यह कहानी है एक ऐसी लोग की ऐसी जगह की जहां पर आपकी कल्पना मात्र से रह कट जाएगी शहर से आए कुछ लोग जिन्हें शक्तियों का लालच था वह अपनी बेवकूफी में ऐसी शक्ति को जागृत कर देते हैं जिससे पीछा छुड़ा पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है और तीन पीढ़ियों से चला आ... यह कहानी है एक ऐसी लोग की ऐसी जगह की जहां पर आपकी कल्पना मात्र से रह कट जाएगी शहर से आए कुछ लोग जिन्हें शक्तियों का लालच था वह अपनी बेवकूफी में ऐसी शक्ति को जागृत कर देते हैं जिससे पीछा छुड़ा पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है और तीन पीढ़ियों से चला आ रहा श्राप जब अपना परिवर्तन करेगा ना तो फिर क्या होगा किसी ने नहीं सोचा है पर यही कहानी है इसमें पूरी जहां एक तरफ लालच और पैसे के लिए लोग भाई-भाई का खून कर रहे हैं दूसरी तरफ प्यार भी पनप रहा है ऐसा प्यार जिसकी सोच और जिसकी बुनियाद ही डर है बाकी जानने के लिए पढ़ते रहिए वशीकरण
पंखुड़ी
Heroine
अगस्त्य
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हे रीडर हाय हाय हाय आई होप आप सब अच्छे होंगे और खाते पीते मस्त मुस्कुरा रहे होंगे वेल आप सबके लिए एक नई कहानी लेकर के आ रहा हूं एक ऐसी कहानी जिसका सोर्स स्रोत दोनों ही बहुत रियल जगह पर मिलेगा हर कोई अपने घर गांव शहर कस्बे में जहां भी रहता होगा उसके आस पड़ोस में ऐसी कुछ घटनाएं होंगी जिसे सुनकर के हर किसी का दिल टहल जाता होगा किसी को इन घटनाओं पर यकीन होता है तो वह उन्हें मान लेता है और कोई इसका मजाक बनाकर छोड़ देता है इसी कशमकश में यह कहानी आप सबके सामने है उम्मीद करता हूं इस कहानी को भी आप उतना ही प्यार देंगे जितना आपने सब की कहानियों को दिया है और फॉलो करना ना भूलिएगा ताकि मैं अपना लेवल इंक्रीज करके कहानियों को और ज्यादा अच्छे तरीके से आपके लिए पेश कर सकूं नई कहानी है थोड़ा सोचने समझने में वक्त लगता हैइसलिए मैं यह
सोच रहा हूं कि डेली डेली एक या दो चैप्टर पोस्ट करता रहूंगा पर अगर आपको और चाहिए तो आप मुझे कमेंट करके बता सकते हैं पर हां याद रहे की फॉलो करना ना भूलेगा आशीष थोड़ा सा प्यार तो मैं भी डिजर्व करता हूं ना चलिए कहानी शुरू करता हूं
शुरू करने से पहले इस कहानी का सारांश बता देता हूं इस कहानी में भूत पिक्चर्स यक्षिणी करण पिशाचिनी और कई प्रकार के भूतों पीछासो का जिक्र मिलेगा इसके बारे में आपने सुना तो होगा और जिनके बारे में आपने नहीं सुना होगा
कुछ घटनाएं हमारे दिमाग की इमेजिनेशन है और कुछ घटनाएं हमने कहीं से पड़ी सनी समझी है उनको अपने कहानी का एक रूप देते हुए एक सीरियल के तरीके से परफॉर्म करेंगे कहानी में काफी कुछ है काफी कुछ छिपा है काफी रहस्यों का उजागर होगा और काफी रहस्य सुलझेंगे
और इन्हीं शक्तियों के पानी के लिए उनके लालच में आकर के निकले थे कुछ भाई अपनी पत्नियों के साथ गहरी साधना करने पर वह यह भूल गए थे कि बिना गुरु के साधना करना कितना भारी पड़ सकता है उन्हें तो वह मिला जो चाहिए था कहते हैं ना घर एक चीज अपने साथ एडवांटेज और डिसएडवांटेज दोनों लेकर आती है वह उन्हें जो चाहिए था उसके खुशी में वह उसके श्राप को भूल गए और देखते ही देखते वक्त बिता और आई ऐसी घड़ी जहां पर उन्हें सुना था खुद का परिवार या फिर अपना बेटा बेटी या फिर खुद की जान जब वह लौट कर आएगी और मांगेगा अपनी पहचान तो क्या करेंगे मल्टी मिलेनियर भाई बना देंगे उसको अपने घर का शान या फिर भगवान ने कुछ और ही लिखकर भेजा है कितना लोगों का लिखा मतलब उनकी किस्मत में चीज पहले से ही लिखी होती है आपके साथ हो रही है एक छोटी से छोटी घटना में भी आपका ही हित छुपा होता है और आपके कर्म जब तक चलते हैं तब तक चीज आपके विपरीत नहीं होती कर्मों के आधार पर आपको आपके किए की सजा मिलती है और इन्हीं कर्मों के चलते जब कल के समय को मोड कर लौटेगी वह क्या यह समझ पाएंगे की असली और नकली में है कौन किसका काफी ज्यादा रहस्य है इसमें यह भी आपको पढ़कर समझ नहीं आएगा धीरे-धीरे कहानी के साथ सब चीज क्लियर होती जाएगी तब तक के लिए आप पढ़ते रहिए
रात का वक्त था... चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।
और इसी सन्नाटे में बस... किसी के चलने की आवाज आ रही थी...
