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नफ़रत के फेरों में

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rimjhim Sharma

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वो आग है जो कभी बुझी नहीं, ना किसी रिश्ते में ढल पाई, ना किसी अहसास में घुली... नाम है उसका — सिद्धांत चौहान। जिसने मोहब्बत से ज़्यादा भरोसा किया नफ़रत पर, और दिल से ज़्यादा चलाया दिमाग उसका सच, तलवार की धार जैसा और उसकी चुप्पी? सबसे बड...

Total Chapters (2)

Page 1 of 1

  • 1. नफ़रत के फेरों में - bound in thorns - Chapter 1 सिध्दांत और शक्ति का सफर

    Words: 1220

    Estimated Reading Time: 8 min

    आज से आप दोनों पति पत्नी हैं शादी सम्पन्न हुई । इसके बाद वो दोनों ही सबका आशीर्वाद लेने लगे ।‌पूरी फैमिली खुश हो रही थी लेकिन उन दोनों के चेहरे पर कोई भाव नजर ही नहीं आ रहे थे । आंखों में नफरत और चेहरे पर डंडे भाव लिये , अब तक उनकी नजर एक पल केए लिए भी एक दूसरे पर नहीं पड़ी थी । हर किसी के सामने चेहरे पर झूठी मुस्कान सजाना उन दोनों के लिए कितना‌ मुश्किल था वो सिर्फ वो दोनों जानते थे लेकिन वो किस्मत के आगे कुछ नहीं कर पाये ।
    और यही से शुरू होता हैं एक‌ सफर - सिद्धांत और शक्ति का सफर तो देखना अब यह हैं कि नफरत के इन फेरों में कभी मोहब्बत पनपेगी और अगर मोहब्बत हुई तो कैसी होगी ?


    रात के बारह बजे थे । सिद्धांत की मां , मनोरमा जी के कहने पर शक्ति का आराम करने भेज दिया गया था और सिध्दांत वो अपने कमरे में चले गया। जहां इस शादी से सब खुश थे वही सिध्दांत और शक्ति को इससे फर्क ही नहीं पड़ रहा था । वो दोनों तो चाहते थे कि आसमान फटे और वो उसमें समा जाये

    शक्ति खिड़की पर खड़ी थी, उसकी आंखों में एक अलग ही आग जल रही थी। उसका चेहरा ठंडा था, लेकिन दिल में तूफ़ान मचा हुआ था। बाहर की ठंडी हवा उसकी गर्दन पर जैसे थपथपाती रही, लेकिन उसके दिल की गर्मी बुझने का नाम नहीं ले रही थी।

    शक्ति (अपनी बात खुद से कहती हुई, आवाज़ में गुस्सा और दर्द दोनों)
    जिसे अपना समझा था, वो गैर निकला...
    अब दिल नहीं जलता,
    सीधा खून खौलता है।
    तुझसे इश्क दूर की बात हैं
    नजरों से भी बगावत होती हैं

    उसके होंठों पर ठंडी मुस्कान थी, पर आंखों में आग और होंठों के कांपने से पता चलता था कि अंदर कितना दर्द छुपा है।

    सिध्दांत को कमरे में बैचेनी हो रही थी । उसे यह सोचकर ही गुस्सा आ रहा था कि कल से इस कमरे में उस शख्स की भी मौजूदगी होगी , जिससे वह सबसे ज्यादा नफरत करता था ।

    इस वक्त वह गार्डन में एक बेंच पर बैठा था । उसका चेहरा गंभीर था, माथे पर गहरी लकीरें और नाक के पास सिकुड़ी हुई नज़रों से साफ़ था कि उसकी आत्मा जला रही है।
    सिद्धांत (धीमी आवाज़ में, गुस्सा और उलझन के साथ) ,
    ये शादी सिर्फ़ एक जंग है, एक लड़ाई...
    जहां हारना , मतलब होगा अपने दिल को मार देना।
    पर समझ ले, ये जंग अभी खत्म नहीं हुई।
    तेरे जज़्बातों की नफ़रत...
    मेरी सोच की आग में घुल जाएगी।
    बस तुम्हें भी मेरा वो रुप देखना हैं
    जो इंतहा ए नफरत समेटे हैं

    उसने आग जलाती हुई नजरों से ऊपर खिड़की की तरफ देखा, जहां शक्ति खड़ी थी लाल जोड़े में और आसमान की तरफ देख रही थी ।
    वही सिध्दांत उसे देखते हुए ---

