"हाँ सर, पाँच मिनट में पहुँच रही हूँ… नहीं सर, ट्रैफिक है… हाँ हाँ, रिपोर्ट भेज दी थी…" और तभी — धड़ाम! एक तीखी आवाज़, एक झटका, और उसका फोन नीचे गिर पड़ा। "आई एम सॉरी!" — उसने घबराते हुए सामने देखा। सामने एक लंबा, शांत चेहरा। नीली शर्ट, हल्की दाढ़ी,... "हाँ सर, पाँच मिनट में पहुँच रही हूँ… नहीं सर, ट्रैफिक है… हाँ हाँ, रिपोर्ट भेज दी थी…" और तभी — धड़ाम! एक तीखी आवाज़, एक झटका, और उसका फोन नीचे गिर पड़ा। "आई एम सॉरी!" — उसने घबराते हुए सामने देखा। सामने एक लंबा, शांत चेहरा। नीली शर्ट, हल्की दाढ़ी, और वो आंखें... कुछ जाना-पहचाना सा। जैसे कहीं देखा है। जैसे किसी तस्वीर से उतरकर कोई सामने आ गया हो | . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
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मुंबई की सुबहें हमेशा से ही भागती रही हैं। कभी लोकल ट्रेन की सीटी में, कभी सड़कों पर दौड़ते ऑटो की गड़गड़ाहट में, तो कभी अलार्म की आवाज़ों में जो सुनाई तो देती हैं, पर उठने नहीं देतीं। आज की सुबह भी कुछ अलग नहीं थी। "ओह गॉड! फिर लेट हो गई!" आयरा की नींद एक झटके में टूटी। बिखरे बाल, बिखरी अलमारी और सिर पर ऑफिस की टेंशन। मोबाइल की स्क्रीन पर वॉट्सऐप मैसेज्स की भरमार, पर ध्यान सिर्फ एक चीज़ पर — घड़ी की सुइयों पर। ब्रश एक हाथ में, कॉफी का मग दूसरे में, और कान पर झूलते ईयरफोन्स में बैडमिंटन की किसी पुरानी क्लिप चल रही थी — अभिराज मल्होत्रा की। "क्या प्लेयर है यार..." वो बुदबुदाई, मुस्कराई, और फिर अचानक ही कॉफी छलक गई। "फोकस आयरा फोकस! क्रश पर बाद में मरना, पहले ऑफिस बचा लो!" आयरा — 26 साल की, एक मार्केटिंग कंपनी की जूझती-कांपती एग्जीक्यूटिव। काम में तेज, पर ज़िंदगी में थोड़ी गड़बड़। अपने अंदाज़ में प्यारी, अपने ही रंग में खोई हुई। दुनिया से थोड़ी उलझी, लेकिन दिल से बड़ी साफ। उसे सेलिब्रिटीज़ से कोई खास लगाव नहीं था। लेकिन अभिराज... वो कुछ अलग था। सिर्फ एक स्पोर्ट्स स्टार नहीं, उसकी गंभीर आंखों, विनम्र व्यवहार, और खेल के प्रति जुनून में कुछ ऐसा था जो आयरा के chaotic दिल को भी स्थिर कर देता। पर वो सब स्क्रीन तक ही था… मिलने का कोई चांस नहीं। और न ही कोई उम्मीद। उधर, शहर के एक शांत कोने में, एक बड़ा सा बैंगलो — अभिराज मल्होत्रा की दुनिया। आज एक रेयर दिन था। कोई मैच नहीं, कोई इवेंट नहीं, कोई कैमरा नहीं। सिर्फ एक इंसान — अपनी चाय के प्याले के साथ, खिड़की के बाहर देखता हुआ। अभिराज, 29 साल का इंटरनेशनल बैडमिंटन चैंपियन, अनुशासन उसकी नसों में बसा था। लेकिन अंदर से वो सिर्फ एक आम इंसान था — जिसे भीड़ अच्छी नहीं लगती, जिसे अपनी निजी ज़िंदगी के कुछ हिस्से सिर्फ अपने लिए चाहिए। आज वो यूं ही बाहर जाने का मन बना बैठा। बिना बॉडीगार्ड, बिना किसी को बताए। "थोड़ा अकेला चलना अच्छा लगता है। कम से कम लोग आंखों से नहीं, दिल से देखेंगे..." उसने बुदबुदाते हुए चश्मा पहना और कार स्टार्ट कर दी। चौराहा — जहाँ रास्ते मिलते हैं, और किस्मतें भी। आयरा ऑटो से उतरी। हाथ में बैग, एक हाथ में फोन — ऑफिस के क्लाइंट कॉल पर झुंझलाई हुई। "हाँ सर, पाँच मिनट में पहुँच रही हूँ… नहीं सर, ट्रैफिक है… हाँ हाँ, रिपोर्ट भेज दी थी…" और तभी — धड़ाम! एक तीखी आवाज़, एक झटका, और उसका फोन नीचे गिर पड़ा। "आई एम सॉरी!" उसने घबराते हुए सामने देखा। सामने एक लंबा, शांत चेहरा। नीली शर्ट, हल्की दाढ़ी, और वो आंखें... कुछ जाना-पहचाना सा। जैसे कहीं देखा है। जैसे किसी तस्वीर से उतरकर कोई सामने आ गया हो। वो व्यक्ति झुका, फोन उठाया, और बिना कुछ कहे उसकी ओर बढ़ाया। "थैंक यू…" आयरा ने धीरे से कहा, अब भी थोड़ा सहमी हुई। लेकिन आंखें अब साफ देख चुकी थीं। अभिराज मल्होत्रा। "आप… आप वही…?" उसके मुँह से आधे शब्द निकले, आधे गले में अटक गए। लेकिन अभिराज मुस्कराया नहीं। सिर्फ सिर हिलाया, बहुत ही हल्के से। "कोई बात नहीं। संभाल कर चलिए…" और वो आगे बढ़ गया। बस कुछ सेकंड। लेकिन वो कुछ सेकंड, जैसे कोई धड़कनों की डायरी पर पेंसिल से लकीर खींच गया हो। आयरा वहीं खड़ी रह गई। एक पल के लिए वो सब भूल गई — रिपोर्ट, ऑफिस, सर, कॉल… सब। उसकी उंगलियां फोन पर जमीं थीं, लेकिन मन उस आवाज़ में अटका था — "संभाल कर चलिए…" उधर, अभिराज अपनी कार तक पहुँचा, लेकिन ड्राइविंग सीट पर बैठते ही एक बार पीछे मुड़ा। दूर जाती लड़की की परछाईं देखी। उसने न मुस्कराया, न कुछ कहा। लेकिन आँखों में हलकी सी जिज्ञासा उभर आई थी — "वो कौन थी?" 📍 शाम तक की बेचैनी ऑफिस में पूरा दिन किसी तरह बीत गया, लेकिन आयरा का मन बार-बार वहीं जा रहा था। "क्या वो सच में अभिराज था? और अगर था, तो इतना सिंपल कैसे था?" "इतना शांत… कोई घमंड नहीं… कोई स्टार वाला नखरा नहीं…" "पागल मत बन आयरा! तू ऐसे ही सोच रही है… मगर फिर भी… वो नज़रें…" उसने एक बार फिर अपना फोन उठाया — इंस्टाग्राम खोला। अभिराज की वही आंखें। वही शांत चेहरा। वही नीली शर्ट। "OMG. सच में वो ही था!" 🌙 रात की खामोशी — दो दिलों में हलचल वहीं, रात को अभिराज बालकनी में खड़ा था। सामने चमकती रौशनी, और नीचे बहती भीड़। लेकिन आज कुछ अलग था। एक चेहरा बार-बार सामने आ रहा था — उलझे बाल, घबराई आंखें, और वो "थैंक यू"। वो रोज़ सैकड़ों लोगों से मिलता है, हजारों कैमरों में झलकता है। लेकिन आज की मुलाकात... कुछ और थी। "नाम तक नहीं पूछा…" वो खुद से बोला। और वहीं, कमरे के कोने में बैठे आयरा ने अपनी डायरी में लिख डाला: "आज पहली बार मेरी किस्मत ने मुझे उससे मिलवाया। मैं कुछ नहीं कह पाई, और शायद वो भी नहीं। लेकिन क्या यह हमारी कहानी की पहली पंक्ति थी…?"
❤️ भाग 2: फिर वही रास्ता — क्या ये इत्तेफ़ाक था? मुंबई की सुबहें बदलती नहीं। लेकिन किसी के अंदर का मौसम... हर रात के बाद थोड़ा-सा बदल ही जाता है। आयरा की सुबह आज भी वैसी ही थी — पर आज उसकी आँखों में एक चमक थी, जो कल तक नहीं थी। वो टकराहट... वो नीली शर्ट... वो गंभीर आंखें... "क्या वो सच में था?" "या मेरी आंखों ने सपना देख लिया?" फोन पर इंस्टाग्राम खोला — #AbhirajMalhotra हज़ारों पोस्ट्स, लेकिन उसकी कल वाली मुलाकात की कोई झलक नहीं। "कोई फोटो नहीं? कोई स्टोरी नहीं? मतलब... शायद वो वाकई चाहता था कि कोई न जाने वो बाहर है।" जैसे ही उसने लैपटॉप ऑन किया, साइड से सान्या की चैट आई: "गर्ल!! सुन, आज थोड़ा जल्दी लंच ब्रेक लेना प्लीज़... gossip pending!!" 🌸 ऑफिस का एक कोना, जहाँ लड़कियाँ सपने सजाती हैं "तू कह रही है तू सच में अभिराज से टकराई?" — सान्या की आंखें कटोरी जैसी गोल हो गईं। "हां यार! टकराई मतलब... ऐसे ही... अचानक... और..." "और फिर उसने तुझे देख के गले लगाया? हाय राम!!" "नहीं रे पगली!" — आयरा हँस पड़ी, "बस… फोन उठाया, और बोला 'संभाल कर चलिए'..." सान्या ने चाय का कप रखा और धीरे से बोली, "तू न… बहुत क्यूट है। मुझे लगता है, तू उसे फिर मिलेगी।" आयरा चौंकी। "क्यों?" "क्योंकि कुछ मुलाकातें... अधूरी नहीं छोड़ी जातीं।" 🚗 उधर, शहर के दूसरे कोने में — एक खामोश दिल की हलचल अभिराज, सुबह से ही बेचैन था। वो बेचैनी जो किसी हार से नहीं, किसी न पहचान सकने वाले एहसास से उठती है। मैनेजर कमरे में आया — "सर, आज एक इंटरव्यू शूट था…" "कैंसिल कर दो।" "सर?" "आज बस... अकेले कहीं निकलना है।" वो मैनेजर को अनसुना करता हुआ अपनी बालकनी की ओर बढ़ा। मोबाइल ऑन किया — एक आर्टिकल वायरल हो रहा था: “Spotted: Abhiraj helping a mystery girl in Bandra. Fans go crazy.” फोटो ब्लर थी… पर उसमें एक लड़की की परछाईं साफ दिख रही थी। वो वही थी। कल वाली। "कौन थी वो...?" "क्या फिर मिल सकती है…?" ☕ दोपहर — जब रास्ते इत्तेफ़ाक़ से मिलते हैं ऑफिस की मीटिंग्स के बीच 1 घंटे का ब्रेक मिला। आयरा ने सोचा, "आज कॉफी बाहर से लूँ…" वो अक्सर कॉफी क्राफ्ट नाम के कैफे में जाती थी — जहाँ भीड़ कम होती थी, और कॉफी अच्छी। कैफे के दरवाज़े पर — एक दरवाज़ा खुला… और वो अंदर आया। नीली कैप, ब्लैक जैकेट, और आंखों पर हल्का चश्मा। अभिराज। उसे लोगों से छुपना आता था। और इस कैफे की खामोशी उसे पसंद थी। पर जैसे ही उसने अंदर कदम रखा — दो आंखों ने उसे पहचान लिया। आयरा। "ओह फिश!" — आयरा ने खुद से कहा, "ये फिर यहीं? या मुझे ही हर जगह वही दिखता है?" लेकिन ये भ्रम नहीं था। वेटर आया — "मैम, सर… टेबल फुल हैं। आप दोनों चाहें तो ये कॉर्नर टेबल शेयर कर सकते हैं।" दोनों ने एक पल को एक-दूसरे को देखा। फिर अभिराज ने सिर हिलाया, "आप ठीक हैं… बैठिए।" ☕ कॉफी, और कुछ अनकहे सवाल दोनों चुपचाप बैठ गए। वेटर ने ऑर्डर लिया — "आप?" — अभिराज ने पूछा। "Latte, less sugar." "Same." — उसने हल्के से मुस्कराते हुए कहा। एक पल की खामोशी... "आपको देखकर लगा नहीं था… आप फिर मिलेंगे।" — आयरा ने हल्के अंदाज़ में कहा। "मुझे भी नहीं लगा था… कोई मुझसे बिना सेल्फी मांगे यूं बात करेगा।" "तो क्या हर लड़की आपसे सेल्फी माँगती है?" "अधिकतर। लेकिन आप... अलग हैं।" वो पल… कुछ धीमा, कुछ कोमल… जैसे दो धड़कनों के बीच एक रूहानी ठहराव। 🌇 जब बातें थोड़ी खुली, और दिल भी "आपका नाम?" — उसने पूछा। "आयरा। और आपका?" "आप तो जानती हैं।" "हाँ… लेकिन नाम और पहचान में फर्क होता है, अभिराज मल्होत्रा।" अभिराज थोड़ा मुस्कराया। "और आप क्या करती हैं?" "हर सुबह अलार्म को इग्नोर करती हूँ, फिर अपने बॉस से डांट खाती हूँ… और दिन में खुद से झूठ बोलती हूँ कि सब ठीक चल रहा है।" अभिराज ने पहली बार खुलकर हँसी — "Nice honesty." 🚶♀️ जब रास्ते फिर अलग हुए — पर कुछ छोड़ गए कॉफी खत्म हुई। टेबल खाली होने लगी। "मुझे चलना चाहिए…" — आयरा ने उठते हुए कहा। "एक मिनट…" — अभिराज रुका। "तुम्हारा नाम तो जान गया। लेकिन क्या अगली बार… फिर से यहीं मिल सकते हैं?" आयरा ने उसकी आंखों में देखा। फिर मुस्कराई। "शायद। अगर किस्मत चाहती हो… तो ज़रूर।" 🌙 रात की डायरी — फिर वही सवाल आयरा की डायरी में: "आज फिर मिला… एक कैफे में, एक टेबल पर, एक कॉफी के बहाने। ये इत्तेफ़ाक था… या कहानी की दूसरी लाइन?" (भाग 2 समाप्त)
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❤️ भाग 3: आवाज़ों के बीच — जब दिल बोलने लगा
कभी-कभी कुछ आवाज़ें, अनजाने ही दिल में उतर जाती हैं।
बिना शोर किए, बिना दस्तक दिए।
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🌅 सुबह — जब एक नाम दिमाग में बस जाए
अभिराज मल्होत्रा का आज कोई शूट नहीं था, कोई मैच नहीं, कोई मीटिंग भी नहीं।
पर फिर भी सुबह से एक बेचैनी उसके इर्द-गिर्द मंडरा रही थी।
“वो लड़की…”
अब ये शब्द नाम से ज़्यादा करीब लगने लगे थे।
पिछली मुलाकात के बाद वो उसे भूल नहीं पाया था।
उसकी बातें, उसकी मुस्कराहट… और वो कॉफी टेबल पर उसकी उंगलियों से खेलती चीनी की रेखाएं।
> “आयरा…” — उसने खुद से दोहराया।
“काश उससे दोबारा बात हो पाती।”
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📱 कोशिश
उसने अपनी नोटबुक खोली — उसमें कैफे की रिसीट रखी थी।
वहीं नीचे एक शब्द लिखा था — “Elevate Communications” — शायद वही कंपनी जहाँ आयरा काम करती थी।
अभिराज ने गूगल किया, फिर कंपनी की वेबसाइट खोली।
कुछ कॉल्स, थोड़ा जुगाड़, और अंत में — एक नंबर मिला।
नंबर सेव किया नहीं। बस कॉल बटन दबाया।
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📞 पहली कॉल
आयरा, इस वक्त अपने कंप्यूटर पर क्लाइंट रिपोर्ट भेज रही थी।
फोन वाइब्रेट हुआ — अनजान नंबर।
“Hello?” — उसकी आवाज़ थोड़ी प्रोफेशनल थी।
> “Hi… Abhiraj this side.”