खतर-पटर... खतर-पटर...!
तभी एक आदमी अचानक रुक गया। उसने धीमी, किंतु सख्त आवाज़ में कहा,
"धीरे चलो... तुम्हें समझ नहीं आ रहा क्या? हमारे पैरों की छाप भी हमारे लिए जानलेवा हो सकती है!"
उसकी आँखों में डर नहीं, बल्कि किसी अनजाने खतरे की चेतावनी थी।
"हमें नहीं पता कि हमारे आसपास कौन-सी शक्तियाँ टहल रही हैं। गलती से भी किसी अनहोनी में न पड़ जाएँ... इसलिए अपनी नज़र और पैर — दोनों फूँक-फूँक कर रखो!"
उस आदमी की बात सुनकर पीछे चल रहे दो आदमी सतर्क हो गए। उनका चेहरा अब भय से पीला पड़ चुका था।
वह आदमी एक बार फिर बोला — इस बार उसकी आवाज़ में कंपकंपी थी:
"चेतावनी दे रहा हूँ तुम सबको... सामने श्मशान घाट है। इस श्मशान से गुजरने वाले बहुत कम लोग हैं जो ज़िंदा लौटे हैं... बाकियों की तो बस... राख मिलती है!"
ये सुनते ही पीछे के दोनों आदमी थर-थर कांपने लगे...
उनके कदम जैसे ज़मीन में धँस गए हों... एक डर था जो रूह में उतर चुका था।
आगे वाला आदमी अपनी गति से चलता रहा, लेकिन फिर रुक गया। पीछे मुड़ा, और गुस्से में बोला:
"डर क्यों रहे हो? भूल गए कि किस लिए आए हो? अगर तुम्हें वो चाहिए, तो डर को यहीं छोड़ दो... चलो, मेरे साथ!"
वो आगे बढ़ा, और एक के हाथ को पकड़कर जबरन खींचते हुए श्मशान के दरवाज़े तक ले गया।
दरवाज़ा जैसे ही खोला... एक डरावनी, गूंजती हुई आवाज़ फिज़ा में फैल गई।
सैकड़ों चमगादड़ फड़फड़ाते हुए आकाश में उड़ गए...
हवा अचानक तेज़ हो गई... पेड़ों की पत्तियाँ ज़मीन से उठकर गोल-गोल घूमने लगीं।
श्मशान घाट के भीतर अजीब-सी सरसराहट थी — जैसे हवा खुद कुछ कह रही हो।
हर कदम, एक मौत के करीब ले जा रहा था...
तभी पीछे वाले लड़के की नज़र कोने में बैठे एक बाबा पर पड़ी।
उनका पूरा शरीर भस्म से लिपटा था...
चारों तरफ अजीब-गरीब वस्तुएँ रखी थीं — काली मिर्च, नींबू, राख, कुछ अस्थियाँ... और एक जलता हुआ हवन कुंड।
बाबा आँखें मूंदे लगातार कुछ मंत्र बड़बड़ा रहे थे... उनके हाथ किसी और ही दुनिया के संकेत दे रहे थे।
"सुरेश काका... ये... ये क्या हो रहा है?"
लड़के ने काँपती आवाज़ में पूछा।
सुरेश काका ने उसे घूरते हुए दबी आवाज़ में कहा,
"तुमसे कहा था न... यहाँ हो रही चीज़ों को नजरअंदाज़ करो। वरना जिंदा नहीं बच पाओगे।"
"पर... पर वो क्या कर रहे हैं?" लड़का जिज्ञासु था।
सुरेश जी गुस्से से बोले,
"पहले यहाँ से ज़िंदा निकल लें... फिर सब बताऊंगा। लेकिन अभी... एक शब्द भी नहीं!"
तीनों आगे बढ़ने लगे। पर पीछे वाला लड़का रुक गया।
उसका दिल कह रहा था — कुछ तो गड़बड़ है...
