इम्तिहान किस हद तक होते है ये तो वहीं जानते है जिनके हिस्से में "मोहब्बत ए इम्तिहान"आते है,जो आसान तो बिल्कुल नहीं होते,इतनी मुश्किलें आती है जान पर बन आती है पर जान नहीं जाती,सारी हदें पार हो जाती है,कुछ भी समझ नहीं आता है,किस्मत भी ऐसी जगह... इम्तिहान किस हद तक होते है ये तो वहीं जानते है जिनके हिस्से में "मोहब्बत ए इम्तिहान"आते है,जो आसान तो बिल्कुल नहीं होते,इतनी मुश्किलें आती है जान पर बन आती है पर जान नहीं जाती,सारी हदें पार हो जाती है,कुछ भी समझ नहीं आता है,किस्मत भी ऐसी जगह लाकर खड़ा कर देती है पीछे जा नहीं सकते और आगे बढ़ा नहीं जाता है,आप भी जानना चाहेगें "मोहब्बत ए इम्तिहानों" की दास्तां और क्या अंजाम निकला उन इम्तिहानों का?तो चलिए आईए पढ़िए कैसी मोहब्बत है एक ऐसी कहानी जो आपको हर कदम पर हर मोड़ पर अहसास दिलाएगी मोहब्बत क्या होती है,सच्ची मोहब्बत क्या होती है!
आद्विक चौहान
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श्री ठाकुर
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चौहान हाऊस, दिल्ली
"आज तो बहुत थक गई, सुमो मेरे लिए जल्दी पानी लेकर आ?" किट्टी पार्टी से घर आते ही नंदिनी जी ने सुमो (जो कि एक मेड थी) को आवाज़ दी।
सुमो उनके लिए पानी ले आई। "लो मैडम, ठंडा पानी। आपके लिए शरबत भी बना दूँ?" सुमो नंदिनी जी को पानी देते हुए बोली।
तभी मिस्टर चौहान, यानी आनंद जी वहाँ आ गए। "हाँ हाँ, बना दो। तुम देख नहीं रही हो तुम्हारी मैडम कितनी थकी हुई है?" सुमो से बोलते हुए आनंद जी नंदिनी जी के बगल में सोफे पर आ बैठे। "क्या ज़रूरत है इतनी गर्मी में इन किट्टी-विट्टी में जाने की..." वो बात पूरी कर पाते, उससे पहले नंदिनी जी ने उनकी बात काट दी।
"देखो जी, आपको कितनी बार कहा है मैंने, मेरी किट्टी पार्टी के बारे में कुछ ना कहा करो?"
आनंद जी- "अरे, धर्मपत्नी जी, हम तो आपको, आपके आराम के बारे में कह रहे हैं। छोड़ो आप भी, कौन सा मेरी सुनेगी वो भी इस मामले में!"
नंदिनी जी ने उनको घूरा। "हाँ, नहीं सुनूँगी!" बोलकर पानी पीकर गिलास सुमो को थमा दिया।
आनंद जी- "मत सुनो, पर सुना तो दो। चलो, बताओ आज की अपडेट? क्या खास हुआ आज आपकी किट्टी पार्टी में?"
(दरअसल, सबको आदत हो चुकी थी मिसेज़ नंदिनी चौहान के किट्टी पार्टी से घर आते ही उनसे गपशप सुनने की। अगर कोई नहीं भी सुनता, तब भी नंदिनी जी सबको पास बिठाकर अपनी किट्टी पार्टी के सारे किस्से सुना ही देती थी!)
सुमो भी बोल पड़ी। "हाँ मैडम, जल्दी-जल्दी बताओ?"
नंदिनी जी- "अरे, तू अभी यहीं खड़ी है? जा, ठंडा शरबत लेकर आ मेरे लिए। (आनंद जी की ओर देखकर) साँस तो लेने दो मुझे, अभी-अभी तो आई हूँ बस, सबको बातें ही चाहिए?" बोलकर वो अपना फ़ोन देखने लगीं।
आनंद जी- "हाँ भई, ठंडा शरबत लाओ जल्दी से, नहीं तो और गर्मी हो जाएगी। वैसे भी गर्मी बहुत है। (हँसते हुए) मेरे भी ले आना?"
सुमो- "अभी लाई साहब!" सुमो वहाँ से चली गई और आनंद जी ने टेबल से न्यूज़पेपर उठा लिया।
नंदिनी जी- "हँस लो, हँस लो, आपको बड़ी हँसी आ रही है?"
आनंद जी- "कहाँ हँस रहा हूँ मैं? तो चुपचाप न्यूज़पेपर पढ़ रहा हूँ!"
नंदिनी जी उनके हाथ से न्यूज़पेपर छीन लिया। "सब पता है मुझे..."
सुमो- "लीजिए मैडम, लीजिए साहब, बर्फ डालकर ठंडा-ठंडा शरबत बनाकर लाई हूँ। आराम से पीजिए और फिर आज क्या हुआ वो हमें बताइएगा?"
नंदिनी जी- "सच में सुमो, एक तू ही है जिसे मेरी फ़िक्र है, नहीं तो इन्हें देखो, जब देखो मुझ पर हँसते रहते हैं!"
आनंद जी- "मैं आप पर नहीं हँसता और ना ही कभी हँसूँगा। चलिए, फ़टाफ़ट सुनाइए जो हम सुनना चाहते हैं। सुमो से पूछो तो नंदिनी, मैं हमेशा इंतज़ार करता हूँ आपकी सुनने के लिए। क्यों सुमो, बताओ ज़रा अपनी मैडम को?"
सुमो- "सच कह रहे हैं साहब, अब बता भी दो मैडम?"
नंदिनी जी- "क्या बताऊँ सुमो? मैं तो किट्टी इसलिए जाती हूँ ताकि मेरे बेटे के लिए एक अच्छी सी लड़की ढूँढ सकूँ, जो लाखों में एक हो। पता है, आज मुझे पार्टी में मिसेज़ कौशिक मिली थीं, वो मुझे अपनी भांजी के बारे में बता रही थीं। कह रही थीं, बहुत सुंदर है और बहुत पढ़ी-लिखी भी है!"
आनंद जी- "ये तो अच्छी बात है, फिर आप परेशान क्यों लग रही हैं?"
सुमो- "हाँ मैडम, क्या पता इस बार ये वाली लड़की बड़े भैया के लिए परफेक्ट हो, जैसी आपको चाहिए वैसी हो?"
नंदिनी जी अपने फ़ोन की ओर देखते हुए बोलीं- "वो फ़ोटो तो भेजे, कह रही थीं कि जाते ही भेज देंगी, अभी तक सेंड नहीं की है पता नहीं। किसी को समय की कदर क्यों नहीं है? एक मेरा बेटा है जिसकी शादी की उम्र बीत रही है, पर उसे कोई परवाह नहीं है!"
आनंद जी- "कौन सा बूढ़ा हो गया है हमारा बेटा? और रही बात फ़ोटो की तो वो आ जाएगी। जिस तरह से आप अपने बेटे की दुल्हन ढूँढने के मिशन पर लगी हुई हो, देखना हमारा बेटा घोड़ी चढ़कर ही रहेगा!"
इस बात पर आनंद जी और सुमो दोनों हँस पड़े। उन्हें हँसता देख नंदिनी जी भी मुस्कुरा दीं। फिर से उनकी इंतज़ार भरी निगाहें उनके फ़ोन पर जा ठहरीं, इस उम्मीद के साथ कि इस बार वो हो जाए जिसकी उम्मीद अक्सर वो लगाए रहती थीं।
रात के आठ बजे
सुमो आवाज़ लगाती है- "साहब जी, मैडम जी, खाना लगा रही हूँ मैं, आप दोनों आ जाइए?" आनंद जी और नंदिनी जी डाइनिंग टेबल पर आ बैठे। सुमो दोनों को खाना सर्व करती है।
नंदिनी जी सुमो से- "अकू कहाँ है?"
आनंद जी- "कहाँ हो सकता है इतनी रात को, आपका लाडला?"
"क्लब से अभी तक नहीं आया है। इसकी मटरगश्ती कब कम होगी, समझ नहीं आती है।" नंदिनी जी बोलीं।
सुमो- "मुझे तो लगता है मैडम, कभी नहीं। भैया बहुत खुश होते हैं क्लब जाकर। आज तो वो बोलकर गए थे, 'मॉम को कहना देना, थोड़ा लेट आऊँगा!' "
ये सुन नंदिनी जी आनंद जी की तरफ़ देखती हैं। "उसे आप कुछ समझाते क्यों नहीं?"
"लाडला तो आपका है, आप ही समझाइए। मैं जब भी कुछ कहता हूँ तो आप ही तो कहती हैं, 'यही तो उम्र है मेरे बच्चे की, मस्ती करने की। टोका-टाकी मत कीजिए, खुश रहने दीजिए। एग्ज़ाम आने वाले हैं उसके, पता ही नहीं कौन से झंडे गाड़ेगा जनाब!'"
"तो क्या हुआ? दिन में कॉलेज जाता है ना, पढ़ाई भी तो करता है। और हाँ, मैं समझा दूँगी और देखना आप कितने अच्छे नंबर लाएगा मेरा अकू, क्यों सुमो?"
"जी मैडम!"
"और हाँ, बादाम भिगो देना, अच्छे होते हैं पढ़ाई के लिए!"
"लो हम तो कुछ नहीं कह सकते हैं। और हाँ, खिलाओ-खिलाओ बादाम, कुछ अच्छा हो तो?" कहकर आनंद जी उठकर अपने कमरे में चले जाते हैं।
तभी नंदिनी जी का फ़ोन बजता है। "लगता है फ़ोटो आ गई, जल्दी फ़ोन ला सुमो?" नंदिनी जी बोलती हैं।
सुमो दौड़कर फ़ोन लाती है। "'डाऊनलोड हो जा', बड़ी बेसब्री दिखाती है फ़ोटो को देखने के लिए।" नंदिनी जी और सुमो की निगाह भी फ़ोन पर होती है।
"हो गई डाऊनलोड," पर जितनी खुशी नंदिनी जी के चेहरे पर दिख रही थी फ़ोटो देखने से पहले, वो फ़ोटो देखते ही गायब हो गई!
सुमो गन्दा सा मुँह बनाते हुए- "ये लड़की?"
नंदिनी जी फ़ोन को बंद करके टेबल पर रख देती हैं। "क्या-क्या कह रही थी मिसेज़ कौशिक? ये तो मेरा बेटा देखेगा भी नहीं, ऐसे शॉर्ट कपड़े पहनने वाली तो कभी नहीं पसंद करेगा!"
"लो मैडम, अच्छी-अच्छी लड़कियों के साथ एक और नापसंद में शामिल हो गई। एक बात तो बताइए मैडम, आजकल आप बड़े भैया को तो दिखाती भी नहीं कोई फ़ोटो, मैं कुछ दिनों से देख रही हूँ आपको, अगर कोई लड़की अच्छी नहीं लगती तो आप दूसरी लड़की ढूँढने लग जाती हैं, ऐसा क्यों?"
"तू जानती तो है सुमो, वो रिश्तों की बात से कितना चिढ़ता है। मैंने उसे कितनी अच्छी-अच्छी लड़कियों की फ़ोटो दिखाई है, सबको बिना देखे रिजेक्ट कर दिया उसने। इसलिए अब सोच रही हूँ, पाँच-छः बहुत अच्छी लड़कियाँ ढूँढ लूँ और फिर उसको दिखाऊँगी और उनमें से किसी एक से उसकी शादी करवा दूँगी, उनमें से किसी के लिए तो हाँ बोलेगा ही ना!"
"ये अच्छा प्लान है मैडम, बस माता रानी करें, कोई एक उन्हें पसंद आ जाएँ और वो मान जाएँ। आप भी खुश और भैया की ज़िन्दगी भी खुशियों से भर जाएगी!"
"सुमो, तेरे मुँह में घी-शक्कर!" कहते हुए नंदिनी जी चेयर से उठ गईं। "चलो, मैं उन्हें (आनंद जी) देखती हूँ, खाने से उठकर चले गए। तू भी खाना खा ले और जब अकू आ जाए तो उससे भी खाने का पूछ लेना?"
"जी मैडम!" सुमो बोली और नंदिनी जी वहाँ से चली गईं।
अकू, यानी अक्षय चौहान की क्लब में अपने दोस्तों के साथ फ़ुल मस्ती चल रही थी। वो अपनी गर्लफ़्रेंड मोली के साथ डांस करता है, तो उसका दोस्त शिवम उससे पूछता है- "यार, तेरी गर्लफ़्रेंड तो बहुत अच्छी है, कैसे बनाई? हमें भी दे दो भाई कोई टिप्स?"
अक्षय हँस दिया। "क्या बोल रहा है यार? दोस्त है मेरी। और हाँ, लड़कियों की रिस्पेक्ट करना सीखो, जो वो हमेशा आप पर विश्वास करे और हाँ, उनका विश्वास कभी मत तोड़ो!"
शिवम- "कहाँ से सीखी है ये बातें भाई तुमने?"
अक्षय- "पहले ये बता, सही कही ना?"
शिवम- "हाँ हाँ, एकदम सही!"
"तभी तो मैं इसकी दोस्त हूँ, अक्षय सच्ची में बहुत अच्छा है!" मोली ने मुस्कुराते हुए अक्षय का गाल खींच लिया।
"ये सब बातें मुझे मेरे बड़े भाई ने सिखाई थीं बचपन में, जब वो बड़े थे और मैं छोटा था!" कहते हुए अक्षय हँस दिया।
शिवम- "तू हमेशा उनकी बात करता है, कभी मिलवा भी दे यार, हम भी तो मिले तुम्हारे बड़े भैया से?"
मोली- "हाँ, मैं तो उनसे बिना मिले ही दीवानी हो गई हूँ, मिलूँगी तो पता नहीं कैसे संभालूँगी खुद को। इतनी तारीफ़ करते हो अक्षय तुम अपने बड़े भाई की, जैसे वो कोई राजकुमार हो?"
अक्षय मोली के कंधे पर बाँह डालते हुए- "इसलिए तो मैं नहीं मिलवाता उन्हें तुझसे, कहीं पागल-वागल हो गई तो? वैसे भी आधी पागल तो पहले ही हो?"
इस बात पर अक्षय और शिवम दोनों हँसने लगे और मोली ने मुँह फुला लिया। ये देख अक्षय उससे प्यार से बोला- "जान, गुस्सा मत हुआ करो यार, मिलवा दूँगा और डोंट वरी, मैं तुम्हें संभाल लूँगा!"
ये सुन मोली मुस्कुरा दी और उसके सीने से लग गई। तभी शिवम अक्षय की ओर एक गिलास बढ़ाता है- "ले भाई, एक पैग लगा ले?"
अक्षय- "तू जानता है ना, मैं नहीं पीता?"
मोली- "पहला ऐसा लड़का होगा तू अक्षय, जो क्लब में आकर भी नहीं पीता है?"
"एक में क्या होता है यार, पी ले?" शिवम फिर अक्षय से बोलता है। अक्षय उसके आगे उसी पल हाथ जोड़ लेता है- "ना भाई, एक हो या दो, नहीं तो नहीं। और वैसे भी (मोली के सिर से अपना सिर टकराते हुए) तुम्हारे होते हुए मुझे किसी और नशे की क्या ज़रूरत है?"
ये सुनकर मोली हँस दी। "अच्छा जनाब?" "हम्म," कहते हुए अक्षय ने एक बार फिर मोली के सिर से अपने सिर को टकरा लिया।
थोड़ी देर बाद
"चलो भाई, मैं तो चला घर, बारह बज गए हैं और लेट हुआ तो डैड गुस्सा होंगे?" अक्षय शिवम के गले लगते हुए बोला।
मोली- "मैं भी चलती हूँ साथ, मुझे भी घर छोड़ देना?"
अक्षय- "हाँ, चलो। बाय शिवम, कल कॉलेज में मिलते हैं।" कहकर अक्षय और मोली वहाँ से चले जाते हैं।
अगली सुबह
सुबह नाश्ते के टाइम आनंद जी इधर-उधर देखते हुए सुमो से पूछते हैं- "अक्षय कहाँ है?"
सुमो ऊपर की ओर देखते हुए- "वो साहब..." कि तभी अक्षय ऊपर से भागता हुआ आता है- "गुड मॉर्निंग डैड, गुड मॉर्निंग मॉम, सुमो दीदी गुड मॉर्निंग?"
नंदिनी जी अक्षय को गले लगाती हुईं, उसका गाल चूमती हैं। "गुड मॉर्निंग बेटा!"
आनंद जी- "बड़े जल्दी उठ गए जनाब?"
अक्षय- "अर्ली टू बेड, अर्ली टू राइज़ डैड!"
"आप ऐसे ही डाँटते हो इसे, कितना समझदार है मेरा अकू!"
"मॉम, नॉट अकू, प्लीज़," अक्षय मुँह बनाते हुए बोला। तो इस बात पर नंदिनी जी और सुमो दोनों हँसने लगीं। तभी, "ओह, अर्ली टू बेड, अर्ली टू राइज़। वैसे अर्ली टू बेड होता भी है क्या? मुझे तो समझ ही नहीं आता है, ये लेट सोकर भी जल्दी कैसे उठ जाता है?" अक्षय की ओर देखते हुए आनंद जी बोले।
"डैड, मैं जल्दी आ गया था, पूछ लो सुमो दीदी से। हाँ, वो बात अलग है कि कभी-कभी लेट हो जाता हूँ, पर देखो, कॉलेज टाइम से जा रहा हूँ।"
"कॉलेज तो ठीक है, पर पढ़ाई भी टाइम से किया करो। अच्छे मार्क्स नहीं आए तुम्हारे तो तुम जानते हो ना क्या होगा?"
"अब बस भी करो, बहुत क्लास ले ली मेरे बेटे की। जा अकू, कॉलेज जा (डाइनिंग टेबल से उठते हुए)। मैं भी जाती (अपना बैग उठाते हुए) हूँ।" नंदिनी जी बोलीं।
"ओके बाय मॉम," और धीरे से गले लगते वक़्त, "थैंक्यू मॉम, डैड से बचाने के लिए," कहकर अक्षय कॉलेज चला जाता है और नंदिनी जी भी अपनी किट्टी पार्टी के लिए निकल जाती हैं।
"सुमो, ध्यान रखना, मुझे कुछ ज़रूरी काम है, थोड़ी देर में आ जाऊँगा," बोलकर आनंद जी भी घर से चले गए और सबके जाते ही दरवाज़ा बंद करके सुमो भी अपने काम लग गई।
"क्या हुआ? फ़ोटो देखी ना मेरी भांजी की?" मिसेज़ कौशिक नंदिनी जी से बोली।
"हाँ, देखी, अच्छे से देखी। वैसे मिसेज़ कौशिक, तुम्हारी ये आदत कब जाएगी बढ़ा-चढ़ाकर बातें करने की?" जैसे ही नंदिनी जी ने ये कहा, सभी किट्टी मेंबर हँस पड़ीं और एक साथ बोलीं- "कभी नहीं!"
ये देख मिसेज़ कौशिक मुँह बनाती है- "अब पसंद ना आए तो मैं क्या करूँ? वैसे मेरी भांजी में कोई कमी नहीं है!"
"माना कमी नहीं है और किसी में कमी होती भी नहीं है, पर नंदिनी को जैसी अपने बेटे की बहू चाहिए, वैसी तो नहीं है तुम्हारी भांजी, क्यों नंदिनी?" मिसेज़ बतरा (नंदिनी जी की दोस्त, कहो तो बेस्ट फ़्रेंड) बोली।
मिसेज़ कौशिक हँस दी- "ओह, मिसेज़ चौहान, फिर तो चिराग लेकर ढूँढनी पड़ेगी लड़की?"
"सही कहा, चिराग लेकर ढूँढूँगी, तभी मिलेगी!" नंदिनी जी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोलीं।
थोड़ी देर बाद-
नंदिनी जी- "ये लड़की कौन है? देखने में तो अच्छी लग रही है।" कैफ़े में जहाँ नंदिनी अपनी किट्टी फ़्रेंड्स के साथ होती है, वहाँ एक लड़की आती है।
"पता नहीं कौन है?" सब उस लड़की की ओर देखकर बोलीं।
"रुको, मैं मिलकर आती हूँ।" कहकर नंदिनी जी चेयर से उठीं और उस लड़की की तरफ़ चली गईं।
"लगता है आज तो अपने बेटे के लिए इस लड़की को पसंद करके ही रहेगी मिसेज़ चौहान।" मिसेज़ कौशिक नंदिनी जी का मज़ाक बनाते हुए हँसने लगीं। उनकी इस बात पर मिसेज़ बतरा को छोड़कर सब किट्टी मेंबर ठहाके लगाकर हँस पड़ीं।
नंदिनी जी उस लड़की की ओर बढ़ते हुए मन ही मन सोचती हैं- "कितनी प्यारी लड़की है! मेरे बेटे की दुल्हन बनेगी तो बहुत अच्छी लगेगी, दोनों की जोड़ी बहुत सुंदर जमेगी।" सोचते हुए वो उस लड़की के पास पहुँच गईं। "हेलो बेटा?"
"हेलो आंटी।" वो लड़की मुस्कुराते हुए बोली।
"नाम क्या है तुम्हारा?" नंदिनी जी ने जिस तरह से, यानी एक्साइटेड होकर उस लड़की से उसका नाम पूछा तो वो हैरान हो गई। "जी वो... मेरा नाम संध्या है!"
(क्रमशः)
लड़की ने अपना नाम संध्या बताया और हल्का सा मुस्कुराते हुए नंदिनी जी से कहा, "सॉरी आंटी, आप कौन हो? मैं आपको नहीं जानती।" आगे वह कुछ कहती, कि नंदिनी जी बोल पड़ीं, "लो बेटा, नहीं जानती तो क्या हुआ, अब जान लो। और पहचान बनाने में कौन सा वक़्त लगता है? सही कहा ना!"
संध्या ने हामी भरी, "हम्म, सही कहा आंटी आपने!"
"मैं नंदिनी हूँ, जिसको सब मिसेज़ चौहान कहते हैं।" बोलते हुए नंदिनी जी हँस दीं और अपनी किट्टी मेंबर्स की तरफ़ इशारा करते हुए बोलीं, "वहाँ पर जो लेडीज़ ग्रुप बैठा है, उसकी मैं मेंबर हूँ। सोसाइटी ग्रुप, यू नो। वो हम सब अक्सर यहाँ पर किट्टी पार्टी के लिए आते रहते हैं। पर बेटा, तुम्हें यहाँ पहली बार देखा है?"
"हाँ आंटी, मैं यहाँ पर पहली बार आई हूँ। लगता है काफी अच्छा कैफ़े है, राइट आंटी!" संध्या ने कैफ़े को देखते हुए कहा।
नंदिनी जी, "येस बेटा, बहुत अच्छा कैफ़े है, तुम्हारे नाम की तरह। तुम्हारा नाम बहुत अच्छा है, बहुत प्यारा है!"
संध्या मुस्कुरा दी, "थैंक्यू आंटी, आपका नाम भी बहुत अच्छा है और आप भी!"
नंदिनी जी, "थैंक्स बेटा। और बताओ बेटा, तुम क्या करती हो? पढ़ाई-लिखाई करती हो?"
संध्या ने हाँ में सिर हिलाया, "जी आंटी!"
"अच्छा, पढ़ी-लिखी हो, अच्छी बात है। काम भी आते होंगे ना सब, जैसे खाना बनाना...?" नंदिनी जी ने संध्या से उत्साहित होकर पूछा। इस पर संध्या कुछ बोलती, कि पीछे से आवाज़ आई, "जी आंटी, ये खाना तो ऐसा बनाती हैं कि खाने वाला अँगुलियाँ चाटने की जगह खुद अँगुलियाँ खा जाए!"
यह सुन नंदिनी जी हैरान हो गईं। नंदिनी जी और संध्या ने आवाज़ की दिशा में देखा तो एक लड़का कमर पर हाथ टिकाए हँस रहा था। वह उनके पास चला आया।
संध्या ने उस लड़के से कहा, "तुम भी ना, कुछ भी बोलते हो?"
वह लड़का मुस्कुराते हुए बोला, "जो बोला है, सौ प्रतिशत सच बोला है मैडम। कह दो कि झूठ है, तुम्हारे हाथों का खाना अच्छा नहीं होता। खैर, छोड़ो, तुम तो खिलाने वालों में हो। जो खाने वाले हैं, उनसे पूछो, यानी कि मुझसे। खाते-खाते पेट पूरा भर जाए, पर मन ना भरे। इतना अच्छा खाना बनाती हो तुम, जो तुम्हारे हाथ से बना खाना एक बार खा ले, स्वाद ना भूले और वह बार-बार खाने को चला आए, यह बात अलग!"
नंदिनी जी खुश होकर बोलीं, "ओह, तो यह बात है! फिर तो इन" (संध्या के हाथ अपने हाथों में लेते हुए) "हाथों में अन्नपूर्णा का वास है!"
वह लड़का, "बिल्कुल आंटी, और जादू भी!"
संध्या ने नंदिनी जी से अपना हाथ छुड़ाकर उस लड़के को हाथ दिखाया, "दिखाऊँ जादू... यह देखकर वह लड़का फट से अपने गालों पर हाथ रख लेता है।" यह देख संध्या हँस पड़ी और नंदिनी जी से उसको मिलाते हुए बोली, "आंटी, यह अक्षित है, अक्षित सक्सेना, मेरा दोस्त है और मेरा होने वाला पति भी, जिससे जब मर्ज़ी मेरी तारीफ़ करवा लूँ, हमेशा तैयार रहता है!"
"होने वाला पति?" यह सुन नंदिनी जी चौंक उठीं। "क्या? पति?"
संध्या, "जी आंटी, पति। और अक्षित, इनसे मिलो। यह नंदिनी आंटी हैं, बहुत अच्छी हैं, बहुत स्वीट हैं!"
"अच्छा? हेलो आंटी।" कहते हुए अक्षित ने नंदिनी जी की ओर देखा, जो उसे हैरानी से देख रही थीं। नंदिनी जी ने कुछ नहीं कहा तो अक्षित उनकी बाहों पर हाथ रखते हुए बोला, "क्या हुआ आंटी, आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हो?"
नंदिनी जी मुस्कुरा दीं, "कुछ नहीं बेटा, आप ना बहुत लकी हो, आपको इतनी प्यारी लाइफ़ पार्टनर मिली है। और तारीफ़ तो संध्या बेटा उन्हीं की होती है ना, जो हक़दार होता है तारीफ़ पाने का। और हाँ, वैसे बेटा, इन पतियों का सच्ची में कोई भरोसा नहीं होता। इनकी तारीफ़ का क्या मतलब होता है, यही जाने!"
इस बात पर तीनों हँस पड़े।
अक्षित, "आप खुद खाएँगे तब बताना आंटी, संध्या के हाथ का खाना कैसा लगा। मैं ऐसे ही तारीफ़ नहीं कर रहा!"
नंदिनी जी, "ज़रूर बेटा!"
तभी संध्या नंदिनी जी के गले लग गई, "आंटी, आप बहुत प्यारी हो। आपसे मिलकर बहुत-बहुत अच्छा लगा हमें!"
अक्षित नंदिनी जी से उनका फ़ोन नंबर लेता है, "हम फिर मिलेंगे आंटी और जल्द आपको संध्या के हाथ का खाना खाने के लिए इनवाइट भी करेंगे!"
नंदिनी जी ने दोनों के गाल पर हाथ रखकर उन्हें अपना आशीर्वाद दिया, "थैंक्स बेटा, आप दोनों भी बेटा बहुत प्यारे हो। खुश रहो, एन्जॉय करो।" कहकर वह वापस वहाँ से अपने ग्रुप की ओर चली जाती हैं।
मिसेज़ कौशिक, "क्या हुआ? यह भी नहीं पसंद आई क्या?"
नंदिनी जी हल्का सा मुस्कुराते हुए बोलीं, "पता नहीं किसका नसीब जुड़ा है मेरे बेटे से?"
मिसेज़ बतरा, "जिसका भी नसीब जुड़ा होगा ना, वह नसीबवाली होगी, और बहुत खास होगी जिसकी तुम सास बनोगी नंदिनी। चलो अब पत्ते खेले थोड़ी देर?"
"नहीं, मैं जाती हूँ घर। तुम सब खेलो।" पर सब "रुको, जाओ, रुको जाओ" कहकर मिसेज़ चौहान को रोक ही लेती हैं। "वेटर, ठंडा लाना। ठंडा पीओ और चिल करो।" नंदिनी जी से मिसेज़ बतरा कहती हैं।
इतनी जल्दी कौन आ गया? अभी तो घर कोई आने वाला भी नहीं था। घर की डोरबेल बज रही थी। सुमो किचन से मैडम डोर की ओर बढ़ती है।
"साहब आने वाले थे सबसे जल्दी, पर वह तो थोड़ी देर लगेंगे कहकर गए थे। हो सकता है उनका काम जल्दी हो गया।" सुमो खुद से बोलती हुई दरवाज़ा खोलती है। ज्यों ही उसने दरवाज़ा खोला, उसकी आँखें चौड़ी हो गईं...!!
अक्ष कॉलेज में क्लास अटेंड करने के बाद अपने दोस्तों (शिवम, मौली) के साथ पार्क में बैठा होता है। तभी शिवम उसे बोलता है, "अक्ष, तुम्हारे डैड ने कुछ कहा कल?"
अक्ष बोलता है, मौली शिवम से बोल पड़ी, "यार, तू रोज़ यह सवाल क्यों पूछता है? जब भी अक्ष हमारे साथ क्लब जाता है, उसके अगले दिन तेरा यह सवाल रेडी रहता है!"
अक्ष हँस दिया, "यह जानता है मैं, यही कहूँगा, कुछ नहीं कहा मेरे डैड ने। कूल है यार मेरे डैड। डैड थोड़ा बहुत कहते रहते हैं और हाँ, सही भी। बाकी कभी-कभी ऊपर-नीचे हो तो मॉम है ना, वह संभाल लेती हैं। पर इसे" (शिवम के कंधे पर हाथ रखते हुए) "कुछ चटपटा सुनना होता है, जो इसे मेरे पास से नहीं मिलता!"
मौली हैरानी से, "ओह!"
शिवम, "मैं सोचता हूँ कुछ तो अलग हो, पर इसका हमेशा सेम ही होता है। मेरी मॉम मेरी साइड तो दूर, वहीं सबसे ज़्यादा डाँटती है मुझे और मेरे डैड, वो तो उनके सामने भी चुप रहते हैं, एकदम चुप, आवाज़ भी न निकलती उनकी तो!"
यह सुन अक्ष, मौली दोनों हँसने लगे।
"तुम लड़की हो मौली, तुम्हारे घर वाले कुछ भी नहीं कहते क्या, देर रात घर से बाहर रहती हो तो?" शिवम ने इस बार मौली से पूछा।
"लड़की हूँ मैं तो क्या हुआ? वैसे मेरी मॉम तो नहीं है, तुम्हें पता है। डैड ही हैं। ही इज़ वैरी स्वीट। जिन्होंने मुझे सब फ़्रीडम दी है। मॉम होती तो पता नहीं, मे बी रोकते मुझे बाहर जाने से पहले पूछती, कहाँ जा रही हो? देर से घर जाने पर कहते, लेट क्यों हुई? रात को बाहर जाने से मना भी करती वो, पर यह सब मेरी लाइफ़ में नहीं है यार।" कहती हुई मौली इमोशनल हो गई।
तभी अक्ष उसे हग कर लेता है, "यार, तू भी ना, तेरे डैड के जैसे बहुत स्वीट है। तू तो जानती है, तेरे डैड तेरे माँ-बाप दोनों हैं!"
मौली मुस्कुराते हुए, "हाँ, सही कहा। वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूँ!"
शिवम, "तुम हो ही इतनी प्यारी तो प्यार तो करेंगे ही ना तुमसे!"
अक्ष ने भी हामी भरी, "येस!"
मौली अक्ष से दूर हुई, "वैसे अक्ष, इस शिवम को तो गोसिप चाहिए होती है, मसालेदार, चटपटी बातें!"
"ओये यार, तू मेरी मॉम का किट्टी ग्रुप जॉइन कर ले, चटपटी और काम की दोनों गोसिप मिलेगी तुझे वहाँ, वो भी खूब तड़के वाली!" अक्ष हँसते हुए शिवम से बोला तो शिवम तोबा करने लगा और उसे ऐसे देख अक्ष, मौली दोनों हाई-फ़ाई करते हुए हँस पड़े!
तभी मौली अक्ष से, "यार अक्ष, अब चल, तेरे भाई के बारे में हमें बता, जिनकी तू इतनी बातें करता है। कैसे दिखते हैं, क्या बोलते हैं, मतलब बोलने का स्टाइल, क्या करते हैं, सब कुछ, कैसा है उनका? बता फ़टाफ़ट?"
अक्ष, "क्यों जानकर क्या करना है तुम्हें? तुम प्रपोज़ करोगी क्या मेरे भाई को सब कुछ जानकर उनके बारे में?"
शिवम, "अरे यार, बता दो। प्रपोज़ के लिए भी तो पहले पता तो होना चाहिए कि वो इंसान कैसा है?"
मौली, "अब बता दे यार, प्लीज़। चल बता, और प्रपोज़ वगैरह बाद में देखेंगे!"
"ओके बाबा, बताता हूँ।" कहकर अक्ष अपने भाई के बारे में सोचने लगा। उसके होठों पर प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई। "मेरा भाई, बड़े भैया, क्या कहूँ उनके बारे में? उनका नाम है आद्विक चौहान, अक्ष कुमार के ग्रेट ब्रदर। हैंडसम, डैशिंग, बट कपड़े ओनली ब्लैक-व्हाइट पहनते हैं, कोट-पैंट मोस्टली और घर वाले कपड़े भी ब्लैक-व्हाइट ही रहते हैं हमेशा उनके। और उनका मूड कब कैसा हो, यह कोई नहीं बता सकता है। आई मीन, उनके अच्छे मूड, बुरे मूड का पता ही नहीं चलता। वो ज्यादातर शांत ही रहते हैं, ज़्यादा बोलना, बातें करना उन्हें पसंद नहीं!"
इधर अक्ष आद्विक के बारे में अपने दोस्तों को बता रहा था, उधर सुमो दरवाज़ा खोलती है। सामने आद्विक चौहान खड़ा होता है।
"बड़े भैया, आप?" आद्विक को देखते ही सुमो जोर से बोली।
ब्लैक कोट-पैंट पहने और आँखों पर स्टाइलिश ब्लैक चश्मा। आद्विक चश्मा उतारकर सुमो को घूरता है, उसके जोर से बोलने की वजह से। यह देख सुमो घबरा जाती है और दरवाज़े से साइड में होते हुए सहमी सी आवाज़ में कहती है, "आप आ गए। वो बाकी सब बाहर गए हुए हैं भैया।"
आद्विक कुछ नहीं बोला, ना ही उसने सुना जो उसे सुमो कह रही थी। वह वहाँ कमरे में चला जाता है।
सुमो अंदर चली आई, "लो, बड़े भैया ने तो कुछ सुना ही नहीं। कॉफ़ी बना देती हूँ बड़े भैया के लिए। थके होंगे। पर बनाऊँ या (सोचते हुए) नहीं? मूड नहीं हुआ तो घर पर भी कोई नहीं है और किसी बात पर गुस्सा आ गया तो... नहीं-नहीं, क्या करूँ?" वह खुद से ही बोलती है और दरवाज़े की ओर देखते हुए कहती है, "साहब भी तो नहीं आए हैं अभी तक। (ऊपर की ओर देखते हुए) बड़े भैया आ चुके हैं!"
अक्ष का आद्विक के बारे में बताना जारी था, "उनके बिज़नेस ट्रिप कभी खत्म नहीं होते। वो अपने काम के चलते ज़्यादा बाहर ही रहते हैं। घर तो वो कभी-कभी आते हैं!"
मौली, "अच्छा!"
अक्ष, "हम्म। चलो, बस आज के लिए इतना काफी है। मैं चलता हूँ घर। असाइनमेंट भी बनाने हैं। बाकी फिर कभी या मेरे भाई से मिलो तुम दोनों, तब जान लेना (मुस्कुराते हुए) मेरे भाई के बारे में!"
शिवम, "बताया वो भी थोड़ा सा यार?"
मौली, "और क्या? चलो, कोई बात नहीं। वैसे भी जितना चाहेगा उतना ही बताएगा शिवम ये हमें। हम क्या (कंधे उचकाते हुए) कर सकते हैं!"
अक्ष मौली के गाल पर चपत लगाता है, "बाय!"
मौली उसके पेट में मुक्का जड़ देती है, "बाय। आज क्लब तो आएगा नहीं ना?"
"आज नहीं आऊँगा और भूख भी लगी है। सो जाकर लंच करता हूँ और तुम दोनों से कल मिलता हूँ। बाय।" अक्ष शिवम से हाथ मिलाकर कॉलेज से चला गया। उसके जाते ही मौली शिवम से, "यह तो चला गया। चलो, मैं कैफ़े जाती हूँ। तुम्हें आना है तो आ जाओ। चलकर कुछ खाते हैं!"
शिवम, "हाँ, भूख मुझे भी लगी है। वैसे यार, तुम्हें नहीं लगता अक्ष ने जो भी थोड़ा बहुत बताया है अपने भाई के बारे में, उसका भाई अजीब है!"
मौली मुस्कुरा दी, "हाँ, थोड़ा सा लगा। पर अलग बंदा अलग ही होगा ना। मैं तो इस हीरो से मिलने के लिए बहुत बेकरार हूँ। पता नहीं कब मुलाक़ात होगी अक्ष के भाई आद्विक चौहान से मेरी!"
किचन से बाहर आते हुए सुमो, "एक काम करती हूँ। साहब या मैडम को फ़ोन करती हूँ। उन्हें बता देती हूँ बड़े भैया आ गए हैं और वो जल्दी आकर भैया से पूछकर बता देंगे, कुछ चाहिए तो उन्हें? हाँ, यही करती हूँ।" बोलते हुए हॉल में टेबल पर रखे फ़ोन की ओर बढ़ती है कि तभी वह फ़ोन बज उठा। सुमो जल्दी से जाकर फ़ोन उठाती है, "हेलो?"
"एक कॉफ़ी लेकर आओ, जल्दी?" आद्विक का फ़ोन था जो उसने अपने रूम से किया था।
सुमो, "जी बड़े भैया, अभी लाई..." कि आद्विक फ़ोन रख देता है और वाशरूम में चला जाता है!
सुमो फ़टाफ़ट आद्विक के लिए कॉफ़ी बनाकर ऊपर उसके रूम में ले जाती है और डोर नॉक करके उसे कॉफ़ी का बताती है, "बड़े भैया, कॉफ़ी!"
"लाओ।" आद्विक सुमो से कॉफ़ी ले लेता है और घूंट भरता है। सुमो वहीं खड़ी होती है। आद्विक उसकी ओर देखता है, "क्या हुआ? कॉफ़ी दे दी ना, जाओ!"
सुमो, "जी बड़े भैया... वो?"
आद्विक, "क्या वो?"
सुमो कॉफ़ी की ओर इशारा करती है, "कॉफ़ी सही बनी है?"
आद्विक, "हम्म!"
यह सुन सुमो वहाँ से जाने लगी कि आद्विक ने उसे आवाज़ दी, "सुनो?"
सुमो आद्विक की ओर मुड़ी, "जी?"
"हमेशा की तरह बहुत अच्छी कॉफ़ी बनाई है, थैंक्यू।" आद्विक हल्का सा मुस्कुराते हुए बोला। यह सुन सुमो खुश हो जाती है, "ठीक है आद्विक भैया, मैं लंच बनाती हूँ..." बोलकर वहाँ से भागकर नीचे चली आई, "अरे वाह! आज तो बड़े भैया मुस्कुराए। मैं डर रही थी कहीं मूड खराब ना हो उनका, पर आज तो मूड अच्छा है। जब मैडम को पता चला तो वो तो खुश हो जाएंगी। उन्हें तो तलाश होती है कब बड़े भैया का मूड सही हो।" कि तभी वह अक्ष से टकरा गई!
(क्रमशः)
सुमो अक्ष से टकरा गई। "सुमो दीदी, संभलकर!"
सुमो—"सॉरी छोटे भैया, वो मेरा ध्यान कहीं और था!"
अक्ष—"कोई बात नहीं, पर आपका ध्यान कहाँ था?"
सुमो—"वो मेरा ध्यान..."
अक्ष—"हाँ, आपका ध्यान। मैंने आपको आवाज़ भी दी, 'खाना लगा दो, भूख लगी है मुझे,' पर आपने सुना ही नहीं। खुद से ही बातें करती जा रही थीं!"
सुमो—"खाना? वो तो मैंने बनाया ही नहीं। आप थोड़ा सा टाइम दीजिये, अभी आपके लिए जल्दी से लंच बना देती हूँ। आपको बाहर भी जाना होगा ना?"
अक्ष—"नहीं, बाहर नहीं जाना। पढ़ाई करनी थी और भूख भी लगी थी मुझे, इसलिए सीधा घर आ गया!"
सुमो—"अच्छा, अभी बनाती हूँ मैं आपके लिए खाना। खाना खाकर आप अपनी पढ़ाई कर लेना!"
अक्ष—"हम्म, आराम से बना दीजिये, मैं वेट कर लूँगा!"
सुमो—"ठीक है। वैसे, एक बात बताऊँ?"
अक्ष—"क्या सुमो दीदी?"
सुमो (खुश होते हुए)—"आज आपको बाहर जाना भी होता, तब भी आप बाहर नहीं जाते। बड़े भैया जो आ गए हैं और पता है, उनका मूड भी अच्छा है!"
अक्ष (जोर से बोलते हुए)—"क्या? भाई आ गए? कब आए? वो (खुश होते हुए) कहाँ हैं?"
सुमो (ऊपर की ओर इशारा करते हुए)—"अभी थोड़ी देर पहले ही आए हैं। ऊपर अपने कमरे में हैं। आप जाकर मिल लो। साहब-मैडम को भी मैं बताती हूँ बड़े भैया के आने का!"
अक्ष उसी पल दौड़ता हुआ, 'भाई-भाई' चिल्लाते हुए आद्विक के कमरे में पहुँचा और आद्विक के गले लग गया। "भाई, आप आ गए! बताया भी नहीं आप आने वाले हो। कैसे हो भाई? पता है कितना मिस करता हूँ मैं आपको! डैड-मॉम सब आपको बहुत मिस करते हैं!"
आद्विक—"छोटे, साँस तो ले लो! मैं ठीक हूँ। तुम बताओ, और स्टडी कैसी चल रही है? एग्जाम आ रहे हैं, पढ़ रहे हो ना अच्छे से?"
अक्ष (आद्विक से अलग होते हुए)—"हाँ भाई, थोड़ी सी मस्ती, पर ज़्यादा नहीं। ज़्यादा पढ़ाई!"
आद्विक—"ओके, गुड। चलो, मुझे थोड़ा काम है। तुम अभी यहाँ से जाओ।"
अक्ष—"क्या भाई? आज भी काम? लंच तो कर लो मेरे साथ। चलो ना, साथ में खाना खाते हैं?"
आद्विक—"तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ!"
अक्ष—"ओके भाई, सुमो दीदी से खाना लगवाता हूँ। जल्दी आना।" कहकर अक्श वहाँ से चला गया।
नंदिनी जी और आनंद जी भी घर आ गए। बहुत खुश हुए जब उन्हें आद्विक के घर आने की बात पता चली, जब अक्ष ने उन्हें बताया। आज भाई हमारे साथ खाना खाएगा, तो दोनों की खुशी दुगुनी हो गई!
आनंद जी—"ये तो बहुत खुशी की बात है!"
नंदिनी जी—"हाँ, साथ खाने के बहाने थोड़ी देर वो हम सब के साथ बैठ जाएगा। हमें साथ में वक़्त बिताने को मिल जाएगा!"
तभी सुमो बोली—"उनका मूड आज अच्छा है और मैडम, मैंने आज बड़े भैया का फ़ेवरेट खाना बनाया है। उन्हें खुशी होगी, घर का, पसंद का खाना खाकर!"
ये सुन अक्ष सुमो को हग कर लेता है। "थैंक्यू सुमो दीदी! फ़ेवरेट खाना, भाई को डाइनिंग टेबल पर, मेरा मतलब हम सब के पास रोकने का बेस्ट जरिया है!"
सुमो डाइनिंग टेबल पर खाना लगा चुकी थी और सब डाइनिंग टेबल पर बैठे, आद्विक के कमरे की ओर नज़रें गड़ाए देख रहे थे कि कब कमरे से बाहर निकले और वो नीचे आए। सब उसका इंतज़ार कर रहे थे। अब आए कब आए, आ जाओ... तभी अपने फ़ोन पर बात करते-करते आद्विक नीचे आ जाता है। उसे देख सबका इंतज़ार खत्म हुआ और होठों पर मुस्कराहट आ गई!
"मैं बाद में कॉल करता हूँ," कहते हुए वो डाइनिंग टेबल की तरफ़ आता है और अपने मॉम-डैड के गले लगता है।
नंदिनी जी—"कैसा है मेरा बेटा?"
आद्विक—"मॉम, मैं ठीक हूँ। आप बताओ, आप ठीक हो?"
नंदिनी जी—"हम्म!"
आद्विक—"और डैड, आप?"
आनंद जी—"मैं भी ठीक हूँ बेटा। हमें तो पता ही नहीं था तुम आज ही आओगे। हम तो...वो..." आगे बोलते-बोलते आद्विक चेयर पर बैठते हुए बोल पड़ा—"आई नो डैड-मॉम। अपनी किट्टी पार्टी में थे और आप किसी काम से गए होंगे। (सबकी ओर देखते हुए) अब खाना खाएँ?"
सुमो—"बड़े भैया, आज सब आपका फ़ेवरेट है!"
आद्विक—"थैंक्स, पर दो तो सही सुमो!"
"जी," बोल सुमो जल्दी से आद्विक को खाना देती है। वो खाना खाने लगा, सब उसी की ओर देख रहे होते हैं। आद्विक ने सबकी ओर देखा। "क्या हुआ?"
आनंद जी (मुस्कुराते हुए)—"कुछ नहीं बेटा, बहुत खुशी हो रही है तुम हम सब के साथ लंच कर रहे हो!"
आद्विक—"हम्म, आप सब भी खाओ!"
