यह कहानी है, मुंबई के एक बड़े और मशहूर इंडस्ट्रियलिस्ट मृत्युंजय सिंघानिया की, अमीर और फेमस होने की वजह से उसके पीछे न जाने कितनी लड़कियां दीवानी है उसने आज तक कभी किसी को भी मुड़कर नहीं देखा अपनी लाइफ में किसी को आने की इजाजत देना तो बहुत दूर की बात... यह कहानी है, मुंबई के एक बड़े और मशहूर इंडस्ट्रियलिस्ट मृत्युंजय सिंघानिया की, अमीर और फेमस होने की वजह से उसके पीछे न जाने कितनी लड़कियां दीवानी है उसने आज तक कभी किसी को भी मुड़कर नहीं देखा अपनी लाइफ में किसी को आने की इजाजत देना तो बहुत दूर की बात है क्योंकि वह अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीता है, वह किसी की बात नहीं सुनता और ना ही उस के आगे किसी की बोलने की हिम्मत होती है क्योंकि अपने नाम के ही तरह मृत्युंजय भी बहुत खतरनाक है, उसकी आंखों में सब को अपनी मौत नजर आती है लेकिन सब कुछ बदल जाता है जब एक दिन वह टकरा जाता है प्यारी सी मासूम ईशान्वी से जो के 19 साल की अनाथ लड़की है और पहली नजर में वह लड़की मृत्युंजय के दिलों दिमाग में बस जाती है और उसे पाने का जुनून हो जाता है मृत्युंजय के सर पर सवार जिसके लिए वह कर देता है सारी हदें पार, अपनी सिंपल लाइफ में अचानक आए मृत्युंजय नाम के इस तूफान से कैसे बच पाएगी ईशान्वी? क्या ईशान्वी समझ पाएगी मृत्युंजय के लिए अपने जुनून और पागलपन को? क्या ईशान्वी कभी बचकर निकल पाएगी वहां से या हमेशा के लिए रह जाएगी उसकी कैद में? क्या बदलेगा मृत्युंजय और ईशान्वी की जिंदगी में एक दूसरे के साथ होने पर जानने के लिए पढ़िए मेरी ये कहानी
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Episode - 1 तुम्हारा चीखना बेकार है! "छोड़ दो मुझे, please! ये क्या कर रहे हो तुम? अपने कपड़े क्यों उतार रहे हो? खोलो मेरे हाथ! तुमने मुझे इस तरह से क्यों बांध रखा है? क्या चाहते हो तुम मुझसे? और ये कौन सी जगह है? तुम मुझे कहाँ लेकर आए हो?" एक 19 साल की बेहद खूबसूरत लड़की, जिसके दोनों हाथ बेड पर बड़ी मजबूती से रस्सी के सहारे बंधे हुए थे, ने कहा। वह लड़की एक बड़े से राउंड बेड पर बंधी थी, जिस पर सिल्क की बेडशीट बिछी थी। कैमरा बहुत बड़ा था, जिससे पूरा इंटीरियर और बेडरूम का कलर ब्लैक और ग्रे के शेड में था। उस लड़की ने अपने सामने से आते हुए एक 26 साल के हैंडसम, लम्बे-चौड़े लड़के को मना करते हुए कहा, "प्लीज मिस्टर सिंघानिया, मुझे छोड़ दीजिए।" "मैं तो बस तुम्हें पाना चाहता था जान, और देखो मैंने तुम्हें पा लिया।" वो लड़का अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए बेड के करीब आया। "यह क्या कर रहे हैं आप?" उस लड़की ने डरते हुए पूछा। "कम ऑन बेबी, इतनी भी ना समझ नहीं हो तुम? यू नो वेरी वेल कि मैं क्या करने वाला हूँ।" वह लड़का लड़की के करीब आया और उसने अपनी शर्ट उतार कर फेंक दी। लड़की उस लड़के की बॉडी देखकर डर से कांपने लगी। उसके सिक्स पैक एब्स और उसकी कटी हुई बॉडी देखकर किसी की भी रूह कांप जाए। वह लड़का उस लड़की के पैरों को पकड़कर उसके पैरों को चूमते हुए बोला, "जान, तुम्हारी बॉडी तो शिविर कर रही है मुझे बिना शर्ट के देखकर। तुम्हारा यह हाल हुआ है, सोचो अभी अगर मैंने अपने सारे कपड़े उतारे तो तुम्हारा क्या हाल होगा।" "यह क्या कर रहे हैं आप मिस्टर सिंघानिया? प्लीज मुझसे दूर रहिए। मैंने सोचा था कि आप एक अच्छे इंसान होंगे। मुझे बिल्कुल भी नहीं पता था कि तुम अच्छे इंसान के भेष में एक जानवर निकलोगे।" उस लड़की ने रोते हुए कहा। "हा हा! तुम मेरी जान हो और तुम्हें पूरा हक है, तुम जो चाहो मुझे बुला सकती हो। अब तुम मॉन्स्टर बोलो या डेविल, जो भी हूँ, अब तुम्हारी लाइफ में सिर्फ मैं ही हूँ और इस बात को तुम जितनी जल्दी मान लो, तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" इतना बोलकर वो लड़का उसके पैरों को चूमते हुए आगे की तरफ बढ़ा। वह लड़की उसे अपने करीब आते हुए देख रही थी और तभी उसने लड़के को उसकी टॉप की तरफ देखा। उसके हाथ ने उसकी पतली कमर को अपने मजबूत हाथों में जकड़ लिया। उस लड़की की सांस काफी तेज चलने लगी और उसने रोते हुए चिल्लाकर कहा, "प्लीज somebody help me! कोई है यहां? Please मुझे बचाओ।" उस आदमी ने उस लड़की के गालों को दबोचते हुए कहा, "मैंने तुमसे कहा था ना, यह मृत्युंजय सिंघानिया की दुनिया है। यहां पर जो कुछ भी होता है मेरी मर्जी से होता है। तुम्हें लगता है इस तरह चिल्लाने से कोई यहां पर तुम्हारी मदद करने के लिए आ सकता है? क्या तुम्हारी आवाज इस कमरे से बाहर नहीं जा सकती? तुम्हारा चीखना बेकार है मेरी जान। बेहतर होगा कि तुम मेरे साथ कॉर्पोरेट करो।" वह लड़की अपने हाथों को रस्सी से छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली, "मर जाऊंगी मैं, लेकिन तुम्हारी बात कभी नहीं मानूंगी मैं। तुमसे प्यार ही नहीं करती। तुम मेरे साथ इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते।" मृत्युंजय ने हंसते हुए कहा, "हा हा हा! तुम नहीं जानती मैं अभी क्या कर सकता हूँ और क्या नहीं, और अभी मैं क्या करने वाला हूँ। तुम मेरी जिद हो और तुम्हें पाना ही मेरे लिए सब कुछ है, यू आर ओनली माइन जान।" उस लड़की ने अपने हाथों को रस्सी से निकालने की नाकाम कोशिश की और उसने तेज आवाज में रोते हुए कहा, "मैं तुमसे प्यार नहीं करती। मैं अर्जुन से प्यार करती हूँ, वह मेरा बॉयफ्रेंड है और मैं हमेशा उससे ही प्यार करूंगी।" उस लड़की के मुँह से किसी दूसरे लड़के का नाम सुनकर मृत्युंजय का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसकी आँखें लाल हो गईं और उसने उस लड़की की गर्दन पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "आज तुम्हारे मुँह से यह नाम निकला है। दोबारा कभी अगर तुमने अपनी जबान से उस लड़के का नाम लिया तो बहुत बुरा होगा। उस लड़के का? क्या तुम अपने मुँह से किसी भी लड़के का नाम नहीं ले सकती? तुम सिर्फ मेरी हो, सिर्फ मेरी।" उस लड़की ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "छोड़ो मुझे! दर्द हो रहा है! और रही बात अर्जुन की तो मैं एक बार नहीं, हजार बार बोलूंगी, मैं अर्जुन से प्यार करती हूँ और उससे ही..." इससे पहले कि वह लड़की अपनी बात पूरी कर पाती, मृत्युंजय ने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे और उसे एक मॉन्स्टर की तरह पैशनेट होकर किस करने लगा। वह लड़की मृत्युंजय को किस नहीं कर रही थी, बल्कि वह उसे खुद से दूर करना चाहती थी, लेकिन इस टाइम वह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाई। उसने अपने हाथों को खोलने की कोशिश की। उसके हाथ पर बंधी रस्सी की रगड़ से उसके हाथों से खून निकलने लगा। मृत्युंजय ने उसके दोनों हाथों को कसकर बेड पर दबाते हुए पकड़ लिया और उसे उसी तरह रफली किस करता चला गया। वह लड़की मृत्युंजय के मजबूत, बड़े हाथों से खुद को छुड़ा नहीं पाई और ना ही उसे किस करने से रोक पाई। मृत्युंजय गुस्से में था और उसे रफली किस करता जा रहा था और जब मृत्युंजय ने देखा कि उस लड़की के होठों से खून आने लगा, तब मृत्युंजय उससे दूर हुआ। उसने उस लड़की की रोती, आँसुओं से भीगी आँखों को देखकर कहा, "अगर दोबारा मैंने तुम्हारे मुँह से उस लड़के का नाम सुना, तो याद रखना अगली बार की किस इससे भी ज्यादा दर्दनाक होगी..." उस लड़की ने मृत्युंजय की बात बीच में ही रोकते हुए कहा, "तुम चाहे कुछ भी कर लो, यह बात बदल नहीं सकती कि मैं अर्जुन से प्यार करती हूँ और उससे ही प्यार करूंगी। अगर तुम मेरे मुँह से यह बात नहीं सुनना चाहते तो मार दो मुझे अभी के अभी।" मृत्युंजय गुस्से में था और उसने जैसे ही उसे लड़की की बात सुनी, उसने मुस्कुराते हुए कहा, "आहहह, थैंक यू सो मच जान, मुझे इतना अच्छा आईडिया देने के लिए। मैं तो तुम्हें किस करने में इतना बिजी हो गया कि इस बारे में तो भूल ही गया...." इतना बोलकर मृत्युंजय बेड पर उस लड़की के बगल में आराम से लेट गया और उसने उस लड़की के गालों पर अपनी मिडिल फिंगर चलते हुए उसके गर्दन पर हाथ ले जाने लगा। उस लड़की ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली और उसने लड़की के बिल्कुल करीब जाकर धीमी आवाज में कहा, "जान से तो मैं मरूँगा, लेकिन तुम्हें नहीं जान। क्योंकि तुम तो मेरी लाइफ का वह हिस्सा हो जिसे मैं कभी खुद से दूर नहीं कर सकता। मृत्युंजय सिंघानिया को पहली बार कोई लड़की पसंद आई है और उसे मैं इतनी आसानी से कैसे जाने दे सकता हूँ।" वह लड़की मृत्युंजय की बात सुनकर हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी और तभी मृत्युंजय ने उसे लड़की के गाल पर किस किया और उसे आँख मारते हुए कहा, "मारेगा तो कोई और। अब मेरी प्यारी ईशु ने मुझे इतना अच्छा सजेशन दिया है तो यह तो करना ही पड़ेगा।" इतना बोलकर मृत्युंजय ने बेड के सामने लगे बड़े से एलईडी टीवी को ऑन किया और सामने टीवी पर एक लड़के का वीडियो चलना शुरू हुआ। एक काला अंधेरा कमरा, जहाँ पर एक लड़का, जिसके दोनों हाथ-पैर जंजीर से बंधे हुए थे और उसके मुँह से खून निकल रहा था, और उसके आसपास खड़े सभी लोग उसे बुरी तरह से मार रहे थे। जैसे ही उस लड़की ने उसे लड़के को टीवी पर देखा, वह तेज आवाज में चीखते हुए बोली, "अर्जुन... अर्जुन! यह क्या कर रहे हो तुम उसके साथ? वह मर जाएगा।" मृत्युंजय उस लड़की के दोनों गालों को दबोचते हुए कहा, "मेरी जान, तुम्हीं ने तो कहा ना जान से मारने के लिए। वैसे मेरा तो ऐसा कोई प्लान नहीं था, बट अब तुमने कहा है तो मैं इसे जान से मार ही देता हूँ।" वह लड़की रोते-बिलखते हुए बोली, "नहीं नहीं! प्लीज! तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे। तुम्हें जो भी करना है मेरे साथ करो, मुझे जान से मार दो, लेकिन प्लीज अर्जुन को छोड़ दो।" मृत्युंजय ने डेविल स्माइल के साथ कहा, "ठीक है, छोड़ दूँगा, लेकिन अभी नहीं। उसके लिए तुम्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी।" उस लड़की ने हैरानी से पूछा, "क्या-क्या चाहते हो तुम?" मृत्युंजय ने उस लड़की की नाभि के आसपास अपना हाथ फेरते हुए कहा, "बस तुम और तुम्हारा प्यार। तुम्हारे अलावा मैं और कुछ नहीं चाहता, बाकी मेरे पास सब कुछ है।" उस लड़की ने बेबस होकर रोते हुए कहा, "प्लीज अर्जुन को जाने दो! उसने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा? तुम्हें जो करना है तुम मेरे साथ करो। तुम मारना चाहते हो ना, तो मुझे जान से मार दो! किस करनी है तुम्हें, कर लो मुझे किस, लेकिन अर्जुन को छोड़ दो। मैं अपनी आँखों के सामने उसे इस तरह मरते नहीं देख सकती। अगर अर्जुन को कुछ हुआ तो मैं मर जाऊंगी।" मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा, "कैसी बात कर रही हो तुम जान? यू आर माय एवरीथिंग। मैं तुम्हें कैसे कुछ होने दे सकता हूँ।" इतना बोलकर मृत्युंजय उस लड़की के गाल के बिल्कुल करीब गया और उसके गालों को चूमता हुआ सीधे उसकी गर्दन पर आकर रुका और पैशनेटली किस करना शुरू कर दिया। उस लड़की ने चिल्लाते हुए कहा, "प्लीज स्टॉप इट! मत करो ऐसा! प्लीज don't do this।" मृत्युंजय उस लड़की की बात सुनकर रुक गया और उसने उसे किस करना बंद कर दिया और अपना मोबाइल फोन निकालते हुए कहा, "मारो इस लड़के को जब तक उसकी जान नहीं चली जाती।" सामने टीवी पर खड़े उन सारे गुंडों ने उस लड़के को मारना शुरू कर दिया और वह पूरी तरह से उसे मार रहे थे और उसके मुँह से खून निकला और वह बेहोश हो गया! उसे इस तरह से मारते देखकर वह लड़की तेज आवाज में चिल्लाई, "नहीं नहीं! अर्जुन! अर्जुन! रोको! रोको उन्हें! प्लीज रोको! वह मर जाएगा! प्लीज ऐसा मत करो।" मृत्युंजय उस लड़की के सामने आकर कहा, "अगर मेरी सारी बात मानने के लिए तुम राजी होती हो, तभी यह लोग रुकेंगे, वरना आज तो इस लड़के की मौत तय है।" उस लड़की ने टीवी पर दिख रहे अपने बॉयफ्रेंड की हालत को देखा और उसने रोते हुए कहा, "वह मर जाएगा।" मृत्युंजय ने तुरंत हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ बिल्कुल! और उसकी जान बचाना तुम्हारे हाथ में है।" उस लड़की ने अपने दाँत पीसते हुए कहा, "रोको उन्हें! मैं तुम्हारी सारी बात मानने के लिए तैयार हूँ।" To be continued... Buddies 💚🌹 अगर आप सबको और भी दूसरी romantic story पढ़नी है तो आप मेरी बाकी की stories भी पढ़ सकते हैं... जो आपको मेरी profile पर मिल जाएंगी... और पढ़कर अपने प्यारे-प्यारे comments करना मत भूलिएगा....🫰🥰
Episode - 2 ट्रस्ट मी.. यू फील लाइक हेवन
उस लड़की ने अपने दांत पीसते हुए कहा, "रोको उन्हें मैं तुम्हारी सारी बात मानने के लिए तैयार हूं।"
मृत्युंजय ने अपना मोबाइल फोन उठाकर दो शब्द कहें, "स्टॉप इट।"
सामने लगी एलइडी टीवी पर उन गुंडो ने अर्जुन को मारना बंद कर दिया जिसे देखकर उस लड़की की जान में जान आई।
मृत्युंजय उस लड़की के करीब आया और उसके उसकी बॉडी को बड़े प्यार से छूते हुए बोला, "यू नो उस दिन जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था उस दिन के बाद से कब से मैं इस पल का इंतजार किया।"
वह लड़की मृत्युंजय के टच को फील कर रही थी और उसकी आंखों से आंसू निकलते जा रहे थे!
मृत्युंजय ने उस लड़की के करीब जाकर उसे दोबारा बुरी तरह से किस करना शुरू किया। वह लड़की सिर्फ रोती जा रही थी और मृत्युंजय ने उसके टॉप को धीरे से हटाया और उसका हाथ उस लड़की की अपर बॉडी पर हरकत करने लगा।
मृत्युंजय के टच को फील करते ही वह लड़की कांप उठी और उसे इस तरह कांपते देख कर मृत्युंजय के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट नजर आई।
मृत्युंजय जो अभी तक अपने आप को काफी कंट्रोल में रखे था अब उसका कंट्रोल खुद पर से हट रहा था और जैसे ही उसने उसे लड़की की गर्दन को किस करते हुए नीचे की तरफ बढ़ना शुरू किया और उसकी क्लीवेज पर पहुंचते ही मृत्युंजय पागलों की तरह उसे किस करने लगा और उसने अपने पागलपन में कब उसके कपड़ों को फाड़ दिया, उसे पता ही नहीं चला।
उस लड़की ने अपनी आंखें कस कर बंद कर ली और वह बिना हिले धुले बस बेड पर लेटी हुई थी। मृत्युंजय उसकी स्किनी बॉडी देखकर खुद को कंट्रोल नहीं कर पाया और उसे इतनी ज्यादा गर्मी लगने लगी कि उसने ऐसा फील किया और एक झटके में अपनी पैंट से बेल्ट को हटा दिया।
मृत्युंजय को ऐसा करते देख कर उसे लड़की की सांस तेज हो गई मृत्युंजय बिना कुछ सोचे समझे उसे लड़की के पूरे जिस्म को चूमता जा रहा था।
उस लड़की ने अपने बॉयफ्रेंड की जान बचाने के लिए मृत्युंजय को एक बार भी मना नहीं किया और मृत्युंजय ने उस लड़की के हाथों को कसकर पकड़ और मुस्कुराते हुए कहा, "कम ऑन जान डोंट बिहेव लाइक थिस आई नो यू आर एंजॉयिंग थिस राइट और ट्रस्ट मी बाद में यू फील लाइक हेवन।"
उस लड़की ने मृत्युंजय की तरफ देखा और जब तक वह लड़की कुछ बोल पाती उसे अपने पैरों के बीच मृत्युंजय का हाथ महसूस हुआ।
उसे लड़की की धड़कनें वहीं रुक गई, मृत्युंजय का हाथ उसके पैरों के बीच हरकत कर रहा था जिससे उसे लड़की के पैर आपस में सिमट गए। मृत्युंजय ने उस लड़की के कान के पास आकर उसके एयर लॉब को कट करते हुए कहा, "कम ऑन बेबी don't do that, अगर तुम्हें ऐसा ही करना था तो तुमने मुझे अपने इतने करीब क्यों आने दिया लगता है तुम नहीं चाहती कि तुम्हारा बॉयफ्रेंड जिंदा रहे राइट।"
उसे लड़की ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं प्लीज उसे कुछ मत करना।"
मृत्युंजय में तिरछी मुस्कुराहट के साथ कहा, "तो फिर मेरे साथ कॉर्पोरेट करो आई नो तुम्हारा फर्स्ट टाइम है और तुम बहुत ज्यादा डर रही हो। बट don't worry मैं हूं ना तुम्हें बिल्कुल भी pain नहीं होगा।"
उस लड़की ने धीरे-धीरे अपने पैरों को एक दूसरे से दूर किया। जैसे ही उसे लड़की ने अपने पैरों को फैलाया, मृत्युंजय की नजरे उसे लड़की की बॉडी पर टिक गई और मृत्युंजय अपने हाथों को रोक नहीं पाया।
जैसे ही मृत्युंजय का हाथ दोबारा उस पार्ट पर गया, मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा, जान you are wet, you know what it means।"
उस लड़की ने कसकर अपनी आंखों को बंद कर लिया वह मृत्युंजय की बात का कोई जवाब नहीं देना चाह रही थी बस उसकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे।
मृत्युंजय के चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वह बस अब हद से आगे बढ़ चुका है और वह आप खुद को कंट्रोल नहीं कर सकता और तभी उसने उसे लड़की के पैरों को separate किया और पैरों के बीच दूरी बनाई और जिस पल का वह इतनी बेचैनी से इंतजार कर रहा था, उसने आखिर वह किया।
उसे लड़की ने अपनी पैरों की तरफ देखने की हिम्मत नहीं की लेकिन उसे काफी तेज दर्द हुआ और उसके मुंह से एक तेज चीख निकली।
उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "प्लीज Don't do it it's hurt very badly... it's so painful...."
मृत्युंजय एक पल के लिए रुका और वह उसे लड़की के कानों के पास आकर उसके कान पर किस करते हुए बड़ी ही सेक्सी आवाज में बोला, "कुछ नहीं होगा, तुम बस एंजॉय करो जान।"
मृत्युंजय एक पल के लिए रुका और उसने उस लड़की के कान के पास जाकर किस करते हुए बड़ी ही सेक्सी आवाज में कहा, "कुछ नहीं होगा तुम बस एंजॉय करो जान।"
वह लड़की पहले से ही अपने हाथों को रस्सी से छुड़ाने की इतनी कोशिश कर चुकी थी कि वह थककर बेहाल हो गई थी और जैसे ही मृत्युंजय उसके करीब आया वह लड़की बेहोश हो गई।
मृत्युंजय ने उसके गाल पर किस किया और जैसे ही मृत्युंजय की नजर उसकी आंखों पर गई मृत्युंजय ने उसके गाल को थपथपाते हुए कहा, "जान व्हाट हैपेंड।"
मृत्युंजय उसके ऊपर से हटा और उसने उसे लड़की की नाक के पास अपनी दो उंगलियों को लगाते हुए कहा, "यह तो बेहोश हो गई।"
मृत्युंजय ने उसके ऊपर ब्लैंकेट डालते हुए कहा, "मैं इस तरह बेहोशी की हालत में तुम्हारे साथ कुछ नहीं करना चाहता आई नो यू आर ओनली माइन और आज नहीं तो कल तुम्हें भी यह बात एक्सेप्ट करनी ही होगी।"
इतना बोलकर मृत्युंजय सीधे वॉशरूम की तरफ गया और शॉवर लेने के बाद वह बेडरूम में वापस आया और वह लड़की अभी भी बेहोश थी मृत्युंजय अपने कपड़े पहनने के बाद उसे लड़की के करीब आया उसके चेहरे को छूते हुए उसने धीमी आवाज में कहा, " टेक ए रेस्ट स्वीटी मैं तुमसे बाद में मिलता हूं।"
इतना बोलकर मृत्युंजय सीधे रूम से बाहर आया और अपनी रोल्स-रॉयस फैंटम कार में बैठकर मृत्युंजय सीधे वहां से बाहर निकाला।
थोड़ी ही देर में मृत्युंजय एक बड़े से लोहे के गेट के पास पहुंचा जहां पहुंचते ही वह गेट ऑटोमेटिक खुल गया और मृत्युंजय की कार उस गेट के अंदर गई।
मृत्युंजय की कार उस गेट के अंदर आई और थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा सा विला नजर आया जहां पर बड़ा-बड़ा लिखा हुआ था। “सिंघानिया मेंशन।"
जैसे ही उस बड़े से मेंशन के बाहर कार रुकी।
मृत्युंजय कार से बाहर निकाला इस टाइम उसने अरमानी का बहुत महंगा सूट साथ में उसके हाथ में टिफिनी की एक ब्लू डायल की घड़ी थी।
मृत्युंजय पूरे एटीट्यूट के साथ था अपनी कार से बाहर निकाला और जैसे ही मृत्युंजय उस विला के अंदर पहुंचा।
पूरा विला शीशे की तरह चमक रहा था, वही लिविंग एरिया में बहुत ही अच्छी क्वालिटी का इंटीरियर पड़ा था और सामने दो गोल घुमाओ दार सीढ़ियां बनी थी जो सीधे ऊपर के रूम की तरफ जाती थी।
लिविंग एरिया में बड़े से सोफा सेट के ऊपर एक बहुत बड़ा सा झूमर लगा हुआ था जो रोशनी से चमचमा रहा था, घर में एक दो नहीं, बल्कि कम से कम एक दर्जन से ज्यादा नौकर थे।
जिन्होंने प्रॉपर यूनिफार्म पहन रखी थी, मृत्युंजय के अंदर आते ही वह सारे घर के नौकर तेजी से भागते हुए उसके पास आए और उसके सामने अपना हाथ बांधकर खड़े हो गए उनमें से एक बूढी औरत मृत्युंजय के सामने आकर बोली, “मृत्युंजय बाबा आप कुछ खाएंगे मैं आपके लिए कुछ बनवाऊं?”
मृत्युंजय ने अपना हाथ ऊपर उठाया और वह बूढी औरत चुप हो गई मृत्युंजय ने बिलकुल सख्त आवाज में कहा, "कोई जरूरत नहीं है, मैं इंपॉर्टेंट काम के लिए यहां आया हूं कुछ खाने पीने नहीं मैं स्टडी रूम में हूं जैसे ही आशीष यहां आ जाए उसे सीधे मेरे पास भेज देना।"
मृत्युंजय तेज कदम बढ़ाते हुए सीधे स्टडी रूम की तरफ चला गया और वहां स्टडी रूम के अंदर पहुंचते ही मृत्युंजय ने अपने टेबल पर रखी फाइल को उठाया और उसे आराम से चेयर पर बैठकर देखने लगा और तभी कुछ देर बाद किसी ने स्टडी रूम का दरवाजा नाॅक किया मृत्युंजय ने बिना नजरे ऊपर उठाते हुए कहा, " कम इन।"
मृत्युंजय को ऐसा लगा कि उसका पर्सनल सेक्रेटरी आशीष आया होगा और उसने फाइल के पन्ने पलटे हुए कहा, " मैंने तुमसे जो फाइल मंगाई थी वह ले आए।"
सामने से जब मृत्युंजय को कोई जवाब नहीं मिला मृत्युंजय ने कहा, " तुम्हें मेरी बात सुनाई नहीं दे रही क्या आशीष?”
इतना बोलकर मृत्युंजय ने अपना सर ऊपर उठाया और उसने देखा उसके सामने आशीष नहीं बल्कि एक पर्पल कलर की नेट की साड़ी पहन कर एक औरत खड़ी है जिसके बल प्रॉपर स्ट्रेट है उसकी माथे पर ब्लैक कलर की छोटी सी बिंदी और मांग में सिंदूर भरा है। उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वह मृत्युंजय को यहां देखकर कितनी खुश है उसकी आंखों पर हैवी मेकअप के साथ आंखों में लेंस लगा रखा था वह दिखने में भी ठीक-ठाक थी।
वह अपने दोनों हाथ बांधकर मुस्कुराते हुए मृत्युंजय की तरफ देख रही थी।
मृत्युंजय ने जैसे ही उस औरत को अपने सामने खड़ा देखा वह राइट हैंड को अपने सर पर रखते हुए बोला, “तुम यहां क्या कर रही हो?"
