आशना एक ऐसी लड़की जो जमाने से लड़ गयी लेकिन अपनों के आगे हार गयी । जिसे कभी वो नहीं मिला , जो उसने चाहा था । ना मां बाप का प्यार और ना ही एक हैप्पी फैमिली .... और फिर उसकी जिंदगी में आया प्यार और वह हसीन ख्वाबों में जीने लगी लेकिन उसका वह ख्वाब भी टू... आशना एक ऐसी लड़की जो जमाने से लड़ गयी लेकिन अपनों के आगे हार गयी । जिसे कभी वो नहीं मिला , जो उसने चाहा था । ना मां बाप का प्यार और ना ही एक हैप्पी फैमिली .... और फिर उसकी जिंदगी में आया प्यार और वह हसीन ख्वाबों में जीने लगी लेकिन उसका वह ख्वाब भी टूट गया और आशना टूटकर कांच की तरह बिखर गयी तो ऐसा क्या हुआ होगा उसके साथ ? कौनसा तुफान आया था आशना की जिंदगी में ? क्या आशना अपना खोया हुआ प्यार वापिस पा लेगी या फिर मोहब्बत भी उसे एक गहरा दर्द दे जायेगी । जानने के लिए पढ़िए - आशना एक दर्द भरी मोहब्बत
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सोचा था इस कदर आपको भूल जायेंगे
देखकर भी अनदेखा कर जायेंगे
लेकिन जब जब आया चेहरा आपका सामने
सोचा कि इस बार देख ले अगली बार भूल जायेंगे
चारों तरफ फैले अंधेरे में हाथ में शराब की बोतल लिये वो अभी मरीन ड्राइव पर बैठी थी उसके होंठ से निकले लफ्ज सुनकर
उसके साथ बैठी उसकी दोस्त - मुझे ना तुम्हारा यह रात को 12 बजे इस तरह शराब पीना कुछ समझ नहीं आ रहा हैं और तुम अब तक पांच बोतल पी चुकी हो और शराब पीना तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा नहीं हैं ।
वह लड़की बड़बड़ाते हुए - जानते हैं हम पर क्या करें अब तो हमारी जिंदगी बस इस शराब के सहारे ही तो चल रही हैं नहीं अब तक कब तक इस शरीर से जान निकल जाती ।
उसकी दोस्त - लेकिन ...
लड़की - जानते हैं अब तुम कहोगी की शराब सेहत के लिए ख़तरनाक होती हैं । यह अन्दर से इंसान को खोखला कर देती हैं लेकिन हमें देखो सही सलामत खड़े हैं तुम्हारे सामने और हमारी मानों तो अगर तुमने हमसे यही बात तीन साल पहले कहीं होती ना तो हमारे श्री राधे की कसम हम तुम्हारी बात का समर्थन करते लेकिन अब तो
उसकी दोस्त - लेकिन अब तो क्या .....
लड़की अपने हाथ में शराब की बोतल को होंठों से छूकर
हमें पीने का शौक नहीं
पर गम भूलाने का और जरीया नहीं
सुकून हैं यह हमारा
इसके अलावा जीना
अब हमें गवारा नहीं ।
उसकी दोस्त - शायरी भी करने लगी हो।
लड़की हंसते हुए - नाॅ वे , किसी ने हमें चिपकायी थी और हमने बस आज तुम्हें चिपका दी । ये शब्दो का खेल हमें समझ नहीं आता हम बस सीधे शब्दों में बात करते हैं ।
उसकी दोस्त - तुम्हारी लाइफ में किस चीज की कमी हैं । खुबसूरत हो अच्छा कमाती हैं बग्ला , गाड़ी , सब कुछ तो हैं ।
लड़की रोते हुए - प्यार की कमी हैं । बहुत मोहब्बत की हमने उस शख्स से कि आज भी उससे नफ़रत नहीं कर पाते । वो हमें गम भरी जिंदगी दे गया और उसकी मोहब्बत में हमने अपना सब कुछ लूटा दिया । उससे जुड़े हर रिश्ते को प्यार सम्मान दिया और वो हमें हमारा आत्मसम्मान तक ना दे सका । फिर क्या था जिस शख्स की नजरों में हमारे आत्मसम्मान की किमत नहीं उसके साथ रहना हमें भी गवारा नहीं और छोड़ दिया हमनें, उसको लेकिन मोहब्बत कमबख्त चीज ही ऐसी की बस एक बार नजरों के सामने आ जाये फिर क्या सब कुछ भूल जाते हैं । दिल में एक ही ख्याल आता हैं कि बस आखिरी बार इस चेहरे को नजरों में बसा ले फिर मौका मिले या ना मिले ।
उसकी दोस्त - तीन सालों से तुझे यूं तड़पते देख रही हूं । किस तरह तू सुबह से शाम तक काम करती हैं और सारी रात शराब के नशे में धूत रहती हैं । कभी कुछ कहती नहीं हैं ना ही अपना दर्द किसी से बांटती हैं । मुझे तुम्हारी यह हालत बर्दाश्त नहीं होती हैं क्या तुम मुझे अपनी कहानी नहीं सुनाओगी कि तुम्हारी यह हालत कैसे हैं आज ?
वो लड़की शराब के घूंट लेते हुए - तुम हमारी वो दोस्त हो जिसने हमें हर वक्त संभाला , जिसने हर परिस्थिति में हमारा साथ दिया ऐसे में तुमसे कुछ भी छुपाना इस दोस्ती के पाक रिश्ते के साथ बेइमानी होगी ।
फ्लैश बैक
आज से 26 साल पहले
आज एक प्राइवेट हास्पीटल में एक फैमिली बाहर बैठी सब सही होने की कामना कर रही थी और अन्दर से एक औरत के चिल्लाने की आवाज आ रही थी ।
तभी कुछ देर बाद एक बच्चे के रोने की आवाज आती हैं और सबके चेहरे पर सुकून दौड़ जाता हैं ।
लेकिन वह खुशी की लहर गम में बदल जाती हैं जब डाक्टर ने बेटी होने के बारे में बताया लेकिन क्या करें बड़े लोगों को अपना रूतबा बड़ा प्यारा होता हैं इसलिए अन्दर से गम समेटकर उन लोगों ने चेहरे पर खुशी छाप ली कि उनके घर लक्ष्मी आयी हैं पूरे गांव में मिठाई बंटवा दो ।
इतना कहकर वो लड़की आगे कुछ बोलने वाली थी कि उसकी दोस्त बीच मे ही -हाउ डिस्कस्टींग ऐसे भी लोग होते हैं जिनके लिए बेटी मनहूसियत होती हैं ।
अपनी दोस्त को इस तरह देखकर वो लड़की इतने में ही गुस्सा आ रहा हैं तो आगे कैसे सून पाओगी वैल आज भी गांवों में ऐसा ही होता हैं । हम मानते हैं कि धीरे धीरे समाज की स्थिति सुधर रही हैं लेकिन आज भी कुछ जगह ऐसी हैं जहां लड़की कुल का गौरव नहीं अभिशाप मानी जाती हैं वैल अब हम कहानी पर आते हैं तो कहां थे हम ... सब के चेहरों पर गम छा गये लेकिन सब जबरदस्ती मुस्करा रहे थे क्योंकि वो उस छोटी जान को उसके दादा के सामने कोस नहीं सकते थे ।
उसकी दोस्त - ऐसा क्यों ?
वो लड़की - हमारा रूतबा हर किसी को हमारे सामने झुका सकता हैं । अब हम सब लोगों का परिचय बताते हैं ।
इस परिवार के सबसे बड़े थे
परिमल प्रताप - पिछले तीस साल से यह विजयगढ़ रियासत के एम एल ए हैं । स्त्रीयो के सम्मान , लड़कीयों की शिक्षा , युवाओं को रोजगार , इन दो चार मुद्दो के बलबूते पर चुनाव जीत लेते हैं और फिर लोगों में इनका डर ही कुछ ऐसा हैं कि वो इनके खिलाफ जा नहीं सकते हैं वैसे दिल के थोड़े साफ भी हैं किसी को बेवजह परेशान नहीं करते हैं ।
इनकी पत्नी शंकुतला देवी थोड़ी गर्म मिजाज हैं । सबके साथ शख्त रहती हैं ।
इनके दो बच्चे हैं
हितेन प्रताप - इनका कुछ कहां नहीं जा सकता हैं इन्हें बस दौलत से प्यार हैं ।
इनकी पत्नी हैं स्वर्णा प्रताप - इन्हें बस बेटा चाहिए क्योंकी दादाजी का कहना हैं कि उन्हें अगर पहली संतान बेटा होगा तो वो अपनी कुर्सी उसे सौंप देंगे लेकिन लड़की हुई तो वो अपना फैसला योग्यता देखकर लेंगे ।
परिमल प्रताप के दूसरी बेटी
मायावती प्रताप - यह विधवा हैं और मायके में ही रहती हैं । एक चालाक कपटी औरत जो दौलत के नशे में अन्धी हैं
इसके दो बेटे हैं
मनय प्रताप और शेखर प्रताप , दोनों जुड़वां हैं और इनकी हरकतें इनकी मां पर ही गयी हैं ।
यह छोटा सा प्रताप परिवार , जिसमें सब लोग खुश होने का दिखावा तो करते हैं लेकिन कोई खुश नहीं हैं । दौलत की भुख में ये लोग इतने अन्धे हो गये कि अपने ही परिवार की जड़े काटने लगे ।
खैर इन सब में कोई दिल से खुश था तो वह थे परिमल प्रताप क्योंकि उन्हें बहुत लगाव था अपनी पोती से
बच्ची के साथ सब हवेली आ चुके थे । वैसे प्रताप फैमिली बहुत अमीर फैमिली थी क्योंकि आजादी से पहले ये जमींदार हुआ करते थे बेशुमार जमींन होने के कारण सभी लोग गांव में ही रहते थे लेकिन गांव में भी इनकी हवेली थी जिसकी किमत लगभग 400 करोड़ के आसपास थी
आज उस छोटी बच्ची का नामाकरण की पूजा थी जिसमें परिवार के सभी लोग बीना मन के भी बैठे थे और परिमल प्रताप उसे गोद में लिए हवनकुंड के पास बैठे थे और पंडित जी उस नवजात बच्ची की कुंडली बनाने में लगे थे ।
कुछ समय बाद
परिमल जी मैंने आपकी पोती की कुंडली पढ़ी । आपकी पोती आपके परिवार की उन्नति का दिपक हैं जब तक यह दिपक जलेगा आपका परिवार दिन दौगुनी रात चौगुनी तरक्की करेगा लेकिन आपकी पोती की आंख से निकला एक आंसु भी है आपके लिए भारी नुक़सान लायेगा । आपकी पोती बड़ी होकर चारों तरफ बहुत नाम कमायेगी लेकिन उसे दुख भी बहुत उठाने होंगे । उसकी जिंदगी बस मुश्किलों से घिरी होगी । उसे कभी सुकून हासिल नहीं होगा लेकिन उसे प्रेम से कोंसो दूर रखियेगा वरना उसकी जिंदगी में जो तुफान आयेगा उसे बर्बाद कर रख देगा । पच्चीस साल की उम्र में उसकी मौत का योग बन रहा हैं इसलिए पच्चीस की होने से पहले आप उसकी शादी करवा दिजिएगा ।
परिमल जी - परेशानी से .... ऐसा तो मत कहिए पंडित जी =.. इसका कोई उपाय तो होगा
पंडित जी - नियति को कोई नहीं बदल सकता हैं परिमल जी लेकिन अपनी पोती को इतना मजबूत बनाये की वह सब कुछ बदलने की ताकत रखें ... उसे अपने आत्मसम्मान के लिए जीना सिखाइए ।
परिमल जी - पंडित जी .. अब नाम भी बता दिजिए क्या रखना हैं ।
पंडित जी - आशना
परिमल जी - खुशीसे .... आशना
आशना धीरे धीरे बड़ी हो रही थी उसकी हंसी इतनी प्यारी थी कोई एक बार देख ले तो उसके चेहरे से नजर ना हटा पाये लेकिन उसकी बद्किस्मत ने अभी से रंग दिखाने शुरू कर दिये । शंकुतला और परिमल जी को छोड़कर हर किसी को उससे नफ़रत सी हो गयी
स्वर्णा जी अब उससे कहीं ज्यादा नफ़रत करने लगी थी क्योंकि जिस कुर्सी के लिए वो बेटा होने के ख्वाब देख रही थी वो ख्वाब लगभग टूट सा गया था और इसका दोष उन्होंने आशना पर ही मढ दिया था वो चाहे तब भी अब आशना से लगाव नहीं रख पाती थी । हितेन जी तो आशना को अपने सामने भी नहीं देखना चाहते थे क्योंकि अब उन्हें अपने हाथ से सारी दौलत फिसलती नजर आ रही थी और मायावती जी तो गाहे बगाहे उन के मन में और नफ़रत भर देती
आशना एक बच्ची थी उसमें इतनी समझ नहीं थी कि वह तो सारे दिन स्वर्णा जी से चिपकने की कोशिश करती रहती लेकिन वो हमेशा उसे खुद से छिटककर दूर कर देती इतना ही नहीं वह तो कभी कभी उसे छोटी सी बच्ची पर हाथ में उठा देती ।धीरे-धीरे परिमल जी को भी उनका व्यवहार समझ आने लगा था इसलिए वह आशना को हमेशा पूरे परिवार से दूर रखने की कोशिश करते हैं । उन्होंने स्वर्ण और हितेन को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन दौलत की भूख में उन्हें अंधा कर दिया था इसलिए वह कुछ समझना ही नहीं चाहते थे धीरे-धीरे 5 साल गुजर गए । इन बीते सालों में आशना के लिए सबका रवैया दिन ब दिन बद्त्तर होता जा रहा था लेकिन परिमल जी और शंकुतला जी कुछ नहीं कर पा रहे थे इसलिए अब उन्होंने भी हार मानकर सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया ।
जारी हैं ......
वक्त तेजी से बीत रहा था और अब आशना पांच साल की हो गयी थी । वो एक शान्त सी रहने वाली बच्ची थी । गांव के सभी लोग उससे प्यार करते थे लेकिन उसकी वो छोटी आंखें जो हमेशा खामोशी से ताकती रहती थी अपने मां पापा के चेहरे को जिन्हें तो कोई मतलब ही नहीं था उस मासूम जान से ।
शाम का समय था
वो भागते हुए जाकर किचन में स्वर्णा जी के पैरों से लिपट गयी । वहां उसकी बुआ भी थी जो सूजी हलवा बना रही थी ।
आशना अपनी मासूम आवाज में टिमटिमाते हुए - मम्मा क्या बना रहे हो ।
स्वर्णा के तो उसे देखकर ही गुस्सा आ रहा था उसे खामोश देखकर बुआ जी - आपकी मम्मा आपके पापा के पसन्द का खाना बना रही हैं ।
आशना उनकी तरफ आते हुए - सच्ची बुआ , तो क्या मम्मा हमारी पसन्द का भी बनाएगी ।
इन पांच सालों में मायावती जी में बहुत बदलाव आ गये थे वो भी धीरे धीरे आशना की मासूमियत से प्यार करने लगी थी लेकिन उनके चेहरे पर आज भी वही सख्ती बरकरार थी ।
मायावती जी - तुम्हारी पंसद का भी बनेगा तो बताओ क्या खाना हैं मेरी राजकुमारी को ।
आशना स्वर्णा जी के चेहरे को ताकते हुए - मम्मा के हाथ के समोसे फिर मासूमियत से वापिस स्वर्णा जी के पैरों से लिपटते हुए - आप बनाएगी क्या मम्मा ।
स्वर्णा जी जो इतनी देर से अपने गुस्से को दबाए हुए थी वो आशना को धक्का दे चुकी थी
जिससे आशना का चेहरा जाकर किचन स्लैब से टकरा गया और उसके नाक से खून निकलने लगा ।
अब उसकी उन मोती सी आंखों से आंसु टिमटिमा रहे थे लेकिन उसकी सूनी निगाहें अपनी मां को ही निहार रही थी कि कोई अपनी औलाद के लिए भी इतना बेदर्द कैसे हो सकता हैं ।
मायावती जी तो आश्चर्य से बस स्वर्णा जी को ही देख रही थी उनके मन में इतनी नफ़रत .....
पर शायद इसमें कोई कुछ कर भी नहीं सकता था लेकिन जैसे ही आशना का दर्द होने की वजह से रोना तेज हुआ बाहर हाॅल में बैठे परिमल जी का जी किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा । वो दौड़ में हुए किचन की तरफ आये । तेजी से दौड़ने की वजह से उनकी सांसें फूलने लगी थी उनके पीछे शकुंतला जी भी आ गयी थी ।
अपने सामने अपने जान के एक अहम हिस्से को इस हालत में देखकर उनका मन ही कांप उठा थी ।
आशना की नाक से बहते खून की वजह से उसके सारे कपड़े खून में हो गये थे । आंखों से निकलते आंसु आंखों में लगे काजल को पूरे चेहरे पर फैला चुके थे । इतना ही नहीं दर्द में रोने के कारण उसकी सांसे फूल चुकी थी जिस वजह से उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी ।
मायावती जी को अभी भी हैरानी से स्वर्णा को ताकते हुए देखकर वो सब कुछ समझ चुके थे इसलिए तेजी से चिल्लाते हुए माया जल्दी से डॉक्टर को फोन करके हवेली आने के लिए कहिए इतना कहकर वो आशना को गोद में उठाये अपने कमरे की और दौड़ चले जब तक वो बेहोश हो चुकी थी
कुछ देर बाद
डॉ. आशना का चेकअप कर रहे थे उनके साथ शकुंतला जी भी कमरे में ही थी और बाहर सभी खामोश खड़े थे ।
आशना का फर्स्टेड करने के बाद डॉ. शकुंतला जी से - आप परिमल जी को अन्दर बुला लिया दिजिए मुझे उनसे ही बात करनी हैं ।
उनके कहने पर शकुंतला जी कमरे से बाहर आकर - साहेब
परिमल जी घबराते हुए उनके पास आकर - आशना ....
शकुंतला जी - आपको डाॅ. अन्दर बुला रहे हैं ।
उनके कहने पर
परिमल जी अन्दर डाॅ. केपास आकर - डाॅ. साहब मेरी पोती ....
डॉ. - आप उसका ध्यान रखिये परिमल साहब । आज उसकी जान जाते जाते बची हैं ।
परिमल जी - वो ....वो..... बहुत कोशिश के बाद भी उनके गले से एक शब्द नहीं निकल रहा था । उनके कानों में बस डाॅ. के शब्द ही गुजर रहे थे ।
डॉ. - जी परिमल साहब , रोने से आपकी पोती की जान भी जा सकती हैं । सी इज ए सेंसेटिव गर्ल । रोने से इसकी श्वास नली पर दबाव बढ़ने से दम घूंटता हैं जिससे सांस लेने में में समस्या आने लगती। हैं जिस वजह से सांसें रूकने से आपकी पोती को जान का खतरा हो सकता हैं इसलिए कोशिश किजिए की इसे रोने ना दिया जाये ।
बाकी सब नार्मल हैं ।जल्दी ही ठीक हो जायेगी इतना कहकर डॉक्टर जा चुके थे
लेकिन परिमल जी को इस बात से गहरा सदमा लगा अगर आशना को कुछ हो जाता तो .... यह बात उनके ख्वाबो में भी नहीं थी उन्होंने शकुंतला जी बात की
परिमल जी - मैंने एक फैसला लिया हैं उम्मीद करते हैं कि मेरी जीवनसंगिनी होने के नाते आप मेरे इस फैसले में मेरे साथ होगी ।
शकुंतला जी - मैं आपकी उम्मीद को कभी नहीं तोड़ सकती हूं साहेब
परिमल जी इस बात की संतुष्टि तो मिल चुकी थी उनके हर फैसले में उनकी पत्नी उनके साथ हैं और इतना काफी था अभी उनके बैचेन दिल की तस्सली के लिए ।
परिमल जी - वादा किजिए कि आप कभी भी किसी को नहीं बतायेगी आशना की इस बिमारी के बारे में और आप हमेशा कोशिश करेगी कि आशना को उसकी दादी से मां का प्यार भी मिले जिस पर शकुंतला जी ने अपनी पलकें झपका दी की वह उनके हर फैसले में उनके साथ खड़ी थी ।
इसके बाद सब कुछ बदल गया परिमल जी ने साफ कह दिया कि अगर कभी किसी की भी वजह से आशना की आंखों से आंसु टपके तो इस हवेली के दरवाजे उसके लिए हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे ।
अब कोई भी आशना को चोट पहुंचाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था
समय के साथ हवेली का रुख पलटने लगा जिस परिमल प्रताप के सामने कोई नजरें उठाने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था उनका सर हमेशा आशना के नखरे उठाने के लिए झुका रहता और आशना भी उनसे बहुत प्यार करती थी उसकी सुबह और शाम उनसे ही शुरु होकर उनपर ही खत्म होती थी ।
मायावती जी भी अब उससे दूर ही रहने लगी थी शायद अब उनके दिमाग में कुछ खटक रहा था ।
लेकिन अब एक बात अलग थी कि आशना के मन में स्वर्णा जी के लिए डर बैठ गया था वो उन्हें अपने सामने देखकर ही कांपने लगती थी और हितेन जी को तो उससे कुछ खास मतलब नहीं था पर स्वर्णा जी मौका मिलने पर आशना को कुछ भी सुनाने से नहीं चुकती थी ।
शकुंतला जी ने आशना को बहुत प्यार दिया लेकिन कोई भी मां पापा की जगह नहीं भर सकता और यह भी हकिकत थी ......
जारी हैं .....
आशना के आने के बाद परिमल जी व्यापार भी बहुत तेजी से बढ़ रहा था और हितेन और मायावती की नजर अब उस पर थी । उन दोनों के बीच के रिश्ते भी लगातार बिगड़ते जा रहे थे जिससे आये दिन घर पर भी उन दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे ।
परिमल जी इन सब चीजों से परेशान रहने लगे थे लेकिन आशना की एक छोटी सी मुस्कराहट भी उनके गम भूलाने के लिए काफी थी ।
इन सब परेशानीयो से छुटकारा पाने के लिए परिमल जी ने हितेन और मायावती को अपने व्यापार का कुछ हिस्सा ले दिया और कहां कि जिसे अपने काम में सफलता मिलेगी वो मेरी संपत्ति का हकदार होगा क्योंकि जो अयोग्य को व्यापार सौपकर वो अपनी सालों की मेहनत को बर्बाद नहीं होने दे सकते हैं ।
उन्होंने तो सोचा कि सब सही हो जायेगा लेकिन यह तो शुरुआत थी अब हितेन जी और मायावती जी आपस में ही एक दूसरे को गिराने की कोशिश करते ना कि अपना व्यापार बढ़ाने की ।
आज परिमल जी बहुत खुश थे क्योंकि उनकी आशना का जन्मदिन था इसलिए वो जल्दी से अपनी मीटिंग खत्म कर घर पहुंचना चाहते थे इस सच से अनजान कि वहां तो सब बर्बाद हो गया जब समारोह के बीच हितेन जी और मायावती जी में बहुत बड़ा झगड़ा हो गया और दोनों का गुस्सा निकला आशना पर । वो दोनों लगातार आशना को ही कोस रहे थे । वैसे भी उन लोगों की आदत बन चुकी हर बात का दोषी आशना को मानकर उसको मनहुस कहना ।
आठ साल की आशना जिसे मनहूस शब्द का मतलब भी पता नहीं था । अपने सामने अपने ही पापा और बुआ को झगड़ा करते देखकर उसकी आंखों में नमी छाने लगी थी ।
वह चुपचाप उनकी बाते सुनने लगी । मेहमान आपस में ही बातें बनाने में लगे थे ।
आशना धीरे धीरे हितेन जी के पास आकर पापा इस तरह झगड़ा मत कीजिए ना मुझे डर लग रहा हैं ।
जिस आशना ने आज तक अपने पापा के सामने नजर तक नहीं उठायी थी वो आज अपनी कांपती आवाज़ में कुछ लफ्ज कह रही थी अभी भी उसके बाल बिल्कुल बिखरे हुए थे और खड़े खड़े डर से उसके पैर कांप रहे थे फिर भी वो हिम्मत कर अपने पापा से ऐसे बोल रही थी क्योंकि डर लगता था उसे ऊंची आवाज से ही और यहां तो बड़ा झगड़ा हो रहा था । उसे दो दिन पहले की बात याद आ रही थी जब वह हवेली के बाहर , हवेली में ही काम करने वाले कुछ लोगों के बच्चों के साथ खेल रही थी तब एक छोटी लड़की जो अपने पापा से कोई खिलौना लाने की जिद कर रही थी इसके लिए वो रो भी रही थी तब उसके पापा ने उससे कहां - एक पिता कभी अपनी बेटी की कोई बात नहीं टालता हैं वो उसकी हर वो ख्वाहिश पूरी करता हैं जिसे पूरी करने के वो काबिल हैं । अपनी बेटी की आंखों में उदासी देखकर उसका कलेजा चीर जाता हैं तो तुम ही बताओ मेरी गुड़िया रानी मैं तुम्हारी एक भी बात टाल सकता हूं शाम तक तुम्हारे लिए खिलौना आ जायेगा और मेरी बेटी की आंखों में खुशी देखने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं ।
वो सोचकर मासूम आशना को लग रहा था कि उसके पापा उसकी बात मानकर झगड़ा नहीं करेंगे लेकिन उसकी गलतफहमी भी दूर हो गयी जब हितेन जी उस पर ही चिल्लाने लगे - तुम पिद्दे भर की लड़की मुझसे कहोगी झगड़ा बंद करने के लिए । यह झगड़ा भी तुम्हारी वजह से ही हो रहा हैं तुम हो ही मेरे लिए मनहूस लेकिन कर भी क्या सकता हूं जब भगवान ही नहीं चाहते ..... खुशनसीब समझता मैं अपने आप को ... अगर तुम एक लड़का होती ..... फिलहाल मैं एक बदनसीब हूं ।
उनकी इतनी कड़वी बातें सुन कर तो आशना की आंखों से झर झर आंसू बहने लगे थे ।
कितनी अजीब बात थी ना इतनी प्यारी बेटी और उससे तिनके जितना भी लगाव नहीं ....