जैसे ही दोनों आगे बढ़े, वह दबे पाँव बाबा की ओर बढ़ा।
एक पुरानी कब्र के पीछे लेटकर वह बाबा की क्रिया विधियाँ देखने लगा...
"आख़िर ये... ये कर क्या रहे हैं...?" वह बड़बड़ाया।
तभी...
किसी ने उसके पैर पकड़ लिए!!!
उसकी चीख़ निकलने ही वाली थी कि किसी ने पीछे से उसका मुँह कसकर दबा दिया!
अब उसकी साँसें फूलने लगी थीं... उसकी आँखें डर से फटी जा रही थीं...
वो खुद से पूछ रहा था — क्या ये उसकी आख़िरी रात है...?
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लड़के की साँसें तेज़ थीं... दिल जैसे पसलियों को तोड़कर बाहर निकलना चाहता था।
जिसने उसका मुँह पकड़ा था, वह धीरे से फुसफुसाया:
"चुप रहो... अगर उन्होंने तुम्हें देख लिया, तो तुम कभी बाहर नहीं जा पाओगे।"
लड़के ने ध्यान से देखा — ये कोई और नहीं, बल्कि एक अनजान साधु था। उसकी आँखें रक्त जैसी लाल थीं और चेहरा आधा राख और आधा छाया में छुपा हुआ था।
"तुम नहीं जानते ये बाबा क्या कर रहे हैं... ये सिर्फ पूजा नहीं, बलिदान की तैयारी है..."
लड़के के रोंगटे खड़े हो गए।
"क... कैसा बलिदान?" उसने हकलाते हुए पूछा।
साधु ने शांति से कहा,
"हर चंद्रग्रहण की रात, ये बाबा एक विशेष आत्मा को बुलाते हैं — एक प्राचीन शक्ति जो सिर्फ मासूम इंसान की बलि से जागती है। आज वो बलि... तुम हो।"
"क्या!" लड़का काँप उठा।
"तो सुरेश काका...?"
"हाँ... वो भी इसमें शामिल हैं।" साधु ने कहा।
"तुम्हें यहाँ लाना एक चाल थी... ताकि बलिदान पूरा हो सके।"
तभी...
श्मशान के अंदर से अचानक तेज़ लाल रोशनी निकली!
बाबा अब हवा में मँडरा रहे थे... उनका शरीर ज़मीन से कुछ इंच ऊपर उठ चुका था।
उनके हाथों में कोई काले धुएँ से बनी तलवार जैसी आकृति बन रही थी।
"समय हो गया है..." बाबा की गूंजती हुई आवाज़ आई।
साधु ने लड़के का हाथ पकड़ लिया —
"अगर जान बचानी है, तो मेरे साथ भागो!"
वे दोनों एक गड्ढे जैसे पुराने तहखाने में उतर गए... ऊपर से हवन की ज्वाला अब हरे रंग में जलने लगी थी।
पर तहखाने के भीतर अंधेरा नहीं था...
वहाँ दीवारों पर प्राचीन लिपि में मंत्र खुदे थे... और एक खंभे पर बनी थी — एक लड़की की आकृति, जिसके आँखों से खून बह रहा था।
लड़के ने डर से पूछा:
"ये कौन है...?"
साधु बोला:
"वही आत्मा... जिसे जगाने की कोशिश हो रही है। उसका नाम है — नाम नहीं ले सकता
एक बार जाग गई... तो न कोई इंसान बचेगा, न आत्मा। बस वो... और उसका अंतहीन अंधकार।"
श्मशान में खड़ा वो लड़का अभी भी कांप रहा था।
साधु हवा पर हाथ फेरते हुए कुछ मंत्र बड़बड़ा रहा था, मानो किसी गुप्त द्वार को खोलने की कोशिश कर रहा हो।
तभी एक पत्थर की दीवार खिसकती है, और एक संकरी सुरंग दिखाई देती है।
"जल्दी अंदर चलो," साधु फुसफुसाता है।
"बाहर वक़्त बहुत कम है..."
दोनों उस सुरंग में घुसते हैं। अंदर की हवा भारी, नम और अजीब-सी गंध से भरी थी।
"ये जगह क्या है?" लड़के ने डरते हुए पूछा।
साधु बोला —
"यह श्मशान के नीचे छुपा हुआ मंदिर है... वही जगह जहाँ पहली बार नागायन को बंद किया गया था।"
वे आगे बढ़ते हैं, और अंत में एक विशाल कक्ष में पहुँचते हैं।
वहाँ एक पत्थर की मूर्ति रखी थी — एक महिला की, जिसकी आँखें बंद थीं और सिर पर नागों का मुकुट था।
उसके चारों ओर लोहे की सात मोटी ज़ंजीरें बंधी थीं।
साधु उस मूर्ति के सामने बैठ गया और आँखें बंद कर लीं।
"अब वक्त है तुम्हें सब सच बताने का..."