कुछ सेकंड की खामोशी।
“क्या…?” — उसकी आवाज़ एकदम से बदल गई।
“मतलब… आप… कॉल कर रहे हैं?”
“हाँ… थोड़ा अजीब लग रहा होगा, पर… मुझे आपका नंबर मिला, और सोचा… शायद बात कर सकें।”
"अभी बात?"
"अगर आप फ्री हों तो... या जब समय हो।"
आयरा के चेहरे पर एक धीमी सी मुस्कराहट आई।
> “बात तो अब हो ही रही है…”
“और… इतनी जल्दी दोबारा मिलेंगे, ये नहीं सोचा था।”
“मैं भी नहीं।” — अभिराज ने हँसते हुए कहा।
“तो…” — वो बोली, “अब आप क्या कहेंगे? कॉफी शेयर करें… या कहानी?”
> “अगर आप तैयार हों… तो डिनर और कहानी दोनों?”
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🥰 उधेड़बुन
फोन कटते ही आयरा का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने फौरन सान्या को कॉल किया।
“तू पागल है!” — सान्या चिल्लाई।
“डिनर पर बुला लिया? ये सेलेब्रिटी लोग बहुत अलग होते हैं।”
“नहीं यार, वो... बहुत सिंपल है। बातों से ही लगा कि असली वाला इंसान है।”
“बस तू संभल कर चल। बहुत सपने न बुन। ये कहानियाँ हर बार फिल्मी एंडिंग नहीं देतीं।”
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🕖 शाम — एक छोटा झूठ
“सान्या, मुझे एक क्लाइंट मीटिंग में जाना है… शायद देर हो जाए।”
सान्या ने देखा,
“क्लाइंट या क्लाइमेक्स?”
“शांत रहो!” — वो हँसते हुए निकली।
लेकिन उसके अंदर एक अजीब सी हलचल थी।
यह पहली बार था जब वो किसी से मिलने के लिए ऑफिस से झूठ बोल रही थी।
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🍽️ रेस्टोरेंट — जहाँ कहानियाँ स्वाद बनकर परोसी जाती हैं
रेस्टोरेंट शांत था, वैसा ही जैसा अभिराज को पसंद था।
वो पहले से पहुँचा हुआ था।
काली शर्ट, हल्की दाढ़ी, और वही संयमित मुस्कराहट।
आयरा दरवाज़े से अंदर आई — और उसकी चाल में वो आत्मविश्वास था, जो बस दिल की धड़कनों को छुपाने के लिए पहन लिया गया था।
“Hi…” — उसने धीरे से कहा।
“Glad you came.” — अभिराज ने कुर्सी खींची।
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✨ बातें — जब ज़ुबानें खोलें दिल के दरवाज़े
बातें चलती रहीं — बचपन के शौक, कॉलेज के फेल सब्जेक्ट्स, पहली नौकरी, मैच की नर्वसनेस, और कैमरों से थकान।
“तुम्हें फेम पसंद है?” — आयरा ने पूछा।
“नहीं… मुझे खेल पसंद है। फेम तो उसके साथ आया है। बस… जब कभी कोई मुझे बिना मेरे नाम से जानता है… तो अच्छा लगता है।”
“जैसे मैं?”
“शायद… इसलिए तुमसे दोबारा बात करना चाहा।”
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⚡ मोड़ — जब एक अजनबी पुराना बन जाए
तभी रेस्टोरेंट के कोने से एक लड़की आई — लंबी, तेज चाल, कैमरा उसके कंधे पर।
“Hey Abhi! Oh wow! You here?” — वो आई और हँसते हुए गले लग गई।
अभिराज थोड़ा असहज हुआ, पर मुस्कराया।
“Hi... Siya. Long time.”
सीया — एक पुरानी मीडिया फोटोग्राफर थी, जो अक्सर उसके शूट्स में रहती थी।
दोनों की बातें कुछ मिनट चलीं।
उधर, आयरा चुप बैठी रही — अचानक सब कुछ बदलता-सा लगा।
> “शायद ये कोई ‘स्पेशल’ लड़की है…”
“जो मैं नहीं हूँ।”
“पागल हूँ मैं, इतनी जल्दी यकीन कर लिया…”
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🚶♀️ दूरी — जब बिना कहे कोई दूर हो जाए
सीया के जाने के बाद, अभिराज ने देखा — आयरा अपना पर्स उठा चुकी थी।
“सब ठीक है?” — उसने पूछा।
“हाँ… बस थोड़ा थक गई हूँ। और… शायद निकलना चाहिए।”
“लेकिन डिनर…?”
“Thanks for the evening.” — आयरा ने हल्की सी मुस्कान दी और चल दी।
उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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🌙 रात की तन्हाई — दोनों तरफ की चुप्पी
अभिराज बालकनी में खड़ा था —
“क्या कुछ ग़लत हो गया?”
आयरा डायरी के पन्ने पर कुछ लिख रही थी:
> "शायद मैं गलत थी।
शायद कुछ कहानियाँ दो पन्नों से आगे नहीं जातीं।
लेकिन… दिल अब भी उस आवाज़ को दोहरा रहा है…
‘Hi… Abhiraj this side…’"
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(भाग 3 समाप्त)
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कैसा लगा आपको यह भाग? 😊
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❤️ भाग 4: दिल की वो बात — जो लबों तक न आ सकी
कभी-कभी… खामोशियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं।
जिन सवालों के जवाब शब्दों में नहीं मिलते,
वो आँखों की भीगी कोरों में छिपे होते हैं।
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🌃 रात — जब नींद नहीं आती
आयरा की आँखों के सामने बार-बार वही दृश्य घूमता रहा।
रेस्टोरेंट… अभिराज की मुस्कराहट… और फिर वो लड़की, सीया।
“कौन थी वो?”
“क्या मैं फिर से वही कर रही हूँ… जो हर लड़की करती है?”
“या मैं सही हूँ… और वो सिर्फ खेल खेल रहा है?”
रात के 2 बज चुके थे, लेकिन नींद नहीं आई।
उसने फोन उठाया — अभिराज का नंबर देखा…
ब्लॉक करने के लिए उँगली आगे बढ़ी… फिर रुक गई।
> “इतनी जल्दी भरोसा किया,
फिर इतनी जल्दी तोड़ भी दूँ?”
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📱 सुबह — वो वॉइस मैसेज
अभिराज की रात भी आसान नहीं थी।
उसे समझ नहीं आया कि उसने क्या गलत कर दिया।
आयरा चली क्यों गई?
कॉल किया — कोई जवाब नहीं।
फिर उसने एक वॉइस मैसेज रिकॉर्ड किया —
उसके शब्द सीधे दिल से निकले:
> “आयरा…
अगर कल कुछ ऐसा हुआ जिससे तुम्हें तकलीफ़ पहुँची… तो जानकर अच्छा नहीं लग रहा।
मैं जानता हूँ हम अजनबी हैं,
पर मैं झूठा नहीं हूँ।
जो मिला था, वो पहली बार किसी से खुलकर बात कर पाया था।
अगर बात न कर सको… तो कम से कम ये सुन लेना…
मैं वही हूँ — जो उस दिन कॉफी टेबल पर बैठा था।
सच्चा, सामान्य… और सिर्फ तुमसे बात करना चाहता था।”
वो मैसेज कमज़ोरी नहीं, सच्चाई थी।
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🌥️ दोपहर — सवाल, जवाब और दोस्त
आयरा के पास जब वो वॉइस मैसेज पहुँचा,
वो ऑफिस में थी — लेकिन आँखें स्क्रीन पर नहीं, दिल पर टिकी थीं।
उसने सारा मैसेज सुना — दो बार।
एक शब्द भी बनावटी नहीं लगा।
हर बात… जैसे मन से निकली हो।
पास बैठी सान्या ने पूछा,
“क्या बात है? चेहरे पे तूफ़ान क्यों है?”
आयरा ने सब बता दिया।
सान्या थोड़ी देर चुप रही।
फिर धीरे से बोली —
> “अगर दिल में सवाल है… तो जवाब उसी से माँग।
अपने अंदर क्यों जलती रहोगी?”
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💌 शाम को एक मेल
आयरा ने घर आकर लैपटॉप खोला।
और सिर्फ दो लाइन का मेल लिखा:
> To: abhiraj.malhotra@...
Subject: सवाल
अगर आप फ्री हों… तो कल शाम कैफे क्राफ्ट में मिल सकते हैं।
मुझे कुछ सवाल हैं… जिनके जवाब सिर्फ आप दे सकते हैं।
— आयरा
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🌆 अगली शाम — जवाबों की शाम
कैफे क्राफ्ट में सामान्य दिन था।
भीड़ कम थी… लेकिन हवा में कुछ अलग था।
अभिराज पहले से आ चुका था — शांत, लेकिन बेचैन।
6:08 PM — दरवाज़े की घंटी बजी।
आयरा अंदर आई — नजरें सीधी अभिराज से टकराईं।
वो बिना कहे बैठ गई।
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🗣️ सच्चाई की पहली सांस
“मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ।” — अभिराज बोला।
“वो लड़की… सीया… मेरी कोई ‘खास’ नहीं है।
वो एक पुरानी फोटोग्राफर थी, कई साल पहले एक इंटरव्यू के दौरान मिली थी।
बस… वही जान-पहचान। ना दोस्ती, ना कुछ और।”
“मैंने कुछ नहीं छुपाया, आयरा।
लेकिन हाँ… इतना यकीन किया था कि शायद तुम मुझसे पूछो… खुद से न सोचो।”
आयरा चुप रही… उसकी आँखें नम थीं।
वो जानती थी — ये सच है।
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💬 जब दोनों बोले, दिल की बात
“मुझे लगा था…” — आयरा ने धीमे से कहा,
“मैं फिर से किसी पर जल्दी भरोसा कर रही हूँ।
और शायद ये भरोसा… एकतरफा था।”
“नहीं था।” — अभिराज की आवाज़ भरी हुई थी।
“मैं स्टार नहीं हूँ, आयरा।
हाँ, नाम है… शोहरत है… पर उस सबके पीछे एक इंसान हूँ।
और वो इंसान चाहता है कि कोई उसे सिर्फ… इंसान की तरह देखे।”
आयरा ने पहली बार उसकी आंखों में देखा —
वहाँ न स्टारडम था, न शो।
बस एक सच्चा अकेला दिल।
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🌸 और फिर एक नई शुरुआत
थोड़ी देर की खामोशी के बाद, आयरा ने मुस्कराकर कहा:
> “अच्छा… अब सवाल पूछ सकती हूँ?”