    तुम्हें चेहरे की‌ मासुमियत हर‌ किसी को छल सकती हैं मुझे नहीं । तुम्हें इस चेहरे की असलियत सिर्फ‌ मैने देखी हैं ।
    वेलकम टू हेल मिसेज शक्ति चौहान आज के बाद आप मेरी नफरत की वो इंतहा देखेगी कि मेरी परछाई से भी ककांपने लगेगी ।

    इतना कहते हुए वह उठकर अंदर चला गया और तभी शक्ति की निगाहें उसकी पीठ पर पड़ी और वो खुद से - मुझे खुदकी दुनिया में शामिल करके अपनी लाइफ की सबसे बड़ी गलती कर चुके हो मि. चौहान । मेरी दुनिया और जिंदगी दोनों में नफरत के अलावा और कुछ नहीं । यह तो तय हैं कि यह नफरत तुमको झुलसा कर रख देगी ।

    सिध्दांत जैसे ही अंदर आया वहां मनोरमा जी खड़ी थी और वो भी हाथ बांधे .. उनको देखकर ही सिध्दांत एक पल‌ के लिए ठहर गया ।
    मनोरमा जी की नजरे उसे ऊपर से नीचे तक स्कैन कर रही थी । बिखरे बाल , लाल आंखें , फूलती नसे साफ जाहिर हो रहा था कि वो अपने गुस्से को दबा कर रख रहा था ।
    मनोरमा जी - क्या मैं जान सकती‌ हूं कि तुम्हारी आंखें इतनी लाल क्यों हैं और बाहर से किधर से आ रहे हो ।
    उनके सवाल पर सिध्दांत - हम्म , क्यों नही ? मैं गार्डन से आ रहा हूं क्योंकि रुम में मुझे बैचेनी हो रही थी और लाल आ़खे वो इतनी देर तक जागने की वजह से हैं ।
    जिस पर मनोरमा जी - और जो आग तुम्हारी आंखों में नज़र आ रही हैं उसकी वजह क्या हैं ? शक्ति

    जिस पर सिध्दांत गुस्से से - जब आप वजह जानती हैं तो पूछ क्यों रही हैं । आप तो जानती हैं ना कि उसकी वजह से हमारे घर में बीस साल पहले क्या‌ हुआ था ? उसकी वजह से हमने क्या क्या झेला था ? आप भूल गयी हैं कि उस लड़की कि वजह से मैंने और आपने अपना सब कुछ खो दिया था और आज आपकी कसम की वजह से मुझे उससे शादी करनी‌ पडी़ । वो लड़की जिससे , मैं सबसे ज्यादा नफरत करता था और आप चाहती हैं कि मैं अब गुस्सा भी ना करु।

    जिसपर मनोरमा जी - उसमें , शक्ति की कोई गलती नहीं थी सिध्दांत । वो तो उस समय मासुम और छोटी थी ।
    जिसपर सिध्दांत - आप चाहें कितना भी कह ले मां , आपके लिए वह दो परिवारों की लडाई मिटाने का जरीया बनी लेकिन मेरे लिए सिर्फ कातिल हैं वह जिसने हमारी खुशियों का खून कर दिया । आपने शादी करवा दी बस बात खत्म , अब आगे क्या करना हैं ? यह शादी कैसे निभानी हैं यह सिर्फ मैं तय करुंगा ।

    इतना कहकर वो अपने रुम में चला गया और इधर शक्ति के पास उसके पापा का काॅल आया - जी पापा ...

    तुम वहां खुश तो हो ना और दामाजी जी वो तो अच्छे हैं ना बेटा ..
    जी पापा और वो भी अच्छे हैं । मैंने खाना खा लिया हैं और कल कुलदेवी के दर्शन करने जाना हैं तो मुझे सोना होगा तभी तो जल्दी उठ पाउंगी तो प्लीज अभी आप भी रेस्ट करीये और दादू से कहना कि वो भी अपना ख्याल रखे ।

    और जैसे ही काॅल कटा वो रोते हुए नीचे बैठ गयी और जोर से चिखते हुए - साॅरी पापा , आपसे झूठ भी बोलना पड़ रहा हैं लेकिन आपको भी तो टेंशन नहीं दे सकती हूं । यह मेरी जिंदगी हैं और यह जंग मुझे ही लड़नी हैं । आई प्रामिस की आपकी बेटी इस जंग में जीतकर ही मानेगी ।


    जहां नफ़रत का समंदर हो,
    वहाँ मोहब्बत की कोई नाव नहीं चलती।
    ये जहर इतना घना है कि हर सांस को ज़हर बना देता है।
    और ये सफर शुरू होता है… नफ़रत के फेरों में।

