ये कहानी उस अनकहे रिश्ते से शुरू होती है, जहाँ दिल ने दोस्ती का पहला कदम रखा था और दुआएं खुद ब खुद जुड़ी थीं।दिल, दोस्ती और दुआ, जिसमें मुख्य पात्र हैं धारणा और गौरांग।उनकी मुलाकात कुछ इस तरह से हुई —धारणा शास्त्री अपना प्रोजेक्ट हाथ में पकड़े खुद स... ये कहानी उस अनकहे रिश्ते से शुरू होती है, जहाँ दिल ने दोस्ती का पहला कदम रखा था और दुआएं खुद ब खुद जुड़ी थीं।दिल, दोस्ती और दुआ, जिसमें मुख्य पात्र हैं धारणा और गौरांग।उनकी मुलाकात कुछ इस तरह से हुई —धारणा शास्त्री अपना प्रोजेक्ट हाथ में पकड़े खुद से ही बड़बड़ा रही थी, "हे भगवान ! ये कैसा स्कूल है? एक तो यहाँ कोई भी जान-पहचान का नहीं, ऊपर से ये प्रोजेक्ट !"धारणा स्कूल में नई थी और हर बात उसके लिए नई-नई सी लग रही थी।तभी बास्केटबॉल ग्राउंड से आती शोरगुल की आवाज़ें उसका ध्यान खींचती हैं। वहाँ उसका सामना होता है गौरांग से...
धारणा
Heroine
गौरांग
Hero
अंगद
Side Hero
याशी
Healer
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कहते हैं, जिंदगी का हर दिन एक नया सफर होता है, जिसमें कुछ रास्ते हमारे लिए तय होते हैं और कुछ हम खुद चुनते हैं। ये सफर कभी दोस्तों की ठिठोली से रंगीन हो जाता है, तो कभी दिल की हल्की सी धड़कन से अपनी रफ्तार बदल लेता है। कभी ये सफर हमें अपनी अधूरी ख्वाहिशों के करीब ले जाता है, तो कभी हमें ऐसी राह पर छोड़ देता है, जहाँ दोस्ती का सहारा, मोहब्बत की गहराई और दुआओं की उम्मीदें हमारे कदमों को थाम लेती हैं। ऐसे ही सफरों में कुछ मुलाकातें होती हैं, जो पल भर की होती हैं लेकिन एक पूरी जिंदगी पर असर छोड़ जाती हैं। यह कहानी भी ऐसे ही एक सफर की है।
फ़रवरी का महीना था।
सड़क के किनारे पेड़ों से गिरे लाल, पीले और भूरे पत्ते मानो धरती पर चटाई की तरह फैले हुए थे।
धारणा और मिताली, दोनों सहेलियाँ, भागते-भागते स्कूल की ओर जा रही थीं।
आज उनकी बस छूट गई थी, और अब उनके कदम ऐसे भाग रहे थे जैसे उन्होंने साँप की पूँछ पर अपना पैर रख दिया हो।
मिताली बिना रुके दौड़ते हुए बोली, "अरे यार, धारू! ये क्या हालत हो गई है हमारी? मुझे तो लग रहा है, आज हमारी क्लास टीचर हमें कच्चा चबा जाएँगी।"
धारणा ने हांफते हुए, अपने माथे पर आई बालों की लटों को हटाते हुए कहा ,"हाँ, और फिर क्लास के बाहर मुर्गा बना देंगी!"
दोनों दौड़ती हुईं स्कूल की तरफ बढ़ ही रही थीं कि अचानक धारणा के कदम रुक गए। उसकी आँखें बड़ी हो गईं, और वो ठिठककर खड़ी हो गई। उसकी नज़र सामने से आते एक उन्ही के हमउम्र लड़के पर पड़ी।
काले रंग की हुडी और ट्रैक पैंट पहने, सफेद रिम का चश्मा लगाए, वो लड़का जैसे किसी कहानी से निकला हुआ किरदार लग रहा था। उसके हाथ में सफेद रंग का प्यारा सा खरगोश था, और उसके चेहरे की मासूमियत को देखकर धारणा का दिल एक पल के लिए धक् से रह गया।
मिताली ने पीछे मुड़कर, भवें चढ़ाते हुए पूछा, "अरे, क्या हुआ? आगे क्यों नहीं चल रही? कहीं गिरा हुआ सोना तो नहीं मिल गया?"
धारणा ने धीमे स्वर में, हल्की सी मुस्कान के साथ कहा,"सोना नहीं, वो देख... ऐसा लग रहा है जैसे जमीं पर चाँद उतर आया हो।"
मिताली ने हँसते हुए कहा, "अरे वाह! चाँद को भी खरगोश पालने का शौक हो गया है!"
लड़का जैसे ही पास आया, उसकी गुलाब जैसी भीनी-भीनी महक ने धारणा को कुछ पल के लिए जैसे सम्मोहित कर दिया। उसकी नजरें लड़के के चेहरे पर टिक गईं। उसकी सर्द निगाहें और हल्की झुकी भवें जैसे उसे अनदेखा कर रही थीं।
लेकिन तभी, लड़के की नजरे धारणा से मिलीं, और अगले ही पल लड़के ने ऐसी बेपरवाही से नज़रें फेर लीं जैसे धारणा हवा में खड़े किसी अदृश्य प्राणी सी हो।
धारणा ने गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा, "हुह्ह! ये लड़के भी ना! खुद को क्या समझते हैं? जैसे वो कोई राजा हो और हम लड़कियां उनकी प्रजा!"
मिताली ने आँखें मटकाते हुए कहा , "लगता है, किसी के दिल में हलचल मच गई है।"
धारणा ने अपना चेहरा सख्त बनाए हुए कहा, "चुप रह! मुझे तो बस उसका वो खरगोश अच्छा लगा। लड़का-वड़का सब फालतू है।"
लेकिन सच तो ये था कि धारणा का मन पीछे मुड़कर देखने को मचल रहा था। पर उसके स्वाभिमान ने उसे रोके रखा। उसने धीरे से अपनी नज़रें झुका लीं और खुद को समझाया, "अगर मैंने पलटकर देखा तो मेरी इज़्ज़त का फालूदा बन जाएगा।"उसने खुद को समझाया। मगर मन ही मन वो सोच रही थी, "अरे मियां, अपनी इतनी अकड़ दिखा रहे हो, पर मेरी नज़रें तुम पर दोबारा पड़ेंगी, तो अगली बार तुम्हारी नज़रें झुकेंगी!"
लेकिन ये कहते-कहते भी धारणा का ध्यान बार-बार उस लड़के की तरफ जा रहा था। "इतनी अकड़ किस बात की? अगर दो पल के लिए मुस्कुरा देता तो कौन सा पहाड़ टूट जाता?"