वह औरत बड़ी ही नजाकत के साथ अपने पल्लू को संभालते हुए मृत्युंजय की चेयर के पीछे गई और उसने अपनी बाहें मृत्युंजय की गर्दन में डालते हुए बड़े प्यार से कहा, "तुम नहीं जानते क्या कि मैं यहां पर क्या कर रही हूं जैसे ही मुझे पता चला कि तुम आए हो देखो मैं दौड़े दौड़े तुम्हारे पास आई।"
मृत्युंजय ने अपनी आइस रोल किया और उसे लड़की का हाथ अपने गर्दन से हटाते हुए कहा, "तुम्हें मैंने कितनी बार मना किया है कि मेरे आस-पास मत भटका करो तुम्हें इतनी छोटी सी बात समझ में नहीं आती क्या?”
उस लड़की ने मृत्युंजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मुझे तो सब कुछ समझ में आता है बस तुम ही मेरी बात नहीं समझते।"
मृत्युंजय ने उसका हाथ झड़कते हुए कहा, "अवनी अगर तुम अभी के अभी यहां से वापस अपने रूम में नहीं गई तो....
अवनी ने मृत्युंजय की बात बीच में ही काटी और उसके करीब आते हुए बोली, “तो क्या करोगे तुम पनिशमेंट दोगे मुझे? मैं तो चाहती हूं कि तुम मुझे पनिश करो आज से नहीं मैं तो कब से तुम्हारी पनिशमेंट का इंतजार कर रही हूं।"
To be continued
Episode - 3 ब्लैक डार्क रूम अवनी ने मृत्युंजय की बात बीच में काटते हुए उसके करीब आई और बोली, “तो क्या करोगे तुम? पनिशमेंट दोगे मुझे? मैं तो चाहती हूँ कि तुम मुझे पनिश करो। आज से नहीं, मैं तो कब से तुम्हारी पनिशमेंट का इंतजार कर रही हूँ।” मृत्युंजय अवनी को घूरने लगा। अवनी ने मृत्युंजय की थ्री पीस सूट की शर्ट का बटन, जो चेस्ट तक खुला था, देखा और अपने होठों को भींच लिया। उसने अपना हाथ मृत्युंजय की शर्ट के अंदर डालना शुरू किया और सेक्सी अंदाज में होठों को काटते हुए कहा, "Come on MJ, दो मुझे पनिशमेंट। मैं तुम्हारी पनिशमेंट लेना चाहती हूँ।" मृत्युंजय ने अवनी की तरफ देखकर एक गहरी साँस ली और उसके हाथ को, जो उसके चेस्ट पर हरकत कर रहा था, घूरने लगा। मृत्युंजय ने अवनी का हाथ कसकर पकड़ा, उसके हाथ को पीठ के पीछे मोड़ते हुए कहा, “डोंट यू डेयर। अब अगर तुमने मुझे दोबारा MJ बोला या मुझे इस तरह से टच किया, तो तुम्हारे लिए बहुत बुरा होगा।” मृत्युंजय ने अवनी का हाथ इतने जोर से पकड़ा था कि उसकी कलाई लाल हो गई थी। उसके हाथ में दर्द हो रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान बरकरार थी। उसने मृत्युंजय की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “मैं सिर्फ तुम्हारा प्यार ही नहीं, तुम्हारे दिए हर एक दर्द से भी मोहब्बत करती हूँ। लेकिन पता नहीं कब तुम्हें यह बात समझ में आएगी। क्या तुम्हें मुझे देखकर कुछ भी फील नहीं होता? जिस तरह मैं तुम्हें देखकर फील करती हूँ, क्या तुम्हें मुझे देखकर कुछ भी फील नहीं होता? बोलो।” मृत्युंजय ने रूखे स्वर में कहा, “जस्ट शट अप। अपनी बकवास बंद करो और चली जाओ यहाँ से। वरना अगर मैं तुम्हें यहाँ से घसीटते हुए बाहर ले गया, तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। इस घर में तुम्हारी थोड़ी बहुत जरूरत है, वह भी मिट्टी में मिल जाएगी।” अवनी इतनी आसानी से मृत्युंजय की बात मानने वाली नहीं थी। मृत्युंजय ने गुस्से से दांत पीसे और कहा, “तुम इतनी आसानी से नहीं मानोगी ना?” अवनी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए मृत्युंजय के करीब गई और ना में सिर हिलाया। उसने उसका हाथ पकड़ा, उसे खींचते हुए स्टडी रूम के बाहर लाया और दरवाजे से बाहर धक्का देकर दरवाजा उसके मुँह पर बंद कर दिया। उधर, बड़े, गोल बेड पर बेहोश पड़ी लड़की को हल्का होश आया। उसने धीरे से आँखें खोलीं। उसे वही कमरा नज़र आया जहाँ वह कुछ देर पहले थी। उसके सामने मृत्युंजय खड़ा था, जिससे वह अपनी जान की भीख माँग रही थी और उसे अपने करीब आने से मना कर रही थी। जैसे ही लड़की को पूरा होश आया, उसके सामने सारी चीजें फ्लैश होने लगीं। उसने आँखें कसकर बंद करते हुए कहा, "ओह गॉड, प्लीज! मेरे साथ क्या हो रहा है? क्या मैं सच में उसी जगह पर हूँ? काश मैं अपनी आँखें खोलूँ और मैं अपने अनाथ आश्रम वाले रूम में चली जाऊँ। यह सब कुछ एक बुरा सपना हो। प्लीज, प्लीज गॉड।” लड़की रोते हुए खुद से बातें कर रही थी। जैसे ही उसने आँख खोली, उसकी सारी उम्मीद टूट गई क्योंकि यह सब कोई सपना नहीं था। वह सच में अभी भी इस आलीशान, बड़े, काले और ग्रे रंग के शेड वाले डार्क रूम में थी और उसका हाथ अभी भी रस्सी से बंधा हुआ था, हालाँकि रस्सी थोड़ी ढीली हो गई थी। उस लड़की ने अपनी बॉडी की तरफ देखा। उसकी बॉडी पर एक ग्रे कलर का बहुत ही सॉफ्ट ब्लैंकेट पड़ा हुआ था। उसे नहीं पता था कि उस समय उसने कपड़े पहन रखे थे या नहीं। उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "कोई है यहाँ पर? प्लीज मेरी मदद करो।" वह लड़की तेज आवाज में चिल्ला रही थी। तभी उस रूम का दरवाजा खुला और एक उसी उम्र की लड़की अंदर आई। उस लड़की ने अपने दोनों हाथ आगे बाँधकर सर झुकाते हुए कहा, "मैडम, अगर आपको कुछ चाहिए तो मुझे बताइए।" बेड पर बंधी लड़की ने उसे देखते हुए कहा, "कौन हो तुम? मैं कहाँ पर हूँ? तुम मुझे बता सकती हो? प्लीज मेरे हाथों को खोल दो। प्लीज, हेल्प मी।" उस लड़की ने सर झुकाते हुए कहा, "माफ़ कीजिएगा मैडम, लेकिन मैं आपका हाथ नहीं खोल सकती।" उस लड़की ने हैरान होते हुए कहा, "क्यों? क्यों नहीं खोल सकती तुम मेरा हाथ? प्लीज मेरी मदद करो। और तुम ऐसा क्यों बोल रही हो? क्या मृत्युंजय ने तुम्हें भी यहाँ पर बंद कर रखा है?" सामने खड़ी लड़की ने अपनी नज़रें नीचे झुकाए रखीं और कुछ नहीं कहा। उस लड़की ने रस्सी की तरफ देखकर कहा, "प्लीज, इन रस्सियों को खोल दो। देखो मेरे हाथ से कितना ब्लड आ रहा है। क्या तुम मेरी इतनी सी हेल्प नहीं कर सकती? कौन हो तुम? तुम्हारा क्या नाम है? तुम यहाँ पर मेरी तरह किडनैप तो नहीं हुई हो? क्योंकि अगर उस मृत्युंजय ने तुम्हें भी किडनैप किया होता, तो तुम इस तरह मेरे सामने नहीं खड़ी होतीं और तुम्हारे हाथ में तो कोई रस्सी भी नहीं है। तुम चाहो तो मुझे इस रस्सी से आजाद कर सकती हो। प्लीज मुझे आजाद कर दो।" उस लड़की ने सर झुकाते हुए कहा, "मैडम, इसके अलावा अगर आपको मेरी कोई मदद चाहिए तो मुझे बताइए, वरना इसके अलावा मैं आपकी और कोई मदद नहीं कर सकती।" वह लड़की कन्फ्यूज होकर बोली, “तुम्हारा नाम क्या है?” सामने खड़ी लड़की ने सर झुकाते हुए कहा, "मेरा नाम ज्योति है और मुझे यहाँ पर मृत्युंजय सर ने आपकी केयर करने के लिए रखा है।" बेड पर लेटी लड़की ने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "अच्छा, तो तुम उसे मृत्युंजय के लिए काम कर रही हो इसीलिए मेरा हाथ नहीं खोल रही? चली जाओ यहाँ से।" वह लड़की चुपचाप कमरे से बाहर चली गई। बेड पर लेटी लड़की ने झुंझलाते हुए कहा, "मैं भी कहाँ फँस गई! काश मैं उस दिन अनाथालय से बाहर ना आई होती और ना ही इस मृत्युंजय सिंघानिया के पास जाती। ना ही वह मुझे इतनी बड़ी रकम डोनेट करता, ना ही मेरा उसे दोबारा मिलना होता, ना ही मैं आज यहाँ फँसती। क्यों गई मैं उस दिन…" तीन दिन पहले फ्लैशबैक स्टार्ट तीन दिन पहले, श्रद्धा अनाथ आश्रम की संस्थापक की पोती, मनु श्री आंटी, अपने केबिन से बाहर निकली और तेज आवाज में चिल्लाते हुए बोली, “कहाँ हो ईशू बेटा? जल्दी यहाँ आओ।” उनकी आवाज सुनते ही, 19 साल की एक गोरी, पतली, दुबली, छरहरे बदन वाली खूबसूरत लड़की, जो हमेशा से ही उस अनाथ आश्रम में रही है, मनु श्री आंटी की आवाज सुनकर भागते हुए उनके पास आई और बोली, “क्या बात है मनु आंटी? आपने मुझे बुलाया।” मनु श्री आंटी बोलीं, “हाँ ईशू, मैंने तुझे कल रात में बताया था ना कि तुझे हमारे अनाथ आश्रम के ट्रस्टी से अनाथ आश्रम के लिए डोनेशन माँगने जाना है। तुम अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई?” ईशान्वी, जिसने एक सिम्पल सी जीन्स और टॉप पहन रखा था, उसके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था, सिवाय आँखों में काजल के। लंबे, घने बालों की पोनीटेल उसकी कमर तक आ रही थी। उसने अपने कपड़ों की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "लेकिन मनु आंटी, इन कपड़ों में क्या बुराई है? और वैसे भी मेरे पास कहाँ कोई ज़्यादा अच्छे कपड़े हैं? और वैसे भी, बस मुझे डोनेशन लेने ही तो जाना है। आप मुझे हमारे ट्रस्टी का नाम बताओ और मुझे एड्रेस दो। मैं अभी थोड़ी देर में डोनेशन लेकर आती हूँ। उसके बाद मुझे कॉलेज के कुछ नोट्स भी प्रिपेयर करने हैं।" सामने खड़ी मनु श्री ने अपना सिर पीटते हुए कहा, "हे भगवान! क्या करूँ मैं इस लड़की का?" मनु श्री बोल ही रही थीं कि ईशान्वी मनु श्री के बिल्कुल करीब जाकर उसके गालों को खींचते हुए बोली, "क्या मनु आंटी? आप तो बस मुझे एड्रेस दो। मैं अभी फटाफट थोड़ी देर में आती हूँ।” मनु श्री ने उसके हाथ में एक कार्ड दिया और ईशान्वी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोलीं, “देख ईशान्वी, कोई गड़बड़ मत करना। हमें इस डोनेशन की बहुत ज़रूरत है। तू जानती है ना?” ईशान्वी ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ मुझे पता है। मैं कोई गड़बड़ नहीं करूँगी। वैसे मनु आंटी, आप मुझे ही यह डोनेशन लेने के लिए क्यों भेज रही हो? आप भी तो जा सकती हो ना?" मनु श्री ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा, "देख ईशान्वी, आजकल तू मुझसे बहुत ज़ुबान लड़ाने लगी है। और अगर मैं यह सारे काम करूँगी, तो बाकी के काम कौन देखेगा?" ईशान्वी ने उस कार्ड को घुमाकर देखा और बचकाना मुँह बनाते हुए कहा, "बाय गॉड! क्या नाम है? मृत्युंजय सिंघानिया! सुनकर ही लग रहा है कि कोई खतरनाक इंसान होगा। मनु आंटी, ये कोई अंडरवर्ल्ड डॉन तो नहीं है ना?" मनु श्री ने अपना सिर पीटते हुए कहा, "ये लड़की कितने सवाल करती है तू? बहुत अच्छे इंसान हैं ये। तुझे पता नहीं है। आज तक इन्होंने न जाने कितने लाख रुपए हमारी एनजीओ में दिए हैं। बस तू इतना याद रखना कि वह तुझसे नाराज़ ना हो।” ईशान्वी ने बिल्कुल केयरलेस होकर कहा, "हाँ हाँ ठीक है। मैं याद रखूँगी। अब मैं जाऊँ या आप ही यहाँ खड़ी होकर मुझसे बात करके सारा टाइम निकालना चाहती हो?" मनु श्री ने ना में सिर हिलाया और उसे 200 का नोट हाथ में पकड़ाते हुए कहा, "जल्दी जाओ और जल्दी वापस आना। और भगवान के लिए खाली हाथ वापस मत आना।" ईशान्वी सलूट करते हुए बोली, “ओके बॉस।” थोड़ी देर बाद ईशान्वी अनाथ आश्रम से बाहर निकली और सीधे बस पकड़कर उस एड्रेस पर पहुँची। जैसे ही ईशान्वी वहाँ पहुँची, उसने एक बड़ा सा लोहे का गेट देखा जहाँ सामने एक गार्ड बैठा था। ईशान्वी उस गार्ड के पास जाकर बोली, “अंकल, मुझे सिंघानिया मेंशन के अंदर जाना है!” उस गार्ड ने ईशान्वी के सिम्पल कपड़ों को देखकर घूरते हुए कहा, "क्या करने जाना है तुम्हें अंदर?" ईशान्वी ने अपने हाथ में पकड़ी हुई फ़ाइल और कार्ड, जिस पर मृत्युंजय सिंघानिया का पता लिखा था, दिखाया। ईशान्वी उस गार्ड से बोली, “मैं आस्था अनाथ आश्रम से आई हूँ। मुझे मनु श्री आंटी ने डोनेशन लेने के लिए भेजा है।” ईशान्वी ने जैसे ही गार्ड को पूरी बात बताई, गार्ड ने सिंघानिया मेंशन का लोहे का बड़ा सा गेट खोल दिया। To be continued
Episode - 4 Come with me ईशान्वी ने जैसे ही गार्ड को पूरी बात बताई, गार्ड ने सिंघानिया मेंशन के बाहर लगा वह लोहे का बड़ा सा गेट खोल दिया। ईशान्वी गार्ड की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक यू सो मच अंकल।" इतना बोलकर वह सिंघानिया मेंशन के अंदर आई। जैसे ही वह मेंशन के बाहर पहुँची, ईशान्वी ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, "बाय गॉड! कितना बड़ा घर है यह! इसे देखकर तो ऐसा लग रहा है हमारे अनाथालय जैसे 10 अनाथालय इस विला के अंदर एक साथ आ जाएँगे।" ईशान्वी उस विला के अंदर गई जहाँ पर सब कुछ गोल्डन कलर की थीम में था। सामने लगा बड़ा सा झूमर, जिसके नीचे बैठने के लिए बड़े-बड़े काउच रखे हुए थे। साथ ही, थोड़ी सी दूर दूरी पर गोल्डन कलर के इंटीरियर का डाइनिंग टेबल रखा हुआ था। ईशान्वी भी उस पूरी जगह को देखकर काफी ज्यादा खुश हो रही थी। उस विला की खूबसूरती और उसकी चमचमाहट देखकर ईशान्वी की आँखें चमक गईं। उसने चारों तरफ अपनी नज़र घुमाई और सामने आकर उस बड़े ही आरामदायक सोफे पर बैठकर थोड़ा सा हिलते हुए बोली, "कितना सॉफ्ट है यह! सोचो, अगर यह डायनिंग एरिया इतना खूबसूरत है, तो इस विला के अंदर के रूम कितने खूबसूरत होंगे।" ईशान्वी यह बात सोच कर जल्दी से उठकर खड़ी हुई। तभी उसने वहाँ पर किसी के आने की आहट सुनी और वह चुपचाप अपना हाथ बाँधकर खड़ी हो गई। उसने इधर-उधर देखा। उस ग्रे कलर के थ्री पीस सूट पहने हुए एक लंबा चौड़ा, 6 फुट का, गेहूँए रंग की स्किन वाला आदमी नज़र आया। वह सामने की बड़ी गोल घुमावदार सीढ़ियों से नीचे उतरकर आ रहा था। उसके पीछे एक आदमी था जिसने शर्ट, जींस और साथ में ब्लेज़र पहना हुआ था। उसके हाथ में तीन-चार फाइल्स और दो बड़े मोबाइल फ़ोन थे। वहीं पीछे चार सिक्योरिटी गार्ड्स थे, जिन्होंने काले चश्मे पहन रखे थे। वे पूरी तेज़ी से उस आदमी के पीछे-पीछे चल रहे थे। ईशान्वी ने जैसे ही उस आदमी को देखा, वह उसे देखते रह गई। उसने हैरान होते हुए कहा, "यही है क्या मिस्टर मृत्युंजय सिंघानिया?" ईशान्वी मृत्युंजय को देखकर उसकी तरफ भागा और उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "मिस्टर सिंघानिया! 1 मिनट मेरी बात सुनिए!" इतना बोलकर वह आगे बढ़ ही रही थी कि तभी ईशान्वी का पैर फर्श पर फिसला और वह लड़खड़ा कर सीधे मृत्युंजय के सामने गिर पड़ी। मृत्युंजय चलते-चलते रुक गया और उसने अपने बगल में खड़े आदमी की तरफ देखते हुए कहा, “आशीष, हम पहले ही मीटिंग में पहुँचने के लिए लेट हो चुके हैं, और तुम जानते हो ना मुझे लेट होना बिल्कुल पसंद नहीं। तो अब यह सब क्या है? कौन है यह लड़की? इसे हटाओ मेरे सामने से।” ईशान्वी, जो जमीन पर गिरी हुई थी, उसने अपना हाथ झाड़ा और अपने कपड़ों को साफ करते हुए अपने मन में बोली, "कितना खड़ूस है यह! मैंने सोचा मैं गिर गई तो शायद यह मुझे उठाएगा, लेकिन यह तो... और मनु आंटी तो बोल रही थी कि यह बहुत ही अच्छा इंसान है, लेकिन इसकी आवाज सुनकर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा।" ईशान्वी ने अपने कपड़े साफ किए और जैसे ही वह उठकर खड़ी हुई, मृत्युंजय की नज़र सीधे ईशान्वी के चेहरे पर पड़ी। ईशान्वी ने उसकी आँखों में आँखें डालकर उसे देखा। आशीष उसके पास आकर बोला, “ऐ लड़की! ये क्या कर रही हो तुम यहाँ पर? क्या काम है तुम्हें?” ईशान्वी आशीष को मृत्युंजय का कार्ड दिखाते हुए बोली, "मैं आस्था अनाथालय से आई हूँ। मुझे मनु श्री आंटी ने भेजा है। वह मिस्टर मृत्युंजय सिंघानिया आप ही हैं क्या?" आशीष ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और धीमी आवाज में कहा, “अपनी आवाज नीचे करो। तुम्हें पता भी है तुम बॉस के सामने इस तरह नहीं बोल सकती।” ईशान्वी ने जैसे ही आशीष की बात सुनी, उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई और वह खुश होते हुए बोली, "बॉस! इसका मतलब यही हैं मिस्टर मृत्युंजय सिंघानिया। सर, प्लीज क्या आप मुझे आश्रम के लिए डोनेशन दे सकते हैं? यह डोनेशन हमारे एनजीओ के लिए बहुत इम्पॉर्टेन्ट है और मैं अपनी आंटी को अपसेट नहीं करना चाहती।" ईशान्वी के चेहरे की मुस्कुराहट और उसके बोलने के अंदाज को देखकर मृत्युंजय उसे घूरते हुए देखने लगा। उसकी नज़र एकटक ईशान्वी पर ही टिक गई थी। आशीष ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे साइड में लाते हुए कहा, "यहाँ पर रुको। मैं अभी आता हूँ और खबरदार अगर तुमने अपने मुँह से एक शब्द भी निकाला तो।" ईशान्वी भी चुपचाप वहीं पर खड़ी हो गई। मृत्युंजय अभी भी ईशान्वी को घूरते हुए ही देख रहा था। आशीष जल्दी से मृत्युंजय के पास आया और उसने अपना हाथ बाँधते हुए कहा, "बॉस, आप मीटिंग में पहुँचिए। मैं इस लड़की के मैटर को सॉर्ट आउट करके आता हूँ।" मृत्युंजय ने आशीष की बात सुनकर ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, इस लड़की को ऑफिस में लेकर आओ। मैं खुद इसे डोनेशन दूँगा, वह भी अपने हाथों से।" इतना बोलकर मृत्युंजय सीधे सिंघानिया मेंशन से बाहर निकल गया। ईशान्वी मृत्युंजय के पीछे भागने वाली थी। उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "1 मिनट सर! मेरी बात तो सुनिए!" लेकिन मृत्युंजय ने उसे पलट कर नहीं देखा और वह सीधे अपने बॉडीगार्ड के साथ बाहर की तरफ चला गया। ईशान्वी अपना सिर पीटते हुए बोली, "ईशान्वी! यह क्या किया तूने? एक काम भी तुझसे ठीक से नहीं होता क्या? किसने कहा था ऐसे हड़बड़ी में सिर के सामने आने के लिए? पता नहीं वह अगर मुझसे नाराज़ हो गए तो हमें डोनेशन देंगे भी या नहीं।" ईशान्वी के चेहरे पर टेंशन साफ़ नज़र आ रही थी। तभी आशीष उसके पास आकर बोला, “बॉस ने तुम्हें अपने ऑफिस में बुलाया है। चलो, बॉस के ऑफिस। वहीं कर तुमसे बात करेंगे।” ईशान्वी ने अपने हाथ में पकड़े हुए डेढ़ सौ रुपये देखते हुए कहा, "क्या कहा? आपके ऑफिस? लेकिन अगर मैं ऑफिस गई तो वापस अनाथालय कैसे पहुँचूँगी? मुझे डोनेशन ही तो चाहिए! आप यहीं पर कुछ डोनेशन नहीं दे सकते क्या?" आशीष ने उसे घूरते हुए देखा और डाँटते हुए कहा, "चुपचाप मेरे साथ चलो।" ईशान्वी आशीष के पीछे-पीछे आने लगी और उसने अपने मन में कहा, "जैसा इसका बॉस है, वैसे ही यह भी है। बिल्कुल खड़ूस।" आशीष मेंशन के बाहर खड़ी कार का दरवाजा खोलते हुए बोला, “बैठो इसमें।” ईशान्वी ने अपनी आँखें चौड़ी करते हुए कहा, "इस कार में? मैं इस कार में बैठकर ऑफिस जाने वाली हूँ?" आशीष ने हाँ में अपना सिर हिलाया। ईशान्वी भी उस कार के पास गई और उसे अपने हाथ से छूते हुए बोली, "क्या बात है ईशान्वी! आज इसका चेहरा देखकर उठी थी?" ईशान्वी यह बात कार के बाहर ही खड़े होकर सोच रही थी। तभी आशीष ने सख्ती से कहा, "तुम अंदर बैठ रही हो या नहीं?" ईशान्वी भी जल्दी से कार के अंदर बैठ गई। ईशान्वी जैसे ही कार में बैठी, कार स्टार्ट हुई। आशीष ड्राइविंग सीट के बगल में बैठा था और ड्राइवर ने कार स्टार्ट कर दी। ईशान्वी कार में बैठकर काफी ज्यादा खुश लग रही थी। तभी उसका मोबाइल फ़ोन पर नोटिफिकेशन रिंग हुआ। ईशान्वी ने अपना मोबाइल फ़ोन चेक करने के लिए निकाला और मुस्कुराते हुए मैसेज करने लगी। आशीष फ्रंट मिरर से उसे ही देख रहा था। वहीं आशीष का फ़ोन बजा। उसने अपना फ़ोन रिसीव करते हुए कहा, "यस बॉस, बस हम थोड़ी देर में पहुँचने वाले हैं।" ईशान्वी पूरी रास्ते अपने फ़ोन पर किसी से चैटिंग कर रही थी। उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वह कितनी ज्यादा खुश है। अब आशीष को यह समझ नहीं आ रहा था कि ईशान्वी कार में बैठने की वजह से इतनी खुश है या फिर किसी से चैट करके। ईशान्वी अपने फ़ोन में ही लगी थी कि थोड़ी देर बाद कार रुकी। आशीष ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा, "उतरों।" ईशान्वी भी जल्दी से कार से बाहर आई और सिंघानिया की ऑफिस बिल्डिंग के बाहर खड़ी होकर उसने ऑफिस बिल्डिंग को ऊपर तक देखा। सिंघानिया बिल्डिंग 20 फ्लोर की थी, जिसे देखकर ईशान्वी बिल्कुल दंग रह गई। उसने आशीष की तरफ देखते हुए कहा, "इस बिल्डिंग के अंदर हमें जाना है?" आशीष ने ईशान्वी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वह चुपचाप आगे बढ़ते हुए बोला, “फॉलो मी।” ईशान्वी भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी। लिफ्ट के पास पहुँचकर आशीष ने 15 फ्लोर का बटन प्रेस किया। ईशान्वी अभी भी अपने फ़ोन में लगी हुई थी। तभी आशीष ने उसकी तरफ देखकर अपना गला साफ़ करते हुए कहा, "अभी जितना फ़ोन उसे करना है कर लो। बॉस के सामने अपना फ़ोन बंद कर लेना। समझी?" ईशान्वी के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई और उसने हाँ में अपना सिर हिलाया। थोड़ी ही देर में वे लोग सीधे मृत्युंजय के केबिन में पहुँचे। आशीष ने मृत्युंजय के केबिन का दरवाज़ा खोला और ईशान्वी को अंदर जाने का इशारा किया। ईशान्वी केबिन के अंदर गई। केबिन में ज़्यादा उजाला नहीं था। विंडो पर पर्दे पड़े हुए थे और केबिन में ना ही मृत्युंजय था और ना ही कोई दूसरा आदमी। ईशान्वी भी चुपचाप अंदर गई और उसने अपने कंधे उचकाते हुए कहा, “अजीब आदमी है! खुद तो यहाँ पर है नहीं और मुझे अकेले यहाँ पर भेज दिया। और कैसे लोग हैं इन्होंने दोपहर के टाइम भी विंडो पर पर्दे डाल रखे हैं! कैसे रहते हैं यह लोग इतने अंधेरे में?” To Be Continued
