एक 100 साल पुरानी हवेली,जहां अंधेरा होने के बाद परिंदा भी नहीं जाता,कहा जाता है की उस हवेली में एक कमरा है जो हमेशा से बंद पड़ा है,और सारा रहस्य उसी बंद पड़े कमरे के पीछे छुपा है,,,, आख़िर क्या है उस हवेली का इतिहास…? और क्या है उस बंद कमरे में…... एक 100 साल पुरानी हवेली,जहां अंधेरा होने के बाद परिंदा भी नहीं जाता,कहा जाता है की उस हवेली में एक कमरा है जो हमेशा से बंद पड़ा है,और सारा रहस्य उसी बंद पड़े कमरे के पीछे छुपा है,,,, आख़िर क्या है उस हवेली का इतिहास…? और क्या है उस बंद कमरे में… जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी और अपनी समीक्षा देना न भूलें,और किस प्रकार की कहानियां आपको पसंद हैं वो भी बताएं,और नेक्स्ट स्टोरी किस विषय पर लिखूं ये भी बताइएगा और मुझे फॉलो करना ना भूलें,और जैसा की आप जानते हैं,पहली बार लिख रहा हूं कहानी तो सपोर्ट अवश्य करें
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कहानी: "वो पुराना हवेली वाला कमरा"
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1. आगमन
रवि को गांव आए हुए तीन दिन ही हुए थे। शहर की भाग-दौड़ से तंग आकर वह अपने ननिहाल, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव “धनापुर” आ गया था। नानी अब इस दुनिया में नहीं थीं, लेकिन उनकी हवेली अभी भी वैसी की वैसी खड़ी थी — समय के थपेड़ों से थोड़ी झुकी हुई, पर अब भी भव्य और रहस्यमयी। अंधेरा होने के पश्चात वहां कोई गलती से भी नहीं जाता। और अगर कोई गलती से चला जाता है तो कभी वापस नहीं आता,गांव वालों का यही कहना है,और इसीलिए कोई अब वहां नहीं जाता
लोग कहते हैं की उस हवेली में एक आत्म रहती है,जो वहां से गुजरने वालों को अपने जाल में फंसा कर,हवेली में बुलाती है,और रात को उस हवेली से अजीब अजीब आवाजें आती हैं।कभी रोने की आवाजें कभी हंसने की तो कभी दर्द भरी
उस हवेली के एक कमरे के बारे में गांव वाले कहते थे कि वहां कोई नहीं जाता। नानी उसे हमेशा बंद रखती थीं। गांव वाले उसे "ऊपरी कमरा" कहते थे।
रवि ने नानी की बातों में कभी यकीन नहीं किया था।
क्योंकि वो शहर से आया था,और शहर के लोग पढ़े लिखे होते हैं और ये सब उन्हें,बस मूर्खता ही लगती है
""लेकिन वो कहते हैं ना की डर अच्छा होता है कभी कभी"
लेकिन रवि को इन सब बातों पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं था,,,,,उसने बहुत बार वहां जाने की कोशिश भी की,,,लेकिन हर बार नानी ने उसे रोक दिया,लेकिन वो मन ही मन ठान चुका था की,,,चाहे कुछ भी हो’में वहां जा के ज़रूर देखूंगा,और वो हमेशा
उस कमरे की ओर उसका ध्यान बार-बार जा रहा था। जैसे कोई उसे बुला रहा हो।
उस कमरे में एक आकर्षण था,,जो रवि को अपनी ओर खींचता था
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2. दरवाज़ा जो खुद खुला
एक रात, बिजली चली गई। हवेली में सिर्फ मोमबत्ती की रोशनी थी। रवि छत पर लेटा हुआ था जब उसे नीचे से "किर्र्र्र..." जैसी आवाज़ आई — जैसे कोई जंग लगा दरवाज़ा खुला हो।,,,,,
वह उठा और धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे गया। मोमबत्ती की लौ हल्के-हल्के कांप रही थी। जब वह हॉल में पहुँचा, तो देखा — ऊपरी कमरा, जो सालों से बंद था, अब थोड़ा सा खुला हुआ था। दरवाज़ा काफ़ी खस्ता हालत में था जैसे सदियों से बंद हो
उसका गला सूख गया। उसने सोचा शायद हवा से खुल गया हो। लेकिन तब उसे एक धीमी सी कानाफूसी सुनाई दी।
"रव... रवी..."
