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बिन कहे तेरा हुआ

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"तेरा हुआ" एक रोमांटिक-थ्रिलर वेब सीरीज़ है, जो एक सख्त और घमंडी बिज़नेसमैन वीर मल्होत्रा और एक मासूम, भावुक लड़की सायरा की अनचाही शादी के बाद की कहानी बयां करती है। जहां वीर को प्यार और रिश्तों पर विश्वास नहीं, वहीं सायरा हर रिश्ते में अपनापन ढूंढती...

Total Chapters (10)

Page 1 of 1

  • 1. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 1

    Words: 741

    Estimated Reading Time: 5 min

    सुबह के छह बजे थे। पूरा शहर अभी करवटें बदल रहा था, और सूरज धीरे-धीरे नीले आसमान पर अपनी जगह बना रहा था।

    दिल्ली की सर्द सुबहें कुछ ज़्यादा ही चुप होती हैं — मानो हर इमारत, हर सड़क अपने बीते कल को ओढ़े सो रही हो।

    पर शहर की सबसे ऊँची इमारत — खन्ना टावर्स के पैंतालीसवें फ्लोर पर एक आदमी था, जो सोया नहीं था।

    वो खड़ा था शीशे की दीवार के पास — बेजान और शांत। नाम था उसका — नील खन्ना।

    काले रंग की टर्टल नेक स्वेटर में, बाल हल्के पीछे झुके हुए, और चेहरे पर ऐसा तेज़ जैसे कोई राजा हो — पर आंखों में गहराई थी… अकेलेपन की।

    वो नीचे देख रहा था — सड़कें, ट्रैफिक, धुंध, सब कुछ उसकी नज़र से गुज़र रहा था… लेकिन दिल में कुछ और था।

    हाथ में कॉफी का मग था। उसने एक सिप लिया, और हल्के से कहा,

    > “ये शहर हर रोज़ मेरी जीत पर अखबार लिखता है... मगर हार कोई नहीं पढ़ता।”

    पीछे से उसका असिस्टेंट धीरे से बोला —

    “सर, आज बोर्ड मीटिंग है — आपके नए टेक्नो प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग।”

    नील ने बिना पीछे देखे जवाब दिया —

    > “तैयार हूं। हर नई डील के लिए तो ज़िंदा हूं।”

    पर ये सिर्फ उसका चेहरा बोल रहा था। दिल बहुत पीछे कहीं, किसी अधूरी बात में अटका था।

    ---

    दिल्ली के पॉश इलाके में फैली हुई थी — खन्ना हवेली। एक महल जैसी कोठी, जो बाहर से बहुत भव्य थी, मगर भीतर से खाली।

    रसोई में हलचल थी — नौकर-चाकर नाश्ते की तैयारी में लगे थे।

    हॉल में बैठी थीं — नीना देवी खन्ना, नील की दादी — 75 की उम्र, मगर रौब आज भी वैसा ही।

    उनके सामने मेज़ पर रखी थी आज की ताज़ा अखबार — फ्रंट पेज पर नील की तस्वीर।

    > "नील खन्ना – एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर"

    उन्होंने चश्मा उतारकर अखबार को मेज़ पर रख दिया, और गहरी साँस ली।

    > “इन्हें ताज चाहिए था, हमने दे दिया। अब इस ताज को संभालने वाला एक वारिस भी चाहिए।”

    तभी उनकी पोती रिया आई — फैशनेबल, चालाक और थोड़ा ईर्ष्यालु।

    “दादी, भैया को शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है। और honestly, उनके साथ कोई टिकेगा भी नहीं।”

    नीना देवी ने उसकी तरफ देखा —

    > “हर सुलगते इंसान को ठंडक देने वाला कोई न कोई होता है। अब वक्त है कि नील को भी मिल जाए।”

    तभी राहुल अंदर आया — नील का चचेरा भाई, जो हमेशा अवसर की तलाश में रहता था।

    “दादी, नील भैया को मनाना आसान नहीं होगा।”

    नीना देवी ने मुस्कुराते हुए कहा —

    > “किसी को मनाना नहीं है... हालात बनाए जाते हैं।”

    शाम के वक्त, नील अपने ऑफिस से बाहर निकला। दिल्ली की ट्रैफिक उसकी गाड़ी के चारों ओर शोर मचा रही थी, पर गाड़ी के अंदर सन्नाटा था।

    ड्राइवर ने पूछा —

    “सर, आज डिनर का कोई प्लान है?”

    नील ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा —

    “डिनर? तुम्हें नहीं पता, भूख अब एहसास नहीं बनती… बस आदत है।”

    गाड़ी रेड लाइट पर रुकी। पास की एक कार से एक पुरानी ग़ज़ल बज रही थी —

    "तेरा हुआ, दिल ये मेरा…"

    नील की आँखें कुछ देर के लिए बंद हो गईं।

    एक चेहरा याद आया — वो मुस्कराती आंखें, बारिश में भीगी चूड़ियाँ, और वो शाम...

    जिस शाम सब कुछ बदल गया था।

    उसका हाथ अनजाने में उस कोट की जेब पर गया — वहाँ अब भी एक पुराना चूड़ी का टुकड़ा रखा था।

    -

    रात को अपने पेंटहाउस में पहुंचकर नील ने सब लाइट्स बंद कर दीं।

    अंधेरे में चलकर वो अपने स्टडी रूम में पहुंचा, और अलमारी के नीचे से एक बॉक्स निकाला।

    उस बॉक्स में थे — कुछ पुराने खत, एक तस्वीर और एक टूटी हुई चूड़ी।

    तस्वीर में एक लड़की थी — नील के जीवन की पहली और आख़िरी मोहब्बत। नाम उसका आज भी नील के लबों पर नहीं आता था, बस सांसों में रहती थी।

    “कभी चाहा था तुझे… इतनी शिद्दत से, कि अब किसी और को देखने से भी डर लगता है।”

    उसने तस्वीर को दोबारा बॉक्स में रखा, और सब कुछ बंद कर दिया — जैसे अतीत को फिर से जंजीर में जकड़ दिया हो।

    तभी फोन बजा — स्क्रीन पर नाम आया: दादी।

    नील ने कॉल उठाई।

    > “नील, कल सुबह 9 बजे घर आ जाना। ज़रूरी बात करनी है।”

    “ठीक है दादी।”

    लेकिन नील को क्या पता था — अगली सुबह उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी 'डील' उसके दिल से जुड़ने वाली थी।