इतनी मासूम बेटी को डांट रहा था हितेन लेकिन स्वर्णा जी ने भी चुप्पी साध ली ...
चुप तो शकुंतला जी भी थी अपने साहेब के इंतजार में जो यह सोच रही थी कि कब आयेंगे उनके साहेब जो आशना के लिए तौहफा लेने गये लेकिन आशना की आंखों में आंसू देखना उनको गवारा नहीं था आखिर वादा किया था उन्होंने अपने साहेब से कि आशना की आंखों से एक कतरा आंसू तक नहीं बहने देगी लेकिन यहां तो उनकी लाडली लगातार आंसु बहा रही थी ।
वर्तमान
आशना की इकलौती दोस्त प्रार्थना जो उसके साथ मरीन ड्राइव के किनारे बैठी आंसू बहा रही थी वो कुछ कहने के लिए बोलती ...
तब तक आशना - कितना अजीब दस्तूर है ना दूनिया का जहां लोग मन्नते करते हैं भगवान से लेकर हर डाॅ. तक हर जगह बस अपने हाथ जोड़ते हैं कि इश्वर उन्हे बस एक औलाद का सुख दे दे लेकिन यहां मेरे मां बाप को तो अपनी औलाद की कद्र ही नहीं थी उन्हें तो बस एक बेटा चाहिए था जो दादू की सारी प्रोपर्टी का हकदार बन सके और इसके लिए उन्होंने अपनी बेटी को नजरंदाज कर दिया । एक पल के लिए भी मुझे देखकर उनके मन में ममता नहीं जागी ।
प्रार्थना - शायद अब तक जो बताया हैं उसके अनुसार तो नहीं ...... लेकिन आगे क्या हुआ । ..... उन लोगों ने तुम्हारे साथ इतना सब कुछ कर दिया ... तुम तो रोती होगी ना .... फिर तुम्हारी बिमारी .....
आशना हंसते हुए दर्द से -
बहुत गहरी थी रात पर हम सोये नहीं
दर्द भी बहुत था पर हम रोये नहीं
कोई नहीं है हमारा जो पूछे हमसे भी
जाग रहे हो किसलिए और सोये किसलिए नहीं
प्रार्थना - तुम क्या बोल रहीं हों मुझे तो अब भी समझ नहीं आया और तुम जानती हो ना कि मुझे ये गोल गोल जलेबी सी नहीं बिल्कुल सीधी बातें समझ आती हैं ।
आशना बीच में ही -
कुछ लोग अल्फाजो से मेरे अन्दर देखना चाहते हैं ,
नादान हैं , किनारे पर बैठकर समुद्र देखना चाहते हैं ।
प्रार्थना चीढ़ से - आशना लगता हैं तुझे शराब चढ़ गयी हैं तभी तो बहकी बहकी बातें कर रहीं हैं मुझे तो लगता हैं न तुम्हारे दिमाग में कुछ लोचा हैं जो हर बार मुझे सस्पेंस में लाकर छोड़ देती हैं । मुझे बस इतना बता आगे क्या हुआ ... यहां मेरी सांसें अटक रही हैं ...
आशना अंगड़ाई लेते हुए चारों तरफ देखकर - कल बताये रात बहुत हो गयी हैं ... इतना कहकर वह उठते हुए अपनी कार की तरफ चल देती हैं ...
प्रार्थना चिल्लाते हुए - आशना ....
आशना कान में हाथ देते हुए - गला नहीं स्पीकर मिला हैं तुझे ... और एक बात नशे में नहीं हूं मैं जानती तो हो तुम कि मुझे किसी नशे से नशा नहीं होता । इतनी पीती हूं लेकिन कभी नहीं चढ़ती हैं ... दूसरी बात ... मरे तो बिल्कुल नहीं थे उस दिन नहीं तुम्हारे सामने खड़े होकर तुम्हारी बकवास नहीं झेल रहे होते इसलिए शांति से घर जा और चद्दर तानकर फूल एसी में मस्त हो जा ...
कल शाम 6 बजे यही मिलते हैं पहली बार कोई मुझे सुनना चाहता हैं और यह मौका मैं नहीं गवाना चाहती ...
जारी हैं .....
आज की सुबह कुछ अलग सी थी चारों तरफ फैली सूरज की रोशनी में वो अपनी खिड़की के पास बैठी दूर तक फैले रोशनी के समंदर को गहराई से देख रही थी वो दिन आज भी उसकी आंखों के सामने घूम रहा था । वो गहराई से कुछ सोचते हुए मन में - वक्त के साथ पता तक ना चला कि मैंने इतना सफर कब तय कर लिया लगा तो ऐसा था कि बिना आपके इस सफर पर चलना तो दूर एक पैर उठाना तक नामुमकिन है लेकिन वक्त अपने साथ बहा ही ले जाता हैं सही कहते थे दादू कि वक्त के साथ चलना पड़ता ही हैं । लाख कोशिश के बाद भी यह वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता लेकिन मेरे लिए तो आज भी वही ठहरा हैं । आपकी आंखों में मेरे लिये प्यार नजर आया लेकिन विश्वास नहीं ..... तो कैसे स्वीकारें उस प्रेम को ........
कुछ समय वह यूं ही बैठी रही ना जाने ऐसा क्या सोच रही थी की उसके चेहरे पर उदासी फैली थी । तभी एक सर्वेट उसके रुम का दरवाजा खटखटाता हैं । वह यूं ही बैठे हुए - दरवाजा खुला हैं आ जाइए ।
कुछ देर बाद दरवाजा खोलते हुए उसके घर में काम करने वाले सभी सर्वेट्स की हेड नूसरत अन्दर आती हैं - साॅरी मैम आपको डिस्ट्रब करने के लिए लेकिन आपकी असीस्टेंट प्रियंका मैम आयी हैं वो नीचे आपका इंतजार कर रही हैं ।
ठीक हैं नूसरत तुम जाओ , मैं बस आ रही हूं आधे घंटे में जब तक उन्हें चाय नाश्ता करवाओ ।
कुछ देर बाद आशना तैयार होकर नीचे आती हैं इस वक्त उसने ब्लैक बिजनेस सूट पहना था नीचे आते हुए उसे हाॅल में बैठी प्रियंका नजर आती हैं जिसके चेहरे पर परेशानी नजर आ रही थी ।
उसके हाॅल में आते ही प्रियंका खड़े होते हुए - गुडमाॅर्निंग मैम
आशना - गुडमार्निग प्रियंका
प्रियंका - मैम , जोशी जी आप से मिलना चाहते हैं । आप बता दिजिए कि मीटिंग कहां रखनी हैं ।
आशना - ठीक हैं , दस बजे उन्हें आॅफिस बुला लो ।
इसके बाद आशना ब्रेकफास्ट करने लगी थी और प्रियंका किसी को फोन मिलाते हुए - नमन , जोशी जी कि अपोइंटमेंट अप्रूव कर उनके असीस्टेंट को इन्फाॅर्म कर दस बजे आॅफिस आने के लिए कह दो ।
कुछ देर बाद
आशना अपने आॅफिस सामने खड़ी थी उसका आॅफिस मुम्बई के पनवेल में एक पांच मंजिला इमारत थी जिसमें चार सौ के आसपास लोग काम करते थे ।
आशना ने एक छोटी सी फर्म खोली थी जिसका नाम सहारा फर्म था । दूनिया को दिखाने के लिए वह एक छोटी सी फर्म थी जहां सीए ट्रेनीज को ट्रेनिंग दी जाती थी उन्हें उनके काम में ट्रेंड किया जाता था लेकिन इसके अन्दर क्या होता था यह बस कुछ लोगों को ही मालूम था और इसकी एक बहुत बड़ी वजह थी जो आगे सामने आयेगी ।
आॅफिस आने के बाद आशना अपने केबिन में बैठी कुछ फाइल्स पढ़ रही थी जब तक प्रियंका गेट नाॅक करती हैं ।
आशना - कमिंन
प्रियंका अन्दर आते हुए - मैंम जोशी सर वेटिंग रूम में आपका इंतजार कर रहे हैं ।
आशना - उन्हें मेरे केबिन में भेज दो साथ ही प्यून को दो चाय लेकर आने के लिए कह दो एंड ध्यान रहें जब तक मीटिंग खत्म नहीं हो जाती कोई डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए ।
प्रियंका - जी मैम
कुछ देर बाद
आशना के केबिन में उसके सामने करीब 50 साल का आदमी बिजनेस सूट पहने चाय की चुस्की ले रहा था ।
आशना तंज से मुस्कराते हुए - लगता है फ्री की चाय पीने की आदत हो गयी हैं । तब ही जब देखो तब मेरे आॅफिस के चक्कर लगाते फिरते हैं ।
जोशी जी , इनका पूरा नाम रजत जोशी पेशे से एक बिजनेस मैन हैं ।
जोशी जी चाय की चुस्की लेते हुए - क्या करूं काम ही ऐसा है कि ना चाहते हुए भी मुझे तुम्हारे दर्शन करने पड़ते हैं आखिर एक बेस्ट सीए जो हो ।
आशना तंज से अपने दोनों हाथ टेबल पर रखते हुए - अच्छा तो फिर अनिकेत दीक्षित से मिलना .... कुछ समझ नहीं आया , जोशी साहब ।
रजत जी चाय की आखिरी चुस्की लेते हुए कप टेबल पर रखकर - मजबूरी थी ।
आशना - अच्छा तो .... वो डिल ... पचास करोड़ ....
रजत जी - मैं तुम्हें पूरी बात समझाता हूं .... वो डिल बस एक नाटक था .... कुछ दिन से वो मुझे ब्लैकमेल कर रहा था । उसके हाथ मेरी कम्पनी के कुछ अकाउंटींग डिपार्टमेंट के कागजात लग गये जिनमें कम्पनी का रियल डाटा था । उसने पता हैं मुझसे क्या कहां .... या तो मैं सारी ब्लैकमनी और टैक्स गवरमैंट में भर दू या फिर उसे पचास करोड़ रुपए दे दूं तो वह अपना मुंह बंद कर लेगा ...
आशना - और ... आपने सोचा चलो पूरे 1000 करोड़ का नुक़सान हो उससे अच्छा हैं कि पचास करोड़ देकर उसका मुंह बंद करवा दूं ....
रजत जी - तुम कभी ग़लत सोचती हो क्या ?
आशना - मैं गलत नहीं सोचती लेकिन आपने सब कुछ गलत सोच लिया ... जोशी साहब ....
रजत जी - मतलब ...
आशना हंसते हुए - बिना पूरी बात जाने पचास करोड़ दे दिये .... एक बार भी दिमाग में नहीं आया कि मुझसे पूछ ले ।
रजत जी - पर अब तो समस्या सुलझ गयी ना ... और उस आॅफिसर का तो मैं मुंह बंद कर चुका हूं पचास करोड़ देकर ।
आशना - समस्या अब शुरू हुई हैं जोशी साहब .... मेरी एक बात मानेंगे आप , सब कुछ दूसरी जगह शिफ्ट कर दिजिए ...
रजत जी - मतलब ...
आशना - जितना भी केस आपने अपने घर के बेसमेंट में छूपा रखा हैं ना उसे अपनी उस प्राॅपर्टी में शिफ्ट कर दीजिए जहां के बारे में केवल आप जानते हैं ।
रजत जी - मैं तुम्हारी बात क्यो मानूं ।
आशना - इतना सा भरोसा कर सकते हैं आप ... वरना बाद में , मैं भी कुछ नहीं कर पाउंगी .... सवाल जवाब बाद में करियेगा लेकिन ... अभी बस जैसे मैं कह रही हूं वैसा करिये ... और सिर्फ 23 घंटे बचे हैं आपके पास ... अभी केवल मैं ही आपकी शुभचिंतक हूं ....
रजत जी - विश्वास करता हूं वरना इतनी बातें नहीं बताता ।
आशना तंज के साथ कुछ गुस्से से - रियली मि. रजत जोशी , आपने मुझे कुछ नहीं बताया हैं यह सब कुछ मैंने अपने स्तर पर पता किया हैं .... एक बिजनेस मैन में एक गुण यह भी होना चाहिए कि उसे जरूरत से ज्यादा भरोसा किसी पर नहीं करना चाहिए ... यह बात आपको बहुत अच्छे से पता होगी ... आज आप जो कुछ भी हैं वो मेरी वजह से हैं ... मुझे बिल्कुल भी शर्म नहीं आती अपने एहसान गिनवाने में ... इसे मेरी रिक्वेस्ट समझिए या फिर वार्निंग जो कुछ मैंने आपको अभी कहां हैं वो आपको करना ही होगा ... चाहे इसमें आपकी मर्जी शामिल ना हो .. इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता ... क्योंकि इतना तो जानते हैं आप कि .. अगर मुझमें इतनी ताकत है कि मैं किसी को आसमान की बुलंदियों में पहुंचा दूं ... तो इतनी हिम्मत भी है कि उसे जमीन पर पटक सकू .... एक बात .. आप उस आॅफिसर से तो बच गये लेकिन मुझसे नहीं बच पायेगे ... अन्डरस्टैंड ।
रजत जी रुमाल से अपना पसीना पोछने हुए - रिलैक्स ... बस शांत रहो ... आई अन्डरस्टैंड ... जैसा तुम कहोगे हो वैसा ही होगा ।
आशना कुछ शांत होते हुए उन्हें कुछ समझा रही थी जिसे जोशी जी शांति से समझ रहे थे ।
अपनी बात खत्म होने पर आशना - उम्मीद करते हैं गलती की कोई गुंजाइश नहीं होगी वरना ... मुझे भी नहीं पता ....आपका टाइम खत्म हुआ .... अब आप जा सकते हैं और जिस काम के लिए मिलना चाहते थे उस बारे में मेरी हमेशा ना ही रहेंगी । एड्रेस मैं सेंड कर दूंगी और कुछ दिन मेरे आॅफिस के चक्कर काटना बंद कर दीजिए ।
जोशी जी - ठीक हैं ।
रजत जी के जाने के बाद आशना अपनी चेयर पर सिर टिकाते हुए आंखे बंद कर लेती हैं - तुम्हें इतना कामयाब देखकर खुश तो बहुत हूं मैं । सही थी मैं तुम जरूर आओगे लेकिन इतनी जल्दी विश्वास नहीं होता ... आखिर दिल का रिश्ता बनाया था तुमने ....
फिर कुछ सोचते हुए अतीत की गलियों में भटक चुकी थी वह
एक बात याद रखना आशना यह प्रोजेक्ट तुमने खो दिया क्योंकि तुम्हारे एम्पलाइज ने तुम्हारा डाटा किसी को दे दिया ... सिर्फ चंद पैसों के लिए उन्होंने अपना ईमान बेच दिया .... इतनी बार समझा चुका हूं ... बिज़नस का एक ही हुसूल होता हैं ... किसी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा मत करो ...
मि. दीक्षित किसी पर भरोसा करना ग़लत नहीं होता ।
.. लेकिन अंधा भरोसा ग़लत होता हैं ।
मि. दीक्षित तो आप बता दीजिए कि मैं क्या करु ।
... हर किसी पर नजर गड़ाए रखिये , चाहे दोस्त हो या दुश्मन ... क्योंकि दुश्मन सामने से वार करेगा तो सह लोगी ... लेकिन दोस्त के खोल में दुश्मन हुआ तो ... पीठ पीछे वार करेगा .... और सब कुछ बर्बाद ... पैरों के बल उठने के काबिल नहीं छोडे़गा ... एक औरत आगे बढ़े तो ... हर किसी को उसकी कामयाबी चुभती हैं ... मर्द के अहम पर चोट लगे तो वो और कुछ सोचने समझने लायक नहीं होता है ... ऐसे में वह तुम्हें गिराने के लिए किसी भी हद तक जा सकता हैं .... इसलिए वह अपनी हर हद पार करें उससे पहले ... उसकी हद की हर सीमा खत्म कर दो ...
आशना खुशी से - सब समझ गये मुझे तो लग रहा हैं कि आप मुझे पक्की बिज़नस वूमन बनाकर ही दम लेंगे ... इतनी टेंशन नहीं हैं मुझे ... आफ्टर आॅल आपके साथ रहूगी पूरी जिंदगी .
.... वक्त का किसे पता आशना .. कब कौनसा रंग दिखादे ... इसलिए चाहता हूं कि तुम्हें हर मुश्किल के लिए तैयार कर दूं।
बंद आंखों में आसूं झिलमिला गये थे इतना सब सोचकर अब थक चुकी थी वो ... वादा किया था आपने कि हर मुश्किल में साथ निभायेंगे लेकिन अब मुझे किसी पर भरोसा नहीं .... सही ही हैं वक्त का क्या भरोसा .... लेकिन मैं तो टूट गयी ना ... बदलते वक्त ने तोड़ ही दिया मुझे ... हमेशा घमंड होता था कि आशना प्रताप को कोई नहीं तोड़ सकता लेकिन ... आशना दिक्षित को तो उसके अपनो ने ही तोड़ दिया ... आज इतना वक्त गुजर गया ये समझने में और इतना सब कुछ सह लिया बस इतना सा समझने में कि ... भरोसा सही हो सकता है लेकिन अंधा भरोसा ... बिल्कुल नहीं ।
जारी हैं ......
आशना अभी भी कुछ सोच रही थी तभी प्रियंका अन्दर आते हुए - मैम AD ग्रुप आॅफ कम्पनी के सीईओ आपसे मिलना चाहते हैं ।
आशना जो कि अभी अभी फाइल्स में ध्यान लगाने की कोशिश कर रही थी सहजता से - रिजेक्ट
प्रियंका - लेकिन मैम , वो इंडिया के बहुत बड़े बिज़नस मैन हैं ऐसे में बार-बार उनके ऑफर को रिजेक्ट करना हमारी फर्म के लिए सही नहीं होगा ।
आशना सहजता से - फिर भी मना कर दो ।
प्रियंका निराशा से - ठीक हैैं मैम
इतना कहकर वह बाहर चली जाती हैं बाहर नमन जो कुछ इंपॉर्टेंट फाइल्स लेकर आशना के केबिन की तरफ आ रहा था जिन्हें आशना ने हीं मंगवाया था ।
वह प्रियंका को परेशानी से बाहर निकलते देख - क्या बात है प्रियंका इतनी परेशान क्यों हो
प्रियंका परेशानी से - परेशानी वाली ही तो बात है नमन , पिछले 6 महीने से एडी ग्रुप आफ कंपनीज की तरफ से बार-बार हमें मेल पर डिल केऑफर मिल रहे है और मैंम बार-बार रिजेक्ट करने के लिए कह देती । वह उनसे मिलना तक नहीं चाहती हैं । वैसे तो मैंम कहती हैं कि कभी भी मौका मिले उसे झपट लो बिना सही वक्त का इंतजार किये लेकिन इतनी बड़ी कंपनी की तरफ से मिले डिलल के आॅफर को बार बार रिजेक्ट करना उनके रियल करैक्टर से मैल नहीं खाता हैं ।
नमन हंसते हुए- यह तुम मैंम की जासूसी करती फिरती हो ना यह सब छोड़कर अपने काम पर ध्यान लगाओ और इसमें इतना सोचना क्या है तुम वही करो जो मैंम ने कहा हैं ......
प्रियंका असमंजस में - क्या
नमन हंसते हुए - रिजेक्ट ...
प्रियंका चिढ़ते हुए - नमन.....
नमन - ओके... ओके.. बी रिलैक्स... इतना हाईपर मत हुआ करो... । वैसे मुझे मैम को कुछ फाइल्स देनी हैं तो मैं चला ।
उसके जाने के बाद प्रियंका एक ईमेल भेज देती हैं । अब वह कुछ शान्त थी लेकिन अभी आशना के केबिन में अलग ही बवाल मचा था । नमन फाइल्स लेकर जा चुका था और उन फाइल्स में आशना ऐसी डूबी की उसे पता तक ना रहा की कब शाम के छः बज गये ।
उसका ध्यान अपने फोन की रिंग टोन से टूटा ...
उसने फोन उठाकर देखा तो काॅलर नैम प्रार्थी शो हो रहा था ।
आशना अपना एक हाथ सिर पर मारते हुए ... ओ शिट ... मैं इतनी बड़ी बात भूल गयी ... वो मेरा इंतजार कर रही होगी ... इतना सोचते ही वह फटाफट फाइल्स को समेटकर अपनी कार की चाबी लेकर लैपटाप को बैग में रखकर , बैग हाथ में लिए फटाफट से लिफ्ट से नीचे आॅफिस पार्किंग में चली जाती हैं ... जब तक उसके फोन पर प्रार्थना के कई फोन काॅलेज आ चुके थे ।
कुछ देर बाद उसकी कार हवा से बातें करते हुए मरीन ड्राइव की और निकल चुकी थी लेकिन वहां तक पहुंचने में उसे साढ़े सात बजे चुके थे । उसने अभी तक प्रार्थना का काॅल नहीं उठाया था लेकिन मैसेज छोड़ दिया कि वह किसी काम में फंसे गयी हैं इसलिए पहुंचने में टाइम लगेगा ।
वह जैसे ही कार से निकलती हैं उसे सामने ही प्रार्थना नजर आती हैं जो गुस्से से कमर पर हाथ रखे उसे ही घूर रही थी ।
प्रार्थना गुस्से से आशना के सामने आकर - कल 6 बजे मिलते हैं अभी घर जाके मस्त एसी में चद्दर ताने सोजा ... यही कहां था ना कर तूने लेकिन मुझे नहीं लगता कि .. अभी 6 बजे रहे हैं .. पता था मुझे काम में सब भूल जायेगी इसलिए पांच बजे ही मैसेज कर दिया था .. पर मजाल जो एक मैसेज सीन कर लो तुम ... बस काम .. काम ... बाकी सब बाड़ में जाये ...और कुछ भी नहीं तो मेरा ही सोच लेती ... कल रात को भी ठीक से नींद नहीं आयी ... पहले ही मुझ पर सस्पेंस का ऐसा तीर छोड़ा है ना कि ... ना निगलते बन रहा हैं ... ना उगलते बन रहा हैं .... उस पर मैडम की लेटलतीफी ... मैं यहां पे पांच बजे से बैठी हूं ... लेकिन तुम्हे कोई फिक्र भी नहीं हैं ... सही बता रही हूं आशना अगर अब ....
आशना - जानती हूं सब .. पर साॅरी ... सही में याद नहीं रहा वरना समय पर आ जाती ... अब अपने गुस्से का लेवल थोडा कम कर ... फिर एक तरफ इशारा करते हुए ... आजा उधर बैठते हैं ।
कुछ देर बाद आशना एक जगह रेत में नंगे पैर धंसाये हुए एक बेंच पर बैठी थी उसके बगल में ही प्रार्थना बैठी एकटक उसे निहारते हुए उसके बोलने का इंतजार कर रही थी ।
आशना - वक्त गहरे से गहरा जख्म भर देता हैं लेकिन कुछ जख्मों का मरहम तो वक्त भी नहीं बन पाता ।
इतना कहते हुए आशना अपने अतीत में जा चुकी थी
आशना का इतना खुशी भरा दिन मातम में बदल गया और किसी को अहसास तक ना था कि वह आशना के मासूम दिल को कितनी गहराई तक जख्मी कर गया था ।
.. एक ऐसा जख्म जो वक्त के साथ धूंधला नहीं नासूर बनता जायेगा .... बात बात पर रो देने वाली आशना को आज अपने दिल में कठोरता महसूस हो रही थी । वह एकटक खामोशी से हितेन जी को देख रही थी साथ ही उसे अपने सीने में बेहिसाब दर्द भी हो रहा था । एक बच्चा इस दूनिया में आता हैं अपने माता पिता के सहारे कि वो उसे सबकी बुरी नजरों से बचायेगे.... वो उसे अपने सीने से लगाकर रखेंगे लेकिन यहां तो उसके मां पापा को उसकी शक्ल देखना तक पसंद नहीं .... ये कैसा न्याय था उस भगवान का एक छोटी सी बच्ची पर ... पर शायद ये सवाल भी समझ से परे था ।
शकुंतला जी इतनी देर तक अपने साहेब के इंतजार में खामोश खड़ी थी लेकिन अब सब कुछ उनकी बर्दाश्त के बाहर था जिस पोती को उन्होंने सीने से लगाकर रखा ... जिसकी छोटी सी आह पर उनका सीना छलनी हो जाता था । आज उनकी खुद की औलाद उनके उस नज़र के टुकड़े को अन्दर तक छलनी कर चुकी थी वो एकाएक चिल्ला उठी - बस ... बहुत हो चुका .... अब एक शब्द और नहीं .. वरना मुझे बिल्कुल शर्म नहीं आयेगी अपने इतने बड़े बेटे और बेटी पर हाथ उठाने में .... इतनी छोटी बच्ची का दिल तोड़ दिया .... और अफसोस करने के बजाय आपस में झगड़ा कर रहे हो ..... वो भी अपनी डिल के लिए जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर ... अभी मरी नहीं हूं मैं ... जो तुम दोनों मेरे ही घर में खड़े होकर इस तरह मेरी पोती पर सवाल उठाओ ।
हितेन जी चिल्लाते हुए - मां आप भूल रही है ... आपकी पोती मेरी भी बेटी हैं ।
सभी मेहमान जा चुके थे इसलिए हवेली में परिवार के लोग और नौकर ही खड़े थे जो सिर्फ तमाशा देखने का काम कर रहे थे ।
शकुंतला जी तेज आवाज में - चिल्लाइये मत क्योंकि दहाड़ना मुझे भी आता हैं .... और क्या कहां बेटी ...पर शायद तुम भूल रहे हो . ... फिर हितेन और स्वर्णा को एक नजर देखते हुए ... तुम दोनों उसे बहुत पहले ही दुत्कार चुके हो .. वो भी अपने स्वार्थ के लिए ... आगे से मेरी पोती के खिलाफ एक भी ग़लत शब्द सुना ना किसी के भी मुंह से तो उसकी ज़बान खिंच लेंगे और यह मेरी आखिरी चेतावनी हैं ... इतना कहकर वो आशना को अपनी गोद में उठाते सबको एक नजर भर देख अपने कमरे में चली गयी ।
वो आशना को अपने सीने से लगाते पलंग पर बैठी लगातार उसके बाल सहला रही थी लेकिन आशना तो खामोशी से बैठी थी । उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी जो शकुंतला जी को मन ही मन डरा रहा था ....