"मैं साधु नहीं हूँ। मैं उस गुप्त समुदाय का आख़िरी रक्षक हूँ जिसने इस देवी को बाँधा था।"
"पर सुरेश काका... उन्होंने कहा था..."
"हां," रक्षक बोला,
"वो पहले भी इस आत्मा को जगाने की कोशिश कर चुके हैं। वो जानता है — अगर यह देवी पूरी तरह जाग गई, तो वो अमर हो जाएगा। और आज की रात, चंद्रग्रहण के साथ, वही पल है..."
तभी ज़मीन हिलने लगती है।
श्मशान के ऊपर बाबा चीख़ रहे हैं —
"हे देवी! तुम्हारा बलिदान तैयार है! उठो, और इस संसार को अपने अंधकार से ढँक दो!"
जैसे ही बलिदान की तलवार हवन कुंड में डाली जाती है,
एक तेज़ चीख़ गूंजती है —
"बचाओ!!!"
वो लड़की थी — जिसे बलिदान बनाया जा रहा था... और वो थी... लड़के की छोटी बहन।
लड़का चौंक पड़ा —
"क्या!! नीरा...!?"
अब उसके भीतर डर नहीं, आग थी।
"मुझे वहाँ वापस जाना होगा!"
साधु/रक्षक ने उसे एक ताबीज़ दिया —
"यह 'त्रिनेत्र-चक्र' है... देवी की शक्ति को रोकने वाला एकमात्र अस्त्र। इसे हवन में फेंको, इससे बलिदान की क्रिया टूट जाएगी। पर याद रखना, एक बार फेंका... तो तुम्हारी आत्मा भी स्थायी रूप से इस जगह बंध सकती है।"
लड़के ने बिना सोचे ताबीज़ लिया और सुरंग से बाहर भागा।
श्मशान घाट अब काले धुएँ से भर चुका था।
बाबा हवा में उठे थे, और नीरा ज़मीन पर बेहोश पड़ी थी।
बलिदान की तलवार ऊपर उठाई गई...
"रुको!!!" लड़का चीख़ा।
सारे लोग पलटे —
और तभी... उसने वह ताबीज़ हवन कुंड में फेंक दिया।
एक विस्फोट हुआ — पूरी ज़मीन हिल गई।
नीला प्रकाश चारों तरफ फैला, और बाबा की चीख़ गूंजी:
"नहीं!! तुमने सब खत्म कर दिया...!"
सारे चमत्कारी तांत्रिक यंत्र जलकर राख हो गए।
बाबा ज़मीन पर गिर पड़े, उनकी शक्ति क्षीण हो चुकी थी।
नीरा की आंखें खुलीं...
"भैया...?"
लड़का मुस्कराया, लेकिन उसकी आँखें अब धुंधली हो रही थीं...
"तुम सुरक्षित हो नीरा... यही ज़रूरी था..."
और फिर...
उसकी आत्मा हल्के नीले प्रकाश में बदलकर धीरे-धीरे गायब हो गई।
कुछ कहते हैं... वो लड़का अब भी उस श्मशान की आत्माओं की रक्षा करता है।
जहाँ कोई गलत नीयत से आता है... उसे एक नीली रोशनी दिखाई देती है — जो उसे चेतावनी देकर लौटा देती है।
और श्मशान घाट... अब भी उतना ही रहस्यमय और खतरनाक है, जितना पहले था।
कैसा लगा आपको यह दूसरा पार्ट कहानी का प्लीज रिक्वेस्ट कर रहा हूं आपसे कमेंट करके जाना हमें बात कर जाना कैसा लगा और रिव्यू देना ना बोलना वे इस कहानी में जितने अच्छे रिस्पॉन्स मुझे मिलेंगे मतलब जितना अच्छा कमेंट मिलेगा और जितनी अच्छी रेटिंग होगी बिलीव मी मैं उतने ज्यादा चैप्टर पोस्ट करना लग जाऊंगा अगर आप चाहते हैं कि मैं एक दिन में पांच चैप्टर से ज्यादा पोस्ट करो तो प्लीज कमेंट और रिव्यू की संख्या बढ़ा दे जितनी संख्या बढ़ेगी इतने चैप्टर आपको मिलते जाएंगे चलिए कल इसी वक्त इसका नया चैप्टर भी आपके कदमों में होगा पर तब तक अगर हमें रिव्यू और कमेंट सेक्शन में अच्छी चीज़ दिखे तो बिलीव में मैं कल 3 से 4 चैप्टर पोस्ट कर दूंगा
मीरा, खुद के भाई का यह हाल देखकर फूट-फूट कर रोने लगी। उसकी आंखें आंसुओं से भरी थीं। चेहरे पर बस उदासी ही थी। वह शमशान घाट में ज़ोर-ज़ोर से रोती हुई अपने भाई की राख को देख रही थी।
"भैया! आपने ऐसा क्यों किया?!" — वह चिल्लाई।
"मर जाने देते मुझे! मेरे लिए अपनी जान क्यों गँवाई?!"
