर पर वार करने की कोशिश कर दी।"

    संयम यह सुनकर चौंक जाता है और हैरानी से कहता है,

    "क्या? उसे... लड़की की इतनी हिम्मत? उसने आप पर हमला किया? मैं अभी उसके एजेंट से बात करता हूँ। वो ऐसा कैसे कर सकती है? उसकी पूरी कीमत दी गई है।"

    संयम की बात सुनकर दास्तान ने उसे घूमती हुई निगाहों से देखा। उसकी आँखों में जो गुस्सा था, उसे संयम भी अच्छी तरह पहचान गया था।

    दास्तान सख्त आवाज़ में कहता है, "अपनी जुबान पर काबू रखो।"

    "सॉरी भाई... पर मैंने तो बस आपकी फ़ेवर में बात की थी। वैसे... अब कहाँ है वो लड़की? क्या आपने उसे यहाँ से जाने दिया?" संयम ने संजीदगी से पूछा।

    दास्तान ना में सिर हिलाते हुए अपना सिर सोफ़े पर टिका देता है और आँखें बंद कर लेता है। उसके सामने कोहिनूर की हर एक हरकत घूमने लगती है... जिसे याद करके उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आ जाती है।

    संयम, दास्तान को यूँ मुस्कुराते देख हैरान रह गया। उसने धीरे से दास्तान के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

    "भाई... सब ठीक तो है ना? कुछ बदला है क्या? आज तक आपने कभी भी ऐसी पार्टी में जाकर लड़कियों की तरफ़ देखा तक नहीं था। लेकिन आज... पहली बार आपने न सिर्फ़ एक लड़की की तरफ़ देखा, बल्कि उसके साथ कमरे में भी गए। और अब आप कह रहे हैं कि उसने आप पर हमला किया, फिर भी आप नाराज़ नहीं हो... बल्कि मुस्कुरा रहे हो।"

    संयम ने थोड़ा रुककर गहरी साँस ली और फिर गंभीरता से कहा,

    "भाई, मुझे अच्छी तरह याद है... एक सिक्योरिटी गार्ड ने गलती से आपके पैर पर पैर रख दिया था, और बदले में आपने उसका पैर ही तोड़ दिया था। बेचारा आज तक बैसाखी के सहारे चलता है। आप कभी भी उन लोगों को माफ़ नहीं करते जो आपको चोट पहुँचाते हैं। लेकिन इस लड़की ने आप पर हमला किया... फिर भी आप मुस्कुरा रहे हो! भाई... सच बताओ, आपकी ज़िंदगी में क्या बदल गया है?"

    संयम पूछता है तो दास्तान की मुस्कान और ज़्यादा चौड़ी हो जाती है। उसकी आँखों के सामने अभी भी कोहिनूर का ही चेहरा था और वह मुस्कुराते हुए धीरे से कहता है,

    "कुछ तो है जो बदला है, और वो कुछ क्या है, जब मुझे पता चलेगा तो तुम्हें ज़रूर बताऊँगा। फ़िलहाल मैं सिर्फ़ इतना जानता हूँ संयम, कि मुझे ये लड़की चाहिए। और सिर्फ़ येही लड़की चाहिए। क्यों चाहिए, किसलिए चाहिए और किस हद तक चाहिए, इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता... बस मुझे ये चाहिए।"

    "भाई, ये क्या बोल रहे हैं आप? वो लड़की तो धंधे वाली है..."

    संयम ने जैसे ही यह कहा, दास्तान की आँखें एकदम से खुल जाती हैं और वह लाल निगाहों से संयम को बहुत ही एंग्री लुक देता है। उसे देखकर संयम के दिल में एक डर की लहर दौड़ जाती है, क्योंकि उसका यह चेहरा भले ही बाकी लोगों के लिए शैतानी रूप हो, लेकिन संयम ने कभी खुद के लिए ऐसी निगाहें नहीं देखी थीं।

    संयम घबराकर जल्दी से कहता है,

    "सॉरी भाई, मेरा कहने का वो मतलब नहीं था। मैं बस ये कह रहा था कि आपको सच में वही लड़की चाहिए? आखिर उसमें ऐसा क्या ख़ास है कि आप उसे इस तरह चाहने लगे?"

    "सब कुछ... उसमें सब कुछ बहुत ख़ास है, और सबसे ज़्यादा ख़ास वो खुद है..."

    दास्तान अपनी कोल्ड वॉइस में कहता है।

    संयम हैरानी से उसे देखते हुए बोला,

    "अगर ऐसी बात है तो फिर आपको तो इस वक़्त उसके साथ कमरे में होना चाहिए था ना? अपनी डिजायर पूरी करनी चाहिए थी, या फिर जो भी करना चाहते थे, वो करना चाहिए था। लेकिन ये सब छोड़कर आप यहाँ बैठे हैं, मुझे भी अपने साथ बिठा रखा है। ना खुद कुछ कर रहे हैं, ना मुझे करने दे रहे हैं।"

    उसकी बात सुनकर दास्तान गहरी साँस छोड़ता है और उलझन भरी निगाहों से वहाँ रखे हर सामान को देखते हुए कहता है,

    "तुम नहीं जानते संयम, मैं इस वक़्त उसके साथ क्या-क्या करना चाहता हूँ... और किस हद तक जाना चाहता हूँ। लेकिन मैं रुका हुआ हूँ... या यूँ कह लो कि कुछ है जिसने मुझे रोक रखा है। और ये कुछ ऐसा है जिसे मैं चाहूँ भी तो मिटा नहीं सकता।"

    "ऐसा क्या है भाई?"

