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तेरे नाम से..." (जिस प्यार को उन्होंने इग्नोर किया, उसी प्यार ने उन्हें बदल डाला)

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बहुत ही दिलचस्प और इमोशनली ग्रिपिंग आइडिया है! एक पावरफुल बॉस और उसकी सिंपल, सीधी-सादी एंप्लॉई की लव-थ्रिलर स्टोरी—जो धीरे-धीरे शादी तक पहुंचती है—100 एपिसोड में बेहद खूबसूरती से गहराई, इमोशन और सस्पेंस के साथ गूंथी जा सकती ह। अर्जुन मेहरा और संध्या...

Total Chapters (3)

Page 1 of 1

  • 1. तेरे नाम से..." <br>(जिस प्यार को उन्होंने इग्नोर किया, उसी प्यार ने उन्हें बदल डाला) - Chapter 1

    Words: 893

    Estimated Reading Time: 6 min

    ---

    🕰️ “अर्जव रैना” — एक नाम, एक डर

    मुंबई की सुबहें अब भी उसी तरह धुंधली होती थीं, जैसे अर्जव रैना की आँखें हर सुबह।
    ऊपर 35वीं मंज़िल पर, रैना टावर्स के कॉरपोरेट हेडक्वॉर्टर की शीशे से ढकी दीवार के सामने, अर्जव खड़ा था — बिलकुल सीधा, स्थिर, जैसे उस शहर पर नज़र रखने वाला कोई पत्थर का देवता हो।

    उसके सूट की सिलवट तक में परफेक्शन था। मगर चेहरे पर वो गर्मी नहीं थी जो एक लीडर में होती है।
    नज़रें खाली थीं। होंठ सख़्त। और मोबाइल स्क्रीन पर चमकता समय — सुबह 7:02।

    "सर, बोर्ड रूम रेडी है,"
    पीछे से मीरा की धीमी आवाज़ आई — उसकी सेक्रेटरी।

    "Let them wait," अर्जव ने धीरे से कहा, मगर उसकी आवाज़ में वो सख़्ती थी जो मीरा को कंपकंपा देती थी।

    मीरा कुछ कहने ही वाली थी कि अर्जव पलटा, उसकी तरफ देखा — "Coffee, no sugar."

    बस यही तीन शब्द। न कोई शुक्रिया, न कोई मुस्कान।


    ---

    🪟 सीन 2: कॉन्फ्रेंस टेबल के दांव

    बोर्ड रूम में 14 लोग बैठे थे — हर चेहरा घबराया हुआ, हर हाथ में टैबलेट या लैपटॉप, सब तैयार मगर कांपते हुए।
    अर्जव जैसे ही अंदर आया, एक सन्नाटा छा गया।

    "Mr. Maheshwari, your pitch better be worth the time I didn’t want to give."
    (उसकी आवाज़ में जैसे बर्फ हो।)

    महेश्वरी ने प्रेज़ेंटेशन शुरू किया। बाकियों के लिए ये सिर्फ एक मीटिंग थी, लेकिन अर्जव के लिए यह हर बार एक युद्ध होता था — उसे जीतना आता था, मगर भरोसा करना नहीं।

    मीटिंग के बाद, अर्जव ने कहा:
    "Cancel all dinner meetings. I hate smiling while eating."

    "Yes sir," मीरा ने फौरन जवाब दिया।


    ---

    🏢 सीन 3: संध्या की एंट्री — एक सन्नाटे में चुप्पी का संगीत

    उसी बिल्डिंग के 19वें फ्लोर पर — एचआर डिपार्टमेंट के बाहर — एक साधारण सी लड़की, क्रीम रंग के सलवार सूट में, आँखों में थोड़ा डर, थोड़ा उत्साह लिए बैठी थी।

    संध्या मेहरा।
    पांच साल का एकाउंटिंग एक्सपीरियंस, लेकिन कॉरपोरेट कल्चर में नई।

    “Ms. Sandhya Mehra?”
    “जी…”

    “आपको जॉइनिंग के लिए Mr. Arjav से अप्रूवल लेना होगा। First Floor — Private Cabin.”