यह कहकर वह ज़ोर-ज़ोर से बिलखती जा रही थी।
तब तक वहां गांव वाले पहुँचते हैं। मीरा को ज़मीन पर पड़ा देख, सामने के मंजर को देखकर वे उसे पकड़कर गांव ले आते हैं।
उनके बीच से एक महिला गुस्से में निकलकर कहती है,
"हमें इसे सरपंच जी के हवाले कर देना चाहिए! वही इसे उचित दंड देंगे! आज इसकी वजह से हमारे गांव पर कितना बड़ा संकट आ गया था!"
"यह और इसका भाई, दोनों ने इस गांव को मज़ाक बना रखा है! हमारी परंपराओं का अपमान किया है!"
मीरा चिल्लाती हुई कहती है,
"चुप करो तुम सब! क्या कह रहे हो तुम लोग?! हमने कोई गलत काम नहीं किया है!"
"अरे वो तो मेरा इस्तेमाल कर रहे थे! वो साधु मेरी बलि देने वाला था!"
"अगर मेरा भाई वक़्त पर नहीं पहुँचता, तो यह गांव बर्बाद हो जाता! नागयनी की छुपी आत्मा आज़ाद हो गई होती!"
यह सुनते ही बगल में खड़ा साधु गुस्से से चिल्लाता है,
"क्या कह रही है लड़की?! तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगा रही हो?! मैं इस गांव का रक्षक हूँ!"
"भूल मत, मैंने इस गांव के लिए क्या-क्या नहीं किया!"
"तू ही है ना जो शहर गई थी?! तू ही उस शैतानी आत्मा को यहां लाई है!"
साधु की बात सुनकर हर कोई मीरा को भला-बुरा कहने लगता है।
तभी, एक ज़ोर की आवाज़ आती है —
"शांत हो जाओ... सभी शांत हो जाओ!"
हर कोई पीछे मुड़कर देखता है। चौपाल पर सरपंच जी आ चुके थे। सभी गांव वाले सिर झुकाकर पीछे हट जाते हैं।
एक 30 वर्षीय युवक, जिसके सिर पर ताज था, आगे बढ़कर आता है। वह चौपाल पर रखी कुर्सी पर बैठता है और सबकी तरफ घूरते हुए कहता है:
"क्या गलत है, क्या सही — इसका फैसला हम अभी करेंगे!"
वह तांत्रिक की तरफ देखता है और कहता है:
"तांत्रिक बाबा, आप बताइए, सच क्या है?"
तांत्रिक बोलता है,
"सरपंच जी, आपको पता है, हर अमावस्या की रात हम शमशान में पूजा करते हैं, ताकि गांव की समृद्धि बनी रहे।"
"इसका भाई और यह लड़की, दोनों ने मिलकर नागयनी की आत्मा को मुक्त करने की कोशिश की!"
"भला हो कि मेरी शक्तियां काम आईं और मैंने इसके भाई को नष्ट कर दिया! पर यह कुलटा बच गई!"
तांत्रिक गुस्से में मीरा की तरफ देखता है।
मीरा हैरानी से तांत्रिक को देखती है और दौड़कर कहती है:
"सरपंच जी, ये झूठ बोल रहा है! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया!"
"मैं तो बस वहां से निकल रही थी, इन्होंने ही मुझे बंदी बना लिया!"
"इनकी शैतानी शक्तियों ने मुझ पर हमला किया! मेरा भाई तो सिर्फ गांव की रक्षा कर रहा था!"
"कृपया न्याय कीजिए!"
सरपंच तांत्रिक की तरफ गुस्से से घूरता है। तांत्रिक थोड़े पल पीछे हटता है और कहता है:
"सरपंच जी, मैंने इस गांव का नमक खाया है! मैं इसका कभी बुरा नहीं चाहूंगा!"
"अगर आपको यकीन नहीं है, तो कल मैं सबूत लेकर आऊंगा!"
यह कहकर वह वहां से चला जाता है।
सरपंच चौपाल से खड़े होते हैं और गांववालों से कहते हैं:
"आप चिंता मत करिए। जिसने भी गलत किया है, उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी — चाहे वो तांत्रिक हो या ये लड़की मीरा।"
"तब तक के लिए यह लड़की मेरी हवेली पर रहेगी!"
"हरिया! धनुष! इसे महल ले चलो!"
"और हां — किसी ने इसकी मदद करने की कोशिश की, तो वो पूरे गांव का दुश्मन होगा!"
