Novel Cover Image

सरहदों पर मोहब्बत

User Avatar

rimjhim Sharma

Comments

0

Views

5

Ratings

0

Read Now

Description

वो बारूद से खेलती है, और बंदूक उसकी साथी है... आयुक्ता राणा — जज़्बा है, जुनून है, और मुल्क की खातिर चलती आंधी है... वो सरहद की मिट्टी को माथे का तिलक समझता है, मेजर ऋषित राठौड़ — सन्नाटों में चाल चलता है, और दुश्मनों को मौत की नींद सुलाता है......

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. सरहदों पर मोहब्बत - Chapter 1 मेजर ऋषित राठौड़

    Words: 1205

    Estimated Reading Time: 8 min

    आगे......

    इश्क हर चीज से परे होता है कश्मीर की वादियों में आज चहल पहल ज्यादा ही थी चारों तरफ बर्फबारी में लोग अपने घर के दरवाजे बंद करके अंदर बैठे थे और हमेशा की तरह इंडियन आर्मी के सोल्जर चारों तरफ बिखरे हुए थे उनकी आंखें एक टक हर चीज का मुआयना कर रही थी ।

    तभी एक सोल्जर दूसरे से - लगता है हमें झूठी खबर मिली है जैसे किसी ने हमारे साथ मजाक किया है यहां पर दूर-दूर तक देखकर नहीं लग रहा की कोई आतंकवादी किसी घर में छुपा होगा ।

    जिस पर दूसरा सोल्जर - अगर हुआ तो...फिर तुम क्या जवाब दोगे मेजर को तुम जानते हो ना उनका गुस्सा कितना भयंकर है हमारा कोर्ट मार्शल होने में टाइम नहीं लगेगा इसलिए फालतू की बातों पर ध्यान देने से अच्छा है खुद के काम पर ध्यान दो ।

    जिस पर वह सोल्जर हाथ में बंदूक लिए चारों तरफ नजर घूमाते हुए खुद से बुदबुदाया - मेजर का चमचा....

    यह दोनों सोल्जर थे वंश और निशांक ... जो पिछले साल से मेजर के साथ ऐज ए टीम मेंबर काम कर रहे थे लेकिन इन दोनों की कभी बनी नहीं हर दूसरी बात पर इनका झगड़ा होता ही रहता था और पूरा आर्मी बेस यह जानता था कि यह दोनों कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते हैं इसलिए इनके हरकतों पर ध्यान भी कम ही दिया जाता था लेकिन अधिकतर यह अपने सीनियर अधिकारियों से इनकी हरकतों पर डांट खाते रहते थे और पनिशमेंट मिलती थी वह अलग लेकिन पिछले एक साल में उनके अंदर रत्ति भर भी सुधार नहीं हुआ था ।

    तभी उनके पास एक सोल्जर दिव्या आते हुए , जो उनकी भी जूनियर थी और फिलहाल कुछ वक्त पहले ही उसकी पोस्टींग यहा कश्मीर के शोपियां में हुई थी - सर मुझे उसे घर में से से किसी के चिल्लाने की आवाज आयी । इतना कहकर उसने दूर पहाड़ी पर एक घर की तरफ इशारा किया जो इस वक्त बंद था ।

    उसकी बात सुनकर वंश उसके आगे खड़ा होते हैं - आर यू श्योर ।

    यस सर आई एम सर मैंने साफ-साफ सुना था लेकिन उसे वक्त दरवाजे के पास वाली खिड़की खुली थी लेकिन जैसे ही मैं उस तरह मुडी़ , वह बंद हो चुकी थी।

    उसकी बात पर निशंक फटाफट वॉकी टॉकी से - सर यहां इस वक्त हमें एक घर में संदिग्ध घटना का आभास हुआ है आप फटाफट टीम के साथ यहां आ जाइए।

    वंश चिढ़ते हुए - तुमने यह इनफॉरमेशन मेजर को क्यों दी । हम तीनों मिलकर इसे सॉल्व कर सकते थे और साथ में आतंकवादी को पकड़ सकते थे ।

    जिस पर निशांक - मुझे मेजर ने तुम दोनों की भी जिम्मेदारी दि हैं और मैं अपनी जिम्मेदारियां से मुंह नहीं मोड़ता । इस वक्त हम तीन हैं और हमें पता नहीं है कि उसे घर में कितने लोग हैं और उनके पास कितने खतरनाक हथियार है । अगर यह खतरा मोल लेंगे और इसमें एक की जान भी चली गयी खरोच भी आई तो मेजर मुझे छोड़ेंगे नहीं और मैं इस बात का रिस्क नहीं ले सकता । आर्मी मेरा सपना हैं और मैं नहीं चाहता की वक्त से पहले मैं अपना कोर्ट मार्शल करवा कर अपने घर लौट जाऊं।

