यह कहानी है धर्म और प्यार की उस अनोखी टकराहट की, जहाँ दिल के जज़्बात किसी भी सरहद को नहीं मानते। कहते हैं, इश्क़ एक ऐसी आग है जिसमें न धर्म की दीवारें बचती हैं, न जात-पात के बंधन। जब दिल धड़कते हैं, तो सिर्फ़ सच्चा प्यार नज़र आता है — और उसी प्यार के... यह कहानी है धर्म और प्यार की उस अनोखी टकराहट की, जहाँ दिल के जज़्बात किसी भी सरहद को नहीं मानते। कहते हैं, इश्क़ एक ऐसी आग है जिसमें न धर्म की दीवारें बचती हैं, न जात-पात के बंधन। जब दिल धड़कते हैं, तो सिर्फ़ सच्चा प्यार नज़र आता है — और उसी प्यार के लिए भागते हैं दुआ और शिवा। दो धर्मों से आए ये दो दिल एक-दूसरे की धड़कनों में ऐसे उलझे कि समाज, परिवार, परंपरा सब बौने लगने लगे। मगर इस प्यार की राह में सिर्फ़ फूल नहीं, कांटे भी थे। और इन्हीं कांटों की चुभन ने कई ज़िंदगियों को तबाह कर दिया। फिर भी एक चीज़ जो ज़िंदा रही — वो थी इश्क़ की मिसाल। यह कहानी सिर्फ़ दो लोगों के प्यार की नहीं है, बल्कि उस संघर्ष की भी है जो सच्चे प्यार को दुनिया से लड़कर जीता जाता है। उम्मीद है कि यह कहानी आपके दिल को छू जाएगी, और आप इस इश्क़ की मिसाल को उतना ही प्यार देंगे, जितना कि इसने पाने की चाह की। नोट: यह कहानी केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, जाति या समुदाय का विरोध या समर्थन करना नहीं है। इसमें प्रयुक्त सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। यदि किसी को इससे ठेस पहुँचती है, तो हम क्षमा चाहते हैं। कृपया इस कहानी को केवल कहानी की तरह ही लें।
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नोट: यह कहानी बस एंटरटेनमेंट परपज से बनाई गई है। इसका किसी भी प्रकार के रिलिजियस धर्म या किसी भी प्रकार के व्यक्ति के इमोशंस को ठेस पहुंचाना उद्देश्य नहीं है। कृपया आपसे अनुरोध है कि इस कहानी को केवल कहानी की तरह ही लें। अगर आप गलत अर्थ निकालेंगे, तो उसमें आपकी ही अवहेलना होगी।
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कहानी की शुरुआत...!
हैदराबाद, दोपहर के 12:00 बज रहे थे। बाहर खड़के की धूप अपनी चरम सीमा पर थी — मानो धरती भी इतने गुस्से में हो कि आग उगलकर सबको जला देगी। घर के अंदर बैठे कुछ लोग टीवी की ओर ध्यान से देख रहे थे और उस पर आ रही न्यूज़ को सुन रहे थे।
टीवी:
"नमस्कार, आज की ताज़ा खबर — फिर से हिंदू-मुस्लिम के दंगे में कई व्यक्ति घायल हो गए। सरकार का कहना है कि पत्थरबाज़ी उधर से शुरू हुई थी, पर यहां के लोकल लोगों का कहना है कि गलती दोनों की थी। न जाने यह सब क्या हो रहा है! देश किस ओर बढ़ रहा है? हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे से इतना बैर कर बैठे हैं कि अब एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहते। बाजार की दुकानें बंद कर दी गई हैं। लोग सिर्फ अपने धर्म या नाम वालों की दुकानों से ही सामान ले रहे हैं।"
इस न्यूज़ को सुनते ही कुर्सी पर बैठे, लगभग 70 वर्षीय व्यक्ति — जिनके सिर पर बाल नहीं थे और जिनकी लंबी दाढ़ी उनके सीने तक आ रही थी — उन्होंने टीवी को रिमोट से बंद किया और साइड में रखते हुए कहा:
"न जाने यह क्या हो गया है! क्या कर रहे हैं लोग? इन्हें समझ नहीं आता कि हिंदू हमारे लिए दुश्मन हैं। हमें उनसे दूर रहना चाहिए। पर नहीं! इन्हें तो जाकर उन्हीं के पास रहना है। अब खुद सांप के बिल में हाथ डालेंगे तो सांप काटेगा ही ना!"