सब खाना खाने लगे। खाना खाते-खाते आनंद जी सोचते हैं—"आज कितना अच्छा दिन है! बहुत समय बाद ऐसा हो रहा था, आद्विक उनके साथ खाना खा रहा था!"
नंदिनी जी भी सोचती हैं—"मूड अच्छा है इसका। आज रिश्ते की बात कर ही लेती हूँ। (खुश होते हुए) क्या पता हाँ कर दे!"
वहीं अक्ष भी सोचता है—"भाई से कॉलेज पार्टी में आने की बात करता हूँ। सब से मिलवा दूँगा। हाँ, ये सही है।" खुद से कह वो आद्विक से बोला—"भाई, कल मेरे कॉलेज में पार्टी है?"
आद्विक—"तो?"
अक्ष—"आप मेरे साथ चलोगे ना? प्लीज़ भाई, नो मत कहना। सब आपसे मिलना भी चाहते हैं!"
आद्विक—"नहीं, मुझे काम है!"
अक्ष—"पर भाई, मैंने सब को बोल चुका हूँ!"
आद्विक—"मैंने कहा ना, नो! मुझे काम है। मेरा खाना हो गया। तुम खाना खाओ और फिर पढ़ाई करो जाकर।" बोलकर आद्विक वहाँ से चला गया। अक्ष 'भाई-भाई' करता रह गया और आद्विक अपने कमरे में चला गया!
आद्विक ने अक्ष की बात नहीं मानी, इस वजह से वो खाना बीच में छोड़कर सोफ़े पर जा बैठा। "कभी नहीं सुनते भाई मेरी!"
आनंद जी उसे आवाज़ देते हैं—"बेटा, खाना तो खा लो?"
अक्ष (नाराज़गी भरे लहजे से)—"मुझे नहीं खाना। भाई हर बार ऐसा क्यों करते हैं डैड?"
थोड़ी देर बाद,
आद्विक को जब पता चलता है कि अक्ष ने खाना नहीं खाया, तो वो उसके लिए उसका फ़ेवरेट पिज़्ज़ा ऑर्डर करता है। सुमो दरवाज़ा खोलती है और पिज़्ज़ा अंदर लाती है।
नंदिनी जी—"ये किसने मँगवाया है?"
तभी आद्विक की आवाज़ आती है—"मैंने मँगवाया है।" कहते हुए वो सुमो से पिज़्ज़ा बॉक्स लेकर अक्ष को देता है। "लो, खाओ तुम्हारा फ़ेवरेट पिज़्ज़ा!"
अक्ष (पिज़्ज़ा देखते ही खुश हो जाता है)—"मेरे लिए?"
आद्विक—"हाँ, तुम्हारे लिए। खाना जो नहीं खाया तुमने?"
अक्ष (पिज़्ज़ा खाते हुए)—"थैंक्स भाई!"
आद्विक—"इसका ये मतलब नहीं कि मैंने पार्टी के लिए हाँ की है!"
अक्ष—"पर भाई?"
आद्विक—"पिज़्ज़ा खा और जाकर पढ़ाई कर!" कहते हुए आद्विक ने अक्ष के गाल पर हाथ रखा, तो वो मुस्कुरा दिया। "ठीक है, मैं अकेला चला जाऊँगा!"
आद्विक—"गुड।" कह आद्विक वहाँ से जाने लगा कि नंदिनी जी ने उसे रोक लिया। "आद्विक, मुझे तुमसे बात करनी है।" ये सुनकर सब समझ जाते हैं कि वो आद्विक से क्या बात करने वाली है!
आद्विक (नंदिनी जी से)—"कहिए मॉम!"
नंदिनी जी—"वो, मैंने तुम्हारे लिए कुछ लड़कियों को सिलेक्ट किया है। बहुत अच्छी हैं। कोई एक पसंद कर लो?" वो अपनी बात पूरी कर पाती, आद्विक बोल पड़ा—"मॉम!"
नंदिनी जी—"अभी दिखाती हूँ मैं तुम्हें फ़ोटोज़।" कह नंदिनी जी अपने पर्स से फ़ोटोज़ निकालने लगी। आद्विक आनंद जी की ओर देखता है। "फिर से डैड?"
वो कुछ नहीं बोले। आद्विक (नंदिनी जी से)—"नहीं मॉम, मुझे कोई फ़ोटो नहीं देखनी। और आपको कितनी बार कहा है मुझे शादी नहीं करनी।" मिसेज़ चौहान उसको दिखाने के लिए अपने बैग से फ़ोटोज़ निकालती हैं, इतने में आद्विक वहाँ से चला जाता है!
नंदिनी जी—"लो, चला भी गया!"
अक्ष—"हमेशा की तरह इस बार भी कुछ नहीं हुआ मॉम। बाई द वे, पिज़्ज़ा खाना है?"
आनंद जी—"नहीं, तुम ही खाओ बेटा!"
अक्ष—"ओके, अपने रूम में जाकर ही खाता हूँ।" कहते हुए अक्ष भी वहाँ से चला जाता है। जाते-जाते वो बोल जाता है—"मॉम, लगता है भाई कभी घोड़ी नहीं चढ़ेंगे!"
नंदिनी जी को गुस्सा आ गया। "ऐसे कैसे नहीं चढ़ेगा घोड़ी? बहुत हो गया! अब तो आद्विक को मानना ही पड़ेगा शादी के लिए!"
आनंद जी—"आप क्यों इतनी जिद्द कर रही हैं?"
नंदिनी जी—"आप भी जानते हैं अच्छे से मैं जिद्द क्यों कर रही हूँ। ताकि हमारा जिद्दी बेटा अपनी जिद्द छोड़ दे। वो जिद्द जिसमें किसी का भला नहीं, उसका तो बिलकुल नहीं।" कहकर नंदिनी जी अपने कमरे में चली गई।
आनंद जी (सुमो की ओर देखते हुए)—"क्या होगा, कोई नहीं जानता?"
सुमो—"हाँ साहब।"
अगली सुबह,
जितनी भी लड़कियों की फ़ोटो थीं, नंदिनी जी सब हॉल में टेबल पर सजाकर रख देती हैं। आनंद जी जब ये देखते हैं तो हैरान होते हैं। नंदिनी जी से बोले—"ये क्या है?"
अक्ष भी चला आया और टेबल पर सजी तस्वीरों को देख जोर से बोला—"ओ एम जी! फिर से मॉम? और आनंद जी की तरफ़ देखते हुए, जो परेशान नज़र आ रहे थे—"आज क्या होगा डैड?"
तभी सुमो बोली—"आज मैडम फ़ुल तैयारी में हैं!"
नंदिनी जी (ऊपर की ओर देखते हुए)—"हाँ, आज तो हाँ करवाकर ही रहूँगी मैं आद्विक से!"
आनंद जी (उनके पास सोफ़े पर आ बैठते हुए)—"एक बार और सोच लो, कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए?"
नंदिनी जी—"नहीं आनंद जी, अब और नहीं! आज तो डिसाइड होकर ही रहेगा!" नंदिनी जी की हठ देख आनंद जी खामोश हो गए। तभी अक्ष फ़ोटोज़ देखते हुए हँसते हुए बोला—"वैसे मॉम, सब हैं बड़ी प्यारी लड़कियाँ। कहो तो मैं पसंद कर लूँ इनमें से कोई एक। भाई शादी नहीं कर रहे तो कोई बात नहीं, मेरी करवा देना। आपके लिए मैं घोड़ी तो क्या सूली भी चढ़ सकता हूँ!"
ये सुन सब मुस्कुरा दिए। अक्ष की इस बात ने सबके परेशान चेहरों पर हल्की सी मुस्कान बिखेर दी। तभी नंदिनी जी अक्ष के पास आई और उसके चेहरे को हाथों में भरते हुए बोली—"नहीं अकू, तुम्हें कुछ भी ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मुझे पता है तू तो खुद ही पसंद कर लाएगा कोई लड़की। मुझे तो ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी तेरे लिए यूँ फ़ोटोज़ सजाने की। ये तो मैं आद्विक के लिए ही कर रही हूँ जो कभी खुद से नहीं करेगा, खुद का नहीं सोचेगा, इसलिए पहले उसे घोड़ी चढ़ाते हैं, फिर तुम घोड़ी (गाल पर हल्की सी चपत लगाते हुए) चढ़ना!"
अक्ष—"ओके मॉम।" बोल अक्ष नंदिनी जी के गले लग गया। तभी सुमो बोली—"लगता है मैडम, हमारे छोटे भैया को कुछ ज़्यादा ही जल्दी है घोड़ी चढ़ने की!"
ये सुन अक्ष सुमो के पास आया और हाथ जोड़कर बोला—"बहुत जल्दी है! आपकी नज़र में कोई प्यारी सी कन्या हो तो बताइए। अपना भी भला हो जाएगा भाई के साथ-साथ मेरा भी लग्न हो जाएगा..." अक्ष ने जिस अंदाज़ में ये कहा, सुमो की हँसी छूट गई और अक्ष खुद भी हँस पड़ा!
मिसेज़ कौशिक मिसेज़ बतरा से पूछती हैं—"मिसेज़ चौहान कहाँ हैं? आज आई नहीं अभी तक?"
मिसेज़ बतरा—"आज नहीं आएगी। आज उसका बेटा घर आया है और आज नंदिनी कुछ और ही मिशन पर है!"
मिसेज़ कौशिक—"वो बेटा क्या? जो अक्सर बाहर ही रहता है? क्या नाम है उसका... हाँ, आद्विक?"
मिसेज़ बतरा—"हाँ, आज तो मौका नहीं जाने देगी। लड़की पसंद जो करवानी है, बस जो नंदिनी चाहती है वो आज हो ही जाए!" कह मिसेज़ बतरा मुस्कुरा दी।
मिसेज़ कौशिक—"वैसे तुम्हारी बेटी भी तो लंदन से आ रही है। परफेक्ट है भी वो आद्विक के लिए तो तुम मिसेज़ चौहान से रिश्ते की बात क्यों नहीं करती हो? तुम्हारी बेटी भी तो कम नहीं है किसी से?"
मिसेज़ बतरा—"हाँ, मेरी मुस्कान कम तो नहीं है किसी से और वो तो बचपन की दोस्त भी है आद्विक की। हर माँ तो चाहेगी नंदिनी जैसी सास मिले उसकी बेटी को, पर मेरी बेटी आद्विक के लिए नहीं बनी। उसके लिए जो बनी होगी वो तो बहुत किस्मत वाली होगी। आद्विक जैसा कोई नहीं है। बस जैसा पहले था वो वैसा हो जाएँ और मेरी मुस्कान (हँसते हुए) वो तो कोई अपनी पसंद का मेरे सामने लाकर खड़ा करेगी। अरेंज मैरिज नहीं करेगी मेरी बेटी। इसलिए मुझे तो उसकी कोई चिंता नहीं है!"
मिसेज़ कौशिक—"अच्छा..."
मिसेज़ बतरा—"लो, वो घर पहुँच गई। (फ़ोन पर आए मेसेज को देखते हुए) आ गई लंदन से मेरी बेटी मुस्कान। मैं चलती हूँ, बाय।" कहकर वो चली जाती है!
मिसेज़ बतरा को जाते देख मिसेज़ कौशिक गन्दा सा मुँह बनाती है—"ये मिसेज़ चौहान और मिसेज़ बतरा बातें गोल-गोल बहुत घुमाती हैं। ठीक से तो कभी कुछ पता ही नहीं। (गर्दन झटकते हुए) चलता?"
आद्विक अपना बैग लेकर नीचे आया। आनंद जी ने बैग की ओर इशारा कर उससे पूछा—"ये क्या?"
आद्विक—"बिज़नेस ट्रिप पर जा रहा हूँ। कुछ क्लाइंट्स के साथ मीटिंग्स हैं और डील भी फ़ाइनल करनी है। चलता हूँ, बाय..." बोल वो जाने लगा कि नंदिनी जी ने उसे रोक लिया। "रुको!" और टेबल के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। "इनमें से एक पसंद करो?"
आद्विक टेबल पर बिछी तस्वीरों को देख हाथों की मुट्ठियाँ बना लेता है। "मॉम, कितनी बार कहूँ? आपको समझ क्यों नहीं आता है?"
नंदिनी जी (जोर से बोलती हैं)—"हाँ, नहीं आता समझ! कब तक शादी नहीं करेगा तू?"
आद्विक को गुस्सा आ गया। "क्यों शादी ही सब कुछ होती है क्या? नहीं करनी मुझे, मैंने पहले ही बता चुका हूँ डैड। (आनंद जी की ओर देखते हुए) आप कुछ कहते क्यों नहीं?"
आनंद जी—"बेटा, तुम्हारी खुशी के लिए ही तो कह रही है मॉम तुम्हारी?"
आद्विक—"मैं खुश हूँ ऐसे ही..." आद्विक आगे बोलता, नंदिनी जी बोल पड़ी—"खुश है तू? दिखता है हमें! ऐसे भागता नहीं खुश होता तो? किसी के चले जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकती। कब तक ऐसे रहेगा? तू खुश है ना तो बता! फिर कहाँ है मेरा वो पहले वाला आद्विक?"
आद्विक—"बाय, मैं जा रहा हूँ!" आद्विक बोला और अपना बैग लेकर तेज कदमों के साथ बाहर की ओर बढ़ा। नंदिनी जी उसके पीछे जाती हैं—"हाँ-हाँ, चला जा! मत मान मेरी कोई बात, मत सुन किसी की..." उनका सिर घूम गया और वो धम्म से बेहोश होकर दरवाज़े के पास गिर पड़ी।
ये देख सब घबरा गए, डर गए। दौड़ते हुए उनके पास पहुँचे। अक्ष आद्विक को आवाज़ देता है—"भाई! मॉम!" और आनंद जी सुमो के साथ मिलकर नंदिनी जी को संभालते हैं। "मॉम, आप ठीक हो? मॉम-मॉम?"
आनंद जी—"नंदिनी?"
सुमो—"मैडम, मैडम?"
आद्विक दौड़ता हुआ वापस आया। आनंद जी सुमो को पानी लाने को कहते हैं। आद्विक नंदिनी जी को सोफ़े पर ले जाकर सुलाता है। सुमो जल्दी से पानी लेकर आई। आद्विक ने नंदिनी जी को होश में लाने के लिए उनके चेहरे पर पानी छिड़का, पर उन्हें होश नहीं आया!
हॉस्पिटल,
डॉक्टर नंदिनी जी का चेकअप कर रहे थे। आनंद जी, अक्ष और आद्विक तीनों परेशान से बाहर खड़े थे।
अक्ष—"डैड, मॉम?"
आनंद जी—"डॉक्टर देख रहे हैं। कुछ नहीं होगा मॉम को..." अक्ष उनसे लिपट गया।
आद्विक इधर से उधर चल रहा था। "डॉक्टर को इतना टाइम क्यों लग रहा है?" और आनंद जी के सामने आ खड़ा हुआ। "डैड, आपने देखा ना मॉम ने क्या किया? अपनी तबीयत खराब कर ली। डैड, प्लीज़ समझाओ ना मॉम को?"
आनंद जी—"क्या समझाऊँ? वो भी तो गलत नहीं है ना बेटा? हम सब तुम्हें खुश देखना चाहते हैं, पर तुम पता नहीं कब समझोगे। मैं ये नहीं कहता शादी करो, पर जो तुम कर रहे हो वो भी तो ठीक नहीं है आद्विक..." कि तभी डॉक्टर आ जाता है और कहता है—"नंदिनी जी को किसी बात का सदमा लगा है, जिस वजह से वो बेहोश हो गई। पर दुबारा ऐसा नहीं होना चाहिए। वो अभी रेस्ट कर रही है। जल्द उन्हें होश आ जाएगा!"
आद्विक—"वो ठीक है ना डॉक्टर?"
डॉक्टर—"हाँ, अभी ठीक है। पर ध्यान रहे वो ज़्यादा टेंशन ना लें, वरना जो हादसा आज हुआ वो फिर से हो सकता है, जो सही नहीं। उनकी जान को खतरा हो सकता है। बाकी आप समझदार हैं..." कह डॉक्टर वहाँ से चले गए। उनके जाते ही अक्ष आनंद जी से—"डैड, डॉक्टर ने कहा है मॉम कोई टेंशन ना लें?"
आनंद जी (आद्विक की ओर देखते हुए)—"टेंशन ही तो है जो वो सबसे ज़्यादा लेती है। इतनी कि वो उन्हें खाए जा रही है..." बोल वो अक्ष के साथ नंदिनी जी के पास चले गए और आद्विक हॉस्पिटल के बाहर आ गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे? क्या ना करे? गुस्से में वो पास की दीवार पर मुक्का मारता है। "मॉम समझती क्यों नहीं है? मैं नहीं कर सकता शादी! क्यों फ़ालतू में टेंशन ले रहे हैं?" कि तभी पीछे से आवाज़ आती है—"वो मॉम है तुम्हारी, वो नहीं सोचेगी तुम्हारा तो कौन सोचेगा आद्विक...?"
(क्रमशः)
आद्विक आवाज़ सुनकर पीछे मुड़ा। उसने देखा कि उसके ठीक सामने मुस्कान खड़ी थी, उसकी बचपन की दोस्त। वह आद्विक के पास चली आई।
"मुस्कान तुम यहां?"
"हाँ मैं यहां। ये सब क्या हो रहा है आद्विक? आज ही मैं लंदन से आई और अभी पता चला मॉम से कि आंटी यहां हैं, हॉस्पिटल में। थैंक गॉड कि आंटी ठीक हैं, उन्हें कुछ नहीं हुआ। बट आद्विक, तुम क्या कर रहे हो?"
"मैं क्या कर रहा हूँ? मुझे तो जो हो रहा है वही समझ नहीं आ रहा है।" कहते हुए आद्विक ने आह भरी।
"अक्ष मिला मुझे। आंटी को होश तो नहीं आया और जो हुआ वो सब बताया उसने मुझे। मान क्यों नहीं लेते तुम आंटी की बात? कब तक चलेगा यार ऐसा?" आगे मुस्कान कुछ कहती, आद्विक बोल पड़ा- "तुम जानती हो फिर भी?"
"हाँ, पता है मुझे। सब जानती हूँ मैं। बट मॉम की खुशी भी तो देखो। तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते क्या हालात हो गए हैं यार उनकी। कहाँ है वो आद्विक चौहान जो अपनी माँ को छोटी सी तकलीफ देना तो दूर, होने के बारे में सोच भी नहीं सकता था? और आज अनजाने या जानबूझकर उनकी ना सुनकर, उनकी बात नहीं मानकर उन्हें यहां पहुंचा दिया कि उनकी जान पर बन आई है। डॉक्टर ने भी वार्न कर दिया है आद्विक, आंटी टेंशन ना लें और वो किसलिए टेंशन लेती हैं पता ना तुम्हें? तुम्हारे लिए आद्विक, तुम्हारे लिए?"
मुस्कान बोल रही थी कि आद्विक चिल्ला दिया- "बस करो मुस्कान! मैं कभी नहीं चाहूँगा मॉम को मेरे कारण कुछ हो, पर वो जो मांग रही है कैसे दे दूँ? जिसमें मेरी खुशी जैसा उनको लगता है, पर मुझे खुशी नहीं होगी वो करके जो वो चाहती हैं।"
तभी मुस्कान का फोन वाइब्रेट हुआ। "लो, अक्ष का मैसेज आ गया। लगता है आंटी को होश आ गया। और हाँ, अब डिसाइड तुम्हें करना है आद्विक। मैं जानती हूँ मेरा दोस्त अपनी मॉम की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है। अब तुम पर है, तुम्हें क्या करना है। जो भी डिसाइड करो, यही चाहती हूँ सही डिसीज़न लो तुम। मैं जाकर आंटी से मिलती हूँ। बेस्ट ऑफ़ लक।" हल्का सा मुस्कुराते हुए, आद्विक की बाहें थपथपाकर मुस्कान वहाँ से चली गई।
आद्विक अपना सिर पकड़ लिया। "नहीं, मुझसे नहीं होगा। नहीं कर सकता मैं। कभी नहीं कर सकता। नो, नेवर…!"
मुस्कान नंदिनी जी के पास चली आई। "हेल्लो आंटी, कैसे हैं आप?"
नंदिनी जी- "मुसू तुम यहां? ठीक हूँ मैं बेटा!"
"क्या आंटी? मैं तो लंदन से आई। सोचा नंदिनी आंटी, अक्ष, हम सब मिलकर पार्टी करेंगे। काफी टाइम से गेट टुगेदर जो नहीं हुआ। बट मॉम से पता चला आप यहां हो तो दौड़ी आई हूँ। पता है, मैं तो डर ही गई थी। मेरी स्वीट सी आंटी को क्या हो गया? आपकी फ्रेंड तो मंदिर गई हैं कि नंदिनी को कुछ ना हो, जल्द ठीक हो जाए। वो भी बस आते ही होंगे, फटाफट भगवान जी से मिलकर अपनी बेस्ट फ्रेंड के पास!" बोलते हुए मुस्कान ने नंदिनी जी को साइड हग कर उनके पास बैठ गई।
आनंद जी- "डोंट वरी बेटा, तुम्हारी आंटी को कुछ नहीं हो सकता है।" इस बात पर अक्ष, मुस्कान मुस्कुराते हैं, पर नंदिनी जी की नज़रें दरवाज़े पर ही टिकी हुई थीं। शायद उन्हें आद्विक का इंतज़ार था। तभी आद्विक आ गया। "कैसे हो मॉम?"
नंदिनी जी रूखे भाव से- "तुम गए नहीं बिज़नेस ट्रिप पर? मैंने तो सोचा अब तक चले गए होंगे। बहुत ज़रूरी जो है तुम्हारा काम, तुम्हारे लिए हम सबसे भी ज़्यादा। हम मरे-जिएं उससे आद्विक चौहान को क्या?"
आद्विक- "प्लीज़ मॉम… ऐसा मत कहिए।"
नंदिनी जी आद्विक से नज़रें फेर लेती हैं। तभी सुमो के साथ मिसेज़ बतरा आ जाती हैं। "क्या है नंदिनी? तू तो डरा ही देती है। ऐसा मत किया कर।"
नंदिनी जी आद्विक से नाराज़ होती हैं। वो उसे सुनाते हुए- "कभी-कभी कर लेते हैं जिन्हें हम अपना मानते हैं उनके लिए, पर किसी को तो परवाह ही नहीं, हमारे किए की?"
मिसेज़ बतरा सब समझ जाती हैं नंदिनी जी किस बारे में कह रही हैं। नंदिनी जी कुछ और कहतीं, मिसेज़ बतरा बोल पड़ीं- "बस बस, बहुत बातें हो गईं। बाकी बातें बाद में। ये देख, मैं तेरी फेवरेट खिचड़ी बनाकर लाई हूँ। चल, थोड़ी सी खा लो। सुबह से कुछ नहीं खाया। सुमो ने बताया मुझे, कुछ खाया नहीं, तभी देखो बेहोश हो गई ना!"
सुमो- "हाँ, सच में कुछ भी नहीं खाया था मैडम ने। मैंने बहुत बोला था, जूस तक नहीं पिया!"
नंदिनी जी- "मुझे अब भी नहीं खाना, ना कुछ पीना।"
सब नंदिनी जी को बोलते हैं पर वो नहीं मानतीं, साफ़ मना कर देती हैं। सब नंदिनी जी की कुछ न खाने-पीने की जिद देख आद्विक की ओर उम्मीद भरी नज़रों से देखते हैं।
आद्विक को भी अच्छा नहीं लग रहा था। नंदिनी जी पहले से तकलीफ में थीं, ऊपर से वो कुछ खा-पी भी नहीं रही थीं। वो भी उन्हें खाने-पीने को बोलता है पर वो फिर भी नहीं मानतीं। आद्विक सबसे- "प्लीज़ मॉम को समझाओ ना कोई। क्यों जिद कर रही हैं…" कि नंदिनी जी बोल पड़ीं- "ओह, तो तुम्हें लगता है इन सब को मुझे समझाने की ज़रूरत है? समझ तुम नहीं रहे हो बेटा। वैसे भी तुम्हें कुछ समझना नहीं है। तुम्हें जाना है, तू जा। मुझे जब खाना होगा खा लूंगी मैं!"
सब नंदिनी जी को फिर से खाने को कहते हैं, पर वो टस से मस नहीं हुईं। ये देख अक्ष उनसे लिपट गया। "मॉम, आपको बहू चाहिए तो मेरी शादी करवा दो। मैं कर लूँगा, पर प्लीज़ थोड़ा सा खा लो। जल्दी ठीक हो जाओगी आप…" सब बार-बार बोल रहे थे पर वो जिद नहीं छोड़ रही थीं। अपनी मॉम की हालत देख और सबको परेशान होते देख आद्विक चिल्ला दिया- "मैं शादी के लिए तैयार हूँ!"
ये सुनते ही सब आद्विक की ओर देखते हैं। नंदिनी जी जोर से बोलीं- "क्या?"
आद्विक उनके पास बैठ गया। "आप जैसा कहेगी मैं करूँगा, बट खाना खाओ पहले।"
"पक्का ना? कहीं ऐसा ना हो भाग जाए फिर?" नंदिनी जी की आँखें भर आईं। आद्विक उनकी गाल पर हाथ रखते- "नहीं जाऊँगा बस, पक्का नहीं जाऊँगा।" इतना कह वो वहाँ से जाने लगा कि और जाते-जाते रुकते फिर बोला- "मॉम, लड़की आप ही डिसाइड कर लेना, आई मीन पसंद और मुझे बता देना कब क्या करना है…" आद्विक वहाँ से चला गया।
नंदिनी जी की आँखें खुशी के मारे छलक उठीं। "मेरा बेटा मान गया! शादी के लिए मान गया!" सब खुश होते हैं, खुशी के मारे नाचने लगते हैं।
मिसेज़ बतरा नंदिनी जी से- "ले अब तो खुश, जीत गई तू! तुम्हारी जिद के आगे तुम्हारे बेटे की जिद ने घुटने टेक ही दिए आज तो। सच में बेटा जिद्दी तो मां, उससे बड़ी जिद्दी।" हँसते हुए- "ले खा अब खाना?"
नंदिनी जी हाँ में सिर हिलाते- "खाती हूँ। अब तो ज़रूर खाऊँगी। अपने बेटे की शादी करवानी है, घर जाना है। हॉस्पिटल में थोड़ी रहना है। ला सुमो, जल्दी से खिला मुझे खिचड़ी!"
सुमो- "जी मैडम!"
अक्ष- "मेरे भाई की शादी होगी!"
मुस्कान- "मेरे यार की शादी! वाव! आज तो आंटी बहुत खुश हैं मॉम…" अपनी मॉम से-
"हो भी क्यों ना? इनकी तमन्ना जो पूरी हो रही है।" क्यों मिसेज़ चौहान… आनंद जी उनके कंधे पर हाथ रख बोले। नंदिनी जी उनके हाथ पर अपना हाथ रख देती हैं। "जी आनंद जी, सच में मेरा अरमान पूरा होने जा रहा है। अब मेरे आद्विक की ज़िंदगी में भी खुशियाँ आएंगी। मान गया मेरा आद्विक…" कि तभी उनके खुशी भरे चेहरे पर परेशानी भरे भाव आ गए।
ये देख सब एक साथ बोले- "क्या हुआ?"
नंदिनी जी- "ओह नो!"
अक्ष- "व्हाट हैपन्ड मॉम?"
नंदिनी जी सबकी ओर देखते- "मैंने तो अब तक कोई लड़की ही फाइनल नहीं की। कहीं ऐसा ना हो लड़की ढूंढने में टाइम लग जाए और आद्विक का मन बदल जाए। नहीं नहीं, मुझे जल्द ही कोई लड़की ढूंढनी होगी और अपने बेटे की उससे शादी भी करवानी होगी!"
"लो, एक टेंशन ख़त्म हुई तो इनकी दूसरी शुरू हो गई।" आनंद जी बोले। इस बात पर सब हँस पड़े।
मिसेज़ बतरा- "ये मां है, हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचती रहेगी!"
आनंद जी- "ये तो है!"
तभी मुस्कान अक्ष से- "चल अक्ष, हम आद्विक को देखते हैं।" हँसते हुए- "दुल्हे मियां कहाँ हैं?"
अक्ष- "चलो!"
अक्ष- "अरे भाई कहाँ गए? दिखाई ही नहीं दे रहे?"
मुस्कान इधर-उधर देखते- "पता नहीं यार वो कहाँ गया।" और खुद से मन ही मन कहती है- "गॉड, ठीक तो होगा ना आद्विक? उसने आज जो किया है बहुत टफ था उसके लिए…" कि तभी अक्ष उससे बोला- "क्या सोच रही हो मुस्कान?"
"कुछ नहीं। चल अंदर चलते हैं!" मुस्कान हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली, कि अक्ष बोल पड़ा- "एक मिनट मुस्कान, आपको क्या लगता है जो हो रहा है सही है? भाई ने हाँ कर दी, क्या वो सही है? कुछ गलत तो नहीं है ना?"
"हम सब क्या चाहते हैं अक्ष? यही ना, आद्विक खुश रहे। जैसे वो रहता है वैसे नहीं रहे, थोड़ा बदले। शायद आंटी जो कर रही हैं वो सही है। उसकी लाइफ में कोई आएगा तो क्या पता हमें हमारे पहले वाला आद्विक वापस मिल जाए। अब जैसा है उससे वो थोड़ा बदल जाए, बदल जाए, आई मीन अच्छा चेंज आ जाए!"
"हाँ मुस्कान, ये तो सही कहा आपने। चलो, हमारे घर में शादी है। मैं तो सबको बुलाऊँगा?" अक्ष खुश होते हुए बोला।
मुस्कान- "पहले दुल्हनिया तो मिलने दो यार।"
अक्ष- "कहाँ हो मेरे ब्रदर की दुल्हन?" और दोनों हँसते हैं। हँसते-हँसते अक्ष मुस्कान से पूछता है- "आपका क्या ख्याल है मुस्कान?"
मुस्कान- "किस बारे में…?"
"भाई और किसके?" अक्ष ने कहा।
मुस्कान हँस दी। "मैंने तो अपना प्रिंस ढूंढ लिया है और आद्विक की दुल्हनिया की तो बात ही अलग होगी यार।"
"ओह, अच्छा? कौन है आपका प्रिंस? कैसा है मुस्कान जिससे आप प्यार करती हो? बताओ ना, हम आपकी और भाई की शादी एक दिन ही करवा देते हैं।" अक्ष खुश होते हुए बोला।
"रुको जा मेरी जान, सांस तो लो। पहले यार की शादी तो करवा दें, मेरी बाद में देखेंगे। अब चल?" हँसते हुए मुस्कान बोलती है और- "टेंशन मत ले, मैं शादी से नहीं डरती…" इस बात पर अक्ष मुस्कान के साथ हाई-फाइव करते हँस पड़ा!
शाम तक नंदिनी जी को हॉस्पिटल से घर ले आए। वो घर आए तो देखा वरुण और रुहानी दोनों आए हुए थे। उन्हें देख अक्ष जोर से बोला- "दी, जीजू!" आप और भागकर उनके पास आया और दोनों से मिला। बाकी सब भी मिलते हैं।
रुहानी, जो कि आद्विक-अक्ष की बड़ी बहन थी, वो नंदिनी जी के गले मिलते- "कैसे हो मॉम? डैड ने बताया आप हॉस्पिटल में हो। आप ठीक हो ना मॉम?"
नंदिनी जी रुहानी से अलग होकर उसका प्यार से सिर चूमती हैं- "हाँ मेरी रूह, बेटा मॉम ठीक है!"
तभी वरुण बोला, जो कि रुहानी का हसबैंड और घर का दामाद है- "क्या मॉम? हम तो डर ही गए थे जब सुना आप हॉस्पिटल में। जल्दी से चले आए और यहां आते ही आप ठीक हो, इसके साथ-साथ एक अच्छी खबर और भी मिल गई हमें। सुना है…" मुस्कुराते हुए- "साले मियां सहरा बंधवाने के लिए तैयार हो गए हैं!"
"हाँ जीजू, भाई रेडी हो गए।" अक्ष वरुण को साइड हग करते बोला।
रुहानी खुश हो गई- "ये तो बहुत अच्छा है। फाइनली आद्विक मान गया…" कि आनंद जी बोल पड़े- "मान गया नहीं, मनवा लिया तुम्हारी मॉम ने!"
"हाँ तो अच्छा ही हुआ ना? चलो हॉस्पिटल जाने का फायदा तो हुआ?" नंदिनी जी हँसते हुए बोलीं कि सब उन्हें घूरने लगे। ये देखकर वो अपने कान पकड़ लेती हैं- "ओके-ओके सॉरी। अब घूरो मत और हाँ, सबसे ज़रूरी काम पर ध्यान दो। जल्दी लड़की बताओ, कोई है नज़र में जो मेरे आद्विक की दुल्हन बनने लायक हो?"
कि मिसेज़ बतरा बोल पड़ीं- "एक लड़की है मेरी नज़र में…"
(क्रमशः)
मिसिज बतरा ने कहा, "एक लड़की है मेरी नजर में?"
मुस्कान हँसते हुए बोली, "तो नजर को खोलो मॉम, अब तक क्यों बंद कर रखी थी?"
नंदिनी जी बोलीं, "सही कह रही है मुस्कान। बता जल्दी?"
मिसिज बतरा ने कहा, "कल रात ही पता चला। आज मिलकर बताने वाली थी मैं, पर नंदिनी हॉस्पिटल पहुँच गई, तो नहीं बता पाई। पर अब बता रही हूँ।"
आनंद जी बोले, "बताइए, बताइए?"
"मुस्कान के पापा के दोस्त हैं संजय जी। उनके साले की बेटी है, नाम है श्री, श्री ठाकुर।" बोलते हुए मिसिज बतरा ने अपने फ़ोन में श्री की फ़ोटो निकाली और वो सबको दिखाई। "ये है लड़की की फ़ोटो। बहुत ही प्यारी और अच्छी लड़की है!"
सब फ़ोटो देख लड़की की तारीफ़ करने लगे। नंदिनी जी मुस्कुराते हुए बोलीं, "लड़की तो बहुत खूबसूरत है!"
मिसिज बतरा ने कहा, "खूबसूरत ही नहीं, टैलेंटेड भी बहुत है। फ़ैशन डिजाइनर है। जितना सुना है लड़की के बारे में, मुझे तो पसंद आ गई आद्विक के लिए। बाकी नंदिनी, तुम मिलकर देख लो लड़की से और उसके परिवार से। और क्या पता? आद्विक के लिए ये लड़की सही हो। मिलेंगे खुद जाकर तो और पता चल जाएगा कैसी है श्री। मुस्कान के पापा तो कह रहे थे बहुत अच्छी है, वो तो देख चुके हैं। परिवार भी बहुत अच्छा है, एक-दो बार मिल भी चुके हैं!"
ये सुनते ही नंदिनी जी सोफ़े से खड़ी होकर फट से बोलीं, "तो अभी चलें?"
किन्तु आनंद जी बोल पड़े, "रुको जाओ। माना आपको बहुत जल्दी है बेटे की शादी की, पर टाइम देखो। शाम के पाँच बज रहे हैं। इस वक़्त जाना सही नहीं। बताना भी तो होगा पहले उन लोगों को हमारे आने के बारे में। ऐसे ही तो नहीं जा सकते हैं हम नंदिनी। हम कल जाएँगे!"
नंदिनी जी हाँ में सिर हिलाकर वापस सोफ़े पर बैठ गईं और जोर से बोलीं, "ये कल कब होगा?"
ये सुनकर सब हँस पड़े।
"दी, आप रोज मुझे कॉलेज छोड़ते हो और फिर मुझे कॉलेज से लाते हो?" श्री गाड़ी चला रही थी। उसकी बगल वाली सीट पर सृष्टि, श्री की छोटी बहन, बैठी हुई थी।
"हाँ, तो?" सृष्टि की बात पर श्री मुस्कुराते हुए बोली।
"आप बोर नहीं होती क्या रोज-रोज? अपने स्टूडियो से मेरे कारण जल्दी निकलती हो? कितना परेशान होती हो। इससे अच्छा मेरे पास भी कार होती, तो आपको मुझे ले जाने-लाने की टेंशन नहीं होती। कितना अच्छा होता, है ना दी?" सृष्टि ने एक ही साँस में कहा।
"ओह, मैडम! मेरी फ़िक्र करने वाली? इतनी ही फ़िक्र हो रही है तो अपनी स्कूटी पर जाया करो। मुझे पता है तू क्यों कह रही है कार होती।" बोलते हुए श्री ने सृष्टि का कान खींच लिया।
सृष्टि अपना कान छुड़ाकर हँस दी। "दी, आप तो एक हज़ारों में मेरी बहन हो!"
श्री ने घर के लॉन में गाड़ी रोकी। "अच्छा, अब ज़्यादा मक्खन मत लगा। मुझे पता है सब। एक हज़ारों में मेरी बहन। चल, उतर गाड़ी से। और हाँ, अभी तुम्हें कोई कार नहीं मिलेगी। कल से स्कूटी से ही जाना।"
श्री गाड़ी से उतर गई। सृष्टि भी गाड़ी से बाहर निकल आई। "पर दी, मुझे आती है कार चलाना। आपने ही तो सिखाई है ना? कहते हैं जो गुरु अपने शिष्य को सिखाते हैं, उन्हें अपने शिष्य पर भरोसा भी करना चाहिए।" मुस्कुराते हुए श्री के सामने हाथ जोड़कर बोली, "अपना गुरु धर्म निभाओ दी, पापा को बोलो ना आप?"
श्री ने मना करते हुए कहा, "नहीं सृष्टि। हाँ, मैंने तुम्हें सिखाया है कार ड्राइव करना, पर पहले तुम ना अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ, फिर ले आना कार। ओके!"
सृष्टि हँस दी। "पैरों पर ही तो खड़ी हूँ दी, और कहाँ खड़ी हूँ? देखो..." कहते हुए सृष्टि अपने पैरों की ओर इशारा करती है। ये देख श्री उसे घूरने लगी। "अब तो तुम खुद ही लाना अपने पैसों से कार। हम नहीं देंगे कुछ भी, ना कार ना कार लाने के लिए पैसे।" श्री घर के अंदर की ओर तेज कदमों से बढ़ गई।
सृष्टि लगभग श्री के पीछे भागते हुए बोली, "सॉरी दी, सॉरी दी! बट दी, आप बहुत कंजूस हो। कोई बात नहीं, मैं खुद ले आऊँगी। अपने पैरों पर खड़ी होकर कार। खुद की कार। और वैसे भी आपकी शादी के बाद तो ये आपकी कार मेरी ही कार है। फिर कौन रोकेगा सृष्टि ठाकुर को कार चलाने से?" इस बात पर खुश होकर सृष्टि कूदने लगी।
श्री ने उसे रोका। "मेरा बच्चा, ज़्यादा उड़ो मत। ये कार मेरी शादी के बाद मैं अपने साथ अपने ससुराल ले जाऊँगी। तू अपनी स्कूटी में ही खुश रहो। और हाँ, चलो अब अंदर। तेरी बातें ख़त्म ही नहीं होती।" कहकर श्री आगे बढ़ गई।
सृष्टि मुँह बनाते हुए बोली, "हे भगवान! ऐसी बहन किसी को ना देना!" श्री ने चलते-चलते पीछे मुड़कर उसे आवाज़ दी, "आजा नोटंकी, तेरा फ़ेवरेट शेक बनाकर दूँगी!"
सृष्टि खुश होकर बोली, "भगवान जी! ऐसी बहन सिर्फ़ मुझे ही देना, हर जन्म। लव यू दी, आई आई..." कहकर वो भागी।
दोनों अंदर आईं तो देखा हॉल में उनकी माँ (पल्लवी जी), पापा (राकेश जी) और बड़ा भाई (पूरब) बैठे हुए थे। ये देख सृष्टि हँसते हुए बोली, "क्या बात है आज सब एक साथ? मॉम, आपके हाथ में क्या है?"
पल्लवी जी बोलीं, "हमारी श्री के लिए रिश्ता आया है। फ़ोटो देख रहे हैं लड़के की।"
(आद्विक चौहान की फ़ोटो वहाँ आ चुकी थी और श्री की फ़ोटो जा चुकी थी!)
श्री फट से बोली, "क्या? सच में?" और अपनी माँ से फ़ोटो लेने के लिए आगे बढ़ी, पर फ़ोटो लेती पल्लवी जी से पहले सृष्टि ने फ़ोटो ले ली। "हम भी तो देखें कौन है? कैसा है? लायक है भी या नहीं लड़का हमारी बहन के लिए? किसकी किस्मत इतनी खराब है जिसका श्री ठाकुर से रिश्ता जुड़ेगा?"
राकेश जी बोले, "बेटा, ऐसा नहीं कहते!"
"पापा, हम मज़ाक कर रहे हैं। वैसे ये लड़का..." फ़ोटो की ओर देखते हुए बोली, "...इसकी नाक देखो कितनी लंबी है और बाल...ओह नो! बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं। आजकल भी ऐसे कोई रहता है क्या? ये लड़का मेरी दी के लिए? नहीं-नहीं, कभी नहीं!"
श्री सृष्टि की तरफ़ आते हुए बोली, "मुझे भी तो दिखाओ ना?"
सृष्टि दूसरी तरफ़ भाग गई। "क्या करोगी देखकर दी? बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। क्यों भैया?" पूरब से पूछा।
पूरब हाँ में सिर हिलाते हुए बोला, "हाँ, सही कह रही है सृष्टि। ये लड़का बिल्कुल भी..." गन्दा सा मुँह बनाते हुए बोला, "...अच्छा नहीं है!"
ये सुन श्री ने पूरब को घूरा। "आप तो रहने ही दो पूरब भैया। आप ठहरे ब्रह्मचारी, आपको क्या पता रिश्ता कैसा आया है? आई मीन लड़का कैसा है? वैसे भी आप तो शादी से भागते हो, तो आपको कुछ पता नहीं शादी किससे करनी चाहिए। और ये सृष्टि, इसको तो वैसे भी कुछ नहीं पता। फ़ोटो देखकर इंसान को जज नहीं किया जाता है। शक्ल अच्छी नहीं भी है तो क्या हुआ, इंसान तो अच्छा हो सकता है..." फ़ोटो न दिखाने का गुस्सा श्री पूरब और सृष्टि दोनों पर उतार देती है और गुस्से से सृष्टि की ओर जाती है। "सृष्टि, दिखा रही हो या नहीं हमें फ़ोटो?"
पूरब हँस दिया। "मैडम का गुस्सा तो देखो! ओह एम जी! शादी की इतनी खुशी, लड़के की फ़ोटो देखने के लिए इतनी बेताब! पागल है हमारी श्री तो!"
सृष्टि श्री को अपनी ओर आते देख फिर दूसरी तरफ़ भाग गई। "नहीं दिखा रही दी, क्या करोगी?"
पूरब और सृष्टि दोनों हँस रहे थे, श्री को परेशान कर रहे थे। श्री का उतावलापन देख उन्हें बहुत मज़ा आ रहा था। दोनों उसे अपने पीछे इधर से उधर दौड़ा रहे थे। आद्विक की फ़ोटो कभी सृष्टि के हाथों में होती तो कभी पूरब के हाथों में। श्री के हाथों में अभी तक नहीं आई थी। उसके हाथ खाली थे, नज़रें बेचैन कि कब आद्विक की फ़ोटो उसके हाथों में आए और उसे देखने को मिले।
श्री दोनों के पीछे भागते-भागते थक गई और राकेश जी से बोली, "पापा, कहो ना इन्हें, मुझे परेशान न करें?"
राकेश जी बोले, "अरे, क्यों इतना परेशान कर रहे हो मेरी शहज़ादी को? बहुत हो गया। दिखाओ फ़ोटो इसे। चलो सृष्टि, फ़ोटो दो। खुशी नहीं दिख रही है मेरी लाडली की। वैसे श्री बेटा, रिश्ता आया है तुम्हारे लिए तो तुम इतनी खुश हो, जिस दिन तुम्हारी शादी होगी उस दिन तो लगता है तुम्हारी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहेगा, है ना?"
इस बात पर श्री शर्मा गई और सब हँस पड़े। सबको हँसता देख श्री मुँह बना देती है। "क्या पापा, आप भी! ठीक है, मत दिखाओ। जब लड़का खुद आएगा तभी देख लूँगी मैं। फ़ोटो आई है तो लड़का भी तो आएगा ना..." बोलकर श्री अपने कमरे की ओर बढ़ गई और जाते-जाते सृष्टि से बोली, "तू ही देख फ़ोटो जी भरकर..."
"ओ तेरी!" बोलते हुए सृष्टि ने भागकर श्री को रोका। "रुको-रुको मेरी जान, मेरी प्यारी दी! रिश्ता आपके लिए आया है, आप ही देखो। वैसे साली को तो जीजू पसंद हैं, अब आपकी बारी (श्री के हाथ में फ़ोटो रखते हुए) लड़के को पसंद करने की?"
श्री फ़ोटो की ओर देखती है। अभी जो गुस्से से चेहरा लाल था, देखते ही फ़ोटो को खिल सा उठा चेहरा और होठों पर मुस्कराहट आ गई। सबकी नज़रें श्री पर टिकी हुई थीं तो श्री की नज़रें फ़ोटो पर।
पल्लवी जी श्री के पास आईं और उसकी गाल पर हाथ रखकर बोलीं, "बोलो बेटा, कैसी लगी तस्वीर?"
श्री कुछ भी कहती, सृष्टि बोल पड़ी, "क्या मॉम? तस्वीर थोड़ी देखी है दी ने? तस्वीर के अंदर जो है उसे देखा है दी ने। तस्वीर के बारे में नहीं, तकदीर के बारे में पूछिए कैसी लगी। ये लड़का तकदीर हो सकता है ना मेरी दी, क्यों दी?" सृष्टि श्री को छेड़ते हुए उसके कंधे से अपना कंधा लगाते हुए बोली तो श्री की शर्म से नज़रें झुक गईं। मुस्कराहट तो उसकी रह-रह कर बढ़ ही रही थी, जो सबको दिखाई दे रही थी। तभी राकेश जी बोल पड़े,
"आप सबको श्री की हाँ नहीं दिख रही है क्या? चेहरा देखो मेरी बेटी का। साफ़-साफ़ तो पता चल रहा है लड़का पसंद है इसे?"