Episodes - 5 Date night... ईशान्वी चुपचाप अंदर गई और कंधे उचकाते हुए बोली, “अजीब आदमी है! खुद तो यहां नहीं है और मुझे अकेले भेज दिया। कैसे लोग हैं ये? दोपहर के टाइम भी विंडो पर कर्टन डाले हुए हैं। कैसे रहते हैं ये लोग इतने अंधेरे में?” इतना बोलकर ईशान्वी सीधे विंडो के पास गई और सारे कर्टन खोल दिए। केबिन में काफी उजाला हो गया। ईशान्वी वहीं खड़ी होकर बाहर देखने लगी और गहरी सांस लेते हुए बोली, "हमारा शहर कितना खूबसूरत है! और इतनी ऊंचाई से देखने पर तो और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा है।" ईशान्वी चुपचाप वहीं केबिन में पड़े सोफे पर बैठ गई। आधे घंटे इंतज़ार करने के बाद केबिन का दरवाज़ा खुला और मृत्युंजय आशीष के साथ अंदर आया। जैसे ही ईशान्वी ने उन्हें आते देखा, वह उठकर खड़ी हो गई। मृत्युंजय अपने चेयर के पास आकर रुका और उसकी नज़र कर्टन पर गई। उसने आशीष को घूर कर देखा और आशीष भागता हुआ विंडो के पास गया और सारे कर्टन दोबारा बंद कर दिए। जैसे ही केबिन में अंधेरा हुआ, मृत्युंजय आराम से अपनी चेयर पर बैठ गया। ईशान्वी वहीं चुपचाप खड़ी थी और धीरे-धीरे मृत्युंजय को देखकर उसके करीब बढ़ने लगी। उसने अपने मन में कहा, “अजीब इंसान है! इतने अंधेरे में पता नहीं कैसे रह लेता है। खैर, मुझे क्या? मुझे तो बस डोनेशन चाहिए और फिर मैं यहां से निकलूं।” मृत्युंजय ईशान्वी को सिर से लेकर पैर तक घूरते हुए देख रहा था। ईशान्वी उसके सामने आई और अपने हाथ में पकड़ी हुई फ़ाइल उसके सामने रखते हुए बोली, "सर, हमारे NGO को आपके डोनेशन की बहुत ज़रूरत है। प्लीज़, अगर आप अभी मुझे कुछ डोनेशन दे दें, तो..." मृत्युंजय ने ईशान्वी की तरफ़ देखा और कुछ नहीं बोला। ईशान्वी अपने मन में बोली, "इतना एटीट्यूड क्यों है इस आदमी में? मेरी बात का एक कोई जवाब क्यों नहीं दे रहा।” मृत्युंजय को इस तरह चुपचाप बैठे देखकर ईशान्वी उदास होते हुए बोली, "सर, अगर मैंने सुबह जो गलती की, उस वजह से आप मुझसे नाराज़ हो गए हैं और मुझे डोनेशन नहीं दे रहे, तो आप मुझे बता दीजिए। मैं सॉरी बोल दूँगी। बट प्लीज़, आप मुझे डोनेशन देने से मत मना करिए।” मृत्युंजय ने उसे घूरते हुए कहा, "लेकिन मैंने तो अभी तक कुछ कहा ही नहीं। तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं तुम्हें डोनेशन नहीं दूंगा?" ईशान्वी ने जैसे ही मृत्युंजय के मुंह से बात सुनी, वह खुश होते हुए बोली, "मतलब आप मुझे डोनेशन देंगे? थैंक यू सो मच सर!" ईशान्वी के चेहरे की मुस्कुराहट देखकर मृत्युंजय ने तुरंत अपनी चेकबुक निकाली और उसमें दस लाख रुपए का चेक साइन करके ईशान्वी को देते हुए कहा, "यह लो तुम्हारा डोनेशन। अगर काम हो तो मुझे बताना।" ईशान्वी ने जैसे ही दस लाख रुपए का चेक देखा, वह खुश होते हुए बोली, "क्या! दस लाख रुपए? थैंक यू सो मच सर! आप को नहीं पता आप कितने अच्छे हैं। मनु श्री आंटी तो खुश हो जाएंगी! थैंक यू सो मच सर।” ईशान्वी खुशी से झूम उठी। मृत्युंजय उसे देखकर तिरछी मुस्कुराहट से मुस्कुराया। ईशान्वी ने चेक अपने बैग में रखा और फ़ाइल उठाते हुए बोली, "थैंक यू सो मच सर।” इतना बोलकर वह केबिन से बाहर निकलने लगी। तभी मृत्युंजय पीछे से बोला, “एक मिनट रुको!” ईशान्वी मृत्युंजय की आवाज सुनकर रुक गई और उसके सामने आकर बोली, "यस सर।” मृत्युंजय ने कहा, "तुम्हारा नाम क्या है?" ईशान्वी मुस्कुराते हुए बोली, "ईशान्वी नाम है मेरा!" मृत्युंजय ने आशीष की तरफ़ देखते हुए कहा, “जाओ आशीष, मिस ईशान्वी को उनके घर तक छोड़ कर आओ।” ईशान्वी ने जैसे ही यह बात सुनी, वह रुकी और पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुए बोली, "थैंक यू सो मच सर, बट मैं चली जाऊंगी।" मृत्युंजय ने आशीष की तरफ़ देखा और आशीष ने ईशान्वी से कहा, "मेरे साथ आइए।” ईशान्वी हैरानी से उसकी तरफ़ देखने लगी और पीछे मुड़कर मृत्युंजय की तरफ़ देखकर मुस्कुरा दी। मृत्युंजय उसकी मुस्कुराहट देखता रह गया। ईशान्वी सीधे आशीष के साथ आस्था अनाथालय पहुँची। ईशान्वी काफी खुश थी और वह सीधे मनु श्री के केबिन में गई और उसे फ़ाइल और चेक देते हुए बोली, "सही कहा था मनु आंटी आपने! ये मिस्टर मृत्युंजय तो बड़े दिलवाले निकले! उन्होंने मुझे दस लाख का चेक दिया है।” मनु श्री ने जैसे ही यह बात सुनी, वह छट से ईशान्वी के पास आई और उसके हाथ से चेक छीन कर देखते हुए बोली, "सच में? दिखाओ मुझे।” मनु श्री ने जैसे ही दस लाख का चेक देखा, वह हैरान हो गई और ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए बोली, "सच में ईशान्वी! तू मेरी सबसे अच्छी बच्ची है! यह रहा तेरा इनाम।" इतना बोलकर उसने ईशान्वी के हाथ में पाँच सौ रुपये का नोट रख दिया। ईशान्वी खुश होते हुए बोली, "थैंक यू सो मच मनु श्री आंटी! अभी मैं चलती हूँ।” इतना बोलकर ईशान्वी वहाँ से चली गई। अगले दिन सुबह ईशान्वी भागते हुए आश्रम से बाहर निकली और फ़ोन रिसीव करते हुए बोली, "कहाँ हो तुम अर्जुन? मैं पहले ही कॉलेज पहुँचने के लिए लेट हो गई हूँ और तुम?" फ़ोन के दूसरी तरफ़ से आवाज आई, “अरे बाबा! तुम आश्रम से बाहर तो निकलो! मैं रोड पर ही खड़ा हूँ, तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।” ईशान्वी ने जैसे ही यह बात सुनी, वह भागते हुए आश्रम से बाहर निकली और देखा कि बाइक पर व्हाइट कलर की शर्ट और ब्लू कलर की जीन्स पहने एक लड़का होंडा कंपनी की बाइक पर बैठा था। ईशान्वी भागते हुए उसके पीछे बाइक पर बैठते हुए बोली, "चलो जल्दी! वरना हम और लेट हो जाएँगे।" ईशान्वी उसके साथ सीधे अपने कॉलेज पहुँची। ईशान्वी ने कॉलेज में इतनी भीड़ देखकर कहा, "अर्जुन, आज कॉलेज में इतनी ज़्यादा भीड़ क्यों है?" अर्जुन ने कंधे उचकाते हुए कहा, "पता नहीं ईशु! रुक जाओ, मैं देखता हूँ।" वह दोनों वहीं रुक गए। थोड़ी देर बाद अर्जुन ईशान्वी के पास आकर बोला, “अरे, आज हमारे कॉलेज के ट्रस्टी आ रहे हैं ना, इसीलिए इतनी ज़्यादा आवभगत में लगे हैं सब।" ईशान्वी ने कहा, "अरे अर्जुन, तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो? अगर वे हमारे कॉलेज के ट्रस्टी हैं, तो हमें भी उनके वेलकम के लिए कुछ करना चाहिए, है ना?" अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए कहा, "पागल हो क्या? चलो, कोई ज़रूरत नहीं है ये सब करने की। और वैसे भी, भूल गई क्या? तुम आज शाम को हम डेट पर जा रहे हैं।" ईशान्वी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "अरे हाँ, मुझे याद है। तुम अपनी क्लासेस ले लो, उसके बाद मैं शाम को यहीं कॉलेज से ही तुम्हारे साथ चलूंगी।” अर्जुन मुस्कुराते हुए ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, "पक्का?" ईशान्वी ने हाँ में अपना सिर हिलाया और उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाकर अपनी क्लास लेने के लिए चली गई। काफी देर बाद कॉलेज की सारी क्लासेस खत्म हो गईं और सभी लोग कॉलेज के ट्रस्टी के आने का इंतज़ार कर रहे थे। तभी, जैसे ही ईशान्वी अपनी क्लास से निकलकर कॉलेज से बाहर जा रही थी, सामने से आ रही कार नज़र आई और साथ ही आगे-पीछे और भी दो कारें थीं। ईशान्वी वहीं रुक गई। थोड़ी ही देर बाद कॉलेज के ट्रस्टी सीधे सेमिनार हॉल में पहुँच गए। ईशान्वी अपनी बेस्ट फ्रेंड नंदिता के साथ कॉलेज से बाहर निकलने जा रही थी कि तभी नंदिता ने कहा, "चल ना ईशान्वी, हम चलकर देखते हैं कि आखिर हमारे कॉलेज के ट्रस्टी कौन हैं?" ईशान्वी ने कहा, "अरे यार, मेरी अर्जुन के साथ डेट है, मैं नहीं जाऊँगी।” नंदिता ने उसे छेड़ते हुए कहा, "अरे, वह फ़ाइनली तू अर्जुन के साथ डेट पर जाने के लिए मन ही गई है ना! चल फिर, मैं तुझे कल मिलती हूँ और मुझे तो सारी बात बताना कि तुम दोनों ने डेट पर क्या-क्या किया।” ईशान्वी मुस्कुराने लगी। तभी, ईशान्वी वहाँ से बाहर जा रही थी कि उसने आगे की तरफ़ से आते हुए लोगों को नहीं देखा और उनसे जाकर टकरा गई। जैसे ही ईशान्वी उनसे टकराई, सामने से आ रहे आदमी ने ईशान्वी की कमर को पकड़ा और उसे गिरने से रोक लिया। ईशान्वी उस आदमी की तरफ़ देखे बिना बोली, "थैंक यू सो मच! आपने मुझे बचा लिया।” इतना बोलकर जैसे ही ईशान्वी ने अपनी नज़र ऊपर की तरफ़ घुमाई, वहाँ कोई और नहीं, बल्कि मृत्युंजय सिंघानिया खड़ा था। उसे देखकर ईशान्वी शॉक्ड होते हुए बोली, "मिस्टर सिंघानिया! आप यहाँ?" ईशान्वी अभी भी मृत्युंजय के पास थी और मृत्युंजय उसे देखता ही जा रहा था। उसने पूछा, “तुम यहाँ क्या कर रही हो?” ईशान्वी ने कहा, "मैं इसी कॉलेज में पढ़ती हूँ।” ईशान्वी इतना बोलकर सीधे खड़ी हुई। तभी कॉलेज के प्रिंसिपल और हेड मास्टर वहाँ आए और ईशान्वी को देखकर बोले, "क्या कर रही हो तुम यहाँ पर?" कॉलेज प्रिंसिपल को ऐसा लगा कि शायद ईशान्वी ने कोई गड़बड़ कर दी है और उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, "लड़की! क्या कर रही हो तुम यहाँ? सॉरी बोलो!" ईशान्वी ने प्रिंसिपल की तरफ़ देखकर ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "एक्चुअली सर, वह..." ईशान्वी बोल ही रही थी कि प्रिंसिपल ईशान्वी को डांटते हुए बोले, “सुनाई नहीं दे रहा! हमने क्या कहा? जाओ सर से माफ़ी माँगो।” ईशान्वी डाँट खाकर चुप हो गई। तभी मृत्युंजय प्रिंसिपल और हेड मास्टर की तरफ़ देखते हुए बोला, “अरे सर! आप लोग उसे किस तरह से बात कर रहे हैं? और वैसे भी, उसने कुछ नहीं किया है तो फिर वह सॉरी क्यों बोलेगी!" मृत्युंजय के मुँह से यह बात सुनकर ईशान्वी उसकी तरफ़ हैरानी से देखने लगी। तभी मृत्युंजय ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “मेरे साथ आओ ईशान्वी। अब सब मेरे साथ आइए।” मृत्युंजय ईशान्वी को अपने साथ लेकर सीधे प्रिंसिपल के ऑफ़िस में पहुँचा और उसने पचास लाख का चेक निकाला और उसे ईशान्वी के हाथ में देते हुए कहा, "यह लो तुम्हारे कॉलेज के लिए। जाओ, इसे अपने प्रिंसिपल सर को दे दो।” प्रिंसिपल सर और हेड मास्टर मृत्युंजय को ऐसा करते देखकर हैरान हो गए। ईशान्वी भी काफी खुश लग रही थी। To Be Continued
Episode - 6 प्रिंसिपल सर और हेड मास्टर मृत्युंजय को ऐसे करते देखकर बिल्कुल हैरान हो गए थे। ईशान्वी भी काफी ज्यादा खुश लग रही थी। मृत्युंजय ईशान्वी को मुस्कुराते देखकर बोला, “मिस ईशान्वी, कहाँ जा रही हैं आप अब?” ईशान्वी ने झट से उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, "वह एक्चुअली, मिस्टर सिंघानिया मुझे कुछ काम था इसलिए मैं वापस जा रही थी।” मृत्युंजय ने कहा, "अगर आप कहें तो मैं आपको छोड़ दूँ!” ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, वह एक्चुअली मेरी फ्रेंड मेरे लिए कॉलेज के बाहर वेट कर रही है। थैंक यू सो मच आपके इतने कंसर्न के लिए।” इतना बोलकर ईशान्वी सीधे कॉलेज से बाहर निकल गई। ईशान्वी जैसे ही कॉलेज के बाहर पहुँची, उसने देखा अर्जुन उसका पहले से ही इंतज़ार कर रहा था। ईशान्वी अर्जुन की बाइक पर बैठते हुए बोली, “चलो, कहाँ चलने का प्लान है आज?” अर्जुन ने ईशान्वी को छेड़ते हुए कहा, "आप बताओ, कहाँ चलेंगे।” ईशान्वी ने कहा, "डेट पर आप मुझे ले जा रहे हैं, आप बता तो सकते हैं ना?” अर्जुन ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा, “बैठो, सरप्राइज है आपके लिए।” ईशान्वी अर्जुन के साथ कॉलेज से बाहर निकली और एक छोटे से रेस्टोरेंट के बाहर अर्जुन ने अपनी बाइक रोकी। ईशान्वी अर्जुन के साथ काफी ज्यादा खुश लग रही थी। यह उसकी अर्जुन के साथ पहली डेट थी। अभी कुछ दिन पहले ही अर्जुन ने ईशान्वी को प्रपोज किया था और ईशान्वी ने उसके प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लिया था। उन दोनों की डेटिंग स्टार्ट हुए अभी मुश्किल से 2 महीने भी नहीं हुए थे। लेकिन ईशान्वी अर्जुन के साथ काफी ज्यादा खुश रहने लगी थी। जब अर्जुन ईशान्वी को डेट पर लेकर गया, तो उसने ईशान्वी के साथ काफी अच्छा टाइम स्पेंड किया। अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए कहा, “मेरे पास आपके लिए गिफ्ट है!” ईशान्वी भी खुश होते हुए बोली, “क्या कहा आपने? गिफ्ट!” अर्जुन ने हाँ में अपना सिर हिलाया और उसके हाथ पर एक बॉक्स रखते हुए कहा, "खोलो और देखो, कैसा लगा?” ईशान्वी ने जल्दी से उस बॉक्स को ओपन करके देखा और उसमें एक प्यारा सा ब्रेसलेट था। जिसे देखकर ईशान्वी भी खुश होते हुए बोली, “वाह! ये मेरे लिए है?” अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्या? आपको पसंद नहीं आया क्या?” ईशान्वी भी खुश होते हुए बोली, “बहुत अच्छा है! लेकिन मैं आपके लिए कोई गिफ्ट नहीं ला पाई!” अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, “कोई बात नहीं। कोई गिफ्ट लेकर नहीं आ पाई, लेकिन फिर भी आप मुझे अभी बहुत अच्छा गिफ्ट दे सकती हैं।” ईशान्वी ने जैसे ही अर्जुन के मुँह से बात सुनी, उसने थोड़ा कंफ्यूज होते हुए कहा, “क्या मतलब है आपका? साफ-साफ बोलो!” अर्जुन ने आँख मारते हुए कहा, "आप मुझे गिफ्ट में किस दे सकती हैं, वह तो आपके बस में भी है और बजट में भी।" ईशान्वी भी अर्जुन की बात सुनकर उसके कंधे पर हल्के से मारते हुए बोली, “जस्ट शट अप! मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रही। और रही बात गिफ्ट की, तो नेक्स्ट टाइम जब हम मिलेंगे, तो मैं आपके लिए कोई ना कोई गिफ्ट ज़रूर लेकर आऊँगी।" अर्जुन ने ईशान्वी के बिल्कुल करीब जाते हुए कहा, “बाद की बात बाद में देखी जाएगी, अभी तो आपको मुझे किस देनी ही पड़ेगी।” ईशान्वी बिना कुछ बोले वहाँ से उठकर जाने लगी। और तभी अर्जुन उठकर उसके पीछे भागा और वह दोनों उस रेस्टोरेंट से बाहर निकल आए। अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ कसकर पकड़ते हुए कहा, "अगर आपको यहाँ पब्लिक प्लेस पर मुझे किस करने में शर्म आ रही है, तो हम कहीं साइड में भी चलकर किस कर सकते हैं।” ईशान्वी ने शर्माते हुए कहा, "जस्ट शट अप, अर्जुन।” अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे साइड में लेकर आया और उसने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा, "लो अच्छा, अगर आपको मुझसे भी शर्म आ रही है, तो मैंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं, अब तो किस करोगी ना मुझे।” ईशान्वी उसकी गाल पर हल्के से हाथ रखते हुए कहा, “आँखें खोलो अपनी! मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली!” अर्जुन ने बच्चों की तरह बना लिया और उसे गुस्सा होने का दिखावा करने लगा। ईशान्वी ने अर्जुन के पप्पी फेस को देखा और वह उसे देखकर मुस्कुराने लगी। ईशान्वी ने इधर-उधर देखा; आसपास ज़्यादा लोग नहीं थे। और वह धीरे से अर्जुन के करीब गई और उसके गाल पर किस करके शर्मा गई। अर्जुन ने ईशान्वी की कमर को पकड़ कर अपने करीब कर लिया। ईशान्वी को इतनी शर्म आ रही थी कि उसने अर्जुन की तरफ़ से अपनी नज़रें घुमा लीं। अर्जुन उसे किस करने के लिए उसके करीब आया और उसके गाल को चूमते हुए बोला, “आपने तो मुझे किस कर ली, अब मेरी बारी है!” इतना बोलकर वह ईशान्वी के करीब जाने लगा और तभी ईशान्वी ने अर्जुन को अपने इतने करीब देखा और उसे खुद से दूर करते हुए कहा, "क्या कर रहे हैं आप? कोई देख लेगा।” अर्जुन ने ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए कहा, “पता है, जब आप मुझसे दूर भागती हैं और इस तरह से शर्माती हैं, तो और भी ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं!” ईशान्वी ने मुस्कुराते हुए कहा, "बातें बनाना तो बस आपसे सीखें। चलो अच्छा, मुझे जल्दी से ड्रॉप कर दो, वरना मनु आंटी फिर मुझे डाँट लगाएँगी।” अर्जुन ईशान्वी को अपने करीब खींचते हुए बोला, “क्या? एक किस और मिल सकती है?” ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "जी नहीं। बाकी की किस बाद में!” अर्जुन ने गहरी साँस लेते हुए कहा, “क्या भगवान जी! कैसी गर्लफ्रेंड दी है आपने मुझे! एक-एक किस के लिए मुझे कितनी मन्नतें करवाती है यह लड़की।” ईशान्वी अर्जुन की बात सुनकर हँसने लगी। अर्जुन ने ईशान्वी को सीधे आस्था अनाथालय के सामने ड्रॉप किया और वह वहाँ से चुपचाप चला गया। ईशान्वी काफी ज़्यादा खुश थी और अपने हाथ में पकड़े हुए अर्जुन के गिफ्ट को देखकर मुस्कुराती जा रही थी। ईशान्वी के चेहरे की मुस्कुराहट तब गायब हो गई जब उसने मनु श्री के केबिन के बाहर दो बॉडीगार्ड्स को खड़ा देखा। उन्हें देखकर ईशान्वी भी हैरत से बोली, “ये बॉडीगार्ड्स किसके हैं? और ये यहाँ मनु श्री आंटी के केबिन के बाहर क्या कर रहे हैं?” ईशान्वी भी धीरे-धीरे मनु श्री के केबिन की तरफ़ बढ़ी और तभी उसने देखा कि मनु श्री के केबिन के अंदर मृत्युंजय बैठा हुआ है और उसके पीछे आशीष उसका हाथ बाँधकर खड़ा है! जैसे ही मनु श्री ने ईशान्वी को देखा, वह भागते हुए ईशान्वी के पास आईं और उसका हाथ पकड़ते हुए बोलीं, “कहाँ गई थीं आप?” ईशान्वी ने धीमी आवाज़ में कहा, "मैं अपने दोस्तों के साथ थी आंटी। लेकिन मिस्टर सिंघानिया यहाँ क्या कर रहे हैं?” ईशान्वी ने मृत्युंजय को वहाँ बैठे देखकर अपने मन में कहा, "कहीं मिस्टर सिंघानिया यहाँ पर मनु श्री आंटी से मेरी शिकायत करने तो नहीं आए हैं? या फिर कहीं यह अपना डोनेशन वापस माँगने तो नहीं आए हैं?” मनु श्री ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे सीधे अपने केबिन के अंदर लेकर आईं। ईशान्वी ने मृत्युंजय को देखकर बड़बोलेपन से कहा, “मिस्टर सिंघानिया, आप यहाँ पर इस तरह अचानक से? क्या हो गया? कहीं आपने मुझे जो डोनेशन दी थी, वह वापस माँगने तो नहीं आए हैं?” मनु श्री ने ईशान्वी का हाथ कसकर दबा दिया और उसे चुप रहने का इशारा किया। तभी ईशान्वी ने मनु श्री की तरफ़ देखते हुए कहा, “मनु श्री आंटी, ये क्या कर रही हैं आप? मुझे दर्द हो रहा है?” मृत्युंजय ने जैसे ही ईशान्वी के मुँह से यह बात सुनी, वह ईशान्वी को घूरते हुए देखने लगा। मृत्युंजय उठकर खड़ा हुआ और उसने ईशान्वी के सामने आकर बोला, “नहीं, मैं वह डोनेशन वापस लेने नहीं आया, बल्कि मैं तो इस अनाथ आश्रम को देखने आया था। देख लिया मैंने सब कुछ, अब तो मैं वापस भी जा रहा हूँ!” ईशान्वी मुस्कुराते हुए बोली, “मैं तो डर ही गई थी! अच्छा हुआ जो आपने मुझे बता दिया! वरना अगर आप डोनेशन वापस लेने आए होते, तो पता नहीं मनु श्री आंटी मुझे….” ईशान्वी इतना बोलते हुए चुप हो गई। तभी मृत्युंजय ने मनु श्री की तरफ़ देखते हुए कहा, “लगता है मिसेज़ मनुश्री काफी ज़्यादा स्ट्रिक्ट हैं?” ईशान्वी ने मृत्युंजय के हाथ को पकड़ा और धीमी आवाज़ में कहा, “हाँ, बहुत डराती हैं मनु श्री आंटी।” मृत्युंजय ईशान्वी के हाथ को देख रहा था और तभी ईशान्वी ने जल्दी से मृत्युंजय का हाथ छोड़ दिया। मृत्युंजय मनु श्री की तरफ़ देखने लगा। तभी मनु श्री आगे आई और ईशान्वी से कहा, "जाओ, जाकर कपड़े चेंज करो और फ़्रेश हो जाओ।” ईशान्वी बिना कुछ बोले चुपचाप वहाँ से चली गई। और थोड़ी ही देर में मृत्युंजय भी अपने बॉडीगार्ड्स के साथ वहाँ से निकल गया। अगले दिन सुबह ईशान्वी कॉलेज के लिए निकली हुई थी कि तभी अचानक से कुछ लोग उसके पास आए। ईशान्वी भी उन्हें देखकर डरते हुए बोली, “कौन हो तुम लोग? और इस तरह मेरा रास्ता रोकने का क्या मतलब है?” ईशान्वी ये बात बोल ही रही थी कि तभी उनमें से दो लोग आगे बढ़े और उन्होंने ईशान्वी के नाक पर एक रुमाल लगाया। और क्लोरोफॉर्म जैसे ही ईशान्वी की नाक में गया, वह वहीं बेहोश हो गई। अगले दिन सुबह जब ईशान्वी की आँख खुली, तो उसने खुद को एक बड़े से डार्क रूम में पाया, जहाँ पर उसके दोनों हाथ एक बड़े से राउंड शेप के बेड से बंधे हुए थे। फ्लैशबैक एंड ईशान्वी वे बीते हुए तीन दिनों को याद कर रही थी और उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। कि तभी उस कमरे का दरवाज़ा खुला और मृत्युंजय कमरे के अंदर आया। ईशान्वी, जिसकी पूरी बॉडी कंबल से ढकी हुई थी और उसके दोनों हाथ रस्सी से अभी भी बंधे हुए थे, मृत्युंजय को देखकर वह दोबारा से चटपटाने लगी। मृत्युंजय उसके बिल्कुल करीब आया और उसके गालों को बड़े प्यार से छूते हुए बोला, “क्या बात है जान? मुझे देखते ही आप ऐसे मचलने लगीं, जैसे कोई मछली बिना पानी के तड़प रही हो। कितना मिस किया आपने मुझे? बोलो ना?” To be continued… गाइस, मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद फ्लैशबैक थोड़ा लंबा जा रहा है, इसलिए मैंने आज ही फ्लैशबैक खत्म कर दिया है। अब मृत्युंजय और ईशान्वी की लव स्टोरी आगे कंटिन्यू होगी। आप लोग प्लीज स्टोरी कंटिन्यू रीड करते रहिएगा। गाइस, आपको स्टोरी पसंद आ रही हो तो प्लीज कमेंट करना ना भूलें। आपका फीडबैक मेरे लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है।
