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my psycho professor...

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alfariya sheikh

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क्रियांश ठाकुर हैदराबाद के एक नामी कॉलेज में ट्रॉमा और साइकोथैरेपी का प्रोफेसर है उसकी कड़क और गुस्सैल फ़ितरत के पीछे छुपा है एक दिल जो खुद जख्मी है, सानवी मेहरा स्कॉलरशिप पर आई होनहार छात्रा है जिसका हर दिन संघर्षों और गलतियों से भरा होता है फिर भी...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. trailer..

    Words: 705

    Estimated Reading Time: 5 min

    रात के करीब दो बज रहे थे कॉलेज की लाइटें बंद थीं
    चारों ओर अजीब सी खामोशी थी बस पेड़ों की सरसराहट और कहीं दूर से आती कोई आवाज सान्वी का दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था वो भाग रही थी पुराने लाइब्रेरी हॉल की तरफ
    उसे लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो हर कदम पर वो पीछे मुड़कर देखती पर वहां कोई नहीं था

    अचानक एक झटका लगा और किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे दीवार से लगा दिया सानवी ने एक पल को डर से कसकर अपनी आंखे बंद कर ली और दूसरे ही पल जब उसने आंखे खोली तो उसकी आंखों के सामने क्रियांश खड़ा था,चेहरे पर पागलपन, आंखें सुर्ख, साँसे तेज, बाल बिखरे हुए

    क्रियांश ने सानवी को पूरी तरह से दीवार से सटाकर उसके चेहरे के बिलकुल नजदीक आकर अपनी डरावनी आवाज में कहा_कितनी बार कहा है तुमसे दूर रहो उन सब से

    उसकी आवाज में गुस्सा और जुनून दोनों थे जिसकी वजह से सान्वी डर गई और उसकी आंखों में आंसू तैरने लगे है वो क्रियांश को देखकर रोते हुए कहती है_मैं बस अपने दोस्त से बात कर रही थी."

    क्रियांश ने दीवार पर जोर से मुक्का मारा जिससे दीवार से प्लास्टर झड़ गया उसने अपनी दहकती आंखों से सानवी को देखते हुए चिल्लाकर कहा_फ्रेंड" तुम जानती हो ना मुझे तुम्हारा किसी और से बात करना भी पसंद नहीं है."

    वो उसके और करीब आया अब दोनों के बीच कोई फैसला नहीं था बस उसकी तेज सांसें सुनकर सान्वी कांप रही थी वो डरते हुए रोकर कहती है_मुझे अब आपके पागलपन से डर लगने लगा है क्रियांश सर."

    क्रियांश की आंखों में अजीब चमक थी वो उसकी आंखों में देखकर बेहद सनक भरे अंदाज में कहता है_डरना चाहिए तुम्हारा डर ही तुम्हें मेरे पास रखेगा......उसने सान्वी का चेहरा अपने हाथ में ले लिया और आगे कहा_तुम्हारा कांपना, तुम्हारा रोना मुझे बहुत अच्छा लगता है."

    सान्वी पूरी तरह से टूट चुकी थी उसका शरीर कांप रहा था आंखें भीग चुकी थीं क्रियांश झुककर उसके कान में फुसफुसाया_तुम मेरी हो सान्वी सिर्फ मेरी अगर किसी और की हुई तो खुदा भी तुम्हें नहीं बचा पाएगा."

    फिर वो पीछे हटा उसके चेहरे पर वही सनकी मुस्कान थी वो अंधेरे में चला गया लेकिन उसकी सांसों की गर्मी अब भी हवा में थी सान्वी दीवार से सटकर खड़ी रही कांपती, डरी हुई जैसे किसी ने उसकी रूह को छू लिया हो


    trailer 2

    रात के दो बजे थे कॉलेज की फैकल्टी बिल्डिंग की सबसे ऊपरी मंज़िल पर क्रियांश ठाकुर की केबिन की लाइट जल रही थी चारों तरफ सन्नाटा था दीवार की घड़ी की टिक टिक बस अकेली आवाज़ थी

    कमरे की दीवार पर सानवी की क्लास फोटो लगी थी उसके नाम के नीचे एक लाल स्याही से लिखा था माइन