यह कहकर सरपंच चला जाता है।
हरिया और धनुष, मीरा को खींचते हुए महल की ओर ले जाने लगते हैं।
मीरा चीखती है, गिड़गिड़ाती है:
"छोड़ दो मुझे! प्लीज़ छोड़ दो!"
पर वे उसकी एक नहीं सुनते और उसे कमरे में धक्का देकर पटक देते हैं। दरवाज़ा बंद कर चले जाते हैं।
मीरा कमरे में सिसक-सिसककर रो रही थी।
तभी उसका ध्यान अपने गर्भ की ओर जाता है।
वह पेट पर हाथ रखकर धीरे से कहती है:
"नहीं... मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगी... तुम मेरे प्रेम की निशानी हो... तुम्हें इस दुनिया में आना होगा..."
तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है।
मीरा घबरा जाती है। अपने हाथ पीछे कर लेती है।
दरवाज़ा खुलता है — सामने सरपंच खड़ा था।
वह अंदर आकर दरवाज़े की कुंडी लगा देता है।
उसे देखकर मीरा उसके पैरों में गिर पड़ती है।
"सरपंच जी! मुझे माफ कर दीजिए... मुझे जाने दीजिए... मैं निर्दोष हूं!"
सरपंच मुस्कुराते हुए कहता है:
"मुझे पता है... तू निर्दोष है... तूने कुछ नहीं किया..."
"पर तू हमारे काम में बाधा बन गई थी..."
मीरा की आंखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं।
"क-कैसा काम?" — वह कांपती आवाज़ में पूछती है।
"वही शमशान में पूजा... जो मैं करवा रहा था... और तूने... तूने उसे रोक दिया..."
"सरपंच जी, माफ कर दीजिए! मैं आगे से कुछ नहीं करूंगी! प्लीज़... मुझे जाने दीजिए!"
मीरा की रोती, बिलखती आवाज़ गूंजती है।
सरपंच जोर-जोर से हंसने लगता है।
"जाने दूंगा... पर एक शर्त पर..."
"अगर तूने मेरी बात मानी, तो तुझे आज़ाद कर दूंगा..."
मेरा सरपंच के पर को पकड़ते हुए कहती है आप जो कहेंगे मैं करने के लिए तैयार हूं आप जो चाहेंगे मैं वह कर दूंगी पर मुझे यहां से जाने दीजिए मैं वादा करती हूं कि मैं इस शहर को इस गांव को छोड़कर बहुत दूर चली जाऊंगी फैसल का सरपंच धीरे से जमीन पर बैठता है उसके चेहरे पर आ रहे हैं बाल को पीछे करते हुए उसके गोरे गाल को सहलाते हुए कहता है बस एक बार एक रात के लिए मेरी हो जा फिर तुझे मैं मुक्ति दे दूंगा सरपंच की बात सुनकर मीरा को गुस्सा आ जाता है वह सरपंच को खींचकर थप्पड़ मार देती है सरपंच के गालों पर थप्पड़ की आवाज पूरे कमरे में गूंजने लगती है सरपंच अपने गालों को सहलाते हुए गुस्से में लाल होकर के मीरा के मुंह को कसकर पकड़ लेता है तेरी इतनी हिम्मत तूने मुझे थप्पड़ मारी तुझे पता है मैं कौन हूं इस गांव का राजा इस गांव का सरपंच यहां का मसीहा सूर्यभान नाम है मेरा तूने सूर्यभान को थप्पड़ मारा है यह कहकर वह तिलमिला उठना है और मीरा के चेहरे को कसकर पढ़ते हुए पीछे की तरफ ले जाता है मेरा दर्द से चिल्ला रही थी वह मीरा के बाल को कसकर पढ़ते हुए कहता है बड़े प्यार से तुझे मैंने कहा था पर तू ऐसे नहीं समझेगी रुक तेरा उपाय मैं अभी करता हूं यह कहकर वह दरवाजे की तरफ जाता है दरवाजे को खोलकर धनुष और हरिया को इशारा करते हुए कहता है पकड़ो इस साली को आज मैं इसको बताता हूं कि सरपंच को थप्पड़ मारने कितना भारी पड़ सकता है हरिया और धनुष सरपंच सूर्यभान का इशारा पाकर मीरा की तरफ बढ़ते हैं मेरा दर्द से चिल्लाते हुए कहती है प्लीज प्लीज मुझे छोड़ दो मुझे माफ कर दो यह कहते हुए अपने आप को पीछे करने लगती है पर हरिया और धनुष जोर-जोर से हंसते हुए उसके बालों को कसकर पकड़ लेते हैं उसके हाथ को कसकर पढ़ते हुए सरपंच की तरफ देखकर कहते हैं महाराज आपका नाश्ता तैयार है यह कहकर वह दोनों जोर-जोर से हंसने लगते हैं सूर्यभान अपने कपड़े को निकाल देता है बिना कपड़े के कपड़े के अंदर आते हुए वह मीरा के जिस पर पड़े सारे कपड़ों को उतार फेंकता है और हाइवानों की तरह उसे नोचे खाने लगता है
