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Rebirth in Novel as Villains wife

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Swekshita khushi

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ये कहानी है चाहत की, जो अपने परिवार से प्यार की उम्मीद करती है लेकिन उसके मां बाप उसकी ही छोटी बहन के प्यार में इतने अंधे हो गए थे कि उन्हें चाहत का दर्द दिखाई ही नहीं दिया। चाहत दिन ब दिन अकेली होती जा रही थी। एक दिन जब वो घर आई तब उसका प्यार अंशुमन...

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Ashvat Dhanaraj

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Chahat

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Total Chapters (46)

Page 1 of 3

  • 1. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 1

    Words: 2183

    Estimated Reading Time: 14 min

    शाम का समय था जब एक लड़की अपने कॉलेज से घर वापस आई । उसने जब घर में कदम रखा तब वहीं हॉल में ही किसी का बर्थडे मनाया जा रहा था । उस लड़की ने उदासी से अपने सामने उस परिवार को देखा जो उसका होकर भी उसका नही था। हां ये उसका ही परिवार था ,उसके मां पापा और छोटी बहन ।  इस परिवार में चार लोग थे , कविता जी , महेंद्र जी उनकी दो बेटियां बड़ी बेटी चाहत और छोटी बेटी वर्तिका । 
    इस घर की बड़ी बेटी जो इस वक्त उदासी से अपने मां पापा को अपनी छोटी बहन वर्तिका का बर्थडे मानते हुए देख रही थी । हॉल को बहुत ही अच्छे से सजाया गया था । चाहत ने अपना बैग वहीं छोड़ा और सीधे कमरे में चली गई । वहीं जब उसके कविता और महेंद्र जी ने उसे जाते हुए देखा तो कुछ भी नही कहा और वर्तिका के साथ बर्थडे मनाने में व्यस्त हो गए । 
    चाहत अपने कमरे में आकर खिड़की के पास गई जहां से उसे आसमान साफ दिखता । उसने खिड़की खोली और आसमान को देखने लगी । उसकी आंखो से दो बूंद आंसू गालों पर लुढ़क आए । उसने आसमान में देखा जहां ना तो चांद दिख रहा था और न ही कोई तारा । आज अमावस की रात थी । ऐसा लग रहा था जैसे उस रात की तरह ही उसकी जिंदगी में भी सिर्फ और सिर्फ अंधेरा है । उसने रोते हुए ही धीरे से आसमान की तरफ देख कर कहा । 
     
    " क्यों भगवान ? आखिर क्यों मेरे मम्मी पापा मुझसे प्यार नही करते ? क्या मुझसे की गलती हुई है या फिर मैं उनकी बेटी ही नही हूं ? आखिर क्यों है ऐसा ? वो वर्तिका को इतना प्यार करते हैं लेकिन में ? मेरा क्या ? क्या वो मुझसे प्यार नही करते ? " चाहत खुद से ही सवाल किए जा रही थी । 
     
    आखिर क्या गलती थी उसकी जो उसके मां पापा उससे प्यार नही करते थे । यही सन सोचते हुए ना जाने कब वो वहीं बने सोफे पर सो गई उसे पता ही नही चला ।
    कुछ दिनों बाद शाम के समय चाहत घर आई ही थी कि तभी उसकी नजर हॉल में गई जहां उसका प्यार , उसका बॉयफ्रेंड अंशुमान बैठा हुआ था , उसके साथ ही उसके मम्मी पापा भी थे और उसकी बहन भी । चाहत के मम्मी पापा भी वहीं बैठे हुए थे । अंशुमान और चाहत पिछले चार साल से रिलेशनशिप में थे । चाहत हमेशा उससे शादी की बात किया करती लेकिन वो उसकी बात ये कह कर टाल देता कि अभी वो सेटल होना चाहता है उसके बाद ही वो शादी करेगा । चाहत को आज पता लगा था कि अंशुमान की जॉब एक अच्छी कंपनी में लग गई है लेकिन जब उसने उसे कॉल करने की कोशिश की तब उसने फोन नही उठाया । चाहत ने सोचा कि शायद वो कहीं बिजी हो इसलिए उसने उसे ज्यादा परेशान नहीं किया । 
    वो सब समझ रही थी कि आखिर क्यों अंशुमान ने उसका फोन नही उठाया था क्योंकि वो खुद उसका रिश्ता लेकर उसके घर आने वाला था । ये बात उसने उसके सामने की ही नही वरना उसे इसके बारे में जरूर पता होता । चाहत धीरे धीरे मुस्कुराते हुए चल कर हॉल में आई तो अंशुमान उसे देख कर मुस्कुरा दिया । उसकी मुस्कुराहट को देख कर चाहत की नजरें शर्म से झुक गई । अभी कुछ बात हो पाती उससे पहले ही कविता जी ने कहा । 
    " अरे तुम अभी आ रही हो जाओ और जाकर किचन में से चाय लेकर आओ , अंशुमान रिश्ता लेकर आया है " 
    कविता जी की बात सुनकर चाहत ने अपना सिर हां में हिलाया और किचन में चली गई। किचन में आते ही उसने अपने सीने पर हांथ रख लिया । उसका दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था । उसके होंठो पर शर्मीली मुस्कान थी , उसके चेहरे की वो लाल रंगत ही बता रही थी कि वो कितनी खुश थी । आज जिंदगी में पहली बार वो इतनी खुश थी । उसने चाय बनाई और नाश्ते के साथ ट्रे में रख कर बाहर ले आई । वो जैसे ही किचन से बाहर निकली और उसकी नजर हॉल में गई तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया । अंशुमान के बगल में ही उसकी छोटी बहन वर्तिका बैठी हुई थी । उसे समझ नही आया कि आखिर वर्तिका अंशुमान के बगल में क्यों बैठी हुई थी । वो आगे बढ़ी , लेकिन उसके होंठो से वो पहले वाली मुस्कान जा चुकी थी । 
    उसने टेबल पर ट्रे रखा और सबको चाय देने लगी जैसे ही वो वर्तिका के पास से अंशुमान के पास जाने लगी वैसे ही उसके कानो में अंशुमान की मां अनिता जी की आवाज सुनाई दी । 
    " बहन जी हमे तो वर्तिका बहुत पसंद आई और सच कहूं तो उससे अच्छी बहू और अंशुमान के लिए बीवी हमे कहीं और मिल ही नही सकती  हमारी तरफ से तो ये रिश्ता पक्का समझिए क्यों अंशुमान बेटा ? " अनिता जी ने अंशुमान की तरफ देख कर पूछा तो चाहत ने उसकी तरफ अपनी नजरें घुमाई और जो हुआ उसे देख कर उसके दिल के टुकड़े हो गए । 
    अंशुमान ने वर्तिका की तरफ देखते हुए अपना सिर हां में हिला दिया और उसके होंठो पर मुस्कान थी जिसे देख कर चाहत के दिल को चोट पहुंच गई । उसे समझ नही आ रहा था कि कल तक उसे प्यार करने वाला इंसान आज उसकी ही छोटी बहन से शादी करने के लिए हां कैसे कह सकता है ? 
    उसने अपनी नजरे घूमा कर अविश्वास से वर्तिका की तरफ देखा तो वो भी अंशुमान की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी । उसका दिल उसी पल चकनाचूर हो गया जब उसने अपने ही प्यार और आप ही बहन के रिश्ते की बात सुनी । 
    उसके हाथों से वो चाय का कप सीधे नीचे जा गिरा जो उसके ही पैरो पर गिरा , उसके मुंह से सिसकी निकली लेकिन उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया क्योंकि सबका ध्यान तो वर्तिका ने अपनी तरफ खींच लिया था । हां वर्तिका के पैरो पर उस गर्म चाय के कुछ छींटे जो पड़ गए थे लेकिन चाहत का क्या ? उसके पैरो पर जो पूरी गर्म चाय गिरी थी , क्या उसे जलन नही हो रही थी जो कुछ छींटे से रोती हुई वर्तिका की सब चिंता कर रहे थे लेकिन उसकी नही ।
    " ये क्या किया तुमने चाहत ? ध्यान से नही काम कर सकती तो कह दिया करो , जला दिया मेरी बच्ची को  ज्यादा दर्द हो रह है बेटा ? " कविता जी ने चाहत पर चिल्लाते हुए कहा । 
    कोई भी उस पर ध्यान नहीं दे रहा था । ना ही उसके मां बाप और ना ही अंशुमान उसका प्यार । हां उसके पैर भी जल रहे थे और उन पर लाल निशान उपट आए थे लेकिन जो दर्द उसके दिल में हो रहा था उसके सामने ये कुछ भी नही था । 
    सभी वर्तिका की फिक्र कर रहे थे , अंशुमान तो उसके लिए बरनोल तक ले आया था और इस वक्त वो उसके पैरो में लगा रहा था कि तभी सबका ध्यान किसी चीज के टूटने से दूसरी तरफ गया । सबने उस तरफ देखा तो चाहत गुस्से में खड़ी थी । आज उसके सब्र का बांध टूट गया था , आखिर कब तक वो बिना प्यार के रह सकती थी । 
    चाहत ने एक वॉस को जमीन पर पटक दिया जिससे सबका ध्यान उस पर गया । उसकी ऐसी हरकत को देख कर महेंद्र जी ने उस पर चिल्लाते हुए कहा । 
    " ये क्या कर रही हो तुम ? देख कर नही चल सकती ? " 
    " आप सब क्यों नहीं देख सकते ? क्यों नही देख सकते कि अकेली हो रही हूं मैं ? आपको बस वर्तिका की तकलीफ दिखी लेकिन मेरी , मेरा क्या ? कभी  भी आपने मुझे प्यार से एक बार बात तक नही की है " 
    " तुम कब से स्वार्थी बन गई चाहत  अपनी छोटी बहन से ही जल रही हो तुम ? " अंशुमान ने उस पर चिल्ला कर कहा।उसके इस तरह से खुद पर चिल्लाने से चाहत का दिल टूट  गया । आखिर कैसे जिसे वो प्यार करती थी , उसके लिए वो कोई मायने ही नही रखती थी अब । कैसे अंशुमान ने उसके प्यार को एक पल में ही छोड़ दिया ।  
     
    " मैं जल नही रही हूं , अपना हक मांग रही हूं और अपना हक मांगने में कैसा स्वार्थ ? और हम दोनो तो प्यार करते थे ना अंशुमान , तो तो फिर ये सब क्या है ? मुझे पता चला कि तुम्हारी जॉब लग है , तो मैं खुश थी , क्योंकि तुमने मुझसे कहा था कि हम दोनो तुम्हारी जॉब लगने के बाद शादी कर लेंगे लेकिन ये सब क्या है ? तुम अचानक से मेरी ही बहन से शादी करने के लिए कैसे आ गए जबकि तुम मुझसे प्यार करते हो " चाहत ने भी उसका जवाब दिया । 
     
    चाहत की बात सुनकर जहां सभी हैरान थे वहीं अंशुमान अपनी नजरें चुरा रहा था । आखिर कैसे वो इनकार कर देता इस बात से कि वो दोनो रिलेशनशिप में नही थे । लेकिन शायद अंशुमान से ज्यादा नीच इंसान कोई नही था । उसने बिना देरी किए ही कहा । 
    " ये तुम क्या बोल रही हो चाहत ? मैने हमेशा तुम्हे बस अपना दोस्त माना है , मुझे नही पता था तुम मेरी दोस्ती को प्यार समझोगी मैने तो हमेशा ही बस वर्तिका से प्यार किया है " 
    उसके इस तरह से अपनी झूठी सफाई देने पर चाहत के पैरो तले की जमीन खिसक गई । आज उसे एहसास हुआ कि शायद वो गलत लोगो से घिरी हुई थी , जिन्हे उसके होने ना होने से कोई फर्क नही पड़ता था । मां बाप तो पहले ही उसका साथ छोड़ चुके थे और अब उसका प्यार भी उसे अपनाने से मना कर रहा था , और उसकी बहन से प्यार करने के दावे कर रहा था।  
    अंशुमान के कहने पर वर्तिका सामने आई और अपने नकली आंसू बहाते हुए बोली ।
    " दीदी , तुम ऐसा क्यों कर रही हो ? अंशुमान तो हमेशा से ही मुझे पसंद करता है , लेकिन अगर आप कह रही ही तो मैं उसे छोड़ दूंगी , आप उससे शादी कर लो , मैं अपनी बहन का दिल नहीं दुख सकती " 
    वर्तिका के इस तरह से अचानक से अच्छा बनने के और रोने के नाटक को चाहत बखूबी समझ रही थी लेकिन उसके परिवार वाले इस बात को समझ तक नही सकते थे ।अंशुमान ने उसे अपने सीने से लगा लिया और चाहत को डांटते हुए बोला । 
     
    " आखिर क्यों कर रही हो तुम ये सब ? देखो तुम्हारी बहन को , उसकी कोई गलती ना होते हुए भी वो सब कुछ छोड़ने को तैयार है और एक तुम हो जो झूठ पर झूठ बोले जा रही हो " 
     
    चाहत ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसकी जबान ने उसका साथ ही नहीं दिया । हर तरफ से उसे धोखा ही तो मिला था । पहले परिवार , दोस्त , और अब उसका प्यार भी उसे धोखा दे रहा था । जहां चाहत की आंखो से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे वहीं वर्तिका अपनी तिरछी निगाहों से उसे ही देख रही थी । 
    " माफ करना मेरी प्यारी बहना लेकिन अंशुमान को तो मै तुम्हारा नही होने दूंगी आज तक मैने जो चाहा है वो मुझे मिला है तो अंशुमान को कैसे छोड़ दूं ? फिर उसके लिए चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े मैं पीछे नही हटूंगी " 
    वही कोई कुछ कह पाता उससे पहले ही महेंद्र जी चाहत के सामने आए और एक थप्पड़ उसके चेहरे पर जड़ दिया , बिना ये जाने समझे कि उस पर क्या बीतेगी । चाहत का चेहरा दूसरी तरफ हो गया और उसकी आंखो से आंसू बह निकले । उसने अविश्वास से महेंद्र जी की तरफ देखा तो वो उस पर चिल्लाते हुए बोले । 
    " बस यही दिन देखना बाकी रह गया था हमारा कि तुम अब झूठ भी बोलने लगी , आखिर कितनी नफरत भरी हुई है तुम्हारे दिल में वर्तिका के लिए ? क्यों है इतनी नफरत ? अरे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार हमने वर्तिका को दे दिया तो इसमें गलत क्या है ? छोटी बहन है तुम्हारी थोड़ा तुम्हे भी समझना चाहिए लेकिन नही , तुम्हारे दिल में तो नफरत भरी हुई है , ना जाने कितना जहर भरा हुआ है तुम्हारे अंदर पता नही तुम पैदा ही क्यों हुई ? " 
    महेंद्र जी के कहे हुए वो आखरी शब्द चाहत के मन को छल्ली कर गए । उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके मां बाप आज उसका चेहरा तक नही देखना चाहते थे और उसके जन्म लेने पर भी पछता रहे थे । उसने अपना सामने खड़े उन लोगो को देखा जो उसके होकर भी उसके नही थे । अब कुछ बचा ही नहीं था उसका उन सबसे कुछ कहने के लिए । 
    उसने अपने कदम पीछे की तरफ मोड़े और अपने कमरे में चली गई । 





    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए
    Rebirth in novel

  • 2. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 2

    Words: 1688

    Estimated Reading Time: 11 min

    रात का समय था और बेचारी चाहत तकिए में अपना मुंह छिपाए बस रोए जा रही थी । उसे विश्वास नही हो रहा था कि उसकी बहन , उसके मां बाप , यहां तक की उसका प्यार भी अब उसके साथ नही था । उसका दर्द नही समझ सकता था । सबके साथ होकर भी जैसे वो किसी के लिए मायने ही नही रखती थी । ना जाने क्यों वो इस दुनिया में आई । चाहत अकेली हो चुकी थी । कहने को तो उसके पास सब कुछ था , मां बाप बहन , अच्छा परिवार लेकिन कोई भी उसके साथ नही था । कोई भी उसकी दुख ,तकलीफ तो छोड़ो खुशी में भी उसके साथ नही था । हां माना कि उसकी छोटी बहन को ज्यादा प्यार की जरूरत थी लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि सब उसे भूल जाएं । ये कहां का न्याय था । क्या उसका हक नही था प्यार पाना ? क्या वो किसी की मोहब्बत के काबिल नही थी । क्या वो इस लायक भी नहीं थी कि वो किसी को ये कह सके कि हां , कोई है उसकी जिंदगी में जो उसे बहुत चाहता है । शायद नही , ये दिन उसकी जिंदगी में कभी आया ही नहीं , और शायद आ भी नही सकता था । 

     

    चाहत ने अपने आंसू पोछे और उठ खड़ी हुई । उसने अपने कमरे को देखा , जिसमे सबसे ज्यादा समय वो बिताया करती थी । ना उसका कोई दोस्त था क्योंकि जो कोई भी था उसे तो वर्तिका ने अपना बना लिया । उसके हर दोस्त उसने छीने , यहां तक कि उसके प्यार को भी नही छोड़ा । कहते हैं बहनों में कभी लड़ाई झगडे या नफरत नही होती लेकिन यहां , वर्तिका ही अपनी बहन से नफरत करती थी और इसकी वजह कोई नही जानता था यहां तक कि चाहत खुद भी नही । 

     

    चाहत ने अपने कमरे को एक बार निहारा और फिर वहां से बाहर निकल गई । वो हॉल में आई तो वहां कोई नहीं था । पूरे घर में अंधेरा था बस बाहर से आती स्ट्रीट लाइट की रोशनी घर को हल्का सा उजाला दे रही थी । हॉल को देख कर एक बार फिर चाहत की आंखो के सामने एक बार फिर वो सारे नजारे आने लगे जो आज शाम में हुए थे । उसकी आंखो के सामने ही उसके प्यार अंशुमान ने उसे अपनाने से इंकार कर दिया था । 

    उसने अपनी आंखो में आए आंसू पोछे और मुड़ कर बिना पीछे की तरफ कुछ देखे वो सीधे घर बाहर चली गई । 

     

     

     

     

    रात के ग्यारह बजे थे और इस वक्त चाहत बेसुध सी बस आगे बढ़ी जा रही थी । वो चलते हुए अपने घर से बहुत दूर आ गई थी । वहां पर दूर दूर तक कोई गाडियां या इंसान नही दिखाई दे रहे थे। चाहत सुनी आंखो से उस खाली सड़क को देखती हुई आगे बढ़ती जा रही थी जहां उसे कोई सहारा नहीं दिख रहा था । जब उसके परिवार वालो ने ही उसका साथ नहीं दिया तो किसी और से क्या ही उम्मीद की जा सकती थी। चाहत चलते हुए एक ब्रिज के ऊपर आ गई थी । वो वहीं ब्रिज के किनारे खड़ी हो कर नीचे बहती उस नदी को देख रही थी। उसकी आंखो से आंसू बह गए एक बार फिर उसके दिल में समा गए । जैसे एक नदी सागर से मिल कर कहीं गुम हो जाती है । चाहत की आंखो के आगे उसकी पूरी जिंदगी आने लगी जहां हर कोई उसे बस नजरंदाज करते हुए आया था । उसकी जिंदगी में कभी भी किसी ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया और ना ही कभी उसे प्यार किया । अंशुमान उसका प्यार था और दोनो साथ में डेट भी कर रहे थे लेकिन आज जो हुआ उसे देख कर लगा जैसे अंशुमान ने कभी उससे प्यार किया ही नहीं था । 

     

    आज तक कभी उसे प्यार नही था मिला था इसीलिए उसने आज अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला ले लिया था । उसने इस बारे में बहुत बार सोचा था लेकिन आज जो उसके साथ हुआ उसके बाद वो पूरी तरह टूट चुकी थी । जब उसे अंशुमान से प्यार हुआ था तब उसने उसके लिए जीने के बारे में सोचा था लेकिन आज , आज वो भी उसे छोड़ कर जा चुका था । अब क्या बचा था, कुछ भी नही । ना प्यार ना परिवार कुछ भी नही था उसकी जिंदगी में । 

     

    चाहत ने अपनी आंखे बंद की और उस ब्रिज की रेलिंग पर चढ़ गई । हवाओ के तेज झोंके उसे छूकर रोकने लगे जैसे उसे कहना चाह रहे हों कि ये गलत कदम मत उठाओ तुम । अभी भी तुम्हारी जिंदगी खत्म नहीं हुई है , लेकिन जब जिंदगी में सब कुछ दुख से भरा हो और एक भी सुख ना आए तो उस जीवन को खत्म करने का ही ख्याल हर इंसान के मन में आता है । और यही चाहत के साथ भी था । वो रेलिंग के ऊपर खड़े होकर सबके बारे में सोच रही थी लेकिन उसके बारे में कोई भी नही सोच रहा था । 

     

    " गुड बाय मम्मी पापा , अब मैं कभी वापस आपकी जिंदगी में नही आऊंगी , बहुत परेशान किया है मैने आप सबको , आपसे शायद वो मांग लिया जो आप मुझे कभी दे ही नही सकते  आपका प्यार , मुझे आपका प्यार चाहिए था लेकिन आपने कभी वो दिया ही नहीं , जब मैंने ट्वेल्थ में पूरे स्कूल में टॉप किया था तब आप अपनी छोटी बेटी के दसवी पास होने की खुशी मना रहे थे , जब मैं बीमार थी तब आप उसका स्कूल का फेयरवेल फंक्शन अटेंड कर रहे थे , आपने कभी मुझे प्यार दिया ही नहीं जिसकी मैं हकदार थी लेकिन अब आप सब चिंता मत करना , अब कोई नही होगा जो आपसे आपका प्यार मांगेगा क्योंकि आज मैं खुद को ही खत्म करने जा रही हूं और साथ ही इस कहानी को भी .. आप सबको मेरा हमेशा के लिए अलविदा .. " 

    चाहत ने ये सब रोते हुए कहा था । भले ही उसके मां बाप उस पर ज्यादा ध्यान ना देते हों लेकिन फिर भी वो उनसे बहुत प्यार करती थी । इतना कह कर वो नीचे नदी में कूदने ही वाली थी कि तभी उसके कानो में किसी की बांसुरी की आवाज सुनाई दी । ना जाने कैसे लेकिन उसके कदम जहां थे वहीं रुक गए और वो उस मधुर बांसुरी की आवाज को सुनने लगी । उसने अपनी नजरो से उस बांसुरी की आवाज का पीछा किया तो एक वृद्ध आदमी उसे दिखा । उस आदमी का चेहरा उसे नही दिख रहा था क्योंकि ठंड की धुंध में वो दिखाई नहीं दे रहा था । 

     

    चाहत उसके चेहरे को देखना चाह रही थी । वो भूल चुकी थी अपने बारे में बस उसके चेहरे को देखने की कामना थी जो पूरी भी हुई । कुछ ही समय में वो वृद्ध आदमी उसके पास आकर खड़ा हुआ । पीली धोती और सफेद कुर्ता पहने वो वृद्ध बाबा बांसुरी अपने हाथों में लिए थे । चाहत ने उन्हें देखा ना जाने कैसे लेकिन उसकी आंखो में आंसू आ गए । जिन्हे वो उनसे छिपा नहीं पाई । वृद्ध बाबा हल्के से मुस्कुराए और उसकी तरफ देख कर बोले । 

    " ये क्या करने जा रही हो बेटी ? क्या तुम्हे ज्ञात नही कि आत्मघात करना एक पाप है .. फिर ये पाप तुम अपने सिर क्यों लेना चाहती हो ? " 

    उनके सवाल को सुनकर चाहत की आंखो में आंसू आ गए और बोली । 

    " मुझसे कोई प्यार नही करता बाबा , किसी को भी मेरी फिक्र नहीं है , ना ही मेरे मां बाप को और न ही मेरे प्यार को फिर मैं जीकर क्या करूंगी ? " 

    उसकी बात सुनकर बाबा मुस्कुराए और उसे नीचे आने का इशारा किया । वो उनके एक इशारे पर नीचे उतर आई जैसे उनकी बात को वो टाल ही नही सकती थी । 

     

    " एक बात बताओ बेटा , जब किसी की जिंदगी में बहुत दुख होता है और वो कुछ नही कर पाता क्योंकि वो उसके आगे सोचना ही नही चाहता है तो क्या ऐसे में उसे आपघात कर लेना चाहिए या फिर अपने जीवन को बदल कर सुख में परिवर्तित करना चाहिए ? " 

     

    " उसे अपनी जिंदगी बदलनी चाहिए .. " चाहत ने उनके सवाल का जवाब दिया । उसे ऐसा लगा जैसे वो बाबा उसकी ही बात कर रहे हों। 

     

    " तो फिर तुम क्यों आपघात करना चाहती हो ? क्या तुम्हे सच में ऐसा लग रहा है कि भगवान ने तुम्हारे लिए कोई दरवाजा खुला नही छोड़ा है ? " बाबा ने उसकी तरफ देख कर पूछा । 

     

    " सबकी जिंदगी मेरे जैसे नही होती बाबा , कम से कम उन्हे उसके मां बाप प्यार तो करते हैं लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नही है , मेरे तो मां बाप ही मुझे पसंद नही करते फिर मैं क्या करूं ? " 

    उसकी बात सुनकर बाबा मुस्कुराए और उन्होंने अपने उस  कपड़े के झोले में हांथ डाला । उन्होंने एक किताब निकाली और फिर उसे उसके सामने बढ़ाते हुए बोले । 

     

    " अगर ऐसी बात है तो तुम्हे अवश्य ही इस पुस्तक को पढ़ना चाहिए , शायद इससे तुम्हे अपने जीवन का सार मिल जाए . " चाहत ने उस किताब को अपने हांथ में लिया और उसे देखने लगी । उसकी बनावट बहुत ही सुंदर थी । पहले ही पन्ने पर एक लड़की और लड़के की फोटो बनी हुई जो एक दूसरे का हांथ थामे नदी किनारे चले जा रहे थे । दोनो के हाथों को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उनके हांथ फूल से बंधे हों । 

    उस किताब का शीर्षक बहुत ही सुंदर अक्षरों में लिखा हुआ था " प्रेम से जुड़ा रिश्ता " 

     

     

     

     

    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 

    कौन थे वो बाबा जो चाहत को बचाने के लिए पहुंचे थे ? 

    उन्होंने वो किताब चाहत को क्यों दी ? 

    क्या करेगी चाहत अब ? 