    उसका दिल जैसे बैठ गया।

    "Directly उनसे?" उसने धीरे से पूछा।

    "Yes, वो हर नए एंप्लॉई की फाइल खुद approve करते हैं…"

    संध्या ने मन ही मन खुद को तैयार किया —
    "डरना नहीं है, काम करना है… बस काम करना है…"


    ---

    💼 सीन 4: पहली टकराहट — दो दुनिया आमने-सामने

    अर्जव का केबिन अंदर से और भी ठंडा था — literally और metaphorically दोनों।

    संध्या ने हल्के से दरवाज़ा खटखटाया।

    "Come in." आवाज़ आई — गहरी, कटिंग।

    "Sir, मैं… मैं संध्या मेहरा हूँ… आपने approve…"
    वो कुछ और बोल पाती, उससे पहले अर्जव ने उसकी फाइल ले ली।

    कुछ देर तक पन्ने पलटता रहा। आँखें फाइल पर थीं, मगर जैसे ज़ेहन में कुछ और चल रहा था।

    फिर अचानक —
    "Why are you here?"

    संध्या चौंकी — “सर, मैंने अप्लाई किया था… HR…”

    "मैं जानता हूँ। सवाल है — इस ऑफिस में तुम्हारे जैसे साधारण लोगों की जरूरत क्यों होनी चाहिए?"

    ये अपमान था, और वो भी बिना किसी वजह।

    मगर संध्या ने हिम्मत जुटाई:
    "क्योंकि शायद कभी-कभी साधारण लोग भी असाधारण काम कर जाते हैं, सर।"

    उस एक जवाब ने अर्जव को दो पल के लिए रोक दिया।
    उसने नजरें उठाईं। पहली बार — उसकी आँखों में थोड़ी हैरानी थी।

    "Impressive." वो मुस्कराया नहीं, लेकिन कुछ बदला।

    "Report from tomorrow."


    ---

    🧊 सीन 5: संध्या की डेस्क — जहाँ साज़िशें शुरू होती हैं

    ऑफिस का माहौल हाई-प्रोफेशनल था। लेकिन अंदरूनी राजनीति यहां भी थी।

    "वो लड़की अर्जव सर के केबिन से आई थी?"
    "क्या वो उनकी नई पसंद होगी?"
    "इतनी सिंपल सी लड़की — इस ऑफिस के लिए?"

    संध्या ने सब सुना, मगर अनसुना किया।
    उसने अपनी सीट ली। कंप्यूटर ऑन किया। और धीरे-धीरे काम में जुट गई।


    ---

    🥀 सीन 6: अर्जव की उलझन

    उस रात अर्जव अपनी कार की पिछली सीट पर बैठा था। मुंबई की बारिश शीशों पर गिर रही थी।
    उसके दिमाग में सिर्फ एक ही चेहरा घूम रहा था — संध्या।

    “तुमने मुझे जवाब दिया… बिना डरे। तुम्हारी आँखों में डर नहीं था…
    …वो अजीब सी शांति थी…”

    उसने मोबाइल उठाया — और संध्या की फाइल दोबारा खोल ली।


    ---

    🪙 सीन 7: नया दिन, नई चाल

    अगले दिन ऑफिस में सभी को हैरानी हुई जब अर्जव ने सीधे एक मेल भेजा:

    Subject: Project Falcon — Lead: Sandhya Mehra.

    पूरा ऑफिस हिल गया।
    एक नई लड़की को इतने बड़े प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी?

    “सर, शायद कुछ गलती…” मीरा ने पूछा।

    "Did I stutter in the mail?" अर्जव ने उसे देखा।

    "नहीं… बिल्कुल नहीं…"


    ---

    🎯 सीन 8: संध्या vs अर्जव — और कहानी की शुरुआत

    प्रोजेक्ट मीटिंग में संध्या ने पूरे कॉन्फिडेंस से प्रेजेंटेशन दिया।

    उसका हर वाक्य साफ़ था, लॉजिक स्ट्रॉन्ग था।
    पूरे हॉल में सन्नाटा था। सिर्फ एक इंसान मुस्कुरा रहा था — अंदर ही अंदर।

    अर्जव रैना।

    उसे पहली बार किसी ने इम्प्रेस किया था…
    …और उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था।

    "Don't fall for her simplicity, Arjav," उसने खुद से कहा।
    "तुम्हारा दिल दोबारा धोखा नहीं खा सकता।"


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    🖋️ एंडिंग लाइन:

    "मगर कुछ रिश्ते… साज़िशों से नहीं, क़िस्मत से बनते हैं।"


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    अगर आप चाहें, तो मैं एपिसोड 2 तुरंत लिखना शुरू कर सकता हूँ, जिसमें प्रोजेक्ट के बहाने अर्जव और संध्या की नज़दीकियाँ बढ़ेंगी, लेकिन साथ ही नए खतरे और दफ्तर की साज़िशें भी पनपेंगी।

    क्या मैं अगला एपिसोड लिखूं?