    संयम हैरानी से पूछता है।

    दास्तान गहरी साँस छोड़ते हुए कहता है, "वो सिर्फ़ सत्रह साल की है।"

    संयम यह सुनकर एकदम चौंक जाता है और हैरानी से कहता है,

    "व्हाट! वो लड़की माइनर है? लेकिन भाई, ये कैसे हो सकता है? और फिर उसे इस तरह की पार्टी में क्यों लाया गया जहाँ लड़कियों का इस्तेमाल किया जाता है... उनकी कीमत लगाई जाती है?"

    "लालच," दास्तान ने उसे देखते हुए कहा।

    तो संयम हैरानी से कहता है, "लालच मतलब? मैं समझा नहीं..."

    दास्तान के चेहरे पर एक एरोगेंट मुस्कान आ गई और उसने कहा, "लालच वो जीन लोगों के साथ रहती है। उन्हें शायद उस लड़की की मासूमियत का अंदाज़ा था। इसीलिए आज रात जितनी भी लड़कियाँ आई थीं उसमें उसकी कीमत सबसे ज़्यादा थी। वो लोग अच्छी तरह से जानते थे कि वो अभी तक यूज़ नहीं हुई है। इसीलिए इसकी कीमत सबसे ज़्यादा लगेगी। इसीलिए उन लोगों ने वक़्त से पहले इस लड़की को उसकी उम्र से बड़ा बना दिया है... वह जिस जगह रहती है, जिस माहौल में रहती है, जिन लोगों के बीच रहती है... वहाँ पर यह सब बहुत आम है... छोटी लड़कियों को ऐसे दवाइयाँ और ऐसे फ़ूड दिए जाते हैं जिनसे उनका बॉडी स्ट्रक्चर बाकी लड़कियों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता है। इसकी उम्र फिर भी 17 साल है और यह अपनी उम्र से बहुत बड़ी सिर्फ़ इसीलिए लग रही है क्योंकि उन लोगों ने ज़रूर उसके साथ कुछ किया है। पर यह तो कुछ भी नहीं है, वहाँ पर तो 10 या 12 साल की लड़कियों को भी लाकर उन्हें ऐसे इंजेक्शन दिए जाते हैं कि वह एक ही दिन में 22 साल की नज़र आती है... और यही लालच लोगों को और ज़्यादा लालची बनाता है। एक बिना इस्तेमाल की गई लड़की की मार्केट वैल्यू क्या है यह वह लोग अच्छी तरह से जानते हैं... और देखो उनकी सोच कामयाब भी रही। उनके लालच में मैं भी शामिल हो गया, मुझे भी उसे लड़की की लालसा हो गई।"

    दास्तान की बात सुनकर संयम हैरान हो जाता है। उसने दास्तान से कहा, "तो भाई अब आप आगे क्या करने वाले हैं... मतलब वह लड़की तो माइनर है ना?"

    दास्तान ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, जानता हूँ कि वह नाबालिक है। इसीलिए तो मैं अभी उसके साथ कुछ भी नहीं किया है। पर मुझे उसके साथ बहुत कुछ करना है और इसके लिए मुझे उसके 18 के होने का इंतज़ार करना है..."

    "ऐसी बात है तो ठीक है। वैसे भी वह अपनी उम्र के आसपास ही नज़र आ रही है। मतलब अगर वह 17 साल की है तो शायद बहुत ज़्यादा नहीं, 18 की हो जाएगी तो कुछ... उसने कब होगी वह 18 की?"

    संयम के सवाल पर दास्तान ने हाँ में सिर हिलाते हुए बोला, "हाँ, उसने बताया तो है कि वह अगले साल 18 की होगी। लेकिन मुझे यकीन है कि वह झूठ बोल रही है... और यकीन मानो मुझे इस बात को साबित करने की ज़रूरत भी नहीं है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह झूठ बोल रही है। पर मुझे उसके झूठ से कोई परेशानी नहीं है। यह उसका डर है जो उसे झूठ बोलने पर मजबूर कर रहा है। इसीलिए अब मैं कोई सवाल नहीं करूँगा, लेकिन सच में अपने तरीक़े से पता लगाऊँगा..."

    संयम दास्तान को जुनून में कैद होता हुआ देख रहा था लेकिन उसे खुशी थी कि कम से कम दास्तान ने किसी लड़की के बारे में बात तो की है। वरना वह कभी भी किसी लड़की की तरफ़ देखा नहीं था। पर यह लड़की जो उसकी ज़िंदगी में आ रही है, वह सिर्फ़ मामूली लड़की नहीं है... और तभी अचानक उसे वैशाली की याद आती है। एकदम से खड़ा होते हुए कहता है, "भाई आपकी वाली तो 18 की नहीं हुई है इसलिए आप यहाँ बैठकर इंतज़ार कर सकते हो। लेकिन जिसे मैं कमरे में छोड़कर आया हूँ ना, अगर एक बार वह मेरे हाथ से निकल गई तो शायद उसे पाने के लिए मुझे 18 जन्म भी कम पड़ जाएँगे।"

