अंधेरी परछाइयां पिछले हजारों सालों से आश्रम पर हमला करके, वहां मौजूद दोनों छड़ियों को हासिल करना चाहती है, ताकि वह शैतान को इस दुनिया पर लेकर आ सके। मगर एक भविष्यवाणी, जिसमें शैतान की मौत लिख दी जाती है, वह सभी अंधेरी परछाइयां में हांहाकर मच... अंधेरी परछाइयां पिछले हजारों सालों से आश्रम पर हमला करके, वहां मौजूद दोनों छड़ियों को हासिल करना चाहती है, ताकि वह शैतान को इस दुनिया पर लेकर आ सके। मगर एक भविष्यवाणी, जिसमें शैतान की मौत लिख दी जाती है, वह सभी अंधेरी परछाइयां में हांहाकर मचा देती है। एक लड़का आर्य, जो पैदा हुआ है शैतान की मौत बनकर, और जाता है आश्रम में, मगर वहां पर उसे कई सारे अनगिनत रहस्यों का सामना करना पड़ता है। और सबसे बड़ा रहस्य...जो उसके सामने आता है काली छड़ी का, क्या वह सुलझा पाएगा काली छड़ी का रहस्य? जानने के लिए पढ़ें, आर्य और कई छड़ी का रहस्य।
यशa
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अवनी
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आर्य और काली छड़ी का रहस्य अंधेरे के शैतानी प्रतिनिधि बड़ी शिद्दत से अपने अंतिम काम को निपटाने में लगे हुए थे। इस अंतिम काम को निपटाते ही भविष्यवाणी की सभी मुसीबतें समाप्त हो जाएँगी। वे लगातार एक बूढ़े आदमी का पीछा कर रहे थे, जो 4 साल के बच्चे को बचाकर भाग रहा था। वह 4 साल का बच्चा उनकी और भविष्यवाणी की अंतिम मुसीबत था। अंधेरे के प्रतिनिधि, जिनका आकार देखने में काफी डरावना था, उनका चेहरा भी नहीं था। वे काले कपड़ों में लिप्त थे और दौड़ते वक्त उछल रहे थे। उनकी संख्या लगभग बीस के आसपास थी। सभी काफी उत्साहित दिखाई दे रहे थे। अंधेरे से भरे जंगल में उनकी यह खुशी उनके शोरगुल और किसी शिकारी को घेरने वाली रणनीति से ही स्पष्ट झलक रही थी। बूढ़ा आदमी, जो जंगल में बच्चे की जान बचाता हुआ दौड़ रहा था, उसका नाम विष्णुवर था। हड्डियों के पिंजर जैसा शरीर, बूढ़ी आँखें, लंबी सफ़ेद दाढ़ी; जान ना होने के बावजूद, सब कुछ लगाकर तेज़ भागना उसकी मजबूरी थी। उसके हाथों में जो 4 साल का बच्चा था, उसकी कहानी काफी लंबी थी; इतनी लंबी कहानी, जिसे पूरा होने के लिए अध्याय नहीं, बल्कि महाग्रंथ की आवश्यकता थी। वह बच्चा पैदा होते ही सबके आकर्षण का केंद्र बन गया था, खासकर शैतानी शक्तियों के आकर्षण का केंद्र। भविष्यवाणी में कहा गया था कि यह बच्चा इक्कीस साल का होने के बाद अंधेरे के शहंशाह को समाप्त कर सकता है। इसीलिए सभी अंधेरे के प्रतिनिधि हाथ धोकर उसके पीछे पड़े हुए थे। अंधेरे का शहंशाह अभी धरती पर आया ही नहीं था और उसकी मृत्यु की तैयारियाँ पहले से ही हो गई थीं। कोई अपने आका को इस तरह से मरने नहीं दे सकता था। इसलिए अंधेरे के 6 सेनापतियों, जिनमें शैतान तक शामिल था, ने बच्चे को समाप्त करने के लिए अपनी सेना को यह काम सौंप दिया था। बच्चे के पैदा होते ही सेना की तलाश शुरू हो गई थी। अंधेरे से लड़ने वाला एक समूह बच्चे की जान की हिफ़ाज़त करने के लिए पूरी तरह से जुटा हुआ था, लेकिन उनकी संख्या कम थी और अंधेरे की अधिक। इसलिए बच्चे की हिफ़ाज़त के लिए उसे दुनिया के दूर कोने में भेज दिया गया था। वहाँ दूर कोने में बच्चा 4 साल तक तो हिफ़ाज़त में रहा, मगर इसके बाद अंधेरे के प्रतिनिधियों ने उसे ढूँढ लिया। उसे ढूँढने के बाद वे बच्चे पर हमला करने के लिए टूट पड़े, और यहाँ यह 60 साल का बूढ़ा विष्णुवर उसे बचाने के लिए आगे आ गया। यह कहानी का हल्का-फुल्का सारांश था, जो 4 साल के बच्चे की कहानी को शुरू करने के लिए काफी था, लेकिन इसे एक आंशिक शुरुआत के तौर पर ही देखा जा सकता है, ना कि पूरी कहानी। जल्द ही बूढ़ा दौड़ते-दौड़ते एक ऐसी जगह पर आ रुका, जहाँ आगे किसी भी तरह का रास्ता नहीं था। वह एक खाई वाले हिस्से के पास था। पीछे आ रहे अंधेरे के प्रतिनिधियों की खुशी और अधिक बढ़ गई। वे आकर उसके आसपास जमा हो गए। उनमें से कोई एक अंधेरे का प्रतिनिधि अपनी कर्कश आवाज़ में बोला, "आर्य… को हमारे हाथों में सौंप दो। हम तुम्हारी जान बख्श देंगे।" विष्णुवर ने तुरंत खाई की ओर देखते हुए जवाब दिया, "मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा। ना आज, ना कल। इसकी बजाय मुझे मरना मंज़ूर है। यह 4 साल का बच्चा सिर्फ़ तुम लोगों का अंत नहीं, बल्कि तुम लोगों की पूरी दुनिया का अंत है। वह अंत, जिसके लिए हम सैकड़ों सालों से लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। ना जाने इस लड़ाई में हमने अपने कितने साथियों को खोया। इस दुनिया में कितनी मुसीबतों का सामना किया। अब यह बच्चा इसका अंत है… और यह होकर रहेगा…" "पागल मत बनो, ना समझ…" सामने से कहा गया, "अगर तुम खाई से कूदोगे तो बच्चे के साथ-साथ तुम्हारी मौत भी होगी। इसमें हमारा अंत नहीं, बल्कि तुम्हारा अंत है।" विष्णुवर को यह सुनकर बिल्कुल भी डर नहीं लगा। उल्टा उसने एक मीठी मुस्कराहट दिखाई। मुस्कराते-मुस्कराते वह पीछे की ओर जाने लगा। सभी अंधेरे के प्रतिनिधि धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। वे इस बात से खौफ़ खा रहे थे कि कहीं सामने वाला बूढ़ा बच्चे को लेकर खाई में ना कूद जाए। लेकिन इसमें डरने वाली बात नहीं थी। खाई में कूदने से एक तरह से उनका ही फायदा होगा। उनकी आखिरी मुसीबत भी समाप्त हो जाएगी। अचानक अंधेरे के प्रतिनिधियों ने बूढ़े पर झपट्टा मारने की कोशिश की, मगर बूढ़ा तेजी से खाई में कूद गया। झपट्टा मार रहे अंधेरे के प्रतिनिधियों के हाथ खाली रह गए। सभी खाई के किनारे आकर अंदर की ओर देखने लगे। रात के अंधेरे में दूर-दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। खाई के अंदर भी कुछ नहीं। इस बात का आकलन करना मुश्किल था कि खाई कितनी गहरी है, लेकिन यह भी सच था कि खाई में कूदने वाला कभी ज़िंदा नहीं बचता। अंधेरे के प्रतिनिधियों में से कोई एक बोला, "मुझे नहीं लगता कि वे दोनों बचे होंगे। भविष्यवाणी में जिस शैतान की मृत्यु कही गई थी, वह खुद मर गया। इसी के साथ हमारी आखिरी मुसीबत और भविष्यवाणी का यही अंत होता है। अब हमें बाकी के बचे हुए काम करने चाहिए। शहंशाह के आने का स्वागत की तैयारियाँ करनी चाहिए। जाकर आश्रम से दो छड़ियाँ हासिल करते हैं और शहंशाह की दुनिया का रास्ता खोलते हैं।" इतना कहकर सभी अंधेरे के प्रतिनिधि धीरे-धीरे वहाँ से विलीन होने लगे। हर कोई यह सोच चुका था कि अब यही अंत है, लेकिन इतिहास गवाह है… जिसे अंत कहा जाता है, वह एक नई शुरुआत होता है। सभी विलीन हुए अंधेरे के प्रतिनिधि बर्फीली जगह पर एक-एक करके प्रकट हुए, लेकिन प्रकट होते ही उनके सामने जो नज़ारा था, उन्हें उस पर यकीन नहीं हो रहा था। उनके ठीक सामने पूरे आश्रम के इर्द-गिर्द रोशनी का एक गोल चक्र बन रहा था; एक ऐसा गोल चक्र, जिसके संपर्क में आते ही अंधेरे के प्रतिनिधियों की सेना समाप्त हो रही थी। एक अंधेरे का प्रतिनिधि भागता हुआ प्रकट होने वाले अंधेरे के प्रतिनिधियों के पास आया और बोला, "गड़बड़ हो गई। काफी बड़ी गड़बड़। किसी ने शैतानों की छड़ी का इस्तेमाल किया है। उसके बेशुमार बल का वह अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है। उसकी वजह से सभी अंधेरे के प्रतिनिधि उनके किले में कैद होते जा रहे हैं। हम हार चुके हैं।" यह सुनते ही सभी को मानो सदमा सा लगा। "मगर यह नहीं हो सकता। हम अपनी जीत के इतने करीब आकर हार नहीं सकते। हमें अंधेरे के शहंशाह को इस दुनिया में लेकर आना है।" "लेकिन अब यह संभव नहीं। कभी भी संभव नहीं। अंधेरे के शहंशाह को दुनिया में लाने के लिए हमें दोनों ही छड़ियों की आवश्यकता है, मगर वे आश्रम की चारदीवारी के अंदर बिल्कुल सुरक्षित हैं। हम उन्हें ना तो हासिल कर सकते हैं, ना ही शहंशाह को कभी वापस बुला सकते हैं।" यह सुनकर यहाँ के छोटे से समूह के मुखिया ने कहा, "अगर ऐसा है तो हमारा बस आज से एक ही मकसद होगा… उन दोनों ही छड़ियों को हासिल करना। साम, दाम, दंड, भेद… हम कैसे भी करके उन्हें हासिल करेंगे। कैसे भी करके, लेकिन इसके लिए हमें इंतज़ार करना होगा। एक सही मौके… और सही वक्त का।"
अध्याय 1 बारह साल बाद भाग-1 यह एक अद्भुत सुबह थी; मीठी और फूलों की सुगंध से भरी सुबह। परिदृश्य जंगल का था, जहाँ घने पेड़ों के बीच बने एक घर के चारों ओर सुंदर बाग़ जैसे फूल, लम्बे, छरहरे पेड़-पौधों की छाया, और सूखे पत्तों की मोटी चादर, जो जमीन पर बिछी हुई थी, मौजूद थी। आर्य एक सोलह वर्षीय अपरिपक्व युवक था; गोरा रंग, मगर कमज़ोर शरीर। नीली आँखें, लम्बे भूरे बाल जो उसके माथे को भी ढँकते थे, थोड़ी लम्बी ठोड़ी, और अंदर की ओर धँसे हुए गाल; लेकिन इसके बावजूद उसमें एक अलग तरह का आकर्षण था। सुबह के इस समय वातावरण में उसके द्वारा बनाए जा रहे भोजन की सुगंध भी व्याप्त थी। जिस घर में भोजन बन रहा था, वह घर कुछ ज़्यादा ख़ास नहीं था; एक छोटा, लकड़ी का बना घर, जिसमें दो कमरे, एक रसोई और एक बरामदा था। घर के बाहर चार सीढ़ियाँ बनी हुई थीं जो नीचे की ओर उतरती थीं। बरामदे में एक लम्बा, गोल मेज़ था, जिस पर बैठा विष्णुवर अपनी आयु के अंतिम पड़ाव में भोजन का इंतज़ार कर रहा था। इंतज़ार में उसकी आँखों के सामने वह दृश्य घूम रहे थे जहाँ घोर अंधकार था, उसके पीछे अंधेरे के प्रतिनिधि लगे हुए थे, और वह अपनी जान बचाने के लिए खाई में कूद गया था। उस समय वह भाग्यशाली था, क्योंकि जब वह खाई में कूदा तो वह वहाँ एक पेड़ से जा लटका था; ऐसे पेड़ से जो जमीन से ज़्यादा ऊँचा नहीं था। इस वजह से उसकी जान बच गई और उसके साथ-साथ बच्चे की भी। वह इसे बच्चे का करिश्मा मानता था; आर्य का करिश्मा। भविष्यवाणी उसके साथ हुई थी, तो उसे सामान्य किसी भी नज़र में नहीं कहा जा सकता था। जल्द ही आर्य भोजन लेकर बाहर आया और बोला, "बाबा, गरमागरम भोजन तैयार है। चलिए, अब जल्दी से भोजन शुरू कीजिए।" आर्य के बोलते ही विष्णुवर अपनी पुरानी यादों से बाहर आ गया। उसने भोजन की ओर देखा और कहा, "तुम भी अपनी थाली ले आओ, आर्य… काफी दिनों से हमने साथ में भोजन नहीं किया।" यह बात सच थी। आर्य हमेशा अपने बाबा के भोजन करने के बाद ही भोजन करता था। उसने सहमति प्रकट की, "मैं अभी ले आता हूँ…" इसके बाद वह पलक झपकते ही अंदर गया और वापस बाहर आ गया। उसका अंदर जाना और वापस बाहर आना करिश्मे के तौर पर हुआ था; वह इसे हवा से भी तेज चलना कहता था। विष्णुवर उसकी इस तेज गति को भी तब से देखता आ रहा था जब से आर्य ने अपनी आयु के आठवें वर्ष में प्रवेश किया था। वह इसके बारे में कई तरह के सिद्धांत बना चुका था। एक तो आर्य ऐसे समुदाय से आता था जो विशेष प्रकार की क्षमताएँ रखते थे; इसमें उसके माता-पिता की खूबियाँ भी शामिल थीं, जिनके रहस्य अज्ञात हैं। एक, वह भविष्यवाणी के अनुसार पैदा हुआ था, तो उसका अलग होना किसी तरह का आश्चर्य नहीं था। जल्द ही दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने बैठकर भोजन करने लगे। भोजन करते हुए आर्य बोला, "बाबा, आपको पता है, आजकल मैंने एक नई चीज़ की खोज की है। मैंने सुबह चाय बनाते वक़्त इस बात पर ध्यान दिया कि मेरा हाथ आग में नहीं जलता। यह कुल मिलाकर मेरी चौथी ऐसी खूबी है जो मुझे इस वर्ष देखने को मिली। ठंड का एहसास तो पहले ही नहीं होता था, और अब आग का एहसास भी नहीं होता।" विष्णुवर ने गहरी साँस ली, "अभी तो और भी बहुत कुछ है जो तुम्हें अपने आप में देखने को मिलेगा। मेरे ख़्याल से इक्कीस वर्ष के होने तक तुम अपनी सारी क्षमताओं को जान जाओगे।" "वह तो ठीक है, बाबा। लेकिन मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? आपने मुझे अभी तक नहीं बताया कि इन सब की वजह क्या है?" अचानक विष्णुवर के हाथ भोजन करते-करते रुक गए। उसने कई बार आर्य को इन सब के पीछे के कारणों के बारे में बताने का फ़ैसला किया था, लेकिन हर बार यही सोचा कि आर्य अभी छोटा है; जब तक वह बीस वर्ष के आस-पास नहीं पहुँच जाता, तब तक उसे इस बारे में नहीं बताया जाए। कहीं ऐसा ना हो कि जब वह इस बारे में जाने तो पूरी तरह से टूट जाए, या कमज़ोर पड़ जाए, या फिर डर जाए, अथवा डगमगा जाए। उसे नहीं पता था आने वाले समय में उसका मुकाबला किससे होने वाला है। उसे अंधेरे से लड़ना था; दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति से। आर्य दुबारा बोला, "क्या इसमें कोई ख़ास बात है, बाबा…?" विष्णुवर सोच में डूबा हुआ था, तो उसने अपनी सोच से निकलते हुए कहा, "नहीं बेटा, इसमें कोई ख़ास बात नहीं है। मगर इतना ज़रूर है कि संसार में कुछ चीज़ें हमेशा अद्भुत होती हैं; अद्भुत और दूसरों से बिल्कुल अलग। उन चीज़ों को हम कीमती या अनमोल कहते हैं। तुम ऐसी ही चीज़ों में से एक हो; बिल्कुल अलग, कीमती। यही वजह है कि तुममें ये सब गुण हैं; ऐसे गुण जो किसी में नहीं होते। और तुम्हें आगे आने वाले समय में हमेशा इस पर गर्व होगा।" "आगे आने वाले समय का तो पता नहीं, मगर अभी इस समय मैं अपनी इन चीज़ों को लेकर काफी दुविधा में रहता हूँ। दिमाग पर बोझ सा बना रहता है। यह क्या है, क्या नहीं…" विष्णुवर इस बात को समझ सकता था। किसी सोलह वर्षीय बच्चे के पास रहस्यमयी शक्तियाँ होंगी तो उस पर क्या बीतेगी, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। विष्णुवर ने उसे दिलासा देते हुए कहा, "तुम्हें धीरे-धीरे इसकी आदत लग जाएगी। समय सभी चीज़ों को ठीक कर देता है। चलो, अब भोजन कर लो। भोजन करने के बाद हमें जंगल में भ्रमण के लिए जाना है।" जंगल में भ्रमण ऐसी चीज़ थी जिसे वे रोज़ाना करते आ रहे थे। दिन में भोजन करने के बाद वे हमेशा जंगल में भ्रमण के लिए जाते थे; कभी पहाड़ों पर, कभी पेड़-पौधों की गहराई में, तो कभी कहीं और। वहाँ कभी-कभी आर्य अपनी क्षमताओं का भी परीक्षण करता था। लेकिन आज बाहर का मौसम कुछ ठीक नहीं था। बाहर काले बादल उमड़ रहे थे जो बारिश और तूफ़ान का प्रतीक थे; साथ ही किसी और चीज़ का भी… अंधकार…!!
अध्याय 1 12 साल बाद भाग-2 ★★★ ठंडी हवाओं का सिलसिला जंगल में भी जारी था। लंबे पेड़ों के बीच आर्य और विष्णुवर एक-दूसरे के आगे-पीछे वहाँ बनी पगडंडी पर टहल रहे थे। आर्य के हाथ में लकड़ी का एक लंबा ठंडा था, जिससे वह बीच-बीच में आने वाली झाड़ियों को इधर-उधर कर रहा था। आर्य चलते हुए अपने बाबा से बोला, “बाबा... आपको याद है आपने मुझे एक बार कहानी सुनाई थी? कुछ खतरनाक और अच्छे लोगों की कहानी।” विष्णुवर कहानी के बारे में सोचने लगा। वह कहानी नहीं, बल्कि हकीकत थी। विष्णुवर ने उसे शैतानी दुनिया के बारे में बताया था—एक ऐसी दुनिया जो हमारी दुनिया से अलग, कहीं दूर किसी कोने पर स्थित है। वहाँ जितनी भी बुरी शक्तियाँ हैं, वे वहीं रहती हैं। कोई भी इस कहानी पर यकीन नहीं करता, लेकिन यह एक असली हकीकत थी। विष्णुवर बोला, “हाँ बेटा। मुझे वह कहानी अच्छे से याद है। हमारे समाज में तीन तरह के लोग रहते हैं: पहले इंसान, दूसरे बुरी आत्माएँ, जिनमें प्रत्येक बुरा शैतान शामिल है, और तीसरे, शैतानों से लड़ने वाले लोग। बुरी आत्माओं का मकसद इस दुनिया पर कब्ज़ा कर अपना साम्राज्य बसाना है, जिसके लिए उन्हें अंधेरे के शहंशाह को इस दुनिया पर लाना ज़रूरी है। अंधेरे के शहंशाह के आने से इंसानों में खौफ फैलेगा, वहीं उनकी सेना को ताकत मिलेगी, और वे इंसानों पर कब्ज़ा कर लेंगे। लेकिन उनसे लड़ने वाला समूह उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा है। उनकी वजह से शैतान अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते। उन्होंने शैतानों की दुनिया के रास्ते को खास जादुई ताकतों से बंद कर दिया है, जिसे खोलने के लिए दो छड़ियों की आवश्यकता है। हालाँकि, सब जानते हैं कि शैतानों को आने से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता, जिसके पीछे कई कारण हैं। एक तो शैतानों की संख्या बहुत ज़्यादा है, और दूसरा, उनके पास जो ताकत है वह दूसरे लोगों के पास नहीं है। इस वजह से उनसे लड़ने वाले लोग काफी कम हैं, और उनमें से भी उन लोगों की संख्या और भी कम है जिनके पास अलग तरह की ताकत हो—गिनती के चार या पाँच। इस समस्या से निपटने के लिए शैतानों से लड़ने वाले लोगों ने ताकत बढ़ाने के लिए एक अलग जगह की स्थापना की, जो हिमालय में बर्फीले पहाड़ों के बीच में बनी हुई है। सब उस जगह को ‘वर्ष वर्धन’ नाम से जानते हैं। वहाँ नए छात्रों को शामिल किया जाता है, और फिर उन्हें जादू और तलवारबाज़ी समेत अन्य चीज़ें सिखाई जाती हैं।” “जादू...” अचानक आर्य ने हैरत से कहा, “मगर क्या आपको लगता है कि जादू जैसी चीज़ें संभव हैं? और फिर, वहीं अगर शैतानों को रोकने की कोशिश नाकामयाब हो गई और उनका शहंशाह दुनिया पर आ गया, तो क्या होगा? क्या वह अपने मकसद में कामयाब हो जाएगा?” विष्णुवर एक साथ दो सवालों से घिर चुका था। उसने पहले सवाल का जवाब देते हुए कहा, “देखो, जहाँ तक बात जादू की है, तो तुम्हारे पास जो क्षमता है, वह भी एक ऐसी क्षमता है जिस पर कोई यकीन नहीं कर सकता। अगर उसका वजूद है, तो जादू का भी वजूद है। रही बात शैतान की दुनिया पर आ जाने की, तो इसे लेकर एक भविष्यवाणी है। भविष्यवाणी में कहा गया है कि कोई खास तरह का लड़का, जब 21 साल का हो जाएगा, तो वह शैतान को मार सकता है। तब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह दुनिया में आए या ना आए। लेकिन आश्रम के लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते। उनकी कोशिश तो यही है कि वह शैतान दुनिया पर ही ना आने पाए—एक तरह से, ‘ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी’। मतलब, जब दुनिया पर किसी तरह का खतरा ही नहीं आएगा, तो भविष्यवाणी का कोई मतलब नहीं रह जाता।” “आह... मतलब आपके ये आश्रम वाले लोग काफी समझदार हैं। वे नियति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका सीधा-साधा दूसरा मतलब निकल कर आता है: मुसीबत के इलाज से बेहतर, मुसीबत को ही मत आने दो।” विष्णुवर हँस पड़ा। “यहाँ धागे के दो छोर एक जैसे हैं बेटा। कहीं से भी पकड़ लो, चीज़ एक ही मिलेगी। संभावनाओं को नज़रअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता, ना?” दोनों ही चलते-चलते एक ऐसी जगह पर आ गए थे जहाँ उनके ठीक सामने एक खूबसूरत झरना बह रहा था। झरने का पानी ऊँचाई से गिरते हुए एक मनमोहक आवाज़ पैदा कर, एक शानदार दृश्य का निर्माण कर रहा था। झरने के आस-पास काफी सारे रंग-बिरंगे फूल थे, जिन पर तितलियाँ उड़ रही थीं। आर्य ने लंबी अंगड़ाई लेते हुए कहा, “हमारा घर शायद दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह के पास मौजूद है। इस तरह के खूबसूरत झरने का दृश्य शायद ही किसी को अपने घर के पास देखने को मिले। मेरा तो अब नहाने का मन करने लगा है।” विष्णुवर ने अपने सामने बहते पानी को देखा। “मेरे ख़्याल से तुम्हारा यहाँ नहाना ठीक नहीं है। यहाँ का पानी शांत है, बहाव में तेज़ी नहीं है; इस तरह के पानी में मगरमच्छ अधिक संख्या में मौजूद रहते हैं। कोई भी धोखे से तुम पर हमला कर सकता है।” आर्य यह सुनकर हल्के से हँसने लगा। “आपको पता है ना बाबा मैं कौन हूँ, और मुझमें क्या-क्या ख़ास है। मुझे ठंड नहीं लगती, गर्मी नहीं लगती—यह नई बात है। मगर मुझे जख्म भी नहीं होते—यह तो काफी पुरानी बात है। आप इसे कैसे भूल गए?” यह सुनकर विष्णुवर ने उसे एक समझदार शिक्षक के नज़रिए से देखते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी यह ख़ासियत इसलिए नहीं कि तुम किसी ख़तरों से भरी जगह में खुद को एक शिकार की तरह डाल दो। तुम्हें अपनी इस आदत को बदलना होगा। अपनी ताकत को जानते हुए भी ख़तरों से सतर्क रहना होगा। ऐसे रहना होगा जैसे तुम एक आम इंसान हो। तुम्हारा रहन-सहन का तरीका, तुम्हारा लोगों से बोलने का तरीका, कठिन परिस्थितियों का सामना करने का तरीका—ये चीज़ें तुम्हें महान बनाएँगी, ना कि तुम्हारी क्षमताएँ। वे बस तुम्हारी मदद के लिए हैं। अगर तुम इसे लेकर महत्वाकांक्षी हो गए, तो हो सकता है किसी मुक़ाबले में तुम्हें मुँह के बल मात खानी पड़े।” आर्य ने झुके हुए चेहरे से हामी भरी। “मैं आपकी बात का मतलब समझ गया बाबा। आप यही कहना चाहते हैं ना कि मुझे अपनी ख़ास क्षमताओं का हर वक़्त इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें ज़रूरत के हिसाब से, सही वक़्त पर आज़माना चाहिए।” इसके बाद वह झरने की तरफ़ देखते हुए बोला, “आपका कहना सही है। मैं नहाने के लिए किसी सुरक्षित जगह की तलाश करता हूँ... शायद झरने के सबसे पास की जगह ज़्यादा बेहतर रहेगी। वहाँ पानी का बहाव तेज़ है, तो ख़तरनाक मगरमच्छ हमला नहीं करेंगे।” ★★★ आर्य ने झरने के पास एक सुरक्षित जगह की तलाश की और स्नान करने लगा। वहीं उसके बाबा विष्णुवर झरने से थोड़ी दूर एक पत्थर की चट्टान पर जाकर बैठ गए। वह खुद को थका हुआ महसूस कर रहे थे—शारीरिक तौर पर नहीं, बल्कि मानसिक तौर पर। आर्य जैसे लड़के का उनके कंधों पर भार उन्हें थका रहा था। वह यह बात अच्छे से जानते थे कि उन्हें आर्य की जिस ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना है, वह उसके लायक नहीं हैं; उसे किसी लड़ाई के लिए तैयार करना उनके वश की बात नहीं है। इसके लिए उसे वहाँ जाना चाहिए जिसके लिए वह बना है, मगर वे उलझन में थे। वे सही और उचित समय के मायाजाल में उलझे हुए थे। क्या सही रहेगा, क्या नहीं—इसका फ़ैसला करना उनके वश की बात नहीं थी। आर्य को देखते-देखते उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और टटोलते हुए कुछ बाहर निकाला। वह एक अंगूठी थी—एक छोटी, सुनहरे रंग की अंगूठी जो बीच-बीच में सूरज की किरणों की वजह से चमक रही थी। उन्होंने अंगूठी को देखते हुए कहा, “आर्य, यह अंगूठी तुम्हारे सफ़र की शुरुआत के लिए बनी है—एक ऐसे सफ़र की शुरुआत के लिए जहाँ तुम्हें हज़ारों मुसीबतों से गुज़रते हुए मंज़िल तक पहुँचना है, ताकतवर दुश्मनों का सामना करना है। लेकिन तुम इस रास्ते पर कब निकलोगे, इसका फ़ैसला या तो तुम खुद करोगे, या यह वक़्त। इन दोनों के सिवा कोई भी तुम्हारे इस सफ़र को शुरू नहीं करेगा।” वे अभी बात ही कर रहे थे कि उन्होंने देखा कि ऊपर का आसमान अविश्वसनीय तौर पर काला होता जा रहा था। उन्होंने अब तक कई दफ़ा काले बादलों को आसमान में आते हुए देखा था, मगर जिस तरह से आज काले बादल अचानक से पूरे आसमान को ढँक रहे थे, वह हैरतअंगेज था। कुछ समय पहले जो धूप नज़र आ रही थी, वह गायब होती जा रही थी। धूप की जगह ऐसा मौसम हो रहा था जैसे शाम पूरी तरह से ढल चुकी हो। विष्णुवर अचंभित होते हुए अपनी जगह से खड़ा हो उठा। वहीं आर्य पानी में नहा रहा था, तो नहाते-नहाते उसने ऊपर आसमान की तरफ़ नज़र डाली। आसमान के गहरे काले रंग को देखकर वह भी हैरान हो गया था। लेकिन उसकी हैरानी तब और ज़्यादा बढ़ गई जब उसने इससे भी हैरतअंगेज कुछ और देखा—जिस पानी में वह नहा रहा था, वह पूरा का पूरा पानी काला पड़ गया था। आर्य यह देखकर घबरा गया। उसने तुरंत तेज़ी दिखाई और पानी से निकलकर बाहर विष्णुवर के पास आ गया। आर्य पानी से बाहर आने के बाद झरने की तरफ़ देखते हुए बोला, “बाबा... झरने का पानी ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा काला पड़ चुका है। आखिर यह सब हो क्या रहा है? क्या हम किसी तरह की मुसीबत में फँसने वाले हैं? मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा।” विष्णुवर के माथे पर सिलवटें आती जा रही थीं। उसकी बूढ़ी चमड़ी सिकुड़ रही थी। शायद वह जान चुका था कि यह घटना क्यों घट रही है। यह एक प्रतीक था, एक सूचना—शैतानों के आने की। “अरे... तो हमारे कुछ दोस्त यहाँ छुपे बैठे हैं... देखो तो जंगल में अपने छिपने के लिए इन्होंने कौन सी जगह ढूँढ़ी है—झरने के नीचे, फूलों के बीच...” अचानक उनके ठीक पीछे हवा के अंदर कुछ अंधेरी परछाइयाँ प्रकट हुईं, और उनमें से एक अंधेरी परछाई बोली। आवाज़ सुनते ही आर्य और विष्णुवर पीछे की तरफ़ पलट गए। उनके ठीक सामने काले चोगों में छह अंधेरी परछाइयाँ खड़ी थीं, जिनके चेहरे नहीं थे, बल्कि उनके चेहरों की जगह काला धुआँ तैर रहा था। आर्य ने इस तरह की प्रजाति अपनी अब तक की उम्र में कभी नहीं देखी थी। उन्हें देखते ही उसका डरना जायज़ था। वह थोड़ा सहमता हुआ बोला, “बाबा... मुझे... मुझे ये ख़तरनाक लग रहे हैं... हमें यहाँ से भागना चाहिए।” विष्णुवर ने आर्य का हाथ पकड़ा और कहा, “शांत रहो। मुझे पता है तुमने ये सब आज से पहले कभी नहीं देखा, इसलिए तुम्हारे मन में डर है। लेकिन मैं इनका कई बार सामना कर चुका हूँ। बस तुम डरना मत, और जैसा मैं कहूँगा वैसा करना।” कहते-कहते विष्णुवर ने अपने हाथ में पकड़ी अंगूठी आर्य के हाथ में पकड़ा दी। “अब तुम पीछे हो जाओ...” आर्य धीमे-धीमे कदमों से पीछे हटने लगा। वहीं विष्णुवर ने कुछ कदम आगे की ओर बढ़ाए और उनके सामने जाकर खड़ा हो गया। जो शैतानी परछाई पहले बोली थी, उसने दोबारा कहा, “हम पिछले 12 सालों से आश्रम के लोगों को ढूँढ़-ढूँढ़ कर मार रहे हैं। उनके सुरक्षा-चक्र बनाने के बाद हम सिर्फ़ उन्हें ही नुकसान पहुँचा सकते थे जो उनके सुरक्षा-चक्र से बाहर हैं। और तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि तुम हमारे 816वें शिकार हो। आश्रम वाले सिर्फ़ दो ही काम कर सकते हैं: या तो तुम लोगों को मरते हुए देख सकते हैं, या फिर दोनों ही छड़ियाँ हमारे हवाले कर सकते हैं।” “हमारे लोग सच्चाई को जानते हैं। उन्हें पता है कि तुम लोग अपने शैतानी मकसद में कभी कामयाब नहीं हो सकते। ना तो तुम लोगों को आश्रम से वे दोनों सुरक्षित छड़ियाँ मिलेंगी, ना ही तुम लोग कभी शैतानों के शहंशाह को यहाँ धरती पर ला पाओगे।” यह सुनकर वे शैतानी परछाइयाँ ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगीं। हँसते हुए उसने कहा, “तुम्हें पता है, इस दुनिया में मुझे सबसे ज़्यादा इंसान पसंद हैं। क्यों? क्योंकि उनकी कहावतें बड़ी मज़ेदार होती हैं। उनके पास हर एक बुरी से बुरी और अच्छी से अच्छी स्थिति के लिए कहावत है। जैसे कि अब इस मामले में, जहाँ तुम हमें ज्ञान दे रहे हो, वहाँ यह वाली कहावत बड़ी जँचती है: ‘मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती’। और हम हमारे आका के गुलाम हैं; तब तक मेहनत करते रहेंगे जब तक हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते, जब तक हमारे शहंशाह यहाँ इस दुनिया में नहीं आ जाते।” “पूलावी ख़्वाब देखने वाले कभी कुछ हासिल नहीं कर पाते। उनके ख़्वाब बस ख़्वाब रह जाते हैं।” विष्णुवर अपने कदमों को गति देकर उनकी ओर पास जा रहा था। सभी शैतानी परछाइयाँ उसे पास आता देख चौंकनी हो रही थीं। वहीं आर्य दूर से अपने बाबा को उनके पास जाते हुए देख रहा था। यह बात उसकी समझ से परे थी कि उसके बाबा ऐसा क्यों कर रहे हैं, आखिर वे करना क्या चाहते हैं। लेकिन वह जो भी करना चाहते थे, उसका नतीजा अच्छा नहीं रहने वाला था। ★★★