“हाँ।”
“आपको स्पाइसी खाना पसंद है?”
“थोड़ा।”
“मुझे बहुत।
और आप क्या करेंगे अगर मैं डिनर के बीच में ढेर सारी बातें करूँ?”
“तो सुनूंगा… पूरी कहानी, बिना एक बार घड़ी देखे।”
और दोनों हँस दिए —
इस बार, मन साफ था… और रास्ता खुला।
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🌙 रात — आयरा की डायरी
> "कुछ सच्चाइयाँ
सिर्फ तब सामने आती हैं
जब हम सवाल पूछने की हिम्मत करें।
और जवाब…
अगर दिल से आए, तो दूरी नहीं रह जाती।
आज शायद…
हमारी कहानी का पहला सच लिखा गया।"
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(भाग 4 समाप्त)
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कैसा लगा आपको यह भाग? ❤️
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❤️ भाग 5: एहसासों की सरहद — कुछ कहा, कुछ छुपाया
दिल के कुछ कोने ऐसे होते हैं,
जहाँ शब्द जाने से डरते हैं…
और वहां सिर्फ एहसास रहते हैं।
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🌞 सुबह की आदतें — अब थोड़ा बदल चुकी हैं
अब हर सुबह की शुरुआत एक गुड मॉर्निंग मैसेज से होती है —
कभी आयरा भेजती है,
कभी अभिराज।
बातें अब सिर्फ मुलाकात तक सीमित नहीं रहीं —
अब दिनभर की छोटी-छोटी चीजें…
एक-दूसरे से शेयर करना आदत बन गई है।
"आज लंच में दाल बहुत बोरिंग थी..." — आयरा लिखती।
"मेरे ट्रेनर ने आज दो घंटे एक्स्ट्रा ट्रेनिंग करवाई…" — अभिराज जवाब देता।
उनकी बातचीत में नाम नहीं, अपनापन बोलता था।
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🏸 स्टेडियम — पहली बार जब आयरा ने उसे "उसकी दुनिया" में देखा
"कल सुबह मेरी प्रैक्टिस है… आओगी?"
"वहाँ?" — आयरा चौंकी।
"हाँ। पब्लिक नहीं होगी। बस मैं, मेरा कोच, और एक खाली कोर्ट।"
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अगले दिन, सुबह 7:15 बजे
वो पहली बार उस कोर्ट में कदम रखती है — जहाँ देश की निगाहें अक्सर टिकी रहती हैं।
वहाँ सिर्फ अभिराज था।
ब्लैक टी-शर्ट, शॉर्ट्स में — पसीने से लथपथ…
पर हर मूवमेंट में फोकस, डिसिप्लिन और जुनून।
वो उसे खेलते हुए देखती रही — बिना पलकें झपकाए।
> “ये इंसान… नाम से बड़ा नहीं है,
अपनी मेहनत और आत्मा से बड़ा है।” — उसने मन ही मन सोचा।
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🌧️ बारिश, और एक छत के नीचे खामोशियाँ
प्रैक्टिस के बाद बाहर बारिश शुरू हो गई।
दोनों कैंटीन की टीन शेड के नीचे खड़े हो गए।
ठंडी हवा, गरम कॉफी… और कुछ न कह पाने की बेचैनी।
"कभी-कभी लगता है…" — अभिराज ने कहा,
"ज़िंदगी गोल्स, टूर्नामेंट्स और कैमरों के बाहर भी कुछ होती है।"
"जैसे?" — आयरा ने पूछा।
"जैसे… जब किसी से बात करते हुए टाइम पता ही ना चले।
या कोई तुम्हारी आंखों में देखे, और तुम भूल जाओ कि तुम कोई सेलिब्रिटी हो।
वहाँ… शायद तुम हो।"
आयरा ने देखा… वो मज़ाक नहीं कर रहा था।
> पर वो कुछ नहीं बोली।
सिर्फ एक मुस्कराहट थी — जो सब कह चुकी थी।
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🫣 सान्या का सवाल — और आयरा का सच
ऑफिस में अगली दोपहर
सान्या ने सिर घुमाकर पूछा —
"तू अब भी कहेगी ये सिर्फ दोस्ती है?"
"अगर मैं कहूँ कि… मुझे लगता है मुझे उससे प्यार हो रहा है?"
सान्या ने हल्के से उसकी हथेली पकड़ी।
> "तो कह दे… उससे, खुद से… लेकिन झूठ मत बोल।
वरना तू खुद से भी दूर हो जाएगी।"
"मगर… अगर वो सिर्फ दोस्ती चाहता हो?"
"तो कम से कम तू जान पाएगी —
तू डर के पीछे नहीं, दिल के साथ थी।"
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🚘 लॉन्ग ड्राइव — जब लफ़्ज़ रास्ते में रह जाते हैं
शाम को अभिराज ने कॉल किया —
"चाय का मन है… क्या चलोगी? थोड़ा बाहर?"
"बिलकुल।" — आयरा बिना कुछ पूछे तैयार हो गई।
दोनों एक शांत सड़क पर लॉन्ग ड्राइव पर निकले।
म्यूज़िक धीमा बज रहा था —
कुछ रेट्रो, कुछ धड़कनों जैसा।
> “आयरा…” — अभिराज ने गाड़ी चलाते हुए कहा,
“मुझे कुछ कहना था…”
उसकी आवाज़ गहरी थी, लेकिन कुछ थम गई-सी।
आयरा चुपचाप उसकी तरफ देखती रही।
> “मैं…” — और तभी उसका फोन बजा।
“कोच की तबीयत खराब है… आपको अभी अस्पताल आना होगा।”
उसने कॉल काटा, हैंडब्रेक खींचा।
"आयरा… मुझे जाना होगा। सॉरी।"
"हाँ, बिल्कुल… जाओ।" — उसने धीमे से कहा।
वो उतरा, दरवाज़ा बंद किया और गाड़ी लेकर चला गया।
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🌙 अधूरी बात — दिल में ठहरी हुई
आयरा वहीं सड़क किनारे खड़ी रही।
उसके कानों में अब भी वो शब्द गूंज रहे थे —
> “आयरा… मुझे कुछ कहना था…”
पर जो कहा नहीं गया…
वही अब सबसे ज़्यादा गूंज रहा था।
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📔 रात की डायरी — कुछ अधूरा सा लिखा
> "शब्दों से पहले… एहसास आ जाते हैं।
और कुछ बातें…
जब अधूरी रह जाएं…
तब ज़्यादा गहरी बन जाती हैं।
आज उसकी आँखों में जो था,
शायद वही मेरा जवाब था।
लेकिन…
क्या अगली बार वो पूरा कह पाएगा?"
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(भाग 5 समाप्त)
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अब कहानी एक खूबसूरत मोड़ पर है —
जहाँ इश्क है, लेकिन इज़हार नहीं।
जहाँ पल साथ हैं, मगर कुछ अधूरा रह गया है।
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❤️ भाग 6: बात जो दिल ने कही — इश्क़ अब साफ है
कभी-कभी...
कुछ बातें पूरी कहने के लिए
एक पल नहीं,
एक सुकून चाहिए।
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🏥 रात का सच — अस्पताल की खामोशियाँ
अभिराज भागते हुए अस्पताल पहुँचा।
कोच ICU में थे — हार्ट अटैक की खबर ने जैसे उसकी सारी स्थिरता तोड़ दी थी।
वो वही कोच थे जिन्होंने उसे पहली बार रैकेट पकड़ाया था,
पहली जीत पर गले लगाया था,
और हारने पर चुपचाप सिर सहलाया था।
रात भर वो वहीं बैठा रहा — वेंटिलेटर के सामने कुर्सी पर।
न कोई शोहरत, न कैमरा…
सिर्फ एक शिष्य की चिंता।
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🌃 उस ओर — एक और बेचैनी
आयरा अपनी खिड़की के पास बैठी थी।
फोन बार-बार देखा। कोई कॉल नहीं।
उसका मन बहुत कुछ कहना चाहता था,
पर शब्द नहीं मिल रहे थे।
> "क्या वो ठीक होगा?"
"क्या मैं उसे मैसेज करूँ?"
“या शायद मैं बस… इंतज़ार करूँ।”
सुबह होने तक उसने एक छोटा-सा मैसेज भेजा —
> “उम्मीद है आप और सर दोनों ठीक हों।”
कुछ सेकंड बाद ही जवाब आया —
> “ठीक हूँ… सुबह मिल सकते हैं?”
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🌅 अगली सुबह — पहली मुलाकात, बिना वजह
अस्पताल के बाहर हल्की सुबह की रोशनी थी।
आयरा सामने खड़ी थी — हाथ में कॉफी का कप।
अभिराज थका हुआ दिख रहा था, लेकिन जैसे ही उसने आयरा को देखा,
उसके चेहरे पर वही सुकून भरी मुस्कान लौट आई।
“तुम आईं…”
“तुम्हें लगा मैं नहीं आऊँगी?” — उसने हल्के से मुस्कराते हुए कहा।
“नहीं… डर यही था कि शायद अब कोई बात अधूरी ही रह जाए।”
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☕ अस्पताल का कैफेटेरिया — जब अधूरी बात पूरी होती है
दोनों एक कोने की टेबल पर बैठे।
कॉफी के भाप के साथ, एक खामोशी उठी।
फिर वही अधूरी बात… अभिराज ने शुरू की।
> “उस दिन… जब हम कार में थे,
मैं कुछ कहने वाला था।”
> “हाँ, और फिर तुम्हारा फोन आ गया।”
आयरा ने सिर झुकाते हुए कहा।
“लेकिन अब…
वो बात अधूरी नहीं रहनी चाहिए।”
उसकी आवाज़ धीमी, लेकिन साफ थी।
> “मैं तुम्हें सिर्फ पसंद नहीं करता, आयरा।
मैं तुम्हारे साथ अपने सुकून को पहचानने लगा हूँ।
जिस तरह से तुम मेरी आँखों में देखती हो…
उसमें मैं खुद को कम नहीं, साफ देख पाता हूँ।”
आयरा का दिल एक पल को थम गया।
> “तुम्हें पता है…” — उसने कहा,
“मैंने उस दिन तुम्हारी आँखों में ये बात देखी थी।
पर अब जब तुमने कहा…
तो अब ये एहसास मेरा भी हो गया है।”
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🤝 एक नया रिश्ता — जो नाम से नहीं, एहसास से बंधा
दोनों के बीच कोई बड़ा इज़हार नहीं हुआ।
ना फूल, ना आंसू, ना डायलॉग।
बस दो कप कॉफी,
एक गहरी नज़र…
और एक नर्म मुस्कान।
अभिराज ने धीरे से उसकी उँगलियों को छुआ —
आयरा ने कोई विरोध नहीं किया।
> “डर नहीं लगता अब?” — उसने पूछा।
> “नहीं…” — अभिराज ने जवाब दिया,
“क्योंकि अब तुम हो।”
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🌤️ वापसी की राह — अब सब कुछ हल्का लगने लगा
अस्पताल से बाहर निकलते वक्त,
मौसम साफ था — बादल छँट चुके थे।
सड़कें भीगी थीं, लेकिन मन में एक नई धूप उतर रही थी।
आयरा और अभिराज साथ चल रहे थे —
शब्द कम, लेकिन समझ पूरी।
> "हमने नाम नहीं दिया इस रिश्ते को,
लेकिन अब ये रिश्ता कहीं खो नहीं सकता।
क्योंकि जब कोई तुम्हें देख कर शांत हो जाए…
तो समझो —
मोहब्बत वहीं से शुरू होती है।"
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🌙 रात की डायरी — जब डर की जगह यकीन ने ले ली
> "आज पहली बार…
किसी ने मुझे पूरे सुकून से देखा।
और मैंने खुद को उसमें खोने से
डर महसूस नहीं किया।
शायद प्यार डर में नहीं…
यकीन में पलता है।
और आज…
मैं उस यकीन की पहली सीढ़ी पर हूँ।
तुम्हारे साथ।"
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(भाग 6 समाप्त)
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अब उनकी कहानी में एक नई स्पष्टता आ चुकी है —
अब दोनों को पता है कि वो एक-दूसरे के लिए क्या हैं।
अभी नाम नहीं है, पर रिश्ते की पहचान बन चुकी है।
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❤️ भाग 7: वो पहली डेट — जब प्यार मुस्कराया
कुछ रिश्ते
नाम से नहीं,
साथ बिताए छोटे-छोटे पलों से बनते हैं।
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🌤️ सुबह — जब धड़कनों ने कपड़े चुने
आयरा अलमारी के सामने खड़ी थी —
कपड़े, फिर से कपड़े, फिर से वही कन्फ्यूजन।
> “ये ड्रेस बहुत ज्यादा तो नहीं?”
