यह कहानी 1990 के समय पर लिखी गयी है, जहाँ कम उम्र की लड़कियों की शादी दो गुना ज्यादा उम्र के लड़को से कर दिया जाता है, पारो का भी शादी ऐसे ही उसके उम्र से बड़े उम्र के लड़को से कर दी जाती है, जो बहुत ही कठोर, अधिकार, हुकुम चलाने वाला होता, जबकि पारो डरी... यह कहानी 1990 के समय पर लिखी गयी है, जहाँ कम उम्र की लड़कियों की शादी दो गुना ज्यादा उम्र के लड़को से कर दिया जाता है, पारो का भी शादी ऐसे ही उसके उम्र से बड़े उम्र के लड़को से कर दी जाती है, जो बहुत ही कठोर, अधिकार, हुकुम चलाने वाला होता, जबकि पारो डरी सहमी, मासूम लड़की होती है, तो क्या पारो रह पायेगी ऐसे इंसान के साथ..? इसमें highly mature content है तो वही पढ़े जो झेल सके, गलत कमेंट करने की अनुमति नहीं है, आप अपने मर्जी से पढ़ने के योग्य है, thankyou all readers
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सुबह के समय एक छोटे से मिट्टी के घर में एक छोटा शरीर वाली लड़की सुकून से आंखें बंद किए सपनों की लोक में गोते लगाते हुए सुकून से सोई हुई थी,बाहर की सुबह की उजाला, छोटी सी खिड़की से उसके कमरे मे भी छन कर जा रही जिससे उसका सोया हुआ शरीर साफ दिख रहा,
उसकी कमर पर से कॉटन की पतली हल्की फीके हरे रंग की साड़ी लापरवाही से सोने के कारण हट गयी थी, जिससे उसकी दूध जैसे गोरी पतली कमर को साफ दिख रही,, उसकी गोल अंदर में घुसी हुई नाभि भी दिख रही, वही नीचे उसके टाकने को भी दिख रहे, साड़ी ऊपर होने से, जिससे उसके पैरों में पतली पायल के साथ अलता से भरा पर बहुत ही खूबसूरत दिख रहा है किसी खरगोश के पैर जैसे, उसके पतली मगर दूध जैसे मखमली त्वचा को देख कर कोई कह सकता की कीचड़ मे खिली कमल की तरह है।
उसकी घनी लंबी बाल काले बादल की तरह तकिये पर बिखरे हुए अपना कब्ज़ा किये हुए सुन्दर काया बना रही थी, उसकी नींद सुबह के और गहराई मे जाती की बाहर से खटपट और सुबह में मुर्गे की आवाज उसके सोये कानो मे गयी तो उसकी नींद में बाधा उत्पन्न हुआ, जिससे वह अपनी पलकों को मसलने लगी किसी बच्चे की तरह, लेकिन नींद आंखों में इतनी हावी की उससे उठने की इजाजत नहीं मिली, और वह फिर से सोने लगी, तभी उसके कमरे का दरवाजा धीरे से खुला और कोई दाखिल हुआ।
" पारो बेटा उठ जा, तुझे आज लड़के वाले देखने आ रहे है …पता तो है फिर इतनी देर तक क्यूँ सो रही हो, उठ जा जल्दी और तैयार हो जा, समय बहुत निकल गया है … " पारो की माँ कमरेका दरवाजा खोलते हुए अपनी जान से भी कीमती बेटी को सोते देख प्यारी आवाज मे कही।
ये थी पारो की माँ जो एक विधवा थी बहुत ही मासूम दिल की साफ महिला जो किसी की भी बातें केवल सर झुका कर मानती थी, फिर चाहे उनके साथ कोई कितना भी बुरा व्यवहार करें,, उनका हर बात पर गया की तरह सिर झुकना आदत हो गयी थी या,, हालातो की मारी उनको ऐसा बना दिया था।
वह अपनी बेटी को उठाने के लिए कमरे में आई क्यूंकि उनकी बेटी पहले के मुकाबले आज देर तक सो रही थी,,और आज उनके लिए खुशी और दुख की बात भी थी, खुशी इस चीज की उसकी बेटी को लड़के वाले देखने आ रहे हैं और दुखी इस चीज के लिए की अब उनकी बेटी उनके साथ नहीं रहेगी, उनकी बेटी इतनी बड़ी हो गयी की अब शादी हो जाएगी उसकी और दूसरे घर चली जाएगी।
उसके कंधे को हिलाते हुए उसे फिर से उठाई,, पारो जैसे ही अपनी माँ की आवाज सुनी, एक ही आवाज मे उसकी नींद गायब हो गयी,,
वह हैरानी में फटी आंखों से अपनी माँ को देखते हुए बिस्तर पर उठ बैठी,, आँखों को मासूम बच्चे की तरह रगड़ते हुए बोली, उसकी आवाज बहुत ही पतली और मासूम बच्चे की तरह थी जिसे सुनकर ही कोई कहता की ये लड़की कितनी मासूम और प्यारी है, चेहरा जितना सुन्दर आवाज भी उतनी प्यारी।
"माँ... मैं तो भूल गई थी..अच्छा हुआ..आप उठा दी.. नहीं तो मैं अभी तक सोती रहती...कितने सारे काम होंगे..चाची सुबह से कितनी कुछ सुना चुकी होगी आपको मेरे नहीं उठने से ही भगवान जी.. मै कैसे सोती रही पता ही नहीं चला माँ की इतनी गहरी नींद कैसे लग गयी... " पारो कहते हुए जमीन पर से में सीधा खड़ी हो गई,, उसकी चाची एक डायन थी जिसके डर से उसकी सुबह होती थी। और उठने के साथ ही भगवान जी को याद करने की जगह अपनी चाची को याद करती और यह कोशिश करती कि पूरे दिन उससे कोई ऐसी गलती ना हो कि उसकी चाची उसकी मां को और उसे सुनाया मारे पीटे ,,
आज उसे लड़के वाले देखने आ रहे हैं तो घर में बहुत से काम बढ़ गए थे और वह काम उसे और उसकी माँ को ही करने थे, और अभी तक उसका सोना मतलब बहुत से काम नहीं हुए होंगे और उसकी चाची उसकी माँ को बहुत कुछ सुना चुकी होगी,, उसकी चाची जो एक चुड़ैल और बहुत ही शातिर बुरी किस्म की औरत थी जो कभी भी उन पर अपना धौंस जमती थी,, उन पर ऐसे हुकुम चलाती जैसे वह कहीं की महारानी हो और वह उनकी नौकरानी ,,अगर पारो सुबह के 4:00 से ही उठकर घर के सारे काम करना शुरू न करे तो वह उसे करने और गली के साथ भला बुरा दोनों माँ बेटी को कहने लगती थी।
अभी जहां वह सोई थी यह कैमरा उसका और उसकी मां का था दोनों साथ में रहते थे दोनों साथ में ही जमीन पर सोते उनका छोटा सा आशियाना था यह कमरा भी उनके मुश्किल से उसकी चाची दोनों को दी थी रहने के लिए नहीं तो उसके पापा के मरने के बाद उसने उनके सर से छत भी नहीं था रहने के लिए,, लेकिन लोगों के ताने हमेशा उनके सिर पर रहकर तांडव करता था,, फिर भी दोनों मां बेटी एक दूसरे के सहारा बनकर अभी तक इस घर मे थी और सब कुछ सहती थी क्यूंकि उनके पास कही और जाकर रहने का कोई साधना नहीं था।
" अरे बैठो यहाँ,, चाची के किसी भी बात के बारे में मत सोच,, उनका तो रोज का है,, वो कभी ख़ुश नहीं होती,, लेकिन आज मै ख़ुश हूँ और तुझे आज खुद पर ध्यान देना है बाकि मेरे ऊपर छोड़ दे,, घर का काम मै कर दी हूँ बाकि बचा भी कर दूंगी बस तु जाकर जल्दी से नहा ले और अच्छे से तैयार हो जा,, और जो चाची साड़ी दी है उसे पहन लेना... तु परेशान मत हो मेरी बेटी की शादी ठीक से हो जाए बस मैं यही चाहती हूँ बस तेरा घर बस जाए फिर मैं भी सुकून से सांस ले पाऊंगी.... "
उसकी मां भावुक होकर उसे समझाते हुए बोली अपनी बेटी की शादी करके चले जाएगी यह सोचते हुए उनके आंखों में आंसू भरने लगे थे उनकी बस एक ही इच्छा थी जो उनके जन्म और पति के जाने के बाद उनको करनी थी और आज भगवान जी उनकी प्रार्थना सुन ली तो खुद को रोने से रोक नहीं पाई,, आखिरी हर माँ की तरह तरह वह भी अपनी बेटी के घर बस्ते हुए सपना देखि थी।
जब अपनी मां की आंखों में आंसू देखी तो उसकी भी आंखों में आंसू भरने लगे,, जब से जानी है कि उसकी शादी हो गई तब से उसकी रातों के नींद और दिन के चैन उड़े हुए थे हर रोज भगवान से यही कहती कि वह अपनी मां को कहीं छोड़कर नहीं भजे,, लेकिन दिन नजदीक आ गया और आज उसे लड़के वाले देखने आ रहे है,, फिर कुछ दिन बाद उसकी शादी हो जाएगी यह सब सोचते हैं पारो के आंखों में आंसू लुढ़ककर गालों पर आ गया
" मां.. मैं... आपको इस घर में अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती...मेरा बाद आपका कौन ध्यान रखेगा...क्या...आप.. मुझे.. अपने साथ हमेशा नहीं रख सकती... मै आपके बिना कैसे रहूंगी... नये लोग के साथ... आज तक मैं आपके बिना एक पल भी नहीं रही.. और आप मुझे हमेशा के लिए खुद से दूर कर रही हैं... मत भेजो न मुझे... नहीं जाना कही... " पारो उनकी आंखों में देखते हुए रोते हुए बोली,, हिचकिया लेने लगी,,, उसके सीने में दर्द उठने लगा था अपनी मां से दूर होते सोचकर उसकी शादी कर अपनी मां को चाचा के घर में छोड़कर कही जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था,,,उसके सिवा उसकी माँ जिंदगी में कोई नहीं था दोनों एक दूसरे के सहारे थे,, और दोनों को दूर होना था,,
पारो की मां उसे झट से गले लगा कर बोली,,
"ऐसा नहीं होता बेटा... हर बेटी की शादी एक दिन होती है...और उसे अपने मां के घर छोड़कर जाना ही पड़ता है... यही रीत है हमारे समाज का...मैं भी तो एक बेटी हूं... और मैं भी अपनी मां को छोड़कर तुम्हारे पापा के साथ आई थी न... तुम्हें भी उसी तरह जाना है... अपना परिवार बनाना है,, शादी के बाद अच्छे से अपना ससुराल वाले का ध्यान रखना शिकायत का मौका मत देना उनको और पति से सारी बातें मानना भगवान तुम्हें सबसे अच्छा पति देगा जो तेरे ख्याल रखेगा यहां से भी अच्छा तुम वहां पर रहोगी.."
पारो को बिल्कुल भी नहीं पता की पति का मतलब क्या होता है उसे बिल्कुल भी नहीं पता था,,,बस पता था तो पति शब्द,,, उसकी अंदर की गहराई को नहीं जानती थी,,,, क्यूंकि वो ऐसे माहौल में रही नहीं है जहां पति अपनी पत्नी को प्यार करता हो,,, अपना प्यार दिखाती हो,उसे सिर पर रखता हो,,, वह तो ऐसी जगह पर रहती थी जहां पति अपनी पत्नियों को मारते थे हर एक गलती पर,,
उसे पता हर लड़का लड़की की शादी होती है,, और शादी के बाद पति लड़की को अपने घर लेकर जाता है,, फिर लड़की वहां सारे ससुराल वालों की सेवा करती है पति पत्नी का रिश्ता फिर कैसा बनता है उसे नहीं पता,,,बहू बनकर बहू का फर्ज निभाना उसे पता था,, क्योंकि उसकी मां उसे बचपन से यही सिखाते हुए आई थी सबका ध्यान रखना और सर झुका कर सब की बात मानना,,,उसे खासकर ससुराल जाने के लिए ही तैयार किया गया था ताकि बाद में कोई शिकायत का मौका ना मिले,
कुछ देर तक पारो अपनी मां के सीने में लगी रही फिर नहाने के लिए अपने कपड़े लेकर कमरे से बाहर चली गई जहां घर के पीछे नहाने के लिए बाथरूम बनाया हुआ था चारों तरफ से कपड़े से बांधकर वह उसी में अपनी साड़ी खोलकर नहाने लगी
कुछ देर में वह नहा कर नया वाला साड़ी पहन ली फिर से अपने कमरे में जाकर क्रीम पाउडर लगाकर तैयार होने लगे वैसे उसके दूध जैसे त्वचा पर किसी क्रीम पाउडर की जरूरत नहीं थी और वह कभी भी नहीं लगती थी अपने चेहरे पर कुछ भी लेकिन आज के दिन वह अच्छे से तैयार हो रही थी उसे कुछ बड़े लोग देखने आ रहे हैं जिस वजह से वह डरी हुई थी अंदर से फिर भी हिम्मत जटाकर वह तैयार हो रही थी अपनी मां के लिए,,
जब वह तैयार हो रही थी तब बाहर से उसे उसकी चाची की कड़वी बातें सुनाई दी जो उसकी मां को सुना रही थी दोनों मां बेटी की यही जिंदगी थी सब कुछ करने के बाद भी उसकी चाची उनको कामों में कमी निकलने में कोई कमी नहीं छोड़ती थी और आज तो उसे लड़के देखने आ रहे थे जिसका वजह से चाचा जी कुछ पैसे लगाकर नाश्ता खरीदे थे,, सब चीज़ो मे उनके ही पैसे लग रहे थे,, जिस वजह से वह अलग से चिड़चिड़ी हुई थी,,
पारो आज तक नहीं जान पाई थी कि चाचा जी उन दोनों मां बेटी को पसंद क्यों नहीं करती थी वह हमेशा उन्हें डांटती और भला बुरा क्यों कहती रहती थी ऐसा क्यूँ नहीं पता। जबकि उनको ख़ुश करने के लिए माँ बेटी नौकर बन कर उनके घर मे रहती थी जबकि कायदे से इस घर पर उसके पापा की भी हक़ था,, लेकिन ये हक़ भी मारते हुए शरीर के साथ उसके पापा लेकर चले गये और उनके लिए एक छत भी नहीं छोड़े जहाँ दोनों सुकून से जी सकते।
पारो को बस एक यही बात से डर लगता था कि उसके जाने के बाद उसकी मां के साथ चाची कैसा बर्ताव करेगी उसकी मां का ख्याल कौन रखेगा कहीं खाने के लिए भी देगी की नहीं... क्योंकि उनके इस घर में रहने के लिए नौकरों की तरह काम करके ही खान के लिए दो समय का खाना मिलता था बड़ी मुश्किल से उनकी जिंदगी का गुजारा होता था जिस वजह से उसकी मां उससे कम उम्र में इस घर से शादी करके विदा करना चाहती थी ताकि उसकी बेटी को अच्छे जीवन.. घर... परिवार.. मिल सके उसे वह प्यार मिले जो इस घर में रहकर नहीं मिला और एक पति मिले जो ढेर सारा उसकी बेटी से प्यार करेगा,, हालांकि उन्हें नहीं पता की लड़का कैसा है लेकिन उम्मीद तो लगा सकती थी की उनकी बेटी को भगवान एक अच्छा पति दे।
वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी की भी जिंदगी ऐसे ही कुछ बीते जो वह कटी है बिना पति और लोगों की कड़वी बातें सुनकर इसलिए वह हमेशा भगवान से प्रार्थना करती थी कि लंबी उम्र वाली और उसकी बेटी की ध्यान रखने वाली पति मिले उसका ससुराल उससे अच्छा मिले
पारो खुद को दुखी मन से आईने में देखि कोई खुशी नहीं थी इस शादी को लेकर,,, उसकी मासूम छोटी काली आंखों में कोई शर्म खुशी नहीं थी किसी और लड़की की तरह वह शादी और पति के नाम पर खुश नहीं हो पा रही क्योंकि उसकी खुशी उसकी मां थी जिसे शादी के बाद उसे दूर जाना होता है तो खुशी बिल्कुल भी नहीं हो रही
पारो की लम्बाई 5 फीट की,,वजन 40 की बहुत ही पतली और छोटी थी उम्र 18 की हो गई थी,, लम्बे घने बाल जो उसकी घुटनों तक आते थे पढ़ाई में बस 5 तक पढ़ी,,, उसके गाँव मे लड़कियों को पढ़ना बिल्कुल भी अच्छा नहीं माना जाता था जिस वजह से उसे भी कभी पढ़ने के लिए अनुमति नहीं दिया गया था,, उसे केवल हमेशा घर के कामों में ही ध्यान लगाने की सीख मिली और नहीं करने पर चाची के द्वारा मार मिली,,,
वह 18 साल की एक महीना पहले ही हुई थी कि उसकी चाची हाथ धोकर उसकी शादी के पीछे पड़ गई थी इतना कि उसकी शादी बुड्ढे हो या उससे ज्यादा उम्र का लड़का किसी से करवाने के पीछे पड़ी गई थी,,और अब वह दिन भी आ ही गया था उससे पीछा छुड़ाने की जिद में
चाचा ही उसके लिए एक रिश्ते लेकर आई थी कौन है कहां से है घर खानदान लड़का कैसा दिखता है होने वाला ससुराल में कितने लोग रहते हैं ना तो उसकी मां को पता था और ना ही उसे बस इतना पता था कि लड़के थोड़ा ज्यादा नहीं बहुत ज्यादा उसकी उम्र से बड़ा है 10 साल लेकिन उसकी चाची उसकी मां से धमकी दी थी अगर इस घर में शादी अपनी बेटी की नहीं करवाई तो अपनी बेटी को लेकर मेरे घर से निकल जाना जिस वजह से उन्हें मजबूरी में अपनी बेटी की शादी के लिए राजी होना पड़ा
10 साल का है तो चल सकता है उनके भी ज्यादा बुराई नहीं लगा क्योंकि उनके समाज में इतने उम्र के लड़के से करना आम बात थी
ऐसे ही कुछ घंटे बाद पारो को मेहमानों के बीच बैठा दिया गया वह अपने सिर नीचे किया उन सबको प्रणाम करी,, मेहमान उससे घर के काम और नाम गाँव,, ताकि उसे परखा जा सके,, उसकी खूबसूरती ही काफ़ी थी उन्हें रिश्ता मानने के लिए।
कुछ देर मे मेहमान रिश्ता तय कर एक महीने बाद शादी की तारीख रख चले गये, पेट पूजा करने के बाद।
उसकी शादी होने वाली थी और अभी तक अपने होने वाले पति के नाम को अलावा कुछ भी नहीं जानती थी दिन में भी उसे देखने लड़की की तरफ से केवल बड़े आए थे वह रात के पास जमीन पर लगे बिस्तर पर बैठी अपनी मां के सोते चेहरे को देखते हुए आगे क्या होगा,, उसके जीवन में सब के बारे में सोच रही थी,,,लेकिन उसे कुछ नहीं पता कि असल में उसके जीवन में क्या होगा,,कैसा पति मिलेगा,, ससुराल कैसा मिलेगा,, सास कैसे होगी,, वह इतनी मासूम भोली थी की अच्छा और बुरे लोग की फर्क बिल्कुल भी करने नहीं जानती,,
उसका होने वाला पति,,,नाम तो अर्जुन ठाकुर,,, जिसके नाम सुनते भर से उसके शरीर में रोंगटे खड़े होने लगे थे,,, कैसे दिखते होंगे कुछ पता नहीं है...बस नाम से डर उसके अंदर समा गया था,,
"माँ कहीं की भगवान जी मुझे प्यार और देखभाल करने वाले पति देंगे लेकिन अब तक मैं,, लेकिन मै अभी तक उनको देखी भी नहीं,,,जानती भी नहीं,, और श्याद वो भी मुझे नहीं जानते,, फिर कैसे... क्या होगा.. भगवान जी... मै कैसे ऐसा इंसान के साथ रहूँगी...काश आप कुछ करके मुझे मेरी माँ से दूर नहीं भेजे.."
पारो अपनी आंखों से आंसू लिए ही बंद कर,, अपनी माँ से गोंद की तरह चिपकते हुए सो गयी।
अब जिंदगी बदलने की समाय आ गयी तो उसे उसके भगवान जी भी नहीं रोक सकते...
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Comment कीजिए Kaisa laga story....? 🥺
Agr part ki starting achi lgi ho to comment karke batae aur aage likhne ke liye motivate kare,
isme mature content bhi aage आएगा 🔞
aur bahut hi interesting secen bhi.❤️
Thankyou ❤️❤️❤️❤️
अब आगे 👉
आज वो दिन आ गया, जब पारो अपनी माँ को छोड़ कर हमेशा के लिए अपने ससुराल चली जाएगी,हमेशा के लिए अपने जन्मदाता को छोड़ देगी,,आज उसकी शादी है,,
दुल्हन के जोड़ा पहने,, बहुत से लड़कियों और भाभियों से घिरी हुई बैठी, मासूम आँखों मे आँसू लिए भाव शून्य से कही नज़र टिकाई हुई थी, ना तो उसके कान किसी की बात सुन रहे और ना ही उसके आँखों मे ये रंग बिरंगे बती की चमक जा रही, उसे अभी कुछ भी महसूस नहीं हो रहा,, सिवाय ये की उसे माँ को छोड़ कर जाना है, बहुत दूर,,
शादी उसकी थी, सारी तैयारी उसके लिए,, उसके आसपास हँसी ठिठोली,, गाना बजना सब हो रहा,,लेकिन उसे ये सब बिल्कुल भी ख़ुश नहीं कर रहे,,,, ये सब उसकी के कारण नहीं बल्कि दुख की तैयारी थी ऐसा उसके मासूम दिल को लग रहा था।
कुछ भाभियाँ उसे उस पति के नाम लेकर छेड़ने की कोशिश कर रही जो जिसको वह अभी तक देखि नहीं, जानी नहीं,, लेकिन उनकी छेड़खानी सुनकर भी वह भूत बनी किसी मूर्ति की तरह बैठी हुई थी,, उनके बीच उसके मुंह से एक बोल नहीं फूट रहे थे,,, वह बस बिन आवाज किए रो रही थी। शादी करके कहीं जाना उसका सपना कभी नहीं था, लड़के से उसे प्यार मिले वह इसके बारे में भी नहीं सोची थी, बस जिससे प्यार चाहिए था वह थे उसकी माँ, पूरी दुनिया थी उसकी।
उसने अपने आसपास पडोसी में हुई शादी जोड़े को देखि थी, जहां उसे पति-पत्नी का रिश्ता बिल्कुल भी समझ में नहीं आते,, शादी करके बहू बनकर लड़कियां तो आती है ससुराल में लेकिन वह एक नौकरानी बनकर रह जाती है,, सास उसकी हर काम में गलती निकाल कर बहु को मारना,, जटी काटी सुना कर उसका और उसके माँ बाप को,, बेइज्जती करना, इतना भी काम नहीं होता तो अपनी मां के बातों में आकर पति भी अपनी पत्नी को करने लगते,,
वह किसी के घर में जाकर नहीं देखि की किसका कैसा रिश्ता है और कैसा जिंदगी कट रहा है वह बस अपने घर में रहती,, लेकिन उड़ती उड़ती खबरें उसके कानों तक भी आती थी,लेकिन अपने घर मे कभी चाची के आवाज को सुनी थी, शायद उनके रोने की होती थी।इन सभी को देखते आने से उसे शादी और पति के नाम से बहुत डर लगता थे,,
अब तक सास की और पति की बुराई को देख ली,और एक धरना बना ली,,लेकिन उसके दिमाग़ मे ये आते की उसकी सास भी बाकी सास के जैसी होगी...?,, और उसका पति भी बाकी पति के जैसा होगा..?,, क्या उसकी मां के कहे जैसा उसका पति अच्छा नहीं मिलेगा...? किस तरह की सास और पति उसकी जिंदगी में भगवान जी लिखे हैं ,, शादी होने के बाद उसकी जिंदगी अच्छे होने की जगह नरक बन जाएगी...?