    जिस फर वंश गुस्से से - नौटंकी , डरपोक साला । घाव एक फौजी की पहचान होते हैं ।

    और जोश के साथ होश संभाले रखना भी , इतना कहकर निशांक अपने हाथ में दूरबीन‌ पकड़ उस बड़े से पत्थर की ओट में उस घर पर नजर रखने लगा , जो दूर पहाड़ी पर बसा था ।

    तभी सामने वॉकी टॉकीज आवाज गुंजी - कैंडेट वंश , आईटी'एस माय आर्डर तुम तब तक कोई एक्शन नहीं दोगे जब तक मेरा आॅर्डर तुम्हें मिल नहीं जाता जब तक पूरी टीम वहां पर नहीं आएगी तब तक उस घर की तरफ एक कदम भी नहीं बढ़ाओगे तुम दोनों और कैंडेट दिव्या , आप इन दोनों पर नजर रखेगी ‌।

    इतना कहने के बाद में वॉकी-टॉकी शांत हो गया और वह तीनों शांति से उस घर पर नजर रखने लगे । वंश का खून अभी गुस्से से उबले मार रहा था । उससे अपना गुस्सा कंट्रोल भी नहीं हो रहा था क्योंकि आतंकवादियों से उसे सख्त नफरत थी ‌।

    तभी कुछ दूर से उन्हें सैन्य टुकड़ी आती दिखाई थी जिसमें सबसे आगे मेजर ऋषित सिंह राठौड़ चल रहा था । वर्दी में वह एकदम हीरो लग रहा था और उसकी चाल में एक अलग ही आत्मविश्वास था ।
    कुछ ही देर में वहां पर काबू पा लिया गया और वो सब लोग शोपियां में बने अपने आर्मी बेस में आ गये लेकिन मेजर ऋषित को हाथ में चोट लगी थी लेकिन फर्क उनके चेहरे पर बिल्कुल नहीं दिख रहा था वह तो बस कैंडेट वंश पर चिल्ला रहे थे - क्या तुम जानते हो कि तुम्हारा यह जोश आज हमें किस हालत में पहुंचा सकता था । कैंडेट वंश भूलों मत कि तुम एक सोल्जर हो और सोल्जर के लिए देश से बढ़कर कुछ नहीं होता । अगर वक्त पर मैंने तुम्हें नहीं हटाया होता तो तुम्हारी गलती की वजह से उस आतंकवादी की गोली तुम्हारे शरीर के आर पार होती या तो तुम यह दुनिया छोड़ चुके होते या किसी अस्पताल में पड़े होते । तुम्हारी एक गलती की वजह से सभी सोल्जर की जान भी खतरे में पड़ सकती थी । एक सोल्जर के पास जोश से भी ज्यादा होश होना चाहिए उसे पता होना चाहिए कि उसे किस सिचुएशन में कैसे रिएक्ट करना ।
    वंश चुपचाप सर झुकाए सब सुन रहा था क्योंकि उसे भी एहसास था कि आज उसकी गलती की वजह से सब की जान खतरे में पड़ सकती थी ।
    मेजर राठौड़ , वंश पर और चिल्लाते तब तक मेजर नंदा वहां आते हुए - मेजर राठौड़ , तुम्हें ब्रिगेडियर सर ने अर्जेंट अपने केबिन में बुलाया हैं ।‌
    वंश मन में सोच रहा था कि चलो वह बच गया लेकिन उसके सारे अरमानों पर पानी फीर गया जब मेजर राठौड़ ने गुस्से में कहां - तुम अगले सात दिन तक किचन में काम करोंगे और डेली दस किलोमीटर एक्सटरा दौड़ोगे और मेजर नंदा तुम पर ध्यान रखेंगे ।
    इतना कहखर वह ब्रिगेडियर राजेन्द्र प्रताप राणा के केबिन की तरफ चले गये ।
    कुछ वक्त बाद वह ब्रिगेडियर सर के केबिन में उनके सामने बैठा था ।
    ब्रिगेडियर सर - मेजर राणा , पाकिस्तान में हमारे खुफिया जासूसों से खबर मिली हैं कि पाकिस्तानी आतंकवादी बिलाल का संगठन दहश्त ए पाक , आने वाले तीन महिनों में कश्मीर के आठ इलाकों में बम ब्लास्ट का प्लान बना रहा हैं ।
    इसलिए हम चाहतें हैं कि इस मिशन को आप लीड करे लेकिन इतनी बड़ी जिम्मेदारी आप अकेले के कंधों पर नहीं डाली जा सकती हैं इसलिए गवर्नमेंट के आदेश पर इंडिया की जाबाज मेजर आयुक्ता राणा की पोस्टींग राजस्थान बाॅर्डर से यहां शोपियां आर्मी बेस में की जा रही हैं और आपको उनके साथ काम करना हैं । कल सुबह वह शोपियां पहूंच जायेगी , आप किसी को उनको पीक करने के लिए भेज देना ।
    आगे मिशन की जानकारी उनको आने के बाद आपको दे दी जायेगी । अब आप जा सकते हैं ।
    मेजर राठौड़ खड़े होते हुए - जय हिन्द सर
    जय हिन्द मेजर ,
    इसके बाद मेजर राठौड़ ‌बाहर निकल गये