“ये कुछ कम तो नहीं?”
“मुझे तो वैसे भी कुछ समझ नहीं आता…”
आखिरकार उसने एक पीली फ्लोरल कुर्ती पहनी — हल्की, पर प्यारी।
हाथ में घड़ी, कान में छोटे झुमके, और दिल में तेज़ धड़कनें।
उधर अभिराज, कैजुअल ब्लैक टीशर्ट और नीली जीन्स में तैयार हो चुका था।
आइने में देखा — एक हल्की मुस्कान आई।
> “आज सिर्फ खेल नहीं,
आज दिल भी साथ ले जाना है।”
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📱 एक मैसेज, जो सुबह को खास बना गया
> “आ गई मैं… बाहर हूँ।”
अभिराज बाहर निकला, और आयरा को देखकर कुछ सेकंड चुप रह गया।
“क्या देख रहे हो?” — आयरा हँसी।
“बस… सोच रहा हूँ कि इतनी धूप में भी तुमसे ज़्यादा कुछ नहीं चमकता।”
आयरा ने नज़रें फेर ली — मुस्कराते हुए।
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🚶♂️🚶♀️ पहला पड़ाव — पुरानी गली, नई बातें
उन्होंने तय किया था कि ये ‘डेट’ प्लान नहीं होगी।
बस जहाँ दिल कहे, वहाँ जाएंगे।
पहला स्टॉप बना — पुरानी किताबों वाला एक स्ट्रीट बुक कैफे।
दीवारों पर कविताएं, अंदर धीमा सा गिटार म्यूज़िक, और कोनों में पुराने कागज़ों की महक।
> “तुम कितनी किताबें पढ़ती हो?” — अभिराज ने पूछा।
> “किताबें नहीं, लोगों की आँखें ज़्यादा पढ़ती हूँ।” — आयरा ने जवाब दिया।
> “तो मेरी आँखों में क्या लिखा है?”
> “शायद… एक भूले-बिसरे पन्ने का इंतज़ार।”
“और तुम्हारी?”
“एक अधूरी कविता।”
दोनों एक-दूसरे को देखकर हँस दिए।
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🥪 स्ट्रीट फूड और सड़क पर बैठी ख़ुशियाँ
अगला स्टॉप — स्ट्रीट फूड।
पानीपुरी, चटपटी आलू चाट, और एक बड़ा इमली वाला गोलगप्पा… जिसे खाकर अभिराज का चेहरा लाल हो गया।
“तुम… लोग… ये कैसे खा लेते हो?” — वह पानी खोजता हुआ बोला।
“दिल से खाते हैं। और… थोड़ी आँसू वाली बातें ही तो स्वाद लाती हैं।” — आयरा हँसी।
एक-दूसरे की हँसी में दोनों खुद को भूल गए।
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📸 एक मोड़ — तस्वीरों वाली गली
एक पुरानी तंग सी गली थी — रंगीन दरवाज़े, पुरानी दीवारों पर पेड़ों की छाँव।
अभिराज ने कहा —
> “तुम यहाँ खड़ी हो जाओ… मैं एक तस्वीर लेना चाहता हूँ।”
“तुम्हें फोटोग्राफी भी आती है?”
“नहीं, बस तुम्हें याद रखना आता है।”
क्लिक।
वो तस्वीर — हल्की धूप में मुस्कराती आयरा…
शायद आने वाले सालों की सबसे कीमती तस्वीर बन गई।
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🌇 एक छोटी सी बात — जो दिल छू गई
चलते-चलते, आयरा ने कहा —
> “पता है… जब छोटी थी, सोचती थी कि मेरा Prince Charming घोड़े पर नहीं, स्कूटर पर आएगा।
कुछ ऐसा… जो मुझे रास्ता न दिखाए, बस साथ चले।”
अभिराज रुका, थोड़ा झुका और मुस्कराया —
> “मेरे पास स्कूटर नहीं है,
पर अगर साथ चाहिए…
तो मैं हर रास्ते पर तुम्हारे साथ चल सकता हूँ।”
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🤝 वो पहला टच — और एक गूंगी कबूलियत
सड़क पार करते वक़्त, आयरा अचानक ठिठकी।
गाड़ियाँ आ-जा रही थीं… वो डर गई।
अभिराज ने तुरंत उसका हाथ थाम लिया।
वो दोनों चुप हो गए… लेकिन हाथ अब भी जुड़ा हुआ था।
कोई कुछ नहीं बोला,
पर पहली बार उनका स्पर्श सब कुछ कह गया।
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🌙 विदा — और अगली बार का वादा
शाम ढल चुकी थी।
दोनों वापस उसी जगह पहुँचे जहाँ सुबह से ये सफर शुरू हुआ था।
“अगर ये पहली डेट थी…” — आयरा ने धीरे से कहा,
“तो अगली कब?”
अभिराज ने मुस्कराकर कहा —
> “जब भी तुम मेरा हाथ फिर से थामना चाहो…
मैं वहीं मिल जाऊँगा।”
आयरा मुस्कराई, और बिना कुछ कहे अपनी उँगलियाँ उसकी उँगलियों में छोड़ आई।
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📔 रात की डायरी — जब दिन दिल से निकलता है
> “आज का दिन…
किसी परीकथा जैसा नहीं था।
पर वो सच्चा था,
मुस्कराहटों से भरा,
और एक स्पर्श से पूरा।
शायद प्यार
ऐसे ही…
हौले से हमारे पास आता है।”
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(भाग 7 समाप्त)
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अब दोनों के बीच एक साफ और प्यारा सा रिश्ता बन चुका है।
नाम नहीं लिया गया, लेकिन दिल अब पहचान चुका है।
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❤️ भाग 8: जब दुनिया बीच में आई — और उसने थामे रखा
> **“जब भीड़ तुम्हारे खिलाफ हो,
और एक इंसान तुम्हारा हाथ थामे रखे…
तो समझो… वो सिर्फ साथ नहीं,
तुम्हारी दुनिया बन गया है।”**
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📸 अचानक सबके सामने — एक तस्वीर, जो वायरल हो गई
कल की वो मासूम डेट,
वो गली की तस्वीर,
वो हँसी — अब इंटरनेट की ज़ुबान बन चुकी थी।
> “Who is the mystery girl with national heartthrob Abhiraj Malhotra?”
“Is this the beginning of a new love story?”
“Fans curious about girl seen with star shuttler…”
आयरा ने जैसे ही फोन खोला —
उसका चेहरा, उसकी आँखें… हर जगह।
ऑफिस के डेस्क से फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं —
> “वही लड़की है न?”
“यार, कितनी नॉर्मल दिखती है…”
“Lucky… और वो तो सेलिब्रिटी है!”
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🧠 उथल-पुथल — जब डर ने जगह ले ली
शाम तक, आयरा ने खुद को क्वाइट ज़ोन में डाल दिया।
फोन साइलेंट।
वॉट्सऐप ब्लू टिक ऑफ।
और दिल… बहुत तेज़ धड़कता हुआ।
> “मैं इस सबके लिए नहीं बनी।”
“मैं उसके लिए भी शायद नहीं बनी…”
“क्या मैं उसके नाम के लायक हूँ?”
उसने एक मैसेज टाइप किया —
> “हमें थोड़ा वक्त लेना चाहिए…”
लेकिन भेजने से पहले ही कॉल आ गया —
अभिराज का।
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🛵 “नीचे आओ, अभी…”
“तुम्हें लगा मैं ये सब टेक्स्ट पर समझ लूँगा?” —
उसने कहा, जब आयरा दरवाज़ा खोलकर बाहर आई।
अभिराज का चेहरा गंभीर था —
पर आँखें… वो बस उसे देख रही थीं, न कि उसका डर।
> “आओ, कहीं चलते हैं।”
“अब?”
“हाँ। अभी।”
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🌌 एक पुराना टेरेस — और कुछ अनकहा एहसास
वो दोनों एक पुरानी बिल्डिंग की छत पर आ गए।
शहर की भीड़ की आवाज़ वहाँ तक नहीं पहुँचती थी।
सिर्फ हवा… और एक गहराई।
आयरा चुप थी।
अभिराज सामने दीवार से टिक कर खड़ा था।
> “कह दो… जो भी कहना है।”
“मैं… बस…”
“डर गई?” — उसने धीरे से पूछा।
आयरा की आँखें भर आईं।
> “तुम इतने बड़े हो… सब तुम्हें जानते हैं।
मैं सिर्फ एक आम लड़की हूँ… जिसकी तस्वीरें अब मीम्स बन रही हैं।
मुझमें हिम्मत नहीं है, अभिराज।
तुमसे दूर रहना आसान है…
बजाए इसके कि मैं रोज़ खुद को तुम्हारे नाम से जज होते देखूँ।”
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🧡 उसने थाम लिया… फिर से
अभिराज ने उसके पास आकर उसका हाथ थाम लिया।
> “तुम मेरी दुनिया की नहीं हो?”
“तुम ही तो वो हो… जहाँ से मेरी असली दुनिया शुरू होती है।”
“मैं तुम्हें दुनिया से छुपा नहीं रहा था, आयरा…
मैं तुम्हें दुनिया के शोर से बचा रहा था।”
> “अगर कोई तुम्हें जज करता है…
तो वो मुझसे दूर हो जाता है, न कि तुम्हें मुझसे।”
उसके लफ्ज़ सीने से निकले हुए सच थे।
वो लड़की जो खुद को अकेला समझ रही थी,
अब उसके सामने खड़ा लड़का उसे उसकी पूरी पहचान दे रहा था।
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🤍 खामोश अपनापन — एक सिर, एक कंधा
आयरा कुछ नहीं बोली।
उसने बस धीरे से खुद को आगे बढ़ाया —
और अपना सिर अभिराज के कंधे पर रख दिया।
वो हल्का सा कांपा —
फिर मुस्कराया।
> "ये… वही जगह है
जहाँ कोई डर नहीं होता।
जहाँ कोई शोर नहीं पहुँचता।
जहाँ सिर्फ तुम और मैं होते हैं।"
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📔 रात की डायरी — जब उसने फिर से खुद को देखा
> “आज पहली बार
मैं किसी की दुनिया नहीं बनी,
बल्कि किसी ने मुझे
अपनी दुनिया कह कर थाम लिया।
शायद,
प्यार नाम नहीं मांगता,
बस,
वो एक भरोसे भरा कंधा चाहता है…
जो दुनिया के बीच भी
हमें कमज़ोर नहीं पड़ने देता।”
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(भाग 8 समाप्त)
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अब दोनों का रिश्ता दुनिया की नजरों में भी मजबूत होता दिख रहा है —
जहाँ इश्क़ सिर्फ मीठा नहीं, मजबूत भी है।
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❤️ भाग 9: जब रिश्ता गहराने लगा — दिल से घर तक
> **“कभी-कभी किसी की उँगली पकड़ते ही,
ज़िंदगी की सारी दिशाएँ मिल जाती हैं।
और फिर समझ आता है…
ये सिर्फ साथ नहीं,
एक सफ़र की शुरुआत है।”**
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🏠 घर में एक मुस्कुराती लड़की — और माँ की नजर
आयरा आजकल कुछ अलग हो गई थी।
सुबह बिना अलार्म के उठती।
कॉफ़ी बनाते हुए फोन देखती रहती।
और कभी-कभी खुद से मुस्कुराने लगती।
माँ देख रही थीं… ध्यान से, चुपचाप।
> “कौन है?” — एक दिन माँ ने सीधे पूछा।
“क्या?” — आयरा थोड़ा सकपका गई।
> “वो… जिसके नाम पर ये मुस्कान अब रोज़ की चीज़ बन गई है?”
आयरा चुप रही।
फिर धीरे से सिर झुका दिया।
माँ पास आईं, उसकी हथेली पकड़कर बोलीं —
> “अगर वो तुझे मुस्कुराना सिखा रहा है…
तो मैं उसे मिलने से मना नहीं करूँगी।
बस… वो तेरी आँखों में आँसू न लाए।”
आयरा की आँखें भर आईं।
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🍰 पुरानी बेकरी — जब यादें साझा हुईं
अगले दिन, अभिराज ने कहा —
> “आज एक खास जगह चलो… जहाँ सिर्फ अपने लोग ले जाए जाते हैं।”
वो दोनों एक पुरानी सी बेकरी में पहुँचे — दीवारें हल्के पीले रंग की, काउंटर पर पुराने लोग, और कोनों में सुकून।
एक छोटा सा टेबल था, खिड़की के पास।
> “मैं यहाँ हर साल अपनी माँ के साथ आता था।”
“अब वो नहीं आ पाती… पर मैं आता हूँ।
और आज… तुम्हें लाया हूँ।”
आयरा की आँखें उससे हट नहीं रही थीं।
> “क्यों?”