मीरा की आवाज को सुनकर के वह अपने पास पड़े कपड़े को उठाकर उसके मुंह में डाल देता है और लगातार दरिंदगी की सारी हदें पार कर देता है यह कहकर वह जैसे ही खड़ा होता है पास पड़े कपड़े को उठाकर पहनते हुए कहता है धनुष और हरिया किसी को यह बात पता नहीं चलनी चाहिए तब तक हरिया आगे बढ़कर कहता है सब छोटी मुंह बड़ी बात पर अगर आप इजाजत दे तो मैं भी इसका सेवन कर लो या सुनते ही सरपंच हंसते हुए कहता है हां हां क्यों नहीं सरपंच की आज्ञा पाकर हरिया और धनुष भी मीरा के साथ वही दरिंदगी करने लगते हैं मेरा जिसकी हालत पूरी तरीके से खराब हो चुकी थी रोटी-रोटी उसके आंख फुल आए थे इन लोगों ने उसके शरीर को नोच खाया था जगह-जगह दातों के निशान और दरिंदगी की सारी हदें दिख रही थी वह निस्तब होकर जमीन पर पड़ी थी उसके आंखों से बाहरी आंसू अब सूख चुके थे उसके शरीर में कोई भी हलचल नहीं थी सामने कुर्सी पर बैठा सरपंच हरिया और धनुष को उसके साथ दुष्कर्म करता देख रहा था धनुष और हरिया भी उठ खड़े होते हैं अपने कपड़े को पहन करके कमरे से बाहर चले जाते हैं उसके जाते ही सरपंच भी वहां से चला जाता है इधर दूसरी तरफ तांत्रिक महल की तरफ आ रहा था वह चुपके से महल के अंदर घुसता है और धीरे से मीरा के कमरे में आ जाता हैवह मीरा की तरफ देखते हुए कहता है तू तू मेरी शक्तियों को बर्बाद करना चाहती थी ना मैं तुझे बर्बाद कर दूंगा मेरा निस्तब होकर के जमीन पर पड़ी थी वह अपने जेब से कुछ निकलता है और अपने हाथ में लिए तस्वीर को देखते हुए मीरा के पीठ पर वैसे निशाना बना देता है और वहां से भाग जाता है अगली सुबह हर कोई चौपाल पर इकट्ठा हो गया था बूढ़े बच्चे और महिलाएं हर कोई हर किसी को सरपंच के न्याय का इंतजार था और मीरा के साथ क्या होता वह जानने के लिए बेताब थे आपस में लड़खड़ाते फुसफुसाते एक दूसरे से बात कर रहे थे तब तक उन्हें सरपंच की गाड़ी चौपाल की तरफ आती दिखाई दी वह गाड़ी को देखकर के हर कोई शांत हो गया सरपंच चौपाल पर आकर के कुर्सी पर बैठते हुए कहता है तो तांत्रिक सबूत ले तुम तांत्रिक मुस्कुराते हुए कहता है हाथ सरदार सबूत है क्या सबूत है दिखाओ हमें तांत्रिक आगे बढ़ता है वह किताब सरपंच के हाथों में रखते हुए कहता है यह देखिए यह निशान देखिए यह निशान इस महिला पर आता है जिसके घर वालों ने बड़ी-बड़ी सिद्धियां या या यक्षिणी और करण पिशाचिनी को सिद्ध किया हो इसके भाई ने भी यही किया था और उसकी वजह से उसने अपने बहन की शरीर उनको सौंप दिया था और इसके शरीर पर न जाने ऐसी कितनी आत्माएं रहती हैसरपंच या देख करके आंखें बड़ी करते हुए कहते हैं पर ऐसा कैसे हो सकता है अगर आपको यकीन ना हो मालिक तो आप उसके पीठ पर वह निशान देख सकते हैं सरपंच तांत्रिक की बात सुनकर हरिया और धनुष की तरफ इशारा करता है वह मीरा को चौपाल के पास लेकर आते हैं मेरा अब जो बिल्कुल बेस होती मनोज के शरीर में जान ही ना बची थी वह चुपचाप से वहां पर खड़ी थी सरपंच आगे बढ़ता है और भरे सभा में मीरा के ब्लाउज को फाड़ देता है हर कोई उसके पीठ पर उसे निशान को देखकर के चौक जाता है और आपस में बातें करने लगता है सरपंच धीरे से अपने मन में कहता है कल रात में यह निशान नहीं था फिर अचानक से कैसे पर उसे भी क्या वह मुस्कुराता है फिर गहरी स्वर में डरते हुए कहता है क्या अगर ऐसा है तो यह हमारे लिए बहुत खतरनाक हो सकती है हमें इसको मार देना चाहिए अगर ऐसी महिला जिंदा रही तो हमारा पूरा समाज दूषित हो जाएगा और यह गांव इस गांव की शक्तियां इस गांव की परंपरा सब नष्ट हो जाएंगे