उसने दरवाज़ा और खोल दिया। कमरे के अंदर घना अंधेरा था, लेकिन कुछ था वहाँ। ठंडक, जो हड्डियों तक उतरती थी।
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3. वो आईना
कमरे में ज़्यादा कुछ नहीं था — एक पुराना पलंग, दीमक लगे लकड़ी की अलमारी, और एक लंबा आईना। आईना धूल से ढंका था। रवि ने धीरे से कपड़ा लिया और आईने को साफ किया।
जैसे ही उसने आईने पर हाथ फेरा, उसे झटका सा लगा।
आईने में उसने खुद को देखा, लेकिन उसके पीछे कोई खड़ा था — एक औरत, झुकी हुई, लंबे उलझे बाल, सफेद साड़ी, और काली आंखें जो सीधे उसे देख रही थीं।
रवि पलटा — वहाँ कोई नहीं था।
वह डर से काँप उठा और कमरे से बाहर भागा। लेकिन जैसे ही उसने दरवाज़ा बंद करना चाहा, दरवाज़ा बंद नहीं हुआ।
कमरा... उसे पकड़ चुका था।
4. पुरानी डायरी
अगली सुबह, रवि को वह रात एक बुरा सपना लगी। लेकिन जब वह फिर से कमरे में गया, तो देखा — अलमारी में एक पुरानी, फटी-फटी डायरी रखी थी।
डायरी किसी "सावित्री देवी" की थी। उसमें लिखा था:
> “10 जुलाई, 1965 – मैंने आज फिर उस बच्चे की परछाई देखी। डॉक्टर कहते हैं मेरा दिमाग खराब हो रहा है। लेकिन वो यहाँ है... उसी आईने में।
17 अगस्त – मैं अकेली नहीं हूँ। वो औरत हर रात मेरे सपनों में आती है। कहती है, ये उसका घर है।
5 सितंबर – मुझे कोई रोक रहा है लिखने से... अब मैं बस एक चीज़ कहूँगी: जो भी ये पढ़े — आईने को मत देखना।”
रवि ने डरते-डरते आईने की ओर देखा। आईने में इस बार उसका चेहरा साफ नहीं दिखा — बल्कि उसकी आंखें काली और गहरी थीं, जैसे वो कोई और था।
अगली सुबह गांववालों ने मिलकर पास के शहर से एक तांत्रिक को बुलाया। तांत्रिक ने हवेली का चक्कर लगाया और बोला:
> “ये केवल आत्मा नहीं है। ये ‘दर्पण-बंधन’ है। आईने में आत्मा नहीं फंसी, आत्मा ने आईने को बंधन बना लिया है। जो भी उसे देखेगा, वो उसका रास्ता बन जाएगा।”
तांत्रिक ने उस कमरे को बंद करने का अनुष्ठान शुरू किया, लेकिन तभी आईना कांपने लगा। हवा तेज़ हो गई, और रवि की चीख हवेली के कोनों में गूंजने लगी।
“उसे मत ले जाओ! ये अब मेरा घर है!!”
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5. कब्ज़ा
उस रात रवि को भयानक सपना आया। उसने देखा कि वह कमरे में बंधा है, और वही औरत — अब पास आकर उसके चेहरे को छू रही थी। उसके होंठों से खून टपक रहा था। उसने फुसफुसाकर कहा:
"अब तू मेरा है..."
अगली सुबह, रवि बदला-बदला सा था। गांव वालों ने देखा कि वह अब लोगों से बात नहीं करता, हमेशा उसी कमरे में रहता है, और उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक है।
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6. आख़िरी पन्ना
डायरी के आख़िरी पन्ने पर लिखा था:
> “मैं अब ज़िंदा नहीं हूँ। लेकिन मैं उस कमरे में बंद हूँ, उस आईने में। जो भी इस कमरे में आएगा — मैं उसे देख लूंगी, और वह मुझे।
बाहर से सब सामान्य दिखेगा, लेकिन अंदर... मैं उसके ज़हन में बस जाऊंगी।”
– सावित्री देवी, 1965
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7. वर्तमान
अब हवेली फिर से बंद है। गांव वाले वहां नहीं जाते। कई सालों से कोई भी उस घर में टिक नहीं पाया।
लेकिन एक नया किरायेदार आया है — एक यूट्यूबर, जो “हॉरर एक्सप्लोरेशन” करता है। वह कहता है:
> “मैं उस कमरे की सच्चाई रिकॉर्ड करूँगा।”
और जब वह कैमरे के सामने आईने के पास खड़ा होता है, तो स्क्रीन पर हलचल होती है। कुछ पल को वीडियो में दो परछाइयाँ दिखती हैं। फिर कैमरा बंद।
वीडियो का टाइटल है:
"मैं अब अकेला नहीं हूँ..."
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समाप्त
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