“क्योंकि तुम अब सिर्फ मेरी दुनिया नहीं हो…
मेरी आदत बन रही हो।”
आयरा ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया।
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💬 दिल से निकली बात — जब उसने कहा: "माँ से मिलो…"
बेकरी से बाहर निकलते हुए अभिराज रुक गया।
> “आयरा…”
“हम्म?”
“तुम्हें मेरी माँ से मिलना चाहिए…”
वो ठिठक गई।
कुछ पल चुप रही।
> “इतनी जल्दी?”
“तुम मेरे बारे में जानती हो,
मैं तुम्हारे बारे में जानता हूँ…
अब उन्हें भी तुम्हें जानना चाहिए।
तुम सिर्फ ‘कोई’ नहीं हो, आयरा।”
उसकी आवाज़ में एक स्थिर विश्वास था।
आयरा ने कुछ नहीं कहा।
बस हाँ में सिर हिला दिया —
पर उसका दिल अब तेज़ धड़कने लगा था।
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📔 रात की डायरी — जब उसने दिल से लिखा
> “मैं अब उससे नहीं डरती।
अब मैं उस रिश्ते में अपने पंख देखती हूँ।
माँ को बताना आसान नहीं था…
पर अब लगता है —
शायद मेरा प्यार गलत नहीं था।
आज जब उसने कहा ‘माँ से मिलो’
तो लगा —
अब मैं किसी कहानी में नहीं,
अपनी ज़िंदगी की असली शुरुआत में हूँ।”
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📞 भाग का प्यारा समापन — एक कॉल, जो आगे की राह खोलता है
रात को फोन बजा।
अभिराज:
> “तो? क्या सोच रही हो?”
आयरा (धीरे से):
> “क्या तुम्हारी माँ मुझे पसंद करेंगी?”
अभिराज (हँसते हुए):
> “वो मुझे पसंद करती हैं…
और मैं तुम्हें।
इसका मतलब साफ है —
उन्हें तुम्हें पसंद करना ही पड़ेगा।”
दोनों हँस पड़े।
और उस हँसी में…
एक घर बसने की उम्मीद गूंजने लगी।
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(भाग 9 समाप्त)
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❤️ भाग 10: जब उसकी माँ ने मेरी आँखों में मुझे पढ़ा
> **“माँ की नज़रों में कोई तस्वीर नहीं होती…
बस वो चेहरा होता है,
जो उनके बेटे के दिल में जगह ले चुका होता है।”**
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🪞 घबराहट, आईना और वही सवाल
आयरा आज बहुत नर्वस थी।
कपड़े चार बार बदले।
आईने में खुद को तसल्ली देने की कोशिश की… पर कुछ भी सही नहीं लग रहा था।
> “ये बहुत सिंपल है?”
“ये बहुत ज़्यादा है?”
“क्या मैं उससे कम लगूँगी?”
फोन बजा —
अभिराज का कॉल।
> “गुलाबी सूट पहन रही हो न?”
“तुम्हें कैसे पता?”
“क्योंकि तुम्हारे जैसा कुछ भी सिंपल नहीं लग सकता।”
आयरा की घबराहट थोड़ी पिघल गई।
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🏠 पहली मुलाक़ात — दरवाज़े के उस पार
अभिराज ने दरवाज़ा खोला —
आयरा के साथ माँ के सामने पहुँचा।
माँ — साड़ी में, सादा सा चेहरा, पर आँखों में वही गहराई…
जो बिना कुछ कहे सब समझ लेती है।
आयरा ने झुककर नमस्ते किया।
हाथ में एक छोटा सा डिब्बा था — माँ के लिए homemade लड्डू।
> “आपके लिए कुछ मिठा…”
माँ ने मुस्कराकर कहा —
“शुक्रिया… और हाँ, तुम्हारी मुस्कान उससे ज़्यादा मीठी लग रही है।”
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☕ चाय के साथ — सवाल जो सीधे दिल में उतरे
बैठक में तीन कप चाय थे।
अभिराज बीच में, और दोनों ओर दो औरतें —
जिनके बीच कोई शब्द नहीं, बस हल्की हलचल थी।
माँ ने पूछा —
> “अभिराज की सबसे खराब आदत क्या लगी तुम्हें?”
आयरा मुस्कराई —
> “ये बात कि ये कुछ ज़्यादा ही शांत रहते हैं…
और मैं हर बात पर ओवरथिंक कर लेती हूँ।”
“तो कभी-कभी लगता है — क्या मैं ही ज़्यादा हूँ?”
माँ हँसी —
> “मतलब एक का शोर दूसरे की शांति बन जाती है।
अच्छा है।”
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🤝 एक स्पर्श — जो आशीर्वाद जैसा लगा
माँ ने अचानक आयरा की हथेली अपने हाथ में ली।
> “पल दो पल में बहुत कुछ समझ आता है।
और मैं माँ हूँ…
नज़रें सब बयाँ कर देती हैं।”
आयरा चुप थी… लेकिन उसकी आँखें अब भीग चुकी थीं।
> “मैं डरती थी… कि मैं उसके नाम के लायक नहीं हूँ।”
माँ ने कहा —
“नाम किसी और का नहीं होता बेटा,
नाम दो लोग मिलकर बनाते हैं।
और तुम दोनों अब वो कर रहे हो।”
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🍲 माँ की रसोई — जब अपनापन खौलने लगा
माँ ने कहा —
> “खीर बनानी है आज… अभिराज की पसंद की।
तुम साथ दो?”
आयरा मुस्कराई —
> “ज़रूर।”
वो रसोई में घुसी, माँ ने सब कुछ समझाकर दिया।
बर्तन, चम्मच, दूध, इलायची… और रिश्ते की पहली ख़ुशबू।
अभिराज थोड़ी देर बाद बाहर से देख रहा था —
उसकी माँ और उसकी आयरा,
एक रसोई में, एक मुस्कान में।
> “दो सबसे ज़रूरी औरतें…
एक ही जगह।
शायद अब मैं थोड़ा पूरा लग रहा हूँ।” — उसने मन में सोचा।
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📔 रात की डायरी — जब डर के आगे विश्वास होता है
> “आज मैंने पहली बार
अपने रिश्ते को सिर्फ अपने दिल में नहीं…
किसी और की आँखों में भी देखा।
और वो नज़र
जिसने कभी उसे जन्म दिया था…
आज मुझे अपनाने लगी है।”
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☎️ अंत — एक कॉल, एक वादा
रात को अभिराज का कॉल आया।
> “तुम्हें पता है माँ ने क्या कहा?”
“क्या?”
“वो बोलीं —
‘तू इस बार सही लाया है… इस बार दिल से।’”
आयरा चुप रही।
उसके गालों पर मुस्कान, और आँखों में शांति थी।
> “अब अगला पड़ाव?” — आयरा ने पूछा।
अभिराज:
> “अब जो रिश्ता दिल और घर में है,
क्या उसे पूरी दुनिया को न बताएं?”
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(भाग 10 समाप्त)
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❤️ भाग 11: जब उसने दुनिया के सामने मेरा नाम लिया
> **“कुछ रिश्ते
जब दुनिया के शोर में भी
उतने ही साफ़ सुनाई दें…
तो समझो — वो सिर्फ मोहब्बत नहीं,
एक साहस है।”**
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🏆 स्पोर्ट्स एक्सीलेंस अवॉर्ड — भीड़, कैमरे और एक चेहरा
शाम को शहर के सबसे बड़े स्टेडियम में
Sports Excellence Awards का आयोजन था।
चारों ओर मीडिया, कैमरे, ग्लैमर —
और मंच पर Abhiraj Malhotra को सम्मानित किया जाना था।
आयरा, वीआईपी सेक्शन में एक किनारे बैठी थी —
सामने चमकती रौशनी, सैकड़ों चेहरे,
लेकिन उसकी नज़रें सिर्फ एक शख़्स पर थीं।
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🎙️ “क्या कोई है जिससे आप शुक्रगुज़ार हैं?”
एंकर ने मुस्कराते हुए पूछा —
> “Abhiraj, इतने बड़े सफर में
किसे आप सबसे बड़ा थैंक्स देना चाहेंगे?”
पूरा स्टेडियम शांत हो गया।
अभिराज ने माइक थामा —
> “मैं अपनी माँ को धन्यवाद देना चाहता हूँ…
और एक लड़की को,
जो इन दिनों मेरी सबसे बड़ी ताक़त बन गई है।
जो न कैमरे चाहती है,
न तारीफ़ें —
बस साथ।”
> “उसका नाम…
आयरा है।”
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💡 स्पॉटलाइट — और दिल की धड़कन
स्पॉटलाइट सीधी आयरा पर पड़ी।
वो सकपकाई।
सब लोग मुड़कर उसे देखने लगे।
उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी —
लेकिन आँखों में नमी थी।
> “उसने मेरा नाम लिया…
इस दुनिया के सामने।
और आज पहली बार लगा —
मेरा नाम… किसी के लिए सबसे कीमती हो गया है।”
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📱 सोशल मीडिया — तारीफ़ें भी, सवाल भी
अवॉर्ड के बाद
#AbhirajAndAyra ट्रेंड करने लगा।
> “OMG, Abhiraj is taken?”
“Who is Ayra?”
“She’s cute but not celebrity material…”
“True love is real after all.”
कुछ ट्वीट्स प्यार भरे थे,
तो कुछ… जलन से भरे।
आयरा ने एक-दो कमेंट्स पढ़े — और स्क्रीन बंद कर दी।
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🤝 अभिराज का जवाब — दुनिया के लिए, लेकिन सिर्फ उसके लिए
रात को दोनों बाहर लॉन में बैठे थे।
चुप्पी थी — सिर्फ हवा और दिल की आवाज़।
> “मैं… शायद इसके लिए तैयार नहीं थी।” — आयरा ने कहा।
अभिराज ने उसका हाथ थाम लिया।
> “पर मैं था।”
“तुम्हें लगता है मैं तुम्हारे लिए सिर्फ चुपके से मुस्कराना चाहता हूँ?”
“नहीं आयरा —
मैं तुम्हें अपनी दुनिया में वैसे ही शामिल करना चाहता हूँ
जैसे तुम मेरी रूह में हो —
बिना हिचक, बिना डर।”
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📸 एक तस्वीर — और पहली पब्लिक पोस्ट
कुछ देर बाद,
अभिराज ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर अपलोड की —
वो तस्वीर जिसमें आयरा उसकी तरफ देख रही थी
और अभिराज सिर्फ मुस्करा रहा था।
कैप्शन:
> _“She’s the reason behind my calm.
And the name I’ll never hide.
#MyStory #MyStrength”_
आयरा ने कमेंट किया:
> “अब डर नहीं लगता…
जब हाथ थामने वाला तुम हो।”
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📔 रात की डायरी — जब उसने खुद को पहचाना
> “पहले मैं खुद को
उसकी दुनिया से बाहर समझती थी।
पर आज…
उसने पूरी दुनिया को बता दिया —
कि मैं उसकी हूं।
अब नाम लेने की ज़रूरत नहीं —
क्योंकि उसकी आवाज़ में
मेरा वजूद बस गया है।”
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(भाग 11 समाप्त)
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❤️ भाग 12: जब भीड़ से दूर… हम बस हम रह गए
> **“कभी-कभी ज़िंदगी
सिर्फ एक कप चाय,
भीगी हुई शाम,
और किसी अपने की बाँहों में सिमट जाने की चाह होती है।”**
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🚗 “चलो… कहीं भाग चलते हैं”
पिछले कुछ दिनों से आयरा के चेहरे पर वो चंचल मुस्कान कम हो गई थी।
सोशल मीडिया, फोटोज़, कमेंट्स, शक की नज़रों ने
उसे चुप सा कर दिया था।
एक शाम, जब वो दोनों साथ एक कॉफी शॉप में बैठे थे —
अभिराज ने बिना कुछ कहे उसका हाथ थामा।
> “चलो… दो दिन के लिए गायब हो चलते हैं।”
“कहाँ?”