    शक्ति और सिध्दांत जिनके दिलों में एक दूसरे के‌ लिए सिर्फ एक दूसरे के लिए बेइंतहा नफरत थी और जो एक दूसरे को एक पल के लिए भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे । कैसा होगा एक छत के नीचे उनके आगे का सफर ...?
    कहते हैं जिनसे नफरत बेमिसाल होती हैं
    उनसे मोहब्बत कमाल की होती हैं
    तो क्या होगी कभी नफरत के इन फेरों में मोहब्बत
    जानने के लिए पढ़ते रहिए यह कहानी .. आपकी प्यारी लेखिका के साथ जहां मोहब्बत की एक अलग कहानी होगी


    जारी हैं .......
    डियर रिडर्स अगर आपको कहानी पसंद आ रही हैं तो मुझे फाॅलो करना ना भूले और साथ ही कमेट्स की आपको यह पार्ट कैसा लगा ।

  • 2. नफ़रत के फेरों में - Chapter 2 शक्ति के तेवर

    Words: 1111

    Estimated Reading Time: 7 min

    आगे .....

    सुबह हो चुकी थी और सिध्दांत अभी भी अपने कमरे में बैठा था वो रात से सो नहीं पाया था और पिछले दिनों क्या क्या हुआ था बस वो ही सोच रहा था । सिध्दांत जब दस साल का था तब ही उसके पापा की डेथ हो गयी ... उसके पापा बहुत बड़े बिजनेस मैन थे लेकिन उनकी डेथ , उसकी मां , उसपर और उसकी बहन काशी पर पहाड़ बनकर टूटी थी । उसकी मां चौहान हाउस की एकलौती रानी थी लेकिन उसके पापा की डेथ के बाद वह वहां सिर्फ नौकरानी की तरह बनकर रह गयी । सिध्दांत उसवक्त छोटा था और ज्यादा कुछ समझता नहीं था लेकिन वक्त के साथ उसे समझ आ गया कि उस परिवार में उसके पापा के जाने के बाद उनकी कोई वैल्यू नहीं रही । सबकुछ धीरे धीरे समझ आने लगा और वह अपनी बहिन और मां का खुद ख्याल रखने लगा । ऐसा नहीं था कि चौहान परिवार को सिध्दांत से नफरत थी , वो तो उनका वारिस था लेकिन नफरत थी काशी और मनोरमा जी से .... लेकिन उस परिवार के लिए उसकी नफरत बढ़ती गयी , खुद के , काशी और अपनी मां के खर्चे चलाने के लिए उसने काॅलेज के बाद पार्ट टाइम काम करना शुरू किया । उसका दिमाग अपने पापा की तरह तेज था और चौहान परिवार यह जानता था और इसलिए उसकी मां को चोट पहुंचाने की धमकी देकर , उसे चौहान ग्रुप्स के लिए काम करने के लिए मना ही लिया और उसके तेज दिमाग की बदौलत , प्रताप ग्रुप्स का नाम बहुत ऊंचा उठता गया लेकिन इन सब में सिध्दांत सिर्फ‌ घूटकर रह गया ।

    एक‌ महिने पहले ही उसके चाचा ने कहां था कि उसकी शादी उन्होंने संजीव नंदा की एकलौती बेटी , शक्ति नंदा से तय कर दी ।

    वही शक्ति नंदा , जिससे वह बचपन से नफरत करता आया था । वह शादी से इंकार करना चाहता था लेकिन जब उसकी मां को पता चला तो उसने , उसे अपनी कसम देकर मना लिया कि अगर उसने शक्ति से शादी कर ली तो वह उसके साथ चौहान हाउस हमेशा के लिए छोड़कर चलेगी ।

    सिध्दांत जिसे हमेशा से चाहिए था कि उसकी मां , यह घर छोड़कर उसके साथ चले ताकि वह उन्हें और काशी को एक बेहतर जिंदगी दे पाये , वो इस शादी के लिए मान‌ गया ।

    और खिड़की से बाहर देखते हुए वह सोच रहा था कि कल शादी भी हो‌ गयी तो आगे का यह सफर उसे किस अंजाम तक लेकर जायेगा क्योंकि नफरत से बने इस रिश्ते की नींव बिल्कुल ही खोखली थी ।

    इतना‌ सोचते हुए वह फ्रेश होने चला गया । इधर शक्ति की जैसे ही आंखें खुली तो उसने खिड़की से बाहर देखते हुए खुद से ही कहां कि सुबह तो हो गयी लेकिन वह फिर भी इतनी देर तक सोती रही और जैसे ही वह पापा चिल्लाने वाली थी , उसकी नजरे सामने आयने‌ पर पड़ी जहां से उसे अपने माथे पर फैला सिंदूर साफ दिख रहा था और उसे अहसास हो गया कि उसकी तो शादी हो चुकी थी और अब सिर्फ वो अकेली नहीं थी किसी और का नाम भी उसके साथ जुड़ चुका था ।

    यही सोचते हुए उसने कबड से साड़ी निकाली और फ्रेश होने चली गयी ।

    नीचे हाॅल में मनोरमा जी हमेशा कि तरह पूरे परिवार के लिए नाश्ता तैयार‌ कर रही थी किसी को टी चाहिए थी तो किसी को काॅफी और किसी को और कुछ ....