जारी हैं ..........
फ्लैशबैक
उस दिन से आशना की हंसती खेलती जिंदगी बर्बाद हो गयी । हमेशा चहचहाने वाली आशना खामोश हो गयी । जब परिमल जी को घर आने के बाद शकुंतला जी से सारी बातें पता चली तो वो बहुत दुखी हुए अपने ही बेटे के इस तरह के व्यवहार से और उनकी बहुत बहस भी हुई हितेन के साथ पर वही ढाक के तीन पात ।
उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा । फिर क्या था उन्होंने बस एक फैसला लिया और उनके इस फैसले ने आशना की जिंदगी बदल कर रख दी ।
परिमल जी ने अपना फैसला सुना दिया था - आशना को हर तरह से मजबूत बनाने का ताकि कोई उसे हर्ट ना कर सके । इसके लिए उन्होंने आशना को मार्शल आर्ट सिखाने के लिए एक मास्टर रख दिया जो हवेली में रहकर ही आशना को मार्शल आर्ट सिखाता । उन्होंने एक योगा टिचर भी रखा था जो आशना को रोजाना योगा , प्राणायाम करवाता । डाक्टर से परामर्श लेकर उन्होंने आशना के लिए डाइट चार्ट बनवा लिया जिसकी निगरानी वो खुद किया करते थे । उसे अपने डाइट चार्ट के अलावा कुछ भी खाने की इजाजत नहीं थी ।
उसे रोज सुबह चार बजे उठना पड़ता । उठने के बाद रोज पांच किलोमीटर की दौड़ । इसके बाद योगा , प्राणायाम , एक्ससाइज , इन सब में सात बज जाते थे फिर ठंडे पानी से नहाना अपनी दादी के साथ मंदिर जाना कुछ श्लोको का उच्चारण करना इसके बाद घर आकर नाश्ते में दूध और भींगे हुए मूंग या फिर उबली हुई पत्तेदार सब्जियां । इसके बाद स्कूल जाना लंच में बिना छोकी सब्जी और रोटी , स्कूल से आने के बाद थोड़ी देर आराम , दो घंटे ट्यूशन क्लास , दो घंटे गेमिंग क्लास और डिनर इसके बाद कुछ देर सेल्फ स्टडी और दस बजे सोना और फिर सुबह चार बजे उठना । यह उसका पूरा सेड्यूल था जो परिमल जी ने पूरे एक महिने में पूरी तरिके से सोच विचार कर बनाया था क्योंकि कुछ तो चल रहा था उनके दिमाग में जो वक्त आने पर ही सबके सामने आने वाला था ।
आशना जो अपनी इस तरह की जिंदगी से उदास थी । अब वह धीरे धीरे इन सब में ढलने लगी थी वो अपने दादाजी से बहुत प्यार करती थी इसलिए उन्हें नाराज करना उसे पंसद नहीं था लेकिन इन सब में आशना जो एक बातूनी स्वभाव की लड़की थी उससे उसकी आवाज जैसे छिन सी गयी थी । सारे दिन व्यस्त रहने के कारण उसे ज्यादा कुछ सोचने का वक्त नहीं मिलता था लेकिन जैसे ही थोड़ी देर बैठी रहती उसके दिमाग में यही आता कि उसके मां पापा उससे प्यार क्यो नहीं करते और दिमाग से एक ही जवाब मिलता कि शायद उन्हें उसका ज्यादा बोलना या हर वक्त खाने की अलग अलग चीजों की फरमाइश करना , हर बात मनवाने के लिए जीद्द करना उन्हें पंसद नहीं हैं । आखिर एक बार उसकी मम्मा गुस्सा हुई थी तब उसकी बुआ ने ही तो उसे बतायी थी यह सब बातें ..... और अब उसका दिमाग उनकी उन बातों को स्वीकार चुका था । इसलिए उसने किसी से भी जिद्द करना छोड़ दिया था । हर किसी की बात को गर्दन झुकाए मान लेना उसकी आदत बन चुकी थी । जैसा खाने को दिया जाता था वो उसे खा लेती थी क्योंकि उसे डर था जैसे उसके मां पापा उससे दूर रहते हैं वैसे अगर उसके दादाजी भी उससे दूर हो गये तो ।
लेकिन इन सब में एक चीज और भी थी कि उसके बाद आशना ने अपना जन्मदिन मनाना छोड़ दिया ।
सब कुछ सहन किया उसने अपनों के लिए लेकिन वह हमें चाहिए अपने परिवार के लिए तरसती रही ।
आशना जो एक आठ साल की बच्ची थी जिसके लिए इतनी पाबंदी क्या सही थी । उस बारे में किसी ने सोचा ? बिल्कुल भी नहीं ।
आशना अब दस साल की हो चुकी थी और इन दो सालों में उसने बहुत कुछ सिख लिया था जहां घर में वह सबसे डरती थी बाहर सब उससे डरने लगे थे । बास्केट बॉल , शतरंज उसके पसंदीदा खेल थे लेकिन उसे क्रिकेट देखना पसंद था मार्शल आर्ट भी उसने बहुत अच्छे से सिख लिया था फिर भी उसे गन शुंटिग से अलग ही लगाव था रिवाल्वर , राइफल चलाना उसके लिए एक गेम की तरह ही था । उसने सिंगिंग भी सिख ली थी और अब वह डांस सिख रही थी क्योंकि उसके दादाजी चाहते थे कि उसे क्लासिकल नृत्य भी आना चाहिए और हमेशा कि तरह उसके दादाजी का कहां हर शब्द पत्थर की लकीर की तरह था लेकिन इन सब में उसे एक चीज नहीं आती थी वो भी खाना बनाना । जिसे सिखने की कोशिश में एक बार वो अपना हाथ जला बैठी और उसके दादाजी ने फरमान सुना दिया कि वह अब किचन में कदम तक नहीं रखेगी । उन्हें आशना से इतना लगाव क्यो था यह तो किसी को पता नही था लेकिन उनका आशना के प्रति इतना संवेदनशील होना हर किसी को आसानी से नजर आ जाता था .. जहां सभी उनके कड़क स्वभाव से डरते वहां आशना की एक आह भी उनकी वाणी में नर्मी लाने के लिए काफी थी ।
इस बीच स्वर्णा और हितेन को बहुत बड़ा झटका लगा था जब उन्हें पता चला कि वो दूबारा पैरेंट्स नहीं बन सकते हैं क्योंकि अगर स्वर्णा जी प्रेगनेंट हुई तो बच्चे और मां के बचने का चांस एक प्रतिशत भी नहीं है । भगवान ने उन्हें उनके किये की सजा दे दी थी लेकिन इस से सिख लेकर सुधरने के बजाय उन्हें नफ़रत का रास्ता आसान लगा और उन्होंने इस का दोष भी आशना की मनहूसियत पर डाल दिया ।
धीरे-धीरे आशना ने उनके तानों के साथ जीना सिख लिया था
सब कुछ सहन किया उसने अपने परिवार के लिए फिर भी वह तरसती रही अपने ही परिवार के स्नेह के लिए ? इतनी ज्यातती सही नहीं थी ईश्वर की उसके लिए ।
उसके लिए अपने परिवार की नफ़रत सहन करना आसान नहीं था हर पल तिल तिल कर मरने के बराबर था ऐसे में बहुत मुश्किल हुआ उसके लिए जीना । खामोश हो गयी वो जरुरत पड़ने पर कुछ लफ्ज भी बड़ी मुश्किल से निकलते थे उसके मुंह से और सबसे सामना करना तो उसने छोड़ ही दिया था बस वो कोशिश करती रहती कि उसे किसी के सामने ना जाना पड़ा । हर दिन अपने ही मां पापा से बचने के लिए वो बहुत से तरिके अपनाती जो कभी कभी तो उसके लिए ख़तरनाक साबित हो जाते थे ।
जारी है.......
आगे
कुछ वक्त गुजर गया । रात के बारह बज चुके थे लेकिन वो अभी भी शांति से बैठी सामने समुद्र को निहार रही थी । जिसकी लहरें कभी शांत हो जाती तो कभी किनारे को चूमने के लिए हिलोरें मारती । प्रार्थना थोड़ी देर पहले जा चुकी थी क्योंकि उसके पापा की तबियत खराब हो गयी थी ।
आशना सामने समुद्र को देखते हुए - यह समुद्र भी कभी शांत नहीं रह सकता हैं । अभी जब शांत हैं तो मन को कितना सुकून मिल रहा हैं गर यह अशांत हो गया था तो तबाही का मंजर देखना मुश्किल हो जायेगा । कितने ही लोग तबाही के इस मंजर में हमेशा के लिए खो जायेंगे । कितने ही परिवार बेघर हो जायेंगे ।
मेरी हालत भी तो ऐसी ही हैं। अपना घर हैं लेकिन उसे हमारी चाह नहीं हैं । तीन साल .... कम वक्त तो नहीं .... पर वहां की चौखट पार करते वक्त किसी कि आंखों में दिखा ही नहीं ... उन्हें इंतजार है मेरे वापस लौटने का ...... एक अरसा बीत गया अपनो से दूर परायों के बीच ... ना कोई स्नेह ... ना किसी को मतलब हैं किसी से ...ना किसी के पास समय किसी के लिए .... इस भागदौड़ भरी जिंदगी में आराम ही नसीब नहीं हैं .... ऐसा लगता हैं एक रेस चल रही हैं और सब दौड़ रहे हैं .... बस जीतना चाहते हैं ... अपने सफ़र में किसी के लिए ठहराव जरूरी नहीं लगता किसी को .... कितना आसान हैं दूसरों को जिंदगी के लिए चाह दिखाना ..... बात खुद पर आती हैं तो सारे विचार एक पल में ढेर हो जाते हैं... खुद को भूलाना भी तो आसान नहीं ...जो यादें होंठों पर मुस्कराहट ले आये उन्हे भूला देना क्या इतना आसान हैं ... और जिनमें दर्द मिला हो .... उन्हें भूला देने की बात भी सोचे तो जमीर इंकार कर देता हैं .... अब तो अकेली ही हूं.. पूरे परिवार के होते भी अकेले रहना कितना मुश्किल हैं .... पर इन मुश्किलों से तो बचपन से सामना किया हैं .... गुजरे तीन साल तो उसके आगे शायद कुछ भी नहीं ।
यही विचार उसके दिमाग में बार बार गुंज रहे थे । उसकी आंखें रोने से लाल हो गयी थी सिर दर्द से फट रहा था और हाथ बूरी तरिके से कांप रहे थे लेकिन उसकी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दर्द तो बहुत था लेकिन कुछ वादों में जकड़न ऐसी थी कि उसे इस दर्द के साथ जिंदगी गुजारनी ही थी । उसकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया था दर्द । दर्द से छुटकारा पाना इतना भी आसान नहीं था क्योंकि दर्द को जिस मरहम की जरूरत थी आशना उसे अपने करीब भी नहीं आने देना चाहती थी चाहे उसके जख्म कितने भी गहरे हो चाहे वक्त के साथ वो नासूर ही बन जाये ।
रोते रोते उसकी सिसकियां बध गयी थी । पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ , नाक और गाल लाल हो गये थे । लेकिन कोई ऐसा नहीं था उसके पास जो उसके दर्द को कम कर सके जो उसे संबल बंधा सके । कोई नहीं था उसके पास जो उसे अपने सिने से लगा कर कहे कि बूरा वक्त गुजर जायेगा और कभी उसके भी नसीब में एक अच्छा वक्त होगा जहां कोई दर्द उसे छू भी ना पायेगा । उसके होंठों पर भी एक सच्ची मुस्कराहट होगी । यह सब उसके लिए ख्वाब की तरह थे क्योंकि उसने ही तो चुना था यह दर्द । चाहती तो उस वक्त ...
इतना सोचते ही उसके मन में अतीत की कुछ यादें कौंध जाती हैं
आज का दिन कुछ तो बुरा लाने वाला था । एक बड़े से हाॅल में आशना खड़ी रो रही थी और उसके सामने उससे उम्र में कुछ बड़ा एक लड़का खड़ा था और एक तरफ दीक्षित और प्रताप परिवार खड़ा था ।
मैं मानता हूं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था पर आखिरी गलती समझ कर माफ कर दीजिए ।
आशना रोते हुए - कितनी सफाई पेश करेगे आप मि. दीक्षित । आप तो इतने समय में मुझे जान ही नहीं पाये । आपसे कितनी बार कहां मैने ... अगर कुछ छूपा रहे हैं तो बता दीजिए । विश्वास का रिश्ता बनाया था ना आपने पर नहीं ..... पता हैैं लोग कहते हैं कि गर सामने महबूब हो तो हजार खताएं भी माफ लेकिन .... आपने गलती नहीं गुनाह किया है ... माफी गलती की मिलती हैं गुनाह की नहीं .... फिर चिखते हुए .... एक नहीं बहुत मौके दिए आपको लेकिन सच बताने की बजाय आप एक पर एक झूठ बोलते गये । मुझे खुद से दूर करने के लिए इतने नीचे गिर गये । जिसे अपना सब कुछ माना आज वो भी दगा दे गया । पता होता पहले की मोहब्बत का ऐसा सिला मिलेगा तो कसम महादेव की कभी इस रास्ते पर कदम रखने का ख्याल तक ना लाते ।
वो लड़का आशना का हाथ पकड़ते हुए - मैं आपको सब कुछ बता दूंगा बस एक आखिरी बार माफ कर दीजिए ।
आपके मि. दीक्षित कभी आगे से ऐसी गलती नहीं करेंगे ।
आशना नहीं में गर्दन हिलाते हुए .... रोने से उसकी हिचकियां बंध रही थी लेकिन फिर भी गहरी सांस लेते हुए - आपको एक कहानी सुनाते हैं मुझे बचपन में दादाजी ने सुनायी थी ।
.... एक बार मैंने उनसे ऐसे ही सवाल पूछ लिया कि दादू इस दूनिया में सबसे अनमोल क्या हैं
पता हैं उन्होंने मुझे बताया कि - एक बार तीन दोस्त थे ज्ञान विश्वास और धन तीनों में बड़ा प्यार था लेकिन एक समय ऐसा आया कि तीनों को जूदा होना पड़ा । तीनों एक दूसरे के गले लगकर रो रहे थे । तीनों ने एक दूसरे से सवाल किया कि फिर वह कहां मिलेंगे ।
ज्ञान ने कहां कि वो मंदिर में मिलेगा ।
धन ने कहां कि वो अमीरों की हवेली में मिलेगा लेकिन विश्वास खामोश रहा । जब उन दोनों ने पूछा कि वह कहां मिलेगा -उसने रोते हुए कहां कि वह एक बार चला गया तो वापिस कभी नहीं मिलेगा । इसलिए इस दूनिया कि सबसे अनमोल चीज विश्वास हैं । इसे पाने में जन्म लग जाते हैं और गंवाने के लिए एक पल भी काफी हैं । इंसान धन कमा लेगा , ज्ञान अर्जित कर लेगा लेकिन एक बार गवाया हुआ विश्वास बिल्कुल नहीं ......
आपने मेरा वही विश्वास तोड़ दिया मि. दीक्षित । आपको क्या लगता हैं मोहब्बत में मैं अंधी हो जाउंगी । मुझे कुछ दिखाई नहीं देगा । शुरू से सब पता था मुझे लेकिन मुझे लगा कि मैं अपनी मोहब्बत से सब कुछ सही कर दूंगी और एक दिन आपको भी मुझसे मोहब्बत होगी लेकिन मैं एक बार फिर गलत निकली .... मेरी बद्किस्मती हैं कि मैंने फिर गलत इंसान पे भरोसा किया । एक ग़लत आदमी से उम्मीद लगा ली । जिसके दिल में मोहब्बत का एक कतरा तक ना था उससे मोहब्बत की उम्मीद लगा ली ।
जानते थे आप की आशना प्रताप की जिंदगी हैं उसका स्वाभिमान लेकिन ... आपने तो आज वो भी .....
खैर अब सब कुछ बेवकूफी भरा होगा ... ना रिश्ते ...ना नाते ..... ना इश्क ..... ना खुद का वजूद ..... सब कुछ छिनने के बाद ... आप कौनसे प्यार की दुहाई दे रहें हैं
.... आशना प्लीज मेरी बात समझने की कोशिश कीजिए ।
वह रोते हुए अपने हाथ की एक अंगुली से अपने सिने के बाये ओर इशारा करते हुए .... आह ... यहां इतना दर्द हो रहा हैं कि अब तो बर्दाश्त के बाहर लग रहा हैं जिसे अपना समझा वो ही दगा दे गया । आपने तोड़ दिया आशना प्रताप को ...... मोहब्बत ना हो तो रिश्ते जिंदगी भर चलते हैं पर शर्त इतनी कि उसमें इज्जत , सम्मान और विश्वास हो । अगर रिश्तों में शक अपनी जड़ें जमा लेऔर विश्वास ना रहे तो ऐसे रिश्ते में पूरी जिंदगी अपने आत्मसम्मान के बीना घुट घुट कर जीने से अच्छा है उस रिश्ते को खत्म कर देना । बहुत शौक है ना आपको मुझे खुद से दूर करने का .... पूरी जिंदगी तरस जायेंगे मेरी शक्ल देखने के । आपको भी अहसास होगा मेरी तड़प का जो मैं महसूस कर रही हूं । सुन रहे हैं ना आप आजाद करते हैं आपको आज इस रिश्ते से ..... अब से यह बोझ आपके सिर पर कभी नहीं नजर आयेंगा आपको ... आशना प्रताप इतनी भी बेगरत नहीं ..... बीना प्यार के जी सकते हैं लेकिन बीना आत्मसम्मान के बिल्कुल नहीं ....
इतना कहते हुए वह घूटनो के बल गिरते हुए रो पड़ती हैं ।
वह लड़का उसके सामने बैठकर अपनी हथेलियों में उसके चेहरे को भरते हुए - आशना एक बार मुझे मौका तो दीजिए । जब मुझे अहसास हुआ कि मैं गलत हूं उसी पल आपको सब कुछ बताना चाहता था लेकिन ... हर बार मुझे यहीं डर लगा रहता कि ... अगर आप को खो दिया तो ....
आशना रोते हुए - खो तो अब भी दिया मि. दीक्षित …
वो लड़का उसकी आंसू पोछते हुए - आशना .... प्यार करते हैं आपसे .... अहसास हो गया ... आपसे दूर जाने के डर में हर पल बैचेन रहा हूं मैं .... आप तो मुझे समझिए .… मुझे जो आपके लिए सही लगा ...
आशना रोते हुए - क्यों मजबूर कर रहे हैं मुझे ... अगर अब इस रिश्ते में रही ना ... तो हर पल खुदकी आत्मा कचौटेगी कि इश्क के आगे आशना ने अपने स्वाभिमान की भी बली चढ़ा दी और इस बोझ के साथ जीना मुश्किल होगा... इतना मुश्किल की हर पल मौत का इंतजार रहेगा ... उसकी हथेलियों को अपने चेहरे से हटाते हुए - मैं नहीं चाहती की आप यूं मेरे सामने सिर झुकाए , मुझे आपका उठा हुआ सिर ही अच्छा लगता हैं ..... किस्मत ने भी कितना अजीब खेल खेला ना .... जिस इजहार का मुझे इंतज़ार था वो हुआ तो भी उस पल कि मैं इकरार भी नहीं कर पाउंगी ।
वो लड़का बैचेनी से - क्या आपको मुझसे मोहब्बत नहीं रही ....
आशना आंसू लिये होंठों से हल्की हंसी हंस कर - किसने कहां कि मेरी मोहब्बत मर गयी ..... बेशुमार मोहब्बत हैं आपसे .... और नफ़रत तो शायद ही कर पायेंगे .... जहां मोहब्बत हो वहां नफ़रत नहीं होती .... मैं इतना सब होने के बाद भी नहीं मानती कि मोहब्बत गलत होती हैं वो इंसान को बर्बाद कर देती हैं ..... बस लोग मोहब्बत के लिए गलत इंसान चुन लेते हैं और दोष मोहब्बत के हिस्से आ जाता हैं ..... और मैं नहीं कहती कि आप इंसान गलत हैं .... बस मैं ही मनहूस हूं या फिर बद्किस्मत ... जिससे भी जुड़ती हूं बस मेरे हिस्से बस दर्द ही आता हैं ।
वो लड़का - आशना हाथ जोड़ते हैं आपके , मुझे ऐसी सजा मत दीजिए ।
आशना सख्त आवाज में - मोहब्बत के लिए भीख नहीं मांगी जाती हैं मि. दीक्षित और सजा आपको कहां दी मैंने । सजा तो मैंने खुदको दी हैं आपसे दूर रहकर जीना कहां आसान होगा । जिसे देखें बिना मेरी सुबह नहीं होती उसको एक नजर देखने के लिए तरस जायेगे । तड़प , दर्द , बैचेनी , चाह , कसक के साये तले जियेगे पर वक्त के साथ सब संभल जायेंगे । कुछ वक्त बितेगा फिर सब भूल जायेंगे ..... फिर हंसते हुए ........ देखना कुछ दिनों बाद तो आप यह भी भूल जायेंगे कि आपकी जिंदगी में कभी कोई आशना भी आयी थी । और आखिर में वो रो भी पड़ती हैं एक आखिरी बार अपने महबूब को जी भर देख लेने के बाद वो हमेशा के लिए उस घर की चौखट पार करने के लिए मुड़ जाती हैं लेकिन ... कुछ सोचकर पलटते हुए उस लड़के को कस कर गले लगा लेती हैं ।
कुछ पल तो दूनिया रूक सी गयी थी उसकी जानती थी यह पल फिर कभी नसीब नहीं होगा इसलिए समेट लेना चाहती थी वह कुछ तो .... जिससे आगे की जिंदगी आसान तो नहीं लेकिन कुछ हद तक कठीन तो ना रहें ।
कुछ समय बाद उससे अलग होते हुए .... अपने गले से मंगलसूत्र निकाल उसके हाथ में रखते हुए.... निकल जाती हैं हमेशा के लिए ......
बहुत कुछ ऐसा था उसने अपने अन्दर समेट रखा था लेकिन उसकी पुरानी आदत की उसे हमेशा से अपना दर्द किसी को कहना ही नहीं आया और अभी भी उसकी आंखे आंसू बहा रही थी और होंठ बुदबुदा रहे थे - कैसे स्वीकारे उस प्रेम को जिसमें विश्वास ना हो ।
जारी हैं .....