उसके दिमाग में हजारों ऐसे ही सवाल घूमते रहते इन एक महीना में लेकिन इस बीच वह किसी के बारे में कुछ भी नहीं जान पाई,, उसे कोई जानने का मौका भी नहीं दिया उसके सामने उसके ससुराल के बारे में कोई बात ही नहीं करते थे,, समय आने पर उसे एक दुल्हन की गुड़िया की तरह तैयार कर दिए,, मंडप में जाने के लिए
वह गुमसुम सभी के बिच बैठी, अपने ही आने वाली जिंदगी के बारे में सोचने में खोयी हुई थी,
सब
उसके उदासी को ये समझ रहे थे की अपनी माँ से दूर होने पर इतनी दुखी दिख रही,,,उनके यहाँ ऐसा ही होता था,जब भी बेटी की शादी होती सारे लड़किया अपने शादी पर ख़ुश नहीं होती थी,, और बस रोती ही रहती थी, अब बारी पारो की थी,, उस पल को जीने का।
उसकी माँ अपने जीवन के बचाए पैसे लगा कर उसके शादी के लिए जो कुछ गहने खरीदी थी,उसी को वह आज पहन कर दुल्हन की जोड़ी में तैयरी हुई थी, कान में पतले जोड़े की बाली ,माथे पर मांग टिका ,भौंहे में ऊपर दुल्हन बिलन्दी, आँखों में काली सुरमा, होंठो पर लाल लिपस्टिक, हाथो में लाल चूड़ी, ऊँगलियों में लाल आलाता,और पारो में पायल के साथ भर गोड़ लाल आलता. और आखरी में दुल्हन की शादी पहने वो पूरी तैयरी हुई,,घर के आँगन मे बने मंडप में।
जहाँ उसका होने वाला पति पहले से बैठ कर पूजा कर रहा था,, क्यूंकि बारात कब का आ चुकी थी.और उसका भी बुलावा कभी भी आ सकता था.
तभी उसकी माँ कमरे में दाखिल हुई,जब चेहरे पर माँ के हाथ का स्पर्श हुआ तो,,पारो नज़र उठा कर सामने अपनी माँ को देखि,और देखते के साथ ही उसकी आँखें में भरे आँसू किसी झरने की तरह बिना रुके बहने लगे,,,
" माँ.... " वह रोते हुए उसके गले लग गयी। आज भी उसकी मां उसकी शादी पर एक विधवा का सफेद साड़ी पहनी थी यह देख तो उसको और रोना आ गया। उसकी शादी में उसकी मां कोई भी रस्मे नहीं कर पा रही थी, अनु के चाचा और चाची ही सारे रस्मो को निभा रहे थे।
अपनी बेटी को रोते देखकर,,उसकी माँ के भी रुके आँसू नहीं रुके,, आज उसकी बेटी इतनी बड़ी हो गई की शादी हो रही है,,पारो को दुल्हन के जोड़े में देख कर,, उसकी मां को यकीन नहीं हो रहा था कि यह उसकी बेटी है,, और कितनी प्यारी और बिल्कुल अलग सी दिख रही है रोज के मुकाबले,, आखिरकार उसकी बेटी की शादी हो रही है यह उसके लिए बहुत ही खुशी और गंगा नहाए जैसी बात थी,, उसकी माँ के आंखों में आंसू एक साथ दुखी और खुशी महसूस कर बहने लगे,,,उनका सपना अपनी बेटी को शादी के जोड़े में देखना आज पूरा हुआ था, भगवान जी का सुक्रिया करते नहीं थकी।
दोनों एक दूसरे को कस कर गले लगाए हुए,, बिलख कर रो रही थी,,जैसे अभी ही उसकी विदाई हो रही हो,दोनों माँ बेटी को देख कर वहाँ बैठे सभी लोगे के आँखों में आँसू आ गए, वो दोनों को पीठ सहलाते हुए उन्हें चुप रहने के लिए समझने लगी।
कुछ देर बाद पारो की मां खुद को शांत करी और अपनी बेटी के आंसू पूछते हुए रुधे गले से बोले
" अपनी माँ को कभी शिकायत का मौका नहीं देना बेटा,नहीं तो मै जीते जी मार जाउंगी,मेरे संस्कार को हमेशा याद कर,अपने ससुराल की सेवा करने में जान लगा देना,अब से वही तेरा घर, परिवार होगा,बहुत बड़े जमींदार घर से है,उनका समाज में नाम,इज्जत है बहुत ही इज्जतदार घर के लोग है,तुम्हे उनकी इज्जत बना बना कर रखना होगा,, और मुझे अपनी बेटी पर पूरा यकीन है कि वह अपनी जिम्मेदारी को पूरे दिल से निभाएगी... "
पारो रोते हुए सिर हिला दी किस लिए उसे नहीं पता, के आंसू अभी भी निकल रहे थे, अपनी मां की बातें सुनकर तो उसका और रोने का जी कर रहा था
उसकी माँ आगे कही " आज तेरी डोली यहाँ से उठेगी,,,लेकिन अर्थी तेरे अपने घर से उठेगी,अब से पुरे जीवन के लिए तेरा वही घर है ये बात हमेशा याद रखना,
उसकी मां दुनिया की सच्चाई और बहुत बड़ी बात बोली। जब एक बेटी की शादी होती है तो वह दोबारा कभी मुड़कर अपने जन्मदाता के पास नहीं आती शादी के बाद उसका सब कुछ ससुराल हो जाता है, फिर जो ससुराल में किस अवस्था में है,, मर रही है...,!,,जी रही है..!,, अगर मर रही है तो उसकी अर्थी वहीं से जाएगी।
" और सभी के साथ अपना भी ख्याल रखना,कोई दिक्कत हो तो अपनी माँ को जरूर याद करना,,, शादी करके विदा कर रही हूँ,, हमेशा के लिए तेरे से मुँह नहीं मोड़ रही हूँ,,, तु आज भी मेरी बेटी है,,और आगे भी मेरी बेटी बन के रहेगी,, मेरी इतनी औकात तो नहीं है,, मै कुछ करो पाओ तेरे लिए लेकिन लेकिन अपनी बेटी की मदद करने में पीछे नहीं हटूंगी,,, और तु मेरी चिंता मत करना,मै यहाँ अपना पूरा ध्यान रखूंगी,, बस तु खुशी रहना... "
उसकी माँ रोते हुए उसे यकीन दिलाई पराये करने से उसे भूलेगी नहीं,, बल्कि वो उसकी माँ रहेगी जैसे अभी तक थी, उनके विधवा होने से वो अपने बेटी के लिए कभी कुछ अच्छा नहीं करी,, लेकिन आगे कुछ हुआ तो उसका पूरा साथ देगी ये उनके आँखों में दृढ़ संकल्प दिख रहा था।
पारो रोते हुए ही सिर हिला कर उनको आश्वास्त करी,, वो इतना रो रही थी की बोलने के हालत में बिल्कुल भी नहीं थी,,लेकिन अपनी माँ के कही हर एक बात को गांठ बाँध ली,,ताकि उसके कारण उसकी माँ को कुछ कड़वी बाते न सुनने को मिले,जितने भी बचे दिन थे, उसमे उसकी माँ ये चिंता में ना बिताये की उसकी बेटी ससुराल जाकर परेशानी में है और उसके लिए परेशान हो जाये,, वह अभी ही दृढ़ निश्चय कर ली की एक भी शिकायत,,,वो अपने ससुराल से अपनी मां के कानों तक नहीं आने देगी
उसकी उम्र तो अभी ज्यादा नहीं थी की की वह समझदारी दिखाती,, लेकिन उम्र कम होने से उसके समझदारी में कोई कमी नहीं थी, अपने पापा के जाने के बाद वह कम उम्र में ही बहुत समझदार हो गयी थी,अपनी माँ को सम्भलने के लिए,जिस वजह से वह शादी जैसे बंधन को समझ पा रही थी, उसको कैसे निभाना, सब समझ रही थी,,कैसे अपनी माँ को तकलीफ नहीं देना है।
उसकी माँ उसके पूरे चेहरे को अपने पल्लू से पोंछते हुए शांत कराई और सबसे जरूरी और आखिरी बात अपने ढके छिपे शब्दों में बोली " और आखरी बात, अपने पति को किसी भी चीज के ना नहीं कहोगी, उनका आदेश सबसे ऊपर रखना जैसा कहे वैसा करना. तेरे लिए तेरा पति सबसे आगे होना चाहिए.. वो जो दर्द देंगे तुझे सहना होगा,, फिर उसकी आदत हो जाएगी..."
उसे समझायी की एक पत्नी के धर्म को कैसे निभाना है. जिसे सुनकर पारो बस सिर ही हिलाई थी।
कुछ देर तक पारो सुबकते हुए अपनी माँ के सीने से लगी रही,,
तभी बाहर से उसका बुलावा आ गया,उसकी माँ मदद करी उठने में,और उसके सिर को घूँघट से गर्दन तक ढकते हुए उसे आखरी बार उसके माथे पर चुम्बन करी और उसे भाभियों के साथ बाहर भेज दी,मंडप में जहाँ उसका पति इंतजार कर रहा था कुछ अनुष्ठान को पूरा कर
पारो धीमे कदमो से चल कर मंडप में आ रही थी की वह घूँघट से नज़र उठा कर अपने पति को देखने की कोशिश करी,,,उसकी हिम्मत तो नहीं थी,फिर भी दिल एक बार देखने की गुज़ारिश करी,जिस वजह से वह घूँघट में होने का फयदा उठा कर देखि,सब धुंधला सा ही दिखा लेकिन, उस निशान को देखि जो हवन कुंड में धधकते आग को एक टक बिना किसी चीज से डिस्टर्ब हुए देख रहा था।
अपने शरीर से चार गुना ज्यादा बड़ा शरीर वाले आदमी
आकृति दिख, पारो के आंखें हैरानी से चौड़ी हो गई, यह उसका होने वाला पति था..?,, पारो को यकीन नहीं हो रहा था कि,, उसकी चाची उसके लिए इतने बड़े इंसान को चुनी है,, अगर उसका होने वाला पति उसके कोमल पतले हाथ को पड़कर मरोड़ा तो हो तो टूट जाएगी,, उन दोनों का क्या मुकाबला नहीं था, किसी भी तरह से,,ना शरीर में,,, ना कुल खानदान में, फिर जोड़ी कैसे बन गयी।
उसका होने वाला पति, किसी कहानी के डरने वाले राक्षस के जैसा दिख रहा था चेहरा तो बहुत ही सुंदर थे लेकिन उसे चेहरे पर उसका जबड़ा भींचा हुआ था,, चेहरे पर कोई भाव नहीं उसका शक्तिशाली रुतबा को देखकर पारो के पैर कांपने लगे,, पति सुंदर भी मिला लेकिन डरावना उसके धड़कन धड़कने लगे,, उसको दूर से ही देखकर डरने लगी।
जब पारो अपने पायलों को छम छम छमकाते हुए उसके बगल में आकर बैठी,, तब भी उसके बगल में बैठा हुआ उसका पति एक नजर उठाकर से देखने की जहमत नहीं किया,,
सुनहरे रंग के कुर्ता और धोती पहने हुए, सिर पर सेहरा पहने हुए,चेहरे पर उसके दाढ़ी, मुछे,जो उसके कठोर शख्सियत को दिखा रहा था, वह कहीं का राजा लग रहा था,, पारो इतना देख कर ही समझ गयी की उसका पति बहुत ही कठोर शख्सियत वाला इंसान है,जिसके सामने उसके कुछ भी बोलने की हालत नहीं बचेगी,
पंडित जी उसके बैठे यह फिर से पूजा शुरू कर दिया मंत्र उच्चारण के साथ,, और जल्द ही उसके कन्यादान के माता-पिता को बुलाया गया ,,, पारो घुंघट से अपनी मां को देखि,, लेकिन उसकी मां उसे कहीं नजर नहीं आए बल्कि ,उसके चाचा चाची, और चेहरे भाई उसके पास आ गयी,,
यह देखकर पारो के आंखों से आंसू बहने लगे,, उसकी मां उसकी शादी में एक भी रस्म को नहीं कर पा रही थी,, क्योंकि वह एक विधवा थी,, उसके मन में इसको लेकर कितने सवाल भी थे और वह सभी को मना करना चाहती थी लेकिन वह एक तुक्छ प्राणी थी,, जिसकी कोई नहीं सुनता,,जो उसे नियम एक विधवा को समाज बनाये थे उसे कोई नही तोड़ सकता था,,
उनकी विधवा होने से उसकी बेटी की जिंदगी में कोई अप्सगुनी नहीं हो जाए,ऐसा सभी का मानना था,, क्यूंकि विधवा अप्सगुनी ही होते थे, उसकी माँ भी श्याद इस बात को मानती थी जिस कारण,, खुद बेटी की रस्मो को नहीं करते हुए अपने देवर देवरानी को सौंप दी थी।
जब उसका हाथ अपने पति के हाथो में दिया गया तो उसका रुलाई फुट गया,उसका कनियदान होने लगे थे,अब वह इस घर की बेटी और अपनी माँ के साथ नहीं रहेगी, ये सब सोचते हुए उसके आँखों से आंसुओं किसी झरने की तरह बहने लगे,वहाँ बैठे सभी को उसके रोने की आवाज कानो में जा रही थी,लेकिन कोई भी कुछ भी नहीं कहाँ,क्यूंकि सारी लड़किया इसी से गुजरती थी।
एक कोनो में पारो की माँ अपने मुँह पर साड़ी रखे हुए घुटी हुई आवाज़ में रो रही थी. उनकी मासूम बेटी की कन्यादान हो रहा था,, उन्हें आज बहुत बुरी तरह से अपने पति की याद आ रही थी।
उसका आधा हो चूका पति भी सुनना,, लेकिन उसके चेहरे के भाव से किसी पत्थर के जैसे ही थे,, जैसे उसे कानों में एक मासूम की रूदन भारी रुलाई नहीं गई।
पारो आगे के रसमें रोते हुए पूरा करी, और कुछ देर में सिंदूर भारा गया, जब सिंदूर से उसके मांग को नहलाया गया, तब वह अपनी नज़र उठा कर पाती को देखने की हिम्मत नहीं जुटा पायी, हर समय उसकी आँखें बंद थी,और दबी हुई सिसकी निकल रही थी मुँह से,, लेकिन इस बिच उसने खुद के चेहरे पर एक तेज नज़र को महसूस करी थी,जो शायद उसके पति ही थे।
सिंदूर के बाद मंगलसूत्र भी पहनाया गया, उसके बाद उसकी शादी को सम्पन किया गया,
उसके बाद और कुछ रस्मे करके, वह अपनी माँ के गले लग कर खूब रोई,जितना की वह अपनी पूरी जिंदगी नहीं रोई होगी, साँसे इतनी बड़ी हुई थी की वह हिचकी भी ढंग से नहीं ले पा रही,,, गला भी सूखने लगा था आवाज़ भी उसके गले में बैठाने लगे थे,,लेकिन माँ से दूर जाने के दर्द में वो रोना नहीं छोड़ रही थी।
सब उसे कितना चुप करवाने की कोशिश किये लेकिन पारो जैसे अपने होश में ही नहीं थी, उसे बस अपने माँ से दूर नहीं जाने थे,, फिर भी से रोते हुए ही गाड़ी में बैठा दिए, जबरदस्ती...!
उसे
एक ऐसे गाड़ी में बैठाया गया,,जिसको वह कभी नहीं देखि ,ना छुयी थी, वह इतनी गरीब थी की कभी सपने में भी नहीं सोची थी की जब उसकी शादी होगी तो बैलगाडी की जगह गाड़ी में विदाई होगी, लेकिन इन सब बातों पर उसका ध्यान बिल्कुल भी नहीं था,, पारो रोते हुए ही बेसुध हालत में बैठ गयी तो उसके बगल में उसका पाती, उसके रोने से उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं दिखा था। किस तरह का उसका पति था यह बताना बहुत ही मुश्किल है....
गाड़ी तुरंत उसको लेकर वहाँ से दस घंटे की दुरी तय करने के लिए चल पड़ी,दूसरे गाँव,, वह अपने ससुराल जाने के लिए तैयार अभी तक नहीं हुई थी,लेकिन फिर भी उसे जाना था,और वह अपनी जिंदगी शुरू करने के किये चल पड़ी...----
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तो पारो... चल दी अपने नये घर, क्या वो उसका अपना घर हो पायेगा...?
Aage kya hota hai janne ke liye jude rahe.....
Thankyou❤️❤️❤️
अब आगे 👉
पारो के विदाई अपने मां के घर से हो गई,,और वह एक ऐसे इंसान के साथ गाड़ी में बैठकर विदा हुई जिनको जानती तक नहीं थी,, बस इतना पता था कि कुछ देर पहले उसका पति बन गया है जिसके साथ उसे अब जिंदगी भर रहना है उसी के पनाह में रहमों करम पर वह अपनी जिंदगी जीएगी,, जो लड़की आज तक एक लड़के को नजर उठाकर नहीं देखी है जो केवल अपनी मां के सीने में सिर लगाकर सोई थी वह अब एक मर्द के कमरे में रहेगी, बहुत कुछ बदल गया उस मासूम की जिंदगी मे जिन्हे हजम करना बहुत मुश्किल था।
पूरे सफर के दौरान उसका कुछ घंटे पहले बना पति परमेश्वर, उसे एक शब्द भी नहीं बोला, अरे बोलना तो दूर,, वह अपनी नजर को एक बार भी पारो की तरफ मोड कर नहीं देखा,, उसे एक घूंट पानी के लिए भी नहीं पूछा,, उसका इस तरह ठंडा और बेरुखा बेजान सा प्रतिक्रिया देखकर पारो जिसकी आंसू और सिसकी नहीं रुक रहे थे वह अब रुक गए थे,,
उसके अंदर डर इतना भर गया कि सांस लेने में भी उसे सूचना पड़ रहा था,, रोना तो पूरी तरह से भूल गई,, उसके बगल में होने से पारो का दम घुट रहा था,, उसका कुछ ना कहना भी पारो को बहुत ही डरा रहा।
वह मासूम आंखों में आंसू भरे हुए खुद में सिमट कर बैठ गई, फिर उसके बाद हिलने की भी कोशिश नहीं करी,,, बहुत ही खतरनाक भयंकर पति दिए थे भगवान जी...उसे,,,और अब उसे कैसे झेला जाए उस मासूम को नहीं पता,,, बस अभी वह खुद को जिंदा रहने के लिए प्रार्थना कर रही...,
एक ऐसा इंसान जिसे देखने भर से उसे डर लगने लगे थे,,अपने जीवन के बारे में सोचकर उसे और डर लगने लगा,,,कभी ऐसे इंसान से उसका पाला नहीं पड़ा था, जो किसी गूंगे की तरह,, किसी पत्थर की तरह रहता हो, उसका जीवन केवल घर के चार दिवारी में ही बीता था और आसपास उसकी मां और चाची ही रहती थी, उसका सामना ज्यादातर चाचा से भी नहीं होता था,, इस वजह से मर्द किस बात पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और कैसा स्वभाव होता है उसे नहीं पता था और वह भी इतनी मासूम और भोली थी कि उसका पति ऐसा व्यवहार क्यों दिख रहा है उसके साथ वह इसका भी कोई मतलब नहीं सोच पा रही।
पारो गाड़ी में बैठी हुई बहुत कुछ सोचते हुए ही अपने ससुराल पहुंच गई,, इस बीच उसे नींद बिल्कुल भी नहीं आए,, दिल में डर इतना था, आंखें भी बंद होने से इनकार कर दी थी ,,जबकि आंखों में थकान और नींद भरी हुई थी।
घर के बड़े दरवाजे से जीप अंदर पार होते हुए मुख्य दरवाजे पर गाड़ी जाकर रुकि,, तो अंदर से बहुत सी महिलाएं का झुंड एक साथ निकाला, उसके पास आकर पारो को गाड़ी से तुरंत उतारते हुए दहलीज पर खड़ा किया, पारो घूंघट में छिपी हुई अपने ससुराल को देखि,,
लेकिन जैसे ही उसकी नजर इमारत पर पड़ी तो उसकी आंखें हैरानी से और और विश्वास से चौड़ी हो गई ,, कभी वह मिट्टी के घर में रहने वाले लड़कि अब एक संगमरमर के एट और पत्थर से चमकते रंग-बिरंगे घर में रहेगी लेकिन यह घर नहीं इसे महल कहेंगे,,, हाँ उसका ससुराल एक महल जैसा था,, औरऐसा महल वह अपनी मां के मुंह से कहानियों में सुना करती थी,
पारो इस महल को भी देखकर डर गई, यह उसके लिए जगह नहीं थी,, उसकी कल्पना के विरुद्ध था,, उसकी शादी इतने बड़े घर में कैसे हो गए,,पारो के मन में बहुत से सवाल उठने लगे लेकिन जवाब उसके पास नहीं थे और वह किसी से कुछ नहीं सकती थी, वह दहलीज पर खड़ी हुई औरतों को देखी लेकिन उसमें वह किसी को नहीं पहचानी, सब एक से एक बढ़ कर महंगे गहने साड़ी, पहने हुई थी,
पारो का गृह प्रवेश करवाने के लिए सारे तैयारी को लेकर आया गया.. वह मासूम आंखों से सब को देख रही,, उसके पीछे खतरनाक पति भी खड़ा हुआ था लेकिन बहुत ही शांत और सभ्यता के साथ, ऐसे उसे इन रस्मों से कोई दिक्कत नहीं हो रहा हो,,
" ठकुराइन बड़ी बहु,हल्दी का छाप दीवारों पर लगाओ...,,फिर कलश को गिरा कर अलता में पैर डाल कर गृह प्रवेश करो....." एक बुजुर्ग महिला पारो को कही, और उसके सामने हल्दी से भर पानी कर दी ।
पारो हैरानी में डूबी हुई अपने हाथ को आगे बढ़ा कर उसमें 10 उंगलियों को रखकर दीवार पर अपनी छाप बना दी,, लेकिन इस दौरान उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था वह खुद के लिए ठकुराइन बड़ी दुल्हन सुनकर सदमे में चली गई थी,, वह और ठकुराइन... ठकुराइन का होता बहुत ही बड़ा होता है... उसकी शादी एक सरपंच और ठाकुर खानदान में हुई थी और वह भी सबसे बड़े बेटे के साथ,
पारो का दिल बोझ से डूबने लगा,,, वह खुद के लिए ठकुराइन को हजम नहीं कर पा रही थी,, डर लगने लगे थे,, कभी नहीं चाहि थी कि उसकी शादी इतने बड़े महल में हो और ठाकुर खानदान में हो,,, भगवान उसे किस जगह पर लाकर छोड़ दिए थे उसे समझ नहीं आ रहा था।
पारो सदमे में गए हुए ही,, चावल से भरे कलश को हल्का सा धक्का देकर गिरायी, फिर बड़े से थाल में रखे अलता के पानी में पैर रखकर गृह प्रवेश करते हुए अपना पहला कदम ससुराल में रखी ,, कदम रखते ही उसकी धड़कन अचानक अनजाने दर से धड़कने लगी,, उसे बिल्कुल भी यह महल खुशी नहीं दिये, उसका तो छोटा सा मिट्टी का घर है अच्छा था
उसके उम्र की ही एक जिसकी मांग में सिन्दूर, थे, वह पारो के बाजू को पकड़ कर घर के अंदर लेकर गए, कुलदेवी जी का आशीर्वाद लेने के लिए
कुलदेवी माँ का आशीर्वाद लेकर फिर पारो को सभी बड़ो बुजुर्गो का आशीर्वाद लेती है लेकिन अभी तक अपने सास को नहीं देखि,,,इतने रस्म हो गए लेकिन उसकी सास का कोई आता पता नहीं था...