    क्या है उस किताब में जो बाबा ने उसे चाहत की पढ़ने को दिया? 

     

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

     Rebirth in novel

     

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  • 3. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 3

    Words: 1732

    Estimated Reading Time: 11 min

    रात का समय था जब उस ब्रिज पर बैठी चाहत उस किताब को बहुत ही ध्यान से देख रही थी । उस किताब का शीर्षक था " प्रेम से जुड़ा रिश्ता " 
    चाहत ने उस किताब के पहले पन्ने को खोला और पढ़ना शुरू किया । जैसे जैसे वो उस किताब में लिखे शब्दों को पढ़ती जा रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे पर आते भाव बनते और बिगड़ते जा रहे थे। 
     
     
     
    इस कहानी में नायक और नायिका थे , उनका नाम रिधान और अनिरा था। जहां रिधान एक एक्टर था वहीं अनिरा उसकी मैनेजर थी । उन दोनो को एक दूसरे से प्यार हुआ और फिर उन्होंने शादी कर ली । उनकी जिंदगी हंसी खुशी से बीत रही थी लेकिन कोई था जो खुश नहीं था और वो था अश्वत। अश्वत अनिरा का दोस्त था और साथ ही वो उसे पसंद भी करता था । अश्वत की शादी पहले ही हो चुकी थी । वो लड़की गांव की थी उसका नाम वृंदा था । अश्वत उसे बिलकुल भी पसंद नही करता था और उसका कारण था कि अश्वत अनिरा को पसंद करता था । अनिरा को पाने के लिए उसने हर एक पैंतरे अपनाए । कभी वो रिधान को मरवाने की कोशिश करता तो कभी अनिरा को अगवा करवा लेता । इन सभी कोशिशों के चलते और अपने प्यार को पाने के जुनून में वो वृंदा को भुला चुका था जो हर दिन उसका इंतजार करती। हर दिन उसके प्यार को पाने की पूजा करती लेकिन एक भी पल उसने उसे प्यार से नही देखा । वृंदा हर दिन रोया करती थी लेकिन उसकी सिसकी सुनने वाला कोई नही था । एक बार वृंदा ने  नदी में कूदकर मरने की कोशिश की थी जब उसे कुछ लोगो ने बचा लिया था और उस  समय अश्वत उसके सामने तक नही आया था । अश्वत को उसका प्यार तो नही मिला लेकिन एक दर्द मिल गया । रिधान ने उसकी बीवी , वृंदा को मरवा दिया । उसने उसकी जान ले ली । वृंदा जब मरी तब उसके आखरी शब्द यही थे कि वो आखरी बार उसके प्यार को महसूस कर सके । अश्वत ने उससे माफी मांगी लेकिन वृंदा ने कहा ।
    " गलती आपकी नही है अश्वत बस आप अपना प्यार पाना चाहते थे जिसके चलते आप गलत रास्तों पर चले गए लेकिन , मेरे मरने के बाद आप ये सब छोड़ देना अपनी जिंदगी में आगे बढ़िए क्योंकि अनिरा अब वापस आपके पास नही आने वाली वो रिधान से प्यार करती है .. " 
    " मैं कैसे आगे बढ़ जाऊं , तुम दोगी ना मेरा साथ इन सबसे बाहर निकलने में ? बोलो , आज तक तुमने मेरे सारे ताने सुने लेकिन आज जब तुम्हे मुझे सुधारना है तो तुम मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो " अश्वत ने रोते हुए कहा । 
    रिधान वहां से जा चुका था । अश्वत आज पहली बार रोया था वृंदा के सामने । उसने अपने खून से लथपथ हाथों से उसके आंसू पोछे जिससे उसके चेहरे पर भी खून लग गया । लेकिन अश्वत ने उसके हाथों को अपने चेहरे से हटाने के बजाए उसे अपने हाथों में थाम लिया । 
    " मैं अब और नही रुक सकती , बहुत कुछ सह चुकी हूं अब और नही सहा जाता लेकिन , मैं एक बात कहूंगी अगले जन्म में भी मैं सिर्फ आपकी पत्नी बनना चाहूंगी और इस बार भगवान से अपने हाथों में आपके प्यार की लकीरें लेकर ही आउंगी. "
    कहते हुए उसकी सांसे भरी हो चुकी थी अश्वत ने उसे संभाला लेकिन उसका शरीर ढीला पड़ चुका था । वृंदा मर चुकी थी । अश्वत उसकी लाश को अपनी बाहों में लेकर रोता रहा । उसने उसका अंतिम संस्कार किया और उसके बाद उसने कसम खाई । वृंदा के मौत का बदला लेने की । उसने रिधान से उसकी मौत का बदला लिया और फिर वहीं पहाड़ी से छलांग लगा कर अपनी जिंदगी को भी खत्म कर दिया । वृंदा के लिए भले ही उसके दिल में कोई फीलिंग नही थी लेकिन आखिर में उसने उसके प्यार को समझा और उसका बदला लेकर उसने अपनी जिंदगी को भी खत्म कर दिया । इन सभी में कोई अकेला रह गया था और वो थी अनिरा। उसने भी रिधान की मौत के साथ ही अपनी जिंदगी को भी खत्म कर दिया और सदा के लिए इस कहानी का अंत कर दिया । 
     
     
     
    चाहत ने उस बुक को बंद किया और अपने बगल मे देखा तो वो बाबा गायब थे । उसने उस किताब को देखा और बोली । 
    " भले ही सबको ये लगे कि इस कहानी के मुख्य किरदार रिधान और अनिरा के साथ अश्वत ने ज्यादती की थी लेकिन ऐसा मुझे नही लगता , मुझे लगता है इस कहानी का खलनायक अश्वत नही बल्कि रिधान हो .  मतलब उसे क्या जरूरत थी वृंदा की जान लेने की , बेचारी उसका उसकी जिंदगी से क्या लेना देना था ? और ये अश्वत इसे भी पहले दिमाग नही आया , लेकिन एक बात मैं समझ चुकी हूं , भले ही अश्वत ने कितनी ही कोशिश की हो अनिरा को पाने की लेकिन आखिर में उसे मौत ही मिली , शायद ऐसा ही मेरे साथ भी है , वर्तिका ने भी तो अंशुमान को मुझसे छीन लिया इस कहानी की खलनायक बनने से अच्छा है मैं खुद को ही खत्म कर दूं . " 
     
    अनिरा ने अपने आंसू पोछे और एक बार फिर ब्रिज की रेलिंग पर चढ़ गई । उसने उस नदी को देखा जो बहुत गहरी थी । उसने एक गहरी सांस ली और उसकी पूरी जिंदगी उसकी आंखो के सामने आ गई । एक भी पल उसकी जिंदगी में खुशी का नही था । उसकी आंखो से आंसू की बूंद गिर गई । बंद आंखो से ही उसने उस नदी में छलांग लगा दिया और इसी के साथ तेज आवाज के साथ वो पानी को गहराई में जा चुकी थी । चाहत हमेशा के लिए इस दुनिया से जा चुकी थी । 
    वहीं दूसरी तरफ खड़े वो बाबा मुस्कुराए और फिर अपनी मधुर आवाज में बोले । 
    " तुम्हे तुम्हारा प्यार जरूर मिलेगा बेटा बस खुद पर विश्वास रखना और कभी हार मत मानना .. " कहते हुए वो बाबा मुस्कुराए और फिर अपनी बांसुरी की वो मधुर तान छेड़ दी जिसकी बाद वो मुड़ कर वहां से चले गए । 
    वहां चाहत का वो मृत शरीर पानी पर तैरते हुए ऊपर आ चुका था । सब कुछ छूट चुका था उससे । उसका प्यार परिवार ये संसार लेकिन कुछ था जो नही छूटा था और वो था वो किताब । वो किताब अब भी उसके हाथों में थी । अचानक ही उस भीगी हुई किताब के वो शब्द चमकने लगे जो उसके शीर्षक थे । एक पीली तेज रोशनी उस पुस्तक से निकली और उसके बाद वो किताब भी वहां से गायब हो चुकी थी । ना जानें कैसी किताब थी वो जो एक ही पल में अदृश्य हो चुकी थी । 
     
     
     
     
     
     
     
    एक लड़की पानी में कूद चुकी थी और उसी के पीछे एक लड़का भागा था। उस लड़के ने इस वक्त ब्राउन थ्री पीस सूट पहना हुआ था । वो लड़का भागते हुए आया और सीधे उस पानी में कूद गया बिना अपने महंगे कपड़ो की परवाह करते हुए । वो लड़का तैरते हुए उस लड़की के पास गया और उसे किनारे ले आया । वो लड़की पानी से भीगी बेहोश हो चुकी थी । ऐसा लग रहा था जैसे पानी उसके पेट और फेफड़ों में चला गया हो । उस लड़के ने जल्दी से उसके पेट को दबाना शुरू किया और कुछ ही पलों में उस लड़की ने पानी की उल्टी कर दी।
    लगभग पांच मिनट बाद उसने अपनी आंखे खोली तो उसकी आंखो के सामने एक खूबसूरत से लड़के का चेहरा आया । उस लड़की ने हल्के से मुस्कुराते हुए बेहोशी की हालत में ही कहा । 
     
    " लगता है यमदूत मुझे खुद लेने आए हैं लेकिन ये यमदूत इतना सुंदर क्यों लग रहा है , मुझे अपना साथ ले चलो , अगर तुम साथ हो तो मैं मरना भी पसंद करूंगी " वो लड़की कह ही रही थी कि तभी उसके गालों पर एक थप्पड़ आकर पड़ा जिससे उसके होश ठिकाने आए वो उसकी आंखो पूरी तरह से खुल गई । 
    " पागल हो क्या तुम ? यहां पर क्या रही थी तुम ? और इस तरह से ब्रिज की रेलिंग पर चलने का क्या मतलब है तुम्हारा ? मरना चाहती हो क्या ? " उस लड़के ने उस पर चिल्लाते हुए कहा। 
    उसकी बात सुनकर उस लड़की को कल रात की बातें याद आई जब वो अपने प्यार और परिवार के धोखे के बाद इस ब्रिज पर मरने आई थी । और उसने नदी में छलांग भी लगा दी थी फिर आज सुबह वो बच कैसे गई और अभी वो इस लड़के की बाहों में क्या कर रही थी । 
     
    चाहत गुस्से में उठी और उस लड़के पर चिल्लाते हुए बोली । 
    " हां मरने ही आई थी मैं यहां , लेकिन लगता है अब लोगो को मरने का हक भी छीन लिया गया है , और तुमने मुझे बचाया क्यों? हूं क्या मैं तुम्हारी ? " 
    चाहत की बात सुनकर उस लड़के को भी गुस्सा आ गया और उसके कंधे को पकड़ कर झंगझोड़ते हुए बोला । 
     
    " पति हूं मै तुम्हारा समझी तुम .. और ये यहां क्या नाटक लगा रखा है तुमने ? दिखाना चाहती हो दुनिया को कि कितना जुल्म करता हूं मैं तुम पर ? " 
    उस लड़के की बात सुनकर चाहत का सिर चकरा गया । आज कल के लोग सारे आम झूठ भी बोलने लगे थे क्या ? भले ही उस लड़के की अच्छी शक्ल का हो , हैंडसम हो लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी ना कि वो सीधे उसे उसका पति बता दे । इससे पहले की वो उसकी बातो का कुछ जवाब दे पाती उसके सिर में कुछ भारी सा महसूस हुआ और उसकी आंखे बंद हो गई । इसी के साथ वो बेहोश हो कर झूल गई । इससे पहले की वो जमीन पर गिर पाती उस लड़के ने उसे थाम लिया और उसके चेहरे को देखने लगा । 
    " क्या हो गया है तुम्हे वृंदा ? आखिर क्यों कर रही हो ये सब तुम ? " 
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या हुआ जो चाहत उस लड़के की बाहों में पहुंच गई थी ? 
    आखिर क्यों वो लड़का उसे वृंदा बुला रहा था ? 
    क्या चाहत उस कहानी में जा चुकी थी ? 
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 4. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 4

    Words: 1116

    Estimated Reading Time: 7 min

    चाहत की आँखें खुली तब उसने खुद को एक आलिशान कमरे में पाया ! वो झट से डर कर उठ बैठी और खुद में ही सिमट गई ! उसने पुरे कमरे में अपनी नज़रे दौड़ाई और उसने जो देखा उसे देख कर उसकी आँख हैरानी से फ़ैल गई ! उसकी आँखों के ही सामने उस बड़ी सी दिवार पर उसकी ही शादी की फोटो टंगी हुई थी ! वो जल्दी से उठ कर खड़ी हुई और उस दिवार के पास जाकर उस तस्वीर को देखने लगी जिसमें उसने पिले और लाल रंग का लहंगा पहने लाल रंग की चुनरी ओढ़े दुल्हन बनी हुई थी ! उसकी आँखे हैरानी से फ़ैल गई और उसने उस तस्वीर में खड़े उस आदमी को देखा तो उसे हैरानी हुई ! उसने अचम्भे में उस तस्वीर को देखा ! इससे पहले कि वो कुछ सोच पाती कमरे में कोई दाखिल हुआ! चाहत की नजरे उस तरफ घूम गई जहां से उसकी ही हम उम्र का लड़का अंदर आ रहा था! चाहत उस लड़के को देखते ही पहचान गई ! ये वही लड़का था जो उसे मरने से बचाने गया ! चाहत ने उसे घूर देखा जो इस वक्त टेबल पर खाना रख रहा था ! उस लड़के ने टेबल पर खाना रखा और उसकी तरफ घुमते हुए अपनी सर्द आवाज में बोला।
     
    " खाना खा कर दवा ले लेना मुझे ऑफिस जाना है " 
    इतना कह वो मुड़ कर जाने लगा कि तभी उसके कानो में चाहत की आवाज पड़ी । 
     
    " तुम कौन हो ? और मुझे ऑर्डर क्यों दे रहे हो ? " चाहत की आवाज और उसकी बात सुनकर वो लड़का उसकी तरफ पलटा और बोला । 
    " अब ये नाटक तुम मत शुरू करो , पिछले दो दिनों से मुझे पागल कर रखा है तुमने .. सच कहूं ना अगर मां ने मुझसे जबरदस्ती ना की होती ना तो मैं तुमसे कभी शादी करता ही नही .. पता नही मैने तुम्हे बचाया ही क्यों ? " उस लड़के की बात सुनकर चाहत का दिल ना जाने क्यों लेकिन एक बार फिर दुख गया । 
     
    पहले उसके मां बाप उसकी बहन और उसका प्यार सब उसे छोड़ दिए और अब ये बाहर का इंसान भी उसे कोस रहा था । उसकी आंखों से आंसू टपक गए और वो रोते हुए बोली । 
     
    " तुम ऐसा कैसे बोल सकते हो ? तुम्हे थोड़ी तो शर्म करनी चाहिए एक तो मरते हुए इंसान को बचाया और यहां अजीब सी जगह पर ले आए और अब मैं जब पूछ रही हूं कि तुम कौन हो तो तुम मुझे ही डांट रहे हो .. " 
     
    चाहत ने रोते हुए कहा । इससे पहले की वो लड़का अपना गुस्सा चाहत पर निकाल पाता एक औरत कमरे में दाखिल हुई । जो उस लड़के पर गुस्सा कर रही थी । शायद उसकी मां थी । 
     
    " नालायक कहीं का , उसे क्यों रुला रहा है , मैं कह रही हूं अश्वत अगर तुम्हे इस रिश्ते में नही रहना तो मत रहो , लेकिन वृंदा को कुछ भी मत कहना वरना मैं भूल जाऊंगी कि तुम मेरे बेटे हो .. तुम्हे उसे डाइवोर्स देना है तो दो लेकिन इस पर कभी चिल्लाने की कोशिश भी मत करना  और याद रखना अगर तुम अश्वत धनराज हो तो मैं भी शालिनी धनराज हूं " शालिनी जी ने अश्वत पर चिल्लाते हुए कहा । 
     
    " मां आप इस लड़की के लिए मुझे डांट रहीं है , ये .. " 
     
    " बस .। " इससे पहले की अश्वत कुछ कह पाता  शालिनी जी ने उसे चुप करवा दिया और उसे कमरे के बाहर भेज दिया । अश्वत भी गुस्से में वहां से चला गया । 
     
    " चिंता मत करो वृंदा बेटा , अश्वत को अब मैं तुम्हारे पास कभी नही आने दूंगी, मैं जानती हूं ये सब मेरी वजह से हुआ तुम्हे इतना कुछ सिर्फ मेरी वजह से सहना पड़ा लेकिन , अब मैं अपनी गलती सुधारूंगी , तुम्हे अश्वत के लिए कुछ भी करने की जरूरत नही है , तुम मेरी बेटी बन कर इस घर में रहो , अश्वत से दूर ही रहना और मैं तो हूं ही .. हमेशा तुम्हे बचाने के लिए .. " शालिनी जी ने चाहत की तरफ देख कर कहा । 
    यहां चाहत अब भी हैरानी सब बस उस तस्वीर को देखे जा रही थी जो उसके शादी शुदा होने का दावा करती थी । चाहत हकीकत में तब वापस लौटी जब शालिनी जी ने उसे कंधे से पकड़ कर झंगझोड़ दिया । 
     
    " क्या हुआ बेटा कहां खो गई ? क्या तुम्हे अश्वत की फिक्र हो रही है ? अगर ऐसा है तो उसके बारे में सोचा तुम बंद कर दो .. जब उसे तुम्हारी कोई फिक्र नहीं है फिर तुम क्यों उसकी चिंता कर रही हो  " शालिनी जी ने उसके सिर पर हांथ फेरते हुए कहा । 
     
    " मैं ये सब नही सोच रही लेकिन .. आप कौन है और ये वृंदा कौन है ? और मैं यहां क्या कर रही हूं ? " 
     
    " बेटा तुम ऐसा क्यों बोल रही हो ? मैं तुम्हारी सास शालिनी और वृंदा तुम हो .. क्या पानी में कूदते समय तुम्हे कोई सिर पर चोट तो नही लग गई ? हम दोनो आज ही डॉक्टर के पास जायेंगे और तुम्हारा चेकअप करवा कर आयेंगे , अभी तुम खाना खा कर आराम करो , ठीक है .  " शालिनी जी ने कहा और वहां से चली गई । 
     
    उनके जाने के बाद चाहत ने एक बार फिर उस तस्वीर की तरफ देखा । चाहत जो उन दोनो के नाम सुनकर हैरान थी वो अचानक ही होश में आई । उसे एहसास हुआ कि ये नाम उसने कहीं सुने हुए है । वो अपने दिमाग पर जोर डालने लगी तभी उसे एहसास हुआ और याद आया कि कल रात जो कहानी उसने पढ़ी उसमे अश्वत धनराज विलेन था और उसकी मां शालिनी  धनराज थी । साथ ही उसकी पत्नी वृंदा , जिसके शरीर में इस वक्त चाहत थी । एक पल को तो  चाहत का सिर ही चकरा गया सब कुछ सोच कर । क्या वो उस कहानी में आ चुकी थी? अब चाहत को अपने सुसाइड करने के फैसले पर अफसोस हो रहा था । क्या उसकी असली जिंदगी में कम परेशानी थी जो अब एक और आ चुकी थी । अच्छा खासा बेचारी मरने जा रही थी लेकिन उन बाबा की बातो में आकर उसने कहानी पढ़ ली और अब इस कहानी में फंस चुकी थी । 
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या सच में चाहत उस कहानी में आ चुकी है ? 
    अगर ऐसा है तो कहां गई वृंदा ? 
    क्या चाहत निकल पाएगी इस कहानी से या हमेशा के लिए फंसी रह जायेगी ? 
    क्या करेगी अब चाहत ?
     
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    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 5. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 5

    Words: 1836

    Estimated Reading Time: 12 min

    शाम का समय था जब चाहत शालिनी जी के साथ हॉस्पिटल से वापस आ रही थी । डॉक्टर ने उनसे कहा था कि शायद नदी में कूदते वक्त उसके सिर पर चोट लग गई होगी इसलिए उसकी याददस्त चली गई हो , उन्हे बस उसे कुछ समय देना होगा और उसके दिमाग पर ज्यादा दबाव नही बनाना , उसके बाद उसे खुद ही सब कुछ याद आ जाएगा । शालिनी जी उसे वापस घर लेकर जा रही थी कि तभी चाहत ने कहा । 
    " आंटी जी , ये जो अश्वत है , ये कौन है आप मुझे इसके बारे में बता सकती हैं ? " 
     
    चाहत के इस सवाल को सुनार शालिनी जी ने उसकी तरफ देखा और कहा । 
    " बेटा तुम्हे उसके बारे में सब कुछ तो पता है ? " वो कह ही रही थी कि तभी उन्हें एहसास हुआ कि उसे कुछ याद ही नही तब उन्होंने कहना शुरू किया । 
     
    " वो छह साल का था जब उसके पापा चल बसे उसके बाद मैने बहुत मेहनत से उसे पाला .. कॉलेज पूरा होने तक उसने अपना बिसनेस खड़ा कर लिया था मुझे हमेशा उसकी चिंता होती थी क्योंकि वो जल्दी किसी से घुलता मिलता नही था , उसके बाद मुझे उसकी चिंता होने लगी थी लेकिन मुझे उसकी फिक्र तब नही हुई जब उसकी जिंदगी में अनिरा आई , जबसे वो उसकी जिंदगी में आई तब से वो बदलने लगा खुश रहने लगा कभी ना मुस्कुराने वाला अश्वत हंसी खुशी से रहने लगा था मुझे लगा शायद अब वो अपनी जिंदगी में खुश रहेगा लेकिन शायद मैं गलत थी , अनिरा ने रिधान से शादी कर ली , उसके बाद फिर से अश्वत वैसा ही हो गया जैसा पहले था , बल्कि अब तो और भी ज्यादा गुस्सा करने लगा था इसलिए मैंने उसकी शादी तुमसे करवा दी मैने सोचा था कि शायद तुम्हारी मासूमियत देख कर उसका मन पिघल जाए और वो तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी शुरू करे लेकिन ऐसा नहीं हुआ वो अपना सारा गुस्सा तुम पर निकालने लगा , लेकिन अब मैं अपनी गलती सुधारूंगी तुम्हे इस रिश्ते से आजाद करवा दूंगी फिर तुम अपनी जिंदगी फिर से शुरू करना और इस बार तुम्हारी जिंदगी में अश्वत नही होगा " 
     
    कहते हुए शालिनी जी ने उसके सिर पर हांथ फेरा तो चाहत खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगी और सोचने लगी कि आखिर उसे आगे क्या करना चाहिए । क्या उसे अश्वत से वृंदा के रूप में डायवोर्स लेकर अपनी अलग जिंदगी जीनी चाहिए या फिर अश्वत को बदलने के बारे में सोचना चाहिए । यही सब सोचते हुए उसके सिर में दर्द करने लगा तो वो खिड़की से सिर टिका कर सो गई । घर आया तो शालिनी जी ने उसे जगाया । चाहत उठी और कार से निकल अपने कमरे में चली गई ।
     
     
     
     
    रात का समय था जब अश्वत घर पहुंचा तब शालिनी जी चाहत के सिर पर तेल रख कर उसका सिर दबा रही थी और साथ ही उससे हंसते हुए बातें भी कर रही थी । उन्हे इस तरह से करीब देख कर ना जाने क्यों लेकिन अश्वत को जलन महसूस हुई । उसने घूर कर चाहत को देखा जो उसके लिए गांव की गवार वृंदा थी । अश्वत ने कुछ नही कहा और वो वहां से सीधे लिफ्ट लेकर अपने कमरे में चला गया । चाहत ने उसे जाते हुए देखा लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। वैसे उसे क्या ही फर्क पड़ता था अश्वत से , वो उसकी असली बीवी थोड़ी ना थी । 
     
    कुछ ही समय में वो तीनो डाइनिंग एरिया में थे जहां शालिनी जी हेड चेयर पर बैठी थी वहीं उनके दाहिनी तरफ अश्वत और बाईं तरफ चाहत बैठे हुए थे । जहां चाहत चुप चाप अपना खाना खा रही थी वहीं अश्वत लगातार उसे घूरे जा रहा था जैसे शालिनी जी ने नोटिस किया । उन्होंने चाहत को देखा जो इस वक्त मजे से अपना खाना खा रही थी फिर उन्होंने अश्वत को देखा जो ना जाने कब से उसे घूरे जा रहा था । उन्हे समझ नही आया कि आखिर कैसे अश्वत अचानक से वृंदा की देखने लगा । उनके लिए तो वो वृंदा ही थी , उन्हे नही पता था कि इस वक्त उनके सामने बैठी जो लड़की मजे से खाना खत्म करने में लगी हुई है वो वृंदा नही बल्कि चाहत है । 
    कुछ देर बाद आखिर में अश्वत ने चाहत की ओर देख कर कहा । 
    " तुम कौन हो ? " 
    उसके इस सवाल पर चाहत ने अपना सिर उठा कर अश्वत को देखा।  इस वक्त उसका पूरा मुंह खाने से भरा हुआ था जिसकी वजह से उसके गाल फूले हुए थे।  वो कुछ कह रही थी लेकिन किसी को समझ नही आ रहा था क्योंकि जितना खाना उसके मुंह में था उसकी वजह से उसकी बातें शायद एलियन के भी समझ में ना आए । जब अश्वत को उसकी बातें समझ नही आईं तो उसने गुस्से में उसे घूर कर कहा । 
     
    " जो कहना है साफ साफ कहो ये बैल की तरह मुंह में खाना भर कर मेरे सामने मुंह मत चलाना , वरना अंजाम बहुत बुरा होगा .. "
     
    अश्वत को अपनी गुस्से भरी निगाहों से देखता पाकर चाहत एक पल को डर गई । उसे उसकी आंखो में ही यमराज के दर्शन हो गए । उसने जल्दी से अपना खाना ऐसे खत्म किया जैसे अगर एक भी पल उसने अपने मुंह में वो खाना भरे रखा तो अश्वत तो जैसे उसे मार ही डालेगा । खाना अपने गले से उतारने के बाद चाहत ने जल्दी से एक ग्लास पानी पिया और कहा । 
     