फोन उठाकर - नूसरत बस थोड़ी देर में आ रहे हैं ।
इतना कहकर वो अपने पैरों में शूज पहनकर अपने कोट को कंधे पर टाककर जो वही बैंच पर रखा था ।
अपनी कार की तरफ निकल जाती हैं ।
कुछ देर बाद उसकी कार मुम्बई के उस ट्रेफिक को पार करते हुए अपनी मंजिल की तरफ जा रही थी । कार में रेडियो पर एक गाना बज रहा था जो उसके हालातों को साफ बंया कर रहा था ।
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
हर शय जहाँ हसीन थी, हम-तुम थे अजनबी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
लेकर चले थे हम जिन्हें, जन्नत के ख़्वाब थे
लेकर चले थे हम जिन्हें, जन्नत के ख़्वाब थे
फूलों के ख़्वाब थे, वो मोहब्बत के ख़्वाब थे
लेकिन कहाँ है इनमें वो पहली सी दिलकशी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में
रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फ़ुर्सत की हर घड़ी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
हर शय जहाँ हसीन थी, हम-तुम थे अजनबी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया
शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया
रिश्ता वफ़ा का और ही रंगों में ढल गया
अश्कों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
हर शय जहाँ हसीन थी, हम-तुम थे अजनबी
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िंदगी
( उस मोड़ से शुरू करें )
आधे घंटे की मशक्कत के बाद वह अपने विला के सामने थी ।
चाबी सिक्योरिटी गार्ड को थमाकर जैसे ही वह अन्दर जाती हैं । उसे नूसरत डायनिंग टेबल पर बैठी दिखती हैं ।
वो जैसे ही कुछ बोलने जाती हैं -
नूसरत खड़े होते हुए - बहुत नींद आ रही हैं मैम । मैंने खाना गर्म कर दिया हैं आप खा लेना । इतना कहते ही बीना आशना की बात सूने , वह विला के पीछे बने सर्वेट क्वार्टर में चली जाती हैं ।
आशना बस मुंह खोले उसे जाते हुए देखती रहती हैं जो बीना उसकी सुने जा चुकी थी । फिर सिर झटकते हुए डायनिंग टेबल पर बैठ जाती हैं जहां डिनर में एक बाउल में दलिया रखा था जिसमें नजाने कितनी ही सब्जियों को एड किया गया था ।
वह नार्मली उसे खाने लगती हैं इस वक्त उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे खाना खाने के बाद वह बर्तन उठाकर किचन के सिंक में रखती हैं और हाथ धोकर ऊपर अपने रूम में चली जाती हैं फ्रेश होने के बाद वह बिस्तर पर गिर पड़ती हैं और कुछ पल में ही वह अपने नींद के आगोश में थी ।
सुबह का सूरज बहुत कुछ बदलाव लाने वाला था लेकिन
आशना आज जल्दी ही आॅफिस जा चुकी थी । वह सात बजे से आॅफिस में बैठी एक फाइल लगातार देख रही थी और उसमें कुछ मिस्टेक्स निकाल रही थी उसके टेबल पर अभी भी फाइलों का ढेर लगा था ।
कुछ देर बाद उसका फोन रिंग करने लगता हैं । फोन उठाकर वह हैलो बोलती हैं
उधर से आवाज आती हैं - मैम , आपका शक सही था । इट वाज ए ट्रेप ।
आशना - तुमने सही से चेक किया ना ।
..... यस मैम
आशना शांति से हाथ में पेपरवेट घूमाते हुए - हम्म
..... मैम , आगे क्या करना हैं ।
आशना - जोशी साहब
... ... मैम , जोशी साहब ने केश की जगह चेंज कर दी हैं । कल से मेरे आदमी उनपर ही नजर रख रहे हैं ।
आशना - कोई नजर रख रहा था क्या जोशी साहब पर....
..... नहीं , शायद दीक्षित साहब शांत पड़ गये हैं ।
आशना - कुछ भी अपडेट हो तो तुरंत मुझे काॅल करना । पहले कोई एक्शन मत लेना और एक बात जोशी विल्ला पर नजर रखना । कोई भी हलचल हो सब नोट करके मुझे बताना।
...... ठीक हैं मैम
आशना फोन काटकर आंखें बंद करने के बाद चेयर से टेक लगाकर गहरी सांस लेने लगती हैं । वो बड़बड़ाते हुए - ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए तुमने यह ठीक नहीं किया अनिकेत , यह तुम्हारी जाॅब के लिए सही नहीं हैं ।
तभी प्रियंका केबिन में आते हुए - मैम अभी थोड़ी देर में सभी ट्रेनीज के साथ मीटिंग हैं । आप जल्दी से मीटिंग हाॅल में आ जाइए
आशना आंखें खोलते हुए ठीक हैं तुम चलों मैं आ रही हूं और प्यून से कहकर सभी फाइल्स मीटिंग हाॅल में रखवा दो ।
प्रियंका - ठीक हैं मैम , इतना कहने के बाद केबिन से बाहर चली जाती हैं ।
उसके जाने के बाद वह कुछ याद करते हुए प्रार्थना को काॅल लगा देती हैं ।
आशना - प्रार्थना , तुम्हारे पापा की तबियत कैसी हैं ।
प्रार्थना उधर से - आशना फिल्हाल नाॅर्मल हैं । तुम तो जानती हो कि फैमली में किसी की भी हल्की सी तबियत खराब होती हैं तो मम्मा बहुत घबरा जाती हैं पर मैं सोच रही हूं कि पापा को चार पांच दिन से बार बार बुखार हो रहा हैं तो उनका चेकअप करवा लेती हूं ।
आशना - इसलिए तो मैंने तुमको काॅल किया हैं मैंने डॉ. रहेजा का अपोइंटमेंट ले लिया हैं । तुम बस अंकल को वहां लेकर जाओ और कुछ भी परेशानी हो तो तुरंत मुझे काॅल करना हैं । सब समझ गयी हो ना
प्रार्थना इमोशनल होते हुए - तुम खुद से जुड़े लोगों का इतना ख्याल रखती हो आशना । इतना तो मैंने खुद नहीं सोचा जितना तुम सबके बारे सोचती हो ।
आशना हंसते हुए - इतना इमोशनल होना तुम पर सूट नहीं करता और फिलहाल बस अंकल का ध्यान रखो और तुमसे एक काम हैं तो वकील साहिबा कल मेरे आॅफिस आने की कृपा करें ।
प्रार्थना हंसते हुए - ठीक हैं तो कल आपकी लिगल एडवाइजर आपके सामने हाजिर होगी ।
आशना - अब मैं फोन रखती हूं । मुझे एक मिटिंग अटेंड करनी हैं ।
प्रार्थना - ठीक हैं इतना कहकर फोन काट देती हैं ।
आशना टेबल पर फोन रखते हुए अपने चेयर से उठते हुए एक फाइल उठाकर मीटिंग हाॅल में चली जाती हैं । पीछे से प्यून सारी फाइल्स मीटिंग हाॅल में रख चुका था ।
जारी हैं ....
आशना अभी मीटिंग हाॅल में बैठी सब ट्रेनीज पर चिल्ला रही थी । आप सब को यहां इन्टरशिप करते लगभग दो महिने हो गये लेकिन जो फाइल्स मैंने आपको रेडी करने के लिए दी ना उनमें इतनी सिल्ली मिस्टेक्स हैं कि मुझे यह सोचना पड़ रहा है कि आप सब ने रियल में पढाई की हैं नहीं । ऐसे बनेंगे आप एक बेस्ट सीए
वह उन सब पर पिछले आधे घंटे से चिल्ला रही थी और सभी ट्रेनीज सिर झुकाए बैठे थे । इतनी हिम्मत नहीं थी उनमें जो वह उसके सामने अपनी गर्दन भी उठा सकें ।
अभी लगभग नौ बज चुके थे । तभी प्रियंका फटाफट मीटिंग हाॅल में आते हुए - मैम जोशी साहब आये हैं वो इमीडेट्ली आपसे मिलना चाहते हैं । अभी आपके केबिन में बैठे हैं ।
आशना खड़े होते हुए - अपने साइड में खड़े नमन से - नमन
नमन जो इतनी देर से प्रियंका में खोया था वो हड़बड़ाते हुए - जी मैम ।
आशना - स्वाती से कहो कि इन सब फाइल्स में जो भी मिस्टेक हैं उन्हें इन सब को प्रोप्रली समझा दे ।
नमन - जी मैम ।
आशना बाहर जाते हुए - प्रियंका , प्यून को बोलकर मेरे केबिन में दो कप चाय भिजवा दो ।
कुछ देर बाद वह गहरी सांस लेते हुए अपने केबिन का दरवाजा खोलती हैं जहां जोशी साहब घबराहट से लगातार अपने वाइट रूमाल से चेहरे का पसीना पोंछ रहे थे ।
आशना केबिन में आते हुए - एसी में भी इतना पसीना ।
जोशी साहब - तुम जानती हो आज सब कुछ बर्बाद हो गया । सुबह पांच बजे से इनकमटेक्स वाले पुरे घर को कबाड़ा बनाने पर तुले हैं । बेड़ के गद्दे , सोफे , बड़े बड़े शोपिस सबको तहस नहस कर चुके हैं । वो आॅफिसर मेरे साथ गेम खेल गया । पैसे तो ले गया साथ ही रेड भी डाल दी मेरे घर पर । वो तो सही था कि मैं घर पर नहीं था । किसी तरह यहां पहुंचा हूं ।
आशना - तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं ।वैसे भी एक बहुत पुरानी कहावत है कि अब पछतावे क्या होवे जब चिड़िया चुग गई खेत ।
जोशी जी - लेकिन .... उन्हें सब कैसे पता चला ।
आशना गुस्से से - आप की बेवकूफियां को सलाम करना पड़ता हैं । आपने पहली गलती की - सारे डाटा पेपर सेट किसी सही जगह रखने के बजाय उन्हें यूं ही अपने केबिन में रख दिया ।
अगर किसी के हाथ पेपर लग भी गये तो मुझसे बात करने के बजाय अपने उसे खुद को ब्लैकमेल करने का मौका दिया ।
आपकी तिसरी गलती - सब कुछ जानने के बाद की वह आॅफिसर अनिकेत दीक्षित हैं आपने उसका मुंह बंद करवाने के लिए पचास करोड़ देना सही समझा ।
आपकी चौथी गलती - सब कुछ मुझसे छुपाया । सोचा कि इस मैटर को आप अकेले ही सुलझा देगे ।
आपकी पांचवी गलती - उसे पचास करोड़ केस देने के लिए तैयार हो गये । जानते हुए भी कि इतनी बड़ी रकम केस रखना कानूनी जूर्म हैं और जब वो टेक्स में से बचाया गया हो । अपने खिलाफ सबूत पर सबूत देते गये ।
आपकी छठवीं गलती - सारा पैसा अलग अलग जगह रखने के बजाय एक जगह छूपा कर रखा वो भी अपने ही घर में । उसे खुद उस जगह का पता दिया जहां आपने सारा मनी बैंक छूपा रखा हैं ।
सातवी गलती - इन सब से आपका पेट नहीं भरा तो आप खुद ही उसे पैसे देने चले गये ।
आठवीं गलती - मेरे कहने पर भी एक हजार करोड़ को घर से दूसरी जगह शिफ्ट करने का सिर्फ दिखावा किया लेकिन उसकी जगह चेंज नहीं की । मुझे पर विश्वास नहीं था लेकिन उस आॅफिसर पर था जो अब तक बहुत बड़े बड़े बिजनेसमैन को इसी तरह फंसाकर बर्बाद कर चुका हैं ।
जोशी जी उसे हैरानी से देखने लगते हैं । उन्हें इतना हैरान देखकर आशना - ग़लत मत समझना जोशी साहब लेकिन आशना हर कदम फूंक-फूंक कर रखती हैं और आप इतनी मोटी चमड़ी के इंसान हैं कि आपकों मेरी बात इतनी आसानी से समझ आ जाए यह हो नहीं सकता । मुझे पता था आप कुछ ऐसा ही करेंगे इसलिए मैने सारा पैसा एक सुरक्षित जगह पहुंचा दिया वरना आप तो पूरी तैयारी कर चुके थे अपने साथ मुझे भी जेल पहुंचाने की ।
जोशी जी - यानी तुम मुझ पर नज़र रख रही थी ।
आशना - आॅफिशियली आप मेरे क्लाइंट हैं आपकी कम्पनी की लिगल सीए हूं मैं । ऐसे में मुझे अपने को बचाना अच्छी तरह आता हैं तो टेंशन मत लिजिए आप जेल जाने से बच गये और आपकी कम्पनी भी बैंक करप्ट होने से ।
जोशी जी - थैंकस आशना , मैं बता नहीं सकता तुमने मेरे लिए क्या किया हैं ।
आशना हंसते हुए - वेट अ मीनट । मुझे आपका कोई थैक्स नहीं चाहिए और आप अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे क्या चाहिए ।
जोशी जी - ठीक हैं । चलो दस करोड़ तुम्हारे ।
आशना हंसते हुए जोशी जी की आंखों में आंखें डालकर - आप क्या मुझे छोटी बच्ची समझते हैं जो एक लाॅलीपाॅप से बहला देंगे । मैंने आपके एक हजार करोड़ बचाये और आप मुझे दस करोड़ में ही सलटाना चाहते हो ।
जोशी जी चाय का कप टेबल पर रखते हुए - अब तुम ही बता दो ।
आशना शांति से - दौ सौ करोड़ ।
जोशी जी अपनी कुर्सी पर से खड़े होकर - दौ सौ करोड़ .... बिल्कुल नहीं ।
आशना - कोई बात नहीं , हजार करोड़ गंवाने से अच्छा सौदा मुझे आठसौ करोड़ बचाने का लगता हैं ।
जोशी जी - ठीक हैं ।
आशना - तो डिल आज डन आपके आठसौ करोड़ आपके घर पहुंच जायेंगे सही सलामत कोई चिंता मत कीजिए और घर जाइए । इनकमटैक्स वालों को आपके घर कुछ नहीं मिलने वाला ।
जोशी जी अपने आपको शांत करते हुए उसके केबिन से बाहर निकल जाते हैं ।
उसके जिसने के बाद आशना आंखें मूंदे हुए - आशना प्रताप के साथ धोखा किया हैं आपने । धोखा देने वालों के लिए साक्षात काल हूं मैं । अब आपको पता चल गया होगा कि मुझसे कुछ नहीं छूपाना था आपको । असल में आज खुली आंखों से खुदको बर्बाद होते महसूस तो किया होगा पर आखिर वक्त में आप बच गये पर .... समझ गये होंगे कि .... मुझसे उलझना भारी पड़ गया ... वो भी पूरे दो सौ करोड़ ......
जारी हैं ....
उन सब बातों को एक महिना गुजर गया । प्रार्थना अभी अपनी फैमली के साथ अपने गांव अपने चाचा की लड़की की शादी में गयी हुई थी इसलिए उसकी और आशना की मुलाकात एक महिने से नहीं हुयी थी ।
जोशी साहब अब भी हर दो दिन में एक चक्कर सहारा फर्म के लगा ही लेते हैं लेकिन जवाब में आशना का हमेशा इंकार ही होता हैं । उसकी लाइफ में अभी सब कुछ थोड़ा बहुत नार्मल ही चल रहा था । उस दिन के बाद उसने अपने काम में और सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी ।
एक महिने बाद
आशना हाॅल में डायनिंग टेबल पर बैठी अपना नाश्ता कर रही थी और नूसरत दो नौकरों से घर की सफाई करवा रही थी ।
तभी आशना का फोन रिंग करने लगता हैं । फोन उठाते ही उधर से प्रियंका - मैम एकबार न्यूज देखिए ।
आशना उसकी आवाज में घबराहट महसूस करते हुए - रिलैक्स , मैं देख रही हूं ।
आशना जैसे ही न्यूज चलाती हैं । एक के बाद एक खबरें आ रही थी ।
शेयर मार्केट में धमाका - जिस प्रताप ग्रुप के शेयर आज तक ऊंचाई की बुलंदियों पर थे वो लगातार नीचे गिरते जा रहे हैं । कंपनी की मार्केट प्राइस घटकर 50 प्रतिशत ही रह गयी हैं अगर शेयर्स के दाम ऐसे ही गिरते रहे तो प्रताप ग्रुप को दीवालिया होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा ।
क्या सच में इंडिया की इतनी बड़ी इन्टरनेशनल कंपनी मात्र कुछ दिनों में ही दिवालिया हो जायेगी ।
क्या ये किसी की साज़िश हो सकती हैं ।
इन्वेस्टर्स अपना पैसा खिंचने में लगे , ऐसा में कौन होगा वह मसीहा जो खड़ा होगा प्रताप ग्रुप के साथ ।
क्या प्रताप ग्रुप हमेशा के लिए मार्केट से अपनी पहचान खो देगा ।
प्रताप ग्रुप आॅफ कम्पनी के शेयर घटने की वजह से उससे जुड़ी पंद्रह और कम्पनीज़ के शेयर्स घटने लगे हैं ।
सभी न्यूज पढ़कर उसके होश उड़ जाते हैं ।
आशना फोन प्रियंका को मिलाते - बैंक में बैलेंस कितना हैं।
प्रियंका - मैम लगभग तीन हजार करोड़ ।
आशना अपने माथे को अंगुली से घिसते हुए - केस कितना हैं ।
प्रियंका - मैम आठसौ करोड़ ।
आशना शांति से - प्रताप ग्रुप को छोड़कर बाकी कम्पनीज़ के टोटल वाॅर्थ कितनी हैं ।
प्रियंका - मैम अकाॅर्डीग टू स्वाती , लगभग बीस हजार करोड़ ।
आशना - अभी मार्केट में अपना कितना पैसा पड़ा हैं ।
प्रियंका - मैम पचास हजार करोड़ ।
आशना - अगर हम अपने वालिया ग्रुप के 10 प्रतिशत शेयर बेच दे तो ।
प्रियंका - मैम काम हो जायेगा । 10 प्रतिशत शेयर लगभग 25 हजार करोड़ तक बिक सकते हैं ।
आशना - फिर ठीक हैं कुछ अच्छी कम्पनीज़ को मेल करो जो इन शेयर्स को खरीदने में इंटरेस्टेड हो उनके साथ दो दिन में मीटिंग फिक्स करो ।
प्रियंका - ठीक हैं मैम ।
आशना फटाफट नाश्ता करके अपने आॅफिस के लिए निकल चुकी थी ।
सहारा फर्म में
प्रियंका परेशान होते हुए नमन से - मैम ना बिल्कुल पागल हो गयी हैं ।
नमन - अब क्या हो गया ।
प्रियंका परेशानी से - तुम्हें पता हैं अभी प्रताप ग्रुप के शेयर्स कितनी तेजी से गिर रहे हैं ऐसी स्थिति में मैम अपना पैसा उससे जुड़ी कम्पनीयो में लगाने की बात कर रही हैं तुम समझ रहे हो इसमें कितना बड़ा रिस्क हैं । अगर प्रताप ग्रुप के शेयर गिरते रहे ना तो हम भी दिवालिया हो जायेंगे ।
नमन - लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता हैं तुम कुछ ज्यादा सोच रही हों ......
प्रियंका - पूरे बीस हजार करोड़ , अगर कम्पनीज़ डूबी तो पैसा भी डूब गया । तुम्हें नहीं लगता कि तुम इस बार गलत हो ।
नमन - मुझे ऐसा नहीं लगता हैं । मुझे बस यह लगता हैं कि मैं सही बोल रहा हूं । वक्त आने पर पता चल जायेगा और वैसे भी हमें बस मैम का आॅर्डर फोलो करना ना कि उनसे सवाल जवाब ।
प्रियंका - बात तो तुम्हारी ठीक हैं ।
नमन - फिर ठीक हैं जो तुम्हें समझ आ गया । वैसे शाम को मेरे साथ डिनर डेट पर चलोगी ।
प्रियंका हंसते हुए - सोच कर बताऊंगी ।
नमन - पर.......
प्रियंका वहां से जाते हुए - अभी मुझे बहुत काम हैं ।
नमन - यह तुम ठीक नहीं कर रही हों ....
प्रियंका बस मुस्कराते हुए निकल जाती हैं ।
आशना ड्राइव करते हुए अलग ही सोच में गुम थी । ऐसा कैसे हो सकता हैं अचानक से शेयर्स का गिरना , कुछ समझ नहीं आ रहा हैं । मुझे सब पता करना ही होगा ।
वह फटाफट अपने फोन से किसी का नम्बर डायल करने लगती हैं लेकिन सामने से कोई काॅल नहीं उठाता हैं । इससे वह और ज्यादा परेशान हो जाती हैं । यह आदमी मेरा फ़ोन क्यो नहीं उठा रहा हैं । इससे उसे बैचेनी महसूस होने लगती हैं ।
किसी तरह वह आॅफिस पहुंचती हैं । कुछ देर सोचने के बाद वह कांपते हाथों से एक नम्बर पर काॅल लगा देती हैं ।
सामने से लगातार - हेलो .... हेलो की आवाज आ रही थी लेकिन आशना की हिम्मत ही नहीं थी कि वह अपने मुंह से आवाज निकाल सके और वह अंत में थककर काॅल काट देती हैं ।
किसी तरह वह अपने काम में ध्यान लगाती हैं लेकिन उसका किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था । अब तक वह चाय के सात कप खाली कर चुकी थी और आठवां उसके हाथ में था । वह गुस्से से एक फाइल को उठाते हुए अपने केबिन से बाहर निकल जाती हैं ।
वह बाहर आकर गुस्से से - स्वाती .... स्वाती
उसकी गुस्से भरी आवाज सुनकर स्वाती जो प्रियंका के साथ बैठी अगले प्रोजेक्ट की डिटेल्स कलेक्ट कर रही थी चौंककर उठ जाती हैं जिससे टेबल पर रखा काॅफी कप टूटकर बिखर जाता हैं ।
आशना को गुस्से में अपनी ओर आते देखकर वह सिर झुकाए खड़ी हो जाती हैं ।
आशना गुस्से में थी लेकिन सारे स्टाफ को अपने और स्वाति की तरफ देखते देखकर वह अपने आप पर कन्ट्रोल करने की कोशिश करने लगती हैं किसी तरह वह खुद को कन्ट्रोल करने में एक हद तक कामयाब भी हो जाती हैं । किसी तरह अपने हाथ मे रखी फाइल डूस्क पर पटकते हुए - ओनली टर्टी मिनट्स , करेक्ट आॅल द मिस्टेक्स इन दिस फाइल । इतना कहकर वह अपने केबिन में चली जाती हैं ।
उसके जाने के बाद सभी एम्पलाॅयज गहरी सांस लेते हैं ।
स्वाती किसी तरह गहरी सांस भरकर वह फाइल लेकर अपनी डेस्क पर बैठ जाती हैं और जैसै जैसे उस फ़ाइल को रीड करने लगती हैं उसका तो सिर ही चकरा जाता हैं । ऐसी मिस्टेक्स जो नहीं होनी चाहिए , उसका दिमाग लगातार गर्म होता जा रहा था लेकिन वह बीना किसी पर ध्यान दिये लगातार उस फ़ाइल में सिर खफा रही थी ।
आशना केबिन में बैठी लगातार गहरी सोच में गुम थी । उसकी बैचेनी इस कदर बढ़ गयी कि वह लगातार बैचेनी से चहलकदमी करने लगती हैं । वह अपने दिल पर हाथ रखते हुए - क्या हो रहा हैं इतनी बैचेनी पहले तो नहीं हुयी ..... कही मि. दीक्षित ..... नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता हैं ..... फिर दादू ..... इतना सोचते ही वह चौंक जाती हैं । अगर कुछ हुआ तो ....
तभी उसके फोन पर एक मैसेज टोन बजती हैं जिसे पढ़ कर उसके होश ही उड़ जाते हैं ।
नहीं यह नहीं हो सकता हैं मुझे जल्द ही वहां पहुंचना होगा वरना ..... शायद कभी ..... खुद से भी नजरें मिलाने में शर्म आये ।
जारी हैं .......
आगे .....
अगला दिन
जयपुर एयरपोर्ट
वह ब्लैक बिजनेस सूट में आंखों पर काला चश्मा लगाये बाहर खड़ी किसी का बेसब्री इंतजार कर रही थी । उसके दोनों तरफ प्रियंका और नमन खड़े थे और वह लगातार भरी आंखों से इधर उधर देखने लगती हैं ।
तभी उसे दूर से एक आदमी दिखता हैं जो वही खड़े लगातार चारों तरफ देख रहा था । वह उसकी तरफ चल देती हैं और उसके पीछे पीछे नमन और प्रियंका जो की अभी भी असमंजस में थे वो आपस में ही ।
प्रियंका नमन के कान में फुसफुसाते हुए - तुम्हें पता हैं की हम जयपुर क्यों आये हैं ।
नमन भी उसके कान में फुसफुसाते हुए - मुझे नहीं पता हैं । बस रात को मैम ने मैसेज किया कि अपना लगेज पैक कर लेना एक महिने के लिए जयपुर जा रहे हैं ।
प्रियंका - मुझे भी ऐसा ही मैसेज किया था । पता नहीं हम यहां क्या करने आये हैं ।
नमन - बात तो सही हैं । अब आगे देखते हैं ।
तब तक वे दोनों आशना के पीछे पीछे उस आदमी तक पहुंच चुके थे ।
आशना को अपने सामने देखते ही वह आदमी अपना सिर झुकाते हुए - वेलकम बैक मैम । उम्मीद नहीं थी आपको इस तरह यहां देखने की ।
आशना - थैंक्यु सुमित , अब चलें ।
प्रियंका हैरानी से - यह क्या था नमन , वेलकम बैक मतलब मैम यहां पहले भी आ चुकी हैं ।
नमन भी हैरान था लेकिन शांति से - लगता हैं तुम्हें अपने सारे सवालों के जवाब मिलने वाले हैं वो भी जल्द .....