"हाँ पापा, मुझे तो ये भी दिख रहा है। ये चाहती है इस लड़के के साथ कल ही इसकी शादी कर दे। इसकी यहाँ से विदाई कर दो।" कहते हुए पूरब हँस दिया। श्री ने उसी पल उसकी ओर देखा। "क्या भैया, आप भी ना! और ऐसे थोड़ी कल ही शादी?"
राकेश जी बोले, "हाँ-हाँ, ऐसे ही शादी। बहुत धूम-धाम से शादी करेंगे हम हमारी श्री की। क्यों पल्लवी जी? सही कहा ना!"
"जी हाँ, अपने हाथों से सजाकर मैं अपनी बेटी को दुल्हन बनाऊँगी।" कहकर पल्लवी जी ने श्री को गले से लगा लिया!
सब मुस्कुराते हैं और राकेश जी श्री से पूछते हैं, "तो कल बुला लें लड़के वालों को?"
ये सुन श्री मुस्कुराती-शर्माती वहाँ से चली जाती है। ये देख पूरब आह भरते हुए बोला, "लो! अभी तो शादी के लिए एक्साइटेड थी और अब शर्माना। मुझे तो समझ ही नहीं आती है ये लड़कियाँ!"
सृष्टि हँस दी। "आएगी भी नहीं भैया, समझ आती तो आज हमारे साथ हमारी भाभी होती!"
पल्लवी जी बोलीं, "हाँ, ये तो है। बहु होती घर में, क्यों राकेश जी?"
"हाँ जी, पता नहीं इसे आज तक कोई लड़की पसंद क्यों नहीं आई। हमारा बेटा सच में तो कुँवारा नहीं रहेगा ना? एक हमारा टाइम था, खासकर मेरा। मैं तो शादी का नाम सुनकर ही झूमने लगता था।" बोलते हुए राकेश जी हँस दिए।
पूरब बोला, "हाँ, नहीं आती पसंद और मुझे नहीं करनी अभी शादी।" अपनी माँ के गले लगते हुए बोला, "ये भी सच है पापा, आपको मेरी माँ मिली है। अगर माँ जैसी कोई हुई तो सोचूँगा मैं शादी करूँ या नहीं?"
राकेश जी पल्लवी जी की ओर देखते हुए बोले, "मुमकिन ही नहीं है कोई इनकी जैसी?"
पल्लवी जी हँस दीं। "अच्छा जी!"
तभी सृष्टि पूरब के कंधे पर अपनी कोहनी टिकाते हुए बोली, "तो भैया, आप सच में ब्रह्मचारी रहेंगे?"
पूरब ने कंधा झटका दिया। "जी नहीं मैडम! पहले तुम्हें इस घर से निकालूँगा फिर अपनी रानी लाऊँगा!"
सृष्टि की हँसी छूट गई। "रानी और आप? देगा कौन? आए बड़े रानी लाऊँगा?" सृष्टि पूरब को चिढ़ाकर वहाँ से भाग गई। पूरब पीछे भागा। "रुको, तुझे बताता हूँ। छोटी, तेरी जुबान सच में बहुत चलने लगी है!"
बच्चों की मस्ती देख राकेश जी और पल्लवी जी हँस दिए और पल्लवी जी राकेश जी से बोलीं, "जी, सुनिए आप लड़के वालों को बोल दीजिए कल का? मैं भी जाकर खाना बनाती हूँ..." कहकर वो किचन की ओर चली जाती है और राकेश जी भी मिसिज बतरा को फ़ोन करके लड़के वालों को कल आने के लिए हाँ कर देते हैं। मिसिज बतरा को इसलिए क्योंकि वो ही तो ये रिश्ता करवा रही थी, आद्विक का श्री से!
उसी रात
श्री आद्विक चौहान की फ़ोटो की ओर देख रही थी कि तभी सृष्टि रूम में आ जाती है। "क्या दी? अभी भी आद्विक चौहान की फ़ोटो निहार रही हो?"
श्री ने फ़ोटो को उसी पल किताब में रख दिया। "नहीं तो। मैं तो अपने डिज़ाइन देख रही हूँ।"
"अच्छा, तो आप फ़ोटो नहीं देख रही थीं। चलो कोई बात नहीं। वो मैंने तो सोचा था कि एक ही फ़ोटो को बार-बार क्या देखना? जाकर अपनी दी को फ़ेसबुक अकाउंट दिखा देती हूँ आद्विक जीजू का? वहाँ तो बहुत सारी पिक होगी ना आद्विक चौहान की। चलो छोड़ो, आपको तो फ़ोटो देखनी ही नहीं है ना। आप डिज़ाइन देखो दी।" मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोली, "अपने डिज़ाइन देखो।"
ये सुनते ही श्री चेयर से उठ गई। "क्या? फ़ेसबुक अकाउंट? तुझे कैसे पता चला और किस नाम से है उनका फ़ेसबुक अकाउंट?"
"सृष्टि ठाकुर के लिए कौन सा मुश्किल है दी? कुछ भी पता करना। पर आपको क्या करना है दी?"
"अब बताएगी या नहीं? कैसे पता किया?" श्री सृष्टि के पास चली आई और एक्साइटेड होकर बोली, "किस नाम से है उनकी आईडी? उनके नाम से है?"
सृष्टि हँस दी। "आपको जानना है, पर क्या? आद्विक चौहान की आईडी के बारे में या उनकी आईडी उनके नाम से है या नहीं?"
श्री सृष्टि को घूरती है तो सृष्टि उसे पकड़कर बेड पर बिठा देती है। "ओके बाबा, बताती हूँ-बताती हूँ। वो उनकी आईडी है उनके नाम से, आद्विक चौहान नाम से। और मैंने पता किया मुस्कान के अकाउंट से। मुझे रानी (उनकी बुआ की लड़की) ने बताया दी फ़ेसबुक अकाउंट के बारे में। रानी और मुस्कान के पापा दोस्त हैं, आई मीन मामा जी के दोस्त हैं मुस्कान के पापा। उन्हीं के थ्रू तो आपके लिए आद्विक चौहान का रिश्ता आया है। मैंने सुना है दी, वो मुस्कान, आद्विक जीजू की दोस्त है जो कि लंदन से आई है, बतरा आंटी की बेटी। बतरा आंटी वही जो आपका रिश्ता करवा रही है!"
ये सुन श्री हँस दी। "ओह एम जी! तू तो सीआईडी जैसे सारी खबर ले आई?"
सृष्टि इतराते हुए बोली, "सब आपके लिए महोदया। सोचा कुछ फ़ायदा हमें भी हो जाएगा?"
"चल, चल! लाओ लैपटॉप और जल्दी से आईडी खोल।" श्री अपना लैपटॉप सृष्टि को देते हुए बोली। "हाँ, लाओ।"
कहते हुए सृष्टि ने लैपटॉप लिया और आद्विक चौहान का फ़ेसबुक अकाउंट ओपन किया। "ये रहा दी, आद्विक चौहान। रिक्वेस्ट भेजें?"
श्री लैपटॉप पर नज़रें जमाए हुए बोली, "नहीं, अभी रहने दे। पहले आईडी तो देख लें।"
सृष्टि आईडी चेक करके हैरानी से श्री की तरफ़ देखती है। "ये क्या? लास्ट अपलोड पिक पाँच साल पहले की है?"
श्री ने कहा, "हम्म, पिक भी ज़्यादा नहीं है। सिर्फ़ प्रोफ़ाइल फ़ोटो है!"
सृष्टि मुँह बनाते हुए बोली, "लगता है दी, बोरिंग टाइप का बंदा है दी। दिखने में ही आद्विक चौहान इंटरेस्टिंग है बाकी न लगता। देखो कुछ नहीं इनकी प्रोफ़ाइल में तो?"
श्री आद्विक के बारे में सोचते हुए बोली, "हो सकता है पसंद ना हो फ़ेसबुक वगैरह?"
"रहने दो दी। ओह! एक मिनट। तो साइड लाई जा रही है? क्या बात है? पर दी, सच्ची में हज़म नहीं हुई ये बात। आज के टाइम में इतना बड़ा बिज़नेस मैन, टॉप वन में नाम आता है आद्विक चौहान का और फ़ेसबुक पर एक्टिव ही नहीं। दी, सोशल मीडिया आजकल सबकी पसंद है और आद्विक चौहान तो दूर-दूर तक नज़र ही नहीं आ रहे। नो सोशल अकाउंट?"
ये सुन श्री वहाँ से उठ गई और टेबल के पास आकर किताब से आद्विक की फ़ोटो निकालकर उसे देखते हुए मुस्कुरा दी। "ज़रूरी तो नहीं जो सबको पसंद हो, वो इसे भी पसंद हो।"
"पर दी..." सृष्टि ने कहा कि श्री बोल पड़ी, "परवर कुछ नहीं। चल अब लैपटॉप बंद कर और हम सोते हैं। सुबह लड़के वाले भी आएंगे, मॉम ने बोला है जल्दी सोने का।"
सृष्टि हँस दी। "तो कौन सा मुझे देखने आ रहे हैं?"
श्री भी हँस दी। "अच्छा, अगर तुम्हें देखने आते तो मैडम?"
"तो मैं तो पूरी रात न सोती। अभी से ही तैयारी में लग जाती। और हाँ, फ़ेसबुक अकाउंट तो होना ही चाहिए उस लड़के का जिसका रिश्ता मेरे लिए आएगा। मैं तो पहले ही पूछ लूँगी। अकाउंट है तो ही हाँ, नहीं तो और ढूँढो कोई।"
ये सुन श्री ने सृष्टि के आगे हाथ जोड़ लिए। "बस कर पागल! अब सो जा। बहुत ज़्यादा डिमांडिंग हो तुम। मुझे तो यार अभी से बहुत तरस आता है उस लड़के पर जिसके गले सृष्टि नाम की आफ़त पड़ेगी!"
इस बात पर दोनों बहनें खिलखिलाकर हँस पड़ीं और सोने को बेड पर लेट गईं। सृष्टि श्री से बोली, "ओके दी, गुड नाईट। बहुत काम है कल, मेहमान आएंगे तो अब सो जाओ।" कहकर सृष्टि ने अपनी तरफ़ की लाइट बंद कर दी।
श्री अपनी साइड सो जाती है पर लाइट ऑफ़ नहीं करती क्योंकि उसे बिना लाइट नींद नहीं आती। तभी उसने एक बार फिर से आद्विक चौहान की फ़ोटो अपने हाथों में थाम ली। "ऐसा क्यों लगता है जैसे मैं तुम्हें जानती हूँ?"
(क्रमशः)
श्री ने आद्विक को लेकर जो कहा, वह सृष्टि ने सुन लिया। "आप कैसे जानती हो दी? (हँसते हुए) इनकी तो फेसबुक आईडी भी नहीं..."
श्री: "तू ना चुपचाप सो जा, नहीं तो मार खाएगी मुझसे?"
"वैसे दी, नहीं भी जानती हो तो कल जान जाओगी आद्विक जीजू को..." इतना बोलकर सृष्टि सो गई।
श्री ने फोटो की ओर देखते हुए मन ही मन कहा, "हाँ कल मिलेंगे हम। फोटो से लगता है थोड़े से शरारती हो, ज्यादा नहीं। थोड़े से हाँ। (मुस्कुराते हुए) तुम्हारे फेसबुक अकाउंट पर तुम्हारी कोई और पिक नहीं है तो क्या हुआ? मेरे लिए एक यही फोटो ही बहुत है। गुड नाइट हैंडसम, सी यू टूमोरो।" और फिर तकिये के नीचे पिक रखकर श्री सो गई।
उधर, मिसेज बतरा ने नंदिनी जी को कॉल करके बता दिया कि वे कल लड़की देखने जा सकते हैं। इस बात से सब बहुत खुश हो गए। अगले दिन सभी लड़की वालों के यहाँ जाने के लिए तैयार हो गए; आद्विक चौहान के लिए लड़की देखने जाने के लिए। नंदिनी जी ने अक्ष को आवाज़ दी, "अक्षू, आद्विक कहाँ है?"
अक्ष: "भाई, पता नहीं मॉम, कहाँ है?"
यह सुनकर आनंद जी बोले, "कहीं चला तो नहीं गया?"
नंदिनी जी ने उन्हें टोका, "क्या जी? शुभ-शुभ बोलो। ऐसे कैसे कहीं चला गया? हम सब यहाँ तैयार हैं और जिसके लिए लड़की पसंद करने जाना है, उसकी कोई खबर ही नहीं। हे भगवान, कुछ गड़बड़ मत होने देना?" कहते हुए नंदिनी जी परेशान हो गईं। तभी अक्ष बोला, "अरे मॉम, कूल डाउन। आपको टेंशन नहीं लेनी, पता है ना?"
"सुमो, देख कहाँ है आद्विक?" रूहानी ने सुमो से कहा। तो सुमो, अक्ष और वरुण तीनों जाकर आद्विक को ढूँढ़ने लगे, पर वह ना रूम में था और ना ही घर में कहीं...
इधर आद्विक की कोई खबर नहीं थी। उधर, पल्लवी जी सृष्टि के साथ श्री के कमरे में आईं तो देखा कि वह, यानी श्री, अभी तक सो रही थी।
सृष्टि ने श्री की ओर इशारा करते हुए कहा, "लो, रात को कह रहे थे मुझे कि सुबह जल्दी उठना है, और देखो मॉम, अभी तक खुद दी सो रही है!"
पल्लवी जी ने श्री को उठाया, "उठो बेटा, देर हो रही है..." पर वह नहीं उठी, सोती ही रही। यह देख पल्लवी जी सृष्टि को डाँटने लगीं, "तुम्हें बोला था ना उठा देना इसे?"
"क्या मॉम? मैंने बोला था दी से उठने को? मुझे लगा उठ गई होंगी, पर ये तो घोड़े बेचकर सो रही हैं।" कहते हुए सृष्टि हँसने लगी।
पल्लवी जी फिर श्री को उठाती हैं, "उठो बेटा! कब तक सोओगी? जल्दी उठो, लड़के वाले आते ही होंगे। आठ बज चुके हैं, उठो बेटा!" "लड़के वाले आते ही होंगे" सुनते ही श्री फट से उठ बैठी। "लड़के वाले आ गए? मुझे उठाया क्यों नहीं? सृष्टि किसी काम की नहीं है तू, बातें कितनी ही करवा लो तुमसे, कम से कम मुझे उठा तो देती?" बोलते हुए श्री बिस्तर से नीचे उतर गई।
पल्लवी जी: "बेटा, अभी नहीं आए हैं लड़के वाले, पर आ जाएँगे घंटे भर में।"
यह सुन श्री ने अपना सिर पकड़ लिया, "घंटे भर में? (सृष्टि को घूरते हुए) सारी गलती तेरी है, उठा देती तो रेडी हो जाती मैं वक्त से। अब घंटे भर में रेडी कैसे होऊँगी, बता मुझे?"
"लो, उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे। मैंने उठाया था दी को बाहर जाने से पहले, पर आप पता नहीं किन ख्वाबों में खोई हुई थीं जो सोती ही रहीं। वैसे दी, आप किसके सपने ले रही थीं? बोलो, बोलो..." सृष्टि श्री को छेड़ते हुए बोली, तो श्री ने उसके सिर पर चपत लगा दी। "चुप कर! एक-दो बार और ट्राई करती तू तो मैं उठ जाती। इतना भी घोड़े बेचकर नहीं सोती हूँ, समझी!"
और दोनों बहनें तू-तू मैं-मैं करने लगीं। पल्लवी जी ने उन्हें रोका, "कोई बात नहीं, अब दोनों ऐसे लड़ो मत। लो, कॉफी पियो।" (टेबल से मग उठाकर श्री की ओर बढ़ाते हुए) "और जल्दी तैयार हो जाओ।"
"मुझे नहीं चाहिए मॉम, मुझे तैयार होना है..." कहकर श्री वाशरूम में चली गई। उसके जाते ही सृष्टि हँस पड़ी, "एक्सप्रेस दी! अब देखना मॉम, दी कितनी जल्दी रेडी होती है।"
"हँसना बंद करो, देखो कॉफी भी नहीं पी अब इस लड़की ने?" पल्लवी जी परेशान होते हुए बोलीं, तो सृष्टि उनके पास चली आई। "कोई बात नहीं मॉम, ये कॉफी वेस्ट नहीं जाएगी, लाइए मैं पी लेती हूँ।" बोलते हुए सृष्टि पल्लवी जी के हाथों से कॉफी मग ले लेती है।
"हाँ, तू ही पी, वो तो पिएगी नहीं। मैं जाती हूँ, काम बचे हैं बहुत सारे, लड़के वालों के आने से पहले निपटाने हैं..." बोलते हुए पल्लवी जी वहाँ से चली गईं, पर जाते-जाते सृष्टि से कह गईं, "दीदी की हेल्प कर देना, हेल्प ही करना, ओके? और कुछ नहीं। उसको परेशान मत करना, समझ गई?"
सृष्टि ने हाँ में सिर हिला दिया और पल्लवी जी वहाँ से चली गईं। उनके जाते ही सृष्टि खुद से बोली, "मैं और दी को परेशान कभी नहीं, कभी नहीं।" बोलते हुए मंद-मंद हँसते हुए कॉफी पीने लगी।
श्री वाशरूम से बाहर आते ही अपनी अलमारी के सामने जा खड़ी हुई, "क्या पहनूँ, क्या पहनूँ?" एक-एक करके वह सारी ड्रेस आईने के सामने आकर खुद पर लगाकर देखती है। जो अच्छी नहीं लगती, उन्हें वह बिस्तर पर फेंक देती है, अलमारी से दूसरी ड्रेस निकालकर ले आती है, पर उसे कोई भी ड्रेस पसंद नहीं आती। "एक भी ड्रेस अच्छी नहीं है, समझ ही नहीं आ रहा आज मैं क्या पहनूँ?"
सृष्टि: "कुछ भी पहन लो दी, सब तो अच्छा लगता है आप पर।"
"ऐसे कैसे कुछ भी पहन लूँ?" श्री बोली, तो सृष्टि हँस पड़ी, "क्या फर्क पड़ता है दी? जैसे रोज लगते हो, वैसे ही आज लगोगे। खराब, मेरे से कम सुंदर, तो कुछ भी पहन लो, आपको चलेगा दी।"
यह सुन श्री को गुस्सा आ गया। वह हाथ में पकड़ी ड्रेस बिस्तर पर पटककर सृष्टि के पास चली आई। "तू, तू बाहर जा!"
सृष्टि जोर से बोली, "क्या?"
श्री: "हाँ, मैंने कहा बाहर जा!"
"दी, दी मैं तो मज़ाक कर रही थी। आप कुछ भी पहनें, ब्यूटीफुल ही लगोगी। ये ड्रेस देखो, इसमें तो आप बहुत प्यारी लगोगी।" सृष्टि बिस्तर से एक ड्रेस उठाकर उसे श्री के सामने करती है। "ये पहन लो दी और रेडी हो जाओ, लड़के वाले आपको पसंद करके ही जाएँगे। टेंशन मत लो (हँसते हुए) आप सृष्टि की बहन हो, सृष्टि ठाकुर की, आपको कोई नापसंद कर ही नहीं सकता।"
"अच्छा," श्री मुस्कुराते हुए बोली और सृष्टि के हाथ से ड्रेस लेकर उसे कमरे से बाहर निकालने लगी। सृष्टि उसे रोकने की कोशिश करती है, "दी, मैं मज़ाक कर रही थी, सच्ची मज़ाक, और मैं तो सिर्फ़ आपकी हेल्प कर रही थी दी..."
"नहीं चाहिए हेल्प, मैं खुद कर लूँगी, मुझे पता है तेरी हेल्प का।" बोलते हुए श्री उसे बाहर निकालकर दरवाज़ा बंद कर देती है। वह दरवाज़ा खटखटाती है, "दी, खोलो ना, पक्का कुछ नहीं बोलूँगी, मज़ाक भी नहीं करूँगी, हेल्प ही करूँगी। खोलो दी, प्लीज़ सॉरी, मेरी प्यारी दी हो ना, खोल दो दरवाज़ा?"
नौ बजने ही वाले थे। दस बजे लड़के वालों को लड़की वालों के घर पहुँचना था, पर लड़का कहाँ था, इसकी कोई खबर नहीं थी। घर में कहीं पर भी आद्विक नहीं मिला तो नंदिनी जी ने अक्ष से कहा, "अक्षू, फिर से तुम फ़ोन लगाओ आद्विक को, वो ऐसा नहीं कर सकता है!"
वरुण: "मॉम, आप टेंशन मत लो, फिर हेल्थ खराब हो जाएगी आपकी। मैं अभी भाई को कॉल करता हूँ!"
"हाँ नंदिनी, आप टेंशन मत लीजिए, अक्ष फ़ोन कर रहा है ना!" आनंद जी भी बोले।
अक्ष आद्विक को फ़ोन कर रहा था, जो अभी भी बंद आ रहा था। "भाई का फ़ोन अभी भी स्विच ऑफ़ आ रहा है।" सबकी परेशानी कम होने की जगह और बढ़ती जा रही थी। सबसे ज़्यादा परेशान तो नंदिनी जी हो गई थीं। तभी सुमो जोर से बोली, "बड़े भैया आ गए?"
सुमो की आवाज़ सुन सबका ध्यान बाहर से आ रहे आद्विक की ओर गया। सब खुश हो जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराने लगे। आद्विक अंदर आकर सबकी ओर देखता है, "क्या हुआ? क्योंकि सब उसे देखकर बहुत ज़्यादा खुश हो गए थे!"
अक्ष आद्विक की ओर आते हुए बोला, "भाई, आप कहाँ थे?"
"जहाँ रोज़ होता हूँ इस टाइम, जिम। और कहाँ हूँगा?" आद्विक ने सामान्य रूप से कहा, तो रूहानी उससे बोल पड़ी, "क्या आद्विक, आज भी तुमको जिम जाना ज़रूरी था क्या?"
यह सुन आद्विक हैरान हो गया, "आज क्या है ऐसा, जो मैं जिम नहीं जाता?"
तभी रूहानी उसके पास चली आई और उसकी गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए बोली, "पागल, आज हमें कहीं पर जाना है ना?"
आद्विक हैरानी से, "कहीं जाना है?"
आनंद जी भी आद्विक के पास चले आए, "हाँ बेटा, हम तो डर ही गए थे, फ़ोन भी तुम्हारा बंद आ रहा था!"
वरुण हँस दिया, "लगता है साले साहब का फ़ोन बंद हो गया होगा, मेरा मतलब फ़ोन की बैटरी खत्म, तभी तो स्विच ऑफ़ आ रहा था। सही कहा ना साले साहब? पर चलो अच्छा है तुम आ गए!"
नंदिनी जी आद्विक के पास आकर उसे गले से लगा लेती हैं, "शुक्र है तुम यहीं थे (दूर होते हुए) और टाइम से आ भी गए। जाओ बेटा, अब जल्दी से तैयार हो जाओ, हम कब से वेट कर रहे हैं तुम्हारा। अब जल्दी करो!"
आद्विक अभी भी हैरान था। वह सबकी ओर देखते हुए बोला, "कहाँ जाना है? आप लोग मेरा वेट क्यों कर रहे थे? रेडी हो जाऊँ, जल्दी करूँ? किसलिए?"
अक्ष हँस दिया, "भाई, आपके लिए लड़की देखने जा रहे हैं, और किसलिए?"
आद्विक चौंक उठा, "क्या? नहीं, मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ। मॉम, डैड, प्लीज़, मुझे नहीं जाना कहीं!"
आनंद जी: "यह क्या कह रहे हो? तुम नहीं जाओगे बेटा!"
"मैं नहीं जाऊँगा डैड, मुझे और भी काम है।" बोलकर आद्विक वहाँ से जाने लगा कि नंदिनी जी बोल पड़ीं, "मुझे पता था ये मना ही करेगा। अच्छे से जानती हूँ मैं इसको, पता था कोई न कोई तो बहाना बनाएगा ये लड़का, काम है बोलेगा हमें और मना कर देगा..."
(क्रमशः)
नंदिनी जी की बात सुनकर आद्विक रुक गया। "मॉम, आप जैसा चाहती थीं, मैं वही तो कर रहा हूँ ना? मैंने बोला था, जो लड़की पसंद करोगी आप, मैं उससे शादी कर लूँगा। दैट्स इट। मैं अब किसी लड़की को देखने नहीं जा रहा हूँ। ये सब आप देखो, ओके…" कहकर आद्विक वहाँ से जाने लगा। नंदिनी जी फिर बोल पड़ीं। "ठीक है, नहीं जाना है तुझे तो मत जाओ। हम कैसे लड़की देखने जा सकते हैं? लड़की वालों को क्या कहेंगे कि कहाँ है लड़का जिसके लिए हम लोग लड़की देखने आए हैं? सुन सिमो, सारा सामान अंदर रख दो। कोई कहीं नहीं जा रहा है। इसे तो बस अपनी ही मनमानी करनी होती है, साथ भी नहीं आ सकता?"
आद्विक वहाँ नहीं रुका; ऊपर अपने कमरे में चला गया। नंदिनी जी चिल्लाकर रह गईं। रूहानी सबकी ओर देखती हुई बोली, "अब?" सबके चेहरे फिर परेशानी से घिर गए। किसी को नहीं पता था अब आगे क्या होगा। तभी मिसेज़ बतरा और मुस्कान वहाँ आ गईं। उन्हें देखकर नंदिनी जी सोफ़े पर जाकर बैठ गईं। यह देख मिसेज़ बतरा बोलीं, "क्या हुआ? चलना नहीं क्या?"
मुस्कान बोली, "लड़की वाले वेट कर रहे होंगे। डैड तो चले भी गए। गाइज़…" (मुस्कान के डैड आदिश्री के मामा के दोस्त थे, तो वे उनके साथ पहले ही आदिश्री के यहाँ चले गए थे।)
पर कोई कुछ नहीं बोला। मुस्कान अक्ष के पास आई।
"क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?"
अक्ष ने कहा, "वो मुस्कान, भाई…?"
मुस्कान ने पूछा, "आद्विक… क्या हुआ? कहाँ है आद्विक?"
सुमो ने बताया, "अपने रूम में हैं बड़े भैया। उन्होंने मना कर दिया है!"
मिसेज़ बतरा ने पूछा, "मना कर दिया? मतलब?"
अक्ष ने सारी बात उन्हें बताई। जिसे सुनकर मिसेज़ बतरा चौंक उठीं। "क्या? अब नंदिनी?"
नंदिनी जी निराश होकर बोलीं, "अब क्या बैठे हो? उसको तो अपने मन की करने की आदत है। हमारी परवाह थोड़ी है?"
मुस्कान ने कहा, "नहीं आंटी, ऐसा नहीं है।" और खुद से मन ही मन कहती है, "कहीं पीछे तो नहीं हट रहा है?"
इधर सब आद्विक के मना करने पर परेशान हो रहे थे, उधर सृष्टि भी परेशान हो रही थी। दरवाज़ा पीट रही थी, पर श्री कमरे का दरवाज़ा नहीं खोल रही थी। तभी वहाँ पूरब आ गया। "क्या हुआ? तू बाहर क्यों खड़ी है?"
"वो दी ने निकाल दिया मुझे रूम से।" सृष्टि मुँह बनाते हुए बोली और फिर श्री को आवाज़ दी। "खोलो दी, प्लीज़ खोल दो!"
पूरब हँसने लगा। "तेरे साथ यही होना चाहिए। वेरी गुड श्री।" (श्री को आवाज़ देते हुए) "अब परेशान करोगी तुम तो ऐसा ही होगा ना तेरे साथ? क्यों करती है सबको परेशान?" सृष्टि उसे घूरने लगी। "परेशान नहीं कर रही थी मैं। मैं दी की हेल्प ही कर रही थी और हाँ, सबको परेशान करने का काम आपका, मेरा नहीं!"
पूरब और ज़ोर से हँसा। "तुम और हेल्प? वैसे एक बात बोलूँ तुम्हें? श्री ने तो तुम्हें रूम से बाहर निकाला है। मेरा बस चले, मैं तो घर से निकाल दूँ तुमको?"
यह सुन सृष्टि हँस दी। "अच्छा, हिम्मत है? पापा से पूछा है? आओ बड़े घर से निकाल दूँ। वैसे घर से तो आपको जाना चाहिए ब्रह्मचारी भैया, वो भी किसी जंगल में। चले जाओ आप ना, उसी के लायक हो। पूजा पाठ करो। कोई लड़की तो मिलने से रही आपको। शक्ल भी ब्रह्मचारी जैसी है। नहीं नहीं, बंदर जैसी?"
पूरब ने कहा, "ओह, बोल तो ऐसे रही है जैसे खुद राजकुमारी हो। चुहिया सी शक्ल की। तुम्हें भी कौन पसंद करता है?"
"मुझे कौन पसंद करता है ये पूछो, कौन नहीं करता है, आपको क्या पता? आपकी बहन को देखने के लिए तरस जाते हैं लोग। ब्यूटी ऑफ़ क्वीन है आपकी छोटी बहन कॉलेज की। सिर्फ़ पढ़ाई में नहीं, सुंदरता में नंबर वन है। चाहो तो मेरे कॉलेज जाकर देख लेना सृष्टि ठाकुर के कितने दीवाने हैं। कौन जानता है, कौन नहीं जानता है। आपके जैसी नहीं हूँ, जिसे कोई पल भर देखे भी ना!"
पूरब ने सृष्टि के सिर पर थप्पड़ मार दिया। "ओह, हेलो मैडम! मरती हैं बहुत सी लड़कियाँ मुझ पर?"
"बेचारी वो लड़कियाँ, आपको न देखतीं तो वो ज़िंदा होतीं, पर मर गईं!"
"ओये, वैसे मरना नहीं, दीवानी बोला है मैंने। मेरे पीछे, मेरे प्यार में पागल?" पूरब इतराते हुए बोला।
"अच्छा, आपकी दीवानी? चलो एक आधी से मिलवा दो मुझे, मैं भी देख लूँगी कौन पागल है कौन नहीं?"
"हाँ तो मिलवा दूँगा!"
"जाओ जाओ, फँसा मत। काम करो अपना!" सृष्टि ने कहा, पर पूरब वहाँ से नहीं गया। दोनों भाई-बहन के बीच बहसबाजी शुरू हो गई। तभी राकेश जी पूरब को बुला लेते हैं। "तुझे तो मैं बाद में देखता हूँ, छोड़ूँगा नहीं। बहुत बोलती है!"
"हाँ हाँ, देख लेना। आपसे कम ही बोलती हूँ ब्रह्मचारी भैया। देख लेना आराम से, मैं कहीं नहीं जा रही, यहीं हूँ, ओके।" सृष्टि हँसते हुए बोली। पूरब वहाँ से चला गया।
"ये भाई भी ना, हमेशा तैयार रहते हैं बहस करने के लिए। पता नहीं कब जानेंगे। सृष्टि ठाकुर भी कम नहीं है…" और फिर दरवाज़ा खटखटाती है। "दी, अब तो खोल दो। पक्का हेल्प करूँगी आपकी, न कि आपको परेशान। दी…!"
कमरे में श्री कपड़ों को लेकर अभी तक परेशान हो रही थी। "आज इतनी कन्फ्यूज़न क्यों हो रही है श्री? तुझे पहले तो तू… आज पहली बार लेट तक सोती रही और अब ड्रेस चुनने में तुझे इतना वक़्त लग रहा है। अपनी डिज़ाइन की हुई ड्रेस भी तुझे पसंद नहीं आ रही है। कुछ कर जल्दी, वरना वो लोग आ जाएँगे और तू रेडी भी नहीं हुई होगी…"
"आद्विक को साथ ले जाने के लिए कैसे मनाएँ?" सब यहीं सोच रहे थे कि तभी मुस्कान की नज़र आद्विक पर पड़ी। "आद्विक…" सब ऊपर की ओर देखते हैं।
आद्विक नीचे चला आता है। सब उसे एकटक देख रहे थे। आद्विक नंदिनी जी से बोला, "चल रहा हूँ साथ?"
यह सुन सब खुश हो गए। नंदिनी जी आद्विक के पास चली आईं। "तू सच में आ रहा है हमारे साथ!"
"सिर्फ़ आपके लिए मॉम।" आद्विक ने जैसे ही यह कहा, अक्ष आकर उसके गले लग गया। "थैंक्स भाई…!"
मुस्कान ने कहा, "ये तो अच्छा है तुम साथ आ रहे हो, बट यार आज भी ब्लैक कोट पैंट… कुछ और पहन लेते?" आगे बोलती, वो आद्विक ने उसकी बात काट दी। "चल रहा हूँ, वही काफी है। अब चलना है या नहीं? या मैं जाकर अपना काम करूँ…?"
वरुण ने कहा, "नहीं नहीं, साले मियाँ। ये भी ठीक है, जो भी पहना है, अच्छे लग रहे हो। ऐसे ही चलो!"
रूहानी ने कहा, "अब चलो जल्दी, पहले ही लेट हो चुके हैं!"
आनंद जी बोले, "हाँ, और क्या पता बना हुआ मन फिर से बदल…" (आद्विक की ओर देखते हुए) "जाए…?"
यह सुन आद्विक दाएँ-बाएँ अपना सिर हिलाता हुआ बड़बड़ाया, "मैं कहाँ फँस गया?" और बाहर की ओर चल दिया। बाकी सब भी पीछे-पीछे निकल पड़े!
सृष्टि अभी भी रूम के बाहर खड़ी थी। श्री ने दरवाज़ा नहीं खोला था। तभी वहाँ पल्लवी जी आ गईं। "तू… तू बाहर क्या कर रही है? श्री तैयार हुई या नहीं? और ये दरवाज़ा बंद क्यों है?"
सृष्टि उन्हें सब बताती है। "दी ने बाहर निकाल दिया?"
पल्लवी जी ने पूछा, "ज़रूर तुमने कुछ किया होगा। मना किया था ना परेशान मत करना उसे। श्री, सुनो, सुनो, दरवाज़ा खोलो बेटा?"
"मैं सिर्फ़ मज़ाक कर रही थी मॉम, पर दी…" बोलते हुए सृष्टि श्री से बोली, "सॉरी दी, खोलो ना। मैं पक्का जैसा आप कहोगी, वो करूँगी। प्लीज़ खोलो?"
"हाँ बेटा, खोलो जल्दी। इसे तो तुम जानती हो। तैयार हुई या नहीं? खोलो?" श्री से कहते हुए पल्लवी जी सृष्टि को डाँटने लगीं। "जब देखो बहन को परेशान करती रहती हो?" तभी रूम का दरवाज़ा खुल जाता है, और पल्लवी जी और सृष्टि दोनों की आँखें खुली की खुली रह जाती हैं!
श्री ने पूछा, "क्या हुआ? अच्छी नहीं लग रही हूँ?"
सृष्टि ने कहा, "दी, ये ड्रेस… ये तो आपका न्यू डिज़ाइन है ना?"
श्री ने कहा, "हाँ, कैसा लग रहा है? बताओ या चेंज करूँ?" कि तभी पल्लवी जी उसे काला टीका लगा देती हैं। "नहीं बेटा, बहुत प्यारी लग रही हो। और मेरी बेटी का हर डिज़ाइन बेस्ट होता है। ये भी बहुत अच्छा है, बहुत सुंदर लग रही हो इस ड्रेस…" (बड़ाएँ लेते हुए) "में तुम!"
श्री मुस्कुरा दी। "थैंक्स मॉम। मैं ऐसे ही परेशान हो रही थी, फिर याद आया कि नया डिज़ाइन है, वो पहन लेती हूँ!"
"सच में दी, बहुत प्यारी ड्रेस है। बहुत अच्छा लग रहा है। प्लीज़ मुझे दे देना ये ड्रेस। अपनी कॉलेज पार्टी में मैं यही पहनूँगी और देखना आपसे भी ज़्यादा मुझ पर अच्छा लगेगा ये। वाव! कितना प्यारा ड्रेस है!" सृष्टि खुश होते हुए बोली। यह सुन श्री और पल्लवी जी दोनों हँसने लगीं।
पल्लवी जी ने कहा, "अभी तो इसे पहन लेने दो। जब देखो मांगती रहती हो?"
सृष्टि ने कहा, "अभी थोड़ी माँगा है, बाद में बोला है मैंने। और मेरी दी की डिज़ाइन की हुई ड्रेस मैं तो पहनूँगी ही ना। क्यों दी!"
"ओके, मेरी जान, ले लेना। अब खुश? तुम आफ़त की पुड़िया हो पूरी। वैसे बहन तो मेरी ही है।" कहकर श्री ने सृष्टि को गले लगा लिया। सृष्टि उससे अलग होकर उसे ऊपर से नीचे तक देखती है। "सच्ची दी, आज तो सब देखते रह जाएँगे आपको?"
तभी बाहर गाड़ियों के आने की आवाज़ आती है।
"लगता है लड़के वाले आ गए हैं। मैं देखती हूँ जाकर बेटा। जल्दी तैयार हो जाओ।" कहकर पल्लवी जी चली जाती हैं!
सृष्टि ने कहा, "चलो दी, जल्दी से बाल बनाते हैं। सब आ गए हैं। मैं आपकी हेल्प कर देती हूँ?"
"बाल ही बनाओगी ना, और तो कुछ नहीं?" श्री बोली और दोनों बहनें हँसने लगीं।
"चल शैतान, आजा अंदर।" श्री सृष्टि को रूम में ले लेती है और दोनों जल्दी-जल्दी रेडी होने लगीं!!
सब हॉल में थे। थोड़ी देर बाद श्री को बुलाया जाता है। वह सृष्टि के साथ वहाँ आती है। सबकी नज़र उस पर जाती है। सब श्री को देख मुस्कुरा देते हैं, सिवाय आद्विक के, क्योंकि उसने अभी तक उसे देखा भी नहीं था। जो पलकें झुकाए, सृष्टि के साथ में सबकी तरफ़ चली आ रही थी। सृष्टि हॉल में बैठे हुए लोगों को देख चौंक उठी। "ओ माई गॉड! दी, इतने सारे लोग रिश्ता करने आए हैं या शादी?"
श्री ने पूछा, "क्या बोल रही है?"
"सच्ची दी, नज़रें उठाकर तो देखो। ऐसा लग रहा है आपकी बारात आई है। लगता है आज ही ये लोग आपको अपने साथ ले जाएँगे, अपने बेटे की दुल्हन बनाकर?" कहकर सृष्टि हँस दी।
श्री ने धीरे से उसे डाँटा, "चुप कर। हो सकता है बड़ी फैमिली हो, तो सब आएँगे ही ना। तुम तो… कुछ भी बोलती हो?"
"ओह हो, अभी से साइड? रिश्ता तो होने दो, फिर बोलना आप, अपने ससुराल वालों के पक्ष में। पर ली, फिर भी देखो तो सही, कितने लोग आए हैं?" दरअसल, सच में बहुत लोग आए थे… मिस्टर एंड मिसेज़ चौहान, आद्विक, रूहानी, वरुण जी, अक्ष तो आने ही थे। सब आद्विक के रिश्ते को लेकर बहुत एक्साइटेड थे!
और मुस्कान, आद्विक की दोस्त, उसके पेरेंट्स जो कि रिश्ता करवा रहे थे, श्री के मामा, इसलिए सारे के सारे 15-16 लोग हो चुके थे। सृष्टि का यह कहना गलत न था, सच में बारात ही लग रही थी!
सृष्टि बार-बार श्री को देखने को कह रही थी, पर वह नहीं देखती और सबके बीच पहुँच जाती है, और सबसे मिलती है। नंदिनी जी उसके पास आती हैं और उसे अपने गले से लगाकर प्यार से उसके सिर को चूमती हैं। "बहुत प्यारी लग रही हो बेटा, किसी की नज़र न लगे!"
श्री ने कहा, "थैंक्स आंटी।" तो नंदिनी जी हँस दीं। "आंटी नहीं बेटा, मॉम बोलो। तुम्हें तो मैं अपने घर ले जाकर रहूँगी…" यह सुन सब हँस पड़े और श्री शर्मा गई!
थोड़ी देर बाद मुस्कान सबसे बोली, "हम सब मिल लिए, अब लड़का-लड़की भी मिल लें, आई मीन अकेले में। आप सब कहो तो?" यह सुन आद्विक मुस्कान की ओर देखता है, जो बतीसी दिखा देती है। आद्विक को मुस्कान पर गुस्सा आता है। उसने अभी तक श्री की तरफ़ नज़रें उठाकर नहीं देखा, जबकि श्री ने एक-दो बार चुपके से उसे देख लिया था। मुस्कान उनके अकेले में भी मिलने की बात कर रही थी।
मुस्कान की बात से सहमत होते हुए अक्ष भी बोल पड़ा, "इनका मिलना तो ज़रूरी है ना? आप सब यहाँ बातें करो, हम लोग बाहर गार्डन एरिया में जाते हैं। भाई-भाभी की मीटिंग करवाकर लाते हैं। चलो गाइज़? भाई-भाभी आइए?"
अक्ष की बात सुन आद्विक हाथों की मुट्ठियाँ बाँध लेता है। श्री अपने पेरेंट्स की ओर देखती है तो राकेश जी बोले, "जाओ बेटा?"
और आद्विक, श्री, मुस्कान, सृष्टि, वरुण, रूहानी, पूरब सब गार्डन एरिया में चले आते हैं। श्री सब से बातें करती है, सबसे मिलकर बहुत खुश होती है। बाकी सब भी उससे बातें कर रहे होते हैं, सिवाय आद्विक चौहान के, वो चुपचाप साइड में खड़ा था!
यह देख सृष्टि हँसते हुए श्री से बोली, पर धीरे से, "दी, जीजू तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। लगता है शर्मा रहे हैं बेचारे, चुपचाप खड़े हैं!"
श्री उसे घूरती है। तभी मुस्कान आद्विक से बोली, "कुछ तो बोलो यार!" पर जिस तरह उसने मुस्कान की ओर देखा तो वह उसे कुछ नहीं कहती और श्री से बोलती है, "हाय, मैं मुस्कान, आद्विक की दोस्त!"
श्री ने कहा, "हाय!"
सृष्टि ने कहा, "हम आपको जानते हैं!"
मुस्कान ने पूछा, "कैसे?"
सृष्टि ने बताया, "वो रानी ने बताया। आपके डैड और मामा जी दोस्त हैं ना!"
"ओके, नाइस टू मीट यू!" कहकर मुस्कान श्री को हग कर लेती है। श्री मुस्कुरा दी। "हमें भी आपसे मिलकर, आपके बारे में जानकर अच्छा लगा!"
तभी अक्ष मुस्कान के कंधे पर बाँह रखते हुए हँसते हुए बोल पड़ा, "इन्हें जानकर किसको अच्छा नहीं लगता भाभी? ये तो मुस्कान है मुस्कान, जिसके सब दीवाने हैं!"
मुस्कान हँस दी। "अच्छा बच्चू…" "हम्म, और मिलना है तो मुझसे मिलो भाभी। मैं आपका इकलौता देवर अक्ष चौहान…" कि सृष्टि बोल पड़ी, "आपसे क्यों मिलें? आप में ऐसा क्या खास है?"
अक्ष ने कहा, "मेरा देवर होना ही बहुत खास है भाभी की बहना। राईट भाभी?"
श्री मुस्कुरा दी। "राईट।" (अक्ष के गाल पर प्यार से हाथ रखते हुए) "हमें आपसे मिलकर भी बहुत अच्छा लगा!"
सृष्टि का मुँह बन गया, पर अक्ष खुश हो गया। "थैंक्यू भाभी…" कि वरुण जीजू बोले, "भाभी-देवर का रिश्ता ही अलग होता है, सबसे बिंदास!"
तभी पूरब वेटर से ठंडा मँगवाता है और सबको खुद देता है। आद्विक को भी, पर आद्विक "थैंक्स" कहकर मना कर देता है। यह देख पूरब सबकी ओर देखता है जो आद्विक की ओर देख रहे थे। तभी अक्ष पूरब के साथ से ठंडा ले लेता है। "मुझे और दीजिए, मुझे बहुत प्यास लगी है।" (गिलास खाली कर) "मैं बहुत ठंडा पीता हूँ, मुझे प्यास बहुत…" (हँसते हुए) "लगती है!"
यह देख सृष्टि मन ही मन बड़बड़ाई, "घर से बोतल ही ले आते साथ में, जब इतनी प्यास लगती है?" अक्ष ने उसे टेढ़ा-मेढ़ा मुँह बनाते देखा तो उससे बोला, "आपने कुछ कहा?"
सृष्टि मुस्कुरा दी। "नहीं, आप और ठंडा लेंगे? प्यास बाकी है तो… हम्म!"
अक्ष मुस्कुरा दिया। "नो नो थैंक्स। बाद में लूँगा। अभी प्यास मिट गई…" यह सुन सृष्टि बतीसी दिखा देती है और मुँह फेर लेती है… सब बातों में लगे थे। श्री की नज़रें रह-रह कर आद्विक पर जा रही थीं। वह भी चाहती थी आद्विक कुछ तो बोले, पर वह तो कुछ नहीं बोल रहा था। बस सबके बीच मुँह बाँधे खड़ा था। ऐसा लग रहा था वह वहाँ होकर भी नहीं है? पर था ना वह वहाँ, इसलिए श्री को उसका यूँ खामोश रहना अजीब लग रहा था। और आद्विक को उसको तो कितनी ज़्यादा मुश्किल हो रही थी वहाँ, यह तो वहीं जानता था, दिखा नहीं रहा था वह, पर वह वहाँ से जाना चाहता था। मन कर रहा था उसका, "अभी चला जाऊँ, भाग जाऊँ मैं यहाँ से…" पर वह अपनी मॉम की वजह से चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहा था!
तभी श्री टेबल से ठंडे का गिलास उठाकर उसे आद्विक के पास ले आई। "ठंडा?"
आद्विक उसे एक नज़र देख दूसरी तरफ़ देखने लगा। सब उनकी ओर देख रहे थे… श्री फिर से बोली, "लीजिए ना ठंडा…" श्री के पास होने से और उसकी आवाज़ सुन आद्विक को बेचैनी होने लगी?
तभी अक्ष आद्विक से बोला, "भाई, ले लीजिए ठंडा। भाभी कितने प्यार से दे रही है…" यह सुन आद्विक बिना श्री की तरफ़ देखे उसके हाथ से ठंडे का गिलास अपने हाथ में पकड़ लेता है। यह सोच कि कोई और ड्रामा ना हो जाए और ना ही वह मुस्कान-अक्ष से कुछ भी और फ़ालतू सुनने के मूड में नहीं था!