“जहाँ न मैं Abhiraj हूँ… न तुम Ayra Malhotra बनने की सोच रही हो।
बस हम हों… सिर्फ हम।”
आयरा ने उसे देखा —
शांत आँखें, लेकिन उनमें शरारत थी।
वो मुस्कराई, और बोली —
> “ठीक है। पर ड्राइव मैं करूँगी।”
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🚘 रास्ता — जब नज़ारे भी मुस्कुरा उठते हैं
सुबह की धूप में उनकी कार दिल्ली से बाहर निकल चुकी थी।
म्यूजिक बज रहा था — कभी अंग्रेज़ी, कभी पुराने ग़ज़लें।
आयरा बार-बार गाने बदल रही थी।
अभिराज हँसते हुए बोला —
> “तुम chaos में भी adorable हो, seriously।”
“और तुम boring में भी charming लगते हो।” — आयरा ने मुस्कुराकर जवाब दिया।
सड़क पर दूर-दूर तक हरियाली थी,
और उनके बीच… एक नई सहजता उग रही थी।
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🌲 एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा
आखिरकार, दोपहर तक वो उत्तराखंड के एक छोटे कस्बे में पहुँच गए —
नाम: कौसानी।
जहाँ न कोई भीड़, न कैमरे… सिर्फ शांति।
एक छोटा सा लकड़ी का गेस्टहाउस —
दो कमरे, एक बालकनी, और सामने पहाड़ों का सीन।
> “यहाँ कोई हमें नहीं जानता।” — आयरा बोली।
अभिराज:
> “पर मैं अब तुम्हें जानता हूँ — और यही सबसे ज़रूरी है।”
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🌧️ शाम — बारिश, भागकर छुपना और एक कपड़ा शेयर करना
शाम को दोनों कस्बे में घूम रहे थे,
तभी तेज़ बारिश शुरू हो गई।
भीगते हुए वो दोनों पास के एक ढाबे में भागे।
बाल भीगे हुए, कपड़े भी।
अभिराज ने अपनी जैकेट उतारी और आयरा को ओढ़ा दी।
> “अब तुम ठंड से नहीं,
सिर्फ मेरी बातों से काँपो।” — उसने चुटकी ली।
ढाबे वाले ने गरम चाय दी —
एक कप, दो हाथ।
बारिश की आवाज़, चाय की गर्मी,
और उनके बीच… एक अलग ही गहराई पिघल रही थी।
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🌌 रात — जब दिल ने दिल से बात की
रात को दोनों गेस्टहाउस की छत पर लेटे थे —
नीला आसमान, तारे और सिर्फ खामोशी।
आयरा ने धीरे से कहा —
> “तुम्हारे साथ
मैं पहली बार खुद से मिलती हूँ।
यहाँ न कोई रोल है, न कोई परिभाषा…
बस मैं हूँ, और तुम।”
अभिराज ने उसकी उँगलियाँ थामीं —
> “और मैं पहली बार
किसी इंसान के साथ
शांत हूँ… पूरा हूँ।”
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📔 रात की डायरी — जब दूरी भी नज़दीकी बन गई
> “आज मैंने जाना —
भीड़ से दूर,
पहचान से परे,
जब कोई तुम्हें सिर्फ तुम्हारे होने के लिए चाहता है…
तो वो मोहब्बत नहीं,
मंज़िल होती है।”
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(भाग 12 समाप्त)
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❤️ भाग 13: जब एहसास नाम माँगने लगे
> **“कुछ रिश्ते
जब सवाल नहीं रहते,
तो जवाब बन जाते हैं।
और हर जवाब…
एक नाम चाहता है।”**
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🌤️ ट्रिप की आखिरी सुबह — चुप्पियों में छिपा दिल
सुबह की हवा ठंडी थी, लेकिन आयरा की सोच उससे भी ज्यादा भारी।
वो बालकनी में बैठी थी, सामने पहाड़ — हरियाले और बादलों की ओट में खोए हुए।
अभिराज चाय के दो कप लेकर आया।
एक कप उसके सामने रखकर खुद भी बिना कुछ बोले बैठ गया।
कुछ मिनट तक दोनों के बीच सिर्फ कप की भाप उड़ती रही।
> “पता है…” — आयरा ने कहा —
“यहाँ सब कुछ इतना सच्चा था।
लौटने का मन नहीं कर रहा।”
अभिराज ने उसकी तरफ देखा।
> “हम लौटेंगे,
लेकिन अब हमारे बीच जो है…
वो कहीं नहीं जाएगा।”
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🚗 वापसी — रास्ते में एक मोड़
कार पहाड़ों के घुमावदार रास्तों से नीचे उतर रही थी।
गाने धीमे बज रहे थे… लेकिन दिल की धड़कनें थोड़ी तेज़ थीं।
तभी अचानक…
एक झटका — टायर पंक्चर।
अभिराज ने कार रोकी, दोनों बाहर निकले।
पास ही एक छोटी सी झोपड़ी और बेंच थी — वहीं दोनों बैठ गए।
कुछ देर बाद, एक बुज़ुर्ग जोड़ा वहाँ आया —
सादे कपड़े, हाथ में थैला और चेहरों पर लंबा साथ।
वो मुस्कराकर बोले —
> “बेटा, आप दोनों पति-पत्नी हैं क्या?”
आयरा और अभिराज दोनों चौंक गए।
फिर एक-दूसरे की ओर देखा…
और सिर्फ मुस्कुरा दिए।
कोई जवाब नहीं दिया — लेकिन चुप्पी बोल गई।
बुज़ुर्ग बोले —
> “अच्छा है बेटा… जब रिश्ता नज़र से पहचाना जाए,
तो नाम की ज़रूरत नहीं पड़ती।”
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📱 शहर लौटते ही — फिर से वही दुनिया
जैसे ही मोबाइल नेटवर्क आया,
notifications की बाढ़ शुरू हो गई।
फोटोज़, टैग्स, मेसेजेज़, कमेंट्स…
आयरा थोड़ी असहज हो गई —
फिर वही पुराना डर लौटता महसूस हुआ।
लेकिन इस बार,
अभिराज ने उसका हाथ थाम लिया।
> “अब हम अकेले नहीं हैं —
लेकिन मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
> “जो दुनिया हमें देखने की आदत नहीं है,
वो धीरे-धीरे हमें समझेगी।
क्योंकि हम छुपने के लिए नहीं बने…
साथ चलने के लिए बने हैं।”
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🌃 रात — एक सवाल, एक वादा
रात को आयरा अपने कमरे में थी।
चुपचाप बिस्तर पर लेटी, कान में इयरफोन — और सामने उसका कॉलिंग स्क्रीन:
Abhiraj Calling…
> “सुनो…” — आयरा ने कहा
“अगर एक दिन तुम्हें हमारे इस रिश्ते को कोई नाम देना हो… तो क्या दोगे?”
अभिराज कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे कहा —
> “सिर्फ एक नाम?”
> “तो जवाब है —
मेरा नाम।
तुम्हें अपना नाम देना चाहूँगा।”
आयरा की आँखें भर आईं।
> “और तुम?” — अभिराज ने पूछा
> “मैं तुम्हारा हर नाम… हर पहचान बनना चाहती हूँ।”
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📔 रात की डायरी — जब रिश्ता खुद ही बोल पड़ा
> “अब कुछ कहना ज़रूरी नहीं…
क्योंकि जब उसने कहा कि
‘मेरा नाम तुम्हें देना चाहता हूँ’ —
तब समझ आया —
ये सिर्फ एक साथ चलना नहीं,
अब एक साथ जीना भी है।”
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(भाग 13 समाप्त)
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❤️ भाग 14: जब उसने मेरा नाम मुस्कराहट में लपेटकर लौटा दिया
> **“प्यार जब बिना कहे सुना जाए…
और बिना माँगे दे दिया जाए —
तो वो बस ‘सर्प्राइज़’ नहीं,
किसी की जिंदगी का सबसे प्यारा हिस्सा बन जाता है।”**
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🌅 सुबह — जब सब चुप थे
आयरा की आँखें अलार्म से नहीं, उम्मीद से खुली थीं।
आज उसका जन्मदिन था —
लेकिन सुबह से ही कुछ अजीब सा सन्नाटा था।
कोई कॉल नहीं।
माँ-पापा ने भी सिर्फ एक सिंपल “Happy birthday, beta” कहकर फोन रखा।
और… अभिराज?
न कोई मैसेज, न कॉल।
> “शायद busy है…” — उसने खुद को तसल्ली दी।
पर दिल का कोना थोड़ा सा भारी हो गया।
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🧥 काम में ध्यान… या distraction?
वो अपने क्लिनिक पहुँची —
बाल खुले, आंखों के नीचे हलकी थकान,
लेकिन मुस्कान अब भी औपचारिक।
जैसे ही उसने एंट्री की,
रिसेप्शनिस्ट ने कहा —
> “मैम, आपके केबिन में एक visitor आया है… बिना अपॉइंटमेंट के।”
> “इस वक़्त?” — आयरा चौंकी।
> “कह रहे थे कि सिर्फ आपको जानना ज़रूरी है, मिलना नहीं।”
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🚪 दरवाज़ा खुला… और पल रुक गया
जैसे ही आयरा ने दरवाज़ा खोला —
वो कुछ पल के लिए साँस लेना भूल गई।
पूरा कमरा हल्के गुलाबों से भरा था।
दीवारों पर छोटे-छोटे नोट्स टंगे थे —
हर एक पर एक line:
> “तुम मेरी सुबह हो…”
“तुम्हारे बिना कॉफी भी फीकी लगती है…”
“तुम्हारी चुप्पी सबसे प्यारा संगीत है…”
“तुम… बस तुम ही।”
कमरे के बीचोंबीच एक टेबल,
जिस पर एक छोटा-सा box रखा था।
और वहाँ… कोने से वो निकला — अभिराज।
सादे सफ़ेद कुर्ते में,
थोड़ी सी मुस्कराहट, और आँखों में वही गहराई।
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💬 उसका सर्प्राइज़ — शब्दों से ज़्यादा एहसास
> “Happy You-Day.” — उसने कहा।
आयरा हँसी।
> “Birthday होता है… ये नया क्या है?”
अभिराज:
> “क्योंकि तुम सिर्फ पैदा नहीं हुई थी इस दिन…
तुम किसी की ज़िंदगी में आने लगी थी।”
> “और मैं चाहता हूँ —
तुम हर साल ये दिन खुद के लिए जी सको…
मैं हर दिन तुम्हारे लिए।”
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🎁 छोटा गिफ्ट… और बहुत बड़ा मतलब
उसने box उसकी ओर बढ़ाया।
आयरा ने खोला —
एक simple silver chain,
जिसमें एक छोटा pendant था — A और M साथ जुड़े हुए।
वो कुछ पल तक कुछ कह ही नहीं पाई।
> “A for Ayra.”
“M for Malhotra.”
“न कोई pressure, न कोई promise…”
“बस एक subtle सा इशारा —
कि तुम अब सिर्फ तुम नहीं हो।
तुम अब… ‘हम’ हो।”
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🥺 जब शब्द नहीं बचे, तो आँसू बोल पड़े
आयरा की आँखों से आँसू बह निकले।
> “मैंने कभी नहीं सोचा था कि कोई मेरा नाम इतनी ख़ूबसूरती से मुझे वापस देगा…”
अभिराज ने पास आकर उसकी उँगलियाँ थामीं।
> “तुम्हारा नाम मेरे साथ अच्छा लगता है।
जैसे तुम मेरी खामोशी में भी सबसे ज़्यादा बोलती हो।”
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📔 रात की डायरी — जब नाम सिर्फ पहचान नहीं, अपनापन बन जाए
> “आज मुझे कोई उपहार नहीं मिला…
मुझे वो नाम मिला
जिसके साथ मेरा दिल हमेशा रहना चाहता था।
अब ‘Ayra’ अकेली नहीं लगती।
अब उसके साथ ‘M’ है —
और उसमें बसी उसकी मुस्कराहट।”
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(भाग 14 समाप्त)
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अब इस रिश्ते में:
इकरार हो चुका है
अपनापन आ चुका है
एक symbol भी बन चुका है
. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .
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❤️ भाग 15: जब रिश्ते को सबकी नज़र से देखना पड़ा
> **“प्यार तब पूरा होता है,
जब वो सिर्फ निजी नहीं रहता…
बल्कि दुनिया की आँखों से होकर
माँ-बाप के दिल तक पहुँचता है।”**
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🏠 माँ की नज़र… और पापा की चुप्पी
शनिवार की दोपहर, आयरा माँ के साथ रसोई में थी।
माँ चुपचाप आटा गूँथ रही थीं, और आयरा सब्ज़ी काट रही थी।
कमरे में रेडियो पर पुराना गाना बज रहा था, लेकिन
माँ की निगाहें बार-बार आयरा के चेहरे पर टिक रही थीं।
आख़िर उन्होंने धीमे से पूछा —
> “आयरा… आजकल तुम बहुत बदल गई हो।”
“कुछ बात है?”
“कोई है… जिससे अब तुम अपनी बात पहले करती हो, हमसे नहीं?”
आयरा चौंकी नहीं —
शायद ये सवाल वो कई दिनों से महसूस कर रही थी,
बस जवाब देने की हिम्मत अब जुटाई थी।
> “हाँ माँ…” — उसने धीमे से कहा।
“एक नाम है… जो अब सिर्फ मेरे फोन में नहीं,
मेरी धड़कनों में रहने लगा है।”
माँ ने हाथ रोक लिए।
दूसरे कमरे में पापा अखबार पढ़ रहे थे —
लेकिन अब वो भी चुपचाप सुनने लगे थे।
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💔 “वो बड़ा नाम है, बेटा…”
माँ ने थाली में आटा छोड़ दिया,
आँखें सीधी आयरा पर टिकीं।
> “उसका नाम… अभिराज मल्होत्रा है ना?”
> “हाँ।” — आयरा की आवाज़ काँपी।
> “वो तो बड़ा नाम है बेटा… बहुत बड़ा।
तुम क्या उसकी दुनिया का हिस्सा बन पाओगी?”