  • 18. आधे टूटे हुए दिल का पेंडेंट है - Chapter 18

    Words: 1345

    Estimated Reading Time: 9 min

    पूरी रात दास्तान ने सोफे पर बिताई थी। उसके अंदर जो आग लगी हुई थी, उसे भड़काने के लिए उसने दो डिब्बी सिगरेट खत्म कर दी थीं, लेकिन वह अभी भी शांत नहीं हो रही थी। शर्टलेस दास्तान पूरी रात आँखों में गुज़रा था। उसकी आँखों के सामने कोहिनूर का चेहरा ऐसे झलक रहा था जैसे वह उसे अपने पास बुला रही हो। बुला क्या रही थी, उसने तो दास्तान को अपनी गिरफ्त में कर ही लिया था। यह तो दास्तान की शराफत समझो कि उसने खुद को रोक रखा था, वरना 'शराफत' शब्द दास्तान शाह की डिक्शनरी में था ही नहीं।


    अगली सुबह, जमाई लेटी हुई कोहिनूर अपने बिस्तर से उठी और अपनी आँखें मसलीं। उसे कल रात का इस वक्त तक कुछ भी याद नहीं था, पर तभी उसने अपनी आँखें खोलीं और वह एक पल के लिए चौंक गई, क्योंकि वह अभी भी नींद में थी। उसे वास्तविकता में आने में पाँच मिनट का समय लगा। उसने देखा कि वह अभी भी एक आलीशान कमरे में है, पर कमरा पूरी तरह से खाली था। अब उसके दिमाग में कल रात की सारी यादें लौट आई थीं और एक बार फिर से उसका मन डर के उसी घर के सामने आकर खड़ा हो गया था, जिसे भूलकर वह कल रात सुकून से सो गई थी।


    वह आदमी, जो उसे कल रात इस कमरे में लेकर आया था और उसके साथ अपनी हदें पार कर रहा था, वह बीच में ही रुक गया था, और उसके बाद कमरे में उसकी मौजूदगी का कोई नामोनिशान भी नहीं था। कोहिनूर ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और खुद को तसल्ली देने लगी कि ईश्वर ने उसे बचा लिया है और आगे भी वही बचाएगा। ऐसा सोचते हुए उसने अपने गले पर हाथ रखा और आँखें बंद कीं, लेकिन इस बार उसकी आँखें पूरी तरह बंद होने से पहले ही खुल गईं।


    वह एकदम से हैरान रह गई। उसने अपने गले पर हाथ फेरा, कुछ टटोलने की कोशिश की, लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि उसका गला पूरी तरह से खाली है, तो वह शीशे के सामने गई। उसने देखा कि यह उसका भ्रम नहीं था। सच में उसके गले में कुछ भी नहीं था।


    उसने अपने कपड़ों को झाड़ा और कमरे में जहाँ-जहाँ कल रात गई थी, वहाँ-वहाँ तलाश किया, यहाँ तक कि बेड पर भी खोजा, लेकिन उसे अपना पेंडेंट नहीं मिला। वह आधे दिल का पेंडेंट जो एक चैन में लटका रहता था।


    भले ही वह आधा टूटा हुआ दिल मामूली लगता हो, लेकिन कोहिनूर के लिए वह बेशकीमती था, क्योंकि यह उसकी माँ की आखिरी निशानी थी, जो उन्होंने मरने से पहले उसे दी थी। कोहिनूर ने बचपन से ही अपनी माँ के गले में उसे देखा था, और माँ के गुजरने के बाद वह पेंडेंट हमेशा कोहिनूर के साथ रहा था।


    लेकिन अब वह उसके पास नहीं था। कोहिनूर ने कमरे में इधर-उधर तलाश किया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। उसका चेहरा रोने को हो गया था, वह लगभग रोने ही वाली थी कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला।


    कोहिनूर चौंक कर दरवाज़े की तरफ़ देखती है। सुबह की पहली किरण कमरे में रोशनी बिखेर रही थी और इसी रोशनी में नहाया हुआ दास्तान कमरे में दाखिल हुआ। उसके बाल हल्के बिखरे हुए थे, लेकिन फिर भी वे उस पर काफी अच्छे लग रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसने पूरी रात नींद नहीं ली, लेकिन उसकी आँखों में जरा भी थकान नहीं थी।


    वह सीधे जाकर दरवाज़े के पास खड़ा हो गया और वहीं रुक गया। दास्तान ने अभी भी शर्ट नहीं पहनी थी।


    कोहिनूर ने धीरे से अपनी पलकें झुका लीं और अपनी घबराहट छुपाने लगी। दास्तान ने जब उसे ऐसा करते हुए देखा, तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने तिरछी मुस्कान के साथ कोहिनूर को देखते हुए कहा, "गुड मॉर्निंग स्वीटहार्ट..." उसके शब्द पूरी तरह से शरारत से भरे हुए थे। इस 'गुड मॉर्निंग' में उसने जितनी मिठास घोलनी चाहिए थी, उतनी घोल दी थी, और यह मिठास कोहिनूर के गले से नहीं उतर रही थी।

    "मॉर्निंग" का जवाब सीधे तरीके से 'वेरी गुड मॉर्निंग' की तरह दिया जाता है, लेकिन कोहिनूर के तो दो शब्द भी नहीं फूट रहे थे। वह क्या ही बोलती।


    उसने कुछ नहीं बोला। जब दो मिनट तक उसने कुछ नहीं कहा, तो दास्तान उसकी तरफ़ अपने कदम बढ़ाता है। कोहिनूर की नज़रें उसके जूतों पर गड़ी हुई थीं क्योंकि उसकी पलकें अब भी जमीन में गड़ी हुई थीं।