  • 2. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 2

    Words: 677

    Estimated Reading Time: 5 min

    ---

    भोपाल की एक पुरानी कॉलोनी में सुबह के सूरज की हल्की किरणें एक खिड़की से कमरे के अंदर झांक रही थीं। उस कमरे की दीवारें गुलाबी थीं, जिन पर पुराने फोटोफ्रेम टंगे हुए थे — एक फैमिली की यादों की गवाही देते।

    राहा अभी-अभी नींद से जागी थी। उसका चेहरा मासूम था, आंखों में एक अलसाया सा उजाला था। सफेद सूती सलवार में लिपटी वो उठी, खिड़की खोली और बाहर पेड़ों को हवा में झूमते हुए देखा।

    "कितना सुकून है इस शहर में… और मेरी ज़िंदगी?" उसने खुद से पूछा।

    उसके कमरे में एक डायरी थी — जिसके कोनों पर सूखे फूल चिपके हुए थे। वो अक्सर अपने सपने उसमें लिखा करती थी।

    डायरी की एक लाइन:
    "मैं वो लड़की हूं जो अपने रिश्तों से प्यार करती है, भले ही दुनिया बदल जाए… मैं नहीं बदलूंगी।"


    ---



    बाहर आँगन में बैठी दादी जान्हवी चाय पी रही थीं। उनकी नज़रें दूर कुछ तलाश रही थीं, लेकिन मन राहा में ही अटका था।

    "राहा बड़ी हो गई है। पर उसके नसीब में क्या लिखा है, ऊपरवाला ही जाने।"

    तभी राहा उनके पास आकर मुस्कराई — "दादी, आपको फिर से अपने गुर्दे की दवा दी?"

    जान्हवी मुस्कुराई, "तू मेरी दवा है, राहा। बस तू खुश रह, मेरे लिए वही काफी है।"

    दादी की आँखों में झुर्रियां थीं, लेकिन उनमें वो चमक बाकी थी — जो एक सयानी बुज़ुर्ग औरत के दिल में अपनी पोती के लिए होती है।


    --

    राहा ने आँगन के एक कोने में लगी तुलसी के पास बैठकर किताब खोली — "फ़ैशन डिज़ाइन के बुनियादी सिद्धांत"।

    "एक दिन अपना खुद का स्टूडियो खोलूंगी, भोपाल की सबसे अलग डिज़ाइनर बनूंगी। और दादी मेरी पहली क्लाइंट होंगी!" — उसने हँसते हुए कहा।

    पर उसकी हँसी के पीछे एक डर था — एक अनजाना भय जो अक्सर उसकी आँखों में तैरता था।



    दोपहर को घर में एक पार्सल आया — पुराने लिफाफे के अंदर एक लेटर था, मल्होत्रा परिवार की ओर से।

    "राज मल्होत्रा, दिल्ली:
    आपकी नातिन राहा के लिए रिश्ता लेकर आ रहे हैं। हमारा बेटा वीर, एक सफल व्यवसायी है। हमें उम्मीद है कि आप इस प्रस्ताव पर विचार करेंगी।
    — सादर, राज मल्होत्रा"

    जान्हवी स्तब्ध थीं।

    "वीर मल्होत्रा? उस राज मल्होत्रा का बेटा? जो हमारे पुराने मित्र थे?"

    राहा ने पूछा, "दादी, ये कौन हैं?"

    जान्हवी ने धीमी आवाज़ में जवाब दिया —
    "बेटा… ये वही लोग हैं जो तेरी माँ-बाप के गुजरने के बाद तुझे अपनाने को तैयार थे। मैंने मना किया था, क्योंकि मैं तुझे अपने पास रखना चाहती थी। अब शायद वक़्त ने हमें वहीं लाकर खड़ा कर दिया है।"




    राहा चुप थी। उसकी आँखों में हज़ार सवाल थे।
    "एक अनजाने आदमी से शादी? जिसके बारे में सुना है कि वो दिल का सख्त है, और चेहरा पत्थर का?"

    राहा अकेले मंदिर के कोने में बैठी थी।
    "भगवान, क्या मेरी कहानी भी उन परियों की तरह होगी… जिनका राजकुमार कभी मुस्कुराता नहीं?"

    रात को जान्हवी ने राहा से कहा,
    "तेरे नाना के राज मल्होत्रा से वादे थे। तेरी माँ की आख़िरी इच्छा भी थी कि तू बड़े घर में जाए।"

    राहा ने कांपते हुए कहा —
    "दादी… पर क्या मैं एक ऐसे आदमी के साथ जी पाऊंगी, जो प्यार नहीं करता?"

    जान्हवी ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
    "कभी-कभी प्यार करने वाला इंसान नहीं, हालात होते हैं। तू उस पत्थर को भी मोम बना सकती है, मेरी बच्ची।"


    ---



    दिल्ली के एक कोने में वीर बालकनी में अकेला खड़ा था।
    भोपाल के एक आँगन में राहा अपने ख्वाबों की किताब बंद कर चुकी थी।

    दोनों की ज़िंदगी एक अनजाने रास्ते पर मोड़ लेने वाली थी — और उन्हें इसका अंदाज़ा तक नहीं था।

    वीर को राहा से नफरत नहीं थी — पर उसे किसी की जरूरत नहीं थी।

    राहा को वीर से मोहब्बत नहीं थी — पर उसे रिश्तों में यकीन था।




    अगले दिन जान्हवी ने राज मल्होत्रा को कॉल किया:
    "राहा को रिश्ता मंज़ूर है, लेकिन एक शर्त है… वो पहले उससे मिलना चाहती है, एक बार।"

    राज बोले, "वीर ऐसे रिश्तों में यकीन नहीं रखता, लेकिन मैं उसे मना लूंगा।"

    और वहीं, कहानी ने अपनी असल रफ्तार पकड़ ली।


    -

  • 3. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 3

    Words: 819

    Estimated Reading Time: 5 min

    बहुत धन्यवाद! अब प्रस्तुत है —


    ---


    वीर मल्होत्रा ने दीवार की घड़ी पर नज़र डाली — शाम के पाँच बज चुके थे। हवेली के ड्रॉइंग रूम में हल्का उजाला था, लेकिन माहौल ठंडा और तनाव से भरा हुआ।

    राज मल्होत्रा सामने खड़े थे, हाथ में चाय का कप और चेहरे पर गंभीरता।
    "आज तुमसे एक लड़की मिलने आ रही है, वीर।"

    वीर ने एक तेज़ नज़र अपने पिता पर डाली —
    "शादी के नाम पर फिर वही ड्रामा?"