आद्विक "थैंक्स" कहकर ठंडे का एक घूँट भी ले लेता है। यह देखकर श्री क्या, सब मुस्कुरा देते हैं। तभी आद्विक का फ़ोन रिंग करता है और वह "एक्सक्यूज़ मी" कहकर साइड में चला जाता है। उसके जाते ही सृष्टि श्री के पास आकर उसे कंधा लगाते हुए मंद-मंद हँसते हुए बोली, "क्या बात है दी? भाई ने दिया तो नहीं लिया, आपने दिया तो पी भी लिया… ठंडा!"
यह सुन श्री शर्मा गई और आद्विक की ओर देख मन ही मन बोली, "कुछ बोला तो सही, थैंक्स ही सही। "थैंक्यू मिस्टर आद्विक चौहान," अपनी आवाज़ सुनाने के लिए… बहुत अच्छी है, जैसे आप हैं प्यारे, वैसी ही आपकी आवाज़ है प्यारी…!"
(क्रमशः)
थोड़ी देर बाद, सब गार्डन से वापस अंदर चले आए। आद्विक उनके साथ नहीं था। आनंद जी ने अक्ष से कहा, "आद्विक कहाँ है?"
अक्ष कुछ बोलता, कि आद्विक पीछे-पीछे अंदर चला आया और आनंद जी से बोला, "डैड, मैं जा रहा हूँ..." यह सुनकर सब हैरान हो गए, खासकर लड़की वाले।
अक्ष आद्विक के पास आया और उसकी बाह पर हाथ रखकर धीरे से बोला, "भाई, आप ऐसे नहीं जा सकते?"
आद्विक बोला, "मेरी अर्जेंट मीटिंग है। मुझे अभी जाना होगा।" नंदिनी जी ने उसे "बेटा" कहकर आवाज़ दी। वह आगे कुछ कहतीं, आद्विक बोल पड़ा, "जैसा आपको सही लगे, मॉम। आपकी हाँ मेरी हाँ..." अपने हाथों की मुट्ठियाँ बांधकर, आद्विक वहाँ से चला गया। श्री उसे जाते देख रही थी। तभी सृष्टि मंद-मंद हँसते हुए धीरे से बोली, "लगता है आद्विक चौहान अपनी माँ का पुजारी है। जो जैसा माँ कहेगी, बेटा वही करेगा। दी, आपका क्या होगा शादी के बाद? ये तो अपनी माँ की ही मानेगा..."
ये सुनकर श्री ने सृष्टि के पेट में कोहनी मार दी। सृष्टि की आह निकल गई। सब उनकी ओर देख रहे थे।
राकेश जी: "क्या हुआ बेटा?"
श्री: "कुछ नहीं पापा।" कहती हुई सृष्टि बतीसी दिखा देती है। थोड़ी देर बाद, आनंद जी मुस्कुराते हुए अपने हाथ जोड़कर लड़की वालों से बोले, "हमें यह रिश्ता मंजूर है, अगर आपको कोई परेशानी ना हो। आपको भी रिश्ता मंजूर हो, हमारा बेटा पसंद हो आपकी बेटी के लिए, तो हम लोग बात आगे बढ़ा सकते हैं!"
राकेश जी उनके पास आए और उनके हाथों पर हाथ रखते हुए बोले, "हम सब तो बहुत खुश हैं, आनंद जी। आद्विक भी हमें बहुत पसंद है श्री के लिए। हमारी बेटी आपके घर जाएगी। इतना अच्छा परिवार मिलेगा इसे (श्री की ओर मुस्कुराते हुए), यह तो खुशकिस्मती है हमारी!"
आनंद जी और राकेश जी गले मिले। सब मुस्कुरा रहे थे। नंदिनी जी श्री के पास आकर उसका प्यार से सिर चूम लेती हैं, "हम हमारी श्री को, मेरे घर की लक्ष्मी को, जल्द से जल्द (गाल पर हल्की सी थपकी लगाकर) अपने घर ले जाएँगे!"
तभी अक्ष बोला, "अरे, कोई मेरी भाभी से तो पूछो! उन्हें भाई कैसे लगे? उनकी हाँ है या नहीं?"
यह सुनकर श्री शर्मा गई और वहाँ से मुस्कुराते हुए चली गई। अक्ष हँस दिया, "अरे, भाभी तो कुछ बोली ही नहीं!"
सृष्टि बोल पड़ी, "वो इसे ना हाँ ही कहती हैं, बोलने की ज़रूरत नहीं पड़ती, समझे आप!"
अक्ष: "ओह, रियली? वैसे आपको सब पता है?"
पूरब बोल पड़ा, "इसे ही नहीं, हम सबको पता है। वो श्री को तो आद्विक पहले ही पसंद आ गई थी जब उसने फ़ोटो देखी थी और उसकी तभी से उसकी हाँ है।" इस बात पर सब हँस पड़े!
पल्लवी जी मिठाई लेकर आती हैं और सबका मुँह मीठा करवाती हैं।
सृष्टि: "दी को जीजू बहुत पसंद आए!"
मुस्कान: "आए भी क्यों ना, मेरा दोस्त किसी हीरो से कम थोड़ी है? उसका तो कोई भी दीवाना हो जाए!"
कुछ देर बाद,
आनंद जी: "अच्छा जी, अब चलते हैं।"
पल्लवी जी: "ऐसे कैसे? लंच तैयार है। आद्विक तो चला गया, आप सब तो खाना खाकर जाइए। बस अभी मैं लगाती हूँ।"
नंदिनी जी बोल पड़ीं, "बहुत धन्यवाद, पल्लवी जी। खाना फिर कभी खाएँगे।"
मिसेज़ बतरा भी बोल पड़ीं, "अब तो खाना-पीना होता ही रहेगा, रिश्ता जो जुड़ रहा है!"
वरूण: "सही कहा आंटी आपने। और आप लोग फ़िक्र मत कीजिए, आपको हमारी आवभगत करने के बहुत सारे मौके मिलेंगे..."
पूरब (हाथ जोड़ते हुए): "मौके का इंतज़ार रहेगा!" और दोनों गले लग गए!!!
लड़के वालों के वहाँ से जाते ही, सृष्टि पूरब से बोली,
"चलो भाई, दुल्हन मैडम को देखते हैं?"
पूरब: "हाँ, चलो!" और दोनों हँसते हुए ऊपर चले गए।
यह देख पल्लवी जी बोलीं, "लो, अब ये दोनों उसको परेशान करेंगे।"
राकेश जी: "कहाँ मानने वाले हैं?" और दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा दिए। श्री अपने रूम में बेड पर बैठी हुई थी। सृष्टि और पूरब वहाँ टपक पड़े।
सृष्टि (पास बैठते हुए): "ओ मैडम, क्या कर रही हो? अपने संईया जी के बारे में सोच रही हो क्या?"
पूरब (श्री की दूसरी साइड बैठ गया): "मुझे तो खास नहीं लगा लड़का। उम्र भी कुछ ज़्यादा ही लगती है ना सृष्टि उसकी, बिल्कुल इसके मेच का नहीं है। पापा-माँ भी यही कह रहे हैं ना?"
यह सुनकर श्री फट से बोली, "ऐसा नहीं है!"
सृष्टि: "ऐसा ही है दी, सही तो है। वो आद्विक चौहान आपके मेच का नहीं है, लगता है गूंगा है, कुछ बोलता ही नहीं है? तो एंड मोमेंट पर रिश्ते के लिए मना कर दिया पापा ने।"
श्री कुछ कहती, कि तभी अक्ष की आवाज़ आई, "भाभी...?"
तीनों दरवाज़े की ओर देखते हैं। श्री बेड से उठ गई।
श्री: "आप (हल्का सा मुस्कुराते हुए) अंदर आइए?"
अक्ष: "थैंक्स भाभी।" कहकर अक्ष अंदर चला आया और सृष्टि की तरफ़ देखते हुए बोला, "मेरे भाई गूंगे नहीं हैं, वो बोलते भी हैं, समज़ी आप...?"
सृष्टि: "वो मेरा मतलब..." सृष्टि इतना कहकर चुप हो गई।
श्री सृष्टि और पूरब दोनों की ओर देखकर सोचती है कि अक्ष कुछ गलत ना समझ ले, इसके भाई के बारे में जो कहा, बुरा ना मान जाए। तभी वह मुस्कुराते हुए श्री से बोला, "भाभी, आपका और हमारा रिश्ता जुड़ चुका है। जैसे आपने भाई को पसंद कर लिया था, भाई को पहले भी, हम सबने भी आपको पसंद कर लिया था पहले ही, सोचकर आए थे आपको अपना बनाकर जाएँगे। आप ही मेरी भाभी बनोगी। आपकी, हमारी, सबकी हाँ थी आपके और भाई के रिश्ते को लेकर, बस मिलकर आमने-सामने हाँ कहना था जो हो गया। और किसी ने मना नहीं किया। सबकी हाँ है और सब खुश हैं!"
यह सुनकर श्री का चेहरा खिल उठा। अक्ष फिर से बोला, "भाभी, मैं आपके लिए कुछ लाया था?"
श्री: "मेरे लिए?"
अक्ष: "हाँ, आपके लिए। वो आपके देवर, मेरा मतलब होने वाले देवर की तरफ़ से, अपनी स्वीट सी भाभी के लिए पहला प्रेजेंट (जैकेट की पॉकेट से चॉकलेट का पैकेट निकालकर श्री की ओर बढ़ाते हुए), आपको पसंद तो है ना चॉकलेट?"
श्री: "हाँ, हाँ, बहुत पसंद है। थैंक्यू!" श्री ने चॉकलेट ले ली।
अक्ष खुश हो जाता है और तीनों को बाय कहता है, "बाय, चलता हूँ। दी, जीजू वेट कर रहे हैं बाहर मेरा, पहले चॉकलेट देना भूल गया था (हँसते हुए), तो वापस आया। फिर मिलेंगे भाभी, जल्द..." अक्ष जाने लगा, कि जाते-जाते श्री से बोला, "भाभी... चॉकलेट थोड़ी अपनी बहन को भी दे देना। कहते हैं मीठा खाने से लोग मीठा बोलते हैं!"
यह सुनकर सृष्टि चिढ़ गई, "ओ हेलो, मैं मीठा ही बोलती हूँ..."
अक्ष: "ओह, रियली? चलो अच्छा है। बट फिर भी और खा लेना। वैसे ज़्यादा ही मीठा बोलती है, अभी तक देखा नहीं था मैंने किसी को इतना मीठा बोलते। बाय!" और अक्ष चला जाता है।
सृष्टि जोर से बोली, "ये कौन होता है मुझे ऐसे बोलने वाला..."
श्री हँस दी, "मेरा देवर!" और दोनों को घूरने लगी, "आप दोनों कितना झूठ बोलते हैं! मैंने सोचा माँ-पापा ने सच्ची मना कर दिया। बहुत बुरे हो आप लोग, कुछ भी कहते हो। अक्ष को देखा, कितना अच्छा है वो!"
सृष्टि: "ओह, अच्छा वो अच्छा और हम अच्छे नहीं? सही है दी, बड़ी जल्दी पलटी मार ली आपने तो? देखा भाई, शादी हुई नहीं अभी से ससुराल वालों की साइड और देवर की तारीफ़, वाह जी वाह, श्री ठाकुर, यू आर ग्रेट!"
श्री ने उसके सिर पर चपत लगा दी, "बस भी कर! और हाँ, जो ज़्यादा नहीं बोलता वो गूंगा थोड़ी होता है। हो सकता है उनको ज़्यादा बोलना पसंद न हो। और पहली बार तो मिले हैं हम लोग, जो भी था अच्छा था और काफी भी!"
तभी पूरब श्री से चॉकलेट पैकेट छीन लेता है, "छुटकी, श्री को लेने दे साइड अपने ससुराल वालों की, करने दे तारीफ़ अपने देवर की, वो अच्छे हैं ठीक है, हम बुरे सही, मुझे तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। चल हम चॉकलेट खाते हैं (हँसते हुए), वैसे भी इसके देवर ने कहा है ना, मीठा खाओ, मीठा बोलो!"
इस बात पर सृष्टि और पूरब हाई-फ़ाई करते हुए हँस दिए। श्री पूरब से अपनी चॉकलेट वापस लेने लगी, "मेरी चॉकलेट दो?" पर पूरब वहाँ से भाग गया।
पूरब: "मत देना भाई, दी आपको नहीं मिलेगी चॉकलेट!" कहती हुई सृष्टि भी वहाँ से भाग गई।
"मेरी चॉकलेट मुझे दो!" श्री दोनों के पीछे भागी। दोनों नीचे चले आए, वह भी पीछे-पीछे आ गई। सृष्टि और पूरब चॉकलेट का पैकेट एक-दूसरे की तरफ़ फेंकने लगे और श्री को परेशान करने लगे। राकेश जी तीनों को भागदौड़ करते हुए जोर से बोले, "क्या हुआ?"
श्री रोने सी शक्ल बना लेती है, "देखो ना पापा, ये दोनों मुझे फिर परेशान कर रहे हैं?"
पल्लवी जी भी किचन से चली आईं। जब उन्हें पता चला, तो वो पूरब और सृष्टि को डाँटने लगीं, "तुम दोनों कब सुधरोगे बेटा?"
पूरब और सृष्टि (हँसते हुए एक साथ): "कभी नहीं!"
सृष्टि: "आपकी ये बड़ी बेटी तो आज से ही पराई हो गई पापा, मॉम! अभी से ससुराल वालों की साइड ले रही है!"
यह सुनकर पल्लवी जी श्री के पास आईं, "तो क्या हुआ? कितना प्यारा ससुराल मिल रहा है इसको और वहाँ के लोग कितने अच्छे हैं और सास नंदिनी जी तो कितना प्यार करेगी हमारी बेटी को, सब बहुत प्यारे हैं! लड़का कोहिनूर है तो चौहान परिवार भी लाखों में एक है!"
राकेश जी भी बोल पड़े, "हाँ, ऐसा परिवार है जो सर आँखों पर रखेंगे मेरी राजकुमारी को। हमारी श्री को बहुत प्यारा मिलेगा उस घर में!"
सृष्टि और पूरब उनकी बातें सुन रहे थे, कि श्री इस बात का फ़ायदा उठाकर चॉकलेट का पैकेट छीन लेती है, "देखा ना, माँ-पापा भी तारीफ़ कर रहे हैं उन सबकी, बस तुम दोनों मेरी टाँग खींचते रहा करो, और तो कोई काम नहीं आप लोगों के पास?"
पूरब (एक हाथ श्री के कंधे पर रखकर और दूसरे हाथ से सृष्टि को ताली देते हुए): "हम टाँग नहीं, तुमको पूरा खींचते हैं हमारी लाडली बहना! वैसे कुछ भी कहो, जोड़ी तो एक नंबर है श्री-आद्विक की!"
सृष्टि (श्री को साइड हग करते हुए): "हम्म, वैसे जीजू का तो पता नहीं, पर इनकी सास तो बहुत ही कमाल की है, फ़्रेंडली टाइप। कौन कह सकता है वो सास है? इतनी मार्डन, वाव! बहुत अच्छी लगी मुझे तो वो!"
श्री: "बस, बस! अब नज़र मत लगा देना मेरी सास को, मेरा मतलब होने वाली सास को!" कहती हुई श्री हँस दी, तो बाकी भी हँसने लगे। तभी पल्लवी जी इमोशनल हो गईं, "बस, अब कुछ दिन की ही बात है, फिर वो माँ इस माँ से उसकी बेटी ले जाएगी!"
श्री उसी पल उनके गले लग गई, "क्या मॉम, आप भी ना! मैं कौन सा हमेशा के लिए चली जाऊँगी आपसे दूर? देखिए, मेरा तो मायका-ससुराल दोनों दिल्ली में होंगे। यहीं तो रहूँगी मैं। जब मन किया, यहाँ पर चली आऊँगी। आप भी आ जाना मेरे पास। नए घर जाऊँगी तो यह घर छूटेगा थोड़ी? बल्कि शादी के बाद दो घर हो जाएँगे मेरे पास। वैसे तो बड़ी जल्दी थी आपको मुझे शादी कर विदा करने की। सुनिए जी, हमारी श्री के लिए रिश्ता ढूँढिए, फिर शादी करेंगे अपनी बेटी की। रोज पापा से बोलते थे आप, अब क्या हुआ? बताओ, बताओ! अब क्यों निरूपा रॉय बन रहे हो?"
यह सुनकर पल्लवी जी पहले तो श्री का गाल खींच लेती हैं और फिर चेहरा हाथों में भर लेती हैं, "पागल, कुछ भी बोलती है! हर माँ-बाप का सपना होता है उनकी बेटी की शादी हो, उसको प्यारा ससुराल मिले, अच्छा जीवनसाथी मिले!"
राकेश जी श्री के सिर पर हाथ रखते हैं, "हाँ बेटा, जहाँ हमारी बेटी को बहुत प्यार मिले, जैसी यहाँ रहती है वैसी वहाँ रहे!"
श्री दोनों के गले लग जाती है। तभी सृष्टि बोली, "हम भी हैं!"
पूरब भी बोल पड़ा, "हाँ, और हमारी भी हाँ है श्री को घर से निकालने में शामिल..." यह सुनकर श्री पूरब को मारने लगी और सब एक साथ गले लग जाते हैं!
इधर सब खुश हो रहे होते हैं, उधर आद्विक चौहान गुस्से में फुल स्पीड में अपनी गाड़ी चला रहा था। उसकी गाड़ी तूफ़ान की भाँति हाईवे पर दौड़ रही थी। और दिमाग में एक बात चल रही थी, "उसने शादी के लिए हाँ तो कर दी है, अपनी मॉम की खुशी के लिए तैयार तो हो गया है, पर शादी करेगा कैसे?" सोचते हुए वह गाड़ी के ब्रेक लगा देता है और अपना हाथ जोर से स्टेरिंग पर मार देता है, "मुझे तुमसे शादी करनी थी, मैं किसी और से शादी नहीं कर सकता..."
(क्रमशः)
मुझे तुमसे शादी करनी थी, मैं किसी और से शादी नहीं कर सकता…"" आद्विक ने आहें भर लीं और आँखें बंद करते हुए अपना सिर गाड़ी की सीट से टिका लिया। ज्यों ही उसने आँखें बंद कीं, एक दृश्य उसकी आँखों के सामने आ गया-
एक लड़की, जो बेहद प्यारी और खूबसूरत थी, उसने लाल रंग का सलवार सूट पहना हुआ था। वह मुस्कुराते हुए अपने कदम पीछे ले रही थी; पीछे, मतलब आद्विक से दूर। आद्विक ठीक लड़की के सामने खड़ा था। उस लड़की की इस हरकत पर आद्विक तड़प उठा।
"मुझसे दूर मत जाओ।"
इसी के साथ उस लड़की के होठों की मुस्कुराहट चौड़ी हो गई और वह अपने हाथ को हिलाने लगी, बाय करती हुई वह दूर चली जा रही थी। आद्विक के कदम चाहकर भी उसकी ओर नहीं बढ़ पा रहे थे। वह "न…नहीं…नहीं…नहीं…" कहते हुए अपना सिर दाएँ-बाएँ हिला रहा था। तभी वह लड़की उसकी आँखों के सामने ओझल हो गई!
इसी के साथ "नहीं!" चिल्लाते हुए आद्विक चौहान अपनी आँखें खोल बैठा। आँखों में अब नमी थी।
पूरब और सृष्टि दोनों अभी भी श्री को छेड़ते हुए परेशान कर रहे थे। उनकी हरकतों से वह चिढ़ गई।
"इन दोनों को तो बस मुझे घर से निकालने की लगी है, मॉम! इनके लिए तो मैं आज ही पराई हो गई, पापा!"
"अरे दी, आज नहीं हुई हो आप पराई। हम आपसे सच में बहुत प्यार करते हैं, क्यों भैया!"
"हाँ मेरी बहना, अभी पराया होने में टाइम है, पर प्यार तो हम बहुत करते हैं!"
"रहने दो, देख लिया मैंने आप दोनों का प्यार!" और तीनों एक-दूसरे से कुछ न कुछ बोलते रहे। राकेश जी और पल्लवी जी दोनों उन्हें देख रहे थे।
पल्लवी - "ऐसा न हो बोलते-सुनते इनके बीच बड़ा झगड़ा हो जाए!"
राकेश जी हँस दिए। "संभावना तो है। खैर, मैं रोकता हूँ।" और तीनों की आवाज़ देते हुए बोले - "श्री, पूरब, सृष्टि, बस भी करो!"
तीनों चुप हो गए।
पल्लवी जी - "क्या कर रहे हो तुम लोग? पूरा घर सिर पर उठा लिया। बच्चे नहीं हो अब, बड़े हो गए हो, ये भी देख लो! जब देखो लड़ते-झगड़ते रहते हो। अभी ठीक थे और अब देखो!"
यह सुन तीनों ने "सॉरी" कहते हुए अपनी नज़रें झुका लीं। तभी राकेश जी उनके पास चले आए।
"क्या पल्लवी जी! बच्चों को इतना भी ना डाँटिए। बड़े हो गए तो क्या हुआ? हमारे तो बच्चे ही हैं ना, हमारे घर की रौनक!"
यह सुनते ही श्री और सृष्टि खुश हो गईं और "पापा" कहती हुईं उसी पल उनके सीने से लग गईं।
"मैं भी हूँ?" कहते हुए पूरब भी उनसे जा लिपटा। वो अलग हुए तो राकेश जी श्री के सिर पर हाथ रखते हुए बोले - "बेटियाँ कभी पराई नहीं होती हैं, वो तो सबकी जान होती हैं, दो घरों की लाज होती हैं। एक साथ दो-दो घर संभाल लेती हैं बेटियाँ, ऐसा हुनर तो सिर्फ़ बेटियों के पास होता है!"
पल्लवी जी - "और हमारी श्री तो सबका दिल जीतने वालों में से है!"
पूरब - "राइट माँ, वैसे इसके ससुराल वाले तो आज ही इस पर फ़िदा हो गए!"
सृष्टि हँस दी। "हाँ, खासकर इनकी सास! हे भगवान! ऐसी ही सास मुझे देना! हम दोनों मिलकर पार्टियों में जाया करेंगे। (हाथ जोड़कर) ऐसा ही रिश्ता मेरे लिए ढूँढ़ना पापा, जहाँ सास तो ऐसी हो, मैं भी तो दो घरों की आन-बान-शान होऊँगी ना!"
सृष्टि की इस बात पर सब हँस पड़े। श्री ने उसे पागल बोला तो पल्लवी जी उसका कान खींच लेती हैं।
"ज़्यादा ही बड़ी हो गई क्या?"
"अभी तो आपने बोला था बच्चे नहीं रहे, बड़े हो गए हो?" सृष्टि अपना कान छुड़ाते हुए बोली।
"अच्छा… देखा जी! एक वो ज़माना था जहाँ बेटियाँ माता-पिता ने जो कहा वही हाँ और अब देखो! सूट के जैसे ससुराल कैसे हों, ऐसे फ़रमाइश बताते हैं बच्चे! हे भगवान! कैसा वक़्त आ गया है!"
पूरब उन्हें पीछे से हग कर चेहरा उनके कंधे पर टिका लेता है। "वो ज़माना अलग था माँ, आज अलग! इनका बस चले तो न जाने क्या-क्या फ़रमाइश करें! ये सृष्टि तो रोज नहीं शादी करनी है बोल दे!"
"अगर ऐसा है तो आप भी घोड़ी चढ़ जाओ भैया! आप भी इसी ज़माने के हैं!" श्री बोली।
सृष्टि हँस दी और श्री से हाई-फ़ाइव करते हुए बोली - "और क्या! बदल गया है तो भैया जी, आप क्यों ब्रह्मचारी बने हुए हो? बताना ज़रा हमें?"
पूरब - "मुझे नहीं चढ़ना कोई घोड़ी, और हाँ! पहले ही कह दिया था मैंने तो पहले तुम दोनों को निकालूँगा इस घर से, फिर सोचूँगा!"
"ओके ओके ब्रह्मचारी जी! जो आपकी मर्ज़ी। अच्छा पापा, जाती हूँ रूम में, कपड़े चेंज करके अपने डिजाइन बनाऊँगी माँ। कल स्टूडियो भी जाना है, बहुत काम है। बाय गाइज़!" श्री वहाँ से चली गई।
सृष्टि - "अरे चॉकलेट तो रह गई, हमें भी खानी है! चलो भाई!" और दोनों आदिश्री के पीछे चले गए। पल्लवी जी चिल्लाती हैं - "परेशान मत करना उसे, नहीं तो तुम दोनों की खैर नहीं!" और माँ-पापा दोनों ही एक साथ हँस पड़े!
तभी राकेश जी इमोशनल हो गए। पल्लवी जी उनकी बाहों पर हाथ रखते हुए बोलीं - "क्या हुआ जी?"
"हमारी बेटी का आज रिश्ता पक्का हो गया है, अब वो जल्द ही चली जाएगी इस घर से।"
"अभी तो आप सबको समझा रहे थे। वैसे सच में रौनक है इस घर की आपकी राजकुमारी। आप खुश तो हैं ना?"
"कौन खुश नहीं होगा पल्लवी? आप ही बताओ, आप खुश नहीं? सब हमारे जैसे ही तो हैं वहाँ। श्री को कोई परेशानी नहीं होगी कभी, हम तो खुशकिस्मत वाले हैं, आद्विक जैसा अच्छा समझदार लड़का मिल गया हमारी बेटी को!"
"हाँ जी, एकदम परफेक्ट! वो दिन आ ही गया जब हम अपना फ़र्ज़ निभाएँगे।" कहती हुई पल्लवी जी राकेश जी के सीने से लग गईं!
【चौहान हाउस】
सबके घर आते ही सुमो सबके लिए पानी ले आई और सबको पानी देते हुए बोली - "क्या हुआ? बताइए ना! रिश्ता पक्का हो गया बड़े भैया का?"
नंदिनी जी खुश होते हुए जोर से बोलीं - "सुमो! सुमो! अब इस घर में भी दुल्हन आएगी! हमें हमारे आद्विक की दुल्हन मिल ही गई, बहुत प्यारी लड़की है। हम बात पक्की कर आए!"
यह सुन सुमो की खुशी का ठिकाना न रहा। "सच मैडम? सच कह रही हो आप?"
अक्ष सुमो के पास आया। "हाँ हाँ सुमो दीदी! मॉम की खुशी देखकर पता नहीं चल रहा क्या, सच-झूठ का?"
सुमो नंदिनी जी की ओर देखते हुए बोली - "पता चल रहा है हमें छोटे भैया। बड़े भैया के लिए हम बहुत खुश हैं!"
अक्ष मुस्कुरा दिया। "सुमो दीदी, हम भी बहुत खुश हैं!"
"बस अब आप मुहूर्त निकलवाओ जल्द से जल्द! श्री अपने घर आ जाए…" नंदिनी जी आनंद जी से बोलीं। वे हाँ बोलते हैं कि सुमो दौड़कर मिठाई ले आई। "लीजिए साहब! मुँह मीठा कीजिए, मैडम आप भी! आप तो कब से चाहती थीं! इस दिन के लिए तो आपने कितना इंतज़ार किया है, इतने सपने देखे हैं! अब आपके सारे सपने सच होंगे!"
"सही कहा सुमो! मॉम के अब सारे सपने सच होंगे।" रूहानी बोली।
वरुण भी बोल पड़ा - "कुछ भी कहो! लड़की ही नहीं, परिवार भी बहुत अच्छा है, क्यों पापा जी? सही कहा ना?"
आनंद जी - "हाँ बेटा! बच्चा भी अच्छा है और खानदान भी। सब बहुत अच्छा है, जैसा नंदिनी जी ने कहा। अब जल्द मुहूर्त निकलवाते हैं, रिश्ता आगे बढ़ाते हैं!"
"आज बहुत खुशी का दिन है! (सबको मिठाई देकर) मैं अच्छा-सा खाना बनाती हूँ।" कहकर सुमो किचन की ओर चल दी। तभी रूहानी बोली - "रुको तो सुमो! मैं भी आती हूँ हेल्प के लिए। अच्छे-अच्छे पकवान बनाएँगे और आज रात डिनर पार्टी करेंगे!"
नंदिनी जी - "बनाओ! बनाओ! जो बनाना है! आज पार्टी ज़रूर होगी! मेरे तो पाँव ही ज़मीं पर नहीं पड़ रहे हैं! मन कर रहा डोल बजाओ और हम सब नाचें!"
आनंद जी हँस दिए। "बस थोड़ा-सा और सब्र रख लो! आपकी यह चाहत भी पूरी हो जाएगी, डोल भी बजेंगे और हम नाचेंगे भी!"
"हाँ मॉम! फिर तो सब होगा! भांगड़ा, गिद्दा, हर तरह का डांस! क्यों जीजू? सही कहा ना!" अक्ष वरुण से बोला।
वरुण - "हाँ हाँ साले साहब! लो बड़े साले साहब भी आ गए…" आद्विक अंदर आते ही सबकी ओर देखता है और सबको खुश देखकर जान जाता है। "उस लड़की के साथ उसका रिश्ता फ़ाइनल कर आए हैं ये लोग?"
अक्ष आद्विक के गले लग गया!
नंदिनी जी - "आ गए बेटा! हम सब बहुत खुश हैं। तुम खुश हो ना? वैसे तुम्हें जाना नहीं चाहिए था?"
आद्विक - "मॉम, मेरी मीटिंग थी, और आपने जो चाहा वैसा हो रहा है ना…" तभी सुमो उसके लिए पानी लेकर आती है, पर वह बिना पानी पिए ही सीधा ऊपर अपने रूम में चला आया। रूम का दरवाज़ा बंद किया और हाथ में पकड़ा फ़ोन गुस्से से ज़मीन पर फेंक मारा। "नो…!"
उसी रात
आद्विक डिनर टाइम नीचे नहीं आया तो अक्ष उसे बुलाने उसके रूम में गया, पर वह आने से मना कर देता है।
"भूख नहीं है मुझे।"
और अक्ष को कमरे से बाहर कर, दरवाज़ा बंद कर, रूम की लाइट बंद कर सो जाता है!
अक्ष नीचे आया तो सबने उससे आद्विक का पूछा तो वह ऊपर की ओर देखते हुए सबसे बोला - "भाई बोले उन्हें भूख नहीं, मीटिंग के बाद खा लिया उन्होंने। अभी वो सो गए हैं। भूख लगेगी तो सुमो को बोल दूँगा। आप सब खा लो!"
यह सुन सब एक-दूसरे की ओर देखते हैं तो अक्ष फिर बोला - "भाई का मूड ठीक है, बस थक गए हैं। वो काम ज़्यादा हो गया होगा। खा लेंगे भूख लगेगी तब। चलो हम सब खाते हैं, मुझे तो भूख लगी है। सुमो दीदी मुझे खाना दो…" सुमो ने सबको खाना परोसा। सबका मन तो था आद्विक उनके साथ खाना खाने आता, पर वो नहीं आया। इस बात से सबकी खुशी थोड़ी फीकी पड़ गई, पर किसी ने यह जाहिर नहीं होने दिया। आज खुशी का दिन था तो सब खुशी दिखाते हुए मुस्कुराते हुए खाना खाने लग गए!!
इधर आद्विक बेड पर लेटा करवटें बदल रहा था, उधर श्री आद्विक की फ़ोटो हाथ में लिए अपने रूम की खिड़की पर खड़ी फ़ोटो से बातें कर रही थी।
"मैंने तुम्हारी पिक देख ली, आज तुम्हें भी देख लिया, पर तुम कुछ भी नहीं बोले! इतने शर्मीले हो क्या? हमारी मुलाक़ात अभी भी अधूरी है, मिस्टर आद्विक चौहान! (हँसते हुए) चलो वो तो पूरी हो ही जाएगी! जैसा मैंने सोचा था, तुम बिलकुल वैसे लड़के हो! ऐसा लगता है जैसे मैंने अपने दिमाग में जो तस्वीर बनाई थी अपने लाइफ़ पार्टनर को लेकर, वो मेरे सामने आ गया हो! मेरा मतलब जिसके लिए फैमिली पहले है, अपनी माँ की बात को, उनकी खुशी को अहमियत देना? अच्छा लगा मुझे! फैमिली के साथ-साथ अपने वर्क को भी इम्पॉर्टेन्ट समझना। दैट्स गुड आद्विक चौहान!" कहती हुई आदिश्री मुस्कुरा दी।
और फ़ोटो को दोनों हाथों से थामकर अपने सामने करती हुई आद्विक से, यानी उसकी तस्वीर से बोली - "मैं भी जल्द तुम्हारी लाइफ़ का हिस्सा बन जाऊँगी! सबको इम्पॉर्टेन्ट समझने वाला मुझे भी इम्पॉर्टेन्ट समझेगा क्या……"
(क्रमशः)
श्री आद्विक की फ़ोटो से बातें कर रही थीं कि सृष्टि आ गई। "क्या कर रही हो दी?"
श्री ने आद्विक की फ़ोटो छिपा ली। "कुछ नहीं, बस हवा खा रही हूँ। आज मौसम कितना अच्छा है ना, सृष्टि! आकर देख जरा, इन हवाओं का अलग ही मज़ा है!"
सृष्टि भी खिड़की के पास चली आई। "सही कहा दी, आपके साथ-साथ मेरा भी फ़ेवरेट है, ऐसे खिड़की पर खड़े (बाहें फैलाते हुए) होकर हवा खाना!"
"हम्म, ऐसा महसूस होता है जैसे ये लहराती हवाएँ हमसे कुछ कह रही हों। मन करता है इसके साथ उड़ते चली जाऊँ कहीं किसी अलग ही दुनिया में!"
"ओह, मुझे तो लगा था दी, आप मेरे जीजू के साथ में उड़ना चाहेंगी, उनके साथ नई दुनिया बसाओगी। आप तो अकेले ही उड़ने की बात कर रही हो?" कहते हुए सृष्टि हँस दी।
श्री ने उसे घूरा। "हो गया तेरा, पागल लड़की! चल जा, सो जा। आज भी कॉलेज नहीं गई, पर कल जाना है, समझी!"
"तो क्या हुआ? मेरी दी का रिश्ता पक्का हो रहा था, तो नहीं गई कॉलेज आज। कल चली जाऊँगी, कुछ नहीं होता एक दिन से!"
"अच्छा?"
"हाँ, अच्छा सुनो दी।"
"क्या सुनो?"
"वो दी, आद्विक चौहान बहुत हैंडसम है ना? चुपचाप देखकर लगता है कि बहुत कम बोलने वालों में से है वो, है ना?"
"हाँ, मुझे भी यही लगता है। शायद आदत ही नहीं है, बाकी पता नहीं यार। अक्ष भी बोल रहा था ना, वो बोलते हैं, शायद यहाँ न बोल पाएँ। कभी-कभी होता है ना, नई जगह, नए लोगों के बीच, या कुछ नया हो रहा हो हमारे साथ तो हमें समझ नहीं आता क्या बोलें क्या नहीं, और फिर खामोश रह जाते हैं!"
"हम्म, बट दी, अगर वो सच में चुप रहने वालों में से है तो अच्छा ही है ना? शादी के बाद तो हर पति को चुप ही रहना पड़ता है, बीवी की माननी पड़ती है। बोलती बंद हो जाती है बोलने वालों की भी, तो अच्छा ही है आद्विक चौहान को न बोलने की आदत पहले से है। शादी के बाद बीवी के आगे मुश्किल नहीं होगी!"
"तुझे बड़ा पता है शादी के बाद बोलती बंद हो जाती है...हम्म।" श्री सृष्टि को हँसते देख मुस्कुराते हुए बोलीं। तो वो उसके पास आ बैठी और कंधे पर हाथ डालते हुए बोली, "क्या बात कर रही हो दी? ज़्यादा दूर ही क्यों, अपने घर में ही देख लो। पापा मॉम के आगे बोल पाते हैं क्या? बोलना तो दूर, जब मॉम बोलती हैं उनके मुँह से एक शब्द नहीं निकलता!"
इस बात पर दोनों बहनें हँस पड़ीं, और दोनों बहनें बेड पर जा लेटीं। "चल गुड नाईट सृष्टि, सो जाते हैं अब?"
"ओके दी, गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्स!" सृष्टि सो गई और श्री भी आद्विक के बारे में सोचते-सोचते सो जाती हैं!
अगली सुबह,
श्री ब्रेकफ़ास्ट के डाइनिंग टेबल पर आ बैठीं। उसने राकेश जी, पल्लवी जी, पूरब को गुड मॉर्निंग बोला। वो तीनों भी उसे "गुड मॉर्निंग" कहते हैं और पूरब श्री से सृष्टि का पूछता है। "ओये वो छुटकी कहाँ है?"
श्री: "कहाँ हो सकती है? तैयार हो रही है कॉलेज के लिए। देखो मॉम रोज़ लेट करवा देती है, ये लड़की मुझे..." पराठा खाते हुए श्री ने सृष्टि को आवाज़ दी। "सृष्टि, जल्दी करो!"
पूरब हँस दिया। "वो और जल्दी? देखना तुम ही लेट हो जाओगी, वो जल्दी नहीं करेगी!"
श्री: "रोज़ का है!"
राकेश जी: "सृष्टि इतनी प्यारी है, तब भी बड़ा टाइम लगाती है तैयार होने में। आखिर ज़रूरत ही क्या है? इतना टाइम लेने की? मेरी बेटियाँ परियों जैसी हैं, ना सजे-संवरे तब भी परियाँ ही लगती हैं!"
तभी सृष्टि आ गई। "सच पापा, पर थोड़ा बहुत तो तैयार होना बनता है ना!"
पल्लवी जी: "थोड़ा बहुत? श्री कब से तैयार है, और तुम रोज़ घंटों लगाती हो। जितने वक़्त में तुम रेडी होती हो हम चार बार हो जाएँ। पता नहीं ये लड़की अपनी शादी में क्या करेगी, अभी ये कितना टाइम लगाती है, मुझे तो अभी से टेंशन हो रही है!"
श्री हँस दी। "टेंशन मत लो मॉम, ये ना तीन दिन पहले ही लग जाएगी रेडी होने!"
पूरब भी हँस दिया। "हाँ, जब तक बारात आएगी तब तक तो हो ही जाएगी रेडी। वैसे पापा आपको गलतफ़हमी है, ये सृष्टि तो बिल्कुल ही परी जैसी नहीं है। बेचारी को मेकअप करना पड़ता है, नहीं तो कॉलेज वाले डरकर इसे निकाल देंगे। निकाल न दे इसलिए इसे इतना रेडी होना पड़ता है, है ना छुटकी!"
ये सुन सृष्टि भतीजी दिखा देती है। "वेरी फ़नी! आपकी जानकारी के लिए आपको बता दूँ, मिस सृष्टि ठाकुर कॉलेज ऑफ़ ब्यूटी गर्ल है। एक बार कोई देखे ना मुझे तो देख ही रह जाता है। पढ़ाई में ही नहीं, सुंदर लगने में भी एक नंबर है आपकी बहन। कल भी मैंने बताया था आपको, बट आपकी याददाश्त कमज़ोर है ना तो आप भूल गए। सृष्टि ठाकुर से सुंदर कॉलेज में कोई नहीं, डरते नहीं बल्कि तारीफ़ करते हैं। और रही बात शादी की तो देखना आप सब अपनी शादी में मैं सबसे प्यारी दुल्हन बनूँगी, सब देखते रह जाएँगे!"
"रहने दे, देखते रह जाएँगे वो भी तुझे, कुछ भी?" पूरब बोला और दोनों भाई-बहन के बीच किट-पिट शुरू होगी। ये देखकर पल्लवी जी तो अपना सिर पकड़ लेती हैं। "हे भगवान! ये फिर शुरू हो गए सुबह होते ही (राकेश जी की ओर देखते हुए) आप कुछ नहीं कहते हैं, इन दोनों को सिर पर चढ़ा रखा है। इन्हें रोकने की जगह हँसते रहते हो?"
"क्या पल्लवी जी? बच्चे नहीं झगड़ा करेंगे तो क्या हम करेंगे? इस तकरार से तो घर में रौनक रहती है। इनकी शरारतों से हर पल घर में मस्ती भरा माहौल बना ही रहता है। कहूँ तो फ़ुल एंटरटेनमेंट!" बोलते हुए राकेश जी हँस दिए।
"क्या पापा, आप भी ना!" श्री बोली और "अरे यार, बस भी करो! सृष्टि, चल जल्दी खाना खा, हमें लेट नहीं होना है!"
पूरब: "इसका पेट तो मेरे से लड़कर ही भर जाता है, खाने की क्या ज़रूरत है? क्यों छुटकी?"
सृष्टि: "जी नहीं, मॉम पराठा दो और हाँ, मैं अब छुटकी नहीं हूँ, समझते ब्रह्मचारी भैया?"
तभी पल्लवी जी सृष्टि को पराठा देते हुए उसकी गाल पर हल्का सा थप्पड़ लगा देती हैं। "'चुपचाप नाश्ता कर और पूरब अब तू भी चुप रह, समझा, वरना तू भी मार खाएगा!"
दोनों चुपचाप नाश्ता करने लगे। श्री दोनों की ओर देखती है। "दोनों बच्चे बन जाते हैं, अब देखो दोनों कैसे मुस्कुरा रहे हैं एक-दूसरे को देखकर।"
थोड़ी देर बाद,
श्री: "चलो बाय, शाम को मिलते हैं।"
पूरब: "बाय बहनों, मैं भी ऑफ़िस जाता हूँ। पापा, आप भी मीटिंग से पहले आ जाना..."
श्री अपने स्टूडियो पहुँची। एक लड़का उसकी तरफ़ चला आया। "हाय श्री!"
"हेलो विहान, कैसे हो?"
"मैं तो ठीक हूँ यार, तुम बताओ?"
"हमेशा जैसे, एकदम बिंदास!"
श्री ने कहा और दोनों हँस पड़े।
"क्या यार, कल तुम नहीं आई। मेरा तो मन भी न लगा। तुम्हारे बिना हमारा ये स्टूडियो तो बिल्कुल सूना-सूना लगता है। एक पल भी यहाँ मन नहीं लगता। हर चीज़ तुम्हें बुलाती है, 'श्री कहाँ है? श्री कहाँ है?' पूरा दिन बस काटने को दौड़ता है। मैं ही जानता हूँ कैसे अपना दिन बिताता हूँ तुम्हारे बिना। हाय श्री! क्या होगा मेरा तुम्हारे बिना? सोच-सोच कर मेरी तो जान ही निकल जाती है।" विहान अपने सीने पर हाथ रखकर बोला।
श्री हँस दी। "पागल! तेरा कुछ नहीं हो सकता है। पूरे नौटंकीबाज़ हो तुम, सृष्टि के जैसे। बताया था ना मैंने कल लड़के वाले आए थे, तो बताओ कैसे आती मैं स्टूडियो?"
विहान: "ओह हाँ, मैं तो भूल ही गया! और (श्री के कंधे पर हाथ रखते हुए) क्या हुआ? वैसे तो मुझे पता ही है तुझे कौन पसंद करेगा, बस मैं ही तेरा एक दीवाना हूँ। बाकी तू बता क्या हुआ कल, सुनने को मेरे कान तरस रहे हैं, जल्दी बता?"
"नहीं बताती, बोला था ना आ जाओ, पर नहीं आए?"
"यार, तुम्हें पता है क्यों नहीं आया? तुम आई नहीं, मैं भी यहाँ न रहता तो नया कॉन्ट्रैक्ट हाथ से चला जाता, वो कैसे होने देता!"
"अच्छा जी!"
"हाँ जी! अब बताओ, लड़के वाले ना करके चले गए होंगे ना!"
"जी नहीं, हाँ बोलकर गए। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ विहान जी, हम पसंद आए लड़के वालों को!"
"अच्छा और लड़के को?"
"हाँ, उसे भी मैं पसंद आई, तभी तो रिश्ता पक्का हुआ है ना हमारा!"
"और तुझे भी वो पसंद आ गया?"
"हाँ, बहुत! अच्छा इंसान है, हैंडसम, गुडलुकिंग है और क्या चाहिए?"
"मैं भी नहीं, मुझसे ज़्यादा हैंडसम तो नहीं हो सकता है वो?"
"वैसे तुम जितना तो नहीं, तुमसे ज़्यादा है हैंडसम!" कहते हुए श्री ने हँसते हुए विहान के गाल खींच लिए, जो उसकी बात सुनकर मुँह फुला चुका था!
विहान गाल छुड़ाते हुए: "तो मतलब इसका, तुम मुझे और इस स्टूडियो को छोड़कर चली जाएगी? अरे स्टूडियो! तुझे और मुझे यहाँ अकेला रहना पड़ेगा (स्टूडियो को देखकर जोर से बोलते हुए) हाँ भी, और कोई रास्ता भी नहीं! ये मैडम तो चली जाएगी और मुझे मेरे लिए कोई और ही दुल्हनिया ढूँढनी पड़ेगी, इसने तो अपना दूल्हा ढूँढ लिया है!"
श्री हँसते-हँसते: "ओये, मैं कहीं भी नहीं जाऊँगी। इसी शहर में तो मेरा ससुराल होगा, तो मैं स्टूडियो थोड़ी छोड़ूँगी?" विहान से कह वो मन ही मन खुद से कहने लगी, "मुझे पता है वहाँ भी मुझे कोई नहीं रोकेगा इस काम के लिए, सबकी सोच अच्छी है, मुझे मेरा काम छोड़ने को नहीं कहेंगे वो लोग!"
विहान खुश होते हुए जोर से चिल्लाया। "सच? ये तो बहुत अच्छी बात है यार! फिर तो मैं भी राज़ी हूँ इस रिश्ते के लिए और स्टूडियो भी हमारा बहुत खुश है, देखो! पूरी कायनात खुश है तुम्हारे लिए!"
"अच्छा विहान बाबू, चलो आप भी राज़ी हैं।" विहान श्री को गले लगाते हुए रिश्ते के लिए विश करता है, बहुत सारी बधाई देता है। वो थैंक्स कहती है और मुस्कुराते हुए विहान से कहती है, "आप भी परेशान मत होइए, आपके लिए दुल्हन हम ढूँढेंगे? और देखना विहान, वो मुझसे भी अच्छी होगी!"
"बिल्कुल तुम ही ढूँढोगी लड़की मेरे लिए, ये तुम्हारा ही काम है। वैसे मुझे पता था पहली ही नज़र में तुम सबको अच्छी लग जाओगी, पसंद आ जाओगी। तुम्हें कौन होगा जो पसंद नहीं करेगा? लकी है लड़का जिसे तुम मिलोगी, क्योंकि हमारी श्री ठाकुर की बात ही अलग है...क्यों?"