प्रियंका - मतलब
नमन - शायद यहां से हमें मैम के पास्ट के बारे में पता चले ।
प्रियंका - शायद तुम सही हों ।
जब तक सुमित सारा लगेज गाड़ी में रख चुका था ।
आशना पीछे मुड़कर - तुम दोनों को चलना हैं या यही बातें करते रहोगें ।
उसके पीछे मुड़ने से नमन और प्रियंका सकपकाकर - चलते हैं ना मैम ।
कुछ देर बाद गाड़ी हवा से बातें करते हुए जयपुर की सड़कों पर दौड़ रही थी ।
नमन और प्रियंका पीछे बैठे थे और सुमित ड्राइव कर रहा था । आशना उसके साइड में बैठी थी ।
आशना - यह सब कब से हो रहा हैं ।
सुमित गहरी सांस लेते हुए - दो महिने से । पता नहीं कैसे लेकिन दादा साहेब ने जब से आॅफिस आना बंद किया है सभी प्रोजेक्ट हाथ से फिसलने लगे । कुछ प्रोजेक्ट डूब गये जिनमें बहुत सारा पैसा पानी की तरह बहा दिया गया । कम्पनी के सारे एकाउंट खाली हो गये । एक महिने से तो एम्पलाॅयज को सैलेरी भी नहीं मिली हैं और दो दिन पहले बोर्ड आॅफ डायरेक्टरस ने डिसाइड किया हैं कि दादा साहेब को कम्पनी के सत्तर पर्सेंट शेयर्स बेच देने चाहिए । दादा साहेब वैसे ही पिछले दो महिनों से परेशान हैं और अब यह सब कुछ जिससे उन्हें माइनर अटैक आ गया ।
आशना दर्द भरी आवाज में - क्या उन्होंने एक बार मुझे बताना जरुरी नहीं समझा ।
सुमित - काका ने कहां था उन्हें कि बिटिया को बुला ले लेकिन उनकी जिद्द तो आप जानती ही हैं कि उन्होंने साफ मना कर दिया कि अगर उसे हमारी फ्रिक होगी तो वह खुद आ जायेगी ।
आशना - उनकी जीद्द मुझसे अच्छी तरह और कोई नहीं जान सकता हैं । कभी कभी तो एकदम बच्चों की तरह बन जाते हैं अपनी बात मनवाने के लिए ।
सुमित - तो पहले कहां चलोगी ।
आशना - आपकों क्या लगता हैं ।
सुमित - मुझसे पूछो तो पहले हवेली चलना चाहिए ।
आशना - फिर ठीक हैं तो हवेली ले चलो ।
सुमित ने कार का रुख हवेली की तरफ मोड़ लिया । बैंक सीट पर बैठे नमन और प्रियंका उनकी बाते बड़ी गौर से सुन रहे थे ।
आशना अपना चेहरा कार से बाहर निकाले उन ठंडी हवाओं को महसूस कर रही थी जो उसे शहर की उस भीड़ में कभी महसूस नहीं हुई ।
आशना , सुमित की तरफ देखते हुए - एक काम करो सुमित , बोर्ड आॅफ डायरेक्टरस की एक अर्जेन्ट मीटिंग बुलाओ । सबको इंफोर्म करदो कल सुबह कम्पनी पहुंचने के लिए । फिर वह बैक साइड मुड़ते हुए - यह तुम इस तरह आगे की तरफ क्यो झुके हो ।
नमन और प्रियंका सीधे बैठते हुए - कुछ भी नहीं मैम , बस ऐसे ही ।
आशना - प्रियंका , तुम्हारा काम कहां तक पहुंचा ।
प्रियंका - मैम , मैंने इमेल कर दिया हैं और कुछ इन्वेस्टर्स मीटिंग के लिए राजी हो गये हैं और आपके बताये अनुसार मैने आपकी उन सब के साथ आज रात दस बजे की आॅनलाइन मिटिंग रख दी हैं ।
आशना गर्दन हिलाते हुए - अच्छा , फिर नमन की तरफ देखते हुए - स्वाति से बात हुई ।
नमन - यस मैम , प्रार्थना मैम से डिस्कस करके सारे पेपर्स रेडी कर दिये गये हैं । सारी लिगल टर्मस एंड कंडिशन्स उसमें एड कर दी हैं और सारे पेपर्स की पीडीएफ उसने आपको मेल कर दी हैं । आप एक बार चेक करके अगर कुछ चेंज करना हो तो मुझे बता दिजिए ।
आशना - तुम्हें क्या लगता हैं नमन , वाट इज राइट ।
नमन - मैम , हमें पहले सभी कम्पनीज़ की ग्रोथ रेट देखनी चाहिए । बीना पुरी जानकारी के इतने पैसे इनवेस्ट करना इट्स वेरी रिस्की ।
आशना - यू आर राइट , मैं सोचती हूं इस बारे में ।
इसके बाद आशना सभी लिगल पेपर्स चेक करने लगती हैं और कई जगह वह मार्क करती जा रही थी ।
आशना अपने काम में पुरी तरह खो चुकी थी और सुमित का पूरा ध्यान ड्राइविंग पर था । नमन और प्रियंका जो कभी शहर की जिंदगी से बाहर भी नहीं निकले थे वे दोनों आंखों में चमक लिये बाहर के नजारे देख रहे थे ।
प्रियंका - नमन , मुझे लगता हैं यह सरसों के पेड़ हैं ।
नमन सोचते हुए - नहीं .... गेहूं के भी तो हो सकते हैं ।
प्रियंका चहकते हुए - वो देखो गायों के झुंड ....
नमन भी देखते हुए - असल में कितना सुन्दर नजारा हैं ना सब कुछ साफ़ और स्वच्छ ।
प्रियंका - चारों तरफ सिर्फ हरियाली हैं ।
नमन - हवा भी कितनी साफ और ठंडी हैं ।
प्रियंका - मुम्बई की हवा में सिर्फ डस्ट ही नजर आती हैं ।
वे दोनों बस इसी तरह उत्सुकता से एक दूसरे से बातें कर रहे थे ।
उन्हें सफर करते हुए एक घंटा होने वाला था ।
कुछ देर बाद आशना अपना काम ख़त्म करते हुए गहरी सांस लेकर - और कितना समय लगेगा सुमित ।
सुमित खामोशी तोड़ते हुए - बस दस मिनट और....
आशना गाड़ी में कुछ देखते हुए - अच्छा
सुमित उसे गाड़ी में कुछ देखते देखकर - आप कुछ ढूंढ रही हैं ।
आशना उसकी तरफ देखते हुए - हां , दरहसल पानी ....
सुमित उसे अपने साइड से पानी की बोतल देते हुए - ये लिजिए ।
आशना पानी की घूंट भरते हुए सुकून से सिर सीट पर टिकाते हुए आंखे बंद कर लेती हैं ।
बंद आंखों से ही वह कुछ सोचने में गुम थी - मजबूत होकर भी आज मजबूर हो ही गये । अब समझ आ रहा हैं सब कुछ ..... दादासाहेब .... किस कदर मजबूर होंगे आप .... अपनी ही औलाद के हाथों .... खैर अब मुझे इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता । बस सब कुछ सही कर दूं फिर वापिस तो जाना हैं ।
तब तक कार एक हवेली के सामने रुक जाती हैं । आशना अभी भी आंखों को मूंदे बैठी थी । नमन और प्रियंका तो उस हवेली की खुबसुरती को आंखें फाड़कर निहार रहे थे ।
प्रियंका अपने दिमाग पर जोर देते हुए - मैंने यह हवेली कहीं तो देखी हैं नमन ।
नमन के मुंह से तो बस एक ही शब्द निकलता हैं - वाव , इट्स वेरी ब्युटीफुल
सुमित , आशना को आवाज लगाते हुए - मैम , हम पहुंच गये ।
आशना अचानक से चौंककर उठ जाती हैं । तभी उसकी नज़र उस हवेली पर पड़ जाती हैं । वह एकटक उस ओर ही देखने लगती हैं । अभी उसके मन में उथल-पुथल मच रही थी लेकिन चेहरे पर कोई भाव नजर आ जाये तो उसे आशना कहना ही मुश्किल होगा ।
वह एकटक उस घर को देखते हुए - लग रहा हैं मेरे लिए सब मुश्किल होने वाला हैं पर अब आ ही गयी हूं तो तहलका तो होगा ही लेकिन अब कुछ शांत तो नहीं रहने वाला .... बस हर दिन शोर होगा और कुछ चटपटा । वैलकम बैक आशना ... आखिर पंछी अपने आशियाने में आ ही गया ..... पर कोई पंछी को आशियाने में देखकर खुश तो नहीं होगा ।
जारी हैं ........
आगे .....
सुमित , आशना को खामोशी से एकटक उस हवेली को निहारते देख - मैम , अन्दर भी चलना हैं ।।
उसकी आवाज सुनकर आशना बाहर निकलते हुए - ठीक हैं । नमन और प्रियंका , तुम दोनों भी बाहर आ जाओ । अब एक महिने के लिए यह ही हमारा आशियाना हैं ।
प्रियंका मुंह खोले - यह तो एक महल ही लग रहा हैं मैंम ।
आशना गहरी सांस लेते हुए - पर इस महल के नियम बड़े शख्त हैं ।
वो आपस में बात ही कर रहे थे कि एक सिक्योरिटी गार्ड हैरानी से उसे देख रहा था क्योंकि इस हवेली में इस तरह के लड़कों की तरह के कपड़े पहने उसने कभी किसी लड़की को नहीं देखा था ।

उसके इस तरह मुंह को खुला रखें हैरानी से देखता देख - आशना - इस तरह क्या देख रहे हैं आज तक कभी लड़की नहीं देखी हैं क्या ?
सिक्योरिटी गार्ड - नहीं .... नहीं .... कुछ नहीं ।
आशना , उन्हें शक्की नजरों से देखते हुए - सच में ... कुछ नहीं ...
उसे सिक्योरिटी गार्ड को शक्की नजरों से देखते देख , सुमित बीच में ही - क्या कर रहे हैं काका , ये लोग खास मेहमान हैं दादा साहेब के ... मैं इन्हें अन्दर ले जाता हूं । आप गाड़ी को पार्क लगवाकर , इनका लगेज अन्दर भिजवा दिजिए।
सिक्योरिटी गार्ड - ठीक हैं सुमित बिटवा ।
इतना कहकर वह बड़ा सा गेट खोल देता हैं । आशना उन सभी के साथ अन्दर पैर रखने वाली होती हैं लेकिन कुछ सोचकर वह रुक जाती हैं और झुककर कुछ मिट्टी अपने हाथों मे लेकर सिर के लगाती हैं और आंखें बंद कर लेती हैं । एक बूंद आंसू उसकी आंखों से टपक कर नीचे मिट्टी में विलीन हो जाता हैं जो किसी की नजर में नहीं आता हैं । वह किसी तरह भावनाओं को काबू में रखकर खड़ी होती हैं और बीना भाव के अन्दर चली जाती हैं ।
उसके पीछे - पीछे नमन और प्रियंका भी चले जाते हैं ।
हवेली के अन्दर लिविंग रुम का माहौल बहुत टेंशन भरा था ।
मायावती और हितेन आपस में लड़ रहे थे ।
साइड में स्वर्णा जी के साथ दो औरतें खड़ी थी । मनय और शेखर हमेशा की तरह चुपचाप खड़े होकर तमाशा देख रहे थे ।
मायावती गुस्से से - यह सब कुछ तुम्हारी बेवकूफी की वजह से हो रहा हैं । एक प्रोजेक्ट नहीं संभाला गया तुझसे ।
हितेन जी उनके सामने खड़े होकर तंज से - बिल्कुल मानता हूं यह मेरी गलती हैं लेकिन .... आपका प्रोजेक्ट .... उसमें किसकी गलती थी । उस प्रोजेक्ट के लिए पूरे पांच सौ करोड़ उठाये थे ना आपने कम्पनी के अकाउंट से .... फिर .... क्या हुआ .... बोलती बंद .... और चिल्लाइए मुझ पर ....आपने भी कोई झंडा नहीं गाड़ दिया जो मुझ पर चिल्ला रही हैं ।
मायावती अपनी गलती सुनकर चुपचाप शांति से - ठीक हैं मानती हूं मेरी भी गलती हैं लेकिन अब कोई आॅप्शन नहीं बचा हैं ... सब कुछ डूब जाये इससे अच्छा हैं सत्तर पर्सेंट शेयर्स बेच दे ।
हितेन भी शांति से - बात तो आपकी सही हैं लेकिन आप भूल रही हैं सारी प्रोपर्टी , हमारे नाम नहीं हैं । हमें इसके लिए पापा को भी मनाना होगा
मनय जो अब तक शांत था अचानक से - एक साॅल्यूशन हैं ।
मायावती जी उत्सुकता से - क्या , मनय बेटा ।
मनय - आप , उसे बुला लिजिए । वो सब शाॅर्टआउट कर देगी , मम्मी । आप भी जानती हैं उसकी स्मार्टनेस को ।
मायावती जी कुछ बोलती उससे पहले स्वर्णा जी गुस्से से - बिल्कुल नहीं , मैं कभी उसे इस हवेली में पैर भी नहीं रखने दूंगी ।
शेखर - लेकिन मामी , आप भूल रही हैं , यह हवेली इवन दादासाहेब की सारी प्रोपर्टी उसके ही नाम हैं । इस हिसाब से यह हवेली , उसकी हैं ना की हमारी ।
दोनों औरतें जो नयी नवेली दुल्हन की तरह उपर से नीचे तक गहनों से सजी थी एक दुसरे से .....
वो आपस में ही - पता नहीं यह अनजान इंसान कौन हैं जिसे सारे दिन इस घर में वह , उसकी , उसके करके बोला जाता हैं उसका नाम तो होगा ना कुछ , वैसे दीदी आप तो इस घर में पीछले तीन साल से हैं आपको तो कुछ पता होगा ही ना इस बारे में ।
. .... कहां छोटी , बस रोज सुबह - शाम बस उसका ही जिक्र होता हैं लेकिन आज तक कुछ पता नहीं चल पाया हैं एक बार मामी से पूछा था मैंने लेकिन .... उल्टा वो मुझ पर इस तरह गुस्सा हुई की अब डर लगता हैं कुछ भी पूछने से .... बस इतना पता चल गया कि वो जो कोई भी हैं ना उससे मामा - मामी और सासु मां बहुत नफ़रत करते हैं ।
.... वैसे दीदी , इस घर में झगड़ा कहीं से भी शुरू हुआ हो खत्म उस शख्स पर ही होता हैं ।
.... तुम ना छोटी अभी कुछ भी नहीं जानती हो ।
हितेन गुस्से से - स्वर्णा सही कह रहीं हैं ।
मनय - इतनी नफ़रत सही नहीं हैं मामाजी , बाद में पछताने का मौका भी नहीं मिलेगा आपको ।
चल शेखर , कुछ जरूरी काम हैं । इन सब को कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं है ।
इतना कहकर वो दोनों नीचे के फ्लोर के ही स्टडी रुम में चले जाते हैं ।
वो सब अपने में ही लगे थे कि बाहर डोरबेल बजने की आवाज आती हैं जिससे सभी का ध्यान उस तरफ चला जाता हैं ।
मायावती कुछ सोचते हुए - अभी कौन हो सकता हैं ।
वो औरत हंसते हुए - सासु मां , मैं देखती हूं ।
सभी लोग शांति से सोफों पर बैठ जाते हैं और एक औरत दरवाजा खोलने चली जाती हैं ।
इधर बाहर नमन खिजते हुए - कितनी देर और लगेगी ।
प्रियंका - इतनी देर में तो मैं दस बार दरवाजा खोल देती हैं ।
आशना - फिलहाल अपना मुंह बंद रखोगे ।
वे तीनों इंतजार करने लगते हैं । सुमित साइड में खड़ा किसी से बात कर रहा था ।
सुमित फोन पर - बख्शी जी , सुबह नौ बजे बोर्ड आॅफ डायरेक्टरस की अर्जेंट मीटिंग बुलाइये ।
बख्शी जी दुखी होते हुए - ऐसी क्या बात करनी हैं और फैसला तो हो चुका हैं ना , सोचा नहीं था ऐसा दिन भी आयेगा ।
सुमित - फिलहाल आप यह काम कर दीजिए और कल का इंतजार करीये सब कुछ सही होगा ।
इधर आशना अपने फोन से किसी को मैसेज करते हुए - जैसे कहां है वैसा ही करना हैं । बस जल्दी आ जाओ , मैं यहां पहुंच गयी हूं ।
तभी दरवाजा खुलता हैं । अपने सामने एक औरत को इस तरह गहनों की दुकान बने देख प्रियंका और नमन तो हैरानी से उसे देखने लगते हैं ।
..... वो औरत सामने किसी लड़की को बिज़नस सूट में देखकर हैरानी से - जी ..... आपको किस्से मिलना हैं।
आशना अपने सामने खड़ी उस औरत को ऊपर से नीचे तक देखते हुए - कभी देखा नहीं आपकों यहां ....
वो औरत हंसते हुए - हांजी , वो मेरी पिछले महिने नयी नयी शादी हुई है ना इसलिए नहीं देखा होगा । वैसे मैं इस घर की छोटी बहू रोशनी शेखर प्रताप .... वैसे आपने बताया नहीं आपको किस्से मिलना हैं ।
प्रियंका , नमन से - कितने सवाल पूछती हैं ।
नमन - तुम चुपचाप खड़ी रहोगी , मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा हैं ।
आशना जबरदस्ती मुस्कराते हुए - वैसे , आप मुझे अंदर आने देगी , वो क्या हैं ना मि. प्रताप ने मुझे यही आने के लिए कहां था । मेरी उनके साथ एक बिजनेस मीटिंग हैं तो अब आपके सारे सवाल खत्म हो गये हैं तो साइड हटेगी आप .... वो बाहर बहुत गर्मी हैं ना ।
रोशनी हंसते हुए साइड हटकर .... आइए ना प्रताप भवन में आपका स्वागत हैं ।
आशना सीधे अंदर चली जाती हैं । नमन और प्रियंका मुस्कराते हुए - थैक्यु , रोशनी जी ।
जारी हैं ......
आगे .....
वक्त अपने साथ बदलाव लाता हैं लेकिन मुझे तो यहां कुछ बदलाव नहीं नजर आ रहा हैं । अगर कुछ दिख रहा हैं तो वही पुरानी नफ़रत जो शायद वक्त के साथ और बढ़ गयी हैं या हैरानी , उम्मीद जो नहीं होगी कभी मेरे लौटने की । मुझे लगता हैं अब खुद को बदलने का समय भी आ गया । आखिर हर किसी को सबक मिलना जरुरी हैं । अपनी ही सोच में गुम वह उसी हाॅल में खड़ी थी जहां तीन साल पहले खड़ी थी फर्क सिर्फ इतना था कि तब यहां से जाना था उसे और आज वह लौटी थी ।
नमन और प्रियंका चारों तरफ देखने में व्यस्त थे और सब लोग हैरानी से आशना को ही देख रहे थे क्योंकि उसको इस तरह अपने सामने देखने की उम्मीद उन्हें नहीं थी ।
स्वर्णा जी गुस्से से आगे आते हुए - तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की । तुमसे मना किया था ना यहां आकर दुबारा अपनी मनहुस सकल दिखाने के लिए ।
आशना शांत रहना चाहती थी लेकिन सामने खड़ी अपनी ही मां के मुंह से अपने लिए इतने कड़वे बोल सुनना उसके दर्द को बढ़ा रहा था सबके सामने खुद को मजबूत दिखाने वाली आशना अपनों के सामने कमजोर पड़ ही जाती थी लेकिन अब उसे कमजोर नहीं पड़ना था वो यहां सब कुछ ठीक करके जल्दी ही यहां से लौटना चाहती थी ।
वैसे भी इन सब से भागते भागते वह तक चुकी थी । इसलिए एक गहरी सांस लेकर मुस्कराते हुए शांति से जाकर उस हवेली की हेड चेयर पर बैठ जाती हैं ।
वह उसी मुस्कान के साथ - इस चेयर पर बैठने का मतलब जानते हैं ना आप , इस पर दादा साहेब के अलावा किसी और को बैठने की इजाजत नहीं हैं लेकिन मुझे उनसे इजाजत लेने की भी जरूरत नहीं हैं इवन मिसेज प्रताप , आप अपना गुस्सा थोड़ा कम करीये क्योंकि ज्यादा गुस्से आपकी सेहत के लिए सही नहीं हैं । अपनी ननद और पति की बदौलत बहुत कुछ देखना हैं आपको ।
मायावती जी गुस्से से - इतनी तेज ज़बान
आशना मुस्कराते हुए - अभी ही धार दी हैं मैंने , ट्रायल भी करवाया । सही में बहुत धारदार हो गयी हैं ।
हितेन जी - दादा साहेब की चेयर हैं वह .....
आशना मुस्कराते हुए - जानती हूं लेकिन अब इस पर मेरा हक है और आशना अपना हक और पैसा पूरे ब्याज के साथ वसूलती हैं तो ..... वैसे भी मि. प्रताप यह सब कुछ किसका हैं आप अच्छे से जानते हैं ।
स्वर्णा गुस्से से - अच्छा .... अभी सिक्योरिटी को बुलाती हूं ....
आशना अब गुस्से से उन तीनों को देखकर चिल्लाते हुए - मैं भी तो देखूं आप तीनों की हिम्मत ... साला कोई चैन से जीने ही नहीं देता ... अपने हो , चाहे पराये ... हर किसी को बस दुश्मनी निभानी हैं वैल मैं बहुत थक गयी हूं ऊपर जा रही हूं बाकी बातें आपसे मेरा वकील कर लेगा वो बस थोड़ी देर में आ रहा है ।
फिर चिल्लाते हुए - काका .... कहां हैं आप ....
एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो आंखों में नमी लिये किचन के गेट पर खड़ा यह सब तमाशा देख रहा था ।
वो खुशी से बाहर आते हुए - मैं यही हूं बिटवा ।
आशना खुशी से उनके पैर छूते हुए - कैसे हैं आप ....
काका खुश होकर - अभी तक दुःखी था बिटवा लेकिन अब तुम्हें देखकर बहुत खुशी हो रही हैं ।
आशना - दादा साहेब कैसे हैं ।
काका आंखों में नमी लिए - बहुत दुखी , तुम्हारे बीना कैसा हो सकता हैं मेरा यार ... बहुत उदास ... अब तो और भी उदास रहने लगा हैं । घंटों खिड़की से बाहर दरवाजे को ताकता रहता हैं कि कभी तो तुम उसे दरवाजे पर दिखोगी और देखो अभी तुम आ गयी हो तो वो उस हालत में ही नहीं हैं । अब तो तुम आ गयी हो ना तो सब सही हो जायेगा ... अभी यह बोलते हुए काका की आंखों में एक अजीब सी चमक देखी जा सकती थी ।
आशना सामान्यतः आवाज में ही - अभी क्या कर रहे है दादा साहेब ।
काका - अभी तो मेरा यार दवाई लेकर सो रहा हैं ।
आशना - अच्छा काका .... यह दोनों मेरे साथ आये हैं इसका नाम नमन हैं और इसका नाम प्रियंका , आप इन दोनों के रहने का इंतजाम भी चौथे फ्लोर पर ही करवा दो ... हां और एक बात सब कुछ सादा और सिम्पल होना चाहिए ।
काका खुशी से - ठीक हैं बिटवा ।
इतना कहकर वो चले जाते हैं । उनके जाने के बाद आशना , नमन और प्रियंका की तरफ देखते हुए ... फिलहाल तुम दोनों मेरा एक काम करो ... मेरे पीछे मंडराने से अच्छा हैं कि शांति से जाकर ... लिविंग रुपए के सोफों की तरह इशारा करते हुए .... वहां बैठ जाओ ।
नमन और प्रियंका शांति से जाकर उन सोफों पर बैठ जाते हैं जब तक एक सर्वेट उन्हें चाय के साथ कुछ स्नैक्स देकर चला जाता हैं ।
सुमित भी साइड में खड़ा सारा तमाशा देख रहा था लेकिन उसे इतना हक नहीं था कि वह प्रताप परिवार के मामलों के बीच हस्तक्षेप कर सके इसलिए वह शांत था और सब कुछ अपने फोन के कैमरे में रिकॉर्ड कर रहा था
फिलहाल सभी लोग शांति से बैठे थे सोफों पर और चाय के साथ स्नैक्स का लुफ्त उठा रहे थे । लग रहा था कि ऐसे तमाशे उनके लिए सामान्य हैं और वो सब लोग ऐसी बातों को ज्यादा तुलना नहीं देते लेकिन आशना अपनी रिस्ट वाॅच में टाइम देखते हुए लगातार हाॅल में चहलकदमी कर रही थी ।
मायावती जी की दोनों बहुएं मेघना और रोशनी लगातार आशना को ही घूर रही थी जैसे उन्होंने कोई अजूबा देख लिया हो ।
रोशनी , मेघना से - दीदी , यह लड़की तो बड़ी बवंडर हैं सासु मां के सामने किसी की जुबां नहीं खुलती और यह कैसे उनको जवाब दे रही थी ।
मेघना - बात तो सही कह रही हो छोटी .... पिछले तीन सालों से देखती आई रही हूं कि इस हवेली में सासु मां के सामने किसी की जुबां तक नहीं खुलती हैं कोई उनसे ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता लेकिन यह तो सीधा उस हेड चेयर पर ही बैठ गयी हैं ।
रोशनी - लेकिन ऐसा क्या हैं उस चेयर में ....
मेघना - मुझे एक बार मनय जी ने बताया था कि उस चेयर पर दादा साहेब ही बैठते हैं । उनके अलावा उस चेयर पर कोई नहीं बैठ सकता हैं और पिछले तीन सालों में , मैंने सासु मां को भी इस पर बैठते नहीं देखा ।
रोशनी - वैसे दीदी , यह लड़की हैं बड़ी सुंदर ....
मेघना - सुंदर तो हैं लेकिन मुंहफट भी हैं कैसे बोल रही हैं ....
इधर नमन और प्रियंका स्नैक्स खाते हुए - इट्स टेस्ट .... लाजवाब ... एकदम देशी घी की सुगंध आ रही हैं ।
जारी हैं .......