सरपंच की बात सुनकर पूरे गांव वाले हां में कर हिलाते हुए कहते हैं हां हमें इसे मार देना चाहिए हमें इसे मार देना चाहिए की डायन है यह चुड़ैल है मेरा जो बेसुध होकर इन सब की बातें सुन रही थी मानो उसकी सारी जीने की इच्छा ही खत्म हो चुकी हो सरपंच यह देख करके धनुष और हरिया को इशारा करते हैं वह आगे बढ़कर के मीरा को घसीटते हुए पेड़ के पास लाते हैं पीपल के पेड़ में उसे कसकर बांधते हुए कहते हैं गांव वालों अब सजा तुम सब पर है तुम जो चाहे इसे सजा दे सकते हो गांव वालों ने यह सब सुनते ही वहां आसपास पड़े पत्थरों को उठाकर के मीरा को करने लगे लगातार मीरा के ऊपर पत्थर पड़ने की वजह से उसके शरीर से जगह-जगह से खून बहने लगा था पर उसके मुंह से जरा सा भी आवाज नहीं निकल रहा था हर कोई हैरान पत्थर को उठाकर और तेजी से मारता पर वह बेसुध वहां पर खड़ी थी तब तक एक महिला ने एक पत्थर उठाकर तेजी से उसके पेट की तरफ मारा जिससे मेरा चिल्ला कर बोली तुम सब इसका भुगतान करोगे किसी को नहीं छोडूंगी मैं किसी को नहीं छोडूंगी उसकी आवाज इतनी डरावनी थी कि हर कोई डर कर पीछे हट गया तब तक तांत्रिक आगे बढ़ते हुए कहता है सरपंच जल्दी करिए इसके ऊपर चुड़ैलों का आवाहन हो रहा है अगर ऐसा हुआ तो यह हम सबको नष्ट कर देगी सरपंच तंत्र की बात सुनकर के हरिया और धनुष को इशारा करता है धनुष और हरिया भाग करके गाड़ी से पेट्रोल निकालने जाते हैं तब तक तांत्रिक मुस्कुराते हुए कहता है रुको ऐसे नहीं वह सारे गांव वालों की तरफ देखकर कहता है अपने-अपने घर से सब पांच-पांच उपले लेकर आओ और साथ में देसी घी लाना यह सुनते ही सारे गांव वाले भाग करके अपने-अपने घर जाते हैं और 5-5 प्ले और देसी घी लेकर आते हैं उन उपयोग पर घी लगा करके उन्हें मीरा के चारों तरफ रख दिया जाता है मेरा जब बेसिस खड़ी थी अब उसके शरीर में थोड़ी हलचल हो रही थी यह देखकर सरपंच उसके मुंह को रस्सी से बंधवा देता है वह चिल्ला नहीं पाती पर्वत तड़प और छटपटा रही थी तांत्रिक मुस्कुराते हुए कहता है आग लगा दीजिए चुड़ैल की शरीर को यह कहने के बाद तांत्रिक की बात सुनकर के सरपंच उसमें आग लगा देता है और देखते ही देखते उसकी तड़प और छटपटाहट वहीं गंज कर रह जाती है सारे गांव वाले वहां से अपने घर की तरफ चले जाते हैं वह आग लगातार 5 दिनों तक जली फिर देखते ही देखते पूरा मामला शांत हो गया वह पेड़ अभी भी वहीं पर अपनी चद्दर तान खड़ा था पर उसे पर एक भी पत्तियां नहीं थी पूरी तरीके से जलने के बाद भी वह मजबूती से जमीन में टिका हुआ था इधर दूसरी तरफ सरपंच अपने कमरे में बैठा शीशे में खुद को देखते हुए कह रहा था बस एक और लड़की फिर मुझे वह सिद्धि मिल जाएगी जिसकी मैं तपस्या की थी यह कहकर सरपंच मुस्कुराते हुए धनुष की तरफ इशारा करता है गांव में कोई युक्ति 18 की हुई अगर हो गई हो तो उसे लेकर आओ तुम्हें पता है ना आज रात हमें आखिरी बलि देनी है इसके बाद वह सारी शक्तियां मेरी होगी सरपंच की बात सुनकर धनुष हमेशा हिलता है और वहां से चला जाता है