"अच्छा, बस कर! पार्टी दूँगी तुमको, अब चलो काम कर ले!"
"हाँ, चलो! वैसे कितने अच्छे से जानती हो मेरी श्री मुझे! आज सच्ची मेरा दिल टूटा है, मेरी पसंद को कोई और पसंद आ गया जानकर, बट पार्टी दोगी तुम मुझे तो थोड़ा जुड़ जाएगा!"
"थोड़ा जुड़ जाएगा?" श्री खिलखिलाकर हँसने लगीं। उसे हँसते देख विहान भी हँसने लगा।
विहान श्री का फ़ैशन स्टूडियो में पार्टनर है। दोनों ही मिलकर स्टूडियो चलाते हैं और उसका दोस्त भी है, सबसे अच्छा दोस्त है। लगभग एक साल से स्टूडियो में दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। वैसे तो किसी पार्टी में मिले थे दोनों, विहान के फ़्रेंड की बर्थडे पार्टी और श्री भी उसकी फ़्रेंड की जान-पहचान वाली थी। तब सिर्फ़ श्री ने स्टूडियो बनाने का सोचा ही था, फिर विहान को भी इस काम में बड़ी दिलचस्पी थी तो दोनों को किस्मत साथ ले आई। दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए, हर वक़्त दोनों ने एक-दूसरे का साथ दिया, बहुत कुछ सीखा एक-दूजे से और अपने स्टूडियो को बेस्ट बनाया। दोनों की मेहनत ने एक नाम कमा लिया। श्री कहे तो विहान स्टूडियो की जान है, उसके बिना स्टूडियो ऐसे कभी नहीं बन पाता और विहान कहता है श्री आत्मा है। पर सच है, दोनों ऑक्सीजन हैं अपने स्टूडियो की जो उनके काम और दोस्ती को दोनों को खास बनाती है!
उसी शाम,
दोनों का काम जैसे ही ख़त्म हुआ तो श्री विहान से बोली, "चलो, तुम्हें पार्टी देती हूँ, फ़ेवरेट आइसक्रीम खिलाती हूँ।" और दोनों आइसक्रीम पार्लर चले आते हैं और आइसक्रीम खाते हैं।
"न्यू डिज़ाइन वो कन्फ़र्म कर लेना विहान, क्लाइंट को इसी वीक देना है यार और प्लीज़ जल्दी काम करवा देना, ओके!"
"ओके मैडम, कल सुबह तक काम हो जाएगा। मज़ा आ गया यार, एक और लेकर आता हूँ, तेरे लिए भी लाऊँ?"
"नहीं, तुम खाओ और, मैंने खा ली!"
विहान एक और आइसक्रीम ले आया। "सच में मज़ा आ गया यार, थैंक्यू फ़ॉर दिस पार्टी! वैसे लड़के की पिक तो दिखा, मैं भी देखूँ कैसा है वो जिसने मुझसे मेरी श्री छीन ली (आह भरते हुए) विहान को अकेला कर दिया?"
"अच्छा जी!"
"हम्म!"
"चल, फ़ोटो दिखा?"
"तुम ख़ास दोस्त हो तो थोड़ा रुक, तुम्हें पिक नहीं दिखाऊँगी, आद्विक से आमने-सामने ही मिलवाऊँगी।"
विहान हँस दिया। "ओ तेरी! इतना स्पेशल हूँ मैं! चलो, मत दिखाओ फ़ोटो, मिल लेंगे जब तुम मिलवाओगी। वैसे नाम स्वीट है तो वो भी कम नहीं होगा, है ना?"
"हम्म, चलो बाय, मैं चलती हूँ। कल मिलते हैं, ओके बाय!"
"इतनी जल्दी? थोड़ी देर तो रुको! या आंटी ने कहा है कि रिश्ता हो गया है तो बेटा अब जल्द घर आ जाया करो, अच्छा नहीं लगता जवान लड़की का यूँ ज़्यादा देर बाहर रहना?"
"ऐसा कुछ नहीं है, तुम तो तुम्हारी बातें...बाय!"
"ओके बाबा, बाय-बाय एंड थैंक्स वन्स अगेन?" विहान श्री को आवाज़ देते हुए बोला जो उसे बाय बोल अपनी गाड़ी की तरफ़ जा रही थी...!!
दो दिन बीत गए, श्री-आद्विक की सगाई का मुहूर्त निकल जाता है। आद्विक तो नहीं, पर श्री बहुत खुश थी, बाकी सब भी बहुत खुश थे और दो दिन बाद ही रोके की रस्म होने वाली थी, जिसकी तैयारियाँ दोनों घरों में शुरू हो चुकी थीं।
सगाई की तैयारी होते आद्विक ने देखा तो वो बहुत परेशान हो गया। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। खुश होना तो दूर की बात, रोके की खबर सुन उसके मन में कुछ और ही हलचल पैदा कर रहा था, जिसके चलते उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी। बहुत बेचैन होते जा रहा था। उसे बिल्कुल सही नहीं लग रहा था जो भी हो रहा था, पर वह कुछ नहीं कर पा रहा था। दिमाग़ में हज़ारों सवाल बेलगाम घोड़े की तरह दौड़े जा रहे थे। उसे श्री का ख्याल आया तो वो खुद से सवाल कर बैठा।
"मैंने मॉम की खुशी के लिए हाँ तो कह दी, पर क्या उस लड़की के लिए ये सही होगा? बेमन से मैं शादी करूँगा उस लड़की से? गलत होगा ना उस लड़की के साथ... सोचते-सोचते कि क्या करूँ? उस लड़की से बात करूँ मैं?...वो अपना फ़ोन उठाकर श्री को मैसेज कर देता है-"
"Hello"
आद्विक और श्री के पास अब एक-दूसरे के नंबर थे। अक्ष ने श्री को नंबर दिए थे और आद्विक के फ़ोन में भी श्री के नंबर सेव कर दिए थे, पर अभी तक दोनों ने किसी भी तरीके से बात नहीं की थी। आद्विक तो वैसे भी पहल करने को तैयार नहीं था बात करने के लिए। श्री ने भी सोच लिया था जब वो बात करेगा तब ही कर लूँगी, तो वो बस इंतज़ार में ही थी और आद्विक अक्ष, मुस्कान के कई दफ़ा कहने पर भी इनकार कर चुका था!
पर आज आद्विक ने श्री को मैसेज कर ही दिया था, जिसे देख श्री की खुशी का ठिकाना न रहा। झूम उठी वो और अपने फ़ोन को उसने चूम लिया। "आद्विक का मैसेज...रिप्लाई देती हूँ?" बोलते हुए वो खिड़की पर आ बैठी और उसके "Hello" के जवाब में "Hii" टाइप कर भेज दिया।
श्री का रिप्लाई देख आद्विक और भी ज़्यादा परेशान हो गया। "वो बात कैसे करे?" वो सोचने लगा? उधर श्री उसके अगले मैसेज के इंतज़ार में फ़ोन पर नज़रें गड़ाए बैठी हुई थी, पर कोई मैसेज न आता देख खुद से बोली, "ये हेलो उन्होंने किया या किसी और ने...?" कि पाँच मिनट बाद फिर उसके फ़ोन पर आद्विक का मैसेज आ गया।
"Aap kal morning main free ho?"
श्री ने फ़ट से रिप्लाई दिया।
"Haa, free hu, kyu?"
"Mujhe app se milna hai, hum kl Naini lake par milte sakte hai?"
ये सुन श्री का चेहरा खिल उठा। आद्विक से कल मिलना, वो भी पहली बार... वो मुस्कुराने लगी और सोचने लगी, "क्या कहूँ? क्या बोलूँ...?" उधर आद्विक कोई जवाब न आते देख खुद से बोला, "शायद मिलने की बात पसंद न आई हो या उनकी फ़ैमिली अलाओ न करे उन्हें। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। जानती भी नहीं वो मुझे और ऐसे कैसे मिलने आ सकती है।" वो श्री को फिर मैसेज करता है।
"Kya hua? Nhi mil sakti aap? Chlo koi baat nhi...Bye."
श्री ने झट से रिप्लाई दिया।
"Nhi nhi, main milugi, I mean main aa jaugi apse milne, koi problem nhi hai. Vese lake pr kis time aana hai?"
आद्विक रिप्लाई देता है।
"Ok, kl 12 baje, ek baat or family ko toh problem nhi hogi na, aap milne aaygi toh?"
श्री:
"No no, don't worry mai aa jaugi."
आद्विक फिर कोई मैसेज नहीं करता। श्री उससे कल मिलेगी इस बात से खुश होते हुए अपने फ़ोन को फिर से चूम लेती है और कल का सोचते हुए नाचने लगी। "वाह! कल मैं आद्विक चौहान से मिलूँगी, पहली मुलाक़ात हमारी जहाँ हम दोनों होंगे, और मिलना होगा? नैनी झील पर! हाय! ये कल कितना दूर है! काश आज ही होता! कल के 12 बजे की जगह आज के 12 बजे मिलते, तीन घंटे बाद हम आमने-सामने होते?" बोलते हुए उसने अपने सिर पर थप्पड़ लगा लिया। "मैं भी ना? रात के 12 बजे थोड़ी मिल सकते हैं! चलो कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल सही। वैसे भी श्री ठाकुर, इंतज़ार का फल मीठा होता है... ला ला ला ला ला ला..."
इधर श्री खुश होते झूम रही थी, उधर आद्विक अपने रूम में इधर से उधर चलते, आद्विक से होने वाली कल की मुलाक़ात के बारे में सोच रहा था। कल 12 बजे वो उससे मिलने जाएगा, ये सोच-सोच कर उसके चेहरे पर 12 बज चुके थे..."
(क्रमशः)
अगली सुबह श्री जल्दी उठी। आद्विक से मिलने जाना था। "आज क्या पहनूँगी मैं?" बोलते हुए वो अलमारी से आज पहनने वाले कपड़े निकाली और उन्हें बेड पर रख दिया। "ये पहनूँगी। पहली बार मिलने जा रही हूँ आद्विक चौहान से। अच्छा...नहीं नहीं, बहुत अच्छा लगना तो बनता है..." और वो तकिया उठाकर गुनगुनाती हुई झूमने लगी। वह आद्विक के ख्यालों में खोई झूम रही थी कि पल्लवी जी और सृष्टि कमरे में आ गईं। श्री की ऐसी हरकत पर दोनों हँस पड़ीं क्योंकि वह बेड पर खड़ी तकिए के साथ कपल डांस कर रही थी।
उनका हँसना सुनकर श्री झूमना छोड़कर बेड से उतर गई और तकिया बेड पर फेंककर हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली-
"मॉम, सृष्टि...आप कब आईं?"
पल्लवी जी- "बस अभी बेटा!"
सृष्टि हँस दी- "हाँ हाँ, अभी आईं जब आप आद्विक जीजू (तकिए की ओर इशारा करते हुए) के साथ डांस कर रही थीं।"
यह सुनकर श्री शर्मा गई और उसने नज़रें झुका लीं। पल्लवी जी उसके पास आईं और उसका चेहरा हाथों में भरकर उसका सिर चूमा। "हमेशा यूँ ही खुश रहो बेटा।" "मॉम..." कहते हुए श्री उसी पल उनके गले लग गई।
सृष्टि श्री के पास चली आई। "क्या बात है दी? जीजू की इतनी याद आ रही है क्या कि आपने इस तकिए को (बेड से तकिया उठाते हुए) ही आद्विक चौहान बना लिया? (मंद-मंद हँसते हुए) हम्म, बोलो ना दी।"
श्री कुछ नहीं बोली। उसने तकिया सृष्टि से छीनकर उसे बेड पर फेंक दिया। सृष्टि फिर बोली- "बोलो ना दी। देखो ना मॉम, दी हमें बता ही नहीं रही?"
पल्लवी जी भी आज सृष्टि के साथ हो गईं। "हमें तो बता दो बेटा, माँ हैं हम, हमें भी जानना है हमारी बेटी के पागलपन की (हँसते हुए श्री के गाल खींचते हुए) वजह!"
यह सुनकर श्री मासूमियत से बोली- "मॉम प्लीज।"
सृष्टि हँस दी- "दी पागल हो चुकी है मॉम, और इस बात में कोई शक नहीं। अभी-अभी प्रूफ भी हो चुका है। हमने देखा अपनी आँखों से, राईट मॉम!"
"चुप कर।" श्री सृष्टि को घूरती है कि तभी पल्लवी जी ने श्री का चेहरा अपने हाथों में भरा। "क्या बात है? बड़ी खुश लग रही हो। मेरी बेटी के चेहरे पर आज अलग ही नूर है।"
"ये नूर तो रिश्ता हुआ है तब से है मॉम, आपने देखा नहीं। मेरी दी के इस नूर की वजह सिर्फ़ मेरे जीजू हैं, आद्विक चौहान, जो हर पल इनके दिलो-दिमाग पर छाए रहते हैं। सही कहा ना दी?" सृष्टि श्री के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली।
श्री उसे डाँटने लगी- "हर बार तेरा बीच में बोलना ज़रूरी है क्या?"
सृष्टि- "बीच में थोड़ी बोली, मैं तो साइड से बोली हूँ दी। देखो, बीच में तो आप हो..." इतना बोलकर वो हँसने लगी तो उसके साथ-साथ श्री और पल्लवी जी भी हँसने लगीं।
"बेटा, किसी इवेंट में जा रही हो?" बेड पर पड़ी ड्रेस देखकर पल्लवी जी ने पूछा।
"नहीं मॉम।"
"तो इतनी प्यारी ड्रेस बाहर किसलिए? स्टूडियो जाने के लिए तो ऐसी ड्रेस नहीं पहनती हो तुम?" पल्लवी जी फिर बोलीं तो श्री फट से अपने कान पकड़ लेती है। "मॉम सॉरी, मैं बताना ही भूल गई। वो आज मुझे आद्विक ने बारह बजे मिलने बुलाया है और मैंने हाँ कह दिया था। मैं जा सकती हूँ ना मॉम? आपको और पापा को सही लगे तो...आई मीन आप दोनों बोलेंगे तो चली जाऊँगी..." कहकर वो चुप हो गई और पल्लवी जी की तरफ़ देखते हुए, आई मीन उनके जवाब का इंतज़ार करते हुए, वो मन ही मन प्रार्थना भी करने लगी- मना ना कर दें, हाँ कह दें।
पल्लवी जी बोलती हैं, सृष्टि हैरानी से बोल पड़ी- "कैसी बात कर रही हो दी आप? लड़के से मिलने जाओगी आप, वो भी अकेले? उसने बुलाया, आपने हाँ कर दी, किसी से भी नहीं पूछा। शादी से पहले, अभी तक तो रोका भी नहीं हुआ। ऐसे मिलना सही थोड़ी है। और ऐसी क्या बात करनी है जो मिलने बुलाया है? उस दिन तो मुँह से एक शब्द नहीं निकाला उनके मुँह से। आप नहीं जाएगी?"
यह सुनकर श्री का चेहरा लटक गया। तभी पल्लवी जी सृष्टि का कान खींचते हुए बोलीं- "बस कर तू, हो गई तेरी बदमाशी। कुछ भी बोलती है बेटा ये। तुम्हारी टांग खींच रही है और कुछ नहीं..." सृष्टि ताली बजाते हुए जोर से हँस पड़ी- "दी का चेहरा देखो, ओएमजी! इनके चेहरे का रंग ही उड़ गया!"
कि तभी श्री का चेहरा फिर से खिल उठा जब पल्लवी जी ने उसे हाँ कह दिया। "हाँ बेटा, तुम जा सकती हो। हमने तुम्हें सब फैसले लेने का हक दिया है। हमें पता है कि तुम हमेशा सब सही फैसले लोगी। और हाँ (श्री के हाथ अपने हाथ में लेकर) अच्छे से तैयार होकर जाना और अच्छे से बात करना बेटा। विश्वास रिश्तों को मज़बूत करता है बेटा। आद्विक बहुत अच्छा लड़का है। मिलने बुलाया है ना, ज़रूर जाओ!"
श्री खुश होकर पल्लवी जी के गले लग गई।
सृष्टि फिर बोल पड़ी- "अब समझ आया वो थोड़ी देर पहले नाचना-झूमना किस खुशी में हो रहा था? जीजू से पहली मीटिंग जो होने वाली है, जहाँ पर ये होगी, वो होंगे और कोई नहीं..."
श्री शर्मा गई। सृष्टि श्री को साइड से हग करते हुए बोली- "मैं भी चलूँ साथ? आप दोनों को डिस्टर्ब नहीं करूँगी। आप दोनों करना प्यार भरी बातें (छेड़ते हुए) मैं वहाँ चुपचाप बैठी रहूँगी..."
"तू रुक, अभी बताती हूँ तुझे। तू और चुपचाप? तूने तो आज मेरी तो जान ही निकाल दी। दादी अम्मा कहीं की?" श्री सृष्टि के पीछे दौड़ने लगी जो उसकी पकड़ में आने से पहले भाग खड़ी हुई थी।
"दी, मैं तो मज़ाक कर रही थी। पर सच में आपका चेहरा देखने लायक था।"
दोनों भागती-दौड़ती नीचे आ पहुँचीं कि तभी सृष्टि पूरब से टकरा गई।
पूरब- "क्या हुआ? पकड़म-पकड़ाई खेल रही हो? चलो मैं भी खेलता हूँ?"
श्री- "कोई खेल नहीं खेल रहे। इस सृष्टि का तो मैं खून कर दूँगी आज। बहुत परेशान करती है।" और दोनों पूरब के चारों ओर दौड़ने लगीं। श्री उसे पकड़ने की कोशिश करती है पर सृष्टि कहाँ उसके हाथ आती। पर इस बीच पूरब दोनों के बीच पिसने लगा कि तभी वह श्री को स्टैच्यू कर देता है- "श्री स्टैच्यू..." वो जहाँ थी, जैसे थी, रुक गई।
पूरब ने सृष्टि की ओर देखा जो रुक चुकी थी और हाँफ रही थी। पूरब कमर से हाथ टिकाते हुए बोला- "बात क्या है? मुझे भी बता?"
"बात तो बहुत जबरदस्त है बड़े भैया।"
"वो तो पता है जबरदस्त है, तभी तो ये (श्री की ओर हाथ से इशारा करते हुए) तेरा मर्डर करने पर तुली है आज। चल, बता जल्दी।"
"बताती हूँ। वो आज मैडम आद्विक चौहान से मिलने जा रही है। जाना दोपहर के बारह बजे है और तैयारी ये कल रात के बारह बजे से कर रही है और ना बताया किसी को। हमें भी अभी पता चला..." सृष्टि हँसते-हँसते आद्विक ने मिलने बुलाया से लेकर श्री की हालत तक का सब पूरब को बता डाला। जिसे सुनकर वो भी हँस पड़ा और श्री को "ओवर" कहते हुए स्टैच्यू पोज़ से फ्री किया।
"आपने स्टैच्यू क्यों किया मुझे? और रुक तू, सृष्टि की बच्ची! तुझे तो अभी बताती हूँ। बड़ी हँसी आ रही है तुझे?" श्री सृष्टि की तरफ़ बढ़ने लगी। पूरब ने उसे पकड़ लिया- "अरे जू जा, गदाधारी भीम! हँसने वाली बात है तो हँसेंगे ही ना। चल, तुझे एक गाना सुनाता हूँ।"
श्री ठाकुर बड़ी बेकरार है, सनम से मिलने का इंतज़ार है... आगे सृष्टि गाती है- "सनम नहीं, साजन, जिसका नाम आद्विक चौहान है!"
यह सुनकर श्री शर्मा जाती है, होठों पर मुस्कराहट भी आ जाती है, आँखें झुक जाती हैं। यह देख पूरब उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए बोला- "लो, बन गई लाल टमाटर?"
(क्रमशः)
पूरब ने श्री को छेड़ते हुए कहा, "क्या है? मैं जा रही हूँ, रहो हँसते।" श्री अपने कमरे की ओर चली गई।
पूरब पीछे से आवाज़ देता है, "बारह बजने में समय है अभी। तैयार मत होना, बहन?"
श्री ऊपर से चिल्लाई, "नहीं हो रही तैयार। पता है मुझे अभी समय है।"
सृष्टि भी बोल पड़ी, "दीदी, हेल्प करूँ मैं आपकी? और हाँ, मैं भी आपके साथ चलूँगी। ओके!"
श्री ने कहा, "नॉट ओके। कोई ज़रूरत नहीं तुम्हारी। मैं अकेले चली जाऊँगी।" श्री अपने कमरे में चली गई। पूरब और सृष्टि दोनों हाई-फ़ाई करते हुए हँस पड़े। तभी पल्लवी जी वहाँ आ गईं।
"तुम दोनों फिर उसके पीछे पड़ गए? पागल बच्चे हो मेरे…" बोलते हुए वे हँस दीं और पूरब से बोलीं, "तुम्हारे पापा बुला रहे थे तुझे। कुछ काम है। और हाँ, उन्हें भी बोल देना आकर नाश्ता कर लें। नाश्ता लगा रही हूँ टेबल पर।"
"जी माँ," बोलकर पूरब वहाँ से चला गया। सृष्टि भी जाने लगी कि पल्लवी जी ने उसे रोक लिया।
"रुको तू। आओ मेरे साथ। थोड़ी हेल्प करो खाना लगाने में। जब देखो बातें बनाती रहती हो, थोड़ा काम भी कर लिया करो!"
यह सुनकर सृष्टि मुँह बना लेती है। "करती तो हूँ काम, थोड़ा क्या बहुत सारा। आपका, सबका… सब छोटे-छोटे कितने काम करवाते हो मुझसे, पता भी है आपको? छोटी हूँ तो कोई कुछ काम का बोल देता है, कोई किसी और काम का। और मैं कभी मना भी नहीं करती। फिर भी ‘काम कर लिया करो’ बातें दिखती हैं मेरी, सच्ची में मेरा काम नहीं दिखता। बाल मज़दूरी करवाते रहते हो।" और सुनाती भी है। खैर, सृष्टि ठाकुर अपनों की बात का, आई मीन तानों का, बुरा नहीं मानती। "चलिए, कर देती हूँ आपकी हेल्प, आई मीन आपको काम कर देती हूँ। वैसे भी आपकी हेल्प करने को मैं आलवेज़ रेडी रहती हूँ। आ जाओ…" बोलकर सृष्टि किचन की ओर चल दी।
"ये लड़की भी ना…" बोलते हुए पल्लवी जी उसके पीछे-पीछे चली गईं।
अक्ष कैफ़े पहुँचा। अपने दोनों दोस्तों से मिला।
"हाय मौली, कैसे हो शिवम?" शिवम से हाथ मिलाते और मौली को हग करते हुए बोला।
शिवम ने कहा, "मैं तो ठीक हूँ यार, तुम कहाँ थे दो दिन से?"
मौली ने कहा, "हाँ अक्ष, पता है कितना मिस किया हमने तुम्हें?"
अक्ष ने कहा, "सच में, मैंने भी बहुत मिस किया गाइज़, तुम दोनों को!"
मौली ने कहा, "ये छोड़ो, तुमने फ़ोन पर बताया था एक न्यूज़ बताने वाला है। चल अब बता?"
अक्ष ने कहा, "हाँ, मुझे भी कहा था कि मिलूँगा तब ही बताऊँगा।"
शिवम बोला, "बताता हूँ, बताता हूँ। गाइज़, मेरे ब्रदर की दुल्हन मिल गई…" अक्ष खुश होते हुए बोला और यह बताते हुए वह मौली और शिवम दोनों को एक साथ हग कर लेता है। "मेरे भाई का रिश्ता पक्का हो गया यार। वो लड़की, मतलब मेरी होने वाली भाभी, बहुत प्यारी है। फ़ाइनली मेरी मॉम ने भाई के लिए दुल्हन ढूँढ ली!" (दोनों से अलग होते हुए)
शिवम ने कहा, "सच? कांग्रेचुलेशन्स यार! वो हो ही गया जो तुम्हारी फैमिली चाहती थी… है ना मौली?"
मौली कुछ नहीं बोली। यह देख अक्ष हँसते हुए बोला, "तुम्हें क्या हुआ?"
शिवम भी हँस दिया, "क्या हुआ? यार, इसके हीरों के लिए कोई और दुल्हन मिल गई। झटका लगा है। सोच रही होगी मुझे नहीं मिला आद्विक चौहान?"
मौली मुँह बनाते हुए बोली, "और क्या? मैंने तो देखा भी नहीं है। सिर्फ़ सुना था आद्विक चौहान के बारे में। और मैं अब ये सुन रही हूँ कि वो किसी और लड़की का हो जाएगा। मेरा क्या होगा?"
अक्ष मौली से बोला, "यार, तेरे लिए मैं हूँ ना।" (कंधे पर बाँहें रखते हुए) "और तुम तो मेरी गर्लफ्रेंड हो। ऐसे औरों के बारे में नहीं सोचा करते, समझी?"
मौली हँस दी, "यार, मज़ाक कर रही थी मैं।"
अक्ष ने कहा, "मैं भी। तू तो मेरी प्यारी दोस्त है। तेरे लिए बेस्ट ही होगा जो भी होगा।"
मौली ने कहा, "थैंक्स। और बाई द वे, कांग्रेचुलेशन्स। हम भी खुश हैं बहुत। राईट शिवम?"
शिवम ने कहा, "या राईट। बड़े भैया की शादी की खबर मिली है, खुश तो होंगे ही… वैसे लड़की है कौन? जो तुम्हारे भैया को पसंद आ गई? तुमने एक दिन बताया था उन्हें कोई लड़की पसंद ही नहीं आती है। तुम्हारी मॉम उनका रिश्ता करवाकर रहेंगी?"
अक्ष ने कहा, "हाँ, और उन्होंने करवा ही दिया। क्योंकि भाई की खुशी इसी में है। भाभी के आने के बाद भाई भी खुश रहेंगे।" और धीरे से कहता है, "शायद पहले जैसे हो जाए?" "और गाइज़, लड़की बहुत प्यारी और अच्छी है। नाम है श्री ठाकुर। सी इज़ ए फ़ैशन डिज़ाइनर। एक बार देखें उन्हें तो बंदा देखता ही रह जाए!"
शिवम ने कहा, "ओह!"
मौली ने कहा, "ऐसा है तो बहुत अच्छा है अक्ष। चलो, हमें भी पिक तो दिखाओ अपनी भाभी की, अपने भाई की दुल्हन। हम भी तो उन्हें… जिसका अक्ष देवर बनेगा?"
अक्ष ने कहा, "ऑफ़कोर्स। अभी देखो।" और अपने फ़ोन में वो दोनों को श्री की पिक दिखाता है।
शिवम ने कहा, "बहुत ब्यूटीफ़ुल है।"
अक्ष ने कहा, "बोला था ना?"
मौली ने श्री की फ़ोटो देखते हुए अक्ष से पूछा, "हम्मम… सच में बहुत प्रीटी है यार। वैसे हमें तो तुम बुलाओगे ना शादी में?" तो उसने फ़ट से बोल दिया, "शादी में आपको? नहीं तो?"
यह सुन शिवम और मौली एक-दूसरे की ओर देखकर एक साथ बोले, "क्यों यार? हम फ़्रेंड हैं?"
अक्ष हँस दिया, "क्या गाइज़? ये भी पूछने वाली बात है? शादी में नहीं, तुम दोनों को सभी फ़ंक्शन में आना है। अभी इनवाइट कर रहा हूँ सभी फ़ंक्शन्स में। ओके? और अगर नहीं आए तो देखना अक्ष चौहान फिर क्या करता है?"
शिवम ने कहा, "क्यों नहीं आएंगे? मैं ज़रूर आऊँगा। हम फ़ुल इंजॉय करेंगे। तुम्हारा भाई मेरा भी भाई है। मिलकर करवाएँगे हम भाई की शादी। क्यों?"
"येस," कहते हुए अक्ष शिवम के साथ हाई-फ़ाई कर लेता है।
मौली ने कहा, "तुम ना बुलाते मुझे, तब भी मैं तो चली आती अक्ष।"
अक्ष ने कहा, "आई नो। अच्छा गाइज़, दो दिन बाद रोका है, मतलब मंगनी है भाई की, तो टाइम से पहुँच जाना। एड्रेस मैं बता दूँगा!"
शिवम और मौली एक साथ फ़ट से थम्ब्स-अप दिखा देते हैं। यह देख अक्ष हँसते हुए एक बार फिर उन्हें हग कर लेता है। उसके दोनों दोस्त भी उसके भाई की शादी की बात से इतने ही खुश जितना वह…
श्री दस बजे ही तैयार हो जाती है और समय होने का, आद्विक से मिलने जाने के लिए, इंतज़ार कर रही होती है कि इतने में विहान का फ़ोन आता है।
विहान ने कहा, "कहाँ हो यार? मैं कब से वेट कर रहा हूँ?"
श्री ने कहा, "सॉरी यार, मैं बताना भूल गई। मैं आज स्टूडियो थोड़ा लेट आऊँगी।"
विहान ने कहा, "क्यों? क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?"
श्री ने कहा, "हाँ-हाँ वो… मैं आज बारह बजे आद्विक से मिलने जा रही हूँ। उनसे मिलकर मैं सीधे स्टूडियो आ जाऊँगी।"
विहान ने कहा, "अरे वाह! मैडम, डेट पर जा रही है आज! तो बड़ी खुश होगी। बेस्ट ऑफ़ लक!"
श्री ने कहा, "क्या यार! डेट पर थोड़ी, सिर्फ़ मिलने जा रही हूँ। पर ये टाइम भी पता नहीं कब होगा। लगता है घड़ी खराब हो गई है आज?" अपने रूम में लगी दीवार घड़ी की ओर देख मुँह बनाती हुई श्री विहान से बोली।
विहान हँस दिया, "मैडम, इंतज़ार की घड़ियाँ बहुत मुश्किल से बीतती हैं। और आज तो तुम्हें मिलने जाना है, तो टाइम ऐसा लग रहा होगा जैसे धीरे हो गया हो?"
श्री मुस्कुरा दी, "और नहीं तो क्या?" थोड़ी देर विहान से बात करके श्री ने कहा, "मैं सीधे स्टूडियो आ जाऊँगी।" कहकर फ़ोन रख देती है। जैसे ही ग्यारह बजते हैं, वह सोचती है, "अभी निकलती हूँ, लेट ना हो जाऊँ?" कहती हुई अपना हैंडबैग और कार की चाबी लेकर अपने रूम से बाहर निकलती है और पल्लवी जी से नीचे आकर कहती है, "बाय मॉम, मैं जा रही हूँ।"
वहीं पूरब और सृष्टि बैठे होते हैं… पूरब अपनी घड़ी की ओर देखते हुए कहता है, "अभी तो ग्यारह ही बजे हैं। बारह बजे मिलना था ना?"
सृष्टि ने कहा, "अरे भैया, आप भी ना! सब्र थोड़ा होता है। क्यों (हँसते हुए) दीदी?"
श्री ने कहा, "जी नहीं। हाँ, बारह बजे मिलना है, पता है मुझे। मैं अभी निकलूँगी तो टाइम पर पहुँचूँगी। ट्रैफ़िक हुआ तो? इसलिए अभी निकल रही हूँ। और कोई समस्या है आप दोनों को? जब देखो काली बिल्ली की तरह रास्ता काट देते हो?"
पूरब हँसते हुए बोलता है, "मैं तो बिल्ली नहीं, बिल्ला हूँ!" और सब हँसने लगे।
पल्लवी ने कहा, "जाने दो इसे। जाओ बेटा, टाइम पर ही जाना चाहिए। इन पागलों को क्या ही पता, कभी कोई काम टाइम पर किया भी है क्या? ये तो ऐसे ही लगे रहेंगे। तुम जाओ।"
श्री ने कहा, "जी!"
तभी सृष्टि श्री के पास चली आई। "दीदी, मैं भी चलूँ क्या साथ में? अकेले में डर नहीं लगेगा आपको? पहली बार मिलने जा रही हो। मैं साथ होऊँगी ना तो कम्फ़र्टेबल रहोगी। क्यों भैया? सही कहा ना?"
पूरब ने कहा, "हाँ, मैं भी चलता हूँ। एक से भले दो, दो से भले तीन। चलो, चलो, मैं भी तैयार हूँ!"
यह सुन श्री मुस्कुरा दी। सृष्टि को गले लगाया और फिर पूरब की ओर देखते हुए बोली, "देखिए मॉम, मेरे भाई-बहन मेरे बारे में कितना सोचते हैं। ये हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहते हैं। बट गाइज़, मुझे अभी कोई हेल्प नहीं चाहिए। आप दोनों की तो मुझे बिल्कुल भी नहीं। आप दोनों साथ हो, इससे अच्छा मैं अकेली ही सही समझें, प्यारे भाई-बहनों।" कहती हुई हाथ में बंधी घड़ी को देखते हुए बोली, "सवा ग्यारह हो गए। ओके, बाय-बाय।" बोलकर श्री भागकर चली गई।
पल्लवी जी हँसने लगीं। वहीं सृष्टि, "दीदी-दीदी," पूरब, "बहन-श्री," करते रह गए।
सृष्टि पूरब से बोली, "आप साथ जाने को ना कहते तो दीदी मुझे साथ ले जाती?"
पूरब ने कहा, "रहने दे। तेरे जैसी आफ़त की पुड़िया को वो कभी साथ नहीं ले जाती…" और दोनों के बीच बहस-झगड़ा शुरू हो गया।
पल्लवी ने दोनों को डाँटा, "हे भगवान! तुम दोनों भी ना! कभी भी शुरू हो जाते हो। और हाँ, श्री, तुम दोनों में से किसी को नहीं ले जा सकती है। समझे? कम्फ़र्टेबल का पता नहीं, पर नर्वस ज़रूर कर देते हो। जाओ अब अपना-अपना काम करो।"
सृष्टि ने कहा, "जा रही हूँ। जाकर अपने असाइनमेंट बनाती हूँ। ये छुट्टी क्यों होती है? इससे अच्छा तो कॉलेज होता आज…" बड़बड़ाते हुए वहाँ से चली गई।
पल्लवी जी अपना माथा पीट देती हैं, "ये लड़की भी ना! छुट्टी हो तो कहती है कॉलेज होता, और कॉलेज होता है तो कहती है काश छुट्टी होती…"
पूरब ने कहा, "छुटकी ऐसी ही है माँ। अच्छा माँ, पापा ऑफ़िस गए। मैं भी जाता हूँ। वेट कर रहे होंगे?" कहकर पूरब ऑफ़िस चला जाता है, और पल्लवी जी अपने काम लग जाती हैं।
"अरे भाई… आप इतनी जल्दी में कहाँ जा रहे हो?" अक्ष आद्विक से पूछता है, जब आद्विक श्री से मिलने के लिए जल्दी में घर से निकल रहा होता है और बाहर से आ रहे अक्ष से टकरा जाता है।
आद्विक ने कहा, "वो, कुछ काम है। ओके, बाय।" वह चला जाता है। इस वक़्त उसको कुछ होश नहीं था। उसके मन में अभी भी यही चल रहा था कि क्या वह सही कर रहा है? वह क्या कहेगा उस लड़की से, आई मीन श्री से? यही सोचते-सोचते अपनी गाड़ी में बैठकर वह घर से चला जाता है, वहाँ के लिए जहाँ पर उसने श्री को मिलने बुलाया था- नैनी झील पर।
अक्ष आद्विक को जाते हुए देखता रह जाता है। "ये भाई हमेशा जल्दी में रहते हैं। पता नहीं इनकी कौन सी… इनकी गाड़ी छूट रही होती है…" बोलते हुए अक्ष अंदर चला आया।
हॉल में बैठे वरुण जीजू ने अक्ष से कहा, "क्या हुआ छोटे साले साहब? अकेले ही बोलें जा रहे हो?"
अक्ष ने कहा, "कुछ नहीं जीजू।"
रूहानी ने कहा, "ओये छोटे! आज कॉलेज नहीं गया?"
अक्ष ने कहा, "वो दीदी, आज छुट्टी है कॉलेज की!"
सुमो किचन से आते हुए बोली, "रूहानी दीदी, छोटे भैया की तो अब छुट्टियाँ ही होने वाली हैं। बड़े भैया की शादी जो होने जा रही है। क्यों छोटे भैया?"
अक्ष ने कहा, "येस, सुमो दीदी, सही कहा आपने। मैं शादी के कामों में हेल्प करूँगा।"
तभी नंदिनी जी चली आईं, "हेल्प या मस्ती अकू?"
अक्ष ने कहा, "दोनों। मैं तो एक्साइटेड हूँ मॉम!"
रूहानी ने उसके गाल खींच लिए, "बेटा, अभी रोका ही हो रहा है, शादी नहीं। इसलिए कॉलेज मिस मत करना ज़्यादा, समझे!"
अक्ष ने कहा, "आई नो दीदी। आप सब टेंशन मत लो। सब अच्छा होगा। मेरे एग्ज़ाम भी और भाई की फ़ंक्शन भी। वैसे आप सब क्या कर रहे हैं?"
वरुण जीजू ने कहा, "वो रोका है ना, उसी की तैयारी कर रहे हैं। और क्या?"
आनंद जी भी वहाँ आ गए, "हाँ, किसको बुलाना है अब और किसको सीधे शादी में बुलाना है?"
नंदिनी जी ने कहा, "मेरी लिस्ट तो तैयार है। मैं तो सबको बुलाऊँगी सब फ़ंक्शन में!"
अक्ष ने कहा, "मैं भी।"
रूहानी हँसते हुए बोली, "आपको कौन रोक सकता है? आपके बेटे की शादी है। आप चाहें पूरा शहर शामिल हो जाए मॉम!"
"हाँ, मेरे बेटे की शादी। हे भगवान! सब अच्छे से हो जाए…" नंदिनी जी हाथ जोड़कर ऊपर की ओर देखते हुए बोलीं। उन्हें फिर चिंतित होते देख सब एक-दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा दिए।
"ये दिल्ली का ट्रैफ़िक भी ना! 11:40 हो चुके हैं। आज तो तू लेट ही होगी। क्या सोचेंगे आद्विक? पहली बार मिलने बुलाया, वो भी लेट आई। हे भगवान! इस ट्रैफ़िक को आज कम कर देते।" अपनी कार का हॉर्न बजाते हुए, अपनी वॉच की ओर देखते हुए श्री खुद से ही बोलें जा रही थी। उधर, आद्विक लेक पर पहुँच चुका था और श्री का वेट कर रहा होता है। साथ-साथ यह सोच रहा होता है, "क्या कहूँगा? कैसे मना करूँगा इस रिश्ते के लिए? ऐसा कुछ कहना होगा श्री, उस लड़की से, तुझे कि वो खुद ही मना कर दे। पर क्या बोलूँगा मैं उससे? जिससे ऐसा होगा, आई मीन जो मैं चाहता हूँ वो होगा? मिलने तो बुला लिया उसे?"
श्री का इंतज़ार करते-करते, रिश्ते के लिए मना कैसे करना है सोचते-सोचते, बारह से ऊपर टाइम हो जाता है। श्री अब तक नहीं आई थी। आद्विक ने अपनी हैंड वॉच की ओर देखा, "आएगी भी या नहीं? बारह बजे बोला था, अभी तक नहीं आई है वो। मेबी (शायद) नहीं आने वाली। आती तो बता देती, बट इंफ़ॉर्म ही नहीं किया। मैंने भी नहीं पूछा… दरअसल, दोनों के बीच रात जो बात हुई थी, वहीं हुई। उसके बाद कोई बात नहीं हुई। आद्विक ने फिर पूछा नहीं, और श्री के ध्यान में नहीं रहा कि बोल दूँ आ रही हूँ…" आद्विक वहाँ से जाने लगता है कि तभी श्री उसके सामने आ खड़ी हुई…
(क्रमशः)
श्री हल्के से मुस्कुराते हुए आद्विक से कहा, "हाय।"
आद्विक ने "हाय" का उत्तर "हेल्लो" में दिया।
श्री: "एम सॉरी, मुझे आने में थोड़ी देर हो गई। वो दिल्ली का ट्रैफिक, पता तो है ना आपको? सो लेट हो गया!"
आद्विक: "ओह, मुझे लगा आप नहीं आएंगी, इसलिए मैं जा रहा था..."
वह आगे कहता इससे पहले ही श्री बोलीं,
श्री: "ऐसे कैसे नहीं आती? आपने बुलाया था, आना तो था।" (अपने हाथों को आपस में गूँथते हुए) "वैसे, थोड़ा और लेट हो जाती, तो आप सच में चले ही जाते, राईट!"
आद्विक: "हम्म, रुककर भी यहाँ क्या करता? आप नहीं आतीं तो मैं चला जाता!"
श्री: "वन्स एगेन, रियली सॉरी आद्विक जी। मैं टाइम से निकली थी घर से, बट फिर भी देर हो गई!"
आद्विक: "इट्स ओके। आइए, बैठकर बात करते हैं।"
आद्विक ने कहा और वहीं लेक के पास जगह-जगह कई बैठने के लिए बेंच रखे हुए थे। दोनों एक खाली बेंच के पास चले आए। श्री बैठ गईं। आद्विक को भी बैठने को कहती हैं, पर वह खड़ा रहता है और कुछ कहता भी नहीं। दरअसल, वह श्री से कैसे बात करे, यह सोचने लग जाता है...
काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो श्री मन ही मन खुद से बोलने लगीं, "कुछ तो बोलो! क्या फायदा मिलने बुलाने का? पता नहीं क्या सोच रहा है..."
कहते हुए वह बेंच से उठ गईं और आद्विक के सामने हाथ हिलाते हुए बोलीं, "हेल्लो?"
आद्विक: "हम्म?"
श्री: "क्या हुआ? सब ठीक है?"
आद्विक: "हाँ, सब ठीक है!"
श्री: "लग तो नहीं रहा सब ठीक। मिलने बुलाया, कोई बात है क्या? टेंशन में भी लग रहे हैं आप। सो बताइए, क्या बात है? क्या सोच रहे हैं आप?"
आद्विक ने एक साँस में कहा, "आप इस रिश्ते के लिए तैयार हैं? आपकी हाँ है? क्या आपने अपनी मर्ज़ी से हाँ की है?"
यह सुन श्री थोड़ी हैरान हो गईं।
श्री: "हाँ, अपनी मर्ज़ी से हाँ की है। क्यों? क्या हुआ ऐसा? सवाल क्यों? आपको कोई परेशानी है? आपको रिश्ता पसंद नहीं है क्या?"
यह सुन आद्विक मन ही मन खुद से बोला, "मैं ना कर देता हूँ। फिर ये भी मना कर देगी और सब ठीक हो जाएगा। आई मीन, जैसा मैं चाहता हूँ वैसा..."
कहते हुए वह बोलने को हुआ कि उसको नंदिनी जी का ख्याल आ जाता है, उनकी बिगड़ी हालत, वह हॉस्पिटल में... ये चीज़ें उसे परेशान कर जाती हैं।
आद्विक (मन ही मन): "मॉम, वो कहीं फिर से वही सब... ये क्या कर रहा है आद्विक तू? खुद के लिए, मॉम की हेल्थ... उनको कुछ हो गया तो नहीं? नहीं! और मॉम तो फिर से तेरी शादी के पीछे लग जाएँगी। कोई और लड़की ढूँढ देंगी। फिर वापस यही सब। इस लड़की से पीछा छुड़ाएगा, दूसरी ले आएंगी मॉम..."
आद्विक मन ही मन खुद से बड़बड़ा रहा था। श्री ने फिर उससे पूछा,
श्री: "क्या हुआ? कुछ तो बोलिए?"
आद्विक ने एक पल अपनी आँखें बंद करके खुद को रिलैक्स किया और फिर श्री से कहा,
आद्विक: "कुछ नहीं। वो बस ऐसे ही..."
फिर वह खुद से बातें करने लग गया, "तू कुछ नहीं कर सकता आद्विक। इसको मना करेगा, पर मॉम नहीं। उनके लिए तूने हाँ की है तो अब उनके लिए सब करना पड़ेगा!"
श्री फिर उससे बोली,
श्री: "आपने फिर मुझसे जो पूछा, वो क्या था?"
आद्विक: "हाँ, वो कि आप अपनी मर्ज़ी से ही हाँ कर रही हैं ना। बस यही पूछना था। ओके, मैं चलता हूँ!"
श्री: "बस यही पूछना था? मेरी और फैमिली सबकी हाँ है। ओके, बाय। जल्द मिलते हैं!"
आद्विक "बाय" कहकर जाने लगा कि जाते-जाते रुककर मुड़कर बोला,
आद्विक: "आपको ड्रॉप कर दूँ?"
श्री: "थैंक्स। मेरे पास मेरी कार है। मैं चली जाऊँगी।"
आद्विक: "ओके।"
और आद्विक वहाँ से चला जाता है, और श्री हँसने लगती है।
श्री (मन ही मन): "थोड़ा अलग है, थोड़ा सा अजीब। लगता है सोचता बहुत है। मिलने बुलाया, वो भी ये जानने के लिए कि मैंने अपनी मर्ज़ी से हाँ की है या नहीं। वाह! क्या बात है! दिल जीत लिया आपने हमारा। जिस शख्स को अभी से हमारा इतना ख्याल है, उसे जिंदगी भर कितना रखेगा?"
श्री वहाँ से सीधा अपने स्टूडियो चली आती है। विहान आधीश्री का ही वेट कर रहा होता है।
विहान: "हेल्लो, मिस्टर। क्या हो रहा है?"
श्री: "आपका इंतज़ार, महोतरमा। और क्या? जब तक आप ना आएँ, मुझे और हमारे स्टूडियो को चैन कहाँ?"
विहान: "हो गया आपका?"
श्री: "अभी कहाँ! जल्दी से बताओ, कैसी रही पहली डेट?"
विहान: "डेट...? तुम भी ना?"
श्री: "अरे, मैडम, बता भी दो ना। क्यों कर रही हो? मैं सुबह से इंतज़ार कर रहा हूँ।"
श्री मुस्कुराते हुए बोली, "अच्छा, जनाब, हमारी पहली मुलाकात बहुत अच्छी रही!"
विहान: "वो तो देखकर ही लग रहा है, मैडम। चेहरा देखो, खुशी से लाल हुआ पड़ा है। आईना भी देखे तुम्हें तो शर्मा जाए। वो भी आये हाय! महबूब से मुलाकात का आप पर रंग खूब चढ़ा दिखाई पड़ रहा है!"