    टेबल पर उसकी असाइनमेंट फाइल बिखरी हुई थी हर पन्ने पर लाल स्याही से कुछ न कुछ लिखा गया था कुछ जगहों पर तो क्रियांश ने अपने नाखूनों से कागज़ को नोच दिया था वो कुर्सी पर बैठा था लेकिन आंखें खुली नहीं पथराई हुई थी सामने देख रहा था लेकिन देख कुछ नहीं रहा था उसके पास एक छोटा म्यूजिक बॉक्स रखा था जिसमें सानवी का कॉलेज फेयर में गाया गया गाना रिकॉर्ड था और वो बार बार उसे प्ले कर रहा था

    हर बार आवाज़ सुनते ही उसकी सांसें तेज़ होतीं चेहरा पसीने से भीग जाता वो खुद से बड़बड़ाने लगता_तुम सिर्फ मेरी हो तुम्हें कोई और देखे ये भी बर्दाश्त नहीं........उसने अचानक टेबल पर हाथ मारा और ज़ोर से चीखा_सानवी

    फिर उठा और दीवार पर लगे मिरर को घूरते हुए बोला_तुम्हे मुझसे डर लगता है ना, अच्छा है डर ही तो है जो इंसान को इंसान से बांधे रखता है"अगर तू मुझसे डरती रहेगी तो मुझसे दूर नहीं जाएगी

    उसने धीरे से अपनी शर्ट की बाजू ऊपर की और एक पुराना जला हुआ निशान दिखा और कहा_याद है ये निशान तूने गलती से कॉफी गिरा दी थी मुझ पर,लेकिन तुझे डर नहीं लगा
    मुझे अच्छा नहीं लगा था,अब मैं तुझे डराऊंगा इतना डराऊंगा कि तू सिर्फ मेरी होगी

    उसने फिर म्यूजिक प्ले किया और जमीन पर बैठ गया सिर घुटनों में दबा लिया और फुसफुसाने लगा_मुझे परफेक्ट चीज़ें पसंद हैं और तू अधूरी है मुझे तुझे ठीक करना है."





    my physho professor by alfariya Sheikh..

  • 2. m

    Words: 1

    Estimated Reading Time: 1 min

    हैदराबाद… नाम सुनते ही दिमाग में एक अलग ही तस्वीर बन जाती है। पुरानी और नई चीज़ों का जबरदस्त मेल जो कहीं और नहीं मिलता। यहाँ के गलियों में तुम्हें लग जाएगा कि इतिहास अपने गले में झुमका पहन कर कहीं आस-पास ही घूम रहा है। चारमीनार की मीनारें ऐसे खड़ी हैं जैसे वो खुद शहर की कहानी सुनाती हों।

    शहर का मौसम भी बड़ा मज़ेदार है। गर्मी में तो यहाँ सूरज अपनी पूरी ताकत से चमकता है, हर चीज़ धूप में चमकती है और लोग पसीने से तरबतर हो जाते हैं। लेकिन फिर भी उस गर्मी में भी कुछ खास बात है, जैसे किसी खास मेहमान का इंतज़ार। सर्दियों में यहाँ ठंडी हवा चलती है, जो चेहरे को छूते ही एकदम ताज़गी दे जाती है। बारिश का मौसम भी यहाँ अलग होता है, जब बादल गरजते हैं और बूंदें ठंडी-ठंडी जमीन पर गिरती हैं, तो पूरा शहर हरा-भरा हो जाता है और लोगों के दिलों में एक खुशी की लहर दौड़ जाती है।

    यहाँ की सड़कें हमेशा हलचल से भरी रहती हैं। कहीं तेज़ रफ़्तार बाइक निकलती है तो कहीं स्ट्रीट फूड वाले अपनी-अपनी गाड़ियाँ लगा कर चाट-समोसे बेचते हैं। हाँ, और वो हैदराबादी बिरयानी की खुशबू! भाई, इस खुशबू को अगर बताने की कोशिश करूं तो शायद शब्द भी कम पड़ जाएं।

    हैदराबाद में पुराने किले, महल और मस्जिदें हैं, जो सैकड़ों साल पुरानी हैं, और इनके बीच ही नई बिल्डिंग्स खड़ी हैं, जो शहर की रफ्तार और तरक्की की मिसाल हैं। एक तरफ़ तुम देखोगे तो ताजमहल की याद दिलाने वाली मक्का मस्जिद दिखेगी और दूसरी तरफ़ ग्लास-स्टील की बिल्डिंग्स आसमान छू रही होंगी।