मिताली ने हँसते हुए कहा ,"अब चल भी, वरना आज तो क्लास के बाहर खड़े रहना पड़ेगा।"
धारणा ने ठंडी निगाहों से मिताली को देखा, फिर सिर झटकते हुए स्कूल की ओर चल पड़ी।
तभी स्कूल की घंटी बजने की आवाज आई।
मिताली ने हाँफते हुए कहा,"चल-चल! क्लास में पहुँचने में देर हो गई तो आज टीचर का प्रवचन सुनने को मिलेगा।"
दोनों तेज़ी से स्कूल के गेट के अंदर दाखिल हुईं।
जैसे ही क्लास में पहुँचीं, मैम पहले ही गुस्से में थीं।
टीचर ने दोनो को सर्द निगाहों से घूरा कर कहा, "तुम दोनों को टाइम का कोई मतलब समझ में आता है या नहीं? आधी क्लास खत्म हो चुकी है, और तुम लोग अब आ रही हो!"
धारणा ने धीमे स्वर में, भौंहें चढ़ाते हुए कहा, "मैम , गलती हमारी नहीं थी... वो... वो सामने से..."
मिताली ने झट से धारणा की बात काटते हुए, मुस्कुराते हुए कहा,"मैम, बस छूट गई थी, लेकिन अगली बार ऐसा नहीं होगा।"
मैम ने कड़ी नजरों से देखते हुए दोनों को अपनी सीट पर बैठने का इशारा किया।
लेकिन क्लास के पूरे समय धारणा का ध्यान बार-बार उसी लड़के की ओर जा रहा था। मन ही मन वो सोच रही थी, "कौन था वो? और इतना अकड़ू क्यों था?"
आखिरकार, ब्रेक के दौरान मिताली ने उसे छेड़ा,
"धारू, तेरे चेहरे पर ये सोचने वाली लकीरें क्यों हैं? लग रहा है, किसी पहेली में उलझ गई है!"
"तू चुप रह। मैं बस... उस खरगोश के बारे में सोच रही थी।"
मिताली ने शरारती अंदाज में, अपनी हंसी दबाते हुए कहा ,"खरगोश या उसके मालिक?"
धारणा ने उसे घूरकर देखा और ब्रेक के दौरान उसे नजरअंदाज करते हुए लाइब्रेरी की ओर चली गई। लेकिन अंदर ही अंदर उसका मन किसी तरह उस लड़के का नाम और उसकी क्लास जानने की तरकीब सोच रहा था।
लाइब्रेरी में जाकर भी धारणा का मन शांत नहीं हो रहा था। किताबें खोलकर सामने रखी थीं, पर पन्ने पलटने की बजाय उसकी सोच उसी लड़के के इर्द-गिर्द घूम रही थी।
लाइब्रेरी की खामोशी के बीच मिताली ने धीरे से आकर उसे छेड़ा।
"किस किताब में इतना ध्यान लगा रखा है?"
धारणा ने झेंपते हुए, निगाहें झुका कर कहा ,"अरे कुछ नहीं, बस यूँ ही पढ़ रही थी।"
मिताली ने मुस्कुराते हुए, इशारा करते हुए कहा,"हाँ-हाँ, पढ़ाई नहीं हो रही, बल्कि किसी के बारे में सोचना हो रहा है।"
धारणा ने किताब बंद करते हुए कहा, "चुप कर, तू बहुत बोलने लगी है। चल, क्लास में चलते हैं।"
स्कूल खत्म होने के बाद, दोनों सहेलियाँ बस में बैठकर घर लौट रही थीं। खिड़की के बाहर का मौसम बड़ा सुहावना लग रहा था। ठंडी-ठंडी हवा और पेड़ों की झूमती टहनियाँ धारणा के मन को हल्का कर रही थीं। लेकिन तभी उसकी नज़र बाहर पड़ी और उसकी सांस थम सी गई।
सामने एक गार्डन में वही लड़का बेंच पर बैठा हुआ था। उसने एक किताब पकड़ी हुई थी और उसका खरगोश पास ही गाजर खा रहा था। लड़का किताब में ऐसा खोया हुआ था जैसे आसपास की दुनिया से कोई मतलब ही न हो। उसके चेहरे पर एक अजीब सी गहराई थी, और उसकी आँखों के ऊपर हल्के से झूलते बाल उसे और भी आकर्षक बना रहे थे।
धारणा ने मन ही मन, भवें चढ़ाते हुए कहा ,"अरे, ये तो यहाँ भी है! कोई जासूस तो नहीं जो मेरा पीछा कर रहा है?"
लेकिन अगले ही पल उसने खुद को टोका। "जासूस होगा तो मुझे क्या! वो कौन सा मुझसे बात करने आया था।"
मिताली ने धारणा की तरफ देखकर, नज़रे घुमा कर कहा, "अब क्या हो गया? खिड़की के बाहर क्यों घूर रही है?"
धारणा ने जल्दी से, चेहरा फेरते हुए कहा ,"कुछ नहीं, वो देख खरगोश... कितना प्यारा है हैना!"
मिताली ने उसे चिढ़ाते हुए कहा, "खरगोश या उसका मालिक?"
धारणा ने अपनी आँखें तिरछी करते हुए, गुस्से में कहा ,"तू चुप कर!"
बस आगे बढ़ चुकी थी, लेकिन धारणा का ध्यान बार-बार पीछे छूटते गार्डन की तरफ जा रहा था। मन में हलचल मची थी, लेकिन ये हलचल क्या थी, उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था। "वो कौन सा मुझसे मिलने आएगा... मुझे ही सोचना बंद करना होगा।" उसने खुद को समझाया।
घर पहुँचने के बाद भी धारणा का ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा था। मन बार-बार गार्डन में बैठे उस लड़के और उसके खरगोश की ओर खिंच रहा था। उसने किताबें खोल तो लीं, लेकिन पन्ने बस पलटती रही। मिताली का चेहरा याद आया, जो जरूर कहती, "पढ़ाई नहीं, किसी और की कहानी लिखी जा रही है।"
फिर अचानक एक ख्याल आया।
"गार्डन में जाकर पढ़ाई क्यों न करूँ? एक शांत जगह होगी, और होमवर्क भी हो जाएगा।"
बस, ये सोचकर उसने तुरंत अपना बैग उठाया और घरवालों से कहा,
"मम्मी, मैं गार्डन में जाकर होमवर्क कर लूँ? घर में बहुत शोर हो रहा है।"
माँ ने सर उठाकर देखा और कहा,
"अच्छा है, कभी तो पढ़ाई का शौक चढ़ा। लेकिन ध्यान रखना, जल्दी लौट आना।"
गार्डन में पहुँचते ही धारणा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने इधर-उधर नजरें दौड़ाईं, और कुछ ही दूरी पर उसे वही लड़का दिखाई दिया। वो बेंच पर बैठा था, किताब उसके हाथ में थी, और खरगोश आराम से उसके पास बैठा हुआ था। लेकिन इस बार उस लड़के ने अपने चेहरे पर मास्क पहना हुआ था।
धारणा मन ही मन बड़बड़ाई, "हुंह, अभी कौन सा वायरस फैला हुआ है जो ये मास्क पहने बैठा है?"