    " मैं कह रही हूं कि मैं चाह ... " चाहत कहते हुए रूकी । उसे एहसास हुआ कि वो अपनी असली पहचान बताने जा रही थी जो वो नही कह सकती थी । 
    वो नही बता सकती थी किसी को कि वो इस दुनिया से ना होकर किसी और दुनिया की है । उन्हे इसके बारे में नही पता होना चाहिए कि वो सिर्फ एक कहानी के किरदार है और कुछ नही । चाहत ने अपनी जुबान पर उन शब्दों की वापस ले लिया और चुप हो गई कि तभी अश्वत ने कहा।  
     
    " तुम क्या बोल रही थी ? चाह ? क्या ? " 
    उसके सवाल पर चाहत ने सोचा कि अब वो का बहाना बनाए । उसके कुछ भी दिमाग में नही आ रहा था कि तभी उसकी नजर अपने सामने रखी उस खीर की कटोरे पर गई । 
    उसने कुछ सोचा और अचानक ही उसने सामने रखी खीर को देख कर कहा।  
    " मैं कह रही थी कि मैं चाहती हूं खीर और .. मुझे और खीर खाना है , आपने बहुत अच्छी बनाई है आंटी .. " चाहत ने कहा ही था कि तभी उसकी नजर शालिनी जी पर गई जो उसे ही देख रही थी । उसने उनकी तरफ देखा और पूछा । 
     
    " क्या हुआ आंटी आप मुझे इस तरह से क्यों देख रही हैं ? मैने कुछ गलत कह दिया क्या ? " 
    " तुम तो मुझे माजी कहती थी ना फिर ये आंटी कबसे कहने लगी ? " शालिनी जी के इस सवाल पर जैसे चाहत के पसीने छूट गए । वो कुछ कह पाती उससे पहले ही एक और सवाल उसके कानो में सुनाई दिया । 
    " और तुम हमेशा से ही राइट हैंड से खाती थी फिर आज ये लेफ्ट हैंड क्यों यूज कर रही हो ? टेल मि.. " अश्वत के इस सवाल पर चाहत की हवाइयां उड़ गई । 
    उसे एहसास हुआ कि वो क्या कर रही थी । उसे चाहत नही बल्कि वृंदा बन कर रहना था इस कहानी में जो एक गांव की लड़की है । जिसे पढ़ना लिखना कुछ भी नही आता । लेकिन अब क्या किया जा सकता था । उसने कुछ देर सोचा और वो कुछ कहने वाली थी कि तभी अचानक से उसका सिर चकराने लगा और कुछ ही पलों में वो बेहोश हो गई । 
     
    शालिनी जी ने जब उसे बेहोश होते देखा तो वो परेशान हो गई और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारने लगी लेकिन चाहत होश में नहीं आई । आखिर में उन्होंने अश्वत से कह कर उसे कमरे में ले जाने को कहा और खुद डॉक्टर को फोन करने लगी । 
    अश्वत ने उसे अपनी गोद में उठाया तो चाहत का सिर उसके सीने से आ लगा । उसने चाहत के मासूम से चेहरे को देखा और फिर उसे लेकर कमरे की तरफ बढ़ गया । 
     
    कमरे में आकर उसने उसे बेड पर लिटाया और हटने लगा कि तभी उसका बाल उसकी घड़ी में फंस गया । अश्वत ने उसके बालो को अपने घड़ी से आजाद किया और उसे एक नजर देख कर वहीं सामने सोफे पर बैठ गया और उसे स्कैन करने लगा । उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो चाहत को देख कर ही पता लगाना चाह रहा हो कि उसके मन में क्या चल रहा है । अश्वत के दिलो दिमाग में क्या चल रहा था ये बताना बहुत मुश्किल लग रहा था ।
     
    कुछ ही समय में डॉक्टर के साथ शालिनी जी कमरे में दाखिल हुई । डॉक्टर ने बेहोश बेड पर लेटी चाहत को चेक किया और शालिनी जी की तरफ मुड़ते हुए बोले । 
    " मैने पहले भी आपसे कहा था कि इनके दिमाग पर इस वक्त ज्यादा दबाव नही पड़ना चाहिए नही तो प्रोब्लम हो सकती है , इन्हे जितना हो सके आप धीरे धीरे चींजे याद दिलाए इस तरह से इनकी बस तबियत खराब होगी .. " 
     
    डॉक्टर की बात सुनकर शालिनी जी ने कहा । 
    " मैं इस बात का पूरा ध्यान रखूंगी डॉक्टर साहब .. आपका बहुत बहुत धन्यवाद .  " शालिनी जी ने कहा और डॉक्टर को बाहर छोड़ने चली गई । 
     
    यहां अश्वत ने एक बार फिर चाहत की तरफ देखा जो आज उसे बहुत बदली बदली लग रही थी । उसे याद था जब भी वो वृंदा के सामने होता था वो उससे डरती थी और उसके सामने अपनी नजरें झुका कर रखती थी लेकिन ये तो उसने डरती भी नही थी । और अभी उसके व्यवहार में भी बदलाव आए थे । जहां वो गांव की भाषा ज्यादा बोलती थी जब से वो नदी में मरने से बच कर आई है तब से वो शहर की भाषा बोलने लगी । उसने कुछ देर उसे देखा और फिर कमरे से बाहर चला गया । 
     
    यहां उसके जाने के बाद चाहत अचानक से उठ बैठी । उसने दरवाजे की तरफ देखा जो इस वक्त बंद था । उसने एक गहरी सांस ली और अपने ही मन में सोचा । 
    * आज तो बच गई तू चाहत लेकिन आगे क्या होगा ? आखिर कब तक इस वृंदा के कैरेक्टर में मुझे रहना होगा ? कब मैं वापस अपनी दुनिया में जा पाऊंगी ? कुछ समझ में नही आ रहा है .. *
     
     
     
     
     
     
    जारी है 
     
    आखिर क्या होने वाला है आगे ? 
    क्या करेगी अब चाहत ? 
    क्या वो कभी इस कहानी से निकल पाएगी या फिर हमेशा के लिए यहीं फंस जाएगी ? 
    क्या अश्वत जान पाएगी कि वो वृंदा नही बल्कि चाहत है ? 
     
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    Rebirth in novel
     
     
     

     
     
     
     
     
     

     
     
     
     
     
     
     

  • 6. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 6

    Words: 1176

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुबह का समय था जब चाहत वृंदा के रूप में अश्वत और शालिनी जी के साथ सुबह का नाश्ता कर रही थी । तीनो ने साथ में नाश्ता किया जिसके बाद अश्वत अपने ऑफिस के लिए निकलने लगा वो हॉल के करीब पहुंचा ही था कि तभी उसे चाहत की एक झलक दिखी । 
    चाहत ने इस वक्त हरे रंग की बनारसी साड़ी पहनी हुई थी जो वृंदा की थी । इस वक्त उसने ना मांग में सिंदूर भरा था और ना ही मंगलसूत्र , क्योंकि उसके लिए तो अश्वत उसका कुछ था ही नही । शालिनी जी ने भी उसे कुछ नही कहा क्योंकि वो वैसे भी उन दोनो का तलाक करवाने वाली थी । उस सिंपल से लुक में भी चाहत बहुत खूबसूरत लग रही थी जिसे देख कर अश्वत का उस पर से अपनी नजरें हटाना गवारा हो गया । उसने अपने मन में सोचा कि ये वृंदा कब से इतनी सुंदर हो गई । वो पहले भी इतनी ही सुंदर थी या फिर उसने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया। वो अभी उसे देखने में व्यस्त ही था कि तभी उसके कानो में चाहत की बात सुनाई दी जो वो शालिनी जी से कह रही थी।  
     
    " माजी मैं बाहर जाना चाहती हूं मुझे थोड़ा काम है .. " चाहत ने कहा तो शालिनी जी ने उसे कहा । 
     
    " ठीक है तुम जाओ इसमें मुझसे पूछने वाली कोई बात नही है , अश्वत तुम्हे छोड़ देगा तुम्हे जहां भी जाना हैं.. " शालिनी जी बात सुनकर अश्वत को गुस्सा आ गया । 
    उनके कहने का क्या मतलब था । क्या उसके पास करने को कोई काम नही था जो वो उसे अब घुमाने ले जाए और वो भी उस गंवार वृंदा को । अश्वत की आंखो से आग निकल रही थी । वो गुस्से में उनके पास गया लेकिन इससे पहले की वो कुछ कह पाता चाहत ने शालिनी जी से कहा । 
     
    " नही मैं खुद चली जाऊंगी , अश्वत को परेशान करने की जरूरत नही है वैसे भी उसे काम होगा .. " चाहत ने कहा तो अश्वत उसे देखने लगा । 
     
    ना जाने क्यों लेकिन उसे ये पसंद नही आया कि चाहत उसके साथ जाने को मना कर रही है जबकि वो खुद भी यही चाहता था । ना जाने क्यों लेकिन आज उसके मुंह से चाहत के लिए कुछ शब्द निकलें जो उसकी फिक्र में थे या फिर जलन में पता नही । 
     
    " तुम जाओगी कैसे ? जानती भी हो इस शहर के बारे में ? " 
    उसके इस सवाल को सुनकर चाहत ने उसे घूर कर देखा और अपने मन में सोचा । जब उसकी बीवी वृंदा थी तब तो उसने अपनी ये फिक्र नहीं दिखाई थी फिर आज क्यों । लेकिन चाहत समझ रही थी ये उसके लिए कोई फिक्र नहीं बल्कि एक ताना था क्योंकि वृंदा अनपढ़ थी लेकिन चाहत नही । जो उस वक्त वृंदा के शरीर में थी । वो अश्वत की तरफ मुड़ी तो उसने उसे देखा ।
    " जानती तो मैं तुम्हे भी नही थी .. फिर भी तुमसे शादी की न ? फिर ये शहर क्या ही चीज है .. तुम से तो कम ही बुरे होंगे इस शहर के लोग या फिर शायद तुम्हारे जैसे ही , वैसे भी मेरी इन सब में रहने की आदत हो चुकी है " चाहत ने कहा तो अश्वत की भौंहे सिकुड़ गई । 
     
    वो कहना क्या चाह रही थी क्या वो इतना ज्यादा बुरा था कि अब उसे इस शहर के लोग भी उससे कम बुरे लगते थे ? ये बात सुनकर ही अश्वत के सीने में जैसे आग सी लग गई । उसने चाहत की तरफ देखा और बोला । 
     
    " ठीक है फिर जाओ अकेले , और अगर कहीं खो जाओ तो और भी अच्छा होगा " कहते हुए वो गुस्से में घर से बाहर निकल गया । 
     
     अपनी कार के पास आकर वो रुका और कार के बोनट पर हांथ मारते हुए बोला । 
    " समझती क्या है खुद को ये वृंदा गंवार कहीं की , मुझे मना किया मुझे AD को जानती भी है कि मैं कौन हूं ? ये लड़की मुझे नजरंदाज कर रही है , और ऊपर से मेरी मां को अपने पार्टी में कर रही है , इसे तो मैं आज रात को बताता हूं कि अश्वत धनराज क्या चीज है " अश्वत ने खुद से गुस्से में कहा और फिर कार में बैठ कर गुस्से में वहां से चला गया । 
     
     
     
    यहां चाहत भी कुछ देर में घर से निकल गई । वो टैक्सी लेकर वहां पहुंची जहां उसका असली घर था । उसकी असली जिंदगी । लेकिन ये उसकी असली जिंदगी नही थी और ना ही वहां पर उसका घर था । वो टैक्सी से बाहर निकली और सामने खड़े उस खंडहर को देखा जो शायद कहानी से बाहर की दुनिया में उसका घर हुआ करता था । ये घर जल गया था।  उसकी आंखो में आंसू आ गए । उसे अपने परिवार की याद आ रही थी । उसे नही पता था कि उसके परिवार में इस वक्त क्या चल रहा  होगा जब उन्होंने उसकी मौत की खबर सुनी होगी लेकिन इस वक्त उसे अपने परिवार की बहुत याद आ रही थी । 
     
    भले ही उन्होंने उसे कभी प्यार ना किया हो लेकिन फिर भी , उसे अपना परिवार प्यारा था । आखिर वो मां बाप थे उसके कैसे ना करती वो उनसे प्यार ? 
     
    चाहत ने अपने आंसू पोछे और उस खंडहर के अंदर जाने लगी कि तभी किसी ने उसके कंधे पर हांथ रखा । चाहत पीछे की तरफ पलटी तो अपने सामने खड़े इंसान को देख कर उसकी आंखे हैरानी से फैल गई । वो आवक सी खड़ी होकर अपने सामने खड़े उस इंसान को ऐसे देखे जा रही थी जैसे उसने किसी भूत को देख लिया हो । 
    उसके सामने ही उसकी छोटी बहन वर्तिका खड़ी थी । उसे अभी अभी अपनी आंखो पर विश्वास नही हुआ लेकिन शायद यही सच था । वर्तिका के मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र था , काले रंग की जॉर्जेट की साड़ी में वो बहुत खूबसूरत लग रही थी लेकिन शायद चाहत से कम । वर्तिका को देख कर ही लग रहा कि शायद उसकी शादी हो चुकी है ।
    चाहत की आंखो में आंसू आने लगे क्योंकि  उसे लगा कि अंशुमान और वर्तिका की शादी हो चुकी है कि तभी उसके सामने खड़ी उस लड़की ने कहा जो इस वक्त उसे अपनी बहन वर्तिका लग रही थी । 
    " तुम यहां क्या कर रही हो वृंदा ? कुछ काम था यहां क्या ? " 
    उसकी बात को सुनकर चाहत ने उसे नासमझी में देखा और सोचा कि ये उसे वृंदा कह कर क्यों बुला रही थी। क्या वो उसे जानती नही थी या फिर वो उसकी बहन वर्तिका थी ही नहीं ? 
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    कौन थी ये वर्तिका जो उसे वृंदा कह कर बुला रही थी ना कि चाहत ? 
    क्या सच में वो उसकी बहन वर्तिका ही है ?
    क्या करेगी अब चाहत ? 
    क्या होगा चाहत का इस कहानी में ? 
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     

  • 7. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 7

    Words: 1763

    Estimated Reading Time: 11 min

    दोपहर का समय था जब खंडहर नुमा घर के सामने चाहत हैरानी से अपने सामने खड़ी वर्तिका को देखे जा रही थी । उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर वर्तिका इस कहानी में क्या कर रही थी लेकिन जब वर्तिका ने उसे चाहत की जगह वृंदा कह कर पुकारा तब जाकर उसे एहसास हुआ कि शायद वो इस कहानी की किरदार हो । मगर वो अब भी नही जानती थी कि उसके सामने खड़ी उसकी ये बहन जिसने उससे उसका सब कुछ छीन लिया , उसके मां बाप यहां तक की उसका प्यार भी वो इस कहानी में आखिर किस रूप में थी ।
     
    चाहत ने उसे समझी में देखा और फिर पूछा । 
    " आप कौन ? " 
    उसके इस तरह से सवाल पूछने पर वर्तिका ने अजीब तरह से उसे देखा और फिर मुस्कुराते हुए बोली । 
    " तुम मुझे इतनी जल्दी भूल गई ? मैं , अनिरा.. अश्वत की दोस्त ,अभी शायद तीन या चार दिन पहले ही तो मिलें थे हम .. लेकिन तब तुम कुछ अलग थी और आज कुछ अलग लग रही हो ,  " अनिरा ने उसे ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए कहा । 
    जाहिर सी बात थी । वृंदा हमेशा ही अश्वत के प्यार को पाने की कोशिश करती जिसके लिए को हमेशा सोलह शृंगार करती थी लेकिन अश्वत ने कभी एक नजर उसे देखना तक जरूरी नहीं समझा । मगर इस वक्त जो यहां थी वो वृंदा नही बल्कि चाहत थी । हां माना कि चाहत ने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सहा , लेकिन अब वो उन सब चीजों से सीख कर आगे बढ़ रही थी और अब वो किसी को भी अपनी खुशियों के बीच नही आने देगी भले ही वो कोई भी हो । 
     
    जब चाहत ने सुना कि उसके सामने खड़ी लड़की जो उसकी बहन वर्तिका जैसे थी वो खुद को अनिरा बता रही है तब उसे एहसास हुआ कि ये इस कहानी की हीरोइन है या फिर यूं कहे अश्वत की जिंदगी की विलेन । हां बिलकुल इसी की वजह से तो अश्वत आखिर में मारा जाता है । अगर अनिरा उसकी जिंदगी में ना हो तो शायद अश्वत को बचाया जा सकता था लेकिन उसे इन सब चीजों से क्या ही फर्क पड़ता था कौन सा ये उसकी खुद की कहानी थी । 
     
    " तुम यहां क्या कर रही हो ? " चाहत ने उसके सवालों का जवाब देने के बजाय खुद ही सवाल किया । वो जानना चाहती थी कि आखिर अनिरा इस जगह पर क्या कर रही थी ? 
    " ओह तुम्हे नही पता होगा ये पहले मेरा घर था , जहां मेरे मम्मी पापा और मैं रहते थे , लेकिन एक हादसे में उनकी डेथ हो गई पता नही मैं कैसे बच गई ? बस उनकी याद आती है तो यहीं आ जाती हूं .. " अनिरा को बात सुनकर चाहत ने अपना सिर हां में हिलाया । 
    उनके कुछ नही कहा और वहां से जाने लगी कि तभी अनिरा ने उसे रोकते हुए कहा । 
    " अरे तुम अकेले कहां जाओगी आओ मैं तुम्हे छोड़ देती हूं .. " अनिरा ने अपनी कार को तरफ इशारा करते हुए कहा । 
     
    चाहत ने उसकी वो महंगी कार देखी और फिर अपना सिर ना में हिलाते हुए बोली । 
    " नही इसकी कोई जरूरत नहीं है मैं खुद से जा सकती हूं .. " चाहत ने कहा और वहां से टैक्सी लेकर चली गई । अनिरा उसे जाते हुए देखती रही फिर वो भी कार में बैठ कर वहां से चली गई । 
     
     
     
     
    यहां चाहत टैक्सी में बैठी हुई खिड़की से बाहर देखते हुए बस यही बात सोच रही थी कि आखरी अनिरा को उसकी बहन वर्तिका का चेहरा ही क्यों मिला । वो किसी और की तरह भी तो दिख सकती थी फिर वर्तिका ही क्यों ? कहां वो सब कुछ छोड़ कर मरने जा रही थी और कहां उन बाबा ने चाहत को इस कहानी में फंसा कर रख दिया था । चाहत यही सोच रही थी कि अगर वर्तिका इस कहानी में है तो क्या , अंशुमान भी इस कहानी में होगा ? 
    उसे अपने किसी भी सवाल के जवाब मिल पाते उससे पहले ही घर आ गया । वो टैक्सी के पैसे देकर उतरी और फिर वहां से अंदर चली गई । घर के अंदर कदम रखने से पहले उसकी नजर वहीं बगीचे पर गई जहां पर बहुत ही खूबसूरत पेड़ पौधे लगे हुए थे । चाहत ने अपने कदम उस तरफ बढ़ा दिए । 
     
    वो वहां जाकर उस पेड़ की छांव में बैठ गई और सामने फूलो को देख कर उसकी सुंदरता अपनी आंखो में बसाने लगी । जब वो किसी तरह की मुसीबत में होती थी या फिर उसे कोई परेशानी होती थी वो बस इसी तरह से पेड़ पौधों के बीच आकर बैठ जाया करती जिससे उसके मन को बहुत शांति मिलती और साथ ही उसे क्या करना चाहिए उसकी राह । 

    चाहत अपने बारे में सोच रही थी । पिछले तीन दिनों में उसके साथ क्या से क्या हो गया था इसके बारे में कोई सोच भी नही सकता था। पहले तो सिर्फ उसके मां बाप और दोस्त ही नजरंदाज करते थे और फिर उसके प्यार में भी उसे नजरंदाज करके उसकी ही छोटी बहन से शादी करने के लिए हां कह दिया । इतना भी काफी नही था जो उसके मां बाप ने उसके पैदा होने पर ही सवाल कर दिया । चाहत को उस समय बहुत दुख हुआ । आखिर कौन सी ऐसी औलाद होगी जो ये चाहेगी कि उसके मां बाप उसके पैदा होने पर भी गम बनाए । भले ही चाहत वर्तिका जैसे खास नही थी और ना ही जल्दी अपनी फीलिंग किसी के साथ बता सकती थी लेकिन फिर भी उसे भी प्यार पाने का हक था । 

     

    चाहत सोच रही थी कि आखिर क्यों उसे वृंदा के रूप में ही इस कहानी में लाया गया । वो कुछ और भी बन सकती थी । इस कहानी की हिरोइन अनिरा भी बन सकती थी लेकिन आखिर क्यों वो सिर्फ वृंदा बन कर आई कुछ और नही। 

    जब चाहत इस कहानी को पढ़ रही थी तब उसे एहसास हुआ था कि उसकी जिंदगी वृंदा की जिंदगी से कुछ कुछ मिलती है । वृंदा की जिंदगी भी बहुत अच्छी नहीं थी । जब वो अपने मायके में थी तब उसके मामा और मामी ने उसे ज्यादा पढ़ने नही दिया और फिर पैसों के लिए उसके शादी बिना सोचे समझे बस अश्वत से करवा दी । बिना ये जाने कि अश्वत उसके लिए सही लड़का है भी या नही । उन्होंने बस किसी तरह से उससे बस अपना पीछा छुड़ा लिया । चाहत ने जब वृंदा के बारे में जाना तब उसे एहसास हुआ कि वृंदा भी उसके जैसी ही जिंदगी जी रही थी जिसमे किसी को भी उसकी कोई फिक्र नहीं थी । ना ही उसके परिवार को और ना ही उसके प्यार को । ऐसा ही कुछ तो चाहत के साथ भी था न । ना ही उसे उसके मां बाप ने प्यार दिया और ना ही अंशुमान ने । जो था बस नजर का धोखा था।  

     

    चाहत यही सोच रही थी कि जब वो इस कहानी में आ ही गई है तो उसे क्या करना चाहिए । क्या उसे अश्वत को बचाना चाहिए उसके ताने सहते हुए या फिर उसे अपनी जिंदगी बनानी चाहिए । चाहत ने इस वक्त अश्वत को बचाने के बारे में सोचा और उठ कर कमरे में आ गई । 

     
     
     
     
     
     
    रात हो गई थी और चाहत इस वक्त अपने कमरे में खिड़की से बाहर उस चांद के देख रही थी जो उसके हर गम का साथी था । ये वही चांद था जो हमेशा उसके दर्द की समझता था । एक वही तो था जिससे वो अपनी दुख और खुशी को बताया किया करती थी । चाहत उस चांद को देख कर कहने लगी ।
     
    " आखिर क्यों मेरे साथ ये सब हो रहा है ,पहले मेरी अपनी जिंदगी में मुझे कुछ नही समझा गया वहां मेरे अपने ही मेरे दुश्मन बनना चाह रहे थे और अब यहां भी , मेरी ही बहन वर्तिका यहां अनिरा बन कर आई है .. पता नही क्या हो रहा है मेरी जिंदगी में .. "  चाहत ने खुद से ही कहा और अपनी आंखे बंद कर ली । उसकी आंखो से दो बूंद आंसू आ गिरे । 
    वो अभी यूं ही खिड़की के पास खड़ी थी कि तभी कमरे का दरवाजा खुला और कोई अंदर आया । चाहत ने जल्दी से अपने आंसू पोंछ लिए और पीछे मुड़ने ही वाली थी कि तभी कोई आया और उसे सीधे दीवाल से लगा दिया । इस वक्त उसका चेहरा दीवाल की तरफ था और उस इंसान का हांथ उसके सिर पर था जिस वजह से वो अपना सिर घूमा कर उस इंसान को नही देख पा रही थी । चाहत ने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन उससे पहले ही उस इंसान ने उसके मुंह को बंद का दिया। 
     
    वो अपने आप को छुड़ाने की खूब कोशिश कर रही थी लेकिन उस इंसान की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो छूट ही नही पा रही थी । आखिर में जब उसने कोशिश करनी बंद कर दी तब जाकर उसके कानो में उस इंसान की आवाज सुनाई दी जो कि बहुत ही सर्द और खौफनाक थी । 
     
    " जिस तरह से अभी तुम मुझसे छूटने की कोशिश में हारी हो ना , तुम वैसे ही एक हारी हुई इंसान हो , इसलिए मुझे चैलेंज करने की कोशिश भी मत करना , और ये जो तुम करने की कोशिश कर रही हो ना सब समझ आ रहा है मुझे .. इसलिए अपनी हद में रहो और एक कोने में पड़ी रहो , गंवार कहीं की .. " 
    उस आदमी की वो सर्द आवाज सुनकर जैसे चाहत की हड्डी तक कंपकपा गई । उसके शरीर में जैसे जान ही ना बची हो कि वो अपने पीछे मुड़ कर देख सके कि उसके पास कौन खड़ा था । जो उसे इस तरह से धमका रहा था । 
     
     
     
    आखिर कौन था वो आदमी जो इस वक्त चाहत के पीछे खड़ा था ?
    क्या करेगी अब चाहत ? 
    क्या चाहत इस कहानी में ही फंसी रह जायेगी या फिर कभी बाहर भी जा पाएगी ? 
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     
    ( मित्रो आप भी ये कहानी शेयर कीजिए आपके दोस्तो में ताकि वो भी ये कहानी पढ़ पाएं , मैने ये कहानी इसलिए लिखी है क्योंकि बहुत से लोग हैं जिन्हें अपनी जिंदगी में हमेशा एक साइड कैरेक्टर वाली फीलिंग आती है ,तो बस ये कहानी उन्ही के और हमारे जैसे लोगो के लिए हैं । तो शेयर और कमेंट करना ना भूले और बताएं कि आज का एपिसोड कैसा लगा ? ) 
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 8. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 8

    Words: 1401

    Estimated Reading Time: 9 min

    चाहत अब भी डरी सहमी से दीवाल से लगी खड़ी थी । वो आदमी उसे छोड़ कर पीछे हट चुका था जिसके बाद चाहत ने डरते हुए अपना सिर घुमाया और उस इंसान को देखा जो उसे धमकी दे रहा था । उसने अपनी नजरे घुमा कर देखा तो सामने ही अश्वत खड़ा अपने हाथ बांधे उसे ही घूर रहा था । उसे अपनी तरफ उन लाल आंखो से घूरता देख कर चाहत की सांसे जैसे रुक गई । अश्वत को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी उन गुस्से भरी आंखों से ही चाहत को मार डालेगा । चाहत ने किसी तरह खुद को शांत किया और फिर उसकी तरफ देख कर बोली । 
    " तुम चाहते क्या हो ? अब तो तो मुझे तुमसे कोई मतलब भी नही है फिर भी तुम्हे मुझसे प्रोब्लम है ? "ये सब कहते हुए उसी जबान लड़खड़ा रही थी क्योंकि अश्वत अब भी उसे घूर रहा था ।
    उसके सवाल को सुनकर अश्वत उसके करीब बढ़ा तो वो डर कर पीछे की तरफ हो गई और दीवाल से चिपक गई । 
     