अध्याय 1 12 साल बाद भाग-3 ★★★ विष्णुवर अंधेरी परछाइयों की ओर जाते हुए बिल्कुल उनके करीब पहुँच गया। वह सबसे आगे खड़ी अंधेरी परछाई के ठीक सामने खड़ा था। आर्य अभी भी अपने बाबा को ही देख रहा था। विष्णुवर अंधेरी परछाइयों की ओर देखते हुए मुस्कुराया और मुस्कुराने के बाद कहा, “अक्सर एक बड़े मकसद के लिए छोटी कुर्बानी देनी पड़ती है। मुझे खुशी होगी, मुझे इस बात की खुशी होगी कि आज मैं भी एक कुर्बानी दे रहा हूँ—एक ऐसी कुर्बानी जो सिर्फ़ तुम्हारे विनाश के लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी पूरी दुनिया के विनाश के लिए उत्तरदायी होगी।” इतना कहकर विष्णुवर ने जोर से उस अंधेरी परछाई को धक्का मार दिया। अंधेरी परछाई को धक्का मारते ही पीछे की कुछ अंधेरी परछाइयाँ दूर जा गिरीं। इससे पहले कि वे संभल पातीं, विष्णुवर ने जोर से आर्य को कहा, “उस अंगूठी को ऊपर हवा में करके ‘वर्ष वर्धन’ का नाम लो।” आर्य ने अपने बाबा के ये शब्द सुने। लेकिन उसके बाबा ठीक उसकी आँखों के सामने एक अनदेखी प्रजाति के सामने खड़े थे; ऐसे में उसका ध्यान सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बाबा की ओर ही था। उनके द्वारा कहे गए शब्दों को उसने पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया था। विष्णुवर ने जब यह देखा, तो वह दोबारा बोले, “आर्य, मैंने तुमसे जो कहा है, वह करो। अंगूठी को ऊपर हवा में करो और ‘वर्ष वर्धन’ का नाम लो।” आर्य की आँखों से आँसू निकल आए। उसने रोते हुए अंगूठी ऊपर की ओर उठाई और अपने बाबा द्वारा कहे गए नाम का उच्चारण किया, “वर्ष वर्धन...” देखते ही देखते अचानक अंगूठी में कंपन होने लगा। वह कंपन पहले कम था और फिर धीरे-धीरे बढ़ता गया। अचानक उसके हाथ से अंगूठी निकली और वह करिश्माई तौर पर हवा में तैरने लगी। इधर, नीचे गिरी अंधेरी परछाइयाँ संभल चुकी थीं। उनमें से एक अंधेरी परछाई ने अपना हाथ आगे किया और विष्णुवर के पास पहुँचकर उसे उसके सीने के आर-पार कर दिया। अंधेरी परछाई के इस किए गए वार से एक ही झटके में विष्णुवर का कलेजा अंधेरी परछाई के हाथ में आकर दूसरी ओर से बाहर निकल गया। आर्य यह देखकर चिल्लाया, “बाबा...” और अपने बाबा की तरफ़ बढ़ा। मगर विष्णुवर ने अपना हाथ आगे कर उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। वह पीड़ा से भरी कराहती हुई आवाज़ में बोले, “मुझे कब से इस बात का फ़ैसला करना था कि तुम जिस चीज़ के लिए बने हो, उसकी ज़िम्मेदारी का निर्वाह मुझे करना है या किसी और को। और अब यह फ़ैसला मैंने कर लिया है। अब तुम्हें तैयार करने की ज़िम्मेदारी मेरी नहीं, बल्कि उनकी होगी, जिनके लिए तुम बने हो। मेरे बेटे... हमेशा एक बात याद रखना... तुम...” उनकी आँखों से भी आँसू झलक गए। “...तुम उम्मीद हो।” अंधेरी परछाई ने अपना हाथ विष्णुवर के शरीर से निकाल लिया, जिससे वह कदमों के नीचे जमीन पर गिर पड़ा। आर्य स्तब्ध, अभी भी अपनी जगह पर खड़ा अपने बाबा को देख रहा था। विष्णुवर का हाथ अभी भी उसे अपनी जगह पर रोके हुए था। वहीं उसके पीछे जो अंगूठी हवा में गई थी, वह सफ़ेद रोशनी से चमकती हुई धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। अंगूठी बड़ी होते हुए किसी ऐसे दरवाज़े में बदल रही थी जिसके दूसरी ओर सफ़ेद बर्फीले मैदान दिखाई दे रहे थे। विष्णुवर ने कदमों के बल नीचे गिरने के बाद कहा, “आर्य... मैंने तुम्हें तुम्हारी मंज़िल दे दी है। यह अंगूठी, यह तुम्हें एक ऐसी जगह ले जाएगी जहाँ तुम्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुँचा पाएगा। वहाँ तुम्हारी वह मंज़िल होगी, जहाँ तुम अपने सफ़र की शुरुआत करोगे। जब तक तुम 21 साल के नहीं हो जाते, तब तक तुम्हें यहीं रहकर अपने सफ़र के लिए तैयार होना है—इतना तैयार कि कल जब अंधेरे का शहंशाह भी तुम्हारे सामने आकर खड़ा हो जाए, तब भी उसे तुम्हारे आगे घुटने टेकने पड़ें। जाओ मेरे बेटे, जाओ। जल्दी इस अंगूठी के अंदर चले जाओ।” आर्य अपने बाबा की कुछ बातों को समझ पा रहा था, जबकि कुछ बातें समझ पाना उसके बस की बात नहीं थी। उसने रोते हुए अपने बाबा के रोकने के बावजूद उनकी ओर जाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने दो कदम बढ़ाए, उसके बाबा कसम देते हुए बोले, “बेटा, तुम्हें कसम है मेरी। जाओ, अंगूठी के दूसरी ओर चले जाओ।” अंधेरी परछाइयों में जिस परछाई ने अपना हाथ विष्णुवर के शरीर के आर-पार किया था, वह पीछे खड़ी परछाइयों से आदेशात्मक स्वर में बोली, “तुम सब खड़े-खड़े यह मेरा मुँह क्या देख रहे हो? जाओ और जाकर उस लड़के को भी वैसे ही मार डालो, जैसे हमने इस बूढ़े को मारा है। आज रात को हम इन दोनों के कलेजे पकाकर खाएँगे।” बाकी की सभी अंधेरी परछाइयाँ तेज़ी से उसकी ओर बढ़ पड़ीं। वहीं विष्णुवर आर्य को कसम दे चुका था, तो मजबूरन वह रोते हुए अंगूठी में बने दरवाज़े की ओर जाने लगा। उसके जाते-जाते विष्णुवर निष्प्राण होकर जमीन पर गिर गया। आर्य जैसे ही अंगूठी के उस पार गया, अचानक रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और पूरा बना दरवाज़ा अंगूठी के साथ ही गायब हो गया। सारी अंधेरी परछाइयाँ उस जगह तक पहुँचीं तो उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। वे सब की सब खाली हाथ रह गईं। उन्होंने मुड़कर अपने आदेश देने वाले साथी की तरफ़ देखा। उनके देखते ही साथी ने गुस्से से कहा, “अब क्या? ना जाने कैसी मनहूस घड़ी में मैं तुम लोगों को साथ लेकर आया। इंसानों से नफ़रत करने के बावजूद मुझे इंसानों की कहावतें बार-बार इस्तेमाल करनी पड़ रही हैं। चलो अब चलें, क्या फ़ायदा पछताने का जब चिड़िया खेत ही चुग गई। आज हमारे हाथ से एक शिकारी निकलकर सुरक्षा कवच से गिरे आश्रम में चला गया। आश्रम वाले पहले से ही बाहर नहीं निकल रहे थे, अब यह लड़का भी वहाँ जाकर दुबक कर बैठ जाएगा।” जल्द ही वहाँ मौजूद अंधेरी परछाइयाँ धीरे-धीरे हवा में विलीन होती गईं। सबके विलीन होने के बाद आसमान में छाए काले बादल हट गए। पानी का काला रंग भी अपने आप ठीक हो गया। सब चीज़ें पहले जैसी हो गईं, मगर एक चीज़ जो पहले जैसी नहीं हो पाई—विष्णुवर का निष्प्राण शरीर, जो अंधेरी परछाइयों का शिकार हो गया था, वह वैसा का वैसा ही पड़ा रहा। शायद वह मरते वक़्त अपनी मौत से निराश नहीं था, क्योंकि वह इस बात को लेकर खुश था कि मरने से पहले उसने अति महत्वपूर्ण काम को अंजाम दे दिया था। उसने आर्य को सुरक्षित कर दिया था—उस आर्य को जो अंधेरे के शहंशाह को ख़त्म करने के लिए बना था। ★★★ आर्य अंगूठी वाले घेरे से बाहर आया तो तेज ठंडी हवाओं की वजह से वह अंदर तक सिहर गया। उसे ठंड का एहसास नहीं होता था, मगर आज वह भी उसे महसूस कर पा रहा था। उसने देखा कि उसे लाने वाली अंगूठी छोटी होकर उसके हाथ में आ गई थी, जिसे पकड़ने तक वह हवा में तैरती रही। आर्य ने अंगूठी को अपनी मुट्ठी में बंद करते हुए आस-पास देखा। वह एक अलग ही जगह पर खड़ा था—एक ऐसी जगह जो बर्फीले मैदान में मौजूद थी। उसके ठीक सामने ईंटों और पत्थरों से बनी किसी राजा-महाराजा के जमाने की दीवार थी, जहाँ बीचो-बीच एक बड़ा लकड़ी का दरवाज़ा लगा हुआ था। इसके अलावा दूर-दूर बर्फीली पहाड़ियों के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आर्य की आँखों में एक पल के लिए अपने बाबा के दृश्य आए—अब से कुछ देर पहले वह कैसे खुशियाँ मना रहा था, उसके बाबा ठीक उसके सामने थे, और अब वह उन्हें खो चुका है—कुछ ऐसी प्रजातियों की वजह से जो उसके लिए अज्ञात थीं। आर्य कुछ देर तक बर्फीले मैदानों में खड़ा अपने बाबा के बारे में ही सोचता रहा। फिर उसने सोचना बंद किया और अपने कदम सामने मौजूद लकड़ी के बड़े से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ाए। वह धीमे-धीमे कदमों से दरवाज़े की ओर जा रहा था। जैसे-जैसे उसकी दूरी दरवाज़े से कम हो रही थी, वैसे-वैसे दरवाज़ा और भी स्पष्ट नज़र आ रहा था। लकड़ी के होने के साथ-साथ दरवाज़े पर अलग तरह की नक्काशी भी थीं—ऐसी नक्काशी जिसमें उगते हुए सूरज और आसमान के चमकते तारों का दृश्य था। सूरज और आसमान के चमकते तारे कभी एक साथ दिखाई नहीं देते, लेकिन यहाँ दरवाज़े पर उनकी साथ होने की नक्काशी बनी हुई थी। आर्य चलता-चलता दरवाज़े के बिल्कुल करीब आ गया। दरवाज़े के बीच वाली दरार के दोनों ही ओर लोहे के बड़े-बड़े गोल कुंडे टँगे हुए थे। आर्य अब ठंड को और भी ज़्यादा महसूस करने लगा था। उसने कंपकंपाते हुए थूक अंदर गिराया और दरवाज़े को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। मगर जैसे ही उसने दरवाज़े को हाथ लगाया, उसे बिजली का जोरदार झटका लगा, और वह उछलता हुआ पीछे दूर जा गिरा। गिरते ही उसकी आँखों के सामने खड़े आसमान के दृश्य आ गए जो धीरे-धीरे धुंधले हो रहे थे। उसकी आँखों पर बेहोशी छा रही थी। दृश्यों का धुंधला होना और भी ज़्यादा बढ़ा और वह पूरी तरह से बेहोश हो गया—एक ऐसी जगह के सामने जो उसके लिए अज्ञात थी। और उसके बेहोश होने के बाद... उसके दरवाज़े खुल रहे थे। ★★★
अध्याय 2 चार रहस्यमयी और खतरनाक जगहें भाग 1 ★★★ आर्य को होश आया तो उसने खुद को किसी घास-फूस से बने कमरे में पाया, जहाँ उसके आस-पास काफी सारे सफ़ेद दाढ़ी वाले, सफ़ेद चोगा पहने, दिव्य ऋषि-मुनियों की तरह लगने वाले लोग खड़े थे। उनमें से कुछ ऐसे लोग भी थे जिनकी दाढ़ी बड़ी थी, मगर वह सफ़ेद नहीं थी, जबकि एक ने सफ़ेद चोगे की बजाय सुनहरे रंग का चोगा पहन रखा था। आर्य सभी को देखकर चकपकाया और तुरंत अपनी जगह से खड़ा हो उठा। उसने महसूस किया कि जिस जगह पर वह लेटा हुआ था, वह लकड़ी की बनी कोई चारपाई थी, जिससे खड़े होते वक़्त उसमें आवाज़ भी हुई। “तुम घबराओ मत...” अचानक एक चमत्कारी, सुनहरी-सी प्रतीत होती हुई आवाज़ आई। ये शब्द सुनहरे चोगे वाले ने कहे थे। “तुम अब एक सुरक्षित जगह पर हो—एक ऐसी जगह पर जहाँ कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता।” उन्होंने अपना हाथ आगे कर अंगूठी दिखाई—यह वही अंगूठी थी जो आर्य को विष्णुवर ने दी थी। “तुम्हारे पास से हमें जो अंगूठी मिली है, उसने हमें सब कुछ बता दिया है। उसका कहना है कि तुम पर अंधेरी परछाइयों ने हमला किया था, जिसमें तुम्हारे एक साथी की जान चली गई, और तुम्हें बचाने के लिए उन्होंने तुम्हें यहाँ भेज दिया है।” “क्या अंगूठी... अंगूठी ने आपको बताया...?” आर्य हैरानी से बोला। वह इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था। उसे किसी भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। “हाँ, कुछ ऐसे मंत्र हैं जिनके बाद अंगूठी चीज़ों को बताने लगती है। उनका इस्तेमाल करके हम यहाँ आश्रम में आने वाले लोगों के पीछे की कहानी जानते हैं। अंगूठी हमें यह भी बताती है कि सामने वाले को हमारे बारे में क्या पता है, क्या नहीं। अक्सर हमारी सच्चाई को उसके माता-पिता बताने से कतराते हैं; इसलिए यहाँ आने वालों को हमें ही हमारे बारे में बताना पड़ता है।” आर्य शंका और सवालों के साथ अपने इर्द-गिर्द घिरे चेहरों को देखने लगा। वह देख पा रहा था कि उसके आस-पास जितने भी ऋषि-मुनि जैसे दिखने वाले लोग खड़े हैं, उनकी आयु बढ़ते से घटते क्रम में थी। वे कुल आठ व्यक्ति थे। जो उससे बात कर रहा था, उसकी आयु सबसे अधिक थी। सुनहरे चोगे वाले ने कहा, “हम एक ऐसा समुदाय हैं जो इस आश्रम का नेतृत्व करता है—वह आश्रम जो अंधेरे के शहंशाह को उसके मकसद में कामयाब ना होने देने के लिए उत्तरदायी है। हमारी वजह से ही अंधेरे का शहंशाह अभी तक दुनिया में नहीं आ पाया है। हम यहाँ आश्रम में अंधेरे के शहंशाह को दुनिया में लाने वाली दो छड़ियों की रखवाली करते हैं, और यहाँ आने वाले तुम जैसे नए लोगों को लड़ना सिखाते हैं। यहाँ लड़कियाँ जादू सीखती हैं, और लड़के तलवारबाज़ी। मैं यहाँ इस आश्रम का मुखिया, आचार्य वर्धन हूँ, और बाकी सब जिन्हें तुम देख पा रहे हो, वे यहाँ के बाकी के आचार्य हैं।” यह बताते ही आर्य अपने बाबा की उस कहानी को याद करने लगा जो वह उसे अक्सर सुनाते थे। मतलब, ये कहानियाँ सच्ची थीं। आश्रम और शैतानों के शहंशाह का वजूद था। उसके बाबा उसे सच्ची कहानी सुनाते थे। सच में एक ऐसी जगह थी जहाँ लड़ना और जादू करना सिखाया जाता था; जहाँ दो छड़ियों की हिफ़ाज़त की जा रही है। बाकी के आचार्यों ने अपनी बारी आते ही अपना परिचय देना शुरू किया। दूसरे नंबर के आचार्य, जो आचार्य वर्धन से थोड़ा-सा कम उम्र के थे, बोले, “मैं आचार्य वीरसेन हूँ। यहाँ आश्रम में मैं तलवारबाज़ी सिखाता हूँ।” उसके बाद अगले आचार्य बोले, “मैं आचार्य अर्जुन हूँ, और मैं यहाँ रसोईघर में बच्चों को खाना बनाना सिखाता हूँ।” बाकी के छह आचार्यों ने भी अपना परिचय दिया और अपने-अपने काम बताए। आखिरी आचार्य बोले, “और मैं आचार्य ज्ञानक हूँ; मैं हमेशा आचार्य वर्धन के साथ रहता हूँ और ज़रूरत के हिसाब से जिस तरह का काम करना पड़ता है, वह करता हूँ।” आचार्य ज्ञानक सभी आचार्यों में सबसे युवा आचार्य दिखाई पड़ रहे थे। सभी के कहने के बाद सुनहरे चोगे वाले आचार्य वर्धन ने कहा, “यहाँ आश्रम में हम आठ आचार्यों के अलावा तीन और आचार्याएँ हैं जो महिला आचार्या हैं। अभी वे सब विद्यार्थियों को संभाल रही हैं, तो यहाँ नहीं आ पाई हैं। लेकिन तुम जल्द ही उनसे भी मुलाक़ात कर लोगे। जिस आश्रम में तुम आए हो, वह आश्रम एक बड़े भू-भाग पर फैला हुआ है। यहाँ इस आश्रम में 400 से ज़्यादा विद्यार्थी हैं, जिनमें 235 लड़कियाँ हैं; 23 गुरु हैं जो इन्हें पढ़ाने का काम करते हैं; 11 आचार्य हैं जिनमें हम सब आते हैं; फिर इन सब के अलग-अलग कक्ष जहाँ ये रहते हैं, भोजनालय, पुस्तकालय, एक छोटा बाज़ार और ना जाने कितना कुछ है। तुम ये समझ सकते हो कि तुम अब एक ऐसी जगह पर आ चुके हो जो दुनिया से बिल्कुल अलग कटकर रहती है, हर एक सुख-सुविधा के साथ। हमारा रहन-सहन का तरीक़ा पुराने जमाने के तरीक़े से मेल खाता है, तो तुम्हें यहाँ ऐसे भी एहसास होंगे जैसे तुम पुराने समय में आ चुके हो।” आर्य ने एक नज़र उन आचार्यों के पीछे खुले दरवाज़े पर डाली। वहाँ दरवाज़े के उस पार उसे बर्फीले मैदानों में बनी कुछ झोपड़ियाँ दिखाई दे रही थीं। आर्य अभी उस ओर ही देख रहा था कि वहाँ दरवाज़े से एक लड़की अंदर आई और कर्मचारियों से बोली, “प्रणाम आचार्य। आपने मुझे यहाँ बुलाया है।” “हाँ, हिना...” लड़की के बोलते ही आचार्य वर्धन बोले। दरवाज़े से आते वक़्त आर्य ने लड़की की स्पष्ट छवि नहीं देखी थी, मगर जब आचार्य वर्धन उसकी ओर मुड़े तो उसे लड़की की स्पष्ट छवि नज़र आई। वह तक़रीबन 17 साल के आस-पास वाली गोरी-चिट्टी लड़की थी। उसके बाल भूरे रंग के थे और उसने नीले रंग का चोगा पहन रखा था। बाल खुले हुए थे, तो वह उन्हें बार-बार ठीक कर रही थी। आचार्य वर्धन ने उसे हिना नाम लेकर संबोधित किया था, तो इससे आर्य को पता चला कि उसका नाम हिना है। आचार्य वर्धन बोले, “यह लड़का यहाँ नया आया है, तो इसे पूरा आश्रम दिखा दो, जिन जगहों पर जाना मना है, उनके बारे में भी बता देना, और फिर लड़कों के शिविर में इसके लिए कमरे का इंतज़ाम कर देना। इस लड़के को लेकर इतना काम करने की ज़िम्मेदारी तुम्हारी है। ध्यान रहे, इसे किसी तरह की तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए।” लड़की ने अच्छे शिष्य की तरह हाँ में सर हिलाया। “आप फ़िक्र मत कीजिए आचार्य वर्धन। मैं इसे यह सब अच्छे से बता दूँगी।” इसके बाद वह तेज़ी से आर्य की ओर पलटी और थोड़ी अकड़ भरी आवाज़ में कहा, “चलो, आओ मेरे साथ आओ।” आर्य ने पहले हिना को देखा और फिर आचार्य वर्धन को। आचार्य वर्धन उत्साहित करते हुए बोले, “बेटा, देख आओ। तुम्हें जल्दी से जल्दी यहाँ के रहन-सहन की आदतों में ढलना है। जितना घूमोगे-फिरोगे, उतनी ही जल्दी यहाँ के हिसाब से रहने की आदत लगेगी।” आर्य ने असमंजस में फँसे किसी लड़के की तरह अपनी नज़रों को ऊपर-नीचे किया और फिर लड़की की तरफ़ देखते हुए उसके साथ चल पड़ा। ★★★ हिना और आर्य बाहर जहाँ भी चल रहे थे, वह बर्फ़ में बनी एक पगडंडी थी जिसके दोनों ही ओर काफी सारे छात्र इधर-उधर के काम करते दिखाई पड़ रहे थे। हिना तेज़-तेज़ चलते हुए बोली, “आश्रम में मैं तुम्हें सबसे पहले चार ऐसी जगहों के बारे में बताती हूँ जो सबसे ज़्यादा रहस्य से भरी हुई हैं, और उन चारों ही जगहों पर किसी का भी जाना सख़्त मना है। सख़्त मतलब सख़्त...” हिना ने ‘सख़्त मतलब सख़्त’ आर्य को लगभग आँखें दिखाते हुए कहा। आर्य को इतना तेज़ चलने की आदत नहीं थी। वह उसके पीछे बड़ी मुश्किल से उसकी चाल की बराबरी कर पा रहा था। पगडंडी के ज़रिए वे लोग आश्रम के बीचो-बीच बने एक पत्थरीली जगह तक पहुँच गए। हिना ने वहाँ सामने की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “सबसे पहली जगह, हमारे आश्रम के बीचो-बीच बनी हुई यह गुफ़ा। इस गुफ़ा में शैतानों को आज़ाद करवाने वाली एक छड़ी रखी गई है। गुफ़ा के अंदर जादू वाले सुरक्षा-मंत्र काम करते हैं, जिसकी वजह से अगर कोई एक बार अंदर चला गया, तो उसका ज़िंदा बच पाना लगभग असंभव है। वे जादुई मंत्र ख़तरनाक हैं और गुफ़ा में चक्रव्यूह का निर्माण करते हुए अंदर जाने वाले को उसमें पूरी तरह से फँसा लेते हैं। तुम समझ गए ना...?” हिना ने वापस आर्य की तरफ़ देखा और उसे मोटी-मोटी आँखों से घुरा, “इसलिए यहाँ जाना सख़्त मना है।” आर्य ने हाँ भरी। हिना ने उसका हाथ पकड़ा और तेज़ी से खींचते हुए दूसरी ओर जाने लगी। अबकी बार आर्य को ज़बरदस्ती उसके बराबर चलना पड़ रहा था। दोनों ही गुफ़ा से दूर, दूसरी पगडंडी के ज़रिए एक ऐसी जगह पर पहुँच गए जो खंडहर जैसे किले की तरह प्रतीत हो रही थी। वह जगह एक दीवार और लोहे के पुराने गेट से घिरी हुई थी। हिना वहाँ दीवार के पास और लोहे के गेट के सामने ही खड़ी होकर बोली, “यह यहाँ का शैतानी किला है। इसे शैतानी किला इसलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ सभी शैतानी आत्माओं को कैद करके रखा गया है। इनमें अंधेरी परछाइयाँ भी आती हैं और कुछ ऐसी आत्माएँ भी हैं जो सिर्फ़ ख़तरनाक नहीं, बल्कि विनाशकारी भी हैं। कोई भी शैतानी आत्मा किले से बाहर ना आए, इसलिए यहाँ भी जादुई मंत्रों का जाल बिछाया गया है। ये जादुई मंत्र सिर्फ़ अंदर से बाहर आने वाले के लिए ही ख़तरनाक नहीं हैं, बल्कि बाहर से अंदर जाने वाले के लिए भी ख़तरनाक हैं। फिर किले के अंदर भी ढेर सारे ख़तरनाक चक्रव्यूह हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो यहाँ जाना भी जान गँवाना है।” हिना ने फिर से आर्य को मोटी आँखों से देखा, “समझे तुम?” आर्य ने अबकी बार भी हाँ में सर हिलाया। हिना ने चेहरे पर खुशी झलकाई और आर्य का हाथ पकड़कर आश्रम के पीछे वाली दीवार की ओर जाने लगी। यह वाली पगडंडी लंबी थी। उसने जो गुफ़ा दिखाई थी, वह आश्रम के बीचों-बीच मौजूद थी, जबकि किला आश्रम के सामने वाले मुख्य दरवाज़े वाली दीवार के कोने पर था। अब वे आश्रम के सामने वाले हिस्से से सीधे पीछे वाले हिस्से की ओर जा रहे थे। दोनों वहाँ पहुँचे तो यहाँ भी एक बड़ा लकड़ी का बना हुआ दरवाज़ा दिखाई दिया, जो हूबहू उसी दरवाज़े जैसा था जो आश्रम के सामने बना हुआ था। हिना आगे बढ़ी और उस दरवाज़े को बाहर की ओर धक्का देते हुए अपने कमज़ोर भुजाओं की ज़ोर-आज़माइश से खोल दिया। दरवाज़े को खोलते ही सामने दूर तक फैले काले पेड़ों का कभी ना ख़त्म होने वाला जंगल दिखाई दिया। हिना उस जंगल की तरफ़ अपना हाथ करते हुए बोली, “हम इसे काला जंगल कहते हैं। बर्फ़ की वजह से यहाँ के सारे पेड़ काले पड़ गए हैं, तो यह ऐसा दिखाई देने लगा है। तुम्हें देखने से ही साफ़ पता लग रहा होगा कि यह जंगल डरावना है, मगर हकीक़त में भी यह डरावना ही है। यहाँ ऐसे-ऐसे जंगली जानवर हैं जो तुमने कभी अपनी ज़िंदगी में भी नहीं देखे होंगे। दीवार की वजह से वे जंगली जानवर आश्रम के अंदर नहीं आ पाते, लेकिन अगर कोई इस जंगल में जाएगा तो वह जंगली जानवरों की मन-माफ़ी मुराद पूरी होने जैसा होगा। वे अंदर जाने वाले को पकड़ेंगे, अपने पंजों और बड़े जबड़ों से उसके मांस को नोचेंगे, और उसके शरीर की बोटी-बोटी खा जाएँगे। यहाँ तक कि हड्डियों के मिलने की संभावना भी नहीं बचेगी।” हिना फिर से आर्य की तरफ़ मोटी-मोटी आँखों से देखने लगी, “समझ गए ना तुम...?” अबकी बार भी आर्य ने हाँ में सर हिला दिया। उसने अब तक तीन जगहों के बारे में सुना था, और तीनों ही जगह खुद की मौत को दावत देने वाली जगहें थीं। हिना ने दरवाज़े को बंद किया और बंद करते हुए बोली, “इन जगहों के बारे में आश्रम के सभी लोगों को जानकारी है, लेकिन इनके अंदर क्या है, इसके बारे में कोई नहीं जानता। इसलिए हम जैसे लोग इन्हें रहस्यमयी जगहें कहते हैं। कभी-कभी इनके बारे में गहराई से जानने की जिज्ञासा होती है, जो इंसानी नेचर होने की वजह से होना स्वाभाविक है, मगर यहाँ जो ख़तरे हैं, वे जिज्ञासा को तुरंत ही ख़त्म कर देते हैं। तो तुम भी इस बात का ध्यान रखना।” इस दरवाज़े के पास ही सीढ़ियाँ बनी हुई थीं जो ऊपर की ओर दीवार पर जाती थीं। हिना उन सीढ़ियों की तरफ़ देखते हुए बोली, “आओ, अब मैं तुम्हें आखिरी और चौथी जगह के बारे में बता दूँ।” वह सीढ़ियों की तरफ़ चल पड़ी थी। आर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। दोनों ही सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आए तो आर्य को दीवार का पूरा ढाँचा दिखा। दीवार एक बड़ी सड़क जितनी चौड़ी और दो मंज़िला घर के बराबर ऊँची थी। दीवार के ऊपर बनी सड़क के दोनों ही किनारों पर छोटी-छोटी पाँच इंची ईंटों की दीवार बनी हुई थी, जो इसलिए थी कि कोई दीवार से नीचे ना गिर जाए। हिना उस दीवार पर चलते हुए कुछ ज़्यादा ही खुश दिखाई दे रही थी। हिना ने इस खुशी में चलते हुए कहा, “मुझे यह जगह आश्रम में सबसे ज़्यादा पसंद है। यहाँ दीवार पर आकर वह सुकून मिलता है जो पूरे आश्रम में और कहीं भी नहीं मिलता। यहाँ एक साथ ठंडी हवाएँ और सफ़ेद बर्फ़ीले नज़ारे देखने को मिलते हैं। रात को तो यहाँ और भी मज़ा आता है।” वह चलते-चलते आर्य की ओर मुड़ते हुए बोली (इस दौरान वह उल्टी चल रही थी), “तुम यहाँ रात को आसमान के चमकते तारे ज़रूर देखना... फिर तुम्हें भी पता चल जाएगा यह जगह मेरी क्यों सबसे ज़्यादा पसंदीदा जगह है।” हिना दीवार के ऊपर ही चलते-चलते आश्रम के दाहिने वाले हिस्से के पास आ गई थी। उसने वहाँ दीवार पर आए मोड़ के पास अपने कदम रोक लिए। रुकने के बाद वह अपनी जेब टटोलने लगी। इस दौरान आर्य भी उसके पास आकर खड़ा हो गया था। हिना ने अपनी जेब से अंगूठी निकाली और उसे ऊपर आसमान की तरफ़ करते हुए उसके अंदर देखा। वह अंदर से देखते हुए आर्य को बोली, “ज़रा मेरे पास आओ और इस अंगूठी के अंदर देखो।” आर्य उसके करीब हुआ और अंगूठी के अंदर देखा। उसे अंगूठी के अंदर पूरे आश्रम को घेरने वाला एक लाल रंग का रोशनी का घेरा दिखाई दिया—ऐसा रोशनी का घेरा जो किसी पानी के बुलबुले की तरह था, और पूरा आश्रम उस गोल घेरे के बीचो-बीच केंद्र में बना हुआ था। उस घेरे के ऊपर अजीब सी तरंगें ऊपर उठते हुए बाहर की ओर निकल रही थीं, ठीक वैसे जैसे सूरज के अंदर से लावा ऊपर की ओर उठता है। हिना उस घेरे को देखते हुए बोली, “यह वह चीज़ है जिसकी वजह से हम सब यहाँ सुरक्षित हैं—आश्रम के आस-पास बना सुरक्षा-चक्र। चौथी और आखिरी ख़तरनाक जगह इस सुरक्षा-चक्र के बाहर की पूरी दुनिया है। सुरक्षा-चक्र के बाहर बस ख़तरा ही ख़तरा है। दुनिया के किसी भी कोने में हम लोग सुरक्षित नहीं हैं। इस सुरक्षा-चक्र से बाहर अंधेरी परछाइयाँ हमारे लोगों को ढूँढ़-ढूँढ़ कर उन्हें दर्दनाक मौत देती हैं—ऐसी मौत जो कोई भी अपनी ज़िंदगी में नहीं चाहता।” हिना कहते वक़्त थोड़ा भावुक हो उठी। “तो तुम्हारे लिए हिदायत है, कभी भी इस सुरक्षा-चक्र के घेरे से बाहर मत जाना। इस सुरक्षा-चक्र से बाहर जाते ही तुम कभी भी, किसी भी समय, किसी भी दिशा से अंधेरी परछाइयों का शिकार हो सकते हो।” उसने दोबारा आर्य की आँखों में अपनी मोटी आँखों से झाँका, “और याद रखना... वे तुम्हें बचने का मौक़ा भी नहीं देंगे... बिल्कुल भी नहीं।” ★★★
अध्याय-2 चार रहस्यमई और खतरनाक जगह भाग-2 ★★★ चार खतरनाक जगहों का बखान सुनाने के बाद हिना आर्य को नीचे ले आई थी। “अब मैं तुम्हें आश्रम की कुछ ऐसी जगह के बारे में बता देती हूं जो रोजमर्रा की जिंदगी में तुम्हारे काम आएगी। तुम आश्रम के ज्यादातर लोगों को इन्हीं कुछ जगहों पर पाओगे। हां..” वह बीच में खुद को झटका दे कर रोकते हुए बोली “इनमें आश्रम के गुरु और अचार्य नहीं आते। यह जगह सिर्फ हम जैसे छोटी उम्र के विद्यार्थियों के लिए हैं।” आर्य उसकी इस तरह से रुकने वाली अदा को नजरअंदाज नहीं कर पाया। लेकिन उसने तुरंत ही अपना ध्यान कहीं और कर लिया। हिना ने तेज सांस बाहर छोड़ी और अपने एक हाथ की उंगली को नाक से रगड़ते हुए वापस उसके हाथ को पकड़ लिया। वह अब उसे फिर से कहीं लेकर जा रही थी। जल्द ही हिना ने आर्य को एक बरामदे की तरह बना हुआ कमरा दिखाया। “यह हमारे यहां का भोजनालय है। यहां दिन में हम सब दो बार खाना खाते हैं। एक बार दोपहर को और एक बार रात को। दोपहर का खाना 2:00 बजे होता है और रात का खाना 9:00 बजे।” आर्य ने भोजनालय को ऊपरी नजरों से देखा। वहां छोटे-छोटे बेंच बने हुए थे जिनके पीछे पलाथी मारते हुए बैठ कर खाना खाना पड़ता था। वह जगह दिखाने के बाद हिना आर्य को दूसरी ओर ले गई। वह जगह किताबों की अलमारियों से भरी जगह थी। हिना उस जगह को दिखाते हुए बोली “यह हमारे आश्रम का पुस्तकालय है। यहां दुनिया भर की तमाम किताबें मिल जाएगी। हर एक देश के इतिहास के साथ साथ यहां शैतानों का इतिहास और हमारे आश्रम का इतिहास भी मौजूद है।” इसके बाद हिना ने आर्य को कई सारी और जगह भी दिखाई। उसने आर्य को आश्रम में बनी लड़कियों के रहने वाली जगह, फिर आचार्यों के रहने वाली जगह, इसके बाद गुरुओं और लड़कों के रहने वाली जगह दिखाई। सभी जगह आश्रम के अलग-अलग हिस्सों में बनी हुई थी। लड़के और लड़कियों की बस्ती एक-दूसरे के आमने-सामने थी, जिनके बीच में लकड़ी की बनी बाड़ और एक छोटा रास्ता उन्हें एक-दूसरे से अलग करता था। वही आचार्यों की जगह इन दोनों ही बस्तियों से पीछे थी और गुरु उनके ठीक बगल में ही बनी झोपड़ियों में रहते थे। इतनी सारी जगहों को दिखाने के बाद हिना आखिर में आर्य को लड़कों की बस्ती में ले आई, वहां उसने एक झोपड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा “मुझे नहीं लगता मैं आज तुम्हें कुछ और दिखा पाऊंगी। इतना चलने फिरने के बाद मेरा शरीर जवाब दे रहा है, अब यह आखिरी और तुम्हारे रहने की जगह है। दोपहर का खाना हो चुका है, लेकिन तुम्हें यहां कमरे में खाना मिल जाएगा, जबकि रात के खाने के लिए मैं तुम्हें ठीक 9:00 बजे से कुछ देर पहले लेने आ जाऊंगी। तब तक तुम इस कमरे में आराम करो..” हिना ने कमरे के अंदर झांका तो देखा वह पूरी तरह से जालों से भरा हुआ था। उसने दांतो तले अपनी जीभ दबा ली “लेकिन मेरे ख्याल से आराम करने से पहले तुम्हें इस जगह को साफ करना होगा। तो पहले तुम इसे साफ करना, इसके बाद आराम करना।” हिना ने दरवाजा से एक तरफ होते हुए अपनी दोनों बांहों को अंदर की ओर करते हुए आर्य के लिए रास्ता छोड़ दिया। आर्य ने हिना को आज इतना कुछ दिखाने के लिए धन्यवाद कहा। धन्यवाद सुनने के बाद हिना मुस्कुरा कर वहां से चली गई। हिना के जाने के बाद आर्य ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और ठीक से कमरे को देखा। कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था, मगर इतना बड़ा जरूर था कि वहां एक बेड आने के बाद भी काफी सारी खाली जगह बच सके। कमरे के एक तरफ चारपाई थी जो धूल से भरी हुई थी। ठीक उसके बगल में लकड़ी के स्टैंड पर पानी का छोटा घड़ा पड़ा था। दीवारों पर कुछ किले थी जिन पर फिलहाल कुछ भी नहीं था। कमरे में दीवार के अंदर बनी एक अलमारी भी थी जो उत्तर की तरफ पड़ती थी। यह अलमारी भी पूरी तरह से खाली पड़ी थी। आर्य ने दरवाजे की तरफ नजर मारी तो वहां कोने पर ही झाड़ू पड़ा था। उसने गहरी सांस ली और धीमे कदमों से चलते हुए झाड़ू को उठा लिया। झाड़ू को उठाते हुए उसने कहा “अगर यह मेरी नई जिंदगी है तो मैं इसे स्वीकार करुगां।” उसने धीमे से अपनी आंखों को मुदां, उसके बाद वह हुआ जो वह अक्सर करता आ रहा है। उसने कमरे में तूफ़ान सा मचा दिया। उसकी तेज चलने वाली क्षमता कमरे की सफाई ऐसे कर रही थी, जैसे मानो वह नहीं बल्कि उसकी जगह हवा कमरे की सफाई कर रही है। सिर्फ 15 से 20 सेकेंड के अंदर अंदर ही उसने जालो से भरे पूरे कमरे की सफाई कर दी थी। कमरे की सफाई करने के बाद उसने राहत से भरी सांस बाहर छोड़ी और वहां मौजूद चारपाई पर बैठ गया। चारपाई पर बैठने के बाद उसे कब नींद आई उसे भी पता नहीं चला। जब उसकी आंख खुली तो कोई उसके कमरे के दरवाजे को जोर जोर से खटखटा रहा था। आर्य अपनी आंखें मसलते हुए उठा और दरवाजा खोला। उसके ठीक सामने हिना खड़ी थी। हिना अपनी कमर पर हाथ रखकर झुझलाते हुए बोली “तुम नशा करके सोते हो क्या....।” “क्या..” आर्य आधी नींद में डुबे शब्द में बोला। “मैं पिछले 10 मिनट से यह दरवाजा खटखटा रही हूं, और तुमने अब खोला। तो मैंने पूछा कि तुम नशा करके सोते हो क्या, देखो अगर ऐसा है तो मैं तुम्हें बता देती हूं यहां आश्रम में नशा सख्त मना है” आर्य ने उसे अजीब नजरों से घूरते हुए जवाब दिया “मैं नशा नहीं करता। थका हुआ था तो गहरी नींद आ गई, और मुझे पता नहीं चला तुम दरवाजे पर खड़ी हो। लेकिन तुम...” “मैं.. मैं क्या..” हिना ने सवालिया अंदाज में कहा। “तुम यहां किसलिए..” आर्य ने अपनी बात पूरी की। हिना के हाथ में एक छोटी नीले फीते वाली घड़ी थी। उसने खड़ी आर्य के सामने की ओर बोली “मैंने कहा था ना मैं तुम्हें 9:00 बजे से पहले लेने आ जाऊंगी। अभी ठीक 8:56 हुए हैं तो मैं तुम्हें यहां लेने आई हूं।” गहरी नींद में आर्य को इस बात का भी ख्यालात नहीं रहा कि वह कितनी देर तक सोया। उसकी नींद ठीक खाने के समय से पहले खुली।