आशना फोन पर किसी पर चिल्लाते हुए - अद्वैत और कितना टाइम लगने वाला हैं । अद्वैत बाहर खड़े हुए - आशना , मैं आ चुका हूं लेकिन यह सिक्योरिटी गार्ड मुझे अंदर ही नहीं आने दे रहा हैं । आशना अपनी दो उंगलियों से अपने सिर को घिसते हुए - सुमित , बाहर एक लड़का खड़ा होगा अद्वैत रायचंद , उसे अंदर लेकर आओ । सुमित - जी मैम । मायावती गुस्से से - यह अद्वैत रायचंद को क्यों बुलाया हैं । आशना शांति से - आपको मुंह की भाषा समझ नहीं आती हैं इसलिए आपको कागजों की भाषा समझानी पड़ेगी और इसके लिए अपने लिगल एडवाइजर को अपने साथ रखना आशना की आदत हैं तो प्लीज थोड़ी देर शांति बनाए रखिये ... सब कुछ जल्द ही समझ आ जायेगा आपको । कुछ देर बाद सुमित एक लड़के के साथ आता हैं जिसने काला कोट पेन्ट पहन रखा था । दिखने में हैंडसम वह 25 साल की उम्र में जयपुर का एक फेमस लाॅयर अद्वैत रायचंद था । वह हाॅल में आते हुए बिल्कुल प्रोफेशनल तरिके से आशना के पास आकर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए गुड़ आफ्टरनून मैम आशना उससे हाथ मिलाते हुए - गुड़ आफ्टरनून मिस्टर रायचंद । मैंने जो कुछ आपको बताया हैं वो सब कुछ मिसेज मायावती और मिस्टर& मिसेज रायचंद को समझा दीजिए । अद्वैत - ठीक हैं , मैम फिर अद्वैत , सभी की तरफ मुखातिब होते हुए - गुड़ आफ्टरनून एवरीवन । एंड मि. प्रताप , आपकों ध्यान हो तो । आज से सात साल पहले तक प्रताप ग्रुप आॅफ कम्पनी का ईयरली ट्रनऑवर लगभग पांच सौ करोड़ था । आशना मैम ने अपने बलबुते पर चार साल की कड़ी मेहनत से इस ट्रनऑवर को पांच सौ करोड़ से आठ लाख हजार करोड़ में चेंज किया हैं ऐसे में आपका या इस परिवार के अन्य किसी सदस्य का इस कम्पनी पर कोई मालिकाना हक नहीं हैं । तीन साल पहले अपने परिवार में आपसी मनमुटाव को देखते हुए - मि. परिमल प्रताप ने अपनी कम्पनी के तीन हिस्से किये थे जिसमें से मायावती प्रताप और मिस्टर & मिसेज प्रताप के नाम उन्होंने प्रताप ग्रुप के दस - दस प्रतिशत शेयर और एक - एक फार्महाउस दिल्ली , जयपुर और एक बंग्लो जयपुर मैन सिटी में नाम किया । इसके अलावा प्रताप परिवार की किसी भी सम्पत्ति पर उनका कोई हक नहीं होगा । उन्होंने अपनी पूरी सम्पत्ति का वारिस अपनी एकलौती पोती मिस आशना प्रताप को बनाया हैं । आशना प्रताप के बाद उनकी सारी सम्पत्ति पर उनके बच्चों का हक होगा । लेकिन किसी कारणवश मैम पिछले तीन सालों से यहां नहीं थी ऐसे में उन्होंने अनुपस्थिति में चेयरमैन से संबंधित सभी फैसले लेने की जिम्मेदारी मिसेज मायावती और मिस्टर पर थी लेकिन मिसेज मायावती और मिस्टर प्रताप ने अपनी नाकाबिली का प्रदर्शन करते हुए कम्पनी के मार्केट वैल्यू को बढ़ाने के बजाय बनाकर भी ना रख सके । पिछले तीन सालों से राइवल्स के द्वारा मार्केट में लगातार प्रताप ग्रुप की छवि खराब की जा रही हैं । अपने काम से छवि को सही करने के बजाय आप दोनों मीडिया के सामने भी एक दुसरे पर टोंट कसते आये हैं । आज सात साल में पहली बार ऐसा हुआ कि प्रताप ग्रुप के शेयर इतनी तेजी से लगातार गिरते जा रहे हैं । एक महिने से एम्पलाइज को सैलेरी नहीं मिली हैं और सारे एकाउंट खाली हैं जबकि इन तीन सालों में कम्पनी की तरफ से कोई बड़े प्रोजेक्ट्स किये भी नहीं गये इसलिए मैं प्रताप ग्रुप की चैयरमेन मिस आशना प्रताप का लिगल एडवाइजर होने के नाते आपको यह नोटिस देने आया हूं । आप कल सुबह ग्यारह बजे प्रताप ग्रुप की चैयरमेन मिस प्रताप के सामने आपके तीन साल में प्रताप ग्रुप में किये गये सभी कार्यों की सारी रिपोर्ट के साथ हाजिर होंगे साथ ही आपने जितना पैसा कम्पनी से उठाया हैं वो ब्याज के साथ तीन दिन के अन्दर लौटाना होगा । अगर आप ऐसा नहीं करते तो चैयरमेन मैम को कम्पनी का हित देखते हुए मजबूरन आपके शेयर बेचकर वो पैसे वसूलने होंगे । इतना कहकर अद्वैत कुछ पेपर्स , सोफों के सामने रखी टेबल पर पटक देता हैं और टेबल के सामने रखे एक खाली सोफे पर पसर जाता हैं । जब उसकी नजर प्रियंका और नमन पर जाती हैं जो उसे देख रहे थे - इतना कुछ बोल लिया ना तो ऐसा लग रहा हैं कि सांस ही रूकने वाली हैं । फिर मेघना की तरफ देखते हुए- थोड़ा पानी मिलेगा । उसके इतना कहते ही मेघना अपने साइड की टेबल पर रखे पानी के जग से गिलास भरकर उसकी तरफ बढ़ा देती हैं । अद्वैत सारा पानी एक ही बार में पीकर - थैंक्यू । फिर वह मायावती की तरफ देखकर - आप अच्छे से इस नाॅटिस को पढ़ सकती हैं । अगर आपको कुछ भी ग़लत लगता हैं तो अपने लाॅयर से सम्पर्क भी कर सकती हैं । आपके खिलाफ साॅलिड प्रूफ हैं तो बचना ... इम्पाॅसीबल .... अद्वैत रायचंद के होते हुए ... बिल्कुल नहीं । इसलिए जो भी करना सोच समझ कर करना । इतना कहकर वह चुप हो जाता हैं । मायावती जी और हितेन जी अपने सामने रखें उन पेपर्स को उठाकर पढ़ने लगते हैं और जैसे-जैसे वो पढ़ते जा रहे थे उनका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था और बाकी सब लोग उन्हें हैरान से देख रहे थे । मायावती जी गुस्से में खड़े होकर - वाॅट नानसेंस , यूं कान्ट डू देट । आई वाॅन्ट लेट दिस हेप्पन । आशना जो सब कुछ सुन रही थी वह अब उसकी बर्दाश्त के बाहर था वो गुस्से में गरजते हैं - आप अच्छे से जानती हैं कि मैं क्या कर सकती हूं और क्या नहीं और इसका प्रमाण तो आपको तीन साल पहले अच्छे से मिल गया होगा । दादी मां की आखिरी इच्छा थी कि उनके पति के जीते जी कभी यह परिवार बिखरे नहीं । छोड़ दिया था ना सब कुछ मैंने आज से तीन साल पहले । पूरा बिजनेस दे दिया मैंने आपको ... लेकिन क्या किया आपने एक दूसरे से दुश्मनी निभाने के चक्कर में यह तक भूल गये कि बाहर कितने दुश्मन बैठे हैं जो इस फिराक में हैं कि कैसे वो इस कम्पनी को मिट्टी में मिला दें । दिया था ना मौका , आप दोनों को खुदको बेहतर साबित करने का .. लेकिन किया क्या , आप दोनों ने । खुद को काबिल साबित करने के बजाय एक दुसरे को नाकाबिल साबित करने में लग गये । यह तक नहीं सोचा कि इसमें नुकसान किसका हैं । तीस लाख हजार करोड़ के बिज़नस को किस जगह लाकर खड़ा कर दिया आपने .... अभी तक तो नींद में हैं आप .... होश में आइए ... और देखिये क्या हो रहा हैं चारों तरफ ... यह सब तो फिर भी .... लेकिन कम्पनी ही बेचने का प्लान बना लिया ... और कम्पनी के असली मालिक को पता ही नहीं कि ... जिस प्रोपर्टी को बनाने में उसने अपने रातों की नींद हराम की वो कम्पनी नीलाम भी हो गयी और वह अपनी दुनिया में गुम .. बस खुद के दु: खो का शौक मना रहा है । इतनी सारी बेवकूफीयां करने के बाद आप मुझ पर किस आधार पर चिल्लाने की हिम्मत कर रहे हैं । सब कुछ बर्बाद करने के बाद मुझसे अच्छाई की उम्मीद करना आपकी गलतफहमी हैं । अब बस फैसला होगा ... तैयार रहिये कि क्या सफाई पेश करेंगे अपने बचाव में कल मीटिंग में क्योंकि इस बार रिश्तों में बंधकर मैं कोई ऐसा फैसला तो बिल्कुल नहीं लेने वाली , जिससे मेरे दादासाहेब की इज्जत यूं ही मिट्टी में मिल जाये जिसे बनाने में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दे दी । इतना कहकर आशना ऊपर जाते हुए - नमन , प्रियंका , सुमित और अद्वैत मेरे पीछे आओ । मुझे कुछ काम हैं तुम सभी से । हितेन जी और मायावती जी का सिर झुका हुआ था उनके चेहरे पर टेंशन साफ देखी जा सकती थी । स्वर्णा जी अभी भी ऊपर जाती सीढ़ियों को हैरनी से देख रही थी । हैरान तो रोशनी और मेघना भी थी । उनके कानों में अभी भी आशना की आवाज गूंज रही थी इतनी दबंग लड़की उन्होंने आजतक नहीं देखी थी जो किसी से भी डरती नहीं हो । आभास हो रहा था उन्हें की जल्द ही हवेली की हवाओं का रुख बदलने वाला हैं और शुरुआत हो चुकी हैं लेकिन सुकून बोहोत था उन्हें मायावती जी के चेहरे का उड़ा रंग देखकर । आखिर आजतक उन्होंने उन दोनों पर अपने सास होने का हुक्म जो झाड़ा था । बहुत कुछ ऐसे राज जो उस हवेली की दिवारो में कहीं कैद हैं शायद वक्त आ रहा हैं और धीरे धीरे उन पर बिछी मिट्टी की परतें हट रही हैं और जिस दिन वो तस्वीरें साफ हुई बहुत कुछ ऐसा सामने आयेगा जो इस घर की दिवारो को हिला कर रख देगा । और असल मायने में यह हवेली आतंक से दूर साफ हवाओं की सुगंध महसूस करेगी जारी हैं ..........
आगे .......
ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए हितेन । वरना हमारा सब बर्बाद हो जायेगा । इतना कहकर मायावती जी गुस्से से हवेली से बाहर चली जाती हैं । रोशनी और मेघना घबराते हुए नीचे वाले फ्लोर के स्टडी रुम में चली जाती हैं ।
हितेन जी के हाथ पैर डर से कांप रहे थे वो कुछ सोच ही नहीं पा रहे थे लेकिन स्वर्णा जी सब कुछ संदेह से देख रही थी और अब उन्हें गड़बड़ लग रही थी । कुछ वक्त से कुछ तो ऐसा हो रहा था जो उन्हें समझ नहीं आ रहा था और अब उन्हें शक होने लगता हैं मायावती और हितेन जी पर ...
फोर्थ फ्लोर पर
यहां का इंटिरियर डिजाइन बहुत खूबसूरत और यूनिक था ।
अभी वे सभी फोर्थ फ्लोर के खाली और खुले एरिया में सोफों पर बैठे बस आशना को देख रहे थे जो
गुस्से में सोफे पर बैठी लगातार आंखें बंद करके गहरी सांसें ले रही थी । कुछ देर बाद वह कुछ शांत सी थी इसलिए उसके सामने बैठे वह चारों भी गहरी सांस लेते हैं ।
नमन डरते हुए - मैम , मैं बहुत कमफ्यूज हूं । हम सब यहां क्यों आये हैं और प्रताप ग्रुप से आपका क्या कनेक्शन हैं ।
प्रियंका - यस मैम , हम तो प्रताप ग्रुप से जुड़ी सभी कम्पनीज़ के शेयर खरीदने वाले थे पर इस तरह अचानक से वो भी यहां प्रताप फैमिली के बीच आकर रहना । क्या हमारी अगली डिल प्रताप ग्रुप के साथ हैं ।
आशना जो अब काफी हद तक अपने गुस्से को कंट्रोल कर चुकी थी वो शांति से - तुम्हारे सारे कंफ्यूजन कल दूर हो जायेगे और रही बात शेयर खरीदने की तो शेयर्स तो हम अब भी खरीदेंगे वो भी आज ही । शाम को ही स्वेता से तुम्हारे आईडिया पर डिस्कस करके नमन के थ्रो मैंने उनमें सेकुछ कम्पनीज़ के आॅनर्स के साथ मीटिंग फिक्स करी हैं और अभी मैं सामने नहीं आना चाहती हूं इसलिए यह मीटिंग आॅनलाइन तुम और स्वेता अंटेड करने वाली हो ।
प्रियंका - जी , मैम ।
आशना , नमन की तरफ मुखातिब होते हुए - तुम उन कम्पनीज़ की लिस्ट बनाओ जिन्होंने वालिया ग्रुप में जो सहारा फर्म के दस प्रतिशत शेयर हैं उन्हें खरीदने की इच्छुक हैं।
नमन हैरानी से - लेकिन मैम इस वक्त वालिया ग्रुप के शेयर्स की मार्केट वैल्यू लगातार बढ़ती जा रही हैं ऐसे में हमें भारी नुक़सान होगा ।
आशना रहस्यमयी तरिके से - नुकसान बाद में ज्यादा होगा इसलिए बैचने जरूरी हैं । वैसे भी अभी पैसों की सख्त जरूरत है हमें ....
नमन - जी मैम
आशना सामने देखती हैं जहां दो लड़किया हाथों में उन तीनों का लगेज लिए ऊपर आ रही थी उन दोनों की नजर जैसे ही आशना पर जाती हैं उनकी आंखें कुछ नम सी हो जाती हैं लेकिन वह अपनी आंखों की नमी छुपा लेती हैं लेकिन आशना की नजरों से छुप नहीं पाती हैं वो उन्हें देखकर नमन और प्रियंका से , अभी जाकर आराम करो ठोड़ी देर , तुम्हें कमरा रीना और मीना दिखा देगी ।
फिर तेज आवाज में रीना और मीना इधर आओ ।
रीना और मीना , उसकी तरफ आते हुए - जी दीदी ।
आशना उन दोनों की तरफ देखते हुए - नमन और प्रियंका को उनका कमरा दिखा दो ।
वो दोनों उसी तरह - जी दीदी ।
इतना कहकर वे लगेज उठाये एक तरफ बने कमरों की तरफ चली जाती हैं और नमन और प्रियंका उनके पीछे ।
उनके जाने के बाद आशना भरी आंखों से सुमित की तरफ देखते हुए - भाईसा ।
सुमित के चेहरे के भाव ही बदल गये थे भाईसा सुनकर तो , उसकी आवाज कुछ भारी सी हो गयी थी - आसु , मेरी गुड़िया । इतना कहकर वो अपनी बांहें फैला देता हैं और आशना , उनमें समा ही जाती हैं ।
आशना भरी सी आवाज में , सुमित के सिने से लगे हुए - आई एम सॉरी की आपको मुझे मैम कहना पड़ा । यह तो मैं सपने में भी सोचना नहीं चाहती हूं लेकिन आप तो जानते हैं ना आपकी गुड़िया इस वक्त मजबूर हैं । अभी तो बहुत कुछ ऐसा हैं जो सामने आना बाकी हैं और आप .... सब समझ रहे हैं ना .... अह .... मैं नहीं समझा पाउंगी आपको .... पर आप बेहतर समझ जायेंगे ... बस इस वक्त किसी सवाल का जवाब देने की हिम्मत नहीं हैं .... और आप तो समझ जाते हैं अपनी गुड़िया को .... बस इस बार समझ जाइए .... आपसे रूखा व्यवहार नहीं करना चाहती थी लेकिन फिर भी करना पड़ा ... आई एम सॉरी ... बस अपनी गुड़िया की इतनी सी बात मान लीजिए ।
सुमित के लिए मुश्किल था इस वक्त कुछ भी कहना । शायद इस वक्त उसके मन में जो तुफान हिलोरें मार रहा था उसमें उसे कुछ शब्द समझ ही नहीं आ रहे थे जिनके जरीए वो अभी अपनी गुड़िया को शांत कर पाता लेकिन शांत करना भी जरूरी था इसलिए कुछ शब्द टटोलकर ,
सुमित अपने एक हाथ से आशना का सिर सहलाते हुए - जानती हों , तुम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहो लेकिन हमेशा मेरे लिए एक गुड़िया की तरह रहोगी । जो चाहें कितनी भी बड़ी हो जाये या फिर वह कितनी भी खुद को मजबूत या कठोर दिखाये लेकिन उसका दिल खरे सोने की तरह हैं और मैं यह अच्छे तरीके से जानता हूं कि वह अपनों के लिए कुछ भी कर गुजर जाने के लिए तैयार रहता हैं चाहे उसके अपने उसे कितनी भी तकलीफ पहुंचाये या फिर उसके मासूम दिल को टुकड़ों में बिखेर दें । फिर भी वह मासूम सा दिल हमेशा उनकी ही खुशियां चाहता हैं चाहें उसे खुद को जमाने भर के दुःख, दर्द , बैचेनी या तड़प झेलनी पड़े । वो तो सबको खुशियां बांटना चाहता हैं चाहें इन सब में खुद को कितने भी ग़म मिले पर तुम क्यों नहीं समझती हैं गुड़िया वो लोग तेरा प्यार , तेरी परवाह डिजर्व नहीं करते हैं अब तक उन लोगों के लिए कितनी और अनकही तकलीफें सहन करेगी । तुम क्यों नहीं समझती कि नहीं करते वो लोग तुमसे प्यार , उन्हें बस अपने स्टेटस और अपनी दौलत से प्यार हैं और इसके आगे वो लोग और कुछ भी देखना नहीं चाहतें हैं ।
आशना ,उसके सिने में अपना सिर छुपाये हुए - सब समझती हूं भाईसा । लेकिन आप भी समझिए अपनों से लड़ना आसान कहां होता हैं । उससे पहले खुद से लड़ना पड़ता हैं ।
सुमित , उसके सिर को सहलाते हुए - तो ठीक हैं । अगर तुम चाहती हो कि इन तीन सालों में जो भी कुछ हुआ हैं उसकी माफी चाहिये तुम्हें तो तुम्हें मुझसे एक वादा करना पड़ेगा ।
आशना फूर्ती से उससे दूर होते हुए - बताइए ना ... आपकी माफी के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं । आई प्राॅमिस , मैं अपना वादा नहीं तोडूगी।
सुमित अपने मन में जानता हूं कि जो मैं तुमसे कहूंगा तुम्हें इस वक्त वो ग़लत लगेगा । उसके लिए तुम शायद मुझसे नाराज़ भी हो जाओ लेकिन वक्त के साथ तुम्हें समझ आयेगा कि इस बार मैं सही और तुम गलत हो । जब तक इन खोखले रिश्तों से आजाद नहीं हो जाती हो तब तक यह रिश्ते तुम्हें तकलीफ पहुंचायेंगे । शायद तुम कभी खुश भी नहीं रह पाओ ।
उसके सामने बैठी आशना ,जो अपनी जगमगाती आंखों से बस उसकू कुछ कहने का इंतजार कर रही थी । उसके कुछ ना कहने पर उसके शर्ट को पकड़कर हिलाने लगती है
जिससे सुमित जो अपने ही ख्यालों में गुम था उसे होश आता हैं। उसके सामने आशना , उसे उम्मीद भरी नजरों से देख रही थी ।
जारी हैं ......
आगे.....
आशना को अपनी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखते देख सुमित कठोरता से - प्रताप ग्रुप को इस हद तक पहुंचाने में तुमने अपनी रातों की नींद तक खो दी थी और आज कम्पनी इस कगार पर खड़ी हैं ..... मैं नहीं चाहता कि आगे चलकर फिर से ऐसा हो .... दादा साहेब की जिंदगी हैं यह कम्पनी .... गांव के लोगों की खुशियां जुड़ी हैं इस कम्पनी से .... लाखों परिवार पलते हैं इससे ..... कई अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारी जाती हैं इस कम्पनी के सहारे .... इसलिए वादा करो कि इन सभी खोखले रिश्तों से खुद को आजाद कर दोगी । इन लोगों के दुःख तुम्हें इफेक्ट नहीं करने चाहिए । इन लोगों के लिए कभी खुद को हर्ट नहीं होने दोगी । अगर इन लोगों में और कम्पनी में से किसी एक को चुनना होगा तो तुम कम्पनी को ही चुनोगी । क्योंकि मैं नहीं चाहता इन मतलबी लोगों के लिए दादा साहेब का सपना चकनाचूर हो जाये । अब सोचना तुम्हें हैं कि .... तुम हम लोगों का प्यार चुनती हो या उन लोगों का फरेब ....
आशना जो उनकी एक एक बात ध्यान से सुन रही थी उसकी आंखों से झर झर आंसु बहने लगे - आप जानते हैं मैं हमेशा भगवान से शिकायत करती थी कि उन्होंने मुझे कुछ भी क्यों नहीं दिया ... ना मां बाप का प्यार मिला ... ना भाईयों का स्नेह ... हर कोई बस दुत्कारता ही था एकमात्र सहारा थे दादू और दादी । कुछ भी तो नहीं मेरे पास ... ना बचपन की यादें ... ना बचपन की शैतानिया ... खेलना ...हंसना ... ना दोस्त .... कुछ भी तो नहीं .... बस हैं तो हर किसी की नफ़रत .... मैं चाहे उनके लिए कितना भी कर लूं लेकिन वो लोग कभी नहीं चाहेंगे मुझे .... वो कभी मुझसे नफ़रत करना नहीं छोड़ सकते हैं और वक्त के साथ अच्छी तरह से समझ चुकी हूं मैं की वो लोग कभी भी नहीं सुधर सकते हैं।
बीना रिश्तों के जीना बहुत मुश्किल होता हैं और कुछ गिने-चुने ही तो रिश्ते हैं मेरे पास ...और उनको खोना मैं अफोर्ड नहीं कर सकती हूं।चाहकर भी नहीं .... बहुत कुछ बदल चुका है भाईसा ..... और वक्त के साथ मैंने भी अपने अन्दर बहुत से बदलाव कर लिए हैं। चिंता मत कीजिए इस बार आपकी गुड़िया हार नहीं मानेंगी । वादा हैं मेरा आपसे कि कुछ खोखले रिश्तों के लिए हम अपने सच्चे रिश्तों की चिता नहीं जलने देंगे । वैसे भी उन्हें मेरी कद्र नहीं हैं अब मुझे भी नहीं रही .... अब बस अपने लिए जीना चाहती हूंऔर उन लोगों के लिए जीना चाहती हूं जो सच में मुझे खुश देखना चाहते हैं।
सुमित जो उसकी बातें ध्यान से सुन रहा था अब उसकी दिल में सुकून उतर आया । उसे तो अब खुशी महसूस हो रही थी वो अब अपने लिए जीना सीख रही हैं। ये तीन साल शायद सच में उसमें बहुत से बदलाव ला चुके थे जो वो सब मिलकर भी उसमें ना ला पाते एकाएक उसके जहन में एक आवाज गुंज जाती हैं ।
हम उन्हे मनाने नहीं जायेंगे भाईसा , यहां उनके लिए तकलीफो के अलावा कुछ नहीं हैं । इस समय उनका यहां से दूर चले जाना ही सही हैं। बहुत कुछ सहा हैं उन्होंने और अब मैं नहीं चाहता हूं कि अब मेरी वजह से भी उन्हें और कुछ सहना पड़े ।
सुमित मन में - सही थे तुम , तुम्हारे शिवा समझ कौन सकता हैं आशना को ?