    " देखो तुम्हे कुछ भी बोलना है तो दूर रह कर बोलो ऐसे मेरे पास आने की जरूरत नहीं है .. वरना " चाहत ने डरते हुए कहा । 
     
    उसकी बात की सुनकर अश्वत की भौंहें सिकुड़ गई। उसने चाहत के करीब जाकर गुस्से में उसके दोनो तरफ हाथ रखा तो वो और डर गई । वो उसके चेहरे के करीब झुका और उसे देखते हुए बोला । 
    " वरना ? क्या कर लोगी तुम ? फिर से रोने लगोगी ? " 
     
    " अब तुम्हे क्या चाहिए ? पहले तुम ही कहते थे कि मैं तुमसे दूर रहूं और अब जब दूर रह रहीं हूं तब भी तुम्हे प्रोब्लम है .. " चाहत ने उसकी तरफ देखा और बोली। 
     
    अश्वत उसकी इस बात पर उससे और करीब हुआ जिससे वो सीधे दीवाल में ही चिपकी जा रही थी । उसे समझ नही आ रहा था आखिर इस बंदे को हुआ क्या है । अचानक से उसके सिर पर कौन सा भूत चढ़ गया था जो वो उसके पीछे ही पर गया था । वो जानती थी कि अश्वत को वृंदा से अपना पीछा छुड़ाना था और अब जब वो ऐसा कर रही थी तो अब भी उसे प्रोब्लम थी । आखिर वो चाहता क्या था यही को समझ नही पा रही थी । 
     
    अश्वत ने कुछ पल उसके चेहरे को देखा जिस पर डर साफ दिख रहा था और फिर अचानक ही वो दूर हो गया । अश्वत वहां से सीधे बाहर चला गया । चाहत ने अपनी आंखे खोली तो पाया कि उसके सामने कोई नही था । उसने गुस्से में बेड पर रखा तकिया उठाया और नीचे जमीन पर पटक दिया । 
     
    " आखिर ये आदमी चाहता क्या है ? पहले इसकी मर्जी का नही हुआ तो बेचारी वृंदा को परेशान करता था और अब जब मैं वृंदा को उससे दूर करने का प्लान बना रही हूं तब भी उसे प्रोब्लम है , मुझे तो लगता है ये इंसान ही गधा है , नही खच्चर है .. खच्चर अश्वत.. " चाहत ने अपने आप से ही गुस्से में कहा और फिर बेड पर बैठ गई । 
     
     
     
     
    अगली सुबह चाहत हॉल में बैठी हुई बोर हो रही थी क्योंकि उसके पास करने को कुछ था नही । चाहत ने कुछ पल टीवी देखी जिस पर कुछ भी अच्छा नहीं आ रहा था । उसने टीवी बंद की तभी उसके बगल में शालिनी जी आकर बैठती हुई बोली । 
    " क्या हुआ बेटा , सब ठीक है ना ? तुम्हारा मुंह क्यों बना हुआ है ? " 
     
    " मेरे पास कुछ करने को ही नही है .. इसलिए मैं बोर हो रही हूं मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ ही नही आ रहा है .. " चाहत ने रिमोट की बगल में रखते हुए कहा । 
     
    " वृंदा बेटा एक बात पूछूं ? " शालिनी जी ने उसकी तरफ देख कर पूछा तो उसने अपना सिर हां में हिला दिया । 
     
    " तुम अचानक से इतना कैसे बदल गई ? मेरा मतलब .. जब से वो नदी वाला हादसा हुआ है तुम बहुत बदल गई हो , पहले तुम इस तरह से बातें भी नही करती थी और अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल करने की तो दूर की बात है , तुम हमेशा गांव की भाषा में ही बाते करती थी .. फिर ये सब ? "
     
    शालिनी जी की बात सुनकर चाहत के चेहरे का रंग उड़ गया । उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो । चाहत को समझ ही नहीं आया कि अब वो कैसे रिएक्ट करे । कही वो फंस तो नही जाएगी इस चक्कर में । अब वो कैसे बताए कि वो उनकी बहू वृंदा तो है ही नही बल्कि वो तो चाहत है जो इस कहानी की दुनिया से नही बल्कि बाहर की दुनिया से आ गई थी । 
    चाहत ने अपनी नजरें घुमाते हुए उधर उधर से कुछ सोचा और फिर अचानक से ही उसका ध्यान न्यूज पेपर पर छपे उस आर्टिकल पर गया जहां इंग्लिश सिखाया जाता था।  अचानक ही उसकी आंखो में चमक आ गई और उसने उनकी तरफ देख कर कहा । 
    " वो माजी मैं न अंग्रेजी भाषा को सीखने वाला कोर्स कर रही थी , मैंने आपको बताया नही लेकिन मैं अश्वत को सरप्राईज करना चाहती थी लेकिन उससे पहले ही ये सब हो गया .. " 
    चाहत ने कहा तो शालिनी जी मुस्कुरा उठी । 
    " बहुत पसंद करती हो न उसे ? " शालिनी जी ने उसके सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो उसे अजीब तरह से मुस्कुराते हुए अपना सिर हां में हिला दिया । 
    क्या ही करती बेचारी ? एक तो इस कहानी में आकर टपक गई और अब इतना झूठ बोल रही थी जितना उसने अपनी पूरी जिंदगी में भी नही बोला था । क्या ही करती अपना सिर हां में हिला दिया । 
     
     " सच कहूं तो मैं भी नही चाहती की तुम  दोनो अलग हो लेकिन जिस तरह से अश्वत तुम  से बर्ताव करता है मैं उसे तुम्हारे साथ नही रहने दे सकती , तुम्हारे दादा जी से मैने वादा किया था कि तुम्हारा हमेशा ध्यान रखूंगी चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न आ जाए , अब जब तुम्हे मेरा बेटा ही परेशान कर रहा है तो तुम्हे उससे बचाना मेरी जिम्मेदारी है ... तुम चिंता मत कर मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं ..." शालिनी जी ने उसे देखा और फिर बोली ।
     
    उनकी इस तरह से फिक्र भरी बातें सुनकर चाहत की आंखो में आंसू आ गए । इस तरह से उसकी फिक्र तो खुद उसके मां बाप ने नही की थी जितना प्यार वो एक ही दिन में उससे जता रहीं थी । चाहत ने अपनी नम आंखों से मुस्कुराते हुए उन्हें देखा तो उन्होंने कहा । 
    " क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो मैने कुछ गलत बोल दिया क्या ? " 
    " नही .. " चाहत ने अपनी नाक पोछते हुए कहा । 
    उसने कुछ पल शालिनी जी को देखा और फिर बोल पड़ी ।
     
    " मैं कुछ करना चाहती हूं .. "
    उसकी बात सुनकर शालिनी जी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा । 
    " क्या ? " उन्होंने हैरानी से उसकी तरफ देखा और फिर कहा । 
     
    " बेकरी शॉप खोलना चाहती हूं , मैं अपने पैरो पर खड़ी होना चाहती हूं .... " चाहत ने अपने बनाए सपने को शालिनी जी को बताया तो वो हैरानी से उसे देखने लगी । 
    चाहत उन्हे अपनी डरी सहमी आंखों से देख रही थी और सोच रही थी कि क्या वो उसे एक बेकरी शॉप खोलने देंगी या फिर उसके ही मां पापा की तरह उसे मना कर देंगी । चाहत ने एक बार अपने मां पापा से बात की थी कि वो उसे बेकरी खोलने दें लेकिन उन्होंने मना कर दिया था जिसके चलते वो अपना सपना ना पूरा कर पाई लेकिन अबकी बार शायद उसके पास मौका था । बस उस शालिनी जी की इजाजत चाहिए थी जिसके लिए वो अभी डरी हुई थी । 
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या चल रहा है अश्वत के मन में जो वो चाहत के साथ इस तरह से बर्ताव कर रहा था ? 
    आखिर क्या कहेंगी अब शालिनी जी चाहत से ? 
    क्या शालिनी जी उसे बेकरी खोलने की इजाजत दे देंगी या एक बार फिर चाहत का सपना अधूरा रह जाएगा ? 
     
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  • 9. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 9

    Words: 1872

    Estimated Reading Time: 12 min

    सुबह का समय था जब चाहत शालिनी जी को डर से देख रही थी । उसे बस यही डर था कि कहीं वो उसे बेकरी शुरू करने से मना ना कर दें । इसके मां बाप ने भी उसका साथ नही दिया जिसकी वजह से वो आगे नहीं बढ़ पाई और अकेली रह गई । वो अब भी उन्हें डर से देख रही थी कि तभी वो हल्के से मुस्कुराते हुए बोलीं । 
    " बिल्कुल , तुम जो करना चाहो कर सकती हो और मेरी कोई भी मदद चाहिए हो तो मुझे बता देना हम्म्म .. " 
    शालिनी जी की बात सुनकर चाहत के होंठो पर प्यारी सी मुस्कान आ गई । वो उनके गले लग गई तो वो उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी । 
    " भगवान करे तुम बहुत आगे जाओ .. " 
    चाहत की आंखो में आंसू आ गए । उसे एहसास हुआ कि शालिनी जी बहुत अच्छी थीं । अगर उसके मां पापा भी ऐसे ही होते तो शायद आज वो कुछ अच्छा कर रही होती ना कि इस कहानी में होती । उसने अपने आंसू पोछे और मन में ही सोचा कि  अब वो अपनी जिंदगी को किसी और के हाथों बर्बाद नही होने देगी । वो अपनी जिंदगी को बना कर रहेगी फिर चाहे कुछ भी हो जाए । उसकी आंखो में एक जुनून दिख रहा था कुछ कर दिखाने का । 
     
     
     
     
     
     
     
     
    रात का समय था जब चाहत अपनी बेकरी शॉप खोलने के लिए लिस्ट बना रही थी कि उसे किन किन चीजों की जरूरत पड़ेगी कि तभी कोई उसके पीछे से बोला ।
    " ये सब क्या है ? " चाहत ने डर कर अपनी नजरें घुमाई तो वहां अश्वत खड़ा उसकी डायरी में झांक रहा था । 
     
    " तुम्हे आखिर प्रोब्लम क्या है ? जब देखो तुम मेरे पीछे पड़े रहते हो ,, अब क्या हर काम तुमसे पूछ कर करूं मैं ? " चाहत ने गुस्से में खड़े होते हुए कहा । 
     
    चाहत गुस्से में उसे घूर रही थी , इस वक्त उसने वो डायरी अपने सीने से लगा ली थी । अश्वत उसकी ये बेबाकी देख कर हैरान था । वो आवाक सा अपने सामने खड़ी उस लड़की को देखे जा रहा था जो अभी कुछ दिन पहले ही एक मासूम सी बकरी की तरह थी और आज उसे सिंघ मारने वाली गाय की तरह बर्ताव कर रही थी । अश्वत की भौंहें सिकुड़ गई वो कुछ कह पाता उससे पहले ही शालिनी जी उस तरफ आती हुई बोली । 
    " क्यों लड़ रहे हो अब तुम दोनो? क्या हुआ ? "
    " मां देखिए ना ये अश्वत मुझे परेशान कर रहा है .. " चाहत ने शालिनी जी के पीछे छिपते हुए कहा तो अश्वत ने उसे गुस्से में घूर कर देखा और बोला । 
     
    " मैं  तुम्हे परेशान नही कर रहा था बल्कि देख रहा था कि तुम क्या कर रही हो ? और तुम्हे तो पढ़ाई करने नही आती थी ना फिर ये इंग्लिश में तुम  लिख कैसे रही हो ? मां मैं सच कह रहा हूं ये लोग झूठे हैं .. "   अश्वत की बात सुनकर शालिनी जी आगे आई । 
     
    " मैने ही उसे पढ़ाई करने के लिए कहा और अब उसे सब कुछ आता है .. तुमने ही उसे उसके अनपढ़ होने की वजह से छोड़ा था न .. तो मैं उसे आत्मनिर्भर बना रही हूं .. और तुम कल वृंदा के साथ जाकर एक अच्छी शॉप देख आना , उसने कुछ लिस्ट निकाली है दुकानों की लेकिन तुम भी साथ चले जाना .. मैं चली जाती लेकिन मुझे इन सबके बारे में कुछ समझ नहीं आता .. " 
    जहां अश्वत चाहत की पढ़ाई के बारे में सुनकर हैरान था वहीं शालिनी जी आखरी बात सुनकर उसने उनसे पूछा । 
    " शॉप क्यों ? उसका क्या करना है इसे ? अब चूल्हा चौका करने वाली बाहर काम करेगी ? कोई जरूरत नहीं है तुम्हे ये सब करने की .. मेरी भी कोई इज्जत है इस शहर में उसे क्यों खत्म कर रही हो ? " अश्वत ने गुस्से में कहा शालिनी जी ने कुछ कहना चाहा लेकिन चाहत ने उनसे पहले ही कहा । 
     
    " अब तुम तो मुझे डाइवोर्स दे रहे हो तो उसके बाद मैं कहां जाऊंगी , इसलिए बेटर यही है कि मैं खुद ही अपने लिए कुछ कर लूं ,, " 
    चाहत की बात सुनकर अश्वत ना जाने कैसे लेकिन शांत हो गया । उसने उसे कुछ भी नही कहा और चुप चाप अपने कमरे में चला गया । 
     
    उसके जाने के बाद शालिनी जी पीछे मुड़ी और चाहत से बोली। 
    " तुम चिंता मत करो बेटा मैं हूं .. मैं तुम्हारी मदद करूंगी .. मैं तो इन सबके बारे में नही जानती लेकिन कोई है जिसे इन सब चीजों के बारे में पता है .. " 
    " कौन ? " उनकी बात पर चाहत ने उन्हें देख कर पूछा । 
    उसके सवाल पर शालिनी जी ने अपना फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दी । कुछ ही रिंग जाने के बाद कॉल रिसीव हुआ तो किसी लड़के की आवाज सुनाई दी । 
    " हेलो आंटी आपने मुझे बड़े दिनों बाद याद किया ? आप मुझे बताइए आप मुझे भूल जाती हैं न हमेंशा? " 
    " नही बेटा तुम्हे कैसे भूल सकती हूं मैं , वैसे तुम वापस कब आ रहे हो ? कितने दिन हो गए तुम्हे यहां आए .." शालिनी जी ने कहा तो उस तरफ से किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी । 
    " क्या हुआ तुम हंस क्यों रहे हो ? " उसे हंसते हुए सुनकर शालिनी जी ने पूछा।  
    " दरवाजा खोलिए आप... " उस लड़के ने कहा और कॉल कट कर दिया । 
     
    शालिनी जी ने नासमझी में अपने फोन को देखा और फिर अचानक ही वो दरवाजे की तरफ गई । चाहत भी उनके ही पीछे चली गई ये जानने की आखिर हुआ क्या है ? और वो अचानक ही दरवाजे की तरफ क्यों गई और वो भी इतनी रात को।  
     
    शालिनी जी ने घर का दरवाजा खोला तो उनके सामने ही एक अश्वत की हमउम्र का लड़का खड़ा था।  शालिनी जी को देखते हुए वो हंसते हुए उनके गले लग गया तो वो भी मुस्कुरा दी । वहीं चाहत ये सब नजारा हैरानी से देखे जा रही थी । उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर उसके सामने खड़ा ये इंसान था कौन और ना ही इसके बारे में कहानी में कोई जिक्र था । 
     
    " अच्छा हुआ तुम आ गए अक्ष,, तुम्हे पता है मैं तुम्हे कितने दिनों से याद कर रही थी , अब तुम कैसे हो सब ठीक है ना ? " शालिनी जी ने उससे अलग होकर कहा ।
     
    " हां बिलकुल मुझे क्या ही होगा ? मैं एक दम फिट एंड फाइन हूं मेरी ब्यूटीफुल लेडी आप बताओ , आप तो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो गई हो .. " अक्ष ने शालिनी जी के गाल खींचते हुए कहा तो उन्होंने उसके कंधे पर अपना हाथ मारा । 
    अक्ष मुस्कुराते हुए चाहत की तरफ पलटा तो वो हैरानी से उसे देखने लगी । चाहत समझना चाह रही थी कि आखिर अक्ष उसे क्यों देख रहा था। चाहत इससे पहले कि कुछ समझ पाती अक्ष सीधे आकर उसके पैरो में गिर गया जिससे डर कर चाहत चार कदम पीछे हो गई । 
    उसके इस अचानक से किए गए मूवी से चाहत हैरानी से उसे देखे जा रही थी । उसे समझ नही आया कि आखिर अक्ष कर क्या रहा था । उसने हैरानी अक्ष को देखा और बोली । 
    " ये तुम क्या कर रहे हो ? " 
    " आपका आशीर्वाद ले रहे हैं भौजाई .. आपको पता है मैने आपको कितना याद किया .. जब मैं वहां गांव में था तब मुझे एक ही चीज याद आ रही थी कि अगर आप वहां होती तो आपको भी मैं वहां घुमा पाता लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था .. अबकी बार मैं अगर वहां गया तो आपको भी लेकर जाऊंगा ..  " 
     
    उसे इस तरह से देख कर चाहत ने हैरानी से शालिनी को तरफ देखा तो उन्होंने कहा । 
     
    " ये तुम्हारा देवर है , अक्ष ,, अश्वत और अक्ष दोनो बचपन के दोस्त हैं .. " शालिनी जी की बात सुनकर चाहत ने अपना सिर हां में हिलाया ।
     
    तक तक अक्ष भी खड़ा हो गया था । वो लोग अंदर आए तो अक्ष ने शालिनी जी को तरफ देखते हुए पूछा । 
    " आप भाभी को मेरे बारे में ऐसे क्यों बता रही हैं जैसा वो सब कुछ भूल गई हो ? " 
     
    " हां , उसे कुछ याद नहीं है पहले का .. " शालिनी जी ने कहा तो अक्ष हैरान रह गया । शालिनी जी ने उसे कहा कि वो उसे बाद में सब कुछ बताएंगी अभी वो फ्रेश होकर आ जाए तो वो डिनर कर लें ।
    " नही आंटी मैं खाना खा कर आया हूं मैं आराम करने जा रहा हूं अब कल सुबह ही उठूंगा .. " कहते हुए उसने उन दोनो को बाय कहा और फिर वहां से चला गया । 
     
    चाहत ने शालिनी जी को देखा तो उन्होंने कहा । 
    " तुम भी आराम कर लो अब कल सुबह ही बात होगी जो होगी .. " 
    उनकी इस बात पर चाहत ने अपना सिर हां में हिला दिया और अपने कमरे में चली गई । 
     
     
     
    उसने अपने कमरे में कदम रखा ही था कि तभी उसने देखा कि अश्वत उसके सामने बैठा हुआ था । उसे अपने कमरे में देख वो हैरान रह गई और सोचने लगी कि आखिर अश्वत उसके कमरे में क्या कर रहा था । क्या वो फिर से कल की तरह उसे धमकाने आया था ।अगर ऐसा था तो आज वो उससे डरने वाली नही है । यही सब सोचते हुए वो उसके सामने जाकर खड़ी हो गई और बोली । 
     
    " अब तुम यहां पर क्या कर रहे हो ? " 
     
    उसके इस सवाल पर अश्वत ने अपना सिर उठा कर उसे देखा और फिर उसके करीब आते हुए बोला । 
    " मैं जान सकता हूं कि कल तुम कहां गई थी ? " अश्वत के सवाल को सुनकर चाहत की आंखे हैरानी से फैल गई । 
    उसे समझ नही आया कि आखिर वो अश्वत के इस सवाल का क्या जवाब दे । वो कल जहां गई थी वहां के बारे में अश्वत को कैसे पता चला । और जहां वो थी वहां तो सिर्फ वर्तिका यानी कि अनिरा आई तो क्या इसका मतलब अनिरा ने अश्वत को कुछ बताया था । 
     
    चाहत यही सब सोच रही थी और अब उसे क्या करना चाहिए इसका हल ढूंढ रही थी । सच तो वो उससे बता नहीं सकती थी इसलिए उसने झूठ बोलना ही सही समझा लेकिन वो क्या कहे यही उसे समझ नही आ रहा था । 
    वहीं अश्वत चाहत के चेहरे के बनते बिगड़ते भावो को देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर अब वो उसे क्या जवाब देने वाली है । अभी कुछ ही समय हुआ होगा कि तभी कुछ ऐसा हुआ जिसे देख कर अश्वत हैरान रह गया । उसे विश्वास नहीं हुआ कि अभी अभी चाहत ने उसके साथ क्या किया था । 
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या किया अब चाहत अश्वत के इस सवाल से बचने के लिए ? 
    क्या हुआ को अश्वत इतना हैरान रह गया?
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 10. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 10

    Words: 1921

    Estimated Reading Time: 12 min

    रात का समय था जब चाहत हैरानी से अश्वत को देखे जा रही थी और सोच रही थी कि अब उसे अश्वत के सवाल का क्या जवाब देना चाहिए । अश्वत ने जब उसे कोई भी जवाब नही देते देखा तो वो बेड पर लेटते हुए बोला । 
    " ठीक है फिर जैसी तुम्हारी मर्जी , मैं पूरी रात भी इंतजार कर सकता हूं तुम्हारे जवाब का .. " 
    उसके इस तरह से बेड पर लेट जाने पर चाहत घबरा गई । ऐसे कैसे वो उसके कमरे में रुक कर उसके जवाब का इंतजार कर सकता था । अगर उसे वो कल सुबह तक का समय देता तो शायद वो कुछ सोच कर बता देती लेकिन अब क्या करें । वो अभी यही सब सोच रही थी कि तभी उसके दिमाग में कुछ आया वो कुछ कहने के लिए आगे बढ़ने ही लगी कि तभी साड़ी में उसका पैर फंसा और वो सीधे अश्वत के बगल में मुंह के बल जा गिरी । 
     
    उसे इस तरह अपने बगल में गिरता देख कर अश्वत ने अपना हाथ उसके सिर के पास रखा था । चाहत ने अपना सिर उठा कर देखा तो उसकी नजरें अश्वत की आंखो से जा मिली । अश्वत खोए हुए उसे देखे जा रहा था उसे अपनी तरफ ऐसे देखता पाकर चाहत के दिल को धड़कने तेज हो गई । वहीं चाहत के दिमाग के दिमाग में ना जाने क्या हुआ जो उसने अपना चेहरा अश्वत के करीब कर लिया और अचानक ही उसके गालों पर अपने होंठ रख दिए । 
     
    अश्वत हैरान रह गया वहीं चाहत जल्दी से पीछे हटी और बेड से उठने लगी लेकिन उससे पहले ही अश्वत ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया जिससे वो संभल नहीं पाई एक बार फिर बेड पर जा गिरी । उसने अपनी आंखे खोल कर देखा तो अश्वत उसके ऊपर आ चुका था जिसे देख कर वो घबरा गई । वो उसके सीने पर हाथ रख अपने ऊपर से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अश्वत ने उसके दोनो हाथो को पकड़ उसके सिर के ऊपर बेड में धंसा दिया । 
     
    चाहत अपनी आंखे बड़ी किए अश्वत को घूरे जा रही थी वहीं अश्वत भी अपनी गहरी नजरो से उसे देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि अभी अभी जो उसने किया वो क्या था । 
     
    " ये क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे .. " चाहत ने उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा ।
    " तुमने अभी क्या किया उसके बारे में मुझे बताओ .. क्या था वो ? क्या तुम मुझे सेड्यूस करने की कोशिश कर रही हों? " अश्वत ने उसकी तरफ देख कर पूछा तो चाहत ने अपना मुंह फेर लिया और बोली । 
     
    " तुम्हे कौन सेड्यूस करना चाहता है , और वैसे भी मैने जो किया वो तुम्हारा ध्यान हटाने के लिए किया .. " 
    " और वो क्यों ? " 
    "ऑफकोर्स तुम मुझसे सवाल ना पूछो इसलिए .. " चाहत ने कहा तो अश्वत उसे देखने लगा और समझने की कोशिश करने लगा कि आखिर ये लड़की है क्या चीज । मतलब उसका ध्यान सवाल पर से हटाने के लिए वो उसे किस तक कर सकती थी । 
    अभी अश्वत यहीं सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे का दरवाजा खुला और शालिनी जी अंदर आई । 
    " वृंदा बेटा मैं कह रही .. " शालिनी जी कहते हुए रुकी जब उनकी नजरें सामने चाहत और अश्वत के हालात पर गई तो उनकी आंखें हैरानी से फैल गई । 
     
    वहीं शालिनी जी को देख कर अश्वत और चाहत दोनो ही हैरान थे । वो दोनो जल्दी से उठे लेकिन तब तक शालिनी जी कमरे से जा चुकी थी । 
    " मम्मी ने कुछ गलत ना समझ लिया हो .. " चाहत ने चिंता भरे स्वर में कहा । उसे डर था कि कहीं शालिनी जी उन दोनो को उस हालत में देख कर कुछ गलत ना समझ लें।  
    " इसमें गलत समझने की क्या बात तुम वही तो कर रही थी , और वैसे भी हम दोनो पति पत्नी हैं जो चाहे कर सकते हैं उसमे गलत क्या है " अश्वत ने कहा तो चाहत ने एक मुक्का उसके कंधे पर लेकिन उससे उसे कोई भी फर्क नही पड़ा । 
     
    " तुम क्या बकवास कर लेते हो और इसका क्या मतलब है पति पत्नी है , तुमने तो कभी वृंदा को अपनी बीवी नही माना फिर अब क्या हो गया , और वो अनिरा उसे पसंद करना छोड़ दिया क्या तुमने ? " चाहत ने कहा तो अश्वत ने घूर कर उसे देखा और बोला । 
    " तुम्हे इस बारे में कैसे पता ? मैने तो कभी नही बताया .. " अश्वत की बात सुनकर चाहत की जान हलक में आकर अटक गई । 
     