“समझ गया...” आर्य ने कहां और अंदर पानी के रखे मटके की तरफ गया। मटके का ढक्कन खोला तो वह खाली था। हिना ने यह देख लिया। वह बोली “आओ मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें बता देती हूं मुंह धोने के लिए पानी कहां मिलेगा। और आगे से कमरे में रखा मटका भरना हो, तब भी तुम वहीं से पानी लेना।” आर्य ने मटका बंद किया और हिना के पीछे पीछे चल पड़ा। हिना उसे एक सरोवर के पास ले आई थी। उस सरोवर में मौजूद पानी से भाप निकल रही थी। आर्य ने निकलती भाप को देखा तो कहा “क्या यह पानी गर्म है.... क्योंकि इसके अंदर से भाप निकल रही है..” “इतने समझदार हो तो पूछ क्यों रहे हो...” उसने आर्य के चेहरे की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली “हां यह पानी गर्म ही है।” “क्या... गरम पानी” आर्य ने हैरानी से सरोवर के इर्द-गिर्द देखा। उसे वहां कोई भी ऐसी युक्ति नहीं दिख रही थी जिससे पानी को गर्म किया जा सके। “लेकिन यह पानी गर्म कैसे हैं? मुझे यहां ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा जिससे पानी को गर्म किया जा सके।” हिना ने चलते चलते अपने कदमों को रोक लिया। उसने अपनी नजर आर्य की और घुमाई और भोहें तानी “तुम्हें पता है ना यहां आश्रम में जादू जैसी चीजें होती है। सुबह बताते वक्त भी मैंने इसका नाम लिया था।” आर्य हिना की बात का मतलब समझ गया। दोनों ही वापस चलने लगे। आर्य ने चलते हुए पुछा “तो यह पानी जादू से गर्म होता है। इसके अलावा यहां और क्या क्या जादू से होता है...” “जो संभव है वह।” “लेकिन जादू से तो कुछ भी किया जा सकता है ना। मैंने सुना है जादू से इंसानों को जानवर भी बनाया जा सकता है।” हिना यह सुन कर हंसने लगी “इस तरह के जादू शायद होते होंगे, मगर यहां हमारे आश्रम में छात्राओं के बीच इस तरह के जादू नहीं है। यहां के जो बड़े अचार्य हैं वही ऐसे जादू की कलाए रखते हैं।” “तो छात्राओं के बीच किस तरह के जादू है...” “ऐसे जादू जो लड़ने में काम आए। या फिर अपनी सुरक्षा करने में। हमें ऐसे जादू सिखाए जाते हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सिर्फ और सिर्फ अंधेरी परछाइयों के खिलाफ इस्तेमाल किए जा सके।” “तुम्हारे कहने का तात्पर्य यहां आश्रम में हम जो भी करते वह सिर्फ और सिर्फ अंधेरी परछाइयों के लिए हैं। उन्हें रोकने के लिए या फिर उनसे लड़ने के लिए।” “हां...” दोनों ही सरोवर के पास बनी सीढ़ियों तक पहुंच चुके थे। हिना वहीं रुक गई जबकि आर्य सीढिओ पर दो कदम नीचे उतर गया। “हां....यहां आश्रम के लोगों का सिर्फ एक ही उद्देश्य है। शैतानों को उसके मकसद में कामयाब ना होने देना। तुम नहीं जानते इन शैतानों का जो मकसद है, जिनमें वह अपने शहंशाह को यहां दुनिया में लाना चाहते हैं, वह कितना खतरनाक है। अगर उनके शहंशाह दुनिया में आ गए तो सब तरफ सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज का राज होगा। और वह है अंधेरा। यहां शैतानों की हुकूमत हो जाएगी। फिर ना लोकतंत्र रहेगा, ना राज तंत्र, और ना ही हम जैसे लोग। शैतानों और इस दुनिया के रास्ते के बीच में अगर कोई खड़ा है, तो वह यह आश्रम ही है। हम जी जान लगा देंगे मगर अंधेरे के इस मकसद को कभी पूरा नहीं होने देंगे।” आर्य ने सरोवर के गर्म पानी के छींटे अपने मुंह पर मारे। हिना की बातें उस पर गहरा असर कर रही थी। आर्य अपना मुंह धो कर खड़ा हुआ तो उसे अपने आसपास मुंह साफ करने के लिए कोई चीज नहीं मिली। वह अपने कपड़ों से ही मुंह साफ करने की कोशिश करने लगा तो हिना ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और आगे बढ़ा दिया “तुम इसका इस्तेमाल कर सकते हो।” आर्य ने वह रूमाल लिया और मुंह साफ किया। थोड़ी ही देर में वह वापिस चलते दिख रहे थे। आर्य ने चलते हुए पूछा “तुम यहां की खास हो क्या .... मतलब आचार्य वर्धन ने तुम्हें मेरी जिम्मेदारी सौंपी। इसके पीछे कोई कारण है या फिर... या फिर यहां ऐसा ही किया जाता है। जो भी आता है उसकी जिम्मेदारी किसी न किसी को सौंप दी जाती है।” “ऐसा बिल्कुल नहीं....” हिना अपनी आदत के हिसाब से आंखों को तरेरते हुए बोली “आश्रम में नए आने वाले सदस्यों को यहां रहन-सहन में डालने की जिम्मेदारी आश्रम में विद्यार्थियों के अध्यक्ष की होती है। साल में अलग-अलग महीनों के हिसाब से अलग-अलग अध्यक्ष होते हैं। एक अध्यक्ष कम से कम 3 महीने तक अध्यक्ष बना रहता है। अभी दिसंबर का महीना है, और मेरा अध्यक्ष वाला कार्यकाल शुरू हुआ है। तो दिसंबर जनवरी-फरवरी, 3 महीने सभी नए आने वाले सदस्यों को रहन-सहन में डालने की जिम्मेदारी मेरी ही होगी।” “तो इस हिसाब से तुम्हें यहां आए हुए कितना टाइम हो गया.... क्योंकि तुम्हें पूरे आश्रम की जानकारी है... तो साल या 2 साल तो हुए होंगे।” आर्य अंदाजा सा लगा रहा था। हिना ने ना में सर हिला दिया “बिल्कुल नहीं। ना तो मुझे यहां आए हुए 1 साल हुआ है, ना ही 2 साल, मैं यहां बस 6 महीने पहले ही आई थी।” “6 महीने!!” आर्य ने अपने कंधे उचकाए “तुम तो इन 6 महीनों में काफी कुछ जान गई हो।” हिना ने मुस्कुरा कर कहा “तुम्हें जब छह महिने होंगे, तब तुम भी काफी कुछ जान जाओगे। शायद मुझसे भी बेहतर।” ★★★ हिना और आर्य आश्रम में बने हुए भोजनालय तक पहुंच गए। वहां काफी भारी संख्या में विद्यार्थी बैठ कर खाना खा रहे थे। आर्य पहले ही यहां की व्यवस्था देख चुका था, यह लकड़ी के बेंच थे जिन पर रखकर खाना खाया जाता था। और बैठने के लिए पलाथी मारनी पड़ती थी। फिर इसके बाद खाना केले के पत्तों पर परोसा जाता था। हिना आर्य से बोली “तुम्हारे यहां कोई दोस्त नहीं है, ऐसे में तुम मेरे साथ बैठकर खाना खा सकते हो। आओ...” वह उसे खाली जगह के पास ले गई। वहां दोनों ही टेबल के पास पलाथी मारकर बैठ गए। दो छात्राओं ने उनके सामने केले के पत्तों को रखा और फिर उस पर चावल डाल दिए। हिना बोली “हमारे यहां आश्रम में हर दिन अलग-अलग तरह का खाना खाया जाता है। जो भी खाना जिस दिन बनता है वह दोपहर और शाम को एक जैसा रहता है। आज चावल बने हैं, जब कि कल रोटी सब्जी और इसके बाद अगले दिन जो लिस्ट होगी उसके हिसाब से खाना बनेगा। इसके अलावा तुम्हारा खुद का पसंदीदा खाना खाने का मन करें तो तुम यहां के रसोईघर में जाकर अलग से खाना बना भी सकते हो। मगर इतना ध्यान रखना, तुम्हें यहां पिजा या मेगी जैसी चीजें नहीं मिलेगी। पुराने जमाने में हम जो खाना खाते थे वहीं मिलेगा।” आर्य मुस्कुराया “मुझे यह सब चीजें पसंद भी नहीं। हम लोगों ने अभी तक इसी तरह का खाना खाया है।” हिना और आर्य दोनों ही अपने हाथों से चावल खाने लगे। चावल खाते खाते हिना ने पूछा “हम लोगों से तुम्हारा मतलब.. तुम कहां से थे... ” “ मैं जगह के बारे में तो नहीं जानता क्योंकि मुझे कभी मेरे बाबा ने इसके बारे में बताया नहीं था। मगर हम लोग किसी शहर के जंगल में रहते थे। वहां बने एक घर में। मैं और सिर्फ मेरे बाबा।” “तो यहां अंधेरी परछाइयों ने तुम पर हमला कर दिया होगा। उसमें तुम बच गए मगर तुम्हारे बाबा नहीं..” हिना आगे बोली “यहां के सभी लोगों की कहानी तुम्हें लगभग इसी तरह की मिलेगी। आश्रम के काफी सारे लोग दुनिया के अलग-अलग कोनों में रहते हैं, लेकिन जब अंधेरी परछाइयां उन पर हमला करती है तो वह सुरक्षा के तौर पर यहीं आते हैं।” आर्य खाना खाते-खाते सोच में पड़ गया “लेकिन वह हमला करने से पहले ही क्यों नहीं आते.... उन्हें नहीं पता बाहर उन्हें खतरा है।” “हां” हिना ने सर हिला दिया “दरअसल बात यही है कि उन्हें नहीं पता बाहर खतरा है। यही वजह है कि वह पता लगने से पहले आश्रम में नहीं आ पाते। उन्हें लगता है कि वह लोग बाहर सुरक्षित हैं और तब तक इस अंधविश्वास में ही रहते हैं जब तक वह असुरक्षित ना हो जाए।” “तो आश्रम के लोग ही जाकर उन्हें यहां क्यों नहीं ले आते.... वह कुछ ऐसा क्यों नहीं करते जिनसे उन्हें पता चले कि बाहर खतरा है। और उन्हें खतरे से बचने के लिए यहां आश्रम में आना होगा।” “इसके पीछे के कई कारण है।” हिना खाना भी खा रही थी और साथ में आर्य को जवाब भी दे रही थी। “एक तो हमें यह नहीं पता वह लोग कहां कहां हैं क्षऔर किस किस कोने में हैं। जिससे उन्हें ढूंढना मुश्किल हो जाता है। किसी तरह का कोई जादू भी उन्हें नहीं ढुंढ सकता। दूसरा यहां आश्रम के लोगों पर घेरे के बाहर काफी सारी अंधेरी परछाइयां नजर रखती है। हम चाहे किसी भी चीज का इस्तेमाल करके बाहर जाएं, भले ही जादू हो या किसी तरह का साधन, उन्हें पता लग जाता है। फिर वो हम जहां जाते हैं वहां हमें घेरते हैं, उनकी संख्या ज्यादा होती है तो हम हार जाते हैं। इन वजहों से ऐसा पॉसिबल नहीं हो पाता..” आर्य खाना खाते-खाते गंभीर हो गया। “यह तो सच में एक बड़ी समस्या है। अंधेरी परछाइयों ने अपने मकसद में कामयाब होने के लिए पूरे आश्रम को चारों ही तरफ से घेर रखा है। उन्हें बस मौका चाहिए.. आश्रम की तरफ से किसी गलती का... और वह फायदा उठाने से नहीं चुकेंगे।” “हां। इसीलिए तो आश्रम ने सुरक्षा चक्कर बनने के बाद कभी आमने सामने की लड़ाई नहीं की। हम यहां मुट्ठी भर हैं तो आमने सामने की लड़ाई में हमें ही नुकसान होने वाला है। नुकसान के बाद आश्रम या तो पूरी तरह से खत्म हो जाता, या कमजोर। और दोनों ही तरफ से उन्हें फायदा होने वाला था। इसलिए आश्रम के आचार्य ऐसा कभी नहीं करते। इसके विपरीत उन्होंने कठोर नियम बना रखे हैं, और यहां आश्रम में रहकर अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हुए हैं। किसी दिन अगर ताकत बढ़ कर उनके बराबर हो गई, तब शायद जरूर आमने सामने की लड़ाई लड़ी जाए।” तकरीबन अगले 20 मिनट तक दोनों खाना खाते रहे। आज हिना और आर्य ने आपस में जो भी बात की उससे वह एक दूसरे के काफी नजदीक हो गए थे। कम से कम इतना नजदीक कि दोनों में दोस्तों जैसा व्यवहार तो होने ही लगा था। हिना कुछ हद तक आर्य को समझने लगी थी, वही आर्य कुछ हद तक हिना को। दोनों ही खाना खाने के बाद बाहर आए और वहां भोजनालय के बाहर बनी हाथ धोने वाली व्यवस्था पर हाथ धोए। वहां हिना ने आर्य से कहा “खाना खाने के बाद टहलना सेहत के लिए बढ़िया रहता है। चलो आओ, मैं तुम्हें दीवार के ऊपर टहलने के लिए लेकर जाऊं। फिर वहां तुम्हें वह दृश्य भी दिखाती हूं जो मुझे यहां सबसे ज्यादा पसंद है।” आर्य अब तक हिना की हर बात पर सहमति भरता आ रहा था तो उसने यहां भी सहमति भरी। दोनों ही आश्रम की दीवार की तरफ चल पड़े। वहां दीवार पर चढ़ने वाली सीढ़ियों के जरिए वह ऊपर गए। इस समय गहरी रात थी मगर ढेर सारे तारों की चमक की वजह से गहरी रात भी कम गहरी प्रतीत हो रही थी। हिना ने आर्य का हाथ पकड़ लिया था, वह दोनों इस बार आश्रम के दाई और बनी दीवार से चढ़े थे, और वहां से पीछे जंगल वाली दीवार की ओर जा रहे थे। बीच में हिना ने ऊपर आसमान की तरफ देखा “आज पिछले कुछ दिनों की तुलना में सबसे ज्यादा तारे निकले हुए हैं। आज अमावस की रात है तो अंधेरी रात का यही फायदा है कि आसमान में ज्यादा तारे देखने को मिलते हैं।” आगे जब वह दाई और की दीवार और पीछे वाली दीवार के मोड़ के पास आए तब हिना ने आर्य का हाथ छोड़ दिया और दौड़ कर कोने के पास चली गई। वहां उसने अपनी आंखें बंद की और दोनों हाथ फैला लिए। आर्य उसे यह सब करता हुआ देख रहा था, लेकिन लड़कियों के यह काम उसके पल्ले बिल्कुल भी नहीं पड़ रहे थे। हिना वहां हाथ फैलाए बोली “यह है मेरा सबसे पसंदीदा दृश्य। तेज बहती ठंडी हवाओं के साथ सामने पहाड़ी के ऊपर बने तारों को देखना।” आर्य ने पहाड़ी की तरफ ध्यान दिया। ऊंची बर्फीली पहाड़ी के ऊपर बने तारे सच में दर्शनीय प्रतीत हो रहे थे। वह दृश्य ऐसे थे मानो जैसे पहाड़ी के ऊपर का काला आसमान उसके सर के बाल हो, जिसमें बीच-बीच में चमकते तारे दिख रहे हैं। आर्य ने कुछ देर तक पहाड़ी के ऊपर चमकते तारों को देखा और फिर अपना ध्यान आश्रम के पीछे मौजूद जंगल की तरफ कर दिया। अंधेरे से भरा डरावना और खौफनाक जंगल। आर्य ने धीरे-धीरे अपने कदम उस और बढ़ाएं। वह जंगलों से आती कुछ डरावनी आवाजों को साफ़ सुन पा रहा था। भेड़ियों के रोने और कुछ जानवरों के चिंघाड़ने की आवाजें। आर्य 5 इंची दीवार के पास आते ही अपने हाथों को उस पर रख कर जंगल के दृश्य में खो सा गया। यहां इस तरफ के आसमान पर उसे तारे भी नहीं दिखाई दे रहे थे। जहां तक उसकी नजर जा रही थी उसे सिर्फ और सिर्फ काले खौफनाक पेड़ ही दिखाई दे रहे थे। ऐसे काले खौफनाक पेड़ जो जंगल में खड़े भी डरावनी परछाइयों की तरह लग रहे थे। अभी आर्य उन सब को देख ही रहा था कि उसे कुछ ऐसा दिखा जो उसे नहीं दिखना चाहिए था। उसने हिना को आवाज लगाई “हिना जरा यहां तो आना। आकर देखो क्या यह मेरा वहम है या मैं सच में इसे देख रहा हूं।” हिना ने अपनी बाहों को समेटा और आर्य की तरफ आ गई। वहां उसने अपनी आंखों को केंद्रित करते हुए जंगल की और देखा। उसने भी वही चीज देखी जो आर्य ने देखी थी। “ओह... नहीं.... यह तो...ऐसा...” उसके माथे पर अस्वाभाविक लकीरे आ गई “ऐसा कुछ बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।” आर्य हिना की तरफ देखते हुए बोला “मगर ऐसा हो रहा है.....।” ★★★
अध्याय-2 चार रहस्यमई और खतरनाक जगह भाग-3 ★★★ दोनों ही जंगल में एक रोशनी को देख रहे थे जो लगातार आश्रम से दूर जा रही थी। “यह रोशनी किसी जलती हुई मशाल की लग रही है...” आर्य उस तरफ देखता हुआ बोला “वह बार-बार झमक भी रहीं हैं... तो ऐसा सिर्फ उसी की रोशनी के साथ होता है।” “इसका यही मतलब निकल कर आता है कि कोई इस वक्त जंगल में आश्रम से दूर जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं होता। कोई भी जंगल में नहीं जाता।” हिना बोली और एक बार जंगल की तरफ देखने के बाद तेजी से दीवार पर दौड़ने लगी। वह आश्रम के पिछली दीवार पर मौजूद दरवाजे की ओर जा रही थी। आर्य भी उसके पीछे पीछे दौड़ पड़ा। हिना वहां पहुंची तो उसने झुककर नीचे देखा। आश्रम का पिछला दरवाजा खुला हुआ था। आर्य भी उसके पास आया और नीचे झुककर देखा। उसने भी आश्रम का खुला हुआ दरवाजा देखा। “मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है ऐसा हो रहा है।” हिना बोली “यह बिल्कुल नामुमकिन है। बिल्कुल नामुमकिन, यहां तक कि अपनी आंखों से देखने के बावजूद मैं इस पर यकीन नहीं कर पा रही।” आर्य ने उसी पल कहा “मगर हम इसे झुठला नहीं सकते। ना ही इसे किसी तरह से नजरअंदाज कर सकते हैं। यह कोई कल्पना भी नहीं, अगर कल्पना होती तो हम दोनों को एक जैसी चीज ना दिखती। फिर यह नीचे का दरवाजा भी खुला हुआ है, यह भी हमें खुला हुआ ना दिखता।” “लेकिन... लेकिन यह हमारा वहम भी तो हो सकता है। और वही बात नीचे खुले दरवाजे की, तो इस दरवाजे को मैंने खोला था। क्या पता आज मैंने इसे बंद ही नहीं किया। इसके बाद हवा का झोंका आया और उसने यह दरवाजा खोल दिया।” “लेकिन यह दरवाजा बाहर की तरफ खुलता है। आश्रम के अंदर से हवा का धक्का बाहर की ओर नहीं लग सकता। फिर दिन में जब तुम दरवाजा खोल रही थी तब तुमने काफी जोर लगाया था। आज पूरा दिन हवाओं में इतनी गति नहीं थी कि वह एक भारी-भरकम दरवाजे को खोल सके, अब भी हवाएं इतनी जोरदार नहीं।” दोनों वापिस सामने की तरफ देखने लगे। उन्हें अभी भी वह चीज दिखाई दे रही थी जो कुछ देर पहले उन्होंने देखी थी। किसी मशाल की जलती चमक जो लगातार जंगल में आश्रम से दूर जा रही है। हिना दीवार पर इधर उधर चलती फिरती बोली “यहां आश्रम से कोई इस वक्त बाहर गया हैं। लेकिन आश्रम से बाहर जाना सख्त मना है। जंगल की ओर जाना तो उससे भी ज्यादा सख्त मना है। आश्रम के आचार्य तक जंगल में जाने से खौफ खाते हैं।” आर्य ने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए हिना को सवालिया अंदाज में कहा “फिर किस में इतनी हिम्मत... जो जंगल में इतनी रात को जा रहा है? और उसका मकसद क्या होगा...?” “मैं नहीं जानती” हिना अपनी जेब टटोलने लगी। उसने जेब से अंगूठी निकाली और उसे सामने की तरफ किया। वह आश्रम के बने सुरक्षा चक्र को देख रही थी, जो जंगल में भी लाल रोशनी से चमकता हुआ दिखाई दे रहा था। उसने देखा मशाल की जो रोशनी थी वह उस लाल चक्कर की ओर लगातार बढ़ रही थी। उसने आर्य से कहा “अगर यह आश्रम का कोई सदस्य है, और उसे अपनी जान प्यारी है तो वह चाहकर भी इस लाल घेरे से बाहर नहीं जाएगा। क्योंकि इसके बाहर निकलते ही अंधेरी परछाइयां उसे मार देगी। जंगल के जंगली जानवरों से बचा जा सकता है, मगर अंधेरी परछाइयों से बिल्कुल भी नहीं।” आर्य भी हिना के पास आया और अंगूठी के अंदर देखने लगा। धीरे धीरे रोशनी लाल घेरे के और पास हो रही थी। दोनों की धड़कनें पूरी तरह से बढ़ चुकी थी। दोनों के दोनों एक ही दृश्य पर नजरें टिकाए हुए थे। तभी रोशनी लाल घेरे के और नजदीक हुई और दोनों की धड़कनें पूरी तरह से रुक गई। हिना ने अपने दिल पर हाथ रख लिया। अगले ही पल वह रोशनी उस लाल घेरे के पार चली गई। “नहीं...” हिना ने अपना अंगूठी वाला हाथ झटक दिया। “अब यह जो भी कोई था सुबह इसकी मरने की खबर मिलेगी। मैं सोच भी नहीं सकती इस आश्रम में कोई इस तरह की हरकत करेगा। यह बच्चों में से ही कोई एक होगा, जिसे अपनी जान प्यारी नहीं होगी। चलो जाकर आश्रम के आचार्य से इसके बारे में बात करें... और उनसे मदद मांगें। हमें अभी के अभी इस बच्चे की जान बचानी होगी।” “हां चलो।” दोनों ही किले की दीवार से नीचे उतरे और पगडंडी पर चलते हुए आश्रम के आचार्यों से मिलने के लिए चल पड़े। हिना चलते हुए बोली “इस तरह की समस्या का हल या तो अचार्य वर्धन कर सकते हैं, या फिर आचार्य ज्ञरक। और वह दोनों ही इस वक्त कार्यालय में मिलेंगे। रात के 11:00 बजे से पहले वह दोनों ही आचार्य कार्यालय से बाहर नहीं निकलते।” जल्द ही दोनों चलते हुए कार्यालय तक पहुंच गए। कार्यालय आश्रम में बीच वाली गुफा के थोड़े ही पास बना हुआ था। हिना ने कार्यालय का दरवाजा खोला तो नीचे उतरती हुई सिढिया दिखाई दी। पीली रोशनी से चमक रहा कार्यालय पूरी तरह से गर्म था। यहां आने के बाद ऐसा लगता ही नहीं था कि बाहर ठंड है या यह पूरी जगह बर्फीली वादियों में बनी हुई है। दोनों ही नीचे उतरे तो आर्य को पूरा कार्यालय दिखा। जमीन के नीचे बना यह कार्यालय किसी भी अंग्रेजों के जमाने के शाही कमरे से कम नहीं था। यहां प्रिंसिपल के दफ्तर की तरह कुर्सी और टेबल पड़ा था। टेबल पर कांच की प्लेट भी थी। दिवारें लाल रंग से पुती हुई थी जिस पर भातीं भातीं की तस्वीरें थी। कमरे के अंदर अंगीठी भी बनी हुई थी जिसमें जल रही लकड़ियों की वजह से पूरा कार्यालय गर्म था। यहां सब था लेकिन वह नहीं जिनकी बात हिना कर रही थी। यहां दोनों ही आचार्य नहीं थे। हिना पूरे कमरे को एक ही नजर में देखते हुए बोली “कमाल है, दोनों ही आचार्यों को तो इस वक्त यही होना चाहिए। मैं पिछले छह महीनों से देखती आ रही हूं, दोनों ही आचार्य इसी कार्यालय से ठीक 11:00 बजे एक साथ बाहर निकलते हैं। मैं रात के 11:00 बजे तक दीवार पर टहलती हुं तो अक्सर उन्हें बाहर निकलते देखा है।” आर्य ने अनुमान लगाते हुए कहा “क्या पता आज उन्हें कोई काम आ गया हो... वह आश्रम में कहीं और होंगे...।” “हां शायद...” हिना ने आर्य की बात पर सहमति भरी मगर वह अभी भी सक्षयं में थी। उसने आर्य से कहा “चलो हम आश्रम में उन्हें कहीं और ढूंढते हैं....” इतना कहकर वह वापिस बाहर निकल पड़ी। उसके साथ आर्य भी बाहर निकल पड़ा। बाहर दोनों ही उस तरफ चल पड़े जहां आश्रम के आचार्यों की बस्ती थी। दोनों ने बाड़ से घिरी एक पगडंडी का सफर तय किया और आचार्यों की बस्ती पहुंच गए। हिना वहां एक झोपड़ी की तरफ बढ़ती हुई बोली “यह अचार्य वर्धन की झोपड़ी है। अगर वह अपने कार्यालय में नहीं है तो उनके यहां होने की संभावना हो सकती है।” इतना कहकर उसने झोपड़ी का दरवाजा खोल दिया। अंदर कोई भी नहीं था। हिना ने अपने बालों में हाथ फेरे “वो यहां नहीं है।” उसने फौरन दरवाजा बंद किया और उसी वक्त बोली “चलो हम अचार्य ज्ञरक की झोपड़ी देख लेते हैं। अगर अचार्य वर्धन यहां नहीं है तो वहां जरूर होंगे।” इस झोपड़ी के साथ लगते ही दूसरी झोपड़ी थी। हिना वहां गई और उस झोपड़ी का दरवाजा खोला। मगर वहां भी कोई नहीं था। वह भी पूरी तरह से खाली थी। आर्य ने भी झोपड़ी के अंदर झांक कर देखा। जब उसने खाली झोपड़ी देखी तो कहा “तुम्हें नहीं लगता हमें किसी और आचार्य से बात कर लेनी चाहिए। मुझे याद है, यहां बताया गया था कि कुल 11 आचार्य हैं। चलो इनमें से किसी और से बात कर लेते हैं।” हिना ने तुरंत सासं बाहर की तरफ छोड़ी “यह भी बुरा आईडिया नहीं। चलो हम किसी और आचार्य से ही बात करते हैं।” दोनों ही वहां आचार्यों की बाकी झोपड़ीयों की तरफ चल पड़े। उन्होंने तीसरी झोपड़ी का दरवाजा खोला तो वह भी खाली थी। हिना के माथे पर आई लकीरे अब और भी भयानक रूप ले चुकी थी।“ कमाल है, आचार्य वीरसेन भी यहां नहीं।” वह तुरंत और झोपड़ियों की तरफ मुड़ी लेकिन उन्होंने जिस भी झोपड़ी का दरवाजा खोला वह खाली ही दिखी। आर्य खाली झोपड़ियों को देखकर दंग होते हुए बोला “यहां तो मुझे आश्रम में कोई भी अचार्य दिखाई नहीं दे रहा। हम अब तक 8 झोपड़िया देख चुके हैं लेकिन सब की सब खाली पड़ी। आचार्य यहां आश्रम में इधर उधर चलते फिरते भी नहीं दिख रहे। आखिर सबके सब गए कहां...?” “मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा। आश्रम में 11 आचार्यों में से तीन महिला आचार्य भी हैं। मेरे ख्याल से अब हमें उनकी झोपड़िया भी देख लेनी चाहिए।” हिना ने अपनी दिशा बदली तो आर्य भी उसके पीछे-पीछे हो गया। जल्द ही उन्होंने लड़कियों की बस्ती के आगे बनी बाकी के तीन आचार्यों की झोपड़ियां देखी। वह भी खाली पड़ी थी। आर्य ने सभी खाली झोपड़ियों को देख कर संकोच के साथ कहा “यह आश्रम में ना तो आचार्य अपने कमरे में, ना ही आचार्या, कहीं....” “कहीं क्या...” हिना तुरंत झपटती हुई बोली। “कहीं अंधेरे ने हमला तो नहीं कर दिया।” “नहीं। अगर ऐसा होता तो यहां पूरे आश्रम में कोहराम मचा होता। आश्रम पूरी तरह से शांत है, विधार्थी भी हमें इधर-उधर चलती हुई दिखाई दे रहे हैं। बस आश्रम में कोई भी अचार्य नहीं दिखाई दे रहा।” तभी अचानक हिना के दिमाग में कुछ आया और वह चुटकी बजाते हुए बोली “एक बात तो तुम्हें बताना भूल ही गई, हमने खाना खाने के बाद सूचना पट्ट तो देखा ही नहीं” “सूचना पट्ट!! यह क्या चीज होती..हैं।” “आओ बताती हूं। हमें वापिस भोजनालय जाना होगा।” दोनों ही एक बार फिर से भोजनालय की तरफ चल पड़े। वह दोनों ही भोजनालय पहुंचे तो वहां उन्हें बाहरी दीवार पर काले रंग का बना बोर्ड दिखाई दिया। उस पर सफेद चोक में सूचना लिखी हुई थी। हिना ने उसे देखा और कहा “इसीलिए आश्रम में इस वक्त हमें कोई भी अचार्य दिखाई नहीं दे रहा। आचार्यों के साथ-साथ गुरु भी हमें आश्रम में नहीं मिलेंगे।” आर्य ने अभी तक बोर्ड पर लिखी सूचना नहीं पढ़ी थी। वह आगे आया और बोर्ड पर लिखी सूचना पढ़ी। उस पर लिखा था आज आश्रम के सभी आचार्य और गुरु सुरक्षा चक्र को शक्ति देने के लिए गुफा में बने मंत्र कक्ष के अंदर मंत्रों का उच्चारण करेंगे। इसलिए रात के 10:00 बजे से लेकर सुबह के 7:00 बजे तक ना तो आचार्य से मिला जा सकता है, ना ही किसी गुरु से। आर्य उसे पढ़कर बोला “इसका तो यही मतलब निकल कर आता है कि हम सुबह तक किसी भी तरह की मदद हासिल नहीं कर सकते।” हिना नम शब्दों में बोली “अगर किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी, तो उसे भी नहीं बचाया जा सकता जो आश्रम से बाहर गया है।” आर्य एकटकी लगाकर उसे देखने लगा। हिना आगे बोली “हममें से किसी में भी इतनी क्षमता नहीं जो सुरक्षा चक्र के बाहर अंधेरी परछाइयों का सामना कर सके।” इतना कहने के बाद उसकी आंखों से आंसू छलकने लगे। आर्य ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे संभलने के लिए कहा। तभी पीछे से कुछ आवाजें आने लगी। दोनों एक साथ मुड़े तो देखा रसोई घर के पास काफी सारे छात्र शोर मचा रहे थे। दोनों ने हीं एक दूसरे की तरफ देखा और शोर की तरफ दोडे़। रसोई घर आश्रम में पीछे की तरफ बना हुआ था। उससे और पिछली दीवार के बीच की दूरी ज्यादा नहीं थी। वही दरवाजा भी पास ही लगता था। दोनों ही वहां पहुंचे तो 18 से 20 छात्र असमंजस में एक दूसरे से कुछ ना कुछ पूछ रहे थे। वह सभी छात्र रसोई घर में खाना बनाने वाले कपड़ों के अंदर थे। हिना और आर्य तुरतं उन लोगों के पास पहुंचे। हिना ने आगे बढ़कर एक छात्र से पूछा “क्या हुआ सब ठीक तो है ना....” “नहीं... कुछ भी ठीक नहीं है।” उस छात्र ने तुरंत जवाब दिया “यहां भोजनालय से एक लड़का गायब है। पूछताछ की तो पता चला वह जंगल की तरफ गया है।” हिना आर्य से बोली “शायद हमने कुछ देर पहले जिसे देखा था वो यही लड़का होगा।” उसने छात्र से पूछा “कौन था वह लड़का और उसका नाम क्या था?” लड़के ने याद करते हुए जवाब दिया “मैं उसे ज्यादा नहीं जानता था... वह खाना पकाता था और उसका नाम...” लड़के ने अपने दिमाग पर और जोर डाला “ नाम... उसका नाम आयुध..था” आयुध। अचानक यह नाम सुनते ही हिना की सांसे पूरी तरह से थम गई। वह बेधड़क घुटनों के बल जमीन पर गिर गई। आर्य ने नीचे गिरती हिना को संभाला। आर्य ने उससे पूछा “कौन है यह आयुध...” हिना ने काफी धीमे स्वर में बताया “मेरा भाई था...” ★★★ यह सुनकर आर्य पूरी तरह से चौंक गया। आज उसका पहला ही दिन था और यह सब हो रहा है। उसने हिना से पूछा “मगर वह जंगल में क्यों गया है... आखिर उसके जाने की क्या वजह हो सकती है..?” “मैं नहीं जानती। वह ऐसा बिल्कुल नहीं करता। 6 महीने पहले ही मेरे साथ आया था, लेकिन आने के बाद कभी भी ऐसा नहीं किया।” “फिर अचानक..!!” यह सब क्या हो रहा है इसके बारे में ना तो आर्य को कुछ पता था ना ही हिना को। दोनों इस सवाल का जवाब भी नहीं जानते थे कि हिना का भाई बाहर जंगल में क्यों गया है। अचानक हिना अपनी जगह से खड़ी हुई और बोली “मुझे अपने भाई को वापस लेकर आना होगा...। मैं जाकर उसे जंगल से लेकर आऊंगी।” हिना इतना कहकर दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। आर्य तेजी से दौड़ कर उसके आगे आया और उसका रास्ता रोका “लेकिन तुम जानती हो ना जंगल कितना खतरनाक है। तुमने कहा है कि वहां जाने के बाद बचने की कोई संभावना नहीं, फिर तुम्हारा भाई तो गया भी सुरक्षा चक्कर के घेरे से बाहर है।” हिना ने आर्य को नकारते हुए उसे एक तरफ किया और वापस आगे बढ़ने लगी “मैं इन सब के बारे में कुछ भी नहीं जानती। लेकिन मेरी जिंदगी में मेरे भाई के सिवा और कोई भी नहीं, और चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाए, मैं उसे एक आंच तक नहीं आने दूंगी।” हिना तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी। आर्य फिर से उसके बराबर आया और उसे समझाते हुए बोला “मगर हिना यह खतरे से खाली नहीं होगा। तुम वहां अगर कोई मुसीबत आती है तो उसका कैसे सामना करोगी...?” हिना रुकी और एकदम से आर्य की तरफ देखते हूए बोली “मैं यहां आश्रम में पिछले 6 महीनों से हूं। इन छह महीनों में मैंने थोड़ा बहुत जादू सीखा है। मुझे उम्मीद है वह जादू मेरे काम आएगा।” हिना किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थी। छात्रों के समूह में से कुछ छात्र आगे आए और बोले “लेकिन हिना हम आचार्यों की मदद भी ले सकते हैं। अगर हममें से कोई गुफा में जाकर उन्हें इन सब के बारे में सूचित करें तो वह मदद के लिए आगे आ सकते हैं।” “उन्हें सूचित करना मुश्किल है।” हिना बोली “गुफा के अंदर जाना भी खतरे को दावत देना है। फिर वहां जाकर आचार्यों को बताने में जो टाइम लगेगा, तब तक काफी देर हो जाएगी। मेरा भाई, मेरा भाई और भी ज्यादा दूर निकल जाएगा। फिर हम उसे कभी वापस हासिल नहीं कर सकेंगे। मुझे जंगल में जाना ही होगा।” हिना दुबारा से आगे बढ़ने लगी। वह दरवाजे के पास पहुंची और दरवाजे को धक्का मार कर खोल दिया। दरवाजे को खोलते ही उसके ठीक सामने काला जंगल था। अंधेरे में डूबा काला जंगल। हिना ने अपनी आंखें बंद कर गहरी सांस ली और जंगल की तरफ बढ़ पड़ी। वह कुछ कदम ही चली थी तभी पीछे से आर्य ने उसे आवाज लगाई “रुको हिना...” हिना के चलते हुए कदम रुक गए। आर्य ने वहां एक छात्र से जलती हुई मशाल पकड़ी और बोला “तुम वहां अकेले नहीं जाओगी। मैं भी साथ चलूंगा।” यह सुनकर आश्रम के सभी छात्र स्तब्ध रह गए। यहां तक कि खुद हिना भी अपने आप पर विश्वास नहीं कर सकी। वह भी स्तब्ध रह गई। आर्य आगे बढ़ा और उसके पास आकर दोबारा बोला “तुम अकेले किसी भी खतरे में नहीं फसोगी। तुम्हारे भाई को हम साथ में लेकर लेकर आएंगे।” हिना उसकी आंखों में देखने लगी। “लेकिन जंगल खतरों से कम नहीं...” आर्य ने जंगल में सामने की ओर देखा। “तुमने कहा ना तुम्हें जादू आता है.... तो उम्मीद करेंगे वह हमारे काम आए।” जंगल की तरफ देखते वक्त उसके चेहरे पर उम्मीद दिखाई दे रही थी। एक ऐसी उम्मीद जो ना सिर्फ उसके अंदर के हौसले को दिखा रही थीं, बल्कि हिना भी उसे देख कर खुद में अलग ही तरह का आत्मविश्वास महसूस कर रही थी। हिना ने आर्य का हाथ पकड़ा लिया। वह दोनों ही जंगल में जाने के लिए तैयार थे। ★★★