    राज ने संयम से कहा, "इस बार नहीं। ये लड़की खास है। भोपाल से आई है, तुम्हारी माँ के वादे से जुड़ी हुई। और तुम सिर्फ उससे मिलने जा रहे हो, शादी नहीं कर रहे अभी।"

    वीर ने ठंडी हँसी हँसी —
    "और अगर मिलना भी न चाहूं तो?"

    राज ने चुप रहकर सिर्फ इतना कहा —
    "तुम्हारे 'ना' कहने की आदत ने ही इस घर को रिश्तों से ख़ाली कर दिया है।"

    वीर ने गहरी सांस ली, दीवार पर टंगी अपनी माँ की तस्वीर की ओर देखा, और खुद से बुदबुदाया —
    "माँ, क्या यही वादा किया था आपने?"


    -

    ट्रेन की खिड़की से बाहर देखती राहा के चेहरे पर एक गहराई थी — भोपाल की मिठास, अपनों की आहट, और एक डर… जो हर आने वाली घड़ी में बड़ा होता जा रहा था।

    उसकी बगल में बैठी जान्हवी दादी ने उसका हाथ थामा —
    "डर मत, मेरी बच्ची। ये मुलाक़ात है, कोई फैसला नहीं। अगर तुझे पसंद न आए, तो हम वापस आ जाएंगे।"

    राहा ने सिर हिलाया, पर उसकी आंखें कह रही थीं —
    "अगर दादी न होतीं, तो मैं कभी ये सफ़र न करती।"


    -

    मल्होत्रा हवेली में सफेद फूलों की हल्की सजावट की गई थी। राज मल्होत्रा खुद स्वागत के लिए गेट पर खड़े थे।

    जैसे ही राहा ने हवेली में कदम रखा, उसकी आँखें चारों ओर घूमीं — सब कुछ भव्य था, लेकिन कहीं न कहीं उसे सब कुछ 'ठंडा' और 'अनछुआ' लगा।

    वहीं, ऊपर बालकनी में खड़ा वीर उसे देख रहा था।
    एक पल के लिए उसकी आँखें रुक गईं।
    "ये लड़की…?" उसने खुद से पूछा।

    राज ने उसे बुलाया —
    "वीर, मिलो, ये राहा है… जान्हवी जी की नातिन।"

    वीर ने ठंडे स्वर में कहा —
    "हैलो।"

    राहा ने विनम्रता से सिर झुकाया —
    "नमस्ते।"

    दोनों की नज़रें मिलीं, पर दोनों ने कुछ नहीं कहा।
    दोनों की खामोशी एक अजीब सी लहर पैदा कर रही थी — नफ़रत नहीं, मगर अपनापन भी नहीं।


    ---



    ड्रॉइंग रूम से हटकर एक कोने में दोनों को अकेले बैठा दिया गया।

    वीर ने डायरेक्ट सवाल दागा —
    "क्या तुम्हें जबरदस्ती लाया गया है, या तुम भी इस शादी को मौका देना चाहती हो?"

    राहा थोड़ी चौंकी, लेकिन खुद को संयम में रखते हुए बोली —
    "मुझे मजबूर नहीं किया गया है। लेकिन मैं हर रिश्ते को समझने का मौका देती हूं।"

    वीर ने कटाक्ष भरे स्वर में कहा —
    "समझने से पहले कई रिश्ते तो दम तोड़ देते हैं।"

    राहा ने धीमे से जवाब दिया —
    "शायद उन्हें कोई समझना चाहता ही नहीं।"

    एक पल के लिए वीर चुप हो गया।
    उसने कभी किसी लड़की से इस तरह की सोच की उम्मीद नहीं की थी।


    ---


    उसी वक्त जान्हवी और राज पुराने ज़माने की बात कर रहे थे।

    "जब मेरी बेटी रिया की शादी हुई थी, तभी तुमने कहा था — अगर किसी वजह से रिया को कुछ हो गया, तो उसकी बेटी को तुम्हारा परिवार संभालेगा।"

    राज की आँखों में नमी थी —
    "हाँ जान्हवी जी, और आज वही दिन है।"

    जान्हवी ने कहा —
    "लेकिन मैं अपनी राहा को ऐसे घर में नहीं भेजूंगी, जहाँ रिश्ते को बोझ समझा जाए।"

    राज ने गंभीर स्वर में कहा —
    "मैं अपने बेटे को समझाऊँगा।"


    -

    वीर अपने कमरे में वापस आ गया। बालकनी में खड़ा होकर राहा को जाते हुए देख रहा था।

    "वो लड़की… कुछ अलग है। ना गुस्से से झुकी, ना झूठी मुस्कान से इंप्रेस करने की कोशिश की।"

    उसके मन में कुछ हिलने लगा था —
    "क्या ये वही है… जिससे मैं भाग रहा था?"


    -

    रात को होटल के कमरे में बैठी राहा ने अपनी डायरी खोली।

    "आज उससे मिली — वीर मल्होत्रा।
    सख्त है, मगर टूटा हुआ भी।
    कितना अकेलापन है उसकी आँखों में, और कितना डर भी…
    शायद वो किसी को फिर से अपने पास नहीं आने देना चाहता।
    पर क्या मैं उसकी दीवारें तोड़ सकूंगी?"


    ---


    जान्हवी ने राहा से पूछा —
    "तो? क्या सोचा तूने?"

    राहा ने मुस्कराते हुए कहा —
    "मैंने अभी कुछ तय नहीं किया, दादी।
    लेकिन मैं उसे जानना चाहती हूं।
    क्योंकि किसी के दिल तक पहुंचने के लिए रास्ता उसकी आँखों से होकर जाता है — और उसकी आँखें चुप हैं, मगर ख़ाली नहीं।"


    --

    अगले दिन, वीर राज के पास आया।
    "मैं शादी नहीं कह रहा, लेकिन अगर वो लड़की फिर से मिलना चाहे, तो मुझे ऐतराज़ नहीं।"

    राज ने चौंकते हुए कहा —
    "क्या कहा?"

    वीर ने गहरी सांस ली —
    "कुछ तो है उसमें… जो मुझे सोचने पर मजबूर कर रह

  • 4. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 4

    Words: 877

    Estimated Reading Time: 6 min

    बहुत धन्यवाद!
    अब प्रस्तुत है —


    ---

    🌹 "तेरा हुआ" — एपिसोड 4



    सुबह का सूरज मल्होत्रा हवेली के ऊँचे पेड़ों के बीच से झाँक रहा था। हल्की धूप दीवारों पर गिर रही थी, लेकिन हवेली के अंदर एक गहरा सन्नाटा पसरा था।

    वीर अपने कमरे में बैठा खिड़की से बाहर देख रहा था। एक हाथ में कॉफ़ी का कप और आँखों में गहराई से बसी किसी सोच की लहरें थीं।

    पिछली शाम की मुलाकात उसके ज़हन में बार-बार लौट रही थी — राहा की आँखें, उसका शांत लेकिन दृढ़ स्वर, और वो एक लाइन —
    "शायद जिन्हें कोई समझना नहीं चाहता, वो पहले ही मर चुके होते हैं..."