    उसे अपनी जबान को इस वक्त काट देने जा मन हो रहा था । क्या मतलब वो जब से कहानी में आई थी तब से कुछ ज्यादा ही बोलने लगी थी । चाहत तू ना पागल हो चुकी है इस कहानी में आकर । उसने अपने आप को ही मन में सौ गालियां दीं और फिर उसके बाद वो अश्वत की तरफ मुड़ी और बोली । 
     
    " तो तुम्हे क्या लगता मैं पागल हूं जो कुछ देख नही सकती,, अब तुम जाओ यहां से मुझे सोना भी है .  " 
     
    " अगर ऐसा है तो ,, Don't even try to come between me and Anira.. " अश्वत ने कहा और वहां से जाने लगा कि तभी उसके कानों में चाहत की आवाज सुनाई दी । 
    " I have no interest in coming between you two anyway .. " चाहत ने कहा और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया । 
     
    अश्वत ने उस बंद दरवाजे को देखा और फिर अपने कमरे में चला गया । यहां चाहत भी अपने बेड पर आकर बैठी और सोचने लगी आज के बारे में । क्या उसने सही किया आज यही सोचते हुए उसे जब नींद आ गई पता ही नही चला । 
     
     
     
     
     
    अगली सुबह सब नाश्ते की टेबल और थे जब अश्वत वहां आकर बैठा । अपने सामने बैठे अक्ष को देख कर उसे विश्वास नही हुआ कि वो इतनी जल्दी आ गया । दिल में उसके भी खुशी हुई वहां देख कर लेकिन उसने ये जताना जरूरी नहीं समझा और अपना नाश्ता करने लगा । इससे पहले कि अक्ष अश्वत से कुछ कह पाता शालिनी जी ने उसकी तरफ देख कर कहा । 
     
    " अक्ष , वृंदा एक बेकरी खोलने के बारे में सोच रही है.. " शालिनी जी की बात सुनकर अक्ष ने एक्साइटेड होते हुए कहा । 
    " क्या सच में भाभी .. ये तो बहुत अच्छी बात है फिर तो मुझे खाने की कोई चिंता ही नही होगी , मैं जब चाहूं आपकी शॉप पर आकर केक खा सकता हूं .. " 
     
    " हां बिलकुल आपके लिए मैं स्पेशल केक बना कर रखूंगी .. " चाहत ने भी खुश होकर कहा तो अक्ष उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया । 
    वहीं उन दोनों को उस तरह से खुश होकर बातें करते देख कर ना जाने क्यों लेकिन अश्वत की पकड़ उसके चम्मच पर कस गई जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया । 
    " मैं चाहती हूं कि तुम उसकी एक अच्छी सी शॉप ढूंढने में मदद करो , अश्वत ने तो मना कर दिया है तुम ही मदद कर दो उसकी .. " शालिनी जी ने कहा । 
    " हां बिलकुल , आज ही चलते हैं और शॉप देख कर आते हैं ,,, मैं तो कहता हूं कल ही शॉप की ओपनिंग भी कर देते हैं .. " अक्ष कह ही रहा था कि तभी अश्वत ने शालिनी जी की तरफ देख कर कहा । 
    " मैने कब मना किया वृंदा के साथ जाने से ? " अश्वत ने कहा तो था लेकिन उसकी बात किसी ने नहीं सुनी क्योंकि शालिनी जी तो उसे इग्नोर ही मार चुकी थी । 
    अक्ष कुछ कहने वाला था उससे पहले ही चाहत ने कहा ।
    " नही मैं अक्ष के साथ चली जाऊंगी .. " 
    चाहत की बात सुनकर अश्वत का खून खोल उठा और वो उठ कर अपने कमरे में चला गया । चाहत ने उसे जाते हुए देखा और फिर अपना सिर हिला कर अपना ध्यान खाने में लगा दिया । 
     
     
     
     
    कुछ ही समय में चाहत और अक्ष निकल रहे थे । अक्ष ने अपनी कार निकाली और चाहत की तरफ देखते हुए बोला ।
    " चलो भाभी , आज आपकी बेकरी के लिए मस्त का शॉप देख कर आते हैं , मैं तो शॉप की बात पक्की करवा कर ही आऊंगा .. " 
    " मैं भी चाहती हूं ये काम जल्दी शुरू हो .. " चाहत ने कहा । 
    " वैसे भाभी आपसे एक बात पूछूं ? " अक्ष ने हिचकिचाते हुए पूछा तो चाहत उसकी तरफ देख कर बोली । 
    " हां बोलो .. " 
    " आपको सच में पहले का कुछ याद नहीं ? " अक्ष की बात सुनकर चाहत ने उसकी तरफ देखा और फिर अपना सिर हां में हिला दिया । क्या ही करती वो उसे ये बताती कि वो वृंदा नही बल्कि चाहत है जो कहानी में बाहर की असली दुनिया से आ गई थी ।
     
    " फिर तो और भी अच्छा है मेरे ही काम में आसानी होगी  .. " अक्ष ने बड़बड़ाते हुए ही कहा और फिर चाहत की तरफ देख कर बोला । 
    " चलिए चलते हैं .. " कहते हुए वो ड्राइविंग सीट पर आकर बैठा । 
     
    चाहत भी कार में बैठने ही जा रही थी कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए ले जाने लगा । चाहत ने हैरानी से उस इंसान को देखा तो वो कोई और नहीं बल्कि खुद अश्वत था । चाहत को समझ नही आया कि आखिर अब क्या चाहता है वो । आखिर क्यों वो उसे यूं खींचते हुए ले जा रहा था । क्या वो उसे अब आगे भी नही बढ़ने देना चाहता था । चाहत ने अपना हाथ छुड़ाते हुए चिल्ला कर कहा । 
     
    " क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे .. अब क्या चाहिए तुम्हे ." चाहत चिल्लाते हुए जा रही थी लेकिन अश्वत को उसके चिल्लाने से कोई फर्क नही पड़ रहा था । वो अपनी कार के आगे आकर रुका , उसने कार का दरवाजा खोला और उसमे चाहत को जबरदस्ती बिठा कर दरवाजा बंद कर दिया । 
    चाहत ने दरवाजा खोल कर निकलने की कोशिश की लेकिन अश्वत ने दरवाजा लॉक कर दिया । तब तक अक्ष भी उसके पास पहुंच गया था । 
     
    " ये क्या कर रहा है अश्वत? भाभी को शॉप दिखाने ले जाना है ना फिर .. " अक्ष कह ही रहा था कि तभी अश्वत ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा । 
     
    " वो मेरे साथ जाएगी तुम जाकर आराम करो थक गए होगे ट्रैवल करके .. " 
    " लेकिन .. " अक्ष ने फिर से कुछ कहना चाहा लेकिन अश्वत ने उसकी बात नही सुनी और कार में जाकर बैठ गया और वहां से चला गया चाहत के साथ । 
     
     
     
     
    यहां जब अक्ष ने उनकी कार को जाते हुए देखा तो उसके होंठो पर मुस्कान आ गई । वो अपने हाथों में पकड़ी कार की चाबी को गोल गोल घुमाने लगा कि तभी उसके बगल में शालिनी जी आकर खड़ी हो गई । 
    " चिंगारी लग चुकी है आंटी हमे बस अब आग भड़कने जरूरत है .. " अक्ष ने शालिनी जी की तरफ देखते हुए कहा तो वो मुस्कुरा दी । 
     
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या करना चाहते हैं अक्ष और शालिनी जी ? 
    आखिर क्या चाहता है अश्वत जो वो चाहत के पीछे इस तरह पड़ा था ?
     
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    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 11. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 11

    Words: 2379

    Estimated Reading Time: 15 min

    सुबह का समय था जब चाहत कार में चुप चाप बैठी खिड़की के बाहर देख रही थी और अश्वत कार चला रहा था । वो बस यही सोच रही थी कि आखिर अश्वत को हुआ क्या था । आज कल वो इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रहा था । आखिर चाहता क्या था वो । अभी कल ही उसने कहा कि उसकी इस शहर में कोई इज्जत है और वो उसकी शॉप ढूंढने में कोई मदद नहीं करेगा फिर अब क्या हो गया था उसे जो वो इस तरह से बर्ताव कर रहा था । चाहत ने अपना सिर घुमा कर अश्वत को देखा जो इस वक्त शांति से कार चला रहा था।  उसने कुछ पल उसे देखा तभी अश्वत ने कहा ।
     
    " कुछ कहना चाहती हो तुम ? " उसकी बात सुनकर चाहत ने उसकी तरफ देखा और फिर सामने की तरफ देखते हुए बोली । 
    " कल तो तुमने कहा था कि तुम मुझे बेकरी शॉप नही खोलने दोगे फिर आज क्या हुआ तुम्हे जो मेरे साथ जा रहे हो ? " 
     
    अश्वत ने अचानक ही कार रोकी और फिर उसकी तरफ देखा । चाहत भी उसे देखने लगी तो अश्वत उसकी आंखो में देखते हुए उसके करीब बढ़ने लगा । चाहत की आंखे हैरानी से फैल गई उसे अपनी करीब आता देख कर । अश्वत उसके चेहरे के दो इंच के फासले पर रुका और उसे देखने लगा । चाहत हैरानी से अपनी आंखे बड़ी किए बस उसे देखे जा रही थी । वो सीट से पूरी तरह से चिपक चुकी थी । 
     
    " तो फिर तुम क्या पूरी जिंदगी मेरे सिर पर बैठी रहना चाहती हो ? " अश्वत ने उसकी आंखों में देख कर पूछा तो चाहत की भौंहे सिकुड़ गई ।  
    आखिर क्या कहना क्या चाहता था वो ? क्या वो उसके सिर का बोझ थी , अगर ऐसा है तो अब तो वो बेकरी खोल कर ही रहेगी । 
    चाहत ने उसे घूर कर देखा और फिर उसे धक्का देते हुए बोली । 
    " भाड़ में जाओ तुम .. जाना ही नही है मुझे तुम्हारे साथ कहीं, मैं खुद ही सब कुछ कर लूंगी ... " कहते हुए चाहत कुढ़ते हुए कार से उतरी और बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ गई । 
    " साला , पता नही क्या करने के लिए इस कहानी में आ गई मैं , ना असली जिंदगी ने शांति थी ना यहां है . कोई भी चैन से जीने ही नही देना चाहता मुझे .. अच्छा खासा मरने जा रही थी लेकिन नही ,,, मेरी जिंदगी में सस्पेंस थ्रिल बाकी था न जो इस कहानी में मुझे डाल दिया गया ..  " 
    वो बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ ही रही थी कि तभी किसी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने कंधे पर उठा लिया । चाहत हैरान रह गई।  जब उसे एहसास हुआ कि वो अश्वत के कंधे पर है तो उसने जोर जोर से उसकी पीठ पर अपने मुक्के बरसाने शुरू कर दिए।  
    " छोड़ो मुझे जल्लाद कहीं के , अब जा तो रही थी मैं फिर अब क्या है तुम्हे, जाने दो मुझे .. " 
    चाहत चिल्लाई जा रही थी। उसे समझ नही आ रहा था कि  आखरी अश्वत उसके साथ जबरदस्ती क्यों  कर रहा था । आसपास के लोग उन्हें घूर रहे थे । अश्वत ने उसे कार में बिठाया और खुद भी बैठ कर कार आगे बढ़ा दी । चाहत ने घूर कर उसे देखा और फिर अपना सिर घुमा लिया । 
     
     
     
     
     
    शालिनी जी और अक्ष हॉल में सोफे पर बैठे हुए थे और मजे से चाय पी रहे थे कि तभी अक्ष ने उनसे कहा । 
    " मानना पड़ेगा आंटी आपका प्लान काम कर गया , लेकिन एक बात समझ नही आई मुझे ,, ये वृंदा भाभी और अश्वत दोनो तीन महीनो से साथ हैं लेकिन अब तक दोनो को प्यार क्यों नही हुआ ? मतलब भाभी कितनी स्वीट हैं , हां मैं जब पहली बार उनसे मिला था तब वो थोड़ी इंट्रोवर्ट थी और हमेशा डरी सहमी रहती थी लेकिन अब तो वो बिल्कुल बदल गई हैं, ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने उसका पूरा रूप और व्यवहार ही बदल दिया है , कहां वो घर से बाहर भी नही जाती थी और अब वो बेकरी शॉप खोलने की बात कर रही हैं .. " अक्ष ने खुश होते हुए उनसे कहा तो शालिनी जी की आंखो में आंसू आ गए । 
     
    " एक बात कहूं अक्ष , मैं जानती हूं वृंदा ने आत्महत्या करने के बारे में क्यों सोचा , इतने महीनो से दोनो को अकेला छोड़ा था ये सोच कर कि शायद अश्वत को उसकी मासूमियत दिखे और वो दोनो साथ में हंसी खुशी से रहें लेकिन ये मेरी गलती है कि मैं अपने ही बेटे को नही समझ पाई ,, उसकी वजह से वृंदा ने आत्महत्या करने तक का कदम उठा लिया , कहीं न कहीं इन सबमें मेरी भी गलती हैं, मुझे नही पता उसके पानी में कूदने के बाद क्या हुआ जो वो इतनी बदल गई लेकिन मैं खुश हूं कि  अब वो अपने बारे में सोच रही है .. लेकिन मैं अपनी गलती को सुधारना चाहती हूं , अब वृंदा को खुश देख कर ही मैं चैन से जी पाऊंगी , बहुत सहा है मेरी बच्ची ने , अब और नही .. " 
     
    शालिनी जी की बात सुनकर अक्ष की आंखो में भी आंसू आ गए लेकिन उसने अपने होंठो पर मुस्कान बरकरार रखी और फिर उनके गले लगते हुए बोला । 
    " ऑफकोर्स मैं इसमें आपकी मदद करने वाला हूं , अगर मेरा दोस्त और मेरी प्यारी भाभी इससे खुश रहेंगे तो मैं जरूर ही ये करूंगा .. आप बस बताओ मुझे क्या करना है ." 
    अक्ष की बात सुनकर शालिनी जी मुस्कुरा दी और आगे की प्लानिंग सोचने लगी कि कैसे वो वृंदा यानी कि चाहत और अश्वत को करीब लाने की प्लानिंग करने लगी । 
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    वहीं दूसरी तरफ चाहत ने अपनी बेकरी के लिए शॉप पसंद कर ली थी और अब वो उसके रेंट के बारे में बात कर रही थी।  वो शॉप ना ही ज्यादा बड़ी थी और ना ही ज्यादा छोटी । चौराहे के किनारे पर बनी वो दुकान सिंपल मगर खूबसूरत थी । चाहत शॉप के ओनर से रेंट की बात कर रही थी और अश्वत उससे थोड़ी दूरी पर खड़ा होकर अपना फोन चला रहा था ।
     
    " बीस हजार रेंट और दो महीने का डिपॉजिट आपको पहले देना होगा.. " शॉप के ओनर ने कहा तो चाहत उन्हे हैरानी से देखने लगी । 
    " क्या ? ये कुछ ज्यादा ही महंगा नही है ? हां माना शॉप मार्केट में है और चौराहे पर है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप मुझे लूट ही लें . " 
     
    " देखिए मैडम आपको अगर ये शॉप चाहिए तो इतना ही रेंट लगेगा , और अगर नही तो जाइए कोई और शॉप देख लीजिए जो आपके बजट के हिसाब से हो .. " उस शॉप के ओनर ने कहा । 
    चाहत ने अपना सिर घुमा कर उस शॉप को देखा जो उसे सौ दुकानों को देखने के बाद पसंद आई थी । उसने अपना सिर मजबूरी में झुका लिया । उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि हो इतनी महंगी दुकान रेंट पर ले । वृंदा के कुछ गहने उसकी आलमारी में रखे हुए थे लेकिन वो उनका इस्तेमाल अपने लिए नही कर सकती थी इसलिए इस वक्त तो उसके पास इतने पैसे नहीं थे । चाहत ने मायूसी से अपना सिर झुका लिया और ओनर को मना कर दिया उसे शॉप को लेने से । 
     
    उसने अश्वत को अपने साथ वापस चलने को कहा तो वो उसके साथ बाहर आ गया । दोनो कार में बैठे और निकल गए । चाहत कार में बहुत शांत थी जिसे अश्वत ने भी नोटिस किया लेनिन उसने कुछ कहा नही।  उसके चेहरे को देख कर ही लग रहा था कि उसे चाहत के दुखी या खुश होने से कोई फर्क नही पड़ता । और उसे क्या ही फर्क पड़ता था उससे , उसकी जिंदगी का लक्ष्य तो बस अनिरा थी । 
     
     
     
     
    कुछ समय ने वो दोनो घर पहुंचे तो अक्ष और शालिनी जी उनका ही इंतजार कर रहे थे।  अश्वत उसे गेट पर ही छोड़ कर अपने ऑफिस जा चुका था जब वो घर के अंदर आई तो अक्ष उत्साहित होकर उसके पास आया और उसे लाकर सोफे पर बिठा दिया । खुद भी उसके बगल में बैठ गया और उससे सवाल पूछने लगा । 
    " आपको कोई शॉप पसंद आई भाभी ? बात पक्की हो गई शॉप की ? कब से बेकरी शुरू कर रहे हो आप ? " 
    अक्ष की इतनी उत्साहित आवाज सुनकर चाहत और भी ज्यादा उदास हो गई । उसने शालिनी जी और अक्ष को देखा जो इस उम्मीद में उसे देख रहे थे कि वो उन्हे एक खुशखबरी ही दे , लेकिन वो नही जानते थे कि आज उसके काम बना ही नही था । 
    चाहत ने अपना सिर ना में हिलाया और सिर झुका कर बोली । 
    " शॉप अच्छी नहीं मिली .. " 
    " लेकिन क्यों ? " उसकी बात को सुनकर शालिनी जी और अक्ष दोनो ने साथ में कहा । 
    दोनो का चेहरा उतर चुका था । 
    " रेंट कुछ ज्यादा ही था .. कोई नही मैं दूसरी शॉप देख लूंगी ." चाहत ने कहा । 
    " तुम्हे रेंट की चिंता करने की जरूरत नही है, हमे लोग हैं न, और देखना तुम इतने अच्छे से बेकरी चलाओगी कि तुम्हे पैसे की चिंता करने की जरूरत ही नही होगी , तुम बताओ कितने रुपए चाहिए मैं देती हूं . " शालिनी जी ने कहा तो चाहत ने उन्हें रोक दिया ।
     
    " नही आंटी , ये सब  मैं खुद से करना चाहती हूं , अगर आप सबकी मदद लेनी होती तो मैं पहले ही कह देती , लेकिन इसे मैं करना चाहती हूं , " चाहत ने कहा तो शालिनी जी मुस्कुरा दी । 
    " आप चिंता मत करो भाभी , आपको वो जरूर मिलेगा जो आपको चाहिए .. "अक्ष ने कहा तो चाहत के होंठो पर मुस्कान आ गई । 
    पहली बार उसकी जिंदगी में कोई था जो उसे मोटीवेट कर रहा था वरना तो हमेशा हर कोई उसे नीचा ही दिखाया करते थे । वो खुश थी इस कहानी में ऐसा परिवार पाकर । 
     
     
     
     
     
     
    रात का समय था जब सब डिनर करने बैठे थे और उसी समय चाहत का फोन रिंग किया।  उसने अपना फोन देखा तो उस शॉप के ओनर का फोन था । चाहत को हैरानी हुई कि आखिर वो क्यों उसे इस समय फोन कर रहा था । उसने तो उसे वो शॉप देने के लिए मना कर दिया था । 
    " हेलो .. " चाहत ने कॉल पिक करते ही कहा । 
    " हां मैं शॉप का मालिक बात कर रहा हूं . " 
    " हां बोलिए सर .. " चाहत ने कहा । 
    " आप जो शॉप देखने आज आईं थी , उसका रेंट थोड़ा कम हो गया है , आप कहें तो मैं आपको उसे दे सकता हूं . " उस शॉप के मालिक ने दूसरी तरफ से कहा । 
    " क्या ? कितना है भी रेंट ? " 
    " पांच हजार .. " 
    शॉप ओनर की बात सुनकर चाहत को हैरानी हुई । आखिर कैसे एक ही दिन में उस शॉप की क़ीमत सीधे पंद्रह हजार कम हो गई।  सुबह ही उसे बीस हजार कहा गया और अब वो शॉप पांच हजार की उसे मिल रही थी। कैसे ? 
    " और डिपॉजिट ? " चाहत ने डिपॉजिट के बारे में जानना चाहा । 
    " उसे देने की कोई जरूरत नही .. नए मालिक ने मना किया है आप सीधे अपनी दुकान चालू कर सकती हैं और महीना बीतने पर रेंट देना होगा .. " उसकी बात सुनकर चाहत हैरान रह गई । 
    ऐसे कैसे वो दुकान बिक गई और वो भी ठीक उसी दिन जिस दिन वो उसे शॉप को देख कर आई । उसे समझ नही आया कि आखिर हुआ क्या ? 
    " क्या आप मुझे उनका नाम बता सकते हैं ? " चाहत ने पूछा तो उसने मना कर दिया । 
    " नही मालिक ने मना किया है, आप बताइए आपको ये दुकान चाहिए या फिर मैं किसी और को दे दूं ? " उन्होंने पूछा तो चाहत ने दुकान फाइनल करवा दी और एग्रीमेंट बनवाने के लिए कल मिलने को उन्होंने उसे बुला लिया । 
     
    चाहत का चेहरा ताजे फूल की तरह खिल गया । उसने खुश होकर शालिनी और अक्ष की तरफ देखा जो उसे ही देखे जा रहे थे । अश्वत को तो वैसे भी इन सबसे कोई मतलब नहीं था । चाहत उन दोनो को देखा और खुश होते हुए बोली । 
    " आप लोग सोचिए क्या खुशखबरी होगी मेरे पास आपके लिए .. " 
    " क्या ? " उन्होंने पूछा । 
    " मुझे शॉप मिल गई और वो भी सिर्फ पांच हजार में .. " चाहत ने खुश हो कर कहा। 
    उसकी बात सुनकर शालिनी और अक्ष दोनो हैरान रह गए । 
    " क्या ? सच में ? भगवान ने हमारी सुन ली , " शालिनी जी ने कहा और अपने हाथ जोड़ लिए । 
    " चलो फिर दुकान का काम हो गया अब फर्नीचर और बाकी सब का काम मैं कल करवा दूंगा फिर आप आराम से अपना काम शुरू कर सकते हो .. " अक्ष ने कहा तो चाहत ने अपना सिर हां में हिला दिया । 
    " लेकिन ये हुआ कैसे ? इतना कम रेंट वो भी एक ही दिन में ? " शालिनी जी ने पूछा । 
    " पता नही लेकिन उन्होंने कहा कि नए मालिक ने उन्हें ये सब करने को कहा है .. कल एग्रीमेंट करवाने जा रही हूं तो शायद वो भी वहीं मिल जाएं , " चाहत ने कहा तो उन्होंने अपना सिर हां में हिला दिया । 
    उनकी ये बकवास बातें सुनकर अश्वत का सिर दुख गया था इसलिए वो वहां से उठ कर चला गया । चाहत ने उसे जाते हुए देखा और अपना मुंह सिकोड़ लिया । पता नही क्या समझता है खुद को ? एक बार उसे बधाई भी नही दे पाया उसे दुकान मिलने की खुशी में । अकडू अश्वत कहीं का । 
    चाहत ने अपने मन में ही सोचा और अश्वत को सौ गालियां देने लगी ।
     
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    कौन है उस दुकान का नया मालिक ? 
    क्या चाहत कर पाएगी अपने सपने पूरे? 
    क्या शालिनी जी और अक्ष अपने मकसद में कामयाब हो पाएंगे ? 
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     

  • 12. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 12

    Words: 1518

    Estimated Reading Time: 10 min

    सुबह हो गई थी और इसी के साथ चाहत की जिंदगी में एक नया सवेरा आया था । आज वो अपनी दुकान का एग्रीमेंट साइन करने जा रही थी इसलिए वो बहुत खुश थी । उसकी खुशी सबको नजर आ रही थी और सब उससे खुश भी थे सिवाय एक इंसान के और वो था अश्वत । हां उसे आज भी कोई फर्क नही पड़ रहा था कि चाहत की जिंदगी में क्या हो रहा है और क्या नहीं । उसे सिर्फ और सिर्फ अपने आप और अनिरा से मतलब था । अश्वत ने अपना नाश्ता किया और जाने लगा कि तभी उसके कानों में चाहत की आवाज सुनाई दी जो अक्ष से कुछ कह रही थी । 
    " आज तो तुम्हे मेरे साथ चलना ही होगा अक्ष ., आज तो मैं तुम्हे अपनी शॉप दिखा कर ही रहूंगी , " 
    " मैं खुद आपके साथ जाना चाहता हूं भाभी आप बस दो मिनट रुको , मैं यूं गया और यूं तैयार होकर वापस आया ,, " अक्ष ने उससे खिलखिलाते हुए कहा और फुदकते हुए अपने कमरे में चला गया । 
    चाहत ने जब उसे इतना खुश होते हुए देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो खिलखिला कर हंस पड़ी । उसे इस तरह से अक्ष को देख हंसते देख कर अश्वत की भौंहे सिकुड़ गई । वो बस यही सोच रहा था कि आज तक उससे तो उसने कभी इस तरह हंस कर बात नही की फिर ये अक्ष के साथ इतना क्यों मुस्कुरा रही थी । अश्वत ने गुस्से में अपना सिर घुमाया और अपने पैर पटकते हुए वहां से चला गया । यहां कुछ ही देर में चाहत और अक्ष घर से बाहर निकले । 
     
     
     