मृत्युंजय कमरे में आया। ईशान्वी, जिसकी पूरी बॉडी कंबल से ढकी हुई थी और जिसके दोनों हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, मृत्युंजय को देखकर फिर से छटपटाने लगी। मृत्युंजय उसके बिल्कुल करीब आया और उसके गालों को बड़े प्यार से छूते हुए बोला, “क्या बात है जान? मुझे देखते ही तुम ऐसे मचलने लगीं जैसे कोई मछली बिना पानी के तड़प रही हो। कितना मिस किया तुमने मुझे? बोलो ना?” ईशान्वी मृत्युंजय को देखकर डर से कांप रही थी। उसने रोते हुए कहा, “प्लीज मिस्टर सिंघानिया, मुझे छोड़ दीजिए।” मृत्युंजय ने ईशान्वी की बात सुनते ही जोर-जोर से हंसते हुए कहा, “कम ऑन जान, तुम भी कैसी बातें करती हो! मैं तुम्हें छोड़ने के लिए थोड़ी ना यहां पर लाया हूँ। और वैसे भी, तुम तो हमेशा-हमेशा के लिए मेरी हो। तुम्हें मुझसे कोई भी दूर नहीं कर सकता, यहां तक कि मैं खुद भी नहीं।” मृत्युंजय की बात सुनकर ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर मींच लीं। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। मृत्युंजय बेड पर आकर बैठ गया। उसने ईशान्वी की आँखों के करीब जाकर निकलने वाले आँसुओं को अपनी छोटी उंगली से छुआ और उसके आँसुओं को पोंछते हुए बोला, “क्या बात है मेरी जान? तुम्हारी आँखों में आँसू मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं। चलो, रोना बंद करो और मुझे बताओ क्या खाओगी?” ईशान्वी मृत्युंजय की बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी। बस उसकी आँखों से आँसू गिरते जा रहे थे। तभी मृत्युंजय तेज आवाज में चिल्लाया, “सुनाई नहीं दे रहा तुम्हें? क्या कहा मैंने?” मृत्युंजय के इस तरह चिल्लाने पर ईशान्वी डर गई। उसने कांपती हुई जुबान में कहा, “मुझे कुछ नहीं खाना। मुझे भूख नहीं लगी है।” मृत्युंजय गुस्से से ईशान्वी को देख रहा था। तभी वह उसके चेहरे के बिल्कुल करीब गया और उसने शांति से कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? तुम्हें यहां पर आए २० घंटे से ज़्यादा हो गए हैं और तुम्हें भूख नहीं लगी? ऐसा तो मैं मान ही नहीं सकता। चलो अच्छा, एक बार तुम्हारा कहना मान लेता हूँ। मैं मान लेता हूँ अभी तुम्हें भूख नहीं लगी, लेकिन रात में तो तुम्हें भूख लगेगी ना? बताओ, क्या खाओगी डिनर में?” ईशान्वी डर से कांप रही थी। मृत्युंजय उसके चेहरे को निहारता जा रहा था। मृत्युंजय ईशान्वी के बिल्कुल करीब गया और उसके गालों को चूमते हुए बोला, “तुम्हें पता है, मैंने सोचा था कि आज हम साथ में डाइनिंग टेबल पर बैठकर डिनर करेंगे, लेकिन तुमने तो अपनी हालत ही खराब कर ली है। देखो, तुम्हारा हाथ रस्सी की वजह से कट गया है। मैं तुम्हारा हाथ खोलना चाहता हूँ मेरी जान, लेकिन तुम मेरे साथ कोऑपरेट ही नहीं कर रही हो।” ईशान्वी बिल्कुल चुप थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर मृत्युंजय की बातों का क्या जवाब दे। उसने देखा उसका पूरा बदन ब्लैंकेट से ढका हुआ था। ईशान्वी को इस समय भी नहीं पता था कि ब्लैंकेट के नीचे उसकी बॉडी पर एक भी कपड़ा है या नहीं। तभी मृत्युंजय ईशान्वी के बगल में लेटते हुए बोला, “तुम्हें पता है इशू, जिस दिन पहली बार मैंने तुम्हें देखा था, मैं तुम्हें अपने साथ बिल्कुल वैसे ही देखना चाहता हूँ जिस तरह से तुम इतना मिस्टीरियस बिहेव करती थीं। तुम्हारी शरारत देखकर और तुम्हारा बोलने का अंदाज़, सब पहली नज़र में मुझे भा गया था। लेकिन तुम अब वैसा बिलकुल भी बिहेव नहीं कर रही हो।” इतना बोलते ही मृत्युंजय झटके से उठा और ईशान्वी के ऊपर आ गया। मृत्युंजय का चेहरा अपने चेहरे के इतने करीब देखकर ईशान्वी के दिल की धड़कनें लगभग रुक गई थीं। मृत्युंजय उसकी आँखों में आँखें डालकर देख रहा था। ईशान्वी का मासूम चेहरा देखकर मृत्युंजय के चेहरे पर एक शैतानियत भरी मुस्कराहट आ गई। उसने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हें पता है, मैं चाहकर भी तुम पर गुस्सा नहीं हो पाता हूँ। तुम्हारा यह मासूम सा चेहरा मेरे पूरे गुस्से को एक झटके में शांत कर देता है। और तुम्हारे ये लिप्स… तुम नहीं जानती, मुझे कितने अट्रैक्टिव लगते हैं।” ईशान्वी को समझ नहीं आ रहा था कि मृत्युंजय इस तरह से बातें कर रहा है और पता नहीं कब उसकी वाइल्ड साइड सामने आ जाए। ईशान्वी की दिल की घबराहट बढ़ती जा रही थी। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को अपने हाथों से दबाया और उसके होठों पर किस करने लगा। ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। वह बस चुपचाप लेट कर अपनी बेबसी पर रो रही थी। मृत्युंजय ने उसकी लिप्स को छोड़ा। धीरे-धीरे मृत्युंजय का हाथ ब्लैंकेट के अंदर जाने लगा। उसका हाथ हरकत कर रहा था। जिसे महसूस करते ही ईशान्वी की एक तेज चीख निकली, “आह्ह! प्लीज स्टॉप इट।” मृत्युंजय ने जैसे ही ईशान्वी की यह आवाज सुनी, वह मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखने लगा। उसने अपना हाथ ब्लैंकेट से बाहर निकालते हुए कहा, “ओके। अगर तुम चाहती हो कि मैं यहीं रुक जाऊँ, तो मैं रुक जाऊँगा। अब बताओ, मैं तो तुम्हारी बात मान रहा हूँ, तो फिर तुम मेरी बात क्यों नहीं मान रही जान?” मृत्युंजय ईशान्वी के कान के पास जाकर उसके ईयर लोब को चूमते हुए बोला, “क्या चाहती हो तुम? मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती करूँ? बेहतर होगा कि तुम मेरी बात मान जाओ और मैं जो बोल रहा हूँ, चुपचाप वैसा करती जाओ!” ईशान्वी ने अपने हाथों को रस्सी से छुड़ाने की पूरी कोशिश की। वह बुरी तरह से अपना हाथ खींच रही थी। तभी मृत्युंजय की नज़र ईशान्वी के हाथ पर गई जहाँ से इस समय खून बह रहा था और ईशान्वी को काफी ज़्यादा दर्द हो रहा था। उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी की गर्दन अपने हाथों से दबोचते हुए कहा, “बहुत जिद्दी हो तुम, है ना?” मृत्युंजय ईशान्वी को घूरते हुए देख रहा था। तभी वह ईशान्वी के ऊपर से हटा और उसने ईशान्वी के बॉडी पर पड़े ब्लैंकेट को एक झटके से खींचा और ब्लैंकेट को जमीन पर फेंक दिया। ईशान्वी ने जैसे ही अपनी बॉडी की तरफ देखा, उसकी बॉडी पर एक भी कपड़ा नहीं था। ईशान्वी तेज आवाज में चिल्लाई, “क्या कर रहे हो तुम?” मृत्युंजय ईशान्वी की पूरी बॉडी को छोड़कर बस उसके चेहरे की तरफ घूरता हुआ देख रहा था। ईशान्वी और तेज़ी से अपने हाथों को रस्सी से छुड़ाने की कोशिश करने लगी। उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, “ठीक है, तुम जो कहोगे मैं वह करूंगी।” मृत्युंजय ने जैसे ही उसके मुँह से यह बात सुनी, उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कराहट तैर गई। क्रमशः… गाइस, अभी तक आपको स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज मुझे फीडबैक देते रहिएगा। मैं डेली आप सबके कमेंट चेक करती हूँ और मुझे बहुत अच्छा लगता है आप लोगों के कमेंट्स देखकर। मृत्युंजय का कैरेक्टर कैसा लग रहा है आप सबको? और क्या लगता है आगे क्या करने वाला है मृत्युंजय ईशान्वी के साथ? और वह ईशान्वी से अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या जुल्म करेगा उस पर? क्या ईशान्वी थकहार कर सौंप देगी खुद को मृत्युंजय के हवाले? जानने के लिए स्टोरी कंटिन्यू पढ़ते रहिए और कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।
प्लीज स्टॉप इट, मुझे दर्द हो रहा है। मृत्युंजय ने हँसते हुए कहा, “देखा, मैं जो चाहता हूँ, वह करके ही रहता हूँ, और तुम्हारे लिए सबसे अच्छा यही होगा कि तुम मेरी सारी बातें मानो।” इतना बोलकर मृत्युंजय ईशान्वी के करीब आया और अपनी शर्ट उतारकर ईशान्वी के ऊपर फेंक दी। ईशान्वी उस शर्ट की तरफ देखने लगी। मृत्युंजय ईशान्वी के बगल में आकर बैठा और उसके हाथों में बंधी रस्सी खोलने लगा। जैसे ही ईशान्वी का एक हाथ खुला, मृत्युंजय उठकर खड़ा हो गया। ईशान्वी ने मृत्युंजय की शर्ट उठाई और अपनी पूरी बॉडी को ढकने की नाकाम कोशिश करने लगी। मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बेड से उठा और दूसरी तरफ से आकर ईशान्वी के दूसरे हाथ को भी खोल दिया। ईशान्वी की दोनों कलाइयों से खून निकल रहा था और रस्सी की रगड़ से उसका हाथ मुड़ भी नहीं रहा था। उसे बेहद दर्द हो रहा था। जैसे ही उसने अपने हाथ को आजाद महसूस किया, वह अपना हाथ पकड़कर तेज आवाज में रोई। लेकिन तभी उसकी नज़र अपनी बॉडी पर गई और उसने जल्दी से बेड से उतरकर कंबल को अपने शरीर के चारों तरफ लपेट लिया। मृत्युंजय हँसता हुआ उसके करीब गया। ईशान्वी वहीं जमीन पर दुपक कर बैठ गई थी। मृत्युंजय ने ईशान्वी के चेहरे को छूते हुए, अपनी उंगलियों को उसकी ठोड़ी तक ले गया और उसकी ठोड़ी ऊपर उठाते हुए बोला, “कम ऑन जान, मुझसे इतना शर्माने की ज़रूरत नहीं है। और वैसे भी, तुम्हारी बॉडी पर यह ब्लैंकेट बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा। कम ऑन, हटाओ इसे।” ईशान्वी ने अपने दोनों हाथों से ब्लैंकेट को पूरी मजबूती से पकड़ लिया और ना में अपना सिर हिलाते हुए बोली, “प्लीज़ मत करो मेरे साथ ऐसा!” मृत्युंजय हँसते हुए बोला, “अभी तो मैंने कुछ किया ही नहीं है जान, छोड़ो ना इस ब्लैंकेट को!” ईशान्वी मृत्युंजय को देख रही थी और उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। मृत्युंजय उसके चेहरे को देखकर शैतानियत से मुस्कुराया और उसके करीब जाकर उसके गाल को दबोचते हुए, उसके होंठों पर रफ़ली किस करने लगा। ईशान्वी रोती जा रही थी। पहले से ही उसके हाथों से खून निकल रहा था, उसे बहुत दर्द हो रहा था। और मृत्युंजय का इतनी पैशनेटली किस करना, ईशान्वी को अंदर ही अंदर तोड़ रहा था। ईशान्वी की साँस रुकने ही वाली थी कि मृत्युंजय उससे दूर हटा। वह बेड के पास आकर अपनी शर्ट उठाकर ईशान्वी के मुँह पर फेंकते हुए बोला, “कम ऑन इशू, वियर इट।” ईशान्वी हैरानी से मृत्युंजय की तरफ़ देखने लगी। मृत्युंजय ने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हें सुनाई नहीं दिया? मैंने कहा, पहनो मेरी शर्ट।” ईशान्वी मृत्युंजय की बात नहीं सुन रही थी। तभी मृत्युंजय ईशान्वी के करीब आया और उसके हाथ से ब्लैंकेट छीनने की कोशिश करने लगा। तभी ईशान्वी ने कहा, “नहीं, मैं पहन रही हूँ। प्लीज, 1 मिनट रुको।” ईशान्वी ने जैसे ही इतना कहा, मृत्युंजय रुक गया और ईशान्वी ने जल्दी से उसकी शर्ट पहन ली। मृत्युंजय ईशान्वी के करीब गया, उसे जमीन से उठाकर खड़ा किया और उसकी कमर में अपना हाथ डालकर उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, “यू नो जान, तुम मुझे बार-बार खुद पर चिल्लाने के लिए मजबूर कर देती हो। मैं नहीं चाहता तुम पर इस तरह से चिल्लाना। प्रॉमिस करो, अब तुम मुझे और गुस्सा नहीं दिलाओगी।” ईशान्वी ने हाँ में अपना सर हिलाया और मृत्युंजय ईशान्वी की तरफ़ देखकर मुस्कुराने लगा। उसने ईशान्वी को सर से लेकर पाँव तक चेक आउट करते हुए कहा, “वैसे एक बात तो है जान, तुम इस शर्ट में बहुत ही सेक्सी लग रही हो। मन कर रहा है…” इतना बोलकर मृत्युंजय ईशान्वी को किस करने के लिए झुका। ईशान्वी ने अपनी आँखें बंद की और अपना मुँह दूसरी तरफ़ घुमा लिया। इसे देखकर मृत्युंजय शैतानियत से मुस्कुराते हुए बोला, “अब मुझे समझ में आया, तुम मेरे साथ किस नहीं करना चाहती। तो कोई बात नहीं। वैसे भी, मेरे शावर का टाइम हो रहा है। चलो, साथ में शावर लेते हैं।” ईशान्वी ने जैसे ही मृत्युंजय की यह बात सुनी, उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा और वह ना में अपना सिर हिलाते हुए बोली, “नहीं, प्लीज़, प्लीज़ मिस्टर सिंघानिया…” इससे पहले कि ईशान्वी और कुछ बोल पाती, मृत्युंजय झुककर ईशान्वी को अपनी गोद में उठा लिया। ईशान्वी मृत्युंजय की उस शर्ट में बिल्कुल भी कम्फ़र्टेबल नहीं थी। मृत्युंजय जैसे ही ईशान्वी को लेकर वॉशरूम के अंदर गया, ईशान्वी वॉशरूम को देखकर बिल्कुल हैरान हो गई। वह वॉशरूम इतना ज़्यादा बड़ा था कि एक पल के लिए ईशान्वी भूल गई कि वह मृत्युंजय की गोद में है। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी को बड़े से बाथटब में लिटाया और बिना कुछ बोले, वह सीधे मुस्कुराते हुए शावर के पास गया और उसने शावर ऑन कर दिया। ईशान्वी उस शर्ट को बार-बार खींचकर अपनी लोअर बॉडी को ढकने की कोशिश कर रही थी। वहीं मृत्युंजय ने एक-एक करके अपने बाकी के कपड़े उतारना शुरू कर दिए। इसे देखकर ईशान्वी रोते हुए बोली, “प्लीज़ मिस्टर सिंघानिया, कुछ देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दीजिए, प्लीज़!” इतना बोलकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। मृत्युंजय इतनी आसानी से उसकी बात कहाँ मानने वाला था? मृत्युंजय ने अपने सारे कपड़े उतारे और सीधे बाथटब में उतर गया। ईशान्वी को जैसे ही इस बात का एहसास हुआ कि मृत्युंजय उसके साथ ही बाथटब में है, ईशान्वी की साँसें थम गईं। मृत्युंजय बड़े ही आराम से बाथटब में लेटा था। उसने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे खींचकर अपने करीब ले आया। ईशान्वी लगभग उस पानी में काँप रही थी। तभी मृत्युंजय ईशान्वी के कान के पास जाकर बड़ी ही सेक्सी आवाज़ में बोला, “क्या बात है मेरी जान? इतना काँप क्यों रही हो? ठंड लग रही है? कहो तो मैं गर्मी दे दूँ।” ईशान्वी कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थी। मृत्युंजय ने उसे लगभग अपनी गोद में बिठा लिया। ईशान्वी जैसे ही मृत्युंजय की गोद में बैठी, उसे कुछ अजीब सा फील हुआ। वह मृत्युंजय से दूर भागने लगी, लेकिन मृत्युंजय ने उसकी कमर में अपना हाथ डाला और उसे वहीं अपनी गोद पर बिठाते हुए कहा, “व्हाट हैपेंड? क्यों भाग रही हो मुझसे?” इतना बोलते ही मृत्युंजय ने ईशान्वी की गर्दन पर किस करना शुरू कर दिया और ईशान्वी ने अपने दोनों हाथों की कसकर मुट्ठी बाँध ली। मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बस ईशान्वी को चूमता जा रहा था। तभी मृत्युंजय का हाथ ईशान्वी की पहनी हुई शर्ट के अंदर गया। जैसे ही मृत्युंजय के हाथ ने हरकत करना शुरू किया, ईशान्वी मृत्युंजय से दूर जाने के बहाने सोचने लगी, लेकिन वह मृत्युंजय की बाहों से खुद को छुड़वा ही नहीं पा रही थी। मृत्युंजय के मज़बूत हाथों की गिरफ़्त में ईशान्वी एक छोटे बच्चे की तरह लग रही थी, जो इस टाइम कुछ भी नहीं कर सकती थी। मृत्युंजय उसे पागलों की तरह बस चूमता जा रहा था और धीरे-धीरे ईशान्वी की शर्ट के बटन खोलने लगा। मृत्युंजय की किस करने की स्पीड बढ़ रही थी और वह वाइल्ड होता जा रहा था। उसने ईशान्वी की गर्दन पर इतने पैशनेटली किस किया कि ईशान्वी को तेज दर्द हुआ और उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए बोली, "प्लीज स्टॉप इट, मुझे दर्द हो रहा है।" मृत्युंजय ईशान्वी की यह बात सुनकर उसके बालों को कसकर पकड़ते हुए बोला, “ओह, रियली? बट मैंने तो अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे तुम्हें दर्द हो।” इतना बोलकर मृत्युंजय दोबारा ईशान्वी की गर्दन पर किस करने लगा। इस बार मृत्युंजय ने अपने दाँत ईशान्वी की गर्दन पर गड़ा दिए और ईशान्वी की एक तेज चीख निकली। मृत्युंजय ईशान्वी की कमर से होते हुए अपने हाथ को नीचे की तरफ बढ़ा रहा था और जैसे ही मृत्युंजय का हाथ ईशान्वी के निचले शरीर के अंग पर गया, ईशान्वी धीमी आवाज़ में बोली, “मिस्टर सिंघानिया, मुझे टॉयलेट जाना है।” मृत्युंजय ने जैसे ही ईशान्वी की बात सुनी, उसने अपने हाथ को ईशान्वी के निचले शरीर के अंग से हटाया और आराम से बाथटब में लेटते हुए बोला, “ओके मेरी जान, ऐज़ यू विश।” जैसे ही मृत्युंजय ने अपने हाथ को पीछे किया, ईशान्वी जल्दी से उठकर खड़ी हुई और सीधे बाथटब से निकलकर बाथरूम की दूसरी तरफ़ भागी। To be continued… पढ़ लिया? पार्ट अच्छा लगा हो तो कमेंट कर दो…
Jaan, कुछ धमाकेदार किया जाए...? जैसे ही मृत्युंजय ने अपना हाथ पीछे किया, ईशान्वी जल्दी से उठ खड़ी हुई और सीधे बाथटब से निकलकर बाथरूम की दूसरी तरफ भागी। ईशान्वी ने जल्दी से अपनी शर्ट के बटन बंद कर लिए और वहीं सिर पकड़कर बैठ गई। उसने खुद को कोसते हुए कहा, "क्यों? क्यों भगवान? क्यों होता है हर बार मेरे साथ ऐसा? बचपन से मुझे कभी प्यार नहीं मिला। पहले आपने मुझे मेरे माँ-बाप से दूर कर दिया, सारी जिंदगी मैं उस अनाथ आश्रम में रही और अब इस नर्क में, इस शैतान के साथ रहना पड़ रहा है। क्या मेरी लाइफ में कभी खुशियाँ नहीं लिखी हैं?" ईशान्वी बुरी तरह रो रही थी। थोड़ी देर बाद, बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए मृत्युंजय ने कहा, "इशू मेरी जान, क्या कर रही हो तुम इतनी देर से? और कितना टाइम लोगी?" ईशान्वी ने मृत्युंजय की आवाज सुनते ही साँसें अटक गईं। उसने रोती हुई आवाज में कहा, "आ रही हूँ, बस दो मिनट।" मृत्युंजय ईशान्वी की आवाज सुनकर मुस्कुराया। "जान, यू आर माय गुड गर्ल, राइट? जल्दी से बाहर आओ। यहाँ मैंने तुम्हारा बाथरोब रख दिया है। नहाकर चुपचाप रूम में आ जाना। तुम्हारे पास सिर्फ़ पाँच मिनट हैं। अगर अपने सो कॉल्ड बॉयफ्रेंड को जिंदा देखना चाहती हो तो। और वैसे भी, मैं बहुत बोर हो गया हूँ। सोच रहा हूँ, कुछ धमाकेदार किया जाए...?" ईशान्वी ने मृत्युंजय की बात सुनते ही बाथरूम का दरवाजा खोलकर जल्दी से बाहर आते हुए कहा, "अर्जुन! प्लीज, अर्जुन को कुछ मत करिएगा!" मृत्युंजय ने ईशान्वी की आँखों में अर्जुन के लिए वह तड़प देखकर गुस्से से भर गया। उसने ईशान्वी के गालों को कसकर दबाते हुए कहा, "तुम्हारा अर्जुन वैसे तो जिंदा रहने के लायक नहीं है, लेकिन इतनी आसानी से तो मैं उसे नहीं मारने वाला। पाँच मिनट हैं तुम्हारे पास, नहाकर बाहर आओ।" इतना बोलकर मृत्युंजय बाथरोब में ही बाहर चला गया। ईशान्वी ने अपने आँसुओं को पोछा और अपनी कलाई से निकलते हुए खून को देखा। वह जल्दी से हाथ में लगे खून को साफ करने लगी। उसकी कलाई में बेइंतेहा दर्द हो रहा था, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। लेकिन तभी उसने खुद को समझाते हुए कहा, "ईशान्वी, आज तक तूने जहाँ इतना दर्द सह है, थोड़ा सा और सही। अगर तूने और ज्यादा देर यहाँ बिताई, तो पता नहीं यह शैतान क्या करेगा अर्जुन के साथ।" ईशान्वी ने जल्दी से नहाया और बाथरोब पहनकर, गीले बालों में ही बाथरूम से बाहर निकल आई। जैसे ही ईशान्वी बाथरूम से बाहर निकली, उसने देखा कि कमरे की बेडशीट, ब्लैंकेट, सब कुछ बदल चुका था। मृत्युंजय अभी भी बाथरोब पहनकर बड़े आराम से बेड पर लेटा था। वहीं सामने लगे बड़े से एलईडी टीवी पर अर्जुन बुरी हालत में था। उसके चेहरे से खून निकल रहा था और उसके दोनों हाथ जंजीर से बंधे हुए थे। ईशान्वी भागते हुए एलईडी टीवी के पास गई और अर्जुन के चेहरे को छूते हुए कहा, "अर्जुन... अर्जुन।" मृत्युंजय ने ईशान्वी को इस तरह अर्जुन-अर्जुन बोलते देखकर तेज आवाज़ में चिल्लाया, "जान, कम हियर।" ईशान्वी अर्जुन को देखकर वहीं टीवी के पास खड़ी हो गई थी। उसे एक कदम भी हिला नहीं जा रहा था। मृत्युंजय ने अपना फ़ोन ऑन किया और तेज आवाज़ में चिल्लाया, "जगाओ उसे।" जैसे ही मृत्युंजय ने इतना बोला, एलईडी टीवी पर दिखाई दे रहे अर्जुन के सामने एक आदमी आया और उसने एक बाल्टी पानी पूरी ताकत से अर्जुन के मुँह पर दे मारा। जिससे अर्जुन, जो अभी तक बेहोश था, वह हड़बड़ाते हुए उठ गया। ईशान्वी ऐसा देखकर चौंक गई। वह मृत्युंजय के पास आकर बोली, "प्लीज मिस्टर सिंघानिया, अर्जुन को छोड़ दीजिए। मैं हूँ ना यहाँ पर आपके साथ। और आप जो बोलेंगे, मैं वह करूंगी। आप जो चाहें मेरे साथ कर सकते हैं, प्लीज मेरे अर्जुन को छोड़ दीजिए।" मृत्युंजय ने ईशान्वी का बाल पकड़कर उसे अपनी गोद में बिठाते हुए कहा, "क्या कहा तुमने? तुम्हारा अर्जुन?" ईशान्वी हैरानी से मृत्युंजय की तरफ़ देख रही थी। तभी मृत्युंजय ने फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा, "मारो उसे।" ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नो, नो मिस्टर सिंघानिया!" ईशान्वी मना कर ही रही थी कि सामने एलईडी टीवी पर दिख रहा वह गुंडा अर्जुन को एक बैट से मारने लगा। ईशान्वी मृत्युंजय के पैरों पर गिरते हुए बोली, "प्लीज मिस्टर सिंघानिया, रोक दीजिए उन्हें। वह मर जाएगा।" मृत्युंजय ने गुस्से से ईशान्वी को घूरते हुए कहा, "अगर तुमने एक और बार अर्जुन का नाम अपनी जुबान से लिया, तो उसे दोबारा कभी जिंदा नहीं देख पाओगी।" ईशान्वी तुरंत मृत्युंजय की बात मानते हुए बोली, "ठीक है, मैं अब कभी भी उसका नाम नहीं लूँगी। प्लीज, प्लीज अपने आदमी को कहिए कि वह उसे ना मारे।" मृत्युंजय ने फ़ोन कान में लगाते हुए कहा, "रुक जाओ।" एलईडी टीवी में दिख रहा आदमी तुरंत दो कदम पीछे हट गया। ईशान्वी ने अर्जुन की तरफ़ देखा और उसकी जान में जान आई। मृत्युंजय ने ईशान्वी के बाल पकड़कर उसे उठाते हुए कहा, "यू नो जान, अब तुम मेरी सारी बातें मानोगी, राइट? अगर अर्जुन को जिंदा देखना चाहती हो तो?" ईशान्वी ने तुरंत हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "मैं आपकी सारी बातें मानूंगी मिस्टर सिंघानिया।" मृत्युंजय खुश होते हुए बोला, "यह हुई ना बात! चलो उठो!" ईशान्वी अपने आँसू पोछते हुए उठ खड़ी हुई। मृत्युंजय की मुस्कराहट बता रही थी कि वह अब ईशान्वी को अपने इशारों पर नाचने वाला है। तभी मृत्युंजय ने अपनी गोद पर इशारा करते हुए कहा, "Sit..." ईशान्वी बिना कुछ सोचे-समझे मृत्युंजय की गोद में आकर बैठ गई। मृत्युंजय ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने करीब खींचा और उसके गाल को चूमते हुए कहा, "That's like माय गर्ल।" ईशान्वी की आँखों से अब आँसू निकलना बंद हो गए थे। वह बस अपनी नज़रें नीचे झुकाकर मृत्युंजय की गोद में बैठी हुई थी। तभी मृत्युंजय ईशान्वी के चेहरे को देखकर मुस्कुराते हुए बोला, "यू नो व्हाट इशू? तुम्हारे चेहरे की मुस्कराहट मुझे बहुत पसंद है, बट झूठी मुस्कराहट में देखना नहीं चाहता, इसलिए किस मी।" ईशान्वी मृत्युंजय की तरफ़ देखने लगी। तभी मृत्युंजय ने कहा, "कम ऑन, किस मी।" ईशान्वी मृत्युंजय की तरफ़ देखकर धीमी आवाज़ में बोली, "कहाँ?" मृत्युंजय ईशान्वी का यह सवाल सुनकर जोर-जोर से हँसते हुए बोला, "यह भी कोई पूछने वाली बात है?" इतना बोलकर ईशान्वी समझ गई कि मृत्युंजय का क्या कहने का मतलब है। वह मृत्युंजय के होठों के करीब जा ही रही थी कि तभी मृत्युंजय ने उसके होठों पर उंगली रखते हुए कहा, "एक मिनट। अगर तुम्हें होठों पर किस नहीं करनी, तो तुम जहाँ जाओ, वहाँ किस कर सकती हो।" ईशान्वी मृत्युंजय की यह बात सुनकर हैरानी से उसकी तरफ़ देखने लगी। तभी मृत्युंजय ने कहा, "कम ऑन, जहाँ तुम चाहो, वहाँ किस कर सकती हो। आई एम ऑल योर्स बेबी!" मृत्युंजय के मुँह से यह बात सुनकर ईशान्वी को समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे। वह उठकर खड़ी हुई। मृत्युंजय उसकी किस का इंतज़ार कर रहा था। To be continued.... गाइस, अभी तक आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज़ मुझे फीडबैक देते रहिएगा। मैं डेली आप सबके कमेंट चेक करती हूँ और मुझे बहुत अच्छा लगता है आप लोगों के कमेंट्स देखकर। मृत्युंजय का करैक्टर कैसा लग रहा है आप सबको? और क्या लगता है आगे क्या करने वाला है मृत्युंजय ईशान्वी के साथ? और वह ईशान्वी से अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या जुल्म करेगा उस पर? क्या ईशान्वी थक हारकर सौंप देगी खुद को मृत्युंजय के हवाले? जानने के लिए स्टोरी कंटिन्यू पढ़ते रहिए और कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।
तभी ईशान्वी कुछ सोचते हुए आगे बढ़ी और उसने मृत्युंजय के माथे को चूम लिया। मृत्युंजय एक पल के लिए बिल्कुल ब्लैंक हो गया और वह ईशान्वी के चेहरे को देखता ही रह गया। ईशान्वी की आंखों में आंसू भरे हुए थे, लेकिन वह रो नहीं रही थी। मृत्युंजय चुपचाप उसे देखता जा रहा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि मृत्युंजय ईशान्वी की नशीली आंखों में खो गया है। तभी मृत्युंजय का फोन बजा और वह दोनों, जो अभी तक एक दूसरे की आंखों में खोए हुए थे, उन दोनों का ही ध्यान भटक गया। मृत्युंजय जल्दी से उठकर खड़ा हुआ और उसने अपना कॉल रिसीव करते हुए कहा, "आशीष बोलो, क्या बात है?" मृत्युंजय आशीष से बात करते हुए कमरे से बाहर निकल गया। ईशान्वी वहीं बेड के पास अपना सर पकड़ कर बैठ गई। उसकी आंखों से रूके हुए आंसू, जो अभी तक उसने होल्ड कर रखे थे, वे बाहर निकलते ही जा रहे थे। मृत्युंजय आशीष से बात करते हुए रूम से बाहर निकला और बोला, "हाँ, अब क्या कर दिया उसे कनिष्क ने?" आशीष ने कहा, "सर, वह फिर से अपने गुंडों को हमारे होटल के रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ करने के लिए भेजा है।" जैसे ही मृत्युंजय ने बात सुनी, उसने गुस्से से अपने दांत पीसते हुए कहा, "लगता है इस कनिष्क को अपनी जान प्यारी नहीं है और यह अब मेरे हाथों से मर कर ही रहेगा।" MJ गुस्से में था। तभी आशीष ने उसे समझाते हुए कहा, "बॉस, आप बिल्कुल भी फिक्र मत करिए। मैंने यहां की सिचुएशन अपने कंट्रोल में ले ली है। मुझे ऐसा लगता है कि कनिष्क आपसे चिढ़ गया है। शायद आपने उसके होटल की नीलामी में सबसे ज्यादा बोली लगाकर उसके सबसे बड़े होटल को खरीदा है ना! शायद इसी वजह से वह आपसे जानबूझकर दुश्मनी ले रहा है!" मृत्युंजय ने जैसे ही आशीष की बात सुनी, उसके चेहरे पर शैतानियां भरी मुस्कराहट तैर गई। उसने आराम से लिविंग एरिया के सोफे पर बैठते हुए कहा, "अगर ऐसी बात है, तब तो फिर तैयार हो जाओ आशीष और पता करो कि इस कनिष्क का और कोई दूसरा होटल या रेस्टोरेंट नीलामी में तो नहीं जा रहा है। उसका वह होटल भी मैं ही खरीदूँगा।" आशीष ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "ठीक है बॉस, मैं समझ गया।" इतना बोलकर आशीष फोन रख ही रहा था कि तभी मृत्युंजय ने पूछा, "एक मिनट, तुम मुझे यह बताओ कि मेरा आज ऑफिस आना जरूरी है? क्योंकि मैं अभी अपने विला में हूँ और मेरा आज वापस घर जाने का बिल्कुल भी मन नहीं है। इसलिए ऑफिस जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। अगर कोई मीटिंग हो तो उसे तुम देख लेना, अब तो मैं कल ही ऑफिस आऊँगा।" आशीष ने कहा, "ठीक है, बस मैं सब कुछ हैंडल कर लूँगा। आप बेफिक्र रहिए।" MJ ने आशीष की बात सुनकर अपना फोन कट किया और आराम से वहीं बैठ गया। मृत्युंजय ने कहा, "कनिष्क का मृत्युंजय से दुश्मनी लेना कोई मामूली बात नहीं है और अगर अब तुम मेरे दुश्मन बनना चाह रहे हो तो यही सही।" वहीं ईशान्वी अपनी बेड के पास चुपचाप बैठी रो रही थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और ईशान्वी डरते हुए उधर की तरफ देख रही थी। ईशान्वी को लग रहा था कि मृत्युंजय ही कमरे के अंदर आया होगा। लेकिन जब उसने अपनी नज़रें उठाकर सामने देखा तो वह मृत्युंजय नहीं, बल्कि ज्योति खड़ी थी। और ज्योति के हाथ में एक ट्रांसपेरेंट बॉक्स था। वह चुपचाप ईशान्वी के सामने आकर बैठी और उसने फर्स्ट एड बॉक्स में से कॉटन निकालकर एंटीसेप्टिक में भिगोया। वह ईशान्वी के हाथ से निकलने वाले खून को साफ करने लगी। ईशान्वी ने अपना हाथ झटकते हुए कहा, "चली जाओ यहां से, क्यों आई हो अब? जब मैंने तुमसे हेल्प मांगी थी तब तो तुमने मेरी रस्सियां नहीं खोलीं और अब जब इतना घाव हो चुका है तो तुम उसे गांठ पर मरहम लगाने आई हो? जाओ, चली जाओ।" ज्योति ईशान्वी के गुस्से को चुपचाप खड़ी होकर सुन रही थी। ईशान्वी ने बुरी तरह से उस पर चीख़-चिल्ला रही थी। ज्योति ने बड़ी ही नरमी से कहा, "देखिए प्लीज, मुझे मेरा काम करने दीजिए। आपके हाथ पर दवा लगाना बहुत जरूरी है। अगर मैं पट्टी नहीं करूंगी तो आपका घाव और बढ़ता जाएगा और फिर आपको और ज्यादा दर्द होगा।" ईशान्वी ने फिर तेज आवाज में कहा, "नहीं, लगानी मुझे कोई दवा। जाओ यहां से।" ज्योति वहीं चुपचाप ईशान्वी के हाथों पर दवा लगाने की कोशिश कर रही थी। ईशान्वी तेज आवाज में चिल्लाने लगी और वह एक झटके से उठकर खड़ी हुई। उसने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हें समझ में नहीं आ रहा मैं क्या कह रही हूँ? जाओ यहां से।" इतना बोलकर ईशान्वी ने ज्योति को धक्का दिया और ज्योति वहीं जमीन पर गिर गई। तभी मृत्युंजय कमरे के अंदर आया और उसने देखा कि ज्योति वहीं जमीन पर गिर गई थी। ईशान्वी ने जब उसे धक्का दिया, तो मृत्युंजय वहीं रुक कर उसे घूरते हुए देखने लगा। ज्योति जल्दी से उठकर खड़ी हुई और उसने मृत्युंजय के पास जाकर कहा, "आई एम सॉरी सर, बट मैडम मुझे एंटीसेप्टिक लगाने ही नहीं दे रही हैं। मैं उनकी पट्टी कैसे करूँ?" मृत्युंजय ने ज्योति के हाथ से फर्स्ट एड बॉक्स लिया और उसे वहां से जाने का इशारा किया। ज्योति चुपचाप अपना सर झुकाकर रूम से बाहर चली गई। तभी मृत्युंजय ईशान्वी के करीब आया और एक हाथ से उसके गाल दबाते हुए बोला, "जान, तुमने अभी थोड़ी देर पहले मुझसे कहा था ना कि तुम मेरी सारी बातें मानोगी, तो फिर यह सब क्या है?" मृत्युंजय इतना बोलकर ईशान्वी का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बिठाते हुए बोला, "चुपचाप यहां बैठो और अब अगर तुमने एक वर्ड भी बोला तो तुम बहुत अच्छी तरह से जानती हो कि मैं क्या करूँगा।" ईशान्वी चुपचाप वहीं बेड पर बैठ गई। मृत्युंजय ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसके जख्म पर एंटीसेप्टिक लगाते हुए बोला, "जान, क्यों हो तुम इतनी जिद्दी?" ईशान्वी ने मृत्युंजय की इस बात का कोई भी जवाब नहीं दिया। वह बिल्कुल चुपचाप बस अपनी नज़रें नीचे झुकाकर बैठी हुई थी। मृत्युंजय ने ईशान्वी के दोनों हाथों पर मरहम लगाया और उसके हाथ से अब खून निकलना बंद हो गया था। मृत्युंजय ने उसके हाथों पर पट्टी बांधी और उसने ईशान्वी के होठों को अपने हाथों से बड़े प्यार से टच करते हुए कहा, "जब मैं तुमसे कोई भी बात करूँ तो तुम मेरे सवाल का जवाब दिया करो। इस तरह से स्टैचू बनाकर बैठने की ज़रूरत नहीं है, समझी?" ईशान्वी ने धीरे से हाँ में अपना सिर हिला दिया। तभी मृत्युंजय ने कहा, "खाने में क्या खाओगी? जल्दी बोलो।" ईशान्वी भी कुछ सोच ही रही थी कि तभी मृत्युंजय उसकी गर्दन के पास जाकर झुका और पैशनेटली किस करने लगा। मृत्युंजय ने हल्के से ईशान्वी की गर्दन पर बाइट की और ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। उसे अपनी गर्दन पर हल्का दर्द महसूस हो रहा था और वह मृत्युंजय को रोकना चाहती थी, लेकिन उसने उसे नहीं रोका। बस ईशान्वी ने धीमी आवाज में कहा, "मिस्टर सिंघानिया, मुझे ठंड लग रही है।" मृत्युंजय ईशान्वी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोला, "तुम्हें दो मिनट में गर्म कर सकता हूँ मैं।" इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी को अपनी गोद में बिठाया और उसका बाथरोब खोल दिया। To be continued.... गाइस, अभी तक आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज मुझे फीडबैक देते रहिएगा। मैं डेली आप सबके कमेंट चेक करती हूँ और मुझे बहुत अच्छा लगता है आप लोगों के कॉमेंट्स देखकर। मृत्युंजय का करैक्टर कैसा लग रहा है आप सबको? और क्या लगता है आगे क्या करने वाला है मृत्युंजय ईशान्वी के साथ? और वह ईशान्वी से अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या जुल्म करेगा उस पर? क्या ईशान्वी थकहार कर सौंप देगी खुद को मृत्युंजय के हवाले? जानने के लिए स्टोरी कंटिन्यू पढ़ते रहिए और कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।
Episode 11 Wild romance ईशान्वी ने धीमी आवाज में कहा, "मिस्टर सिंघानिया, मुझे ठंड लग रही है।" मृत्युंजय ईशान्वी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोला, “तुम्हें दो मिनट में गर्म कर सकता हूँ मैं।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी को अपनी गोद में बिठाया और उसका बाथरोब खोल दिया। ईशान्वी ने जैसे ही मृत्युंजय का हाथ अपने पेट पर महसूस किया, उसने मृत्युंजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "प्लीज मिस्टर सिंघानिया।" मृत्युंजय ने ईशान्वी के कान के पास जाकर उसके कान को बाइट करते हुए कहा, "क्यों? अभी तुमने ही तो कहा कि तुम्हें ठंड लग रही है, और मैं तो बस तुम्हें गर्मी देने की कोशिश कर रहा था। देखो मेरी बॉडी कितनी ज्यादा हॉट है।" इतना बोलकर मृत्युंजय ईशान्वी के बिल्कुल करीब गया और उसके गालों पर अपना गाल रब करने लगा। ईशान्वी के चेहरे के एक्सप्रेशंस बदल रहे थे और वह मृत्युंजय की पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन मृत्युंजय की मजबूत बाहों ने ईशान्वी को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर रखा था। ईशान्वी के सॉफ्ट गालों पर मृत्युंजय की बियर्ड चुभ रही थी। ईशान्वी बहुत इरिटेट फील कर रही थी। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को पकड़ते हुए कहा, "क्या बात है जान? तुम तो ऐसे फेस बना रही हो जैसे तुम्हें पत्थर छुप गए हों। क्या मेरा गाल इतना ज्यादा रफ है?" उसने अपना सिर हिलाया और उठने की कोशिश करने लगी। मृत्युंजय ने ईशान्वी का हाथ कसकर पकड़ा और उसे खींचते हुए बेड पर गिरा दिया। ईशान्वी का बाथरोब खुला हुआ था और बाथरोब उसकी बॉडी पर से हट गया। मृत्युंजय उसे देखकर शैतानियत से मुस्कुराया। एक झटके में वह ईशान्वी के ऊपर चढ़ते हुए बोला, “क्या बात है जान? तुम तो ना चाहते हुए भी मुझे सेड्यूस करने का कोई बहाना नहीं छोड़ती। मेरे करीब आने का। अगर तुम्हें इतना ही मन करता है तो तुम साफ-साफ क्यों नहीं बोल देती।” ईशान्वी की नजर जैसे ही अपनी बॉडी पर गई, वह बाथरोब से जल्दी-जल्दी अपनी बॉडी को ढकने की नाकाम कोशिश करने लगी। मृत्युंजय ईशान्वी के चेहरे को अपनी नाक से टच करने लगा। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह ईशान्वी के जिस्म की खुशबू सूंघ रहा है। इतना फील करते ही ईशान्वी ने अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं। वहीं मृत्युंजय धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ा और उसने ईशान्वी की गर्दन को चूमा। ईशान्वी की एक तेज सिसक निकली। मृत्युंजय ने ईशान्वी की गर्दन पर इतनी कसकर बाइट किया था कि ईशान्वी की पूरी गर्दन लाल पड़ गई थी। वहीं ईशान्वी के क्लीवेज पर उसके निशान साफ नजर आने लगे। मृत्युंजय धीरे-धीरे उसकी गर्दन से होता हुआ क्लीवेज की तरफ बढ़ रहा था। तभी उसने ईशान्वी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ा और अपने दूसरे हाथ से ईशान्वी की कमर से लेकर उसकी नाभि को टच करने लगा। ईशान्वी पहले तो अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के कान के पास जाकर कहा, "जान, वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी, तुम हो तो बहुत जिद्दी, लेकिन तुम अपनी जिद सिर्फ मेंटली पूरी कर सकती हो। फिजिकली तो तुम सिर्फ मेरी हो। और तुम्हारी यह जिद तुम्हारी बॉडी नहीं मानती। तुम मानो या ना मानो, तुम्हारी बॉडी को मेरा टच बहुत पसंद है, राइट?” ईशान्वी मृत्युंजय की इतनी बात सुनकर कुछ भी नहीं बोली। बस उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमाया। मृत्युंजय का हाथ ईशान्वी की बॉडी पर हरकत कर रहा था। तभी मृत्युंजय का हाथ ईशान्वी के पैरों के बीच में पहुँचा। ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं और मृत्युंजय के चेहरे पर जो मुस्कुराहट थी वह और भी ज्यादा बढ़ गई। मृत्युंजय ईशान्वी के होठों पर अपने होंठ रखकर किस करते हुए बोला, “कम ऑन जान, डोंट बिहेव लाइक दिस। अगर तुम ऐसे बिहेव करोगी तो मुझे बिल्कुल भी मजा नहीं आएगा, और मैं तुम्हारे साथ मजे लेना चाहता हूँ, हर एक रोमांस के साथ। मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता कि तुम इस तरह से बिहेव करो। आई नो यू आर एंजॉयिंग दिस, बिकॉज़ एवरी टाइम व्हेन आई कम क्लोज टू यू, यू आर गेटिंग वेट। एम आई राइट?” ईशान्वी ने अपने हाथों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन मृत्युंजय ना ही उसके हाथों को छोड़ रहा था और ना ही मृत्युंजय के हाथ काबू में थे। वह ईशान्वी के निजी अंगों को टच करता जा रहा था। मृत्युंजय के हाथों ने अपनी उंगलियों की हरकत को तेज कर दिया। वहीं ईशान्वी किसी भी तरह से बस मृत्युंजय को रोकने के लिए स्ट्रगल कर रही थी। मृत्युंजय ईशान्वी के होठों पर किस करने लगा और वह ईशान्वी के नीचे के होठों को बाइट करते हुए बोला, “कम ऑन जान, तुम मुझसे प्यार से बात करके तो देखो। तुम जो कहोगी मैं वही करूँगा। Tell me, you enjoying my fingers or not?” ईशान्वी जानती थी कि मृत्युंजय इस टाइम उससे बात करने के बहाने ढूंढ रहा है। और वह कुछ भी नहीं बोली। उसने अपने मन में कहा, "हे भगवान, प्लीज मुझे किसी भी तरह से इस शैतान से बचा लो।" ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली थीं और तभी दरवाजे को बाहर से किसी ने नॉक किया। जैसे ही दरवाजे के खटखटाने की आवाज हुई, मृत्युंजय रुक गया और उसने ईशान्वी के हाथों पर से अपनी पकड़ ढीली कर दी। मृत्युंजय कोल्ड आवाज में बोला, “क्या है?” दरवाजे के बाहर से ज्योति की आवाज आई, “सर, मैं हूँ। सॉरी, आपको डिस्टर्ब किया, बट खाना तैयार हो गया है!” मृत्युंजय ने तेज आवाज में कहा, "खाना टेबल पर लगाओ, मैं आ रहा हूँ।" मृत्युंजय इतना बोलकर ईशान्वी के ऊपर से हटा और उसने टिश्यू उठाकर अपने हाथों को साफ किया। जैसे ही मृत्युंजय उठकर खड़ा हुआ, ईशान्वी ने जल्दी से अपना बाथरोब बांध लिया और वह बेड से उठकर बैठ गई। तभी मृत्युंजय ने अपना बाथरोब ठीक करते हुए कहा, "जान, चलो पहले हम डिनर करते हैं, उसके बाद आगे कंटीन्यू करेंगे।” मृत्युंजय के मुंह से यह बात सुनकर ईशान्वी की जान गले में ही अटक गई। और वह मृत्युंजय की बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी। मृत्युंजय ईशान्वी के करीब आया और उसने ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए कहा, “चलो चलते हैं!” ईशान्वी मृत्युंजय के साथ नहीं जाना चाहती थी। वह अपनी जगह पर खड़ी थी और तभी मृत्युंजय ने कहा, "मेरी जिद्दी ईशु, क्या चाहती हो तुम? मैं तुम्हें अपनी गोद में उठाकर ले चलूँ?" ईशान्वी ने किसी बात का कोई जवाब नहीं दिया। और तभी मृत्युंजय ने कहा, "मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, और तुम तो वैसे भी इतनी छोटी सी हो, तुम्हें तो मैं अपने एक हाथ से उठा सकता हूँ।” इतना बोलकर मृत्युंजय झुका और उसने ईशान्वी को अपनी गोद में उठा लिया। ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, मैं चलूँगी। प्लीज आप मुझे नीचे उतार दीजिये।” मृत्युंजय ने ईशान्वी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "बिल्कुल भी नहीं। अब तो तुम मेरे साथ ही नीचे चलोगी, और वो भी इसी तरह गोद में। मैं तुम्हें अपने साथ लेकर जाऊँगा और तुम मेरी गोद में ही बैठकर खाना खाओगी।” ईशान्वी को यह बात सुनकर बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। और वहीं मृत्युंजय ईशान्वी को देखकर बस मुस्कुराता जा रहा था। वह उसे लेकर सीधे डायनिंग एरिया में लेकर गया। जहाँ ईशान्वी को उसने जैसे ही जमीन पर उतारा, ईशान्वी मृत्युंजय से थोड़ा दूर हटकर खड़ी होने लगी। वह बार-बार अपने बाथरोब को ठीक कर रही थी। जिससे साफ पता चल रहा था कि वह इस जगह पर बिल्कुल भी कंफर्टेबल नहीं है। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे खींचकर अपनी गोद में बैठाते हुए कहा, "यह मेरी दुनिया है और तुम यहां से कहीं नहीं जा सकती। इसलिए इस बात को भूल जाओ कि तुम खुद को मुझसे दूर रख पाओगी।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ज्योति की तरफ देखा और वह मृत्युंजय की प्लेट में खाना सर्व करने लगी। ईशान्वी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि वहीं डायनिंग एरिया के बाहर कई काफी सारे नौकर थे जो अपना सर झुका कर वहीं पर खड़े थे। बस ज्योति थी जो मृत्युंजय के आसपास थी और वहीं मृत्युंजय की प्लेट में खाना भी सर्व कर रही थी। मृत्युंजय ने अपने हाथों से ईशान्वी को खाना खिलाते हुए कहा, "जान, मुँह खोलो।” ईशान्वी चुपचाप बैठी थी और उसकी आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। To be continued....