यह सुनते ही पीछे से आवाज़ आती है:
"अब्बू जान, माफ़ी चाहूंगी। मैं आपसे ज़्यादा समझदार तो नहीं हूं, पर आपको नहीं लगता कि गलती इंसान के अंदर होती है, उनके धर्म में नहीं? लड़ाइयाँ तो हमारे धर्म के लोग आपस में भी करते हैं। तो उस वजह से किसी धर्म को गलत कहना भी सही नहीं है।"
यह सुनकर वह पीछे मुड़कर देखते हैं। दुआ मुस्कुराते हुए चाय लेकर उनके पास आती है। सिर पर दुपट्टा किए, दुआ चाय को टेबल पर रखकर उसमें चीनी उठाकर मिलाते हुए कहती है:
"पापा, वैसे चीनी भी हमें बहुत स्वादिष्ट लगती है। पर अगर इसकी मात्रा ज़्यादा कर दी जाए या इसका हद से ज़्यादा सेवन किया जाए, तो यह हमारे लिए हानिकारक होती है। अब इस चीनी की वजह से हम उसकी फैक्ट्री और गन्ने की खेती को तो नहीं रोक सकते ना? उसी प्रकार, अगर धर्म के कुछ लोग गलत हैं, तो पूरे धर्म को गलत ठहराना भी सही नहीं है।"
यह सुनकर वह बुज़ुर्ग व्यक्ति चुप हो जाते हैं और ग़ुस्से में चिल्लाकर कहते हैं:
"अरे सलमा! कहां रह गई? समझाओ अपनी बेटी को! कितनी दफ़ा कहा है कि बड़ों के बीच में ना बोला करे। बोलना तो ठीक है, अब बहस भी करने लग गई है! 22 की हुई नहीं और जुबान देखो, इतनी तेज़ चलती है! यह कहकर बच्चे को ज़मीन पर फेंक देता हूं!"
चाय की ट्रे के गिरने की आवाज़ से पूरे घर में सन्नाटा छा जाता है। दुआ डरते हुए वहाँ से उठकर भाग जाती है और माँ के पास आकर उनके सीने से लगकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगती है।
दुआ को रोता देख उसकी माँ शांत करते हुए कहती हैं:
"दुआ बेटा, तुम्हें कितनी बार समझाया है कि अपने बाबा से ऐसी बातें मत किया करो। तुम्हें पता है ना उनका स्वभाव! और वैसे भी, उनकी नफरत को तुम कभी प्यार में नहीं बदल पाओगी। वह हमारे पूरे इलाक़े के मौलवी हैं। तुम्हें पता है ना, एक मौलवी का क्या कर्तव्य होता है?"
यह सुनकर दुआ कुछ पल के लिए शांत होती है। तभी पीछे से रूही और समीर भी आ जाते हैं। वह दुआ को रोते देख अपनी माँ की तरफ़ देखते हुए पूछते हैं:
"अब्बू ने फिर से डांटा?"
माँ धीरे से सिर हिलाते हुए कहती हैं:
"हाँ। दुआ, छोड़ो ना इन बातों को। वैसे भी वो सबको डांटते ही रहते हैं। सुनो, कल मंगल बाज़ार चलना है। मेरे लिए कुछ चूड़ियाँ लेनी हैं और मुझे ईद के लिए कुछ पोशाक भी लेनी है।"
रूही की बात सुनकर दुआ मुस्कुराते हुए कहती है:
"हाँ आपी, क्यों नहीं! हम चलेंगे।"
तब तक सलमा जी कहती हैं:
"सुनो, जाते वक्त अकरम और सुहैल को भी साथ ले जाना।"
यह सुनते ही दुआ दाँत पीसते हुए कहती है:
"माँ, नहीं! आपको पता नहीं है — अकरम भाई मुझे अजीब तरीक़े से देखते हैं!"
यह सुनते ही सलमा उसके सिर पर हल्की चपत मारते हुए कहती हैं:
"बेटा, भाई मत बोल! कुछ ही दिनों में तेरी सगाई होने वाली है उससे। और वैसे भी वह तेरे फूफी का लड़का है। तेरे पापा ने अगर उसे तेरे लिए चुना है तो कुछ सोच-समझकर ही चुना होगा ना!"
अपनी मम्मी की बात सुनकर दुआ चिढ़ते हुए कहती है:
"मम्मी, कैसे समझाएं आपको! अकरम भाई सही लड़के नहीं हैं!"