     
    चाहत और अक्ष दोनो उस दुकान पर पहुंचे जो चाहत ने बेकरी बनाने के बारे में सोची थी । अक्ष को वो दुकान बहुत पसंद आई । वो आदमी भी उन्हें वहीं मिल गया जो दुकान का एग्रीमेंट करवाने वाला था । चाहत ने पेपर्स साइन किए अक्ष ने उस पेपर को लिया और पढ़ने लगा तभी उसकी नज़र मालिक के नाम पर गई । उस नाम को देख कर वो चौंक गया । उसे अपनी आंखों पर विश्वास नही हुआ कि अभी अभी उसने क्या देखा । उसने वो पेपर चाहत की तरफ बढ़ाए और उसमे मालिक का नाम पढ़ने को कहा तो उसने उसे पढ़ा । उसमे एक ऐसा नाम लिखा था जो इस कहानी में बहुत महत्व रखता था । वो इंसान जो वृंदा के लिए बहुत ज्यादा जरूरी था लेकिन चाहत के लिए नही । उस  पेपर में बस एक ही नाम लिखा था " अश्वत धनराज "   चाहत ने हैरानी से अक्ष को देखा कि तभी उस आदमी ने कहा । 
    " लीजिए , इस दुकान के मालिक भी आ गए .. " 
    उस आदमी की बात सुनकर चाहत ने अपना सिर घुमा कर दरवाजे की तरफ देखा तो उसकी आंखे हैरानी से फैल गई । 
    ब्लैक थ्री पीस सूट पहने , काले शेड्स पहने अश्वत खुद दरवाजे से अंदर आ रहा था । उसकी वो रौब दार चाल ही काफी थी किसी को अपना दीवाना बनाने के लिए और यही हाल इस वक्त चाहत का भी था । उसे वहां देख कर उसकी आंखे हैरानी से फैल चुकी थी । 
    वो रौब से चलते हुए चाहत के सामने आकर खड़ा हो गया । इस वक्त उसके होंठो पर एक मुस्कान थी , ऐसी मुस्कान जिसे देख कर चाहत को अंदर ही अंदर चिढ़ हो रही थी । वो आवाक सी अपनी आंखे फाड़े उसे देखे जा रही थी कि तभी उस आदमी ने कहा । 
    " ये इस दुकान के मालिक , अश्वत धनराज , चलिए जब इस दुकान के मालिक खुद आ चुके हैं तो अब मैं चलता हूं " उस आदमी ने उन दोनो को मिलवाते हुए कहा और फिर वो वहां से चला गया । 
    उसके जाने के बाद अश्वत हल्के से चाहत को देख कर मुस्कुराया और फिर वहां घूमते हुए दुकान को देखने लगा । चाहत अब भी हैरान थी । उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर क्यों अश्वत इस छोटी सी दुकान को खरीद चुका था । क्या वो इस दुकान में अपनी बेकरी खोलना चाहती थी इसलिए या फिर वो उसकी मदद कर रहा था । 
    चाहत को कुछ समझ नही आ रहा था । वो कुछ अश्वत से पूछ पाती उससे पहले ही अक्ष ने अश्वत के सामने जाते हुए कहा । 
    " अश्वत तुम यहां क्या कर रहे हो ? और तुमने ये दुकान अचानक से कैसे खरीद ली ? जहां तक मुझे पता है तुम्हे तो इन सबसे कोई मतलब ही नहीं है ना ? " 
    अक्ष की बात सुनकर अश्वत हल्के से मुस्कुराया लेकिन उसकी मुस्कुराहट कोई देख नही पाया । चाहत अब भी उसके जवाब का इंतजार कर रही थी लेकिन अश्वत ने जवाब देने के बजाय अक्ष को ऑर्डर देने के लहजे में कहा । 
    " तुम अभी घर जाओ , मुझे वृंदा से कुछ बात करनी है .. " 
    " लेकिन .. " अक्ष उसकी इस बात पर कुछ कह पाता उससे पहले ही अश्वत ने उसे अपनी आंख दिखाई तो वो कुछ भी नही कह पाया । 
    अक्ष ने चाहत की तरफ देखा तो वो अश्वत को ही देखे जा रही थी । अक्ष ने कुछ नहीं कहा और वहां से चला गया । चाहत अश्वत के सामने आई और अचानक ही चिल्लाते हुए कहने लगी । 
    " अब क्या प्रोब्लम हो गई तुम्हे जो ये दुकान खरीदनी पड़ गई ? जहां तक मुझे पता है तुम्हारे पास तो अच्छी खासी कंपनी है ना , और उसके बहुत सारे शेयर और स्टॉक्स भी है फिर तुम्हे ये करने की क्या जरूरत है ? " 
    चाहत के इस सवाल को सुनकर अश्वत ने कुछ नही कहा और अचानक ही अपने शर्ट की बटन खोलते हुए बोला । 
    " यहां कुछ ज्यादा ही गर्मी नही लग रही ? क्यों न हम कहीं और जाकर बात करें ? " अश्वत की बात पर चाहत ने घूर कर उसे देखा । वो सब समझ रही थी कि आखिर क्यों अश्वत उसके किसी भी सवाल का जवाब नही दे रहा था । पक्का वो अब नही चाहता होगा कि वो अपनी जिंदगी में कुछ कर पाए इसलिए वो इस दुकान को खरीद लिया था । चाहत ने अपने मन में ही सोचा कि आज तक कहां उसे कुछ भी इतनी आसानी से मिला था जो अब मिल जाता । उसे घूर कर अश्वत को देखा और फिर दुकान के बाहर निकल कर बोली । 
    " ठीक है , चलो कहीं और जाते हैं .. " उसके कहने भर की देर थी कि अश्वत दुकान से बाहर निकल आया । चाहत ने शटर गिराने के लिए हांथ बढ़ाया लेकिन उससे पहले ही अश्वत ने अपना हाथ बढ़ा कर शटर गिरा दिया । चाहत ने अश्वत को देखा तो वो बिना उसकी तरफ देखे जाकर कार में बैठ गया । चाहत ने अपना सिर ना में हिला दिया । ना जाने क्या हो गया था अश्वत को जो वो इतना अजीब बिहेव कर रहा था । वो दोनो कार में बैठे और अश्वत ने कार आगे बढ़ा दी । 
     
     
     
     
     
    इस वक्त चाहत और अश्वत दोनो एक कॉफी शॉप में बैठे हुए थे । चाहत ने उससे सवाल पूछने चाहे लेकिन उससे पहले ही अश्वत ने कॉफी ऑर्डर कर दी । जब कॉफी उनके पास आ गई ,तो अश्वत ने उसे पीने का इशारा किया खुद अपनी कॉफी पीने लगा । 
    चाहत ने उसे गुस्से में घूर कर देखा । आखिर चाहता क्या था ये इंसान? इतनी देर से वो उसे इधर उधर की बातो में घुमा रहा था लेकिन उसके सवाल का जवाब देने को तैयार नहीं था । चाहत अब उससे परेशान हो चुकी थी । उसने गुस्से में अश्वत को घूरा और उसकी तरफ देख कर धीरे मगर गहरी आवाज में बोली । 
    " तुम मुझे बता रहे हो या नही ? क्यों कर रहे हो तुम ये सब ? आखिर अब क्या चाहते हो मुझसे ? क्यों खरीदी तुमने ये दुकान ? तुम्हे तो इन सबकी कोई जरूरत ही नही है क्योंकि तुम्हारे पास पहले ही करोड़ों रुपए है , फिर यही दुकान तुमने क्यों खरीदी? " 
    चाहत के सवालों को सुनकर अश्वत हल्के से मुस्कुराया और फिर कॉफी का कप टेबल पर रखते हुए बोला ।
    " मेरा मन था इसलिए ये दुकान खरीद ली .. " 
    उसके इस जवाब को सुनकर अब चाहत का दिमाग खराब हो गया । करना क्या चाहता है ये आदमी । 
    " आखिर कर क्यों रहे हो तुम ये सब ? कहीं तुम मेरी मदद तो नही कर रहे ? लेकिन तुम्हे तो वो अनिरा पसंद थी ना फिर मेरी मदद क्यों कर रहे हो ? मुझे डाइवोर्स दो और जाओ उसके पास .. " चाहत ने कहा ही था कि तभी अश्वत ने कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर उसकी आंखे हैरानी से फैल गई । उसे विश्वास नहीं हुआ कि अश्वत ने ये बात उससे कही थी । आखिर वो ऐसा कैसे कह सकता था । 
     
     
     
     
     
    आखिर क्या हुआ जो चाहत इतनी हैरान रह गई ? 
    क्यों कर रहा है ये सब अश्वत ? 
    क्या करना चाहता है अश्वत ? 
     
    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 
    Rebirth in novel
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     
     

  • 13. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 13

    Words: 1254

    Estimated Reading Time: 8 min

    चाहत अपनी आंखे फाड़े हैरानी से अश्वत को देखे जा रही थी ।उसे समझ नही आया कि आखिर कैसे अश्वत उससे इस तरह से बात कर सकता था । एक तो वो उसकी जिंदगी से जाने की बात कर रही थी और वो उसे ताने सुना रहा था । 
     
    " तुम्हे इन सबकी फिक्र करने की जरूरत नही है , मुझे मेरी जिंदगी में क्या करना है इससे तुम्हे कोई मतलान नही होना चाहिए ," 
    अश्वत की बात सुनकर उसकी भौंहे तन गई । उसे वैसे भी उससे कोई मतलब नहीं था । वो तो अच्छा खासा यूएसएमजे जिंदगी से जाना चाहती थी लेकिन वो खुद ही उसके कामों के बीच में अपनी टांग अड़ा रहा था । चाहत ने घूर कर उसे देखा और अपनी भौंहे सिकोड़ते हुए बोली । 
    " मुझे वैसे तुमसे कोई मतलब नहीं है लेकिन एक बात याद दिला दूं तुम्हे वो तुम हो जो इस वक्त मेरे काम के बीच में आ रहे हो , तुमने ये दुकान खरीदी ही क्यों जब तुम्हे सिर्फ अनिरा से मतलब है मुझसे नही ..  " 
    अश्वत ने अपने सामने बैठी चाहत को घूर कर देखा जो वृंदा का रूप लेकर इसके सामने बैठी थी । उसे चाहत के बारे में कुछ नही पता था लेकिन वो वृंदा को शायद अच्छा से जानता था।  जैसे पहले वृंदा थी । वो काफी बदल चुकी थी । पहले वो काफी डरी सहमी रहती थी और कभी भी उसकी बातों का उल्टा जवाब नही देती थी । अगर वो कुछ भी करे तो उसके बारे में कोई सवाल भी नही करती थी । फिर आज ऐसा क्या हो गया था जो वो उसे ही पलट कर जवाब दे रही थी । यही सोच कर अश्वत को हैरानी हो रही थी । उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर इन चार दिनों में वो इतना कैसे बदल गई । वो उसकी बातो का कोई जवाब दे पाता उससे पहले ही चाहत ने उसकी तरफ देख कर पूछा । 
    " अच्छा ये सब छोड़ो मुझे तुम्हारी पर्सनल लाइफ से कोई मतलब नहीं है और न ही मुझे जानना हैं, तुम मुझे बताओ कि तुम इस दुकान को कैसे छोड़ोगे , मुझे तुम मेरे काम में नही चाहिए .. " 
    उसकी इस बात पर अश्वत उसे देखने लगा । ना जाने कैसे लेकिन अगले ही पल उसके होंठो पर हल्की सी मुस्कान आई जिसे कोई नही देख पाया । वो सीट से टेक लगा पैर पर पैर चढ़ा कर बैठा और फिर उसकी तरफ देख कर बोला । 
    " अगर ऐसा है तो .. मुझे तुम्हारी इस बेकरी में पार्टनरशिप चाहिए , थर्टी पर्सेंट की इसके बाद तुम इस शॉप का रेंट न भी दो तो कोई फर्क नही पड़ता , "
    उसकी बात को सुनकर चाहत ने हैरानी से उसे देखा । आखिर ये इंसान चाहता क्या था? अभी कुछ समय पहले यही इंसान कह रहा था कि उसे उसकी जिंदगी से दूर रहना चाहिए फिर अचानक से उसे उसकी बेकरी में पार्टनरशिप क्यों चाहिए थी । अश्वत की बातें चाहत के सिर के ऊपर से जा चुकी थी । उसने हैरानी से अश्वत को देखा और फिर बोली । 
    " लेकिन ,, वो तुम ही थे न जो नही चाहते कि मैं तुम्हारी जिंदगी में कोई इंटरफेयर न करूं ? " 
    " तो क्या तुम प्रोफेशनल नही रहोगी , अपनी पर्सनल ओर प्रोफेशनल लाइफ को अलग रखना सिखो वरना काम बिगड़ने में वक्त नहीं लगता ..  " अश्वत ने कहा और उठ खड़ा हुआ।  
    " तुम्हे सोचना का समय दे रहा हूं , आज शाम तक जा टाइम है वरना मैं इस दुकान को किसी और को दे दूंगा , " अश्वत ने कहा और वहां से चला गया । 
     
    चाहत उसे जाते हुए देखती रही । उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर अश्वत इतना अजीब व्यवहार क्यों कर रहा था । एक तरफ वो कहता था कि उससे उसे कोई मतलब नहीं है और एक तरफ वो उसके कामों में आ रहा था । खैर अश्वत को समझ पाना चाहत के बस की बात नही थी इसलिए वो चुप चाप उठी और बाहर आई तो अश्वत फोन पर किसी से बात कर रहा था । चाहत ने उसे देखा और फिर अपना रास्ता सड़क की तरफ घुमा दिया । वो टैक्सी रुकवाने लगी लेकिन एक भी टैक्सी रुक नही रही थी । 
    यहां अश्वत ने फोन अपनी जेब में रखा और गेट की तरफ देखा तो उसे चाहत नही दिखी । उसने अपना सिर घुमाया तभी उसकी नज़र सड़क के किनारे गई जहां चाहत टैक्सी रुकवा रही थी । अश्वत ने अपनी आंखे रोल की और सिर ना में हिला दिया । जैसे वो सोच रहा हो उसे चाहत से यही उम्मीद थी। उसने अपने कदम उसकी तरफ बढ़ा दिए । 
     
    अश्वत उसके बगल में जाकर खड़ा हुआ और बोला ।
    " तुम्हारा हो गया हो तो अब कार में चल कर बैठो " 
    अश्वत की बात सुनकर चाहत ने उसकी तरफ देखा और बोली । 
    " तुमने ही तो अभी कहा था कि अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को अलग रखना चाहिए और उसके पहले कहा था कि मैं तुम्हारी जिंदगी में इंटरफेयर ना करूं .. " 
    अश्वत ने अपने माथे पर उंगलियां सरकाई और उसकी तरफ देखा । उसके एक गहरी सांस ली और उसका हाथ पकड़ कर कार के पास ले गया और उसे कार में बिठा दिया । 
    आज चाहत की हैरानी का कोई ठिकाना ही नहीं था । उसे आज अश्वत समझ ही नहीं आ रहा था । वो कार में बैठी थी कि तभी अश्वत ने कार आगे बढ़ा दी । 
     
     
     
     
     
     
     
     
     
    शाम होने ही वाली थी । चाहत अब भी अपने कमरे में चहलकदमी कर रही थी और सोच रही थी कि उसे क्या करना चाहिए । उसे अश्वत का प्रपोजल एक्सेप्ट कर लेना चाहिए या नही । उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो अब किसी और दुकान का रेंट दे सके और उस पर भी उसने अश्वत के साथ कॉन्ट्रैक्ट पेपर साइन कर दिए थे । लेकिन उसे ये समझ नही आ रहा था कि अश्वत को अपने बिजनेस में पार्टनर बनाना उसके लिए सही होगा या नही । 
    जहां तक उसे पता था अश्वत और वो कुछ ही महीनों में वैसे भी अलग होने वाले थे तो क्या ऐसे में उसका उसे पार्टनर बनाना सही बात होगी । यही सब सोचते हुए उसका सिर दर्द करने लगा था । चाहत अपना सिर पकड़ कर बेड पर बैठ गई और खुद से बोलने लगी ।
    " पता नही क्या जरूरत थी इस कहानी में आ टपकने की मुझे , अच्छा खासा मरने जा रही थी लेकिन नही , अभी तो मेरी जिंदगी बाकी है ना ..  पता नही अब मुझे आगे क्या करना चाहिए, अश्वत को पार्टनरशिप दूं या नही , कुछ समझ नही आ रहा है , और इस इंसान को भी पता नही क्या प्रोब्लम है , अच्छा खासा अपनी कंपनी से पैसे कमा रहा है लेकिन नही इसे मेरी छोटी सी बेकरी शॉप में जो अभी चालू भी नही हुई है उसमे पार्टनरशिप चाहिए .. " 
    अचानक ही उसके दिमाग में कुछ आया और वो खुद से ही बोली ।
    " मै उसे ये पार्टनर शिप नही देने वाली हूं चाहे कुछ भी हो जाए .. अगर मैने ऐसा किया तो ये अश्वत कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा .. " 
    चाहत खुद से बड़बड़ाई और नीचे आ गई । 
     
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 
    क्या करेगी चाहत अब ? 
    क्या वो मान लेगी अश्वत की शर्त को या मना कर देगी उसे ? 
    क्या करना चाहता है अश्वत ? 
     
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  • 14. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 14

    Words: 1188

    Estimated Reading Time: 8 min

    चाहत ने अपने मन में ही फैसला कर लिया कि वो अश्वत को अपने दुकान में किसी भी तरह की पार्टनरशिप नही देगी । और उसके बाद वो नीचे आ गई ।
    वो बड़बड़ाते हुए नीचे जा ही रही थी कि वो सामने से आते हुए अश्वत से टकराई । उसका सिर अश्वत के सीने से टकराया और वो अपना सिर सहलाते हुए उससे दूर हुई । गुस्से में अपना मुंह बिचका कर उसने कहा । 
    " क्या है देख कर नही चल सकते , सिर फोड़ दिया मेरा .. " 
    उसकी ऐसी बातें सुनकर अश्वत की भौंहे सिकुड़ गई । उसने चाहत का हांथ पकड़ा और उसे लेकर जाने लगा। चाहत ने अपना हाथ छुड़ाना चाहा लेकिन जितना कस कर अश्वत ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था उसका अपना हांथ छुड़ा पाना मुश्किल था । 
    " छोड़ो मुझे बेकार इंसान क्या है तुमको .. हमेशा बस मुझे ही परेशान करना होता .. " चाहत ने गुस्से में अश्वत की ओर देख कर कहा लेकिन उसे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था । 
    वो उसे पकड़ कर अपने कमरे में लाया और दरवाजा बंद करके उसे दीवाल से सटा दिया । चाहत उसे हैरानी से देखने लगी और समझने की कोशिश करने लगी कि आखिर वो चाहता क्या है । अश्वत को समझ पाना उसके दिमाग से परे था । ना जाने कब वो क्या करने लग जाए । 
    अश्वत बिना पलके झपकाए घूरते हुए उसकी आंखो में देखे जा रहा था वहीं चाहत उसकी इस हरकत को समझने की कोशिश कर रही थी । अचानक ही वो उसके करीब आने लगा जिसे देख चाहत पीछे की तरफ होने लगी । वो कब दीवाल से सट चुकी थी उसे पता ही नही चला । अश्वत उससे बस दो इंच के फासले पर था । वो दोनो इतना करीब थे कि अश्वत की सांसे उसे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी । उसकी सांसे अपने ऊपर महसूस कर चाहत के दिल की धड़कन बढ़ गई और वो गहरी सांसे लेने लगी । अश्वत उसके और करीब आने लगा तो उसने कस कर अपनी आंखे बंद कर ली । 
    अचानक ही अश्वत उसके कान के करीब आया और धीरे से मगर अपनी गहरी आवाज में बोला ।
    " तो सच सच बताओ मुझे .. हो कौन तुम ? " 
    अश्वत के सवाल को सुनकर चाहत ने अपनी आंखे एक झटके में खोली । उसकी आंखे खुलते ही अश्वत की नज़रो से जा टकराई जो अपनी गहरी नजरो से उसे ही देख रहा था । चाहत की आंखे हैरानी से फैल गई थी उसके सवाल को सुनकर । 
    अश्वत उसके चेहरे से उड़े हुए रंग को देख कर मुस्कुराया और बोला ।
    " तुम्हे क्या लगता है ? मेरे ही घर में रहने वाला इंसान इतना चेंज हो जाएगा और मुझे पता भी नही चलेगा ? बताओ कौन हो तुम ? " 
    चाहत के चेहरे का रंग उड़ चुका था। उसे समझ नही आ रहा था कि अब वो क्या करे । अश्वत तो वृंदा के साथ इतना रहता भी नही था फिर कैसे वो उसे पहचान गया । चाहत अब भी सोच में गुम थी कि तभी उसने अश्वत को खुद से दूर धक्का देते हुए कहा । 
    " मैं वृंदा हूं ,, कोई और नहीं , बस बदल चुकी हूं .." चाहत को इतना चिल्लाते हुए देख कर अश्वत के होंठो की मुस्कान और गहरी हो गई । वो उसके सामने आकर खड़े होते हुए मुस्कुरा कर बोला । 
    " अच्छा , इतना ज्यादा बदलाव आ गया तुममें ? तुम्हे इंग्लिश और शहरी भाषा आने लगी , अचानक ही तुम्हे बेकरी खोलना है और मुझसे तलाक भी लेना है .. " 
    चाहत ने उसकी तरफ देखा और उसकी आंखो में देख कर उसके मन के इरादों को भांपने की कोशिश करने लगी । वो भी आगे आई और अश्वत की आंखो मे आंखे डाल कर बोली ।
    " तुम्हे उससे क्या ही फर्क पड़ता है वैसे भी तुम्हे तो वो अनिरा पसंद है ना .. और आखिर कब तक अपनी बेइज्जती सहूं मैं .. माना कि गांव से हूं लेकिन इसका मतलब ये नही कि अपने आत्मसम्मान को भी दाव पर लगा दूं , और वैसे भी उस इंसान से क्या ही मतलब रखना जिसे किसी से भी फर्क ना पड़ता हो " 
    इतना कह कर वो वहां से जाने लगी कि तभी उसके कानों में अश्वत की आवाज सुनाई दी । 
    " तो फिर तुम मुझे अपनी उस बेकरी शॉप में पार्टनरशिप दे रही हो या नही ? " 
    उसके इस सवाल को सुनकर चाहत ने अपनी नजरें उठाई और उसकी तरफ पलटते हुए बोली ।
    " बिल्कुल भी नही , इस जिंदगी को तुम्हारे साथ जोड़ कर अब और बर्बाद नही करना चाहती मैं ,,, इसलिए बेहतर यही होगा कि हम दोनो ही एक दूसरे से दूर रहें .. " 
    चाहत ने उसकी आंखो में देख कर कहा । अब एक बार फिर वो अपनी जिंदगी किसी ऐसे के साथ नही जोड़ सकती थी जिसे उसकी कोई कद्र ही ना हो । एक बार फिर अपने आप को दुख पहुंचाने से अच्छा था कि वो सबसे दूर ही हो जाए । चाहत ने उसकी आंखो में देखा और वहां से चली गई । 
    यहां अश्वत उसे जाते हुए देखता रहा । उसने अपनी नजरें घुमाई और अपने माथे पर उंगलियों से रब करते हुए कुछ सोचने लगा । 
    आज तक वृंदा ने उससे कभी ऊंची आवाज में बात तो करना दूर उसे कभी अपनी नजरें उठा कर देखा तक नही था । और आज वो उससे ऊंची आवाज में बात भी कर रही थी और उसके हर सवाल का उल्टा जवाब भी दे रही थी । अश्वत को समझ नही आ रहा था कि कैसे वो एक ही दिन में इतना बदल गई । जब से वो उस नदी से बच कर आई थी तब से ही वो बहुत बदल गई थी । इतना बदलाव शायद ही किसी इंसान के जीवन में आ सकता था । लेकिन कहते है ना कभी कभी एक गलती इंसान की जिंदगी को बदल कर रख देती है , ऐसा ही कुछ वृंदा के साथ भी हुआ था । 
    वहां वृंदा अपनी जान देने गई थी तो यहां चाहत । पता कैसे लेकिन वो इस कहानी में आ पहुंची और अब उसने वृंदा की जगह लेकर उसकी जिंदगी बनानी शुरू कर दी थी जो सबके बारे में सोच कर बर्बाद हो चुकी थी । 
    सच कहते हैं जब तक आप सबके बारे में सोचेंगे तक तक आप खुदको भुला चुके रहेंगे इसलिए सबसे पहले केवल अपने बारे में सोचना चाहिए फिर किसी और के बारे में । 
    कभी चाहत ने भी वृंदा के जैसे ही सिर्फ अपने परिवार और प्यार के बारें में सोचा था लेकिन उसके साथ क्या हुआ । किसी को भी उसके होने ना होने से कोई फर्क नही पड़ता था । फिर चाहे कुछ भी हो जाए । ना जाने कैसे चाहत इस जिंदगी में खुशी खुश रह पाएगी । 
     
     
     
     
     
    आखिर क्या होने वाला था आगे ?
    क्या अश्वत कभी जान पाएगा कि जो उसके सामने है वो वृंदा नही बल्कि चाहत है ? 
    क्या चाहत बचा पाएगी अपने आप को इस जिंदगी में ? 
     
