"Dhalwana Ki Dayan" एक डरावनी कहानी है जो एक शांत से गाँव की रहस्यमयी हवेलियों में छिपे खौफनाक राज़ को उजागर करती है। जब एक युवक अपने दोस्तों के साथ इस गाँव में आता है, तो उसे न सिर्फ़ अजीब घटनाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि वह एक ऐसी चुड़ैल के जाल... "Dhalwana Ki Dayan" एक डरावनी कहानी है जो एक शांत से गाँव की रहस्यमयी हवेलियों में छिपे खौफनाक राज़ को उजागर करती है। जब एक युवक अपने दोस्तों के साथ इस गाँव में आता है, तो उसे न सिर्फ़ अजीब घटनाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि वह एक ऐसी चुड़ैल के जाल में फँस जाता है जो मौत से भी ज्यादा डरावनी है। हर रात उसके क़दमों की आहट, टूटती हड्डियों की आवाज़ और हवेली की दीवारों से निकलती चीखें एक नए रहस्य की ओर इशारा करती हैं। क्या वह इस डरावने चक्र से बच पाएगा? या फिर वह भी एक और कहानी बनकर रह जाएगा?
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Chapter 1: Jungle Ka Raaz
कई लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या मैंने अपनी चालीस साल की शिकारी ज़िंदगी में कभी कोई भूत देखा है? मेरा जवाब हमेशा यही होता कि भूत-प्रेत इंसानी कल्पना की उपज हैं और उनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं। लेकिन मेरी शिकारी ज़िंदगी में कुछ ऐसे अजीब वाकये ज़रूर हुए हैं, जिनमें मेरा सामना भूतों से होते-होते रह गया।
आज मैं आपको एक ऐसे ही रहस्यमय किस्से के बारे में बताने जा रहा हूँ। उस वक़्त भारत में जंगल बहुत ज़्यादा और इंसानी बस्तियाँ बहुत कम थीं। कई गाँव तो जंगलों के बीच बसे हुए थे और उनके बीच का फासला भी बहुत होता था। बिजली नहीं थी, इसलिए जैसे ही शाम होती, सारा इलाका वीरान हो जाता। ऐसे में अगर कोई जानवर आदमखोर बन जाता, तो उसे पकड़ना बहुत मुश्किल काम होता।
इसीलिए अक्सर लोग इन हमलों को किसी भूत या चुड़ैल का काम समझते और अजीब-अजीब कहानियाँ फैल जातीं। ये कहानियाँ सिर्फ डर ही नहीं फैलातीं बल्कि शिकारी के काम में भी रुकावट बन जातीं। अगर गांव वाले डर जाएँ और मदद ना करें, तो सबसे बड़ा शिकारी भी जंगल में कुछ नहीं कर सकता।
अब मैं जिस वाकये का ज़िक्र करने जा रहा हूँ, उसकी शुरुआत उस वक़्त हुई जब मेरा तबादला गुलवाना नाम के एक थाने में हुआ। वहाँ पहुँचते ही मुझे एक फाइल दी गई जो ऐसे केसों से भरी थी जिन पर पिछले अफसर ने कोई ध्यान नहीं दिया था। सारी रिपोर्टें आस-पास के गाँवों की थीं, जहाँ पिछले छह महीनों में कई लोग लापता हो चुके थे।
इनमें से ज़्यादातर केस फलदाराबाद नाम के क़स्बे और उसके आस-पास के इलाकों के थे। इन बस्तियों को घने जंगलों ने एक-दूसरे से अलग कर रखा था। इन जंगलों में एक प्राचीन मंदिर था, जो अब खंडहर बन चुका था और उसे लेकर अफ़वाह थी कि वहाँ भूत रहते हैं। दिन में तो लोग उस रास्ते से निकल जाते, लेकिन जैसे ही अंधेरा होता, पूरा इलाका सुनसान हो जाता।
रिपोर्टों के अनुसार, पिछले छह महीनों में बीस लोग इस इलाके से लापता हो चुके थे। ज़्यादातर लोग यही मानते थे कि इन सबके पीछे कोई भूत या चुड़ैल है। मगर मेरे साथी राजू का मानना था कि ये किसी आदमखोर जानवर का काम है। मुझे भी यही शक था।
मैंने थाने का पुराना रिकॉर्ड खंगाला, लेकिन अफ़सोस कि कुछ भी ठोस नहीं मिला। मैंने गाँव के मुखिया से भी बात की, लेकिन वहाँ से भी कोई जानकारी नहीं मिली। आखिरकार मैंने राजू के साथ उस इलाके का दौरा करने का फैसला किया और सरकार से इजाज़त माँगी। तीन दिन बाद इजाज़त मिल गई।
मौसम अब तक सूखा था, नदियाँ और नाले भी सूख चुके थे। मैं पहली बारिश से पहले पहुँचना चाहता था, इसलिए सरकारी जीप ली और राजू व दो सिपाहियों के साथ निकल पड़ा। दोपहर के वक़्त हम फलदार पहुँचे, लेकिन वहाँ का माहौल देखकर हैरान रह गया। दिन में भी पूरा गाँव सुनसान था, घरों के दरवाज़े बंद, गलियों में सिर्फ कुछ बच्चे और जानवर दिखाई दिए।
गाँव के मुखिया ने हमारा स्वागत किया और हमें अपने मेहमान खाने में ठहराया। जब मैंने उसे आने का मकसद बताया, तो उसका चेहरा उतर गया। उसने डरते हुए कहा:
"साहब, आप चाहे कितने भी बड़े शिकारी हों, लेकिन उसे नहीं मार सकते। मैंने खुद अपनी आँखों से उस रास्ते पर एक चुड़ैल को खड़े देखा है।"
मैंने राजू के चेहरे पर डर की हल्की सी परछाईं देखी। मैंने पूछा, "क्या मतलब है पटेल साहब?"