    लोग यहाँ बड़े दिल के हैं। यहाँ की भाषा, जो हाइक़ी बोलचाल में उड़द-चने की तरह मसालेदार है, सुनते ही मन खुश हो जाता है। लोग मिक्स हैं, हिन्दू-मुस्लिम, आधुनिक और परंपरावादी, लेकिन दिल से एक हैं।


    हैदराबाद की सुबह में कुछ खास था शहर के शोर से थोड़ी दूर एक फ्लैट था चौथी मंज़िल पर एक खिड़की खुलती थी जहाँ से चारों तरफ का नज़ारा दिखता था उसी खिड़की में एक लड़की खड़ी थी बिल्कुल सीधी कमर आंखों में नींद के निशान लेकिन चेहरा शांत." ये हमारी नायिका सानवी मेहरा है उम्र 21 साल और हाइट 5.3, रंग गोरा बेदाग चेहरा, काली आंखे और छोटी प्यारी सी नाक और नर्म मुलायम पिंक नेचुरल लिप्स" सानवी ज्यादातर शांत रहती थी लेकिन उसकी एक प्रॉब्लम थी कि वो जितनी भी कोशिश कर ले लेकिन हमेशा किसी न किसी काम में गलती कर देती थी जैसे गलती करना और काम बिगाड़ना उसकी आदत हो सानवी के लिए ये लाइन बिल्कुल फिट बैठती थी कि वो मुसीबत के पीछे नहीं बल्कि मुसीबत उसके पीछे आती थी."

    सानवी ने हल्के से अंगड़ाई ली फिर अपने छोटे से किचन में जाकर पानी गर्म किया और कॉफी बनाने लगी धीमी चाल से जैसे हर काम में कोई सोच छुपी हो

    सिल्वर कलर की घड़ी दीवार पर टंगी थी साढ़े सात बजे उसने एक नजर घड़ी को देख फिर एक फाइल उठाई जो टेबल पर खुली पड़ी थी फाइल में उसका एडमिशन लेटर था और उसपर गोल्डन अक्षरों में लिखा था
    "Aurelia Institute of Behavioral Sciences – AIBC" नीचे मोटे अक्षरों में उसका नाम ,"
    Saanvi Mehra "Program: BSc Psychology (Scholarship Rank 2)

    उसने वो फाइल बंद की और एक लंबा सांस लिया फिर शीशे के सामने जाकर बाल बांधने लगी उसका बहुत चेहरा मासूम था
    ना कोई फैशन स्टाइल ना कोई ज़्यादा मेकअप,बस हल्का काजल और होंठों पर हल्का लिप बाम,

    उसका फ्लैट सादा था दीवारों पर कोई पेंटिंग नहीं एक कोना था जहाँ किताबें रखी थीं दूसरी तरफ एक छोटा सा मंदिर और कमरे के बीचोबीच एक डेस्क वो डेस्क जैसे उसकी दुनिया थी
    कॉफी खत्म करते हुए उसने मोबाइल उठाया 8 बज चुके थे."

    सानवी ने अपने कपड़ों की अलमारी खोली अंदर कुछ ही जोड़े रखे थे ज़्यादातर सादे और हल्के रंग के जैसे किसी को दिखाने के लिए नहीं बस खुद के लिए थे उसने एक व्हाइट कुर्ता निकाला जिसके बाजू पर हल्के नीले धागे की कढ़ाई थी साथ में एक सिंपल जीन्स रखी फिर नज़र अपने जूतों पर गई
    उसने ब्राउन शूज़ उठाए और बेड पर रख दिए फिर बालों को दो हिस्सों में बाँटकर कस के पीछे बांध लिया चेहरे पर अभी भी कोई एक्सप्रेशन नहीं था बस गहराई थी आईने के सामने खड़ी होकर वो खुद को कुछ देर तक देखती रही जैसे खुद से सवाल कर रही हो_क्या मैं सच में तैयार हूं क्या ये कॉलेज मुझे स्वीकार करेगा क्या वो सब फिर से शुरू होगा जो मैंने पीछे छोड़ दिया था."