श्री: "विहान, तुम भी ना! चलो काम करते हैं। उस क्लाइंट को डिजाइन पसंद आया?"
बोलते हुए श्री टेबल से सामान इधर-उधर करने लगी।
विहान: "हाँ, बहुत पसंद आया। सेंड कर दिया है। कल आएगी और डिजाइन देखने। फिर हम कन्फर्म कर लेंगे।"
श्री: "दैट्स गुड!"
विहान: "हाँ। अब तुम बताओ, क्या बात की आप दोनों ने एक-दूसरे से? कैसा रहा सब? कहाँ गए थे? क्या कहा तुम्हारे प्रिंस ने तुमको? क्या-क्या किया? कोई गिफ्ट दिया तुम्हें आद्विक चौहान ने?"
विहान एक ही साँस में बोल रहा था। श्री ने उसे आकर रोका,
श्री: "अरे, साँस तो लो यार! पहली और छोटी सी मुलाकात थी। नैनी लेक पर मिले। ज़्यादा बातें नहीं हुईं। नॉर्मली बस मिलना था..."
(मन ही मन) "...और खुद से मन से- वो मिलना काफी था और बहुत प्यारा!"
श्री को मुस्कुराते देख विहान ने उसका चेहरा हाथों में भर लिया।
विहान: "तुम्हारी खुशी बता रही है। छोटी मुलाकात ही सही, बट तुम्हारे लिए बहुत स्पेशल थी, राईट!"
श्री: "हम्म!"
विहान: "हम्म। चलो अब तुम निकलो घर के लिए।"
श्री: "क्यों?"
विहान: "क्योंकि कल रोका है तुम्हारा।"
श्री: "आज थोड़ी है?"
विहान: "मैडम, तैयारी तो आज से होगी ना! यहाँ की टेंशन मत लो। यहाँ के काम मैं संभाल लूँगा। तुम बस जाओ घर और खुद पर ध्यान दो। सगाई का सोचो, जो कि तुम्हारे लिए स्पेशल दिन है!"
श्री हँस दी।
श्री: "ओके बाबा। जा रही हूँ। वैसे भी मॉम का मैसेज आया था। जल्दी आने को बोला है उन्होंने। ज्वेलरी डिसाइड करनी है ना। एक घंटे बाद जाऊँगी मैं घर। अभी चलो, दोनों मिलकर जल्दी-जल्दी थोड़ा बचा काम पूरा कर लेते हैं। दोनों करेंगे तो जल्दी हो जाएगा और तुम्हें भी अकेले परेशान नहीं होना पड़ेगा।"
कहते हुए वह काम लग गई।
विहान हँसने लगा, "ये लड़की भी ना!"
श्री उसकी ओर देखती है, "हँसना बंद करो, काम पर लगो..."
विहान: "आया आया..."
विहान भी काम पर लग गया...
चार बजे के करीब श्री घर आई तो पूरब और सृष्टि ने उसे घेर लिया और उससे सवाल करने लगे।
पूरब/सृष्टि: "मिलना कैसा रहा? क्या बात की? बताओ जीजू और आपने दी हाँ, बहन बता ना, जल्दी बताओ दी, हाँ यार हम कब से वेट कर रहे हैं, आद्विक क्या बोला, दी जीजू ने क्या कहा आपसे, वो बोले ना दी, हाँ बताओ या उस दिन जैसे चुप ही रहा?"
श्री: "क्या है उधर विहान और यहाँ आप लोग?"
तभी पल्लवी जी के हँसने की आवाज़ आई।
पल्लवी जी: "तुमसे ज़्यादा तो इनके लिए जानना ज़रूरी है, आद्विक ने तुम्हें क्यों मिलने बुलाया था। बेटा, दरवाज़े पर नज़र लगाए बैठे हैं ये दोनों बहुत देर से। तुम आओ और इन्हें पता चले?"
सृष्टि (श्री से बैग लेकर सोफे पर रखते हुए): "दी, बैग छोड़ो और बताओ ना कैसी रही मीटिंग?"
श्री: "नहीं मानोगे ना?"
पूरब/सृष्टि: "नहीं।" (एक साथ)
श्री: "अच्छी रही। बारह बजे की जगह थोड़ा लेट पहुँची मैं। आधा घंटा रुके वो और बात करके चले गए। बस यही पूछने आए थे कि मुझे ये रिश्ता पसंद है या नहीं, मैंने अपनी मर्ज़ी से हाँ की है या नहीं। और हाँ, मैं अब स्टूडियो से आ रही हूँ, और हाँ मुझे फ्रेश होना है, हटो।"
श्री अपना बैग लेकर अपने रूम में चली जाती है। पूरब और सृष्टि एक-दूसरे की ओर देखते हैं और एक साथ बोलते हैं,
पूरब/सृष्टि: "ये कैसी मुलाकात?"
पल्लवी जी: "क्या हुआ तुम दोनों को?"
सृष्टि: "लगता है जीजू रोमांटिक नहीं है मॉम... चलो भैया, काम कर लो अपना, ऐसे ही वेट कर रहे थे?"
पूरब: "और क्या? बस आधे घंटे की मुलाकात और उसमें सिर्फ़ एक बात?"
सृष्टि (रूम में आते हुए श्री से): "अरे दी, सच में ऐसा ही हुआ या हमें नहीं बता रही हो?"
श्री: "क्या नहीं बता रही हूँ? जो था, बता दिया!"
सृष्टि: "दी, सिर्फ़ यही पूछने के लिए मिलने बुलाना? आपकी मर्ज़ी से रिश्ता हुआ है या नहीं? आपको अजीब नहीं लगा?"
(क्रमशः)
श्री मुस्कुरा दी। "अजीब नहीं, अच्छा लगा मुझे सृष्टि। सिर्फ़ यही पूछने के लिए उन्होंने मुझसे मिलना ज़रूरी समझा, रिश्ता पूरी तरह जुड़ने से पहले। जिसे लड़की की पसंद-नापसंद का इतना ख्याल है, वो मेरे बारे में जो सोच रहे हैं, मेरी मर्ज़ी से हो रहा है या नहीं, कितना ध्यान दे रहे हैं वो, सोच ज़रा। शादी के बाद वो कितना ख्याल रखेंगे, कितना पूछेंगे? इसका मतलब यही है यार, बहुत ज़रूरी समझते हैं वो हर रिश्ते को और रिश्तों से जुड़ी हर चीज़। सबकी खुशी, मर्ज़ी, सब मायने रखती है आद्विक के लिए..."
तभी सृष्टि श्री को गले लगा लेती है। "आप लकी हो दी और आद्विक जीजू भी। सच में वो आपसे बहुत प्यार करेंगे। देखो तो छोटी सी बात है पर बहुत बड़ी है जो आज हुई, राईट दी!"
"अरे वाह! तू कब से इतनी समझदार हो गई?" श्री उससे दूर होते हुए हँसते हुए बोली।
"समझदार का पता नहीं पर हे भगवान! जैसी मेरी दी को लाइफ पार्टनर दे रहे हो वैसा ही मुझे देना!" सृष्टि हाथ जोड़ते हुए बोली और दोनों बहनें हँसने लगीं। तभी पल्लवी जी और राकेश जी वहाँ आ गए।
राकेश जी: "क्या बात है? बड़े खुश लग रहे हो, हमें भी बताओ कोई। हँसने-खिलखिलाने की वजह?"
"कुछ नहीं पापा, बस ऐसे ही। सृष्टि के पागलपन का तो आपको पता ही है!" श्री सृष्टि के सिर पर चपत लगाते हुए बोली। सृष्टि अपना सिर मसलने लगी। उसकी नज़र पल्लवी जी के हाथों पर चली गई। "ये क्या है मॉम आपके हाथ में?"
"ये..." कहते हुए उन्होंने श्री को, "आ बैठ यहाँ पर," आइने के सामने बिठा दिया और अपने हाथ में पकड़े बॉक्स से ज्वेलरी निकालते हुए, "यह हार तुम्हारे पापा ने मुझे दिया था!"
राकेश जी हँस दिए। "हाँ, पहली मुलाक़ात में!"
पल्लवी जी: "कल हमारी बेटी यही पहनेगी। बचपन से जिद्द थी इसकी।" (श्री को हार पहनाते हुए) "मॉम ये हार मुझे दे दो, दे दो मॉम, मुझे बहुत पसंद है!" बोलते हुए पल्लवी जी हँसने लगीं।
श्री हार को देखकर और अपनी मॉम की बात सुनकर मुस्कुरा दी। "बहुत प्यारा है मॉम ये हार। पापा आपने बहुत अच्छा गिफ़्ट दिया था मॉम को।" (तभी थोड़ा सा हैरान होते हुए) "बट मुझे तो याद ही नहीं कि मैंने कभी इस हार के लिए जिद्द भी की थी मॉम?"
ये सुनते ही राकेश जी और पल्लवी जी एक-दूसरे की ओर देखने लगे। तभी सृष्टि हँस दी। "क्या दी? बचपन की सारी बातें याद रहना ज़रूरी तो नहीं। और हार देखो ना कितना प्यारा लग रहा है ये नेकलेस आप पर, राईट पापा!"
राकेश जी: "हम्म...बहुत प्यारा लग रहा है!"
श्री: "हाँ तो प्यारा तो लगेगा ही, माँ की ज्वेलरी है तो बेटी पर तो अच्छी लगेगी ही ना!"
तभी पूरब आ गया। "श्री, देख ज़रा तेरे लिए ये पार्सल आया है!"
सब पार्सल की ओर देखते हैं। पूरब के हाथ में बड़ा सा बॉक्स था, जिसे वो लाकर बेड पर रख देता है।
सृष्टि जोर से बोली। "इतना बड़ा पार्सल, क्या है इसमें?"
श्री: "वो तो देखने पर पता चलेगा पर ये भेजा किसने है?"
पूरब: "नाम तो नहीं लिखा इस पर। तेरे ससुराल से तो नहीं आया ना?"
पल्लवी जी: "हो भी सकता है, कल फंक्शन है ना?"
राकेश जी: "खोलो और देखो ज़रा बेटा, क्या पता इसके अंदर कुछ ऐसा हो जिससे पता चल जाए किसने भेजा है?"
"जी पापा," कहते हुए श्री उस बड़े से पार्सल के पास आई और पूरब, सृष्टि की मदद से उसे खोलता है। उसमें बहुत ही प्यारी और सुंदर डिजाइन वाली पार्टी वियर थी!
ड्रेस देखते ही सबके होठों पर प्यारी सी मुस्कुराहट आ गई। वाकई में वो ड्रेस बहुत खूबसूरत थी। सृष्टि ड्रेस को छूकर देखते हुए, "वाह! क्या ड्रेस है! इसका रंग, इसका डिजाइन कितना अच्छा है! स्टाइलिश ड्रेस है दी, पक्का ये आपके लिए आपके ससुराल वालों ने भेजी है जो आप कल सगाई में पहन सको!"
श्री हँस दी। "ससुराल वालों ने नहीं, ये तो विहान ने भेजी है..." ये सुन सब ने उसकी ओर देखा। उसके हाथ में एक लेटर था। श्री सबकी ओर देखकर, "विहान," और उस लेटर को पढ़ने लगी।
"हाय! मैं विहान, जिसे तुम कभी-कभी विहू भी बुला देती हो, कभी आप वाली...इज़्ज़त देती हो तो कभी तुम...तुम कहते फटकार भी लगा देती हो। यार, कल तेरी सगाई है, तेरा दिन और मेरी दोस्त की सगाई है तो कुछ ज़्यादा स्पेशल तो होना ही चाहिए ना कल का दिन, सो तुम्हारे लिए एक ड्रेस भेज रहा हूँ। इसका डिजाइन तो बहुत पहले बनाया था मैंने। सोचा था कि अपनी वाइफ़ को गिफ़्ट करूँगा...मज़ाक कर रहा हूँ, तेरे लिए ही बनाया था। यार, सब अपनी सगाई-शादी में हमारी डिजाइन की ड्रेसेज़ पहनते हैं जो कि सबसे बेस्ट होती हैं, सो तुम भी बेस्ट पहनो। इसलिए मैंने बड़े प्यार से बनाई है तुम्हारे लिए एक स्पेशल ड्रेस। आई होप अच्छी लगे, पहनना-नहीं पहनना तुम पर है, बट हाँ, तुम्हारे दोस्त की ओर से यार, तुम्हारे लिए ये ड्रेस एक तोहफ़ा है जो मैंने तुम्हारा आद्विक चौहान से रिश्ता तय होने के बाद जल्द से जल्द तैयार करवाई है। तुम हमेशा खुश रहो श्री ठाकुर, तुम्हारा पागल सा दोस्त। इसके अलावा और कुछ नहीं चाहता!"
श्री की आँखें नम हो गईं और होठों पर मुस्कान आ गई विहान का लेटर पढ़कर। विहान का उसके लिए दोस्ती वाला प्यार लेटर के रूप में उसके हाथ में था और उसकी खुशी की खातिर की गई विहान की मेहनत श्री की आँखों के सामने बेड पर रखी थी। वो ड्रेस जो कि विहान ने उसके लिए स्पेशल डिजाइन की है, बड़े प्यार से बनाई थी!
श्री को ड्रेस बहुत पसंद आया, उसे क्या, सबको। सब तारीफ़ करते हैं क्योंकि विहान का बनाया ड्रेस सच में काबिले-तारीफ़ था!
पूरब: "विहान बड़ा कमाल का है!"
राकेश जी: "उसका बनाया ये ड्रेस भी!"
पल्लवी जी: "हम्म, बहुत सुंदर है..." और फिर वो लोग वहाँ से चले जाते हैं। सृष्टि की नज़रें तो अभी भी उस ड्रेस पर थीं। वो मम्मी-पापा के जाते ही फट से बोली, "दी, बता देना आप ना पहनो तो मैं पहन लूँगी!"
इस बात पर श्री और पूरब दोनों हँस पड़े। तभी विहान की कॉल आ जाती है और श्री विहान से बात करते हुए रूम से बाहर चली जाती है!
विहान: (श्री से) "जल्दी बताओ कैसा लगा गिफ़्ट मेरा? अब तक तो मिल ही गया होगा ना तुम्हें?"
श्री: "हाँ मिल गया, बट अभी (मंद-मंद हँसते हुए) बिज़ी हूँ मैं थोड़ा, तो बाद में देखूंगी तुम्हारा भेजा हुआ गिफ़्ट?"
विहान चौंक उठा। "बाद में?"
श्री (मासूमियत भरे लहजे में): "हाँ यार, बाद में ही देख पाऊंगी, चलेगा ना?"
विहान: "हाँ चलेगा। चलो कोई बात नहीं, अब नहीं तो बाद में देख लेना। बिज़ी हो तुम, काम कर लो, ओके!"
"हम्मम, अच्छा सुनो, कल जल्दी आ जाना। बाय," श्री फ़ोन काट देती है और फ़ोन की स्क्रीन की ओर देखते हुए हँसने लगी। "पागल है पूरा! सॉरी, झूठ बोला, बट सरप्राइज़ के बदले सरप्राइज़ तो बनता है!"
रात के 9 बजे
नंदिनी जी: "अरे, सबका खाना हो गया तो जल्दी सो जाओ। कल बहुत काम है, सगाई भी है। जल्दी करो!"
आनंद जी उनकी तरफ़ चले आए। "सही कहा आपने। अब तो सोने का टाइम आ गया है। आज इतना काम किया है कि थक गए। अब सोए नहीं तो कल इन्जॉय भी नहीं कर पाएंगे!"
वरूण: "राइट पापा जी, जल्दी से बचा काम पूरा करो रूहानी?"
रूहानी गिफ़्ट्स कैरी करते हुए: "बस हो गया!"
आनंद जी: "आद्विक आया या नहीं अभी तक?" सबने ना में सिर हिला दिया।
नंदिनी जी (परेशान होते हुए): "कब आएगा? कब खाना खाएगा? आज तो टाइम से घर आ जाता!"
सुमो: "आपको पता तो है ना मैडम, बड़े भैया लेट ही आते हैं!"
अक्ष: "हाँ, अभी तो नौ ही बजे हैं, आ जाएंगे मॉम!"
दस बजे के करीब अक्ष के फ़ोन पर किसी अनजान नंबर से कॉल आती है। "हेल्लो?"
(दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई) "आप कौन बोल रहे हैं?"
अक्ष: "आपने किसको फ़ोन किया है?"
(दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई) "आद्विक चौहान के घर से बोल रहे हैं आप?"
अक्ष: "जी, मैं उनका छोटा भाई। आप कौन?"
(दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई) "मैं स्टॉर होटल का मैनेजर बोल रहा हूँ। मिस्टर चौहान को आपकी ज़रूरत है, आप जल्दी आ जाइए!"
अक्ष: "क्या हुआ उन्हें? मेरे भाई ठीक तो हैं ना?"
(दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई) "आप आ जाइए, अभी हम उन्हें संभाल रहे हैं। आप जल्द आ जाइए!"
इतना कहकर होटल का मैनेजर फ़ोन काट देता है। अक्ष घबरा जाता है। "क्या हुआ होगा? मैनेजर ने ऐसा क्यों कहा? भाई ठीक तो होंगे ना? भाई को फ़ोन करता हूँ..." बोलते हुए वो आद्विक को फ़ोन करता है पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ था। अक्ष परेशान हो जाता है और होटल के लिए दौड़ पड़ता है। जैसे ही वो ऊपर से नीचे आया, वरूण से टकरा गया।
वरूण: "कहाँ भागे जा रहे हो?"
अक्ष (परेशान होते हुए): "जीजू?"
वरूण (उसे परेशान देखकर): "क्या हुआ? इतने परेशान नज़र क्यों आ रहे हो? सब ठीक है?"
अक्ष (घबराया सा): "वो भाई..." कहते हुए मैनेजर की कॉल के बारे में बताता है। "...जीजू, मैं होटल जा रहा हूँ। क्या हुआ है भाई को, वहीं जाकर पता चलेगा!"
(क्रमशः)
अक्ष की बात सुनकर वरुण जीजू भी परेशान हो गए।
"मैं भी चलता हूँ, चलो?"
"नहीं जीजू, मैं जाता हूँ। आप यहाँ संभाल लेना, प्लीज। अभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए। मैं आपको फोन करता हूँ वहाँ जाकर, बता दूँगा जाते ही क्या बात हुई है। बस आप ध्यान रखना, मॉम को पता चला तो वो स्ट्रेस ले लेंगी, फिर और प्रॉब्लम हो जाएगी!"
"ओके ओके। तुम जाओ, मैं यहाँ देख लूँगा, आई मीन संभाल लूँगा। और हाँ, जाते ही फोन करना। अब जल्दी जाओ, बस आद्विक ठीक हो!"
"हाँ जीजू!" कह अक्ष दौड़ते हुए घर से होटल के लिए निकल गया। स्टार होटल पहुँच वो 'भाई-भाई' चिल्लाते हुए रिसेप्शन पर पहुँचा। "हेल्लो, आद्विक चौहान?"
रिसेप्शनिस्ट कुछ कहता ही था कि वहाँ के मैनेजर की आवाज़ आई। अक्ष भागता हुआ उनके पास आया। "आप वही हैं जिन्हें फोन किया था?" मैनेजर बोला।
अक्ष - "हाँ..."
मैनेजर - "वो आपके भाई, मिस्टर चौहान, उस साइड हैं। उन्होंने आज बहुत ड्रिंक किया है। हमने रोका उनको, पर वो नहीं माने। पहली बार उनको पीते देखा है, आए तो बहुत बार हैं सर यहाँ पर। मिस्टर चौहान के फोन से आपका नंबर लिया, उनका फोन डैड होने वाला था, सो..."
वो बोल रहे थे कि... अक्ष उनकी बात सुनकर खुद से बड़बड़ाया, "भाई और ड्रिंक..." वो उस साइड दौड़ पड़ा जहाँ आद्विक था। आद्विक के पास पहुँचकर उसने उसे संभाला। "भाई?"
आद्विक पूरी तरह होश में नहीं था। वो अक्ष को देखकर चेयर से खड़ा होने लगा, कि फिर चेयर पर गिर पड़ा। अक्ष ने उसे ठीक से बिठाया। "भाई बैठो, भाई आप ठीक हो...?"
आद्विक कुछ नहीं बोला। यह देख अक्ष मन ही मन खुद से सोचा, "हालत तो बहुत खराब है भाई की। क्या करूँ? घर तो नहीं ले जा सकता हूँ ऐसे इनको? सब परेशान हो जाएँगे..." सोचते हुए वो मैनेजर को बोलकर एक रूम लेता है और मैनेजर की हेल्प से आद्विक को उस रूम में ले आता है।
अक्ष आद्विक को ठीक से बेड पर लिटाता है। मैनेजर बोला, "सर, कुछ भी ज़रूरत हो तो बता दीजिएगा।" बोलकर वह वहाँ से चला जाता है। आद्विक अक्ष का नाम लेते हुए बेड से उठने लगा कि बेड पर गिर पड़ा।
"अक्ष, छोटे?" आद्विक नशे में बड़बड़ाने लगा।
अक्ष - "भाई, मैं यहीं हूँ। आपका छोटा यहीं है!"
__________
【चौहान हाउस】
वरुण आद्विक की चिंता में नीचे हॉल में इधर-उधर टहलते हुए अक्ष के फोन का वेट कर रहे थे और साथ-साथ प्रार्थना कर रहे थे कि सब ठीक हो। तभी जीजू को अक्ष का फोन आ गया। वो फट से कॉल रिसीव करते हैं।
"हेल्लो, अक्ष, आद्विक ठीक है?"
अक्ष - "हाँ जीजू, भाई ठीक है। भाई ने बहुत ड्रिंक कर रखी है आज जीजू..." कहते हुए वरुण जी को अक्ष ने सब बताया। "भाई को ऐसे घर नहीं ला सकता जीजू, इसलिए मैंने यहीं होटल में रूम लिया है। मैं भाई के साथ ही हूँ। घर नहीं आया, प्रॉब्लम हो जाती। रात यहीं रुक रहे हैं, सुबह आयेंगे। आप तब तक ध्यान रखना!"
वरुण ने राहत की साँस ली। "शुक्र है, बड़े साले साहब ठीक हैं। पर ड्रिंक क्यों की आद्विक ने इतनी?"
"पता नहीं जीजू, ये तो भाई से ही पता चलेगा। मैं हूँ भाई के पास, आप टेंशन मत लेना जीजू। घर आकर बात करते हैं?"
"हाँ, यहाँ संभाल लूँगा। बस तुम वहाँ संभालो, आई मीन आद्विक को। ख्याल रखना अपना भी और बड़े साले साहब का भी। बाय।" कह वरुण ने फोन कट किया, कि तभी पीछे से आवाज़ आई। "कौन था?"
"वो... अक्ष?" वरुण के मुँह से निकल गया।
कि नंदिनी जी, आनंद जी वहाँ चले आए। नंदिनी जी ऊपर की ओर इशारा कर बोलीं, "अक्ष अपने रूम में नहीं है, कहाँ गया है?"
आनंद जी - "यहाँ कहीं नज़र ही नहीं आ रहा। कमरे में गए थे उसके। आद्विक जैसे वो ना रूम में, ना घर में?"
रूहानी - "क्या डैड? आद्विक घर आया ही नहीं। कैसे हो सकता है अपने रूम में, घर में?"
आनंद जी - "अक्ष तो हो सकता है ना, वो तो घर पर ही था!"
वरुण - "पापा जी, अब नहीं है वो घर पर?"
आनंद जी - "बाहर गया है?"
वरुण - "हाँ!"
नंदिनी जी - "इस वक़्त?"
वरुण - "हाँ, मॉम, वो... वो अक्ष को आद्विक का फोन आया तो उसी के पास गया है। दोनों साथ में हैं पापा जी। बस उन्हें घर आने में लेट हो जाएगा। वो... कल आद्विक की सगाई है ना, तो बड़े साले साहब को खुद के लिए ड्रेस बनवाना था, तो छोटे साले जी हेल्प के लिए चले गए!"
ये सुन नंदिनी जी, आनंद जी, रूहानी का चेहरा खिल उठा। रूहानी जोर से बोली, "सच कह रहे हैं आप?"
वरुण मुस्कुराते हुए - "हाँ तो (हाथ पीछे कर फिंगर क्रॉस कर) सच कह रहा हूँ!"
रूहानी खुश होते हुए - "मॉम देखा, आद्विक खुद शॉपिंग करने गया है अपनी सगाई के लिए!"
ये सुनकर नंदिनी जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। "मैंने बोला था ना, रिश्ता होने दो, सब ठीक हो जाएगा। देखो तो हो भी रहा है। आनंद जी, देखा आपने, हमारा आद्विक खुद शॉपिंग करने गया है, खुद को तैयार कर रहा है!"
आनंद जी - "हाँ, सही कहा आपने। खुद को तैयार कर रहा है, खुद तैयारी कर रहा है। ये तो अच्छी बात है!"
वरुण - "हाँ पापा जी। अच्छा अब आप लोग सो जाइए, वो आ जाएँगे..." और सब चले जाते हैं। उनके जाते ही वरुण ने अपने फोन की ओर देखा और मन ही मन खुद से बोला, "आद्विक की ड्रिंक वाली बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिए..." कि तभी रूहानी ने ऊपर से आवाज़ दी। "वरुण, तुम भी आ जाओ, सोना नहीं है क्या?"
वरुण - "हाँ, सोना है। तुम चलो रूह, मैं आता हूँ!"
रूहानी - "ओके, जल्दी आना।"
वरुण - "हम्म..." और खुद से, "एक बार और कॉल कर पूछ लेता हूँ आद्विक का..." कह वो अक्ष को फोन करते हैं, पर नेटवर्क इश्यूज़ की वजह से उसको फोन नहीं लगता। वो बार-बार ट्राई कर रहे थे कि रूहानी ने फिर ऊपर से आवाज़ दी। "क्या फोन पर लगे हो? अब आ भी जाओ?"
"आ रहा हूँ!" रूहानी से कह, फोन की ओर देखते हुए - "अक्ष साथ है, फ़िलहाल चिंता की बात नहीं।" बोलते हुए वरुण ऊपर चला आया। उसको आते देख रूहानी मुस्कुराने लगी। वो पास आया तो रूहानी वरुण के गले में बाहें डाल लेती है। ये देखकर वरुण उस पर अपनी बाहें कसता है। "क्या हुआ?"
रूहानी रूठे अंदाज में - "बहुत बुरे हो तुम?"
"कैसे?"
"अपनी रूह से उसकी रूह को दूर रखने का गुनाह किया है तुमने?"
"अच्छा!"
"हम्म?"
"गुस्ताखी माफ़..." वरुण आगे बोलता, रूहानी बोल पड़ी। "गुस्ताखी नहीं, गुनाह हुआ है?"
"ओह, तो फिर माफ़ी नहीं तो सज़ा दे दो। अब तो मेरी रूह के पास (रूहानी का सिर चूमकर खुद की ओर इशारा करते) उसकी रूह आ चुकी है!" ये सुन रूहानी उसी पल वरुण के गले लग जाती है, और वो मुस्कुरा उठा और उसे गोद में उठाकर कमरे में ले चला गया।
__________
इधर वरुण ने फ़िलहाल मामला संभाल लिया था, उधर स्टार होटल में मामला पूरा गड़बड़ा चुका था। वो आद्विक नशे की हालत में बड़बड़ाए जा रहा था, जिसे सुन अक्ष को और भी ज़्यादा टेंशन होने लगी।
"मुझे नहीं करनी ये शादी। मॉम, आप समझती क्यों नहीं? मैं नहीं कर सकता शादी। नहीं करनी, नहीं करनी..." कहते-कहते वो सो जाता है। इतना ड्रिंक कर चुका था कि मुँह से बोल पाना भी मुश्किल हो रहा था। पर सच में आज आद्विक बहुत परेशान-उदास-तकलीफ़ में था और ये उसकी हालत, लहजे से साफ़ जाहिर हो रहा था।
अक्ष भी उदास हो जाता है। पहली बार उसने अपने भाई को इस हालत में देखा था। आद्विक को बेड पर सही से सुलाकर वो उसके पास बैठ गया और उसके हाथ अपने हाथों में थाम लिए। "ये सब क्या है भाई? जिस भाई ने मुझे कभी ड्रिंक नहीं करना सिखाया है वो आज इस हालत में... मुझसे आपकी ये हालत नहीं देखी जा रही..." कहते हुए वो लगभग रो पड़ा और उसी पल आद्विक से लिपट गया। "बस भाई, अगर आप नहीं चाहते शादी करना तो ये शादी नहीं होगी। मॉम के जैसे मैं भी सोचता था कि शादी हो गयी आपकी तो फिर सब ठीक हो जाएगा। पर जब आप ही खुश नहीं तो क्या फ़ायदा ऐसी शादी का? और फिर ऐसी हालत... मैं आपको ऐसे नहीं देख सकता भाई। मैं बात करूँगा सब से, मॉम से नहीं, सबसे कहूँगा कि भाई नहीं चाहते तो ये शादी नहीं होगी, नहीं होगी। जो आप चाहते हो वही होगा..."
(क्रमशः)
अगली सुबह आद्विक उठा। होटल के कमरे में खुद को पाकर वह हैरान हो गया। उसका सिर घूम रहा था। "आह, यह सरदर्द!" तभी अक्ष वाशरूम से बाहर आया। उसने आद्विक को सिर पकड़े देखा तो जल्दी से उसके पास गया।
"भाई, आप ठीक हो?"
आद्विक ने उसकी ओर देखा। "छोटे, तू यहाँ और मैं यहाँ कैसे?"
अक्ष टेबल से एक गिलास उठाकर बोला, "पहले यह नींबू पानी पियो आप, अच्छा फील करोगे।"
आद्विक नींबू पानी पीया। अक्ष ने उसे कल रात के बारे में बताया। यह सुनकर आद्विक चौंक उठा।
"क्या?"
वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। "घर पर पता है मेरे बारे में? आई मीन (परेशान होते हुए) मैंने ड्रिंक किया…"
अक्ष ने कहा, "सिर्फ़ जीजू को। उन्होंने संभाल लिया सब। डोंट वरी भाई, और किसी को कुछ नहीं पता। हम यहाँ हैं, यह बात घर पर जीजू के अलावा कोई नहीं जानता!"
आद्विक ने राहत की साँस ली। "हम्म…" वह बिस्तर पर बैठ गया, पर उसी पल फिर उठ खड़ा हुआ। "ओह नो, छोटे, आज तो सगाई है! चलो घर, टाइम पर घर नहीं गए तो मॉम फिर कहेंगी लेट हो गए!"
अक्ष हैरान हो गया। "क्या? अभी भी भाई?"
आद्विक ने उसकी ओर देखा। "अभी भी क्या?"
अक्ष बिस्तर से उठकर आद्विक के सामने आ खड़ा हुआ। "आपको लगता है आप सगाई करोगे और मैं यह होने दूँगा? नहीं भाई! अगर आप सोच रहे हो कि आप मॉम के कहने पर कर लोगे और सबको खुश कर दोगे, तो ऐसा नहीं होगा। आपकी खुशी नहीं है इस सब में भाई। जब आप ही खुश नहीं, तो फिर क्यों कुछ करना? और वह तो करना ही क्यों जिसके लिए आप तैयार नहीं हो? कल जो हालत थी आपकी, मुझे पता है भाई। इसलिए चलिए घर चलकर मना करते हैं। नहीं होगी कोई सगाई, कोई शादी आपकी…" कहते हुए अक्ष ने आद्विक की कलाई पकड़ी, कि उसी पल आद्विक ने अपना हाथ छुड़ा लिया।
"क्या हुआ भाई?"
"नहीं छोटे, नहीं! क्या कह रहे हो तुम? मना कर दूँ? ऐसा कुछ नहीं होगा। ना हो सकता है। जो मॉम चाहती हैं वही होगा। देखा नहीं मॉम कितनी खुश हैं और बाकी सब भी कितने हैप्पी हैं!"
"और आप? आपकी खुशी?"
"मैं तैयार हूँ इस रिश्ते के लिए। जिस लड़की से सगाई हो रही है, वह भी अपनी मर्ज़ी से और खुशी-खुशी तैयार है मुझसे शादी करने के लिए। कल उसने खुद बताया। तो बस सगाई हो रही है, शादी भी हो जाएगी!"
"पर भाई?"
"परवर कुछ नहीं छोटे! चल, हम चलते हैं। सब वेट कर रहे होंगे हमारा?" आद्विक ने कहा। अक्ष ऊँची आवाज़ में चिल्लाया, "भाई, जो आप कर रहे हैं, मैं नहीं होने दूँगा, समझे आप?"
यह देख आद्विक हैरानी से अक्ष की ओर देखने लगा। अक्ष अपने कान पकड़ लेता है। "सॉरी भाई… भाई, प्लीज़ ट्राई टू अंडरस्टैंड। अभी भी टाइम है, क्यों कर रहे हो ऐसा?"
"तुझे नहीं पता छोटे, इतने वक्त से सबको शिकायत है मुझसे। पर देखा तुमने इस रिश्ते से सब और खुद तुम भी कितने खुश हो? मेरी खुशी भले ना हो, क्योंकि मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ इसमें। पर तुम सब के लिए यह रिश्ता जोड़ सकता हूँ। मॉम, डैड के लिए मैं तैयार हूँ जो वे चाहते हैं वह करने के लिए। और तुम कुछ नहीं करोगे। जैसा होने जा रहा है, होने दो। तुम कुछ कहोगे तो अंजाम तुम्हें पता है और मुझे पता है। तुम मॉम की जान जोखिम में नहीं डालोगे। इस बात को यहीं खत्म करते हैं। मैं गाड़ी में वेट कर रहा हूँ, जल्दी आ जाओ।"
बोलकर आद्विक वहाँ से चला गया। अक्ष भी कुछ नहीं बोला। वह पीछे-पीछे आकर गाड़ी में बैठ गया और दोनों घर आ गए।
लगभग नौ बजे
नंदिनी जी चिल्ला रही थीं, "जल्दी-जल्दी काम करो, निकलना भी है। वहाँ सब तैयारियाँ हो चुकी हैं, मेहमान भी आने लगे हैं। अक्कू, देखो तो जाकर आद्विक तैयार हुआ या नहीं। सुमो, सब सामान तैयार हुआ ना? रूह, बेटा, एक बार चेक कर लो, कुछ रह ना जाए। और दामाद जी, वो कहाँ हैं? आदिश्री के कपड़े पहुँचाए या नहीं वहाँ? सब अच्छे से होना चाहिए। हे भगवान, कुछ गड़बड़ ना हो जाए?" नंदिनी जी हॉल में बीचों-बीच खड़ी चिल्ला रही थीं।
"मैं देखता हूँ भाई को," कहते हुए अक्ष ऊपर चला गया।
"जी मैडम, सब तैयार है?" डाइनिंग टेबल पर थाल को सजाती सुमो बोली। रूहानी नंदिनी जी की ओर आई। "हाँ मॉम, सब ठीक है। मैं दो बार चेक कर चुकी हूँ!"
तभी वरुण जी भी वहाँ आ गए। "ड्रेस तो आज सुबह ही पहुँचा दी थी मॉम मैंने, जो श्री सगाई में पहनेगी!"
नंदिनी जी ने कहा, "अच्छा, चलो यह तो सही किया आपने। बस सब सही हो जाए आज…" कि आनंद जी हँसते हुए उनके पास आ खड़े हुए। "अरे नंदिनी जी, शांत हो जाइए। सब ठीक होगा। सब काम हो गया। बस हमें अब निकलना है। सब आ जाए, फिर चलते हैं। लो, मुस्कान और आपकी फ्रेंड भी आ गई!"
सबने दरवाजे की तरफ देखा। मिसेज़ बतरा-मुस्कान आ रही थीं। सब उनसे मिले।
रूहानी ने कहा, "वाह मुस्कान, बहुत प्यारी लग रही हो!"
मुस्कान ने कहा, "थैंक्स दी। मेरे यार की सगाई है, तो अच्छी तो लगूँगी। वैसे आप भी कम नहीं लग रही हो। यू आर लुकिंग सो प्रीटी!"
वरुण जी बोले, "वाइफ किसकी है!" सब हँस पड़े।
मुस्कान ने कहा, "कुछ भी कहो, बट नंदिनी आंटी जैसा कोई नहीं। वेरी वेरी ब्यूटीफुल…" कहते हुए वह गले लग गई, कि आनंद जी बोल पड़े, "वाइफ किसकी है!"
कि एक बार फिर सब हँस पड़े। नंदिनी जी मुस्कान को थैंक्स कहती हैं और मुस्कान आद्विक-अक्ष के बारे में पूछती है। "आद्विक और कहाँ है?"
रूहानी ने कहा, "ऊपर!"
नंदिनी जी ने कहा, "अक्कू को देखने भेजा है मुस्कान, आद्विक रेडी हुआ कि नहीं!"
"अच्छा, मैं आती हूँ," कहकर मुस्कान ऊपर चली गई। रूम के बाहर अक्ष इधर से उधर टहल रहा था। यह देख मुस्कान हँस दी। "यह कौन सा टाइम है वॉकिंग करने का!"
"वॉकिंग नहीं कर रहा हूँ!"
"अच्छा, तो क्या कर रहे हो?"
"कुछ नहीं?"
"ऑल वेल, आद्विक रेडी हुआ?"
यह सुन अक्ष कुछ नहीं बोला, तो मुस्कान भी परेशान हो गई। वह अक्ष के गाल पर हाथ रखते हुए बोली, "क्या बात है अक्ष? तुम सैड क्यों लग रहे हो? सब ठीक है ना?"
अक्ष ने कल जो भी हुआ वह मुस्कान को बताया। वह कुछ कहती, कि आद्विक अपने रूम से बाहर आ गया। वह उसकी ओर हैरानी से देखती है।
"ऐसे क्या देख रहे हो? अच्छा लग रहा हूँ मैं। चलो आ जाओ…" बोलकर आद्विक आगे बढ़ जाता है, कि "सुनो," कहती मुस्कान उसका रास्ता रोक लेती है। "आद्विक, वो अक्ष…" इतना ही कह पाई कि आद्विक ने अक्ष की ओर देखा, जो उसके पीछे खड़ा था। वह पास हुआ और हल्का सा मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, "जैसे पहले रिएक्ट कर रहे थे और खुश थे, वैसे ही रहो छोटे। और तुम (मुस्कान की ओर देखते हुए) मुस्कान पहले मुझे समझा रही थी, अब इसे समझाओ। जो हो रहा है, होने दो। जल्दी आना नीचे।" कहकर आद्विक वहाँ से चला गया।
मुस्कान मुस्कुरा दी। "सही कहा!"
अक्ष ने पूछा, "क्या सही कहा मुस्कान?"
मुस्कान ने अक्ष से कहा, "जो आद्विक ने कहा, वह सही कहा अक्ष। जो हो रहा है, होने दो। तुम्हें पता है ना, यह किसी को खुद से अपनी लाइफ में नहीं आने देगा। और हम सब जिसे इसकी लाइफ में ला रहे हैं, वह पक्का बदल देगी इसको। देखना तुम। और हाँ, आद्विक उसके साथ खुश रहेगा। आद्विक की ज़िंदगी में कोई आ रहा है जो हर पल साथ रहेगा इसके। चेंजेज़ तो होंगे। क्या पता यह श्री के साथ वो सारे सपने सच कर ले जो इसने कभी उसके साथ देखे थे। पॉजिटिव लेकर चलते हैं ना यार, जो हो रहा है उसको होने देते हैं। शायद होनी को यही सब मंज़ूर है। और तुम चेहरा लटकाओ मत ऐसे। जैसे हमने सब फंक्शन इन्जॉय करने का सोचा है, वैसे ही करेंगे। अब तो खुद दूल्हे का ऑर्डर है। देखा नहीं? चिल बेबी, आओ गले लगो।" और मुस्कान ने अक्ष को गले लगा लिया।
श्री के घर उसके ससुराल वालों की भेजी ड्रेस पहुँच चुकी थी, जो उसे आज सगाई में पहननी थी। दोनों ड्रेसें उसके सामने थीं (विहान वाली और आद्विक के घर से आई ड्रेस)। वह परेशान थी, असमंजस में पड़ी सोच रही थी, "कौन सी ड्रेस पहनूँ मैं? एक तरफ़ विहान की ख्वाहिश, तो दूसरी तरफ़ उसके ससुराल वालों की ख्वाहिश… कहो या ऑर्डर… वो सगाई की रस्म में आज श्री ससुराल से गए कपड़े ही पहनेगी!"
आद्विक नीचे आया तो सब उसकी ओर देखने लगे। वह भी सबकी ओर देखता है। रूह उसकी तरफ़ आते हुए बोली, "यह क्या? तुमने आज फिर ब्लैक कोट-पैंट पहन लिया? कल जो कपड़े लाए थे सगाई के लिए, वो क्यों नहीं पहने?"
नंदिनी जी बोलीं, "हाँ बेटा, दामाद जी ने बोला था तुम सगाई के लिए कपड़ों की शॉपिंग करने गए हो?"
आद्विक मन ही मन खुद से बोला, "शॉपिंग?" कि तभी मुस्कान और अक्ष भी ऊपर से नीचे आ गए। आद्विक कुछ कहता, कि अक्ष बोल पड़ा, "भाई, वो मॉम, यूँ कि हम गए तो थे शॉपिंग करने। बहुत ड्रेस भी देखें, भाई को पसंद भी आई एक ड्रेस, राइट भाई!"
आद्विक अपना सिर हिला देता है। अक्ष ने गन्दा सा मुँह बनाया। "बट?"
आनंद जी ने पूछा, "बट…?"
"वो साइज़ नहीं मिला। भाई के साइज़ की नहीं थी वो ड्रेस। फिर कुछ और अच्छा मिला नहीं। और आप लोग भाई को तो जानते ही हैं, शॉपिंग करना इनके बस की बात कहाँ? और मार्केट में घूमना, शॉपिंग के लिए वो यह बिल्कुल नहीं कर सकते। तो खुद भी घर आ गए और मुझे भी खींच लाए। हम कुछ नहीं ला पाए!" कहते हुए अक्ष हँस दिया।
उसकी बात सुन सब हँसने लगे। आद्विक ने सबको घूरा। "हँसना बंद करो, मेरे पास कपड़े हैं।" इतना कहकर वह बाहर चला गया। उसके जाते ही मुस्कान सबसे बोली, "अब चलो भी, आप बड़ों के काम खत्म होते भी हैं या नहीं, और बातें…?"
मिसेज़ बतरा हँस दीं। "बातें भी कहाँ खत्म होती हैं? चलिए अब चलते हैं!"
इधर सब चौहान हाउस से निकल जाते हैं और उधर श्री अभी तक रेडी नहीं हुई थी। "क्या करूँ मैं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मुझे ऐसी सिचुएशन में क्यों डाला भगवान जी…" कि तभी सृष्टि आ गई। "यह क्या दी? आप तैयार भी नहीं हुई?"
श्री मुँह बनाते उसकी ओर देखती है। "दी, मुझको क्यों देख रही हो? बोलो ना?"
श्री बिस्तर पर बैठ गई। "क्या बोलूँ यार? कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
"क्या समझ नहीं आ रहा है?"
"क्या पहनूँ, यह समझ नहीं आ रहा है। दो-दो ड्रेस हैं मेरे सामने।" श्री बोली, कि पल्लवी जी भी आ गईं। "यह क्या बेटा? तैयार भी नहीं हुई हो? सब मेहमान आ गए और लड़के वाले भी आते ही होंगे!"
श्री कुछ नहीं बोली। पल्लवी जी सृष्टि से बोलीं, "इसे क्या हुआ? सृष्टि, तुमने तो…"
सृष्टि बोली, "क्या मॉम? आप भी ना! अब आप भी देख लो। परेशान है दी, क्या पहनूँ क्या नहीं?"
पल्लवी जी ने पूछा, "क्या…?"
श्री ने कहा, "हाँ मॉम, देखो ना ससुराल वाली ड्रेस और विहान ने जो गिफ्ट दी है वो भी?"
पल्लवी जी मुस्कुरा दीं। "मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रही हो।" (विहान की ड्रेस की ओर देखते हुए) "विहान ने बहुत प्यारी ड्रेस भेजी है, इसलिए तुम उसका दिल भी नहीं दुखाना चाहती हो। और ससुराल वाली ड्रेस भी ज़रूरी है ना? कहा गया है सगाई में यही पहनना है। विहान ने जो ड्रेस दी है वो तो बेटा बाद में पहन लेना। अभी जो ज़रूरी है वो करो। सगाई है आज तुम्हारी। ज़्यादा मत सोचो, जल्दी से तैयार हो जाओ…" कहकर पल्लवी जी वहाँ से चली गईं।
सृष्टि बोली, "अब तो मॉम ने भी बोल दिया दी, सगाई वाली ज़रूरी है ड्रेस। आई मीन जो आपके ससुराल से आई है।" (श्री को अभी भी खोई सी देखते हुए) "अब क्या सोच रही हो दी?"
श्री मुस्कुरा दी। "कुछ नहीं सोच रही। बस रिश्तों के बीच कश्मकश सी होने लगी थी, वो सुलझ गई है।" सृष्टि से बोलकर मन ही मन खुद से बोली, "तुम्हें इस कश्मकश को सुलझाते हुए रिश्ते निभाने और संभालना होगा!"
सृष्टि को श्री की बात समझ नहीं आई। "कश्मकश मतलब दी?"
"बाद में बताऊँगी। अभी चल, रेडी होते हैं!" श्री बिस्तर से उठ गई और सृष्टि की हेल्प से रेडी होने लगी।
सगाई के फंक्शन की सारी तैयारियाँ लड़की वालों की तरफ़ हो चुकी थीं। उनके भी मेहमान आ चुके थे और लड़के वालों के आने वाले भी वहाँ पहुँच रहे थे। लड़के वाले भी आ गए। लड़की वालों ने उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया। सबके चेहरों से साफ़ झलक रही थी उनकी खुशी। सब बेहद खुश थे।
"देखो तो अक्ष कितना अच्छा अरेंजमेंट किया है ना इन्होंने?" मुस्कान अक्ष से वहाँ की तारीफ़ करते हुए बोली।
"हम्म, सच में बहुत अच्छे अरेंजमेंट हैं। बहुत प्यारा लग रहा है। सगाई वाले स्टेज की डेकोरेशन सबसे ऑसम है!"
वरुण ने कहा, "पसंद भी तो दोनों तरफ़ की है!"
तभी मौली और शिवम आ गए।
अक्ष ने कहा, "तुम दोनों अब आ रहे हो? बोला था ना टाइम से आना!"