वह बोला, "साहब, कुछ दिन पहले एक औरत लकड़ियाँ बीनने वहाँ गई थी... लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटी।"
"क्या?" मैंने चौंकते हुए कहा। "तुमने उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई?"
"क्या फ़ायदा साहब," वह बोला, "सरकार कुछ नहीं कर सकती..."
(To be continued in Chapter 2...)
Next Chapter....
Chapter 2: Mandir Ki Galiyon Mein
मुखिया के मना करने के बावजूद मैंने तय कर लिया था कि मैं उस गज़रगाह का मुआयना ज़रूर करूँगा जहाँ ये सब हादसे हो रहे थे। मैंने राजू से कहा कि वह जीप से ज़रूरी सामान उतार ले और सिपाहियों को गाड़ी की निगरानी पर छोड़ दे। फिर हम दोनों जीप में बैठकर उस पुराने मंदिर की ओर निकल पड़े।
करीब एक घंटे की थका देने वाली सफर के बाद हम उस सुनसान रास्ते पर पहुँच गए। चारों तरफ सन्नाटा था और घना जंगल चारों तरफ फैला हुआ था। मैंने जीप रोक दी और चारों तरफ नज़र दौड़ाई। जगह का माहौल ही कुछ अलग था — जैसे हर पेड़, हर पत्ता हमें घूर रहा हो।
मैंने जीप से उतरते ही अपनी राइफल चेक की और गोलियाँ भर लीं। राजू के पास मेरी भरोसेमंद .375 मैग्नम थी और मेरे पास .450 एक्सप्रेस। दोनों हथियार तैयार थे, लेकिन माहौल इतना भारी था कि हथियारों से भी डर कम नहीं हो रहा था।
हमने मंदिर तक पैदल चलने का फैसला किया। रास्ता कच्चा था, हर तरफ झाड़ियाँ और टूटे-फूटे पेड़ पड़े थे। थोड़ी दूर जाकर हमें वो पुराना मंदिर दिखाई देने लगा — टूटी हुई दीवारें, गिरी हुई मूर्तियाँ और जंग लगी घंटियाँ अब भी हवा में हल्का-हल्का बज रहीं थीं। मंदिर किसी समय बहुत भव्य रहा होगा, लेकिन अब वो सिर्फ डर और रहस्य का अड्डा बन चुका था।
मैंने मंदिर के इर्द-गिर्द का मुआयना शुरू किया। वहाँ किसी जानवर के पंजों के निशान थे — बहुत बड़े और गहरे। राजू ने धीरे से कहा, "साहब, ये निशान किसी बाघ के लगते हैं।"
मैंने सिर हिलाया। "हाँ, लेकिन देखो ज़रा... पंजे सीधे हैं, घूमे हुए नहीं... हो सकता है ये कोई आदमखोर हो।"
हम मंदिर के अंदर भी गए। वहाँ धूल और मकड़ियों का जाल था। जैसे ही हम एक टूटी हुई दीवार के पास पहुँचे, राजू अचानक ठिठक गया।
"साहब...!" उसकी आवाज़ कांप रही थी, "वो देखिए...!"
मैंने देखा — दीवार के कोने में किसी औरत की साड़ी का टुकड़ा फंसा हुआ था, जिस पर ताज़ा खून के धब्बे थे। मैंने झुक कर ध्यान से देखा — कपड़ा अभी गीला था। इसका मतलब था कि जो कुछ भी हुआ, हाल ही में हुआ है।
"हम सही जगह आए हैं, राजू," मैंने गंभीर लहजे में कहा। "लेकिन अब हमें और भी सावधान रहना होगा।"
अभी हम आगे बढ़ ही रहे थे कि मंदिर के पीछे से एक अजीब सी चीख़ सुनाई दी — न इंसान की और न ही जानवर की। एक भयानक, गूंजती हुई चीख़ जिसने जंगल की खामोशी को चीर दिया।
राजू काँप उठा। "साहब... ये क्या था?"
मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और राइफल थाम ली। हमारी सांसें थमी हुई थीं, जैसे ही कुछ और सुनाई देता... तभी एक और चीख़ आई — और इस बार वो और भी नज़दीक थी।
मैंने फुसफुसाते हुए कहा,
"राजू, लगता है वो यहीं कहीं है... और हमें देख रही है..."
(To be continued in Chapter 3 & 4...)