  • 2. तेरे नाम से..." <br>(जिस प्यार को उन्होंने इग्नोर किया, उसी प्यार ने उन्हें बदल डाला) - Chapter 2

    Words: 685

    Estimated Reading Time: 5 min

    समझ गया! दूसरा एपिसोड इस तरह लिखूंगा कि अर्जव के दिल में धीरे-धीरे फीलिंग्स पनपें लेकिन वो उन्हें खुद भी समझ ना पाए। वहीं संध्या थोड़ा डिस्टेंस बनाए रखे, अर्जव से खास जुड़ाव बनने से पहले ही। दोनों के बीच खिंचाव, टकराव, और मन के अंदर की उलझनें दिखाऊंगा, जिससे कहानी में सस्पेंस और इमोशन दोनों बने रहें।


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    🌿 एपिसोड 2: "बिखरे लम्हे और अनकहे जज़्बात"


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    🕯️ सीन 1: सुबह की तकरार

    संध्या ऑफिस पहुंची, और उसका दिल हल्का-सा धक-धक कर रहा था।
    आज पहला बड़ा प्रोजेक्ट था, “Project Falcon,” जो अर्जव ने उसे दिया था।

    लेकिन जब उसने अर्जव को देखा, तो वो बिल्कुल वैसे ही सख्त, ठंडे और नीरस थे।
    उनकी नज़रें बस फाइलों पर थीं, किसी भी तरह के किसी संकेत या तारीफ का नाम नहीं।

    "Good morning, sir," संध्या ने नम्रता से कहा।
    अर्जव ने बस एक बार ऊपर से देखा और बोला,
    "Start with the report. No time for greetings."

    संध्या के मन में एक हल्की चुभन सी हुई।
    "क्या ये वही इंसान है जिसने कल मुझसे तारीफ की थी?" उसने सोचा।


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    🌪️ सीन 2: दूरियां बढ़तीं

    मीटिंग रूम में जब संध्या ने अपनी रिपोर्ट पूरी मनोयोग से पेश की, अर्जव ने कई सवाल किए, लेकिन हर बार उसके जवाब सुनकर वो कुछ पल के लिए रुका।

    लेकिन वह रुका नहीं।
    हर सवाल के साथ उसकी आवाज़ में तीखापन बढ़ा, जैसे उसे संतुष्टि नहीं हो रही हो।
    “You’re good… But not good enough yet.”

    संध्या ने अंदर ही अंदर सोचा, “मैं और मेहनत करूंगी।”
    लेकिन बाहर से वो मुस्कुराई, "Thank you for the feedback, sir."


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    🕸️ सीन 3: छुपे जज़्बात

    अर्जव के ऑफिस से बाहर निकलते वक्त, वो संध्या के बारे में सोच रहा था।
    “Why does she not fear me? Why does she look at me as an equal, not as a boss?”

    उसके दिल के अंदर एक अनजान सी हलचल हुई — जिसे वो समझ नहीं पाया।
    वो अकेले में फुर्सत की घड़ियों में बार-बार उसका चेहरा देखता, लेकिन नज़रें झुका लेता।


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    📵 सीन 4: संध्या की दूरी

    संध्या अपने डेस्क पर बैठी, अपने काम में पूरी तरह डूब गई।
    लेकिन ऑफिस के कुछ सहकर्मी उसके पीछे फुसफुसा रहे थे, "अर्जव सर को पसंद आ गई हो तुम?"

    उसने हँसकर टाल दिया। "मेरे लिए काम ही सबसे जरूरी है, और किसी की राय मायने नहीं रखती।"

    लेकिन दिल के अंदर एक डर भी था — क्या अर्जव के सख्त व्यवहार के पीछे कोई वजह है?


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    ⚔️ सीन 5: पहली टकराहट

    दिन भर ऑफिस के कॉरिडोर में संध्या और अर्जव की टकराहटें बढ़ती गईं।
    अर्जव हर बार उसके काम में छोटी-छोटी गलतियां निकालता, पर संध्या चुप नहीं बैठी।

    “Sir, अगर आप गलतियां निकालेंगे, तो मैं सीखूंगी,” उसने डटकर जवाब दिया।

    अर्जव ने पहली बार कुछ पल के लिए मुस्कुराते हुए कहा,
    “You’re tougher than I thought.”


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    🌫️ सीन 6: रात की तन्हाई

    रात को अर्जव अपने ऑफिस में अकेला था, खिड़की से बाहर बारिश की बूंदें गिर रही थीं।
    उसने अपने मोबाइल में संध्या का नंबर डाला, लेकिन उसे कॉल करने से पहले ही फोन वापस रख दिया।

    “Not yet,” उसने कहा।
    “Not now.”