यू आर ओनली माइन ईशान्वी चुपचाप बैठी थी; उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। ईशान्वी ने मन ही मन कहा, "मैं अपने अनाथ आश्रम में कितनी खुश थी! काश मैं कभी मिस्टर सिंघानिया से ना मिली होती! काश उन्होंने मुझे ना देखा होता, तो मैं यहां ना फंसती।" पुराने दिनों को याद करके ईशान्वी और ज्यादा रोने लगी। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों पर अपनी नाक रगड़ते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? मुंह खोलो! अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो…!” इससे पहले कि मृत्युंजय अपनी बात पूरी कर पाता, ईशान्वी के चेहरे के सामने अर्जुन का चेहरा आया और उसने जल्दी से अपना मुंह खोल दिया। मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बोला, “यह हुई ना बात! वैसे, तुम्हें पता है मैं तुम्हें अपने हाथों से खाना क्यों खिला रहा हूं?” ईशान्वी ने ना में सिर हिलाया। मृत्युंजय ने कहा, "तुम्हारे हाथों में चोट लगी है ना, इसलिए।" ईशान्वी ठीक से खाना नहीं खा रही थी। तभी उसके गाल पर एक चावल का दाना लगा रहा गया। उसे देखकर मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बोला, “वह! तुम्हें तो रोमांटिक सीन भी क्रिएट करना आता है!” ईशान्वी को समझ नहीं आया कि मृत्युंजय क्या कहना चाहता है। वह हैरानी से उसे देख रही थी। तभी मृत्युंजय उसके करीब गया और उसके मुंह के पास लगे चावल के दाने को अपने होठों से खा लिया। ज्योति, जो वहीं पर खड़ी थी, ने अपनी नज़रें घुमा लीं। वह यह सब देखकर असहज हो रही थी। उसने वहां से मुड़कर जाना चाहा। तभी मृत्युंजय ने उसे देखकर तेज आवाज में कहा, "एक मिनट रुको।" ज्योति अपना हाथ बांधकर वहीं रुक गई। मृत्युंजय ने तेज आवाज में कहा, "मेरी ईशु जब खाना खा लेगी, तो तुम उसे लेकर जाना और उसे अच्छे से तैयार कर देना।" ज्योति ने बस हां में सिर हिलाया। मृत्युंजय उसे अपने हाथों से खाना खिला रहा था। तभी ईशान्वी ने अपने मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, "मेरा पेट भर गया।" मृत्युंजय ने कहा, "तुम्हारे हाथों में ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ना?" ईशान्वी ने ना में सिर हिलाया। तभी मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बोला, “तो फिर ठीक है! मुझे तुम्हारे हाथों से खाना खाना है! खिलाओ मुझे खाना अपने हाथों से!” ईशान्वी ने मृत्युंजय की बात तुरंत मान ली। शानवी के दिमाग में अर्जुन का चेहरा चल रहा था और वह अब कोई भी बात मानकर मृत्युंजय को गुस्सा नहीं दिलाना चाहती थी। इसलिए वह अपने हाथों से मृत्युंजय को खाना खिलाने लगी। मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे हाथों से खाना खाकर मुझे सच में बहुत अच्छा लग रहा है।" ईशान्वी कुछ नहीं बोली। तभी मृत्युंजय ने अपना मोबाइल फोन निकालते हुए कहा, "हेलो! मेरी जान ने खाना खा लिया है। एक काम करो, उसे अर्जुन को भी खाने के लिए कुछ दे दो।" ईशान्वी ने जैसे ही यह बात सुनी, उसकी नज़रें सीधे मृत्युंजय पर टिक गईं। मृत्युंजय ने ईशान्वी के कान के पास जाकर कहा, “अब तो तुम खुश हो ना? कम ऑन! अब मुझे और प्यार से खाना खिलाना।" ईशान्वी ने बस हां में सिर हिलाते हुए कहा, "चलो, कम से कम मेरे खाना खाने की वजह से अर्जुन को कुछ तो खाने को मिलेगा।" ईशान्वी अर्जुन के बारे में ही सोच रही थी। मृत्युंजय, जो सिर्फ़ ईशान्वी को घूर रहा था, ने ईशान्वी का गाल दबाते हुए कहा, "किसके बारे में सोच रही हो, जान?" ईशान्वी ने मृत्युंजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, "मिस्टर सिंघानिया... मुझे लग रहा है..." मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को और कसकर दबाते हुए कहा, "बोलो जान! क्या तुम अर्जुन के बारे में सोच रही हो?" ईशान्वी हैरत से मृत्युंजय की तरफ देखने लगी। उसने मन ही मन कहा, "इन्हें कैसे पता चला कि मैं अर्जुन के बारे में सोच रही हूं?" ईशान्वी की आंखों में पहले से ही आंसू भरे थे। उसने मृत्युंजय की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और बस अपनी नज़रें नीचे झुका लीं। मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को छोड़कर उसके होंठों को घूरने लगा। उसने ईशान्वी के करीब जाकर उसके होठों को चूमना शुरू कर दिया। ईशान्वी मृत्युंजय को खुद से दूर करने की कोशिश कर रही थी कि तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसके निचले होंठ पर कसकर काटा, जिससे ईशान्वी के होठों से खून आ गया। ईशान्वी की आंखों से आंसू बह रहे थे। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी को गुस्से से डराते हुए कहा, "जान! बेहतर होगा कि तुम खुद उस लड़के को जितनी जल्दी अपने दिल और दिमाग से निकाल दो! क्योंकि तुम यह तो सोचना मत कि तुम उसे इसी तरह मन ही मन प्यार करती रहोगी और मैं तुम्हें इसी तरह से एक्सेप्ट कर लूंगा। बिल्कुल भी नहीं! तुम सिर्फ़ मेरी हो और तुम्हें मेरे अलावा और किसी के बारे में सोचने का हक़ नहीं है! यू आर ओनली माइन! और अगर तुमने मेरे प्यार को किसी और के साथ बांटने के बारे में सोचा तो यह तुम्हारे लिए और भी ज़्यादा बुरा होगा और उससे भी ज़्यादा बुरा होगा तुम्हारे उस सो कॉल्ड लवर के लिए, क्योंकि उसे जान से मारने में मुझे एक मिनट भी नहीं लगेगा।" ईशान्वी ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, "आई एम सॉरी। मैं आज के बाद उसके बारे में नहीं सोचूंगी।" जैसे ही ईशान्वी ने यह बात कही, मृत्युंजय का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ। उसने ईशान्वी का हाथ छोड़ते हुए कहा, "दैट्स माय गुड गर्ल।" मृत्युंजय ईशान्वी की आंखों में आंखें डालकर देख रहा था कि तभी मेन डोर से एक लड़का अंदर की ओर दौड़ता हुआ आया और उसने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "सरप्राइज..!" ईशान्वी, जो बाथरोब में थी, उस लड़के को देखकर अपना बाथरोब ठीक करने लगी और अपने होठों से निकलने वाले खून को साफ करने लगी। मृत्युंजय ने जैसे ही उस लड़के को अपने सामने देखा, उसकी त्योरियां चढ़ गईं। To be continued.... गाइस, अभी तक आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज मुझे फीडबैक देते रहिएगा।
13. "यह लड़का कौन है?" मृत्युंजय ने उस लड़के की ओर देखा ही था कि उसके त्यौरियां चढ़ गईं। ईशान्वी हैरानी से लड़के को देख रही थी। वह मुस्कुराते हुए मृत्युंजय के पास आया और बोला, "सरप्राइज कर दिया ना मैंने आपको? शॉक्ड MJ ब्रो!" मृत्युंजय उठकर खड़ा हुआ और कोल्ड आवाज में कहा, "तुम यहां कैसे? और तुम लंदन से वापस कब आए, धैर्य?" धैर्य मुस्कुराते हुए बोला, "एग्जाम जैसे ही कंप्लीट हुए, मैंने सोचा क्यों ना आपको थोड़ा खुश कर दूं। जैसे ही मेरा प्लेन लैंड हुआ, सबसे पहले मैं आपसे मिलने आया। पता है मैंने आपको कितना मिस किया।" इतना बोलकर धैर्य मृत्युंजय के गले लग गया। मृत्युंजय उसे खुद से दूर करते हुए बोला, "अच्छा ठीक है। तुम घर चलो। मैं थोड़ी देर में तुमसे वहीं मिलता हूं।" धैर्य ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, मैं यहीं रुकूंगा, आपके पास।" इतना बोलकर धैर्य की नज़रें सीधे ईशान्वी पर गईं। वह उस समय काफी डरी हुई लग रही थी और उसके मासूम चेहरे पर कन्फ्यूजन साफ दिख रहा था। ईशान्वी ने मन ही मन कहा, "यह लड़का कौन है? और मिस्टर मृत्युंजय से इतना रिलैक्स होकर कैसे बात कर रहा है?" धैर्य ने ईशान्वी की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "हाय ज्योति, कैसी हो? हे माय नेम इज़ धैर्य। व्हाट्स योर नेम, प्रीटी गर्ल?" ईशान्वी ने धैर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी धैर्य मृत्युंजय के पास आकर बोला, "ब्रो, हु इज़ शी?" मृत्युंजय ने धैर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह ईशान्वी और ज्योति की ओर घूरने लगा। तभी ज्योति ने ईशान्वी का हाथ पकड़ते हुए धीमी आवाज में कहा, "आइए मैडम, आप मेरे साथ चलिए।" ईशान्वी भी बिना कुछ बोले, चुपचाप ज्योति के साथ उसके पीछे-पीछे चलने लगी। तभी मृत्युंजय ने धैर्य से कहा, "चलो, उधर। मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हें अब यहां से जाना चाहिए।" धैर्य बोला, "ठीक है भाई। अगर आप बोल रहे हो तो मैं घर चला जाऊंगा। बट पहले आप मुझे यह बताओ, यह लड़की कौन थी? मुझे तो बहुत क्यूट लगी, और काफी ज्यादा ब्यूटीफुल भी है। क्या मैं उससे फ्रेंडशिप कर सकता हूं?" मृत्युंजय ने सख्त आवाज में कहा, "नहीं। ऐसा कुछ सोचना भी मत। तुम्हारी होने वाली भाभी है वो।" धैर्य मृत्युंजय की बात सुनकर शॉक हो गया। उसकी आंखें हैरानी से फट गईं और वह हकलाते हुए बोला, "व्हाट? क्या... क्या कहा आपने? भाभी?" मृत्युंजय ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह बड़े ही आराम से डाइनिंग टेबल की चेयर पर बैठ गया। मृत्युंजय अपने डिनर को खत्म कर रहा था। तभी धैर्य ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "सीरियसली भाई, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि मृत्युंजय सिंघानिया को कोई लड़की पसंद आ गई। मैंने तो सोचा था कि आप आज भी पहले की तरह ही होंगे और किसी भी लड़की को भाव नहीं देंगे। आखिर इस लड़की ने कैसे ये कमाल किया? वह आपको कैसे पसंद आई भाई?" मृत्युंजय धैर्य की बात चुपचाप सुन रहा था। तभी धैर्य बोला, "कम ऑन भाई, अब आप अपने छोटे भाई को भी नहीं बताएंगे? क्या मुझसे भी सारी बातें सीक्रेट रखना शुरू कर दिया आपने?" मृत्युंजय ने धैर्य की बात सुनते ही खाना खाना रोक दिया। वहीं दूसरी तरफ, ईशान्वी ज्योति के साथ जा रही थी। तभी ज्योति बोली, "आप सोच रही होगी कि वह जो अभी मृत्युंजय सर से बात कर रहे थे, वह कौन है, है ना?" ईशान्वी ने ज्योति की बात का कोई जवाब नहीं दिया। तभी ज्योति रुकी और धीमी आवाज में बोली, "वह धैर्य सर हैं, मृत्युंजय सर के छोटे भाई!" ईशान्वी ने ज्योति की बात सुनकर बस हाँ में अपना सिर हिलाया। ज्योति फिर से चलने लगी। ईशान्वी उस पूरी जगह को चारों तरफ से घूमते हुए देख रही थी, क्योंकि वह एक बहुत बड़ा विला था, जिसका मेन गेट अभी तक ईशान्वी ने नहीं देखा था। ईशान्वी ने मन ही मन कहा, "कितनी बड़ी जगह है यह! यह तो उस विला से भी बड़ा है जिस विला में मैं पहली बार मिस्टर सिंघानिया से मिली थी।" ईशान्वी चलते-चलते ज्योति के साथ एक बड़े गेट पर पहुँची। गेट नंबर सिस्टम से लॉक था। ज्योति ने पिन डाला और गेट आसानी से खुल गया। ज्योति वहीं गेट के पास रुकी और ईशान्वी से बोली, "मैम, चलिए अंदर चलिए।" ईशान्वी अंदर गई और देखा कि पूरी जगह पर कपड़े ही कपड़े हैं। दूसरी तरफ फुटवियर की पूरी एक रो लगी हुई थी जिसमें स्पोर्ट्स शूज़, हील्स, फ़्लैट, हर तरह के फुटवियर रखे हुए थे। ईशान्वी देखकर दंग रह गई। तभी ज्योति अंदर आई और बोली, "मैम, मृत्युंजय सर ने यह आपके लिए बनवाया है। यह पूरा वार्डरोब आपका है!" ईशान्वी शॉक होते हुए बोली, "यह वार्डरोब है? मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी छोटे से मॉल में आ गई हूं।" ज्योति ने ईशान्वी की बात का हंसते हुए जवाब दिया, "आप नहीं जानती हमारे मृत्युंजय सर को। वह आपके लिए हर चीज़ सोचते हैं। आप बस मुझे यहां से अपनी पसंद की चीज़ बता दीजिए, मैं वह सब आपके रूम में शिफ्ट करवा दूंगी!" ईशान्वी ने वहां पर रखे उन सारे ब्रांडेड कपड़ों को देखा। वह बिल्कुल हैरान हो गई थी, क्योंकि वह इतने महंगे कपड़े थे, जिन्हें पहनने के बारे में ईशान्वी सोच भी नहीं सकती थी। ईशान्वी ने अंदर की तरफ देखा तो वहां पर उसकी हर एक ज़रूरत का सामान था। ईशान्वी अंदर गई। उसने देखा एक अलग पोर्शन था जहाँ पर काफी सारी ज्वैलरीज़ रखी हुई थीं। थोड़ा आगे वेस्टर्न ड्रेस थे। ईशान्वी पूरी जगह देखते हुए बोली, "यहां पर मेरे पहनने लायक कुछ भी नहीं है!" तभी ईशान्वी की नज़र ज्योति के कपड़ों पर गई। ज्योति ने सिंपल जींस और कुर्ती पहनी हुई थी। ईशान्वी ने कहा, "मुझे यहां से कुछ भी नहीं चाहिए। क्या तुम मुझे अपने कपड़े दे सकती हो?" ज्योति ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं मैम, मैं आपको अपने कपड़े नहीं दे सकती। मृत्युंजय सर ने बोला है आपको यहीं से कपड़े पहनने हैं, तो आपको यहीं से कपड़े पहनने पड़ेंगे। प्लीज़ आप अपने लिए कोई अच्छा सा कपड़ा चुन लीजिए, क्योंकि आप ऐसे ही बाथरोब में तो नहीं रह सकतीं ना?" ज्योति की बात सुनते ही ईशान्वी ने बाथरोब को देखा और हाँ में अपना सिर हिलाया। ईशान्वी ने वहीं से एक रैंडम कपड़ा उठाते हुए कहा, "बस मैं यही पहन लूंगी।" इतना बोलकर ईशान्वी वहां से बाहर निकलने लगी। तभी ज्योति भी उसके पीछे आते हुए बोली, "और कुछ नहीं चाहिए मैम आपको?" ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिला दिया। ईशान्वी जैसे ही इस रूम से बाहर निकली, वह भूल गई थी कि अभी तक वह किस रूम में थी और उसे कहाँ जाना है? उसने ज्योति की ओर देखते हुए कहा, "मुझे कहाँ जाना है? मैं किस रूम में थी?" ज्योति बोली, "चलिए मैम, मैं आपको ले चलती हूं।" ज्योति सीधे ईशान्वी को उसके कमरे में ले गई। उसने देखा डाइनिंग एरिया में ना तो मृत्युंजय था और ना ही धैर्य। ईशान्वी ने मन ही मन कहा, "अभी तक तो यह दोनों भाई यहीं पर थे। अब अचानक से कहाँ चले गए?" To be continued…. गाइस, अभी तक आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज मुझे फीडबैक देते रहिएगा। मैं डेली आप सबके कमेंट चेक करती हूं और मुझे बहुत अच्छा लगता है। कल पार्ट नहीं डाल पाई थी इसलिए आज दो पार्ट एक साथ दे रही हूं। पर कमेंट जरूर करिएगा।
14 जान तुम मेरा जिद और जूनून हो। ईशान्वी सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे की ओर जा रही थी। डाइनिंग एरिया में उसे कोई दिखाई नहीं दिया। उसने मन ही मन कहा, "अभी तक तो दोनों भाई यहीं बात कर रहे थे, इतनी जल्दी कहाँ चले गए?" ईशान्वी सीधे अपने कमरे में गई। उसने बाथरोब उतारा और उन्हीं ब्रांडेड कपड़ों में से एक साधारण सी लॉन्ग फ्रॉक पहन ली थी, जिसे उसने अभी-अभी चुना था। उसके हाथ में बंधी पट्टी पर हल्का खून नज़र आ रहा था। जैसे ही ज्योति ने यह देखा, वह फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आई और ईशान्वी के सामने झुक गई। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "मैम, आपके घाव से खून निकल रहा है। मुझे लगता है आपको अपनी पट्टी बदल लेनी चाहिए, वरना सर मुझे बहुत डाँटेंगे।" ईशान्वी के हाथ में थोड़ा दर्द भी हो रहा था, इसलिए वह चुपचाप वहीं बैठकर अपनी पट्टी खोलने लगी। ज्योति ईशान्वी के पास आने से थोड़ा हिचकिचा रही थी। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "मैम, मगर आप बुरा ना मानें तो क्या मैं आपकी थोड़ी मदद कर दूँ?" ईशान्वी ने सिर हिलाकर हाँ में उत्तर दिया और ज्योति ने ईशान्वी के हाथ की पट्टियाँ बदल दीं। ज्योति कमरे से बाहर जाने वाली थी कि ईशान्वी को याद आया कि उसने उसे कैसे धक्का दिया था। ईशान्वी ने उसे रोकते हुए कहा, "एक मिनट ज्योति, रुको!" ज्योति रुक गई और पूछा, "मैम, आपको कुछ चाहिए क्या?" ईशान्वी ने सिर हिलाकर ना में उत्तर दिया। "नहीं, मुझे तुम्हें माफ़ी मांगनी थी। आई एम सो सॉरी, मैंने तुम्हें धक्का दिया था, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।" ज्योति मुस्कुराते हुए बोली, "कोई बात नहीं मैम, मैं समझ सकती हूँ। आपको मुझे माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर आपको किसी चीज़ की और ज़रूरत हो, तो मुझे बुला लीजिएगा। आपके बिस्तर के पास एक बटन लगा है, उसे दबाएँगी तो मैं आ जाऊँगी।" ईशान्वी ने सिर हिलाकर हाँ में उत्तर दिया। फिर उसने मन ही मन सोचते हुए कहा, "ज्योति, क्या मैं तुमसे एक और सवाल पूछ सकती हूँ?" ज्योति ने सिर हिलाकर हाँ में उत्तर दिया। "हाँ मैम, बिलकुल पूछिए।" ईशान्वी ने पूछा, "तुम यहाँ कब से काम कर रही हो?" ज्योति ने बताया, "पहले मैं अपनी मम्मी के यहाँ काम करने आई थी, जब मैं बहुत छोटी थी। लेकिन अब मेरी माँ की तबीयत खराब रहती है, और अब मुझे अकेले ही यहाँ का सारा काम करना पड़ता है। और मैं काफ़ी सालों से यहाँ काम कर रही हूँ।" ईशान्वी ने पूछा, "तुम्हें पता है ये कौन सी जगह है और ये घर कितना बड़ा है? यहाँ से बाहर जाने का रास्ता कहाँ है?" ईशान्वी ज्योति से ये सारे सवाल पूछ रही थी, लेकिन ज्योति ने उसे किसी का भी जवाब नहीं दिया। उसने सिर झुकाते हुए कहा, "आई एम सो सॉरी मैम, मैं आपको ये सारी बातें नहीं बता सकती।" ईशान्वी बिस्तर पर बैठी रही और ज्योति चुपचाप वहाँ से चली गई। ईशान्वी ने उसके जाते ही अपना सिर पीटते हुए कहा, "मैं भी कितनी पागल हूँ! जब वह इतने सालों से मृत्युंजय के लिए काम कर रही है, तो भला वह मुझे क्यों बताएगी?" ईशान्वी ने सामने लगे बड़े से एलईडी टीवी की ओर देखते हुए कहा, "पता नहीं मिस्टर सिंघानिया ने अर्जुन के साथ और क्या-क्या किया होगा, वह कितनी तकलीफ में होगा! पता नहीं हम लोगों को किसकी नज़र लग गई है?" ईशान्वी अर्जुन के बारे में सोच रही थी। दूसरी ओर, मृत्युंजय धैर्य से बोला, "ईशान्वी नाम है उसका, और वह तुम्हारी होने वाली भाभी है। इस बात को याद रखना!" धैर्य ने कहा, "भाई, मैं आपकी बात समझ गया, लेकिन मुझे अभी भी ये बात समझ नहीं आ रही कि आपको भाभी से प्यार कैसे हुआ? आखिर ऐसा क्या है उनमें? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ? आप मुझे उनसे मिलाएँगे ना?" मृत्युंजय ने सिर हिलाकर ना में उत्तर दिया। "नहीं, अभी नहीं। क्योंकि अभी तुम्हारा उससे मिलने का समय नहीं आया है। जब सही वक्त होगा, तो मैं खुद तुम्हें, क्या सारे घरवालों से उसे मिला दूँगा।" धैर्य अधीरता से बोला, "क्या भाई! मैंने सोचा इतनी अच्छी गुड न्यूज़ मिली है तो..." धैर्य बोल ही रहा था कि मृत्युंजय ने उसे चुप कराते हुए कहा, "धैर्य, मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम घर पर किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगने दोगे। मैं नहीं चाहता कि अब यह बात किसी को पता चले। घर पर बहुत ध्यान से व्यवहार करना।" धैर्य ने एक आज्ञाकारी छात्र की तरह सिर हिलाया। "ठीक है भाई, मैं आपकी बात समझ गया। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा। बट अभी तो आप मेरे साथ घर चलेंगे ना?" मृत्युंजय ने कहा, "हाँ, चलूँगा, लेकिन तुम्हारे साथ नहीं। तुम घर पहुँचो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।" इतना बोलकर मृत्युंजय अपने कमरे की ओर जाने लगा। तभी धैर्य ने कहा, "क्या बात है भाई? भाभी से परमिशन लेने जा रहे हो क्या?" धैर्य मृत्युंजय को छेड़ रहा था। मृत्युंजय उसे घूरते हुए बोला, "जस्ट शट अप और घर जाओ।" धैर्य मृत्युंजय की बात सुनकर मुस्कुराने लगा। उसने हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, "ओके ब्रो, जल्दी घर आना। मैं तब तक मॉम को सरप्राइज देता हूँ!" मृत्युंजय ने धैर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया। जैसे ही मृत्युंजय कमरे में पहुँचा, उसने देखा ईशान्वी काले रंग की एक फ्रॉक पहनकर खड़ी है। उसके बाल खुले हुए थे और उसके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था। उसका सादा चेहरा भी इतना प्यारा लग रहा था कि मृत्युंजय उसे देखता ही रह गया। लेकिन ईशान्वी का ध्यान कहीं और था, वह उस समय एलईडी टीवी के सामने खड़ी थी। मृत्युंजय ने जैसे ही ईशान्वी को एलईडी टीवी के सामने खड़ा देखा, वह गुस्से से तिलमिला उठा। वह ईशान्वी के पास आया और उसके खुले बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ते हुए बोला, "क्या बात है जान? यहाँ टीवी के सामने खड़े होकर अर्जुन के बारे में सोच रही थी क्या?" ईशान्वी ने सिर हिलाकर ना में उत्तर दिया। "नहीं, वो मैं..." ईशान्वी बहाना बनाना चाह रही थी, तभी मृत्युंजय ने उसके बालों को कसकर खींचते हुए कहा, "मुझसे झूठ बोलने की हिम्मत आखिर कैसे कर सकती हो तुम?" मृत्युंजय ने ईशान्वी के बाल कसकर खींचे और ईशान्वी को तेज दर्द हुआ। वह चीखते हुए बोली, "मिस्टर सिंघानिया, क्या कर रहे हैं आप? मुझे दर्द हो रहा है!" मृत्युंजय ईशान्वी के कान के पास जाकर उसे अपने करीब खींचते हुए बोला, "तुम्हें पता है जान, तुम जितनी जल्दी उस अर्जुन के बारे में सोचना छोड़ दोगी, सब कुछ तुम्हारे लिए उतना ही ज़्यादा आसान हो जाएगा!" ईशान्वी की आँखों से आँसू निकल रहे थे। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी को बिस्तर पर धक्का दे दिया और उसके ऊपर चढ़ते हुए बोला, "तुम नहीं जानती मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ, तुम्हारा यह प्यार मेरे लिए जुनून बन चुका है। बेहतर होगा कि तुम भी मुझसे मेरी ही तरह प्यार करो और अपने उस पुराने आशिक को भूल जाओ!" मृत्युंजय ईशान्वी के ऊपर था। उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं। क्रमशः... गाइस, अभी तक आपको कहानी कैसी लग रही है? कृपया मुझे प्रतिक्रिया देते रहिएगा। मैं रोज़ आप सबके कमेंट्स चेक करती हूँ और मुझे बहुत अच्छा लगता है आप लोगों के कमेंट्स देखकर। मृत्युंजय का किरदार कैसा लग रहा है आप सबको? और क्या लगता है आगे क्या करने वाला है मृत्युंजय ईशान्वी के साथ? और वह ईशान्वी से अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या जुल्म करेगा उस पर? क्या ईशान्वी थकहार कर सौंप देगी खुद को मृत्युंजय के हवाले? जानने के लिए कहानी पढ़ते रहिए और कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।