अध्याय 3 जंगल में भाग-1 ★★★ आर्य और हिना दोनों जंगल में जा रहे थे। उनके जाने के बाद पीछे आश्रम के दरवाजे बंद कर दिए गए थे, मगर कुछ विद्यार्थी वही मोर्चा डाल कर बैठ गए थे। जब हिना और आर्य वापिस आएंगे तो उन्हें वह दरवाजा दोबारा खोलना था। जंगल में पूरी तरह से शांति फैली हुई थी। पहले जहां जंगली जानवरों का शोर आ रहा था वहीं अब किसी भी तरह का शोर नहीं था। बाकी जगहों की तरह इस जगह की जमीनी सतह भी बर्फीली थी। मगर यहां बर्फ की मोटी चादर नही थी। बर्फ की मोटी चादर के नीचे मिट्टी मौजूद थी। हवा का बहाव रुका हुआ था जिसकी वजह से जंगल में एक पत्ता तक नहीं हिल रहा था। आर्य नीचे सतह पर मौजूद सूखे पत्तों को रोदतां हुआ बोला “तुमने मुझे अपने भाई के बारे में पहले क्यों नहीं बताया...?” हिना अपने आसपास के क्षेत्र पर पैनी निगाह रख रही थी। “मुझे बताने का मौका ही नहीं मिला। सुबह सारा दिन तुम्हें आश्रम की चीजें दिखाने में निकल गया, फिर इसके बाद हम शाम को खाना खाने लगे। खाना खाने के बाद दीवार पर पहुंची और वहां से तुम बाद में जान हीं गए कि मेरा भाई है...।” अचानक झाड़ियों में सरसराहट हुई और दोनों का ध्यान उस तरफ चला गया। अंधेरे जंगल में इस तरह की सरसराहट भी डर पैदा कर रही थी। दोनों ने झाड़ियों को ध्यान से देखा तो पता चला वहां कोई बंदर खुजली कर रहा था। दोनों ने राहत की सांस ली। “क्या तुम्हारा भाई यहां आश्रम में आने से खुश नहीं था...” आर्य ने चलते हुए पुछा। “तुम यह सवाल क्यों पूछ रहे हो...” हिना ने चौकस निगाहों से एक बार घूम कर 360 डिग्री के व्यू को देखा। “तुम्हारा भाई आश्रम छोड़कर चला गया ना इसलिए। हो सकता है वह आश्रम में रहने से खुश ना हो ... जिसने उसे आश्रम से बाहर जाने के लिए बाध्य किया।” “जहां तक मैं उसे जानती हूं मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह आश्रम में रहकर खुश नहीं। जब हम छः महीने पहले यहां आए थे तब शुरुआत के 3 दिन तक वह बुझा बुझा सा रहा था। लेकिन इसके बाद वह मुझसे भी ज्यादा आश्रम में घुल मिल गया। एक हफ्ते के अंदर-अंदर उसने यह फैसला कर लिया कि वह आश्रम में तलवारबाजी ना सिखकर खाना पकाने का काम करेगा। उसे तलवार जैसी चीजों को करने में आलस आता था, मगर खाने को लेकर वह कभी भी पीछे नहीं हटता। फिर मेरी अक्सर उससे बात होती थी, हम भोजनालय में कभी-कभी मिल लेते थे। वहां मुझे उसने मुझे कभी यह नहीं कहा की उसे आश्रम में कोई परेशानी है या फिर कुछ और।” “मतलब वह यहां पूरी तरह से खुशमिजाज वाले व्यक्तित्व में रहता था। किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी... ना हीं आश्रम से परेशानी...,अच्छा तुम दोनों के रिश्ते कैसे थे?” “हम दोनों के रिश्ते..!!” “मतलब भाई बहनों में अक्सर लड़ाई होती है ना। उनमें बनती भी कम है, तो उस हिसाब से तुम दोनों का आपस में रिलेशन कैसा था?” “बिल्कुल भी बुरा नहीं था।” हिना के चेहरे पर मुस्कान आ गई “वह बहुत शरारती था, मगर इसके बावजूद हममें बहुत अच्छी बनती थी। हम जब हमारे घर में रहा करते थे, जो की दिल्ली में है वहां रोजाना हम घर के सामान का कचरा करते थे। कभी कुछ तोड़ दिया तो कभी कुछ। ममा पापा डांटते थे तो मिलकर डांट खाई।” आर्य खुद में ही सोचने लगा। तभी उनके ऊपर वाले पेड़ों में पतिया जोरदार तरीके से हिली। हिना तुरंत अपनी मुठिया भींचकर थोड़ा सा नीचे झुक गई। वहीं आर्य भी इसी अंदाज में आ गया। दोनों की नजरें ऊपर उस पेड़ की तरफ थी जिनकी पत्तियां हिली थी। वहां अभी अभी एक उल्लू आकर बैठा था। “उल्लु है....” हिना ने अपनी मुठिया खोलते हुए कहा। “हां... उल्लु ही है..।” आर्य ने भी अपनी मुठिया खोल ली। दोनों ही फिर से चलने लगे। आर्य अपनी पुरानी बातों को आगे बढ़ाता हुआ बोला “तुम्हारे भाई को यहां आश्रम में भी कोई समस्या नहीं थी, तुम्हारी भी उनसे अच्छी बनती थी... लेकिन फिर भी वह आश्रम से बाहर गया। किसी से कहासुनी हो तो तुम्हारा भाई कैसे बीहेव करता है...?” “उसकी किसी से कहासुनी होती ही नहीं। काफी फ्रेंडली नेचर है। हर किसी से जल्दी दोस्ती कर लेता है। और जो उसके साथ दोस्ती नहीं करता उसके साथ उसकी बातचीत नहीं होती। फिर बाय चांस कभी कहा सुनी हो भी जाए तो इस तरह की हरकतें बिल्कुल नहीं करता। पिछले छह महीनों से तो उसने ऐसा कभी किया नहीं। तो अब क्या करेगा।” हिना के चेहरे के भाव स्थिर हो गए थे। आर्य जितनी संभावनाओं के बारे में सोच सकता था उसने सोचा। लेकिन किसी में भी उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद उसने हिना से उसके भाई को लेकर किसी भी तरह की बात नहीं की। काफी देर तक दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे। माहौल शांत हो गया था तो हिना को अजीब सा लगा, आर्य भी कुछ पूछ नहीं रहा था तो उसने खुद से बात की दोबारा शुरुआत की। “अगर तुम बुरा ना मानो तो तुमसे एक बात पूछूं...” हिना ने हिचकिचाते हुए बोलना शुरू किया “तुम्हारी पर्सनल लाइफ या किसी और के पर्सनल लाइफ के बारे में नहीं है... नॉर्मल बात हैं।” आर्य ने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया “पूछ लो। बुरा मानने वाली कौन सी बात है। फिर अगर बुरा मान भी गया तो यहां जंगल में कौन सा कहीं जाने वाला हूं।” हिना को हल्की हंसी आ गई। आर्य के बोलने चालने का तरीका ऐसा था की उसके चेहरे पर मजाक जैसी चीज सजती नहीं थी। वह बिना मजाक वाली बात करते ही अच्छा लगता था। या ऐसी बात करते हुए जिसमें उसकी तरफ से सवाल हो। भावुक रहने वाला चेहरा भी आर्य पर खासा जचता था। हिना ने सुबह से लेकर अब तक आर्य के इन सभी भावों को हाईलाइट कर रखा था। हिना ने अपनी हंसी रोकी और पूछा “मैंने तुम्हें बताया था कि यह जंगल खतरनाक है, तो यहां आने से पहले तुम्हें डर नहीं लगा। मतलब आश्रम में किसी भी लड़के में इतनी हिम्मत नहीं कि वह पहले दिन ही आकर इस जंगल में आने की हिम्मत कर सकें।” “डर..!” आर्य ने गंभीरता से कहा “डर सभी को लगता है। तुम्हारे हां कहने से पहले मैं शायद यहां जंगल में आने की कभी नहीं सोचता, लेकिन जब मैंने देखा तुमने जंगल में जाने का फैसला कर लिया तो मैं भी खुद को रोक नहीं सका।” “मतलब तुम यहां मेरे लिए आए... मेरे पीछे पीछे...” “मुझे नहीं लगता मेरी बातों का यह मतलब निकलता है। मैं बस तुम्हें यही कहना चाहता हूं कि जब तुमने जाने का फैसला किया तो मैं भी खुद को रोक नहीं सका।” “तो उसका तो वही मतलब निकलता है ना जो मैंने कहा। तुम यहां मेरे पीछे पीछे आए।” आर्य झिझकते हुए बोला “पीछे पीछे आने का मतलब कुछ और होता है, खासकर लड़कियों के मामले में। तो उस तरह से मैं तुम्हारे पीछे पीछे नहीं आया... मैं दूसरी तरह से तुम्हारे पीछे पीछे आया।” “हां समझ गई बुद्धू..” हिना ने तिखी सी मुस्कान दी “तुम्हारे पीछे पीछे आने का मतलब। मैं भी तुम्हें उसी हिसाब से कह रही हूं, जिस हिसाब से तुम समझ रहे हो।” अचानक हिना ने आर्य को रुकने का इशारा किया। इशारा मिलते ही आर्य रुक गया। उसने हिना से पूछा “क्या हुआ... सब कुछ ठीक तो है ना?” “अभी बताती हूं।” हिना बोली और अपनी जेब से अंगूठी बाहर निकाली। अंगूठी निकालने के बाद उसने उसके अंदर से देखा। उनके ठीक कुछ कदमों की दूरी पर लाल रंग का सुरक्षा घेरा दिखाई दे रहा था। वह किसी बुलबुले की तरह था। “हम लोग सुरक्षा घेरे के पास पहुंच चुके हैं। अब यहां से आगे जाने का मतलब है... मुसीबत सर पर लेना।” आर्य ने सामने दाएं बाएं देखा। उसे कोई भी नहीं दिखाई दे रहा था। वह बोला “लेकिन मैं यहां किसी को भी नहीं देख पा रहा हूं। तुम्हारे भाई का भी कोई नामोनिशान नहीं। हमें आगे चलकर देखना होगा, तभी तुम्हारे भाई का पता चलेगा।” “मैं उसे एक बार आवाज लगाती हूं। क्या पता आवाज लगाने पर वह हमारी आवाज सुन ले।” “हां तुम कोशिश करो।” हिना ने अंगूठी को वापस जेब में रखा और दोनों हाथों को अपने मुंह पर रख कर जोर से आवाज लगाई “आयुध...” जंगली इलाके में उसकी आवाज गूंजती चली गई। उसने दोबारा आवाज लगाई। “आयुध...” एक बार फिर से जंगली इलाके में उसकी आवाज गूंजती चली गई। मगर प्रत्युत्तर में उसे किसी भी तरह का जवाब नहीं मिला। हिना के आवाज लगाने के बाद आर्य ने मशाल को वहां एक तरफ रखा और उसने भी अपने दोनों हाथों को मुंह पर रखकर आवाज लगाई। “आयुध...” आर्य ने हिना से ज्यादा जोर का इस्तेमाल किया था। मगर उसकी आवाज के जवाब में भी किसी तरह का प्रतिउत्तर नहीं मिला। हिना अपने जुतों को पंजों के बल करते हुए सामने की ओर देखने लगी “यहां से आगे का इलाका नीचे ढलान लेता है। इस वजह से उसके पास जो मशाल थी उसकी रोशनी भी दिखाई नहीं दे रही। अगर हमें रोशनी दिख जाती तो ढूंढने में ज्यादा आसानी होती।” आर्य ने अपनी मशाल वापस उठा ली। मशाल उठाने के बाद उसने अपने कदम सामने की ओर बढ़ाना शुरू कर दिए। वह सुरक्षा चक्र के गहरे की तरफ जा रहा था। हिना भी उसके पीछे धीरे धीरे चलने लगी। उसने आर्य के पास आकर उसके कंधे को पकड़ लिया था। दोनों जब बिना अंगूठी के ना देखने वाले घेरे के पास पहुंचे तो उनके हाथ में जो मशाल थी उसकी आग की लपटें तेज हो गई। इन तरह के हालातों में हर एक सैकेंड हर साल की तरह बीतता हुआ प्रतीत हो रहा था। आर्य ने गहरी सांस ली और दो मोटे मोटे कदम भरकर पूरा आगे आ गया। उसके तेजी से आगे जाने की वजह से हिना पीछे ही रह गई थी। कुछ देर के लिए हिना घेरे के इस तरफ ही खड़ी रही वहीं आर्य घेरे के दूसरी ओर चला गया था। जब कुछ देर बीत गई तो आर्य पीछे पलटा “कोई खतरा नहीं है। आओ.... आगे जाकर तुम्हारे भाई की तलाश को पूरा करें।” हिना ने अपनी सांस को हल्क के नीचे उतारा, यहां एक पल के लिए उसकी सांसे पूरी तरह से थम गई थी। इसके बाद वह आगे गई और आर्य के पास आ गई। आर्य के पास आने के बाद वह कुछ देर के लिए इधर-उधर देखती रही। इसके बाद उसने भी सांस छोड़ते हुए कहा “ हां कोई खतरा नहीं है... चलो आगे बढ़े।” दोनों ही आगे बढ़ने लगे, मगर इस बात से अनजान की जहां वह दोनों खड़े थे वहां ऊपर के पेड़ों पर कुछ लाल आंखें उन्हें घूर रही थी। ★★★
अध्याय 3 जंगल में भाग-2 ★★★ अब हिना और आर्य दोनों ही आश्रम के सुरक्षा चक्कर से बाहर थे। हर एक पल उनकी नजर चारों और थी। आसपास कहीं तिनका हिलने का शोर भी होता था तो उनका ध्यान उस तरफ चला जाता था। दोनों ही पूरी तरह से सावधान थे और धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। आर्य ने हिना से कहा “क्या पहले भी यहां कोई आया है?” हिना याद करते हुए बोली “मुझे यहां रहते हुए 6 महीने हो गए, इन छह महीनों में तो कभी किसी को आते हुए नहीं देखा। मगर उससे पहले यहां कोई आया है या नहीं इसके बारे में कह नहीं सकती। मगर तुम यह क्यों पूछ रहे हो?” आर्य ने जवाब दिया “तुम लोग कहते हो ना कि यहां खतरा है, और पीछे हम जिस जंगल से गुजर कर आए हैं वह भी खतरों से भरा पड़ा है। लेकिन अभी तक तो हमें किसी भी तरह का खतरा दिखाई नहीं दिया।” हिना यह सुनकर बोली “यह तो हमारी खुशकिस्मती है। अच्छी बात ही है कि हम किसी तरह के खतरे में नहीं पड़े। हमारा जंगली जानवरों से भी सामना नहीं हुआ, और अब सुरक्षा चक्कर से बाहर आ जाने के बाद अंधेरी परछाइयां भी यहां नहीं मिल रही।” आर्य ने चारों तरफ देखा। यहां के पेड़ और भी ज्यादा घने थे। इसके बाद उसने सामने की तरफ देखा। सामने की तरफ देखता हुआ वह बोला “अब ढलान ज्यादा दूर नहीं है। अगर हमारी खुशकिस्मती हमारा और भी साथ देती है, तो हमें तुम्हारे भाई वहां से दिख जाना चाहिए।” हिना ने महसूस किया कि यहां थोड़ी हल्की हवा चलने लगी थी। यह हवा सामने से उनके पीछे की ओर जा रही थी। हवाओं को महसूस करते हुए वह बोली “हवाओं का बहना दिखा रहा है कि ढलान नीचे काफी गहरी है। मेरा भाई अब तक ज्यादा नीचे नहीं गया होगा। उम्मीद तो पूरी है वह हमें दिख जाएगा।” दोनों ने अपनी चाल को तेज कर लिया। कुछ देर चलने के बाद वह ऐसी जगह पर पहुंच गए थे जहां जमीन नीचे की ओर जाने लगी थी। यानी यह ढलान वाला क्षेत्र था। यहां के पेड़ों की ऊंचाई भी लगातार कम होते हुए ढलान का रूप ले रही थी। वहां दोनों ने हीं सामने देखा। सामने उन्हें कुछ दूर रोशनी दिखाई दे रही थी। रोशनी को देखकर हिना के चेहरे पर खुशी आ गई। वह खुश होते हुए बोली “हमें रोशनी मिल गई। भाई भी वहां होगा। आखिर हम कामयाब हुए हैं।” “हां हम कामयाब हुए।” आर्य ने भी हिना का साथ दिया। दोनों ही अब ढलान से नीचे की ओर उतरने लगे। वह दोनों ही रोशनी की तरफ जा रहे थे। बीच में आने वाली कुछ कंटीली झाड़ियों को एक तरफ करते हुए वह रोशनी वाली जगह पर पहुंच गए। मगर जब दोनों ही वहां पहुंचे तो उन्हें वहां सिर्फ एक जलती हुई मशाल दिखी। आयुध नहीं। हिना ने तुरंत भागकर मशाल को उठा लिया। “यहां सिर्फ यही है, मुझे मेरा भाई नहीं दिख रहा।” वो रोने लगी “कहीं उसके साथ..” आर्य ने हिना को बीच में ही रोकते हुए कहा “ऐसा मत सोचो। वो जरूर यही आस पास होगा। एक बार के लिए खुद को संभालो..” हिना खड़ी होकर वहां जगह का मुआयना करने लगी। आर्य भी जगह का मुआयना कर रहा था। जगह को देखकर साफ पता चल रहा था कि यहां कोई कुछ देर के लिए बैठा था। यहां घास फूस पड़ी थी जो इस बात का संकेत थी कि किसी ने आग जलाने की कोशिश की। मगर आग जलाई नहीं। आर्य ने जगह को लेकर कहा “इसे देखकर मुझे यही पता लग रहा है कि तुम्हारा भाई यहां रुकने के बारे में सोच रहा था। वो आग जलाने वाला था मगर आग जलाने से पहले ही कहीं चला गया।” तभी अचानक उसे एक बालू के दहाड़ने की आवाज सुनाई दी। बालु के साथ साथ कोई लड़का बचाओ बचाओ भी चिल्लाता हुआ सुनाई दे रहा था। बालु की आवाज और लड़के की आवाज सुनते ही आर्य बोला “या फिर उसे कोई ले गया।” दोनों ही समझ गए की क्या हो रहा है। हिना का भाई बालु का शिकार हो रहा था। दोनों ही तेजी से उस ओर भागे जहां से आवाजें आ रही थी। भागते भागते हिना पीछे अपनी मूठियों को बंद कर कुछ ऐसा कर रही थी जिससे उसका शरीर बीच-बीच में नीली रोशनी से चमक रहा था। यहां तक कि नीली रोशनी की चमक उसके कपड़ों में भी देखने को मिल रही थी। जल्द ही दोनों आगे आए तो वहां एक बालु दिखा जो आयुध को पैर से पकड़ते हुए घसीट कर लेकर जा रहा था। आर्य के पैर वहीं रुक गए। आर्य की पैरों की आवाज सुनकर भालू भी रुका और पीछे पलटा। तभी हिना सामने आ गई। वह बिल्कुल आर्य के पास से निकलकर आर्य और बालू के बीच आ गई थी। कुछ देर पहले नीली रोशनी से चमकने वाला उसका शरीर शांत पड़ा था। मगर उसकी आंखें वह अभी भी नीली थी। हिना ने आंखों को बंद किया और कुछ देर बंद करने के बाद दोबारा खोला। और जैसे ही उसने अपनी आंखों को खोला उसका पूरा का पूरा शरीर एक बार फिर से नीली रोशनी से चमक पड़ा। आर्य हिना को इस तरह से चमकता देख हैरान हो गया। उसके शरीर की नीली रोशनी इतनी ज्यादा थी के आसपास की चीजों को देखने के लिए आग की जरूरत भी नहीं पड़ रहीं थी। हिना ने अपनी मूठियों को सामने किया और नीचे झुकते हुए लड़ने की स्थिति में आ गई। उसने तेज और गुस्से से भरी आवाज में कहा “मेरे भाई को छोड़ दो.... गंदे.... बदबूदार बालू...” पीछे आर्य ने यह सुनकर अपनी आंखें मोटी की। हिना यहां जो भी कर रही थी, उसके बाद उसे किसी भी मायने में कम नहीं समझा जा सकता। वो भी दिलचस्प ही थी। ★★★ हिना के कहने के बाद बालू ने उसे चिगाड़ा। उसने आयुध का पैर छोड़ दिया जिसके बाद आयुध खड़े होकर वहां एक पेड़ के पीछे चला गया। आर्य भी एक तरफ हो गया था। हिना और भालू दोनों ही मुकाबले में एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े थे। हिना पूरी तरह से नीली रोशनी से चमक रही थी। अचानक बालू ने अपने दोनों हाथों को हवा में फैला कर उन्हें छाती पर पीटा। इसके बाद हीना की तरफ बढ़ पड़ा। हिना ने तुरंत अपनी नीली रोशनी से चमक रहे हाथों को सामने की तरफ कर दिया, इससे बालू और उसके बीच एक नीली रोशनी वाली दीवार बन गई। बालू नीली रोशनी की दीवार से जा भिचा। उसके सर को झटका लगा और वह पीछे की तरफ गिर गया। इसके ठीक अगले ही पल हिना ने अपने हाथ वापस ले लिए। उनके बीचो-बीच बनी नीली रोशनी वाली दीवार गायब हो गई। हिना ने तुरंत अपने कदमों को गति दी और दौड़ते हुए दूसरी तरफ हो गई। वह बालू के दाई और चली गई थी। बालू ने खुद को संभाला और संभल कर खड़ा हुया। इसके बाद उसने हिना को देखा जो उसके दाएं और थीं। उसने वापिस अपनी छाती पीट और फिर से हिना पर हमले के लिए दौड़ पड़ा। हिना ने दोबारा पहले की तरह ही अपने हाथों को आगे किया मगर इस बार उनके बीच में नीली रोशनी की दीवार नहीं बनी। बल्कि इस बार उसके हाथों से रोशनी के दो बड़े बड़े गोले निकले जो जाकर बालू से टकरा गए। रोशनी के गोले टकराते ही बालू उछलता हुआ काफी फिट पीछे जा गिरा। बालु को दोबारा गिराने के बाद हिना ने अपनी मुट्ठी को अपनी हथेली पर मारा। वह बोली “तुमने मेरे भाई को हाथ लगा कर ठीक नहीं किया। आज मैं तुम्हारी जान ले लूंगी।” दोनों दुबारा एक दूसरे से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गए। बालू फिर से हिना के सामने आकर खड़ा हो गया। लेकिन इससे पहले वह इस बार उस पर हमला करने के लिए आगे बढ़ता, आर्य बीच में आया और उसने बालु को दूसरी तरफ धक्का दे दिया। आर्य का धक्का जोरदार था। उसके धक्के से तकरीबन 80 किलो का भालू 7 से 8 मीटर दूर जाकर पेड़ से जा टकराया। आर्य ने धक्का मारने के बाद हिना को कहा “हमारे पास इतना टाइम नहीं है, हम सुरक्षा चक्कर के घेरे से बाहर हैं, जल्दी अपने भाई को पकड़ो और आश्रम चलो।” अबकी बार हैरान होने की बारी हिना की थी। आर्य ने जिस तरह से बालु को धक्का दिया था वह आश्चर्यजनक था। उसके पास तो जादूई क्षमता थी लेकिन आर्य ने यह कैसे किया? उसके लिए भी यह एक सवाल था। हिना ने तुरंत आयुध का हाथ पकड़ा और आर्य के साथ वापिस आश्रम की ओर जाने लगी। उसने चलते हुए आयुध से पूछा “तुम्हारे दिमाग पर कोई गहरी चोट लगी है क्या... जो तुम यहां मौत के मुंह में आने के लिए आ गए।” आयुध भी आर्य के जैसे दिखने वाला ही कम उम्र वाला लड़का था। उसकी उम्र तकरीबन 17 साल के आसपास थी और वह हिना का भाई था। हिना के बोलने के बाद उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। वह बस चुपचाप उसके साथ चले जा रहा था। चलते-चलते हिना ने अंगूठी निकाली और उसके अंदर से आगे देखा। वह सुरक्षा चक्कर के लाल घेरे से काफी दूर थे। उसने अपने कदमों की गति बढ़ा दी। तीनों ही अभी कुछ देर ही चले होंगे कि उन्हें अपने पीछे पेड़ पौधों की पत्तियों में सरसराहट होती हुई नजर आई। यह सरसराहट काफी ज्यादा मात्रा में हो रही थी। तीनों ने ही एक साथ पलट कर पीछे देखा। पेड़ पौधों के ऊपर लाल आंखों वाली अजीब सी आकृतियां काफी भारी संख्या में उनकी ओर आ रही थी। हिना उन्हें देखते ही बोली “यह लाल आंखों वाली अंधेरी परछाइयां है.... शैतान इन्हें नजर रखने वाली अंधेरी परछाइयां कहते हैं.... जो जरूरत पड़ने पर हमला भी कर सकती हैं....सब के सब जल्दी भागो।।।” आर्य ने उन परछाइयों की तरफ देखा। रात के अंधेरे में उनकी स्पष्ट आकृति दिखाई नहीं दे रही थी। मगर उनकी चमकती हुई लाल आंखों को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। जल्द ही तीनों तेजी से आश्रम के सुरक्षा चक्कर के घेरे की ओर दोड़ने लगे। तीनों ही जितना तेज हो सकते थे उतना तेज दौड़ने की कोशिश कर रहे थे। उनके पीछे लाल आंखों वाली अंधेरी परछाइयां जमीन पर ना चलने की बजाय एक के बाद एक पेड़ों के ऊपर ही आगे बढ़ रही थी। उनके आगे आ जाने के बाद पीछे पेड़ों के पत्ते लगातार जमीन पर गिरते जा रहे थे। हवाओं की गति भी बढ़ गई जो अब उल्टी हो गई थी। हिना आर्य और आयुध तीनों ही हवा को सामने से आता हुआ महसूस कर रहे थे। हवा इतनी तेज थी कि उनके बालों के साथ-साथ उनके कपड़े भी पीछे की ओर उड़ रहे थे। हिना ने नीले रंग का चौगा पहन रखा था तो दौड़ने के साथ-साथ वह उसे भी संभाल रही थी। जल्द ही तीनों काफी आगे आ गए। उन्होंने दौड़ते दौड़ते पीछे देखा तो पता चला अब लाल आंखों वाली अंधेरी परछाइयां आगे नहीं आ रही थी। हिना ने अंगूठी निकाली और उसके अंदर से अपने पीछे देखा। वह लोग अब सुरक्षा घेरे के इस और आ गए थे। हिना सभी से हाफतें हुए बोली “अब मत भागो... हम सुरक्षा चक्कर के घेरे में आ गए हैं।” इतना कहते कहते वह वहां जमीन पर गिर गई। आयुध भी गिर गया। दोनों ही बुरी तरह से हाफं चुके थे तो जमीन पर गिर कर राहत की सांस ले रहे थे। आर्य भी रुका और वहां उनके पास ही खड़ा हो गया। हिना और आर्य दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा, इस मुसीबत से बचकर भाग निकलने की खुशी में दोनों के ही चेहरे पर हंसी आ गई। दोनों ही इसे लेकर खुश थे। वही आयुध वह अभी सिर्फ सांसे ले रहा था। ★★★
अध्याय 3 जंगल में भाग-3 ★★★ हिना और आयुध नीचे जमीन पर लेट कर आराम कर रहे थे। जबकि आर्य वही उन दोनों के पास खड़ा था। हिना ने आराम करने के बाद गहरी सांस ली और फिर उठकर आयुध के मुंह पर जोर का मुक्का दे मारा। एक ही मुक्के में आयुध के 2 दांत टूट कर दूसरी ओर जा गिरे। हिना ने आयुध को गिरेबान से पकड़ा और अपनी ओर खींचते हुए पूछा “बताओ? बताओ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई आश्रम से बाहर निकलने की? बताओ तुम कैसे मुझे छोड़कर खुद को ऐसे खतरे में डाल सकते हो? बताओ मुझे?” कहने के बाद उसने एक मुक्का और उसके मुंह पर दे मारा। आर्य आगे आया और हिना को पकड़ते हुए उसे आयुध से दूर किया। “आराम से हिना। अपने गुस्से पर काबू रखो। यह तुम्हारा भाई है... पहले बात को समझो उसने ऐसा क्यों किया। फिर उसे कुछ कहना।” आयुध रोने लगा था। “मुझे नहीं रहना था यहां...” उसने रोते-रोते कहा “मेरा दम घुटता है इस जगह पर। इसलिए मैं इस जगह को छोड़कर जाना चाहता था...।” यह सुनकर हिना का गुस्सा और बढ गया। उसने खुद को आर्य की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा “तुम्हारी तो... आज मैं तुम्हारे यहां जान ले लूंगी। अगर तुम्हें आश्रम ही छोड़ कर जाना था तो मुझे क्यों नहीं बताया। तुम मुझे बता देते। मैं तुम्हारी हेल्प करती। ऐसे पागलों की तरह है हरकतें करने की क्या जरूरत थी।” आयुध अपनी जगह पर ही उठ कर बैठ गया। मगर वह अभी भी रो रहा था। उसने अपने मुंह को साफ किया। दांत टूटने की वजह से खून निकल रहा था। “तुम यहां अच्छे से घुलमिल गई थी। और यहां खुश भी थी। मुझे लगा अगर मैं तुम्हें आश्रम से बाहर जाने का बताऊगां तो तुम दुखी हो जाओगी। मैं अपना आश्रम छोड़कर जाने वाला फैसला बदलने वाला नहीं था, फिर तुम भी मेरे साथ जाने के लिए तैयार हो जाती है। और मैं यह नहीं चाहता था।” हिना ने खुद को छुड़ाने की कोशिश करना छोड़ दिया। जब वह शांत हुई तो आर्य ने भी अपनी पकड़ छोड़ दी। हिना घुटनों के बल रेंगते हुए आयुध के पास आई। उसने अपने दोनों हाथों को अपने भाई के गालों पर रख दिया “मेरे भाई, तुम नादान हो। मगर तुम्हें मुझे कम से कम एक बार बताना चाहिए था। मुझे अब तक यही लगता आया था कि तुम यहां आश्रम में रहकर खुश हो। यहां तक कि कभी तुम्हारा चेहरा देखकर भी नहीं लगा था कि तुम यहां से जाने का सोच रहे हो। अगर तुम मुझे बताते हैं तो मैं जरूर इस बारे में कुछ करती। हम आचार्यों से बात करते। वह इसका कोई ना कोई रास्ता जरूर निकालते।” आयुध ने कहा “वह तो किसी को भी आश्रम से बाहर नहीं जाने देते। किसी छोटे से काम के लिए भी आश्रम से बाहर जाना संभव नहीं। तो मुझे हमेशा हमेशा के लिए कैसे आश्रम से जाने देंगे। इस वजह से मैंने उनसे कोई बात नहीं की। और तुम करोगी तो भी कोई फायदा नहीं होने वाला।” हिना ने उसे दोबारा समझाते हुए कहा “मेरे भाई, इसका पता तो तब चलेगा ना जब हम उनसे बात करेंगे। तुम उनसे बात करने से पहले ही यह सब क्यों सोच रहे हो। तुमने सब पहले से सोचा तो यहां इतनी बड़ी मुसीबत में फंस गए। अब अपने दिमाग पर और ज्यादा जोर मत डालो।” “मैंने पहले भी कोशिश की थी।” आयुध ने उसके हाथों को अपने हाथों से पकड़ा “आश्रम से बाहर निकलने के लिए यह रास्ता चुनने से पहले मैंने सब सोच लिया था। लेकिन जब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा, तब मैं इस वाले रास्ते पर आया था।” “मैं तुम्हारी परेशानी को समझ रही। लेकिन अब तुम सब भूल जाओ। और आइंदा आज जो किया है वह कभी मत करना। इससे तुम्हारी समस्या हल नहीं होने वाली थी, बल्कि तुम उल्टा और भी ज्यादा समस्या में फंसने वाले थे।” हिना ने उसकी आंखों में देखा “ठीक है मेरे भाई। अब ऐसा कभी मत करना।” आयुध महसूस कर रहा था कि उसने यह करके गलती की है। वह माफी मांगता हुआ बोला “मुझे माफ कर देना।” उसने इतना कहकर हिना को गले लगा लिया “मैं अब आगे से ऐसा कुछ नहीं करूंगा। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।” हिना ने उसकी पीठ थपथपाई। “तुम्हें आश्रम से बाहर जाना है ना, फिक्र मत करो, हम कल ही इस बारे में आचार्य से बात करेंगे।” यह सुनकर आर्य को भी खुशी हुई। वह उन दोनों के पास आया और उनके कंधों पर हाथ रखा। हिना ने भी उसके रखे हाथ पर अपना हाथ रख दिया। हिना धीरे से आर्य को बोली “शायद मैं ही आज तक अपने भाई को ठीक से नहीं समझ सकी थी। मुझे यह पता ही नहीं चला था वह क्या सोचता है। मैंने अब तक इसके बारे में जो भी सोचा था वह गलत निकला।” आर्य ने यह सुन कर कहा “अक्सर चीजें चेहरे पर लिखी हुई नहीं मिलती। और कभी कबार इंसान भी ऐसा हो जाता है कि उसे समझना मुश्किल हो जाता है।” हिना ने हां अपना सिर हिलाया। “उम्मीद करो, अब आगे सब ठीक हो जाएगा।” “हां।” आर्य ने भी सहमति में सिर हिला दिया। ★★★ तकरीबन 1 घंटे बाद आश्रम के पिछले दरवाजे पर इंतजार कर रहे विद्यार्थियों को दरवाजा खुलते हुए दिखा। सारे के सारे विद्यार्थी वही दरवाजे पर उनके वापस आने का इंतजार कर रहे थे। जब उन्होंने देखा दरवाजा खुल रहा है तो सभी के चेहरे पर खुशी आ गई। सब खड़े होकर वहां दरवाजे के पास जमा हो गए। हिना, आर्य और आयुध तीनों ही वापस आ चुके थे। सभी ने खुशी के साथ तीनों का स्वागत किया। छात्राओं ने एक तरफ होकर उन्हें आगे जाने के लिए रास्ता दिया। बीच-बीच में कुछ छात्र उन्हें सकुशल वापस आने के लिए बधाई दे रहे थे। आर्य की पीठ को भी थपथपाया जा रहा था। आश्रम के विद्यार्थियों ने यहां पहली बार ऐसा लड़का देखा जिसने पहले ही दिन ऐसी बहादुरी दिखाई। सब उसके लिए अलग ही सोच बना चुके थे। वहीं हिना को लेकर भी आश्रम के विद्यार्थियों की सोच अलग बन गई थी। उसने भी अच्छी खासी बहादुरी दिखाई थी। धीरे-धीरे आश्रम के विद्यार्थी छटने लगे। पिछले दरवाजे को अच्छे से बंद कर दिया गया। आयुध को कुछ विद्यार्थी अपने साथ ले गए। सब के जाने के बाद वहां बस आर्य और हिना ही खड़े थे। हिना आर्य के पास आई और बोली “मुझे समझ में नहीं आ रहा आज के लिए मैं तुम्हारा कैसे शुक्रिया अदा करुं। तुमने सच में मेरी काफी मदद की।” “इसमें शुक्रिया अदा करने वाली कौन सी बात है...।” आर्य उसकी बात सुनते ही बोला “तुम बस यह समझ सकती हो कि एक दोस्त ने दूसरे दोस्त की मदद की। वह भी बिल्कुल अच्छे दोस्त की तरह।” हिना ने उसके कंधे को थपथपाया “जंगल जाने से पहले मैं तुम्हारी दोस्त नहीं थी। मगर अब शायद जरूर हूं। शायद नहीं बल्कि अब से हम दोस्त ही हैं।” तभी अचानक उसे ख्याल आया कि जंगल में आर्य ने बालु को जोरदार धक्का मारा था। इतना जोरदार धक्का तो उसके जादू की वजह से भी बालु को नहीं लगा। उसने याद आते ही तुरंत पूछा “मुझे एक बात बताओ... तुमने जंगल में भालु को इतने जोर से धक्का कैसे मारा था...? कोई भी आम इंसान इतनी जोर से धक्का नहीं मार सकता।” यह सुनकर आर्य कुछ देर के लिए शांत हो गया। उसने अपने बाबा को याद किया और कहा “मेरे बाबा अक्सर कहते थे... मुझ में काफी कुछ अलग है... तो बस उसी की वजह हुआ होगा।” हिना ने अपनी आंखों को छोटी करते हुए उन्हें पूरी तरह से आर्य पर केंद्रित किया “अलग से मतलब...!! तुम आखिरकार इंसान ही हो ना!!” “हां हां इंसान ही हूं। अलग से मतलब..!!” आर्य अभी बताने ही वाला था कि हिना को पीछे से कुछ लड़कियों ने आवाज लगाई। वह हिना को इस बात का संकेत कर रही थी कि देर रात हो गई है और उसे सोना चाहिए। आर्य ने अपनी बात बदली “मेरे ख्याल से हमें इस बारे में फिर कभी बात करनी चाहिए। तब जब बात करने के लिए काफी वक्त हो। अभी मैं भी तुम्हें चीजों को ठीक से समझा नहीं पाऊंगा।” “हां मुझे कोई एतराज नहीं।” हिना ने मुस्कुरा कर कहा। इसके बाद उसने कहा “और हां...। थैंक्स। मेरी मदद के लिए। मेरे भाई को वापस लेकर आने के लिए।” “थैंक्स!!” आर्य ने अजीब सा मुंह बनाया “मैंने तो यही सुना है कि दोस्ती में नो थैंक्स नो सॉरी। तो तुम यह कौन सा रिवाज शुरू कर रही हो।” हिना ने उसके सर पर हल्का सा थप्पड़ मारा “बातें तो बहुत करते हो बुद्धू। ठीक है नो थैंक्स नो सॉरी। चलो अब चलती हुं। बाय गुड नाइट। शुभ रात्रि।” हिना वहां से जाने के लिए मुड़ गई। इसके बाद वह वहां से चली भी गई। आर्य उसे तब तक देखता रहा जब तक वह आंखों से पूरी तरह से ओझल नहीं हो गई। उसके ओझल हो जाने के बाद उसने खुद से कहा “मुझे नहीं लगता यहां आश्रम में मेरी नई जिंदगी इतनी भी बुरी रहने वाली है। अब देखते हैं अगले आने वाले दिन ने मेरे लिए क्या सोच कर रखा हैं। उम्मीद करूंगा वह अच्छा ही हो।” इतना कहकर वह मुस्कुराया और खुद भी अपनी झोपड़ी की तरफ चला गया। अपने आगे वाले अगले दिन के इंतजार के साथ। ★★★