धारणा ने थोड़ी दूरी पर एक बेंच चुनी और अपना होमवर्क करने का नाटक शुरू कर दिया। किताब तो खोल ली, लेकिन उसकी नजरें पन्नों से ज्यादा उस लड़के पर टिकी थीं। वो उसकी हर हरकत को चुपचाप देख रही थी—कभी वो किताब में खो जाता, कभी खरगोश को प्यार से गाजर देता।
लड़के ने एक बार उसकी तरफ देखा, फिर तुरंत अपनी किताब में नजरें गड़ा लीं। पर उसके चेहरे का हल्का खिंचाव और आँखों की हल्की झलक यह बता रही थी कि उसने धारणा को देखा था।
लड़का किताब पढ़ रहा था, लेकिन उसकी आँखें बार-बार किताब के ऊपर से धारणा की ओर उठतीं और फिर झट से वापस झुक जातीं। उसके चेहरे पर मास्क के पीछे हल्की सी मुस्कान थी, जो उसकी आँखों में झलक रही थी।
"पता नहीं कौन है ये लड़की ।"
धारणा ने किताब खोली और पढ़ने की कोशिश करने लगी। लेकिन ध्यान? ध्यान तो गार्डन के खरगोश और उसके मालिक पर ही था।
वो झुंझलाते हुए बड़बड़ाने लगी, "पढ़ाई करने आई थी, और ये लड़का मेरा सारा ध्यान चुरा ले गया। आखिर कौन है ये? और इतनी अकड़ क्यों दिखा रहा है?"
अचानक लड़के ने खरगोश को गोद में उठाया और उसे प्यार से थपथपाया। उसकी आँखों में अचानक नर्मी आ गई।
धारणा ने भौंहें चढ़ाईं, "अरे, अकड़ू भी है और प्यारा भी है? ये क्या मिक्सचर है?"
उसने मास्क की तरफ देखा और सोचा, "लगता है, मास्क सिर्फ अकड़ छिपाने के लिए पहना हुआ है। वरना ऐसा कोई वायरस फैला हो, और मुझे नही पता हो ...ऐसा तो हो ही नही सकता !"
लड़का अब अपनी किताब बंद कर चुका था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि धारणा से बात कैसे शुरू करे। वो अपने खरगोश को निहारता हुआ मन ही मन बुदबुदाया, "ऐसे नहीं चलेगा... मुझे बात करनी चाहिए। लेकिन क्या कहूँ? नहीं नहीं ....वो सोचेगी कि मैं उसके साथ फ्लर्ट करने की कोशिश रहा हूँ।"
फिर उसने एक नजर फिर से धारणा की तरफ डाली और खुद को समझाया, "नहीं... अभी नहीं। पहले देखता हूँ कि ये खुद मुझसे बात करती है या नहीं।"
धारणा ने बैग से पानी की बोतल निकाली और जैसे ही उसका ढक्कन बंद किया, बोतल गलती से नीचे गिर गई। वह बोतल सीधे लड़के के पैरों के पास लुढ़क गई।
लड़के ने बोतल उठाई और एक सर्द निगाह से धारणा की ओर देखा। फिर धीरे-धीरे बोतल को उठाते हुए कहा, " अरे संभल कर ।"
धारणा ने भौंहें चढ़ाईं और कहा, "हाँ, धन्यवाद।"
लड़के ने बिना कुछ कहे बस सिर हिला दिया और वापस अपनी जगह पर बैठ गया।
धारणा ने बोतल लेते हुए सोचा, "उफ्फ, ये लड़का इतना घमंडी क्यों है? लेकिन... कुछ तो है इसमें। इसका खरगोश कितना प्यारा है। और वो... मास्क के पीछे छुपी इसकी ये अकड़, पता नहीं क्यों मुझे आकर्षित कर रही है।"
वो पढ़ाई में वापस ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी, लेकिन दिमाग में अब एक नई उलझन चल रही थी।
धारणा ने खुद को टोका, "तू यहाँ होमवर्क करने आई थी या जासूसी करने? अपना काम कर।" लेकिन ये ख्याल ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया।
उसने खुद से कहा, "अगर मैं उससे बात कर लूँ तो क्या बिगड़ जाएगा? आखिर, सवाल तो खरगोश का भी हो सकता है।"
थोड़ी हिम्मत जुटाकर धारणा उसके पास गई। लड़का अब भी किताब में खोया हुआ था।
धारणा : " एक्सक्यूज मी ..."
लड़के ने सर उठाकर उसकी तरफ देखा।
धारणा ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा "वो... तुम्हारा खरगोश बहुत प्यारा है। क्या मैं उसे थोड़ा प्यार कर सकती हूँ?"
लड़के ने एक पल के लिए उसे देखा, फिर खरगोश को उसकी तरफ बढ़ा दिया।
लड़का धीमे स्वर में बोला, "नाम है बर्फी।"
धारणा ने मुस्कुराते हुए खरगोश को अपने हाथ में लिया,"बर्फी! वाकई, इसका नाम भी उतना ही प्यारा है जितना प्यारा ये खुद है।"
कुछ पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई। लड़का फिर से किताब में खो गया, लेकिन धारणा का दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
धारणा अपने मन में सोचते हुए धीमे से बोली, "ये इतना रिज़र्व क्यों है? क्या इसे बातें करना पसंद नहीं?"
अंततः धारणा ने हिम्मत करके पूछा,
"वैसे... क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ?"
लड़के ने सर उठाया, उसे एक बार देखा, और बिल्कुल सीधी आवाज़ में कहा,
"नहीं।"
धारणा के चेहरे पर एक सेकंड के लिए झटका सा आया। उसने उम्मीद नहीं की थी कि कोई इतनी बेरुखी से जवाब दे सकता है। लेकिन तुरंत ही उसने अपनी झेंप छिपाई और जवाब में कहा,
"अच्छा! वैसे भी मुझे तुम्हारे पास बैठने का कोई शौक नहीं है। बस पूछ ही रही थी।"
इतना कहकर उसने खरगोश को वापस जमीन पर रखा और अपनी बेंच की ओर जाते हुए मन ही मन बड़बड़ाने लगी,
"हुह्ह! इतना अकड़ू! लगता है, किताबें ज्यादा पढ़ने से इसका दिमाग ही खराब हो गया है। मैं तो बस इंसानियत में पूछ रही थी। खरगोश पालने से क्या आदमी खुद को बादशाह समझ लेता है?"