    उसने कप को टेबल पर रखा, उठकर आईने के सामने गया और खुद को देखा।
    "क्या मुझे कोई समझना चाहेगा?"
    वो मुस्कराया नहीं। बस गहराई से खुद को घूरता रहा।




    भोपाल से आई राहा आज दिल्ली के होटल में ठहरी हुई थी। जान्हवी दादी ने पूजा खत्म की, और उसके पास आईं।
    "काफी देर से तू चुप है, राहा। कल की मुलाक़ात ने कुछ तो असर किया होगा?"

    राहा ने धीरे से कहा,
    "वो आदमी टूटा हुआ है, दादी। उसके पास सबकुछ है… मगर कुछ भी नहीं है।"

    "और क्या तुझे लगता है तू उसका 'कुछ' बन सकती है?"
    जान्हवी की आवाज़ में अनुभव था।

    राहा ने झिझकते हुए कहा,
    "नहीं जानती। पर मैं ये ज़रूर जानती हूँ कि अगर कोई इतने अकेलेपन में जी रहा है, तो उसे बस एक इंसान की ज़रूरत है — जो सिर्फ उसकी आँखों में देखे, उसके नाम या पैसे में नहीं।"

    दादी ने उसके माथे पर हाथ फेरा,
    "फिर चल, उस इंसान को जानने की कोशिश कर। कभी-कभी किसी की ख़ामोशी में छिपा शोर सबसे बड़ा सच होता है।"


    ---

    उसी दिन शाम को, राज मल्होत्रा ने दोनों परिवारों को एक साथ डिनर पर बुलाया। हवेली के अंदर सजावट चल रही थी — फूलों की हल्की गंध, मेज़ पर चाँदी के बर्तन, और दीवारों पर चमकती लाइट्स।

    वीर अपने कमरे से नीचे झाँक रहा था। उसे ये सब तमाशा लग रहा था — लेकिन आज उसमें कुछ बदला-बदला था।

    राहा आई। हल्के गुलाबी सूट में, सादगी से सजी हुई। उसकी चाल में आत्मविश्वास और आँखों में सच्चाई थी।
    वीर ने पहली बार किसी लड़की को इतने शांति और गरिमा से आते देखा।

    राज मल्होत्रा ने सबको बैठने के लिए कहा।
    जान्हवी और राहा एक ओर थीं, वीर और उसका बड़ा भाई रंजीत दूसरी ओर। दोनों परिवारों के बीच झूठी मुस्कानें चल रही थीं, मगर भीतर सबके अपने डर और उम्मीदें तैर रही थीं।


    ---


    खाने के दौरान माहौल बहुत औपचारिक था।
    राज ने कहा,
    "हम चाहते हैं कि वीर और राहा कुछ दिन एक-दूसरे को जानें। कोई दबाव नहीं है, सिर्फ समझने का वक्त।"

    वीर ने चुपचाप सिर हिलाया।

    राहा ने धीरे से वीर की ओर देखा —
    "अगर आप चाहें तो… मैं एक दिन आपके साथ ऑफिस चल सकती हूँ?"

    सब चौंक गए।

    वीर पहली बार थोड़ी देर तक उसे देखता रहा, फिर बोला —
    "ऑफिस एक युद्धभूमि है, वहाँ आपको कोई अच्छी चीज़ें देखने को नहीं मिलेंगी।"

    राहा बोली,
    "फिर भी, मैं जानना चाहती हूँ कि आप किस दुनिया से भाग रहे हैं।"

    राज ने बीच में हँसते हुए कहा,
    "लगता है, वीर को कोई टक्कर मिल गई है।"


    ---



    डिनर खत्म होने के बाद वीर अपने कमरे में चला गया।
    उसने एक पुरानी अलमारी से एक पुरानी फाइल निकाली — एक तस्वीर।

    वह और मीरा।
    एक लड़की जो उसकी पहली मोहब्बत थी — और जिसने उसे सिर्फ इस्तेमाल किया।

    वीर की आँखों में गुस्सा भर गया।
    "रिश्ते धोखा होते हैं… और भरोसा सिर्फ बर्बादी की शुरुआत।"

    लेकिन… राहा की आँखें उसे बार-बार याद आ रही थीं।
    "क्या ये लड़की मीरा जैसी है?
    या… वो मेरी कहानी की नई शुरुआत है?"


    ---

    उसी रात, राहा छत पर अकेली खड़ी थी।
    तारों से भरा आसमान, और उसकी आँखों में सवाल।

    "क्या मैंने सही किया?"
    "क्या किसी ऐसे आदमी से जुड़ना चाहिए जो अपने अतीत की आग में अभी भी जल रहा है?"

    जान्हवी उसके पास आईं और बोलीं —
    "दिल में अगर सवाल हैं, तो जवाब भी वहीं होंगे, राहा।
    बस धड़कनों की आवाज़ सुनो, दुनिया की नहीं।"

    राहा ने मुस्कराते हुए कहा,
    "अगर मैं उसके करीब गई तो क्या वो मुझे दूर नहीं धकेल देगा?"

    "अगर वो धकेल भी दे… तो क्या तू इतनी कमज़ोर है?"
    दादी की आवाज़ में सख़्ती नहीं, प्यार था।


    ---


    अगली सुबह, वीर ने राज को कहा —
    "मैं अगले हफ्ते भोपाल जा रहा हूँ — मल्होत्रा प्रोजेक्ट के सिलसिले में।"

    राज ने आश्चर्य से देखा,
    "अकेले?"

    वीर ने सिर हिलाया,
    "नहीं… राहा को भी ले जा रहा हूँ।"

    राज के हाथ से चाय का कप छूटते-छूटते बचा।

    "क्या… क्या सच में?"