    रात उसने भागने और छुपने का नतीजा देख लिया था—कुछ भी हाथ नहीं लगा था। इसलिए भागने और छुपने का इरादा उसने दास्तान के कमरे में आते ही त्याग दिया था। यहाँ से भागकर जाएगी भी तो कहाँ? क्योंकि यह पूरा होटल दास्तान के आदमियों से भरा पड़ा था। वह कहीं से भी निकलेगी तो पकड़ ली जाएगी।


    जैसे ही दास्तान उसकी ओर कदम बढ़ाता है और ठीक उसके सामने आकर रुक जाता है, कोहिनूर एक कदम पीछे हट जाती है। उसे लगा कि दास्तान उसे छूने के लिए उसके करीब आ रहा है, लेकिन दास्तान अपनी जगह पर रुक जाता है और हल्का सा सिर हिलाते हुए मुस्कुराता है।


    उसने अपनी मध्यम और सामान्य आवाज़ में कहा,
    "फिक्र मत करो, मैं कुछ नहीं करूँगा।"

    "वैसे तुम कमरे में क्या ढूंढ रही हो?"


    दास्तान के पूछते ही कोहिनूर एकदम से हैरान हो जाती है। दास्तान को कैसे पता चला कि वह कुछ ढूंढ रही है?


    उसने हैरानी भरे एक्सप्रेशन के साथ दास्तान को देखा, तो दास्तान हँस पड़ा और बोला,
    "जिस तरीके से तुमने कमरे की हालत कर दी है ना, ऐसा लग रहा है कि तुम कुछ ढूंढ रही थी। वैसे, क्या ढूंढ रही हो तुम?"


    कोहिनूर ने अपनी नरम आवाज़ में चेहरा झुकाते हुए कहा,
    "जी...वो, मैं अपना पेंडेंट ढूंढ रही हूँ। मेरे गले में ही था, लेकिन अब मिल नहीं रहा।"


    दास्तान थोड़ा चौंक गया।
    "पेंडेंट? कौन सा पेंडेंट?"


    कल रात से जब से वह कोहिनूर को अपने साथ लेकर आया था, उसने तो कोहिनूर के गले में कोई भी पेंडेंट नहीं देखा था।


    उसने कोहिनूर को देखते हुए कहा,
    "कैसा दिखता है तुम्हारा पेंडेंट?"


    कोहिनूर जल्दी से बोली,
    "जी...वो ना, एक सिल्वर चैन में लगा हुआ आधे टूटे हुए दिल का पेंडेंट है। मुझे वह पेंडेंट चाहिए...वह पेंडेंट मेरे लिए बहुत कीमती है।"


    दास्तान उसकी बात सुनकर कुछ सोचने लगा और फिर कहा,
    "लेकिन मैंने तुम्हारे गले में कोई पेंडेंट नहीं देखा। इन फैक्ट, जब से तुम मेरे साथ हो, मैंने तुम्हारे गले में कोई लॉकेट, चैन या पेंडेंट नहीं देखा। हो सकता है, वह कहीं और गिर गया हो। अच्छी तरह से याद करो, आखिरी बार तुमने उसे कहाँ देखा था?"


    कोहिनूर ने अपने दिमाग पर जोर डाला और याद करने लगी कि आखिरी बार उसने अपने पेंडेंट को कहाँ देखा था या महसूस किया था।


    उसे याद आया—कल रात होटल में आते वक्त, जब उसे इंतज़ार करने के लिए कहा गया था, तब उसने अपनी माँ को याद करते हुए पेंडेंट को अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया था। उस वक्त तक तो वह उसके गले में ही था।


    वह अपनी माँ से मन ही मन बात कर रही थी—कि माँ उसे बचा लें।


    उसके बाद सारी लड़कियाँ एक-एक करके अपने कमरों की तरफ़ बढ़ने लगी थीं।


    लेकिन तभी चंदा वहाँ आई थी और कोहिनूर के ऊपर डाले गए शॉल को देखकर उसे डाँटने लगी थी। चंदा ने झटके से उसके ऊपर से शॉल हटा दिया था—जिसने कोहिनूर की खूबसूरती को छुपा रखा था।


    कोहिनूर एकदम से बोल पड़ती है कि आखिरी बार उसने उसे हाल की गैलरी में देखा था। वहाँ पर जब उसके ऊपर से उसका दुपट्टा हटाया गया था, तब आखिरी बार वह उसके गले में ही था, पर उसके बाद से पता नहीं कहाँ गायब हो गया। उसकी बात सुनकर दास्तान ने बोला, "अगर तुमने उसे हाल की गैलरी में देखा था, तो उसे वहीं पर होना चाहिए था। जब अपना दुपट्टा हटाया होगा, तो उसी में उलझ कर तुम्हारा पेंडेंट भी वहीं गिर गया होगा। जाकर देख लो, अगर नसीब अच्छा रहा तो मिल जाएगा, वरना हाउसकीपिंग ने सफ़ाई करते वक्त फेंक दिया होगा।"

  • 19. पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर - Chapter 19

    Words: 1285

    Estimated Reading Time: 8 min

    "जी, हम जाएं?" कोहिनूर ने अचानक कहा। दास्तान हँसते हुए बोला, "जाओगी नहीं तो अपना पेंडेंट ढूँढोगी कैसे? और हाँ, ये मत सोचना कि मैं तुम्हें यहाँ से जाने के लिए कह रहा हूँ। तुम्हारा पेंडेंट मिल जाए तो चुपचाप वापस कमरे में आ जाना। क्योंकि अगर मैं तुम्हें लाने गया ना, तो होटल में हर किसी को पता चल जाएगा कि कल रात हमारे बीच कुछ नहीं हुआ था। उसके बाद मेरा तो कुछ नहीं जाएगा, पर तुम खुद सोच लो कि तुम्हारे लोग तुम्हारी क्या हालत करेंगे।"


    दास्तान की बात सुनकर कोहिनूर डर गई। उसने जल्दी से कहा, "जी नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आप फिक्र मत कीजिए, मैं जल्दी वापस आऊँगी और मैं आपको धोखा भी नहीं दूँगी। मैं बस पेंडेंट ढूँढ कर जल्दी से वापस आ रही हूँ।"


    ऐसा कहते हुए कोहिनूर वहाँ से निकलने ही वाली थी कि दास्तान ने पीछे से उसे रोकते हुए कहा, "स्वीटहार्ट!"