लड़का, जो फिर से किताब में खो चुका था, अचानक उसकी बड़बड़ाहट सुनकर हल्के से मुस्कुराया। लेकिन उसने अपना चेहरा किताब के पीछे छिपा लिया ताकि धारणा देख न सके।
जब धारणा अपनी बेंच पर बैठी, तो उसका गुस्सा अभी भी ठंडा नहीं हुआ था। उसने जान-बूझकर किताब का पन्ना जोर से पलटा और कहा,
"कुछ लोग अपने आपको बहुत बड़ा समझते हैं, पर असल में उनकी इंसानियत खरगोश से भी छोटी होती है!"
लड़के ने उसकी बात साफ़-साफ़ सुन ली। उसने हल्का सा सिर उठाया और कहा,
"अगर तुम्हें यहाँ बैठना ही था, तो सीधे बैठ जातीं। इतनी बातें बनाने की ज़रूरत नहीं थी।"
धारणा को जैसे मिर्ची लग गई। उसने पलटकर जवाब दिया,
"और अगर मना करना ही था, तो इंसानों की तरह मना कर देते! ये कौन सा तरीका था?"
लड़का मुस्कुराया और कहा,
"कभी-कभी कम बोलने वाले लोग ज्यादा समझदार होते हैं।"
ये कहकर उसने फिर से अपनी किताब में नजरें गड़ा लीं।
धारणा फिर मन ही मन बड़बड़ाई,"समझदार! इस घमंडी को तो मैं ठीक करके रहूंगी। लगता है, इसे अभी तक कोई नहीं मिला जो इसे इसकी औकात दिखाए।"
गुस्से में उसने किताब खोली, पर अब पढ़ाई तो और भी दूर की बात लग रही थी। नजरें बार-बार उस लड़के की तरफ जा रही थीं। वो एकदम शांत होकर किताब पढ़ रहा था, जैसे अभी-अभी जो हुआ, उसका उस पर कोई असर ही नहीं हुआ।
"उफ्फ! ये इतना शांत कैसे है? मेरा गुस्सा देखकर तो हर कोई डर जाता, लेकिन इसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा," धारणा ने खुद से कहा।
तभी गार्डन में हल्की ठंडी हवा चली और बर्फी खरगोश ने कूदकर लड़के के गोद से छलांग लगाई। वो दौड़ते हुए धारणा की तरफ भागा।
"अरे! बर्फी, यहाँ आओ!" लड़के ने आवाज लगाई।
लेकिन बर्फी तो अब तक धारणा की बेंच पर पहुँच चुका था। उसने अपनी छोटी-छोटी आँखों से धारणा की ओर देखा और उसकी गोद में कूदकर बैठ गया।
धारणा ने बर्फी को प्यार से गोद में लिया और मुस्कुराते हुए लड़के की तरफ देखा।
"लगता है, तुम्हारा खरगोश तुम्हारी तरह घमंडी नहीं है।"
लड़का खड़ा हुआ, उसकी ओर बढ़ा, और बर्फी को वापस लेने के लिए झुका।
"शायद वो तुम्हें समझाने आया था कि गुस्सा कम करो।"
धारणा को अब और चिढ़ होने लगी थी। और अपनी किताबें समेटने लगी। "हुंह!बड़ा आया गुस्सा कम करो वाला...पहले अपनी अकड़ तो देखो! "
" वैसे तुम्हारा नाम क्या है?" लड़के ने अचानक पूछा, और धारणा को एक पल के लिए चुप्प कर दिया।
"क्या?" धारणा ने अचरज से उसे देखा।
"तुम्हारा नाम?" लड़के ने फिर से पूछा।
" मैं तुम्हे अपना नाम क्यों बताऊ?" धारणा ने अपना बैग अपनी कंधे पर लटका लिया और फिर वापस बोली ," मैं तो तुम्हे जानती तक नही हु।"
इतना कहकर वो गेट की जाने लगी, लेकिन जैसे ही उसने एक कदम और बढ़ाया, उसके हाथ में पकड़ी 9वीं कक्षा की गणित की किताब पर लड़के की नज़र पड़ गई। उसने एक पल के लिए उसे देखा, फिर अचानक से मुस्कुरा दिया।
लड़के के अपने चेहरे से मास्क निकाला और धीरे से खुद से ही बोला, " ओह तो तुम भी नाइंथ क्लास में ही हो?"
......क्रमश.....
अगला भाग और भी दिलचस्प होने वाला है! जुड़े रहिए, क्योंकि ये कहानी अभी शुरू ही हुई है...!
2 साल बाद —
एस. डी. विद्यालय — पूरा नाम सरस्वती देवी विद्यालय।
यह एक अनुशासनप्रिय सरकारी स्कूल, जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ अनुशासन और संस्कारों को भी उतनी ही अहमियत दी जाती है।शहर से थोड़ी दूरी पर, हरियाली और ऊँचे वृक्षों से घिरे एक शांत इलाके में बसा यह स्कूल... हर किसी के लिए नहीं, बल्कि उनके लिए है — जिनके सपने तो बड़े होते हैं, पर साधन सीमित।यहाँ एक सुव्यवस्थित हॉस्टल भी है, जहाँ देशभर के अलग-अलग हिस्सों से आए बच्चे रहकर पढ़ाई करते हैं।स्कूल का विशाल परिसर... जिसमें लाइब्रेरी, विज्ञान प्रयोगशाला, खेल मैदान, हॉस्टल विंग और अध्यापकों के लिए आवास भी हैं।यह सिर्फ एक स्कूल नहीं, बल्कि उन अनकही कहानियों का घर है, जो बच्चों के भीतर पल रही होती हैं।
और इसी स्कूल से शुरू होता है एक सफर ... दिल, दोस्ती और दुआ का...धारणा और गौरांग के साथ ।
दो नाम, दो कहानियाँ, और एक ऐसा सफर, जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदलने वाला था।
उनकी मुलाकात कुछ इस तरह से हुई —
धारणा शास्त्री अपना प्रोजेक्ट हाथ में पकड़े खुद से ही बड़बड़ा रही थी, "हे भगवान ! ये कैसा स्कूल है? एक तो यहाँ कोई भी जान-पहचान का नहीं, ऊपर से ये प्रोजेक्ट ! " उसकी आवाज में झल्लाहट थी, पर खुद को ढांढस भी बंधा रही थी, "अरे, सब ठीक हो जाएगा, बस अब इसे टीचर को दे दूँ, और बस…!"