ये सवाल सीधे दिल के सबसे गहरे कोने में लगा।
> “क्या मैं… किसी के नाम के लायक नहीं?” — आयरा ने सोचा।
पापा ने पहली बार आवाज़ में हलचल लाते हुए कहा —
> “शहर की हवा और गाँव की मिट्टी साथ तो रह सकती हैं,
पर क्या दोनों को साथ सांस लेना आता है?”
---
📱 रात — जब उसने सुन लिया सब
रात को जब आयरा ने अभिराज से बात की,
तो उसकी आवाज़ थकी हुई, टूटी हुई-सी थी।
> “मुझे नहीं पता मैं कहाँ खड़ी हूँ।
न तुम्हारी दुनिया में, न अपनी।”
अभिराज ने बहुत शांति से जवाब दिया —
> “अगर मेरी दुनिया इतनी ऊँची है
कि उसमें तुम खुद को छोटा महसूस करो…
तो मैं वो दुनिया छोड़ दूँगा।”
> “मैं सिर्फ तुम्हारे साथ खड़ा रहना चाहता हूँ…
और अगर इसके लिए मुझे तुम्हारे घर के दरवाज़े पर जाना पड़े,
तो मैं आ रहा हूँ।”
> “कल सुबह।”
---
🚪 अगली सुबह — दरवाज़े पर खड़ा एक रिश्ता
रविवार सुबह
घंटी बजी।
माँ ने दरवाज़ा खोला —
सामने सफेद कुर्ता-पायजामा में अभिराज मल्होत्रा खड़ा था।
हाथ में एक मिठाई का डिब्बा…
और आँखों में हिम्मत से लिपटी सादगी।
> “नमस्ते, मैं अभिराज।
आयरा का दोस्त… पर अब सिर्फ दोस्त नहीं रहना चाहता।”
> “मैं आपकी बेटी के लिए नहीं,
आपसे उसका हाथ माँगने नहीं आया…
मैं बस…
ये कहने आया हूँ कि
_जो नाम अब उसके साथ जुड़ चुका है,
वो अब कभी उससे अलग नहीं होगा_।”
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📔 रात की डायरी — जब किसी ने मेरे लिए दरवाज़ा खटखटाया
> “मैंने हमेशा सोचा था कि एक दिन
कोई मेरी दुनिया में आएगा —
लेकिन वो दुनिया बदल देगा।
आज कोई मेरी दुनिया के दरवाज़े पर
खुद चलकर आया…
सिर्फ मुझे स्वीकारने, नहीं…
मेरी पहचान को सम्मान देने।”
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(भाग 15 समाप्त)
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अब इस रिश्ते ने समाज और परिवार की सीढ़ियाँ भी छू ली हैं।
👉 अगले भाग (भाग 16) :
. . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .
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❤️ भाग 16: जब इजाज़त सिर्फ एक शब्द नहीं रही
> **“सच्चा प्यार तब साबित होता है,
जब वो दरवाज़ा खटखटाता है —
और कहता है,
_‘मैं आपकी बेटी से मोहब्बत करता हूँ…
उसे माँगने नहीं,
अपनाने आया हूँ।’_”**
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☕ बैठक — वो पहली मुलाक़ात
रविवार की सुबह, ड्रॉइंग रूम में एक खास-सी ख़ामोशी पसरी थी।
टेबल पर चाय की प्यालियाँ रखी थीं —
पर नजरें सिर्फ एक शख़्स पर टिकी थीं।
अभिराज मल्होत्रा,
सफेद कुर्ता-पायजामा, शांत चेहरा, लेकिन आँखों में पूरा समर्पण।
पापा ने चश्मा ठीक किया और सीधे पूछा —
> “आप बहुत बड़ा नाम हैं…
और हमारी बेटी… एक आम सी लड़की।
कल कोई आपकी तस्वीरें लेगा, कोई खबर चलाएगा…
क्या तब भी आप उसका हाथ थामे रखेंगे?”
कमरे में सन्नाटा।
अभिराज की आवाज़ स्थिर थी —
न तेज़, न डरपोक।
> “नाम बड़ा हो सकता है, सर —
लेकिन जो रिश्ता मैं लेकर आया हूँ,
उसमें सिर्फ आदमी खड़ा है… सेलिब्रिटी नहीं।”
> “मैं यहाँ किसी ड्रामा के लिए नहीं आया।
मैं उस इंसान के लिए आया हूँ
जिसने मुझे पहली बार ‘अभिराज’ के पीछे की थकान समझी…
और बिना सवाल किए… मुझे अपनाया।”
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💬 माँ की आँखें, पापा की परख
माँ चुप थीं, पर उनकी आँखों में कुछ पिघलता दिखा।
पापा थोड़ी देर खामोश रहे।
फिर बोले —
> “आपका इरादा साफ़ है…
पर रिश्ता सिर्फ दो लोगों का नहीं होता,
दो घरों का होता है।”
> “अगर आप सच में इसे अपनाना चाहते हैं…
तो अगली बार
अपनी माँ को साथ लेकर आइए।”
> “हमें सिर्फ आपकी हाँ नहीं चाहिए,
हमें आपकी माँ की मंज़ूरी भी चाहिए।”
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🌆 शाम — जब छत पर खड़े दो लोग, दो ज़िंदगियाँ जोड़ते हैं
शाम को, आयरा और अभिराज छत पर खड़े थे।
हवा ठंडी थी,
लेकिन उनके बीच एक सुकून भरी गर्मी थी।
आयरा:
> “मुझे लगा था… पापा कुछ कहेंगे नहीं।
लेकिन उन्होंने तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोला।”
अभिराज मुस्कराया, और जेब से एक कागज़ निकाला।
> “ये मैं हर मैच से पहले अपनी रैकेट में रखता हूँ…
अब तुम्हें देता हूँ।”
आयरा ने पढ़ा —
> _“तुम्हारा नाम, मेरी हथेली पर लिख दिया है…
अब सिर्फ सिंदूर बाकी है।”_
आयरा की आँखें नम हो गईं।
अभिराज:
> “जब अगली बार आऊँगा…
तो सिर्फ मिलने नहीं,
तुम्हें माँगने नहीं —
तुम्हें अपनाने का इरादा लेकर आऊँगा।”
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📔 रात की डायरी — जब किसी ने माँगी नहीं, स्वीकृति अर्जित की
> “ किसी ने मुझसे पूछा था,
क्या कोई तुम्हारे लिए लड़ सकता है?
> आज देखा —
कोई सिर्फ मेरे लिए नहीं लड़ा…
मेरी इजाज़त माँगने से पहले
मेरे माँ-पापा की इजाज़त जीतना चुना। ”
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( भाग 16 समाप्त )
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अब आपकी कहानी अपने परिवारिक और भावनात्मक शिखर की ओर बढ़ रही है।
👉 अगले भाग (भाग 17) में:
. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .. . . . . . . .
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❤️ भाग 17: जब मोहब्बत को दुनिया की नज़र लग गई
> **"प्यार को कभी शब्दों की ज़रूरत नहीं होती,
लेकिन दुनिया को तसल्ली देने के लिए
हज़ार सफ़ाईयाँ देनी पड़ती हैं।”**
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🌷 माँ-बेटी सी बात — सास नहीं, साथ
सर्दियों की नर्म धूप में, अभिराज की माँ और आयरा बालकनी में बैठी थीं।
चाय के कप के साथ ढेर सारी घरेलू बातें चल रही थीं —
रंगों की पसंद, त्यौहार की यादें, और अभिराज की बचपन की शरारतें।
अभिराज की माँ ने आयरा की हथेली अपने हाथ में ली —
> “कभी बेटी नहीं थी, पर तेरे साथ बैठती हूँ तो लगता है,
भगवान ने मेरी झोली अब भर दी है।”
आयरा मुस्कराई, लेकिन दिल के किसी कोने में हल्की-सी घबराहट भी थी।
रिश्ता जो अब एक कदम और आगे बढ़ने को था।
---
🗓️ एक नई शुरुआत की तैयारी
उस शाम अभिराज ने कहा —
> “दोनों परिवारों को एक साथ बैठाना चाहिए।
कोई तारीख तय करते हैं… सगाई की।”
आयरा की आँखों में चमक आई —
लेकिन साथ ही एक अजीब-सा डर भी।
> “सब ठीक रहेगा न?” — उसने पूछा।
> “जब तक तुम साथ हो… सब बेहतर ही होगा।” — अभिराज ने जवाब दिया।
---
📸 और फिर… एक तस्वीर सबकुछ बदल गई
अगली सुबह, आयरा जैसे ही अपने क्लिनिक पहुँची,
रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने फोन दिखाया —
> “मैम… आपने देखा ये?”
फोन पर स्क्रीन थी:
> “💥 Exclusive!
Star shuttler Abhiraj Malhotra seen with mystery girl on rooftop — Love in the air?”
#CoupleGoals #SecretRomance
नीचे वही तस्वीर —
जिसमें आयरा और अभिराज छत पर खड़े बात कर रहे थे,
हवा में आयरा के बाल उड़ रहे थे… और अभिराज की आँखें बस उसी पर टिकी थीं।
पिक्चर खूबसूरत थी —
लेकिन कमेंट्स में ज़हर था।
> “She’s too ordinary for him.”
“Another fame-hunter?”
“Not match for our national hero.”
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🥀 एक लड़की का डर — जो किसी कैप्शन में नहीं समाया
शाम होते-होते आयरा का दिल टूटने लगा।
उसने मोबाइल बंद कर दिया।
खुद को कमरे में बंद कर लिया।
जब अभिराज का कॉल आया, वो रो रही थी —
> “तुमने कहा था… साथ रहेंगे।
पर मुझे नहीं पता था कि इस साथ को दुनिया इतने कटघरे में डालेगी।”
“मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी शोहरत, तुम्हारा नाम…
मैं सिर्फ तुम्हारा साथ चाहती थी — वो भी अब नहीं बचा।”
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🛑 कोई जवाब नहीं… सिर्फ एक कदम
अभिराज ने कुछ नहीं कहा।
वो आया।
उसे उसके कमरे से बाहर निकाला।
और बिना एक शब्द कहे… उसे अपनी गाड़ी में बैठा कर घर ले गया।
उसका घर — जहाँ दरवाज़े पर कोई इंतज़ार कर रहा था।
अभिराज की माँ।
जैसे ही आयरा अंदर पहुँची,
वो बिना कुछ पूछे, उसे गले से लगा लिया।
> “पगली लड़की…
दुनिया तो किसी को भी नहीं बख्शती।
पर तुम्हें अब अकेले सहना नहीं है।”
“तुम अब सिर्फ अभिराज की नहीं…
हमारी भी हो चुकी हो।”
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📔 रात की डायरी — जब मोहब्बत को सहारा मिला
> “प्यार टूटता नहीं जब कोई बाहर से हमला करे…
वो तब टूटता है, जब अंदर कोई पीछे हट जाए।
लेकिन आज…
जब मैं हिल गई थी,
तब उन्होंने मुझे थामा नहीं —
मुझे अपना लिया।”
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(भाग 17 समाप्त)
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❤️ भाग 18: जब बीते लम्हों ने दरवाज़ा खटखटाया
> **“प्यार तब परखा जाता है,
जब अतीत की कोई परछाई वर्तमान की रौशनी में आ खड़ी हो…
और फिर भी, दिल उस एक चेहरे से डगमगाए नहीं।”**
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🪔 एक नई शुरुआत — सगाई की तारीख तय
रविवार का दिन था।
अभिराज के घर में दो परिवार एकसाथ बैठे थे —
माहौल सजीला, हल्का-सा उत्सव जैसा।
अभिराज की माँ ने आयरा की माँ के हाथ में मिठाई का डिब्बा थमाया:
> “हमने सोचा, शुभ दिन की शुरुआत मीठे से होनी चाहिए…
और क्यों न आज ही सगाई की तारीख तय हो जाए?”
सभी मुस्कराए।
तारीख तय हुई — दो हफ्ते बाद, शनिवार।
आयरा चुपचाप सब देख रही थी —
खुश थी, पर बहुत ज़्यादा कुछ कह नहीं पा रही थी।
शायद उसकी ख़ामोशी…
उसके दिल की गहराई से आई थी।
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📸 और फिर… एक अधूरा पन्ना खुल गया
अगली सुबह,
जैसे ही आयरा क्लिनिक पहुँची,
रिसेप्शन डेस्क पर बैठी मिताली फुसफुसाई —
> “मैम… ट्विटर देखा आपने?”
स्क्रीन पर थी एक वायरल पोस्ट:
> “📰 BREAKING: Is star Abhiraj Malhotra's ex back in his life?
Throwback to the woman who once travelled with him during world championship 2019.”
नीचे एक तस्वीर —
अभिराज और एक स्पोर्ट्स पार्टनर लड़की —
साथ खड़े, हँसते हुए।
साथ में पुराने ट्वीट्स, मीडिया gossip, speculative captions।
#AbhirajLoveTriangle
#OldFlameBack
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🤐 आयरा कुछ नहीं बोली — पर अंदर कुछ हिला
उसने उस दिन कुछ नहीं कहा।
ना अभिराज को फोन किया,
ना किसी से सवाल।
वो बस… खामोश थी।
कभी-कभी खामोशी,
सवालों से ज़्यादा तेज़ होती है।
वो सोचती रही —
> “क्या वो हिस्सा मैं नहीं थी?