फिर खुशी से अपने आंसुओं को पोंछकर आशना का सिर सहलाते हुए - मुझे नहीं मालूम था कि मेरी गुड़िया हमसे दूर रहकर इतनी समझदार हो जायेगी । बहुत खुश हूं मैं आज सच में । बस अब सब कुछ संभाल लो । जो कुछ भी बिखरा हैं उसे समेट लो । बस हमेशा मुस्कराती रहा करो क्योंकि कुछ लोगों के लिए तुम्हारी मुस्कराहट जिंदगी जीने का जरीया हैं।
आशना मुस्कराते हुए - थैंक्यू , भाईसा ।
सुमित असमंजस में - अब थैंक्यू किसलिए ।
आशना - मुझे हमेशा समझने के लिए और हर बार सही और ग़लत में फर्क बताने के लिए ।
सुमित को दिखाने के लिए उसने अपने आपको जबरदस्ती मुस्कराने के लिए मजबूर कर लिया था और वह इस वक्त उसके सामने बैठी मुस्करा रही थी लेकिन वह जानता था उसकी मुस्कान के पीछे छिपे उस अनकहे दर्द को जिसे वह अपने गुस्से और चीढ़ के पीछे छिपाने का प्रयास करती रहती थी । शायद ज्यादा वक्त नहीं गुजारा था उसका आशना के साथ लेकिन दिल के रिश्ते में इतनी तो मजबूती होती हैं कि वह उसके चेहरे के भाव पहचान ले और अपनी बहन को इस तरह दर्द में देख एक अनकहा दर्द तो उसके चेहरे पर भी उतर आया था वह मन में ही काश तुम यहां होते तो मेरी बहन भी खुश होती और वह दिल से मुस्करा रही होती । कुछ ऐसा चमत्कार हो जाये कि तुम वापिस लौट आओ पर जानता हूं कि तुम्हारा वापिस लौटना शायद मुमकिन नहीं वरना आशना के एक खरोंच पर सब कुछ हिला कर रख देने वाले तुम आज उसके इतने दर्द में होने पर भी उसके साथ नहीं हो लेकिन तुमसे किया वादा निभाना हैं । इसलिए आशना पर एक खरोंच भी नहीं आने दे सकता हूं ।
सुमित मुस्कराते हुए - ठीक हैं ।
इतनी देर से अद्वैत , जो उन्हें बात करते हुए ध्यान से सुन रहा था अपने आपकों इग्नोर होते देख वो उन दोनों को गुस्से से घूरने लगता हैं।
सुमित जिसका ध्यान आशना पर था । उसे अचानक ही अपने ऊपर किसी की घूरती नजरों का अहसास होता हैं और जैसे ही वह अद्वैत को अपनी तरफ गुस्से से घूरते देखता हैं वो चिढकर सख्ती से- अद्वैत , इस तरह घूरना बंद करो ।
अद्वैत चिढकर - भाई , आप दोनों मुझे तो भूल ही चुके हो ।
आशना मुस्कराते हुए कुछ उदासी - तुम्हें , मैं कभी नहीं भूल सकती हूं अद्वैत । तुम , मायरा की जिंदगी हो और मायरा मेरे लिए बहुत अज़ीज़ हैं। उसे कभी तकलीफ नहीं दे सकती हूं ।
अद्वैत , उसे इस तरह उदास देखकर - वी मिस यू सो मच । आप नहीं जानती हो । मैंने और मायरा ने आपको हर पल याद किया हैं और हम दोनों के लिए भी आप बहुत अज़ीज़ हो । इस लिए उदास होना छोड़ दीजिए । मैंने मायरा को आपके कहने पर कुछ नहीं बताया लेकिन अगर उसे पता चला कि आप जयपुर आ चुकी हो तो वह बीना एक पल लगाये सबसे पहले आपसे मिलने आयेगी ।
आशना - जानती हूं अद्वैत । सब कुछ जानती हूं एक लम्बा अरसा दुःख भरी जिंदगी जीने के बाद मुझे कुछ खुबसूरत पल मिले हैं और इन पलों की खुबसूरत यादें जिन लोगों की वजह से खुबसूरत बन पायी उन लोगों को भूलना मेरे लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।
अद्वैत खुश होते हुए - मैं कल मायरा को आपसे मिलाने लाउंगा।
आशना - ठीक हैं कल शाम को तुम दोनों प्रताप हवेली आ जाना । वैसे मुझे मायरा से एक काम भी हैं और अब तुम्हें घर जाना चाहिए । इस हालत में उसे ज्यादा देर अकेले छोड़ना सही नहीं हैं ।
अद्वैत हैरानी से - आपको कैसे पता ?
आशना मुस्कराते हुए - यहां से दूर जरूर हूं अद्वैत लेकिन यहां के पल पल की खबर रहती हैं मुझे । ऐसे ही सब कुछ नहीं छोड़ सकती हूं मैं .....
अद्वैत हैरानी से मन में - यानी सब कुछ इन्होंने किया । कभी हम सब का साथ नहीं छोड़ा । तभी हमेशा मुझे अपने चारों तरफ एक सेफ जोन फील होता था और मैं बेवकूफ समझ ही नहीं पाया पर अभी सवाल जवाब कर इनको परेशान करना सही नहीं हैं।
फिर उठते हुए ,- ठीक हैं मैं , मायरा के साथ कल आता हूं और ....
आशना गंभीरता से - एक मीनट अद्वैत , जो बात जरूरी थी वो तो की ही नहीं हैं। मुझे तुमसे और भाईसा से एक जरुरी बात करनी हैं।
सुमित और अद्वैत - क्या ?
आशना - आप दोनों जानते हो ना मेरी प्यारी बुआ को नाॅटिस देने का मतलब ... वो कुछ ना कुछ जरुर करेगी .... इसलिए हम उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दे सकते हैं। इसलिए वह अद्वैत तुम्हें हार्म करने की कोशिश करेगी । सुमित भाईसा , उनकी नजर
में मेरे लिए एक एम्पलाई से ज्यादा कुछ नहीं हैं इसलिए वो उनके शक के घेरे में कभी नहीं आयेंगे इसलिए तुम सारे सबूत जो तुमने कहीं पर भी रखें हैं सुमित भईया को दे देना । ताकि कल बोर्ड आॅफ डायरेक्टरस के सामने उन्हें पेश कर सके । इस बार गलती से भी गलती नहीं होनी चाहिए वरना वो हमारे लिए घातक साबित होसकती हैं।
अद्वैत - सभी सबूत मेरे लैपटॉप में हैं और उनकी काॅपी मैंने एक पैनड्राइव में सेव कर रखी हैं और वह पेनड्राइव मैंने अपनी गाड़ी में ही रखी हैं वो मैं सुमित भाई को दे दूंगा और आॅफिशियल पेपर्स , आप मेरे आॅफिस से कलेक्ट कर लेना ।
आशना कुछ सोचते हुए - ठीक हैं मैं नमन को सुबह जल्दी ही तुम्हारे आॅफिस भेज दूंगी।
सुमित -लेकिन कुछ रिस्क ....
आशना - चिंता मत कीजिए , नमन को ऐसे रिस्क की आदत हैं। उसने मेरे लिए बहुत टेढ़े - टेढ़ काम किये हैं और यह वाला ज्यादा मुश्किल भी नहीं हैं ।
आशना - सुमित भाईसा , आपकों मेरा एक काम करना हैं ।
सुमित - क्या ?
आशना - आप पीछले छः साल से प्रताप ग्रुप के एच आर हेड हैं यानी सभी एम्पलाइज का सारा बायोदेटा आपके पास होगा । एक काम कीजिए आप सभी का पास्ट , प्रजेंट सब निकालिए । कोई तो गद्दारी कर रहा हैं जो हमारी नज़रों के सामने नहीं हैं। सारी रिपोर्ट के साथ कल आॅफिस में मिलिए आप ....
सुमित - तुम्हारा , काम हो जायेगा ।
आशना - अद्वैत , तुम कुछ अच्छे पाॅइट्स तैयार करो ताकि मैं इस कम्पनी मे मायावती प्रताप की दखलंदाजी कम कर सकूं । नहीं तो वो मुझसे नफरत दिखाने के चक्कर में सब बर्बाद कर देंगी ।
अद्वैत - ठीक हैं।
सुमित और अद्वैत खड़े होते हुए - तुम्हारा .... आपका .... काम हो जायेगा ।
आशना - विश्वास हैं आप दोनों पर .... पर संभल कर ... किसी को शक नहीं होना चाहिए .... और बख्शी जी को कहकर मीटिंग का सारा इंतजाम करवाइए .... ।
सुमित और अद्वैत गर्दन हिलाते हुए चले जाते हैं।
उनके जाने के बाद आशना अपनी सोच में गुम हो जाती हैं।
जारी हैं ......
आगे .....
आशना अपनी ही सोच में गुम थी । अभी वह बस शांति चाहती थी लेकिन शांति उसके नसीब में ही नहीं थी ।
प्रताप हवेली
स्टडी रूम में
मेघना और रोशनी सोफों पर बैठी लम्बी सांसे ले रही थी । मनय और शेखर उन्हें हैरानी से देख रहे थे ।
रोशनी हांफते हुए - आज तो कमाल हो गया दीदी ।
मेघना - हां, ऐसा पहली बार हुआ ?
रोशनी खुश होते हुए - शेर को सवा शेर मिलता ही हैं।
मेघना - मैं तो एक बार डर ही गयी थी । सासु मां के सामने इतना बोलना .... सपने में भी नहीं सोचा था ।
रोशनी - कितनी डेयरिंग थी ना उसमें ?
मेघना खोये हुए - ऐसा बनना कितना मुश्किल होता हैं ना छोटी , कितनी हिम्मत चाहिए होती होगी ना ...
रोशनी भी सोचते हुए - दीदी , पर ऐसा मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा ना वो क्या कहते हैं खुबसूरत भी और तेज तर्रार भी ।
मेघना - हां .... हां वो इंग्लिश में क्या कहते हैं । कल ही तो देखा था हम दोनों ने उस सिरियल में .... सोचते हुए....क्या था वो .... हां याद आ गया ... ब्यूटी वीद ब्रेन ।
रोशनी उदासी से - काश हममें भी इतनी हिम्मत होती ।
मनय और शेखर , अब परेशान हो चुके थे उन दोनों की बातें सुनकर इसलिए शेखर झुंझलाते हुए सोफे पर बैठ जाता हैं - यह इतनी देर आप दोनों क्या बात कर रहे हो ।
मनय भी उसके पास बैठते हुए शांति से - हां मेघना , तुम दोनों की बातें हम दोनों को समझ नहीं आ रही हैं ।
रोशनी उत्साहित होकर - वो जेठ जी , आपको पता हैं । अभी हवेली में क्या हुआ ।
शेखर झुंझलाते हुए - हमें नहीं पता हैं रोशनी , हम दोनों भाई यहां कान्फ्रेंस पर कुछ इन्वेस्टर्स से बात कर उन्हें कन्वेंस करने की कोशिश कर रहें थे और हमारे कानों में हेडफोन लगे थे । इसलिए अभी बाहर क्या हुआ हम दोनों को नहीं पता हैं और बायगाॅड यह तुम्हारे किसी सिरियल की सो काॅल्ड बातें हुई ना तो ....
रोशनी रूठते हुए - मैं और दीदी आपको कुछ नहीं बताने वाले ... आपने .... हमारे सिरियल.... वो क्या कहां ... कोल्ड .... मैं बर्दाश्त नहीं करुंगी ... बता रही हूं।
शेखर - तुम अब भी जलेबी की तरह बातों को गोल गोल घूमा रही हूं।
रोशनी - आप देख रही हैं दीदी । यह हमको डांट रहे हैं। हम दोनों को यहां से चलना चाहिए ... इतना कहकर वो मेघना का हाथ पकड़कर उठने लगती हैं ।
शेखर , जिसे मनय की घूरती नजरों का अहसास होता हैं । वो रोशनी को हाथ पकड़कर बिठाते हुए - अच्छा , साॅरी । अब बताओ अभी बाहर क्या हुआ ।
मनय - हां बताओ क्या हुआ
रोशनी बैठते हुए - अच्छा ठीक है जब आप इतना कह ही रहे हैं तो हम बताते हैं।
रोशनी के इशारे पर मेघना जो कुछ भी होता हैं बताते लगती हैं जैसे ही मेघना रुकती हैं ।
रोशनी - मुझे और दीदी को तो लग रहा था कि उस लड़की को सासु मां के सामने बोलने की सजा मिलेगी लेकिन सासु मां तो गुस्से से बाहर चली गयी ।
मेघना - मामी और मामा तो उसे घर से बाहर निकालने वाले थे लेकिन उन कागजों को पढ़कर बस गुस्सा ही कर सके ।
रोशनी - मुझे तो वो बहुत पसंद आयी लेकिन उसके गुस्से को देखकर हम दोनों तो चुपचाप बैठे रहे ।
मेघना - उसके साथ दो लोग और आये थे । वो सब फोर्थ फ्लोर पर रहने वाले हैं लेकिन फोर्थ फ्लोर पर तो कोई नहीं रहता हैं... वहां की सफाई भी दादा साहेब करवाते हैं.... वहां सफाई करने की इजाजत भी सिर्फ दुलारी काकी को ही हैं।
रोशनी - ऐसा हैं दिदी ....
मेघना - हां छोटी .... वहां कोई नहीं जाता हैं लेकिन कभी कभी दादा साहेब जाते थे । मनय जी ने ही बताया था कि वहां कभी भी ना जाऊं ... वो फ्लोर किसी खास के लिए बनवाया था दादा साहेब ने .. एक बार मैंने पूछा भी था दादासाहेब से .. तब उन्होंने ही कहां था कि यह फ्लोर किसी खास के लिए बनवाया था उन्होंने लेकिन अभी वह दूर हैं इसलिए यहां कि सफाई वो खुद की निगरानी में ही करवाते हैं और जब तक वो आ नहीं जाती ..... और हैरानी से वो मनय को देखने लगती हैं ... जो आंखों में नमी लिये उसकी तरफ ही देख रहा था ऐसा लग रहा था कि उसका शरीर बिल्कुल सून हो चुका हैं और उसके हाथ कांप रहे थे । वह मुंह से कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके मुंह से शब्द ही नहीं निकल पा रहे थे हाल तो शेखर का भी वही था ।
शेखर , मनय को हिलाते हुए - भाईसा ... होश में आइए ...
मनय पलकें हिलाते हुए भरी सी आवाज में - शेखर , तुम सुन रहे हो ना । वो ..... वो ... अह...
शेखर खुश होते हुए - अब सब ठीक हो जायेगा भाईसा ...
दादा साहेब भी ठीक हो जायेंगे ।
मनय - मैंने तो सोचा भी नहीं था ऐसा होगा ....
शेखर भी - सोचा तो मैंने भी नहीं था लेकिन अब लग रहा हैं कि सब कुछ बदल जायेगा .... मुझे तो सब कुछ सुनकर अलग सी एक्साइटमेंट हो रही हैं... अब ना धमाल होगा ... रोज नये ड्रामे ....
मनय गहरी सांस लेते हुए - काश मां को समझ आ जाये कि वो अपने हाथों अपने ही घर को बर्बाद कर रही हैं।
शेखर - मामा - मामी की नफ़रत भी तो जानते हैं ना आप ..
मनय - पता नहीं आगे क्या होगा ... बस सब सही हो जाये ।
मेघना , उन दोनों की बातचित समझने की कोशिश करते हुए । क्या आप दोनों जानते हैं उस लड़की को ?
रोशनी - बताइए ना शेखर जी , वह कौन हैं।
मनय - वह दादा साहेब की इकलौती वारिस हैं।
मेघना समझते हुए - लेकिन उनके वारिस तो आप दोनों हैं ना ...
शेखर - हम दोनों नहीं हैं भाभी .... जो लड़की ... जिसे आप दोनों ब्यूटी वीद ब्रेन कह रही हैं ना ... वह आशना प्रताप है ... क्या आपने उसके सरनेम पर ध्यान नहीं दिया ... वह दादा साहेब की इकलौती पोती ... और मामी मामी की इकलौती बेटी हैं जो तीन साल से यहां नहीं रहती हैं । इसलिए आप दोनों उसे जानते नहीं हो ।
रोशनी - लेकिन ....
मनय - लेकिन ... कुछ नहीं ... मेघना और तुम ... उसे कोई भी चुभती बातें नहीं कहोगी । उसकी जिंदगी में पहले ही बहुत दुःख हैं इसलिए उसके साथ सरल भाषा में बात करना और उसे कोई तकलीफ़ ना हो इस बात का ध्यान रखना । आप दोनों की इकलौती ननद है।
मेघना दुःखी होते हुए - लेकिन आपका भी तो हक हैं दादा साहेब के प्यार और पैसों पर ...
मनय दुःखी होते हुए - तुम जानती होती तो ऐसा कभी नहीं कहती । बस इतना जान लो कि दादा साहेब मां को उनका हिस्सा बहुत पहले ही दे चुके थे । जिसे उन्होंने अपनी बेवकूफीयो में गंवा दिया । अब जो कुछ बचा हैं वो आशना का ही हैं और हम नहीं चाहते हैं कि हम दोनों अब उससे प्रोपर्टी के लिए लड़े । वैसे भी मां की बातों में आकर उसे बहुत तकलीफ़ पहुंचा चुके हैं और तकलीफ पहुंचाना ... भाई होने पर कलंक होगा ।
रोशनी कुछ सोचते हुए - यह सब तो ठीक है लेकिन आशना कौन ?
शेखर चिढ़ते हुए - वही जिसे तुम दोनों अभी तक ब्यूटी वीद ब्रेन कह रही थी ।
रोशनी जबरदस्ती हंसते हुए - हां ... हां .... ठीक हैं ।
मेघना उठते हुए - लेकिन वो सबसे बहुत गुस्से से बात कर रही थी लेकिन उन्हें बड़ों का लिहाज भी तो करना चाहिए था आखिर वो उनके मां बाप हैं।
शेखर गुस्से से - आप अभी कुछ नहीं जानती हो भाभी । वो लोग भी दूध के धूले नहीं हैं । वो लोग ऐसा ही लहजा डिजर्व करते हैं और अगर आशना की जगह , कोई और होता तो उसका लहजा शायद इससे भी बेकार होता ।
मनय गहरी सांस लेते हुए - शेखर गुस्से में भी अपनी तहजीब नहीं बदलनी चाहिए । गुस्सा करने के अभी और मौके आयेंगे । अभी चलों हमें आशना से बात करनी होगी । इसलिए उसके पास चलते हैं।
मेघना - आप ठीक कह रहे हैं बिना सब कुछ जाने हमें अपनी राय नहीं बनानी चाहिए । रोशनी हम दोनों चलकर लंच की तैयारी करते हैं।
इतना कहकर वो रोशनी के साथ स्टडी रुम से चली जाती हैं।
इधर आशना को हल्की भूख का अहसास होता हैं तो वह भी कुछ खाने के लिए लेने फर्स्ट फ्लोर किचन की तरफ चली जाती हैं।
अद्वैत अभी ड्राइव कर रहा था और सुमित उसके पास बैठा था वो लगातार अद्वैत को देख रहा था । कुछ देर बाद वह - मुझे लगता हैं कि आज तुम काफी शांत हो अद्वैत रायचंद।
अद्वैत - ऐसा नहीं हैं भाई , मैं कुछ सोच रहा था ।
सुमित - तो अपनी सोच में मुझे भी शामिल कर लो ।
अद्वैत कुछ सोचते हुए - पता नहीं क्यों ? पर कुछ तो अजीब हैं ।
सुमित - सब कुछ नार्मल हैं और अब आशना के आने से जो एब्नार्मल हैं वो भी नार्मल हो जायेगा ।
अद्वैत - यही तो नार्मल नहीं हैं आशना दिदू का इस तरह आना ...
सुमित - मतलब....
अद्वैत - मतलब , आप खुद सोचिए भाई ... उन्होंने क्या कहां था आपने ध्यान दिया - वो बस यहां से दूर हैं लेकिन उसकी नजर हर जगह हैं। यानी उनकी नजर यहां हर चीज पर थी लेकिन आज तक तो उन्होंने लौटने के बारे में नहीं सोचा ।
सुमित - मुझे समझ ही नहीं आ रहा ...मतलब तुम्हें भी तो पता हैं कि दादासाहेब उसके लिए क्या हैं ?
अद्वैत - जानता हूं भाई लेकिन फिर भी .... दादासाहेब इससे पहले भी तो बिमार हुए ... तब तो वो यहां नहीं आयी और यह बात हम सब और वो खुद भी जानती हैं कि चाहे उनकी बुआ और पापा उनसे कितनी भी नफ़रत करें लेकिन दादासाहेब का वो बहुत ध्यान रखते हैं वो लोग कभी दादासाहेब को कोई तकलीफ़ नहीं होने देंगे। ऐसे में इस तरह दादासाहेब के लिए आना ... मुझे तो यह सब कुछ बिल्कुल झुठ लग रहा हैं।
सुमित - तो शायद कम्पनी के लिए .... मतलब ... सब कुछ बचाना भी तो हैं ना ... प्रताप ग्रुप उसकी जिंदगी हैं।
अद्वैत - आप को इसमें कुछ अजीब नहीं लगा ... मतलब ... जिस तरह हितेन अंकल और माया आंटी ने आॅफिस संभाला हेना भाई । वो सब कुछ कब का बर्बाद कर चुके होते लेकिन अब तक सब कुछ अच्छा तो नहीं लेकिन घसीट कर तो चल ही रहा है ना और जहां तक मेरा सिक्स सेंस कह रहा हैं यह सब कुछ आशना दीदू ने ही अब तक संभाला हैं लेकिन वो कभी सामने नहीं आयी । मुझे तो लग रहा हैं बात कुछ और ही हैं । आपने एक चीज नाॅटिस की ?
सुमित - क्या ?
अद्वैत - आशना दीदू ने कभी हितेन अंकल के सामने अपनी नजरें तक नहीं उठायी इवन वो तो माया आंटी के सामने भी कांपने लगती हैं और तीन साल पहले क्या किया था उन दोनों ने क्या किया था आशना दीदू के साथ ? ऐसे में भी उन्होंने उन दोनों को कुछ भी नहीं कहां ? लेकिन आज उनके सामने आशना दीदू ने किस तरह बात की आपने भी देखा ना ? अचानक से तीन सालों बाद उनमें इतना बड़ा बदलाव ? कुछ तो झोल लग रहा हैं मुझे ? यानि कुल तो ऐसा हैं जो वो हम सब से छूपा रही हैं।
सुमित - मतलब ?
अद्वैत चिढ़ कर - आप भी ना भाई ? वो जो भी बोलती हैं आप मान लेते हैं लेकिन कुछ तो दिमाग से सोचिए भाई ?
जारी हैं.....
आगे .....
अद्वैत - वही तो भाई , वो अब तक बिना सामने आये अब तक सब कुछ संभाल रही हैं आगे भी संभाल सकती थी लेकिन उन्होंने यहां वापिस आना चुना ... आज से तीन साल पहले हवेली के बाहर कदम रखते हुए उन्होंने क्या कहां था आपको भी याद होगा ....
सुमित कहीं खोये हुए - उस दिन को भूलना आसान नहीं हैं अद्वैत ....
आशना हवेली के बीचों बीच अपने सामने के नाम पर एक छोटे से सुटकेस के साथ खड़ी थी । पूरे परिवार के साथ वहां पर कुछ और लोग भी खड़े थे ।
आशना आत्मविश्वास के साथ - जानती हूं आप सब मुझे यहां से दूर नहीं जाने देना चाहते हैं पर आप सब भी तो समझिए कि यहां से दूर जाना मेरे लिए भी आसान नहीं हैं लेकिन मेरे यहां से चले जाने में ही सबकी भलाई हैं । तंग आ चुकी हूं अब में सबकी नफ़रत झेलते झेलते । अब और नहीं सहा जायेगा । वैसे भी इस शहर में रहने की एक ही वजह थी और वह भी खत्म हो चुकी हैं तो अब कभी यहां लौटना नामुमकिन हैं ।
दादासाहेब - आसु बच्चा
आशना , अपने आंसु पोंछते हुए - जानती हूं दादा साहेब । आपकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा हूं मैं , जिसे आप अपने से दूर नहीं करना चाहते हैं लेकिन मेरी भावनाएं भी तो समझिए । सबकी नफ़रत झेलते हुए अब थक चुकी हूं । अब तक प्यार से इस नफ़रत को खत्म करने की उम्मीद पाल बैठी और अब मैं ख्वाबों से हकीकत में आ चुकी हूं। अगर अपनी जान हथेली पर भी रख दूं तब भी इन लोगों को उसमें मेरी चाल ही नजर आयेंगी । इसलिए मेरा यहां से चले जाना ही ठीक हैं ।
हालातों से इस तरह मजबूर होना
एक ख्वाब गलतफहमी का बुना होना
लगता हैं खोट मुझमें ही होगा
जब ही तो अपनों ने ठुकराया होगा
वक्त का इस कदर बेरहम होना
समझ कर इस तरह नासमझ होना
अहसास सिवा मेरे किसी को ना होगा
अपनों की नफ़रत ने किस कदर मुझे तोडा होगा ।
और इतना कहकर बीना पीछे मुड़े वह जा चुकी थी हमेशा के लिए ...जिन लोगों के प्यार के लिए वह हमेशा तरसी ...एक बार भी उन आंखों में उसके चले जाने का अफसोस नहीं था और इस कारण ही उसने एक बार भी पीछे मुड़कर देखना जरूरी नहीं समझा ...वरना वह तकलीफ भी असहनीय होती , उसके लिए .... वो सभी खामोशी से आंखों में दर्द लिए उसे ही देख रहे थे । चाहते तो थे उसे रोकना ... लेकिन रोकते भी किसके लिए ..और इतना अधिकार भी तो नहीं रखते थे ...और जिसे रोकना चाहिए था वह तो दिल में नफ़रत पाले बैठा था । आशना का इस तरह चले जाना दादा साहेब को अंदर तक तोड़ गया और वो हमेशा के लिए खामोश हो गये ।
उसके जाने के बाद सुमित ने बहुत कोशिश की अद्वैत के साथ मिलकर उसे हर जगह ढूंढने की लेकिन उन्हें उसका वजूद का अहसास तक कहीं नहीं मिला और आज तीन साल बाद उसका इस तरह हवेली लौटना , अद्वैत को शक हो रहा था ।
सब कुछ वापिस याद करते हुए सुमित की आंखें दूबारा नम हो चुकी थी । पीछले तीन साल से जब भी यह लम्हे उसकी आंखों के सामने से गुजरते तो , आंखों में नमी तैरने लगती थी । आशना के दर्द को बहुत करीब से महसूस किया था उसने ....और अब नहीं चाहता था कि उसकी जिंदगी में और गम और तकलीफें आये लेकिन कुछ भी करना उसके वश में नहीं था वरना तीन साल पहले इतना सब कुछ नहीं बर्बाद हो रहा होता ।
सुमित अपनी आंखों से आंसु पोंछते हुए , - तुम्हारे कहने से और सब कुछ सोचने से अब मुझे भी लगता हैं कि कुछ तो हैं जो आशना छूपा रही हैं लेकिन अभी हमारा काम सिर्फ इतना हैं कि जो कुछ भी हो रहा सब कुछ खामोशी से देखते रहो । सब कुछ वक्त पर छोड़ देना ही सही होगा । अगर आशना नहीं बताना चाहती तो हमें कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह ग़लत होगा उसके विश्वास के साथ ,जो वो हम पर करती हैं ।
अद्वैत भी कुछ सोचकर - आप सही कह रहे हैं भाईसा , सब कुछ वक्त पर छोड़ देना ज्यादा सही होगा .... अब तो बस कल का इंतजार हैं .....