"बेटा, मर्दों का जात ऐसा ही होता है। शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। और वैसे भी कुछ वक्त की ही बात है, फिर तुम दोनों एक रिश्ते में बन जाओगे। अल्लाह पाक पर भरोसा रख, वह कभी गलत नहीं करेंगे।"
दुआ मुँह बनाते हुए वहाँ से चली जाती है। उसके जाते ही सलमा, रूही की तरफ़ देखते हुए कहती हैं:
"सुन, इसको समझा। अकरम ही इसका सब कुछ है!"
रूही मुँह दूसरी तरफ़ घुमा कर चुपचाप वहाँ से चली जाती है।
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अगली सुबह
वे सब मंगल बाज़ार के लिए तैयार थे। अकरम और हैदर पहले से ही बाहर खड़े थे। तभी रूही और दुआ भी बाहर आती हैं। वे गाड़ी में बैठने ही वाली थीं कि अकरम, हैदर की तरफ इशारा करता है। हैदर पीछे बैठते हुए कहता है:
"दुआ, तुम पीछे बैठ जाओ। रूही को आगे बैठने दो।"
दुआ को एक पल के लिए कुछ समझ नहीं आता, पर वह चुपचाप पीछे बैठ जाती है। रूही हैरानी से अकरम की तरफ़ देखकर इशारे में कहती है:
"दुआ को सब पता चल जाएगा...!"
अकरम हुस्न से भरे अंदाज़ में कहता है:
"तो चलने दो! हम क्या उससे डरते हैं...!"
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हैदर उन दोनों को आंखों ही आंखों में इशारा करते हुए, ज़ोर से हंसते हुए कहता है, “अब चलें! हमें मंगल बाजार आज ही पहुंचना है।”
अरमान तुरंत ध्यान देते हुए गाड़ी को बंद करता है और गाड़ी स्टार्ट करके वहां से चला जाता है।
मंगल बाजार के गेट पर पहुंचकर अरमान, हैदर की तरफ इशारा करता है। हैदर, दुआ की तरफ देखते हुए कहता है, “आ जाओ! तुम्हें मैं प्यारी-प्यारी चूड़ियां दिखाता हूं, और मेरे फ्रेंड की दुकान है... तो सस्ते में मिल जाएंगी।”
यह सुनकर दुआ मुस्कुराते हुए कहती है, “हैदर भाई! आप पैसों की चिंता न करें। मैं अब्बू का एटीएम कार्ड लेकर आई हूं। उन्होंने मुझे छूट दे दी है — जितना मन करे, उतना खर्च कर सकती हूं।”
“क्या बात है, भाई! अब्बू जान तुम्हारे ऊपर बहुत मेहरबान हो रहे हैं।”
“अब क्या करें, उनकी लाडली जो हूं!” — यह कहकर दुआ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाती है।
तभी हैदर का एक फोन आता है। यह देखकर वह दुआ की तरफ कहता है, “सुनो, तुम आगे जाकर चौक नंबर दो पर, दुकान नंबर तीन पर चूड़ियां देखना शुरू कर दो। मैं झट से आता हूं।”
“ठीक है भाई, जल्दी करिएगा! मैं चलती हूं।”
दुआ मुस्कुराते हुए तेज़ी से जा रही थी, तभी सामने से आ रहे एक इंसान से टकरा जाती है — और उसके लड़ते ही उस इंसान के हाथ से फूलों की टोकरी छूट जाती है, जिसकी वजह से हवा में चारों तरफ फूल ही फूल बिखर रहे थे... मानो सिनेमा का कोई सीन चल रहा हो।
दुआ उस लड़के के ऊपर, ज़मीन पर गिर जाती है।
उसके चुन्नी से उसका चेहरा ढका हुआ था।
वह लड़का भी दर्द की वजह से चिल्लाकर कहता है — “आह! मेरी कमर...!”
आसपास के लोग दौड़कर आते हैं। वे दुआ को साइड करते हुए उस लड़के को उठाते हैं।
वह लड़का ग़ुस्से में दुआ की तरफ घूरकर देखते हुए कहता है, “अंधी हो? दिखाई नहीं देता? तुम्हारी वजह से पूजा के सारे फूल खराब हो गए!”