"मीणा ....तेरी माँ कहाँ चली गयी,,,बहु का स्वागत करने के लिए उसे यहाँ होना चाहिए था न ..." वही बुजुर्ग महिला अर्जुन ठाकुर की छोटी बहन से पूछी जो पारो की पास खड़ी थी,,,,
" पता नहीं नानी, कहाँ है.., बोली थी की कुछ काम है करके आ रही हूँ,,,,लेकिन अभी तक नहीं आयी.. मैं देखती हूँ ….." मीणा इधर से उधर देखते हुए कही,, वह अपनी मां को देखने के लिए कदम उठाई की...
तभी वहां एक सोने से लद्दी,, भारी भरकम साड़ी पहने हुए एक महिला गुरूर और अकड़ के साथ चलते हुए उनके पास आ रही थी,,, माथे पर बड़ा सा लाल बिंदी लगायी,, लेकिन पारो का ध्यान सुनी मांग पर गया जहां सिंदूर नहीं भरा गया था, इसका मतलब कि उसका ससुर नहीं थे,, और उसकी सास विधवा थी,,,लेकिन उसकी सास उसकी मां की तुलना में बहुत अलग दिख रही थी वह सफेद साड़ी नहीं पहनी हुई थी,,
ऐसे कैसे हो सकता है उनके सामाजिक मे विधवा के लिए तो एक ही कपड़ा होता है और एक ही नियम होता है,,तो उसे नियम को इन पर क्यों लागू नहीं है,,, तभी पारो की याद आया कि यह ठाकुर खानदान की बड़ी ठकुराइन है,, इन पर कोई नियम नहीं चलता बल्कि यह नियम सभी पर चलाती है
यह थी अर्जुन ठाकुर और मीणा ठाकुर की दूसरी मां मतलब सौतेली मां लेकिन बिल्कुल भी नहीं लगता था कि वह सौतेली है,, क्योंकि उनके साथ वह कभी सौतेली वाला व्यवहार नहीं करी थी,, सच्चाई कितनी सच है यह तो वही जानती थी। क्योंकि वह सभी के सामने अपनी ठकुराइन की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए झूठी दिखावा भी करती थी , उनके दो अपने बेटे थे, शहर जाकर पढ़ाई करते थे लेकिन अपने बड़े भैया के शादी में भी शामिल हुए थे
पारो झट से अपनी सास का पैर छूकर आशीर्वाद ली,, जिस इंसान के बारे में सोचकर वह इतनी डरी हुई थी वही इंसान अब उसके सामने खड़ी थी अपने डरावना वाला रूप लेकर जिससे उसकी धड़कन बड़ी,,, तो शरीर काँप गया,,,, वह समझ गई कि उसकी सास सब पर हुक्म चलाने वाली सास है जो कि उसे पर भी चलायेगी।
" चलो अब से मेरी जिम्मेदारी खत्म हुई और अब तुम्हारी शुरू हुई, तुम इस गांव की और इस घर की ठकुराइन बहू हो,, तो तुम्हारे जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी है मतलब उसकी इज्जत का मान सम्मान संभाल कर अब से तुम्हारी जिम्मेदारी है,,,,पूरे 38 वे गांव का मालिक है मेरा बेटा... बहुत नाम है उसका गांव वालों के नजर में, अब से तुम भी उसके इज्जत का ख्याल रखोगी.... "
पारो की सास अपने गुरूर और कठोर शख्सियत वाले लहजे में उसे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करते हुए कही,
जिसे सुनकर पारो डर दर से खुद में ही सिमट गई,,, उसके दिमाग में एक भी बात नहीं घुसा वह क्या बोल रही है वह भी उसके आते के साथ ही,, लेकिन इतना समझ आया कि उसे अब जिम्मेदारी मिल गई है,, और पति का मान सम्मान बनाकर रखना उसका पहला कर्तव्य था वह तो उनके बिना कहे हुए भी करती, पर उसे यह सुनकर हैरानी हुई की उसका पति 38 गांव का सरपंच था,, मतलब उनकी मुट्ठी में कितनी गांव को संभालने का भार और जिम्मेदारी होगा।
उनके जिम्मेदारी देने के बाद,, बचे हुए और रस्मों को अर्जुन के साथ करवाया गया, जैसे अंगूठी ढूंढना फिर भाभियों और महिलाओं के साथ पारो को भोजन करवाना,, तब कहीं जाकर उसे आराम करने का समय दिया गया,,
तभी कमरे में उसके सास आयी और सभी को बाहर जाने के लिए इशारा करी, पारो घूँघट से खुद को ढक कर सिर झुकाए हुए उनके कुछ बोलने का इंतजार करने लगी।
" ये ले...इसे पीकर हमारे बेटे को खुश रखना पति को खुश करने मे कोई कमी मत करना... नहीं तो इस घर से तुम्हे मायका का रास्ता हम दिखा देंगे..और एक महीने के अंदर तुझे ठाकुर खानदान का वारिस देना है एक खुशखबरी सुना देना,, और सबसे जरूरी बात इस घर में सिर्फ और सिर्फ हामरा हुक्म चलता और तुम्हें भी हमारे सारे बात को मनाना होगा... कोई भी कलह कलश नहीं करवाना है,, अर्जुन को घर में शांति पसंद है वह लड़ाई झगड़ा अपने घर में बिल्कुल भी देखना पसंद नहीं करता,, अगर कभी भी तुम्हारे तरफ से शिकायत आए तो वह तुम्हारे छोड़ेगा नहीं "
पारो की सास उसके हाथ में दूध से भरा गिलास देते हुए अपने कठोर,, चेतानी भरे लहजे मे में उससे कहीं
पारो बिना सवाल किए हुए अपना झुके हुए सिर को हिला दी,,और उनके हाथ से गिलास लेकर पी ली,, बिना यह जाने की उसमें क्या है और उसे पीना सही भी है कि नहीं ... इस बीच उसके दिमाग में सास की कही बातें घूम रही थी यहां पर सब डरावने और अजीब है वह तो समझ गई थी,, लेकिन उसकी सास उसे सबसे ज्यादा उसे डरावनी लगी,,
दिन से रात हो गई और एक बार,, और वह नींद से तब जागी जब उसकी नन्द उसे उठाने आये ये कहते हुए की उसे फिर से तैयार होने है,, फिर पारो को उसकी ननद मीणा और कुछ और औरतों के साथ उसे तैयार किया गया,, जबकि वह आधी नींद में सिर घूमता हुआ, जमाई लेकर उन सब को मासूम आँखों से बस चुपचाप देखती रही,, वह अभी तक भी वहां पर किसी से बात नहीं करी थी बस उनके कुछ बोलने पर सिर हिलाती या हल्का सा मुस्कुरा देती, यहाँ पर किसी से बात करने के लिए उसके मुँह खुल ही नहीं रहे थे।
मीणा उसे पूरी तरह तैयार कर घूंघट में चेहरा ढक कर उसे दूसरे मंजिल पर लेकर गई जहां उसके पति का केवल रहने का ठिकाना था,, पारो खोए हुए बच्चे की तरह हर एक कोने हर जगह को देख रही थी,, यह जगह इस और डरावनी लगी,, बहुत शांति थी यहाँ पर,, नीचे वाले मेहमान की आवाज़ भी नहीं आ रही थी,, एक कमरे का दरवाजा खोलते हुए मीना उसे अंदर लेकर गयी।
"यह भैया का कमरा है और आप उनका इंतजार करते हुए ही बैठी रहिये..., और जब आए तो उनको यह दूध दे देना... " मीणा बिस्तर के बगल लगे टेबल पर दूध का गिलास रखते हुए उसे बिस्तर के बीचो-बीच बैठाकर बोली और फिर कमरे से बाहर चली है ।
दरवाजा बंद होते ही पारो अपने दोनों हाथों से घूंघट उठाकर थोड़े सा अपना चेहरा आगे करते हुए झांक कर देखि,,, धड़कते दिल के साथ कमरे में फैली शांति में देखि,,, लेकिन उसे वहां उसका पति नजर नहीं आया,, लेकिन एक बहुत बड़ा सा कमरा जरूर नजर आया था,, ऐसा कमरा भी पहली बार देखि थी,, उसका मुँह हैरानी से खुला हुआ था,, वह बिस्तर पर हाथ घुमाई,, यह गड्ढेदार बिस्तर था,, ना की एक पतली चादर.. जिस पर वो और उसकी माँ सोते हुए आयी थी,,, जीवन में पहली बार वह गद्दे पर बैठी थी, कैसा अनुभव था अच्छा या खराब उसे नहीं पता वह किसी भी चीज को अपने भावनाओं और बातों में व्यक्त नहीं कर पा रही थी सब नया था उसके लिए यहां के सामानों से लेकर इंसानों तक।
पारो पूरे कमरे को देखकर फिर से अपने घूंघट को गिरा दि और अपने घुटने को मोड़ते हुए अपने सिर टिककर चुपचाप बैठ गई,, वह घड़ी में समय देखी तो रात के 10:00 बज गए थे लेकिन उसके नए पति का कोई आता पता नहीं था,, अब तो उसकी आंखों में भी नींद भरने लगी थी,, पैरों में दर्द होने लगा एक ही अवस्था में बैठे होने के कारण, डर से उसे हिला भी नहीं जा रहा था,,,
एक नई जगह पर नए कमरे में उसे अकेले छोड़ दिया गया था 1 घंटे से,, वह फिर से अपने घुटनों पर सी रहकर छाती को सटाई की तेज दर्द का लहर उठा,,
" सीसी... ये क्या था... " वह बड़बड़ करते हुए अपने हाथ ले जाकर छाती पर आकर सहलाने लगी, समझ नहीं आया कि अचानक ऐसा दर्द उसे क्यों हुआ,, और वह जितना सहलाती गयी,, उसे और भी दर्द का एहसास हुआ,, जिससे अब उसकी आंखों में आंसू भरने लगे थे,,
" माँ.. मेरे साथ यह क्या हो रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा है भगवान जी मुझे मां के पास पहुंचा दीजिए मैं यहां नहीं रहना चाहती....सब कितने डरने हैं.... और अब तुम मेरे छाती में दर्द भी होने लगा.." पारो अपने ब्रेस्ट को हल्के हाथों से मसलते हुए रोनी सूरत में बुदबूदाई। उसका अब यहाँ रहने का बिल्कुल भी दिल नहीं कह रहा था,, अब एक नई परेशानी उसे परेशान करने लगी कि उसके साथ क्या हो रहा है
तभी दरवाजा आवाज करते के साथ खुला कि उसकी चेहरे के भाव डर मे बदल गयी तो हाथ तुरंत वहाँ से हट पर साड़ी पर कस गयी,,, वह सावधान मुद्रा में बैठते हुए अपनी नज़रें झुका ली,,
दरवाजे एक बार फिर से बंद होने की आवाज आए तो इधर पारो के दिल में भी धड़कन बढ़ने की आवाज आई,,,उसकी धड़कन रेलगाड़ी की आवाज की तरह धक-धक करके धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे... अर्जुन जैसे ही अपने शक्तिशाली शख्सियत को लेकर उसे बिस्तर के करीब आता गया,,, पारो की धड़कन वैसे ही बढ़ती गयी,,डर से भी उसकी सांसे थमने लगी,,, वह सांस लेना भी भूल गई,,
अर्जुन बिस्तर के किनारे आकर खड़ा होकर उसे ऊपर से लेकर नीचे तक देखने लगा अपनी गहरी नजरों को बिना एक पल भी झपकाये हुए,, पारो को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करें अपने नजर झुकाए इधर-उधर नचाते हुए कुछ सोची,, तभी उसे याद आया कि उसकी नन्द उसे दूध का गिलास देने के लिए कही थी,,
उसने झट से गिलास को पकड़ते हैं उसके सामने कर दी,, लेकिन उसने अपने नजर उठायी और ना बिस्तर पर से उठी,, अर्जुन उसके कापते हुए हाथ को देखा,,
उसके काँपते हाथों में से दूध का गिलास लेकर एक- घूंट में उसे पी गया और फिर से उसी को पकड़ा दिया पारो दूसरा गिलास फिर से उसी जगह पर रख दी और चुपचाप गुड़िया की तरह सिर झुका कर बैठ गई
अर्जुन उसको देखते हुए ही उसके सामने बिस्तर पर बैठा की पारो अपने घुटने को और सिमटते हुए खुद में सिमटने लगे उसके हाथों की पकड़ साड़ी पर कई हुई थी बहुत जोर से अर्जुन उसके हाथ बने मुट्ठी को देखा,, उसके चेहरे के भाव से कुछ भी पता नहीं चला कि वह उसे इस तरह डरता हुआ देखकर क्या सोच रहा है
वह उसे डरता हुआ छोड़कर अपने कामों पर ध्यान दिया और अपने भारी हाथ को उठाकर उसके लंबे घूंघट को चेहरे के ऊपर से हटाया और उसके सुंदर छोटे खूबसूरत चेहरे को अपनी गहरी शिकारी आंखों से घूरकर देखने लगा,,,
पारो डर से अपनी आंखें जोर से भिची हुई,, सिर सर झुकाए हुई थी कि अर्जुन को उसका चेहरा ठीक से नहीं दिखा,, वह अपनी उंगली को उसकी ठुड्डी के पास ले जाकर हल्का सा उठाया,,,,
उसकी हथेली बराबर उसका चेहरा,,,लंबा मांग में लंबा सिंदूर भरा हुआ,, चांद की तरह चमकता चेहरा,, पहली बार इतनी खूबसूरत लड़की को देख रहा था,,,, वह अपने जीवन में वह इतने गांव और शहर को घुमा लेकिन अपनी पत्नी के जैसा वह किसी को नहीं देखा,, शादी करने से पहले सिर्फ एक सफेद फोटो देखकर राजी हो गया था लेकिन सामने से वह इतनी खूबसूरत और कमल की तरह खुली हुई होगी उसने कल्पना नहीं किया था।
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Comment aur mujhe follow kare,,,kahani padh kar mai nirash nahi karungi,,,
Thankyou ❤️❤️❤️❤️
✴️यहाँ से आप सभी को ही हाईली mature content dekhne ko milega, to wohi pade aur comment kare, jo ise jhel sake,, mai ise sirf कल्पना और मनोरंजन के liye likh rahi hu, लेकिन 1980 par ही बेस्ड है,, किसी को bhi report करने की जरूरत है …
✴️ और जिसको भी 1980 की कहानी पढ़नी है तो पॉकेट novel par meri एक story है " thakur's wife and प्रतिलिपि par thakur's innocent wife,, dono samne hi hai but app alg par upload kari hu, usme bhi आपको bond ke sath lots me deep इमोशन, deep mature content hai to aap bahut hi asani se padh sakte hai …
अब आगे👉
पारो के घूंघट को अर्जुन बिना किसी हिचकिचाहट के उठाकर उसके मासूम छोटे प्यारे चेहरे को अपनी गहरी नजर से घूर कर देखने लगा उसकी आंखों में अलग से चमक आकर चले गए जब उसने उसके खूबसूरत चेहरे को देखा,,, शायद उसका दिल यह कहने पर मजबूर हो गया था कि उसकी पत्नी बहुत ही सुंदर है तारीफे काबिल है लेकिन वह तारीफ करने का जहमत नहीं किया,,
खैर उसे एक टक देखता रहा जबकि पारो की हालत खराब होती गई,, एक तो पहले से अपने पति से डरती थी,,, ऊपर से अब उसके करीब आकर इस को टक घूर कर देख रहा था,, वह भी बिना एक शब्द बोले जिससे तारों को मातम छाए हुए शांति से और भी डर लगने लगा,,कुछ देर पहले वह नहीं था तो केवल नई जगह और अकेले से डर रही थी,, लेकिन अब पति के होने से उसकी डर दुगनी बढ़ गई
अर्जुन का ध्यान उसके हर एक हरकत पर था,, वह उसे कितना डर रही है,,, वह साफ दिख रहा था,,, लेकिन वह फिर भी एक शब्द बोलकर उसके डर को कम करने की कोशिश नहीं किया,, जैसे उसे डरता हुआ देखना,, उसे अच्छा लग रहा हो, पता नहीं वह किस मिट्टी का बना था कि एक मासूम लड़की को डरते हुए देख चुप बैठा रहा,,,
इस बीच पारो एक बार भी अपनी नजर उठाकर नहीं देखी,, अर्जुन की मौजूदगी से कमरे में बर्फ जैसा शांति था,कि पारो के रूह को कंपा रहे थे,, अगर वह अभी भी कुछ नहीं बोलेगा तो वह पक्का रोने लग जाएगी,,, उसका चेहरा भी रोने जैसा धीरे-धीरे बनने लगा था।
"तुझे. पता है आज हमारा कौन सा रात है …..?!" आखिरकार अर्जुन ठाकुर अपना कीमती मुँह खोला तो उससे क्या पूछा,,, वो भी अपने भारी भरकम गहरी आवाज़ मे,,,जिसे सुनकर पारो अपनी जगह पर काँप गयी,,, पारो की हड्डियों में सनसनी दौड़ गयी,,ये उसके पति का आवाज था,, इस आवाज में इतना ताकत है कि किसी भी इंसान को उसके कदमों में गिर सकता था,, आदेश आत्मक से भरा हुआ था, पारो मर्द के आवाज में अपने चाचा के भारी आवाज को सुनी थी लेकिन उस आवाज में और उसके पति की आवाज में बहुत ही अंतर था, इस आवाज को कोई सुनने तो बिना डरे हुए नहीं रह सकता था, किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच लेता,,और अभी पारो का भी ध्यान अपनी ओर एक बार में ही खींच लिया था,,
पारो हैरानी मे चौंकते हुए आपने आँखें उठाकर देखने लगी,,,, जैसे पूछ रही हो कि उससे क्या पूछे वह तो सुनी ही नहीं... वह मासूम आंखों से बस उसे देख रही थी उसकी गले से आवाज नहीं निकले,,
पारों की तरफ से जवाब नहीं मिलता देख अर्जुन के भौंहे सिकुड़ने लगे,,आज तक उसके सवाल पर इंसान एक बार में ही जवाब देता आया था,, किसी के भी इतनी हिम्मत नहीं थी,, कि वह उसके सवाल पूछने पर चुप रहे,, और यह लड़की सुनकर भी कुछ नहीं बोल रही थी,,, यह तो अर्जुन ठाकुर के मिजाज के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं था,,, उसके शान के खिलाफ था यह
" जब मैं एक बार सवाल करता हूँ तो सामने वाला तुरंत ही उसका जवाब देता है, और मैं यही तेरे से उम्मीद करता हूँ,, जब मैं एक बार बोलो तो तुझे तुरंत ही जवाब देना है,, आई बात समझ में... और जब एक बार में जवाब ना आए तो सीधा सजा का हक़दार होता है.. अब जवाब दो... आज कौन सा रात है हमारे लिए... "
अर्जुन उसके ठुड्डी को जोर से दबाते हुए,, कठोर लहजे मे कहाँ ,,और घूर कर उसके आँखों मे देखा,,,उसका गुस्सा बढ़ने लगा था इस लड़की को देख कर,,लेकिन फिर भी काबू मे खुद को रखा था,,,नहीं तो जो गुस्ताखी वो करी थी, अर्जुन उसको छोड़ता नहीं,,,,,
जी...जी...वो ...व ...वो ....सु... ...सुहागरात... .. ह्.. है..." पारो जैसे ही धमकी और पति के नेचर को जानी,,,तुरंत किसी हिचकी लेने वाले इंसान कि तरह,, हकलाते हुए डर से बोली,उसका गला सुखने लगा,, तो आँखों मे डर और बढ़ता गया,,, दिल के नशे धड़कने से फटने को तैयार हुई थी लेकिन फिर भी वह हिम्मत करके बैठी हुई थी और जवाब देने की कोशिश करें ताकि वह अपनी पहले दिन ही पति से सजा मिलने की हकदार ना बने, पति सी सजा मिले इसी बात से उसे तो बहुत ज्यादा डर लग रहा था।
उसे उसे नहीं पता था कि आज कौन सा रात है लेकिन कल से ही उसे सुहागरात के नाम से सभी कोई छेड़ रहे थे, यह कह रहे थे कि आज उसका पति उस दर्द देगा, लेकिन कैसे किसी प्रक्रिया से उसे नहीं पता था मार से तो दर्द मिलते हैं यह पता थे उसे,,
""हम्म्म...पता है तुझे आज क्या होता है..?" अर्जुन उसको देखते हुए भारी भरकम आवाज़ मे ही फिर से आगे पूछा। उसके मासूम चेहरे को देखकर वह बता सकता था कि उसे कुछ भी नहीं पता है,, लेकिन वह फिर भी पूछ रहा था उससे।
"न...ना...नहीं....पता...",,, पारो फिर से डर से हकलाते हुए जवाब ही,, इस बार जवाब देने में जरा सा भी देरी नहीं करी, एक बार उसे धर्म की मिले अपने पति से और उसका पालन करने के लिए काफी था। लेकिन उससे अभी यह सब सवाल क्यों पूछा जा रहा था उसके दिमाग से ऊपर से पार हो रहे थे।
"ठीक है फिर,,,,क्या तुझे संभोग ( chu**) के बारे में पता है " अर्जुन सीधे एक शब्द बिना लाग लपेट के उसकी आंखों में देखते हुए बहुत ही सरलता के साथ पूछा,, और अपने अंगूठे से उसकी कोमल ठुड्डी को सहलाया ,,,
पारो उसके मुंह से यह सुनकर अविश्वास हैरानी से चौड़ी आंखों करके उसे देखने लगी,, उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ कि वह क्या सुन रही है,,यह तो एक तरह का गाली होता है जो वह किसी के भी मुंह से सुनी थी, उसके चाचा इस नाम की गाली को बहुत ही ज्यादा प्रयोग करते थे
" वो एक तरह से गाली होती है ना....""पारो बहुत ही मासूमियत से धीमी आवाज में शर्म से बोलि...