धारणा इस स्कूल में नई थी और हर बात उसके लिए नई-नई सी लग रही थी। वो थोड़ा घबराई हुई थी, दिल में एक अजीब सा डर भी था कि सब ठीक से होगा या न होगा। किसी से जान-पहचान भी नहीं थी कि वो किसी से मदद मांग ले, इसलिए खुद ही सब कुछ संभालने की कोशिश कर रही थी।
जैसे ही धारणा अपने प्रोजेक्ट को संवारने की कोशिश कर रही थी, वैसे ही एक अजीब सी आवाज ने उसे चौंका दिया। उसने सिर उठाया तो देखा कि बास्केटबॉल ग्राउंड के पास कुछ बच्चे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। उन बच्चों के बीच में एक लड़का... कंधे पर बास्केटबॉल लटकाए, ऊँची आवाज में हँसता-खेलता, सबको परेशान कर रहा था।
वो सारे लड़के लगभग 16 साल के लग रहे थे।
धारणा चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई, पर फिर ध्यान अपने प्रोजेक्ट पर गया तो उसने खुद से फिर बड़बड़ाना शुरू कर दिया, "किसी को फर्क नहीं पड़ता... यहाँ सब अपनी ही धुन में हैं। और ये लड़का... हद है, दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने का ऐसा भी कैसा शौक!"
थोड़ा और पास जाने पर उसकी शरारतें और भी साफ-साफ दिखने लगीं। वो हर किसी की गेंद पकड़कर भाग जाता, कभी किसी के पास बॉल फेंक कर उसे डराता, तो कभी दूसरों की बॉल को अपनी ओर घुमाकर सबको परेशान करता। धारणा खुद को तसल्ली दी, "कोई बात नहीं, अपना काम करो और यहाँ से निकलो। किसी बेकार के चक्कर में मत पड़ो।"
लेकिन किस्मत को शायद धारणा का ये शांति भरा फैसला मंजूर नहीं था। जैसे ही वो प्रोजेक्ट लेकर सीढ़ियों से उतरी, अचानक जोर का धक्का लगा, और उसके हाथ से प्रोजेक्ट छूटकर जमीन पर गिर गया। वो घबराई हुई नीचे झुकी, जल्दी-जल्दी पन्नों को समेटने लगी। लेकिन तब तक, उस शरारती लड़के ने अपनी बास्केटबॉल को इतनी जोर से उछाला कि वो सीधे धारणा के प्रोजेक्ट के पन्नों पर जा गिरी।
धारणा दिल की धड़कनें तेज हो गईं। क्योंकि उसकी मेहनत का एक-एक पन्ना तहस-नहस हो चुका था। गुस्से से भरी, वो खड़ी हो गई और उसी लड़के को घूरने लगी।
उस लड़के ने धारणा की ओर देख कर एक शरारती मुस्कान दी, जैसे उसके लिए ये सब कोई बड़ी बात नहीं हो।
धारणा को गुस्से से भरी नजरों से घूरते देख, वह लड़का पहले तो थोड़ा ठिठका, फिर अचानक एक चुलबुली मुस्कान के साथ उसकी तरफ दौड़ता चला आया। उसके बाल माथे पर इस तरह बिखरे हुए थे जैसे किसी कलाकार ने जानबूझकर उन्हें बेतरतीबी से सजाया हो, और चेहरे पर हल्की-सी पसीने की बूंदें चमक रहीं थीं, जो उसकी बास्केटबॉल खेलते हुए लगाई गई मेहनत का सबूत थीं।
उसके गालों पर गुलाबीपन और हल्का पसीना इस बात का एहसास दिला रहे थे कि वह स्कूल में अपने खेल का पूरा मजा ले रहा था। उसकी त्वचा गोरी और चमकदार थी, मानो हल्की धूप में कोई चमकदार पत्थर रखा हो। उसकी आंखें गहरी और चमकीली थीं, जैसे उसमें न जाने कितनी शरारतें और कहानियाँ छिपी हों। उसके होंठों पर खेलती हुई हल्की-सी मुस्कान उसे और भी आकर्षक बना रही थी।
धारणा एक पल के लिए अपना गुस्सा भूल ही गई। उसके सामने एक ऐसा लड़का खड़ा था, जो मासूमियत और शरारत का एक अनोखा संगम लग रहा था।
धारणा की आंखों में गुस्सा था, लेकिन सामने खड़े उस लड़के का बेफ्रिक अंदाज देखकर वह कुछ पल के लिए ठिठक गई। लड़के ने एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, "ओह, मिस! खो गईं क्या मेरी खूबसूरती पर?"
धारणा के चेहरे पर एक पल के लिए अजीब-सी झुंझलाहट और असमंजस का मिश्रण आ गया। वह लड़के की बेहयाई और उसकी अपनी मेहनत बर्बाद होने के ख्याल से तमतमा उठी। उसने गुस्से में तमतमाते हुए कहा, "तुम्हारी खूबसूरती की तो पता नहीं, लेकिन तुम्हारी बेहूदगी जरूर हर किसी को परेशान कर रही है। ये प्रोजेक्ट दो दिन की मेहनत के बाद बनाया था, और तुमने इसे यूं ही बर्बाद कर दिया!"
लड़का उसे यूं घूरते हुए देख मुस्कराते हुए अपनी बास्केटबॉल घुमाते हुए बोला, " कम ऑन , इट्स जस्ट अ प्रॉजेक्ट । तुम फिर बना लेना इसे । वैसे भी इतना क्या टेंशन लेती हो?"
धारणा का गुस्सा अब और ज्यादा उफान पर था। उसकी कड़ी मेहनत का प्रोजेक्ट धूल-मिट्टी में बिखरा पड़ा था और सामने खड़ा ये शरारती लड़का ऐसे मुस्कुरा रहा था जैसे उसने कुछ गलत किया ही न हो। उसकी आँखों में बेफिक्र हंसी और चेहरे पर बेतकल्लुफ़ मुस्कान थी, जैसे किसी ने उसे कुछ कहने की हिम्मत भी कर ली तो वो उसे भी अपनी मुस्कान से हरा देगा।
धारणा ने गहरी सांस ली, जैसे गुस्से को शांत करने की कोशिश कर रही हो। वह थोड़ा करीब आई और लगभग फट पड़ने के अंदाज में बोली, "मुझे बनाने में दो दिन लगे हैं, और तुम्हें मजाक सूझ रहा है?"