    नूर के कदम दरवाजे पर रुक गए और वह एकदम से हैरान हो गई। दास्तान उसके पास आया और उसे देखने लगा। उसके चेहरे पर एक एरोगेंट स्माइल थी। उसने धीरे से अपने हाथ कोहिनूर के कंधे पर रखा। कोहिनूर अचानक सिहर गई, पर जब उसे एहसास हुआ कि दास्तान ने क्या किया, तब वह उसे देखने लगी। दास्तान उसकी आँखों में देखते हुए उसे अपनी शर्ट पहना दी।


    उसने कोहिनूर को शर्ट पहनाई और कॉलर को सही करते हुए कहा, "अब जाओ।"


    कोहिनूर को पता चल गया था कि दास्तान ने ऐसा क्यों किया था। उसके अपने कपड़े बहुत ज्यादा खराब और अजीब हो चुके थे, जिनमें वह बाहर नहीं निकल सकती थी, इसीलिए दास्तान ने उसे अपनी शर्ट पहना दी थी।


    कोहिनूर कमरे से बाहर निकली और जैसे ही उसने बाहर कदम रखा, एक लंबी चौड़ी बड़ी सी गैलरी उसका इंतज़ार कर रही थी। वह एकदम से हैरान हो गई। यह गैलरी दोनों तरफ से एक जैसी ही लग रही थी। उसे नहीं पता था कि उसे लिफ्ट की तरफ जाना है या दाएँ की तरफ।


    जब दास्तान उसे लेकर आया था, तब वह इतनी ज्यादा डर गई थी कि उसने यह भी नहीं देखा था कि वह किस दिशा से आई थी। कुछ सोचते हुए उसने भगवान का नाम लिया और दाएँ की तरफ कदम बढ़ाने लगी। वह कुछ कमरे आगे ही गई थी कि एक कमरे का दरवाजा खुला। कोहिनूर अचानक डर गई और दीवार से चिपक गई क्योंकि कमरे का दरवाजा खुलते ही एक शख्स बाहर आया और कोहिनूर को देखकर मुस्कुरा दिया।


    "गुड मॉर्निंग," उस आदमी ने मुस्कुराते हुए कोहिनूर से कहा, पर कोहिनूर की आँखों में थोड़ा सा डर था। यहाँ पर कोई भी इंसान शरीफ तो नहीं था, और यह इंसान भी कल रात उन लोगों के साथ ही मौजूद था, तो यह कैसे शरीफ हो सकता है।


    वह डर गई कि कहीं यह इंसान उसके करीब तो नहीं आ रहा और उसे नुकसान तो नहीं पहुँचाएगा। यही सोचते हुए वह दीवार से पूरी तरह से चिपक गई थी।


    पर वह शख्स अपने कदम वहीं रोक लेता है और मुस्कुराते हुए कहता है:


    "जिस पर शाह की नज़र जाती है ना, उसे कोई नज़र उठाकर भी नहीं देखता है। अगर किसी ने ऐसा करने की गुस्ताखी की तो शाह उसे सारी ज़िन्दगी कुछ और देखने लायक ही नहीं रखता है। तुम्हें कल रात शाह ने चुना था। उसकी नज़र ही काफी थी तुम्हें उसका करने के लिए। पर यहाँ तो शाह ने तुम्हें अपने कमरे में भी रखा है। इन सबके बावजूद तुम पर किसी और ने अगर नज़र भी डाली, तो यह शाह से बगावत होगी। और हमारी दुनिया में पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जाता।"


    कोहिनूर यह सब सुनकर पूरी तरह से दंग रह गई थी। वह हैरानी से उस शख्स को देख रही थी। यह शख्स कोई और नहीं बल्कि नितिन सभरवाल था, जिसके जन्मदिन का जश्न कल रात मनाया जा रहा था और उसी के लिए कल रात सारी लड़कियाँ यहाँ आई थीं।


    नितिन सभरवाल कोहिनूर से कहता है, "वैसे मानना पड़ेगा, तुम काफी खूबसूरत हो। पर क्या मैं इस खूबसूरत लड़की का नाम जान सकता हूँ?"