अध्याय-4 अगला दिन भाग-1 ★★★ चिड़ियों की चहचहाहट के साथ अगले दिन की शुरुआत हुई। मौसम खुशनुमा था और ठंडी हवाओं के साथ हल्की बर्फबारी भी हो रही थी। आर्य अभी भी अपने बिस्तर में सोया हुआ था। तभी बाहर दरवाजे पर खटखटाहट हुई और उसकी आंख खुल गई। उसने उठकर दरवाजा खोला तो सामने हिना खड़ी थी। कल रात दोनों में ही नई दोस्ती की शुरुआत हो गई थी। हिना ने दरवाजे से खड़े खड़े कहा “तो क्या तुम तैयार हो आश्रम के साथ घुलने मिलने के लिए। आज मैं तुम्हें आश्रम की दिनचर्या के बारे में बताऊंगी। साथ में तुम्हें भी आश्रम की दिनचर्या के हिसाब से मेरे साथ मिलकर काम करने पड़ेंगे।” आर्य ने अपनी आंखों को मटकाया और अपने बालों में हाथ फेरे। इसके बाद उसने कहा “मुझे कोई एतराज नहीं है।” जल्द ही आर्य और हिना आश्रम के सरोवर के पास जा रहे थे। वही सरोवर जहां कल रात आर्य ने अपना मुंह धोया था। वहां सरोवर में लड़के स्नान कर रहे थे। आर्य उन्हें देखकर बोला “मुझे यहां क्या करना होगा?” “वही जो यह लड़के कर रहे हैं।” हिना ने आंख तरेरते हुए जवाब दिया “तुम्हें यहां स्नान करना होगा। आश्रम की दिनचर्या सुबह सुबह नहाने के बाद ही शुरू होती है। तो जाओ और जल्दी नहा कर आ जाओ। तब तक मैं तुम्हारे लिए आश्रम के कपड़ों का इंतजाम करती हूं।” हिना ने जाते-जाते आर्य को धक्का मारकर सरोवर की और भी कर दिया। उसके जाने के बाद आर्य ने अपनी गर्दन को टेडी मेडी हिलाया और सरोवर में नहाने के लिए चला गया। सरोवर का पानी गर्म था तो उसे नहाते वक्त किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई। अगर यहां का पानी ठंडा भी होता तब भी उसे दिक्कत नहीं होती। वह ठंड और गर्मी दोनों के एहसासों से कहीं दूर था। नहाने के बाद बाहर निकला तो हिना ने उसे लाल रंग के चोगे वाले कपड़े दे दिए। हिना कपड़ों को देते हुए बोली “यहां आश्रम में लड़कियां नीले रंग के चौगे पहनती हैं, जबकि लड़के लाल। अब तुम आश्रम के ही सदस्य हो तो तुम्हें भी यह नियम मानना होगा। अब से तुम्हें यह लाल चौगे वाले कपड़े पहनने होंगे।” आर्य ने चौगे वाले कपड़ों को पकड़ा और अजीब नजरों से देखा। इसके बाद वह वहां मौजूद लकड़ी के फट्टे वाले बाथरूम में जाकर कपड़े बदलने लगा। बाथरूम से कपड़े बदल कर बाहर आया तो उसका अलग ही रूप देखने को मिल रहा था। लाल चौगे वाले कपड़ों में वह आश्रम का ही हिस्सा लग रहा था। कहीं ना कहीं यह कपड़े उसे पहले की तुलना में ज्यादा अच्छा दिखा रहे थे। हिना आर्य को देख कर बोली “तुम पर तो यह कपड़े कुछ ज्यादा ही जच रहे हैं। बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह लग रहे हो।” आर्य ने अपने दोनों बाहें फैला दी “मुझे तो यह झोले जैसे लग रहे हैं। पता नहीं तुम लोग इसे कैसे पहनते हो।” “तुमने पहन लिए ना... सारे ऐसे ही पहनते हैं।” सरोवर से स्नान करवाने और कपड़े देने के बाद हिना आर्य को आश्रम की किसी और जगह की ओर ले गई। यह ऐसी जगह थी जहां सामने बर्फीली पहाड़ियों के बीच सूरज निकलता हुआ दिखाई दे रहा था। बर्फीली पहाड़ियों में सूरज की रोशनी तो पूरी तरह से नहीं आ रही थी मगर उसकी एक झलक जरूर दिख रही थी। वही पास ही काफी सारे लड़के एक साथ झुंड में खड़े होकर गायत्री मंत्र का जाप कर रहे थे। उनके दूसरी और लड़कियां थी जो सरस्वती माता की मूर्ति के सामने खड़ी थी। वह लड़कियां लड़कों से अलग सरस्वती मंत्र का जाप कर रही थी। हिना ने आर्य से कहा “हमारे यहां आश्रम में स्नान करने के बाद लड़के गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं, वह भी सूर्य देव के सामने। जबकि लड़कियां सरस्वती माता की पूजा करती है। तुम यहां गायत्री मंत्र का उच्चारण करो... तब तक मैं जाकर सरस्वती माता की पूजा करके आती। फिर तुम्हें आगे के बारे में बताती हूं...” इतना कह कर हिना सरस्वती माता की पूजा करने के लिए चली गई। उसके जाने के बाद आर्य ने लड़कों के झुंड में खड़े होकर गायत्री मंत्र का उच्चारण किया। गायत्री मंत्र का उच्चारण करने के बाद लड़के वहां से जाने लगे थे। लड़कों के साथ आर्य नहीं गया। उसने वहां खड़े होकर हिना का ही इंतजार किया। थोड़ी ही देर में हिना सरस्वती माता की पूजा करके आ गई थी। हिना आकर बोली “सरस्वती माता की पूजा करने में ज्यादा समय लगता है। गायत्री मंत्र छोटा होता है तो उसमें इतना समय नहीं लगता। इसलिए मुझे आने में देरी हो गई।” आर्य ने सामने से कहा “कोई बात नहीं। वैसे भी मैं यहां तुम्हारे कहने से पहले कौन सा कुछ और करने वाला था।” हिना ने दोबारा से चेहरे पर मुस्कान दिखाई और आर्य को कहीं और ले गई। इस बार वह दोनों ही जिस जगह पर आए थे वहां लड़के और लड़कियां एक साथ झाड़ू निकालने का काम कर रहे थे। सभी के हाथ में लंबे लंबे झाड़ू थे जिन्हें खड़े होकर निकाला जाता था। वह सभी झाड़ू वहां बने एक कमरे में मौजूद थे। हिना वहां उस कमरे में गई और वहां से दो झाड़ू निकाल कर ले आई। उसने एक झाड़ू आर्य को देते हुए कहा “यहां आश्रम के दिनचर्या में सुबह स्नान करने और गायत्री मंत्र के बाद आश्रम की साफ सफाई करनी पड़ती है। आश्रम की यह साफ सफाई अगले 40 मिनट तक चलती है। 40 मिनट में 400 विद्यार्थी मिलकर पूरे आश्रम की साफ-सफाई कर देते हैं। ” आर्य ने झाड़ू पकड़ लिया “आश्रम के दिनचर्या में तो काफी सारी चीजें हैं।” “हां। इसके बाद तो और भी काफी कुछ है। अभी तुम मेरे साथ मिलकर झाड़ू निकालो, फिर तुम्हें आगे के बारे में बताती हूं।” दोनों ही मिलकर झाड़ू निकालने लगे। अगले 40 मिनट तक दोनों ही ऐसे ही झाड़ू निकालते रहे। इसके बाद सभी विद्यार्थी झाड़ू लेकर उन्हें उस कमरे में रखने लगे जहां से लेकर आए थे। हिना ने आर्य से झाड़ू पकड़ा और दोनों ही झाड़ू वहां रख आई। झाड़ू रखने के बाद सारे ही विद्यार्थी अपनी अपनी झोपड़ीयों की तरफ जा रहे थे। हिना आर्य के पास आई और बोली “झाड़ू निकालने के बाद इन्हें वापस इनकी जगह पर रखना पड़ता है। अब इसके बाद दिनचर्या में जो चीज आती है उसे हम पढ़ाई लिखाई कहते हैं। सारे ही छात्र अपने-अपने कमरों से किताबें और दूसरे काम की चीजें लेकर आ रहे हैं, जिनसे वो आज की पढ़ाई लिखाई करेंगे।” आर्य ने हैरानी से कहा “यह पढ़ाई लिखाई भी होती है। मुझे तो लगा था यह लड़ाई के लिए तैयार करने का काम करता है।” हिना आर्य को जवाब देते हुए बोली “हम यहां आश्रम में हर एक चीज की तैयारी करते हैं। लड़ाई लड़ने के लिए जितनी जरूरत तलवारबाजी सीखने की होती है उतनी ही जरूरत है पढ़ाई लिखाई की होती है। पढ़ाई लिखाई से मानसिक बुद्धि का विकास होता है, जो आगे कभी ना कभी कहीं ना कहीं काम आ ही जाता है।” इसके बाद हिना ने कहा “आओ तुम अब मेरे साथ चलो। तुम्हारे पास किताबें नहीं है, तो मैं तुम्हें अपनी आधी किताबे देती हूं।” हिना और आर्य दोनों ही हिना की झोपड़ी की तरफ चल दिए। वहां आर्य बाहर ही खड़ा रहा और हिना अंदर जाकर कुछ किताबें ले आई। उसने उनमें से आधी किताबें आर्य को दे दी, और आधी किताबे खुद पकड़ ली। फिर वह आर्य के साथ चलते हुए बोली “यहां आश्रम में 23 गुरु हैं, जो अलग-अलग कक्षाओं में बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। तुम्हें यहां एक बात याद रखनी है, तलवारबाजी और जादू सिखाने का काम आचार्य करते हैं, जबकि पढ़ाने लिखाने का काम गुरु। आश्रम में गुरु और आचार्यों के अंदर यही फर्क है।” आर्य ने कहा “मैं इसे याद रखूंगा।” “हां” हिना बोली “मगर इसके अलावा एक और चीज है जो तुम्हें याद रखनी है। हमारे आश्रम में सभी 23 गुरु एक साथ पढ़ाते हैं। लेकिन एक छात्र 1 दिन में सिर्फ 7 गुरुओं से ही पढ़ सकता है। सभी छात्रों के पढ़ने का शेड्यूल उनके पाठ्यक्रम के हिसाब से है। तुम अभी नए हो तो तुम उन 7 गुरुओं से पढ़ोगे जो छात्राओं को शुरुआत से ज्ञान देते हैं। जब तुम्हारा शुरुआती ज्ञान पूरा हो जाएगा तो तुम अगले 7 गुरुओं के पास पढ़ने के लिए चले जाओगे” “मतलब हम दोनों एक साथ नहीं पढेगें।” “बिल्कुल भी नहीं।” हिना ने सर झटकते हुए जवाब दिया “मुझे यहां आए हुए 6 महीने हो गए हैं, और मैंने अपना शुरुआती ज्ञान शुरू के 4 महीनों में ही पूरा कर लिया था। अब मैं आगे की चीजें पढ़ रही हूं जिसके लिए मुझे अगले 7 गुरुओं के पास जाना है। जबकि तुम नए हो तो तुम्हें शुरू से ही सब शुरू करना है। इसलिए तुम शुरुआती ज्ञान देने वाले 7 गुरुओं के पास जाओगे।” हिना आर्य को ऐसी जगह की ओर ले गई जहां 7 कक्षाएं एक ही लाइन में बनी हुई थी। हिना वहां जाकर बोली “हर एक गुरु 40 मिनट तक पढ़ाता है। 40-40 मिनट बाद तुम एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाते रहना। इन कक्षाओं में तुम्हें काफी कम छात्र देखने को मिलेंगे, क्योंकि अभी हाल फिलाल में ज्यादा नए विद्यार्थी नहीं आए। मगर मुझे पूरी उम्मीद है तुम बोर नहीं होगे।” आर्य ने एक नजर कक्षाओं की तरफ देखा। कक्षा में गुरु पढ़ाने के लिए तैयार खड़े दिखाई दे रहे थे। “अब हमारी दोबारा मुलाकात कब होगी...?” उसने हिना से पूछा। हिना ने जवाब दिया “ज्यादा समय नहीं लगेगा। दोपहर के 2:00 बजे से पहले सभी विद्यार्थियों को छोड़ दिया जाएगा। हम उसी वक्त दोबारा मिलेंगे। अच्छा अपनी कक्षाओं में अच्छे से पढ़ाई करना। मैं भी जाकर अपनी कक्षाओं में पढ़ाई करके वापस आती हूं।” हिना अपनी कक्षाओं की तरफ चली गई। जबकि उसके जाने के बाद आर्य अपनी कक्षाओं की तरफ चल पड़ा। जल्द ही वह पहली कक्षा के अंदर चला गया। जिस कक्षा में वह गया था, वो शहरों के स्कूलों की तरह दिखने वाली कक्षा थी। कक्षा में अलग-अलग बेंच लगे हुए थे, जिन पर बैठने की व्यवस्था थी। बेंच के आगे ही बड़े-बड़े मैज थे। जहां पढ़ा जाता था। या फिर अपनी किताबें और दूसरा सामान रखा जाता था। आर्य ने अपने लिए एक खाली जगह ढूंढी और वहां जाकर बैठ गया। उसके सामने सफेद कपड़ों वाले गुरु खड़े थे जो थोड़ी ही देर बाद उसे पढ़ाने लगे। आर्य का यह सिलसिला अगले 7 गुरुओं तक चलता रहा। उसने हर 40 मिनट बाद कक्षा बदली और अलग-अलग गुरु के पास जाकर अध्ययन किया। दोपहर के 2:00 बजते बजते हिना और आर्य की दोबारा मुलाकात हो गई। हिना ने आर्य से मिलते ही पूछा “तो कैसी गई तुम्हारी कक्षाएं? तुम्हें हमारे गुरुओं ने ज्यादा तंग तो नहीं किया।” आर्य ने ना में सर हिला दिया “नहीं। वह सब इतने भी बुरे नहीं थे। मगर हां कक्षा में जाकर नींद आने लग जाती है, पता नहीं क्यों।” हिना हंस पड़ी “सभी के साथ यह होता है। मगर धीरे-धीरे तुम्हें इसकी आदत लग जाएगी। चलो पहले किताबे रख आते हैं, फिर खाना खाने की तैयारी करते हैं।” “खाना!!” “हां।” हिना ने जवाब दिया “यहां आश्रम में सभी कक्षाओं को लगाने के बाद सीधे खाना ही खाया जाता है। खाना खाने का समय 2:15 का निर्धारित है। यह 2:15 से लेकर अगले 3:15 तक चलता रहता है।” दोनों ही किताबे रखने और खाना खाने के लिए चल पड़े। ★★★
अध्याय-4 अगला दिन भाग-2 ★★★ हिना और आर्य दोपहर का खाना खा चुके थे। मौसम अभी भी वैसा ही था जैसा सुबह बना हुआ था। हल्की बर्फबारी हो रही थी। हिना और आर्य खाना खाने के बाद आश्रम में ही टहल रहे थे। हिना टहलती हुई बोली “दोपहर के खाने के बाद आगे का काफी वक्त खाली बच जाता है। यहां आश्रम में अब तकरीबन 6:00 बजे तक और कोई काम नहीं होता। इस बीच में आश्रम के छात्र या तो आराम करते हैं, या आश्रम में ही इधर-उधर टहलते हैं। फिर शाम को आचार्य के सिखाने की बारी होती है। आचार्य रात के 9:00 बजे तक सिखाते हैं। फिर खाना और बाद में सो जाना।” आर्य भी हिना के साथ साथ चल रहा था “मतलब आश्रम की दिनचर्या सिर्फ इन्हीं तीन से चार कामों के बीच सीमित रहती है। इसके अलावा और कुछ भी नहीं।” “फिलहाल तो तुम यही कह सकते हो। वैसे त्योहारों के समय हमारे आश्रम में दिनचर्या बदलती है। जैसे अभी कुछ ही हफ्तों में नया साल आने वाला है तो एक बड़ा समारोह रखा जाएगा। ऐसे ही जब कोई और त्योहार आता है तो अलग-अलग समारोह रखे जाते हैं। कभी कबार प्रतियोगिताएं भी होती है।” “तुम्हें लगता है आश्रम में रहने वाले के लिए अपनी जिंदगी में इतना कुछ काफी है। मतलब हर इंसान के कुछ सपने होते हैं, कुछ सपने और कुछ ख्वाब। क्या आश्रम की दुनिया में उनकी भी जगह है?” हिना सोचते हुए बोली “इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां आश्रम में तुम्हें ज्यादातर 20 साल से कम उम्र वाले ही विधार्थी देखने को मिलेंगे। अगर कोई ज्यादा उम्र वाला यहां होता, तो इस सवाल का जवाब मिल जाता। सपने अक्सर 20 साल की उम्र के बाद ही देखे जाते हैं। उससे पहले तो सब सामान्य जिंदगी ही होती है, जो चाहे किसी भी जगह पर क्यों ना हो, किसी न किसी तरीके से कट जाती है।” हिना और आर्य दोनों चलते हुए आश्रम में बने एक पीपल के पेड़ के नीचे आ गए थे। वहां पीपल के पेड़ के नीचे बैठने के लिए चबूतरे जैसी जगह बनी हुई थी। दोनों ही उस पर बैठ गए। आर्य ने बैठते हुए कहा “तुम्हारा भाई। आयुध। उसका क्या हुआ? क्या तुमने अभी तक आश्रम के आचार्यों से बात की।” “नहीं अभी तो नहीं। तुम्हें दिख रहा होगा सुबह से लेकर अब तक वक्त ही नहीं मिला। मै या तो अब थोड़ी देर में जाकर उनसे बात करूंगी, या फिर रात को खाना खाने के बाद।” “तुम्हें लगता है आश्रम के आचार्य इस बात के लिए मान जाएंगे। वह आयुध को आश्रम से बाहर जाने देंगे।” हिना ने ना में सर हिला दिया “संभावना तो नहीं है। वह अच्छे से जानते हैं बाहर कौन सा खतरा हम सब का इंतजार कर रहा है। कल रात तुमने देखा ही होगा कैसे लाल आंखों वाली परछाइयां हमारे पीछे आ गई थी। यहां आश्रम से बाहर वह सुरक्षित नहीं रह पाएगा।” “लेकिन अगर उसको जाने ना दिया गया तो वह फिर से आश्रम से बाहर जाने की कोशिश करेगा। इस बार तो हमें उसका पता लग गया था, क्या पता अगली बार ऐसा ना हो। हमें उसके जाने के बारे में पता ना चले।” हिना के चेहरे पर मायूसी आ गई “मैं भी इसे लेकर गंभीर हूं। समझ में नहीं आ रहा उसके बारे में क्या फैसला किया जाए। मैं उसे यहां आश्रम में रहने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकती। मैं तो यही उम्मीद कर रही हूं कि जब आचार्य से बात करूंगी, तो वह जरूर इसका अच्छा हल निकालेंगे। ऐसा हल जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।” आर्य कहावत सुनकर हंसने लगा। मगर तभी कहावतें से उसे वह शख्स याद आया जिसने उसके बाबा की जान ली थी। बिना सर वाली अंधेरी परछाइयां, जिनके चेहरे धुएं से बने हुए थे। वह इस बारे में सोच रहा था कि बिना चेहरे वाली परछाइयां, और कल मिली परछाइयां, दोनों ही परछाइयां एक जैसी नहीं थी। दोनों में काफी अंतर था। उसने हिना से पूछा “तुम्हारी अंधेरी परछाईयों को लेकर कितनी जानकारी है? तुम उनके बारे में कितना जानती हो? मैंने कल जिन अंधेरी परेशानियों को देखा था उनकी आंखें लाल थी, जबकि जिसने हम पर हमला किया था उनकी तो आंखें ही नहीं थी। उनके चेहरे पर बस काला धुआं तेर रहा था।” “उनके बारे में तो मैं सिर्फ उतना ही जानती हूं जितना यहां आश्रम में बताया गया है। मै इन दोनों ही परछाइयों के बारे में जानती हूं जिनकी तुम बात कर रहे हो। मैंने सुना है शैतानों के शहंशाह की काफी बड़ी सेना है, जिसमें अलग-अलग तरह की अंधेरी परछाइयां है। हर कोई दिखने में अलग है और हर एक के पास अलग-अलग तरह की ताकत है। बिना चेहरे वाली अंधेरी परछाइयों को हमलावर परछाइयां कहते हैं। यह अंधेरे कि सेना की एक टुकड़ी मात्र है। जबकि लाल आंखों वाली परछाइयों को गुप्त चर परछाईया कहते हैं। हमलावर परछाइयां दुनिया के अलग-अलग कोनों में हमारे लोगों पर हमला करती है। जबकि गुप्त चर परछाइयों का काम नजर रखने का है। मगर जरूरत पड़ने पर यह भी हमला करने से नहीं कतराती।” “तो इनका इतिहास क्या है? मतलब जैसे शैतानों के शहंशाह एक अलग ही दुनिया में है, तो यह सब यहां कैसे घूम रही हैं? यह क्यों नहीं अलग दुनिया में रहती?” “इसका कोई निर्धारित कारण नहीं। अंधेरी परछाइयां तो हमेशा से यही थीं। बस वह शैतानों के शहंशाह को कभी यहां नहीं ला पाई। उनकी हमेशा से यही कोशिश रही है कि शैतानों के शहंशाह को दुनिया पर ले आए। यहां आश्रम के पूर्वज, उन से लड़ते आ रहे हैं। पहले आश्रम की ताकत ज्यादा होती थी तो सुरक्षा चक्कर की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। मगर जैसे-जैसे लड़ाई लंबी चलती गई वैसे-वैसे आश्रम कमजोर पड़ता गया। फिर आखिरकार उन्होंने सुरक्षा चक्र बनाया और लड़ाई बंद कर दी। उसके बाद से बस वही हो रहा है जिसे तुम देख रहे हो। आश्रम दोबारा लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहा है।” “तो मतलब इनकी बस इतनी सी कहानी है। मगर बीच में भविष्यवाणी वाला कंसेप्ट भी तो है। मैंने अपने बाबा से कई बार सुना है, वह बार-बार इसका जिक्र करते थे। एक भविष्यवाणी जिसमें कहा गया है कि शैतानों के शहंशाह के आने के बाद कोई उसे मारेगा।” “इसके बारे में तो आश्रम ने भी सुन रखा है। लेकिन कोई भी इस पर यकीन नहीं करता। इसके भी कई कारण है। एक तो यहां आश्रम में किसी को भी नहीं पता कि भविष्यवाणी वाला शख्स कौन है जो उसे मारेगा। दूसरा उनका मानना है कि शैतान कभी आएगा ही नहीं। वह तो तब आएगा ना जब आश्रम की दोनों ही छड़ियां अंधेरी परछाइयों के हाथ लग जाएंगी।” “और उनकी रक्षा आश्रम कर ही रहा है।” आर्य अपनी जगह से खड़े होते हुए गहरी सांस लेकर बोला। “जब तक आश्रम की सुरक्षा काम करेगी तब तक अंधेरी परछाइयों को छड़ी नहीं मिलेगी। और वह अपने मकसद में कामयाब नहीं होंगे। लेकिन तुम्हें पता है ना वह हिम्मत नहीं हारने वाले। उनकी कोशिश जारी रहेगी।” हिना भी अपनी जगह से खड़ी हो गई। “जारी रहेगी...” वह आर्य की बात पर बोली “उनकी कोशिश हमेशा से ही जारी है। मैंने तुम्हें कल एक किले के बारे में बताया था ना, वहां ना जाने आश्रम के लोगों ने कितनी अंधेरी परछाइयों को कैद करके रखा है। वह सभी काली छड़ी को लेने ही यह आश्रम में आई थी।” आर्य ने अपने दाएं और देखा। हिना जिस किले की बात कर रही थी वह उसके दाएं और ही था। खंडहर जैसा दिखने वाला किला जिस में न जाने कितने अंधेरी परछाइयां केद थीं। आर्य ने कल भी उस किले को देखा था और वह आज भी उसे देख रहा था। उसने किले को देखते हुए हिना से कहा “क्या हम इसे पास जाकर देख सकते हैं। मैंने कल इसे देखा था मगर आज दोबारा देखने का मन कर रहा है” “हां क्यों नहीं,” हिना बोली “मगर हम दीवारों के आगे नहीं जा सकते। इसलिए लोहे के गेट के पास से ही देखना।” “हां, इसे लेकर बेफिक्र रहो। हम दीवार और मुख्य गेट से आगे नहीं जाएंगे।” हिना ने सहमति में सिर हिलाया और उसका हाथ पकड़ कर किले की तरफ जाने लगी। आर्य किले की ओर जाते वक्त उसे बड़े ही गौर से देख रहा था। ★★★ ★★★ आर्य और हिना दोनों ही किले की बाहरी दीवार के पास आ गए थे। आर्य किले को देखते वक्त उसमें खो सा गया था। हिना ने उसे झकझोरा और वह वर्तमान स्थिति में आया। “तुम पक्का कोई नशा नहीं करते ना। कल तुम दोपहर को सोने के बाद सीधे रात को उठे थे, और अब यहां मैं तुम्हें पिछले कुछ टाइम से आवाज लगा रही हूं और तुमने सुना ही नहीं।” आर्य ने अपने होश संभालते हुए कहा “मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। इसलिए तुम्हें जवाब नहीं दे पाया।” इसके बाद वह किले की तरफ देखने लगा। किले की दीवारें काले रंग से बनी हुई थी, बर्फबारी और सीलन की वजह से दीवारें जर्जर हालत में थी। उनकी नींव जहां पर ज्यादा नमी रहती थी वह काली होने के साथ-साथ हरे रंग की एक अजीब सी चीज से भी ग्रस्त थी। इसे सीलन की वजह से दीवारों पर लगने वाली बीमारी कहा जाता है। यह ज्यादातर दीवारों को कमजोर ही करती है वह भी जड़ से। आर्य ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया और सलाखें पकड़ ली। सलाखें पकड़ते ही उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ी। हिना बोली “हमारे आश्रम में यह किला पहले से ही था। पहले आश्रम के लोग यहां बाहर ना रहकर इस किले में रहते थे। मगर अंधेरी पंरछाइयों को कैद करने के लिए केद खाने की जरूरत थीं। और यहां आश्रम में इससे बढ़िया कोई भी कैदखाना नहीं था। आश्रम के लोग बाहर आ गए और अंधेरी परछाइयों को जादुई मंत्रों से इसके अंदर कैद कर दिया। बस उसके बाद यह किला हमेशा हमेशा के लिए आश्रम के लोगों के लिए एक देखने वाली चीज बन गया।” “तुमने कल कहा था यह खतरनाक है.... आश्रम के जादुई मंत्रों की वजह से भी... और अंदर की शैतानी आत्माओं वजह से भी....।” “पूरी तरह से खतरनाक। आश्रम के आचार्य वर्धन ने यहां एक ऐसे मंत्र का इस्तेमाल किया है जिसके बारे में पूरा आश्रम नहीं जानता। एक खतरनाक मंत्र जो सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही आता है। उस मंत्र का कोई तोड़ नहीं है।” आर्य ने सलाखों को कस कर पकड़ा “अचार्य वर्धन यहां के सबसे ताकतवर आचार्य में से है?” “बिल्कुल।” हिना अपने कंधे उचकाते हुए बोली “उनके जादुई मंत्रों का कोई तोड़ नहीं, फिर वह ऐसी भी चीजें जानते हैं जिनके बारे में आश्रम में कोई और नहीं जानता। वो हजारों अंधेरी परछाइयों से अकेले लड़ने की क्षमता रखते हैं। उम्र दराज भी है और अनुभव भी काफी सारा है। इसी वजह से वह सबसे ताकतवर आचार्य है, और उनका ताकतवर होना स्वाभाविक भी है।” आर्य हिना की बात सुन रहा था मगर इसके बावजूद हिना की बात कटती हुई सुनाई दे रही थी। अचानक उसके पीछे से हवा का एक तेज झोंका आया, झोंका इतना तेज था कि आर्य और हिना दोनों को अंदर की ओर धक्का लगा। दोनों ही गेट को खोलते दीवार के दूसरी ओर जा चुके थे। दीवार के दूसरी ओर आते ही पीछे से आने वाली हवा और तेज हो गई। आर्य और हिना दोनों ने महसूस किया कि वह किले की ओर खींचे जा रहे हैं। हिना ने तुरंत अपनी आंखें बंद की और पूरे शरीर को नीली रोशनी से चमका लिया। इसके बाद उसने अपने ठीक सामने नीली रोशनी की दीवार बनाई और अपना एक पैर उस पर टिकाते हुए खुद को अंदर जाने से रोक लिया। मगर आर्य ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। वह हिना से दूर था, जब तक हिना दीवार बनाकर खुद को सुरक्षित करती तब तक वह और आगे जा चुका था। हिना ने आर्य की तरफ देखा तो वह चिल्लाई “अपना बचाव करो आर्य...।” बाहर से आने वाले हवा के धक्के उसे किले की और पास करते जा रहे थे। अभी तक वह खड़ा हुआ था, और गिरते पड़ते किले की ओर जा रहा था। मगर अचानक वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही एक बार के लिए उसे गहरी सुध सी आई। उसने महसूस किया कि वह किसी बड़े ही खतरे में फसने जा रहा है। उसने हिना को भी कहते हुए सुना जो उसे अपना बचाव करने का कह रही थी। वही आर्य अपने होश खो रहा था। आर्य ने अपनी आंखों को बंद किया और सर को झटका देकर पूरी तरह से होश में आया। अपने होश संभालते ही उसने अपने दाएं हाथ की उंगलियों को जोर से जमीन में घुसा दिया। सतह बर्फीली थी तो उसका हाथ काफी गहराई तक चला गया। हवा धीरे-धीरे और तेज होती जा रही थी। अपना हाथ जमीन में गुढोने की वजह से आर्य किले की ओर जाने से तो रुक गया मगर उस पर पड़ने वाला दवाब अभी भी जारी था। दवाब पल प्रतिपल बढ़ता ही जा रहा था। तकरीबन कुछ समय और बीतने के बाद आर्य ने महसूस किया कि उसकी पकड़ छूटने जा रही है। उसका हाथ जमीन से निकलने को तैयार था। उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह सिर्फ मुसीबत में ही नहीं फंस रहा, बल्की मौत के मुंह में भी जा रहा है। उसे अपने बचने की कोई भी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। वह पूरी तरह से अपनी उम्मीद हार चुका था, लेकिन तभी उसे एक सफेद चमकती हुई रोशनी दिखाई दी। वो सफेद चमकती हुई रोशनी लगातार उसकी ओर आ रही थी। रोशनी और करीब आई तो पता चला आश्रम के आचार्य, आचार्य वर्धन अपने साथ कुछ आचार्यों के साथ उसकी ओर ही आ रहे हैं। वह सफेद रोशनी जो उसे दिखाई दे रही थी वह अचार्य वर्धन के हाथ में मौजूद एक डंडे के ऊपरी सिरे से निकल रही थी। आचार्य वर्धन पास आए तो उन्होंने अपने डंडे को सामने की और कर दिया। ऐसा करते ही सफेद रोशनी और ज्यादा बढ़ने लगी। रोशनी के बढ़ते ही चलने वाले तेज हवाओं की गति कम होने लगी। धीरे धीरे बाकी की चीजें भी शांत हो रही थी। किले के सामने पैदा हुए हालात अब खत्म हो रहे थे। सब कुछ फिर से सामान्य हुआ तो हिना ने नीली रोशनी से चमक रहे अपने शरीर को वापस पहले जैसा कर लिया। वही कुछ अचार्य तेजी से आगे की तरफ बढ़े और आर्य को उठा कर जल्दी से किले से दूर की ओर जाने लगे। हिना भी आर्य के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे किले से दूर चल पड़ी। सभी के किले से दूर जाने के बाद वहां सिर्फ और सिर्फ आचार्य वर्धन खड़े थे। वह किले की तरफ बड़े ही गौर से देख रहे थे। उनकी छड अभी भी किले की ओर थी। वह किले को ऐसे देख रहे थे जैसे मानो उनमें दीवारों के उस पार भी देखने की क्षमता थी। काफी देर तक किले को देखने के बाद वह बोले “यह आज पहली बार हुआ है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। कहीं...” उनके शब्द अपने जगह पर रुक गए। कुछ देर के लिए वह कुछ नहीं बोले। इसके बाद उनके मुंह से निकला “कहीं... कब्र में दफन राज बाहर ना आ जाए। मुझे कुछ करना होगा।” ★★★