" यह सुहागरात पर मास्टर जी की तरह सवाल जवाब क्यों खेल रहे हैं क्या यही होता है सुहागरात पर... और अगर ऐसा होता है..तो मैं बिल्कुल भी जवाब देने में सक्षम नहीं हूं.. मैं एक बेवकूफ लड़की हूं...और अगर इनके जवाब नहीं दे पाए तो क्या ये...मुझे मास्टर जी की तरह मारेंगे भगवान जी... " पारो अपने मन मे मासूमियत से सोची,, जहां तक उसका दिमाग जाकर सोच सकता था अभी की स्थिति को देखते हुए। .
उसे असल में संभोग (chu***) जैसे शब्द का मतलब नहीं पता था,, पता भी कैसे होता उसकी कोई सहेली थी ही नहीं,, जिसके बारे में जानकारी देती,,, उसकी चाची और चाचा घर से बाहर भी जाना उसका पसंद नहीं था, सहेलियां भी कभी बनाने की अनुमति नहीं मिली थी,, उनका कहना था की संगति से बिगड़ सकती है उनका नाम इज्जत मीटिंग मिल सकती है,, उनका उसे पर इतना काबू था कि मैं उसे ढंग से शिक्षा दिए ना किसी बाहर वाले इंसान के संपर्क में रखें कि वह लड़की कुछ बाहर की दुनिया को देख सके जान सके,,
पारो इतनी खूबसूरत थी कि किसी लड़के से लेकर बूढ़े तक का शरीर में आग लग जाते थे,, अगर कोई उसकी खूबसूरती में खोकर उसे देखता तो लड़की को गलत कहने की जगह उसी को गलत ठहराने लगती थी उसकी चाची,, कोई ऊंच नीच पारो करे,, उससे पहले ही शादी के उम्र होते हैं उसकी तुरंत ही करवा दि,, साथ में अपने सर पर से बोझ भी हटा दी।
" हाँ गाली भी होती है लेकिन दूसरा कुछ भी मतलब होता है और मैं तुझे उसके बारे में बताऊंगा,सिखाऊंगा ,,,, तुझे कुछ भी नहीं पता है बहुत अच्छी बात है,, लेकिन जब कभी दिमाग में सवाल आए तो,, इस घर में तो सिर्फ मेरे से पुछेगी किसी और के पास जाकर नहीं आयी बात समझ में... " अर्जुन दृढ़ता मगर अपने सख्त लहजे कहा उसे पता था कि उसकी पत्नी के मन में सवाल आ सकते हैं क्योंकि वह सब कुछ के लिए नादान नई बेवकूफ है तो इसी बेवकूफी में अगर वह किसी से पूछ दे,, ऐसा हो उसे बिल्कुल भी मंजूर नहीं है
पारो अपना सिर गाय कि तरह हिला दी
अर्जुन आगे बोला " और इस कमरे से बाहर हमेशा तु अपने घूंघट में रहेगी किसी भी मर्द के सामने तेरा पल्लू नहीं गिरना चाहिए ",
पारो फिर से सिर हिला दी, पति की बात मानना उसका पहला कर्तव्य था और वह हर एक बात को पालन करेगी
उसके हर एक हां पर अर्जुन को बहुत ही सुकून मिल रहे थे,, जिस तरह से वह अपने सिर हिला रहे थे वह बहुत ही प्यारी लग रही थी, किसी समझदार बच्चे की तरह, लेकिन उसे एक और खुशी मिली कि उसे संभोग के बारे में कुछ भी नहीं पता है,, इससे अलग तरह की उसे खुशी मिली,, इसमें कोई शक नहीं है कि उसकी शादी एक बच्ची से हुई है,,
अर्जुन को यह सब इसलिए पता है क्योंकि वह पढ़ा लिखा हुआ इंसान है,, उसके जानने के पीछे का कारण यह नहीं है कि वह पहले किसी औरत के संबंध में गया है,,, नहीं...पारो ही उसकी पहली पत्नी बनी,,,और पहले ही बिस्तर पर बैठने वाली,,,उसकी मुख से शब्द सुनने वाली औरत बनी थी हालांकि उसके पास विकल्प थे किसी भी औरत को अपने बिस्तर पर लाना और अपने शरीर की जरूरत को पूरा करना लेकिन वह ऐसा पहले कुछ भी नहीं किया है
अर्जुन अपनी नजरों को उस पर से नहीं हटाया और उसे और गहरी नज़र से देखते हुए उसको पढ़ने की कोशिश करने लगा लेकिन इससे पारो पसीने से तर हो रही थी, उससे यह नजर झेला नहीं जा रहा था ,, उसके जांघों के बीच उसकी कीमती औरत अंग है उसमें जलन सा महसूस होने लगा वह महसूस करी कि उसमें से पानी जैसा निकल रहा है और उसके अंग वस्त्र को गिला कर रहा है,, लेकिन केवल उसके शरीर में वहीं पर बदलाव नहीं हो रहे थे,, कहीं और भी हो रहे थे,,और वह उसकी छाती था जहां धीरे-धीरे दर्द बढ़ते जा रहे थे
पारो अपने शरीर को जकड़ने लगी,,वो काँप भी रही थी,
जो हाथ पारो के ठुड्डी पर अर्जुन का था उसे धीरे-धीरे अपने उंगठे को बढ़ाकर उसके होंठ के पास ले जाकर रगड़ा,, पारो खुरदरी अंगूठे को महसूस कर सिसकियां को अपने गले के अंदर दबाई,,,उसकी बिगड़ती हालत को महसूस करते हुए अब अर्जुन अपने पर काबू नहीं कर पाया और एक झटके के साथ उसके होंठ को अपने होठों को कब्जे में ले लिया ,,
अपने होंठो के बिच लेकर चूमने लगा, पारो हैरानी में आंखें,, अभी उसके साथ क्या हुआ,, अभी तो सीधा होकर बात करते हुए बैठे थे लेकिन अचानक उसके होंठो को अपने मुंह में लेकर क्यों चूसने लगे... ,
पारो समझने में लग रहे जबकि अर्जुन उसके निचले होठों को कस कर रस निकालने में लगा हुआ था, उसने अपनी एक मजबूत हाथ को उसकी सिर के पीछे लेकर गया और उसके बालों में डालते हुए मजबूती से पड़कर अपने होठों की ओर और जोर से दबाया ताकि उसे चूमना में और आसानी हो सके।
उसका चुंबन धीरे-धीरे जोर से भरते हुए बढ़ते जा रहा था,, जैसे आज पहली बार शेर के मुंह में खून लगा है तो वह अपना शिकार करके ही छोड़ेगा,,
वही पारो बस भूत बनी बैठी हुई उसके जोशीले चुंबन को समझने की कोशिश कर रही थी,, लेकिन उसका शरीर उसके चुंबन की गति के साथ और भी प्रतिक्रिया करने लगे उसके जांघों के बीच से पहले जहां पानी रिश्ता सा लग रहा था और अब जैसे की नदी की तरह निकलते महसूस हुआ,,, और उसके छाती में भी दर्द और बढ़ता चला गया,,
अर्जुन उसे तब तक चूमता रहा जब तक की उसकी सांस नहीं रुकने लगी ,, वह उसके होठों को किसी जानवर की तरह खाया था,,पारो अपने धमनी पर भी खुद को बचाने के लिए नहीं लड़ी, और अपने पति को मर्जी करने दे अर्जुन उसकी होठों को चूमा करता रहा,, जब तक उसका दिल नहीं भर गया इतना मीठा और रसीला होंठ,, जिंदगी में पहली बार चूसने को मिला था जिसे वह अपना होस खोने लगा उसके शरीर में आग की गर्मी दौड़ने लगे उसका शरीर का निचला भाग लोहे की तरह खड़ा होने लगा,,
वह उसे आखिरी सांस तक चुम्मा करके उसके होठों को काटते हुए खुद से अलग कर दिया
"अह्ह्ह....शहह..." पारो के मुंह से सिसकी निकल गए दर्द से,
"बड़ा रसीला होता है तेरा मेरा मन नहीं भरा..",, अर्जुन उसके होठों पर अपने अंगूठे से रगड़ते हुए कर्कश आवाज में बोला उसके होठों पर एक टेढ़ी सी मुस्कान थी उसकी पतली होंठ किसी मकान के जैसे था जब चुम्मा किया तो महसूस हुआ और तभी से उसका दिल में बस गया .
पारो आंखें फाड़े सर्वे से लाल हो गई,, जब अपने पति के मुंह से ऐसी बातें सुनी,, वह और तेजी से लंबे-लंबी सांस लेते हुए खुद को काबू करने की कोशिश करी,, लेकिन इस चक्कर में उसकी छाती तेजी से ऊपर नीचे होते हुए दिखने लगा अर्जुन का ध्यान अचानक ही वहां चला गया
"अपने गहने को खोल..", अर्जुन खतरनाक आवाज में आदेश देते हुए कहा,, उसकी आंखें काली पड़ने लगी थी उसके छाती को ऊपर नीचे होते हुए देखकर उसका जबड़ा भींचने लगा था जैसे वह अपने अंदर के आगे को दबाने की कोशिश कर रहा हो।
पारो अचानक आदेश सुनकर हैरानी के साथ झट से सिर हिलाते हुए उसे कुछ पल तक देखि,, फिर उसके बाद वह समझ गए कि उसे यह करना ही है,, फिर उसकी मन यही कहा कि केवल गहने ही तो उतारने है,,, इसे उतारने में क्या होगा और वह मासूम सबसे पहले अपना मांग टीका खोलने लगी,, फिर गले में पहने हार को खोल दी और इसी तरह वह और भी गहने को धीरे-धीरे उतारते हुए बस अपने गले में मंगलसूत्र को और हाथों में चूड़ियां पैरों में पायल और बिछिया छोड़ दी,, इस बीच अर्जुन की नजर उसके हर एक हरकत पर बहुत ही शिकारी नजर से टिकी हुई थी ।
पारो को समझ नहीं आया कि अब भी और कुछ खोलना बाकी रह गया है जब अर्जुन कुछ नहीं बोला तो,,अपनी आवाज करती चूड़ियों को भी खोलने लगी तो उसे अपने पति की गहरी आवाज सुनाई दी
"इसे मत खोल..."
वह उसे नहीं खोली और अब उसका हाथ अपने पायल को खोलने के लिए चले गए
"इसे भी मत खोल..",,
पारो उसे भी नहीं खोली,,,
"अपने बाल को खोल..""
अर्जुन उसे एक टक देखते हुए अपने अपनी पसंद से उसे आदेश देता हुआ खुलवाता गया,, और पारो उसकी बात मानते हुए अपने गहने खोल दी,,
लेकिन इन सब में उसका दिमाग क्या से क्या सोच लिया जिसका अनुमान भी नहीं लग पा रही थी कि उसका पति आखिर करना क्या चाहता है अगर उसे दर्द देना चाहता है मार कर दे दे ना ऐसे उस मासूम के दिल को इतना डरा क्यों हो रहा है
पारो अपने बाल को खोलने लगी,,, जैसे ही जुड़ा से बाल आजाद हुए,,,वैसे ही बिस्तर पर बाल फैल गए किसी काले घने बादल की तरह, वह गांव में धूल मिट्टी में बड़ी हुई थी,, जिससे वह अपने ऊपर कभी ध्यान नहीं दी,, लेकिन भगवान जी उसे बड़ी ही सोच समझकर फुर्सत से बनाए थे कि एक कीचड़ में खिली हुई कमल के फूल के जैसे थी,, बाल खोलते ही जो उसके चेहरे पर खूबसूरती आयी थी न,, उसे अर्जुन बस देखता ही रह गया,, खुले बालों में वह अप्सरा की तरह लग रही थी, उसका यह रूप उसके पति के दिल में कितना असर किया यह पारो नहीं जानती थी क्योंकि उसकी नज़रें झुकी हुई थी,,
" अपने ब्लाउज के बटन को खोल और मुझे अपने दाने को दिखाओ कितना बड़ा है...." अर्जुन उसे आगे आदेश देते हुए बेझिझक कहा
कुछ देर पहले हुए पति का वह पूरी तरह से हक दिख रहा था।
पारो जो अभी तक असमंजस में डूबी हुई उसके सारे आदेश को मान रहे थे लेकिन इस आदेश को सुनकर उसकी आंखें हैरानी में चौड़ी हो गई तो धड़कन धक करके रह गया,,, वह पूरी तरह से जड़ हो गई थी,, उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसका कान क्या सुन रहा है उसे अपनी कीमती आंगो को दिखाना है...?जिसे कभी किसी को नहीं दिखाई,,
लेकिन कुछ देर पहले मिले धमकी के कारण वह मासूम और भोली इसे भी सिर झुकाकर मानी और धीरे-धीरे अपने हाथ को छाती पर लेकर गई और साड़ी के पिन को खोलते हुए गोदी मे गिरा दी,,
उसे यह किसी मर्द के सामने करने थे लेकिन अब वह मर्द उसका पति था,, जो जो उसे यह सब करने के लिए आदेश दे रहा था,, उसकी मां की सिख थी,, पति की सारी बात को मनाना उसे नाराज बिल्कुल भी नहीं करना .., कभी किसी भी बात सवाल नहीं उठाना,,
पल्लू हटाते ही उसका आगे का छाती है साफ दिखने लगा,, फूली हुई सास के कारण ऊपर नीचे होती उसका छाती और भी आकर्षक दिख रहा था,, जिस पर अर्जुन की नजर टिकी हुई थी।
पारो का हाथ अब उसके ब्लाउज के बटन पर रुक गए,, वह संकोच, डर,, घबराहट से धीरे-धीरे एक एक बटन को खोलने लगी,, इस उम्मीद से की बीच में ही उसका पति उसे रोक दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उसके ब्लाउज के सारे बटन खुल गया जिससे उसके उभार ( boobs )के बीच की जगह साफ दिखने लगी।
सब खोल कर पारो बिना नजर उठाये चुपचाप रुक गई,,
इसके आगे क्या होगा उसे नहीं पता था, और वह अभी कुछ सोच भी नहीं पा रही थी,, उसका दिमाग पूरी तरह से खाली हो चुका था,, शर्म इतने आ रहे कि वह कहीं छुप जाना चाहती थी
इस तरह कपड़ा खोलकर वह केवल नहाने समय ही रहती थी नहीं तो खुद की भी सामने वह कभी अपने कपड़े को नहीं खोली थी,, और अपने अंगों को नहीं देखी थी,,, आज से पहले वह अपने सीने पर से दुपट्टा तक नहीं हटने देती थी और आज अपने बटन को खोलकर बैठे थी,
उसके घबराने से उसकी छाती ऊपर नीचे हो रही थी जिस कारण उसके ब्रेस्ट भी ऊपर नीचे होते हुए देखने लगे थे धीरे-धीरे कपड़ा का परत हटते लगे,, यह दृश्य एक कामुकता की ओर इशारा कर रहा था,,
"ब्लाउज को दोनों हाथो से हटा कर मुझे दिखाओ..."अर्जुन अपने कड़क और भारी आवाज़ में बोला, उसके आवाज़ शांति पासरे कमरे में गूंज रहे थे,, साथ में पारो के कानो में भी गूंज रहे थे किसी बदल गरज ने जैसा, उसके हर एक वर्ड मे उसके रीड कि हड्डी में अकड़न पैदा हो जा रही थी। ..
पारो सुनते के साथ धीरे-धीरे काँपते हाथों से अपने ब्लाउज के दरवाजा खोलकर अपनी गोरे और आम के आकार वाले ब्रेस्ट को दिखाने लगी,,
उसकी आंखें शर्म और लज्जा से जोर से बंद हुई थी, सीना तेजी से ऊपर नीचे होने लगा, उसके पैर के अंगूठे भी मुड़ने लगी थी,, तो जांघों के बीच में पानी का रिसाव बढ़ गया था
यह मास्टर जी बड़ा ही भयानक लग रहे थे उसे आज,, अभी सिर्फ आदेश देकर उसकी जान ले रहे थे
अर्जुन उसकी ब्रेस्ट को देख रहा था जैसे ही पारो पूरी तरह से ब्लाउज को हटाए उसकी आंखें काली बादल की तरह और अंधकार से भरने लगा,, उसका जबड़ा और भींच गया,,
उसकी नजर एक तक उसकी भूरे निप्पल पर जाकर अटक गई,,, पारो का बूब्स किसी तरबूज की आकार का नहीं था वह बहुत ही छोटा था और उसके निप्पल किसी मटर के दाने के जैसे थे,,जो उंगली में पकड़ से भी नहीं आते,, वह पूरी तरह से कुंवारी और बच्चे जैसे शरीर की थी,, उसे अभी और विकसित होना बाकी था,, लेकिन अर्जुन के लिए वह शायद विकसित हो चुकी थी
अर्जुन के बिना छुए हुए हैं पारो का बूब्स का काँप रहा था,, तो उसके मोटर के दाने भर के निप्पल बाहर की तरफ फुले हुए निकले थे जो हवा से छूते हुए काँप रहे या उसकी नजर से कहना बहुत ही मुश्किल था
"ये बहुत छोटे है,,, उंगलियों मे भी नहीं आयेंगा """,,, अर्जुन उसके दाए nipple को अपनी ऊँगलियों मे मसलते हुए कहाँ। .
"अह्ह्ह...अह्ह्ह ...अह्ह्ह्ह.... अह्ह्हह्ह्ह्ह माआ....." ,, पारो जैसे ही अर्जुन के हाथों को महसूस करें वैसे ही अपनी जगह पर छटपटाते हुए जोर से चिल्लाई,, और उसे मासूमियत से देखने लगी जिससे पूछ रहे हैं कि अभी क्या कर रहे हैं,, यह सब उसके साथ सब अचानक हो रहा था जिसे समझने में बहुत ही समय लग रहे थे
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Aage kya hoga, kya Paro ke teacher ji Aage aur Sawal karenge....?
Comment kare please,, ,,🥺🥺🥺🥲🥲🥲🥲🥲🥲 bataye ki story kaise likha rahi hai,,, writer ko bataya,,, bahut help hogi meri,,,
Thankyou❤️❤️❤️❤️
"आआह .....अह्हह्ह्ह्ह...माआआआ ... द...दर्द... ह्....हो रहा है...जी....आप ऐसे क्यों मसल रहे है.... मुझे... अजीब लग... रहे है..",, पारो जैसे ही अर्जन के ऊँगलियों को अपने nipples पर कुचलता महसूस करी,,वैसे ही जोर से चिल्लाते हुए बोली,,,उसके पुरे शरीर मे नया और अजीब सा मीठा आनन्द आया,,जो बस उसके निप्पल छूने से पुरे शरीर मे हुआ था, लेकिन वो डरते हुए अपने हाथ को उठा कर अर्जुन को रोकने के लिए अपने नाजुक कोमल हाथ को उसके हरकत करते हाथो के ऊपर पकड़ कसी,,
लेकिन अर्जुन फिर भी उसके nipple को धीरे धीरे किसी दाने कि गोल घुमा कर दबा कर मसल रहा,,वह उसके आँखों मे दृढ़ता से देखते हुए अपने उंगलिया दबाव को कभी ज्यादा करता तो कभी, उसे पारो का इस तरह अचानक से झटपटना बहुत ही पसंद आया था,, जिससे उसके अंदर और जोस भर गया और वो उसकी हाथो को नज़रअंदाज करते हुए और गोल घुमाया उसके nipple को।
" अह्ह्....नहीं.. क्या.. कर रहे है.. मुझे.. अजीब लग रहे है.... " पारो सिसकी लेते हुए उसके कलाई पर नाख़ून गड़ाते हुए कामुक तरीके से बोली, उसे नहीं पता कि उसके मुँह से ऐसे आवाज और कराह क्यों निकली,,उसके ऐसे करने से और उत्तेजित कर रहा था शरीर को,, मन को,, जिसे वो समझ नहीं पा रही..
"बहुत ही छोटे और कोमल कली है..तेरे,,,इसे मुझे ऐसे ही दबा खिंच कर बड़ा करने होंगे..." अर्जुन बिना भाव के निप्पल को बाहर कि और खिंचते हुए कहाँ हुए..--
जिसे सुनते ही पारो लम्बी साँसे लेते हुए उसके हाथो पर पकड़ कस दी उसकी सिसकियाँ बढ़ने लगी,,,वो बैठते हुए काँप रही थी,,झुंझनी शरीर मे बढ़ते जा रहे,,
पारो का बूब्स जो पहले से ही दर्द मे था,, अब और बढ़ गए लेकिन इसमें एक और चीज जुडा जिससे उसे दर्द का पता नहीं चल रहा, जैसे दर्द को दर्द काट रहे हो और उससे उसे आनन्द के रूप मे मिल रहा हो,, हाँ जब से अर्जुन अपने उंगलियों से उसके निप्पल को दबा रहा था तब से उसे एक अलग तरह की सुखद का एहसास हुआ जो दर्द कर रहे थे अब दर्द में भी आनंद दे रहे थे ,,
लेकिन उसके जांघों के बीच उसकी योनि से पानी का रिसाव इतना बढ़ गया कि उसकी पैंटी (अंग वस्त्र ) भी गिला हो गए,,उससे जितना हो सकता था वह बैठे हुए ही अपने जांघों को जकड़ने की कोशिश करती,, उसे समझ नहीं आ रहा था कि नीचे से उसका ऐसा क्यों हो रहा है.., वहां पर उसे जलन सा,,और खुजली सा महसूस हो रहे,,ऐसा लग रहा कि वहाँ पर भी कुछ कर उसकी मांग को मिटा दे,, लेकिन सवाल यह है कि कैसे होगा ये...? उसे तो कुछ पता ही नहीं है कि उसके शरीर के साथ क्या हो रहा है ऊपर अलग दर्द कर रहे थे तो उसके पति उसे दबाकर खींचने लगे...-,, नीचे और अगल हो रही ..
अर्जुन दृढ़ता से बार बार nipple को खींचने से,,दबाने से पारो के कली से हल्की सफ़ेद रंग का पानी निकलने लगा,,अर्जुन के चेहरे पर पिचकारी कि तरह पड़े,, यह देखते ही अर्जुन के हाथ रुक गये,, वह अपनी गहरी आंखों में हैरानी और सवाल दिए हुए,पारो को देखने लगा,,
जब पारो को उंगली के दबाव से दर्द और आनंद का एहसास नहीं हुआ तो वह भी अपनी आंखें खोलते हुए नीचे देखि,, ये देखते ही उसकी आंखें उलझन मे पड़ गई,, उसे समझ नहीं आया कि यह सफेद दिखने वाला पानी क्या है उसके शरीर पर कहां से आया,, लेकिन अर्जुन अपने रुके हुए हाथ को हरकत करते हुए उसके निप्पल को दबाया तो फिर से उसके अंदर से सफ़ेद पानी फुवारे कि तरह निकलते हुए उसके चेहरे पर ही गिरे।
यह देखते ही पारो का दिल डर से उसके सीने के अंदर दिल धड़क गया वह पूरी तरह से कांप गई थी,, उसे समझ नहीं आया कि यह उसके स्तन से क्यों निकल रहा है...,,
ऐसा निकलते हुए तो वह उन महिलाओं, भाभियों को देखि थी, जो मां बन जाती है, जिसे अपने बच्चों को दूध पिलाना रहता है,,, कुंवारी लड़कियों को दूध नहीं निकलते हैं,,, तो फिर वह उसके शरीर से ऐसा कैसे निकल रहे है,, अभी तो उसकी शादी हुई है,,,तो क्या शादी होने के बाद दूध निकलने लगते हैं... उसके मन में यह ख्याल आया ..... लेकिन उसे यह भी पता था कि मां बनने के बाद ही लड़की के शरीर से दूध निकलता है,, अपने बच्चों को पिलाती है,, अपने आसपास भाभी को जब वह बच्चे को दूध पिलाते हुए देखती तो उसके मन में हजारों सवाल आते कि उनके शरीर से कैसे निकल रहा है..? लेकिन इसका जवाब उसे ना पहले कभी मिला था और ना अभी समझ में आये, जिस कारण डर से रोने लगी उसके आंखों में मोटे-मोटे आंसू भर गए
अर्जुन उसके अचानक आंसू को उलझन मे देखा लेकिन तुरंत ही उसके मासूम चेहरे को देख कर समझ गया कि उसके मन मे अभी क्या चल रहा है...