    काशी हाथ में कंघा लिये बस इंतजार कर रही थी कि कब उसकी मां काम से फ्री हो और कब वो उसके बाल बनाये ।

    तभी सिध्दांत की चाची , रुपवती चौहान भारी भरकम गहनों के साथ मटकते हुए आयी और चाय का कप नीचे पटकते हुए - यह कैसी चाय हैं मैंने शुगर फ्री मांगी थी ।

    चाय का कप जैसे नीचे पड़ा था उसमें से कुछ चाय छलककर मनोरमा जी के पैरों पर पड़ी थी और इससे उनकी सिसकी निकल गयी और आंखें बंद हो गयी ।

    शक्ति जो कि फ्रेश‌होकर सीढ़ियों से ऊतर रही थी उसकी नजरे सीधे मनोरमा जी के पैरों ‌पर गयी और तब तक काशी रोने लगी थी ।

    वह दौड़ते हुए नीचे आई और चिल्लाते हुए बोली - मां साइड हटिये ।

    इतना कहकर उसने मनोरमा जी को साइड कर दिया । रुपवती आगे भी चिल्लाते हुए - ऐ ! मेरे लिए दूसरी चाय बना वरना....

    जिस पर शक्ति सख्त आवाज में - वरना‌ क्या करेगी आप ? मेरे पापा को जानती हैं ना आप ... अगर अपने बिजनेस की और अपनी सलामती चाहती हैं तो आगे से मेरी मां से दूर रहना वरना शक्ति नंदा क्या चीज हैं , आपको एक झटके में पता लग जायेगा ।

    काशी जो रोने लगी थी शक्ति की कठोर आवाज सुनकर बिल्कुल चुपचाप है , अपनी भाभी और चाचा को देखने लगी ।

    सिद्धांत ऊपर सीढिओ पर खड़ा यह सब कुछ देख रहा था । वह मुस्कुराते हुए शैतानी मुस्कान के साथ खुद से - मुझे पता नहीं था चांडाल चाची लेकिन अब अच्छा लग रहा है आपने तो बिजनेस के नाम पर अपने गले में घंटी बांध ली ।

    वह ऊपर से चिल्लाते हुए ‌- हेय डार्लिग , तुमने एक मिस्टेक कर दी । इतना‌ कहते हुए वह सीढियां उतरकर हाॅल में उनके पास आ गया और शक्ति की कमर में हाथ ढाल , स्टाइल से रुपवती चौहान के सामने खड़े ‌होकर - शक्ति नंदा नहीं मिसेज शक्ति सिध्दांत चौहान नंदा , पता हैं चाची जब मिसेज चौहान के साथ मेरा नाम जुड़ता हैं ना तो मुझे सुकून मिलता हैं ।
    इतना कहकर , वह शक्ति से - मिसेज चौहान , आप मां को लेकर उनके रुम में जाइए फिर हाॅल में बैठी काशी से - तुम्हें अपने बाल बनवाने हैं ना तुम भी मां के रुम में जाओ , स्कूल बस आती ही होगी ।
    इसके बाद वो सब तो चले गये लेकिन सिध्दांत की आंखों में खून उतर आया , वह अपनी चाची की तरफ मुड़ते ‌हुए - आइंदा से अगर मेरी मां ‌की तरफ आपकी यह नजरे उठी तो मैं आपके आंखें निकाल लुंगा और इसे मजाक मत समझना । तीन महिने पहले का बहुत अच्छे से याद होगा ।
    इतना कहकर वह अपनी मां के रुम की तरफ चला गया और रुपवती‌ को तीन महिने पहले का वह दिन याद आ गया जब भर सर्दी में‌ वह सुबह पहले गर्म पानी से नहाने निकली थी तो किस तरह गर्म की जगह बर्फ की तरह ठंडे पानी से उनकी कुल्फी जम गयी थी और यह सबकुछ सिध्दांत ने किया था क्योंकि उसने , उसकी मां को सिर्फ इसलिए ठंडे पानी से नहाने पर मजबूर किया था क्योंकि उसकी चाय ठंडी हो गयी थी ।

    जारी हैं .......