    कोहिनूर डरते हुए नितिन सभरवाल को देखकर कहती है, "जी, कोहिनूर।"


    नितिन सभरवाल के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। कल रात उसने कोहिनूर को देख लिया था। वह जिस जगह बैठा था, वहाँ से कोहिनूर साफ़ नज़र आ रही थी। वैशाली ने उसे ढकने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन फिर भी नितिन की नज़र कोहिनूर पर पड़ गई थी और उसे देखकर वह एक्साइटेड हो गया था। उसे कोहिनूर चाहिए थी। इसीलिए जब लड़कियों का चयन हो रहा था, तो उसने पहले चुनाव नहीं किया, बल्कि सोचा कि पहले सब लोग अपने-अपने लिए लड़कियाँ चुन लें, वह सबसे आखिर में कोहिनूर को लेगा।


    लेकिन इससे पहले ही दास्तान ने कोहिनूर पर अपनी पसंद की मोहर लगा दी थी और उसे चुन लिया था, जिससे नितिन की सारी इच्छाएँ वहीं दम तोड़ चुकी थीं।


    वह जानता था कि अगर उसने दास्तान के खिलाफ़ कुछ बोला, तो आज उसके जन्मदिन के दिन ही उसका मरणदिन बन जाएगा। इसीलिए चुपचाप से कोहिनूर का ख्याल त्यागकर वह चंदा के साथ कल रात कमरे में चला गया था।


    कोहिनूर का नाम सुनकर नितिन सभरवाल मुस्कुराते हुए कहता है, "काफी खूबसूरत नाम है तुम्हारा, कोहिनूर। मुझे उम्मीद है कि दास्तान तुमसे खुश हुआ होगा।"


    कोहिनूर की पलकें झुक गईं, उसकी चुप्पी से इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला। तभी नितिन सभरवाल का फ़ोन बजा। उसने फ़ोन निकालते हुए कोहिनूर से कहा, "अच्छा, मुझे चलना होगा।"


    ऐसा कहते हुए नितिन सभरवाल वापस अपने कमरे में चला गया और दरवाज़ा बंद कर लिया। कोहिनूर ने एक राहत की साँस ली और उसके बाद वह आगे बढ़ी। उसने देखा कि यह वही हाल की गैलरी है जहाँ कल रात वह लोग खड़े थे। मतलब कि वह सही दिशा में आई है।


    वह जल्दी से वहाँ पहुँची जहाँ कल रात बाकी लड़कियों के साथ खड़ी थी और यहाँ-वहाँ ढूँढने लगी।


    लेकिन उसे अपना पेंडेंट और लॉकेट कहीं नज़र नहीं आया। वहाँ पर इतनी सफ़ाई हो रखी थी जैसे कि कभी गंदगी थी ही नहीं। पर कोहिनूर फिर भी हार नहीं मान रही थी। उसे अपना पेंडेंट चाहिए ही था, इसलिए वह हर जगह खोज रही थी।


    तभी अचानक से वह किसी से टकरा गई और डरकर अपने कदम पीछे खींच लिए। पर जब चेहरा उठाकर देखा, तो सामने दास्तान खड़ा था, जो उसे घूरते हुए कह रहा था, "मैंने कहा था ना, जल्दी वापस आना।"


    कोहिनूर के आँसू निकल आए। वह रोते हुए कहती है, "मुझे अभी तक मेरा पेंडेंट नहीं मिला है... मुझे अपना पेंडेंट चाहिए... मैं उसके बिना नहीं रह सकती हूँ..."


    उसके आँसू देखकर एक बार फिर से दास्तान के दिल में एक चुभन सी होने लगी। उसने अपने पेट से रुमाल निकालकर कोहिनूर की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "देखो, मैं जानता हूँ कि पेंडेंट तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी रहा होगा, लेकिन मैंने यह भी कहा था कि हो सकता है सफ़ाई के दौरान उसे फेंक दिया गया हो... भूल जाओ। अगर चाहो तो मुझे बताओ वह कैसा था, मैं तुम्हारे लिए वैसा ही दूसरा मँगवा दूँगा।"


    पर कोहिनूर रोते हुए ना में सिर हिलाती है, क्योंकि उसे पता था कि उस पेंडेंट जैसा इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं हो सकता। उसे बस वही चाहिए था, क्योंकि वह उसकी माँ की निशानी थी।


    उसने धीरे से हाथ बढ़ाकर दास्तान के हाथ से रुमाल लिया और अपने आँसू पोछते हुए धीरे-धीरे कदम वापस कमरे की तरफ़ बढ़ाने लगी।


    दास्तान उसे जाते हुए देखता है और हैरानी से पीछे से कहता है, "एक पेंडेंट के लिए इतना क्या रोना!"

  • 20. शाह की नज़रें राबिया पर - Chapter 20

    Words: 1505

    Estimated Reading Time: 10 min

    दास्तान कोहिनूर के सामने खड़ा था, और कोहिनूर उसे डरी हुई निगाहों से देख रही थी। उसकी आँखों में आँसू थे, और हाथ में दास्तान का दिया हुआ रुमाल था। उसने धीरे से अपने आँसुओं को पोंछा और चुपचाप अपने कदम कमरे की तरफ बढ़ा दिए। दास्तान हैरानी से उसे देखता रह गया। "एक पेंडल के लिए वो इतना क्यों रो रही है?" ये उसे समझ ही नहीं आया। वो इन बातों को नज़रअंदाज़ करता हुआ अपने कमरे की ओर बढ़ ही रहा था, लेकिन कोहिनूर पहले ही कमरे में जा चुकी थी।

    रास्ते में ही दास्तान का फ़ोन बजने लगा। उसने फ़ोन निकाला; यह एक इम्पॉर्टेन्ट कॉल थी, जिसे वो नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था। वो फ़ोन लेकर एक बड़ी-सी खिड़की के सामने चला गया और कॉल अटेंड करने लगा।

    उधर, कोहिनूर अपने कमरे में पहुँची तो उसके हाथों में रखा रुमाल पूरी तरह भीग चुका था। जैसे ही उसने कमरे में कदम रखा, खिड़की से आती धूप ने उसे एहसास दिलाया कि सुबह हो चुकी है। कोठे पर उसकी आदत थी कि सुबह उठते ही भगवान से प्रार्थना करती थी—एक और सुरक्षित दिन देने के लिए धन्यवाद कहती थी। लेकिन क्या आज वो प्रार्थना करेगी?