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    🕰️ सीन 7: संध्या की सोच

    संध्या अपने छोटे से कमरे में बैठी थी। उसने अर्जव के बारे में सोचा —
    “वो जो हमेशा मुझसे दूर रहता है, क्या वो भी किसी चीज़ से लड़ रहा है?”

    मगर उसने खुद से कहा, "मैं अपनी सीमाएं जानती हूँ। ऑफिस से बाहर उसकी जिंदगी में मेरा कोई स्थान नहीं।"


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    🌅 सीन 8: नया दिन, नए सवाल

    अगले दिन ऑफिस में अर्जव ने संध्या को एक नोट भेजा —
    “Be prepared for tomorrow’s meeting. This time, I expect perfection.”

    संध्या ने अपने दिल को समझाया, "ये सिर्फ काम है, इसे दिल मत लगाओ।"


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    ✨ एंडिंग:

    “दो दिल, दो रास्ते… फिर भी एक मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं,
    पर क्या ये सफर आसान होगा या जर्जर कर देगा दोनों को?”


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    अगर आप चाहें तो मैं तीसरा एपिसोड भी लिखना शुरू करूं, जहाँ धीरे-धीरे दोनों के बीच भावनाएँ गहराने लगेंगी, लेकिन साथ में ऑफिस की राजनीतिक साज़िशें भी।

    क्या आपको ये ट्रैक पसंद आया? या कोई बदलाव चाहिए?

  • 3. तेरे नाम से..." <br>(जिस प्यार को उन्होंने इग्नोर किया, उसी प्यार ने उन्हें बदल डाला) - Chapter 3

    Words: 839

    Estimated Reading Time: 6 min

    बहुत अच्छा! अब हम बढ़ते हैं एपिसोड 3 की ओर —
    इस एपिसोड में कहानी और ज़्यादा गहराई में जाएगी। अर्जव के अंदर की बेचैनी बढ़ेगी, जबकि संध्या अपने आत्मसम्मान और पेशेवर सीमाओं के भीतर खुद को संतुलित रखने की कोशिश करेगी। दोनों के बीच अब शब्दों से ज़्यादा नज़रों और खामोशियों की भाषा बोलेगी।


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    🖤 एपिसोड 3: "तुमसे दूर रहकर भी तुममें ही खोया रहता हूँ..."


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    🪟 सीन 1: उजली सुबह, धुंधले एहसास

    सुबह की पहली किरणें जैसे ही ऑफिस की शीशे की दीवारों पर पड़ीं, अर्जव रैना अपनी सिग्नेचर ब्लैक कॉफी के साथ अपने केबिन में बैठा था।

    वो हमेशा की तरह शांत दिख रहा था, मगर उसके मन में हलचल थी।

    टेबल पर संध्या की रिपोर्ट खुली थी। उसकी हर लाइन, हर शब्द जैसे अर्जव के दिमाग में गूंज रहा था।

    "क्यों मैं उसकी लिखी बातों को बार-बार पढ़ रहा हूँ?"
    उसने खुद से पूछा।

    मीरा कमरे में आई —
    "Sir, संध्या is already on the 19th floor. She submitted today’s plan sharp at 8:30."

    "Of course she did," अर्जव ने बुदबुदाते हुए कहा — और पहली बार वो मुस्कराया।


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    🧊 सीन 2: मौन संवाद

    संध्या कॉरिडोर से गुजर रही थी जब उसकी नज़र अर्जव के केबिन की ओर पड़ी।

    दरवाज़ा खुला था, और उनकी निगाहें बस एक पल के लिए मिलीं।

    उस एक पल में कुछ भी नहीं कहा गया, लेकिन बहुत कुछ महसूस हुआ।

    संध्या ने अपनी निगाहें झुका लीं।
    “मैं प्रोफेशनल हूं, मुझे उसकी तरफ नहीं देखना चाहिए।”

    और अर्जव ने जैसे अपने अंदर झटका सा महसूस किया —
    "Why does she keep pulling away from me?"