क्या वो सिर्फ भुलाया गया बीता वक्त है… या अधूरी कहानी?”
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🚪 बिना बुलाए… वो खुद आया
शाम ढली ही थी कि दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई।
आयरा ने खोला —
सामने अभिराज था,
हाथ में चाय के दो कप।
> “मुझे पता है… तुमने कुछ नहीं पूछा।
लेकिन मैं आज चुप नहीं रहूँगा।”
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💬 सच्चाई… बिना सफाई के
अभिराज:
> “हाँ, वो मेरी टीम पार्टनर थी।
हमारी दोस्ती थी — बस इतनी।
हाँ, कुछ साल हम बहुत करीब रहे — पर कभी उससे आगे कुछ नहीं हुआ।”
> “तुम्हें नहीं बताया… क्योंकि मुझे लगा वो बीत चुका है।
लेकिन शायद भूल गया कि प्यार में छुपाने से ज़्यादा दिखाने का हक़ होता है।”
> “मैं कोई परफेक्ट इंसान नहीं…
पर अब तुम्हारे साथ,
मैं हर अधूरा पन्ना पूरा करना चाहता हूँ।”
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💞 जवाब एक मुस्कान में छुपा था
आयरा ने बहुत देर तक कुछ नहीं कहा।
फिर उसके पास बैठकर धीरे से बोली —
> “मुझे डर नहीं लगता तुम्हारे अतीत से…
मुझे डर सिर्फ उस वक्त से लगता है
जब तुम मुझे अपने आज से दूर रखो।”
अभिराज ने उसका हाथ थामा।
> “अब से… कोई दरवाज़ा बंद नहीं रहेगा।
हर बात, हर बात… तुम्हारी होगी।”
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📔 रात की डायरी — जब भरोसा साबित नहीं, महसूस होता है
> “मोहब्बत को प्रूव नहीं करना पड़ता…
बस, एक बार सच्चाई से सामने रख दो —
तो रिश्ता और मज़बूत हो जाता है।”
> आज मैं डर गई थी…
पर उसने डरने से पहले
खुद आकर मेरी हथेली में भरोसा रख दिया।
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(भाग 18 समाप्त)
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💍 भाग 19: जब मेहंदी ने रिश्तों को और गहरा रंग दिया
> **"प्यार की पहचान महंगे तोहफों से नहीं होती...
कभी-कभी वो एक नाम होता है,
जो हथेली पर चुपचाप उभर आता है।”**
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🪔 हल्दी की सुबह — हँसी और हल्की झिझक
आयरा के घर में आज खास चहल-पहल थी।
दीवारों पर हल्के पीले रंग की सजावट, फूलों की लड़ियाँ, और
आँगन में बैठी आयरा — सिर पर दुपट्टा, चेहरे पर हल्की झिझक।
सहेलियाँ उसे छेड़ रही थीं —
> “अब तू हमारी नहीं रही, भाभी बन गई।”
“तेरे हाथों की हल्दी तो अब किसी और की किस्मत लिखेगी!”
और वो बस मुस्कुरा रही थी —
कभी शर्माकर नज़रें झुकाती,
कभी मम्मी की आँखों में नमी देखकर खुद रुक जाती।
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📱एक teasing message — सीधा दिल के बीचोंबीच
हल्दी लगने के बाद, जैसे ही आयरा ने फोन चेक किया —
एक व्हाट्सएप नोटिफिकेशन चमका:
> Abhiraj:
"तुम्हें हल्दी लगी…
मुझे jealousy हुई।
कोई मुझे भी बिठाओ,
मैं भी थोड़ा Ayra-तुलसी होना चाहता हूँ!" 😄
आयरा हँस पड़ी।
गालों पर हल्दी थी, और अब उसमें गुलाबीपन भी शामिल हो गया।
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🏸 दूसरी ओर — टीम में शोर और teasing
अभिराज के घर उसकी बैडमिंटन टीम जमा थी।
सब हल्के-फुल्के शेर बनकर teasing मोड में थे:
> “भाई… क्या लव गेम जीत लिया?”
“अब तो national trophy से ज्यादा excitement शादी की trophy की है!”
अभिराज सिर्फ मुस्कुराता रहा।
उसकी माँ पास से देखती रहीं —
फिर धीरे से कहा:
> “बचपन में जब पहली बार रैकेट थामा था,
तब भी इतना blush नहीं किया था जितना अब कर रहा है।”
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💚 मेहंदी की दोपहर — रंग, हँसी और एक पल की नमी
आयरा की हथेलियों पर मेहंदी लगाई जा रही थी।
उसकी सहेलियाँ गीत गा रही थीं:
> “मेहंदी है रचने वाली…
हाथों में गहरी लाली…”
माँ पास बैठी थीं, मुस्कुराती हुई, लेकिन कुछ चुप।
फिर धीरे से बोलीं —
> “जब बेटी की हथेली पर किसी और का नाम रचने लगे…
तब माँ की पलकों पर नमी रुक नहीं पाती, आयरा।”
आयरा का दिल भर आया।
उसने माँ का हाथ पकड़ा और कहा —
> “आपका नाम ही तो मेरी हर पहचान में शामिल रहेगा माँ…”
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🎁 एक छोटा-सा सरप्राइज़ — पर असर गहरा
शाम होते-होते, किसी ने आयरा को एक छोटा-सा box थमाया।
अंदर एक diary थी —
और उसपर लिखे थे शब्द:
> _“मेहंदी के हर कतरे में जो रंग है —
वो अब सिर्फ मेरा नहीं,
तुम्हारा भी है।”_
साथ में एक folded note:
> “मेरी हथेली पर भी तेरा नाम छुपा है —
देख लेना, सगाई वाले दिन।
क्योंकि मैं चाहता हूँ,
जब तू मेरी तरफ देखे —
तो तेरा नाम मेरी हथेली से भी बोले।”
आयरा की आँखें भर आईं।
रिश्ता शब्दों से नहीं, एहसासों से बना था —
और ये एहसास… दिन-ब-दिन गहरा हो रहा था।
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🌙 रात — चुप्पी, चाँद और एक ही सवाल
रात को,
दोनों अपनी-अपनी बालकनी में खड़े थे।
आसमान में चाँद पूरा था —
जैसे हर अधूरी बात को पूरा करने का वादा करता हुआ।
दोनों सोच रहे थे —
> “क्या हम सच में एक-दूसरे के लिए बने हैं?”
“क्या कल को,
जब दुनिया बदल जाए,
जब परिस्थितियाँ टकरा जाएँ…
तब भी हम साथ रहेंगे?”
शब्द नहीं कहे गए,
लेकिन दोनों के दिलों में
एक ही जवाब गूंजा —
> **“हाँ… क्योंकि अब हम सिर्फ एक-दूसरे के साथ नहीं,
एक-दूसरे के अंदर बस चुके हैं।”**
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📔 रात की डायरी — जब मेहंदी सिर्फ रंग नहीं थी
> “मेरे हाथों में उसका नाम था —
पर सबसे खास बात ये नहीं थी।
सबसे खास बात ये थी कि
उसने पहले मेरी इजाज़त, फिर मेरा भरोसा,
और अब मेरी हथेली माँगी।”
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(भाग 19 समाप्त)
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अब कहानी पहुंच चुकी है सगाई के ठीक पहले मोड़ पर —
जहाँ रिश्ते की बुनियाद मजबूत है, लेकिन दिल अभी भी कुछ कह नहीं पा रहे।
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💍 भाग 20: जब साथ की मुहर लगी
> **"सगाई महज़ एक रस्म नहीं होती,
ये वो ख़ामोश वादा है,
जो दुनिया के सामने दो लोग एक-दूसरे से करते हैं —
'अब चाहे कुछ भी हो… हम साथ हैं।'"**
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🌸 हलकी सुबह, भारी धड़कनें
सुबह की रौशनी आज कुछ अलग लग रही थी।
शहर के बीचोबीच, एक क्लासी रिसॉर्ट को
गुलाबी और सफेद फूलों से सजाया गया था।
पर सबसे ज़्यादा चमक… आयरा की आँखों में थी,
जिसमें खुशी से ज़्यादा एक अजीब-सी बेचैनी झलक रही थी।
लहँगा ज़रूर डिज़ाइनर था,
पर मन में उठती हज़ारों भावनाओं को कोई कपड़ा संभाल नहीं पा रहा था।
"तू ठीक है न?" — नेहा ने फुसफुसाया।
"पता नहीं," आयरा हौले से मुस्कराई, "आज पहली बार खुद को सबकी नज़रों के सामने रख रही हूँ।"
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🤵🏻 अभिराज — शांत, लेकिन भीतर कुछ चल रहा था
वहीं दूसरी ओर अभिराज,
हल्के आसमानी कुर्ते और नेहरू जैकेट में सधा हुआ लग रहा था।
मगर उसके चेहरे की गंभीरता
उसके दिल में चल रहे किसी अनकहे डर को छुपा नहीं पाई।
"इतनी भीड़… ये कैमरे… ये सवाल…
क्या आयरा ये सब बर्दाश्त कर पाएगी?"
उसे सब दिख रहा था —
उसकी बेचैनी, उसका घबराना, उसका धीरे-धीरे खुद में सिमटना।
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📸 पहली बार — साथ और सबकी नज़रों में
स्टेज पर जैसे ही दोनों साथ आए —
कैमरों की फ्लैश लाइट्स झिलमिलाने लगीं।
"Sir, look here please!"
"Ma’am, solo shot please!"
"Couple pose, थोड़ा और पास!"
आयरा की सांस जैसे अटकने लगी।
उसने हल्के से अपने दुपट्टे को कसा,
लेकिन तभी एक गर्माहट उसकी हथेली पर पड़ी —
अभिराज का हाथ।
बिना बोले, बिना देखे —
बस इतना कहा:
> “मैं हूँ न, breathe…”
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🗞️ मीडिया का सवाल — और दिल से दिया गया जवाब
तभी एक पत्रकार ने पूछा —
> “अभिराज जी, आप जैसे सेलिब्रिटी की सगाई एक आम लड़की से…
क्या आपको नहीं लगता आपकी स्टार इमेज को झटका लग सकता है?”
कुछ पल का सन्नाटा।
पर अभिराज ने माइक थामा।
न नज़रें झुकीं, न आवाज़ कांपी।
> “मुझे झटका तभी लगता अगर मैं उससे प्यार नहीं करता।
आयरा कोई आम लड़की नहीं है —
वो वो इंसान है जिसने मुझे मेरे पीछे के इंसान से प्यार किया, न कि मेरी शोहरत से।”
> “मैं जितना अच्छा बैडमिंटन खेलता हूँ,
उससे कहीं ज़्यादा अच्छा इंसान बनने की कोशिश करता हूँ।
और इंसान वही अच्छा बनता है,
जिसके पास कोई सच्चा साथी हो।”
> “आयरा मेरी पहचान नहीं बदल रही,
वो मुझे पूरी कर रही है।”
हॉल में तालियाँ बज उठीं।
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💍 जब अंगूठी पहनाई गई — और कुछ कह दिया गया
अब रिंग एक्सचेंज का वक़्त था।
अभिराज ने धीमे से अंगूठी उठाई,
आयरा की तरफ देखा… और कहा:
> “क्या तुम मेरी ज़िंदगी की सबसे ईमानदार आवाज़ बनोगी?”
आयरा की आँखें भर आईं।
गले से कुछ निकला नहीं —
बस मुस्कुरा कर उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
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🌙 रात की खामोशी — और वो एक नज़रिया
समारोह के बाद,
जब सब थककर अपने-अपने कमरों में चले गए,
आयरा बालकनी में अकेली खड़ी थी।
चाँद चमक रहा था —
और उसकी हथेली में बंधी वो अंगूठी
चुपचाप हल्की रौशनी में टिमटिमा रही थी।
पीछे से आवाज़ आई —
“बहुत भारी लग रही है क्या?”
अभिराज।
> “थोड़ी सी,” आयरा मुस्कराई, “पर भरोसे की वजह से सहन हो रही है।”
> “और आज… जब तुमने सबके सामने वो कहा…
तो पहली बार लगा कि मैं सिर्फ पसंद नहीं की गई हूँ…
मुझे गर्व से चुना गया है।”
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📔 रात की डायरी — जब रिश्ता दुनिया के सामने खड़ा हुआ
> “आज पहली बार,
मैंने खुद को उसकी दुनिया में देखा —
और ये जाना कि
मोहब्बत को छुपाने की नहीं,
दुनिया के सामने थामे जाने की हिम्मत चाहिए।”
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(भाग 20 समाप्त)
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अब रिश्ता एक नाम बन गया है —
दुनिया के सामने, दिलों की कसौटी पर।
पर असली इम्तिहान और भी आने बाकी हैं।
👉 अगले भाग (भाग 21) में:
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