15 Come on जान, kiss me. मृत्युंजय ने ईशान्वी को बेड पर धक्का दे दिया और ईशान्वी के ऊपर चढ़ते हुए बोला, “तुम नहीं जानती मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ, तुम्हारा यह प्यार मेरे लिए जुनून बन चुका है। बेहतर होगा कि तुम भी मुझसे मेरी ही तरह प्यार करो और अपने उस पुराने आशिक को भूल जाओ।” ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली थीं। वह मृत्युंजय की तरह अपना चेहरा नहीं घुमा पा रही थी। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को कसकर पकड़ते हुए उसका चेहरा अपनी तरफ घुमा लिया और उसके बिल्कुल नजदीक जाकर धीमी आवाज में कहा, "तुम्हारा फ्यूचर और तुम्हारा प्रेजेंट सिर्फ और सिर्फ मृत्युंजय है और ईशु बेबी, तुम अपने पास्ट को जितनी जल्दी भूल दोगी ना, तुम्हारे लिए बहुत अच्छा होगा। वैसे मैं तुम्हें अब ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करूँगा, चलो उठो और जल्दी से मुझे एक प्यारी सी किस दो।” ईशान्वी रो रही थी और उसने मृत्युंजय की बात नहीं सुनी। मृत्युंजय ने ईशान्वी के दोनों हाथों की उंगलियों को अपनी उंगलियों में फँसाते हुए कहा, "कम ऑन जान, तुम्हें क्या लगता है मैं तुम्हारे इन आँसुओं को देखकर पिघल जाऊँगा? बिल्कुल भी नहीं। तुमने मेरे दिल को चुराया है और उसकी सजा तो तुम्हें बराबर मिलेगी।” इतना बोलकर मृत्युंजय ईशान्वी के चेहरे के बिल्कुल नजदीक आया और उसकी नाक ईशान्वी की नाक से टच होने लगी। ईशान्वी की दिल की धड़कनें काफी तेज हो गई थीं और मृत्युंजय ने उसके सीने पर अपना हाथ रखा। जैसे ही ईशान्वी ने मृत्युंजय के हाथ को अपनी बॉडी पर फील किया, उसका दिल और ज्यादा तेजी से धड़कने लगा। मृत्युंजय उसकी धड़कनों को महसूस करके मुस्कुराते हुए बोला, “मेरे छूने से तुम्हारे बदन में जो कंपकंपी होती है, उसे मैं बहुत इंजॉय करता हूँ और तुम्हारे दिल की यह धड़कन जो मेरे छूते ही कितनी तेज हो जाती है ना, इससे मुझे इतना तो पता चलता है कि तुम मानो या ना मानो, लेकिन तुम्हारे जिस्म पर, तुम्हारी रूह पर सिर्फ और सिर्फ मेरा हक़ है।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी के होठों पर अपने होंठ रख दिए और वे दोनों एक-दूसरे के जिस्म की गर्माहट और धड़कनों को महसूस कर रहे थे। ईशान्वी चुपचाप लेटी थी और मृत्युंजय उसे पागलों की तरह किस करता जा रहा था। उसने ईशान्वी के होठों को अपने होठों से रगड़ा और ईशान्वी को तेज दर्द होने लगा। ईशान्वी मृत्युंजय की जीभ अपनी लिप्स पर फील कर रही थी। मृत्युंजय की जीभ ईशान्वी के अपर लिप्स पर थी और वह बिल्कुल वाइल्डली ईशान्वी को किस कर रहा था। मृत्युंजय काफी देर तक उसे किस करता रहा और थोड़ी देर बाद ईशान्वी के होठों को छोड़ते हुए बोला, “ईशू, मुझे तुम्हारे लिप्स पर किस करना बहुत अच्छा लगता है। तुम मुझे यह बताओ, क्या तुम भी मेरी किस को इंजॉय करती हो?” ईशान्वी ने जैसे ही मृत्युंजय के मुँह से बात सुनी, उसने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया। मृत्युंजय ईशान्वी के ऊपर से हटा और उसने अपना कपबोर्ड खोलकर टी-शर्ट निकाली और वहीं ईशान्वी के सामने ही अपनी बनियान उतारकर शर्ट पहनने लगा। ईशान्वी ने मृत्युंजय की कसी हुई बॉडी और उसके सिक्स पैक एब्स को देखा। वह छुप-छुप कर मृत्युंजय को देख रही थी और तभी मृत्युंजय मुस्कुराते हुए बोला, “कम ऑन जान, तुम्हें इस तरह छुप-छुप कर मुझे देखने की कोई जरूरत नहीं है। I'm all yours, you can stare at my body….” ईशान्वी ने तुरंत अपना सिर दूसरी तरफ घुमा लिया। मृत्युंजय तैयार हुआ और ईशान्वी के पास आकर दोबारा उसके होठों को किस करते हुए बोला, “अब मैं तुम्हें और परेशान नहीं करूँगा जान, आराम से सो जाओ। हम सुबह मिलते हैं।” ईशान्वी ने जैसे ही यह बात सुनी, वह खुश हो गई। मृत्युंजय अपने रूम से बाहर निकलने वाला था और तभी ईशान्वी ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, "मिस्टर सिंघानिया, अब तो मैं यहाँ आपके पास हूँ। प्लीज आप अर्जुन को छोड़ दीजिए। आई स्वियर, अगर आप उसे छोड़ देंगे तो मैं आज के बाद कभी भी उसका नाम नहीं लूँगी।” मृत्युंजय ईशान्वी की बात सुनकर एक पल के लिए वहाँ पर रुका और उसने पीछे पलट कर ईशान्वी को घूरते हुए देखा। ईशान्वी ने अपनी नज़रें नीचे झुका लीं। मृत्युंजय बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया। जैसे ही मृत्युंजय अपने रूम से बाहर निकला, उसका फ़ोन बजा। उसने कॉल पिकअप करते हुए कहा, "हेलो भाई, मैं घर पहुँच गया हूँ। आप कब आओगे यहाँ?” मृत्युंजय ने कहा, "बस, मैं भी 15 मिनट में पहुँचता हूँ।” इतना बोलकर मृत्युंजय सीधे अपनी कार में बैठा और सीधे सिंघानिया मेंशन पहुँचा। जहाँ पर डायनिंग एरिया में धैर्य एक सिल्क की साड़ी पहनी हुई औरत के बगल में बैठा था। उस औरत ने फुल मेकअप किया हुआ था और उसके बाल उसके शोल्डर्स को टच हो रहे थे। वह औरत कोई और नहीं, बल्कि मृत्युंजय की मॉम, मिसेज मधुरिमा सिंघानिया थीं। धैर्य उनके साथ बैठा था और वहीं बगल में एक दूसरी औरत बैठी थी, जो नेट की साड़ी पहनी थी। उसकी मांग में छोटा सा सिंदूर था और वे सब एक साथ बैठकर मुस्कुरा-मुस्कुरा कर बातें कर रहे थे। जैसे ही मृत्युंजय वहाँ पहुँचा, उसे पूरी जगह पर एक अजीब सी शांति छा गई। जितने भी लोग बोल रहे थे, वे सब बिल्कुल शांत हो गए। मृत्युंजय धैर्य के पास जाकर खड़ा हुआ। धैर्य अपनी जगह से उठा और ड्रामा करते हुए मृत्युंजय के गले लगते हुए बोला, “एमजी ब्रो, कितनी देर से मैं आपका वेट कर रहा था! कहाँ थे आप?” मृत्युंजय ने धैर्य को गौर से देखा और धैर्य ने उसके कान के पास जाकर कहा, "अरे भाई, थोड़ा सा तो ड्रामा करने दो, वरना मॉम को शक हो जाएगा कि मैं पहले आपसे मिलने गया था।” मृत्युंजय ने धैर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया और तभी मिसेज मधुरिमा मृत्युंजय के पास आकर बोलीं, “मृत्युंजय, कल से मैं तुम्हारा वेट कर रही थी! लेकिन तुमसे मिल ही नहीं पा रही थी। अच्छा हुआ जो तुम आ गए।” मृत्युंजय ने धैर्य की तरफ देखते हुए कहा, "धैर्य, तुम्हारी लंदन की फ़्लाइट काफी लंबी थी ना? थक गए होगे तुम। जाओ जाकर फ़्रेश हो जाओ।” धैर्य ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "येस ब्रो, सच कहा आपने। वैसे भी मैं काफी ज्यादा थक गया हूँ। थोड़ा आराम करूँगा, तो बैटर फ़ील करूँगा।” इतना बोलकर धैर्य जा ही रहा था कि तभी वह रुका और मृत्युंजय के पास आकर उसने मृत्युंजय के कान में कहा, "एमजी ब्रो, मैं फ़्रेश होने के बाद आपके रूम में आपसे मिलता हूँ।” मृत्युंजय ने हल्के से हाँ में अपना सिर हिलाया और उछलता-कूदता हुआ वहाँ से सीधे अपने रूम में चला गया। मिसेज मधुरिमा जो मृत्युंजय के पास आकर खड़ी थीं, उन्होंने मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "क्या बात है मृत्युंजय बेटा? तुम थोड़े गुस्से में लग रहे हो। कोई परेशानी है क्या? या फिर तुम काम को लेकर टेंशन में हो?” मृत्युंजय ने अपनी मॉम का हाथ अपने कंधे पर से हटाते हुए कहा, "सबसे पहले तो आप इस तरह का झूठा दिखावा करना बंद करिए। आपके ऊपर बिल्कुल भी सूट नहीं करता। आप अपनी किटी पार्टी करते हुए ही ज्यादा अच्छी लगती हैं और हाँ, क्यों याद किया था आप मुझे? क्यों मिस कर रही थीं? वो भी बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ।” मृत्युंजय का ताना सुनकर मिसेज मधुरिमा कुछ नहीं बोलीं। वह बस मृत्युंजय को घूरते हुए देख रही थीं और तभी मृत्युंजय ने कहा, "और मैं भी कैसी बातें कर रहा हूँ? आप भला मुझे क्यों मिस करेंगी? आपको या तो पैसे चाहिए होंगे या फिर आपने कोई नई प्रॉब्लम क्रिएट करी होगी। Am I right?" To be continued.... गाइस, अभी तक आप लोगों को स्टोरी कैसी लग रही है? प्लीज मुझे फीडबैक देते रहिएगा। मैं डेली आप सबके कमेंट चेक करती हूँ और मुझे बहुत अच्छा लगता है आप लोगों के कमेंट्स देखकर। मृत्युंजय का करैक्टर कैसा लग रहा है आप सबको? और क्या लगता है आगे क्या करने वाला है मृत्युंजय ईशान्वी के साथ? और वह ईशान्वी से अपनी बात मनवाने के लिए और क्या-क्या जुल्म करेगा उस पर? क्या ईशान्वी थकहार कर सौंप देगी खुद को मृत्युंजय के हवाले? जानने के लिए स्टोरी कंटिन्यू पढ़ते रहिए और कमेंट करना बिल्कुल भी मत भूलिएगा।
16 बेड पर सेटिस्फाई… मृत्युंजय का ताना सुनकर मिसेज मधुरिमा कुछ नहीं बोलीं। वह बस मृत्युंजय को घूरती रहीं। तभी मृत्युंजय ने कहा, "मैं भी कैसी बातें कर रहा हूँ? आप भला मुझे क्यों मिस करेंगी? आपको या तो पैसे चाहिए होंगे या फिर आपने कोई नई प्रॉब्लम क्रिएट करी होगी।” मधुरिमा मृत्युंजय को देखकर खिसियाते हुए बोलीं, “कभी तुम मुझसे अच्छे से बात नहीं कर सकते क्या?” मृत्युंजय ने अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "क्या कहा आपने? अच्छे से? ये मैं आपसे अच्छे से ही बात कर रहा हूँ। बोलिए, कितने पैसे चाहिए।” मधुरिमा मृत्युंजय को गुस्से से देख रही थीं और अपने दांत पीस रही थीं। तभी मृत्युंजय ने अपना मोबाइल फोन निकाला और उनके अकाउंट में एक करोड़ रुपए ट्रांसफर करते हुए कहा, "पैसे ट्रांसफर कर दिए हैं। चेक कर लीजिए। और इस तरह मुझे घूर कर देखने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ना ही मैं आपसे डरने वाला हूँ और ना ही आपकी बातों में आने वाला हूँ। आप धैर्य और तत्सम भाई को ही बेवकूफ बना सकती हैं, मुझे नहीं।" इतना बोलकर मृत्युंजय वहाँ एक मिनट के लिए भी नहीं रुका और सीधे अपने रूम की तरफ जाने लगा। मृत्युंजय जैसे ही अपने रूम में गया, उसने देखा कि उसका रूम पहले से ही खुला था। मृत्युंजय जैसे ही अंदर गया, उसने धीमी आवाज में कहा, "इतनी जल्दी धैर्य फ्रेश होकर मेरे रूम में भी आ गया क्या?" मृत्युंजय अंदर गया और उसने बिल्कुल कोल्ड आवाज में कहा, "धैर्य, क्या तुम अंदर हो?" मृत्युंजय इतना बोलकर वॉशरूम की तरफ जा ही रहा था कि तभी पीछे से किसी ने उसे हग कर लिया। मृत्युंजय ने जैसे ही उस हाथ को पकड़ा, वह किसी लड़के का नहीं, बल्कि लड़की का हाथ था। उसे देखकर मृत्युंजय ने उसका हाथ झटकते हुए कहा, "अवनी, तुम अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आओगी ना?" पीछे मुड़कर जब मृत्युंजय ने देखा, तो वहाँ पर कोई और नहीं, बल्कि सच में अवनी ही खड़ी थी। वह मृत्युंजय के करीब आते हुए बोली, "बिल्कुल भी नहीं। जब तक तुम मेरी बात नहीं मान लेते, मैं कोशिश करती रहूँगी।" मृत्युंजय ने अपनी आँखें घुमाते हुए कहा, "कोशिश करते-करते मर जाओगी तुम, लेकिन मैं तुम्हारी बात कभी नहीं मानूँगा। अब मेरे रूम से और मेरी आँखों के सामने से दफ़ा हो जाओ।" अवनी मृत्युंजय के करीब आई और अपने होंठ काटते हुए बोली, "नहीं जाऊँगी मैं कहीं, क्योंकि आज तो मेरा तुम्हारे साथ यहीं, तुम्हारे बेडरूम में ही सोने का प्लान है। प्लीज मान जाओ ना, और सिर्फ़ एक रात की ही तो बात है। और ट्रस्ट मी, MJ, आज की रात तुम्हारी ऐसी होगी कि तुम उसे कभी भूल नहीं पाओगे।” इतना बोलकर अवनी मृत्युंजय के करीब आई और जल्दी-जल्दी मृत्युंजय के शर्ट के बटन खोलने लगी। मृत्युंजय ने अपनी शर्ट को पकड़ा और अवनी का हाथ पकड़कर उसकी कलाई मोड़ते हुए कहा, "कहीं ऐसा ना हो कि मैं कुछ ऐसा कर बैठूँ कि तुम मुझे और इस रात को कभी ना भूल पाओ, इसलिए बेहतर होगा कि धैर्य के आने से पहले ही तुम यहाँ से चली जाओ।” अवनी का हाथ मृत्युंजय के हाथ में था और मृत्युंजय ने उसकी कलाई को कसकर मोड़ दिया था जिससे अवनी को काफ़ी दर्द हो रहा था। उसने बिल्कुल भी अपने दर्द को ज़ाहिर नहीं किया और वह मृत्युंजय को देखकर मुस्कुराते हुए बोली, “तुम्हारा दिया हुआ हर एक दर्द भी मुझे हँसकर क़ुबूल है। अगर तुम इतने ही वाइल्ड मेरे साथ बिस्तर पर हो जाओ तो मुझसे ज़्यादा खुश कोई नहीं होगा। कम ऑन, MJ, मान भी जाओ। और कितने नखरे दिखाओगे?” अवनी के हँसते हुए चेहरे को देखकर मृत्युंजय बिल्कुल खिसिया गया। उसने अवनी का हाथ झटकते हुए कहा, "तुम्हारे जैसी लड़की सिंघानिया मेंशन में होना डिजर्व ही नहीं करती और ना ही तुम मेरे भाई को डिजर्व करती हो।” अवनी ने जैसे ही यह बात सुनी, उसने मृत्युंजय का कॉलर पकड़ते हुए कहा, "हाउ डेयर यू? तुमने यह बात बोली कैसे? मैं नहीं, बल्कि तुम्हारा भाई मुझे डिस्टर्ब करता है। अगर मेरी शादी के टाइम यह मिसअंडरस्टैंडिंग ना होती तो मैं कभी भी तुम्हारे भाई से शादी ना करती। मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी शादी तुमसे होने वाली है, इसीलिए मैंने शादी के लिए हाँ किया था। और रही बात तुम्हारे भाई की, तो तुम्हारा भाई मेरे किसी काम का नहीं है, ना ही वह तुम्हारे जितना स्मार्ट है, ना ही तुम्हारे जितना हॉट और ना ही वह तुम्हारे जितना बड़ा बिजनेसमैन है। तुम्हारा भाई सारा दिन सारी रात शराब के नशे में चूर रहता है, उसे खुद का तो होश नहीं रहता, वह मेरे लायक क्या बनेगा? और सबसे बड़ी बात, वह तो मुझे बेड पर सेटिस्फाई भी नहीं कर पाता है।” अवनी की बात सुनकर मृत्युंजय उसके करीब गया और उसने उसकी आँखों में आँखें डालकर गुस्से से अपने दांत पीसते हुए कहा, "जस्ट शट अप! अब अगर तुमने एक शब्द भी और बोला तो मैं भूल जाऊँगा कि तुम मेरी भाभी हो।” अवनी, जो अब मृत्युंजय से बिल्कुल भी नहीं डर रही थी, उसने मृत्युंजय को बेड पर धकेलते हुए कहा, "तो भूल जाओगे! मैं तुम्हारी भाभी हूँ। निकाल दो इस बात को अपने दिमाग से। और जो मानना है, तुम मुझे मान सकते हो।” इतना बोलकर अवनी मृत्युंजय के ऊपर आने लगी। मृत्युंजय ने उसे अपने ऊपर से धकेलते हुए कहा, "यह क्या कर रही हो तुम? दूर हटो मुझसे! और खबरदार, अगर दोबारा कभी तुमने ऐसी हरकत की तो…!” इतना बोलकर मृत्युंजय ने अवनी का हाथ पकड़कर खींचा और उसे अपने रूम से बाहर करके दरवाज़ा उसके मुँह पर बंद कर दिया। मृत्युंजय ने अपना कोट और शर्ट उतारकर फेंका और वह सीधे शावर के नीचे जाकर खड़ा हो गया। उधर दूसरी तरफ ईशान्वी अपने बेडरूम में थी। उसने घड़ी की तरफ देखा; रात के 11:30 बज रहे थे। तभी उसने ज्योति को आवाज़ लगाई। ज्योति उसकी एक आवाज़ सुनते ही उसके रूम के पास आकर खड़ी हुई और उसने धीमी आवाज में पूछा, “क्या हुआ मैम? आपको कुछ चाहिए?” ईशान्वी ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "हाँ, वो एक्चुअली मुझे भूख लगी है और रात में सोने के लिए मुझे दूसरे कपड़े चाहिए। इस हैवी फ्रॉक में मैं सो नहीं पाऊँगी।” ज्योति ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए पूछा, “आपको पहनने के लिए क्या चाहिए? बताइए, मैं ला देती हूँ। और आप खाने में क्या खाएँगी? वह भी मुझे बता दीजिए।” ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "मुझे बताओ किचन कहाँ है? मैं अपने हाथ से बनाकर कुछ खाऊँगी। मुझे और किसी के हाथ का कुछ नहीं खाना।” ज्योति ने हाँ में अपना सिर हिलाया और वह ईशान्वी को लेकर किचन में गई। शांति अपने लिए कुछ खाने के लिए बना रही थी और ज्योति वहीं पर चुपचाप अपना हाथ बांधकर खड़ी थी। तभी ईशान्वी ने कहा, "तुम भी खाओगी। मैं तुम्हारे लिए भी बना देती हूँ।” ज्योति ने ना में अपना सिर हिलाया। तभी ईशान्वी ने कहा, "कोई बात नहीं, मैं बना दूँगी। हम दोनों साथ में ही खा लेंगे।" ज्योति ने ईशान्वी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उसने अपने मन में कहा, "अभी थोड़ी देर पहले ही तो ईशान्वी मैम ने सर के साथ खाना खाया था, तो फिर उन्हें फिर से भूख कैसे लग गई? और वह इतनी अच्छी तरह से बिहेव क्यों कर रही हैं? आखिर क्या चल रहा है उनके मन में? मुझे यह बात सर से बतानी होगी।” To be continued…. आखिर क्या चल रहा है ईशान्वी के दिमाग में? क्या करने वाली है वो? क्यों कर रही है इतनी अच्छी तरह से बिहेव? क्या लगता है आप लोगों को? प्लीज कमेंट करिए।
17 ईशान्वी फरार… ज्योति को ईशान्वी पर शक हो रहा था कि वह कुछ तो करने वाली है। वह सीधे किचन से बाहर आई और मृत्युंजय को मैसेज करने लगी। थोड़ी देर बाद ईशान्वी किचन से दो प्लेट लेकर बाहर निकली और डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। ईशान्वी के हाथ में अभी भी दर्द हो रहा था, लेकिन उसके दिमाग में कुछ और ही बात चल रही थी। जिस वजह से वह अपने दर्द को बिल्कुल भूल गई थी। वह डाइनिंग टेबल पर आकर बैठी और ज्योति को आवाज देते हुए कहा, "क्या कर रही हो तुम? वहां आओ, यहां मेरे साथ बैठो।" ज्योति ईशान्वी की बात सुनकर उसके पास आई और अपना सिर हिलाते हुए बोली, “मैंम, मुझे भूख नहीं है। आप अकेले खा लीजिए।” ईशान्वी ने कहा, "तुम मुझसे अभी भी नाराज हो क्या? उस दिन मैंने तुम्हें धक्का दिया था, उस बात को लेकर? यार, मैंने सॉरी बोला था ना उस दिन। मैं अच्छे मूड में नहीं थी, इसीलिए।" ज्योति ने उसकी तरफ देखकर अपना सिर हिलाते हुए बोली, “नहीं मैंम, ऐसी कोई बात नहीं है।” ईशान्वी मुस्कुराते हुए बोली, "तो फिर अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो आओ बैठो ना मेरे साथ!" ज्योति बिना कुछ बोले चुपचाप ईशान्वी के बगल में बैठ गई। थोड़ी देर में ईशान्वी ने अपना सैंडविच खत्म कर लिया और ज्योति की तरफ देखकर कहा, "वैसे एक बात कहूं ज्योति, तुम सच में बहुत अच्छी हो।" ज्योति ईशान्वी की बात सुनकर कुछ नहीं बोली। बस उसने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, "थैंक यू मैंम।" ईशान्वी उठकर खड़ी हुई और बोली, "चलो हम रात में सोने के लिए कोई अच्छा सा ड्रेस ले आते हैं।" ज्योति ने अपना सिर हिलाया और ईशान्वी के साथ सीधे क्लोजेट में गई। ईशान्वी ने काफी देर वहां पर कपड़े देखने में समय बिताया और ज्योति चुपचाप वहीं खड़ी उसका इंतजार कर रही थी। ईशान्वी ने कहा, "काफी रात हो गई है ज्योति। अगर तुम सोना चाहो तो तुम जा सकती हो। मैं अपने रूम में चली जाऊंगी।" ज्योति ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं मैंम, कोई जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं। आप आराम से अपने कपड़े चुन सकती हैं।" ईशान्वी ने इधर-उधर देखा और एक नाइट ड्रेस, एक ट्रैकसूट, कुछ जींस और ब्रांडेड टॉप उठाए। उन्हें लेकर वह ज्योति के पास आई और बोली, “ले लिया मैंने। मुझे इतने ही कपड़ों की जरूरत थी। चलो अब हम चलते हैं।” ईशान्वी वहां से निकलकर सीधे अपने रूम में आ गई। ज्योति ने कहा, "ईशान्वी मैम, अगर आपको और कुछ चाहिए हो तो आप मुझे बुला लीजिएगा।" ईशान्वी ने अपना सिर हिलाया और चुपचाप अपने बेड पर जाकर आराम से बैठ गई। ईशान्वी काफी अलग बर्ताव कर रही थी और ज्योति को कहीं ना कहीं ईशान्वी की हरकतों पर शक हो गया था। लेकिन वह ईशान्वी से कुछ नहीं बोली और चुपचाप अपने रूम में चली गई। ज्योति के जाते ही ईशान्वी उसके पीछे ही रूम से बाहर निकली। ईशान्वी ने दूर से देखा कि ज्योति एक छोटे से कमरे में गई है। जैसे ही ज्योति कमरे के अंदर गई, ईशान्वी चुपके-चुपके उसके कमरे तक पहुँची और उसने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। घर के बाकी सारे नौकर भी अपने-अपने रूम में जाकर सो चुके थे। ईशान्वी ने वापस अपने कमरे में आकर कहा, “बहुत अच्छा टाइम है, बस मुझे सब की नजरों से बचकर यहां से भागना ही होगा। मैं यहां पर रुककर और टाइम बर्बाद नहीं कर सकती।” इतना बोलकर ईशान्वी ने जल्दी से चेंजिंग रूम में जाकर ट्रैकसूट पहना और उसने छुपके-छुपाते अपने कमरे से बाहर निकली। ईशान्वी सीधे डाइनिंग एरिया में आई और वह चारों तरफ देखते हुए बोली, “एक तो यह विला इतना ज्यादा बड़ा है कि मुझे अभी तक यहां से बाहर निकलने का रास्ता भी नहीं पता है।” ईशान्वी इतना बोलकर आगे बढ़ने लगी और धीरे-धीरे करके विला से बाहर आई। उसने बाहर की तरफ देखा तो सिक्योरिटी गार्ड बिल्कुल चौकन्ना खड़ा था। उसने अपना सर पीटते हुए कहा, "हे भगवान! मैं तो सिक्योरिटी गार्ड के बारे में सोचा ही नहीं। अब मैं यहां से कैसे निकल पाऊंगी।" ईशान्वी विला के बाहर खड़ी कार के पास गई और उसने कार के पीछे जाकर खड़े होते हुए इधर-उधर देखा। वह सिक्योरिटी गार्ड अकेला वहां पर था और आसपास कोई भी नजर नहीं आ रहा था। ईशान्वी ने कहा, "अगर यह सिक्योरिटी गार्ड यहां से हट जाए तो मैं यहां से निकल जाऊंगी। इतने अंधेरे में कोई मुझे नोटिस भी नहीं कर पाएगा।" ईशान्वी ने वहीं जमीन पर पड़े एक बड़े से पत्थर को उठाया और उस पत्थर को दूसरी तरफ फेंका। जिससे कुछ गिरने की आवाज हुई और वह सिक्योरिटी गार्ड सीधे उसी आवाज की तरफ गया। ईशान्वी ने जल्दी से मेन गेट खोला और वहां से बाहर निकल आई। ईशान्वी जैसे ही विला से बाहर निकली, उसने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "सबसे पहले मुझे मनु श्री आंटी के पास जाना होगा। मैं उन्हें जाकर सब कुछ सच-सच बता दूंगी कि यह मृत्युंजय सिंघानिया दिखने में जितना ही अच्छा है, अंदर से उतना ही दरिंदा है। इसके जैसा डेविल इंसान मैंने आज तक नहीं देखा। इंसान की शक्ल में हैवान है।" यह ईशान्वी सीधे छिपते-छुपाते रोड तक आई और उसने देखा वह शहर से काफी दूर बसा हुआ एक बड़ा सा एरिया था, जहां पर आसपास कोई भी घर नहीं था। बस मृत्युंजय का वही बड़ा सा विला जहां अभी तक वह थी। ईशान्वी ने देखा उसके पास इस समय कोई भी पैसे नहीं थे। वह ना ही टैक्सी कर सकती थी और ना ही कोई ऑटो। वह सिर्फ अपनी जान बचाकर वहां से भाग सकती थी और उसने सीधे अनाथालय की तरफ जाने के बारे में सोचा। ईशान्वी बिना कुछ सोचे-समझे सीधे अनाथालय की तरफ भागने लगी। आधी रात हो चुकी थी। ईशान्वी को अंधेरे से बड़ा डर लगता था, लेकिन आज मृत्युंजय के डर के आगे वह अपने अंधेरे का डर भूल चुकी थी और वह सीधे अनाथ आश्रम की तरफ भागती जा रही थी। वहीं दूसरी तरफ मृत्युंजय अपने फोन पर कुछ कर रहा था। तभी धैर्य उसके रूम में आया और उसने मृत्युंजय के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, "MJ ब्रो, क्या कर रहे हो आप?" मृत्युंजय ने फोन साइड में रखते हुए कहा, "कल मेरी कुछ इम्पॉर्टेन्ट मीटिंग्स थीं, उन्हीं को देख रहा था!" धैर्य ने मीटिंग की बात सुनकर उत्साह से कहा, "MJ भाई, आपने क्या सोचा है? अब तो मेरी पढ़ाई कंप्लीट हो गई है और मेरा भी वापस लंदन जाने का कोई इरादा नहीं है। तो फिर मैं यहां पर रहूंगा, क्या करूंगा मैं? आपके साथ तो ऑफिस जॉइन करूं क्या?" मृत्युंजय ने कहा, "नहीं, कोई जरूरत नहीं है तुम्हें ऑफिस ज्वाइन करने की। तुम अभी वापस आए हो। थोड़े दिन अपने दोस्तों के साथ घूमो-फिरो। जब मैं तुमसे कहूंगा तब तुम ऑफिस ज्वाइन करना।" मृत्युंजय की बात सुनकर धैर्य ने कहा, "वैसे भाई, कल मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ पार्टी में जाने वाला हूं। आप मेरे साथ पार्टी ज्वाइन करोगे क्या?" मृत्युंजय ने अपना सिर हिलाया, “नहीं, तुम जानते हो ना मुझे यह सब पसंद नहीं है। इसलिए तुम ही जाओ और एन्जॉय करो।” धैर्य मृत्युंजय से कुछ बात कर ही रहा था कि तभी मृत्युंजय का फोन बजा। मृत्युंजय ने कॉल रिसीव करते हुए कहा, "हां बोलो… नहीं, मैं अभी नहीं सोया… ठीक है, मैं थोड़ी देर में पहुंचता हूं!" धैर्य ने जैसे ही मृत्युंजय की बात सुनी, वह मुंह बनाते हुए बोला, “कहां जा रहे हो भाई आप?” मृत्युंजय ने अपने कपड़े पहने और कार की चाबी उठाते हुए कहा, "एक इम्पॉर्टेन्ट काम है। तुम रेस्ट करो, मैं तुमसे बाद में मिलता हूं।" आस्था अनाथ आश्रम… दूसरी तरफ, ईशान्वी भागते-भागते अनाथ आश्रम पहुँची। ईशान्वी सीधे मनु श्री के रूम में गई और उसने दरवाजा जोर से पीटते हुए कहा, "मनु श्री आंटी, दरवाजा खोलो! मनु श्री आंटी, प्लीज दरवाजा खोलो।" ईशान्वी जो भागते हुए आश्रम तक पहुँची थी, वह पूरी तरह पसीने से तरबतर थी। जैसे ही मनु श्री ने दरवाजा खोला, ईशान्वी ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, "आंटी, वह मिस्टर सिंघानिया बहुत बुरे इंसान हैं।" मनु श्री उसे देखकर बिल्कुल हैरान हो गई और उसने ईशान्वी की तरफ देखते हुए कहा, "ये क्या बोल रही हो तुम?" ईशान्वी इतना बोलकर मनु श्री के पैरों के पास गिर पड़ी। मनु श्री ने उसका गाल थपथपाते हुए कहा, "ईशु, ईशु, आँखें खोल अपनी।" मनु श्री ने ईशान्वी को अपने बेड पर लिटाया और ईशान्वी गहरी नींद में सो गई। अगली सुबह जब ईशान्वी की आँख खुली, उसके कानों में कुछ आवाज़ आई। ईशान्वी ने अपनी आँखें खोली और उसने धीमी आवाज़ में कहा, "कितना बुरा सपना था?" इतना बोलकर ईशान्वी ने देखा वह मनु श्री के कमरे में थी और ईशान्वी के हाथ में वही पट्टी थी। ईशान्वी ने अपनी आँखें मली और उसने देखा, सामने चेयर पर मृत्युंजय बैठा उसे घूरते हुए देख रहा है। उसे देखकर ईशान्वी की आँखें फटी की फटी रह गईं। To be continued…. क्या ईशान्वी ने बहुत बड़ी गलती कर दी है विला से भागकर? क्या सजा देगा मृत्युंजय ईशान्वी को? जानने के लिए पढ़ते रहिए यह स्टोरी। और स्टोरी अगर अच्छी लगे तो कमेंट करना ना भूलें दोस्तों। मैं आपके कमेंट्स डेली चेक करती हूं और आप सबको रिप्लाई भी देती हूं। अगर आप लोगों को स्टोरी से रिलेटेड कुछ भी पूछना हो तो कमेंट्स में बेझिझक पूछ लिया करिए। मैं आप सब के जवाब जरूर दूंगी।