दुआ, उसकी बात सुनकर आगे बढ़ती है और दांत पीसते हुए कहती है,
“जब आपका ध्यान कहां था? आप खुद रास्ते पर ध्यान नहीं दे रहे थे! एक तो 6 फुट के इंसान, ऊपर से इतनी बड़ी टोकरी सर पर लाद रखी थी — नीचे का कुछ दिखेगा क्या?”
यह सुनते ही लड़का दांत पीसते हुए कहता है,
“तुमने मुझे छाप दिया? ख़ुद तो 5 फुट की हो और मेरी हाइट का मज़ाक बना रही हो! हा हा हा! आए बड़े!”
“इतनी बड़ी हाइट का क्या? मैं अचार डालूंगी? मुझे बिना सीढ़ी के घर की छत को नहीं छूना है! मेरी हाइट वैसे भी बहुत अच्छी है।”
“सुनिए, आपसे बहस करने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरे फूल के पैसे दीजिए, मैं यहां से चुपचाप जाऊं।”
“कैसे पैसे? और मैं क्यों दूं पैसे? गलती तुम्हारी थी, तुम ही तो टकराई थीं!”
“अच्छा? आई बड़ी! मटक रहे थे, उछलते हुए कौन आ रहा था तुम? गलती तुम्हारी ही थी!”
“अब पैसे दे रही हो या फिर मैं बुलाऊं पुलिस को?”
“बुलाओ! जिसे बुलाना है बुलाओ। देखते हैं क्या कर लोगे!”
“अच्छा! चुपचाप से मेरे पैसे निकालो, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!”
“नहीं निकाल रही! जो करना है, कर लो!”
“अच्छा, ठीक है! नहीं निकालना? रुको, अभी बताता हूं!”
वह लड़का दूसरी तरफ देखता है — वहां पर दुआ का पर्स गिरा हुआ था।
वह उसका पर्स उठाकर उसमें से कुछ पैसे निकाल लेता है।
यह देख कर दुआ चिल्लाते हुए कहती है,
“तुम पागल हो क्या? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे पर्स को हाथ लगाने की!”
वह उसके हाथ से पर्स छीन लेती है, पर तब तक वह लड़का पैसे निकाल चुका था।
वह पैसे गिनते हुए कहता है,
“चलो, बराबर है! अब हटो — रास्ता दो, मुझे जाने दो!”
दुआ, अपना हाथ फैलाकर खड़ी हो जाती है और कहती है,
“ऐसे कैसे जाने दूं? पहले मेरे पैसे लौटाओ, वरना मैं भी चिल्ला के भीड़ इकट्ठा कर लूंगी!”
यह सुनते ही वह लड़का हंसते हुए कहता है,
“मैडम! आप कोशिश कर लीजिए — या का कर? मैं?”
वह दुआ को उठाकर साइड में कर देता है और पैसे गिनते हुए टोकरी उठाकर वहां से चला जाता है।
उसके जाते ही दुआ दांत पीसते हुए कहती है,
“बीएफ में कहीं का! न जाने कहां से आ जाते हैं!”
वह यह कहकर अपने कपड़े साफ कर रही होती है, तभी हैदर दौड़ते हुए वहां आता है —
“क्या हुआ दुआ? तुम ठीक तो हो? तुम्हें लगी तो नहीं?”
दुआ, हैदर की तरफ ग़ुस्से में देखती है —
“अभी को आ रहे हो? इससे पहले कहां थे?”
हैदर, उसकी बात सुनकर सर झुका लेता है —
“पता है, उस लड़के की वजह से कितना परेशान हुए हम! तुम चिंता मत करो, अभी जाकर उसको ठिकाने लगा देता हूं!”
यह कहकर हैदर कुछ कदम आगे बढ़ा ही था, कि तभी एक आदमी कहता है —
“भाव! गलती तुम्हारी छोरी की थी। और वो लड़का यहां के मिनिस्टर का बेटा है! जाकर हाथ लगाने की सोचना भी मत!”
यह सुनते ही हैदर रुक जाता है।
वह वापस मुड़कर दुआ के पास आकर कहता है,
“छोड़ो ना! चलो, हम चलकर शॉपिंग करते हैं। वैसे भी ऐसे लड़कों पर क्या ध्यान देना!”
यह सुनकर दुआ मुस्कुराते हुए कहती है,
“क्या हुआ? डर गए क्या, भैया?”