सुमित भी कुछ सोचते हुए - हम्म .... मैं भी देखना चाहता हूं कि आशना कल कौन-सा कदम उठाती हैं ।
अद्वैत एक पैनड्राइव निकालते हुए - ये लिजिए भाईसा , एक बार अच्छे से चैक कर लिजिए और कल आप की जिम्मेदारी हैं कि आप इसे आशना बाईसा तक पहुंचाये।
सुमित - हम्म ...इतना कहते हुए वह पैनड्राइव को अपने पाॅकिट में डाल लेते हैं ।
प्रताप हवेली
आशना को भूख का एहसास होता हैं तो वह नीचे के फ्लोर पर किचन में चली जाती हैं ।
जहां कुछ सर्वेंट्स काम कर रहे थे लेकिन सभी सर्वेंट्स नये थे तो वो आशना को नहीं जानते थे ।
आशना अंदर आते हुए - क्या कुछ खाने के लिए हैं ।
एक सर्वेंट सिर झुकाए - नहीं मैम , अभी तो लंच की तैयारी चल रही हैं ।
आशना - ओके ... इतना कहकर ,वह फ्रीज को खोलकर उसमें से कुछ सब्जियां निकालकर बाहर स्लैब पर रख देती हैं ।
दूसरा सर्वेट , उसके पास आते हुए - नहीं मैम , आप यहां मेहमान हैं और अगर आप ने इस तरह किचन में काम किया तो बड़ी मालकिन हमें डाटेंगी तो प्लीज आप हमें बताइए क्या करना हैं ... हम कर देंगे । जिस पर वहां काम कर रहे सभी सर्वेट्स हांमी भरते हैं ।
आशना मुस्कराते हुए - हम्म बात तो आप की सही हैं कि मेहमान से काम नहीं करवाना चाहिए लेकिन मैं इस घर की एक सदस्य हूं और मुझे खुद के लिए इस तरह के काम करने में कोई आपत्ति नहीं हैं ।
इतना कहकर आशना बीना आगे कुछ बोले .... सब्जियों को धोकर एक बाउल में काटने लगती हैं । बाउल में सब्जियां काटने के बाद ...वह उन पर नींबू का रस और कुछ नमक छिड़कने के बाद .. हाथों में बाउल लिये बाहर निकल जाती हैं ।
रोशनी और मेघना , किचन के दरवाजे पर खड़ी , उसे ही हैरानी से घूर रही थी ।
रोशनी हैरानी से मुंह खोले - देख रही हैं भाभी ... कितनी मीठी आवाज हैं । ऐसा लग रहा हैं कि कानों में मिश्री घूर रही हों ।
मेघना भी गर्दन हिलाते हुए। - हम्म , बात तो सही कह रही हो छोटी लेकिन सासु मां के सामने तो यह साक्षात् काली मां बनी हुई थी और यहां देखो बिल्कुल शांत ... मोम की गुड़िया लग रही हैं .... यह सब कहते हुए मेघना की आंखों में एक अजीब सी चमक थी ।
जहां रोशनी चंचल और शरारती थी वही मेघना एक सौम्य और शांत स्वभाव की थी ।
दोनों ही दिल की साफ थी लेकिन मायावती जी ने कभी उन्हें बहू भी नहीं समझा और यही वजह थी कि उनकी नजरें हमेशा हर किसी में खोट ही तलाशती थी ... इस घर में सिर्फ दादा साहेब थे जिनसे उन्हें सच में बेटियों सा प्यार मिला था । जहां उन्हें मेकअप करना पसंद नहीं था लेकिन मायावती के आदेश के कारण ...
उन्हें गहने के साथ फुल मेकअप में तैयार होकर रहना पड़ता था । खैर उनकी जिंदगी की मुसीबतें भी कुछ कम नहीं थी
रोशनी अपनी आंखें नचाते हुए - वैसे जीजी , अपनी नन्द सा , इतनी भी बुरी नहीं हैं ।
मेघना सिर हिलाते हुए - हम्म बात तो सही हैं ।
जैसे ही वो आशना को मुड़ते हुए देखती हैं तो किचन के गेट से साइड हट जाती हैं ।
आशना हाथ में बाउल लिये बाहर आती हैं तो किचन के गेट पर खड़े होकर बीना पीछे मुड़े ही - ऐसे किसी को चोरी छूपे देखना अच्छी बात नहीं हैं भाभी सा .....
और इतना कहकर वह तुरंत ही वहां से सीढ़ियों की तरफ बढ़ जाती हैं ।
मेघना और रोशनी का मुंह एक बार फिर हैरानी से खुले रह जाता हैं ।
रोशनी मुंह खोले - हेऐ ....... ये क्या था ... मुझे तो लगता हैं कि नन्द सा के पीछे भी दो आंखें हैं।
लेकिन मेघना तो बस एक शब्द में ही खोयी थी - भाभी सा ..... इस एक शब्द में उसे बहुत अपनापन महसूस हुआ ... जैसे इस एक शब्द में बहुत गहराई हो ...वो शब्द से एक अपनेपन का भाव जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी ...मेघान को ऐसा लग रहा था कि उसकी रूह में सुकून सा उतर आया हो .....
रोशनी , उसे हिलाते हुए - का हुआ भाभी ... कहां खोयी हैं आप ... सुन भी रही हैं ना आप कि मैं क्या कह रही हूं ।
मेघना होश में आते हुए - हम्म , सुन भी रहे हैं और तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहे हैं । फिल्हाल के लिए हम दोनों को दोपहर का लंच तैयार करना हैं और दादा साहेब के लिए सादा खाना भी तैयार करना हैं । उनकी दवाईयां भी टाइम से देनी हैं वरना उनकी तबीयत और खराब हो जायेगी ।
रोशनी अपना माथा पिटते हुए - मैं तो भुल ही गयी थी भाभी .... इतना कहकर वह मेघना का हाथ पकड़े किचन में चली जाती हैं ।
इधर फोर्थ फ्लोर पर नमन और प्रियंका अपने कमरे में आराम कर रहे थे तो आशना बालकनी में सोफे पर बैठी शांति से सलाद खा रही थी ।
जारी हैं ......
तो आशना का आगे का सफर कैसा होगा ?
आशना का अगला दिन कैसा होगा प्रताप ग्रुप में ... जानने के लिए पढिए .... आशना एक दर्द भरी मोहब्बत ...
जहां आप जानेंगे आशना की जिंदगी के उतार चढ़ावों के बारे में .....
आगे .....
दोपहर हो चुकी थी और आशना अपनी ही सोच में गुम अब तक बाल्कनी में बैठी थी ।
अचानक सहसा ही उसे कुछ याद आता हैं और वह प्रार्थना को काॅल लगा देती हैं ।
प्रार्थना , उसके फोन उठाते ही , - बहुत समय बाद वक्त मिला हैं मिस आशना को जो उन्होंने मुझ नाचीज़ को फोन करने का कष्ट किया । तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे काॅल्स कट करने की .... अन्त तक आते आते उसकी आवाज गुस्से से और तेज हो गयी थी ।
आशना फोन को अपने कान से दूर करते हुए - सही में यूं ही नहीं कहती हूं मैं कि तुम्हारा गला , गला नहीं स्पीककर हैं जो हर किसी के कान से खुन निकाल सकता हैं ।
प्रार्थना चीखते हुए - आशना ......
..
आशना खिजते हुए- चीखों और चीखों .... पहले तुम जी भर कर चिल्ला लो , हम तो बाद में भी बात कर सकते हैं ।
प्रार्थना उसकी बात सुनकर शांति से - अच्छा बताओ , क्या बात करनी हैं ।
आशना शांति से - कहां हो तुम ?
प्रार्थना - हम्म , दिल्ली से मुंबई की फ्लाइट लेने वाली हूं । मां और पापा अब दो महिने गांव ही रहने वाले हैं लेकिन मैं , वहां नहीं रहना चाहती हूं और इसलिए अभी मुम्बई लौट रही हूं और इनसब का एक कारण तुम भी हो .... मैं तुम्हारी आगे की कहानी जानने के लिए बहुत बैचेन हूं ।
आशना - तो मुम्बई जाने का कोई फायदा नहीं ......
प्रार्थना - क्यों ?
आशना - क्योंकि मुम्बई नहीं हूं मैं ....
प्रार्थना हैरानी से - लेकिन मैं तो अभी मुम्बई एयरपोर्ट पर हूं ।
उसकी इस बात पर आशना हैरानी से - लेकिन अभी तो तुमने बताया कि तुम दिल्ली हो ।
प्रार्थना जबरदस्ती हंसने की कोशिश करते हुए - हे..हे ऐ ....वो तो मैं , तुम्हें सरप्राइज देना चाहती थी लेकिन तुमने तो मुझे ही सरप्राइज कर दिया ....वैसे कहां हो तुम ?
आशना बैचेनी से - मुझे , तुम्हारी मदद चाहिए प्रार्थना.....
प्रार्थना - क्या .... तुम्हें और मेरी मदद ... इतना कह वह हंसने लगती हैं ।
आशना उदासी से - सच में चाहिए .....
उसकी आवाज में उदासी महसूस कर , प्रार्थना - क्या हुआ आशना ...और तुम इतनी उदास .... मुझे बताओ कि तुम्हें .. क्या मदद चाहिए ।
आशना - तुम जयपुर आ जाओ ...दो फ्लाइट टिकट्स मैंने भेज दी हैं और साथ में नुसरत आंटी को भी लेते आना .. और एक बार उनकी मुझसे बात करवा देना ... मैं उनको सब कुछ समझा दूंगी । वक्त नहीं हैं ....
तीन घंटे बाद की फ्लाइट हैं तुम्हारी और आंटी की । इतना समझ लो कि मैं बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार करुंगी ।
प्रार्थना - ओके ... मैं जल्दी ही तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी ।
आशना - थैंक्यू ... इतना कहकर वह काॅल कट कर देती हैं ।
इसके बाद आशना स्वाति को काॅल कर देती हैं । स्वाति , सहारा फर्म में अपने केबिन में बैठी फाइलों के साथ सर खफा रही थी ।
आशना के साथ ही नमन और प्रियंका की गैरमौजूदगी में उसका काम काफी हद तक बढ़ गया था ।
स्वाति फोन उठाकर - गुड़ आफ्टरनुन मैम .....
आशना - गुड़ आफ्टरनुन स्वाति , तुम्हें आने वाले दिनों में सहारा फर्म को संभालना हैं और हर तरफ बाज की सी पैनी नजरें रखनी हैं ।
स्वाति - यस मैम , मैं आपको निराश नहीं करूंगी।
आशना - देट्स गुड़ .... अभी के लिए तुम्हें एक काम करना हैं । किसी तरह वालिया ग्रुप के मालिक विवेक वालिया को लालच दो कि वो हमारे सहारा फर्म के वालिया ग्रुप में जो दस प्रतिशत शेयर्स हैं उन्हें अच्छे दाम में खरीद लें और याद रहे ... मेरा नाम भी इस डिल में कहीं नहीं आना चाहिए । तुम ही प्रियंका के साथ मिलकर सहारा फर्म को रिप्रेजेंट करने वाली हो । यह काम तुम्हें दिया हैं क्योंकि .. तुम बखुबी जानती हो कि इस तरह का काम कैसे करना हैं ।
स्वाति - यस मैम , आई नो इट दैट यह काम कैसे करना हैं । सुबह दस बजे तक आपका काम हो चुका होगा ।
आशना - ग्रेट ... अच्छा ... बेस्ट ऑफ़ लक.. इतना कहकर वह काॅल कट कर देती हैं ।
और बाल्कनी की रेलिंग पर हाथ टिकाए खड़ी होकर बाहर चारों तरफ फैले गार्डन को देखने लगती हैं और खुद से ही - शेर अगर शांति से सो रहा हैं तो किसी जानवर को गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए कि शेर शिकार करना भूल गया हैं ... और अगर शेर घायल हैं तो यह भूल करना आने वाले खतरे के संकेत हैं । बहुत कुछ छिन गया अब तक मुझसे ... कोई आप लोगों से सिखे कि अपनों के भेष में दुश्मन बनकर पीठ में छूरा कैसे खोंपा जाता हैं । वेट एंड वाॅच ... बहुत जल्द यह खेल खत्म होगा । यहां से दूर जाना ... भले ही आप लोगों की नजर में मेरी कमजोरी होगी .... लेकिन आई एम ए क्वीन आॅफ दिस गेम ....जो कुछ आपने मुझसे छीना हैं ... उसे वापिस ना ले लिया तो मैं भी आशना प्रताप नहीं .... बहुत बड़ी किस्मत चुकानी होगी ... मेरे साथ धोखे की .... मैं दिखाऊंगी अब आप सभी को कि असली खेल क्या होता हैं बर्बादी का ?
कैसा लगता हैं जब हमारी जिंदगी दुनिया की नजरों में तमाशा बन जाती हैं ... कैसे लगता हैं जब हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाती हैं ।
इतना कहकर वह आंखें मूंद लेती हैं । तभी उसे किसी के सीढ़ियों पर चढ़ने की आवाज आती हैं और वह शांति से खुद को सामान्य कर पास ही के सोफे पर बैठ जाती हैं ।
एक सर्वेंट ऊपर आकर ... मैम साहब , आपको और आपके साथ आये लोगो को बड़ी बहुरानी ने नीचे लंच के लिए बुलाया हैं ।
आशना जो कि एक मैगजीन लिये बैठी थी । वह बीना किसी भाव के - ओके ।
सर्वेट के जाने के बाद
वह नमन को और प्रियंका को लंच के लिए नीचे आने के लिए बोल देती हैं जिस पर दोनों फ्रेश होकर कुछ ही समय में आने के लिए बोल देते हैं ।
जारी हैं ......
ओके , तो लाइक किजिए और समीक्षा कीजिए कि अब तक कहानी कैसी लग रही हैं आपको ....
🙂🙂🙂🙂
आगे .......
मनय और शेखर , आशना से मिलना चाहते थे लेकिन अर्जेंट में ही उन्हें एक इन्वेस्टर से बात करने के लिए बाहर जाना पड़ा । वह बहुत कोशिश कर रहे थे कि किस तरह इन्वेस्टर्स मिल जाये तो .... प्रताप ग्रुप के कुछ लाॅस को तो रिकवर किया जाये लेकिन ऐसा होना मुश्किल लग रहा था ।
अभी भी वह हाॅटेल के एक प्राइवेट केबिन में बैठे सामने ही बैठे एक इन्वेस्टर से सिर खफा रहे थे लेकिन वह इन्वेस्टर उनके प्रोजेक्ट में कोई खास इन्टरेस्ट नहीं ले रहा था और यही बात उनको गुस्सा दिला रही थी जिसे वो कंट्रोल करने की कोशिश कर रहें थे ।
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सुमित , अद्वैत से फाइल लेने के बाद अपने घर आ चुका था । घर आते ही , एक छोटी सी लगभग साढ़े तीन साल की बच्ची , अपने छोटे छोटे पैरों से चलते हुए सुमित के पैरों से लिपट जाती हैं । उसके पैरों के लिपटने के एहसास भर से , सुमित की आंखें एक अनकहे सुकून से बंद हो जाती हैं ।
सुमित , उसे गोद में उठाते हुए ," कैसी हैं मेरी अंनता "
अनंता ,अपने दांत दिखाते हुए अपनी तुतलाती आवाज में , " मैं थीक हूं। आप मेले लिए चाॅकलेट लाये हैं ना "
सुमित , उसे अपने सिने से लगाते हुए , " हां , मेरी गुड़िया रानी , पापा आपकी चाॅकलेट कभी नहीं भूल सकते हैं " इतना कहते हुए वह एक चाॅकलेट उसे पकड़ा देता हैं ।
चाॅकलेट लेते ही वह बच्ची , मम्मा कहते हुए शोर मचाने लगती हैं ।
उसके शोर से , एक औरत हाथ में पानी का गिलास लिये हुए , बाहर आती हैं । आसमानी कलर की एक प्लेन साड़ी , मांग में चमकता सिन्दूर और गले में मंगलसूत्र पहने हुए वह सादगी में भी बहुत खुबसूरत लग रही थी ।
" इतना शोर क्यों मचा रही हो अन्नी "
अन्नी , सुमित के सिने से लगे हुए ही अपनी मम्मा की तरफ देखते हुए , " पापा , चाॅकलेट लाये "
वह औरत सुमित को पानी का गिलास देते हुए , अनंता को गोद में ले लेती हैं और उसके माथे को चुमते हुए , " अच्छा "
वह बच्ची अपनी मम्मी के गाल पर किस करते हुए , अपनी गर्दन हिलाती हैं और फिर , " मम्मा नीचे उतालो " मुझे खेलना हैं ।
उसके इतना कहते ही वह , उसे नीचे उतार देती हैं ।
सुमित इतनी देर से दोनों को देखते हुए मुस्करा रहा था । अनंता को गोद से नीचे उतारते हुए , जैसे ही उस औरत की नजर , सुमित पर पड़ती हैं तो वह मुस्कराते हुए , " इस तरह क्यों मुस्करा रहे हैं । "
सुमित मुस्कराते हुए , " अब मैं मुस्करा भी नहीं सकता हूं क्या ? नव्या जी । "
नव्या अपनी कमर पर हाथ रखते हुए , " मुस्करा सकते हैं ...... मैं तो कहती हूं कि सारे दिन मुस्कराइए .... लेकिन कारण जानने का हक तो रखते हैं ना "
सुमित भी उसकी हां में हां मिलाते हुए , " हक हैं आपका जानने का "
नव्या , उसे घूरते हुए , " तो बताइए ...."
सुमित " अच्छा बता रहे हैं , .... बस यह सोचकर मुस्करा रहे थे कि इतनी खूबसूरत जिंदगी की कल्पना हमने कभी की भी नहीं थी ।अनाथ थे तो शुरू से रिश्तों से अंजान रहे लेकिन जबसे आप मेरी जिंदगी में आयी हैं तबसे ही दिल खुश रहता हैं । ऐसा लगता हैं कि मेरे पास भी कोई ऐसा हैं जो मेरा अपना हैं । जिससे मैं अपने दुःख , दर्द , तकलीफ बांट सकता हूं । जो मुझसे सच्चा प्यार करता हैं । जो मेरे लिए दूनिया से लड़ सकता हैं । जिसके पास रहने से मुझे पत्नी के साथ , एक मां भी मिल गयी और अब तो हमारी जिंदगी में अनंता भी हैं । जिसकी एक छोटी सी मुस्कुराहट,मेरे रुह का सुकून हैं । जब वो पापा कहती हैं तो ऐसा लगता हैं कि बस सुनता रहूं .....ऐसा लगता हैं कि मैं इस दुनिया का सबसे लक्की इंसान हूं । ......इतना कहते कहते , सुमित का गला भर आया था और आंखों में आंसु छलक रहे थे ।
नव्या की आंखें भी भर आयी थी । बहुत कम होता था जब सुमित अपने दिल के जज्बातों को इस तरह जाहिर करता था । वरना वह , हमेशा ही शांत सा रहता था । नव्या को , उसके हर एक शब्द में अपने लिए बेइंतहा प्यार महसूस हो रहा था ।
वह एकदम से सुमित के गले लग गयी और , " अब बस भी कीजिए । क्या रुला कर ही मानेंगे ? और आप ही हैं जो लक्की हैं क्या ? मैं भी तो कितनी खुशनसीब हूं जो मुझे इतना प्यार करने वाला हमसफ़र मिला हैं । वैसे पता नहीं क्यों ? लेकिन आपकी आंखों में मैंने आज एक ठहराव सा महसूस किया । ऐसे लग रहा हैं । आपकी आंखें जो हमेशा बैचेन सी रहती थी वो आज शांत सी हैं । "
सुमित , नव्या के सिर को सहलाते हुए , " सच में आप , मुझे बहुत अच्छे से जानने लगी हैं । " इतना कहकर वह गहरी सांस लेते हुए शांत सी आवाज में , " आशु आ गयी हैं नव्या जी "
इतना सुनना था कि नव्या के चेहरे पर एक डर सा उतर आया । वह बैचेनी से , " क्या "
सुमित नव्या के चेहरे पर डर के भाव देख पाता , तब तक वह अपनों भावो को छिपाकर शांत हो चुकी थी ।
लेकिन अपने मन में , "नहीं ऐसा नहीं हो सकता हैं । "
सुमित , इसके बाद , " बहुत भूख लगी है । मैं , फ्रेश होकर आ रहा हूं । आप बस लंच लगाओ ।
नव्या , किचन की तरफ देखते हुए , " हम्म "
सुमित , नव्या को देखते हुए खुद से , " यह इतनी शांत कैसे हो गयी ? पर उसे समझ कुछ नहीं आया तो फ्रेश होने रुम की तरफ चला गया ।
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अद्वैत मुस्कराते हुए गाड़ी पार्किंग में लगा कर , रायचंद मेंशन में जा रहा था । यह एक खुबसूरत सा बहुत दूर में फैला , वाइट और ग्रे काम्बीनेशन का बंग्ला था । जिसके आगे बहुत बड़ा गार्डन भी था ।
वह अन्दर की तरफ जा ही रहा था कि उसकी नजर गार्डन में जाती हैं । जहां मायरा झूले पर आंख बंद करके बैठी थी । कानों में इयरफोन लगे थे और उसके होंठ , एक ही लय में मुस्करा रहे थे । उसके हाथ अपने बढ़े हुए पेट पर थे । जिनसे वह धीरे-धीरे अपने पेट को सहला रही थी ।
अद्वैत की नजर सामने बैठी उस खुबसूरत लड़की को देखते ही मुस्करा उठी ।
वह उधर जाते हुए ही आवाज लगाने लगता हैं , " मायरा....... "
पर लग नहीं रहा था कि मायरा को उसकी आवाज सुनाई भी दे रही हैं । वह तो अपनी ही दुनिया में खोयी थी ।
अद्वैत , उसके पीछे जाते हुए , उसके कंधों पर हाथ रखते हुए , उसके गालों को चूम लेता हैं ।
मायरा एक दम से चौंकते हुए , " तुम कब आये । "
अद्वैत झूले को अपने हाथों से हल्के-हल्के हिलाते हुए , " जब तुम एक अलग ही दुनिया में गुम थी । "
मायरा मुस्कराते हुए , " भाभी मां की याद आ रही थी तो बस उनकी लौरी सुन रही थी । "
अद्वैत , " मतलब अपनी भाभी मां को याद किया जा रहा हैं । " इतना कहते हुए वह आकर मायरा के बगल में बैठ जाता हैं ।
मायरा , उसके कंधे पर सिर टिकाते हुए उदासी से , " इतना बुरा हमारे साथ ही क्यों होना था अद्वैत । हम लोगों ने किसी का क्या बिगाड़ा हैं । पहले भाईसा , फिर भाभी मां और फिर अनिकेत , सभी ने मुझे अकेला छोड़ दिया । एक पल में सब कुछ बर्बाद हो गया । जिन लोगों के बीना , एक पल भी नहीं रह सकती थी । देखो आज उन सब के बीना पूरे तीन साल गुजार दिये । पता हैं कभी कभी तो यह सोचती हूं कि .... तुम नहीं होते तो शायद अब तक तो मैं मर चुकी होती । "
उसके इतना कहते ही अद्वैत , उसके होंठों पर उंगली रख देता हैं , " तुम प्लीज़ , इस तरह की बातें मत किया करो । "
मायरा अपने होंठों से अद्वैत की अंगुली हटाते हुए , " इस तरह खामोश करवाने से सच तो नहीं बदलेगा ना अद्वैत और फिर तुम भी जानते हो कि भाईसा और भाभी मां , मेरे और अनिकेत दोनों के लिए पापा और मां थे । उनका , हम दोनों की जिंदगी में माता पिता का दर्जा था । एक पल भी , उन्होंने हमारे बारे में नहीं सोचा की । उनके बीना हम कैसे जी पायेंगे । "
अद्वैत , उसे अपने सीने से लगाते हुए , " शायद तुम्हारी भाभी मां पहले ही सब जानती थी । इसलिए उन्होंने तुम्हें , मुझे सौंप दिया ताकि उनके बाद ,, मैं तुम्हें हमेशा खुश रखु लेकिन तुम हर बार उदास होकर , मेरी मेहनत पर पानी फेर देती हो । " फिर बात बदलने के लिए , " वैसे मेरे पास तुम्हारे लिए सरप्राइज हैं । "
मायरा एक्साइटेड होकर , " सरप्राइज " इतना कहकर वह अद्वैत की तरफ देखने लगती हैं ।
जिस पर अद्वैत, " सरप्राइज का मतलब सरप्राइज होता हैं और वो तुम्हें कल मिलेगा तो प्लीज तब तक के लिए अपनी मासूमियत को मुझसे दूर रखो । "
मायरा , मुंह फुलाते हुए , " अद्वैत ........."
अद्वैत हंसते हुए , " पर इतना बता सकता हूं कि यह सरप्राइज , तुम्हारी लाइफ का बेस्ट सरप्राइज होगा "
जारी हैं .....
तो क्या हैं नव्या के चेहरे पर डर का राज ?
मायरा के लिए अद्वैत का सरप्राइज प्लान क्या होगा ?
आशना के आने से क्या सुमित और नव्या के रिश्ते के बीच आयेगी खटास ?
जानने के लिए पढ़िये -
" आशना एक दर्द भरी मोहब्बत "