    जारी हैं ........

  • 2. सरहदों पर मोहब्बत - Chapter 2 मेजर आयुक्ता राठौड़

    Words: 398

    Estimated Reading Time: 3 min

    आगे ......

    सुबह का सूरज शोपियां आर्मी बेस की कहानी बदलने वाला

    था । भले ही शोपियां में आयुक्ता राठौड़ के चर्चे नहीं थे लेकिन पाक राजस्थान बाॅर्डर पर हर दुश्मन उससे कांपता था ।

    मेजर राठौड़ ने वंश और निशांक को आयुक्ता को लेने भेज दिया था और खुद ब्रिगेडियर सर के साथ मिलकर उसके स्वागत की तैयारी कर रहा था ।

    मेजर नंदा - तुम्हें नहीं लगता मेजर कि ब्रिगेडियर सर इतना‌ भाव‌ तो हमें भी नहीं देते हैं ।

    हम्म , लेकिन यह सब इसलिए भी हो सकता हैं ना मेजर कि मेजर राणा के लिए यह जगह नयी हैं इसलिए सबकुछ कर रहे हो , इतना कहकर मेजर राठौड़ , ब्रिगेडियर सर के पीछे निकल गये ।

    इधर रेलवे स्टेशन पर वंश और निशांक भी हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए , मेजर राणा का वेट कर रहे थे ।

    कुछ देर बाद

    ट्रेन सीटी बजाती हुई प्लेटफार्म पर आकर रुकी और मेजर राणा हाथ में बैग लिए बाहर निकली । वह चारों तरफ किसी को ढूंढ रही थी , हाथों में बैग , पोनी टेल , वर्दी , आंखों में तेज और उसकी चाल , वो भीड़ में सबसे अलग लग रही थी और जैसे ही चारों तरफ देखते हुए उसकी नजर एक साइड पर गयी तो वहां दो लड़के हाथ में मेजर राणा का बोर्ड लेकर खड़े थे ।

    वह उस तरफ ही चली गयी और उसको सामने देखकर , वंश और निशांक - जय हिन्द मेजर

    जिस पर आयुक्ता ने भी - जय हिन्द कैडेंट्स , हम जायेगे किससे ।
    जिस पर वंश एक तरफ खड़ी आर्मी जीप की तरफ इशारा किया ।
    तो आयुक्ता उस तरफ बढ़ गयी और उसके पीछे पीछे वंश और निशांक भी ।
    लगभग एक घंटे के सफर के बाद उनकी जीप शोपियां आर्मी बेस के सामने थी ।
    इस एक घंटे के सफर में मेजर राणा के मुंह से एक शब्द नहीं निकला था और इसलिए वंश और निशांक को भी चुप रहना पड़ा ।
    उनके लिए इससे लम्बा सफर हो ही नहीं सकता था । जहां वो दोनों एक पल के लिए भी लड़े बीना नहीं रहते थे वही उन्हें , एक घंटे तक मेजर राणा के डर से चुप रहना पड़ा था लेकिन उनके लिए हैरानी की बात यह थी कि मेजर राणा की उम्र यहीं कोई इक्कीस बाइस साल के लगभग थी ।
    जब जीप आर्मी बेस के सामने रुकी तो वहां