लड़के ने कंधे उचकाए और चेहरे पर बेफिक्र मुस्कान रखते हुए बोला, ““चलो, अब तो गुस्सा थूक दो। वैसे भी... इतना गुस्सा करना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। और एक बात बता दूँ—वैसे मिस टेंशन तुम गुस्से में बहुत क्यूट लग रही हो।”
धारणा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने गहरी साँस लेकर खुद को शांत रखने की कोशिश की, पर वो उसकी खिल्ली उड़ाने से बाज नहीं आ रहा था। अब धारणा ने भी ठान लिया कि इसे सबक सिखाना है। उसने तीखी नजरों से उसकी ओर देखा और तीखे लहजे में बोली, "तुम्हें सच में लगा कि ये मजाक था, तो अब मजाक मैं तुम्हारे साथ करूँगी। तुम्हें सिखाना पड़ेगा कि दूसरे की मेहनत की कदर कैसे की जाती है!"
लड़का उसकी ओर देखकर हंसी दबाने की कोशिश करता रहा, लेकिन उसने जब धारणा के चेहरे पर गुस्से की गंभीरता देखी, तो थोड़ा सा घबरा गया।
लड़के ने एक पल के लिए अपनी बास्केटबॉल पकड़ी और उसे घुमाते हुए जवाब दिया, " ये सब छोड़ो मिस टेंशन ये बताओ की नाम क्या है तुम्हारा?"
धारणा ने उसे घूर कर देखा।
धारणा का चेहरा अब गहरे गुलाबी हो चुका था, उसकी आँखों में गुस्से और हैरानी का मिश्रण था। उसने चिढ़ते हुए कहा, "सॉरी बोलने की बजाय नाम पूछ रहे हो तुम, इडियट!"
लड़का एक पल के लिए चुप हो गया, उसने अपना चेहरा थोड़ा आगे किया और धारणा की आंखो में देखते हुए बोला, "ओह हेलो ! मैं कोई सॉरी नही बोलने वाला ...अगर तुम देख कर चलती तो शायद ये तुम्हारा ‘मास्टरपीस प्रोजेक्ट‘ खराब भी नही होता।"
धारणा का गुस्सा अब अपनी सीमा पार कर चुका था।
तभी, बिना कुछ और सोचे-समझे, धारणा ने उस लड़के की बांह पर जोर से थप्पड़ मारा। उसकी आँखों में चिंगारी सी थी, और उसने जो किया वह शायद बिना किसी सोच-समझ के किया था, बस वह यह चाहती थी कि यह लड़का अब समझे।
लड़का थोड़ी देर के लिए चौंका, और फिर उसने अपनी बांह को धीरे-धीरे सहलाया। धारणा की आँखों में जो गुस्सा था, वो उसे साफ नजर आ रहा था, लेकिन वह किसी अजनबी के थप्पड़ से अपनी मुस्कान नहीं छोड़ने वाला था।
लड़के ने अपनी बांह को सहलाने के बाद अचानक अपना चेहरा ऊपर उठाया और खिलखिला कर हंस पड़ा। उसका हंसी में कोई भी पछतावा या शर्मिंदगी नहीं थी, जैसे वह पूरी दुनिया से बेफिक्र था। उसकी हंसी ने जैसे धारणा के गुस्से को और भड़काया। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह लड़का इतना बेपरवाह कैसे हो सकता है, जबकि उसकी मेहनत इतनी बर्बाद हो गई थी।
धारणा की आँखें सिकुड़ गईं, गुस्से और हैरानी से उसका चेहरा और भी कड़ा हो गया। " आर यू क्रेजी !" वह चिढ़ते हुए बोली।
लड़का अब भी हंसते हुए उसकी तरफ बढ़ा। उसकी हंसी इतनी गहरी और हल्की थी कि वह किसी भी सूरत में अपनी गलती स्वीकार नहीं करने वाला था। "क्रेजी .... यस आई एम क्रेज़ी , बट तुम तो मिस टेंशन हो।"
धारणा के गुस्से का स्तर बढ़ने लगा था, लेकिन एक पल के लिए उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसने खुद को शांत करने की कोशिश की, क्योंकि अगर वह और ज्यादा गुस्से में आई तो यह लड़का कभी समझने वाला नहीं था।
तभी किसी ने उस लड़के आवाज दी, "अरे यार, बॉल लेकर आना जल्दी से!"
वह लड़का बास्केटबॉल पकड़ता हुआ एक झटके में मुड़ा और बिना रुके बोला, "ठीक है, मिस टेंशन! बाद में मिलेंगे!"
धारणा की आँखों में गुस्सा था, लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करे। उसके प्रोजेक्ट के पन्ने बिखरे पड़े थे, और लड़का जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो वैसे वहाँ से चला गया था। वो गुस्से से चीखने को तैयार थी, लेकिन फिर उसकी समझ में आया कि शायद गुस्से से कुछ नहीं होने वाला।
वह धीरे-धीरे नीचे झुकी और अपने प्रोजेक्ट के पन्नों को जल्दी-जल्दी समेटने लगी।
धारणा को अपने प्रोजेक्ट की चिंता थी, लेकिन गौरांग की बातें उसके मन में कहीं न कहीं असर छोड़ गई थीं। उसने गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहा, "पता नहीं कहाँ से आ जाते हैं ऐसे बेमतलब के लोग!"
थोड़ी देर बाद....
धारणा पेपर्स को अपनी पकड़ में कसकर लाते हुए तेजी से हॉस्टल के कमरे में घुसी। उसका मन जलते हुए अंगारे की तरह तड़क रहा था, और गुस्से में उसके चेहरे का रंग गहरा हो गया था। वो जैसे कमरे में घुसी, वैसे ही याशी ने अपनी किताबों से सिर उठाया और चहकते हुए पूछा, "क्या हुआ स्वीटहार्ट, लग तो ऐसे रहा है जैसे किसी ने तेरी सारी खुशियाँ चुरा ली हो?"
धारणा बिस्तर पर बैठी, अपना सिर दोनों हाथों में दबाए हुए थी। उसकी आँखों में गुस्से का तूफान था, और वो बार-बार बिखरे हुए पेपर्स को देख रही थी, जैसे ये उसे और ज्यादा उकसाते जा रहे थे।
धारणा अपने गुस्से को अंदर दबाने की कोशिश करते हुए बड़बड़ाई, "क्या बताऊँ तुझे याशु, वो लड़का तो पूरी दुनिया के लिए 'टेंशन फैक्ट्री' बना बैठा है। हद है यार! मैंने दो दिन से मेहनत की थी इस प्रोजेक्ट को बनाने में, और वो... वो तो बस बास्केटबॉल से खेलते-खेलते मुझे और मेरी मेहनत को गंदा कर गया!"