    वीर मुस्कराया नहीं, बस बोला —
    "अगर जानना है, तो पूरी सच्चाई जाननी होगी। और शायद मैं खुद को भी फिर से जान सकूं।"


    ---



    राहा और वीर — दो छोरों से चलने वाले लोग अब एक सफर पर जा रहे हैं।
    जहाँ राहा उम्मीद लेकर चल रही है, वहीं वीर डर और भ्रम में उलझा हुआ है।

    पर ये सफर सिर्फ शहरों का नहीं,
    बल्कि दिलों के भीतर के अंधेरों से उजालों तक जाने का है।

    क्या ये सफर दोनों को करीब लाएगा?
    या वीर का अतीत फिर से राहा को चोट देगा?
    क्या राहा वीर की दीवारों को गिरा सकेगी?

  • 5. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 5

    Words: 1057

    Estimated Reading Time: 7 min

    बहुत धन्यवाद!
    अब प्रस्तुत है:


    ---

    "तेरा हुआ" — एपिसोड 5

    🌒 शीर्षक: रास्तों के पीछे कोई साया था...

    (5000 शब्दों में विस्तार, भावनात्मक बहाव और जुड़ी हुई कहानी के साथ)


    ---

    🌿 प्रस्तावना

    प्यार और डर, दोनों एक ही रास्ते पर चल रहे हैं — एक, दिल की गहराई से निकल रहा है; दूसरा, अतीत की परछाइयों से।
    भोपाल का सफर शुरू हो चुका है — लेकिन यह सफर सिर्फ शहर बदलने का नहीं, बल्कि कुछ छिपी हुई सच्चाइयों और अनजाने डर से आमना-सामना करने का भी है।


    ---

    दृश्य 1: सुबह का सफर — जो शांत दिखता है, वैसा होता नहीं

    दिल्ली एयरपोर्ट की पार्किंग में मल्होत्रा परिवार की गाड़ी धीरे से रुकी।
    वीर पहले उतरा, फिर पीछे से राहा उतरी। सफेद सूट, सिंपल लुक — फिर भी वो हर भीड़ में अलग दिखाई देती थी।

    "प्लेन में खिड़की वाली सीट चाहिए?" वीर ने पहली बार हल्की-सी मुस्कान के साथ पूछा।

    राहा ने देखा — वीर मुस्करा रहा है?
    "नहीं," उसने कहा, "मुझे बीच वाली चाहिए... ताकि मैं तुम्हारी और दुनिया की आँखों से साथ-साथ देख सकूं।"

    वीर कुछ पल शांत रहा।
    "ये लड़की जज़्बातों को शब्दों में ढालती नहीं... तीर की तरह चलाती है," उसने मन में सोचा।

    चेक-इन, बोर्डिंग सब औपचारिक हुआ — लेकिन उन दोनों के बीच एक चुपचाप जुड़ाव अब हवा में तैर रहा था।


    ---

    दृश्य 2: भोपाल की ज़मीन — पुराने राज़ों का अहसास

    जैसे ही प्लेन भोपाल की ज़मीन पर उतरा, राहा के दिल में एक अनजाना कंपन हुआ।
    वीर के साथ कार में बैठते हुए उसने शहर को देखा — ये शहर नया था, लेकिन उसके भीतर एक अजीब सी पहचानी सी घबराहट थी।

    "पहली बार आई हो?" वीर ने पूछा।

    "शायद..." उसने कहा।
    वीर ने ध्यान से देखा — "शायद?"

    "कभी-कभी कुछ जगहें आपको महसूस होती हैं, जैसे आपने यहाँ कुछ खोया हो, या पाया हो — बस याद नहीं रहता।"

    वीर ने खिड़की की ओर देखा। उसे पता नहीं था कि राहा के शब्दों में उसकी खुद की कोई कहानी उलझ रही है।


    ---

    दृश्य 3: होटल में रहना या... हवेली में रुकना?

    कार होटल की तरफ मुड़ने वाली थी, तभी वीर ने ड्राइवर से कहा —
    "नहीं, होटल नहीं। हम हवेली चलेंगे।"

    राहा चौंकी।
    "कौन सी हवेली?"

    "पुरानी मल्होत्रा हवेली। जहाँ मैंने बचपन बिताया… और जिसे मैंने कभी देखा भी नहीं इतने सालों में।"

    राहा कुछ नहीं बोली, बस उसकी आँखों ने वीर की आंखों में कुछ देखा — शायद एक टूटे हुए घर की याद।

    हवेली के गेट पर जब गाड़ी रुकी, तो समय जैसे थम गया।

    बूढ़े से चौकीदार ने गेट खोला।
    "वीर बाबू…? आप इतने सालों बाद…?"

    वीर ने सिर हिलाया।
    "दरवाज़े कब के बंद हो गए थे… अब खोलने आए हूँ।"


    ---

    दृश्य 4: हवेली के आँगन में खामोशी की गूंज

    हवेली के भीतर हर दीवार जैसे कुछ कह रही थी।
    राहा दीवारों को छूती चली गई — जैसे कोई पुराने ज़ख्मों को सहला रहा हो।

    एक कमरे में वीर रुक गया।
    दीवार पर टंगी एक तस्वीर देखी — एक बच्चा और एक औरत।

    "ये मेरी माँ थी," उसने कहा, "और मैं।"

    "बहुत प्यार करती होंगी आपको," राहा ने कहा।

    "प्यार?"
    वीर ने चुपचाप कहा,
    "प्यार से ज्यादा उम्मीदें थीं उन्हें मुझसे… और जब मैं वो नहीं बन पाया, तो वो छोड़ गईं।"

    राहा ने पहली बार वीर की आवाज़ में दर्द सुना, घमंड नहीं।

    "तुम उनसे अब भी नाराज़ हो?"
    "नहीं... अब कुछ भी नहीं महसूस होता। बस... कभी-कभी रातों में वो दीवारें बोलती हैं।"


    ---

    दृश्य 5: पहली रात — साये की दस्तक

    राहा को हवेली में एक कमरा दिया गया था, वीर से ठीक दो कमरों की दूरी पर।
    रात में वह सोने की कोशिश कर रही थी, लेकिन नींद उसके पलकों पर नहीं चढ़ी।

    अचानक खिड़की का पर्दा हिला।
    कोई साया...?

    उसने उठकर खिड़की के पास जाकर देखा — बाहर कुछ नहीं था।

    लेकिन जब वह मुड़ी, तो कमरे के दरवाज़े के नीचे से किसी ने एक कागज़ भीतर सरकाया था।

    कागज़ पर लिखा था —
    "तुम्हें नहीं पता, इस हवेली ने किसे निगल लिया है। वापस लौट जाओ।"


    ---

    दृश्य 6: वीर और उसका अतीत — मन का विस्फोट

    राहा सुबह-सुबह वीर के पास पहुँची।

    "क्या इस हवेली में कभी… किसी की मौत हुई है?"
    वीर सन्न।
    "तुमसे किसने कहा?"