अध्याय-4 अगला दिन भाग-3 ★★★ आर्य और हिना दोनों ही किले की बाहरी दीवार के पास आ गए थे। आर्य के साथ होने वाली अजीब सी सुनने वाली चीज अभी भी जा रही थी। वह खुद को और आसपास की चीजों को धीमा होता हुआ प्रतीत कर रहा था। तभी हिना ने उसे जब छोरा और वह वर्तमान स्थिति में आया। “तुम पक्का कोई नशा नहीं करते ना। कल दोपहर को सोने के बाद सीधे रात को उठे थे, और अब यहां मैं तुम्हें पिछले कुछ टाइम से आवाज लगा रही हूं और तुमने सुना ही नहीं।” आर्य ने अपने होश संभालते हुए कहा “मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। इसलिए तुम्हें जवाब नहीं दे पाया।” इसके बाद वह किले की तरफ देखने लगा। किले की दीवारें काले रंग से बनी हुई थी, बर्फबारी और सीलन की वजह से दीवारें जर्जर हालत में थी। उनकी नीम जहां पर ज्यादा नवीं रहती थी वह काली होने के साथ-साथ हरे रंग की एक अजीब सी चीज से भी ग्रस्त थी। इसे सीजन की वजह से दीवारों पर लगने वाली बीमारी कहा जाता है। यह ज्यादातर दीवारों को कमजोर ही करती है वह भी जड़ से। आर्य ने अपने हाथों को आगे बढ़ाया और सलाखें पकड़ ली। सलाखें पकड़ते ही उसके शरीर में झुरझुरी सी दौड़ी। हिना बोली “हमारे आश्रम में यह किला पहले से ही था। पहले आश्रम के लोग यहां बाहर ना रहकर इस किले में रहते थे। मगर अंधेरी पंछियों को कैद करने के लिए केद खाने की जरूरत थीं। और यहां आश्रम में इससे बढ़िया कोई भी कैदखाना नहीं था। आश्रम के लोग बाहर आ गए और अंधेरी परछाइयों को जादुई मंत्रों से इसके अंदर कैद कर दिया। बस उसके बाद यह किला हमेशा हमेशा के लिए आश्रम के लोगों के लिए एक देखने वाली चीज बन गया।” “तुमने कल कहा था यह खतरनाक है.... आश्रम के जादुई मंत्रों की वजह से भी... और अंदर के शैतानी आत्माओं वजह से भी....।” “पूरी तरह से खतरनाक। आश्रम के महान आचार्य आचार्य वर्धन ने यहां एक ऐसे मंत्र का इस्तेमाल किया है जिसके बारे में पूरा आश्रम नहीं जानता। एक खतरनाक मंत्र जो सिर्फ और सिर्फ उन्हें ही आता है। उस मंत्र का कोई तोड़ नहीं है।” आर्य ने सलाखों को कस कर पकड़ा “अचार्य वर्धन यहां के सबसे ताकतवर आचार्य में से है।” “बिल्कुल।” हिना अपने कंधे उचकाते हुए बोली “उनके जादुई मंत्रों का कोई तोड़ नहीं, फिर वह ऐसी भी चीजें जानते हैं जिनके बारे में आश्रम में कोई और नहीं जानता। हजारों अंधेरी परछाइयों से अकेले लड़ने की क्षमता रखते हैं। उम्र दराज की है और अनुभव भी काफी सारा है। इसी शजह से वह सबसे ताकतवर आचार्य है, और उनका ताकतवर हो ना स्वाभाविक भी है।” आर्य हिना की बात सुन रहा था मगर इसके बावजूद हिना की बात कटती हुई सुनाई दे रही थी। वह वापिस किले की और अपना खिंचाव महसूस करने लगा था। अचानक उसके पीछे से हवा का एक तेज झोंका आया, तेज होता इतना तेज था कि आर्य और हिना दोनों को अंदर की ओर धक्का लगा। दोनों ही गेट को खोलते दीवार के दूसरी ओर जा चुके थे। दीवार के दूसरी ओर आते ही पीछे से आने वाली हवा और तेज हो गई। आर्य और हिना दोनों ने महसूस किया कि वह किले की ओर खींचा जा रहे हैं। हिना ने तुरंत अपनी आंखें बंद की और पूरे शरीर को नीली रोशनी से चमका लिया। इसके बाद उसने अपने ठीक सामने नीली रोशनी की दीवार बनाई और अपना एक पैर उस पर टिक आते हुए खुद को अंदर जाने से रोक लिया। मगर आर्य ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता था। वहीं हिना से दूर था, जब तक हिना दीवार बनाकर खुद को सुरक्षित करती तब तक वह और आगे जा चुका था। हिना ने आर्य की तरफ देखा तो वह चिल्लाई “अपना बचाव करो आर्य...।” आर्य ने यह सुना लेकिन इसके बावजूद उस पर ऐसा नशा सा हो गया था कि सुनने के बाद भी उसने कुछ नहीं किया। बाहर से आने वाले हवा के धक्के उसे किले की और पास करते जा रहे थे। अभी तक वह खड़ा हुआ था, और गिरते पड़ते किले की ओर जा रहा था। मगर अचानक वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही एक बार के लिए उसे सुध सी आई। उसने महसूस किया कि वह किसी बड़े ही खतरे में फसने जा रहा है। उसने हिना को भी कहते हुए सुना जो उसे अपना बचाव करने का कह रही थी। आर्य ने अपनी आंखों को बंद किया और सर को झटका देकर पूरी तरह से होश में आया। अपने होश संभालते ही उसने अपने दाएं हाथ की उंगलियों को जोर से जमीन में घुसा दिया। सतह बर्फीली थी तो उसका हाथ काफी गहराई तक चला गया। मगर अब धीरे-धीरे और तेज होती जा रही थी। अपना हाथ जमीन में गुढोने होने की वजह से आर्य किले की ओर जाने से तो रुक गया था मगर उस पर पड़ने वाला दवाब अभी भी जारी था। वह दवाब पल प्रतिपल बीतने के साथ बढ़ता ही जा रहा था। तकरीबन कुछ समय और बीतने के बाद आर्य ने महसूस किया कि उसकी पकड़ छूटने जा रही है। उसका हाथ जमीन से निकलने को तैयार था। उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह सिर्फ मुसीबत में ही नहीं फंस रहा, बल की मौत के मुंह में ही जा रहा है। उसे अपने बचने की कोई भी उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। वह पूरी तरह से अपनी उम्मीद हार चुका था, लेकिन तभी उसे एक सफेद चमकती हुई रोशनी दिखाई दी। वो सफेद चमकती हुई रोशनी लगातार उसकी ओर आ रही थी। रोशनी और करीब आए तो पता चला आश्रम के आचार्य, आचार्य वर्धन अपने साथ कुछ आचार्यों के साथ उसकी ओर ही आ रहे हैं। वह सफेद रोशनी जो उसे दिखाई दे रही थी वह अचार्य वर्धन के हाथ में मौजूद एक डंडे के ऊपरी सिरे से निकल रही थी। आचार्य वर्धन पास आए तो उन्होंने अपने डंडे को सामने के लिए की और कर दिया। ऐसा करते ही सफेद रोशनी और ज्यादा बढ़ने लगी। रोशनी के बढ़ते ही चलने वाले तेज हवाओं की गति कम होने लगी। धीरे धीरे बाकी की चीजें भी शांत हो रही थी। किले के सामने पैदा हुए हालात अब खत्म हो रहे थे। सब कुछ जबकि से सामान्य हुआ तो हिना ने नीली रोशनी से चमक रहे अपने शरीर को वापस पहले जैसा कर लिया। वही कुछ अचार्य तेजी से आगे की तरफ बढ़े और उसे उठा कर जल्दी से किले से दूर की ओर जाने लगे। हिना भी आर्य के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे किले से दूर चल पड़ी। सभी के किले से दूर जाने के बाद वहां सिर्फ और सिर्फ आचार्य वर्धन खड़े थे। वह किले की तरफ से बड़े ही गौर से देख रहे थे। उनकी छड अभी भी किले की ओर थी। वह किले को ऐसे देख रहे थे जैसे मानो उनमें दीवारों के उस पार भी देखने की क्षमता थी। काफी देर तक किले को देखने के बाद वह बोले “यह आज पहली बार हुआ है। ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ। कहीं...” उनके शब्द अपने जगह पर रुक गए। कुछ देर के लिए वह कुछ नहीं बोले। इसके बाद उनके मुंह से निकला “कहीं... कब्र में दफन राज बाहर ना आ जाए।” ★★★
अध्याय 5 युद्ध क्षेत्र भाग-1 ★★★ आर्य सुरक्षित था। वह आश्रम के कई दूसरे आचार्यों के साथ पीपल के पेड़ के नीचे बैठा था। हिना भी वही पास खड़ी थी। कोई भी किसी से कुछ नहीं कह रहा था। सब बस अचार्य वर्धन के आने का इंतजार कर रहे थे। आचार्य वर्धन लोहे की सलाखों वाले दरवाजे को बंद कर उन सभी की ओर आए। वह आते ही वहां हीना से बोले “हिना, क्या तुम यहां आश्रम की खतरनाक जगहों के बारे में नहीं जानती। तुम यहां रहते हुए 6 महीने हो गए हैं, और तुम्हें यह अच्छे से पता है कि यहां किले की पास जाना सख्त मना है। यहां खतरनाक जादूओं का इस्तेमाल किया गया जो कुछ भी कर सकते हैं। उनके प्रभाव कई बार मेरे लिए भी हैरानी का विषय होते हैं। तब तुम इस लड़के को किले के पास क्यों लेकर गई...।” आर्य देख रहा था कि उसके किले के पास जाने का सारा इल्जाम हिना पर आ रहा था। जबकि इसमें हिना कि कोई गलती नहीं थी। किले के पास जाने के लिए तो उसने खुद कहा था। वह बीच में बोला “इसमें इसकी कोई गलती नहीं आचार्य वर्धन.... दरअसल किले के पास जाने के लिए मैंने कहा था। मैं उसे नजदीक से देखना चाहता था, और यह मुझे उस और ले गई।” आर्य को अपनी बात के बीच में बोलते देख आचार्य वर्धन ने गुस्से से कहा “क्या तुम्हें यहां किसी ने बोलने के लिए कहा... नहीं ना.... तो चुपचाप बैठे रहो।” आर्य ने अपनी आंखें झुका ली और सर नीचे कर लिया। वहीं आचार्य वर्धन उसे कहकर हिना से दोबारा बोले “और हिना, मैंने यह भी सुना है कि कल रात तुम जंगल में भी चली गई थी। तुम जंगल के बारे में भी जानती हो कि वह खतरनाक है।” “वो...वो...” आचार्य वर्धन गुस्से में थे तो हिना जवाब देने से डर रही थी। “मुझे अपने भाई की वजह से जाना पड़ा। वो जंगल में चला गया था।” आचार्य वर्धन और ज्यादा गुस्से में लिबलिबा गए “2 दिन में लगातार दो नियमों का उल्लंघन। यह बर्दाश्त से बाहर होगा। वजह चाहे कोई भी क्यों ना हो मगर आश्रम के नियमों का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। हिना, तुम्हें आश्रम के नियमों के उल्लंघन के लिए सजा मिलेगी। और तुम्हारे भाई को भी।” हिना कुछ नहीं बोली। आर्य भी खामोश खड़ा रहा। वही आचार्य वर्धन ने अपनी बात पूरी की “ सजा के तौर पर तुम अगले 7 दिनों तक आश्रम के पुस्तकालय की सफाई करोगी। रोजाना दो घंटे। और तुम्हारा भाई, उससे भी हम जल्दी बात करेंगे।” इतना कहकर आचार्य वर्धन वहां से निकल गए। बाकी के आचार्य भी धीरे धीरे जाने लगे। सभी के जाने के बाद हिना ने मायुसी के साथ कहा “समझ में नहीं आता यह सभी मुसीबतें मेरे सर पर ही क्यों आती है। मुझे भाई के बारे में अच्छे से आचार्य से बात करनी थी, और अब मैंने बेमतलब उन्हें गुस्सा दिला दिया। वो चाह कर भी अब मेरी बात नहीं सुनने वाले।” आर्य थोड़ा संकोचते हुए बोला “शायद इसमें थोड़ी सी गलती मेरी है। मुझे माफ कर देना। मुझे तुम्हें किला देखने के लिए नहीं कहना चाहिए था।” हिना ने सर झटका “आह। तुम यहां नए हो इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं। तुम यहां कुछ भी ऐसा ना करो इसलिए मुझे तुम्हारे साथ छोड़ा गया है। तुम जो भी करोगे उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी बनती है। और मैं बेवकूफ, तुम्हारे एक बार कहने पर ही मान गई। तुम्हें किला दिखा दिया...” इसके बाद उसने झल्लाते हुए कहा “ओह.... मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं? मुझे तो कम से कम नियमों का ध्यान रखना चाहिए था!” आर्य उसे खुद पर ही गुस्सा निकालता देख रहा था। गुस्से में हिना के पूरे चेहरे पर अजीब से भाव आ गए थे। उसने सर को झटका था तो बाल भी इधर-उधर बिखर गए थे। आर्य ने सांस बाहर छोड़ी और हिना से पूछा “तो अब क्या? क्या तुम्हारे भाई का मसला हल नहीं होगा? लेकिन यह तो और भी गंभीर....” “हां मैं जानती हूं। मैं जानती हूं यह गंभीर है, मगर अब मैं कुछ दिन तक आचार्य वर्धन से बात नहीं कर सकती। 7 दिन तक किताबे साफ करने की सजा मिली है। शायद जब यह सजा पूरी होगी तो मुझे एक अच्छा मौका मिल जाए उनसे बात करने का। तब तक मैं देखती हूं... करती हुं कुछ अपने भाई का...” इसके बाद हिना वहां से जाने लगी। जाते-जाते वह बोली “ अच्छा मैं तुम्हें अब शाम को तकरीबन 5:00 बजे के आसपास मिलूंगी, शाम को हम युद्ध क्षेत्र जाएंगे। ऐसी जगह जहां आश्रम के योद्धाओं को तैयार किया जाता है।” “युद्ध क्षेत्र.... क्या यह जगह दिलचस्प है?” “हां, हद से भी ज्यादा हो। तुम शाम को खुद ही देख लेना।” हिना इतना कह कर चली गई। उसके जाने के बाद आर्य वहां पीपल के पेड़ के नीचे अकेला ही बैठा रहा। उसने वहां बैठे-बैठे एक बार फिर अपने दाई और देखा। दाईं और मौजूद किले की तरफ। किले को देखते हुए उसने कहा “तुम तो सच में काफी खतरनाक हो। जान जाते-जाते बची है। आज के बाद तो मैं भूल कर भी तुम्हारी और नहीं आऊंगा।” उसने बालों में हाथ फेरे और अपनी कुटिया की तरफ चल पड़ा। अब अगले एक-दो घंटे तक समय व्यतीत करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था। हिना से अगली मुलाकात शाम के 5:00 बजे होनी थी, वह भी एक जगह युद्ध क्षेत्र जाने के लिए। ★★★ शाम के तकरीबन 5:00 बजे आर्य पहले ही वहां झोपड़ी के बाहर खड़ा था। झोपड़ी के बाहर ही उसे हिना अपनी ओर आते हुए दिखाई दी। उसके साथ उसका भाई आयुध भी था। आयुध चुपचाप चल रहा था जबकि हिना के चेहरे के भाव ठीक-ठाक थे। हिना आर्य के पास आते ही आयुध का परिचय देते हुए बोली “मेरा भाई... इससे तो तुम कल रात मिल ही चुके हो।” “हां...” आर्य ने जवाब दिया और अपना हाथ आगे बढ़ाया “इसे कौन भूल सकता है। अब तुम्हारे दो दांत कैसे हैं...?” उसने हाथ मिलाते हुए पूछा। आयुध ने अपने जबड़े पर हाथ लगाया। “मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता।” हिना उसे कोहनी मारते हुए बोली “मैंने तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा दी है। अगर किसी भी बहन का भाई ऐसी हरकतें करेगा तो वह उसके दांत ही तोड़ेगी। इसलिए यह मत समझना की मैं इसे लेकर किसी भी तरह का पछतावा महसूस करूंगी।” इसके बाद उसने आर्य की तरफ देखा और कहा “चलो, अब हम सब युद्ध क्षेत्र की तरफ चले।” तीनों ही एक साथ वहां से चल पड़े। इस वक्त काफी सारे विद्यार्थी आश्रम के सामने वाले दरवाजे से बाहर जा रहे थे। हिना आर्य और आयुध भी उस दरवाजे से बाहर गए, जिसके बाद सभी विद्यार्थी वहां अपने दाएं और की दीवार के साथ साथ साथ चलने लगे। सभी आश्रम की दीवार के साथ चलते हुए सामने की किसी बड़ी गोल सरचना की तरफ जा रहे थे। वह गोल सरचना स्टेडियम की तरह लग रही थी। आर्य जब यहां आया था तो उसका ध्यान उस पर नहीं गया था, यह संरचना आश्रम के दाई और आ जाती थी जो सामने से दिखाई नहीं देती। हिना बीच रास्ते में चलती हुई बोली “दरअसल आर्य, मैं कुछ सोच रही थी?” “हां बताओ क्या..?” आर्य ने कहा। “तुम्हें तो पता है, आज दोपहर को जो भी हुआ उसके बाद मैं अचार्य वर्धन को आयुध के बारे में ठीक से समझा नहीं सकती। वह उसकी समस्या का किसी भी तरह से हल नहीं करेंगे।” “हां यह तो है। तो तुमने क्या सोचा इस बारे में..?” “वही बता रही हुं।” हिना सामने की तरफ देखते हुए ही बात कर रही थी “मुझे अपने भाई पर अब बिल्कुल भी विश्वास नहीं है। अगर इसे फिर से मौका मिला तो यह वापस बाहर जाने से नहीं कतराएगा। भले ही इसकी जान ही क्यों ना चली जाए। तो मैं सोच रही थी जब तक मैं आचार्य वर्धन से इसके बारे में ठीक से बात ना कर लूं, तब तक तुम इसे अपने पास रखो। अपनी नजर में और अपनी गिरफ्त में।” “मैं इसे अपने पास रखुं...!!” आर्य ने आयुध की तरफ देखा। वह उसे घूर घूर कर देख रहा था। “क्या यह मेरे पास रह लेगा?” “क्यों नहीं..” हिना फौरन बोली “अगर यह रहने से मना करेगा तो दो लगाना इसके कान के नीचे। और हो सके तो जोर से ही लगाना। ताकि कम से कम इसे अक्ल आ जाए।” इसके बाद उसने एक हल्की सांस लेते हुए कहा “अगर यह तुम्हारे पास रहेगा तो मुझे इसे लेकर किसी तरह की फिक्र नहीं रहेगी। यहां आश्रम में कोई भी लड़का लड़कियों के साथ नहीं रह सकता, भले ही वह उसका भाई ही क्यों ना हो। और दूसरे लड़कों में मुझे किसी पर विश्वास नहीं। तुम थोड़े ठीक ठाक लग रहे हो, तो अपने भाई की जिम्मेदारी तुम्हें दे रही हूं।” आर्य ने एक दफा फिर आयुध को देखा। उसका घूर कर देखना बंद नहीं हुआ था। उसने हिना से कहा “ठीक है अगर तुम यह चाहती हो तो मुझे कोई एतराज नहीं। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हारे भाई का अच्छे से ध्यान रखुं।” “ध्यान ही नहीं रखना नजर भी रखनी है। और हां, नशा करके सोने वाली नींद में मत सोना। मेरा भाई रात को उठकर भी भाग सकता है।” इससे पहले आर्य कुछ बोलता, हिना के भाई आयुध ने हिना से कहा “मगर मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं। मुझे इस लड़के के साथ नहीं रहना। मुझे यहां आश्रम में किसी भी लड़के के साथ नहीं रहना। मैं अकेला ही रहूंगा।” “और वह मैं तुम्हें रहने नहीं दूंगी।” हिना ने अपनी मोटी आंखों से अपने भाई आयुध को घुरा, ऐसा करते ही उसके भाई ने चेहरा घुमा लिया था। “तुम सिर्फ और सिर्फ आर्य के साथ रहोगे। और यह मेरा फैसला है, मेरा आखिरी फैसला। समझ गए ना तुम।” आर्य देख रहा था कि हिना के रोब का उसके भाई पर खासा असर हो रहा था। वह गुस्से में काफी जबरदस्त तरीके से अपनी बात कहती थी। इतने जबरदस्त तरीके से कि सामने वाला ना चाहते हुए भी उसकी बात मानने पर मजबूर हो जाता था। हिना की बात पर आयुध ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया, मगर उसकी चुप्पी का यही मतलब था कि वह किसी तरह की ना नूकर नहीं कर सकता था। उसकी तरफ से इसे लेकर हां ही थी। जल्द ही वह लोग चलते चलते स्टेडियम जैसी दिखने वाले ढांचे के पास पहुंच गए थे। वहां पहुंचते ही हिना ने एक गहरी लम्बी सांस ली और उसे छोड़ते हुए बोली “आर्य... यह है हमारा युद्ध क्षेत्र... और मुझे पूरी उम्मीद है... तुमने ऐसी जगह कम से कम अब तक तो अपनी जिंदगी में नहीं देखी होगी।” हिना की बात सुनकर आर्य ने अपने सामने की तरफ देखा। उसके ठीक सामने युद्ध क्षेत्र का ढांचा था जो काफी विशाल बड़ा और मजबूत था। यकीनन इस तरह का ढांचा उसने अपने जिंदगी में नहीं देखा था। ★★★
अध्याय-5 युद्ध क्षेत्र भाग-2 ★★★ आर्य युद्ध क्षेत्र के अंदर चला आया। उसके साथ हिना भी थी और उसका भाई आयुध भी। युद्ध क्षेत्र किसी बड़े फुटबॉल के मैदान से कम नहीं था। पुराने इंटों और बड़े-बड़े पत्थरों के इस्तेमाल से बने इस युद्ध क्षेत्र में दीवारों से घिरा एक बर्फीला मैदान था। दीवारों पर बैठने के लिए व्यवस्था बनी हुई थी। बीच में जो मैदान था वह सीखने और सिखाने के लिए काम लिया जाता था। दीवारें ऊंची थी तो इस पार आ जाने के बाद आश्रम तक दिखना बंद हो जाता था। हिना ने युद्ध क्षेत्र के बारे में कहा “पहले हमारे आश्रम में अंदर ही विद्यार्थियों को अलग-अलग चीजें सिखाई जाती थी। यह तलवारबाजी तक तो ठीक था मगर जादू के लिए आश्रम एक अच्छी जगह नहीं थी। लड़कियां गलत जादू का इस्तेमाल कर काफी नुकसान कर देती थी। इसके बाद इस जगह का निर्माण किया गया। यहां खास मंत्रों का इस्तेमाल किया गया है जिसकी वजह से कोई भी जादू युद्ध क्षेत्र की इन दीवारों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। यहां सभी को हर एक संभावित जादू इस्तेमाल करने का अधिकार हैं। सब बिना किसी डर के जादू इस्तेमाल कर सकते हैं।” “जादू...” आर्य हिना से बोला “खुद के शरीर को नीली रोशनी से चमका लेने को ही तुम लोग जादू कहते हो ना।” “नहीं वह तो बस जादू का हिस्सा है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ है। नीली रोशनी वाली जो चीज में करती हूं उसे यहां का सुरक्षात्मक जादू कहा जाता है। आश्रम में हर लड़की को सबसे पहले यही सिखाया जाता है। यहां के आचार्यों का कहना है कि लड़की को सबसे पहले अपनी सुरक्षा करनी आनी चाहिए। और इसमें वह नीली रोशनी वाला जादू काफी मदद करता है। हम उस जादू की मदद से कई सारे सुरक्षा कवच बना सकते हैं, नीली रोशनी से चमकाने के बाद अगर किसी पर वार करें, तो उसका दुगना असर होता है।” “यहां लड़के जादू सीखते हैं?” आर्य ने देखा कि हिना बार-बार जादू के नाम पर सिर्फ लड़कियों का ही नाम लेती थी। उसे याद था की उसे बताया गया था लड़के तलवार सीखते हैं जबकि लड़कियां जादू। लेकिन वह इसे पूरी तरह से समझना चाहता था। हिना ने जवाब दिया “फिलहाल तो नहीं। यहां आश्रम के लड़कों को जादू से दूर ही रखा गया है। इसके पीछे बात यह है कि अंधेरे की सेना जादू का तोड़ आसानी से ढूंढ लेती है। इसके बाद उनका सामना करने के लिए तलवार और दूसरी चीजों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस तरह की चीजों से निपटने के लिए आश्रम ने दोनों ही चीजों की तैयारी कर ली। लड़कियों को जादू में निपुण करवाने लगे और लड़कों को तलवार में। अगर अंधेरे की सेना जादू का इस्तेमाल करती है तो लड़कियों को हमले के लिए आगे किया जाता है, और अगर अंधेरे की सेना तलवार युद्ध पर आ जाए तो लड़कों को।” “और आश्रम के अचार्य..? वह किनका सामना करते हैं..?” “ताकतवर सम्राटों का। अंधेरी की सेना जब भी हमला करती है तब उनके साथ बड़े-बड़े सम्राट भी होते हैं। आम भाषा में इसे सेनापति कहा जाता है। सेनापति सेना की तुलना में काफी ज्यादा ताकतवर होते हैं। इसलिए उनका सामना करने के लिए खुदा आश्रम के आचार्य उनके सामने जाते हैं।” आर्य आश्रम से लेकर जुड़ी हुई बातों को काफी हद तक समझ रहा था। “मतलब एक तरह से पूरी रणनीति बनाकर युद्ध होता है। इस ओर से भी रणनीति बनाई जाती है और उस ओर से भी...” “हां, लेकिन अभी आश्रम युद्ध को लेकर पूरी तरह से बेफिक्र है। यह सब पहले हुआ करता था अब नहीं। अब तो सुरक्षा चक्कर बन चुका है तो युद्ध वाले हालात ही पैदा नहीं होते, हम सब बिना युद्ध के भी सुरक्षित रहते हैं। फिर भविष्य में कभी युद्ध लड़ना पड़ा तो शायद यह सब चीजें दोबारा से इस्तेमाल हो। एक अच्छी रणनीति के साथ अंधेरे की सेना का सामना किया जाए।” दोनों अभी बात कर रहे थे कि युद्ध क्षेत्र में एक अधिक उम्र वाले आचार्य का आगमन हुआ। आर्य उस आचार्य के बारे में जानता था। वह अचार्य वीरसेन थे। उनका काम लड़कों को तलवारबाजी सिखाना था। उनके साथ एक आचार्या भी आ रही थी, आर्य उसके बारे में नहीं जानता था। हिना बोली “आचार्य वीरसेन को तो तुम जानते ही हो। उनके साथ जो दूसरी आचार्या हैं, उनका नाम आचार्य शोभा देवी है। वह यहां आश्रम में लड़कियों को जादू करना सिखाती है। मैंने तुम्हें कहा था ना, जिस तरह से गुरुओं का अलग काम होता है और वह हमें सुबह पढ़ाते हैं, उसी तरह आचार्यों का अलग काम होता है और वह हमें शाम को पढ़ाने का काम करते हैं। अब तुम आचार्य वीरसेन का ज्ञान लोगे, और मैं जादू सीखने के लिए आचार्या शोभा देवी का ज्ञान लूंगी।” इतना कह कर हिना लड़कियों के झुंड की तरफ चल पड़ी थी। वहां लड़कीयां कतार बना कर खड़ी हो रही थी। इधर आर्य ने देखा कि हिना का भाई आयुध लड़कों की कतार की तरफ जा रहा था। आर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। वहां लड़कों की भी एक अलग कतार बनी। अब एक तरफ लड़कों की कतार थी और एक तरफ लड़कियों की कतार। आचार्य वीरसेन लड़कों वाली करतार के सामने आकर खड़े हो गए। जबकि अचार्या शोभा देवी लड़कियों की कतार के सामने खड़ी हो गई। उनके सामने आते ही सभी ने अपना अपना सीना तान लिया था। सबको देखी देख आर्य भी उन्हीं की तरह सीना फुला कर खड़ा हो गया। आचार्य वीरसेन लड़कों की कतार के आगे चहलकदमी करने लगे। उन्होंने आगे आगे खड़े छात्राओं की आंखों में आंखें मिलाई। इसके बाद वे उनके करीब आए और उनकी छाती को ठोका। छाती ठोकने के बाद उन्होंने कहा “तुम सब यहां विद्यार्थी नहीं हो...” वह जोशीले स्वर में संवाद कर रहे थे “ना ही कोई आम लड़के, जो बाकी की दुनिया में होते हैं। तुम सब यहां योद्धा हो। आश्रम के योद्धा। ऐसे योद्धा जिसका सामना अंधेरे से होगा। अंधेरे की सेना से होगा। तुम सब आने वाले समय के महान योद्धा हो।” आचार्य वीरसेन के कहने का अंदाज ऐसा था की उन्हें सुनने के बाद हर किसी में जोश भर रहा था। हर किसी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अकेला ही युद्ध 50-50 योद्धाओं को हरा देगा। उनका अंदाज निराला था। अचार्य वीरसेन आगे बोले “हर योद्धा का सिर्फ एक धर्म होता है... चाहे उसे लड़ना आए या ना आए ... पर फिर भी आखिर तक लड़ना। हार जाना, योद्धा के खून में नहीं होता... भाग जाना, योद्धा के खून में नहीं होता.... डर जाना, योद्धा के खून में नहीं होता, उसे सिर्फ एक चीज़ का पता होता है और वह है लड़ना। मुश्किलें हर किसी के सामने आती है। घबराने की स्थिति हर किसी के आगे पैदा होती हैं, कौन है जिसने मुश्किलों का सामना नहीं किया, कौन है जो उन्हें देखकर नहीं घबराता। पर जो इनसे लड़ता है वही योद्धा है, जो इनको हराता है वही योद्धा है। युद्ध में आपको दुश्मनों से नहीं लड़ना, आपको उन्हें नहीं खत्म करना, आपको खुद से लड़ना है, आपको अपने अंदर की भावनाओं को खत्म करना है।” आचार्य वीरसेन के शब्द और भी ज्यादा हौसला अफजाई करने लगे थे। वहीं दूसरी ओर आर्य ने देखा की अचार्या शोभा देवी किसी तरह का उत्साह वर्धक भाषा नहीं दे रही थी। उनके हाथ में एक पतली लकड़ी थी जिसके जरिए वह लड़कीयों की कतार को अलग-अलग हिस्सों में बांट कर युद्ध क्षेत्र की दीवार की ओर भेज रही थी। वहां सभी लड़कियां दीवार के पास खड़ी होकर खुद को नीली रोशनी से चमका रही थी। इसके बाद वह नीली रोशनीयों के हमले दीवारों पर करने लगी थी। अचार्य वीरसेन चहल कदमी करते हुए थोड़ा सा आगे आ गए "'डर' क्या है? आखिर किसे 'डर' कहते हैं? यह सिर्फ एक भावना ही तो है जो हमें अंदर ही अंदर आगे बढ़ने से रोकती है। हमें लड़ने से रोकती है। हमारे साहस को 'डर' दबा देता है। हमारी मुश्किलों को डर बढ़ा देता है। हमारे सामने दुश्मन खड़ा है हमें इस बात का डर नहीं, हम उससे लड़ेंगे कैसे हमें इस बात का डर है। हमें इस पर काबू पाना है। हमें डर पर काबू पाना है। आने वाले वक्त में ऐसे हजारों पल आएंगे जब आपके सामने खड़ा दुश्मन आपको डराएगा। इसलिए नहीं कि वह आपके सामने खड़ा है। इसलिए क्योंकि आपको उससे लड़ना है , आपको उसे हराना है, आपको उससे जुझना है। एक कहावत है जो आप सब ने सुन रखी होगी... जो डर गया सो मर गया... और एक कहावत जो मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं। मैं कभी डरता नहीं क्योंकि मैं एक योद्धा हूं। मैं कभी हारता नहीं क्योंकि मैं एक योद्धा हूं। मैं एक योद्धा हूं। मैं एक योद्धा हूं।" कतार में खड़े सभी विद्यार्थियों ने इस वाक्य का उच्चारण किया। “मैं एक योद्धा हूं।” आर्य ने भी यह शब्द बोले। सबका बोलना इतना तेज था कि वहां मौजूद सारी लड़कियां एक बार के लिए पीछे मुड़ कर देखने लगी थी। अचार्य वीरसेन ने आगे कहना जारी रखा “साहस। अब मैं तुम लोगों को साहस के बारे में बताता हूं। अगर साहस की बात की जाए तो साहस वह चीज है जो हमें जीताती है। जो आपको जीताती है। परिस्थितियां लाख हमारे विपरीत हो, मुश्किले चाहे हजार सामने खड़ी हो, लेकिन अगर हममे साहस है तो हम इन सबसे भी निपट लेंगे। यह सब मुश्किलें हमारे अदम्य साहस के सामने कुछ भी नहीं। साहस आपका मजबूत हथियार है और डर दुश्मन का।” इसके बाद उन्होंने अपने शब्दों को रोकते हुए कहा “आज हम देखेंगे कि आप पर साहस हावी होता है या फिर डर।" अबकी बार सभी विद्यार्थी चौकन्ने हो गए। हर कोई अपने कान खड़े कर चुका था। आचार्य वीरसेन के शब्दों से साफ पता चल रहा था कि वह कुछ करने के लिए कहने वाले हैं। आचार्य वीरसेन पीछे हटे और बोले “तो योद्धाओं...। आज हम यहां आपके डर और साहस की परीक्षा लेंगे। आप सब को एक इम्तिहान देना होगा। बहुत ही सामान्य इम्तिहान। आज तुम सब को आजमाया जाएगा, हर तरह से । इम्तिहान की शुरुआत हम सहन क्षमता से करेंगे। आप लोगों के साहस और डर की क्षमता को देखने के लिए आप लोगों को ठंडे बर्फीले पानी के अंदर खड़ा किया जाएगा। ठंडे पानी में जाना आपके डर पर आपकी जीत होगी और उसके अंदर की परिस्थितियों का सामना करना आपके साहस की जीत। जितना समय आप उस ठंडे पानी से लड़ने में व्यतीत करेंगे उस समय के हिसाब से आपको अंक दिए जाएंगे।" विद्यार्थियों मे कानाफुसी होने लगी, कोई किसी से कुछ कह रहा था तो कोई किसी से कुछ। मगर सब आपस में धीरे-धीरे ही बात कर रहे थे। आयुध आर्य के बिल्कुल पास ही खड़ा था। आचार्य वीरसेन के ठंडी बर्फ वाले पानी में खड़े होने के बारे में सुनकर उसने आर्य के कान में कहा “तुम्हें शायद मेरी बहन ने बताया नहीं होगा, मैं भी आज युद्ध क्षेत्र में पहली बार आया हूं। मैं यह सब सीखना नहीं चाहता था, मगर उसने कहा है कि वह मुझ पर हर वक्त नजर रखेगी और यहां ले आई। यह सच में काफी कठिन रहने वाला है।” आर्य ने उसकी तरफ देखा, बर्फ वाले पानी में जाने को लेकर उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था। “लेकिन मुझे नहीं लगता आचार्य वीरसेन पीछे हटने देंगे। अगर हम नहीं चाहेंगे तो भी वह पानी में धकेल कर रहेंगे। उनके शब्दों से तो मुझे यही लग रहा है।” “हां, उन्हें जोशीले शब्दों में बात करने की आदत है। यही वजह है कि वह यहां तलवार सिखाते हैं। मगर मुझे सच में ठंडे पानी में जाने से डर लग रहा है।” आयुध के चेहरे पर बेचारे वाले भाव आ गए “मैं नहीं कर पाऊंगा।” आर्य आयुध की परेशानी को समझ रहा था। अगर वह भी ठंडे पानी को महसूस करता था तो शायद उसे भी इस बात का डर होता। मगर उसे ठंड के एहसास नहीं होते थे, तो वह भावहीन खड़ा था। जबकि बाकी के सदस्य नहीं। ★★★