    उसका दिल थोड़ा तेज धड़क रहा था लेकिन उसकी बाहरी शांति वैसी ही बनी रही उसने बैग में एक डायरी रखी जो हमेशा उसके साथ रहती थी और एक पेन फिर अपने डॉक्युमेंट्स चेक किए स्कॉलरशिप लेटर और आईडी कार्ड भी अंदर रखा फोन में म्यूजिक ऑन किया लेकिन तीन सेकेंड बाद ही बंद कर दिया मन नहीं था सुनने का उसने खिड़की से बाहर झांका नीचे की सड़क पर कॉलेज के लड़के लड़कियाँ स्कूटी पर तेज़ निकल रहे थे कुछ ग्रुप्स में खड़े होकर बातें कर रहे थे और कुछ इयरफोन्स में खुद की दुनिया में खोए हुए थे उसने गहरी सांस ली और खुद से कहा_आज कोई डर नहीं आज सिर्फ़ मैं और मेरा सपना."

    फ्लैट में लॉक लगाकर वो बाहर निकली सीढ़ियों से धीरे धीरे नीचे आई उसके कदम धीमे थे लेकिन उसके पैरों में ठहराव था
    वो किसी और की तरह नहीं चलती थी ना जल्दी में ना किसी को इंप्रेस करने के लिए वो चलती थी जैसे हर कदम सोच समझकर रखती हो ग़ली में उतरते ही एक बूढ़ा चौकीदार उसे देखकर मुस्कुराकर बोला_ आज कॉलेज का पहला दिन है बिटिया

    सानवी ने सिर हिलाकर जवाब दिया_ हाँ अंकल दुआ कीजिएगा

    उसकी आवाज़ में सादगी थी और एक थकान जो शायद सालों की थी वो पैदल ही चल पड़ी हवा उसके चेहरे से टकरा रही थी सड़क के दोनों ओर पुरानी दुकानें थी चाय वाले ठेले से भाप उठ रही थी और स्टेशनरी की दुकान पर बच्चे कॉपियाँ खरीद रहे थे एक बच्चा उसका बैग खींचते हुए बोला— दीदी आप स्कूल जा रही हो

    सानवी मुस्कुराई और उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोली_नहीं कॉलेज

    बच्चा हैरान हुआ और खुशी के साथ चहकता हुए बोला_ओ मतलब आप बड़ी हो.?

    उसकी इस मासूम बात पर सानवी को हँसी आ गई और वो नीचे झुक कर बोली— हाँ लेकिन ज़्यादा नहीं

    वो फिर चल पड़ी सड़क के मोड़ पर एक बड़ा सा साइन बोर्ड था जिसपर लिखा था
    AIBC – 200 meters ahead

    उसके कदम अब थोड़े तेज़ हो गए शायद अंदर कोई बेचैनी थी या कोई उम्मीद लेकिन हर कदम के साथ उसके दिमाग में पुराने फ्लैशबैक चलने लगे पुराना स्कूल जहां हर कोई उसके रिजल्ट से जलता था उसकी मेहनत को शक की नज़रों से देखा जाता था उसके कपड़ों को लेकर ताने दिए जाते थे
    — स्कॉलरशिप वाली लड़की
    — गरीब होकर भी ऐटिट्यूड दिखाती है
    — टॉप करके सोचती है खुदा बन गई है

    ये सब बातें उसे रोकती नहीं थी लेकिन कहीं अंदर चोट कर जाती थी और आज जब वो AIBC जैसे नामी कॉलेज में दाखिल हो रही थी तो दिल का एक कोना फिर से डरा हुआ था_क्या यहाँ भी वही सब होगा क्या फिर उसे अपनी जगह साबित करनी पड़ेगी क्या यहाँ कोई होगा जो उसे उसके मार्क्स से अलग देखेगा

    उसने सिर झटक दिया और सोचा_नहीं अब डर नहीं बस जवाब होगा सीधा और तीखा

    कॉलेज की इमारत अब सामने दिख रही थी ऊँची चारदीवारी सफेद और नीली ईंटों से बनी हुई जैसे कोई महल हो गेट पर सिक्योरिटी थी और बाहर खड़े कुछ स्टूडेंट्स जो शायद नए थे कुछ अपनी शर्ट में कॉलेज बैज टाँक रहे थे कुछ पाउडर लगा रहे थे और कुछ सेल्फी ले रहे थे लेकिन सानवी ने सिर्फ कॉलेज गेट की तरफ देखा जैसे उसका पूरा फोकस सिर्फ वहीं था
    जैसे किसी जंग के मैदान में कदम रखा जा रहा हो उसने बैग ठीक किया और गहरी साँस ली अब वो AIBC की तरफ बढ़ रही थी कॉलेज का गेट अब बस कुछ कदम दूर था और उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी वहीं से शुरू होने वाली थी






    Aaj ke liye bus itna hi thankyou for read..