    "मैंने सपना देखा," राहा ने झूठ बोला।

    वीर चुप हो गया। फिर कहा,
    "मेरी बहन — परी। सिर्फ 7 साल की थी। एक रात हवेली की सीढ़ियों से गिर गई… या शायद किसी ने धक्का दिया।"

    राहा सिहर गई।
    "क्या… क्या आपको लगता है वो हादसा नहीं था?"

    "पुलिस ने कहा हादसा। पर मेरी माँ को लगता था... ये किसी ने जान-बूझ कर किया। और उसी साल उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया।"

    राहा ने वीर का हाथ थामा।

    वीर चौंका — ये पहली बार था जब उसने राहा का स्पर्श महसूस किया —
    ग़ैर नहीं… सच्चा सा।


    ---

    दृश्य 7: पिछवाड़े की पुरानी कोठरी — खतरे का पहला दरवाज़ा

    दोपहर में राहा को कुछ खींच कर पिछवाड़े की ओर ले गया।
    पुरानी टूटी हुई कोठरी।
    जंग लगी चाबी पहले से ताले में पड़ी थी।

    राहा ने खोला।

    भीतर एक डेस्क, कुछ पुराने खिलौने और एक डायरी।
    उसने झट से डायरी उठाई —
    "परी की लिखावट?" वह फुसफुसाई।

    उसने पढ़ा —
    "माँ बार-बार मुझसे कहती हैं कि वीर भाई से दूर रहूं... वो कहते हैं, वो अब वही नहीं रहा..."

    राहा की सांस रुक गई।

    क्या वीर को भी नहीं पता कि उसके अतीत में और भी कुछ छिपा है?


    ---

    एपिसोड समापन: साये गहराते हैं

    रात फिर लौट आई। हवेली की दीवारें आज फिर फुसफुसा रही थीं।

    वीर बालकनी में खड़ा था, राहा उसके पास आई।

    "इस हवेली में सिर्फ भूत नहीं हैं, वीर। यहाँ वो सच है जो किसी ने कभी बोला नहीं।"

    वीर ने उसकी ओर देखा।

    "और अब मैं चाहती हूँ — मैं तुम्हारे अतीत में साथ चलूं, ताकि तुम्हारा आज… अकेला न रहे।"

    कहीं दूर, हवेली के तहखाने में किसी ने दरवाज़ा धीरे से खोला।


    ---

    🔍 अगले एपिसोड में — एपिसोड 6: "सच की पहली दरार"

    परी की डायरी से मिलने वाली नई जानकारी,

    हवेली के तहखाने में कोई है…

    और राहा को भेजा गया दूसरा ख़त —
    "अगर तुम रुकी, तो अगला नंबर तुम्हारा है…"



    ---

    अगर आपको यह एपिसोड पसंद आया हो, तो बताएं —
    मैं तुरंत एपिसोड 6 पर काम शुरू कर दूँ।
    या अगर आप चाहें, तो इस एपिसोड में कुछ और जोड़ सकते हैं। ❤️

  • 6. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 6

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 7. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 7

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min

  • 8. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 8

    Words: 1081

    Estimated Reading Time: 7 min

    धन्यवाद! अब प्रस्तुत है —


    ---

    "तेरा हुआ" — एपिसोड 8

    🌑 शीर्षक: “सच का सौदा”


    ---

    🎭 प्रारंभ — चुप्पियों में छुपा तूफ़ान

    रात के सन्नाटे में हवेली की दीवारें भी कांप रही थीं।
    राहा का दिल डर और सच्चाई के बीच झूल रहा था।
    नोट पर लिखे शब्द अब भी उसके हाथों में काँप रहे थे —

    > "अगर तुमने विनीत का नाम लिया… तो अगला निशाना तुम हो।"



    उसी वक्त कमरे के बाहर से किसी के खामोश कदमों की आहट आई।
    वो पलटी।
    कमरे की लाइट बंद।

    राहा ने दरवाज़ा बंद किया और कुंडी चढ़ा दी।
    लेकिन कुछ तो था — कोई जो उसे देख रहा था… बहुत पास से।


    ---

    🧠 दृश्य 1: वीर की उलझन

    वीर अब भी स्टडी रूम में बैठा अपने पिता की चुप्पियों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
    उसके सामने रखा था तेजा को दिया गया 2005 का चेक, और उसके बगल में वो तस्वीर — जिसमें विनीत मल्होत्रा ने परी के पीछे खड़े होकर आंखों में एक अलग सी परछाईं छिपा रखी थी।

    "क्या मेरा पूरा परिवार झूठ पर बना है?"
    उसने बुदबुदाते हुए कहा।

    उसने फोन उठाया और राहा को कॉल किया।

    "राहा, सब कुछ बदलने वाला है। हम सुबह पुलिस के पास चलेंगे।"

    लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं आया।

    "राहा?"

    फोन कट चुका था।


    ---

    🕯️ दृश्य 2: गवाही की कीमत

    राहा अपने कमरे से निकलकर हॉल में आई।
    वीर के दादीजी आरती की थाली थामे बैठी थीं, पर आंखें बंद थीं।

    "दादी… क्या आप जानती हैं कि मंजरी आंटी की डायरी में क्या लिखा था?" राहा ने धीमे से पूछा।

    दादीजी की आँखें खुली। उन्होंने एक लंबा साँस लिया।

    "उस रात मैं पूजा कर रही थी… और मंजरी रोती हुई मेरे पास आई थी।
    उसने कहा — 'माँ जी, मैंने कुछ देखा है जो नहीं देखना चाहिए था…'
    मैंने पूछा क्या?

    लेकिन… उससे पहले ही वो चली गई। और अगली सुबह वो कमरे में मृत पाई गई। सबने कहा… हार्ट अटैक।"

    राहा का दिल बैठ गया।
    "क्या आपको लगता है, उन्होंने खुद…?"

    "नहीं," दादीजी बोलीं, "मंजरी जैसी औरत कभी ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन वो कुछ जानती थी, जो किसी ने जानने नहीं देना चाहा।"


    ---

    🔥 दृश्य 3: पुलिस स्टेशन और पहला झटका

    अगली सुबह, वीर और राहा पुलिस स्टेशन पहुँचे।

    इंस्पेक्टर रावत ने दोनों की बातें सुनीं — डायरी, तेजा, विनीत पर शक, सबकुछ।

    रावत ने सिर हिलाया — "ये सब बहुत बड़ा आरोप है मल्होत्रा साहब।"

    "हम सिर्फ सच चाहते हैं," वीर ने कहा।

    रावत ने कहा, "अगर आप चाहते हैं कि हम तहकीकात करें, तो विनीत मल्होत्रा को पूछताछ के लिए बुलाना होगा।"

    "कीजिए," वीर ने जवाब दिया।

    लेकिन तभी रावत के पास एक कॉल आया। वो सुनते ही सन्न रह गया।

    उसने वीर की तरफ देखा —
    "आप जिस तेजा की बात कर रहे हैं… उसका शव अभी-अभी झील के पास मिला है।"

    राहा के चेहरे का रंग उड़ गया।


    ---

    ⚰️ दृश्य 4: मौत या मर्डर?