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    🕸️ सीन 3: ऑफिस पॉलिटिक्स का ज़हर

    इधर ऑफिस में कुछ लोगों के चेहरों पर अजीब सी मुस्कान थी —
    अभय गिल, अर्जव के पुराने वफादार में से एक, अब चुपचाप जल रहा था।

    "उस लड़की ने दो हफ्तों में जितना हासिल किया है, वो मैं दो साल में नहीं कर पाया,"
    अभय ने अपने दोस्तों से कहा।
    "अब वक्त है… गेम खेलने का।"

    वो जानता था अर्जव किसी पर जल्दी भरोसा नहीं करता —
    बस एक छोटी सी गलतफहमी पैदा करनी थी।


    ---

    💼 सीन 4: चुप्पियों की बैठक

    "Ms. Mehra, why is this data incomplete?"
    अर्जव ने अचानक मीटिंग में संध्या से पूछा।

    संध्या चौंकी। "Sir, ये सेगमेंट अभय सर की टीम से आना था…"

    "Then why did you submit it without verification?" उसकी आवाज़ सख़्त थी।

    संध्या खामोश रही। उसने खुद को शांत रखा।

    मीटिंग के बाद, वो चुपचाप अर्जव के केबिन गई।

    "Sir, अगर आपको लगता है कि मैंने लापरवाही की है, तो मैं पूरी ज़िम्मेदारी लेती हूँ। लेकिन कुछ बातें जानबूझ कर हुई हैं।"

    अर्जव का चेहरा थोड़ा सख्त हुआ — मगर उसकी आंखों में एक नया सवाल था।

    "तुम चाहो तो सच्चाई बताओ… या जैसे बाकी लोग करते हैं, चुप रहो।"


    ---

    🖊️ सीन 5: रात का मेल

    उस रात अर्जव ने पहली बार संध्या को एक मेल भेजा।

    Subject: Clarity
    Body: “कल सुबह 8 बजे मेरे साथ बैठो। I want full transparency on what’s going on.”

    संध्या ने मेल पढ़कर गहरी साँस ली।

    “अब मैं पीछे नहीं हटूंगी,” उसने खुद से कहा।


    ---

    💥 सीन 6: टकराव और स्वीकार

    अगली सुबह — अर्जव और संध्या आमने-सामने।

    संध्या ने हर डिटेल, हर ईमेल का प्रिंटआउट सामने रखा।
    उसने सारी बातें, सबूतों के साथ, ठोस तरीके से समझाईं।

    अर्जव ने चुपचाप सब पढ़ा।

    "Why didn’t you tell me earlier?" वो फुसफुसाया।

    "क्योंकि मुझे लगा आप खुद देख सकते हैं। और मैं शिकायतें नहीं, काम में यकीन रखती हूँ।"

    उसका ये जवाब अर्जव को अंदर तक छू गया।

    "People like you are rare, Sandhya."

    "Yes, Sir. और शायद इसलिए सबकी आँखों में खटकती हूं," संध्या ने मुस्कराकर कहा — मगर वो मुस्कान थकी हुई थी।


    ---

    🪔 सीन 7: अर्जव का द्वंद्व

    रात को अर्जव फिर अकेला था।
    वो फाइलों से नज़रें हटा नहीं पा रहा था।

    हर बार संध्या की आवाज़, उसकी आंखें, उसकी बातें —
    "Why do I feel like I want to protect her?"

    उसने पहली बार खुद को शीशे में देखा — और कहा:

    "तुम डरते हो अर्जव…
    किसी को करीब आने देने से,
    फिर से टूटने से।"


    ---

    🖤 सीन 8: संध्या की उलझन

    वहीं दूसरी ओर, संध्या बालकनी में बैठी थी —
    चाय की प्याली हाथ में और सवालों की उलझन दिल में।

    "कभी-कभी अर्जव सर बहुत सख्त हो जाते हैं,
    …मगर फिर कुछ ऐसे देख लेते हैं जैसे सब जान लेते हैं।
    …मैं क्यों सोचती हूं उनके बारे में?"

    उसने खुद को झिड़का।

    "नहीं संध्या… ये सिर्फ काम है। और तुम्हें अपनी ज़िंदगी को साफ-सुथरा रखना है।"


    ---

    🕯️ एंडिंग लाइन:

    "कुछ रिश्ते कहे बिना बनते हैं, और कुछ… बनते-बनते बिखर जाते हैं। पर जब दोनों के दिल एक जैसे हों — तो एक चुप्पी भी मोहब्बत की ज़ुबान बन जाती है।"


    ---

    अगर आप चाहें तो मैं एपिसोड 4 भी तुरंत लिख सकता हूँ, जिसमें अर्जव की भावनाएं और गहराई से उभरेंगी — मगर संध्या अभी भी उसे 'बॉस' से ज़्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं होगी।
    ऑफिस की साज़िशें भी अब बड़ी चाल चलेंगी।

    क्या मैं लिखूं अगला एपिसोड?