शिवम ने कहा, "सॉरी-सॉरी यार, पर अब तो आ गए ना!"
मौली बोली, "यार, मेरी ड्रेस तैयार नहीं हुई थी। वैसे देखो तो कैसी लग रही हूँ!"
अक्ष मुस्कुराते हुए मौली को ऊपर से नीचे तक देखता है। "ब्यूटीफुल!"
मौली बोली, "अच्छा, तो फिर लगो गले?"
अक्ष उसे हग कर लेता है। मौली उसे भाई की सगाई को लेकर "कांग्रेचुलेशन्स" कहती है। वह थैंक्स बोलता है और उन्हें सबसे मिलवाता है।
मौली बोली, "तुम्हारे भैया से भी तो मिलवाओ?"
अक्ष हँस दिया। "हाँ-हाँ, आओ!" और वह दोनों को आद्विक के पास ले आता है।
"भाई, ये मेरे फ्रेंड्स हैं, जिनके बारे में मैं आपको बताता हूँ। यह शिवम और यह मौली।"
शिवम आद्विक को "हेल्लो भाई" कहता है और मौली "हाय" कहती हुई अपना हाथ आद्विक की ओर बढ़ाती है। पर आद्विक दोनों को "हेलो," "नाइस टू मीट यू" कहकर… अक्ष की ओर देखते हुए अपने फ़ोन की ओर इशारा करके फ़ोन को कान से लगाकर वहाँ से चला जाता है!
मौली का मुँह बन जाता है। "यार, सच्ची में खड़ूस है तुम्हारा भाई! हाथ भी नहीं मिलाया मुझसे?"
शिवम हँसने लगा। "तुम तो पागल थी, जिनसे मिलने के लिए उन्होंने तो बात भी नहीं की तुमसे!"
अक्ष ने उसे टोका, "क्या यार (शिवम से) तुम भी ना! यार (मौली से) मेरे भाई ऐसे ही हैं। और रही बात हाथ मिलाने की, तो मैं हूँ ना…" कहकर उसने मौली से हाथ भी मिला लिया और उसे हग भी कर लिया। "चिल यार (अलग होकर) चलो हम फंक्शन इन्जॉय करते हैं!"
मौली मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिला देती है। तभी मुस्कान अक्ष को आवाज़ लगाती है। "मैं अभी आता हूँ," कहकर अक्ष चला जाता है!
तभी विहान भी आ गया। पूरब उसके पास गया।
"हाय विहान?"
विहान पूरब के गले लगा। "हाय भाई, कैसे हो?"
पूरब विहान से अलग होते हुए बोला, "ठीक हूँ यार। वैसे आदिश्री ने जल्दी आने को बोला था ना तुम्हें और तुम अब आ रहे हो?"
विहान बोला, "सॉरी यार, ज़रूरी काम आ गया था स्टूडियो का। वो ना करता, तो श्री नाराज़ हो जाती। वैसे अब तो नहीं होगी ना वो मुझसे नाराज़? आने में मुझे थोड़ी देर जो हो गई?"
पूरब हँस दिया। "कुछ कह नहीं सकते। दोस्त है तुम्हारी वो। तुम तो जानते हो। पर आज मैडम के पर (पंख) लगे हुए हैं। बहुत खुश है!"
विहान मुस्कुरा दिया। "खुश है, अच्छी बात है। वो खुश रहे, यही तो चाहते हैं हम सब!"
"हाँ, चलो अब मेहमानों को देखते हैं!" पूरब बोला और विहान "हाँ-हाँ, चलो" बोलते हुए उसके साथ चला गया।
सगाई का मुहूर्त होने ही वाला था। लड़के वाले श्री के बारे में पूछते हैं और श्री को बुलाने को कहा जाता है। सृष्टि और रानी (बुआ की लड़की) श्री को लेकर आती हैं।
सृष्टि श्री को सबके बीच लाते हुए पूछती है, "आर यू श्योर दी?"
श्री मुस्कुरा दी। "येस!"
जैसे ही श्री सबके बीच आई, सबकी नज़रें उस पर आ ठहर गईं। श्री को देखते ही लड़के वाले एक-दूसरे की ओर देखने लगे। आई मीन आनंद जी, नंदिनी जी, वरुण, रूहानी, अक्ष, मुस्कान, मिसेज़ बतरा…
पल्लवी जी उन सबके हैरान चेहरे देखकर परेशान हो गईं और पास खड़े राकेश जी से चिंतित होते हुए धीरे से बोलीं, "अब क्या होगा जी? (श्री की ओर देखते हुए) श्री ने ससुराल से आई ड्रेस नहीं पहनी। देखिए तो विहान ने जो ड्रेस भेजी थी, वो पहनकर आ गई!"
(क्रमशः)
पल्लवी जी की बात सुनकर राकेश जी भी परेशान हो गए। उनके पास ही पूरब और विहान खड़े थे; दोनों एक-दूसरे की ओर देख रहे थे।
"लड़के वाले नाराज़ हो गए तो? श्री ने ससुराल से आई ड्रेस नहीं पहनी? जबकि वो पहननी ज़रूरी थी..." पूरब चिंता व्यक्त करते हुए बोला।
विहान श्री को अपनी दी हुई ड्रेस में देखकर खुश तो था, पर जब उसने सुना कि उसने ससुराल से आई ड्रेस नहीं पहनी, तो वह भी टेंशन में आ गया।
सब एक-दूसरे के चेहरे ताकने लगे। नंदिनी जी रुहानी से बोलीं, "रूह, ये क्या है? सगाई वाली ड्रेस क्यों नहीं पहनी आदिश्री ने?"
रूहानी कुछ बोलती, इससे पहले वरूण बोल पड़ा, "पसंद नहीं आई क्या?"
रूहानी ने कहा, "ऐसा नहीं है वरूण, मैंने फोन पर पूछा था, बहुत अच्छी लगी थी श्री को ड्रेस!"
मिसेज़ बतरा ने पूछा, "साइज़ वगैरह सब ठीक था ना?"
रूहानी ने उत्तर दिया, "यस आंटी, सब ठीक था!"
मिसेज़ बतरा फिर बोलीं, "फिर क्यों नहीं पहनी?"
बस फिर क्या था, कुसुर-फुसुर होने लगी। क्योंकि नंदिनी जी अपनी होने वाली बहू की सगाई वाली ड्रेस अपने किट्टी ग्रुप में दिखा चुकी थीं, तो मिसेज़ कौशिक को भी मौका मिल गया मज़ाक उड़ाने और नंदिनी जी का अपमान करने का। वह मुस्कुराते हुए नंदिनी जी के पास चली आईं।
"लो मिसेज़ चौहान, आपकी होने वाली बहू को तो आपकी दी हुई ड्रेस भी पसंद नहीं आई। वैसे कहाँ तो था ना लड़की वालों को कि रस्म के कपड़े पहनना ज़रूरी है सगाई में," बोलकर वह हँसने लगीं।
तभी श्री नंदिनी जी के पास आ गईं। नंदिनी जी ने मिसेज़ कौशिक को घूरा और श्री से प्यार से पूछा,
"क्या हुआ बेटा? आपने रस्म वाली ड्रेस क्यों नहीं पहनी? शगुन के कपड़े थे, पसंद नहीं आए क्या?"
श्री बोलती, इससे पहले ही विहान वहाँ दौड़ा चला आया।
"श्री, ये सब क्या है? तुम्हें पता था ना तुम्हारे लिए तुम्हारे ससुराल से ड्रेस आई है, और वही आज तुम्हें पहननी है, फिर क्यों तुमने ये ड्रेस नहीं पहनी? (नंदिनी जी से) एम सॉरी आंटी, श्री अभी चेंज करके आती है। चलो श्री," कहते हुए वह उसका हाथ पकड़कर उसे वहाँ से अंदर ले जाने लगा।
श्री बोल पड़ी, "रुको विहान?"
और उसने अपना हाथ विहान से छुड़ा लिया। विहान उसकी ओर हैरानी से देखता है। श्री मुस्कुराते हुए अपनी पहनी हुई ड्रेस की ओर इशारा करती है।
"मैं क्यों करूँ चेंज? क्या हुआ? ये ड्रेस मुझ पर अच्छी नहीं लग रही है क्या? तुम भी कमाल करते हो! पहले ड्रेस दी, बोला ये ड्रेस पहनूँ, अब कहते हो चेंज करो?"
विहान ने कहा, "ये कैसी बातें कर रही हो यार..." वो आगे बोलता, इससे पहले ही श्री ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"आओ मेरे साथ," और उसे अपने साथ स्टेज पर ले आई।
"सबसे पहले तो हम आप सबसे माफ़ी चाहते हैं। सब को पता लग चुका है कि मैंने सगाई वाले कपड़े नहीं पहने हैं। जानते हैं कि हमें सगाई की रस्म में शगुन के कपड़े पहनने थे, पर हमने जानबूझकर नहीं पहने हैं!" श्री का यह कहना सबकी हैरानी को और भी बढ़ा गया।
श्री फिर बोली, "ऐसा हमने हमारे दोस्त के लिए किया, जो चाहता था हम अपने स्पेशल डे पर उसकी डिज़ाइन की हुई ड्रेस पहनें; जो इसने अपनी फ्रेंड के लिए, आई मीन मेरे लिए, बड़े प्यार से बनाई है। जिसका मुझे भी नहीं पता था इसने कब बनाई है। है ना प्यारी ये ड्रेस जो मैंने पहनी हुई है? इसी ने डिज़ाइन की है। जब इसने ये ड्रेस भेजी तो मैंने सोच लिया मैं आज सगाई में यही ड्रेस पहनूँगी। बट फिर मेरे ससुराल से भी ड्रेस आ गई। क्या करूँ मैं? सोच में पड़ गई। मेरे सामने दो ड्रेस थीं, कौन सी पहनूँ? मॉम (पल्लवी जी की ओर देखकर) ने कहा रस्म वाली ज़रूरी है। विहान की विश भी तो ज़रूरी थी ना? प्यारा सा दोस्त जो है मेरा, जो हर वक्त मेरा दिमाग (हँसते हुए) खाता रहता है!"
"रिश्ता जुड़ने पर, कोई भी रिश्ता हो, हाँ मुझे सब रिश्ते निभाने होंगे। आपके दिए शगुन के कपड़े तो मुझे और भी मिलेंगे मॉम (नंदिनी जी की ओर मुस्कुराते हुए देखते हुए)। आज दोस्ती निभाने के लिए हमने ये सब किया। जिस दोस्त ने हमेशा मेरा साथ दिया, जो हर वक्त मेरे साथ (विहान की ओर देखकर) खड़ा रहा, बस आप सब (हाथ जोड़ते हुए) नाराज़ मत होना। गलती हुई है मुझसे तो माफ़ कर दे हमें। आज हम हर हाल में यही ड्रेस पहनेंगे जो हमें हमारे दोस्त विहान ने दी है। बड़ी ही अजीब है रिश्तों के बीच होने वाली कश्मकश। देखो ना, एक को खुश करने पर बाकी उदास हो जाते हैं। पर मैं वादा करती हूँ फिर कभी ऐसा कुछ नहीं करूँगी जिससे आप सबको (अपने सभी ससुराल वालों की ओर देखकर) बुरा लगे!"
तभी नंदिनी जी स्टेज पर चली आईं। श्री की बातें सुनकर सबकी आँखें नम ही नहीं, होठों पर मुस्कान भी आ गई थी। साफ़ नज़र आ रहा था, और सबको बात भी समझ आ गई थी, और कोई नाराज़ भी नहीं था। नंदिनी जी ने श्री को गले लगाया और माथा चूमकर प्यार से कहा,
"आई एम प्राउड ऑफ़ यू श्री बेटा। वाकई में तुम सब रिश्ते बखूबी निभा रही हो। दुनिया वाले जो चाहे बोले (एक नज़र मिसेज़ कौशिक को देखकर) करे जो चाहे बातें, पर हमें कोई शिकायत नहीं है। ज़रूरी तो नहीं ना बेटा, नए रिश्ते जुड़ें तो पहले वाले रिश्ते निभाना छोड़ दें हम। नए रिश्तों को निभाने के लिए, सब निभाए जा सकते हैं, जैसे तुम निभा रही हो!"
यह सुनकर श्री खुश हो गई। "थैंक्स मॉम!"
सब खुश होकर तालियाँ बजाने लगे। यह देख श्री के घर वाले भी बहुत खुश हो जाते हैं।
नंदिनी जी ने कहा, "वैसे ये ड्रेस बहुत प्यारी है, उस ड्रेस से भी ज़्यादा। और हाँ बेटा, आज जो कश्मकश हुई रिश्तों में, वो आगे भी होगी, पर मैं जानती हूँ तुम प्यार से सब सुलझा लोगी... है ना!"
श्री ने हाँ में सिर हिलाया। "मैं पूरी कोशिश करूँगी मॉम..." नंदिनी जी एक बार फिर उसे अपने गले लगा लेती हैं। विहान की आँखों में आँसू आ जाते हैं, वो उन्हें पोछता है।
श्री उसकी ओर देखती है। "अरे पागल, रो क्यों रहा है? मेरी सगाई है आज, विदाई थोड़ी है।" यह सुनकर सब हँसने लगे।
विहान हँसते-हँसते बोला, "पागल मैं नहीं, तुम हो।" कहकर वो सबसे कहने लगा, "ये लड़की है ना श्री ठाकुर, पागल ही नहीं, बहुत ही प्यारी है। सबसे इतना प्यार करती है कि किसी का भी दिल इससे भर आए। (हँसते हुए) जो मिले इससे, इसका दीवाना हो जाए। थैंक्स यार, तुमने ये ड्रेस पहनी। वैसे डर गया था मैं कहीं कोई प्रॉब्लम ना हो जाए, बट नहीं हुई। (थोड़ा उदास होते हुए) कोई नहीं है मेरा। बचपन में ही मेरे मॉम-डैड दुनिया छोड़कर चले गए मुझे। बड़ा कैसे हुआ मैं ये भी नहीं पता (हँसते हुए)। पर जब से श्री मिली, हमने साथ में काम किया, इसने भी बहुत साथ दिया है मेरा, कितना ये भी नहीं बता सकता। मिलकर हम स्टूडियो चलाते हैं। श्री कभी माँ की तरह डाँटती है, कभी बहन की तरह रोब दिखाती है। पर मैंने तो साफ़-साफ़ कह दिया था पहले दिन ही, तू जो रोल अदा करेगी, तो मेरी फ्रेंड ही। मेरी ये दोस्त मेरी फैमिली है। इसकी बदौलत मुझे मेरी पूरी फैमिली (श्री के पेरेंट्स-भाई-बहन की ओर इशारा करते हुए) मिल गई। तो मैंने सोचा इस पागल दोस्त के लिए (श्री की ओर देखकर) मैं कुछ स्पेशल सा करता हूँ, तो बस मैडम के लिए ये ड्रेस बना दी। वैसे फ़्री में नहीं बनाई है, बदले में तुम्हें भी मेरी दुल्हन के लिए बनानी पड़ेगी ऐसी ही प्यारी सी, सुंदर सी ड्रेस!"
यह सुनकर सबकी हँसी छूट गई। श्री की आँखें नम हो गईं, वो आँखों के किनारे साफ़ करते हुए बोलीं, "बस कर अब रुलाएगा क्या? मेरा मेकअप ख़राब हो जाएगा!"
विहान "सॉरी" कहते हुए श्री को साइड हग कर लेता है। "तुम बेस्ट हो!"
श्री मुस्कुरा दी। "यू टू!"
सब उन्हें मुस्कुराते हुए देख रहे थे। तभी पंडित जी ने कहा कि सगाई का मुहूर्त हो गया है। रस्म शुरू करते हैं... सृष्टि-रानी दोनों स्टेज पर आ गईं।
"वाह! दी मान गए, सब संभाल लिया!"
श्री कंधे उचका देती है, तभी विहान उससे बोला,
"ओये, अपने आद्विक से तो मिलवाओ, कहाँ है वो?"
सृष्टि हँस दी। "लो, दोस्त के चक्कर में होने वाले पति को भूल गई मेरी दी!"
श्री स्टेज से नीचे जाते हुए, और अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ाते हुए बोलीं, "वैसे है कहाँ मिस्टर? मैंने भी नहीं देखा..." तभी उसे आद्विक दिखा, जिसे अक्ष और मुस्कान उसके पास खींचकर ला रहे थे।
रानी ने कहा, "वो देखो, दुल्हे मियाँ खुद ही आ रहे हैं दुल्हन के पास!"
यह सुनकर श्री मुस्कुराने के साथ शर्मा सी जाती है। आद्विक के वहाँ आते ही श्री नज़रें झुका लेती है। तभी अक्ष उससे बोला, "भाभी?"
श्री नज़रें उठाकर उसकी ओर देखती है। अक्ष उसकी तारीफ़ करता है, "जितनी प्यारी आप हैं भाभी, उतनी प्यारी आपकी बातें। देखना, आपकी और मेरी खूब जमेगी!"
मुस्कान बोली, "हम तो फ़ैन हो गए मैडम आपके। दोस्ती हो तो ऐसी! वैसे मेरी शादी के लहंगे का डिज़ाइन आप (विहान से) ही तैयार करना। डिज़ाइन और ड्रेस दोनों अमेज़िंग हैं!"
विहान ने पूछा, "ओके, बट कब है आपकी शादी?"
"अभी सोचा नहीं कब है शादी..." मुस्कान बोली, कि सब उसकी बात पर हँस पड़े। श्री फिर विहान को सबसे मिलवाती है। "मेरे दोस्त से मिलिए, विहान। वैसे तो जान ही चुके हैं (मुस्कुराते हुए विहान की ओर देखकर) इसे आप सब!"
मुस्कान और अक्ष एक साथ बोले, "येस, जान गए!"
श्री ने विहान से कहा, "ये आद्विक, ये मेरा देवर अक्ष और ये मुस्कान!"
मुस्कान बोल पड़ी, "आद्विक की दोस्त!"
विहान सबको हाय कहते हुए आद्विक से हाथ मिलाने के लिए अपनी ओर हाथ बढ़ाता है। आद्विक हाथ मिला लेता है और "नाइस टू मीट यू" बोलता है।
यह सुन विहान खुश हो जाता है और श्री की ओर इशारा करते हुए आद्विक से कहता है, "आर यू लकी मैन? श्री तुम्हें मिली है!"
आद्विक श्री की ओर एक नज़र देखता है और हल्का सा मुस्कुरा देता है। तभी आनंद जी उन्हें स्टेज पर बुलाते हैं। "डैड बुला रहे हैं," बोलकर आद्विक चला जाता है।
"चलो भाभी, सगाई मुहूर्त हो गया है," अक्ष बोला।
सृष्टि ने कहा, "अच्छा, हमें तो पता ही नहीं था!"
दोनों एक-दूसरे की ओर देखकर बतीसी दिखा देते हैं।
विहान श्री से धीरे से कहता है, "वाकई यार, तेरे ससुराल वाले बहुत अच्छे हैं। हर किसी के जुबान पर तेरी ही तारीफ़!"
पंडित जी मंत्रोच्चारण करते हुए आद्विक और श्री दोनों को तिलक करते हैं। फिर नंदिनी जी श्री को और पल्लवी जी आद्विक को टीका करती हैं। फिर दोनों को एक-दूसरे को रिंग पहनाने को बोला जाता है।
सृष्टि ने कहा, "पहनाओ दी, जीजू को रिंग पहनाने का वक़्त आ ही गया है!"
श्री मुस्कुराते हुए, शर्माते हुए नज़रें उठाकर आद्विक की ओर देखती है, जो ठीक उसके सामने खड़ा था, चेहरा भावहीन लिए। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ सोच रहा था, जिससे सब अनजान थे, सिवाय उसके... "हम्म हम्म हाँ हाँ हो हो हो" बैकग्राउंड में धुन बज रही थी। आद्विक अपने कदमों पर बैठता है और मुस्कुराते हुए श्री से उसका हाथ मांगता है अंगूठी पहनाने के लिए। श्री मुस्कुराते हुए हाथ आगे करती है (श्री की इमेजिनेशन)।
अक्ष आद्विक से कहता है, "भैया, हाथ आगे करो, क्या सोच रहे हो?"
आद्विक सोचता है, "जब हमारी सगाई होगी, तुम यूँ ही कदमों पर बैठकर रिंग पहनाना मुझे, और मैं भी ऐसे ही कदमों पर बैठकर तुम्हें रिंग पहनाऊँगा। कितना अच्छा मोमेंट होगा ना हमारी लाइफ का!" (आद्विक के बीते कल की एक याद)
आद्विक मुस्कुराते हुए "हम्म" कहता है। तभी रुहानी कहती है, "हम्म ही नहीं भाई, हाथ आगे करो। श्री भाभी वेट कर रही है," और वह खुद आद्विक का हाथ आगे कर देती है।
रानी श्री से कहती है, "अरे बहन, तुझे पहनानी है जीजू को, तू क्यों हाथ आगे कर रही है!"
सृष्टि कहती है, "दी को बड़ी जल्दी है सगाई की!"
और सब हँसते हैं। श्री शर्मा जाती है और खुद से कहती है, "क्या सोच रही थी मैं?" वह अपनी इमेजिनेशन से बाहर आ जाती है। वहीं आद्विक को जिस याद ने घेरा था, वो भी उससे बाहर आ गया। नज़रें नीची करते हुए, इधर-उधर देखते हुए उसने अपना हाथ श्री के हाथ में रख दिया। जैसे ही उसने श्री के हाथ पर हाथ रखा, उसे अजीब सा महसूस हुआ। वह हैरानी से श्री की ओर देखने लगा, जो उसे मुस्कुराते हुए रिंग पहना रही थी। आद्विक को कुछ समझ नहीं आता। वह खुद से सवाल करता, इससे पहले मुस्कान उससे बोल पड़ी,
"आद्विक, अब तुम्हारी बारी!"
आद्विक श्री को रिंग पहनाकर उसका हाथ छोड़ देता है। सब दोनों पर फूल बरसाते हुए तालियाँ बजाने लगे। आद्विक अंदर ही अंदर परेशान होते हुए, अंगूली में पहनी रिंग को दूसरे हाथ से घुमाए जा रहा था। वहीं श्री अपनी रिंग को देखते हुए बहुत खुश होते जा रही थी!
फिर नंदिनी जी श्री की आरती करती हैं और पल्लवी जी आद्विक की आरती कर उन्हें शगुन देती हैं। दोनों अपनी-अपनी होने वाली सास के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं। फिर सब बारी-बारी से स्टेज पर आकर दोनों को आशीर्वाद-शुभकामनाएँ देने लगे। सगाई की रस्म बहुत ही अच्छे से हो जाती है और फोटो-सेशन का कार्यक्रम शुरू होता है...
"अरे यार, मुझे प्यास लगी है?" मौली शिवम से कहती है और इधर-उधर देखते हुए कहती है, "ये अक्ष भी पता नहीं कहाँ गया आता हूँ कहकर?"
शिवम ने कहा, "आता ही होगा। और..." पानी-पानी कहाँ है? पानी बोलते हुए इधर-उधर देखने लगा। तभी मौली सामने से गुज़र रहे लड़के को आवाज़ देती है, "अरे वेटर सुनो, पानी दो?"
वह लड़का कोई और नहीं, पूरब ही था। उसके हाथ में ट्रे थी जिसमें पानी के कुछ गिलास रखे हुए थे। पूरब मौली के पास आया। पूरब कुछ कहता, इससे पहले ही मौली ने ट्रे से पानी का गिलास उठा लिया। "जल्दी पानी दो, इतनी जोर से प्यास लगी है मुझे। पानी भी अब मिला..." बोलते हुए उसने जल्दी से एक घूंट भरा और चिढ़ते हुए गिलास वापस ट्रे में रख दिया। "ये तो ठंडा ही नहीं है। वेटर, तुम ये गर्म पानी क्यों लिए घूम रहे हो? ऐसा पानी कौन पीता है? मुझे ठंडा पानी चाहिए!"
पूरब ने कहा, "जी, मैं अभी ठंडा पानी मँगवाता हूँ।"
मौली ने कहा, "मँगवाता हूँ? खुद जाकर लेकर आओ जल्दी से, मैं प्यास के मारे मर जाऊँगी!"
शिवम ने कहा, "यार शांत, गला सूख रहा है फिर भी चिल्ला रही है!"
तभी मुस्कान वहाँ आ गई। "क्या हुआ?"
मौली मुँह बनाते हुए बोली, "देखो ना मुस्कान, पानी चाहिए और ये वेटर गर्म पानी दे रहा है मुझे..." कि तभी सृष्टि की आवाज़ आई, "क्या वेटर?"
सब उसकी ओर देखते हैं। वो हँसते हुए उनके पास आ गई और पूरब की ओर देखते हुए बोली, जो उसे हँसते देख घूर रहा था, "वेटर भैया!"
पूरब ने कहा, "शट अप," और वो पानी का ट्रे सृष्टि के हाथ में रख देता है।
मुस्कान मौली से कहती है, "अरे यार, ये वेटर नहीं, श्री-सृष्टि का भाई है, बड़ा भाई पूरब!"
"क्या?" मौली जोर से बोली।
सृष्टि ने कहा, "जी, जिन्हें आपने वेटर बना दिया!"
मौली पूरब की ओर देखते हुए बोली, "वो मैंने पानी लिए देखा तो मुझे लगा वेटर है। एम सॉरी, मुझे नहीं पता था?" वो बोल रही थी कि पूरब वहाँ से चला गया।
शिवम ने कहा, "लगता है बुरा मान गए?"
सृष्टि ने कहा, "नहीं नहीं, इन्हें लड़कियों की बात का बुरा नहीं लगता है!"
मौली सृष्टि से माफ़ी माँगती है। "सॉरी यार, सच में नहीं पता था..." तभी अक्ष भी वहाँ आ गया। "क्या हो रहा है यहाँ? महफ़िल किस लिए लगी है?"
"आईए, आपकी ही कमी थी?" सृष्टि बोली।
अक्ष हँस दिया। "अच्छा!"
मुस्कान उसे सब बताती है। अक्ष मौली से कहता है, "यार, ये क्या किया तुमने?"
मौली ने कहा, "मुझे थोड़ी पता था यार? प्यास लगी थी मुझे और तुम भी नहीं दिख रहे थे, सो बाय मिस्टेक हो गया..."
सृष्टि ने कहा, "इट्स ओके," और वहाँ से जा रहे वेटर से ठंडा पानी लेकर मौली को देते हुए बोली, "सब ठीक है, चिल करो। और ये लीजिए, पहले पानी पीजिए। एम सॉरी, आपको परेशानी हुई!"
अक्ष सृष्टि की ओर देखकर मुस्कुरा देता है और मौली से कहता है, "कूल डाउन यार, ठंडा पानी पीओ, प्यास बुझाओ। इतना परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। सृष्टि ने कहा ना सब ठीक है!"
मौली हाँ में सिर हिलाते हुए मुस्कुरा देती है और पानी पी लेती है। तभी वहाँ रानी आ गई और सबसे बोली, "गाइस, चलो, सबकी पिक हो गई, अब हम सब भी फ़ोटोज़ करवा लें।" सब हाँ कहते हैं।
सृष्टि ने कहा, "आप सब चलो, मैं आती हूँ!"
और सब चले जाते हैं, बट अक्ष वापस आ जाता है।
"सृष्टि सुनो?"
सृष्टि ने पूछा, "कहिए?"
"वो, पानी चाहिए?" कहते हुए अक्ष ट्रे से पानी से भरा एक गिलास उठा लेता है। वो पानी पीने लगा कि सृष्टि ने उसे रोका। "रुकीए, ये गर्म पानी है। आपकी फ्रेंड ने भी नहीं पिया!"
अक्ष ने कहा, "वो मेरी गर्लफ्रेंड को ठंडा पानी पसंद है, पर मुझे गर्म भी चलता है!"
"ओह, तो आपकी गर्लफ्रेंड है वो? फिर तो ख्याल रखा कीजिए ना उनका?"
"रखता हूँ ना, पर आज मैंने सोचा लड़की वाले ख्याल रख लेंगे हम लड़कों का। मुझे नहीं पता था यहाँ पीने को भी गर्म पानी मिलेगा?" पानी का एक घूंट पीकर गिलास की ओर इशारा करते हुए अक्ष बोला।
सृष्टि उसके हाथ से गिलास छीनकर ट्रे में रख लेती है। "खातिरदारी में तो कोई कमी नहीं जनाब, बस सब्र रखना भी आना चाहिए। और हाँ, आपकी खातिरदारी भी देख लेंगे हम कभी!"
"ज़रूर, आइएगा हमारे यहाँ तो देख लेना वो भी अच्छे से। चाहो तो आज ही चलो..." अक्ष एटीट्यूड वाले लहजे में बोला। सृष्टि उसे घूरते हुए वहाँ से चली गई। अक्ष उसे जाते देख हँसने लगा। "ये लड़की भी ना? कमाल की है। मेरे भाई की प्यारी सी साली साहिबा! आपको ज़रूर दिखाएँगे हम हमारे यहाँ की खातिरदारी कैसी होती है!!"
राकेश जी ने पूछा, "सगाई का फ़ंक्शन तो अच्छे से हो गया जी?"
आनंद जी उनके गले लगते हुए बोले, "जी, बहुत अच्छे से हो गया!"
तभी नंदिनी जी सबसे बोलीं, "बस अब इसी महीने शादी भी सगाई जैसे अच्छे से हो जाए..." वो आगे बोलतीं, इससे पहले ही आद्विक बोल पड़ा, "नो मॉम, अभी नहीं हो सकती है शादी। अभी शादी नहीं होगी!" यह सुनते ही सब आद्विक की ओर देखते हैं, जिसको देखकर साफ़ नज़र आ रहा था वो गुस्से में है...
(क्रमश:)
आद्विक ने जैसे ही शादी के लिए मना किया, सब उसे देखने लगे। अक्ष उसके पास आया और सबकी ओर देखते हुए धीरे से बोला, "भाई, क्या कर रहे हैं आप?"
मुस्कान मन ही मन खुद से बोली, "यार, अब कोई पंगा ना हो जाए..."
नंदिनी जी बोलीं, "क्यों आद्विक, क्यों नहीं हो सकती है शादी?"
पल्लवी जी बोलीं, "सगाई हो चुकी, फिर शादी क्यों नहीं?"
सबकी नज़रें आद्विक पर थीं और उन नज़रों में एक ही सवाल था—वह मना क्यों कर रहा था? सब जवाब के इंतज़ार में थे; श्री भी। आद्विक श्री की ओर देखकर बोला, "हाँ, सगाई हो चुकी है। शादी की अभी क्या ज़रूरत है? आई मीन, इसी महीने में शादी करना ज़रूरी तो नहीं। शादी आराम से हो सकती है। जल्दी क्यों करना? एक्चुअली, कल मैं बिज़नेस ट्रिप पर जा रहा हूँ, अगले तीन महीने के लिए। उसके बीच शादी पॉसिबल नहीं है, सो नहीं हो सकती है शादी!"
यह सुन सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे। आनंद जी बोले, "लो जी, अब इसने कह दिया तो फिर नहीं होगी शादी। इस महीने तो होने से रही। वह बाहर जा रहा है, काम भी ज़रूरी है, जल्दबाज़ी क्यों करना? तीन महीने बाद करेंगे हम बच्चों की शादी। सम्भांधी जी (राकेश जी से), आपको कोई आपत्ति तो नहीं?"
राकेश जी कुछ बोलते, इससे पहले ही श्री बोलीं, "आपत्ति क्यों होगी डैड? जो चीज़ पहले ज़रूरी है, वो हो जाए तो बेहतर है ना? और रही बात हमारी शादी की, तीन महीने (आद्विक की ओर देखते हुए) कौन से ज़्यादा हैं? यूँ निकल (मुस्कुराते हुए) जाएँगे। जल्दबाज़ी में कहाँ कुछ अच्छा होता है!"
राकेश जी श्री की बात से सहमत होते हुए हाँ में सिर हिला दिए। तभी सृष्टि हँसते हुए बोली, "क्या बात है दी! आप तो अभी से होने वाले पति की हाँ में हाँ मिलाने लगीं..." यह सुन सब हँस पड़े। श्री शर्मा गईं।
आद्विक सकून की साँस लेता है, "चलो, तीन महीने तो कोई शादी का नाम नहीं लेगा!"
मुस्कान बोली, "वैसे अच्छा ही है ना? शादी तीन महीने बाद होगी तो, ये दोनों एक-दूसरे को जान भी लेंगे और हमें भी शादी की तैयारियों के लिए ज़्यादा वक़्त भी मिल जाएगा...और श्री के पास आकर धीरे से बोली, "इंतज़ार का अपना ही मज़ा है, क्यों?" उसने अपने कंधे से श्री के कंधे को छुआ तो वह मुस्कुरा दी।
मिसेज़ बत्रा नंदिनी जी की ओर देखती हैं, जो थोड़ी परेशान नज़र आ रही थीं। "अपने बेटे की शादी का इतना वेट किया है तुमने, थोड़ा और कर लो। चिंता मत करो, शादी ज़रूर होगी!"
नंदिनी जी हल्का सा मुस्कुरा दीं और वह आद्विक की ओर देखकर मन ही मन बोलीं, "तीन महीने निकल तो जाएँगे। बस इन तीन महीनों में ये शादी न करने की ज़िद फिर न पकड़ ले!"
सब आद्विक की अभी शादी नहीं वाली बात मान लेते हैं। वह "थैंक्स गॉड" कहते हुए श्री की ओर देखता है, जो उसी की ओर देख रही होती है।
स्टेज के पास सब खड़े थे: आद्विक, श्री, मुस्कान, अक्ष, वरुण, रूहानी, सृष्टि, रानी, पूरब, शिवम, मौली, विहान।
अक्ष बोला, "चलो, शादी तो तीन महीने बाद होगी गाइज़, पर सगाई तो हो चुकी है ना? नाच-गाना तो बनता है?"
मौली अक्ष की बाहें पकड़ते हुए बोली, "राइट अक्ष! वैसे सुनो, लड़की के भाई, आज है सगाई, जरा नाच कर हमको दिखा?" मौली गुनगुनाते हुए पूरब की ओर देखती है।
पूरब बोला, "ओह, अब मैं लड़की का भाई हो गया? मुझे तो कोई वेटर कह रहा था!"
मौली कुछ बोलती, इससे पहले ही सृष्टि बोली, "वैसे सगाई तो लड़के की भी हुई है, तो लड़के के भाई को भी डांस करना चाहिए या (अक्ष की ओर देखते हुए) पैरों में मेहँदी लगी है?"
अक्ष हँसने लगा, "मैडम, मेहँदी पैरों में तो नहीं लगी, पर हाँ, हाथों पर लगाने को तैयार हूँ मैं!"
मुस्कान ने उसका कान खींचा, "बच्चू, पहले कोई मिल तो जाए तुम्हें, फिर लगाना हाथों में मेहँदी?"
रूहानी बोली, "इसकी फ़िक्र मत करो, मिल भी जाएगी इसे, और ये तो खुद-ब-खुद ले आएगा मुस्कान। हमें नहीं ढूंढनी पड़ेगी..." इस बात पर सब हँसने लगे, सिवाय आद्विक के।
सृष्टि मुस्कुरा दी और मन ही मन बोली, "ले क्या आएगा? ढूंढ तो रखी है, कंधे से कंधा मिलाकर तो खड़ी है!"
अक्ष बोला, "मुझे तो इंतज़ार मेरे भाई की शादी का ही था, और अब तो मेरे भाई की दुल्हन जैसी ही दुल्हन मेरे लिए आएगी, क्यों भाभी?"
श्री बोलीं, "अच्छा देवर जी!"
विहान बोला, "भाई, वैसे थोड़ा तो मुश्किल है श्री जैसा तो किसी और का होना, पर ये सृष्टि थोड़ी-बहुत कॉपी है तुम्हारी भाभी की, चलेगी क्या...?" सृष्टि को छेड़ते हुए पूरब को ताली देते हुए विहान ने जैसे ही यह बात कही, सृष्टि का मुँह फूल गया।
वरुण बोला, "हमें तो मंज़ूर है, कहो तो दो-दो शादियाँ एक साथ करवा लें...?"
सृष्टि बोली, "जी नहीं, विहान जी क्या है? देखो दी, अपने दोस्त को समझा लो, मुझे कोई शौंक नहीं शादी का..." अक्ष की ओर देखते हुए उसने मुँह बनाया।
अक्ष ने भी हाथ जोड़ लिए, "मुझे भी शौंक नहीं है शादी का, जीजू प्लीज़ मॉम के आगे ये बात मत छेड़ देना, नहीं तो भाई (आद्विक की ओर इशारा करते हुए) के जैसे वो मेरे पीछे पड़ जाएँगे, मेरी शादी करवा देंगे वो, और मुझे मेरी आज़ादी बहुत पसंद है, मुझे नहीं करनी शादी-वादी!"
यह सुन सब हँस पड़े। आद्विक अक्ष को अजीब नज़रों से देखता है, पर जैसे ही देखा कि श्री उसे देख रही है, वह नॉर्मल हो गया और हल्का सा मुस्कुरा दिया। यह देख वह भी मुस्कुरा दी। तभी विहान सृष्टि से "सॉरी" बोला और सबसे बोला, "चलो, मैं म्यूज़िक लगाकर आता हूँ, फिर सब डांस करेंगे..." विहान पूरब को साथ लेकर चला गया। बाकी सब भी स्टेज से नीचे उतर आए, बस आद्विक और श्री रह गए।
श्री आद्विक से बोली, "आप खुश हैं ना?"
आद्विक बोला, "हम्म!"
श्री बोली, "डोंट वरी, आप जब फ़्री हो जाएँगे, तब ही हमारी शादी होगी!"
यह सुन आद्विक श्री की ओर देखता है। आद्विक से शादी करने की बेताबी उसकी आँखों में साफ़ दिख रही थी, पर वह अपनी खुशी को छोड़कर आद्विक की खुशी और मर्ज़ी को महत्व देने में लगी थी। यह आद्विक भी समझ पा रहा था, पर वह कुछ कह नहीं सका। वह कुछ नहीं बोला तो श्री मुस्कुराते हुए स्टेज से जाने लगी कि उसका पैर लहंगे में फंस गया। गिरती उससे पहले ही, उसने खुद को आद्विक की बाहों में महफ़ूज़ पाया। दोनों की नज़रें आपस में उलझ गईं।
दोनों के ही दिल धड़क उठे। करीब थे तो साँसें भी एक-दूसरे से टकरा रही थीं। श्री धड़कनों का शोर सुनकर खुश हो रही थी, वहीं अपने धड़कते दिल को देखकर आद्विक परेशान हो उठा। उसके चेहरे पर परेशानी की लकीरें देख श्री खुद को संभालते हुए उसकी बाहों से उठ गई, "मैं ठीक हूँ!"
आद्विक ने कुछ रिएक्ट नहीं किया। वह स्टेज से चला गया। आद्विक को जाते देख श्री बोली, "पहली दफ़ा मैं तुम्हारे इतने करीब आई, क्यों लगा मुझे ऐसा? जैसे तुम्हारे अहसास से वाकिफ़ हूँ, इतना तो मिलना भी न हुआ तुमसे, फिर भी लग रहा है सदियों से मिलती आ रही हूँ तुमसे। चिंता की लकीरें, फ़िक्र है तुम्हें मेरी, अच्छा लगा!"
आद्विक ऐसी जगह चला आया जहाँ कोई नहीं था। वह अपने गले पर हाथ फेरते हुए गहरी-गहरी साँसें भरने लगा, मानों उसे घुटन हो रही हो। जिस तरह वह तेज-तेज साँसें ले रहा था, ऐसा लग रहा था कि उसने अब तक अपनी साँसें रोक रखी थीं। उसने अपने हाथ को अपने सीने पर रखा और आँखें मूँदकर किसी को याद करते हुए खुद से बोला, "तुम्हारे सिवा तो मेरे दिल ने किसी और के लिए धड़कना सीखा ही नहीं था, फिर आज किसी और के लिए कैसे धड़क सकता है!"
अगली सुबह ही आद्विक बिज़नेस ट्रिप के लिए चला गया, आउट ऑफ़ कंट्री, वह भी तीन महीने के लिए। उसके ऐसे जाने से कोई खुश तो नहीं था, पर आद्विक के फैसले के आगे कहाँ किसी और की चलने वाली थी? जिद्दी जो ठहरा!!
एक हफ़्ते बाद—
नंदिनी जी बोलीं, "चलो, सगाई तो हो गई, बस अब बेटे की शादी का इंतज़ार है!"
आनंद जी बोले, "सबर रखिए नंदिनी जी, यह दिन भी आ जाएगा!"
सुमो बोली, "साहब, बड़े मज़े आएंगे ना, बड़े भैया की शादी होगी तब!"
अक्ष ऊपर से आते हुए बोला, "बहुत सुमो दीदी!"
सुमो बोली, "अरे छोटे भैया, आप कहाँ जा रहे हैं?"
अक्ष बोला, "कॉलेज, और कहाँ सुमो दीदी? कॉलेज जा रहा हूँ!"
सुमो बोली, "इतनी जल्दी? मैंने तो अभी तक नाश्ता भी नहीं बनाया!"
नंदिनी जी बोलीं, "तो अब बना दो!"
अक्ष बोला, "नहीं-नहीं मॉम, सुमो दीदी, वो मुझे आज जल्दी जाना था कॉलेज इसलिए, जल्दी जा रहा हूँ। चलो, बाय डैड, बाय मॉम, सुमो दीदी, मैं कुछ खा लूँगा, डोंट वरी।" कहकर अक्ष चला गया।
सुमो अक्ष को जाते देख बोली, "ये क्या, छोटे भैया बता देते कि जल्दी जाना है, मैं पहले खाने को कुछ बना देती। देखो, खाली पेट चले गए!"
आनंद जी बोले, "क्यों परेशान हो रही हो सुमो? वो खा लेगा कुछ, भूखा नहीं रहेगा!"
नंदिनी जी बोलीं, "हाँ...खा लेगा। अब जाओ, तुम नाश्ता बनाओ सबके लिए!" "जी मैडम," कहकर सुमो किचन में चली जाती है।
थोड़ी देर बाद—
वरुण ऊपर से आते हुए बोला, "क्या हो रहा है डैड?"
आनंद जी बोले, "आओ बेटा, कुछ नहीं हो रहा, बस बैठे हैं, आओ बैठो।"
वरुण बोला, "जी डैड।"
नंदिनी जी रूहानी को हैंडबैग के साथ आते देख बोलीं, "अरे रूह, कहाँ जा रही हो?"
रूहानी वरुण की ओर देखकर बोली, "वो मॉम, हम जा रहे हैं।"
आनंद जी बोले, "कहाँ?"
वरुण बोला, "मुंबई!"
नंदिनी जी बोलीं, "क्या? दामाद जी, अभी नहीं! अभी आप नहीं जाएँगे!"
वरुण बोला, "सॉरी मॉम, बट काम है, सो जाना पड़ेगा!"
रूहानी बोली, "हाँ मॉम, वैसे भी डैड काफ़ी दिन हो गए आए हुए, फिर आ जाएँगे। और अब तो जल्द शादी है हमारे आद्विक की, तो हमें जल्द आना ही होगा!"
वरुण बोला, "हाँ, और कौन सा दूर है मुंबई? फ्लाइट ली और आ (हँसते हुए) गए!"
यह सुन नंदिनी जी मुस्कुरा दीं, "हाँ-हाँ, मुंबई पास ही है। फ्लाइट न होती तब दूर होता ना, अब तो थोड़ा वक़्त ही लगता है बेटा!"
इस बात पर सब हँस दिए।
आनंद जी बोले, "चलो, प्लान बना ही लिया है जाने का, तो जाओगे ही!"
नंदिनी जी बोलीं, "हाँ, आओ, साथ में नाश्ता कर लेते हैं!"
वरुण बोला, "मॉम, फ़्लाइट का टाइम हो गया है, अभी नहीं निकले तो फ़्लाइट मिस हो जाएगी!"
रूहानी बोली, "हाँ मॉम, अब चलते हैं!"
तभी सुमो आ गई। वह उनकी बात सुन लेती है, "दीदी, चाय तो ले लो? क्या आज सभी बिना खाए-पिए घर से जाएँगे? छोटे भैया भी चले गए, जीजा जी, आपके फ़ेवरेट पराठे भी बनाए हैं मैंने आज!"
वरुण बोला, "अच्छा, चलो तो जल्दी-जल्दी खा लेते हैं। सुमो, तुम्हारा मन रखना भी ज़रूरी है, वरना खाना-ख़राब बनाकर खिलाओगी (हँसते हुए) अगली बार आऊँगा तब। बात मानने में ही भलाई है!"
सुमो हँस दी, "आप भी ना जीजा जी!"
रूहानी-वरुण नंदिनी जी और आनंद जी के पैर छूकर गले लगे। आनंद जी ने दोनों से पूछा, "अक्ष से मिल लिए थे क्या?"
रूहानी बोली, "हाँ डैड, मिल लिए थे, पर बताया नहीं कि हम आज जा रहे हैं, नहीं तो पता है ना आपको, हमें जाने नहीं देता वो!"
वरुण बोला, "फ़ोन पर बात कर लेंगे। हाँ, नाराज़ होंगे छोटे साले साहब अपने जीजू से, पर ज़्यादा देर नाराज़ रह नहीं सकते!"
नंदिनी जी बोलीं, "इसी बात का आप फ़ायदा उठाते हैं!"
अक्ष कॉलेज पहुँचा। मौली ने अक्ष से कहा, "आज आ रहे हो तुम?"
अक्ष बोला, "हाँ, आज आ रहा हूँ!"
शिवम बोला, "छुट्टी करने की वजह?"
अक्ष बोला, "दी-जीजू आए हुए हैं ना, सो...अच्छा, ये छोड़ो, असाइनमेंट रेडी है तुम दोनों का?"
मौली बोली, "हाँ, मेरा तो है रेडी!"
शिवम बोला, "मेरा थोड़ा सा रहा है!"
अक्ष बोला, "मेरा थोड़ा सा भी नहीं है। चलो, जल्दी लाइब्रेरी जाकर पूरा करता हूँ, तुम दोनों मेरी हेल्प करना, ओके?" और तीनों लाइब्रेरी चले जाते हैं।
अक्ष बोला, "कल सबमिट करना है ना?"
मौली बोली, "येस!"
शिवम बोला, "वैसे कुछ भी कहो यार, सगाई फंक्शन मस्त था!"