    तेजा का शरीर पहचान के लिए वीर और राहा को ले जाया गया।

    झील के पास वो बेंच… और पास में एक जली हुई नोटबुक — शायद तेजा कुछ लिख रहा था।
    लेकिन अब कुछ भी बाकी नहीं था।

    राहा की आँखें भर आईं।
    "वो बोलने वाले थे… उन्होंने कहा था कि उनके पास सच है…"

    पुलिस ने कहा:
    "शरीर पर कोई चोट नहीं है। लेकिन मौत के 24 घंटे में डूबना तय नहीं लगता। रिपोर्ट आएगी तब पता चलेगा।"

    वीर अब गुस्से में था।

    "अब बहुत हो गया। कोई मेरी माँ की मौत छुपा गया। कोई परी को मार गया। अब तेजा को भी…? अब मैं खुद सबको बेनकाब करूंगा।"


    ---

    🏰 दृश्य 5: हवेली की दीवारों का विद्रोह

    राहा और वीर वापस हवेली लौटे।

    रास्ते भर वीर चुप था।

    हवेली के अंदर कदम रखते ही, विनीत मामा सामने आ गए।

    "कहाँ से आ रहे हो?" विनीत ने पूछा।

    वीर चुपचाप आगे बढ़ा।

    विनीत ने कंधा पकड़ लिया —
    "बात करो मुझसे!"

    वीर ने एक झटके से हाथ हटाया और आँखों में आँखें डाल कर कहा —
    "अब वक्त आएगा बात की… लेकिन थाने में।"

    विनीत कुछ समझ नहीं पाए। राहा ने उसे घूर कर देखा —
    "कभी-कभी चुप रहना भी एक गवाही होती है।"

    विनीत ने मुट्ठी कस ली। उसकी आंखों में कुछ और था — डर या गुस्सा?


    ---

    📦 दृश्य 6: मंजरी का आखिरी पत्र

    रात को राहा अपने कमरे में अकेली थी। वो अब डरने की बजाय सोचने लगी थी।

    तभी फिर वही आवाज़ — फर्श के नीचे।

    एक और तख़्ता खुला…
    इस बार एक काग़ज़ था — चिट्ठी।

    "राहा के नाम मंजरी की चिट्ठी"

    "अगर तू मेरी बहू बनी है, तो जान ले, इस हवेली में हर सच की कीमत होती है। मेरी बहू… मेरी बेटी परी को बचा नहीं पाई… पर शायद तू वीर को बचा सके। अगर तूने वो नक्शा ढूंढ लिया… तो जान जाएगी कि तहखाने में क्या छिपा है।"

    राहा का दिल तेज़ धड़कने लगा।

    "नक्शा… कौन सा नक्शा?"


    ---

    ⛓️ दृश्य 7: तहखाने की रहस्यमयी दीवार

    अगली सुबह राहा ने मंजरी के पुराने संदूक में ढूंढना शुरू किया।

    संदूक के नीचे एक तह में चिपका था —
    एक स्केच, हाथ से बना नक्शा।

    "यह तहखाने का है!"
    राहा ने वीर को बुलाया।

    वो दोनों तहखाने में उतरे।
    एक दीवार पर हल्की दरार थी — जैसा नक्शे में दिखा था।

    वीर ने एक रॉड से मारकर उस दीवार को तोड़ा।

    अंदर…
    एक और कमरा।

    एक चेयर…
    और चेयर पर बंधी एक पुरानी गुड़िया…
    जिसके होंठ सिले हुए थे… और सीने में चाकू刺 गया था।

    पास में लिखा था:

    "सच बोलोगे तो मारे जाओगे।"


    ---

    🌑 एपिसोड का समापन — साज़िश की नई परत

    वीर और राहा स्तब्ध थे।

    राहा ने कहा, "ये प्रतीक है… किसी ने परी को डराया था… मारने से पहले उसके मन को तोड़ा था।"

    वीर की आँखों में आंसू थे।
    "हम क्या कर रहे हैं… और कहाँ फँस गए हैं?"

    राहा ने कहा:
    "अब पीछे नहीं हट सकते, वीर।"

    तभी ऊपर से शोर सुनाई दिया।

    हवेली के सारे लोग हॉल में इकट्ठा थे।

    विनीत बीच में खड़ा था —
    "अब खेल मैं खेलूंगा…"


    ---

    🔮 अगले एपिसोड में — "विनीत की चाल और वीर का विद्रोह"

    क्या विनीत अब सब कुछ कंट्रोल करेगा?

    क्या राहा की जान अब खतरे में है?

    और क्या तहखाने की गूंजें वीर को उसकी माँ के आखिरी सच तक पहुंचाएंगी?



    ---

    अगर आप चाहें तो मैं एपिसोड 9 तुरंत शुरू कर सकता हूँ।
    या कोई विशेष सीन और गहराई से चाहें तो बता दीजिए — मैं उसे उसी भाव में विस्तार से जोड़ दूँगा।

  • 9. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 9

    Words: 869

    Estimated Reading Time: 6 min

    बहुत धन्यवाद!
    अब प्रस्तुत है —


    ---

    "तेरा हुआ" – एपिसोड 9

    🌸 शीर्षक: “एहसास की दीवारें”


    ---

    🕯️ प्रारंभ – खामोशियों में पनपता भरोसा

    हवेली की सुबह उस दिन कुछ अलग थी।

    पिछली रात तहखाने की दीवारों से जो रहस्य निकला था, उसने राहा और वीर दोनों को हिला दिया था।
    मगर पहली बार… जब वीर ने राहा की आँखों में देखा, तो उसमें डर नहीं था —
    बल्कि एक ऐसा साहस था जो वीर ने शायद पहली बार किसी और में देखा।

    वीर उसके पास बैठा।

    "राहा… अगर तुम नहीं होती तो शायद मैं अब तक हार चुका होता।"