हैदर लड़खड़ाते हुए कहता है —
“डरे तो मेरे दुश्मन! मैं क्यों डरूंगा भला? अच्छा छोड़िए, चलिए चलकर चूड़ियां खरीदते हैं।”
“पर दीदी और अरमान भाई कहां रह गए? ओह सॉरी, मैं उनको भाई बोल-बोलकर... आदत हो गई है भाई वाली। कल इसीलिए मम्मी ने डांटा था। अरमान जियो! और दीदी कहां रह गई?”
यह सुनते ही हैदर हरकत में आते हुए कहता है,
“फंकी कहीं आते होंगे! तुम चलकर चूड़ियां तो देखो!”
तभी हैदर का ध्यान फिर से अपने फोन की तरफ जाता है।
दुआ, कार की तरफ वापस आने लगती है।
और जैसे ही वह कार के सामने पहुंचती है — सामने का नज़ारा देखकर उसकी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं!
उसके हाथ से उसका पर्स छूट जाता है, और उसकी निगाहें मानो एक जगह थम जाती हैं...
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आख़िर ऐसा क्या देखा था दुआ ने...?
कैसा लगा आपको स्टोरी का दूसरा पार्ट?
कमेंट करके ज़रूर बताइएगा... और हां, रिव्यू देना मत भूलिएगा,
वरना ढेर सारी शिकायतें लगाएंगे आपकी हम! 😉
दुआ, भागते हुए कर के पास आकर दरवाज़े पर ज़ोर-ज़ोर से पीटते हुए कहती है,
"आप लोगों के अंदर शर्म-हया बची है या नहीं? तौबा-तौबा! अल्लाह जाने ये सब देखने से पहले मेरी आंखें अंधी क्यों नहीं हो गईं!"
दुआ की बातें सुनकर अरमान और रूही एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।
वे एक-दूसरे के गले लगाकर, कर में बैठे हुए थे।
रूही, अपने बालों को ठीक करते हुए, अपने हिजाब को ऊपर खींचकर कहती है,
"दुआ, देखो... तुम गलत समझ रही हो। रुको, मैं तुम्हें समझाती हूँ—"
"बस करिए, रूही दी! मुझे कुछ नहीं समझना!"
दुआ बीच में ही काटते हुए बोलती है।
अरमान, दुआ की तरफ देखकर कहता है,
"दुआ... प्लीज़ मेरी बात सुनो! तुम गलत समझ रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है!"
"अरमान जी! समझने को बचा ही क्या है? मैंने सब अपनी आंखों से देखा है!"
दुआ की आंखें अब भीगी हुई थीं।
"आपको ज़रा सा भी अंदाज़ा है? कुछ ही दिनों में हमारी सगाई फिक्स हो गई है!"
अरमान और रूही का उतरा हुआ चेहरा देखकर, दुआ अचानक से ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है।
उसे इस तरह हँसते देख, अरमान रूही की तरफ देखकर घबराता है,
"कहीं इसको सदमा तो नहीं लग गया...? हमें अभी—अभी अस्पताल लेकर चलना चाहिए!"
वह कर से बाहर आता है।
रूही, परेशान होकर, दुआ की हँसी को रोकने की कोशिश करते हुए कहती है,
"दुआ! शांत हो जा! क्या हुआ? क्यों हँस रही है?"
दुआ, अपनी हँसी को रोकते हुए कहती है,
"मज़ा आ गया! आप दोनों का चेहरा देखने लायक था, भाई! इतना डर क्यों गए...? करवा चौथ की तरह लग रहे थे!"
और फिर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगती है।
तभी हैदर भी भागते हुए उनके पास आता है, पर यह सब देखकर दूर से कुछ समझ नहीं पा रहा था।
दुआ, शांत होकर कहती है,
"किसी कैफ़े में बैठकर बात करें।"
दुआ की बात सुनकर हर कोई हाँ में सिर हिलाता है, और चारों लोग एक कैफ़े में चले जाते हैं।
कैफ़े के अंदर, वेटर के साथ बैठकर, सब दुआ को ही देख रहे थे।
दुआ, मजे से कोल्ड कॉफी पी रही थी।
वह कॉफी का एक सिप लेते हुए कहती है,
"देखो भाई, बात ऐसी है कि मैं शादी के लिए तैयार नहीं थी। और... और अरमान भाई मेरे लिए भाई जैसे थे। मैंने उन्हें कभी उस नज़र से देखा ही नहीं था।
इसलिए मैं ख़ुद ही इस शादी को नहीं चाहती थी।
और अल्लाह का रहम देखो — उन्होंने शादी से पहले ही सब बता दिया कि आप दोनों का चक्कर है!"