याशी ने उसकी गुस्से से भरी हुई बातें सुनीं, और हल्के से हंसते हुए बोली, " कौन है वो लड़का जो अपनी बास्केटबॉल से तुझे टेंशन दे गया?"
" मुझे क्या पता याशु! मैं थोड़ी जानती यहां किसी को ...अभी अभी ही तो एडमिशन लिया है मैने इस स्कूल में, और वो लड़का... उसने तो मेरी मेहनत का मजाक ही बना दिया!" धारणा ने बेमन से कहा।
याशी अब हंसी रोक नहीं पा रही थी। उसने चिढ़ाते हुए कहा, "ओह, तो ये बात है! नया स्कूल, नया लड़का, और तुझे टेंशन भी नई मिल गई! क्यूट है ना ये तो? "
धारणा ने गुस्से में याशी की तरफ देखा, "तू भी हंसी उड़ा रही है ना, पर यकीन मान याशु, वो लड़का बस... बस अपनी दुनिया में खोया हुआ था! किसी और की मेहनत की कदर ही नहीं करता!" वह थोड़ा चुप हो गई, फिर गहरी सांस ली, जैसे खुद को शांत करने की कोशिश कर रही हो। " तू नहीं समझ सकती , याशी... मैंने दो दिन की मेहनत से ये प्रोजेक्ट तैयार किया था, और वो बस बास्केटबॉल खेलते-खेलते सब खराब कर गया!"
याशी फिर से चुप हो गई। उसने अपनी किताबों से सिर उठाया और धारणा के गुस्से को देखा। फिर हलके से मुस्कुराते हुए बोली, "तुझे पता , तू गुस्से में भी बहुत क्यूट लग रही हैं!"
धारणा ने पलट कर उसे देखा, "तू भी न यार ! पहले तो वो लड़का, और अब तू ! सब के सब मेरा मजाक बना रहे हैं !"
"नहीं, नहीं! मैं तो बस ये कहना चाह रही थी कि गुस्से में तू थोड़ी और ज्यादा प्यारी लग रही है ," याशी ने हंसी दबाते हुए कहा।
धारणा ने एक गहरी सांस ली, फिर अपनी किताबों को व्यवस्थित तरीके से बैग में डालने लगी।
तभी उसकी नजर अपनी डायरी पर पड़ी।
डायरी को उठाते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। उसने डायरी खोली और पहले पन्ने पर उसने एक ड्राइंग देखी जो शायद धारणा ने खुद ही बनाई थी, ये ड्राइंग उसी खरगोश वाले लड़के की थी।
वो लड़का—जिसे उसने सिर्फ एक नजर देखा था—उसका चेहरा अब उसे साफ-साफ याद नहीं था। उसका चेहरा पूरी तरह से धुंधला सा हो गया था, जैसे वो किसी सपने का हिस्सा हो, जिसे आँखों ने एक बार देखा और फिर भूल गया।
आगे क्या होगा जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करते रहिए साथ ही समीक्षा भी करते रहिए।
रात के 8 बजे थे।
मेस में भीड़ उमड़ी हुई थी। हर कोई अपनी भूख मिटाने के लिए खाने की लाइन में खड़ा था। गरमा-गरम खाने की खुशबू पूरे मेस में फैली हुई थी।
याशी और धारणा लड़कियों की लाइन में खड़ी थीं, अपने हाथों में प्लेट पकड़े हुए।
याशी की भूख और लंबी लाइन से खीझ उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी।
"यार, ये लाइन कभी खत्म होगी भी या नहीं?" याशी ने चिड़चिड़े स्वर में कहा।
धारणा, जो अब तक चुपचाप खड़ी थी, अचानक चौकन्नी हो गई। उसकी नजर लड़कों की लाइन की ओर पड़ी, और वहीं उसे वो लड़का दिखाई दिया।
वही लड़का जिसने उसके प्रोजेक्ट पर बास्केटबॉल गिराकर उसे बर्बाद कर दिया था। अभी भी, उसकी हरकतें कुछ कम नहीं थीं। वो लड़का बेधड़क बीच लाइन में घुस गया था, जैसे मैनर्स नाम की चीज उसके लिए बनी ही न हो।
धारणा ने गुस्से में अपनी भौंहें चढ़ाते हुए याशी से कहा,
"याशी, देख वो लड़का ..वो वही लड़का है जिसने मेरी मेहनत को बर्बाद किया था! कितना मैनरलेस है ये ,बिना सोचे-समझे बीच लाइन में घुस रहा है।"
याशी ने हैरानी से पूछा, "कौन? कौन लड़का?"
धारणा ने अपनी प्लेट से इशारा करते हुए कहा, " अरे वो जो लैवेंडर रंग की टी-शर्ट पहने हुए है।"
याशी ने उसकी ओर देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोली,
"अरे! ये तो गौरांग है। तू नहीं जानती इसे? पूरा स्कूल जानता है इसे।और तो और ये इतना फेमस है की स्कूल का बच्चा बच्चा इसे जानता है ।"
धारणा ने नाक सिकोड़ते हुए कहा,
"हां, फेमस होगा। पर मेरे लिए तो ये सबसे बड़ा बद्तमीज़ है।"
याशी ने उसकी बात को हल्के में लेते हुए कहा,
"अरे छोड़ ना, इतनी भी बुरी चीज नहीं है। लोग तो इसे कूल कहते हैं।"
लेकिन धारणा का गुस्सा कम नहीं हो रहा था। वो गौरांग को ऐसे घूर रही थी जैसे उसकी हरकतों का पूरा हिसाब उसी वक्त मेस में करना चाहती हो।
तभी गौरांग ने अचानक पलटकर देखा। उसकी नजरें धारणा की नजरों से टकराईं।
धारणा ने तुरंत अपनी आंखें फेर लीं, लेकिन गौरांग की चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गई। वो जानता था कि उसने उसे परेशान कर दिया है।
मेस में अजीब-सी हलचल थी।
हर कोई अपनी-अपनी प्लेट लेकर खाने के इंतजार में था, लेकिन धारणा के लिए अब यह इंतजार और भी असहनीय हो गया था। गौरांग की हरकतें और उसकी शरारती मुस्कान उसे और परेशान कर रही थीं।
स्कूल का एक सख्त नियम था – लड़कों और लड़कियों को आपस में बात करने की अनुमति नहीं थी। अगर किसी टीचर ने देख लिया, तो सीधे प्रिंसिपल के पास शिकायत होती थी, और फिर उस शिकायत का मतलब था – पूरे स्कूल में बेइज्जती और साथ ही फिर उन बच्चो के पैरेंट्स को भी स्कूल बुलाया जाता था। हालांकि क्लासमेंट्स होने के नाते उनकी बाते होती ही रहती थी। कोई कोई टीचर ये बात समझते थे इसीलिए वो लोग कुछ नही बोलते थे।
याशी ने धारणा को धीरे से कंधे से हिलाया और फुसफुसाई,
"तू उसे इतना घूर क्यों रही है? कहीं किसी टीचर ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी। और वैसे भी, ये गौरांग है, प्रिंसिपल इसका चाचा लगता है और तु उससे उलझी तो मामला बढ़ जाएगा।"
धारणा ने गुस्से में कहा,
"ओह तो इसीलिए ये बीच लाइन में टपक पड़ा है ..मुझे फर्क नहीं पड़ता की ये प्रिंसिपल इसका चाचा लगता है या पापा! इसे तो मैं सबक सिखाकर ही रहूंगी। ये सोचता है कि स्कूल के सारे नियम इसके लिए बने ही नही है?"