पारो के आँखों मे मोटे मोटे आंसू चमक कर उसकी चेहरे की खूबसूरती को और बढ़ा रहे हैं अर्जुन को बड़ा हैरानी हुई कि कोई इंसान रोते हुए भी इतना सुंदर कैसे दिख सकता है...?
""मुझे... नहीं... पता.. ये.. कैसे.. निकल.. रहे..है..,, मैं ..बिलकुल ..भी.. नहीं.. जानती जी..,,आप मुझे चरित्र हीन.. लड़की.. नहीं ..समझयेगा..,, मैं..गन्दी.. लड़की.. नहीं.. हूँ..जी.."पारो डर और शर्मिंदा होते हुए अपने दोनों हाथो से दोनों बूब्स को ढकते हुए बहुत ही मासूमियत से रोते हुए सफाई देकर अपने चरित्र के बारे मे बोली,, जिसे सुनकर अर्जुन के भौंहे उठे, मासूम तो थी लेकिन सच्ची भी थी।
चाची उस पर कितना लालछान लगा चुकी थी,,उसके कुछ भी नहीं करने पर,जो सुनने मे बहुत ही गन्दी और दिल को रुलाने वाली होती है,, उसे डर लगा कि उसका पति भी उसे कुछ ऐसा ही समझ ना ले...
" तुझे माँ ने दूध पिलाया है... ???"
अर्जुन उसके एक निप्पल को दबाते हुए अपने शांत,आवाज में पूछा
" हाँ...! उसने मासूमियत से अपने सर को दो बार हिलाया,, " वो मुझे सुबह एक दूध का गिलास दी थी पीने के लिए मैं उसे पी गई थी.. " पारो सुबकते हुए अपने नाक से बहते पानी को अंदर खींची।
उसकी बातें सुनकर अर्जुन को दिल को एक अलग तरह के ही सुकून मिला,, आंखों में संतुष्टि की चमक आ गयी,, ठाकुर खानदान एक परंपरा थी जो शायद ही इस परंपरा को कोई अपने घर में बनाकर रखता होगा,, लेकिन उनके यहां था जो इनके पूर्वज्जो बनाये,, जिसे अभी तक सब मानते हुए आ रहे थे,, उनका बनाने का मतलब सिर्फ इतना था की पहली रात सुहागरात के दिन औरत को अपने पति को सुख देने के लिए उसे स्तनपान करवाना होगा,, इससे उनके बीच प्यार बढ़ेगा और ठाकुर खानदान को वारिस देने में देरी नहीं होगा, वो अपने पति को वो संतुष्टि दे की, घर के बाहर औरतें के पास ना सके और उन्हें अपने ही शरीर की की आग मे लपेट कर रखे।
पारो को भी उसके सास दूध में एक ऐसी जड़ी बूटी मिला कर दी थी जो कि स्तनपान करवाने में मदद करता है,,, ये जड़ी बूटी उन महिलाओं के ज्यादा कारगर साबित होते हैं जिनको बच्चे के दूध पिलाने के लिए पर्याप्त दूध नहीं बन पाता है,, वह करती है इन जुड़ी बेटियों का इस्तेमाल लेकिन इस चीज का इस्तेमाल ठाकुर खानदान में भी होता था पति को खुश रखने के लिए,, आज पारो को भी अपने पति को खुश करना था,, लेकिन खुश करना था उसे यही नहीं पता था, जिस कारण खुद ही रोने लगी और खुद को अच्छी लड़की साबित करने की कोशिश करी।
" माँ ने तुझे दूध में एक जड़ी बूटी डालकर दी है जिससे तेरे कुंवारी स्तन में दूध बन जाए और तू मुझे आज हमारे सुहागरात पर पीला... यह ठाकुर खानदान का एक परंपरा है जिससे हर नई दुल्हन को करना रहता.... " अर्जुन उसके दूसरे बूब्स को अपने हाथ में लिया और जोर से दबाते हुए बोला जिससे फिर से दूध उसके चेहरे पर पड़ा उसे बड़ा अच्छा लगने लगे थे उसके बूब्स से जब दूध निकलते, देखना उसके शरीर को अलग ही गर्व से भर रहा,, ये छोटी लड़की मे इतनीताकत थी की बिना कुछ किये ही अर्जुन के अंदर बहुत कुछ कर रही थी, अपनी मासूमियत से भी और अपने छोटे अंगों वाले शरीर से भी, जिसका अंदाजा उसे खुद नहीं पता।
" मममम.. " पारो मीठी सिसकी ली,,
लेकिन उसका दिमाग उसके पति के कहे बातों पर घूम रहा था कि यह किस तरह का परंपरा है एक कुंवारे लड़कि को बूटी से दूध निकाल दे रहे हैं यह तो बड़ा आश्चर्य और अनोखी चीज है,,, अगर आज से पहले कोई उसे इस तरह का बात कहता तो बिल्कुल भी यकीन नहीं करती लेकिन जब खुद अपने आंखों के सामने देख रही तो उसे धीरे-धीरे विश्वास करना ही पड़ा,, लेकिन उसे राहत मिला जैसा सोची थी वैसा कुछ भी नहीं था,वो अपने पति के नज़र मे एक गन्दी लड़की की छवि नहीं बाना,,
उसे अब अपने पति को दूध पिलाने होंगे और यह सोचते ही पारो का गाल और शर्म से लाल होने लगे अजीब सा नया एहसास हुआ,,,झुंझुनूं सी दौड़ गए पूरे शरीर मे,,
वो शर्म से नजरे झुका ली,, अब आंसू की जगह आंखों में लज्ज शर्म है आ गई, शरीर के रोंगटे खड़े होने लगे थे,
उसे एक हठे कठे, चौड़े मजबूत बड़े इंसान को बच्चों की तरह दूध पिलाना,, वह बच्चे को दूध पीते हुए देखी थी लेकिन एक पति को ना कभी देखी थी या ना कभी किसी के मुंह से सुनी थी,,
वह और उसके गहराई में जाकर सोचने समझने की हालत में नहीं थी पहला कारण उसे अपने पति से कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं थी या शायद इजाजत नहीं थी दूसरा शादी होने के बाद जो ससुराल में परंपरा प्रथा और पति कह रहा है उसे वो सब कुछ करने थे,,, फिर चाहे वो कमरे के अंदर हो या कमरे के बाहर,,, सब कुछ का मतलब उसे सब कुछ सिर झुका कर मानने थे।
वह अपनी हल्की सिसकी लेते हुए सिर झुकाए हुई थी,,जबकि अर्जुन उसे दिलचस्प के साथ देखते हुए अपने हाथों के हरकत को बढ़ा दिया,,, वह थोड़ा और करीब आते हुए अपने हाथों को थोड़ा मजबूत किया उसके बूब्स पर अपने दोनों हाथों से दबाते हुए खतरनाक आवाज मे बोला
" तेरे स्तन और कली दोनों बहुत छोटे हैं इस पर मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी तब जाकर यह मेरे हथेली के बराबर होंगे...
""आआह..जी .द दर्द.. हो रहा है..
पारो जोर से चिल्लाते हुए हकला कर कही,उसके हाथ फिर से उठ कर अर्जुन के कलाई को जोर से पकड़ लि,, जिससे उसकी चूड़ियों की झंकार शांति भरे कमरे में एक मधुर आवाज छोड़ी,, शायद इसी को सुनने के लिए अर्जुन उसके चूड़ियों को खोलने के लिए मना किया था,, जैसे उसे पता था कि जब वह उस पर अपना यातना को बढ़ाएगा तो कुछ कान को सुकून देने वाले सुनने को मिलेंगे, और उसे मिले भी।
पारो उसके मजबूती से मसलने से अभी इस बात का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहा इतना जोर से नहीं चिल्लाना चाहिए,,,क्योंकि रात का पहर है और पुरे घर मे शांति बहुत ज्यादा फैले हुई थी,, जिस कारण कोई भी उसके आवाज को सुन सकता था,, और उन्हें यह समझने मे समय नहीं लगते कि अंदर कमरे में आज नव विवाहित जोड़ा क्या कर रहे होंगे,,,
लेकिन पारो अभी इन सब चीजों का ख्याल बिलकुल भी नहीं रख पा रही थी, अरे उसे खुद को कैसे काबू करना है ये भी नहीं पता था,, वह अभी अपने पति के दाया के निचे कुचली जा रही थी,,
""अह्ह्हह्...माआ ..बहुत दर्द हो रहा है जी...
पारो अपनी आंखें बंद किए हुए सिर को पीछे फेंकते हुए कही,, दर्द भी आनंद भी मिल रहे थे उसे,,
जिसकि दर्द से भरी कराह सुनकर अर्जुन के होठों पर शैतान मुस्कान आ गयी,,वो उसे इस तरह देख कर संतुष्ट हो रहा,, एक छोटी कली को मसलना कितना आनंद से भारा होगा, अर्जुन को नहीं पाता थे, लेकिन आज जैसे ही उसके स्तन और कली को मसला रहा था उसके दिल उस पर और जोर लगा कर मसलने के लिए कहते,, और वो अपने दिल कि सुनकर कर रहा था, उसके छोटे गोरे स्तन को पूरी तरह लाल कर दिया।
यहां वह पारो को आनंद और नए एहसास से मिल रहा था तो खुद भी वह अपने शरीर के नए एहसास से जूझ रहा था क्योंकि उसका शरीर उसके होंठो को चूसने के बाद,,, उसके गोरे त्वचा को देखने के बाद,, उसके बूब्स को छूने के बाद से,,,, अर्जुन के पूरे शरीर में खून का प्रभाव इतना बड़ा की उसके पूरे शरीर की नस फड़फड़ाने लगे,, अपना आज तक किया हुआ काबू खोने लगा,,
उसका अपना सबसे कीमती और जिसे आज तक के जीवन में वह हर औरत को देखकर काबू करके रखा था वह अभी उसके कपड़े से छिपे कर किसी लोहे की तरह खड़ा हो गए थे,, जैसे वो अर्जुन से बोल रहा हो कि अब पूरी तरह से तैयार है अपनी छोटी पत्नी के योनि में जाने के लिए,,
और अर्जुन समझ गया था कि यही एक औरत है जो उसके मर्दानगी को जो उसके लोहे जैसे उठे लिंक को शांत कर सकती है उसे देखकर खड़ा हुआ है तो उसके अंदर जाकर ही वह शांत होगा
पारो का शरीर भले अभी बहुत छोटा और ज्यादा विकसित नहीं हुआ था उसका हर एक अंग बहुत ही छोटा था लेकिन इससे अर्जुन और प्रभावित हो रहा था जैसे कि उसे यह गुलाब की कच्ची कली को छूकर मसलकर पूरी तरह से टूट कर बिखरा देगा तो उसके पूरे शरीर को सुकून मिलेगा,,
उसे संतुष्टि इस बात की हो रही थी कि उसकी पत्नी को ना आज तक कोई देखा था और ना ही कोई उसे छुआ था और उसे छूने वाला वह पहले और आखिरी मर्द होगा ,, उसे पर हर एक चीज करने का हक हुआ रखता था,, और यह बात अर्जुन ठाकुर को बहुत ही गर्व और घमंड करवा रही थी
" होने दे दर्द,, और तुझे यह दर्द सहना होगा,, मैं तेरे छाती को इतना दर्द दूंगा कि यह बहुत जल्दी ही बड़ा हो जाएंगे,, फिर इसमें से मेरा खाना निकलेगा,, तेरा दूध को मैं रोज पीना चाहूंगा... तू मुझे हर रोज अपना दूध पिलाएगी समझी. " ..,,
अर्जुन उसके दोनों बूब्स को एक साथ मुट्ठी में भरते हुए और जोर से नींबू की तरह निचोड़ते हुए अपने दृढ़ता मगर आदेश भर लगे में कहा जिसे सुनकर पारो रों के तन बदन में बिजली दौड़ गई।
" बोल पिलाएगी न... " उसके निप्पल को खींचते हुए पूछा।
" अह्ह्ह अह्ह्ह... " पारो जोर से चिल्लाई ।
" हाँ... हाँ... " पारो हकलाते हुए टूटी हुई आवाज में बोली.. उसे नहीं पता कि वह किस बात के लिए हां कर रही थी,, अभी उसके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ आनंद भरे हुए थे जो कि उसके दबाने से पूरे शरीर को मिल रहे थे,, उसकी आंखें बंद थी तो मुट्ठी कि पकड़ अर्जुन के कलाई पर कई हुई थी और सांस तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे कमरे में उसके चिल्लाने की आवाज से गूंज रही थी
" और जोर से चिल्ला मेरे कानों तक तेरे आवाज और अच्छे से आना चाहिए ... और मुझे बताओ कि तुझे कितना दर्द हो रहा है "
"आआह ....बहुत ...ज्यादा.."
पारो अपना गला फाड़कर चिल्लाते हुए मुश्किल से इतना ही बोल पाई,, सांस उसकी बेलगाम चल रही थी,, तो आंखों से आंसू झरने की तरह बह रहे थे,,, उसके पहले से बूब्स में होते दर्द को दर्द तो काट रहे थे लेकिन अर्जुन की मजबूत हथेली में उसकी नाजुक बूब्स पूरी तरह से मसलते जा रहा था जिससे उसे और भी दर्द हो रहे थे,,
"और जोर से चिल्ला....." अर्जुन आटा की तरह बेरहमी से मसलते हुए गुर्राते हुए कहा,,, पारो जितना जोर से चिल्ला रही थी अर्जुन उतना ही जोस से भरते हुए उसे और दर्द दे रहा था,, जिसे पिचकारी की तरह उसके दूध बाहर निकल रहे थे,,
""और जोर से ..."
पारो दर्द के साथ आनंद में जितना हो सकता था उतना जोर से चिल्लाई,,
" अह्ह्हह्ह... अह्ह्हह्ह्ह्ह..... ahhhhhhh ओह्ह्ह... उम्म्म... मम्म...
अर्जुन के कान में जैसे ही पारो की चिल्लाहट गई वैसे ही उसके दिल को ठंडक पहुंचे,उसका dick तन कर सीधा पारो के छेद में जाने के लिए तैयार हो गया था,, लेकिन अर्जुन अपने ऊपर बहुत ही अच्छी तरह से काबू कर रखा था,,, उसे आनंद दे रहा था उसे तंग कर रहा था उसके बूब्स को मसलकर उसके नपा को बढ़ा रहा था ,
अर्जुन कभी उसके पूरे बस को प्रेस करता तो कभी उंगलियां के बीच निप्पल को दबा रहा था,, ऐसे ही करते हुए वह बहुत से दूध को फुहारे की जैसे हवा में बहा दिया था,, दूध के सफेद चीते से उसका पूरा चेहरा भीगा हुआ था,, और पारो का गोरे मखमल जैसा बूब्स किसी टमाटर की तरह हो गए थे।
पारो तारों के अपने पेट में एक गांठ सा बनता हुआ महसूस हुआ और योनि में पानी किसी नदी की तरह बहता सा हुआ,, उसे ऐसा लगा कि पेट में बने गांठ बाहर निकलने वाले हैं लेकिन उसे यह याद आया कि उसे अभी बाथरुम जाने की जरूरत है,,
" मुझे गुसलखाना जाना है जी... पेशाब लग रहा है..." वह आँखे बंद किये हुए ही बोली..
ये सुनते ही अर्जुन उसे छोड़कर गहरी नजर से देखने लगा,,
वही पारो को जैसे नींद से जगे हो,,,, उसके छोड़ते ही बहुत बुरी तरह से खाली सा महसूस हुआ,, जो दिमाग और शरीर आनंद से भरा हुआ आखिरी चरम तक पहुंच गए थे और वह सुखद अनुभव को महसूस करने वाली थी जिसके बारे में उसे नहीं पता था वह नहीं मिलने पर वह किस तरह महसूस कर रही थी वह सब में तो नहीं बता पाई लेकिन बहुत ही बुर महसूस हुआ,, उसे वह आखरी तक चाहिए थे लेकिन उसके ठाकुर जी छोड़ दिया,, अब उसे एहसास हुआ कि उसे गुसलखाने जाने की जरूरत नहीं थी,, बल्कि उसके पेट में बने गांठ को निकालने की जरूरत थी लेकिन कैसे निकलता है वह...
"कहाँ से पेशाब निकल रहा है ..", अर्जुन आंखों में चमक लिए हुए पूछा,, उसकी मासूम और भोली पत्नी उससे मनोरंजन कर रही थी अपने बातों से। और उसे ये पूछने मे बिल्कुल भी झिझक महसूस नहीं हुआ,
पारो जो अपनी सांसों को काबू कर रहे थे अपने पति की बेशर्म भरी बातें सुनकर फिर से सांस बढ़ गई,, वह कैसे बताएं कि कहां से निकल रहा है,, यह बताने वाली जगह नहीं थी,,, पर मन में सोची कि उसके पति दिखने में कितनी डरावने, गंभीर और समझदार लगते हैं लेकिन इतनी गंदी बात पूछेंगे उसे यकीन नहीं हो रहा था,अभी भी गंभीर ही नज़र आये, जैसे कोई मज़ाक नहीं किये है..
जब से पारो गाड़ी में बैठी थी तब से उसकी मौजूदगी को महसूस कर तो उसे लगा था कि उसका पति उसे एक नजर देखेगा भी नहीं लेकिन जब से वह कमरे में आया है,, तब से उसे सदमे पर सदमे में दिए जा रहा था आपने बातें से हरकतों से,,क्या वो सपना देख रही.... शायद नहीं सब हकीकत है और उसका पति उसके कीमती अंगों को छू मसल और देखने की आदेश दे रहा है...
"बोल कहाँ से निकल रहा है....." अर्जुन घूरते हुए फिर पूछा जिसे देख पारो डर से हड़बड़ी मे बोली
" यहाँ से, लेकिन अब पेशाब नहीं लगे है,पता नहीं उस समय ऐसा क्यों लगा " ,,वह मासूमियत से अपने जांघो के बिच इशारा करते हुए बोली और अपनी नज़र को शर्म से चुराने लगी....जिंदगी मे पहली बार इस सब का सामना कर रही जो,, बहुत ही शर्म से भारा हुआ था,,
"उसे क्या कहते है...?" अर्जुन आगे पूछा।
पारो और हैरानी से देखने लगी, उसके गले से आवाज नहीं निकली.
" बोल...? , जब मैं कुछ पूछो तो बिना झिझक के एक ही बार मे बोल नहीं तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा तेरे लिए समझी.." अर्जुन उसे धमकाया,वह चिढ रहा था उसके जल्दी नहीं बोलने पर.
" यों... योनि.. बोलते... है... "" पारो बड़े शर्म से धीमी आवाज़ मे बोली कि केवल पास होने से अर्जुन सुन सका,
पारो को एक शब्द बोलने मे पसीने छूटने लगे थे कि अब वह पसीने से नहा चुकी थी.... गर्मी से शरीर मे से धुँआ निकाल रहे थे.....
"""ह्म्म्मम्म.... चल अब अपनी साड़ी को उठाकर अपने कुंवारी योनि को दिखा,, जारा देखूं तो,, कई छोटे होने से तेरी यानी भी छोटे हैं कि नहीं मेरा बड़ा सा लिंग तेरे अंदर घुस पाएगा कि नहीं,,
अर्जुन बिना किसी झिझक के आदेश दिया, कि पारो अपनी जगह पर जड़ हो गई,, पूरे शरीर में उसे बिजली सा दौड़ता महसूस हुआ,, आप विश्वास से फटी आंखों से अपने पति को देख रही थी जैसे कि वह क्या सुन ली हो,,
लेकिन कमरे मे जब कानफोडू शांति महसूस करी और अपने पति को दृढ़ चेहरे को देखि तो उसके हाथ डर से अपने आप है हरकत मे आने लगे।
पारो धीरे धीरे करके अपनी साड़ी को घुटने के ऊपर लेकर जाने लगी,, लेकिन उसमें अर्जुन की नजर का सामना करने की हिम्मत बिल्कुल भी नहीं बची,, यह सब पालन वह पति के दर से कर रही थी,,
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अब आगे... 👉
पारो अपने पति के यानी कि अर्जुन के आदेश पर डर घबराहट होने के बाजूद भी, धीरे-धीरे साड़ी को मुट्ठी मे कसते हुए पैरो से ऊपर की ओर सरकते हुए टखने से ऊपर, घुटनों तक सेभी आगे लेकर गयी,
लेकिन एक समय ऐसा आया की उसके हाथ खुद रुक गए, जब साड़ी जांघो तक आये,,इससे आगे उसे अपनी गोरी त्वचा दिखाने की हिम्मत नहीं हुई, उसका हाथ इससे आगे बढ़ने का दूसहास नहीं कर पाया,
अपने ऊपर अर्जुन की तेज तीखी तरार नजरों से निकलती आग को सहते हुए वह इतना ही कर पाई,,उसका पूरा शरीर पसीने से तर हो गया था,,शर्म और हया से उसकी नज़रें झुकी हुई थी दिल की धड़कन आखिरी मुकाम पर जाकर धड़क रही थी,, जैसे अगर उसका दिल के ऊपर मोटी चमड़ी का परत नहीं होता तो कब का बाहर निकाल कर, कबड्डी खेल रहा होता किसी लावारिस की तरह,
अर्जुन अब तक उसके साथ जो किया वह उसे हजम करने की कोशिश कर रही थी,, वह उसके कीमती आंगो को छूकर बुरी तरह से मसल रहा था, लेकिन दर्द और आनंद को सहते हुए उसकी सहमति दिखाई,,,लेकिन जब उसे अपने उस अंगों को दिखाने का समय आया जिसे वह खुद भी कभी नहीं देखी थी, तो उसकी हालत इतनी खराब होने लगी कि वह भगवान जी से गुहार लगाने लगी इस स्थिति से बचाने के लिए,
लेकिन भगवान जी आज उसके हित में बिल्कुल भी नहीं थे, जो उसकी इज्जत को एक पति नाम के इंसान के सामने जग जाहिर करने से बचा पाते, आज सुहागरात के नाम पर उसके साथ जो कुछ भी हो रहा था, उसमें भगवान जी उसकी मदद बिल्कुल भी नहीं कर रहे थे उससे बचने के लिए,
वह मासूम भोली इतना ही जानती थी कि पति जो कहेगा, उसे पत्थर की लकीर समझकर उसे वही करना है, लेकिन कैसी अचानक किसी खतरनाक इंसान को अपनी निजी अंगों को दिखा दे, जब उसे इस चीज को हमेशा छुपा कर रखने के लिए सिखाया गया हो,
पारो बेचैनी डर से काँपते हुए नजरों को झुकाये इधर से उधर एक पल मे सौ बार देखते हुए खुद को शर्मिंदगी से बचाने की कोशिश में लगी हुई थी,खुद मे खुद को सिमट रही थी,, इस अवस्था में आकर क्या करें कुछ सोच नहीं पा रही, दिमाग ऐसे खाली हुए पड़े थे जैसे कभी उसमें कुछ भारा ही हुआ नहीं था,वैसे भी उसके पास पहले से भी इतना दिमाग नहीं था कि सही गलत की पहचान कर सके, अपने पति को रोक सके... अपने मन के सवाल को पूछ सके ... उसे आज तक के जीवन में सभी का आज्ञा मानने ही आया था, और अपने पति का भी आज्ञा ही मान रही थी,,
अर्जुन अपनी छोटी मासूमियत भोली पत्नी के हर हरकत को देख रहा था,वह उससे कितना डर रही है , कितना काँप रही है, उसके हर एक हरकत को वो देखते हुए समझ रहा था, वह कच्ची कली निश्चल थी जो अपने पति के सामने भी खुद को खोल नहीं पा रही थी, आगे बढ़ने से भी हिचकिचाहट रही थी, वह अर्जुन समझ रहा, उसकी जिंदगी में एक ऐसी मासूम लड़की जुड़ गई थी जिसको पढ़ना इतना भी कठिन नहीं था भगवान जी बड़े फुर्सत से बनाकर उसे उसकी जिंदगी में भेजे हैं उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था, अपने हर एक अदा पर उसे प्रभावित कर रही थी , अपनी तरफ ऐसे खींच रही थी जैसे अगर वह अपना अधिकार नहीं जमाया तो उस कच्ची कली को मसल नहीं पाएगा,, जान नहीं पायेगा..