रूही, दुआ की तरफ घूर कर देख रही थी।
दुआ, फिर से मुस्कुराते हुए कहती है,
"मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी..."
तब तक अरमान कहता है,
"दुआ, मैं और रूही बहुत पहले से एक-दूसरे को चाहते हैं...
पर घरवालों ने मेरी शादी ज़बरदस्ती तुम्हारे साथ तय कर दी थी।
मैंने तो घरवालों को इशारा भी किया था कि सरमद मामू की बेटी से शादी करनी है...
पर उन्होंने तुम्हें समझ लिया और रिश्ता लेकर आ गए!"
रूही, कोल्ड कॉफी साइड में रखते हुए कहती है,
"अच्छा बेटा! इसका मतलब ये है कि वो इशारे... जो आप करते थे,
मुझे लगा आप मुझसे कर रहे हैं!
मैं तो ना जाने आपको क्या-क्या समझ बैठी!
माफ़ी... अरमान भाई, माफ़ी! तौबा-तौबा!
आपको पहले बताना चाहिए था ना!"
अरमान, धीरे से कहता है,
"मैं तुम्हें बताना चाहता था... पर कभी मौका ही नहीं मिला..."
दुआ, मुस्कुराते हुए कहती है,
"चलो, देर आए... दुरुस्त आए! अब ये बताइए कि आगे क्या करना है?
कल हमारी इंगेजमेंट है... और किसी भी हालत में, कल से पहले ये सारी चीजें सुलझानी पड़ेंगी!"
अरमान, माथा पकड़ लेता है,
"यही तो मुझे भी नहीं समझ आ रहा!"
रूही, परेशान होकर कहती है,
"तुझे पता है अब्बू का ग़ुस्सा... ऊपर से उनका मौलवी होना!
पूरे समाज में नाक कट जाएगी!
वो कभी भी मेरे और अरमान के रिश्ते के लिए हाँ नहीं करेंगे!"
दुआ, तिरछी निगाहों से दोनों की तरफ देखते हुए कहती है,
"मेरे रहते हुए आप लोग परेशान क्यों होते हैं?
इस 'प्रेमी परिंदे' को मिलाने की ज़िम्मेदारी मेरी है!
बस... आप लोग मेरा साथ दीजिए। मेरे पास एक प्लान है!"
यह सुनकर हर कोई रूही की तरफ देखने लगता है।
रूही, मुस्कुराते हुए हैदर और अरमान की तरफ देखती है,
"तुम दोनों के पास कुछ है तो बताओ, वरना चुपचाप दुआ की बातें सुनो।
दुआ पहले ही बचकानी है, पर इसके आइडिया... हमेशा बड़े वाले होते हैं!"
अपनी तारीफ सुनकर दुआ, मुस्कुराते हुए कहती है,
"हाँ, पर एक शर्त है... वलीमे के सारे पैसे मेरे होंगे!
क्या? हाँ भाई! तुम दोनों की शादी करवा रही हूँ — इतना तो बनता है!"
"देखिए अरमान भाई, आपको बस कुछ नहीं करना है।
कल सुबह जैसा मैं बोलूं, वैसा करते जाइए।
यक़ीन मानिए, अब्बू जान खुद आपकी शादी रूही से करेंगे!"
"अच्छा? ऐसा क्या?"
"हाँ! बस एक काम करिए — आप उसे लेकर आज शाम हमारे यहाँ खाने पर आ जाइए!"
अरमान, अपनी निगाहें घुमा कर रूही की तरफ देखता है।
रूही, अरमान को समझाते हुए कहती है,
**"हाँ... जैसा कह रही है, वैसा करो।"
यह कहकर सब घर की तरफ निकल जाते हैं।
रास्ते में, गाड़ी में बैठी दुआ की खुशी का तो मानो ठिकाना ही नहीं था।
वो उछलती-कूदती, झूम रही थी।
उसे ऐसे देखकर हैदर कहता है,
"रुक जा मेरी मां! शादी अभी टूटी नहीं है... इतना खुश नहीं होते!"
रूही, हैदर के सिर पर टपली मारते हुए कहती है,
"Be positive! टूटी नहीं है... तो तुड़वा देंगे! Thanks to दुआ! This girl... why you are in fear, dear!"
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आख़िर क्या चल रहा था दुआ के मन में...?
क्या दुआ अपने प्लान में कामयाब हो पाएगी...?
सस्पेंस अभी बाकी है...