मौली बोली, "हाँ, बड़ा मज़ा आया!"
अक्ष हँसते हुए बोला, "वैसे ज़्यादा मज़ा तुम्हें तब आया होगा ना जब तुमने पूरब जी को वेटर बोल दिया था?"
मौली बोली, "यार, मुझे पता ही नहीं था वो वेटर नहीं है, पानी की ट्रे ले रखी थी। वैसे मैं सॉरी भी नहीं कह पाई, पता नहीं कितना बुरा लगा होगा उनको?"
अक्ष बोला, "चिल बेबी, ऐसे नहीं है। वो छोटी सी बात का बुरा मान ले, बहुत अच्छे हैं वो, पता है उन्हें, मिस्टेक थी, जानबूझकर तुमने उन्हें वेटर नहीं कहा!"
मौली बोली, "अच्छा!"
अक्ष बोला, "हाँ!"
शिवम बोला, "यार, तुम्हारी भाभी क्या, उनकी बहन भी बहुत प्यारी है, माशाअल्लाह! दोनों बहनें एक जैसी हैं!"
अक्ष बोला, "बिल्कुल भी एक जैसी नहीं, मेरी भाभी ज़्यादा प्यारी है उस सृष्टि से, वो सृष्टि, वो तो तीखी छूरी है!"
मौली बोली, "अच्छा, तीखी कैसे?"
शिवम बोला, "हाँ, तीखी कैसे? बात करते देखा तो स्वीट लग रही थी!"
अक्ष बोला, "सच मुझसे पूछो, काटने को रहती है, लड़ने को तैयार। वैसे भी ठीक है, हम भी कौन सा कम हैं (सृष्टि के बारे में सोचते हुए) सृष्टि ठाकुर से, टक्कर के हैं!"
मौली बोली, "हाँ, ये तो सही कहा अक्ष तुमने, हम भी कौन सा कम हैं? वो लड़की वाले हैं तो हम भी लड़के वाले हैं, नखरे हमारे (पूरब के बारे में सोचते हुए) भी कम नहीं!"
अक्ष मन ही मन खुद से बोला, "बहुत पसंद आया है मुझे आपका नेचर, सृष्टि ठाकुर!"
मौली मन ही मन खुद से बोली, "पूरब ठाकुर इतना भी एटीट्यूड अच्छा नहीं होता?"
तभी शिवम दोनों से बोला, "कहाँ खो गए?"
मौली बोली, "कहीं नहीं!"
अक्ष बोला, "हाँ, कहीं नहीं। चलो, जल्दी काम ख़त्म करते हैं, घर जाकर जीजू के साथ गेम में लग गया तो टाइम नहीं मिलेगा। कॉलेज में पूरा हो जाए असाइनमेंट तो अच्छा है!"
मौली बोली, "वैसे तेरे जीजू भी कमाल के हैं यार!"
शिवम बोला, "हाँ, जीजू क्या, सब कमाल के हैं, अंकल-आंटी, दी, बस आद्विक भाई का नेचर अलग है!"
मौली बोली, "हाँ, ये तो है!"
अक्ष बोला, "ऐसा नहीं है गाइज़, भाई भी बहुत अच्छे हैं!" कह मन ही मन खुद से बोला, "आप लोग जानते नहीं हो गाइज़ मेरे भाई को, जो जानता है वो भाई के बारे में यही कहेगा, उनके जितना अच्छा दुनिया में कोई नहीं है, बेस्ट टू बेस्ट है, आद्विक चौहान, ब्रदर ऑफ़ अक्ष चौहान!"
इधर अक्ष आद्विक को अच्छा कह रहा था, तो उधर श्री अपना फ़ोन बेड पर फेंककर बिस्तर से उठ खड़ी हुई, "आद्विक चौहान, बहुत बुरे हो तुम..."
(क्रमशः)
श्री को इस बात का गुस्सा आया कि उसने आद्विक को कल मैसेज किया था और अब तक उस मैसेज का कोई रिप्लाई नहीं आया था।
"मेरा मैसेज सीन भी नहीं किया। कल रात भेजा था, आज का पूरा दिन निकल गया। अक्ष ने बोला था वो भाई मीटिंग में बिजी होंगे भाभी, नहीं तो वो रिप्लाई पक्का देते। अब तक मीटिंग चल रही है क्या?", गुस्से से मुँह बनाते हुए श्री एक पल बेड पर पड़े फ़ोन की ओर घूरकर देखती है और दूसरे ही पल खुद को शांत करती है। "शांत श्री ठाकुर शांत, गुस्सा करना अच्छी बात नहीं, वो भी अपने होने वाले पति पर। होंगे वो बिजी, इतना इंतज़ार किया है और कर लें थोड़ा, रिप्लाई आ जाएगा!"
तभी सृष्टि आ गई।
"क्या कर रही हो दी?"
"कुछ नहीं!"
"झूठ!"
"क्या झूठ?"
"आप कुछ तो कर रही हो?"
"क्या?"
"मेरे जीजू को मिस कर रही हो ना, दी? इतना भी मिस मत करो! उनको हिचकी पर हिचकी आने लग गई होगी, हिचकी भगाने के लिए पानी पर पानी पीये जा रहे होंगे।" सृष्टि अपने फ़ोन में नज़रें गड़ाए हँसते हुए बोली।
"ऐसा कुछ नहीं है। मैं इतना भी मिस नहीं करती उनको। वैसे बड़ी फ़िक्र हो रही है इस साली को अपने जीजू की?"
"हाँ तो इकलौते जीजू हैं मेरे, फ़िक्र तो होगी ना!"
"पागल!"
"आप जितनी नहीं!"
"रियली!"
"येस।"
"येस की बच्ची! तू बड़ी ख़राब है।" श्री सृष्टि की तरफ़ आते हुए बोली, "मेरा छोड़ अपना बता, क्या देख रही है फ़ोन में?"
"आपके प्यारे देवर और उनकी गर्लफ्रेंड की पिक देख रही हूँ!"
"क्या? अक्ष की गर्लफ्रेंड?"
"हाँ, आपके देवर ने आपको कुछ नहीं बताया, बड़ा भाभी-भाभी करता है!"
श्री सृष्टि को लेकर बेड पर बैठ गई। "इधर बैठ, दिखा ज़रा। और अक्ष ने बताया नहीं तो सही वक़्त आने पर बता देगा, तू टेंशन मत ले!"
सृष्टि हँस दी। "मैं क्यों टेंशन लेने लगी? और रही बात सही वक़्त आने पर बताने की, तो आप सही वक़्त आने पर ही पिक देख लेना। ज़्यादा साइड ले रहे हो अपने देवर की, नहीं दिखाऊँगी फ़ोटो…" कह सृष्टि जाने लगी, श्री ने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया।
"फ़ोटो तो देखकर रहूँगी, वो भी अभी…" कहते हुए फ़ोन की स्क्रीन पर नज़र डाली तो वो हैरानी से भर गई।
"अरे ये तो अक्ष के साथ मौली है!"
"हाँ तो यही तो है आपकी देवरानी, मतलब आपके देवर की गर्लफ्रेंड!"
"अच्छा, पूरा पता है क्या?"
"मुझे तो है। वैसे कोई कह रहा था कि देवर भाभी का सबसे अच्छा दोस्त होता है, तो लगाओ फ़ोन अपने देवर को और पूछ लो, सच है या झूठ?"
श्री सृष्टि को उसका फ़ोन देते हुए बोली, "नहीं, जब वो खुद से बताएगा तब ही जान लेंगे। मुझे कोई जल्दी नहीं। वैसे मैं जानती हूँ मेरा देवर मुझे ज़रूर बताएगा अपनी पसंद के बारे में!"
"बड़ा प्यारा लगने लगा है देवर, लगे भी क्यों ना, होने वाले सैया जो हैं असद के बड़े भैया, बड़े मियाँ के लाडले जो हैं छोटे मियाँ, वाह दी! ये तो अच्छी शायरी बन गई, सैया, भैया, बड़े मियाँ, छोटे मियाँ।" बोलते हुए सृष्टि हँसने लगी। उसे हँसते देख श्री भी हँस दी। तभी सृष्टि को पूरब ने आवाज़ दी।
श्री- "जा, पूरब भाई बुला रहे हैं!"
"जा रही हूँ।" बोल सृष्टि चली गई। श्री ने फिर से अपना फ़ोन हाथों में लिया। "माना बिजी हो, रिप्लाई ना दो, मैसेज तो सीन कर लो!"
यूरोप
"मिस्टर चौहान, मीटिंग बहुत अच्छी रही, डील भी हो गई। कांग्रेचुलेशन्स।" मिस्टर रितेश बंसल, न्यू बिज़नेस पार्टनर, आद्विक चौहान से हाथ मिलाते हुए बोले।
आद्विक हाथ मिलाता है। तभी रितेश बंसल के मैनेजर, नितिन जी, आद्विक से बोले, "मिस्टर चौहान, सुना है आपकी सगाई हो गई!"
ये सुनते ही वहाँ मौजूद सब आद्विक की ओर देखने लगे। वहीं आद्विक भी अपने मैनेजर करण की ओर देखता है। करण उसी पल अपनी नज़रें नीची कर लेता है। आद्विक सगाई वाली बात पर हाँ में सिर हिला देता है। सब खुश होते हुए तालियाँ बजाते हैं और आद्विक से हाथ मिलाकर उसे बधाई देते हैं!
करण ने नज़रें ऊपर कर आद्विक की ओर देखा तो वो उसे अजीब तरह से देख रहा था। ये देख उसने थूक गटक लिया। "सर तो घूर रहे हैं करण! अब तेरा क्या होगा?"
सब फिर आद्विक से पार्टी की बात करने लगे। सगाई में इनवाइट नहीं किया, बोलने लगे… आद्विक को गुस्सा आते देखकर करण सबसे बोला, "सगाई में नहीं बुलाया? बट शादी में सर सबको बुलाएँगे। और रही बात पार्टी की तो चलिए अभी करते हैं, डील भी तो हुई है इतनी बड़ी। चलिए चलिए, आज डबल पार्टी होगी…" और वो सबको वहाँ से ले जाता है!
आद्विक वहाँ से होटल रूम चला आता है जहाँ पर वो रह रहा था। आते ही रूम में वो इधर-उधर घूमने लगा, कोट उतार कर बेड पर फेंक दिया। पता नहीं अब उसे कौन सी बात परेशान कर रही थी!
तभी किसी ने डोर नॉक किया। वेटर था। दरवाज़ा खुला देख वो अंदर चला आया।
"सर आपका डिनर?"
आद्विक अपने आप में ही खोया हुआ था। वेटर फिर कहता है, "सर आपका डिनर।" आद्विक फिर ना बोला तो वेटर फिर से बोला… आद्विक गुस्से में तो था ही, वेटर से इरिटेट होते हुए वो उस पर चिल्ला दिया।
"क्या प्रॉब्लम है?"
वेटर डर गया।
"सर… वो…" इतना ही कह पाया कि आद्विक फिर से चिल्ला दिया।
"जाओ यहाँ से! आई से गेट आउट! गेट आउट…"
"सॉरी सर।" बोलकर वेटर चला गया!
आद्विक रूम का डोर लॉक कर देता है और आकर सोफ़े पर बैठ जाता है। उसका ध्यान हाथों की तरफ़ गया, अपने हाथ में पहनी हुई अंगूठी की ओर, सगाई वाली रिंग जो उसको श्री ने पहनाई थी। उसका जबड़ा कस गया। वो उस रिंग को अंगुली से निकालने की कोशिश करने लगा पर वो नहीं निकली। दो-तीन बार कोशिश करने पर भी नाकाम रहा तो गुस्से में अपना हाथ सामने टेबल पर जोर से दे मारा और सिर पकड़ कर बैठ गया। कुछ देर बाद सिर दर्द से फटता महसूस हुआ तो उसने अपने लिए हॉट कॉफ़ी ऑर्डर की। वही वेटर उसके लिए कॉफ़ी लेकर आया। आद्विक जाकर दरवाज़ा खोलता है।
वेटर कॉफ़ी मग उसकी ओर बढ़ाते हुए बोला, "सर कॉफ़ी?"
आद्विक उससे कॉफ़ी मग लेने लगा तो फिर उसका ध्यान हाथ की अंगुली पर चला गया, और उसी पल एक याद ने उसे घेर लिया-
"आद्विक, देखना जब हमारी सगाई होगी ना तो मैं तुम्हें ऐसी रिंग पहनाऊँगी, कभी तुम्हारे हाथ से वो रिंग नहीं निकलेगी।"
"मैं निकालूँगा ही नहीं। जितना प्यार मैं तुमसे करता हूँ, उतना ही उस रिंग से होगा मुझे, ना उसका ना तुम्हारा साथ छोड़ूँगा मैं!"
आद्विक उसी पल अपनी आँखें कसकर मूँद लेता है। ये देख वेटर फट से बोला, "सर आप ठीक हैं?"
आद्विक आँखें खोल हाँ में सिर हिलाते हुए उससे कॉफ़ी मग ले लेता है।
"थैंक्स।" वेटर जाने लगा, आद्विक ने उसे रोका।
"सुनो?"
वेटर- "येस सर?"
आद्विक- "सॉरी, एम सॉरी। मैं आप पर चिल्लाया, थोड़ा परेशान था सो गुस्सा आ गया। रियली सॉरी!"
वेटर- "नो नो सर, आप सॉरी मत कहिए। सॉरी तो मुझे कहना चाहिए, मैंने आपको डिस्टर्ब किया और ज़्यादा परेशान किया!"
आद्विक- "ऐसी बात नहीं है। आप जाइए, मुझे कुछ भी चाहिए होगा मैं बोल दूँगा, ओके!"
"ओके सर।" वेटर मुस्कुराते हुए चला गया। जाते जाते मन ही मन खुद से, "सर का मूड ख़राब था तो चिल्लाएँ मुझ पर, सॉरी भी बोला, अच्छे इंसान हैं। मुझे बार-बार पूछकर परेशान नहीं करना चाहिए था, गलती मेरी ही है, फिर वहीं करूँगा ऐसा…"
आद्विक डोर लॉक कर वापस सोफ़े पर जा बैठा और कॉफ़ी पीने लगा। भीतर छिड़ी जंग से बचने के लिए सामने पड़ा लैपटॉप खोलकर वो काम लग गया!
चौहान हाउस
अक्ष कॉलेज से वापस आया तो उसे देखकर सुमो बोली, "आ गए छोटे भैया!"
"हाँ सुमो दीदी, प्लीज़ कॉफ़ी बना दीजिए। आज बहुत काम किया मैंने, पूरा असाइनमेंट बनाकर आया हूँ, मैं बहुत थक गया।" (हॉल में नंदिनी जी बैठी थीं) "मॉम!"
नंदिनी जी अक्ष का प्यार से गाल सहलाते हुए पुचकारते हुए बोलीं, "अच्छा, हाय मेरा बच्चा! सुमो जल्दी ला अक्ष के लिए कॉफ़ी!"
सुमो- "जी मैडम, अभी लाती हूँ कॉफ़ी और कुछ खाने को भी, आप आराम कीजिए छोटे भैया।"
सुमो चली गई। अक्ष इधर-उधर देखते हुए बोला, "मॉम, डैड कहाँ हैं? कहीं बाहर गए हैं क्या?"
नंदिनी जी- "नहीं बेटा, रूम में हैं, कुछ काम कर रहे हैं!"
"ओके अच्छा मॉम।" (सोफ़े से खड़ा होकर) "मैं जाता हूँ ऊपर, जीजू के साथ गेम खेलूँगा, फिर दी जीजू और मैं साथ में कोई मूवी देखेंगे। सुमो दीदी," (सुमो को आवाज़ देते हुए) "मेरी कॉफ़ी ऊपर ले आना, मैं दी-जीजू के पास जा रहा हूँ…" बोल अक्ष जाने लगा, नंदिनी जी बोल पड़ीं, "रुको बेटा!"
अक्ष- "हाँ मॉम!"
नंदिनी जी- "वो अक्ष, रूह वरुण गए!"
अक्ष मुस्कुराते हुए बोला, "गए? कहाँ?" "कहीं बाहर गए हैं क्या दी जीजू?"
सुमो किचन के दरवाज़े पर खड़ी, "छोटे भैया, वापस गए रूहानी दीदी अपने ससुराल, जीजा जी भी!"
अक्ष हैरान हो गए। "मुंबई चले गए? ऐसे कैसे और कब गए? मुझे भी नहीं बताया मॉम?"
नंदिनी जी- "वो तुम जाने नहीं देते ना, इसलिए नहीं बताया। सुबह मिले तो थे तुमसे पर बताया नहीं तुम्हें कि वो जा रहे हैं। सुबह ही चले गए। कोई बात नहीं बेटा, काम था वरुण को तो उन्हें जाना पड़ा। दी जीजू फिर आ जाएँगे, डोंट बी सैड!"
"आप साइड ना लो उनकी मॉम, सही नहीं किया दी जीजू ने मेरे साथ…" अक्ष को गुस्सा आ जाता है और वो अपने रूम में चला जाता है!
सुमो नंदिनी जी से, "अब तो छोटे भैया कॉफ़ी भी नहीं लेंगे, पता जो चल गया!"
नंदिनी जी- "हाँ सुमो, नहीं लेगा कॉफ़ी ना कुछ खाएगा जब तक बात नहीं होगी इसकी अपने दी जीजू से। मैं मैसेज करती हूँ रूह को, वहीं संभालेगी!"
अक्ष को रूहानी का फ़ोन आता है। अक्ष गुस्से में होता है, वरुण भी उससे बात करता है। दोनों उसे सॉरी कहते हैं और नेक्स्ट टाइम पक्का ज़्यादा दिन रुकेंगे, प्रॉमिस करते हैं। रूहानी से तो वो ज़्यादा देर बात नहीं करता पर वरुण से बात करते-करते कब वो अपना गुस्सा भूल गया, उसे भी पता नहीं चला! वैसे भी ज़्यादा देर अक्ष गुस्सा नहीं रह सकता, वो भी अपने दी जीजू से, स्पेशल जीजू से बहुत बनती जो है उनकी!
अक्ष वरुण से बात कर हटा तो सुमो उसके लिए कॉफ़ी ले आई। "छोटे भैया, कॉफ़ी विद ब्रेड पकौड़े।"
"थैंक्स सुमो दीदी, बहुत भूख लगी है!" अक्ष सुमो से ट्रे पकड़ लेता है और जल्दी-जल्दी खाने लगा। "बहुत अच्छे हैं, सुमो दीदी, आज डिनर में क्या बनाओगे?"
सुमो मुस्कुराते हुए बोली, "जो आपको पसंद है वही!"
अक्ष- "मेरी पसंद तो आपको पता है!"
सुमो- "हाँ, आराम से खाइए…" बोल सुमो नीचे आ गई। "मैडम, मूड ठीक हो गया छोटे भैया का!"
नंदिनी जी- "वो तो होना ही था।" और दोनों हँसने लगीं।
अगले दिन
श्री स्टूडियो आई तो विहान उसका वेलकम करते हुए जोर से बोला, "वेलकम मैडम!"
श्री मुस्कुरा दी। "थैंक्यू, कैसे हो?"
विहान- "दिल टूटने पर बंदा कैसे हो सकता है मैडम, तुम्हीं बताओ?"
श्री हँस दी। "तुम और तुम्हारी बातें!"
विहान- "और बताओ मैडम, क्या हालचाल है!"
श्री- "सब अच्छा है!"
तभी विहान श्री के सामने आ खड़ा हुआ और गाल पर अंगुली रख उसे गौर से देखते हुए बोला, "यार तुम्हारी सगाई हो गई पर तुम पहले जैसे ही लग रही हो, नो चेंज!"
श्री मुस्कुराते हुए बोली, "क्यों? सगाई हो जाने पर क्या पर लग जाते हैं?"
विहान हँस दिया। "मैंने सुना है लड़कियों के तो लग जाते हैं पर वर!"
श्री- "अच्छा तो फिर कितनी लड़कियों के देख लिए आपने पर वर या उनको उड़ते हुए…" इस बात पर दोनों हँसने लगे और फिर काम लग गए!
श्री नया बनाया डिजाइन विहान को दिखाती है। वो डिजाइन देखकर हैरान होते हुए आश्चर्य से बोला, "ओये! आज तुम्हारा ध्यान नहीं था क्या काम में? डिजाइन बनाते वक़्त डिजाइन के अलावा तुम कुछ और सोच रही थी क्या?"
श्री खुद डिजाइन देखती है। "क्या हुआ? सही से नहीं बना क्या?"
विहान- "सही से बना है और डिजाइन भी हमेशा की तरह बेस्ट है। बस थोड़ी सी कमी है यार, थोड़ी सी। वो भी इसलिए क्योंकि जब तुम डिजाइन बना रही थी तब तुम्हारा ध्यान सिर्फ़ डिजाइन बनाने पर नहीं था!"
श्री- "ऐसा नहीं है?"
विहान- "ऐसा नहीं है तो, तुम्हारी फ़ेवरेट चीज़ जो कि तुम हर डिजाइन में डालती हो, जिसके बिना तुम्हारा हर डिजाइन अधूरा रहता है, वो आज मिस क्यों है?"
श्री ने फिर डिजाइन की तरफ़ देखा और माथे पर हाथ रख लिया। "ओह… फ़्लावर ऑफ़ रोज़!"
विहान- "येस। क्या बात है यार? सब ठीक है ना? ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ?"
"सब ठीक है। सॉरी, पता नहीं कैसे रह गया, पर कोई बड़ी बात नहीं है, हो जाता है कभी-कभी, इंसान हूँ मैं, हो जाती हैं गलतियाँ।" (हँसते हुए) "जो मिस है अभी आ जाएगा, अभी बनाती हूँ, थैंक्स, पता नहीं मैं कैसे भूल रही हूँ रोज़ बनाना…" श्री टेबल की ओर बढ़ते हुए बोली।
विहान पीछे आते हुए बोला, "यही पूछ रहा हूँ कैसे भूल गई। साफ़ दिख रहा है यार, कोई तो बात है जिससे तुम परेशान हो, झूठ तो मत ही बोलो मुझसे, आद्विक के बारे में सोच रही थी ना, बोलो, अब तुम मुझे भी नहीं बताओगी क्या?"
श्री आद्विक के बारे में सोचने लगी। "यार बात तो कुछ नहीं, आद्विक को मैसेज किया था परसों रात को, अब तक रिप्लाई नहीं आया, रिप्लाई तो दूर सीन भी नहीं किया मेरा मैसेज… वो ठीक तो है ना?"
श्री का उदास चेहरा देख विहान को अच्छा नहीं लगा। वो मन ही मन आद्विक से बोला, "रिप्लाई दे देते तो क्या हो जाता? काम ज़रूरी है पर अब श्री भी हिस्सा है तुम्हारी ज़िंदगी का, अब ये भी ज़रूरी है आद्विक चौहान, तुम्हारी फ़िक्र हो रही है इसे तुम भी ख्याल रखो ना, दो मिनट तो निकाल सकते हो…" कह श्री से मुस्कुराते हुए बोला, "ओह हो! अब समझ आया मुझे, (श्री का मूड ठीक करने के लिए) याद आ रही है तुम्हें अपने हीरो की!"
श्री हल्का सा मुस्कुरा दी। "वो बात नहीं यार, पता है वो बिजी है। अक्ष से बात हुई तो बताया उसने मुझे, ठीक है काम ज़्यादा होगा, पर मन बार-बार रिप्लाई चाह रहा है। एक रिप्लाई आ जाता तो अच्छा लगता!"
विहान- "कॉल की थी तुमने?"
श्री- "नहीं!"
विहान- "तो कॉल कर लो, क्या पता बात हो जाए!"
श्री- "नहीं यार, मैं उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहती हूँ, वो मीटिंग में हुए तो और ना ही मुझे टाइम टेबल पता है, कब कॉल कर सकती हूँ कब नहीं!"
विहान ने श्री के कंधे पर हाथ रखा। "परेशान मत हो, आ जाएगा रिप्लाई, फ़्री होते ही वो तुमको रिप्लाई कर देंगे। वैसे भी तुम्हारे होने वाले पति देव बहुत बिजी मैन हैं पर अपनों से प्यार भी करते हैं और तुमसे भी तो रिश्ता है, प्यार है। हो सकता है नया-नया है सब तो थोड़ा वक़्त लगे ढलने में, आज इंतज़ार करवा रहे हैं, कल देखना एक सेकंड में रिप्लाई आएगा। फ़िऑन्से से वाइफ़ तो बन जाओ, आद्विक चौहान का रिप्लाई क्या खुद भाग आएगा तुम्हारे पास!"
विहान ने हँसकर जैसे ही ये कहा, श्री के होठों पर मुस्कान आ गई!
"ज़्यादा मत सोचो, वो ठीक होगा…" विहान बोला।
"हम्म… चलो अब काम करते हैं…" श्री बोली।
थोड़ी देर बाद
श्री और विहान दोनों अपने स्टूडियो में काम कर रहे होते हैं, तभी श्री के हाथ में चोट लग जाती है। वो कैंची से कुछ काट रही थी पर कैंची से उसके हाथ में कट गया… वो दर्द से कराही पर आह की जगह उसके मुँह से "आद्विक" निकला।
विहान भागकर उसके पास आया। "ओह नो! यार ये क्या किया… श्री के हाथ से खून बह रहा होता है!"
श्री को चोट लगी थी पर उसको खुद की बजाय आद्विक की चिंता होने लगी…
(क्रमशः)
विहान श्री का हाथ देख रहा था, पर उसके दिलो-दिमाग पर आद्विक हावी हो उठा। "वो ठीक तो है ना? मुझे इतनी घबराहट क्यों हो रही है?" सोचते हुए विहान से वो अपना हाथ छुड़ा लेती है।
विहान ने कहा, "क्या कर रही हो? फोन छोड़ो, अपने हाथ को देखो..." पर श्री उसकी नहीं सुनती। "ये क्या मैसेज सीन हुआ है, फिर भी रिप्लाई नहीं। क्या करूँ? कॉल करूँ? हाँ, कॉल करती हूँ।" खुद से बड़बड़ाते हुए वो आद्विक को फोन करती है, पर फोन नहीं लगता। उसका फोन स्विच ऑफ था।
"ये फोन बंद क्यों आ रहा है?" श्री परेशान होने लगी। विहान उसे डांटने लगा और वो उसका हाथ फिर से अपने हाथ में लेता है। "अपना हाथ दो इधर। तुम लड़कियां भी ना, खामख्वाह ऐसे ही टेंशन लेती हो। पहले रिप्लाई का और अब फोन बंद का। ये भी तो हो सकता है बंदा बहुत बिजी हो, किसी काम में फंसा हो, विदेश में है वो।" कहते हुए श्री के हाथ की ड्रेसिंग करने लगा। श्री फिर कुछ नहीं बोली। विहान ने उसे समझाया और प्यार से बोला, "फिक्र मत करो, सब ठीक है, ओके!"
श्री हल्का सा मुस्कुरा दी। "हम्म (हाथ की ओर देखते हुए) थैंक्स विहान..." कह वो वापस फोन की ओर देखती है। ये देख विहान ने उससे कहा, "एक-एक काम करो, तुम घर जाओ!"
श्री ने पूछा, "क्या? पर क्यों?"
विहान ने कहा, "मैं कह रहा हूँ इसलिए। और वैसे भी, मैडम तुम यहां होकर भी नहीं हो (हँसते हुए)। इससे अच्छा घर जाकर रेस्ट करो!"
श्री ने कहा, "मैं ठीक हूँ, चलो काम करते हैं।" कहते हुए डिजाइन की फाइल वो उठा लेती है। विहान उसके हाथ से फाइल छीन लेता है। "बिल्कुल भी नहीं! अभी सीधे घर जाओ तुम। चोट भी लगी है और हाँ यार, मैं नहीं चाहता तुम्हें कहीं और चोट लगे। सो प्लीज गो!"
श्री ने कहा, "विहान, मैं ठीक हूँ और हाँ, क्लाइंट भी आने वाले हैं। उस बारे में सोचो, मेरे बारे में नहीं, समझे!"
विहान ने कहा, "आई नो, क्लाइंट आने वाले हैं, बट मेरे लिए तुम जरूरी हो। डोंट वरी, यहां मैं सब संभाल लूँगा। चलो अब जाओ, नहीं तो मां को (पल्लवी जी को विहान मां कहता है) फोन करके बढ़ा-चढ़ाकर कहानी सुनाऊँगा, फिर तुम्हारी क्लास लगेगी। करूँ फोन?"
श्री ने कहा, "ओके बाबा, जा रही हूँ। तुम भी ना, ब्लैकमेलर! बाय।" बोल श्री स्टूडियो से चली जाती है। विहान पीछे से आवाज देता है, "घर पहुँचते ही कॉल कर देना।"
"सच में, लड़कियां पागल होती हैं और इनकी फिक्र ओएमजी! भगवान जी, जल्द से जल्द बस श्री की बात आद्विक से करवा दो। बात नहीं होगी इसकी तब तक चैन नहीं आएगा। पता नहीं क्या होगा मैडम का, प्लीज हाँ, जल्द बात करवा दो?" ऊपर देखते हुए विहान ने प्रार्थना की।
घर आते वक्त श्री ने अक्ष को कॉल किया।
"भाभी, हाय भाभी! कैसी हैं आप?"
"मैं ठीक हूँ, आप बताइए अक्ष?"
"मैं तो एकदम ठीक हूँ भाभी। वैसे आपकी आवाज से लग रहा है कि आप परेशान हो। ऑल वेल?" अक्ष ने हैरानी भरे लहजे में पूछा।
"हम्म, सब ठीक है। वो मैं आपसे पूछ रही थी आपके भैया के बारे में। आपकी आद्विक से बात हुई? ठीक है ना वो?"
"भाभी, आज तो नहीं हुई भाई से मेरी बात। बट ठीक है भाई। आप परेशान मत होइए भाई को लेकर। अभी कॉल कर बात करता हूँ मैं भाई से और उनको कहता हूँ आपसे बात करे, ओके!"
"नहीं अक्ष, वो मैंने किया था कॉल। उनका फोन बंद आ रहा है। मेरे किए मैसेज सीन तो हुए, बट रिप्लाई नहीं आया। सो थोड़ी सी परेशान हो गई। सो आपको कॉल किया मैंने। सोचा आपको पता होगा!"
अक्ष ने कहा, "ओह, वो भाई ऐसे ही हैं भाभी। बहुत बिजी रहते हैं। फोन बंद हो जाता है उनका तो उन्हें पता ही नहीं चलता। काम में लग जाते हैं। चार्ज भी तब करते हैं जब बंद पड़ जाता है। आज कॉल करो तो वापस कल कॉल करेंगे। आज मैसेज करो तो कल या परसों तक रिप्लाई आएगा। उन्हें काम-मीटिंग के आगे कुछ याद ही नहीं रहता है (हँसते हुए)। पर पक्का ठीक है भाई, डोंट वरी भाभी। फोन कर लेंगे वो आपको फ्री होते ही। चिल किजिए, टेंशन मत लीजिए!"
श्री ने राहत की सांस ली, मानों अक्ष की बात सुनकर उसे चैन मिला, तसल्ली हुई। "अच्छा, थैंक्स अक्ष... आप भी अपना ख्याल रखें, ओके बाय!"
"ओके बाय भाभी, मैं अभी कॉलेज में हूँ, बाद में बात करता हूँ..." अक्ष ने कहा। श्री ने कॉल कट कर दी।
अक्ष अपने फोन की ओर देखता है। "भाई ऐसा क्यों कर रहे हैं? भाभी को तो मैंने हँसकर कुछ भी बोल दिया, बट मैं जानता हूँ भाई का मन नहीं करता भाभी को रिप्लाई देने का। भाई को मन नहीं होता है भाभी से बात करने का, बट मैंने बोला है भाभी को भाई कॉल करेंगे। भाभी पक्का वेट करेगी भाई का? भाई को बोलना पड़ेगा। भाभी परेशान हो रही है, भाई उसका क्या? आप ठीक नहीं कर रहे भाभी के साथ? कितने दिन हो गए, एक बार तो ठीक से बात कर ले भाभी से। आज ही बोलना पड़ेगा भाई को। भाभी की भी तो कुछ उम्मीदें हैं आपसे भाई, आप इग्नोर नहीं कर सकते। रिश्ता जुड़ा है आपका भाभी से तो ध्यान भी रखना होगा आपको भाभी की खुशी का, परेशानी का..."
अक्ष ने बोला है तो आद्विक ठीक ही होंगे। अब क्या करूँ? टेंशन तो दूर हो गई। घर जाकर क्या करूँगी मैं? स्टूडियो जाऊँगी वापस तो विहान फिर से भगा देगा। अब तो घर ही जाना पड़ेगा तुझे श्री... पर सृष्टि का कॉलेज खत्म होने में अभी वक्त है। पूरब भैया को बोल देती हूँ, आते वक्त उसे ले आएंगे!
उसी शाम
"अरे दी, आप मुझे लेने क्यों नहीं आए?" सृष्टि ने कॉलेज से आते ही श्री से पूछा।
श्री ने कहा, "वो मैं आज घर जल्दी आ गई थी!"
"श्री, तुम्हें पता है ये क्यों पूछ रही है? आते वक्त चाट नहीं खिलाई ना मैंने इसको?" पूरब ने हँसते हुए कहा।
"और क्या इससे अच्छा मैं अकेले ही आ जाती। वैसे दी, आप जल्दी क्यों आईं?" श्री के हाथ पर पट्टी बंधी देख फट से उसके पास आई, "ये क्या हुआ दी?"
पूरब ने पूछा, "चोट कैसे लगी? श्री, तुम ठीक तो हो?"
श्री के हाथ में चोट लगी देख दोनों भाई-बहन परेशान हो उठे। "अरे बाबा, मैं ठीक हूँ। छोटा सा कट लग गया था काम करते-करते। आप सबने जिसको बहुत बड़ी बात बना दी। पहले तो विहान ने घर भेज दिया, जब से आई हूँ मॉम (पल्लवी जी की ओर देख) ने घर सर पर उठा रखा है। कभी हल्दी वाला दूध तो कभी कुछ तो कभी कुछ, और अब (पूरब-सृष्टि की ओर देखते हुए) आप दोनों भी आ गए। पापा बचे, वो आ जाए फिर वो पता नहीं क्या कहेंगे क्या करेंगे?"
ये सुन तीनों एक-दूसरे की ओर देखते हैं। तभी राकेश जी भी ऑफिस से आ गए। "क्या हो रहा है?"
श्री हँसते हुए बोली, "कुछ नहीं, मेरी छोटी सी चोट ने इन्हें परेशान कर दिया पापा!"
राकेश जी ने कहा, "चोट? क्या? कहाँ लगी है? दिखाओ। ये कैसे लगी? बेटा ध्यान रखा करो ना..." श्री के पास आकर वो उसके लिए परेशान होते हुए उसके हाथ को टटोलने लगे।
श्री कुछ कहती, वो पूरब से बोल पड़े, "पूरब, जा गाड़ी निकाल। अभी डॉक्टर के पास जाते हैं, चलो?"
श्री चौंक उठी। "डॉक्टर?" उसने पल्लवी जी, सृष्टि और पूरब की ओर देखा, जो मंद-मंद हँस रहे थे।
सृष्टि ने कहा, "अब बोलो दी, बड़ी हँसी आ रही थी। ये हमारे पापा हैं!"
श्री ने उसे घूरा और राकेश जी से मुस्कुराते हुए बोली, "पापा, मैं ठीक हूँ, एकदम ठीक। कुछ नहीं हुआ है। और मॉम ने हल्दी दूध भी पिला दिया है जबरदस्ती। बट मैंने पूरा पिया (सबकी ओर देखते हुए)। आप सब परेशान मत होइए। सच में ठीक हूँ। इन्फेक्शन भी नहीं होगा और हाँ, कल पक्का दिखा दूँगी मैं डॉक्टर को स्टूडियो जाते वक्त (अपने गले को छूते हुए) प्रॉमिस..."
राकेश जी ने श्री के सिर पर हाथ रखा। "बेटा ध्यान से काम किया करो।"
श्री ने कहा, "ओके, पर अभी आप सबकी शक्ल पर जो बारह बजे हैं उन्हें हटाओ। आपकी बेटी (राकेश जी-पल्लवी जी से), आपकी (पूरब-सृष्टि से) बहन बिल्कुल ठीक है!"
पल्लवी जी ने कहा, "ठीक ही चाहिए। मैं जाकर डिनर की तैयारी करती हूँ!"
सृष्टि ने कहा, "पहले सब के लिए कॉफी मॉम। चलिए मैं हेल्प कर देती हूँ आपकी। दी, आज-आज कर रही हूँ हेल्प? आपको चोट लगी है ना सो, शाम वाली कॉफी बनाना आपका काम होता है। भूल मत जाना, ओके?" पल्लवी जी के साथ किचन की ओर जाते हुए सृष्टि बोली।
पूरब हँस दिया। "श्री की शादी हो जाएगी तब तो सारे काम तुझे ही करने पड़ेंगे छुटकी!"
सृष्टि ने कहा, "दी की शादी के बाद सारे काम मैं तो करने से रही, बट आपकी बैंड तो जरूर बजेगी। अभी तो आप कुछ नहीं करते ना, फिर देखना क्या-क्या करना पड़ेगा आपको? दी तो होंगी आपके काम करने के लिए, खुद ही (हँसते हुए) करने पड़ेंगे!"
ये सुनकर पूरब का मुँह सा बन गया और राकेश जी-श्री दोनों हँसने लगे!!
अक्ष आद्विक को फोन करता है, बट वो फोन नहीं उठाता। थोड़ी देर बाद अक्ष को आद्विक की कॉल आती है।
"हेल्लो छोटे, कैसा है?"
"मैं ठीक हूँ भाई, आप कैसे हो? कहाँ हो? कब से फोन कर रहा हूँ मैं आपको?"
"पहले मीटिंग में था और फिर कॉफी गिर गई थी मेरे हाथ और फोन पर, तो बंद हो गया था फोन। अब सही हुआ है!"
"कॉफी गिर गई? आप ठीक हो ना भाई?"
"हाँ, मैं ठीक हूँ। बस थोड़ा जल रहा है हाथ, कॉफी गरम थी ना। बट हो जाएगा ठीक!"
"भाभी को सही लग रहा था आपको कुछ हुआ है। वो यूँ ही परेशान नहीं हो रही थी आपको लेकर?" जैसे ही अक्ष ने ये कहा, आद्विक चौंक उठा। "क्या? कौन हो रहा था परेशान?"
"श्री भाभी और कौन भाई? वैसे भाई, क्या बात है? आपने उनको रिप्लाई भी नहीं दिया, कॉल टाइम तो फोन बंद था आपका, पर सीन करके रिप्लाई नहीं दिया आपने उनके मैसेज का। यह सही नहीं है भाई। रिश्ता जोड़ा है आपने, उसे निभाओ। ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा, बट भाभी की फीलिंग जुड़ी है। थोड़ा सा सोचो और प्लीज अभी कॉल करो। मैं पूछूँगा उनसे आपने क्या रिप्लाई दिया," कहकर अक्ष फोन कट कर देता है। अक्ष आद्विक को कुछ बोलने का मौका ही नहीं देता।
अक्ष अपने फोन की ओर देखता है। "जानता हूँ आपको अच्छा नहीं लगेगा जो मैं करने को कह रहा हूँ आपसे। आप मन से भी नहीं करेंगे, बट आपको करना होगा!"
इधर आद्विक, अक्ष ने जो कहा वो सोचते हुए कभी श्री के नंबर को देखता है तो कभी उसके मैसेज को। फोन खोलता और बंद कर देता है। फोन की तरफ अंगुली ले जाता, वापस पीछे खींच लेता है...
उधर श्री सबके साथ कॉफी पी रही होती है कि तभी उसका फोन बजा। फोन स्क्रीन पर नज़र डाली तो चहक उठी। "आद्विक?" पर तभी सृष्टि उसके हाथ से फोन छीन लेती है!
श्री ने कहा, "फोन दो मेरा?" कहते हुए सृष्टि के हाथ से फोन लेने लगती है, पर वो फोन नहीं देती!
सृष्टि ने हँसते हुए बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है दी? कर लेना आप भी बात, बट पहले मैं भी बात कर लूँ अपने जीजू से?" और उसने कॉल पिक कर ली। "हाय जीजू, कैसे हैं आप?"
आद्विक ने कहा, "मैं ठीक हूँ!"
सृष्टि ने कहा, "अच्छा, आज फोन आया है आपका। क्या बात है? बड़ी जल्दी (श्री की ओर देख) दी की याद आ गई!"
ये सुन श्री सृष्टि को घूरती है। वहीं राकेश जी, पल्लवी जी और पूरब सब हँसने लगे। उधर आद्विक चौहान असमंजस में पड़ गया कि सृष्टि की बात का जवाब क्या दे। वो "वो...वो..." कर रहा था कि सृष्टि फिर बोल पड़ी, "जीजू, वैसे आप वापिस कब आ रहे हो? बीच में आओगे क्या या तीन महीने बाद ही?"
आद्विक ने कहा, "थ्री मंथ बाद ही!"
सृष्टि ने पूछा, "ओह... और बताओ जीजू, क्या चल रहा है?"
सृष्टि आद्विक से बात किए जा रही थी और श्री उससे फोन लेने के लिए तड़प रही होती है, पर वो दे ही नहीं रही थी। थोड़ी देर की मशक्कत के बाद श्री उससे फोन छीन लेती है।
सृष्टि ने कहा, "दी!"
श्री ने कहा, "मेरा है!"
सृष्टि ने कहा, "क्या? फोन या आद्विक चौहान?"
ये सुन श्री कुछ नहीं बोली। सब हँसने लगे। वो सृष्टि के सिर पर थप्पड़ लगाकर अपने रूम में चली आई और रूम की खिड़की के पास आकर आद्विक से बात करने लगी।
"हेल्लो।"
"हेल्लो।"
"आप ठीक हो आद्विक?"
"हाँ, और आप?"
"मैं भी ठीक हूँ!"
"मैंने अभी आपके कॉल्स देखे। फोन बंद हो गया था मेरा। मैसेज देखे, तब मैं मीटिंग में था, सो रिप्लाई नहीं दे पाया..." आद्विक बोल रहा था तो श्री बोल पड़ी,
"ओह... सॉरी आद्विक, मैंने आपको डिस्टर्ब किया?"
आगे वो कुछ कहती, आद्विक बोला, "ऐसी बात नहीं है..." फिर दोनों चुप हो गए। क्या बोले, दोनों को समझ नहीं आ रहा था। तीन बार मिल चुके थे दोनों, पर अभी तक दोनों के बीच ज्यादा बात नहीं हुई थी!
कुछ देर बाद श्री बोली, "काम कैसा चल रहा है?"
आद्विक ने पूछा, "गुड। घर पर सब कैसे हैं?"
श्री ने कहा, "सब खुश हैं, आई मीन ठीक हैं!"
आद्विक ने कहा, "ओके।"
श्री ने कहा, "हम्म!"
आद्विक ने कहा, "इफ यू डोंट माइंड, मैं आपसे बाद में बात करूँ। एक्चुअली अभी मुझे काम है?"
श्री ने कहा, "श्योर, आप काम कीजिए। बातें तो बाद में हो जाएंगी। बाय..."
"बाय," कह आद्विक ने कॉल कट कर दी।
श्री आद्विक से बात करके बहुत खुश हो जाती है। उसका चेहरा खिल उठता है, दिल भी झूम उठता है। "ऐसा लग रहा है, तुमसे ज्यादा बातें न करके भी बहुत सारी बातें कर ली हों। तुम ठीक हो, थैंक्स गॉड! सच में मैं पागल हूँ, यूँ ही परेशान हो रही थी (आद्विक के बारे में सोच मुस्कुराते हुए)। वक्त जल्दी बीतेगा या नहीं ये तो नहीं पता, पर ये जो इंतज़ार है ना हमारे दरमियाँ, वाकई बहुत खूबसूरत है, बहुत प्यारा है..."
उधर आद्विक अपने फोन में कैलेंडर देख परेशान हो उठा। "वक्त तो बहुत तेज़ी से जा रहा है। तीन महीने! हाँ, तीन महीने, तो अब निकल जायेंगे फिर?"
श्री आद्विक की याद में खोई हुई थी कि सृष्टि ने नीचे से उसे फोन किया। "दी, जीजू से बात हो गई तो अब नीचे आ जाओ। आप इतना याद करोगी ना आद्विक चौहान को तो वो साक्षात् प्रकट हो जाएँगे विदेश से अपने देश में!"
इतना बोल सृष्टि ने कॉल कट कर दी। श्री हँसने लगी। "ये लड़की भी ना..." तभी उसको अक्ष का ख्याल आया। "अक्ष को थैंक्यू भी तो कहना है। कॉल करती हूँ..." वो अक्ष को फोन करती है। पहली रिंग में ही अक्ष कॉल पिक कर लेता है। "हाय भाभी!"
"हाय अक्ष।"
"आवाज़ सुनकर लग रहा है भाई से बात हो गई है आपकी, राईट!"
"राईट, थैंक्स अक्ष। मेरी आद्विक से बात हो गई!"
अक्ष ने हँसते हुए बोला, "हम्म, पता चल रहा है मुझे। अब आप हैप्पी हो तो मैं भी हैप्पी हूँ भाभी। कोई और सेवा हो तो बताना ज़रूर। आपका देवर आपकी सेवा में 24/7 हाजिर है!" उसकी बात सुन श्री भी हँसने लगी। "ओके देवर जी!"
देखते-देखते दो महीने निकल गए। आद्विक-श्री की शादी की तैयारियाँ भी दोनों तरफ़ ही शुरू हो गईं। कभी-कभी कॉल्स-मैसेजेस पर उनकी बातें भी होने लग गई थीं। अब वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं था जब आद्विक चौहान-श्री ठाकुर आमने-सामने आने वाले थे और शादी के बंधन में दोनों बंधने वाले थे।
"अब तो एक महीना रह गया है हमारे बेटे की शादी में?" आनंद जी खुश होते हुए नंदिनी जी से बोले, जो कि अपनी बहु के लिए ज्वेलरी डिजाइन देख रही थीं। वो कितनी खुश थीं ये तो बताने की ज़रूरत थी उन्हें और ना ही किसी को उनसे पूछने की। चेहरे से साफ़ झलक रही थी उनकी खुशी आद्विक की शादी को लेकर और बेताबी श्री को अपने घर लाने की।
(क्रमशः)