"टांगो को खोल,और मुझे दिखा, मैं तेरा पति हूँ,,जो पूरी दुनिया मे केवल मेरा ही हक़ है, तेरे कीमती अंगों को देखने का,उसे छूने का,उसे चूसने का,उसे काटने का,उसे पूजने (चो**ने) का, हर वो काम जो सिर्फ एक पति कर सकता है अपने पत्नी के ऊपर,,आखरी साँस तक, और याद रख, तुझे बिना कपड़ो के सिर्फ मै देख सकता, कोई और नहीं, और ना तुझे कभी किसी को दिखने की गुस्ताखी करनी है, इसलिए जब मै कहु तुझे बिना झिझक के करने है,
अर्जुन उसके झुके सिर को देखते हुए, अपने उंगलियों में उसके ठोड़ी को मजबूती से पकड़ते हुए अपने कठोर और मगर शांत आवाज़ मे बोला,,उसके आवाज में आज ही की बनी पत्नी के लिए अधिकार और हुकूमत दिख रहा,, वह उसे बता रहा की किस हद तक उसका अधिकार है उसे देखने और रूह को तोड़ने का,
अपने पति की बात सुनकर पारो के दिल में एक अजीब सा एहसास हुआ किस तरह के एहसास था उसे नहीं पता लेकिन अच्छा लगा कि उसकी अंगों को केवल उसके पति देख सकते हैं,, और कोई दूसरा मर्द नहीं,, उसे भले ही किसी चीज का ज्ञात नहीं हो,, लेकिन वह अपने अंगों को केवल अपने पति के अलावा किसी और नहीं दिखना चाहती,, कभी भी नहीं ... अगर अर्जुन उसका पति नहीं होता अब तक किए हुए उसके आदेशों को एक बार भी वह नहीं सुनती फिर क्यों ना उसे डर ही लगता, अपने शरीर पर किसी के छुवन को किस तरह से एहसास कर उसे दूर धकेलना है,, पारो इस बात को जानती थी,,,
और अर्जुन के छुअन उसे बिल्कुल भी बुरा महसूस नहीं करवाये थे,, वह उससे डर रही थी,, उसकी नजरों के नीचे,, लेकिन एक अलग वह एहसास था कि जिससे उसे बुरा एहसास देकर रुलाया नहीं
शायद उसका पति है इसलिए, और वह पति नाम के इंसान को खुद को समर्पित कर चुकी थी।
पारो एक पल केवल मासूम नजर उठा कर अपने खतरनाक पति के चेहरे को देखी ,अभी भी उसे वही भाव दिखे जिससे उसको डर लग रहा था ,उसने झट से अपनी आंखों के झालर को नीचे गिरा दिया ,और सिर हिलाते हुए
काँपते हुए घुटने को धीरे धीरे अलग करने लगी,अब कुछ सवाल का जवाब मिला तो उसकी झिझक भी कम हुई, आखिर पति है तो दिखाना ही है,,
जब घुटने आपस से अलग होकर धीरे धीरे उलट दिशा में दूर जाने लगे, तो वह अपनी आँखों को जोर से बंद कर लिए, हाथो की मुट्ठी बनाते हुए चादर पर कस दी, धड़कने अपने आखरी सोर तक पहुँच कर धड़कने लगे,,जिसे अर्जुन भी सुन रहा था. लेकिन उसके खतरनाक नजर उसकी जांघों के अंदर उसके योनि को देखने के लिए टिका हुआ था, पूरी दृढ़ता और निश्चयता के साथ,,जैसे आज वो अपनी कुंवारी पत्नी का कुंवारा योनी को देख कर रहेगा,वो ऐसा क्यों कर रहा था, यह सवाल अब पूछने की नहीं रह गई थी,
" तेरी पैंटी तो पूरी गीली हुई है .. बिना मेरे छुए , बड़ी रसदार है रे तू ,पति छुआ है नहीं की रस निकालने लगे , अगर जब मैं इसे छूँगा , चाटूंगा अपने होंठ यहां रखूंगा तो तू कितना रस निकालेगी.... " अर्जुन कर्कश आवाज मे उसके जांघो पर हल्के हाथ फेरते हुए बेबाकी से बोला, जब पारो अपने घुटनो को खोल अपने कीमती छोटे अंगों औरत अंग को दिखाई, जो एक चार उंगली के बराबर कपड़े से ढका हुआ था, उसकी लाल पैंटी, जो पूरी गीली हुई उसकी कमजोरी को दिखा रही थी।
पारो उसके टिप्पणी पर काँपते हुए अपनी जगह पर हिल गयी, तो शर्म से नज़रे जोर से बंद हो गई। सांसे इतनी तेज हो गई कि उसका नंगा बूब्स भी तेजी से ऊपर नीचे होते हुए, हिलने लगे,तो उसकी सांसे कमरे में सुनाई देने लगी, उसे एहसास हुआ की जैसे ही उसका पति इतनी गंदी बातें बोला वैसे ही उसके योनि के छोटे छेद से पानी फिर से बहने लगा,, जब भी अर्जुन उसे छूता या अपने गंदी बातों को बोलता तो उसके अंदर इतना प्रभाव होता कि उसके योनि से केवल रस ही निकलने लगते जलन का एहसास भी ज्यादा होते, उसके दोनों होंठ भी फड़फड़ाना लगते,जैसे कह रहे हो कि इसे पड़कर इतना मसलों की अपने पंख को भी दबोच ले।
अर्जुन उसके रिएक्शन को इग्नोर करते हुए खुद आगे बढ़ा कर,अपनी उंगली को धीरे धीरे सरकाते हुए, उसके प्राइवेट पार्ट के पास लेकर जाने लगा, जिससे पारो और तेजी से हांफने लगी,उसके ऊँगलीया, करंट छेड़ रहे पुरे शरीर मे,
पारो के शरीर मे बिजली छोड़ते हुए उसके पैंटी के लाइन पर लेकर गया, और बहुत ही गहरी नज़र से देखते हुए,उसके गीले पैंटी पर अपने ऊँगली को हल्के से ऊपर से निचे फेराया,
पारो जोर से चिल्लायी
" ahhhhh...अह्ह्ह..अप्प.. क्या..कर.. रहे.. है .. वहां क्यों छू रहे है, मुझे बहुत अजीब लग रहे है, वो गंदी जगह है...!" पारो बेचैनी डर से बोलते हुए अर्जुन के चलते हुए हाथ को रोकने के लिए झट से अपने हाथ को रखी की लेकिन अर्जुन फिर भी अपने उंगली को उसके गिले पैंटी पर फिराया।
उसका दिल मुँह मे आ रहे थे उसके हरकत से,,अंदर भूचाल मचा हुआ था, आनन्द की एक लहर पुरे शरीर मे दौड़ गयी और उसका दिमाग़ कुछ और ही मागने लगा जैसे उसका पति और जोर से उंगली दबा कर वहाँ सहला कर खुजली को कम करें,लेकिन पता नहीं अर्जुन क्या करना चाह रहा था उसे कच्ची कली के साथ, क्यों उसके शरीर के साथ छेड़खानी कर रहा था क्यों उसके उन भावनाओं और आनंद के नसों को जाग रहा था जिसके बारे में उसे नहीं पता था,
" देख रहा हूं कि मेरी पत्नी के " च**त कितने बड़े और खूबसूरत है, क्या वो मेरे लोहा को ले पाएगी कि नहीं...?! , उसके छेद कितने बड़े है,, क्या वो मेरे बच्चे को जन्म दे पाएगी कि नहीं.." अर्जुन उसके योनि पर उंगली से दबाते हुए भारी आवाज में कहा, हालांकि वह उसके योनि के त्वचा के रंगों को नहीं देखा था वह केवल पेटी के ऊपर से अपने हाथ को फिरा कर उसके छोटे से योनि पर देखा, स्पर्श किया, पहली बार किसी के औरत अंग को छुआ,, शायद ही उसके सबसे बड़े लोहे को अंदर ले सकता है अर्जुन यह देखकर समझ गया को सच में अंदर से भी कच्ची कली ही है, और उसके कसी हुई योनि को फाड़ने मे सवर्ग का आनंद मिलने वाला है
" अह्ह्ह.. मम्म... " वो आँखे मिचे कराह गयी, उसके दबाने से उसे महसूस हुआ की पूरा शरीर एक आनन्द और जोस से तृप्त हो उठा, क्या अर्जुन को जोर से दबाना चाहिए, ताकि पारो अपने अंदर बने हुए गांठ को बाहर निकल सके, उसे आनंद का एहसास करा सके जिसके बारे में वह नहीं जानती
लेकिन शायद ऐसा नहीं होने वाला था,
अर्जुन कुछ देर तक उसको ऐसे ही परेशान करता रहा और पारो हल्की सिसकती लेते हुए काँपती रही,
" चल सो जा..." अर्जुन अचानक अपने हाथ को उसके योनि से तिरते हुए आदेश दिया और अपनी जगह से उठ कर दूसरे बगल सोने के लिए चला गया। इन सब करने में अर्जुन बिल्कुल भी देरी नहीं किया लेकिन पारो को समझने में बहुत देर लग गए, जैसे ही सुनी, उसकी आंखें झट से हैरानी में खुल गई,
क्या हुआ अभी उसके साथ, क्या वो इस धरती पर थी, अचानक से उसके जज्बात बदल गए,,शरीर में जो एहसास आनंद उमड़े हुए थे, वो एक पल में ही धूमिल पड़ गये,अंदर के तूफान एक दम से रुक गया, क्या उसके साथ धोखा हुआ, क्या उसका पति उसे ठगा …नहीं पता पारो कुछ महसूस नहीं कर पायी, भावनाओ को व्यक्त नहीं कर पायी, बस उसे महसूस हुआ की उसके पति के छोड़ते ही फिर से पेट मे गांठ रह गये और उसे खाली सा लगा,
लेकिन उसे
समझ नहीं आई कि क्या बोलना चाहिए,,या कुछ पूछने चाहिए,, क्या उसके कहने का और उसे छोड़ने का कारण पूछना चाहिए,, उसके गले से आवाज नहीं निकले, वो मासूम आँखों से उसके देखि, और अभी के लिए चुप चाप सोना ही मुनासिब समझी, आखिर जिन भावनाओ और उसके करीब आने से डर रही थी, अब सब रुक चुके थे, अब जब उसका पति सो गया तो उसे नहीं छुवेगा,
पारो सिर झटकते हुए, खुले ब्लाउज और साड़ी को ठीक कर खुद को ढकते कर पीछे झुकते हुए लेटने लगी कि अर्जुन की सख्त आवाज सुनाई पड़ी
" अपने कपड़े खोल को नंगी हो कर सो जा..!
ये सुनकर पारो की धड़कन रुक गई, ये क्या सुन लि,, कानो पर यकीन नहीं हुए, वो हैरानी मे चौड़ी आँखों से उसे देखने लगी, उसका आधा शरीर हवा मे ही जम कर रह गया था, वो बिना कपड़ों के एक मर्द के बगल में सोएगी, आज तक नहाने के बहाने भी कभी कपड़े नहीं खोल कर नहाई तो और आज उसे कपड़े खोलने के आदेश मिल गया,
पारो को भूत बना देख कर अर्जुन गुस्से से कहा
" जो कहा है, अपने छोटे से दिमाग में जल्दी से घुसा कर सुन लिया कर नहीं तो मैं अपनी बात दोहराना पसंद नहीं करता फिर सीधे सजा देता हू, मेरे हर एक बात को तुझे पहली आवाज में मानना है समझी ...!"
जी... मैं... मैं खोलती हूं.." पारो कहते हुए जल्दी से अपने आधे खिले ब्लाउज को झिझकते हुए खोल दी जबकि अर्जुन के नज़र उसी पर जमे हुए थे,, वह फिर अपने साड़ी को खोल पेटी कोट को भी खोल कर अपने बदन से अलग करी लेकिन जब पैंटी को खोलने की बारी आई तो उसके हाथ जड़ हो गए, वह विनती मासूमियत से अपने पति को देखी, अर्जुन घूर कर उसी को देखता रहा और कुछ देर बाद उसे खोलने के लिए माना कर दिया जिसके बाद पारो बड़ी राहत से सांस छोड़ते हुए खुद को चादर से पूरी तरह से ढक कर करवट बदल को लेट गयी, उससे दुरी बनाते हुए,
लेटते के साथ उसे नरम गदे का एहसास हुआ, जिसे पहले गरीबी की जिंदगी में कभी एहसास नहीं करी थी, वो और उसकी माँ जमीन पर फटे चादर पर ही सुकून से सो कर गुजरा करते थे लेकिन अब वह खुद गदे पर और उसकी माँ अभी भी जमीन पर सो रही होंगी, उसे अपनी माँ की याद आने लगी, उसके उदासी और मासूम चेहरे को विदाई के समय देखी तो उसे सोच कर उसके आंखो से आसू निकल आये, अपनी माँ की एक मात्र सहारा भी उनको छोड़ कर अपनी दुनिया बसाने आ गई, उसके दिल में दर्द उठने लगे।
तभी उसे अपने छाती पर हथेली की मजबूत पकड़ कर एहसास हुआ वह चौंकते हुए अपनी सिर घुमाई। अर्जुन उसी को देख रहा था। वह एक जोर से दबाया कि पारो हल्की सिसकी ले ली, उसके छाती में अभी ही दर्द था, जो निर्दयता से कुछ देर पहले दबाये जाने से, और कितना आज उसके उभार को मसलना था... वो पूछना चाहती थी
" आज के बाद तू रात में एक भी कपड़ा पहन कर नहीं सोएगी समझी, आज एक चिरकुट को तेजी योनि को ढकने के लिए छोड़ दिया लेकिन आगे से तू इसे भी नहीं पहनेगी, और खुद को तैयार कर मेरे लिंग को अपने छेद में लेने के लिए, मै आज खुद को रोक कर तुझे समय दिया है, लेकिन आगे नहीं दूंगा,, समझी...!" अर्जुन उसके निप्पल को खिंचते हुए कहा।
उम्मम्म .. जी..." पारो आनंद से आँखें बंद करते हुए सिसकी ली। उसे दर्द के साथ अच्छा लग रहे थे।
"चल अब आँखें बंद कर..." अर्जुन बोला जिसपर पारो झट से आँखें बंद कर ली किसी बच्चे की तरह, नींद आती की नहीं पता नहीं था, नई जगह, नई आदमी जो उसका पति था, मां के एहसास को कैसे भूल कर सोय उसे नहीं पता था।
वहीं अर्जुन उसके स्तन को धीरे धीरे दबाते हुए उसके छोटे लाल मासूम चेहरे को देखने लगा, जैसे पारो के लिया सब नया एहसास, वैसे ही उसके लिए भी, लेकिन वो अपने मर्द जात के कारण एक उस पर हावी हो गया,
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कॉमेंट कीजिए 🥺 🥺 🥺 🥺 please
और अर्जुन और पारो की अनोखी mature content ke sath Prem kahani padhiye, क्योंकि us jamme में ज्यादा तर पति पत्नी me jismi rista Banta था, एक डरपोक और एक अधिकार वाला, मै बस कमरे की सीन को गहराई से दिखूँगी
हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏
अब आगे... 👉
अगली सुबह 5:00 एक नई दिन का ऐलान चिड़ियों की मधुर चहचहाहट, और मन को सुकून पहुंचाने वाली हवा में मिट्टी की खुशबू से हुआ कि इसकी खुशबू दो नई जोड़ी के कमरे में भी गई, जिनकी शादी कल हुई और कल रात उनकी सुहागरात थी लेकिन असल में उनका सुहागरात हुआ नहीं था, मगर इतना हुआ कि पति अपना हक और हुक्म अपनी पत्नी के ऊपर दिखा दिया था, अपनी मासूम और बहुत ही भोली के ऊपर जिसको पति पत्नी के बीच सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता। फिर वह नन्ही जान अपने पति की सारी बात को मान कर आज्ञाकारी और पालन करता पत्नी का सबूत दी थी, और कुछ निजी पल के बारे मे जानी, जिसे शायद ही कभी भूल पायेगी.
जैसे ही कमरे में सुबह की सुहानी हवा और हल्की रोशनी गई तो पारो के नींद में खलल पड़ा, वह अपने जकड़े शरीर को हल्का हिलाते हुए, आँखें खोलने की कोशिश करी, कल बहुत ज्यादा थके होने और देर से सोने के चलते, अभी उसे अपने आँखों में चुभन का एहसास हुआ। लेकिन रोज इसी समय उठने की आदत थी तो ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना हुआ, वह जैसे ही नींद से कसमसाती आँखो को खोली तो सीधा नजर ऊपर छत पर गया जो गोल्डन रंग से रंगा छत दिखा जो उसके पुराने घर जैसा बिल्कुल भी नहीं था।
" यह मैं कहां हूँ यह तो मेरा घर नहीं है …" पारो झट से चौंकते हुए बड़ी आंखें करते हुए भुलाये बच्चे की तरह खुद से पूछी, उसे अभी बिल्कुल भी याद नहीं था कि वह भी कहां है लेकिन जैसे ही नजर अपने बगल में गए तो उसे समझ आ गया कि वह अभी कहां है, उसे तुरंत रात के सारे मंजर याद आने लगे,,
उसे याद आया कि अब उसकी शादी हो गई , और वह अपने ससुराल में है अपने पति की बाहों में बगल में सोई हुई है , और सबसे यादों के पल में की वह कल अपने पति के सामने नंगा हुई थी उसे अपने कीमती निजी अंग को छूने दो थी। याद आई तो शर्म से गाल लाल होने लगे, कितना अजीब डरवाना और अनोखा पल था,जो कल्पना नहीं करी जिंदगी उसे कल वो दिखाया, और पता नहीं आगे इस ठकुर खानदान मे अर्जुन ठाकुर के बगल मे रहने पर क्या क्या दिखाता, लेकिन जो भी हो वो हमेशा से अपना आज्ञाकारी स्वभाव के कारण सबका सामना करने के लिए तैयार कर ली है,
सब सोचते ही उसे माँ का भी याद आने लगे,
कल तक तो अपनी माँ की सहारा बनकर हमेशा सोचा करती थी कि अपनी माँ के साथ पूरी जिंदगी बिताएगी लेकिन आज वह कहीं और थी हमेशा के लिए , मन तो उदास हो गया ,लेकिन जो होना था वह हो गया इसलिए वह दुखों को दूर करते हुए उठने की सोची क्योंकि अब वह उसका ससुराल था और उसकी सास बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करती कि उसकी नई बहुत देर से उठकर रस्मों के लिए आए । उसे रात को ही बता दिया गया था कि सुबह जल्दी उठकर पहली रसोई की रस्म करनी है। और देर तो बिल्कुल भी नहीं करनी है, उसकी माँ भी बहुत से ज्ञान पढ़ा कर भेजी तो, ससुराल में सबकी बातें सुनकर एक पैर पर तैयार रहना करने के लिए।
वह उठने के लिए सर को उठाई कि वापस फिर से तकिया पर पीछे गिरते हुए सो गई, जब उसे अपने सीने पर एक भार महसूस हुआ ,पहाड़ के जैसा ,आज से पहले वैसा भार कभी भी महसूस नहीं करी थी अपने जिस्म पर, अपनी आंखों को घूमाकर नीचे देखी है तो उसका स्तन उसके पति के हाथों में अभी भी था उसे तुरंत याद आया कि कल रात ही,उसे ऐसे ही लेकर सोए थे ,
इसका मतलब की पूरी रात उसका स्तन उसके सोये पति के हाथों में दबा हुआ था। उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई, उसके अंदर एक लज्जा की छवि बनने लगी। उसे याद है कैसे अर्जुन बोल रहा था, की उसका स्तन छोटा है, उसे नहीं पता था कि कितना बड़ा होने से उसके पति को पसंद आयेगा, लेकिन इसके बाद भी उसे मसल रहे थे तो उसे अच्छा लगा, उसके शरीर के प्रति घिन तो नहीं दिखाए कल,
वह बड़ी आँखें में शर्म लिए अपने गहरी नींद में सोए हुए पति को देखने की कोशिश करी, उसका पति सोया हुआ ही क्यों ना हो, उसकी हिम्मत नहीं थी नजर उठा कर देखने कि, कल जितना बस इस इंसान को देख कर डरी थी उतना आज तक अपने चाचा _चाची के मार से भी नहीं डरी थी। हालांकि उसका नया पति उसे मारा नहीं और अपना शैतान रूप नहीं दिखाया था, जो बाकी सभी के लिए होता था, फिर भी वह बस उसके शख्सियत से ही अपने अंदर डर महसूस करने लगी थी, अर्जुन के आँखें के ताप जो वह अपने शरीर पर झेलती, उससे आग में झुलसते हुए पाती खुद को बहुत शक्तिशाली पति था उसका।
वह नन्ही सी जान उसके साथ कैसे रहेगी शायद उसे नहीं पता था। मगर जब भगवान जी जोड़ी बना कर उसके झोली में डाले है तो कुछ सोच समझ कर ही।
वह आज पहली बार इतने करीब से देखने कि कोशिश करी अपने पति को, कल रात भी ठीक से नहीं देखी थी, और जैसे ही देखी , उसकी आँखें हैरानी और अविश्वास से बड़ी हो गई, मर्द इतने खूबसूरत होते हैं उसे नहीं पता था, लेकिन आज इसे देखकर कह सकती थी ,की मर्द भी खूबसूरत होते हैं ,,उसके पति के लंबी घमंड वाली नाक , जो उसके गुस्से को बरकरार रखता है, घनी पलके जो आँखें बंद होने से और भी ज्यादा दिख रहे थे, तने हुए भौंहे , जबड़ा अभी भी नींद में कसा हुआ, गालों पर काली दाढ़ी, और गुरुर वाली मूछें, जिससे उसके कठोर व्यक्ति की पहचान थी,
उसके पूरे गांव की जमींदारी होने का नाज था, उन दाढ़ी मूछें के बीच में एक पतली गुलाबी होंठ । बाल भी काले और बहुत घने थे, जिसमें अगर वो हाथ डाल कर फेरेगी तो उसे ही खेलने में आनंद मिलेगा, उसका पति सभी पर हुकुम चलाने वाला ऑरा पैदा हुआ था,
" हे भगवान जी.... यह तो इतनी सुंदर दिख रहे हैं सोते वक्त कल रात को तो यह कितने भयानक देख रहे थे..." पारो बड़ी हैरानी में मन में सोची अभी सोते हुए अर्जुन ठाकुर और कल रात वाले अर्जुन ठाकुर में वह जमीन आसमान का फर्क देख रही थी ,उसे यकीन नहीं हुआ कि यह दो इंसान वही है , लेकिन कुछ भी हो उसे यही शांति से सोता हुआ अर्जुन ठाकुर अच्छा लगा जिसे वह अभी किसी अजूबे की तरह निहार रही थी।
पारो अपने पति को देखते हुए सब कुछ भूल गई कि तभी उसको होश में लाने के लिए एक भारी वजनदार आवाज पूरे कमरे में गूंजा
" क्या मेरा चेहरा देखा हो गया तेरा ....?"