    राहा ने उसकी ओर देखा, और बहुत धीरे से बोली —
    "कभी-कभी जो रिश्ता मजबूरी से शुरू होता है… वही सबसे ज़्यादा सच्चा होता है।"

    वीर पहली बार मुस्कराया।


    ---

    🍵 दृश्य 1 – रसोई की खनक और दो दिलों की हलचल

    राहा उस सुबह पहली बार किचन में अकेली थी।
    नमक, हल्दी, और गरम मसाले की खुशबू… हवा में भी कुछ बदला-बदला सा था।

    वीर बिना बताए पीछे से आया और एक कप कॉफी उसके पास रख दी।

    "क्या… ये भी तुम्हारा तरीका है माफ़ी माँगने का?" राहा ने मुस्कुराते हुए पूछा।

    "नहीं," वीर बोला, "ये तरीका है तुम्हारी सुबह को थोड़ा अच्छा बनाने का।"

    कुछ सेकंड्स दोनों के बीच खामोशी रही —
    वो खामोशी जो बोझ नहीं थी, बल्कि भरोसे की शुरुआत जैसी लग रही थी।

    राहा ने कहा,
    "आपके अंदर जो गुस्सा है… वो शायद उस प्यार की वजह से है जो आपने कभी महसूस नहीं किया।"

    वीर कुछ पल चुप रहा… फिर बोला,
    "शायद… लेकिन अब मैं उसे महसूस कर रहा हूँ।"


    ---

    🌳 दृश्य 2 – बगीचे की सैर और एक पुराना सपना

    हवेली के बगीचे में वीर और राहा साथ-साथ टहल रहे थे।

    हर कदम जैसे अतीत की गलियों से गुजरता, हर पत्ता जैसे किसी बीती बात की कहानी कहता।

    वीर ने बताया,
    "जब मैं छोटा था, माँ यहीं बैठ कर मुझे परी की कहानियाँ सुनाती थीं।
    वो चाहती थीं कि मैं बड़ा होकर समझदार बनूं, पर प्यार न करने वाला नहीं।"

    राहा ने उसकी उंगलियाँ हल्के से थाम लीं —
    "आप अब भी वही हैं… सिर्फ खोए हुए।"

    वीर ने उसकी तरफ देखा —
    उसमें अब सायरा नहीं थी, जो डरती थी —
    वो राहा थी… जो उसके अंधेरे में भी उजाला देख रही थी।


    ---

    📜 दृश्य 3 – मंजरी की डायरी और अधूरा सच

    राहा को मंजरी की डायरी का एक और पन्ना मिला।

    > "अगर ये चिट्ठी मेरी बहू तक पहुँचे… तो जान लो, मेरी मौत हादसा नहीं थी।
    मुझे जो दिखा… वो विनीत की आँखों में छुपा था।
    मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती थी… उस रात का चुप रहना।"



    वीर अब सब समझने लगा था।

    "विनीत मामा ने सब कुछ छुपाया, शायद इसलिए क्योंकि वो जानते थे कि सच्चाई उन्हें भी तोड़ देगी।"

    राहा ने कहा,
    "पर हम अब चुप नहीं रहेंगे।"


    ---

    🪞 दृश्य 4 – पहली बार का आत्मस्वीकार

    रात के समय, वीर ने राहा को हवेली के पुराने संगीत कक्ष में बुलाया।
    पुराना पियानो, कुछ बंद किताबें, और दीवार पर एक टूटी हुई घड़ी — सब शांत।

    वीर ने राहा की ओर देखा।

    "मैंने ज़िंदगी भर खुद को सबसे दूर रखा…
    लेकिन तुमसे दूर नहीं रह सकता।"

    राहा कुछ नहीं बोली।
    बस उसके पास आकर उसका हाथ थाम लिया।

    "मुझे डर है," वीर ने स्वीकार किया,
    "कि अगर तुम चली गईं… तो मैं फिर अकेला रह जाऊंगा।"

    राहा ने बहुत नर्म स्वर में कहा,
    "मैं कहीं नहीं जा रही।"


    ---

    🛏️ दृश्य 5 – साथ की पहली रात… एहसासों की बुनियाद

    उस रात, वीर और राहा पहली बार एक ही कमरे में थे —
    ना किसी मजबूरी से, ना किसी झूठ से — बल्कि अपनी मर्ज़ी से।

    वीर ने उसके बालों में हाथ फिराया।

    "तुम्हें देखकर लगता है, जैसे सब ठीक हो सकता है।"

    राहा ने उसकी ओर झुकते हुए कहा,
    "कभी-कभी डर के पार ही सच्चा प्यार होता है।"

    दोनों की सांसें एक-दूसरे में घुलने लगीं।
    कोई तेज़ आवाज़ नहीं, कोई अधीरता नहीं —
    बस एक धीमा, सच्चा, और गहराई भरा एहसास।

    हवेली की पुरानी दीवारों में पहली बार इतनी नमी नहीं,
    बल्कि गर्माहट थी।


    ---

    🧩 दृश्य 6 – राज़ों की राख से रिश्ता पनपता है

    सुबह जब दोनों जागे, तो बाहर बर्फ गिर रही थी।
    एक नई शुरुआत का संकेत।

    राहा ने कहा,
    "अब वक्त आ गया है कि हम मंजरी के लिखे नक्शे को पूरा समझें। शायद परी की आत्मा तभी शांति पाए।"

    वीर ने हामी भरी।

    "इस हवेली ने हमसे बहुत कुछ छीना है। अब हमसे कोई और चीज़ नहीं छीनी जाएगी।"


    ---

    🔚 एपिसोड का समापन – नज़दीकियों की नई शुरुआत

    अब राहा और वीर एक टीम बन चुके थे —
    सिर्फ पति-पत्नी नहीं, बल्कि सच्चाई की खोज में साथ चलने वाले दो साथी।

    हवेली के रहस्य अब भी बाकी हैं,
    पर अब वो अकेले नहीं हैं।


    ---

    🔮 अगले एपिसोड में – “विनीत की चालें और नई गवाह का आगमन”

    क्या मंजरी की डायरी का आखिरी पन्ना मिलने वाला है?

    विनीत के नए जाल में कौन फँसेगा?

    और क्या वीर और राहा की मोहब्बत, हवेली की साज़िशों से जूझ पाएगी?



    ---

    अगर आप चाहें, तो मैं अगला एपिसोड 10 तुरंत लिखना शुरू कर सकता हूँ।
    या आप कोई सीन और गहराई से जोड़वाना चाहें तो बताइए।

  • 10. बिन कहे तेरा हुआ - Chapter 10

    Words: 0

    Estimated Reading Time: 0 min