    कोठे पर वो हर रोज़ अपने हाथ जोड़कर ऊपरवाले से एक और सुरक्षित दिन माँगती थी और उसे इस बाज़ार में भी महफ़ूज़ रखने के लिए धन्यवाद कहती थी। लेकिन आज...? देखा जाए तो एक तरह से वो इस काम का हिस्सा बनी है, लेकिन उसके साथ कुछ भी नहीं हुआ है। यानी वो आज भी सुरक्षित है। उसका सम्मान, उसकी गरिमा आज भी उसके साथ है। तो क्या आज भगवान का शुक्रिया अदा नहीं करना चाहिए?

    बिल्कुल, वो आज भी भगवान को धन्यवाद कहेगी कि उन्होंने कोहिनूर को एक और सुरक्षित दिन दिया। वो इस काम का हिस्सा होकर भी इस काम से जुड़ी नहीं है। उसने दास्तान की ओवरसाइज़ शर्ट पहन रखी थी, लेकिन सिर ढकने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन कुछ नज़र नहीं आया। तभी उसकी निगाह उस रुमाल पर पड़ी, जो दास्तान ने उसे दिया था। उसने वो रुमाल खोला और अपने सिर पर रख लिया। खिड़की के पास जाकर, धूप में खड़ी होकर, उसने आसमान में चमकते सूरज को देखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर आँखें बंद कर लीं।

    कोहिनूर किसी एक धर्म से जुड़ी हुई नहीं थी; वो सभी धर्मों को मानती थी। मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा—हर जगह उसे भगवान नज़र आता था। हर जगह उसकी प्रार्थना सुनी जाती थी। इसीलिए दुआ में हाथ उठाना और प्रार्थना में हाथ जोड़ना, दोनों उसके लिए समान थे।

    जैसे ही दास्तान ने कमरे का दरवाज़ा खोला और अंदर कदम रखा, उसकी आँखें एकदम स्थिर हो गईं और कदम अपने आप थम गए। जैसे वो इस शांत माहौल में कोई भी शोर नहीं करना चाहता था। उसके सामने कोहिनूर खिड़की की तरफ़ हाथ जोड़कर खड़ी थी और खिड़की से आती सुनहरी धूप उसके चेहरे पर सोने की परत सी चमक दे रही थी। कोहिनूर ने अपने सिर पर दास्तान का वही रुमाल बाँधा हुआ था।

    दास्तान देख सकता था कि वो इस रूप में कितनी खूबसूरत और मासूम लग रही थी। उसे इस हाल में देखना किसी के लिए भी नज़रअंदाज़ करना बेवकूफी होता। प्रार्थना करते समय कोहिनूर पूरी दुनिया से अलग, बस अपने भगवान से जुड़ी हुई लग रही थी। और यही दृश्य दास्तान के अंदर एक अजीब सी खलबली पैदा कर रहा था।

    जब कोहिनूर की प्रार्थना पूरी हुई, उसने सूरज की किरणों को अपने चेहरे पर महसूस करते हुए ऊपरवाले का शुक्रिया अदा किया और अपनी आँखें खोलकर जैसे ही गर्दन घुमाई, उसके कदम ठिठक गए। दास्तान दरवाज़े पर खड़ा था—बिल्कुल मोहन मूर्ति की तरह। उसके दोनों हाथ सामने की तरफ़ थे और निगाहें बस कोहिनूर को ही देख रही थीं।

    कुछ तो था इस बंदे की नज़रों में... कोहिनूर कभी भी उसकी स्टेटस भरी निगाहों का सामना नहीं कर पाती थी। उसकी नज़रें कोहिनूर के अंदर एक तहलका मचा देती थीं। इतनी गहराई थी उन निगाहों में कि कोहिनूर को अपने भीतर करंट सा दौड़ता हुआ महसूस हुआ।

    धीरे से अपने सिर से दास्तान का रुमाल निकालकर उसने उसे फ़ोल्ड किया और चलते हुए दास्तान के सामने आ गई। पर इस बीच उसने एक बार भी पलकें उठाकर दास्तान को देखा तक नहीं। रुमाल उसके सामने करते हुए बस इतना कहा—

    "शुक्रिया..."

    "क्या तुम रोज़ प्रार्थना करती हो?"

    दास्तान ने अपना हाथ बढ़ाकर कोहिनूर के हाथों से वो रुमाल ले लिया। इस बीच उसकी उंगलियाँ कोहिनूर की उंगलियों से टकराई थीं, जिसे महसूस करते ही कोहिनूर ने झट से अपने हाथ पीछे खींच लिए। पर अगले ही पल दास्तान ने अपना दूसरा हाथ कोहिनूर की कमर में डाला और उसे अपने क़रीब खींच लिया। जहाँ वो दास्तान की नज़दीकी से ही काँप गई थी, वहीं दास्तान ने इस वक़्त उसे अपने सीने से लगा रखा था।

    "मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया तुमने स्वीटहार्ट। क्या तुम रोज़ प्रार्थना करती हो? करती हो तो दिन में कितनी बार?"