ये सुनकर पारो डरते हुए झट से अपनी आँखें बंद कर ली और किसी डरपोक बच्चा की तरह अपने चेहरे को दोनों हाथो से ढक ली, जैसे चोरी पकड़े जाने पर उसे सच में मार मिलने वाली हो, डर से धड़कन भी बढ़ गयी और मन मे बस यही प्राथना करती रही की बस सुबह मे बचा ले उसे।
उसका ऐसा रिएक्शन करना अर्जुन के भौंहे सिकुड़ते गए, उसकी पत्नी सच में बहुत डर रही है, लेकिन वह उसके डर को खत्म करने के इरादे में बिल्कुल भी नहीं था। उसके जवाब नहीं मिलने पर वह थोड़ा सा ऊपर उठा कर एक हाथ से उसके चेहरे पर के हाथों को हटाया, तो देखा पारो अपनी आँखें जोर से मिची हुई डर से कांप रही है।
वह उसको देखते ही धीरे धीरे अपनी नज़र को उसके शरीर पर घुमाया और कल रात को जो बिना कपड़ो को वो सोई थी, अभी बिना कपड़ो के ही उसके सामने नंगी थी,, उसके देखते ही उसके अंदर हलचल मचा, हाथो मे खुजली होने लगे,उसका नंगा स्तन उसके आँखों के साफ दिख रहे थे और शायद निप्पल खड़ा हुए उसी को बुला रहे थे, जैसे कह रहा हो, आओ अपने मुँह से चूस कर अपना हुकूमत दिखाओ, उसे काट खा जाओ, और अपनी कुंवारी पत्नी के अछूते स्तन का पूजा इतना करो कि भीख मांगने पर मजबूर हो जाये,
पारो डरसे कोई जवाब नहीं दी और अर्जुन अपने मन और शरीर कि इक्छा को सुनते हुए उसके दाए स्तन को अपने बड़े हथेली को रख कर जोर से दबाया कि पारो जोर से चिल्लाते हुए अपनी आँखें खोल दी,,, दर्द हुआ उसे, लेकिन कुछ और भी हुआ उसके शरीर और दिमाग़ के साथ,,,
" आह्ह्ह माआ आ आ आ आ......––"
उसके हाथ बड़े और पारो का उभार बहुत छोटा आकर मे जिससे पूरी तरह से ढक गयी थी,
वह सुबह 4:00 उठने वाला इंसान था, और जब हमेशा की तरह कच्ची नींद में सोने वाला, जब पारो हिली तब ही उसके नींद खुल गए थे लेकिन वह मटिया कर आँखें बंद किया हुआ था लेकिन वह लड़की उसे घूरना बंद नहीं करी, तो वह अपने डरवाने आवाज में उसे टोका क्योंकि उसके घूरने से उसका निचे का जानवर खड़ा हो गया था, जिसमें खून का प्रभाव बढ़ने लगे,,, उसके देखने भर से उसके शरीर में भूचाल मचने लगते जो उसके लिए बहुत ही गुस्सा वाली बात थे और उसी गुस्से के चले अब उसे सुबह में परेशान करने वाला था।
अर्जुन उसके चीखे सुनकर, और भी ज्यादा उत्तेजित होते हुए, जोर से दबाया कि पारो से चिल्लाई
" बताओ क्यों घूर कर देख रही थी…?" वह पूछते हुए उसके उभार को जोर जोर से दबाया। उसे किसी नींबू की तरह निचोड़ती हुए, लेकिन नींबू की खट्टा की जगह वहां से दूध निकलने लगा जो कल रात को भी ऐसे दबाने से निकले लगे थे। अभी कुछ ज्यादा निकल रहे जैसे जड़ी बूटी अभी अपना असर दिखा रहे हो।
"आह्ह्ह म…मैं… " पारो दर्द से रोते हुए बोलने की कोशिश करी लेकिन कराह उसके गले में आवाज अटका दे रहे थे, उस नन्ही सी जान इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, आँखे चौड़ी हो रहे थे उसके अचानक करते दबाव से,
हाँ....बोल…" अर्जुन अधिकार से बोला, और दूसरे छोटे बूब्स को पकड़ कर उसमें से भी दूध दुहने कि प्रकिरिया को शुरू कर दिया,,वह उसके दोनों निप्पल को ऊंगली के बीच दबा दिया।
"आह्ह्ह मां.... आआ.... बहुत....दर्द हो रहे है.....ठाकुर जी....
हाय देय्या रे......
बहुत ही अच्छा लगा उसे...
उसने उसके स्तन को अपने हाथों में लेकर जोर से दबाते हुए उन पर पर्याप्त दबाव डालते हुए देखा,, जिससे पारो कि आंखें घूमने लगी,
उसके छोटे स्तन को दोनों बड़ो हथेली में भर कर कठोरता से मसला, जिससे लाल निशान ऊँगली के बनते चले गए,,दाया नाम का चीज भी नहीं दिखा रहा,, वह अब उसके ऊपर चढ़ते हुए अपना भारी शरीर को उसके छोटे शरीर पर दबाया, और उसे अपने काली नज़र से देखते हुए उसके स्तन के ऊपर झुक गया,,,,पारो उसके गर्म साँसो को महसूस कर सकती थी,,
और अचानक ही उसके निप्पल को अपने दांतो के बिच लेकर हल्का दबाव बनाया,,,जिससे पारो अपनी जगह पर झटपटाते हुए चीख उठी----
" आह्ह्हह्ह्ह... "
पारो हैरानी मे अपनी आँखें खोल कर देखी, जब निप्पल पर गिला ठंडा महसूस करी, ये बहुत ही अच्छा था, उसके दर्द को बस छूकर खत्म कर दें रहा था।
उसका पति उसके निप्पल को मुंह में लेकर बच्चे की तरह चूसा,, ये देख कर पारो के गाल शर्म से लाल हो गए, उसका दिमाग पूरी तरह से खाली हो गया,, क्या हो रहा है उसके साथ, उसकी साँसे तेजी से ऊपर निचे होने लगे,आँखों एक बेकाबू तत्परता से भरी हुई उसका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी,,, शर्म और उसके लिए तत्परता इच्छा के बीच उलझी हुई थी,,,उसके दाहिने स्तन पर उसके अचानक कटने से पारो के आंख से एक आंसू निकल गया जिससे उसके अंदर अप्रत्याशित आनंद का झटका लगा
इह्ह्ह्हह्ह दर्द हो रहा है, धीरे करें ना.. "
इह्ह....
अर्जुन उसके पूरे स्तन को अपने मुंह में लेने की कोशिश किया,,,उसने जोर से चूसा उसकी जोशीली हरकतों से पारो के पैर आपस में रगड़ खाने लगे,,,उसके आसपास से तत्परता स्पष्ट थी उसकी लगातार कराह उसके भीतर गूंज रहे थे, वह समझ नहीं पा रही थी कि इतनी हताश महसूस क्यों कर रही थी,,लेकिन उस पल में वह बस यही चाहती थी कि वह नीचे की ओर बड़े ताकि उसके पैरों के बीच की लगातार खुजली को शांत कर सके , उसका शरीर बहुत कुछ चाहता था,,
"भाड़ मे जाओ.." उसने कहाँ,, उसकी आवाज जरूरत से भरी हुई थी,,,क्योंकि उसने अपनी जीभ को निप्पल पर घुमाई,,, इस सनसनी से पारो अपनी पीठ को मोड़ने पर मजबूर हो गई,,
उसे अपने करीब खींचने की बेताब हो उठी लेकिन उसके हाथ ऊपर नहीं उठे,,
उसके दांत निप्पल को खींच रहे,, जिससे पारो को एक तेज बिजली जैसी सनसनी हुआ,, जिससे वह अनजाने में अपने पीठ को मोड़ ली,,वह कभी नहीं सोची थी कि उसके दांत दर्द और आनंद का ऐसा मिश्रण पैदा करेंगे,, कि वो दर्द को भूल कर आनन्द को चाहने लगेगी,, लेकिन उसके जीभ लगातार चुभन को शांत करने के लिए छेड़ रही थी जिससे पारो अत्यधिक उत्तेजना की स्थिति में जा रही थी,,
वह उसके निप्पल को काटते हुए अपने दांत गड़ता है,, जब उसके दांतों में उन्हें निप्पल को कसकर पकड़ लिया तो उसकी आंखें खुली कि की खुली रह गई,,,पारो का हाथ अपने आप उसके गालों की ओर बढ़ा लेकिन वह छूने की हिम्मत नहीं कर पायी,,
" अह्ह्ह... ठाकुर.. जी...इन्हें मत काटे..." वह चादर को मुट्ठी में भरते हुए चिल्लायी
तभी पारो को महसूस हुआ कि उसका अंदरूनी हिस्सा,जांघो के बिच,पानी का रिसाव हो रहा है मतलब कल रात कि तरह फिर से गीली हो गयी है, और केवल गीली नहीं,जलन भी बढ़ रहे है जैसे,वहाँ ऊँगली रख रगड़ने के लिए मांग रहा हो,बुरी तरह से उसका शरीर चाहता था कि अर्जुन उसके निप्पल के साथ निचे भी ध्यान दें कि उसके जलन कम हो जाये,,
अर्जुन उसके सारे झटपटाहट को अनदेखा करते हुए किसी भूखे बच्चे की तरह उसके दूध कर पीकर खत्म करने लगा,
उसे भी नहीं पता कि पत्नी का दूध पीना इतना अच्छा होगा कि वह पागल ही हो जाएगा,, उस छोटे लड़की के छोटे स्तन मे क्या था,, उसे नहीं पता। लेकिन जो भी मिल रहा उससे वो अपना आपा खो रहा,उसके तरफ भूखे भेड़िये कि तरह खिंच रहा था,,
" तेरे स्तन छोटे है लेकिन दूध बहुत ही मीठा, अब से तू मुझे हर रोज दूध पिलाएगी समझी..." अर्जुन उसके एक दूध को खत्म कर दूसरे को चूसते हुए बोला। जिसे सुनकर पारो अनजाने में पति का आदेश समझ कर सिर हिला दी। लेकिन सुनने मे और करने की सोच कर वो शर्म से पानी पानी भी हो गयी।
" अह्ह्ह उम्म... " पारो आँखे बंद किये उसके दिए एहसास को आनंद से भर गये,, उसका पेट ऊपर की उठ गया और सिर तकिया में पूरी तरह से धस गया,, वह पूरी तरह से छटपटा रही थी उसका चूसना उसके दर्द को इतना कम कर रहा था कि आनंद से उसके पूरे शरीर में सीहरन दौड़ रहे थे,, सतवे आसमान मे पहुँच गयी,,
अर्जुन बहुत देर तक उसके दोनों निप्पल को मुंह में लेकर बच्चे की तरह चूसता रहा और पारो कराहती हुई रोने लगी थी,, उसके आँखें से आँसू बह कर तकिया में समाने लगे,,, दोनों एक दूसरे में इतना खो गए कि समय का भान ही नहीं हुआ, अर्जुन के मुंह में जब से निप्पल गए है उसे छोड़ने के लिए तैयार बिल्कुल भी नहीं हुआ,जैसे आज खून को भी निकाल कर पी जाएगा,, उसके इतना कठोरता और पागल की तरह मसलने चूसने से लाल के साथ गुलाबी भी हो चले थे, मुरझा गये थे उसके निप्पल, लेकिन फिर भी उसके मुँह मे रख कर उसे उकसा कर और चूसने का मौका दें रहे थे।
तभी उनके दरवाजा पर दस्त हुआ, जिसे अर्जुन पूरी तरह अनसुना कर दिया, लेकिन पारो नहीं कर पायी जैसे ही उसके कानो में दरवाजे पीटने की आवाज गई उसकी आंखें डार,,,, घबराहट से चौड़ी होकर चौंकते हुए खुल गए, वह नीचे पहाड़ जैसे इंसान को बच्चों की तरह उसके निप्पल को चूसते हुए देखी, अर्जुन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था जैसे कि उसके कानों में आवाज गए ही ना हो,,, पारो को समझ नहीं आया कि उसे कैसे रोके और उसके मुंह से अपने शरीर को अलग कैसे करें, अगर करने की कुछ हिम्मत करे तो कहीं गुस्सा ना हो जाए,
पारो तो शांत हो गई, लेकिन दरवाजे पर बाहर खड़ा हुआ इंसान शांत नहीं हुआ और दरवाजा एक के बाद एक पिटता गया,
"कौन है…" अर्जुन उसके निप्पल को छोड़ते हुए अपने खतरनाक आवाज में चिल्लाया,कि उसके नीचे अधमरी हालत में पड़ी, सांसे के लिए झुझते पारो भी डर गई,,, इसी डर के कारण वह शांत पड़ गई थी,
" जी मालिक बड़ी ठाकुराइन, छोटी ठकुराइन को रस्म के लिए बुला रही है ... " बाहर से एक मुलाजिम डर से जवाब दी।
जिसे सुनकर पारो और डर गई, अब उसे याद आए कि उसकी पहली सुबह है ससुराल में और कुछ रस्में भी करनी है,,लेकिन वो इतनी देर कर दिए नीचे जाने में की उसे लेने के लिए उसकी सास किसी को भेज दी,, उसका हाड़ कापने लगा,, जिसे अर्जुन भी महसूस किया,,लेकिन वह ज्यादा ध्यान नहीं देते हुए उसके ऊपर से हाथ हटा कर अपने शरीर को भी उससे दूर करते हुए, बगल में ही पसर कर , उस मासूम के चेहरे को देखा,,, फिर उसके लाल और मुरझाए निप्पल को जो अब पूरी तरह से दूध से खाली होकर सिकुड़ कर बैठ गए थे,, उसका शरीर गर्व से फड़फड़ा गया ,, उसके शरीर पर अपने लाल दिए हुए निशान को देखकर उसे बिल्कुल भी अफसोस नहीं हुआ बल्कि वह खुश हुआ कि यह करने वाला केवल वह है,
" चल जाकर तैयार हो जा …" वह इतना परेशान करने के बाद उसे तुरंत तैयार होने के लिए कहा कि,
जिसे सुनते ही पारो बिना देरी किए , अपने मरे हुए शरीर में जान डाली और वहीं पड़े हुए अपनी साड़ी को जिस्म पर लपेटे हुए उठी, अब उसे यहां से बहुत जल्दी भागने थे,, भगवान का शुक्रिया अदा मन में करी, आखिरकार कोई तो आकर उसे बचा लिया,
पारो एक कदम आगे बढ़ाई कि उसे कुछ याद आया, वह कमरे में इधर-उधर देखने लगे और मन में सोची कि वह तो इस हालत में नहीं है कि कमरे से बाहर जाए नहाने के लिए और तैयार होने के लिए अब वह कहां जाए, इस हालत में, उसे कुछ समझ नहीं आया कि नहाने के लिए कहा जाए, उसके घर पर तो नदी, तालाब और घर के बाहर नहाते थे लेकिन अभी नंगी होकर बाहर कैसे जाएगी,,
उसे कुछ समझ नहीं आए तो मासूम आंखों में मोटे मोटे आँसू लेकर डर से ही अपने पति को देखी, कुछ बोलने की हिम्मत नहीं थी।
अर्जुन सोया हुआ उसके हर दुविधा को देख रहा था
" वहां है जाकर नहा और याद रखना, इस कमरे से बाहर तेरे गोरे शरीर का एक अंग भी नहीं दिखना चाहिए, पूरी तरह से ढंकी होनी चाहिए नहीं तो मैं क्या करूंगा तेरे साथ तुझे अंदाजा भी नहीं होगा, अपना चेहरा हमेशा घुँघट में रखेगी सिर पर से घूंघट गिरना नहीं चाहिए और जब कमरे में आई तो घूंघट बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए... "
वो अपने सख्त लहजे मे भी बोला।.
पारो खड़ी उसके बातों को सुनकर बस डर से सिर हिला कर बताए हुए दिसा में चली गई। वह जाते हुए अपने दर्द और जलन करते हुए स्तन को हल्के से सहलाई लेकिन इतना करने पर भी तेज दर्द का एहसास हुआ कि वह अपने कराह को बंद करने के लिए दांतो के बीच होंठ को दबा ली।
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ज्यादा कमेंट होगा तभी दूंगी पार्ट …readers इतना deep likhna तो आसान नहीं है, हालत ख़राब ho जाती है, इसलिए अगर आपके कमेंट दिल को ख़ुश करने वाले हुए तो लिखने मे दिमाग़ हाथ दोनों काम करेंगे....
हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏
✴️ पिछले पाठ में कुछ गड़बड़ी हो गई थी रिपीट टाइप तो मैं उसे एडिट कर दी हूं आप उसे पढ़ सकते हैं,
और हां deep रोमांस लिख रही हूं तो आप भी उसी की तरह कमेंट करें कि आपको पढ़कर कैसा लग रहा है अगर कमेंट अच्छे आए तो मैं दुगनी रोमांस दिखाने की कोशिश करूंगी with लव नॉट only erotic,
अब आगे.... 👉
पारो दर्द से टूटे हुए शरीर को लेकर जैसे ही अन्दर गई तो उसकी आँखें बड़ी हो गई, " इतना बड़ा कमरा नहाने के लिए भी होता है क्या भगवान जी …मेरे यहाँ तो …घर के बाहर एक नहाने वाला बनाया गया था,लेकिन यह तो घर के अंदर भी है और इतना बड़ा भी है, क्या यह महाराजाओं समय का महल है यह सब तो महल में ही ना होता था, जैसे मै सुनी हूँ, शायद हो सकता है आखिर ये सब तो ठाकुर ही …"
कमरे के अंदर बना बाथरूम देखकर पारो की हैरानी की सीमा बिल्कुल भी नहीं बची थी, उसे यह घर, नहीं- नहीं यह महल,जब से देखी थी तब से हैरानी हुई जा रही थी,की क्या सच में ऐसा भी होता है, इतने शान शौक और आराम की जिंदगी भी जिया जाता है, आज तक तो ऐसी जिंदगी नहीं जी थी, जहाँ हर एक चीज उपलब्ध हो उसकी आंखों के सामने,
पारो यह भी तुलना करने से खुद को रोक नहीं पाए की जिस कमरे को उसकी चाची उन मां बेटी को रहने के लिए दी थी वह कमरा भी इस बाथरूम के मुकाबले नहीं है,
अपने ससुराल के अमीरी और सब कुछ अपने सोच से अलग देख उसे यकीन हो चला था कि उसकी शादी सबसे अमीर घर में हुई है, जहां नहाने के लिए भी सुविधा है, और उसको यहां आते के साथ ठाकुराइन भी बुलाने लगे मतलब उसका भी ओहदा सबसे बड़ा था जो यहां पर सभी कोई उसे इज्जत देकर बात किया करेंगे, उसके मायके में तो उसकी इज्जत ही नहीं थी, वहां के लिए इतनी गैल गुजर थी कि कोई नजर भी उठाना हीन समझता था।
" हे भगवान जी ये तो सच में बहुत बड़ा है, लेकिन केवल नहाने के लिए इतने बड़ा कमरा क्यूँ रखे है , " .,,, परो के हैरानी और उलझन से भरी सवाल खत्म नहीं हुए, उसकी मासूम आंखें सब चीजों को वहां पर रखे हुए, बहुत ही उत्सुकता और जिज्ञासा के साथ देख रही थी,
" लेकिन यह पानी आ कहां से रहा है, घर के अंदर पानी कैसे लाए होंगे …" पारो को यह सवाल जानने की बहुत जरूरत पड़ गयी, आखिर इससे पहले घर में पानी कैसे लाया जाता है वह नहीं देखी थी, और ना ही जानती थी कि घर में नहाने के लिए भी एक जगह बनाया जाता है, महिलाएं हो या पुरुष घर के बाहर ही नहाते, उसे यह बात बचपन से पता थी और बचपन से ही देखते हुए आए थी,
लेकिन जमीन पर इधर से उधर बड़े से कमरे में देखने के बाद भी पता नहीं चला तो वह जिस काम के लिए यहां पर आई थी उस पर ध्यान लगाई, मतलब अब ज्यादा देरी नहीं करते हुए जल्दी से एक बड़े लकड़ी के बना गड्ढे में बैठ गई, उसके हाथ मजबूती से लकड़ी के किनारे को पकड़ लिए, उसका छोटा शरीर पेट तक आते हुए पानी में डूब गया, जिससे उसके शरीर अंदर सीहरण दौड़ गयी जब ठंड पानी का एहसास हुआ
" ये तो तालाब के जैसा है, लेकिन तालाब तो इससे बड़ा होता है, तो इसे क्या कहते हैं … इसमें नहाने के लिए ना पानी भरा हुआ था, मैं तो बिना सोचे समझे बैठ गई, अगर कुछ और के लिए रखा हुआ होगा तो …" पारो को अचानक ही बैठने के बाद ख्याल आए, यह भरा हुआ पानी किसी और काम के लिए रखा गया हो तो और अगर उसके नहाने से खत्म हुआ या गंदा हो गया तो उसे कहीं डांट या मार ना मिल जाये, पारो डर से उस लकड़ी के बने तब से निकल गई,
" अब क्या करूं…, मुझे देर भी हो रही है, माँ जी गुस्सा करने लगेंगी, कल ही बोली थी जल्दी तैयार होकर नीचे आना …रस्म करना बाकि है, लेकिन अब क्या से नहाऊं और जल्दी तैयार कैसे हूँ " पारो के आंखों डर भर गया जब अपनी डरावनी सास की चेहरा याद आयी, वह मासूम आँखों से फिर से उस कमरे में देखि शायद कुछ सामान मिल जाए नहाने के लिए, क्योंकि उसकी हिम्मत नहीं हुई इतने भरे हुए पानी को गंदा करने की
चाचा के घर पर उसको पानी के लिए भी कभी-कभी डांटा पिटा गया था, जब कभी भी उससे ज्यादा बर्बाद हो जाते थे, पानी दूर से लाया जाता था और बड़ी मुश्किल से, जिसको बर्बाद करना उसकी चाची रोकती थी,
वहां उसे ना एक छोटा सा मटका मिला और ना ही एक बाल्टी, घड़ा भी देखने को उसे नहीं मिला, वह बुरी तरह से दुविधा में फंस गयी,, चेहरे पर परेशानी की लकीर आ गयी, फिर से उसकी नजर उस भरे हुए पानी पर गई जो की पूरी तरह से साफ चमक रही थी, वह तो सोची थी कि कुछ मिल जाता तो उसमें से पानी निकाल कर, नहा लेते लेकिन अब शायद एक ही रास्ता बचा था कि वह उसी में डूब कर नहाये,
" हे माता रानी मैं इसी में डूब रही हूँ लेकिन ठाकुर जी के डांट से बचा लेना … और अगर वह फिर से मुझे इसमें पानी भरने के लिए बोले तो मैं भर दूंगी लेकिन अभी मुझे बहुत जरूरत है इसे पानी से नहाने की इस पूरी तरह से गंदा करने की, " पारो बड़ी हिम्मत करके फिर से उसमें अपने पैर रखी और डरते हुए ही बैठ गई,, उसे मासूम को इस घर के नियम कानून और रखे हुए सामान से बहुत ही डर लग रहा था, वह कुछ सोच नहीं पा रही थी कि कौन सा काम करने से उसे डांट नहीं मिलेंगी, और कौन सा काम करने से वह बच जाएगी, उसे बाथरूम में भरे हुए पानी से भी डर लग रहा था,
अपने शरीर पर से लपटे हुए साड़ी को हटाई और शरीर पर लगाने के लिए वहां पर कुछ ढूंढने लगी, और सौभाग्य से उसे वहां पर पहले से ही तैयार किया हुआ चंदन का लेप मिल गया, यह देखते ही उसकी होठों पर मुस्कान आ गई,
" आह्ह्ह मां ये ठाकुर जी इतने जोर से मेरे स्तन को क्यों दबाया है, अब कितने दर्द ओर जलन कर रहे है भगवान जी अब मैं ब्लाउज कैसे पहनूंगी लेप लगाने में भी मुश्किल हो रहे हैं छूने से भी दर्द और जलन कर रहे हैं ..." जैसे ही पारो के हाथ उसके स्तन के पास पहुंचे लेप लगाने के लिए वह बुरी तरह से दर्द से सिसक पडी, अगर एक उंगली से भी छूने की कोशिश करती है तो जलन का एहसास कुछ इस तरह होते कि पूरे शरीर में काँपकपी सी हो जाती,
वह अपने मुरझाये हुए स्तन को देखते हुए बड़बड़ाई , " कितने मजबूत हाथ है उनके, जब भी छूते तो ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी शरीर की हड्डी टूट रही है,, पूरे शरीर में बिजली दौड़ने लगता, अजीब से एहसास होते,, इतनी काँपटी हूँ मै की खुद को महसूस नहीं कर पा रही थी, और यह मेरे छोटे वाले स्तन, इसका क्या हाल कर दिए हैं,इसके छूने से तो मेरे शरीर और भी अजीब एहसास से भर रहे थे,, भगवान आगे क्या होगा मेरे साथ… वह मुझे सुहागरात के लिए समय दिए हैं, अगर उनके इतना छूने से मेरे शरीर में इतना दर्द हो रहा है तो और आगे बढ़े तो मेरे साथ क्या होगा क्या मैं जिंदा रहूंगी… " पारो उस पल को याद करके निराशा से फुसफुसाई उसका शरीर दर्द से टूट रहा था खासकर उसके आगे के ऊपरी भाग स्तन जो बुरी तरह से दबाया गया था पहली बार, और आगे की सोच कर, दिल में डर भर गया कुछ कुछ तो उसे समझ में आए थे कि इससे भी आगे पति-पत्नी के बीच होता है,
एक गहरी सांस छोड़ते हुए, दर्द को सहते हुए बहुत ही आहिस्ता से पूरे शरीर पर लेप लगाकर अपने शरीर को हल्का मालिश करते हुए जल्दी से नहाई,, उसे नीचे जाना था पहली रसोई है उसका कुछ रस्में करनी है उसे अच्छी तरह से याद है इसीलिए उसके हाथ जल्दी-जल्दी चलने लगे ।
और कुछ देर में नहाने के बाद वह एक लाल रंग की साड़ी पहनी हुई निकली बालों में तौलिया लपेटी हुई ताकि जल्दी पानी सोख ले , उसकी मासूम और निश्छल नजर तुरंत बिस्तर पर गई जहां उसके ठाकुर जी आराम से गहरी नींद में सो रहे थे,,बहुत ही बेफिक्री से उसके शरीर को दर्द देकर । उसके पहाड़ जैसे शरीर को देखकर उसके शरीर में झुनझुनी सी दौड़ गई , डर की एक लहर उसके अंदर बैठ गई,, उसे तो लगा था कि अब तक कमरे से बाहर चले गए हो लेकिन अभी तक सो ही रहे थे,
वह हिम्मत कर तैयार होने चली गई आईने के सामने,,उसे डर था कि उसके कुछ भी करने से उसके ठाकुर जी की नींद खराब हुई तो उसे पीटने लगेंगे इसलिए वह बहुत ही आहिस्ता से तैयार होने लगी ।
वह सबसे पहले अपने सिंदूरदानी में से एक बहुत ही लंबा सिंदूर लगाई फिर उसके बाद बालों को कंघी कर जुड़ा करी , हाथो में पहले से लाल चूड़ियां थे, गले में मंगलसुत्र उसके पति के नाम के थे, पैरो में भारी पायल और बिछिया, गले में कुछ सोना के नहीं पहनी, वह खुद को अच्छे तैयार कर खुद को घूंघट में पूरी तरह से ढक कर कमरे से निकलने लगी एक बार अपने सोए हुए पति को देखकर,,
" ये सोते हुए अच्छे लगते है भगवान जी, आप इन्हें दिन भर सुलाए ही रखिए, ताकि मेरे दिल को दौरा ना पड़े , कितने भयानक है, उठने के बाद बिल्कुल सपनो के राक्षस जैसे है, बस देखने भर से मेरे शरीर में डर भर जाते है, आप इन्हे सुलाए ही रखना न … " पारो बहुत ही मासूमियत से मन में बड़बड़ाई, उसके दिल को सुकून मिला, कि उसके कुछ भी करने से नींद में खलल नहीं पड़ा,, और उसे फिर से चेतावनी या धमकी सुनने को नहीं मिला ।
उसे बस देखने भर से डर लगता था, अपने पति को। इतना कि आगे की जिंदगी कैसे बितानी है उसे मासूम को बिल्कुल भी नहीं पता था। बस कुछ पता था तो सभी की बातों मानते हुए उस बहाव में बहना ताकि उसकी और उसकी माँ को सुकून की जिंदगी बिताने को मिले, अगर वह यहां कैसे भी करके रह जाती है उसकी मां भी वहां सुकून से जिंदगी बिताएगी,, क्योंकि आखिरी शब्द यही थे कि अब से तेरा घर वही रहेगा और मेरे संस्कार पर किसी को सवाल नहीं उठाने देना,
सीने के अंदर बैठा उसका दिल धड़कते के साथ, कमरे से बाहर निकल गई,, खुद को अकेले पाकर उस जगह को देखी, की कहां जाए ..उसे सामने ही सीढ़ी दिखा, जिसे बिना सोचे ही कदम बढ़ा दी,,क्योंकि कल उसकी देवरानी, नन्द उसे इसी रास्ता से लेकर आई थी,,वह नीचे उतरने लगी कि उसे वही नौकरानी मिल गई जो दरवाजे खटखटाने आई थी
" ध्यानवाद भगवान जी आपने किसी को भेज, नहीं तो मैं एक मेले में खोई हुई बच्ची की तरह इस घर में भुल ही जाती , फिर नीचे जाने में और देर हो जाती, मेरी सास मेरी गला काट कर इसी भूतिया महल में दफना देती.. " पारो नौकारानी को देख कर बहुत खुश हो गई, इतनी की उसके होंठो पर अब जाकर मुस्कान आई थी, जो अभी तक इस घर में कोई नहीं देखा था उसके बच्चे की तरह निश्छल मुस्कान को,
" प्रणाम छोटी ठकुराइन..." वो महिला जिसकी उम्र करीब 50 की लग रही थी, बड़े आदर के साथ सिर झुका कर अभिवादन करी।
" जी प्रणाम चाची जी." पारो उनके पैरों को झुक कर छूती हुई अचानक बोली कि वो नौकरानी अपनी जगह पर डर से उछल ही गई।
पारो घुंघट से डर और नासमझी से देखने लगी " क्या हुआ आप ऐसे क्यूँ प्रतिक्रिया दे रही है, क्या मैं पैर छू कर गलत कर दी...." वो मासूमियत से पूछी। उसे उनकी बातों से अपनेपन का एहसास हुआ तो उसके सिर और हाथ आदर के अपने आप झुक गए थे, और उसकी मां के दिए हुए संस्कार भी, जो अपने से बड़ा उम्र के होंगे, एक का पैर छूकर प्रणाम करना है,
" जी... जी.. छोटी ठाकुराइन आप मेरे पैर नहीं छू सकती है, ये गलत है...!" नौकरानी डरते हुए बोली लेकिन उसका ध्यान चारों ओर घूम रहे थे कि कोई देखा तो नहीं है।
" क्यों...?" वह उलझन में पड़ गए, उसके दर हकलाहट को पारो बिल्कुल भी समझ नहीं पाई थी।
"क्योंकि मैं यहां काम करती हूँ, नौकरानी हूँ, आप यहां की मालकिन है मालकिन पैर नहीं छूते,,,अगर बड़ी ठकुराइन देख ली तो अनर्थ हो जाता आप आज से ऐसा नहीं करेंगी, किसी के सामने या मेरा पैर नहीं छुएंगी… " वो नौकरानी कमला बोली।
"जी…" अनु सिर हिला कर बोली दिमाग में तो बहुत से सवाल आए उनकी बातें सुनकर उलझ गए कि बड़े को प्रणाम करने में क्या गलत है लेकिन यह उसका ससुराल है और यहां का नियम मानना उसका पहला कर्तव्य और फर्ज है उन्हीं के परंपराओं के हिसाब से चलना है वह ज्यादा कुछ नहीं पूछते हुए चुप रह गई ।
फिर उसके बाद कमला उसे नीचे लेकर गई जहां कुछ महिलाएं उसके सास के साथ बैठी हुई थी, उसकी ननंद भी थी, कुछ पुरुष भी वहां पर थे मेहमानों से घर अभी भी भरा हुआ था पारो उन सभी के पास जाकर सभी को एक-एक कर कर प्रणाम करने लगी, दिल तो किसी रेलगाड़ी की तरह चल रहा था और भगवान जी से प्रार्थना कर रही थी कि बस उसके सास इन सभी के बीच में ना डांट दे,,, देर आने से लेकिन उसके सोच के विपरीत उसकी सास उसे कुछ नहीं बोली बस उसे घूर कर देख रही थी,, पारों को अजीब तो लगा,कि वह उसको ऐसे क्यों देख रही है,, लेकिन कुछ समझ नहीं पाई,, भगवान जी का शुक्र था कि उसका घुंघट चेहरे को पूरी तरह से ढका हुआ था और कुछ धुंधली छवि उसे बाहर के लोगों को दिख रही थी,
"आज पहला दिन था इसीलिए देर आने के लिए कुछ नहीं कहूंगी,,, लेकिन आगे से इस घर में सबसे पहले तुम्हें उठकर काम पर लग जाना है,,अपने जिम्मेदारी को करना है,,, और जो गाहने लाई हो उसे मुझे ला कर दे ,मैं संभाल कर रखूंगी... " उसकी सास अपनी कड़क लहजे में बोली,,, जिसे सुनकर पारो अपना सिर हिला कर वापस गहने लेने चले गई..उसकी हिम्मत नहीं है कुछ भी बोलने की उसे पता था कि सास बहू की गहने अपने पास कब्जा करके रखती है और पहनने के लिए देता भी है या नहीं,,उसे नहीं पता था ,
पारो झट से गहना लेकर आई और अपनी सास के हाथों में सारे को थमा दी,
"चल जा … जाकर पहले रसोई का पूजा कर भगवान जी का भोग चढ़ा देना उसके बाद सभी के लिए नाश्ता बनाना ,और सब कुछ जल्दी करना क्योंकि मेहमान लोग को नाश्ता करवाना है " उसके साथ 50 लोग का खाना उसे बनाने के लिए आदेश दे दी,, ठाकुर खानदान था तो उनके परिवार भी बहुत थे लेकिन मेहमान भी बहुत थे, पारो तो अभी ठीक से ज्यादा लोग से मिली भी नहीं थी, उसका घर के सदस्य से भी अच्छे से परिचय भी नहीं हुआ था,
बिना विरोध किए हुए उनकी बातों का, पारो गाय की तरह सिर हिलाते हुए अपनी देवरानी और कमला के साथ चली गई,, उसे पहले भगवान जी का मंदिर दिखाया गया जहां वह पूजा करें उसके बाद प्रसाद सभी में बांटा गया,, फिर उसे कमला और उसकी देवरानी रसोई में लेकर गई,, जहाँ दोनों उसकी मदद करी उसे बताई, क्या क्या बनाने है,
उसके बाद मिट्टी का चूल्हा जलाकर पारो सभी के लिए मीठा में खीर और पूरी हलवा यह सब बनाने लगी,, कुछ घंटे लगने के बाद वह सभी के लिए नाश्ता तैयार कर ली,, और खाना भी लगाने मे वो ही मदद करी, यह पहली रसोई उसके लिए एक परीक्षा थी ससुराल में पहला दिन का, उसके बनाये हाथों के खाने की खुश्बू पूरे ठाकुर हवेली में महक उठी,
कुछ ही देर में सब कोई नाश्ता करने के बाद उसे शगुन दिए और उसके बाद सब अपने-अपने घर जाने के लिए तैयार होने लगे,
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सब कुछ हो जाने के बाद, उसे समझ नहीं है कि वह खाए या नहीं खाए क्योंकि उसकी मां बताई थी कि पति के खाने के बाद ही पत्नी को खाया जाता है और सब घर को खिलाने के बाद ,,सब घर वाले तो खा लिए लेकिन उसका पति का कोई आता पता नहीं था ।
वह घूंघट किये हुए ही सारे काम करो थी और अभी भी घूँघट लिए अपनी देवरानी के साथ खड़ी,, अपने पति का इंतजार कर रही थी भूखे पेट रह कर, उसे भूख बहुत जोर के लगी थी,लेकिन इंतजार करना भी जरूरी था ।
कुछ देर इंतजार करने के बाद अर्जुन ठाकुर भी अपने अवतार में कुर्ता पजामा पहने हुए शान से चलते हुए सीढ़ियां उतरा और खाने की चौके पर जाकर बैठ गया,, बिना किसी से बात किए हुए , बिना किसी पर नजर उठाई , उसके आने से वहां पर पूरी तरह से शांति छा गई थी माहौल में एक तनाव सा बहने लगा था। पारो के हाथ पांव, सिरहने लगे,,उस कठोर और अधिकार वाले रूप को देख कर, उसका पति बस देखने भर से ताकतवर, और किसी के शरीर में डर पैदा करने वाला था। केवल वहीं नहीं डरती उससे यहां बड़े भी उसको देख कर चुप हो गए थे, उसकी सास भी जो बाकी सभी पर महारानी की तरह हुकुम चला रही थी, वो भी चुप ही हो गयी थी,, सब के चेहरे पर डर घबराहट के भाव आ गए थे उसके यहां आने भर से,
"भाभी जाओ, भैया को खाना दो, और बर्तनों की आवाज बिल्कुल भी मत करना उनको बिल्कुल भी पसंद, उनको ज्यादा तर शांति और, चुप रहना पसंद है, इसलिए आप कोशिश करना की उनके सामने सब ध्यान से करने की " उसकी देवरानी उसके कानो के पास फुसफुसाते हुए कही। और अर्जुन ठाकुर के मिजाज के बारे में भी बताने की कोशिश करी,
जिसे सुनकर उसके डर और बढ़ गई, "यह कैसा शौक हुआ भगवान जी ,अब जब इंसान है ,हाथ है, बर्तन है, तो बर्तन आवाज करेंगे ना ,अब मैं इसे कैसे करूंगी, कहां फसा दिया आपने ,उनके सामने जाने से तो मेरी हाड़ कंपा रही है, खाना कैसे निकाल कर दूंगी मैं,हाथ तो लग रहा है लकवा मार दिया है .."
पारो दर से सहमी हुई मन मे रोकर चिल्लाई, लेकिन उसकी रूदन सुनने वाला कोई नहीं था , वह डरते हुए ही अपने पति के सामने गई और सामने रखे थाली में अपने कांपते हाथों से खाना परोसने लगी ।उसकी पूरी कोशिश थी कि वह अपनी देवरानी की बातों को अमल कर अपने पति को गुस्सा ना दिल और बर्तनों से आवाज बिल्कुल भी ना निकाले ।
लेकिन वह इतनी डरी हुई थी कि उसके हाथ से चम्मच भी छूटते - छूटते बचा था । अर्जुन जो शांति से बैठा हुआ था अपने शांत कठोर भाव लेकर , वह उसके हाथों को घूर कर देख रहा था जो चिड़िया पहनने से बहुत ही खूबसूरत दिख रहे थे उसके गोरी त्वचा चमक रही थी जिस वजह से किसी भी इंसान की नजर उसे पर चली जाती । अर्जुन को एहसास हुआ कि किसी गैर इंसान को चाहे वह औरत हो या मर्द उसकी पत्नी की यह हाथ भी नजर में ना आए लेकिन ऐसा नामुमकिन नहीं है । उसके कांपते हाथों देखकर उसके होठों पर एक शैतानी मुस्कान आ गई ।लेकिन तुरंत ही छिपा भी लिया ।
पारो जल्दी से परोस कर फिर से अपने देवरानी के पास आ गए उसके खाने का इंतजार करने लगी ।
जिसके बाद वह बहुत ही शालीनता से खाने के बाद घर से बाहर चला गया, बिना उसे एक नजर देखें ,उसके जाते ही पारो अपनी रुकी हुई सांस लेते हुए खुद के फेफड़ों में हवा भर्ती है । उसके बस पति के होने से उसकी सांस रुकने लगी थी । उसके बाद वह भी अपनी देवरानी के साथ खाने के लिए रसोई में चली गयी, आखिरकार हर एक मुश्किल को पार करते हुए उसे कुछ खाने के लिए मिलेगा जिसके पास उसे ताकत का एहसास होगा और अभी उससे इस ताकत की बहुत जरूरत थी।
ऐसे ही आज पारो का दिन कट गया कुछ मेहमानों के बीच रहकर, दोपहर में सभी के लिए खाना बनाकर अपनी देवरानी से अच्छी जान पहचान कर और इन्हीं सब को करते हुए रात के 9:00 बज गए थे । रात का भी खाना वह खुद तैयार करी और सभी को खिलाकर खुद खाली पेट रह कर अपने पति का इंतजार में रही वह सुबह के बाद अपने पति को नहीं देखी थी जो उसके दिल के लिए अच्छा था लेकिन अब खाली पेट रहने से पेट से आवाज आने लगी वह किसी भी तरह अपने पति को जल्दी आने की भगवान जी से विनती कर रही थी । ताकि वह जल्दी जाए और खाए उसके बाद वह भी खाकर अपना पेट भरे, अगर उसे इस घर में किसी- से ज्यादा लगाव लगानी है तो वह था खाना, अगर सही समय पर खाने को मिल जाए तो वह सब की सेवा भी करने में कोई कंजूसी नहीं करेगी,
लेकिन जब वह अपने पति का इंतजार कर रही थी तभी उसकी सास अपने शरीर का मालिश करने के लिए आयी ,अब बहू आ गई थी तो बहू से सेव करवाना सास का जन्मसिद्ध अधिकार था ।पारो अपनी पेट में उठे भूख को दबाते हुए उसके कमरे में चली गई सरसों का तेल लेकर ।
वहां जाकर देखी तो एक सास उसकी नहीं थी इसकी मालिश करनी थी बल्कि उसकी चाची सास से लेकर मौसी, मम्मी सास, सब वहां मौजूद थे जो एक दूसरे से बातें करते हुए हंसी मजाक कर रहे थे और अपने बहू की बुराई भी कर रही थी,,
सास की नजर में अगर बहू सास की सेवा करती है उसकी मालिश हर रात करती है तो वह बहुत ही अच्छी बहू होती है हर काम में निपुण होती है ,लेकिन सास को अगर बहू की हर काम पसंद आ ही जाए तो वह सांस नहीं मां बन जाती ,इसीलिए वो सब वहां बैठकर अपनी बहू की बुराई कर रही थी । और पारो की परीक्षा लेने के लिए तैयार थी, कि वह अपनी सास की सेवा कैसे करती है ।
" ऐसे हैरानी में काहे देख रही है, हम सब की तुझसे मालिश करवानी है तभी तो पता चलेगा कि तेरी मां तुझे कितना खिलाई है… " पारो की जो मामी सास थी वह अकड़ से बोली ।
इसके बाद पारो सिर हिलाते हुए पहले अपने सांस की मालिश करने लगी यह सब करते हो अपनी भूख को भी भूल गई थी और अपने हाथों के दर्द को भी जो उनके शरीर को दबाते हुए उसके हाथों में दर्द करने लगे थे ।
तभी उनकी बातो के बिच उसकी सास बोलि " देख मुझे एक महीने में पोता चाहिए मतलब तू हमें खुशखबरी सुना देना एक बेटे की... "
उनकी बातें सुनकर पारो धड़कनें बढ़ गई थी ।वह बस उनकी बातें सुनकर सिर हीला दे रही थी उनके सामने कुछ बोलने की उसकी हिम्मत बिल्कुल भी नहीं थी । उसे गाय की तरह हमेशा सिर हिलाते देख उसकी सास अकड़ से मुस्कुराकर सभी को देखिए जैसे बता रही हो, कि देखो कितनी आज्ञाकारी है वह और मेरे नीचे दब कर रहेगी मेरे सारे बातो को मानेगी । उसके सास अपनी रुतबा को दिखाने के लिए उस नन्ही जान के हाथों से सभी का मालिश करवा रही थी ।
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कमेंट कीजिएगा प्लीज 😁😁😁😁😁😁 और क्या आज रात अर्जुन आएगा या पारो सभी का मालिश करते-करते ही भूख से रह जाएगी तड़पते हुए ।
हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