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  • 15. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 15

    Words: 1307

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुबह का समय था जब चाहत घर पर बैठी अपने फोन में और भी दुकानों की लिस्ट निकाल रही थी ताकि वो उन में से एक को रेंट पर लेकर अपने बेकरी की शुरुआत कर सके । वो अभी फोन में देख ही रही थी कि तभी उसके बगल में शालिनी जी आकर बैठते हुए बोली । 

    " क्या कर रही हो बेटा ? " 

    उनकी बात सुनकर चाहत ने अपना सिर उठा कर उन्हे देखा और अपने फोन में उन्हें कुछ दुकानों को तस्वीर दिखाते हुए बोली।

    " मम्मी ये देखो ये वाली शॉप कैसी है ? मुझे तो ये पसंद आई रोड के किनारे भी है और रेंट भी कम है .. " 

    चाहत की बात सुनकर शालिनी जी ने उसकी तरफ देखा और कहा । 

    " एक बात पूछूं बेटा ? " 

    " हां बोलो ना मम्मी .. " चाहत ने कहा और अपना फोन देखने लगी । 

    " अश्वत ने जो दुकान खरीदी है उसमे क्या तकलीफ है , तुम उसे भी तो लेकर चला ही सकती हो ना और उसमे कोई प्रोब्लम भी नही होगी .. घर में ही बात रहेगी " शालिनी जी की बात सुनकर चाहत ने उनकी तरफ देखा और बोली । 

    " मैं अब और नही करना चाहती ये मम्मी , सिर्फ आपकी वजह से अब तक मैं कुछ नही बोल रही थी लेकिन अब अश्वत के साथ मैं नही रह सकती , उसकी बातें मेरे समझ नही आती , कभी उसे मेरी मदद करनी होती है तो कभी मुझे परेशान और वैसे भी जिस रिश्ते में प्यार ना हो उस रिश्ते में कभी नही रहना चाहिए , इसलिए मैंने सोचा है कि मैं अब इस रिश्ते को खत्म कर दूंगी , " 

    शालिनी जी ने हैरानी से उसकी तरफ देखा । हां वो चाहती थी कि अश्वत और वो खुश रहें लेकिन इस तरह से नही । इस तरह से तो उनका घर टूट सकता था । लेकिन वो कुछ भी नही कह सकती थी क्योंकि उन्होंने देखा था अपने सामने उसे रोते हुए , तड़पते हुए , बिना कुछ कहे सब कुछ सहते हुए । शालिनी जी ने कुछ नही कहा और बोली । 

    " मैं तुम्हारे बीच कभी नही बोलूंगी तुम्हे जो ठीक लगे तुम वो करो , मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं .. " 

    उनकी बात सुनकर चाहत मुस्कुरा दी और उन्हें नई दुकानों की तस्वीरें दिखाने लगी । 











    अश्वत अपनी बालकनी में किसी से फोन पर बात कर रहा था तभी उसकी नज़र चाहत पर गई जो गार्डन में घूम रही थी । अश्वत की नजरें उस पर ठहर गई और फिर हटने का नाम ही नहीं ले रही थी । चाहत इस वक्त गार्डन में बैठी फूलों को देख रही थी। चांद की रोशनी में उसका चेहरा खिला हुआ था लेकिन उसके होंठो की मुस्कान आज कहीं गायब सी थी या फिर यूं कहें कि वो मुस्कुराई ही नही थी तब से जब से उसकी जिंदगी शुरू हुई थी । ना ही उसे परिवार का प्यार मिला ना ही अपने प्यार का । और अब कहानी में भी उसके साथ वही था बस इस बार शालिनी जी उसका साथ दे रहीं थी । वो अभी यही सब सोच रही थी कि तभी कोई उसके बगल में आकर खड़ा हो गया ।

    उसने अपनी नजरें घुमा कर देखा तो उसके ठीक पीछे अश्वत अपने हांथ बांधे खड़ा था और इस वक्त उसके हाथों में एक फाइल थी । अश्वत उसके बगल में आकर बैठ गया और सामने की तरफ देखते हुए बोला । 

    " क्या कर रही हों यहां पर ? " 

    अश्वत ने सवाल को सुनकर चाहत ने उसकी तरफ देखा और समझने की कोशिश करने लगी कि आखिर अब वो क्या चाहता था । जब भी वो उसके सामने आता था ना जाने क्या हो जाता और फिर दोनो का झगड़ा हो जाता। चाहत उसे देख ही रही थी कि तभी अश्वत की नजर उसे पर गई तो वो बोला ।

    " क्या हुआ ? तुम्हे मुझसे लड़ना है ? " 

    चाहत ने अपना सिर घुमा लिया और अपने हाथों पर ठुड्ढी को टिकाते हुए बोली ।

    " अभी लड़ने की बिल्कुल भी हिम्मत नही है तो प्लीज जाओ यहां से .. " 

    अश्वत ने एक नजर उसे देखा और फिर उस फाइल को उसके सामने बढ़ाते हुए बोला । 

    "तुमने मुझसे कहा था कि तुम वृंदा ही हो जो बस थोड़ा सा बदल गई है फिर ये क्या है ? " अश्वत की बात सुनकर चाहत ने उस फाइल में झांका और जो उसने देखा उसे देख उसकी आंखे हैरानी से फैल गई । 

    उसने साइन करने की जगह पर वृंदा ना लिख कर चाहत के नाम से साइन किया था ।

    शीट शीट शीट 

    इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकती थी वो । उसके चेहरे का रंग उड़ गया था । इतने दिनो से वो एक से एक बहाने बना रही थी लेकिन अब क्या । इसमें क्या झूठ बोले वो। अक्ष ने जब उस फाइल को देखा था तो उसमे उसका ध्यान सिर्फ अश्वत के नाम पर गया था लेकिन जब वो फाइल अश्वत के हाथों में आई तो उसने पूरी फाइल ध्यान से देखा खास कर उस साइन को जो वृंदा का था ही नही । 

    उसने हैरानी से उस फाइल पर लिखे अपने नाम को देखा जो उसने बिना ध्यान दिए साइन कर दिया था और फिर अश्वत को जो अब भी उसके जवाब का इंतजार कर रहा था।  चाहत को समझ नही आ रहा था कि अब उसे कौन सा बहाना बनाना चाहिए । अचानक ही उसके दिमाग में एक आइडिया आया और वो बोली । 

    " तो फिर इसका और मेरे स्वभाव बदलने से क्या मतलब है ? " चाहत ने मासूम बनने की कोशिश करते हुए कहा जिसे देख कर अश्वत ने अपनी भौंहे सिकोड़ ली । 

    " तुम्हारा नाम भी चेंज हो गया क्या स्वभाव के साथ .. तुमने वृंदा की जगह चाहत कैसे साइन कर दिया ? "  अश्वत ने स्वभाव शब्द पर जोर देते हुए कहा । 

    चाहत ने उसके हांथ से फाइल ली और हैरानी से अपनी ही की गई उस चाहत नाम की साइन को देखते हुए बोली। 

    " ये वृंदा नही लिखा है क्या ? फिर ये क्या लिखा है ? मुझे तो ट्यूशन में यही सिखाया गया था कि वृंदा ऐसे ही लिखते हैं ,, क्या उन्होंने मुझे गलत सिखाया होगा ? " चाहत ने मासूम बनने की कोशिश करते हुए कहा जिसमे शायद वो सफल भी हो चुकी थी । 

    " तो तुम्हे सच में ये नही पता कि ये क्या लिखा है तुमने ? " अश्वत ने उसके सामने उसकी ही की गई साइन को दिखाते हुए कहा तो उसने अपना सिर ना में हिला दिया । 

    " मुझे नही पता , मुझे जैसा सिखाया मैने वैसा ही लिखा लेकिन शायद ये गलत हो गया , मुझे फिर से सीखना होगा .. " चाहत ने कहा और वहां से उठ कर चली गई । 

    जाते हुए उसके चेहरे पर चिढ़ साफ नजर आ रही थी । वो खुद को ही कोस रही थी उस एग्रीमेंट पेपर पर अपना नाम लिख कर साइन करने के लिए । 

    यहां अश्वत उसे जाते हुए देखता रहा और फिर उस एग्रीमेंट पेपर को देख कर बोला । 

    " मुझे नही पता कि ऐसा भी क्या हो गया जो तुम इतनी बदल गई और तुम अपने नाम की जगह चाहत लिखने लगी लेकिन एक बात मेरे जरूर समझ आ गई है , तुम वृंदा तो नही हो .. अब बस ये देखना है कि आखिर तुम हो कौन ?" 

    कहते हुए वो हल्के से मुस्कुराया जैसे उसे इस खेल में मजा आ रहा हो । वो उठा और फिर वहां से अंदर आ गया । 















    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 

    क्या अश्वत जान जाएगा कि उसके साथ में रहती वो लड़की वृंदा नही बल्कि चाहत थी ? 

    क्या करेगी अब चाहत ? 

    क्या होगा चाहत के साथ ? 



    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel

  • 16. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 16

    Words: 1210

    Estimated Reading Time: 8 min

    सुबह का समय था । शालिनी जी और अक्ष मंदिर गए हुए थे । चाहत नाश्ता करने उठी थी और हॉल में आकर बैठी थी जब अश्वत आया और उसके सामने एक फाइल को रखकर बैठते हुए बोला । 

    " अच्छा होगा कि तुम दूसरी दुकान ढूंढने से पहले ये पेपर्स एक बार अच्छे से पढ़ लो .. " 

    अश्वत की बात सुनकर चाहत ने उसकी तरफ नासमझी में देखा और फिर उस फाइल को । उसने वो फाइल उठाई और पढ़ने लगी । जैसे जैसे वो पढ़ते जा रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे । आखिर में उसने गुस्से में आकर उस फाइल को उस टेबल पर पटकते हुए कहा । 

    " ये क्या बकवास है ? मैं ऐसा कुछ भी नही करने वाली हूं ,, और ये तुम कर कैसे सकते हो ? अगर मैं दुकान में दो साल ना चलाऊं तो इस के बदले में मुझे तुम्हे दस लाख रुपए देने होंगे? ये कैसा एग्रीमेंट हुआ ? " 

    अश्वत के होंठो के कोने मुड़ गए और वो चाहत की आंखो में देखते हुए बोला । 

    " बिल्कुल मैं ऐसा कर सकता हूं आखिर दुकान का मालिक तो मैं ही हूं ना ? और वैसे भी मुझसे लड़ने के पहले और साइन करने से पहले तुम्हे इस पेपर को अच्छे से पढ़ लेना चाहिए था .. " 

    चाहत का चेहरा काला पड़ गया उसकी बात सुनकर । क्या मतलब उसने बिना पढ़े ही पेपर साइन कर दिया था लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी ना था कि अब अश्वत उसे धमकी देगा । आखिर वो चाहता क्या था । कभी उसे उससे दूर जाना होता था तो कभी उसकी मदद करनी होती थी। और आज तो हद हो गई वो उसे धमका भी रहा था ।

    " मैं ये एग्रीमेंट नही मानती और ना ही मैं इस शर्त को तोड़ने पर तुम्हे कोई पैसे दूंगी , तुमने ये सब धोखे से किया है मेरे साथ " चाहत ने घूर कर उसकी तरफ देखा और फिर बोली ।

    " तुम्हे सच में लगता है तुम ये साबित कर पाओगी , सोच लो ,, या तो तुम इसी दुकान में अपनी बेकरी खोलो , या तो मुझे पैसे दो या फिर जेल जाने को तैयार हो जाओ .. और ये बात तुम भी जानती हो कि  कई ये कर सकता हूं , " अश्वत ने हल्के से मुस्कुरा कर उसकी आंखो में देख कर कहा तो वो हैरान रह गई । 

    उसकी बात सुनकर अब बस चाहत की यही लग रहा था कि आज की शाम तो उसकी जेल में ही बीतने वाली है । उसने अपना गला तर गया । क्या मतलब अब उसे कहानी में आकर भी जेल जाना बाकी रह गया था । अच्छा खासा अपनी जिंदगी जीने के बारे में सोचा था उसने लेकिन यहां तो अश्वत उसे जेल भेजने की तैयारी में था । चाहत अभी यही सब सोच रही थी कि तभी उसके कानों में अश्वत की आवाज सुनाई दी जो उसे ही कह रहा था। 

    " कोई बात नही तुम्हे आज शाम तक का टाइम दे रहा हूं , सोच लो क्या करना है,  और हां , जवाब हां में ही देना क्योंकि अगर तुमने ना कहा तो इसमें तुम्हारा ही नुकसान है .. " अश्वत ने कहा और हांथ से चाबी नचाते हुए वहां से चला गया । 

    चाहत उसे जाते हुए देखती रही । आखिर में उसे गुस्सा आ गया और उसने चीखते हुए पिलो उठा कर नीचे फेंक दिया । 

    " ये खच्चर अश्वत मुझे चैन से जीने देगा कि नही .. साला कहानी में आकर हो सारा कांड मेरे साथ ही होना है , अच्छा खासा मरने जा रही थी लेकिन नही यहां सस्पेंस थ्रिल कहानी ने गुसेडना है मुझे भक्क .. " चाहत ने गुस्से में कहा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गई । 











    दो दिन बाद आज चाहत के दुकान की ओपनिंग थी । शालिनी जी और अक्ष उसके साथ आए थे लेकिन अश्वत नही । चाहत बहुत खुश थी , दुकान का उद्घाटन करते हुए उसकी आंखो में आंसू आ गए । कितने सपने सजाए थे उसने अपने भविष्य को लेकर और शायद अब वो सपने इस कहानी आकर पूरे होने वाले थे । भले ही इस कहानी में उसका कोई अस्तित्व ना हो लेकिन फिर भी वो खुश थी । अपने सपने को पूरा होते हुए देख कर । चाहत ने अपने सामने उस दुकान को देखा जो बेशक वही दुकान थी जो अश्वत ने खरीदी थी । उसके पास कोई चारा नहीं था उसमे अपनी बेकरी शॉप खोलने के अलावा । या तो वो अश्वत को दस लाख रुपए देती जो उसके पास नही थी या फिर वो जेल चली जाती जो वो करना नही चाहती थी । चाहत बेचारी कहानी में भी अपनी जिंदगी बेकार नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने मजबूरी में ही इसी दुकान में अपनी बेकरी शॉप खोल दी थी । 

    शाम का समय था जब चाहत शॉप को बंद कर रही थी । आज वो बहुत ज्यादा खुश थी । पहले ही दिन उसकी दुकान ने बहुत अच्छा रंग जमाया था और अच्छी खासी कमाई भी हो गई थी । उसने इतनी उम्मीद नहीं की थी कि पहले ही दिन इतने सारे कॉस्ट्मर्स आयेंगे । वो दुकान बंद करके रोड पर निकली ही थी कि तभी उसके सामने एक कार आकर रूकी । वो हड़बड़ा गई क्योंकि वो कार अचानक ही उसके सामने आकर रूकी हुई थी । चाहत गुस्से में आ गई और उस कार चालक सौ गालियां बकने लगी । 

    " तेरी बहन का भरोसा दिखता नही है इंसान रोड क्रॉस कर रहा है , मारना चाहता हो क्या ? और इतना ही मारने का शौक है तो कहीं और जाकर मारना क्योंकि मैं भी .. " चाहत कह ही रही थी कि तभी उसकी नज़र कार से निकलते उसके ड्राइवर पर गई तो उसकी आंखे हैरानी से फैल गई । 

    उसके सामने ही अश्वत चलते हुए उसके सामने आ चुका था । चाहत हैरान से अपनी पलके झपकाने लगी । अश्वत उसके सामने आकर रुका और उसे घूर कर बोला । 

    " क्या बोल रही थी तुम ? ये गालियां देनी कहां से सीखी तुमने ? जब शादी हो रही थी तब तो मम्मी ने कहा था कि तुम संस्कारी हो तो ये गालियां कब से देने लगी .. "

    उसकी बात सुनकर चाहत को भी गुस्सा आ गया उसने भी चिल्ला कर कहा । 

    " हां तो जब कुत्तों और सुअर की नस्लों के साथ रहते हो तो गालियां सबको आ ही जाती है .. " चाहत ने कहा तो अश्वत की भौंहे सिकुड़ गई ।



    उसके कहने का मतलब क्या था । क्या वो उसे सुअर और कुत्तों से कंपेयर कर रही थी । क्या इतना बेकार था वो । दोनो ही एक दूसरे को घूरे जा रहे थे और कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था । जहां चाहत को अश्वत को हरकतों पर गुस्सा आ रहा था । वहीं अश्वत वो चाहत के बारे में कुछ जानना चाह रहा था जिस वजह से वो अब उसके करीब आने की कोशिश कर रहा था । 









    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 

    क्या अश्वत जान पाएगा कभी चाहत के बारे में ? 

    क्या चाहत फंसी रह जायेगी इस कहानी में हमेशा के लिए ? 



    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel

  • 17. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 17

    Words: 1282

    Estimated Reading Time: 8 min

    रात का समय था जब सड़क के किनारे खड़े वो दो इंसान एक दूसरे को घूरे जा रहे थे । जहां चाहत उसे सुअर और कुत्तों से कंपेयर कर रही थी वहीं उसकी ये बात सुनकर अश्वत के गुस्से का पारा जैसे दिल्ली में पड़ती गर्मी की तरह बाद बढ़ता ही चला गया । उसने गुस्से में उसकी बाहें पकड़ ली और घूर कर बोला । 

    " तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई मुझे कुत्तों और सुअर से कंपेयर करने की? तुम्हे पता भी है मेरे पीछे कितनी लड़कियां पागल है ? every girl wants to have me.. " 

    अश्वत की बात सुनकर चाहत ने उसे घूर कर देखा और फिर अपना हांथ उससे छुड़ाते हुए बोली । 

    " हां हां वांटेड तो तुम हो लेकिन लड़कियों में नही बल्कि म्युनिसिपार्टी वाले , कुत्तों को पकड़ने के लिए ... आज कल शहर में बहुत सी गाडियां घूमती है आवर कुत्तों को पकड़ने के लिए देखना कहीं तुम्हे लेकर ना चले जाए .. ले जाएं तो भी अच्छा ही होगा .. " चाहत ने अपनी बात बड़बड़ाते हुए पूरी की । 

    उसे लगा कि शायद अश्वत ने उसकी बात नही सुनी होगी लेकिन ऐसा नहीं था । अश्वत ने उसकी पूरी बात सुनी थी और अब वो उसे और भी ज्यादा गुस्से में घूर रहा था। चाहत ने मुंह बनाए हुए उसे देखा और फिर घूम कर जाकर कार में बैठती हुई बोली । 

    " चलो अब .. मुझे घर भी जाना है बहुत भूख लगी है .. " 

    अश्वत ने उसे देख कर अपने दांत भींच लिए । ये लड़की उससे पंगा ले रही थी । उसे कभी कुत्तों से तो कभी सुअर से कंपेयर कर रही थी । उसके पीछे लाखो लड़कियां मरती थी लेकिन ये लड़की जो इस वक्त उसकी कार में बैठी थी वो अलग थी । वो उसके मुंह पर उसे कुत्ता सुअर ना जाने क्या क्या कह रही थी । अश्वत ने भी सोच लिया था कि आज वो उसे सबक सीखा कर ही रहेगा । वो कार में आकर बैठा और चाहत की तरफ देखा जो बाहर की तरफ देखे जा रही थी । 

    " तो तुम मुझे मेरे ही मुंह पर सुअर और कुत्ता कह रहीं हो ? " अश्वत ने उसकी तरफ देख कर कहा । 

    उसकी इस बात पर चाहत उसकी तरफ मुड़ कर मुस्कुराई । 

    " हां बिलकुल .. जैसी तुम्हारी हरकते हैं न , तुम्हे तो जानवर घोषित कर देना चाहिए , लेकिन नही तुम तो जानवर के नाम पर भी धब्बा हो .. कुत्ते कहीं के .. " चाहत ने अपनी बात गुस्से में चिल्ला कर पूरी की थी । अश्वत हल्के से मुस्कुराया । जाहिर सी बात थी ये उसकी साधारण मुस्कान नही बल्कि शैतानी से मुस्कान थी । 

    " तो अब तुम्हे ये कुत्ता बताएगा कि ये क्या क्या कर सकता है .. "

    अश्वत ने उसकी तरफ देख कर कहा और सीधे उसके ऊपर आ गया । चाहत ने अपनी आंखे फाड़े उसकी तरफ देखा और समझने की कोशिश करने लगी कि  आखिर वो क्या करना चाहता है । इससे पहले कि वो कुछ भी समझ पाती अश्वत ने उसके बालो को पकड़ कर उसके सिर को ऊपर किया और सीधे उसकी गर्दन पर अपने होंठ रख दिए । चाहत की धड़कने एक पल को रुकी और फिर तेजी से धड़कने लगी । उसे समझ नही आ रहा था कि उसे अब क्या करना चाहिए । 

    अश्वत का यूं अचानक से करीब आ जाना उसके दिल को धड़का गया था । अभी वो हैरान थी ही कि तभी उसकी चीख निकल गई जब अश्वत उसकी गर्दन को काटने लगा । चाहत अपने गले पर उसके दांतो को महसूस कर सकती थी । वो दर्द में चिल्लाने लगी । 

    " कुत्ते कमीने कहीं के छोड़ो मुझे , आह छोड़ो मुझे दर्द हो रहा है जानवर .. " 

    चाहत चिल्ला रही थी लेकिन अश्वत उसे छोड़ने को तैयार नहीं था । वो उसके कंधो पर तेजी से मारे जा रही थी लेकिन उसे तो जैसे इससे फर्क ही ना पड़ता हो । उसके कानो में तो बस चाहत की कही हुई बात गूंज रही थी जिसमे वो उसे कुत्ते से कंपेयर कर रही थी । जिसके गुस्से में आकर वो उसकी गर्दन की अपने दांतो से काटे जा रहा था । 

    यहां चाहत का चेहरा लाल पड़ गया था । अश्वत उसके साथ बेरहम हो चुका था । उसकी आंखो से आंसू बह रहे थे , वो दर्द में चिल्ला रही थी लेकिन अश्वत को इन सबसे कोई फर्क नही पड़ रहा था । जब उसका मन भरा तब जाकर उसने उसकी गर्दन को अपने दांतो से रिहा किया और उससे थोड़ा सा दूर हुआ लेनिन ज्यादा नही । वो अब भी उसके ऊपर झुका हुआ था। 

    अश्वत उससे दूर हुई तो उसके होंठो पर खून लगा हुआ था जो चाहत का ही था । चाहत ने गुस्से में अपनी लाल नम आंखों से उसे घूरा और उसे थप्पड़ मारने ही वाली थी कि तभी अश्वत ने उसका हांथ पकड़ कर उसे रोक दिया और उसके हाथों को पीछे की तरफ मोड़ दिया । 

    " कोशिश भी मत करना वरना अभी जो सजा तुम्हे मिली है तो बस एक झलक थी , मैं तुम्हे चलने लायक भी नहीं छोडूंगा .. और आगे से मुझे प्रोवोक करने की कोशिश भी मत करना वरना ये कुत्ता क्या कर सकता है इसके बारे में तुम सोच भी नही सकती .. आई बात समझ में ?  " अश्वत ने अपनी उन भूरी चमकती आंखों के साथ उसे घूर कर धमकाते हुए कहा तो वो डर गई । 

    उसने जल्दी से अपना सिर हां में हिला दिया । अश्वत मुस्कुराया और उससे दूर होकर अपनी सीट पर वापस बैठ गया । चाहत ने उसकी तरफ एक बार भी नही देखा और अपनी आंखों से आंसू पोछने लगी । यहां अश्वत ने एक बार फिर उसे देखा और फिर अपने होंठो पर लगे उस खून को अपने जीभ से लिक कर लिया । इसके बाद उसने कार आगे बढ़ा दी । 











    कुछ ही देर में वो दोनो घर पहुंचे तो चाहत उसे बिना कुछ बोले और देखा वहां से अंदर चली गई । अश्वत भी उसके पीछे पीछे आ गया । जब उन्होंने हॉल में कदम रखा तो उनके सामने ही अक्ष और शालिनी जी एक साथ आ रहे थे । अश्वत ने उन्हें देखा और बिना कुछ बोले वहां जाने लगा कि तभी उसके बढ़ते कदम रुके और उसके कानों में अक्ष की आवाज सुनाई दी । 

    " भाभी ये आपकी गर्दन पर क्या हुआ है ? ये किसने काट लिया आपको ? " 

    अश्वत के होंठो पर शैतानी मुस्कान आ गई और वो अपने कमरे में जाने के बजाय वहीं हॉल में बैठ कर सामने रखे ग्लास में से पानी पीने लगा । अक्ष का सवाल सुनकर चाहत की नजरें अपने आप में ही अश्वत की उठ गई जो खुद उसकी तरफ ही देखे जा रहा था इस इंतजार में कि अब वो क्या जवाब देगी । 

    अक्ष ने जब चाहत की नजरो का पीछा किया तो उसने देखा कि अश्वत और वो दोनो एक दूसरे को ही घूरे जा रहे थे । लेकिन शायद अक्ष को कोई गलतफहमी हो गई । उसे लगा कि वजह अश्वत को नाराजगी से घूर रही थी जबकि असल में तो वो उसे डेथ स्टेयर दे रही थी । अगर चाहत का बस चलता तो वो इसी वक्त अश्वत की जान ले लेती लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था । अभी वो कुछ नही कर सकती थी सिवाय घूरने के ।











    आखिर क्या होने वाला था ? 

    क्या जवान देगी चाहत अक्ष के सवाल का ? 

    अक्ष को हो गई है गलतफहमी अब क्या करेगा वो ? 

    कब तक सहेगी चाहत अश्वत की इन कुत्तों वाली हरकतों को ? 



    आगे  जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel

  • 18. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 18

    Words: 1421

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात का समय था जब अक्ष चाहत और अश्वत को एक दूसरे की घूरते हुए देख रहा था और उसे लग रहा था कि वो चाहत अश्वत को नाराजगी से घूर रही थी । जबकि चाहत तो उसे डेथ स्टेयर दे रहे थी । अक्ष ने जब उन्हें इस तरह एक दूसरे को देखते हुए पाया तो उसने अपना गला खंखारा जिस सुनकर वो दोनो होश में आए । वजह अक्ष से कुछ कहने वाली थी कि तभी अक्ष ने कहा । 

    " कोई बात नही भाभी ,आपको आपके और भाई के बीच हुई बातें हमे बताने की जरूरत नही है , आप जाओ .. " 

    अक्ष की बात सुनकर चाहत ने अपना सिर हिलाया और वहां से जाने लगी लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि अक्ष क्या कहना चाह रहा था । 

    " अरे लेकिन ऐसा कुछ नही है .. " 

    " हां मैं समझ गया आप जाओ .. " अक्ष ने कहा और अपना सिर घुमा कर मुस्कुराने लगा । अक्ष और शालिनी जी दोनो दबी हंसी हंसते हुए वहां से चले गए ।

    यहां चाहत ने उन्हें जाते हुए देखा और अब वो चिढ़ चुकी थी । उसने गुस्से में घूर कर अश्वत को देखा जो इस वक्त फोन में देख कर मुस्कुरा रहा था । लेकिन असल में तो वो चाहत की हालत पर हंस रहा था । उसे ये देख कर ना जाने क्यों लेकिन अच्छा लग रहा था जब चाहत चिढ़ जाया कर रही थी । उसके लिए तो वो वृंदा ही थी लिकन असल में तो वो चाहत थी ।

    चाहत ने जब उसे ऐसे मुस्कुराते हुए देखा तो जैसे उसके बदन में आग लग हो । उसने उसे गुस्से में घूर और फिर उसके सामने जाकर उसका फोन छीन लाया । अश्वत ने उसे हैरानी से घूरा और फिर उसकी तरफ देख कर बोला । 

    " अब क्या हो गया है तुम्हे ?" 