अध्याय-5 युद्ध क्षेत्र भाग-3 ★★★ “हां तो सबसे पहले कौन आगे आएगा?” अचार्य वीरसेन ने पुछा। वह विद्यार्थियों की परीक्षा लेने के लिए तैयार थे। उन्हें विद्यार्थियों के डर और साहस का परीक्षण करना था। किसी भी लड़के की आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पहल करना सबसे मुश्किल कार्य होता है। “हां ... चलो ... तुम आओ।” अचार्य वीरसेन ने कतार में खड़े पहले लड़के को आगे आने का इशारा किया। “तुम योद्धा हो योद्धा, हर काम में आगे रहना तुम्हारे खून में होना चाहिए।” आचार्य ने बच्चे का जोश बढ़ाते हुए उसे प्रोत्साहित किया। “हां .. हा गुरुवर।” लड़के के होंठ कंपकंपा रहे थे। मगर आचार्य वीरसेन के शब्दों के बाद उसमें हिम्मत आ गई थी। लड़का निकल कर कुछ कदम आगे आ गया। उसके आगे आ जाने के बाद आचार्य वीरसेन चहल कदमी करते हुए पीछे हटें। पीछे हटने के बाद उन्होंने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र बुदबुदाए। उनके मंतर बुदबुदाते ही सामने की एक छोटी बर्फीली सतह पर दरारें आने लगी। फिर ठीक इसके अगले पल वहां बर्फ के टुकड़े नीचे गिर गए और पानी बाहर आ गया। अचार्य वीरसेन बोले “यह लो, मैंने यहां ठंडा पानी ला दिया है। अब इस ठंडे पानी में जाओ और अपने डर और साहस के अंतर्द्वंद का सामना करो।” लड़का डरते हुए आगे बढ़ने लगा। उसके पैर वैसे वैसे कांप रहें थे जैसे जैसे वह पानी के नजदीक जा रहा था। पानी के नजदीक जाते ही वह तेजी से उसके अंदर गया, कुछ सेकंड रुको और फिर बाहर आ गया। बाहर आने के बाद उसकी हालत बुरी हो गई थी। उसे ठंड लगने लगी थी। शरीर में ठंड की सूरसुरी सी भी दौड़ रही थी। आचार्य वीरसेन ने बाकी के विद्यार्थियों को आगे आने के लिए कहा “तुम सब अब बारी बारी से आगे आओ।” विद्यार्थियों की कतार में आगे वाले विधार्थी पानी के अंदर जाने लगे। हर कोई जितना जल्दी पानी के अंदर जाता उतना ही जल्दी बाहर आ जाता। धीरे धीरे लड़कों की बारी आयुध के पास आने वाली थी। आयुध अपनी जगह पर खड़े खड़े ही घबरा रहा था। उसने घबराते हुए वापस आर्य से कहा “क्या यहां से बचकर निकल जाने का कोई रास्ता नहीं है। तुम्हें कोई ऐसा जादू आता है जिससे तुम किसी को भी गायब कर सको? अगर आता है तो मुझे गायब कर दो?” आर्य ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा “गायब करने वाला क्या, मुझे तो कोई भी जादू नहीं आता।” “धत्त तेरी की..” आयुध खुद को कोसता हुआ बोला “कल रात तुम लोग मुझे वापस ना लेकर आते तो यह हालात ना देखने को मिलते। मैं तो कभी आश्रम में भी नहीं नहाता, वह भी तब जब पानी गर्म होता है। अब मुझे यहां ठंडे पानी में जाना पड़ेगा।” उसके कहते-कहते उसकी बारी आ गई। सभी लड़कों के आगे बढ़ने का सिलसिला रुक गया था। क्योंकि आयुध अपने ही जगह पर खड़ा बड़बड़ कर रहा था। उसे ना चलता देखो अचार्य वीरसेन ने तेज आवाज में कहा “आगे बढ़ो योद्धा। तुम योद्धा हो और योद्धा कभी रुकता नहीं।” आयुध ने तेज तेज सांसे ली और धीरे-धीरे बर्फीले पानी की तरफ बढ़ने लगा। उसके पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे वह बच कर निकल सके। पानी में तो उसे जाना ही था। यही सोचकर उसने अपनी आंखें बंद की और तेजी से पानी में घुस गया। इसके बाद वह उसी समय ही बाहर निकल गया। पानी से भीगने के बाद वह कापंता हुआ वहां जाकर खड़ा हो गया जहां पहले ही काफी सारे भीगे हुए विद्यार्थी खड़े थे। धीरे-धीरे और विधार्थी पानी में जाने लगें। और एक समय ऐसा भी आया जब आर्य की पानी में जाने की बारी आई। आर्य पानी की तरफ बढ़ रहा था तो उसे अपने बाबा के कुछ शब्द याद आए। उसके बाबा ने कहा था “कभी भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन बिना किसी कार्य के मत करना। महान इंसान बनने के लिए शक्तियां नहीं बल्कि इंसानियत चाहिए।” आर्य ने उन शब्दों को याद किया और पानी में चला गया। उसे पानी में ठंड के अहसास नहीं हुए थे, मगर इसके बावजूद वह जल्दी बाहर आ गया। उसे अपनी शक्तियों का प्रदर्शन नहीं करना था। बाहर आने के बाद उसकी हालत बाकी विद्यार्थियों की तरह नहीं थी। वह ठंड से कांप नहीं रहा था। लेकिन इस बात पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। आर्य के बाद बाकी के विद्यार्थियों का पानी में आने-जाने का सिलसिला जारी हुआ। सभी विद्यार्थियों के पानी में से निकल जाने के बाद आचार्य वीरसेन ने कहा “आज तुम लोगों ने ठंडे पानी का सामना कर दिखा दिया कि तुम लोग अपने डर का सामना कर सकते हो। तुम लोग डर के सामने अपना साहस जुटा सकते हो। भले ही यह कुछ ही समय के लिए क्यों ना हो। अकों के आधार पर जिस विद्यार्थी ने आज सबसे ज्यादा ठंडे पानी में समय व्यतीत किया, उसका नाम ताक्षणु है।” उन्होंने एक विद्यार्थी का नाम लिया जो वहीं विद्यार्थियों के झुंड में मौजूद था। सभी ने तालियां बजाई। इसके बाद आचार्य वीरसेन बोले “आज तुम लोगों के लिए इतना ही अभ्यास था। योद्धा बनने से पहले तुम लोगों का डर निकालना जरूरी है, और वह मैं निकाल रहा हूं। अब कल तुम लोगों के अगले चरण में की शुरुआत होगी। जिसमें सभी को तलवारे पकड़ाई जाएंगी। जो विद्यार्थी तलवारबाजी पहले से ही जानते हैं, वह अलग अभ्यास करेंगे। और जो विद्यार्थी तलवारबाजी नहीं जानते, या फिर जो नए हैं, वह अलग अभ्यास करेंगे। अब तुम लोग यहां कुछ देर के लिए बातें कर सकते हो, रात को ठीक 8:30 बजे युद्ध क्षेत्र से जाने की अनुमति मिल जाएगी।” इतना कहकर आचार्य वीरसेन वहां से चले गए। जबकि विद्यार्थियों का झुंड इधर-उधर फैल गया। दूसरी ओर लड़कियों को अभी भी जादू सिखाया जा रहा था। वहां लड़कियों में शामिल हिना जोर शोर से अपनी नीली रोशनी वाले जादू का अभ्यास कर रही थी। आर्य ने कुछ देर के लिए उसे देखा, जिस पर आयुध ने भी गौर किया। रात के 8:30 बजते बजते लड़कियों की शिक्षा भी पूरी हो गई थी। और सभी एक साथ युद्ध क्षेत्र से वापस आश्रम के लिए चल पड़े। ★★★ रात के 9:00 बजे सब खाना खाने के लिए इकट्ठा हो गए थे। आर्य और आयुध ने आकर अपने कपड़े बदल लिए थे। जबकि हिना अपने पहले वाले कपड़ों में ही थी। आयुध भोजनालय में काम करता था इसलिए वह खाना परोस रहा था जबकि हिना और आर्य एक दूसरे के पास पास बैठे थे। वह दोनों इतना पास थे कि उनकी बाहें भी आपस में टकरा रही थी। हिना आयुध को देखते हुए बोली “मैं सोच रही हूं क्यों ना अपने भाई को भोजनालय से हटा कर तलवारबाजी सिखाने के लिए ही लगा दूं। भोजनालय में उसका ध्यान भटकता रहता है, जबकि तलवारबाजी में उसके अंदर जोश आएगा।” आर्य ने भी आयुध की तरफ देखा “तुम्हें नहीं लगता इसमें उसकी मर्जी होनी चाहिए। वह आखिर करना क्या चाहता है?” “उसे इतनी अक्ल कहां है...? मैं तो जब भी उसे देखती हूं तो यही लगता कि वह बस आश्रम छोड़ना चाहता है। पता नहीं किसने उसके दिमाग में ऐसी सोच डाल दी। वह इसके अलावा मुझसे अब किसी दूसरी चीज के बारे में बात ही नहीं करता। तंग आकर तो मैंने उसे तुम्हारी निगरानी में रखा।” “तुमने यह जानने की कोशिश की क्या की वो आश्रम क्यों छोड़ना चाहता है? मतलब कल रात जब हमने उससे पूछा था तो उसने कहा मेरा यहां दम घुटता है। यह कोई ऐसा जवाब नहीं जो आश्रम छोड़ने का बड़ा कारण हो। इस तरह की चीजों की वजह से कोई भी कभी किसी जगह को छोड़कर नहीं जाता।” “मैंने यह जानने की कोशिश तो नहीं की अभी तक।” हिना खाना खाते हुए बोली “लेकिन मुझे नहीं लगता उसके पास कोई बड़ा कारण होगा। उसकी बस जिद है आश्रम छोड़ने की। और अगर कोई बड़ा कारण होगा भी तो तुम उससे पूछ सकते हो। अब वह तुम्हारी निगरानी में है और रात को तुम्हारे पास ही सोएगा। यह एक अच्छा मौका होगा तुम्हारे लिए।” आर्य हंसता हुआ बोला “तुम्हें लगता है वह मुझे बता देगा? हें? उसने जब तुम्हें नहीं बताया तो मुझे क्या बताएगा। मेरा तो उसे कोई रिश्ता भी नहीं।” “लेकिन...” हिना अपनी बातों को टुकड़ों में तोड़ते हुए बोली “मैंने—सुना—हैं—लडकों—की—आपस—मैं—ज्यादा—बनती—हैं।” वह वापिस सामान्य हो गई “इस वजह से वह एक दूसरे से कुछ खास छुपाते नहीं। तुम अपनी तरफ से कोशिश करना, क्या पता तुम्हें कामयाबी मिल जाए।” “मैं इस बारे में अपनी तरफ से कोशिश जरूर करूंगा।” आर्य ने हामी भर दी और उसके बाद वापिस आयुध की तरफ देखा। वह पहले से ही उसे ही घुर रहा था। “लेकिन सावधानी से...।” जल्द ही सभी ने खाना खा लिया। आर्य और हिना खाना खाने के बाद बाहर हाथ धो रहे थे। हिना हाथ धोते हुए बोली “मैंने तुम्हें अब लगभग आश्रम के बारे में सब कुछ बता दिया है। तुम्हें आश्रम की ना जाने वाली जगहों के बारे में और दिनचर्या के बारे में भी सब पता चल गया है। फिर नियम और कायदे भी बता दिए। तो अब तुम....।” हिना इतना कह कर चुप कर गई। “अब तुम क्या?” हिना ने अपने हाथ धोए और वहां मौजूद कपड़े से साफ करते हुए बोली। “अब तुम यहां आश्रम में खुद से घुम फिर सकते हो। एक तरह से तुम अब यहां के आजाद विद्यार्थी हो। और तुम्हें कहीं भी जाने के लिए मेरा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।” “तो क्या अब हमारी आगे मुलाकात नहीं होगी? क्या हमारी मुलाकात यही तक थी? मैं तो तुम्हारे भाई को भी अपने पास रख कर संभाल रहा हूं।” आर्य सब कुछ जल्दी जल्दी में और सवालिया अंदाज में पूछ रहा था। हिना ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा “मैंने ऐसा तो कुछ भी नहीं बोला। हम आगे भी मिलते रहेंगे। मगर अब मैं तुमसे आश्रम की दिनचर्या या क्या करना है इस विषय को लेकर नहीं मिलूंगी। अब हमारी मुलाकातें दोस्तों की तरह होगी। जैसी आश्रम में बाकी लोगों की होती है।” आर्य के चेहरे पर मुस्कान आ गई। इतने में हिना का भाई आयुध भी खाना खाकर बाहर आ गया। हिना और आर्य दोनों पास पास ही खड़े थे। आयुध जानबूझकर उन दोनों के बीच में से निकला और उन्हें दूर दूर कर दिया। वह उन दोनों के बीच में से निकलकर हाथ धोने लगा था। हिना वापिस आर्य के करीब आई और बोली “चलो मैं चलती हूं अब। आज दीवार पर घूमने का मन भी नहीं है। तुम मेरे भाई के साथ आराम से रहना।” इसके बाद उसने हाथ धो रहे आयुध से कहा “और आयुध... तुम भी आर्य को तंग मत करना।” आयुध का चेहरा दूसरी तरफ था। वहां उसने गुस्से वाला मुंह बनाते हुए कहा “मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा... मेरी प्यारी बहन” वह हाथ साफ करने लगा तो वहां उसने हाथ साफ करने वाले कपड़े को बुरी तरह से नोच दिया। ★★★
अध्याय-6 अनजान शख्स भाग-1 ★★★ आर्य और आयुध दोनों ही अपने कमरे ( झोपड़ी) में आ गए। आर्य के कमरे में एक ही बेड था मगर उसके कमरे में काफी सारी खाली जगह पड़ी थी। आर्य ने आयुध को कहा “तुम यहां कमरे में मेरे मेहमान हो। इसलिए तुम यहां बेड पर सो जाना जबकि मैं नीचे सो जाऊंगा। इससे तुम्हें भी किसी तरह की खास दिक्कत नहीं होगी।” आयुध ने कमरे का मुआयना किया और पूरी तरह से देखने के बाद बेड पर जाकर बैठ गया। बेड पर बैठने के बाद उसने अपने पट मसले। पट मसलता हुआ वह बोला “क्या तुम्हें मेरी बहन पसंद?” आर्य यह सुनकर पूरी तरह से चौंक गया। वह मटके की तरफ पानी पीने गया था जहां उसका हाथ मटके में जाने ही वाला था लेकिन आयुध के कहने के बाद उसका हाथ जहां था वहीं रुक गया। आयुध आगे बोला “मैंने देखा है तुम दोनों की काफी अच्छी बनती है। तुम दोनों काफी अच्छे से बात करते हो। एक दूसरे के पास रहकर खुश भी रहते हो। एक दूसरे से मिलना जुलना भी ज्यादा होता है।” आर्य उसकी ओर मुड़ा और कहां “हां लेकिन इसका मतलब यह नहीं की मैं उसे पसंद करता हूं। मैं यहां किसी और को जानता नहीं, और मुझसे बात करने वाली सिर्फ वही है। तो मेरा इस तरह से बात करना जायज है।” “तो फिर मेरी बहन तुम्हें पसंद करती होगी। वह यहां काफी लड़कों को जानती है मगर किसी से भी इस तरीके से बात नहीं की। किसी के साथ इतना घुली मिली भी नहीं। मगर उसका तुम्हारे साथ व्यवहार अच्छा है। वह जब तुम्हारे साथ रहती है तो काफी खुश रहती है।” आर्य सोचता हुआ बोला “मुझे नहीं लगता उसके साथ भी ऐसा कुछ होगा। फिर अभी हम दोनों की उम्र ही कितनी है। वह शायद इसलिए बात करती होगी क्योंकि मैंने तुम्हारी जान बचाई। वह भी खतरों से भरे जंगल में जाकर। हमारे बीच में पसंद करने जैसा कुछ भी नहीं है। हम दोनों एक दूसरे के दोस्त जरूर हैं। और यह दोस्ती भी कल रात ही शुरू हुई है।” आयुध खड़ा हुआ और आर्य के पास आया। उसने आर्य के कंधे पर हाथ रखा और घूरते हुए आर्य को कहा “देखो तुम यहां नए आए हो। ऐसे में तुम्हें कुछ कहना मेरे लिए भी ठीक नहीं होगा। लेकिन एक बात... जो मैं तुम्हें बता दूं। मैं मेरी बहन से प्यार करता हूं, बहुत ज्यादा, इसलिए तुम अपने रिश्ते को दोस्ती तक ही रखना। इससे आगे बढ़ने की कोशिश मत करना। अगर मैंने ऐसा कुछ भी देखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।” आयुध इतना कहते हुए वापस जाकर बेड पर बैठ गया। आर्य चुपचाप खड़ा था। आयुध के बेड पर बैठ जाने के बाद आर्य मुड़ा और जाकर मटके से पानी निकाल लिया। उसने पानी का एक गुट गले में उतारा और कहा “अगर तुम अपनी बहन से इतना ही प्यार करते हो तो उसे छोड़ कर क्यों जा रहे हो? तुमने यह आश्रम छोड़ने वाली जिद क्यों पाल रखी है?” “क्या मतलब..?” आयुध ने अपने हाथ उछाले “यह मेरा निजी फैसला है। एक इंसान होने के नाते मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं...। मैं चाहे आश्रम छोड़ कर जाऊं या ना जाऊं... इसमें उसकी तो कोई बात ही नहीं आती।” “मेरे ख्याल से आती है..” आर्य ने पानी का दोबारा घूंट भर लिया “अब जैसे कि समझने के लिए मैं तुम्हें मेरा और हिना का एग्जांपल देता हूं, अभी हम दोनों के बीच में नजदीकियां बढ़ रही है तो तुम इसे अपनी आंखों से देख रहे हो। मगर कल को तुम जब यहां नहीं होगे तो क्या होगा..? तुमने कहा है कि तुम अपनी बहन से प्यार करते हो। तुम्हारे जाने के बाद तो तुम्हारे इस प्यार के कोई मायने नहीं रहने वाल। तुम अगर अपनी बहन की फिक्र भी करोगे तो चाह कर भी उसके लिए कुछ नहीं कर पाओगे। आश्रम छोड़ना.... तुम्हारे लिए उतना फायदेमंद साबित नहीं होगा... जितना नुकसानदायक हिना के लिए होगा।” “तुम कहना क्या चाहते हो? क्या मेरे जाने के बाद मेरी बहन की हिफाजत करने वाला कोई नहीं होगा? उसे जादू आता है। वह अपनी हिफाजत खुद कर सकती है। कल तुम्हारे सामने उसने एक बड़े बालू से भी लड़ाई की। मैं उसकी सुरक्षा को लेकर कभी भी फिक्रमंद नहीं होऊंगा।” “मैं उसकी सुरक्षा की बात नहीं कर रहा..” आर्य आयुध के पास आया और उसके पास ही बेड पर बैठ गया। “मेरे कहने का मतलब था तुम भाई होने के नाते उसकी केयर करते हो। लेकिन तुम्हारे जाने के बाद उसकी केयर करने वाला कोई नहीं रहेगा। वह पूरी तरह से अकेली पड़ जाएगी। मैं तुम्हें यह बात समझाना चाहता हूं। और तुम्हें इसे समझना होगा।” आयुध गहरी सोच में पड़ गया। उसने सोचते हुए कहा “अगर मैं मेरी बहन को अपने साथ ले जाऊं तो?” “वो ऐसा कभी नहीं करेगी। आश्रम छोड़कर जाने की जिद्द तुम्हारी है उसकी नहीं। और जिस तरह से वह तुम पर हावी है, मुझे यह लगता भी नहीं कि तुम उसे मना पाओगे। फिर अंधेरी परछाइयों वाला खतरा, तुम चाहे उस खतरे को खतरा ना मानो। लेकिन हिना उसे खतरा मानती है। उसे यह बात अच्छे से पता है कि यहां आश्रम से बाहर ना तो तुम ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रह पाओगे, ना हीं वह खुद।” आयुध को चीढ सी होने लगी। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और कमरे में चहल कदमी करते हुए अपने बाल नोचने लगा। “तुम मुझे पूरी तरह से कंफ्यूज कर रहे हो। मुझे यह एहसास दिलाने की कोशिश कर रहे हो कि मेरा फैसला गलत है। और इसमें तुम मेरी बहन का सहारा भी ले रहे हो। मेरी बहन का नाम लेकर तुम मुझे इमोशनल ब्लैकमेल कर रहे हो।” “मैं ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा..” आर्य भी अपनी जगह से खड़ा हो गया “मैं तुम्हें बस सच्चाई बता रहा हूं। वह सच्चाई जो है। और मैंने तुम्हें जो बताया उसने कुछ भी गलत नहीं है। तुम्हारे चले जाने के बाद वही होगा जो मैंने कहा। यहां तुम्हारी बहन की केयर करने वाला कोई नहीं रहेगा।” “तुम...” आयुध रुका और आर्य की तरफ गौर से देखने लगा “तुम तो करोगे केयर। हना? तुमने कहा तुम उसके दोस्त हो। दोस्ती के नाते तुम भी केयर कर सकते हो।” “नहीं मेरे भाई..।” आर्य समझ चुका था कि उसकी बातों का अब आयुध पर असर हो रहा है। लोहा पूरी तरह से गर्म था और उसे बस सही निशाने पर हथोड़ा मारना था। “ मतलब मैं केयर करूंगा मगर उतनी नहीं कर पाऊंगा जितनी तुम करोगे।भाई भाई होता है, जबकि कोई अनजान सिर्फ अनजान। दूसरे शब्दों में कहूं तो अपनों की जगह और कोई भी दूसरा नहीं ले सकता। अपनी बहन की एक अच्छी वाली केयर तो सिर्फ तुम ही कर सकते हो।” “और इसके लिए मुझे यहां आश्रम में रहना होगा...।” “यकीनन।” अब आर्य धीमें कदमों से चहल कदमी कर रहा था “तुम्हें यहां आश्रम में सिर्फ रहना ही नहीं होगा... बल्कि वह काम भी करना होगा जिसे करने के लिए तुम्हारा मन करें। तुम चाहो तो तलवारबाजी सीख सकते हो...। और अगर तुम्हारी इच्छा हो तो अपने खाने वाले काम को भी वापस जारी रख सकते हो। तुम्हें यहां आश्रम में अपनी मर्जी का मालिक होकर सब करना होगा। वह भी पूरी तरह से आश्रम के साथ घुलमिल कर।” “लेकिन मुझे यहां रहने में दिक्कत होती है...?” आयुध का गला रुआंसा सा हो गया था। “दिक्कत... मगर किस तरह की दिक्कत? क्या तुम्हें यहां कोई तंग करता है? या तुमसे कोई ज्यादा काम करवाता है? या तुम्हारी इच्छाओं को दबाया जा रहा है?” “नहीं। यह सब नहीं। यह सब नहीं होता।” आर्य ने जोर देते हुए सवालिया अंदाज में पूछा “तो फिर तुम्हे किस तरह की दिक्कत होती है..? आखिर ऐसी क्या समस्या है जो तुम यहां आश्रम में रहना नहीं चाहते?” “मैं...वो...मैं...” आयुध के शब्द उसके होठों पर नहीं आ रहे थे। “मुझसे यहां घुला मिला नहीं जा रहा। मैं यहां की चीजों में दिलचस्पी नहीं ले पा रहा। बस यही मेरी दिक्कत है। मुझे यहां रोज के काम ऐसे लगते हैं जैसे वह मुझ पर कोई बोझ हो। सुबह उठो, नहाओ—धोओ, गायत्री मंत्र बोलो, झाड़ू निकालों, कक्षाएं लगाओ। मैं इन सब से बहुत ज्यादा ऊब जाता हूं। मेरा यह सब करने को मन नहीं करता।” आर्य ने उसकी बात को समझते हुए कहा “लेकिन मुझे नहीं लगता यह कोई बड़ी समस्या है। यह बस हमारे मन की एक सोच है।” वह आयुध को समझाने लगा “हमारा मन अक्सर उस काम को करने के लिए हमें रोकता है जो हमें करना होता है। सामान्य शब्दों में इसे आलस आना भी कहा जाता है। हमें किसी भी काम को लेकर आलस आता है। जब तक काम को करने के लिए कोई बड़ा मोटिवेशन या बड़ी इच्छा ना हो तब तक काम करने का मन ही नहीं करता। और ऐसा सिर्फ तुम्हारे साथ नहीं होता, बल्कि सभी के साथ होता है। मैंने भी आज ही इस समस्या का सामना किया था। सुबह जब कक्षाएं लगा रहा था तो मुझे बार-बार नींद आ रही थी। यह एक आम चीज है और तुम इसके चलते आश्रम छोड़ने जैसा बड़ा फैसला नहीं कर सकते।” “तो मैं इसे ठीक कैसे करूं? आखिर ऐसा क्या करूं जो मेरा मन यह सब करने के लिए मान जाए? मेरा मन इन सब कामों में मेरा विरोध ना करें?” “काफी आसान है। तुम वह करो जो तुम्हारा मन ना करने के लिए कहे।” आर्य आयुध के और करीब हो गया और उसकी पीठ थपथपाई “खुद को मन का गुलाम मत बनाओ.... बल्कि मन को अपना गुलाम बनाओ। अपनी इच्छाओं में आलस के विरुद्ध जाकर काम करो। मन के विरुद्ध जाकर काम करो। तीन-चार दिन थोड़ी समस्या होगी, मगर इसके बाद तुम्हें आदत लग जाएगी। इसके बाद तुम्हें यहां की चीजें पसंद आने लग जाएगी। तुम इनसे उबोगे नहीं।” “क्या तुम सही कह रहे हो? तुम्हारा यह तरीका काम करेगा।” आर्य ने अपनी आंखों को झपका “बिल्कुल करेगा। और यकीनन करेगा। बस तुम्हें कोशिश करते रहना है।” “मैं कोशिश करूंगा। देखते हैं तुम्हारा तरीका काम करता है या नहीं।” आर्य के चेहरे पर हल्की खुशी आ गई “यह हुई ना बात मेरे भाई।” उसने आयुध को गले से लगा लिया। उसने गले लगाते हुए पूछा “ क्या अब मैं यह समझूं कि तुम आश्रम को छोड़कर जाने का फैसला बदल दोगे? अब तुम यहां आश्रम में ही रहोगे... वह भी अपनी बहन के साथ। हमेशा उसकी केयर करोगे।” “तुम समझ सकते हो। लेकिन अभी तीन-चार दिन रुक जाओ। मैं तुम्हारा वाला तरीका आजमा कर देखता हूं, अगर यहां मेरा मन लग गया तो मैं अपना फैसला बदल दूंगा। मैं आश्रम छोड़कर नहीं जाऊंगा।” आर्य ने सांस ली और बाहर छोड़ी “चलो ठीक है। तुम तीन चार दिन का समय ले सकते हो। इसके बाद तुम्हारा जो भी निर्णय हो बता देना। फिर देखते हैं आगे क्या करना है।” इतना कहकर आर्य ने उसे छोड़ा और बाहर की तरफ देखा। उसके कमरे में खिड़की भी बनी हुई थी जहां से बाहर के दृश्य दिखते थे। बाहर वह आश्रम की बड़ी दीवार को देख रहा था। आज हिना तो दीवार पर नहीं गई थी मगर उसका जाने का मन कर रहा था। दीवार की तरफ देखते हुए उसने कहा “अभी मुझे नींद नहीं आ रही, और सोने का टाइम भी काफी दूर है। क्यों ना हम दोनों चलकर थोड़ा सा दिवार पर घूम आए... कुछ देर के लिए मन भी बहल जाएगा।” आयुध ने भी खिड़की से बाहर की तरफ देखा। घूमना उसे भी पसंद था। उसने कहा “हां ठीक है। चलो थोड़ा सा घूम ही आते हैं। मैं भी इतनी जल्दी सोने का आदी नहीं हूं।” दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और बाहर घूमने के लिए चल पड़े। दीवार की ओर। ★★★
अध्याय-6 अनजान शख्स भाग-2 ★★★ आर्य और आयुध आश्रम की दीवार पर आकर टहलने लगे थे। वह सामने वाली दीवार पर थे, जबकि कल आर्य हिना के साथ आश्रम की पिछली दीवार पर गया था। यहां दोनों ही चहल कदमी करते हुए सामने के बर्फीले मैदानों को देख रहे थे। दूर-दूर तक शिवाय सफेद बर्फीले मैदानों की और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। आयुध ने आर्य से अबकी बार सवाल किया “तुम यहां आने से पहले कहां रहते थे? और आते वक्त तुम्हारे साथ हुआ क्या?” आर्य ने कल इस बात का जवाब हिना को भी दिया था। उसने आयुध को भी वही जवाब देते हुए कहा “मुझे इस बारे में तो नहीं पता मैं कहां रहता था। मगर वह जो भी जगह थी जंगल के अंदर बनी हुई थी। जंगल के अंदर हमारा घर था जहां हम रहते थे, मैं और मेरे बाबा। मुझे जहां तक याद है वहां तक मुझे यही पता है कि मेरा लालन पोषण मेरे बाबा ने ही किया है। मेरे मां बाप कौन थे और वह क्या करते थे मुझे इस बारे में नहीं पता। अगर मैं इस आश्रम का हिस्सा हूं तो शायद अंदाजे के तौर पर कहा जा सकता कि वह भी इस आश्रम का हिस्सा थे।” “और तुम्हारे यहां आने की कहानी?” “हम पर कुछ अंधेरी परछाइयों ने हमला कर दिया था। वह बिना चेहरे वाली अंधेरी परछाइयां थीं, जिनके चेहरे वाली जगह पर धुआं तैर रहा था। मुझे उनके हमले वाला दिन हमेशा याद रहेगा। उनके आने से पहले पूरा आसमान काला पड़ गया था। मैं उस वक्त पानी में नहा रहा था तो वह पानी भी काला हो गया था। इसके बाद उनका मेरे बाबा से सामना हुआ, मेरे बाबा ने मेरी जान बचाने के लिए मुझे यहां आश्रम भेज दिया, जबकि वह खुद उनके हाथों मारे गए।” “सुनकर काफी अफसोस हुआ...” आयुध ने मायूसी जताई “अपनों को खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है। और मैं इसे समझ सकता हूं। मेरी बहन भी इसे समझती है। जिस तरह से तुमने अपने बाबा को खोया उसी तरह से हमने अपने मां-बाप को खोया था। हम दिल्ली के रहने वाले थे। एक मिडिल क्लास फैमिली में। वहां हमारे दिन अच्छे और खुशहाल थे। एक रात हम लोग खाना खा रहे थे। तभी हमारे घर की दीवारें कांपने लगीं। दीवारों के कांपने के बाद शीशे के टूटने का सिलसिला जारी हुआ। इसके बाद कुछ अंधेरी परछाइयां आई और हमें चारों तरफ से घेर लिया। उनके भी चेहरे नहीं थे। मेरे पापा पिता ने हम दोनों को बचाने के लिए अंगूठी के जरिए आश्रम भेज दिया। जबकि खुद उनसे लड़ते हुए मारे गए। हम लोगों ने उनके मरने की खबर दिल्ली के न्यूज़पेपर में पड़ी थी। उसमें यह लिखा गया था कि घर गिरने की वजह से मेरे माता पिता की मौत हो गई, जबकि हकीकत हमारे और इस आश्रम अलावा और कोई नहीं जानता था।” आर्य सोचता हुआ बोला “वह शायद इसलिए क्योंकि उनका वास्ता हमारी असली दुनिया से नहीं है। हमारी असली दुनिया को यही लगता है कि इस तरह की चीजें होती ही नहीं।” “हां।” आयुध ने भी उसका साथ दिया “असली दुनिया इससे पूरी तरह से बेखबर है। उन्हें तो यह तक नहीं पता कि शैतानों के शहंशाह नाम का एक ताकतवर शख्स उनकी दुनिया पर कब्जा करने की कोशिश में है। उनकी पूरी सेना शैतान के शहंशाह को यहां दुनिया में लाकर उन पर कब्जा कर लेंगे। कभी-कभी मुझे इंसानों की चिंता होती है, ना जाने तब क्या होगा जब शैतान आ जाएगा।” “तुम्हें लगता है वह आएगा...” आर्य तुरंत उसकी तरफ पलटता हुआ बोला “मतलब आश्रम वाले जी जान से शैतान को आने से रोकने के लिए लगे हुए हैं। वह दो छड़ीया जिनका बार-बार जिक्र होता वह आश्रम की सुरक्षा में है। जब तक आश्रम उन दोनों छडी़यों की सुरक्षा कर रहा है तब तक शैतान अपने मकसद में कामयाब नहीं होने वाला।” आयुध हंसने लगा “तुम शैतान को कम समझने की भूल मत करो। ना ही उनकी सेना को। तुम्हें पता है ना वह लोग भी जी जान से उन छडी़यों को हासिल करने की कोशिश में लगे हुए हैं। उनकी संख्या भी काफी ज्यादा है। आज नहीं सही तो कल उन्हें सफलता मिल ही जाएगी। और जब उन्हें सफलता मिल जाएगी तो शैतान को आने से कोई नहीं रोक सकता। फिर बस तबाही ही तबाही होगी। शैतान इस दुनिया पर कब्जा कर लेगा।” “और भविष्यवाणी वाला लड़का... तुम्हें क्या लगता है वह दुनिया को नहीं बचाएगा?” “ऐसा तो तब होगा ना जब भविष्यवाणी वाले लड़के का पता चलेगा... अभी तो कोई जानता भी नहीं वह है कहां?” आर्य मुस्कुरा कर अपने बाबा की एक बात को याद करने लगा। बाबा ने वो बात कहानी में कही थी। ऐसी कहानी जो असल में हकीकत थी। हालांकि उन्होंने भी कभी भविष्यवाणी वाले लड़के का जिक्र नहीं किया। मगर उनकी बातें उसके इर्द-गिर्द ही घूमती थी। वह कहा करते थे “भविष्यवाणी में जिस लड़के का जिक्र किया गया है वह सबके लिए उम्मीद बनेगा। जब ऐसा समय आएगा कि लोग अपनी हिम्मत हारने लगेंगे। तब वह लड़का उम्मीद के तौर पर सामने आएगा। वह सब की उम्मीद बनेगा।” इसके बाद उसके बाबा उसकी तरफ उंगली करके कहते थे “तुम उम्मीद हो।” मगर वह इन बातों का कभी मतलब नहीं समझ पाया था। आज भी इन बातों का मतलब उसके दिमाग की समझ से बाहर था। जो चीजें उसे अपने बाबा की बातों से समझ आई थी वह बस यही थी कि अंधेरे और शैतान जैसी कोई चीज होती है। उनसे लड़ने वाला समुदाय का भी अस्तित्व है। वह वह खुद भी उस समुदाय का अब हिस्सा था। “आर्य...!!” आयुध ने आर्य को झकझोरा। वह अपने बाबा की बात को याद करते वक्त खो गया था। मगर आयुध उसे सिर्फ झकझोर नहीं रहा था बल्कि कुछ और भी कह रहा था। वह उसे किसी दिशा की तरफ देखने के लिए कह रहा था। आर्य ने उस तरफ देखा। आयुध बोला “क्या तुम भी वही देख रहे हो जो मैं देख रहा हूं...” “हां...” आर्य ने हां में सर हिला दिया। वह दोनों ही खंडहर जैसे दिखने वाले किले को देख रहे थे। वहां कोई किले के लोहे वाले दरवाजे के सामने खड़ा था। किसी अजीब सी डंडे वाली छड़ के साथ। आयुध ने आर्य को उसी तरफ देखने के लिए कहा था। आयुध बोला “कोई इस वक्त किले के सामने खड़ा है, मगर समझ में नहीं आ रहा क्यों। यहां किले के आसपास भटकना मना है। खासकर रात को। आज दोपहर को मैंने खबर सुनी थी कि तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ था, उसके बाद आचार्य वर्धन ने सभी को किले के आसपास भटकने से मना कर दिया था।” आर्य दीवार के पास आकर उस पर हाथ रखते हुए बोला “अगर आचार्य वर्धन ने सबको किले के आसपास भटकने से मना कर दिया था, तो यह कौन है जो अब किले के सामने खड़ा है?” आर्य ने दूर से सामने खड़े शख्स के कपड़ों पर गौर किया। उसने सफ़ेद रंग का चोगा पहन रखा था। सर ढका हुआ था और उसकी पीठ उन दोनों की और थी। आयुध बोला “तुम सफेद चौगे को देख रहे हो...?” आर्य उसे अभी अभी देख कर हटा था “हां मैं देख रहा हूं। यहां आश्रम में काफी कम लोग हैं जो सफेद चौगा पहनते हैं।” “काफी कम नहीं बल्कि सिर्फ सात ही लोग।” आयुध ने उसकी बात को काटते हुए कहा “यहां आश्रम में सिर्फ 7 लोग ही सफेद चौगा पहनते हैं। जिनमें सिर्फ और सिर्फ आश्रम की आचार्य शामिल है। 11 अचार्य में से तीन महिला आचार्य है, जो गुलाबी रंग का चोगा पहनती है। जबकि आचार्य वर्धन सुनहरे रंग का चौगा पहनते हैं। इसके बाद बाकी के सात आचार्य सफेद रंग के चौगे को पहनते हैं।” “तो तुम्हारे कहने का मतलब इस वक्त किले के बाहर सफेद चौगा पहनने वाले सात अचार्य में से कोई एक खड़ा है...?” आयुध भी अब आर्य की तरह दीवार पर हाथ रख कर खड़ा था। उसने आर्य की तरफ देखते हुए कहा “हां उनमें से ही कोई एक होगे। शायद सुबह किले वाले हादसे के बाद निगरानी करने के लिए आए होंगे। यह देखने के लिए कि कोई यहां आस-पास तो नहीं घूम रहा। सुरक्षा के नजरिए से ऐसा होता रहता है।” आर्य का ध्यान सिर्फ सामने की ओर था। “क्या इसमें अचार्य किले के अंदर जाकर भी देखते हैं?” “बिल्कुल भी नहीं!” आयुध ने तुरंत सर झटक कर ना में हिला दिया। उसने अभी तक सामने की तरफ नहीं देखा था। “किले के अंदर जाना किसी भी आचार्य के लिए नामुमकिन है। वहां के खतरनाक जादू का तोड़ कोई नहीं जानता।” “मगर मुझे सामने दिखाई दे रहा है कि जो आचार्य किले के बाहर खड़े थे वह अब उसके अंदर जा रहे हैं।” यह सुनते ही आयुध ने किले की तरफ देखा। किले के सामने दिखाई देने वाले आचार्य अब किले के अंदर जाते हुए दरवाजे के पास चले गए थे। वहां उन्होंने अपने हाथ में पकड़ी अजीब सी डडें वाली छड़ को ऊपर किया जिसके तुरंत बाद किले के दरवाजे खुल गए। यह देखकर आयुध सिर्फ चौंका ही नहीं बल्कि वह पूरी तरह से स्तब्ध भी रह गया। उसने हैरानी वाली अंदाज में कहा “असंभव...!! यह पूरी तरह से असंभव है!!” आयुध तुरंत दीवार से नीचे उतरने वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला। आर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। आर्य ने उसके पीछे चलते हुए पूछा “अब तुम कहां जा रहे हो?” आयुध ने जवाब दिया “किले के अंदर। आश्रम का कोई भी अचार्य किले के अंदर नहीं जा सकता।और मुझे किले के अंदर जाकर देखना है कि यह कौन सा आचार्य है जो अभी अंदर गया है।” आर्य आगे बढ़ा और उसने आयुध को पकड़ कर रोक लिया। “तुम कहीं पागल तो नहीं हो गए हो... सुबह हम लोग सिर्फ उसके दरवाजे तक गए थे। वहां किला हमारी जान लेने पर उतारू हो गया था। किले के जादुई मंत्र किसी को नहीं बख्शते..” “मगर अभी तुम्हारे सामने ही तो आचार्य अंदर गए हैं। जब वह अंदर जा सकते हैं तो हम क्यों नहीं?” “वह अचार्य हैं। और तुम और मै हम आचार्यों से अपना मुकाबला नहीं कर सकते। फिर तुमने देखा क्या, उनके पास कोई अजीब सी चीज भी थी। उस अजीब सी चीज को ऊपर करने के बाद ही दरवाजे खुले। हमारे पास ऐसी कोई भी चीज नहीं है... हम जाएंगे तो खतरे में ही पड़ेंगे।” आयुध ने खुद को रोक लिया। खुद को रोक लेने के बाद उसने सवालिया अंदाज में आर्य से पूछा “तो फिर तुम्हारे हिसाब से अभी हमें क्या करना चाहिए?” आर्य सोचने लगा। कुछ देर तक सोचने के बाद उसने कहा “मेरे ख्याल से इस मौके पर तो तुम्हारी बहन ही हमारे काम आ सकती है। उसे जादु भी आता है, और हम इस बात को भी नकार नहीं सकते कि उसमें हमसें ज्यादा काबिलियत है।” “तुम मेरी बहन से मदद लेने के बारे में सोच रहे हो?” “हां बिल्कुल। इस मौके पर सिर्फ वहीं हमारे काम आ सकती है। वही हमें बताएगी कि हमें क्या करना चाहिए।” आयुध भी सोचने लगा। “मेरे ख्याल से तुम सही हो। ऐसे मौकों पर मेरी बहन काफी फायदेमंद साबित होती है। हमें हिना से ही बात करनी चाहिए। चलो जल्दी जाकर हिना से बात करें।” दोनों में सहमति हुई और दोनों ही हिना के कमरे की तरफ चल पड़े। वहीं जिस किले के दरवाजे अब तक खुले हुए थे, वह पूरी तरह से बंद हो गए। किले का दरवाजा बंद हो जाने के बाद सब कुछ वैसा ही हो गया जैसे पहले था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि कोई किले के अंदर गया है। सब बिल्कुल शांत और सुनसान पड़ा था। एक अजीब सी चुप्पी के साथ। ★★★