याशी ने डरते हुए कहा,
"अरे, पूरी स्कूल के टीचर की नजरो में आना चाहती है क्या? तू अभी नई नई है ना..तुझे सारे रूल्स नही पता है यहां के समझी।"
लेकिन धारणा के गुस्से के आगे याशी की बातें बेमानी लग रही थीं।
धारणा की प्लेट में खाना आ चुका था, और याशी के साथ वो लड़कियों की टेबल पर बैठ गई। हालांकि उसका गुस्सा अब थोड़ा शांत हुआ था, लेकिन गौरांग की शरारती मुस्कान और उसकी हरकतें अब भी उसके दिमाग में घूम रही थीं।
जैसे ही धारणा ने खाने का पहला निवाला लिया, उसकी नजर फिर से काउंटर पर गई। वहां गौरांग फिर से खड़ा था, एक बार फिर प्लेट भरने के लिए।
"ये क्या! अभी-अभी तो अपनी प्लेट भर के ले गया था। ये तो बहुत बड़ा भूक्खड़ निकला!" धारणा धीमे से बड़बड़ाई।
याशी ने उसकी बात सुन ली और हंसते हुए बोली,
"यार ,तू बार बार इतना क्या ध्यान दे रही है उस पर।छोड़ ना उसे।"
धारणा ने याशी की बात पर ध्यान दिया और झेंपते हुए कहा,
"अरे, मैं ध्यान नहीं दे रही! बस उसकी हरकतें इतनी अजीब हैं कि खुद ही नजर चली जा रही है।"
याशी ने हंसते हुए जवाब दिया,
"हाँ, हाँ, मैं समझ रही हूँ। पर तुझे सच में उस पर इतना गुस्सा क्यों आ रहा है? लगता है प्रोजेक्ट वाली बात अभी तक तेरे दिल में अटकी हुई है।"
धारणा ने उसे घूरा और धीरे से कहा,
"याशु अगर तेरा प्रोजेक्ट खराब होता न तो तुझे पता चलता।"
याशी ने धारणा की बात सुनकर अपनी हंसी दबाई और शरारती अंदाज में बोली,
"हाँ, हो सकता है। लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी, तेरा गुस्सा देखने लायक होता है। वैसे, मुझे तो लग रहा है, तू प्रोजेक्ट के बहाने... कुछ और ही सोच रही है।"
धारणा ने चौंकते हुए कहा,
"कुछ और? मतलब? तू कहना क्या चाहती है?"
याशी ने मुस्कुराते हुए उसकी प्लेट से एक निवाला उठाया और बोली,
"अरे, कुछ नहीं। मैं बस इतना कह रही हूँ कि जब किसी से इतनी बार आंखें टकरा जाएं, तो गुस्सा थोड़ा कम और कुछ और ज्यादा हो जाता है। समझी?"
धारणा ने उसकी बात अनसुनी करते हुए गुस्से में कहा,
"याशु, तुझे हर बात में मजाक ही सूझता है न।"
तभी मेस के कोने से जोर-जोर की हंसी की आवाज आई। गौरांग और उसके दोस्त मिलकर कुछ मजाक कर रहे थे।
धारणा ने गहरी सांस लेते हुए कहा,
"देखा, इसे? पूरे मेस में ड्रामा करना जरूरी है क्या?"
याशी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"ड्रामा नहीं, वो बस मस्ती कर रहा है।"
धारणा ने अपनी प्लेट का आखिरी निवाला लिया और दृढ़ता से कहा,
"अब तो इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा। देखते हैं, ये कब तक ऐसी हरकतें करता है।"
याशी ने डरते हुए कहा,
"तू पक्का इस लड़ाई में पड़ने वाली है? धारणा, सोच ले। ये गौरांग है, और पूरे स्कूल का फेवरेट है। अगर तुझसे उलझ गया, तो तेरे लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।"
धारणा ने आत्मविश्वास भरे स्वर में कहा,
"मुसीबत वही खड़ी करता है, जो डरता है। और मैं डरती नहीं। बस, अब तो मैं इसे दिखा दूंगी कि नियम सबके लिए एक जैसे होते हैं।"
याशी ने सिर हिलाते हुए कहा,
"ठीक है, मैडम। लेकिन जब ये प्लान उल्टा पड़ जाए, तो मुझे मत कहना कि मैंने तुझे रोका नहीं था।"
धारणा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"तू देखती जा, अब ये लड़का किसी को परेशान नहीं करेगा। बल्कि अगली बार ये खुद मुझसे बचकर चलेगा।"
हर रिश्ता किसी न किसी मोड़ पर एक लकीर खींचता है। कभी वो लकीर दोस्ती की ओर बढ़ती है, तो कभी अनजाने में प्यार की राह पर चल पड़ती है। लेकिन कुछ रिश्ते, उनकी शुरुआत ही तकरार से होती है। और यही तकरार, पहली सीढ़ी बनती है—दोस्ती की, या फिर कुछ और की।
धारणा आंखों में सवाल थे—"क्यों?"
और गौरांग के होंठों पर मुस्कान थी—"क्यों नहीं?"
कभी-कभी, एक हल्की सी तकरार वो दरवाजा खोल देती है, जहां रिश्ते अपनी सबसे गहरी परिभाषा पाते हैं। और यह लड़ाई, वो पहली सीढ़ी थी। सवाल सिर्फ इतना था—यह रिश्ता कौन सी राह चुनेगा?
......क्रमश.....
आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए और साथ ही समीक्षा भी करें।