    कोहिनूर उसके सीने से लगी हुई थी, एक सुंदर सी बेजान गुड़िया की तरह, जो उसकी बाहों में खड़ी थी। वो जानती थी कि छटपटाने, तड़पने या निकलने का कोई रास्ता नहीं है, इसीलिए वो चुपचाप वहीं खड़ी रही। हालाँकि दास्तान ने उसे बहुत ज़ोर से नहीं पकड़ा था, लेकिन उसकी गरम उंगलियों का एहसास कोहिनूर अपनी कमर पर साफ़ महसूस कर सकती थी। उसकी पकड़ ऐसी थी जैसे वो कोहिनूर को खुद से दूर जाने ही नहीं देगा। दास्तान की इस क़रीबी से कोहिनूर का पूरा शरीर किसी करंट की तरह काँप रहा था।

    अपने काँपते हुए हाथों से उसने बहुत मुश्किल से दास्तान के साथ आई-कॉन्टेक्ट करते हुए टूटे-फ़ूटे शब्दों में कहा,

    "बस एक बार... सुबह, जब सूरज निकलता है।"

    दास्तान के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और उसने अपने रहस्यमय अंदाज़ में हँसते हुए कोहिनूर को देखकर कहा,

    "सच में? पूरे दिन में बस सुबह का वक़्त ही है जब तुम इतनी हसीन और ख़ूबसूरत नज़र आती हो।"

    कोहिनूर ने अपनी पलकें झुका लीं। इस बात का वो क्या जवाब देती, उसके पास कोई जवाब था ही नहीं। और उसे यूँ करते देख दास्तान की मुस्कान और गहरी हो गई। उसने और कस के कोहिनूर को अपने सीने से लगा लिया। ऐसा लग रहा था जैसे वो इस पल को अपने अंदर समेट लेना चाहता है।

    पर तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है। दास्तान एकदम रुक जाता है और दरवाज़े की तरफ़ अपनी ख़तरनाक निगाहों से देखने लगता है। बाहर से एक लड़की की आवाज़ आती है जो कहती है,

    "कोहिनूर, जल्दी आओ... हमें जाना है।"

    कोहिनूर ने पहचान लिया कि बाहर कोई और नहीं, बल्कि राबिया खड़ी है और वो उसे बुलाने आई है। दास्तान ने कोहिनूर को छोड़ दिया और दरवाज़ा खोलने चला गया। लेकिन जैसे ही राबिया की नज़र दास्तान पर पड़ी, वो बिल्कुल अपनी जगह पर ही जम गई। शाह को अपने सामने देखकर राबिया के तो होश ही उड़ गए थे। वो हमेशा ही शाह को पार्टीज़ और महफ़िलों में देखा करती थी, लेकिन कभी उसके पास जाने का मौका नहीं मिला। उसने कई बार कोशिश की थी कि किसी तरह शाह के दायरे में आ सके, लेकिन शायद उसकी किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी जितनी कोहिनूर की है।

    राबिया की तो हिम्मत ही नहीं हुई कि वो चेहरा घुमाकर कोहिनूर को देख भी सके। उसकी नज़र सिर्फ़ शाह पर ही अटकी रही, जो अपनी ख़तरनाक निगाहों से सिर्फ़ राबिया को देख रहा था। ये पहली बार था जब राबिया ने शाह की नज़रों को अपने ऊपर महसूस किया था। पूरे कोठे में अगर वैशाली के बाद किसी की ख़ूबसूरती की चर्चा होती थी तो वो सिर्फ़ और सिर्फ़ राबिया की होती थी। हालाँकि चंदा भी कुछ कम ख़ूबसूरत नहीं थी, लेकिन लोगों की पहली पसंद हमेशा वैशाली होती थी और उसके बाद राबिया। लेकिन इस बंदे ने कभी उसकी तरफ़ नज़र उठाकर भी नहीं देखा था, न ही कभी उसकी तरफ़ कोई दिलचस्पी दिखाई थी।

    आज पहली बार था जब शाह की नज़रें राबिया पर पड़ी थीं। और ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी तपते रेगिस्तान में, जलती हुई आग के बीच खड़ा कर दिया गया हो।

    "राबिया..." पीछे से कोहिनूर ने राबिया को आवाज़ दी तो दास्तान साइड हो गया और राबिया कोहिनूर को देखने लगी। उसने देखा कि कोहिनूर ने दास्तान की शर्ट पहन रखी थी, और ये देखकर राबिया अंदर ही अंदर जल रही थी। उसका मन कर रहा था कि अपनी जलन से ही कोहिनूर को राख कर दे, लेकिन उसने जल्दी से अपने अंदर की भटकती नफ़रत की आग को काबू किया, क्योंकि वो जानती थी कि अगर उसने इस वक़्त कुछ भी किया तो शाह उसे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा। इसलिए वो जल्दी से बोली, "तू अभी तक तैयार नहीं हुई? जल्दी से तैयार हो जा... चंद पाशा तेरे साथ हमारा इंतज़ार कर रहे हैं।"

    कोहिनूर जल्दी से बोली, "ठीक है, मैं बस थोड़ी देर में तैयार होकर आती हूँ। तब तक मेरा इंतज़ार करना।"

    राबिया ने चेहरा दूसरी तरफ़ घुमाकर कहा, "तैयार होकर सीधे नीचे आ जाना, मैं वैशाली को बुलाने जा रही हूँ। वो भी अभी तक कमरे से बाहर नहीं निकली है।"

    इसके बाद राबिया वहाँ से चली गई।