अध्याय-6 अनजान शख्स भाग-3 ★★★ आर्य और आयुध ने आकर हिना के कमरे का दरवाजा खटखटाया। हिना ने जब दरवाजा खोला तो वह ऊवासी ले रही थी। उसकी ऊवासी पूरी हुई तो उसने अपने सामने आर्य और आयुध को खड़े हुए देखा। हिना ने उन दोनों से पूछा “क्या हुआ? तुम दोनों इतनी रात को मेरे कमरे का दरवाजा क्यों पीट रहे हो? क्या तुम लोगों के कमरे में कोई सांप घुस आया है?” आयुध हिना से तुरंत बोला “यह मजाक की बात नहीं है हिना। हम तुम्हें कुछ ऐसा बताने वाले हैं जिसे सुनकर तुम मजाक करना भूल जाओगी। यह एक खतरनाक बात है।” हिना ने आयुध को घूरा। इसके बाद उसने घूर कर आर्य को देखा। आर्य ने आयुध की बात में बात मिलाते हुए कहा “यह बिल्कुल सही कह रहा है हिना। हमने कुछ ऐसा देखा है जिस पर विश्वास करना हमारे लिए भी मुश्किल है।” “मगर क्या?” दोनों की बात सुनकर हिना ने उनसे पूछा। आयुध ने लंबी सांस ली और फिर एक ही झटके में सब कुछ बता दिया। उसने हिना को किले के सामने खड़े आचार्य के बारे में बताया जो सफेद चौगे में था। एक बार के लिए तो हिना को आयूध की बात पर यकीन नहीं हुआ। मगर इसके बाद आर्य ने फिर से दोबारा इसी बात को दोहराया। दोनों के कहने पर वह इस बात को टाल नहीं सकी। कुछ ही देर बाद वह तीनों ही किले की तरफ जा रहे थे। हिना किले की तरफ चलते हुए बोली “तुम लोगों को पक्का कोई वहम तो नहीं हुआ? किले में जाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। फिर सब को मना भी है।” आर्य हिना को जवाब देते हुए बोल पड़ा “हर एक चीज वहम नहीं होती..” रात भी हिना वहम का कह रही थी तो उसने यह बात कही। “मैंने अपनी आंखों से देखा था। और मेरे साथ तुम्हारा भाई भी था और उसने भी अपनी आंखों से देखा था।” आयुध साथ लगते ही बोला “मुझे पता है तुम्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा। मगर यही सच्चाई है। हमारे आश्रम का एक सफेद चोगे वाला आचार्य किले में गया है।” “तुम लोगों ने तो यह भी कहा था ना कि उसके पास कोई अजीब सी चीज थीं।” हिना ने याद किया कि यह बात आर्य ने कही थी। आयुध ने उसे इस बारे में नहीं बताया था। “हां...” आयुध ने हिना को जवाब दिया “वह अजीब सी रोशनी से चमक रही थी। उसे ना तो सफेद रोशनी कहा जा सकता है ना ही काली। किसी डंडे के ऊपरी सिरे पर लगी हुई थी।” अचानक हिना के चलते हुए कदम रुक गए। आर्य और आयुध भी अपनी जगह पर रुक गए। उन दोनों ने पलट कर पीछे देखा। हिना किसी गहरे सदमे में खोई हुई लग रही थी। हिना ने उन दोनों से कहा “क्या तुम दोनों ने सच में इस तरह की चीज देखी.... ऐसी चीज जिससे ना तो सफेद रोशनी निकल रही थी, ना ही काली।” आर्य याद करता हुआ बोला “हम तुम्हें साफ-साफ तो नहीं बता सकते। मगर वह ऐसी ही चीज थी। ऐसी चीज जिससे ना तो काली रोशनी निकल रही थी ना ही सफेद। तुम इसे इन दोनों का मिला जुला मिश्रण कह सकती हो। ऐसी रोशनी जिसमें यह दोनों ही तरह की चीजें थी। सफेद भी और काली भी।” आयुध आर्य को बोला “1 मिनट रुको। हम इसे मिलाजुला मिश्रण भी नहीं कह सकते। वो ना तो सफेद थी ना ही काली। बस एक अजीब सी चमक थी।” आर्य ने उससे कहा “मैं बस उस अजीब सी चमक को समझाने की कोशिश कर रहा हूं। शायद उसका रूप कुछ इसी तरह का था। वह सफेद भी थी और काली भी।” हिना उन दोनों से बोली “चुप रहो तुम दोनों। तुम दोनों को इस बात का अंदाजा भी नहीं कि तुम किस चीज की बात कर रहे हो। वह कोई ऐसी वैसी चीज नहीं बल्कि काली छड़ है। जादू करने के लिए बनी सबसे ताकतवर छड़ जिसे बनाया भी शैतानो की दुनिया में गया है। वो उन दो छोड़ो में से एक है जो शैतान के शहंशाह को आजाद करवाने के लिए चाहिए।” आर्य और आयुध के लिए यह दूसरा गुसबम था। पहला गुसबम उन्हें तब मिला था जब उन्होंने किले में किसी अचार्य को जाते हुए देखा था। आयुध अपने सर पर हाथ रखते हुए बोला “काली छड़.... वह इस तरह की दिखती है। इतनी भयंकर।” “हां” हिना वापिस सामने की ओर चलने लगी। उसने अपने किले के तरफ जाने वाले सफर को फिर से शुरू कर लिया था। “मगर उसे तो आश्रम की गुफा में एक बड़ी सुरक्षा के अंदर रखा गया है। उसका बाहर आना मुश्किल है।” उसका मन अपने बाल नोचने का कर रहा था “मगर मुश्किल तो किसी किले में भी जाना है। समझ में नहीं आ रहा यहां आखिर हो क्या रहा है। हर किसी को पता है कि किले में अंधेरी परछाइयों को बड़ी संख्या में कैद करके रखा गया है। ऐसे में कोई अगर काली छड़ को लेकर उनके पास जाएगा तो आश्रम में तबाही मच जाएगी।” “तुम कहना क्या चाहती हो..?” आर्य बोला “आखिर काली छड़ को कोई वहां ले गया तो क्या होगा?” “तुम्हें अभी भी समझ में नहीं आया..” हिना आर्य की तरफ देखते हूए बोली “इसका यही मतलब हुआ कि कोई वहां उन अंधेरी परछाइयों को आजाद कर काली छड़ उन्हें सौंपना चाहता है। कोई एक तरीके से आश्रम के साथ गद्दारी कर रहा है। कोई आश्रम का एक आचार्य अंधेरी परछाइयों के साथ मिल गया है। वो उनकी मदद कर रहा है।” अब जाकर आर्य को हिना की बात समझ में आई। आयुध भी इसे समझ चुका था। आयुध ने कहा “मगर हमारे आश्रम का कोई आचार्य ऐसा क्यों करेगा? आखिर किसी को अंधेरे का साथ देने से क्या मिल जाएगा? इससे तो सिर्फ और सिर्फ हमारा और आश्रम का नुकसान होगा।” “हां” हिना बोली “इसमें किसी भी मायने में हमारे आश्रम का फायदा नहीं होने वाला। इसमें सिर्फ और सिर्फ नुकसान होगा। अगर अंधेरी परछाइयां आजाद हो गई, और उन्हें काली छड़ भी मिल गई तो उन्हें आश्रम का सुरक्षा चक्कर भी नहीं रोक पाएगा। काली छड़ ताकतवर होने के कारण आश्रम के सुरक्षा चक्कर को पलक झपकते ही खत्म कर सकती है।” तीनों ही किले के पास पहुंच गए थे। इस वक्त किले का लोहे वाला दरवाजा बंद पड़ा था। बंद दरवाजे को देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि यहां से कोई अंदर गया है। हिना ने वह बदं दरवाजा देखा। इसके बाद उसने लोहे वाले दरवाजे के दूसरी ओर देखा। वहां किले का दरवाजा भी बंद पड़ा था। हिना उन दोनों से बोली “किले के दोनों ही दरवाजे बंद पड़े हैं। सच-सच बताओ तुम लोगों को कोई वहम तो नहीं हुआ..? कहीं ऐसा तो नहीं तुम लोगों ने कुछ और देख लिया हो...? कोई ऐसी चीज जो इससे मिलती-जुलती हो।” आयुध लगभग गुस्से में बोला “हमने तुम्हें कितनी बार बताया कि हमें वहम नहीं हुआ। तुम हर बार यह वहम वाला राग मत अलापा करो। अगर हमें वहम होता भी तो हम तुम्हें वह काली छड़ी वाली चीज नहीं बता पाते। उसके बारे में मुझे तो पता ही नहीं था। और आर्य नया आया है तो उसे कैसे पता होगा।” हिना आयुध से बोली “इसमें गुस्सा होने वाली कौन सी बात है। मैं बस यहां के हालात देखकर बता रही हूं। यहां के हालातों से मुझे ऐसा नहीं लग रहा कि कोई अंदर गया होगा।” आर्य उन दोनों को बात करता छोड़ सलाखों के पास चला गया। वहां उसने एक नजर किले की तरफ देखा और फिर नीचे बर्फीली जमीन देखी। वहां उसे जूतों के निशान दिखाई दे रहे थे। उसने उन दोनों से कहा “तुम दोनों को यहां आकर देखना चाहिए। इसके बाद इस बात को लेकर बहस नहीं होगी कि यह हमारा वहम है या नहीं।” हिना और आयुध दोनों आगे आए। आगे आ जाने के बाद उन्होंने झुक कर जुतों के निशान को देखा। हवा के कारण जुतों के निशान गायब हो रहे थे मगर अभी भी उनकी छवि बनी हुई थी। जुतों के निशान आगे सामने की ओर जाते हुए अंदर किले के मुख्य दरवाजे की ओर जा रहे थे। हिना आर्य के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली “मतलब यह सच है। इस किले के अंदर कोई तो गया है।” आयुध बोला “कोई ऐसा जिसने सफेद चोगा पहन रखा था। हम सच कह रहे हैं, तुम अब यह मत सोचना कि यह भी हमारा वहम है। हमने आश्रम की दीवार पर से इसे अपनी स्पष्ट नजरों से देखा था।” “मैं नहीं कहूंगी...” हिना बोली और आगे बढ़ कर सलाखों को छूने की कोशिश की। मगर जैसे ही उसने सलाखों को हाथ लगाया उसे बिजली का झटका लगा। “ओह नहीं..” बिजली के बड़े झटके के लगने के बाद उसने कहा “अचार्य वर्धन ने इसे अपने जादु से और भी ज्यादा सुरक्षित कर दिया है। हम अंदर जाकर नहीं पता कर सकते हैं कि वह कौन सा आचार्य है?” आयुध ने सलाखों को हाथ लगाया तो उसे भी बिजली का झटका लगा। उसने खुद को बिजली के झटके से सभालते हुए अपने हाथ मसले “मगर जो आचार्य अंदर गए थे उन्हें कुछ भी नहीं हुआ।” “उन्हें जादू का तोड़ पता होगा।” हिना बोली “वैसे भी आश्रम के आचार्य जादु में हम लोगों से कई गुना आगे हैं। उनके लिए यह सब करना बाए हाथ का काम होगा। अगर हम अभी अंदर जा पाते तो अभी के अभी अंदर जाने वाले आचार्य का राज सामने आ जाता।” आर्य ने भी एक दफा दरवाजे को हाथ लगाया। बाकियों की तरह उसे भी बिजली का झटका लगा। आर्य ने दरवाजे को हाथ लगाने से पहले यह सोचा था कि क्या पता उसकी खास क्षमता की वजह से उस पर असर ना हो। मगर उस पर भी बिजली का असर हुआ। आर्य बोला “तो अभी हम इस वक्त उस आचार्य के बारे में पता नहीं कर सकते, जो इस किले के अंदर गया है?” हिना ने ना में सर हिला दिया। आयुध बोला “तो हमें आश्रम के आचार्यों के पास जाकर उनसे बात करनी चाहिए। अचार्य वर्धन से बात करते हैं...?” “तुम नहीं कर पाओगे।” हिना बोली “सुरक्षा चक्कर को मजबूत करने वाला शक्ति मंत्र आज भी चल रहा है। यह कल भी चलेगा। अभी इस वक्त आश्रम में ना तो कोई अचार्य हमें मिलने वाला है, ना ही कोई गुरु। अब यह जो भी राज है, इससे पर्दा सुबह ही उठेगा। सुबह ही पता चलेगा आश्रम का कौन सा अचार्य अंधेरे से मिला है।” “लेकिन मगर सुबह कैसे..?” आर्य ने सवाल पूछा। “शक्ति मंत्र में सभी आचार्यों को उपस्थित रहना होता है। ऐसे में आज एक आचार्य वहां नहीं होगा। और वह कौन सा आचार्य है यह वहां के आचार्यों को भी पता रहेगा। इसलिए सुबह हम जब बताएंगे तो वो अपने आप समझ जाएंगे कि किस आचार्य ने गद्दारी की है। उसके बाद उनका पर्दाफाश हो जाएगा। फिर आगे क्या करना है यह आश्रम के आचार्य निर्धारित कर लेंगे।” आयुध ने हिना के इस बात पर विचार किया। उसने कहीं ना कहीं सही निष्कर्ष निकाला था। उसकी सोच पर आयुध बोला “तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है। इस आचार्य का राज सुबह बाहर आ जाएगा... यह किसी भी तरीके से बचने वाला नहीं।” आर्य ने इस मौके पर कुछ भी नहीं कहा। ऐसा नहीं था कि उसे हिना पर किसी तरह का शक था। उसकी सोच बिल्कुल सही थी। मगर इसके बावजूद उसका कुछ बोलने का मन नहीं किया। वह खामोश खड़ा रहा। ठिक उस किले के सामने जो अंधेरे में डूबा एक बेजान किला था। उस किले में आश्रम का कोई अचार्य गया था जिसके बारे में कोई नहीं जानता की वो कौन था। ★★★
अध्याय-7 कौन है वो भाग-1 ★★★ सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही आर्य हिना और आयुध ने अपनी तैयारियां कर ली थी। 7:00 बजते ही वह कार्यालय की तरफ चल पड़े थे। रात को हिना ने जाने से पहले बताया था कि सुबह एक बार के लिए सभी आचार्य कार्यालय में मिलेंगे। यह एक अच्छा मौका होगा सबसे साथ में बात करने का। चलते-चलते आयुध बोला “हिना देखो तो सरी! हमारे आश्रम के अंदर कितना बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है। वह भी हमारे आश्रम के आचार्यों के द्वारा।” “हां” हिना बोली “बेईमानी का कोई ओहदा नहीं होता। बेईमानी करने वाले को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कौन से ओहदे पर है और कौन से पर नहीं। उसे बस बेईमानी करनी होती है।” आर्य बोला “लेकिन फिर भी इसकी कोई हद तो होनी चाहिए थी। बेईमानी के लिए अपने ही लोगों की जान दांव पर लगा देना किसी तरीके से सही नहीं है।” सभी जल्द ही कार्यालय पहुंच चुके थे। उन्होंने कार्यालय की नीचे उतरने वाली सीढ़ियों पर अपने जल्दी-जल्दी चलते हुए कदम रखें। कार्यालय के अंदर ही उन्हें सभी आचार्य एक साथ दिखाई दिए। हर कोई किसी ना किसी बैठने वाली जगह पर बैठा हुआ था। चार अचार्य तो कार्यालय में जलने वाली अंगीठी के पास बैठे थे। महिला अचार्या वहां मौजूद सोफे पर विराजमान थी। दो अचार्य कार्यालय के कोने में पड़े टेबल के सामने रखी कुर्सियों पर बैठे थे। एक कार्यालय की मुख्य कुर्सी पर। वह कुर्सी आचार्य वर्धन की होती थी। मगर आज वहां आचार्य ज्ञरक बैठे हुए थे। आचार्य वर्धन के सबसे भरोसेमंद साथी। आचार्य ज्ञरक अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे बोले “क्या बात हुई बच्चों..? तुम दोनों एक साथ सुबह सुबह यहां? सब ठीक तो है?” आर्य को यहां सभी आचार्य दिखे मगर वह अचार्य वर्धन को नहीं देख पाया। वो यहां कमरे में नहीं थे। हिना अचार्य ज्ञरक की बात सुनकर बोली “मुझे आप सब से एक जरूरी बात करनी थी। एक सबसे बड़ी जरूरी बात जो हमारे पूरे आश्रम के लिए है।” हिना की बात सुनकर सभी के चेहरे उसकी ओर घूम गए। हर कोई उसे आशंकित नजरों से देख रहा था। ना जाने वह कौन सी बात करने वाली थी। आचार्य ज्ञरक ने कहा “हां कहो बेटी। हम सब यहां तुम्हारी बात सुनने के लिए ही बैठे हैं, तुम जो भी कहोगी हम उसे ध्यान से सुनेंगे।” “वो.. यहां आश्रम में..” हिना बात शुरू कर रही थी की आर्य ने उसे लगभग बीच में से काटते हुए उसकी बात के साथ दूसरी बात जोड़ते हुए सब को कहा “वो.... यहां... आश्रम में इसके भाई के रहने का मन नहीं कर रहा।” आर्य के बोलते ही हिना और आयुध उसकी तरफ देखने लगे। दोनों ही उसे मोटी मोटी नजरों से घुर रहे थे। उसने हिना की बात को लगभग बदल कर दूसरी बात सामने रख दी थी। मगर क्यों कोई भी इसका जवाब नहीं जानता था। आचार्य ज्ञरक बोले “मगर ऐसा क्यों? आखिर उसे क्या समस्या है?” आचार्य ज्ञरक आश्रम के हर एक विद्यार्थी को ठीक से जानते थे। वह आयुध को भी जानते थे। उन्होंने वहां खुद को आयुध पर केंद्रित किया और उससे पूछा “क्यों आयुध? आखिर तुम्हें यहां क्या समस्या है? तुम आश्रम में क्यों नहीं रहना चाहते। तुम्हें पता है ना हम आश्रम में जिन हालातों के साथ रह रहे हैं उन हालातों के बाद यहां से जाने का सवाल ही नहीं उठता। बाहर जाने के बाद तुम्हें सिर्फ और सिर्फ मौत ही मिलेगी। तुममें इतनी क्षमता भी नहीं कि तुम आश्रम से बाहर जाकर अपना बचाव कर सको। अभी तुम्हें कुछ भी नहीं आता । जहां तक मुझे याद है शायद तुम सुरक्षात्मक प्रणाली को भी ठीक से नहीं सीखे हो।” आचार्य ज्ञरक की बात पर आयुध को कोई भी जवाब नहीं सूझ रहा था। मन ही मन वह आर्य को हर वह गाली देना चाहता था जो उसे आती थी। वह उसे मुक्का मारने का मन भी बना रहा था। उसने खुद पर धीरज रखा और कहा “आचार्य, यह बात सच है कि मैं कुछ दिन पहले आश्रम से बाहर जाने के बारे में सोच रहा था मैंने परसों बाहर जाने की कोशिश भी की थी। मगर इसके बाद मैं इस बात को समझ गया कि बाहर शिवाय खतरे की और कुछ भी नहीं है। इसलिए मैंने अपना बाहर जाने का इरादा पूरी तरह से बदल दिया। मुझे इस बात का खेद है कि मैं अपने इस बदले हुए इरादे को अभी तक किसी को बता नहीं पाया। मगर मैं आप सबके सामने कहता हूं कि मैं यह आश्रम छोड़कर नहीं जाना चाहता। मैं यहीं रहूंगा। मैं यहां रह कर भोजनालय में खाना बनाने का ही काम करूंगा। वह मेरा मनपसंद काम है और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता।” हिना को यह सुन कर खुशी हुई मगर उसे इस बात का अफसोस था की वह अपनी बात नहीं कह सकी। आर्य ने उसे रोक दिया था और अब वह तब तक अपनी बात को रोकने के लिए मजबूर थी जब तक उसे आर्य से यह पता नहीं चल जाता कि उसने उसे क्यों रोका। आचार्य ज्ञरक आयुध की बात सुनकर बोले “यह तो अच्छी बात है कि तुमने आश्रम से जाने का अपना फैसला बदल दिया। इससे ना सिर्फ हम खुश हैं बल्कि तुम्हारी बहन भी खुश होगी। यहां आश्रम का हर एक सदस्य तुम्हारे इस फैसले से खुश होगा।” आश्रम में बैठे दूसरे आचार्यों ने जोरदार तालियां बजाई। सभी की तालियां धीरे-धीरे शांत होती गई। आर्य आचार्यों की भीड़ में अभी भी आचार्य वर्धन के बारे में सोच रहा था। आचार्य की बात खत्म हो जाने के बाद और तालियों के बंद हो जाने के साथ ही आर्य ने आचार्य ज्ञरक से पूछा “मुझे यहां आचार्य वर्धन नहीं दिखाई दे रहे? वह आखिर कहां गए?” आचार्य ज्ञरक ने सधे हुए अंदाज में जवाब दिया “दरअसल जैसा कि तुम जानते हो जल्द ही नया साल आरंभ होने वाला है। नए साल के आरंभ को लेकर आश्रम में समारोह के आयोजन की तैयारियां चल रही है। इस बार मौसम का कोई अदेंशा नहीं है, लगातार बर्फबारी हो रही है तो आने वाले दिनों में यह बर्फबारी और बढ़ जाएगी। इससे समारोह तय समय से काफी पहले शुरू होगा। अगले 3 दिनों बाद। इसीलिए आचार्य वर्धन मुख्य आचार्य होने के नाते समारोह की तैयारियों से संबंधित समान का इंतजाम करने के लिए शहर गए हैं।” “उनके वापस कब तक आने की उम्मीद है?” आर्य ने जानने की इच्छा जताई। आचार्य ज्ञरक ने जवाब दिया “इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। बाहरी दुनिया में काफी सावधानी रखनी पड़ती है तो छोटे से काम में भी समय लगता है। मगर वह कम से कम समारोह से पहले आ जाएंगे। अब वो कल भी आ सकते हैं और परसों भी। या फिर उससे अगले दिन भी।” मतलब अगले 3 दिनों में आचार्य वर्धन कभी भी यहां आश्रम में वापस आ सकते हैं। आर्य ने बात को समझते हुए अपनी पलकें झपकाईं और फिर आयुध और हिना को चलने के लिए कहा। दोनों उसके कहने से पहले ही चलने के लिए तैयार थे। दोनों ही जल्दी कार्यालय से बाहर निकल कर आर्य से यह जानना चाहते थे कि उसने किले वाली बात क्यों नहीं होने दे। आयुध तो यह जानने के लिए उछल रहा था कि उसने इन सब में उसे क्यों घसीट दिया। वह अभी फैसला करना नहीं चाहता था लेकिन अब कहने के बाद उसने भी आश्रम ना छोड़ने का फैसला पूरी तरह से पक्का कर लिया। जल्द ही तीनों बाहर की तरफ चल पड़े। बाहर आते ही हिना ने आर्य का हाथ पकड़ा और उसे चलने से रोक लिया। उसने आर्य से पूछा “आखिर तुमने हमारी बात को बीच में क्यों रोका? मैं उन्हें किले वाली बात बताने ही वाली थी, मगर तुमने बीच में रोककर सब चौपट कर दिया। बताओ आखिर तुम चाहते क्या थे? क्यों रोका?” वही आयुध बोला “और बात रोकने तक तो ठीक था, मगर तुमने मुझे क्यों बीच में घसीटा? मेरे आश्रम छोड़कर जाने वाली बात को क्यों उन सबके सामने किया? मुझे तो वहां जवाब देने के लिए कुछ सुझ भी नहीं रहा था, थक हार कर मुझे आश्रम ना छोड़ने का फैसला करना पड़ा।” “बताता हूं..” आर्य ने गहरी सांस ली और अपने आसपास देखा। वह देखना चाहता था कि उसके आस पास कोई है तो नहीं। फिलहाल उसके आसपास कोई भी नहीं था। उसने उन दोनों से कहा “तुम लोगों ने वहां मौजूद सभी आचार्यों को देखा था। वहां इस वक्त सभी के सभी सात आचार्य थे। वो आचार्य जो सफेद चौगा पहनते हैं। इन सात आचार्यों में से ही कोई एक गद्दार है। एक तरह से तुम वहां सभी से बात करके हमारे आश्रम के गद्दार अचार्य को भी सब बता देने वाली थी। इससे वह सावधान हो जाते और आगे कुछ भी कर लेते। हो सकता था वह सावधान होने के बाद आश्रम छोड़कर भी चले जाए। अंधेरों से मिले होने की वजह से उन्हें कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाएगा।” “तो फिर इन सब में तुम क्या चाहते हो? क्या हम इस बारे में उनसे बात ही ना करें?” हिना ने सवाल किया। “नहीं। मुझे वहां अचार्य वर्धन नहीं दिखे। मैं चाहता हूं तुम उनके होने पर सबके सामने बात करो। अगर तुम आचार्य वर्धन के सामने बात करोगी तो दूसरे आचार्य को कोई मौका नहीं मिलने वाला। अचार्य वर्धन अपना फैसला तुरंत ले लेंगे।” आयुध आर्य की बात पर बोला “मगर फैसला तो इनमे से भी कोई ले सकता है। आचार्य ज्ञरक मुख्य कुर्सी पर बैठे थे, ऐसे में फैसले लेने के सारे अधिकार उनके पास थे। और वह तुरंत फैसला लेते भी।” “लेकिन फिर भी मुझे यकीन नहीं है।” आर्य बोला “मुझे उनमें से किसी पर भी यकीन नहीं है। हो सकता था खुद अचार्य ज्ञरक ही दोषी हो। फिर तो फैसला लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता।” “लेकिन आर्य...” इस बार हिना बोल रही थी “हमने कल ही फैसला किया था कि हमें क्या करना है। मैंने तुमसे कहा था कि सब शक्ति मंत्र के लिए गए होंगे मगर सिवाय एक आचार्य के। ऐसे में उस आचार्य की गैरमौजूदगी अपने आप यह साबित कर देती कि कोई किले में गया था।” “तुम्हें क्या लगता है जाने वाला अचार्य बेवकूफ था। उसने इसे लेकर कोई ना कोई रास्ता बनाया ही होगा। उसे यह बात अच्छे से पता होगी कि कल को कोई भी कह सकता है कि किले में कोई गया था। ऐसे में वह अपने बचने का रास्ता तैयार करके ही किले में गए होंगे। लेकिन हिना,” आर्य एक पल के लिए रुका “तुम इसमें भी काफी आगे का सोच रही हो। इस तरह की नौबत तो तब आती जब हम यह साबित कर पाते कि कोई किले में गया था। हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं जो यह बताने के लिए काफी हो। बिना सबूत के बात के मायने ही ना रहते। फिर हमारी बातों को तो तुम खुद ही वहम का नाम देती रहती हो, ऐसे में आचार्य भी इसे वहम का नाम देने से नहीं कतराएंगे।” “लेकिन मैंने तो वहां पैरों के निशान देखे थे ना? ऐसे में वहम वाली बात.. मुझे हजम नहीं हो रही।” हिना ने अपनी नाक ऊपर चढा ली थी। “और वह पैरों के निशान अब वहां नहीं है..” आर्य ने मजबूत पक्ष रखा “यहां 24 घंटे कभी ना कभी बर्फबारी होती रहती है, हवाएं भी चलती है। उन सब में वह पैरों के निशान कब के गायब हो चुके हैं।” हिना इस बार बिल्कुल खामोश दर्शक की तरह खड़ी रही। आयुध काफी पहले खामोश हो चुका था। वह दोनों आर्य की बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। आर्य का कहना भी बिल्कुल सही है, उन्हें आचार्य वर्धन के होने पर ही बात करनी चाहिए। वह बात की गहराई को समझते हैं, और वह उन सात आचार्यों में भी नहीं आते जिन पर शक है। वह इसलिए क्योंकि वह आश्रम में सुनहरा चौगा पहनते थे। हिना कुछ देर खामोश खड़े रहने के बाद बोली “तो अब हमें आचार्य वर्धन के आने पर बात करनी चाहिए...। अगर तुम्हारे हिसाब से सोच कर चले तो।” “हां..” आर्य ने तुरंत अपनी सहमति दे दी “यही हमारे लिए बढ़िया रहेगा।” “मगर तुम्हें ऐसा नहीं लगता तब तक ज्यादा ही देर हो जाएगी... हमें नहीं पता आचार्य वर्धन कब वापस आएंगे। वह अगले 3 दिनों में कभी भी आ सकते हैं। तब तक हम क्या करेंगे।” आर्य ने अपने ऊपर के होंठों को दांतों में दबा लिया। उसने सोचते हुए कहा “तब तक हम दो काम कर सकते। और दोनों ही काम ऐसी होंगे जो सबूत इकट्ठा करने के लिए किए जाएंगे, क्योंकि आचार्य वर्धन के आने के बाद भी हमें बात साबित करने के लिए सबूत चाहिए। तो पहला काम, हम सभी आचार्यों पर नजर रख सकते हैं। इससे यह होगा जब भी कोई अचार्य दूसरी बार किले में जाएगा तो हम सबको आगाह कर देंगे। इससे वह रंगे हाथों पकड़े जाएंगे। और दूसरा...., हमें किसी ऐसी चीज के बारे में सोचना होगा जो हमें रंगे हाथों से पकड़ने के शिवाय कोई और दूसरा परिणाम दें। कोई दूसरा सबूत जो बिना आचार्य के किले में जाए यह साबित कर दें कि वह किले में गए थे। या फिर कोई भी किले में गया था।” “मतलब अब हमें सबूत इकट्ठा करना हैं...” आर्य की बात खत्म होते ही आयुध ने अपना तीर फेंक दिया। “कोई भी ऐसा सबूत हो जो हमारी बात को साबित करें। वह रंगे हाथों वाला सबूत भी हो सकता है, और कोई दूसरा भी जो हम ढूंढेगें।” “हां..” आर्य आयुध को इस बात के लिए शुक्रिया कहना चाहता था की वह उसकी बातों के मतलब को आसानी से समझ रहा है। “मुझे इसमें किसी भी तरह का एतराज नहीं।” आयुध हिना की तरफ देखते हूए बोला “इसका कहना भी बिल्कुल सही है। हमें पहले सबुत ढूंढने चाहिए। तुम क्या कहती हो हिना?” हिना अभी भी गहरी सोच में खोई हुई थी। लेकिन वह आर्य की बातों से काफी पहले ही सहमत हो गई थी। उसने भी हां में सर हिला दिया। “शायद ठीक ही कह रहा है आर्य। हमें पहले सबूतों पर ध्यान देना चाहिए। कोई भी ऐसा सबूत जो हमारी बात को साबित कर सके। जिससे यह पता चल सके कि कोई आचार्य किले गया था।” इसके बाद उसने अपने हाथ में बंधी छोटी फिते वाली घड़ी की तरफ देखा “मुझे पुस्तकालय की सफाई करने की सजा मिली है। तुम दोनों ही अब आश्रम में झाड़ू निकालने का काम करो, क्योंकि गायत्री मंत्र और सरस्वती वंदना का समय निकल चुका है। मैं पुस्तकालय की सफाई करती हूं। अब हमारी अगली मुलाकात शायद खाने के वक्त पर ही होगी। तो वहां देखते हैं हम इस सबूत ढूंढने वाले मामले में आगे क्या करें। कौन सा ऐसा तरीका या रास्ता ढूंढ जिससे हमें सबूत मिल जाए। जिससे पता चले आखिर कौन है वो... कौन है वो अचार्य जो हमारे साथ गद्दारी कर रहे हैं।” ★★★