    " ये सब ना सिर्फ तुम्हारी वजह से हो रहा है क्या जरूरत थी मुझे कुत्ते की तरह काटने की ? " चाहत ने गुस्से में कहा तो अश्वत भी उठ खड़ा हुआ उससे लड़ने के लिए । 

    " मैने क्या किया है ? तुमने क्यों मुझे कुत्ते से कंपेयर किया ? अगर तुम ऐसा नही करती तो मैं भी तुम्हे नही काटता और तुम फिर से मुझे कुत्ते से कंपेयर कर रही हो क्या तुम फिर से से पाना चाहती हो ? " अश्वत ने उसके सामने खड़े होकर उसे घूर कर कहा तो चाहत ने अपना मुंह बना लिया ।

    " भाड़ में जाओ तुम .. " चाहत ने गुस्से में अपने पैर को पटकते हुए कहा और वहां से चली गई ।

    यहां अश्वत उसे जाते हुए देखता रहा और अचानक ही उसके होंठो पर मुस्कान आ गई । उसने अपने बालो में हाथ फेरे और फिर मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चला गया ।

    वहीं दीवाल की ओट में छिपे शालिनी जी और अक्ष बाहर आए और एक दूसरे को नासमझी में देखने लगे । उन्हे समझ नही आया कि आखिर चाहत और अश्वत के बीच चल क्या रहा था । वो दोनो हमेशा ही लड़ते हुए दिखाई देते थे ऐसे में को उनके बीच नजदीकी कैसे ला पाएंगे । शालिनी जी ने अपना सिर पकड़ कर अक्ष को देख कर कहा । 

    " ये दोनो तो मेरी समझ से परे हैं , पता नही कब तक ऐसे ही लड़ते रहेंगे . और अगर ऐसे ही दोनो लड़ते रहे तो फिर हमारे प्लान के बारे में क्या होगा . " 

    " आंटी आप चिंता मत करो चाहे ये राज कितनी भी मुश्किल क्यों न हो लेकिन नामुमकिन नहीं है .. और वैसे भी आपने मूवीज में नही देखा क्या , जब हीरो हीरोइन लड़ते हैं तभी उनके बीच प्यार बढ़ता है , तो आप इन दोनो को लड़ने दो क्या पता ये दोनो खुद ही एक दूसरे के प्यार में पड़ जाएं .. " अक्ष ने उनके कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना देते हुए कहा । 

    " हां शायद तुम सही कह रहे हो , तुमने एक बात नोटिस की ? " शालिनी जी ने उसकी तरफ देख कर कहा तो अक्ष ने अपना सिर ना में हिला दिया । 

    " यही कि अश्वत को किसी ने भी वृंदा को लेने जाने के लिए नही कहा लेकिन फिर भी वो उसे लेने गया ,, इसका मतलब .. " शालिनी जी कह ही रही थी कि तभी अक्ष ने उनकी तरफ देख कर खुशी से कहा । 

    " इसका मतलब यही है कि शायद हमारा प्लान कामयाब हो जाए , " उसकी बात सुनकर शालिनी जी मुस्कुरा दी और बोली । 

    " हम होंगे कामयाब एक दिन एक दिन .. " अक्ष भी उनकी इस बात पर मुस्कुरा दिया ।







    अश्वत अपने ऑफिस में बैठा लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था कि तभी कोई बिना उसके केबिन में नॉक किए आ गया । अश्वत ने अपनी कड़क आवाज में बिना सामने की तरफ देखे ही कहा । 

    " किसकी मौत आई है जो बिना इजाजत के अंदर आ गया .. " 

    उसकी वो खतरनाक और हड्डी कंपकपा देने वाली आवाज सुनकर किसी की भी रूह कांप जाती लेकिन सामने खड़े इंसान को तो जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा था । वो बिना कुछ बोले चुप चाप चलते हुए उसके सामने आया और सामने पड़ी चेयर पर बैठते हुए बोला । 

    " मुझे नही पता था कि अब मुझे यहां आने के लिए तुमसे परमिशन लेनी पड़ेगी .. " 

    ये आवाज अश्वत ने सुनी हुई थी । उसने अपनी नजरें उठा कर देखा तो उसके ठीक सामने अनिरा बैठी हुई थी । अश्वत कुछ पल उसे देखता रहा और अगले ही उसके होंठो पर मुस्कान आ गई जो पहले किसी ने नहीं देखी थी । वो अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ तो अनिरा भी खड़ी हो गई । अश्वत उसके गले लगा और फिर अलग होते हुए बोला । 

    " बहुत दिनों बहस दिखी , कुछ काम था मुझसे ? "

    अश्वत ने कहा तो अनिरा ने अपना सिर हां में हिला दिया । 

    " हां मुझे ना तुम्हे इन्वाइट करना था अपनी पार्टी में ,, तुम तो जानते ही हो कि दो दिन बाद मेरी और रिधान की फर्स्ट वेडिंग एनिवर्सरी है ,तो हमने पार्टी अरेंज की है , मैं चाहती हूं कि तुम वहां जरूर आओ ... " अनिरा ने उसके सामने इन्विटेशन कार्ड बढ़ाते हुए कहा तो अश्वत ने उसे ले लिया और देखने लगा । 

    अंग्रेजी के उन खूबसूरत के अक्षरों में लिखा रिधान और अनिरा का साथ में लिखा वो नाम जैसे अश्वत को रास नहीं आया । उसने अपनी नजरें उठा कर अनिरा को देखा तो वो मुस्कुराते हुए उसे ही देख रही थी और सोच रही थी कि अश्वत उसे ना नही कहेगा । लेकिन जो आगे अश्वत ने कहा उसे सुनकर वो हैरान रह गई । 

    " सिर्फ मैं ? वृंदा नही ?" अश्वत ने कहा तो अनिरा हैरान रह गई । उसे विश्वास नही हुई कि अश्वत वृंदा के बारे में खुद उससे बात कर रहा था । पहले तो जब भी वो उसकी बात किया करती तब वो उससे नाराज हो जाया करता या फिर उसे डांट दिया करता क्योंकि उसे वृंदा के नाम से भी चिढ़ थी । फिर आज क्या हो गया था उसे । यही सब अनिरा सोच रही थी कि तभी अश्वत ने अपनी बात आगे बढ़ाई । 

    " अगर वृंदा को तुम नही बुला सकती तो सॉरी लेकिन जहां मेरी बीवी नही जाएगी वहां मैं भी नही जा सकता .. " 

    अश्वत के मुंह से ये बात सुनकर अनिरा की हैरानी का कोई ठिकाना ही नहीं था । जहां अब तक वो वृंदा के नाम से भी चिढ़ जाया करता था फ्री इन दिनों ऐसा क्या हो गया था जो अश्वत इतना बदल गया था । अनिरा ने हैरानी से उसे देखा और फिर बोली । 

    " लेकिन पिछली बार पार्टी में जो हुआ उसके बाद तुम्हे नही लगता कि वो ऐसी पार्टीज के लिए नही बनी है , उसका घर पर ही रहना सही है ,, " अनिरा की बात सुनकर अश्वत ने उसे घूर कर देखा । । अनिरा ने जब उसे खुद को घूरते हुए देखा तो उसे एहसास हुआ कि उसने कुछ गलत कह दिया । लेनिन शायद वो सही भी थी पिछली बार पार्टी में ही हुआ था उसके बाद कौन ही वृंदा को बुलाना चाहेगा । 











    आखिर क्या हुआ था उस पार्टी में ? 

    क्या हुआ है अश्वत को जो वो इतना बदल चुका है ? 

    क्या अनिरा सच में अच्छी है या फिर वो एक दिखावा है?

    क्या करेगा अब अश्वत ? 

    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel

  • 19. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 19

    Words: 1408

    Estimated Reading Time: 9 min

    सुबह का समय था जब अश्वत अपने ऑफिस में सामने बैठी अनिरा को देख रहा था जो इस वक्त उसके लिए अपनी एनिवर्सरी का इन्विटेशन लाई थी। अश्वत ने वृंदा यानी चाहत को भी अपने साथ ले जाने की बात कही लेकिन अनिरा की बात सुनकर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था । 

    " अश्वत तुम्हे भी पता है कि पिछली बार मैंने वृंदा को बुलाया था तब उसने पार्टी में क्या तमाशा किया था और अब मैं ये नहीं चाहती , इसलिए मैं सिर्फ तुम्हे बुलाने के लिए आई हूं .. मैं नही चाहती कि पिछली बार की तरह फिर से मेरी पार्टी खराब हो .. " अनिरा ने कहा तो अश्वत का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था । 

    पिछली बार की पार्टी में वृंदा ने हरकते ही ऐसी की थी जिसके बाद कोई भी उसे अपने घर नही बुलाना चाहेगा । उसने शराब पीकर वाहन बहुत तमाशा किया था । हर कोई उसके ऊपर हंस रहा था क्योंकि वो गांव की लड़की थी जिसे शहरी तौर तरीके नही पता थे और ना ही उसे अंग्रेजी आती थी । उस पार्टी ने वो बस मजाक बन कर रह गई थी । और इस सबने अश्वत ने भी उसकी कोई मदद नहीं की थी बल्कि उसने उसे सजा दी थी पूरी राय घर से बाहर रहने की । उस रात बहुत बारिश हुई थी जिसके बाद वृंदा बुखार से तप रही थी लेकिन अश्वत उसे देखने तक नही गया । 

     उस  दिन के बाद अश्वत उसे कहीं भी अपने साथ लेकर नही जाना चाहता था  लेकिन इस बार उसे ना जाने क्या हो गया था जो वो बिना वृंदा के कहीं भी जाने की बात पर सीधे मना ही कर दे रहा था । यहां तक कि उसने अनिरा की पार्टी में भी जाने से मना कर दिया । 

    " अगर वृंदा नही आ सकती तो फिर इस पार्टी में मेरा भी कोई काम नही है .. मेरी बीवी के बिना मैं कहीं भी नही जाऊंगा .. " अश्वत ने कहा और वो इन्विटेशन कार्ड वापस उसकी तरफ बढ़ा दिया । 

    अनिरा का चेहरा काला पड़ चुका था अपने इन्विटेशन कार्ड को वापस पाकर । आज तक उसे किसी ने भी इस तरह से मना नही किया था । वो सबकी जिंदगी की पहली प्रायोरिटी थी लेकिन आज जिस तरह से अश्वत ने उसकी पार्टी को ठुकरा कर वृंदा को चुना था ये उसके दिल को कचोट गया । ऐसे कैसे अश्वत उसकी पार्टी में आने से मना कर सकता था । आखिर वो उसका इकलौता दोस्त था । 

    अनिरा ने कुछ सोचा और फिर एक मुस्कान के साथ अश्वत के सामने वापस इन्विटेशन कार्ड को बढ़ाते हुए बोली। 

    " ठीक है तुम वृंदा को ला सकते हो लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इस बार कोई तमाशा बनाए , पिछली बार की तरह मैं रिधान को गुस्सा नही दिला सकती .. " 

    " जब तक वृंदा को कोई कुछ नही कहेगा वहां कोई तमाशा नही होगा .. " अश्वत ने कहा और उसके हांथ से वो इन्विटेशन कार्ड ले लिया । 

    अनिरा उसे देख मुस्कुराई और फिर वहां से चली गई । उसके जाने के बाद अश्वत ने उस इन्विटेशन कार्ड को देखा और फिर यूं ही बेमन सा टेबल पर पटक दिया । वो चुपचाप अपने काम में लग गया । उसे देख समझ नही आ रहा था कि आखिर वो करना क्या चाह रहा था । कभी वो अनिरा के करीब जाना चाहता था तो कभी वो चाहत की मदद किया करता । अब अश्वत के मन में क्या चल रहा था ये तो सिर्फ वही जानता था । 











    रात हो गई थी तो चाहत घर जाने की तैयारी कर रही थी जब उसकी शॉप में अक्ष आ गया । चाहत ने जब उसे देखा तो वो खुश हो गई । उसने एक पीस केक का उठाया और उसे देते हुए बोली । 

    " अच्छा हुआ तुम आ गए चलो अब इसे खाकर बताओ कैसा बना ही , आज ही मैने ट्राई किया है बनाने का.. " चाहत ने कहा तो अक्ष ने मुस्कुरा कर उससे वो प्लेट ले ली।  

    और पहला निवाला खाने को हुआ लेकिन तभी किसी ने उसके हांथ से वो प्लेट छीन ली । अक्ष ने अपना सिर घुमा कर देखा तो वहां पर अश्वत खड़ा हुआ था । चाहत ने अपना मुंह बना कर घूरा और यही सोचने लगी कि आखिर ये आदमी हर बार उसके सामने आ कैसे जाता है । अच्छा खासा वो अपनी जिंदगी में रहने की कोशिश कर रही थी लेकिन जब भी इस इंसान का चेहरा देखती तो उसका सारा मूड खराब हो जाया करता । 



    अश्वत ने अक्ष के हांथ से प्लेट छीन ली थी और जल्दी जल्दी उसने उस केक को खाना शुरू कर दिया । जब अक्ष ने उसे इस तरह से खुद से छीन कर खाते हुए देखा तो उसने अपना मुंह बना कर उसे देखा । 

    " तुझे मेरी ही प्लेट क्यों छीननी थी , अगर खाना ही था तो दूसरा कुछ ले लेता लेकिन नही तुझे वही चीज पसंद आती है जो मुझे खानी होती है . " कहते हुए अक्ष गुस्सा हो गया । 

    चाहत जो खुद इस वक्त अश्वत को घूर रही थी उसने जब अक्ष की बात सुनी तो उसने दूसरी प्लेट निकाली और उसमे केक रखते हुए बोली ।

    " कोई बात नही तुम इसे खाओ वो वैसे भी बेकार ही था ... "

    उसकी बात सुनकर अश्वत ने उसे घूर कर देखा तो उसने अपने मुंह बना दिया । चाहत ने वो प्लेट अक्ष को दी लेकिन इससे पहले कि वो ले पाता अश्वत ने उससे वो प्लेट भी छीन ली और खुद खाने लगा । 

    अब चाहत की भी गुस्सा आ चुका था वो बाहर आई और अश्वत पर गुस्से में चिल्लाते हुए बोली । 

    " आखिर तुम्हारी प्रोब्लम क्या है ? क्यों परेशान कर रहे सबको ? " 

    अश्वत चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गया और केक खाते हुए बोला । 

    " मैने क्या किया है ? मैं तो बस केक खा रहा हूं,,  हम्म ठीक है लेकिन इतना भी अच्छा नहीं है .. " 

    " नही ये सच में बहुत अच्छा है .. " इस बार अक्ष ने कहा था जो इस वक्त दूसरी प्लेट में केक निकाल कर खा रहा था क्योंकि अश्वत तो उसे चैन से जीने नही देता । 

    चाहत ने अक्ष की तरफ मुड़ कर देखा और अपनी तिरछी नजरों से अश्वत की तरफ देख कर बोली ।

    " मुझे पता ही था तुम्हे ये पसंद आयेगा , वैसे भी कुछ लोग सुअर की तरह होते हैं जिन्हें सिर्फ गोबर ही पसंद आता है .. " 



    जहां उसकी बात सुनकर अश्वत उसे घूर कर देख रहा था वहीं अक्ष की हंसी निकल गई । अक्ष को मुंह दबाए हंसते देख कर अश्वत ने उसे घूरा तो वो चुप हो गया । एक बार फिर चाहत ने उसे सुअर कह ही दिया था । अश्वत भी समझ नही पा रहा था कि आखरी चाहत इतनी कैसे बदल गई थी । लेकिन जो भी था सही ही था । 







    कुछ समय बाद वो सब घर जा रहे थे कि तभी चाहत अक्ष की कार में बैठने गई लेकिन उससे पहले ही अश्वत उसे अपने साथ ले जाते हुए बोला । 

    " मुझे तुमसे कुछ बात करनी है तुम मेरे साथ चलो .. " 

    इतना कह कर अश्वत ने उसे कार में बिठाया और खुद भी दूसरी तरफ से आकर बैठा और कार आगे बढ़ा दी । 

    यहां अक्ष उन दोनो को जाते हुए देख रहा था । अचानक ही वो हंसने लगा । उसने शालिनी जी को फोन किया और फिर बोला । 

    " आंटी सच में आज आपका प्लान काम कर गया , अश्वत को मुझसे जलन हो रही है मतलब सच में ? क्या बच्चो जैसे हरकते कर रहा था , सच कहूं ना अगर आप यहां होते ना तो आप विश्वास ही नहीं कर पाते कि वो आपका बेटा है .. " 

    " मैं तो बस यही चाहती हूं कि वो दोनो हमेशा खुश रहे .. अब दोनो एक हो जाए बस और कुछ नही चाहिए मुझे .. " दूसरी तरफ से शालिनी जी ने कहा तो अक्ष भी बोला । 

    " बिल्कुल आपकी ये इच्छा जरूर पूरी होगी एक दिन.  " अक्ष ने कहा और कॉल कट कर दिया । 









    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 

    क्या करना चाहती है अनिरा? 

    क्या चाहत मान जाएगी अनिरा की पार्टी में जाने के लिए ? 

    क्या हो गया है अश्वत को ? 



    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel

  • 20. Rebirth in Novel as Villains wife - Chapter 20

    Words: 1346

    Estimated Reading Time: 9 min

    रात का समय था जब कार में बैठी चाहत गुस्से में मुंह फुलाए हुए थी । वहीं अश्वत चुप चाप कार चलाए जा रहा था । जब काफी देर तक अश्वत ने कुछ भी नही कहा तो चाहत का गुस्सा बढ़ता जा रहा था । आखिर में उसने गुस्से में अश्वत को घूरा और उसकी तरफ देख कर बोली । 

    " आखिर तुम चाहते क्या हो ? पहले मुझे वहां से ले आए ये कह कर कि तुम्हे मुझसे बात करनी है और अब गोबडउला की तरह मुंह फुलाए हुए क्यों बैठे हुए हो .. " 

    अश्वत ने जब उसकी बात सुनी तो उसके होंठो पर मुस्कान आ गई और जब उसकी बात पूरी होने आई तो उसका मुंह बन गया था । 

    "  क्या कहा तुमने ? गोबर क्या ?  ये क्या होता है ? " अश्वत ने अपनी भौंहे सिकोड़ कर कहा । 

    चाहत ने उसकी तरफ देखा और फिर अपना  सिर दूसरी तरफ घुमाते हुए बोली । 

    " जब हमारे गांव में बारिश होती है ना तो गोबर के ढेर में कीड़े पड़ जाते हैं उन्हे हम लोग गोबडउला बोलते हैं.. अब खुश हो ? " 

    चाहत की बात सुनकर अश्वत ने एक झटके में कार रोकी । चाहत का सिर डैशबोर्ड से टकराते हुए बचा क्योंकि उसने अपनी सीट पकड़ ली थी । 

    " गोबर का कीड़ा ? तुम मुझे बताओ तुम मुझे ये जानवर और कीड़े मकोड़ों से कंपेयर करना कब बंद करोगी ? " अश्वत ने गुस्से में घूर कर उसे कहा । 

    " कभी भी नही तुम इसी लायक हो .. " चाहत ने कहा और अपना सिर घुमा कर बैठ गई । 

    अश्वत ने अपने दांत भींच लिए । ये लड़की हर बार उसे कुछ उल्टा सीधा ही बोलती थी । अश्वत ने किसी तरह अपने गुस्से को शांत किया क्योंकि इस बार उसे चाहत से काम था । अश्वत ने बिना कुछ बोले कार आगे बढ़ा दी। 

    " अब बोलोगे क्यों बुलाया है मुझे यहां ? " आखिरकार चाहत ने पूछ ही लिया । 

    अश्वत ने उसकी बात सुनी और फिर कार्ड उसकी तरफ बढ़ा दिया । चाहत ने उसे देखा और फिर उस कार्ड को नीले रंग का था । उसने उसके हांथ से वो कार्ड लिया और खोल कर पढ़ने लगी । जैसे जैसे वो उस कार्ड को पढ़ रही थी वैसे वैसे उसे समझ आ रहा था कि वो कार्ड अनिरा और रिधान की शादी का है और साथ ही ये भी समझ आया कि अश्वात ने उसे ये कार्ड क्यों दिया था । वो समझ रही थी कि अश्वत उसे अपने साथ ले जाना चाहता है लेकिन इसकी जरूरत ही क्या थी । वो तो वैसे भी अनपढ़ और गवार थी सबके लिए फिर ये करने की कोई जरूरत ही नही थी । 

    चाहत ने कार्ड को बंद करके वहीं सामने ड्रॉर में रख दिया और फिर बिना उसकी तरफ देखे बोली । 

    " तुम ये मुझे क्यों दे रहे हो मुझे वैसे भी वहां जाने की कोई जरूरत नहीं लगती जरूर बुलाया भी सिर्फ तुम्हे ही गया होगा .. जो पिछली बार हुआ उसके बाद मुझे नही लगता कि कोई मुझे बुलाना भी चाहेगा .. " 

    अश्वत आज पहली बार नर्वस फील कर रहा था चाहत के आगे । आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था । उसे नर्वेसनेस फील हो रहा था इसलिए इस वक्त उसके हांथ स्टीयरिंग पर कस चुके थे । 

    यहां चाहत अपनी ही सोच में गुम थी । उसने कहानी में पढ़ा था कि वृंदा जब पहले अनिरा की पार्टी में गई थी तब उसके साथ बहुत गलत हुआ था । वो शराब भी उसने नही पी थी बल्कि अनिरा ने उसे बहाने से पिलाई थी । चाहत सब कुछ जानती थी उस कहानी के बारे में जिसमे मेन लीड हीरो हीरोइन नही बल्कि विलेन थे वो भी दूसरो की जिंदगी के । 

    " तुम मेरे साथ चल रही हो ..." अश्वत ने कार ड्राइव करते हुए कहा । 

    " मैं कहीं भी नही जाऊंगी तुम्हारे साथ , और उस सड़े केले की सब्जी की पार्टी में तो बिल्कुल भी नही .. " चाहत ने गुस्से में कहा । 

    चाहत कह भले रही थी लेकिन अश्वत को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसे उसकी बातो से कोई फर्क ही ना पड़ता हो । कुछ ही पल में उसने एक शोरूम के सामने अपनी कार रोकी तो चाहत हैरान रह गई उस शोरूम को देख कर । वो इस  शहर का सबसे मशहूर और बड़ा शोरूम था । चाहत ने अश्वत की तरफ देखा जो अब उसकी तरफ आकर दरवाजा खोल रहा था । 

    " चलो बाहर आओ ... हम लोग शॉपिंग करने जा रहे हैं .." अश्वत ने कार के दरवाजे से टीक कर कहा । 

    " मैने तुमसे पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं मैं कहीं भी नही जाऊंगी तुम्हारे साथ ,,, " चाहत ने चिल्ला कर कहा। 

    " तो तुम बाहर नही आ रही हो ? " अश्वत ने एक बार फिर सवाल पूछा तो चाहत ने चिल्ला कर ना में जवाब दे दिया और फिर अपना सिर फेर कर बैठ गई। 

    अश्वत ने अपना सिर ना में हिलाया और अपना कोट निकाला । उसने अपना कोट हांथ में लिया और उसे चाहत की तरफ से ही ड्राइवर सीट पर रख दी । वहीं उसके इस मूव से चाहत अपनी आंखे फाड़े उसे देखे जा रही थी । इस वक्त उसके दिल की धड़कने तेजी से बढ़ी हुई थी । वहीं अश्वत जब पीछे होने लगा तो उसका ध्यान चाहत पर गया जो अपनी आंखे फाड़े खुद उसे घूरे जा रही थी । अश्वत उसे देख कर मुस्कुरा दिया और उसने कब उसकी आंखो में देखते हुए सीट बेल्ट खोल दिया पता ही नही चला। 

    चाहत अभी उसकी आंखो में देखने ने गुम थी कि तभी अश्वत ने उसे अपनी गोद में उठा लिया । उसकी इस हरकत पर चाहत हैरान रह गई और उसके गले के आसपास अपने हांथ लपेट दिए । 

    " नालायक कहीं के ये क्या कर रहे हो ? छोड़ो मुझे अभी के अभी नही तो मार मार के तुम्हारा भरता दूंगी ,,, " चाहत चिल्लाई जा रही थी लेकिन अश्वत को कोई फर्क ही पड़ा । 

    वो उसे यूं ही गोद में उठाए आगे बढ़ता जा रहा था । आसपास के लोग उन्हें ही देखे जा रहे थे । अश्वत उसे लेकर अंदर गया और उसे सीधे कुर्सी पर बिठाते हुए सामने खड़ी सेल्सगर्ल से बोला । 

    " इनके लिए सबसे महंगी और अच्छी साड़ियां दिखाओ ,,, " उसकी बात सुनकर सेल्स गर्ल ने अपना सिर हां में हिलाया और उसे साड़ियां दिखाने लगी । 

    यहां चाहत गुस्से में उठ कर जाने लगी लेकिन अश्वत ने उसे पकड़ कर वापस बिठा दिया और उसके ऊपर साड़ियां लगा कर देखने लगा कि उस पर कौन सी सबसे ज्यादा अच्छी लगेगी । 

    वहीं पर कुछ लड़कियों का ग्रुप था जो वहां शॉपिंग करने आई थी । उन्होंने जब अश्वत को चाहत को जबरदस्ती शॉपिंग करवाते हुए देखा तो उनमें से एक लड़की ने कहा । 

    " यार बस जिंदगी में एक ऐसा हैंडसम सा लड़का मिल जाए जो मुझे भी ऐसे ही जबरदस्ती शॉपिंग करवाए फिर मजे ही मजे होंगे ,," 

    उन में से एक लड़की ने उन दोनो को तरफ देख कर कहा । 

    " सही कह रही है यार इसके जैसा पति मिलना तो पानी के समंदर में सुई ढूंढने जितना मुश्किल है, उसकी बीवी उससे नाराज है लेकिन फिर भी बेचारा कितनी मेहनत कर रहा है उसे मनाने के लिए .,,, दोनों परफेक्ट कपल है ना " 



    वहीं उन लड़कियों की बात चाहत और अश्वत दोनो के ही कानो में पड़ रही थी । जहां चाहत गुस्से से अब लाल हो चुकी थी । वहीं अश्वत को बड़ा मजा आ रहा था उसे यूं परेशान करते हुए । आखिर क्या करना चाहता है अश्वत ये तो सिर्फ वही जानता था लेकिन इस वक्त उन्हे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो रियल कपल हो । 











    आखिर क्या होने वाला था आगे ? 

    क्या करना चाहता है अश्वत ? 

    क्या चाहत जाएगी अनिरा की पार्टी में ? 

    क्या होगा इन सबका अंजाम ? 



    आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए 

    Rebirth in novel