18. आज अभी इसी वक्त होगी शादी… ईशान्वी ने देखा; वह मनुश्री के कमरे में थी। ईशान्वी के हाथ में वही पट्टी थी। ईशान्वी ने अपनी आँखें मलीं और देखा, सामने चेयर पर मृत्युंजय बैठा था, उसे घूरते हुए। उसे देखकर ईशान्वी की आँखें फटी रह गईं। मनुश्री उसके बगल में अपने हाथ बाँधकर खड़ी थी। ईशान्वी तेज आवाज में चिल्लाई, "तुम यहां क्या कर रहे हो? मनु आंटी जी बिल्कुल भी अच्छे इंसान नहीं हैं! इन्हें बोला जाए, यहां से!" ईशान्वी तेज आवाज में चिल्ला रही थी। तभी मनुश्री ईशान्वी के पास आकर बोली, "चुप हो जाओ!" ईशान्वी ने कहा, "मनुश्री आंटी, आप नहीं जानती इन्होंने मेरे साथ क्या किया है! इन्हें पुलिस के हवाले कर दो!" ईशान्वी गुस्से में थी। मनुश्री ने ईशान्वी को शांत करते हुए कहा, "शांत हो जाओ और मेरी बात सुनो।" ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं आंटी, मैं शांत नहीं होने वाली। आप जल्दी से पुलिस को फोन करें।" ईशान्वी को इस तरह चिल्लाते देखकर मृत्युंजय अपनी चेयर से उठकर खड़ा हुआ। वह गुस्से से ईशान्वी को घूरते हुए देख रहा था। मनुश्री उसे देखकर उसके पास गई और धीमी आवाज में कहा, "प्लीज सर, एक मिनट आप मेरी बात सुनिए। वह अभी बच्ची है, मैं उसे समझा रही हूँ।" मृत्युंजय ने मनुश्री को घूरते हुए कहा, "कोई ज़रूरत नहीं है आपको उसको समझने की। आप बाहर जाइए। मैं दो मिनट ईशान्वी से अकेले में बात करना चाहता हूँ।" मनुश्री ने हाँ में अपना सिर हिलाया और चुपचाप कमरे से बाहर जाने लगी। ईशान्वी ने तेज आवाज में कहा, "मनु आंटी कहाँ जा रही हैं? आप मुझे इस तरह यहाँ अकेला छोड़कर नहीं जा सकतीं! क्योंकि ये एक Devil है।" इतना बोलकर ईशान्वी मनुश्री के पीछे जाने लगी। मृत्युंजय ने ईशान्वी की कमर में अपना हाथ डाला और उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, "जान, तुम्हारे अंदर इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई कि तुम मुझसे दूर भागने की कोशिश करने लगी?" ईशान्वी ने मृत्युंजय का हाथ अपने हाथ से हटाते हुए कहा, "छोड़ो मुझे! मैं नहीं सुनने वाली तुम्हारी कोई बात! मनु आंटी, प्लीज मेरी मदद करिए।" ईशान्वी चिल्ला रही थी। तभी मनु कमरे में वापस आई। ईशान्वी ने तेज आवाज में चिल्लाया, "मनुश्री आंटी, प्लीज हेल्प?" इतना बोलकर ईशान्वी रोने लगी। मृत्युंजय ने उसका हाथ कसकर पकड़ रखा था। वह मृत्युंजय के हाथ से अपने हाथ को छुड़ाने की बेकार कोशिश करती जा रही थी। वहीं मनुश्री उसके पास आई और मृत्युंजय की तरफ देखते हुए कहा, "मृत्युंजय सर, मुझे ऐसा लगता है कि…" मनुश्री बोल ही रही थी कि मृत्युंजय ने तेज आवाज में कहा, "क्या लगता है आपको?" मनुश्री चुप हो गई। ईशान्वी ने उसे घूरते हुए देखा। मृत्युंजय ने ईशान्वी का गाल कसकर अपने हाथों से पकड़ते हुए कहा, "अगर अभी तुम मेरे साथ चलोगी तो सब कुछ ठीक रहेगा, लेकिन अगर तुमने जिद्दी की और मेरे साथ वापस चलने में नखरे दिखाए तो बहुत बुरा होगा!" ईशान्वी मृत्युंजय के कहने का मतलब समझ रही थी। उसने कहा, "नहीं जाना! मुझे जो करना है कर लो! मुझे जान से मारोगे ना मार दो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ वापस वहाँ नहीं जाऊँगी! और वैसे भी, तुम कौन हो मेरे? मेरा तुम्हारे साथ कोई रिश्ता नहीं है तो फिर मैं तुम्हारे साथ क्यों रहूँ?" मृत्युंजय ईशान्वी की बात सुनकर उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, "क्या कहा तुमने? रिश्ता? ठीक है, मतलब तुम्हें मेरे साथ रिश्ता बनाना है ना? मियाँ-बीवी का रिश्ता कैसा रहेगा?" मृत्युंजय के मुँह से यह बात सुनते ही मनुश्री की आँखें हैरानी से फट गईं। ईशान्वी ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं…!" इससे पहले कि ईशान्वी और कुछ बोल पाती, मृत्युंजय ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए कमरे से बाहर लाने लगा। तभी ईशान्वी का पैर मुड़ा और वह वहीं ज़मीन पर गिर गई। उसने अपना पैर कसकर पकड़ते हुए कहा, "आह्ह्ह्ह्! मेरा पैर!" मृत्युंजय ईशान्वी को देखकर एक पल के लिए रुका और उसने उसका हाथ छोड़ा। ईशान्वी की आँखों से आँसू बहने लगे और उसने अपना पैर कसकर पकड़ लिया। मनुश्री दौड़ते हुए ईशान्वी के पास आई और उसका पैर पकड़ते हुए कहा, "क्या हुआ? ज़्यादा दर्द हो रहा है क्या?" ईशान्वी मनुश्री को घूरते हुए देख रही थी। अभी तक मनुश्री कुछ नहीं बोल रही थी, अब अचानक से उसकी इतनी फ़िक्र दिखा रही थी। ईशान्वी ने मनुश्री का हाथ अपने पैर से हटा दिया और उसका हाथ झटकते हुए कहा, "नहीं बात करनी मुझे आपसे।" मृत्युंजय ईशान्वी के पास आकर बोला, "जान, बेकार के बहाने बनाना बंद करो! मैं जानता हूँ कुछ नहीं हुआ तुम्हारे पैर में। उठो और चलो मेरे साथ, वरना मेरे पास और भी बहुत सारे तरीके हैं!" ईशान्वी की आँखों से आँसू बहते जा रहे थे। मृत्युंजय ने अपना मोबाइल फ़ोन निकाला और आशीष को कॉल करते हुए कहा, "हाँ, हेलो आशीष, मेरी बात ध्यान से सुनो। सीधे मंदिर पहुँचो और अपने साथ एक पंडित को भी लेकर आना। मैं आज अभी इसी वक्त ईशान्वी से शादी करूँगा।" मनुश्री और ईशान्वी दोनों की आँखें हैरानी से फट गई थीं। ईशान्वी ने अपने आप को कोसते हुए कहा, "क्यों कहा मैंने इसे रिश्ते के बारे में?" ईशान्वी ने अपना सर पीट लिया। वहीं उसके पैर में बहुत तेज दर्द हो रहा था। तभी मृत्युंजय की नज़र ईशान्वी के पैर पर गई। उसकी एड़ी में सूजन साफ़ नज़र आ रही थी। मृत्युंजय उसे देखकर समझ गया कि उसके पैर में मोच आ गई है और अभी ईशान्वी चल नहीं पाएगी। मृत्युंजय ने मनुश्री की तरफ़ देखते हुए कहा, "मिस मनुश्री, पीछे हटिए।" मनुश्री चुपचाप ईशान्वी से दूर हट गई। मृत्युंजय ने ईशान्वी के पास आकर उसे अपनी गोद में उठा लिया। ईशान्वी तेज आवाज में चिल्लाई, "नहीं करनी मुझे तुमसे शादी! छोड़ो मुझे!" मृत्युंजय ने ईशान्वी की बात पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया और उसे उसी तरह गोद में उठाकर आगे बढ़ने लगा। ईशान्वी मृत्युंजय की गोद से नीचे उतरना चाह रही थी, लेकिन मृत्युंजय ने उसे कसकर पकड़ रखा था। ईशान्वी मृत्युंजय की गोद से नहीं उतर पाई। मृत्युंजय उसे लेकर सीधे आश्रम से बाहर आया और कार में बिठाकर सीट बेल्ट लगाने के लिए झुका। ईशान्वी ने मृत्युंजय का कॉलर पकड़ते हुए कहा, "क्यों कर रहे हो तुम मेरे साथ यह सब?" मृत्युंजय ने ईशान्वी का गाल दबोचते हुए कहा, "जान, मुझे एक ही सवाल का बार-बार जवाब देना बिल्कुल पसंद नहीं। मैं तुम्हें बता चुका हूँ ना कि तुम सिर्फ़ मेरी हो और अब सारी ज़िन्दगी तुम्हें मेरे साथ ही रहना है। इसलिए अब चुपचाप आराम से यहाँ बैठो, वरना तुम्हारे उस सो कॉल्ड लवर को ख़त्म करने में मुझे ज़्यादा देर नहीं लगेगी। बस एक फ़ोन कॉल और उसका काम ख़त्म हो जाएगा।" ईशान्वी, जिसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, अपना सिर पकड़ कर रोने लगी। मृत्युंजय घूम कर ड्राइविंग सीट की तरफ़ आया और कार में बैठने ही वाला था कि तभी उसकी नज़र मनुश्री पर गई। उसने उसे घूर कर देखा और कार में बैठकर यू-टर्न लिया और सीधे एक मंदिर की तरफ़ कार ड्राइव करने लगा। ईशान्वी अपना पैर पकड़कर रोते हुए बोली, "मुझे दर्द हो रहा है!" मृत्युंजय सामने देखकर कार ड्राइव कर रहा था। उसने ईशान्वी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। ईशान्वी जोर-जोर से रोने लगी और अपना पैर पकड़ते हुए कहा, "मेरे पैर में मोच आई है! मुझे डॉक्टर के पास ले चलो।" मृत्युंजय कोल्ड आवाज में बोला, "यह तुम्हारी सज़ा है! मैं तुमसे नहीं कहा था विला से भागने के लिए! और अब जब तुम भागी हो तो उसके लिए तुम्हें इतना तो सहना ही पड़ेगा! और हम डॉक्टर के पास नहीं, बल्कि अभी तो फ़िलहाल हम सीधे मंदिर जाने वाले हैं। उससे पहले मैं कहीं पर भी कार नहीं रोकने वाला।" To be continued…
19 तुम मेरी जान हो ईशान्वी जोर-जोर से रोने लगी और अपना पैर पकड़ते हुए कहा, "मेरे पैर में मोच आई है। मुझे डॉक्टर के पास ले चलो।" मृत्युंजय ने कोल्ड आवाज में कहा, “यह तुम्हारी सजा है, जान। मैंने तुमसे नहीं कहा था विला से भागने के लिए। और अब जब तुम भागी हो, तो उसके लिए तुम्हें इतना तो सहना ही पड़ेगा। और हम डॉक्टर के पास नहीं, बल्कि अभी फिलहाल सीधे मंदिर जाने वाले हैं। उससे पहले मैं कहीं पर भी कार नहीं रोकने वाला।” ईशान्वी ने मृत्युंजय की बात सुनकर अपना सिर पीट लिया और मन ही मन खुद को कोसते हुए कहा, "क्या जरूरत थी मुझे ये सारी बातें बोलने की? इससे अच्छा तो मैं उस विला में ही रहती। थोड़े दिनों बाद जब मिस्टर सिंघानिया का दिल मुझसे भर जाता, तो वह खुद ही मुझे वापस अनाथालय छोड़ देते।" ईशान्वी को अब खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसे इतना तो समझ आ गया था कि उसने विला से भाग कर बहुत बड़ी गलती कर दी है, और अब शायद इसकी सजा उसे अपनी पूरी जिंदगी भुगतनी पड़ेगी। ईशान्वी ने कार से बाहर की तरफ देखा और मन में कहा, "मैं इस डेविल से तो शादी नहीं कर सकती। इससे तो बेहतर होगा कि मैं मर ही जाऊं।” ईशान्वी ने कार का दरवाजा खोलने की कोशिश की। मृत्युंजय ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, "कम ऑन, जान। तुम्हें क्या लगता है, मेरे होते हुए तुम कार से बाहर कूद सकती हो? तुम अब मेरी जान हो, और तुम्हें अपनी जान देने का भी हक नहीं है!” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी का हाथ पकड़ा और उसकी उंगलियों में अपनी उंगली फंसाकर उसके हाथों को चूम लिया। ईशान्वी मृत्युंजय की बात सुनकर बिल्कुल शॉक्ड हो गई और उसका पूरा शरीर कांप रहा था। जिसे देखकर मृत्युंजय हंसते हुए बोला, “तुम्हारे शरीर में इतनी कंपकंपी? अभी तो सिर्फ मैंने तुम्हारे हाथों को चूमा है। सोचो अगर सबके सामने तुम्हारे होठों को चूमा होता, तो तुम्हारा क्या हाल होता?” ईशान्वी ने जल्दी से अपना हाथ मृत्युंजय के हाथ से छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन मृत्युंजय का हाथ इतना बड़ा और मजबूत था कि ईशान्वी उसे अपना हाथ छोड़ नहीं पा रही थी। ईशान्वी ने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, "छोड़ो मेरा हाथ!" मृत्युंजय चुपचाप कार ड्राइव कर रहा था, और ईशान्वी बड़ी मशक्कत से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। ईशान्वी ने मृत्युंजय के हाथों की उंगलियों को अपने दूसरे हाथ से हटाते हुए कहा, "क्यों कर रहे हो तुम मेरे साथ यह सब? मार डालो, उससे अच्छा तुम मुझे। कम से कम तुम्हारे साथ इस तरह से घुट-घुट कर तो नहीं जीना पड़ेगा।” मृत्युंजय ने ईशान्वी की बात सुनी और उसने ईशान्वी का हाथ और कसकर पकड़ते हुए कहा, "किसने कहा है तुमसे इस तरह घुट-घुटकर जीने के लिए? तुम चाहो तो खुशी से भी अपनी लाइफ जी सकती हो। और वैसे भी, तुम तो मेरी जान हो, ईशू। तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। और अगर तुमने मेरी बात मानने से इनकार किया, तो तुम्हारे उस आशिक को मारने के लिए भी मैं…" मृत्युंजय इतना बोलकर चुप हो गया। ईशान्वी, जो अभी तक उसके हाथ से जूझ रही थी, ने स्ट्रगल करना छोड़ दिया और वह कार की सीट पर सिमट कर बैठ गई। मृत्युंजय ईशान्वी को देखकर शैतानियत से मुस्कुराया और उसने ईशान्वी की तरफ एक नजर डाली। फिर बड़े प्यार से कहा, "वैसे जान, एक बात कहूँ? तुम्हारे ऊपर यह ब्लैक कलर का ट्रैक सूट काफी अच्छा लग रहा है। लेकिन तुम मुझे यह बताओ, क्या तुम इसी ट्रैक सूट में ही मुझसे शादी करोगी? या फिर मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छा सा ब्रांडेड लहंगा मंगवाऊँ।” ईशान्वी ने भी तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, “नहीं करनी मुझे तुमसे कोई शादी। तुम जैसा घटिया इंसान मैंने आज तक नहीं देखा।” मृत्युंजय ईशान्वी की बात सुनकर मुस्कुरा रहा था। उसने ईशान्वी को ताना मारते हुए कहा, "वैसे एक बात तो है, जान। अभी तीन दिन पहले तक तुम मुझसे 'आप-आप' करके बात कर रही थी, और अब सीधे 'घटिया इंसान' पर आ गई।” ईशान्वी भी मृत्युंजय को घूरते हुए देख रही थी। मृत्युंजय ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "वैसे मुझे तो कोई प्रॉब्लम नहीं है। तुम्हें जो कहना है, कहो। बस एक बात याद रखो, अब यही घटिया इंसान तुम्हारा फ्यूचर है।” ईशान्वी की आँखों से लगातार आंसू निकल रहे थे। वह मृत्युंजय की इस बात पर कुछ भी बोल नहीं पाई। थोड़ी ही देर में मृत्युंजय ने कार को मंदिर के सामने रोका। उसने देखा, मंदिर की सीढ़ियों के बाहर आशीष और एक लड़की खड़ी थी। उस लड़की ने ऑफिस की फॉर्मल ड्रेस पहनी थी। मृत्युंजय ने कार वहीं मंदिर के बाहर रोकी। कार से बाहर निकलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी की तरफ का गेट खोला। ईशान्वी के पैर में बेहद दर्द हो रहा था और उसका पैर सूज गया था। उसने ईशान्वी की सीट बेल्ट खोली और ईशान्वी को अपनी गोद में उठाते हुए बोला, “आशीष, कार पार्क करो। और रश्मिका, तुम मेरे साथ ऊपर चलो।” रश्मिका ने सिर हिलाते हुए कहा, "यस, बॉस।” वह मृत्युंजय और ईशान्वी के पीछे-पीछे ऊपर चली गई। जैसे ही मृत्युंजय मंदिर में पहुँचा, उसने देखा वहाँ पर एक पंडित अग्निकुंड के सामने बैठा कुछ मंत्र पढ़ रहा था। वहाँ पर एक मंगलसूत्र और थोड़े बहुत शादी के सामान की तैयारी की गई थी। वह सब देखकर ईशान्वी भी मृत्युंजय की गोद से उतरने की कोशिश करने लगी। तभी मृत्युंजय ने कहा, "जान, कोई फायदा नहीं है सब करके। तुम यहाँ से बचकर नहीं जा सकती। और अगर तुमने इस बार कोई भी चालाकी करने की कोशिश की, तो जानती हो ना, अर्जुन अभी भी मेरी गिरफ्त में ही है। तुम्हें यकीन ना हो रहा हो, तो डेमो दिखाऊँ।” ईशान्वी ने मृत्युंजय की बात सुनी और वह बिल्कुल शांत हो गई। उसने छटपटाना बंद कर दिया। मृत्युंजय वहीं अग्निकुंड के सामने गया और उसने अपने बगल में ईशान्वी को बिठाया। रश्मिका एक बड़े से थाल में एक लाल रंग की चुनरी लेकर खड़ी थी। उसने मृत्युंजय की तरफ देखते हुए कहा, "बॉस, यह चुनरी?" मृत्युंजय ने रश्मिका को घूरते हुए कहा, "मुझे क्यों दिखा रही हो? मैं नहीं पहनने वाला इसे।” रश्मिका ने ना में अपना सिर हिलाते हुए कहा, "नहीं, बॉस। आपके लिए नहीं, मैम के लिए है।” मृत्युंजय ने ईशान्वी की तरफ देखते हुए कहा, "हाँ, तो पहनाओ अपनी मैम को।” रश्मिका ने उस लाल रंग की चुनरी को ईशान्वी के सिर पर डाल दिया। ईशान्वी ने अपनी आँखें कसकर बंद कर ली। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वहीं आशीष सीढ़ियाँ चढ़कर आया और उसके हाथ में दो वरमालाएँ थीं। उसने मृत्युंजय के सामने वह दोनों वरमाला रख दी। पंडित जी ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा, "वर-वधू एक-दूसरे को वरमाला पहनाएँ।” मृत्युंजय ने आशीष के हाथ से वह वरमाला ली और उसे ईशान्वी के गले में डाल दिया। ईशान्वी एक पुतले की तरह बैठी थी। मृत्युंजय ने दूसरी वरमाला ईशान्वी की तरफ देते हुए कहा, "यह लो, जान। पहनाओ मुझे।” ईशान्वी की नज़रें अग्निकुंड की तरफ थीं। तभी मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को दबोचते हुए कहा, "जान, इस तरह अग्निकुंड को देखने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारी नज़रें सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझ पर होनी चाहिए। पहनाओ मुझे यह वरमाला।” ईशान्वी ने मृत्युंजय के हाथ से वह वरमाला ली, लेकिन ईशान्वी का हाथ आगे नहीं बढ़ रहा था। मृत्युंजय ने उसके दोनों हाथों को कसकर पकड़ा और खुद ही उस वरमाला को पहन लिया। मृत्युंजय के चेहरे पर शैतानियत भरी मुस्कराहट नज़र आ रही थी। वहीं ईशान्वी की आँखों से आँसू बहते ही जा रहे थे। पंडित जी ने मंत्र पढ़ना जारी रखा और उन्होंने मृत्युंजय की तरफ देखते हुए कहा, "बेटा, तुम्हारा गठबंधन कौन करेगा? तुम्हारे माता-पिता में से कोई यहाँ नहीं है क्या?” To be continued…. part अच्छा लगे तो comment करना compalsary है।🤭🤭🤭
20 जबरन शादी... पंडित जी ने मंत्र पढ़ना जारी रखा और मृत्युंजय की ओर देखते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारा गठबंधन कौन करेगा? तुम्हारे माता-पिता में से कोई यहां नहीं है क्या?” मृत्युंजय ने पंडित जी की ओर घूरते हुए कहा, “नहीं पंडित जी, अभी यहां कोई नहीं है। आप कर दीजिए मेरा गठबंधन।” पंडित जी हैरानी से मृत्युंजय को देखते हुए बोले, “लेकिन मैं कैसे कर सकता हूँ!” मृत्युंजय ने उन्हें देखकर कहा, “नहीं कर सकते? ना तो आप अपना काम करिए। रही बात गठबंधन की, तो यह लीजिए, हो गया गठबंधन।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी के दुपट्टे का एक कोना पकड़ा और उसे अपनी जींस में फँसा लिया। पंडित जी मृत्युंजय को हैरानी से देखते हुए बोले, “ये…ये क्या कर रहे हो बेटा?” आशीष पंडित जी के बगल में आकर बोला, “पंडित जी, आप अपना काम करिए बस! बॉस क्या कर रहे हैं, क्या नहीं, उससे आपको कोई मतलब नहीं है। आप शादी के मंत्र पढ़िए और विवाह संपन्न कराइए।” उन्होंने मंगलसूत्र मृत्युंजय के हाथ में देते हुए कहा, “वर वधू को मंगलसूत्र पहनाकर उसकी मांग में सिंदूर भर दे।” मृत्युंजय ने यह बात सुनकर खुश होते हुए कहा, “यह तो आपने बहुत अच्छी बात कही। दीजिए मुझे मंगलसूत्र।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने मंगलसूत्र ईशान्वी की गर्दन में पहनाने के लिए आगे बढ़ाया। उसने जैसे ही मंगलसूत्र ईशान्वी के गले पर लगाया, ईशान्वी ने मृत्युंजय का हाथ पकड़ते हुए कहा, “तुम यह ठीक नहीं कर रहे हो?” मृत्युंजय ईशान्वी की आँखों में भरे आँसुओं को देखकर बोला, “जान, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है, वह बिल्कुल सही है। आज नहीं तो कल तुम्हें मुझसे शादी करनी ही थी, तो इस शुभ काम को आज ही करके खत्म करते हैं ना।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी के गले में मंगलसूत्र पहना दिया। ईशान्वी की आँखों से आँसू निकले और वे मृत्युंजय के हाथ पर गिर पड़े। मृत्युंजय उसके आँसुओं को देखकर कुछ नहीं बोला। उसने पंडित जी के मंत्रों को सुना और तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, “बस बहुत हो गए मंत्र! मुझे सिंदूर की डिब्बी दो।” रश्मिका ने जल्दी से सिंदूर की डिब्बी उठाकर मृत्युंजय के हाथ में रखते हुए बोली, “लेकिन बॉस…” इससे पहले कि वह और कुछ बोल पाती, मृत्युंजय ने सिंदूर ईशान्वी की मांग में भर दिया। ईशान्वी अपनी बर्बाद होती ज़िंदगी को देख रही थी और कुछ नहीं कर पाई। पंडित जी ने कहा, “अब फेरों के लिए वर वधू खड़े हो जाएँ।” ईशान्वी अपना पैर पकड़कर खड़े होने की कोशिश कर रही थी कि मृत्युंजय ने उसे झट से अपनी गोद में उठाते हुए कहा, “कोई ज़रूरत नहीं है जान, तुमहें मैं हूँ ना!” पंडित जी मृत्युंजय की ओर देखते हुए बोले, “अरे बेटा, तुम यह क्या कर रहे हो? चार फेरों में तुम वधू से आगे होगे और तीन फेरों में वधू तुमसे आगे होगी। इस तरह फेरे नहीं लिए जाते।” मृत्युंजय ने ईशान्वी को देखते हुए कहा, “कोई फ़र्क नहीं पड़ता मुझे कौन आगे फेरे ले रहा है और कौन पीछे। आप मंत्र पढ़ना जारी रखें और अपनी फीस लीजिए और यहां से दफ़ा हो जाइए।” इतना बोलकर मृत्युंजय ने, ईशान्वी को अपनी गोद में उठाए हुए, अग्नि के साथ फेरे लिए। जैसे ही फेरे खत्म हुए, पंडित जी ने उन दोनों की ओर देखकर कहा, “शादी संपन्न हुई।” मृत्युंजय ईशान्वी को अभी भी अपनी गोद में लिए हुए था। वह आशीष की ओर देखते हुए बोला, “आशीष, पंडित जी को उनकी दक्षिणा दो। मैं ईशान्वी को लेकर घर जा रहा हूँ। तुम ऑफ़िस जाओ और मेरी आज की सारी मीटिंग कैंसिल कर दो। रश्मिका, ऑफ़िस के बाकी काम हैंडल कर लेना और अगर कोई प्रॉब्लम हो तो मुझे कल कॉल करना, आज नहीं।” रश्मिका ने हाँ में अपना सिर हिलाते हुए कहा, “ओके बॉस।” ईशान्वी ने वहीं अपनी आँखें कसकर बंद कर रखी थीं और उसके सिर में तेज दर्द हो रहा था। मृत्युंजय ईशान्वी को लेकर सीधे मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतरा और उसे कार में बिठाकर सीट बेल्ट लगाते हुए बोला, “कॉन्ग्रॅजुलेशंस मेरी जान! आज से तुम्हारी नई लाइफ स्टार्ट होने वाली है। एन्जॉय…!” इतना बोलकर मृत्युंजय ने ईशान्वी के गालों को किस किया और चुपचाप ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया। ईशान्वी की नज़र सामने लगे मिरर पर गई। उसने अपने माथे में भरे सिंदूर और अपने गले में पड़े मंगलसूत्र को देखा। ईशान्वी की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने मृत्युंजय की ओर देखकर कहा, “नहीं मानती मैं यह शादी। तुमने जबरदस्ती की है यह शादी।” मृत्युंजय ने जैसे ही यह बात सुनी, वह ईशान्वी के करीब गया और उसकी आँखों में आँखें डालकर देखते हुए कहा, “जान, तुम इस शादी को मानो या ना मानो, लेकिन आज से तुम मिसेज़ ईशान्वी मृत्युंजय सिंघानिया ही कहलाओगी। और इस बात को जितनी जल्दी मान लो, तुम्हारे लिए बेहतर होगा।” थोड़ी ही देर में मृत्युंजय ईशान्वी को लेकर एक बड़े से गेट के सामने गया। मृत्युंजय की कार को देखकर वह गेट ऑटोमेटिक ही ओपन हो गया। ईशान्वी ने जैसे ही बाहर की ओर देखा, वहाँ पर बड़ा-बड़ा लिखा हुआ था: “सिंघानिया मेंशन…!” ईशान्वी उस जगह को देखकर तुरंत पहचान गई और उसने बाहर की ओर बने उस बड़े से विला को देखते हुए कहा, “यह…यह विला तो वहीँ है, जहाँ से यह सब कुछ शुरू हुआ! तुम मुझे सिंघानिया मेंशन में क्यों लेकर आए हो?” मृत्युंजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “शादी के बाद लड़की अपने ससुराल ही तो आती है ना? यही है तुम्हारा ससुराल।” ईशान्वी ने मृत्युंजय की बात सुनकर ना में अपना सिर हिलाते हुए बोली, “लेकिन यहां क्यों लाए हो तुम?” मृत्युंजय ने सीधे सिंघानिया मेंशन के गेट के पास कार रोकी और वह कार से बाहर निकला। उसने ईशान्वी को अपनी गोद में उठाते हुए कहा, “अब तुम सिंघानिया परिवार की बहू हो, तो अपने in-laws से मिलने के लिए तैयार हो जाओ…” मृत्युंजय ईशान्वी को गोद में लेकर अंदर की ओर जाने लगा और तभी ईशान्वी ने कहा, “मुझे उतारो, मैं खुद चल लूंगी।” मृत्युंजय ने ईशान्वी की बात पर कोई रिएक्शन नहीं किया और वह चुपचाप घर के अंदर आ गया। उसने देखा कि लिविंग एरिया में मृत्युंजय की माँ, धैर्य, अवनी और तन्मय सब एक साथ बैठे हुए थे और सामने हाथ बाँधकर आशीष खड़ा था। मृत्युंजय को इस तरह ईशान्वी को गोद में उठाकर अंदर आते देखकर घर के सभी लोगों की आँखें फटी की फटी रह गईं। वहीं ईशान्वी उन सब को हैरानी से देख रही थी। मृत्युंजय जैसे ही ईशान्वी को लेकर लिविंग एरिया में आया, मृत्युंजय की माँ ने तेज आवाज में चिल्लाते हुए कहा, “मृत्युंजय! यह सब क्या है?” मृत्युंजय ने बिल्कुल ठंडी आवाज में कहा, “आपको नज़र नहीं आ रहा? आपकी आँखों में मोतियाबिंद हो गया है क्या?? या फिर अपनी आँखें आप किटी पार्टी में छोड़ आई हैं? खैर, कोई बात नहीं। सब लोग कान खोलकर सुन लें! सिंघानिया परिवार के बेटे ने शादी की है, यह आपकी बहू है।” To be continued… कमेंट करके बताइए कैसा लगा चैप्टर??